हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, 'अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।' पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। कोई जगह ऐसी बना दी जाए जहाँ के वाइब्रेशन्स ऐसे हो कि आदमी जा कर के शान्तिपूर्वक वहाँ ध्यान करें और उससे लाभ उठाये, तो अच्छा होगा। लेकिन मुझे कुछ इसमें ज़्यादा समझता नहीं है पैसे-वैसे के मामले में । इसलिये जो भी आप लोगों को इसमें त्रुटि दिखायी दें तो आप मुझे बता सकते हैं। अगर कोई गलती हो जाए, कोई गड़बड़ हो जाए, हालांकि आपको आश्चर्य होगा कि सहजयोग को प्राप्त हुये लोग जो हैं वो इस कदर इमानदार हैं, इतने ज़्यादा इमानदार है कि समझ में नहीं आता है कि इनकी इमानदारी की कोई तुलना किसी से कर सकते हैं या नहीं। किसी भी भय के बगैर ही इतनी इमानदारी इनमें है और इतनी कर्तव्यपरायणता है और इतना प्रेम और इतनी समरसता आपस में है कि आश्चर्य होता है कि ये विभिन्न लोग हैं, विभिन्न धंदे वाले हैं, कोई सरकारी नौकर हैं, कोई कुछ हैं, लेकिन आपस में एक तरह का इतना प्रगाढ़ प्रेम और इतना आदर कि हम लोग सेंट्स हैं और सेंट्स को सेंट्स की रक्षा भी करनी चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा भी रखनी चाहिए। इसका इतना ज़्यादा विचार अन्दर से आया हुआ है कि बड़ा आश्चर्य होता है! जैसे कि आपके यहाँ पर सुब्रमणियम साहब हैं और इन्होंने बहुत प्रगति की सहजयोग में। बहुत ज़्यादा प्रगति की है। और हम देखते हैं कि जो लोग, जो आदमी प्रगति कर लेता है सहजयोग में उसको अपने ही आप मानने लग जाते हैं। हालांकि वो आदमी इतना प्रेममय होता है। वो कोई चीज़ को नहीं, पर अपने ही आप ऐसे आदमी को मानने लग जाते हैं। क्योंकि उससे ऐसे अच्छे, से चैतन्य के सुन्दर कुछ कहता वाइब्रेशन्स आते हैं कि वो मानने लग जाते हैं उसको। वो समझ लेते हैं कि ये आदमी हमसे जरा उँची स्थिति पे अभी पहुँचा हुआ है। और उसके लिये कोई कॉम्पिटिशन नहीं होती। उलटी ये कॉम्पिटिशन यही होती है कि हम इनके जैसे कैसे होंगे? | इनके जैसे अच्छे कैसे बनेंगे? इनके जैसे दाता कैसे बनेंगे? सहजयोग का जो सबसे बड़ा लाभ है वो यही है कि हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे ही हमारे अन्दर प्रकाश आ जाता है वैसे ही हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे कि आप देखते हैं अन्धेरे में जब आदमी चलता है तो उसकी चाल ही समझ में नहीं आती। वो कभी इधर टक्कर मारता है, कभी उधर टक्कर मारता है। लेकिन जैसे ही प्रकाश उसके सामने आ जाता है, वो जानता है कि उसे कहाँ जाना है, कैसे चलना है, मर्यादायें जीवन की और सब चीज़ अपने आप बनने लग जाती हैं। वो स्वयं ही मर्यादा से दूर नहीं हटता है। और हमेशा उसको, एक तरह से उसके आत्मा के प्रकाश का आभास रहता है। और वो उसे छोड़ना नहीं चाहता है। जिस क्षण उसे वो छोड़ देता है उसी क्षण वो देखता है कि उसके वाइब्रेशन्स छूट गये हैं और उसकी शान्ति उससे छूट गयी है। तो उसको चिपकता जाता है । जैसे कि किसी को अमृत मिल जाए तो फिर वो गन्दे नाले में नहीं जाता है। लेकिन ये घटना है। ये लेक्चर से नहीं होगा। मैं जानती हूँ इसका लेक्चर देने से कुछ नहीं होगा। ये पाने की बात है। जब आप पा लेते हैं, और जब आपका वृक्ष इसमें बढ़ जाता है, जब आप उस स्थिति में पहुँच जाते हैं तभी ये होनी घटता है। और तभी आप ऐसे हो जाते हैं। और इसका अनुभव आप लोगों को भी हुआ है। आप में से बहुत लोग पार हो चुके हैं और बहुतों को मिला हुआ है और इसमें आपको भाषा भी जानना जरूरी नहीं है। अभी एक साहब ने मुझे फ्रेंच भाषा में चिठ्ठी लिखी थी मुझे तो फ्रेंच भाषा पढ़ने ही नहीं आती। मतलब पढ़ तो लेती हूँ, पर समझ नहीं आती। सिर्फ वाइब्रेशन्स से में समझ गयी कि इन्होंने कितना प्रेम उसमें भरा हुआ है। ये तो सिर्फ प्याले हैं। प्याले हैं शब्द लेकिन उसके अन्दर का जो सुगन्ध है, उसके अन्दर की जो रस है, जो अमृत है उसकी तृप्ति से ही जो आन्द है वो कहीं अधिक ज़्यादा है। क्योंकि सिर्फ प्याले देखने से होता है। अगर समझ लीजिए बड़े अच्छे प्याले बने हुये हो, बड़े खुबसूरत प्याले बने हों और उसके अन्दर गन्दी सी कोई चीज़ भरी हो , आप पीते ही साथ उसे थूंक देंगे। वो प्याले से आपको कोई मतलब नहीं। और प्याले कैसे भी रहें, लेकिन अन्दर अगर अमृत हो, तो आदमी उसे पीते ही साथ उस अमृतपान से जो वो तृप्ति पाता है वो उन प्यालों से नहीं पाता है। कल मैंने आपको कुण्डलिनी के बारे में बताया था। और उससे आगे मैं आपको बताना चाहती हूँ। हालांकि अब एक बड़ी, अच्छी, नयी किताब निकल आयी है। आप लोग कृपया वो भी ले लें और उसमें काफी बारिकी से चीजें दी गयी हैं। पर ये भी सब शब्द ही शब्द हैं ये समझ लेना चाहिए। अनुभूति के सिवाय, इसमें गहरे बैठे सिवाय सिर्फ ये दिमागी जमा - करने से कुछ नहीं होने वाला। जब आपके अन्दर अवेकनिंग होने लगती है तब अपने आप चेंजेस आने लग जाते हैं । जैसे कि मैंने आपसे कहा कि जैसे आपके अन्दर नाभि चक्र की जागृति होती है तो पहली चीज़ ये हो जाती है कि आदमी में तृप्ति का स्वभाव आ जाता है। उसकी प्रायोरिटीज बदलती जाती है। एक साहब मुझे बता रहे थे कि, 'माँ, हमारे घर में तो कोई भी आता है तो बैठता भी नहीं दो मिनट। भागे जाता है। पता नहीं क्या है हमारे घर में?' और जैसे ही वो पार हो गये, उनके यहाँ रोज ही लोग आने लगे| बड़ा आकर्षण उनमें आ गया। तो मैंने कहा, 'कुछ फरक आया तुम्हें? क्या बात है!' कहने लगे, 'हाँ, मेरी समझ में आयी क्या बात हुई।' कहने लगे कि, 'हालांकि जब लोग आते थे तो मैं कोशिश करता था कि उनको खुश करूँ, उनको चीजें देता था। उनको मैं कहता था, ये लो, ये खाओगे, बैठो ! लेकिन वो लोग पता नहीं कैसे ये समझ लेते थे कि मैं उपरी तरह से कर रहा हूँ। और मेरी बिवी भी ये काम करती थी। उनसे कहती थी, आप ये खा लीजिए, ये ले लीजिए, पर कुछ चीज़ बचा लेती थी। लगता था उसको कि सब चीज़ सामने न रख दें । कहीं सब रखे और सब खा गये तो कैसे होगा। और उसके बाद ये हुआ कि मैंने अपनी बिवि को भी देखा और अपने को भी देखा कि कोई भी आता है तो हम दिल खोल के भैय्या, आ गये, आओ, बैठो। बिल्कुल इन्फॉरमल हो के, अच्छा, क्या खाओगे? अब ये ले लो, वो ले लो। इस तरह से हम सारी के सारी चीज़े उनके सामने रख देते थे । ' और आश्चर्य है कि उनकी बिवी कहने लगी कि, 'पहले मैं इतना बनाती थी कि सब लोग इतना खाते थे उनका मन ही नहीं भरता था। और अब मैं थोड़ासा बनाती हूँ, तो लोग कहते हैं। कि आपके हाथ में इतना स्वाद कैसे आ गया ? इतना अच्छा बनाया और उसको खायेंगे और उसके बाद इतने संतोष से जाएंगे।' धीरे-धीरे फिर वही लोग फिर सहजयोग की ओर आने लगे ये नाभि चक्र की एक विशेषता है कि स्त्र के हाथ में अन्नपूर्णा का वरदान हो जाता है। और जब ये नाभि चक्र पूरी तरह से प्रज्वलित हो जाता है, तो हजारों आदमी भी अगर खाने पे रहे खाना खतम नहीं होगा। संतोष बहुत हो जाएगा। लेकिन लोग अगर सोचे कि कितना बनाया? तो ज़्यादा बनाया नहीं है। लेकिन उसमें संतोष आ जाता है। आपके हाथ से संतोष के वाइब्रेशन्स उसमें चले जाते हैं और आदमी उसे खुशी से खाने लगता है। नाभि चक्र से प्रेम बहुत उमड़ता है मनुष्य के अन्दर, बहुत ही प्रेम उमड़ता है। उसको समझ में नहीं आता है मैं इनको कैसे, क्या दूँ? किस तरह से मैं इनको अपना प्रेम दूँ? हम लोग तो कभी सोचते भी नहीं है। प्यार हमारे अन्दर आता भी नहीं है और आया तो भी हम अपना छूपा लेते हैं प्यार कि कहीं ये न सोच लें कि हम कुछ चाह रहे हैं कि कुछ नहीं। नाभि चक्र के खुलते ही आदमी में इतना प्रेम उमड़ आता है कि उसको लगता है कि में इनको कैसे क्या देँ कि वो दें। और एकदम खुल जाता है। एकदम खुल जाता है। उसको लगता है कि भाई आ गये हैं तो इनको किस तरह से खुश किया जाए। क्या दें? किस तरह से आराम दें? किस तरह से ये करें? वो आर्टिफिशिअल नहीं होता है। हमेशा मानव कितना भी खुद आर्टिफिशिअल हो जाए दूसरे की भी आर्टिफिशिआलिटी जानता है। ये आदमी कितना उपरी तरह से कह रहा है और कितना अन्दर से कह रहा है ये मनुष्य तभी पहचानता है। अपने देहातों में जरूर ऐसे लोग होते हैं कि वो खुश हो जाते हैं अगर उनके पास जाओ तो, और अगर उनको बहुत खुश करना हो.... पहले ऐसे लोग होते थे आज कल तो ऐसे लोग रहे नहीं। हम अपने फादर को जानते हैं कि अगर वो बहुत किसी दिन नाराज हो जाए तो उनसे जा के आप कहिए कि 'आज हमें आइसक्रीम खाना है', तो वो बहुत खुश हो जाएंगे। उनसे ऐसी कोई बात कह दीजिए उससे वो खुश हो जाते थे। इस तरह के पहले लोग होते थे और उस प्यार को, उसको देने में और खिलाने में और लोगों को आनन्द देने में उनको बड़ा आनन्द आता था। वही चीज़ अपने अन्दर इतनी ज़्यादा आ जाती है, याने मेरी तो समझ में नहीं आता कि लोगों को कहूँ तो क्या कहूँ कि अब बहुत हो गया अब आपस के लिए न करो। देहात में गये तो इन लोगों के लिए न जाने इन्होंने क्या-क्या कर दिया। जितना भी कर सकते थे इनके लिये वहाँ कर दिया। ये अंग्रेज लोग कहते हैं कि, 'हमें कभी नहीं मालूम था कि आपके हिन्दुस्तानियों में इतना प्रेम होता है।' और मैंने कहा, 'तुम लोग नहीं हो? तुममें भी तो बहुत प्रेम आ गया है।' उनमें भी आ गया है, तुम में भी आ गया है। सब प्रेम का आन्दोलन चलता है। हम लोग ज़्यादा से ज़्यादा अपने बच्चे या बिवी या घर के दो-चार लोगों को प्यार करते हैं। वो भी पता नहीं कितना करते हैं। उसमें भी हमारा अपना बना ही रहता है। लेकिन समझ लीजिए बहुत दिन बाद अपना बेटा आ रहा हो, लड़ाई से लड़ के, तो फिर हमारा जी करता है कि अब मिले किस तरह से? तब एक बार आती है तबियत कि किस तरह से मिले। उतना ही प्यार, सर्वसाधारण ऐसे मुलाकात में भी, 'अरे वो हैं, चलिये , उनसे मिल ले। वो यहाँ रहते हैं उनको देख लें। उनकी कोई तकलीफ है उसे उठा लें। ये हैं तो वो कर लें ।' इस तरह की चीजें इतनी अन्दर में पनपती है क्योंकि अपने आनन्द की कल्पना ही बदल जाती है। देने में आनन्द आता है। किसी के साथ करने में आनन्द आता है। थोड़ी सी भी चीज़ हो तो आदमी बोलता है कि ये कर दूँ कि वो कर दूँ कि ऐसे कर दूँ कि वैसे कर दूँ। और इसका आनंद हम लोग आजकल आर्टिफिशअली इतना कैलक्यूलेट करते हैं हर एक चीज़ को, उससे नहीं आ सकता। तो ये जो प्रेम है जो अपने नाभि में उभरता है, जो हमारे चित्त में फैलता है। इतना ये सर्वव्यापी है और इतना आनंददायी है, इतना शांतिमय है कि आपकी तबियत खुश हो जाती है लोगों से मिलके। अब मैंने तो ऐसे भी लोग देखें हैं कि जो लोगों से बोअर ही होते रहते हैं लोग हमेशा। कोई आया तो फोन पे कहते हैं कि भाई, हम नहीं है घर में, जाईये। भागते रहते हैं। लोगों से भागते रहते हैं सुबह से शाम। कुछ लोग होते भी बड़े बोअर हैं। भागते रहते हैं, उसके बाद में अपने से भी भागते रहते हैं। उनको लगता है क्या करें? दो आदमी बैठे हैं, दोस्त हैं। तो बीच में कॉमिक पढ़ेंगे, ये एक पढ़ेंगे वो एक पढ़ेंगे या एक सिनेमा जा के साथ में देखेंगे। दोनों में कोई आदान-प्रदान नहीं होगा। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है। ये लोग कुछ पढ़ते नहीं है। कुछ नहीं। जब साथ बैठे रहते हैं तो सब शांति से अपने साथ बैठे आपस में मज़ा उठाते हैं। 'अरे भाई, क्या कर रहे हैं?' 'कुछ नहीं, बैठे हैं।' आपस में मज़ा उठा रहे हैं। कोई आदमी अगर पार हो जाता है.... अभी हम कलकत्ते जब गये थे, तो होटल में ठहरे थे वहाँ। होटल में एक साहब आयें। तीन - चार और लोग साथ में रहते थे दूसरे कमरों में। तो मेरे पैर पे आते साथ उसमें से वाइब्रेशन्स खूब जोर से शुरू हो गये। ये लोग दौड़ते हुए वहाँ से आयें, कहने लगे, 'माँ, कौन तुम्हारे पैर पे आ गया?' मैंने कहा, 'क्यों?' कहने लगे, 'उपर से एकदम से वाइब्रेशन्स आ गये।' मैंने कहा, 'देखो, ये!' उसका सुगन्ध ले रहे हैं। मज़ा उठा रहे हैं। अब वो आदमी कौन है? जात का कौन है? पात का कौन है? कौनसे गाँव का है कि कौनसे शहर का है कि कौनसे देश का है? वो उसके पीठ पर से वाइब्रेशन्स आये तो ओ हो हो.. क्या बात है! अब खड़े हुए, मज़ा उठा रहे हैं। वो भी मज़ा उठा रहे है, ये भी मज़ा उठा रहे हैं। बहुत बार आप देखते होंगे यहाँ जो सहजयोगी आप लोगों को मेरे पैर पे लाते हैं वो अपने ध्यान में आप लोगों का मज़ा उठा रहे हैं। फिर मैं कहती हैं, अब ध्यान में मज़ा उठाओ| तुम तो इनका मज़ा उठाने में लग गये। तो की जो तत्व की मनुष्य कमाई है, उसके तत्व में जो कमाई है उसका मजा मनुष्य उठाता है। ये ना कि उसकी दुनिया की चीज़़ों पे, क्या आपके पास बड़ी मोटरें हैं, क्या आपके पास बड़े-बड़े मकानात है, घर है, उससे क्या होगा! इस तरह से हमारे यहाँ औरतों ने भी मर्यादायें छोड़ दीं । अपने घर वाले, अपने वाले, अपने मैके वाले इनसे फट्क के रहना इस तरह की अजीब - अजीब चीज़े हमारे अन्दर बढ़ती है और इसका अगर आपको उदाहरण देखना है तो आप परदेस में जा के देखिए । कोई औरत आदमी को पती नहीं मानती वहाँ। अभी पती बेचारे दफ्तर से आये और पता हुआ ससुराल कि बिवी भाग गई। रोज के वहाँ ये धंधे चलते रहते हैं। आपको आश्चर्य होगा। किसी चीज़ की मर्यादा नहीं। अस्सी साल के बुढ़े आदमी की शादी अठारह साल की लड़की से हो सकती है। अस्सी साल की बु़ी औरत अठारह साल के लड़के को प्रेम पत्र लिखती है। बताईये, यहाँ कोई अगर ऐसी बेवकूफी करें तो लोग कहेंगे कि बुढ़िया को क्या हो गया है । क्योंकि उसमें कारण क्या है? मर्यादा जब बनती है तब मनुष्य परिपक्व होता है। देखिए आप, पेड़ हैं। पेड़ अगर बहुत जरूरत से ज़्यादा बढ़ने लग जाए तो लोग उसको काट देते हैं कि इसकी जो शाखायें बढ़ने लग गयी, उसमें फल नहीं लगेंगे। शाखाओं को काट देते हैं। उसी प्रकार हमको भी अपनी जो शाखायें इधर-उधर बढ़ी हैं उसको काट के मयादा में रखना पड़ता है कि हम जो हैं हम पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। मैच्यूरिटी हमारे अन्दर आ जाए। ये मैच्यूरिटी सिर्फ आपको श्रीरामचंद्र के उदाहरण से आ सकती है। कितनी मैच्यूअर पर्सनैलिटी थी उनकी देखिये । कितना संतुलन उनके अन्दर बँधा। कितना गांभीर्य उनके अन्दर में था। उनकी जितनी भी बातें बताई जायें उतनी कम है । लेकिन उनसे सबसे बड़ी चीज़ जो है कि एक राज्यकर्ते को कैसा होना चाहिए। त्याग में, कितना उसे त्याग करना चाहिए इसका एक उदाहरण है और ये सब राज्यकर्तों को देखना चाहिए कि अपनी पत्नी तो स्वयं आदिशक्ति थी, उनको मालूम था ये देवी हैं। उनका तक उन्होंने ऐसी स्थिति में त्याग किया जब उनके बच्चे होने वाले थे। समाज और प्रजा को संतोष देने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया। लोगों से तो कहिए कि आज कोट बदल दीजिए तो वो तक बदलेंगे नहीं। ये हमारे अन्दर हमारी चेतना में जिस वख्त रामचंद्रजी आयें थे आठ हजार वर्ष पहले तब ये चीज़ हमारे अन्दर जागृत हुई है कि एक राजा को कैसे होना चाहिए! राजा का प्रतीक क्या होना चाहिए? हालांकि ये जरूर हम कहेंगे कि श्रीराम की कृपा से इस देश में ऐसे महान राज्यकर्ते हो गये। एक-एक का नाम लेते साथ दिल ऐसा बड़ा हो जाता है। राणा प्रताप... क्या त्यागमय थे। शिवाजी... एक से एक राजा-महाराजा यहाँ हो गये हैं। जिनका नाम लेते ही आदमी को लगता है 'वाह.. वाह.. क्या | आदमी का नाम ले लिया !' इंग्लंड में और अमेरिका में ऐसे बहुत कम हुये। लेकिन तो भी वहाँ आपको मैं बता सकती हैँ कि अब्राहम लिंकन । इतना बड़ा आदमी था अब्राहम लिंकन, इतना, बिल्कुल सही चलने वाला, तत्वनिष्ठ और कोई भी गन्दगी उस आदमी में नहीं थी और मैच्यूरिटी उसके अन्दर थी। पूरी तरह से प्रगल्भित, और एक बड़ा, बढ़िया इन्सान था वो। लेकिन अब अमेरिका ऐसा आदमी नहीं बना सकती ना रशिया बना सकती है। जैसे जैसे इनके हो गये क्योंकि सबकी मर्यादायें टूट गयी। सबसे बड़ा अचिव्हमेंट हमने ये किया कि अपनी मर्यादायें तोड़ दी और इसको हम सोचते हैं 'स्वतंत्रता'। एक छोटी सी बात समझने की है, अगर समझ लीजिए, एक एरोप्लेन है। उसको उड़ना है। उसको मर्यादा में बाँधा जाता है कि नहीं? अगर वो कहें कि, 'मैं इस मर्यादा में नहीं रहूँगा।' तो वो सब उड़ते ही साथ इधर-उधर गिर जाएंगे। कोई भी चीज़ आप जब मर्यादा में बाँधते हैं, समझ लीजिए कि गेहूँ हैं, आप फैला दीजिए तो किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला। उसको मर्यादा में बाँधिये। जो आदमी मर्यादा में नहीं होता उसके साथ आपको चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है । ये किस ओर उठ -बैठेगा पता नहीं। इनको तो कोई मर्यादा ही नहीं है। न माँ-बहन, न कोई सी चीज़ समझते हैं। ना बड़ा ना छोटा, कब जवाब दे दें, भागो रे भैया इससे! और इस तरह की बात करने में लोग सोचते हैं कि हमने बड़ी स्मार्ट बात कर दी। हाऽऽ क्या कहने! मैं तो कभी-कभी देखती हूँ, आश्चर्य होता है कि वाद - विवादों में भी, पार्लमेंट में भी मैंने देखा है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता था ! इतनी बुरी तरह से लोग आपस में बातचीत कैसे कर सकते हैं जिनके कि श्रीराम इस देश में हो गये? उनके बहुत हमारे उपर, अनंत उपकार हैं। और जिस इन्सान के अन्दर ये जागृत हो जाता है वो एकदम मर्यादा को प्राप्त होता है। हमारे सहजयोग में भी ऐसा ही है। जब लोग प्राप्त होते हैं इसको तो अपने आप उन्हे मर्यादा आ जाती है। अब अगर कभी आयें, कहें, 'बेटा आज टाइम नहीं है, मेरे पैर नहीं छुओ ।' बस ठीक है, बैठ गये । कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है उनको। बस इशारे पे देखते रहते हैं। उसमें क्या उनका गया और उन्होंने क्या खोया और जो ऐसा नहीं भी करते हैं, अपने माँ- बाप से इस तरह से बर्ताव रखते हैं उन्होंने क्या पाया? उसी तरह अनुशासन का भी है। अनुशासन में अगर आप लोग सोचें कि हम लोग इंडिसिप्लीन से रहे और माँ चीखें और चिल्लायें और आफत मचायें; तो आप अपनी मर्यादाओं को तोड़ते हैं। उससे क्या मिला? क्या मिलता है? लोग कहते हैं स्ट्राइक्स करिये। हमने देखा है स्ट्राइक्स जो लोग करते हैं अधिकतर, जो पैसा कमाते हैं ज़्यादा, वो शराब में ही डालते हैं, कौन सा बड़ा भारी उन्होंने ताज़ बना लिया है इस चीज़ से! मर्यादायें तोड़ कर के कोई सी भी चीज़ पाना बहुत हानीकारक होता है। मर्यादा में रह कर के ही आप सब कुछ पा सकते हैं और मर्यादा तोड़ कर आप कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते। क्योंकि जो भी आप हासिल करियेगा वो भी मर्यादा रहित होता है। तो इसका तत्व ये है, सीधा तत्व ये है कि अगर आपने मर्यादा तोड़ कर के कोई चीज़ को हासिल किया.... एक बच्चा है समझ लीजिए। उसने अपने माँ- बाप से मर्यादा तोड़ कर उनका रूपया-पैसा छीन लिया, वो वेस्ट हो जाएगा। आप कर के देखिए इस चीज़ को कि आप मर्यादा में रह कर देखिये । हमने तो देखा है कि जो आदमी विनम्र है, जो आदमी मर्यादा में है वो इतना उँचा उठता है क्योंकि उसकी नम्रता ही उसका सौंदर्य है और उसकी मर्यादा ही आपको उसके प्रती एक तरह से आकर्षित करती है। जिस आदमी में मर्यादा नहीं, पता नहीं कहाँ से कौन नौक आपको चुभ जाए। आप कोई नुकीले पत्थर पर बैठना चाहेंगे? फिर आप क्यों नुकीले बनते हैं? आपको खुद पता होना चाहिए कि हम खुद बड़े भारी नुकीले इन्सान हैं, हमारे पास जो भी आता है वो हमसे छीन ही जाएगा। जो खूबसूरती मनुष्य की है वो उसकी मर्यादा में है। जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं उसमें कोई भी किसी प्रकार की खूबसूरती नहीं। अब लंडन में या पाश्चिमात्य देशों में लोगों ने बड़ा भारी संघर्ष किया कहते हैं। क्या उन्होंने जितनी भी परंपरायें थी उन्हें तोड़ दिया और तोड़ कर के उन्होंने चाहा कि हम कोई नयी चीज़ बनाये। और तोड़ के क्या आप करने लगे ? तो ड्रग्ज लेने लगे। हाँ अगर कोई पाश हो तो उसे तोड़ना चाहिए। कोई अगर पाश हो.... पाश और मर्यादा में बड़ा अंतर होता है उसे समझ लेना चाहिए। कोई अगर आपके ऊपर पाश है, जैसे अंग्रेजों का हमारे ऊपर साम्राज्य था। ये हमारे ऊपर पाश था। उसको तोड़ना चाहिए। गुलामी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए। लेकिन जो आदमी मर्यादा में रहता है उससे आज़ाद कोई आदमी नहीं होता है। वो अपने आज़ादी में मर्यादा में है। क्योंकि वो आज़ाद है इसलिये नम्र है। जो आदमी को सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी रहती है और जो हमेशा कमी महसूस करता है वो हमेशा हावी रहता है दूसरे पे । श्री राम, जिनका नाम लेने से हमारे हृदय चक्र छूटते हैं, उनकी पत्नी सीताजी स्वयं साक्षात आदिशक्ति का अवतरण है। इन्होंने और भी अवतार बाद में लिये। तब उनको वनवास जाना पड़ा। लोग सोचते हैं 'जब वो इतने भगवान थे तो उन्हे वनवास क्यों जाना पड़ा?' ऐसे लोग कभी भी वनवास वगैरा नहीं जाते। वो जहाँ भी जाते हैं वहाँ होते हैं। जैसे आज आपसे हम बात कर रहे हैं। अभी यहाँ है हम, बात कर रहे हैं। यहाँ नहीं हैं तो लंडन में हैं। वनवास क्या होता है? यहाँ पण्डॉल है, इसके नीचे में हैं? नहीं है तो पेड़ के नीचे में है। ऐसे लोगों का कोई भी वनवास वरगैरा नहीं होता है। वो जहाँ भी होते हैं, होते हैं। उनके लिये उनका वातावरण और ये कुछ महत्वपूर्ण नहीं रहता । फिर वो क्यों गये? एक सोचने की बात है कि वो अपने राजमहल में रहते हैं। ये सारा नाटक क्यों रचाया? सीताजी बिचारी, जिन्होंने कभी भी नंगे पैर चली नहीं। उनको सारे दर नंगे पैर क्यों ले गये तब ? उसकी वजह है। इस देश के हर जगह में अपने वाइब्रेशन्स पहुँचाने के लिये वो पैदल गये थे। सीताजी जब चलती थी तो उनके पैर के वाइब्रेशन्स हर जगह पहुँचते थे, जो सारे देशभर में श्रीरामचंद्रजी थे। यहाँ तक कि वो बैंकॉक आदि जगह से भी हो आये थे । तब अपनी हिन्दुस्तान की जो भूमि थी इस तरह से जुटी हुई थी बाद में ऐसी अलग हो गयी इसलिये इधर से उनको जाना पड़ा, बैंकॉक वगैरा आदि हो कर के। ये सारा इसलिये नाटक रचाया था कि ये सारे देशभर घूम सके और हर जगह जा कर के अपने वाइब्रेशन्स छोड़ सके। सीताजी की नहानी एक गये। सबसे बड़े ट्रिस्ट अपने पहुँच जगह बनी हुई है, राहरी के पास में। मैं वो देखने गयी थी| दूर ही से पता हो रहा था कि वह इनकी ही नहानी है। इतने वाइब्रेशन्स वहाँ आ रहे थे, इतने वाइब्रेशन्स आ रहे थे और इतने अजीब तरह से वहाँ पानी बहता है कि समझ में नहीं आता कि नेचर से भी इस तरह से पानी वहाँ आ गया और किस तरह से हो रहा है? सब बड़ी अरीबोगरीब चीज़ है । लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है वहाँ वाइब्रेशन्स क्योंकि जब वो वहाँ रहीं तो उनके सारे वाइब्रेशन्स वहाँ हैं। ये सहज में वाइब्रेशन्स बाँटने का तरीका था। अगर उस वख्त इन्होंने वाइब्रेशन्स नहीं बाँटे होते तो आज हमारा सहजयोग जम नहीं सकता था। क्योंकि आज भी भारत में लोग नंगे पाँव चलते हैं। इस देश का कण-कण वाइब्रेटेड है, शायद आप नहीं जानते! अगर आप पार हो जाएंगे, लंडन से आते वख्त हमने नीचे झाँक के देखा, मैंने कहा, 'हिन्दुस्तान आ गया।' तो इन लोगों ने कहा कि, 'माँ, कैसे जाना?' मैंने कहा कि, 'देखो, वाइब्रेशन्स दिख रहे हैं।' वाइब्रेशन्स ऐसे स्वल्पविराम जैसे ऐसे चिक-चिक-चिक दिख रहे हैं। मैंने कहा, देखो दिख रहा है। ये लोग भी कहने लगे, 'हाँ माँ, हिन्दुस्तान आ गया।' एकदम वाइब्रेशन्स पता चलते हैं। किस भूमि पर आप बैठे हैं? जिस भूमि को श्रीराम ने अपने पाँव से चैतन्यमय किया , उस भूमि में आप बैठे हैं। उस चैतन्य को आप पा लें।| उनका जो भी त्याग है, उनके लिये वो नाटक मात्र है। ये बात जरूर है। उनके लिये इसमें कोई अर्थ नहीं। उनको त्यागना क्या और पकड़ना क्या! अरे भाई, जिसने पकड़ा ही नहीं उसका त्याग क्या होता है? जो कोई पकड़े हो वही तो त्याग करेगा! तो उनका त्यागना और पकड़ना कुछ नहीं था। लेकिन ये जो कुछ भी उन्होंने किया है ये हमारी सहजयोग की तैय्यारियाँ है कि हमारे भारतवर्ष में इसके वाइब्रेशन्स लोगों को मिले। पर दुःख की बात ये है कि हमने चैतन्य तो क्या श्रीराम ही को भूला दिया। अब उनकी दुकानें खोल दी। प्लास्टिक का एक फोटो मिल गया श्रीराम का, बैठ गये उसको लेकर के! और उसकी पूजा शुरू कर दी । कोई बड़े रईस हो गये, पैसे वाले हो गये, तो उन्होंने कहा, चलो भाई, एक श्रीराम का मंदिर खोल दो, जिससे अपने उपर का बोझा उतर जाये कि चलो, हमने कुछ तो कर दिया। एक साहब ने खोला एक मंदिर कहीं। बहुत रईस आदमी थे। उन्होंने ला कर के दिखायी राम की मूर्ति । कहने लगे, 'माँ, ये ठीक है?' मैंने कहा, 'नहीं, बिल्कुल ठीक नहीं ।' तो कहने लगे, 'क्यों?' मैंने कहा, 'श्रीराम की मूर्ति है और वो हृदय चक्र राइट में पकड़ रही है। मतलब श्रीराम के विरोध में है।' तो कहने लगे, 'इसका क्या डाइग्नोसिस हुआ?' मैंने कहा, 'डाइग्नोसिस ये हुआ है कि जिस आदमी ने बनायी है वो उसने अपने पिता से बहुत ज़्यादती करी है। इसका ये डाइग्नोसिस है। आपको आश्चर्य होगा उसके बाद उन्होंने एक महीने भर बाद बताया कि वो आदमी पकड़ा गया। उसने अपने पिता का खून किया था। श्रीराम की मूर्ति वही आदमी बनाये जिसने अपने पती को या अपने पिता को श्रीरामचंद्र जैसे माना। बाकि किसीको ये अधिकार नहीं कि आया, वही बना रहा है अपना। जो आदमी अपनी पिता की सेवा नहीं कर सकता वो रामचंद्रजी की मूर्ति नहीं बना सकता। उसको अधिकार नहीं। लेकिन जब उसने अपने पिता की बहत सेवा की, पिता को आनंद देते वक्त अपने में आनंद उठाया है वो अगर कैसी भी मूर्ति बनाये वो इतनी सुंदर होगी , उसके वाइब्रेशन्स, उसकी आनंददायी शक्ति संपूर्ण होगी। चाहे वो मार्बल क्यों न हो, चाहे वो मिट्टी की हो, उसमें चैतन्य है। उसको देखते ही लोगों के मन में भी अपने पिता के प्रति आदर हो। क्योंकि श्रीराम हमारे पिता हैं । वो हमारे पिता स्वरूप हैं। जिस वक्त आपका ये चक्र पकड़ा जाता है तो इसका ये अर्थ होता है कि या तो आप अपने पिता से रूष्ट हैं, पिता के प्रति कर्तव्यपरायण नहीं हैं और या तो अपने पिता की मृत्यु हो गयी है, आप उससे द:खी हैं। कोई न कोई पिता का संबंध है और ये भी होता है कि आप अपने बच्चों के प्रति अच्छे पिता नहीं हैं। पिता का स्थान जो है वो आपका यहाँ पर, राइट साइड में | हार्ट पर होता है| अगर ये स्थान आपका बिगड़ा हुआ है तो उसके ऐसे अनेक अर्थ निकलते हैं । इसके बिगड़ने से पहली भी कृति क्या थी? माने अनेक तरह से होता है, माने आपके पिता की मृत्यू हो गयी है, जो कि अकस्मात हई और आप अभी उनके लिये परेशान हैं। तो वो अभी मंडरा रहे हैं। हो सकता है कि आप अपने पिता से बहुत दष्ट व्यवहार कर रहे हैं। हो सकता है कि आप अच्छे पिता नहीं हैं। हो सकता है कि आपके पिता रहे ही नहीं । आपने पिता तत्व जाना ही नहीं । ये पिता का जो तत्व है ये हमारे अंदर किसी भी तरह से सुख पहुँचाता है। इसके इफेक्ट में क्या होता है। अगर किसी आदमी को न्यूमोनिया हो जाये तो ये चक्र पकड़ता है । अगर किसी को अस्थमा की बीमारी हो जाए तो अधिकतर यही चक्र पकड़ा जाता है। आश्चर्य की बात है, दो चक्र हैं, जिसपे हमने देखा है अस्थमा पे आता है, पर अधिकतर आदमी लोगों में ये चक्र तब पकड़ा जाता है जब पिता का तत्व किसी तरह से दःखी हो। पत्नी के कहने से पिता का अपमान करना। अपने बच्चों के सामने पिता का अपमान करना। या आपका अपने बच्चों का अवमानित करना। अपने बच्चों को निग्लेक्ट करना। ये सब चीजें इस चक्र में अति सूक्ष्म दिखायी देती है। अब इतनी सूक्ष्म होती है कि मैं आपसे बताऊँ कि एक साहब थे। तो वो बड़े ही ज़्यादा मॉडर्न थे। तो उनको बच्चा होने वाला था। तो उन्होंने अबॉर्शन करवा लिया। तो उन्होंने कहा कि ' भाई , ये क्यों कराया तुमने?' कहने लगे, 'इसलिये कराया कि हमने सोचा ज्यादा बच्चे होंगे तो हमें परेशानी होगी। हम लोग घूम-फिर नहीं सकेंगे। अभी हमारे घूमने-फिरने के दिन हैं । इस वक्त में ये क्या करें?' और उनका ये चक्र इतना पकड़ा है, इतना पकड़ा है कि उनका घूमना-फिरना बंद हो गया। उनको श्वास लग गया। अंत में उनको माफी माँगनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से उनका ये चक्र छूटा है। तो ये इतना है कि इसका साक्षात सामने आता है। हमने बहुत से लोगों का अस्थमा ठीक किया है। पच्चीस -पच्चीस साल पुराने लोगों का हमने अस्थमा ठीक किया हआ है। और उसमें क्या है कि उसका तत्व अगर आप जान लें कि किस वजह से अस्थमा होता है क्योंकि लंग्ज ये कंट्रोल करता है। किसी को न्यूमोनिया हो जाए तो आपको पता चल जाएगा इसको न्यूमोनिया हो रहा है क्योंकि उसका जो है ये चक्र पकड़ जायेगा जोरो में और उसमें से गर्मी आयेगी। अब ये चक्र हमारे उँगली पर कहाँ दिखायी देता है? ये! राइट साइड में। बहुत अब लेफ्ट साइड में भी हार्ट है और बीचोबीच भी हार्ट है। इस तरह से तीन हार्ट की स्थितियाँ हैं। अब जो बीच का हार्ट है यहाँ श्री जगदम्बा का स्थान है। इसको हम दुर्गा, ललिता आदि कहते हैं, जिन्होंने अनेक बार इस संसार में अवतरण लिया। और ये जो भवसागर में जो भक्त लोग परमात्मा को खोजते हैं उनके लिये वो अवतार लेती हैं और सबकी रक्षा करती हैं। तो इनका इसेन्स जो है, इनका जो तत्व है वो है रक्षा! अब किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, देखिये कितनी बारीक चीज़ है, किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, उसका आदमी अच्छा न हो, इधर -उधर भागता हो, जिसकी तरफ से परेशान हो, उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा। उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा क्योंकि उसकी रक्षा का जो है वो स्थान रिक्त है । 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' है। बहुत से आदमी लोग सोचते हैं कि औरतों को डरा दे और उनको डाँटें कि तुम बड़ी शक्की हो, तुम ऐसी हो, वैसी हो। अगर औरत को शक हो तो उस चीज़ पे नहीं उतरना चाहिए। छोड़ देना चाहिए। उसको बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि उसको आप अगर जबरदस्ती कोई चीज़ करेंगे तो उसका बीच का हृदय चक्र पकड़ेगा और उसको ऐसी तकलीफ होगी। ऐसे औरतों को दूध नहीं होता है बच्चों के लिए । सूख जाती है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' आदमी में भी बहुत बार होती है। जैसे कि नौकरी का मामला है, कुछ हो गया तब भी आप जानते हैं कि यहाँ धकधक धकधक होता है। जैसे ही मनुष्य पैदा होता है उसका ये जो यहाँ पर स्टर्नम कर के जो बोन है, जो हड्डी है, उस हड्डी में अँटीबॉडीज तैयार होती हैं साइन्स में। अँटीबॉडीज वही जगदम्बा के सिपाही हैं, जो तैयार होते हैं। और वो सारे बॉडी में बिखर के रह जाते हैं । और जिस वक्त भी कौन सा भी अँटैक आता है इन्सान पर, तो वो अँटीबॉडीज उसकी मदद करते हैं। लेकिन अगर जगदम्बा का तत्व बिल्कुल ही गया-बीता हो तो ये अँटीबॉडीज भी मुरझाकर रह जाती हैं क्योंकि उनका जो संचालन है वो दुर्गा तत्व से है। आपको मालूम होगा कि जैसे भय हो जाए आदमी का दिल धड़कने लगता है धकधक धकधक। अब इस मामले में ये कहना चाहिए कि ये माँ का स्थान है। हमारे देश में लोग माँ को बहुत ऊँचा मानते हैं। अपनी माँ को तो मानते हैं लेकिन अपने बच्चों की माँ को तो नहीं मानते हैं। क्योंकि ये हमारे बच्चों की माँ है इसलिये ये भी बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ है। जब तक हम | अपने बच्चों की माँ को वो स्थान न दें जैसे कि हमारे माँ का स्थान था । उनकी माँ ने भी सफर किया और उनके बच्चों की माँ भी सफर कर रही है। तब ये चक्र डेवलप होता है और इससे बहुत सिरियस बातें हो जाती हैं । जैसे कि हिस्टेरिया की बीमारी। ये सारे लेफ्ट साइड के आक्रमण है। लेफ्ट साइड से जो कुछ सबकॉन्शस से आक्रमण आते हैं, औरतों का डरना, चीखना, चिल्लाना, घबड़ाना, नव्हसनेस, इनसोम्नीया, असंरक्षित रहना, परेशान होना, किसी भी चीज़ से हर समय भय, खौफ खाना, कोई चीज़ करने में आगे न आना, हर एक एग्रेशन के सामने सर झुकाना, ये सब चीज़ें घटित हो जाती है। बहुत से आदमियों में भी ये बात होती है। जब ये चक्र उनका सुप्त हो जाता है तो वो बड़े एग्रेशन अपने उपर ले लेते हैं बेचारे। और ये भी गलत चीज़ है किसी का एग्रेशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। आपको बीच में खड़ा होना चाहिए। कोई अगर आपसे एग्रेशन करे तो आपको बीच में खड़ा होना चाहिए। ना तो किसी पे आप एग्रेशन करें ना आप किसी से एग्रेशन लें। जब ये चक्र पूरी तरह से संतुलित हो जाता है तब आप अपनी शान में खड़े रहते हैं क्योंकि जगदम्बा है, जो कि सारी जगत जननी है, सारे जग को सम्भालने वाली, वही आपकी माँ है। फिर आपको किस के बाप का डर है । लेकिन आप अँग्रेशन नहीं करते। फिर आप भक्तों का रक्षण करते हैं। फिर आप अपने अच्छाई में शान उठाते हैं। आपको घबड़ाहट नहीं | होती है। बहुत से लोगों को लगता है कि, 'साहब, में क्या करू? मुझे बड़ा ड्र लगता है। मैं जरूरत से ज़्यादा इमानदार आदमी हूँ। मेरे दफ्तर में सब लोग बड़े बेईमान हैं। मुझे खा जाएंगे।' लेकिन जब जगत जननी अन्दर जागृत हो जाती है तो | उसको शान लगती है। वो सोचता है कि 'ठीक है, ये तो बेकार लोग हैं। मैं तो कम से कम ठीक रस्ते पर हूँ।' वो अपने व्हर्चूज को एन्जॉय करने लग जाता है। हम तो अपने व्हर्चूज के लिये रोते रहते हैं। उसको अपने व्हच्चूज में घबड़ाहट नहीं होती। ना ही वो एग्रेस करता है कि मैं इतना व्ह्चूअस हूँ और तुम नहीं हो। ये भी नहीं करता। ना तो वो एग्रेस करता है ना तो वो किसी पर एग्रेशन करता है, ना तो वो किसी का एग्रेशन लेता है इस तरह से उसका बीच का स्थान बन जाता है। अब ये जो हृदय चक्र है बीच का, ये बहुत जरूरी है। इसके खराब होने से भी स्पॉन्डिलाइटिस वगैरा हो जाते हैं कभी। तो छोटी-छोटी बातें हैं। इसको समझ लेना चाहिए। जैसे कि, लड़की है, उसकी शादी हो गयी । उसका पती, उसको अगर इनसिक्युरिटी डाल दें तो उसको समझाना चाहिए कि देखो, ये पाप है, ऐसे नहीं कर सकते । लड़की पे जबरदस्ती नहीं करें क्योंकि विशेषत: ये औरतों का चक्र बहुत खराब है। अपने यहाँ की औरतें बहुत शान्त हैं मैं आपसे कहती हैँ। बहुत अच्छी हैं। अपने देश की इन औरतों की वजह से ही आज आपकी पेशानी ऐसी है। नहीं तो आप इंग्लैण्ड के आदमियों के देखिए तो उनके उड़ती रहती है आँख कहीं, नाक कहीं, कहीं मूँह। एक मिनट ऐसे चुप नहीं बैठ सकते, आपके जैसी पेशानी नहीं होती। इस उमर में तो उनके सारे पाँच-छः यहाँ पे लाइने आ जाएंगी और आँखें उनकी फड़केंगी, नाक उनकी फड़केंगी, गाल उनके उड़ेंगे। क्योंकि उनकी माँ किसी के साथ भागी होती है, पत्नी किसी के साथ भागी होती है। यहाँ की औरतों में बड़ी अभी भी सज्जनता है कि अपना पती, अपने बच्चे, चाहे जैसा पती हो। लेकिन इसकी ज़्यादती नहीं करी क्योंकि ये भी अगर ज़्यादती पर आ जाएगा तो इंग्लैण्ड यहाँ आ जाएगा। वहाँ औरतों ने आदमियों को घाटी बना कर रखा है। बिल्कुल। ये हालत कर के रखी है कि आदमियों को समझ में नहीं आता है कि इन औरतों के साथ रहे कैसे ? अच्छा ये एक का नहीं, सबका ही मैंने ये हाल देखा है। सुबह से शाम तक ये सफाई कर, ये बर्तन धो, वो कर, ये नहीं किया तूने, वो नहीं किया। वो घर में नहीं आया तो उसको ढ़ेर काम! हमारे यहाँ तो आदमी लोग को हाथ में झाड़ भी लेना नहीं आता। जब बाहर जाते हैं तो रोते हैं कि अब खाना कैसे बनाएंगे? हमें तो ये भी नहीं आता, सब्जी कैसे ? दाल कौनसी है ? हमें मालूम नहीं। औरतों ने बहत बोझा अपने उपर इस देश में उठाया है। इस देश की औरत जो है धरा है, पृथ्वी जैसे महान, एक से एक अपने देश में महान औरतें हो गयीं| उनका नाम लीजिए, नूरजहाँ जैसी औरत, क्या औरत थीं। चाँदबीबी थी, पद्मिनी थी। वो लोग विश्वास नहीं करते कि अपने यहाँ पद्मिनी जैसे कोई ऐसी विशेष औरत हुई होगी। वहाँ तो कोई औरत के पीछे में कोई आदमी लग जाए तो फौरन गायब ! कोई वहाँ समझ नहीं सकता है कि कोई औरत अपने इज्जत की भी पर्वा करती है। कोई समझ नहीं सकता आजकल। आपको आश्चर्य होगा वहाँ तो सब औरतें इसी पे हैं कि कितने आदमी उनके पीछे भाग रहे हैं । बड़ी - बड़ी बुढ़िया लोग ऐसी बातें करती हैं। मुझे तो आश्चर्य होता है कि इनकी अकल क्या सब गायब हो गयी । और ये में आपको जनरल बात बता रही हूँ। सौ में अगर आपको एक औरत कायदे की मिल जाए तो आप कहें कि हाँ ठीक है। और आदमियों की तो हालत इन्होंने बिल्कुल ही कच्चा कर रखी है। जो हिन्दुस्तानी आदमी हैं, हिन्दुस्तानी औरत को छोड़ कर अंग्रेजी औरत से शादी करता है उसकी हालत देखने लायक हो जाती है। रोता है अपनी किस्मत को। हालांकि वो अच्छी बात नहीं है । लेकिन इस महान आत्माओं का आपको अपमान नहीं करना चाहिए। उनका मान रखिए। 'यत्र नारियाँ पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता:' जहाँ स्त्री पूज्यनीय होती हैं और पूजी जाती हैं वहीं देवता होते हैं। इन किसी भी देशों में औरतों की दशा ऐसी नहीं है जैसी यहाँ है, मतलब अच्छी है। यहाँ की जैसी कहीं औरतें हुई नहीं और ना ही यहाँ के जैसी औरतों की जो, उनका जो मान है घर में, वो होता है । हर जगह औरत इतनी बेवकुफ बन गयी है। आजकल उन्होंने और भी निकाला हुआ है, 'लिबर्टीज' और भी क्या-क्या निकाला हुआ है। 'लिब' लिबरेशन। इन औरतों के तो सिंग निकल आये हैं। बिल्कुल जानवर हो गयी हैं, बिल्कुल गधी हो गयी हैं। इनको कोई अकल नहीं है। अपने पती की सेवा करना, अपने बाल-बच्चों को सम्भालना ये महान कार्य है। ये तो तब आपको पता होगा जब ये नहीं कोई करेगा। जब बच्चे आपके रास्ते पर घूमेंगे और ड्रग्ज़ पियेंगे और बारह-बारह साल के बच्चे जाकर के अखबार बेचेंगे और चोरी होंगे और मारे जाएंगे| हमारी औरतों को ये किसी ने नहीं सीखाया। पढ़ी-लिखी नहीं है तो भी अन्दर से बहुत बड़े दिलवाली औरत हैं। कोई-कोई होती हैं बिगड़ी हुईं। विशेषत: वेस्टनाइज्ड हो गयी तो फिर उनको तो कोई सूझता ही नहीं। वैसी भी औरतें होती हैं बेवकूफ। उन लोगों से कुछ सीखने का नहीं है। मैंने सौ बार आपसे कहा है। और औरतों को तो औरत मैंने वहाँ नहीं देखी । इसमें जो बिल्कुल उनसे कुछ सीखने का नहीं है। हम लोगों के पाँव के धूल के बराबर भी एक समझापन और जो सुलझापन और जो चरित्र। आपको बहुत अपने पे गर्व करना चाहिए कि आप एक ऐसे माँ के बेटे हैं जो चरित्रवान थीं और ऐसे पत्नी के पती हैं जो चरित्रवान है। क्योंकि वो चरित्रवान है उनकी बहुत इज्जत करनी चाहिए । पर हम लोगों के यहाँ नयी फैशन चल पड़ी दुश्चरित्र औरतों का बहुत माना जाता है। एक औरत दुश्चरित्र आ जाए सब उसीके पीछे दौड़ने लग जाते हैं। ऐसे बैल आदमी पता नहीं इस देश में कैसे पैदा हो गये ? ऐसे कभी भी यहाँ नहीं थे। ये कोई पच्चीस-तीस साल में बहुत ही ज़्यादा ऐसे बैल आदमी पैदा हो गये मैं आपसे बता रही हूँ। हम लोगों के जमाने के जो जवान लोग होते थे आँख नीचे कर के ही चलते थे। उन लोगों को कभी सूझता भी नहीं था कि दूसरी औरत क्या है, क्या नहीं। अपनी पत्नी माने अपनी पत्नी! पर आजकल जो ये बैलपन आ गया है इस बैलपना से आपकी भी बिवी ऐसी हो जाएगी कि जो एक गाय होती है न लात मारने वाली उस तरह की हो जाएगी। अब वो होना ही है उसके आप पीछे पड़े हुए हैं। आपकी बिवी नहीं होगी तो आपके लड़के की बिवी होगी। यही मर्यादायें हैं। इसे बाँधना है और जिसे सम्भालना है। और वही है कि हृदय में अपनी पत्नी का स्थान है, अपनी माँ का स्थान है। सबसे बड़ी चीज़ है लेफ्ट साइड का हार्ट जो कि इस उँगली ( तर्जनी) पर पकड़ता है। सबसे बड़ी चीज़ है। हार्ट में, हमारे हार्ट में लेफ्ट साइड़ में शिवजी का स्थान है। शिवजी जो हैं आत्मास्वरूप हैं, सदाशिव हैं। सदाशिव हमारे सर पे सदा विराजते हैं। और उन्हीं का प्रतिबिंब रूप हमारे अन्दर आत्मा है। आत्माराम जिसे हम कहते हैं। वो हमारे हृदय में बसते हैं। जब हम कभी भी इस आत्मा के विरोध में काम करते हैं, तब हमारा ये चक्र एकदम से ही सो जाता है। माने जो बहुत इगो ओरिएन्टेड लोग होते हैं जो कि राइट साइड बहुत चलाते हैं, इगो ओरिएन्टेड लोग हैं, कि जो बहुत काम करते हैं, कि हमें प्लानिंग करना है, ये करना है, ये इगो से अपना काम लेना है। रिइलाइजेशन के बाद नहीं, तब तो डाइनेमिज़म अन्दर से बहता है। पर पहले इगो ओरिएन्टेड होते हैं। अब इसकी अतिक्रमण हो गया है उधर, अब यहाँ भी होने वाला है। ये इगो- ओरिएन्टेशन जब हमारे अन्दर बहुत बढ़ता है जब हमारा इगो बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है, याने 'हम कोई बहुत बड़े हो गये', तब आपका हृदय चक्र पकड़ता है। इसलिए हार्ट अटैक्स जब आते हैं ये आदमी इगो ओरिएन्टेड होते हैं। लेकिन हम लोग हार्ट अटैक वाले आदमी के साथ बड़ी सिम्परथी करते हैं । सोचते हैं भाई , इनको हार्ट अटैक आ गया। अगर उनसे आप कहिए कि आपको हार्ट अटैक आया, आप आराम से लेटिए। मैंने ऐसे-ऐसे लोग देखे हैं, एक साहब थे। उनकी उमर नब्बे साल की थी। और उनको वो पैरेलिसिस, पैरेलिसिस भी इसी में होता है । बहत ज़़्यादा काम करने वाले आदमिओं को पैरेलिसिस कंट्रोल करता है। उनको पैरेलिसिस का झटका है। नब्बे साल की उमर। उनसे मिलने गये और वो सारे शिपिंग के स्टैटस्टिक बोल रहे थे। मैंने कहा कि इन आदमी को पता नहीं है कि अभी दो दिन रहना है कि नहीं। वो यही सब बोले जा रहे | हैं। हालांकि उनकी एक साइड गायब हो गयी थी। दूसरे साइड से जो भी उनके शब्द निकल रहे थे, वो सारा के सारा रटे जा रहे थे। मैंने कहा इनका क्या होने वाला है पता नहीं। तो जब आदमी अतिशय प्लॅनिंग करता है और अतिशय सोचता है और एग्रेशन करता है इस तरह से तो परमात्मा उससे नाराज हो जाते हैं। मनुष्य का चित्त सिर्फ परमेश्वर पर होना चाहिए। मतलब ये कि आपका चित्त स्पिरीट पे नहीं है। आपको सिर्फ स्पिरिट होना चाहिए। मनुष्य के लिए बड़ा कठिन हो जाता है समझना कि हम नहीं देखें तो कैसा होगा। एक देखने वाले सबसे बड़े बैठे हुए हैं। ठीक है, आप कर्म करो । उसमें कोई हर्ज नहीं। पर उसका फल जो है, वो ऐसा मिले न मिले, उसमें इनवॉल्व्हमेंट नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक कहने की बात हो जाती है कि जब तक घटना घटित नहीं होती आदमी नहीं कर सकता। तो भी मैं सबसे कहती हूँ कि कृष्ण ने कहा ना कि 'अतिकर्मी नहीं बनो'। थोड़ा आराम भी करना सीखो। कभी-कभी तो आराम कर लिया करो। जिन लोगों ने कहा कि 'आराम करना ही नहीं है', उन्होंने कौनसे चार चाँद लगा के रखे हैं हमें बताईये। कभी-कभी आराम भी करना चाहिए और उस परमात्मा को, जगननियन्ता को, जो कि सबका प्लानिंग करता है याद करना चाहिए। आजकल तो साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि भगवान है ही नहीं, Negation ऑफ गॉड। पहले से ही कह दिया उन्होंने। ऐसे लोगों का हार्ट नहीं पकड़ेगा तो क्या पकड़ेगा। मतलब जब आपने उधर ध्यान ही नहीं दिया। उस चीज़ को आपने त्याग ही दिया है। तो फिर वो चीज़ खत्म होने वाली है। हार्ट अॅटैक इसी से आता है। सबसे बड़ी चीज़ है हृदय। हृदय से अगर आप सोच सरकें, तो आप बहुत सुन्दर हो जाएंगे और अगर बुद्धि से आप प्रेम करें, तो और भी आपके चार चाँद लग जाएंगे। सारी चीज़ हृदय से होती है। सारा ज्ञान हृदय से मिलता है। आपको आश्चर्य होगा में जो बात कह रही हूँ। बुद्धि से ज्ञान नहीं मिलता, हृदय से मिलता है। कोई आप काम करें, हृदय से करें। कुछ पढ़ना है, हृदय से करें। कोई नौकरी करनी है, हृदय से करें। लेकिन आप बुद्धि से करते हैं, इगो ओरिएन्टेड हैं आप। पर आप हृदय से करें तो मजा आते रहेगा। हृदय से करने का मतलब ये है कि आप अपने अन्दर के जो स्पिरिट है, आत्मा है उसको उपयोग में ला रहे हैं। कोई भी आदमी बात करता है, समझ लीजिए आपके सामने कोई आदमी लेक्चर दे रहा है , वो अगर हृदय से नहीं दे रहा है, तो आप जानते हैं कि ये बकवास चल रही है। इसके मन में कुछ है नहीं। पूरे साढ़ेतीन चक्र ले कर के हृदय से कुण्डलिनी का जो प्रतिबिंब है वो पूरा ऐसे रहता है। और जब तक आपके हृदय में बात बैठती नहीं, तब तक उसमें कोई भी सौंदर्य ही नहीं होता है, उसका कोई भी फल प्राप्त नहीं होता है। बुद्धि से सोची हुई बात से कुछ लाभ नहीं होता है। आप हर चीज़ को हृदय से करें। ज्ञान भी देखें। कोई आदमी हैं, समझ लीजिए आपसे हमें नितांत प्रेम है तो हमें पता है आपकी कुण्डलिनी कहाँ है । अब यहाँ मेहनत कर रहे हैं, दो बजे रात के तो भी बैठे हैं मेहनत करते क्योंकि हृदय से कर रहे हैं। उठे कैसें ? सारा आपके बारे में ज्ञान हो जाएगा। माँ होती है, वो अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। वो अपने बच्चे की छोटी-छोटी बात सब जानती है। उसका सारा उसे ज्ञान होता है। कोई सा भी कार्य करते वक्त अगर आप इसे हृदय से करें। आप सरकारी नौकर हैं, अगर वो ये सोचें कि 'ये काम जो है ये जनता का, मेरे हृदय से मैं कर रहा हूँ। मेरा हृदय चाहता है। इसके बगैर मुझे अच्छा नहीं लगेगा। उस पे कभी भी असर नहीं आयेगा। लेकिन जब ये चीज़ टूट जाती है तब स्पिरीट जो है वो लुप्त हो जाती है और स्पिरिट खत्म होते ही हमें मृत्यु आ जाती है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो लोग बहुत काम करते हैं वो कोई बड़े पापी हैं, लेकिन अन्धे भी हैं। काम करिये लेकिन हृदय से कार्य करें। जिस कार्य में आपका हृदय से कार्य नहीं होता है उसका कोई निष्पन्न नहीं है, उसका कोई लाभ नहीं है, उससे किसी को सुख नहीं होने वाला है। आप पहाड़ कर लीजिए, प्लास्टिक है सारा। अब आप ही सोच लीजिए कि आप अपने दफ्तर का काम क्या हृदय से करते हैं। बहुत से लोग तो इसलिए करते हैं कि भाई पैसा ही मिलता है। करना ही है, क्या करें? अब मरना ही है। गले पड़ा ढोल तो बजाना ही है। फिर मजा क्या आयेगा ? नहीं तो इतना मजा आता है कि कितने भी तुफानों में आप खड़े होंगे, मजा आता है उससे लड़ने में कि हृदय से लड़ रहे हैं। क्योंकि हृदय जो है यही आनन्ददायी है। आनन्द का स्रोत आपका स्पिरिट है, आत्मा है और कहीं से आनन्द नहीं मिलने वाला। जब आपका आत्मा उससे सन्तोष पाता है तभी आपको इन सबमें आनन्द आयेगा और आपका फ्रस्ट्रेशन नाम की चीज़ आपसे हट जाएगी। इस प्रकार आपके तीन चीक्रों को मैंने बताया है, इसको कि हम हृदय चक्र कहते हैं। उसको अनहत चक्र भी कहते हैं। अनहत माने without percussion! क्योंकि जब हृदय में, उसकी जो गति होती है, हृदय की उसमें हमारा जो प्रणव है, जिसकी वजह से हम जीवित हैं उसका आवाज किसी भी परकशन के बगैर आता है, किसी भी आहत के बगैर आता है इसलिये अनहत कहते हैं। पर जब कुण्डलिनी जागृत होती है और चित्त उसपे जब छा जाता है, तब कुण्डलिनी में भी अनहत जागृत हो जाता है और वो बोलता है। आप देख सकते हैं कि उसकी धक -धक -धक -धक, आप सुन भी सकते हैं स्टेथैस्कोप से कुण्डलिनी का चढ़ना और जब वो शिखर पे पहुँच जाता है, तो कबीर ने कहा है, 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे' मतलब यहाँ पहुँच के अनहद ने बजाना शुरू किया 'मैं पहुँच गया हूँ। और जब वो अनहद टूटता है यहाँ तब ये आदमी रियलाइज्ड हो जाता है। ---------------------- 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page0.txt हर जगह के अपने वाइब्रेशन्स होते है दिल्ली, १५.३.१९७९ देलही के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, 'अच्छा देखो भाई, अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।' पर मेरे विचार से देहली के लोगों में ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने बहुत काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरुरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने- अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। कोई जगह ऐसी बना दी जाए जहाँ के वाइब्रेशन्स ऐसे हो कि आदमी जा कर के शान्तिपूर्वक वहाँ ध्यान करें और उससे लाभ उठाये, तो अच्छा होगा। लेकिन मुझे कुछ इसमें ज़्यादा समझता नहीं है पैसे-वैसे के मामले में । इसलिये जो भी आप लोगों को इसमें त्रुटि दिखायी दें तो आप मुझे बता सकते हैं। अगर कोई गलती हो जाए, कोई गड़बड़ हो जाए, हालांकि आपको आश्चर्य होगा कि सहजयोग को प्राप्त हुये लोग जो हैं वो इस कदर इमानदार हैं, इतने ज़्यादा इमानदार है कि समझ में नहीं आता है कि इनकी इमानदारी की कोई तुलना किसी से कर सकते हैं या नहीं। किसी भी भय के बगैर ही इतनी इमानदारी इनमें है और इतनी कर्तव्यपरायणता है और इतना प्रेम और इतनी समरसता आपस में है कि आश्चर्य होता है कि ये विभिन्न लोग हैं, विभिन्न धंदे वाले हैं, कोई सरकारी नौकर हैं, कोई कुछ हैं, लेकिन आपस में एक तरह का इतना प्रगाढ़ प्रेम और इतना आदर कि हम लोग सेंट्स हैं और सेंट्स को सेंट्स की रक्षा भी करनी चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा भी रखनी चाहिए। इसका इतना ज़्यादा विचार अन्दर से आया हुआ है कि बड़ा आश्चर्य होता है! जैसे कि आपके यहाँ पर सुब्रमणियम साहब हैं और इन्होंने बहुत प्रगति की सहजयोग में। बहुत ज़्यादा प्रगति की है। और हम देखते हैं कि जो लोग, जो आदमी प्रगति कर लेता है सहजयोग में उसको अपने ही आप मानने लग जाते हैं। हालांकि वो आदमी इतना प्रेममय होता है। वो कोई चीज़ को नहीं, पर अपने ही आप ऐसे आदमी को मानने लग जाते हैं। क्योंकि उससे ऐसे अच्छे, से चैतन्य के सुन्दर कुछ कहता वाइब्रेशन्स आते हैं कि वो मानने लग जाते हैं उसको। वो समझ लेते हैं कि ये आदमी हमसे जरा उँची स्थिति पे अभी पहुँचा हुआ है। और उसके लिये कोई कॉम्पिटिशन नहीं होती। उलटी ये कॉम्पिटिशन यही होती है कि हम इनके जैसे कैसे होंगे? | इनके जैसे अच्छे कैसे बनेंगे? इनके जैसे दाता कैसे बनेंगे? सहजयोग का जो सबसे बड़ा लाभ है वो यही है कि हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे ही हमारे अन्दर प्रकाश आ जाता है वैसे ही हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे कि आप देखते हैं अन्धेरे में जब आदमी चलता है तो उसकी चाल ही समझ में नहीं आती। वो कभी इधर टक्कर मारता है, कभी उधर टक्कर मारता है। लेकिन जैसे ही प्रकाश उसके सामने आ जाता है, वो जानता है कि उसे कहाँ जाना है, कैसे चलना है, मर्यादायें जीवन की और सब चीज़ अपने आप बनने लग जाती हैं। वो स्वयं ही मर्यादा से दूर नहीं हटता है। और हमेशा उसको, एक तरह से उसके आत्मा के प्रकाश का आभास रहता है। और वो उसे छोड़ना नहीं चाहता है। जिस क्षण उसे वो छोड़ देता है उसी क्षण वो देखता है कि उसके 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page1.txt वाइब्रेशन्स छूट गये हैं और उसकी शान्ति उससे छूट गयी है। तो उसको चिपकता जाता है । जैसे कि किसी को अमृत मिल जाए तो फिर वो गन्दे नाले में नहीं जाता है। लेकिन ये घटना है। ये लेक्चर से नहीं होगा। मैं जानती हूँ इसका लेक्चर देने से कुछ नहीं होगा। ये पाने की बात है। जब आप पा लेते हैं, और जब आपका वृक्ष इसमें बढ़ जाता है, जब आप उस स्थिति में पहुँच जाते हैं तभी ये होनी घटता है। और तभी आप ऐसे हो जाते हैं। और इसका अनुभव आप लोगों को भी हुआ है। आप में से बहुत लोग पार हो चुके हैं और बहुतों को मिला हुआ है और इसमें आपको भाषा भी जानना जरूरी नहीं है। अभी एक साहब ने मुझे फ्रेंच भाषा में चिठ्ठी लिखी थी मुझे तो फ्रेंच भाषा पढ़ने ही नहीं आती। मतलब पढ़ तो लेती हूँ, पर समझ नहीं आती। सिर्फ वाइब्रेशन्स से में समझ गयी कि इन्होंने कितना प्रेम उसमें भरा हुआ है। ये तो सिर्फ प्याले हैं। प्याले हैं शब्द लेकिन उसके अन्दर का जो सुगन्ध है, उसके अन्दर की जो रस है, जो अमृत है उसकी तृप्ति से ही जो आन्द है वो कहीं अधिक ज़्यादा है। क्योंकि सिर्फ प्याले देखने से होता है। अगर समझ लीजिए बड़े अच्छे प्याले बने हुये हो, बड़े खुबसूरत प्याले बने हों और उसके अन्दर गन्दी सी कोई चीज़ भरी हो , आप पीते ही साथ उसे थूंक देंगे। वो प्याले से आपको कोई मतलब नहीं। और प्याले कैसे भी रहें, लेकिन अन्दर अगर अमृत हो, तो आदमी उसे पीते ही साथ उस अमृतपान से जो वो तृप्ति पाता है वो उन प्यालों से नहीं पाता है। कल मैंने आपको कुण्डलिनी के बारे में बताया था। और उससे आगे मैं आपको बताना चाहती हूँ। हालांकि अब एक बड़ी, अच्छी, नयी किताब निकल आयी है। आप लोग कृपया वो भी ले लें और उसमें काफी बारिकी से चीजें दी गयी हैं। पर ये भी सब शब्द ही शब्द हैं ये समझ लेना चाहिए। अनुभूति के सिवाय, इसमें गहरे बैठे सिवाय सिर्फ ये दिमागी जमा - करने से कुछ नहीं होने वाला। जब आपके अन्दर अवेकनिंग होने लगती है तब अपने आप चेंजेस आने लग जाते हैं । जैसे कि मैंने आपसे कहा कि जैसे आपके अन्दर नाभि चक्र की जागृति होती है तो पहली चीज़ ये हो जाती है कि आदमी में तृप्ति का स्वभाव आ जाता है। उसकी प्रायोरिटीज बदलती जाती है। एक साहब मुझे बता रहे थे कि, 'माँ, हमारे घर में तो कोई भी आता है तो बैठता भी नहीं दो मिनट। भागे जाता है। पता नहीं क्या है हमारे घर में?' और जैसे ही वो पार हो गये, उनके यहाँ रोज ही लोग आने लगे| बड़ा आकर्षण उनमें आ गया। तो मैंने कहा, 'कुछ फरक आया तुम्हें? क्या बात है!' कहने लगे, 'हाँ, मेरी समझ में आयी क्या बात हुई।' कहने लगे कि, 'हालांकि जब लोग आते थे तो मैं कोशिश करता था कि उनको खुश करूँ, उनको चीजें देता था। उनको मैं कहता था, ये लो, ये खाओगे, बैठो ! लेकिन वो लोग पता नहीं कैसे ये समझ लेते थे कि मैं उपरी तरह से कर रहा हूँ। और मेरी बिवी भी ये काम करती थी। उनसे कहती थी, आप ये खा लीजिए, ये ले लीजिए, पर कुछ चीज़ बचा लेती थी। लगता था उसको कि सब चीज़ सामने न रख दें । कहीं सब रखे और सब खा गये तो कैसे होगा। और उसके बाद ये हुआ कि मैंने अपनी बिवि को भी देखा और अपने को भी देखा कि कोई भी आता है तो हम दिल खोल के भैय्या, आ गये, आओ, बैठो। बिल्कुल इन्फॉरमल हो के, अच्छा, क्या खाओगे? अब ये ले लो, वो ले लो। इस तरह से हम सारी के सारी चीज़े उनके सामने रख देते थे । ' और आश्चर्य है कि उनकी बिवी कहने लगी कि, 'पहले मैं इतना बनाती थी कि सब लोग इतना खाते थे उनका मन ही नहीं भरता था। और अब मैं थोड़ासा बनाती हूँ, तो लोग कहते हैं। कि आपके हाथ में इतना स्वाद कैसे आ गया ? इतना अच्छा बनाया और उसको खायेंगे और उसके बाद इतने संतोष से जाएंगे।' धीरे-धीरे फिर वही लोग फिर सहजयोग की ओर आने लगे ये नाभि चक्र की एक विशेषता है कि स्त्र के हाथ में अन्नपूर्णा का वरदान हो जाता है। और जब ये नाभि चक्र पूरी तरह से प्रज्वलित हो जाता है, तो हजारों आदमी भी अगर खाने पे रहे खाना खतम नहीं होगा। संतोष बहुत हो जाएगा। लेकिन लोग अगर सोचे कि कितना बनाया? तो ज़्यादा बनाया नहीं है। लेकिन उसमें संतोष आ जाता है। आपके हाथ से संतोष के वाइब्रेशन्स उसमें चले जाते हैं और आदमी उसे खुशी से खाने लगता है। नाभि चक्र से प्रेम बहुत उमड़ता है मनुष्य के अन्दर, 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page2.txt बहुत ही प्रेम उमड़ता है। उसको समझ में नहीं आता है मैं इनको कैसे, क्या दूँ? किस तरह से मैं इनको अपना प्रेम दूँ? हम लोग तो कभी सोचते भी नहीं है। प्यार हमारे अन्दर आता भी नहीं है और आया तो भी हम अपना छूपा लेते हैं प्यार कि कहीं ये न सोच लें कि हम कुछ चाह रहे हैं कि कुछ नहीं। नाभि चक्र के खुलते ही आदमी में इतना प्रेम उमड़ आता है कि उसको लगता है कि में इनको कैसे क्या देँ कि वो दें। और एकदम खुल जाता है। एकदम खुल जाता है। उसको लगता है कि भाई आ गये हैं तो इनको किस तरह से खुश किया जाए। क्या दें? किस तरह से आराम दें? किस तरह से ये करें? वो आर्टिफिशिअल नहीं होता है। हमेशा मानव कितना भी खुद आर्टिफिशिअल हो जाए दूसरे की भी आर्टिफिशिआलिटी जानता है। ये आदमी कितना उपरी तरह से कह रहा है और कितना अन्दर से कह रहा है ये मनुष्य तभी पहचानता है। अपने देहातों में जरूर ऐसे लोग होते हैं कि वो खुश हो जाते हैं अगर उनके पास जाओ तो, और अगर उनको बहुत खुश करना हो.... पहले ऐसे लोग होते थे आज कल तो ऐसे लोग रहे नहीं। हम अपने फादर को जानते हैं कि अगर वो बहुत किसी दिन नाराज हो जाए तो उनसे जा के आप कहिए कि 'आज हमें आइसक्रीम खाना है', तो वो बहुत खुश हो जाएंगे। उनसे ऐसी कोई बात कह दीजिए उससे वो खुश हो जाते थे। इस तरह के पहले लोग होते थे और उस प्यार को, उसको देने में और खिलाने में और लोगों को आनन्द देने में उनको बड़ा आनन्द आता था। वही चीज़ अपने अन्दर इतनी ज़्यादा आ जाती है, याने मेरी तो समझ में नहीं आता कि लोगों को कहूँ तो क्या कहूँ कि अब बहुत हो गया अब आपस के लिए न करो। देहात में गये तो इन लोगों के लिए न जाने इन्होंने क्या-क्या कर दिया। जितना भी कर सकते थे इनके लिये वहाँ कर दिया। ये अंग्रेज लोग कहते हैं कि, 'हमें कभी नहीं मालूम था कि आपके हिन्दुस्तानियों में इतना प्रेम होता है।' और मैंने कहा, 'तुम लोग नहीं हो? तुममें भी तो बहुत प्रेम आ गया है।' उनमें भी आ गया है, तुम में भी आ गया है। सब प्रेम का आन्दोलन चलता है। हम लोग ज़्यादा से ज़्यादा अपने बच्चे या बिवी या घर के दो-चार लोगों को प्यार करते हैं। वो भी पता नहीं कितना करते हैं। उसमें भी हमारा अपना बना ही रहता है। लेकिन समझ लीजिए बहुत दिन बाद अपना बेटा आ रहा हो, लड़ाई से लड़ के, तो फिर हमारा जी करता है कि अब मिले किस तरह से? तब एक बार आती है तबियत कि किस तरह से मिले। उतना ही प्यार, सर्वसाधारण ऐसे मुलाकात में भी, 'अरे वो हैं, चलिये , उनसे मिल ले। वो यहाँ रहते हैं उनको देख लें। उनकी कोई तकलीफ है उसे उठा लें। ये हैं तो वो कर लें ।' इस तरह की चीजें इतनी अन्दर में पनपती है क्योंकि अपने आनन्द की कल्पना ही बदल जाती है। देने में आनन्द आता है। किसी के साथ करने में आनन्द आता है। थोड़ी सी भी चीज़ हो तो आदमी बोलता है कि ये कर दूँ कि वो कर दूँ कि ऐसे कर दूँ कि वैसे कर दूँ। और इसका आनंद हम लोग आजकल आर्टिफिशअली इतना कैलक्यूलेट करते हैं हर एक चीज़ को, उससे नहीं आ सकता। तो ये जो प्रेम है जो अपने नाभि में उभरता है, जो हमारे चित्त में फैलता है। इतना ये सर्वव्यापी है और इतना आनंददायी है, इतना शांतिमय है कि आपकी तबियत खुश हो जाती है लोगों से मिलके। अब मैंने तो ऐसे भी लोग देखें हैं कि जो लोगों से बोअर ही होते रहते हैं लोग हमेशा। कोई आया तो फोन पे कहते हैं कि भाई, हम नहीं है घर में, जाईये। भागते रहते हैं। लोगों से भागते रहते हैं सुबह से शाम। कुछ लोग होते भी बड़े बोअर हैं। भागते रहते हैं, उसके बाद में अपने से भी भागते रहते हैं। उनको लगता है क्या करें? दो आदमी बैठे हैं, दोस्त हैं। तो बीच में कॉमिक पढ़ेंगे, ये एक पढ़ेंगे वो एक पढ़ेंगे या एक सिनेमा जा के साथ में देखेंगे। दोनों में कोई आदान-प्रदान नहीं होगा। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है। ये लोग कुछ पढ़ते नहीं है। कुछ नहीं। जब साथ बैठे रहते हैं तो सब शांति से अपने साथ बैठे आपस में मज़ा उठाते हैं। 'अरे भाई, क्या कर रहे हैं?' 'कुछ नहीं, बैठे हैं।' आपस में मज़ा उठा रहे हैं। कोई आदमी अगर पार हो जाता है.... अभी हम कलकत्ते जब गये थे, तो होटल में ठहरे थे वहाँ। होटल में एक साहब आयें। तीन - चार और लोग साथ में रहते थे दूसरे कमरों में। तो मेरे पैर पे आते साथ उसमें से वाइब्रेशन्स खूब जोर से शुरू हो गये। ये लोग दौड़ते हुए वहाँ से आयें, कहने लगे, 'माँ, कौन तुम्हारे पैर पे 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page3.txt आ गया?' मैंने कहा, 'क्यों?' कहने लगे, 'उपर से एकदम से वाइब्रेशन्स आ गये।' मैंने कहा, 'देखो, ये!' उसका सुगन्ध ले रहे हैं। मज़ा उठा रहे हैं। अब वो आदमी कौन है? जात का कौन है? पात का कौन है? कौनसे गाँव का है कि कौनसे शहर का है कि कौनसे देश का है? वो उसके पीठ पर से वाइब्रेशन्स आये तो ओ हो हो.. क्या बात है! अब खड़े हुए, मज़ा उठा रहे हैं। वो भी मज़ा उठा रहे है, ये भी मज़ा उठा रहे हैं। बहुत बार आप देखते होंगे यहाँ जो सहजयोगी आप लोगों को मेरे पैर पे लाते हैं वो अपने ध्यान में आप लोगों का मज़ा उठा रहे हैं। फिर मैं कहती हैं, अब ध्यान में मज़ा उठाओ| तुम तो इनका मज़ा उठाने में लग गये। तो की जो तत्व की मनुष्य कमाई है, उसके तत्व में जो कमाई है उसका मजा मनुष्य उठाता है। ये ना कि उसकी दुनिया की चीज़़ों पे, क्या आपके पास बड़ी मोटरें हैं, क्या आपके पास बड़े-बड़े मकानात है, घर है, उससे क्या होगा! इस तरह से हमारे यहाँ औरतों ने भी मर्यादायें छोड़ दीं । अपने घर वाले, अपने वाले, अपने मैके वाले इनसे फट्क के रहना इस तरह की अजीब - अजीब चीज़े हमारे अन्दर बढ़ती है और इसका अगर आपको उदाहरण देखना है तो आप परदेस में जा के देखिए । कोई औरत आदमी को पती नहीं मानती वहाँ। अभी पती बेचारे दफ्तर से आये और पता हुआ ससुराल कि बिवी भाग गई। रोज के वहाँ ये धंधे चलते रहते हैं। आपको आश्चर्य होगा। किसी चीज़ की मर्यादा नहीं। अस्सी साल के बुढ़े आदमी की शादी अठारह साल की लड़की से हो सकती है। अस्सी साल की बु़ी औरत अठारह साल के लड़के को प्रेम पत्र लिखती है। बताईये, यहाँ कोई अगर ऐसी बेवकूफी करें तो लोग कहेंगे कि बुढ़िया को क्या हो गया है । क्योंकि उसमें कारण क्या है? मर्यादा जब बनती है तब मनुष्य परिपक्व होता है। देखिए आप, पेड़ हैं। पेड़ अगर बहुत जरूरत से ज़्यादा बढ़ने लग जाए तो लोग उसको काट देते हैं कि इसकी जो शाखायें बढ़ने लग गयी, उसमें फल नहीं लगेंगे। शाखाओं को काट देते हैं। उसी प्रकार हमको भी अपनी जो शाखायें इधर-उधर बढ़ी हैं उसको काट के मयादा में रखना पड़ता है कि हम जो हैं हम पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। मैच्यूरिटी हमारे अन्दर आ जाए। ये मैच्यूरिटी सिर्फ आपको श्रीरामचंद्र के उदाहरण से आ सकती है। कितनी मैच्यूअर पर्सनैलिटी थी उनकी देखिये । कितना संतुलन उनके अन्दर बँधा। कितना गांभीर्य उनके अन्दर में था। उनकी जितनी भी बातें बताई जायें उतनी कम है । लेकिन उनसे सबसे बड़ी चीज़ जो है कि एक राज्यकर्ते को कैसा होना चाहिए। त्याग में, कितना उसे त्याग करना चाहिए इसका एक उदाहरण है और ये सब राज्यकर्तों को देखना चाहिए कि अपनी पत्नी तो स्वयं आदिशक्ति थी, उनको मालूम था ये देवी हैं। उनका तक उन्होंने ऐसी स्थिति में त्याग किया जब उनके बच्चे होने वाले थे। समाज और प्रजा को संतोष देने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया। लोगों से तो कहिए कि आज कोट बदल दीजिए तो वो तक बदलेंगे नहीं। ये हमारे अन्दर हमारी चेतना में जिस वख्त रामचंद्रजी आयें थे आठ हजार वर्ष पहले तब ये चीज़ हमारे अन्दर जागृत हुई है कि एक राजा को कैसे होना चाहिए! राजा का प्रतीक क्या होना चाहिए? हालांकि ये जरूर हम कहेंगे कि श्रीराम की कृपा से इस देश में ऐसे महान राज्यकर्ते हो गये। एक-एक का नाम लेते साथ दिल ऐसा बड़ा हो जाता है। राणा प्रताप... क्या त्यागमय थे। शिवाजी... एक से एक राजा-महाराजा यहाँ हो गये हैं। जिनका नाम लेते ही आदमी को लगता है 'वाह.. वाह.. क्या | आदमी का नाम ले लिया !' इंग्लंड में और अमेरिका में ऐसे बहुत कम हुये। लेकिन तो भी वहाँ आपको मैं बता सकती हैँ कि अब्राहम लिंकन । इतना बड़ा आदमी था अब्राहम लिंकन, इतना, बिल्कुल सही चलने वाला, तत्वनिष्ठ और कोई भी गन्दगी उस आदमी में नहीं थी और मैच्यूरिटी उसके अन्दर थी। पूरी तरह से प्रगल्भित, और एक बड़ा, बढ़िया इन्सान था वो। लेकिन अब अमेरिका ऐसा आदमी नहीं बना सकती ना रशिया बना सकती है। जैसे जैसे इनके हो गये क्योंकि सबकी मर्यादायें टूट गयी। सबसे बड़ा अचिव्हमेंट हमने ये किया कि अपनी मर्यादायें तोड़ दी और इसको हम सोचते हैं 'स्वतंत्रता'। एक छोटी सी बात समझने की है, अगर समझ लीजिए, एक एरोप्लेन है। उसको उड़ना है। उसको मर्यादा में बाँधा जाता है कि नहीं? अगर 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page4.txt वो कहें कि, 'मैं इस मर्यादा में नहीं रहूँगा।' तो वो सब उड़ते ही साथ इधर-उधर गिर जाएंगे। कोई भी चीज़ आप जब मर्यादा में बाँधते हैं, समझ लीजिए कि गेहूँ हैं, आप फैला दीजिए तो किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला। उसको मर्यादा में बाँधिये। जो आदमी मर्यादा में नहीं होता उसके साथ आपको चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है । ये किस ओर उठ -बैठेगा पता नहीं। इनको तो कोई मर्यादा ही नहीं है। न माँ-बहन, न कोई सी चीज़ समझते हैं। ना बड़ा ना छोटा, कब जवाब दे दें, भागो रे भैया इससे! और इस तरह की बात करने में लोग सोचते हैं कि हमने बड़ी स्मार्ट बात कर दी। हाऽऽ क्या कहने! मैं तो कभी-कभी देखती हूँ, आश्चर्य होता है कि वाद - विवादों में भी, पार्लमेंट में भी मैंने देखा है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता था ! इतनी बुरी तरह से लोग आपस में बातचीत कैसे कर सकते हैं जिनके कि श्रीराम इस देश में हो गये? उनके बहुत हमारे उपर, अनंत उपकार हैं। और जिस इन्सान के अन्दर ये जागृत हो जाता है वो एकदम मर्यादा को प्राप्त होता है। हमारे सहजयोग में भी ऐसा ही है। जब लोग प्राप्त होते हैं इसको तो अपने आप उन्हे मर्यादा आ जाती है। अब अगर कभी आयें, कहें, 'बेटा आज टाइम नहीं है, मेरे पैर नहीं छुओ ।' बस ठीक है, बैठ गये । कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है उनको। बस इशारे पे देखते रहते हैं। उसमें क्या उनका गया और उन्होंने क्या खोया और जो ऐसा नहीं भी करते हैं, अपने माँ- बाप से इस तरह से बर्ताव रखते हैं उन्होंने क्या पाया? उसी तरह अनुशासन का भी है। अनुशासन में अगर आप लोग सोचें कि हम लोग इंडिसिप्लीन से रहे और माँ चीखें और चिल्लायें और आफत मचायें; तो आप अपनी मर्यादाओं को तोड़ते हैं। उससे क्या मिला? क्या मिलता है? लोग कहते हैं स्ट्राइक्स करिये। हमने देखा है स्ट्राइक्स जो लोग करते हैं अधिकतर, जो पैसा कमाते हैं ज़्यादा, वो शराब में ही डालते हैं, कौन सा बड़ा भारी उन्होंने ताज़ बना लिया है इस चीज़ से! मर्यादायें तोड़ कर के कोई सी भी चीज़ पाना बहुत हानीकारक होता है। मर्यादा में रह कर के ही आप सब कुछ पा सकते हैं और मर्यादा तोड़ कर आप कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते। क्योंकि जो भी आप हासिल करियेगा वो भी मर्यादा रहित होता है। तो इसका तत्व ये है, सीधा तत्व ये है कि अगर आपने मर्यादा तोड़ कर के कोई चीज़ को हासिल किया.... एक बच्चा है समझ लीजिए। उसने अपने माँ- बाप से मर्यादा तोड़ कर उनका रूपया-पैसा छीन लिया, वो वेस्ट हो जाएगा। आप कर के देखिए इस चीज़ को कि आप मर्यादा में रह कर देखिये । हमने तो देखा है कि जो आदमी विनम्र है, जो आदमी मर्यादा में है वो इतना उँचा उठता है क्योंकि उसकी नम्रता ही उसका सौंदर्य है और उसकी मर्यादा ही आपको उसके प्रती एक तरह से आकर्षित करती है। जिस आदमी में मर्यादा नहीं, पता नहीं कहाँ से कौन नौक आपको चुभ जाए। आप कोई नुकीले पत्थर पर बैठना चाहेंगे? फिर आप क्यों नुकीले बनते हैं? आपको खुद पता होना चाहिए कि हम खुद बड़े भारी नुकीले इन्सान हैं, हमारे पास जो भी आता है वो हमसे छीन ही जाएगा। जो खूबसूरती मनुष्य की है वो उसकी मर्यादा में है। जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं उसमें कोई भी किसी प्रकार की खूबसूरती नहीं। अब लंडन में या पाश्चिमात्य देशों में लोगों ने बड़ा भारी संघर्ष किया कहते हैं। क्या उन्होंने जितनी भी परंपरायें थी उन्हें तोड़ दिया और तोड़ कर के उन्होंने चाहा कि हम कोई नयी चीज़ बनाये। और तोड़ के क्या आप करने लगे ? तो ड्रग्ज लेने लगे। हाँ अगर कोई पाश हो तो उसे तोड़ना चाहिए। कोई अगर पाश हो.... पाश और मर्यादा में बड़ा अंतर होता है उसे समझ लेना चाहिए। कोई अगर आपके ऊपर पाश है, जैसे अंग्रेजों का हमारे ऊपर साम्राज्य था। ये हमारे ऊपर पाश था। उसको तोड़ना चाहिए। गुलामी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए। लेकिन जो आदमी मर्यादा में रहता है उससे आज़ाद कोई आदमी नहीं होता है। वो अपने आज़ादी में मर्यादा में है। क्योंकि वो आज़ाद है इसलिये नम्र है। जो आदमी को सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी रहती है और जो हमेशा कमी महसूस करता है वो हमेशा हावी रहता है दूसरे पे । श्री राम, जिनका नाम लेने से हमारे हृदय चक्र छूटते हैं, उनकी पत्नी सीताजी स्वयं साक्षात आदिशक्ति का अवतरण है। 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page5.txt इन्होंने और भी अवतार बाद में लिये। तब उनको वनवास जाना पड़ा। लोग सोचते हैं 'जब वो इतने भगवान थे तो उन्हे वनवास क्यों जाना पड़ा?' ऐसे लोग कभी भी वनवास वगैरा नहीं जाते। वो जहाँ भी जाते हैं वहाँ होते हैं। जैसे आज आपसे हम बात कर रहे हैं। अभी यहाँ है हम, बात कर रहे हैं। यहाँ नहीं हैं तो लंडन में हैं। वनवास क्या होता है? यहाँ पण्डॉल है, इसके नीचे में हैं? नहीं है तो पेड़ के नीचे में है। ऐसे लोगों का कोई भी वनवास वरगैरा नहीं होता है। वो जहाँ भी होते हैं, होते हैं। उनके लिये उनका वातावरण और ये कुछ महत्वपूर्ण नहीं रहता । फिर वो क्यों गये? एक सोचने की बात है कि वो अपने राजमहल में रहते हैं। ये सारा नाटक क्यों रचाया? सीताजी बिचारी, जिन्होंने कभी भी नंगे पैर चली नहीं। उनको सारे दर नंगे पैर क्यों ले गये तब ? उसकी वजह है। इस देश के हर जगह में अपने वाइब्रेशन्स पहुँचाने के लिये वो पैदल गये थे। सीताजी जब चलती थी तो उनके पैर के वाइब्रेशन्स हर जगह पहुँचते थे, जो सारे देशभर में श्रीरामचंद्रजी थे। यहाँ तक कि वो बैंकॉक आदि जगह से भी हो आये थे । तब अपनी हिन्दुस्तान की जो भूमि थी इस तरह से जुटी हुई थी बाद में ऐसी अलग हो गयी इसलिये इधर से उनको जाना पड़ा, बैंकॉक वगैरा आदि हो कर के। ये सारा इसलिये नाटक रचाया था कि ये सारे देशभर घूम सके और हर जगह जा कर के अपने वाइब्रेशन्स छोड़ सके। सीताजी की नहानी एक गये। सबसे बड़े ट्रिस्ट अपने पहुँच जगह बनी हुई है, राहरी के पास में। मैं वो देखने गयी थी| दूर ही से पता हो रहा था कि वह इनकी ही नहानी है। इतने वाइब्रेशन्स वहाँ आ रहे थे, इतने वाइब्रेशन्स आ रहे थे और इतने अजीब तरह से वहाँ पानी बहता है कि समझ में नहीं आता कि नेचर से भी इस तरह से पानी वहाँ आ गया और किस तरह से हो रहा है? सब बड़ी अरीबोगरीब चीज़ है । लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है वहाँ वाइब्रेशन्स क्योंकि जब वो वहाँ रहीं तो उनके सारे वाइब्रेशन्स वहाँ हैं। ये सहज में वाइब्रेशन्स बाँटने का तरीका था। अगर उस वख्त इन्होंने वाइब्रेशन्स नहीं बाँटे होते तो आज हमारा सहजयोग जम नहीं सकता था। क्योंकि आज भी भारत में लोग नंगे पाँव चलते हैं। इस देश का कण-कण वाइब्रेटेड है, शायद आप नहीं जानते! अगर आप पार हो जाएंगे, लंडन से आते वख्त हमने नीचे झाँक के देखा, मैंने कहा, 'हिन्दुस्तान आ गया।' तो इन लोगों ने कहा कि, 'माँ, कैसे जाना?' मैंने कहा कि, 'देखो, वाइब्रेशन्स दिख रहे हैं।' वाइब्रेशन्स ऐसे स्वल्पविराम जैसे ऐसे चिक-चिक-चिक दिख रहे हैं। मैंने कहा, देखो दिख रहा है। ये लोग भी कहने लगे, 'हाँ माँ, हिन्दुस्तान आ गया।' एकदम वाइब्रेशन्स पता चलते हैं। किस भूमि पर आप बैठे हैं? जिस भूमि को श्रीराम ने अपने पाँव से चैतन्यमय किया , उस भूमि में आप बैठे हैं। उस चैतन्य को आप पा लें।| उनका जो भी त्याग है, उनके लिये वो नाटक मात्र है। ये बात जरूर है। उनके लिये इसमें कोई अर्थ नहीं। उनको त्यागना क्या और पकड़ना क्या! अरे भाई, जिसने पकड़ा ही नहीं उसका त्याग क्या होता है? जो कोई पकड़े हो वही तो त्याग करेगा! तो उनका त्यागना और पकड़ना कुछ नहीं था। लेकिन ये जो कुछ भी उन्होंने किया है ये हमारी सहजयोग की तैय्यारियाँ है कि हमारे भारतवर्ष में इसके वाइब्रेशन्स लोगों को मिले। पर दुःख की बात ये है कि हमने चैतन्य तो क्या श्रीराम ही को भूला दिया। अब उनकी दुकानें खोल दी। प्लास्टिक का एक फोटो मिल गया श्रीराम का, बैठ गये उसको लेकर के! और उसकी पूजा शुरू कर दी । कोई बड़े रईस हो गये, पैसे वाले हो गये, तो उन्होंने कहा, चलो भाई, एक श्रीराम का मंदिर खोल दो, जिससे अपने उपर का बोझा उतर जाये कि चलो, हमने कुछ तो कर दिया। एक साहब ने खोला एक मंदिर कहीं। बहुत रईस आदमी थे। उन्होंने ला कर के दिखायी राम की मूर्ति । कहने लगे, 'माँ, ये ठीक है?' मैंने कहा, 'नहीं, बिल्कुल ठीक नहीं ।' तो कहने लगे, 'क्यों?' मैंने कहा, 'श्रीराम की मूर्ति है और वो हृदय चक्र राइट में पकड़ रही है। मतलब श्रीराम के विरोध में है।' तो कहने लगे, 'इसका क्या डाइग्नोसिस हुआ?' मैंने कहा, 'डाइग्नोसिस ये हुआ है कि जिस आदमी ने बनायी है वो उसने अपने पिता से बहुत ज़्यादती करी है। इसका ये डाइग्नोसिस है। आपको आश्चर्य होगा उसके बाद उन्होंने एक महीने भर बाद बताया कि वो आदमी पकड़ा गया। उसने अपने पिता का खून किया था। श्रीराम की मूर्ति वही आदमी बनाये जिसने अपने पती को या अपने पिता को श्रीरामचंद्र जैसे माना। बाकि 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page6.txt किसीको ये अधिकार नहीं कि आया, वही बना रहा है अपना। जो आदमी अपनी पिता की सेवा नहीं कर सकता वो रामचंद्रजी की मूर्ति नहीं बना सकता। उसको अधिकार नहीं। लेकिन जब उसने अपने पिता की बहत सेवा की, पिता को आनंद देते वक्त अपने में आनंद उठाया है वो अगर कैसी भी मूर्ति बनाये वो इतनी सुंदर होगी , उसके वाइब्रेशन्स, उसकी आनंददायी शक्ति संपूर्ण होगी। चाहे वो मार्बल क्यों न हो, चाहे वो मिट्टी की हो, उसमें चैतन्य है। उसको देखते ही लोगों के मन में भी अपने पिता के प्रति आदर हो। क्योंकि श्रीराम हमारे पिता हैं । वो हमारे पिता स्वरूप हैं। जिस वक्त आपका ये चक्र पकड़ा जाता है तो इसका ये अर्थ होता है कि या तो आप अपने पिता से रूष्ट हैं, पिता के प्रति कर्तव्यपरायण नहीं हैं और या तो अपने पिता की मृत्यु हो गयी है, आप उससे द:खी हैं। कोई न कोई पिता का संबंध है और ये भी होता है कि आप अपने बच्चों के प्रति अच्छे पिता नहीं हैं। पिता का स्थान जो है वो आपका यहाँ पर, राइट साइड में | हार्ट पर होता है| अगर ये स्थान आपका बिगड़ा हुआ है तो उसके ऐसे अनेक अर्थ निकलते हैं । इसके बिगड़ने से पहली भी कृति क्या थी? माने अनेक तरह से होता है, माने आपके पिता की मृत्यू हो गयी है, जो कि अकस्मात हई और आप अभी उनके लिये परेशान हैं। तो वो अभी मंडरा रहे हैं। हो सकता है कि आप अपने पिता से बहुत दष्ट व्यवहार कर रहे हैं। हो सकता है कि आप अच्छे पिता नहीं हैं। हो सकता है कि आपके पिता रहे ही नहीं । आपने पिता तत्व जाना ही नहीं । ये पिता का जो तत्व है ये हमारे अंदर किसी भी तरह से सुख पहुँचाता है। इसके इफेक्ट में क्या होता है। अगर किसी आदमी को न्यूमोनिया हो जाये तो ये चक्र पकड़ता है । अगर किसी को अस्थमा की बीमारी हो जाए तो अधिकतर यही चक्र पकड़ा जाता है। आश्चर्य की बात है, दो चक्र हैं, जिसपे हमने देखा है अस्थमा पे आता है, पर अधिकतर आदमी लोगों में ये चक्र तब पकड़ा जाता है जब पिता का तत्व किसी तरह से दःखी हो। पत्नी के कहने से पिता का अपमान करना। अपने बच्चों के सामने पिता का अपमान करना। या आपका अपने बच्चों का अवमानित करना। अपने बच्चों को निग्लेक्ट करना। ये सब चीजें इस चक्र में अति सूक्ष्म दिखायी देती है। अब इतनी सूक्ष्म होती है कि मैं आपसे बताऊँ कि एक साहब थे। तो वो बड़े ही ज़्यादा मॉडर्न थे। तो उनको बच्चा होने वाला था। तो उन्होंने अबॉर्शन करवा लिया। तो उन्होंने कहा कि ' भाई , ये क्यों कराया तुमने?' कहने लगे, 'इसलिये कराया कि हमने सोचा ज्यादा बच्चे होंगे तो हमें परेशानी होगी। हम लोग घूम-फिर नहीं सकेंगे। अभी हमारे घूमने-फिरने के दिन हैं । इस वक्त में ये क्या करें?' और उनका ये चक्र इतना पकड़ा है, इतना पकड़ा है कि उनका घूमना-फिरना बंद हो गया। उनको श्वास लग गया। अंत में उनको माफी माँगनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से उनका ये चक्र छूटा है। तो ये इतना है कि इसका साक्षात सामने आता है। हमने बहुत से लोगों का अस्थमा ठीक किया है। पच्चीस -पच्चीस साल पुराने लोगों का हमने अस्थमा ठीक किया हआ है। और उसमें क्या है कि उसका तत्व अगर आप जान लें कि किस वजह से अस्थमा होता है क्योंकि लंग्ज ये कंट्रोल करता है। किसी को न्यूमोनिया हो जाए तो आपको पता चल जाएगा इसको न्यूमोनिया हो रहा है क्योंकि उसका जो है ये चक्र पकड़ जायेगा जोरो में और उसमें से गर्मी आयेगी। अब ये चक्र हमारे उँगली पर कहाँ दिखायी देता है? ये! राइट साइड में। बहुत अब लेफ्ट साइड में भी हार्ट है और बीचोबीच भी हार्ट है। इस तरह से तीन हार्ट की स्थितियाँ हैं। अब जो बीच का हार्ट है यहाँ श्री जगदम्बा का स्थान है। इसको हम दुर्गा, ललिता आदि कहते हैं, जिन्होंने अनेक बार इस संसार में अवतरण लिया। और ये जो भवसागर में जो भक्त लोग परमात्मा को खोजते हैं उनके लिये वो अवतार लेती हैं और सबकी रक्षा करती हैं। तो इनका इसेन्स जो है, इनका जो तत्व है वो है रक्षा! अब किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, देखिये कितनी बारीक चीज़ है, किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, उसका आदमी अच्छा न हो, इधर -उधर भागता हो, जिसकी तरफ से 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page7.txt परेशान हो, उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा। उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा क्योंकि उसकी रक्षा का जो है वो स्थान रिक्त है । 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' है। बहुत से आदमी लोग सोचते हैं कि औरतों को डरा दे और उनको डाँटें कि तुम बड़ी शक्की हो, तुम ऐसी हो, वैसी हो। अगर औरत को शक हो तो उस चीज़ पे नहीं उतरना चाहिए। छोड़ देना चाहिए। उसको बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि उसको आप अगर जबरदस्ती कोई चीज़ करेंगे तो उसका बीच का हृदय चक्र पकड़ेगा और उसको ऐसी तकलीफ होगी। ऐसे औरतों को दूध नहीं होता है बच्चों के लिए । सूख जाती है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' आदमी में भी बहुत बार होती है। जैसे कि नौकरी का मामला है, कुछ हो गया तब भी आप जानते हैं कि यहाँ धकधक धकधक होता है। जैसे ही मनुष्य पैदा होता है उसका ये जो यहाँ पर स्टर्नम कर के जो बोन है, जो हड्डी है, उस हड्डी में अँटीबॉडीज तैयार होती हैं साइन्स में। अँटीबॉडीज वही जगदम्बा के सिपाही हैं, जो तैयार होते हैं। और वो सारे बॉडी में बिखर के रह जाते हैं । और जिस वक्त भी कौन सा भी अँटैक आता है इन्सान पर, तो वो अँटीबॉडीज उसकी मदद करते हैं। लेकिन अगर जगदम्बा का तत्व बिल्कुल ही गया-बीता हो तो ये अँटीबॉडीज भी मुरझाकर रह जाती हैं क्योंकि उनका जो संचालन है वो दुर्गा तत्व से है। आपको मालूम होगा कि जैसे भय हो जाए आदमी का दिल धड़कने लगता है धकधक धकधक। अब इस मामले में ये कहना चाहिए कि ये माँ का स्थान है। हमारे देश में लोग माँ को बहुत ऊँचा मानते हैं। अपनी माँ को तो मानते हैं लेकिन अपने बच्चों की माँ को तो नहीं मानते हैं। क्योंकि ये हमारे बच्चों की माँ है इसलिये ये भी बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ है। जब तक हम | अपने बच्चों की माँ को वो स्थान न दें जैसे कि हमारे माँ का स्थान था । उनकी माँ ने भी सफर किया और उनके बच्चों की माँ भी सफर कर रही है। तब ये चक्र डेवलप होता है और इससे बहुत सिरियस बातें हो जाती हैं । जैसे कि हिस्टेरिया की बीमारी। ये सारे लेफ्ट साइड के आक्रमण है। लेफ्ट साइड से जो कुछ सबकॉन्शस से आक्रमण आते हैं, औरतों का डरना, चीखना, चिल्लाना, घबड़ाना, नव्हसनेस, इनसोम्नीया, असंरक्षित रहना, परेशान होना, किसी भी चीज़ से हर समय भय, खौफ खाना, कोई चीज़ करने में आगे न आना, हर एक एग्रेशन के सामने सर झुकाना, ये सब चीज़ें घटित हो जाती है। बहुत से आदमियों में भी ये बात होती है। जब ये चक्र उनका सुप्त हो जाता है तो वो बड़े एग्रेशन अपने उपर ले लेते हैं बेचारे। और ये भी गलत चीज़ है किसी का एग्रेशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। आपको बीच में खड़ा होना चाहिए। कोई अगर आपसे एग्रेशन करे तो आपको बीच में खड़ा होना चाहिए। ना तो किसी पे आप एग्रेशन करें ना आप किसी से एग्रेशन लें। जब ये चक्र पूरी तरह से संतुलित हो जाता है तब आप अपनी शान में खड़े रहते हैं क्योंकि जगदम्बा है, जो कि सारी जगत जननी है, सारे जग को सम्भालने वाली, वही आपकी माँ है। फिर आपको किस के बाप का डर है । लेकिन आप अँग्रेशन नहीं करते। फिर आप भक्तों का रक्षण करते हैं। फिर आप अपने अच्छाई में शान उठाते हैं। आपको घबड़ाहट नहीं | होती है। बहुत से लोगों को लगता है कि, 'साहब, में क्या करू? मुझे बड़ा ड्र लगता है। मैं जरूरत से ज़्यादा इमानदार आदमी हूँ। मेरे दफ्तर में सब लोग बड़े बेईमान हैं। मुझे खा जाएंगे।' लेकिन जब जगत जननी अन्दर जागृत हो जाती है तो | उसको शान लगती है। वो सोचता है कि 'ठीक है, ये तो बेकार लोग हैं। मैं तो कम से कम ठीक रस्ते पर हूँ।' वो अपने व्हर्चूज को एन्जॉय करने लग जाता है। हम तो अपने व्हर्चूज के लिये रोते रहते हैं। उसको अपने व्हच्चूज में घबड़ाहट नहीं होती। ना ही वो एग्रेस करता है कि मैं इतना व्ह्चूअस हूँ और तुम नहीं हो। ये भी नहीं करता। ना तो वो एग्रेस करता है ना तो वो किसी पर एग्रेशन करता है, ना तो वो किसी का एग्रेशन लेता है इस तरह से उसका बीच का स्थान बन जाता है। अब ये जो हृदय चक्र है बीच का, ये बहुत जरूरी है। इसके खराब होने से भी स्पॉन्डिलाइटिस वगैरा हो जाते हैं कभी। तो छोटी-छोटी बातें हैं। इसको समझ लेना चाहिए। जैसे कि, लड़की है, उसकी शादी हो गयी । उसका पती, उसको अगर इनसिक्युरिटी डाल दें तो उसको समझाना चाहिए कि देखो, ये पाप है, ऐसे नहीं कर सकते । लड़की पे जबरदस्ती नहीं करें 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page8.txt क्योंकि विशेषत: ये औरतों का चक्र बहुत खराब है। अपने यहाँ की औरतें बहुत शान्त हैं मैं आपसे कहती हैँ। बहुत अच्छी हैं। अपने देश की इन औरतों की वजह से ही आज आपकी पेशानी ऐसी है। नहीं तो आप इंग्लैण्ड के आदमियों के देखिए तो उनके उड़ती रहती है आँख कहीं, नाक कहीं, कहीं मूँह। एक मिनट ऐसे चुप नहीं बैठ सकते, आपके जैसी पेशानी नहीं होती। इस उमर में तो उनके सारे पाँच-छः यहाँ पे लाइने आ जाएंगी और आँखें उनकी फड़केंगी, नाक उनकी फड़केंगी, गाल उनके उड़ेंगे। क्योंकि उनकी माँ किसी के साथ भागी होती है, पत्नी किसी के साथ भागी होती है। यहाँ की औरतों में बड़ी अभी भी सज्जनता है कि अपना पती, अपने बच्चे, चाहे जैसा पती हो। लेकिन इसकी ज़्यादती नहीं करी क्योंकि ये भी अगर ज़्यादती पर आ जाएगा तो इंग्लैण्ड यहाँ आ जाएगा। वहाँ औरतों ने आदमियों को घाटी बना कर रखा है। बिल्कुल। ये हालत कर के रखी है कि आदमियों को समझ में नहीं आता है कि इन औरतों के साथ रहे कैसे ? अच्छा ये एक का नहीं, सबका ही मैंने ये हाल देखा है। सुबह से शाम तक ये सफाई कर, ये बर्तन धो, वो कर, ये नहीं किया तूने, वो नहीं किया। वो घर में नहीं आया तो उसको ढ़ेर काम! हमारे यहाँ तो आदमी लोग को हाथ में झाड़ भी लेना नहीं आता। जब बाहर जाते हैं तो रोते हैं कि अब खाना कैसे बनाएंगे? हमें तो ये भी नहीं आता, सब्जी कैसे ? दाल कौनसी है ? हमें मालूम नहीं। औरतों ने बहत बोझा अपने उपर इस देश में उठाया है। इस देश की औरत जो है धरा है, पृथ्वी जैसे महान, एक से एक अपने देश में महान औरतें हो गयीं| उनका नाम लीजिए, नूरजहाँ जैसी औरत, क्या औरत थीं। चाँदबीबी थी, पद्मिनी थी। वो लोग विश्वास नहीं करते कि अपने यहाँ पद्मिनी जैसे कोई ऐसी विशेष औरत हुई होगी। वहाँ तो कोई औरत के पीछे में कोई आदमी लग जाए तो फौरन गायब ! कोई वहाँ समझ नहीं सकता है कि कोई औरत अपने इज्जत की भी पर्वा करती है। कोई समझ नहीं सकता आजकल। आपको आश्चर्य होगा वहाँ तो सब औरतें इसी पे हैं कि कितने आदमी उनके पीछे भाग रहे हैं । बड़ी - बड़ी बुढ़िया लोग ऐसी बातें करती हैं। मुझे तो आश्चर्य होता है कि इनकी अकल क्या सब गायब हो गयी । और ये में आपको जनरल बात बता रही हूँ। सौ में अगर आपको एक औरत कायदे की मिल जाए तो आप कहें कि हाँ ठीक है। और आदमियों की तो हालत इन्होंने बिल्कुल ही कच्चा कर रखी है। जो हिन्दुस्तानी आदमी हैं, हिन्दुस्तानी औरत को छोड़ कर अंग्रेजी औरत से शादी करता है उसकी हालत देखने लायक हो जाती है। रोता है अपनी किस्मत को। हालांकि वो अच्छी बात नहीं है । लेकिन इस महान आत्माओं का आपको अपमान नहीं करना चाहिए। उनका मान रखिए। 'यत्र नारियाँ पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता:' जहाँ स्त्री पूज्यनीय होती हैं और पूजी जाती हैं वहीं देवता होते हैं। इन किसी भी देशों में औरतों की दशा ऐसी नहीं है जैसी यहाँ है, मतलब अच्छी है। यहाँ की जैसी कहीं औरतें हुई नहीं और ना ही यहाँ के जैसी औरतों की जो, उनका जो मान है घर में, वो होता है । हर जगह औरत इतनी बेवकुफ बन गयी है। आजकल उन्होंने और भी निकाला हुआ है, 'लिबर्टीज' और भी क्या-क्या निकाला हुआ है। 'लिब' लिबरेशन। इन औरतों के तो सिंग निकल आये हैं। बिल्कुल जानवर हो गयी हैं, बिल्कुल गधी हो गयी हैं। इनको कोई अकल नहीं है। अपने पती की सेवा करना, अपने बाल-बच्चों को सम्भालना ये महान कार्य है। ये तो तब आपको पता होगा जब ये नहीं कोई करेगा। जब बच्चे आपके रास्ते पर घूमेंगे और ड्रग्ज़ पियेंगे और बारह-बारह साल के बच्चे जाकर के अखबार बेचेंगे और चोरी होंगे और मारे जाएंगे| हमारी औरतों को ये किसी ने नहीं सीखाया। पढ़ी-लिखी नहीं है तो भी अन्दर से बहुत बड़े दिलवाली औरत हैं। कोई-कोई होती हैं बिगड़ी हुईं। विशेषत: वेस्टनाइज्ड हो गयी तो फिर उनको तो कोई सूझता ही नहीं। वैसी भी औरतें होती हैं बेवकूफ। उन लोगों से कुछ सीखने का नहीं है। मैंने सौ बार आपसे कहा है। और औरतों को तो औरत मैंने वहाँ नहीं देखी । इसमें जो बिल्कुल उनसे कुछ सीखने का नहीं है। हम लोगों के पाँव के धूल के बराबर भी एक समझापन और जो सुलझापन और जो चरित्र। आपको बहुत अपने पे गर्व करना चाहिए कि आप एक ऐसे माँ के बेटे हैं जो चरित्रवान थीं और ऐसे पत्नी के पती हैं जो चरित्रवान है। क्योंकि वो चरित्रवान है उनकी बहुत इज्जत करनी चाहिए । पर हम लोगों के यहाँ नयी फैशन चल पड़ी दुश्चरित्र औरतों का बहुत माना जाता है। एक औरत दुश्चरित्र आ जाए सब 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page9.txt उसीके पीछे दौड़ने लग जाते हैं। ऐसे बैल आदमी पता नहीं इस देश में कैसे पैदा हो गये ? ऐसे कभी भी यहाँ नहीं थे। ये कोई पच्चीस-तीस साल में बहुत ही ज़्यादा ऐसे बैल आदमी पैदा हो गये मैं आपसे बता रही हूँ। हम लोगों के जमाने के जो जवान लोग होते थे आँख नीचे कर के ही चलते थे। उन लोगों को कभी सूझता भी नहीं था कि दूसरी औरत क्या है, क्या नहीं। अपनी पत्नी माने अपनी पत्नी! पर आजकल जो ये बैलपन आ गया है इस बैलपना से आपकी भी बिवी ऐसी हो जाएगी कि जो एक गाय होती है न लात मारने वाली उस तरह की हो जाएगी। अब वो होना ही है उसके आप पीछे पड़े हुए हैं। आपकी बिवी नहीं होगी तो आपके लड़के की बिवी होगी। यही मर्यादायें हैं। इसे बाँधना है और जिसे सम्भालना है। और वही है कि हृदय में अपनी पत्नी का स्थान है, अपनी माँ का स्थान है। सबसे बड़ी चीज़ है लेफ्ट साइड का हार्ट जो कि इस उँगली ( तर्जनी) पर पकड़ता है। सबसे बड़ी चीज़ है। हार्ट में, हमारे हार्ट में लेफ्ट साइड़ में शिवजी का स्थान है। शिवजी जो हैं आत्मास्वरूप हैं, सदाशिव हैं। सदाशिव हमारे सर पे सदा विराजते हैं। और उन्हीं का प्रतिबिंब रूप हमारे अन्दर आत्मा है। आत्माराम जिसे हम कहते हैं। वो हमारे हृदय में बसते हैं। जब हम कभी भी इस आत्मा के विरोध में काम करते हैं, तब हमारा ये चक्र एकदम से ही सो जाता है। माने जो बहुत इगो ओरिएन्टेड लोग होते हैं जो कि राइट साइड बहुत चलाते हैं, इगो ओरिएन्टेड लोग हैं, कि जो बहुत काम करते हैं, कि हमें प्लानिंग करना है, ये करना है, ये इगो से अपना काम लेना है। रिइलाइजेशन के बाद नहीं, तब तो डाइनेमिज़म अन्दर से बहता है। पर पहले इगो ओरिएन्टेड होते हैं। अब इसकी अतिक्रमण हो गया है उधर, अब यहाँ भी होने वाला है। ये इगो- ओरिएन्टेशन जब हमारे अन्दर बहुत बढ़ता है जब हमारा इगो बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है, याने 'हम कोई बहुत बड़े हो गये', तब आपका हृदय चक्र पकड़ता है। इसलिए हार्ट अटैक्स जब आते हैं ये आदमी इगो ओरिएन्टेड होते हैं। लेकिन हम लोग हार्ट अटैक वाले आदमी के साथ बड़ी सिम्परथी करते हैं । सोचते हैं भाई , इनको हार्ट अटैक आ गया। अगर उनसे आप कहिए कि आपको हार्ट अटैक आया, आप आराम से लेटिए। मैंने ऐसे-ऐसे लोग देखे हैं, एक साहब थे। उनकी उमर नब्बे साल की थी। और उनको वो पैरेलिसिस, पैरेलिसिस भी इसी में होता है । बहत ज़़्यादा काम करने वाले आदमिओं को पैरेलिसिस कंट्रोल करता है। उनको पैरेलिसिस का झटका है। नब्बे साल की उमर। उनसे मिलने गये और वो सारे शिपिंग के स्टैटस्टिक बोल रहे थे। मैंने कहा कि इन आदमी को पता नहीं है कि अभी दो दिन रहना है कि नहीं। वो यही सब बोले जा रहे | हैं। हालांकि उनकी एक साइड गायब हो गयी थी। दूसरे साइड से जो भी उनके शब्द निकल रहे थे, वो सारा के सारा रटे जा रहे थे। मैंने कहा इनका क्या होने वाला है पता नहीं। तो जब आदमी अतिशय प्लॅनिंग करता है और अतिशय सोचता है और एग्रेशन करता है इस तरह से तो परमात्मा उससे नाराज हो जाते हैं। मनुष्य का चित्त सिर्फ परमेश्वर पर होना चाहिए। मतलब ये कि आपका चित्त स्पिरीट पे नहीं है। आपको सिर्फ स्पिरिट होना चाहिए। मनुष्य के लिए बड़ा कठिन हो जाता है समझना कि हम नहीं देखें तो कैसा होगा। एक देखने वाले सबसे बड़े बैठे हुए हैं। ठीक है, आप कर्म करो । उसमें कोई हर्ज नहीं। पर उसका फल जो है, वो ऐसा मिले न मिले, उसमें इनवॉल्व्हमेंट नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक कहने की बात हो जाती है कि जब तक घटना घटित नहीं होती आदमी नहीं कर सकता। तो भी मैं सबसे कहती हूँ कि कृष्ण ने कहा ना कि 'अतिकर्मी नहीं बनो'। थोड़ा आराम भी करना सीखो। कभी-कभी तो आराम कर लिया करो। जिन लोगों ने कहा कि 'आराम करना ही नहीं है', उन्होंने कौनसे चार चाँद लगा के रखे हैं हमें बताईये। कभी-कभी आराम भी करना चाहिए और उस परमात्मा को, जगननियन्ता को, जो कि सबका प्लानिंग करता है याद करना चाहिए। आजकल तो साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि भगवान है ही नहीं, Negation ऑफ गॉड। पहले से ही कह दिया उन्होंने। ऐसे लोगों का हार्ट नहीं पकड़ेगा तो क्या पकड़ेगा। मतलब जब आपने उधर ध्यान ही नहीं दिया। उस चीज़ को आपने त्याग ही दिया है। तो फिर वो चीज़ खत्म होने वाली है। हार्ट अॅटैक इसी से आता है। सबसे बड़ी चीज़ है हृदय। हृदय से अगर आप सोच सरकें, तो आप बहुत सुन्दर हो जाएंगे और अगर बुद्धि से आप प्रेम करें, तो और भी आपके 19790315_Har jagah ke apne vibrations hote hai_Delhi_H_TC.pdf-page10.txt चार चाँद लग जाएंगे। सारी चीज़ हृदय से होती है। सारा ज्ञान हृदय से मिलता है। आपको आश्चर्य होगा में जो बात कह रही हूँ। बुद्धि से ज्ञान नहीं मिलता, हृदय से मिलता है। कोई आप काम करें, हृदय से करें। कुछ पढ़ना है, हृदय से करें। कोई नौकरी करनी है, हृदय से करें। लेकिन आप बुद्धि से करते हैं, इगो ओरिएन्टेड हैं आप। पर आप हृदय से करें तो मजा आते रहेगा। हृदय से करने का मतलब ये है कि आप अपने अन्दर के जो स्पिरिट है, आत्मा है उसको उपयोग में ला रहे हैं। कोई भी आदमी बात करता है, समझ लीजिए आपके सामने कोई आदमी लेक्चर दे रहा है , वो अगर हृदय से नहीं दे रहा है, तो आप जानते हैं कि ये बकवास चल रही है। इसके मन में कुछ है नहीं। पूरे साढ़ेतीन चक्र ले कर के हृदय से कुण्डलिनी का जो प्रतिबिंब है वो पूरा ऐसे रहता है। और जब तक आपके हृदय में बात बैठती नहीं, तब तक उसमें कोई भी सौंदर्य ही नहीं होता है, उसका कोई भी फल प्राप्त नहीं होता है। बुद्धि से सोची हुई बात से कुछ लाभ नहीं होता है। आप हर चीज़ को हृदय से करें। ज्ञान भी देखें। कोई आदमी हैं, समझ लीजिए आपसे हमें नितांत प्रेम है तो हमें पता है आपकी कुण्डलिनी कहाँ है । अब यहाँ मेहनत कर रहे हैं, दो बजे रात के तो भी बैठे हैं मेहनत करते क्योंकि हृदय से कर रहे हैं। उठे कैसें ? सारा आपके बारे में ज्ञान हो जाएगा। माँ होती है, वो अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। वो अपने बच्चे की छोटी-छोटी बात सब जानती है। उसका सारा उसे ज्ञान होता है। कोई सा भी कार्य करते वक्त अगर आप इसे हृदय से करें। आप सरकारी नौकर हैं, अगर वो ये सोचें कि 'ये काम जो है ये जनता का, मेरे हृदय से मैं कर रहा हूँ। मेरा हृदय चाहता है। इसके बगैर मुझे अच्छा नहीं लगेगा। उस पे कभी भी असर नहीं आयेगा। लेकिन जब ये चीज़ टूट जाती है तब स्पिरीट जो है वो लुप्त हो जाती है और स्पिरिट खत्म होते ही हमें मृत्यु आ जाती है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो लोग बहुत काम करते हैं वो कोई बड़े पापी हैं, लेकिन अन्धे भी हैं। काम करिये लेकिन हृदय से कार्य करें। जिस कार्य में आपका हृदय से कार्य नहीं होता है उसका कोई निष्पन्न नहीं है, उसका कोई लाभ नहीं है, उससे किसी को सुख नहीं होने वाला है। आप पहाड़ कर लीजिए, प्लास्टिक है सारा। अब आप ही सोच लीजिए कि आप अपने दफ्तर का काम क्या हृदय से करते हैं। बहुत से लोग तो इसलिए करते हैं कि भाई पैसा ही मिलता है। करना ही है, क्या करें? अब मरना ही है। गले पड़ा ढोल तो बजाना ही है। फिर मजा क्या आयेगा ? नहीं तो इतना मजा आता है कि कितने भी तुफानों में आप खड़े होंगे, मजा आता है उससे लड़ने में कि हृदय से लड़ रहे हैं। क्योंकि हृदय जो है यही आनन्ददायी है। आनन्द का स्रोत आपका स्पिरिट है, आत्मा है और कहीं से आनन्द नहीं मिलने वाला। जब आपका आत्मा उससे सन्तोष पाता है तभी आपको इन सबमें आनन्द आयेगा और आपका फ्रस्ट्रेशन नाम की चीज़ आपसे हट जाएगी। इस प्रकार आपके तीन चीक्रों को मैंने बताया है, इसको कि हम हृदय चक्र कहते हैं। उसको अनहत चक्र भी कहते हैं। अनहत माने without percussion! क्योंकि जब हृदय में, उसकी जो गति होती है, हृदय की उसमें हमारा जो प्रणव है, जिसकी वजह से हम जीवित हैं उसका आवाज किसी भी परकशन के बगैर आता है, किसी भी आहत के बगैर आता है इसलिये अनहत कहते हैं। पर जब कुण्डलिनी जागृत होती है और चित्त उसपे जब छा जाता है, तब कुण्डलिनी में भी अनहत जागृत हो जाता है और वो बोलता है। आप देख सकते हैं कि उसकी धक -धक -धक -धक, आप सुन भी सकते हैं स्टेथैस्कोप से कुण्डलिनी का चढ़ना और जब वो शिखर पे पहुँच जाता है, तो कबीर ने कहा है, 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे' मतलब यहाँ पहुँच के अनहद ने बजाना शुरू किया 'मैं पहुँच गया हूँ। और जब वो अनहद टूटता है यहाँ तब ये आदमी रियलाइज्ड हो जाता है।