ॐ কর fनिर्मला योग द्विमासिक सितम्बर अरक्टूबर 1983 वर्ष २ अके ह बा पर +े के- पन ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निर्मंला देवी नमो नमः ॥ पी एी परमपूज्य माताजी का पत्र ॥ श्री ॥ दि० १७-८-७८ म्प्रिय रमेश व निमा ! अत्यन्त प्यार से भेजी हुई राखियाँ मिल गयो। 'रास्खरी का मतलब है रक्षा करने वाली शक्ति भी है। क्योंकि यह बहन के फिर निमंल रक्षा का स्थान स्थापित किया। । इस शक्ति का बन्धन बहुत हो जोरदार है । [और अत्यन्त कोमल व्यार की निशानी है। जिसे एक बार राखो बाँधी वहाँ यह परम्परा है। अब मनुष्य को संवेदन क्षमता इतनी कम हो गयी है, कि राखी बाँधना यह एक यान्त्रिक क्रिया (मशीनवक) हो गयी है। जहाँ श्रद्धा की गरिमा नहीं है वह सारी सुन्दर मानवी परम्पराएँ शुक और बेजान हो जाती हैं। सहजयोगियों के बन्धन में ही हमने संसार में जन्म लिया है । और पूरे रूप से उन्हीं के बन्धन में जी रहे हैं। हम तो desireless तब अाप ही की इच्छाओरों पर हमारा सव कुछ अवलम्बिन (depend) है । रास्ी के साथ कुछ मंगना जरूरी है। वह सहज योगियों से पूछकर बताइये सभी मिलकर एक पत्र लिखकर जो मांगना है वह लिखिए। हमारी तबियत त्रिल्कुल ठोक है क्योंकि आ्प सबकी वह इच्छा है ! कान का एक छोटा- सा operation है कोई चिन्ता की बात नही है । दूसरा नहीं है । कहना यह है कि चिन्ता की कोई बात नहीं है । ये कि, विल्कुल तकलीफ़ 1. "रक्षा-बन्धन बहुत महत्त्वपूर्ण दिन है । उस दिन परिपूर्णंता की मांग करनी चाहिए । वडी- बड़ी थोजनाएँ बनानी चाहिएँ रखना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देकर सहजयोगियों को परपना लक्ष्य नष्ट नहीं करना चाहिये अभी] बहुत कुछ क रना है जिन सहजयोगियों ने प्रगति करी है। उन्हें कार्यरत होना चाहिए जनता का चित्त परमेश्वर प्राप्ति की श्ओोर अंग्रसर होना चाहिए। नये दो सेन्टर्स खोलने होंगे। लोगों की बीमारियां ठोक होनी चाहिएँ । । अपना लक्ष्य हमेशा ऊँची बातों पर यह पत्र सभी सहजयोगियों को पढ़ने दीजिये । आपको हमेशा याद करने वाली आपकी माँ निर्मला hev नी शी ० ंती रभ भतनरक ० न छल लतडि सम्पादकीय न रोघयति मां योगो न सांख्यं धमं एवं च । न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो नेष्टापूर्त न दक्षिणा ॥१ ॥ व्रतानि यज्ञश्छन्दांसि तीर्थानि नियमा यमाः । यथावरून्धे सत्सङ्गः सर्वसंसङ्गापहो हि माम् ॥२॥ अनुच्छेद ७ पृष्ठ 88, उद्धवगीता भगवान श्री कृष्ण उद्घव जी को उपदेश देते समय कह रहे हैं कि योग, किसी तरह का भेदभाव, धामिकता, वेद अध्ययन, कष्ट सहना, सन्यास लेना, धार्मिक कार्य करना, सामाजिक कार्य करना, दान देना, प्रतिज्ञा करना, त्याग करना, गुप्त मन्त्रोच्चारण करना, ती्थाटन करना, हर तरह के यम और नियम मुझे बांध नहीं सकते हैं जितना कि ऐसे सन्तों का समागम जिससे निरासक्ति प्राप्त होती है। आज हम सभी परम सोभाग्यशाली हैं जब कि परमपूज्य श्री माताजी यह निरासक्ति खुलेआम लुटा रही हैं। इससे लाभान्वित होना और यह सन्देश हर कोने तक पहुँचाना ही हमारा परम करतव्य होना चाहिए । नुन निमंला योग १ निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव सम्पादक मण्डल कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर . डी. कुलकरारी प्रतिनिधि कनाडा :लोरी टोडरिक ४५१८ वुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बैन्करवर, बी.सी. बी. ७ एस. २ वी १ श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नोया २२५ू, अदम्स स्ट्रीट, १/ई ब्ुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३) मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली बम्बई-४०००६२ बराउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन स्विसेज़ लि., (पश्चिमी) १६० नार्थ गावर स्ट्रीट श्री राजाराम शंकर रजवाड़े लन्दन एन.डब्लू. १२ एन.डी. ८४०, सदाशिव पेठ, पुर्णे-४११०३० इस अंक में पष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परम पूज्य माताजी का प्रवचन ४. श्री यीशु का सन्देश एवं योग में स्थायित्व के विध्न बाधाएँ ५. सहजयोग व शारीरिक चिकित्सा (२) ६. परम पूज्य माताजी का पत्र ७. सन् १६८४ मे परम पूज्य १ २ ३ ११ २४ द्वितीय कवर चतुर्थ कवर माताजी का महाराष्ट्र में कार्यक्रम निर्मला योग २ माताजी श्री निर्मला देवी का होली (२६-३ ८३) के पर्व पर विश्व सहज मन्दिर, नई दिल्ली में दिया गया प्रवचन होली के शुभ अवसर पर अाज दिवाली मनाई गोल (Goal) है, उससे जो ऊचा वलय है, उसको जाएगी कि होलिका को जलाया गया था यह अग्नि को और यही कृष्ण ने शिक्षा दी |। कृष्ण ने कहा कि बड़ा भारी काम है, कार्य है कोकि अग्नि देवता अगर आपको हित के लिए भूठ बोलना पड़े, तो आप ने होलिका को बरदान दिया था कि किसी भी झट बोलिए । मच बोलने की वात टीक है, लेकिन हालत में वह जल नहीं सकती। ओर साहे किसी किसी ऊची चीज के लिए नोची चीज़ को छोड़ना भी तरह से मृत्यु आ जाए पर जल नहीं सकता । और वरदान देकर के वे बहुत पछताए क्योंकि प्रह्लाद को गोदी में लेकर वह बैठ गई। अर अगनि चाहता है। एक तो उसकी अनाधिकार चेण्टा है । देवता के सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ । धम की उसने श्रप से पूछा कि महाशय यहाँ अन्दर है ? तो । होली के दिन आप जानते ही हैं करना अगर है, तो इस छोटे को छोड़ना पड़ेगा । पडेगा । जसे कि कोई आदमी अब अन्दर आ जाए, ग्रौर किसी को मारना चाहता है या कुछ करना प्रश्न था कि मैने उसे यह बचन दे दिया कि मैं उसे जलाऊँगा नहीं, और इस वचत को मैं अ्रब कसे तोड़ ? और प्रह्णाद, जो स्वयं साक्षात अथोधिता स्व कह है, जो साक्षात् ापने कहा कि हाँ हैं। मतलब सच् कहना चाहिये, दिया। तो ले किन उसकी जान बचाना, यह बहुत ऊँची चीज़ है, यह बहुत महत्वपूर्ण है, वड़ी चीज है। उस वह जाकर इसको मार डालेगा गणेश का प्रादुर्भाव हैं, और उनको किस तरह से जलाया जाए? उन्हैं तो कोई नहीं जला सकता और मेरी भी शक्ति से परे है। यह तो वड़ा बात के लिए, बड़े ध्येय के लिए या छोटी जो मेरी शक्ति से भी परे है। तो उन्होंने विचार किया । यही कृष्णा ने प्रपने कि यह अहंकार कैसा ? कि इतनी बड़ी शक्ति के जावन में अपनाया। कृष्ण के जीवन को सामने मैं अपनी शक्ति भी, कौन-सी बात है, मेरी लोग समझ पाये क्योंकि उस जमाने में घमं की यह ऐसी कोई-सी भी शक्ति नहीं है जो इनके आगे चल दशा हो गई थी कि लोग धमं को बहुत ही ज्यादा सके, ये सर्वशक्तिमान हैं इनको तो मैं जला सकता ही गम्भीरतीपूर्वक; बहुत उसको serious वनाकर नहीं चाहे कुछ भी कर लूँ । लेकिन इस वक्त दूसरा सब बुड्डाचारी थे-बर्म बहुत serious चीज़़ है, बड़ा भारी मेरे सामने प्रश्न है ? कि करतव्य श्और उसमें आदमो को जो है बहुत ही serious रहना धर्म में से किसको मानं ? तो कर्त्तव्य श्रीर चराहिए। क्योंकि कर्मकाण्ड करना है, और कमकाण्ड धर्म में जो कशमकश हुई, उस वक्त यह सोचना करने में बड़ी आफ़त रहती है, कि अगर आपने चाहिए कि धर्म कर्तव्य से ऊँचा है। धर्म, कर्त्तव्य इधर से उधर दोप जला दिया तो भगवान जी एक सर्वसाधारण वस्तु से ऊँची चीज़ है । और नाराज हो गये। इधर से उधर आपने अगर धूप- उससे भी ऊँची चीज़ है आत्मा का तत्व । यानी जो बत्तीजला दी, तो भग वानजी नाराज। अगर left छोटा, बारीकी में बॅबा हुआ सीमित, जो कुछ भी hand ( वाएँ हाथ) से अ्रापने कुछ कर दिया तो हमारा वलय है, गोल (Goal) है, उससे जो ऊँचा गया काम से । इन सब वातों की वजह से लोगों में चीज़ हैं उसको छोड़ना पड़ेगा बहुत कम 1 निर्मला योग conditioning (कट्टरता) आ गई प्रोर उस con- थे, यह ग्राप जानते हैं तो उनसे रहा नहीं गया । ditioning की द जह से लोग वहुत गम्भीरतापूर्व क उन्होंने कहा, काहे घिघियावत हो ?" मतलब, कि घर्म करने लगे। इतने गम्भोर हो गये कि उसका यह हर समप घिधियावते क्यों रहते हो ? यह आह्माद, उसका उल्लास सब खत्म हो गया। राधा जो की, जो main(मुख्य) शक्ति थी, वह थी आह्वाद कि हर समय यह रोने की क्या जरूरत है ? दायनी, सवको आह्लाद देना, यह नकी main परमात्मा के प्रेम में अरादमी शनन्दविभोर हो जाता। शक्ति थी। और फिर इसीलिए उन्होंने होनी का है। लेकिन यह अन्दर से अने वाली एक आनन्द- त्योहार मनाया । कृष्ण ने आकर के जितनी भी दायनी शक्ति है, जिससे यह होना चाहता है कि पूजाएँ थीं. सबको बन्द कर दिया। और कहा कि बहत-से लोग ढोलकी लेकर बजाते फिरते हैं, "हरे अब पूजा-वूजा मत करो तुम, और उस आत्मा की रामा, हरे कृषण ओर बढ़ो जिसे पाना है । और छोटी-छोटी चीजों उसकी copy (नक़ल ) है जो मैंने कल कहा कि में मत ो्रो। कुद्र चीजों में नहीं खोना है । लेकिन reality (अरसलियत) और concept (मान्यता ऊची ची ज की और अपनी दृष्टि लगानी है । अब में बहुत अतर है। जो ग्रसलियत है, उसमें आधमी जो आदमी कहता है, "झुठ तो मैं कभी बोलता विभोर होकर खुश होता है। उसमें कोई अइलीलता नहीं साहब", कभी-कभी ऐसा आदमी 0ver(अरति ) नहीं है, कोई गन्दगी नहीं है। उसमें कोई जानबूझ स्पष्टवक्ता भी हो जाता है और अहंकार में दूस रो करके नाटककारी नहीं है। अन्दर ही से आदमी को फैसाता भी है, या नहीं तो उसी में उसका जीवन सत्यानाश हो जाता है। सच भी वयों वोलना, घमं भी द्यों करना, कर्तव्य भी क्यों करना क्योकि नेक आधातों से विचलित नहीं होती टूटती शपको आत्मा होना है। और किसी भी चीज से आप इस तरह बन्धन में फंस जाएं और उससे आप को seriousness ्प वृढा जाय-इसको बुडाना कहते हैं उसका क्या फायदा । तो वर्म जो है वह मुसलमानों में श्रापने देखा है कि वे लोग मारते हैं आादमी को बिल्कुल, पूरी तरह से एकदम जमा देता अपने यरापको "हाय हुसैन हप न हुये है. जैसे ब्राइसक्रीम जम जाती है, ऐसे जमा देता है उसमें शक्ति का सश्ार कसे हो ? उसका आनन्द हो है तो ऐसे धर्म में जाकर क्या करना है ? वसे 'घिधियाने के लिए और कोई शब्द भी नहीं मिलेंगा। यह उस तरह की चीज नहीं। यह सहश होकर के आनन्द ग्रौर श्राह्वाद उल्लास को महसूस करता है । र वही चीज जो है, बाद में, नहीं है । सब धर्मों में इसी प्रकार हो गया है । जैसे कि "यह रोने वाला घर्म, धर्म नहीं होता । जब धम में रोना । ? तो उन्होंने रंग वर्गरह खेलना शुरू तो रोना ही होता है। तो वाला घर्म, धर्म नहीं होता वह उठाए किया। सारे संग जो हैं वे भी देवी के रंग हैं. सारे । । सातों रंगों के रंग से रंग खेला जाता है। सारे चक्र ऐसी बात आ गई हिन्दू घर्म में भी प्रा गई कि में रंग हो अपने को लो । खेलो, आ्राह्लाद से, बह आदमी, जो बिल्कुल मरगिल्ना हो, वही बड़ा उल्लास, आनन्द से । गम्भीरतापूर्वक बैंने की कौन भारी साधुसन्त माना जाता है" सी जरूरत है, अगर आप परमात्मा को पायें ? वह मरगिल्ला होना चाहिए, उसकी हालत यह वल्लभाचार्य जी के पास एक बार सुरदासजी गए। होती चाहिए कि दरिद्रता होनी चाहिए, और वह नो उनके सामने ऋपना रोगा रोने लगे-बेचारे वे ऐसी दशा में होना चाहिए कि आधा पागल आधा 'पार' नहों थे, तो रोते हो रहते थे । तो रोना शुरू अच्छा हो, कभी-कभी उटा dance (नाच) करना किया। तो वल्लभाचार्य तो साक्षात् थी कृष्ण ही शुरू कर दिया या कभी रोने को बैठ गया, दुबला- लेकिन सव घर्मों में 1 निमंला योग ४ पतजा, हडियाँ निकली हुई, पिचका हृआ मंह, त्वचा मराठी में गालियाँ है ही नहीं, करीवन । ये सब जो में हजारों झुरियाँ पड़ी हुई, माँखें बिल्कुल वटन गालियाँ होती हैं, गन्दी-गन्दी. तो मराठी लोग भी जैसी बाहर, निस्तेज । तन्दुरुस्ती चौपट [और हर हिन्दी की ही गालियाँ देते हैं। उनके आने पर तरह की उसमें दुर्दशा । ऐसा आदमी कभी भी उन्होंने यही import घार्मिक नहीं हो सकता । प्रसन्न चित्, शान्त, खिली अधिकतर गालियाँ हिन्दी की बोलते हैं और मराठी हुई तबियत, खुला हुआा हृदय और प्रकाश जसे की गालियां होती ही नहीं। और पारसी लोग भी . । तो होली के जैंसा त्यौहार, जै से कि बहुत गालियाँ देते हैं । और हमारे पञ्जाव की कहा कि आज से यह तथ करल कि अव गालियाँ कुछ-कूछ होती हैं। वह भी काफ़ी बम्बई (ग्रायात) किया होगा ! और कल मैंने होली जो है, यह दीपावली हो जानी चाहिए । इस में चलती है । तो यह गाली-गलौंज आदि [चीज़े जो का आनन्द जो है विभोर होता चाहिए। होली का है यह है कि अन्दर की घवराहट जो है, उसे निकाल नन्द सीमित है. जबकि हम एक ही होलिका दीजिए जलाते हैं । लेकिन फिर वह Coliective cons- ciousness (सामूहिक चेतना ) में वहता है, जैसे चीज है, यह कभी निकलती नहीं है, यह जबान पर हर प्रादमी चाहे बह गंवार हो, भङ्गी हो, घर में चढ़ जाती हैं। हमने देखा है कि हमारे ससुराल में कोई भी हो, तो जैसे हमारे खानदान में लखनऊ में, जहाँ के रहने वाले हैं, ज़मींदार लोग हैं ये लोग, (पतिदेव) को छोड़कर, वहाँ हर आदमी गाली के तो क्या मजाल कि जमादार बेचारे अन्दर भी प्रा सिवाय बात ही नहीं करता। मतलब बड़ों से भी । जाएँ, घर के अन्दर भी आ जाये दहलीज़ ले किन उनकी गाली देने में कुछ लगता नहीं, फ़ट से गाली होली के रोज चाहे फिर कोई भी हो-मालिक हो दें देंगे। एक हमारे पति ही ऐसे हैं, वाकई में चुप- चाहे नौकर हो चाहे कोई भी हो सब आपस में होली चाप । कभी भी मैंने उनके मह से गाली नहीं सनी । खेलते हैं यहाँ तक कि नौकर मालिक के कपडे भी आज तक कभी भी उस्होंने किसी को भी गाली नहीं फाडे तो कोई कुछ नहीं कहता। कहते हैं राम और दो। यह विशेष बात है । लेकिन अगर उनके घर इस तरह एक समाजवाद और एक सामाजिक में अ्रगर किसी से वात करो, एक दो अगर गाली खुशी का त्योहार अपने देश में शुरू हुआ। पर होली नहीं दी तो वे सोचते हैं कि उन्होंने प्रेम ही नहीं में भी आदमी फिर एक नीचे स्तर पर उतर जाना जताया । वहाँ तरीक़ा ही यह है कि दोस्त को भी चाहता है, अश्लीलता पर श जाता है । ऐसा हर अगर मिलेंगे तो पचास तो पहले गालियाँ देंगे, उस एक जगह होता है, हर चीज सड़ने सी लग जाती के बाद फिर गले मिलंगे यही चीज से जबान पर है । सड़न इसलिए आती है क्योंकि उसमें जीवन्तता चढ़ जाती है गाली । उसका नुवसान भी बहुत हो नहीं रहती। जिसमें जीवन्तता हो, वह चीज फिर जाता है कि जिह्वा में शक्ति नष्ट हो जाती है । सड़े नहीं। और इस तरह से जुब होने लग जाता जिह्वा का यदर नहीं होने से, आप जो बोलते हैं, है तो वही चीज बहुत ही गन्दी और बुरी महक वह भूठ होगा। जो आदमी मंह से गाली नहीं देता ने लगती है । जब होली का त्योहार महाराष्ट्र उसकी जिह्वा में शक्ति होती है । आपने बहुत बार में मनाया जाने लगा, तो बहुत-से लोगों ने देखा होगा कि भापण करते क रते ग्रगर कुछ कहनाभी इसका बहुत विरोध किया क्योंकि इसमें गाली होता है, तो मैं ठिठक जाती है कि कहीं ऐसा न हो गलौज, दंगेवाजी होती है। वहाँ भइया लोग कहते हैं। और महाराष्ट्र में के आगे मोती नहीं डालना चाहिए । लेकिन अंग्रेजी वरोरह-वर्गरह। उसको निकाल देने से अच्छा होता है। पर यह वड़ी wrong (ग्रलत ) चाहे वह जो जमींदार हैं वहाँ, सिवाये हमारे husband सी से यू. पी. के लोगों को कि, जो बारतें जैसे ईसा मसीह ने कही थी कि सूआअर निर्मला योग ५ the ho ही नहीं सुना होता, उनको अच्छा ही नहीं लगता ये गाली है । और मराठी में नहीं है । तो भी थोड़ी-सी सब चीज। तो बर गए, तो हमें क्या पता था कि सब है, पर प्यादा नहीं है । पर अंग्रेजी भाषा में बोलते भंग पीये बैठे हैं। उन्होंने कहा कि खाना खाइये, वक्त मै नहीं बोलती है। हिन्दी में बोलते बक्त ठीक तो हमने कहा, चलो ठीक है। खाने बैठे, तो इतनी है, सूप्रर किसी को कह दो तो ज्यादा से ज्यादा तय बड़ी थाली में कायस्थों में जैसा तरीका होता है- वढी थाली में, बेठकर लाये । र मैं तो कितना में सूप्र' पब्द जो है एक गाली है और वहुत बुरी होगा कि वेवकफ़ है। लेकिन जिह्वा पर सूर बहुत गन्दा शब्द होता है । इस तरह से जहाँ-जहाँ जिस खाती है, आप जानते ही हैं च मो, उस दिन त्योहार तरह का व्यवहार होता है, उसकी मर्यादा रखते का दिन था तो ज्यादा खा लें । और वो खाती ही हुए आदमी को रहना चाहिए, नहीं तो जिज्ञ की चली गई खाती ही चली गई खाती ही चली गई। शक्ति, जो सरस्वती की शक्ति है, वो नष्ट हो जाती हमने कहा कि भई क्या हो गया कुछ समझ में । शऔर सब हेंसते जाएँ और वे खाती ही जायें । हमारो जेठानी जी विधवा थीं अर विधवा चीज है। हम लोग सुबोध घराने के लोग है और लोग भी भंग नहीं पीते, विधवा्ं के लिए सब मना सुबोध धराने के लोगों में एक तरह की सभ्यता, है । तो हनने कहा, "यह क्या हो गया जीजी ?" तो decency (शिष्टानार) होनी चाहिए । और उस वे सब हँसते जाएँ । वे ्त्नाती जाये, और सब हँसते सभ्यता को लेकर के हम लोगों को गाली गलौंज की जाएं । हमें कुछ समझ में नहीं आयो कि यह क्या बात नहीं करनी चाहिए । और इसलिए कहते हैं हो रहा है। बाद में हमें उन्होंने बताया कि ये सब । लोग भग पीये हुए हैं। तो मैं उठी थाली पर से, अगर नहीं दी, तो आपने होली मनाई ही नहीं । नमस्कार करके और हाथ धोया और यपनी अटेची और इस तरह से करके भङ्ग भी पीते हैं। अब उठाकर मै चली मायके। किसी के पर भी नहीं छूुए बहुतों ने कहा कि एक दिन भङ्ग पीने में क्या हज हमारे यहां पैर छूने का रिवाज है । सवने कहा कि कहाँ गई ? लखनऊ में उन्होंने खबर भेजी कि भई है लेकिन भङ्ग पीने से पागल तो नहीं हो जाता। कहाँ चली गई दुल्हन ? तो हमने कहा कि सब लोग अगर आप हमें भङ्ग पौने को कहें तो हम तो भङ्ग भग पीये हुये थे इन लोगों में क्या बात हम करते? हमने कहा कि सबको भंग ही पीने हो पीये हुए हैं, हमें कोई जरूरत नही पीने की । दो । तो बात यह है कि भंग वंग पीने की है । भाषण में भी वाचालता, जिसे वाचालता कहते नहीं आया हैं, तो वाचालता के साथ अश्लोलता तो वहुत बुरी कि होली पर कुछ न कुछ गाली देती ही चाहिए है, माँ ?' कोई हर्ज तो नहीं । ऐसा कोई हर्ज नहीं नहीं पीयेंगे । क्योंकि वजह यह है कि हम तो पहले हम चले आ्राए, सहज और लोग इसलिए पीते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि योगियों को कोई जरूरत नहीं। जब चाहे तब मन जो serious ( गम्भोर) लोग हैं वे जरा-से हल्के हो में ही भंग पी ली। भंग का जो उपयोग है, left- जाएँ, जैसे कि ego-oriented (ग्रहंकारी) लोग side (वाम पाशश्व) में जाने का वह हम लोग ऐसे हैं, वे भंग पी लें, थोड़ी-सी left-side को move- ही करते हैं । मतलब यह है कि अगर कोई आदमी ment (इडा नाड़ी की तरफ़ झुकाव ) हो जाती है, बड़ा ही ego oriented (अहङ्कारी) है, बहुत dry तो जरा-से हिल जाते हैं, भंग में बकना शुरू कर देते है, बड़ा शुष्क है, गम्भीर है, तो उसके लिए सहज- हैं। लेकिन भंग का प्रकोप ऐसा होता है कि जब योग में पूर्ण व्यवस्था है कि वह अपने आज्ञा चक्र हम ससुराल में गए, तो हमें क्या पता था कि भंँग को ठीक कर ले । आज्ञा चक्र को अगर वह किसी वंग पीते हैं । हमारे महाराष्ट्र में यह सब तरीक़ा तरह से खुलवा ले, अपने ही आज्ञा चक्र को ठीक नहीं है। महाराष्ट्र औरतों में तो वहाँ भंग का नाम करले तो वह left-side में जा सकता है । निद्रा निर्मला योग ६ समय अगर आप आज्ञाचक्र को घुमाकर सो जाएँ कि किसको कहाँ जाकर मिलाएगा, वह ही जाने । तो अच्छी निद्रा आती है। और अगर उसको फिर लेकिन होली की जो विशेषता है, उसमें यही याद भंग की दशा से निकलना है, तो फिर आज्ञाचक् को रखना चाहिए कि दीवाली अगर इसे बनानी है, तो कस लें, ight side (दायीं स्रोर) में तो जब अपने decency (अश्लीलता) के साथ indecency ही हाथ में सारी चीज़ पड़ी हुई है, जब हमारी सारी नहीं, अश्लीलता बिल्कुल नहीं आनी चाहिए । ही शक्ति हमारे अन्दर समाई हुई है और जब इस अश्लीलता अगर ई तो बह फिर होली नहीं। श्री का पूरा ही ज्ञान हमको मालूम है कि कौनसा स्विच कृष्णा की नहीं, वह तो होलो हुई ऐसे लोगों की जो किस वक्त घुमाना है को उन बाहर की चौजों का पार' नहीं हैं। जब पार' हो जाते हैं तो होली अवलम्बन करने की जरूरत नहीं हैं। उस समय खेलते वतक्त कोई भी अ्रश्लीलता नही होनी चाहिए । भङ्ग यायद, यह चीज justified (न्यायसंगत) यानी ऐसे, जैसे सहजयोग में स्त्री पुरुष होली नहीं थी, शायद कृष्ण के जमाने में । शायद कृष्ण नहीं खेलते । पुरुष, पुरुषों के साथ और औरतें] श्औरतों के पीते थे-खाते हैं शायद-पता नहीं क्या करते हैं । तो उन्होंने नहीं किया लेकिन बाकी लोगी की जरूरत सका भी एक नियम है, आाप जानते हैं कि जो पड़ी क्योंकि जो serious (गम्भीर) लोग थे, भंग पी लें क्योंकि misidentifications(ম्रम) है सकती हैं । और अगर पूरुष बड़े हों और स्त्री छोटी साथ । सहज योग में, भाभी, देवर में हो सकती है । वे औरतें बडी हैं, वे अ्रपने से छोटों के साथ होली खेल "हम महाराजा हैं, हम महारानी है। हम घर के हो, तो किसी भी तरह का व्यवहार पर्दा होता है मालिक हैं, हम फ़ों हैं, हम करसे महत र से मिल, उससे उलट, अगर स्त्री बड़ी हो, तो उसके साथ में भई महतर तो घर में झाइ़ लगाते है । तो उसके लिए यह कि पहले तुम भग पियो जिससे मेहतर भाभो होती है। इसीलिए भाभी, देवर में होली और तुम एक हो जाओ। भूल जाओो कि तुम ब्राह्मण होती है, ले किन जेठ और दूल्हन में तहीं होती हो और वह मेहतर है। इसीलिए भग पिला देते जेठ से पद्दा होता है । और यह क्रायदा आपको ये कि तुम्हें कुछ होश ही न रहे, जो misidentifi- आाश्रय होगा कि सारे हिन्दुस्तान में है । और वह cations बने हुए हैं कि हम फ़लों हैं, हम ढिकाने अपने आप ही चलता है, हम लोगों के अन्तरहित है, हैं-भंग पीलिए, तो सब एक हो गए अब इसी अन्दर से ही हमारे संस्कारों में बैठा होता है, क्योंकि का ऊचा हिस्सा ऐसा है, जेमे क बीरदास जी ने हमारे यहाँ उल्टा का म नहीं है, अधिकतर 1 कि जसे कहा कि सुरति जब चढ़ती है, तो सब एक हो जाते इंग्लैण्ड में आप देखेंगे कि अस्सी साल की बुढ़़िया है, हैं। तो उन्होंने सोचा कि जब तम्बाकू आदमी खाता अठारह साल के लड़के से शादी करेगी। अपने यहाँ हैं, तो वह भी एक जात हो जाता है । तो तम्बाकू तो कोई सोच भी नहीं सकता ऐसा । मान, इनमें का नाम सुरति रख दिया। जब हिसाब नहीं लगा अपनी बुद्धि ही नहीं है । ये कहते हैं: कि इधर यह पाये तो सोचा कि तम्बाकू ही सुर्ति होगी । तम्बाकू तो सब चीजें होती ही हैं। हमारे संस्कारों को जब खाते हैं, तो जिसकी तम्बाकू की तलव होती है वजह से, जो हमारे अन्दर बेठे हुए हैं, उनकी वजह तो चाहे वह राजा हो, तो उस बक्त सामने [अगर से हम बचे हुए हैं। भई, अस्सी साल की कोई भी ग़रीब भी बेठा हो, तो उसके सामने '"तम्बाकू मेरे स्त्री हो, वह तो माँ हो ही गई; उसे तो माँ मानना को भी दो।" माँगने लगता तम्बाकू सुरति हो सकता है क्योंकि इसमें राजा व किसी भी बेवकफ़ के भी दिमागर में ऐसी बात नहीं रङ्ग एक हो जाते है। यह इत्सान की खासियत है आती । पुरुष का ब्यवहार खुला होता है, जैसे अपने यहाँ है तो उन्होंने कहा ही होगा। माँ क्या हुई, नानी हो गई तो यहाँ कितने भी पतित अआदमी के दिमाग् में भी निर्मला योग Ле ऐसी बात नहीं आती और किसो भी बुदढ़िया औरत सीधी सरल बहुती हुई है, इन लोगों की उल्टी के भी दिमागा में कभी ऐसो बात आयेगी नहीं ? तो खोपड़ी हैं। जैसे, औरते जो हैं, वे बदन खोलकर हमारे जो संस्कार हैं, भारतीय संस्कार हैं, इन्हीं की बूमगी और मर्द अगर हो और एक आध औरत वजह से हम लोग धीरे-धीरे पूरी तरह से परिपक्वता अगर आ जाए, तो फौरन कोट के बटन लगाएगा । पा गए हैं । वे लोग परिपक्व नहीं हैं । उनकी उम्र हमने कहा, कि मर्दों को कोट के बटन की क्या हमेशा गधेपचीसी में ही गुजर जाती है, उससे जरूरत है, औरतों को ही क़ायदे से पल्ला लेना ऊपर नहीं उठ पाये । हम लोग परिपक्व हो जाते हैं, चाहिए । पर इनकी सभी संस्कृति उल्टी सुल्टी बैठी बयोंकि हमारे आ्रन्दर के संस्कार वे ऐसे हैं कि जो हुई है । और वह बैठ ही गई है । जमेगी अब धीरे- माने जाते हैं पूरी तरह से । जैसे एक पेड़ जो गगर घीरे सहजयोग में आने के बाद जम रही है। और कायदे से बढ़े, तो परिपक्व हो जायेगा और अगर अब जो प्ाप लोगों की संस्कृति है, उसको आप हवा में ही लटके, तो परिपक्व नहीं हो सकता । वे लोग कृपया न छोड़े। सहजयोग के लिए बहुत बुड्ढे भी अगर होते जाते हैं, तो भी उनमें बचकाना- महान् चीज है कि ग्राप हिन्दुस्तानी भी हैं और आप पन जाता ही नहीं । और जो हिन्दुस्तानियों का के पास संस्कृति की बड़ी भारी घरोहर है, उसको सम्बन्ध भी western(पाश्चवात्य) लोगों मे हो जाता आप रखे पकड़ कर । उसी चीज पर जमें र है, वे भी वसे ही हो जाते हैं, बुढा जाते हैं । वड़ी- उसी पर आप परिपक्वता पायें । बड़ी लड़कियाँ होंगी उनको, वे भी बड़ी बेवकफ़ी विल्कुल मतलब यह नहीं कि आप बुड्ढाचारी हो की बातें करेगी जो कि लड़कियाँ बहाँ करती हैं। जाएँ । या किसो भी तरह अापमें seriousness उनकी भी समझ में, सुभादरूझ में परिपक्वता नहीं है (गम्भीरता)पआरा जाए। प्रसन्नचित्त आपकी मां जब और इस परिपक्वता को पाने के लिए मनुष्य को हँसती है, तो आपने देखा है कि कभी-कभी तो सात चाहिए कि वे जो कारयदे-कानून बने हुए हैं उन पर मञ्जिल की हँसी आती है । सब लोग हैरान होते चलाए औौर उसमें बहुत ही आरनन्द होता है। कोई हैं कि गुरु लोग तो कभी मुस्कुराते ही नहीं और माँ गड़बड़ नहीं हो सकती कुछ दोष नहीं आ सकता । ने किन इसका तो हँसती रहती है, और उनके मंह से मुस्क राहट तो कभी जाती ही नहीं है । मैं तो एक मिनट से तो. होली का जो यह हिस्सा है, इसको सहज ज्यादा serious (गम्भोर ) कभी हो ही नहीं सकती योग में छोड़ देना पड़ेगा, अश्लीलता का । और हूं। जब Serious भी होती है तो भी नाटक ही होली का जो प्रेम का हिस्सा है, उसे प्रपनाता है । रहता है। और बहुत-से लोग इस बात को जानते वर्गैर बगैर भङ्ग पीये हुए ही हम सब एक हैं यह भावना हैं, इसलिए वे भी नहीं seriously (गम्भीरतापूर्वक) आनी चाहिए। इस बक्त विशेष रूप से गले मिलना लेते-यह गलत बातहै ! तो कृष्ण ने यह चाहा चाहिए क्योंकि कृष्ण का सारा कार्य प्रम का है । कि जो कुछ भी ग़लत- सलत हो गया हैं-रोम के प्रेम को पूरी तरह से लूटने की कोशि श करनी जीवन की बजह से । राम का जीवन बहुत प्रादश, चाहिए क्योंकि उन्होंने कहा है कि यह सब परमात्मा ऊँचा और गम्भीर ! तो उन्होंने कहा कि ये सब के प्रेम की लीला है इसमें seriousness (गम्भीरता) लोग राम बनने जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि एक नहीं है, लीला । लीलाधर जिसने लीला को धारण बात सूनी राम का काम तो राम करके चले गए, किया वह श्री कृष्णण थे और इसोलिए उन्होंने कहा अ्रब तो लीला का समय है। लीलामय बनना चाहिए कि सव चीज़ को लोलास्वरूप 'लीलाधर । और और इसीलिए उन्होंने सारे संसार को लीला का ही लीलाधर की जो लीला है, उसमें अरश्लीलता पाठ पढ़ाया । लीला का मतलब कभी भी अश्लीलता यह कहीं नहीं है । और हमारी जो संस्कृति है, या अपनी मर्यादाओं से गिरना अपनी परम्पराओं से निमंला योग is उतरना या अपनी जो प्राचीन घारणायें बहुत दिवाली मना ली वह दिवालिया हो गया। नहीं तो प्रभी तक बनी हुई हैं, उनको छोड़ना, ये नहीं 'दिवालिया' शब्द केसे निकला, यह ही बताइये ? सुन्दर हैं। हां रूढ़ि ग्रादि जो गन्दी चीजें हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए। लेकिन जो पवित्रता की भावनाएं, शट्द है। दिवाली मनाई प्रापने ? अब आप प्रापस में रिश्तेदारी की हैं, उसमें पूरी तरह दिवालिया हो जाइये। तो हम लोगों को दिवालिया सहजयोग में हम लोग हैं और उसमें आगे बढ़ना नहीं होना है। कोई ऐसी चीज नहीं करनी चाहिए चाहिए । भाई-बहन के रिश्ते-प्रब कल हमार जो कि मर्यादा से बाहर हो-दिवालिया नहीं होना। भाई साहब प्राये थे, बस देखा उन्होंने कि हमारा कुछ बड़े सुन्दर शब्द हैं, उनमें एक दिवालिया से जितना अपने बृते का है उतना करिये उससे आगे परमात्मा पर छोडिये । दिवालियापन करने की बहन-उनकी आँखों से अँसू ही बहे जा रहे थे । मैं देख रही थी कि वे बार-बार आँसू पौछ रहे थे । औ्रर नहीं सोच सकते । सो यह यो कुछ जो पवित्रता जरूरत नहीं और होली में दीवानगी करने की की भावना है, प्रेम की भावना है, इसमें [आ्रदमी को जरूरत नहीं। कोई-सा भी कार्य ऐसा नहीं करना चाहिए कि सहजयोग की दष्टि से विलार करे। चाहिए जो indecent (गन्दा) हो, जिसमें सभ्यता सहजयोग की दृष्टि से जो शोभायमान है । कोई-सा में गुरूरता हो। सभ्य तरीक से काम कारना है । भी behaviour (क्यवहार) हो, जो अशोभनीय है, छोटी-छोटी चीजें आपके अन्दर आ जाती हैं। उस छोटी-छोटी बातों पर बात करना, छोटी-छोटी की मर्यादा, जैसे कल आटिस्ट लोग बजा रहें थे, बातों में उलभना, बेकार में अपस में झगड़े किसी भी चीज की मांग करते रहना, कि यह (कला) का मान करना चाहिए। आपने बहुत बार चाहिए, वह चाहिए या कोई भी इस तरह की बात देखा होगा कि जब कीई artist (कलाकार)बजाता करना, ओछापन है, ओछापन है ! और ऐसे लोग है, तो मैं खुद जमीन पर बैठती है, क्योंकि आप भी सहजयोग में नहीं जम सकते । एक बड़प्पन लेकर सीखें । मान-पान किसका करना चाहिए, यह सहज के, उदारता लेकर के अरपने को चलाना चाहिए । योगियों को बहुत आना चाहिए क्योंकि protocol सो आज की असल में जो पूजा है, व ह बस थोी- (आचार) की बात है। Artist (कलाकार) लोग सी करनी है, वाइब्रशन्स इतने है कि कोई भी, देखिये पर पर हमेशा-ये tradition(परम्परा) केरना उस वक्त किसी को उठना न हीं चाहिए, किसी art पूजा की आवश्यकता नहीं है, मन्त्र भी कहने की है-पैर पर हमेशा शाल रख करके बजाएंगे, पूजा आवश्यकता नहीं है। मन्त्र भी गाम्भीयं में डाल ग्रगर असली [आटिस्ट होंगे। क्योंकि हो सकता है देते हैं, पता नहीं क्यों। तो आ्राज प्रसन्नचित्त होकर कि श्रोताग में कोई बैठे हों देवदेवता और मेरे के, बस दो ही तीन मन्त्रों में हम आज की पूजा पैर न दिखाई दें। अपने देश की इतनी बारीक- सम्पन्न करें । लेकिन इतना में कहूंगी कि होला की वारीक चीजें हैं कि मैं प्रापको क्या बताऊ ? इतना दिवाली बनाना है और दिवाली को होली । तब [अपने देश में बना हुआ है। इतना सुन्दर सुत्दर परमात्मा का, कहना चाहिए कि अङ्गवस्त्र है, कि सहजयोग का integration (एकीकरण होगा दिवाली भी प्रसन्नचित्त होकर मनाएँ और दिवाली इतनी गहनता है उसकी बनावट मे, इतनी काव्य में भी लोग इतना रुपया खर्च करते हैं कि दिवाली मय में है सारी चीज, बहुत ही सुन्दर । काव्य मय ! के बाद दिवालिया होकर के, यानी इसी से शब्द लेकिन हम लोग उसे नहीं समझ पाते श्रर उसे दिवालिया' निकला है । यया आप यह मात सकते हैं अपने जीवन में नहीं ला पाते, तो सब से गलती हो कि दिवाली से शब्द 'दिवालिया' निकला है? जिसने जाती है। मान पान, अब कल जेठ बठे हुए थे हमारे हं निर्मला योग रिश्ते के, तो आप देखिए पूरे समय, पूरे लेकचर में, पेर धो लें और कोई खास चीज़ करने की जरूरत वह एक मर्यादा बनी रही कि हमारे जेठ, बड़े भाई नहीं है । क्योंकि फिर वह seriousness आर जाती बैठे हुए हैं, उनके आगे कहाँ तक पहुँचना चाहिए । है क्योंकि कृष्ण ने सब पूजाएँ बन्द कराके सिर्फ अब] तो हम आदि शक्ति हैं, हमारे लिए कौन जेठ होली को ही कहा। छोड़ो, पूजा बन्द करो। Com- और हमारे लिए कौन बड़े भाई ? लेकिन जब इस plete (पूरी) पूजा वन्द कर दी। उसी तरह आप रिश्ते में बैठे हुए हैं, तो उसका भानपान रखना है लोगों को हर रिश्ते का मान-पान रखना है। आप कुछ भी हो बन्द कर देनी चाहिये। और सिर्फ यही करना जाओ, सहजयोगी भी हो गए, तो भी आपको मान- चाहिए कि आज उल्लास प्रर आह्वाद का दिन है, पान रखना चाहिए । यह नहीं कि आप उसको तोड़ और सब होली खेलो । क्योंकि आज होली आई ै, दें। और इस तरह से जब आप करेंगे, तो घीरे-धीरे और होली का ही आानन्द उठाना है । और इसकी आपकी समझ में आ जाएगा कि वड़ा ही आनन्द है दिवाली बनाने का मतलब है कि जो मैंने बताया इसमें और यह बहुत ही मीठी चीज है। तो आज जो सूचारू रूप से सभ्यता को लेते हुए, अत्यन्त के होली के दिन सि्फ होलिका-दहन का एक मन्त्र कल्याणपूर्ण ऐसी सुन्दर रचना नई तरह की हमको कहना है- 'होलिका मांदिनी' इस मन्त्र से ही आप करना है। इसीलिए होली को दिवाली बनाना है लोग मेरे पर धोयें । और बच्चों को गणेश की स्तुति और दिवाली को होली बनाना है आप सबको मेरा तो होनी ही चाहिए । तो गणेश की स्तुति कर के अनन्त आशीर्वाद ! बच्चे मेरे पेर धो लें और फिर तीन मन्त्रों से मेरे कृष्ण को याद करते हुए आज सब पूजायं : प्रार्थना : With best compliments from: राम की तु सीता कृष्ण की तूं राधा सब दुःख दूर करो ओ मेरी निर्मल माँ ।। REGAL छवि तेरी मनभावन गङ्गा-सी तू पावन प्यासों की सावन ASBESTOS INDUSTRIES ओ मेरी निर्मल माँ । से गहरा आकाश से ऊँचा सागर PVT. LTD. सुखमय प्यार तेरा ओ मेरी निर्मल माँ ।। ये झरने मदमाते गगन के ये तारे सब तेरे गुण गाएँ ओं मेरी निर्मल माँ । 85/2, BEHIND S. T. WORK SHOP P. O. KRISHNA NAGAR AHMEDABAD-382 346 निर्मला योग १० श्री यीशु का सन्देश एवं योग में स्थायित्व के विघ्न-बाधाएं कक्सटन होल, लन्दन १० दिसम्बर १६७६ आज का शुभ दिन हमारे लिये बुरा लगता है और वे पश्चाताप करते हैं कि पभू स्मरणीय है महान् ईसामसीह ईसामसीह जो हमारी रक्षा करने हेतु अराये थे वे आज ही के दिन भौतिक शरीर ऐसी दशा में रखे गये हैं और ईश्वर ने उन्हें इससे घारण कर भूतल पर अवतरित हये श्रेष्ठतर दशाय क्यों नहीं प्रदान कीं। परन्तु ऐसे थे। उन्होंने जन्म धारण किया और लोंगों के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है कि अरप उनका कार्य मानव वेतना को सुखी घास में पड़े हैं, या अस्त बल में, अथवा राज प्रकाशमय बनाने का महान् उद्दृश्य प्रासाद में । प्रत्येक वस्तु वैसी ही है । क्योंकि यह पुर्ण था, जिससे वे मानव प्रारणी की चेतना के अन्दर उनको स्पर्श नहीं कर पाती है। वे उस प्रकार से ही वास्तवीकरण को देख पा सके कि वे भौतिक पृथक हैं। वे पूर्णतया पूर्णनिन्द में निमम्न हैं वे दरीर नहीं है परन्तु वे अ्रात्मा है। प्रभू ईसा की अपने आपके स्वामि है अन्य कोई उन पर प्रभुत्व सन्देश उनका पूनर्जीवन था अर्थातु प्राप अपती आरत्मा हैं, भौतिक शरीर नहीं औोर उन्होंने दिग्दर्शन जमा सकती । कोई सूख सुविधा उन पर हावी नहीं कराया कि उनके पूनर्जीवन से आत्मा के राज्य में हो सकती । वे अपने आप में सुख सुविधाओं के उत्थान किया जो कि वे थे, क्योंकि वे 'प्रणव थे, स्वामी हैं और अपने [आप में ही सम्पूर्ण सुख वे ब्रह्म थे, महा विष्णु थे । जैसा कि मैंने आपको सुविधाएँ उपलब्ध की हुई हैं । वे सन्तुष्ट पुरुष हैं बताया है उनके जन्म के सम्बन्ध में कि वे इस यही कारण है कि वे बादशाह हैं। वे बादशाह कहे भूतल पर मानव जीवात्मा की तरह आये। वे एक जाते हैं, ऐसे बादशाह नहीं जो भोग पदार्थों के पीछे दूसरी ही वस्तु दिखाना चाहते थे कि आत्मा का भागते हैं जो अपनी इच्छाओं के क्रीतदास हैं । मेरा घन सम्पत्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही मन्तव्य है कि यदि आप सुखी हैं तो बहत श्रेष्ठ हैं। शक्ति से भी कुछ लेना है। सर्वाधिक शक्तिशाली है यदि आपके पास नहीं है तो भी श्रेष्ठ हैं इससे कोई और सर्वध्यापी है। परन्तु वे एक घुड़साल (अस्तबल ) अन्तर नहीं पड़ता है । में पैदा हये थे, किसी राजा के यहाँ अथवा राज प्रासाद में नहीं। वे एक बढ़ई के साधारण परिवार में पंदा हये थे । यदि आप राजघराने में जन्मे होते लोगों ने मुझसे पूछा कि हमारी समझ में नहीं अता तो आप बादशाह' कहलाते और आाप से बढ़कर कि प्रभु ईसा एक निर्धन परिवार में क्यों पदा हये । कोई नहीं होता। क्या यह सही नहीं हैं ? इसका यह पुनः ईश्वर के सम्बन्ध में मानव की धारणा है अर्थ यह हुआ कि आपसे उच्चतर कोई भी तहीं आप देखते हैं, वह ईश्वर पर शासन करना चाहता कोई वस्तु उन पर प्रभुत्व नहीं नहीं जमा सकता। ले टिन अमरीका में जब मैं वहाँ गई तो बहुत-से अ्रथं और न ही कोई वस्तु आपको सुसज्जित कर सकती है, "एक बादशाह के महल में पंदा होने से': अप है। आप जो भी कुछ हैं उच्चतम श्रीष्ट हैं । समस्त उसे आज्ञा नहीं दे सकते । हमारी ईश्वर के प्रति भीतिक पदार्थ के तिनकों में रखा गया है। बहुतों को बह पुरुष हुए थे । क्यों वे असहाय हये। वे सब राजाओं अपनी धारणा अलग ही है कि वे क्यों एक निर्धन तुणवत हैं । अत: उनको सूखी धास निर्मला योग ११ और समस्त राजनीतिज्ञों को एक साथ मिलाने के वरन् उनके और भी कई एक आकार थे । मानव पश्चात् भी वे उन सबसे अधिक त्वरित शक्तिमान जीवधारियों ने माँग की कि उनकी रक्षा हो । बयों? थे । वे किसी से भी भय नहीं मानते थे । जो कुूछ वे सबके सब क्यों वचाये जायें ? उन्होंने ईश्वर के भी वे कहना चाहते थे वे निःसंकोच कहते थे । वे लिये क्या किया ? हम कसे ईश्वर से माँग कर शुली पर लटकाये जाने से भी भयभीत नहीं हुये, सकते हैं कि वह हमारी रक्षा करें ? क्या आप कर अन्य किसी ऐसी सजा से भी नहीं घबराये, सकते हैं ? आप इसकी मांग नहीं कर सकते हैं । विचलित नहीं हुए। यह वस्तु आप केवल मानव जीवास्माओं में ही देख पाते हैं जो ऐसे मिथ्या विचार रखते हैं जीवन के सम्बन्ध में और यही विराट् में, विशुद्धि र सहत्रार के मध्य में मार्ग कारण है कि वे इन विचारों को परमात्मा पर भी की रचना करने पधारे थे । वे वहां द्वार खोलने के लागू करना चाहते हैं अथवा उन पर भी घटित हुए। करना चाहते हैं। और वे यह भी चाहते हैं कि वे घरा पर अवतरित हुए हमारे अन्दर एक द्वार इन धारणाओं का अनुसरण करें । धारणा नहीं हैं । वह एक घारणा (concept) है ( प्रकाश) करने के लिए । अत: सिद्ध हुआा कि प्रभू ईसा ही नहीं। आप भी यही कहते हैं कि अअन्तत: धारणा यह छोटा-सा द्वार खोलने के लिये पधारे जो हमारी धारणा ही होतो है । वास्तविकता नहीं है। यह ईगो(अ्रहं) श्रर सुपर तथ्य मैंने प्रभी हाल ही में खोज निकाला है। यह डाल रही थीं। ईगो श्रौर सुपर ईगो हमारी विचार- और कल्पना है कि घारणा एकमात्र धारणा धारा के दो त्रोत हैं। एक विचार वे हैं जो भूतकाल जैसा कि आप यहाँ देखते हैं, वे सत्य सनातन लिये पैदा उत्क्ान्ति में प्रत्येक अवतार इस ईश्वर आपकी खोलने के लिये अथवा हमारी चेतना में उजियारा ईगो(प्रति अरहं ) द्वारा रुकावटें एक है। बहुत अच्छा, माताजी कहती हैं यह अच्छा है, से सम्बन्ध रखते हैं। दूसरे वे हैं जो भविष्यकाल से तब क्या ? परन्तु फिर भी यह धारणा है क्योंकि सम्बन्धित हैं । वे उस रिक्त की पूर्ति प्र्थात् खाई पाटने के लिये पधारे । और इसी प्रकार से उन्होंने अपना बलिदान किया ( शरीर का) । आपके लिये यह एक अलत्यन्त विशाल धारणा एक विचार है । प्रपना और अपने भौतिक आपको विचार के स्तर से ऊँचा उठना है और निविचार की चेतना में पहुँचना है जहां अआप विचार में नहीं हैं परन्तु अाप विचार के केन्द्र में हैं. इस आशय में कि एक विचार उभरता है प्रौर गिरता है और इन दो विचारों के मध्य में (जो यह विचार उठते और गिरते हैं) एक स्थान है । जब आप इन विचारों के केन्द्र में स्थित होति है उसे विलम्ब' के नाम से पुकारा जाता है। वह समय जब हम सोचते हैं उस दशा में आप क्राइस्ट को 4्ातीपि अ्रर विलाप का अवसर है। परन्तु ऐसे पुरुषों के लिए यह कुछ भी महत्त्व नहीं रखता है । तो एक लीला मात्र है जो उन्हें करनी पड़ती है । यही कारण मेरी समझ में नहीं आता है कि आप उनको ऐसा दुखित, अ्रभागा जीव क्यों प्रदरशित करते हैं । वे कभी भी अभागे नहीं थे । ऐसे पुरुष कभी भी दयनीय एवं निरीह नहीं हो सकते जैसे कि आप हैं। यह एक दूसरा ही रूप है कि उन्हें लम्बा, अ्रस्थि चर्मावशिष्ट, जिसकी अस्थियां वह अशिक रूप से, वास्तव में यहाँ थे हमारी एक-एक कर गिनी जा सकें. कितना भयंकर रक्षा हेतु, क्योंकि उनके अने क आकार हैं । प्रदर्शन किया जाता है । मैं आपको बताती वे अनेक रूप रूपाय हैं । हमें कहना है कि वे न हैं कि वे ऐसे नहीं थे जैसा आप उन्हें प्रदर्शित समझ सकंगे । अर्थात् केवल मानव जीवधारियों की रक्षा हेतु आये ये करते हैं । निम्मला योग १२ वे बाल्यावस्था से लेकर अपनी मृत्युपर्यन्त वह हमारे लिये प्रकाश लाया जिसके उजाले में हम एक विनोदी एवं आनत्दित प्रकृति के जाने वाली वस्तु को भली स्वयं आ्रानन्द थे, वे हपित थे और आपको प्रफुल्लित करने आये थे। प्रफूल्लता के उजयोरे से आपके अज्ञानता के अन्धकार को मिटाने में समर्थ हो । यह के थे । वे ईश्वर नाम से पुकारी पुरुष भाँति देख समझ पा सकें। ऐसा भी कोई है जो इस आनन्द उद्गम को प्रकाशमय करने आये थे | आपके प्रथम शुभारम्भ है। अतः हमारे लिये यह उल्लास- में स्थित आपकी आत्मा को जागृति मय आनन्द आवश्यकोय है। सहज, जिसे हम हृदय प्रदान कर प्रसन्नता से भरपूर बनाने आये थे । वे सहजता से पाते हैं । किसी को भी गम्भीरता केवल आपकी रक्षा हैतु ही इस भूतल पर प्रवतरित से नहीं लेना चाहिये जिसके हम आदी (अभ्यस्त नहीं हुये थे, वे आपको प्रफुल्लित एवं प्रसन्नचित्त हैं हम नहीं लेते हैं क्योंकि यह एक लीला मात्र है। वनाने आये थे क्योंकि मानव प्राणी अपनी अज्ञानता यह माया है । मैंने इनको समस्त त्योहारों, घा्मिक के कारण, महामूरखंता का व्यवहार कर, परस्पर उत्सवों में देखा है. कि जन समुदाय, विशिष्टतया मारपीट कर, विनाश करने में तत्पर थे । वस्तु वृति के पुरुष इसका अनुसरण करते हैं। तथाकथित धार्मिक पुरुष ही अ्रत्यधिक गम्भीर होते देखे गये हैं । किसी ने भी आपको मदिरालयों में जाने को एक धारमिक व्यक्ति हंसी के फ़व्वारे (बुलबुले) प्रेरित नहीं किया और न ही स्बामख्वाह की छोड़ता है । वह नहीं जानता कि [अपने हर्षोल्लास मुमीबत मोल लेने को कहा । किसी ने भी आपको को कैसे गृप्त रखें।वह यह भी नहीं जानता कि अपनी रेम खेलने को नहीं कहा और न दिवालिये बन जाने हँसी पर कंसे नियन्त्रण करे। जब वह किसी ऐसे कहा । किसी ने भी आपको प्रेरणा नहीं दी कि उ्यक्ति को अनावश्यक ही गम्भीर मूद्रा में देखता है। आप भयानक गुरुयों के पास जायें और अपने आ्प मेरा आशय है कोई भी व्यक्ति मरा नहीं है । जिस को विपत्तियों में फॅसायें । परन्तु आप स्वयं ही हड्ग से लोग कहते हैं कुछ-कुछ ठीक वे भी नहीं स्वेच्छा से ग्रपना विनाश करने पर तुले हैं वे आप जानते हैं कि हमें अपने अ्राप से क्या करना है। इस के पास प्रात:कालीन पूष्प की तरह आपकी प्रसन्न- समस्त विश्व में भी ऐसा नहीं है एक व्यक्ति के चित्त बनाने आये थे । प्रथम तो वे आपको प्रसन्न लिये जो क्राइस्ट के समान महसूस करे और शोकातुर करने, फिर आनन्दित करने आये थे । क्या आप हो, यदि श्राप] वास्तव में उसमें विश्वास धारण कोई ऐसा बालक देखते हैं? अन्तिम रूप से मैं तपने पको जानती है । यहाँ के अद्भुत मानव जीवों के सम्बन्ध में नहीं जानती हैं। उनको फूल भी काँटे के सदृश्य दिखाई पड़ते हैं । मेरा आशय है कि मैं कीजिये, एकान्तवासी न बनिये । नैराश्य न नहीं जानती हैं कि वे कसे प्रबन्ध क रते हैं । आप बनें। कहीं भी कोई बच्वा देखते हैं वह कितनी आल्लाद- कारी वस्तु है । कुछ करते हैं । तब सर्वप्रथम आप कृपा करके यह शोका- कुल ता और मुंह फुलाने की मूर्खता का परिस्याग कीजिये, निठल्ले शऔर चुपचाप का मौन धारण न यह क़्ाइस्ट को देखने का तरीक़ा नहीं है । देखिये वे कैसे जाते थे, और भीड़ को नियन्त्रित कर उन यह उस दिव्य का बालक है जो इस भूमि पर से बातचीत करते थे । अपने चारों ओर एकत्र हुये बालक रूप में आया था और अत्यन्त आह्लादिकारी समस्त भक्तों के सामने अपना हृदय खोल दिया था। यही कारण है कि ब्रिसमस हम सबके लिये, और उन्हें सुखी, प्रसन्न बनाने का प्रयत्न किया। समस्त विश्व के लिये आनमन्द एवं उल्लासप्रद है । उन्होंने कहा था कि आप फिर जन्म लंगे अर्थात् यह एक परम प्राह्लाददायक त्यौहार होना चाहिये। उन्हें यह काम करता था और आपको भी कभी निमंला योग १३ इसे पांना था। उन्होंने वायदा किया था कि आप सहजयोग में वह प्ररण धूरा किया जा रहा है। अत: को वास्तव में जन्म लेना पड़ेगा। प्रभु ईसा हमारे ही आपे हर्षोल्लास मनाइये कि यहाँं ग्राज्ञा चक्र पर अन्दर उत्पन्न होंगे। मुझे इसका ज्ञान नहीं है कि आपके अन्तराल में प्रमु ईसा फिर उत्पन्न हुए हैं ईसाई मतावलम्बो इस क्थन का क्या अर्थ और वे वहाँ विराजमान हैं औऔर आप जानते हैं कि निकालेंगे ? कैसे आपका पुनर्जन्म निश्चित् है। उनसे सदैव सहायता की याचना कैसे कर सकते हैं । वप्तिस्म की विधि के माध्यम से नहीं। किसी के प्रधान बस्तु यह हैं जो भली भाँति समझ लेनी थियोलॉजिकल कॉलिज से बाहर आते ही वह आप चाहिए कि समय आ पहुँचा है आपके हित के लिये, को क्रिश्चियन नहीं बना देगा जैसा हमारे देश जो कुछ कि शाखों, भारत में होता है जहाँ वेतनभोगी ब्राहमाण नियुक्त उसको हस्तगत करने के लिये। यह बात केवल होते हैं जैसे आपके यहां भी वैतनिक हैं । सारे दिन बाइबिल में ही नहीं कही गई है वरन् संसार भर के तो वे खाने-पीने, मौज-मस्ती में वितायेंगे श्रोर सायं धर्मग्रन्थों में वरिणत है काल में कुछ देर के लिये धार्मिक कथा, बार्ता, आपको एक क्रिश्वयन, ब्राह्मण, प्रवचन आदि करने पधारंगे। अपकों ऐसा पूराष कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से बनना है। अन्य होना चाहिये जिसकी नियुक्ति ईश्वर द्वारा प्राधिकृत कोई मार्ग नहीं है । हो। जब तक कि अरप ईश्वर द्वारा प्राधिकरण प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप आनन्दोल्लास प्रदान नहीं कर सकते। यहो कारण है कि मैंने इन सब पूरुषों को देखा है। तथाकथित पण्डित निर्गाय करेगा? आप स्वयं किसी के सम्बन्ध में सोच समूदाय और पुरोहितगरण इतने गम्भीर(Serious) विचार करें भ्रर रब एक पूरुष आपके पास आता हैं क्योंकि वे ईदवर द्वारा अविकृत नहीं हैं । यहाँ धरमंग्रन्थों में प्रतिज्ञा की गई है । आज समय आा गया है कि पीर, केवल और अभी आपका अन्तिम निर्णय है, ईश्व र आपका कुण्डलिनो जागरण के माध्यम से निरणय करने जा रहा है। वह अत्य किस प्रकार से आपका है । यहां कोई आपका निर्णय करने वैठा है। कसे ? तक कि क्रिसमस दिवस के अवसर पर यदि कोई ग्रामीरण आता है तो उसे यह शबयात्रा जैसी प्रतीत समारोह के पश्चात् जब वह घर पहुँचेगा कितने केश कला विशारदों के पास प्राप जाकर केश संवार चुके हैं ? क्रिसमस के लिये कितने सुट होंगा तो बतायेगा कि आप कैसे मनाते है ? शैम्पन के आपने सिलाये हैं ? कितने अनुपम उपहार आप साथ और तत्पश्चात् शव यात्रा में भाग, ऐसे वे लाये है और कितने कार्डस आपने भेजे हैं ? और मनाते हैं। मैं नहीं जानती पर वे शैम्पैन ध्रवश्य कितने सारे आदमियों को आपने अन्य वस्तुएं जो लेते हैं । अधिक यथायोग्य उपयोगी नहीं है, प्रदान की हैं । यह कोई तरीक़ा नहीं है । अथवा [आपने इनके लिये आप लोग उसका अनादर तिरस्कार कर कसे क्या मुल्य चुकाया है। ये वस्तुय, ये तरीक़, रीति- क्रिसमस मना सकते हैं ? वे आपकी चेतना को रिवाज जिनके लिए हम विशेषतया जागरूक हैं, प्रकाशमय बनाने पधारे थे क्योंकि वे आपकी चेतना पता नहीं किस विधि से हम ईश्व र द्वारा निर्णीत का सम्मान करते थे । उस बिन्दु तक जहां तक ये किये जाने हैं। पहुँच पाई थी परन्तु प्राप हैं कि उो बुझाना चाहते हैं-पतनोन्मुख करना समझने का यही मार्ग है ? श्रर उन्होंने प्रण किया हमने क्या गहनता प्राप्त की ? हमें देखना है कि है कि वह प्रापको पुनर्जन्म (Baptised) देगा- हमारी पेंठ कितनी गहन है । अधिक से प्रधिक हम आपको पुनः जन्म धारण करना पड़ेगा और प्रव उस बिन्दु तक पहुँच पाते है जहाँ हम फिर एक जनता का कथन है कि बनावटी ूप से नहीं, चाहते हैं । क्या उसको ह निर्मला योग १४ जिसमें एक छोटा-सा पह्ख यह एक निर्णय है धारणा बन जाते हैं। सो जो भी कुछ गहनता हम प्राप्त करते हैं वह ज्ञान शक्ति विचार तक ही सीमित भी एक जलपोत से भी अधिक तौला जाता है, हैं- होता है यह एक भिन्त प्रकार का, एक धारण विन्दु तक उससे परे पहुँच नहीं पाते भारी फिर केसे हम निर्णात (judge) किये जा सकते हैं? व्यक्तित्व का निर्णय है। हम देख सकते हैं कि यदि आ्राप लोग डाक्टर के पास जाते हैं तो कसे मानव जीवधारियों ने करसे प्रभु ईसा को जज किया जाँचे जाते हैं। वे अपने उपकरण रखते हैं वह और ईश्वर ने कसे जज किया । वे पधारे और सुखी अपना कार्य आरम्भ करता है, प्रकाश करता है घास के तिनकों पर रहे, पह की तरह से । उनकी और स्वयं निरीक्षण कर बताता है कि यह स्थिति माताजी ने कभी बेआरामी का अनुभव नहीं किया। है । और किस प्रकार से आपकी अध्यात्मिकता को इसी प्रकार जिन्होंने अपने मृदु व्यवहार से दूसरों जाँचा जाता है? कैसे एक बीज का निर्ंय (judge) किया जाता है। इसके प्रस्फूटित होने से । जब अरप बीज को अंकुरित करते हैं और जब आप इसकी হक्ति को देखते हैं तभी आप जान सक ते हैं स्वभाव से ही प्राप्त हैं। कुण्डलिनी में भी कुछ दोष को नहीं सताया, न किसी को यातना दी उनको प्रथम कोटि के निर्णय में लिया जाना है । कुण्डलिनी जागरण में भी परम्परागत दोष अंकुरण कि वीज ठीक है अथवा नहीं। इसी भांति से आप होते हैं जो आपके पूर्व जन्मों के सच्चित कमों के भी निर्णात किये जायेंगे कि आप कितनी अंकुरण शक्ति रखते हैं । जिस तरीके से अापको सिद्धि कर्म करते रहे हैं, जिनको आपने वास्तविक मानकर (realisation) प्राप्त होती है, जिस प्रकार से अ्रप किया है, वह केवल एक घारणा मात्र है। क्योंकि इसको सम्भालते हैं अर आदर सम्माাन देते हैं। यह आपने उस वास्तव को नहीं जाना है। जो कुछ कि एक सही मार्ग है जिससे कि आप निर्णत किये अप कर रहे हैं बह अज्ञानता के वरशीभूत होगा। जायेंगे, न कि आपके वस्त्रालङ्कारों से जो आपने आपने जो कुछ भी प्रन्धकार में किया है उसमें धारण किये हुये हैं । मेचिंग (matching) के ढंग अन्धकार का कुछ न कुछ प्रश प्रवश्य वर्तमान रहेगा से, आप जो कुछ करते हैं अरथवा आपके केश कला अतः सिद्धि के बिना यदि आपने यह प्रचार किया विशारद ने आपको जैसा भी सुसज्जित किया है । कि आप साधु-सन्त महात्मा है तो श्राप को वह न ही आपके पद से भी जिस पर आप स्थित अवसर सूलभ न हो सकेगा । यदि आ्रप अपने हैं। चाहे आप कितने ही बड़े राजनीतिज्ञ अथवा सम्बन्ध में यह सोचते हैं कि आप एक दिव्य व्यक्तित्व विशिष्ट पअ्रधिकारी हो गये हैं । और न इससे कि रखते हैं और प्राप एक सिद्ध (realised) सन्त श्रापने कसे मकान अवास के लिये बनाये हैं । विस हैं, तो सम्भव नहीं। सब घर्मों के महन्त, मठावीश प्रकार के कितने नोबेल प्राइज़ आपने जीते हैं। मोर सबसे अन्त में सिद्धि पायेंगे न ही आपने कितने परोपकार के कार्य किये हैं उन से भी नहीं। आपने कितना धन घर्मार्थ दान किया, उससे भी नहीं उससे अ्राप यह सोचने लगते हैं कि का श्री रामायण में वर्णन किया है कि एक कुत्ते से आपने कितना सारा घन दान दिया है। यदि आपने पूछा गया कि अगले जन्म में आप क्या बनना चाहते बास्तव में अत्यधिक धन दान में दिया है तो आप हैं । तो उसने उत्तर दिया कि आप मूझे कूछ का अहं अत्यधिक बढ़ जायेगा और आप कहीं न बना सकते हैं परन्तु मुझे मठाघीश न बनाना अरथवा कहीं अटके रह जायेंगे और आप अपने स्त र से गिर महन्त, पुजारी आदि न बनाना । आप चाहे मुभे जायेंगे । कारण हैं। क्योंकि अराप इस जीवन में जो कुछ भी म्का महा्षि वाल्मीकि ने एक अत्यन्त रोचक कथा भी कुछ भी बनायें पर मुझे कहीं का भी पुजारी न निर्मला योग १५ बनायें । आप जरा कल्पना कोजिये एक कू ते में भी इन लोगों में परम्परागत कुण्डलिनी में विकृति इतना विवेक है । परत्तु मेरे कहने का अभिप्राय यह होती है जिसे हमें समझता है । विल्कुल नहीं है कि सब ही ऐसे हैं। हो सकता है कि उनमें भी सच्चे खरे व्यक्ति भी मीजूद हो । उन में से कुछ वास्तव में सिद्धपुरुष हो सकते हैं जो शरीर में रोगों की उत्पत्ति | इस देश में मुख्यतया ईशवर द्वारा प्राधिकरण प्राप्त किये हये हों। परन्तु जनता ठण्ड आदि रोगों से अधिक पीडित होती हैं मुझे विश्वास है कि वे जनता द्वारा स्वीकृत नहीं क्योंकि जल में कैलशियम की अधिकता है । इसी किये गये हैं। मुझे इस तथ्य का पूरणंतया विश्वास प्रकार अन्य देशों में स्थान विशेष के कारण से भी है । क्योंकि मैंने आपके इतिहास का निरीक्षण सभस्या उदय होती हैं । किया है रर ये सब लोग परित्यक्त हैं और अनाचार से पीड़़ित हैं । सर्वप्रथम इनमें स्वास्थ्य की खराबी होती है- जैसे कि हमारे देश में भी कुछ समस्याएं हैं जैसे कि आपके देशों में भी (समस्याएं है) । भौतिक जिसमें आपने जन्म परन्तु श्रव समय आरा गया है सही और गलत, समस्याएँ, उस देश के सत्य और असत्य का निर्णय लेने का शप अरव लिया है वतमान है । आप में से बहुतों ने एक और प्रधिक अत्याचार (crucify) नहीं कर सकते निश्चय से आप नहीं कर सकते । कुण्डलिनी जागरण द्वारा निश्चित् किया जायेगा । अनुसार विशेष देश में जन्म लेने का निर्णय लिया है । यही प्रत्येक का निर्गंय कारण है कि प्राप लोग यहाँ तक आश्वस्त हैं कि आप में कोई विकृति ही नहीं है । प्रत्येक देश की अपनी विभिन्नता है जिसे शरपको भोगना पड़ता है । परापको विदित होना चाहिये कि मान व जीवा- जिसके फलस्वरूप आपके स्वास्थ्य में कमी आ जती त्माओं की तीन श्रेरियाँ हैं । मैं नहीं जान ती किस है। जहाँ तक सहजयोगियों का प्रश्न है उन्हें जानना छोर से आरम्भ कलूँ जिससे आप शोकाकुल न हों। चाहिए कि स्वास्थ्य एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है क्यों एक श्रेरणी के तो वे पूरुष हैं जैसे कि हम और श्राप कि यह शरीर ईश्वर का मन्दिर है । और आपको हैं। वे नर योनि के व्यक्ति कहे जाति हैं । दूसरी पने स्वास्थ्य की देख भाल कर रक्षा करनी है । श्रेणी देव योनि है इनमें जन्मजात सिद्ध पुरुष प्ाप यह भी जानते हैं कि जब कुण्डलिनी का औ्र भक्तजन आते हैं । और तीसरी श्रेणी को राक्षस कहा जाता है। उत्तको गण भी कही जाता है वह है परासिम्पंथेटिक में सूधार व पूर्ति के है। परन्तु हम कह सकते हैं कि मानव कारण से आपका स्वास्थ्य सूधार होता है क्योंकि के अन्तर्गत राक्षस गरणों की जाति भी आती है जिन के कम निन्दनीय हैं और वे दुष्ट प्रकृति के हैं। अरतः सिम्पंथेटिक में प्रवाहित होता है, आपका स्वास्थ्य हमारे में दुष्टजन भी है और श्रेष्ठ पुरुष भी हैं और इन दोनों के मध्यवर्ती भी हैं। उत्थान होता है तो सर्वप्रथम जो घटना घटित होती जीवात्माओं पैरासिम्पेथेटिक आपको प्रकाश प्रदान करती है जो सुधर जाता है। आज में उस विषय पर विशदता से परपको नहीं बताऊँगी कयोंकि समयाभाव है-प्रप कोई पुस्तक पढ़िये । मैने बहुत मैंने अ्धिक नहीं लिखा ष्ठ पुरुषों की संख्या अधिक नहीं हैं। वे कम है और जन्मजात सिद्ध हैं। वे समस्याप्रधान है। परन्तु यदि आप मेरे व्याख्यान सुनते हैं और नहीं हैं मेरे लिये । परन्तु केन्द्र में स्थित पूरुषों उनमे से बहुत सारे लेखबद्ध हैं, आप उन लेखों से के साथ ग्राचार व्यवहार करना है । वे अच्छा ई की जान पायेंगे कि कैसे कुण्डलिनी बहुत से रोगों को और ही देखते हैं परन्तु उनके साथ एक ऐसी वस्तु दूर करने में सहायता देती है । सिर्फ उन रोगों को चिपक रही है जो इतनी अच्छो नहीं है । अधिकतर छोड़कर जो मानवी तस्वों द्वारा विकृत किये गये बहुत क निमंला योग १६ गँवा बैठे । यहाँ हैं। यथा गुर्दे की तकलीफ़ । एक आदमी सहज अस्थतालों में ही अपना सब कुछ योग से ठीक किए गए हैं परन्तु दूसरा अरादमी जो तक कि वे प्रोग्रामों में भी भाग नहीं लेते थे । वे एक मशीन पर रह चुका हो उसे कोशिश करने पर मुझे देखने भी नहीं पराते थे। यह ईश्वर पथ में सब आप निरोग नहीं बना सकते । हम उसको दीर्घ से बड़ी रुकावट है, यह एक व्याधि है शारीरिक जीवन दे सकते हैं परन्तु उसको निरोग नहीं कर पीड़ा है । [और शारीरिक पीड़ाएँ भी आपको सकते । परन्तु किसी भी हालत श्रापका काम नही है । आपको यह बात भली भाँति समस्या है तो आप उसे दुष्टि में रखनी है। कोई सहजयोगी लोगों के आपकी दशा में सुधार आता जायेगा। कुछ लोगों स्वास्थ्य लाभ कराने का अ्रथात् रोग निवारण का के लिये यह काफ़ी समय सुघारने में ले जाती है । कार्य नहीं कर सकते । वे मेरा फोटोग्राफ़ प्रयोग में फिर भी मुख्य बात यह है कि अपनी आत्मा में रहें, ला सकते हैं। परन्तु आप रोग निवारण का काम सन्तुष्ट रहे। बारम्बार आग्रह न करें कि माँ हमें नहीं कर सकते क्योंकि इसका आशय यह होता है शराराग्य कर, आरोग्यता प्रदान करें । परन्तु कहता कि आ्ाप महान् उदार, हितेवी एवं परोपकारी हैं । मैंने ऐसे बहुत-से देखे हैं जो आरोग्य बनाने के रस्विये । आाप स्वतः स्वेच्छानुरूप से आरोग्य हो लिये इतने अधिक पीछे पड़ जाते हैं कि वे अपने जायगे । कुछ पुरुषों के साथ कूछ अधिक समय लग आपको देते हैं । उन्हें इतना भी ध्यान नहीं जाने की सम्भावना है । पर कोई बात नही क्योंकि में रोग दूर करना अत्यधिक वेदना नहीं देंगी। यदि आपकी कोई क्रमानुसार भूल जाइये। चाहिये कि मांँ हमें आध्यात्मिक जीवन में स्थापित पुरुष ने भुला रहता कि इस अपनी आ्ररोग्य करने की धून में स्वयं आप जीवन भर रोगी रहे हैं फिर यदि उसमें कूछ पकड़ में आकर बाधाग्रस्त हो गये हैं और वे अपने और अधिक समय लग जाता है तो परवाह न करें । आपको कभी भी आरोग्य नहीं बना पाते, और और बताये गये तरीकों का इस्तेमाल करते रहें अन्तिम रूप से मैंने पाया है कि वे सहजयोग से जो हमने विभिन्न रोगों के शमन के लिये बताये हैं; बाहर निकल जाते हैं। परन्तु फोटोग्राफ की सहायता प्रयुक्त किये हैं। विशेषतया इस देश में जिगर व्याधि से आप लोगों को आरोग्य कर सकते हैं । आ्राप यह और गठिया, वायु आदि व्याधियाँ अ्रविकतर फेली हैं न समझ कि यह आपका कर्तव्य है अ्रथवा यह कि जो लोगों को व्यग्र कर रही है। हमारे पास इन सब आप महान् भौतिक हितेषी हैं । नहीं, अरप नहीं हैं। रोगों के निवारण के उपाय हैं जिसे हमें इस शरीर श्राप एक आध्यात्मिक हितेषी हैं, परन्तु एक प्रप्रधान रूपी मन्दिर की देख भाल के लिये अपना प्रधान रचना को तरह मानव देह में सूधार आ जाता है । कर्तव्य समझकर सतत प्रयत्न करते क्योंकि यदि प्रमु ईसा को जागृत करना है, यदि करना है । पर यही आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहों ईशवर को इस शरीर में आना है तो इस शरीर को होना चाहिये । वह एक अत्यन्त लघु ग्रश स्वच्छी- भी स्वच्छ सुथरा बनाना पड़ेगा। यह कार्य करणा की है जसे कि तमाम जगह स्वच्छ कर आप कुण्डलिनी द्वारा सम्पन्न होता है। परन्तु यह बाहर श्रा जाते हैं। आप मुझसे पूछ सकते हैं कि अस्पतालों की तरह अलग होकर काम नहीं करता यह शुद्धि आप क्यों करती है ? जैसा कि हमने देखा है । कार्यात्वित हुए है बहुत-से लोगों को जब हम औक्सटेड में थे । वहाँ हमने देखा कि प्रत्येक आदमी प्रत्येक वस्तु को मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं, जो अरोग्यता पालिश कर रहा था और लॉन को भी अच्छी तरह प्रदान की शक्ति के पीछे पागल बने और नियमित से संवारा था। प्रत्येक वस्तु को उन्होंने बहुत अच्छी रूप से हस्पतालों में जाना प्रारम्भ कर दिया श्और तरह सवारो सजाया था कि उनके घर में एक चूहा निमला योग १७ भी नहीं घुस सकता था । महीनों तक लगातार मैंने सुस्त हैं। आरश्रयं है कि वे इस देश में प्रचुर संख्या किसी को भी अन्दर जाते अथवा बाहर आते नहीं में बर्तमान हैं । मेरा अभिप्राय है कि किस प्रकार देखा घा| वे ऐसे प्रबुद्ध पति-पत्नी ये । विशिष्ट आपके देश के लोग जमंनी में गये और वहाँ जाकर प्रकार के व्यक्ति थे । मुझे नहीं माजूम वे बयों सफ़ाई उस चालकारहित वायुयान बनाकर बेचने वाली और सुथरेपन एवं स्वच्छता के प्रति सजग थे, यहाँ फ़रेक्टरी तथा उसमें प्रयुक्त समस्त मशीनरी को तक कि प्रत्येक वस्तु के लिये पूरणं सजग थे, यहाँ तक कि वे पति पत्नी परस्पर वातालाप करते भी नहीं धवस्त कर दिया था। यह दश्य मैंने एक दिन एक पिक्चर में देखा था। और उन्होंने बहाँ की प्रत्येक देखे गये थे । मैंने उन्हें स्वयं देखा है। हमारे मकान वस्तु की विध्वन्स करर दिया था । कदाचित वे समझते हों कि हमारे बच्चे यह सब देखकर प्रसन्न होंगे सात मकान थे । वे सब के सब । के अलावा आश्र्य चकित थे कि कितने सारे पुरुष, स्त्री हमारे यहाँ आते-जाते हैं। उन्होंने उत्सुकता से पूछा कि वास्तव में जब लोग सहजयोग में प्रवेश करते हैं तो क्या आपका "मुक्त घर" है परथात् सबके ने-जाने क्या घटना घटित होती है ? वे अपना साक्षात्कार के लिये खुला है। मैंने कहा कि हाँ यह खुला घर है। वे समझ नहीं पा रहे थे कि हमारे में क्या गडबड़ी फिर खो देते हैं। इसका कारण है कि वे इस पर है । कोई भी उन पलिश की हुई वस्तुओंों को देख जमकर कार्य नहीं करते । यह एक भौर अकरमंण्यता न पा सकेगा अरथवा न कोई अत्य व स्तु को । यही कारण है कि हम इतनी पश्चात् वे पुनः एक बास्तव में सहजयोग हो जाता है श्रोर शेष जो में विश्वास नहीं क रते । परन्तु मेरे आमाशय ईश्वर के हैतु परम महत्व की वस्तु है। स्वास्थ्य ( बहुत महत्त्वपूर्ण है, पर ध्यान सदेव रात्मा पर ही केल्द्रित होना चाहिए। यह अपको आत्मा पर होना जाते हैं। फिर यहा मेरा समय नष्ट करने आ जाते चाहिए, क्योंकि यह आपका ध्यान ही है जो जहाँ- तहां चारों दिशाओं में दौड़ता रहता है और बही की सम्पक्ति है। यह शपकी आत्मा की सम्पत्ति है चिपक जाता है । आपको इसे सक्रिय होने की छूट परन्तु सहजयोग में हमें सावधान रहना है । पा जाते हैं। वे शोतल लहरी को प्राप्त करते है, और का खतरा है । जब यह खो जाती है तो एक वर्ष के आाते हैं। कहते हैं कि "माँ हम इस दूर तक नहीं जाते कि यह stomach) में पीड़ा है। क्या आप उस पीड़ा का निर्वारण करगी ? आप अपनी इतनी शक्तियों से सम्पन्न होते हुये भी आप वेकार के प्रादमी बन हैं। ये सब शक्तिपयों आपके हो अन्द र हैं । यह आप जो आन्तरिक में आरापकी देखभाल करती है । वह आपके प्रादूर्भाव के लिये बाधित है । परन्तु ऐसी रुकावटों के कारण, जो आप स्वीकारते हैं, यह नहीं हो पाता। यह अकर्मण्यता है, हम कह सकते हैं कि दे शोर यह अपना कार्य करेगा। दूसरी रुकावट जो मैं श्रनुभव करती हूँ वह है अकर्मण्यता अर्थात् वे लोग जो इसे कार्यान्वित ही जो इसे कार्यान्वित नहीं करता है। जो नहीं जानने नहीं करना चाहते । वास्तव में जो लोग वेकार के की, समझने की कोशिश करता कि सहजयोग क्या आ्ादमो हैं, जो आत्म-साक्षात्कार प्राH करना नही चाहते हैं, उनको भूला दें। उनके विषय में विचार क्या है, और यह कैसे कार्य करता है ? नहीं करना चाहिये । परन्तु साक्षात्कार पाने के पश्चात् भी लोगों के लिये यह एक समस्या बन जाती है कि वे इस पर संलग्न होकर काम नहीं करना है क्योंकि वे वास्तविकता का सामना करना नहीं चाहते । वे आलसी हैं, साधारण शब्दों में वे चाहते हैं, क्योंकि जैसे ही आपकी कुण्डलिनी ऊपर है, इसको कसे कारगर बनाना है, शीतल लहरी लोग बहुधा कहते देखे गये हैं कि यह अत्यधिक निरमला योग १८ आती है प्रकाश तुरन्त ही अन्दर जाता है। किस तरह से बयान करू। उबाहरणा्थ अ्रप सव अखें वन्द करने से पहले ही तत्काल आपके में से बहुत सारे जो यहाँ पर एकत्र हुये हैं, जिनका अन्तराल में प्रकाश फैल जाता है और आप ग्रपने प्रतिशत में नहीं बता पाती, दूसरे दिन आते हैं नेत्र खोलना हो नहीं चाहते हैं, वथोंकि यह अत्यधिक और एक बड़ा व्याख्यान देकर कहते हैं कि मुझे है । क्योंकि आ्रप सो रहे हैं । यदि पप किचित्मात्र अभी] भी सन्देह है, संशय है । भी अपने नेत्र खोलते हैं, हे भगवान अआप उस प्रकाश को सम्मुख सहना भी नहीं जाहते हैं। क्योंकि ग्राप उस स्थिति से एक रूप हैं और आप ग्रपने नेत्र श्रीप क्या सशय करते हैं ? आपने अब तक क्या खोलना ही नहीं चाहते हैं । निस्सन्देह कुण्डलिनी आपके नेत्रों को खोल देती है । परन्तु प्राप फिर अपने नेत्र बन्द कर लेते हैं। अत: यह आपकी स्वतन्त्रता है कि अरप अक्मण्यता का परित्याग क र द । अव यह ने शरह से इतने अधिक प्रताडित हैं- परिचायक भी सामूहिक हो सकती है । मैं इतना आपको बता सकती है कि यह एक बड़ा भारी रोग है, यह फेलता है। यथा पति-पत्नी हैं, पत्नी एक जैसी ही है इसके अ्रतिरिक्त कि पति अपनी पत्नी को ऊपर उठाये बह़ रहे हैं। अब आप संशय करना चाहते हैं। सशय उसमें अनुरक्त (आसक्त) हो जाता है विशेषतया पश्चिम में । भारत के बिल्कुल ही विपरति जहा विधाम कोजिये । यह बिल्कुल उसी तरह से हैं कि पति पस्नी पर पुर्णरूप से अपने अरधनि रखता है। से कोई किसी कॉलिज में प्रवेश पा रहा हो अथवा वह भी अपने पति के अरधीन हो अनुरक्त रहती है। यनिवर्सिटी में बंठे हों और शिक्षक पढ़ाते हो कि सो क्या होता है इन दोनों में से जिसने भी पाया उसने खो दिया है। बल्कि वे दोनों बहुत अच्छा कहते हैं कि हम संशय करते हैं । वास्तव में शिक्षक तरह से साक्षात्कार पाते हैं और बहुत अच्छी तरह से रहते। उनमें से जिसने अ्रच्छो तरह से साक्षात्कार क्या यह बुद्धिमत्ता की निशानी है ? किसको पाया है ? व्या वह आपका अह है जिस पर कि मैं ने व्याख्यान पर व्याख्यान दिया है। यही श्रीमान अह हैं जो संशय करते हैं। क्योंकि वह नहीं चाहता कि आप उस सत्य सतातन को खज पा सक। आप है कि आप उसे खोज पा नहीं सक ते दयोंकि ये श्रीमान अहं अपका जीवन भर मार्ग दर्शन करते क्या ? आपके संशय व्या हैं ? आप ठण्डी हवा का अनुभव अच्छी तरह से करते हैं। फिर बेठ जाइये। क्या कहेगा। पाया है वह अपनी शासन की इच्छा को नियन्त्रण में रखता है । वह सोचता है कि मेरे अँखे हैं देखने पर्तु वे नहीं कहेंगे क्योंकि उन्होंने शुल्क दिया है उन्होंने उसके लिये शुल्क मुगतान किया है । के लिये। मुझे देखना चाहिये। मुझे अ्रपनी आत्मा चाहे डामा कितना ही भयानक क्यों न हो फिर भी हमें उसमें से गुजरना है क्योंकि हमने शुल्क जमा करते हैं तो यह काम करती है और फिर वे किया है और अप उसमें से गुजर कर पार करते द्वितीय सोपान पर जा पहुँचते हैं । प्रत्येक वस्तु जेट हैं क्योंकि आप ने शुल्क जमा किया है । अब क्या की तरह से नहीं हो सकती कि आप यहाँ बेठे हैं करें ? परन्तु सहजयोग में आप को कुछ देना नहीं सारे महामूर्खता का ध्यवहार करने वाले देखे हैं जो बहुत-से गुरु घारण करते हैं। जसा कि कोई-कोई कहते हैं कि 'मैं अरापको उड़ना सिखाता हैं" वे इसके लिये भी तैयार हो जायेंगे। मालूम नहीं कि इस संशय के भ्रम समुदाय को वे धन देंगे और किश्त्ित्मात्र भी सन्देह नहीं करेंगे । हुआ को अवसर देना चाहिये । यदि वे उसे स्वीकार और दूसरे ही क्षण आप चाँद पर जा पहुँचते हैं पड़ता है । मैंने बहुत यदि आप चाँद पर जा भी पहुँचे, आप तीसरे खतरे अर्थात् संशय से श्रारम्भ कर सकते हैं। मूझे हूँ निर्मला योग १६ परन्तु क्या वह व्यक्ति जो यह सब प्रचार कर रहा एक श्रुटि है, आड़े आ जाती हैं । क्योंकि कुण्डलिनी है, क्या उसने हवा में उड़ान की है ? क्या आपने जागरण एक मुप्त का उपहार है हर एक के लिये उसे कहीं भी हवा में उड़ते हुये देखा है ? जो यहाँ पर आता है । चाहे जो भी कोई हो । कृपया उस व्यक्ति से हवा में उड़ने के लिये जहाँ कहीं भी ही नरक में अथवा स्वर्ग में अथवा कहिये । वे कुण्डलिनी का ऊपर उठना देखेंगे और अन्य किसी स्थान पर या वहुत-सी ऐसे अरकरणीय उसे स्पन्दन करती हुई भी देख पायेंगे । उसका घटना घटित कर चुका हो। परन्तु हम दोष सहज उठना और नीचे आाना भी देखकर वे संशय करेंगे। योग को दंगे । हम अपने अन्तराल में घटित स्वेच्छा अव आप कोन हैं ? आप कहाँ तक पहुँच पाये हैं? अनुरूप घटना को दोपी ठहरायगे। हम अपने आपको आप संशय क्यों करते हैं ? आप किस पर क्या दोषी नहीं ठहराय गे, कि हमें यह गलती नहीं करनी सन्देह करते हैं ? आपने अपने सम्बन्ध में क्या चाहिये थी । कोई बात नहीं यदि मैंने ग़लती की है जाना है ? तो में ही इसका मुधार करूंगा-सब कुछ ठीक हो जायेगा । आप कृपा करके इस स्थिति पर विनम्रता धारण कीजिये अपने हृदय को भी विनम्र बनाइये, कि मैंने प्रभी तक अपने को नहीं जाना है। मुझे क्षमा भी बेकार सिद्ध होती है। क्योंकि जब तक अपने आपको जानना है। मैंने अभी तक उस माँ निस्सन्देह क्षमाशील हैं, परन्तु कभी-कभी आप अपनो गलती का अभास नहीं करोगे तो जिस रालत रास्ते पर अरप पड़ गये हैं उसके ही अभ्यस्त शাश्वत को नहीं पाया है । किस उपकरण के साथ मैं संशय कर रहा है । यही सबसे बड़ी रुकावट बन जायगे । प्रतः मार्ग के नियम समझ लेने कुण्डलिनी के जागरण में है। उसके जागरण के अनिवार्य हैं। यही हमारे सामने प्रसाद के रूप में पशचात् भी संशय वना रहता है । उपस्थित होता है। तत्पश्रात् हमारे सामने एक और रम्परागत समस्या आ खड़ी होती है। इसको भ्रम नतुर्थ रुकावट को हम प्रमाद के नाम से पुकारते दर्शन कहा जाता है । अंग्रेजी में इसको हैल्यूसिनेशन है। यह वह है जिससे हम सदैव हेड़वड़ाते रहे हैं। (hallucination) कहते हैं। हम भ्रमदर्शन करना कितना मूखतापूरण प्रश्न है। मेरा आशय है कि बस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें आपको पालन कर अनुसरण एस. डी. आदि ड्रग प्रयोग करते हैं । वे मुझे नहीं करना है यदि आप सड़क पर जा रहे हैं, अरपको देख पाते । कभी-कभी वे प्रकाश की छुटा देख पाते इसकी आदत सी पड़ी हुई है नियम से की । सो आप सदैव ही गलत साइड को मोड़ लेते कालिक दश्य । वे मूझे किसी और ही रूप में हैं। परन्तु लन्दन में ग्रापको हिरासत में ले लिया द्वेखते हैं। यदि आप मुझे स्वप्न में देखे तो यह जायेगा । इसी प्रकार से आप नियमानुकूल जा रहे अच्छा है । परन्तु आप श्रर कुछ देखने लगते हैं हैं। परन्तु अब आप लन्दन में हैं। अत: रच्छा होगा जिसे भ्रमदर्शन कहते हैं। भ्रम का अर्थ (illusion) यदि आप लन्दन वालों की परिपाटी [अपनायें । अत: आप नक्शे में मार्गों का अध्ययन करें, और आव- হय कीय नियमों का पालन करे और उनके अनुसार लोग इसके विषय में असत्य बोलना आरम्भ कर चलने का प्रयत्न करें। परन्तु आप तो संशय में पड़े देते हैं। मैं हरएक के विषय में जानती है । जब हैं । यही प्रधान बात है। फिर आप इसका भ्रमदर्शन का आरम्भ होता है तो यह वाइब्रेशन्स अनुसरण करना नहीं चाहते हैं। अतः प्रमाद हो जो के लिये भी अत्यधिक खतरनाक वस्तु है । आरम्भ कर देते हैं । विशेषतया वे कुछ जो एल. पुरुष ड्राइव करने हैं अथवा भविष्य का त्रमदशन करते हैं या भूत व माया और आप भ्रम का विकास करना आरम्भ कर देते हैं । सबसे निकृष्ट पक्ष इसका यह है कि निमंला योग २० कुछ पुरुष तो अ्पने विषय में पूर्णरूपेण निश्चित होते हैं, मैं बह देखती है। ओर वे समस्त संसार को जनों के लिये हितकारी नहीं है। बताते हैं। और वे हरएक पर शासन करना चाहेंगे यह कहते हुए कि अमुक की वाइब्रेशन्स सही नहीं लिये ही है। मैं इड्गित कर रही है कि अपनी हैं, उसकी वाइब्रेशन्स खराब हैं, जब कि उन पर उन को कोई दक्षता नही है अब मुझे काफी सावधान होना होता है। मैं एक शिक्षक की भांति वार्तालाप नहीं कर सकती। अतः मैं कहती हैं कि आप प्रपने को बन्धन दे और अपने हाथ मेरी प्रोर फेलाये और फिर ग्रपने प्रापको स्वयं देखिये । ् जाये तथा श्राप कहीं के भी न रहें । यह सहजयोगी आज का व्याख्यान विशेषतया सहजयोगियों के साक्षात्कार की सिद्धि को स्थायित्व प्रदान करने के मार्ग में किन निहित बाधाओं का, खतरों का सामना करना पड़ता है । यह समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अव दो और बड़े खतरे सामने खड़े दिखाई देते हैं जिनको हम इनके अतिरिक्त भोगते हैं। लोग यदि अ्रकस्मात् ही वे जान जाते हैं कि मैने जान पुकड़ में आ जाते हैं अर्थात् बाघापरस्त हो जाते हैं लिया है कि आप असत्य वोल रहे हैं, फिर व उनक र श्रपने मस्तिण्क में विचारों का अम्वार लगा रहता। मैं उनके लेते हैं । वे गीत गाना आरम्भ कर देते हैं। मुझे ऐसी अस्याभास को अपने में ही सीमित रखती हैं। हरकतों से व्याकुलता होती है। मुझे मालूम नहीं आप देखते ही हैं कि मैं कितनी सावधान रहती है कि मूझे क्या कहना चाहिए । मैं देखती हैं कि उन क्योंकि मैं जानती हैं कि वे कितनी फिसलने वाली के माध्यम से कोई राक्षस बोल रहा है। परन्तु भूमि (स्थिति) पर हैं। तब भी मैं उन्हें [अ्रधिक रूखे मेरी कठिनाई यह है कि मैं उनको कैसे अवगत पन से आक्षेप नहीं करती है। फिर भी हो जाता है । कराऊँ । यहां तक कि वे मेरी प्रशंसा करते हैं । मैं परन्तु प्रापको भली भाँति जानना चाहिये कि यह जानती हैँ कि यह क्या है । परन्तु व मेरे निकट आ हमारे हित के लिये है जिससे हम अपने सत्य पर कर निवेदन करते हैं कि माँ हम प्रापकी स्तुति में दुढ रहें । और हम अपनी ही अलग विचारवारा में गीत गाना चाहते हैं।। मैं उन्हें हाँ के अतिरिक्त और कुछ कह भी तो नहीं सकती है। क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि उन्हें यह ज्ञान कहीं से प्राप्त हुआ है फिर जो बात सामने आती है वह है विषयचित्त यह तो कोई और ही है जो यह सब कर रहा है । नष्ट होने में कोई सन्देह नहीं हैँ न बह जायें । जिसमें आपका चित्त उन वस्तुओं के द्वारा आ- इन सब समस्याओं के कारण ही [आप लोग पकड़ कपित होता है जो आपके पूर्व अ्रासक्तियों क्या है में भराकर बाधाग्रस्त हो जाते हैं । विगत दिन तथा जहाँ प्रापका ध्यान केन्द्रित रहा है। आप एक सज्जन मेरे पास आये और कहने लगे कि क्रिकेट की ओर आक्कर्षित हैं, परन्तु श्रापको यह माँ मैं अपने विषय में अ्रत्यधिक आश्वस्त है, बास्तव बीमारी भ्रपने आप नहीं लगानी चाहिये । मेरा में पूर्ण विश्वास में हैं। मैं कुछ उच्छल, हिसा- त्मक कार्य करने को बाधित है। और उसने वह जघन्य) कृत्य किया । पहले तो उसने प्रेतबाधा को अपने अन्दर आता हुआ देखा, तब यह काम किया और किया भी बुरी तरह से । मैं जानती हैं कि उस लिये भी इतनी आसक्ति (सनक, झक्गीपन) अ्रा जाये के उस काम से हर कोई नाराज था । परन्तु में नहीं कि आपका ध्यान एक ग्रलत वस्तु पर केन्द्रित हो थी, क्योंकि जो भी कुछ किया गया वह पकड़ की अ्रभिप्राय यह है आप इसमें इतने औरोत-प्रोत न हो जायें कि अप क्रिकेट का बैट ही बन जाये और ( किसी काम के भी न रहें। अन्य सब बातों के लिए आप मृतक समान हो जाते हैं । किसी बस्तु के निमंला योग २१ स्थिति में किया गया था। आप नहीं जानते लोग अपनाने एवं उत्सव मनाने से गलत समय पर वरत पकड़ के वशोभूत होकर क्या-क्या अनर्थ कर उपवास प्रादि करने से। व्रत उपवास की उपयोगिता डालते हैं जो पागलपन से भरे होते हैं। मेरा न समझकर गरहशा करने से, ब्रत उत्सव समारोह आशय है कि उनको तो पागलखाने में जाना चाहिये को न समझकर मनाने से, अपने चक्रों और सम्बन्ध परन्तु सहजयोगी होने के कारण वे यह सब काम अदि की स्थिति न समझने पर और सहजयोग करते हैं। परन्तु वे वहाँ नहीं हैं जहाँ उनको होना का पूर्णतयां समन्वय (synthesis) हृदयङ्गम पतन होता है । आपने देख होगा कि बहुत से जिज्ञासुयों की कुण्डलिनी उत्थान करती दो ग्रवस्थाएँ ऐसी हैं जिनमें कुण्डलिनी चढ़कर है यौर तत्काल हो नौचे गिर जाती है। यह अत्यन्त भी गिर जाती है। यह व्यक्ति में परम्परागत ही खतरनाक चीज हैं । वास्तव में यह स्थिति न करने से यह चाहिये था । खतरा रहता है। बहुत-से लोगों ने मुभसे पूछा है अत्यन्त दुखदायी है। कि क्या मां हमें साक्षात्कार प्राप्त हो जाये तो यह स्थिर रहेगा। वह वहां ठहरती है, अंश मात्र। कभी कभी एक क्षुद्र अंश के रूप में । कभी-कभी समस्त है वह है कि जब आप अपने को ही भगवान समझना वस्तु ही वापस आ जाती है। यह वापस खींच ली आरम्भ केर देते हैं अथ्वा अपने को किसी का जाती है। यदि ऐसा होता है तो आप कहते हैं, हमें अवतार की भांति मनाना आरम्भ कर देते हैं। यही संशय है अथवा हम संशय करना अरारम्भ कर देते सबसे भयङ्कुर खत रा है। फिर आप कानून अपने हैं । यह कहां लिखा है कि आपको ऊपर उठाया हैथ में लेना आर ्भ कार देते हैं। [और लोगों को जायेगा और आपको उच्च बैठा दिया जायेगा । चाहे आपकी समस्याएँ कुछ भी क्यों न हों। क्या यह कर देते हैं और अपने आपको पूर्ण सन्तुष्ट, आश्वस्त सम्भव है ? यहाँ तक कि जब मूझे भारत जाना समभाने लगते हैं। यह भी एक महान् खतरा है। होता है तो मुझे इनोक्युलेशन्स, वैक्सिने शन कराने विनम्रता ही एक ऐसा मार्ग है जिससे यह जाना पड़ते हैं। मुझे अपने पासपोर्ट के लिये साक्षात्कार जा सकता है कि आपके सामने एक महासागर देना पड़ता हैं अन्तिम खतरा, जो आपको जानना आवश्यकीय आज्ञा देते हैं और उच्छ्लता के कार्य प्रारम्भ है । अप नाव में तो सवार हो गये हैं अच्छी तरह से परन्तु अपको का फ़ी कुछ जानना शेष है । आपको काफ़ी मात्रा में समझना शेप है। श्और आपको अपने ध्यान पर स्थिर होना है, शरपने । जब आपको ईदवर के साम्राज्य में यम प्रवेश पाना है फिर आपका निर्णय किया जायेगा, आपको परीक्षा में खरा उतरना होगा, यदि आप को कृपाडु देकर यान में बैठा भी दिया जाये तो भी आपको नीचे उतारा जा सकता है। कुछ साधकों के चित में स्थिरता लानी है और उसे जागृति की साथ ऐसा होता है कि कुण्डलिनी नीचे अ्रा गिरती प्रर प्रपसर करना है। है यह अत्यन्त खतरनाक चिन्ह है। यह किसी समस्या के कारण हो जाता है यथा किसी मिथ्या है जिससे आप सम्पूरणं सहजयोगी के रूप में स्थापित के पास जाने से, रालत स्थानों पर जाने से, हो जायें जिससे सामूहिकता आपकी आत्मा का एक आपको इसको अभी इस प्रकार से हल करना गुरु प्रेतात्माओं के पास जाने से अथवा जादू टोना, तन्त्र अङ्ग बनकर रह जाये जिससे आप में लेशमात्र भी आरदि करने से, हर किसी के सामने मस्तक नवाने संशय शेष न रहे, नि्विचारकी चेतना से आप संशय- से जो अवतार नहीं हैं । मिथ्या देवी देवताओं की रहित चेतना में छलांग लगाइये। जब तक आप में आराधना करने से, पागलपन के रीतिरिवाज यह घटना घटित नहीं हो जाती - यह 'मेरा' नहीं, निरमला योग २२ वरन् एक स्थिति है, जिसमें जब कभी भी प्राप इस भाव से हमें सहजयोग में जाना है। मुझे यह अपना हाथ ऊपर उठायेंगे आपकी कुण्डलिनी कहना चाहिये कि मैं आश्चर्य में है कि यह ऊपर उठ जायेगी जब तक कि आप उस स्थिति चमत्कार कसे होता है और यह कार्य करता रहता की उपलब्धि नहीं कर लेते तब तक इसमें लगे है । परन्तु यह शाप हैं जो इसे अपने आप के अन्दर रहिये-उद्देश्य प्राप्ति में, इसमें आलस्य-प्रमाद न स्थापित कर सकते हैं । कीजिये । आपको अपने चारों ओोर देखना है । लोगों से मिलें, उनसे वाततालाप करें । इस विषय में जितनी अधिक वातें आरप करेंगे उतना ही प्धिक आप अग्रसर होंगे। आप इसे जितना अधिक भी दान करेंगे यह । जितना आप घर में बैठेंगे, और सच गें कि में धर में वे स्प्श रेखा के बाहर फेके जा सकते हैं-आप अव आप में से कूछ परिधि पर हैं। हम उनको परिधि पर ही रख छोड़ते हैं। इसको आप भली भाँति जानते हैं । उनमें से कुछ केन्द्र में शते हैं । और उनमें से भी बहुत कम संख्या में ऐसे हैं जो भीतरी वरग में आते हैं। सब ऐसी स्थिति में हैं जिस उतनी ही प्रधिक प्रवाहित होंगी पर ही पूजन कर रहा है, उतना ही भाप खोयगे । उसमें स्थिरता आयेगी, बहाव में रुकावट पायेगी । आपको इसे दूसरों को देना है [अरापको उसे अधिकाधिक लोगों में वितरित करना है, हजारों की संख्या में लोग इसे पाने को लालायित हैं । यही कारण है कि यह इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस विचार से कि समस्त संसार की शक्तियां ग्राप में सकता है। अतः सावधान रहो। विकसित हैं आप मदोन्मत न हो जाय । कभी नहीं। कब यह कक्तियाँ प्राप में प्रगट होती हैं आप जानते ईसा के जीवन की एक महान घटना को भी नहीं मेरा अभिप्राय है, सूर्य की कल्पना कीजिये, त्योहार के रूप में मना रहे हैं । हमें यह जानना यह कहते हुए कि मैं सूर्य हैं। क्या बह कहता है कि है कि ईसा प्रभु हमारे अन्तराल में प्रगट हैं। और वह सूर्य है ? इसमें क्या है ? समझ नहीं सकते हैं कि एक सहजयोगी का ऐसा क्यों होता है। यदि आपकी दृष्टि किसी ऐ से सहज े योगी पर पड़े जो स्पर्श रेखा की तरह बाहर जा ही ही तो अ्राप समझे कि आप भी ऐसा ही कर सकते हैं अर्थात् प्रापके साथ भी यही घटित हो अंत: श्राज के दिन इस सन्धि बेला में जब कि हैं हम प्रभु यह वेथलहेम भी हमारे अन्दर ही स्थित है । आप को वेथलहेम की तीरथंयात्रा करने की अावश्यकता यदि आप जानते हैं औऔर सूर्य से पूछते हैं कि नहीं है । ये हमारे ही अन्दर स्थित हैं । ये वहाँ है "क्या आप सूर्य हैं ? वह कहेगा कि हाँ-निश्चय से जहाँ हमें इनकी देखभाल करनी है यह अभी मैं है। इस सम्बन्ध में मैं क्या कर सकता हूँ । यह बाल्यावस्था में हैं। आपको इनका आदर करना है। एक साधारण-सी बात है। आप एक साध-साद इौर प्रापको इसकी देखभाल करनी है । सो प्रकाश पुरुष बन जाते हैं । बिल्कुल सरल साधारण । वास्तव में फैलता है और लोग जान जाते हैं कि छुपाव नहीं, कोई जाल नहीं, अाप इस प्रकार के है। सो यदि कोई आप से ऐसे विचित्र संवाल करता करेगा कि आप नहीं हैं । है तो प्राप उससे कहिये कि उसमें पूछने की क्या बात है ? यह सत्य है मेरा अभिप्राय है कि मैं एक सिद्ध आत्मा हैं । निस्सन्देह है । इससे क्या हुआ । कोई आप एक सिद्ध आत्मा हैं । कोई भी सन्देह नहीं भगवान आप सबका कल्याण कर ! निर्मला योग २३ सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा (२) होता है । यदि वाम विशुद्धि में बाधा है तो नाक में श्वास-प्रबरोध हो जाता है प्रर यदि दायीं विश्द्धि में बाघा है तो नाक वहती रहती है यदि नाक वह रही है तो लकड़ी के कोयले पर अजवायन जलाकर की उसके घुएँ को सूघना चाहिए। इसके अ्तिरिक्त तलसी क ओर चीनो दमा (Asthma) रोग वाम पाश्वं में दोष के कारण होता यह है। इसमें फेफडे शिथिल पड़ जाते हैं जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। विपत्ति की आशङ्का भावना अरथवा पिता के साथ बिगड़े सम्बन्ध इस के पत्त, अजवायन, अंदरक शक्कर) की चाय लेना चाहिए और विश्वाम करना चाहिए । यदि नाक अवरुद्ध है तो नाक में परिष्कृत रोग का मूल कारण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में उलसी क्रमशः मध्य हृदय अ्रथवा दायों हुदय बावाग्रस्त हैं। जाते हैं। ऐसी हालत में Red Blo0d Corpus- मक्खन डालना चाहिए । cles (लोहिताणु) की अपेक्षा White Biood Corpuscles (इवेतारणु) की संख्या अ्रधिक हो जाती है जो बायीं नाभि और स्वाधिष्ठान पर पकड़ लिये हमें स्नान के विषय में अपनी घारणायें (बाधा) के कारण होता है । फेफड़े तथा गले की व्याधियों से बचने के लिये बदलना आवश्यक है। ग्रीषम ऋतु में शौतल जुल में स्नान अ्च्छा रहता है। स्दी के मोसम में गूनगुने पानी में स्नान करना चाहिये और स्नान के बाद क्षय रोग (Tuberculosis) यह रोग भी बाम पाश्श्व में दोष के कारण दो-तीन घण्टे बाहर की ठण्ड से वचना चाहिए । होता है। यह कुपोपण (mal-nutrition), प्रोटीन की कमी और बाम पाश्व के अन्य विकारों के कारण उत्पन्न होता है। वाम नाभि, स्वाधिष्ठान और मध्य हृदय चक्र बाधा-ग्रस्त हो जाते हैं । पीलिया (Jaundice ) इस रोग में दायीं नाभि और स्वाधिष्ठान चक्र बाधा-ग्रस्त होते हैं । डाक्टरों के लिये अति दुःसाध्य | उपरोक्त बाधाओं के रोगियों को दार्याँ पार्श्व इस रोग की चिकित्सा के लिये हमारी प्रिय माता को उठाना चाहिये और देवी कृपा को बाम पाइवें जी एक अत्यन्त सरल औपधि का आदेश करती हैं। में प्रदान करना चाहिए और जल उपचार करना उसके अनुसार साधारण जल के स्थान पर ताज़ चाहिये। उत्त क्रिया में बायों हाथ फोटो की ओर मुली के पत्तों को पानी में उबाल कर और इस प्रोर दायों हाथ उठा हुआ रखना नाहिये। पोषक उबले पानी में शुकरकन्दी की शक्कर मिलाकर आहार का सेवन करना चाहिए और बाधा-प्रस्त तीन दिन प्रयोग करना चाहिए । तले पदार्थ, प्रोटीन इत्यादि का त्याग करना चाहिए । रोग तीन दिन में समाप्त हो जाता है। बायाँ हाथ पेट पर रख कर दायां हाथ श्री माता जी के फोटो की ओर फैला इस रोग में बायीं विशुद्धि अथवा दायीं विशुद्धि कर दस बार - "माँ, आप मेरी गुरु हैं" मन्त्र का चक्रों को चैतन्य-लहरें प्रदान करनी चाहिएँ । 7 (Common Cold बाधा-ग्र स्त होती हैं। हंसा चक़र भी कुप्रभावित उच्चारण करना चाहिए । निर्मला योग २४ चाहिये। निम्न मन्त्र का तीन वार उच्चारण करना चाहिये : मधुमेह (Diabetes) इस रोग में दायीं नाभि शआर स्वाधिष्ठान चक्र वाघा-ग्रस्त होते हैं। प्रति दिन १०८ बार बायां पाश्वं (इड़ा नाड़ी) को उठाना चाहिये औ्और देवी कृपा को दायें पाशर्व (पिगला नाड़ी) में प्रदान करना चाहिये । दाहिना हाथ अगन्याशय (pancreas या देवी सर्व भूतेषु स्मृति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्य नमस्तर्य नमरतस्ये नमो नमः ॥ कमर दर्द (Spondylitis) पर रखकर जल उपचार करनेा त्राहिये। इन रोगियों को प्रचुर मात्रा में चेतत्य (vibrated) लवण का सवन करना चाहिये औ्र शरी माताजीसस्थान में समस्या ( के फोटो के सामने 'माँ, मैं श्रपना स्वयं गुरु है मन्त्र दस बार उच्चारण करना चाहिये। पुर्व योजनाएं बनाते रहने को अरादत का त्याग करना करते के स्वभाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। चाहिये । यह रोग बाये अथवा दायें पाश्र्वीय नाडी बाघा) के कारण उत्पन्न हो सकता है। यह क्रमशः कुपोषर अ्रथवा ग्रति-क्रिया और प्रपने दायित्वों के विषय में प्रत्यधिक चिन्ता ै" उपचार के लिये पाश््वीय नाडी संस्थान में अ्रसन्तुलन को ठीक करना चाहिये और प्रभावित यङ्गों को चतन्य लहर (vibrations) प्रदान चरना चाहिये अ्निद्रा ( Insomnia) यह रोग दायें पाश्वं में अत्यधिक क्रिया के चंतन्य केरासन की मालिश करनी चाहिए प्रीर कारण होता है। बायें पाश्श्व को उठाना चाहिये लवण-मिश्रित गुनगुने जल में पर स्नान करना और ईश्वर कृपा को दाय पाइवं में प्रदान करना नाहिए । चाहिये। निम्न मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये: गृध सी (sciatica) या देवी सर्व भूतेवु निद्दरा रूपेण संस्थिता । यह वाम पाश्वं की समस्या होती है । इसमें बायीं नाभि और स्वाधिष्ठान वाधाग्रस्त होते हैं। बाये पाश्वीय नाडो संस्थान को ईश्वर कृपा प्रदान करके असन्तुलन को ठोक करना चाहिये, प्रभावित चक्रों को चैतन्य लहर (vibrations) प्रदान करना इसके लिये बायें पाशवं को उठाना चाहिये चाहिये, और चंतन्य-सित्त (vibrated) केरासिन नमस्तस्य नमस्तस्ये नमस्तस्य नमो नमः ।। स्मरण शक्ति का अभाव Lack of Memory) और ईश्वर कृपा को दायें पाश्वं में प्रदान करना से मालिश करनी चाहिये । With best compliments from: M/s PATNI BROS. PVT. LTD. 22/1, SNEHLATA GANJ, INDORE (M.P.) Phones: 34530 - 21714 Resi : 31221 Manufacturers of: A. C. PRESSURE PIPES WITH ACCESSORIES निर्मला योग २५ू Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 सन् १६८४ में परम पूज्य माताजो का महाराष्ट्र में कार्य- क्रम से बम्बई में कार्यक्रम १०० विदेशी सहजयोगियों के प्रथम दल का बम्बई में ग्रागमन (इसमें दिल्ली जाते वाले सम्मिलित नही होंगे) | बेतरण में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम धूले में कार्यक्रम राहूरी में कार्यक्रम अहमदनग र में कार्यक्रम तथा शोलापूर को प्रस्थान कोल्हापुर को प्रस्थान कोल्हापूर, इचलकर्णंजी, कजल, सांगली गौर सदोली में कार्यक्रम मलारपेट में कार्यक्रम - सतारा में विश्राम सतारा में कार्यक्रम १०-१-८४ १६-१-८४ १५-१-८४ से १६-१-८४ १७-१-८४ से १६ १-८४ २०-१-८४ से २१-१-८४ २२-१-८४ से २३-१-८४ २४-१-८४ से २७ १-८४ २८-१-८४ १-२-८४ २-२-८४ से ५-२-८४ ६-२-८४ ७-२-८४ पुना में कार्यक्रम पिम्परी में कार्यक्रम तथा वरम्बई को प्रस्थान १०० विदेशी सहजयोगियों के दूसरे दल का आगमन बोरडी में प्रन्तराष्ट्रीय महजयोग शिविर तथा विवाह विदेशी सहजयोगियों के प्रथम दल का स्वदेश प्रस्थान दूसरे दल का बेतरस को प्रस्थान वेतरणा में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम धूले में कार्यक्रम राहुरी में कार्यक्रम अहमदनगर में कार्यक्रम तथा शोलापूर को प्रस्थान शोलापुर तथा पण्डरपुर में कार्यक्रम शोलापूर को प्रस्थान कोल्हापुर, इचलकर्णंजी, कज़ल, सांगली तथा सदोली में कार्यक्रम मलारपेट में कार्यक्रम-सतारा में विश्ाम सतारा में कार्यक्रम -२-८४ से 8-२-८४ १০-२-८४ १०-२-८४ से ११-२-८४ १०-२-८४ से १५-२-८४ १५-२-८४ त १५-२-८४ १६-२-८४ से १८ २-८४ १६-२-८४ से २०-२ ८४ २१-२-८४ से २२-२-८४ २३-२-८४ से २६-२-८४ २७-२-८४ २८२-८४ से १-३ ८४ २-३-८४ ३-३-८४ से ६-३-८४ ७-३-८४ -३-=४ पूना में कार्यक्रम विदेशी सहजयोगियों का बम्बई से स्वदेश तथा दिल्ली प्रस्थान दिल्ली । है-३-=४ से १०-३-८४ १०-३-८४ मार्च १६८४ सूचना : जो विदेशी सहजयोगी दिल्ली जाना नाहे ये दूसरे दल में सम्मिलित हों । जय माता जी Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002, [One Issue Rs. 5.00, Annual Subscription Rs. 20:00 Foreign [ By AirmeilE 4 S B] ---------------------- 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt ॐ কর fनिर्मला योग द्विमासिक सितम्बर अरक्टूबर 1983 वर्ष २ अके ह बा पर +े के- पन ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निर्मंला देवी नमो नमः ॥ पी एी 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt परमपूज्य माताजी का पत्र ॥ श्री ॥ दि० १७-८-७८ म्प्रिय रमेश व निमा ! अत्यन्त प्यार से भेजी हुई राखियाँ मिल गयो। 'रास्खरी का मतलब है रक्षा करने वाली शक्ति भी है। क्योंकि यह बहन के फिर निमंल रक्षा का स्थान स्थापित किया। । इस शक्ति का बन्धन बहुत हो जोरदार है । [और अत्यन्त कोमल व्यार की निशानी है। जिसे एक बार राखो बाँधी वहाँ यह परम्परा है। अब मनुष्य को संवेदन क्षमता इतनी कम हो गयी है, कि राखी बाँधना यह एक यान्त्रिक क्रिया (मशीनवक) हो गयी है। जहाँ श्रद्धा की गरिमा नहीं है वह सारी सुन्दर मानवी परम्पराएँ शुक और बेजान हो जाती हैं। सहजयोगियों के बन्धन में ही हमने संसार में जन्म लिया है । और पूरे रूप से उन्हीं के बन्धन में जी रहे हैं। हम तो desireless तब अाप ही की इच्छाओरों पर हमारा सव कुछ अवलम्बिन (depend) है । रास्ी के साथ कुछ मंगना जरूरी है। वह सहज योगियों से पूछकर बताइये सभी मिलकर एक पत्र लिखकर जो मांगना है वह लिखिए। हमारी तबियत त्रिल्कुल ठोक है क्योंकि आ्प सबकी वह इच्छा है ! कान का एक छोटा- सा operation है कोई चिन्ता की बात नही है । दूसरा नहीं है । कहना यह है कि चिन्ता की कोई बात नहीं है । ये कि, विल्कुल तकलीफ़ 1. "रक्षा-बन्धन बहुत महत्त्वपूर्ण दिन है । उस दिन परिपूर्णंता की मांग करनी चाहिए । वडी- बड़ी थोजनाएँ बनानी चाहिएँ रखना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देकर सहजयोगियों को परपना लक्ष्य नष्ट नहीं करना चाहिये अभी] बहुत कुछ क रना है जिन सहजयोगियों ने प्रगति करी है। उन्हें कार्यरत होना चाहिए जनता का चित्त परमेश्वर प्राप्ति की श्ओोर अंग्रसर होना चाहिए। नये दो सेन्टर्स खोलने होंगे। लोगों की बीमारियां ठोक होनी चाहिएँ । । अपना लक्ष्य हमेशा ऊँची बातों पर यह पत्र सभी सहजयोगियों को पढ़ने दीजिये । आपको हमेशा याद करने वाली आपकी माँ निर्मला hev 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt नी शी ० ंती रभ भतनरक ० न छल लतडि सम्पादकीय न रोघयति मां योगो न सांख्यं धमं एवं च । न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो नेष्टापूर्त न दक्षिणा ॥१ ॥ व्रतानि यज्ञश्छन्दांसि तीर्थानि नियमा यमाः । यथावरून्धे सत्सङ्गः सर्वसंसङ्गापहो हि माम् ॥२॥ अनुच्छेद ७ पृष्ठ 88, उद्धवगीता भगवान श्री कृष्ण उद्घव जी को उपदेश देते समय कह रहे हैं कि योग, किसी तरह का भेदभाव, धामिकता, वेद अध्ययन, कष्ट सहना, सन्यास लेना, धार्मिक कार्य करना, सामाजिक कार्य करना, दान देना, प्रतिज्ञा करना, त्याग करना, गुप्त मन्त्रोच्चारण करना, ती्थाटन करना, हर तरह के यम और नियम मुझे बांध नहीं सकते हैं जितना कि ऐसे सन्तों का समागम जिससे निरासक्ति प्राप्त होती है। आज हम सभी परम सोभाग्यशाली हैं जब कि परमपूज्य श्री माताजी यह निरासक्ति खुलेआम लुटा रही हैं। इससे लाभान्वित होना और यह सन्देश हर कोने तक पहुँचाना ही हमारा परम करतव्य होना चाहिए । नुन निमंला योग १ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव सम्पादक मण्डल कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर . डी. कुलकरारी प्रतिनिधि कनाडा :लोरी टोडरिक ४५१८ वुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बैन्करवर, बी.सी. बी. ७ एस. २ वी १ श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नोया २२५ू, अदम्स स्ट्रीट, १/ई ब्ुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३) मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली बम्बई-४०००६२ बराउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन स्विसेज़ लि., (पश्चिमी) १६० नार्थ गावर स्ट्रीट श्री राजाराम शंकर रजवाड़े लन्दन एन.डब्लू. १२ एन.डी. ८४०, सदाशिव पेठ, पुर्णे-४११०३० इस अंक में पष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परम पूज्य माताजी का प्रवचन ४. श्री यीशु का सन्देश एवं योग में स्थायित्व के विध्न बाधाएँ ५. सहजयोग व शारीरिक चिकित्सा (२) ६. परम पूज्य माताजी का पत्र ७. सन् १६८४ मे परम पूज्य १ २ ३ ११ २४ द्वितीय कवर चतुर्थ कवर माताजी का महाराष्ट्र में कार्यक्रम निर्मला योग २ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt माताजी श्री निर्मला देवी का होली (२६-३ ८३) के पर्व पर विश्व सहज मन्दिर, नई दिल्ली में दिया गया प्रवचन होली के शुभ अवसर पर अाज दिवाली मनाई गोल (Goal) है, उससे जो ऊचा वलय है, उसको जाएगी कि होलिका को जलाया गया था यह अग्नि को और यही कृष्ण ने शिक्षा दी |। कृष्ण ने कहा कि बड़ा भारी काम है, कार्य है कोकि अग्नि देवता अगर आपको हित के लिए भूठ बोलना पड़े, तो आप ने होलिका को बरदान दिया था कि किसी भी झट बोलिए । मच बोलने की वात टीक है, लेकिन हालत में वह जल नहीं सकती। ओर साहे किसी किसी ऊची चीज के लिए नोची चीज़ को छोड़ना भी तरह से मृत्यु आ जाए पर जल नहीं सकता । और वरदान देकर के वे बहुत पछताए क्योंकि प्रह्लाद को गोदी में लेकर वह बैठ गई। अर अगनि चाहता है। एक तो उसकी अनाधिकार चेण्टा है । देवता के सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ । धम की उसने श्रप से पूछा कि महाशय यहाँ अन्दर है ? तो । होली के दिन आप जानते ही हैं करना अगर है, तो इस छोटे को छोड़ना पड़ेगा । पडेगा । जसे कि कोई आदमी अब अन्दर आ जाए, ग्रौर किसी को मारना चाहता है या कुछ करना प्रश्न था कि मैने उसे यह बचन दे दिया कि मैं उसे जलाऊँगा नहीं, और इस वचत को मैं अ्रब कसे तोड़ ? और प्रह्णाद, जो स्वयं साक्षात अथोधिता स्व कह है, जो साक्षात् ापने कहा कि हाँ हैं। मतलब सच् कहना चाहिये, दिया। तो ले किन उसकी जान बचाना, यह बहुत ऊँची चीज़ है, यह बहुत महत्वपूर्ण है, वड़ी चीज है। उस वह जाकर इसको मार डालेगा गणेश का प्रादुर्भाव हैं, और उनको किस तरह से जलाया जाए? उन्हैं तो कोई नहीं जला सकता और मेरी भी शक्ति से परे है। यह तो वड़ा बात के लिए, बड़े ध्येय के लिए या छोटी जो मेरी शक्ति से भी परे है। तो उन्होंने विचार किया । यही कृष्णा ने प्रपने कि यह अहंकार कैसा ? कि इतनी बड़ी शक्ति के जावन में अपनाया। कृष्ण के जीवन को सामने मैं अपनी शक्ति भी, कौन-सी बात है, मेरी लोग समझ पाये क्योंकि उस जमाने में घमं की यह ऐसी कोई-सी भी शक्ति नहीं है जो इनके आगे चल दशा हो गई थी कि लोग धमं को बहुत ही ज्यादा सके, ये सर्वशक्तिमान हैं इनको तो मैं जला सकता ही गम्भीरतीपूर्वक; बहुत उसको serious वनाकर नहीं चाहे कुछ भी कर लूँ । लेकिन इस वक्त दूसरा सब बुड्डाचारी थे-बर्म बहुत serious चीज़़ है, बड़ा भारी मेरे सामने प्रश्न है ? कि करतव्य श्और उसमें आदमो को जो है बहुत ही serious रहना धर्म में से किसको मानं ? तो कर्त्तव्य श्रीर चराहिए। क्योंकि कर्मकाण्ड करना है, और कमकाण्ड धर्म में जो कशमकश हुई, उस वक्त यह सोचना करने में बड़ी आफ़त रहती है, कि अगर आपने चाहिए कि धर्म कर्तव्य से ऊँचा है। धर्म, कर्त्तव्य इधर से उधर दोप जला दिया तो भगवान जी एक सर्वसाधारण वस्तु से ऊँची चीज़ है । और नाराज हो गये। इधर से उधर आपने अगर धूप- उससे भी ऊँची चीज़ है आत्मा का तत्व । यानी जो बत्तीजला दी, तो भग वानजी नाराज। अगर left छोटा, बारीकी में बॅबा हुआ सीमित, जो कुछ भी hand ( वाएँ हाथ) से अ्रापने कुछ कर दिया तो हमारा वलय है, गोल (Goal) है, उससे जो ऊँचा गया काम से । इन सब वातों की वजह से लोगों में चीज़ हैं उसको छोड़ना पड़ेगा बहुत कम 1 निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt conditioning (कट्टरता) आ गई प्रोर उस con- थे, यह ग्राप जानते हैं तो उनसे रहा नहीं गया । ditioning की द जह से लोग वहुत गम्भीरतापूर्व क उन्होंने कहा, काहे घिघियावत हो ?" मतलब, कि घर्म करने लगे। इतने गम्भोर हो गये कि उसका यह हर समप घिधियावते क्यों रहते हो ? यह आह्माद, उसका उल्लास सब खत्म हो गया। राधा जो की, जो main(मुख्य) शक्ति थी, वह थी आह्वाद कि हर समय यह रोने की क्या जरूरत है ? दायनी, सवको आह्लाद देना, यह नकी main परमात्मा के प्रेम में अरादमी शनन्दविभोर हो जाता। शक्ति थी। और फिर इसीलिए उन्होंने होनी का है। लेकिन यह अन्दर से अने वाली एक आनन्द- त्योहार मनाया । कृष्ण ने आकर के जितनी भी दायनी शक्ति है, जिससे यह होना चाहता है कि पूजाएँ थीं. सबको बन्द कर दिया। और कहा कि बहत-से लोग ढोलकी लेकर बजाते फिरते हैं, "हरे अब पूजा-वूजा मत करो तुम, और उस आत्मा की रामा, हरे कृषण ओर बढ़ो जिसे पाना है । और छोटी-छोटी चीजों उसकी copy (नक़ल ) है जो मैंने कल कहा कि में मत ो्रो। कुद्र चीजों में नहीं खोना है । लेकिन reality (अरसलियत) और concept (मान्यता ऊची ची ज की और अपनी दृष्टि लगानी है । अब में बहुत अतर है। जो ग्रसलियत है, उसमें आधमी जो आदमी कहता है, "झुठ तो मैं कभी बोलता विभोर होकर खुश होता है। उसमें कोई अइलीलता नहीं साहब", कभी-कभी ऐसा आदमी 0ver(अरति ) नहीं है, कोई गन्दगी नहीं है। उसमें कोई जानबूझ स्पष्टवक्ता भी हो जाता है और अहंकार में दूस रो करके नाटककारी नहीं है। अन्दर ही से आदमी को फैसाता भी है, या नहीं तो उसी में उसका जीवन सत्यानाश हो जाता है। सच भी वयों वोलना, घमं भी द्यों करना, कर्तव्य भी क्यों करना क्योकि नेक आधातों से विचलित नहीं होती टूटती शपको आत्मा होना है। और किसी भी चीज से आप इस तरह बन्धन में फंस जाएं और उससे आप को seriousness ्प वृढा जाय-इसको बुडाना कहते हैं उसका क्या फायदा । तो वर्म जो है वह मुसलमानों में श्रापने देखा है कि वे लोग मारते हैं आादमी को बिल्कुल, पूरी तरह से एकदम जमा देता अपने यरापको "हाय हुसैन हप न हुये है. जैसे ब्राइसक्रीम जम जाती है, ऐसे जमा देता है उसमें शक्ति का सश्ार कसे हो ? उसका आनन्द हो है तो ऐसे धर्म में जाकर क्या करना है ? वसे 'घिधियाने के लिए और कोई शब्द भी नहीं मिलेंगा। यह उस तरह की चीज नहीं। यह सहश होकर के आनन्द ग्रौर श्राह्वाद उल्लास को महसूस करता है । र वही चीज जो है, बाद में, नहीं है । सब धर्मों में इसी प्रकार हो गया है । जैसे कि "यह रोने वाला घर्म, धर्म नहीं होता । जब धम में रोना । ? तो उन्होंने रंग वर्गरह खेलना शुरू तो रोना ही होता है। तो वाला घर्म, धर्म नहीं होता वह उठाए किया। सारे संग जो हैं वे भी देवी के रंग हैं. सारे । । सातों रंगों के रंग से रंग खेला जाता है। सारे चक्र ऐसी बात आ गई हिन्दू घर्म में भी प्रा गई कि में रंग हो अपने को लो । खेलो, आ्राह्लाद से, बह आदमी, जो बिल्कुल मरगिल्ना हो, वही बड़ा उल्लास, आनन्द से । गम्भीरतापूर्वक बैंने की कौन भारी साधुसन्त माना जाता है" सी जरूरत है, अगर आप परमात्मा को पायें ? वह मरगिल्ला होना चाहिए, उसकी हालत यह वल्लभाचार्य जी के पास एक बार सुरदासजी गए। होती चाहिए कि दरिद्रता होनी चाहिए, और वह नो उनके सामने ऋपना रोगा रोने लगे-बेचारे वे ऐसी दशा में होना चाहिए कि आधा पागल आधा 'पार' नहों थे, तो रोते हो रहते थे । तो रोना शुरू अच्छा हो, कभी-कभी उटा dance (नाच) करना किया। तो वल्लभाचार्य तो साक्षात् थी कृष्ण ही शुरू कर दिया या कभी रोने को बैठ गया, दुबला- लेकिन सव घर्मों में 1 निमंला योग ४ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt पतजा, हडियाँ निकली हुई, पिचका हृआ मंह, त्वचा मराठी में गालियाँ है ही नहीं, करीवन । ये सब जो में हजारों झुरियाँ पड़ी हुई, माँखें बिल्कुल वटन गालियाँ होती हैं, गन्दी-गन्दी. तो मराठी लोग भी जैसी बाहर, निस्तेज । तन्दुरुस्ती चौपट [और हर हिन्दी की ही गालियाँ देते हैं। उनके आने पर तरह की उसमें दुर्दशा । ऐसा आदमी कभी भी उन्होंने यही import घार्मिक नहीं हो सकता । प्रसन्न चित्, शान्त, खिली अधिकतर गालियाँ हिन्दी की बोलते हैं और मराठी हुई तबियत, खुला हुआा हृदय और प्रकाश जसे की गालियां होती ही नहीं। और पारसी लोग भी . । तो होली के जैंसा त्यौहार, जै से कि बहुत गालियाँ देते हैं । और हमारे पञ्जाव की कहा कि आज से यह तथ करल कि अव गालियाँ कुछ-कूछ होती हैं। वह भी काफ़ी बम्बई (ग्रायात) किया होगा ! और कल मैंने होली जो है, यह दीपावली हो जानी चाहिए । इस में चलती है । तो यह गाली-गलौंज आदि [चीज़े जो का आनन्द जो है विभोर होता चाहिए। होली का है यह है कि अन्दर की घवराहट जो है, उसे निकाल नन्द सीमित है. जबकि हम एक ही होलिका दीजिए जलाते हैं । लेकिन फिर वह Coliective cons- ciousness (सामूहिक चेतना ) में वहता है, जैसे चीज है, यह कभी निकलती नहीं है, यह जबान पर हर प्रादमी चाहे बह गंवार हो, भङ्गी हो, घर में चढ़ जाती हैं। हमने देखा है कि हमारे ससुराल में कोई भी हो, तो जैसे हमारे खानदान में लखनऊ में, जहाँ के रहने वाले हैं, ज़मींदार लोग हैं ये लोग, (पतिदेव) को छोड़कर, वहाँ हर आदमी गाली के तो क्या मजाल कि जमादार बेचारे अन्दर भी प्रा सिवाय बात ही नहीं करता। मतलब बड़ों से भी । जाएँ, घर के अन्दर भी आ जाये दहलीज़ ले किन उनकी गाली देने में कुछ लगता नहीं, फ़ट से गाली होली के रोज चाहे फिर कोई भी हो-मालिक हो दें देंगे। एक हमारे पति ही ऐसे हैं, वाकई में चुप- चाहे नौकर हो चाहे कोई भी हो सब आपस में होली चाप । कभी भी मैंने उनके मह से गाली नहीं सनी । खेलते हैं यहाँ तक कि नौकर मालिक के कपडे भी आज तक कभी भी उस्होंने किसी को भी गाली नहीं फाडे तो कोई कुछ नहीं कहता। कहते हैं राम और दो। यह विशेष बात है । लेकिन अगर उनके घर इस तरह एक समाजवाद और एक सामाजिक में अ्रगर किसी से वात करो, एक दो अगर गाली खुशी का त्योहार अपने देश में शुरू हुआ। पर होली नहीं दी तो वे सोचते हैं कि उन्होंने प्रेम ही नहीं में भी आदमी फिर एक नीचे स्तर पर उतर जाना जताया । वहाँ तरीक़ा ही यह है कि दोस्त को भी चाहता है, अश्लीलता पर श जाता है । ऐसा हर अगर मिलेंगे तो पचास तो पहले गालियाँ देंगे, उस एक जगह होता है, हर चीज सड़ने सी लग जाती के बाद फिर गले मिलंगे यही चीज से जबान पर है । सड़न इसलिए आती है क्योंकि उसमें जीवन्तता चढ़ जाती है गाली । उसका नुवसान भी बहुत हो नहीं रहती। जिसमें जीवन्तता हो, वह चीज फिर जाता है कि जिह्वा में शक्ति नष्ट हो जाती है । सड़े नहीं। और इस तरह से जुब होने लग जाता जिह्वा का यदर नहीं होने से, आप जो बोलते हैं, है तो वही चीज बहुत ही गन्दी और बुरी महक वह भूठ होगा। जो आदमी मंह से गाली नहीं देता ने लगती है । जब होली का त्योहार महाराष्ट्र उसकी जिह्वा में शक्ति होती है । आपने बहुत बार में मनाया जाने लगा, तो बहुत-से लोगों ने देखा होगा कि भापण करते क रते ग्रगर कुछ कहनाभी इसका बहुत विरोध किया क्योंकि इसमें गाली होता है, तो मैं ठिठक जाती है कि कहीं ऐसा न हो गलौज, दंगेवाजी होती है। वहाँ भइया लोग कहते हैं। और महाराष्ट्र में के आगे मोती नहीं डालना चाहिए । लेकिन अंग्रेजी वरोरह-वर्गरह। उसको निकाल देने से अच्छा होता है। पर यह वड़ी wrong (ग्रलत ) चाहे वह जो जमींदार हैं वहाँ, सिवाये हमारे husband सी से यू. पी. के लोगों को कि, जो बारतें जैसे ईसा मसीह ने कही थी कि सूआअर निर्मला योग ५ the ho 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt ही नहीं सुना होता, उनको अच्छा ही नहीं लगता ये गाली है । और मराठी में नहीं है । तो भी थोड़ी-सी सब चीज। तो बर गए, तो हमें क्या पता था कि सब है, पर प्यादा नहीं है । पर अंग्रेजी भाषा में बोलते भंग पीये बैठे हैं। उन्होंने कहा कि खाना खाइये, वक्त मै नहीं बोलती है। हिन्दी में बोलते बक्त ठीक तो हमने कहा, चलो ठीक है। खाने बैठे, तो इतनी है, सूप्रर किसी को कह दो तो ज्यादा से ज्यादा तय बड़ी थाली में कायस्थों में जैसा तरीका होता है- वढी थाली में, बेठकर लाये । र मैं तो कितना में सूप्र' पब्द जो है एक गाली है और वहुत बुरी होगा कि वेवकफ़ है। लेकिन जिह्वा पर सूर बहुत गन्दा शब्द होता है । इस तरह से जहाँ-जहाँ जिस खाती है, आप जानते ही हैं च मो, उस दिन त्योहार तरह का व्यवहार होता है, उसकी मर्यादा रखते का दिन था तो ज्यादा खा लें । और वो खाती ही हुए आदमी को रहना चाहिए, नहीं तो जिज्ञ की चली गई खाती ही चली गई खाती ही चली गई। शक्ति, जो सरस्वती की शक्ति है, वो नष्ट हो जाती हमने कहा कि भई क्या हो गया कुछ समझ में । शऔर सब हेंसते जाएँ और वे खाती ही जायें । हमारो जेठानी जी विधवा थीं अर विधवा चीज है। हम लोग सुबोध घराने के लोग है और लोग भी भंग नहीं पीते, विधवा्ं के लिए सब मना सुबोध धराने के लोगों में एक तरह की सभ्यता, है । तो हनने कहा, "यह क्या हो गया जीजी ?" तो decency (शिष्टानार) होनी चाहिए । और उस वे सब हँसते जाएँ । वे ्त्नाती जाये, और सब हँसते सभ्यता को लेकर के हम लोगों को गाली गलौंज की जाएं । हमें कुछ समझ में नहीं आयो कि यह क्या बात नहीं करनी चाहिए । और इसलिए कहते हैं हो रहा है। बाद में हमें उन्होंने बताया कि ये सब । लोग भग पीये हुए हैं। तो मैं उठी थाली पर से, अगर नहीं दी, तो आपने होली मनाई ही नहीं । नमस्कार करके और हाथ धोया और यपनी अटेची और इस तरह से करके भङ्ग भी पीते हैं। अब उठाकर मै चली मायके। किसी के पर भी नहीं छूुए बहुतों ने कहा कि एक दिन भङ्ग पीने में क्या हज हमारे यहां पैर छूने का रिवाज है । सवने कहा कि कहाँ गई ? लखनऊ में उन्होंने खबर भेजी कि भई है लेकिन भङ्ग पीने से पागल तो नहीं हो जाता। कहाँ चली गई दुल्हन ? तो हमने कहा कि सब लोग अगर आप हमें भङ्ग पौने को कहें तो हम तो भङ्ग भग पीये हुये थे इन लोगों में क्या बात हम करते? हमने कहा कि सबको भंग ही पीने हो पीये हुए हैं, हमें कोई जरूरत नही पीने की । दो । तो बात यह है कि भंग वंग पीने की है । भाषण में भी वाचालता, जिसे वाचालता कहते नहीं आया हैं, तो वाचालता के साथ अश्लोलता तो वहुत बुरी कि होली पर कुछ न कुछ गाली देती ही चाहिए है, माँ ?' कोई हर्ज तो नहीं । ऐसा कोई हर्ज नहीं नहीं पीयेंगे । क्योंकि वजह यह है कि हम तो पहले हम चले आ्राए, सहज और लोग इसलिए पीते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि योगियों को कोई जरूरत नहीं। जब चाहे तब मन जो serious ( गम्भोर) लोग हैं वे जरा-से हल्के हो में ही भंग पी ली। भंग का जो उपयोग है, left- जाएँ, जैसे कि ego-oriented (ग्रहंकारी) लोग side (वाम पाशश्व) में जाने का वह हम लोग ऐसे हैं, वे भंग पी लें, थोड़ी-सी left-side को move- ही करते हैं । मतलब यह है कि अगर कोई आदमी ment (इडा नाड़ी की तरफ़ झुकाव ) हो जाती है, बड़ा ही ego oriented (अहङ्कारी) है, बहुत dry तो जरा-से हिल जाते हैं, भंग में बकना शुरू कर देते है, बड़ा शुष्क है, गम्भीर है, तो उसके लिए सहज- हैं। लेकिन भंग का प्रकोप ऐसा होता है कि जब योग में पूर्ण व्यवस्था है कि वह अपने आज्ञा चक्र हम ससुराल में गए, तो हमें क्या पता था कि भंँग को ठीक कर ले । आज्ञा चक्र को अगर वह किसी वंग पीते हैं । हमारे महाराष्ट्र में यह सब तरीक़ा तरह से खुलवा ले, अपने ही आज्ञा चक्र को ठीक नहीं है। महाराष्ट्र औरतों में तो वहाँ भंग का नाम करले तो वह left-side में जा सकता है । निद्रा निर्मला योग ६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt समय अगर आप आज्ञाचक्र को घुमाकर सो जाएँ कि किसको कहाँ जाकर मिलाएगा, वह ही जाने । तो अच्छी निद्रा आती है। और अगर उसको फिर लेकिन होली की जो विशेषता है, उसमें यही याद भंग की दशा से निकलना है, तो फिर आज्ञाचक् को रखना चाहिए कि दीवाली अगर इसे बनानी है, तो कस लें, ight side (दायीं स्रोर) में तो जब अपने decency (अश्लीलता) के साथ indecency ही हाथ में सारी चीज़ पड़ी हुई है, जब हमारी सारी नहीं, अश्लीलता बिल्कुल नहीं आनी चाहिए । ही शक्ति हमारे अन्दर समाई हुई है और जब इस अश्लीलता अगर ई तो बह फिर होली नहीं। श्री का पूरा ही ज्ञान हमको मालूम है कि कौनसा स्विच कृष्णा की नहीं, वह तो होलो हुई ऐसे लोगों की जो किस वक्त घुमाना है को उन बाहर की चौजों का पार' नहीं हैं। जब पार' हो जाते हैं तो होली अवलम्बन करने की जरूरत नहीं हैं। उस समय खेलते वतक्त कोई भी अ्रश्लीलता नही होनी चाहिए । भङ्ग यायद, यह चीज justified (न्यायसंगत) यानी ऐसे, जैसे सहजयोग में स्त्री पुरुष होली नहीं थी, शायद कृष्ण के जमाने में । शायद कृष्ण नहीं खेलते । पुरुष, पुरुषों के साथ और औरतें] श्औरतों के पीते थे-खाते हैं शायद-पता नहीं क्या करते हैं । तो उन्होंने नहीं किया लेकिन बाकी लोगी की जरूरत सका भी एक नियम है, आाप जानते हैं कि जो पड़ी क्योंकि जो serious (गम्भीर) लोग थे, भंग पी लें क्योंकि misidentifications(ম्रम) है सकती हैं । और अगर पूरुष बड़े हों और स्त्री छोटी साथ । सहज योग में, भाभी, देवर में हो सकती है । वे औरतें बडी हैं, वे अ्रपने से छोटों के साथ होली खेल "हम महाराजा हैं, हम महारानी है। हम घर के हो, तो किसी भी तरह का व्यवहार पर्दा होता है मालिक हैं, हम फ़ों हैं, हम करसे महत र से मिल, उससे उलट, अगर स्त्री बड़ी हो, तो उसके साथ में भई महतर तो घर में झाइ़ लगाते है । तो उसके लिए यह कि पहले तुम भग पियो जिससे मेहतर भाभो होती है। इसीलिए भाभी, देवर में होली और तुम एक हो जाओ। भूल जाओो कि तुम ब्राह्मण होती है, ले किन जेठ और दूल्हन में तहीं होती हो और वह मेहतर है। इसीलिए भग पिला देते जेठ से पद्दा होता है । और यह क्रायदा आपको ये कि तुम्हें कुछ होश ही न रहे, जो misidentifi- आाश्रय होगा कि सारे हिन्दुस्तान में है । और वह cations बने हुए हैं कि हम फ़लों हैं, हम ढिकाने अपने आप ही चलता है, हम लोगों के अन्तरहित है, हैं-भंग पीलिए, तो सब एक हो गए अब इसी अन्दर से ही हमारे संस्कारों में बैठा होता है, क्योंकि का ऊचा हिस्सा ऐसा है, जेमे क बीरदास जी ने हमारे यहाँ उल्टा का म नहीं है, अधिकतर 1 कि जसे कहा कि सुरति जब चढ़ती है, तो सब एक हो जाते इंग्लैण्ड में आप देखेंगे कि अस्सी साल की बुढ़़िया है, हैं। तो उन्होंने सोचा कि जब तम्बाकू आदमी खाता अठारह साल के लड़के से शादी करेगी। अपने यहाँ हैं, तो वह भी एक जात हो जाता है । तो तम्बाकू तो कोई सोच भी नहीं सकता ऐसा । मान, इनमें का नाम सुरति रख दिया। जब हिसाब नहीं लगा अपनी बुद्धि ही नहीं है । ये कहते हैं: कि इधर यह पाये तो सोचा कि तम्बाकू ही सुर्ति होगी । तम्बाकू तो सब चीजें होती ही हैं। हमारे संस्कारों को जब खाते हैं, तो जिसकी तम्बाकू की तलव होती है वजह से, जो हमारे अन्दर बेठे हुए हैं, उनकी वजह तो चाहे वह राजा हो, तो उस बक्त सामने [अगर से हम बचे हुए हैं। भई, अस्सी साल की कोई भी ग़रीब भी बेठा हो, तो उसके सामने '"तम्बाकू मेरे स्त्री हो, वह तो माँ हो ही गई; उसे तो माँ मानना को भी दो।" माँगने लगता तम्बाकू सुरति हो सकता है क्योंकि इसमें राजा व किसी भी बेवकफ़ के भी दिमागर में ऐसी बात नहीं रङ्ग एक हो जाते है। यह इत्सान की खासियत है आती । पुरुष का ब्यवहार खुला होता है, जैसे अपने यहाँ है तो उन्होंने कहा ही होगा। माँ क्या हुई, नानी हो गई तो यहाँ कितने भी पतित अआदमी के दिमाग् में भी निर्मला योग Ле 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt ऐसी बात नहीं आती और किसो भी बुदढ़िया औरत सीधी सरल बहुती हुई है, इन लोगों की उल्टी के भी दिमागा में कभी ऐसो बात आयेगी नहीं ? तो खोपड़ी हैं। जैसे, औरते जो हैं, वे बदन खोलकर हमारे जो संस्कार हैं, भारतीय संस्कार हैं, इन्हीं की बूमगी और मर्द अगर हो और एक आध औरत वजह से हम लोग धीरे-धीरे पूरी तरह से परिपक्वता अगर आ जाए, तो फौरन कोट के बटन लगाएगा । पा गए हैं । वे लोग परिपक्व नहीं हैं । उनकी उम्र हमने कहा, कि मर्दों को कोट के बटन की क्या हमेशा गधेपचीसी में ही गुजर जाती है, उससे जरूरत है, औरतों को ही क़ायदे से पल्ला लेना ऊपर नहीं उठ पाये । हम लोग परिपक्व हो जाते हैं, चाहिए । पर इनकी सभी संस्कृति उल्टी सुल्टी बैठी बयोंकि हमारे आ्रन्दर के संस्कार वे ऐसे हैं कि जो हुई है । और वह बैठ ही गई है । जमेगी अब धीरे- माने जाते हैं पूरी तरह से । जैसे एक पेड़ जो गगर घीरे सहजयोग में आने के बाद जम रही है। और कायदे से बढ़े, तो परिपक्व हो जायेगा और अगर अब जो प्ाप लोगों की संस्कृति है, उसको आप हवा में ही लटके, तो परिपक्व नहीं हो सकता । वे लोग कृपया न छोड़े। सहजयोग के लिए बहुत बुड्ढे भी अगर होते जाते हैं, तो भी उनमें बचकाना- महान् चीज है कि ग्राप हिन्दुस्तानी भी हैं और आप पन जाता ही नहीं । और जो हिन्दुस्तानियों का के पास संस्कृति की बड़ी भारी घरोहर है, उसको सम्बन्ध भी western(पाश्चवात्य) लोगों मे हो जाता आप रखे पकड़ कर । उसी चीज पर जमें र है, वे भी वसे ही हो जाते हैं, बुढा जाते हैं । वड़ी- उसी पर आप परिपक्वता पायें । बड़ी लड़कियाँ होंगी उनको, वे भी बड़ी बेवकफ़ी विल्कुल मतलब यह नहीं कि आप बुड्ढाचारी हो की बातें करेगी जो कि लड़कियाँ बहाँ करती हैं। जाएँ । या किसो भी तरह अापमें seriousness उनकी भी समझ में, सुभादरूझ में परिपक्वता नहीं है (गम्भीरता)पआरा जाए। प्रसन्नचित्त आपकी मां जब और इस परिपक्वता को पाने के लिए मनुष्य को हँसती है, तो आपने देखा है कि कभी-कभी तो सात चाहिए कि वे जो कारयदे-कानून बने हुए हैं उन पर मञ्जिल की हँसी आती है । सब लोग हैरान होते चलाए औौर उसमें बहुत ही आरनन्द होता है। कोई हैं कि गुरु लोग तो कभी मुस्कुराते ही नहीं और माँ गड़बड़ नहीं हो सकती कुछ दोष नहीं आ सकता । ने किन इसका तो हँसती रहती है, और उनके मंह से मुस्क राहट तो कभी जाती ही नहीं है । मैं तो एक मिनट से तो. होली का जो यह हिस्सा है, इसको सहज ज्यादा serious (गम्भोर ) कभी हो ही नहीं सकती योग में छोड़ देना पड़ेगा, अश्लीलता का । और हूं। जब Serious भी होती है तो भी नाटक ही होली का जो प्रेम का हिस्सा है, उसे प्रपनाता है । रहता है। और बहुत-से लोग इस बात को जानते वर्गैर बगैर भङ्ग पीये हुए ही हम सब एक हैं यह भावना हैं, इसलिए वे भी नहीं seriously (गम्भीरतापूर्वक) आनी चाहिए। इस बक्त विशेष रूप से गले मिलना लेते-यह गलत बातहै ! तो कृष्ण ने यह चाहा चाहिए क्योंकि कृष्ण का सारा कार्य प्रम का है । कि जो कुछ भी ग़लत- सलत हो गया हैं-रोम के प्रेम को पूरी तरह से लूटने की कोशि श करनी जीवन की बजह से । राम का जीवन बहुत प्रादश, चाहिए क्योंकि उन्होंने कहा है कि यह सब परमात्मा ऊँचा और गम्भीर ! तो उन्होंने कहा कि ये सब के प्रेम की लीला है इसमें seriousness (गम्भीरता) लोग राम बनने जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि एक नहीं है, लीला । लीलाधर जिसने लीला को धारण बात सूनी राम का काम तो राम करके चले गए, किया वह श्री कृष्णण थे और इसोलिए उन्होंने कहा अ्रब तो लीला का समय है। लीलामय बनना चाहिए कि सव चीज़ को लोलास्वरूप 'लीलाधर । और और इसीलिए उन्होंने सारे संसार को लीला का ही लीलाधर की जो लीला है, उसमें अरश्लीलता पाठ पढ़ाया । लीला का मतलब कभी भी अश्लीलता यह कहीं नहीं है । और हमारी जो संस्कृति है, या अपनी मर्यादाओं से गिरना अपनी परम्पराओं से निमंला योग is 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt उतरना या अपनी जो प्राचीन घारणायें बहुत दिवाली मना ली वह दिवालिया हो गया। नहीं तो प्रभी तक बनी हुई हैं, उनको छोड़ना, ये नहीं 'दिवालिया' शब्द केसे निकला, यह ही बताइये ? सुन्दर हैं। हां रूढ़ि ग्रादि जो गन्दी चीजें हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए। लेकिन जो पवित्रता की भावनाएं, शट्द है। दिवाली मनाई प्रापने ? अब आप प्रापस में रिश्तेदारी की हैं, उसमें पूरी तरह दिवालिया हो जाइये। तो हम लोगों को दिवालिया सहजयोग में हम लोग हैं और उसमें आगे बढ़ना नहीं होना है। कोई ऐसी चीज नहीं करनी चाहिए चाहिए । भाई-बहन के रिश्ते-प्रब कल हमार जो कि मर्यादा से बाहर हो-दिवालिया नहीं होना। भाई साहब प्राये थे, बस देखा उन्होंने कि हमारा कुछ बड़े सुन्दर शब्द हैं, उनमें एक दिवालिया से जितना अपने बृते का है उतना करिये उससे आगे परमात्मा पर छोडिये । दिवालियापन करने की बहन-उनकी आँखों से अँसू ही बहे जा रहे थे । मैं देख रही थी कि वे बार-बार आँसू पौछ रहे थे । औ्रर नहीं सोच सकते । सो यह यो कुछ जो पवित्रता जरूरत नहीं और होली में दीवानगी करने की की भावना है, प्रेम की भावना है, इसमें [आ्रदमी को जरूरत नहीं। कोई-सा भी कार्य ऐसा नहीं करना चाहिए कि सहजयोग की दष्टि से विलार करे। चाहिए जो indecent (गन्दा) हो, जिसमें सभ्यता सहजयोग की दृष्टि से जो शोभायमान है । कोई-सा में गुरूरता हो। सभ्य तरीक से काम कारना है । भी behaviour (क्यवहार) हो, जो अशोभनीय है, छोटी-छोटी चीजें आपके अन्दर आ जाती हैं। उस छोटी-छोटी बातों पर बात करना, छोटी-छोटी की मर्यादा, जैसे कल आटिस्ट लोग बजा रहें थे, बातों में उलभना, बेकार में अपस में झगड़े किसी भी चीज की मांग करते रहना, कि यह (कला) का मान करना चाहिए। आपने बहुत बार चाहिए, वह चाहिए या कोई भी इस तरह की बात देखा होगा कि जब कीई artist (कलाकार)बजाता करना, ओछापन है, ओछापन है ! और ऐसे लोग है, तो मैं खुद जमीन पर बैठती है, क्योंकि आप भी सहजयोग में नहीं जम सकते । एक बड़प्पन लेकर सीखें । मान-पान किसका करना चाहिए, यह सहज के, उदारता लेकर के अरपने को चलाना चाहिए । योगियों को बहुत आना चाहिए क्योंकि protocol सो आज की असल में जो पूजा है, व ह बस थोी- (आचार) की बात है। Artist (कलाकार) लोग सी करनी है, वाइब्रशन्स इतने है कि कोई भी, देखिये पर पर हमेशा-ये tradition(परम्परा) केरना उस वक्त किसी को उठना न हीं चाहिए, किसी art पूजा की आवश्यकता नहीं है, मन्त्र भी कहने की है-पैर पर हमेशा शाल रख करके बजाएंगे, पूजा आवश्यकता नहीं है। मन्त्र भी गाम्भीयं में डाल ग्रगर असली [आटिस्ट होंगे। क्योंकि हो सकता है देते हैं, पता नहीं क्यों। तो आ्राज प्रसन्नचित्त होकर कि श्रोताग में कोई बैठे हों देवदेवता और मेरे के, बस दो ही तीन मन्त्रों में हम आज की पूजा पैर न दिखाई दें। अपने देश की इतनी बारीक- सम्पन्न करें । लेकिन इतना में कहूंगी कि होला की वारीक चीजें हैं कि मैं प्रापको क्या बताऊ ? इतना दिवाली बनाना है और दिवाली को होली । तब [अपने देश में बना हुआ है। इतना सुन्दर सुत्दर परमात्मा का, कहना चाहिए कि अङ्गवस्त्र है, कि सहजयोग का integration (एकीकरण होगा दिवाली भी प्रसन्नचित्त होकर मनाएँ और दिवाली इतनी गहनता है उसकी बनावट मे, इतनी काव्य में भी लोग इतना रुपया खर्च करते हैं कि दिवाली मय में है सारी चीज, बहुत ही सुन्दर । काव्य मय ! के बाद दिवालिया होकर के, यानी इसी से शब्द लेकिन हम लोग उसे नहीं समझ पाते श्रर उसे दिवालिया' निकला है । यया आप यह मात सकते हैं अपने जीवन में नहीं ला पाते, तो सब से गलती हो कि दिवाली से शब्द 'दिवालिया' निकला है? जिसने जाती है। मान पान, अब कल जेठ बठे हुए थे हमारे हं निर्मला योग 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt रिश्ते के, तो आप देखिए पूरे समय, पूरे लेकचर में, पेर धो लें और कोई खास चीज़ करने की जरूरत वह एक मर्यादा बनी रही कि हमारे जेठ, बड़े भाई नहीं है । क्योंकि फिर वह seriousness आर जाती बैठे हुए हैं, उनके आगे कहाँ तक पहुँचना चाहिए । है क्योंकि कृष्ण ने सब पूजाएँ बन्द कराके सिर्फ अब] तो हम आदि शक्ति हैं, हमारे लिए कौन जेठ होली को ही कहा। छोड़ो, पूजा बन्द करो। Com- और हमारे लिए कौन बड़े भाई ? लेकिन जब इस plete (पूरी) पूजा वन्द कर दी। उसी तरह आप रिश्ते में बैठे हुए हैं, तो उसका भानपान रखना है लोगों को हर रिश्ते का मान-पान रखना है। आप कुछ भी हो बन्द कर देनी चाहिये। और सिर्फ यही करना जाओ, सहजयोगी भी हो गए, तो भी आपको मान- चाहिए कि आज उल्लास प्रर आह्वाद का दिन है, पान रखना चाहिए । यह नहीं कि आप उसको तोड़ और सब होली खेलो । क्योंकि आज होली आई ै, दें। और इस तरह से जब आप करेंगे, तो घीरे-धीरे और होली का ही आानन्द उठाना है । और इसकी आपकी समझ में आ जाएगा कि वड़ा ही आनन्द है दिवाली बनाने का मतलब है कि जो मैंने बताया इसमें और यह बहुत ही मीठी चीज है। तो आज जो सूचारू रूप से सभ्यता को लेते हुए, अत्यन्त के होली के दिन सि्फ होलिका-दहन का एक मन्त्र कल्याणपूर्ण ऐसी सुन्दर रचना नई तरह की हमको कहना है- 'होलिका मांदिनी' इस मन्त्र से ही आप करना है। इसीलिए होली को दिवाली बनाना है लोग मेरे पर धोयें । और बच्चों को गणेश की स्तुति और दिवाली को होली बनाना है आप सबको मेरा तो होनी ही चाहिए । तो गणेश की स्तुति कर के अनन्त आशीर्वाद ! बच्चे मेरे पेर धो लें और फिर तीन मन्त्रों से मेरे कृष्ण को याद करते हुए आज सब पूजायं : प्रार्थना : With best compliments from: राम की तु सीता कृष्ण की तूं राधा सब दुःख दूर करो ओ मेरी निर्मल माँ ।। REGAL छवि तेरी मनभावन गङ्गा-सी तू पावन प्यासों की सावन ASBESTOS INDUSTRIES ओ मेरी निर्मल माँ । से गहरा आकाश से ऊँचा सागर PVT. LTD. सुखमय प्यार तेरा ओ मेरी निर्मल माँ ।। ये झरने मदमाते गगन के ये तारे सब तेरे गुण गाएँ ओं मेरी निर्मल माँ । 85/2, BEHIND S. T. WORK SHOP P. O. KRISHNA NAGAR AHMEDABAD-382 346 निर्मला योग १० 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt श्री यीशु का सन्देश एवं योग में स्थायित्व के विघ्न-बाधाएं कक्सटन होल, लन्दन १० दिसम्बर १६७६ आज का शुभ दिन हमारे लिये बुरा लगता है और वे पश्चाताप करते हैं कि पभू स्मरणीय है महान् ईसामसीह ईसामसीह जो हमारी रक्षा करने हेतु अराये थे वे आज ही के दिन भौतिक शरीर ऐसी दशा में रखे गये हैं और ईश्वर ने उन्हें इससे घारण कर भूतल पर अवतरित हये श्रेष्ठतर दशाय क्यों नहीं प्रदान कीं। परन्तु ऐसे थे। उन्होंने जन्म धारण किया और लोंगों के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है कि अरप उनका कार्य मानव वेतना को सुखी घास में पड़े हैं, या अस्त बल में, अथवा राज प्रकाशमय बनाने का महान् उद्दृश्य प्रासाद में । प्रत्येक वस्तु वैसी ही है । क्योंकि यह पुर्ण था, जिससे वे मानव प्रारणी की चेतना के अन्दर उनको स्पर्श नहीं कर पाती है। वे उस प्रकार से ही वास्तवीकरण को देख पा सके कि वे भौतिक पृथक हैं। वे पूर्णतया पूर्णनिन्द में निमम्न हैं वे दरीर नहीं है परन्तु वे अ्रात्मा है। प्रभू ईसा की अपने आपके स्वामि है अन्य कोई उन पर प्रभुत्व सन्देश उनका पूनर्जीवन था अर्थातु प्राप अपती आरत्मा हैं, भौतिक शरीर नहीं औोर उन्होंने दिग्दर्शन जमा सकती । कोई सूख सुविधा उन पर हावी नहीं कराया कि उनके पूनर्जीवन से आत्मा के राज्य में हो सकती । वे अपने आप में सुख सुविधाओं के उत्थान किया जो कि वे थे, क्योंकि वे 'प्रणव थे, स्वामी हैं और अपने [आप में ही सम्पूर्ण सुख वे ब्रह्म थे, महा विष्णु थे । जैसा कि मैंने आपको सुविधाएँ उपलब्ध की हुई हैं । वे सन्तुष्ट पुरुष हैं बताया है उनके जन्म के सम्बन्ध में कि वे इस यही कारण है कि वे बादशाह हैं। वे बादशाह कहे भूतल पर मानव जीवात्मा की तरह आये। वे एक जाते हैं, ऐसे बादशाह नहीं जो भोग पदार्थों के पीछे दूसरी ही वस्तु दिखाना चाहते थे कि आत्मा का भागते हैं जो अपनी इच्छाओं के क्रीतदास हैं । मेरा घन सम्पत्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही मन्तव्य है कि यदि आप सुखी हैं तो बहत श्रेष्ठ हैं। शक्ति से भी कुछ लेना है। सर्वाधिक शक्तिशाली है यदि आपके पास नहीं है तो भी श्रेष्ठ हैं इससे कोई और सर्वध्यापी है। परन्तु वे एक घुड़साल (अस्तबल ) अन्तर नहीं पड़ता है । में पैदा हये थे, किसी राजा के यहाँ अथवा राज प्रासाद में नहीं। वे एक बढ़ई के साधारण परिवार में पंदा हये थे । यदि आप राजघराने में जन्मे होते लोगों ने मुझसे पूछा कि हमारी समझ में नहीं अता तो आप बादशाह' कहलाते और आाप से बढ़कर कि प्रभु ईसा एक निर्धन परिवार में क्यों पदा हये । कोई नहीं होता। क्या यह सही नहीं हैं ? इसका यह पुनः ईश्वर के सम्बन्ध में मानव की धारणा है अर्थ यह हुआ कि आपसे उच्चतर कोई भी तहीं आप देखते हैं, वह ईश्वर पर शासन करना चाहता कोई वस्तु उन पर प्रभुत्व नहीं नहीं जमा सकता। ले टिन अमरीका में जब मैं वहाँ गई तो बहुत-से अ्रथं और न ही कोई वस्तु आपको सुसज्जित कर सकती है, "एक बादशाह के महल में पंदा होने से': अप है। आप जो भी कुछ हैं उच्चतम श्रीष्ट हैं । समस्त उसे आज्ञा नहीं दे सकते । हमारी ईश्वर के प्रति भीतिक पदार्थ के तिनकों में रखा गया है। बहुतों को बह पुरुष हुए थे । क्यों वे असहाय हये। वे सब राजाओं अपनी धारणा अलग ही है कि वे क्यों एक निर्धन तुणवत हैं । अत: उनको सूखी धास निर्मला योग ११ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt और समस्त राजनीतिज्ञों को एक साथ मिलाने के वरन् उनके और भी कई एक आकार थे । मानव पश्चात् भी वे उन सबसे अधिक त्वरित शक्तिमान जीवधारियों ने माँग की कि उनकी रक्षा हो । बयों? थे । वे किसी से भी भय नहीं मानते थे । जो कुूछ वे सबके सब क्यों वचाये जायें ? उन्होंने ईश्वर के भी वे कहना चाहते थे वे निःसंकोच कहते थे । वे लिये क्या किया ? हम कसे ईश्वर से माँग कर शुली पर लटकाये जाने से भी भयभीत नहीं हुये, सकते हैं कि वह हमारी रक्षा करें ? क्या आप कर अन्य किसी ऐसी सजा से भी नहीं घबराये, सकते हैं ? आप इसकी मांग नहीं कर सकते हैं । विचलित नहीं हुए। यह वस्तु आप केवल मानव जीवास्माओं में ही देख पाते हैं जो ऐसे मिथ्या विचार रखते हैं जीवन के सम्बन्ध में और यही विराट् में, विशुद्धि र सहत्रार के मध्य में मार्ग कारण है कि वे इन विचारों को परमात्मा पर भी की रचना करने पधारे थे । वे वहां द्वार खोलने के लागू करना चाहते हैं अथवा उन पर भी घटित हुए। करना चाहते हैं। और वे यह भी चाहते हैं कि वे घरा पर अवतरित हुए हमारे अन्दर एक द्वार इन धारणाओं का अनुसरण करें । धारणा नहीं हैं । वह एक घारणा (concept) है ( प्रकाश) करने के लिए । अत: सिद्ध हुआा कि प्रभू ईसा ही नहीं। आप भी यही कहते हैं कि अअन्तत: धारणा यह छोटा-सा द्वार खोलने के लिये पधारे जो हमारी धारणा ही होतो है । वास्तविकता नहीं है। यह ईगो(अ्रहं) श्रर सुपर तथ्य मैंने प्रभी हाल ही में खोज निकाला है। यह डाल रही थीं। ईगो श्रौर सुपर ईगो हमारी विचार- और कल्पना है कि घारणा एकमात्र धारणा धारा के दो त्रोत हैं। एक विचार वे हैं जो भूतकाल जैसा कि आप यहाँ देखते हैं, वे सत्य सनातन लिये पैदा उत्क्ान्ति में प्रत्येक अवतार इस ईश्वर आपकी खोलने के लिये अथवा हमारी चेतना में उजियारा ईगो(प्रति अरहं ) द्वारा रुकावटें एक है। बहुत अच्छा, माताजी कहती हैं यह अच्छा है, से सम्बन्ध रखते हैं। दूसरे वे हैं जो भविष्यकाल से तब क्या ? परन्तु फिर भी यह धारणा है क्योंकि सम्बन्धित हैं । वे उस रिक्त की पूर्ति प्र्थात् खाई पाटने के लिये पधारे । और इसी प्रकार से उन्होंने अपना बलिदान किया ( शरीर का) । आपके लिये यह एक अलत्यन्त विशाल धारणा एक विचार है । प्रपना और अपने भौतिक आपको विचार के स्तर से ऊँचा उठना है और निविचार की चेतना में पहुँचना है जहां अआप विचार में नहीं हैं परन्तु अाप विचार के केन्द्र में हैं. इस आशय में कि एक विचार उभरता है प्रौर गिरता है और इन दो विचारों के मध्य में (जो यह विचार उठते और गिरते हैं) एक स्थान है । जब आप इन विचारों के केन्द्र में स्थित होति है उसे विलम्ब' के नाम से पुकारा जाता है। वह समय जब हम सोचते हैं उस दशा में आप क्राइस्ट को 4्ातीपि अ्रर विलाप का अवसर है। परन्तु ऐसे पुरुषों के लिए यह कुछ भी महत्त्व नहीं रखता है । तो एक लीला मात्र है जो उन्हें करनी पड़ती है । यही कारण मेरी समझ में नहीं आता है कि आप उनको ऐसा दुखित, अ्रभागा जीव क्यों प्रदरशित करते हैं । वे कभी भी अभागे नहीं थे । ऐसे पुरुष कभी भी दयनीय एवं निरीह नहीं हो सकते जैसे कि आप हैं। यह एक दूसरा ही रूप है कि उन्हें लम्बा, अ्रस्थि चर्मावशिष्ट, जिसकी अस्थियां वह अशिक रूप से, वास्तव में यहाँ थे हमारी एक-एक कर गिनी जा सकें. कितना भयंकर रक्षा हेतु, क्योंकि उनके अने क आकार हैं । प्रदर्शन किया जाता है । मैं आपको बताती वे अनेक रूप रूपाय हैं । हमें कहना है कि वे न हैं कि वे ऐसे नहीं थे जैसा आप उन्हें प्रदर्शित समझ सकंगे । अर्थात् केवल मानव जीवधारियों की रक्षा हेतु आये ये करते हैं । निम्मला योग १२ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt वे बाल्यावस्था से लेकर अपनी मृत्युपर्यन्त वह हमारे लिये प्रकाश लाया जिसके उजाले में हम एक विनोदी एवं आनत्दित प्रकृति के जाने वाली वस्तु को भली स्वयं आ्रानन्द थे, वे हपित थे और आपको प्रफुल्लित करने आये थे। प्रफूल्लता के उजयोरे से आपके अज्ञानता के अन्धकार को मिटाने में समर्थ हो । यह के थे । वे ईश्वर नाम से पुकारी पुरुष भाँति देख समझ पा सकें। ऐसा भी कोई है जो इस आनन्द उद्गम को प्रकाशमय करने आये थे | आपके प्रथम शुभारम्भ है। अतः हमारे लिये यह उल्लास- में स्थित आपकी आत्मा को जागृति मय आनन्द आवश्यकोय है। सहज, जिसे हम हृदय प्रदान कर प्रसन्नता से भरपूर बनाने आये थे । वे सहजता से पाते हैं । किसी को भी गम्भीरता केवल आपकी रक्षा हैतु ही इस भूतल पर प्रवतरित से नहीं लेना चाहिये जिसके हम आदी (अभ्यस्त नहीं हुये थे, वे आपको प्रफुल्लित एवं प्रसन्नचित्त हैं हम नहीं लेते हैं क्योंकि यह एक लीला मात्र है। वनाने आये थे क्योंकि मानव प्राणी अपनी अज्ञानता यह माया है । मैंने इनको समस्त त्योहारों, घा्मिक के कारण, महामूरखंता का व्यवहार कर, परस्पर उत्सवों में देखा है. कि जन समुदाय, विशिष्टतया मारपीट कर, विनाश करने में तत्पर थे । वस्तु वृति के पुरुष इसका अनुसरण करते हैं। तथाकथित धार्मिक पुरुष ही अ्रत्यधिक गम्भीर होते देखे गये हैं । किसी ने भी आपको मदिरालयों में जाने को एक धारमिक व्यक्ति हंसी के फ़व्वारे (बुलबुले) प्रेरित नहीं किया और न ही स्बामख्वाह की छोड़ता है । वह नहीं जानता कि [अपने हर्षोल्लास मुमीबत मोल लेने को कहा । किसी ने भी आपको को कैसे गृप्त रखें।वह यह भी नहीं जानता कि अपनी रेम खेलने को नहीं कहा और न दिवालिये बन जाने हँसी पर कंसे नियन्त्रण करे। जब वह किसी ऐसे कहा । किसी ने भी आपको प्रेरणा नहीं दी कि उ्यक्ति को अनावश्यक ही गम्भीर मूद्रा में देखता है। आप भयानक गुरुयों के पास जायें और अपने आ्प मेरा आशय है कोई भी व्यक्ति मरा नहीं है । जिस को विपत्तियों में फॅसायें । परन्तु आप स्वयं ही हड्ग से लोग कहते हैं कुछ-कुछ ठीक वे भी नहीं स्वेच्छा से ग्रपना विनाश करने पर तुले हैं वे आप जानते हैं कि हमें अपने अ्राप से क्या करना है। इस के पास प्रात:कालीन पूष्प की तरह आपकी प्रसन्न- समस्त विश्व में भी ऐसा नहीं है एक व्यक्ति के चित्त बनाने आये थे । प्रथम तो वे आपको प्रसन्न लिये जो क्राइस्ट के समान महसूस करे और शोकातुर करने, फिर आनन्दित करने आये थे । क्या आप हो, यदि श्राप] वास्तव में उसमें विश्वास धारण कोई ऐसा बालक देखते हैं? अन्तिम रूप से मैं तपने पको जानती है । यहाँ के अद्भुत मानव जीवों के सम्बन्ध में नहीं जानती हैं। उनको फूल भी काँटे के सदृश्य दिखाई पड़ते हैं । मेरा आशय है कि मैं कीजिये, एकान्तवासी न बनिये । नैराश्य न नहीं जानती हैं कि वे कसे प्रबन्ध क रते हैं । आप बनें। कहीं भी कोई बच्वा देखते हैं वह कितनी आल्लाद- कारी वस्तु है । कुछ करते हैं । तब सर्वप्रथम आप कृपा करके यह शोका- कुल ता और मुंह फुलाने की मूर्खता का परिस्याग कीजिये, निठल्ले शऔर चुपचाप का मौन धारण न यह क़्ाइस्ट को देखने का तरीक़ा नहीं है । देखिये वे कैसे जाते थे, और भीड़ को नियन्त्रित कर उन यह उस दिव्य का बालक है जो इस भूमि पर से बातचीत करते थे । अपने चारों ओर एकत्र हुये बालक रूप में आया था और अत्यन्त आह्लादिकारी समस्त भक्तों के सामने अपना हृदय खोल दिया था। यही कारण है कि ब्रिसमस हम सबके लिये, और उन्हें सुखी, प्रसन्न बनाने का प्रयत्न किया। समस्त विश्व के लिये आनमन्द एवं उल्लासप्रद है । उन्होंने कहा था कि आप फिर जन्म लंगे अर्थात् यह एक परम प्राह्लाददायक त्यौहार होना चाहिये। उन्हें यह काम करता था और आपको भी कभी निमंला योग १३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt इसे पांना था। उन्होंने वायदा किया था कि आप सहजयोग में वह प्ररण धूरा किया जा रहा है। अत: को वास्तव में जन्म लेना पड़ेगा। प्रभु ईसा हमारे ही आपे हर्षोल्लास मनाइये कि यहाँं ग्राज्ञा चक्र पर अन्दर उत्पन्न होंगे। मुझे इसका ज्ञान नहीं है कि आपके अन्तराल में प्रमु ईसा फिर उत्पन्न हुए हैं ईसाई मतावलम्बो इस क्थन का क्या अर्थ और वे वहाँ विराजमान हैं औऔर आप जानते हैं कि निकालेंगे ? कैसे आपका पुनर्जन्म निश्चित् है। उनसे सदैव सहायता की याचना कैसे कर सकते हैं । वप्तिस्म की विधि के माध्यम से नहीं। किसी के प्रधान बस्तु यह हैं जो भली भाँति समझ लेनी थियोलॉजिकल कॉलिज से बाहर आते ही वह आप चाहिए कि समय आ पहुँचा है आपके हित के लिये, को क्रिश्चियन नहीं बना देगा जैसा हमारे देश जो कुछ कि शाखों, भारत में होता है जहाँ वेतनभोगी ब्राहमाण नियुक्त उसको हस्तगत करने के लिये। यह बात केवल होते हैं जैसे आपके यहां भी वैतनिक हैं । सारे दिन बाइबिल में ही नहीं कही गई है वरन् संसार भर के तो वे खाने-पीने, मौज-मस्ती में वितायेंगे श्रोर सायं धर्मग्रन्थों में वरिणत है काल में कुछ देर के लिये धार्मिक कथा, बार्ता, आपको एक क्रिश्वयन, ब्राह्मण, प्रवचन आदि करने पधारंगे। अपकों ऐसा पूराष कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से बनना है। अन्य होना चाहिये जिसकी नियुक्ति ईश्वर द्वारा प्राधिकृत कोई मार्ग नहीं है । हो। जब तक कि अरप ईश्वर द्वारा प्राधिकरण प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप आनन्दोल्लास प्रदान नहीं कर सकते। यहो कारण है कि मैंने इन सब पूरुषों को देखा है। तथाकथित पण्डित निर्गाय करेगा? आप स्वयं किसी के सम्बन्ध में सोच समूदाय और पुरोहितगरण इतने गम्भीर(Serious) विचार करें भ्रर रब एक पूरुष आपके पास आता हैं क्योंकि वे ईदवर द्वारा अविकृत नहीं हैं । यहाँ धरमंग्रन्थों में प्रतिज्ञा की गई है । आज समय आा गया है कि पीर, केवल और अभी आपका अन्तिम निर्णय है, ईश्व र आपका कुण्डलिनो जागरण के माध्यम से निरणय करने जा रहा है। वह अत्य किस प्रकार से आपका है । यहां कोई आपका निर्णय करने वैठा है। कसे ? तक कि क्रिसमस दिवस के अवसर पर यदि कोई ग्रामीरण आता है तो उसे यह शबयात्रा जैसी प्रतीत समारोह के पश्चात् जब वह घर पहुँचेगा कितने केश कला विशारदों के पास प्राप जाकर केश संवार चुके हैं ? क्रिसमस के लिये कितने सुट होंगा तो बतायेगा कि आप कैसे मनाते है ? शैम्पन के आपने सिलाये हैं ? कितने अनुपम उपहार आप साथ और तत्पश्चात् शव यात्रा में भाग, ऐसे वे लाये है और कितने कार्डस आपने भेजे हैं ? और मनाते हैं। मैं नहीं जानती पर वे शैम्पैन ध्रवश्य कितने सारे आदमियों को आपने अन्य वस्तुएं जो लेते हैं । अधिक यथायोग्य उपयोगी नहीं है, प्रदान की हैं । यह कोई तरीक़ा नहीं है । अथवा [आपने इनके लिये आप लोग उसका अनादर तिरस्कार कर कसे क्या मुल्य चुकाया है। ये वस्तुय, ये तरीक़, रीति- क्रिसमस मना सकते हैं ? वे आपकी चेतना को रिवाज जिनके लिए हम विशेषतया जागरूक हैं, प्रकाशमय बनाने पधारे थे क्योंकि वे आपकी चेतना पता नहीं किस विधि से हम ईश्व र द्वारा निर्णीत का सम्मान करते थे । उस बिन्दु तक जहां तक ये किये जाने हैं। पहुँच पाई थी परन्तु प्राप हैं कि उो बुझाना चाहते हैं-पतनोन्मुख करना समझने का यही मार्ग है ? श्रर उन्होंने प्रण किया हमने क्या गहनता प्राप्त की ? हमें देखना है कि है कि वह प्रापको पुनर्जन्म (Baptised) देगा- हमारी पेंठ कितनी गहन है । अधिक से प्रधिक हम आपको पुनः जन्म धारण करना पड़ेगा और प्रव उस बिन्दु तक पहुँच पाते है जहाँ हम फिर एक जनता का कथन है कि बनावटी ूप से नहीं, चाहते हैं । क्या उसको ह निर्मला योग १४ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt जिसमें एक छोटा-सा पह्ख यह एक निर्णय है धारणा बन जाते हैं। सो जो भी कुछ गहनता हम प्राप्त करते हैं वह ज्ञान शक्ति विचार तक ही सीमित भी एक जलपोत से भी अधिक तौला जाता है, हैं- होता है यह एक भिन्त प्रकार का, एक धारण विन्दु तक उससे परे पहुँच नहीं पाते भारी फिर केसे हम निर्णात (judge) किये जा सकते हैं? व्यक्तित्व का निर्णय है। हम देख सकते हैं कि यदि आ्राप लोग डाक्टर के पास जाते हैं तो कसे मानव जीवधारियों ने करसे प्रभु ईसा को जज किया जाँचे जाते हैं। वे अपने उपकरण रखते हैं वह और ईश्वर ने कसे जज किया । वे पधारे और सुखी अपना कार्य आरम्भ करता है, प्रकाश करता है घास के तिनकों पर रहे, पह की तरह से । उनकी और स्वयं निरीक्षण कर बताता है कि यह स्थिति माताजी ने कभी बेआरामी का अनुभव नहीं किया। है । और किस प्रकार से आपकी अध्यात्मिकता को इसी प्रकार जिन्होंने अपने मृदु व्यवहार से दूसरों जाँचा जाता है? कैसे एक बीज का निर्ंय (judge) किया जाता है। इसके प्रस्फूटित होने से । जब अरप बीज को अंकुरित करते हैं और जब आप इसकी হक्ति को देखते हैं तभी आप जान सक ते हैं स्वभाव से ही प्राप्त हैं। कुण्डलिनी में भी कुछ दोष को नहीं सताया, न किसी को यातना दी उनको प्रथम कोटि के निर्णय में लिया जाना है । कुण्डलिनी जागरण में भी परम्परागत दोष अंकुरण कि वीज ठीक है अथवा नहीं। इसी भांति से आप होते हैं जो आपके पूर्व जन्मों के सच्चित कमों के भी निर्णात किये जायेंगे कि आप कितनी अंकुरण शक्ति रखते हैं । जिस तरीके से अापको सिद्धि कर्म करते रहे हैं, जिनको आपने वास्तविक मानकर (realisation) प्राप्त होती है, जिस प्रकार से अ्रप किया है, वह केवल एक घारणा मात्र है। क्योंकि इसको सम्भालते हैं अर आदर सम्माাन देते हैं। यह आपने उस वास्तव को नहीं जाना है। जो कुछ कि एक सही मार्ग है जिससे कि आप निर्णत किये अप कर रहे हैं बह अज्ञानता के वरशीभूत होगा। जायेंगे, न कि आपके वस्त्रालङ्कारों से जो आपने आपने जो कुछ भी प्रन्धकार में किया है उसमें धारण किये हुये हैं । मेचिंग (matching) के ढंग अन्धकार का कुछ न कुछ प्रश प्रवश्य वर्तमान रहेगा से, आप जो कुछ करते हैं अरथवा आपके केश कला अतः सिद्धि के बिना यदि आपने यह प्रचार किया विशारद ने आपको जैसा भी सुसज्जित किया है । कि आप साधु-सन्त महात्मा है तो श्राप को वह न ही आपके पद से भी जिस पर आप स्थित अवसर सूलभ न हो सकेगा । यदि आ्रप अपने हैं। चाहे आप कितने ही बड़े राजनीतिज्ञ अथवा सम्बन्ध में यह सोचते हैं कि आप एक दिव्य व्यक्तित्व विशिष्ट पअ्रधिकारी हो गये हैं । और न इससे कि रखते हैं और प्राप एक सिद्ध (realised) सन्त श्रापने कसे मकान अवास के लिये बनाये हैं । विस हैं, तो सम्भव नहीं। सब घर्मों के महन्त, मठावीश प्रकार के कितने नोबेल प्राइज़ आपने जीते हैं। मोर सबसे अन्त में सिद्धि पायेंगे न ही आपने कितने परोपकार के कार्य किये हैं उन से भी नहीं। आपने कितना धन घर्मार्थ दान किया, उससे भी नहीं उससे अ्राप यह सोचने लगते हैं कि का श्री रामायण में वर्णन किया है कि एक कुत्ते से आपने कितना सारा घन दान दिया है। यदि आपने पूछा गया कि अगले जन्म में आप क्या बनना चाहते बास्तव में अत्यधिक धन दान में दिया है तो आप हैं । तो उसने उत्तर दिया कि आप मूझे कूछ का अहं अत्यधिक बढ़ जायेगा और आप कहीं न बना सकते हैं परन्तु मुझे मठाघीश न बनाना अरथवा कहीं अटके रह जायेंगे और आप अपने स्त र से गिर महन्त, पुजारी आदि न बनाना । आप चाहे मुभे जायेंगे । कारण हैं। क्योंकि अराप इस जीवन में जो कुछ भी म्का महा्षि वाल्मीकि ने एक अत्यन्त रोचक कथा भी कुछ भी बनायें पर मुझे कहीं का भी पुजारी न निर्मला योग १५ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt बनायें । आप जरा कल्पना कोजिये एक कू ते में भी इन लोगों में परम्परागत कुण्डलिनी में विकृति इतना विवेक है । परत्तु मेरे कहने का अभिप्राय यह होती है जिसे हमें समझता है । विल्कुल नहीं है कि सब ही ऐसे हैं। हो सकता है कि उनमें भी सच्चे खरे व्यक्ति भी मीजूद हो । उन में से कुछ वास्तव में सिद्धपुरुष हो सकते हैं जो शरीर में रोगों की उत्पत्ति | इस देश में मुख्यतया ईशवर द्वारा प्राधिकरण प्राप्त किये हये हों। परन्तु जनता ठण्ड आदि रोगों से अधिक पीडित होती हैं मुझे विश्वास है कि वे जनता द्वारा स्वीकृत नहीं क्योंकि जल में कैलशियम की अधिकता है । इसी किये गये हैं। मुझे इस तथ्य का पूरणंतया विश्वास प्रकार अन्य देशों में स्थान विशेष के कारण से भी है । क्योंकि मैंने आपके इतिहास का निरीक्षण सभस्या उदय होती हैं । किया है रर ये सब लोग परित्यक्त हैं और अनाचार से पीड़़ित हैं । सर्वप्रथम इनमें स्वास्थ्य की खराबी होती है- जैसे कि हमारे देश में भी कुछ समस्याएं हैं जैसे कि आपके देशों में भी (समस्याएं है) । भौतिक जिसमें आपने जन्म परन्तु श्रव समय आरा गया है सही और गलत, समस्याएँ, उस देश के सत्य और असत्य का निर्णय लेने का शप अरव लिया है वतमान है । आप में से बहुतों ने एक और प्रधिक अत्याचार (crucify) नहीं कर सकते निश्चय से आप नहीं कर सकते । कुण्डलिनी जागरण द्वारा निश्चित् किया जायेगा । अनुसार विशेष देश में जन्म लेने का निर्णय लिया है । यही प्रत्येक का निर्गंय कारण है कि प्राप लोग यहाँ तक आश्वस्त हैं कि आप में कोई विकृति ही नहीं है । प्रत्येक देश की अपनी विभिन्नता है जिसे शरपको भोगना पड़ता है । परापको विदित होना चाहिये कि मान व जीवा- जिसके फलस्वरूप आपके स्वास्थ्य में कमी आ जती त्माओं की तीन श्रेरियाँ हैं । मैं नहीं जान ती किस है। जहाँ तक सहजयोगियों का प्रश्न है उन्हें जानना छोर से आरम्भ कलूँ जिससे आप शोकाकुल न हों। चाहिए कि स्वास्थ्य एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है क्यों एक श्रेरणी के तो वे पूरुष हैं जैसे कि हम और श्राप कि यह शरीर ईश्वर का मन्दिर है । और आपको हैं। वे नर योनि के व्यक्ति कहे जाति हैं । दूसरी पने स्वास्थ्य की देख भाल कर रक्षा करनी है । श्रेणी देव योनि है इनमें जन्मजात सिद्ध पुरुष प्ाप यह भी जानते हैं कि जब कुण्डलिनी का औ्र भक्तजन आते हैं । और तीसरी श्रेणी को राक्षस कहा जाता है। उत्तको गण भी कही जाता है वह है परासिम्पंथेटिक में सूधार व पूर्ति के है। परन्तु हम कह सकते हैं कि मानव कारण से आपका स्वास्थ्य सूधार होता है क्योंकि के अन्तर्गत राक्षस गरणों की जाति भी आती है जिन के कम निन्दनीय हैं और वे दुष्ट प्रकृति के हैं। अरतः सिम्पंथेटिक में प्रवाहित होता है, आपका स्वास्थ्य हमारे में दुष्टजन भी है और श्रेष्ठ पुरुष भी हैं और इन दोनों के मध्यवर्ती भी हैं। उत्थान होता है तो सर्वप्रथम जो घटना घटित होती जीवात्माओं पैरासिम्पेथेटिक आपको प्रकाश प्रदान करती है जो सुधर जाता है। आज में उस विषय पर विशदता से परपको नहीं बताऊँगी कयोंकि समयाभाव है-प्रप कोई पुस्तक पढ़िये । मैने बहुत मैंने अ्धिक नहीं लिखा ष्ठ पुरुषों की संख्या अधिक नहीं हैं। वे कम है और जन्मजात सिद्ध हैं। वे समस्याप्रधान है। परन्तु यदि आप मेरे व्याख्यान सुनते हैं और नहीं हैं मेरे लिये । परन्तु केन्द्र में स्थित पूरुषों उनमे से बहुत सारे लेखबद्ध हैं, आप उन लेखों से के साथ ग्राचार व्यवहार करना है । वे अच्छा ई की जान पायेंगे कि कैसे कुण्डलिनी बहुत से रोगों को और ही देखते हैं परन्तु उनके साथ एक ऐसी वस्तु दूर करने में सहायता देती है । सिर्फ उन रोगों को चिपक रही है जो इतनी अच्छो नहीं है । अधिकतर छोड़कर जो मानवी तस्वों द्वारा विकृत किये गये बहुत क निमंला योग १६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt गँवा बैठे । यहाँ हैं। यथा गुर्दे की तकलीफ़ । एक आदमी सहज अस्थतालों में ही अपना सब कुछ योग से ठीक किए गए हैं परन्तु दूसरा अरादमी जो तक कि वे प्रोग्रामों में भी भाग नहीं लेते थे । वे एक मशीन पर रह चुका हो उसे कोशिश करने पर मुझे देखने भी नहीं पराते थे। यह ईश्वर पथ में सब आप निरोग नहीं बना सकते । हम उसको दीर्घ से बड़ी रुकावट है, यह एक व्याधि है शारीरिक जीवन दे सकते हैं परन्तु उसको निरोग नहीं कर पीड़ा है । [और शारीरिक पीड़ाएँ भी आपको सकते । परन्तु किसी भी हालत श्रापका काम नही है । आपको यह बात भली भाँति समस्या है तो आप उसे दुष्टि में रखनी है। कोई सहजयोगी लोगों के आपकी दशा में सुधार आता जायेगा। कुछ लोगों स्वास्थ्य लाभ कराने का अ्रथात् रोग निवारण का के लिये यह काफ़ी समय सुघारने में ले जाती है । कार्य नहीं कर सकते । वे मेरा फोटोग्राफ़ प्रयोग में फिर भी मुख्य बात यह है कि अपनी आत्मा में रहें, ला सकते हैं। परन्तु आप रोग निवारण का काम सन्तुष्ट रहे। बारम्बार आग्रह न करें कि माँ हमें नहीं कर सकते क्योंकि इसका आशय यह होता है शराराग्य कर, आरोग्यता प्रदान करें । परन्तु कहता कि आ्ाप महान् उदार, हितेवी एवं परोपकारी हैं । मैंने ऐसे बहुत-से देखे हैं जो आरोग्य बनाने के रस्विये । आाप स्वतः स्वेच्छानुरूप से आरोग्य हो लिये इतने अधिक पीछे पड़ जाते हैं कि वे अपने जायगे । कुछ पुरुषों के साथ कूछ अधिक समय लग आपको देते हैं । उन्हें इतना भी ध्यान नहीं जाने की सम्भावना है । पर कोई बात नही क्योंकि में रोग दूर करना अत्यधिक वेदना नहीं देंगी। यदि आपकी कोई क्रमानुसार भूल जाइये। चाहिये कि मांँ हमें आध्यात्मिक जीवन में स्थापित पुरुष ने भुला रहता कि इस अपनी आ्ररोग्य करने की धून में स्वयं आप जीवन भर रोगी रहे हैं फिर यदि उसमें कूछ पकड़ में आकर बाधाग्रस्त हो गये हैं और वे अपने और अधिक समय लग जाता है तो परवाह न करें । आपको कभी भी आरोग्य नहीं बना पाते, और और बताये गये तरीकों का इस्तेमाल करते रहें अन्तिम रूप से मैंने पाया है कि वे सहजयोग से जो हमने विभिन्न रोगों के शमन के लिये बताये हैं; बाहर निकल जाते हैं। परन्तु फोटोग्राफ की सहायता प्रयुक्त किये हैं। विशेषतया इस देश में जिगर व्याधि से आप लोगों को आरोग्य कर सकते हैं । आ्राप यह और गठिया, वायु आदि व्याधियाँ अ्रविकतर फेली हैं न समझ कि यह आपका कर्तव्य है अ्रथवा यह कि जो लोगों को व्यग्र कर रही है। हमारे पास इन सब आप महान् भौतिक हितेषी हैं । नहीं, अरप नहीं हैं। रोगों के निवारण के उपाय हैं जिसे हमें इस शरीर श्राप एक आध्यात्मिक हितेषी हैं, परन्तु एक प्रप्रधान रूपी मन्दिर की देख भाल के लिये अपना प्रधान रचना को तरह मानव देह में सूधार आ जाता है । कर्तव्य समझकर सतत प्रयत्न करते क्योंकि यदि प्रमु ईसा को जागृत करना है, यदि करना है । पर यही आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहों ईशवर को इस शरीर में आना है तो इस शरीर को होना चाहिये । वह एक अत्यन्त लघु ग्रश स्वच्छी- भी स्वच्छ सुथरा बनाना पड़ेगा। यह कार्य करणा की है जसे कि तमाम जगह स्वच्छ कर आप कुण्डलिनी द्वारा सम्पन्न होता है। परन्तु यह बाहर श्रा जाते हैं। आप मुझसे पूछ सकते हैं कि अस्पतालों की तरह अलग होकर काम नहीं करता यह शुद्धि आप क्यों करती है ? जैसा कि हमने देखा है । कार्यात्वित हुए है बहुत-से लोगों को जब हम औक्सटेड में थे । वहाँ हमने देखा कि प्रत्येक आदमी प्रत्येक वस्तु को मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं, जो अरोग्यता पालिश कर रहा था और लॉन को भी अच्छी तरह प्रदान की शक्ति के पीछे पागल बने और नियमित से संवारा था। प्रत्येक वस्तु को उन्होंने बहुत अच्छी रूप से हस्पतालों में जाना प्रारम्भ कर दिया श्और तरह सवारो सजाया था कि उनके घर में एक चूहा निमला योग १७ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt भी नहीं घुस सकता था । महीनों तक लगातार मैंने सुस्त हैं। आरश्रयं है कि वे इस देश में प्रचुर संख्या किसी को भी अन्दर जाते अथवा बाहर आते नहीं में बर्तमान हैं । मेरा अभिप्राय है कि किस प्रकार देखा घा| वे ऐसे प्रबुद्ध पति-पत्नी ये । विशिष्ट आपके देश के लोग जमंनी में गये और वहाँ जाकर प्रकार के व्यक्ति थे । मुझे नहीं माजूम वे बयों सफ़ाई उस चालकारहित वायुयान बनाकर बेचने वाली और सुथरेपन एवं स्वच्छता के प्रति सजग थे, यहाँ फ़रेक्टरी तथा उसमें प्रयुक्त समस्त मशीनरी को तक कि प्रत्येक वस्तु के लिये पूरणं सजग थे, यहाँ तक कि वे पति पत्नी परस्पर वातालाप करते भी नहीं धवस्त कर दिया था। यह दश्य मैंने एक दिन एक पिक्चर में देखा था। और उन्होंने बहाँ की प्रत्येक देखे गये थे । मैंने उन्हें स्वयं देखा है। हमारे मकान वस्तु की विध्वन्स करर दिया था । कदाचित वे समझते हों कि हमारे बच्चे यह सब देखकर प्रसन्न होंगे सात मकान थे । वे सब के सब । के अलावा आश्र्य चकित थे कि कितने सारे पुरुष, स्त्री हमारे यहाँ आते-जाते हैं। उन्होंने उत्सुकता से पूछा कि वास्तव में जब लोग सहजयोग में प्रवेश करते हैं तो क्या आपका "मुक्त घर" है परथात् सबके ने-जाने क्या घटना घटित होती है ? वे अपना साक्षात्कार के लिये खुला है। मैंने कहा कि हाँ यह खुला घर है। वे समझ नहीं पा रहे थे कि हमारे में क्या गडबड़ी फिर खो देते हैं। इसका कारण है कि वे इस पर है । कोई भी उन पलिश की हुई वस्तुओंों को देख जमकर कार्य नहीं करते । यह एक भौर अकरमंण्यता न पा सकेगा अरथवा न कोई अत्य व स्तु को । यही कारण है कि हम इतनी पश्चात् वे पुनः एक बास्तव में सहजयोग हो जाता है श्रोर शेष जो में विश्वास नहीं क रते । परन्तु मेरे आमाशय ईश्वर के हैतु परम महत्व की वस्तु है। स्वास्थ्य ( बहुत महत्त्वपूर्ण है, पर ध्यान सदेव रात्मा पर ही केल्द्रित होना चाहिए। यह अपको आत्मा पर होना जाते हैं। फिर यहा मेरा समय नष्ट करने आ जाते चाहिए, क्योंकि यह आपका ध्यान ही है जो जहाँ- तहां चारों दिशाओं में दौड़ता रहता है और बही की सम्पक्ति है। यह शपकी आत्मा की सम्पत्ति है चिपक जाता है । आपको इसे सक्रिय होने की छूट परन्तु सहजयोग में हमें सावधान रहना है । पा जाते हैं। वे शोतल लहरी को प्राप्त करते है, और का खतरा है । जब यह खो जाती है तो एक वर्ष के आाते हैं। कहते हैं कि "माँ हम इस दूर तक नहीं जाते कि यह stomach) में पीड़ा है। क्या आप उस पीड़ा का निर्वारण करगी ? आप अपनी इतनी शक्तियों से सम्पन्न होते हुये भी आप वेकार के प्रादमी बन हैं। ये सब शक्तिपयों आपके हो अन्द र हैं । यह आप जो आन्तरिक में आरापकी देखभाल करती है । वह आपके प्रादूर्भाव के लिये बाधित है । परन्तु ऐसी रुकावटों के कारण, जो आप स्वीकारते हैं, यह नहीं हो पाता। यह अकर्मण्यता है, हम कह सकते हैं कि दे शोर यह अपना कार्य करेगा। दूसरी रुकावट जो मैं श्रनुभव करती हूँ वह है अकर्मण्यता अर्थात् वे लोग जो इसे कार्यान्वित ही जो इसे कार्यान्वित नहीं करता है। जो नहीं जानने नहीं करना चाहते । वास्तव में जो लोग वेकार के की, समझने की कोशिश करता कि सहजयोग क्या आ्ादमो हैं, जो आत्म-साक्षात्कार प्राH करना नही चाहते हैं, उनको भूला दें। उनके विषय में विचार क्या है, और यह कैसे कार्य करता है ? नहीं करना चाहिये । परन्तु साक्षात्कार पाने के पश्चात् भी लोगों के लिये यह एक समस्या बन जाती है कि वे इस पर संलग्न होकर काम नहीं करना है क्योंकि वे वास्तविकता का सामना करना नहीं चाहते । वे आलसी हैं, साधारण शब्दों में वे चाहते हैं, क्योंकि जैसे ही आपकी कुण्डलिनी ऊपर है, इसको कसे कारगर बनाना है, शीतल लहरी लोग बहुधा कहते देखे गये हैं कि यह अत्यधिक निरमला योग १८ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt आती है प्रकाश तुरन्त ही अन्दर जाता है। किस तरह से बयान करू। उबाहरणा्थ अ्रप सव अखें वन्द करने से पहले ही तत्काल आपके में से बहुत सारे जो यहाँ पर एकत्र हुये हैं, जिनका अन्तराल में प्रकाश फैल जाता है और आप ग्रपने प्रतिशत में नहीं बता पाती, दूसरे दिन आते हैं नेत्र खोलना हो नहीं चाहते हैं, वथोंकि यह अत्यधिक और एक बड़ा व्याख्यान देकर कहते हैं कि मुझे है । क्योंकि आ्रप सो रहे हैं । यदि पप किचित्मात्र अभी] भी सन्देह है, संशय है । भी अपने नेत्र खोलते हैं, हे भगवान अआप उस प्रकाश को सम्मुख सहना भी नहीं जाहते हैं। क्योंकि ग्राप उस स्थिति से एक रूप हैं और आप ग्रपने नेत्र श्रीप क्या सशय करते हैं ? आपने अब तक क्या खोलना ही नहीं चाहते हैं । निस्सन्देह कुण्डलिनी आपके नेत्रों को खोल देती है । परन्तु प्राप फिर अपने नेत्र बन्द कर लेते हैं। अत: यह आपकी स्वतन्त्रता है कि अरप अक्मण्यता का परित्याग क र द । अव यह ने शरह से इतने अधिक प्रताडित हैं- परिचायक भी सामूहिक हो सकती है । मैं इतना आपको बता सकती है कि यह एक बड़ा भारी रोग है, यह फेलता है। यथा पति-पत्नी हैं, पत्नी एक जैसी ही है इसके अ्रतिरिक्त कि पति अपनी पत्नी को ऊपर उठाये बह़ रहे हैं। अब आप संशय करना चाहते हैं। सशय उसमें अनुरक्त (आसक्त) हो जाता है विशेषतया पश्चिम में । भारत के बिल्कुल ही विपरति जहा विधाम कोजिये । यह बिल्कुल उसी तरह से हैं कि पति पस्नी पर पुर्णरूप से अपने अरधनि रखता है। से कोई किसी कॉलिज में प्रवेश पा रहा हो अथवा वह भी अपने पति के अरधीन हो अनुरक्त रहती है। यनिवर्सिटी में बंठे हों और शिक्षक पढ़ाते हो कि सो क्या होता है इन दोनों में से जिसने भी पाया उसने खो दिया है। बल्कि वे दोनों बहुत अच्छा कहते हैं कि हम संशय करते हैं । वास्तव में शिक्षक तरह से साक्षात्कार पाते हैं और बहुत अच्छी तरह से रहते। उनमें से जिसने अ्रच्छो तरह से साक्षात्कार क्या यह बुद्धिमत्ता की निशानी है ? किसको पाया है ? व्या वह आपका अह है जिस पर कि मैं ने व्याख्यान पर व्याख्यान दिया है। यही श्रीमान अह हैं जो संशय करते हैं। क्योंकि वह नहीं चाहता कि आप उस सत्य सतातन को खज पा सक। आप है कि आप उसे खोज पा नहीं सक ते दयोंकि ये श्रीमान अहं अपका जीवन भर मार्ग दर्शन करते क्या ? आपके संशय व्या हैं ? आप ठण्डी हवा का अनुभव अच्छी तरह से करते हैं। फिर बेठ जाइये। क्या कहेगा। पाया है वह अपनी शासन की इच्छा को नियन्त्रण में रखता है । वह सोचता है कि मेरे अँखे हैं देखने पर्तु वे नहीं कहेंगे क्योंकि उन्होंने शुल्क दिया है उन्होंने उसके लिये शुल्क मुगतान किया है । के लिये। मुझे देखना चाहिये। मुझे अ्रपनी आत्मा चाहे डामा कितना ही भयानक क्यों न हो फिर भी हमें उसमें से गुजरना है क्योंकि हमने शुल्क जमा करते हैं तो यह काम करती है और फिर वे किया है और अप उसमें से गुजर कर पार करते द्वितीय सोपान पर जा पहुँचते हैं । प्रत्येक वस्तु जेट हैं क्योंकि आप ने शुल्क जमा किया है । अब क्या की तरह से नहीं हो सकती कि आप यहाँ बेठे हैं करें ? परन्तु सहजयोग में आप को कुछ देना नहीं सारे महामूर्खता का ध्यवहार करने वाले देखे हैं जो बहुत-से गुरु घारण करते हैं। जसा कि कोई-कोई कहते हैं कि 'मैं अरापको उड़ना सिखाता हैं" वे इसके लिये भी तैयार हो जायेंगे। मालूम नहीं कि इस संशय के भ्रम समुदाय को वे धन देंगे और किश्त्ित्मात्र भी सन्देह नहीं करेंगे । हुआ को अवसर देना चाहिये । यदि वे उसे स्वीकार और दूसरे ही क्षण आप चाँद पर जा पहुँचते हैं पड़ता है । मैंने बहुत यदि आप चाँद पर जा भी पहुँचे, आप तीसरे खतरे अर्थात् संशय से श्रारम्भ कर सकते हैं। मूझे हूँ निर्मला योग १६ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt परन्तु क्या वह व्यक्ति जो यह सब प्रचार कर रहा एक श्रुटि है, आड़े आ जाती हैं । क्योंकि कुण्डलिनी है, क्या उसने हवा में उड़ान की है ? क्या आपने जागरण एक मुप्त का उपहार है हर एक के लिये उसे कहीं भी हवा में उड़ते हुये देखा है ? जो यहाँ पर आता है । चाहे जो भी कोई हो । कृपया उस व्यक्ति से हवा में उड़ने के लिये जहाँ कहीं भी ही नरक में अथवा स्वर्ग में अथवा कहिये । वे कुण्डलिनी का ऊपर उठना देखेंगे और अन्य किसी स्थान पर या वहुत-सी ऐसे अरकरणीय उसे स्पन्दन करती हुई भी देख पायेंगे । उसका घटना घटित कर चुका हो। परन्तु हम दोष सहज उठना और नीचे आाना भी देखकर वे संशय करेंगे। योग को दंगे । हम अपने अन्तराल में घटित स्वेच्छा अव आप कोन हैं ? आप कहाँ तक पहुँच पाये हैं? अनुरूप घटना को दोपी ठहरायगे। हम अपने आपको आप संशय क्यों करते हैं ? आप किस पर क्या दोषी नहीं ठहराय गे, कि हमें यह गलती नहीं करनी सन्देह करते हैं ? आपने अपने सम्बन्ध में क्या चाहिये थी । कोई बात नहीं यदि मैंने ग़लती की है जाना है ? तो में ही इसका मुधार करूंगा-सब कुछ ठीक हो जायेगा । आप कृपा करके इस स्थिति पर विनम्रता धारण कीजिये अपने हृदय को भी विनम्र बनाइये, कि मैंने प्रभी तक अपने को नहीं जाना है। मुझे क्षमा भी बेकार सिद्ध होती है। क्योंकि जब तक अपने आपको जानना है। मैंने अभी तक उस माँ निस्सन्देह क्षमाशील हैं, परन्तु कभी-कभी आप अपनो गलती का अभास नहीं करोगे तो जिस रालत रास्ते पर अरप पड़ गये हैं उसके ही अभ्यस्त शাश्वत को नहीं पाया है । किस उपकरण के साथ मैं संशय कर रहा है । यही सबसे बड़ी रुकावट बन जायगे । प्रतः मार्ग के नियम समझ लेने कुण्डलिनी के जागरण में है। उसके जागरण के अनिवार्य हैं। यही हमारे सामने प्रसाद के रूप में पशचात् भी संशय वना रहता है । उपस्थित होता है। तत्पश्रात् हमारे सामने एक और रम्परागत समस्या आ खड़ी होती है। इसको भ्रम नतुर्थ रुकावट को हम प्रमाद के नाम से पुकारते दर्शन कहा जाता है । अंग्रेजी में इसको हैल्यूसिनेशन है। यह वह है जिससे हम सदैव हेड़वड़ाते रहे हैं। (hallucination) कहते हैं। हम भ्रमदर्शन करना कितना मूखतापूरण प्रश्न है। मेरा आशय है कि बस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें आपको पालन कर अनुसरण एस. डी. आदि ड्रग प्रयोग करते हैं । वे मुझे नहीं करना है यदि आप सड़क पर जा रहे हैं, अरपको देख पाते । कभी-कभी वे प्रकाश की छुटा देख पाते इसकी आदत सी पड़ी हुई है नियम से की । सो आप सदैव ही गलत साइड को मोड़ लेते कालिक दश्य । वे मूझे किसी और ही रूप में हैं। परन्तु लन्दन में ग्रापको हिरासत में ले लिया द्वेखते हैं। यदि आप मुझे स्वप्न में देखे तो यह जायेगा । इसी प्रकार से आप नियमानुकूल जा रहे अच्छा है । परन्तु आप श्रर कुछ देखने लगते हैं हैं। परन्तु अब आप लन्दन में हैं। अत: रच्छा होगा जिसे भ्रमदर्शन कहते हैं। भ्रम का अर्थ (illusion) यदि आप लन्दन वालों की परिपाटी [अपनायें । अत: आप नक्शे में मार्गों का अध्ययन करें, और आव- হय कीय नियमों का पालन करे और उनके अनुसार लोग इसके विषय में असत्य बोलना आरम्भ कर चलने का प्रयत्न करें। परन्तु आप तो संशय में पड़े देते हैं। मैं हरएक के विषय में जानती है । जब हैं । यही प्रधान बात है। फिर आप इसका भ्रमदर्शन का आरम्भ होता है तो यह वाइब्रेशन्स अनुसरण करना नहीं चाहते हैं। अतः प्रमाद हो जो के लिये भी अत्यधिक खतरनाक वस्तु है । आरम्भ कर देते हैं । विशेषतया वे कुछ जो एल. पुरुष ड्राइव करने हैं अथवा भविष्य का त्रमदशन करते हैं या भूत व माया और आप भ्रम का विकास करना आरम्भ कर देते हैं । सबसे निकृष्ट पक्ष इसका यह है कि निमंला योग २० 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt कुछ पुरुष तो अ्पने विषय में पूर्णरूपेण निश्चित होते हैं, मैं बह देखती है। ओर वे समस्त संसार को जनों के लिये हितकारी नहीं है। बताते हैं। और वे हरएक पर शासन करना चाहेंगे यह कहते हुए कि अमुक की वाइब्रेशन्स सही नहीं लिये ही है। मैं इड्गित कर रही है कि अपनी हैं, उसकी वाइब्रेशन्स खराब हैं, जब कि उन पर उन को कोई दक्षता नही है अब मुझे काफी सावधान होना होता है। मैं एक शिक्षक की भांति वार्तालाप नहीं कर सकती। अतः मैं कहती हैं कि आप प्रपने को बन्धन दे और अपने हाथ मेरी प्रोर फेलाये और फिर ग्रपने प्रापको स्वयं देखिये । ् जाये तथा श्राप कहीं के भी न रहें । यह सहजयोगी आज का व्याख्यान विशेषतया सहजयोगियों के साक्षात्कार की सिद्धि को स्थायित्व प्रदान करने के मार्ग में किन निहित बाधाओं का, खतरों का सामना करना पड़ता है । यह समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अव दो और बड़े खतरे सामने खड़े दिखाई देते हैं जिनको हम इनके अतिरिक्त भोगते हैं। लोग यदि अ्रकस्मात् ही वे जान जाते हैं कि मैने जान पुकड़ में आ जाते हैं अर्थात् बाघापरस्त हो जाते हैं लिया है कि आप असत्य वोल रहे हैं, फिर व उनक र श्रपने मस्तिण्क में विचारों का अम्वार लगा रहता। मैं उनके लेते हैं । वे गीत गाना आरम्भ कर देते हैं। मुझे ऐसी अस्याभास को अपने में ही सीमित रखती हैं। हरकतों से व्याकुलता होती है। मुझे मालूम नहीं आप देखते ही हैं कि मैं कितनी सावधान रहती है कि मूझे क्या कहना चाहिए । मैं देखती हैं कि उन क्योंकि मैं जानती हैं कि वे कितनी फिसलने वाली के माध्यम से कोई राक्षस बोल रहा है। परन्तु भूमि (स्थिति) पर हैं। तब भी मैं उन्हें [अ्रधिक रूखे मेरी कठिनाई यह है कि मैं उनको कैसे अवगत पन से आक्षेप नहीं करती है। फिर भी हो जाता है । कराऊँ । यहां तक कि वे मेरी प्रशंसा करते हैं । मैं परन्तु प्रापको भली भाँति जानना चाहिये कि यह जानती हैँ कि यह क्या है । परन्तु व मेरे निकट आ हमारे हित के लिये है जिससे हम अपने सत्य पर कर निवेदन करते हैं कि माँ हम प्रापकी स्तुति में दुढ रहें । और हम अपनी ही अलग विचारवारा में गीत गाना चाहते हैं।। मैं उन्हें हाँ के अतिरिक्त और कुछ कह भी तो नहीं सकती है। क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि उन्हें यह ज्ञान कहीं से प्राप्त हुआ है फिर जो बात सामने आती है वह है विषयचित्त यह तो कोई और ही है जो यह सब कर रहा है । नष्ट होने में कोई सन्देह नहीं हैँ न बह जायें । जिसमें आपका चित्त उन वस्तुओं के द्वारा आ- इन सब समस्याओं के कारण ही [आप लोग पकड़ कपित होता है जो आपके पूर्व अ्रासक्तियों क्या है में भराकर बाधाग्रस्त हो जाते हैं । विगत दिन तथा जहाँ प्रापका ध्यान केन्द्रित रहा है। आप एक सज्जन मेरे पास आये और कहने लगे कि क्रिकेट की ओर आक्कर्षित हैं, परन्तु श्रापको यह माँ मैं अपने विषय में अ्रत्यधिक आश्वस्त है, बास्तव बीमारी भ्रपने आप नहीं लगानी चाहिये । मेरा में पूर्ण विश्वास में हैं। मैं कुछ उच्छल, हिसा- त्मक कार्य करने को बाधित है। और उसने वह जघन्य) कृत्य किया । पहले तो उसने प्रेतबाधा को अपने अन्दर आता हुआ देखा, तब यह काम किया और किया भी बुरी तरह से । मैं जानती हैं कि उस लिये भी इतनी आसक्ति (सनक, झक्गीपन) अ्रा जाये के उस काम से हर कोई नाराज था । परन्तु में नहीं कि आपका ध्यान एक ग्रलत वस्तु पर केन्द्रित हो थी, क्योंकि जो भी कुछ किया गया वह पकड़ की अ्रभिप्राय यह है आप इसमें इतने औरोत-प्रोत न हो जायें कि अप क्रिकेट का बैट ही बन जाये और ( किसी काम के भी न रहें। अन्य सब बातों के लिए आप मृतक समान हो जाते हैं । किसी बस्तु के निमंला योग २१ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt स्थिति में किया गया था। आप नहीं जानते लोग अपनाने एवं उत्सव मनाने से गलत समय पर वरत पकड़ के वशोभूत होकर क्या-क्या अनर्थ कर उपवास प्रादि करने से। व्रत उपवास की उपयोगिता डालते हैं जो पागलपन से भरे होते हैं। मेरा न समझकर गरहशा करने से, ब्रत उत्सव समारोह आशय है कि उनको तो पागलखाने में जाना चाहिये को न समझकर मनाने से, अपने चक्रों और सम्बन्ध परन्तु सहजयोगी होने के कारण वे यह सब काम अदि की स्थिति न समझने पर और सहजयोग करते हैं। परन्तु वे वहाँ नहीं हैं जहाँ उनको होना का पूर्णतयां समन्वय (synthesis) हृदयङ्गम पतन होता है । आपने देख होगा कि बहुत से जिज्ञासुयों की कुण्डलिनी उत्थान करती दो ग्रवस्थाएँ ऐसी हैं जिनमें कुण्डलिनी चढ़कर है यौर तत्काल हो नौचे गिर जाती है। यह अत्यन्त भी गिर जाती है। यह व्यक्ति में परम्परागत ही खतरनाक चीज हैं । वास्तव में यह स्थिति न करने से यह चाहिये था । खतरा रहता है। बहुत-से लोगों ने मुभसे पूछा है अत्यन्त दुखदायी है। कि क्या मां हमें साक्षात्कार प्राप्त हो जाये तो यह स्थिर रहेगा। वह वहां ठहरती है, अंश मात्र। कभी कभी एक क्षुद्र अंश के रूप में । कभी-कभी समस्त है वह है कि जब आप अपने को ही भगवान समझना वस्तु ही वापस आ जाती है। यह वापस खींच ली आरम्भ केर देते हैं अथ्वा अपने को किसी का जाती है। यदि ऐसा होता है तो आप कहते हैं, हमें अवतार की भांति मनाना आरम्भ कर देते हैं। यही संशय है अथवा हम संशय करना अरारम्भ कर देते सबसे भयङ्कुर खत रा है। फिर आप कानून अपने हैं । यह कहां लिखा है कि आपको ऊपर उठाया हैथ में लेना आर ्भ कार देते हैं। [और लोगों को जायेगा और आपको उच्च बैठा दिया जायेगा । चाहे आपकी समस्याएँ कुछ भी क्यों न हों। क्या यह कर देते हैं और अपने आपको पूर्ण सन्तुष्ट, आश्वस्त सम्भव है ? यहाँ तक कि जब मूझे भारत जाना समभाने लगते हैं। यह भी एक महान् खतरा है। होता है तो मुझे इनोक्युलेशन्स, वैक्सिने शन कराने विनम्रता ही एक ऐसा मार्ग है जिससे यह जाना पड़ते हैं। मुझे अपने पासपोर्ट के लिये साक्षात्कार जा सकता है कि आपके सामने एक महासागर देना पड़ता हैं अन्तिम खतरा, जो आपको जानना आवश्यकीय आज्ञा देते हैं और उच्छ्लता के कार्य प्रारम्भ है । अप नाव में तो सवार हो गये हैं अच्छी तरह से परन्तु अपको का फ़ी कुछ जानना शेष है । आपको काफ़ी मात्रा में समझना शेप है। श्और आपको अपने ध्यान पर स्थिर होना है, शरपने । जब आपको ईदवर के साम्राज्य में यम प्रवेश पाना है फिर आपका निर्णय किया जायेगा, आपको परीक्षा में खरा उतरना होगा, यदि आप को कृपाडु देकर यान में बैठा भी दिया जाये तो भी आपको नीचे उतारा जा सकता है। कुछ साधकों के चित में स्थिरता लानी है और उसे जागृति की साथ ऐसा होता है कि कुण्डलिनी नीचे अ्रा गिरती प्रर प्रपसर करना है। है यह अत्यन्त खतरनाक चिन्ह है। यह किसी समस्या के कारण हो जाता है यथा किसी मिथ्या है जिससे आप सम्पूरणं सहजयोगी के रूप में स्थापित के पास जाने से, रालत स्थानों पर जाने से, हो जायें जिससे सामूहिकता आपकी आत्मा का एक आपको इसको अभी इस प्रकार से हल करना गुरु प्रेतात्माओं के पास जाने से अथवा जादू टोना, तन्त्र अङ्ग बनकर रह जाये जिससे आप में लेशमात्र भी आरदि करने से, हर किसी के सामने मस्तक नवाने संशय शेष न रहे, नि्विचारकी चेतना से आप संशय- से जो अवतार नहीं हैं । मिथ्या देवी देवताओं की रहित चेतना में छलांग लगाइये। जब तक आप में आराधना करने से, पागलपन के रीतिरिवाज यह घटना घटित नहीं हो जाती - यह 'मेरा' नहीं, निरमला योग २२ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt वरन् एक स्थिति है, जिसमें जब कभी भी प्राप इस भाव से हमें सहजयोग में जाना है। मुझे यह अपना हाथ ऊपर उठायेंगे आपकी कुण्डलिनी कहना चाहिये कि मैं आश्चर्य में है कि यह ऊपर उठ जायेगी जब तक कि आप उस स्थिति चमत्कार कसे होता है और यह कार्य करता रहता की उपलब्धि नहीं कर लेते तब तक इसमें लगे है । परन्तु यह शाप हैं जो इसे अपने आप के अन्दर रहिये-उद्देश्य प्राप्ति में, इसमें आलस्य-प्रमाद न स्थापित कर सकते हैं । कीजिये । आपको अपने चारों ओोर देखना है । लोगों से मिलें, उनसे वाततालाप करें । इस विषय में जितनी अधिक वातें आरप करेंगे उतना ही प्धिक आप अग्रसर होंगे। आप इसे जितना अधिक भी दान करेंगे यह । जितना आप घर में बैठेंगे, और सच गें कि में धर में वे स्प्श रेखा के बाहर फेके जा सकते हैं-आप अव आप में से कूछ परिधि पर हैं। हम उनको परिधि पर ही रख छोड़ते हैं। इसको आप भली भाँति जानते हैं । उनमें से कुछ केन्द्र में शते हैं । और उनमें से भी बहुत कम संख्या में ऐसे हैं जो भीतरी वरग में आते हैं। सब ऐसी स्थिति में हैं जिस उतनी ही प्रधिक प्रवाहित होंगी पर ही पूजन कर रहा है, उतना ही भाप खोयगे । उसमें स्थिरता आयेगी, बहाव में रुकावट पायेगी । आपको इसे दूसरों को देना है [अरापको उसे अधिकाधिक लोगों में वितरित करना है, हजारों की संख्या में लोग इसे पाने को लालायित हैं । यही कारण है कि यह इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस विचार से कि समस्त संसार की शक्तियां ग्राप में सकता है। अतः सावधान रहो। विकसित हैं आप मदोन्मत न हो जाय । कभी नहीं। कब यह कक्तियाँ प्राप में प्रगट होती हैं आप जानते ईसा के जीवन की एक महान घटना को भी नहीं मेरा अभिप्राय है, सूर्य की कल्पना कीजिये, त्योहार के रूप में मना रहे हैं । हमें यह जानना यह कहते हुए कि मैं सूर्य हैं। क्या बह कहता है कि है कि ईसा प्रभु हमारे अन्तराल में प्रगट हैं। और वह सूर्य है ? इसमें क्या है ? समझ नहीं सकते हैं कि एक सहजयोगी का ऐसा क्यों होता है। यदि आपकी दृष्टि किसी ऐ से सहज े योगी पर पड़े जो स्पर्श रेखा की तरह बाहर जा ही ही तो अ्राप समझे कि आप भी ऐसा ही कर सकते हैं अर्थात् प्रापके साथ भी यही घटित हो अंत: श्राज के दिन इस सन्धि बेला में जब कि हैं हम प्रभु यह वेथलहेम भी हमारे अन्दर ही स्थित है । आप को वेथलहेम की तीरथंयात्रा करने की अावश्यकता यदि आप जानते हैं औऔर सूर्य से पूछते हैं कि नहीं है । ये हमारे ही अन्दर स्थित हैं । ये वहाँ है "क्या आप सूर्य हैं ? वह कहेगा कि हाँ-निश्चय से जहाँ हमें इनकी देखभाल करनी है यह अभी मैं है। इस सम्बन्ध में मैं क्या कर सकता हूँ । यह बाल्यावस्था में हैं। आपको इनका आदर करना है। एक साधारण-सी बात है। आप एक साध-साद इौर प्रापको इसकी देखभाल करनी है । सो प्रकाश पुरुष बन जाते हैं । बिल्कुल सरल साधारण । वास्तव में फैलता है और लोग जान जाते हैं कि छुपाव नहीं, कोई जाल नहीं, अाप इस प्रकार के है। सो यदि कोई आप से ऐसे विचित्र संवाल करता करेगा कि आप नहीं हैं । है तो प्राप उससे कहिये कि उसमें पूछने की क्या बात है ? यह सत्य है मेरा अभिप्राय है कि मैं एक सिद्ध आत्मा हैं । निस्सन्देह है । इससे क्या हुआ । कोई आप एक सिद्ध आत्मा हैं । कोई भी सन्देह नहीं भगवान आप सबका कल्याण कर ! निर्मला योग २३ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा (२) होता है । यदि वाम विशुद्धि में बाधा है तो नाक में श्वास-प्रबरोध हो जाता है प्रर यदि दायीं विश्द्धि में बाघा है तो नाक वहती रहती है यदि नाक वह रही है तो लकड़ी के कोयले पर अजवायन जलाकर की उसके घुएँ को सूघना चाहिए। इसके अ्तिरिक्त तलसी क ओर चीनो दमा (Asthma) रोग वाम पाश्वं में दोष के कारण होता यह है। इसमें फेफडे शिथिल पड़ जाते हैं जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। विपत्ति की आशङ्का भावना अरथवा पिता के साथ बिगड़े सम्बन्ध इस के पत्त, अजवायन, अंदरक शक्कर) की चाय लेना चाहिए और विश्वाम करना चाहिए । यदि नाक अवरुद्ध है तो नाक में परिष्कृत रोग का मूल कारण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में उलसी क्रमशः मध्य हृदय अ्रथवा दायों हुदय बावाग्रस्त हैं। जाते हैं। ऐसी हालत में Red Blo0d Corpus- मक्खन डालना चाहिए । cles (लोहिताणु) की अपेक्षा White Biood Corpuscles (इवेतारणु) की संख्या अ्रधिक हो जाती है जो बायीं नाभि और स्वाधिष्ठान पर पकड़ लिये हमें स्नान के विषय में अपनी घारणायें (बाधा) के कारण होता है । फेफड़े तथा गले की व्याधियों से बचने के लिये बदलना आवश्यक है। ग्रीषम ऋतु में शौतल जुल में स्नान अ्च्छा रहता है। स्दी के मोसम में गूनगुने पानी में स्नान करना चाहिये और स्नान के बाद क्षय रोग (Tuberculosis) यह रोग भी बाम पाश्श्व में दोष के कारण दो-तीन घण्टे बाहर की ठण्ड से वचना चाहिए । होता है। यह कुपोपण (mal-nutrition), प्रोटीन की कमी और बाम पाश्व के अन्य विकारों के कारण उत्पन्न होता है। वाम नाभि, स्वाधिष्ठान और मध्य हृदय चक्र बाधा-ग्रस्त हो जाते हैं । पीलिया (Jaundice ) इस रोग में दायीं नाभि और स्वाधिष्ठान चक्र बाधा-ग्रस्त होते हैं । डाक्टरों के लिये अति दुःसाध्य | उपरोक्त बाधाओं के रोगियों को दार्याँ पार्श्व इस रोग की चिकित्सा के लिये हमारी प्रिय माता को उठाना चाहिये और देवी कृपा को बाम पाइवें जी एक अत्यन्त सरल औपधि का आदेश करती हैं। में प्रदान करना चाहिए और जल उपचार करना उसके अनुसार साधारण जल के स्थान पर ताज़ चाहिये। उत्त क्रिया में बायों हाथ फोटो की ओर मुली के पत्तों को पानी में उबाल कर और इस प्रोर दायों हाथ उठा हुआ रखना नाहिये। पोषक उबले पानी में शुकरकन्दी की शक्कर मिलाकर आहार का सेवन करना चाहिए और बाधा-प्रस्त तीन दिन प्रयोग करना चाहिए । तले पदार्थ, प्रोटीन इत्यादि का त्याग करना चाहिए । रोग तीन दिन में समाप्त हो जाता है। बायाँ हाथ पेट पर रख कर दायां हाथ श्री माता जी के फोटो की ओर फैला इस रोग में बायीं विशुद्धि अथवा दायीं विशुद्धि कर दस बार - "माँ, आप मेरी गुरु हैं" मन्त्र का चक्रों को चैतन्य-लहरें प्रदान करनी चाहिएँ । 7 (Common Cold बाधा-ग्र स्त होती हैं। हंसा चक़र भी कुप्रभावित उच्चारण करना चाहिए । निर्मला योग २४ 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt चाहिये। निम्न मन्त्र का तीन वार उच्चारण करना चाहिये : मधुमेह (Diabetes) इस रोग में दायीं नाभि शआर स्वाधिष्ठान चक्र वाघा-ग्रस्त होते हैं। प्रति दिन १०८ बार बायां पाश्वं (इड़ा नाड़ी) को उठाना चाहिये औ्और देवी कृपा को दायें पाशर्व (पिगला नाड़ी) में प्रदान करना चाहिये । दाहिना हाथ अगन्याशय (pancreas या देवी सर्व भूतेषु स्मृति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्य नमस्तर्य नमरतस्ये नमो नमः ॥ कमर दर्द (Spondylitis) पर रखकर जल उपचार करनेा त्राहिये। इन रोगियों को प्रचुर मात्रा में चेतत्य (vibrated) लवण का सवन करना चाहिये औ्र शरी माताजीसस्थान में समस्या ( के फोटो के सामने 'माँ, मैं श्रपना स्वयं गुरु है मन्त्र दस बार उच्चारण करना चाहिये। पुर्व योजनाएं बनाते रहने को अरादत का त्याग करना करते के स्वभाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। चाहिये । यह रोग बाये अथवा दायें पाश्र्वीय नाडी बाघा) के कारण उत्पन्न हो सकता है। यह क्रमशः कुपोषर अ्रथवा ग्रति-क्रिया और प्रपने दायित्वों के विषय में प्रत्यधिक चिन्ता ै" उपचार के लिये पाश््वीय नाडी संस्थान में अ्रसन्तुलन को ठीक करना चाहिये और प्रभावित यङ्गों को चतन्य लहर (vibrations) प्रदान चरना चाहिये अ्निद्रा ( Insomnia) यह रोग दायें पाश्वं में अत्यधिक क्रिया के चंतन्य केरासन की मालिश करनी चाहिए प्रीर कारण होता है। बायें पाश्श्व को उठाना चाहिये लवण-मिश्रित गुनगुने जल में पर स्नान करना और ईश्वर कृपा को दाय पाइवं में प्रदान करना नाहिए । चाहिये। निम्न मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये: गृध सी (sciatica) या देवी सर्व भूतेवु निद्दरा रूपेण संस्थिता । यह वाम पाश्वं की समस्या होती है । इसमें बायीं नाभि और स्वाधिष्ठान वाधाग्रस्त होते हैं। बाये पाश्वीय नाडो संस्थान को ईश्वर कृपा प्रदान करके असन्तुलन को ठोक करना चाहिये, प्रभावित चक्रों को चैतन्य लहर (vibrations) प्रदान करना इसके लिये बायें पाशवं को उठाना चाहिये चाहिये, और चंतन्य-सित्त (vibrated) केरासिन नमस्तस्य नमस्तस्ये नमस्तस्य नमो नमः ।। स्मरण शक्ति का अभाव Lack of Memory) और ईश्वर कृपा को दायें पाश्वं में प्रदान करना से मालिश करनी चाहिये । With best compliments from: M/s PATNI BROS. PVT. LTD. 22/1, SNEHLATA GANJ, INDORE (M.P.) Phones: 34530 - 21714 Resi : 31221 Manufacturers of: A. C. PRESSURE PIPES WITH ACCESSORIES निर्मला योग २५ू 1983_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 सन् १६८४ में परम पूज्य माताजो का महाराष्ट्र में कार्य- क्रम से बम्बई में कार्यक्रम १०० विदेशी सहजयोगियों के प्रथम दल का बम्बई में ग्रागमन (इसमें दिल्ली जाते वाले सम्मिलित नही होंगे) | बेतरण में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम धूले में कार्यक्रम राहूरी में कार्यक्रम अहमदनग र में कार्यक्रम तथा शोलापूर को प्रस्थान कोल्हापुर को प्रस्थान कोल्हापूर, इचलकर्णंजी, कजल, सांगली गौर सदोली में कार्यक्रम मलारपेट में कार्यक्रम - सतारा में विश्राम सतारा में कार्यक्रम १०-१-८४ १६-१-८४ १५-१-८४ से १६-१-८४ १७-१-८४ से १६ १-८४ २०-१-८४ से २१-१-८४ २२-१-८४ से २३-१-८४ २४-१-८४ से २७ १-८४ २८-१-८४ १-२-८४ २-२-८४ से ५-२-८४ ६-२-८४ ७-२-८४ पुना में कार्यक्रम पिम्परी में कार्यक्रम तथा वरम्बई को प्रस्थान १०० विदेशी सहजयोगियों के दूसरे दल का आगमन बोरडी में प्रन्तराष्ट्रीय महजयोग शिविर तथा विवाह विदेशी सहजयोगियों के प्रथम दल का स्वदेश प्रस्थान दूसरे दल का बेतरस को प्रस्थान वेतरणा में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम धूले में कार्यक्रम राहुरी में कार्यक्रम अहमदनगर में कार्यक्रम तथा शोलापूर को प्रस्थान शोलापुर तथा पण्डरपुर में कार्यक्रम शोलापूर को प्रस्थान कोल्हापुर, इचलकर्णंजी, कज़ल, सांगली तथा सदोली में कार्यक्रम मलारपेट में कार्यक्रम-सतारा में विश्ाम सतारा में कार्यक्रम -२-८४ से 8-२-८४ १০-२-८४ १०-२-८४ से ११-२-८४ १०-२-८४ से १५-२-८४ १५-२-८४ त १५-२-८४ १६-२-८४ से १८ २-८४ १६-२-८४ से २०-२ ८४ २१-२-८४ से २२-२-८४ २३-२-८४ से २६-२-८४ २७-२-८४ २८२-८४ से १-३ ८४ २-३-८४ ३-३-८४ से ६-३-८४ ७-३-८४ -३-=४ पूना में कार्यक्रम विदेशी सहजयोगियों का बम्बई से स्वदेश तथा दिल्ली प्रस्थान दिल्ली । है-३-=४ से १०-३-८४ १०-३-८४ मार्च १६८४ सूचना : जो विदेशी सहजयोगी दिल्ली जाना नाहे ये दूसरे दल में सम्मिलित हों । जय माता जी Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002, [One Issue Rs. 5.00, Annual Subscription Rs. 20:00 Foreign [ By AirmeilE 4 S B]