ॐ fनिर्मला योग द्विमासिक वर्ष २ पक = जुलाई-अगस्त 1983 45 + t. ेट घम प ॐ] स्वमेव साक्षात् बीकल्की साक्षात श्री सहस्रार स्वामिती, मोक्ष प्रदायिनी माता जो श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। ন प ESONEES88 333383的器影新排 प्रार्थना है जन्माता ! रक्षमाम् हे जगदम्बा माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।॥१॥ परमेश्वरि ! रक्षमाम् जगदीश्वरि । रक्षमाम् पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥२॥ हे, गीरी माता ! रक्षमामु । है मेरी माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।।३।॥ हे सरस्वती माता ! रक्षमाम् । हे लक्ष्मी माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।॥४।॥ है काली माता ! रक्षमाम् । हे पार्वती माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥५॥ हे सीता माता ! रक्षमाम् । हे यशोदा माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम मातर ! रक्षमाम् ॥६॥ हे गणेश ! रक्षमाम् । है जीजस पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥७1। ! रक्षमाम् । है परमात्मन् रक्षमाम् । है जगदात्मन् ! रक्षमाम् । पाहिमाम मातर पातकी नास्तिं । पापहनी त्वत्समा नहि । पाहिमाम मातर दीनो नाउस्ति । हितो नास्ति पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।।१०॥ ! रक्षमाम् ।॥८।। 1|८|॥। मत्समः ! रक्षमाम् ।॥६। मत्सम त्वत्समा । हे महादेवी ! हे आदि शक्ति पाहिमाम् मातर ! है कुण्डलिनी माता ! रक्षमाम् । हे निर्मला माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥१२॥ रक्षमाम् । ! रक्षमाम् । २क्षमाम् ॥११॥ सी.एल. पटेले ॐ शान्ति क BBBEBCBEIE3CIEBCS8BB8BCB333B899 3336368 hor 8ककककBBBEDEDEBEBEBED 3833383834383686B6368 BB ाड सा सम्पादकीय चिदानन्दकार थुतिसरससारं समरसं निराधाराधारं भवजलधिपारं परगुरगम् । रमाग्रीवाहारं त्रजवनविहारं हरनतु सवा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे ॥१ ॥ स्त्रोत्ररत्नावली, पृष्ठ १८९ जो चिदानन्दस्वरूप है, श्रुति का सरस सार है, समरस है, निराश्रयों का आश्रय है, संसार- सागर पार कराने वाला है, परगुरणाश्रय है, श्री लक्ष्मीजी के गले का हार है, वृन्दावन विहारी है तथा भगवान् शंकर से सम्पूजित है । उस परमानन्द गोविन्द का सदैव भजन कर । आज हम सभी धन्य हैं कि साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर ने हमें दीक्षित किया है । श्री माताजी के दर्शाए मार्ग पर अपना जीवन उत्सर्ग कर देना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। निर्मला योग १ निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ. शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा ६ लोरी टोडरिक श्रीमती क्रिस्टाइन पेंट नोया यू.एस.ए. ४५१८ वुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बैन्कवर, बो.सी. वी. ७ एस. २ वी १ २२५, अदम्स स्ट्रीट, १/ई कलिन, न्यूयाक-११२०१ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउत श्री एम० वी० रत्नान्नवर ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़मेंशन सर्विसेज लि.. १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ १६० नार्थ गावर स्ट्रीट श्री राजाराम शंकर रजवाड़े लन्दन एन डब्लू. १२ एन.डो. ८४०, सदाशिव पेठ, पुणं-४११०३० इस अक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परम पूज्य माताजी का भाषरग ४. सहजयोग व शारीरिक चिकित्सा ५. प्राथना प्राथना ३ २३ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर ६. ७. प्रार्थना * ও निर्मला योग ति कोस्टीट्यूशन क्लब तई दिल्ली १०-२-१६८१ यहाँ कुछ दिनों से अपना जो हैं जब उसमें गहराई हो। और जब लेंने की बृत्ति कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। आपसे बताया था कि कुण्डलिनी राभ दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक जगह जा चूके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज रहे हैं। हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं आप साधक हैं। साधक होना भी एक श्रेणी है, एक category (श्रेणी) है। सब लोग साधक मान लेनी नहीं चाहिए। लेकिन इसका घिवकार भी नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको नहीं कहते कि श्राप सहज योग करो या सहजयोग सिवा हमारे तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी चाहिए और पाना चाहिए । दिमाग जरूर [अपना नहीं है । लेकिन जो नहीं है वो नहीं है, जो हैं सो हैं । अ्रगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है जो साधक है उसके लिए सहज योग है । हरेक और उसके साथ और भी क्या-क्या बीति कहे रही है ये आप लोगों को में आश्। किसी से भी नहीं कहते । अभी नहीं है । और प्रगर मैं कहती है कि मुझे है, खुला रखें। है। आदमी के लिए नहीं। अाप तो जानते है कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहां रह चुके है । लेकिन हमने अभी तक किसी भी पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है । इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और प्राश्रमों में या अऔर गुरुं के यहां पर होता है कि अप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाईए | यह। पर आप हो हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है माता जी निर्मला देवी हैं जिनको हम दूसरी तरह अर आप ही को अत्मसात करना पडता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं. आप गंगाजी में जाये, इसका आदर करें. उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं] । गर प्रापको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई शपसे नाराज नहीं होतीं । से जानते हैं । तो सहज योग जो चीज है, इससे आपको लाभ उठाना है पहली बात । इस बात को अगर पहले आप समझ ल कि कि आपको कुछ पाना है । एक बार इस बात को अगर मनुषय समझ ले, कि परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और यहां कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहज योग को भी आप कुछ नहीं दे सकते । उनसे सहज योग की ओर देखने की जो दृष्ट है उसमें लेना ही मात्र है । लेकिन ममाँ की दृष्टि से मुझे ये एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखे । अपने में गहनता रखें अरर इसे स्वीकार करें । है, जसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते निर्मला योग माँ जो होती है वो समझ के बताती है। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लं प्रर आपको इच्छो शक्ति है उस का शुद्ध स्वरूप है । यूर्ण शुद्ध मैं परेशान करू और फिर देख कि आप इस योग्य स्वरूप है। मतलब ये कि एक हो इंच्छी मनुष्य हैं या नहीं, या पात्र हैं या नहीं। दूस रे ये भी बात को होती है संसार में जब वो आता है । उसका है कि माँ बच्चों को जानती आ्रच्छे से है। जानती कि इनमें क्या दोप है, क्या बात है, किस वजह से दूसरी उसे इच्छा न ही होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप रुक गये । उसको उसकी मालूमात गहरी होती है है। और जब तो इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे बैठतो है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है को भी ठीक किया जाए कहीं डाटना पड़ता है, तो पर अभी इच्छा ही है । इसलिए पुरा इंट भी देंगी। जहां दुलार से समभझाना पड़ता है, वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा समझा भी देती है। और ये सिर्फ मां का ही काम है वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी है और कोई कर भी नहीं सकता । मुश्किल का म है वसी ही बनी रहती है और वो अ्रपनी इच्छा छाया और किसी के लिए करना। क्योंकि ये सारा काम की तरह आपको संभालती रहती है कि देखो इस व्यार का है । आज मनुष्य इतने विष्लव में और रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी इतनी आफत में है; इतने दुःख में और आतङक में जो सम्पूर्ण शुद्ध आपके अरन्दर से इच्छा हैं वो पूरी बैठा हुआ है। इस क़दर उस पर परेशानियाँ छाई नहीं होगी उस इच्छा को पूरी किए बगेर पप हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा कभी सूख भी नहीं पा सकते । सारा आपका पिण्ड इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है । [और ये माँ जो है वो इसीलिए बनाया गया कि वो इच्छा पूर्ण हो समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफत उठा हो जिससे अरप परमात्मा को पाएँ । रहे हैं, उनको कितनी परेशानियाँ हैं और किस कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की है शुद्ध स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और । बनाने पर भी पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व जागृत करना करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है बो बाहर की ओर होने लग जाता है। माने आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि ओर जाने लग जाती हैं । आप ये सोचते हैं कि मैं "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो ये चीज पालू । जब आपका चित्त बाहर जाता है हजारों व्षों से आपके जन्म होते ही श्रप में प्रवेश उसका भी एक कारण हैं जिसके कारण आपका करती है और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब चित्त बाहर जाता है । जो मैंने कहा था कि वो जरा तक आप पार न हो जाएँ । वो प्रतीक रूप आपकी विस्तारपूर्वक बताना होगा । जब, क्योंकि गप्रापका] माँ ही है ।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक चित्त वाहर की ओर जाने ल गता और] [जैसे-जसे रूप आपकी महा-माँ ै। आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की शुद्ध चाहिए। ये माँ ही कर सकती है। को एक छाया है, छुवि है एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि 'माँ आापने ओर जाने लग जाता है । इसकी वजह से जो कहा था कि पूरी रचना हमारी करने के बाद, पिण्ड इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि शुद्ध विद्या कहते की पूरी रचना करने के बाद भी वो वेसी की वेसी हैं और शुद्ध आपके अन्दर जो अन्तरतम् इच्छा है ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से समझाया वो एक ही है कि परमात्मा से योंग घटित हो वो जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँ गी कि कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिऱ् आप ये ही सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएं उसे पाएँ उसे पायें । किस तरह से होता है । निमला योग इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है। इसीलिए इसे Residual energy ( अवशिष्ट ऊर्जा) किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए । मैंने बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दने काटे और मैं न कहू कि ये गदन काट रहे हैं । कहते हैं । व ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही आपको ये कहे बग र कसे होगा, आप ही बताइये, आप माँ- खीचकर इधर से उधर ले जाती है और प्राप दर- दर पे ठोकरें बाप भी हैं। आप बताइये कि अग र आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए खाति हैं, कर्मकाण्ड करते हैं, इवर हुंडते हैं, किताबें पढते हैं और आप अपने अन्दर बारणा सी वना लेत हैं कि एरमेर्वर का पाना ये नमुर्ध कर देगा और अ्रपकों विचलित । होता है, परमेद्वर का पाना ये होता है। जब तक आपका कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ देगा प उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोनते है कि या उसका ऐसा कर देंगा कि बो freeze हो जाए हैमें इस चीज से पूरा हो जाएगा। किसी चीज से (जम जाए) एकदम । तो क्या कोई मा ऐसी होगी पूा हो जाएगा । सो नहीं होता। पर बहुत वार कर देगा जो नहीं बताएगी ? इस मामले में बहुतों ने मुझे पूरा ऐसा भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब डराया भी, धमकाया भी। कहा कि आपको कोई हमारी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है गोली झाड़ देगा। मैने कहा झाडने वाला अभी तब कभी-कभी कोई लोग भी या से लोग कि पंदा नहीं हुआ। मुझे दे खने का है । ऐसा आसान जो बहुत पहेँचे हुए लोग हैं वो भी इस मामले में ये तहीं है मेरे ऊपर गोली झाडना। वो तो ईसा बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण हो मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ जाती है। लेकिन बहुत-से अगुरु भी इस संसार में गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको हैं। बहुत-से दुष्ट लिया है। और इसी वजह से बो आपको इस इच्छा था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ । गुरु ट लोगों ने भी गुरु रूप घारण कर पता चल जाता । लेकिन वो एक नाटक खेलने का मन्व्रमु्ध कर देते हैं। माने कृण्डलिनी को तो कोई छु नहीं सकता।, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्द्रमु्घ बार देते हैं । बो ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो मन्त्र मु्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक कुण्डलिनी जागृत कने के लिए क्या करना नाहिए? इच्छा परममा से योग पाने की है दो छुट करके ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर आप सोचते हैं कि ये जो प्रगुरु हैं जिसने हमको मन्त्र लंक्चर में सैं कहती हैं कि ये जीवन्त किया है. किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा क र देगा। इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते । 'आप नहीं चो अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी मुश्य इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस कर सकते इसका मतलब तहीं कि मैं नहीं कर चीज से चिपक जाते हैं । और जब अाप मन्रमुख सकतो की तरह उससे निपक जाते हैं तब आपके घ्यान है में नहीं आता है कि अापकी वास्तविक इच्छा पूरी एक डॉक्टर है जो कि (ऑपरेशन) operation नहीं हुई है अरोर ऋ्राप गलत रास्ते पर चल रहे हैं । करना जानता है, वो ही शपरेशन कर सकता है। जब तक आप बहुत ठोकरे नहीं खाते हैं, जब तक पर कोई दूसरा अ दमी अगर इस तरह का काम आपका सारा पेसा नहीं लुट जाता, जब तक आप करे तो लोग कहेंगे कि 'ये खूनी है और इतना हो पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके घ्यान में नहीं वो खून ही कर डालेगा, क्योंकि उसको मालू- ये बात नहीं आती। । इसका मतलव यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते । अविकारी होना चाहिए । जैसे मात ही नहीं उस चीज की । जिसको इसकी जान- निमंला योग ५ चुके हैं और जैसे ही अफ़सरी खत्म हो गयी तो कोई कारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए । भी नहीं। वड़़ा आश्वरय ं है पूछता अगर ग्रापका transfer (तबादला) ही हो गया तो कोई नहीं जब प्रप सहजयोग में पार हो जाते हैं उसके पुछता। आपने मकान बना लिया, आपने देखे हैं बाद इस के नियम शुरू हो जाते हैं, जो परमात्मा के कितने वडे-बडे ख ण्डहर पड़े हुए हैं । [श्र न कोई दरबार के नियम हैं-जसे आप हिन्दुस्तान में आए जानता है कि ये है ब्या बला, कहाँ से आई, क्या तो अपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते है । साम्राज्य में अए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं। और अगर प वो नियम न पाल तो (क्रिला) में । तो रात बहुत पके वाइब्रेशन हाथ से छुट जायगे। बार-बार वी कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तजाम था हुआ। बड़े-बड़े ऐसी चीजें खत्म हो चुकी हैं। उसी प्रकार जब अाप परमात्मा के एक बार मैं गयी थी आपके आगरी के fort बीत गयी वहाँ । और छुट जायेगे, बार-बार आप पहले जसे तो बहुत रात हो गयी। श्रर वो कहने लगे 'जब वाइब्रशन होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसको अपने भीड़ जाएगो तब आापको ठीक से दिखाएँगे। बहुत ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए। जब तक आपने कुछ चीजें दिखाई। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नही पाया, आप ्देखा कि विल्कुल 'सब दूर पाइएगा वाइब्रेशन] अपके छूटत जाएँगे। क्योंकि ये भी उस वक्त में चहल-पहल रही होगी रानियों ने वाइब्रेशन आपकी आरत्मा से प्रा रहे हैं। अवेरा है। 'सब जितनी क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं। आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहत है। राजाओं ने परेशान किया होगा। बड़े-बड़े बहाँ पर माने बो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि बो ही एक सत्य है, बाक़ो सब असत्य है। बाका सबव अह्म नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस जमानि है। ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जा में । सब एक दम फ़िज़ल । कुछ नहीं सुनाई दे रहा कुछ उनके अ्रलावा हैं-अत्मा, व्रह्म इसके अ्लावा भी है वो परसत्य है । दावत हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता था । अब वो वाज़ खत्म हो चुकी थी वहाँ। कुछ भी नहीं था । एकदम अधेरा चारों तरफ छाया हआ और जब हम बाहर आ रहै थे विल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास । एक साहब आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा के पास जरा-सी Torch (टॉच) थी, उससे सभी कि साहब मैने मत्रान बनाया, घर बनाया औ्रर लोग देखकर बाहर का रहे थे। बाहर आते वक्त बच्चों की शादियाँ कर दो या कोई बड़ा भारी उस देखा कि एक चिराग को रोशनी जल रही थी । का तमग मिल गया । मैंने 8eroplane (हवाई उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा जहाज) बना दिया आर कोई चीज़ बना दी, मैं कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा ? मैंने बड़ा भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया ? कहने लगे गया। ये सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात कि यहाँ पर एक मजार है, एक पीर की मजार हैं है । क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, और ये पीर बहुत पुराने हैं । 'कितने पुराने ? कहने शार्वत नहीं है । ये कोई अदमी, आज बड़े-बड़े लगे कि जब ये किला भी नहीं वना था, उससे अफसर हो जात हैं। हम भी अफ़सरी काफ़ी देख पुराने । अच्छा, त व से इस पर दिया जलता रहता 1 जो कुछ असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया, निमंला योग पततट चल रहा है। उसको बार-बार grounding कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गई है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । ये सतातन है पोर होता जाना सतातन है। ये शाश्षत है। वाकी सव असत्य है, सव गुम है। गया और ग्राप पार भी हो गए और माना कि आप पर है, खर्म हो गया, शुन्य हो गया, लोन हो गया । आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आाप रोजमरों ही देखते हैं जरा-सा देखें और समझ क्या है । अपने ही आँलों के सामने आपने देखा है कितनी हो गए, और आपके अन्दर से बाइत्रशन शुरू होने लगे । तो फिर आपको जरूरी है कि आप अपने को अब, सबसे जो बड़ी गुलती हब लोग करते हैं, । सबसे पार होने के बाद पहली ग़लती ये है, कि हम इस यार ऐसे होता हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। तो उसमें कभी- इससे आप समझ सकते हैं कि ये सनातन नही है। कभी शङ्काएं भी बहत लोगों को आती है। कहते हैं ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे भई करसे हो सकता है, माँ ने हमको mesmerise आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धुथ कर रहे हैं। आज बड़े (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता ? हो भारी आदमी बन कर धूम रहे हैं, आपकता ठिकाना सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कसे नहीं। कल प्राप रास्ते के भिखारी बने होंगे। जो ऐसे हो सकता है, हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बडी चोज सनावन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौडे ? दिवकत होती हैं, हम ऐसे ओसानी से कैसे पार हो जो चोज सनातन है उसे पाता चाहिए। जब गए । ठण्डो हवा अरा गयो तो क्या समझना चाहिए आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है. कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए ? ये कैसे तो वह खोता नहीं। जब उसका जम्म होता है तो हुआ। Realization के साथ वो दूसरो चीज मोक्ष, मोक्ष लेकर के वो आ्राता है । वो करुणा में फिर से जन्म नडी सकते पहली गुलती ये है कि इसके बारे में अआप सोच । सोचने से आपके वाइब्रेंशन खट से खत्म हो जाएँगे। आपको अगर हम हीरा दें और शरापको कहें ये आपके पास हीरा है आप उस पर लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है। लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस सनातन को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए, तब भई ये हीरा है क्या ?' कम से कम इतना तो आप हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल क्या करंगे ? आप जोहरी के पास जाकर पूछेगे कि करंगे क्या धर में बैठे-बैठे सोचकर होरे को कोई फेक देगा ? जब रोजमर्रा के जीवन में हम लोग जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। ैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए कि ये पर म है या नहीं ? श्रर इसमें शङ्का करने की स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं। जैसे आप जानते हैं अगर Aeroplane (हवाईजहाज) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते तो उड़ाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance आप नाच सकते है, कृद सकते हैं। ऐसा होता है, (सन्तुलन) कैसा है । ये ठीक से चल रहा है या नहीं वैसा होता है, ये होता है । ये सब परम की वात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमने परम पाया है तो आ्ाखिर ये कैसे जाने कौन-सी बात है ? बहुत-से गुरु लोग हैं, अ्रपसे कहेंगे कि इसमें कुण्डलिनी में, निमंला योग he चीजें आप वैसे भी कर सकते हैं । माने नाचना कोई कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है। मुश्किल काम नहीं, क्रूदना कोई मुश्किल नहीं, में ढक जैसे चलता भी कोई मुश्किल नहीं है । ओर ये living process (जीवन्त क्रिया) है। आपका आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिख्ा रहे है, तो evolutionary process है ( उत्क्रान्ति प्रक्रिया) लोग अपने foam (फोम) में बंठकर ऐसे उड़ते हैं और अप अरज उस evolutionary process के सोच रहे हैं कि बो हवा में उड़ रहे हैं। ऐसा सावना ्रन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आ्रापकी उत्कान्ति भी मुझ्किल नहीं है । धोड़़े पर भी लोग कूद करके (evolution) जो है, वो चल रहा है । अभी] [आप] बैठ जाते हैं। जरा कोजिश करने से आ् जाता है इन्सान हैं । इन्सान से प्राप अपरतिमानव हो जाते हैं। वो भी। ये भी कोई मूश्किल नहीं है । यो भी अराप कोशिश करें तो कर सकते हैं । और याप एक तार हम ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करगे, वो पर भी चल सकते हैं, सरकस में जसे चलते है । या तो हम कर ही सकत है। वो तो अब वो काम करगे आप कलाबाजी कर सकते हैं । ये भी प्रपने करते कि जो हम नहीं कर सकते । तब फिर इसमें सोचने देखा है और कर सकत हैं। अगर आप कोशिश कर की बात क्या है ? तो सब धन्धे आप कर सकत हैं । माने ये कि spontaneous (सहज) है, याने जब इस तरह से बात आपने समभ ली कि जो काम हाथ में ठण्डो-ठण्डी हवा आनी शुरू हो गयी सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते ? कि ये एक इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हआ है| त्रिकोणाकार अस्थि में अ्रगर आप स्पन्दन देखें तो कोई नयी बात नहीं है चैतन्य की लहरियाँ, ये मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है। स्पन्दन आप नहीं ्रह्म की शक्ति है ले किन इस पर प्राप सोच करके कर सकते कहीं भी। फिर उसका उठता हआ स्पंदन क्या करने वाले हैं ? प सोच करके भी कोन-सा आप देख सकते हैं। सब में नहीं, क्योंकि कोई श्रगर प्रकाश डालने वाले हैं ? क्योंकि अ्रपकी बुद्धि तो बढ़िया लोग हों तो उनमें तो जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से अगर आप समझ लीजिए यहाँ से, चन्द्रमा में चले लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है । अनहतु पर बजना सुनाई देता है। तो कबीरदास जी साचिकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा बहुत अच्छा कहा है कि 'शून्य शिखर पर अनहत् कया? प्राप जाइए अऔर देखिए । जो चीज़ है उसका सीमित है, और मैं तो असीम की बात कर रही है। गए तो वहाँ जाकर के देखना ही है न । कि अआप उसका होना चाहिए, वेसा होना चाहिए । उससे फ़ायदा ने बाजि रे' । 'शून्य शिखर पर', यहाँ (सहस्रार) पर साक्षात् करना चाहिए । अनहेत् का बजना आप सुन सकते हैं। शन्य शिखर पर अनहत् वाजि रे । तो उसको अप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु हैं, कहते हैं हम नाच दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है । पहला रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के 'नाचि रे-नाचि रे"......... भई, ये क्या तरीक़ा हैं ? सीधा हिसाब ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द में मनुष्य की बात है । दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व करता है, ले किन वो करना परमात्मा को पाना पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन नहीं है । बो हो सकता है कि मनूष्य पाकर के गा गई है पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर । रहा ही या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं एक ही फूल । वो जमाना और था। उस जमाने में अभी तक । पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी नहीं था कहीं होता है । उसके बगैर हो नहीं सकता अब, जब आ्पके अन्दर में ये शुरू हो गया, तब नियम ये कि इसके बारे में अप सोच नहीं सकते किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी को कोई बताता । और निर्मला योग भी नहीं था। समझ लीजिए कबीरदास जी ने भी यहाँ हों चाहे इंगलेण्ड में हों । पर सहजयोग कहा है तो उन्होंने सिफ्फ अथता ही बणन किया है में पूरी तरह से हमसे connected (जुड़े) हों, तो। कि भई मेरे 'शुन्य शिखर पर अनहत् बाजि रे और आवे प्रधरे लोगों को नहीं होता। लोग कहते हैं मे रे ऐसे-ऐ से 'इड़ा पिंगला सुषुम्तो नोड़ी बग रा 'माँ suddenly (रचानक) कभी एकदम से खुशबू है । पर इतना गहराई से बताया नहीं, वयोंकि आने लग जासी है।' क्योंकि सब एक ही [अङ्ग के उन्होंने ये काम किया नहीं था, उसके बारे में प्रत्यङ्ग हैं। ये जब तक आप समभ नहीं लगे पूरी निवेदन किया था, उसके बारे में Prophesy तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी । (भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है विशेष कर जञानेश्वरजी ने साफ़ कहा था कि महायोग हीने वाला है। विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी बनि ने बहत सहजयोग के वारे में बताया जो ये घटना घटने वाली है । अब बहुत-से लोगों को मैं देखती है कि मैं घर बहुत से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते हैं कि हम बई ? बहुत से लोग यहाँ इसलिए नहीं प्राते हैं कि हम बड़े भारी श्रफसर तो, जो चीज़ घटने वाली है, होने वाली है उस हैं। पर जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित ) करते के बारे में उन्होंने कहा था। और अआज जब वो घट हैं, और गरन्दे काम करते हैं, वहाँ सब मौटरे लेकर गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहत पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा नहीं पूछना हो तो बहां पहुँच जायेंगे सब, मोटरे लेकर । गया किताबों में । ये बहुत गुलत घारणा है । क्योंकि लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये। वहां मैं देखती है कि लोगों को शर्म आती हैं आते में ले जाऊंगा मां अरर वहाँ मैं करूंगा। भारी अफ़सर हैं। हम यहाँ कसे हुए। या तो कुछ लोग इरते भी हैं। किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसको करें तभी तो आप लिखेंगे । इरने की कोई बात नहीं । अपनी माँ है । हम इसलिए इस तरह की धारणाय लेकर के मनुष्य तो सबकी माया जानते हैं, किसी भी तरह का अपने को रोक लेता है । मामला हो, हम ठोक कर सकते हैं । तो डरने की पर जो महत्वपूर्ण, जो बड़ा, वो ये है, कनिसीवात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न हमारा। उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक चेतना का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point (वात) क्या है, इसको समझना चाहिए । जैसे हम कहें आप भाई -बहन है अ्और अपने एक-दूसरे को भाई-बहन समझ । यह तो ऊपरी बात कहनी हुई। जब यह है ही नहीं, तो कसे समझगे । लेकिन पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने हमको होता । जन्म दिया है । अब जैसे जो लोग पार हैं, अगर हम अपने हाथ में फुंक तो आपको भी फूँक आएगी। ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन ? नहीं है । ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी । जब तक वो पार नहीं यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent (हत्र) वर्गैरह लगाय तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे आप ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ निमंला योग हं LC इदc/. से ठण्डी-ठण्डी हवा तो चलनी शुरू हुई, और प्राप बताता है। । जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो शुरू-शुरू और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा हरकत कर रही जाता है, तो हमारा जो चित्त है माने हमारा है, पता नहीं क्या ? आप उनसे पूछिये कि आपको attention है, वो जहांँ भी जाता है, वो काम बहुत जुकाम होता है, आापको कोई शिकायत है, करता है । अब ये चीज भी मनुष्य के समझ में नहीं ऐसी तकलीफ़ है ? कहने लगे हा भई क्या बतायें, आती। माने कि यहाँ बैठे-बैठे किसी सहजयोगी का तुमको करसे पता नहीं क्यों काट सा रही थी ? ये subjective सकता है । knowledge है, subjective माने आत्मा का knowledge (जान) । Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि । और बहुत दिमागी जमा-खचं । मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता है, मैं उसे जानता हैँ । इसलिए उसे 'सत्य-स्वरूप कहते हैं। ? कहने लगे मेरी ये उँगली पता चित्त अ्रगर गया कहीं पर, तो वो दमी ठीक हो हमारे एक रिश्तदार हैं उनकी मां बहत बीमार रहती थीं विचारी तो वो हम से बताते हैं कि 'अब हम आप से नहीं बताय गे क्योंकि वहुत वुढ़ी हो गयेो हैं, अब उन्हें छट्टो कराइये आप ही दूढ़ी हो गयी हैं। । जब भी हम बताते हैं वह ठीक ये Absolute Knowledge (शुद्ध सत्य हो जाता है । ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम विद्या) है, आत्मा Absolute (शुद्ध सत्य) बताते है ठोक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी है । ये absolute knowledge है । लो हैं अब भी फिर वसे ही हाल हो जाता है। फिर एक आदमी एक वात कहेगा वही दस आदमी बमार पड़ जाती हैं फिर अपको बताते हैं, वो ठीक कहेंगे, अगर वो सहजयोगी है तो। दस छोटे बच्चे हो जाती हैं। मतलब चित जो है, वो जागखक हो अगर Realised Souls है- ये experiment जाता है । जहाँ भी आपका चित्त जाएगा बो कार्या- लोग कर चुके हैं-उनकी अखि आप बाँध कर रखिये न्वित होता है । जहाँ भी आाप चित्त डालें । और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये। वताइये कहने लगे इनके बाइब्रेशन्स, कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा अना आ रही है। 'सब । इसमें जलन हो रहा है। माने चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेवशन ठीक न हो ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका तो मैं थोड़ी देर बात करू गो सुनाई देगा, बाकी लौवर खराब है-वो थोड़ा सीखना पडता है। आप वात गुल हो जाएगी। यही बात है, इस वजह से यहाँ बैठे हैं किसी भी आ्रदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस पदमी कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना को क्या शिकायत है । बैठे-बैठे । ये सामूहिक चेतना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा । में आप जानते हैं। आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकत हैं । कोई गुरु वो सच्चे थे कि भुठे थे, जान सकते हैं। आप कहीं पर जाये औ्और कहें कि की समझनो चाहिए कि सारा एक ही है। हम सब यह जागरूक स्थान है, आप जान सकत है कि जागृत है या नहीं। आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी आयेगे । जागृत नहीं होगा तो नहीं अराय गे । ले किन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में काड आप बाइंब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा ले किन सामूहिकता की और भी गहनता अपने प्रत्यंग है, तो एक अंग-प्रत्यंग हैं । और जब हम अंग- जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन कम नहीं हो सकता । कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा आ जो सच्ची वात है, जो सत्य है वह त्मा निर्मला योग १० গাe जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन सकते हो । तुम बाइब्रेशन बेच नहीं सकते । कहने गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे लगा मेरा Centre (केन्द्र) है, उसमें लोग आते हैं आदमी हैं जब ऐसी भावना आ जाए तो सोतना खाना खाते हैं। मैंने कहा ठीक है, खाने का पसा नाहिए कि बहुत ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। लो। वाइब्रेशन को क्यों लिखा । लिखो, खाने का जिसने ये सोच लिया कि हम ॐँचे हो गये सोचना कि हम पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि Profit (लाभ) नहीं बना सकते । ठीक है, जितना जैसे ग्रादमी सच ही ऊँचा होता है, वेमे-वेसे वो नम्र लगा उतना खचवा लो । उसके दम पर तुम अपने ही होता जाता है। उसकी अवाज़ बंदलती जातो महल नहीं खड़े कर सकते । ओर वाइज्रशन उसके है। उसका स्वभाव वदलता जाता है। उसमें बहुत तेसे थे कि जैसे जल रहा है। बहुत नाराज हो गणे ही नम्रता, उसमें प्रेम बहुते रहता है। ये पहचान है। मेरे साथ । और नाराज होकर के वो चले गये। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में अाने के बाद भी बुलन्द (बड़ष्पन) पर आ जाए अर कह 'साहिब तुम सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत ये क्या हो, वो क्या तो उसको खुद सचिना चाहिए वकना शुरू कर दिया। जब बहुत बकनी शुरू किया कि मैं गिरता जा रहा हैँ। लेकिन इसका दु्रा तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़ ही भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये कर कहने लगे, 'उयादा बका तो ऊपर से नीचे फेक है। मैंने देखा । एक साहव थे, उन्होंने सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब औए योगी हुए हैं। इनमें कोई न म्रता नहीं है। मैंने कहा तो सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं प्और चक्कर स्खाकर गिर जाते हैं तो बड़े चक्कर वाला आदेमी है, मैंने कहा, 'अच्छा. मैं तो समझ रही हैं । फिर मैंने उससे कहा, 'अच्छा जरा अपना Brochure (पुस्तिका) दिखाओगे ? Brochure में उसने लिखा कोई अ्रग र साधू सन्त है उसको जूते मारो, तो भी T fE Vibrations-for ordinary vibration , वो इतना पेसा, कमरे का इतना पेसा । उसमें भी आप उ उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा । लेकिन अमरीका में और देंगे । तो कहने लगे 'बाह रे वाह, देखिये ये सहज खबरदार' जो सहजयोगियों को कुछ कहा यामुझे कुछ कहा अब; मैंने सुन लिया बहुत । मैंने कहा ये दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था । अगर किसी ने भी एक शब्द कहा हैं, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा । बहुत लोगों को ये है कि साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने बाला । मारियेगा तो हज़ार प्रप खाइयेगा। तब वो घवडा करके भागे वहां से । 100 dollars a for special vibrations 250 dollars (साधारण वाइब्रेशन : सौ डॉलर, बिशेष आप अगर एक जुता कहा गये काम से ये । वाइब्रशन : २५० डॉलर)। मैंने तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या वदतमीजी है आपकी? पने कितना पैसा दिया था मुझे, कितने Doliars (डॉलर) दिये ये आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो आ गया ?ै दूसरी side ( तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है मिले । मुझसे बकवास करने लगे, मैंने कहा कि मैं पसे कैसे कमाऊँ फिर ? मैं खाऊँ क्या ?' मैं चुप रहिए, ग्राप वेबकफ़ आदमी हैं, ने कहा, भुखे मरो । पहले कुछ करते थे ? कहने लगे हाँ मैं स्कूल में पुराण पढ़ा, मैंने वो पुराण पढ़ा । मैंने कहा प्ापने पढ़ाता था । मैने कहा स्कूल में पढ़ाओं। जो करते कुछ नहीं पढ़ा बेकार बात कर रहे हैं। अपको कुछ थे सो करो । लेकिन तुम सहजयोग को बेच नहीं पता नहीं है लोगों में है कि 'आपको गुस्सा कसे ओर) ऋभी एक साहब ये भी बहुत बहुत वकवास क्या तुम सहजयोग से कर रहे हैं बेकार में । कहने लगे मैंने ये । अभी पता हो कि नम्बर दो को निर्मला योग ११ चलाते हैं कि नम्बर चार पता नहीं क्या-क्या होता है, श्रर सब साथ हो साथ एक हो जसा चलता है। है। तो मैंने कहा क्ि देखिये आप बेवक़ फ़ी की बाते अव उसमें से कोई सचे मैं अलग हैं । एक-आध, मत करिये । दुसरे जो है उनको समझने दीजिये आप वीच में बकवास मत करिये, अआप चुप रहिए । तो कहने लगे देखिये अपको गुल्सा अरा गया। आप है? की अगर कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा दो-चार मक्खन के करण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते हैं । उसके पीछे में कीन दौड़ने चला । "सब एक हैं शर एक ही दशा में हैं"। गुस्सा मत पूछी तुम । कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हैं । मैं नीची दशा में हैं। ॐवी दशा में है, कभी नहीं सोचना । जरा सहमे महाशय । लेकिन बात ये है कि इस इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है । यानी आप सोच लीजिये कि जय हम एक ही अंग तो फिर बड़ा जबरदस्त होता है जब आए त। तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं। आप कोई बिलबिले ्रादमी नहीं हो जाते हैं। है। अ्गर एक उँगली सोच ले कि मैं बडी हो जाऊ आप वीर श्रीपूण, अप तेजस्वी लोग हो जाते हैं, नाक में री सीच ले कि मैं बड़ी हो जाऊ। कसी शपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है। ये थोडे दखिगा शक्ल ? ये तो malignancy (दोष) है यही तो cancer होता है। cancer में एक अपने को बड़ा समझकर के बाक़ी cells को खाने लग जाता है। ये हो गया केंसर। ऐसा जो इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) बनाना चाहता है कि सब मरे ही पास हो जाए, मैं कोई तो भी विशेष हो जाऊ । मरा ही कुछ विशेष हो जाये, वो आदमी कि आप उस वक्त में जितना भी कोई चांटा मारे आप खायंगे । कर दो। वो दूसरी बात थी, उसका अरथ ही दूस री वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ़़ था । क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल था कि एक ही चाँटा कोई नहीं खा सकता था। लेकिन पार होने के बाद ततक्षण आपमें शक्क्त आ जाती है। cancerous हो गया society (समाज) के लिये । तत्क्षण । सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं कहानी बताती हैँ। कि जैसे एक बहुत-सी चिड़ियाँ विशेष कर रहा है, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहत नजदीक है, तो इतना वो दूर क्योंकि मन्थन हो रहा है बड़े जोर का मन्थन हो रहा है । शायद आप इसको निकाल देंगे । तो कहा, हाँ ठीक है । सब मिलकर महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता के एक, दो, तीन कहकर के उठें । और सबके सब नहीं। जब हम दही को मथते हैं, तो उस उठे और जाल को तोड़ दिया उन्होंने । थीं औौर उनको एक जाल में फेसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर जाकर इस को तड़वा देंगे बाद में, फड़वा देंगे, किसी तरह से चला जाएगा। वही चीज सहजयोग है । सहजयोग की सामू- का सब मक्खन ऊपर आ जाता है । फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते हैं यही समझ हिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये बहुत लीजिए Incarnation (ग्रवतार) है, समझ गड़बड़ होता है। माने, मां, मैं घर में बैठ करके लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा घ्यान करता है । रोज़ पूजा करता हैँ । मेरे है । और उस मक्खन से बाक़ी सारा लिपट जाता वाइब्रेश बन्द हो गये। होंगे ही आपको सामूहिकता निर्मला योग १२ में आना पडेगा । आपको Centre (केन्द्र) पर आना अनुभव करके देखं, कि अगर कुछ पेड़ मरगिल्ले हो पड़ेंगा । एक दिन हएते में कम से कम सटर में आ जाएँ तो उनको श्और पेड़ों के साथ अआप लगा करके प्रापको देखना पड़ेगा कि अपके वाइब्रेशन देरजिए, वो पनप जाते हैं । एक टूसरों को शक्ति देते ठीक हैं या नहीं। दूस रों पर मेहनत क रनी पड़गी। हैं। मानो जैसे कोई एक दूसरे को देखकर के बढ़ते आप दीप इसलिए बनाये गये हैं कि आपको हैं। और यही सामूहिंकता हो सर्व राष्ट्रों में [्र सबवं दूसरों को देना होगा। इसलिए नहीं बनाए गए कि देशों में फैलने वाली है । और उस दिन आप आरप अपने ही घर बनाते रहिये। फिर वही दीप हो जानियेगा कि अप चाहे यहाँ रहे, चाहे इग्लेंड में, सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दोप सामूहिकता चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भो मुसलमान में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को एक हैं । यही शुरूपरात हो गई है, और सहजयोग अलग न समझ । आएँ] नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में शरएँ हो सकता है कि सेन्टर में एक आघ आदमी क्रान्ति माने आ्राप जानते हैं । ये एक बड़ी भारी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नही करो। evolutionary क्रान्ति है । और जो पवित्र तो बूरा नहीं मानना है । क्योकि उन्होंने अनुभव क्ान्ति है । जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती किया है। उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, है उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस इसको छोड़ता चाहिए, इसे निकालना चाहिए शरजी भी सेन्टर में कहा जाये उसे कर क्यो अप हैरान होइयेगा। इसके कितने फ़ायदे होते हैं। कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता हैं । क देशों में या चीनी देशों में कहीं भी रहें आाप सब एक बड़ी संक्रान्ति है । सं माने अच्छी और । विराट के अंग प्रत्यंग हैं। हम अलग नहीं। और कुछ एक हमारे शिष्य थे प्रोफ़सर साहब राहरी में । बो जरा अपने को अफ़लातून समझते थे, कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे बहुत नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं एक ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरू किया बैठा हुआ बहाँ जगल में और कृष्ण-कृष्ण कह रहा कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तो अच्छा करते हैं, है। उनको time (समय) नहीं है । कबीर ने कहा बहुतों को पार तो किया ले किन जरा गुस्सा इनको कि "पंचों पच्चीसों पकड़ बुलाओ मतलब उनकी ज्यादा आता है। प्रोर इनकी बीवी से इनकी पटती भाषा में इतनी Authority (धिकार) भी देखिये । नहीं है। दुनिया भर की मुझे शिकायते करने लग कितने अधिकार से बाते करते थे । कोई गिला नहीं था गये। तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर ँ, उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, शरौर कहने लगे एक ही डोर उड़ाऊ।"' ये कबीर जैसे लोग बोल सकते हम लोग अलग से काम करेंगे तो भी मैं चूप थी । हैं। ओर आप भी कह सकते हैं इसको बाद में। तीसरे मतबा जब गये तो देखा कि बो कह रहे थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा उनमें । वो कहते हैं'"पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊ जब आप पार हो जाय तो आप भी देख गे कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेगे तब तक सहजयोग ले तो कोई बात नहीं, मैं तो खाता है। माता जी को तो कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता है कोई हजं नहीं । तो वो सब तम्बाकू खाने वालों बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं । उसके ने एक ग्रप बना लिया । माताजी के, मतलब, हैं तो बाद जब मैं आती है तभी आते हैं । उनकी हालत सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, कोई ठीक नहीं रहती। सहजयोग में बो बढ़ते नहीं, शराब पीने वाले सहृजयोगी, रिश्वत लेने वाले बोलने वाले सहजयोगीं ऐसे ग्रुप मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है । वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये सहजयोगी, झूठ निर्मला योग १३ बन गये। तो मैंने उनसे कहा-वहाँ पर सिफ़् अ्रब. बिल्कुल ठीक हो गये 'अव वो समझ गये तम्त्राकू खाने वालों का या, तम्बाकू बड़ी मुश्किल वात । उन्तके सगे कौन हैं, वह अ्रब पहचान गये हैं । से छूटती है, बहुत मुश्किल से । तो, उसके बाद उससे पहले नहीं । उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, जनावेआ्राली से मैंने फ़रमाया कि 'देखिये, जरा ग्राप दूसरे रिश्तेदा रों के पीछे में, उनको खाना खिलाना, सम्भल के रहिये । । उनसे कभी सहजयोग की वात नहीं हैं। जब ये ग्रष बन जाता है, मैंने तभी कहा, तब करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू malignancy (विष) बहुत जोर करती है । अगर वालों का एक गप बना लेना । एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन प्रगर दस cell हो गये र सब malignant हो गये तो गया आदमी काम से । उसके वाद जब मैं मोटर से में नहीं मिलेगा। र रहो थी तो मैंने रास्ते में जो वहीं के सञच्चालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये । मूझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फॅस जाएँ। और आपको चाहेगे कि ग्ाप खुश न हों। देखिए आपको आश्चर्य आश्र्य होगा कि उनको ब्लड केसर हो गया। बहुत ज्यादतियाँ आपने करलीं पिलाना ले किन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं दुनिया जयादातर सगे ऐसे होते हैं कि पापकी खुशियों पर पानी डालते हैं । और कहते हैं कि-उपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं लेकिन ग होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हजारों लोग पहुँत्र जाते हैं रोने के लिए । खुश होते होंगे, शायद अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी घर पर अरफत रायी, मन में। और जब कुछ हालत खराब हो गयी तो वो साहब बम्बई पहुँचे । प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये जितने । कभी खुश भी डॉक्टर थे सहजयोगी प्रौर जो लोग थे उन्होंने hospital (प्रस्पताल) में उनको भर्ती करना, उन का सब diagnosis (जाँच पड़ताल ) करना, उन के लिए दौड़ना, घुपना सब शुरू अब जो रिश्तेदार लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं अरे ये सहजयोगी उनके चिपके हुए थे वो तो सब छुट गए, वो कोई first (प्रथम) आ गया । इस सहजयोगी के ऐसे उनको जानने वाला नहीं । उनके पास तो न इतना गया। सहजयोगी के घर में किसी के बच्चा हो गया रुपया था न पेसा था । संब कुछ सहजयोगियों ने तो मार तुफान हों जाता है तैयार करके - मूझे कभी जो लोग कभी भी कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में टूङ्कोॉल पर ट्रङ्क- कॉल 'माँ वो हमारे एक सहजयोगी हैं, उनको ब्लड स्विटज़रलण्ड के थे । वहाँ आकर उन्होंने शादी केसर कसे हो गया। आप ठीक कर दीजिये । मैंने करी । कहने लगे में रे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते कहा 'इन्होंने कभी न चिट्री लिखी न कुछ किया । हैं । मुझे ब्या करना है स्विटजरलैण्ड में शादी कर आज टूङ्ुकॉल लन्दन करना कोई अरासान चीज़ नहीं। और जब देखो तब टुडकॉल, 'माँ इनको वहाँ आकर के उन्होंने शादी क री, अपनी बीवी को ठीक करदो, इन्हीं के प्राण निकले जा रहे हैं, सबके । बहरहाल घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने । कहने वो अब ठीक हो गये, बिल्कुल ठीक हो गये। डॉक्टर लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे- ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायं गे लेकिन सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने हा लगे-पता है इसका कसे प्रमोशन हो गया है। इसने वड़ी लल्लोचप्पो की होगी नहीं होते। ले कि न सहजयोग दूसरी चीज है। सहजयोग में हो ट्रङ्क- अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में । वो के । वो स्विटजरलेंड से आराये, राहुरी- एक गाँव में । । माने जैसे भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी। वहीं माँ वो हमारे .... निर्मला योग १४. हैं उनकी शादी मनाई। ओर अब उसको वचचा होने बहन । वाला है तो सब सहजयोगी ऐसे सखुश हो गये, आपस में पेड़े बांटने लग गये। और उनके जो रिदतेदार जाते हैं, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि पर जो लोग, जन सामूहिक नहीं होते वोनिकलते थे, उनको समझ में हो नहीं आ्राया कि ये केसे सब हो गया। अब आपके रिश्वेदार सहजयोगी हो जाते आ्पके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अ्रपने हो जाते हैं, आस्मज । centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है बो कि गया वो tangent (स्पर्शरेखा) से बाहर । वों रहता नहीं, फिर टिकता नहीं । इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये। इसके जो नियम हैं, उसको का मतलब किसी ने नहीं सोचा । 'आत्मज' जो समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से आत्मा रो पेदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा पूछना चाहिए। उसमें बुरा मानने की कोई बात नही। जो कल आए थे वो ज्यादा जान गये। आज आत्मज शब्द बहुँत सून्दर है । शायद कभी इस जाता है कोई बहुत नज़दीकी आदमी को ये मेरे आर्मज हैं । ज़िस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया औप अये हैं आप जान जाइयें । अ्रीर जो कल उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है। मै यर रूद आएंगे बो आप से जानेंगे। इसमें बुरा मानने की आश्रयं में पड़ती हैं कि मेरे जान को लग जाएँगे श्रर इसकी कोई बात नहीं। पर जब आदसी सहज अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ़ हो जाए-ऋर योग में पहले आता है तो बह यही भावना लेकर आता है कि अव हम इसमें आ्रये हैं और ये देखिये . बार-बार माफी माँगंगे, 'माँ तुम माफ़ कर दो । तम तो माफ़ करे दो। हो। नहीं तो.... माफी माँग रहे हो उसकी । 'अब वो भूल रहा है हैमें बड़ी शान दिखा रहे हैं। उस पर तुम कुछ नाराज़ हो गई ..'। मैंने कहा कि भई तुम क्यों ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी वदल गयी है, ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं ले किन ये माफी माँगना तो हम हो मंगि रहे है, उसको मफ़ दसरे हो गये हैं। जै से समझ लीजिये कि आपके] इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर ।ollege में लड़के पढते हैं। कोई बी. ए. है, कोई कर दो। इतना मोह लगता है कि 'कितनी मौहब्बत, First Year (प्रथम वर्ष) है । फिर कोई एम. ए. में कितना खयाल' । कितनी किसी पर कोई परेशानी है। एम. ए. का लड़का Pass (पास) होकर Prof - की परेशानी गा जाए कोई श्रा जाए, पैसे तकलीफ़ हो जाए. तो सबके सब secretly (चुपके में पढ़ता से) उसको कर लेते हैं, मेरे को पता ही नहीं था और आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर । उसी fessor (प्रोफ़ेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ चलता है। तरह की चीज है-इनकी श्रेणी बदल गयी। आप] की भी थेणी बदल सकती है। सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया को दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा ? अरभी तो हम लोग रगड रहे हैं सहजयोग में । कुछ progress नहीं बेमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition होता वो ऐसे ही चलते रहते हैं, डावाडोल-डावा- (प्रतियोगिता) और दो पागल Rat race के पीछे डोल । कभी गुरुओं के चक्करों में घुसे । आज ही में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा औ्और एक महाशय आये थे, [आ्राये] होंगे अभी भी । पार हो इतनी sense of security (सुरक्षा की भावना) गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शड़्कराचार्य के हमारे अन्दर अ जाएगी कि सव हमारे भाई कुछ कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से पास गये, कहीं किसी के पास गयें, कही कुछ गये । निर्मला योग १५ विचारे बित्कुल पागल हो गये-पागल । मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे प्रन्दर विशाच भर दिये हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साड़ियाँ इन्होंने। सत्रने पिशाच भरे । आए अभी वितारे; ं काफ़ी उनको साफ-सूफ़ progress (प्रगति) उनका कम हुआरा। अगर उसी पता हो गया कि ये साड़ी मेरे पडौस के उसके वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहा होते। और रिश्तेदार के उसके पास है तो लेगो नहीं । बड़ी तकलीफ़ उठाई बिचारों ने । बडी परेशानी उठाई । वाले भी इतने होशियार होते हैं विचारे । वो जानते दिखायेंगे। वो थकते नहीं बिचारे । मैं कहती है किया हमने । पर उससे कौन जीवहैं ये भी, पता नहीं। और कभी उनको ये variety की sense(विविधता की भावना) सौंदर्य का लक्षण है। इसलिए परमात्मा ने बनाया सामूहिकता को आप समझे कि वहुत महत्व- है। उसने सारी सृष्टि से बनायी, कहीं पहाड़ पूरणं है। सबसे बड़ा आशीर्वादि सामूहिकता में आता वनाये, कहीं पर नदियाँ बनायीं, कहीं कृछ दनाया। है । और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की इसलिए कि अप लोग उसमें मस्त रहें, मज में रहें। कोशिश की. यानि लोगों की आदत है, क्लब करने लेकिन आपने तो इसको ये, बना लिया देश उसको को कोई न कोई बहाना लेकर के । आप सफद वो देश बना लिया। उसने वो देश बना लिया बाल बाले हैं तो मैं भी सफ़द बाल वाला हूँ । चलो, और लड़ रहे हैं अ्रपस में । अजी ब हालत है । हमारे हो गये एक । आप लम्बे आदमी है तो हम भी लम्बे जैगे अरजनवी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, भई आदमी हैं, हो गये क्लब । आप सरकारी नोकर हैं इसमें लड़ने की कौनसी बात है ? और फिर घुटते- घुटते हरएक देश में अपनी-अ्पनी समस्या, अपना- 1 सुन्दर श मैं भी सरकारी नौकर हैं, चलो हो गए एक । अपने ढङ्ग बनता गया। सहजयोग में सब छुट जाता है। आप कौन देश के हैं? परमामा के देश के । आप किसके साम्र।ज्य के हैं ? परमात्मा के। परमात्मा ने थोडी ऐसा सहजयोग में ये चीज़ टूट जाती है । आपको देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग किस बनाया था कि अ्रप यहाँ के, अराप वहाँ के । भई तरह से अपने देहा तियों के साथ गले मिल-मिलकर परमात्मा तो हर एक जगह Variety (विविधता) के कूद रहे थे। और बहाँ पर तुत्य सीख रहे थे, कैसे वनाते ही हैं । ये त्रिगुरण के permutation and अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं । अगर ये पञ्जाव combinations(विविध मिश्रण)के साथ में उन्होंने जाएँगे तो वहाँ जाक र भगडा करंगे उनके साथ कूद- ये सारा बनाया, अ्रोर जिस लिए कि जसे variety से कूदकर । देखने लायक चौज है । ये भूल गए कि खूबसू रती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक हम किस देश के हैं। प्रेम-उसका मजा, प्रेम का जैसी हो शक्ल जाती तो Bore (नीरस)नहीं हो जाते मजा आता है। फिर ग्ादमो यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये कहाँ रह रहा है कि व्या; बस मजे में । ये सब विचार ही नहीं आता है - कौन कम से कम हिन्दुस्तानी अरतो को इतनी अकल बड़ा, कौन छोटा, कौन कितनी position में है । है कि साडियाँ पहनती हैं अब भी, अरीर सब अलग- कुछ खयाल नहीं आता। ये सब बाह्य की चीज है, अलग तरह की पहनती हैं। पर आदमी तो बोर सनातन नहीं हैं। क्योंकि सनातन को पा लिया है । करते हैं-उनके कपड़ों से । सब एक जने । श्ररत पर सबसे बडी बात [पपको याद रखनी चाहिए, जो हैं अ्भी भी अपना maintain किए हैं । अगर हर समय, कि हमें सामूहिक होना चाहिए और एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जेसी साड़ी पहन सामूहिकता में ही सह जयोग के आशोवाद हैं कर आयी है तो बदल के प्रा जाएगी। । 1 सब लोग? 1 और बो साड़ी अकेले-्रकेले individualistic विल्कुल नहीं निर्मला योग १६ विल्कुल भी नहीं। आप खो दीजियेगा सब कुछ । लेते हैं। उनको क्या माजूम ये सब चीज, कि ऐसा मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं । लोग ज्यादातर जो ऐसा होता है । लेकिन होता है । और उसके बाद बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी उन्होंने जमीन दी भी, मतलब किसी ने bribery तरह से होते हैं। आये, बीमारी ठीक हो गई, उसके तो हमने दी नहीं, तो उन्होंने हमें सब्जी मण्डी के अन्दर हमें जगह दी । वताइये अब ! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, वहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दो । हमने कहा, भई बाद बैठ गये । एक साहब अए थे हमारे पास, बहुत चिल्ला- चिल्ला कर 'मां मेरे ये जल रहा है, मु बसाया, जिसने दी है उसने कभी देखा भी कि बैलों के साथ वचाओ, बचायो ।' मैंने कहा, 'बैठे रहो अभी थोड़ी देर। उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए । उसके बाद एक दिन बाजार में मुझे मिले-तो मेरा फोटो वोटो रखा हमा है अपने मोटर पड़ा, सालों तक । अब दस वर्ष से कोशिश करने के में क्या सहजयोगो वहां बेठने वाल हैं ? बहरहाल अब दोड़ना तो उस बात को लोग समझ गए हमें बहुत | कहने लगे मैंने घर में भी फोटो रखा है, मेरे कि हम इस पर सोचेंगे । दिल में भी फोटो है। मैंने कहा 'बेंटे क्या वात है, इसका अ्रथ आप सेरकारी नौकर जानते हैं। हभी वाइब्रेशन तो हैं नहीं। कहने लगे 'हां नहीं हैं। बी सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह और अब एक कोई नई बीमारी हो रही है । मैंने होगी, जसे भी जगह, [पराप उसको देखें वहाँ करें, जो कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे लिए । तुम भी अभी सुब्रमनियम साहव ने अपना घर दिया सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर भराथो।" बाद उन्होंने कहा, हप्रा है वहीं होता है । और कोई जगह अगर शपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए । आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई कोई ज़रूरत नहीं कि बहुत बड़ी जगह हो। सर्व- केन्द्र नहीं । हर तरह के चोरों के पास यहां साधारण लोग जहाँ श्रा सके । इस तरह से सब इतने बड़े-बड़े परश्रम बन गये हमारे पास अभी अपना ही कार्य है । कोई जगह नहीं, किसी के घर में ही हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं । हमारे पास जो धन है, बो सबसे बड़ी चीज है। उसके लिये कोई ज़रूरी नहीं सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं । इसके कि अब महल खड़े हों, बड़े Air-conditioned लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। (वातानुकूलित) आधम हों। वह तो कभी होंगे ही सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना नहीं हमारे । और अभी तक हमें, कहीं भी हम लोग जमीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि हमने यह कहा था चौज है कि सहजयोग में अए हुए लोग आज बड़े- कि हम black-market (काला वाज़ार) का पेसा नहीं देंगे। तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ मिनिस्टी छटेगी फिर आएँगे जरूर आयेंगे फिर हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे हैं । हमारे चाहिए । सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली बड़े मिनिस्टर हो गये हैं। कितनी आश्र्य की है । लेकिन मिनिस्टर होने के बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब ये भी बात देखिये ऐसी जमीन देंगे जिसमें सीधा-सीधा प्राप पहचानियेगा कि ये फ़लाने मिनिस्टर थे, हम आपको पैं सा हो। आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में अ्रपके ! ये हालत है । Government (सरकार ) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं वो bribery (रिश्वत) पड़ेगी आपको । ये आपका परम कर्तव्य है। जो नहीं । एक माताजी । अव उनको फ़रसत फरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी निमला योग १७ कहत। है 'मेंरे पास समय नहीं है कब कहू, । मैंने सहजयोग नहीं कर सकता । रोज शाम को और कहा कि 'कितने बजे ? ३-३० वजे । मैंने कहा 'उस रोज सवैरे थोड़ा देर निकालना पड़ता है। सहजयोग वक्त तो मैं आराम करती है । तो कहने लगे 'हम में प्रनेक नियम हैं । अपने अ्रचार-व्यवहार, ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। रहन-सहन, अरासन दि क्या-क्या करने के वर्गरह मैंने कहा 'ठीक है, आपके लिए तो माँ का दरबार सबके नियम हैं। मैं सब नहीं बता सकतो। एक है, लेकिन आपकी अवल का दरबार कहाँ रह गया? ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही है क्या उसको वो लगे कि 'हन दिन में आए थे अपके पास वर्ताव, साहब उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रो के आासन थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए ? अगर उन्होंने आज नहीं बता सकती । लेकित इसके मामल में कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही हैं, आप बहुत लोग जानते हैं। कोन-से आसन करने चहिए, कौनसे चक्र पर कोन-सी तकलीफ़ है । आपको कौन- सही है? ले किन जव वो उस जगह खड़े होगे तो सी तकलीफ़ है, वो बता सकते हैं, पता लगा सकते कथा करेंगे ? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग हैं । आपस में आप विचार विभशं कर सकते हैं से बेकार में भागते हैं, और इसकी सबसे बड़ी वजह और आप Progress (उन्नति) कर सकतै हैं । नहीं आएँ तो आपको खूद सोचना चाहिए कि वात मैं तो ये ही सोनती है कि अभी बह पात्र नहीं है । लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत करनी होगी और कहना होगा कि 'मुभें तकलीफ़ है ।है। थोड़ दिन नाराज़ हो रहे हैं, कुछ हो रहे हैं सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो सब ऐसा कर रहे थे. तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, चीज । जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है. ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नही है । आपको घुसना पड़गा, उसमें रहना पड़गा, उन लागी के होता है, बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा । लेकित साथ बात-चीत करनी पड़ेगी। क्योंकि ये ऐसी कुला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है। कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग आपकी हालत खराब कर देते हैं, तब देते हैं का भी Testing (परीक्षण ) होता है कि आपह कितने योग्य हैं । यह नहीं कि अराप आए ग्रौर [आप] छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि 'साहब वो ऐसे-ऐ से थे। उन्होंने हमसे बदतमीजीं की जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अव्ल है, हम भाग आए । कुछ नहीं। सहजयोग में जमनो तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए । पुड़ता है और उसमें आना पड़ता है । हालाकि कीई कि किस तरह से हम गहन उतर चल जो आदमी पाचर होता है घुसता चला जाता बलो घूसते चले जाओ । और गहन उतरता है। साहब थे । वह जो Soft-line है, बो हमेशा लेती है, जीवन्त जब sprout करता है, तो उसका जी root-cap वड़ा समझदार, wise, होता इटानों से नहीं टकराता है । किसी पत्थरों से नहीं है । वो जाकर टकराता है, रपत्थर के किनारे पर थोडीसी soft नम जगह मिल जाए, उसमें से धुसती चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थ रों पर, इस । ती आप ( तरह से जकड़ जाता है कि सारा पेड का पेड़ उसीके सहारे खडा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात है तो आपका अपमान नहीं करता। लेकिन आप में बहुत ego(अहङ्कार) होगा। तो बात-बात में प्रपको ऐसा लगेगा । जेसे एक साहब आए, मुझे क हने लगे, 'हम से आपकी प्रगति नहीं होगी। आपका ही loss तो आ्ाए थे आपसे मिलने लेकिन वहाँ एक साहब थे (नुक्सान) होगा । ये सब बहानेवाजियाँ ग्रापको बड़े बदमाश थे । हमने कहा 'क्या हुआ ? कहने वन्द करनी चाहिएँ । ये प्रापके मन का खेल है । कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से भागने निर्मला योग १८ इसको आप छोड़िये । ये ego(अहकार) है और कुछ उठा ले तो सारी दूनिया ही आपकी रिश्तेदार है । नहीं है । ये बड़ा सूक्ष्म ego है। कोई प्रापके पैर पर पर यह सोचना कि मेरी वहन बीमार रहती है और नहीं गिरने वाला। यह तो जरूरी है कि सबसे अच्छी मेरे फ़लाने बीमा र रहते हैं और इस तरह से जो तरह बात-चीत की जाए, कहा जाए। पर अगर कोई लोग करते हैं उससे कोई लाभ नहीं होता । बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या जरूरत है अब? जब तक अाप केन्द्र पर नहीं आएंगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन जान के बीद आपका अधिकार बनता है। उस सकता है। पहले आपको पार हो जाना चाहिए । पार हो अधिकार के स्वरूप आप चाहें जो भी माँगे। आप का पूरा अधिकार है । सर आँखों पर हैं आप। प्राप एक तो सब से बड़ी बात यह है कि बहुत से लोग अगर समझ लीजिए आप इङ्गलेण्ड जाएँ और यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो इङ्गलेण्ड से जाकर आप कहें कि हमें ये चीज हमारे बाप-दादे के दादे के, बहुन के बहन के, और चाहिए । अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिस्तदार, लोग पेर नहीं उहरने देंगे, जब तक आपके पास कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो बस वो माता सता न हो, वहाँ जाने की । जब आपके पास सत्ता जी उसको ठीक कर । एक साहब बहुत बड़ सहज नहीं है. तब अआापका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद योगी हैं और हमारे यहाँ Trustee(ट्रस्टी) रह चुके मांगना ग्लत है । हैं। सालों से Trustee हैं। उनकी बीबी भी। दोनों দो बहुत दोमारी थी। ठीक हो गए काफ़ो गहरे तर चुके । सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ने टेलीफोन किया, टरङ्ग कॉल किया 'माँ उनको कपर से निरकर मर गया। Normally (सामान्यत:) ठीक करो। बे पार नहीं थे, कूछ नहीं थे । तो मैंने सहजयोग के लोग accident (दुरघटना) से मरते कहा 'अच्छा हम कोशिश करते हैं। उनके साहबजादे नहीं। कभी अभी तक तो हमने सूना नहीं किसी को पार थे। कोशिश की, मैने कहा कि देखो इसको मरते हुए । श्रर वो इस तरह से मर गया। जवान छोड़ दो। अहडकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं लड़का था । लेकिन उन्होंने कहा कि 'ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था शऔर हो गया dent से तो माँ ने मुझे बहुत बार बचाया है। मैंने तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न हम इतनी बार अपने लड़के से कहा कि मा के पास रोकने वाले हैं । सिऱ यह है कि सहजयोग से मनुष्य चलो । आय नहीं । तो मैं क्या उसकी ज़िम्मेदारी शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले और जो ले सकता है ? अगर वो माँ के पास आता अपने चीज बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे बच जाता बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा न हीं होता। उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस वच्चे है। Suddenly (अचानक) कोई चीज़ वो होकर को प्यार करते थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा नहीं मरता है। वास्तविक जव मरना है तब मरता कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या है। तो उनको जब मरना था वो मर ही गये, आएगा ? आपके जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका बिचारे । वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी मुझ्किर हमने नहीं लिया हआा। न अप लीजिए। आप उन से उनको किसी तरह से ठीक किया था । वो मर से कहिए कि सहजयोग में आप उतरें। सहजयोग गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता को आप पाएँ । और इसकी रिश्तेदारी बीमार थे। इन लोगों जसे एक साहब थे, बहुत । तब आने पर बो ठीक हो गए। थोड़े हुए है लेकिन acci- दिन उनकी ज़िन्दगी चली । लेकिन जब मरना । मैंने है। इसलिए मैने कहा कि accident से नहीं मरता आप अगर जी, इनको बचाया नहीं।' मैंने कहा 'उनसे एक निमंला योग १६ सवाल पुछो कि आपने माताजी के लिए क्या अधिकार नहीं जमता । किया ?" पहला सवाल । प्र ये काम बन गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए ! इतने निकरले, कि मुझे तो कहना पडा 'भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। ५१ कर दोजिये, तो भी बहत वहाँ तो ऐसे-ऐ से लोग है 'दस-दस हजार पार किये हैं । इसीलिए शायद उसका नाम लोग ऐसा हक़ सहजयोग से लगाने लगते हैं क्योंकि ये सहज है। वो सोचते हैं कि मां ने हमारे निकल अरयगे । लिए क्या किया ? अब भई आपने क्या किया माँ के लिए आपने अपने हो लिए क्या कया पहले ती । दस-दस हुजार लोग पार करने महाराष्ट्र' रखा है सवाल ये पूछना चाहिए कि हमन अपना हा क्यों वाले वहाँ लोग हैं। भला किया हुआहै ? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआा है ? ऋ्रया हमने अपने Vibrations और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या ठीक रखे हैं ? या क्था हमने एक आदमी को भी करेंगे जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frivolous Temperament(उथली बृत्ति ) है । अपने तरफ भी self esteem (अपना आदर)नही है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं है हम पार कराया है ? महाराष्ट्र में आप आश्रर्य करंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में । महाराष्ट्र कया हैं। हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज है! मैं की आप जाकर खूद हो देखिये, मैं तो खद ही ग्राश्र् में हस कितने वक्तिशाली है! इस शक्ति को हमें कढाना है, कि इतने हजारों लोग करसे पार हो जाते हैं ? और फिर जमते भी बहुत हैं । यह भी बात उन लोगों में है । और इस तरह की बात बहाँ नहीं होती है । अ्रब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि रौनक करनी पड़ती है प्रौर सबके साथ में इसको किसी ने अगर ग्यारह आदमियों को पार किया है वो बाँटना पडता है । मराठी में एक कवि हो गये हैं ही मेरे पैर छु सकता है । वहाँ पैर छूने की लोगों उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे जातीचे, येरा गवा- को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पेर नहीं ळयाने काम नोहे'। कहने लगे इसके लिए जिसमें छुता, तो बस उसके लिए फिर आफ़त हो जाती जान हो वो आए। ऐ है । छः हजार भी आदमी होंगे तो भी चाहेगे कि ये काम नहीं है। 'येरा गवाळयाचे' माने वेवकफ़ों माँ के पैर छुएँ । यहाँ किसी से कहो कि पेर छू्रो का ये काम नहीं है । तो वो बिगड़ जाए कि 'क्यों पेर छूयें साहब इनके चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है एक रौनक़ लगा लो बस हो गया। । इससे काम नहीं होता। अपने अन्दर जो ऐसे-व से नन्दी-फन्दी लोगों का इस लिये प्राप से मुझे request(ग्रनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती कर के, कि आपको ले किन उनको मैंने अगर कहा कि 'आपको पैर जो भी दिया है उसका सञ्जोना बहुत जरूरी है। इस छुना है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी होने को और बढ़ना बहत जरूरी है आप ही देहली के सकते हैं जिन्होंने ग्यारह foundation (नीव) के पहले stones (पत्थर) कुछ लोग खड़ हो गये, हैं। और आज सात साल से मैं यहाँ मेहनत कर कहने लगे 'माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये हैं. रही हैं दिल्ली में गौर प्रभी इन गिन के दो सी छु लें पैर ? देखिए भोलापन । अब उन्होंने कहा कि stones भी नहीं जोड़ पायी । ये कठिनाई है । 'भई अब इक्कीस बनागओ ।' कम से कम इक्कोस आप सोचिये । और जो आते भी हैं ज्यादातर दल- पार किये हों तो माँ के पेर छ सकते हैं, नहीं तो बदल और दल बांधने में नम्बर 'एक'। यह शायद हो हम ? चाहिये । वही लोग छु आदमी पार किये । तो निमला योग २० whe सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो । आपने ऋ्पने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर चाहे जो भी हो । इतना Politics करते हैं कि आश्वर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति मां ने हमें दी है ! और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है, आदमी सोचता है कि 'मैं भी इस काबिल हो जाऊँ । जब इस प्याले से ये चीज है तो ये प्याला भी इस योग्य हो जाये जिसकी कोई हद नहीं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है। इसमें सिर्फ ग्रपने को पाना और परमात्मा को पाना, और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूण क्रास्ति में कि इस महफ़िन में आ सके । बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारो काम है । अपने आप ही अपना व्यवहार, अपना तरीक़ा 'सब छलक रही इस तरह से आदमी बहुत महान् काम हैं। इसमें हजारों लोग चाहिए और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान ले कि * Last Judgment Judgment afai से ही होने वाला है । और क्या भगवान आप की इस संसार में जन्म लेना चाहते हैं। अगर अपका तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला। कुण्डिलिनी दिल्ली में वातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ को जागृत करके ही आपका Judgment होना है । राक्षस जन्म लगे । या तो वो Last Judgment जो बताया गया है वह शुरू जन्म ले, जो इण्डे लेकर आपको मारेंगे । और या हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके तो राक्षस पैदा होंगे, अऔर राक्षसों होकी यह नगरी लिए 'कलकी अवतरण में कि आाप जानियेगा कि हो जायेगी काट-छौँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) कभी सोचती है कि इनकी समझ में अभी बात आ नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा। बस एक टुकड़ा नहीं रही । कुछ वदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़-बड़े जीव वहुत ही पहुँचे हुए लोग । इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी इधर, या एक टुकड़ा उधर । आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह आप समझ लीजिए, और ये चीज [अपने देहली जो है वह दहलीज है इस देश की ओर । इस गाँठ में बाँध लें कि अब जितना भी सन्त- दहलीज को लॉघ कर अगर राक्षस जा जायें तो साधुओों ने यहां मेहनत की है, जो भी बड़े-बड़े आप लोग कही के नहीं रहेंगे। आपको दहलीज पर अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बड़े दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है देवदूत और वड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके और आप अब stage (मञ्च) पर हैं। आप stage जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा करें पर रहना चाहे तो stage पर रहें, या नीचे उतर अर ओरों की भी रक्षा करे । अपना कल्याण कर, जायें । यह प्रापकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें लेकिन सबको ऊपर खींचे । आ्राप लोग दूस री तरह मङ्गलमय बनायें, यही मेरी इच्छा है । के हैं। आपकी थेणी और है [आप साधक हैं, श्र आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिये एकद्रत निश्चय होना चाहिए। Army (सैना ) में इसको बाद आऊँगी और उसके बाद भी मेरा प्रोग्राम कहते हैं कि 'बाना पहन लिया आपने । तभी ये दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन आप लोग सब चीज कम हो सकती है । और ऐसे वैसे, ऐरे-गरे वहां परइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है । जहां जहां नत्यु खेरों से यह काम नहीं हो सकता । आप ऐरे- सहजयोगी आते हैं वहां -वहां कार्य ज्यादा होता है। गे रे. नत्थ- खरे नहीं हैं, मैं जानती हैं । ले किन अ्भी सब लोग वहाँ आईये। ये लोग तो आपकी भाषा प्ररों का भी कल्याण करें, और सारे संसार को इसके बाद मैं मद्रास जा रही है लेकिन उसके निमंला योग २१ भी नहीं समझते हैं अऔर जहां - जहां मैं गई गांव लिये ग्रापको चाहिए कि जहाँ भी मैं करू, जब तक वर्गरा में बहां तो हिन्दी या मराठी भाषा चोलती मैं रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहां आते रहे और आये और इस कार्य को आप अपने लिए भी हर तरह की आफ़त, आप जानते हैं इन लोगों को अपनाइये और दूसरों के लिए भो अपनायें । सो गांव में रहने की विल्कुल आदत नही है । वहां पर रहकर के ये समभते हैं कि हमारे रहने से मा के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आ्रप ही Channels (पथ) हैं । [आपके channels में इस्तेमाल करती है। अगर, समझ लीजिये, इतनी दे दिया होगा। और अरगर नहीं दिया गया हो तो बड़ी ये जो आरपको Power-house (विजली-घर) आप जरुर centre (केन्द्र) पर चीज़ों का जवाब पा है, इसमें ग्रगर channels नहीं हुए, तो बिजली लगे । इसलिए मैं सब बात आज नहीं कह पाऊंगी, क से प्रवाहित होगी हूँ. इसको निश्चय से, घर्म समझ कर आप वहाँ घन्यवाद ! शा है मैंने अपके अधिकतर प्रश्नों का जबाब हैं इस ी । वह channels श्राप रहे हैं, समय की कमी है। आप समझ With best compliments from: M/S HORILAL PAVAN KUMAR 23, JAGDISH NIKETAN STATION ROAD NIZAMABAD, A. P. Dealers in : ALL KIND S OF PAPER निमंला योग २२ सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा आर. डी. कुलकर्णी जैसा कि सब सहजयोगी जानते हैं समस्त मानव पिगला नाड़ी दक्षिण (दायां) स्वाघिष्ठान से आरम्भ प्रारिणयों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य होती है और तालु में समाप्त होती है । रोजमर्रा इडा व पिगला नाड़ी जाल (Sympathetic की गतिविधियों में दोनों नाड़ियाँ निरन्तर कार्यरत nervous system) व सात चक्रो द्वारा सञ्चालित रहती हैं और परिणामस्वरूप उनके अन्तिम छोर होता है बायीं श्रोर इडा नाड़ी मानव भावात्मक अंगों, भूतकाल सम्बन्धी विवारो श्ररego) अर अहङ्कार (ego) के रूप में फूल जाते इच्छाग्रों पर नियन्त्रण करती है। इडा नाड़ी चन्द्र ) नाड़ी है और पिगला नाडी सहित शरीर में शीत व ताप का सन्तुलन बनाये रखती है। दायीं आर पिंगला नाड़ी मानव के देहिक पहलू के लिये उत्तर- रहने से प्रति-अहङ्धार फूल जाता है और हम अब- बायी है और मानव प्रकृति के सृजनात्मक अङ्ग का नियन्त्रण करती है । इडा नाड़ी सहित यह भी হरीर में कीत व ताप का सन्तुलन कायम रखती है । किसी एक ओर का अतिशय प्रयोग शरीर को ुलित करता है । प्रकृति के गुब्बा । रे की भाँति क्रमशः प्रति-अहङ्कार (super- हैं। प्रति-अहङ्कार Sub-conscious (अरवचेतन अहङ्कार supra-conscious (ऊध्ध्व चेतन हैं । निरन्तर प्रभाव, संस्कार(conditioning)पड़ते श्रर गरर र. चेतन को श्रोर प प्रवृत्त होते हैं। इसके विपरीत संस्कारों का बहिष्कार/परित्याग करने से अहङ्कार की बृद्धि होती हैं और हम ऊर्ध्व-चेतन की ओर प्रवृत्त होते हैं । यदि इन दोनों में से किसी पाश्श्व में गतिविधि प्रत्यधिक हो तो हम क्रमशः सामूहिक अत्यधिक सोना, वीती वातों को सोचना अवचेतन अथदा सामूहिक ऊर्ध्व-चेतन में प्रवेश आलस्य आदि से बायीं श्रोर अधिक कार्य (over- करते हैं । इन प्रदेशों में अतप्त मृत-आत्माएँ (भूत, activity) होता है औ्और फलतः दायों अ्रङ्ग निष्क्रिय प्रेत दि) वास करती हैं और वहाँ पहुँचने पर पड़ा रहता है शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों हम उनके चंगूल में फंस जाते हैं । कूछ तान्त्रिक का ग्रत्यधिक प्रयोग करने से भी असन्तुलन उत्पन्न लोग इन मृत-आर्माओं को पकड़ने के लिये होता है, कारण दायीं श्रोर तो अत्यधिक क्रियाशील हुन प्रदेशों में प्रवेश करते हैं और उनसे अपने रहती है और वायीं श्रोर कम प्रयोग की जाती है । कार्य सिद्ध करवाते हैं । शारीरिक स्तर पर ये दायें (वाम) पाश्र्वी लोग महत्त्वाकाँक्षी होति हैं और दिन असन्तुलन अनेक रोग उत्पन्न करते हैं । कुछ उनकी दूसरों पर प्रभुक्त्व करने की प्रबृ त्त हेती है। से चिकित्सा विज्ञान को ज्ञात है कि पिगला नाड़ी इसके विपरीत बायें (दक्षिण) पाश्वी लोग अरति में प्रतिशय गतिविधि वाले लोगों को (उनकी भाषा न्र और मात्म-क्रामक (स्वयं को दोषी समझते में Type A characters) हृदय-प्राधात (Heart- attack) की सम्भावना अधिक होती है । सहजयोग में हम इसका रहस्य जानते हैं : फिङ्गला नाडी में अतिशय गतिविधि इडा नाड़ी, विशेषकर बायें हृदय, वाले) होते हैं । ईड़ा नाड़ी मूलाधार चक्र से आरम्भ होती है और तालु (वह्मरन्ध्र, सहस्रार) में समाप्त होती है। निर्मला योग २३ को शुहक कर देती है और परिणाम होता है हृदय आधात। साधारण रूप से, पिड्गला नाड़ी में प्रतिशय ओर प्रसारित करना (फलाना) नाहिए अरर दायां गततिविधि अवयवों (शरीर के अङ्भों) में अतिशय हाथ अलग रखना चाहिए अथवा ऐसे उठाये रखना गतिविधि उत्पन्न करती है, उदाहरणतः उच्च रक्त चाहिये जिससे हथेली की पीठ फोटो के सामने रहे । चाप, ऊष्ण जिगर ( Liver) ( दायीं नाभि, दायां उठे हुए हाथ की हथेली का आगे का भाग फोटो के ्वाधिष्ठान) । Left sympathetic nervous सामने करना साङ्कातिक (अति हानिकारक) है System(बायं पाश्श्वी नाड़ी जाल) अ्रथ्थात् इडा ना्ड़ी इसी प्रकार जिनको दायीं ग्रोर के व्याधि हों उन्हें में अ्रतिशय गतिविधि जिगर ( Iiver ) और हृदय दायाँ हाथ फोटो के सामने फैलाना चाहिए श्रर] में निष्कियता (सुस्ती) लाती है और वे अपना कार्य बायाँ हाथ पूर्वोत्त विधि से ऊपर उठाना चाहिये उचित् तत्परता से करना २न्द कर देते हैं। इससे अथवा अलग रखना चाहिए । निम्न रक्त-चाप भी उत्पन्न हो सकता है। बाये पाश्र्वी नाड़ी जाल में अ्रतिशय गतिविधि से भी हृदय-गराधात हो सकता है। गति अपयाप्त होती है और इस कारण रक्त का करने के लिये उसमें परिवर्तन करना आवश्यक अपर्याप्त पम्पिण और अपरयाप्त प्रवाह होता है। होता है। कुपोषण (nmalnutrition) के कारण अ्रतिशय गतिम न हृदय और द्रत (fast) रक्त प्रवाह होता है। बायें पाश्श्वं के प्रधिकांश रोग सामूहिक अवचेतन (Collective (protein rich) भोजन लेना चाहिये। सामिय sub-conscious) से उत्पन्न होते हैं जसे cancer virus infection, multiple sclerosis, men- अपना बायों हाथ परम पूज्य माताजी के फोटो की । हमारे आहार का हमारे पाश्ी नाड़ी जान के उस स्थिति में हृदय- सन्तुलन से घनिषठ सम्बन्ध है। असन्तुलन को ठीक अनेक बायें पाश्श्वी व्याधियाँ हो सकती हैं । इसलिये सुस्त अवयवो से हृदय का अतिशय पम्पिय वाले रोगियों को प्रोटीन-प्रघान (non-vegetarian) भो ले सकते हैं र Carbo- hydrales का कम सेवन करना चाहिये। दाय ingitis, Parkinson's disease, arthritis. पाशबी क्यक्तियों को जिनके अतिशय गतिशील rheumatism (वात रोग), slip-disc, spon- सयन्त्र (system) है उन्हें प्रोटीन और सामिष dilosis, tuberculosis (क्षय रोग) asthma (दमा), aenaemia, sciatica, polio (परोलियो) । pryelitis, oste-myetitis, muscular dias- trophy, paralysis (लकवा, पक्षाघात) । साधारण रूप से, बायें पाइवं की वीमारियों के रयक है कि उनकी इस बोद्धिक दयालूता से पशों रोगियों को ज्वर नहीं होता। पाइवं के रोगों में तेज ज्वर (high fever) होता है। इस स्थिति में बाय पाश्व को उठना चाहिए और दायें पाशवं में ईश-प्रनुत्रह प्रदान करता चाहिए । भोजन का सेवन नहीं करना चाहिये प्रर carbo- hydrates ओर शाकाहार अधिक करना चाहिये भोजन के संदर्भ में दया व प्रहिसा के आधार पर शाकाहार के समर्थकों को यह चेतावनी देना आव- का कोई कल्याण होने की अपेक्षा उनकी परपनी स्वयं की हानि प्रधिक होती है। दया आत्मा इसी प्रकार दायें प्रवाहित होनी चाहिये और वही कृपा सार्थक होती है जो हृदय से प्रवाहित होती है । बौदिक दयालुता निरथक होती है। देखिये किन जानवरों का संरक्षण होना चाहिये और किनका संहार होना चाहिये । परम पूज्य माताजी के कथनानुसार "उनका क्यो दाहिनी पाश्श्व को उठाना चाहिये औ्र ईश-प्रनुग्रह उपयोग है ? मैं चूजों (chickens) को साक्षात्कार बयें पाश्र्वी बीमारियों के रोगियों को प्रपनी बायीं ओर प्रदान करना चाहिए। इसके अरतिरिक्त देने नहीं आई है। निमंला योग २४ ऊपर जो कुछ कहा गया है, यद्यपि यथार्थ है होंगी। असद् गुरुओं के कुप्रभाष से भी बायीं पाश््वी तथापि अ्निवार्य नहीं कि किसी एक पाश्श्व में व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । ऐसी स्थिति में बायाँ यह अतिशय गतिविधि से केवल उसी पाश्व से सम्बन्धित स्वाधिष्ठान, पूरा बाययाँ भवसागर (void) और व्याधियाँ उत्पन्न हों। दायें पाश्वं में अतिशय गति- बायाँ आज्ञा चक्र प्रभावित होते हैं। वे अपना विधि से प्रतिक्रिया रूप में साभूहिक अवचेतन दाहिना हाथ पेट पर रखें और बायाँ हाथ फोटो ( collective sub-conscious) में प्रतिक्रिया की ओर फेलाये और प्रा्थना करें "माँ कृपया मुझे trigger) हो सकती है अरोर उससे बायें पार्श्व की अपना स्वयं का गूरु बनायें । माँ कहती हैं हमारी बीमारियाँ जसे केस र, हो सकती हैं। प्रतः इस दृष्टि श्रात्मा ही हमारा गुरु है। इस कारण यदि हमारी से जो पराकाष्ठा (extremes) में पहुँच गये हैं, आत्मा जागृत हो जाये तो हम अपने स्वयं के जैसे शारीरिक श्रर मानसिक अतिरिक्त गतिविधि, बन जाते हैं । वे बायें पाश्श्व के रोगों के भक्ष्य बन सकते हैं । अत्यधिक मानसिक कार्य से मस्तिष्क थक जाता औ्र वीमारियां उत्पन्न होती हैं । गुरु बाय पाश््व अरथवा दाहिने पाश्वं की समस्याय हमारे चक्रों को प्रभावित करती हैं और परिणाम में उन चक्रों द्वारा सञ्ालित अवयवों को क्षति-ग्रस्त वाम पाइ्वी रोग बाधाओं के कारण भी करती हैं। इसके अतिरिक्त चक्र कुप्रभावित होने उत्पन्न ही सकते हैं। इन लोगों को अपना बायाँ पर तत्सम्बन्धित देवता वहाँ से स्थान त्याग कर हाथ पूज्य माताजी के फोटों को तरफ़ फेलाना देते हैं । अतः उस चक्र का मन्त्र उच्चारण करके चाहिये और दायां हाथ उपरोक्त विधि के अ्रनुसार परम पूज्य मात्राजी के नाम की शक्ति से उक्त ऊपर उठाना चाहिये । अपने स्वयं के नाम पर देवता का आहान किया जाता है। उपचार के पादुका-प्रहार (Shoe-beating) एक कारगर लिये, विषरीत पाश्श्व का हाथ प्रभावित चक्र पर उपचार है। इन लोगों को श्री गणेश का आह्वान रखें अर प्रभावित पाश्श्व का हाथ फोटो की ओर कर उनको आन्तरिक शुद्धि व सरल-भाव द्वारा फैलायें । गुनगुने (ग्र्ध-ऊष्ण ) जल में नमक डाल अपने मूलाधार.चक्र पर प्रस्थापित करना आवश्यक कर उसमें पेरों को डूबा ये रखना अत्यन्त लाभकारी है। श्री माताजी के प्रति श्रद्धा परम आवश्यक है क्योंकि श्री गणेश तभी प्रसन्न होंगे जब वह प्रसन्न शेष अगले पृष्ठ पर ) अमृत वाणी जब तक आदमी को सन्तोष नहीं आएगा, वह किसी चीज़ का मजा नहीं ले सकता। वयोंकि सन्तोष वर्तमान को चीज़ है । आशा भविष्य की और निराशा भूतकाल की चीज है । सन्तोष लक्ष्मी तत्व की जागृति से ही सम्भव हो सकता है । S৪ सहजयोग में जब तक आप लोगों को देंगे नहीं तब तक अरपकी प्रगति नहीं होगी। देना पड़ेगा, जैसे-जैसे आप देते रहेंगे, वैसे-वैसे अरप आगे बढ़ेंगे । स्य सहजयोग का सबसे बड़ा दुश्मन है । निर्मला योग २५ পाँc हैं औ्ौर शीध्र आराम प्रदान करता है। अत्यन्त बिगड़ी हालत में जो सहजयोगी सहायता कर रहा (पृथ्वी. अग्नि, जल, वायु, आरकाश) के संयोग से है उसके परानर्श पर नीवू-मिर्च उपचार आवश्यक निर्मित है होता है । रोग का कारण "बाधा" निश्चित् हो तो मस्तिष्क, देहिक- मनोवैज्ञानिक, अरधिदेहिक, आधि- सीवे नीबू-मिर्च उपचार का परासर्श देना चाहिये देविक (psycho-somatic) तन्त्र का सश्चालन और रोगी को पूर्वोक्त विधि से स्वयं-चिकित्सा करते हैं । नीचे चक्रों, तत्त्वों और कतिपय व्याधियों यह सर्वविदित है कि मानव प्राणी पाँच तत्त्वों इनके अ्रतिरिक्त दो और तत्त्व, मन व का परस्पर सम्बन्ध दिया गया है :- आारम्भ कर देनी चाहिये। देवता तत्त्व चक्र श्री गणेश पृथ्वी मूलाधार चक्र १. श्री गौरी तथा मूलाधार श्री कुण्डलिती श्री वरह्मदेव बायीं ओर पृथ्वी स्वाधिष्ठान चक्र २. दाहिनी ओर अग्नि श्री सरस्वती श्री विष्णु मणिपुर ( नाभि) चकक़र जल ३. श्री लक्ष्मी श्री शिव-पावंती बा्या हृदय (अनहत) चक्र ४. श्री जगदम्बा मध्य हृदय (अनहत) चक्र दाहिना हृदय (अनहत) चक्र वायु श्री राम-सीता श्री कृष्ण व रावा विशुद्धि चक्र आ्रकाश ५. अग्नि श्री जोसस व श्री मेरी आज्ञा चक्र ६. समस्त तत्त्व, परमपूज्य माता जी सहस्रार चक्र मन तथा मस्तिष्क 'आत्मा' सदाशिव रूप में सर्वोपरि है । (शेष आगामी अंक में ) निर्मला योग २६ प्रार्थना अब सौंप दिया इस जीवन का माँ सब भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में । जो जग में रहे तो ऐसे रहें जैसे जल में रहता है कमल । मेरे सब गुण दोष समर्पित हों माँ तुम्हारे हाथों में ।। मेरे एक-एक रग का हो माँ तार तुम्हारे हाथों में । निष्काम भाव से कर्म करू और प्राण तजू तुम्हारे हाथों में ।। अब सौंप दिया इस जीवन का सब माँ भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में ।॥ With best compliments from: CITRIC INDIA LIMITED 97, SUNDER NAGAR NEW DELHI-110003 Telex : 011 - 2305 WECO IN Phone : 611348, 615106 Manufacturers of: CITRIC ACIDS, ZIPFLO AIDS, SULPHAMETHOXAZOLE FERRIC AMMONIUM CITRATE ETC. Administration Office: EMPIRE HOUSE, 3RD FLOOR Dr. D. N. Road, BOMBAY-400001 Phone : 263092, 268807/08 Telex: 011-3699 TECI IN. Works & Regd. Office: GAZADHAR SOMANI MARG PANCHAK NASIK ROAD-422101 Phone: 86339 Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 ॥ ॐ श्री भगवती माताजी निर्मला देवी नमो नमः ॐ ॥ * प्रार्थना * हम बालक सब है मां अम्बे । नित द्शन दे दो जगदम्बे ।ध।॥ चाहे पास रहो चाहे दूर रहो। हमसे जननी कोई भुल न हो ।। सेवक अम्बे अनजान हैं हम । नित दरशन दे दो अगदम्बे ।।१।। गरिघर की राधा तुम्ही हो माँ प्रभु राम को सोता तुम्ही हो मां ॥ आदिशक्ति ही तुम हो मां अम्बे। तु् हो मां। नित दर्शन दे दो जगदम्बे ॥२॥ ब्रह्मा से तुम्ही ने वेद किए। तम देवी सरस्वती जग के लिए|| पल-पल की पुकार सुनलो अस्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ।।३॥ तुम भगवती मां हो लक्ष्मीस्वरूप । बुर्गा का तुम्हारा दिव्य स्वरूप ।। शिव विष्ण का साथ तुम्ही अम्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ॥४ ॥ येश को मिली ममता थी अमर । तम प्रायो हो मां मेरो बनकर ॥ जग में अजब महिमा अम्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ।५।॥ चरणों पे तुम्हारे भकता हैं सर। तम बिन बालक मां जाएं किधर ।॥ मधु तुम्हारे चरणों में माँ ग्रम्बे । नित वर्शन दे दो जगदम्बे ।।६॥ मधुकर छाकुर Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed ar Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002. ---------------------- 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt ॐ fनिर्मला योग द्विमासिक वर्ष २ पक = जुलाई-अगस्त 1983 45 + t. ेट घम प ॐ] स्वमेव साक्षात् बीकल्की साक्षात श्री सहस्रार स्वामिती, मोक्ष प्रदायिनी माता जो श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। ন प 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt ESONEES88 333383的器影新排 प्रार्थना है जन्माता ! रक्षमाम् हे जगदम्बा माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।॥१॥ परमेश्वरि ! रक्षमाम् जगदीश्वरि । रक्षमाम् पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥२॥ हे, गीरी माता ! रक्षमामु । है मेरी माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।।३।॥ हे सरस्वती माता ! रक्षमाम् । हे लक्ष्मी माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।॥४।॥ है काली माता ! रक्षमाम् । हे पार्वती माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥५॥ हे सीता माता ! रक्षमाम् । हे यशोदा माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम मातर ! रक्षमाम् ॥६॥ हे गणेश ! रक्षमाम् । है जीजस पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥७1। ! रक्षमाम् । है परमात्मन् रक्षमाम् । है जगदात्मन् ! रक्षमाम् । पाहिमाम मातर पातकी नास्तिं । पापहनी त्वत्समा नहि । पाहिमाम मातर दीनो नाउस्ति । हितो नास्ति पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ।।१०॥ ! रक्षमाम् ।॥८।। 1|८|॥। मत्समः ! रक्षमाम् ।॥६। मत्सम त्वत्समा । हे महादेवी ! हे आदि शक्ति पाहिमाम् मातर ! है कुण्डलिनी माता ! रक्षमाम् । हे निर्मला माता ! रक्षमाम् । पाहिमाम् मातर ! रक्षमाम् ॥१२॥ रक्षमाम् । ! रक्षमाम् । २क्षमाम् ॥११॥ सी.एल. पटेले ॐ शान्ति क BBBEBCBEIE3CIEBCS8BB8BCB333B899 3336368 hor 8ककककBBBEDEDEBEBEBED 3833383834383686B6368 BB 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt ाड सा सम्पादकीय चिदानन्दकार थुतिसरससारं समरसं निराधाराधारं भवजलधिपारं परगुरगम् । रमाग्रीवाहारं त्रजवनविहारं हरनतु सवा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे ॥१ ॥ स्त्रोत्ररत्नावली, पृष्ठ १८९ जो चिदानन्दस्वरूप है, श्रुति का सरस सार है, समरस है, निराश्रयों का आश्रय है, संसार- सागर पार कराने वाला है, परगुरणाश्रय है, श्री लक्ष्मीजी के गले का हार है, वृन्दावन विहारी है तथा भगवान् शंकर से सम्पूजित है । उस परमानन्द गोविन्द का सदैव भजन कर । आज हम सभी धन्य हैं कि साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर ने हमें दीक्षित किया है । श्री माताजी के दर्शाए मार्ग पर अपना जीवन उत्सर्ग कर देना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। निर्मला योग १ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ. शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा ६ लोरी टोडरिक श्रीमती क्रिस्टाइन पेंट नोया यू.एस.ए. ४५१८ वुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बैन्कवर, बो.सी. वी. ७ एस. २ वी १ २२५, अदम्स स्ट्रीट, १/ई कलिन, न्यूयाक-११२०१ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउत श्री एम० वी० रत्नान्नवर ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़मेंशन सर्विसेज लि.. १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ १६० नार्थ गावर स्ट्रीट श्री राजाराम शंकर रजवाड़े लन्दन एन डब्लू. १२ एन.डो. ८४०, सदाशिव पेठ, पुणं-४११०३० इस अक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परम पूज्य माताजी का भाषरग ४. सहजयोग व शारीरिक चिकित्सा ५. प्राथना प्राथना ३ २३ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर ६. ७. प्रार्थना * ও निर्मला योग ति 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt कोस्टीट्यूशन क्लब तई दिल्ली १०-२-१६८१ यहाँ कुछ दिनों से अपना जो हैं जब उसमें गहराई हो। और जब लेंने की बृत्ति कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। आपसे बताया था कि कुण्डलिनी राभ दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक जगह जा चूके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज रहे हैं। हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं आप साधक हैं। साधक होना भी एक श्रेणी है, एक category (श्रेणी) है। सब लोग साधक मान लेनी नहीं चाहिए। लेकिन इसका घिवकार भी नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको नहीं कहते कि श्राप सहज योग करो या सहजयोग सिवा हमारे तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी चाहिए और पाना चाहिए । दिमाग जरूर [अपना नहीं है । लेकिन जो नहीं है वो नहीं है, जो हैं सो हैं । अ्रगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है जो साधक है उसके लिए सहज योग है । हरेक और उसके साथ और भी क्या-क्या बीति कहे रही है ये आप लोगों को में आश्। किसी से भी नहीं कहते । अभी नहीं है । और प्रगर मैं कहती है कि मुझे है, खुला रखें। है। आदमी के लिए नहीं। अाप तो जानते है कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहां रह चुके है । लेकिन हमने अभी तक किसी भी पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है । इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और प्राश्रमों में या अऔर गुरुं के यहां पर होता है कि अप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाईए | यह। पर आप हो हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है माता जी निर्मला देवी हैं जिनको हम दूसरी तरह अर आप ही को अत्मसात करना पडता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं. आप गंगाजी में जाये, इसका आदर करें. उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं] । गर प्रापको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई शपसे नाराज नहीं होतीं । से जानते हैं । तो सहज योग जो चीज है, इससे आपको लाभ उठाना है पहली बात । इस बात को अगर पहले आप समझ ल कि कि आपको कुछ पाना है । एक बार इस बात को अगर मनुषय समझ ले, कि परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और यहां कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहज योग को भी आप कुछ नहीं दे सकते । उनसे सहज योग की ओर देखने की जो दृष्ट है उसमें लेना ही मात्र है । लेकिन ममाँ की दृष्टि से मुझे ये एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखे । अपने में गहनता रखें अरर इसे स्वीकार करें । है, जसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt माँ जो होती है वो समझ के बताती है। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लं प्रर आपको इच्छो शक्ति है उस का शुद्ध स्वरूप है । यूर्ण शुद्ध मैं परेशान करू और फिर देख कि आप इस योग्य स्वरूप है। मतलब ये कि एक हो इंच्छी मनुष्य हैं या नहीं, या पात्र हैं या नहीं। दूस रे ये भी बात को होती है संसार में जब वो आता है । उसका है कि माँ बच्चों को जानती आ्रच्छे से है। जानती कि इनमें क्या दोप है, क्या बात है, किस वजह से दूसरी उसे इच्छा न ही होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप रुक गये । उसको उसकी मालूमात गहरी होती है है। और जब तो इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे बैठतो है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है को भी ठीक किया जाए कहीं डाटना पड़ता है, तो पर अभी इच्छा ही है । इसलिए पुरा इंट भी देंगी। जहां दुलार से समभझाना पड़ता है, वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा समझा भी देती है। और ये सिर्फ मां का ही काम है वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी है और कोई कर भी नहीं सकता । मुश्किल का म है वसी ही बनी रहती है और वो अ्रपनी इच्छा छाया और किसी के लिए करना। क्योंकि ये सारा काम की तरह आपको संभालती रहती है कि देखो इस व्यार का है । आज मनुष्य इतने विष्लव में और रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी इतनी आफत में है; इतने दुःख में और आतङक में जो सम्पूर्ण शुद्ध आपके अरन्दर से इच्छा हैं वो पूरी बैठा हुआ है। इस क़दर उस पर परेशानियाँ छाई नहीं होगी उस इच्छा को पूरी किए बगेर पप हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा कभी सूख भी नहीं पा सकते । सारा आपका पिण्ड इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है । [और ये माँ जो है वो इसीलिए बनाया गया कि वो इच्छा पूर्ण हो समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफत उठा हो जिससे अरप परमात्मा को पाएँ । रहे हैं, उनको कितनी परेशानियाँ हैं और किस कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की है शुद्ध स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और । बनाने पर भी पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व जागृत करना करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है बो बाहर की ओर होने लग जाता है। माने आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि ओर जाने लग जाती हैं । आप ये सोचते हैं कि मैं "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो ये चीज पालू । जब आपका चित्त बाहर जाता है हजारों व्षों से आपके जन्म होते ही श्रप में प्रवेश उसका भी एक कारण हैं जिसके कारण आपका करती है और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब चित्त बाहर जाता है । जो मैंने कहा था कि वो जरा तक आप पार न हो जाएँ । वो प्रतीक रूप आपकी विस्तारपूर्वक बताना होगा । जब, क्योंकि गप्रापका] माँ ही है ।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक चित्त वाहर की ओर जाने ल गता और] [जैसे-जसे रूप आपकी महा-माँ ै। आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की शुद्ध चाहिए। ये माँ ही कर सकती है। को एक छाया है, छुवि है एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि 'माँ आापने ओर जाने लग जाता है । इसकी वजह से जो कहा था कि पूरी रचना हमारी करने के बाद, पिण्ड इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि शुद्ध विद्या कहते की पूरी रचना करने के बाद भी वो वेसी की वेसी हैं और शुद्ध आपके अन्दर जो अन्तरतम् इच्छा है ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से समझाया वो एक ही है कि परमात्मा से योंग घटित हो वो जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँ गी कि कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिऱ् आप ये ही सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएं उसे पाएँ उसे पायें । किस तरह से होता है । निमला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है। इसीलिए इसे Residual energy ( अवशिष्ट ऊर्जा) किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए । मैंने बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दने काटे और मैं न कहू कि ये गदन काट रहे हैं । कहते हैं । व ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही आपको ये कहे बग र कसे होगा, आप ही बताइये, आप माँ- खीचकर इधर से उधर ले जाती है और प्राप दर- दर पे ठोकरें बाप भी हैं। आप बताइये कि अग र आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए खाति हैं, कर्मकाण्ड करते हैं, इवर हुंडते हैं, किताबें पढते हैं और आप अपने अन्दर बारणा सी वना लेत हैं कि एरमेर्वर का पाना ये नमुर्ध कर देगा और अ्रपकों विचलित । होता है, परमेद्वर का पाना ये होता है। जब तक आपका कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ देगा प उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोनते है कि या उसका ऐसा कर देंगा कि बो freeze हो जाए हैमें इस चीज से पूरा हो जाएगा। किसी चीज से (जम जाए) एकदम । तो क्या कोई मा ऐसी होगी पूा हो जाएगा । सो नहीं होता। पर बहुत वार कर देगा जो नहीं बताएगी ? इस मामले में बहुतों ने मुझे पूरा ऐसा भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब डराया भी, धमकाया भी। कहा कि आपको कोई हमारी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है गोली झाड़ देगा। मैने कहा झाडने वाला अभी तब कभी-कभी कोई लोग भी या से लोग कि पंदा नहीं हुआ। मुझे दे खने का है । ऐसा आसान जो बहुत पहेँचे हुए लोग हैं वो भी इस मामले में ये तहीं है मेरे ऊपर गोली झाडना। वो तो ईसा बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण हो मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ जाती है। लेकिन बहुत-से अगुरु भी इस संसार में गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको हैं। बहुत-से दुष्ट लिया है। और इसी वजह से बो आपको इस इच्छा था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ । गुरु ट लोगों ने भी गुरु रूप घारण कर पता चल जाता । लेकिन वो एक नाटक खेलने का मन्व्रमु्ध कर देते हैं। माने कृण्डलिनी को तो कोई छु नहीं सकता।, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्द्रमु्घ बार देते हैं । बो ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो मन्त्र मु्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक कुण्डलिनी जागृत कने के लिए क्या करना नाहिए? इच्छा परममा से योग पाने की है दो छुट करके ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर आप सोचते हैं कि ये जो प्रगुरु हैं जिसने हमको मन्त्र लंक्चर में सैं कहती हैं कि ये जीवन्त किया है. किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा क र देगा। इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते । 'आप नहीं चो अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी मुश्य इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस कर सकते इसका मतलब तहीं कि मैं नहीं कर चीज से चिपक जाते हैं । और जब अाप मन्रमुख सकतो की तरह उससे निपक जाते हैं तब आपके घ्यान है में नहीं आता है कि अापकी वास्तविक इच्छा पूरी एक डॉक्टर है जो कि (ऑपरेशन) operation नहीं हुई है अरोर ऋ्राप गलत रास्ते पर चल रहे हैं । करना जानता है, वो ही शपरेशन कर सकता है। जब तक आप बहुत ठोकरे नहीं खाते हैं, जब तक पर कोई दूसरा अ दमी अगर इस तरह का काम आपका सारा पेसा नहीं लुट जाता, जब तक आप करे तो लोग कहेंगे कि 'ये खूनी है और इतना हो पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके घ्यान में नहीं वो खून ही कर डालेगा, क्योंकि उसको मालू- ये बात नहीं आती। । इसका मतलव यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते । अविकारी होना चाहिए । जैसे मात ही नहीं उस चीज की । जिसको इसकी जान- निमंला योग ५ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt चुके हैं और जैसे ही अफ़सरी खत्म हो गयी तो कोई कारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए । भी नहीं। वड़़ा आश्वरय ं है पूछता अगर ग्रापका transfer (तबादला) ही हो गया तो कोई नहीं जब प्रप सहजयोग में पार हो जाते हैं उसके पुछता। आपने मकान बना लिया, आपने देखे हैं बाद इस के नियम शुरू हो जाते हैं, जो परमात्मा के कितने वडे-बडे ख ण्डहर पड़े हुए हैं । [श्र न कोई दरबार के नियम हैं-जसे आप हिन्दुस्तान में आए जानता है कि ये है ब्या बला, कहाँ से आई, क्या तो अपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते है । साम्राज्य में अए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं। और अगर प वो नियम न पाल तो (क्रिला) में । तो रात बहुत पके वाइब्रेशन हाथ से छुट जायगे। बार-बार वी कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तजाम था हुआ। बड़े-बड़े ऐसी चीजें खत्म हो चुकी हैं। उसी प्रकार जब अाप परमात्मा के एक बार मैं गयी थी आपके आगरी के fort बीत गयी वहाँ । और छुट जायेगे, बार-बार आप पहले जसे तो बहुत रात हो गयी। श्रर वो कहने लगे 'जब वाइब्रशन होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसको अपने भीड़ जाएगो तब आापको ठीक से दिखाएँगे। बहुत ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए। जब तक आपने कुछ चीजें दिखाई। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नही पाया, आप ्देखा कि विल्कुल 'सब दूर पाइएगा वाइब्रेशन] अपके छूटत जाएँगे। क्योंकि ये भी उस वक्त में चहल-पहल रही होगी रानियों ने वाइब्रेशन आपकी आरत्मा से प्रा रहे हैं। अवेरा है। 'सब जितनी क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं। आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहत है। राजाओं ने परेशान किया होगा। बड़े-बड़े बहाँ पर माने बो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि बो ही एक सत्य है, बाक़ो सब असत्य है। बाका सबव अह्म नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस जमानि है। ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जा में । सब एक दम फ़िज़ल । कुछ नहीं सुनाई दे रहा कुछ उनके अ्रलावा हैं-अत्मा, व्रह्म इसके अ्लावा भी है वो परसत्य है । दावत हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता था । अब वो वाज़ खत्म हो चुकी थी वहाँ। कुछ भी नहीं था । एकदम अधेरा चारों तरफ छाया हआ और जब हम बाहर आ रहै थे विल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास । एक साहब आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा के पास जरा-सी Torch (टॉच) थी, उससे सभी कि साहब मैने मत्रान बनाया, घर बनाया औ्रर लोग देखकर बाहर का रहे थे। बाहर आते वक्त बच्चों की शादियाँ कर दो या कोई बड़ा भारी उस देखा कि एक चिराग को रोशनी जल रही थी । का तमग मिल गया । मैंने 8eroplane (हवाई उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा जहाज) बना दिया आर कोई चीज़ बना दी, मैं कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा ? मैंने बड़ा भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया ? कहने लगे गया। ये सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात कि यहाँ पर एक मजार है, एक पीर की मजार हैं है । क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, और ये पीर बहुत पुराने हैं । 'कितने पुराने ? कहने शार्वत नहीं है । ये कोई अदमी, आज बड़े-बड़े लगे कि जब ये किला भी नहीं वना था, उससे अफसर हो जात हैं। हम भी अफ़सरी काफ़ी देख पुराने । अच्छा, त व से इस पर दिया जलता रहता 1 जो कुछ असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया, निमंला योग पततट 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt चल रहा है। उसको बार-बार grounding कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गई है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । ये सतातन है पोर होता जाना सतातन है। ये शाश्षत है। वाकी सव असत्य है, सव गुम है। गया और ग्राप पार भी हो गए और माना कि आप पर है, खर्म हो गया, शुन्य हो गया, लोन हो गया । आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आाप रोजमरों ही देखते हैं जरा-सा देखें और समझ क्या है । अपने ही आँलों के सामने आपने देखा है कितनी हो गए, और आपके अन्दर से बाइत्रशन शुरू होने लगे । तो फिर आपको जरूरी है कि आप अपने को अब, सबसे जो बड़ी गुलती हब लोग करते हैं, । सबसे पार होने के बाद पहली ग़लती ये है, कि हम इस यार ऐसे होता हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। तो उसमें कभी- इससे आप समझ सकते हैं कि ये सनातन नही है। कभी शङ्काएं भी बहत लोगों को आती है। कहते हैं ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे भई करसे हो सकता है, माँ ने हमको mesmerise आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धुथ कर रहे हैं। आज बड़े (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता ? हो भारी आदमी बन कर धूम रहे हैं, आपकता ठिकाना सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कसे नहीं। कल प्राप रास्ते के भिखारी बने होंगे। जो ऐसे हो सकता है, हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बडी चोज सनावन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौडे ? दिवकत होती हैं, हम ऐसे ओसानी से कैसे पार हो जो चोज सनातन है उसे पाता चाहिए। जब गए । ठण्डो हवा अरा गयो तो क्या समझना चाहिए आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है. कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए ? ये कैसे तो वह खोता नहीं। जब उसका जम्म होता है तो हुआ। Realization के साथ वो दूसरो चीज मोक्ष, मोक्ष लेकर के वो आ्राता है । वो करुणा में फिर से जन्म नडी सकते पहली गुलती ये है कि इसके बारे में अआप सोच । सोचने से आपके वाइब्रेंशन खट से खत्म हो जाएँगे। आपको अगर हम हीरा दें और शरापको कहें ये आपके पास हीरा है आप उस पर लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है। लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस सनातन को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए, तब भई ये हीरा है क्या ?' कम से कम इतना तो आप हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल क्या करंगे ? आप जोहरी के पास जाकर पूछेगे कि करंगे क्या धर में बैठे-बैठे सोचकर होरे को कोई फेक देगा ? जब रोजमर्रा के जीवन में हम लोग जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। ैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए कि ये पर म है या नहीं ? श्रर इसमें शङ्का करने की स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं। जैसे आप जानते हैं अगर Aeroplane (हवाईजहाज) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते तो उड़ाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance आप नाच सकते है, कृद सकते हैं। ऐसा होता है, (सन्तुलन) कैसा है । ये ठीक से चल रहा है या नहीं वैसा होता है, ये होता है । ये सब परम की वात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमने परम पाया है तो आ्ाखिर ये कैसे जाने कौन-सी बात है ? बहुत-से गुरु लोग हैं, अ्रपसे कहेंगे कि इसमें कुण्डलिनी में, निमंला योग he 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt चीजें आप वैसे भी कर सकते हैं । माने नाचना कोई कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है। मुश्किल काम नहीं, क्रूदना कोई मुश्किल नहीं, में ढक जैसे चलता भी कोई मुश्किल नहीं है । ओर ये living process (जीवन्त क्रिया) है। आपका आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिख्ा रहे है, तो evolutionary process है ( उत्क्रान्ति प्रक्रिया) लोग अपने foam (फोम) में बंठकर ऐसे उड़ते हैं और अप अरज उस evolutionary process के सोच रहे हैं कि बो हवा में उड़ रहे हैं। ऐसा सावना ्रन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आ्रापकी उत्कान्ति भी मुझ्किल नहीं है । धोड़़े पर भी लोग कूद करके (evolution) जो है, वो चल रहा है । अभी] [आप] बैठ जाते हैं। जरा कोजिश करने से आ् जाता है इन्सान हैं । इन्सान से प्राप अपरतिमानव हो जाते हैं। वो भी। ये भी कोई मूश्किल नहीं है । यो भी अराप कोशिश करें तो कर सकते हैं । और याप एक तार हम ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करगे, वो पर भी चल सकते हैं, सरकस में जसे चलते है । या तो हम कर ही सकत है। वो तो अब वो काम करगे आप कलाबाजी कर सकते हैं । ये भी प्रपने करते कि जो हम नहीं कर सकते । तब फिर इसमें सोचने देखा है और कर सकत हैं। अगर आप कोशिश कर की बात क्या है ? तो सब धन्धे आप कर सकत हैं । माने ये कि spontaneous (सहज) है, याने जब इस तरह से बात आपने समभ ली कि जो काम हाथ में ठण्डो-ठण्डी हवा आनी शुरू हो गयी सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते ? कि ये एक इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हआ है| त्रिकोणाकार अस्थि में अ्रगर आप स्पन्दन देखें तो कोई नयी बात नहीं है चैतन्य की लहरियाँ, ये मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है। स्पन्दन आप नहीं ्रह्म की शक्ति है ले किन इस पर प्राप सोच करके कर सकते कहीं भी। फिर उसका उठता हआ स्पंदन क्या करने वाले हैं ? प सोच करके भी कोन-सा आप देख सकते हैं। सब में नहीं, क्योंकि कोई श्रगर प्रकाश डालने वाले हैं ? क्योंकि अ्रपकी बुद्धि तो बढ़िया लोग हों तो उनमें तो जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से अगर आप समझ लीजिए यहाँ से, चन्द्रमा में चले लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है । अनहतु पर बजना सुनाई देता है। तो कबीरदास जी साचिकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा बहुत अच्छा कहा है कि 'शून्य शिखर पर अनहत् कया? प्राप जाइए अऔर देखिए । जो चीज़ है उसका सीमित है, और मैं तो असीम की बात कर रही है। गए तो वहाँ जाकर के देखना ही है न । कि अआप उसका होना चाहिए, वेसा होना चाहिए । उससे फ़ायदा ने बाजि रे' । 'शून्य शिखर पर', यहाँ (सहस्रार) पर साक्षात् करना चाहिए । अनहेत् का बजना आप सुन सकते हैं। शन्य शिखर पर अनहत् वाजि रे । तो उसको अप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु हैं, कहते हैं हम नाच दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है । पहला रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के 'नाचि रे-नाचि रे"......... भई, ये क्या तरीक़ा हैं ? सीधा हिसाब ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द में मनुष्य की बात है । दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व करता है, ले किन वो करना परमात्मा को पाना पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन नहीं है । बो हो सकता है कि मनूष्य पाकर के गा गई है पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर । रहा ही या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं एक ही फूल । वो जमाना और था। उस जमाने में अभी तक । पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी नहीं था कहीं होता है । उसके बगैर हो नहीं सकता अब, जब आ्पके अन्दर में ये शुरू हो गया, तब नियम ये कि इसके बारे में अप सोच नहीं सकते किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी को कोई बताता । और निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt भी नहीं था। समझ लीजिए कबीरदास जी ने भी यहाँ हों चाहे इंगलेण्ड में हों । पर सहजयोग कहा है तो उन्होंने सिफ्फ अथता ही बणन किया है में पूरी तरह से हमसे connected (जुड़े) हों, तो। कि भई मेरे 'शुन्य शिखर पर अनहत् बाजि रे और आवे प्रधरे लोगों को नहीं होता। लोग कहते हैं मे रे ऐसे-ऐ से 'इड़ा पिंगला सुषुम्तो नोड़ी बग रा 'माँ suddenly (रचानक) कभी एकदम से खुशबू है । पर इतना गहराई से बताया नहीं, वयोंकि आने लग जासी है।' क्योंकि सब एक ही [अङ्ग के उन्होंने ये काम किया नहीं था, उसके बारे में प्रत्यङ्ग हैं। ये जब तक आप समभ नहीं लगे पूरी निवेदन किया था, उसके बारे में Prophesy तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी । (भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है विशेष कर जञानेश्वरजी ने साफ़ कहा था कि महायोग हीने वाला है। विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी बनि ने बहत सहजयोग के वारे में बताया जो ये घटना घटने वाली है । अब बहुत-से लोगों को मैं देखती है कि मैं घर बहुत से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते हैं कि हम बई ? बहुत से लोग यहाँ इसलिए नहीं प्राते हैं कि हम बड़े भारी श्रफसर तो, जो चीज़ घटने वाली है, होने वाली है उस हैं। पर जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित ) करते के बारे में उन्होंने कहा था। और अआज जब वो घट हैं, और गरन्दे काम करते हैं, वहाँ सब मौटरे लेकर गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहत पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा नहीं पूछना हो तो बहां पहुँच जायेंगे सब, मोटरे लेकर । गया किताबों में । ये बहुत गुलत घारणा है । क्योंकि लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये। वहां मैं देखती है कि लोगों को शर्म आती हैं आते में ले जाऊंगा मां अरर वहाँ मैं करूंगा। भारी अफ़सर हैं। हम यहाँ कसे हुए। या तो कुछ लोग इरते भी हैं। किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसको करें तभी तो आप लिखेंगे । इरने की कोई बात नहीं । अपनी माँ है । हम इसलिए इस तरह की धारणाय लेकर के मनुष्य तो सबकी माया जानते हैं, किसी भी तरह का अपने को रोक लेता है । मामला हो, हम ठोक कर सकते हैं । तो डरने की पर जो महत्वपूर्ण, जो बड़ा, वो ये है, कनिसीवात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न हमारा। उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक चेतना का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point (वात) क्या है, इसको समझना चाहिए । जैसे हम कहें आप भाई -बहन है अ्और अपने एक-दूसरे को भाई-बहन समझ । यह तो ऊपरी बात कहनी हुई। जब यह है ही नहीं, तो कसे समझगे । लेकिन पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने हमको होता । जन्म दिया है । अब जैसे जो लोग पार हैं, अगर हम अपने हाथ में फुंक तो आपको भी फूँक आएगी। ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन ? नहीं है । ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी । जब तक वो पार नहीं यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent (हत्र) वर्गैरह लगाय तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे आप ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ निमंला योग हं LC इदc/. 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt से ठण्डी-ठण्डी हवा तो चलनी शुरू हुई, और प्राप बताता है। । जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो शुरू-शुरू और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा हरकत कर रही जाता है, तो हमारा जो चित्त है माने हमारा है, पता नहीं क्या ? आप उनसे पूछिये कि आपको attention है, वो जहांँ भी जाता है, वो काम बहुत जुकाम होता है, आापको कोई शिकायत है, करता है । अब ये चीज भी मनुष्य के समझ में नहीं ऐसी तकलीफ़ है ? कहने लगे हा भई क्या बतायें, आती। माने कि यहाँ बैठे-बैठे किसी सहजयोगी का तुमको करसे पता नहीं क्यों काट सा रही थी ? ये subjective सकता है । knowledge है, subjective माने आत्मा का knowledge (जान) । Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि । और बहुत दिमागी जमा-खचं । मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता है, मैं उसे जानता हैँ । इसलिए उसे 'सत्य-स्वरूप कहते हैं। ? कहने लगे मेरी ये उँगली पता चित्त अ्रगर गया कहीं पर, तो वो दमी ठीक हो हमारे एक रिश्तदार हैं उनकी मां बहत बीमार रहती थीं विचारी तो वो हम से बताते हैं कि 'अब हम आप से नहीं बताय गे क्योंकि वहुत वुढ़ी हो गयेो हैं, अब उन्हें छट्टो कराइये आप ही दूढ़ी हो गयी हैं। । जब भी हम बताते हैं वह ठीक ये Absolute Knowledge (शुद्ध सत्य हो जाता है । ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम विद्या) है, आत्मा Absolute (शुद्ध सत्य) बताते है ठोक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी है । ये absolute knowledge है । लो हैं अब भी फिर वसे ही हाल हो जाता है। फिर एक आदमी एक वात कहेगा वही दस आदमी बमार पड़ जाती हैं फिर अपको बताते हैं, वो ठीक कहेंगे, अगर वो सहजयोगी है तो। दस छोटे बच्चे हो जाती हैं। मतलब चित जो है, वो जागखक हो अगर Realised Souls है- ये experiment जाता है । जहाँ भी आपका चित्त जाएगा बो कार्या- लोग कर चुके हैं-उनकी अखि आप बाँध कर रखिये न्वित होता है । जहाँ भी आाप चित्त डालें । और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये। वताइये कहने लगे इनके बाइब्रेशन्स, कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा अना आ रही है। 'सब । इसमें जलन हो रहा है। माने चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेवशन ठीक न हो ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका तो मैं थोड़ी देर बात करू गो सुनाई देगा, बाकी लौवर खराब है-वो थोड़ा सीखना पडता है। आप वात गुल हो जाएगी। यही बात है, इस वजह से यहाँ बैठे हैं किसी भी आ्रदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस पदमी कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना को क्या शिकायत है । बैठे-बैठे । ये सामूहिक चेतना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा । में आप जानते हैं। आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकत हैं । कोई गुरु वो सच्चे थे कि भुठे थे, जान सकते हैं। आप कहीं पर जाये औ्और कहें कि की समझनो चाहिए कि सारा एक ही है। हम सब यह जागरूक स्थान है, आप जान सकत है कि जागृत है या नहीं। आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी आयेगे । जागृत नहीं होगा तो नहीं अराय गे । ले किन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में काड आप बाइंब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा ले किन सामूहिकता की और भी गहनता अपने प्रत्यंग है, तो एक अंग-प्रत्यंग हैं । और जब हम अंग- जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन कम नहीं हो सकता । कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा आ जो सच्ची वात है, जो सत्य है वह त्मा निर्मला योग १० গাe 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन सकते हो । तुम बाइब्रेशन बेच नहीं सकते । कहने गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे लगा मेरा Centre (केन्द्र) है, उसमें लोग आते हैं आदमी हैं जब ऐसी भावना आ जाए तो सोतना खाना खाते हैं। मैंने कहा ठीक है, खाने का पसा नाहिए कि बहुत ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। लो। वाइब्रेशन को क्यों लिखा । लिखो, खाने का जिसने ये सोच लिया कि हम ॐँचे हो गये सोचना कि हम पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि Profit (लाभ) नहीं बना सकते । ठीक है, जितना जैसे ग्रादमी सच ही ऊँचा होता है, वेमे-वेसे वो नम्र लगा उतना खचवा लो । उसके दम पर तुम अपने ही होता जाता है। उसकी अवाज़ बंदलती जातो महल नहीं खड़े कर सकते । ओर वाइज्रशन उसके है। उसका स्वभाव वदलता जाता है। उसमें बहुत तेसे थे कि जैसे जल रहा है। बहुत नाराज हो गणे ही नम्रता, उसमें प्रेम बहुते रहता है। ये पहचान है। मेरे साथ । और नाराज होकर के वो चले गये। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में अाने के बाद भी बुलन्द (बड़ष्पन) पर आ जाए अर कह 'साहिब तुम सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत ये क्या हो, वो क्या तो उसको खुद सचिना चाहिए वकना शुरू कर दिया। जब बहुत बकनी शुरू किया कि मैं गिरता जा रहा हैँ। लेकिन इसका दु्रा तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़ ही भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये कर कहने लगे, 'उयादा बका तो ऊपर से नीचे फेक है। मैंने देखा । एक साहव थे, उन्होंने सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब औए योगी हुए हैं। इनमें कोई न म्रता नहीं है। मैंने कहा तो सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं प्और चक्कर स्खाकर गिर जाते हैं तो बड़े चक्कर वाला आदेमी है, मैंने कहा, 'अच्छा. मैं तो समझ रही हैं । फिर मैंने उससे कहा, 'अच्छा जरा अपना Brochure (पुस्तिका) दिखाओगे ? Brochure में उसने लिखा कोई अ्रग र साधू सन्त है उसको जूते मारो, तो भी T fE Vibrations-for ordinary vibration , वो इतना पेसा, कमरे का इतना पेसा । उसमें भी आप उ उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा । लेकिन अमरीका में और देंगे । तो कहने लगे 'बाह रे वाह, देखिये ये सहज खबरदार' जो सहजयोगियों को कुछ कहा यामुझे कुछ कहा अब; मैंने सुन लिया बहुत । मैंने कहा ये दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था । अगर किसी ने भी एक शब्द कहा हैं, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा । बहुत लोगों को ये है कि साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने बाला । मारियेगा तो हज़ार प्रप खाइयेगा। तब वो घवडा करके भागे वहां से । 100 dollars a for special vibrations 250 dollars (साधारण वाइब्रेशन : सौ डॉलर, बिशेष आप अगर एक जुता कहा गये काम से ये । वाइब्रशन : २५० डॉलर)। मैंने तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या वदतमीजी है आपकी? पने कितना पैसा दिया था मुझे, कितने Doliars (डॉलर) दिये ये आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो आ गया ?ै दूसरी side ( तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है मिले । मुझसे बकवास करने लगे, मैंने कहा कि मैं पसे कैसे कमाऊँ फिर ? मैं खाऊँ क्या ?' मैं चुप रहिए, ग्राप वेबकफ़ आदमी हैं, ने कहा, भुखे मरो । पहले कुछ करते थे ? कहने लगे हाँ मैं स्कूल में पुराण पढ़ा, मैंने वो पुराण पढ़ा । मैंने कहा प्ापने पढ़ाता था । मैने कहा स्कूल में पढ़ाओं। जो करते कुछ नहीं पढ़ा बेकार बात कर रहे हैं। अपको कुछ थे सो करो । लेकिन तुम सहजयोग को बेच नहीं पता नहीं है लोगों में है कि 'आपको गुस्सा कसे ओर) ऋभी एक साहब ये भी बहुत बहुत वकवास क्या तुम सहजयोग से कर रहे हैं बेकार में । कहने लगे मैंने ये । अभी पता हो कि नम्बर दो को निर्मला योग ११ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt चलाते हैं कि नम्बर चार पता नहीं क्या-क्या होता है, श्रर सब साथ हो साथ एक हो जसा चलता है। है। तो मैंने कहा क्ि देखिये आप बेवक़ फ़ी की बाते अव उसमें से कोई सचे मैं अलग हैं । एक-आध, मत करिये । दुसरे जो है उनको समझने दीजिये आप वीच में बकवास मत करिये, अआप चुप रहिए । तो कहने लगे देखिये अपको गुल्सा अरा गया। आप है? की अगर कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा दो-चार मक्खन के करण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते हैं । उसके पीछे में कीन दौड़ने चला । "सब एक हैं शर एक ही दशा में हैं"। गुस्सा मत पूछी तुम । कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हैं । मैं नीची दशा में हैं। ॐवी दशा में है, कभी नहीं सोचना । जरा सहमे महाशय । लेकिन बात ये है कि इस इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है । यानी आप सोच लीजिये कि जय हम एक ही अंग तो फिर बड़ा जबरदस्त होता है जब आए त। तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं। आप कोई बिलबिले ्रादमी नहीं हो जाते हैं। है। अ्गर एक उँगली सोच ले कि मैं बडी हो जाऊ आप वीर श्रीपूण, अप तेजस्वी लोग हो जाते हैं, नाक में री सीच ले कि मैं बड़ी हो जाऊ। कसी शपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है। ये थोडे दखिगा शक्ल ? ये तो malignancy (दोष) है यही तो cancer होता है। cancer में एक अपने को बड़ा समझकर के बाक़ी cells को खाने लग जाता है। ये हो गया केंसर। ऐसा जो इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) बनाना चाहता है कि सब मरे ही पास हो जाए, मैं कोई तो भी विशेष हो जाऊ । मरा ही कुछ विशेष हो जाये, वो आदमी कि आप उस वक्त में जितना भी कोई चांटा मारे आप खायंगे । कर दो। वो दूसरी बात थी, उसका अरथ ही दूस री वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ़़ था । क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल था कि एक ही चाँटा कोई नहीं खा सकता था। लेकिन पार होने के बाद ततक्षण आपमें शक्क्त आ जाती है। cancerous हो गया society (समाज) के लिये । तत्क्षण । सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं कहानी बताती हैँ। कि जैसे एक बहुत-सी चिड़ियाँ विशेष कर रहा है, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहत नजदीक है, तो इतना वो दूर क्योंकि मन्थन हो रहा है बड़े जोर का मन्थन हो रहा है । शायद आप इसको निकाल देंगे । तो कहा, हाँ ठीक है । सब मिलकर महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता के एक, दो, तीन कहकर के उठें । और सबके सब नहीं। जब हम दही को मथते हैं, तो उस उठे और जाल को तोड़ दिया उन्होंने । थीं औौर उनको एक जाल में फेसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर जाकर इस को तड़वा देंगे बाद में, फड़वा देंगे, किसी तरह से चला जाएगा। वही चीज सहजयोग है । सहजयोग की सामू- का सब मक्खन ऊपर आ जाता है । फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते हैं यही समझ हिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये बहुत लीजिए Incarnation (ग्रवतार) है, समझ गड़बड़ होता है। माने, मां, मैं घर में बैठ करके लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा घ्यान करता है । रोज़ पूजा करता हैँ । मेरे है । और उस मक्खन से बाक़ी सारा लिपट जाता वाइब्रेश बन्द हो गये। होंगे ही आपको सामूहिकता निर्मला योग १२ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt में आना पडेगा । आपको Centre (केन्द्र) पर आना अनुभव करके देखं, कि अगर कुछ पेड़ मरगिल्ले हो पड़ेंगा । एक दिन हएते में कम से कम सटर में आ जाएँ तो उनको श्और पेड़ों के साथ अआप लगा करके प्रापको देखना पड़ेगा कि अपके वाइब्रेशन देरजिए, वो पनप जाते हैं । एक टूसरों को शक्ति देते ठीक हैं या नहीं। दूस रों पर मेहनत क रनी पड़गी। हैं। मानो जैसे कोई एक दूसरे को देखकर के बढ़ते आप दीप इसलिए बनाये गये हैं कि आपको हैं। और यही सामूहिंकता हो सर्व राष्ट्रों में [्र सबवं दूसरों को देना होगा। इसलिए नहीं बनाए गए कि देशों में फैलने वाली है । और उस दिन आप आरप अपने ही घर बनाते रहिये। फिर वही दीप हो जानियेगा कि अप चाहे यहाँ रहे, चाहे इग्लेंड में, सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दोप सामूहिकता चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भो मुसलमान में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को एक हैं । यही शुरूपरात हो गई है, और सहजयोग अलग न समझ । आएँ] नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में शरएँ हो सकता है कि सेन्टर में एक आघ आदमी क्रान्ति माने आ्राप जानते हैं । ये एक बड़ी भारी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नही करो। evolutionary क्रान्ति है । और जो पवित्र तो बूरा नहीं मानना है । क्योकि उन्होंने अनुभव क्ान्ति है । जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती किया है। उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, है उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस इसको छोड़ता चाहिए, इसे निकालना चाहिए शरजी भी सेन्टर में कहा जाये उसे कर क्यो अप हैरान होइयेगा। इसके कितने फ़ायदे होते हैं। कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता हैं । क देशों में या चीनी देशों में कहीं भी रहें आाप सब एक बड़ी संक्रान्ति है । सं माने अच्छी और । विराट के अंग प्रत्यंग हैं। हम अलग नहीं। और कुछ एक हमारे शिष्य थे प्रोफ़सर साहब राहरी में । बो जरा अपने को अफ़लातून समझते थे, कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे बहुत नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं एक ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरू किया बैठा हुआ बहाँ जगल में और कृष्ण-कृष्ण कह रहा कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तो अच्छा करते हैं, है। उनको time (समय) नहीं है । कबीर ने कहा बहुतों को पार तो किया ले किन जरा गुस्सा इनको कि "पंचों पच्चीसों पकड़ बुलाओ मतलब उनकी ज्यादा आता है। प्रोर इनकी बीवी से इनकी पटती भाषा में इतनी Authority (धिकार) भी देखिये । नहीं है। दुनिया भर की मुझे शिकायते करने लग कितने अधिकार से बाते करते थे । कोई गिला नहीं था गये। तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर ँ, उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, शरौर कहने लगे एक ही डोर उड़ाऊ।"' ये कबीर जैसे लोग बोल सकते हम लोग अलग से काम करेंगे तो भी मैं चूप थी । हैं। ओर आप भी कह सकते हैं इसको बाद में। तीसरे मतबा जब गये तो देखा कि बो कह रहे थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा उनमें । वो कहते हैं'"पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊ जब आप पार हो जाय तो आप भी देख गे कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेगे तब तक सहजयोग ले तो कोई बात नहीं, मैं तो खाता है। माता जी को तो कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता है कोई हजं नहीं । तो वो सब तम्बाकू खाने वालों बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं । उसके ने एक ग्रप बना लिया । माताजी के, मतलब, हैं तो बाद जब मैं आती है तभी आते हैं । उनकी हालत सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, कोई ठीक नहीं रहती। सहजयोग में बो बढ़ते नहीं, शराब पीने वाले सहृजयोगी, रिश्वत लेने वाले बोलने वाले सहजयोगीं ऐसे ग्रुप मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है । वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये सहजयोगी, झूठ निर्मला योग १३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt बन गये। तो मैंने उनसे कहा-वहाँ पर सिफ़् अ्रब. बिल्कुल ठीक हो गये 'अव वो समझ गये तम्त्राकू खाने वालों का या, तम्बाकू बड़ी मुश्किल वात । उन्तके सगे कौन हैं, वह अ्रब पहचान गये हैं । से छूटती है, बहुत मुश्किल से । तो, उसके बाद उससे पहले नहीं । उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, जनावेआ्राली से मैंने फ़रमाया कि 'देखिये, जरा ग्राप दूसरे रिश्तेदा रों के पीछे में, उनको खाना खिलाना, सम्भल के रहिये । । उनसे कभी सहजयोग की वात नहीं हैं। जब ये ग्रष बन जाता है, मैंने तभी कहा, तब करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू malignancy (विष) बहुत जोर करती है । अगर वालों का एक गप बना लेना । एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन प्रगर दस cell हो गये र सब malignant हो गये तो गया आदमी काम से । उसके वाद जब मैं मोटर से में नहीं मिलेगा। र रहो थी तो मैंने रास्ते में जो वहीं के सञच्चालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये । मूझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फॅस जाएँ। और आपको चाहेगे कि ग्ाप खुश न हों। देखिए आपको आश्चर्य आश्र्य होगा कि उनको ब्लड केसर हो गया। बहुत ज्यादतियाँ आपने करलीं पिलाना ले किन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं दुनिया जयादातर सगे ऐसे होते हैं कि पापकी खुशियों पर पानी डालते हैं । और कहते हैं कि-उपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं लेकिन ग होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हजारों लोग पहुँत्र जाते हैं रोने के लिए । खुश होते होंगे, शायद अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी घर पर अरफत रायी, मन में। और जब कुछ हालत खराब हो गयी तो वो साहब बम्बई पहुँचे । प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये जितने । कभी खुश भी डॉक्टर थे सहजयोगी प्रौर जो लोग थे उन्होंने hospital (प्रस्पताल) में उनको भर्ती करना, उन का सब diagnosis (जाँच पड़ताल ) करना, उन के लिए दौड़ना, घुपना सब शुरू अब जो रिश्तेदार लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं अरे ये सहजयोगी उनके चिपके हुए थे वो तो सब छुट गए, वो कोई first (प्रथम) आ गया । इस सहजयोगी के ऐसे उनको जानने वाला नहीं । उनके पास तो न इतना गया। सहजयोगी के घर में किसी के बच्चा हो गया रुपया था न पेसा था । संब कुछ सहजयोगियों ने तो मार तुफान हों जाता है तैयार करके - मूझे कभी जो लोग कभी भी कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में टूङ्कोॉल पर ट्रङ्क- कॉल 'माँ वो हमारे एक सहजयोगी हैं, उनको ब्लड स्विटज़रलण्ड के थे । वहाँ आकर उन्होंने शादी केसर कसे हो गया। आप ठीक कर दीजिये । मैंने करी । कहने लगे में रे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते कहा 'इन्होंने कभी न चिट्री लिखी न कुछ किया । हैं । मुझे ब्या करना है स्विटजरलैण्ड में शादी कर आज टूङ्ुकॉल लन्दन करना कोई अरासान चीज़ नहीं। और जब देखो तब टुडकॉल, 'माँ इनको वहाँ आकर के उन्होंने शादी क री, अपनी बीवी को ठीक करदो, इन्हीं के प्राण निकले जा रहे हैं, सबके । बहरहाल घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने । कहने वो अब ठीक हो गये, बिल्कुल ठीक हो गये। डॉक्टर लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे- ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायं गे लेकिन सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने हा लगे-पता है इसका कसे प्रमोशन हो गया है। इसने वड़ी लल्लोचप्पो की होगी नहीं होते। ले कि न सहजयोग दूसरी चीज है। सहजयोग में हो ट्रङ्क- अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में । वो के । वो स्विटजरलेंड से आराये, राहुरी- एक गाँव में । । माने जैसे भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी। वहीं माँ वो हमारे .... निर्मला योग १४. 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt हैं उनकी शादी मनाई। ओर अब उसको वचचा होने बहन । वाला है तो सब सहजयोगी ऐसे सखुश हो गये, आपस में पेड़े बांटने लग गये। और उनके जो रिदतेदार जाते हैं, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि पर जो लोग, जन सामूहिक नहीं होते वोनिकलते थे, उनको समझ में हो नहीं आ्राया कि ये केसे सब हो गया। अब आपके रिश्वेदार सहजयोगी हो जाते आ्पके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अ्रपने हो जाते हैं, आस्मज । centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है बो कि गया वो tangent (स्पर्शरेखा) से बाहर । वों रहता नहीं, फिर टिकता नहीं । इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये। इसके जो नियम हैं, उसको का मतलब किसी ने नहीं सोचा । 'आत्मज' जो समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से आत्मा रो पेदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा पूछना चाहिए। उसमें बुरा मानने की कोई बात नही। जो कल आए थे वो ज्यादा जान गये। आज आत्मज शब्द बहुँत सून्दर है । शायद कभी इस जाता है कोई बहुत नज़दीकी आदमी को ये मेरे आर्मज हैं । ज़िस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया औप अये हैं आप जान जाइयें । अ्रीर जो कल उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है। मै यर रूद आएंगे बो आप से जानेंगे। इसमें बुरा मानने की आश्रयं में पड़ती हैं कि मेरे जान को लग जाएँगे श्रर इसकी कोई बात नहीं। पर जब आदसी सहज अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ़ हो जाए-ऋर योग में पहले आता है तो बह यही भावना लेकर आता है कि अव हम इसमें आ्रये हैं और ये देखिये . बार-बार माफी माँगंगे, 'माँ तुम माफ़ कर दो । तम तो माफ़ करे दो। हो। नहीं तो.... माफी माँग रहे हो उसकी । 'अब वो भूल रहा है हैमें बड़ी शान दिखा रहे हैं। उस पर तुम कुछ नाराज़ हो गई ..'। मैंने कहा कि भई तुम क्यों ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी वदल गयी है, ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं ले किन ये माफी माँगना तो हम हो मंगि रहे है, उसको मफ़ दसरे हो गये हैं। जै से समझ लीजिये कि आपके] इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर ।ollege में लड़के पढते हैं। कोई बी. ए. है, कोई कर दो। इतना मोह लगता है कि 'कितनी मौहब्बत, First Year (प्रथम वर्ष) है । फिर कोई एम. ए. में कितना खयाल' । कितनी किसी पर कोई परेशानी है। एम. ए. का लड़का Pass (पास) होकर Prof - की परेशानी गा जाए कोई श्रा जाए, पैसे तकलीफ़ हो जाए. तो सबके सब secretly (चुपके में पढ़ता से) उसको कर लेते हैं, मेरे को पता ही नहीं था और आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर । उसी fessor (प्रोफ़ेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ चलता है। तरह की चीज है-इनकी श्रेणी बदल गयी। आप] की भी थेणी बदल सकती है। सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया को दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा ? अरभी तो हम लोग रगड रहे हैं सहजयोग में । कुछ progress नहीं बेमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition होता वो ऐसे ही चलते रहते हैं, डावाडोल-डावा- (प्रतियोगिता) और दो पागल Rat race के पीछे डोल । कभी गुरुओं के चक्करों में घुसे । आज ही में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा औ्और एक महाशय आये थे, [आ्राये] होंगे अभी भी । पार हो इतनी sense of security (सुरक्षा की भावना) गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शड़्कराचार्य के हमारे अन्दर अ जाएगी कि सव हमारे भाई कुछ कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से पास गये, कहीं किसी के पास गयें, कही कुछ गये । निर्मला योग १५ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt विचारे बित्कुल पागल हो गये-पागल । मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे प्रन्दर विशाच भर दिये हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साड़ियाँ इन्होंने। सत्रने पिशाच भरे । आए अभी वितारे; ं काफ़ी उनको साफ-सूफ़ progress (प्रगति) उनका कम हुआरा। अगर उसी पता हो गया कि ये साड़ी मेरे पडौस के उसके वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहा होते। और रिश्तेदार के उसके पास है तो लेगो नहीं । बड़ी तकलीफ़ उठाई बिचारों ने । बडी परेशानी उठाई । वाले भी इतने होशियार होते हैं विचारे । वो जानते दिखायेंगे। वो थकते नहीं बिचारे । मैं कहती है किया हमने । पर उससे कौन जीवहैं ये भी, पता नहीं। और कभी उनको ये variety की sense(विविधता की भावना) सौंदर्य का लक्षण है। इसलिए परमात्मा ने बनाया सामूहिकता को आप समझे कि वहुत महत्व- है। उसने सारी सृष्टि से बनायी, कहीं पहाड़ पूरणं है। सबसे बड़ा आशीर्वादि सामूहिकता में आता वनाये, कहीं पर नदियाँ बनायीं, कहीं कृछ दनाया। है । और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की इसलिए कि अप लोग उसमें मस्त रहें, मज में रहें। कोशिश की. यानि लोगों की आदत है, क्लब करने लेकिन आपने तो इसको ये, बना लिया देश उसको को कोई न कोई बहाना लेकर के । आप सफद वो देश बना लिया। उसने वो देश बना लिया बाल बाले हैं तो मैं भी सफ़द बाल वाला हूँ । चलो, और लड़ रहे हैं अ्रपस में । अजी ब हालत है । हमारे हो गये एक । आप लम्बे आदमी है तो हम भी लम्बे जैगे अरजनवी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, भई आदमी हैं, हो गये क्लब । आप सरकारी नोकर हैं इसमें लड़ने की कौनसी बात है ? और फिर घुटते- घुटते हरएक देश में अपनी-अ्पनी समस्या, अपना- 1 सुन्दर श मैं भी सरकारी नौकर हैं, चलो हो गए एक । अपने ढङ्ग बनता गया। सहजयोग में सब छुट जाता है। आप कौन देश के हैं? परमामा के देश के । आप किसके साम्र।ज्य के हैं ? परमात्मा के। परमात्मा ने थोडी ऐसा सहजयोग में ये चीज़ टूट जाती है । आपको देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग किस बनाया था कि अ्रप यहाँ के, अराप वहाँ के । भई तरह से अपने देहा तियों के साथ गले मिल-मिलकर परमात्मा तो हर एक जगह Variety (विविधता) के कूद रहे थे। और बहाँ पर तुत्य सीख रहे थे, कैसे वनाते ही हैं । ये त्रिगुरण के permutation and अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं । अगर ये पञ्जाव combinations(विविध मिश्रण)के साथ में उन्होंने जाएँगे तो वहाँ जाक र भगडा करंगे उनके साथ कूद- ये सारा बनाया, अ्रोर जिस लिए कि जसे variety से कूदकर । देखने लायक चौज है । ये भूल गए कि खूबसू रती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक हम किस देश के हैं। प्रेम-उसका मजा, प्रेम का जैसी हो शक्ल जाती तो Bore (नीरस)नहीं हो जाते मजा आता है। फिर ग्ादमो यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये कहाँ रह रहा है कि व्या; बस मजे में । ये सब विचार ही नहीं आता है - कौन कम से कम हिन्दुस्तानी अरतो को इतनी अकल बड़ा, कौन छोटा, कौन कितनी position में है । है कि साडियाँ पहनती हैं अब भी, अरीर सब अलग- कुछ खयाल नहीं आता। ये सब बाह्य की चीज है, अलग तरह की पहनती हैं। पर आदमी तो बोर सनातन नहीं हैं। क्योंकि सनातन को पा लिया है । करते हैं-उनके कपड़ों से । सब एक जने । श्ररत पर सबसे बडी बात [पपको याद रखनी चाहिए, जो हैं अ्भी भी अपना maintain किए हैं । अगर हर समय, कि हमें सामूहिक होना चाहिए और एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जेसी साड़ी पहन सामूहिकता में ही सह जयोग के आशोवाद हैं कर आयी है तो बदल के प्रा जाएगी। । 1 सब लोग? 1 और बो साड़ी अकेले-्रकेले individualistic विल्कुल नहीं निर्मला योग १६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt विल्कुल भी नहीं। आप खो दीजियेगा सब कुछ । लेते हैं। उनको क्या माजूम ये सब चीज, कि ऐसा मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं । लोग ज्यादातर जो ऐसा होता है । लेकिन होता है । और उसके बाद बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी उन्होंने जमीन दी भी, मतलब किसी ने bribery तरह से होते हैं। आये, बीमारी ठीक हो गई, उसके तो हमने दी नहीं, तो उन्होंने हमें सब्जी मण्डी के अन्दर हमें जगह दी । वताइये अब ! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, वहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दो । हमने कहा, भई बाद बैठ गये । एक साहब अए थे हमारे पास, बहुत चिल्ला- चिल्ला कर 'मां मेरे ये जल रहा है, मु बसाया, जिसने दी है उसने कभी देखा भी कि बैलों के साथ वचाओ, बचायो ।' मैंने कहा, 'बैठे रहो अभी थोड़ी देर। उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए । उसके बाद एक दिन बाजार में मुझे मिले-तो मेरा फोटो वोटो रखा हमा है अपने मोटर पड़ा, सालों तक । अब दस वर्ष से कोशिश करने के में क्या सहजयोगो वहां बेठने वाल हैं ? बहरहाल अब दोड़ना तो उस बात को लोग समझ गए हमें बहुत | कहने लगे मैंने घर में भी फोटो रखा है, मेरे कि हम इस पर सोचेंगे । दिल में भी फोटो है। मैंने कहा 'बेंटे क्या वात है, इसका अ्रथ आप सेरकारी नौकर जानते हैं। हभी वाइब्रेशन तो हैं नहीं। कहने लगे 'हां नहीं हैं। बी सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह और अब एक कोई नई बीमारी हो रही है । मैंने होगी, जसे भी जगह, [पराप उसको देखें वहाँ करें, जो कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे लिए । तुम भी अभी सुब्रमनियम साहव ने अपना घर दिया सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर भराथो।" बाद उन्होंने कहा, हप्रा है वहीं होता है । और कोई जगह अगर शपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए । आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई कोई ज़रूरत नहीं कि बहुत बड़ी जगह हो। सर्व- केन्द्र नहीं । हर तरह के चोरों के पास यहां साधारण लोग जहाँ श्रा सके । इस तरह से सब इतने बड़े-बड़े परश्रम बन गये हमारे पास अभी अपना ही कार्य है । कोई जगह नहीं, किसी के घर में ही हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं । हमारे पास जो धन है, बो सबसे बड़ी चीज है। उसके लिये कोई ज़रूरी नहीं सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं । इसके कि अब महल खड़े हों, बड़े Air-conditioned लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। (वातानुकूलित) आधम हों। वह तो कभी होंगे ही सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना नहीं हमारे । और अभी तक हमें, कहीं भी हम लोग जमीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि हमने यह कहा था चौज है कि सहजयोग में अए हुए लोग आज बड़े- कि हम black-market (काला वाज़ार) का पेसा नहीं देंगे। तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ मिनिस्टी छटेगी फिर आएँगे जरूर आयेंगे फिर हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे हैं । हमारे चाहिए । सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली बड़े मिनिस्टर हो गये हैं। कितनी आश्र्य की है । लेकिन मिनिस्टर होने के बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब ये भी बात देखिये ऐसी जमीन देंगे जिसमें सीधा-सीधा प्राप पहचानियेगा कि ये फ़लाने मिनिस्टर थे, हम आपको पैं सा हो। आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में अ्रपके ! ये हालत है । Government (सरकार ) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं वो bribery (रिश्वत) पड़ेगी आपको । ये आपका परम कर्तव्य है। जो नहीं । एक माताजी । अव उनको फ़रसत फरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी निमला योग १७ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt कहत। है 'मेंरे पास समय नहीं है कब कहू, । मैंने सहजयोग नहीं कर सकता । रोज शाम को और कहा कि 'कितने बजे ? ३-३० वजे । मैंने कहा 'उस रोज सवैरे थोड़ा देर निकालना पड़ता है। सहजयोग वक्त तो मैं आराम करती है । तो कहने लगे 'हम में प्रनेक नियम हैं । अपने अ्रचार-व्यवहार, ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। रहन-सहन, अरासन दि क्या-क्या करने के वर्गरह मैंने कहा 'ठीक है, आपके लिए तो माँ का दरबार सबके नियम हैं। मैं सब नहीं बता सकतो। एक है, लेकिन आपकी अवल का दरबार कहाँ रह गया? ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही है क्या उसको वो लगे कि 'हन दिन में आए थे अपके पास वर्ताव, साहब उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रो के आासन थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए ? अगर उन्होंने आज नहीं बता सकती । लेकित इसके मामल में कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही हैं, आप बहुत लोग जानते हैं। कोन-से आसन करने चहिए, कौनसे चक्र पर कोन-सी तकलीफ़ है । आपको कौन- सही है? ले किन जव वो उस जगह खड़े होगे तो सी तकलीफ़ है, वो बता सकते हैं, पता लगा सकते कथा करेंगे ? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग हैं । आपस में आप विचार विभशं कर सकते हैं से बेकार में भागते हैं, और इसकी सबसे बड़ी वजह और आप Progress (उन्नति) कर सकतै हैं । नहीं आएँ तो आपको खूद सोचना चाहिए कि वात मैं तो ये ही सोनती है कि अभी बह पात्र नहीं है । लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत करनी होगी और कहना होगा कि 'मुभें तकलीफ़ है ।है। थोड़ दिन नाराज़ हो रहे हैं, कुछ हो रहे हैं सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो सब ऐसा कर रहे थे. तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, चीज । जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है. ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नही है । आपको घुसना पड़गा, उसमें रहना पड़गा, उन लागी के होता है, बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा । लेकित साथ बात-चीत करनी पड़ेगी। क्योंकि ये ऐसी कुला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है। कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग आपकी हालत खराब कर देते हैं, तब देते हैं का भी Testing (परीक्षण ) होता है कि आपह कितने योग्य हैं । यह नहीं कि अराप आए ग्रौर [आप] छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि 'साहब वो ऐसे-ऐ से थे। उन्होंने हमसे बदतमीजीं की जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अव्ल है, हम भाग आए । कुछ नहीं। सहजयोग में जमनो तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए । पुड़ता है और उसमें आना पड़ता है । हालाकि कीई कि किस तरह से हम गहन उतर चल जो आदमी पाचर होता है घुसता चला जाता बलो घूसते चले जाओ । और गहन उतरता है। साहब थे । वह जो Soft-line है, बो हमेशा लेती है, जीवन्त जब sprout करता है, तो उसका जी root-cap वड़ा समझदार, wise, होता इटानों से नहीं टकराता है । किसी पत्थरों से नहीं है । वो जाकर टकराता है, रपत्थर के किनारे पर थोडीसी soft नम जगह मिल जाए, उसमें से धुसती चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थ रों पर, इस । ती आप ( तरह से जकड़ जाता है कि सारा पेड का पेड़ उसीके सहारे खडा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात है तो आपका अपमान नहीं करता। लेकिन आप में बहुत ego(अहङ्कार) होगा। तो बात-बात में प्रपको ऐसा लगेगा । जेसे एक साहब आए, मुझे क हने लगे, 'हम से आपकी प्रगति नहीं होगी। आपका ही loss तो आ्ाए थे आपसे मिलने लेकिन वहाँ एक साहब थे (नुक्सान) होगा । ये सब बहानेवाजियाँ ग्रापको बड़े बदमाश थे । हमने कहा 'क्या हुआ ? कहने वन्द करनी चाहिएँ । ये प्रापके मन का खेल है । कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से भागने निर्मला योग १८ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt इसको आप छोड़िये । ये ego(अहकार) है और कुछ उठा ले तो सारी दूनिया ही आपकी रिश्तेदार है । नहीं है । ये बड़ा सूक्ष्म ego है। कोई प्रापके पैर पर पर यह सोचना कि मेरी वहन बीमार रहती है और नहीं गिरने वाला। यह तो जरूरी है कि सबसे अच्छी मेरे फ़लाने बीमा र रहते हैं और इस तरह से जो तरह बात-चीत की जाए, कहा जाए। पर अगर कोई लोग करते हैं उससे कोई लाभ नहीं होता । बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या जरूरत है अब? जब तक अाप केन्द्र पर नहीं आएंगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन जान के बीद आपका अधिकार बनता है। उस सकता है। पहले आपको पार हो जाना चाहिए । पार हो अधिकार के स्वरूप आप चाहें जो भी माँगे। आप का पूरा अधिकार है । सर आँखों पर हैं आप। प्राप एक तो सब से बड़ी बात यह है कि बहुत से लोग अगर समझ लीजिए आप इङ्गलेण्ड जाएँ और यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो इङ्गलेण्ड से जाकर आप कहें कि हमें ये चीज हमारे बाप-दादे के दादे के, बहुन के बहन के, और चाहिए । अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिस्तदार, लोग पेर नहीं उहरने देंगे, जब तक आपके पास कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो बस वो माता सता न हो, वहाँ जाने की । जब आपके पास सत्ता जी उसको ठीक कर । एक साहब बहुत बड़ सहज नहीं है. तब अआापका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद योगी हैं और हमारे यहाँ Trustee(ट्रस्टी) रह चुके मांगना ग्लत है । हैं। सालों से Trustee हैं। उनकी बीबी भी। दोनों দो बहुत दोमारी थी। ठीक हो गए काफ़ो गहरे तर चुके । सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ने टेलीफोन किया, टरङ्ग कॉल किया 'माँ उनको कपर से निरकर मर गया। Normally (सामान्यत:) ठीक करो। बे पार नहीं थे, कूछ नहीं थे । तो मैंने सहजयोग के लोग accident (दुरघटना) से मरते कहा 'अच्छा हम कोशिश करते हैं। उनके साहबजादे नहीं। कभी अभी तक तो हमने सूना नहीं किसी को पार थे। कोशिश की, मैने कहा कि देखो इसको मरते हुए । श्रर वो इस तरह से मर गया। जवान छोड़ दो। अहडकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं लड़का था । लेकिन उन्होंने कहा कि 'ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था शऔर हो गया dent से तो माँ ने मुझे बहुत बार बचाया है। मैंने तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न हम इतनी बार अपने लड़के से कहा कि मा के पास रोकने वाले हैं । सिऱ यह है कि सहजयोग से मनुष्य चलो । आय नहीं । तो मैं क्या उसकी ज़िम्मेदारी शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले और जो ले सकता है ? अगर वो माँ के पास आता अपने चीज बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे बच जाता बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा न हीं होता। उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस वच्चे है। Suddenly (अचानक) कोई चीज़ वो होकर को प्यार करते थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा नहीं मरता है। वास्तविक जव मरना है तब मरता कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या है। तो उनको जब मरना था वो मर ही गये, आएगा ? आपके जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका बिचारे । वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी मुझ्किर हमने नहीं लिया हआा। न अप लीजिए। आप उन से उनको किसी तरह से ठीक किया था । वो मर से कहिए कि सहजयोग में आप उतरें। सहजयोग गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता को आप पाएँ । और इसकी रिश्तेदारी बीमार थे। इन लोगों जसे एक साहब थे, बहुत । तब आने पर बो ठीक हो गए। थोड़े हुए है लेकिन acci- दिन उनकी ज़िन्दगी चली । लेकिन जब मरना । मैंने है। इसलिए मैने कहा कि accident से नहीं मरता आप अगर जी, इनको बचाया नहीं।' मैंने कहा 'उनसे एक निमंला योग १६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt सवाल पुछो कि आपने माताजी के लिए क्या अधिकार नहीं जमता । किया ?" पहला सवाल । प्र ये काम बन गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए ! इतने निकरले, कि मुझे तो कहना पडा 'भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। ५१ कर दोजिये, तो भी बहत वहाँ तो ऐसे-ऐ से लोग है 'दस-दस हजार पार किये हैं । इसीलिए शायद उसका नाम लोग ऐसा हक़ सहजयोग से लगाने लगते हैं क्योंकि ये सहज है। वो सोचते हैं कि मां ने हमारे निकल अरयगे । लिए क्या किया ? अब भई आपने क्या किया माँ के लिए आपने अपने हो लिए क्या कया पहले ती । दस-दस हुजार लोग पार करने महाराष्ट्र' रखा है सवाल ये पूछना चाहिए कि हमन अपना हा क्यों वाले वहाँ लोग हैं। भला किया हुआहै ? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआा है ? ऋ्रया हमने अपने Vibrations और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या ठीक रखे हैं ? या क्था हमने एक आदमी को भी करेंगे जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frivolous Temperament(उथली बृत्ति ) है । अपने तरफ भी self esteem (अपना आदर)नही है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं है हम पार कराया है ? महाराष्ट्र में आप आश्रर्य करंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में । महाराष्ट्र कया हैं। हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज है! मैं की आप जाकर खूद हो देखिये, मैं तो खद ही ग्राश्र् में हस कितने वक्तिशाली है! इस शक्ति को हमें कढाना है, कि इतने हजारों लोग करसे पार हो जाते हैं ? और फिर जमते भी बहुत हैं । यह भी बात उन लोगों में है । और इस तरह की बात बहाँ नहीं होती है । अ्रब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि रौनक करनी पड़ती है प्रौर सबके साथ में इसको किसी ने अगर ग्यारह आदमियों को पार किया है वो बाँटना पडता है । मराठी में एक कवि हो गये हैं ही मेरे पैर छु सकता है । वहाँ पैर छूने की लोगों उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे जातीचे, येरा गवा- को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पेर नहीं ळयाने काम नोहे'। कहने लगे इसके लिए जिसमें छुता, तो बस उसके लिए फिर आफ़त हो जाती जान हो वो आए। ऐ है । छः हजार भी आदमी होंगे तो भी चाहेगे कि ये काम नहीं है। 'येरा गवाळयाचे' माने वेवकफ़ों माँ के पैर छुएँ । यहाँ किसी से कहो कि पेर छू्रो का ये काम नहीं है । तो वो बिगड़ जाए कि 'क्यों पेर छूयें साहब इनके चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है एक रौनक़ लगा लो बस हो गया। । इससे काम नहीं होता। अपने अन्दर जो ऐसे-व से नन्दी-फन्दी लोगों का इस लिये प्राप से मुझे request(ग्रनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती कर के, कि आपको ले किन उनको मैंने अगर कहा कि 'आपको पैर जो भी दिया है उसका सञ्जोना बहुत जरूरी है। इस छुना है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी होने को और बढ़ना बहत जरूरी है आप ही देहली के सकते हैं जिन्होंने ग्यारह foundation (नीव) के पहले stones (पत्थर) कुछ लोग खड़ हो गये, हैं। और आज सात साल से मैं यहाँ मेहनत कर कहने लगे 'माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये हैं. रही हैं दिल्ली में गौर प्रभी इन गिन के दो सी छु लें पैर ? देखिए भोलापन । अब उन्होंने कहा कि stones भी नहीं जोड़ पायी । ये कठिनाई है । 'भई अब इक्कीस बनागओ ।' कम से कम इक्कोस आप सोचिये । और जो आते भी हैं ज्यादातर दल- पार किये हों तो माँ के पेर छ सकते हैं, नहीं तो बदल और दल बांधने में नम्बर 'एक'। यह शायद हो हम ? चाहिये । वही लोग छु आदमी पार किये । तो निमला योग २० whe 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो । आपने ऋ्पने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर चाहे जो भी हो । इतना Politics करते हैं कि आश्वर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति मां ने हमें दी है ! और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है, आदमी सोचता है कि 'मैं भी इस काबिल हो जाऊँ । जब इस प्याले से ये चीज है तो ये प्याला भी इस योग्य हो जाये जिसकी कोई हद नहीं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है। इसमें सिर्फ ग्रपने को पाना और परमात्मा को पाना, और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूण क्रास्ति में कि इस महफ़िन में आ सके । बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारो काम है । अपने आप ही अपना व्यवहार, अपना तरीक़ा 'सब छलक रही इस तरह से आदमी बहुत महान् काम हैं। इसमें हजारों लोग चाहिए और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान ले कि * Last Judgment Judgment afai से ही होने वाला है । और क्या भगवान आप की इस संसार में जन्म लेना चाहते हैं। अगर अपका तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला। कुण्डिलिनी दिल्ली में वातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ को जागृत करके ही आपका Judgment होना है । राक्षस जन्म लगे । या तो वो Last Judgment जो बताया गया है वह शुरू जन्म ले, जो इण्डे लेकर आपको मारेंगे । और या हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके तो राक्षस पैदा होंगे, अऔर राक्षसों होकी यह नगरी लिए 'कलकी अवतरण में कि आाप जानियेगा कि हो जायेगी काट-छौँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) कभी सोचती है कि इनकी समझ में अभी बात आ नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा। बस एक टुकड़ा नहीं रही । कुछ वदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़-बड़े जीव वहुत ही पहुँचे हुए लोग । इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी इधर, या एक टुकड़ा उधर । आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह आप समझ लीजिए, और ये चीज [अपने देहली जो है वह दहलीज है इस देश की ओर । इस गाँठ में बाँध लें कि अब जितना भी सन्त- दहलीज को लॉघ कर अगर राक्षस जा जायें तो साधुओों ने यहां मेहनत की है, जो भी बड़े-बड़े आप लोग कही के नहीं रहेंगे। आपको दहलीज पर अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बड़े दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है देवदूत और वड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके और आप अब stage (मञ्च) पर हैं। आप stage जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा करें पर रहना चाहे तो stage पर रहें, या नीचे उतर अर ओरों की भी रक्षा करे । अपना कल्याण कर, जायें । यह प्रापकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें लेकिन सबको ऊपर खींचे । आ्राप लोग दूस री तरह मङ्गलमय बनायें, यही मेरी इच्छा है । के हैं। आपकी थेणी और है [आप साधक हैं, श्र आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिये एकद्रत निश्चय होना चाहिए। Army (सैना ) में इसको बाद आऊँगी और उसके बाद भी मेरा प्रोग्राम कहते हैं कि 'बाना पहन लिया आपने । तभी ये दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन आप लोग सब चीज कम हो सकती है । और ऐसे वैसे, ऐरे-गरे वहां परइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है । जहां जहां नत्यु खेरों से यह काम नहीं हो सकता । आप ऐरे- सहजयोगी आते हैं वहां -वहां कार्य ज्यादा होता है। गे रे. नत्थ- खरे नहीं हैं, मैं जानती हैं । ले किन अ्भी सब लोग वहाँ आईये। ये लोग तो आपकी भाषा प्ररों का भी कल्याण करें, और सारे संसार को इसके बाद मैं मद्रास जा रही है लेकिन उसके निमंला योग २१ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt भी नहीं समझते हैं अऔर जहां - जहां मैं गई गांव लिये ग्रापको चाहिए कि जहाँ भी मैं करू, जब तक वर्गरा में बहां तो हिन्दी या मराठी भाषा चोलती मैं रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहां आते रहे और आये और इस कार्य को आप अपने लिए भी हर तरह की आफ़त, आप जानते हैं इन लोगों को अपनाइये और दूसरों के लिए भो अपनायें । सो गांव में रहने की विल्कुल आदत नही है । वहां पर रहकर के ये समभते हैं कि हमारे रहने से मा के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आ्रप ही Channels (पथ) हैं । [आपके channels में इस्तेमाल करती है। अगर, समझ लीजिये, इतनी दे दिया होगा। और अरगर नहीं दिया गया हो तो बड़ी ये जो आरपको Power-house (विजली-घर) आप जरुर centre (केन्द्र) पर चीज़ों का जवाब पा है, इसमें ग्रगर channels नहीं हुए, तो बिजली लगे । इसलिए मैं सब बात आज नहीं कह पाऊंगी, क से प्रवाहित होगी हूँ. इसको निश्चय से, घर्म समझ कर आप वहाँ घन्यवाद ! शा है मैंने अपके अधिकतर प्रश्नों का जबाब हैं इस ी । वह channels श्राप रहे हैं, समय की कमी है। आप समझ With best compliments from: M/S HORILAL PAVAN KUMAR 23, JAGDISH NIKETAN STATION ROAD NIZAMABAD, A. P. Dealers in : ALL KIND S OF PAPER निमंला योग २२ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा आर. डी. कुलकर्णी जैसा कि सब सहजयोगी जानते हैं समस्त मानव पिगला नाड़ी दक्षिण (दायां) स्वाघिष्ठान से आरम्भ प्रारिणयों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य होती है और तालु में समाप्त होती है । रोजमर्रा इडा व पिगला नाड़ी जाल (Sympathetic की गतिविधियों में दोनों नाड़ियाँ निरन्तर कार्यरत nervous system) व सात चक्रो द्वारा सञ्चालित रहती हैं और परिणामस्वरूप उनके अन्तिम छोर होता है बायीं श्रोर इडा नाड़ी मानव भावात्मक अंगों, भूतकाल सम्बन्धी विवारो श्ररego) अर अहङ्कार (ego) के रूप में फूल जाते इच्छाग्रों पर नियन्त्रण करती है। इडा नाड़ी चन्द्र ) नाड़ी है और पिगला नाडी सहित शरीर में शीत व ताप का सन्तुलन बनाये रखती है। दायीं आर पिंगला नाड़ी मानव के देहिक पहलू के लिये उत्तर- रहने से प्रति-अहङ्धार फूल जाता है और हम अब- बायी है और मानव प्रकृति के सृजनात्मक अङ्ग का नियन्त्रण करती है । इडा नाड़ी सहित यह भी হरीर में कीत व ताप का सन्तुलन कायम रखती है । किसी एक ओर का अतिशय प्रयोग शरीर को ुलित करता है । प्रकृति के गुब्बा । रे की भाँति क्रमशः प्रति-अहङ्कार (super- हैं। प्रति-अहङ्कार Sub-conscious (अरवचेतन अहङ्कार supra-conscious (ऊध्ध्व चेतन हैं । निरन्तर प्रभाव, संस्कार(conditioning)पड़ते श्रर गरर र. चेतन को श्रोर प प्रवृत्त होते हैं। इसके विपरीत संस्कारों का बहिष्कार/परित्याग करने से अहङ्कार की बृद्धि होती हैं और हम ऊर्ध्व-चेतन की ओर प्रवृत्त होते हैं । यदि इन दोनों में से किसी पाश्श्व में गतिविधि प्रत्यधिक हो तो हम क्रमशः सामूहिक अत्यधिक सोना, वीती वातों को सोचना अवचेतन अथदा सामूहिक ऊर्ध्व-चेतन में प्रवेश आलस्य आदि से बायीं श्रोर अधिक कार्य (over- करते हैं । इन प्रदेशों में अतप्त मृत-आत्माएँ (भूत, activity) होता है औ्और फलतः दायों अ्रङ्ग निष्क्रिय प्रेत दि) वास करती हैं और वहाँ पहुँचने पर पड़ा रहता है शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों हम उनके चंगूल में फंस जाते हैं । कूछ तान्त्रिक का ग्रत्यधिक प्रयोग करने से भी असन्तुलन उत्पन्न लोग इन मृत-आर्माओं को पकड़ने के लिये होता है, कारण दायीं श्रोर तो अत्यधिक क्रियाशील हुन प्रदेशों में प्रवेश करते हैं और उनसे अपने रहती है और वायीं श्रोर कम प्रयोग की जाती है । कार्य सिद्ध करवाते हैं । शारीरिक स्तर पर ये दायें (वाम) पाश्र्वी लोग महत्त्वाकाँक्षी होति हैं और दिन असन्तुलन अनेक रोग उत्पन्न करते हैं । कुछ उनकी दूसरों पर प्रभुक्त्व करने की प्रबृ त्त हेती है। से चिकित्सा विज्ञान को ज्ञात है कि पिगला नाड़ी इसके विपरीत बायें (दक्षिण) पाश्वी लोग अरति में प्रतिशय गतिविधि वाले लोगों को (उनकी भाषा न्र और मात्म-क्रामक (स्वयं को दोषी समझते में Type A characters) हृदय-प्राधात (Heart- attack) की सम्भावना अधिक होती है । सहजयोग में हम इसका रहस्य जानते हैं : फिङ्गला नाडी में अतिशय गतिविधि इडा नाड़ी, विशेषकर बायें हृदय, वाले) होते हैं । ईड़ा नाड़ी मूलाधार चक्र से आरम्भ होती है और तालु (वह्मरन्ध्र, सहस्रार) में समाप्त होती है। निर्मला योग २३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt को शुहक कर देती है और परिणाम होता है हृदय आधात। साधारण रूप से, पिड्गला नाड़ी में प्रतिशय ओर प्रसारित करना (फलाना) नाहिए अरर दायां गततिविधि अवयवों (शरीर के अङ्भों) में अतिशय हाथ अलग रखना चाहिए अथवा ऐसे उठाये रखना गतिविधि उत्पन्न करती है, उदाहरणतः उच्च रक्त चाहिये जिससे हथेली की पीठ फोटो के सामने रहे । चाप, ऊष्ण जिगर ( Liver) ( दायीं नाभि, दायां उठे हुए हाथ की हथेली का आगे का भाग फोटो के ्वाधिष्ठान) । Left sympathetic nervous सामने करना साङ्कातिक (अति हानिकारक) है System(बायं पाश्श्वी नाड़ी जाल) अ्रथ्थात् इडा ना्ड़ी इसी प्रकार जिनको दायीं ग्रोर के व्याधि हों उन्हें में अ्रतिशय गतिविधि जिगर ( Iiver ) और हृदय दायाँ हाथ फोटो के सामने फैलाना चाहिए श्रर] में निष्कियता (सुस्ती) लाती है और वे अपना कार्य बायाँ हाथ पूर्वोत्त विधि से ऊपर उठाना चाहिये उचित् तत्परता से करना २न्द कर देते हैं। इससे अथवा अलग रखना चाहिए । निम्न रक्त-चाप भी उत्पन्न हो सकता है। बाये पाश्र्वी नाड़ी जाल में अ्रतिशय गतिविधि से भी हृदय-गराधात हो सकता है। गति अपयाप्त होती है और इस कारण रक्त का करने के लिये उसमें परिवर्तन करना आवश्यक अपर्याप्त पम्पिण और अपरयाप्त प्रवाह होता है। होता है। कुपोषण (nmalnutrition) के कारण अ्रतिशय गतिम न हृदय और द्रत (fast) रक्त प्रवाह होता है। बायें पाश्श्वं के प्रधिकांश रोग सामूहिक अवचेतन (Collective (protein rich) भोजन लेना चाहिये। सामिय sub-conscious) से उत्पन्न होते हैं जसे cancer virus infection, multiple sclerosis, men- अपना बायों हाथ परम पूज्य माताजी के फोटो की । हमारे आहार का हमारे पाश्ी नाड़ी जान के उस स्थिति में हृदय- सन्तुलन से घनिषठ सम्बन्ध है। असन्तुलन को ठीक अनेक बायें पाश्श्वी व्याधियाँ हो सकती हैं । इसलिये सुस्त अवयवो से हृदय का अतिशय पम्पिय वाले रोगियों को प्रोटीन-प्रघान (non-vegetarian) भो ले सकते हैं र Carbo- hydrales का कम सेवन करना चाहिये। दाय ingitis, Parkinson's disease, arthritis. पाशबी क्यक्तियों को जिनके अतिशय गतिशील rheumatism (वात रोग), slip-disc, spon- सयन्त्र (system) है उन्हें प्रोटीन और सामिष dilosis, tuberculosis (क्षय रोग) asthma (दमा), aenaemia, sciatica, polio (परोलियो) । pryelitis, oste-myetitis, muscular dias- trophy, paralysis (लकवा, पक्षाघात) । साधारण रूप से, बायें पाइवं की वीमारियों के रयक है कि उनकी इस बोद्धिक दयालूता से पशों रोगियों को ज्वर नहीं होता। पाइवं के रोगों में तेज ज्वर (high fever) होता है। इस स्थिति में बाय पाश्व को उठना चाहिए और दायें पाशवं में ईश-प्रनुत्रह प्रदान करता चाहिए । भोजन का सेवन नहीं करना चाहिये प्रर carbo- hydrates ओर शाकाहार अधिक करना चाहिये भोजन के संदर्भ में दया व प्रहिसा के आधार पर शाकाहार के समर्थकों को यह चेतावनी देना आव- का कोई कल्याण होने की अपेक्षा उनकी परपनी स्वयं की हानि प्रधिक होती है। दया आत्मा इसी प्रकार दायें प्रवाहित होनी चाहिये और वही कृपा सार्थक होती है जो हृदय से प्रवाहित होती है । बौदिक दयालुता निरथक होती है। देखिये किन जानवरों का संरक्षण होना चाहिये और किनका संहार होना चाहिये । परम पूज्य माताजी के कथनानुसार "उनका क्यो दाहिनी पाश्श्व को उठाना चाहिये औ्र ईश-प्रनुग्रह उपयोग है ? मैं चूजों (chickens) को साक्षात्कार बयें पाश्र्वी बीमारियों के रोगियों को प्रपनी बायीं ओर प्रदान करना चाहिए। इसके अरतिरिक्त देने नहीं आई है। निमंला योग २४ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt ऊपर जो कुछ कहा गया है, यद्यपि यथार्थ है होंगी। असद् गुरुओं के कुप्रभाष से भी बायीं पाश््वी तथापि अ्निवार्य नहीं कि किसी एक पाश्श्व में व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । ऐसी स्थिति में बायाँ यह अतिशय गतिविधि से केवल उसी पाश्व से सम्बन्धित स्वाधिष्ठान, पूरा बाययाँ भवसागर (void) और व्याधियाँ उत्पन्न हों। दायें पाश्वं में अतिशय गति- बायाँ आज्ञा चक्र प्रभावित होते हैं। वे अपना विधि से प्रतिक्रिया रूप में साभूहिक अवचेतन दाहिना हाथ पेट पर रखें और बायाँ हाथ फोटो ( collective sub-conscious) में प्रतिक्रिया की ओर फेलाये और प्रा्थना करें "माँ कृपया मुझे trigger) हो सकती है अरोर उससे बायें पार्श्व की अपना स्वयं का गूरु बनायें । माँ कहती हैं हमारी बीमारियाँ जसे केस र, हो सकती हैं। प्रतः इस दृष्टि श्रात्मा ही हमारा गुरु है। इस कारण यदि हमारी से जो पराकाष्ठा (extremes) में पहुँच गये हैं, आत्मा जागृत हो जाये तो हम अपने स्वयं के जैसे शारीरिक श्रर मानसिक अतिरिक्त गतिविधि, बन जाते हैं । वे बायें पाश्श्व के रोगों के भक्ष्य बन सकते हैं । अत्यधिक मानसिक कार्य से मस्तिष्क थक जाता औ्र वीमारियां उत्पन्न होती हैं । गुरु बाय पाश््व अरथवा दाहिने पाश्वं की समस्याय हमारे चक्रों को प्रभावित करती हैं और परिणाम में उन चक्रों द्वारा सञ्ालित अवयवों को क्षति-ग्रस्त वाम पाइ्वी रोग बाधाओं के कारण भी करती हैं। इसके अतिरिक्त चक्र कुप्रभावित होने उत्पन्न ही सकते हैं। इन लोगों को अपना बायाँ पर तत्सम्बन्धित देवता वहाँ से स्थान त्याग कर हाथ पूज्य माताजी के फोटों को तरफ़ फेलाना देते हैं । अतः उस चक्र का मन्त्र उच्चारण करके चाहिये और दायां हाथ उपरोक्त विधि के अ्रनुसार परम पूज्य मात्राजी के नाम की शक्ति से उक्त ऊपर उठाना चाहिये । अपने स्वयं के नाम पर देवता का आहान किया जाता है। उपचार के पादुका-प्रहार (Shoe-beating) एक कारगर लिये, विषरीत पाश्श्व का हाथ प्रभावित चक्र पर उपचार है। इन लोगों को श्री गणेश का आह्वान रखें अर प्रभावित पाश्श्व का हाथ फोटो की ओर कर उनको आन्तरिक शुद्धि व सरल-भाव द्वारा फैलायें । गुनगुने (ग्र्ध-ऊष्ण ) जल में नमक डाल अपने मूलाधार.चक्र पर प्रस्थापित करना आवश्यक कर उसमें पेरों को डूबा ये रखना अत्यन्त लाभकारी है। श्री माताजी के प्रति श्रद्धा परम आवश्यक है क्योंकि श्री गणेश तभी प्रसन्न होंगे जब वह प्रसन्न शेष अगले पृष्ठ पर ) अमृत वाणी जब तक आदमी को सन्तोष नहीं आएगा, वह किसी चीज़ का मजा नहीं ले सकता। वयोंकि सन्तोष वर्तमान को चीज़ है । आशा भविष्य की और निराशा भूतकाल की चीज है । सन्तोष लक्ष्मी तत्व की जागृति से ही सम्भव हो सकता है । S৪ सहजयोग में जब तक आप लोगों को देंगे नहीं तब तक अरपकी प्रगति नहीं होगी। देना पड़ेगा, जैसे-जैसे आप देते रहेंगे, वैसे-वैसे अरप आगे बढ़ेंगे । स्य सहजयोग का सबसे बड़ा दुश्मन है । निर्मला योग २५ পाँc 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt हैं औ्ौर शीध्र आराम प्रदान करता है। अत्यन्त बिगड़ी हालत में जो सहजयोगी सहायता कर रहा (पृथ्वी. अग्नि, जल, वायु, आरकाश) के संयोग से है उसके परानर्श पर नीवू-मिर्च उपचार आवश्यक निर्मित है होता है । रोग का कारण "बाधा" निश्चित् हो तो मस्तिष्क, देहिक- मनोवैज्ञानिक, अरधिदेहिक, आधि- सीवे नीबू-मिर्च उपचार का परासर्श देना चाहिये देविक (psycho-somatic) तन्त्र का सश्चालन और रोगी को पूर्वोक्त विधि से स्वयं-चिकित्सा करते हैं । नीचे चक्रों, तत्त्वों और कतिपय व्याधियों यह सर्वविदित है कि मानव प्राणी पाँच तत्त्वों इनके अ्रतिरिक्त दो और तत्त्व, मन व का परस्पर सम्बन्ध दिया गया है :- आारम्भ कर देनी चाहिये। देवता तत्त्व चक्र श्री गणेश पृथ्वी मूलाधार चक्र १. श्री गौरी तथा मूलाधार श्री कुण्डलिती श्री वरह्मदेव बायीं ओर पृथ्वी स्वाधिष्ठान चक्र २. दाहिनी ओर अग्नि श्री सरस्वती श्री विष्णु मणिपुर ( नाभि) चकक़र जल ३. श्री लक्ष्मी श्री शिव-पावंती बा्या हृदय (अनहत) चक्र ४. श्री जगदम्बा मध्य हृदय (अनहत) चक्र दाहिना हृदय (अनहत) चक्र वायु श्री राम-सीता श्री कृष्ण व रावा विशुद्धि चक्र आ्रकाश ५. अग्नि श्री जोसस व श्री मेरी आज्ञा चक्र ६. समस्त तत्त्व, परमपूज्य माता जी सहस्रार चक्र मन तथा मस्तिष्क 'आत्मा' सदाशिव रूप में सर्वोपरि है । (शेष आगामी अंक में ) निर्मला योग २६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt प्रार्थना अब सौंप दिया इस जीवन का माँ सब भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में । जो जग में रहे तो ऐसे रहें जैसे जल में रहता है कमल । मेरे सब गुण दोष समर्पित हों माँ तुम्हारे हाथों में ।। मेरे एक-एक रग का हो माँ तार तुम्हारे हाथों में । निष्काम भाव से कर्म करू और प्राण तजू तुम्हारे हाथों में ।। अब सौंप दिया इस जीवन का सब माँ भार तुम्हारे हाथों में । है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में ।॥ With best compliments from: CITRIC INDIA LIMITED 97, SUNDER NAGAR NEW DELHI-110003 Telex : 011 - 2305 WECO IN Phone : 611348, 615106 Manufacturers of: CITRIC ACIDS, ZIPFLO AIDS, SULPHAMETHOXAZOLE FERRIC AMMONIUM CITRATE ETC. Administration Office: EMPIRE HOUSE, 3RD FLOOR Dr. D. N. Road, BOMBAY-400001 Phone : 263092, 268807/08 Telex: 011-3699 TECI IN. Works & Regd. Office: GAZADHAR SOMANI MARG PANCHAK NASIK ROAD-422101 Phone: 86339 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 ॥ ॐ श्री भगवती माताजी निर्मला देवी नमो नमः ॐ ॥ * प्रार्थना * हम बालक सब है मां अम्बे । नित द्शन दे दो जगदम्बे ।ध।॥ चाहे पास रहो चाहे दूर रहो। हमसे जननी कोई भुल न हो ।। सेवक अम्बे अनजान हैं हम । नित दरशन दे दो अगदम्बे ।।१।। गरिघर की राधा तुम्ही हो माँ प्रभु राम को सोता तुम्ही हो मां ॥ आदिशक्ति ही तुम हो मां अम्बे। तु् हो मां। नित दर्शन दे दो जगदम्बे ॥२॥ ब्रह्मा से तुम्ही ने वेद किए। तम देवी सरस्वती जग के लिए|| पल-पल की पुकार सुनलो अस्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ।।३॥ तुम भगवती मां हो लक्ष्मीस्वरूप । बुर्गा का तुम्हारा दिव्य स्वरूप ।। शिव विष्ण का साथ तुम्ही अम्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ॥४ ॥ येश को मिली ममता थी अमर । तम प्रायो हो मां मेरो बनकर ॥ जग में अजब महिमा अम्बे । नित दर्शन दे दो जगदम्बे ।५।॥ चरणों पे तुम्हारे भकता हैं सर। तम बिन बालक मां जाएं किधर ।॥ मधु तुम्हारे चरणों में माँ ग्रम्बे । नित वर्शन दे दो जगदम्बे ।।६॥ मधुकर छाकुर Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed ar Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002.