fनिर्मला योग द्विमासिक वर्ष 1 अक 6 माच-अप्रेल-1983 पे बा ৪ॐ त्वमेव साक्षात, श्री कल्की साक्षात श्री सहस्त्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निमला देवी नमो नमः ।। प पन प परमपूज्य श्री माताजी, आपने हमको सहजयोग दिया । आरपको हम पर कितनी कृपा है। हम कितने भाग्यवान् है। हम सबको आपने सहजयोग में सिद्ध होने का आशीर्वाद दिया है। आपकी कृपा के बिना, इस जगत में कुछ भी नहीं होता है हमारी यही इच्छा है कि हमारा व्यवहार व बर्ताव ऐसा हो जिस से आप सदा प्रसन्न रहें। सम्पूर्ण विश्व पर आपकी क्षत्र छाया फैलो है और सवंत्र प्रेम रस बह रहा है । हम सहजयोगी जन उस प्रेम रस की एक-एक बुँद बननা चाहते हैं । कृपा करके हम सबको आप सद्बुद्धि प्रदान करें । जिस से हम सभी परिश्रम करके सहजयोग बढ़ायें, जिस से इस चराचर विश्व में आपके प्रम की सर्व मङ्गल धारा हर मानव तक पहुँचा सक, जिस से मानव मात्र पूनीत और घन्य हो सके | हे करुणासागर, त्रैलोक्य स्वामिनी प्रेमस्वरूपा आदिशक्ति गौरी माता तथा महालक्ष्मी, शरपके निरन्तर ध्यान करने के लिए आप ही हमें सुबुद्धि प्रर अविचल श्रद्धा दें । जय श्री माता जी श्रीमती सराफ़ अशुद्धि संशोधन गत जनवरौ-फ़रवरी १६८३ अंके में पृष्ठ ६ अमृत-वाणी (१) के अन्तर्गत कृपया निम्न संशोधन कर ले : शुद्ध धूर्णन revolving अशुद्ध घूर्णन revaluing त्रुटि के लिये खेद है । सम्पादकोय तयाऽऽत्मभूतया पिण्डे व्याप्ते संपूज्य तन्मयः । आवाह्याच्चादिषु स्थाप्य न्यस्ताङ्गं मां प्रपूजयेत् ॥२४॥ उद्धवगीता पृ० ३२६ परमात्मा के उस रूप को जिसे साधक अत्यधिक पसन्द करता है, मानसिक रूप से एकरूपता लाकर अपने को समर्पित करना ही पूर्ण साधना है । भगवान श्री कृष्ण ने उक्त इलोक में यही विधि पूजा की बताय है । आज परमपूजनीय श्री माता जी के साक्षात् निर्मल रूप में अपने आपको विलीन कर देना ही साधक का परम लक्ष्य होना चाहिए । निर्मला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र प्रतिनिधि कनाडा :श्री मार्क टेलर श्रीमती क्रिस्टाइन पैट्ू नोया २२५, अदम्स स्ट्रीट, १/ई बर कलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. १६५० ईस्ट फ़िप्थ एवेन्यू वैन्करूवर, बी.सी. कनाडा- वी ५ एन. १ एम २ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमॅशन सर्विसेज लि., श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन बोरीवली ( पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ १६० नाथ गावर स्ट्रीट लन्दन एन.डब्लू. १२ एन.डी. श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० पृष्ठ इस अक में १. सम्पादकोय २. प्रतिनिधि टे ३ ३. सहज जीवन कंसा हो व ध्यान कसे करें ? ४. परमपूज्य माताजी के अंग्रजी पत्र का हिन्दी रूपान्तर ५. परमपूज्य माताजी द्वारा ब्राइटन में दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर ६. श्री महाकाली के १०८ नाम १४. १६ २३ ७. एक सहजयोगी का पत्र कवर पृष्ठ दो ८. अशुद्धि संशोधन &. त्योहार कवर पृष्ठ दो कवर पृष्ठ तीन निर्मला योग २ ा सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करें ? ऐसा ही समझ लोजिये कि प्राप जब बचपन पको दादर में मैंने बताया था कि सहज- योग में पहिले किस प्रकार से निर्विचार की समाधि को छोडकर जवानी में आ जाते हैं, तो आपकी लगती है । तदात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो जवानी के जो interest हैं - श्रपकी नोकरी, सकता है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। धन्घा, बीवी-बच्चे लेकिन तदात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का interest (रुचि) ही बदल जाता है । उसी में आपका interest आ जाता है आपके बाकी के जो कुछ भी शौक हैं, वो गिरते जाते हैं, ग्रनुभूतियाँ गिरती जाती हैं तदात्म्य को पाते ही मनुष्य की अनुभूति के साथ और नई अनुभूतियों की ओर आपकी दष्टि जाती कारण वो सालोक्य और सामीप्य की ओर उतरना है । या इस प्रकार समझ कि एक मनुष्य को गाने नहीं चाहता । माने ये कि जब आपके हाथ में में रुचि नहीं है और किसी तरह से उसको गाने में चैतन्य की लहरियाँ बहने लग गई और जब आ्ाप रुचि हो गई-शास्त्रीय सङ्गीत में उसे रुचि हो गई, को दूसरों की कृण्डलिनी समझने लग गई परौर तब फिर उसे कोई सी भी प्रशास्त्रीय सङ्गीत की जब आप दूसरों की कूण्डलिनी को उठा सके तब महफ़िल हो, बहां मजा नही आने वाला। उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरों की कुण्डलिनी देखें गऔर अ्रपनी कुण्डलिनी को सम झे जानी चाहिये । और बास्तविक, वाकी और जो अपने चक्रों के प्रति जागरूक रहे और दूस रे के भी भी आदतें हैं या जो कुछ भी शौक हैं वो तो आपके चक्रों को समझता रहे । उसी प्रकार सहजयोग में आपकी हालत हो अन्दर घीरे-धीरे आती हैं, प्रयत्न पूर्वक अाती हैं । अगर आप प्राकाश की ओर देखियेग, बादल इसके कारण वो रुचि आपके अन्दर बहुत अच्छी हों तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह से चिपक जाती है। हालांकि सहज-योग से तरह की कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि आपके अन्दर क्रान्ति हो गई है - आप एक अब आपका चित्त कुण्डलिनी पर गया है, आपको awareness (चेतना) में, एक नई चेतना में अये कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो हुए हैं, आपको वाइब्रेशन (vibrations) समझ कुछ भी देखना है, जो कुछ सामीप्य है, वो जान में ग्राते हैं, आपक्ो दुसरों की कूण्डलिनी दिखाई पड़ेगा । कुण्डलिनी के बारे में interest जो है। बो देती है, आप में से बहुत लोग जागृत भी कर सकते बढ़ जाता है । बाकी के interest अपने आप ही हैं। आप बहत-से लोग पार भी कर सकते हैं । लुप्त हो जाते हैं। परमपूज्य श्री माताजी द्वारा भारतीय विद्या भवन, बम्बई में २७ मई, १९७६ को सहजयोगयों को दिया गया उपदेश । न ये हजारों लोगों को आपते ठीक भी किया है। नई निर्मला योग ३ शक्ति में आपने पदार्पण प्लावित हैं । किया है और इससे आप स्वच्छता से रहना और अपनी physical side ठीक करना। लेकिन इसके लिये मैने एक चीज़ का कहा है, जैसे कहते हैं कि सबेरे सवको bathr0om (शौच) लेकिन यह सब करने में एक हो बात का दोष रह गया है कि आरापने कोई भी प्रयस्न नहीं किया। बगेर प्रयत्न के ही सब स्वयं हो गया। इसके ही जाना चाहिये, शरीर साफ करना चाहिये। सहज कारण हो सकता है बहुत-से लोग जो कि सहज-योग में वाइब्र शन पा भो लेते हैं, ऊँचे उठ भी जाते हैं, तो भी उनका चित्त परमात्मा की ओर, आत्मा की आप बड़े पहुँचे हुए हों. आप कहें 'हमें नहीं ओर, कुण्डलिनी की ओर नहीं रहता है और अब भी बो चित्त वार-वार, गलत जगह पर जाता पानी में बैठना चाहिये । आप लोगों को यह आदत रहता है । योगियों के लिये सोने से पहले पानी में बैठना पाँच मिनट अत्यन्त प्रावश्यक है। वो चाहे कोई भी हो । पकड़ता- इससे मतलब नही है । आपको ५ मिनट लगे इसलिये मैं जबरदस्ती बैठती है कभी-कभी कि चलो मैं भी पानी में बैठती हूं, तो मेरे सहज योगी बैठेंगे । यह आदत बहुत ही श्रच्छी है। पुछा थ्ा कि पाने के बाद क्यो करता है ? पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम आवश्यक चीज है, कि पाने के बाद देना हो होगा। नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं । आपने एक पाँच मिनट पानी में सब सहज योगियों को बैठना चाहिये । फोटो के सामने दीप जलाकर के, ९ औ्र देने के बक्त में एक बात-सिर्फ एक छोटी कुमकुम वग़ राह लगाकर के, अपने दोनों हाथ रख सी बात याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिसे मन से, जिस बुद्धि से, मानें इस पूरे व्यक्तिर्व से, आप इतनी जो Problem solve (समस्यायें हल) हो जायेंगे. वहुत सुन्दर होनी चाहिये। होना चाहिये। शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी चाहिये । अगर आपको कोई बोमारी है- बहुत-से सह जयोगियों के ऐसा भी होगा कि उनके जी है, औधे से ज्यादा पकड़ना खत्म हो जायेगा । अन्दर कोई शारीरिक बीमारी है-तो सहजयोग से पहले तो वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझ यह हम लोगों का सहजयोग दिन का काम है, रात बीमारी ठीक होनी चाहिये. वो बीमारी ठीक होना चाहिये । लेकिन सहजयोग के बाद में इनका चित्त नहीं रहेगा बोमारी को ओर जो हो 'अ्ररे ही करीबन १० वजे तक सबको सो जाना चाहिये । जायेगा ठीक, चलो सब ठीक है। ये बात रलत हैं बजे के बाद सोने की कोई बात नहीं। सवैरे को कोई-सी भी जरा-सी भी तकलीफ़ हो जाये आप फीरन वहाँ हाथ रक्ख, अपनी तवियत ठाक कर सकते हैं । अपनी physical side शारीरिक भाग) बहत साफ रख सकते हैं । बहुत ज्यादा के ध्यान करना चाहिये । सबेरे ध्यान में बेठना उसमें कुछ करने की जरूरत नहीं । स्नान करना, चाहिये। जैसे कि हमारे यहाँ हम लोग सवेरे उठ कर दोना पर पानी में रखकर सब सहजयोगियों को बैठना चाहिये । आपके आधे से ज्यादा चीज दे रहे हैं. वो स्वयं भी आपका शरीर स्वच्छ अतुपम अगर आप यह करें । चाहे कुछ हो जाये, आपके लिये पाँच मिनट कुछ मुश्किल नहीं हैं । सोने से पहले पानी में सबको बैठना चाहिये। इससे आपका सवेरे के time (समय) में जल्दी उठना चाहिये। का नहीं, इसलिये रात को जल्दी सोना चाहिये । ६ बजे सोने की बात नहीं कह रही मैं, लेकिन १० जल्दी उठना चाहिये। सबेरे के time में जल्दी उठकर के, नहा धोकर निमंला योग करके अपना मुंह धोते हैं प्रोर सालों से धोते आा रहे हैं, हर साल धोते हैं, जिन्दगी भर धोते रहे, लिया, या मैं बहुत वड़ा भारी कोई सन्त, साधु है, उसी तरह हर मनुष्य को सवैरे उठकर के-सहज महात्मा हैं, तो समझ लीजिये तो वो गया-सहज योगी को चाहिये कि वो ध्यान करे। यह आदत योग से गया। अत्यन्त न गरतापूर्वक अपने हृदय की लगाने की बात है। लेकिन मैंने देखा है कि कई ओर ध्यान करके, नत-मस्तक होकर, फोटो के लोग, चार बजे या पांच बजे उठना, उनको बहुत सामने दोनों हाथ करके शान्तिपूर्वक permission मुश्किल होता है । उसका कारण एक है। मनुष्य (आज्ञा) लेकर के बैठे । की मैंने बहुत study (अध्ययन) किया है, उसकी बारीक चीज बहुत समझी हैं। बड़ा मजी आता है उसको study करने में मुझे। वो अपने साथ किस वेक्त भी क्षमा मांगकर कि हमसे अ्गर कोई तरहू मे भागता है, वो अपने साथ ही किस तरह से arguments (दलीलें) देता है, वो देखने । इस तरह की प्रार्थना करके - जिन्हों से लायक चोज है, मनुष्य की । अपनी ही नाक कटाने के लिये खुद ही वो explanations (सफाई) खुद ही केसे देता रहता है। बो इस प्रकार कभी-कभी होता है, कि जेसे "हम तो सवेरे जल्दी उठ ही नहीं सकते, मां !" भई ! कितने बजे सोते हो रात को? "बारह बजे, पर मैंने तय किया था कि चार ब जे उठंगा ।" हो ही नहीं सकता। ले किन एक नहीं होता। यह सवाल पूछना वहुत गलत बात है। दिन प्राप जल्दी सोयें भौर एक दिन आप उठ, हेर मिनट हालत में तो आप जल्दी सौ ही जाय गे, औप जग करिये । पाँच-दस मिनट आप एकाग्रता से आप नहीं सकते । दो दिन आप ऐसा कर लीजिये, शरीर ऐसा है, उसको आदत लग जायेगी । किसी ने यह सोच लिया कि मैने बहुत पा बात-बात में क्षमा माँगनी पड़ती है। सो, उस गलती हो तो उसे माफ़ी करके घ्यान में आप हमें उतारिये हमने बे र किया है, सबको माफ़ कर देते है और हमने अगर किसी से बैर किया है, उसके लिये हमें माफ़ कर दो। अत्यन्त पवित्र भावना मन में लाकर के अर अप ध्यान में जाय करके अ्रात्मा की ओर ध्यान कर । तुम । अँख वन्द अब कितने मिनट करे ? इससे को ई मतलव आप चाहे पाँच मिनट करिये चाहे दस इयान कर नतमस्तक होक र के अ्राप ध्यान कर । सबेरे जल्दी उठने से, सवेरे के time में receptivity (ग्रहण-शक्ति) उ्यादा होती है मनुष्य पर ध्यान करने से पहले-इसको समझ ले की। और इतना ही नहीं, उस बक्त में ससार में ध्यान करने से पहले, जहां बेठ रहे हैं, उस प्रासन बहुत अत्यन्त सुन्दर प्रकार से चेतऱ्य भरा रहता है। में बन्धन दें। अपने को बन्धन दे. अपने शरीर को बन्धन दे । सात मर्तबा अपने शरीर को बन्धन दे । स्थान को बन्धन दें, फोटो को बन्धन दे । बो तो हो गया mechanical (यन्त्रवत् ) बाहर करने का लोग तो यूं-यं कर लेते हैं, हो गया तो शरीर की दृष्टि से मैंने आपको बताया और दूसरा यह कि सबेरे उठकर ध्यान करना। ध्यान कसे व्योंकि कुछ अब ध्यान कैसे करना है, सोचे ! काम खत्म । ऐसी बात नहीं है। करना-सवरे उठकर ? विचारपूर्वक अत्यन्त श्रद्धा से जिस तरह से । पूजा में बेठे है, प्रत्यन्त श्रद्धा से ओर मोन रहकर बड़े ही नत-मस्तक होकर के, अपने को हृदय में नत कर लें । पहली चीज है नत करना Humble down yourself(स्वयं को नम्र कर ) । के ओर बन्धन दें। उस वक्त में, ऐसे नहीं जैसे पूजा ५ू निर्मला योग का में लोग कहते हैं कि 'भई ये ले आ्रा, बो ले प्रा', इसलिये मैंने कहा था कि हृदय में नत मस्तक हों और चित्त जो है, सहस्रार की ओर ले जाकर आत्मा की ओर समर्पित हों । विचारपूर्वक, आात्मा की ओर समर्पित हों । इस तरह से नहीं। और उसके बाद अपने मन को बन्धन द अब मन कहां होता है? किसी ने आज तक मुझ से नहीं पुछा कि 'मां, मन कहाँ होता है ? मन यहाँ होता है, यहां उसकी शुरूआत हैं-माने विशुद्धि आ्रात्म तत्व जो है, वो पत्रित्रता है-पूरी निर्मल चक ओर आज्ञा चक्र को बहुत अच्छी तरह बन्धन पवित्रता कहिये । उसकी ओर नजर करें । वो दें । और यह विचार करें कि 'प्रभु ! हम तेरे ही बन्धन में रहें, हम पर कोई बुरा श्सर न आाए। अत्यन्त नत-मस्तक होकर । और उस वक्त में यह कारण आप आत्मा से दूर हैं। आत्म-तत्त्व का सोचकर कि हम साक्षी हैं और सब चीज़़ से हम विचार करें । और यह त्म -तत्त्व प्रेम है । अनेक अलग हटकर के, हम निर्मल है, उस चीज से, हम बार इसका विचार कर । यह बहुत बड़ा विचार है उससे अछुते हैं । सब चीज़ से अपने को हटा करके और आप बैठ रहे हैं । आत्म तत्त्व का essence (सार) দया है ? पूर्णंतया अलिप्त है । किसी भी चीज़ में लिप्त नहीं है। जो भी चीज आपसे लिपटी हुई है, उसी के आत्म तत्त्व प्रेम है । बहुत, अनेक धर्म संसार में संस्थापित हये हैं । आप ऐिसा प्रयत्न रोज़ करें। आपको इसी की लेकिन उसमें प्रेम की व्याख्या कोई कर नहीं पाया। एक प्रकार से आदत लग जायेगी। ग्रत्यन्त श्रद्धा उसके कारण उसके अनेक विपयास हो गये हैं। पूर्वक ध्यान कर । सवेरे के समय, चाहे दस मिनट, प्रम की व्याख्या हो नहीं पाती। लेकिन प्रेम वही चाहे आध घण्टे-उसका कुछ फ़र्क नहीं पड़ता । शक्ति है जो आपके हाथ से बह रही है । वही घ्यान करते वक्त में कुछ हाथ ऊपर नीचे मत करिये । ध्यान करते व क्त सिफ़ फोटो की ओर दष्टि रखते लेकिन यह नहीं जानते कि यह प्रम है। चेतना को रख ते अँखे बन्द करले और कोई हाथ-पर घुमाने हम ऐसी शक्ति समझ लेते हैं जैसे विजली ओर की जरूरत नहीं। उस वक्त कोई-सा भी चक्र जो खराव हो, उस चक्र की ओर दृष्टि करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा क्योंकि उस वक्त, मैंने कहा है, receptivity (ग्रहग्ण शक्ति) ज्यादा रहती है, सवेरे के time (समय) में । चेतना है जिसे लोग चेतना के नाम से जानते हैं। पंखा है । नहीं आत्म-तत्त्व प्रम है । यह ्द 'प्रम कहते ही साथ आपके अनेक टूट जायेगे। जितना भुूठ है, असत्य है, वह प्रेम के विरोध में है । प किसी को अगर डॉंटते भी हैं और उसको सत्य बता रहे हैं तो आप प्रेम कर रहे हैं। आप स्वयं प्रेम है । इसलिये प्रम- तत्व पर आप विचार करते ही औप आत्म-तत्त्व में उतर सकते हैं। बन्धन पहले तो अपने चक्र वर्गरह शुद्ध हो गये । इसके बाद अपने आत्म-तत्त्व पर विचार कर या अपने आप पर । अरत्मा की ओर चित्त ले जाय । श्रात्मा कहाँ होता है ? किसी ने मुझ् से यह नहीं पूछा ज तक कि साँ, आत्मा कहाँ होता है?" ध्यान में कोई सा भी विशेष विचार नहीं लेने का है । लेकिन अप यह कह सकते हैं कि "मैं, वही प्रेम-तत्व हैं, मैं वही आत्म-तत्त्व हैं, मैं वही प्रभू की शक्ति तो से दो-तीन वार क ते ही ग्राप आशी्वादित होयेंगे। आत्मा हमारे हृदय में होता है, लेकिन उसकी (पीठ) sear जो है यहाँ सहस्रार के ऊपर हैं प इसे कह सकते हैं । इस तरह निर्मला योग ६ औ रोजमर्रा के जीवन में अआपका जीवन एक उज्जव न होना चाहिये। आपके मुख में कान्ति आनी चाहिये। प्रापके व्यवहार में सुन्दरता आनी चाहिये। आपको प्रेममय होता चाहिये। ऊँट के, जैसे आप अगर विल्कुल ही रसहीन हों तो आ्प सहजयोगी रोजमर के जीवन में श्रापको पता होता नहीं है. यह आप को पता होना चাहिये। जबरदस्ती चाहिये कि आपके अन्दर शक्ति प्रेम-तत्त्व की है। के आप सहजयोगी वने हैं, वह भी हम आपको आप जो भी कार्य कर रहे हैं क्या प्रेम में कर रहें चला रहे हैं इसलिये आप ब ठे हुए है। नहीं तो हमें आप म। फ़ कर दे और आप सहजयोग में न आय । भारी सहजयोगी हैं ? हम भी किसी को कोई बात एक दिन आप खुद ही निकल जायगे । इस तरह दूसरे दिन के लोग, जिनमे प्रम नहीं है, जो अपने को सोचते बो आकर के सहजयोंगियों में बँठे करके हमें हैं कि हम बड़े बढिया आदमी है और बड़े कमाल गालियाँ देते हैं । और उसके बाद कहते हैं कि के आ्दमी हैं, और ये हैं, वो हैं, वो विल्कुल सहज हैमारे वाइब्रेशन क्यों चले गये ? तो इस तरह की योग के लिये व्यर्थ हैं। ऐसे लोगों को चाहिये कि अगर आप मुखता करते हों तो बेहतर है कि आप जाये, दूसरे गुरुओं के जूते खाय श्रीर वहाँ रहें। क्योंकि आप सत्य कह रहे हैं, अपके अन्दर से वाइव्र शन (vibrations) जोर से चलने लगेंगे । प्रब रोजमरा के जोवन में क्या-या करेना चाहिये ? ताल है ? या दिखाने के लिये कर रहे है कि आप बड़ कहते या इंटते हैं तो हम देखते हैं कि लोग सह जयोग में न ही आयें । यहाँ पर सहजयोग में अरप परमात्मा के एक सहजयोग में वहो आदमी प्रा सकता है और instrument (गन्त्र) बनने आ रहे हैं । अत्यन्त चल सकता है जो कूछ लेना चाहता है। उसको नरता आपके अन्दर होनी चाहिये, अत्यन्त नम्रता । देने का कोई ग्रधिकार नहीं है, उसे लेना ही है. आपको घमण्ड छोड़ना चाहिये। लोग कहते हैं कि हमसे । वह श्गर देना चाहेगा, उसको शक्ति जब सन्यास लेना चाहिये । मैं कहती हैं कि पहले धमण्ड वो हो जायेगी, तो बहुत ही बढ़िया चीज हो जायेगी से आप सन्यास लोजिये । कोध से आप सत्यास लेकिन आप तभी दे पाते हैं, जब आप ले पाते हैं। लजिये । कपडों से नहीं लीजिये । कपड़े उतार देने इस लिये पहले लेना सीखविये । हमारे अन्दर क्या से कोई सन्यास नहीं होता है । सन्यास का अर्थहोता दोप है ? रोज़ के जीवन में हम यह देखते चले कि है कि अपने क्रोध, काम मोह, मद, मत्सर श्रादि हम क्या चीज़ दे रहे हैं? हम प्रम देरहै हैं? क्या हम पट-रिपूओं से सन्यास लेने को ही सत्यास कहते स्वयं साक्षात् प्रम में खड़े हैं ? हम सबसे लड़ते हैं, हैं. सबसे झगड़ा करते हैं, सबको परेशान करते हैं औ्रोर हम सोनते हैं कि हम सहजयोगी हैं। इस तरह को ग़लतफ़हमी में नहीं रहना । अपने साथ पूरणतया से, सबसे प्रेम से व्यवहार कर । अपने बाल बच्चे, दर्पण के रूप से रहना चाहिये. माने अपने को पूरे घरबाले, इन सबसे सहजयोग की बातचोत करें । समय देखते रहिये। समझ लीजिये, हमारे माथे में सहजयोग का विवरण करें। अपने दोस्त वदल योई चीज लग गई तो आप बतायेगे कि "माताजी लीजिये यपना उठना-बैंठना बदल लीजिये । ये आपके सिर में कुछ लगा है, उसे पोंछ लोजिये । आपके रिश्तेदार हैं, ये आपके सगे हैं, इन्हीं से इसी प्रकार आप अपने को देखते रहे कि 'देखिये वातचीत करें हमारे यहाँ यह चीज लग गई है, इस को हम पोछ कि हम लोग एक नई ही दुनिया में आ गये हैं और ले ते हैं। - सन्यस्त । दूसरे सन्यास की बातचीत नही है। तो, अपने रोज के वपवहार में अत्यन्त शान्ति । और ये लोग प्रापको बतायगे हमारे पास एक नये वाइत्र शन्स(चंतन्य लहरियां है। निमंला योग the जब भी आप सफ़र करें, कहीं बाहर जाये, किसी गाँव में जाना है, तो बता रहे थे-अ्रभी मिलते रहे राहरी से आये हैं-कि हम अपने साथ में जैसे सब patient (रोगी) हो । और डावटर लोग आपस में लोग लेकर चलते हैं सब चीजें अपनी travelling फ़ीस नहीं लेते, उस प्रकार तुम आपस में फ्रीस नहीं (सफ़र) की, वेसे हम अपने साथ में थोडा-सा लेते । आपस में treatment (इलाज) करो, आपस "तीर्थ -वो मेरे पेर के पानी को 'मतीर्थ" कहते में पूछ लो और इसमें बुरा मानने को कोई बात वह करते रहे इस वजह से वो ठीक हैं । आपस] में । आपसे में सब तुम डाकटर हो और सब हैं-"तीर्थ और और यह सब vibrated नही । किसी ने कहा कि अ्रापका सहस्रार पकड़ा है। (वाइब्र टेड) लेकर हम चलते हैं। रास्ते में कोई "तब तो बड़ी शर्म की वात हो गई वो तो हमारे आदमी बीमार दिखाई दिया-चलो उसको तीरथ विरोध में बैठ जायेगी बात। तो मैंने उससे कहा पिला दिया। कोई आदमी ने घर्म की चर्च्चा की, कि भई सहस्रार ठीक करदो, पता नहीं कैसे आदमी उसे फोटो दिखा दिया कि ये 'माताजी' हैं [औ्र तुम चाहो तो तुमको पार कर सकते हैं । जहां जो आदमी मिल जाये। वह अपने साथ रक्खे रहते हैं- "चलिये हम आपको कुमकुम लगा देते हैं, देखिये शरपको कैसा लगता है । ये हमारी 'माताजी' हैं। पूरे समय दिमारा इधर-उधर दोडता रहता है कि कान बन्द कर लो श्र ऐसे आदमी से कहो कि तम सहजयोग को किस तरह से अपने जीवन में प्लावित हर बठी। हमको तुम से मतलब नहीं और तुम कर सकते हैं। उसी समय आप देखि ये कि ग्राप हैमार से बात मत करी, बस । हमको अपना कोई बहुत गहरे उतर सकते है। कुमकुम न के साथ मैं बैठ गया। किसी ऐसे आदमी के साथ कभी नहीं बठना चाहिये जो सहजबोग की बुराई करता हैं। सहल्ार फोरन पकड़ जायेगा। ऐसा आदमी अगर बोले तो बुरा नहीं करना। आप कौन होते हैं हमसे बात करने वाले ? आप यहां माताजी की वजह से हमसे ले किन कुछ लोग ऐसे हैं कि सहजयोग में सिर्फ मिले हैं, आप चुप रहिये। ऐसा जो भो आदमी ऐसे अराते हैं, जैसे मन्दि र में अराये अऔर चले गये । बात करे तो 'बस, बस, बस करिये। आपका सहस्रार और फिर उसका दूषपरिणाम हमेशा आरायेगा । यहां पकड़गा, फिर एक-एक चक्र पकड़े गे, फिर थोडे दिन पर ऐसे लोग हैं, अभी बैठे हुए हैं, कि जिन्होंने जब में श्रप आयेगे कि "माताजी, मूझे कैन्सर हो से सहजयोग से पार हुए हैं तब से उनको एक बीमारी नहीं आई। महा बीमार थे, उनको कभी बिल्कुल सहस्रार की बीमारी है-पक्की, समझ बीमारी नहीं आई। एक बार भी वह डाक्टर की लोजिये । कैन्सर से अरगर वचना है तो अपना सोढ़ी नहीं चढ़े । कभी उनको कोई तकलीफ़ नहीं सहस्रार साफ़ रखिये । सहस्रार जिन लोगों ने हुई । उन्होंने एक दवा नहीं ली. जब से योग में श्रये हमेशा डाक्टर के पास जाते थे और अस्पतालों में रक्खो और हो सकता है, आज नहीं तो कल, आध घूमा करते थे, वो कभी भी नहीं गये। ऐसे यहां पर साल बाद आपकी पता होगा कि साहब हमको कैंसर बहुत-से, अनेक उदाहरण है। इतना ही नहीं, हो गया। उन्होंने दूस रों को भी भला किया। गया।" और कैन्सर की बीमारी जो है वो तो वह सहज पकड़ना शुरू कर दिया तो कन्सर की शुरूआात हो । बुड्ढे भी हैं उनमें से कुछ लोग, जो गई. मैं ग्रापको बता रही हूँं। सहस्रार हमेशा साफ़ कं तो क्यों न अभी से प्रपने को स्वास्थपुर्ण रक्ख । इसका का र यह है कि जो कुछ भी स्वास्थ्य शरौर इतना ही नही, सहजयोग का कार्य करें, जिस के लिये एक सहजयोगी के लिये अावश्यक है, वो के कारण हम परमात्मा के राज्य में बैठे हैं। औ्र निमला योग त जब कल संसार में उन लोगों को चुना जायेगा. जो योग। इसको समझे और इसमें रत रहें । जितना परमात्मा के हैं, उनमें से आप लोग श्रेष्ठतम लोग आप उसमें तदात्म्य पायेंगे उतना ही आपका आत्म- हौंगे । क्यों न ऐसा कार्य करें जिससे यह व्यर्थ का तत्त्व चमक सकता है। समय हम बर्बाद कर रहे हैं-इसके घर जायें, रिश्तेदार के घर खाना खायें, फ़लां के घर घुसो, उसकी बूराई करो-छोड़-छाड़ करके और अपने आप स्वयं प्रकाश बन । और जिनको बेकार की बातें मार्ग को ठीक बनायें और ऐसा जीवन वनायें कि सुझती हैं उनके लिये बेहतर है कि वो उस चीज को संसार में उन लोगों का नाम हो। सबको यह छोड़ द, उनकी बात नहीं है । सोचना चाहिये । कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है सिवाय इसके कि अब आखिरी बात बताऊँगी । उसको बहुत कोई यह न सोचे कि 'भई अब तो मेरी उम्र ही समझ के और विचारपूर्वक कर । क्या रह गई है, अब तो क्या कर सकता है? सो बात नहीं है। आप मरेंगे ही नहीं । आप मेरते हैं। फिर आप पदा होते हैं । फिर अआराप मरगे, फिर आाप पदा होयेगे । यह चक्कर चलते रहेंगे एक साल के अन्दर सभी चीज़ को खत्म कर सकते हैं-चाहें तो अप एक हुफ़्ते में भी खत्म कर सकते हैं। एक बार निश्चय मात्र करना है, एक क्षण-तो भी खत्म हो जायेगा। हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियाँ है । हमारे ही अन्दर स्वयं वहृत-सी काली प्रवृत्तिरयाँ है जिसे negativity (निगेटिविटी) कहते हैं । बो जोर बाधती हैं। उनके कब्जे में अरना अरपने को शेतान बनाना है। आप चाहे तो शेतान बन सकते हैं और आप चाहे तो परमात्मा बन सकते हैं। शंतान अगर बनना है तो बात दूसरी है । उसके लिये मैं गुरु नहीं है । भगवान बनना है तो उसके लिये मैं गुरु है लेकिन शैतान से ब वना चाहिये। तो क्यों ने । अपने जीवन को कुछ विशेष करना है, एक बार इतना निश्चय कर लेने से ही सहजयोग का लाभ अत्यन्त हो सकता है, ये आप जानते हैं। पहली चीज़ है कि अमावस्या की रात या पूरिणिमा की रात left और right side दोनों तरफ़ शरणागति होनी चाहिये । जरूरी नहीं है कि में आपके dangers (खतरे)होते हैं । दो दिन विशेष मेरे पेर पर आकर । शरणागति मन से होनी कर, अमावस्या की रात्रि को और पूरिणमा की बहुत जल्दी सो जाना चाहिये । भोजन करके, नत हो के, ध्यान करके, चित्त सहस्रार में चाहिये। बहुत-से लोग पैर पर आते हैं, शरणाग ति रात्रि को विल्कुल नहीं होती। शरणागत होना चाहिये । अगर शरणगत रहे अन्दर से पूरणंतया शरण गित डालकर, बन्धन डाल के सो जाना चाहिये। मतल ब रहें, तो पूर्णतया, आपके अन्दर कुण्डलिनी जो है, चित्त सहस्र्रार में जाते ही ग्राप अचेतन (uncons- सीधे आव्म-तत्व पर टिकी रहेगी, जैसे कि एक दीप cious) में चले गये वहां अपने को बन्धन में डाल दिया, आप बच गये-दो रात्रि को विशेष लप झिलमिलाना, कभी मन्द कभी तीव्र होना) नहीं से, प्रौर जिस दिन अ्मावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अ्रमावस्या के दिन, आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिये। शिवजी का व्यान करके, उन की लौ रहती है उस तरह से एक भी flickering होता, लेकिन शरणागत रहें । की के हवाले प्रपने को करके सोना चाहिये सुख शरणागत रहने में आनन्द है, उसी में आत्म प्राप्ति है, उसी में परमात्मा की प्राप्ति है । तत्त्व पर । ओर पूरणिमा के दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिये । उनके ऊपर बहुत अनुपम, विशेष (unique) चीज है, सहज हैं निमला योग अपनी नेया छोड़कर । रामचन्द्रजी का मतलब है argument नहीं करना चाहिये । जिसका सहस्त्रार क्या-creativity (सृजन शक्ति) । अ्पनी जो पकड़ा है, उसके तो दरवाजे पर भी लड़ा नहीं creative powers ( रचनात्मक शक्तियां ) हैं उनको होना चाहिये। उससे कोई मतलब ही नहीं होना । चाहिये आपको । कहो, "प्रपना सहस्रार ठीक करो इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिये। भाई।" उससे कहने में कोई हजे नहीं कि "तुम्हारी ।" सहस्रार अगर किसी को सहस्त्रार पकड़ा लगे तो फ़ौरन जाकर कहना चाहिये कि "मेरा सहस्रार उतार दो लोग किसी तरह । सहस्रार किसी का पकड़ा हो अौर वह आप से बातचीत करे कुछ, तो कहना चाहिये "तू मेरा उस प्रादमी से बिल्कुल उस बक्त तक बात नहीं करनी जब तक उसका सहस्रार पकड़ा है। पूर्गतया समर्पित करके और आपको रहना चाहिये सहखार पकड़ा हुआ है, उसे ठीक करो साफ़ रखना चाहिये हालांकि, सप्तमी प्औौर नवमी दो दिन विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है । सप्तमी और नवमी के दिन उसका ख्याल रखना । सप्तमी श्रर नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा प्रयोजन करना जिसमें आप ध्यान अपना पूरा करे। सामु- हिक ध्यान उसी जगह करना जहां मेरा पेर पड़ा । तुम हुआ है, जो चीज शुद्ध हो चुकी है। सामूहिक ध्यान उश्मन हैं। अपने घर में भी किसी के साथ बेठकर मत करिये । अपने रिश्तेदारों के साथ भी बैठ करके सामूहिक घ्यान नहीं करना चाहिये। जिस जगह मैने कहा है हृदय चक्र पकड़ा है उसकी मदद करनी चाहिये । वहीं सामूहिक ध्यान करना है । और बेठकर सहज जहाँ तक बन सके तो उसके हृदय पर बन्धन आदि योग की चचा भी बहुत देर तक ऐ सी जगह नहीं डालना, अपने हृदय पर हाथ रखना, मां की फोटो करनी चाहिये जहां मेरा पर पड़ा नहीं क्योंकि वहां की ओर उसको ले जाना। हृदय चक्र का खयाल तो तुम्हारे अन्दर के भूत आकर बोलने लगगे और जरूर रखना चाहिये, क्योंकि कभी-कभी हृदय चक्र आपस में झगड़ा शुरू हो जायेगा क्योंकि तुम लोग में हो सकता है दूसरे को जरा परेशानी हो । हृदय अब भी भूतों के कठजे से बचे हुए लोग नहीं हो । चक्र में जरूर मदद करनी चाहिये । पर बहुत-से कहां से भूत अाता है, यह समझ में नहीं आता । लोगों के हृदय नहीं होता। बहुत dry (शुष्क और भुत सारे काम करता है। अब रही हृदय चक्र को बात । जिस मनुष्य का personalities(व्यक्तित्व होते हैं । ऐसे dry लोगों इस तरह से अपती रक्षा करने की वात है । के लिये अरप कुछ भी नहीं कर सकते । आप चाहें और जब कभी भी आप वाहर जाय, कहीं भी धर भी उनका कुछ ठीक करना, तो भी आप कुछ से बाहर जायें तो अ्रपने की पूरणंतया बन्धन में रक्खे । बन्धन में रक्ख, हर समय बन्धन क्खें । और आपसे कुछ कह तो पहले उनको कहना चाहिये देखा कि किसी का अाज्ञाचक्र पकड़ा है, चित्त से ही कि "हठ योग छोड़े ये, आप दुनिया भर के काम चाहे बन्धन डाल दीजिये । जिस आदमी का आज्ञा छोड़िये और थोड़ा प्यार करना सीखिये । पहले चक्र पकड़ा है, उससे कभी भी argument कुत्ते, बिल्लियों से प्यार करिये प्रगर इन्सान से नहीं (विवाद) नहीं करना चाहिये । यह तो वेवकूफ़ी होता, फिर इन्सान से प्यार करिये ।" खुद भी सब की बात है, जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, तो क्या से प्यार करिये, बच्चों से प्यार करिये, बच्चों से से नहीं कर सकते । पर, बो अगर आपके पास आयें, आप argument कर सकते हैं ? उससे ज्यादती मत करिये । किसी से भी ज्यादती मत भूत argument नहीं करना चाहिये जिस का भी आज्ञा करिये । किसी के साथ भी आप दुष्टता मत करिये, चक्र पकड़ा है-पहली चीज । जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है, उस से भी किसी भी सहजयोगी को [अपने बच्चों को कभी किसी को बच्चों को तो कभी मा रना नहीं है । निर्मला योग रा १० स म हाथ से मारना नहीं है। हाथ नहीं उठाना है, किसी प्रश्न वहां पूछे, उसका जवाब मैं वहां एक साथ को मारना नहीं है । किसी से भी क्रोध नहीं करना दूंगी। Quarterly पहले शुरू कर रहे हैं । फिर है। सहजयोगी को तो क्रोध करना ही नहीं है । उसको बुद्धिमानी से हर चीज़ को ऐसा सुझ-सुधार Weekly कर लंगे फिर Daily भी हो सकेगी । लेना चाहिये कि क्रोध न दीखे । उसे कभी भी क्रोध अभी बहरहाल हम लोग Ouarterly कर रहे हैं । करना नहीं। Monthly हो जायेगी फिर हम लोग उसे और जो भी लोगों का कोई प्रश्न हो, कोई तकलीफ़ हो, उसके बारे में आप एक चिट्टी प्रधान तुम रोजमर्रा का जीवन सहजयोगी का कैसा होना साहब के पास भेज दें। मुझे ज्यादा चिट्टी नहीं दं । चाहिये ? उसकी भी आप प्रार्थना करें । उसका मेरे पास time बहत कम है और फिर माँ ने चिट्टी विचार समझ आ जाएगा। मैंने अनेक तरह से नहीं लिखी, एक को चिट्री लिखी "मला लिहिली आपको वताया है । त्यानां नाहीं लिहिली (मुझको लिखी, उनको नहीं लिखी", इस तरह की कोई भी उल्लू पने की बात TELA उसी प्रकार से हमारी जो "अनन्त-जीवन की जो प्रादमी करता है, ऐसे ग्रादमी के लिये सहजयोग जो संस्था है, उसके लिये प्राठ दस आदमी मिलक र के क्या करने का है उस पर बिचार करें आप सब लोग अपना सहयोग उसमें दें और सब मदद कर अभी जिन लोगों ने अपने नाम हमारे पास दिये जैसा हो प्यार करती हैं। किसी कारण से नहीं नहीं हैं, जिनके नाम लिखे नहीं हैं तो अपने पते लिखती हैं। कभी तुमको लिखा, कभी नहीं लिखा। प्रधान सहब के पास भेज दे ोर हम 0uarterly कभी-कभी तो उनको नहीं लिखती है जिनको मैं एक शुरू करने वाले हैं, उसमें मेरे पत्रों, सन्देश, अ्रत्यन्त सोच्ती हैं कि वो बुरा नहीं मानेंगे। ओर लेकच र वो सब छपगे । इसके अलावा तुम लोग भी अगर अपने अनुभव कुछ लिखो तो वो अनुभव करने वाली । मैंने बहत परवाह कर ली ओर उससे उसमें छापे जायेंगे|। सारे all India के जितने भी लाभ यह हुआ कि वो दृष्ट तो दूष्ट ही रहे, वो ठीक अनुभव लोगों के आते हैं, वो हर वार उसमें थोड़े नहीं हुए, हमें ही नुकसान होता रहा । जिस पर भी वहुत छापे जायेगे । उसमें अपने अनुभव लिखते मैंने सोचा कि इस अ्रादमी से ठीक से रहती रहैं, जायें अगर आप लोग कोई अच्छा लेख सहजयोग लिये कल ठीक हो जायेगा, पर नहीं, वो दूष्ट ही पर लिखकर भेज तो वो भी इसमें छाप दिया बने रहे। वो तो जरा भी अपना transformation जायेगा। इस प्रकार एक यहां पर Ouarterly ले (परिवर्तन) नहीं किया । तकलीफ़ हमें ही रहे हैं, उसमें अंग्रेजी में कुछ छुपा रहेगा, कुछ होती रही, क्योंकि मैंने तय कर लिया है कि किसी मराठी में, कुछ हिन्दी में अ्रर कुछ गुजराती में । भी मनुष्य का संहार नहीं होगा, किसी भी मनुष्य इस प्रकार की Ouarterly हम लिख रहे हैं । वन को मैं यातना नहीं दूंगी । उसको full freedom पड़े तो सब हिन्दी और मराठी और गुजराती, इस (पूर्णं स्वतन्त्रता) है, चाहे तो वो Hell (नर्क) में सभी का एक साथ शुरू करगे या फिर धीरे-वीरे जाए, जहन्तुम में जाए औ्र चाहे तो वो परमात्मा करगे। सहजयोग में हर चीज घीरे-घीरे होती है । के पास जाए। पूर्ण freedom मैंने आपको दे रखी उसको आप contribute करें । उसका जो कुछ भी है । जिसे चाहे नरक में उतरे, तो मैं कहती है कि पैसा देना है. दे । और उसका जो कुछ भी लाभ भया दो कदम और जल्दी उतर जाओो, जिससे नहीं है। आपको पता होना चाहिये कि मां सबको एक बुरा मानने वाले लोगों की अब में परवाह नहीं आपको उठाना है, उठाय । उसमें प्रश्न कर और हमारा छूटकोरा हो सके । यह भी व्यवस्था मैं कर निर्मला योग ११ दंगी। अगर आपको नरक में जाना है, तो भी पास मैं गई। उनको हमने पार कर दिया। पार ठ्यवस्था हो सकती है और अगर आपको परमात्मा होने के बाद उन के पास एक साहब गये ऐसे ही । के चरणों में उतरना है वो भी व्यवस्था हो सकती उन्होंने जाके बताया कि ये माताजी के ध्यान में है इसलिये जो लोग मूझे परेशान करते हैं और तो बदमाश लोग हैं अऔर ऐसा है. वैसा है । अब तङ्ग करते हैं, जिन्होंने सताया है, ऐसे इनको मैंने पार, कर दिया है, वाइब्रेशन आ गये । सब लोगों से मेरा कहना है कि मैंने बहत पर उस पर विश्वास कर लिया । तो उन्होंने कहा patiently (घंय से) सब से deal (व्यवहार) किया कि "माताजी, हम आपको घर नहीं दे सकते, क्यों है और प्रब अगर किसी ने मुझे सताया है और तकलीफ़ दी तो मैं उससे कह दंगी कि अव ग्रापका उनको ही घर दे दो । रोज़ फोन करता है रोज़ हमारा सम्बन्ध नहीं है, आप यहां से चले जाइये । फिर वो दो चार लात मारते हैं, इधर-उधर निकलते गलती हो गई मैंने कहा, "देखो, अब तो उसी को वक्त में हरेक अपने गुरण दिखाते रहते हैं। उनके ही बेचो सबके गुणा दीखते हैं, लेकिन जो भी है, आापको यह वेचाग अब वह रो रहा है कि 'माताजी मुझ चाहिये कि आप अपना भला सोच । वो अ्गर नरक की ओर जा रहे हैं, तो आपको उनकी गाडी में तुम उसको बेचों जिसने आकर तुम्हें पढ़ाया था ।" बेठने की कोई जरूरत नहीं हैं। होंगे; "पके लिये सहजयोग नहीं है" और छोड़िये उन को भला करें। किसी से भी वादविवाद करने की जरूरत नहीं है। जो जैसा है, वेसा ही रहैंगा। बहुत मुश्किल से बदलेंगे वो लोग, क्योंकि वो ट हैं । जो अच्छे प्रादमी होते हैं वो गलती करते जल्दी समझ जाते हैं । जो बूरे आदमी होते हैं उन की बदलना असम्भव-सी वात है, यह मैं समझ गई हैं । मैंने बहुत है, लेकिन जो जैसा है, वैसा ही है । उसको आप वदल ही नहीं सकते । वाबू वाली। इसलिये ऐसे लोगों से भिड़ने या बोलने की जरूरत नहीं और इस वजह से आप से मुझे यह उतरी है) और वहाँ जाते ही तुम्हारी गाडी जो विनती, कहना है कि आप लोग किसी प्रकार के ऐसे लोगों से कोई भी सम्बन्ध न रक्खें । धीरे-धीरे सब आ्राप छट जायेगे क्योंकि वो यहा पर इसलये यह उरूर बता रही थी-नरक के बारे हैं कि आपकी जो भी साधना है उस को नष्ट कर । ऐसे लोगों से बचकर रहे, उनसे रक्षा करें । अपनी रक्षा उनसे कर । आप सहजयोग में बाइब्र शन (चंतन्य लहरियाँ) पाये । मुझे बहुत कि हमको एक साहूब ने कहा है।" तो मैंने कहा, फोन करता है. कि 'माताजी खरीद लो. मूझसे । । पूरी freedom (स्वतन्त्रता) हैं से नाराज है । मैने कहा, "मैं नाराज-वाराज नहीं, अब इसलिये, ऐसे जो अकलमन्द लोग हैं. उनके लिए वेहतर है कि अपने को अगर नरक में जाना है तो सीधे टिकट कटाकर चले जायें मैं आपको टिकट नरक का भी दे सकती है। सब मेरे ही हिसाब किताब हैं। जिसको भी ऐसी इच्छा है नरक में जाने की मुझसे टिकट ले ले, मैं देने को तैयार हैं औ्रौर जिसको परमात्मा के राज्य में प्राना है, उसका टिकट भी मैं दे सकती है । टिकट वाबू तो हरएक जगह का टिकट दे ही सकता है । लेकिन टिकट ये तो बतायेगा कि "भाई एक तरफ तुम गये तो वहाँ derailment हो रहा है (गाड़ी पटरी से ी । अपता दुष्ट है पर कोशिशें की हैं । मैंने बहुत कुछ किया उसको अ्रक्ल ही नहीं आने है, इट जायेगी। फिर there is no return from there (वहाँ से आप वापस आ नहीं सकते)। यह Return ticket (वापसी टिकट) नहीं है । तो, इसलिये मैं में मझे ज्यादा बताना नही है, तरक तो आप खुद ही जानते हैं क्या चीज़ है । इसलिये मैंने आपको हिसाब किताब एक साहब प्रभी मकान हमें दे रहे थे । उनके बताया है कि चौज अपनी साफ़ रक्खो श्रर निरमला योग १२ he रास्ता अपना ऊरर का देखो, नीचे नहीं । कि फोटो के प्रति श्रद्धा हो, जहां पूजा हो सके, नीने जहाँ लग सहजयोग को मान सके। इस प्रकार से करने से ही सहजयोग फैल सकता है असल में हम बहत ज्यादा publicity (प्रचार) नहीं करना और हर क़दम, हर जगह अरपके साथ हम चाहते क्योंकि जब भी publicity करती है तो ऊपर नजर रखोगे तो ऊपर चढ़ोगे । नहीं देखो । ऊपर चढ़ना है, ऊपर जाना है । खड़ है। हर जगह। कहीं पर भी प्राप रहें । गन्दे लोग आकर जल्दी चिपक जाते हैं और जो कहीं पर भी रहो, हर जगह हम शप्रापके अच्छे लोग होते हैं वो मिलते ही नहीं। इसलिये बेहतर यह है कि इसी तरह से प्राप लोग सहजयोग ्र] साथ हैं-काया, मन, वाचा-पूरणतया । यह की पूरी तरह से सेवा करें और उसके द्वारा अपने हमारा promise (वचन) है लेकिन जिस को सम्पत्तिशाली करें । को नरक में जाना है, उसको भी हम खींच रहे हैं नीचे को तरफ। इसलिये बचकर रहो पुर्ण आशीर्वाद आपके साथ है । मेरा हृदय, परमात्मा आप सबको सखी रखे । मेरा मन, शरीर हर समय आप हो की सेवा में संलग्न है । बो एक पल भी आप से दूर नहीं। जब भी आप मुझे और ऊपर का रास्ता देखो, नीचे का नहीं। प्रब मैं जा रही है लन्दव । आने के बाद देखें कि हरएक आदमी कमस कम दस दस लोगों को पार करे। आप में से बहत-से ऐसे हैं। अौरों को करके याद कर लें उसी वक्त बुलाए उनसे खुले आम बातचीत करे, शर्माये नहीं । लेकर के "शख, चक्र, गदा, पद्म, गरुड़ लई सहजयोग के बारे में वताए कि यह चीज़ कितनी धाये" एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा । सस्य है, इसमें कितना सत्य-धर्म है. इसमें कितनी लेकिन शपको मेरा होना पड़ेंगा । ये जरूरी वास्तविक चीज़ है। और लोगों को इकट्ठा करें, जहां-जहां मिले उनसे बातचीत करें । फोटो सब है। अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी मुझे लोग ल और दस-दस फोटो हरएक प्रादमी दस घर नहीं लगेगा, मैं गरपके पास आ] जाऊंगी । पहुँचाये । यह ही बड़ा अच्छा तरीका है कि हरएक आदमी contribute करके दस फोटो खरीदे और दस फोटो दस घर में पहेँचाये-ऐसे घर में ज हां पर दे। सम्मति से रहो । सम्मति से रहो ।। सिर्फ अँख बन्द मैं पूर्णशक्ति सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबूद्धि निमंला योग १३ परमपूज्य माताजी के अगपत्र का हिन्दी रूपान्तर न है परन्तु यह वास्तविक जीवन प्रणाली बन जाती है । यह हो सकता है कि यह परिपकवता के साथ न किया जाये तथापि एक सिद्ध आत्मा की ऐसी कल प्रातःकाल मैं चार दिन के लिये न्यूबॉक स्थिति होती है । यह निश्चय से मेरी वायव्रशन्स के लिये प्रस्थान कर रही है। मैं यह पत्र आपको को मौर अधिक तीव्र करता है, और केंद्रों के लिखने में शीघ्रता इसलिये कर र ही है कि मैं दवेवताओं को जागृत करने में सहायता करता है। सृचित् समय में प्रापको सूचित् कर दूं कि आपको वास्तव में मूझे मालूम नहीं विगत समय में लोगों मेरे प्रियंतम पूत्र जेरेमी, ने क्या-क्था गरन्द स्वीकार किया है और किस प्रकार का भरमोत्तादक जीवन ग्रपनाया है। परन्तु क्या हो रहा है। मेरे विच्रार से आप बायें पक्ष पनुभवों और आध्यात्मिक अनुभवों के बीच में पड़कर भ्रमित हो गये हैं। जो लोग वाम पक्ष के होते है कभी कभी कि कितना होता है? क्या आप उनकी गिनती करगे मेरा भूत कालिक जीवन देख सकते हैं। वे मेरे प्रति कहीं अधिक सम्मान श्रर प्रेम प्रददशित करते हैं। इस के पीछे जो कारण निहित है उसे मैं जानता में सिद्धहस्त हैं तो अराप एक ही बुहार बहुत कुछ है। परन्तु मैं उन्हें प्रोत्साहित नहीं करती है। स्वच्छ बता सकते हैं। पश्चिमी जीवन सन् १६१९ से यदि प्राप भाँग आदि लेते हैं तो निश्चय से आप बहुत से राक्षसों से, जिन्होंने अपने विचार स्थाप्य- इडा नाड़ी में खच लिये जाते हैं र उस समय कला और सड़्ीत में घुसाए, आक्रान्त है। इन अहंकार का शमन हो जाता है । संवेदनात्मक वासनामय प्रेम को अनुभूति करते हैं। जड़ों से, उनके धर्म से, जो उत्थान का आधार है, अह जानना अविश्यक नहीं। क्या आप अपने घर का मेल, कूडाकरकट, जो ग्राप बुहारते हैं, जानते हैं अथवा तोलगे अरथवा उनकी प्रकृति, स्वभाव और इतिहास जानने की चेष्टा करेंगे ? यदि आप बृहारने में अतः आप विनाशकारी विचारों ने पश्चिमी लोगों को उनकी परन्तु जब आप इस ओर अधिक बढ़ते है तो आप विश्वव्यापी वासनामय प्रेम का अनुभव प्राप्त करना रम्भ कर देते हैं । इस प्रकार मानव को पतन उखाड़ दिया। आपको यह तो स्वीकार करना ही होगा कि सहजयोग ने निश्चित रूप से घार्मिकजनों की संरचना की है चाहे वे परिपवव न हों । आरम्भ हो जाता है क्योंकि वह भवसागर से बाहर निकल कर वाम पक्ष की ओर झुकता है । समस्त मादक द्रव्य आफ्की चेतना हर लेते हैं । सो अ्रपनी आत्मा को उज्ज्वल चमकीली बनाने आपको मालूम है मैं अन्य सहजयोगियों श्रर के लिये सन्तुलित ध्यान का सन्तुलन साधे रह उनकी स्थिति के बारे में भली भांति परिचित सकते हैं । सत्य की प्राप्ति पूर्ण सजगता में होनी होती है । [आप जाने लें कि पार होने के चाहिये, नहीं तो जो कुछ भी आप अनुभव करते पश्चात् करम-काण्ड जैसी कोई चीज नहीं रहतो हैं वह भ्रम है, क्योंकि आप स्वप्नावस्था में हैं । ने निर्मला योग १४ ा ऐसा प्रतीत होता है कि सहजयोग का प्रसार सिद्धान्त सहजयोग का पोषरा करते हैं, उनके साथ मन्दगति से हो रहा है । कोई बात नहीं, परन्तु समझोता नहीं किया जा सकता । परन्तु प्रब मेरे यदि यह सत्य है तो आ्रप इसको स्वपनावस्था में कैसे विचार में प्रचार-माध्यमों ने इस कार्य को अपना प्राप्त कर सकते हैं । मेरी इच्छा है कि मेरे तमाम लिया है जिससे हम अब सहजयोग को और बच्चे जागृत होकर ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश धार्मिक लोगों तक पहुँचा पाने में सफल होंगे। इस सुदृढ़ ने उड़ान भर ली है ऐसा मेरा अनुभव हैं । मादक द्रव्य से वियों के प्रति मुझे खेद है । इस चुनौती का कर, वाम पक्षीय भ्रम के नरक में नहीं। मादक द्रव्य सेवियों के बारे में मं रा अनुभव सामना करने के लिये, उन्हें अपनी इच्छा का प्रयोग, दूखद रहा है। जो आये वे मन्द गलि थे। वास्तव में कम ही आते हैं । अतः आपका यह मत कि होगा। रोगी मद्-से वियों ने श्रीर पागलो ने बहुत ईश्व र साधना मद्य से आरंभ होती है, कि बमात्र समय नष्ट कर दिया है। ये किसी को भी प्रभावित भी सत्य नहीं है । वे प्रत्यन्त दुर्बल थे और वाम- नहीं कर पाते क्योंकि उनका व्यक्तित्व मैला, पक्षोय आक्रमण के विशुद्ध असमर्थ थ । उदाहरणथि, नेरा्यपरगां है और ये ह्वाई दोड़ लगाते हैं । वे बड़े आप सब कंसे ईचल जैसे मिथ्या व्यक्ति के चंगुल में फसे थे । वे अधिकतर केंसर जसे भयानक व अन्य असाध्य रोगों से पीड़ित हैं। यदि [आप] करेन के साथ विवाह करने के इच्छुक हैं तो यह ठोक है । परन्तु मद्य के प्रभाव में आकार ऐसा मत करना, हो और तुम्हें अअरधिक सक्रियता की आवश्यकता है। क्योंकि यह वाम-पक्ष को इतना तीव्र कर देता है कि बस चलाना अच्छा विचार है किन्तु यदि आप चेतन्य लहरियों द्वारा सही निर्णय में मार्गदर्शन के मादक द्रव्यों का सेवन करते रहे तो बेचारे यात्रियों लिये विचार-शक्ति का सन्तुलन समाप्त हो का भगवान हो रक्षक है ! जाता है । करना पड़ेंगा अौर मद्य की दासता से मुक्त होना आलसी होते हैं जो भी उन्हें सहजयोग में प्रवृत्त करता है उसका विरोध करते हैं। जेरेनी मैं जानती है तुम एक वामपक्षी व्यक्ति प्रापने चैतन्य लहरियों के सम्बन्ध में कुछ भी वास्तव में माद क द्रव्यों का सेवन सभी सन्तों नहीं लिखा। वे अपकी पथप्रदर्शक हैं, न कि ्र पीर पेगम्बरों ने बजित किया है और हमारे अापका ग्रहड्कार जो दूसरों को जाँचता है, न ही भी ऐसा ही करते हैं । क्योंकि क्ानूनों का आपका प्रतिभ्रहङ्कार जो आत्म-सन्तुष्ट है । यह कानून आधार हमारे भवसागर, घरम से आता है । मैं आप सब को कानूनों के ओतित्य को ओर ध्यान देने को कहैं गी, इनकी श्रुटियों की ओर नहीं। महात्मा गंधी आनन्द नहीं, भ्रम है । घीमे और दूढ़ता पूर्वंक सामूहिकता में अपनी वास्तविकता को प्राप्त को । दास प्रथा के विरोधी थे किन्तु मादक द्रवों के अधिक विरोधी थे | वे किसो भी मादक द्रव्य सेवी को अपने आश्रम में स्थान नहीं देते थे चाहे उसने वह छोड़ दिया हो। सहज योग को पश्चिम में फैनाना कठिन कार्य है। मैं भी को बलिदान नहीं किया जा स कता । जो ईश्वर आपको स्दैव सूखी रखें । आपकी सनेहमयी माताजी, महसूस करती हूँं । परन्तु निर्मला मूल प निमंला योग १५ है vhor परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देबी जी द्वारा बराइटन में १५ नवम्बर १६७६ को दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर पड़ेगी जेसे यदि ईदवर, मानव चेतना के इस स्तर इस नगरी ब्राइटन (Bright प्र्थात् उज्ज्वल) का नाम स्वतः ही सुन्दर एवं आकर्षक है । (हिन्दी पर, बिना आपके इस कार्य में भाग लिये, आपको शब्दार्थ है निर्मल करने वाला उज्ज्वल करने उच्चतर चेतना में स्थापित कर सकता, तो उसने वाला) यह समस्त देश को निर्मल एवं उज्ज्वल यह बहुत समय पहले ही सम्पन्न कर लिया होता । बनायेगा। मैं यहाँ इससे पूर्व दो बार आ चुकी है लेकिन वह नहीं कर सकता । आपको देवत्व को और मैंने प्रत्येक बार महसूस किया कि मुझे इस प्रपनी स्वतन्त्रता में ग्रहण करना है । स्थान में अवसर मिले तो मैं यहाँ एक दिन सहज योग की स्थापना विशद रूप से करू जिससे यह एक तीर्थ स्थान बन जाये । मिश्रित चंतन्य लहरियां विद्यमान हैं । आपके पास सागर है, यहां की पृथ्वी माता विशेष महत्वपूर्णं सन्तुष्ट नहीं हैं । इससे परे कोई वस्तु है जिसकी है। परन्तु जब कुछ पवित्र कार्य का शुभारम्भ होता आपको खोज करनी है । सचमुच सुदूर परे, जिसकी है और बह अपने पुण्य का विस्तार करता है तो चर्चा समस्त पैगम्बरों ने की है, सब धर्मशास्त्रों ने ्ासूरी शक्तियां एकत्र होकर ग्रप्रत्यक्ष रूप से देवी पृथ्वी पर अ्रवतरित सब ग्रवतारों ने की है । शक्तियों से सङ्कर्ष आरम्भ कर देती हैं । यही सब ने मुक्त कण्ठ से इस तथ्य को स्वीकार किया कारण है कि मुझे ब्राइटन में मिथ्रित लहरियां अनुभव हुई। जो भी हो, यह एक अ्रच्छा स्थान है आपका निरीक्षण किया जायेगा। परन्तु प्रथम जहां पर सहज योग फल-फूलकर समृद्ध हो सकता निर्णय आपका अपना होगा। आप स्वयं ही निश्चय है । निश्चित्, आप खोज रहे हैं। कदाचित्, प्रापको ब्राइटन में ज्ञान न हो कि आप क्या खोज रहे हैं। परन्तू यह बात निश्चित् है कि श्राप अपनी वर्तमान स्थिति से था। यह भी वचन दिया गया था कि एक दिन करेंगे कि आप उस पवित्रतम की खोज कर रहे हैं अथवा कुछ निररथंक आडम्बर को खोज रहे हैं । यदि आ्प वास्तविकता श्रोर सत्य की खोज कर रहे हैं तो केवल आपका ही चयन किया जायेगा, केवल आप ही ईश्वरीय राज्य के नागरिक होंगे । आपको सहजयोग के सम्बन्ध में पूर्व परिचय होगा। सह + ज= यह 'योग अर्थात् 'देवत्व से मिलन जिसके आप उत्सुक हैं, आपके साथ ही पेदा हुआ है । यह आप के अन्दर वर्तमान है हर एक ने कहा है"उसको अपने स्वयं के अन्दर खोजो" क्राइस्ट ने भी यही कहा है । इसका अर्थ है कि अ्रपको खोज-खोजना पूर्ण शान्ति थी, सम्पूर्ण शान्ति। और शान्ति में से है । यह आपकी स्वतत्त्रता है जिसको कोई जागृति ्रई, शान्ति को जागृत किया गया। यह छीन नहीं सकता । इसकी आपको याचना करनी शान्ति "परब्रह्म" कही जाती है। 'सहज' का अर्थ है 'साथ जन्मा । अब हमें देखना है कि ईश्वर क्या है शरौर मैं उसके बारे में क्या चर्चा कर रही है। प्रारम्भ में, मुझे खेद है कि निमंला योग १६ लोL/. मैं संस्कृत भाषा का प्रयोग कर रही हैं। इसका यह धा, यदि उसे काय करना था। यदि आपके हृदय में अर्थ नहीं है कि यह कुछ हिन्दू है। आपको ऐसे केवल एक इच्छा है, यह काफ़ी नहीं है । हमें इसे विचारों से मुक्ति पानी है भारत में लोगों ने कार्यान्ति करना होगा बहुत अ्रधिक ध्यान, तप किया है । उनको प्रकृति और समाप्त हो जाये गी। अतः इस इच्छा ने आकृति से लड़ाई झगड़े की आवश्यकता नहीं पड़ो, लड़ाई हमें आज यहाँ करनी पड़ रही है इस स्थान जिसको हम बाइकिल में होली धोस्ट और संस्कृत तक आने में । वहां का वातावरण इतना श्रष्ठ भाषा में आदि शक्ति के नाम से जानते हैं । औ्र ऊष्ण ध्यान कर सकते हैं। उनको प्रकृति से इतना लड़ाई । नहीं तो यह इच्छा उठेगी तत घारण को हम कह सकते हैं कि अ्रस्तित्व में आई जसी है। लोग पेडों की छाया में बै 5कर यह इच्छा फिर अपने में से दो शऔर शक्तियों की रचना करती है । उनमें से एक काम करने के लिये भगड़ा नहीं करना पड़ता । उनके पास ध्यान के तथा दूसरी अपनी संरचना के विकास हेतु । अतः লिए पर्याप्त समय होता था द्वारा ही बहुत-सी वस्तुयं खोज ली हैं जिसके लिये इस प्रकार ये तीन शक्तियों की संरचना की गई। उन्होंने संस्कृत भाषा की प्रयोग किया है। तो यह परब्रह्म अरथवा सम्पूर्ण शान्ति जागृत के सम्बन्ध में अधिक विस्तार से चर्चा नहीं की । हो गई क्योंकि यह स्वयं स्वतः ही जागृत ही गई; बहुत से शास्त्रों में पिता के सम्बन्ध में च्चाकी है जसे हम सोते हैं शरौर फिर अ्पने आप ही स्वयं वे होली घोस्ट के सम्बन्ध में चर्चा नहीं करते, जाग जाते हैं। और तब यह शान्ति 'सदाशिव बन विशेषतया जबकि ईसा मसीह की माँ स्वयं होली गई । अब यह शान्ति अरथवा यो कहिये कि धोस्ट की अवतार थीं-क्योंकि उन्होंने अपनी 'सदाशिव' का उदय हुआ, कि उन्होंने इच्छा की, माताजी के जीवन को खतरे में नहीं ड। लना चाहा। उन्होंने संरचना करने की इच्छा को । जिस प्रकार उन्होंने तो इतना भी नहीं कहा कि ये तो होलो पौ फटते प्रभात की अररुणिमा को देखकर हम कह घोस्ट की अवतार हैं । यदि लोगों ने माता को सूली सकते हैं कि सुचह का सूरज उदय होने जा रहा है, पर चढ़ा दिया होता तो योशु अपनी सर्वनाश शक्ति उसी प्रकार जब इस इच्छा ने अपना प्रकटीकरण के साथ प्रकट होकर संसार को विध्वन्स कर देते । आरम्भ किया तो यह इच्छा, उनकी शक्ति बन गई परन्तु नाटक खेला जाना था प्रौर वह शान्त होकर और पृथक हो गई। अब जो भी कुछ मैं कह रही हैं वह आपके क्योंकि पिता तो केवल साक्षी थे । वे इस नाटक के लिये कहानो मात्र है [आपको इनमें विश्वास भी साक्षी हैं जो खेल होली धोस्ट खेल रही है । लाने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु मैं उस एक वह इस संरचना का आनन्द ले रहा है। अब वह स्थान पर पहेँच जाऊँगी जिस पर आराप विश्वास अकेला ही इस खेल का साक्षी रहा है। अतः वह कर सकते हैं । फिर आप क्रम से इस सिद्धान्त में अपनी संरचना द्वारा उसको रिझाने का प्रथत्न कर विश्वास कर सकते हैं। यह आपके लिये कोरी रही हैं क्योंकि सृष्टि रचना की पिता की इच्छा थी । । उन्होंने अपने घ्यान तीन शक्तियों ने कार्य करना आरम्भ कर दिया। जंसा कि हम जानते हैं बाइबिल में होलीधोस्ट रहीं । अब यह होलीघोस्ट हमारे लिये महत्वपूर्णं है केल्पना मात्र है। अरतः जब यह इच्छा शक्ति बन गई, इस शक्ति को है--इच्छा ( शक्ति प्रथवा महाशक्ति प्रथवा आदिश क्ति के नाम से पुकारा जाता है। इस गय्रादि शक्ति ने एक अस्तित्व और व्यक्तित्व धारण किया। ऐसा होना आवश्यक महालक्ष्मी । ये अतः उन्होंने इन शक्तियों की रचना की। इनमें प्रथम Desire) महाकाली, टूसरी क्रिया (Action) महा सरस्वती और तीसरी धर्म Sustenance) अथवा उत्कान्ति (Evolution) ( तीन शक्तियाँ मानव प्राणी की निर्मला योग १७ संरचना हेतु कियाशोल हुई और हम अस्तित्व में आपको जानकारी है यद्य पि आप अभी तक उस आये। यहाँ हम इस स्तर तक पहँचे कि जब हम ख्ोत तक नहीं पहुँच पाये हैं। इसका यही कारण इनके सम्बन्ध में च्चा कर सके । क्राइस्ट के समय है कि अराप जिज्ञासु हैं । में भी होली घोस्ट के सम्बन्ध में च्चा नहीं की जा सकती थी। हम इन मुबों के साथ क्या कर सकते थे ? प बताये उनको इस सम्वन्ध में किस तौन शक्तियों हैं। बाये हाथ की ओर आपका प्रेम ढग से समझाते ? यह सब तो प्रारंम्भिक स्थिति है, यही आपकी इच्छा करने की शक्ति है, जिसके थी। परन्तु आपको मालूम है उन्होंने कित नी गन्दगी हवारा हम औकॉक्षा करते हैं, जिसके द्वारा हम फैलाई। काफ़ी गन्दगी वहाँ है । अपने को धार्िक अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करते हैं। जब यह केहलाने वालों की बात लोग नहीं समझ पा रहे हैं इच्छा हमारे अन्दर नहीं रहती, अर्थात् जय यह वे किस प्रकार घर्मान्ध हो सकते हैं। धर्मान्धता तथा शक्ति हमारे भीतर विलुष्त हो जाती है, तब हम घामिकता परस्पर कट्टर विरोधी हैं। वे एक केसे भो विलुष्त हो जाते हैं । हो सकते हैं। इसका उदाहररण आप ईरान में पायेंगे । कहीं भी आप देखिये जहाँ लोग हठघमिता से पीडित है वे कितने अधामिक बन जाते हैं। क्यों अथवा साक्षी परमात्मा की जो हमारे भीतर हृदय कि धर्म प्रेम है और ईदवर भी प्रेम है और इन में स्थित है, प्रतिच्छाया है। दाहिने हाथ की र तेथाकथित "घामिक" लोगों में से एक ने भी ऐसा हमारी कार्य करने की शक्ति है । इन तीन शक्तियों प्रेम नही दश्शाया जसा कि इनको दशनाि चाहिये ने हमारी चेतना और परमात्मा के मध्य एक प्रकार था । न ही इन्होंने ईश्वर खोज का कार्य अपने हाथ का अवरण सा पेंदा किया है। इस आवरण का में लिया। परन्तु ये अन्य जनकल्यार के कार्य करते अस्तित्व भवसागर ( void) में हैं। हमारे जिगर अब आ्रापको] [विदित हो गया कि आपके भीतर केन्द्र में आत्मा है जो परमणिता परमात्मा की यथा घन संग्रह, दीर्घ विक्री (Jumbo sale) ( liver) ने इसको सहारा दिया है अ्र्थात् स्थिर हैं. आदि। ये ईश्य रीय खोज करने वालों के का म किया है और यही कारण है कि इन तीन प्रावरणों नहीं हैं। इस अवस्था में जब कि हमें ऐसे लोगों का ने हमें आत्मा से विल ग कर दिया है। हम उस आत्मा सामना करना पड़ता है जिनमें से कुछ ने तो धर्म को देख नहीं सकते और न ही अनुभव कर सकते को संस्थागत किया है तथा अन्य कुछ ने बम में है । हन इसे प्रस्यक्ष भी नहीं कर सकते । हम जानते अव्पवस्था फेल। ई है तथा नकली गुरु उपदेशक, हैं कि कोई न कोई य्वश्य है जो ज्ञाता है श्रोमद- तब हम वास्तव में पूणं रूप से हुताश हो भगवदगीता में यह क्षेत्रज्ञ के नाम से बरिणित है । जाते हैं। हम चकित हो जाते हैं और हमें जो क्षेत्र का परिज्ञाता है । सो हम जानते हैं कि वहां नहीं सुझता कि हमें क्या करना है क्योंकि एक सर्वज्ञाता है । वह आपके सम्बन्ध मे सब कुछ हम जन्मजात भक्त हैं। हमने ईश्वरीय खोज में जानता है। वह टेप रेकारडिग कर रहा है-जो भी त्रुटियाँ की हैं परन्तु हम निश्चित भक्त हैं। यदि पसमस्त कार्य आप करते हैं आपकी खोज, आपकी भक्त न होते तो आप भोज, नूस्य आदि आमोद जुटियाँ, अशान्ति तथा वे सत्र अन्य कार्य जो आ्रापने प्रमोद के साधनों में भाग लेकर ग्रानन्द भोग करते पुरन्तु नहीं, इन सबसे परे भी कुछ है, कुछ ऐसा में रखा गया है जहां त्रिकोणाकार अस्थि स्थित जिसका वचन है, कुछ ऐसा जिसको য়प अनुभव है कर सकते हैं, जिसके अस्तित्व के सम्बन्ध में हमारी इच्छा की अवशिष्ट ऊर्जा है । इसका अर्थ । किये हैं [और वह टेप रेकॉर्डर नीचे के भाग श्रीर से कुछडलिनी कहा जाता है । यह निर्मला योग १८ मh है कि जब समस्त सृष्टि का सृजन हुआरा, यह अधिकार प्राप्त व्यक्ति को देखती है, जिसके इच्छा की ऊर्जा-आदि शक्ति-समूची सृष्टि पास इसको उठाने की शक्ति हो । जिसमें उसकी रचना के पश्चात् यह समूची ही वना रहती ही भांति प्रेमभाव हो। तभी यह उठेगी । किसी है क्योंकि यह सम्पूर्ण है । इसको समझना सहज है चालाकी से नहीं- शीर्षसन से भी नहीं, अथवा बहुत ही सरल । आप कह सकते हैं-कल्पना किसी प्रन्य प्रकार के कार्य से या लोगों को पीटने कीजिये कि यहाँ प्रकाश है और यहाँ फ़िल्म है। से अथवा अन्य आविष्कृत कार्यों से । यह एक समस्त फ़िल्म की प्रतिच्छाया है परन्तु फिल्म स्वेच्छानुरूप वस्तु है अर्थात् सहज है । स्वेच्छा अखण्ड है। इसी भाँति स्वयं को वा ह्य में व्यक्त से ही यह उठती है। कल्पना कीजिये कि कोई करने के पश्चात् जो शेष रहता है वही अवंशिष्ट व्यक्ति मेरे पास आता है और कहता है कि ऊर्जा है, यही है कुण्डलिनी । इसका अर्थ है कि क्या आप जिम्मेदारी ले सकती हैं कि मेरी आप उस कुण्डलिनी की पूर्ण अभिव्यक्ति हैं। वह कुण्डलिनी का जागरण हो जायेगा । मेरा उत्तर शक्ति, वह इच्छा शक्ति है जिसकी भिव्यक्ति दो होगा-नहीं श्रीमान जी, मृझे खेद है । यह हो भी शक्तियों में होती है -दाहिनी हाथ की ओ्र की सकती है और नहीं भी हो सकती है। यदि आप शक्ति जो क्रिया शक्ति के नाम से भी जानो अत्यधिक तर्क नहीं करेंगे तो यह जाग्रत हो जायेगी। जाती है और केन्द्रीय शक्ति जिस को आपने एक स्तर तक पाया है और शेष शून्य (void) है यह वह शक्ति है जो आपकी एक-कोशिकीय जन्तु ( amoeba) से इस मानव देह स्तर तक उत्क्रान्ति के लिये उत्तरदायी है। क्यों ? तक वितक से क्या हो जाता है ? मैं बताती है कि तक वितक मेरा ग्रभिप्राय यह नहीं है कि आप तर्क न कर । प्रापको तर्क करना चाहिये । क्योंकि मैं जानती हैं से क्या होता है। आपके सामने समस्या हैं। आपको तक्क-वितक हम एक प्रश्न पूछते हैं, हम एक-कोीशिकीय प्रिय हैं । कोई चिन्ता न ही । परन्तु जब आप जन्तु (amoeba) से इस मानव देह, मानव प्राणी तर्क वितर्क करते हैं तो आप इस शक्ति को प्रयोग में स्तर तक क्यों प्रा गये ? कल्पना करों मेरे पास कुछ लाते हैं जो आप के दाहिने हाथ की तरफ़ है । सोच है [श्रौर मैं उन संबको एक स्थान विचार से क्या होता है ? इससे एक पीले रंग के पर एकत कर लेती हैं । तब कोई भी मेरे से पूछ पदार्थ की रचना होती है और इस पीले पदार्थ को सकता है कि मैं यह क्यों कर रही है ? तो मेरा उत्तर सामान्य शब्द में कहते है श्री अहङ्गार(EGO)। जब होगा कि मैं माइक्रोफ़ोन बना रही है । परन्तु यह आप सोच वितचार ब्रधिक करते हैं तो यह अहङ्गार माइक्रोफ़ोन में भी एक सूत्र है। इसको भी त्रिजली ऊपर उठ जाताहै कि दूसरी ओर स्थित प्रतिभ्रहड्कार की मृख्य घारा (mains) के साथ जोड़ा जाना (SUPER EGO) को दबाता है। यह आपके पूर्व जरूरी है। जब तक कि यह धारा के साथ नहीं संचित संस्कारों से अतो है। सो जब यह अहङ्कार जोड़ा जायेगा यह कार्य नहीं करेगा । यही हमारे प्रति अहङ्कार पर बैठ जाता है तो कुण्डलिनी कैसे साथ घटित हुआ है। ये तीन शक्तियाँ ग्रौर अवशिष्ट उठायी जा सकती है ? बयोंकि उसके चढ़ने के लिये शक्ति, जो कि इंच्छा शक्ति है, जो वही (मूलाधार में) कोई जगह कोई स्थान शेष नहीं रहता। दोनों का विराजमान है. वह आपके पुनर्जन्म की इच्छा सन्तुलन आवश्यक है । अत: तर्क वितर्क के साथ में रखती है। वह अपकी अपनी मां है । और जब कुण्डलिती जागरणा नहीं करा सकती। इसी कारण वह इसकी अ्रभिलाषा करती है तो यह क्रियाशील से मैं कहती है कि इस सम्वन्ध में मूझे देखने हो उटती है केवल उसी समय जबकि यह किसी (परखने) दीजिये । अभी आप वाद-विवाद न करें । बोल्ट र नट निर्मला योग १६ परम्तु फिर भी लोग नही समभते हैं । वे समझते हैं करती है और आपको शोतल वायु कि हमें चुनौती दो जा रहो है । सो मैं कहती हैं, में महसूस होने लगती है । भारतीय घर्म शास्रं के "आगे चलो ।" होता क्या है जब अराप वाद अरतिरिक्त-जहां इसे 'सलिलम्, सलिलम्" से वर्णन विवाद करते हैं ? विचार आपको दबाते रहते हैं । किया गया है अर्थात् यह शीतल वायु, लहर के यही कारण है कि आप तर्क वितको, वाद विवाद सदृश आपके पास पराती है। बाइविल में भी- अथवा पुस्तक पढ़कर कुण्डलिनी जागरण नहीं कर "शीतल वायु" से इसका वर्णन है। यत: समस्त सकते । अपनी हथेलियों शक्ति इच्छा की ही शक्ति है जो शीतल वायु के रूप में आदि-शक्ति की तीन शक्ति थों के रूप में प इसके लिये शुल्क भो नहीं दे सकति । इस उपक्त हुई है और यह सर्वव्यापी है जब यह का मूल्य चुकाना स्वंथा असम्भव है । परमात्मा के पास कोई दुकान नहीं है। वह दुकानदारी से और उनका स्पश करती है-ये सूक्ष्म केन्द्र नहीं जानता । न ही आप उसको व्यवस्थित कर चिंकित्सा विज्ञान में वरिणत हमारे शरीर में स्थित मकते । हम परमात्मा को व्यवस्थित नही कर सकते, लेकपस (plexus) केनद्रों के नीचे स्थित है - तब वह ही हमें व्यवस्थित करता है। सी किसी प्रकार आपको आत्म-साक्षात्कार हो जाता है। की संगठित वस्तु यह कार्य नहीं कर सकती । कुण्डलिनी ऊपर चढ़ती है उन के्द्रों के मध्य मै आपके समक्ष इस विपय पर व्याख्यान नहीं दे रही हैं और न ही आपका मस्तिष्क प्रक्षालन (brain- यह मवंथा बीज के अकृरित होते सदृश है। आप इसे भूमि में वो दीजिये और कुछ पानी wash) कर रही हैं । यह वास्तविकीकरण है जिस दोजिये । जैसा कि मैं कहती है प्रेम के जल से सित्रित को हमें खोजना चाहिये। यह घटना आपके भीतर करें, मैं आपको स्नेहसिक्त जल देती है. तब यह ही घटित होती है जिससे आपका उससे एकत्व हो पने यप ही करित एवं प्रस्फुटित हो जायेगा बीज आपके पास है तथा अंकुर भी आपके भीतर सहजयोगी हैं, न ही इस प्रका र किया जा सकता वर्तमान है और प्रत्येक होनी प्रवश्य है। जुषुव्ध होने प्रथवा क्रोध करने से संस्कार (Baptism) कराना है । उसके तालू की यह क्रियाशील अथवा क्रिया से यह क्रियाशील नहीं होती । आपको उसकी कुण्डलिनी को इसका भेंदन करना है तभी निश्चेण्ट रहना है । एक बोज के अकुरित एवं प्रसुटित होने में आप क्या प्रयास कर सकते हैं ? आप तो एक फूल को फल में भी नहीं बदल सकते हैं। वास्तव में कुछ प्रयास नहीं कर सकते । हम जो त ही अन्य प्रकार की इसके संदृश वस्तु। यह ऐसी करते हैं वह पृत हैं। जो कूछ मृत है हम उसे स्ततः संचारो (spontaneous) है कि यदि यह । र पके कोई मौहर नहीं जगेगी कि आप । जाये । है। एक सहजयोगी को अपना वास्तविक नामकरण तैयार है यह घटित वस्तु 1 तालु नहीं होती । आपकी किसी चेण्टा अस्थि (fontanel) को कोमल बनाना है और वह सहजयोगी बनता है। आप इसकी सदस्यता भी ग्रहण नहीं कर सकते, कुछ दूसरे मृत में बदल देते हैं । यही सब कुछ है। हमने आपके भीतर घटित नहीं हुई तो आ्राप सहजयोगी सजीव भी नहीं किया। यह एक सजीव प्रक्रिया नहीं है। जब तक कि यह घटित नहीं हो जाती तब कुछ है । समस्त सजीव कार्य स्वतः (निषचेप्टता भाव से) होते हैं । तक ग्राप खोज पथ पर है। बालकों जैसे सरल हृदय ত्यक्तियों में यह एक से किण्ड से भी कम समय में घटित हो जाती है। किन्तु आध्यारिमक दृष्टि से सो यह स्वतः उठती हैं-यह सहस्र्रार को स्पर्श आहत व्यक्तियों में यह घटित होने में बहत समय निर्मला योग २० लग जाता है। वास्तव में इस देश (इङ्गलेंड) में पहनकर एक पाखण्डी गूरु के बड़े शिष्य बन जाते मैने देखा है कि वहुत ही सुन्दर व्यक्ति पैदा हुये हैं हैं या कुछ ऐसा इसके समकक्ष। ऐसा करना अत्यन्त जो प्रतिभा-सम्पन्न, ईमानदार और विनम्र हैं सरल है पूर्वजन्म के भक्तों को यहाँ तथा अरमरीका में जन्म बनने के लिये, आपको अपने स्वयं का सामना लाभ का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । परन्तु वे अ्रधीर करता है । आपको अपने आपको देखना है और हो गये, और इस अर्धय्य्यता के कारण ही उन्होंने फिर उस सुन्दरता को, जिसका आप में उदय होता अपना सर्वनाश करने की कोशिश की-इस है आप उसे देख सकते हैं, यह सत्य है जो आपको प्रकार आपने उन देहिक तथा मनोवैज्ञानिक केनं्द्रों पाना है और मूझे देना है । (चक्रों) को विनष्ट कर लिया है। इन केन्द्रों में कुछ अल्प-समय के लिये समस्या २हेगी । रहेगा ही क्योंकि प्राप इसी के लिये पेदा हुये हैं । यह बह उत्रान्ति है जिसको धटित होना है । आप को अपनी आत्मा को जानना है। ग्रापको इसे मरी कार्य है। अतः यह मुझे करना है। साक्षात्कार पाना चाहिये। । ऐसा है त ? परन्तु एक सहजयोगी 1 इसके लिये आप आभारी [अंनुभव न करें क्यों कि यह मैरा साधारण काम है। आप कह सकते हैं कि यही मेरी आजीविका है । साक्षात्कार कराना परस्तु यह तो पाना आपका काम हैं क्योंकि इसी के लिये तो आप यहाँ पर हैं। इसमें अरभार का कोई प्रश्न ही नहीं यह उद्दण्डतापूर्वक मांगने की विधि नहीं है है यह प्रेम है । केवल प्रेम । मूर्े आप से प्रेम वरन् याचना की विधि है । वे धन्य हैं जो विनम्र करना है और आपको हैं। कहा है कि विनम्रता की आ्वश्यकता है, यह बढ़ता है, निकलता है। उद्दण्डता एवं अहङ्कार की नहीं। यदि आ्प मेरे सिर पर चढ़ कर कहें कि "हमें आत्म-साक्षात्कार दो" तो मूझे यह कहना चाहिये, कि मैं वह नहीं हूै जो आपको प्रदान कर रही हैं बल्कि ये आप हैं जो इसे पा रहे हैं। जसे गङ्गा नदी में, जो बह रही वह प्रेम मुझ से पाना है। मैं आपको बता रही है कि इसको कसे पाना है। परन्तु हमारा मानव प्रेम, जेसा कि [प्ाप ढेखते हैं, इतना आक्रामक है कि हम किसी को भी जो कहता है कि "मैं प्रेम करता है नहीं समझ पाते हैं । हैं, हम भाग जाते हैं। "आ आप मुझे प्रम करते है, यदि उसमें पत्थर फेंकते हैं, तो आप उसमें से अच्छा मैं भी दौड़ जाऊँ क्योंकि प्रेम का अर्थ जल नहीं ले सकते । आपको एक बड़ा (कुम्भ) समझा जाता है 'स्वत्व | मानव प्रेम का अर्थ है लेना है, एक खाली कुम्भ। इसको गङ्गाजी के बहुते प्रभुत्व । यह आक्रामक है। परन्तु यह सहजप्रेम शुद्ध हुये जल में डुबाना है। यह स्वतंः भर जायेंगा। प्रेम है, जो आपको आराम देता है, जो आपको एक अतः यह आपकी (विनत्र) प्राथना है जो सफलता नये चेतना-स्तर में उठाता है । जिसके द्वारा आप । अपनी उँगलियों में पूर्ण उद्घोधन का अनुभव करते हैं। आपके हाथ बता सकते हैं कि आपके किस- किस चक्र में पकड़ अथवा वाधा है तथा दूसरो प्राप्त करती है । यह सिद्धि आपको अर्जन करनी है उसके बिना आप प्रसन्न नहीं हो सकते । निस्सन्देह लन्दन में बहुत-से सहजयोगी हैं किन्तु हम चीटी की गति से उन्नति कर रहे हैं। इसका कारण वास्तविक है । आप देखते हैं अन्य संस्थाएं फेल रही हैं। ग्राप उन्हें धन दें [श्रौर आपको विचारगोष्ठी में बता ने जा रही है । आप बड़े मन्त्री प्रथवा ऐसे ही अन्य उच्च पद पर कदाचित् ये समस्त सहजयोगी भी आप को बता आसीन हो जाते हैं। आप गले में एक माला सकते हैं। के भी। सहजयोग की अगरिणित आशीर्ष हैं जिनको मैं निमुला योग २१ मैं नहीं जानती आपकी समस्यायें क्या हैं । यदि लिये, जो आपकी आत्मा है । इसके लिये पपकी कोई समस्यायें या प्रश्न हैं तो मैं आप से आपको तत्पर रहना चाहिये। और इस विषय उन पर बात करूगो अधिक समय नहीं । में कुछ भी सन्देह नहीं होना चाहिये। क्योंकि वह कथोंकि सहजयोगी इस से चिन्तातुर हो जाते वस्तु सं्देह योग्य नहीं है । किन्तु फिर भी यदि हैं परन्तु | इसका कारण यह है कि प्रथम तो उन्होंने औपक मन में सन्देह है तो मैं सहर्ष उसका निवारण बहुत प्रश्न किये हैं अ्रर इसका स्मरण कर वे करू गा। कभी-कभी हमें बहुत सुन्दर प्रश्न प्राप्त ल्जित होंगे। दूसरे, वे उत्तजना अनुभव करते हैं होते हैं । मैंने देखा है कि कुछ व्यक्ति वास्तव में कि ओप साक्षात्कार क्यों नहीं पा रहे हैं. प्रश्न बहुत सुन्दर प्रश्न करते हैं जिनसे पता चलता है कि क्यों पूछते जा रहे हैं ? इससे अच्छा होगा कि समस्या क्या है। इस लिये मैं प्रश्नों का स्वागत इसे पा ल । यह तो आपके हाथ में है । तीसरे, करती हूं। किन्तु आप एक मूर्ख की भाँति केवल कभी-कभी वे देखते हैं कि हम व्यर्थ के प्रश्न पछे सन्देह ही करते ने बेठे रहें, यह भी एक बात है । चले जा रहे हैं. जिनका लाभ न तो उनको ही सहजयोग एक महान् विषय है। इसको सम्पूर्णता है और न ही औरों को । if से व्याख्या करना बड़ा ही कठिन है। इसी के माध्यम से आप भौतिक, मानसिक, भावात्मक और सो एक बात आपको स्मरण रख नी है कि आध्यात्मिक एकता प्राप्त करते हैं, क्योंकि समस्त यहाँ पर कुछ वेचा नहीं जा रहा है। आपको बदले केन्द्र क्रियान्वित होते हैं, और आपके जीवन के में कुछ धन नहीं देना है यह कुछ वस्तु है जो चारों र्पों अ्र्थात् आपकी पूर्णंता, में प्रकाश लाते प्रवाहित हो रही है। यह कुछ वस्तु है जिसको हैं जिससे आ्राप सामूहिक चेतना में अपनी मूल्यवान वास्तव में इस दूनिया में कोई नहीं जानता । कुछ वस्तु है जो सुन्दर है, प्रवाहित हो रही है । यदि संक्षप में कहने से यह वाक्य कुछ जटिल-सा हो प कहीं रमणीय दश्य देखते हैं तो आप उसकी गया है यदि आपको इस सम्बन्ध में कोई समस्या ओर वस देखते ही रहते हैं। यदि आप इस दृष्टि- है तो आप विना किसी भय एवं संकोच मुझसे पूछ कोण के साथ पराते हैं, केवल अपनी आँखें खोलने सकते हैं। मैं आपकी माँ हैं । के लिये, आप अपनी आँख खोलिये, इसे 'उन्मेश' कहा जाता है, उस सौंदर्य को निहारने के भूमिका का अनुभव कर सके। गहन विषय को भगवान आपको सदैव सुखी रखें । बा निर्मला योग २२ श्री महाकाली के १०८ नाम १ महाकाली २ कामधेनु २६ मधुकंटभहन्तरी २७ महिषासुरघातिनी २८ रक्तबीजबिनाशिनी ३ कामस्वरूपा वरदा ४ २६ नरकान्तका जगदानन्दकारिणो ५ू ३० उग्रचण्डेश्वरी ६ जगत्जीवमयी ३१ क्रोधिनी ७ वजूकंकाली ३२ उग्रप्रभा शाग्ता ३३ चामुण्डा सुधासिन्धु निवासिनी ६ ३४ खड्गपालिनी ३५ भास्वरासुरी ३६ शत्रुमदिनी ३७ रणपण्डिता १० निद्रा ११ तमसी १२ नन्दिनी १३ सर्वामन्दस्वरूपिणी |क ३८ रक्तदन्तिका १४ परमानन्दरूपा ३६ रक्तप्रिया १५ स्तुत्या कपालिनी ४० ४१ कुरुकुलविरोधिनी ४२ कृष्णदेहा ४३ नरमुण्डलो ४४ गलदरुघिरभूषण ४५ प्रेतनूत्यपरायरणा लोलजिह्वा १६ पद्मालया १७ सदापूज्या १८ सर्वप्रियंकरी १६ सर्वमङ्गला ा २० पूर्णा २१ विलासिनी ४६ २२ अमोघा २३ भोगवती २४ सुखदा ४७ कुण्डलिनी नागकन्या १ ४९ पतिव्रता ५० शिवसंगिनी २५ निष्कामा निमंला योग २३ ५१ विसंगी ५२ भूतपतिप्रिया ५३ प्रेतभूमि कृतालया ५४ देत्येन्द्रमथिनी निशुरुभशुम्भसंहन्त्री ८१ वह्निमण्डलमध्यस्था ८० ८२ वीरजननी ८३ त्रिपुरमालिनी ८४ कराली ५५ चन्द्रस्वकत्रा ८५ पाशिनी ८६ घोररूपा ८७ घोरदंष्ट्रा प्रसन्नपद्मबदना ५६ ५७ स्मेरवक्त्रा ५८ सुलोचना ५६ सुदन्ती ६० सिन्दूरार्णमस्तका ६१ सुकेशी ६२ स्मितहास्या चण्डी ५८ ८६ सुमति &० पुन्यदा तपस्विनो ११ क्षमा ह२ ६३ महत्कुचा ६४ प्रियभाषिणी ६५ सुभाषिरगी ६६ मुक्तकेशी ६७ चन्द्रकोटिसमप्रभा ह३ तरंगिनी ४ शुद्धा C५ सर्वेश्वरी C६ गरिष्ठा ७ जयशालिनी अगाधरूपिरणी ६८ &८ चिन्तामरिण अरद्धतभोगिनी ६६ मनोहरा मनोरमा T& ७० १०० योगेश्वरी १०१ भोगधारिणी वश्या ७१ ७२ सर्वसौन्दर्यनिलया १०२ भक्तभाविता रक्ता ७३ १०३ साधकानन्दसन्तोषा ७४ स्वयम्भुकुसुमप्राणा ७५ स्वयम्भु कुसुमोन्मदा ७६ शुक्रपूज्या १०४ भक्तवत्सला १०५ भक्तानन्दमयी १०६ भक्तशंकरी १०७ भक्तिसंयुक्ता १०८ निष्कलंका शुक्रस्था ७८ शुक्रात्मिका ৬৪ शुक्रनिन्दकनाशिनी ७७ निर्मला योग २४ त्यौहार गुरुपूर्णिमा रक्षाबन्धन, नारियल पूरिगमा श्रीकृष्णा जन्माष्टमी (कालाष्टमी) श्री गणेश चतुर्थी श्री गौरी २४ जुलाई ८३ २३ श्रगस्त ८३ ३१ अगस्त ८३ १० सितम्बर '८३ १३ सितम्बर '5३ पूजा अनन्त चतुर्दशी नवरात्रि पूजा २१ सितम्बर ८३ '८३ से १५ श्रक्तूबर ও अव्तूबर १६ अक्तूबर '८३ दशहरा दीपावली ४ नवम्बर ६३ २४ नवम्बर '८३ १६ दिसम्बर '3३ गुरुनानक जन्मदिवस (गुरुपवं श्री दत्तात्रेय जयन्ती क्रिसमस दिवस (श्री यीशु जयन्ती) २५ू दिसम्बर '८३ १. पाठकों से श्रतुरोध है कि वे समाप्त होने पर निर्मला योग के चन्दे की राशि समय से पहले ही भिजवाने का कष्ट करें । चैक व ड्राफ्ट "निर्मला योग" के नाम तथा नई दिल्ली में भुगतान योग्य हों २. [आगामी १६८४ वर्ष की "सहज डायरी" प्रकाशित करने का विचार है । उस में परमपूज्य माता जी की उक्तियां और प्रवचन तथा समस्त सहज केन्द्रों व श्राध्रमों प्रादि के पते व जानकारी प्रस्तुत होगी। पाक केन्द्रों व आश्रमों के पते, प्रत्येक केन्द्र से दो-तीन सहजयोगियों के पते, सुझाव तथा प्रत्येक केन्द्र के लिये भ्रनु मानित आवश्यक डायरियों को प्रतियों की संख्या की सूचना १५ अगस्त १६८३ से पहले निम्न पते पर देने की कृपा करें : श्री मोहन सराफ़ ११. वृष्दावन, मुग़ल लेन, शीतला देवी मन्दि र मार्ग (पूर्व ) महिम, बम्बई-४०००१६ ( भारत) || | | | | |||||| ---------------------- 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt fनिर्मला योग द्विमासिक वर्ष 1 अक 6 माच-अप्रेल-1983 पे बा ৪ॐ त्वमेव साक्षात, श्री कल्की साक्षात श्री सहस्त्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निमला देवी नमो नमः ।। प पन प 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt परमपूज्य श्री माताजी, आपने हमको सहजयोग दिया । आरपको हम पर कितनी कृपा है। हम कितने भाग्यवान् है। हम सबको आपने सहजयोग में सिद्ध होने का आशीर्वाद दिया है। आपकी कृपा के बिना, इस जगत में कुछ भी नहीं होता है हमारी यही इच्छा है कि हमारा व्यवहार व बर्ताव ऐसा हो जिस से आप सदा प्रसन्न रहें। सम्पूर्ण विश्व पर आपकी क्षत्र छाया फैलो है और सवंत्र प्रेम रस बह रहा है । हम सहजयोगी जन उस प्रेम रस की एक-एक बुँद बननা चाहते हैं । कृपा करके हम सबको आप सद्बुद्धि प्रदान करें । जिस से हम सभी परिश्रम करके सहजयोग बढ़ायें, जिस से इस चराचर विश्व में आपके प्रम की सर्व मङ्गल धारा हर मानव तक पहुँचा सक, जिस से मानव मात्र पूनीत और घन्य हो सके | हे करुणासागर, त्रैलोक्य स्वामिनी प्रेमस्वरूपा आदिशक्ति गौरी माता तथा महालक्ष्मी, शरपके निरन्तर ध्यान करने के लिए आप ही हमें सुबुद्धि प्रर अविचल श्रद्धा दें । जय श्री माता जी श्रीमती सराफ़ अशुद्धि संशोधन गत जनवरौ-फ़रवरी १६८३ अंके में पृष्ठ ६ अमृत-वाणी (१) के अन्तर्गत कृपया निम्न संशोधन कर ले : शुद्ध धूर्णन revolving अशुद्ध घूर्णन revaluing त्रुटि के लिये खेद है । 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt सम्पादकोय तयाऽऽत्मभूतया पिण्डे व्याप्ते संपूज्य तन्मयः । आवाह्याच्चादिषु स्थाप्य न्यस्ताङ्गं मां प्रपूजयेत् ॥२४॥ उद्धवगीता पृ० ३२६ परमात्मा के उस रूप को जिसे साधक अत्यधिक पसन्द करता है, मानसिक रूप से एकरूपता लाकर अपने को समर्पित करना ही पूर्ण साधना है । भगवान श्री कृष्ण ने उक्त इलोक में यही विधि पूजा की बताय है । आज परमपूजनीय श्री माता जी के साक्षात् निर्मल रूप में अपने आपको विलीन कर देना ही साधक का परम लक्ष्य होना चाहिए । निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र प्रतिनिधि कनाडा :श्री मार्क टेलर श्रीमती क्रिस्टाइन पैट्ू नोया २२५, अदम्स स्ट्रीट, १/ई बर कलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. १६५० ईस्ट फ़िप्थ एवेन्यू वैन्करूवर, बी.सी. कनाडा- वी ५ एन. १ एम २ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमॅशन सर्विसेज लि., श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन बोरीवली ( पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ १६० नाथ गावर स्ट्रीट लन्दन एन.डब्लू. १२ एन.डी. श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० पृष्ठ इस अक में १. सम्पादकोय २. प्रतिनिधि टे ३ ३. सहज जीवन कंसा हो व ध्यान कसे करें ? ४. परमपूज्य माताजी के अंग्रजी पत्र का हिन्दी रूपान्तर ५. परमपूज्य माताजी द्वारा ब्राइटन में दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर ६. श्री महाकाली के १०८ नाम १४. १६ २३ ७. एक सहजयोगी का पत्र कवर पृष्ठ दो ८. अशुद्धि संशोधन &. त्योहार कवर पृष्ठ दो कवर पृष्ठ तीन निर्मला योग २ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt ा सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करें ? ऐसा ही समझ लोजिये कि प्राप जब बचपन पको दादर में मैंने बताया था कि सहज- योग में पहिले किस प्रकार से निर्विचार की समाधि को छोडकर जवानी में आ जाते हैं, तो आपकी लगती है । तदात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो जवानी के जो interest हैं - श्रपकी नोकरी, सकता है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। धन्घा, बीवी-बच्चे लेकिन तदात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का interest (रुचि) ही बदल जाता है । उसी में आपका interest आ जाता है आपके बाकी के जो कुछ भी शौक हैं, वो गिरते जाते हैं, ग्रनुभूतियाँ गिरती जाती हैं तदात्म्य को पाते ही मनुष्य की अनुभूति के साथ और नई अनुभूतियों की ओर आपकी दष्टि जाती कारण वो सालोक्य और सामीप्य की ओर उतरना है । या इस प्रकार समझ कि एक मनुष्य को गाने नहीं चाहता । माने ये कि जब आपके हाथ में में रुचि नहीं है और किसी तरह से उसको गाने में चैतन्य की लहरियाँ बहने लग गई और जब आ्ाप रुचि हो गई-शास्त्रीय सङ्गीत में उसे रुचि हो गई, को दूसरों की कृण्डलिनी समझने लग गई परौर तब फिर उसे कोई सी भी प्रशास्त्रीय सङ्गीत की जब आप दूसरों की कूण्डलिनी को उठा सके तब महफ़िल हो, बहां मजा नही आने वाला। उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरों की कुण्डलिनी देखें गऔर अ्रपनी कुण्डलिनी को सम झे जानी चाहिये । और बास्तविक, वाकी और जो अपने चक्रों के प्रति जागरूक रहे और दूस रे के भी भी आदतें हैं या जो कुछ भी शौक हैं वो तो आपके चक्रों को समझता रहे । उसी प्रकार सहजयोग में आपकी हालत हो अन्दर घीरे-धीरे आती हैं, प्रयत्न पूर्वक अाती हैं । अगर आप प्राकाश की ओर देखियेग, बादल इसके कारण वो रुचि आपके अन्दर बहुत अच्छी हों तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह से चिपक जाती है। हालांकि सहज-योग से तरह की कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि आपके अन्दर क्रान्ति हो गई है - आप एक अब आपका चित्त कुण्डलिनी पर गया है, आपको awareness (चेतना) में, एक नई चेतना में अये कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो हुए हैं, आपको वाइब्रेशन (vibrations) समझ कुछ भी देखना है, जो कुछ सामीप्य है, वो जान में ग्राते हैं, आपक्ो दुसरों की कूण्डलिनी दिखाई पड़ेगा । कुण्डलिनी के बारे में interest जो है। बो देती है, आप में से बहुत लोग जागृत भी कर सकते बढ़ जाता है । बाकी के interest अपने आप ही हैं। आप बहत-से लोग पार भी कर सकते हैं । लुप्त हो जाते हैं। परमपूज्य श्री माताजी द्वारा भारतीय विद्या भवन, बम्बई में २७ मई, १९७६ को सहजयोगयों को दिया गया उपदेश । न ये हजारों लोगों को आपते ठीक भी किया है। नई निर्मला योग ३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt शक्ति में आपने पदार्पण प्लावित हैं । किया है और इससे आप स्वच्छता से रहना और अपनी physical side ठीक करना। लेकिन इसके लिये मैने एक चीज़ का कहा है, जैसे कहते हैं कि सबेरे सवको bathr0om (शौच) लेकिन यह सब करने में एक हो बात का दोष रह गया है कि आरापने कोई भी प्रयस्न नहीं किया। बगेर प्रयत्न के ही सब स्वयं हो गया। इसके ही जाना चाहिये, शरीर साफ करना चाहिये। सहज कारण हो सकता है बहुत-से लोग जो कि सहज-योग में वाइब्र शन पा भो लेते हैं, ऊँचे उठ भी जाते हैं, तो भी उनका चित्त परमात्मा की ओर, आत्मा की आप बड़े पहुँचे हुए हों. आप कहें 'हमें नहीं ओर, कुण्डलिनी की ओर नहीं रहता है और अब भी बो चित्त वार-वार, गलत जगह पर जाता पानी में बैठना चाहिये । आप लोगों को यह आदत रहता है । योगियों के लिये सोने से पहले पानी में बैठना पाँच मिनट अत्यन्त प्रावश्यक है। वो चाहे कोई भी हो । पकड़ता- इससे मतलब नही है । आपको ५ मिनट लगे इसलिये मैं जबरदस्ती बैठती है कभी-कभी कि चलो मैं भी पानी में बैठती हूं, तो मेरे सहज योगी बैठेंगे । यह आदत बहुत ही श्रच्छी है। पुछा थ्ा कि पाने के बाद क्यो करता है ? पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम आवश्यक चीज है, कि पाने के बाद देना हो होगा। नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं । आपने एक पाँच मिनट पानी में सब सहज योगियों को बैठना चाहिये । फोटो के सामने दीप जलाकर के, ९ औ्र देने के बक्त में एक बात-सिर्फ एक छोटी कुमकुम वग़ राह लगाकर के, अपने दोनों हाथ रख सी बात याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिसे मन से, जिस बुद्धि से, मानें इस पूरे व्यक्तिर्व से, आप इतनी जो Problem solve (समस्यायें हल) हो जायेंगे. वहुत सुन्दर होनी चाहिये। होना चाहिये। शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी चाहिये । अगर आपको कोई बोमारी है- बहुत-से सह जयोगियों के ऐसा भी होगा कि उनके जी है, औधे से ज्यादा पकड़ना खत्म हो जायेगा । अन्दर कोई शारीरिक बीमारी है-तो सहजयोग से पहले तो वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझ यह हम लोगों का सहजयोग दिन का काम है, रात बीमारी ठीक होनी चाहिये. वो बीमारी ठीक होना चाहिये । लेकिन सहजयोग के बाद में इनका चित्त नहीं रहेगा बोमारी को ओर जो हो 'अ्ररे ही करीबन १० वजे तक सबको सो जाना चाहिये । जायेगा ठीक, चलो सब ठीक है। ये बात रलत हैं बजे के बाद सोने की कोई बात नहीं। सवैरे को कोई-सी भी जरा-सी भी तकलीफ़ हो जाये आप फीरन वहाँ हाथ रक्ख, अपनी तवियत ठाक कर सकते हैं । अपनी physical side शारीरिक भाग) बहत साफ रख सकते हैं । बहुत ज्यादा के ध्यान करना चाहिये । सबेरे ध्यान में बेठना उसमें कुछ करने की जरूरत नहीं । स्नान करना, चाहिये। जैसे कि हमारे यहाँ हम लोग सवेरे उठ कर दोना पर पानी में रखकर सब सहजयोगियों को बैठना चाहिये । आपके आधे से ज्यादा चीज दे रहे हैं. वो स्वयं भी आपका शरीर स्वच्छ अतुपम अगर आप यह करें । चाहे कुछ हो जाये, आपके लिये पाँच मिनट कुछ मुश्किल नहीं हैं । सोने से पहले पानी में सबको बैठना चाहिये। इससे आपका सवेरे के time (समय) में जल्दी उठना चाहिये। का नहीं, इसलिये रात को जल्दी सोना चाहिये । ६ बजे सोने की बात नहीं कह रही मैं, लेकिन १० जल्दी उठना चाहिये। सबेरे के time में जल्दी उठकर के, नहा धोकर निमंला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt करके अपना मुंह धोते हैं प्रोर सालों से धोते आा रहे हैं, हर साल धोते हैं, जिन्दगी भर धोते रहे, लिया, या मैं बहुत वड़ा भारी कोई सन्त, साधु है, उसी तरह हर मनुष्य को सवैरे उठकर के-सहज महात्मा हैं, तो समझ लीजिये तो वो गया-सहज योगी को चाहिये कि वो ध्यान करे। यह आदत योग से गया। अत्यन्त न गरतापूर्वक अपने हृदय की लगाने की बात है। लेकिन मैंने देखा है कि कई ओर ध्यान करके, नत-मस्तक होकर, फोटो के लोग, चार बजे या पांच बजे उठना, उनको बहुत सामने दोनों हाथ करके शान्तिपूर्वक permission मुश्किल होता है । उसका कारण एक है। मनुष्य (आज्ञा) लेकर के बैठे । की मैंने बहुत study (अध्ययन) किया है, उसकी बारीक चीज बहुत समझी हैं। बड़ा मजी आता है उसको study करने में मुझे। वो अपने साथ किस वेक्त भी क्षमा मांगकर कि हमसे अ्गर कोई तरहू मे भागता है, वो अपने साथ ही किस तरह से arguments (दलीलें) देता है, वो देखने । इस तरह की प्रार्थना करके - जिन्हों से लायक चोज है, मनुष्य की । अपनी ही नाक कटाने के लिये खुद ही वो explanations (सफाई) खुद ही केसे देता रहता है। बो इस प्रकार कभी-कभी होता है, कि जेसे "हम तो सवेरे जल्दी उठ ही नहीं सकते, मां !" भई ! कितने बजे सोते हो रात को? "बारह बजे, पर मैंने तय किया था कि चार ब जे उठंगा ।" हो ही नहीं सकता। ले किन एक नहीं होता। यह सवाल पूछना वहुत गलत बात है। दिन प्राप जल्दी सोयें भौर एक दिन आप उठ, हेर मिनट हालत में तो आप जल्दी सौ ही जाय गे, औप जग करिये । पाँच-दस मिनट आप एकाग्रता से आप नहीं सकते । दो दिन आप ऐसा कर लीजिये, शरीर ऐसा है, उसको आदत लग जायेगी । किसी ने यह सोच लिया कि मैने बहुत पा बात-बात में क्षमा माँगनी पड़ती है। सो, उस गलती हो तो उसे माफ़ी करके घ्यान में आप हमें उतारिये हमने बे र किया है, सबको माफ़ कर देते है और हमने अगर किसी से बैर किया है, उसके लिये हमें माफ़ कर दो। अत्यन्त पवित्र भावना मन में लाकर के अर अप ध्यान में जाय करके अ्रात्मा की ओर ध्यान कर । तुम । अँख वन्द अब कितने मिनट करे ? इससे को ई मतलव आप चाहे पाँच मिनट करिये चाहे दस इयान कर नतमस्तक होक र के अ्राप ध्यान कर । सबेरे जल्दी उठने से, सवेरे के time में receptivity (ग्रहण-शक्ति) उ्यादा होती है मनुष्य पर ध्यान करने से पहले-इसको समझ ले की। और इतना ही नहीं, उस बक्त में ससार में ध्यान करने से पहले, जहां बेठ रहे हैं, उस प्रासन बहुत अत्यन्त सुन्दर प्रकार से चेतऱ्य भरा रहता है। में बन्धन दें। अपने को बन्धन दे. अपने शरीर को बन्धन दे । सात मर्तबा अपने शरीर को बन्धन दे । स्थान को बन्धन दें, फोटो को बन्धन दे । बो तो हो गया mechanical (यन्त्रवत् ) बाहर करने का लोग तो यूं-यं कर लेते हैं, हो गया तो शरीर की दृष्टि से मैंने आपको बताया और दूसरा यह कि सबेरे उठकर ध्यान करना। ध्यान कसे व्योंकि कुछ अब ध्यान कैसे करना है, सोचे ! काम खत्म । ऐसी बात नहीं है। करना-सवरे उठकर ? विचारपूर्वक अत्यन्त श्रद्धा से जिस तरह से । पूजा में बेठे है, प्रत्यन्त श्रद्धा से ओर मोन रहकर बड़े ही नत-मस्तक होकर के, अपने को हृदय में नत कर लें । पहली चीज है नत करना Humble down yourself(स्वयं को नम्र कर ) । के ओर बन्धन दें। उस वक्त में, ऐसे नहीं जैसे पूजा ५ू निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt का में लोग कहते हैं कि 'भई ये ले आ्रा, बो ले प्रा', इसलिये मैंने कहा था कि हृदय में नत मस्तक हों और चित्त जो है, सहस्रार की ओर ले जाकर आत्मा की ओर समर्पित हों । विचारपूर्वक, आात्मा की ओर समर्पित हों । इस तरह से नहीं। और उसके बाद अपने मन को बन्धन द अब मन कहां होता है? किसी ने आज तक मुझ से नहीं पुछा कि 'मां, मन कहाँ होता है ? मन यहाँ होता है, यहां उसकी शुरूआत हैं-माने विशुद्धि आ्रात्म तत्व जो है, वो पत्रित्रता है-पूरी निर्मल चक ओर आज्ञा चक्र को बहुत अच्छी तरह बन्धन पवित्रता कहिये । उसकी ओर नजर करें । वो दें । और यह विचार करें कि 'प्रभु ! हम तेरे ही बन्धन में रहें, हम पर कोई बुरा श्सर न आाए। अत्यन्त नत-मस्तक होकर । और उस वक्त में यह कारण आप आत्मा से दूर हैं। आत्म-तत्त्व का सोचकर कि हम साक्षी हैं और सब चीज़़ से हम विचार करें । और यह त्म -तत्त्व प्रेम है । अनेक अलग हटकर के, हम निर्मल है, उस चीज से, हम बार इसका विचार कर । यह बहुत बड़ा विचार है उससे अछुते हैं । सब चीज़ से अपने को हटा करके और आप बैठ रहे हैं । आत्म तत्त्व का essence (सार) দया है ? पूर्णंतया अलिप्त है । किसी भी चीज़ में लिप्त नहीं है। जो भी चीज आपसे लिपटी हुई है, उसी के आत्म तत्त्व प्रेम है । बहुत, अनेक धर्म संसार में संस्थापित हये हैं । आप ऐिसा प्रयत्न रोज़ करें। आपको इसी की लेकिन उसमें प्रेम की व्याख्या कोई कर नहीं पाया। एक प्रकार से आदत लग जायेगी। ग्रत्यन्त श्रद्धा उसके कारण उसके अनेक विपयास हो गये हैं। पूर्वक ध्यान कर । सवेरे के समय, चाहे दस मिनट, प्रम की व्याख्या हो नहीं पाती। लेकिन प्रेम वही चाहे आध घण्टे-उसका कुछ फ़र्क नहीं पड़ता । शक्ति है जो आपके हाथ से बह रही है । वही घ्यान करते वक्त में कुछ हाथ ऊपर नीचे मत करिये । ध्यान करते व क्त सिफ़ फोटो की ओर दष्टि रखते लेकिन यह नहीं जानते कि यह प्रम है। चेतना को रख ते अँखे बन्द करले और कोई हाथ-पर घुमाने हम ऐसी शक्ति समझ लेते हैं जैसे विजली ओर की जरूरत नहीं। उस वक्त कोई-सा भी चक्र जो खराव हो, उस चक्र की ओर दृष्टि करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा क्योंकि उस वक्त, मैंने कहा है, receptivity (ग्रहग्ण शक्ति) ज्यादा रहती है, सवेरे के time (समय) में । चेतना है जिसे लोग चेतना के नाम से जानते हैं। पंखा है । नहीं आत्म-तत्त्व प्रम है । यह ्द 'प्रम कहते ही साथ आपके अनेक टूट जायेगे। जितना भुूठ है, असत्य है, वह प्रेम के विरोध में है । प किसी को अगर डॉंटते भी हैं और उसको सत्य बता रहे हैं तो आप प्रेम कर रहे हैं। आप स्वयं प्रेम है । इसलिये प्रम- तत्व पर आप विचार करते ही औप आत्म-तत्त्व में उतर सकते हैं। बन्धन पहले तो अपने चक्र वर्गरह शुद्ध हो गये । इसके बाद अपने आत्म-तत्त्व पर विचार कर या अपने आप पर । अरत्मा की ओर चित्त ले जाय । श्रात्मा कहाँ होता है ? किसी ने मुझ् से यह नहीं पूछा ज तक कि साँ, आत्मा कहाँ होता है?" ध्यान में कोई सा भी विशेष विचार नहीं लेने का है । लेकिन अप यह कह सकते हैं कि "मैं, वही प्रेम-तत्व हैं, मैं वही आत्म-तत्त्व हैं, मैं वही प्रभू की शक्ति तो से दो-तीन वार क ते ही ग्राप आशी्वादित होयेंगे। आत्मा हमारे हृदय में होता है, लेकिन उसकी (पीठ) sear जो है यहाँ सहस्रार के ऊपर हैं प इसे कह सकते हैं । इस तरह निर्मला योग ६ औ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt रोजमर्रा के जीवन में अआपका जीवन एक उज्जव न होना चाहिये। आपके मुख में कान्ति आनी चाहिये। प्रापके व्यवहार में सुन्दरता आनी चाहिये। आपको प्रेममय होता चाहिये। ऊँट के, जैसे आप अगर विल्कुल ही रसहीन हों तो आ्प सहजयोगी रोजमर के जीवन में श्रापको पता होता नहीं है. यह आप को पता होना चাहिये। जबरदस्ती चाहिये कि आपके अन्दर शक्ति प्रेम-तत्त्व की है। के आप सहजयोगी वने हैं, वह भी हम आपको आप जो भी कार्य कर रहे हैं क्या प्रेम में कर रहें चला रहे हैं इसलिये आप ब ठे हुए है। नहीं तो हमें आप म। फ़ कर दे और आप सहजयोग में न आय । भारी सहजयोगी हैं ? हम भी किसी को कोई बात एक दिन आप खुद ही निकल जायगे । इस तरह दूसरे दिन के लोग, जिनमे प्रम नहीं है, जो अपने को सोचते बो आकर के सहजयोंगियों में बँठे करके हमें हैं कि हम बड़े बढिया आदमी है और बड़े कमाल गालियाँ देते हैं । और उसके बाद कहते हैं कि के आ्दमी हैं, और ये हैं, वो हैं, वो विल्कुल सहज हैमारे वाइब्रेशन क्यों चले गये ? तो इस तरह की योग के लिये व्यर्थ हैं। ऐसे लोगों को चाहिये कि अगर आप मुखता करते हों तो बेहतर है कि आप जाये, दूसरे गुरुओं के जूते खाय श्रीर वहाँ रहें। क्योंकि आप सत्य कह रहे हैं, अपके अन्दर से वाइव्र शन (vibrations) जोर से चलने लगेंगे । प्रब रोजमरा के जोवन में क्या-या करेना चाहिये ? ताल है ? या दिखाने के लिये कर रहे है कि आप बड़ कहते या इंटते हैं तो हम देखते हैं कि लोग सह जयोग में न ही आयें । यहाँ पर सहजयोग में अरप परमात्मा के एक सहजयोग में वहो आदमी प्रा सकता है और instrument (गन्त्र) बनने आ रहे हैं । अत्यन्त चल सकता है जो कूछ लेना चाहता है। उसको नरता आपके अन्दर होनी चाहिये, अत्यन्त नम्रता । देने का कोई ग्रधिकार नहीं है, उसे लेना ही है. आपको घमण्ड छोड़ना चाहिये। लोग कहते हैं कि हमसे । वह श्गर देना चाहेगा, उसको शक्ति जब सन्यास लेना चाहिये । मैं कहती हैं कि पहले धमण्ड वो हो जायेगी, तो बहुत ही बढ़िया चीज हो जायेगी से आप सन्यास लोजिये । कोध से आप सत्यास लेकिन आप तभी दे पाते हैं, जब आप ले पाते हैं। लजिये । कपडों से नहीं लीजिये । कपड़े उतार देने इस लिये पहले लेना सीखविये । हमारे अन्दर क्या से कोई सन्यास नहीं होता है । सन्यास का अर्थहोता दोप है ? रोज़ के जीवन में हम यह देखते चले कि है कि अपने क्रोध, काम मोह, मद, मत्सर श्रादि हम क्या चीज़ दे रहे हैं? हम प्रम देरहै हैं? क्या हम पट-रिपूओं से सन्यास लेने को ही सत्यास कहते स्वयं साक्षात् प्रम में खड़े हैं ? हम सबसे लड़ते हैं, हैं. सबसे झगड़ा करते हैं, सबको परेशान करते हैं औ्रोर हम सोनते हैं कि हम सहजयोगी हैं। इस तरह को ग़लतफ़हमी में नहीं रहना । अपने साथ पूरणतया से, सबसे प्रेम से व्यवहार कर । अपने बाल बच्चे, दर्पण के रूप से रहना चाहिये. माने अपने को पूरे घरबाले, इन सबसे सहजयोग की बातचोत करें । समय देखते रहिये। समझ लीजिये, हमारे माथे में सहजयोग का विवरण करें। अपने दोस्त वदल योई चीज लग गई तो आप बतायेगे कि "माताजी लीजिये यपना उठना-बैंठना बदल लीजिये । ये आपके सिर में कुछ लगा है, उसे पोंछ लोजिये । आपके रिश्तेदार हैं, ये आपके सगे हैं, इन्हीं से इसी प्रकार आप अपने को देखते रहे कि 'देखिये वातचीत करें हमारे यहाँ यह चीज लग गई है, इस को हम पोछ कि हम लोग एक नई ही दुनिया में आ गये हैं और ले ते हैं। - सन्यस्त । दूसरे सन्यास की बातचीत नही है। तो, अपने रोज के वपवहार में अत्यन्त शान्ति । और ये लोग प्रापको बतायगे हमारे पास एक नये वाइत्र शन्स(चंतन्य लहरियां है। निमंला योग the 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt जब भी आप सफ़र करें, कहीं बाहर जाये, किसी गाँव में जाना है, तो बता रहे थे-अ्रभी मिलते रहे राहरी से आये हैं-कि हम अपने साथ में जैसे सब patient (रोगी) हो । और डावटर लोग आपस में लोग लेकर चलते हैं सब चीजें अपनी travelling फ़ीस नहीं लेते, उस प्रकार तुम आपस में फ्रीस नहीं (सफ़र) की, वेसे हम अपने साथ में थोडा-सा लेते । आपस में treatment (इलाज) करो, आपस "तीर्थ -वो मेरे पेर के पानी को 'मतीर्थ" कहते में पूछ लो और इसमें बुरा मानने को कोई बात वह करते रहे इस वजह से वो ठीक हैं । आपस] में । आपसे में सब तुम डाकटर हो और सब हैं-"तीर्थ और और यह सब vibrated नही । किसी ने कहा कि अ्रापका सहस्रार पकड़ा है। (वाइब्र टेड) लेकर हम चलते हैं। रास्ते में कोई "तब तो बड़ी शर्म की वात हो गई वो तो हमारे आदमी बीमार दिखाई दिया-चलो उसको तीरथ विरोध में बैठ जायेगी बात। तो मैंने उससे कहा पिला दिया। कोई आदमी ने घर्म की चर्च्चा की, कि भई सहस्रार ठीक करदो, पता नहीं कैसे आदमी उसे फोटो दिखा दिया कि ये 'माताजी' हैं [औ्र तुम चाहो तो तुमको पार कर सकते हैं । जहां जो आदमी मिल जाये। वह अपने साथ रक्खे रहते हैं- "चलिये हम आपको कुमकुम लगा देते हैं, देखिये शरपको कैसा लगता है । ये हमारी 'माताजी' हैं। पूरे समय दिमारा इधर-उधर दोडता रहता है कि कान बन्द कर लो श्र ऐसे आदमी से कहो कि तम सहजयोग को किस तरह से अपने जीवन में प्लावित हर बठी। हमको तुम से मतलब नहीं और तुम कर सकते हैं। उसी समय आप देखि ये कि ग्राप हैमार से बात मत करी, बस । हमको अपना कोई बहुत गहरे उतर सकते है। कुमकुम न के साथ मैं बैठ गया। किसी ऐसे आदमी के साथ कभी नहीं बठना चाहिये जो सहजबोग की बुराई करता हैं। सहल्ार फोरन पकड़ जायेगा। ऐसा आदमी अगर बोले तो बुरा नहीं करना। आप कौन होते हैं हमसे बात करने वाले ? आप यहां माताजी की वजह से हमसे ले किन कुछ लोग ऐसे हैं कि सहजयोग में सिर्फ मिले हैं, आप चुप रहिये। ऐसा जो भो आदमी ऐसे अराते हैं, जैसे मन्दि र में अराये अऔर चले गये । बात करे तो 'बस, बस, बस करिये। आपका सहस्रार और फिर उसका दूषपरिणाम हमेशा आरायेगा । यहां पकड़गा, फिर एक-एक चक्र पकड़े गे, फिर थोडे दिन पर ऐसे लोग हैं, अभी बैठे हुए हैं, कि जिन्होंने जब में श्रप आयेगे कि "माताजी, मूझे कैन्सर हो से सहजयोग से पार हुए हैं तब से उनको एक बीमारी नहीं आई। महा बीमार थे, उनको कभी बिल्कुल सहस्रार की बीमारी है-पक्की, समझ बीमारी नहीं आई। एक बार भी वह डाक्टर की लोजिये । कैन्सर से अरगर वचना है तो अपना सोढ़ी नहीं चढ़े । कभी उनको कोई तकलीफ़ नहीं सहस्रार साफ़ रखिये । सहस्रार जिन लोगों ने हुई । उन्होंने एक दवा नहीं ली. जब से योग में श्रये हमेशा डाक्टर के पास जाते थे और अस्पतालों में रक्खो और हो सकता है, आज नहीं तो कल, आध घूमा करते थे, वो कभी भी नहीं गये। ऐसे यहां पर साल बाद आपकी पता होगा कि साहब हमको कैंसर बहुत-से, अनेक उदाहरण है। इतना ही नहीं, हो गया। उन्होंने दूस रों को भी भला किया। गया।" और कैन्सर की बीमारी जो है वो तो वह सहज पकड़ना शुरू कर दिया तो कन्सर की शुरूआात हो । बुड्ढे भी हैं उनमें से कुछ लोग, जो गई. मैं ग्रापको बता रही हूँं। सहस्रार हमेशा साफ़ कं तो क्यों न अभी से प्रपने को स्वास्थपुर्ण रक्ख । इसका का र यह है कि जो कुछ भी स्वास्थ्य शरौर इतना ही नही, सहजयोग का कार्य करें, जिस के लिये एक सहजयोगी के लिये अावश्यक है, वो के कारण हम परमात्मा के राज्य में बैठे हैं। औ्र निमला योग त 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt जब कल संसार में उन लोगों को चुना जायेगा. जो योग। इसको समझे और इसमें रत रहें । जितना परमात्मा के हैं, उनमें से आप लोग श्रेष्ठतम लोग आप उसमें तदात्म्य पायेंगे उतना ही आपका आत्म- हौंगे । क्यों न ऐसा कार्य करें जिससे यह व्यर्थ का तत्त्व चमक सकता है। समय हम बर्बाद कर रहे हैं-इसके घर जायें, रिश्तेदार के घर खाना खायें, फ़लां के घर घुसो, उसकी बूराई करो-छोड़-छाड़ करके और अपने आप स्वयं प्रकाश बन । और जिनको बेकार की बातें मार्ग को ठीक बनायें और ऐसा जीवन वनायें कि सुझती हैं उनके लिये बेहतर है कि वो उस चीज को संसार में उन लोगों का नाम हो। सबको यह छोड़ द, उनकी बात नहीं है । सोचना चाहिये । कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है सिवाय इसके कि अब आखिरी बात बताऊँगी । उसको बहुत कोई यह न सोचे कि 'भई अब तो मेरी उम्र ही समझ के और विचारपूर्वक कर । क्या रह गई है, अब तो क्या कर सकता है? सो बात नहीं है। आप मरेंगे ही नहीं । आप मेरते हैं। फिर आप पदा होते हैं । फिर अआराप मरगे, फिर आाप पदा होयेगे । यह चक्कर चलते रहेंगे एक साल के अन्दर सभी चीज़ को खत्म कर सकते हैं-चाहें तो अप एक हुफ़्ते में भी खत्म कर सकते हैं। एक बार निश्चय मात्र करना है, एक क्षण-तो भी खत्म हो जायेगा। हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियाँ है । हमारे ही अन्दर स्वयं वहृत-सी काली प्रवृत्तिरयाँ है जिसे negativity (निगेटिविटी) कहते हैं । बो जोर बाधती हैं। उनके कब्जे में अरना अरपने को शेतान बनाना है। आप चाहे तो शेतान बन सकते हैं और आप चाहे तो परमात्मा बन सकते हैं। शंतान अगर बनना है तो बात दूसरी है । उसके लिये मैं गुरु नहीं है । भगवान बनना है तो उसके लिये मैं गुरु है लेकिन शैतान से ब वना चाहिये। तो क्यों ने । अपने जीवन को कुछ विशेष करना है, एक बार इतना निश्चय कर लेने से ही सहजयोग का लाभ अत्यन्त हो सकता है, ये आप जानते हैं। पहली चीज़ है कि अमावस्या की रात या पूरिणिमा की रात left और right side दोनों तरफ़ शरणागति होनी चाहिये । जरूरी नहीं है कि में आपके dangers (खतरे)होते हैं । दो दिन विशेष मेरे पेर पर आकर । शरणागति मन से होनी कर, अमावस्या की रात्रि को और पूरिणमा की बहुत जल्दी सो जाना चाहिये । भोजन करके, नत हो के, ध्यान करके, चित्त सहस्रार में चाहिये। बहुत-से लोग पैर पर आते हैं, शरणाग ति रात्रि को विल्कुल नहीं होती। शरणागत होना चाहिये । अगर शरणगत रहे अन्दर से पूरणंतया शरण गित डालकर, बन्धन डाल के सो जाना चाहिये। मतल ब रहें, तो पूर्णतया, आपके अन्दर कुण्डलिनी जो है, चित्त सहस्र्रार में जाते ही ग्राप अचेतन (uncons- सीधे आव्म-तत्व पर टिकी रहेगी, जैसे कि एक दीप cious) में चले गये वहां अपने को बन्धन में डाल दिया, आप बच गये-दो रात्रि को विशेष लप झिलमिलाना, कभी मन्द कभी तीव्र होना) नहीं से, प्रौर जिस दिन अ्मावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अ्रमावस्या के दिन, आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिये। शिवजी का व्यान करके, उन की लौ रहती है उस तरह से एक भी flickering होता, लेकिन शरणागत रहें । की के हवाले प्रपने को करके सोना चाहिये सुख शरणागत रहने में आनन्द है, उसी में आत्म प्राप्ति है, उसी में परमात्मा की प्राप्ति है । तत्त्व पर । ओर पूरणिमा के दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिये । उनके ऊपर बहुत अनुपम, विशेष (unique) चीज है, सहज हैं निमला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt अपनी नेया छोड़कर । रामचन्द्रजी का मतलब है argument नहीं करना चाहिये । जिसका सहस्त्रार क्या-creativity (सृजन शक्ति) । अ्पनी जो पकड़ा है, उसके तो दरवाजे पर भी लड़ा नहीं creative powers ( रचनात्मक शक्तियां ) हैं उनको होना चाहिये। उससे कोई मतलब ही नहीं होना । चाहिये आपको । कहो, "प्रपना सहस्रार ठीक करो इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिये। भाई।" उससे कहने में कोई हजे नहीं कि "तुम्हारी ।" सहस्रार अगर किसी को सहस्त्रार पकड़ा लगे तो फ़ौरन जाकर कहना चाहिये कि "मेरा सहस्रार उतार दो लोग किसी तरह । सहस्रार किसी का पकड़ा हो अौर वह आप से बातचीत करे कुछ, तो कहना चाहिये "तू मेरा उस प्रादमी से बिल्कुल उस बक्त तक बात नहीं करनी जब तक उसका सहस्रार पकड़ा है। पूर्गतया समर्पित करके और आपको रहना चाहिये सहखार पकड़ा हुआ है, उसे ठीक करो साफ़ रखना चाहिये हालांकि, सप्तमी प्औौर नवमी दो दिन विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है । सप्तमी और नवमी के दिन उसका ख्याल रखना । सप्तमी श्रर नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा प्रयोजन करना जिसमें आप ध्यान अपना पूरा करे। सामु- हिक ध्यान उसी जगह करना जहां मेरा पेर पड़ा । तुम हुआ है, जो चीज शुद्ध हो चुकी है। सामूहिक ध्यान उश्मन हैं। अपने घर में भी किसी के साथ बेठकर मत करिये । अपने रिश्तेदारों के साथ भी बैठ करके सामूहिक घ्यान नहीं करना चाहिये। जिस जगह मैने कहा है हृदय चक्र पकड़ा है उसकी मदद करनी चाहिये । वहीं सामूहिक ध्यान करना है । और बेठकर सहज जहाँ तक बन सके तो उसके हृदय पर बन्धन आदि योग की चचा भी बहुत देर तक ऐ सी जगह नहीं डालना, अपने हृदय पर हाथ रखना, मां की फोटो करनी चाहिये जहां मेरा पर पड़ा नहीं क्योंकि वहां की ओर उसको ले जाना। हृदय चक्र का खयाल तो तुम्हारे अन्दर के भूत आकर बोलने लगगे और जरूर रखना चाहिये, क्योंकि कभी-कभी हृदय चक्र आपस में झगड़ा शुरू हो जायेगा क्योंकि तुम लोग में हो सकता है दूसरे को जरा परेशानी हो । हृदय अब भी भूतों के कठजे से बचे हुए लोग नहीं हो । चक्र में जरूर मदद करनी चाहिये । पर बहुत-से कहां से भूत अाता है, यह समझ में नहीं आता । लोगों के हृदय नहीं होता। बहुत dry (शुष्क और भुत सारे काम करता है। अब रही हृदय चक्र को बात । जिस मनुष्य का personalities(व्यक्तित्व होते हैं । ऐसे dry लोगों इस तरह से अपती रक्षा करने की वात है । के लिये अरप कुछ भी नहीं कर सकते । आप चाहें और जब कभी भी आप वाहर जाय, कहीं भी धर भी उनका कुछ ठीक करना, तो भी आप कुछ से बाहर जायें तो अ्रपने की पूरणंतया बन्धन में रक्खे । बन्धन में रक्ख, हर समय बन्धन क्खें । और आपसे कुछ कह तो पहले उनको कहना चाहिये देखा कि किसी का अाज्ञाचक्र पकड़ा है, चित्त से ही कि "हठ योग छोड़े ये, आप दुनिया भर के काम चाहे बन्धन डाल दीजिये । जिस आदमी का आज्ञा छोड़िये और थोड़ा प्यार करना सीखिये । पहले चक्र पकड़ा है, उससे कभी भी argument कुत्ते, बिल्लियों से प्यार करिये प्रगर इन्सान से नहीं (विवाद) नहीं करना चाहिये । यह तो वेवकूफ़ी होता, फिर इन्सान से प्यार करिये ।" खुद भी सब की बात है, जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, तो क्या से प्यार करिये, बच्चों से प्यार करिये, बच्चों से से नहीं कर सकते । पर, बो अगर आपके पास आयें, आप argument कर सकते हैं ? उससे ज्यादती मत करिये । किसी से भी ज्यादती मत भूत argument नहीं करना चाहिये जिस का भी आज्ञा करिये । किसी के साथ भी आप दुष्टता मत करिये, चक्र पकड़ा है-पहली चीज । जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है, उस से भी किसी भी सहजयोगी को [अपने बच्चों को कभी किसी को बच्चों को तो कभी मा रना नहीं है । निर्मला योग रा १० स म 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt हाथ से मारना नहीं है। हाथ नहीं उठाना है, किसी प्रश्न वहां पूछे, उसका जवाब मैं वहां एक साथ को मारना नहीं है । किसी से भी क्रोध नहीं करना दूंगी। Quarterly पहले शुरू कर रहे हैं । फिर है। सहजयोगी को तो क्रोध करना ही नहीं है । उसको बुद्धिमानी से हर चीज़ को ऐसा सुझ-सुधार Weekly कर लंगे फिर Daily भी हो सकेगी । लेना चाहिये कि क्रोध न दीखे । उसे कभी भी क्रोध अभी बहरहाल हम लोग Ouarterly कर रहे हैं । करना नहीं। Monthly हो जायेगी फिर हम लोग उसे और जो भी लोगों का कोई प्रश्न हो, कोई तकलीफ़ हो, उसके बारे में आप एक चिट्टी प्रधान तुम रोजमर्रा का जीवन सहजयोगी का कैसा होना साहब के पास भेज दें। मुझे ज्यादा चिट्टी नहीं दं । चाहिये ? उसकी भी आप प्रार्थना करें । उसका मेरे पास time बहत कम है और फिर माँ ने चिट्टी विचार समझ आ जाएगा। मैंने अनेक तरह से नहीं लिखी, एक को चिट्री लिखी "मला लिहिली आपको वताया है । त्यानां नाहीं लिहिली (मुझको लिखी, उनको नहीं लिखी", इस तरह की कोई भी उल्लू पने की बात TELA उसी प्रकार से हमारी जो "अनन्त-जीवन की जो प्रादमी करता है, ऐसे ग्रादमी के लिये सहजयोग जो संस्था है, उसके लिये प्राठ दस आदमी मिलक र के क्या करने का है उस पर बिचार करें आप सब लोग अपना सहयोग उसमें दें और सब मदद कर अभी जिन लोगों ने अपने नाम हमारे पास दिये जैसा हो प्यार करती हैं। किसी कारण से नहीं नहीं हैं, जिनके नाम लिखे नहीं हैं तो अपने पते लिखती हैं। कभी तुमको लिखा, कभी नहीं लिखा। प्रधान सहब के पास भेज दे ोर हम 0uarterly कभी-कभी तो उनको नहीं लिखती है जिनको मैं एक शुरू करने वाले हैं, उसमें मेरे पत्रों, सन्देश, अ्रत्यन्त सोच्ती हैं कि वो बुरा नहीं मानेंगे। ओर लेकच र वो सब छपगे । इसके अलावा तुम लोग भी अगर अपने अनुभव कुछ लिखो तो वो अनुभव करने वाली । मैंने बहत परवाह कर ली ओर उससे उसमें छापे जायेंगे|। सारे all India के जितने भी लाभ यह हुआ कि वो दृष्ट तो दूष्ट ही रहे, वो ठीक अनुभव लोगों के आते हैं, वो हर वार उसमें थोड़े नहीं हुए, हमें ही नुकसान होता रहा । जिस पर भी वहुत छापे जायेगे । उसमें अपने अनुभव लिखते मैंने सोचा कि इस अ्रादमी से ठीक से रहती रहैं, जायें अगर आप लोग कोई अच्छा लेख सहजयोग लिये कल ठीक हो जायेगा, पर नहीं, वो दूष्ट ही पर लिखकर भेज तो वो भी इसमें छाप दिया बने रहे। वो तो जरा भी अपना transformation जायेगा। इस प्रकार एक यहां पर Ouarterly ले (परिवर्तन) नहीं किया । तकलीफ़ हमें ही रहे हैं, उसमें अंग्रेजी में कुछ छुपा रहेगा, कुछ होती रही, क्योंकि मैंने तय कर लिया है कि किसी मराठी में, कुछ हिन्दी में अ्रर कुछ गुजराती में । भी मनुष्य का संहार नहीं होगा, किसी भी मनुष्य इस प्रकार की Ouarterly हम लिख रहे हैं । वन को मैं यातना नहीं दूंगी । उसको full freedom पड़े तो सब हिन्दी और मराठी और गुजराती, इस (पूर्णं स्वतन्त्रता) है, चाहे तो वो Hell (नर्क) में सभी का एक साथ शुरू करगे या फिर धीरे-वीरे जाए, जहन्तुम में जाए औ्र चाहे तो वो परमात्मा करगे। सहजयोग में हर चीज घीरे-घीरे होती है । के पास जाए। पूर्ण freedom मैंने आपको दे रखी उसको आप contribute करें । उसका जो कुछ भी है । जिसे चाहे नरक में उतरे, तो मैं कहती है कि पैसा देना है. दे । और उसका जो कुछ भी लाभ भया दो कदम और जल्दी उतर जाओो, जिससे नहीं है। आपको पता होना चाहिये कि मां सबको एक बुरा मानने वाले लोगों की अब में परवाह नहीं आपको उठाना है, उठाय । उसमें प्रश्न कर और हमारा छूटकोरा हो सके । यह भी व्यवस्था मैं कर निर्मला योग ११ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt दंगी। अगर आपको नरक में जाना है, तो भी पास मैं गई। उनको हमने पार कर दिया। पार ठ्यवस्था हो सकती है और अगर आपको परमात्मा होने के बाद उन के पास एक साहब गये ऐसे ही । के चरणों में उतरना है वो भी व्यवस्था हो सकती उन्होंने जाके बताया कि ये माताजी के ध्यान में है इसलिये जो लोग मूझे परेशान करते हैं और तो बदमाश लोग हैं अऔर ऐसा है. वैसा है । अब तङ्ग करते हैं, जिन्होंने सताया है, ऐसे इनको मैंने पार, कर दिया है, वाइब्रेशन आ गये । सब लोगों से मेरा कहना है कि मैंने बहत पर उस पर विश्वास कर लिया । तो उन्होंने कहा patiently (घंय से) सब से deal (व्यवहार) किया कि "माताजी, हम आपको घर नहीं दे सकते, क्यों है और प्रब अगर किसी ने मुझे सताया है और तकलीफ़ दी तो मैं उससे कह दंगी कि अव ग्रापका उनको ही घर दे दो । रोज़ फोन करता है रोज़ हमारा सम्बन्ध नहीं है, आप यहां से चले जाइये । फिर वो दो चार लात मारते हैं, इधर-उधर निकलते गलती हो गई मैंने कहा, "देखो, अब तो उसी को वक्त में हरेक अपने गुरण दिखाते रहते हैं। उनके ही बेचो सबके गुणा दीखते हैं, लेकिन जो भी है, आापको यह वेचाग अब वह रो रहा है कि 'माताजी मुझ चाहिये कि आप अपना भला सोच । वो अ्गर नरक की ओर जा रहे हैं, तो आपको उनकी गाडी में तुम उसको बेचों जिसने आकर तुम्हें पढ़ाया था ।" बेठने की कोई जरूरत नहीं हैं। होंगे; "पके लिये सहजयोग नहीं है" और छोड़िये उन को भला करें। किसी से भी वादविवाद करने की जरूरत नहीं है। जो जैसा है, वेसा ही रहैंगा। बहुत मुश्किल से बदलेंगे वो लोग, क्योंकि वो ट हैं । जो अच्छे प्रादमी होते हैं वो गलती करते जल्दी समझ जाते हैं । जो बूरे आदमी होते हैं उन की बदलना असम्भव-सी वात है, यह मैं समझ गई हैं । मैंने बहुत है, लेकिन जो जैसा है, वैसा ही है । उसको आप वदल ही नहीं सकते । वाबू वाली। इसलिये ऐसे लोगों से भिड़ने या बोलने की जरूरत नहीं और इस वजह से आप से मुझे यह उतरी है) और वहाँ जाते ही तुम्हारी गाडी जो विनती, कहना है कि आप लोग किसी प्रकार के ऐसे लोगों से कोई भी सम्बन्ध न रक्खें । धीरे-धीरे सब आ्राप छट जायेगे क्योंकि वो यहा पर इसलये यह उरूर बता रही थी-नरक के बारे हैं कि आपकी जो भी साधना है उस को नष्ट कर । ऐसे लोगों से बचकर रहे, उनसे रक्षा करें । अपनी रक्षा उनसे कर । आप सहजयोग में बाइब्र शन (चंतन्य लहरियाँ) पाये । मुझे बहुत कि हमको एक साहूब ने कहा है।" तो मैंने कहा, फोन करता है. कि 'माताजी खरीद लो. मूझसे । । पूरी freedom (स्वतन्त्रता) हैं से नाराज है । मैने कहा, "मैं नाराज-वाराज नहीं, अब इसलिये, ऐसे जो अकलमन्द लोग हैं. उनके लिए वेहतर है कि अपने को अगर नरक में जाना है तो सीधे टिकट कटाकर चले जायें मैं आपको टिकट नरक का भी दे सकती है। सब मेरे ही हिसाब किताब हैं। जिसको भी ऐसी इच्छा है नरक में जाने की मुझसे टिकट ले ले, मैं देने को तैयार हैं औ्रौर जिसको परमात्मा के राज्य में प्राना है, उसका टिकट भी मैं दे सकती है । टिकट वाबू तो हरएक जगह का टिकट दे ही सकता है । लेकिन टिकट ये तो बतायेगा कि "भाई एक तरफ तुम गये तो वहाँ derailment हो रहा है (गाड़ी पटरी से ी । अपता दुष्ट है पर कोशिशें की हैं । मैंने बहुत कुछ किया उसको अ्रक्ल ही नहीं आने है, इट जायेगी। फिर there is no return from there (वहाँ से आप वापस आ नहीं सकते)। यह Return ticket (वापसी टिकट) नहीं है । तो, इसलिये मैं में मझे ज्यादा बताना नही है, तरक तो आप खुद ही जानते हैं क्या चीज़ है । इसलिये मैंने आपको हिसाब किताब एक साहब प्रभी मकान हमें दे रहे थे । उनके बताया है कि चौज अपनी साफ़ रक्खो श्रर निरमला योग १२ he 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt रास्ता अपना ऊरर का देखो, नीचे नहीं । कि फोटो के प्रति श्रद्धा हो, जहां पूजा हो सके, नीने जहाँ लग सहजयोग को मान सके। इस प्रकार से करने से ही सहजयोग फैल सकता है असल में हम बहत ज्यादा publicity (प्रचार) नहीं करना और हर क़दम, हर जगह अरपके साथ हम चाहते क्योंकि जब भी publicity करती है तो ऊपर नजर रखोगे तो ऊपर चढ़ोगे । नहीं देखो । ऊपर चढ़ना है, ऊपर जाना है । खड़ है। हर जगह। कहीं पर भी प्राप रहें । गन्दे लोग आकर जल्दी चिपक जाते हैं और जो कहीं पर भी रहो, हर जगह हम शप्रापके अच्छे लोग होते हैं वो मिलते ही नहीं। इसलिये बेहतर यह है कि इसी तरह से प्राप लोग सहजयोग ्र] साथ हैं-काया, मन, वाचा-पूरणतया । यह की पूरी तरह से सेवा करें और उसके द्वारा अपने हमारा promise (वचन) है लेकिन जिस को सम्पत्तिशाली करें । को नरक में जाना है, उसको भी हम खींच रहे हैं नीचे को तरफ। इसलिये बचकर रहो पुर्ण आशीर्वाद आपके साथ है । मेरा हृदय, परमात्मा आप सबको सखी रखे । मेरा मन, शरीर हर समय आप हो की सेवा में संलग्न है । बो एक पल भी आप से दूर नहीं। जब भी आप मुझे और ऊपर का रास्ता देखो, नीचे का नहीं। प्रब मैं जा रही है लन्दव । आने के बाद देखें कि हरएक आदमी कमस कम दस दस लोगों को पार करे। आप में से बहत-से ऐसे हैं। अौरों को करके याद कर लें उसी वक्त बुलाए उनसे खुले आम बातचीत करे, शर्माये नहीं । लेकर के "शख, चक्र, गदा, पद्म, गरुड़ लई सहजयोग के बारे में वताए कि यह चीज़ कितनी धाये" एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा । सस्य है, इसमें कितना सत्य-धर्म है. इसमें कितनी लेकिन शपको मेरा होना पड़ेंगा । ये जरूरी वास्तविक चीज़ है। और लोगों को इकट्ठा करें, जहां-जहां मिले उनसे बातचीत करें । फोटो सब है। अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी मुझे लोग ल और दस-दस फोटो हरएक प्रादमी दस घर नहीं लगेगा, मैं गरपके पास आ] जाऊंगी । पहुँचाये । यह ही बड़ा अच्छा तरीका है कि हरएक आदमी contribute करके दस फोटो खरीदे और दस फोटो दस घर में पहेँचाये-ऐसे घर में ज हां पर दे। सम्मति से रहो । सम्मति से रहो ।। सिर्फ अँख बन्द मैं पूर्णशक्ति सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबूद्धि निमंला योग १३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt परमपूज्य माताजी के अगपत्र का हिन्दी रूपान्तर न है परन्तु यह वास्तविक जीवन प्रणाली बन जाती है । यह हो सकता है कि यह परिपकवता के साथ न किया जाये तथापि एक सिद्ध आत्मा की ऐसी कल प्रातःकाल मैं चार दिन के लिये न्यूबॉक स्थिति होती है । यह निश्चय से मेरी वायव्रशन्स के लिये प्रस्थान कर रही है। मैं यह पत्र आपको को मौर अधिक तीव्र करता है, और केंद्रों के लिखने में शीघ्रता इसलिये कर र ही है कि मैं दवेवताओं को जागृत करने में सहायता करता है। सृचित् समय में प्रापको सूचित् कर दूं कि आपको वास्तव में मूझे मालूम नहीं विगत समय में लोगों मेरे प्रियंतम पूत्र जेरेमी, ने क्या-क्था गरन्द स्वीकार किया है और किस प्रकार का भरमोत्तादक जीवन ग्रपनाया है। परन्तु क्या हो रहा है। मेरे विच्रार से आप बायें पक्ष पनुभवों और आध्यात्मिक अनुभवों के बीच में पड़कर भ्रमित हो गये हैं। जो लोग वाम पक्ष के होते है कभी कभी कि कितना होता है? क्या आप उनकी गिनती करगे मेरा भूत कालिक जीवन देख सकते हैं। वे मेरे प्रति कहीं अधिक सम्मान श्रर प्रेम प्रददशित करते हैं। इस के पीछे जो कारण निहित है उसे मैं जानता में सिद्धहस्त हैं तो अराप एक ही बुहार बहुत कुछ है। परन्तु मैं उन्हें प्रोत्साहित नहीं करती है। स्वच्छ बता सकते हैं। पश्चिमी जीवन सन् १६१९ से यदि प्राप भाँग आदि लेते हैं तो निश्चय से आप बहुत से राक्षसों से, जिन्होंने अपने विचार स्थाप्य- इडा नाड़ी में खच लिये जाते हैं र उस समय कला और सड़्ीत में घुसाए, आक्रान्त है। इन अहंकार का शमन हो जाता है । संवेदनात्मक वासनामय प्रेम को अनुभूति करते हैं। जड़ों से, उनके धर्म से, जो उत्थान का आधार है, अह जानना अविश्यक नहीं। क्या आप अपने घर का मेल, कूडाकरकट, जो ग्राप बुहारते हैं, जानते हैं अथवा तोलगे अरथवा उनकी प्रकृति, स्वभाव और इतिहास जानने की चेष्टा करेंगे ? यदि आप बृहारने में अतः आप विनाशकारी विचारों ने पश्चिमी लोगों को उनकी परन्तु जब आप इस ओर अधिक बढ़ते है तो आप विश्वव्यापी वासनामय प्रेम का अनुभव प्राप्त करना रम्भ कर देते हैं । इस प्रकार मानव को पतन उखाड़ दिया। आपको यह तो स्वीकार करना ही होगा कि सहजयोग ने निश्चित रूप से घार्मिकजनों की संरचना की है चाहे वे परिपवव न हों । आरम्भ हो जाता है क्योंकि वह भवसागर से बाहर निकल कर वाम पक्ष की ओर झुकता है । समस्त मादक द्रव्य आफ्की चेतना हर लेते हैं । सो अ्रपनी आत्मा को उज्ज्वल चमकीली बनाने आपको मालूम है मैं अन्य सहजयोगियों श्रर के लिये सन्तुलित ध्यान का सन्तुलन साधे रह उनकी स्थिति के बारे में भली भांति परिचित सकते हैं । सत्य की प्राप्ति पूर्ण सजगता में होनी होती है । [आप जाने लें कि पार होने के चाहिये, नहीं तो जो कुछ भी आप अनुभव करते पश्चात् करम-काण्ड जैसी कोई चीज नहीं रहतो हैं वह भ्रम है, क्योंकि आप स्वप्नावस्था में हैं । ने निर्मला योग १४ ा 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt ऐसा प्रतीत होता है कि सहजयोग का प्रसार सिद्धान्त सहजयोग का पोषरा करते हैं, उनके साथ मन्दगति से हो रहा है । कोई बात नहीं, परन्तु समझोता नहीं किया जा सकता । परन्तु प्रब मेरे यदि यह सत्य है तो आ्रप इसको स्वपनावस्था में कैसे विचार में प्रचार-माध्यमों ने इस कार्य को अपना प्राप्त कर सकते हैं । मेरी इच्छा है कि मेरे तमाम लिया है जिससे हम अब सहजयोग को और बच्चे जागृत होकर ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश धार्मिक लोगों तक पहुँचा पाने में सफल होंगे। इस सुदृढ़ ने उड़ान भर ली है ऐसा मेरा अनुभव हैं । मादक द्रव्य से वियों के प्रति मुझे खेद है । इस चुनौती का कर, वाम पक्षीय भ्रम के नरक में नहीं। मादक द्रव्य सेवियों के बारे में मं रा अनुभव सामना करने के लिये, उन्हें अपनी इच्छा का प्रयोग, दूखद रहा है। जो आये वे मन्द गलि थे। वास्तव में कम ही आते हैं । अतः आपका यह मत कि होगा। रोगी मद्-से वियों ने श्रीर पागलो ने बहुत ईश्व र साधना मद्य से आरंभ होती है, कि बमात्र समय नष्ट कर दिया है। ये किसी को भी प्रभावित भी सत्य नहीं है । वे प्रत्यन्त दुर्बल थे और वाम- नहीं कर पाते क्योंकि उनका व्यक्तित्व मैला, पक्षोय आक्रमण के विशुद्ध असमर्थ थ । उदाहरणथि, नेरा्यपरगां है और ये ह्वाई दोड़ लगाते हैं । वे बड़े आप सब कंसे ईचल जैसे मिथ्या व्यक्ति के चंगुल में फसे थे । वे अधिकतर केंसर जसे भयानक व अन्य असाध्य रोगों से पीड़ित हैं। यदि [आप] करेन के साथ विवाह करने के इच्छुक हैं तो यह ठोक है । परन्तु मद्य के प्रभाव में आकार ऐसा मत करना, हो और तुम्हें अअरधिक सक्रियता की आवश्यकता है। क्योंकि यह वाम-पक्ष को इतना तीव्र कर देता है कि बस चलाना अच्छा विचार है किन्तु यदि आप चेतन्य लहरियों द्वारा सही निर्णय में मार्गदर्शन के मादक द्रव्यों का सेवन करते रहे तो बेचारे यात्रियों लिये विचार-शक्ति का सन्तुलन समाप्त हो का भगवान हो रक्षक है ! जाता है । करना पड़ेंगा अौर मद्य की दासता से मुक्त होना आलसी होते हैं जो भी उन्हें सहजयोग में प्रवृत्त करता है उसका विरोध करते हैं। जेरेनी मैं जानती है तुम एक वामपक्षी व्यक्ति प्रापने चैतन्य लहरियों के सम्बन्ध में कुछ भी वास्तव में माद क द्रव्यों का सेवन सभी सन्तों नहीं लिखा। वे अपकी पथप्रदर्शक हैं, न कि ्र पीर पेगम्बरों ने बजित किया है और हमारे अापका ग्रहड्कार जो दूसरों को जाँचता है, न ही भी ऐसा ही करते हैं । क्योंकि क्ानूनों का आपका प्रतिभ्रहङ्कार जो आत्म-सन्तुष्ट है । यह कानून आधार हमारे भवसागर, घरम से आता है । मैं आप सब को कानूनों के ओतित्य को ओर ध्यान देने को कहैं गी, इनकी श्रुटियों की ओर नहीं। महात्मा गंधी आनन्द नहीं, भ्रम है । घीमे और दूढ़ता पूर्वंक सामूहिकता में अपनी वास्तविकता को प्राप्त को । दास प्रथा के विरोधी थे किन्तु मादक द्रवों के अधिक विरोधी थे | वे किसो भी मादक द्रव्य सेवी को अपने आश्रम में स्थान नहीं देते थे चाहे उसने वह छोड़ दिया हो। सहज योग को पश्चिम में फैनाना कठिन कार्य है। मैं भी को बलिदान नहीं किया जा स कता । जो ईश्वर आपको स्दैव सूखी रखें । आपकी सनेहमयी माताजी, महसूस करती हूँं । परन्तु निर्मला मूल प निमंला योग १५ है vhor 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देबी जी द्वारा बराइटन में १५ नवम्बर १६७६ को दिये गये प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर पड़ेगी जेसे यदि ईदवर, मानव चेतना के इस स्तर इस नगरी ब्राइटन (Bright प्र्थात् उज्ज्वल) का नाम स्वतः ही सुन्दर एवं आकर्षक है । (हिन्दी पर, बिना आपके इस कार्य में भाग लिये, आपको शब्दार्थ है निर्मल करने वाला उज्ज्वल करने उच्चतर चेतना में स्थापित कर सकता, तो उसने वाला) यह समस्त देश को निर्मल एवं उज्ज्वल यह बहुत समय पहले ही सम्पन्न कर लिया होता । बनायेगा। मैं यहाँ इससे पूर्व दो बार आ चुकी है लेकिन वह नहीं कर सकता । आपको देवत्व को और मैंने प्रत्येक बार महसूस किया कि मुझे इस प्रपनी स्वतन्त्रता में ग्रहण करना है । स्थान में अवसर मिले तो मैं यहाँ एक दिन सहज योग की स्थापना विशद रूप से करू जिससे यह एक तीर्थ स्थान बन जाये । मिश्रित चंतन्य लहरियां विद्यमान हैं । आपके पास सागर है, यहां की पृथ्वी माता विशेष महत्वपूर्णं सन्तुष्ट नहीं हैं । इससे परे कोई वस्तु है जिसकी है। परन्तु जब कुछ पवित्र कार्य का शुभारम्भ होता आपको खोज करनी है । सचमुच सुदूर परे, जिसकी है और बह अपने पुण्य का विस्तार करता है तो चर्चा समस्त पैगम्बरों ने की है, सब धर्मशास्त्रों ने ्ासूरी शक्तियां एकत्र होकर ग्रप्रत्यक्ष रूप से देवी पृथ्वी पर अ्रवतरित सब ग्रवतारों ने की है । शक्तियों से सङ्कर्ष आरम्भ कर देती हैं । यही सब ने मुक्त कण्ठ से इस तथ्य को स्वीकार किया कारण है कि मुझे ब्राइटन में मिथ्रित लहरियां अनुभव हुई। जो भी हो, यह एक अ्रच्छा स्थान है आपका निरीक्षण किया जायेगा। परन्तु प्रथम जहां पर सहज योग फल-फूलकर समृद्ध हो सकता निर्णय आपका अपना होगा। आप स्वयं ही निश्चय है । निश्चित्, आप खोज रहे हैं। कदाचित्, प्रापको ब्राइटन में ज्ञान न हो कि आप क्या खोज रहे हैं। परन्तू यह बात निश्चित् है कि श्राप अपनी वर्तमान स्थिति से था। यह भी वचन दिया गया था कि एक दिन करेंगे कि आप उस पवित्रतम की खोज कर रहे हैं अथवा कुछ निररथंक आडम्बर को खोज रहे हैं । यदि आ्प वास्तविकता श्रोर सत्य की खोज कर रहे हैं तो केवल आपका ही चयन किया जायेगा, केवल आप ही ईश्वरीय राज्य के नागरिक होंगे । आपको सहजयोग के सम्बन्ध में पूर्व परिचय होगा। सह + ज= यह 'योग अर्थात् 'देवत्व से मिलन जिसके आप उत्सुक हैं, आपके साथ ही पेदा हुआ है । यह आप के अन्दर वर्तमान है हर एक ने कहा है"उसको अपने स्वयं के अन्दर खोजो" क्राइस्ट ने भी यही कहा है । इसका अर्थ है कि अ्रपको खोज-खोजना पूर्ण शान्ति थी, सम्पूर्ण शान्ति। और शान्ति में से है । यह आपकी स्वतत्त्रता है जिसको कोई जागृति ्रई, शान्ति को जागृत किया गया। यह छीन नहीं सकता । इसकी आपको याचना करनी शान्ति "परब्रह्म" कही जाती है। 'सहज' का अर्थ है 'साथ जन्मा । अब हमें देखना है कि ईश्वर क्या है शरौर मैं उसके बारे में क्या चर्चा कर रही है। प्रारम्भ में, मुझे खेद है कि निमंला योग १६ लोL/. 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt मैं संस्कृत भाषा का प्रयोग कर रही हैं। इसका यह धा, यदि उसे काय करना था। यदि आपके हृदय में अर्थ नहीं है कि यह कुछ हिन्दू है। आपको ऐसे केवल एक इच्छा है, यह काफ़ी नहीं है । हमें इसे विचारों से मुक्ति पानी है भारत में लोगों ने कार्यान्ति करना होगा बहुत अ्रधिक ध्यान, तप किया है । उनको प्रकृति और समाप्त हो जाये गी। अतः इस इच्छा ने आकृति से लड़ाई झगड़े की आवश्यकता नहीं पड़ो, लड़ाई हमें आज यहाँ करनी पड़ रही है इस स्थान जिसको हम बाइकिल में होली धोस्ट और संस्कृत तक आने में । वहां का वातावरण इतना श्रष्ठ भाषा में आदि शक्ति के नाम से जानते हैं । औ्र ऊष्ण ध्यान कर सकते हैं। उनको प्रकृति से इतना लड़ाई । नहीं तो यह इच्छा उठेगी तत घारण को हम कह सकते हैं कि अ्रस्तित्व में आई जसी है। लोग पेडों की छाया में बै 5कर यह इच्छा फिर अपने में से दो शऔर शक्तियों की रचना करती है । उनमें से एक काम करने के लिये भगड़ा नहीं करना पड़ता । उनके पास ध्यान के तथा दूसरी अपनी संरचना के विकास हेतु । अतः লिए पर्याप्त समय होता था द्वारा ही बहुत-सी वस्तुयं खोज ली हैं जिसके लिये इस प्रकार ये तीन शक्तियों की संरचना की गई। उन्होंने संस्कृत भाषा की प्रयोग किया है। तो यह परब्रह्म अरथवा सम्पूर्ण शान्ति जागृत के सम्बन्ध में अधिक विस्तार से चर्चा नहीं की । हो गई क्योंकि यह स्वयं स्वतः ही जागृत ही गई; बहुत से शास्त्रों में पिता के सम्बन्ध में च्चाकी है जसे हम सोते हैं शरौर फिर अ्पने आप ही स्वयं वे होली घोस्ट के सम्बन्ध में चर्चा नहीं करते, जाग जाते हैं। और तब यह शान्ति 'सदाशिव बन विशेषतया जबकि ईसा मसीह की माँ स्वयं होली गई । अब यह शान्ति अरथवा यो कहिये कि धोस्ट की अवतार थीं-क्योंकि उन्होंने अपनी 'सदाशिव' का उदय हुआ, कि उन्होंने इच्छा की, माताजी के जीवन को खतरे में नहीं ड। लना चाहा। उन्होंने संरचना करने की इच्छा को । जिस प्रकार उन्होंने तो इतना भी नहीं कहा कि ये तो होलो पौ फटते प्रभात की अररुणिमा को देखकर हम कह घोस्ट की अवतार हैं । यदि लोगों ने माता को सूली सकते हैं कि सुचह का सूरज उदय होने जा रहा है, पर चढ़ा दिया होता तो योशु अपनी सर्वनाश शक्ति उसी प्रकार जब इस इच्छा ने अपना प्रकटीकरण के साथ प्रकट होकर संसार को विध्वन्स कर देते । आरम्भ किया तो यह इच्छा, उनकी शक्ति बन गई परन्तु नाटक खेला जाना था प्रौर वह शान्त होकर और पृथक हो गई। अब जो भी कुछ मैं कह रही हैं वह आपके क्योंकि पिता तो केवल साक्षी थे । वे इस नाटक के लिये कहानो मात्र है [आपको इनमें विश्वास भी साक्षी हैं जो खेल होली धोस्ट खेल रही है । लाने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु मैं उस एक वह इस संरचना का आनन्द ले रहा है। अब वह स्थान पर पहेँच जाऊँगी जिस पर आराप विश्वास अकेला ही इस खेल का साक्षी रहा है। अतः वह कर सकते हैं । फिर आप क्रम से इस सिद्धान्त में अपनी संरचना द्वारा उसको रिझाने का प्रथत्न कर विश्वास कर सकते हैं। यह आपके लिये कोरी रही हैं क्योंकि सृष्टि रचना की पिता की इच्छा थी । । उन्होंने अपने घ्यान तीन शक्तियों ने कार्य करना आरम्भ कर दिया। जंसा कि हम जानते हैं बाइबिल में होलीधोस्ट रहीं । अब यह होलीघोस्ट हमारे लिये महत्वपूर्णं है केल्पना मात्र है। अरतः जब यह इच्छा शक्ति बन गई, इस शक्ति को है--इच्छा ( शक्ति प्रथवा महाशक्ति प्रथवा आदिश क्ति के नाम से पुकारा जाता है। इस गय्रादि शक्ति ने एक अस्तित्व और व्यक्तित्व धारण किया। ऐसा होना आवश्यक महालक्ष्मी । ये अतः उन्होंने इन शक्तियों की रचना की। इनमें प्रथम Desire) महाकाली, टूसरी क्रिया (Action) महा सरस्वती और तीसरी धर्म Sustenance) अथवा उत्कान्ति (Evolution) ( तीन शक्तियाँ मानव प्राणी की निर्मला योग १७ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt संरचना हेतु कियाशोल हुई और हम अस्तित्व में आपको जानकारी है यद्य पि आप अभी तक उस आये। यहाँ हम इस स्तर तक पहँचे कि जब हम ख्ोत तक नहीं पहुँच पाये हैं। इसका यही कारण इनके सम्बन्ध में च्चा कर सके । क्राइस्ट के समय है कि अराप जिज्ञासु हैं । में भी होली घोस्ट के सम्बन्ध में च्चा नहीं की जा सकती थी। हम इन मुबों के साथ क्या कर सकते थे ? प बताये उनको इस सम्वन्ध में किस तौन शक्तियों हैं। बाये हाथ की ओर आपका प्रेम ढग से समझाते ? यह सब तो प्रारंम्भिक स्थिति है, यही आपकी इच्छा करने की शक्ति है, जिसके थी। परन्तु आपको मालूम है उन्होंने कित नी गन्दगी हवारा हम औकॉक्षा करते हैं, जिसके द्वारा हम फैलाई। काफ़ी गन्दगी वहाँ है । अपने को धार्िक अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करते हैं। जब यह केहलाने वालों की बात लोग नहीं समझ पा रहे हैं इच्छा हमारे अन्दर नहीं रहती, अर्थात् जय यह वे किस प्रकार घर्मान्ध हो सकते हैं। धर्मान्धता तथा शक्ति हमारे भीतर विलुष्त हो जाती है, तब हम घामिकता परस्पर कट्टर विरोधी हैं। वे एक केसे भो विलुष्त हो जाते हैं । हो सकते हैं। इसका उदाहररण आप ईरान में पायेंगे । कहीं भी आप देखिये जहाँ लोग हठघमिता से पीडित है वे कितने अधामिक बन जाते हैं। क्यों अथवा साक्षी परमात्मा की जो हमारे भीतर हृदय कि धर्म प्रेम है और ईदवर भी प्रेम है और इन में स्थित है, प्रतिच्छाया है। दाहिने हाथ की र तेथाकथित "घामिक" लोगों में से एक ने भी ऐसा हमारी कार्य करने की शक्ति है । इन तीन शक्तियों प्रेम नही दश्शाया जसा कि इनको दशनाि चाहिये ने हमारी चेतना और परमात्मा के मध्य एक प्रकार था । न ही इन्होंने ईश्वर खोज का कार्य अपने हाथ का अवरण सा पेंदा किया है। इस आवरण का में लिया। परन्तु ये अन्य जनकल्यार के कार्य करते अस्तित्व भवसागर ( void) में हैं। हमारे जिगर अब आ्रापको] [विदित हो गया कि आपके भीतर केन्द्र में आत्मा है जो परमणिता परमात्मा की यथा घन संग्रह, दीर्घ विक्री (Jumbo sale) ( liver) ने इसको सहारा दिया है अ्र्थात् स्थिर हैं. आदि। ये ईश्य रीय खोज करने वालों के का म किया है और यही कारण है कि इन तीन प्रावरणों नहीं हैं। इस अवस्था में जब कि हमें ऐसे लोगों का ने हमें आत्मा से विल ग कर दिया है। हम उस आत्मा सामना करना पड़ता है जिनमें से कुछ ने तो धर्म को देख नहीं सकते और न ही अनुभव कर सकते को संस्थागत किया है तथा अन्य कुछ ने बम में है । हन इसे प्रस्यक्ष भी नहीं कर सकते । हम जानते अव्पवस्था फेल। ई है तथा नकली गुरु उपदेशक, हैं कि कोई न कोई य्वश्य है जो ज्ञाता है श्रोमद- तब हम वास्तव में पूणं रूप से हुताश हो भगवदगीता में यह क्षेत्रज्ञ के नाम से बरिणित है । जाते हैं। हम चकित हो जाते हैं और हमें जो क्षेत्र का परिज्ञाता है । सो हम जानते हैं कि वहां नहीं सुझता कि हमें क्या करना है क्योंकि एक सर्वज्ञाता है । वह आपके सम्बन्ध मे सब कुछ हम जन्मजात भक्त हैं। हमने ईश्वरीय खोज में जानता है। वह टेप रेकारडिग कर रहा है-जो भी त्रुटियाँ की हैं परन्तु हम निश्चित भक्त हैं। यदि पसमस्त कार्य आप करते हैं आपकी खोज, आपकी भक्त न होते तो आप भोज, नूस्य आदि आमोद जुटियाँ, अशान्ति तथा वे सत्र अन्य कार्य जो आ्रापने प्रमोद के साधनों में भाग लेकर ग्रानन्द भोग करते पुरन्तु नहीं, इन सबसे परे भी कुछ है, कुछ ऐसा में रखा गया है जहां त्रिकोणाकार अस्थि स्थित जिसका वचन है, कुछ ऐसा जिसको য়प अनुभव है कर सकते हैं, जिसके अस्तित्व के सम्बन्ध में हमारी इच्छा की अवशिष्ट ऊर्जा है । इसका अर्थ । किये हैं [और वह टेप रेकॉर्डर नीचे के भाग श्रीर से कुछडलिनी कहा जाता है । यह निर्मला योग १८ मh 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt है कि जब समस्त सृष्टि का सृजन हुआरा, यह अधिकार प्राप्त व्यक्ति को देखती है, जिसके इच्छा की ऊर्जा-आदि शक्ति-समूची सृष्टि पास इसको उठाने की शक्ति हो । जिसमें उसकी रचना के पश्चात् यह समूची ही वना रहती ही भांति प्रेमभाव हो। तभी यह उठेगी । किसी है क्योंकि यह सम्पूर्ण है । इसको समझना सहज है चालाकी से नहीं- शीर्षसन से भी नहीं, अथवा बहुत ही सरल । आप कह सकते हैं-कल्पना किसी प्रन्य प्रकार के कार्य से या लोगों को पीटने कीजिये कि यहाँ प्रकाश है और यहाँ फ़िल्म है। से अथवा अन्य आविष्कृत कार्यों से । यह एक समस्त फ़िल्म की प्रतिच्छाया है परन्तु फिल्म स्वेच्छानुरूप वस्तु है अर्थात् सहज है । स्वेच्छा अखण्ड है। इसी भाँति स्वयं को वा ह्य में व्यक्त से ही यह उठती है। कल्पना कीजिये कि कोई करने के पश्चात् जो शेष रहता है वही अवंशिष्ट व्यक्ति मेरे पास आता है और कहता है कि ऊर्जा है, यही है कुण्डलिनी । इसका अर्थ है कि क्या आप जिम्मेदारी ले सकती हैं कि मेरी आप उस कुण्डलिनी की पूर्ण अभिव्यक्ति हैं। वह कुण्डलिनी का जागरण हो जायेगा । मेरा उत्तर शक्ति, वह इच्छा शक्ति है जिसकी भिव्यक्ति दो होगा-नहीं श्रीमान जी, मृझे खेद है । यह हो भी शक्तियों में होती है -दाहिनी हाथ की ओ्र की सकती है और नहीं भी हो सकती है। यदि आप शक्ति जो क्रिया शक्ति के नाम से भी जानो अत्यधिक तर्क नहीं करेंगे तो यह जाग्रत हो जायेगी। जाती है और केन्द्रीय शक्ति जिस को आपने एक स्तर तक पाया है और शेष शून्य (void) है यह वह शक्ति है जो आपकी एक-कोशिकीय जन्तु ( amoeba) से इस मानव देह स्तर तक उत्क्रान्ति के लिये उत्तरदायी है। क्यों ? तक वितक से क्या हो जाता है ? मैं बताती है कि तक वितक मेरा ग्रभिप्राय यह नहीं है कि आप तर्क न कर । प्रापको तर्क करना चाहिये । क्योंकि मैं जानती हैं से क्या होता है। आपके सामने समस्या हैं। आपको तक्क-वितक हम एक प्रश्न पूछते हैं, हम एक-कोीशिकीय प्रिय हैं । कोई चिन्ता न ही । परन्तु जब आप जन्तु (amoeba) से इस मानव देह, मानव प्राणी तर्क वितर्क करते हैं तो आप इस शक्ति को प्रयोग में स्तर तक क्यों प्रा गये ? कल्पना करों मेरे पास कुछ लाते हैं जो आप के दाहिने हाथ की तरफ़ है । सोच है [श्रौर मैं उन संबको एक स्थान विचार से क्या होता है ? इससे एक पीले रंग के पर एकत कर लेती हैं । तब कोई भी मेरे से पूछ पदार्थ की रचना होती है और इस पीले पदार्थ को सकता है कि मैं यह क्यों कर रही है ? तो मेरा उत्तर सामान्य शब्द में कहते है श्री अहङ्गार(EGO)। जब होगा कि मैं माइक्रोफ़ोन बना रही है । परन्तु यह आप सोच वितचार ब्रधिक करते हैं तो यह अहङ्गार माइक्रोफ़ोन में भी एक सूत्र है। इसको भी त्रिजली ऊपर उठ जाताहै कि दूसरी ओर स्थित प्रतिभ्रहड्कार की मृख्य घारा (mains) के साथ जोड़ा जाना (SUPER EGO) को दबाता है। यह आपके पूर्व जरूरी है। जब तक कि यह धारा के साथ नहीं संचित संस्कारों से अतो है। सो जब यह अहङ्कार जोड़ा जायेगा यह कार्य नहीं करेगा । यही हमारे प्रति अहङ्कार पर बैठ जाता है तो कुण्डलिनी कैसे साथ घटित हुआ है। ये तीन शक्तियाँ ग्रौर अवशिष्ट उठायी जा सकती है ? बयोंकि उसके चढ़ने के लिये शक्ति, जो कि इंच्छा शक्ति है, जो वही (मूलाधार में) कोई जगह कोई स्थान शेष नहीं रहता। दोनों का विराजमान है. वह आपके पुनर्जन्म की इच्छा सन्तुलन आवश्यक है । अत: तर्क वितर्क के साथ में रखती है। वह अपकी अपनी मां है । और जब कुण्डलिती जागरणा नहीं करा सकती। इसी कारण वह इसकी अ्रभिलाषा करती है तो यह क्रियाशील से मैं कहती है कि इस सम्वन्ध में मूझे देखने हो उटती है केवल उसी समय जबकि यह किसी (परखने) दीजिये । अभी आप वाद-विवाद न करें । बोल्ट र नट निर्मला योग १६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt परम्तु फिर भी लोग नही समभते हैं । वे समझते हैं करती है और आपको शोतल वायु कि हमें चुनौती दो जा रहो है । सो मैं कहती हैं, में महसूस होने लगती है । भारतीय घर्म शास्रं के "आगे चलो ।" होता क्या है जब अराप वाद अरतिरिक्त-जहां इसे 'सलिलम्, सलिलम्" से वर्णन विवाद करते हैं ? विचार आपको दबाते रहते हैं । किया गया है अर्थात् यह शीतल वायु, लहर के यही कारण है कि आप तर्क वितको, वाद विवाद सदृश आपके पास पराती है। बाइविल में भी- अथवा पुस्तक पढ़कर कुण्डलिनी जागरण नहीं कर "शीतल वायु" से इसका वर्णन है। यत: समस्त सकते । अपनी हथेलियों शक्ति इच्छा की ही शक्ति है जो शीतल वायु के रूप में आदि-शक्ति की तीन शक्ति थों के रूप में प इसके लिये शुल्क भो नहीं दे सकति । इस उपक्त हुई है और यह सर्वव्यापी है जब यह का मूल्य चुकाना स्वंथा असम्भव है । परमात्मा के पास कोई दुकान नहीं है। वह दुकानदारी से और उनका स्पश करती है-ये सूक्ष्म केन्द्र नहीं जानता । न ही आप उसको व्यवस्थित कर चिंकित्सा विज्ञान में वरिणत हमारे शरीर में स्थित मकते । हम परमात्मा को व्यवस्थित नही कर सकते, लेकपस (plexus) केनद्रों के नीचे स्थित है - तब वह ही हमें व्यवस्थित करता है। सी किसी प्रकार आपको आत्म-साक्षात्कार हो जाता है। की संगठित वस्तु यह कार्य नहीं कर सकती । कुण्डलिनी ऊपर चढ़ती है उन के्द्रों के मध्य मै आपके समक्ष इस विपय पर व्याख्यान नहीं दे रही हैं और न ही आपका मस्तिष्क प्रक्षालन (brain- यह मवंथा बीज के अकृरित होते सदृश है। आप इसे भूमि में वो दीजिये और कुछ पानी wash) कर रही हैं । यह वास्तविकीकरण है जिस दोजिये । जैसा कि मैं कहती है प्रेम के जल से सित्रित को हमें खोजना चाहिये। यह घटना आपके भीतर करें, मैं आपको स्नेहसिक्त जल देती है. तब यह ही घटित होती है जिससे आपका उससे एकत्व हो पने यप ही करित एवं प्रस्फुटित हो जायेगा बीज आपके पास है तथा अंकुर भी आपके भीतर सहजयोगी हैं, न ही इस प्रका र किया जा सकता वर्तमान है और प्रत्येक होनी प्रवश्य है। जुषुव्ध होने प्रथवा क्रोध करने से संस्कार (Baptism) कराना है । उसके तालू की यह क्रियाशील अथवा क्रिया से यह क्रियाशील नहीं होती । आपको उसकी कुण्डलिनी को इसका भेंदन करना है तभी निश्चेण्ट रहना है । एक बोज के अकुरित एवं प्रसुटित होने में आप क्या प्रयास कर सकते हैं ? आप तो एक फूल को फल में भी नहीं बदल सकते हैं। वास्तव में कुछ प्रयास नहीं कर सकते । हम जो त ही अन्य प्रकार की इसके संदृश वस्तु। यह ऐसी करते हैं वह पृत हैं। जो कूछ मृत है हम उसे स्ततः संचारो (spontaneous) है कि यदि यह । र पके कोई मौहर नहीं जगेगी कि आप । जाये । है। एक सहजयोगी को अपना वास्तविक नामकरण तैयार है यह घटित वस्तु 1 तालु नहीं होती । आपकी किसी चेण्टा अस्थि (fontanel) को कोमल बनाना है और वह सहजयोगी बनता है। आप इसकी सदस्यता भी ग्रहण नहीं कर सकते, कुछ दूसरे मृत में बदल देते हैं । यही सब कुछ है। हमने आपके भीतर घटित नहीं हुई तो आ्राप सहजयोगी सजीव भी नहीं किया। यह एक सजीव प्रक्रिया नहीं है। जब तक कि यह घटित नहीं हो जाती तब कुछ है । समस्त सजीव कार्य स्वतः (निषचेप्टता भाव से) होते हैं । तक ग्राप खोज पथ पर है। बालकों जैसे सरल हृदय ত्यक्तियों में यह एक से किण्ड से भी कम समय में घटित हो जाती है। किन्तु आध्यारिमक दृष्टि से सो यह स्वतः उठती हैं-यह सहस्र्रार को स्पर्श आहत व्यक्तियों में यह घटित होने में बहत समय निर्मला योग २० 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt लग जाता है। वास्तव में इस देश (इङ्गलेंड) में पहनकर एक पाखण्डी गूरु के बड़े शिष्य बन जाते मैने देखा है कि वहुत ही सुन्दर व्यक्ति पैदा हुये हैं हैं या कुछ ऐसा इसके समकक्ष। ऐसा करना अत्यन्त जो प्रतिभा-सम्पन्न, ईमानदार और विनम्र हैं सरल है पूर्वजन्म के भक्तों को यहाँ तथा अरमरीका में जन्म बनने के लिये, आपको अपने स्वयं का सामना लाभ का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । परन्तु वे अ्रधीर करता है । आपको अपने आपको देखना है और हो गये, और इस अर्धय्य्यता के कारण ही उन्होंने फिर उस सुन्दरता को, जिसका आप में उदय होता अपना सर्वनाश करने की कोशिश की-इस है आप उसे देख सकते हैं, यह सत्य है जो आपको प्रकार आपने उन देहिक तथा मनोवैज्ञानिक केनं्द्रों पाना है और मूझे देना है । (चक्रों) को विनष्ट कर लिया है। इन केन्द्रों में कुछ अल्प-समय के लिये समस्या २हेगी । रहेगा ही क्योंकि प्राप इसी के लिये पेदा हुये हैं । यह बह उत्रान्ति है जिसको धटित होना है । आप को अपनी आत्मा को जानना है। ग्रापको इसे मरी कार्य है। अतः यह मुझे करना है। साक्षात्कार पाना चाहिये। । ऐसा है त ? परन्तु एक सहजयोगी 1 इसके लिये आप आभारी [अंनुभव न करें क्यों कि यह मैरा साधारण काम है। आप कह सकते हैं कि यही मेरी आजीविका है । साक्षात्कार कराना परस्तु यह तो पाना आपका काम हैं क्योंकि इसी के लिये तो आप यहाँ पर हैं। इसमें अरभार का कोई प्रश्न ही नहीं यह उद्दण्डतापूर्वक मांगने की विधि नहीं है है यह प्रेम है । केवल प्रेम । मूर्े आप से प्रेम वरन् याचना की विधि है । वे धन्य हैं जो विनम्र करना है और आपको हैं। कहा है कि विनम्रता की आ्वश्यकता है, यह बढ़ता है, निकलता है। उद्दण्डता एवं अहङ्कार की नहीं। यदि आ्प मेरे सिर पर चढ़ कर कहें कि "हमें आत्म-साक्षात्कार दो" तो मूझे यह कहना चाहिये, कि मैं वह नहीं हूै जो आपको प्रदान कर रही हैं बल्कि ये आप हैं जो इसे पा रहे हैं। जसे गङ्गा नदी में, जो बह रही वह प्रेम मुझ से पाना है। मैं आपको बता रही है कि इसको कसे पाना है। परन्तु हमारा मानव प्रेम, जेसा कि [प्ाप ढेखते हैं, इतना आक्रामक है कि हम किसी को भी जो कहता है कि "मैं प्रेम करता है नहीं समझ पाते हैं । हैं, हम भाग जाते हैं। "आ आप मुझे प्रम करते है, यदि उसमें पत्थर फेंकते हैं, तो आप उसमें से अच्छा मैं भी दौड़ जाऊँ क्योंकि प्रेम का अर्थ जल नहीं ले सकते । आपको एक बड़ा (कुम्भ) समझा जाता है 'स्वत्व | मानव प्रेम का अर्थ है लेना है, एक खाली कुम्भ। इसको गङ्गाजी के बहुते प्रभुत्व । यह आक्रामक है। परन्तु यह सहजप्रेम शुद्ध हुये जल में डुबाना है। यह स्वतंः भर जायेंगा। प्रेम है, जो आपको आराम देता है, जो आपको एक अतः यह आपकी (विनत्र) प्राथना है जो सफलता नये चेतना-स्तर में उठाता है । जिसके द्वारा आप । अपनी उँगलियों में पूर्ण उद्घोधन का अनुभव करते हैं। आपके हाथ बता सकते हैं कि आपके किस- किस चक्र में पकड़ अथवा वाधा है तथा दूसरो प्राप्त करती है । यह सिद्धि आपको अर्जन करनी है उसके बिना आप प्रसन्न नहीं हो सकते । निस्सन्देह लन्दन में बहुत-से सहजयोगी हैं किन्तु हम चीटी की गति से उन्नति कर रहे हैं। इसका कारण वास्तविक है । आप देखते हैं अन्य संस्थाएं फेल रही हैं। ग्राप उन्हें धन दें [श्रौर आपको विचारगोष्ठी में बता ने जा रही है । आप बड़े मन्त्री प्रथवा ऐसे ही अन्य उच्च पद पर कदाचित् ये समस्त सहजयोगी भी आप को बता आसीन हो जाते हैं। आप गले में एक माला सकते हैं। के भी। सहजयोग की अगरिणित आशीर्ष हैं जिनको मैं निमुला योग २१ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt मैं नहीं जानती आपकी समस्यायें क्या हैं । यदि लिये, जो आपकी आत्मा है । इसके लिये पपकी कोई समस्यायें या प्रश्न हैं तो मैं आप से आपको तत्पर रहना चाहिये। और इस विषय उन पर बात करूगो अधिक समय नहीं । में कुछ भी सन्देह नहीं होना चाहिये। क्योंकि वह कथोंकि सहजयोगी इस से चिन्तातुर हो जाते वस्तु सं्देह योग्य नहीं है । किन्तु फिर भी यदि हैं परन्तु | इसका कारण यह है कि प्रथम तो उन्होंने औपक मन में सन्देह है तो मैं सहर्ष उसका निवारण बहुत प्रश्न किये हैं अ्रर इसका स्मरण कर वे करू गा। कभी-कभी हमें बहुत सुन्दर प्रश्न प्राप्त ल्जित होंगे। दूसरे, वे उत्तजना अनुभव करते हैं होते हैं । मैंने देखा है कि कुछ व्यक्ति वास्तव में कि ओप साक्षात्कार क्यों नहीं पा रहे हैं. प्रश्न बहुत सुन्दर प्रश्न करते हैं जिनसे पता चलता है कि क्यों पूछते जा रहे हैं ? इससे अच्छा होगा कि समस्या क्या है। इस लिये मैं प्रश्नों का स्वागत इसे पा ल । यह तो आपके हाथ में है । तीसरे, करती हूं। किन्तु आप एक मूर्ख की भाँति केवल कभी-कभी वे देखते हैं कि हम व्यर्थ के प्रश्न पछे सन्देह ही करते ने बेठे रहें, यह भी एक बात है । चले जा रहे हैं. जिनका लाभ न तो उनको ही सहजयोग एक महान् विषय है। इसको सम्पूर्णता है और न ही औरों को । if से व्याख्या करना बड़ा ही कठिन है। इसी के माध्यम से आप भौतिक, मानसिक, भावात्मक और सो एक बात आपको स्मरण रख नी है कि आध्यात्मिक एकता प्राप्त करते हैं, क्योंकि समस्त यहाँ पर कुछ वेचा नहीं जा रहा है। आपको बदले केन्द्र क्रियान्वित होते हैं, और आपके जीवन के में कुछ धन नहीं देना है यह कुछ वस्तु है जो चारों र्पों अ्र्थात् आपकी पूर्णंता, में प्रकाश लाते प्रवाहित हो रही है। यह कुछ वस्तु है जिसको हैं जिससे आ्राप सामूहिक चेतना में अपनी मूल्यवान वास्तव में इस दूनिया में कोई नहीं जानता । कुछ वस्तु है जो सुन्दर है, प्रवाहित हो रही है । यदि संक्षप में कहने से यह वाक्य कुछ जटिल-सा हो प कहीं रमणीय दश्य देखते हैं तो आप उसकी गया है यदि आपको इस सम्बन्ध में कोई समस्या ओर वस देखते ही रहते हैं। यदि आप इस दृष्टि- है तो आप विना किसी भय एवं संकोच मुझसे पूछ कोण के साथ पराते हैं, केवल अपनी आँखें खोलने सकते हैं। मैं आपकी माँ हैं । के लिये, आप अपनी आँख खोलिये, इसे 'उन्मेश' कहा जाता है, उस सौंदर्य को निहारने के भूमिका का अनुभव कर सके। गहन विषय को भगवान आपको सदैव सुखी रखें । बा निर्मला योग २२ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt श्री महाकाली के १०८ नाम १ महाकाली २ कामधेनु २६ मधुकंटभहन्तरी २७ महिषासुरघातिनी २८ रक्तबीजबिनाशिनी ३ कामस्वरूपा वरदा ४ २६ नरकान्तका जगदानन्दकारिणो ५ू ३० उग्रचण्डेश्वरी ६ जगत्जीवमयी ३१ क्रोधिनी ७ वजूकंकाली ३२ उग्रप्रभा शाग्ता ३३ चामुण्डा सुधासिन्धु निवासिनी ६ ३४ खड्गपालिनी ३५ भास्वरासुरी ३६ शत्रुमदिनी ३७ रणपण्डिता १० निद्रा ११ तमसी १२ नन्दिनी १३ सर्वामन्दस्वरूपिणी |क ३८ रक्तदन्तिका १४ परमानन्दरूपा ३६ रक्तप्रिया १५ स्तुत्या कपालिनी ४० ४१ कुरुकुलविरोधिनी ४२ कृष्णदेहा ४३ नरमुण्डलो ४४ गलदरुघिरभूषण ४५ प्रेतनूत्यपरायरणा लोलजिह्वा १६ पद्मालया १७ सदापूज्या १८ सर्वप्रियंकरी १६ सर्वमङ्गला ा २० पूर्णा २१ विलासिनी ४६ २२ अमोघा २३ भोगवती २४ सुखदा ४७ कुण्डलिनी नागकन्या १ ४९ पतिव्रता ५० शिवसंगिनी २५ निष्कामा निमंला योग २३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt ५१ विसंगी ५२ भूतपतिप्रिया ५३ प्रेतभूमि कृतालया ५४ देत्येन्द्रमथिनी निशुरुभशुम्भसंहन्त्री ८१ वह्निमण्डलमध्यस्था ८० ८२ वीरजननी ८३ त्रिपुरमालिनी ८४ कराली ५५ चन्द्रस्वकत्रा ८५ पाशिनी ८६ घोररूपा ८७ घोरदंष्ट्रा प्रसन्नपद्मबदना ५६ ५७ स्मेरवक्त्रा ५८ सुलोचना ५६ सुदन्ती ६० सिन्दूरार्णमस्तका ६१ सुकेशी ६२ स्मितहास्या चण्डी ५८ ८६ सुमति &० पुन्यदा तपस्विनो ११ क्षमा ह२ ६३ महत्कुचा ६४ प्रियभाषिणी ६५ सुभाषिरगी ६६ मुक्तकेशी ६७ चन्द्रकोटिसमप्रभा ह३ तरंगिनी ४ शुद्धा C५ सर्वेश्वरी C६ गरिष्ठा ७ जयशालिनी अगाधरूपिरणी ६८ &८ चिन्तामरिण अरद्धतभोगिनी ६६ मनोहरा मनोरमा T& ७० १०० योगेश्वरी १०१ भोगधारिणी वश्या ७१ ७२ सर्वसौन्दर्यनिलया १०२ भक्तभाविता रक्ता ७३ १०३ साधकानन्दसन्तोषा ७४ स्वयम्भुकुसुमप्राणा ७५ स्वयम्भु कुसुमोन्मदा ७६ शुक्रपूज्या १०४ भक्तवत्सला १०५ भक्तानन्दमयी १०६ भक्तशंकरी १०७ भक्तिसंयुक्ता १०८ निष्कलंका शुक्रस्था ७८ शुक्रात्मिका ৬৪ शुक्रनिन्दकनाशिनी ७७ निर्मला योग २४ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt त्यौहार गुरुपूर्णिमा रक्षाबन्धन, नारियल पूरिगमा श्रीकृष्णा जन्माष्टमी (कालाष्टमी) श्री गणेश चतुर्थी श्री गौरी २४ जुलाई ८३ २३ श्रगस्त ८३ ३१ अगस्त ८३ १० सितम्बर '८३ १३ सितम्बर '5३ पूजा अनन्त चतुर्दशी नवरात्रि पूजा २१ सितम्बर ८३ '८३ से १५ श्रक्तूबर ও अव्तूबर १६ अक्तूबर '८३ दशहरा दीपावली ४ नवम्बर ६३ २४ नवम्बर '८३ १६ दिसम्बर '3३ गुरुनानक जन्मदिवस (गुरुपवं श्री दत्तात्रेय जयन्ती क्रिसमस दिवस (श्री यीशु जयन्ती) २५ू दिसम्बर '८३ १. पाठकों से श्रतुरोध है कि वे समाप्त होने पर निर्मला योग के चन्दे की राशि समय से पहले ही भिजवाने का कष्ट करें । चैक व ड्राफ्ट "निर्मला योग" के नाम तथा नई दिल्ली में भुगतान योग्य हों २. [आगामी १६८४ वर्ष की "सहज डायरी" प्रकाशित करने का विचार है । उस में परमपूज्य माता जी की उक्तियां और प्रवचन तथा समस्त सहज केन्द्रों व श्राध्रमों प्रादि के पते व जानकारी प्रस्तुत होगी। पाक केन्द्रों व आश्रमों के पते, प्रत्येक केन्द्र से दो-तीन सहजयोगियों के पते, सुझाव तथा प्रत्येक केन्द्र के लिये भ्रनु मानित आवश्यक डायरियों को प्रतियों की संख्या की सूचना १५ अगस्त १६८३ से पहले निम्न पते पर देने की कृपा करें : श्री मोहन सराफ़ ११. वृष्दावन, मुग़ल लेन, शीतला देवी मन्दि र मार्ग (पूर्व ) महिम, बम्बई-४०००१६ ( भारत) || | | | | ||||||