ब fनिर्मला योंग वर्ष 1 अंक 2 जुलाई-प्रगस्त - 1982 द्विमासिक है॥ प ॐ त्वमेव साक्षात श्री सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी, कलकी, भगवती माता जी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः । ए5ी सा० क। प5 पी ु ु सम्पादकीय हम सभी धन्य हैं कि आज साक्षात् आदिशक्ति हमारे बीच उपस्थित है । गुरु पूजा के पुनीत अवसर पर गुरु दक्षिणा देना प्रत्येक शिष्य का परम करतव्य है । गुरु के पावन सन्देश को मानव मात्र तक पहुँचाने से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ गुरु दक्षिणा नहीं । विश्वास हैं प्रत्येक सहजयोगी तन, मन, धन से इस पुनीत कार्य में माता जी का आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है । जायेगा। परम पूज्य जुट निर्मला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी सम्पादक मण्डल डॉ० शिव कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर० डी० कुलकरणी प्रतिनिधि : श्री एम० बी० रत्नानवर १३, मेरवान मॅन्सन गंजवाला लेन वोरीवली (पश्चिमो) बम्बई-४००००२ श्री प्रमोद शंकर पेटकर ४६C/१५, सोमवार पेंठ लालबड़ा पुरा- ४११०११ इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. तत्व की बात-१ १ ३ अनुस ररीय ४. त्यौहार ५. आन्तरिक ज्ञान ६. जय निर्मलमाते जगदम्बे १२ ३. १६ २० ३२ निरमला योग २ तत्व को बात-१ दिल्ली विश्वविद्यालय के इस सुन्दर प्रांगरण में जो दो हजार वर्ष पहले उन्होंने कही थी । उसका अने क बार आना हुआ। कोई न कोई नई बात यहां अर्थ यह है कि, बहुत से लोग जो साधक हैं, संसार कह दी जाती है और अनेक बार लोगों को यहां में, जो परमात्मा को खोज रहे हैं, जो परसात्मा के जागरूती भी दी और जागरूती के बाद क्या करना नाम पर कुछ भी करते रहते हैं, चाहे मन्दिर जायें, चाहिए, ये भी अनेक बार मैंने सभभाया । क्योंकि चाहे चर्च जाय, चाहे कुछ भी कर । उनमें इस तरह अंकुर का प्रादुर्भाव होना, अकुर का जागरूत होना, की धरियां हैं, उनमें से कुछ तो वे तो एक के लिए मनोनीत है, लिखा हुआआ है जट्टानों से टकरा रहे हैं, जानते हुए भी कि वेकार और वो अगर उसमें से अंकूर निकलता है, तो वो की चीज़ है, उसी से प्रपना सिर रगड रहे हैं । अप उसका स्वाभाविक घर्म ही है सहज है, स्वैच्छिक कितना भी सिर रगड़ें तो भी चट्टान तो चट्टान है, (Spontaneous) है वो तो होता ही हुआा । आपके अन्दर यदि यह अंकुर है हो, तो उसका अंकुरित होना तो कुछ विशेष ची ज तो है नहीं । पत्थ रों से और चट्टान से अआपका अंकुर कभी प्रस्फुटित नहीं हो सकता । जब मनुष्य जितनी भी दखियानुसी बातें है घम को लेकर करता है उनसे मतुष्य धर्मान्धता में घुसता [चला जाता है बो सोचता है कि बहुत ही हम लोग हर वक्त देखते हैं, हर समय देखते हैं कि हजारों करोड़ों बीज इस पृथ्वी माता के पेट में पनपते हैं, हर समय । कोई से भी बीज को आप यो ्यादा Sacrifice (बलिदान) किया है, त्याग दीजिये, वो अंकृरित हो ही जायेगा से, वो अंकुर को किस तरह जागरूत करती है ? वो भी दीजिये कि ऐसी चीज़ से फायदा नहीं, आप किस प्रकार करती है. कैसे करती है, यह हम लोग नहीं जानते, क्योंकि यह उनका स्वभाव है। उस ऐसी भूमि में आईये जहां आप पूरो तरह पनप जायें, स्वभाव के अनुसार वो अंकुरित करना उनके लिएपूरी तरह से शीतलता हो और पूरी तरह उसकी एक बहुत ही साधारण लीला सो चीज है, कोई हि़ाजत हो आपको देखा जाय और जहां आपको विशेष वात नहीं है । लेकिन जैसा कि कहा गया है, ईसा मसीह ने कहा था, 'बहुत से बीज थे, कुछ जो प्रसाद है जोकि आप अंकुरित होना कहते हैं, तो बीज तो पत्थर पर पड़े गए किया है, परमात्मा के लिए । ऐसे लोगों से आप कह । बो पअरपने प्रेम ऊर्वरा भूमि में प्राईये, तो भी फायदा नहीं, आप संजोया जाय, ऐसी जगह ग्राप आईये, तब आपका दो हो सकता है । और वीज थे, वो कुछ पहाड़ी रास्ते पर पड़ गए अऔ्रोर कोई बीज थे जो ऊर्व रा भूमि में पड़ गए लेकिन उनमें से कोई बीज ऐसे भो थे जो बहुत ही अच्छो ऐसो भूमि में पड़ गए, जहां वो पनप गए। वो उनके जमाने की बात है तो इस बात को मानने के लिए भी बहुत कम लोग तैयार हैं। बड़ा आश्चर्य है । मानव तो मेरी समझ में नहीं प्राता । संसार में नहीं है। कोई सा भी प्राणी मात्र इंतना मानव जेसा जिद्दी प्राणी तव की बात पहली बार पः पू. माता जी ने फरवरी १६८१ में गाधी-भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय में कही थी जो हम आगामी 'निर्मला योग में छापते रहेगे। इस वात्ता-श्र लला की प्रथम परिचायक-बातता प्रस्तुत है । निर्मला योग Tট" जिट्दी और हठी नहीं है । और जब कि पूरी तरह अज्ञान में हम हैं और जब कि हमारे ऊपर इतने सूतक हो ? जब कोई आदमी श्रपसे नाराज हो आवरण हमने प्रपने दिमागी जमा-खर्च से लपेट जायेगा तो वो आपके घार में बैठा होगा तो परसे रखे हैं, तो फिर हम सोचते हैं कि हमसे अकलमन्द और कोई नहीं है तो फिर ऐसे लोगों का इलाज बुलायेंगे तो कहेगा कि साहब मैं तो खाने के लिए किया क्या जाये ? मेरी तो समझ में नहीं आता । करना हो तब अ्राप उपवास करते हैं न, या कोई थाल से उठ जायेगा या अगर आप उसको खाने पर नहीं आऊँगा, मैं प्रापसे बहुत नाराज हूँ। मतलब, हम लोग नाराजगी जाहिर तब करते हैं, या उप जैसे कि आप घर्मान्ध लोगों को देखते हैं। मैं वास कि जब हम किसी तरह उनको दिखा दे कि अभी एक मन्दिर में गई थी। पहली मर्तबा मन्दिर में गई तो बहुत भीड़ और दूसरी मतंबा गई, तो बहुत कम लोग आये । गया, क्यों नहीं आये ? कहने लगे कि माताजी आप है? मेरी श्राज तक समझ में नहीं अया कि इन्सान से सब लोग नाराज हो गए। मैंने किस बात हम नहीं खायेंगे यानि रोटी बन्द करना। फिर आप किस सिलसिले में उपवास कर रहे मैंने पुछा कि भई क्या हो को किसने समझाया ? आप जिस दिन का उपवास पूछा पर । कहने लगे कि इसलिए नाराज हैं कि आपने कर रहे हैं जिस दिन उस Deity (देवता) का दिन कहा कि भगवान के नाम पर उपवास नहीं किया है उस चक्र का दिन है उस रोज तो उत्सव होना करो । चाहिए, आनन्द से उनको स्वीकार करना चाहिए । जिस दिन गणेश जी का जन्म होयेगा, उस दिन किसने बताया कि उपवास करते से भगवान आप उपवास करगे ? और ये भी एक छटी सो मिलते हैं ? क्या सारे लोग जो उपवास कर रहे थे बात लोग सुनने को तयार नहीं हैं । गणश जी जिस उनको क्या भगवान मिलने वाला है ? उसका दिन पैदा हुए उस दिन उपवास मत कीजिये । भगवान का नाम लगा देने से क्या फायदा है ? श्रीराम जिस दिन पेदा हुए उस रोज़ उपवास मत क्यों प्राप उपवास करते हैं ? आाप जब सहजयोग कीजिये, श्रीकृष्ण पंदा हुए, उस रोज़ भी मत में आयेंगे, तो आपको आरचय होगा कि जिस दिन कीजिये, मेहरबानी से उस दिन उत्सव मनाईये । अब इससे समझदारी की बात क्या हो सकती है, जरा बताईये ? लेकिन इस कदर दखियानूसीपना उपवास करते हैं, जेसे कि उदाहरण के लिए किसी अपने देश में इस कदर अन्धापन है, इस मामले में दमी का पेट खराब है उससे पूछ ली जिये कि कि ब्रह्माचार और स्त्री [अ्राचार" कहते हैं कि इस क्या आप गुरुवार का उपवास करते हैं या आप तरह इससे हम लोग ढक गए हैं कि छोटी छोटी का आप उपवास करते हैं उसी दिन के देवता आप से नाराज हो जाते है। जसे कि अ्राप गुरूवर का को मानते हैं ? प्राप देखियेगा कि उनका बात पर नाराज हो जाते हैं। दत्ता गुरू पेट खराब पाइयेगा। या किसी भी गुरू को मानते हैं, उनका पेट खराब होगा। लेकिन यदि मैं कहूं कि भई गुरुवार के दिन उपवास न करो, न सोमवार के में बात यह है कि वहां के लोगों को बात समझायें दिन करो, कोई भी दिन न करो क्योंकि ये सब दिन तो उनको यह बात समझ में नहीं आयेगी क्योंकि जो हैं, उनमें एक एक देवता के लिए रक्खे गए और उस दिन वो Specially ( विशेष रूप से) उसकी वजह है, बो भयंकर अहुंकारी हैं । उनमें जागरुत होते हैं, तो उनको जागरूत रखो बजाय इतना अहंकार जबरदस्त है कि अगर कोई आदमी इसके कि उनको नाराज करो । किसी को नाराज अब] Western Countries (पश्चिमी देशों) े। बो विवाद से जुझ रहे हैं या अपसे बहस करंगे हैं उनके ऊपर ऐसा जाल चलाये जिससे वो पूरी तरह निर्मला योग mesmerise (मेसमेराइज़) हो जायें या मन्त्रमुग्ध कोई चीज़ मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है बनिस्वत हो जायें या कोई न कोई वेवकूफी की बात उन्हें इसके कि मैं अकृरित हो जाऊ सुभझा दे, जैसे कहे कि हम आपको उड़ना सिखायंगे हवा में, अपने हाथ ऐसे रखे और हवा में उड़ने लग जायेंगे तो लोग उनको तीन तीन हजार पौड 3,000) देने को तैयार हो जायेंगे अब दूसरी बात अपने देश में है जो बहुत ही बुरी तरह फैली हुई है वो ये है कि घर्म हमारे यहां वकता रहती है, सुबह से शाम तक। आप गंगाजी । ऐसी कोई (£ बारीक वेवकूफी की बात उनको सिखाई जाये तो पर जाईये जितनी श्रद्धा हो उतने पानी में उनको बड़े लोग खुश हो जाये गे लोगों को कोई न कोई वेवकूफ़ी की तरफ बढ़ाने के लिए गति उनके अन्दर है लेकिन जब कभी समझाया जाये कि भई यह अ्रक्ल की बात करनी चाहिए, बस एक छोटी सौ बात पर नाराज हो जायगे। उतारिये । आप मन्दिर में जाईये, जितनी श्रद्धा हो 1 । मतलब यह है कि उन उतना रुपया दीजिये हर एक चीज बेची जाती है। मैंने सुना है भगवान । यहां भगवान के नाम पर का तिलक बेचा जाता है। कोई चंबर घुमाने वाले है. प्रगर वह ५ लाख रुपया दें तो वो चँवर घुमा दे । इस तरह की इतने पागलपन की बात हम लोग परमात्मा के नाम पर करते चले आ रहे हैं, उनकी तरफ हमें मट्देनजर करना चाहिए, देखना चाहिए न ही नाराज करने की बात है। न तो नाराज करने कि क्या कर रहे हैं, किस चौज से हम जुझ रहे हैं ? यह तो अहंकार को पुष्टि के लिए मनुष्य करता है, [श्पकी अ्रपनी जो शक्ति है, जो आपके अन्दर अपका कि मैंने इतना रुपया दे दिया और मुझे चेंवर घुमाने के लिए उस पर खड़ी कर दिया और मैं चॅबर उससे आापका मिलन करा दूं । उसमें जो कुछ घुमा रहा है और बड़े अपने को अक्लमन्द समझे अड़चने डाल रक्खी हैं अपनी अक्ल से या आपकी चले जा रहे हैं। यह एक अजी ब वेवकूफी है या नहीं, आ्राप बताईये ? क्या ये पांच लाख खर्च करने रही। लेकिन अगर कोई गलतियाँ हो गई हैं तो उस से क्या परमात्मा रापसे संतोष करेंगे ? उनको रुपये-पेसों की जरूरत नहीं है। परमात्मा को रुपयों पेसों की जरूरत नहीं है । वो कोई गरीब आदमी जैसे कि आप हिन्दुस्तान में पेदा हुए है । ठीक नहीं हैं, गरीब इन्सान नहीं है । सारो सृष्टि उनकी है । हिन्दूस्तान की अपनी कुछ हैं, चली हुई गलत अपनी है। उनको रुपये-पेसों से मतलब क्या ? परम्पराय हैं । सही भी बहुत है, गलत भी बेहुत है उनको तो मालूम ही नहीं कि रुपया पेसा क्या होता और उनमें से जो गलत परम्पराय हैं उनको हमने है। उनको तो जन्म लेना पड़ता है सीखने के लिए ज्यादा जकड़ लिया है बनिस्बत उन के जो कि सही कि रुपया चीज़ क्या होता है । कोई असान चीज़ परम्परायें है । अगर कोई साहब कहें कि आप थोडी है मनुष्यों का पागलपन सीखना ! बहुत ही हिन्दुस्तान में पेदा नहीं होते और आप लंदन में मुश्किल काम है । इतने पागल होते हैं मनुष्य कि पेदा होते तो अ्रापकी परम्परा अलग हो जाती। उनकी बातों को सीखने के लिए परमात्मा को मैं यहां लोगों को खुश करने तो आई नहीं हैं क्योंकि किसी को खुश करने की कोई बात नहीं है आई है न खुश करने, मैं तो इसलिए आई है कि अपना आत्मा बसा हुआ है, उसे में देख पा रही हैं, आपने अपनी समझ से । कोई में आपको बैवकूुफ नहीं कह चीज़ को आपको ठोक कर लेना चाहिए । बहुत आप तो पहली बात इन्सान हैं । इस बात को अगर मेहनत करनी पड़ती है। कोई सोपा-सरल काम मनुष्य समझ ले कि में एक बीज-स्वरूप हैं और नहीं है। जैसे कि कोई मनुष्य धर्म में खड़ा है, बीज होने के स्वरूप मुझे अंकुरित होना है यही मेरा उसको यह समझ में ही नहीं आता कि यह बातें कर्तव्य है और कोई मेरा कर्तव्य नहीं है, और पाप-पुण्य की लोग क्यों करते हैं ? यह नहीं करो, परम् निमला योग ५ू वो नहीं करो, ऐसा नहीं करना चाहिए, अरे भाई मनुष्य इतना पागलपन करते हैं कि में ही नही आता कि इनको समझाये केसे ? और कोई शरप बात समझाईए तो वो नाराज हो जाते हैं। यहाँ पर क्या कोई election प्रापके कोई अगर जहर खाते हो तो भाई खाओ नहीं तो नाराज फुछ समझ यह करता कौन है ? जेसे हमारी Grand Daughter (घेवती) है, वो पार है, पैदाइश से । हमसे कहने लगी, 'हमार चुनाव) है कि पीछे है या कोई हार-जीत है ? आप स्कूल में बहुत stupid subject (बेहृदा विषय है, नानी। 'Moral Science (नेतिक विज्ञान) बड़ा ही, हो जाओगे, ऐसा तो नहीं न कोई बोलने वाला । stupid subject है । तो मैंन कहा, 'क्यों ?' कहने लगी. 'माजूम है, उसमें क्या संखाते हैं ? भूठ अन्दर कि हम इस संसार में आए क्यों हैं, पहला मत बोलो, चोरी मत करो। हम कोई नौकर हैं, सवाल ? क्या हम इसलिए आए हैं कि आकर जो हमको ऐसा सिखा रहे हैं ? गंदी गंदी बात मन्दिरों में लोगों को पैसा चढ़ाएं ? या इसलिए सिखाते रहते हैं । ऐसी कोई सिखाने की बात होती है कि भूठ मत बोलो । बो कहने लगी कि मुझस रहें ? या इसलिए आए हैं कि परमात्मा को गालियां कहा कि दस sentence लिखो share करने पर । तो कहने लगी, 'क्या share करे मैंने कहा कि उनका मतलब है। कि उन्हंने कहा होगी कि तुम प्राप से परछना चाहिए कि क्या हम अमीवा ऐसा करो कि खाना share करो । तो कहने लगी से इन्सान बनाये गए तो किस वजह मैंने कहा, 'कौन सा ?' कहने लगी, एक सूझ -बूझ की बात होनी चाहिए मनुष्य के आ्राए हैं कि धर्मान्धिता करके उसके नाम पर लड़ते है. बकते रहें और कहते रहें कि परमात्मा है ही नहीं ? हम आए किसलिए हैं संसार में, पहला प्रश्न अपने (Amoeba) से ? खाना तो हम share करके ही खाते हैं या इकट्रा साथ हो खाते हैं। उनके यही समझ में नहीं आता यह बच्चे जो पार बच्चे हैं कि गलत काम करना ही काहे को ? गलत रास्ते पर जाते ही नहीं दे सकता क्योंकि उनसे परे की बात है। कोई क्यों हो ? जब हम जाते ही नहीं तो हमें बताते ही scientist नहीं बता सकता कि आपको इन्सान क्यों हो ? इसका जवाब कोई scientist (वेज्ञानिक) क्यों बनाया गया ? यह सब मानते हैं कि हम Amoeba (अमीबा) से, एक छोटे से अमीबा से एक किस्सा है कि एक पादरी साहब एक गाँव में गए, जहां बेचारे देहात के लोग बहत सीवे सादे मेहनत करके आपको बनाया गया-ये Special ( विशेष) चीज जो इन्सान है, है बड़ा मजेदार । थे । उन्होंने उनको काफी तो हुआ जब जाने लगे तो उनका Farewell कुछ सिखाया । यह हुआी ले किन कभी कभी सोचती हैं कि इनके सींग नहीं विदाई-समारोह) हो गया उसमें बेवारे देहातो है दुम नहीं है, ऐसे तो ठीक है लेकिन इतने ज्यादा लोगों ने कहा, कि पादरी साहब हम आपके बहत हठो क्यों हैं ? यह मेरी समझ में नहीं आरया । इतनी शुक्गुजा र हैं, वड़ा धन्यवाद है क्योंकि हमको तो हठ तो कभी-कभी बेल या घोड़ा कभी-कभी क्षरिणक माजूम ही नहीं था कि पाप क्या है ? ग्ापने हमें करते हैं। यह तो Permanently (स्थाई रूप से) सिखाया कि पाप चीज़ क्या होती है, बहुत बहुत हठी लोग बैठे हुए हैं। ओर इनसे जुझते-जुझते मेरी समझ में नहीं आरता कि इनको पार करा कर भी क्या होगा? अ्रब] आप पूछ सकते हैं। आपसे पंतजी बतायेंगे कि न जाने कितने लोगों को हमने यहां पार किया, उनको Vibrations प्राने लग तो जो निष्पाप होते हैं. जो भोले होते घन्यवाद हैं, जिनको पता है ही नहीं ये चीज़ क्या है, मतलब ये कि बहुत मुश्किल हो जाती है मनुष्य के बारे में सीखने के लिए । निर्मला योग गए, पार भी हो गए; कुण्डलिनी के बारे में उनको बताया; कंसे कुण्डलिनी जागती हैं, उन्होंने (यत्त्र) तो बनिये, जिसके लिए आप संसार में आए यहां तक देखा कि हमारे सामने जब लोग आते हैं हैं और इसलिए आप विश्व में बने हैं। उनके अप तो उन की कुण्डलिनो उठती है, उसका स्पंदन होता instrument बन, उन्हें समझ, गहनता ग्रहरण करें है। Triangular Bone (त्रिकोणाकार हड्डी में और उनके साम्राज्य में प्राप जाये । लेकिन अगर कुण्डलिनी छेदती है । यह सब उन्होंने देखा है और हुआ उसके बाद Vibrations अ्राये और यह सब कुछ सब इन्तजामात हैं आरपके लिए कि आप कुण्डलिनी करने के बाद, वावजुद इसके कि हर तरह का उन्हें के सहारे आप अन्दर आईए अनुभव हो चुका। उसके बाद साहब फिर वो घर हठ से दरवाजे पर खड़े हैं कि नहीं साहब हम तो में मे रा फोटो ले गए और आरती-वारती करके आयेंगे ही नहीं। क्यों सहब चौखट से ही हमको और फिर एक साल वाद बता दिया कि माता जो प्यार है तो हम कया करें ? इस प्रकार मनुष्य के हमारे vibrations अव गायब हो गए । और क्या अन्दर इतना अज्ञान है, इतना ज्यादा अज्ञान है कि होगा? उसका पूरा इन्तजाम आपने कर लिया। जब कि आपके अन्दर कोई बीज पनपा है, तो उस को आप किस तरह रखेंगे ? उस वक्त आप अगर उसको उठाकर फेंक दीजिएगा तो वो गल जाएगा| खत्म हो जाएगा। सीधा हिसाब है । अल में आप परमात्मा के instruments है, ऊपर चढ़ती है और ब्रह्मरद्र को परमात्मा ने अपना साम्राज्य फैला रखा है कि और आप आईये आ्रापके लिए सुस्वाग तू रखा हुआरा है, ले किन आप जो हैं, कभी कभी मुझे लगता है कि दो हुई चीज़ का जो प्रकाश है उसे वह देख नहीं पाएगा और समझ नहीं पाएगा। प्रब यहां पर न जाने कितने सालों से हम आ रहे है । किंतने हो लोग पार हो रहे हैं लेकिन गति जो है यहां सहजयोग की वह बहुत घीमी है, विशेष ईस बात को लोग समझते नहीं हैं कि किनना हमें यह मां ने दिया है। मेरे लिए तो इतना बहुमूल्य बहुमूल्य नहीं होगा शायद क्योंकि मुझे कोई इसमें कर विश्वविद्यालय में क्योंकि विश्व का विद्यालय ऐसी विशेष बात नहीं लगती । लेकिन अआपके लिए है न ! मुझे तो हंसी इस पर आती है कि जहां मूझे मूल्यवान जरूर है। क्योंकि अगर आपको ये न मिले उम्मदि भी नहीं होती, जहाँ मैं सोचती भी नहीं कि तो आप करियेगा क्या ? आप लोगों को क्या होने बाला है ? इसके बग र आप लोगों का चलेगा कैसे ? इतना काम पनप जाएगा वहां तो बहत आसानी से हो जाता है और लेकिन जो जरूरत से ज्यादा अ्रक्लमन्द होते हैं-जैसे कबीर दास जी ने कहा है पाने का तो यही है। समझ लोजिये अ्रापने कि पढि पढि पंडित मूरख भए' और हमारे मराठी यह बनाया और इसको ऐसा ही र खा, इसे mains से नहीं connect (कनक्ट) किया तो इसका क्या करियेगा ? अचार डालियेगा ? अधिकतर इन्सान इसी हालत में हैं कि उनका अचार डालिये । किसी का म के नहीं, एकदम बेकार लोग हैं । बिल्कुल वेकार हैं परमार्मा के लिए । अपने को तो बड़ा अफलातून समझते हैं । उन्हें सब बाकी कुछ भी नहीं, बाकी सब बेकार । और इस सेजूट (salute) करें, ये करें, वो कर पर वो आत्मा का जो प्रकाश है, जो ब्रह्म तत्व है, जिसे विल्कुल है । कि जो अ्रति अरक्लमन्द बनते हैं उनके पर जो हैं रास्ते में घूमा करते हैं वो नहीं होती। ऐसा कुछ हाल हो जाता है । में कहा जाता है कुछ इसलिए पहले यह सोचना है हम क्या हैं ? आप ग्रात्मा है। आप सिर्फ आत्मा हैं । और बाकी ? वे प्रपनी दष्टि से बैकार कि हम Vibrations के नाम से जानते हैं, जो काम ेमाँ का संकेत उनके सामने उस समय रखे Microphone से है । निर्मला योग शीतल होते हैं ये ही आपका कार्य है और कुछ नहीं अन्दर श्री गणेश हैं, और श्री गणेश की शक्ति हमारे बाकी सव मिथ्या है । शरीर तो आप जानते है अन्दर है । यह जो प्रापको पहला चक्र दिखाई दे मिथ्या है । शरीर मिथ्या है, आप रोज ही देखते हैं । इधर से मैं आ रही थी तो मैंने देखा कितने ही हम यह बात कह रहे हैं कि श्री गरेश हनरे मूला- बड़े वड़े लोग जो आये, अब नही हैं। फिर आप यह भो जानते हैं, अहंकार मिथ्या है । वड़े बड़े Proof (प्रमाण) दे सकते हैं science से ? कोई लोग Position (ओरहदों) में बैठते हैं, जैसे ही उनकी कुर्सी खिसक गई, उनको पाताल दिखाई कहां है ? इसका आप कोई भी Proof दे दें, कोई देने लग गया । मन भी जो हैं, वो भी मिथ्या है । भी नहीं दे सकता श्प किसी के पीछे बहुत मनः पूर्वक काम करते हैं मनः पूर्वक ये करते हैं मनः पूर्वक वो करते हैं और आप को कुछ हो जाता है, कोई अपको पूछने (असीम) की बात कर रही हैं। वाला नहीं रह जाता है । बुद्धि भी मिथ्या है क्यों- कि बुद्धि से जो जानते हैं, अप उसी को contra- जायेंगे, कि जब तक आप सीम में नहीं उतरेंगे, dict (विरोध) करने लग जाते हैं । बुद्धि आप इस चीज का जबाब नहीं दे सकते हैं कि मां की पहुँच ही कहां तक है, जो सामने दिखाई देता है । जैसे कि ज्यादा से ज्यादा में प्राप से एक-दो सवाल पूछ कि ये बताइये कि Science (विज्ञान ) खोजा। और Science ने यह बता दिया कि पृथ्वी के अन्दर Gravity मध्य-प्रदेश में जगदलपुर में आप (गुरुत्व) नाम की शक्ति है । वो तो जाहिर है उसमें कोन सी बताने को बात है। वो तो किताबों हैं । हैं ? इसका रहा है. मूलाधार चक्र पर हो थ्री गणेश हैं । अच्छा धार चंक्र पर विराजमान हैं। अ्रब] आप] इसका दे सकता है कि हमारे अन्दर श्री गणेश की शक्ति । क्या वजह है ? इसका जबाव बुद्धि जो है हमेशा हो Limited (सोमित) है मैं Unlimited श्रप इस अल्प वुद्धि से नहीं दे सकते । अब Unlimited में जब तक आप नहीं आप संच कह रही हो या झूठ कह रही हो। अ्ब बुद्धि से आ्पने 1. पक्षी प्राते हैं, साईवेरिया से आते हैं, हमारे यहां पाइवेगा साईवेरिया के पक्षी, सीधे । और हर बार वही पक्षी वहां चले आते जवाव दे सकते हैं ? उनके अन्दर कौनसी शक्ति हैं वो कैसे आते में हैं, सब कुछ है। और जो कुछ भी आप पता लगा रहे हैं, उसके प्रन्दर है वो सब कुछ । लेकिन जिसकी वजह से वो बराबर साइवेरिया से उड़कर बो आई कैसे ? Why का उत्तर है क्या ? वो आाई कसे वहा ? बो है क्या चीज ? वो शक्ति क्या है, जो पृथ्वो के आपने दिया नहीं । बस कह दिया कि हमारे दो इन्सान के अन्दर gravity है, जब वह खराब हो हाथ हैं, हां हमारे दो हाथ हैं और फिर कह दिया जाती है, उसका वज़न जब खराब हो जाता है, कि इस हाथ के अन्दर पांच उंगलियाँ हैं, ठीक है, उसकी जब gravity खराब हो जागी है, जब हैं पांच उंगलियां । ये हमने देख लिया और फिर उसका Self-esteem (ग्रात्म-सम्मान ) जब वो Science से आप ज्यादा से ज्यादा यह बता देंगे हो जाता है, जब उस कि यह किस चीज़ का बना है इसको खोज-खाज की आँखे इंधर-उधर दोड़ने लग जाती हैं, उसका के, खोज-खाज के हो इन चीजों का पता लगा सकते हैं । बता सकते हैं कि इसके अन्दर क्या है जाता है तब उसकी gravity खत्म हो जाती है । उसके अन्दर क्या है वरग राह वर्गराह । लेकिन क्यों जब वह gravity खत्म हो जाती है तो क्या हो है और कैसे है इसका जवाब नहीं है। जैसे हमारे जाता है ? आपका गणेश चक्र पकड़ जाता है। वहां चले प्राते हैं ? वही गणेश शक्ति । ओर बही गणश शक्ति पृथ्वी के अन्दर गुरुत्वाकर्षण शक्ति अन्दर समाई है ? इसका तो उत्तर है जिसे कि आप कहते हैं Gravity औ्रर Frivolous (कमज़ोर) मन खराब हो जाता है और उसका चित्त बिखर निमंला योग - जहां जहां ये गराेश शक्ति नष्ट नष्ट करते जायेगे पर जब ये गणाश चक्र पकड जाাता है तो आपका innocence जो है, वो खुत्म हो जाता है । प्राप हो गई, बहा वहां वच्चे पेदा नहीं होगे । अव आप चालाक हो जाते हैं। अव, चालाकी से बढ़वार जमनी में जाइये; इंग्लैण्ड में जाइये- महावेवकूफी संसार में कोई नहीं है। महावेवकूक Population ही है । अभी तो वह कह रहे हैं कि होता है, वही चालाको करता है और अकलम-द Emigration (स्थानान्तरण) नहीं होगा । जो होते हैं कभी नहीं। क्योंकि चालाकी से आप Emigration उन्हें करता पड़गा क्योंकि सब बुड्ढ़े पा भी क्या सकते हैं ? चालाकी से आप अपने हो जाये गे ६० साल के, बच्चे कोई होंगे नहीं तो innocence को तो पा नहीं सकते जो आपकी होगा क्या ? जहां ये गाश शक्ति नष्ट होती जाती गश शक्ति जो आपके अन्दर Present है, बसी है स्त्री में, विशेष कर पूरुष में भी, वहाँ पर बच्चे है। इस गणेश शक्ति से ही आप पदा हुए हैं। आपके अन्दर समझ लीजिये कि आपके तन की में और ये गरणश शक्ति हमारे अन्दर इस शवल है । आपकी बोवी की दूसरी त रह की शक्ल औ्र आपका जो बच्चा होगा, यो दोनों की के बारे में कहीं science में लिखा नहीं। अब शक्ल से किस तरह मिलकर वनता है। ये कसे लोग मुझसे भी कहते हैं कि मां [आप जो कह रही बनता है ? कोई Scientist वनाकर दिखाये। वो किसी किताब में नहीं लिखा । अरे भई जो कोई Scientist पगर जमीन से पत्थ र उठाकर के किताब में लिखा है वो तो उद्धुत है ही और प्रगर उसमें से बच्चा पेदा करके दिखाये। या छोड़िये सब बात लोग पहले से ही लिख देते तो आप किस निकाल कर दिलाये । चौज़ दिन के लिए ग्राए है ? कुछ बात बताने के लिए भी Minus पेदा नही होते क्योंकि गणेश शक्ति से ही संसार Centre (चक्र) में बेठी हुई है। और इस centre अ्रब या छोड़िये कुछ बनाकर दिखाये । रखनी पड़ती है। और पहले बताने से भी फायदा वया ? उससे तो नुकसान ही होगा जो चीज तो किस चीज का इतना अहंकार है मनुष्य को ? ये कहा जाता है कि कोई भी अपने अ्द्दर पहले बताई गई, उससे बड़ी नुकसान हो गया शरीर के अ्न्दर कोई सी भी Foreign बोज प्राए. कोई भी बहर की चोज ग्राए तो [प्रापका] शरीर शराब मत पिथो क्योंकि वह चेतना के विरोघ में उसको फैक देता है । पर जब मा के पेट में बच्चा पड़ती है। अगर अरापने शराब पीना शुरू कर दिया रहता है. foetus होता है तो वह फेंका तो नहीं तो अपका जो है नाभि चक्र खराब हो जायेगा । जाता वल्कि उसको संजोया जाता है. सम्भाला सोधा हिसाब । क्योंकि आ्रपको चेतना जो है- जाता है, तब तक जब तक वह उस दशा में न जिस चेतना से आपको परमात्मा को खोजना है पहुँच जाये अ्रोर जब वह उस दशा में पहुँच जाता वो आपकी दब जाती है । बो भ्रापके नाभि चक्र में है तो उसको बराबर बाहर निकाला जाता है जो चेतना है, जिससे आप भगवान को खोजते हैं, करीने से । ये काम कोन करता है ? आप तो नहीं जिससे अप evolve (उत्कृत) हए हैं जिससे अ्राप कया आप सम्भालते हैं इसे ? आप ही क्यों पैदा अमीवा से इस stage (स्तर) में आए हैं। आपका हुए है ? अ्रापके ग्रन्दर जो कुछ सूरत-शक्ल है वो evolution (उत्क्रांति) रुक जाती हैं अगर अपने भो श्री गणेश शक्ति की देन है अब जब आप शराब पोना शुरू कर दिया। सोधा हिसाब । आप अज्ञान में बैठे है तो आप इस गणश शक्ति को evolve नहीं होते, आप पार नहीं हो सकते । नष्ट कर रहे हैं। सुबह से शाम तक आप इस डिसलिए कहा कि शराब मतः पियो । अब अगर शवित को नष्ट कर रहे हैं और इसको आप जितना किसी से कहो कि दा राब मत पियों तो उसकी हृद लोगों को । शब जैसे पहले बताया गया था कि भई हुए निर्मला योग हं इतनी कर डाली उन्होंने । एक हृद तो ये हो गई ज्यादा पकड़ रहा है, नई दिल्ली में ज्यादा Old Delhi में कम-सवाधिष्ठान चक्र। स्वाधिष्ठान कि कहा कि शराब मत पियों तो भगवान के ऊपर में उमर खय्याम साहब हो गए, अपने बच्वन जी चक्र वो चक्र है जिससे हम सोचते हैं । जब हम हैं, बड़े भारी कवि धूमते हैं । निकाला कि भई क्या रखा (इसमें) बुरा ? What's उन लोगों ने सो कने लग जाते हैं बहुत ज्यादा, तो यह चक्र बहुत ज्यादा चलता है अरौर इसके अन्दर एक शक्ति होती ? *ह है जिससे हमारे पेट का जो मेद है, जो Fat cells wrong ? What's wrong Nothing is wrong, If you want to be- हैं, उनको हम convert (बदलते) करते हैं, brain come stones तो क्या है ? There is no (मस्तिष्क) के लिए । अब सोचने की लोगों को thing wrong. (बुरा व्या है ? बुरा क्या ? बुरा इतनी बीमारी है कभी कभी मेरी समझ हो नहीं कुछ नहीं है। अगर आप पत्थर बनेना चाहे-तो आता कि सोचने की जरूरत क्या है। जैसे समझ क्या है ? इसमें कुछ बुरा नहीं।) आप जाकर कुछ लीजिए कि अरव किसी आदमी को बाज़ार जाना भो खाइये, पीजिये, हर्ज क्या है ? wrong कुछ है भई उठाओ झोला, जाओ बाजार । देखो क्या नहीं है। Right (अच्छा) ओर wrong (बुरा) सब्जी है, लेकर आ जाय्य । सबसे पहले घर में की तो बात क्या है, आपकी तो evolution को discussion शुरू हो रहा है कि आज भिन्डीं शक्ति खर्म हो गई। सोधा हिसाब । लेकिन एक बनाये या लोकी बनाये । बाज़ार गए हृद तो यह हो गई कि भगवान के नाम पर पचासों सब्जियां नहीं । पहले एक घन्टा वहां discussion गालियां, और सारे जितने साधु-सन्त हैं उनके नाम (बहस) हुआ Planning (योजना ) हो गया, पर गालियां । और दूसरी हृद यह है कि शराब नहीं पीने का है, तो ये हद हो गई कि दूसरी हृद लेकर आ गए जिसका कोई इन्तजाम नहीं । हर हो गई कि शराब जो पीयेगा उसके हाथ काट चोज में इतना सोचकर के हम लोगों ने कौन सा डालो, पेर काट दो, सर काट डालो। ये भी कोई नमूना है ? एक तो extreme (अरति) यह है कि लपेटना, मैं कहती है। आधे तो पहले, तो आघे को शराब पीना क्या है, मतलब तो बहुत बड़ी चौज़ हो गई। शराब क्या है, उसके ऊपर गजल हो, मुशवरा दिया उन्होंने जैसे कहते हैं न ऊँट पर बड़े फसाना हो गया, ठिकाना हो गया, सब चलता है । और दूसरी हद ये कि जब पहुँचे कि आपने शराब पी तो गर्दन आपकी कट गई भई एक बार किसी ने शराब पी, ठीक है एक बार पो तो उसका नैशा तो उतार सकती है लेकिन गर्दन निकाल दी तो उसका क्या करू? 0ut of proportion जा रहे. हैं [प्रव] इसी तरह अनेक चक्र अपने अन्दर इस तरह से हैं, जिनके बारे में खुलकर बतायं गे । मेरे र्याल से हम किसी भी चक्र के बारे में खास जानते नहीं। अगर जानते होते तो हम लोग उसके साथ ऐसे खेल-खिलवाड़ नहीं करते । तो दोनों बाजार गए तो वहां दोनों सब्जियाँ नहीं। तीसरी तमाशा करके रक्खा हुआ है, बोलिये । यही तो ऊपर से लपेट लिया । वो आये, बड़ा सलाह अवलमन्द आ्रये बैठकर । तो उन्होंने कहा कि हम आप से सलाह मशवरा करते पर हम ऊँट पर अआये है। उन्होंने कहा कि भई ऊँट से उतरो । कहने लगे, ही सलाह मशवरा नहीं साहब हम तो ऊँट पर से शुरू हो गया, सलाह मश- दूस रा प्रश्न करग । ती वरा तो गया एक तरफ, अब ये हआ कि ऊँट के साथ इन्हें अन्दर कैसे ले जायें । दूस री ही Prob- lem (समस्या) शुरू हो गई। याने जो Advisor General जो थे वो ऊँट पर ही जा रहे हैं। अब इन ऊट बालों का क्या किया जाए। अब दूसरी लपेटन शुरू हुई। कहा कि अच्छा अगर ऊँट वाले आ रहे हैं, तो ठीक है, ऐसा करो-कि प्रश्न तो ये था कि इनको अन्दर के से लाया जाये। तब ये हुआ तीसरा चक्र हमारे अन्दर जो है बहुत महत्व- पूर्ण है जो कि दिल्ली शहर के अन्दर बहुत ही निमला योग १० कि अच्छा यह है कि इतना बड़ा भारी जो दरवाजा रोक पाते । उनका विचार एक क्षण भी बना हआ है उसको गिरा दें। इसके अन्दर से बो नहीं रुक पाता। ऐसा लगता हैं जैसे कि उनके अन्दर आयगे । जब तक महाशय अरन्दर गए तो जो अन्दर से विचार के दो सींघ निकलते चले आ रहें प्रश्न थे वो तो एक तरफ रह गए, इतना ही एक हैं बाहर (मुझको दिखाई देते हैं ) प्रश्न खड़ा हो गया कि इन्होंने ही सब चीज़ गिरा मिनट भी उनसे कहें कि विचार रोकें तो विचार फिराकर रख दी । अब एक रोक नहीं पाते, ये उनकी दशा है । माने ये कि ये बह गए वित्रारों के अन्दर, विचारों ने इनको हाबी कर दिया। जितने बाहर के लोग हैं जितना पढ़ा- इस तरह हमारा Planning (योजना बनाना) होता है, इस तरह का हमारा सोच वि चार है । लिखा, सोवा-समझा जिनको आप समझते हैं वो तो जो Basic Problem (बुनियादी समस्या उस Problem की और तो चित्ति नही बाका प्रापको आप खोजने से मिलते ही नहीं। दुनिया भर की । क्या basic problem है हमारी ? क्या basic problem है ? ) हूँ श्रपके अन्दर हो गए है और आप हो गए है बाहर अ्रति सोचने से भी स्वाधिष्ठान चक्र खराब हो जाता है । अब आपको कोई कहेगा कि मां ये कैसे हो सकता है, वगैर सोचे कैसे हो सकता है । भई पहले से क्या सोच ते हैं ये ही आज तक समझ में नहीं प्राया कि आप पहले ही से क्या सोचते हैं । अगर पहले ही सोचकर काम होता तो उस तरफ जाने की जरूरत ही क्या है ? Basic problem एक ही है कि हमने अपने को जाना नहीं। हम जानते ही नहीं कि हम ससार में क्यों आये हैं-पहला। को हमें जानना चाहिए। उसे किस तरह से जाना जाए-ये ही तो हमारी basic problem है। और इसके लिए हमने क्या किया ? सूर्य पर गए, ओर कि उस दुसरा यह समझ लीजिए हमें गांधो-भवन जाना है अगर हमें गांधी-भवन ने का है तो हम चल दिये । रास्ते में पूंछ लिया भई कहां जाना है, और और यहां (गांधी-भवन) आ गए अब] पहले से हम सोचने लग गए कि हो सकता है अगर गांधी- भवन जाना है तो इधर से जाएं फिर उधर से जाएं फिर उधर से जाएं, क्या करं ? फिर ऐसा करते हैं इस तरफ से चलेंगे तो कहते कहते किसी ने कहा कि तुम उस तरक से उतरो, तो अच्छा । भई आप चल पड़ो, चार प्रादमियों से चन्द्रमा पर गए, इधर गए, उधर गए। और पाया क्या ? ये ही जाना कि आप चीज क्या है ? आप हैं क्या ? इसी को नहीं जाता बाकी दुनिया भर की चीज़ भप जानते रहिये । जैसे कि वो जो आदमी को बुलाया था सलाह मशवरा करने वाला उसने आकर सब तहस-नहस कर दिया। उसी तरह से हमारा सारा विचार हमें तहस-नहस सुबह से शाम तक करवा रहा है और आज अब इस दशा में इन्सान आ गया है कि जब जब उस की ओर मेरी नजर उठती है तो मैं देखती है, पहले जमाने में इतने ज्यादा सोच विचार का घंधा नहीं चलता था। पहले लोग शान्त थे. हर चीज़ सोचते नहीं थे । रहेगा पूंछ लो रास्ते में और पहुँच जायेंगे । पहले ही आपने एक घन्टा देर लगा दी पता लगाने में कि सी चीजें accept (मान लेना) कर लेते गांधी-भवन कैसे पहँचना है । अब पता हुआ कि बहुत थे । बहुत सो चौज़ों के साथ--जैसे सामने आ जाये, चलो भई ठोक है ऐसे ही। आजकल ये है, सोचना विचारना । तो क्या वो ऐसे जुट गए हैं सोचने विचारने में कि एक मिनट भी अपना विचार नहीं आप वापस आपनी मंजिल पर आ गए, पहुँचे नहीं। इसी एक चक्कर में आप धूम गए और फिर बापस । और अगर आप जानते भी नहीं जानना है अभी हमें। हमें अभी देखना है, इस चीज पर आदमी निर्मला योग ११ विचार करता है पर अभी हमने जाना नहीं है वह जाती है कि लोग उनसे बात करने में भी जब तक सोचता क्या है, प्रभी तो हमें देखना है । होता क्या है? ्गे चलें देखे क्या होता! है ? जब आदमी अपनी बुद्धि में इस तरह खुला दिमाग रखता सकते । इसलिए मनूष्य को अपना विचार जो है है वो सही मंजिल पर पहुच सकता है । और जो ऐसा रक्खे-कि देखा जायेगा। जो सामने होगा, आदमो पहले से ही Preconditioned mind वही होगा. वही होना है, चलिए जै सा हो, देखेंगे । देखे अगे आप 5 Year plan (पंच वर्षीय योजना) की बात न करें तब तक अप किसी चीज पर बात नहीं कर हैं है उसका, पहले से ही उसने सब सो व लिया कम से कम सहजयोग के लि ए ऐसा ही विचार कि भगवान का मतलब ये होता है और रखना चाहिए। आप अरगर पहले ही से बहुत पढ़ कुण्डलिनी का मतलब यह होता है । बहुत से लिखकर आए हैं तो आप मुझसे ऐसे सवाल लोग तो यह कहते हैं कि कुण्डलिनी पेट में होती है । पूछियेगा जिसका कि कोई उत्तर नहीं पायेंगे । मैंने कहा मैंने तो नहीं देखी । अगर कोई आकर मुझसे लोगों ने ऐसे ऐसे सवाल पूछे हैं कि मुझे मेरा माथा खाये कि आपका हृदय जो है यहां पर कभी बड़ा आश्चर्य लगता है इसलिए मुझे होता है तो उसे क्या कहा जाये। होता नहीं है, आपसे यह कहना है कि पहले आप प्रपने मन से होता जहां है वहीं है । कम से कम आप देखिये तो कहें या बुद्धि से कहें, कि इस वक्त ऋप जरा शान्त सही वहां है या कहां है। इस तरह से जिद ग्रादमी हो जाइये अ्और अव जरा आप इस चीज को पा बना लेता है और जो कुछ किताबों में लिखी हुई लीजिए । क्योंकि चक्रों का खराब करना चीजें हैं वो कोई last word (गप्राखिरी शब्द) तो बहुत आसान है, उतका ठीक करना बहुत है नहीं, कि भई आखिरी तत्व तो है नहीं जिसके मुश्किल। आगे कोई तत्व नहीं। अगर ये होता तो आप संशो- घन किस चीज का करोगे। स्वाधिष्ठान चक्र के खराब हो जाने से अनेक बीमारियां होती है। एक बात पच्छी है कि बीमारी तो मनुष्य की बुद्धि में संशोधन होता चाहिए, हो जाती है। अगर बीमारी न हो तो आदमी प्रपने थोड़ा दिमाग होना चाहिए Preconceived को कभी न ठीक करे। क्योंकि बीमारी के सिवा idea नहीं होना चाहिए । वो Open लोग समझ ही नहीं पाते हैं कि श्रीर भी कोई चीज अन्दर खराब है। वो तो सिर्फ बीमारी समझता प देख गे तो हैं । अधिकतर लोग तो सिर्फ बीमारियां ठीक करने minded (खुले-दिमाग वाला) होना चाहिए । और खुले-दिनाग से जब अप जो सत्य है उसको फोरन पकड लगे। बजाय आते थे । अब उनको समझ में आया है कि और इसके कि हां, किसी ने कहा भई कि हमने किसी से भी अ्रशुद्धि यां, खराबी हो गई हैं जिन्हें ठीक करना है । लेकिन पहले तो सिर्फ वीमारी ठीक कराने कहा कि आप वहां जाइयेगा तो वहां आापको घन्टा- घर दीखेगा। ठीक है। हमने घन्टाघर देखा था, वही घन्टाघर तो उन्होंने कहा हो सकता है कि आप किसी और घन्टाघर पहुँचे ।Preconceived ideas जो हैं, उससे आदमी इतना conditioned हो जाता है कि उसको समझाना मुश्किल हो जाता आते थे । अब सबसे पहले बीमारी, जो आदमी बहुत Planning करता है. उसे कीन कौन-सी होती है ? उसको सारी पेट की बीमारियां- जैसे liver ( । जिगर) खराब, liver जरूर खराव होता है है कि भई आगे जो सत्य है वो सामने प्रकाशित क्योंकि Iiver जो है बो सारे poisons (विषों) होने वाला है, उसे आप स्वीकारं । क्योंकि उसकी को अपने शरीर से बाहर निकालता है । लेकिन जो बुद्धि इतनी high-class (उच्च श्रेणी) की हो आदमी जरूरत से ज्यादा सोचता है वो बेचारे निमंला योग १२ स्वाधिष्ठान चक्र को इतना थका देता है कि वो (पराकाष्ठा ) ली है तो balance देने के लिए liver को देखता ही नहीं और liver पनप सकता हमें यह बीमारी शुरू हुई है। यह balancing ही नहीं। उसकी जितनी भी चेतना है, जो भी उस बीमारी है जिससे अरादमी समझ ले कि हमने बडे की awareness (अवेपरने स ) है वो सारी इसमें unbalance लगी रहती है कि बो किसी तरह जल्दी-जल्दी आदमी सोचता है, तो diabetes की बीमारी brain cells बनाए और brain काबू में रखे, Brain को तो सप्लाई (Supply) हैं, उनको करे। तो सारी emergency (आपात स्थिति) कभी dibetes नहीं होती। वो हर समय carbo- brain में अा जाती हैं और उसके लिए लिवर hydrates खात रहते हैं। वो तो एक cup में (Liver) जो है बेकार है, Liver की तरफ चित्त एक मन चीनी भी डाल तो कहंगे फीका है। बहुत नहीं जाता है और Liver खराब हो जाता है। Liver खराब होने के बाद जब उस आदमी को cirrhosis हों जाये या Liver cancer हो तभी लोगी को अगर चाय चाहिए तो एसा लगेगा कि डॉक्टर लोगों को पता होता है अर वो इतना वता । सकते हैं scientifically ( आप इतने दिन में मर जायेंगे। मेरे पास तो ऐसे ही बनात हैं। तो इस तरह के लोगों को तो कभी ही लोग आते हैं जो certificate ( प्रमाणा-पत्र) लेकर आते हैं कि मां हमको तो बता दिया है कि के लोगो को diabetes नहीं होती, शहर के लोगों आप एक महीने में चल बसेंगे। बहरहाल यह हो की ही होती है क्योंकि बहुत सोचते हैं । और सोच गया कि वो ठीक हो गए हमारे पास आने पर । दरप्रसल अब यह आपका स्वाधिष्ठान चक्र खराब है औ्र वो ठीक होने पर आपकी बीमारी ठीक हो जायेगी। से काम किया है । बहुत ज्यादा जब (मस्तिष्क) को होती है। जो लोग सोचते ज्यादा नहीं हैं जैसे villagers (गाँव वाले) वरगैरह मीठा खाते हैं तो उनको तो हमेशा फीकी ही लगती हूं। खासकर में रठ में प्रगर आप जायें तो आाप उन्होंने चीनी घोलकर पहले, फिर चाय बनाई है ऐसा नहीं लगेंगा कि चाय बनाई है। वो तो चीनी वैज्ञानिक रूप से) कि diabetes नहीं होती। कभी आप देखियेगा, देहात सोच के क्या बनाया? एटम बम (Atom bomb) और क्या बनाया ? और यह बनाकर भूत ऊपर रखे दिया अर नैचि सब डर रहे हैं। अब एटम बम बनाने से इतना जरूर फायदा हो गया है कि सब सहम गए। इतनी बेवकूफी की, उसका यह उससे दूसरी जो खराब बीमारी होती है वो फल निकल आया । अब इससे ये जो भूत ऊपर बैट है Diabetes ( मधुमेह) क्योंकि यह ही एक गए हैं तो कहीं बटन दबा देंगे तो हम सब खत्म हो चक्र है जो सबको Supply करता है। तो आपके जायेंगे। तो यह बहुत अव्लमन्दी करके निकाला Pancreas out of gear (खराब) हो गए और जो भी उस्होंने अन्वेषण किया उस अन्वेषण में आपको diabetes हो गई और लोग कहते उन्होंने ऐसा इन्तजाम कर दिया है कि एक क्षण हैं कि diabetes uncurable ( लाइलाज ) में सारी दूनिया साफ की जा सकती है। अब सब * fE है । बिल्कुल ही uncurable क्योंकि आपने ही बीमारी ली और प्राप ही इसे यह तो पता नहीं था हमें कि खोज खोज के अपने ठीक कर सकते हैं । अव diabetes की बीमारी ऊपर बारूद लगा दी हमने । अपने ही सर पर आपको अगर हो जाये तो लोग कहते हैं कि साहब बारूद रख करके ग्रव इतना जीना मुश्किल हो गया इसमें Sugar जायेगा, ऐसा होता है वैसा होता है । है [अब सब Shocked ( घवराई ) हालत पर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा भी हो सकता मै हैं अऔर अब बडी बडी किताबें निकल रही हैं कि है कि हमारे liver (जिगर) ने extreme line अब तो थोड़े दिन में दुनिया खत्म हो जाने वाली ह नहीं है सहम करके बठे हैं कि साहब ये क्या हम कर गए । निमला योग १३ া है। पूरा इन्तजाम इन्होंने कर लिया। सब Anti God Activities (भगवान के खिलाफ काम) हैं। सोच समझ कर जो चीज़ की कौन-सा आपने विशेष नाम किया। मेरी तो आज तक समझ में नहीं आया । अपना सोच जरा सा कम कोरिये । और विचार भी थोड़ा कम करिये लेकिन कहने से भी तो होगा नहीं। अगर कहैं कि विचार नहीं करो, विचार नहीं करो, तो नहीं होगा । कि आप एक महीने में मर जायेंगे । इसका मतलब नहीं हैं कि अप दुनिया भर के BIood Cancer के केस मेरे पास ले आएं । मतलव ये हैं कि आप लोग तो यहां आए है अपने speedometer लेकर ले किन हम क्यों इससे ही वंध जाय । इसका मतलब ये नहीं कि आप लेट लतीफ हों, ये भी नहीं है । इसका सबसे बड़ा मतलब ये है कि आप उतना ही करिये जितना आपके बस का है । आप इन्सान मैं कहै कि अपना Speedometer जरा कम करो। Speedometer के बारे में मैंने लोगों सें है। मशीन भी जितना नहीं कर सकती उससे बताया और मैं आपसे भी बताती हैँ। हमारा परापने क्या किया-वही Atom bomb (परमाणु Spleen (तिल्ली) जो है वो Speedometer है । और जब खाना खात हैं तो कोई न कोई ऐसी बात सोचने लग जाय, मतलब बड़े विवारक लोग हैं न ! बड़े काविल, तो कावलियत पपनी भाड़ने के लिए पूछना चाहती जब खाना खाते हैं तभी उसी समय नौ बजे प्रायेगी लड़ना केसे चाहिए, झगड़ा कैसे करना चाहिए, news (समाचार), जब आप खाना खा रहे हैं । तब आ्पको इत्मीनान से खाना खाना चाहिए । आपकी बीवी आपको पंखा झल रही है, आराम से लोगों को War (युद्ध) के नाम पर किस तरह बैठकर आप खाना खा रहे हैं। उस समय news (समाचार) आयेगी कि फलानी जगह दुर्घटना हो लिया है । और क्या किया है ? कोन सा अच्छा गई। आपका खाना गया काम से। लगे आप सोतने उसी बात के लिए । सवेरे जल्दी भागना है लगे कि साहब हमने social work (समाज कार्य) क्योंकि Office (दप्त र) नौ बजे पहुँचना ही किया है । यह S0cial work तो आपके लिए चाहिए। तो एक हाथ में आपका बक्सा, एक हाथ इसलिए तैयार हो गया क्योंकि अ्राप वेवकूफ हैं। में आपकी छतरो, और आपके मंह में कुछ ठूंसा जा उयादा आप क्यों करना ाहते हैं और करके भी चम या एटम बम) । क्या किया है तरापने ? मैं तो इन्सान से यह हैँ कि उन्होंने सीखा है : आपस में ग्रुप वाजी कैसी करनी चाहिए, किस तरह से Murder (कल्ल ) करना चाहिए। दूस रे देश के खत्म करना चाहिए। ये सब इन्तजाम आपने कर काम आप लोगों ने आज तक किया है ? कहने अगर पहले से प्रापने बेवकूफी नहीं की होती और आपने लोगों को इतना सताया नहीं होता, ऐसे-ऐसे Customs (रीति-रिवाज) नहीं बनाते जिनसे सब को तकलीफ हो रही है, तो कभी न होता ऐसा यानि कभी आपको social work की जरूरत ही नहीं पड़ती। मतलब है कि जो लोग धमं में खडे हैं जरूरत ही नहीं उनको धमं सिखाने की, कि आप रधम मत करो। जो धर्म में ही खड़े हैं उनको क्या रहा है। बाहर। पीछे दूध लेकर के कोई और दौड़ रहे हैं। ये तो आपके खाने की व्यवस्था है । आप इस हालत में भागे जा रहे हैं इसमें आपका जो speedometer (गति- मापक) है, जो आपका spleen है, वी Crazy ही जाता है, पागल हो जाता है और इसी से आपको Blood Cancer ( रक्त का केंसर) की बीमारी हो जाती है । अब हम लोगों ने कितने ही Blood Cancer ठीक किए हैं जिनको के Doctors (डॉक्टरों) ने certificate (सर्टीफिकेट) दे दिये थे जरूरत है ? यह चक्र (भवसागर या Void) हमारा धर्म बताता है । हमारा धर्म मानव धर्म है। और मानव निर्मला योग १४ धर्म में दस हमारे अन्दर गुण होना जरूरी है। यदि हम में ये गुण नहीं हैं तो हम मानव नहीं हैं. अ्दर क्या दोष है और दूसरे के प्रन्दर क्या दोष है दोष बाह्य दोष-नहीं कि साहब वो साहब थे या तो हम जानवर हैं या शेतान हैं । ये दस गुण और वो लाल रंग का कपड़ा ही पहनते थे या वे हमारे अन्दर जो हैं वो हमारे इस चक्र के चारों साहब थे उन्होंने ऐसा कर दिया या वो उस तरफ से बंवे हुए हैं और बीच में जो हमारे नाभि Political लीडर (राजनीतिक नेता) के साथ थे चक्र है उसमें ये हमारे दस बमों की पंखुडियां हैं । और उन्होंने दल बदल दिया, यह चक्रों में, सूक्ष्म में आपके तस्व में कौन सा दोष है यह आप समझ जाते हैं और आपके दोष, तत्व में खराबी का पता अब धर्मों का मतलब ईसाई, मुसलमान, हिन्दु पार होने के बाद, आपको चल जाता है इतना ही या आपस में सर फोड़ना नहीं है । हमको तो धर्म नहीं, सहजयोग में गहरे उतरकर के जब आप का मतलब यह मालूम है कि इंधर ये एक निकला, इसकी पूरी विद्या को सीख लेते हैं-इस "निर्मल उधर से दूसरा निकला और लड़ाई हो रही है। विद्या" को सीख लेते हैं; या इसको कहना चाहिए झगडा हो कि अपने Master हो जाते हैं, अतिमानव संत हो ं जागृत हो जाता है, आप धर्मातीत हो जाते हैं। आपकी चेतना में नया सकता । जो कि घर्म जो हैं जिसकी धारणा होती आयाम (New dinmension) आ जाता है, आप है तो मनुष्य जो है तो ऐसी कोई चोज बन जाता चंतत्य लहरियां (Vibrations) महमूस करने लगते है ऐसा उसका व्यक्तित्व कुछ ऐसा हो जाता है हैं आपकी शारीरिक, मानसिक, समस्याएं आपसे जिससे वो अपनी सार्वजनिकता कहिये या जिसको दूर हो जाती हैं । इसलिए हमें समझ लेना कि Collectivity ( सामूहिकता) कहते हैं उस चाहिए कि कम से कम हमारी तन्दरुस्ती जो इन धर्मों की ओर हमारा विशेष घ्यान है। अरे भाई क्या हो गया ?- धामिक गया । धामिक भगड़ी भी क्या हो सकता है, ये भी जाते हैं आप में घम हमारे जैसे बेअक्ल लोगों की समझ में नहीं पा गुरू न ठीक रख सके, तन्दरुस्ती का जिसको सम्भाला न जाये, ऐसे गुरू के पास जाने की जरूरत नहीं है । हैं, को प्राप्त हो जाता है, वो "वह हो जाता है। वो Collective हो जाता है। बो झगड़ा कैसे करेगा? क्या आप प्रपनी उँगलियों में उँगलियों से झगड़ा होता है, क्या ये एक दूसरे को मारती है ? आप उस तरह हो जाते हैं, आप में Collectivity आ जाती है। जब यह धारणा मनुष्य में हो जाती हैं--यह धारणा जानवर में नहीं होती। यह घारणा जब मनुष्य में हो जाती है, जब घम की धारणा होने के बाद यह घर्म हम में जागरूत हो जाते हैं, उस सहजयोग में इस दृष्टि से आप पारंगत हो जाते हैं किस तरह हमारी लन्दरुस्ती ठीक रहनी चाहिए किस तरह से हमारे चक्रों में दोष है, उसे ठीक । करना चाहिए, कम से कम । क्योंकि आप स्वयं डाक्टर हो जाते हैं. आप ही दवा हो जाते हैं और आप ही diagnosis (निदान) करते हैं। मनुष्य समय कुण्डलिनी जागृत होकर के चक्र को भेदती हो सब कुछ हो जाता है, मनुष्य में ही सब कुछ है। हुई ऊपर चली जाती हैं, तब मनुष्य के अन्दर में जो कुछ भी बाह्य में आप देखते हैं वो सभी भीतर जसे आप यहां बैठे हैं और आपको पता लगाना है कि आपके किसी सम्बंधी की तबीयत कैसी है । आप टेलीफोन कीजिए पैसा खर्च करिये, ऐसी कोई जरूरत नहीं। आप खुद ही देखिये, कैसी तबीयत है आपको स्वयं पता चल जाएगा कि कोन से चक्र में पकड़ आ रही है । अगर left (वायी तरफ) में सामूहिक चेतना जागृत होती है, जागरूत हो जाती है । है। इसलिए मैं कह रही हैं-यह lecture देने की बात नहीं है, यह अपने आप ही घटना हो जाती है । खुद ही महसूस करने लग जाते हैं कि आपके श्रति । निर्मला योग १५ लीtc। पकड़ आ रही है, तो इसका मतलब है कि उनके हैं मैंने और आप यहां बैठे हैं थोड़ी देर में देखियेगा मन पर pressure (दवाव) है और अगर Right Vibrations आ जायेंगे, हाथों में। वसे लेकिन दायी तरफ) में श्रा रही है तो कुछ शारीरिक है । और उसके बाद चक्रों पर पता लगा लीजिये कि मुश्किल हो जाएगा। "क्या वात थी ?" "माताजी कौन से चक्र में बाधा है । जो Code है उनका वो ऐसा था कि मैंने कही जाना था Decoding हो गया है और अगर आप समझ Religious duty (धार्मिक कर्तव्य) हो गई न ।' ले तो आप फौरन बता सकते हैं कि इस वक्त उनकी क्या हालत है । यहां बेठे बैठे आप उनको बंधन दें और उनको Vibrations दें तो वहां वो ठीक हो जायेगे । यह सब आप कर कल की मीटिंग में आप नहीं आयेंगे, वो भी बड़ा ," वो तो केसे मना करता, मैं चला गया। उसकी गहराई, उसकी गम्भीरता, उसकी विशेषता, उसकी महानता, कुछ हमारी समझ में ये लोग जो तीन तीन महीने मेरे नहीं आती है। सकते हैं। कब, जब आप इस शास्त्र को सोख लेते हैं । हाथ तुड़वाते हैं, ये लोग समझते हैं । तो बजाय इस के कि आप लौग जमें ये लोग जम रहे हैं. और ये नहीं कि आप पार हो गए कहने लगे आप उखड़े-उखड़े घूम रहे हैं। हिन्दुस्तानी सहज माताजी ने हमें पार कर दिया । फोटो ले जा रहे योगियों का वाकई ये हाल है कि उखड़े-उखडे घुमते हैं । उनमें तो गह तता नहीं आती । ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि चलिए मेरे पेट में दर्द हो, वो ठीक कर दीजिये। मेरे लड़के की शादी करा दीजिये या और कुछ नहों तो जर। बढ़कर के का न में यह कह देगे कि माँ मेरा आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ है। फुल लेकर चले आए और कान में कह दिया, मेरा आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ है, उसे ठीक कर दीजिए । अरे भई क्यों पकड़ा हुआ है, केसे हुआ । कुछ उस मैं तो नहीं- मेरे हैं क्योंकि हम पार हो गए। इसके बाद एक साल बाद मिले, कहने लगे, "माता जी क्या बताएं हमारे तो Vibrations अच्छे नहीं हैं ।" आज जो पंत जी ने कहा, वो विल्कुल सही वात है । लोग यहां आते हैं, पार हो जाते हैं, फिर खो जाते हैं। चलतो का नाम गाडी। आाये, पार हो गये, काम खत्म । फि र आए, जसे थे फिर बही शुरू हो गया।"माता जी हमने पकड़ लिया, ऐसा हो गया, वैसा हो गया" माता जा पर study (अध्ययन) नहीं। पान time (सभय) नहीं। यह गहने गम्भीर बात है, यह frivolous (हंसी-मजाक) बात नहीं है। इसलिए मैं आपसे कहै गी कि भारतवर्ष में हर चोज आसान है, हर बीज मिल सकती है । यह ऐसी योग-भूमि है । यहां इतने बड़े बड़े अवतार हो गए, इतनी बड़ी वड़ी यहां चीजें हो गई हैं यहां का सारा प्रान्त जो है vibrated है । यह विशेष ही भूमि है, इस एक छोटी सी चीज है कि ध्यान के बाद, आप थोड़ी देर अपने पर पानी में रखें और अपने vibra- tions पायें । जो कुछ खराब है, उनको निकाल दं । सफाई जैसे हो जाये । जैसे आप नहाते हैं, इस तरह रोज श्राप नहाईये य से । हम लोग अगर कोई एक दिन आदमी न नहाये तो सोचते हैं, बड़े ही गरन्दे लोग हैं. नहाते नहीं। हिन्दुस्तानियों का तो यह हाल है कि उनको कोई कह दे कि नहीं नहायेंगे तो जैसे उनको तो जेव हो जाये। लंदन में अगर आप [सबेरे नहायें और इसके बाद बाहर निकल जाये तो आप को बहुत बीमारियाँ हो सकती है । खास करके लिए यहां पार भी लोग खट से हो जाते हैं । बड़े जैसे कि जितने भी Foreigners (विदेशी ) आए हैं और यहां बैठे हैं, एक एक आदमी पर तीन तीन महीने हाथ तोड़े ही जल्दी आप पार हो जाते हैं । निर्मला योग १६ he उस चोज को भी नहीं पकड़ते हैं तो मैंने कहा कमाल हो गया, विल्कुल वेकार लोग हैं। कॅसर हो जाता है Lungs (फेफड़ों) का । और मैं ने इतने हिन्दुस्तानियों से कहा तो उन्होंने छोड़ दिया सहजयोग और फिर कंसर से मर गए इतनी ज्यादा समस्या है, इतना उथलापन है ले किन ग्रगर उनसे कहा जाये कि हमारी आत्मा और एक तरह से कोई भी चीज़ को महत्व नहीं की भी स्नान होना चाहिए, हमारा जो भी आत्म- करते हर चीज़ का मजाक मजाक बना लेना । अपना भी तो मजाक बन रहा है । जो आप सों चते हैं कि सबका मजाक बना रहे हैं, आपका भी मेजाक बन रहा है और अपने को भी ऐसी गडबड़ में आप फंसा रहे हैं कि उससे निकलना बहुत जीवन है, उसका भी स्नान होना बाहिए, उधर किसी का चित्त नहीं रहता, उसकी महानता, उस की गम्भीरता में । इसलिए, जो कि आपने एक किस्सा सुना होगा। मुश्किल है। वहुत ही मुश्किल है । एक इम्तहान में ज्यादातर Mathematics (गरिणत) में सवाल आते थे जो मुझे अब समझ में जैसे सहजयोग ऐसी चीज है जो आपको पाना है। यहां देने का कुछ नहीं सिर्फ पानेका है । लेकिन लीगो को यह समझ में नहीं आता कि अगर कोई देता है तो उसका महात्म समझाना चाहिए। हो, अगर मैं आपसे कहैं कि साहब कल से आप यहाँ आर्येगे तो सो रुपये का टिकट लगायेंगे तो देखिये प्रा रहे हैं। तब तो समझ में नहीं आते थे । कहते थे कि एक A आया, उसने काम किया वां दूसरा आया उसने वां किया, फिर तीसरा आया उसने इतना किया फिर चले गए, काम कब खत्म होगा? होगा हो नहीं, जब इतने भगोडो को आप 'लेकिन मेरी नरसोब में भी ऐसे यह सब भेर जाएगा। यहां बड़ी पेटी लगाइये लगाइंगा | सेवा के लिए"-लम्बी पेटी तो भर जायेगी और लोग बढ़ जायेगे। यहां आयेंगे तो मैं कहँंगी कि कुछ नहीं, आपको नाम दूँगी-कहेगे, "वाह ! हमें बहुत आए हैं। मैरो यह समझ में नहीं आया कि सहजयोग का काम पूरा क्यों नहीं हो रहा है । होगा कसे, जब भगोड़ों से पाला पड़ा है तो होगा तो नाम मिल गया-नाम मिल गया। अगर कैसे ? आप किसी को वेबकूफ बनायेंगे तो लाखों मिल "वेवकफों की कमी नहीं, रालिय बिन ढूढे हजार मिलते हैं ।" उधार मिलते हैं, यह हालत है और प्रगर प्राप देखिये जो गुरू लोग हैं, जो रुपया पेसा ले रहे हैं और जो आज कैसी-कैसी बेवकूफियाँ जाएंगे। गालिब ने कहा था, " जब जमने वाले ढुंढ़े जायें, जो जमें। हम देने को तैयार हैं, सब शक्ति देते को तैयार हैं, सब बताने को तैयार हैं, तब हो ठीक मामला । लेकिन जमने वाला ही मुश्किल है, ऐसे सबालात जहां पूछे जाते हैं । यही समझ लोजिये कि हमारे हित में जो बढ़े हुए हैं, उन्होंने फैलाई हैं, उसे गम्भी रता से पकड़ना है । जिसको पकड़ना हैं और उन बेवकूफियों में कैसे लोग आ रहे हैं। चाहिए उसको नहीं पकड़ा। पहले तो समझ में एक गुरू सा० यहां दिल्ली आये थे तो सारी दिल्ली बन्द हो गई थो। लोग पागल हो गए थे । अब उन के बारे में किताबों में निकल रहा है, अखबारों में निकल रहा है, ये निकल रहा है, वो निकल रहा है, लेकिन जो चोज जीवन के लिए सबसे महत्व - अरब धीरे धीरे उनका सब निकल रहा है । लेकिन ये जमाना था कि दिल्ली में रात को कोई चल फिर नहीं सकता था, ऐसे थे ये गूरू महाराज । अरजीब आता नहीं था कि कोई चोज़ ऐसो है ही नहीं पकड़ने लायक कि जिसको पकड़ा जाये । पूर्ण है जो आपको समर्थं बनाती है याने आ्पके अर्थ के बराबर आपको बना देती है। जिसके वगैर आपका जीवन पूरी तरह से व्यर्थ और निरर्थक हैं, अजीब तमाशे हैं, मैं अ्रापको क्या बताऊँ । निर्मला योग १७ मेरे जैसे अजनबी के लिए तो यह है कि इनको है, साबित कीजिए | वह कहेंगे, आप चलिए, आप कसे बताया जाय इसका महात्म ये, चोज वहत भारो है। जैसे कि किसी इन्सान ने कभी हीरा देखा नहीं, उसकी कीमत कभी आँकी नहीं, ऐसे बिल्कुल देहाती लोगों को (नहीं देहाती जाता है। सब लोग पाते हैं और गह रे उतरते हैं । इतना महान् है का Admission ( दाखिला) खारिज । । यह सीखने की जगह है, यह जानने की जगह है, यह पाने की जगह है, यहां नम्रता पूर्वक आरया समझदार होते हैं, मैं किस को कहूँ) उनके तो और समझते हैं और तभी वो पनप कर बड़े हो पास प्राप ले जाकर उसे दिखाये । समझ लीजिए सकते हैं जबकि वह उसको पायें |। इस चीज को कि उरंग-उटान है, उसके सामने राप हीरा रख हम रोज़-मर्रा के जीवन में किस तरह, किस तरह दीजिए। वो एक चपेड़ मारेगा कि आप देखते ही समझते हैं ? गंगाजी बह रही है आप अपनी गगरी रह जाइये। उसी तरह की हालत कभो कभी हो ले जाइये । गँगाजी जितनी बड़ो गगरी बहुत होगी, उतना ही उसमें पानी भर देंगी। उस वक्त क्या সप जाकर गंगाजी से प्रश्न पूछते हैं? उसी प्रकार यह गंगा बह रही है, समय आ गया है, वक्त आ गया है इस वक्त आपका साक्षात्कार होने का समय है। पऔर इस देश में यह बहुत जोरों में है। शह रों में जरा देर से होता है पर गाँवों में बहुत जोरों में जाती है । यही हीरा ही नहीं यही १ाने का है, यही सब कुछ है, इसी को पाइ्ये, यही कुछ लेने का है और कुछ भो नहीं है बातें कहती है, हो सकता है ६० फीसदी बातें किताबों में नहीं मिलतीं । यह बात जरूर है कि जो मैं । हो रहा है। बहुत जोरों में । उसका आपको साक्षात्कार करना है। आपको रात्म-साक्षात्कार करना है। उसको लेकर के कोई साहब झगड़ा खड़ा कर दिया। कहने लगे कि आपने कहा कि हो गए, तो कोई हमारे सामने कोई बहां ऐसा यह बुद्ध का स्थान है, यह महावीर का हैं, यह हम बहुत सुन्दर कुछ (हॉल) नहीं था । कुछ मन्दिर पर कैसे जाने गे ? मैंने कहा, है या नहीं आप जान चढ़े थे, कुछ इधर उधर खड़े थे और सारे के सारे जायेंगे, पहले आप पार हो जाइये। अगर आप जान नहीं सकते तो यह आधका दुर्भाग्य है ये तो मुझसे (सह जयोग केन्द्र) भी बन गया और चलने लगी ऐसे पूछते हैं कि जैसे मैं पालियामेंट की मेम्बर ही बात आगे । हूं । मैंने कहा कि जो मैं कह रही हैं उसकी सत्यता मैं आपको तब दूंगी जब आप इसके काविल हो जायेंगे। पहले आप पा लीजिये । जहा बुद्ध और और बाकी लोग रह जायें । इसलिए अपने अपने महावीर हैं, बो है या नहीं ये देखने की पहले आखं तो भ्रापके अन्दर आ जाये । । यह समझने सर्वाल पूछ रहे हैं ? क्या आप (विश्व-विद्यालय) में जाकर Vice Chancellor (परिचय) आपको बताया है, कल मैं इसको विशेष (उप-कुलपति) साहब से १हले ही पूछते हैं कि रूप से और पूरी तरह से समझाकर आपको क्यो कार्बन डाई ऑक्साइड में कार्बन व अरॉक्सीजन बताऊँगी। हम अभी एक गाँव में गए थे । वह ६,००० लोग आये थे, ६,००० लोग । और वहां हम खड़े पार हो गए और जम गए वो। और बहां Centre कहीं ऐसा न हो जाये कि सारे वाहर जो हैं वो भगवान की छलनी में से छन कर नीचे गिर जायें अखि अस्तित्व को, अपने, अपने गरिमापन को पाइये । पहले ही क्या मुझसे उुसको जानिये और उसमें समाइये University की बात है। आज थोड़ा सा Introduction निर्मला योग १८ -अनुसरणीय- १. श्री माता जी या उनके फोटो को ओर कभी भी सामहिक ध्यान या पूजा के समय अपनी पीठ नहीं करनी चाहिए । २. केन्द्र पर सामूहिक ध्यान के समय केवल एक व्यक्ति द्वारा ही फोटो पर कुमकुम लगाना चाहिए । ३. पूजा या ध्यान के पूर्व माता जी के फोटो को कुमकूम लगाने के बाद ऊंगली में बचा कुमकुम अपने लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए । हाथ साफ करके अपने लिए कुमकुम का इस्तेमाल करना चाहिए । ४. श्री माता जी का, आगमन पर स्वागत करते समय तथा विदा करते समय, एक दो सहजयोगियों को ही केन्द्र के प्रतिनिधि स्वरूप माला पहनानी चाहिए। शेष लोगों को अपनी जगह से हो हाथ जोड़ना चहिए । किसी को उस समय पेर पर भी नहीं जाना चाहिए। ५. सहजयोग के सन्देश को हर भानव तक पहुंचाना प कर्तव्य है । प्रत्येक सहजयोगी का पुनीत त्यौहार नवरात्रि पूजा १७ अरक्टुबर २७ अ्रक्टूबर दशहरा गुरुनानक जन्मदिन दीपावली १ नवम्बर १५ नवम्बर पूर्णमासी ३० नवम्बर क्रिसमस २५ दिसम्बर श्री दत्तात्रेय जन्मदिन २६ दिसम्बर निर्मला योग १६ कार शन्तरिक ज्ञान का है। क्योंकि यह बात लम्बे समय पहले लिखित है, हजारों वर्ष पूर्व लिखी गई है ब्ा इस्ट ने भी कहा है कि आपका पुनर्जन्म होगा आऔर आपका संस्कार (Baptised) भी किया जायेंगा यह कार्य किसी आध्यात्मिक विद्यालय द्वारा संपन्न नहीं होगा वरन जान जेसे संस्कारी व्यक्ति द्वारा जो उस पवित्रतम द्वारा अधिकार पाये होगा। यह शक्ति आपके अन्दर शिथिल सुप्ता अवस्था में पड़ी है । भिन्न-२ प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति इसके सम्बन्ध में लिखता है। इस सभ्बन्ध में बहुत कम संख्या में मतक्य रखते हैं । यह एक और भ्रांति है जिसका कि एक आज हम सब यहां अपनी आत्मा के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए हैं । आत्मा के सम्बन्ध में ज्ञानाजन, पूस्तकों के माय म से अ्थवा तत्सम्बन्धी तथा कथित सुयोग्य ज्ञानी के माध्यम से प्राप्त होता है। यह हमारे मस्तिष्क में किस अंश तक जाता है जिसको हम केवल अपने मस्तिष्क की समझ बूझ से हो समझ सकते हैं। ज्ञान हमें युक्ति-संगत कथन (Rationality) एवं मेघा (intellect) द्वारा हम तक पहुँचता है जो स्वयं में सीमित है। यह हृदय को स्पश नहीं करता है । मस्तिष्कीय होने से शब्द जाल में फंसकर रह ये मस्तिष्कीय जिज्ञासु को सामना करना पड़ता है वह यह शक्ति हमारे अन्दर सोई पड़ी है और कुछ कहते हैं कि यह प्रापको विद्युत आवेग (electric shock) अर्थात् झटका देती है। कुछ का कथन है कि यह मढ़क की तरह से उछल क्लूद कराती है । कुछ का कहै कि एक आत्मा है जो आपके अन्दर अन्तराल का है कि यह वायु में उड़ना आरम्भ करा देते में निवास करती है और हमारे अन्दर एक महान है। साधकों में इस प्रकार की भ्रान्तियों प्रचलित [हैं। ऐसी भ्रान्ति जव कि आप साधनरत हैं, खोज जाता है । हृदय पटल पर अंकित न होने से वाह्य ज्ञान अव्पवहारिक रूप से आंशिक ही रह जाता है । अतः हम दूसरे विवेक में पदार्पण करते हैं परंतु यह भी सीमा-बद्ध है । [अर्थात् यदि मैं आपसे शक्ति विद्यमान है जो सदैव इस उचित अवसर की प्रतोक्षा में है कि कब आपको आपका पुनजन्म प्रदान करे? वह मैं आपको बताती हैं के इसको आप केवल बौद्धिक रूप से हो समझ पाय गे । यह सब ती कर रहे हैं, बहुत काल से आप इसकी खोज में लगे हैं। आप सच्चे साधक भी हैं फिर भी जब आप इसकी साधना में लगे हैं नहीं जानते कि जाना कहा है. लक्ष्य क्या है । अब क्या आशा कर ? आप समस्याओं में क्ूद पड़ते हैं, जुझने लगते हैं । इसमें नयापन अब तक काफी कहा जा चुका हैं क्या है ? फैशन में ढाल देंगो जो आपको और अधिक मानसिक शक्ति प्रदान कर देगा जिससे आप चबकर पे चक्कर काटते रहेंगे फिर थ क कर बेठ जायेंगे, विश्लेषण करेंगे और कहीं भी (किसी निर्णय पर ने पहुँच पायेंगे । अधिक से अधिक में इसको आधुनिक अभी पिछले दिनों जब मैं स्विटजरलैण्ड गई तो मेरे एक बच्चे ने जिसने प्रोग्राम का अच्छा प्रबन्ध किया था कहा कि माताजी यहां के निवासी भारतीय गुरुओं के विषय में सन्देहास्पद दृष्टि रखते हैं। मुझे यह सुन अरत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हुआ। बास्तव में बहुत प्रसन्न हुई कि यहाँ के लोगों ने इस सम्बन्ध में कुछ सोच विचार तो आरम्भ किया क्यों- कि उनको भ्रम से धोखे में डाला जा रहा है। अब म मैं कहती है कि एक शक्ति है जिसको हम कुण्डलिनी के नाम से पुकारते हैं अर वह हमारे सब के अन्दर विराजमान है। ऐसा कथन बहुत से लोगों *परम पूज्यनीय माताजी श्री निमंला देवी जी द्वारा ११ जून १६८० को अंग्रेजी में किन्गस्टन में दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर । निर्मला योग २० वे पूर्णंतः भ्रमित हैं वे इस बात में विश्वास असम्भव समझते हैं कि कोई भी ईश्वर के बारे में वार्तालाप कर सकता है । अतः मेरे प्रवास के समय में सबसे पहिला प्रकरण जो उन्होंने वादविवाद के लिए प्रस्तुत किया वह था "Demystification of Gurus" घाटन"। यह काफी ललकारने वाला (challeng- कसे बना पायेगे। यदि अआपके संसर्ग में ऐसा कोई पालण्डी आये तो आ्रापको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आपको सत्य की ही खोज करनी है और जब आप सत्य की खोज में तत्पर हैं तो आपको यह भी विदित होना चाहिए कि अरापको केवल सत्य की हो खोज करनी है और सतर्क एवं सजग रहना है कि आप सत्य के अतिरिक्त और कुछ ग्रहण नहीं करगे। परन्तु सावधान रहे, आपको सम्मोहित भी किया जा सकता है । आपका मस्तप्क शोधन भी करना गुरुओं के पाखण्ड का रहस्योद- ing topic) प्रकरण प्रस्तुत किया गया था। परन्तु यही मैंने १६७० में भारतवर्ष में और १९७३ में अमेरिका में कहा-परन्तु वहां किसी ने भी मेरे सम्भव है। क्योंकि आप ये सब बातें नहीं जानते इस तथ्योद्घाटन को पसन्द नहीं किया ्और दोष हैं। यदि कोई आपके सामने कुछ शब्द संस्कृत भाषा दिया कि मैं इस प्रकार प्रालोचना-प्रत्यालोचना के उच्चारण कर दे तो आप उसके आकर्षरण में ऐसे करती है । फॅस जाते हैं कि बस पूरछिये मत । जैसे संस्कृत शब्द है । यथा शिष्यों में से साधक जो कुछ अलभ्य वस्तु मिथ्या मिथ्या हैं, वास्तविकता वास्तविकता गुरु के पास गए थे उन्होंने उनसे मंत्र दीक्षा ली । है। [अब आप जान पायगे उन लोगों से, जो यहां यदि आप उस मंत्र को किसी भारतीय को बतायें पर विद्यमान हैं । वे आपको बतायेगे कि किस तो वह यह मंत्र सुनकर हसी के कारण उसके पेट प्रकार उन्हें भ्रम में डाल कर ठगा गया, किस प्रकार में बल पड़ जायगे । वह मंत्र "आइन्ग" है. उन्हें धन सम्पति से वंचित किया गया और धोखा कोई भी भारतीय यह सुनकर हँसे बिना न रहेगा । किया गया। इन सब (ठग विद्याओं को) को आप प्रब परन्तु इस मंत्र को प्राप्त करने के लिए लोगों ने भलो भांति नहीं समझ सकते हैं क्योंकि आप अ्रब तोन सौ पाउन्ड व्यय किये हैं जो निरथक है । यह इनकी परिधि से बाहर आ चुके हैं । (You are मंत्र है ही नहीं । फिर आप मंत्र ग्रहण हेतु पाखण्डी seeking beyond money) आप विना धन गुरुओं के पास जाते ही क्यों हैं? मंत्र का भरा पूरा सम्पत्ति गंवाये खोज कर पा रहे हैं। [आप इस तथ्य विज्ञान है पर हम उसकी गहराई तक पहुँचने का से भलीभांति परिचित हैं कि धन सम्पत्ति भी आप को सुखी और प्रफुल्ल नहीं कर सकती । परन्तु जो पड़ते हैं। क्योंकि वे ऐसा ही चाहते हैं। साधारण लोग अभी भी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं, वे उसके सो बात है उनको धन की आवश्यकता है और आप सदृश हैं जो शिखर पर तो चढ़ रहे हैं परन्तु नोचे को अपनी इच्छा पूर्ति की ललचाहट है । यह एक (खड) को नहीं देखते हैं। ऐसे व्यक्ति ऊपर उठने साहसिक कार्य का उद्योग (enterprise) है । का प्रयत्न करते हैं श्रीर कुछ अनर्गल बात करने के अभ्यस्त है। आपका धन हरण क रते हैं। मैं स्वयं अनुभव करती है कि यह लज्जास्पद विषय है । श्रम नहीं कर सकते, आप उस पर उछल कर कूद आपने इस खोज के लिए अपनो प्रत्येक वस्तु को न्योछावर कर दिया है । आपने देख लिया है कि ये सांसारिक भौतिक पदार्थ आपको कहीं भी अर्थ यह नहीं है कि सत्य (आध्यात्मिकता के उच्चतम शिखर तक) नहीं ले (Reality) है ही नहीं । यदि सत्य नहीं है तो हम जा सकते । आपने बाह्यता पर भी दृष्टिपात किया उसकी प्रतिलिपियां कंसे रख सकते हैं । यदि पुष्पों है । आपकी मूल्यांकन प्रणाली भिन्न है यदि किसी का अस्तित्व हो नहीं है तो हम प्लास्टिक के पुष्प ऐसे आदमी की मूल्यांकन विधि प्रापसे भिन्न है तो परन्तु इसका निमंला योग २१ भग व्यक्तियों को प्रस्तावित लेकचर के लि ए जमाकर लेता था । अब ऐसे अद्भुत पुरुषों का क्या कीजिये। क्या यह विचित्र बात नहीं है। यह वहाँ का एक सुप्रसिद्ध व्यक्ति है । वह आपसे घन लेता है और वे आ्रापका शोषण (exploitation) करेंगे । अत: प्राकृतिक प्रतिक्रिया होती है। मै इसे भली प्रकार समझ सकती है । ऐसा होना भी चाहिए । परन्तु वास्तव में सत्य की सत्ता है और यह आपको कोर्सेज (courses) दे देगा । उसने बहुत आपके भीतर स्थित है । और आपके अन्दर आत्मा भी विद्यमान हैं और एक बार जब आपने उसे पा लिया तो आपने उस अनित्य सनातन को भी पा से लोगों का सत्यानाश कर दिया है । यह कुछ इस प्रकार से है जैसा मैं देखती ( watch) रहती है । कि लोग शराबखाना (pub) में जाते हैं और मदोन्मत्त होकर बाहर निकलते हैं। उनकी देखा लिया। यदि मैं अरापसे आग्रह करू कि आप प्रत्यंत शान्ति एवं स्थिर निर्मल मन बनिये तो यह एक अ्रशिष्टता होगी। यदि मैं आपसे अनुरोध क रू कि देखी और लोग भी आकर्षित होकर अ्धिक मात्रा आप अपती इच्छाग्रों पर, भोगों पर (इन्द्रियों के में उन्मत्त होने के लिए प्रवेश करते हैं। कभी कभी विषय वासना जनित) विजय प्राप्त करें जिससे कोई आप पर नाजायज प्रभाव (Dominate) न है । श्रर जब कि वास्तविकता आपके खड़ी डाल सके तो यह आपके लिए एक महज व्याख्यान के सदश को व्याख्या आप किस ढेंग से करेंगे । सत्य की रह जाता। मानव स्वभाव को परखना भी असेभव प्रतीत होता सन्मुख है फिर भी आप सत्य का गला घोंट देते हैं । इन सब सिद्ध होगा । इसका तो कोई अर्थ हो नहीं मान्यताय आपकी गरिमा है, क्या आप सत्य में कुछ और योग करना चाहते हैं; कल्पना करो कि मैं एक इन वस्तुओं को (लोभ, मोह, अहंकार आदि हीरों का हार पहनती हूँ । यह मुझे आभूषित कर vices) आपने स्वयं ही कस कर पकड़ रखा है तो शोभा बढ़ायेगा, नेकलेस की नहीं । बह तो श्ररब आप इनका परित्याग कैसे करेंगे क्योंकि आपकी पकड़ इन पर वड़ी जवरदस्त है । आपको किसी जो हमें सुसज्जित कर शोभा बढ़ाते हैं। यदि आराप अन्य वस्तु को अपनी पकड़ में लाना है । यह एक अत्यंत साधारण सी बात है यदि [प्राप इससे कहीं वेभव की बृद्धि होगी और [आप गौरवशाली और अधिक मूल्यवान वस्तु पा जाते हैं जो इन सबसे ऐक्वरयवान होंगे। क्या यह वस्तुतः ऐसा नहीं है ? अधिक शक्तिमान (Dynamic) हो, इनसे अधिक श्रह्मादकारी हो जो आपके अन्दर सुरक्षा की भावना को स्थिरता प्रदान करे तो यह सब क्यर्थ को वस्तूुएं स्त्रतः ही निरस्त होकर लोप हैी जायगा। कार्यकलापों से आप सम्मोहित हो जाते हैं । यही खरब गुना अधिक देदीप्यमान है इन सब पदार्थों से इस धारणा को मान्यता देगे तो आपकी गरिमा, इस सम्बन्ध में विचार कर । आपका मोह इनके बाह्य आडम्बरों की ओर अधिक है जिनके धोखा- घड़ी से परिपूर्ण, चतुरता, मक्कारी एय्यारी के अब आप स्वयं ही देखिये यह कि स भांति इसकी एकमात्र व्याख्या है। इसी भांति से उन्होंने क्रियाशील होती है। एक भद्र पुरुष एक महाभयंकर इसका प्रबन्ध कर रखा है । यह सम्मोहन गुरु के पास होकर मेरे सान्निध्य में आये। उस तथा कथित ने उन्हें घोर यातना देकर नष्ट- प्राय: कर दिया था। वहां वह केवल प्रस्तावित क्या उपलब्धि हुई। उनका उत्तर होगा "बस कुछ (introduetory) लेकचर ही दिया करता था तथा न पूछिये हमारे क्या कहने हैं, हम तो परमानन्द में उसने बताया कि माताजी जहां आप भाषण दिया हैं। तीन दिन के पश्चात ही आप पायेंगे कि उस करती थीं उसी हाल में से ( ३००) तीन सौ के लग- व्यक्ति ने आत्महस्या जैसा जघन्य पाप किया है । मीक (Hypnosis) एक के बाद एक अग्नि की भांति फैलता है। [आप उनसे पूछिये कि आपको इनसे गुरु निरमला योग २२ उसने परन्तु यह सब व्यवस्था रहसयमय ढंग से आपके ही भोतर इस न्यायिक शक्ति (judging force) को पधरा दिया है। उत्क्रांति में इसे देखिये यह किस प्रकार क्रियाशील है। उत्क्रांति में किस हम अभी भी इसके प्रति सजग नहीं हैं कि यह एक अति महत्वपूर्ण है । मानव इतिहास में यह एक बहुत महत्वपूर्ण समय है । अन्तिम निर्णय बेला आ पहँची है।आज हम उस अन्तिम निर्णय के सम्मुख प्रस्तुत हैं। हम इसके सुन्दरता के साथ हल किया है, अर्थात अत्यंत प्रति सजग नहीं हैं। हमें इसका आाभास भी नहीं सुन्दरता के साथ इस रचना कार्य का सम्पादन मिल रहा सब प्रासुरी शक्तियां अ्रान किया है कि हम अमीबा से इस स्टेज तक भेड़ की खाल का आवरण डाल कर भेड़िये आखेट कैसे आये। बहुत से पशुओं को उपेक्षित किया गया तथा कुछ पशुओं की रक्षा की । भारी भरकम पशुओं की जाति में से उसने हाथी की रक्षा की । उन्होंने रहे हैं। कृपया आप बैठिये, पधारिये और सत्य के बहुतों की रक्षा की प्रौर एक-एक करके बहतों निर्णय का प्रयत्न करे । यह एक तश्य है कि यह को इन वर्षों में विसार दिया। मानव जाति के ओ्रम्भ हो चुका है, निःसन्देह प्रारम्भ हो चुका है । प्रारणयों में भी जो ग्रति से अरधिक पीड़ित थे उपे- क्षित किये गए । आप इतिहास तो उठाकर देखिये । इन दिनों अप किसी को भी अपनी सात पत्नियों पहुँची हैं । हेतु आ प्रस्तुत हैं। वे आपको आकृर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। आप इसका निरणंय नहीं ले पा अब हमें ईश्वर के दृष्टिकोण से देखने दो कि वह किस प्रकार से आपको judge (निर्णीत) करता है। यह कथन कि हम ईश्ब र में विश्वास नहीं रखते बहुत आसान है। इससे भी प्रधिक सहज है कि हम सरकारी सत्ता में आस्था नहीं रखते । हिटलर जसे (अत्याचारी) ग्राये और विनष्ट हो परन्तु जब श्राप कानून के विरुद्ध कोई कार्य करें तो गये। जो भी कोई अतिक्रान्त निर्दयात्मक प्रभुत्व की आपको विदित हो जायेगा कि सरकारी सत्ता का प्रभुत्व है या नहीं। इसी प्रकार यह कहना अत्यन्त सरल है कि हम ईश्वर में विश्वास नहीं करते वह इतना महान, कृपालु, इतना प्रेममय और इतना मेहरवान है कि उसने हमें स्वयं को जानने की प्रारिणयों में नूतन वि चारों का अभ्युदय होता है। हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है। हम उसमें प्रास्था समतौलन, धीरजता और शान्ति को प्रश्रय मिलता रखते हैं। हम उसमें निष्ठा लाते हैं। उसने ही हमें अमीबा से (Amoeba) से इस स्टेज तक मानव प्राणी के रूप में विकसित किया है। उसने ही हमारे चारों ओर ऐसी सुन्दरतम विश्व की रचना कर प्रसार किया है। हम उसको मान्यता देते हैं कि क्या बास्तव में, हम अपने अन्दर शान्ति स्थापित यह सब उसी की रचना है। परन्तु एक निर्णय करने के इच्छुक है तो हम इस दिशा में क्या यत्न (judgement) है जिसका सामना हमें [अब करना है और वह ईश्वर से ही आ रहा है। यह वह मार्ग नहीं जिसे हम समझ बेठे हैं कि वह एक मजिस्ट्र ट को भांति बैठकर और एक-एक करके भेजेगा कि आइये पधारिये और एक बकील भी आापको क्राइस्ट ने कहा था "जो मेरे विरुद्ध नहीं हैं वे मेरे वहां पर बैठा मिलेगा । की विच करते हुए न देख पायगे । मेरा मंतव्य है। आप ऐसा नहीं कर सकते - यह असंभव है । सत्ता के अहं के विचार के साथ रया वितष्ट हो गया। वे विचार मृत प्रायः हो जाते हैं । लोग उनके कार्य कलाप एवं विचारों के कारण अपने को लर्जित हुआ अनुभव करते हैं। मानव है । हम इसके विषय में वार्तालाप कर रहे हैं । लोग शान्ति के सम्बन्ध में वार्ता करते हैं परन्तु प्रयत्न कर रहे हैं ? वास्तव में निर्णय (judge- ment) का आरम्भ हो चुका है और आपका निरी- क्षण (judge) करने के लिए ईश्वर ने आपके भौतर सब के सब न्यायाधीशों को बिठा दिया है। बुला साथ हैं ।" ये न्यायाधीश हैं । ये मजिटू ट प्रापके २३ निरमेला योग भीतर, विभिन्न केन्द्रों में आपकी रीढ़ की हड्डी जब मैं यहां प्रोग्राम में भाग लेने आई तो उस समय (spinal chord) में और अपके मस्तिष्क में आ्रवागमन (Traffic) की कोई समस्या न थी सो हम बिना किसी बिध्न वाधा के Smoothly यहां पहँच गए किसी ने भी हमको नोटिस नहीं किया । यदि टरोफिक की समस्या सामने आ गई तो । स्थित हो गये हैं । यह एक अत्यंत्त रोवक असंग है ये seats पेनल (Panel) की तरह आपके मस्तिष्क में बठी हैं और जब कुण्डलिनी का प्रकाश इन केन्द्रों के माध्यम से ऊपर की ओर चढ़ता है तो आपके अन्दर के समस्त केन्द्र प्रकाशित हो उठते हैं। आप की उंगलियों के ग्रन्दर इस प्रबोधन संस्कार (en- परन्तु इधर उधर गत्यावरोध उत्पन्न हो जायेगा प्रकार जय किसी एक व्यक्ति में कुण्डलिनी के उत्थान को प्रक्रिया आरम्भ होती है तो उसके चकों में स्थित समस्त बाधाओं को समस्याओं को प्रदर्शित इसी lightenment) का प्राकटय होता है। ग्रापकी कैर देती है जिसको नगी आखों से देखा भी जा उंगलियों के छोर भी प्रकाशमान हो जाते हैं । उंगलियों का सूक्ष्म गुरणग्राही गुरण ( sensivity) पाप को बता देगा कि कौन-सा केन्द्र, आपके भतिर, नहीं है जसा लोग कहते हैं कि मंक को तरह उछल सकता है। यही कुण्डलिनी जागरण विधि है । यह ऐसा बाधाग्रस्त है (और सुचारु रूप से काम नहीं कर रहा) यह कुण्डलिनी ऊर्वंगामी होती है श्रीर कपाल मस्तिष्क का प्रयोग करना है । [आधुनिक युग में क्षेत्र के उस बिन्दु (point) तक प हैच जाती जिसे तालू कहा जाता है येह एक मुलायम मानव प्राणी वनने के पष्चात भी मढक बनने को हड्डो जो आपकी शेशवावस्था से यहाँ है-का भेदन करती है। बास्तव में यह इस हुड्डी को तोड़ देती भी पक्षी बनना है ? आपका चिज्ञान यथा स्वयं है। इसको आप किसी भी व्यक्ति विशेष के अन्दर मुनोविज्ञान (Psychology) मेरा मत है उनमें देख सकते हैं जिसके इस स्थान पर बाल न हों- से बहुतसों को विश्वास है कि सामूहिक चेतना की अब आपको अपने कुद प्रारम्भ हो जाती है। है मस्तिष्क का स्वस्थ रहना अत्यावश्यक है। क्या हम वश्यकर्ता है । क्या हमें मानव तन घारण करके इस स्थान का कुछ सुक्ष्म सा अश नोचे की अ्रार उपलब्धि के पश्चात हमको अचेतना में कूदना पड़ता घंसा हुमा सा दिखाई देता है स्फुरण होता है। अप इस कुण्डलिनो का स्फुरण त्रिकोणाकार अस्थि में जिस (sacrum) कहा जाता है देख सकते हैं। जब यह कुण्डलिनी ऊपर में कुद सके। यह वेसा नहीं है कि मैं कह रही है या को उठती है तो आप इसको गति का भी निरीक्षण कोई भ्रौर कह रहा है परन्तु यह घटना आपके अन्दर कर सकते हैं । यह सब में नहीं देखा जा सकता किसी किसी में हो । क्योंकि जब व्यक्ति उच्च कोटि का हो अ्रथवा अप यों कह सकते हैं कि यदि वायु- यान उच्च कोटि का है तो उसका उतार (land- stead में थी। मैं जानती है वहां कूछेक के साथ ing) भी उच्चकोटि का होगा और उसका (उड़ान) आकाश गमन (shooting off) उच्च की प्राप्ति नहीं हुई परन्तु उन्हें अपने हाथों में शीतल श्रेणी का होगा। ऐसे क्िसी व्यक्ति में जिसके अन्दर बयार का अनुभव हो गया जब कि कुछ को नही कोई बाधा नहीं है उसमें भी कुण्डलिनो का उत्थान प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता है । उदाहणार्थ विलृप्त हो गए। यह अपने स्वय से व्यवहार करने । प्रथ म तो इसकी है। इन लोगों ने यह बात बहुत स्पष्टता के साथ कही है। तब हमें इस प्रकार की कुछ ओर आशा करनी चाहिए जिससे हम अपनी सामुहिक चेतना घटती अवश्य है । प्रभी कुछ दिन व्यतीत हुए जब मैं Ham- ि क्या हुआ्री । कुछ साधकों को उनकी vibrations हुआ। उन्होंने कहा कि हमने पा लिया है श्रर निमंला योग २४ की वारत करते हैं यथा यह बिल्कुल ठीक हो सकता का सही ढंग नहीं है । आपको अपने आापसे प्रेम करना है और अपनी खोज की उपलब्धि का सम्मान है, और यह बिव्कुल सही भी नहीं हो सकता है। करना है [आपको अपनी इच्छा पूति करनी है । एक मां के नाते मैं आपको बताती हैं कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है । गुरुपने की दुकान यहां पर है यह आ्राधुनिक समय ही कलियुग है । इसी समय, नहीं बुलाई जा रही है। आपको Realisation बड़े-बड़े सन्त पुरुष, सत्यासी, साधु साधक तथा पाना है अर्थात् आपको पार होना है । आपको पाना पड़ेंगा। यह इतना सौभाग्यशाली जीवन काल में ही समय आ उपस्थित हुआ है कि बन कन्दराओं में निवास करके साधना करते थे । आप इसे पा सकते हैं। यही कारग है कि अपने वे सब इस धरती पर वापस लौट आयगे और इस उपयुक्त समय में जन्म घारण किया है । जैसा कि मैंन पसे कहा है कि अरप जन्म जन्मान्तरों से को पायेंगे। इसी व्यग्रता के माघ्यम से उन्हें सत्य सत्य की खोज करने वाले (seekers) रहे हैं। अत: आप इसे पाइये और इस जीवन को सारथंक बनाइये । यह अच्छा है यह अच्छा नहीं है। यह वह समय है जब व्यग्रता (Confusion) का राज्य इस धरा पर महान विभूतियां जो गुप्त रूप से ईश्वर प्राप्ति के लिए तपस्यारत थे और पर्वतीय गुफाओं में, निर्जन कि आपके है साधारण ग्रहस्थ मानव के रूप में जन्म लेकर संत्य का दर्शन प्राप्त होगा और वे स्वयं सत्य में एकाकार हो जायगे । उन्हें ही आत्म साक्षात्कार (self- realisation) की उपलब्धि होगी इस प्रकार हमारे भारतीय धर्म शास्त्रों में एक उपाख्यान लिखा मिलता है जिसका नाम नल-आरूयान है। राजा नल ने प्रतिशोध की भावना को त्याग दिया जब राजा नल कलियुग द्वारा बुरी त रह पीड़ित किया गया तो उसने कलियुग को पकड़ लिया और कलियुग द्वारा किये गए अत्याचारों को भुल गए । उसका अस्तित्व ही समाप्त करने वाले थे । ऐसा उन्होंने कहा कि इसी तथ्य के आधार पर मैं अ्रपको कहा जाता है कि श्रब कलियुग का राज्य है और वह क्षमा प्रदान करता है क्योंकि मैं उक्त महान आत्मा- सब प्राणधारियों के मनों को व्यग्र कर देता है उसने ओं का अत्याधिक सम्मान करता हूँ। इस सामूहिक राजा नल को भी व्यग्र किया था और उसका उस अच्छाई के कारण मैं अपनी समस्त व्यक्तिगत की पत्नी ( दमयन्ती) से विछोह करा दिया । अरतः समस्याओं को त्याग देता है । ऐसा होने दो । अर्थात राजा नल ने कलियुग को बन्धन में बांध लिया और यह घटना घटित होने दो। कहा कि मैं सदैव के लिए ही आपका अस्तित्व समाप्त कर देंगा जिससे फिर भविष्य में ग्राप प्रजा को व्यग्र (confuse) न कर सके। कलि ने उत्तर दूनिया, प्रकाशमय प्रबोधन संस्कार का समय (age दिया कि निस्सन्देह आप मेरा बध कर सकते हैं । of enlightenment) अल्प काल में शीघ्र ही आ मुझे स्वीकार है परन्तु प्राप मेरे महत्व (impor- रहा है अर्थात ये सब घरती पर वापस लौट आयेंगे। tance) को जानिये। मेरा भी महातम्य अ्रवश्य वे सन्त महात्मा जो वनों में सत्य की खोज में है । नल राजा ने पूछी कि आपका क्या महात्म्य और अ्पने क्रोध का शमन किया तथा उन पर स कलिकाल में ही, सतयुग का सूर्य, सत्य की तपस्यारत थे उन्होंने इस दुनिया में जन्म धारण (importance) हो सकता है ? उसने उत्तर दिया कर लिया है । राप उनका दर्शन कर सकते हैं । वे कि जब मेरा राज्य होगा जैसा कि आधुनिक समय साधुस्वभाव के हैं । वे स्पष्टतया कृत्रिम जीवन के में हो रहा है। राज्य करने का अर्थं है जनता के मन में भ्रम पंदा करना प्रत्येक वस्तु से हमारा व्यर्थ एवं भ्रामक हैं परन्तु फिर भी वे यह न जान (कलिका) सम्बन्ध जुड़ गया है हम इस प्रकार पाये कि वास्तविक सत्य क्या है । परन्तु अब समय उपहास को देख सकते हैं । वे जानते हैं कि यह सब निर्मला योग २५ निकट आ गया है और इसका हल खोज निकालना प्राप्त होनी चाहिए। वह आपमे कुछ भी नहीं चाहती है आप पअपनी आत्मा को जानो प्रथात उसका ज्ञान प्राप्त करें। और स्वयं स्वयमभु बन जाय । बस उस की इच्छा यही है। यह पकी मां है जो आ्ापके साथ बारम्बार जन्म धारण करती रहती है। उस को उन्थान की प्रक्रिया सुमस्याएं उस्पन्न की हैं उन सबका लेखा जोखा भी उसके पास लिखित है तथा इस समस्या को पुति करनो है । आपके महान देश में इसका हल निकल आया है और वह भी अभी अब । एक हजार लोग इसमें कार्य- रत हैं जिन्होंने इसे समझ लिया है । तीन सौ के लगभग लोग ऐसे हैं जो साहस के साथ इसमें सक्रिय भाग लेकर भिन्न भिन्न स्थानों में इस समस्या-पू्ति में संलग्न हैं । मुझे बापके इस पुरातन नगर कि्सटन में आने की अत्याधिक प्रसन्नता है । यहां पर ही राजा को राज सिंहासन पर आरूढ कराने के लिए में शरापने स्वयं जो जो हैं । बह आपके सदन्ध में सब कुछ जानती है। वह आपका परी- क्षण उस बिन्दू पर करती है कि आप अपने उत्थान के लिए कितनी थद्धा से प्रयत्नशील हैं। यही सब प्रस्तर पधराया गया था। इस सम्बन्ध में कूछ न कुछ है । कुछ विशेषता अवश्य होनी चाहिए । वह आपको पूर्ण रूप से जानती है । वह जब परन्तु लोगों ने बास्तविकता के संदर्भ में उठती है तो उन संकेतों को दर्शाती है। नह दिखाती सचेतनता को खो दिया है यह बात यहाँ के है कि आवके भीतर अन्तःस्थल में क्या त्रुटि है निवासियों पर ही लागू नहीं होती वरन प्रत्येक देश में प्रत्येक स्थान पर है आपको सुनकर आश्च्य होगा कि भारत में अत्यधिक मात्रा में है । ये सब भ्रष्ट होते जा रहे हैं । वे विकासशील हैं । वे नहीं जानते कि विकास से उन्हें क्या प्राप्ति हुई ! येदि कोई उनसे कहता है, वे विचार करते हैं, "आप विकास के फल का पूर्ण रूप से आनन्द ले रहे हैं। और आप असत्य भाषण कर रहे हैं । बाधा है। वह आपकी अपनी है केवल आप ही की इसके अतिरिक्त शपके लिए और कोई बड़ा नहीं नहीं है । वह आपकी [मित्र है और वह आपका निरणंयक निरीक्षण (judge) भी करती है है महत्वपूर्ण जिससे आपको सर्व श्रेष्ठ प्राप्ति हो । बह यह भी तलड जानती है कि ्रपके हित में सर्व श्रेष्ठ क्या है । जेसे जब एक बच्चा विजली के साकेट पर अपना हाथ रखने की चेष्टा करता है तो मां उसे ऐसा अतः आपके लिए यह समझना अत्याबदयक है करने को मना करेगी, ऐसा न करो-ऐसा नहीं करना कि नि्णय किसी बिशिष्ट अ्र्थ (purpose) के हैं। परन्तु वच्चा नहीं सुनता है और कध हो लिए आरम्भ हो चुका है और इसकी पूति के लिए उठता है वह फिर भी उसे मनाने को कहती है कि कुण्डलिनी को आपके अन्दर पधराया है। परन्तु नहीं बेटे तुम यह नहीं कर सक ते बयोंकि वह आपसे मैं यह स्पष्ट कहती है कि वह एक महान निरणायक अत्यन्त स्नेह करती है। स्नेह भी शुद्धातिशुद्ध रूप (judge) है श्रौर ऐसा निरणयिक आपको समस्त में जितना कि श्राप अन्य किसी व्यक्ति से भी आशा नहीं कर सकते । ऐसी महान शक्ति आपके स्वयं आपकी अपनी माँ है। वह निव्याज है जो अन्तराल में शिथिल पड़ी है औ्रौर उचित अवसर की प्रतीक्षा में है कि वह कब जागृत हो। जब वह बीज चाहती है। वास्तव में उसकी कुछ भी इच्छा नहीं की germinating शक्ति सदृश प्रस्फुटित होकर ऊपर आ जाती है तो कोई ऐसा होना चाहिए जो श्रपको प्राप्त हो। आपको अ्रपनी [आत्मा को प्राप्त आपकी देखभाल कर सके । कोई एक ऐसा व्यक्ति करना चाहिए । आपको अपनी सारी शक्तियां भी भी होना चाहिए जो आपका मार्ग दर्शन (guide) संसार में खोजने पर भी नहीं मिलेगा-क्योंकि वह आपको देती ही रहती है। वह गरापसे [कुछ भी नहीं है । वह केवल यही चाहती है कि आपकी सम्पत्ति निर्मला योग २६ Realisation लेना चाहते हैं तो आपके केंसर का उपचार भी हो जायेगा और आपका स्वास्थ्य भी के कर सके । कोई ऐसा भी होना चाहिए जो उसके गुप्त सन्देश का उद्घाटन (decode) करके प्राप को जताये कि आपकी उंगलियों से प्राप्त अनुभव क्या अर्थ हैं तथा आपके अन्दर क्या क्रिया साक्षात्कार पा चुके हैं और यहीं पर ही विराजमान क्रियान्वित हो रही है। अन्यथा [आप] [अपने घाट हैं। वे शारीरिक अथवा मानसिक व्याधियों से Moorings) के बारे में कैसे जान पायेंगे। आप यह भी नहीं जान पायेंगे कि आप कहां जा tic) जैसे असाध्य रोगों से पीड़ित थे और अत्यंत रहे हैं। और आप अज्ञान के अंधकार में फंस गम्भीर शारीरिक समस्याओं से घिरे थे उनमें से जायेंगे। यह भी सम्भव है यह सब होते हुए भी कुछ को रक्त के सर भी था तथा अन्य लोगों में से आपको इस सम्बन्ध में और अधिक ज्ञान प्राप्त कुछ अन्य शारीरिक भौतिक व्याधियों की समस्या न हो। कुण्डलिनी जब उत्थान करती है वह किसी से आतंकित थे । न किसी को अपना माध्यम (mouth piece) बनाना चाहती है। यह ऐसा है कि अचेतनता किसी न किसी माध्यम से वाणो द्वारा प्रकट करना चाहती है। वह कोई न कोई व्यक्त ही होना इच्छा का-कुण्डलिनी उसकी इच्छा का प्रति- चाहिए जिसकी प्रकृति कुण्डलिनी के अनुरूप हो । जो आपसे घन कमाने के इच्छुक हैं और आपको हैं। वह आप पर अरपना राज्य न्योछावर करना लूटते हैं वे श्रापको मंझधार में छोड़ दंगे। तो चाहता है । वह आपको अपने साम्राज्य का राज- बताइये ऐसे लोगों को कैसे गुरु कहा जा सकता है। कुमार बनाना चाहता है । यह एक अत्यंत गम्भीर वे चोर हैं जो आपके दरवाजे के बाहुर खड़े हैं । वे तो उपयुक्त अवसर की खोज में हैं कि किस देना है। प्रकार ग्रापको अ्रपने चंगूल में फंसायें क्योंकि उनका निर्णय यथापूर्व हो चुका है और वे discarded है और जेल में जायेंगे और चाहते हैं कि अधिक से है। हमारे प्रन्तस्थल स्थित शक्ति ही निर्णय लेने अधिक लोग उनके साथ जेल में जायें । सुधर जायेगा । मेरा मंतव्य उनसे है जो आत्म- ग्रसित थे उनमें से कुछ तो मिरगी, मूर्छा (epilep- इन सब बातों के होते हुए भी आपको पवित्रतम का सामना करना है-ईश्वरीय प्रेम का-उसकी निधित्व करती है। इच्छा दया और प्रेम का समुद्र विषय है । इस प्वाइन्ट पर समग्र एकाग्रता से ध्यान निर्णय (judgement) अवश्य ही लिया जाना सर्व शक्तिमान की जिसने हमें हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है । वह इसको चेलेंज नहीं करने जा रहा आपको शारीरिक सुख प्रदान करती है। दूसरे है। उसकी प्रबलता, उसका पराक्रम, उसकी सामर्थ्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि यह आपको और उसकी शक्तियां हमारी स्वतंत्रता के आड़़े उसकी इच्छा आपके भीतर कुण्डलिनी पर स्थित है भौर यह इच्छा आपके अन्दर से कहती रही हैं -जब किसी डाक्टर को केन्सर ही उत्थान करती है। आपका उद्बोधन करती है का रोग हो जाता है तो वह मेरे पास आता है (enlighten) परन्तु यह आपको बाध्य (force) और ठीक हो जाता है । परन्तु मैं यहां केंसर के नहीं करेगी यह अपकी स्वतंत्रता का हनन नहीं उपचार करने के लिए नहीं बैठी है । मेरे सहजयोगी करेगी यह शरपको देखने के लिए उद्बोधित भी कैंसर पीड़ितों के उपचार में रुचि रखते हैं ? (enlighten) करेगी । आापको इस कमरे में बिल्कुल नहीं कोई भी नहीं। परन्तु यदि आप अपना रहने की स्वतंत्रता है परन्तु यह आपको बाधित कुण्डलिनी जब उत्थान करती है तो सर्व प्रथम नहीं आयेंगी । परन्तु स्वास्थ्य लाभ कराती है । केन्सर बिना कुण्डलिनी जागरण के cure नहीं हो सकता । यह बात में कब ार निमला योग नहीं करेगी कि आप यहां ही बैठे अथवा वहां बैठें अथवा आप चले जायें । आप पर किसी प्रकार का और ऐसी (अलभ्य) वस्तु हमारे अन्त:स्थल में विराजमान है । हम उस ईश्वर को बहुत-- धन्यवाद देते हैं जिसने हमारे लिए यह सब कुछ किया है । हमारे पास कोई विचार नहीं है । हमने उनको मान्यता प्रदान की है । हमारे अन्तःस्थल की प्रत्येक वस्तु के लिए हमने उन्हें मान्यता दी है । हम उन्हें धन्यवाद देने योग्य भी अवने आपको प्रस्तुत न कर सके (न बना सके)। वे हमारे ऊपर कितने कृपालु हैं उन्होंने जो कुछ भी हमारे कल्याण के लिए भी बन्धन नहीं है । परन्तु आ्पको स्थान दिया गया है । जो उद्बोधित है (enlightened) सो आप अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग और अच्छी तरह से करें प्र प्रधिक समझदारी से क्योंकि आप उद्बोधित है। आप देख सकते हैं और फिर यराप जानते है कि क्या स्वीकार करना है और क्या अरस्वीकार करना है । प्रथम तो अ्रापका उद्बोधन करना है ग्रथात किया है हम उनको धन्यवाद के योग्य भी न हो शपको प्रकाशमय बनाना है। जब तक कि ग्राप सके । एक क्षुद्र वस्तु लिए हम हृदय में से निकाल प्रकाशमय नहीं हो जाते तब तक आप भ्रान्ति में कर छुटकारा पाना चाहते हैं। उसका अस्तित्व पड़े रहेंगे और स्पष्ट लूप से नहीं देख सकते हैं । फिर भी है। कुण्डलिनी का अस्तित्व भी हमारे यह आपकी स्वतंत्रता पर छोड़ दिया जाता है निणंय लेने के लिए । वह आपका उपचार कर चंगा करती कर इसका अस्तित्व रहेगा। मैंने ऐसे कुछ लोगों है। वह श्रपका सुधार करती है। वह समस्त मंगल- कारी एवं सुखदायक वस्तुएं अराप पर न्योछावर करती है । यह आपको स्थूल तल की चिन्ताओं से चिह्न प्रकट होते हैं । वह रोष में भरकर करवटे मुक्त करा देती है । आत्मसाक्षात्कार के पूश्चात, बदलती है परन्तु प्रपना अस्तित्व वरकरार रखती बहुत से लोगों ने अपनी सांसारिक समस्याग्रं का है उस समय तक के लिए जब तक कि आपको वह समाधान पा लिया है। यह नहीं कि वे मि० फोर्ड वस्तु नहीं दे देतो जिसके लिए वह वहां पधारती है। (Mr. Ford) अ्रथवा उनके समकक्ष धनाढ्य बन ईदवर की कितनी बड़ी अतुकम्पा है। कहां से आप गए हैं परन्तु उनकी स्थिति में परिबर्तन आ गया है यह सब खोज पायेंगे । यह सब आपके भीतर है । और उनकी सांसारिक समस्याओं का समाधान हो जिसका work out किया जाना आवश्यक है । गया है। हमारे अन्तराल में एक ऐसा केन्द्र भी स्थापित है जिससे कौटुम्बिक समस्याओं का हल भी निकाला जा सक्ता है । पति पत्नियों की समस्याश्रों वे विलुष्त ही जाते हैं । मैंने पाया कि वे विल्प्त का समाधान होने से प्राप विमूक्त हो जाते हैं। (Disappear) हो गए, आपकी उन वस्तुओं पर पकड़ जो अरापको चिन्तित करती है शिथिल होकर आपको मुक्ति दिलाती है। पश्चिम में इसी प्रकार की उन्नति की जाती है अब आ्राप अरधिक स्वतंत्रता के साथ देख सकते हैं कि आप तीन पग आगे बढ़ाते हैं औौंर चार पग पीछे हमें क्या चयन करना है और कोनसा को्स अप- नाना है । इन ढेर सारे कनसेशन्स, सूख सुविधाएं होगा। मैं तहीं जानती कि पश्चिम वालों के मानस तथा हर सम्भव सहायता प्रदान किये जाने के में क्या त्रुटि है कि वे भौतिक पदार्थों की उपलब्धियों पश्चात आपका निण्णायक निरीक्षण (judge) के वशीभूत होकर भ्रम में पड़ जाते हैं । परन्तु जब किया जायेगा । क्या आ्रप किसी ऐसे उदार वे सहजयोग में प्राते हैं तो उनका चरित्र बल निम्न मजिस्ट्रट का अनुमान कर सकते हैं । के अन्दर बिद्यमान है। आप इसके विपरीत आचरण को देखा है जिनकी कुण्डलिनी को पीटा गया फलस्व रूप) भयंकर पीड़ा, वेदना और संताप के कुछ व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार कर लेने के पश्चात Realisation पाने के बाद भी । क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? की ओर सरकाते हैं । वास्तव में श्रपको कोतुहल का स्तर का होता है कभी कभी तो यह बात समझ 1 निर्मला योग २८ आप श्पने को अ्रपराधी स्वीकार लें । तथा वायट- के बाहर हो जाती है। क्या इन लोगों में आत्म- सम्मान की भावना नहीं है। जब कि भारतीय ग्रामीण, इसको पाते हैं शर सम्भाल कर रखते हैं- जिये । आराम कुर्सी अभ्यस्त राजनीतिज्ञ वाइटनाम यथावत-कोई गड़बड़ नहीं-कुछ भी नही-वे के विषय में विचार कर रहे हैं अथवा फाइल कर यथावत वहाँ है परन्तु आत्म सम्मान की भावना को प्रश्रय देना चाहिए । यह कभी कभी आपको आतुर होने का नाम । क्या सुन्दर विचार है। कृपया यहां विरा- देंगे । । मैं मानती हैं कि उलभने हैं । आप चयन किये गए व्यक्ति हैं जिन्होंने इसको पाना है और यह होकर रहेगा। परन्तु सत्य की उपलब्धि के लिए अ्राप सैकड़ों बार सोच विचार करगे ्रर मली कुचली स्कल में परिभ्रमण (get into) करेंगे यही खटका है। मैं इसके लिए किस को दोपी ठहराऊँ । इन भयंकर गुरुओं को अथवा इन भयानक लोगों को जिन्होंने आपके लिए "शो' की रचना की है (morality) के प्रति आपका अभद्र व्यवहार है। मुझे तो यह देखकर कंपकपी (shudder) पैदा होती है कि किस प्रकार लोग इन घृणित वस्तुओं को स्वीकारते हैं। आज से यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप जिज्ञासुओं को सत्य के अनुशीलन से अवगत कराये और उन्हें बताय कि कृपया इसका अवलोकन करें र ग्रहण कर- पायें अनुभव करा देता है । कदाचित आ्रापको विदित न हो कि इस देश में मैंने सात या आठ व्यक्तियों पर पूरे चार वर्ष तक श्रम किया था। पूरे चार वर्ष, क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। यह बात भी नहीं कि आपके अन्दर कुछ त्रुटि है। अप भव्त हैं (seekers), आप सन्त हैं जो इस देश में पंदा हुए है। आपकी साधुता को क्या हुआ । आप इतने छिछले, आप इतने बाह्याडम्बरी क्यों हैं । गहनता से इसका स्पर्श क्यों नहीं करते । आप अपनी आत्मा को क्यों नहीं समझते । मुझे समझ नहीं शराता कि आप अरपनी आत्मा का सम्मान क्यों नहीं करते । मै आपका आदर करता उनके सहयोगी हैं। श्राप ही उनके निकटतम सेबंधी हैं और आपको अत्याधिक प्रम करती हैं क्योंकि मैं आपको जानती है । मैं आप लोगों को युगों से जानती है। आप बिगडेल बच्चे है। मैं इसको जानती है परन्तु मैं नहीं जानती कि मैं इसको आपके अन्दर कैसे स्थापित करु । कभी-२ तो मेरो दशा आपकी कुण्डलिनी की तरह हो जाती है । अथवा यह पुण्यशीलता आप माप । क्योंकि [आ्रप हैं। आप अपने आत्म साक्षात्कार के परचात भी उनको कैसे छोड़ सकते हैं। यदि आपको स्वर्ग के साम्राज्य में स्थान मिल जोता है तो आप उनको नहीं भुला देंगे । उनके बारे में विचार करेंगे और प प्रसन्नचित नहीं रह सकते हैं। आप उनका ध्यान रखंगे। आप अपना आत्म साक्षात्कार पा लेने के बाद भी जब तक कि आप उन सन्तों को आपको इसकी उपलब्धि के लिए शीघ्ता करनी जो अपनी अज्ञानता (ignorance) के कारण अपने ह है । आपको पूर्णतया शक्तिशाली वनना है । आप इसका शर्मन करो और लोगों से वार्तालाप करं कि स्वयं को गंवा बेठे हैं आप उनका ध्यान रखेंगे मुझे यह वस्तु स्थिति और आपत्कालीन स्थिति है। क्या आपके माध्यम से ही यह हल निकालना है। मैं इस आप नहीं देख पा रहे हैं कि विश्वभर में क्या हो को निपट अकेली हल न कर पा सकगी । यदि मैं रहा है । क्या आप भ्रान्ति को नहीं देख पा रहे । अकेली इसको सम्पन्न कर पाती तो कठिनता ही कुछ परन्तु स्थिति को नियंत्रित किया जा चुका हैं । यदि नहीं थी। यदि ईश्व र इस तरीके से हल कर सकता इसका मुकाबला भी करना पड़ जाये तो इसका है तो इनको Realisation दें और बस उनको सामना बोद्धिक निपुरता के साथ किया जाये ना कि पूर्णंत: स्थिर करे । परन्तु ऐसा न होगा। क्योंकि २६ निमंला योग आपके पास स्वतंत्रता है। आपके पास स्वतंत्रता Stonehenge देखने के लिए गई, Stonehenge क्यों है ? क्योंकि आपकी इस स्वतंत्रता के विना आप में चरित्र बल नहीं शरा सकता जिसके प्राधार पर वाइब्र शन्स द्वारा कर सकते हैं। ऐसी बहुत सी आपको ऊपर उठाया गया है हम यह Realise वस्तुएं इस देश में विद्यमान है । किग्सटन भी वाय- नहीं करते कि हम आज कहा हैं-अ्र्थात किस बन्स से भरपूर है। स्थिति में हैं हम साधना नहीं करते । कभी- २ तो मैं यह अनुभव करने लगती है कि मैं दीवारों से बाते कर रही होगा कि बहुत से लोग घड़ियों के क्रीत दास हैं । उनके पास समयाभाव है। मेरे पास भी समय नहीं निकल आये । े गभी कुछ निश्चित नहीं कर पा है मैं अत्यंत व्यस्त है। आप समय की बचत किस रहे थे । अभी भी सचतन सुक्ष्म ग्राह्यता से उनका पृथ्वी माता की रचना है। यप इस तथ्य की जाच आपने क्या पाया ? प्रथात यरापको] कैसा लगा ? उस गाड़ी में लगभग एक सौ यात्री होंगे जो हमारे साथ गए थे । कुछ उतराई बढ़ाई पेदल ही पार कर पहुँच गए । कुछ अन्दर जा पहुँचे । कुछ बाहर हैं अरापको विदित रहें हैं । यह बिचार आपके मन निकट का सम्बन्ध न था (still n0 proximity to sensitivity) सत्य के प्रति सचेतना कुछ भी नहीं थी । वे अनुभव भी नहीं कर सकते थे । । मूझ दृढ़ निश्चिय है कि यह अरवश्य हल होगी। मैं अत्यधिक आशावादी है बहतों में से एक आशावादी व्यक्ति है जिनको आपने अभी तक देखा है, परखी है। देखिये, मैं विश्वास करती है कि आशावादिता मेरी प्रकृति है यह धटना घटित होने जा रही है। में कसे आया-हमारे, पूवजों (दादा परदादा) से कभी नहीं किया । आप समय की बचते क्यों कर रहे हैं ? किसके लिए ? आप समय की बचत कर - सम्भव है । हल निकलेगा यह होगा. रहे हैं अनुरूप युव्त (becoming) होने के लिए न कि इसको व्यर्थ में गंवा देने के लिए यथा पार्को में श्रमण अरथव भयानक स्थान जसे रेस आदि में । तदनरूप (becoming) होने के लिए आप समय की बचत कर रहे हैं क्योकि आप एक हीर है। केवल प्रापकी तथाकथित 'स्वतंत्रता माग में आपको अरपने स्वयं को काट तराश कर सुन्दर वाधा डाल रही है। सो आाप उसको समझने का सुडील प्राकृति में ढ़ालना है। ओप इसको बचत व्यर्थ गवाने के लिए नहीं कर रहे हैं । मेरी दूष्टि से यह सर्व श्रेष्ठ विज्ञापन होगा कि एपचास पौन्ड बचाओं तीन हजार व्यय करने के लिए" ऐसा ही हेतु प्रदान को गई न किे पशु बनने के लिए। एक कुछ आप अपना समय बबाद करने के लिए नहीं बचा रहे हैं । आप समय की बचत कर रहे हैं कुछ विशेश प्रयोजन हेतु जो अमूल्य, विशिष्ट अ्रोर अत्य- धिक मामिक है बहुत कुछ वह जिसकी खोज वे बहुत दिनों से कर रहे हैं। परन्तु अभी तक मैं यह नहीं जान पाई है कि आपको गहनता के उस स्तर पर केसे जमाये रखें । निस्सन्देह कुछ ऐसे अच्छे कार्य सम्थादन किये हैं । उसने कहा कि मैं व्यक्ति भी हैं जो उच्च कोटि के चरित्र बल से चिकन नहीं खाता । मैंने कहा कि आप मेरे लिए हैं । जो पूर्ण रूपे ण संतुष्टि का अनुभव कर रहे हैं । चिकरन क्यों बचा रहे हैं अच्छा हो यदि आप अपने आपको कदाचित इस बात का ज्ञान न हो कि ईश्बर ने इस देश में कितना कुछ किया है । उदाहरणार्थ में (funny ideas) उनमें भरे हैं। प्रयास कर कि यह स्वतंत्रता जो आपको प्रदान की गई है वह आ्ापको अपनी आत्मा में विलोन करने पशु को-एक मुरग के बच्चे को आत्म साक्षात्कार देने से क्या लाभ है । Realisation दे सकती है ? यही क्या मैं उसको भी उद्देश्य है ? कहते हैं कि "मां मैंने बहुत हैँ कि क्या-२ बहुत से आदमी सारे सत्कर्म किये है" । मैं पूछती युक्त को बचायें । सब प्रकार के कौतुहलवर्धक विचार निरमला योग ३० तबसे महत्वपूर्ण एवं वि चित्र बात यह है कि जब यह (कुण्डलिनी) सहस्रार का भेदन करती है आनन्द का लोत निर्भर होने लगता है और आपके हाथों की हृथेलियों में शीतल बयार (Cool Breeze) का अनुभव होने लगता है-उस पवित्रतम ईश्वर (Holy Ghost) की शीतल बयार-प्और उसका अनुभव आप सर्व- ध्यापक रूप से हर जगह करने लग जायेंगे । आप इसको ज्ञात कर सकते हैं। अब आप [श्रपने स्तरयं को तथा अन्य पुरुषों का ईश्वर को महान अनुकम्पा से हम आरत्म निरीक्षण कर सकते हैं। स्वचालित रूप से आप आ्प भक्त लोग (seekers) इस सुन्दर जीवन वृ की कलियों के सदृश हैं यह वे हैं जिनके लिए सष्टि की संरचना की गई है ये वे हैं जन्होंने कुछ पाना है ये उनमे से हैं जिनको कुछ अपनाना है । उनके अन्दर समस्त विश्व प्रफुल्लित (blossomed) एवं पल्लवित हो उठा है। और वे whatworms होने के इच्चुक हैं । इस सम्बन्ध में प्राप विचार कीजिये । जरा सोचिये । साक्षात्कार का प्रोग्राम आरम्भ करते हैं। कदाचित यह प्रक्रिया सेकिण्ड से भी सूक्ष्म समय लेतो है । सम्भवतया यह घटना घटित भी हो गई हो क्योंकि आज मैं (अपने विचार से ) कुछ जागृति प्रदान हेतु किग्सटन एक सुन्दरतम दूसरे लोगों की सहायता भी कर सकते हैं। इसके लिए प्रपको कहीं बाहर नहीं जाना है। आप को इसके लिए कोई औपधि भी नहीं लेनी है। आपको कुछ भी नहीं लेना है। वहां आप केवल उपस्थित अधिक असामान्य हूँ" स्थान है। मैं अनुभव करती हैं कि एक दिने यह महत्वपूर्ण सुरम्ब स्थान हो जायेगा अब हमें देखना है कि आप लोग इस शंक्ति का जो यहा इस सुरम्य हें। प्राप प्रन्य लोगों की सहायता करते हैं र अन्यों को मुक्ति दिलाने में सहायक होंगे जेसे कि समस्त मैकेनिज्म क्रियाशोल हो उठती है । सारी की सारो तकनीक काम आरम्भ कर देती है। और आप स्थल में बह रहो है, किस मात्रा में उपयोग कर पाते हैं। मुझे आशा है कि कुछ न कुछ हल अवश्य निकलेगा। समस्त वस्तुओं का अवलोकन आरम्भ कर देते हैं । आप चकित हो जायगे । आपको यह ज्ञान प्राप्त करना होगा किस प्रकार आत्म साक्षात्कार के पश्चात आपको इसे प्रपने स्वयं पर तथा अन्य लोगों पर क्रियाशील गम्भीरता से लेना है । आपको ही हल निकालना है । आपको इसमें सक्रिय होना है क्योंकि इस को पा लेने के पश्चात भी यह बात ऐसी नहीं है कि अकस्मात ही सूर्य अथवा चन्द्र पर छलांग लगाने का अभियान पूरा हो जायेगा । चन्द्रमा तक पहुँचने पर भी आपको क्या सिद्धि प्राप्त होगी। आप कुछ भी न समझ पा सकंगे । आपको अ्रपनी आत्मा के समस्त क्षेत्रों में विहार करना होगा-क्योंकि गतिविधि अन्तःस्थल में ही आरम्भ होगी । शपको अपने ध्यान (attention) को आपने आन्तरिक क्षेत्र में ही स्थापित करना चाहिए और उसमें स्थिरता लानी है। स्थिरता प्राप्त होते हो आपको बृत्तियां अरथवा ध्यान से व्यर्थ की वस्तुओं की पकड़ स्वत: शिथिल हो जायेगी। रहे है । समस्त प्राथमिकताओं में परिवर्तन आ जायेगा | ( workout ) हो । यह एक अच्छा कोतुहल है । हम सब के सब इस बृहत कोतुहल की चित्तबति में हैं । आप भी हमारे संग आरमोद प्रमोद में भाग लेकर अनन्त की अनुभूति प्राप्त करें । कारी है । कृपणता के लिए कोई गुँजाइश नहीं । कवल यही बात लोगों के मन में अखरती है और वे महसूस भी करते हैं कि ये लोग इस प्रकार (विचित्रता से) क्यों और क्या कर रहे हैं । वयोबृद्ध एवं विकसित पुरुषों की नांई हम छोटे छोटे अल्प वयस्क) अ्रबोध बालकों की ओर क्यों दष्टि रखते हैं। वे अपने हाथ अग्नि में क्यों रखने जा यह अत्यंत विस्मय- ईश्वर आपको सर्वदा सम्पन्न एवं प्रसन्न रखे । निमंला योग ३१ जय निर्मलमाते जगदंबे - प्रमोद भाई पेटकर, पूना जय जगदंबे जय अंबे । ॐ जय गणेश जी को मां अंबे ।। धृ ।॥। जय महाकृण्डलिनी तू अंबे । जय गणश जी की माँ अबे ।। १ ।। जय विषणु को लक्ष्मो तु प्रबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥२॥ जय ब्रह्मा को सरस्वती तू अंबे । जय गणेश जी की मा अंबे ।।३।॥ जय शिवजी की पार्वती तु अ्रबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥४।॥ जय राम की सीता तू अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥५।। जय कृष्ण की राधा तू शंबे । जय गरणेश जी की माँ अंबे ।।६।। है जय येशु की मेरी तू अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥७॥ जय सहस्रार स्वामिनी तु अंबे । जय गरणेश जी की मां श्रबे ।।८।॥ जय मोक्ष प्रदायिनी तू अबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥8॥ जय आदिशक्ति तू जगदबे । जय गणेश जो की माँ अंबे ।११०।। जय आदि माया तू जगदंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।।११।। जय महामाया तु जगदबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥१२॥ जय सर्वस्वदायिनी तु अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥१३। जय विश्व व्यापिनी तू अंबे । जय गणेश जी की मां अंबे ॥ १४॥॥ जय त्रिभुवन स्वामिनी तू अंबे । जय गणेश जो की माँ अरबे ।।१५।॥ जय निर्मलमाते जगदंबे । जय गणेश जी की मां अंबे । র निर्मला योग ३२ Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 With best compliments from: JANAK I JEWELLERS C. A. PENDURKAR & Co. C. R. AGRAWAL MARKET, MONGHI BAI ROAD, VILE PARLE, BOMBAY- 400057 Edited & Published by Sh, S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002. One Issue Rs. 5.00 Annual Subscription Rs. 20.00 Foreign [ By AirmailE4 S8] ---------------------- 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt ब fनिर्मला योंग वर्ष 1 अंक 2 जुलाई-प्रगस्त - 1982 द्विमासिक है॥ प ॐ त्वमेव साक्षात श्री सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी, कलकी, भगवती माता जी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः । ए5ी सा० क। प5 पी 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt ु ु सम्पादकीय हम सभी धन्य हैं कि आज साक्षात् आदिशक्ति हमारे बीच उपस्थित है । गुरु पूजा के पुनीत अवसर पर गुरु दक्षिणा देना प्रत्येक शिष्य का परम करतव्य है । गुरु के पावन सन्देश को मानव मात्र तक पहुँचाने से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ गुरु दक्षिणा नहीं । विश्वास हैं प्रत्येक सहजयोगी तन, मन, धन से इस पुनीत कार्य में माता जी का आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है । जायेगा। परम पूज्य जुट निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी सम्पादक मण्डल डॉ० शिव कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर० डी० कुलकरणी प्रतिनिधि : श्री एम० बी० रत्नानवर १३, मेरवान मॅन्सन गंजवाला लेन वोरीवली (पश्चिमो) बम्बई-४००००२ श्री प्रमोद शंकर पेटकर ४६C/१५, सोमवार पेंठ लालबड़ा पुरा- ४११०११ इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. तत्व की बात-१ १ ३ अनुस ररीय ४. त्यौहार ५. आन्तरिक ज्ञान ६. जय निर्मलमाते जगदम्बे १२ ३. १६ २० ३२ निरमला योग २ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt तत्व को बात-१ दिल्ली विश्वविद्यालय के इस सुन्दर प्रांगरण में जो दो हजार वर्ष पहले उन्होंने कही थी । उसका अने क बार आना हुआ। कोई न कोई नई बात यहां अर्थ यह है कि, बहुत से लोग जो साधक हैं, संसार कह दी जाती है और अनेक बार लोगों को यहां में, जो परमात्मा को खोज रहे हैं, जो परसात्मा के जागरूती भी दी और जागरूती के बाद क्या करना नाम पर कुछ भी करते रहते हैं, चाहे मन्दिर जायें, चाहिए, ये भी अनेक बार मैंने सभभाया । क्योंकि चाहे चर्च जाय, चाहे कुछ भी कर । उनमें इस तरह अंकुर का प्रादुर्भाव होना, अकुर का जागरूत होना, की धरियां हैं, उनमें से कुछ तो वे तो एक के लिए मनोनीत है, लिखा हुआआ है जट्टानों से टकरा रहे हैं, जानते हुए भी कि वेकार और वो अगर उसमें से अंकूर निकलता है, तो वो की चीज़ है, उसी से प्रपना सिर रगड रहे हैं । अप उसका स्वाभाविक घर्म ही है सहज है, स्वैच्छिक कितना भी सिर रगड़ें तो भी चट्टान तो चट्टान है, (Spontaneous) है वो तो होता ही हुआा । आपके अन्दर यदि यह अंकुर है हो, तो उसका अंकुरित होना तो कुछ विशेष ची ज तो है नहीं । पत्थ रों से और चट्टान से अआपका अंकुर कभी प्रस्फुटित नहीं हो सकता । जब मनुष्य जितनी भी दखियानुसी बातें है घम को लेकर करता है उनसे मतुष्य धर्मान्धता में घुसता [चला जाता है बो सोचता है कि बहुत ही हम लोग हर वक्त देखते हैं, हर समय देखते हैं कि हजारों करोड़ों बीज इस पृथ्वी माता के पेट में पनपते हैं, हर समय । कोई से भी बीज को आप यो ्यादा Sacrifice (बलिदान) किया है, त्याग दीजिये, वो अंकृरित हो ही जायेगा से, वो अंकुर को किस तरह जागरूत करती है ? वो भी दीजिये कि ऐसी चीज़ से फायदा नहीं, आप किस प्रकार करती है. कैसे करती है, यह हम लोग नहीं जानते, क्योंकि यह उनका स्वभाव है। उस ऐसी भूमि में आईये जहां आप पूरो तरह पनप जायें, स्वभाव के अनुसार वो अंकुरित करना उनके लिएपूरी तरह से शीतलता हो और पूरी तरह उसकी एक बहुत ही साधारण लीला सो चीज है, कोई हि़ाजत हो आपको देखा जाय और जहां आपको विशेष वात नहीं है । लेकिन जैसा कि कहा गया है, ईसा मसीह ने कहा था, 'बहुत से बीज थे, कुछ जो प्रसाद है जोकि आप अंकुरित होना कहते हैं, तो बीज तो पत्थर पर पड़े गए किया है, परमात्मा के लिए । ऐसे लोगों से आप कह । बो पअरपने प्रेम ऊर्वरा भूमि में प्राईये, तो भी फायदा नहीं, आप संजोया जाय, ऐसी जगह ग्राप आईये, तब आपका दो हो सकता है । और वीज थे, वो कुछ पहाड़ी रास्ते पर पड़ गए अऔ्रोर कोई बीज थे जो ऊर्व रा भूमि में पड़ गए लेकिन उनमें से कोई बीज ऐसे भो थे जो बहुत ही अच्छो ऐसो भूमि में पड़ गए, जहां वो पनप गए। वो उनके जमाने की बात है तो इस बात को मानने के लिए भी बहुत कम लोग तैयार हैं। बड़ा आश्चर्य है । मानव तो मेरी समझ में नहीं प्राता । संसार में नहीं है। कोई सा भी प्राणी मात्र इंतना मानव जेसा जिद्दी प्राणी तव की बात पहली बार पः पू. माता जी ने फरवरी १६८१ में गाधी-भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय में कही थी जो हम आगामी 'निर्मला योग में छापते रहेगे। इस वात्ता-श्र लला की प्रथम परिचायक-बातता प्रस्तुत है । निर्मला योग Tট" 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt जिट्दी और हठी नहीं है । और जब कि पूरी तरह अज्ञान में हम हैं और जब कि हमारे ऊपर इतने सूतक हो ? जब कोई आदमी श्रपसे नाराज हो आवरण हमने प्रपने दिमागी जमा-खर्च से लपेट जायेगा तो वो आपके घार में बैठा होगा तो परसे रखे हैं, तो फिर हम सोचते हैं कि हमसे अकलमन्द और कोई नहीं है तो फिर ऐसे लोगों का इलाज बुलायेंगे तो कहेगा कि साहब मैं तो खाने के लिए किया क्या जाये ? मेरी तो समझ में नहीं आता । करना हो तब अ्राप उपवास करते हैं न, या कोई थाल से उठ जायेगा या अगर आप उसको खाने पर नहीं आऊँगा, मैं प्रापसे बहुत नाराज हूँ। मतलब, हम लोग नाराजगी जाहिर तब करते हैं, या उप जैसे कि आप घर्मान्ध लोगों को देखते हैं। मैं वास कि जब हम किसी तरह उनको दिखा दे कि अभी एक मन्दिर में गई थी। पहली मर्तबा मन्दिर में गई तो बहुत भीड़ और दूसरी मतंबा गई, तो बहुत कम लोग आये । गया, क्यों नहीं आये ? कहने लगे कि माताजी आप है? मेरी श्राज तक समझ में नहीं अया कि इन्सान से सब लोग नाराज हो गए। मैंने किस बात हम नहीं खायेंगे यानि रोटी बन्द करना। फिर आप किस सिलसिले में उपवास कर रहे मैंने पुछा कि भई क्या हो को किसने समझाया ? आप जिस दिन का उपवास पूछा पर । कहने लगे कि इसलिए नाराज हैं कि आपने कर रहे हैं जिस दिन उस Deity (देवता) का दिन कहा कि भगवान के नाम पर उपवास नहीं किया है उस चक्र का दिन है उस रोज तो उत्सव होना करो । चाहिए, आनन्द से उनको स्वीकार करना चाहिए । जिस दिन गणेश जी का जन्म होयेगा, उस दिन किसने बताया कि उपवास करते से भगवान आप उपवास करगे ? और ये भी एक छटी सो मिलते हैं ? क्या सारे लोग जो उपवास कर रहे थे बात लोग सुनने को तयार नहीं हैं । गणश जी जिस उनको क्या भगवान मिलने वाला है ? उसका दिन पैदा हुए उस दिन उपवास मत कीजिये । भगवान का नाम लगा देने से क्या फायदा है ? श्रीराम जिस दिन पेदा हुए उस रोज़ उपवास मत क्यों प्राप उपवास करते हैं ? आाप जब सहजयोग कीजिये, श्रीकृष्ण पंदा हुए, उस रोज़ भी मत में आयेंगे, तो आपको आरचय होगा कि जिस दिन कीजिये, मेहरबानी से उस दिन उत्सव मनाईये । अब इससे समझदारी की बात क्या हो सकती है, जरा बताईये ? लेकिन इस कदर दखियानूसीपना उपवास करते हैं, जेसे कि उदाहरण के लिए किसी अपने देश में इस कदर अन्धापन है, इस मामले में दमी का पेट खराब है उससे पूछ ली जिये कि कि ब्रह्माचार और स्त्री [अ्राचार" कहते हैं कि इस क्या आप गुरुवार का उपवास करते हैं या आप तरह इससे हम लोग ढक गए हैं कि छोटी छोटी का आप उपवास करते हैं उसी दिन के देवता आप से नाराज हो जाते है। जसे कि अ्राप गुरूवर का को मानते हैं ? प्राप देखियेगा कि उनका बात पर नाराज हो जाते हैं। दत्ता गुरू पेट खराब पाइयेगा। या किसी भी गुरू को मानते हैं, उनका पेट खराब होगा। लेकिन यदि मैं कहूं कि भई गुरुवार के दिन उपवास न करो, न सोमवार के में बात यह है कि वहां के लोगों को बात समझायें दिन करो, कोई भी दिन न करो क्योंकि ये सब दिन तो उनको यह बात समझ में नहीं आयेगी क्योंकि जो हैं, उनमें एक एक देवता के लिए रक्खे गए और उस दिन वो Specially ( विशेष रूप से) उसकी वजह है, बो भयंकर अहुंकारी हैं । उनमें जागरुत होते हैं, तो उनको जागरूत रखो बजाय इतना अहंकार जबरदस्त है कि अगर कोई आदमी इसके कि उनको नाराज करो । किसी को नाराज अब] Western Countries (पश्चिमी देशों) े। बो विवाद से जुझ रहे हैं या अपसे बहस करंगे हैं उनके ऊपर ऐसा जाल चलाये जिससे वो पूरी तरह निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt mesmerise (मेसमेराइज़) हो जायें या मन्त्रमुग्ध कोई चीज़ मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है बनिस्वत हो जायें या कोई न कोई वेवकूफी की बात उन्हें इसके कि मैं अकृरित हो जाऊ सुभझा दे, जैसे कहे कि हम आपको उड़ना सिखायंगे हवा में, अपने हाथ ऐसे रखे और हवा में उड़ने लग जायेंगे तो लोग उनको तीन तीन हजार पौड 3,000) देने को तैयार हो जायेंगे अब दूसरी बात अपने देश में है जो बहुत ही बुरी तरह फैली हुई है वो ये है कि घर्म हमारे यहां वकता रहती है, सुबह से शाम तक। आप गंगाजी । ऐसी कोई (£ बारीक वेवकूफी की बात उनको सिखाई जाये तो पर जाईये जितनी श्रद्धा हो उतने पानी में उनको बड़े लोग खुश हो जाये गे लोगों को कोई न कोई वेवकूफ़ी की तरफ बढ़ाने के लिए गति उनके अन्दर है लेकिन जब कभी समझाया जाये कि भई यह अ्रक्ल की बात करनी चाहिए, बस एक छोटी सौ बात पर नाराज हो जायगे। उतारिये । आप मन्दिर में जाईये, जितनी श्रद्धा हो 1 । मतलब यह है कि उन उतना रुपया दीजिये हर एक चीज बेची जाती है। मैंने सुना है भगवान । यहां भगवान के नाम पर का तिलक बेचा जाता है। कोई चंबर घुमाने वाले है. प्रगर वह ५ लाख रुपया दें तो वो चँवर घुमा दे । इस तरह की इतने पागलपन की बात हम लोग परमात्मा के नाम पर करते चले आ रहे हैं, उनकी तरफ हमें मट्देनजर करना चाहिए, देखना चाहिए न ही नाराज करने की बात है। न तो नाराज करने कि क्या कर रहे हैं, किस चौज से हम जुझ रहे हैं ? यह तो अहंकार को पुष्टि के लिए मनुष्य करता है, [श्पकी अ्रपनी जो शक्ति है, जो आपके अन्दर अपका कि मैंने इतना रुपया दे दिया और मुझे चेंवर घुमाने के लिए उस पर खड़ी कर दिया और मैं चॅबर उससे आापका मिलन करा दूं । उसमें जो कुछ घुमा रहा है और बड़े अपने को अक्लमन्द समझे अड़चने डाल रक्खी हैं अपनी अक्ल से या आपकी चले जा रहे हैं। यह एक अजी ब वेवकूफी है या नहीं, आ्राप बताईये ? क्या ये पांच लाख खर्च करने रही। लेकिन अगर कोई गलतियाँ हो गई हैं तो उस से क्या परमात्मा रापसे संतोष करेंगे ? उनको रुपये-पेसों की जरूरत नहीं है। परमात्मा को रुपयों पेसों की जरूरत नहीं है । वो कोई गरीब आदमी जैसे कि आप हिन्दुस्तान में पेदा हुए है । ठीक नहीं हैं, गरीब इन्सान नहीं है । सारो सृष्टि उनकी है । हिन्दूस्तान की अपनी कुछ हैं, चली हुई गलत अपनी है। उनको रुपये-पेसों से मतलब क्या ? परम्पराय हैं । सही भी बहुत है, गलत भी बेहुत है उनको तो मालूम ही नहीं कि रुपया पेसा क्या होता और उनमें से जो गलत परम्पराय हैं उनको हमने है। उनको तो जन्म लेना पड़ता है सीखने के लिए ज्यादा जकड़ लिया है बनिस्बत उन के जो कि सही कि रुपया चीज़ क्या होता है । कोई असान चीज़ परम्परायें है । अगर कोई साहब कहें कि आप थोडी है मनुष्यों का पागलपन सीखना ! बहुत ही हिन्दुस्तान में पेदा नहीं होते और आप लंदन में मुश्किल काम है । इतने पागल होते हैं मनुष्य कि पेदा होते तो अ्रापकी परम्परा अलग हो जाती। उनकी बातों को सीखने के लिए परमात्मा को मैं यहां लोगों को खुश करने तो आई नहीं हैं क्योंकि किसी को खुश करने की कोई बात नहीं है आई है न खुश करने, मैं तो इसलिए आई है कि अपना आत्मा बसा हुआ है, उसे में देख पा रही हैं, आपने अपनी समझ से । कोई में आपको बैवकूुफ नहीं कह चीज़ को आपको ठोक कर लेना चाहिए । बहुत आप तो पहली बात इन्सान हैं । इस बात को अगर मेहनत करनी पड़ती है। कोई सोपा-सरल काम मनुष्य समझ ले कि में एक बीज-स्वरूप हैं और नहीं है। जैसे कि कोई मनुष्य धर्म में खड़ा है, बीज होने के स्वरूप मुझे अंकुरित होना है यही मेरा उसको यह समझ में ही नहीं आता कि यह बातें कर्तव्य है और कोई मेरा कर्तव्य नहीं है, और पाप-पुण्य की लोग क्यों करते हैं ? यह नहीं करो, परम् निमला योग ५ू 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt वो नहीं करो, ऐसा नहीं करना चाहिए, अरे भाई मनुष्य इतना पागलपन करते हैं कि में ही नही आता कि इनको समझाये केसे ? और कोई शरप बात समझाईए तो वो नाराज हो जाते हैं। यहाँ पर क्या कोई election प्रापके कोई अगर जहर खाते हो तो भाई खाओ नहीं तो नाराज फुछ समझ यह करता कौन है ? जेसे हमारी Grand Daughter (घेवती) है, वो पार है, पैदाइश से । हमसे कहने लगी, 'हमार चुनाव) है कि पीछे है या कोई हार-जीत है ? आप स्कूल में बहुत stupid subject (बेहृदा विषय है, नानी। 'Moral Science (नेतिक विज्ञान) बड़ा ही, हो जाओगे, ऐसा तो नहीं न कोई बोलने वाला । stupid subject है । तो मैंन कहा, 'क्यों ?' कहने लगी. 'माजूम है, उसमें क्या संखाते हैं ? भूठ अन्दर कि हम इस संसार में आए क्यों हैं, पहला मत बोलो, चोरी मत करो। हम कोई नौकर हैं, सवाल ? क्या हम इसलिए आए हैं कि आकर जो हमको ऐसा सिखा रहे हैं ? गंदी गंदी बात मन्दिरों में लोगों को पैसा चढ़ाएं ? या इसलिए सिखाते रहते हैं । ऐसी कोई सिखाने की बात होती है कि भूठ मत बोलो । बो कहने लगी कि मुझस रहें ? या इसलिए आए हैं कि परमात्मा को गालियां कहा कि दस sentence लिखो share करने पर । तो कहने लगी, 'क्या share करे मैंने कहा कि उनका मतलब है। कि उन्हंने कहा होगी कि तुम प्राप से परछना चाहिए कि क्या हम अमीवा ऐसा करो कि खाना share करो । तो कहने लगी से इन्सान बनाये गए तो किस वजह मैंने कहा, 'कौन सा ?' कहने लगी, एक सूझ -बूझ की बात होनी चाहिए मनुष्य के आ्राए हैं कि धर्मान्धिता करके उसके नाम पर लड़ते है. बकते रहें और कहते रहें कि परमात्मा है ही नहीं ? हम आए किसलिए हैं संसार में, पहला प्रश्न अपने (Amoeba) से ? खाना तो हम share करके ही खाते हैं या इकट्रा साथ हो खाते हैं। उनके यही समझ में नहीं आता यह बच्चे जो पार बच्चे हैं कि गलत काम करना ही काहे को ? गलत रास्ते पर जाते ही नहीं दे सकता क्योंकि उनसे परे की बात है। कोई क्यों हो ? जब हम जाते ही नहीं तो हमें बताते ही scientist नहीं बता सकता कि आपको इन्सान क्यों हो ? इसका जवाब कोई scientist (वेज्ञानिक) क्यों बनाया गया ? यह सब मानते हैं कि हम Amoeba (अमीबा) से, एक छोटे से अमीबा से एक किस्सा है कि एक पादरी साहब एक गाँव में गए, जहां बेचारे देहात के लोग बहत सीवे सादे मेहनत करके आपको बनाया गया-ये Special ( विशेष) चीज जो इन्सान है, है बड़ा मजेदार । थे । उन्होंने उनको काफी तो हुआ जब जाने लगे तो उनका Farewell कुछ सिखाया । यह हुआी ले किन कभी कभी सोचती हैं कि इनके सींग नहीं विदाई-समारोह) हो गया उसमें बेवारे देहातो है दुम नहीं है, ऐसे तो ठीक है लेकिन इतने ज्यादा लोगों ने कहा, कि पादरी साहब हम आपके बहत हठो क्यों हैं ? यह मेरी समझ में नहीं आरया । इतनी शुक्गुजा र हैं, वड़ा धन्यवाद है क्योंकि हमको तो हठ तो कभी-कभी बेल या घोड़ा कभी-कभी क्षरिणक माजूम ही नहीं था कि पाप क्या है ? ग्ापने हमें करते हैं। यह तो Permanently (स्थाई रूप से) सिखाया कि पाप चीज़ क्या होती है, बहुत बहुत हठी लोग बैठे हुए हैं। ओर इनसे जुझते-जुझते मेरी समझ में नहीं आरता कि इनको पार करा कर भी क्या होगा? अ्रब] आप पूछ सकते हैं। आपसे पंतजी बतायेंगे कि न जाने कितने लोगों को हमने यहां पार किया, उनको Vibrations प्राने लग तो जो निष्पाप होते हैं. जो भोले होते घन्यवाद हैं, जिनको पता है ही नहीं ये चीज़ क्या है, मतलब ये कि बहुत मुश्किल हो जाती है मनुष्य के बारे में सीखने के लिए । निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt गए, पार भी हो गए; कुण्डलिनी के बारे में उनको बताया; कंसे कुण्डलिनी जागती हैं, उन्होंने (यत्त्र) तो बनिये, जिसके लिए आप संसार में आए यहां तक देखा कि हमारे सामने जब लोग आते हैं हैं और इसलिए आप विश्व में बने हैं। उनके अप तो उन की कुण्डलिनो उठती है, उसका स्पंदन होता instrument बन, उन्हें समझ, गहनता ग्रहरण करें है। Triangular Bone (त्रिकोणाकार हड्डी में और उनके साम्राज्य में प्राप जाये । लेकिन अगर कुण्डलिनी छेदती है । यह सब उन्होंने देखा है और हुआ उसके बाद Vibrations अ्राये और यह सब कुछ सब इन्तजामात हैं आरपके लिए कि आप कुण्डलिनी करने के बाद, वावजुद इसके कि हर तरह का उन्हें के सहारे आप अन्दर आईए अनुभव हो चुका। उसके बाद साहब फिर वो घर हठ से दरवाजे पर खड़े हैं कि नहीं साहब हम तो में मे रा फोटो ले गए और आरती-वारती करके आयेंगे ही नहीं। क्यों सहब चौखट से ही हमको और फिर एक साल वाद बता दिया कि माता जो प्यार है तो हम कया करें ? इस प्रकार मनुष्य के हमारे vibrations अव गायब हो गए । और क्या अन्दर इतना अज्ञान है, इतना ज्यादा अज्ञान है कि होगा? उसका पूरा इन्तजाम आपने कर लिया। जब कि आपके अन्दर कोई बीज पनपा है, तो उस को आप किस तरह रखेंगे ? उस वक्त आप अगर उसको उठाकर फेंक दीजिएगा तो वो गल जाएगा| खत्म हो जाएगा। सीधा हिसाब है । अल में आप परमात्मा के instruments है, ऊपर चढ़ती है और ब्रह्मरद्र को परमात्मा ने अपना साम्राज्य फैला रखा है कि और आप आईये आ्रापके लिए सुस्वाग तू रखा हुआरा है, ले किन आप जो हैं, कभी कभी मुझे लगता है कि दो हुई चीज़ का जो प्रकाश है उसे वह देख नहीं पाएगा और समझ नहीं पाएगा। प्रब यहां पर न जाने कितने सालों से हम आ रहे है । किंतने हो लोग पार हो रहे हैं लेकिन गति जो है यहां सहजयोग की वह बहुत घीमी है, विशेष ईस बात को लोग समझते नहीं हैं कि किनना हमें यह मां ने दिया है। मेरे लिए तो इतना बहुमूल्य बहुमूल्य नहीं होगा शायद क्योंकि मुझे कोई इसमें कर विश्वविद्यालय में क्योंकि विश्व का विद्यालय ऐसी विशेष बात नहीं लगती । लेकिन अआपके लिए है न ! मुझे तो हंसी इस पर आती है कि जहां मूझे मूल्यवान जरूर है। क्योंकि अगर आपको ये न मिले उम्मदि भी नहीं होती, जहाँ मैं सोचती भी नहीं कि तो आप करियेगा क्या ? आप लोगों को क्या होने बाला है ? इसके बग र आप लोगों का चलेगा कैसे ? इतना काम पनप जाएगा वहां तो बहत आसानी से हो जाता है और लेकिन जो जरूरत से ज्यादा अ्रक्लमन्द होते हैं-जैसे कबीर दास जी ने कहा है पाने का तो यही है। समझ लोजिये अ्रापने कि पढि पढि पंडित मूरख भए' और हमारे मराठी यह बनाया और इसको ऐसा ही र खा, इसे mains से नहीं connect (कनक्ट) किया तो इसका क्या करियेगा ? अचार डालियेगा ? अधिकतर इन्सान इसी हालत में हैं कि उनका अचार डालिये । किसी का म के नहीं, एकदम बेकार लोग हैं । बिल्कुल वेकार हैं परमार्मा के लिए । अपने को तो बड़ा अफलातून समझते हैं । उन्हें सब बाकी कुछ भी नहीं, बाकी सब बेकार । और इस सेजूट (salute) करें, ये करें, वो कर पर वो आत्मा का जो प्रकाश है, जो ब्रह्म तत्व है, जिसे विल्कुल है । कि जो अ्रति अरक्लमन्द बनते हैं उनके पर जो हैं रास्ते में घूमा करते हैं वो नहीं होती। ऐसा कुछ हाल हो जाता है । में कहा जाता है कुछ इसलिए पहले यह सोचना है हम क्या हैं ? आप ग्रात्मा है। आप सिर्फ आत्मा हैं । और बाकी ? वे प्रपनी दष्टि से बैकार कि हम Vibrations के नाम से जानते हैं, जो काम ेमाँ का संकेत उनके सामने उस समय रखे Microphone से है । निर्मला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt शीतल होते हैं ये ही आपका कार्य है और कुछ नहीं अन्दर श्री गणेश हैं, और श्री गणेश की शक्ति हमारे बाकी सव मिथ्या है । शरीर तो आप जानते है अन्दर है । यह जो प्रापको पहला चक्र दिखाई दे मिथ्या है । शरीर मिथ्या है, आप रोज ही देखते हैं । इधर से मैं आ रही थी तो मैंने देखा कितने ही हम यह बात कह रहे हैं कि श्री गरेश हनरे मूला- बड़े वड़े लोग जो आये, अब नही हैं। फिर आप यह भो जानते हैं, अहंकार मिथ्या है । वड़े बड़े Proof (प्रमाण) दे सकते हैं science से ? कोई लोग Position (ओरहदों) में बैठते हैं, जैसे ही उनकी कुर्सी खिसक गई, उनको पाताल दिखाई कहां है ? इसका आप कोई भी Proof दे दें, कोई देने लग गया । मन भी जो हैं, वो भी मिथ्या है । भी नहीं दे सकता श्प किसी के पीछे बहुत मनः पूर्वक काम करते हैं मनः पूर्वक ये करते हैं मनः पूर्वक वो करते हैं और आप को कुछ हो जाता है, कोई अपको पूछने (असीम) की बात कर रही हैं। वाला नहीं रह जाता है । बुद्धि भी मिथ्या है क्यों- कि बुद्धि से जो जानते हैं, अप उसी को contra- जायेंगे, कि जब तक आप सीम में नहीं उतरेंगे, dict (विरोध) करने लग जाते हैं । बुद्धि आप इस चीज का जबाब नहीं दे सकते हैं कि मां की पहुँच ही कहां तक है, जो सामने दिखाई देता है । जैसे कि ज्यादा से ज्यादा में प्राप से एक-दो सवाल पूछ कि ये बताइये कि Science (विज्ञान ) खोजा। और Science ने यह बता दिया कि पृथ्वी के अन्दर Gravity मध्य-प्रदेश में जगदलपुर में आप (गुरुत्व) नाम की शक्ति है । वो तो जाहिर है उसमें कोन सी बताने को बात है। वो तो किताबों हैं । हैं ? इसका रहा है. मूलाधार चक्र पर हो थ्री गणेश हैं । अच्छा धार चंक्र पर विराजमान हैं। अ्रब] आप] इसका दे सकता है कि हमारे अन्दर श्री गणेश की शक्ति । क्या वजह है ? इसका जबाव बुद्धि जो है हमेशा हो Limited (सोमित) है मैं Unlimited श्रप इस अल्प वुद्धि से नहीं दे सकते । अब Unlimited में जब तक आप नहीं आप संच कह रही हो या झूठ कह रही हो। अ्ब बुद्धि से आ्पने 1. पक्षी प्राते हैं, साईवेरिया से आते हैं, हमारे यहां पाइवेगा साईवेरिया के पक्षी, सीधे । और हर बार वही पक्षी वहां चले आते जवाव दे सकते हैं ? उनके अन्दर कौनसी शक्ति हैं वो कैसे आते में हैं, सब कुछ है। और जो कुछ भी आप पता लगा रहे हैं, उसके प्रन्दर है वो सब कुछ । लेकिन जिसकी वजह से वो बराबर साइवेरिया से उड़कर बो आई कैसे ? Why का उत्तर है क्या ? वो आाई कसे वहा ? बो है क्या चीज ? वो शक्ति क्या है, जो पृथ्वो के आपने दिया नहीं । बस कह दिया कि हमारे दो इन्सान के अन्दर gravity है, जब वह खराब हो हाथ हैं, हां हमारे दो हाथ हैं और फिर कह दिया जाती है, उसका वज़न जब खराब हो जाता है, कि इस हाथ के अन्दर पांच उंगलियाँ हैं, ठीक है, उसकी जब gravity खराब हो जागी है, जब हैं पांच उंगलियां । ये हमने देख लिया और फिर उसका Self-esteem (ग्रात्म-सम्मान ) जब वो Science से आप ज्यादा से ज्यादा यह बता देंगे हो जाता है, जब उस कि यह किस चीज़ का बना है इसको खोज-खाज की आँखे इंधर-उधर दोड़ने लग जाती हैं, उसका के, खोज-खाज के हो इन चीजों का पता लगा सकते हैं । बता सकते हैं कि इसके अन्दर क्या है जाता है तब उसकी gravity खत्म हो जाती है । उसके अन्दर क्या है वरग राह वर्गराह । लेकिन क्यों जब वह gravity खत्म हो जाती है तो क्या हो है और कैसे है इसका जवाब नहीं है। जैसे हमारे जाता है ? आपका गणेश चक्र पकड़ जाता है। वहां चले प्राते हैं ? वही गणेश शक्ति । ओर बही गणश शक्ति पृथ्वी के अन्दर गुरुत्वाकर्षण शक्ति अन्दर समाई है ? इसका तो उत्तर है जिसे कि आप कहते हैं Gravity औ्रर Frivolous (कमज़ोर) मन खराब हो जाता है और उसका चित्त बिखर निमंला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt - जहां जहां ये गराेश शक्ति नष्ट नष्ट करते जायेगे पर जब ये गणाश चक्र पकड जाাता है तो आपका innocence जो है, वो खुत्म हो जाता है । प्राप हो गई, बहा वहां वच्चे पेदा नहीं होगे । अव आप चालाक हो जाते हैं। अव, चालाकी से बढ़वार जमनी में जाइये; इंग्लैण्ड में जाइये- महावेवकूफी संसार में कोई नहीं है। महावेवकूक Population ही है । अभी तो वह कह रहे हैं कि होता है, वही चालाको करता है और अकलम-द Emigration (स्थानान्तरण) नहीं होगा । जो होते हैं कभी नहीं। क्योंकि चालाकी से आप Emigration उन्हें करता पड़गा क्योंकि सब बुड्ढ़े पा भी क्या सकते हैं ? चालाकी से आप अपने हो जाये गे ६० साल के, बच्चे कोई होंगे नहीं तो innocence को तो पा नहीं सकते जो आपकी होगा क्या ? जहां ये गाश शक्ति नष्ट होती जाती गश शक्ति जो आपके अन्दर Present है, बसी है स्त्री में, विशेष कर पूरुष में भी, वहाँ पर बच्चे है। इस गणेश शक्ति से ही आप पदा हुए हैं। आपके अन्दर समझ लीजिये कि आपके तन की में और ये गरणश शक्ति हमारे अन्दर इस शवल है । आपकी बोवी की दूसरी त रह की शक्ल औ्र आपका जो बच्चा होगा, यो दोनों की के बारे में कहीं science में लिखा नहीं। अब शक्ल से किस तरह मिलकर वनता है। ये कसे लोग मुझसे भी कहते हैं कि मां [आप जो कह रही बनता है ? कोई Scientist वनाकर दिखाये। वो किसी किताब में नहीं लिखा । अरे भई जो कोई Scientist पगर जमीन से पत्थ र उठाकर के किताब में लिखा है वो तो उद्धुत है ही और प्रगर उसमें से बच्चा पेदा करके दिखाये। या छोड़िये सब बात लोग पहले से ही लिख देते तो आप किस निकाल कर दिलाये । चौज़ दिन के लिए ग्राए है ? कुछ बात बताने के लिए भी Minus पेदा नही होते क्योंकि गणेश शक्ति से ही संसार Centre (चक्र) में बेठी हुई है। और इस centre अ्रब या छोड़िये कुछ बनाकर दिखाये । रखनी पड़ती है। और पहले बताने से भी फायदा वया ? उससे तो नुकसान ही होगा जो चीज तो किस चीज का इतना अहंकार है मनुष्य को ? ये कहा जाता है कि कोई भी अपने अ्द्दर पहले बताई गई, उससे बड़ी नुकसान हो गया शरीर के अ्न्दर कोई सी भी Foreign बोज प्राए. कोई भी बहर की चोज ग्राए तो [प्रापका] शरीर शराब मत पिथो क्योंकि वह चेतना के विरोघ में उसको फैक देता है । पर जब मा के पेट में बच्चा पड़ती है। अगर अरापने शराब पीना शुरू कर दिया रहता है. foetus होता है तो वह फेंका तो नहीं तो अपका जो है नाभि चक्र खराब हो जायेगा । जाता वल्कि उसको संजोया जाता है. सम्भाला सोधा हिसाब । क्योंकि आ्रपको चेतना जो है- जाता है, तब तक जब तक वह उस दशा में न जिस चेतना से आपको परमात्मा को खोजना है पहुँच जाये अ्रोर जब वह उस दशा में पहुँच जाता वो आपकी दब जाती है । बो भ्रापके नाभि चक्र में है तो उसको बराबर बाहर निकाला जाता है जो चेतना है, जिससे आप भगवान को खोजते हैं, करीने से । ये काम कोन करता है ? आप तो नहीं जिससे अप evolve (उत्कृत) हए हैं जिससे अ्राप कया आप सम्भालते हैं इसे ? आप ही क्यों पैदा अमीवा से इस stage (स्तर) में आए हैं। आपका हुए है ? अ्रापके ग्रन्दर जो कुछ सूरत-शक्ल है वो evolution (उत्क्रांति) रुक जाती हैं अगर अपने भो श्री गणेश शक्ति की देन है अब जब आप शराब पोना शुरू कर दिया। सोधा हिसाब । आप अज्ञान में बैठे है तो आप इस गणश शक्ति को evolve नहीं होते, आप पार नहीं हो सकते । नष्ट कर रहे हैं। सुबह से शाम तक आप इस डिसलिए कहा कि शराब मतः पियो । अब अगर शवित को नष्ट कर रहे हैं और इसको आप जितना किसी से कहो कि दा राब मत पियों तो उसकी हृद लोगों को । शब जैसे पहले बताया गया था कि भई हुए निर्मला योग हं 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt इतनी कर डाली उन्होंने । एक हृद तो ये हो गई ज्यादा पकड़ रहा है, नई दिल्ली में ज्यादा Old Delhi में कम-सवाधिष्ठान चक्र। स्वाधिष्ठान कि कहा कि शराब मत पियों तो भगवान के ऊपर में उमर खय्याम साहब हो गए, अपने बच्वन जी चक्र वो चक्र है जिससे हम सोचते हैं । जब हम हैं, बड़े भारी कवि धूमते हैं । निकाला कि भई क्या रखा (इसमें) बुरा ? What's उन लोगों ने सो कने लग जाते हैं बहुत ज्यादा, तो यह चक्र बहुत ज्यादा चलता है अरौर इसके अन्दर एक शक्ति होती ? *ह है जिससे हमारे पेट का जो मेद है, जो Fat cells wrong ? What's wrong Nothing is wrong, If you want to be- हैं, उनको हम convert (बदलते) करते हैं, brain come stones तो क्या है ? There is no (मस्तिष्क) के लिए । अब सोचने की लोगों को thing wrong. (बुरा व्या है ? बुरा क्या ? बुरा इतनी बीमारी है कभी कभी मेरी समझ हो नहीं कुछ नहीं है। अगर आप पत्थर बनेना चाहे-तो आता कि सोचने की जरूरत क्या है। जैसे समझ क्या है ? इसमें कुछ बुरा नहीं।) आप जाकर कुछ लीजिए कि अरव किसी आदमी को बाज़ार जाना भो खाइये, पीजिये, हर्ज क्या है ? wrong कुछ है भई उठाओ झोला, जाओ बाजार । देखो क्या नहीं है। Right (अच्छा) ओर wrong (बुरा) सब्जी है, लेकर आ जाय्य । सबसे पहले घर में की तो बात क्या है, आपकी तो evolution को discussion शुरू हो रहा है कि आज भिन्डीं शक्ति खर्म हो गई। सोधा हिसाब । लेकिन एक बनाये या लोकी बनाये । बाज़ार गए हृद तो यह हो गई कि भगवान के नाम पर पचासों सब्जियां नहीं । पहले एक घन्टा वहां discussion गालियां, और सारे जितने साधु-सन्त हैं उनके नाम (बहस) हुआ Planning (योजना ) हो गया, पर गालियां । और दूसरी हृद यह है कि शराब नहीं पीने का है, तो ये हद हो गई कि दूसरी हृद लेकर आ गए जिसका कोई इन्तजाम नहीं । हर हो गई कि शराब जो पीयेगा उसके हाथ काट चोज में इतना सोचकर के हम लोगों ने कौन सा डालो, पेर काट दो, सर काट डालो। ये भी कोई नमूना है ? एक तो extreme (अरति) यह है कि लपेटना, मैं कहती है। आधे तो पहले, तो आघे को शराब पीना क्या है, मतलब तो बहुत बड़ी चौज़ हो गई। शराब क्या है, उसके ऊपर गजल हो, मुशवरा दिया उन्होंने जैसे कहते हैं न ऊँट पर बड़े फसाना हो गया, ठिकाना हो गया, सब चलता है । और दूसरी हद ये कि जब पहुँचे कि आपने शराब पी तो गर्दन आपकी कट गई भई एक बार किसी ने शराब पी, ठीक है एक बार पो तो उसका नैशा तो उतार सकती है लेकिन गर्दन निकाल दी तो उसका क्या करू? 0ut of proportion जा रहे. हैं [प्रव] इसी तरह अनेक चक्र अपने अन्दर इस तरह से हैं, जिनके बारे में खुलकर बतायं गे । मेरे र्याल से हम किसी भी चक्र के बारे में खास जानते नहीं। अगर जानते होते तो हम लोग उसके साथ ऐसे खेल-खिलवाड़ नहीं करते । तो दोनों बाजार गए तो वहां दोनों सब्जियाँ नहीं। तीसरी तमाशा करके रक्खा हुआ है, बोलिये । यही तो ऊपर से लपेट लिया । वो आये, बड़ा सलाह अवलमन्द आ्रये बैठकर । तो उन्होंने कहा कि हम आप से सलाह मशवरा करते पर हम ऊँट पर अआये है। उन्होंने कहा कि भई ऊँट से उतरो । कहने लगे, ही सलाह मशवरा नहीं साहब हम तो ऊँट पर से शुरू हो गया, सलाह मश- दूस रा प्रश्न करग । ती वरा तो गया एक तरफ, अब ये हआ कि ऊँट के साथ इन्हें अन्दर कैसे ले जायें । दूस री ही Prob- lem (समस्या) शुरू हो गई। याने जो Advisor General जो थे वो ऊँट पर ही जा रहे हैं। अब इन ऊट बालों का क्या किया जाए। अब दूसरी लपेटन शुरू हुई। कहा कि अच्छा अगर ऊँट वाले आ रहे हैं, तो ठीक है, ऐसा करो-कि प्रश्न तो ये था कि इनको अन्दर के से लाया जाये। तब ये हुआ तीसरा चक्र हमारे अन्दर जो है बहुत महत्व- पूर्ण है जो कि दिल्ली शहर के अन्दर बहुत ही निमला योग १० 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt कि अच्छा यह है कि इतना बड़ा भारी जो दरवाजा रोक पाते । उनका विचार एक क्षण भी बना हआ है उसको गिरा दें। इसके अन्दर से बो नहीं रुक पाता। ऐसा लगता हैं जैसे कि उनके अन्दर आयगे । जब तक महाशय अरन्दर गए तो जो अन्दर से विचार के दो सींघ निकलते चले आ रहें प्रश्न थे वो तो एक तरफ रह गए, इतना ही एक हैं बाहर (मुझको दिखाई देते हैं ) प्रश्न खड़ा हो गया कि इन्होंने ही सब चीज़ गिरा मिनट भी उनसे कहें कि विचार रोकें तो विचार फिराकर रख दी । अब एक रोक नहीं पाते, ये उनकी दशा है । माने ये कि ये बह गए वित्रारों के अन्दर, विचारों ने इनको हाबी कर दिया। जितने बाहर के लोग हैं जितना पढ़ा- इस तरह हमारा Planning (योजना बनाना) होता है, इस तरह का हमारा सोच वि चार है । लिखा, सोवा-समझा जिनको आप समझते हैं वो तो जो Basic Problem (बुनियादी समस्या उस Problem की और तो चित्ति नही बाका प्रापको आप खोजने से मिलते ही नहीं। दुनिया भर की । क्या basic problem है हमारी ? क्या basic problem है ? ) हूँ श्रपके अन्दर हो गए है और आप हो गए है बाहर अ्रति सोचने से भी स्वाधिष्ठान चक्र खराब हो जाता है । अब आपको कोई कहेगा कि मां ये कैसे हो सकता है, वगैर सोचे कैसे हो सकता है । भई पहले से क्या सोच ते हैं ये ही आज तक समझ में नहीं प्राया कि आप पहले ही से क्या सोचते हैं । अगर पहले ही सोचकर काम होता तो उस तरफ जाने की जरूरत ही क्या है ? Basic problem एक ही है कि हमने अपने को जाना नहीं। हम जानते ही नहीं कि हम ससार में क्यों आये हैं-पहला। को हमें जानना चाहिए। उसे किस तरह से जाना जाए-ये ही तो हमारी basic problem है। और इसके लिए हमने क्या किया ? सूर्य पर गए, ओर कि उस दुसरा यह समझ लीजिए हमें गांधो-भवन जाना है अगर हमें गांधी-भवन ने का है तो हम चल दिये । रास्ते में पूंछ लिया भई कहां जाना है, और और यहां (गांधी-भवन) आ गए अब] पहले से हम सोचने लग गए कि हो सकता है अगर गांधी- भवन जाना है तो इधर से जाएं फिर उधर से जाएं फिर उधर से जाएं, क्या करं ? फिर ऐसा करते हैं इस तरफ से चलेंगे तो कहते कहते किसी ने कहा कि तुम उस तरक से उतरो, तो अच्छा । भई आप चल पड़ो, चार प्रादमियों से चन्द्रमा पर गए, इधर गए, उधर गए। और पाया क्या ? ये ही जाना कि आप चीज क्या है ? आप हैं क्या ? इसी को नहीं जाता बाकी दुनिया भर की चीज़ भप जानते रहिये । जैसे कि वो जो आदमी को बुलाया था सलाह मशवरा करने वाला उसने आकर सब तहस-नहस कर दिया। उसी तरह से हमारा सारा विचार हमें तहस-नहस सुबह से शाम तक करवा रहा है और आज अब इस दशा में इन्सान आ गया है कि जब जब उस की ओर मेरी नजर उठती है तो मैं देखती है, पहले जमाने में इतने ज्यादा सोच विचार का घंधा नहीं चलता था। पहले लोग शान्त थे. हर चीज़ सोचते नहीं थे । रहेगा पूंछ लो रास्ते में और पहुँच जायेंगे । पहले ही आपने एक घन्टा देर लगा दी पता लगाने में कि सी चीजें accept (मान लेना) कर लेते गांधी-भवन कैसे पहँचना है । अब पता हुआ कि बहुत थे । बहुत सो चौज़ों के साथ--जैसे सामने आ जाये, चलो भई ठोक है ऐसे ही। आजकल ये है, सोचना विचारना । तो क्या वो ऐसे जुट गए हैं सोचने विचारने में कि एक मिनट भी अपना विचार नहीं आप वापस आपनी मंजिल पर आ गए, पहुँचे नहीं। इसी एक चक्कर में आप धूम गए और फिर बापस । और अगर आप जानते भी नहीं जानना है अभी हमें। हमें अभी देखना है, इस चीज पर आदमी निर्मला योग ११ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt विचार करता है पर अभी हमने जाना नहीं है वह जाती है कि लोग उनसे बात करने में भी जब तक सोचता क्या है, प्रभी तो हमें देखना है । होता क्या है? ्गे चलें देखे क्या होता! है ? जब आदमी अपनी बुद्धि में इस तरह खुला दिमाग रखता सकते । इसलिए मनूष्य को अपना विचार जो है है वो सही मंजिल पर पहुच सकता है । और जो ऐसा रक्खे-कि देखा जायेगा। जो सामने होगा, आदमो पहले से ही Preconditioned mind वही होगा. वही होना है, चलिए जै सा हो, देखेंगे । देखे अगे आप 5 Year plan (पंच वर्षीय योजना) की बात न करें तब तक अप किसी चीज पर बात नहीं कर हैं है उसका, पहले से ही उसने सब सो व लिया कम से कम सहजयोग के लि ए ऐसा ही विचार कि भगवान का मतलब ये होता है और रखना चाहिए। आप अरगर पहले ही से बहुत पढ़ कुण्डलिनी का मतलब यह होता है । बहुत से लिखकर आए हैं तो आप मुझसे ऐसे सवाल लोग तो यह कहते हैं कि कुण्डलिनी पेट में होती है । पूछियेगा जिसका कि कोई उत्तर नहीं पायेंगे । मैंने कहा मैंने तो नहीं देखी । अगर कोई आकर मुझसे लोगों ने ऐसे ऐसे सवाल पूछे हैं कि मुझे मेरा माथा खाये कि आपका हृदय जो है यहां पर कभी बड़ा आश्चर्य लगता है इसलिए मुझे होता है तो उसे क्या कहा जाये। होता नहीं है, आपसे यह कहना है कि पहले आप प्रपने मन से होता जहां है वहीं है । कम से कम आप देखिये तो कहें या बुद्धि से कहें, कि इस वक्त ऋप जरा शान्त सही वहां है या कहां है। इस तरह से जिद ग्रादमी हो जाइये अ्और अव जरा आप इस चीज को पा बना लेता है और जो कुछ किताबों में लिखी हुई लीजिए । क्योंकि चक्रों का खराब करना चीजें हैं वो कोई last word (गप्राखिरी शब्द) तो बहुत आसान है, उतका ठीक करना बहुत है नहीं, कि भई आखिरी तत्व तो है नहीं जिसके मुश्किल। आगे कोई तत्व नहीं। अगर ये होता तो आप संशो- घन किस चीज का करोगे। स्वाधिष्ठान चक्र के खराब हो जाने से अनेक बीमारियां होती है। एक बात पच्छी है कि बीमारी तो मनुष्य की बुद्धि में संशोधन होता चाहिए, हो जाती है। अगर बीमारी न हो तो आदमी प्रपने थोड़ा दिमाग होना चाहिए Preconceived को कभी न ठीक करे। क्योंकि बीमारी के सिवा idea नहीं होना चाहिए । वो Open लोग समझ ही नहीं पाते हैं कि श्रीर भी कोई चीज अन्दर खराब है। वो तो सिर्फ बीमारी समझता प देख गे तो हैं । अधिकतर लोग तो सिर्फ बीमारियां ठीक करने minded (खुले-दिमाग वाला) होना चाहिए । और खुले-दिनाग से जब अप जो सत्य है उसको फोरन पकड लगे। बजाय आते थे । अब उनको समझ में आया है कि और इसके कि हां, किसी ने कहा भई कि हमने किसी से भी अ्रशुद्धि यां, खराबी हो गई हैं जिन्हें ठीक करना है । लेकिन पहले तो सिर्फ वीमारी ठीक कराने कहा कि आप वहां जाइयेगा तो वहां आापको घन्टा- घर दीखेगा। ठीक है। हमने घन्टाघर देखा था, वही घन्टाघर तो उन्होंने कहा हो सकता है कि आप किसी और घन्टाघर पहुँचे ।Preconceived ideas जो हैं, उससे आदमी इतना conditioned हो जाता है कि उसको समझाना मुश्किल हो जाता आते थे । अब सबसे पहले बीमारी, जो आदमी बहुत Planning करता है. उसे कीन कौन-सी होती है ? उसको सारी पेट की बीमारियां- जैसे liver ( । जिगर) खराब, liver जरूर खराव होता है है कि भई आगे जो सत्य है वो सामने प्रकाशित क्योंकि Iiver जो है बो सारे poisons (विषों) होने वाला है, उसे आप स्वीकारं । क्योंकि उसकी को अपने शरीर से बाहर निकालता है । लेकिन जो बुद्धि इतनी high-class (उच्च श्रेणी) की हो आदमी जरूरत से ज्यादा सोचता है वो बेचारे निमंला योग १२ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt स्वाधिष्ठान चक्र को इतना थका देता है कि वो (पराकाष्ठा ) ली है तो balance देने के लिए liver को देखता ही नहीं और liver पनप सकता हमें यह बीमारी शुरू हुई है। यह balancing ही नहीं। उसकी जितनी भी चेतना है, जो भी उस बीमारी है जिससे अरादमी समझ ले कि हमने बडे की awareness (अवेपरने स ) है वो सारी इसमें unbalance लगी रहती है कि बो किसी तरह जल्दी-जल्दी आदमी सोचता है, तो diabetes की बीमारी brain cells बनाए और brain काबू में रखे, Brain को तो सप्लाई (Supply) हैं, उनको करे। तो सारी emergency (आपात स्थिति) कभी dibetes नहीं होती। वो हर समय carbo- brain में अा जाती हैं और उसके लिए लिवर hydrates खात रहते हैं। वो तो एक cup में (Liver) जो है बेकार है, Liver की तरफ चित्त एक मन चीनी भी डाल तो कहंगे फीका है। बहुत नहीं जाता है और Liver खराब हो जाता है। Liver खराब होने के बाद जब उस आदमी को cirrhosis हों जाये या Liver cancer हो तभी लोगी को अगर चाय चाहिए तो एसा लगेगा कि डॉक्टर लोगों को पता होता है अर वो इतना वता । सकते हैं scientifically ( आप इतने दिन में मर जायेंगे। मेरे पास तो ऐसे ही बनात हैं। तो इस तरह के लोगों को तो कभी ही लोग आते हैं जो certificate ( प्रमाणा-पत्र) लेकर आते हैं कि मां हमको तो बता दिया है कि के लोगो को diabetes नहीं होती, शहर के लोगों आप एक महीने में चल बसेंगे। बहरहाल यह हो की ही होती है क्योंकि बहुत सोचते हैं । और सोच गया कि वो ठीक हो गए हमारे पास आने पर । दरप्रसल अब यह आपका स्वाधिष्ठान चक्र खराब है औ्र वो ठीक होने पर आपकी बीमारी ठीक हो जायेगी। से काम किया है । बहुत ज्यादा जब (मस्तिष्क) को होती है। जो लोग सोचते ज्यादा नहीं हैं जैसे villagers (गाँव वाले) वरगैरह मीठा खाते हैं तो उनको तो हमेशा फीकी ही लगती हूं। खासकर में रठ में प्रगर आप जायें तो आाप उन्होंने चीनी घोलकर पहले, फिर चाय बनाई है ऐसा नहीं लगेंगा कि चाय बनाई है। वो तो चीनी वैज्ञानिक रूप से) कि diabetes नहीं होती। कभी आप देखियेगा, देहात सोच के क्या बनाया? एटम बम (Atom bomb) और क्या बनाया ? और यह बनाकर भूत ऊपर रखे दिया अर नैचि सब डर रहे हैं। अब एटम बम बनाने से इतना जरूर फायदा हो गया है कि सब सहम गए। इतनी बेवकूफी की, उसका यह उससे दूसरी जो खराब बीमारी होती है वो फल निकल आया । अब इससे ये जो भूत ऊपर बैट है Diabetes ( मधुमेह) क्योंकि यह ही एक गए हैं तो कहीं बटन दबा देंगे तो हम सब खत्म हो चक्र है जो सबको Supply करता है। तो आपके जायेंगे। तो यह बहुत अव्लमन्दी करके निकाला Pancreas out of gear (खराब) हो गए और जो भी उस्होंने अन्वेषण किया उस अन्वेषण में आपको diabetes हो गई और लोग कहते उन्होंने ऐसा इन्तजाम कर दिया है कि एक क्षण हैं कि diabetes uncurable ( लाइलाज ) में सारी दूनिया साफ की जा सकती है। अब सब * fE है । बिल्कुल ही uncurable क्योंकि आपने ही बीमारी ली और प्राप ही इसे यह तो पता नहीं था हमें कि खोज खोज के अपने ठीक कर सकते हैं । अव diabetes की बीमारी ऊपर बारूद लगा दी हमने । अपने ही सर पर आपको अगर हो जाये तो लोग कहते हैं कि साहब बारूद रख करके ग्रव इतना जीना मुश्किल हो गया इसमें Sugar जायेगा, ऐसा होता है वैसा होता है । है [अब सब Shocked ( घवराई ) हालत पर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा भी हो सकता मै हैं अऔर अब बडी बडी किताबें निकल रही हैं कि है कि हमारे liver (जिगर) ने extreme line अब तो थोड़े दिन में दुनिया खत्म हो जाने वाली ह नहीं है सहम करके बठे हैं कि साहब ये क्या हम कर गए । निमला योग १३ া 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt है। पूरा इन्तजाम इन्होंने कर लिया। सब Anti God Activities (भगवान के खिलाफ काम) हैं। सोच समझ कर जो चीज़ की कौन-सा आपने विशेष नाम किया। मेरी तो आज तक समझ में नहीं आया । अपना सोच जरा सा कम कोरिये । और विचार भी थोड़ा कम करिये लेकिन कहने से भी तो होगा नहीं। अगर कहैं कि विचार नहीं करो, विचार नहीं करो, तो नहीं होगा । कि आप एक महीने में मर जायेंगे । इसका मतलब नहीं हैं कि अप दुनिया भर के BIood Cancer के केस मेरे पास ले आएं । मतलव ये हैं कि आप लोग तो यहां आए है अपने speedometer लेकर ले किन हम क्यों इससे ही वंध जाय । इसका मतलब ये नहीं कि आप लेट लतीफ हों, ये भी नहीं है । इसका सबसे बड़ा मतलब ये है कि आप उतना ही करिये जितना आपके बस का है । आप इन्सान मैं कहै कि अपना Speedometer जरा कम करो। Speedometer के बारे में मैंने लोगों सें है। मशीन भी जितना नहीं कर सकती उससे बताया और मैं आपसे भी बताती हैँ। हमारा परापने क्या किया-वही Atom bomb (परमाणु Spleen (तिल्ली) जो है वो Speedometer है । और जब खाना खात हैं तो कोई न कोई ऐसी बात सोचने लग जाय, मतलब बड़े विवारक लोग हैं न ! बड़े काविल, तो कावलियत पपनी भाड़ने के लिए पूछना चाहती जब खाना खाते हैं तभी उसी समय नौ बजे प्रायेगी लड़ना केसे चाहिए, झगड़ा कैसे करना चाहिए, news (समाचार), जब आप खाना खा रहे हैं । तब आ्पको इत्मीनान से खाना खाना चाहिए । आपकी बीवी आपको पंखा झल रही है, आराम से लोगों को War (युद्ध) के नाम पर किस तरह बैठकर आप खाना खा रहे हैं। उस समय news (समाचार) आयेगी कि फलानी जगह दुर्घटना हो लिया है । और क्या किया है ? कोन सा अच्छा गई। आपका खाना गया काम से। लगे आप सोतने उसी बात के लिए । सवेरे जल्दी भागना है लगे कि साहब हमने social work (समाज कार्य) क्योंकि Office (दप्त र) नौ बजे पहुँचना ही किया है । यह S0cial work तो आपके लिए चाहिए। तो एक हाथ में आपका बक्सा, एक हाथ इसलिए तैयार हो गया क्योंकि अ्राप वेवकूफ हैं। में आपकी छतरो, और आपके मंह में कुछ ठूंसा जा उयादा आप क्यों करना ाहते हैं और करके भी चम या एटम बम) । क्या किया है तरापने ? मैं तो इन्सान से यह हैँ कि उन्होंने सीखा है : आपस में ग्रुप वाजी कैसी करनी चाहिए, किस तरह से Murder (कल्ल ) करना चाहिए। दूस रे देश के खत्म करना चाहिए। ये सब इन्तजाम आपने कर काम आप लोगों ने आज तक किया है ? कहने अगर पहले से प्रापने बेवकूफी नहीं की होती और आपने लोगों को इतना सताया नहीं होता, ऐसे-ऐसे Customs (रीति-रिवाज) नहीं बनाते जिनसे सब को तकलीफ हो रही है, तो कभी न होता ऐसा यानि कभी आपको social work की जरूरत ही नहीं पड़ती। मतलब है कि जो लोग धमं में खडे हैं जरूरत ही नहीं उनको धमं सिखाने की, कि आप रधम मत करो। जो धर्म में ही खड़े हैं उनको क्या रहा है। बाहर। पीछे दूध लेकर के कोई और दौड़ रहे हैं। ये तो आपके खाने की व्यवस्था है । आप इस हालत में भागे जा रहे हैं इसमें आपका जो speedometer (गति- मापक) है, जो आपका spleen है, वी Crazy ही जाता है, पागल हो जाता है और इसी से आपको Blood Cancer ( रक्त का केंसर) की बीमारी हो जाती है । अब हम लोगों ने कितने ही Blood Cancer ठीक किए हैं जिनको के Doctors (डॉक्टरों) ने certificate (सर्टीफिकेट) दे दिये थे जरूरत है ? यह चक्र (भवसागर या Void) हमारा धर्म बताता है । हमारा धर्म मानव धर्म है। और मानव निर्मला योग १४ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt धर्म में दस हमारे अन्दर गुण होना जरूरी है। यदि हम में ये गुण नहीं हैं तो हम मानव नहीं हैं. अ्दर क्या दोष है और दूसरे के प्रन्दर क्या दोष है दोष बाह्य दोष-नहीं कि साहब वो साहब थे या तो हम जानवर हैं या शेतान हैं । ये दस गुण और वो लाल रंग का कपड़ा ही पहनते थे या वे हमारे अन्दर जो हैं वो हमारे इस चक्र के चारों साहब थे उन्होंने ऐसा कर दिया या वो उस तरफ से बंवे हुए हैं और बीच में जो हमारे नाभि Political लीडर (राजनीतिक नेता) के साथ थे चक्र है उसमें ये हमारे दस बमों की पंखुडियां हैं । और उन्होंने दल बदल दिया, यह चक्रों में, सूक्ष्म में आपके तस्व में कौन सा दोष है यह आप समझ जाते हैं और आपके दोष, तत्व में खराबी का पता अब धर्मों का मतलब ईसाई, मुसलमान, हिन्दु पार होने के बाद, आपको चल जाता है इतना ही या आपस में सर फोड़ना नहीं है । हमको तो धर्म नहीं, सहजयोग में गहरे उतरकर के जब आप का मतलब यह मालूम है कि इंधर ये एक निकला, इसकी पूरी विद्या को सीख लेते हैं-इस "निर्मल उधर से दूसरा निकला और लड़ाई हो रही है। विद्या" को सीख लेते हैं; या इसको कहना चाहिए झगडा हो कि अपने Master हो जाते हैं, अतिमानव संत हो ं जागृत हो जाता है, आप धर्मातीत हो जाते हैं। आपकी चेतना में नया सकता । जो कि घर्म जो हैं जिसकी धारणा होती आयाम (New dinmension) आ जाता है, आप है तो मनुष्य जो है तो ऐसी कोई चोज बन जाता चंतत्य लहरियां (Vibrations) महमूस करने लगते है ऐसा उसका व्यक्तित्व कुछ ऐसा हो जाता है हैं आपकी शारीरिक, मानसिक, समस्याएं आपसे जिससे वो अपनी सार्वजनिकता कहिये या जिसको दूर हो जाती हैं । इसलिए हमें समझ लेना कि Collectivity ( सामूहिकता) कहते हैं उस चाहिए कि कम से कम हमारी तन्दरुस्ती जो इन धर्मों की ओर हमारा विशेष घ्यान है। अरे भाई क्या हो गया ?- धामिक गया । धामिक भगड़ी भी क्या हो सकता है, ये भी जाते हैं आप में घम हमारे जैसे बेअक्ल लोगों की समझ में नहीं पा गुरू न ठीक रख सके, तन्दरुस्ती का जिसको सम्भाला न जाये, ऐसे गुरू के पास जाने की जरूरत नहीं है । हैं, को प्राप्त हो जाता है, वो "वह हो जाता है। वो Collective हो जाता है। बो झगड़ा कैसे करेगा? क्या आप प्रपनी उँगलियों में उँगलियों से झगड़ा होता है, क्या ये एक दूसरे को मारती है ? आप उस तरह हो जाते हैं, आप में Collectivity आ जाती है। जब यह धारणा मनुष्य में हो जाती हैं--यह धारणा जानवर में नहीं होती। यह घारणा जब मनुष्य में हो जाती है, जब घम की धारणा होने के बाद यह घर्म हम में जागरूत हो जाते हैं, उस सहजयोग में इस दृष्टि से आप पारंगत हो जाते हैं किस तरह हमारी लन्दरुस्ती ठीक रहनी चाहिए किस तरह से हमारे चक्रों में दोष है, उसे ठीक । करना चाहिए, कम से कम । क्योंकि आप स्वयं डाक्टर हो जाते हैं. आप ही दवा हो जाते हैं और आप ही diagnosis (निदान) करते हैं। मनुष्य समय कुण्डलिनी जागृत होकर के चक्र को भेदती हो सब कुछ हो जाता है, मनुष्य में ही सब कुछ है। हुई ऊपर चली जाती हैं, तब मनुष्य के अन्दर में जो कुछ भी बाह्य में आप देखते हैं वो सभी भीतर जसे आप यहां बैठे हैं और आपको पता लगाना है कि आपके किसी सम्बंधी की तबीयत कैसी है । आप टेलीफोन कीजिए पैसा खर्च करिये, ऐसी कोई जरूरत नहीं। आप खुद ही देखिये, कैसी तबीयत है आपको स्वयं पता चल जाएगा कि कोन से चक्र में पकड़ आ रही है । अगर left (वायी तरफ) में सामूहिक चेतना जागृत होती है, जागरूत हो जाती है । है। इसलिए मैं कह रही हैं-यह lecture देने की बात नहीं है, यह अपने आप ही घटना हो जाती है । खुद ही महसूस करने लग जाते हैं कि आपके श्रति । निर्मला योग १५ लीtc। 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt पकड़ आ रही है, तो इसका मतलब है कि उनके हैं मैंने और आप यहां बैठे हैं थोड़ी देर में देखियेगा मन पर pressure (दवाव) है और अगर Right Vibrations आ जायेंगे, हाथों में। वसे लेकिन दायी तरफ) में श्रा रही है तो कुछ शारीरिक है । और उसके बाद चक्रों पर पता लगा लीजिये कि मुश्किल हो जाएगा। "क्या वात थी ?" "माताजी कौन से चक्र में बाधा है । जो Code है उनका वो ऐसा था कि मैंने कही जाना था Decoding हो गया है और अगर आप समझ Religious duty (धार्मिक कर्तव्य) हो गई न ।' ले तो आप फौरन बता सकते हैं कि इस वक्त उनकी क्या हालत है । यहां बेठे बैठे आप उनको बंधन दें और उनको Vibrations दें तो वहां वो ठीक हो जायेगे । यह सब आप कर कल की मीटिंग में आप नहीं आयेंगे, वो भी बड़ा ," वो तो केसे मना करता, मैं चला गया। उसकी गहराई, उसकी गम्भीरता, उसकी विशेषता, उसकी महानता, कुछ हमारी समझ में ये लोग जो तीन तीन महीने मेरे नहीं आती है। सकते हैं। कब, जब आप इस शास्त्र को सोख लेते हैं । हाथ तुड़वाते हैं, ये लोग समझते हैं । तो बजाय इस के कि आप लौग जमें ये लोग जम रहे हैं. और ये नहीं कि आप पार हो गए कहने लगे आप उखड़े-उखड़े घूम रहे हैं। हिन्दुस्तानी सहज माताजी ने हमें पार कर दिया । फोटो ले जा रहे योगियों का वाकई ये हाल है कि उखड़े-उखडे घुमते हैं । उनमें तो गह तता नहीं आती । ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि चलिए मेरे पेट में दर्द हो, वो ठीक कर दीजिये। मेरे लड़के की शादी करा दीजिये या और कुछ नहों तो जर। बढ़कर के का न में यह कह देगे कि माँ मेरा आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ है। फुल लेकर चले आए और कान में कह दिया, मेरा आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ है, उसे ठीक कर दीजिए । अरे भई क्यों पकड़ा हुआ है, केसे हुआ । कुछ उस मैं तो नहीं- मेरे हैं क्योंकि हम पार हो गए। इसके बाद एक साल बाद मिले, कहने लगे, "माता जी क्या बताएं हमारे तो Vibrations अच्छे नहीं हैं ।" आज जो पंत जी ने कहा, वो विल्कुल सही वात है । लोग यहां आते हैं, पार हो जाते हैं, फिर खो जाते हैं। चलतो का नाम गाडी। आाये, पार हो गये, काम खत्म । फि र आए, जसे थे फिर बही शुरू हो गया।"माता जी हमने पकड़ लिया, ऐसा हो गया, वैसा हो गया" माता जा पर study (अध्ययन) नहीं। पान time (सभय) नहीं। यह गहने गम्भीर बात है, यह frivolous (हंसी-मजाक) बात नहीं है। इसलिए मैं आपसे कहै गी कि भारतवर्ष में हर चोज आसान है, हर बीज मिल सकती है । यह ऐसी योग-भूमि है । यहां इतने बड़े बड़े अवतार हो गए, इतनी बड़ी वड़ी यहां चीजें हो गई हैं यहां का सारा प्रान्त जो है vibrated है । यह विशेष ही भूमि है, इस एक छोटी सी चीज है कि ध्यान के बाद, आप थोड़ी देर अपने पर पानी में रखें और अपने vibra- tions पायें । जो कुछ खराब है, उनको निकाल दं । सफाई जैसे हो जाये । जैसे आप नहाते हैं, इस तरह रोज श्राप नहाईये य से । हम लोग अगर कोई एक दिन आदमी न नहाये तो सोचते हैं, बड़े ही गरन्दे लोग हैं. नहाते नहीं। हिन्दुस्तानियों का तो यह हाल है कि उनको कोई कह दे कि नहीं नहायेंगे तो जैसे उनको तो जेव हो जाये। लंदन में अगर आप [सबेरे नहायें और इसके बाद बाहर निकल जाये तो आप को बहुत बीमारियाँ हो सकती है । खास करके लिए यहां पार भी लोग खट से हो जाते हैं । बड़े जैसे कि जितने भी Foreigners (विदेशी ) आए हैं और यहां बैठे हैं, एक एक आदमी पर तीन तीन महीने हाथ तोड़े ही जल्दी आप पार हो जाते हैं । निर्मला योग १६ he 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt उस चोज को भी नहीं पकड़ते हैं तो मैंने कहा कमाल हो गया, विल्कुल वेकार लोग हैं। कॅसर हो जाता है Lungs (फेफड़ों) का । और मैं ने इतने हिन्दुस्तानियों से कहा तो उन्होंने छोड़ दिया सहजयोग और फिर कंसर से मर गए इतनी ज्यादा समस्या है, इतना उथलापन है ले किन ग्रगर उनसे कहा जाये कि हमारी आत्मा और एक तरह से कोई भी चीज़ को महत्व नहीं की भी स्नान होना चाहिए, हमारा जो भी आत्म- करते हर चीज़ का मजाक मजाक बना लेना । अपना भी तो मजाक बन रहा है । जो आप सों चते हैं कि सबका मजाक बना रहे हैं, आपका भी मेजाक बन रहा है और अपने को भी ऐसी गडबड़ में आप फंसा रहे हैं कि उससे निकलना बहुत जीवन है, उसका भी स्नान होना बाहिए, उधर किसी का चित्त नहीं रहता, उसकी महानता, उस की गम्भीरता में । इसलिए, जो कि आपने एक किस्सा सुना होगा। मुश्किल है। वहुत ही मुश्किल है । एक इम्तहान में ज्यादातर Mathematics (गरिणत) में सवाल आते थे जो मुझे अब समझ में जैसे सहजयोग ऐसी चीज है जो आपको पाना है। यहां देने का कुछ नहीं सिर्फ पानेका है । लेकिन लीगो को यह समझ में नहीं आता कि अगर कोई देता है तो उसका महात्म समझाना चाहिए। हो, अगर मैं आपसे कहैं कि साहब कल से आप यहाँ आर्येगे तो सो रुपये का टिकट लगायेंगे तो देखिये प्रा रहे हैं। तब तो समझ में नहीं आते थे । कहते थे कि एक A आया, उसने काम किया वां दूसरा आया उसने वां किया, फिर तीसरा आया उसने इतना किया फिर चले गए, काम कब खत्म होगा? होगा हो नहीं, जब इतने भगोडो को आप 'लेकिन मेरी नरसोब में भी ऐसे यह सब भेर जाएगा। यहां बड़ी पेटी लगाइये लगाइंगा | सेवा के लिए"-लम्बी पेटी तो भर जायेगी और लोग बढ़ जायेगे। यहां आयेंगे तो मैं कहँंगी कि कुछ नहीं, आपको नाम दूँगी-कहेगे, "वाह ! हमें बहुत आए हैं। मैरो यह समझ में नहीं आया कि सहजयोग का काम पूरा क्यों नहीं हो रहा है । होगा कसे, जब भगोड़ों से पाला पड़ा है तो होगा तो नाम मिल गया-नाम मिल गया। अगर कैसे ? आप किसी को वेबकूफ बनायेंगे तो लाखों मिल "वेवकफों की कमी नहीं, रालिय बिन ढूढे हजार मिलते हैं ।" उधार मिलते हैं, यह हालत है और प्रगर प्राप देखिये जो गुरू लोग हैं, जो रुपया पेसा ले रहे हैं और जो आज कैसी-कैसी बेवकूफियाँ जाएंगे। गालिब ने कहा था, " जब जमने वाले ढुंढ़े जायें, जो जमें। हम देने को तैयार हैं, सब शक्ति देते को तैयार हैं, सब बताने को तैयार हैं, तब हो ठीक मामला । लेकिन जमने वाला ही मुश्किल है, ऐसे सबालात जहां पूछे जाते हैं । यही समझ लोजिये कि हमारे हित में जो बढ़े हुए हैं, उन्होंने फैलाई हैं, उसे गम्भी रता से पकड़ना है । जिसको पकड़ना हैं और उन बेवकूफियों में कैसे लोग आ रहे हैं। चाहिए उसको नहीं पकड़ा। पहले तो समझ में एक गुरू सा० यहां दिल्ली आये थे तो सारी दिल्ली बन्द हो गई थो। लोग पागल हो गए थे । अब उन के बारे में किताबों में निकल रहा है, अखबारों में निकल रहा है, ये निकल रहा है, वो निकल रहा है, लेकिन जो चोज जीवन के लिए सबसे महत्व - अरब धीरे धीरे उनका सब निकल रहा है । लेकिन ये जमाना था कि दिल्ली में रात को कोई चल फिर नहीं सकता था, ऐसे थे ये गूरू महाराज । अरजीब आता नहीं था कि कोई चोज़ ऐसो है ही नहीं पकड़ने लायक कि जिसको पकड़ा जाये । पूर्ण है जो आपको समर्थं बनाती है याने आ्पके अर्थ के बराबर आपको बना देती है। जिसके वगैर आपका जीवन पूरी तरह से व्यर्थ और निरर्थक हैं, अजीब तमाशे हैं, मैं अ्रापको क्या बताऊँ । निर्मला योग १७ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt मेरे जैसे अजनबी के लिए तो यह है कि इनको है, साबित कीजिए | वह कहेंगे, आप चलिए, आप कसे बताया जाय इसका महात्म ये, चोज वहत भारो है। जैसे कि किसी इन्सान ने कभी हीरा देखा नहीं, उसकी कीमत कभी आँकी नहीं, ऐसे बिल्कुल देहाती लोगों को (नहीं देहाती जाता है। सब लोग पाते हैं और गह रे उतरते हैं । इतना महान् है का Admission ( दाखिला) खारिज । । यह सीखने की जगह है, यह जानने की जगह है, यह पाने की जगह है, यहां नम्रता पूर्वक आरया समझदार होते हैं, मैं किस को कहूँ) उनके तो और समझते हैं और तभी वो पनप कर बड़े हो पास प्राप ले जाकर उसे दिखाये । समझ लीजिए सकते हैं जबकि वह उसको पायें |। इस चीज को कि उरंग-उटान है, उसके सामने राप हीरा रख हम रोज़-मर्रा के जीवन में किस तरह, किस तरह दीजिए। वो एक चपेड़ मारेगा कि आप देखते ही समझते हैं ? गंगाजी बह रही है आप अपनी गगरी रह जाइये। उसी तरह की हालत कभो कभी हो ले जाइये । गँगाजी जितनी बड़ो गगरी बहुत होगी, उतना ही उसमें पानी भर देंगी। उस वक्त क्या সप जाकर गंगाजी से प्रश्न पूछते हैं? उसी प्रकार यह गंगा बह रही है, समय आ गया है, वक्त आ गया है इस वक्त आपका साक्षात्कार होने का समय है। पऔर इस देश में यह बहुत जोरों में है। शह रों में जरा देर से होता है पर गाँवों में बहुत जोरों में जाती है । यही हीरा ही नहीं यही १ाने का है, यही सब कुछ है, इसी को पाइ्ये, यही कुछ लेने का है और कुछ भो नहीं है बातें कहती है, हो सकता है ६० फीसदी बातें किताबों में नहीं मिलतीं । यह बात जरूर है कि जो मैं । हो रहा है। बहुत जोरों में । उसका आपको साक्षात्कार करना है। आपको रात्म-साक्षात्कार करना है। उसको लेकर के कोई साहब झगड़ा खड़ा कर दिया। कहने लगे कि आपने कहा कि हो गए, तो कोई हमारे सामने कोई बहां ऐसा यह बुद्ध का स्थान है, यह महावीर का हैं, यह हम बहुत सुन्दर कुछ (हॉल) नहीं था । कुछ मन्दिर पर कैसे जाने गे ? मैंने कहा, है या नहीं आप जान चढ़े थे, कुछ इधर उधर खड़े थे और सारे के सारे जायेंगे, पहले आप पार हो जाइये। अगर आप जान नहीं सकते तो यह आधका दुर्भाग्य है ये तो मुझसे (सह जयोग केन्द्र) भी बन गया और चलने लगी ऐसे पूछते हैं कि जैसे मैं पालियामेंट की मेम्बर ही बात आगे । हूं । मैंने कहा कि जो मैं कह रही हैं उसकी सत्यता मैं आपको तब दूंगी जब आप इसके काविल हो जायेंगे। पहले आप पा लीजिये । जहा बुद्ध और और बाकी लोग रह जायें । इसलिए अपने अपने महावीर हैं, बो है या नहीं ये देखने की पहले आखं तो भ्रापके अन्दर आ जाये । । यह समझने सर्वाल पूछ रहे हैं ? क्या आप (विश्व-विद्यालय) में जाकर Vice Chancellor (परिचय) आपको बताया है, कल मैं इसको विशेष (उप-कुलपति) साहब से १हले ही पूछते हैं कि रूप से और पूरी तरह से समझाकर आपको क्यो कार्बन डाई ऑक्साइड में कार्बन व अरॉक्सीजन बताऊँगी। हम अभी एक गाँव में गए थे । वह ६,००० लोग आये थे, ६,००० लोग । और वहां हम खड़े पार हो गए और जम गए वो। और बहां Centre कहीं ऐसा न हो जाये कि सारे वाहर जो हैं वो भगवान की छलनी में से छन कर नीचे गिर जायें अखि अस्तित्व को, अपने, अपने गरिमापन को पाइये । पहले ही क्या मुझसे उुसको जानिये और उसमें समाइये University की बात है। आज थोड़ा सा Introduction निर्मला योग १८ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt -अनुसरणीय- १. श्री माता जी या उनके फोटो को ओर कभी भी सामहिक ध्यान या पूजा के समय अपनी पीठ नहीं करनी चाहिए । २. केन्द्र पर सामूहिक ध्यान के समय केवल एक व्यक्ति द्वारा ही फोटो पर कुमकुम लगाना चाहिए । ३. पूजा या ध्यान के पूर्व माता जी के फोटो को कुमकूम लगाने के बाद ऊंगली में बचा कुमकुम अपने लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए । हाथ साफ करके अपने लिए कुमकुम का इस्तेमाल करना चाहिए । ४. श्री माता जी का, आगमन पर स्वागत करते समय तथा विदा करते समय, एक दो सहजयोगियों को ही केन्द्र के प्रतिनिधि स्वरूप माला पहनानी चाहिए। शेष लोगों को अपनी जगह से हो हाथ जोड़ना चहिए । किसी को उस समय पेर पर भी नहीं जाना चाहिए। ५. सहजयोग के सन्देश को हर भानव तक पहुंचाना प कर्तव्य है । प्रत्येक सहजयोगी का पुनीत त्यौहार नवरात्रि पूजा १७ अरक्टुबर २७ अ्रक्टूबर दशहरा गुरुनानक जन्मदिन दीपावली १ नवम्बर १५ नवम्बर पूर्णमासी ३० नवम्बर क्रिसमस २५ दिसम्बर श्री दत्तात्रेय जन्मदिन २६ दिसम्बर निर्मला योग १६ कार 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt शन्तरिक ज्ञान का है। क्योंकि यह बात लम्बे समय पहले लिखित है, हजारों वर्ष पूर्व लिखी गई है ब्ा इस्ट ने भी कहा है कि आपका पुनर्जन्म होगा आऔर आपका संस्कार (Baptised) भी किया जायेंगा यह कार्य किसी आध्यात्मिक विद्यालय द्वारा संपन्न नहीं होगा वरन जान जेसे संस्कारी व्यक्ति द्वारा जो उस पवित्रतम द्वारा अधिकार पाये होगा। यह शक्ति आपके अन्दर शिथिल सुप्ता अवस्था में पड़ी है । भिन्न-२ प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति इसके सम्बन्ध में लिखता है। इस सभ्बन्ध में बहुत कम संख्या में मतक्य रखते हैं । यह एक और भ्रांति है जिसका कि एक आज हम सब यहां अपनी आत्मा के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए हैं । आत्मा के सम्बन्ध में ज्ञानाजन, पूस्तकों के माय म से अ्थवा तत्सम्बन्धी तथा कथित सुयोग्य ज्ञानी के माध्यम से प्राप्त होता है। यह हमारे मस्तिष्क में किस अंश तक जाता है जिसको हम केवल अपने मस्तिष्क की समझ बूझ से हो समझ सकते हैं। ज्ञान हमें युक्ति-संगत कथन (Rationality) एवं मेघा (intellect) द्वारा हम तक पहुँचता है जो स्वयं में सीमित है। यह हृदय को स्पश नहीं करता है । मस्तिष्कीय होने से शब्द जाल में फंसकर रह ये मस्तिष्कीय जिज्ञासु को सामना करना पड़ता है वह यह शक्ति हमारे अन्दर सोई पड़ी है और कुछ कहते हैं कि यह प्रापको विद्युत आवेग (electric shock) अर्थात् झटका देती है। कुछ का कथन है कि यह मढ़क की तरह से उछल क्लूद कराती है । कुछ का कहै कि एक आत्मा है जो आपके अन्दर अन्तराल का है कि यह वायु में उड़ना आरम्भ करा देते में निवास करती है और हमारे अन्दर एक महान है। साधकों में इस प्रकार की भ्रान्तियों प्रचलित [हैं। ऐसी भ्रान्ति जव कि आप साधनरत हैं, खोज जाता है । हृदय पटल पर अंकित न होने से वाह्य ज्ञान अव्पवहारिक रूप से आंशिक ही रह जाता है । अतः हम दूसरे विवेक में पदार्पण करते हैं परंतु यह भी सीमा-बद्ध है । [अर्थात् यदि मैं आपसे शक्ति विद्यमान है जो सदैव इस उचित अवसर की प्रतोक्षा में है कि कब आपको आपका पुनजन्म प्रदान करे? वह मैं आपको बताती हैं के इसको आप केवल बौद्धिक रूप से हो समझ पाय गे । यह सब ती कर रहे हैं, बहुत काल से आप इसकी खोज में लगे हैं। आप सच्चे साधक भी हैं फिर भी जब आप इसकी साधना में लगे हैं नहीं जानते कि जाना कहा है. लक्ष्य क्या है । अब क्या आशा कर ? आप समस्याओं में क्ूद पड़ते हैं, जुझने लगते हैं । इसमें नयापन अब तक काफी कहा जा चुका हैं क्या है ? फैशन में ढाल देंगो जो आपको और अधिक मानसिक शक्ति प्रदान कर देगा जिससे आप चबकर पे चक्कर काटते रहेंगे फिर थ क कर बेठ जायेंगे, विश्लेषण करेंगे और कहीं भी (किसी निर्णय पर ने पहुँच पायेंगे । अधिक से अधिक में इसको आधुनिक अभी पिछले दिनों जब मैं स्विटजरलैण्ड गई तो मेरे एक बच्चे ने जिसने प्रोग्राम का अच्छा प्रबन्ध किया था कहा कि माताजी यहां के निवासी भारतीय गुरुओं के विषय में सन्देहास्पद दृष्टि रखते हैं। मुझे यह सुन अरत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हुआ। बास्तव में बहुत प्रसन्न हुई कि यहाँ के लोगों ने इस सम्बन्ध में कुछ सोच विचार तो आरम्भ किया क्यों- कि उनको भ्रम से धोखे में डाला जा रहा है। अब म मैं कहती है कि एक शक्ति है जिसको हम कुण्डलिनी के नाम से पुकारते हैं अर वह हमारे सब के अन्दर विराजमान है। ऐसा कथन बहुत से लोगों *परम पूज्यनीय माताजी श्री निमंला देवी जी द्वारा ११ जून १६८० को अंग्रेजी में किन्गस्टन में दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर । निर्मला योग २० 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt वे पूर्णंतः भ्रमित हैं वे इस बात में विश्वास असम्भव समझते हैं कि कोई भी ईश्वर के बारे में वार्तालाप कर सकता है । अतः मेरे प्रवास के समय में सबसे पहिला प्रकरण जो उन्होंने वादविवाद के लिए प्रस्तुत किया वह था "Demystification of Gurus" घाटन"। यह काफी ललकारने वाला (challeng- कसे बना पायेगे। यदि अआपके संसर्ग में ऐसा कोई पालण्डी आये तो आ्रापको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आपको सत्य की ही खोज करनी है और जब आप सत्य की खोज में तत्पर हैं तो आपको यह भी विदित होना चाहिए कि अरापको केवल सत्य की हो खोज करनी है और सतर्क एवं सजग रहना है कि आप सत्य के अतिरिक्त और कुछ ग्रहण नहीं करगे। परन्तु सावधान रहे, आपको सम्मोहित भी किया जा सकता है । आपका मस्तप्क शोधन भी करना गुरुओं के पाखण्ड का रहस्योद- ing topic) प्रकरण प्रस्तुत किया गया था। परन्तु यही मैंने १६७० में भारतवर्ष में और १९७३ में अमेरिका में कहा-परन्तु वहां किसी ने भी मेरे सम्भव है। क्योंकि आप ये सब बातें नहीं जानते इस तथ्योद्घाटन को पसन्द नहीं किया ्और दोष हैं। यदि कोई आपके सामने कुछ शब्द संस्कृत भाषा दिया कि मैं इस प्रकार प्रालोचना-प्रत्यालोचना के उच्चारण कर दे तो आप उसके आकर्षरण में ऐसे करती है । फॅस जाते हैं कि बस पूरछिये मत । जैसे संस्कृत शब्द है । यथा शिष्यों में से साधक जो कुछ अलभ्य वस्तु मिथ्या मिथ्या हैं, वास्तविकता वास्तविकता गुरु के पास गए थे उन्होंने उनसे मंत्र दीक्षा ली । है। [अब आप जान पायगे उन लोगों से, जो यहां यदि आप उस मंत्र को किसी भारतीय को बतायें पर विद्यमान हैं । वे आपको बतायेगे कि किस तो वह यह मंत्र सुनकर हसी के कारण उसके पेट प्रकार उन्हें भ्रम में डाल कर ठगा गया, किस प्रकार में बल पड़ जायगे । वह मंत्र "आइन्ग" है. उन्हें धन सम्पति से वंचित किया गया और धोखा कोई भी भारतीय यह सुनकर हँसे बिना न रहेगा । किया गया। इन सब (ठग विद्याओं को) को आप प्रब परन्तु इस मंत्र को प्राप्त करने के लिए लोगों ने भलो भांति नहीं समझ सकते हैं क्योंकि आप अ्रब तोन सौ पाउन्ड व्यय किये हैं जो निरथक है । यह इनकी परिधि से बाहर आ चुके हैं । (You are मंत्र है ही नहीं । फिर आप मंत्र ग्रहण हेतु पाखण्डी seeking beyond money) आप विना धन गुरुओं के पास जाते ही क्यों हैं? मंत्र का भरा पूरा सम्पत्ति गंवाये खोज कर पा रहे हैं। [आप इस तथ्य विज्ञान है पर हम उसकी गहराई तक पहुँचने का से भलीभांति परिचित हैं कि धन सम्पत्ति भी आप को सुखी और प्रफुल्ल नहीं कर सकती । परन्तु जो पड़ते हैं। क्योंकि वे ऐसा ही चाहते हैं। साधारण लोग अभी भी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं, वे उसके सो बात है उनको धन की आवश्यकता है और आप सदृश हैं जो शिखर पर तो चढ़ रहे हैं परन्तु नोचे को अपनी इच्छा पूर्ति की ललचाहट है । यह एक (खड) को नहीं देखते हैं। ऐसे व्यक्ति ऊपर उठने साहसिक कार्य का उद्योग (enterprise) है । का प्रयत्न करते हैं श्रीर कुछ अनर्गल बात करने के अभ्यस्त है। आपका धन हरण क रते हैं। मैं स्वयं अनुभव करती है कि यह लज्जास्पद विषय है । श्रम नहीं कर सकते, आप उस पर उछल कर कूद आपने इस खोज के लिए अपनो प्रत्येक वस्तु को न्योछावर कर दिया है । आपने देख लिया है कि ये सांसारिक भौतिक पदार्थ आपको कहीं भी अर्थ यह नहीं है कि सत्य (आध्यात्मिकता के उच्चतम शिखर तक) नहीं ले (Reality) है ही नहीं । यदि सत्य नहीं है तो हम जा सकते । आपने बाह्यता पर भी दृष्टिपात किया उसकी प्रतिलिपियां कंसे रख सकते हैं । यदि पुष्पों है । आपकी मूल्यांकन प्रणाली भिन्न है यदि किसी का अस्तित्व हो नहीं है तो हम प्लास्टिक के पुष्प ऐसे आदमी की मूल्यांकन विधि प्रापसे भिन्न है तो परन्तु इसका निमंला योग २१ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt भग व्यक्तियों को प्रस्तावित लेकचर के लि ए जमाकर लेता था । अब ऐसे अद्भुत पुरुषों का क्या कीजिये। क्या यह विचित्र बात नहीं है। यह वहाँ का एक सुप्रसिद्ध व्यक्ति है । वह आपसे घन लेता है और वे आ्रापका शोषण (exploitation) करेंगे । अत: प्राकृतिक प्रतिक्रिया होती है। मै इसे भली प्रकार समझ सकती है । ऐसा होना भी चाहिए । परन्तु वास्तव में सत्य की सत्ता है और यह आपको कोर्सेज (courses) दे देगा । उसने बहुत आपके भीतर स्थित है । और आपके अन्दर आत्मा भी विद्यमान हैं और एक बार जब आपने उसे पा लिया तो आपने उस अनित्य सनातन को भी पा से लोगों का सत्यानाश कर दिया है । यह कुछ इस प्रकार से है जैसा मैं देखती ( watch) रहती है । कि लोग शराबखाना (pub) में जाते हैं और मदोन्मत्त होकर बाहर निकलते हैं। उनकी देखा लिया। यदि मैं अरापसे आग्रह करू कि आप प्रत्यंत शान्ति एवं स्थिर निर्मल मन बनिये तो यह एक अ्रशिष्टता होगी। यदि मैं आपसे अनुरोध क रू कि देखी और लोग भी आकर्षित होकर अ्धिक मात्रा आप अपती इच्छाग्रों पर, भोगों पर (इन्द्रियों के में उन्मत्त होने के लिए प्रवेश करते हैं। कभी कभी विषय वासना जनित) विजय प्राप्त करें जिससे कोई आप पर नाजायज प्रभाव (Dominate) न है । श्रर जब कि वास्तविकता आपके खड़ी डाल सके तो यह आपके लिए एक महज व्याख्यान के सदश को व्याख्या आप किस ढेंग से करेंगे । सत्य की रह जाता। मानव स्वभाव को परखना भी असेभव प्रतीत होता सन्मुख है फिर भी आप सत्य का गला घोंट देते हैं । इन सब सिद्ध होगा । इसका तो कोई अर्थ हो नहीं मान्यताय आपकी गरिमा है, क्या आप सत्य में कुछ और योग करना चाहते हैं; कल्पना करो कि मैं एक इन वस्तुओं को (लोभ, मोह, अहंकार आदि हीरों का हार पहनती हूँ । यह मुझे आभूषित कर vices) आपने स्वयं ही कस कर पकड़ रखा है तो शोभा बढ़ायेगा, नेकलेस की नहीं । बह तो श्ररब आप इनका परित्याग कैसे करेंगे क्योंकि आपकी पकड़ इन पर वड़ी जवरदस्त है । आपको किसी जो हमें सुसज्जित कर शोभा बढ़ाते हैं। यदि आराप अन्य वस्तु को अपनी पकड़ में लाना है । यह एक अत्यंत साधारण सी बात है यदि [प्राप इससे कहीं वेभव की बृद्धि होगी और [आप गौरवशाली और अधिक मूल्यवान वस्तु पा जाते हैं जो इन सबसे ऐक्वरयवान होंगे। क्या यह वस्तुतः ऐसा नहीं है ? अधिक शक्तिमान (Dynamic) हो, इनसे अधिक श्रह्मादकारी हो जो आपके अन्दर सुरक्षा की भावना को स्थिरता प्रदान करे तो यह सब क्यर्थ को वस्तूुएं स्त्रतः ही निरस्त होकर लोप हैी जायगा। कार्यकलापों से आप सम्मोहित हो जाते हैं । यही खरब गुना अधिक देदीप्यमान है इन सब पदार्थों से इस धारणा को मान्यता देगे तो आपकी गरिमा, इस सम्बन्ध में विचार कर । आपका मोह इनके बाह्य आडम्बरों की ओर अधिक है जिनके धोखा- घड़ी से परिपूर्ण, चतुरता, मक्कारी एय्यारी के अब आप स्वयं ही देखिये यह कि स भांति इसकी एकमात्र व्याख्या है। इसी भांति से उन्होंने क्रियाशील होती है। एक भद्र पुरुष एक महाभयंकर इसका प्रबन्ध कर रखा है । यह सम्मोहन गुरु के पास होकर मेरे सान्निध्य में आये। उस तथा कथित ने उन्हें घोर यातना देकर नष्ट- प्राय: कर दिया था। वहां वह केवल प्रस्तावित क्या उपलब्धि हुई। उनका उत्तर होगा "बस कुछ (introduetory) लेकचर ही दिया करता था तथा न पूछिये हमारे क्या कहने हैं, हम तो परमानन्द में उसने बताया कि माताजी जहां आप भाषण दिया हैं। तीन दिन के पश्चात ही आप पायेंगे कि उस करती थीं उसी हाल में से ( ३००) तीन सौ के लग- व्यक्ति ने आत्महस्या जैसा जघन्य पाप किया है । मीक (Hypnosis) एक के बाद एक अग्नि की भांति फैलता है। [आप उनसे पूछिये कि आपको इनसे गुरु निरमला योग २२ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt उसने परन्तु यह सब व्यवस्था रहसयमय ढंग से आपके ही भोतर इस न्यायिक शक्ति (judging force) को पधरा दिया है। उत्क्रांति में इसे देखिये यह किस प्रकार क्रियाशील है। उत्क्रांति में किस हम अभी भी इसके प्रति सजग नहीं हैं कि यह एक अति महत्वपूर्ण है । मानव इतिहास में यह एक बहुत महत्वपूर्ण समय है । अन्तिम निर्णय बेला आ पहँची है।आज हम उस अन्तिम निर्णय के सम्मुख प्रस्तुत हैं। हम इसके सुन्दरता के साथ हल किया है, अर्थात अत्यंत प्रति सजग नहीं हैं। हमें इसका आाभास भी नहीं सुन्दरता के साथ इस रचना कार्य का सम्पादन मिल रहा सब प्रासुरी शक्तियां अ्रान किया है कि हम अमीबा से इस स्टेज तक भेड़ की खाल का आवरण डाल कर भेड़िये आखेट कैसे आये। बहुत से पशुओं को उपेक्षित किया गया तथा कुछ पशुओं की रक्षा की । भारी भरकम पशुओं की जाति में से उसने हाथी की रक्षा की । उन्होंने रहे हैं। कृपया आप बैठिये, पधारिये और सत्य के बहुतों की रक्षा की प्रौर एक-एक करके बहतों निर्णय का प्रयत्न करे । यह एक तश्य है कि यह को इन वर्षों में विसार दिया। मानव जाति के ओ्रम्भ हो चुका है, निःसन्देह प्रारम्भ हो चुका है । प्रारणयों में भी जो ग्रति से अरधिक पीड़ित थे उपे- क्षित किये गए । आप इतिहास तो उठाकर देखिये । इन दिनों अप किसी को भी अपनी सात पत्नियों पहुँची हैं । हेतु आ प्रस्तुत हैं। वे आपको आकृर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। आप इसका निरणंय नहीं ले पा अब हमें ईश्वर के दृष्टिकोण से देखने दो कि वह किस प्रकार से आपको judge (निर्णीत) करता है। यह कथन कि हम ईश्ब र में विश्वास नहीं रखते बहुत आसान है। इससे भी प्रधिक सहज है कि हम सरकारी सत्ता में आस्था नहीं रखते । हिटलर जसे (अत्याचारी) ग्राये और विनष्ट हो परन्तु जब श्राप कानून के विरुद्ध कोई कार्य करें तो गये। जो भी कोई अतिक्रान्त निर्दयात्मक प्रभुत्व की आपको विदित हो जायेगा कि सरकारी सत्ता का प्रभुत्व है या नहीं। इसी प्रकार यह कहना अत्यन्त सरल है कि हम ईश्वर में विश्वास नहीं करते वह इतना महान, कृपालु, इतना प्रेममय और इतना मेहरवान है कि उसने हमें स्वयं को जानने की प्रारिणयों में नूतन वि चारों का अभ्युदय होता है। हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है। हम उसमें प्रास्था समतौलन, धीरजता और शान्ति को प्रश्रय मिलता रखते हैं। हम उसमें निष्ठा लाते हैं। उसने ही हमें अमीबा से (Amoeba) से इस स्टेज तक मानव प्राणी के रूप में विकसित किया है। उसने ही हमारे चारों ओर ऐसी सुन्दरतम विश्व की रचना कर प्रसार किया है। हम उसको मान्यता देते हैं कि क्या बास्तव में, हम अपने अन्दर शान्ति स्थापित यह सब उसी की रचना है। परन्तु एक निर्णय करने के इच्छुक है तो हम इस दिशा में क्या यत्न (judgement) है जिसका सामना हमें [अब करना है और वह ईश्वर से ही आ रहा है। यह वह मार्ग नहीं जिसे हम समझ बेठे हैं कि वह एक मजिस्ट्र ट को भांति बैठकर और एक-एक करके भेजेगा कि आइये पधारिये और एक बकील भी आापको क्राइस्ट ने कहा था "जो मेरे विरुद्ध नहीं हैं वे मेरे वहां पर बैठा मिलेगा । की विच करते हुए न देख पायगे । मेरा मंतव्य है। आप ऐसा नहीं कर सकते - यह असंभव है । सत्ता के अहं के विचार के साथ रया वितष्ट हो गया। वे विचार मृत प्रायः हो जाते हैं । लोग उनके कार्य कलाप एवं विचारों के कारण अपने को लर्जित हुआ अनुभव करते हैं। मानव है । हम इसके विषय में वार्तालाप कर रहे हैं । लोग शान्ति के सम्बन्ध में वार्ता करते हैं परन्तु प्रयत्न कर रहे हैं ? वास्तव में निर्णय (judge- ment) का आरम्भ हो चुका है और आपका निरी- क्षण (judge) करने के लिए ईश्वर ने आपके भौतर सब के सब न्यायाधीशों को बिठा दिया है। बुला साथ हैं ।" ये न्यायाधीश हैं । ये मजिटू ट प्रापके २३ निरमेला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt भीतर, विभिन्न केन्द्रों में आपकी रीढ़ की हड्डी जब मैं यहां प्रोग्राम में भाग लेने आई तो उस समय (spinal chord) में और अपके मस्तिष्क में आ्रवागमन (Traffic) की कोई समस्या न थी सो हम बिना किसी बिध्न वाधा के Smoothly यहां पहँच गए किसी ने भी हमको नोटिस नहीं किया । यदि टरोफिक की समस्या सामने आ गई तो । स्थित हो गये हैं । यह एक अत्यंत्त रोवक असंग है ये seats पेनल (Panel) की तरह आपके मस्तिष्क में बठी हैं और जब कुण्डलिनी का प्रकाश इन केन्द्रों के माध्यम से ऊपर की ओर चढ़ता है तो आपके अन्दर के समस्त केन्द्र प्रकाशित हो उठते हैं। आप की उंगलियों के ग्रन्दर इस प्रबोधन संस्कार (en- परन्तु इधर उधर गत्यावरोध उत्पन्न हो जायेगा प्रकार जय किसी एक व्यक्ति में कुण्डलिनी के उत्थान को प्रक्रिया आरम्भ होती है तो उसके चकों में स्थित समस्त बाधाओं को समस्याओं को प्रदर्शित इसी lightenment) का प्राकटय होता है। ग्रापकी कैर देती है जिसको नगी आखों से देखा भी जा उंगलियों के छोर भी प्रकाशमान हो जाते हैं । उंगलियों का सूक्ष्म गुरणग्राही गुरण ( sensivity) पाप को बता देगा कि कौन-सा केन्द्र, आपके भतिर, नहीं है जसा लोग कहते हैं कि मंक को तरह उछल सकता है। यही कुण्डलिनी जागरण विधि है । यह ऐसा बाधाग्रस्त है (और सुचारु रूप से काम नहीं कर रहा) यह कुण्डलिनी ऊर्वंगामी होती है श्रीर कपाल मस्तिष्क का प्रयोग करना है । [आधुनिक युग में क्षेत्र के उस बिन्दु (point) तक प हैच जाती जिसे तालू कहा जाता है येह एक मुलायम मानव प्राणी वनने के पष्चात भी मढक बनने को हड्डो जो आपकी शेशवावस्था से यहाँ है-का भेदन करती है। बास्तव में यह इस हुड्डी को तोड़ देती भी पक्षी बनना है ? आपका चिज्ञान यथा स्वयं है। इसको आप किसी भी व्यक्ति विशेष के अन्दर मुनोविज्ञान (Psychology) मेरा मत है उनमें देख सकते हैं जिसके इस स्थान पर बाल न हों- से बहुतसों को विश्वास है कि सामूहिक चेतना की अब आपको अपने कुद प्रारम्भ हो जाती है। है मस्तिष्क का स्वस्थ रहना अत्यावश्यक है। क्या हम वश्यकर्ता है । क्या हमें मानव तन घारण करके इस स्थान का कुछ सुक्ष्म सा अश नोचे की अ्रार उपलब्धि के पश्चात हमको अचेतना में कूदना पड़ता घंसा हुमा सा दिखाई देता है स्फुरण होता है। अप इस कुण्डलिनो का स्फुरण त्रिकोणाकार अस्थि में जिस (sacrum) कहा जाता है देख सकते हैं। जब यह कुण्डलिनी ऊपर में कुद सके। यह वेसा नहीं है कि मैं कह रही है या को उठती है तो आप इसको गति का भी निरीक्षण कोई भ्रौर कह रहा है परन्तु यह घटना आपके अन्दर कर सकते हैं । यह सब में नहीं देखा जा सकता किसी किसी में हो । क्योंकि जब व्यक्ति उच्च कोटि का हो अ्रथवा अप यों कह सकते हैं कि यदि वायु- यान उच्च कोटि का है तो उसका उतार (land- stead में थी। मैं जानती है वहां कूछेक के साथ ing) भी उच्चकोटि का होगा और उसका (उड़ान) आकाश गमन (shooting off) उच्च की प्राप्ति नहीं हुई परन्तु उन्हें अपने हाथों में शीतल श्रेणी का होगा। ऐसे क्िसी व्यक्ति में जिसके अन्दर बयार का अनुभव हो गया जब कि कुछ को नही कोई बाधा नहीं है उसमें भी कुण्डलिनो का उत्थान प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता है । उदाहणार्थ विलृप्त हो गए। यह अपने स्वय से व्यवहार करने । प्रथ म तो इसकी है। इन लोगों ने यह बात बहुत स्पष्टता के साथ कही है। तब हमें इस प्रकार की कुछ ओर आशा करनी चाहिए जिससे हम अपनी सामुहिक चेतना घटती अवश्य है । प्रभी कुछ दिन व्यतीत हुए जब मैं Ham- ि क्या हुआ्री । कुछ साधकों को उनकी vibrations हुआ। उन्होंने कहा कि हमने पा लिया है श्रर निमंला योग २४ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt की वारत करते हैं यथा यह बिल्कुल ठीक हो सकता का सही ढंग नहीं है । आपको अपने आापसे प्रेम करना है और अपनी खोज की उपलब्धि का सम्मान है, और यह बिव्कुल सही भी नहीं हो सकता है। करना है [आपको अपनी इच्छा पूति करनी है । एक मां के नाते मैं आपको बताती हैं कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है । गुरुपने की दुकान यहां पर है यह आ्राधुनिक समय ही कलियुग है । इसी समय, नहीं बुलाई जा रही है। आपको Realisation बड़े-बड़े सन्त पुरुष, सत्यासी, साधु साधक तथा पाना है अर्थात् आपको पार होना है । आपको पाना पड़ेंगा। यह इतना सौभाग्यशाली जीवन काल में ही समय आ उपस्थित हुआ है कि बन कन्दराओं में निवास करके साधना करते थे । आप इसे पा सकते हैं। यही कारग है कि अपने वे सब इस धरती पर वापस लौट आयगे और इस उपयुक्त समय में जन्म घारण किया है । जैसा कि मैंन पसे कहा है कि अरप जन्म जन्मान्तरों से को पायेंगे। इसी व्यग्रता के माघ्यम से उन्हें सत्य सत्य की खोज करने वाले (seekers) रहे हैं। अत: आप इसे पाइये और इस जीवन को सारथंक बनाइये । यह अच्छा है यह अच्छा नहीं है। यह वह समय है जब व्यग्रता (Confusion) का राज्य इस धरा पर महान विभूतियां जो गुप्त रूप से ईश्वर प्राप्ति के लिए तपस्यारत थे और पर्वतीय गुफाओं में, निर्जन कि आपके है साधारण ग्रहस्थ मानव के रूप में जन्म लेकर संत्य का दर्शन प्राप्त होगा और वे स्वयं सत्य में एकाकार हो जायगे । उन्हें ही आत्म साक्षात्कार (self- realisation) की उपलब्धि होगी इस प्रकार हमारे भारतीय धर्म शास्त्रों में एक उपाख्यान लिखा मिलता है जिसका नाम नल-आरूयान है। राजा नल ने प्रतिशोध की भावना को त्याग दिया जब राजा नल कलियुग द्वारा बुरी त रह पीड़ित किया गया तो उसने कलियुग को पकड़ लिया और कलियुग द्वारा किये गए अत्याचारों को भुल गए । उसका अस्तित्व ही समाप्त करने वाले थे । ऐसा उन्होंने कहा कि इसी तथ्य के आधार पर मैं अ्रपको कहा जाता है कि श्रब कलियुग का राज्य है और वह क्षमा प्रदान करता है क्योंकि मैं उक्त महान आत्मा- सब प्राणधारियों के मनों को व्यग्र कर देता है उसने ओं का अत्याधिक सम्मान करता हूँ। इस सामूहिक राजा नल को भी व्यग्र किया था और उसका उस अच्छाई के कारण मैं अपनी समस्त व्यक्तिगत की पत्नी ( दमयन्ती) से विछोह करा दिया । अरतः समस्याओं को त्याग देता है । ऐसा होने दो । अर्थात राजा नल ने कलियुग को बन्धन में बांध लिया और यह घटना घटित होने दो। कहा कि मैं सदैव के लिए ही आपका अस्तित्व समाप्त कर देंगा जिससे फिर भविष्य में ग्राप प्रजा को व्यग्र (confuse) न कर सके। कलि ने उत्तर दूनिया, प्रकाशमय प्रबोधन संस्कार का समय (age दिया कि निस्सन्देह आप मेरा बध कर सकते हैं । of enlightenment) अल्प काल में शीघ्र ही आ मुझे स्वीकार है परन्तु प्राप मेरे महत्व (impor- रहा है अर्थात ये सब घरती पर वापस लौट आयेंगे। tance) को जानिये। मेरा भी महातम्य अ्रवश्य वे सन्त महात्मा जो वनों में सत्य की खोज में है । नल राजा ने पूछी कि आपका क्या महात्म्य और अ्पने क्रोध का शमन किया तथा उन पर स कलिकाल में ही, सतयुग का सूर्य, सत्य की तपस्यारत थे उन्होंने इस दुनिया में जन्म धारण (importance) हो सकता है ? उसने उत्तर दिया कर लिया है । राप उनका दर्शन कर सकते हैं । वे कि जब मेरा राज्य होगा जैसा कि आधुनिक समय साधुस्वभाव के हैं । वे स्पष्टतया कृत्रिम जीवन के में हो रहा है। राज्य करने का अर्थं है जनता के मन में भ्रम पंदा करना प्रत्येक वस्तु से हमारा व्यर्थ एवं भ्रामक हैं परन्तु फिर भी वे यह न जान (कलिका) सम्बन्ध जुड़ गया है हम इस प्रकार पाये कि वास्तविक सत्य क्या है । परन्तु अब समय उपहास को देख सकते हैं । वे जानते हैं कि यह सब निर्मला योग २५ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt निकट आ गया है और इसका हल खोज निकालना प्राप्त होनी चाहिए। वह आपमे कुछ भी नहीं चाहती है आप पअपनी आत्मा को जानो प्रथात उसका ज्ञान प्राप्त करें। और स्वयं स्वयमभु बन जाय । बस उस की इच्छा यही है। यह पकी मां है जो आ्ापके साथ बारम्बार जन्म धारण करती रहती है। उस को उन्थान की प्रक्रिया सुमस्याएं उस्पन्न की हैं उन सबका लेखा जोखा भी उसके पास लिखित है तथा इस समस्या को पुति करनो है । आपके महान देश में इसका हल निकल आया है और वह भी अभी अब । एक हजार लोग इसमें कार्य- रत हैं जिन्होंने इसे समझ लिया है । तीन सौ के लगभग लोग ऐसे हैं जो साहस के साथ इसमें सक्रिय भाग लेकर भिन्न भिन्न स्थानों में इस समस्या-पू्ति में संलग्न हैं । मुझे बापके इस पुरातन नगर कि्सटन में आने की अत्याधिक प्रसन्नता है । यहां पर ही राजा को राज सिंहासन पर आरूढ कराने के लिए में शरापने स्वयं जो जो हैं । बह आपके सदन्ध में सब कुछ जानती है। वह आपका परी- क्षण उस बिन्दू पर करती है कि आप अपने उत्थान के लिए कितनी थद्धा से प्रयत्नशील हैं। यही सब प्रस्तर पधराया गया था। इस सम्बन्ध में कूछ न कुछ है । कुछ विशेषता अवश्य होनी चाहिए । वह आपको पूर्ण रूप से जानती है । वह जब परन्तु लोगों ने बास्तविकता के संदर्भ में उठती है तो उन संकेतों को दर्शाती है। नह दिखाती सचेतनता को खो दिया है यह बात यहाँ के है कि आवके भीतर अन्तःस्थल में क्या त्रुटि है निवासियों पर ही लागू नहीं होती वरन प्रत्येक देश में प्रत्येक स्थान पर है आपको सुनकर आश्च्य होगा कि भारत में अत्यधिक मात्रा में है । ये सब भ्रष्ट होते जा रहे हैं । वे विकासशील हैं । वे नहीं जानते कि विकास से उन्हें क्या प्राप्ति हुई ! येदि कोई उनसे कहता है, वे विचार करते हैं, "आप विकास के फल का पूर्ण रूप से आनन्द ले रहे हैं। और आप असत्य भाषण कर रहे हैं । बाधा है। वह आपकी अपनी है केवल आप ही की इसके अतिरिक्त शपके लिए और कोई बड़ा नहीं नहीं है । वह आपकी [मित्र है और वह आपका निरणंयक निरीक्षण (judge) भी करती है है महत्वपूर्ण जिससे आपको सर्व श्रेष्ठ प्राप्ति हो । बह यह भी तलड जानती है कि ्रपके हित में सर्व श्रेष्ठ क्या है । जेसे जब एक बच्चा विजली के साकेट पर अपना हाथ रखने की चेष्टा करता है तो मां उसे ऐसा अतः आपके लिए यह समझना अत्याबदयक है करने को मना करेगी, ऐसा न करो-ऐसा नहीं करना कि नि्णय किसी बिशिष्ट अ्र्थ (purpose) के हैं। परन्तु वच्चा नहीं सुनता है और कध हो लिए आरम्भ हो चुका है और इसकी पूति के लिए उठता है वह फिर भी उसे मनाने को कहती है कि कुण्डलिनी को आपके अन्दर पधराया है। परन्तु नहीं बेटे तुम यह नहीं कर सक ते बयोंकि वह आपसे मैं यह स्पष्ट कहती है कि वह एक महान निरणायक अत्यन्त स्नेह करती है। स्नेह भी शुद्धातिशुद्ध रूप (judge) है श्रौर ऐसा निरणयिक आपको समस्त में जितना कि श्राप अन्य किसी व्यक्ति से भी आशा नहीं कर सकते । ऐसी महान शक्ति आपके स्वयं आपकी अपनी माँ है। वह निव्याज है जो अन्तराल में शिथिल पड़ी है औ्रौर उचित अवसर की प्रतीक्षा में है कि वह कब जागृत हो। जब वह बीज चाहती है। वास्तव में उसकी कुछ भी इच्छा नहीं की germinating शक्ति सदृश प्रस्फुटित होकर ऊपर आ जाती है तो कोई ऐसा होना चाहिए जो श्रपको प्राप्त हो। आपको अ्रपनी [आत्मा को प्राप्त आपकी देखभाल कर सके । कोई एक ऐसा व्यक्ति करना चाहिए । आपको अपनी सारी शक्तियां भी भी होना चाहिए जो आपका मार्ग दर्शन (guide) संसार में खोजने पर भी नहीं मिलेगा-क्योंकि वह आपको देती ही रहती है। वह गरापसे [कुछ भी नहीं है । वह केवल यही चाहती है कि आपकी सम्पत्ति निर्मला योग २६ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt Realisation लेना चाहते हैं तो आपके केंसर का उपचार भी हो जायेगा और आपका स्वास्थ्य भी के कर सके । कोई ऐसा भी होना चाहिए जो उसके गुप्त सन्देश का उद्घाटन (decode) करके प्राप को जताये कि आपकी उंगलियों से प्राप्त अनुभव क्या अर्थ हैं तथा आपके अन्दर क्या क्रिया साक्षात्कार पा चुके हैं और यहीं पर ही विराजमान क्रियान्वित हो रही है। अन्यथा [आप] [अपने घाट हैं। वे शारीरिक अथवा मानसिक व्याधियों से Moorings) के बारे में कैसे जान पायेंगे। आप यह भी नहीं जान पायेंगे कि आप कहां जा tic) जैसे असाध्य रोगों से पीड़ित थे और अत्यंत रहे हैं। और आप अज्ञान के अंधकार में फंस गम्भीर शारीरिक समस्याओं से घिरे थे उनमें से जायेंगे। यह भी सम्भव है यह सब होते हुए भी कुछ को रक्त के सर भी था तथा अन्य लोगों में से आपको इस सम्बन्ध में और अधिक ज्ञान प्राप्त कुछ अन्य शारीरिक भौतिक व्याधियों की समस्या न हो। कुण्डलिनी जब उत्थान करती है वह किसी से आतंकित थे । न किसी को अपना माध्यम (mouth piece) बनाना चाहती है। यह ऐसा है कि अचेतनता किसी न किसी माध्यम से वाणो द्वारा प्रकट करना चाहती है। वह कोई न कोई व्यक्त ही होना इच्छा का-कुण्डलिनी उसकी इच्छा का प्रति- चाहिए जिसकी प्रकृति कुण्डलिनी के अनुरूप हो । जो आपसे घन कमाने के इच्छुक हैं और आपको हैं। वह आप पर अरपना राज्य न्योछावर करना लूटते हैं वे श्रापको मंझधार में छोड़ दंगे। तो चाहता है । वह आपको अपने साम्राज्य का राज- बताइये ऐसे लोगों को कैसे गुरु कहा जा सकता है। कुमार बनाना चाहता है । यह एक अत्यंत गम्भीर वे चोर हैं जो आपके दरवाजे के बाहुर खड़े हैं । वे तो उपयुक्त अवसर की खोज में हैं कि किस देना है। प्रकार ग्रापको अ्रपने चंगूल में फंसायें क्योंकि उनका निर्णय यथापूर्व हो चुका है और वे discarded है और जेल में जायेंगे और चाहते हैं कि अधिक से है। हमारे प्रन्तस्थल स्थित शक्ति ही निर्णय लेने अधिक लोग उनके साथ जेल में जायें । सुधर जायेगा । मेरा मंतव्य उनसे है जो आत्म- ग्रसित थे उनमें से कुछ तो मिरगी, मूर्छा (epilep- इन सब बातों के होते हुए भी आपको पवित्रतम का सामना करना है-ईश्वरीय प्रेम का-उसकी निधित्व करती है। इच्छा दया और प्रेम का समुद्र विषय है । इस प्वाइन्ट पर समग्र एकाग्रता से ध्यान निर्णय (judgement) अवश्य ही लिया जाना सर्व शक्तिमान की जिसने हमें हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है । वह इसको चेलेंज नहीं करने जा रहा आपको शारीरिक सुख प्रदान करती है। दूसरे है। उसकी प्रबलता, उसका पराक्रम, उसकी सामर्थ्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि यह आपको और उसकी शक्तियां हमारी स्वतंत्रता के आड़़े उसकी इच्छा आपके भीतर कुण्डलिनी पर स्थित है भौर यह इच्छा आपके अन्दर से कहती रही हैं -जब किसी डाक्टर को केन्सर ही उत्थान करती है। आपका उद्बोधन करती है का रोग हो जाता है तो वह मेरे पास आता है (enlighten) परन्तु यह आपको बाध्य (force) और ठीक हो जाता है । परन्तु मैं यहां केंसर के नहीं करेगी यह अपकी स्वतंत्रता का हनन नहीं उपचार करने के लिए नहीं बैठी है । मेरे सहजयोगी करेगी यह शरपको देखने के लिए उद्बोधित भी कैंसर पीड़ितों के उपचार में रुचि रखते हैं ? (enlighten) करेगी । आापको इस कमरे में बिल्कुल नहीं कोई भी नहीं। परन्तु यदि आप अपना रहने की स्वतंत्रता है परन्तु यह आपको बाधित कुण्डलिनी जब उत्थान करती है तो सर्व प्रथम नहीं आयेंगी । परन्तु स्वास्थ्य लाभ कराती है । केन्सर बिना कुण्डलिनी जागरण के cure नहीं हो सकता । यह बात में कब ार निमला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt नहीं करेगी कि आप यहां ही बैठे अथवा वहां बैठें अथवा आप चले जायें । आप पर किसी प्रकार का और ऐसी (अलभ्य) वस्तु हमारे अन्त:स्थल में विराजमान है । हम उस ईश्वर को बहुत-- धन्यवाद देते हैं जिसने हमारे लिए यह सब कुछ किया है । हमारे पास कोई विचार नहीं है । हमने उनको मान्यता प्रदान की है । हमारे अन्तःस्थल की प्रत्येक वस्तु के लिए हमने उन्हें मान्यता दी है । हम उन्हें धन्यवाद देने योग्य भी अवने आपको प्रस्तुत न कर सके (न बना सके)। वे हमारे ऊपर कितने कृपालु हैं उन्होंने जो कुछ भी हमारे कल्याण के लिए भी बन्धन नहीं है । परन्तु आ्पको स्थान दिया गया है । जो उद्बोधित है (enlightened) सो आप अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग और अच्छी तरह से करें प्र प्रधिक समझदारी से क्योंकि आप उद्बोधित है। आप देख सकते हैं और फिर यराप जानते है कि क्या स्वीकार करना है और क्या अरस्वीकार करना है । प्रथम तो अ्रापका उद्बोधन करना है ग्रथात किया है हम उनको धन्यवाद के योग्य भी न हो शपको प्रकाशमय बनाना है। जब तक कि ग्राप सके । एक क्षुद्र वस्तु लिए हम हृदय में से निकाल प्रकाशमय नहीं हो जाते तब तक आप भ्रान्ति में कर छुटकारा पाना चाहते हैं। उसका अस्तित्व पड़े रहेंगे और स्पष्ट लूप से नहीं देख सकते हैं । फिर भी है। कुण्डलिनी का अस्तित्व भी हमारे यह आपकी स्वतंत्रता पर छोड़ दिया जाता है निणंय लेने के लिए । वह आपका उपचार कर चंगा करती कर इसका अस्तित्व रहेगा। मैंने ऐसे कुछ लोगों है। वह श्रपका सुधार करती है। वह समस्त मंगल- कारी एवं सुखदायक वस्तुएं अराप पर न्योछावर करती है । यह आपको स्थूल तल की चिन्ताओं से चिह्न प्रकट होते हैं । वह रोष में भरकर करवटे मुक्त करा देती है । आत्मसाक्षात्कार के पूश्चात, बदलती है परन्तु प्रपना अस्तित्व वरकरार रखती बहुत से लोगों ने अपनी सांसारिक समस्याग्रं का है उस समय तक के लिए जब तक कि आपको वह समाधान पा लिया है। यह नहीं कि वे मि० फोर्ड वस्तु नहीं दे देतो जिसके लिए वह वहां पधारती है। (Mr. Ford) अ्रथवा उनके समकक्ष धनाढ्य बन ईदवर की कितनी बड़ी अतुकम्पा है। कहां से आप गए हैं परन्तु उनकी स्थिति में परिबर्तन आ गया है यह सब खोज पायेंगे । यह सब आपके भीतर है । और उनकी सांसारिक समस्याओं का समाधान हो जिसका work out किया जाना आवश्यक है । गया है। हमारे अन्तराल में एक ऐसा केन्द्र भी स्थापित है जिससे कौटुम्बिक समस्याओं का हल भी निकाला जा सक्ता है । पति पत्नियों की समस्याश्रों वे विलुष्त ही जाते हैं । मैंने पाया कि वे विल्प्त का समाधान होने से प्राप विमूक्त हो जाते हैं। (Disappear) हो गए, आपकी उन वस्तुओं पर पकड़ जो अरापको चिन्तित करती है शिथिल होकर आपको मुक्ति दिलाती है। पश्चिम में इसी प्रकार की उन्नति की जाती है अब आ्राप अरधिक स्वतंत्रता के साथ देख सकते हैं कि आप तीन पग आगे बढ़ाते हैं औौंर चार पग पीछे हमें क्या चयन करना है और कोनसा को्स अप- नाना है । इन ढेर सारे कनसेशन्स, सूख सुविधाएं होगा। मैं तहीं जानती कि पश्चिम वालों के मानस तथा हर सम्भव सहायता प्रदान किये जाने के में क्या त्रुटि है कि वे भौतिक पदार्थों की उपलब्धियों पश्चात आपका निण्णायक निरीक्षण (judge) के वशीभूत होकर भ्रम में पड़ जाते हैं । परन्तु जब किया जायेगा । क्या आ्रप किसी ऐसे उदार वे सहजयोग में प्राते हैं तो उनका चरित्र बल निम्न मजिस्ट्रट का अनुमान कर सकते हैं । के अन्दर बिद्यमान है। आप इसके विपरीत आचरण को देखा है जिनकी कुण्डलिनी को पीटा गया फलस्व रूप) भयंकर पीड़ा, वेदना और संताप के कुछ व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार कर लेने के पश्चात Realisation पाने के बाद भी । क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? की ओर सरकाते हैं । वास्तव में श्रपको कोतुहल का स्तर का होता है कभी कभी तो यह बात समझ 1 निर्मला योग २८ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt आप श्पने को अ्रपराधी स्वीकार लें । तथा वायट- के बाहर हो जाती है। क्या इन लोगों में आत्म- सम्मान की भावना नहीं है। जब कि भारतीय ग्रामीण, इसको पाते हैं शर सम्भाल कर रखते हैं- जिये । आराम कुर्सी अभ्यस्त राजनीतिज्ञ वाइटनाम यथावत-कोई गड़बड़ नहीं-कुछ भी नही-वे के विषय में विचार कर रहे हैं अथवा फाइल कर यथावत वहाँ है परन्तु आत्म सम्मान की भावना को प्रश्रय देना चाहिए । यह कभी कभी आपको आतुर होने का नाम । क्या सुन्दर विचार है। कृपया यहां विरा- देंगे । । मैं मानती हैं कि उलभने हैं । आप चयन किये गए व्यक्ति हैं जिन्होंने इसको पाना है और यह होकर रहेगा। परन्तु सत्य की उपलब्धि के लिए अ्राप सैकड़ों बार सोच विचार करगे ्रर मली कुचली स्कल में परिभ्रमण (get into) करेंगे यही खटका है। मैं इसके लिए किस को दोपी ठहराऊँ । इन भयंकर गुरुओं को अथवा इन भयानक लोगों को जिन्होंने आपके लिए "शो' की रचना की है (morality) के प्रति आपका अभद्र व्यवहार है। मुझे तो यह देखकर कंपकपी (shudder) पैदा होती है कि किस प्रकार लोग इन घृणित वस्तुओं को स्वीकारते हैं। आज से यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप जिज्ञासुओं को सत्य के अनुशीलन से अवगत कराये और उन्हें बताय कि कृपया इसका अवलोकन करें र ग्रहण कर- पायें अनुभव करा देता है । कदाचित आ्रापको विदित न हो कि इस देश में मैंने सात या आठ व्यक्तियों पर पूरे चार वर्ष तक श्रम किया था। पूरे चार वर्ष, क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। यह बात भी नहीं कि आपके अन्दर कुछ त्रुटि है। अप भव्त हैं (seekers), आप सन्त हैं जो इस देश में पंदा हुए है। आपकी साधुता को क्या हुआ । आप इतने छिछले, आप इतने बाह्याडम्बरी क्यों हैं । गहनता से इसका स्पर्श क्यों नहीं करते । आप अपनी आत्मा को क्यों नहीं समझते । मुझे समझ नहीं शराता कि आप अरपनी आत्मा का सम्मान क्यों नहीं करते । मै आपका आदर करता उनके सहयोगी हैं। श्राप ही उनके निकटतम सेबंधी हैं और आपको अत्याधिक प्रम करती हैं क्योंकि मैं आपको जानती है । मैं आप लोगों को युगों से जानती है। आप बिगडेल बच्चे है। मैं इसको जानती है परन्तु मैं नहीं जानती कि मैं इसको आपके अन्दर कैसे स्थापित करु । कभी-२ तो मेरो दशा आपकी कुण्डलिनी की तरह हो जाती है । अथवा यह पुण्यशीलता आप माप । क्योंकि [आ्रप हैं। आप अपने आत्म साक्षात्कार के परचात भी उनको कैसे छोड़ सकते हैं। यदि आपको स्वर्ग के साम्राज्य में स्थान मिल जोता है तो आप उनको नहीं भुला देंगे । उनके बारे में विचार करेंगे और प प्रसन्नचित नहीं रह सकते हैं। आप उनका ध्यान रखंगे। आप अपना आत्म साक्षात्कार पा लेने के बाद भी जब तक कि आप उन सन्तों को आपको इसकी उपलब्धि के लिए शीघ्ता करनी जो अपनी अज्ञानता (ignorance) के कारण अपने ह है । आपको पूर्णतया शक्तिशाली वनना है । आप इसका शर्मन करो और लोगों से वार्तालाप करं कि स्वयं को गंवा बेठे हैं आप उनका ध्यान रखेंगे मुझे यह वस्तु स्थिति और आपत्कालीन स्थिति है। क्या आपके माध्यम से ही यह हल निकालना है। मैं इस आप नहीं देख पा रहे हैं कि विश्वभर में क्या हो को निपट अकेली हल न कर पा सकगी । यदि मैं रहा है । क्या आप भ्रान्ति को नहीं देख पा रहे । अकेली इसको सम्पन्न कर पाती तो कठिनता ही कुछ परन्तु स्थिति को नियंत्रित किया जा चुका हैं । यदि नहीं थी। यदि ईश्व र इस तरीके से हल कर सकता इसका मुकाबला भी करना पड़ जाये तो इसका है तो इनको Realisation दें और बस उनको सामना बोद्धिक निपुरता के साथ किया जाये ना कि पूर्णंत: स्थिर करे । परन्तु ऐसा न होगा। क्योंकि २६ निमंला योग 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt आपके पास स्वतंत्रता है। आपके पास स्वतंत्रता Stonehenge देखने के लिए गई, Stonehenge क्यों है ? क्योंकि आपकी इस स्वतंत्रता के विना आप में चरित्र बल नहीं शरा सकता जिसके प्राधार पर वाइब्र शन्स द्वारा कर सकते हैं। ऐसी बहुत सी आपको ऊपर उठाया गया है हम यह Realise वस्तुएं इस देश में विद्यमान है । किग्सटन भी वाय- नहीं करते कि हम आज कहा हैं-अ्र्थात किस बन्स से भरपूर है। स्थिति में हैं हम साधना नहीं करते । कभी- २ तो मैं यह अनुभव करने लगती है कि मैं दीवारों से बाते कर रही होगा कि बहुत से लोग घड़ियों के क्रीत दास हैं । उनके पास समयाभाव है। मेरे पास भी समय नहीं निकल आये । े गभी कुछ निश्चित नहीं कर पा है मैं अत्यंत व्यस्त है। आप समय की बचत किस रहे थे । अभी भी सचतन सुक्ष्म ग्राह्यता से उनका पृथ्वी माता की रचना है। यप इस तथ्य की जाच आपने क्या पाया ? प्रथात यरापको] कैसा लगा ? उस गाड़ी में लगभग एक सौ यात्री होंगे जो हमारे साथ गए थे । कुछ उतराई बढ़ाई पेदल ही पार कर पहुँच गए । कुछ अन्दर जा पहुँचे । कुछ बाहर हैं अरापको विदित रहें हैं । यह बिचार आपके मन निकट का सम्बन्ध न था (still n0 proximity to sensitivity) सत्य के प्रति सचेतना कुछ भी नहीं थी । वे अनुभव भी नहीं कर सकते थे । । मूझ दृढ़ निश्चिय है कि यह अरवश्य हल होगी। मैं अत्यधिक आशावादी है बहतों में से एक आशावादी व्यक्ति है जिनको आपने अभी तक देखा है, परखी है। देखिये, मैं विश्वास करती है कि आशावादिता मेरी प्रकृति है यह धटना घटित होने जा रही है। में कसे आया-हमारे, पूवजों (दादा परदादा) से कभी नहीं किया । आप समय की बचते क्यों कर रहे हैं ? किसके लिए ? आप समय की बचत कर - सम्भव है । हल निकलेगा यह होगा. रहे हैं अनुरूप युव्त (becoming) होने के लिए न कि इसको व्यर्थ में गंवा देने के लिए यथा पार्को में श्रमण अरथव भयानक स्थान जसे रेस आदि में । तदनरूप (becoming) होने के लिए आप समय की बचत कर रहे हैं क्योकि आप एक हीर है। केवल प्रापकी तथाकथित 'स्वतंत्रता माग में आपको अरपने स्वयं को काट तराश कर सुन्दर वाधा डाल रही है। सो आाप उसको समझने का सुडील प्राकृति में ढ़ालना है। ओप इसको बचत व्यर्थ गवाने के लिए नहीं कर रहे हैं । मेरी दूष्टि से यह सर्व श्रेष्ठ विज्ञापन होगा कि एपचास पौन्ड बचाओं तीन हजार व्यय करने के लिए" ऐसा ही हेतु प्रदान को गई न किे पशु बनने के लिए। एक कुछ आप अपना समय बबाद करने के लिए नहीं बचा रहे हैं । आप समय की बचत कर रहे हैं कुछ विशेश प्रयोजन हेतु जो अमूल्य, विशिष्ट अ्रोर अत्य- धिक मामिक है बहुत कुछ वह जिसकी खोज वे बहुत दिनों से कर रहे हैं। परन्तु अभी तक मैं यह नहीं जान पाई है कि आपको गहनता के उस स्तर पर केसे जमाये रखें । निस्सन्देह कुछ ऐसे अच्छे कार्य सम्थादन किये हैं । उसने कहा कि मैं व्यक्ति भी हैं जो उच्च कोटि के चरित्र बल से चिकन नहीं खाता । मैंने कहा कि आप मेरे लिए हैं । जो पूर्ण रूपे ण संतुष्टि का अनुभव कर रहे हैं । चिकरन क्यों बचा रहे हैं अच्छा हो यदि आप अपने आपको कदाचित इस बात का ज्ञान न हो कि ईश्बर ने इस देश में कितना कुछ किया है । उदाहरणार्थ में (funny ideas) उनमें भरे हैं। प्रयास कर कि यह स्वतंत्रता जो आपको प्रदान की गई है वह आ्ापको अपनी आत्मा में विलोन करने पशु को-एक मुरग के बच्चे को आत्म साक्षात्कार देने से क्या लाभ है । Realisation दे सकती है ? यही क्या मैं उसको भी उद्देश्य है ? कहते हैं कि "मां मैंने बहुत हैँ कि क्या-२ बहुत से आदमी सारे सत्कर्म किये है" । मैं पूछती युक्त को बचायें । सब प्रकार के कौतुहलवर्धक विचार निरमला योग ३० 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt तबसे महत्वपूर्ण एवं वि चित्र बात यह है कि जब यह (कुण्डलिनी) सहस्रार का भेदन करती है आनन्द का लोत निर्भर होने लगता है और आपके हाथों की हृथेलियों में शीतल बयार (Cool Breeze) का अनुभव होने लगता है-उस पवित्रतम ईश्वर (Holy Ghost) की शीतल बयार-प्और उसका अनुभव आप सर्व- ध्यापक रूप से हर जगह करने लग जायेंगे । आप इसको ज्ञात कर सकते हैं। अब आप [श्रपने स्तरयं को तथा अन्य पुरुषों का ईश्वर को महान अनुकम्पा से हम आरत्म निरीक्षण कर सकते हैं। स्वचालित रूप से आप आ्प भक्त लोग (seekers) इस सुन्दर जीवन वृ की कलियों के सदृश हैं यह वे हैं जिनके लिए सष्टि की संरचना की गई है ये वे हैं जन्होंने कुछ पाना है ये उनमे से हैं जिनको कुछ अपनाना है । उनके अन्दर समस्त विश्व प्रफुल्लित (blossomed) एवं पल्लवित हो उठा है। और वे whatworms होने के इच्चुक हैं । इस सम्बन्ध में प्राप विचार कीजिये । जरा सोचिये । साक्षात्कार का प्रोग्राम आरम्भ करते हैं। कदाचित यह प्रक्रिया सेकिण्ड से भी सूक्ष्म समय लेतो है । सम्भवतया यह घटना घटित भी हो गई हो क्योंकि आज मैं (अपने विचार से ) कुछ जागृति प्रदान हेतु किग्सटन एक सुन्दरतम दूसरे लोगों की सहायता भी कर सकते हैं। इसके लिए प्रपको कहीं बाहर नहीं जाना है। आप को इसके लिए कोई औपधि भी नहीं लेनी है। आपको कुछ भी नहीं लेना है। वहां आप केवल उपस्थित अधिक असामान्य हूँ" स्थान है। मैं अनुभव करती हैं कि एक दिने यह महत्वपूर्ण सुरम्ब स्थान हो जायेगा अब हमें देखना है कि आप लोग इस शंक्ति का जो यहा इस सुरम्य हें। प्राप प्रन्य लोगों की सहायता करते हैं र अन्यों को मुक्ति दिलाने में सहायक होंगे जेसे कि समस्त मैकेनिज्म क्रियाशोल हो उठती है । सारी की सारो तकनीक काम आरम्भ कर देती है। और आप स्थल में बह रहो है, किस मात्रा में उपयोग कर पाते हैं। मुझे आशा है कि कुछ न कुछ हल अवश्य निकलेगा। समस्त वस्तुओं का अवलोकन आरम्भ कर देते हैं । आप चकित हो जायगे । आपको यह ज्ञान प्राप्त करना होगा किस प्रकार आत्म साक्षात्कार के पश्चात आपको इसे प्रपने स्वयं पर तथा अन्य लोगों पर क्रियाशील गम्भीरता से लेना है । आपको ही हल निकालना है । आपको इसमें सक्रिय होना है क्योंकि इस को पा लेने के पश्चात भी यह बात ऐसी नहीं है कि अकस्मात ही सूर्य अथवा चन्द्र पर छलांग लगाने का अभियान पूरा हो जायेगा । चन्द्रमा तक पहुँचने पर भी आपको क्या सिद्धि प्राप्त होगी। आप कुछ भी न समझ पा सकंगे । आपको अ्रपनी आत्मा के समस्त क्षेत्रों में विहार करना होगा-क्योंकि गतिविधि अन्तःस्थल में ही आरम्भ होगी । शपको अपने ध्यान (attention) को आपने आन्तरिक क्षेत्र में ही स्थापित करना चाहिए और उसमें स्थिरता लानी है। स्थिरता प्राप्त होते हो आपको बृत्तियां अरथवा ध्यान से व्यर्थ की वस्तुओं की पकड़ स्वत: शिथिल हो जायेगी। रहे है । समस्त प्राथमिकताओं में परिवर्तन आ जायेगा | ( workout ) हो । यह एक अच्छा कोतुहल है । हम सब के सब इस बृहत कोतुहल की चित्तबति में हैं । आप भी हमारे संग आरमोद प्रमोद में भाग लेकर अनन्त की अनुभूति प्राप्त करें । कारी है । कृपणता के लिए कोई गुँजाइश नहीं । कवल यही बात लोगों के मन में अखरती है और वे महसूस भी करते हैं कि ये लोग इस प्रकार (विचित्रता से) क्यों और क्या कर रहे हैं । वयोबृद्ध एवं विकसित पुरुषों की नांई हम छोटे छोटे अल्प वयस्क) अ्रबोध बालकों की ओर क्यों दष्टि रखते हैं। वे अपने हाथ अग्नि में क्यों रखने जा यह अत्यंत विस्मय- ईश्वर आपको सर्वदा सम्पन्न एवं प्रसन्न रखे । निमंला योग ३१ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt जय निर्मलमाते जगदंबे - प्रमोद भाई पेटकर, पूना जय जगदंबे जय अंबे । ॐ जय गणेश जी को मां अंबे ।। धृ ।॥। जय महाकृण्डलिनी तू अंबे । जय गणश जी की माँ अबे ।। १ ।। जय विषणु को लक्ष्मो तु प्रबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥२॥ जय ब्रह्मा को सरस्वती तू अंबे । जय गणेश जी की मा अंबे ।।३।॥ जय शिवजी की पार्वती तु अ्रबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥४।॥ जय राम की सीता तू अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥५।। जय कृष्ण की राधा तू शंबे । जय गरणेश जी की माँ अंबे ।।६।। है जय येशु की मेरी तू अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥७॥ जय सहस्रार स्वामिनी तु अंबे । जय गरणेश जी की मां श्रबे ।।८।॥ जय मोक्ष प्रदायिनी तू अबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।॥8॥ जय आदिशक्ति तू जगदबे । जय गणेश जो की माँ अंबे ।११०।। जय आदि माया तू जगदंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ।।११।। जय महामाया तु जगदबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥१२॥ जय सर्वस्वदायिनी तु अंबे । जय गणेश जी की माँ अंबे ॥१३। जय विश्व व्यापिनी तू अंबे । जय गणेश जी की मां अंबे ॥ १४॥॥ जय त्रिभुवन स्वामिनी तू अंबे । जय गणेश जो की माँ अरबे ।।१५।॥ जय निर्मलमाते जगदंबे । जय गणेश जी की मां अंबे । র निर्मला योग ३२ 1982_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 With best compliments from: JANAK I JEWELLERS C. A. PENDURKAR & Co. C. R. AGRAWAL MARKET, MONGHI BAI ROAD, VILE PARLE, BOMBAY- 400057 Edited & Published by Sh, S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002. One Issue Rs. 5.00 Annual Subscription Rs. 20.00 Foreign [ By AirmailE4 S8]