30 ॐ निर्मला योग वर्ष 1 अक I द्विमासिक मई - जुन - 1982 म ुरभ ा ह ॐ त्वमेव साक्षात थी सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी, कलकी, भगवती माता जी थी निर्मला देव्ये नमो नमः । के कर THE क ा GGW क सम्पादको गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय । पार आपने जिन गोविन्द दियो बताय ।। बलिहारी गुरु ये शब्द गुरु स्वरूप अवतरित श्री कबीर दास जी के हैं। अर्थ बड़ा ही सरल है किन्तु इसका गूढ़ ज्ञान आराज हमें सहजयोग के अन्तर्गत परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी जी की अनुपम देन निमंला विद्या द्वारा दीक्षित होने पर होता है । आज हमारे बीच गोविन्द स्वयं गुरु रूप में समस्त संसार के त्राणार्थ उपस्थित हैं। मानव मात्र तक उनके आगमन की सूचना की श्रू खला की एक कड़ी रूप निरमला योग का यह हिन्दी का प्रथम अक उन्हीं के पावन चरणों में सम्पित है । निमेला योग मह ा निर्मला योग 43, बंगलो रोड, दिल्ली 110007 संस्थापक : परम माता जी श्री निर्मला देवी पूज्य सम्पादक मण्डल : डॉ० शिव कुमार माथुर श्री आानन्द स्वरूप मिश्र श्री आर० डी० कुलकरी प्रतिनिधि : श्री एम० बी० रत्नानवर 13, मेरबान मैन्सन गंजवाला लेन वोरीवली (पश्चिमी) बम्बई - 400092 श्री प्रमोद शंकर पेटकर 469/15, सोमवार पेंठ ब लालबड़ा पुणें - 411011। इस अंक में पृष्ठ 1. सम्पादकीय 1 परम पूज्य माता जी का प्रवचन 3. अनुसरणीय 4. परम सत्य की खोज एवं मानवीय तर्क 5. त्यौहार 6 गुरु पूजा 2. 8. 10 निर्मला योग ल to परम पूज्य माताजी का प्रवचन (नई दिल्ली-१७ अप्रैल १६८१) अन्दर से अव्यवस्थित हो तो बाहर जितना भी झंझा- वात हो, तो उसका जबरदस्त असर रहेगा। अगर औप अन्दर से बिल्कुल शान्त हैं, तो बाहर कुछ भी हो रहा हो, उसका असर नहीं होगा, उल्टा जो बाहर है, वो भी शान्त हो जायेगा। सबसे बड़ी चीज यह है कि अपने को जमा लेना चाहिए । अगर ऐसी जगह है, जहां बहुत उथल-पुथल है तो सब लोगों का कुछ न कुछ रजिस्ट्र शन (Registra- ऐसी जगह से भली-भांति समझा-वुझा के किसी tion) कीजिए । आप कुछ ग्र.प (Groups) में तरह से हट जाना चवाहिए । उससे जूझना नहीं बांट लीजिये अऔर उनसे सम्पर्क, सम्बन्ध स्थापित चाहिए और उससे हट जाना चाहि ए और अपने कीजिए। नहीं तो वो फिर खो जाते हैं और सहज दिल को वहँ से हृटा लेना चाहिए, जिससे हमारा योग में ऐसा है कि जब तक आदमी जम नहीं जाता, चित्त जो है, उस उलझन में, उस उथल-पुथल में बड़ा [अच्छा प्रोग्राम रहा । हम लोग जो देहली में उम्मीद कर रहे थे कि वहुत लोग आय गे तो बहुत लोग आ गये और पार भी हो गये । इस प्रकार पहले भी होता रहा है, बहुत से लोग प्राते हैं पार भी हो जाते हैं, फिर खो जाते हैं । तो पहली बात तो यह होनी चाहिये कि उन तब तक वो पनपता नहीं क्योंकि यह जीवन्त क्रिया (Living process) व्यस्त न हो । सह ज-योग की अपनी अनेक समस्याएं हैं। हम लोगों को जान लेना चाहिये कि जीवन्त- सबसे बड़ा समस्या यह है कि जो लोग पार हो गये हैं क्रिया में क्या-२ चीजों की जरूरत होती है । सबसे उनकी चेतना और जो लोग पार नहीं हुए हैं उनकी हले तो यह है कि कोई भी डावाडोल जगह में चेतना में बहुत बड़ा प्रन्त र है, बहुत महान अन्तर पा जहां हर समय (earthquake या eruptions) है। थोडे से ही क्षण में बड़ो अन्त र अ जाता है भूचाल होते रहते हैं; कोई भी ऐसी जगह हो तो पार होने पर । वो इस ची ज को समझ नहीं पाते। व्रहाँ कोई सा पेड़ या ऐसी चीज टिक नहीं सकती । ो जिस वातावरण में हम रह रहे हैं, उसे वाता- रण में हमको पहले अपने आपको जमा लेना रोते रहे कि, "एक हो तो कहै, यहाँ तो सब जग हाहिये । इसलिए कबीर रोते थे कि, "सब जग अन्धा, सब जग अन्धा। जित ने भी बड़ लोग हुए, यह कह कर अन्धा, सब जग अन्धा। जब सारे अन्धों के बीच में आप रह रहे हैं और जमाने के लिये सबसे बड़ी बात यह है कि [माने के लिये हमारे चारों ्रोर अरास-[पास का जो और सिर्फ एक आदमो के आँव है, तो बड़ा ही तािवरण है, उससे जूझने की कोई जरूरत नहीं मुश्किल है दूसरों से बात चीत करना और जब आप। | श्रप अपने से ही अगर ठीक हो जायें, अ्रर्थात किसी से सह जयोग की बात करेंगे तो वो लोग आप न्दर से ही यदि प्रप स्थिर हो जायें, तो वाहर पर ऐसा आसर डालेंगे कि प ही बेवकुफ हैं । जितनो भी चीजें हैं, धोरे २ प्रपने आप स्थिर हो उस पर भी आप समझते लग कि ये ही लोग अन्ये य गी । जो कुछ अन्दर है वही बाहर है अगर हैं तो उनको बहुत बुरा लग जायेगा अगर किसी 3. मिला योग भी तरह आप उनसे कहें कि आप में गलती है और आपको संभलना है तो इन्सान को समझ लेना चाहिए कि आपकी चेतना और है। जैसे कि एक बीज है, ये बीज प्रस्फुटित हो गया जिसको कह ना arfa, which is being manifested now, which is sprouting. इन दो बो जों में बडा भारी अन्तर होता है-एक बीज जो जम रहा है और दूसरे बीज का तो कोई सवाल ही नहीं उठता जमने का । वो तो बिल्कुल ही वैसा का वैसा पड़़ा है और वसे ही पड़ा रहेगा, सदियों तक । एक बीज जो जम रहा है, वो अलग चीज है और दूसरा बीज जो विल्कुल ही वेसा पड़़ा है, विल्कुल ही दूसरी चीज है । वृद्धि के लिए आ्रापको मध्य में रहना चाहिए, अपने चित्त पर निरोध होना चाहिए मतलब यह है कि अपने चित्त को देखना चाहिए कि कहाँ जाता है । आपके चित्त पर निरोध होना चाहिए। अपनी आदतों को देखिये, आपका चित्त किस चीज़ में बहुत ज्यादा उलभता है जैसे किसी. की ज्यादा बोलने की आदत है, माने एक तरह का बहकावा, बहुलावा है। तो साहब अपना नाम लिख लीजिये और समझ लीजिये कि मिस्टर फलाना फलाना, अप बलते ज्यादा है आप इसे कम करिये और आप बोलने पर अपना चित्त रखिये कि आप बोलते ही न जायें । ज त द अब जमने के लिए भी हमें हमेशा मध्यमार्ग में रहना चाहिए। एक पेड़ की जो मध्य शाखा है, या मध्य में जो चीज चलती है, जो उस का पानी का प्रवाह है, जिसको sap कहना चाहिए वो बीचोंबीच चलता है । पेड़ भी हमेशा बीचों-बीच रहता है, एक तरफ ज्यादा भुकता नहीं, न दूसरी तरफ भुकता है। अगर उसने भुकना शुरू कर दिया तो उसकी ठीक से (growth) बढ़ोत्री नहीं होती। बो बढ़ नहीं सकता, पनप नहीं सकता । इसलिए ये जरूरी है कि इन्सान को जहाँ तक हो सके, मध्य में रहना चाहिए । दूस रा है एकदम चुप रहता है, यानि जरूरत से जयादा कोई आदमी चुप रहती है तो भी गलत रास्ते पर है । इसमें रहे या उसमें, दोनों ही चीज में आदमी गलत रास्ते पर चलता है । चित्त पर निरोध रखना चाहिए । अगर बोलते ज्यादा हो तो कम कर, अगर कम बोलते हैं तो ठीक ठीक बोलें फिर हम बोलते समय क्या बोलते हैं उस पर भी ध्यान रखना चाहिए। वेकार की बातें करने की कोई जरूरत नहीं। जहाँ तक हो सके तो सहजयोग की ही बात करें जहाँ तक हो सके उसी परमात्मा की ही बात करनी चाहिए । लेकिन अगर कुछ बोलना भी हुआ तो थोड़ा वहुत ठीक ठीक कह दिया। बात करें और फिर उससे अ्पना चित्त हटा लें। इससे आदमी का चित्त वीच में रहता है। परमात्मा की ओर दृष्टि रखने से चित्त हमेशा बीच में रहता है। वी बात जो मैं आपको विशेष रूप से समझाने बाली हैं, यह है कि अ्रपको हमेशा मध्य में रहने को कोशिश करनी चाहिए। अगर मध्य में नहीं रहेंगे और किसी भी (Extremes) अरति पर उतरना छोड़ न देंगे तो आपकी growth ही नहीं हो सकती । हो सकता है कि कोई परेशानी है, या कोई acci- dent है, उससे आप बच जाये, या और कोई आफत से आप बच जाय । अच्छे से दिन निकल जाये कुछ गहरी परेशानियों से निकल जाये परन्तु यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं। परन्तु सबसे महत्व- पूर्ण बात है कि सहजयोग में प्रापकी कितनी वृद्धि हुई है, प्रगति हुई है । यह खास चीज है । और इस और यदि हम परमात्मा के बारे में ही बोल रहे हैं या और किसी के बारे में बोल रहे हैं, और बहके जा रहे हैं, इस पर ध्यान देना चाहिए । इसमें बहुत सारी चीज होती हैं जैसे कि किसी की ( Argu- mentative Nature) बहुस करने की आदत निर्मला योग 4. जब तक आपके अन्दर वही दोष बने हुए हैं और आप उन्हीं चीजों में उसी प्रकार लगे हुए हैं, दूसरों से झगड़ रहे हैं, जुझ रहे हैं, तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप मध्य में नहीं हैं। क्योंकि जब अआप मध्य में श्र जायेंगे तो आप किसी भी एक चीज़ में लिपट नहीं सकते, आरप सबमें समाये रहते हैं । जब होती है, यानि बहस करने की ही आदत हो गई दूसरे जैसे किसी में कंजुसी जरूरत से ज्यादा होती है । कोई अदमी पेसे के मामले में बड़ा meticu- lous होता है । हर चोज का पेसे-पैसे का हिसाब लिखता है। इस तरह से बहुत सी आदतें हमारे अन्दर हैं तक आप एक चीज में लिपटे हैं, तो समझ लेना जिनको हम misidentifications कहते हैं। जैसे चाहिए आप मध्य में नहीं हैं। कि कोई आदमी जनसंबी है, वो सोचेगा हम जनसंघी हैं, कांग्रेसी अपने को कांग्रेसी कहँगा मैं हिन्दुस्तानी है, कोई कहेंगा मैं आस्ट्रेलियन है । वृद्धि का और कोई तरीक़ा है ही नहीं । यह सब चीजें छोड़कर पहले तो हम इन्सान हैं और हम परमात्मा के बन्दे हैं। परमात्मा ने हमें माना है, हमें Realization दिया है, जो सारे घमों का सार है, जिसे सबने माना है। संसार में कोई वह बहुत ्यादा हर चौज़ को सोचेगा analyse घर्म नहीं जिसने कहा कि आप पीर न हों या आप आत्मसाक्षात्कारी न हों, या द्विज न हों। ऐसा कोई ऐसे करते २ उसकी बाई विशुद्धि (Left Vishu- घर्म नहीं हमारे लिए सब धर्म एक है और सब ध र्म का तत्व अपने को criticise करेगा कि मैंने ये गलत काम तो और मध्य में रहना ही एक कमेव तरीक़ा है, । कोई कहेगा हर चीज में आदमी चलता है जैसे कोई बड़ा Intellectual होगा। उसकी यह आदत होगी कि करेगा और हर चीज का मतलब निकालता रहगा । ddhi) बहुत जोरों से पकड़ सकती है क्योंकि वो । जब अब हम वो हो गए हैं, तो फिर है वह एक सार हममें समाया हुआरा है। आप किया वर्गरह वर्गरह । इस प्रकार उसके भी चक्र जानते हैं कि हमारे अन्दर ही सारे धर्मं हैं श्रौर पकड़े जायेगे| हमारे अन्दर ही सारे देवता (Deities) बैठे हुए हैं। तो फिर हमारे लिए सब घर्म एक हैं । अगर कोई मूर्ख होगा तो वो सामने की चीज को भी नहीं देखेगा अति अरक्लमन्द भी किसी काम ी तो फिर सहजयोग में ग्राने पर भी यह विचार का नही, मन्दवुद्धि भी किसी काम का नहीं है । हमारे अन्दर बने रहते हैं । वहुत से लोग लीजिये झगड़ा है दो ग्रप के लोगों में । एक कहंगे वो बीचोंबीच है । उसी की बुद्धि में समाकर रहना कि साहब इनमें खराबी है, दूसरे कहेंगे कि उनमें बाहिए। "तेरी जो बुद्धि है उसी में मुझे चला, खराबी है। इन्सान में तो खराबी होती ही है वो तेरी जो आज्ञा है उसी में मुझे रहना है और पूरी चाहे किसी भी संस्था में क्यों न हो। इन्सान में तरह से उसमें मुझे समा ले । इसी तरह की जब ग़लती होती है। आप देखियेगा किसी बहाने से बुद्धि होती जायेगी तो धीरे २ आप देखियेंगा कि उसमें दोष आ ही जाते हैं । बीचौबीच रहना चाहिएए । परमात्मा की जो बुद्धि है, हैं, समझ कल आ्पके प्रश्न हल होने शुरू हो जाय गे और प्रश्न खड़े ही नहीं होंगे । सहजयोग ऐसी प्रणाली है जिसमें अ्राने से सारे दोष जो हैं, वो खत्म होने लग जाते हैं। ओर जब आपके दोष खडम होने लग जाये तो समभझ लेना चाहिए कि आपने बड़ी भारी चोज हासिल कर ली । हम लोगों में पकड़ भी इसीलिए आ्राती है कि हम (extremes) ग्रति पर चले जाते हैं और प्रपनी आदते नहीं बदलते । हर बार हम extreme पर निर्मला योग प चले जाते हैं या किसी न किसी extreme पर रहते माल किया था । इस तरह की चीज़ प्रयोग में लाने हैं। जैसे अगर किसी औरत को कपड़ों का शौक है; का विचार पता नहीं कहाँ से उनके मन में आया तो उसको देख लेना चाहिए कि उसका जरूरत से था। यह बहुत ऱलत चीौज़ है । जिसने ऐसा con- ज्यादा कपड़े पर ध्यान है, और उधर हमारा चित्त centration का इस्तेमाल किया है, इससे अ्र्ज्ञा बटता है । क्या जरूरत है इतना ध्यान उधर देने चक्र बहुत खराब हो सकता है। ऐसे इन्सान को की। सर्वसाधारण तरीके से रहना चाहिए । अब जाहिए कि वह अरपना] चित्त सहस्रार पर रखे ग्रर अगर आप दूसरी औरत हैं जो कहती है कि हमें सहस्रार पर हमें बैठाये। हमको यहाँ सहस्रार में किसी चीज की परवाह नहीं। उस औरत को ऐसा बेठाए या हमको हृदय में बेठाए । एक ही बात है। भी नहीं सोचना चाहिए क्योंकि वो भी एक दूसरा extreme हो गया कोई सोचे जैसे कि हमें तो देखियेगा कि कितना फ़र्क पड़ता है। कुछ भी परवाह नहीं कि हम तो सन्यासी है--तो यह भी सहजयोग में बन्धक है । इसका ठीक करने का यही तरीका है। उससे आप अभी आप कोशिश करें, हमें हृदय में बैठाएं । अभी आप हमारी तरफ देख रहे हैं । हमें हृदय में उसके बाद हमें सहल्रार सहजयोग में बहुत सारे बन्धक हैं । उसमें यह बठाएं । अ्राँख खुली रखें । भी एक बन्धक है । छोटी २ चीज़़ों के लिए स हजयोग पर बैठाने की कोशिश करें । राँख खुली रख कर में बताया गया है जेसे कि हर इन्सान को एक कपड़ा यह प्रयत्न कर कि सहस्रार पर मा को बेठाएं ! अन्दर जरूर पहनना चाहिए। मतलब यह है कि अख बन्द न कर जब हम यहाँ बैठे हैं तो क्यों अख undershirt जरूर पहनना चाहिए । पूछते हैं कि बन्द कर रहे हैं । अब हल्का हो रहा है। मां तुमने यह क्यों बन्धक डाला शर्ट के नीचे एक और कपड़ा होगा ती है वह साक्षात हो रहा है। [अब आप जिस चीज़ की पका जो चक्र जिसे प्न्हद चक्र कहते है, उस पर कहेंगे हो जायेगी। जिस चीज को imagine करते protection रहेगा। यह नहीं पहनने से sense of insecurity बढ़ जायेगी। अपक देव होना माक्षात होने लगता है। पार होने से पहले अगर शुरू हो जायेगा, जुकाम हो जायेगा, त रह २ की बीमारी हो सकती है। क्योंकि जब आपके अन्दर नहीं बैठा पाते। लेकिन अब तो चित्त प्रन्दर घूम गर्मी हो जाती है, पसीना छूटता है, तब उसका कुछ रहा है, आप माँ को हृदय में बैठा सकते हैं । अब (Absorber) सोखने वाला होना चाहिए । नहीं आप चित्त को हर जगह घुमा सकते हैं । चित्त को होगा तो उसमें हवा लगेगी और यह छोटी सी चीज़ हृदय में बैठा सकते हैं । देखिये चित्त को हृदय में ले भी चक्र को नुकसान पहुँचा सकती है। क्योंकि नक्र जाइये अव चित्त का movement आपको मिल की भी देह होती है, अगर देह को कोई नुकसान ही गया जाये तो वो चक्र पर भी दिखाई देगा। इसलिए अब आप वित्त का निरोध करें और भी आसानी से धीरे २ वो चीज बढ़ती जाती है। इसलिए सहजयोग आप गहरे उतर सकते हैं । में इसका बन्धक है कि आपको जहाँ तक हो सके अन्दर कपड़ा पहनना चाहिए । । वजह यह है कि अब प्राप जिस चोज को imagination कहते है वो साक्षात् हो जायेगो साक्षात होने लगता है । पार होने से पहले अगर आप कहते कि माँ को हम हृदय में बेठाये पर आप e a imagination पके दर्द होना । अत्र अप वित्त को अन्दर ले जा सकते हैं । अब सहस्रार पर बेठाइये हमें। अँख खुली रखें और हमें सहस्रार पर बैठाइये । हर चीज में अपनी अपने पिछले जीवन में आदतों को देख ना चाहिए । जब आप देखना शुरू हैम लोगों में से कुछ ने भक्ति के तरीक इस्त माल किये भों के बीच con- centrate करने का तरीका भी बहुत लोगों ने इस्ते- करेंगे, पने को साक्षी बनायेंगे तभी आप हर चीज़ की गलती समझ पायेंगे । निरमला योग 6. thor कुछ लोगों की यह आदत होती है कि आगे आगे रहना । पहले आगे खड़े रहेंगे। जब हम जायेगे तो जरूर सर उनका आगे रहेगा, कि फ़ौरन लगाये या आगे दौडेंगे । ऐसे आादमी को सोचना चाहिए, कि यह क्या बेवक्लूफ़ी है कि हम हर समय ऐसा क्यों करते हैं। ऐसे आदमी को पीछे हटना चाहिए । कोई आदमी ऐसा होगा कि पीछे हो रहेगा, सामने सकती थी । क्योंकि अपनी attention को आप आयेगा ही नहीं । काम होगा, मुंह मोड़ कर चला जायेगा। कुछ बात होगी, उधर चला जायेगा । काम टालू जिसे कहते हैं, इस तरह के भी कुछ लोग होते हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि हम काम टालू प्रदमी हैं, परमात्मा का काम है, उस मतलब यह कि अपना चित्त इधर उधर गिरना हमें करना चाहिए। इस तरह चित्त को बराबर बिखरना नहीं चाहिए, यानि spill नहीं होता बीच में रखना चाहिए । जो आपकी आदत है, उस चाहिए, कहीं छिटक नहीं जाना चाहिए। चित्त को को छुटाने का यह तरीका है कि आप दूसरी आ्ादत पकड़े रहना चाहिए। चित्त पर कन्ट्रोल होना डाले । जैसे आप काम टालू हैं तो काम करिय । अगर अति काम करते हैं तो थोड़ा कम करिये । चित्त प्रव अन्दर घुम रहा है । आप] खुद ही महसूस करेंगे कि अब चित्त अन्दर घुम रहा है । चित्त सहस्त्रार पर आ गया। अब चित्त से आप खोल सकते हैं सहस्रार । काम महे इससे पहले चित्त-निरोध की बात हो ही नहीं पकड़ नहीं पाते थे । अब attention आपके हाथ में आया है । इससे पहले कोई भी बात होती थी उसका अरथ कोई नहीं लगता था । े हैं अब मैं आप से कहती है कि बीच में रहिये । चाहिए । चित्त से ही उंगति ( growth) होती है । ० ० - श्रनुसरणीय- सदैव उदित होते सूर्य का दर्शन करना चाहिए । १. अस्त होते सूर्य को कभी नहीं देखना चाहिए । २. वाम अंग की बाधा वाले व्यक्ति को सदैव आंख खोल कर ध्यान करना चाहिए । ३. बन्धन कवच है । इसका प्रयोग सर्दैव करना चाहिए । ४. माता जी की उपस्थिति में सदैव आंख खोल कर बेठना चाहिए जब तक कि माता ५. जी स्वयं अांख बन्द करने को न कहें । निमला योग परम सत्य की खोज एवं मानवीय तर्क प -श्री माता जी हम अपनी खोजवीन के अन्तर्गत वास्तविक से परिचित नहीं है । ुभवों के सम्बन्ध में जानकारी चाहते हैं । सभी (Point of View) को नहीं जान सकते कि क्यों हम एक दूसरे के उद्देश्य अनु धार्मिक ग्रन्थों (शास्त्रों) में यह बात एक मत से कही गई है कि हमारा पुतर्जन्म होगा । हम अपने पुनर्जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो हमारे अन्दर ही विद्यमान है । सब धर्म इस सम्बन्ध में चर्चा करते हैं । हमें प्रनुभव प्राप्त करने के लिए अपने आप में अणुमात्र से तर्क एवं न्याय (logic) द्वारा मानव जीव का प्रादुर्भाव हुआ। यह क्रिया विना कोई प्रयत्न किये सरलता से सम्पन्त हो गई। हम ३्वास लेते हैं। हमारा हृदय स्पन्दन करता है। यह सब बिना प्रयास के सम्पन्न होता है। अतः प्रत्येक वस्तु का स्वाभाविक रूप से (Spontaneously) आविर्भाव होता है । यथा बीज से अंकुर का प्रस्कुटन स्वाभाविक रूप से होता है। केवल मनुष्य मात्र ही ईश्वर में विश्वास करते हैं. पशु पक्षी नहीं। हम अपने विरंतर उद्देशय में सफल नहीं हुए हैं। लोग खोज में तत्पर हैं। जागरूकता ह स्थायित्व लाना है। यह पुति अवश्य करेगी। सत्य की खोज हम बुद्धि (मस्तिष्क) द्वारा एवं तर्क द्वारा करते हैं । यह बुद्धि "सम्पूर्ण" से सम्पर्क नहीं जोड़े हुए है। वास्तव में देखा जाय तो "सम्पूर्ण' के प्रति हम भी जागरूक नहीं हैं क्योंकि हमें विपूल मात्रा में समस्याएँ घेरे हुए हैं । चिन्तनशीलता, ज्योति-रहित अन्धकार, तर्क ही खोज के लिए उत्तरदायी है। हमें अपनी तर्क- सम्मतता एवं जागरूकता भिन्न-भिन्न हैं। तर्क सम्मतता ( Rationality) सदेव अहकार के साथ मेरे ऊपर अन्ध-विश्वास न कर किन्तु साथ ही आप जोवितावस्था में रहती है। हम अहंकार को तर्क अविश्वास भी न कर, अयोंकि आप इसे तक द्वारा सम्मतता से विलग नहीं कर सकते क्योंकि हम सिद्ध हस्त (Perfect) नहीं हैं और न ही प्रभी समय आर पहुँवा है । इसमें अधिकतम परिवर्तित हो परिपक्व (Mature) हुए हैं । यदि हमारे अन्दर जायेंगे। अपने उद्देश्य की सफलता प्राप्त करेंगे । काफो परिपक्रवरता हो तो हम अणुमात्र (mole- हमारा यंत्र जो भिन्न भिन्न धरातल पर स्थापित cules) स्पन्दन (vibrations) होने का कारण है ज्योतिमय होना प्रारम्भ कर दिया है । हम ज्ञात कर सकते हैं । त्क सम्मतता से इस की खोज पृथ्वी माता के सामान्य रूप अर्थात् फलभूत से नहीं की जा सकती न ही प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं । उदाहरणार्थ हम मानव प्राणी कयों हैं ? पृथ्वो माता सुरभित एवं सुगन्धित है । पृथ्वो माता हम मान्यताओं के प्रबल समर्थक हैं । यदि हम प्रत्येक का आधार कारण धुरो है। अन्त में हम उस सना- को तक से सिद्ध करना चाहें तो हमारा तन कारण की ओर जाते हैं। वह आत्मा है अर्थात् शक्ति स्वच्छ रखनी चाहिए। मैं चाहती है कि आप सिद्ध नहीं कर सकते हैं । अब प्रफुल्लता का उपयुक्त Subtle सुटृड रूप पर पहुँचते हैं । सुदृढ (subtle) वस्तु मस्तिष्क विक्ृत हो जायेगा और लोग हमें पागल उस सर्वशक्तिमान की प्रतिच्छाया । कहेंगे । हमारी तर्क सम्मतता में अभी परिपक्वता सघन बनों में तपस्यारत वास्तविक गुप्तजन तथा मोजे ज अत्राहीम जेते महामनोषी जानते थे कि कूण्डलिनी का ऊपर उठाना कितना दुषकर कार्य नहीं आई है । यह प्रकाश-युक्त भी नहीं है । हमारे अन्दर का "अहं (1) इस तर्क सम्मतता से भली भांति परिचित है । परन्तु तर्क सम्मतता इस "अरहं निर्मला योग 8. अपनी स्वयं की शक्ति उत्थान अरवस्था समभझिये । है । लोग जब इसके अधिकारी बन जाते हैं तो यह दुस रों के उत्थान के लिए सरल बन जाती है। जब की योग्यता प्राप्त करके ही तर्क शक्ति को प्रकाश- यह ऊपर केन्द्र में ब्रह्मरंध्र (सहस्रार) का भेदन करती है तो अत्म साक्षात्कार की उपलब्ध होती समूचा प्रेम श्पने अन्तर्जगत में नहीं समा सकती- है। हमें इस बात का भी ध्यान नहीं रहता कि ईसा मसीह हमारे कारण सूली पर लटका दिये गए हमारे अन्तर्जगत में क्या अ्दभुत घटना घटित हो इस को पाने के लिए और यह समझने के लिए कि रही है तथा हमने क्या उपलब्धि की है। य ह स्वाभाविक एवं सरल है परन्तु है त्वरित प्रक्रिया (mechanism) समझने के लिए और पारंगत होने (Dynamic process)। यह एक (Dimensi- के लिए जिससे सहर्रों लोगों तक प्रकाश पहेँच onal) प्रक्रिया है जो कुण्डलिनी को ऊपर उठाती है। मय बनाती है। यह सहज प्रम है। एक मां अपना हमारे पास क्या घरोहर है । इसकी यांत्रिकी यह इतना सके। उनको मानसिक, भौतिक, दैहिक, भावनात्मक एवं धार्मिक सहायता प्रदान करनी है। इस प्राश्च्यं] में एक साधारण सो सद्गृहस्थ पटनी है जिसके जनक महान उपहार को व्यर्थ में गवांना नहीं है। पास यह अनुपम शिल्प (Unique techique) है। हमारी तकशीलता (सम्मतता) हमारे माध्यम से मैं आपकी शिक्षक है। मैं आपकी अचेतना में शान्ति स्त्रोत को प्रवाहित होता देखेगी। हम इस प्रवेश करने में सक्षम है। ईसामसीह एक बढ़ई के आशीष (Bliss) का आनन्द उठायेंगे तथा इस सुपुत्र थे। उनकी माताजी बिल्कुल निरक्षर थीं । आशचर्ययुक्त घटना के साथ प्रफुल्लता प्राप्त करेंगे । श्री कृष्ण जी ग्वाल बाल थे। जब हमें कुछ ऐसी बातों का पता लगने लगता है तो यह एक प्रारंभिक ईश्वर आपको सदैव सुखी रक्खे । (Seeking a Rationality का हिन्दी अनुवाद) त्यौहार ५ मई सहस्रार दिवस बुधवार नृसिंह जयन्ती ६ मई गुरुवार ७ मई शुक्रवार बुद्ध जयन्ती देवशय एकादशी १ जुलाई गुरुवार ६ जुलाई मंगलवार २५ जुलाई रविवार गुरु पूर्णिमां नाग पंचमी ४ अगस्त बुधवार रक्षा बन्धन १२ अगस्त- गुरुवार श्री कृष्ण जन्माण्टमी श्री गणेश चतुर्दशी २२ श्रगस्त रविवार निर्मला योग 9. 5 फ़ गुरू पुजा नहीं किया था कि वे अ्रवतार हैं । श्री रामच्द्र जी ने तो अपने पपको भुला ही दिया था कि वे [अव- तारी पुरुष हैं। एक तरीके से अपनी माया के व्यामोह में आवद्ध होकर सम्पूर्ण मानव बनकर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रख्यात हुए । श्री कृष्ण जी ने श्री अर्जुन को केवल महाभारत युद्ध के अवसर पर अपने अव- तरण के सम्बन्ध में बताया । हजरत अ्रब्ाहम ने एक मास पूर्व परम वन्दनीय माताजी ने श्री रुस्तम से कहा कि आगामी है। रविवार को पूरिणमा अतः पूजा अचंना की आयो- श्री जन होना चाहिए रुस्तम ने माता जी से पूछा कि आप इस अरचना को क्या संज्ञा देंगी । क्या यह गुरु पूजा है अरथवा महा- । कभी भी उद्घोषित नहीं किया कि वे अवतार हैं । यद्यपि वे उस सर्व शक्तिमान के ही अवतार थे । भुगवान दत्तात्रेय ने अपने अवतरण के विषय में किसी से भी नहीं कहा कि वे ईश्वर के अवतार हैं । सरलता से त्रिगुरणात्मक शक्ति सम्पन्न होकर संसार के पृथ प्रदर्शन हेतु मानव शरीर धारण किया। श्री मोजेज ने कभी नहीं कहा यद्यपि उनकी महत्ता का सबको भली प्रकार ज्ञान था । उन्होंने प्रकृति पर लक्ष्मी पूजा या श्री गणश पूजा-परम पूज्य काफी माताजी ने समझाया कि यह गुरु पूजा है। समय व्यतीत होने के पश्चात जब बन्दनोय माताजी भारत जाने के लिए उद्यत हुई तो श्री रुस्तम जा न पूछा कि क्रिसमस (Christmas) पूजा का आयो- जन यहीं क्यों न हो ? आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। बहुत विजय प्राप्त की फिर भी उन्होंने कभी नहीं कहा समय हुआ जब ईसामसीह बाल्यावस्था में ही थे तो उन्होंने घर्मशास्त्र में पढ़ा और घोषण की कि वे अवतार है अर उनका अवतरण संसार के कल्याण, ही रहता, किसी को भी भान नहीं होता। यदि उस संरक्षण एवं मंगल के लिये हुआ है। उनका विश्वास था कि संरक्षक अवश्य अवतरित होगा। बहुत दिन व्यतीत हुए, आज के ही दिन अर्थात् रविवार को "उन्होंने" घोषणा की कि वे उद्घारक कि वे अवतार हैं। ईसा के समय में घोषणा की आवश्यकता प्रतीत हुई, नहीं तो जनता अंधकार में समय ईसा प्रभु को पहचान लिया गया होता तो कोई समस्या ही नहीं होती परन्तु मानव प्राणी का और अधिक कल्याण एवं उत्थान आवश्यक था- किसी न किसी को तो विराट में आज्ञाचक्र को पार के रूप में अवतरित हुए हैं। शप्रतः इस दिन को केरना था, यहा कारण था कि इस धरा पर मुहान अवतरण रविवार की संज्ञा प्रदान की गई। उनको इस संसार में अल्प समय ही विताना था अतः ईसा का अवतरण हुआ । यह एक विस्मयकारो बात है कि जीवन रूपी बृक्ष में जड़े तना उभारती हैं, तना शाखाओों को जन्म देकर आगे बढ़ाता है, शाखाओं में पल्लब कुसुम प्रस्फुटित होते हैं । जिनको जड़ों का ज्ञान है उनको तना जानने की इच्छा नहीं होती । जो तना अल्पायु में ही "उन्हें" धोषणा करनी पड़ी कि उनका अवतरण हुआा है। है । यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि इससे पूर्व किसी भी अवतार ने सार्वजनिक रूप से घोषित निमला योग 10 भोec पोत तट की ओर आकर्षित होते हैं। इस गृह्थी को सुलझाने हेतु तटवर्ती सघन बन की खोजबीन की गई तो उन्हें एक विशाल मंदिर दृष्टि गोचर हुआ जिसके शिखर कलश पर एक चुम्बक का विशाल जानते हैं उन्हें कुसुम पल्लव आदि को पहचानने की आवश्यकता नहीं होती यही विचित्र मानव स्वभाव है । मैंने स्वयं अपने सम्वन्ध में कभी ऐसा कुछ नहीं खण्ड रखा था जो जलयानों को अपनी आकर्षण कहा क्योंकि मानव समाज ने अपने अन्दर ईसा के परिधि में प्राने पर अपनी ओर खोच लेता था । समय से भी अधिक अहंकार को स मेट कर भर लिया है। आप किसी पर भी दोषारोपण कर सकते ज्ञान की कसौटी द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हैं । आप इसे औद्योगिक क्रांति का नाम भी दे सकते पूज्य माता जी अवश्य कूछ विशिष्ट उपलब्ध शक्ति है क्योंकि आप प्रकृति से बिछुड़ कर दूर हो गए हैं सम्पन्न हैं परंतु शास्त्रों एवं [अन्य धार्मिक ग्रन्थों में आप इसे कुछ भी कह सकते हैं। मानव समाज ने तद्विषयक अवतरण के सम्बंध में वास्तविकता के सारे सम्पर्क खो दिये हैं वे बनावटी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हआा कि ऐसी प्रभुति सूप से परिचायित (identified) होते हैं और उन्हें आत्मा इस पुण्य धरा पर अवतरण कर धन्य करंगी बृहत वास्तविकता को मान्यता देना असम्भव प्रतीत जो अपनी दृष्टिपात मात्र से एवं संकल्प शक्ति द्वारा होता है। यही कारण है कि मैने अपने विषय में ही कुण्डलिनी जागरण एवं उत्थान की प्रक्रिया कभी एक शब्द भी नहीं कहा जब तक कि कतिपय सम्पन्न करेगी तथा अपने शिष्य गण से भी ज्ञानो मानो सन्त जनों ने मे रे सम्बन्ध में घोषित नहीं करायेंगी । हिमालय स्थित सघन वन वासो, किया । लोग कौतुहल से स्तम्भित रह गये कि कुण्ड- निष्कलांत, निष्ठान्त सन्त महात्मा समुदाय इस लिनी जागरण जैसे जटिल एवं दुष्कर कार्य को द्रुत अवतरण से पूर्ण रूप से अवगत हैं । वे जन साधारण गति से किस प्रकार संचालित किया गवा और से कहीं अधिक प्रज्ञावान है जिनके सम्मुख हम सब अपनी उपस्थिति में ही ओरों से भी कराया। अतः कुछ निरंतर चिंतनशील व्यक्ति अपने अतुभवी भी सकेत उन्हें कुछ अबोध शिशु की नाई हैं । वे वास्तव में महान है । परन्तु आज की दिन महान है जब "मैं घोषणा कर रही हैं कि "मैं ही वह हैं जिसे मानवता का भारतवर्ष में एक अति प्राचीन अनजाना मंदिर है । लोगों को विदित हुआ कि जलपोत समुद्र में एक विशिष्ट स्थान पर आते ही बरबस तट की ओर उद्धार करना है। उसे बचाना है "मैं ही आदि ख्खिचे चले आते और उस अ्रकर्षण विदू पर रुक शक्ति हैं । जो सब माताओं की जननी होने के नाते जाते थे । दुगनी शक्ति लगाकर खींचने से भी वे जगतू जननी एवं शक्ति भी है । मैं" ईश्वर की अपने उस स्थान से टस से मस न होते थे । इसका कारण नाविकों को अज्ञात हो रहा। समुद्र की गह- उद्धार हेतु अवतार लिया है । "मुझे" पूर्ण विश्वास राई सम्बंधी कुछ त्रुटिं का ही अनुमान लगा कर है कि "मैं" अपने प्यार, घेयं और अद्भुत शक्ति से छोड़ देते थे । परन्तु जब सब के सब पोत उस विशिष्ट मानव मात्र का कल्याण करने में सक्षम होऊगी । त्रिदू से तट को प्रोर ग्राकर्षित होकर रखि चे चले आने लगे तो वे सब विस्मित हुए और सोचने को बाध्य हुए कि कुछ न कुछ रहस्य अवश्य है। तब के लिए जन्म लिया है किन्तु इस समय "मैं अपने उस रहस्य का उद्घाटन करने को लालसा उनके पूर्ण रूप में एवं सभी शक्तियों के साथ आई है । मन में उत्पन्न हुई कि जलपोत को होता क्या है कि अबकी मेरा अवतरण केवल मोक्ष देने के लिए ही पावनतम इच्छा शक्ति हैं, पृथ्वी पर मानव मात्र के मैं ही वह है जिसने बार बार जगत के उद्धार निर्मला योग ईश्वर आपको सर्दैव सुखी समृद्ध रखें (पूंज्यं माता जी के सान्निध्य में आकर) आपने क्या पाया क्या उपलब्धि की) और [आप] कितने शक्ति संपन्न हैं अर्थात कितनी शक्तियां बटोर कर रख छोड़ी हैं। नहीं अपितु उद्धार के साथ ही स्वर्गादिक रांज्य भी देना है जिसमें अरनन्द, वात्सल्य एवं अराशीष ही हैं जिसे परम पिता परमेश्वर देने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं । पिछले दिन मैंने सम्भावोपाय और शाक्तोपाय. के विषय पर चर्चा की थी-ये ही दो उपाय ऐसे हैं उपरोक्त शब्द वर्तमान में सहजयोगियो तक हो सीमित रहना चाहिए । कि जिनके द्वारा मानव समाज का शुद्धिकरण किया जा सकता है। एक वह है जिसके द्वारा आप इने गिने ही मनुष्यों को शुद्ध कर सकते हैं अप उनमें से कुछ का चयन कीजिये और उनका शुद्धिकरण करते जाईये जब तक कि उनका चित्त पूर्ण रूप से गुद्ध न हो जाये । पंच तत्वों का शुद्धिकरण होते ही कुण्डलिनी का उत्थान होगा और लोग 'पार" हो जायेंगे-यह सम्भावोपाय कहलाता है जिसमें पका व्यक्तित्व पूर्णतया निखर जाता है । आज गुरु पूजा है मेरी पूजा नहीं यह गुरुओं के रूप में आपकी पूजा है । क्योंकि मैं आप सब को गुरुतत्व प्रदान कर रही हैं। और आज ही मैं बताऊंगी कि मैंने आप पर क्या न्योछावर किया है तथा आपके आभ्यन्तर में कितनी शक्ति उडेल कर भर दी है ।- आप में से कतिपय ऐसे भी महानुभाव हैं जिन्होंने अभी तक भी मुझे पूर्ण रूप से नहीं पहि- चाना है -यह "मेरी घोषणा उनके अन्दर मान्यता की जागृति उत्पन्न करने में समर्थ होगी। बिना मान्यता प्राप्त किये आ्रप क्रीड़ा कौतुक नहीं बिना क्रीडा के [आप अपने अन्दर । विश्वास के अभाव दूसरा शाक्तोपाय जिसमें श्राप की कुण्डलिनी उत्थान की शक्ति विद्यमान है । चाहे परिस्थिति जेसी भी हो अपनी प्रक्रिया सम्पन्न करेगी और फिर शुद्धिकरण की प्रक्रिया की देख रेख में तत्पर होगी । सहजयोग में दूसरे उपाय को ही अपनाया गया है क्योंकि प्रव सम्भावोपाय की प्रक्रिया को उपयोग में लाने का समय ही नहीं रह गया है। यह असंभव सा प्रतीत होता है । शाक्तोपाय में साधारणतया शक्तिपात किया जाता है । शक्तिपात की प्रक्रिया में दूसरे के ऊपर अपनी शक्ति प्रतिबिम्ब के रूप में आरोपित की जाती है । अथवा जेसा कि हम कहते भ्रपनी देख सकते । विश्वास नहीं पदा कर सकते में आप गुरु नहीं बन सकते । गुरु पद प्राप्त किये बिना आप परोपकार नहीं कर सकते । विना दूसरों की सहायता किये आप किसी प्रकार भी आनन्द, प्रसन्नता, प्रफुल्लता प्राप्त नहींीं कर सकते । श्र खला तोड़ना सरल है परन्तु प्रपको एक के फश्चात दूसरी कड़ी जोड़कर थ खला का निर्माण कुण्डलिनी की शक्ति दूसरे की कुण्डलिनी की शक्ति करना है। यही आपका इष्ट है । आप सुदृढ़ विश्वासी, प्रसन्न एवं प्रफुल्ल चित्तयुक्त और ानन्दित रहें । मेरी अनिष्ट से रक्षा करेगी परिपोषण करेगा, मेरी सौजन्य प्रकृति आपके लिनी की समस्याओं का चयन किया जायेगा अतः ओभ्यन्तर को शान्ति प्रर आनन्द से परिपूरित हैं कि हम पर प्रकाश नि्झर हो रहा है । पर आरोपित करते हैं और करमानुसार कुण्ड लिनी को ऊपर की ओर अग्रसर करते हैं । अपूर्व शक्ति आपकी हर मेरा दिवप् प्रम आपका मानव प्रकृति की विचित्रता के कारण श्रम- साध्य उपाय अपना लिए गये हैं। प्रथम तो कुण्ड- पके इतिहास की जानकारी करेंगे यथा आपके माता पिता के संस्कार केसे हैं तथा आ्रप किस कर देगी। निर्मला योग 12 प्रकार के स्वप्न देखते हैं। वे आ्ापका पूर्ण रूपेण गुरु की सेवा तन, मन, घन से करनी पड़ती है खोजपूर्ण विश्लेषण करेंगे फिर वे आपसे यह जान- उनकी प्रसन्नता के लिए पत्र पुष्प, फल आदि से कारी लेंगे कि आप किस-२ प्रकार के रोगों से अर्चन पूजन करना आवश्यक है । गुरुजी की देख क्रान्त हुए हैं । यदि किसी की आंख में कोई रोग भाल (सेवा) करना शिष्य का परम करतंव्य है। हो अथवा नासिका, कान, पेट में पीड़ा हो तो वे सद्गुरुओं का आपके घन दौलत आदि अन्य बस्तुओं इसके निदान एवं वचाव का उपक्रम करंगे । सो से जिन्हें आप उन्हें [अपण करते हैं कोई लगाव नहीं आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि हम में से कितने होता-निस्पृहता का भाव रहता है। इसी कारण इस श्रेणी (Category) में फिट बेठ गे और फिर से सामर्थ्यानुसार कुछ अन्य धन राशि गुरुजी को वे पूछेंगे कि आपने किस भांति का जीवन व्यतीत अर्पण करनी आवश्यक प्रतीत होती है । बहुत से किया है और किस प्रकार के स्वरभाव के आपके पाखण्डी गुरु जन का दक्षिरणा का दुरुपयोग अपवाद माता पिता हैं । अधिकतर ये सब यात उन जिज्ञासु- स्वरूप है। परन्तु यह तो सर्वमान्य सत्य है कि ओं के लिए है जो अल्पायु में ही गुरु जाकर शक्तिपात की प्राप्ति करना चाहते थे । के सान्निध्य में गुरु जन को गृहस्थ जीवन व्यतीत करना होता है अतः जीवन यापन हेतु दक्षिणा के रूप में कुछ न है। कुछ बन राशि वांछनीय ही नहीं इलाधनीय परन्तु आज के युग में दक्षिणा एक अपवाद स्वरूप अव मेरी उपस्थिति से यह बहुत ही सरल हो गया है। यह सत्य तो आप सब को भेली भाति है द्ोर चरम सीमा का उल्लंघन कर गई है। लोगों विदित हो ही गया है शक्तिपात में आपको शक्ति का पात करना है अर्थात आपको अपना प्रकाश दूसरों पर डालना है-शक्ति का अर्थ है बल और पात गिराना-प्रब आपकी शक्ति जिसके कुण्डलिनी के ऊपर गिरेगी बह उठेगी पहिले यह एक महान विशद्ध स्थिर चित्त अरथात जिसका चित्त सांसारिक कठिन कार्य था । उनकी धारणा थी कि केवल वीत- भोग पदार्थों से कोई लगाव नहीं रखता और लोभ रागी सन्त ही कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं । वोतरागी वह महात्मा है जिसने राग पर विजय प्राप्त कर ली है । जो संसार की मोह माया से परि- वजित है अर्थात जो राग द्वेषादि दोषों से मुक्त है- वही वीतरागी है और कृण्डलिनी जागरण करा ने इसे धंधा बना लिया है । गुरु जन इस स्तर के होने चाहिए कि वह शिष्य गण की कुण्डलिनी जागृत कर सके तथा वीतरागी, 1 मोह प्रादि द्वन्दों का अंशमात्र भी शेष नहीं रह जाता, जिनमें केवल क्षमा प्रदान करने के और कोई प्रलोभन नहीं रहता । ऐसे ही सन्त वीतरागी कहा जाता है और वही कुण्डलिनी उत्थान में समर्थ हैं। ऐसे भद्र सत्पुरुषों द्वारा ही कुण्डलिनी पर अधिकार (अधिकृत आदेश) किया जा सकता है। अन्यथा नहीं। को पुरुष सकता है। अतः सर्व प्रथम दोक्षा दी जानी आवश्यक है । यह आपको सब से पहिले दी जा चुको है, जब कि शप माता जी की शरण में आये । अब आप किये दीक्षा ली । तदनन्तर महा दीक्षा भी प्राप्त कर विचार कीजिये यह सब कैसे घटित हुप्रा। ली। प्रथम दोक्षा हैं. वह तो ठीक है परन्तु यह इतनी सारी घटनाएं प्रचुर मात्रा में टेलिसको- पिकली घटित हुई जिसका कि आप को मान आपको नाम मंत्र दिया जाता है (साधारणतया गुमान भी नहीं हुआ। दोक्षा प्राप्ति हेतु इच्छुक इसके अन्तर्गत एक ही "नाम" दिया जाता है) । अव ४पक्ति को वहुत सारा कण्ट वहन करना पड़ता है। यह मंत्र भी, यदि गुरुजी जानते हों तो निकाल बाहर प्रथम तो आपने गुरुजी से बिना परिचय प्राप्त 1ा दूसरी महा दीक्षा क्या है ? महा दोक्षा वह है जिसमें निमंला योग 13 कर विस्मृति के गर्भ में धकेल दिया जाता है। इस का मन्तव्य है बहुत से गुरु भी नहीं जानते कि शिष्य का कौन सा चक्र बाधाग्रस्त है अथवा पकड़ में है । इसकी कल्पना कीजिए। हैं। मान लो प्रापके पेट में वेदना है तो वे चक्कर पर चक्कर लगाते रहेगे और अंत में इस पेट वेदना के लिए मंत्र खोज निकालगे । वे वेज्ञानिकों की नाई प्रत्यक्ष रूप से तो खोज नहीं कर पाते । वैज्ञा- निक किस प्रकार से अनुसंधान करते हैं इसका वे आपको जन्मपत्री का अवलोकन करंगे और आपसे प्रश्न करेंगे कि आप उनके पास किस घड़ी में आये। आ ज प्राप गुरु के पास किस-२ समय आये। आापकी जन्मपत्री क्या है। आपकी क्या-२ कठिनाईयां होनी चाहिये। प्रापका जन्म किस नक्षत्र में हुआ। [आपके माता विता के नाम क्या-२ हैं । इस का भी एक प्रशस्त विज्ञान था उनकी गणना का गुणके के ख गे से प्रारम्भ होता था और एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच जाते थे जहां पर उनको शब्द मिल जाते थे। प्रथम द्वितोय तुतीय उसी वरणं के तदनन्तर वे मनन अध्ययन में तल्लीन हो जाते थे। यह एक क देखिये । कल्पना करो कि आप किसी डाक्टर नमूना के पास जाते हैं। वह आपकी आख को निकाल कर धोयेगा और फिर वापस लगा देंगा और कहेगा आपकी अखि ठीक है। आपके दांत निकालेगा, बनावटी दांत लगायेगा फिर कहेगा आपके दांत ठीक हैं फिर आपके कान की बारी हैं वह उसे निकालेगा उसमें कुछ और कहेगा कि यह विल्कुल ठीक है । आपका हृदय निकाल लेगा उसका परीक्षण करेगा और दूसरा बनावटी नया यंत्र लगायेंगा हं लगा देगा= यह इस प्रकार से है । इसी प्रकार वे भी किया करते थे व्योंकि वे अंधकार में विचरण करते थे । जैसा कि आपको समस्त चक्रों के सम्बंध में ज्ञान है और प्रापको इस तथ्य की भी जानकारी महान एवं गहन शास्त्र है जिसके अध्ययन द्वारा ज्ञात करते थे कि शिष्य का कौन सा चक्र पकड़ा गया है तत्पश्चात वे आपको "नाम" देते थे उदा- हरणार्थ आपको "राम नाम प्राप्त हआ अब अाप को राम नाम का निरन्तर जप करना पड़ेगा जब तक कि आपका हृदय शुद्ध न हो जाये-परंतु यह उपरोक्त ंझटों में पड़ने के पश्चात ही प्राप्त होता था इसमें दो वर्ष, तीन वर्ष दो जीवन अ्रथवा संकड़ों जीवन भर अरप केवल राम नाम मंत्र का है कि कीन सा चक पकड़ में आ गया है । अव आप कल्पना कीजिये कि अपने कितनी महा, महा, महा दीक्षा प्राप्त की है । प्रथम दीक्षा वह है जिस दिन आपकी कुण्डलिनी जागृत होकर ऊपर अग्रसर हुई तथा [आप "पार" हो गये। यह उनके वश के बाहर की बात है । वे एक श्वास से बात नहीं कर सकते । आप को सारे समय हवा में उल्टा लटका दिया जाता है जैसे रात्रि में चमगादड़ ऊपर टांग तो नीचे सिर किये रहता है । फिर वे अन्य तथ्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण करंगे कि अपके मित्रगण अथवा संगति कैसी है। आप किस प्रकृति के मनुष्यों को ओर आकर्षित होते हैं । आपका स्वभाव परखा जायेगा जिससे वे निर्णय लगे तदनन्तर आपको दूसरा मंत्र प्रदान करंगे। आप इन मंत्रों का लगातार सामूहिक रूप से उच्चारण करते रहेंगे। आप अपनी अन्य अनिवारय आवश्यक- ताओं का निराकरण कर उन मंत्रों का निरन्तर ही जप करते जाइये । परन्तु किया जाना चाहिए सुचारु रूप से तथा ग्रह दशा का विचार विमश्श अवश्य होता रहना चाहिए इसमें आपका घर, कुट्म्ब आदि के बारे में भी विचवार विमर्श के पइचात एक इण्ट विदु पर आते थे कि चक्र कहां पकड़ में है। अथ प्राप कल्पना कीजये चार चक्र पकड़े गये हैं । क्योंकि आप वही देखते हैं जो आपकी जन्मपत्री में लिखा है । अर्थात आपको क्या शारीरिक कष्ट हैं तथा भविष्य में क्या-२ आपत्तिया श्राने वाली हैं। इन सब शारीरिक व्या- घियों का पता वे जन्मपत्री प्रथवा जन्म कूण्डली देख भाल कर लगा लेते थे क्रि अपको क्या-२ व्याधियां कि प्रापके । निर्मला योग 14 नहीं है। आप भौतिक वादी हैं । प्रहंकार युक्त हैं । आप अपनी आत्मा के प्रति सजग नहीं हैं। आप अपनी [आत्मा को हानि पहुँचाने का कार्यं कर रहे हैं। आप मदोन्मत्त हैं। मंदिरा पान कर आप अपनी आत्मा को कलुषित कर रहे हैं यह तथ्य आप स्वी- कारते भी नहीं आप यह भी नहीं कहेंगे कि इस कृत्य के लिए क्षमा याचना करनी है वरन आप अपना जाप करते रहेंगे जब तक कि उनमें सफलता न प्राप्त हो जाये तब वे कहेंगे कि आपको मंत्र सिद्ध हो गया है। इसका अर्थ यह है कि इस सिद्ध मंत्र का प्रयोग आप दूसरों पर कर सकते हैं। उदा- हरणार्थ आप केत्रल राम नाम मंत्र का ही (जो आप को दीक्षा द्वारा प्राप्त हुआ है) प्रयोग कर सके गे-कल्पना कीजिये । ब हैथ फला कर लंदन वासियों के लिए हृदय वाम भाग की बाधा निवारण हेतु क्षमा याचना करगे- आपकी उपलब्धियां क्या हैं। क्या ग्राप पार हो गये। पार" होने का मतलब है कि आप सब] चक्रों के ज्ञाता है कि कौन सा मंत्र किस चक्र को ठीक करेगा। आप स्वयं भी तत्सम मंत्र रचना कर उन्हें तत्कील हैी क्षमा प्राप्त हो गई। वे अधिका- धिक मदिरा का प्रयोग करेंगे और अपने हृदय की सर्वनाश कर लेगे सकते हैं। आपके अन्दर इतनी शक्ति भी है कि । आप समस्त चक्रों का ज्ञान प्राप्त कर ल कि उनको किस सहायता की आवश्यकता है । आप में दूसरे जागृत करने की तथा उसके मार्ग में आने वाली मनुष्यों की कुण्डलिनी जागृत करने की शक्ति विद्य- विध्न वाघाओं पर विजय प्राप्त करने की कला मान है । यदि किसी की कुण्डलिनी सहस्रार से नौचे जान ली है । यदि किसी व्यक्ति का आज्ञा चक्र की ओर फिसलने लगती है तो आ्राप में इतनी शक्ति बाधायुक्त है तो गुरु महाराज उसे ठीक करने में है कि आप उसे पुनः स्थित कर दें । आप में दूसरे हिचकिचायेंगे क्योंकि उनको भय है कि कहीं उनका क्यक्तियों के चक्र ठीक करने की शक्ति भी हैं । आप बन्धन दवारा चक्रों को स्थित (Fix) भी कर सकते हैं । प्राप "बंधन" द्वारा ही अपनी स्वयं की है फलित यानी प्रभावशाली है । [आपका] प्रत्येक बाधाओं से त्राण (संरक्षण) भी पा सकते हैं । आप मैं यह भी शक्ति है कि आप अपने चित्त को किसी देवता का स्मरण कीजिये आपका मंत्र तत्काल फल विशेष स्थान की ओर लगा सकते है जहां पर आप देगा। क्योंकि वह स्वयं सिद्ध मंत्र है। एक बन्डल की समझे कि किसी व्यक्ति विशेष को अरापकी सहायता भाति इसके अन्दर सभी कुछ तो भरा है । इसे अना- आपने सब शक्तियां एकत्र कर ली हैं कुण्डलिनी आज्ञा चक्र भी पकड़ में न आ जाये । अतः उन्हें मंत्र सिद्धि की अवश्यकता पड्ती है। सिद्ध होने का अर्थ मंत्र तात्कालिक प्रभाव रखता है। आप अमुक की आवश्यकता है। आप में सामूहिक रूप से समस्या बृत कर प्राप्त कीजिये । यदि किसी का कोई चक्र निदान एवं निवारण करने की शकिति भी है। यथा पकड़ में आ गया है आप मंत्रोच्वार कीजिये-सब लंदन में क्या गड़बड़ है (आप अने हाथ लंदन की कुछ ठीक हो जायेगा क्योंकि आपको सब मंत्रों का ओर फेलाकर मालूम कर सकते हैं) हृदय का बाम भाग एवं दक्षिण भाग-दक्षिण स्त्राधिष्ठान आदि। अव आप के पास भाषा है इसकी व्याख्या करने की । भी है क्योंकि इसे दूसरे नहीं जान सकते । यदि आप आपने हृदय का वाम भाग कहकर-किसी को भी नामोच्चार भी नहीं करते तो भी संकेत मात्र से काम हानि नहीं पहुँचाई। लंदन वासियों के वाम हृदय चल सकता है । इस तथ्य की सब को जानकारी है के पकड़ में आने का क्या मतल व है इसका अर्थ कि मामला क्या है, कहां जाना है और क्या करना हआ कि लंदनवासी अपनी आत्मा के विपरीत जा है यह इतना गोपनीय होने पर भी परस्पर ज्ञान रहे हैं। आप का अपनी आत्मा से कोई लगाव ही सुलभ है। हमारी विचार साम्य की एकरूपकता ज्ञान है। आप यह भी जानते हैं कि यह क्या है? और उस विषय का आपको पूर्ण ज्ञान है। यह गुप्त ज्ञान ा. 15 निर्मला योग का अवलोकन कीजिये जो हम सब के मध्य वर्तमान है। हम जानते हैं कि क्या, क्या है परन्तु हम अपने जो पार तो हो गये हैं परन्तु वहां हैं नहीं। इन दोनों आप को बुरा महसूस नहीं करते ना ही दूस रों को में क्या अन्तर है । अत्यन्त साधारण सा अन्तर है । बुरा कहते हैं। यदि कहा जाये कि आप में बड़ा भारी अ्हंकार है तो कोई बुरा नहीं करेगा । क्राइस्ट पहिचाना है अथवा मान्यता नहीं प्रदान की वे मुक्ति के समय में अहंकार का नाम लेना भी असम्भव था। अ कह सकते हैं और आप अपनी इगो एवं मान्यता देनी रावश्यक है । एक बड़ा सुन्दर उदा- सुपर इगो को देख भी सकते हैं । ये ही नहीं वरन हरण शिरडी के सांई नाथ के शिष्यों का है यद्यपि बहुत सी व्यर्थ अनर्गल प्रत्येक वस्तु दिखाई देती है । वे विद्यमान (सशरीर) नहीं परन्तु वे उनमे अरटूट ऐसे लोगों का समूह अभी भी विद्यमान है कि मान्यता एवं श्रद्धा का अभाव । जिन्होंने मुझे नहीं प्राप्त न कर सकंगे (वे चक्कर ही काटते रहेंगे) सो श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं। अव व ह कहां हैं। वे वर्तमान के अवतार में श्रद्धा विश्वास नहीं रखते । आप यह भी देख सकते हैं कि अरमुक ब्यक्ति सम्पन्न है । यथा जन्म जात पार व्यक्ति । परन्तु वह वे मेरे में ही निष्ठा रखते हैं। वे राम के प्रति निष्ठा शक्ति सम्पन्न होते हुए भी कुण्डलिनी उत्थान के सम्बंध में एक शब्द भी नहीं जानता अस्तु कु ड- बन्धूुओं की समस्या यही है कि वे मेरा तुलनात्मक लिनी जागृत नहीं कर सकता । वह सहजयोग का आश्रय लिए विना कुछंडलिनी जागरण प्रक्रिया सम्पन्न नहीं कर सकता। ये जन्म जात पार व्यक्ति को जो अ्पने आप को सनातन समझते हैं, इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि उन्हें सहजयोगी बनना है । अन्यथा वे क्रियाबादी नहीं हो सकते क्रियाशील हो रहेंगे। रखते हैं। उनकी श्रद्धा क्राइस्ट में है बहुत से ईसाई सम्बंध ईसा से जोड़ते हैं। यदि वे मेरा सम्वंध ईसा अथवा मोजेज से नहीं जोड़ते हैं तो वे सहजयोग में नहीं आते। आपको वर्तमान में रहना है। आप मेरे सम्बंध में अपने मानसिक उद्वेग के अनुरूप धारणा नहीं बना सकते । क्योंकि आ्रपकी धारणा सीमावद्ध है । कल्पना करो कि आपका जन्म यहां हुआ तो आप यह सब वस्तुएँ (तथ्य) आपके पास आभ्यन्तर में विद्धमान हैं । सब देवताओं का आपको पूरण ज्ञान ईसाई होंगे यदि आरप भारत में जन्मे हैं तो आप है । आप यह भी जानते हैं कि वे कब रुष्ट हो जाते हिन्दु होगे हैं। यदि पूछेंगे कि पाप क्या है तब आप कहेंगे यह मत करो। आप कोई प्रपच रचने का प्रयत्न कीजिये जाती है और आप इस बुटि का तत्काल ही आभास आप सफल होंगे । क्योंकि अप की !मा" का आप पर अनिवार्य "वंधन" है। यदि आप मदिरा पान करेंगे तो शप को अकरणीय कार्य करेंगे तो आपका आमाशय खराब स्थायित्व एवं स्थिरता प्राप्त नहीं की है और उनके हो जायेगा। यदि आप सहजयोग से अ्पने आपको पास पूर्ण शक्ति का भी अभाव है ऐसे पुरुष मान्यता, वंचित करना चाहेगे तो आप ऐसा नहीं कर सकते । श्रद्धा एवं निष्ठा प्राप्त नहीं कर सकते । वे इस हालांकि अप को इसका आभास मा भी नहीं है, फिर भी अप के आभ्यन्तर में सहजयोग का कर्षण (ललक) विद्यमान है । । यदि आपका जन्म चीन में हुआ है तो आप चीनी होंगे। आप कुछ भी हो सकते हैं। अतः [आपकी श्रुटिपूर्णं परिचय प्रणाली क्रियाशील हो कहा जाये कि पाप मत करो तो आप पा लेंगे कि आपकी चैतन्य लहरियां (Vibrations) स्वतः बन्द हो जायेगी। मानव समुदाय का वह बग जो मध्य बर्ती हैं तथा जिन्होंने सहजयोग में पूर्ण वमन होगा। यदि आप निष्ठा को प्राप्त न करने में अपना दम्भ प्रकट करते हैं । यह महान मूखता है । जैसे ही आप श्रद्धा युक्त मान्यता देगे आपकी चैतन्य लहरियां स्वत: बहने निर्मला योग 16 लगगी- ऐसे मनुष्यों का वर्ग दूसरे गुरुओं के पास कि हम कौन हैं ( मैं कीन हैं क्या हैँ) तो तत्काल ही से भटक कर आता है । जब ऐसे पुरुष सहजयोग में ये सब दूर्गुरण एवं त्रटियां दूर भाग पदापण करते हैं तो एक समस्या उत्पन्न हो जाती आप तो सामना करना ही नहीं चाहते । यही कारण हैं । वे मेरी अहेतुकि कृपा से पार तो हो जाते हैं (चाहे केस कसा भी हो सब पार हो जाते हैं) अभी नहीं करते पिछले दिनों यहां एक वेश्या आई और "पार हो का अनुभव रहता है वे इस सम्बन्ध में अधिक सोच गई। सहजयोग अपनी रस्सी ढीली छोड़ देता है। विचार नहीं करते । यदि वे अ्रधिक सोच विचार आप अपनी आनन्द लहरियों को सहजता से विनष्ट नहीं कर सकते यदि अ्रपने सूचारु रूप से नियमा- नुसार प्राप्त किया हो तो-सहजयोग में प्रकाश में प्रवेश के पश्चात आप अपने अवगुरी एवं त्र, टिया प्रथात उन्हें ग्रपने स्वयं को स्वयं ही देखना पड़गा । का स्वतः अवलोकन करने लगते हैं । यदि श्रप सहजयोग को नकारना चाहते हैं तो ऐसी दशा में कुछ व्यक्तियों को तो चुभन, जलन महसूस होने लगती है साधारणतया कुछ ही ऐसे होते है जो प्रकृतिस्थ रहते हैं। कम्पन आरम्भ हो जाती है। कूछ में विशेष प्रकार की टेढ़ी मेढ़ी एंठन (Contortions) प्रारम्भ हो इन सब बाधाओं के लिए वे सहजयोग पर दोषा- जाती है । आप में से बहुतों ने देखा होगा कि कुछ मेरे दर्शन करते ही महती उष्णता का अनुभव करने लगते हैं। [अथवा उनके आमाशय में भयंकर दोषारोपण कर रहे हैं। आप उसी पर दोष मंढ पोडा उठती है स्थित होते हैं तो आप अपने स्वयं के सम्मूख प्रस्तुत को ही दोषी ठहरा रहे हैं। यह बेहतर है कि आप हो जाते हैं । परन्तु आप अपने स्वयं का सामना अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं खोज लें और करना पसन्द नहीं करते । तत्व की बात यह है कि अपनी कमजोरियों का निराकरण करें। आप अपने जिन्होंने सहजयोग में स्थायित्व प्राप्त नहीं किया है स्वयं पर कृपा कर जिससे आप इन भयानक सांप वे अपने स्वयं के सामने आने से ही कतराते हैं । यदि वे स्वयं का स्वयं ही सामना कर तो वे शीघ्र ही प्रपने अन्दर सुधार ला सकंगे क्योकि प्रकाश विशुद्ध कर लें । प्रकाश का शुभागमन हो गया है। वहां विद्यमान है । आप श्रपने अवगुरा एवं त्रु टियों के साथ परिचय (ldentify) मत की जिये । आप डाक्टर हैं-आप में प्रकाश है-अराप शल्य क्रिया (Operation) जानते हैं शल्य क्रिया कीजिये क्यों- कि आप इस शल्य प्रक्रिया में सिद्धहस्त हो गए हैं । हूँ जायेगी परन्तु है कि पार हुए व्यक्ति भी सहजयोग में आना पसन्द । जिनको शोतल मन्द सुगन्धित वयार करें तो उन्हें अपने अरहंकार (Ego) को त्यागना पड़ता है जिसे उन्होंने विगत कई वर्षो से संजोया हैं । उन्हें आत्म निरीक्षण करना ही पड़गा हुआ वे कहते सूने जाते हैं कि मेरे अन्दर कुछ भी सुधार नहीं हुआ है। चुभन सी हो रही है। सारे शरीर में सुइयों की सी चुभन का अनुभव हो रहा है । यह कसे हो सकता है। यह मुझे सहायती नहीं कर रहा हैं । सहजयोग मुझे पीछे की ओर धकेल रहा है । कुछ में मेरे सम्मुख आते ही रोपण करेंगे उन लोगों को नहीं देखेंगे जिन्होंने उन्नत अवस्था प्रप्त केर ली है। आप किस पर रहे हैं जो आपकी रक्षा करेगा-आप अपने रक्षक । जब आप प्रकाश के सम्मूख उप- विच्छू (डक मारने वाले जन्तुओं से) जो आपके इर्द गिर्द मंडरा रहे हैं छुटकारा पा सके । अपने को इस प्रकाश द्वारा आप सत्यान्वेषरण का प्रयास कर । तब आपकी अपरिचितता (Misidentification) का निवारण होगा और वास्तविक परिचय ( ldentification) प्राप्त होगा और स्थापित होगा। किसो अन्य प्रकार से नहीं होगा । अतः श्राप को अपने स्वयं का सामना करने की शिक्षा यदि आप यह दुढ़ निश्चय कर लें कि हमें अपने स्वयं का सामना करना ही है कि हम देखें ग्रहण करनी चाहिए। कभी भी औचित्य सिद्ध न करें । 1 17 निर्मला योग क ট व्यक्तियों की अपने पुत्र, श्राता, स्वी अरथवा कि उन्होंने यह विचार (ldea) कहां से पाया- कुछ पति की अनरगल सराहना करने की आदत होती है कदाचित तथाकथित वैज्ञानिकों, मनोवज्ञानिकों और उसका औचित्य (Justification) भी सिद्ध अथवा प्रभृति विद्वानों ने उन्हें यह विचार प्रदान करते हैं । इस भांति आप उनकी कोई सहायता नहीं किया है । वे सोचते हैं कि हम कह देंगे कि अमुक कर रहे हैं । बाधा युक्त व्यक्तियों की एक जुट होकर बात तर्क सम्मत है । परन्तु (मिल जुलकर) कार्य करने की प्रकृति भी होती उन्मूलन नहीं किया है। आप अभी केवल अबोध है। सदेव दो बाधा युक्त पुरुष, दिखावे के लिए, एकजुट होकर कार्य प्रवृत हो जायेगे | आश्चर्य तो इस बात का है कि इन लोगों ने अपना बस्तु का विश्लेषण प्रारम्भ कर देते हैं कि यह वस्तु संघ यहां संगठित नहीं किया है नहीं तो मेरे विरोध ऐसे क्यों हुई। वह वस्तु वैसे क्यों हुई आदि-२ में इन बाधा युक्त पुरुषों का एक अलग से संध बन एक बार आरपने विश्लेपण प्रारम्भ किया तत्सम्बंधी जाता । भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना करना वातलाप किया उसका भी विश्लेषण किया- पड़ सकता है । क्योंकि इनमें संयुक्त भाई चारे की आपने इस प्रकार सब कुछ गंवा दिया। प्रणालो विद्यमान होती है । जैसा कि आपने देखा होगा कि डाकू सदव संयुक्त रूप से रहते हैं उनमें परस्पर मेंत्री भाव अधिक मात्रा में पाया जाता है अपने चक्षओं का शिशु मात्र है । आप पूर्णं ज्ञान विना इन सबका विश्लेषण कसे कर सकते हैं । परन्तु प्राप प्रत्येक महान आपको जो कुछ भी करना है वह यह कि आप "इसे" ग्रहण कीजिये तदनुरूप अ्पने को ढालने की । वे सब एक दूसरे की गुप्त बातें जानते हैं परन्तु दो चेण्ठा कीजिये । अधिकाधिक इसे पाने की चेष्टा सम्भ्रान्त व्यक्ति यदि संयुक्त हो जाय तो सारा विश्व हो परिवर्तित हो जाये। आपको यह बात सामने अपने स्वयं को नग्नावस्था में लाइये-सहज हृदयंगम करनी चाहिए। आपको भकद्र पुरुषों योग में त्र टियां न खोजिये क्योंकि जो कुछ भी (Positive) से हो सम्पर्क करना चाहिए नहीं तो आप सहजयोग का विकास न कर पा सकगे । जो कोई भी नकारात्मक बात कर उसके सम्पर्क में नहीं आना चाहिए । कीजिये और प्रोरों के लिए ग्राह्य बनाइये । इसके तटियां है वे अप में हैं । ये सब दोष सहज प्रेम द्वारा ही ठीक दशा में परिवर्तित हो सकते हैं । ऐसे भी पुरुष हैं जो मुझसे कहते हैं कि माताजी आप इस प्रकार क्यों नहीं करती- प्राप उस प्रकार से क्यों नहीं करती हैं आदि-२। मैं प्रपने कार्य कलाप में सिद्ध हस्त हैं फिर भी वे मू्झे शिक्षा देने मान हैं। आप कल के आधुनिक गुरु बनते वाले हैं की चेष्टा करते हैं कि माता जी ने ऐसा किया- अतः आपको भिन्न भिन्न टाइप (प्रकृति) के पुरुषों उनको ऐसा करना था आदि आदि आप चाहे जिस का व्योरा दे रही हैं अथाति हर प्रकार के व्यक्तियों के प्रणाली से कार्य कर मानव प्रकृति नीचे से ऊपर । वे स्वयं का सामना करना (Jack in the box की तरह) जाने की होती है। नहीं चाहते परन्तु इससे बच निकलने के कितने सो अ्रपको अपनी प्रकृति में मूल परिवर्तन लाना ही मार्ग उन्हें मालूम हैं । उनमें से कुछ ऐसे हैं कि है इस उहा पोह उच्ल कूद बाले स्प्रिंग्स को जरा ज्यों हो वे पार हुए उसका विश्लेषण प्रारम्भ कर सा सरकाइये आपकी स्थिति दढ होगी । ये स्प्रिंग्स देते हैं। आप उन्हें कुछ भी दीजिये के विश्लेषण कुछ भी नहीं बल्कि बारीक विश्लेषरण व्यापार है । आपका ऐसे बहुत से (विपुल मात्रा में) मनुष्यों के विश्लेषण कर सकते हैं । भगवान ही जानता है साथ सम्पर्क होगा-श्रब प्रश्न यह है कि उनसे परन्तु इस देश में दूसरे ही ग्रप के आदमी वरत- हूँ बारे जतला रही है। आरम्भ कर देंगे । इस देश में वे प्रत्ये क बस्तु का 18 निर्मला योग किस प्रकार से संपर्क एवं व्यवहार स्थापित किया जाये । लोग भी उपयोग में आ सकते हैं । सरकस में उन्हें तोप के मुंह में पलीते के साथ रखकर उड़ा (Blast) दिया जाता है । इस प्रकार वे अपने करतबों का निर्विचारिता को वे एक निम्न कोटि की वस्तु मानते हैं और जो व्यक्ति इस बारे में बार्तालाप करें वह उन्मादी हैं। देखिये जब आप निर्विचारिता से जागरुकता के संबंध में वार्तालाप करेंगे तो वे आप को पूरातनपंथी कहंगे, क्योंकि आप सच विचार प्रदर्शन करते हैं। वे इतने ग्रालस प्रस्त हैं कि उनको कोई भी विष्न बाधा विचलित नहीं कर सकती । आपको शरी गणेश जी व शआप मेरे सुपूत्र हैं। हईेसामसीह की छवि के पश्चात बनाया है उनकी हुआ है ऐसी शक्ति सब शक्तियां आप में विद्यमान है । एक प्वाइन्ट है, जहां मैं स्तव्ध रह जाती है कि किस प्रकार आपकी निष्क्रियता (inertia) दूर भगायें । आपने सहज योग का अरभ्यास (Practice) नहीं किया है। आप कोई भी अभ्यास नहीं कर पाये हैं द्वारा जो सोच विचार से परे, बहत उच्च श्रेणी की है । सोच विचार करने से आपको क्या उपलब्धि हुई अर्थात क्या कर लिया । सोच विचार से आ्पने अपने नाक, कान, हाथ यहा तक कि ं। आप ने (इन प्रत्येक वस्तु काट लो-प्रब आप एक महायुद्ध विभूतियों को) सहज में आसानी से सस्ते में पा छेड़ने को उद्यत हैं । क्या आश्चर्यजनक विचार हैं। सो आप उन्हें जतला दें कि सोच विचार से कुछ भी बनने वाला नहीं है अर्थात आप उसे नहीं पा सकते-बह एक ऊच्चतर श्रंणी की शक्ति हैं । उच्चतर वस्तु की बातचीत ने अापको यह प्रदान किया है। यदि आप उस निम्नतम सोच विचारने कैरगे, में इसको, आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर की शक्ति से उच्चतर शक्ति में आना चाहते हैं तो छोड़ती हूं। क्योंकि मैं आपकी स्वतंत्रता में विश्वास आपको केवल सोच विचार को निम्नस्तर पर रखना पड़ेगा। वे इस तरीके से ही परिधि में के नही है कि मैं आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आयेंगे। यदि आप यह कहने की कोशिহা करें कि पावन्दी लगाऊँ। अर्थात अराप अपनी स्वतंत्रता को कृपया सोचिये मत । तो बिचारणीय ही नहीं है यह तो व्यर्थ है । ऐसे अहंवादी व्यक्तियों से इसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए। जो सोच विचार करते हैं पर मान्यता नहीं जाना पसंद करते हैं तो मैं आप को रथ में बेठा देते यद्यपि उन्हें शीतल समीर का अनुभव प्राप्त है| तो आप ऐसे पुरुषों की क्रमशः सहायता कर । लिया है । अप को इंसका मूल्य ज्ञात नहीं-अतः । आप इसे गौरण (Sidetrack) रखना चाहते हैं । आपको स्वयं अनुशासन में अनुशासित होना हैं जब तक आप अपने आपको अनुशासन बद्ध नहीं रखतो है । मेरे विचार से आप इतनी निम्न कोटि ी में लायें । व्य वहार क्या नहीं सोचे विचारं । यह आप पूर्ण रूप से स्वतंत्र है यदि आप नरक में कर सीधे गरन्तव्य स्थान पर भेज दुंगी यदि आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो "मैं आपके लिए विमान का प्रबंध कर दूंगी-यह आाप १र निर्भर करता है कि आप त्वरित (Dynamic) बन जायें शव गुरुजनों के लिए जैसे कि आप हैं । आप सर्वगुण सम्पन्न ज्ञानवान है सब शक्तियां यहां तक और अपने अत्दर [त्म विश्वास लाये । आपको कि प्रत्येक वस्तु आपके अधिकार में है । आाप में केवल प्रत्येक चक्र का ज्ञान है। आप कृ डलिनी जागरण आत्म विश्वास की न्यूनता है। आप में निष्क्रियता प्रक्रिया भी जानते हैं । आप प्रत्येक प्रक्रिया जानते (inertia) है । माजूम नहीं यह निष्क्रियता किस हैं । अस्तु प प्रकार से पलायन करेगी कभी कभी ऐसे निष्क्रिय कीजिये । प्रत्येक कार्य ग्रपने ऊपर लेकर स्वयं 19 निमंला योग मैं यदाकदा आप सब लोगों से रुष्ट भी हो सकती है, अत्यंत साधारण बात है । परन्तु नहीं, " मुझे अपना कार्य सिद्ध करना है । आप से मृदुल "मुझे खेद है आदि बहुत से ऐसे शब्द हैं । परन्तु संभाषण करना है । कभी कभी भला बुरा कहकर मैं सोचती है ये सब अपना मूल्य खो चुके हैं । अथवा डीट डपट कर काम चलाना पड़ता है। भिन्न भिन्न प्रकार से कुछ न कुछ पूछना पड़ता है । कभी स्निग्घता का प्रयोग तो कभी उष्णता का से पढ़ना चाहिये, हमें अपने हृदय से संवेदना प्रकट प्रकोप तो कभी शीतलता को काम में लाना पड़ता करनी चाहिए। हमें उसे हृदय से बचाना चाहिए । है । कभी इस तरह से तो कभी उस प्रकार से उन्हें सहजयोग में स्थिरता प्राप्त करने का प्रबन्ध करना उन्हें डांट डपट कर भी रखना पड़ सकता है क्यों- पड़ता है । कभो-२ प्रलोभन आदि से भी उ्हें घेर कि जैसा कि आपको विदित ही होगा कि बहुत से व्यवहार करना है । अत्यधिक वैय रक्ख । आप की भाषा भी सुसंस्कृत होनी चाहिये। "कृपया माप मै अतः हम एक प्वाइन्ट पर आते हैं कि हमें हृदय हमें उसकी सहायता करनी हैं। परन्तु कभी कभी घार कर रखना पड़ता है कि वे यहां जमे रहें । बाधा युक्त जन जन्म जात कौतुकी, कौतुहल पूर्ण प्रकृति के होते हैं । वे कौतुक एवं कोलाहल पूर्ण दृश्य उपस्थित करने में पारंगत होते हैं। वे अ्रधिक- तम प्रदर्शन के धनी हैं । इसी भांति आपको भी उनसे व्यवहार करना है। उनसे रुष्ट नहीं होना है आपके लिए रुष्ट होना सबसे आसान है तब तो फिर कोई समस्या ही नहीं रहेगी। यदि मैं माप सबसे एक बार भी रुष्ट हो जाती है और समस्याएँ भी नहीं रह जाती हैं। प रन्तु श्रापसंब को उन सबके साथ वास्तव में बहुत धीरज के साथ इस कोटि के मनुष्यों की रक्षा करनी है । तथा अत्यंत धर्य के साथ व्यवहार करना है। तो मुझे अ्रपनी शान्ति प्राप्त होती, ईदवर आपको सदा सुखी रखें ! लंदन में 2 दिसम्बर 1979, को अवतरण रविवार के शुभावसर पर आयोजित गुरु पूजा पर परम वंदनीय माता जी का सार-गभित भाषण का हिन्दी रूपान्तर । "परमात्मा को बेचा नहीं जा सकता, न ही खरीदा जा सकता है। जो लोग परमात्मा के नाम पर अपना उदर निर्वाह करते हैं वे कनिष्टतम हैं -श्री माता जी निर्मला योग 20 hco Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 WARNING THE THIRD WORLD WAR, SAID SHRI MATAJI, IS NOT AN ELEMENT IN THE PLAN OF GOD TO BRING ABOUT SATTYA YUGA. IT WOULD ONLY CREATE MEANINGLESS DESTRUCTION AND SUF- YET MEN'S MADNESS IS PRESENTLY CREATING THE FERINGS. CONDITIONS WHICH MAKE THIS DREADFUL CALAMITY VERY LIKELY. IN ANY CASES THE SAHAJA YOGIS WILL BE PROTECTED BUT THEY SHOULD CLEARLY UNDERSTAND THEIR RESPONSIBI- LITY. IF ALL THE SAHAJA YOGIS DO NOT PUT ALL THEIR ENERGY AND AVOID THIS BY ACTIVELY SPREADING SAHAJA YOGA IT MAY WELL HAPPEN. AND SOON. Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 5.00 Annual Subscription Rs. 20.00 Foreign [By Airmail f 4 $8] ---------------------- 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt 30 ॐ निर्मला योग वर्ष 1 अक I द्विमासिक मई - जुन - 1982 म ुरभ ा ह ॐ त्वमेव साक्षात थी सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी, कलकी, भगवती माता जी थी निर्मला देव्ये नमो नमः । के कर THE क ा 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt GGW 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt क सम्पादको गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय । पार आपने जिन गोविन्द दियो बताय ।। बलिहारी गुरु ये शब्द गुरु स्वरूप अवतरित श्री कबीर दास जी के हैं। अर्थ बड़ा ही सरल है किन्तु इसका गूढ़ ज्ञान आराज हमें सहजयोग के अन्तर्गत परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी जी की अनुपम देन निमंला विद्या द्वारा दीक्षित होने पर होता है । आज हमारे बीच गोविन्द स्वयं गुरु रूप में समस्त संसार के त्राणार्थ उपस्थित हैं। मानव मात्र तक उनके आगमन की सूचना की श्रू खला की एक कड़ी रूप निरमला योग का यह हिन्दी का प्रथम अक उन्हीं के पावन चरणों में सम्पित है । निमेला योग मह ा 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt निर्मला योग 43, बंगलो रोड, दिल्ली 110007 संस्थापक : परम माता जी श्री निर्मला देवी पूज्य सम्पादक मण्डल : डॉ० शिव कुमार माथुर श्री आानन्द स्वरूप मिश्र श्री आर० डी० कुलकरी प्रतिनिधि : श्री एम० बी० रत्नानवर 13, मेरबान मैन्सन गंजवाला लेन वोरीवली (पश्चिमी) बम्बई - 400092 श्री प्रमोद शंकर पेटकर 469/15, सोमवार पेंठ ब लालबड़ा पुणें - 411011। इस अंक में पृष्ठ 1. सम्पादकीय 1 परम पूज्य माता जी का प्रवचन 3. अनुसरणीय 4. परम सत्य की खोज एवं मानवीय तर्क 5. त्यौहार 6 गुरु पूजा 2. 8. 10 निर्मला योग ल to 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt परम पूज्य माताजी का प्रवचन (नई दिल्ली-१७ अप्रैल १६८१) अन्दर से अव्यवस्थित हो तो बाहर जितना भी झंझा- वात हो, तो उसका जबरदस्त असर रहेगा। अगर औप अन्दर से बिल्कुल शान्त हैं, तो बाहर कुछ भी हो रहा हो, उसका असर नहीं होगा, उल्टा जो बाहर है, वो भी शान्त हो जायेगा। सबसे बड़ी चीज यह है कि अपने को जमा लेना चाहिए । अगर ऐसी जगह है, जहां बहुत उथल-पुथल है तो सब लोगों का कुछ न कुछ रजिस्ट्र शन (Registra- ऐसी जगह से भली-भांति समझा-वुझा के किसी tion) कीजिए । आप कुछ ग्र.प (Groups) में तरह से हट जाना चवाहिए । उससे जूझना नहीं बांट लीजिये अऔर उनसे सम्पर्क, सम्बन्ध स्थापित चाहिए और उससे हट जाना चाहि ए और अपने कीजिए। नहीं तो वो फिर खो जाते हैं और सहज दिल को वहँ से हृटा लेना चाहिए, जिससे हमारा योग में ऐसा है कि जब तक आदमी जम नहीं जाता, चित्त जो है, उस उलझन में, उस उथल-पुथल में बड़ा [अच्छा प्रोग्राम रहा । हम लोग जो देहली में उम्मीद कर रहे थे कि वहुत लोग आय गे तो बहुत लोग आ गये और पार भी हो गये । इस प्रकार पहले भी होता रहा है, बहुत से लोग प्राते हैं पार भी हो जाते हैं, फिर खो जाते हैं । तो पहली बात तो यह होनी चाहिये कि उन तब तक वो पनपता नहीं क्योंकि यह जीवन्त क्रिया (Living process) व्यस्त न हो । सह ज-योग की अपनी अनेक समस्याएं हैं। हम लोगों को जान लेना चाहिये कि जीवन्त- सबसे बड़ा समस्या यह है कि जो लोग पार हो गये हैं क्रिया में क्या-२ चीजों की जरूरत होती है । सबसे उनकी चेतना और जो लोग पार नहीं हुए हैं उनकी हले तो यह है कि कोई भी डावाडोल जगह में चेतना में बहुत बड़ा प्रन्त र है, बहुत महान अन्तर पा जहां हर समय (earthquake या eruptions) है। थोडे से ही क्षण में बड़ो अन्त र अ जाता है भूचाल होते रहते हैं; कोई भी ऐसी जगह हो तो पार होने पर । वो इस ची ज को समझ नहीं पाते। व्रहाँ कोई सा पेड़ या ऐसी चीज टिक नहीं सकती । ो जिस वातावरण में हम रह रहे हैं, उसे वाता- रण में हमको पहले अपने आपको जमा लेना रोते रहे कि, "एक हो तो कहै, यहाँ तो सब जग हाहिये । इसलिए कबीर रोते थे कि, "सब जग अन्धा, सब जग अन्धा। जित ने भी बड़ लोग हुए, यह कह कर अन्धा, सब जग अन्धा। जब सारे अन्धों के बीच में आप रह रहे हैं और जमाने के लिये सबसे बड़ी बात यह है कि [माने के लिये हमारे चारों ्रोर अरास-[पास का जो और सिर्फ एक आदमो के आँव है, तो बड़ा ही तािवरण है, उससे जूझने की कोई जरूरत नहीं मुश्किल है दूसरों से बात चीत करना और जब आप। | श्रप अपने से ही अगर ठीक हो जायें, अ्रर्थात किसी से सह जयोग की बात करेंगे तो वो लोग आप न्दर से ही यदि प्रप स्थिर हो जायें, तो वाहर पर ऐसा आसर डालेंगे कि प ही बेवकुफ हैं । जितनो भी चीजें हैं, धोरे २ प्रपने आप स्थिर हो उस पर भी आप समझते लग कि ये ही लोग अन्ये य गी । जो कुछ अन्दर है वही बाहर है अगर हैं तो उनको बहुत बुरा लग जायेगा अगर किसी 3. मिला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt भी तरह आप उनसे कहें कि आप में गलती है और आपको संभलना है तो इन्सान को समझ लेना चाहिए कि आपकी चेतना और है। जैसे कि एक बीज है, ये बीज प्रस्फुटित हो गया जिसको कह ना arfa, which is being manifested now, which is sprouting. इन दो बो जों में बडा भारी अन्तर होता है-एक बीज जो जम रहा है और दूसरे बीज का तो कोई सवाल ही नहीं उठता जमने का । वो तो बिल्कुल ही वैसा का वैसा पड़़ा है और वसे ही पड़ा रहेगा, सदियों तक । एक बीज जो जम रहा है, वो अलग चीज है और दूसरा बीज जो विल्कुल ही वेसा पड़़ा है, विल्कुल ही दूसरी चीज है । वृद्धि के लिए आ्रापको मध्य में रहना चाहिए, अपने चित्त पर निरोध होना चाहिए मतलब यह है कि अपने चित्त को देखना चाहिए कि कहाँ जाता है । आपके चित्त पर निरोध होना चाहिए। अपनी आदतों को देखिये, आपका चित्त किस चीज़ में बहुत ज्यादा उलभता है जैसे किसी. की ज्यादा बोलने की आदत है, माने एक तरह का बहकावा, बहुलावा है। तो साहब अपना नाम लिख लीजिये और समझ लीजिये कि मिस्टर फलाना फलाना, अप बलते ज्यादा है आप इसे कम करिये और आप बोलने पर अपना चित्त रखिये कि आप बोलते ही न जायें । ज त द अब जमने के लिए भी हमें हमेशा मध्यमार्ग में रहना चाहिए। एक पेड़ की जो मध्य शाखा है, या मध्य में जो चीज चलती है, जो उस का पानी का प्रवाह है, जिसको sap कहना चाहिए वो बीचोंबीच चलता है । पेड़ भी हमेशा बीचों-बीच रहता है, एक तरफ ज्यादा भुकता नहीं, न दूसरी तरफ भुकता है। अगर उसने भुकना शुरू कर दिया तो उसकी ठीक से (growth) बढ़ोत्री नहीं होती। बो बढ़ नहीं सकता, पनप नहीं सकता । इसलिए ये जरूरी है कि इन्सान को जहाँ तक हो सके, मध्य में रहना चाहिए । दूस रा है एकदम चुप रहता है, यानि जरूरत से जयादा कोई आदमी चुप रहती है तो भी गलत रास्ते पर है । इसमें रहे या उसमें, दोनों ही चीज में आदमी गलत रास्ते पर चलता है । चित्त पर निरोध रखना चाहिए । अगर बोलते ज्यादा हो तो कम कर, अगर कम बोलते हैं तो ठीक ठीक बोलें फिर हम बोलते समय क्या बोलते हैं उस पर भी ध्यान रखना चाहिए। वेकार की बातें करने की कोई जरूरत नहीं। जहाँ तक हो सके तो सहजयोग की ही बात करें जहाँ तक हो सके उसी परमात्मा की ही बात करनी चाहिए । लेकिन अगर कुछ बोलना भी हुआ तो थोड़ा वहुत ठीक ठीक कह दिया। बात करें और फिर उससे अ्पना चित्त हटा लें। इससे आदमी का चित्त वीच में रहता है। परमात्मा की ओर दृष्टि रखने से चित्त हमेशा बीच में रहता है। वी बात जो मैं आपको विशेष रूप से समझाने बाली हैं, यह है कि अ्रपको हमेशा मध्य में रहने को कोशिश करनी चाहिए। अगर मध्य में नहीं रहेंगे और किसी भी (Extremes) अरति पर उतरना छोड़ न देंगे तो आपकी growth ही नहीं हो सकती । हो सकता है कि कोई परेशानी है, या कोई acci- dent है, उससे आप बच जाये, या और कोई आफत से आप बच जाय । अच्छे से दिन निकल जाये कुछ गहरी परेशानियों से निकल जाये परन्तु यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं। परन्तु सबसे महत्व- पूर्ण बात है कि सहजयोग में प्रापकी कितनी वृद्धि हुई है, प्रगति हुई है । यह खास चीज है । और इस और यदि हम परमात्मा के बारे में ही बोल रहे हैं या और किसी के बारे में बोल रहे हैं, और बहके जा रहे हैं, इस पर ध्यान देना चाहिए । इसमें बहुत सारी चीज होती हैं जैसे कि किसी की ( Argu- mentative Nature) बहुस करने की आदत निर्मला योग 4. 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt जब तक आपके अन्दर वही दोष बने हुए हैं और आप उन्हीं चीजों में उसी प्रकार लगे हुए हैं, दूसरों से झगड़ रहे हैं, जुझ रहे हैं, तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप मध्य में नहीं हैं। क्योंकि जब अआप मध्य में श्र जायेंगे तो आप किसी भी एक चीज़ में लिपट नहीं सकते, आरप सबमें समाये रहते हैं । जब होती है, यानि बहस करने की ही आदत हो गई दूसरे जैसे किसी में कंजुसी जरूरत से ज्यादा होती है । कोई अदमी पेसे के मामले में बड़ा meticu- lous होता है । हर चोज का पेसे-पैसे का हिसाब लिखता है। इस तरह से बहुत सी आदतें हमारे अन्दर हैं तक आप एक चीज में लिपटे हैं, तो समझ लेना जिनको हम misidentifications कहते हैं। जैसे चाहिए आप मध्य में नहीं हैं। कि कोई आदमी जनसंबी है, वो सोचेगा हम जनसंघी हैं, कांग्रेसी अपने को कांग्रेसी कहँगा मैं हिन्दुस्तानी है, कोई कहेंगा मैं आस्ट्रेलियन है । वृद्धि का और कोई तरीक़ा है ही नहीं । यह सब चीजें छोड़कर पहले तो हम इन्सान हैं और हम परमात्मा के बन्दे हैं। परमात्मा ने हमें माना है, हमें Realization दिया है, जो सारे घमों का सार है, जिसे सबने माना है। संसार में कोई वह बहुत ्यादा हर चौज़ को सोचेगा analyse घर्म नहीं जिसने कहा कि आप पीर न हों या आप आत्मसाक्षात्कारी न हों, या द्विज न हों। ऐसा कोई ऐसे करते २ उसकी बाई विशुद्धि (Left Vishu- घर्म नहीं हमारे लिए सब धर्म एक है और सब ध र्म का तत्व अपने को criticise करेगा कि मैंने ये गलत काम तो और मध्य में रहना ही एक कमेव तरीक़ा है, । कोई कहेगा हर चीज में आदमी चलता है जैसे कोई बड़ा Intellectual होगा। उसकी यह आदत होगी कि करेगा और हर चीज का मतलब निकालता रहगा । ddhi) बहुत जोरों से पकड़ सकती है क्योंकि वो । जब अब हम वो हो गए हैं, तो फिर है वह एक सार हममें समाया हुआरा है। आप किया वर्गरह वर्गरह । इस प्रकार उसके भी चक्र जानते हैं कि हमारे अन्दर ही सारे धर्मं हैं श्रौर पकड़े जायेगे| हमारे अन्दर ही सारे देवता (Deities) बैठे हुए हैं। तो फिर हमारे लिए सब घर्म एक हैं । अगर कोई मूर्ख होगा तो वो सामने की चीज को भी नहीं देखेगा अति अरक्लमन्द भी किसी काम ी तो फिर सहजयोग में ग्राने पर भी यह विचार का नही, मन्दवुद्धि भी किसी काम का नहीं है । हमारे अन्दर बने रहते हैं । वहुत से लोग लीजिये झगड़ा है दो ग्रप के लोगों में । एक कहंगे वो बीचोंबीच है । उसी की बुद्धि में समाकर रहना कि साहब इनमें खराबी है, दूसरे कहेंगे कि उनमें बाहिए। "तेरी जो बुद्धि है उसी में मुझे चला, खराबी है। इन्सान में तो खराबी होती ही है वो तेरी जो आज्ञा है उसी में मुझे रहना है और पूरी चाहे किसी भी संस्था में क्यों न हो। इन्सान में तरह से उसमें मुझे समा ले । इसी तरह की जब ग़लती होती है। आप देखियेगा किसी बहाने से बुद्धि होती जायेगी तो धीरे २ आप देखियेंगा कि उसमें दोष आ ही जाते हैं । बीचौबीच रहना चाहिएए । परमात्मा की जो बुद्धि है, हैं, समझ कल आ्पके प्रश्न हल होने शुरू हो जाय गे और प्रश्न खड़े ही नहीं होंगे । सहजयोग ऐसी प्रणाली है जिसमें अ्राने से सारे दोष जो हैं, वो खत्म होने लग जाते हैं। ओर जब आपके दोष खडम होने लग जाये तो समभझ लेना चाहिए कि आपने बड़ी भारी चोज हासिल कर ली । हम लोगों में पकड़ भी इसीलिए आ्राती है कि हम (extremes) ग्रति पर चले जाते हैं और प्रपनी आदते नहीं बदलते । हर बार हम extreme पर निर्मला योग प 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt चले जाते हैं या किसी न किसी extreme पर रहते माल किया था । इस तरह की चीज़ प्रयोग में लाने हैं। जैसे अगर किसी औरत को कपड़ों का शौक है; का विचार पता नहीं कहाँ से उनके मन में आया तो उसको देख लेना चाहिए कि उसका जरूरत से था। यह बहुत ऱलत चीौज़ है । जिसने ऐसा con- ज्यादा कपड़े पर ध्यान है, और उधर हमारा चित्त centration का इस्तेमाल किया है, इससे अ्र्ज्ञा बटता है । क्या जरूरत है इतना ध्यान उधर देने चक्र बहुत खराब हो सकता है। ऐसे इन्सान को की। सर्वसाधारण तरीके से रहना चाहिए । अब जाहिए कि वह अरपना] चित्त सहस्रार पर रखे ग्रर अगर आप दूसरी औरत हैं जो कहती है कि हमें सहस्रार पर हमें बैठाये। हमको यहाँ सहस्रार में किसी चीज की परवाह नहीं। उस औरत को ऐसा बेठाए या हमको हृदय में बेठाए । एक ही बात है। भी नहीं सोचना चाहिए क्योंकि वो भी एक दूसरा extreme हो गया कोई सोचे जैसे कि हमें तो देखियेगा कि कितना फ़र्क पड़ता है। कुछ भी परवाह नहीं कि हम तो सन्यासी है--तो यह भी सहजयोग में बन्धक है । इसका ठीक करने का यही तरीका है। उससे आप अभी आप कोशिश करें, हमें हृदय में बैठाएं । अभी आप हमारी तरफ देख रहे हैं । हमें हृदय में उसके बाद हमें सहल्रार सहजयोग में बहुत सारे बन्धक हैं । उसमें यह बठाएं । अ्राँख खुली रखें । भी एक बन्धक है । छोटी २ चीज़़ों के लिए स हजयोग पर बैठाने की कोशिश करें । राँख खुली रख कर में बताया गया है जेसे कि हर इन्सान को एक कपड़ा यह प्रयत्न कर कि सहस्रार पर मा को बेठाएं ! अन्दर जरूर पहनना चाहिए। मतलब यह है कि अख बन्द न कर जब हम यहाँ बैठे हैं तो क्यों अख undershirt जरूर पहनना चाहिए । पूछते हैं कि बन्द कर रहे हैं । अब हल्का हो रहा है। मां तुमने यह क्यों बन्धक डाला शर्ट के नीचे एक और कपड़ा होगा ती है वह साक्षात हो रहा है। [अब आप जिस चीज़ की पका जो चक्र जिसे प्न्हद चक्र कहते है, उस पर कहेंगे हो जायेगी। जिस चीज को imagine करते protection रहेगा। यह नहीं पहनने से sense of insecurity बढ़ जायेगी। अपक देव होना माक्षात होने लगता है। पार होने से पहले अगर शुरू हो जायेगा, जुकाम हो जायेगा, त रह २ की बीमारी हो सकती है। क्योंकि जब आपके अन्दर नहीं बैठा पाते। लेकिन अब तो चित्त प्रन्दर घूम गर्मी हो जाती है, पसीना छूटता है, तब उसका कुछ रहा है, आप माँ को हृदय में बैठा सकते हैं । अब (Absorber) सोखने वाला होना चाहिए । नहीं आप चित्त को हर जगह घुमा सकते हैं । चित्त को होगा तो उसमें हवा लगेगी और यह छोटी सी चीज़ हृदय में बैठा सकते हैं । देखिये चित्त को हृदय में ले भी चक्र को नुकसान पहुँचा सकती है। क्योंकि नक्र जाइये अव चित्त का movement आपको मिल की भी देह होती है, अगर देह को कोई नुकसान ही गया जाये तो वो चक्र पर भी दिखाई देगा। इसलिए अब आप वित्त का निरोध करें और भी आसानी से धीरे २ वो चीज बढ़ती जाती है। इसलिए सहजयोग आप गहरे उतर सकते हैं । में इसका बन्धक है कि आपको जहाँ तक हो सके अन्दर कपड़ा पहनना चाहिए । । वजह यह है कि अब प्राप जिस चोज को imagination कहते है वो साक्षात् हो जायेगो साक्षात होने लगता है । पार होने से पहले अगर आप कहते कि माँ को हम हृदय में बेठाये पर आप e a imagination पके दर्द होना । अत्र अप वित्त को अन्दर ले जा सकते हैं । अब सहस्रार पर बेठाइये हमें। अँख खुली रखें और हमें सहस्रार पर बैठाइये । हर चीज में अपनी अपने पिछले जीवन में आदतों को देख ना चाहिए । जब आप देखना शुरू हैम लोगों में से कुछ ने भक्ति के तरीक इस्त माल किये भों के बीच con- centrate करने का तरीका भी बहुत लोगों ने इस्ते- करेंगे, पने को साक्षी बनायेंगे तभी आप हर चीज़ की गलती समझ पायेंगे । निरमला योग 6. thor 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt कुछ लोगों की यह आदत होती है कि आगे आगे रहना । पहले आगे खड़े रहेंगे। जब हम जायेगे तो जरूर सर उनका आगे रहेगा, कि फ़ौरन लगाये या आगे दौडेंगे । ऐसे आादमी को सोचना चाहिए, कि यह क्या बेवक्लूफ़ी है कि हम हर समय ऐसा क्यों करते हैं। ऐसे आदमी को पीछे हटना चाहिए । कोई आदमी ऐसा होगा कि पीछे हो रहेगा, सामने सकती थी । क्योंकि अपनी attention को आप आयेगा ही नहीं । काम होगा, मुंह मोड़ कर चला जायेगा। कुछ बात होगी, उधर चला जायेगा । काम टालू जिसे कहते हैं, इस तरह के भी कुछ लोग होते हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि हम काम टालू प्रदमी हैं, परमात्मा का काम है, उस मतलब यह कि अपना चित्त इधर उधर गिरना हमें करना चाहिए। इस तरह चित्त को बराबर बिखरना नहीं चाहिए, यानि spill नहीं होता बीच में रखना चाहिए । जो आपकी आदत है, उस चाहिए, कहीं छिटक नहीं जाना चाहिए। चित्त को को छुटाने का यह तरीका है कि आप दूसरी आ्ादत पकड़े रहना चाहिए। चित्त पर कन्ट्रोल होना डाले । जैसे आप काम टालू हैं तो काम करिय । अगर अति काम करते हैं तो थोड़ा कम करिये । चित्त प्रव अन्दर घुम रहा है । आप] खुद ही महसूस करेंगे कि अब चित्त अन्दर घुम रहा है । चित्त सहस्त्रार पर आ गया। अब चित्त से आप खोल सकते हैं सहस्रार । काम महे इससे पहले चित्त-निरोध की बात हो ही नहीं पकड़ नहीं पाते थे । अब attention आपके हाथ में आया है । इससे पहले कोई भी बात होती थी उसका अरथ कोई नहीं लगता था । े हैं अब मैं आप से कहती है कि बीच में रहिये । चाहिए । चित्त से ही उंगति ( growth) होती है । ० ० - श्रनुसरणीय- सदैव उदित होते सूर्य का दर्शन करना चाहिए । १. अस्त होते सूर्य को कभी नहीं देखना चाहिए । २. वाम अंग की बाधा वाले व्यक्ति को सदैव आंख खोल कर ध्यान करना चाहिए । ३. बन्धन कवच है । इसका प्रयोग सर्दैव करना चाहिए । ४. माता जी की उपस्थिति में सदैव आंख खोल कर बेठना चाहिए जब तक कि माता ५. जी स्वयं अांख बन्द करने को न कहें । निमला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt परम सत्य की खोज एवं मानवीय तर्क प -श्री माता जी हम अपनी खोजवीन के अन्तर्गत वास्तविक से परिचित नहीं है । ुभवों के सम्बन्ध में जानकारी चाहते हैं । सभी (Point of View) को नहीं जान सकते कि क्यों हम एक दूसरे के उद्देश्य अनु धार्मिक ग्रन्थों (शास्त्रों) में यह बात एक मत से कही गई है कि हमारा पुतर्जन्म होगा । हम अपने पुनर्जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो हमारे अन्दर ही विद्यमान है । सब धर्म इस सम्बन्ध में चर्चा करते हैं । हमें प्रनुभव प्राप्त करने के लिए अपने आप में अणुमात्र से तर्क एवं न्याय (logic) द्वारा मानव जीव का प्रादुर्भाव हुआ। यह क्रिया विना कोई प्रयत्न किये सरलता से सम्पन्त हो गई। हम ३्वास लेते हैं। हमारा हृदय स्पन्दन करता है। यह सब बिना प्रयास के सम्पन्न होता है। अतः प्रत्येक वस्तु का स्वाभाविक रूप से (Spontaneously) आविर्भाव होता है । यथा बीज से अंकुर का प्रस्कुटन स्वाभाविक रूप से होता है। केवल मनुष्य मात्र ही ईश्वर में विश्वास करते हैं. पशु पक्षी नहीं। हम अपने विरंतर उद्देशय में सफल नहीं हुए हैं। लोग खोज में तत्पर हैं। जागरूकता ह स्थायित्व लाना है। यह पुति अवश्य करेगी। सत्य की खोज हम बुद्धि (मस्तिष्क) द्वारा एवं तर्क द्वारा करते हैं । यह बुद्धि "सम्पूर्ण" से सम्पर्क नहीं जोड़े हुए है। वास्तव में देखा जाय तो "सम्पूर्ण' के प्रति हम भी जागरूक नहीं हैं क्योंकि हमें विपूल मात्रा में समस्याएँ घेरे हुए हैं । चिन्तनशीलता, ज्योति-रहित अन्धकार, तर्क ही खोज के लिए उत्तरदायी है। हमें अपनी तर्क- सम्मतता एवं जागरूकता भिन्न-भिन्न हैं। तर्क सम्मतता ( Rationality) सदेव अहकार के साथ मेरे ऊपर अन्ध-विश्वास न कर किन्तु साथ ही आप जोवितावस्था में रहती है। हम अहंकार को तर्क अविश्वास भी न कर, अयोंकि आप इसे तक द्वारा सम्मतता से विलग नहीं कर सकते क्योंकि हम सिद्ध हस्त (Perfect) नहीं हैं और न ही प्रभी समय आर पहुँवा है । इसमें अधिकतम परिवर्तित हो परिपक्व (Mature) हुए हैं । यदि हमारे अन्दर जायेंगे। अपने उद्देश्य की सफलता प्राप्त करेंगे । काफो परिपक्रवरता हो तो हम अणुमात्र (mole- हमारा यंत्र जो भिन्न भिन्न धरातल पर स्थापित cules) स्पन्दन (vibrations) होने का कारण है ज्योतिमय होना प्रारम्भ कर दिया है । हम ज्ञात कर सकते हैं । त्क सम्मतता से इस की खोज पृथ्वी माता के सामान्य रूप अर्थात् फलभूत से नहीं की जा सकती न ही प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं । उदाहरणार्थ हम मानव प्राणी कयों हैं ? पृथ्वो माता सुरभित एवं सुगन्धित है । पृथ्वो माता हम मान्यताओं के प्रबल समर्थक हैं । यदि हम प्रत्येक का आधार कारण धुरो है। अन्त में हम उस सना- को तक से सिद्ध करना चाहें तो हमारा तन कारण की ओर जाते हैं। वह आत्मा है अर्थात् शक्ति स्वच्छ रखनी चाहिए। मैं चाहती है कि आप सिद्ध नहीं कर सकते हैं । अब प्रफुल्लता का उपयुक्त Subtle सुटृड रूप पर पहुँचते हैं । सुदृढ (subtle) वस्तु मस्तिष्क विक्ृत हो जायेगा और लोग हमें पागल उस सर्वशक्तिमान की प्रतिच्छाया । कहेंगे । हमारी तर्क सम्मतता में अभी परिपक्वता सघन बनों में तपस्यारत वास्तविक गुप्तजन तथा मोजे ज अत्राहीम जेते महामनोषी जानते थे कि कूण्डलिनी का ऊपर उठाना कितना दुषकर कार्य नहीं आई है । यह प्रकाश-युक्त भी नहीं है । हमारे अन्दर का "अहं (1) इस तर्क सम्मतता से भली भांति परिचित है । परन्तु तर्क सम्मतता इस "अरहं निर्मला योग 8. 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt अपनी स्वयं की शक्ति उत्थान अरवस्था समभझिये । है । लोग जब इसके अधिकारी बन जाते हैं तो यह दुस रों के उत्थान के लिए सरल बन जाती है। जब की योग्यता प्राप्त करके ही तर्क शक्ति को प्रकाश- यह ऊपर केन्द्र में ब्रह्मरंध्र (सहस्रार) का भेदन करती है तो अत्म साक्षात्कार की उपलब्ध होती समूचा प्रेम श्पने अन्तर्जगत में नहीं समा सकती- है। हमें इस बात का भी ध्यान नहीं रहता कि ईसा मसीह हमारे कारण सूली पर लटका दिये गए हमारे अन्तर्जगत में क्या अ्दभुत घटना घटित हो इस को पाने के लिए और यह समझने के लिए कि रही है तथा हमने क्या उपलब्धि की है। य ह स्वाभाविक एवं सरल है परन्तु है त्वरित प्रक्रिया (mechanism) समझने के लिए और पारंगत होने (Dynamic process)। यह एक (Dimensi- के लिए जिससे सहर्रों लोगों तक प्रकाश पहेँच onal) प्रक्रिया है जो कुण्डलिनी को ऊपर उठाती है। मय बनाती है। यह सहज प्रम है। एक मां अपना हमारे पास क्या घरोहर है । इसकी यांत्रिकी यह इतना सके। उनको मानसिक, भौतिक, दैहिक, भावनात्मक एवं धार्मिक सहायता प्रदान करनी है। इस प्राश्च्यं] में एक साधारण सो सद्गृहस्थ पटनी है जिसके जनक महान उपहार को व्यर्थ में गवांना नहीं है। पास यह अनुपम शिल्प (Unique techique) है। हमारी तकशीलता (सम्मतता) हमारे माध्यम से मैं आपकी शिक्षक है। मैं आपकी अचेतना में शान्ति स्त्रोत को प्रवाहित होता देखेगी। हम इस प्रवेश करने में सक्षम है। ईसामसीह एक बढ़ई के आशीष (Bliss) का आनन्द उठायेंगे तथा इस सुपुत्र थे। उनकी माताजी बिल्कुल निरक्षर थीं । आशचर्ययुक्त घटना के साथ प्रफुल्लता प्राप्त करेंगे । श्री कृष्ण जी ग्वाल बाल थे। जब हमें कुछ ऐसी बातों का पता लगने लगता है तो यह एक प्रारंभिक ईश्वर आपको सदैव सुखी रक्खे । (Seeking a Rationality का हिन्दी अनुवाद) त्यौहार ५ मई सहस्रार दिवस बुधवार नृसिंह जयन्ती ६ मई गुरुवार ७ मई शुक्रवार बुद्ध जयन्ती देवशय एकादशी १ जुलाई गुरुवार ६ जुलाई मंगलवार २५ जुलाई रविवार गुरु पूर्णिमां नाग पंचमी ४ अगस्त बुधवार रक्षा बन्धन १२ अगस्त- गुरुवार श्री कृष्ण जन्माण्टमी श्री गणेश चतुर्दशी २२ श्रगस्त रविवार निर्मला योग 9. 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt 5 फ़ गुरू पुजा नहीं किया था कि वे अ्रवतार हैं । श्री रामच्द्र जी ने तो अपने पपको भुला ही दिया था कि वे [अव- तारी पुरुष हैं। एक तरीके से अपनी माया के व्यामोह में आवद्ध होकर सम्पूर्ण मानव बनकर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रख्यात हुए । श्री कृष्ण जी ने श्री अर्जुन को केवल महाभारत युद्ध के अवसर पर अपने अव- तरण के सम्बन्ध में बताया । हजरत अ्रब्ाहम ने एक मास पूर्व परम वन्दनीय माताजी ने श्री रुस्तम से कहा कि आगामी है। रविवार को पूरिणमा अतः पूजा अचंना की आयो- श्री जन होना चाहिए रुस्तम ने माता जी से पूछा कि आप इस अरचना को क्या संज्ञा देंगी । क्या यह गुरु पूजा है अरथवा महा- । कभी भी उद्घोषित नहीं किया कि वे अवतार हैं । यद्यपि वे उस सर्व शक्तिमान के ही अवतार थे । भुगवान दत्तात्रेय ने अपने अवतरण के विषय में किसी से भी नहीं कहा कि वे ईश्वर के अवतार हैं । सरलता से त्रिगुरणात्मक शक्ति सम्पन्न होकर संसार के पृथ प्रदर्शन हेतु मानव शरीर धारण किया। श्री मोजेज ने कभी नहीं कहा यद्यपि उनकी महत्ता का सबको भली प्रकार ज्ञान था । उन्होंने प्रकृति पर लक्ष्मी पूजा या श्री गणश पूजा-परम पूज्य काफी माताजी ने समझाया कि यह गुरु पूजा है। समय व्यतीत होने के पश्चात जब बन्दनोय माताजी भारत जाने के लिए उद्यत हुई तो श्री रुस्तम जा न पूछा कि क्रिसमस (Christmas) पूजा का आयो- जन यहीं क्यों न हो ? आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। बहुत विजय प्राप्त की फिर भी उन्होंने कभी नहीं कहा समय हुआ जब ईसामसीह बाल्यावस्था में ही थे तो उन्होंने घर्मशास्त्र में पढ़ा और घोषण की कि वे अवतार है अर उनका अवतरण संसार के कल्याण, ही रहता, किसी को भी भान नहीं होता। यदि उस संरक्षण एवं मंगल के लिये हुआ है। उनका विश्वास था कि संरक्षक अवश्य अवतरित होगा। बहुत दिन व्यतीत हुए, आज के ही दिन अर्थात् रविवार को "उन्होंने" घोषणा की कि वे उद्घारक कि वे अवतार हैं। ईसा के समय में घोषणा की आवश्यकता प्रतीत हुई, नहीं तो जनता अंधकार में समय ईसा प्रभु को पहचान लिया गया होता तो कोई समस्या ही नहीं होती परन्तु मानव प्राणी का और अधिक कल्याण एवं उत्थान आवश्यक था- किसी न किसी को तो विराट में आज्ञाचक्र को पार के रूप में अवतरित हुए हैं। शप्रतः इस दिन को केरना था, यहा कारण था कि इस धरा पर मुहान अवतरण रविवार की संज्ञा प्रदान की गई। उनको इस संसार में अल्प समय ही विताना था अतः ईसा का अवतरण हुआ । यह एक विस्मयकारो बात है कि जीवन रूपी बृक्ष में जड़े तना उभारती हैं, तना शाखाओों को जन्म देकर आगे बढ़ाता है, शाखाओं में पल्लब कुसुम प्रस्फुटित होते हैं । जिनको जड़ों का ज्ञान है उनको तना जानने की इच्छा नहीं होती । जो तना अल्पायु में ही "उन्हें" धोषणा करनी पड़ी कि उनका अवतरण हुआा है। है । यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि इससे पूर्व किसी भी अवतार ने सार्वजनिक रूप से घोषित निमला योग 10 भोec 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt पोत तट की ओर आकर्षित होते हैं। इस गृह्थी को सुलझाने हेतु तटवर्ती सघन बन की खोजबीन की गई तो उन्हें एक विशाल मंदिर दृष्टि गोचर हुआ जिसके शिखर कलश पर एक चुम्बक का विशाल जानते हैं उन्हें कुसुम पल्लव आदि को पहचानने की आवश्यकता नहीं होती यही विचित्र मानव स्वभाव है । मैंने स्वयं अपने सम्वन्ध में कभी ऐसा कुछ नहीं खण्ड रखा था जो जलयानों को अपनी आकर्षण कहा क्योंकि मानव समाज ने अपने अन्दर ईसा के परिधि में प्राने पर अपनी ओर खोच लेता था । समय से भी अधिक अहंकार को स मेट कर भर लिया है। आप किसी पर भी दोषारोपण कर सकते ज्ञान की कसौटी द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हैं । आप इसे औद्योगिक क्रांति का नाम भी दे सकते पूज्य माता जी अवश्य कूछ विशिष्ट उपलब्ध शक्ति है क्योंकि आप प्रकृति से बिछुड़ कर दूर हो गए हैं सम्पन्न हैं परंतु शास्त्रों एवं [अन्य धार्मिक ग्रन्थों में आप इसे कुछ भी कह सकते हैं। मानव समाज ने तद्विषयक अवतरण के सम्बंध में वास्तविकता के सारे सम्पर्क खो दिये हैं वे बनावटी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हआा कि ऐसी प्रभुति सूप से परिचायित (identified) होते हैं और उन्हें आत्मा इस पुण्य धरा पर अवतरण कर धन्य करंगी बृहत वास्तविकता को मान्यता देना असम्भव प्रतीत जो अपनी दृष्टिपात मात्र से एवं संकल्प शक्ति द्वारा होता है। यही कारण है कि मैने अपने विषय में ही कुण्डलिनी जागरण एवं उत्थान की प्रक्रिया कभी एक शब्द भी नहीं कहा जब तक कि कतिपय सम्पन्न करेगी तथा अपने शिष्य गण से भी ज्ञानो मानो सन्त जनों ने मे रे सम्बन्ध में घोषित नहीं करायेंगी । हिमालय स्थित सघन वन वासो, किया । लोग कौतुहल से स्तम्भित रह गये कि कुण्ड- निष्कलांत, निष्ठान्त सन्त महात्मा समुदाय इस लिनी जागरण जैसे जटिल एवं दुष्कर कार्य को द्रुत अवतरण से पूर्ण रूप से अवगत हैं । वे जन साधारण गति से किस प्रकार संचालित किया गवा और से कहीं अधिक प्रज्ञावान है जिनके सम्मुख हम सब अपनी उपस्थिति में ही ओरों से भी कराया। अतः कुछ निरंतर चिंतनशील व्यक्ति अपने अतुभवी भी सकेत उन्हें कुछ अबोध शिशु की नाई हैं । वे वास्तव में महान है । परन्तु आज की दिन महान है जब "मैं घोषणा कर रही हैं कि "मैं ही वह हैं जिसे मानवता का भारतवर्ष में एक अति प्राचीन अनजाना मंदिर है । लोगों को विदित हुआ कि जलपोत समुद्र में एक विशिष्ट स्थान पर आते ही बरबस तट की ओर उद्धार करना है। उसे बचाना है "मैं ही आदि ख्खिचे चले आते और उस अ्रकर्षण विदू पर रुक शक्ति हैं । जो सब माताओं की जननी होने के नाते जाते थे । दुगनी शक्ति लगाकर खींचने से भी वे जगतू जननी एवं शक्ति भी है । मैं" ईश्वर की अपने उस स्थान से टस से मस न होते थे । इसका कारण नाविकों को अज्ञात हो रहा। समुद्र की गह- उद्धार हेतु अवतार लिया है । "मुझे" पूर्ण विश्वास राई सम्बंधी कुछ त्रुटिं का ही अनुमान लगा कर है कि "मैं" अपने प्यार, घेयं और अद्भुत शक्ति से छोड़ देते थे । परन्तु जब सब के सब पोत उस विशिष्ट मानव मात्र का कल्याण करने में सक्षम होऊगी । त्रिदू से तट को प्रोर ग्राकर्षित होकर रखि चे चले आने लगे तो वे सब विस्मित हुए और सोचने को बाध्य हुए कि कुछ न कुछ रहस्य अवश्य है। तब के लिए जन्म लिया है किन्तु इस समय "मैं अपने उस रहस्य का उद्घाटन करने को लालसा उनके पूर्ण रूप में एवं सभी शक्तियों के साथ आई है । मन में उत्पन्न हुई कि जलपोत को होता क्या है कि अबकी मेरा अवतरण केवल मोक्ष देने के लिए ही पावनतम इच्छा शक्ति हैं, पृथ्वी पर मानव मात्र के मैं ही वह है जिसने बार बार जगत के उद्धार निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt ईश्वर आपको सर्दैव सुखी समृद्ध रखें (पूंज्यं माता जी के सान्निध्य में आकर) आपने क्या पाया क्या उपलब्धि की) और [आप] कितने शक्ति संपन्न हैं अर्थात कितनी शक्तियां बटोर कर रख छोड़ी हैं। नहीं अपितु उद्धार के साथ ही स्वर्गादिक रांज्य भी देना है जिसमें अरनन्द, वात्सल्य एवं अराशीष ही हैं जिसे परम पिता परमेश्वर देने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं । पिछले दिन मैंने सम्भावोपाय और शाक्तोपाय. के विषय पर चर्चा की थी-ये ही दो उपाय ऐसे हैं उपरोक्त शब्द वर्तमान में सहजयोगियो तक हो सीमित रहना चाहिए । कि जिनके द्वारा मानव समाज का शुद्धिकरण किया जा सकता है। एक वह है जिसके द्वारा आप इने गिने ही मनुष्यों को शुद्ध कर सकते हैं अप उनमें से कुछ का चयन कीजिये और उनका शुद्धिकरण करते जाईये जब तक कि उनका चित्त पूर्ण रूप से गुद्ध न हो जाये । पंच तत्वों का शुद्धिकरण होते ही कुण्डलिनी का उत्थान होगा और लोग 'पार" हो जायेंगे-यह सम्भावोपाय कहलाता है जिसमें पका व्यक्तित्व पूर्णतया निखर जाता है । आज गुरु पूजा है मेरी पूजा नहीं यह गुरुओं के रूप में आपकी पूजा है । क्योंकि मैं आप सब को गुरुतत्व प्रदान कर रही हैं। और आज ही मैं बताऊंगी कि मैंने आप पर क्या न्योछावर किया है तथा आपके आभ्यन्तर में कितनी शक्ति उडेल कर भर दी है ।- आप में से कतिपय ऐसे भी महानुभाव हैं जिन्होंने अभी तक भी मुझे पूर्ण रूप से नहीं पहि- चाना है -यह "मेरी घोषणा उनके अन्दर मान्यता की जागृति उत्पन्न करने में समर्थ होगी। बिना मान्यता प्राप्त किये आ्रप क्रीड़ा कौतुक नहीं बिना क्रीडा के [आप अपने अन्दर । विश्वास के अभाव दूसरा शाक्तोपाय जिसमें श्राप की कुण्डलिनी उत्थान की शक्ति विद्यमान है । चाहे परिस्थिति जेसी भी हो अपनी प्रक्रिया सम्पन्न करेगी और फिर शुद्धिकरण की प्रक्रिया की देख रेख में तत्पर होगी । सहजयोग में दूसरे उपाय को ही अपनाया गया है क्योंकि प्रव सम्भावोपाय की प्रक्रिया को उपयोग में लाने का समय ही नहीं रह गया है। यह असंभव सा प्रतीत होता है । शाक्तोपाय में साधारणतया शक्तिपात किया जाता है । शक्तिपात की प्रक्रिया में दूसरे के ऊपर अपनी शक्ति प्रतिबिम्ब के रूप में आरोपित की जाती है । अथवा जेसा कि हम कहते भ्रपनी देख सकते । विश्वास नहीं पदा कर सकते में आप गुरु नहीं बन सकते । गुरु पद प्राप्त किये बिना आप परोपकार नहीं कर सकते । विना दूसरों की सहायता किये आप किसी प्रकार भी आनन्द, प्रसन्नता, प्रफुल्लता प्राप्त नहींीं कर सकते । श्र खला तोड़ना सरल है परन्तु प्रपको एक के फश्चात दूसरी कड़ी जोड़कर थ खला का निर्माण कुण्डलिनी की शक्ति दूसरे की कुण्डलिनी की शक्ति करना है। यही आपका इष्ट है । आप सुदृढ़ विश्वासी, प्रसन्न एवं प्रफुल्ल चित्तयुक्त और ानन्दित रहें । मेरी अनिष्ट से रक्षा करेगी परिपोषण करेगा, मेरी सौजन्य प्रकृति आपके लिनी की समस्याओं का चयन किया जायेगा अतः ओभ्यन्तर को शान्ति प्रर आनन्द से परिपूरित हैं कि हम पर प्रकाश नि्झर हो रहा है । पर आरोपित करते हैं और करमानुसार कुण्ड लिनी को ऊपर की ओर अग्रसर करते हैं । अपूर्व शक्ति आपकी हर मेरा दिवप् प्रम आपका मानव प्रकृति की विचित्रता के कारण श्रम- साध्य उपाय अपना लिए गये हैं। प्रथम तो कुण्ड- पके इतिहास की जानकारी करेंगे यथा आपके माता पिता के संस्कार केसे हैं तथा आ्रप किस कर देगी। निर्मला योग 12 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt प्रकार के स्वप्न देखते हैं। वे आ्ापका पूर्ण रूपेण गुरु की सेवा तन, मन, घन से करनी पड़ती है खोजपूर्ण विश्लेषण करेंगे फिर वे आपसे यह जान- उनकी प्रसन्नता के लिए पत्र पुष्प, फल आदि से कारी लेंगे कि आप किस-२ प्रकार के रोगों से अर्चन पूजन करना आवश्यक है । गुरुजी की देख क्रान्त हुए हैं । यदि किसी की आंख में कोई रोग भाल (सेवा) करना शिष्य का परम करतंव्य है। हो अथवा नासिका, कान, पेट में पीड़ा हो तो वे सद्गुरुओं का आपके घन दौलत आदि अन्य बस्तुओं इसके निदान एवं वचाव का उपक्रम करंगे । सो से जिन्हें आप उन्हें [अपण करते हैं कोई लगाव नहीं आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि हम में से कितने होता-निस्पृहता का भाव रहता है। इसी कारण इस श्रेणी (Category) में फिट बेठ गे और फिर से सामर्थ्यानुसार कुछ अन्य धन राशि गुरुजी को वे पूछेंगे कि आपने किस भांति का जीवन व्यतीत अर्पण करनी आवश्यक प्रतीत होती है । बहुत से किया है और किस प्रकार के स्वरभाव के आपके पाखण्डी गुरु जन का दक्षिरणा का दुरुपयोग अपवाद माता पिता हैं । अधिकतर ये सब यात उन जिज्ञासु- स्वरूप है। परन्तु यह तो सर्वमान्य सत्य है कि ओं के लिए है जो अल्पायु में ही गुरु जाकर शक्तिपात की प्राप्ति करना चाहते थे । के सान्निध्य में गुरु जन को गृहस्थ जीवन व्यतीत करना होता है अतः जीवन यापन हेतु दक्षिणा के रूप में कुछ न है। कुछ बन राशि वांछनीय ही नहीं इलाधनीय परन्तु आज के युग में दक्षिणा एक अपवाद स्वरूप अव मेरी उपस्थिति से यह बहुत ही सरल हो गया है। यह सत्य तो आप सब को भेली भाति है द्ोर चरम सीमा का उल्लंघन कर गई है। लोगों विदित हो ही गया है शक्तिपात में आपको शक्ति का पात करना है अर्थात आपको अपना प्रकाश दूसरों पर डालना है-शक्ति का अर्थ है बल और पात गिराना-प्रब आपकी शक्ति जिसके कुण्डलिनी के ऊपर गिरेगी बह उठेगी पहिले यह एक महान विशद्ध स्थिर चित्त अरथात जिसका चित्त सांसारिक कठिन कार्य था । उनकी धारणा थी कि केवल वीत- भोग पदार्थों से कोई लगाव नहीं रखता और लोभ रागी सन्त ही कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं । वोतरागी वह महात्मा है जिसने राग पर विजय प्राप्त कर ली है । जो संसार की मोह माया से परि- वजित है अर्थात जो राग द्वेषादि दोषों से मुक्त है- वही वीतरागी है और कृण्डलिनी जागरण करा ने इसे धंधा बना लिया है । गुरु जन इस स्तर के होने चाहिए कि वह शिष्य गण की कुण्डलिनी जागृत कर सके तथा वीतरागी, 1 मोह प्रादि द्वन्दों का अंशमात्र भी शेष नहीं रह जाता, जिनमें केवल क्षमा प्रदान करने के और कोई प्रलोभन नहीं रहता । ऐसे ही सन्त वीतरागी कहा जाता है और वही कुण्डलिनी उत्थान में समर्थ हैं। ऐसे भद्र सत्पुरुषों द्वारा ही कुण्डलिनी पर अधिकार (अधिकृत आदेश) किया जा सकता है। अन्यथा नहीं। को पुरुष सकता है। अतः सर्व प्रथम दोक्षा दी जानी आवश्यक है । यह आपको सब से पहिले दी जा चुको है, जब कि शप माता जी की शरण में आये । अब आप किये दीक्षा ली । तदनन्तर महा दीक्षा भी प्राप्त कर विचार कीजिये यह सब कैसे घटित हुप्रा। ली। प्रथम दोक्षा हैं. वह तो ठीक है परन्तु यह इतनी सारी घटनाएं प्रचुर मात्रा में टेलिसको- पिकली घटित हुई जिसका कि आप को मान आपको नाम मंत्र दिया जाता है (साधारणतया गुमान भी नहीं हुआ। दोक्षा प्राप्ति हेतु इच्छुक इसके अन्तर्गत एक ही "नाम" दिया जाता है) । अव ४पक्ति को वहुत सारा कण्ट वहन करना पड़ता है। यह मंत्र भी, यदि गुरुजी जानते हों तो निकाल बाहर प्रथम तो आपने गुरुजी से बिना परिचय प्राप्त 1ा दूसरी महा दीक्षा क्या है ? महा दोक्षा वह है जिसमें निमंला योग 13 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt कर विस्मृति के गर्भ में धकेल दिया जाता है। इस का मन्तव्य है बहुत से गुरु भी नहीं जानते कि शिष्य का कौन सा चक्र बाधाग्रस्त है अथवा पकड़ में है । इसकी कल्पना कीजिए। हैं। मान लो प्रापके पेट में वेदना है तो वे चक्कर पर चक्कर लगाते रहेगे और अंत में इस पेट वेदना के लिए मंत्र खोज निकालगे । वे वेज्ञानिकों की नाई प्रत्यक्ष रूप से तो खोज नहीं कर पाते । वैज्ञा- निक किस प्रकार से अनुसंधान करते हैं इसका वे आपको जन्मपत्री का अवलोकन करंगे और आपसे प्रश्न करेंगे कि आप उनके पास किस घड़ी में आये। आ ज प्राप गुरु के पास किस-२ समय आये। आापकी जन्मपत्री क्या है। आपकी क्या-२ कठिनाईयां होनी चाहिये। प्रापका जन्म किस नक्षत्र में हुआ। [आपके माता विता के नाम क्या-२ हैं । इस का भी एक प्रशस्त विज्ञान था उनकी गणना का गुणके के ख गे से प्रारम्भ होता था और एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच जाते थे जहां पर उनको शब्द मिल जाते थे। प्रथम द्वितोय तुतीय उसी वरणं के तदनन्तर वे मनन अध्ययन में तल्लीन हो जाते थे। यह एक क देखिये । कल्पना करो कि आप किसी डाक्टर नमूना के पास जाते हैं। वह आपकी आख को निकाल कर धोयेगा और फिर वापस लगा देंगा और कहेगा आपकी अखि ठीक है। आपके दांत निकालेगा, बनावटी दांत लगायेगा फिर कहेगा आपके दांत ठीक हैं फिर आपके कान की बारी हैं वह उसे निकालेगा उसमें कुछ और कहेगा कि यह विल्कुल ठीक है । आपका हृदय निकाल लेगा उसका परीक्षण करेगा और दूसरा बनावटी नया यंत्र लगायेंगा हं लगा देगा= यह इस प्रकार से है । इसी प्रकार वे भी किया करते थे व्योंकि वे अंधकार में विचरण करते थे । जैसा कि आपको समस्त चक्रों के सम्बंध में ज्ञान है और प्रापको इस तथ्य की भी जानकारी महान एवं गहन शास्त्र है जिसके अध्ययन द्वारा ज्ञात करते थे कि शिष्य का कौन सा चक्र पकड़ा गया है तत्पश्चात वे आपको "नाम" देते थे उदा- हरणार्थ आपको "राम नाम प्राप्त हआ अब अाप को राम नाम का निरन्तर जप करना पड़ेगा जब तक कि आपका हृदय शुद्ध न हो जाये-परंतु यह उपरोक्त ंझटों में पड़ने के पश्चात ही प्राप्त होता था इसमें दो वर्ष, तीन वर्ष दो जीवन अ्रथवा संकड़ों जीवन भर अरप केवल राम नाम मंत्र का है कि कीन सा चक पकड़ में आ गया है । अव आप कल्पना कीजिये कि अपने कितनी महा, महा, महा दीक्षा प्राप्त की है । प्रथम दीक्षा वह है जिस दिन आपकी कुण्डलिनी जागृत होकर ऊपर अग्रसर हुई तथा [आप "पार" हो गये। यह उनके वश के बाहर की बात है । वे एक श्वास से बात नहीं कर सकते । आप को सारे समय हवा में उल्टा लटका दिया जाता है जैसे रात्रि में चमगादड़ ऊपर टांग तो नीचे सिर किये रहता है । फिर वे अन्य तथ्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण करंगे कि अपके मित्रगण अथवा संगति कैसी है। आप किस प्रकृति के मनुष्यों को ओर आकर्षित होते हैं । आपका स्वभाव परखा जायेगा जिससे वे निर्णय लगे तदनन्तर आपको दूसरा मंत्र प्रदान करंगे। आप इन मंत्रों का लगातार सामूहिक रूप से उच्चारण करते रहेंगे। आप अपनी अन्य अनिवारय आवश्यक- ताओं का निराकरण कर उन मंत्रों का निरन्तर ही जप करते जाइये । परन्तु किया जाना चाहिए सुचारु रूप से तथा ग्रह दशा का विचार विमश्श अवश्य होता रहना चाहिए इसमें आपका घर, कुट्म्ब आदि के बारे में भी विचवार विमर्श के पइचात एक इण्ट विदु पर आते थे कि चक्र कहां पकड़ में है। अथ प्राप कल्पना कीजये चार चक्र पकड़े गये हैं । क्योंकि आप वही देखते हैं जो आपकी जन्मपत्री में लिखा है । अर्थात आपको क्या शारीरिक कष्ट हैं तथा भविष्य में क्या-२ आपत्तिया श्राने वाली हैं। इन सब शारीरिक व्या- घियों का पता वे जन्मपत्री प्रथवा जन्म कूण्डली देख भाल कर लगा लेते थे क्रि अपको क्या-२ व्याधियां कि प्रापके । निर्मला योग 14 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt नहीं है। आप भौतिक वादी हैं । प्रहंकार युक्त हैं । आप अपनी आत्मा के प्रति सजग नहीं हैं। आप अपनी [आत्मा को हानि पहुँचाने का कार्यं कर रहे हैं। आप मदोन्मत्त हैं। मंदिरा पान कर आप अपनी आत्मा को कलुषित कर रहे हैं यह तथ्य आप स्वी- कारते भी नहीं आप यह भी नहीं कहेंगे कि इस कृत्य के लिए क्षमा याचना करनी है वरन आप अपना जाप करते रहेंगे जब तक कि उनमें सफलता न प्राप्त हो जाये तब वे कहेंगे कि आपको मंत्र सिद्ध हो गया है। इसका अर्थ यह है कि इस सिद्ध मंत्र का प्रयोग आप दूसरों पर कर सकते हैं। उदा- हरणार्थ आप केत्रल राम नाम मंत्र का ही (जो आप को दीक्षा द्वारा प्राप्त हुआ है) प्रयोग कर सके गे-कल्पना कीजिये । ब हैथ फला कर लंदन वासियों के लिए हृदय वाम भाग की बाधा निवारण हेतु क्षमा याचना करगे- आपकी उपलब्धियां क्या हैं। क्या ग्राप पार हो गये। पार" होने का मतलब है कि आप सब] चक्रों के ज्ञाता है कि कौन सा मंत्र किस चक्र को ठीक करेगा। आप स्वयं भी तत्सम मंत्र रचना कर उन्हें तत्कील हैी क्षमा प्राप्त हो गई। वे अधिका- धिक मदिरा का प्रयोग करेंगे और अपने हृदय की सर्वनाश कर लेगे सकते हैं। आपके अन्दर इतनी शक्ति भी है कि । आप समस्त चक्रों का ज्ञान प्राप्त कर ल कि उनको किस सहायता की आवश्यकता है । आप में दूसरे जागृत करने की तथा उसके मार्ग में आने वाली मनुष्यों की कुण्डलिनी जागृत करने की शक्ति विद्य- विध्न वाघाओं पर विजय प्राप्त करने की कला मान है । यदि किसी की कुण्डलिनी सहस्रार से नौचे जान ली है । यदि किसी व्यक्ति का आज्ञा चक्र की ओर फिसलने लगती है तो आ्राप में इतनी शक्ति बाधायुक्त है तो गुरु महाराज उसे ठीक करने में है कि आप उसे पुनः स्थित कर दें । आप में दूसरे हिचकिचायेंगे क्योंकि उनको भय है कि कहीं उनका क्यक्तियों के चक्र ठीक करने की शक्ति भी हैं । आप बन्धन दवारा चक्रों को स्थित (Fix) भी कर सकते हैं । प्राप "बंधन" द्वारा ही अपनी स्वयं की है फलित यानी प्रभावशाली है । [आपका] प्रत्येक बाधाओं से त्राण (संरक्षण) भी पा सकते हैं । आप मैं यह भी शक्ति है कि आप अपने चित्त को किसी देवता का स्मरण कीजिये आपका मंत्र तत्काल फल विशेष स्थान की ओर लगा सकते है जहां पर आप देगा। क्योंकि वह स्वयं सिद्ध मंत्र है। एक बन्डल की समझे कि किसी व्यक्ति विशेष को अरापकी सहायता भाति इसके अन्दर सभी कुछ तो भरा है । इसे अना- आपने सब शक्तियां एकत्र कर ली हैं कुण्डलिनी आज्ञा चक्र भी पकड़ में न आ जाये । अतः उन्हें मंत्र सिद्धि की अवश्यकता पड्ती है। सिद्ध होने का अर्थ मंत्र तात्कालिक प्रभाव रखता है। आप अमुक की आवश्यकता है। आप में सामूहिक रूप से समस्या बृत कर प्राप्त कीजिये । यदि किसी का कोई चक्र निदान एवं निवारण करने की शकिति भी है। यथा पकड़ में आ गया है आप मंत्रोच्वार कीजिये-सब लंदन में क्या गड़बड़ है (आप अने हाथ लंदन की कुछ ठीक हो जायेगा क्योंकि आपको सब मंत्रों का ओर फेलाकर मालूम कर सकते हैं) हृदय का बाम भाग एवं दक्षिण भाग-दक्षिण स्त्राधिष्ठान आदि। अव आप के पास भाषा है इसकी व्याख्या करने की । भी है क्योंकि इसे दूसरे नहीं जान सकते । यदि आप आपने हृदय का वाम भाग कहकर-किसी को भी नामोच्चार भी नहीं करते तो भी संकेत मात्र से काम हानि नहीं पहुँचाई। लंदन वासियों के वाम हृदय चल सकता है । इस तथ्य की सब को जानकारी है के पकड़ में आने का क्या मतल व है इसका अर्थ कि मामला क्या है, कहां जाना है और क्या करना हआ कि लंदनवासी अपनी आत्मा के विपरीत जा है यह इतना गोपनीय होने पर भी परस्पर ज्ञान रहे हैं। आप का अपनी आत्मा से कोई लगाव ही सुलभ है। हमारी विचार साम्य की एकरूपकता ज्ञान है। आप यह भी जानते हैं कि यह क्या है? और उस विषय का आपको पूर्ण ज्ञान है। यह गुप्त ज्ञान ा. 15 निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt का अवलोकन कीजिये जो हम सब के मध्य वर्तमान है। हम जानते हैं कि क्या, क्या है परन्तु हम अपने जो पार तो हो गये हैं परन्तु वहां हैं नहीं। इन दोनों आप को बुरा महसूस नहीं करते ना ही दूस रों को में क्या अन्तर है । अत्यन्त साधारण सा अन्तर है । बुरा कहते हैं। यदि कहा जाये कि आप में बड़ा भारी अ्हंकार है तो कोई बुरा नहीं करेगा । क्राइस्ट पहिचाना है अथवा मान्यता नहीं प्रदान की वे मुक्ति के समय में अहंकार का नाम लेना भी असम्भव था। अ कह सकते हैं और आप अपनी इगो एवं मान्यता देनी रावश्यक है । एक बड़ा सुन्दर उदा- सुपर इगो को देख भी सकते हैं । ये ही नहीं वरन हरण शिरडी के सांई नाथ के शिष्यों का है यद्यपि बहुत सी व्यर्थ अनर्गल प्रत्येक वस्तु दिखाई देती है । वे विद्यमान (सशरीर) नहीं परन्तु वे उनमे अरटूट ऐसे लोगों का समूह अभी भी विद्यमान है कि मान्यता एवं श्रद्धा का अभाव । जिन्होंने मुझे नहीं प्राप्त न कर सकंगे (वे चक्कर ही काटते रहेंगे) सो श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं। अव व ह कहां हैं। वे वर्तमान के अवतार में श्रद्धा विश्वास नहीं रखते । आप यह भी देख सकते हैं कि अरमुक ब्यक्ति सम्पन्न है । यथा जन्म जात पार व्यक्ति । परन्तु वह वे मेरे में ही निष्ठा रखते हैं। वे राम के प्रति निष्ठा शक्ति सम्पन्न होते हुए भी कुण्डलिनी उत्थान के सम्बंध में एक शब्द भी नहीं जानता अस्तु कु ड- बन्धूुओं की समस्या यही है कि वे मेरा तुलनात्मक लिनी जागृत नहीं कर सकता । वह सहजयोग का आश्रय लिए विना कुछंडलिनी जागरण प्रक्रिया सम्पन्न नहीं कर सकता। ये जन्म जात पार व्यक्ति को जो अ्पने आप को सनातन समझते हैं, इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि उन्हें सहजयोगी बनना है । अन्यथा वे क्रियाबादी नहीं हो सकते क्रियाशील हो रहेंगे। रखते हैं। उनकी श्रद्धा क्राइस्ट में है बहुत से ईसाई सम्बंध ईसा से जोड़ते हैं। यदि वे मेरा सम्वंध ईसा अथवा मोजेज से नहीं जोड़ते हैं तो वे सहजयोग में नहीं आते। आपको वर्तमान में रहना है। आप मेरे सम्बंध में अपने मानसिक उद्वेग के अनुरूप धारणा नहीं बना सकते । क्योंकि आ्रपकी धारणा सीमावद्ध है । कल्पना करो कि आपका जन्म यहां हुआ तो आप यह सब वस्तुएँ (तथ्य) आपके पास आभ्यन्तर में विद्धमान हैं । सब देवताओं का आपको पूरण ज्ञान ईसाई होंगे यदि आरप भारत में जन्मे हैं तो आप है । आप यह भी जानते हैं कि वे कब रुष्ट हो जाते हिन्दु होगे हैं। यदि पूछेंगे कि पाप क्या है तब आप कहेंगे यह मत करो। आप कोई प्रपच रचने का प्रयत्न कीजिये जाती है और आप इस बुटि का तत्काल ही आभास आप सफल होंगे । क्योंकि अप की !मा" का आप पर अनिवार्य "वंधन" है। यदि आप मदिरा पान करेंगे तो शप को अकरणीय कार्य करेंगे तो आपका आमाशय खराब स्थायित्व एवं स्थिरता प्राप्त नहीं की है और उनके हो जायेगा। यदि आप सहजयोग से अ्पने आपको पास पूर्ण शक्ति का भी अभाव है ऐसे पुरुष मान्यता, वंचित करना चाहेगे तो आप ऐसा नहीं कर सकते । श्रद्धा एवं निष्ठा प्राप्त नहीं कर सकते । वे इस हालांकि अप को इसका आभास मा भी नहीं है, फिर भी अप के आभ्यन्तर में सहजयोग का कर्षण (ललक) विद्यमान है । । यदि आपका जन्म चीन में हुआ है तो आप चीनी होंगे। आप कुछ भी हो सकते हैं। अतः [आपकी श्रुटिपूर्णं परिचय प्रणाली क्रियाशील हो कहा जाये कि पाप मत करो तो आप पा लेंगे कि आपकी चैतन्य लहरियां (Vibrations) स्वतः बन्द हो जायेगी। मानव समुदाय का वह बग जो मध्य बर्ती हैं तथा जिन्होंने सहजयोग में पूर्ण वमन होगा। यदि आप निष्ठा को प्राप्त न करने में अपना दम्भ प्रकट करते हैं । यह महान मूखता है । जैसे ही आप श्रद्धा युक्त मान्यता देगे आपकी चैतन्य लहरियां स्वत: बहने निर्मला योग 16 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt लगगी- ऐसे मनुष्यों का वर्ग दूसरे गुरुओं के पास कि हम कौन हैं ( मैं कीन हैं क्या हैँ) तो तत्काल ही से भटक कर आता है । जब ऐसे पुरुष सहजयोग में ये सब दूर्गुरण एवं त्रटियां दूर भाग पदापण करते हैं तो एक समस्या उत्पन्न हो जाती आप तो सामना करना ही नहीं चाहते । यही कारण हैं । वे मेरी अहेतुकि कृपा से पार तो हो जाते हैं (चाहे केस कसा भी हो सब पार हो जाते हैं) अभी नहीं करते पिछले दिनों यहां एक वेश्या आई और "पार हो का अनुभव रहता है वे इस सम्बन्ध में अधिक सोच गई। सहजयोग अपनी रस्सी ढीली छोड़ देता है। विचार नहीं करते । यदि वे अ्रधिक सोच विचार आप अपनी आनन्द लहरियों को सहजता से विनष्ट नहीं कर सकते यदि अ्रपने सूचारु रूप से नियमा- नुसार प्राप्त किया हो तो-सहजयोग में प्रकाश में प्रवेश के पश्चात आप अपने अवगुरी एवं त्र, टिया प्रथात उन्हें ग्रपने स्वयं को स्वयं ही देखना पड़गा । का स्वतः अवलोकन करने लगते हैं । यदि श्रप सहजयोग को नकारना चाहते हैं तो ऐसी दशा में कुछ व्यक्तियों को तो चुभन, जलन महसूस होने लगती है साधारणतया कुछ ही ऐसे होते है जो प्रकृतिस्थ रहते हैं। कम्पन आरम्भ हो जाती है। कूछ में विशेष प्रकार की टेढ़ी मेढ़ी एंठन (Contortions) प्रारम्भ हो इन सब बाधाओं के लिए वे सहजयोग पर दोषा- जाती है । आप में से बहुतों ने देखा होगा कि कुछ मेरे दर्शन करते ही महती उष्णता का अनुभव करने लगते हैं। [अथवा उनके आमाशय में भयंकर दोषारोपण कर रहे हैं। आप उसी पर दोष मंढ पोडा उठती है स्थित होते हैं तो आप अपने स्वयं के सम्मूख प्रस्तुत को ही दोषी ठहरा रहे हैं। यह बेहतर है कि आप हो जाते हैं । परन्तु आप अपने स्वयं का सामना अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं खोज लें और करना पसन्द नहीं करते । तत्व की बात यह है कि अपनी कमजोरियों का निराकरण करें। आप अपने जिन्होंने सहजयोग में स्थायित्व प्राप्त नहीं किया है स्वयं पर कृपा कर जिससे आप इन भयानक सांप वे अपने स्वयं के सामने आने से ही कतराते हैं । यदि वे स्वयं का स्वयं ही सामना कर तो वे शीघ्र ही प्रपने अन्दर सुधार ला सकंगे क्योकि प्रकाश विशुद्ध कर लें । प्रकाश का शुभागमन हो गया है। वहां विद्यमान है । आप श्रपने अवगुरा एवं त्रु टियों के साथ परिचय (ldentify) मत की जिये । आप डाक्टर हैं-आप में प्रकाश है-अराप शल्य क्रिया (Operation) जानते हैं शल्य क्रिया कीजिये क्यों- कि आप इस शल्य प्रक्रिया में सिद्धहस्त हो गए हैं । हूँ जायेगी परन्तु है कि पार हुए व्यक्ति भी सहजयोग में आना पसन्द । जिनको शोतल मन्द सुगन्धित वयार करें तो उन्हें अपने अरहंकार (Ego) को त्यागना पड़ता है जिसे उन्होंने विगत कई वर्षो से संजोया हैं । उन्हें आत्म निरीक्षण करना ही पड़गा हुआ वे कहते सूने जाते हैं कि मेरे अन्दर कुछ भी सुधार नहीं हुआ है। चुभन सी हो रही है। सारे शरीर में सुइयों की सी चुभन का अनुभव हो रहा है । यह कसे हो सकता है। यह मुझे सहायती नहीं कर रहा हैं । सहजयोग मुझे पीछे की ओर धकेल रहा है । कुछ में मेरे सम्मुख आते ही रोपण करेंगे उन लोगों को नहीं देखेंगे जिन्होंने उन्नत अवस्था प्रप्त केर ली है। आप किस पर रहे हैं जो आपकी रक्षा करेगा-आप अपने रक्षक । जब आप प्रकाश के सम्मूख उप- विच्छू (डक मारने वाले जन्तुओं से) जो आपके इर्द गिर्द मंडरा रहे हैं छुटकारा पा सके । अपने को इस प्रकाश द्वारा आप सत्यान्वेषरण का प्रयास कर । तब आपकी अपरिचितता (Misidentification) का निवारण होगा और वास्तविक परिचय ( ldentification) प्राप्त होगा और स्थापित होगा। किसो अन्य प्रकार से नहीं होगा । अतः श्राप को अपने स्वयं का सामना करने की शिक्षा यदि आप यह दुढ़ निश्चय कर लें कि हमें अपने स्वयं का सामना करना ही है कि हम देखें ग्रहण करनी चाहिए। कभी भी औचित्य सिद्ध न करें । 1 17 निर्मला योग क ট 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt व्यक्तियों की अपने पुत्र, श्राता, स्वी अरथवा कि उन्होंने यह विचार (ldea) कहां से पाया- कुछ पति की अनरगल सराहना करने की आदत होती है कदाचित तथाकथित वैज्ञानिकों, मनोवज्ञानिकों और उसका औचित्य (Justification) भी सिद्ध अथवा प्रभृति विद्वानों ने उन्हें यह विचार प्रदान करते हैं । इस भांति आप उनकी कोई सहायता नहीं किया है । वे सोचते हैं कि हम कह देंगे कि अमुक कर रहे हैं । बाधा युक्त व्यक्तियों की एक जुट होकर बात तर्क सम्मत है । परन्तु (मिल जुलकर) कार्य करने की प्रकृति भी होती उन्मूलन नहीं किया है। आप अभी केवल अबोध है। सदेव दो बाधा युक्त पुरुष, दिखावे के लिए, एकजुट होकर कार्य प्रवृत हो जायेगे | आश्चर्य तो इस बात का है कि इन लोगों ने अपना बस्तु का विश्लेषण प्रारम्भ कर देते हैं कि यह वस्तु संघ यहां संगठित नहीं किया है नहीं तो मेरे विरोध ऐसे क्यों हुई। वह वस्तु वैसे क्यों हुई आदि-२ में इन बाधा युक्त पुरुषों का एक अलग से संध बन एक बार आरपने विश्लेपण प्रारम्भ किया तत्सम्बंधी जाता । भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना करना वातलाप किया उसका भी विश्लेषण किया- पड़ सकता है । क्योंकि इनमें संयुक्त भाई चारे की आपने इस प्रकार सब कुछ गंवा दिया। प्रणालो विद्यमान होती है । जैसा कि आपने देखा होगा कि डाकू सदव संयुक्त रूप से रहते हैं उनमें परस्पर मेंत्री भाव अधिक मात्रा में पाया जाता है अपने चक्षओं का शिशु मात्र है । आप पूर्णं ज्ञान विना इन सबका विश्लेषण कसे कर सकते हैं । परन्तु प्राप प्रत्येक महान आपको जो कुछ भी करना है वह यह कि आप "इसे" ग्रहण कीजिये तदनुरूप अ्पने को ढालने की । वे सब एक दूसरे की गुप्त बातें जानते हैं परन्तु दो चेण्ठा कीजिये । अधिकाधिक इसे पाने की चेष्टा सम्भ्रान्त व्यक्ति यदि संयुक्त हो जाय तो सारा विश्व हो परिवर्तित हो जाये। आपको यह बात सामने अपने स्वयं को नग्नावस्था में लाइये-सहज हृदयंगम करनी चाहिए। आपको भकद्र पुरुषों योग में त्र टियां न खोजिये क्योंकि जो कुछ भी (Positive) से हो सम्पर्क करना चाहिए नहीं तो आप सहजयोग का विकास न कर पा सकगे । जो कोई भी नकारात्मक बात कर उसके सम्पर्क में नहीं आना चाहिए । कीजिये और प्रोरों के लिए ग्राह्य बनाइये । इसके तटियां है वे अप में हैं । ये सब दोष सहज प्रेम द्वारा ही ठीक दशा में परिवर्तित हो सकते हैं । ऐसे भी पुरुष हैं जो मुझसे कहते हैं कि माताजी आप इस प्रकार क्यों नहीं करती- प्राप उस प्रकार से क्यों नहीं करती हैं आदि-२। मैं प्रपने कार्य कलाप में सिद्ध हस्त हैं फिर भी वे मू्झे शिक्षा देने मान हैं। आप कल के आधुनिक गुरु बनते वाले हैं की चेष्टा करते हैं कि माता जी ने ऐसा किया- अतः आपको भिन्न भिन्न टाइप (प्रकृति) के पुरुषों उनको ऐसा करना था आदि आदि आप चाहे जिस का व्योरा दे रही हैं अथाति हर प्रकार के व्यक्तियों के प्रणाली से कार्य कर मानव प्रकृति नीचे से ऊपर । वे स्वयं का सामना करना (Jack in the box की तरह) जाने की होती है। नहीं चाहते परन्तु इससे बच निकलने के कितने सो अ्रपको अपनी प्रकृति में मूल परिवर्तन लाना ही मार्ग उन्हें मालूम हैं । उनमें से कुछ ऐसे हैं कि है इस उहा पोह उच्ल कूद बाले स्प्रिंग्स को जरा ज्यों हो वे पार हुए उसका विश्लेषण प्रारम्भ कर सा सरकाइये आपकी स्थिति दढ होगी । ये स्प्रिंग्स देते हैं। आप उन्हें कुछ भी दीजिये के विश्लेषण कुछ भी नहीं बल्कि बारीक विश्लेषरण व्यापार है । आपका ऐसे बहुत से (विपुल मात्रा में) मनुष्यों के विश्लेषण कर सकते हैं । भगवान ही जानता है साथ सम्पर्क होगा-श्रब प्रश्न यह है कि उनसे परन्तु इस देश में दूसरे ही ग्रप के आदमी वरत- हूँ बारे जतला रही है। आरम्भ कर देंगे । इस देश में वे प्रत्ये क बस्तु का 18 निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt किस प्रकार से संपर्क एवं व्यवहार स्थापित किया जाये । लोग भी उपयोग में आ सकते हैं । सरकस में उन्हें तोप के मुंह में पलीते के साथ रखकर उड़ा (Blast) दिया जाता है । इस प्रकार वे अपने करतबों का निर्विचारिता को वे एक निम्न कोटि की वस्तु मानते हैं और जो व्यक्ति इस बारे में बार्तालाप करें वह उन्मादी हैं। देखिये जब आप निर्विचारिता से जागरुकता के संबंध में वार्तालाप करेंगे तो वे आप को पूरातनपंथी कहंगे, क्योंकि आप सच विचार प्रदर्शन करते हैं। वे इतने ग्रालस प्रस्त हैं कि उनको कोई भी विष्न बाधा विचलित नहीं कर सकती । आपको शरी गणेश जी व शआप मेरे सुपूत्र हैं। हईेसामसीह की छवि के पश्चात बनाया है उनकी हुआ है ऐसी शक्ति सब शक्तियां आप में विद्यमान है । एक प्वाइन्ट है, जहां मैं स्तव्ध रह जाती है कि किस प्रकार आपकी निष्क्रियता (inertia) दूर भगायें । आपने सहज योग का अरभ्यास (Practice) नहीं किया है। आप कोई भी अभ्यास नहीं कर पाये हैं द्वारा जो सोच विचार से परे, बहत उच्च श्रेणी की है । सोच विचार करने से आपको क्या उपलब्धि हुई अर्थात क्या कर लिया । सोच विचार से आ्पने अपने नाक, कान, हाथ यहा तक कि ं। आप ने (इन प्रत्येक वस्तु काट लो-प्रब आप एक महायुद्ध विभूतियों को) सहज में आसानी से सस्ते में पा छेड़ने को उद्यत हैं । क्या आश्चर्यजनक विचार हैं। सो आप उन्हें जतला दें कि सोच विचार से कुछ भी बनने वाला नहीं है अर्थात आप उसे नहीं पा सकते-बह एक ऊच्चतर श्रंणी की शक्ति हैं । उच्चतर वस्तु की बातचीत ने अापको यह प्रदान किया है। यदि आप उस निम्नतम सोच विचारने कैरगे, में इसको, आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर की शक्ति से उच्चतर शक्ति में आना चाहते हैं तो छोड़ती हूं। क्योंकि मैं आपकी स्वतंत्रता में विश्वास आपको केवल सोच विचार को निम्नस्तर पर रखना पड़ेगा। वे इस तरीके से ही परिधि में के नही है कि मैं आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आयेंगे। यदि आप यह कहने की कोशिহা करें कि पावन्दी लगाऊँ। अर्थात अराप अपनी स्वतंत्रता को कृपया सोचिये मत । तो बिचारणीय ही नहीं है यह तो व्यर्थ है । ऐसे अहंवादी व्यक्तियों से इसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए। जो सोच विचार करते हैं पर मान्यता नहीं जाना पसंद करते हैं तो मैं आप को रथ में बेठा देते यद्यपि उन्हें शीतल समीर का अनुभव प्राप्त है| तो आप ऐसे पुरुषों की क्रमशः सहायता कर । लिया है । अप को इंसका मूल्य ज्ञात नहीं-अतः । आप इसे गौरण (Sidetrack) रखना चाहते हैं । आपको स्वयं अनुशासन में अनुशासित होना हैं जब तक आप अपने आपको अनुशासन बद्ध नहीं रखतो है । मेरे विचार से आप इतनी निम्न कोटि ी में लायें । व्य वहार क्या नहीं सोचे विचारं । यह आप पूर्ण रूप से स्वतंत्र है यदि आप नरक में कर सीधे गरन्तव्य स्थान पर भेज दुंगी यदि आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो "मैं आपके लिए विमान का प्रबंध कर दूंगी-यह आाप १र निर्भर करता है कि आप त्वरित (Dynamic) बन जायें शव गुरुजनों के लिए जैसे कि आप हैं । आप सर्वगुण सम्पन्न ज्ञानवान है सब शक्तियां यहां तक और अपने अत्दर [त्म विश्वास लाये । आपको कि प्रत्येक वस्तु आपके अधिकार में है । आाप में केवल प्रत्येक चक्र का ज्ञान है। आप कृ डलिनी जागरण आत्म विश्वास की न्यूनता है। आप में निष्क्रियता प्रक्रिया भी जानते हैं । आप प्रत्येक प्रक्रिया जानते (inertia) है । माजूम नहीं यह निष्क्रियता किस हैं । अस्तु प प्रकार से पलायन करेगी कभी कभी ऐसे निष्क्रिय कीजिये । प्रत्येक कार्य ग्रपने ऊपर लेकर स्वयं 19 निमंला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt मैं यदाकदा आप सब लोगों से रुष्ट भी हो सकती है, अत्यंत साधारण बात है । परन्तु नहीं, " मुझे अपना कार्य सिद्ध करना है । आप से मृदुल "मुझे खेद है आदि बहुत से ऐसे शब्द हैं । परन्तु संभाषण करना है । कभी कभी भला बुरा कहकर मैं सोचती है ये सब अपना मूल्य खो चुके हैं । अथवा डीट डपट कर काम चलाना पड़ता है। भिन्न भिन्न प्रकार से कुछ न कुछ पूछना पड़ता है । कभी स्निग्घता का प्रयोग तो कभी उष्णता का से पढ़ना चाहिये, हमें अपने हृदय से संवेदना प्रकट प्रकोप तो कभी शीतलता को काम में लाना पड़ता करनी चाहिए। हमें उसे हृदय से बचाना चाहिए । है । कभी इस तरह से तो कभी उस प्रकार से उन्हें सहजयोग में स्थिरता प्राप्त करने का प्रबन्ध करना उन्हें डांट डपट कर भी रखना पड़ सकता है क्यों- पड़ता है । कभो-२ प्रलोभन आदि से भी उ्हें घेर कि जैसा कि आपको विदित ही होगा कि बहुत से व्यवहार करना है । अत्यधिक वैय रक्ख । आप की भाषा भी सुसंस्कृत होनी चाहिये। "कृपया माप मै अतः हम एक प्वाइन्ट पर आते हैं कि हमें हृदय हमें उसकी सहायता करनी हैं। परन्तु कभी कभी घार कर रखना पड़ता है कि वे यहां जमे रहें । बाधा युक्त जन जन्म जात कौतुकी, कौतुहल पूर्ण प्रकृति के होते हैं । वे कौतुक एवं कोलाहल पूर्ण दृश्य उपस्थित करने में पारंगत होते हैं। वे अ्रधिक- तम प्रदर्शन के धनी हैं । इसी भांति आपको भी उनसे व्यवहार करना है। उनसे रुष्ट नहीं होना है आपके लिए रुष्ट होना सबसे आसान है तब तो फिर कोई समस्या ही नहीं रहेगी। यदि मैं माप सबसे एक बार भी रुष्ट हो जाती है और समस्याएँ भी नहीं रह जाती हैं। प रन्तु श्रापसंब को उन सबके साथ वास्तव में बहुत धीरज के साथ इस कोटि के मनुष्यों की रक्षा करनी है । तथा अत्यंत धर्य के साथ व्यवहार करना है। तो मुझे अ्रपनी शान्ति प्राप्त होती, ईदवर आपको सदा सुखी रखें ! लंदन में 2 दिसम्बर 1979, को अवतरण रविवार के शुभावसर पर आयोजित गुरु पूजा पर परम वंदनीय माता जी का सार-गभित भाषण का हिन्दी रूपान्तर । "परमात्मा को बेचा नहीं जा सकता, न ही खरीदा जा सकता है। जो लोग परमात्मा के नाम पर अपना उदर निर्वाह करते हैं वे कनिष्टतम हैं -श्री माता जी निर्मला योग 20 hco 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 WARNING THE THIRD WORLD WAR, SAID SHRI MATAJI, IS NOT AN ELEMENT IN THE PLAN OF GOD TO BRING ABOUT SATTYA YUGA. IT WOULD ONLY CREATE MEANINGLESS DESTRUCTION AND SUF- YET MEN'S MADNESS IS PRESENTLY CREATING THE FERINGS. CONDITIONS WHICH MAKE THIS DREADFUL CALAMITY VERY LIKELY. IN ANY CASES THE SAHAJA YOGIS WILL BE PROTECTED BUT THEY SHOULD CLEARLY UNDERSTAND THEIR RESPONSIBI- LITY. IF ALL THE SAHAJA YOGIS DO NOT PUT ALL THEIR ENERGY AND AVOID THIS BY ACTIVELY SPREADING SAHAJA YOGA IT MAY WELL HAPPEN. AND SOON. Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 5.00 Annual Subscription Rs. 20.00 Foreign [By Airmail f 4 $8]