fनिर्मला योग जनवरी-फरकरी 1984 वर्ष २ अक ११ द्ध मा सिक ० भ क भ ॐ तवमेव साक्षात् ्री कृलकी साक्षात्, श्री महत्रार स्वामिनी. मोक्ष प्रदापिनी माता जी. श्री नि मेला देवी नमो नमः ॥ न. ्ी की प रव ा ी सम्पादकीय कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख हाथों में अक्षमाला, फरसा, गर्दा, बाण, बेज्र, पद्म, घनुष, कृण्डिका, दण्ड़, शक्ति, खड्ग, ढाल, शह्ख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करने वाली देवी आज हमारे मध्य पुनः साक्षात् निर्मल स्वरूप उपस्थित हैं, और वही कार्य कर रही हैं जो गतकाल में देवी ने सम्पत्न किया था । वाली महिषासुरमदिनी भगवती महालक्ष्मी, अपने हम सभी सहजयोगी धन्य हैं जो इस पुनीत कार्य अर्थात् परमपूज्य श्री माता जी के लक्ष्य में लेशमात्र भी सहायक हो सक । हमारा एकमात्र ध्येय और धारणा परमात्मा के इस पूनीत कार्य को पूर्ण करने की ही होनी चाहिए । श्री महिषासुरमदिनी श्री आदिशक्ति श्री माता जी श्री निमला देवी ॐ त्वमेव साक्षात् नमो नमः । साक्षात् निमला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जो श्री निर्मला देवी डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : लोरी टोडरिक श्रीमती क्रिस्टाइन पैट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. ४५४८ बुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बेन्करवर, बी.सी. बी. ७ एस. २ वी १ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मॅशन सर्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पी. एच. श्री राजाराम शंकर रजवाड़े ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकोय २. प्रतिनिधि ३. घ्यान क्यों करना चाहिए ४. जय माताजी (मराठी में प्रार्थना) ५. आज्ञा (परमपूज्य माताजी द्वारा लन्दन मेंदिए गये भाषण का हिन्दी रूपान्तर) ६. सहज दोहे ७. शारीरिक चिकित्सा एवं सहजयोग- (३) 8. जय श्री माताजी (जय गीत) १ ३ १२ १३ २० २२ २४ निर्मला योग २ श्री माता जी नमो नमः -प्रभादेवी वस्बई 1 फरवरी, 1975 धयान क्यों करना चाहिये सहजयोग में सबसे आवश्यक Air:India वालों से कह दीजिये और कुछ कर बात ये है, कि इसमें अग्रसर हेते के दीजिये".. । मैंने कहा ऐसी कौन-सी आफत है ? आ्रप लंदन क्यो जाना चाहते हैं ? ऐो सी कौन सी आफत है ? क्या विशेष कार्य आप वहां करने । आप र चाहे कुछ भी न बाले हैं ? कौन सी चीज है? कहने लगे 'I must करे लेकिन अगर आप घ्यान में go there, I have to save time" (मुझे स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति जरूरी जाना है मूझे समय बचाना है) "time is very important" ( समय बहुत मूल्यवान है) मैंने कहा आखिर बात क्या है ? ये time बचा कर जैसे कि मैंने आपने कहा था कि एक ये नया भागे भागे आप वहा क्यों जा रहे हैं ? तो कहने रास्ता है। नया बायाम है। dimension है। नेई लगे "वहां एक special dinner है (विशेष ची ज है जिसमें आप कूद पड़े हैं। आपके अचेतन भोज) वो मूझे attend करना है, श्रीर उसके बाद मन में, उस महान सागर में आप उतर गए हैं, वहाँ पर ball है।" time ग्राप बना किसलिये | लिये, बढ़ने के लिये आपको ध्यान रना पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी हो सकती है । यात तो सही है । ले किन इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़गा। रहे हैं ? हर समय, अाप ये सोच लीजिये क जो हाथ में घड़ी बंधी है, ये सहजयोग के लिये ीर 'ध्यान के लिये है । और सहजयोग के ही कार्य के लिये मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हैं कि माता जी, ध्यान के लिये हमको time (समय नहीं मिलता है।" आज का जो अधुनिक मानव है, बांधी हुई है, मैंने उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं modern man है. उसके पास घड़ी रहती है हर समय time बचाने के लिये लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस चीज के लिए वबा रहा है ? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिये बनाई है ये वो जानता नहीं है। कभी भी नहीं बांधती । जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में वीतता है, उसको जखूरी नहीं कि आप घर का काम न कर । ये जरूरी नहीं कि आप दफ्तर का एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे काम न कर, सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में लंदन जाना बहुत जरूरी है। Plane (हवाई जहाज) से जाना ही है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया है। हरेक श्रीर क्रिसी ही चाहिये और कुछ कर दीजिये आप अ्रोर निर्विवार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसकी और इसी करें । ध्यानावस्थित होकर के कार्य हो सकता है होना काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं । और तरह मेरा टिकट बूक निमंला योग পc संपूर ज्ञान परौर उसका सारा आनन्द आप को सभी लोग उतनी दशा में पहुँच सकते हैं या नहीं । ले किन जो कुछ भी बन पड़े बो इस जीवन में करना ही चाहिये। उपाजन का जितना भी समय समझने की बात है, ये लोग समझते नहीं हैं । है, वो इसी में विताना चाहिये । और जो कुछ भी इसलिये ध्यान के लिये अलग से time नहीं मिलता मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिये वाकी कुछ मिलने लग जाता है । है, झगड़ा शुरू हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती है और ग्राप घ्यान में चले हो या नहीं। अधिकतर लोगों को मैं ये देखती है इधर-उधर जाते हैं। निद्रा में भी अप सोचगे कि आप ध्यान की पवासों बातें करंगे, लेकिन ध्यान की बात, में जा रहे हैं। कोई भी चीज छोड़ने की या अपने मनशुद्धि की बात, अपने अन्दर के आनन्द कम करने की नहीं । लेकिन हमारी जो महस्वपूर्ण को उभारने की बात कितने लोग आप लोगों में से चीजें हैं-जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, बो करते हैं ? इसने ये कहा, उसने वो कहा, ऐसा हो बिलकुल ही महत्वपूर्णं नहीं रह जाती। और गया, ऐसा नहीं करना चाहिये था, बैसा नहीं जिसको हम विल्कुल ही विशेष समझते नहीं हैं, करना चाहिये था"-ये क्या सहजयोगी को शोभ- नोय होंगा ? जब प्रापके पास निर्विचार की इतनी बडो सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उधाड़ । ये तो आप जानते हैं कि क्षण-क्षण आप उसे पा रहे हैं; और हर क्षण उसे वो हमारे लिये 'बहुत कुछ हो जाता है । ध्यान करते के लिये एक छोटो सी चीज आपको देना चाहिये या नहीं याद रखनी चाहिये, कि जिस चोज पर ध्यान का आलाप छेड़ा जाएगा, जिस बीणा पर ये आप खो भी रहे हैं। ये हरेक क्षण कितना महत्त्व- गीत बजने वाला है, वो साफ होनी चाहिये । आप] पूर्ण है, इसे आप देखिये । कौन-सो छोड़ने की बात, वो बोणा नहीं हैं, अप वो आलाप भी नहीं हैं, कौन-सी पकड़ने की बात कोई भी ऐसी बात मैंने लेकिन आप उसको सुनने वाले हैं और उसको आप से आज तक तो की नहीं होगी। लेकिन ये बजाने वाले हैं। आप उसके मालिक हैं । इस लिये आपका भ्रम है । आपका मन प्रापको भ्रम में डाले अगर वो बीणा कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार दे रहा है। तो तुम क्या चर-गृहस्थी छोड़ दोगी ? जंग खा जाए, या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो मैंने आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिये। अगर वो ठीक नहीं हैं, तो अ्ापके जीवन में माधूयं कहीं प्रधिक मैं मेहनत करती हैं । लेकिन मैं धकती नहीं है। आप में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, झप तही है क्योकि मेरे अ्रानन्द का स्त्रोत प्राप लोग हैं । में एक अजीब तरह का चिड़चिड़ापन, अजीब तरह की रूक्षता (dryness) और विचलितता दृष्टिगत होगी । मुन्दर वर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती है ? आप जानते हैं कि आपसे जब आपको देख लेतो हूँ, बस खुश हो जाती हैं । तबीयत सारी बाग-बाग हो जाती है। जिस चीज का महत्व है, उधर दृष्टि रखिये । आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आ्रप यहीं बैठे रहिये ! जहां भी बैठे हैं, वहां बैठे रहिये- ये मतलब है मेरा । जहां भी जमे हैं वहाँ जमे रहिये प्रपने स्थान पर, अपने सिंहासन पर । एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैंठना देखना बहुत बड़ी चीज हो जाती है मेरे लिये । और वही मैं देखती है कि कुछ सहजयोगी गहराई से अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहज- योगी बहुत विवलित हैं । ये नहीं मैं कहती कि निमंला योग thc लोग इसीलिये प्रगति करते हैं और कुछ करता है, आप खुद ही समझ लगे कि इस आदमी कुछ लोग नहीं करते । शारीरिक बोमारियां आप लोगों में कोई न कोई दूष्टता अ्रा गई है, तभी वो रोसी की, बहुतों की ठीक हो गई हैं । वहुतों के पास बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात हो न करता बीमारियां नहीं हैं। लेकिन अभी भी मानसिक वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, ईसमें कोई न कोई खराबी है । उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे प्रश्न हैं। सब बात । उससे लड़ाई-झगड़ा करने का अविकारी है। आपका जन्मसिद्ध हुक है, क्योकि की, उलभने की 'कोई जरूरत नहीं । वो अपने ये 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान करना ही होगा और वो भी सम्टि में लेकिन उसको organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें । उसकी व्यवस्था करने की कोई खराबो ्रा जाए तो आप किस तरह से उसे आप इतनी चिन्ता नहीं वो हो भी जाएगा। क्या हजे है अगर दस अदिमा आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही है । ज्यादा आए चाहे दस आदमी कम । हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कार्यदे के आदमी हों सो ही सहजयोग के लिये 'विशेष चीज' है । भूल जाइए। हर इन्सान इसका पाते आपकी वो पत्नी हो आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं अप ये भी जानते हैं कि श्रापमें कर । वो कीर्य हो रहा है, हाथ चला कर भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि असल में आपकी उंगलयों में ही ये सब जो भी देवता मैने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उंगलियों में श्रीर इस हथेली में, सारे देवता यहां आप उनमें से बनिये जो दस 'च्छे प्रादमी जागृत है। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत हैं। जो ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें ही संभाल के और जतन से रखना चाहिये । इनकी वह रहे हैं, उसमें श्रग्रस र हैं, और एक अग्रिम श्रेणी पूजा होनी चाहिये। अपने हाथ ऐसे होने चाहिये में जाकर के खड़े हो जाते हैं। जैसे कि हिमालय संसार कि पूजनीय हों। लोग ये सोचे कि ये हाथ हैं या में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दष्टि रहती गंगा की धारा ! गंगा ही की धारा बहें । जिस है। ऐसे ही आप बने । आप ही में आप] हिमालय वजह से गंगा पाबन हुई वही वाइब्रशन (चंतन्य बन सकते हैं और आप देख सकते हैं कि दूनिया आपके अन्दर से बह रहे हैं। जिस चेतन्य शक्ति से आप की ओर आख उठा कर कहे कि बन तो मैं सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह इस आदमी जेसा बन जो सहजयोग में इतना ऊंवा रही है, ये आप जानते हैं । उठ गया। ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हूं कीन कहां तक पहुँच रहा है। देवताओों का कहीं भी अपमान न हो। इन को बहुत फिर जिन हाथों से, जिन पाँव से ये बीज बह रही है, उसको 'अरत्यन्त पवित्र' रखना चाहिये। मे रा मतलब धोने-धवाने से नहीं है। इससे जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और प्रेम' से होना चाहिये। 'सबसे बड़ी' चीज 'प्रेम' है । आप ही अपनी रुक्रावट हैं। और कोई आप की रुकावट नहीं कर सकता । कोई भी दूनिया का आदमी आप पर मंत्र-तंत्र आ्रदि 'कोई' डाल सकता। आप ही अ्पने साथ प्रगर खराबो न करें और पहचाने रहें कि कौन आदमी केसी बातें और कुछ भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब चीज़ नहीं ध्यान में गति करना, यही श्रपका कार्य है, निरमुला योग ५ू हो रहा है। और आप में से अगर कोई गए।" ग्रापके अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। भी जब ये सोचने लगेगा कि मैं ये कार्य करता प्रेम का पल्ला पकडा रहे, सिर्फ प्रम का-वाइब्रेशन और वो कार्य करता है, तब आप जानते बहुते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रम परमात्मा का जो कि मैं अपनी माया छोडती है और बहुतो ने उस है, वही बहे जा रहा है । और वही बह रहा है। पर काफी चीट खाई है । वो मैं करूगों। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि मैं ये काम करता हूँ या बो काम करता हूँ । "हो रहा है।" जेसे 'ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में- जैसे कि इतनी अद्भुत अनुभूति हैं, इतना अद्भुत समां आया हुआ है । क्या ये संब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आप ने इसमें पूरी लगन से मेंरा साथ नहीं दिया ? ये नहीं कहता कि मैं अपको प्रकाश सूर्य देता है। वो दे रहा है। क्योंकि वो एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने अन्दर से 'प्रति' सूक्ष्म शक्तियां बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आरप सूर्य हैं, आप एक "विशेष" मशीन हैं, जो बहुत हो सूक्म है, जिसके अन्दर से बहुने वाली ये सुल्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी ही, लेकिन अधिकारी 'नहीं होते । आप अधिकारी इसलिये दूसरों के भी अन्दर । उत्तके छोटे-छोटे, सूक्ष्म-सूक्ष्म जो हरेक बात आप स्तुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात वताने के लिये हमेशा तंयार रहती है । लेकिन थोड़ा-सा इसमें एक अप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे सोत लोजिये । क्योंकि आ्रप मेरे ध्यान में अआते हैं-जैसे मराठी में वहुत से लोग कहते हैं,-"जमून आले" इससे आप बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से जैसी मशीन नहीं होते हैं, कि अरपके अन्दर वो गहराई आ गई। बहुल पहलू हैं, जो छोटे-छोटे यंत्र हैं, मशीने हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे । जैसे एक घाषर है। जितनी गहरी होगी, उतना पानी उसमें समा जाएगा। अब अगर वो ये जो शक्ति है, ये प्रेम की शक्ति है। इस चीज नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वों का वर्णन केसे करू में अरप से ? इस मशीन को तो सब पानी निकल ही जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित होइये। ध्यान में जाइये । ध्यान में जो उनकी ोर देखते ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड- मगड कर के ठो क कर दें, कोई अাप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा लेकिन की रहे हैं। विचार आ मनुष्य मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है उसको बहुत ज़खमी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में । ही आप निर्विचार हो जाएंगे। नि्विचार होते हो उस अचेतन मन में- अचेतन, सुप्त चेतन नहीं बहुत दुखी है मानव । उसके जख्मों को प्रेम की कहेंगे-अचेतन मन में प्रपनी चेतना के सहित प्राप दवा से आपको ठीक करना है जो पके अन्दर जाएंगे आपकी चेतना आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहां [आप चेतना को जानेंगे ये दिन आपकी प्रम की धारा टूट जाती है, वाइब्रेशन पहलो मतंबा इंसान के शरीर के अन्दर हआ है, कि आप अपना भी शरी र जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं । और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके अन्दर क्या से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस रुक जाते हैं । बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माता जी हमको बाधा हो गई हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो हो रहा है। निर्मला योग ६ इसका महत्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि,"माता जी, और आप] आराम से बैठ नहीं सक रहे हों, तो सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझगे समझ लेना चाहिये आपके मूलाधार पर ही चोट क्योंकि लोग पसों को बहुत मानते हैं।" पैसा एक हो गई है ये और भी dangerous situation भूते है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्व (खतरनाक परिस्थिति) हो जाती है। मूलाधार पर समझ तो बेहतर है कि आप न ही समझ । कोई जब चोट हो जाती है. उसका भी इलाज करा लेना भी पंसा देने से इसका महत्व आप नहीं समझ चाहिये। वो भी लोग जानते हैं, किस तरह से सकते । अपने को ही पूरी तरह से देना होगा और मुलाधार चक्र की ठीके करना चाहिये । वो देने में कितना मिलने वाला है। जो आ्राप सात गुने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल आपका शरीर अगर हिल रहा हो ध्यान में, 1. जानने को तो आप लोग मेंरे लेक्चर सुन-सुन के सबर शास्त्र जान लें, लेकिन मैं देखती है कि जो हूँ रनोग थोड़े हो दिन पहले आए हैं, वो आप लोगों से कभी-कभी बहुत जोरों में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं । ध्यान में समर्टि रूप में ही आप की आना क्योंकि ये पढाने लिखाने की बात है ही नहीं। जाएगा। द होगा, ये जरूरी है। चाहे महीने में एक बार ही आएं, लेकिन जहां सात लोग बैठते हैं, वहीं बैठ आप के हाथ अगर थरथरा रहै हैं, कंपकपा कर ध्यान करना चाहिये। चाहे आप अपना एक रहे हैं, तो भी समझ लेना चाहिये कि कुछ न कुछ छोटा ग्रुप बना लं जहाँ प्राप हफ्ते में एक बार मिल आपके अन्दर बहुत बड़ी खराबी हो गई है। उसमें सके और एक वार बड़े ग्रुप में मिलें । क्योंकि जूते मारने का इलाज सबसे अच्छा है। कल एक मैंने आपसे बताया था कि ये "विराट" का साहब आपने देखा होगा कि वहाँ कहने लगे कि "माता जी, मैं वहाँ एकदम जड़ हो गया। फिर । उनसे मैंने पूछा कि तुग्हारे गुरु कोन हैं ? तो कहने लगे कि उसको जागना है। जितना जागूत होता जाएगा, "एक भागवत् साo है पूना में ।" ती मैंने कहा वो वैसे-वैसे दोप जलते जाएंगे। आप लोग जो घर में क्या करते हैं ? तो कहने लगे कि "उन्होंने एक बहुत भी ध्यान करते रहें, मेरे आने के बाद आप Spiritual centre बनाया हुआ है, उन्होंने मुझे जानते हैं, कि माप लोगों ने पाया कि कुछ प्रगति दोक्षा दी।" मैने वहा दीक्षा क्या दी ? ये हिलने नहीं हुई। लेकिन यहाँ छः-सात दमी जो रोज की दीक्षा दी ? कहने लगे कि "मैंने सोलह साल में आते थे और ध्यान करते थे, उन्होंने बहुत प्रगति बोमारियाँ उठाई, मेरी नौकरी चली गई, ये हो गया, वो गया। मैंने कहा तुम्हारे अक्ल नहीं आई ? अगर तुम्हारे गुरू हैं, तो तुमको ये सब होना नहीं चाहिये । कितने रुपये दिये ? "प्रभी तक 5-6 तो समझ लेना चाहिये कि आज्ञा चक्र पर कोई चोट हजार रुपये दे चुका है centre को ।" मैंने कहा हो रही है । उसमें मानने की कोई बात नहीं प्रच्छा 5-6 हजार रुपये देकर के सारी बीमारियां है अपना [आरज्ञा चक्र अगर] खराब है तो उसे ठीक तुमने अच्छे से मोल ले लीं । फिर उसके भूत-वो कर लेना चाहिये। क्योंकि आपका आ्रानन्द कम जो भागवत् साहब थे उनको जुते मारे और वो जो उनका centre था, उसको भी जूते मारे तब कार्य है । मेरे सामने आकर यूं-यूं करने लगे जैसे शरीर का एक-एक अंग-प्रत्यंग जो है, कर लो । ध्यान में अगर आप की आँखें फड़क रही हों, बुरा क होता है । निमंला योग to उनका हाथ उहरी और बो ठीक हो गए य । आप ही के सामने सब हुआ था, बहुत से लोग ओर छोटों को मान्यता चाहिये, बड़ो को मानना वहां थे । ये तो होना चाहिये। बड़ष्यपन चाहिये, बड़ा दिल चाहिये चाहिये। और छोटों में activity (कायंवाही ज्यादा होती चाहिये, बड़ों से। बड़े आदरणीय हों तो उनका आदर होगा पर बड़ों को आदरणीय होना चाहिये और छोटों को बड़ों का आदर करना चाहिये। लोगों से साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए कि आपके कोई न कोई गुरू हैं, आपके अन्दर कोई न कोई बाघा है । कोई न कोई गड़बड़ है, उसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं। अनादर तो वसे भी एक सहजयोगी का दूसरे सजयोगी से करना नहीं, क्योकि आप बोग सब देवता स्वरूप है । ये सब आप ध्यान में सकते हैं । आपसी] बातों से, दूसरों के बारे में परांतरिक्ता मे अंगर अप सोच तो आप फोरन ले किन मैं देखती है कि एक को जरा सी भी समझ बाधा पकड़ रही हो तो दूसराा बाधा वाला बराबर से वहां खिच जाते हैं एक साथ । जाता है ये सारे बाधा वाले साथ बठे हैं । ग्रसल में समझ लगे कि "प्रर भई उनका तो ये आज्ञा चक्र ऐसा वैठना नहीं चाहिये। उसके साथ में खड़ा हो जाएगा। लाइन और पता हो पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है।" "अरे भई उनका तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो सब को अलग-प्रलग बेठना चाहिये, अधिकत र; रहा है ।" "इसीलिये स्वर ठीक से नहीं निकल रहे जैसे कि कोई पुप बना लेते हैं । "बहुत" गलत बात हैं" जैसे कि ठाण वाले आए तो ठारण वाले साथ बुरा नहीं लगेगा। आपको "बुरा" नहीं लगेगा । दूसरों को भी है बंठ गए, फलाने आए-ऐसा नहीं बैठिये । वहुत जरूरी है। सब इकट्ठे होकर मत बेटिये । । प्रलग-अलग ले किन बुरा लगना यहीं "बहुत वड़ी वाधा है। मेरी भी बात का लोग बुरा मानते हैं तब फिर रों का क्या करंगे मेरी कोई भी बात का बुरा दूसरी बात ये है कि जैसे कोई बुड्ढे हैं, उमर नहीं मानना चाहिये । मैं श्रापके विल्कूल हित के में ज्यादा है, बुजगं हैं, कुछ बीच के हैं, कुछ छोटे ही लिये सारा काम करती हैं, ये आप जानते हैं। है। छोटे वच्चों को तो ऐसी कोई विशेष बात नहीं कोई भी वात की चर्चा होते वक्त ये देखना चाहिये हैं लेकिन जो बीच के और ये लोग हैं, ये सब कि हम सिर्फ यहीं चर्चा कर रहे हैं न कि 'हमारी अलग-प्रलग बैठ । जो वृद्ध हैं, वो जवान लोगों के कुण्डलिनी कहा है, हम कहा जा रहे हैं, करसे उठ रहे हैं। बाकी सव चर्चाएँ व्यर्थ हैं । 'हम घर्म में कहा चार पाँच जवान इकट्ठे हो जाएं तो भी आफत हो तक जागृत हो गए हैं । हम कितना पा गए हैं, जाएगी। ओर चार पाँच बृढ़े इकट्ठे हो जाएँ तो कितना आनन्द परमात्मा का लूट रहे हैं, ये ही भी आफत हो जाएगी। आप देख लीजिए, होता अनुभव आपस में बताना है और इसी को आपस है ! जबानी और बुढ़ापे की जो समझ है, दोनों में जानना है । [और बाकी सब व्यर्थ है । बाकी बाँटने की चीज़ हैं । वो भी सामूहिक चेतना में सब चीजों में मोन ही बेहत र ची ज है । जन इस श्राप बाँट सकते हैं। बड़ों को समझदारीं चाहिए, तरह के सहजयोगी हो जायेगे तो बड़ा अन्तर हो ए] बैठे । जो जवान हैं वो बूढ़ों के साथ बैठें साथ । wisdom चाहिये; ज़रूरी है "बहुत wise जाएगा। "बहुत बड़ा अन्तर" । र निमंला योग औ सहजयोग का प्रतिबिब आपसे फेलने वाला है । वहाँ पर subtle points होते हैं, Subtle centres (सूक्ष्म केन्द्र) होते हैं, उनको excite चीज होनी चाहिये। और उसकी प्रतिबिबित होने करने से वही काम होता है, जो नाक, की शक्ति अगर पूरी तरह से जाग उठे तब कोई भी कान, मंह और सव अपने शारीरिक जितने भी मुश्किल नहीं रह जातो। सहजयोग औरर किसी organs (अंग) हैं उससे होता है उसी सहस्त्रार चीज़ से नहीं - किसी भी चींज से नहीं- आप बड़े- को हम जागृत कर लेते हैं जो सारे शरीर को यहाँ बड़े organisations (संगठन) कर दीजिये, आप संभाले हुए हैं और प्रापको सारे ही-जसे सुगंध है -हरेक चीज़, नाक की कोई जरूरत नहीं है आपको । जाएं और music (संगीत) हो जाए-इससे नहीं फिर आप इ्वास भी यहां से ले सकते हैं । सारा का होने वाला । इन सब ची जों से कुछ भी तहीं होने सारा ही शरीर अगर भ्रष्ट हो जाए. तो भी आप यह से सब काम कर सकते हैं । ले किन (भ्रष्ट) होता नहीं । शरीर तो ्रापका खिलते ही जा रहा है। शरीर तो सुन्दर होते ही जा रहा है। बीमारियां तो भाग ही गई है। वो तो सब चीज ठीक हो ही गई। कोई थोड़ा-बहुत हो भी जाते हैं, और जिससे प्रतिबिंब पड़ता है तो एकदम 'साफ वड़े-बड़े मंत्र-जागरण कर दीजिये, और गाने हो वाला है। मैंने तो इतने कभी भी पार लोग देखे नही जितने आज देख रही हैं। ये "अहो" हमारा कि ऐसे मैं देख रहो हैं। किसी भी युग में इतने पार लोग, मेरी दुष्टि के सामने नहीं रहे। ये भाग्य है तो ठी क हो जाते हैं। परम् भाग्य की बात हैं। ध्यान में बढ़ने के लिये एक गुरण बहुत जरूरी लेकिन जैसा कि मैं कहती है कि modern (पराधुनिक युग) में पूरे साधु कोई time ( हैं। बहुत ही जरूरी है। उसको कहते हैं in- आप हो लोग पहले बहुत बड़े साधु थे और संसार में रमे हुए नहीं थे, जंगलों में रहते थे । आज आप ने संसार ले लिया है और संसार में ग्राप रमे हुए हैं। है कि छोटे बच्चे फट-से पार हो जाते हैं। चालाक लेकिन अपनी साधुता में उतरते ही क्या मजा आ जाएगा ! इस गंगा-जमुना में ही एक सरस्वती समझते हैं बस उनको परमात्मा की तो इच्छा नहीं बहना शुरू हो जाएगी। नहीं हैं । nocenceभोलापन. स्वच्छ, एक छोटे बच्चों जैसा-innocent child, इसीलिये पने देखा लोग, cunning लोग, अपने को जो बहुत होशियार होती बस अपनी होशियारी दिखाते रहते हैं, वो नहीं पाते। "पूर्णतया" innocent होना चाहिये कोशिश करनी चाहिये। ध्यान में जाते वक्त किसी भी तरह की बाहर की आवाज आपको भुल जाती है। अगर कान में भी आप उंगली डालें औौर सहस्रार अगर आपका पूरी तरह से किसी को दूख देना भी, किसी को तकलीफ देन। भी innocence के "विरोघ" में है । इतनी मरी हुई खोपड़ियों के ऊपर बैठ करके क्या हम innocent हो सकते हैं? किसी के हृदय में चोट लगे, वो ग्रादमी innocent नहीं हो सकता । innocent खुला हुआ है तो इसकी पहचान है-पूरी तरह से आप अँख कान को बंद कर लें, आप सुन सकते हैं। इसीलिये जो वो लड़के आए थे, जो सुनते नहीं थे, उनको थोड़ा-थोड़ा सुनाई देने लग गया। का मतलब ही ये होता है कि फूल की जैसे खिली तो हुई चीज जो सिर्फ दुनिया को सुगंध ही देती है। limbic area में-डाक्टर सब लोग जानते हैं कि किसी को भी तकलीफ़ या दुख देना नहीं चाहिये। अगर आपका सहस्रार खुल जाए, निर्मला योग हाँ, कभी-कभी लोग उनकी मूर्खता की वजह से किसी चीज को दूख मान लेते हैं-वो ठीक है । पर अपनी तरफ से आप निश्चित हो करके कभी भी किसी की दुख या तकलीफ़ नहीं देता चाहिये । चक्र पकड़ रहा है। क्योंकि आप लोग जो पार हो चुके हैं प को अच्छी तरह से माजूम है। उंगलियों पुर अरपको जान पडेगा, कौन-सी उंगली थोडो-सी जल रही है। जो भी आपकी उ गली जल रही है. उस पर आप बंधन डाल लें तो वो । छूट जाएगी प्रगर आपकी उगलियां ज्यादा ही जल रही हो तो आपके पास तो innocence का sWItch है नहीं। मैने देखा था कि देवे आप लोगों ने ऐसा कोई switch बनाया है [अग र हो तो बैसे innocence का switch दब लीजिये तो अप देखगे कि आपका आज्ञा चक्र एकदम "साफ़" ही जाएगा। पर innocence का switch अप जो है सहस्रार की ओर रखें । और जो लोग आज लोगों के पास है नही; दया का switch है नही, नुए प्राए हैं उनको भी देखना होग। कि बो पार हाथ भटक लीजिये, वो छुट जाएगा, आप जानते हैं। वंधन डाल दीजिये । ले किन निविचारिता की ओर रहें प्रौर चित्त शांति का Switch है नहीं। ये सब Switches आपके अन्दर अभी तक लगे नहीं है। पहले श्रप सब अपने देवता जगा दोजिये, अन्दर में जो बठे हुए हुए हैं या नहीं। उनको क्या खराबी है, उनको क्या तकलीफ़ है, वो निकाल देंगे। ये सारी तकलीफ़ जो है, ब ह्य है । हैं, फिर उसके बाद एक-एक सारे सब के switch भी लग जाएगे। ये भी एक बड़ा भारी समर्पण है जहाँ शक्ति दोनों side (तरफ) से आती है left and right sympathetic nervous system FT पर सबसे आसान innocence का switch का जो यहा ये expression है, उस रास्ते से। अऔर इसके बीच में ही सुषुम्ता नाड़ी innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे. जब छोटे थे । छोटे वच्चों के साथ रहते से innocence आता है। उनके साथ बातें करने से innocence ता है । उनकी वाते याद करने से बहुत innocence आता है जो लोग innocent है। ऐसा करते ही नाड़ी अन्दर चलना शुरू- हो जाती है। सुपुम्ना बहत पुषुभ्ना लेाकिन ये जागृत । अगर ये जागत नहीं है, इसका मतलब सूपुम्ना चल नहीं रही है। होना चाहिये हो जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधि कारो हो आर जागृत का मतलब ये है कि आपके अ्न्दर सारी उगलियों में से घीरे-घोरे ठण्डी-ठण्डी ऐसी हुवा आने लगेगो । अगर प्रापके अन्दर ऐसी उण्डी- ध्यान में सिर्फ अ्राप ही [अथनी ओर विवार करें ठण्डी हवा जा रही है ; पूरी तरह से आप हैं उस 'तरण्य में ध्यान में हैं तो आप वढ रहे हैं, आगे आप चले जा रहे हैं । जैसे कि आप aeroplane में बैठते हैं. आपको पता नहीं आप कहाँ जा रहे हैं, लेकिन आप कहीं पहुँच जाते हैं । निविचार कि मेरा मन इस वक्त में कौन-सी चालाकी में लग रहा है इधर-उधर । महामूखंता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते हो आप "निविचार"- "निविचारिता"-यही innocence है। जाते हैं । आप लोग अब जब ध्यान में जाएँगे, वहुत देर तक ध्यान नहीं करंगे हम लोग । जाते वक्त आरप सिर्फ ये देखें कि आप का कौन-सा जब तक हम यहां पर हैं, ये जरूरी है कि जो सहजयोगी आप लोग हैं, ज्यादा इसमें part ले किन ध्यान में निमला योग १० 'वे कार' की बातें 'पू्खों जैसी अपनी जो (हिस्सा) लें अ्रौर अागे बढ़े। और जाने के बाद भी अपना सम्ी-रूप खराब न करें । आपसी वेकार की कल्पनाएं हैं अपने वारे में उसको 'त्याग" दोजिये । बातें बोलने पर प्राप कुछ न कुछ दंड देखेंगे। जिसने बचखानापन है बचपना नहीं। child-like भी कोई सहजयोग के सिवाय अन्द र की बात के सिवाय बाहर की बात जरा भी करी, उसको दंड । बाहर की कोई भी बात नहीं करनी। अंदर ही की होता चाहिये childish नहीं। अब हम लोग ध्यान में जाएंगे। मैंने जैसे कहा है पहले अपने को प्रेम से भर लो। [आप जानते हैं मैं आप की माँ है। पूर्णतया आप इसे जाने कि मैं अपने -अ्रपने चक्रों को साफ करिये । उसमें आपकी साँ हैं । और मां होने का मतलब होता है जिसके जिसके चक्र कि सम्पूर्ण security है. संरक्षण है। कोई भी पकड़ हैं वो बाहरी चीज़ हैं । बिलकुल हिम्मत से चीज़ गडबड़-शडबड़ नहीं होने वाली। आप मेरी सारी सफ़ाई करके और नीचे डाल दे । जिसके भी ओर हाथ करिये। और घीरे-धीरे से अँख बन्द हाथ जल रहे हैं, निकाल दें। हमारे भी हाथ जल करके और अपने विचारों की ओर देखिये, आप रहे हैं-निकालियेगा नहीं तो क्या करि येगा ? बैठ निर्विवार हो जाएंगे। आापको कुछ करने का है हो नहीं। बप जैसे ही निर्विचार हो जाएंगे, बैसे ही बीत करें । कोई' शर्म की बात नहीं है। भी नहीं सकते । आप अन्दर जाएगे । और भी तरीके आप जानते हैं बहुत सारे, ध्यान में अपने को सफाई करने के। इसमें कोई बुराई की बात नहीं है, अगर मैं किसी से कह दूं से निश्वय हो कि किसी को कोई सी भी कि अप पानी में पंर डाल कर बेठिये औ्र इस चोट में नहीं पहुँचाऊंगा। और सब को प्रभु तुम तरह से निकालिये । इसमें कौन-सी बुराई की बात है ? इसमें ब्या बुरा मानने की बात है ? कितना और मुझे क्षमा करो क्योंकि मैंने दुनिया में बहुत पागलपन है, किस वात पर लोग बुरा मान जाते लोगों पर चोट की है। हैं ? वो सोचते हैं "माता जी ने क्या कह दिया। आप क्या कोई बड़े भारी saint ( सन्त) हैं : यानि बड़े-बड़े saint तक ये काम करते हैं, प्रापको करेगा। आप उससे कहेंगे कि "प्रभू शांति दो", तो पता नहीं है। पहले अपने से इतना बता दो कि आरज क्षमा कर दो, जिन्होंने मुझे चोट पहुँचाई हो। आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आपके साथ तुम्हें शांति देगा। लेकिन आप मानते नहीं हैं वांति। "संतोष दो" तो वो तुम्हें संतोष देगा, तो बो मांगते नहीं हैं । जसे मैंने कबीर दास जी के लिये कहा कि "दास कबीर जतन से ओढी" कबीर दास भी प्रपने लिये कहते हैं कि "मैंने जतन से ओढ़ी भई"-जो कि इतने बड़े महापुरुष थे । फिर आपको इसमें बुरा मानने की कौन सी बात है ? "मेरे अंदर सुन्दर चरित्र दो" तो वो चरित्र देगा । अब ्रार्थना का अर्थ है, क्योंकि आपका con- nection हो गया है परमात्मा से । जरा-सा किसो से कहा कि भई मटका लेकर आओ, तो बुरा मान गए; फिर इतना बड़ा-बड़ा मटका लेकर आते हैं। 'मेरे अन्दर प्रेम दो। सारे संसार के लिये प्रेम दो।" मुझेक माधुर्य दो, मिठास दो।" निमंला योग ११ जो भी उनसे माँगोगे वो तुम्हें देगा नहीं मांगो। अपने लिये ही माँगो मुझे प्रवने "मेरी बँंद को अपने सागर में समा लो। । ्और कुछ जय माता जी चरण में समा लो हे जगजननी फेडीन पांग सारे । येतील आरतीला है सान थोर सारे । धृ॥ "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो।" परमात्मा से जो कुछ भी प्रार्थना में कहोगे, वही होगा । समझदार करो। तुम्हारी समझ मुझे दो । तुम्हारा सहजयोग हा स्थापित केला जीवनमार्ग आम्हां दाविला "मुझे विशाल करो । मुझे आनंद गगनात न मावला अपूर्व हे घडले येतील आरतीला हे सान थोर सारे ।। १॥ सारे ज्ञान मुझे बताओ । "सारे संसार का कल्याण हो, सारे संसार का हित हो। सारे संसार में प्रेम का राज्य हो। उसके लिये मेरा दीप जलने दो । उसमें ये शरीर मिटने दो । उसमें ये मन लगने दो । उसमें ये दो " अधशरध्देला इथे न थारा दुर्गणांना दूर दूर सारा ठ्य सनांना हो लाथा मारा वाईट सारे विसरूनि जारे येतील आरतीला है सान थोर सारे ।। २ ॥ स्खपने हृदय बातें सोच करके उस परमात्मा सुन्दर से सुन्दर से मांगे । जो कुछ भी सुन्दर है, वही माँगो तो मिलेगा तुम असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे देता है । बे कार मांगते हो तो भी बो दे ही देता है। लेकिन जो असली है उसे माँगो, तो क्या वो नहीं देगा ? माते, तुझ्यापुदे मी राहीन नित्य तान्हा शरीरात सोड माझ्या आनंद लहरी नाना अव्हा तुझ्यामुळे हया जन्मास प्रथ प्राला मी सुदेवी हा योग मला लाभला रे येतील आरतीला हे सान थोर सारे ।॥ ३ ॥ --अजय कुमा र एस० चह्वाण (सहजयोग क्रेन्द्र, सातारा) यू ही ऊपरी तरह से नहीं, "गन्दर से", आरंतरिक हो करके मांगो। मी आनंद लूटाया आले, मी आनंद लुटाया आले ।। धृ० । माताजीच्या सुकृपेने जय अंबे, जय दूर्गे, निर्मल आईच्या पदकमली रमले ।। १।। चेतन्यलहरीची धार, अमृताहनही गोड मनोमनही फुलले । आईच्यथोवती सहजयोग्यांचीगर्दी वातावरण प्रियझाले।। माताजींच्या सु बनले ।। होवूनीयोगी पार प्रेरणने काव्य मला हे स्फुरले । --सौ० शालिनी जे० घाडगे सहजयोग क्रेन्द्र , सातारा निमंला योग १२ आज्ञा (प० पू० माता जी श्री निर्मला देवी जी द्वारा १८-१२-१६७८ को केंव्सटन हॉल, लंदन में दिए गये भाषण का हिन्दी रूपान्तर) आज्ञा का अर्थ साक्षी भाव से है । आज्ञा की रचना मानव में उस वक्त हुई जच उसने सोचना प्रारंभ किया । भाषा-यदि भाषा नहीं होती तो हम सोच नहीं सकते । इसके पूर्व विचार सिर्फ ईश्वरीय प्रेरणा था । हमारे अन्दर विचार प्रकाश एवं छाया की तरह आते हैं। आत्मा-साक्षात्कार के पश्चात् विचार एक प्रकाश स्तम्भ की भाँति केवल प्रकाश और छाया के भिन्न अकार रूप में दण्यमान होते हैं। यह भाषा ही है जिसके कारण ये त्रिचार हमारे ऊपर हारवी (conditions) हैं । हम एक विचार से दूसरे विचार पर उसी तरह उछलते हैं जैसे कि समुद्र की लहरें किनारे तक जाती हैं श्रीर पुनः वापस आ जाती हैं। विचारों का यह तांता है। उसी प्रकार सारी पगला देने वाला भी बन जाता है। ये विचार कभी और आश्रय है । इस अवतरण में श्री ईसा तो अ्रच्छे होते हैं और कभी बुरे । यह चक्र धी ईसा मसीह जी का है । वे इस चक्र पर निवास करते हैं। वे ही साक्षात् महाविष्णु रूप में श्रवतरित हुए। वास्तव में क्रिश्चियन, उनके ऐसा होने के विषय में एकदम नहीं जानते कि कैसे वे क्राइष्ट बने और क्यों ईश्वर ने धरती पर स्वयं आकर अपना काम नहीं किया बल्कि श्री ईसा मसीह को भेजा। ये अत्यन्ति महत्वपूर्ण प्रवतरण हैं। वे सृष्टि के रचनात्मक तत्व हैं। श्री गणेश जी मूलाधार चक्र में निवास करते हैं और क्रमश: श्री गणेश ही आज्ञा-चक्र पर जेससे क्राइस्ट के रूप में उत्परिणत(evolve) हो गये। वे सृ्टि के मूल तत्व हैं। जैसे कि हमारा तत्व श्री कुण्डलिनी सृष्टि स्वयं तत्व मसीह सृष्टि रचना के तत्वरूप हैं जैसे कि परिवार में पति-पत्नी एवं वच्चे । पति-पत्नी एवं घर के सार तत्व बच्चे हैं। जब तक पति-पत्नी संतान नहीं पाते तव तक दाम्पत्य जीवन का कोई अहंकार (ego) हमारे माथे में वामभागी है जब कि प्रतिअहकार (super-ego) दाय भागों तात्पर्य ही नहीं । इसी तरह श्री जेसस क्राइस्ट है । हमारे अन्दर conditioning हमारे दाई भाग में हैं पऔर ये हमारे अन्दर भय एवं खतरे उत्पन्न आदिपिता (परमेश्वर) एवं आरादि मां (आदिर्शक्ति) करते हैं । भूत एवं भविष्य के विषय में कोई एक दूसरे से अलग हुए तब उनहोंने ॐध्वनि का विचार करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है- निर्माण किया । श्री जेसस क्राइस्ट इस तरह वही जानवर कभी नहीं करते । जब वे जानते हैं क्ि ॐशब्द हैं जो सारी सृष्ट के पालनकत्ता और कोई जानवर प्राता है तो ठीक है; इसमें सोचने को उससे अथिक आश्रयदाता है । क्योंकि वे सार तत्व क्या है ? मनुष्य हरेक चीज के बारे में सोचता है हैं जिसका कभी नाश नहीं होता । हमारा तत्व और यह भी सोचता है कि बेठकर सोवविचार हमारी आत्मा है । और आत्मा का कभी नाश नहीं करना बुद्धिमानी है । सोचने की क्रिया स्वतः होता। शरीर का नाश हो जाता है पर तत्व स्वेच्छानुसार होनी चाहिए-ईश्व रीय प्रेरणा की तरह । सोचना भूतों से खेलना है । प्रथम ध्वनि 'अ्रो३म के मूल तत्व थे । जब प्रात्मा) रह जाती है, उसका कभी नाश नहीं होता । ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतरण हैं। नि मला योग १३ श्री जेसस क़्ाइस्ट हमारे आ्राज्ञाचक्र के मध्य में स्थित हैं : जहाँ पर ऑपटिक नाड़ी एवं आपटिक धलमस एक दूसरे को काटती हैं। यह एक अति- सूक्ष्म विन्दु है। यह दो तरह की ध्वनियां हम् ' (hum) एव (Kshum) 'क्षम्' - उत्पश्न करत है । हम (hum) दायीं तरफ़-प्रतिश्रहका र (super ego) में तथा क्षम् (kshum) वायी तरफ़ अहकार चंतन्य लहरियां भय को दूर भगायेँगी । इस तरह से आप हम का उच्चारण करके परमेश्वर की सहायता पा सकते हैं । अहंकार एक दीर्षकाय समस्या है । इसका समाधान दूसरों को क्षमा करना है। आपको क्षमा करना सीखना चाहिए। यदि कोई आपसे आहुत (ego) स्थित है । 'हम् एव 'क्षम' दो तरह की सक्षम हए हैं ती प्रापकों क्षमा मांगना चाहिए। अत्याधिक लहरियां उत्पन्न करती हैं। हम शब्द में हैं, मैं हूँ की लहरियां उत्पन्न करती हैं। हमारी अस्तित्वा- म के शक्ति से 'हम् शक्ति अ्राती है। जिससे जानते हैं कि हमें इस दुनियाँ में रहना है प्रौर हम हृदयश्रापकी श्रात्मा है। अत्यधिक अहंकार आपकी मरने नहीं जा रहे हैं । कोई भी मनुष्य जो अपनी हत्या स्वयं करना चाहता है वह सामान्य नहीं कहा यह मरापको बुद्धिहीन एवं मूर्ख बनाता है। आप जा सकता। हम' अर्थात् 'मैं हैं की शक्ति से ही, अहंकारी व्यक्ति को जान जायेगे जब वह अपना ही साधारणतया प्रत्येक जीवधारी, चाहे मानव हो या पश, प्रपने जीवन को अक्षण्ण बनाये रखना चाहते शीघ्र मु्ख भी बन जाता है। ऐसे को जो हैं, मरना नहीं चाहते। प्रतिअहंकार (super ego दाहिनी तरफ है । सारी चीजों के कारण आप बहुत condi- को कपा हो गया ? मनुष्य अहंकार के चक्कर tioned हो गये हैं; असर के फलस्त्ररूप अप चिन्ता में इतना महान मुर्ख बन जाता है कि वह का अनुभव करते हैं र आप में यह भय उत्पन्न ईश्वर की सत्ता तथा अपना ईश्वर से सम्बन्ध करते हैं । यह आपके पुराने अनुभव व भय अ्रापके को भी भूल जाता है। अहंका र महोदय" हमें अन्दर प्रतिअ्रहंकार में बैठ जाते हैं और यह भय आपकी अमावा (amoeba) अवस्था से शुरू किसी देश में ऐसे कानून वनाना कि जामाता होकर आजतक प्रतिश्रहकार (super ego) में अपनी सास से शादी करे । यह एक असंभव चीज सचित है जिसके कारण से अ्रप पूलिस आदि से है क्योंकि सास, मां है । यह कार्य निष्कृटतम है । भयभीत हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इनसे अहंकार के चक्कर में यह भी जानना कठिन है कि भय नहीं खाते परन्तु किसी और ही वस्तु से भय खाते हैं। आपकी परिस्थितियां चाहे जसी भी हों, वह हमें हमेशा मूखं बनाता रहता है। आपके सब पुराने अनुभव प्रतिश्रहुकार में हैं । यह केन्द्र 'हम्, हममैं हूँ-मैं हैं आप है, धबबड़ाय नहीं अधिक अरहंकार में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । महा- *का संदेश भेजते रहता है। अहकार का अर्थ है कि आपने उसे अ्रधिक मात्रा में लाड़ देकर बिगाड़ (pampered) दिया है। प अपने हृदय में विनब्र होइये । आपका हम आत्मा को उक लेता है, आवरण कर लेता है। ठठो रा पीटने लगता है और फलतः अपने आपही मनुष्य ) समझते नहीं, बो लोग स्वतः आश्चर्य में पड़ यह प्रति अहकार बहुत जायेंगे, विशेषयता बालक वर्ग, कि उस मनुष्य मूरखतापूर्ण कार्य करने को प्रेरित करते हैं जैसे वह (ग्रहकार) हमें कसे मूर्ख बनाता है, जब कि सोचने विचारने से भी अहंकार बढ़ता है । अहंकारी का व्यवहार इतना बचकाना होता है कि आयु का कोई लिहाज नहीं होता। बच्चे सोचते हैं हमारे माता पिता इतने मृर्ख क्यों हैं जबकि हम ईश्वर खोज में तत्पर हैं । हो सकता है कि महायुद्ध आप अहंकार एवं प्रतिप्रहुंकार में अन्तर देख सकते हैं । एक आक्रामक है तो दूसरा अधीनस्थ एवं भय उत्पन्न करने वाला । 'हम् कहने मात्र से निमला योग १४ के कारण वे क्षुब्ध् हो गये हैं आहंकार एक ऐसी महीने में एक बार भी नहीं, यहाँ तक कि वर्ष भर के विषय में सोचने को में एक बार भी नहीं। क्रिसमस दिवस के त्यौहार पर भी आप क्षमा याचना नहीं करते हैं, बल्कि आप तो मदिरा एवं अन्य मादक वस्तुओं को होजाता है क्पोंकि परियोजना के अनुसार यात्रा नहीं पान करते हैं । कभी कभी अहंकार, प्रतिभ्रहंकार हो सकती । एक बुद्धिमान आदमी हतोत्साहित नहीं पर इतना अधिक दबाव डालता है कि अन्य लोग होता, जैसे होताजाता है, वो उसके प्रनुसार चलता है आपके क्रर एवं पीड़ादायक शब्दों से आहत हो अहंकार महोदय कभी यह नहीं चाहते कि आप] जाते हैं । जिस तरह से संसद में सदस्य अ्रापस में सुखी एवं सुविधा पूर्वक रहें। ये हमेशा विचार देते वात करते हैं वहू बहुत ही बुरा है। वैसा तो अहुंकार एक दूसरे से टकराते रहते हैं । वे आपस में हमेशा कहते रहते हैं मैंने यह किया, वह किया पर वे अ्रानन्द को प्रात: काल से संध्या तक क्षमापार्थी बने खो चुके हैं । तर्क-वितरक महामूखंतापूर्ण व्यवहार रहें और अपने दोनों कानों को खतीचे और का संकेत है । यह आपको किसी भी ज्ञानार्जन की कहें कि हे परमात्मा हमें क्षमा करें । प्रात: काल ओर नहीं ले जा पायेगा वल्कि केवल अहंकार की वस्तु है जो प्रत्येक वस्तु वाध्य करती है जैसेकि यात्रा के पहले ही पहुं चने के बाद की परियोजना, अ्रर यात्रा का मजा किरकिरा रहते हैं कि यह करो, वर्वाद न हो जायें । यहंकार से कोई फायदे नहीं । जानवर भी नहीं करते । वह करी, ज व तक कि आप ही पुष्टि करेगा । करते से सायंकाल तक उस का स्मरण रहें। सद। याद करने से, जेसस क्राइस्ट आपके अहंकार को नीचे ले आयेंगे । उन्होंने आपके लिए हरेक संभव प्रयत्न किया ताकि आप अपने अहंकार ओोत-प्रोत है। पश्चव मी समाज का अहंकार यह है कि का विकास न होने दें । वे एक बढ़ई के साधारण उन्हें अद्धंविकसित देशों का पथ प्रदर्शन करना है। घर में पेदा हुए थे और बढ़ई के पुत् के रूप में वे यह पूरारूप से डींग से भरा पड़ा है। लोग अच्छे साधारण रूप से पालपोसकर वड़े हुये थे। उन्होंने अपने को प्दे के पीछे रखा। वे रोमन सम्राट के दौड़ते रहते हैं। अच्छा स्वास्थ रखने के लिए रूप में भी जन्म ले सकते थे । परन्तु उन्होंने बहां पागलों की तरह कार्य करने की आवश्यकता नहीं जन्म लिया जहां एक सामान्य पुरुष भी जन्म लेने है। आपको चतुर एवं प्रतिभावान व्यक्ति वनना से हिचकिचाते हैं । परन्तु वहां प्रकाश भी था और होगा। अच्छे स्वास्थ के लिए विवेक की अत्यन्त आनन्द भी था। हमने आनन्द को खो दिया है आवश्यकता है न कि अहंभाव की तथा उससे क्योंकि हम ईश्वर को भुल गये हैं । ईशवर प्रेम प्रर प्रभावित अन्य अहंकार प्रभावित वस्तुओं की आनन्द हैं। लोगों के पास प्रचुर मात्रा में समृद्धि जैसे अ्रपकी दौलत आापकी कार, मकान आदि का और धन है फिर भी वे खुश नहीं है । आप उनसे प्रदर्शन की । वे बिल्कुूल जोकर की तरह से हैं। जो कुछ भी कहेंगे वे अरप से क्रूद्ध हो जायेंगे वे चाहे घर में खाने को न किन्चित्मात्र भी सामान्य मानव नहीं है, वे अवश्य रखेंगे । ये सब वस्तुएं के वल अरकार को रोगी हैं। समस्त परिचमी समाज अहं ( ego) भावना से स्वास्थ के लिए पागल संसद सदस्यों की भांति ही परन्तु एक बड़ी कार ही फुलाकर पुष्ट बनाती हैं । समस्त विज्ञापन अहंकार को ही परिपुष्ट करते हैं । जब आप प्रकृति क्षमा याचना कोई कठिन कार्य नही है। हम के विरुद्ध लड़ाई छेडते हैं तो आपके अन्दर अहं तो दिन में एक बार भी याचना नहीं क रते । एक का विकास होता है हम अहंकार के बिना जीवन निर्मला योग १५ निमंल एवं सुखद बनाने के लिए उन्हें स्थिर एवं सुदृढ़ करना होगा। [श्राँखों को सुखद बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज हरी हरी घासों पर दुष्टि डालते हुए रखना है। इसीलिए थी क्राइस्ट चलायमान एवं अपवित्र श्रमखों ईशवर में विश्वास खो दिया है, क्योंकि जो ईश्वर के संबंध में चर्चा की है । अ्रतः प्रत्येक पुरुष के ठेकेदार हैं वे उदृण्ड हैं अऔर अत्यधिक अहंकारी एवं स्त्री को ध्यान देन चवाहिए कि कोई अपवित्र हैं। औ्र अहंकारी को ईश्वर के बारे में सोचना पखे न रखे- ऐसा श्री क्राइस्ट ने कहा। आपको असंभव है। अहंकार एक पानी के बुलबुले की अत्यन्त गहन, गंभीर और प्रेममय होना है। आप को पाते हैं। तरह से अधिक फूलने पर फट पड़ेगा। अहकार यदि अ्रपकी आँखें बन्द हैं तो य्रापके विचार भी अवश्य नष्ट होगा। अतः अरहंकार को तोड़कर ही कम होंगे क्योंकि आपका चित्त बहुत सो चीजों को प, जो साकषात आत्मा हैं, अपनी त्मा में बढ़ नहीं देख पायेगा। यदि आपकी प्राखें खुली हुई हैं सकते हैं । हम लोगों को क्राइस्ट से सहायता तो ज्यादा विचार प्रायेगे क्योंकि सब जगह के संबंध में कुछ सोचते हो नहीं। "मैं, मैं, मैं'" ऐसे बातचीत करना, अपने विचारों की प्रधानता देना, अशिष्टता है । आप कोन हैं? मैं शाश्वत अमर आत्मा हैँ। हमने ने चंचल, भाँति क्षणभंगुर एवं एक फूले हुए गुब्बारे की अपनी आ्रंवों के द्वारा ही विचारों मांगनी होगी क्ाइस्ट ने अपने को सूली पर चढ़़ा आपकी नजर जायेगी शर साथ ही आपका चित्त दिया । ऐसा क्यों किया ? उन्होंने क्या किया ? भी। इस तरह आपके खाते में और अधिक विचार उन्होंने सिर्फ रोमनवासियों एवं यहूदियों के संग्रहीत होते जाते हैं और अधिक विचारों की अहं कार को चुनौती दी । यही कारण था कि उनको सूली पर चढ़ाया गया था औ्रर अब हमें अपनी अहंकार को उनके क्रॉस के माध्य म से सूली रचना भी होती है। अपना चित्त हमेशा अपनी आत्मा एवं ईश्वर पर चढ़ाना पड़ेगा, वरना हम भी वही करने जा में लगाना है क्योंकि उसे ईश्व रोय झरोसे से रहे हैं । अर्थात् हम अ्रपने अरंकार में श्री क्राइस्ट ही चमकना है जिस तरह से हम अपनी पवित्र को आपटिक बलमस पर, जहाँ वे रहते हैं, सूली पर आँखों का दुरुपयोग कर रहे हैं और उसका असम्मान कर रहे हैं, उस तरह से हम इस सुन्दर करना होगा अहंकार को सूलो पर चढ़ाने के लिए। चीज ( आजञा, चित्त) को नष्ट कर रहे हैं । भूमि पर जमी हरी हरी घास के जैसी पवित्र कोई अन्य प विचारों से परे हैं आज्ञा एक बहुत ही चीज है ही नहीं। अत: हम लोगों को अपनी दृष्टि महत्वपूर्ण चक्र है । जब कुछ्डलिनी आज्ञा चक्र को कों हरी घास से भरपूर पृथ्वी माता पर रखनी पार करती है तब आदमी निर्विचार हो जाता है । चाहिए न कि वृथा लोगों की ओर घूरते रहें । की। चढ़ाने जा रहे हैं । [आपको श्री क्राइस्ट को जागृत आपको निर्विचार अवस्था में रहना होगा । क्योंकि यहाँ तक कि अहंकार एवं प्रतिप्रहंकार से भी कोई विचार नहीं आता । जब प्रापकी अपविश्र प्रखिें इधर उधर चलाय- सुदृढ़ बनाना है । [आज्ञा हमारे आपटिक एवं मान रहती हैं तो कोई भी बाह्यसत्ता जिसे हम सह जयोग में बाधा कहते हैं, आपके अन्दर घुसपठ कर सकती है। प्रीतिभोज आदि के अवस रों पर यह कहा जाता है कि यदि अापकी ओल चचल जब चित्त वाहर की ओर इवर उघर भागता रहता एवं चलायमान हैं तो आपका आज्ञा चक्र भी च चल है, उस काल में बाह्य बाधाएं आसानी से हमें अपनी शरज्ञा चक्र को थलमस नाड़ी के संधिस्थल पर स्थित है । एक एवं चलायमान होगा। आपको अरपनी आंवों को दूसरे के अन्दर आदान प्रदान करती हैं। हमेशा निमंला योग १६ हम यह भी नहीं जान पाते कि हम आकर्षण क्यों सही है तो आपकी आँखें भी बिल्कुल सही हालत में महसूस करते हैं। किसी व्यक्ति पर दृष्टिपात करने होंगी ऐसो पविव्र अांखें जहां तक जायेंगो, वे प्रेम के से कुछ भी प्राप्ति नहीं होती है बल्कि केवल হक्ति अतिरिक्त अनत्य कुछ नहीं प्रदाशत करंगी। का ही हास होता है । अपवित्र दृष्टि एवं चंचल स्थिति में अपनी आँखों से देखकर ही आप अबों वाले मनुष्य का पागल होता अवश्यम्भावी है । हमारे अस्सो प्रतिशत विवार प्राँखों के ही हसरे की कुण्डलिनी को जगा सकते हैं; लोगों माध्यम से प्राते हैं । अत: व्यर्थ एवं निरर्थक क्रियायें के रोग निवारण कर सकते हैं शऔर छोड़नी पड़ेंगी। श्री जेसस क्राइस्ट के वि चारों को हुए व्यक्तियों को आनन्दमय बना सकते हैं । ये आदर सम्मान देना होगा उन्होंने एक वेश्या का श्रांखें अपके व्यक्तित्व की खिडकी हैं। आपकी उद्धार किया था । एक अच्छी महिला को बुरे विचार देकर आप ब्वाद करते हैं । अछुतो पवित्र छोटी बालिकाएं आपकी गंदी नजरों से दूषित है। प्रांखें फैल जाती हैं। एक पार हुए व्यक्ति की जाती हैं। श्री क्राइस्ट ने जो करा उससे एकदम आप विषरीत कर रहे हैं। क्या राप वेश्या बनना नाहते है जिससे श्री क्राइस्ट पुलः प्राकर हमारा उद्धार करं । यह व्या हो पागलपन है। जैव प्राप है। यदि अपकी श्रीं्वं पवित्र नहीं हैं तो आपकी पार हो चुके हैं और फिर आप किसी पर अपना चंचल, दुष्टिपात करते अकस्मात ही पीड़ा अनुभव कर सकते हैं । या महसूस कर सकते हैं कि किसी ने ा9के सिर में करना होगी। हमे अपनी आँखों का आदर करता कंकड़ मारी है । आप ऐसा अनुभव कर सकते हैं कि कोई आपको अन्वा बना रहा है। अ्रतः आप को जानना चाहिए कि आपकी शँखें कितनो महत्वपूर्ं है दो प्रकार की मानसिक यातनाएं होती हैं। हैं । किसी तरह की नाडी दौर्बल्यता संबंधी रोग मनोवेज्ञा निक न तो किसी की मानसिक बीमारी को ठीक किया जा सकता है यदि आपकी आँख को ठीक कर सकते हैं और न शांति ही प्रदान कर पवित्र हैं। ऐसी बर्बाद आपके अँखों के माध्यम से ही आत्मा देखतो है और जब कूण्डलिनी उठती है तो आखों में और विना पार हुए व्यक्ति की ँखों में जमोन आसमान का अन्तर होता है। एक पार हुए व्यक्ति की अखि हीरे की तरह चमकती हमें हैं तो आपके विर में अत्मा आपकी आँखों से नहीं दिखलाई देगी। अपने मन की समस्त अशुद्धियों को निकाल बाहर होगा । मनोवेज्ञानिकों का आज्ञा वहुत ही ख राव होता सकते हैं । एक तो वह जिसमें लोग आपको बहत सताते हैं अपको किसी का भी दास नहीं बनाना यह एक ऐसा विषम चक्र है कि समस्त चाहिए । आपको क्रास भी धारण नहीं करना बुराइयाँ आज्ञा चक्र में एकत्र होती हैं और आपको चाहिए ; क्रास घारण करना क्राइस्ट के संबंध में अपनी आँखों को स्वच्छ रखने के लिए अपनी आज्ञा को साफ करना होगा। हमें क्षमा प्रार्थना करनी की कोशिश करे तो आपको उसका पूर्णरूप से होगी। हमें श्री क्राइस्ट को अपनी आज्ञा में लाना परित्याग करना चाहिए । आपको कहना होगा। हमें समस्त मादक दवाओं र चीजों का चाहिए. "हम्-मैं हैं। इस सृष्टि में अप किसी परिस्याग करना होगा, जो कि सहजयोग में पर अधिकार जताने वाले होते ही कौन हैं ? ऐसे स्वाभाविक रूप से छुट जाता है । औँखें हमारे लोग समस्त व्यक्तित्व मस्तिष्क, शरीर तथा अन्य हमें अपने आत्म सम्मान के साथ ऊपर ववों का प्रदर्शन करती हैं। यदि आरापका आज्ञा चक्र गलत धारणा है। यदि कोई आपको दास बनाने अपने कत्तंव्य से मूख मोड़़ने वाले हैं । उठना है । निर्संला योग १७ दासत्व से उल्टा है परन्तु दोनों के मध्य में प्रम है। हरेक क्षण छोटे मीठे बन्धनों से भरपूर है। यदि पति अपनी पत्नी से कूछ खाने की इंच्छा प्रकट करता है और पत्नी जी चुराती है जबकि वास्तव में पत्नी को जो व्यक्ति जेसस काईस्ट के स्तर के होते हैं और वास्तव में क्रास धारण करते हैं पीड़ित हो ही नहीं सकते । वो तो प्रत्येक मानव अपना आत्म-सम्मान रखता है। र प्रत्येक को अपनी आत्मा का सम्मान करना खुश होना चाहिए और उसे चाहिए कि गुभ वह उस छोंटी मांग की प्रमपूर्वक पूर्ति करे । आपस है जो उसके अन्दर है चाहे आप किसी देश के रहने वाले हों या किसी मत के मानने वाले हों, मे झगड़कर प्रप क्या पा सकते हैं ? इस तरह का किसी का भी अधिपत्य आत्मा पर नहीं होना सुखापन, अर्केलापन एवं शूलता हमारे अन्दर है, चाहिए। ये सब ईश्व र के साम्राज्य में ट्ूट जायेंगे। कोई भी किसी की अआत्मा पर आधिपत्य जमाने का अ्धिकार तहीं रखता। आप नहीं जान ते कि परपनी कर रहे है बल्कि पा ही रहे हैं श्रेष्ठ जीवन स्वतंत्रता का उपयोग दूसरे पर अधिकार जमाकर नहीं हो सकता । आप दूसरे की आत्मा पर सुखी होना चाहते हैं तो आपको बास्तविकता प्रमुत्व दिखा रहे हैं उनके जमीन, जायदाद और पुर शराना होगा। दोस्तो हम किस प्रकार की रिश्ते- सम्मत्ति पर अधिपत्य जमाकर । आप ऐस या दारी रखते हैं ? उदाहरणत यदि हम क्रिसमस काड वैसे दोनों तरह से अपनी ही आत्मा के नहीं पाते तो हमें बुरा लगता है, अन्य लोगों के उससे तो कोई फायदा नहों। यदि अाप थेष्ठ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो आप कोई बलिदान नहीं बनाकर । सत्य को कहा ही जाता है। यदि आप मध्य में खड़े रखकर सिर्फ श्रने को देखिए । झर वघन में अने का प्रयास करें। आप दूसरों से आप देखेंगे कि आ्राप सि्फ प्रम की ही वर्षा दूसरा पर प्यार करना आरंभ कीजिए, घवडा इये नहीं। ग्राप चकित हो जायेंगे कि वे कितना आपको कर रहे हैं। यदि आप स्वयं एक दास हैं तो आप कैसे दूसरे से प्रेम कर सकते हैं ? अ्र्थात् कभी आप प्रम नहीं कर सकते । प्रेम अपनी सीम।एँ रखता है जोकि अत्यन्त मृदुल और सुन्दर है । आपको प्रेम अपनी प्रज्ञा ( में उनके साथ रहना होता है। यदि एक नम्हा प्रतिभा को उन्मुक्त बालक आपके घर आता है, वह [आपके घर को भीतर को कलुषित करते हैं उन्हें बाहर निकाल खराब कर देगा उस बच्चे को बैसा करना चाहिए फेंकिए । पेड़ पौधों को प्रेम भरी नजरों से देखने और आपको उसका आनन्द उठाना चाहिए। यदि का प्रयत्न कीजिए और आप पायेंगे कि वे पेड पौधे आपकी स्वतंत्रता, बच्चे के चिल्लाने से आधात आपको सृष्टि की रचना का अरानन्द देना शुरू कर अनुभव करना है तो आप बुद्धिमान मनुष्य नहीं है। देते हैं क्योंकि आप निर्विधार हो जायेंगे श्और सृष्टि- वह भपकी कोरी मनमानी या अकेलापन है । इस तरह आप अपने को उस अपने बड़प्पन से, उस परम पिता परमेश्वर से अलग रखते हैं क्योंकि आप दूसरों की स्वतंत्रता को बर्दास्त करने की क्षमता नहीं रखते । हमें स्वतंत्र होना है अर्थात् जब एक नन्हा बालक अपने घर में ही नहीं चल्ला सकता, हैं वैसा नहीं है जो अपने मन के मुताबिक खा पी नहीं सकता तो यह कि आपने पब्लिक स्कूल में सीखा है । प्रत्येक किस प्रकार की स्वतंत्रता है। यह भ्रम है । यह दरवाजे पर सबवत्र सुन्दरता विखरी पड़ी है, देते हैं । आपकी मां, इसका जीवित उदाहरण हैं । wisdom), विवेक-वुद्धि एवं कीजिए । जो बाहर एवं कत्ता जिसने उस सुन्दर वृक्ष की रचना की है, उसमें संचित सम्पूर्ण आनन्द को उड़ेलना शुरू कर देता है । प्रत्येक मानव असीम आनन्द का एक भण्डार है। इसे वृथा मत गंवाइये, इस लिये कि या तो वह उचित कपड़ों में सुशोभित नहीं है या जैसा [आ्रप [चाहते निमंला योग १८। के लिये एक चालाकी है । जो कुछ भी आ्रप अपनी आज्ञा पर व हते हैं उसका आदर किया जाता है और निर्मल होना उसे प्राप खोयें नहीं । पर यदि श्रापमें प्रत्ये वस्तु पर स्वामित्व की भावना है तो आप इसका आनन्द एकदम नहीं उठा सकति-उस समस्त पर आपकी आज्ञा को ा सुन्दरता का भण्डार जोकि प्रत्येक मानव प्राणी होगा । आपकी अराज्ञा पर श्री क्राइस्ट को विराजमान होना होगा। क्योंकि आपके अन्दर शुद्ध में है, प्रत्येक क्षण हिलोर ले रहा है । एक महान आवार का जाग रग हुआ है जो समस्त अणुओं परिमाणुओं में व्याप्त है और सबवत्र, जब माताजी हम लोगों को क्रिसमस की शुभकामना देती है तो वह समय रज्ञा-चक्र के लिये सब जगह बसा है। अतः आप अपनी आज्ञा बहुत शच्छा क्षण है। प्रत्येक को जानना चाहिये पर पूर्ण स्वामित्व करलें जोकि आपका स्वामी कि क्या आज्ञा देनी है अर केसे [आ्रज्ञा का पालन है। जिनका आज्ञा चक्र अच्छा है वे किसी भी चीज करना है। परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर । अपने बड़ों की आज्ञा पालन करे अपनी स्वयम् की अपना स्वामी खुद बन सकते हैं। मां चाहती हैं आज्ञा का पालन करें, पर अपने अहंकार को नहीं। कि हमारी आज्ञा बहत ही शक्तिशाली हो ताकि फिर आप दूसरों को आज्ञा दे सकते हैं। सिर्फ मानव जब लोग आपकी ओर देखे तो समझ जायें कि को ही नहीं बल्कि सुर्य, चन्द्र एवं वायू तथा संसार क्राइस्ट का पुनः जन्म आपके शन्दर हुआ है। की समस्त वस्तुओं को भी। इस आज्ञा चक्र से अराप प्रत्येक वस्तु का नियंत्रंण कार सकते हैं । यदि आप जानते हैं कि कोई आपको कुछ हानि पहुँचाने जा का स्वामित्व प्राप्त कर सकते है । आप वास्तव में परमात्मा आपको सदा सूखी रखे । रहा है तो आप उसका नाम अपनीो आज्ञा चक्र पर लं, वह वैसा नहीं कर पायेंगा। यह पार व्यक्तियों ॐ माता जी धी निर्मला माँ नमो नमः With Best Compliments From: SOUTHERN ASBESTOS CEMENT LIMITED Manufacturers of : "RAMCO" Asbestos Cement Roofing Sheets, Flat Sheets, Accessories, Gutter Fittings etc. HEAD OFFICE : NEW DELHI OFFICE: C, Front Portion Sagar Apartments, 6 Tilak Marg, FACTORIES: "Chordia Mansion", ARKONAM 739, Anna Salai, (Tamilnadu) Madras-600 002. KARUR New Delhi-110 001. (Karnataka) MAKSI (Madhya Pradesh) निमंला योग १६ 5 ॐ श्री माता जी नमो नमः 5 सहज दोहे ज्ञान विज्ञान में धेष्ठ है, सहज योग का ज्ञान । आत्म तत्त्व का ज्ञान यह, सब ज्ञानों का ज्ञान ।।१।। सब कुछ है मिथ्या, स्वप्न, जगत अभिमान । रत्मा हो सत्य है, तु केवल उसको जान ॥२॥ सहजयोग से आत्मा मिले, मिले सूष्टि का ज्ञान । कर विश्वास जो करे, होता उसका कल्याण ।।३।॥ निर्मला विद्या " ा" सत्य है, कर ले तु विश्वास । दे जीवन का अर्थ यह, करे क्लेश का नास ।।४ ॥ ि जीवन का सच्चा आनंद, सहज योग में समाय । अनंत आनंद के अरगार को, क्यों न लूटे आय ।|५।। मुक्ति का सुमार्गं यह, देता सहज प्रेम की नाव से, हो भवसागर पार ||६।॥ आत्म-साक्षात्कार । सहजयोग की नाव से, बैठ के जाबो पार |। इस पार बेठे पछतावोगे, आवे न अरवसर हर वार ।।७।॥। देर वंधु ने करो ! समय बीतता जाय । दोष अपने को देवोगे, पीछे रहोगे पछताय ।।८॥ दान दक्षिणा व्रत अरु, जप तप घ्यान योग । कर्मकांड, तीर्थाटन अब, क्यों करते हैं लोग ।8॥ सहज में हरि मिले, सहज योग में आय सहजयोग से दूसरा, कोई न और उपाय ।॥१०|॥| प्लि मंदिर, मसजिद, गिरजा इस तन को ही जान । आत्मा ही परमात्मा, ओर न दूजो भगवान ।।११|॥ है धमं । का ही सहजयोग मान्यतायें अब बदल गई, वदल गये अब कम ।।१२।। धर्मों सब निमंला योग २० जो रुलाये, नचाये, वस्त्र छीने, वदले वस्त्रों का रंग । धर्म वह है नहीं, है आडम्बरों का हो अग।।१३॥ आत्मा का दर्शन कराये वही है सच्चा धर्म । सहजयोग ही वह घर्म है, सब घर्मों का धर्म।॥ १४॥। मोहम्मद, नानक, महावीर, जीसस, बुद्ध, गणेश | सहजयोग ही में मिले, राम, कृष्ण, ब्रह्मा विष्णु महेश ॥१५/।। लक्ष्मी गौरी, राधा, सीता, सरस्वती, भवानी ही हैं निर्मला अंबा ।१ १६। मेरी, काली दुर्गा जगदंबा । सहजयोग से ही होंयगा, मानवता का कल्याण । और न दूसरा रास्ता, सहज सत्य को जान ।।१७॥ पुरजन, परिजन, सामान्य जन, कर सकते यह योग । सहजयोग के नियम सहज, होता नहिं भवरोग । १८॥। सहजयोग से सब मिटे, देहिक, दैविक भवरोग । डाक्टर, हकीम खुद अपने, बन जाते हैं लोग ।।१९।। ल धुम्रपान अरु मद्यपान से, होते लोग बेहोश | प्रेम पान कर सहज में, आ जाता है होश ।।२०॥ अपने अनुभव के अंश को, देते हैं बतलाय । "प्रभु का अंतिम निर्णय" यह, भलि भाँति समुझाय ।।२१॥ ॐ जय माता जी ऊ -सी० एल० पटेल निमंला योग २१ hot शारीरिक चिकित्सा एवं सहजयोग-(३) शराइये, वीमारियों के बारे में विचार करें । बोमारियोँ हम पर इड़ा अरथवा पिगला नाड़ी के जिसका उद्गम माँ से नहीं है वह सत्य नहीं है । माध्यम से प्रभाव डाल सकती हैं, कारण दोनों, विशेषकर इड़ा, अगरिणित प्रेतात्माओं (अस न्तुष्ट- मृतजीबों) द्वारा आक्रान्त होती हैं । माँ ही इन गुणों का सरोत हैं कुछ भी और अन्य देवी द्वारा सृजित प्राणगी होने के नाते हम उतकी आराधना करते हैं, किन्तु उनकी सन्तान होने के नाते हमारी सीधी पहुँच उन तक है | उनके चरणों में हमें हमारी समस्याएं, उलभने, जब शरीर के चेतनात्मक रक्षा स्थल (vibratory defences) दुर्बैल होते हैं, तभी दूर्बलता और समर्थताएं रखने की सुविधा उपलब्ध कोई बीमारी शरीर में प्रवेश पा सकती है । मूला- है, और वे मां की तरह हमारा पोषण, संगठन धार श्रर आज्ञा चक्र तथा बांया हुृदय शरीर के शक्तिशाली रक्षक विन्दू हैं। ये तीन चक्र विशेष रूप से उन देवताओं के स्थल है जो आत्मा, की सर्वोच्च सत्ता के साथ ऐसा सीधा संबंध रखना पवित्रता, सत्य और भौतिक जगत (matter) पर आत्मा की विजय, इन त्त्वों के बाचक हैं । इन तीनों में मूलाघार चक्र सबसे अधिक आधार भूत है । शिक्षा देती हैं और पूनः उत्क्रान्ति के मांग पर शग्रसर कराती हैं । ब्रह्मा्ड के उत्क्लान्ति शक्ति एक बहुत वड़ी बात हैं । कुछ दुृष्ट से हमारे अस्तित्व में जो कुछ भी है उसका यह साराश है । इसकी प्रतिष्वनि रूप में थी महालक्ष्मी ने जीसस क्राइस्ट को जन्म दिया और चरम सत्य के अन्तिम मूलाधार चक्र के ्वामी श्री गेश है । इनका सिंहद्दार पर प्रतिष्ठित किया प्रमुख गुरण माँ के रूप में आदिश क्ति के प्रति श्रद्धा है । यह देवी का बो पहलू है जो सार्वभौम (paramount) है मां के प्रति नितान्त संहारकर्ता, मुक्तिदाता एवं उसक्रान्तिकर्ता हैं श्रद्धो व विश्वास इसके सहचरी गुरण है और एक बुद्धिमान बालक यह जानता है, इसके अति- सन्तान पर न्यौछावर होने की मां की स्वाभाविक रिक्त ्ौर कुछ नहीं । बह यह भी जानता है कि प्रवृत्ति (instinct) है । एक श्रबोध, भोला बालक यह समझता है और अपनी पूर्ण थद्धा, विश्वास, (अर्थात देवी) द्वारा निर्मित प्रत्येक द्वार और मोड़- अपता पूर्ण हृदय उनके चरणों को समपित कर देता है । उसके साथ प्रवाहित होते हैं सरल, निष्छल श्रद्धा, प्रेम भक्ति, सहज व स्वतः जिसमें न अतिरिक्त ओर कुछ नहीं-केवल परमात्मा ही है । कोई विचार है और न कर्मकाण्ड । देवी इस विश्व की सृष्टिकत्त्ता, पालनकर्ता, । वह (ग्र्थात् देवी) मानव अस्तित्व के स्वयं उसी य विन्दू पर विभिन्न रूपों में तथा विभिन्न शक्तियों तथा गुरों से सम्पन्न खड़ी हैं। विश्व में इसके और जो व्यक्ति अपने विचार व चित्त को सांसारिक विपयों में लगाता है, चाहे वह विज्ञान अथवा जिस प्राणी का चित्त अनम्य रूप से मां पर साहित्य प्रथवा राजनीति या प्रन्य कुछ ऐसे ही प्रच्छे कहलाने वाले विषय क्यों न हों, बह कालान्तर में पवित्रता (chastity) आज्ञाकारिता और प्रेम अपने प्राज्ञा चक्र व मूलाधार चक्र दोनों को दुबल बना और सबसे बढ़कर पवित्रता (purity) उपजते हैं। लेता है। जो भी वस्तु आत्मा और उसकी महान इसका कारण है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एकमात्र शक्तिको प्रतिबिन्बित नहीं करती वह विकास के क्षेत्र केन्द्रित होता है उसमें स्वतः ही शुद्ध बुद्धि ज्ञान, निमंला योग २२ में कोई अर्थ (मुल्य) नहीं रखती और कालान्तर में छ्यक्ति को सन्तुलनच्युत कर देती है। उस परम को मानव रूप में जानने का हमको सौ- भार्य प्राप्त हुआा है और उनको इस साक्षात् स्वरूप जिस तरह वो हैं, पहचानने का सुअवसर श्राप्त हुआ है और उनकी यह सुअवसरग्रौर सौंभाग्य इतना महान है कि शब्दों में इसे प्रकट अरथवा माप (encompass) नहीं सकते । हमें अपना चित्त और भावना इस पर स्थापित शुरू में मैंने विभिन्न रोगों का पृथक पृथक वर्णन करने का सोचा था, किन्तु उससे चेतना सारभूत के स्थान पर गौरण वस्तुओं पर जैसा आप जानते हैं कोई भी असन्तुलन-ध्यक्ति को ढेर कर सकता है। का निरन्तर प्रवाह तथा उसका शक्तिाली बल (force) ही, जो जहां भी कुछ असन्तुलन होता है, पुन: सन्तुलित कर देता है, सहजयोग को स्थायो करता है, उसे अग्रसर करता है और उसे गतिशील करता है । सिर्फ कुडंलिनी मां उसे केरनी चाहिये । । चली जा एगी अत: मैं उसकी चर्चा न हीं करूंगा सारभूत तत्व है उनकी मानव का चेतना अथवा चित्त; जो निर्णय करती है कि व्यक्ति क्या है अरथवा क्या बनेगा । श्री माता जी ने कहा है कि जहां भी व्यक्ति की चेतना जाती है, वही (stomach) में प्रवस्थित है और जब उसे केन्द्रित वह बन जाता है । मानव में शक्ति के पीड़ (seats) किया जाता है, यह अनायास (effortlessly) भौतिक अरथवा स्थूल नहीं हैं, किन्तु सूक्ष्म व की स्निग्धता में से होकर सहस्त्रार में स्वयं अ-भौतिक है जो चेतना के सूक्ष्म तन्तुओं (fila- श्री सदाशिव के चरणों का स्प्श करके ऊप र चढ़ता ments) द्वारा परस्पर बंधे हुए हैं । यदि चेतना है और उसके बाद मानव जिन उच्चतम स्तरों पर निर्मल (pure) है तब व्यक्ति पर स्थूल दोष या वि- पहुँचने की आकांक्षा कर सकता है उनकी ओर कार (impurity) शपनाप्रभाव नहीं डॉलते । किन्तु अपना आरोहण क्रम (चढ़ना) चालू रखता है । यदि यह दोषपूर्ण (impure) है, तो कोई भी स्थूल अ्रतः अपने चित्त को व्यूर्थ न गंवायें । इसे निमंल निरमलता की स्थिति केवल अल्प-कालिक होती है और टिक नहीं पाती। विश्व में केवल दो ही वस्तु आक्रमण नहीं कर सकतो - प्रौर अरंघकार की कोई चिन्तन अथवा ध्यान करने योग्य हैं-परमात्मा शक्ति आपको परम सत्य (the absolute) और उसके चारों और व्याप्त उसकी शक्तियां । वास्तव में ये दोनों एक हो हैं और इनहोंने परम सकती । पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के रूप में अवतार लिया है । चित्त (attention) नाभि के माध्यम से उदर सुधुम्ना pure) रखे- और तब कोई बीमारी आप पर ( सत्ता की ओर आपके आरोहण को नहीं रोक जय श्री माता जी श्री निर्मला मात्रेय नमो नमः अब] हम अपनी स्थिति पर विचार करें। यह वास्तव में हमारे लिए बहुत ही वड़ी बात है कि हमें -डॉ० रुस्तम निर्मला बोग २३ जय श्री माताजी (जय गीत) जय जय जय मां ! तेरी जय जय कार । तेरी लीला अपरंपार ।। जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥ १।॥ ार तेरे हो गुण गायें हम । तेरे चरणों पर शोश भुकायें हम ॥ जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥२॥ सारी धरती पर तेरी विजय पताका लहराये । जय जय की ध्वनि से, गगन गूंजता जाये ।। ति जय जय जय मां ! ि तेरी जय जय कार ।।३।। जय भेरी बज रही है, शारती तेरी सज रही है। जय जय जय माँ ! तरी जय जय कार ।।४।॥ सब जन मिल कर, तेरी पूजा करेंगे। जय जय जय, गान करेंगे।। गुरण जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥५।॥ तेरे दर्शन से कटे सब भय पाशा, हो गई पूरी सारी आशा । जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥६॥ निर्मला योग २४ ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt fनिर्मला योग जनवरी-फरकरी 1984 वर्ष २ अक ११ द्ध मा सिक ० भ क भ ॐ तवमेव साक्षात् ्री कृलकी साक्षात्, श्री महत्रार स्वामिनी. मोक्ष प्रदापिनी माता जी. श्री नि मेला देवी नमो नमः ॥ न. ्ी की प 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt रव ा ी सम्पादकीय कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख हाथों में अक्षमाला, फरसा, गर्दा, बाण, बेज्र, पद्म, घनुष, कृण्डिका, दण्ड़, शक्ति, खड्ग, ढाल, शह्ख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करने वाली देवी आज हमारे मध्य पुनः साक्षात् निर्मल स्वरूप उपस्थित हैं, और वही कार्य कर रही हैं जो गतकाल में देवी ने सम्पत्न किया था । वाली महिषासुरमदिनी भगवती महालक्ष्मी, अपने हम सभी सहजयोगी धन्य हैं जो इस पुनीत कार्य अर्थात् परमपूज्य श्री माता जी के लक्ष्य में लेशमात्र भी सहायक हो सक । हमारा एकमात्र ध्येय और धारणा परमात्मा के इस पूनीत कार्य को पूर्ण करने की ही होनी चाहिए । श्री महिषासुरमदिनी श्री आदिशक्ति श्री माता जी श्री निमला देवी ॐ त्वमेव साक्षात् नमो नमः । साक्षात् निमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम पूज्य माता जो श्री निर्मला देवी डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : लोरी टोडरिक श्रीमती क्रिस्टाइन पैट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. ४५४८ बुडग्रीन ड्राइव वैस्ट बेन्करवर, बी.सी. बी. ७ एस. २ वी १ यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मॅशन सर्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पी. एच. श्री राजाराम शंकर रजवाड़े ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकोय २. प्रतिनिधि ३. घ्यान क्यों करना चाहिए ४. जय माताजी (मराठी में प्रार्थना) ५. आज्ञा (परमपूज्य माताजी द्वारा लन्दन मेंदिए गये भाषण का हिन्दी रूपान्तर) ६. सहज दोहे ७. शारीरिक चिकित्सा एवं सहजयोग- (३) 8. जय श्री माताजी (जय गीत) १ ३ १२ १३ २० २२ २४ निर्मला योग २ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt श्री माता जी नमो नमः -प्रभादेवी वस्बई 1 फरवरी, 1975 धयान क्यों करना चाहिये सहजयोग में सबसे आवश्यक Air:India वालों से कह दीजिये और कुछ कर बात ये है, कि इसमें अग्रसर हेते के दीजिये".. । मैंने कहा ऐसी कौन-सी आफत है ? आ्रप लंदन क्यो जाना चाहते हैं ? ऐो सी कौन सी आफत है ? क्या विशेष कार्य आप वहां करने । आप र चाहे कुछ भी न बाले हैं ? कौन सी चीज है? कहने लगे 'I must करे लेकिन अगर आप घ्यान में go there, I have to save time" (मुझे स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति जरूरी जाना है मूझे समय बचाना है) "time is very important" ( समय बहुत मूल्यवान है) मैंने कहा आखिर बात क्या है ? ये time बचा कर जैसे कि मैंने आपने कहा था कि एक ये नया भागे भागे आप वहा क्यों जा रहे हैं ? तो कहने रास्ता है। नया बायाम है। dimension है। नेई लगे "वहां एक special dinner है (विशेष ची ज है जिसमें आप कूद पड़े हैं। आपके अचेतन भोज) वो मूझे attend करना है, श्रीर उसके बाद मन में, उस महान सागर में आप उतर गए हैं, वहाँ पर ball है।" time ग्राप बना किसलिये | लिये, बढ़ने के लिये आपको ध्यान रना पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी हो सकती है । यात तो सही है । ले किन इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़गा। रहे हैं ? हर समय, अाप ये सोच लीजिये क जो हाथ में घड़ी बंधी है, ये सहजयोग के लिये ीर 'ध्यान के लिये है । और सहजयोग के ही कार्य के लिये मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हैं कि माता जी, ध्यान के लिये हमको time (समय नहीं मिलता है।" आज का जो अधुनिक मानव है, बांधी हुई है, मैंने उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं modern man है. उसके पास घड़ी रहती है हर समय time बचाने के लिये लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस चीज के लिए वबा रहा है ? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिये बनाई है ये वो जानता नहीं है। कभी भी नहीं बांधती । जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में वीतता है, उसको जखूरी नहीं कि आप घर का काम न कर । ये जरूरी नहीं कि आप दफ्तर का एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे काम न कर, सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में लंदन जाना बहुत जरूरी है। Plane (हवाई जहाज) से जाना ही है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया है। हरेक श्रीर क्रिसी ही चाहिये और कुछ कर दीजिये आप अ्रोर निर्विवार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसकी और इसी करें । ध्यानावस्थित होकर के कार्य हो सकता है होना काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं । और तरह मेरा टिकट बूक निमंला योग পc 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt संपूर ज्ञान परौर उसका सारा आनन्द आप को सभी लोग उतनी दशा में पहुँच सकते हैं या नहीं । ले किन जो कुछ भी बन पड़े बो इस जीवन में करना ही चाहिये। उपाजन का जितना भी समय समझने की बात है, ये लोग समझते नहीं हैं । है, वो इसी में विताना चाहिये । और जो कुछ भी इसलिये ध्यान के लिये अलग से time नहीं मिलता मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिये वाकी कुछ मिलने लग जाता है । है, झगड़ा शुरू हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती है और ग्राप घ्यान में चले हो या नहीं। अधिकतर लोगों को मैं ये देखती है इधर-उधर जाते हैं। निद्रा में भी अप सोचगे कि आप ध्यान की पवासों बातें करंगे, लेकिन ध्यान की बात, में जा रहे हैं। कोई भी चीज छोड़ने की या अपने मनशुद्धि की बात, अपने अन्दर के आनन्द कम करने की नहीं । लेकिन हमारी जो महस्वपूर्ण को उभारने की बात कितने लोग आप लोगों में से चीजें हैं-जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, बो करते हैं ? इसने ये कहा, उसने वो कहा, ऐसा हो बिलकुल ही महत्वपूर्णं नहीं रह जाती। और गया, ऐसा नहीं करना चाहिये था, बैसा नहीं जिसको हम विल्कुल ही विशेष समझते नहीं हैं, करना चाहिये था"-ये क्या सहजयोगी को शोभ- नोय होंगा ? जब प्रापके पास निर्विचार की इतनी बडो सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उधाड़ । ये तो आप जानते हैं कि क्षण-क्षण आप उसे पा रहे हैं; और हर क्षण उसे वो हमारे लिये 'बहुत कुछ हो जाता है । ध्यान करते के लिये एक छोटो सी चीज आपको देना चाहिये या नहीं याद रखनी चाहिये, कि जिस चोज पर ध्यान का आलाप छेड़ा जाएगा, जिस बीणा पर ये आप खो भी रहे हैं। ये हरेक क्षण कितना महत्त्व- गीत बजने वाला है, वो साफ होनी चाहिये । आप] पूर्ण है, इसे आप देखिये । कौन-सो छोड़ने की बात, वो बोणा नहीं हैं, अप वो आलाप भी नहीं हैं, कौन-सी पकड़ने की बात कोई भी ऐसी बात मैंने लेकिन आप उसको सुनने वाले हैं और उसको आप से आज तक तो की नहीं होगी। लेकिन ये बजाने वाले हैं। आप उसके मालिक हैं । इस लिये आपका भ्रम है । आपका मन प्रापको भ्रम में डाले अगर वो बीणा कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार दे रहा है। तो तुम क्या चर-गृहस्थी छोड़ दोगी ? जंग खा जाए, या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो मैंने आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिये। अगर वो ठीक नहीं हैं, तो अ्ापके जीवन में माधूयं कहीं प्रधिक मैं मेहनत करती हैं । लेकिन मैं धकती नहीं है। आप में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, झप तही है क्योकि मेरे अ्रानन्द का स्त्रोत प्राप लोग हैं । में एक अजीब तरह का चिड़चिड़ापन, अजीब तरह की रूक्षता (dryness) और विचलितता दृष्टिगत होगी । मुन्दर वर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती है ? आप जानते हैं कि आपसे जब आपको देख लेतो हूँ, बस खुश हो जाती हैं । तबीयत सारी बाग-बाग हो जाती है। जिस चीज का महत्व है, उधर दृष्टि रखिये । आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आ्रप यहीं बैठे रहिये ! जहां भी बैठे हैं, वहां बैठे रहिये- ये मतलब है मेरा । जहां भी जमे हैं वहाँ जमे रहिये प्रपने स्थान पर, अपने सिंहासन पर । एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैंठना देखना बहुत बड़ी चीज हो जाती है मेरे लिये । और वही मैं देखती है कि कुछ सहजयोगी गहराई से अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहज- योगी बहुत विवलित हैं । ये नहीं मैं कहती कि निमंला योग thc 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt लोग इसीलिये प्रगति करते हैं और कुछ करता है, आप खुद ही समझ लगे कि इस आदमी कुछ लोग नहीं करते । शारीरिक बोमारियां आप लोगों में कोई न कोई दूष्टता अ्रा गई है, तभी वो रोसी की, बहुतों की ठीक हो गई हैं । वहुतों के पास बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात हो न करता बीमारियां नहीं हैं। लेकिन अभी भी मानसिक वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, ईसमें कोई न कोई खराबी है । उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे प्रश्न हैं। सब बात । उससे लड़ाई-झगड़ा करने का अविकारी है। आपका जन्मसिद्ध हुक है, क्योकि की, उलभने की 'कोई जरूरत नहीं । वो अपने ये 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान करना ही होगा और वो भी सम्टि में लेकिन उसको organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें । उसकी व्यवस्था करने की कोई खराबो ्रा जाए तो आप किस तरह से उसे आप इतनी चिन्ता नहीं वो हो भी जाएगा। क्या हजे है अगर दस अदिमा आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही है । ज्यादा आए चाहे दस आदमी कम । हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कार्यदे के आदमी हों सो ही सहजयोग के लिये 'विशेष चीज' है । भूल जाइए। हर इन्सान इसका पाते आपकी वो पत्नी हो आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं अप ये भी जानते हैं कि श्रापमें कर । वो कीर्य हो रहा है, हाथ चला कर भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि असल में आपकी उंगलयों में ही ये सब जो भी देवता मैने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उंगलियों में श्रीर इस हथेली में, सारे देवता यहां आप उनमें से बनिये जो दस 'च्छे प्रादमी जागृत है। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत हैं। जो ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें ही संभाल के और जतन से रखना चाहिये । इनकी वह रहे हैं, उसमें श्रग्रस र हैं, और एक अग्रिम श्रेणी पूजा होनी चाहिये। अपने हाथ ऐसे होने चाहिये में जाकर के खड़े हो जाते हैं। जैसे कि हिमालय संसार कि पूजनीय हों। लोग ये सोचे कि ये हाथ हैं या में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दष्टि रहती गंगा की धारा ! गंगा ही की धारा बहें । जिस है। ऐसे ही आप बने । आप ही में आप] हिमालय वजह से गंगा पाबन हुई वही वाइब्रशन (चंतन्य बन सकते हैं और आप देख सकते हैं कि दूनिया आपके अन्दर से बह रहे हैं। जिस चेतन्य शक्ति से आप की ओर आख उठा कर कहे कि बन तो मैं सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह इस आदमी जेसा बन जो सहजयोग में इतना ऊंवा रही है, ये आप जानते हैं । उठ गया। ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हूं कीन कहां तक पहुँच रहा है। देवताओों का कहीं भी अपमान न हो। इन को बहुत फिर जिन हाथों से, जिन पाँव से ये बीज बह रही है, उसको 'अरत्यन्त पवित्र' रखना चाहिये। मे रा मतलब धोने-धवाने से नहीं है। इससे जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और प्रेम' से होना चाहिये। 'सबसे बड़ी' चीज 'प्रेम' है । आप ही अपनी रुक्रावट हैं। और कोई आप की रुकावट नहीं कर सकता । कोई भी दूनिया का आदमी आप पर मंत्र-तंत्र आ्रदि 'कोई' डाल सकता। आप ही अ्पने साथ प्रगर खराबो न करें और पहचाने रहें कि कौन आदमी केसी बातें और कुछ भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब चीज़ नहीं ध्यान में गति करना, यही श्रपका कार्य है, निरमुला योग ५ू 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt हो रहा है। और आप में से अगर कोई गए।" ग्रापके अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। भी जब ये सोचने लगेगा कि मैं ये कार्य करता प्रेम का पल्ला पकडा रहे, सिर्फ प्रम का-वाइब्रेशन और वो कार्य करता है, तब आप जानते बहुते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रम परमात्मा का जो कि मैं अपनी माया छोडती है और बहुतो ने उस है, वही बहे जा रहा है । और वही बह रहा है। पर काफी चीट खाई है । वो मैं करूगों। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि मैं ये काम करता हूँ या बो काम करता हूँ । "हो रहा है।" जेसे 'ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में- जैसे कि इतनी अद्भुत अनुभूति हैं, इतना अद्भुत समां आया हुआ है । क्या ये संब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आप ने इसमें पूरी लगन से मेंरा साथ नहीं दिया ? ये नहीं कहता कि मैं अपको प्रकाश सूर्य देता है। वो दे रहा है। क्योंकि वो एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने अन्दर से 'प्रति' सूक्ष्म शक्तियां बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आरप सूर्य हैं, आप एक "विशेष" मशीन हैं, जो बहुत हो सूक्म है, जिसके अन्दर से बहुने वाली ये सुल्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी ही, लेकिन अधिकारी 'नहीं होते । आप अधिकारी इसलिये दूसरों के भी अन्दर । उत्तके छोटे-छोटे, सूक्ष्म-सूक्ष्म जो हरेक बात आप स्तुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात वताने के लिये हमेशा तंयार रहती है । लेकिन थोड़ा-सा इसमें एक अप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे सोत लोजिये । क्योंकि आ्रप मेरे ध्यान में अआते हैं-जैसे मराठी में वहुत से लोग कहते हैं,-"जमून आले" इससे आप बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से जैसी मशीन नहीं होते हैं, कि अरपके अन्दर वो गहराई आ गई। बहुल पहलू हैं, जो छोटे-छोटे यंत्र हैं, मशीने हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे । जैसे एक घाषर है। जितनी गहरी होगी, उतना पानी उसमें समा जाएगा। अब अगर वो ये जो शक्ति है, ये प्रेम की शक्ति है। इस चीज नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वों का वर्णन केसे करू में अरप से ? इस मशीन को तो सब पानी निकल ही जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित होइये। ध्यान में जाइये । ध्यान में जो उनकी ोर देखते ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड- मगड कर के ठो क कर दें, कोई अাप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा लेकिन की रहे हैं। विचार आ मनुष्य मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है उसको बहुत ज़खमी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में । ही आप निर्विचार हो जाएंगे। नि्विचार होते हो उस अचेतन मन में- अचेतन, सुप्त चेतन नहीं बहुत दुखी है मानव । उसके जख्मों को प्रेम की कहेंगे-अचेतन मन में प्रपनी चेतना के सहित प्राप दवा से आपको ठीक करना है जो पके अन्दर जाएंगे आपकी चेतना आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहां [आप चेतना को जानेंगे ये दिन आपकी प्रम की धारा टूट जाती है, वाइब्रेशन पहलो मतंबा इंसान के शरीर के अन्दर हआ है, कि आप अपना भी शरी र जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं । और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके अन्दर क्या से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस रुक जाते हैं । बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माता जी हमको बाधा हो गई हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो हो रहा है। निर्मला योग ६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt इसका महत्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि,"माता जी, और आप] आराम से बैठ नहीं सक रहे हों, तो सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझगे समझ लेना चाहिये आपके मूलाधार पर ही चोट क्योंकि लोग पसों को बहुत मानते हैं।" पैसा एक हो गई है ये और भी dangerous situation भूते है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्व (खतरनाक परिस्थिति) हो जाती है। मूलाधार पर समझ तो बेहतर है कि आप न ही समझ । कोई जब चोट हो जाती है. उसका भी इलाज करा लेना भी पंसा देने से इसका महत्व आप नहीं समझ चाहिये। वो भी लोग जानते हैं, किस तरह से सकते । अपने को ही पूरी तरह से देना होगा और मुलाधार चक्र की ठीके करना चाहिये । वो देने में कितना मिलने वाला है। जो आ्राप सात गुने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल आपका शरीर अगर हिल रहा हो ध्यान में, 1. जानने को तो आप लोग मेंरे लेक्चर सुन-सुन के सबर शास्त्र जान लें, लेकिन मैं देखती है कि जो हूँ रनोग थोड़े हो दिन पहले आए हैं, वो आप लोगों से कभी-कभी बहुत जोरों में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं । ध्यान में समर्टि रूप में ही आप की आना क्योंकि ये पढाने लिखाने की बात है ही नहीं। जाएगा। द होगा, ये जरूरी है। चाहे महीने में एक बार ही आएं, लेकिन जहां सात लोग बैठते हैं, वहीं बैठ आप के हाथ अगर थरथरा रहै हैं, कंपकपा कर ध्यान करना चाहिये। चाहे आप अपना एक रहे हैं, तो भी समझ लेना चाहिये कि कुछ न कुछ छोटा ग्रुप बना लं जहाँ प्राप हफ्ते में एक बार मिल आपके अन्दर बहुत बड़ी खराबी हो गई है। उसमें सके और एक वार बड़े ग्रुप में मिलें । क्योंकि जूते मारने का इलाज सबसे अच्छा है। कल एक मैंने आपसे बताया था कि ये "विराट" का साहब आपने देखा होगा कि वहाँ कहने लगे कि "माता जी, मैं वहाँ एकदम जड़ हो गया। फिर । उनसे मैंने पूछा कि तुग्हारे गुरु कोन हैं ? तो कहने लगे कि उसको जागना है। जितना जागूत होता जाएगा, "एक भागवत् साo है पूना में ।" ती मैंने कहा वो वैसे-वैसे दोप जलते जाएंगे। आप लोग जो घर में क्या करते हैं ? तो कहने लगे कि "उन्होंने एक बहुत भी ध्यान करते रहें, मेरे आने के बाद आप Spiritual centre बनाया हुआ है, उन्होंने मुझे जानते हैं, कि माप लोगों ने पाया कि कुछ प्रगति दोक्षा दी।" मैने वहा दीक्षा क्या दी ? ये हिलने नहीं हुई। लेकिन यहाँ छः-सात दमी जो रोज की दीक्षा दी ? कहने लगे कि "मैंने सोलह साल में आते थे और ध्यान करते थे, उन्होंने बहुत प्रगति बोमारियाँ उठाई, मेरी नौकरी चली गई, ये हो गया, वो गया। मैंने कहा तुम्हारे अक्ल नहीं आई ? अगर तुम्हारे गुरू हैं, तो तुमको ये सब होना नहीं चाहिये । कितने रुपये दिये ? "प्रभी तक 5-6 तो समझ लेना चाहिये कि आज्ञा चक्र पर कोई चोट हजार रुपये दे चुका है centre को ।" मैंने कहा हो रही है । उसमें मानने की कोई बात नहीं प्रच्छा 5-6 हजार रुपये देकर के सारी बीमारियां है अपना [आरज्ञा चक्र अगर] खराब है तो उसे ठीक तुमने अच्छे से मोल ले लीं । फिर उसके भूत-वो कर लेना चाहिये। क्योंकि आपका आ्रानन्द कम जो भागवत् साहब थे उनको जुते मारे और वो जो उनका centre था, उसको भी जूते मारे तब कार्य है । मेरे सामने आकर यूं-यूं करने लगे जैसे शरीर का एक-एक अंग-प्रत्यंग जो है, कर लो । ध्यान में अगर आप की आँखें फड़क रही हों, बुरा क होता है । निमंला योग to 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt उनका हाथ उहरी और बो ठीक हो गए य । आप ही के सामने सब हुआ था, बहुत से लोग ओर छोटों को मान्यता चाहिये, बड़ो को मानना वहां थे । ये तो होना चाहिये। बड़ष्यपन चाहिये, बड़ा दिल चाहिये चाहिये। और छोटों में activity (कायंवाही ज्यादा होती चाहिये, बड़ों से। बड़े आदरणीय हों तो उनका आदर होगा पर बड़ों को आदरणीय होना चाहिये और छोटों को बड़ों का आदर करना चाहिये। लोगों से साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए कि आपके कोई न कोई गुरू हैं, आपके अन्दर कोई न कोई बाघा है । कोई न कोई गड़बड़ है, उसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं। अनादर तो वसे भी एक सहजयोगी का दूसरे सजयोगी से करना नहीं, क्योकि आप बोग सब देवता स्वरूप है । ये सब आप ध्यान में सकते हैं । आपसी] बातों से, दूसरों के बारे में परांतरिक्ता मे अंगर अप सोच तो आप फोरन ले किन मैं देखती है कि एक को जरा सी भी समझ बाधा पकड़ रही हो तो दूसराा बाधा वाला बराबर से वहां खिच जाते हैं एक साथ । जाता है ये सारे बाधा वाले साथ बठे हैं । ग्रसल में समझ लगे कि "प्रर भई उनका तो ये आज्ञा चक्र ऐसा वैठना नहीं चाहिये। उसके साथ में खड़ा हो जाएगा। लाइन और पता हो पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है।" "अरे भई उनका तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो सब को अलग-प्रलग बेठना चाहिये, अधिकत र; रहा है ।" "इसीलिये स्वर ठीक से नहीं निकल रहे जैसे कि कोई पुप बना लेते हैं । "बहुत" गलत बात हैं" जैसे कि ठाण वाले आए तो ठारण वाले साथ बुरा नहीं लगेगा। आपको "बुरा" नहीं लगेगा । दूसरों को भी है बंठ गए, फलाने आए-ऐसा नहीं बैठिये । वहुत जरूरी है। सब इकट्ठे होकर मत बेटिये । । प्रलग-अलग ले किन बुरा लगना यहीं "बहुत वड़ी वाधा है। मेरी भी बात का लोग बुरा मानते हैं तब फिर रों का क्या करंगे मेरी कोई भी बात का बुरा दूसरी बात ये है कि जैसे कोई बुड्ढे हैं, उमर नहीं मानना चाहिये । मैं श्रापके विल्कूल हित के में ज्यादा है, बुजगं हैं, कुछ बीच के हैं, कुछ छोटे ही लिये सारा काम करती हैं, ये आप जानते हैं। है। छोटे वच्चों को तो ऐसी कोई विशेष बात नहीं कोई भी वात की चर्चा होते वक्त ये देखना चाहिये हैं लेकिन जो बीच के और ये लोग हैं, ये सब कि हम सिर्फ यहीं चर्चा कर रहे हैं न कि 'हमारी अलग-प्रलग बैठ । जो वृद्ध हैं, वो जवान लोगों के कुण्डलिनी कहा है, हम कहा जा रहे हैं, करसे उठ रहे हैं। बाकी सव चर्चाएँ व्यर्थ हैं । 'हम घर्म में कहा चार पाँच जवान इकट्ठे हो जाएं तो भी आफत हो तक जागृत हो गए हैं । हम कितना पा गए हैं, जाएगी। ओर चार पाँच बृढ़े इकट्ठे हो जाएँ तो कितना आनन्द परमात्मा का लूट रहे हैं, ये ही भी आफत हो जाएगी। आप देख लीजिए, होता अनुभव आपस में बताना है और इसी को आपस है ! जबानी और बुढ़ापे की जो समझ है, दोनों में जानना है । [और बाकी सब व्यर्थ है । बाकी बाँटने की चीज़ हैं । वो भी सामूहिक चेतना में सब चीजों में मोन ही बेहत र ची ज है । जन इस श्राप बाँट सकते हैं। बड़ों को समझदारीं चाहिए, तरह के सहजयोगी हो जायेगे तो बड़ा अन्तर हो ए] बैठे । जो जवान हैं वो बूढ़ों के साथ बैठें साथ । wisdom चाहिये; ज़रूरी है "बहुत wise जाएगा। "बहुत बड़ा अन्तर" । र निमंला योग औ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt सहजयोग का प्रतिबिब आपसे फेलने वाला है । वहाँ पर subtle points होते हैं, Subtle centres (सूक्ष्म केन्द्र) होते हैं, उनको excite चीज होनी चाहिये। और उसकी प्रतिबिबित होने करने से वही काम होता है, जो नाक, की शक्ति अगर पूरी तरह से जाग उठे तब कोई भी कान, मंह और सव अपने शारीरिक जितने भी मुश्किल नहीं रह जातो। सहजयोग औरर किसी organs (अंग) हैं उससे होता है उसी सहस्त्रार चीज़ से नहीं - किसी भी चींज से नहीं- आप बड़े- को हम जागृत कर लेते हैं जो सारे शरीर को यहाँ बड़े organisations (संगठन) कर दीजिये, आप संभाले हुए हैं और प्रापको सारे ही-जसे सुगंध है -हरेक चीज़, नाक की कोई जरूरत नहीं है आपको । जाएं और music (संगीत) हो जाए-इससे नहीं फिर आप इ्वास भी यहां से ले सकते हैं । सारा का होने वाला । इन सब ची जों से कुछ भी तहीं होने सारा ही शरीर अगर भ्रष्ट हो जाए. तो भी आप यह से सब काम कर सकते हैं । ले किन (भ्रष्ट) होता नहीं । शरीर तो ्रापका खिलते ही जा रहा है। शरीर तो सुन्दर होते ही जा रहा है। बीमारियां तो भाग ही गई है। वो तो सब चीज ठीक हो ही गई। कोई थोड़ा-बहुत हो भी जाते हैं, और जिससे प्रतिबिंब पड़ता है तो एकदम 'साफ वड़े-बड़े मंत्र-जागरण कर दीजिये, और गाने हो वाला है। मैंने तो इतने कभी भी पार लोग देखे नही जितने आज देख रही हैं। ये "अहो" हमारा कि ऐसे मैं देख रहो हैं। किसी भी युग में इतने पार लोग, मेरी दुष्टि के सामने नहीं रहे। ये भाग्य है तो ठी क हो जाते हैं। परम् भाग्य की बात हैं। ध्यान में बढ़ने के लिये एक गुरण बहुत जरूरी लेकिन जैसा कि मैं कहती है कि modern (पराधुनिक युग) में पूरे साधु कोई time ( हैं। बहुत ही जरूरी है। उसको कहते हैं in- आप हो लोग पहले बहुत बड़े साधु थे और संसार में रमे हुए नहीं थे, जंगलों में रहते थे । आज आप ने संसार ले लिया है और संसार में ग्राप रमे हुए हैं। है कि छोटे बच्चे फट-से पार हो जाते हैं। चालाक लेकिन अपनी साधुता में उतरते ही क्या मजा आ जाएगा ! इस गंगा-जमुना में ही एक सरस्वती समझते हैं बस उनको परमात्मा की तो इच्छा नहीं बहना शुरू हो जाएगी। नहीं हैं । nocenceभोलापन. स्वच्छ, एक छोटे बच्चों जैसा-innocent child, इसीलिये पने देखा लोग, cunning लोग, अपने को जो बहुत होशियार होती बस अपनी होशियारी दिखाते रहते हैं, वो नहीं पाते। "पूर्णतया" innocent होना चाहिये कोशिश करनी चाहिये। ध्यान में जाते वक्त किसी भी तरह की बाहर की आवाज आपको भुल जाती है। अगर कान में भी आप उंगली डालें औौर सहस्रार अगर आपका पूरी तरह से किसी को दूख देना भी, किसी को तकलीफ देन। भी innocence के "विरोघ" में है । इतनी मरी हुई खोपड़ियों के ऊपर बैठ करके क्या हम innocent हो सकते हैं? किसी के हृदय में चोट लगे, वो ग्रादमी innocent नहीं हो सकता । innocent खुला हुआ है तो इसकी पहचान है-पूरी तरह से आप अँख कान को बंद कर लें, आप सुन सकते हैं। इसीलिये जो वो लड़के आए थे, जो सुनते नहीं थे, उनको थोड़ा-थोड़ा सुनाई देने लग गया। का मतलब ही ये होता है कि फूल की जैसे खिली तो हुई चीज जो सिर्फ दुनिया को सुगंध ही देती है। limbic area में-डाक्टर सब लोग जानते हैं कि किसी को भी तकलीफ़ या दुख देना नहीं चाहिये। अगर आपका सहस्रार खुल जाए, निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt हाँ, कभी-कभी लोग उनकी मूर्खता की वजह से किसी चीज को दूख मान लेते हैं-वो ठीक है । पर अपनी तरफ से आप निश्चित हो करके कभी भी किसी की दुख या तकलीफ़ नहीं देता चाहिये । चक्र पकड़ रहा है। क्योंकि आप लोग जो पार हो चुके हैं प को अच्छी तरह से माजूम है। उंगलियों पुर अरपको जान पडेगा, कौन-सी उंगली थोडो-सी जल रही है। जो भी आपकी उ गली जल रही है. उस पर आप बंधन डाल लें तो वो । छूट जाएगी प्रगर आपकी उगलियां ज्यादा ही जल रही हो तो आपके पास तो innocence का sWItch है नहीं। मैने देखा था कि देवे आप लोगों ने ऐसा कोई switch बनाया है [अग र हो तो बैसे innocence का switch दब लीजिये तो अप देखगे कि आपका आज्ञा चक्र एकदम "साफ़" ही जाएगा। पर innocence का switch अप जो है सहस्रार की ओर रखें । और जो लोग आज लोगों के पास है नही; दया का switch है नही, नुए प्राए हैं उनको भी देखना होग। कि बो पार हाथ भटक लीजिये, वो छुट जाएगा, आप जानते हैं। वंधन डाल दीजिये । ले किन निविचारिता की ओर रहें प्रौर चित्त शांति का Switch है नहीं। ये सब Switches आपके अन्दर अभी तक लगे नहीं है। पहले श्रप सब अपने देवता जगा दोजिये, अन्दर में जो बठे हुए हुए हैं या नहीं। उनको क्या खराबी है, उनको क्या तकलीफ़ है, वो निकाल देंगे। ये सारी तकलीफ़ जो है, ब ह्य है । हैं, फिर उसके बाद एक-एक सारे सब के switch भी लग जाएगे। ये भी एक बड़ा भारी समर्पण है जहाँ शक्ति दोनों side (तरफ) से आती है left and right sympathetic nervous system FT पर सबसे आसान innocence का switch का जो यहा ये expression है, उस रास्ते से। अऔर इसके बीच में ही सुषुम्ता नाड़ी innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे. जब छोटे थे । छोटे वच्चों के साथ रहते से innocence आता है। उनके साथ बातें करने से innocence ता है । उनकी वाते याद करने से बहुत innocence आता है जो लोग innocent है। ऐसा करते ही नाड़ी अन्दर चलना शुरू- हो जाती है। सुपुम्ना बहत पुषुभ्ना लेाकिन ये जागृत । अगर ये जागत नहीं है, इसका मतलब सूपुम्ना चल नहीं रही है। होना चाहिये हो जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधि कारो हो आर जागृत का मतलब ये है कि आपके अ्न्दर सारी उगलियों में से घीरे-घोरे ठण्डी-ठण्डी ऐसी हुवा आने लगेगो । अगर प्रापके अन्दर ऐसी उण्डी- ध्यान में सिर्फ अ्राप ही [अथनी ओर विवार करें ठण्डी हवा जा रही है ; पूरी तरह से आप हैं उस 'तरण्य में ध्यान में हैं तो आप वढ रहे हैं, आगे आप चले जा रहे हैं । जैसे कि आप aeroplane में बैठते हैं. आपको पता नहीं आप कहाँ जा रहे हैं, लेकिन आप कहीं पहुँच जाते हैं । निविचार कि मेरा मन इस वक्त में कौन-सी चालाकी में लग रहा है इधर-उधर । महामूखंता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते हो आप "निविचार"- "निविचारिता"-यही innocence है। जाते हैं । आप लोग अब जब ध्यान में जाएँगे, वहुत देर तक ध्यान नहीं करंगे हम लोग । जाते वक्त आरप सिर्फ ये देखें कि आप का कौन-सा जब तक हम यहां पर हैं, ये जरूरी है कि जो सहजयोगी आप लोग हैं, ज्यादा इसमें part ले किन ध्यान में निमला योग १० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt 'वे कार' की बातें 'पू्खों जैसी अपनी जो (हिस्सा) लें अ्रौर अागे बढ़े। और जाने के बाद भी अपना सम्ी-रूप खराब न करें । आपसी वेकार की कल्पनाएं हैं अपने वारे में उसको 'त्याग" दोजिये । बातें बोलने पर प्राप कुछ न कुछ दंड देखेंगे। जिसने बचखानापन है बचपना नहीं। child-like भी कोई सहजयोग के सिवाय अन्द र की बात के सिवाय बाहर की बात जरा भी करी, उसको दंड । बाहर की कोई भी बात नहीं करनी। अंदर ही की होता चाहिये childish नहीं। अब हम लोग ध्यान में जाएंगे। मैंने जैसे कहा है पहले अपने को प्रेम से भर लो। [आप जानते हैं मैं आप की माँ है। पूर्णतया आप इसे जाने कि मैं अपने -अ्रपने चक्रों को साफ करिये । उसमें आपकी साँ हैं । और मां होने का मतलब होता है जिसके जिसके चक्र कि सम्पूर्ण security है. संरक्षण है। कोई भी पकड़ हैं वो बाहरी चीज़ हैं । बिलकुल हिम्मत से चीज़ गडबड़-शडबड़ नहीं होने वाली। आप मेरी सारी सफ़ाई करके और नीचे डाल दे । जिसके भी ओर हाथ करिये। और घीरे-धीरे से अँख बन्द हाथ जल रहे हैं, निकाल दें। हमारे भी हाथ जल करके और अपने विचारों की ओर देखिये, आप रहे हैं-निकालियेगा नहीं तो क्या करि येगा ? बैठ निर्विवार हो जाएंगे। आापको कुछ करने का है हो नहीं। बप जैसे ही निर्विचार हो जाएंगे, बैसे ही बीत करें । कोई' शर्म की बात नहीं है। भी नहीं सकते । आप अन्दर जाएगे । और भी तरीके आप जानते हैं बहुत सारे, ध्यान में अपने को सफाई करने के। इसमें कोई बुराई की बात नहीं है, अगर मैं किसी से कह दूं से निश्वय हो कि किसी को कोई सी भी कि अप पानी में पंर डाल कर बेठिये औ्र इस चोट में नहीं पहुँचाऊंगा। और सब को प्रभु तुम तरह से निकालिये । इसमें कौन-सी बुराई की बात है ? इसमें ब्या बुरा मानने की बात है ? कितना और मुझे क्षमा करो क्योंकि मैंने दुनिया में बहुत पागलपन है, किस वात पर लोग बुरा मान जाते लोगों पर चोट की है। हैं ? वो सोचते हैं "माता जी ने क्या कह दिया। आप क्या कोई बड़े भारी saint ( सन्त) हैं : यानि बड़े-बड़े saint तक ये काम करते हैं, प्रापको करेगा। आप उससे कहेंगे कि "प्रभू शांति दो", तो पता नहीं है। पहले अपने से इतना बता दो कि आरज क्षमा कर दो, जिन्होंने मुझे चोट पहुँचाई हो। आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आपके साथ तुम्हें शांति देगा। लेकिन आप मानते नहीं हैं वांति। "संतोष दो" तो वो तुम्हें संतोष देगा, तो बो मांगते नहीं हैं । जसे मैंने कबीर दास जी के लिये कहा कि "दास कबीर जतन से ओढी" कबीर दास भी प्रपने लिये कहते हैं कि "मैंने जतन से ओढ़ी भई"-जो कि इतने बड़े महापुरुष थे । फिर आपको इसमें बुरा मानने की कौन सी बात है ? "मेरे अंदर सुन्दर चरित्र दो" तो वो चरित्र देगा । अब ्रार्थना का अर्थ है, क्योंकि आपका con- nection हो गया है परमात्मा से । जरा-सा किसो से कहा कि भई मटका लेकर आओ, तो बुरा मान गए; फिर इतना बड़ा-बड़ा मटका लेकर आते हैं। 'मेरे अन्दर प्रेम दो। सारे संसार के लिये प्रेम दो।" मुझेक माधुर्य दो, मिठास दो।" निमंला योग ११ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt जो भी उनसे माँगोगे वो तुम्हें देगा नहीं मांगो। अपने लिये ही माँगो मुझे प्रवने "मेरी बँंद को अपने सागर में समा लो। । ्और कुछ जय माता जी चरण में समा लो हे जगजननी फेडीन पांग सारे । येतील आरतीला है सान थोर सारे । धृ॥ "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो।" परमात्मा से जो कुछ भी प्रार्थना में कहोगे, वही होगा । समझदार करो। तुम्हारी समझ मुझे दो । तुम्हारा सहजयोग हा स्थापित केला जीवनमार्ग आम्हां दाविला "मुझे विशाल करो । मुझे आनंद गगनात न मावला अपूर्व हे घडले येतील आरतीला हे सान थोर सारे ।। १॥ सारे ज्ञान मुझे बताओ । "सारे संसार का कल्याण हो, सारे संसार का हित हो। सारे संसार में प्रेम का राज्य हो। उसके लिये मेरा दीप जलने दो । उसमें ये शरीर मिटने दो । उसमें ये मन लगने दो । उसमें ये दो " अधशरध्देला इथे न थारा दुर्गणांना दूर दूर सारा ठ्य सनांना हो लाथा मारा वाईट सारे विसरूनि जारे येतील आरतीला है सान थोर सारे ।। २ ॥ स्खपने हृदय बातें सोच करके उस परमात्मा सुन्दर से सुन्दर से मांगे । जो कुछ भी सुन्दर है, वही माँगो तो मिलेगा तुम असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे देता है । बे कार मांगते हो तो भी बो दे ही देता है। लेकिन जो असली है उसे माँगो, तो क्या वो नहीं देगा ? माते, तुझ्यापुदे मी राहीन नित्य तान्हा शरीरात सोड माझ्या आनंद लहरी नाना अव्हा तुझ्यामुळे हया जन्मास प्रथ प्राला मी सुदेवी हा योग मला लाभला रे येतील आरतीला हे सान थोर सारे ।॥ ३ ॥ --अजय कुमा र एस० चह्वाण (सहजयोग क्रेन्द्र, सातारा) यू ही ऊपरी तरह से नहीं, "गन्दर से", आरंतरिक हो करके मांगो। मी आनंद लूटाया आले, मी आनंद लुटाया आले ।। धृ० । माताजीच्या सुकृपेने जय अंबे, जय दूर्गे, निर्मल आईच्या पदकमली रमले ।। १।। चेतन्यलहरीची धार, अमृताहनही गोड मनोमनही फुलले । आईच्यथोवती सहजयोग्यांचीगर्दी वातावरण प्रियझाले।। माताजींच्या सु बनले ।। होवूनीयोगी पार प्रेरणने काव्य मला हे स्फुरले । --सौ० शालिनी जे० घाडगे सहजयोग क्रेन्द्र , सातारा निमंला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt आज्ञा (प० पू० माता जी श्री निर्मला देवी जी द्वारा १८-१२-१६७८ को केंव्सटन हॉल, लंदन में दिए गये भाषण का हिन्दी रूपान्तर) आज्ञा का अर्थ साक्षी भाव से है । आज्ञा की रचना मानव में उस वक्त हुई जच उसने सोचना प्रारंभ किया । भाषा-यदि भाषा नहीं होती तो हम सोच नहीं सकते । इसके पूर्व विचार सिर्फ ईश्वरीय प्रेरणा था । हमारे अन्दर विचार प्रकाश एवं छाया की तरह आते हैं। आत्मा-साक्षात्कार के पश्चात् विचार एक प्रकाश स्तम्भ की भाँति केवल प्रकाश और छाया के भिन्न अकार रूप में दण्यमान होते हैं। यह भाषा ही है जिसके कारण ये त्रिचार हमारे ऊपर हारवी (conditions) हैं । हम एक विचार से दूसरे विचार पर उसी तरह उछलते हैं जैसे कि समुद्र की लहरें किनारे तक जाती हैं श्रीर पुनः वापस आ जाती हैं। विचारों का यह तांता है। उसी प्रकार सारी पगला देने वाला भी बन जाता है। ये विचार कभी और आश्रय है । इस अवतरण में श्री ईसा तो अ्रच्छे होते हैं और कभी बुरे । यह चक्र धी ईसा मसीह जी का है । वे इस चक्र पर निवास करते हैं। वे ही साक्षात् महाविष्णु रूप में श्रवतरित हुए। वास्तव में क्रिश्चियन, उनके ऐसा होने के विषय में एकदम नहीं जानते कि कैसे वे क्राइष्ट बने और क्यों ईश्वर ने धरती पर स्वयं आकर अपना काम नहीं किया बल्कि श्री ईसा मसीह को भेजा। ये अत्यन्ति महत्वपूर्ण प्रवतरण हैं। वे सृष्टि के रचनात्मक तत्व हैं। श्री गणेश जी मूलाधार चक्र में निवास करते हैं और क्रमश: श्री गणेश ही आज्ञा-चक्र पर जेससे क्राइस्ट के रूप में उत्परिणत(evolve) हो गये। वे सृ्टि के मूल तत्व हैं। जैसे कि हमारा तत्व श्री कुण्डलिनी सृष्टि स्वयं तत्व मसीह सृष्टि रचना के तत्वरूप हैं जैसे कि परिवार में पति-पत्नी एवं वच्चे । पति-पत्नी एवं घर के सार तत्व बच्चे हैं। जब तक पति-पत्नी संतान नहीं पाते तव तक दाम्पत्य जीवन का कोई अहंकार (ego) हमारे माथे में वामभागी है जब कि प्रतिअहकार (super-ego) दाय भागों तात्पर्य ही नहीं । इसी तरह श्री जेसस क्राइस्ट है । हमारे अन्दर conditioning हमारे दाई भाग में हैं पऔर ये हमारे अन्दर भय एवं खतरे उत्पन्न आदिपिता (परमेश्वर) एवं आरादि मां (आदिर्शक्ति) करते हैं । भूत एवं भविष्य के विषय में कोई एक दूसरे से अलग हुए तब उनहोंने ॐध्वनि का विचार करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है- निर्माण किया । श्री जेसस क्राइस्ट इस तरह वही जानवर कभी नहीं करते । जब वे जानते हैं क्ि ॐशब्द हैं जो सारी सृष्ट के पालनकत्ता और कोई जानवर प्राता है तो ठीक है; इसमें सोचने को उससे अथिक आश्रयदाता है । क्योंकि वे सार तत्व क्या है ? मनुष्य हरेक चीज के बारे में सोचता है हैं जिसका कभी नाश नहीं होता । हमारा तत्व और यह भी सोचता है कि बेठकर सोवविचार हमारी आत्मा है । और आत्मा का कभी नाश नहीं करना बुद्धिमानी है । सोचने की क्रिया स्वतः होता। शरीर का नाश हो जाता है पर तत्व स्वेच्छानुसार होनी चाहिए-ईश्व रीय प्रेरणा की तरह । सोचना भूतों से खेलना है । प्रथम ध्वनि 'अ्रो३म के मूल तत्व थे । जब प्रात्मा) रह जाती है, उसका कभी नाश नहीं होता । ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतरण हैं। नि मला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt श्री जेसस क़्ाइस्ट हमारे आ्राज्ञाचक्र के मध्य में स्थित हैं : जहाँ पर ऑपटिक नाड़ी एवं आपटिक धलमस एक दूसरे को काटती हैं। यह एक अति- सूक्ष्म विन्दु है। यह दो तरह की ध्वनियां हम् ' (hum) एव (Kshum) 'क्षम्' - उत्पश्न करत है । हम (hum) दायीं तरफ़-प्रतिश्रहका र (super ego) में तथा क्षम् (kshum) वायी तरफ़ अहकार चंतन्य लहरियां भय को दूर भगायेँगी । इस तरह से आप हम का उच्चारण करके परमेश्वर की सहायता पा सकते हैं । अहंकार एक दीर्षकाय समस्या है । इसका समाधान दूसरों को क्षमा करना है। आपको क्षमा करना सीखना चाहिए। यदि कोई आपसे आहुत (ego) स्थित है । 'हम् एव 'क्षम' दो तरह की सक्षम हए हैं ती प्रापकों क्षमा मांगना चाहिए। अत्याधिक लहरियां उत्पन्न करती हैं। हम शब्द में हैं, मैं हूँ की लहरियां उत्पन्न करती हैं। हमारी अस्तित्वा- म के शक्ति से 'हम् शक्ति अ्राती है। जिससे जानते हैं कि हमें इस दुनियाँ में रहना है प्रौर हम हृदयश्रापकी श्रात्मा है। अत्यधिक अहंकार आपकी मरने नहीं जा रहे हैं । कोई भी मनुष्य जो अपनी हत्या स्वयं करना चाहता है वह सामान्य नहीं कहा यह मरापको बुद्धिहीन एवं मूर्ख बनाता है। आप जा सकता। हम' अर्थात् 'मैं हैं की शक्ति से ही, अहंकारी व्यक्ति को जान जायेगे जब वह अपना ही साधारणतया प्रत्येक जीवधारी, चाहे मानव हो या पश, प्रपने जीवन को अक्षण्ण बनाये रखना चाहते शीघ्र मु्ख भी बन जाता है। ऐसे को जो हैं, मरना नहीं चाहते। प्रतिअहंकार (super ego दाहिनी तरफ है । सारी चीजों के कारण आप बहुत condi- को कपा हो गया ? मनुष्य अहंकार के चक्कर tioned हो गये हैं; असर के फलस्त्ररूप अप चिन्ता में इतना महान मुर्ख बन जाता है कि वह का अनुभव करते हैं र आप में यह भय उत्पन्न ईश्वर की सत्ता तथा अपना ईश्वर से सम्बन्ध करते हैं । यह आपके पुराने अनुभव व भय अ्रापके को भी भूल जाता है। अहंका र महोदय" हमें अन्दर प्रतिअ्रहंकार में बैठ जाते हैं और यह भय आपकी अमावा (amoeba) अवस्था से शुरू किसी देश में ऐसे कानून वनाना कि जामाता होकर आजतक प्रतिश्रहकार (super ego) में अपनी सास से शादी करे । यह एक असंभव चीज सचित है जिसके कारण से अ्रप पूलिस आदि से है क्योंकि सास, मां है । यह कार्य निष्कृटतम है । भयभीत हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इनसे अहंकार के चक्कर में यह भी जानना कठिन है कि भय नहीं खाते परन्तु किसी और ही वस्तु से भय खाते हैं। आपकी परिस्थितियां चाहे जसी भी हों, वह हमें हमेशा मूखं बनाता रहता है। आपके सब पुराने अनुभव प्रतिश्रहुकार में हैं । यह केन्द्र 'हम्, हममैं हूँ-मैं हैं आप है, धबबड़ाय नहीं अधिक अरहंकार में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । महा- *का संदेश भेजते रहता है। अहकार का अर्थ है कि आपने उसे अ्रधिक मात्रा में लाड़ देकर बिगाड़ (pampered) दिया है। प अपने हृदय में विनब्र होइये । आपका हम आत्मा को उक लेता है, आवरण कर लेता है। ठठो रा पीटने लगता है और फलतः अपने आपही मनुष्य ) समझते नहीं, बो लोग स्वतः आश्चर्य में पड़ यह प्रति अहकार बहुत जायेंगे, विशेषयता बालक वर्ग, कि उस मनुष्य मूरखतापूर्ण कार्य करने को प्रेरित करते हैं जैसे वह (ग्रहकार) हमें कसे मूर्ख बनाता है, जब कि सोचने विचारने से भी अहंकार बढ़ता है । अहंकारी का व्यवहार इतना बचकाना होता है कि आयु का कोई लिहाज नहीं होता। बच्चे सोचते हैं हमारे माता पिता इतने मृर्ख क्यों हैं जबकि हम ईश्वर खोज में तत्पर हैं । हो सकता है कि महायुद्ध आप अहंकार एवं प्रतिप्रहुंकार में अन्तर देख सकते हैं । एक आक्रामक है तो दूसरा अधीनस्थ एवं भय उत्पन्न करने वाला । 'हम् कहने मात्र से निमला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt के कारण वे क्षुब्ध् हो गये हैं आहंकार एक ऐसी महीने में एक बार भी नहीं, यहाँ तक कि वर्ष भर के विषय में सोचने को में एक बार भी नहीं। क्रिसमस दिवस के त्यौहार पर भी आप क्षमा याचना नहीं करते हैं, बल्कि आप तो मदिरा एवं अन्य मादक वस्तुओं को होजाता है क्पोंकि परियोजना के अनुसार यात्रा नहीं पान करते हैं । कभी कभी अहंकार, प्रतिभ्रहंकार हो सकती । एक बुद्धिमान आदमी हतोत्साहित नहीं पर इतना अधिक दबाव डालता है कि अन्य लोग होता, जैसे होताजाता है, वो उसके प्रनुसार चलता है आपके क्रर एवं पीड़ादायक शब्दों से आहत हो अहंकार महोदय कभी यह नहीं चाहते कि आप] जाते हैं । जिस तरह से संसद में सदस्य अ्रापस में सुखी एवं सुविधा पूर्वक रहें। ये हमेशा विचार देते वात करते हैं वहू बहुत ही बुरा है। वैसा तो अहुंकार एक दूसरे से टकराते रहते हैं । वे आपस में हमेशा कहते रहते हैं मैंने यह किया, वह किया पर वे अ्रानन्द को प्रात: काल से संध्या तक क्षमापार्थी बने खो चुके हैं । तर्क-वितरक महामूखंतापूर्ण व्यवहार रहें और अपने दोनों कानों को खतीचे और का संकेत है । यह आपको किसी भी ज्ञानार्जन की कहें कि हे परमात्मा हमें क्षमा करें । प्रात: काल ओर नहीं ले जा पायेगा वल्कि केवल अहंकार की वस्तु है जो प्रत्येक वस्तु वाध्य करती है जैसेकि यात्रा के पहले ही पहुं चने के बाद की परियोजना, अ्रर यात्रा का मजा किरकिरा रहते हैं कि यह करो, वर्वाद न हो जायें । यहंकार से कोई फायदे नहीं । जानवर भी नहीं करते । वह करी, ज व तक कि आप ही पुष्टि करेगा । करते से सायंकाल तक उस का स्मरण रहें। सद। याद करने से, जेसस क्राइस्ट आपके अहंकार को नीचे ले आयेंगे । उन्होंने आपके लिए हरेक संभव प्रयत्न किया ताकि आप अपने अहंकार ओोत-प्रोत है। पश्चव मी समाज का अहंकार यह है कि का विकास न होने दें । वे एक बढ़ई के साधारण उन्हें अद्धंविकसित देशों का पथ प्रदर्शन करना है। घर में पेदा हुए थे और बढ़ई के पुत् के रूप में वे यह पूरारूप से डींग से भरा पड़ा है। लोग अच्छे साधारण रूप से पालपोसकर वड़े हुये थे। उन्होंने अपने को प्दे के पीछे रखा। वे रोमन सम्राट के दौड़ते रहते हैं। अच्छा स्वास्थ रखने के लिए रूप में भी जन्म ले सकते थे । परन्तु उन्होंने बहां पागलों की तरह कार्य करने की आवश्यकता नहीं जन्म लिया जहां एक सामान्य पुरुष भी जन्म लेने है। आपको चतुर एवं प्रतिभावान व्यक्ति वनना से हिचकिचाते हैं । परन्तु वहां प्रकाश भी था और होगा। अच्छे स्वास्थ के लिए विवेक की अत्यन्त आनन्द भी था। हमने आनन्द को खो दिया है आवश्यकता है न कि अहंभाव की तथा उससे क्योंकि हम ईश्वर को भुल गये हैं । ईशवर प्रेम प्रर प्रभावित अन्य अहंकार प्रभावित वस्तुओं की आनन्द हैं। लोगों के पास प्रचुर मात्रा में समृद्धि जैसे अ्रपकी दौलत आापकी कार, मकान आदि का और धन है फिर भी वे खुश नहीं है । आप उनसे प्रदर्शन की । वे बिल्कुूल जोकर की तरह से हैं। जो कुछ भी कहेंगे वे अरप से क्रूद्ध हो जायेंगे वे चाहे घर में खाने को न किन्चित्मात्र भी सामान्य मानव नहीं है, वे अवश्य रखेंगे । ये सब वस्तुएं के वल अरकार को रोगी हैं। समस्त परिचमी समाज अहं ( ego) भावना से स्वास्थ के लिए पागल संसद सदस्यों की भांति ही परन्तु एक बड़ी कार ही फुलाकर पुष्ट बनाती हैं । समस्त विज्ञापन अहंकार को ही परिपुष्ट करते हैं । जब आप प्रकृति क्षमा याचना कोई कठिन कार्य नही है। हम के विरुद्ध लड़ाई छेडते हैं तो आपके अन्दर अहं तो दिन में एक बार भी याचना नहीं क रते । एक का विकास होता है हम अहंकार के बिना जीवन निर्मला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt निमंल एवं सुखद बनाने के लिए उन्हें स्थिर एवं सुदृढ़ करना होगा। [श्राँखों को सुखद बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज हरी हरी घासों पर दुष्टि डालते हुए रखना है। इसीलिए थी क्राइस्ट चलायमान एवं अपवित्र श्रमखों ईशवर में विश्वास खो दिया है, क्योंकि जो ईश्वर के संबंध में चर्चा की है । अ्रतः प्रत्येक पुरुष के ठेकेदार हैं वे उदृण्ड हैं अऔर अत्यधिक अहंकारी एवं स्त्री को ध्यान देन चवाहिए कि कोई अपवित्र हैं। औ्र अहंकारी को ईश्वर के बारे में सोचना पखे न रखे- ऐसा श्री क्राइस्ट ने कहा। आपको असंभव है। अहंकार एक पानी के बुलबुले की अत्यन्त गहन, गंभीर और प्रेममय होना है। आप को पाते हैं। तरह से अधिक फूलने पर फट पड़ेगा। अहकार यदि अ्रपकी आँखें बन्द हैं तो य्रापके विचार भी अवश्य नष्ट होगा। अतः अरहंकार को तोड़कर ही कम होंगे क्योंकि आपका चित्त बहुत सो चीजों को प, जो साकषात आत्मा हैं, अपनी त्मा में बढ़ नहीं देख पायेगा। यदि आपकी प्राखें खुली हुई हैं सकते हैं । हम लोगों को क्राइस्ट से सहायता तो ज्यादा विचार प्रायेगे क्योंकि सब जगह के संबंध में कुछ सोचते हो नहीं। "मैं, मैं, मैं'" ऐसे बातचीत करना, अपने विचारों की प्रधानता देना, अशिष्टता है । आप कोन हैं? मैं शाश्वत अमर आत्मा हैँ। हमने ने चंचल, भाँति क्षणभंगुर एवं एक फूले हुए गुब्बारे की अपनी आ्रंवों के द्वारा ही विचारों मांगनी होगी क्ाइस्ट ने अपने को सूली पर चढ़़ा आपकी नजर जायेगी शर साथ ही आपका चित्त दिया । ऐसा क्यों किया ? उन्होंने क्या किया ? भी। इस तरह आपके खाते में और अधिक विचार उन्होंने सिर्फ रोमनवासियों एवं यहूदियों के संग्रहीत होते जाते हैं और अधिक विचारों की अहं कार को चुनौती दी । यही कारण था कि उनको सूली पर चढ़ाया गया था औ्रर अब हमें अपनी अहंकार को उनके क्रॉस के माध्य म से सूली रचना भी होती है। अपना चित्त हमेशा अपनी आत्मा एवं ईश्वर पर चढ़ाना पड़ेगा, वरना हम भी वही करने जा में लगाना है क्योंकि उसे ईश्व रोय झरोसे से रहे हैं । अर्थात् हम अ्रपने अरंकार में श्री क्राइस्ट ही चमकना है जिस तरह से हम अपनी पवित्र को आपटिक बलमस पर, जहाँ वे रहते हैं, सूली पर आँखों का दुरुपयोग कर रहे हैं और उसका असम्मान कर रहे हैं, उस तरह से हम इस सुन्दर करना होगा अहंकार को सूलो पर चढ़ाने के लिए। चीज ( आजञा, चित्त) को नष्ट कर रहे हैं । भूमि पर जमी हरी हरी घास के जैसी पवित्र कोई अन्य प विचारों से परे हैं आज्ञा एक बहुत ही चीज है ही नहीं। अत: हम लोगों को अपनी दृष्टि महत्वपूर्ण चक्र है । जब कुछ्डलिनी आज्ञा चक्र को कों हरी घास से भरपूर पृथ्वी माता पर रखनी पार करती है तब आदमी निर्विचार हो जाता है । चाहिए न कि वृथा लोगों की ओर घूरते रहें । की। चढ़ाने जा रहे हैं । [आपको श्री क्राइस्ट को जागृत आपको निर्विचार अवस्था में रहना होगा । क्योंकि यहाँ तक कि अहंकार एवं प्रतिप्रहंकार से भी कोई विचार नहीं आता । जब प्रापकी अपविश्र प्रखिें इधर उधर चलाय- सुदृढ़ बनाना है । [आज्ञा हमारे आपटिक एवं मान रहती हैं तो कोई भी बाह्यसत्ता जिसे हम सह जयोग में बाधा कहते हैं, आपके अन्दर घुसपठ कर सकती है। प्रीतिभोज आदि के अवस रों पर यह कहा जाता है कि यदि अापकी ओल चचल जब चित्त वाहर की ओर इवर उघर भागता रहता एवं चलायमान हैं तो आपका आज्ञा चक्र भी च चल है, उस काल में बाह्य बाधाएं आसानी से हमें अपनी शरज्ञा चक्र को थलमस नाड़ी के संधिस्थल पर स्थित है । एक एवं चलायमान होगा। आपको अरपनी आंवों को दूसरे के अन्दर आदान प्रदान करती हैं। हमेशा निमंला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt हम यह भी नहीं जान पाते कि हम आकर्षण क्यों सही है तो आपकी आँखें भी बिल्कुल सही हालत में महसूस करते हैं। किसी व्यक्ति पर दृष्टिपात करने होंगी ऐसो पविव्र अांखें जहां तक जायेंगो, वे प्रेम के से कुछ भी प्राप्ति नहीं होती है बल्कि केवल হक्ति अतिरिक्त अनत्य कुछ नहीं प्रदाशत करंगी। का ही हास होता है । अपवित्र दृष्टि एवं चंचल स्थिति में अपनी आँखों से देखकर ही आप अबों वाले मनुष्य का पागल होता अवश्यम्भावी है । हमारे अस्सो प्रतिशत विवार प्राँखों के ही हसरे की कुण्डलिनी को जगा सकते हैं; लोगों माध्यम से प्राते हैं । अत: व्यर्थ एवं निरर्थक क्रियायें के रोग निवारण कर सकते हैं शऔर छोड़नी पड़ेंगी। श्री जेसस क्राइस्ट के वि चारों को हुए व्यक्तियों को आनन्दमय बना सकते हैं । ये आदर सम्मान देना होगा उन्होंने एक वेश्या का श्रांखें अपके व्यक्तित्व की खिडकी हैं। आपकी उद्धार किया था । एक अच्छी महिला को बुरे विचार देकर आप ब्वाद करते हैं । अछुतो पवित्र छोटी बालिकाएं आपकी गंदी नजरों से दूषित है। प्रांखें फैल जाती हैं। एक पार हुए व्यक्ति की जाती हैं। श्री क्राइस्ट ने जो करा उससे एकदम आप विषरीत कर रहे हैं। क्या राप वेश्या बनना नाहते है जिससे श्री क्राइस्ट पुलः प्राकर हमारा उद्धार करं । यह व्या हो पागलपन है। जैव प्राप है। यदि अपकी श्रीं्वं पवित्र नहीं हैं तो आपकी पार हो चुके हैं और फिर आप किसी पर अपना चंचल, दुष्टिपात करते अकस्मात ही पीड़ा अनुभव कर सकते हैं । या महसूस कर सकते हैं कि किसी ने ा9के सिर में करना होगी। हमे अपनी आँखों का आदर करता कंकड़ मारी है । आप ऐसा अनुभव कर सकते हैं कि कोई आपको अन्वा बना रहा है। अ्रतः आप को जानना चाहिए कि आपकी शँखें कितनो महत्वपूर्ं है दो प्रकार की मानसिक यातनाएं होती हैं। हैं । किसी तरह की नाडी दौर्बल्यता संबंधी रोग मनोवेज्ञा निक न तो किसी की मानसिक बीमारी को ठीक किया जा सकता है यदि आपकी आँख को ठीक कर सकते हैं और न शांति ही प्रदान कर पवित्र हैं। ऐसी बर्बाद आपके अँखों के माध्यम से ही आत्मा देखतो है और जब कूण्डलिनी उठती है तो आखों में और विना पार हुए व्यक्ति की ँखों में जमोन आसमान का अन्तर होता है। एक पार हुए व्यक्ति की अखि हीरे की तरह चमकती हमें हैं तो आपके विर में अत्मा आपकी आँखों से नहीं दिखलाई देगी। अपने मन की समस्त अशुद्धियों को निकाल बाहर होगा । मनोवेज्ञानिकों का आज्ञा वहुत ही ख राव होता सकते हैं । एक तो वह जिसमें लोग आपको बहत सताते हैं अपको किसी का भी दास नहीं बनाना यह एक ऐसा विषम चक्र है कि समस्त चाहिए । आपको क्रास भी धारण नहीं करना बुराइयाँ आज्ञा चक्र में एकत्र होती हैं और आपको चाहिए ; क्रास घारण करना क्राइस्ट के संबंध में अपनी आँखों को स्वच्छ रखने के लिए अपनी आज्ञा को साफ करना होगा। हमें क्षमा प्रार्थना करनी की कोशिश करे तो आपको उसका पूर्णरूप से होगी। हमें श्री क्राइस्ट को अपनी आज्ञा में लाना परित्याग करना चाहिए । आपको कहना होगा। हमें समस्त मादक दवाओं र चीजों का चाहिए. "हम्-मैं हैं। इस सृष्टि में अप किसी परिस्याग करना होगा, जो कि सहजयोग में पर अधिकार जताने वाले होते ही कौन हैं ? ऐसे स्वाभाविक रूप से छुट जाता है । औँखें हमारे लोग समस्त व्यक्तित्व मस्तिष्क, शरीर तथा अन्य हमें अपने आत्म सम्मान के साथ ऊपर ववों का प्रदर्शन करती हैं। यदि आरापका आज्ञा चक्र गलत धारणा है। यदि कोई आपको दास बनाने अपने कत्तंव्य से मूख मोड़़ने वाले हैं । उठना है । निर्संला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt दासत्व से उल्टा है परन्तु दोनों के मध्य में प्रम है। हरेक क्षण छोटे मीठे बन्धनों से भरपूर है। यदि पति अपनी पत्नी से कूछ खाने की इंच्छा प्रकट करता है और पत्नी जी चुराती है जबकि वास्तव में पत्नी को जो व्यक्ति जेसस काईस्ट के स्तर के होते हैं और वास्तव में क्रास धारण करते हैं पीड़ित हो ही नहीं सकते । वो तो प्रत्येक मानव अपना आत्म-सम्मान रखता है। र प्रत्येक को अपनी आत्मा का सम्मान करना खुश होना चाहिए और उसे चाहिए कि गुभ वह उस छोंटी मांग की प्रमपूर्वक पूर्ति करे । आपस है जो उसके अन्दर है चाहे आप किसी देश के रहने वाले हों या किसी मत के मानने वाले हों, मे झगड़कर प्रप क्या पा सकते हैं ? इस तरह का किसी का भी अधिपत्य आत्मा पर नहीं होना सुखापन, अर्केलापन एवं शूलता हमारे अन्दर है, चाहिए। ये सब ईश्व र के साम्राज्य में ट्ूट जायेंगे। कोई भी किसी की अआत्मा पर आधिपत्य जमाने का अ्धिकार तहीं रखता। आप नहीं जान ते कि परपनी कर रहे है बल्कि पा ही रहे हैं श्रेष्ठ जीवन स्वतंत्रता का उपयोग दूसरे पर अधिकार जमाकर नहीं हो सकता । आप दूसरे की आत्मा पर सुखी होना चाहते हैं तो आपको बास्तविकता प्रमुत्व दिखा रहे हैं उनके जमीन, जायदाद और पुर शराना होगा। दोस्तो हम किस प्रकार की रिश्ते- सम्मत्ति पर अधिपत्य जमाकर । आप ऐस या दारी रखते हैं ? उदाहरणत यदि हम क्रिसमस काड वैसे दोनों तरह से अपनी ही आत्मा के नहीं पाते तो हमें बुरा लगता है, अन्य लोगों के उससे तो कोई फायदा नहों। यदि अाप थेष्ठ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो आप कोई बलिदान नहीं बनाकर । सत्य को कहा ही जाता है। यदि आप मध्य में खड़े रखकर सिर्फ श्रने को देखिए । झर वघन में अने का प्रयास करें। आप दूसरों से आप देखेंगे कि आ्राप सि्फ प्रम की ही वर्षा दूसरा पर प्यार करना आरंभ कीजिए, घवडा इये नहीं। ग्राप चकित हो जायेंगे कि वे कितना आपको कर रहे हैं। यदि आप स्वयं एक दास हैं तो आप कैसे दूसरे से प्रेम कर सकते हैं ? अ्र्थात् कभी आप प्रम नहीं कर सकते । प्रेम अपनी सीम।एँ रखता है जोकि अत्यन्त मृदुल और सुन्दर है । आपको प्रेम अपनी प्रज्ञा ( में उनके साथ रहना होता है। यदि एक नम्हा प्रतिभा को उन्मुक्त बालक आपके घर आता है, वह [आपके घर को भीतर को कलुषित करते हैं उन्हें बाहर निकाल खराब कर देगा उस बच्चे को बैसा करना चाहिए फेंकिए । पेड़ पौधों को प्रेम भरी नजरों से देखने और आपको उसका आनन्द उठाना चाहिए। यदि का प्रयत्न कीजिए और आप पायेंगे कि वे पेड पौधे आपकी स्वतंत्रता, बच्चे के चिल्लाने से आधात आपको सृष्टि की रचना का अरानन्द देना शुरू कर अनुभव करना है तो आप बुद्धिमान मनुष्य नहीं है। देते हैं क्योंकि आप निर्विधार हो जायेंगे श्और सृष्टि- वह भपकी कोरी मनमानी या अकेलापन है । इस तरह आप अपने को उस अपने बड़प्पन से, उस परम पिता परमेश्वर से अलग रखते हैं क्योंकि आप दूसरों की स्वतंत्रता को बर्दास्त करने की क्षमता नहीं रखते । हमें स्वतंत्र होना है अर्थात् जब एक नन्हा बालक अपने घर में ही नहीं चल्ला सकता, हैं वैसा नहीं है जो अपने मन के मुताबिक खा पी नहीं सकता तो यह कि आपने पब्लिक स्कूल में सीखा है । प्रत्येक किस प्रकार की स्वतंत्रता है। यह भ्रम है । यह दरवाजे पर सबवत्र सुन्दरता विखरी पड़ी है, देते हैं । आपकी मां, इसका जीवित उदाहरण हैं । wisdom), विवेक-वुद्धि एवं कीजिए । जो बाहर एवं कत्ता जिसने उस सुन्दर वृक्ष की रचना की है, उसमें संचित सम्पूर्ण आनन्द को उड़ेलना शुरू कर देता है । प्रत्येक मानव असीम आनन्द का एक भण्डार है। इसे वृथा मत गंवाइये, इस लिये कि या तो वह उचित कपड़ों में सुशोभित नहीं है या जैसा [आ्रप [चाहते निमंला योग १८। 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt के लिये एक चालाकी है । जो कुछ भी आ्रप अपनी आज्ञा पर व हते हैं उसका आदर किया जाता है और निर्मल होना उसे प्राप खोयें नहीं । पर यदि श्रापमें प्रत्ये वस्तु पर स्वामित्व की भावना है तो आप इसका आनन्द एकदम नहीं उठा सकति-उस समस्त पर आपकी आज्ञा को ा सुन्दरता का भण्डार जोकि प्रत्येक मानव प्राणी होगा । आपकी अराज्ञा पर श्री क्राइस्ट को विराजमान होना होगा। क्योंकि आपके अन्दर शुद्ध में है, प्रत्येक क्षण हिलोर ले रहा है । एक महान आवार का जाग रग हुआ है जो समस्त अणुओं परिमाणुओं में व्याप्त है और सबवत्र, जब माताजी हम लोगों को क्रिसमस की शुभकामना देती है तो वह समय रज्ञा-चक्र के लिये सब जगह बसा है। अतः आप अपनी आज्ञा बहुत शच्छा क्षण है। प्रत्येक को जानना चाहिये पर पूर्ण स्वामित्व करलें जोकि आपका स्वामी कि क्या आज्ञा देनी है अर केसे [आ्रज्ञा का पालन है। जिनका आज्ञा चक्र अच्छा है वे किसी भी चीज करना है। परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर । अपने बड़ों की आज्ञा पालन करे अपनी स्वयम् की अपना स्वामी खुद बन सकते हैं। मां चाहती हैं आज्ञा का पालन करें, पर अपने अहंकार को नहीं। कि हमारी आज्ञा बहत ही शक्तिशाली हो ताकि फिर आप दूसरों को आज्ञा दे सकते हैं। सिर्फ मानव जब लोग आपकी ओर देखे तो समझ जायें कि को ही नहीं बल्कि सुर्य, चन्द्र एवं वायू तथा संसार क्राइस्ट का पुनः जन्म आपके शन्दर हुआ है। की समस्त वस्तुओं को भी। इस आज्ञा चक्र से अराप प्रत्येक वस्तु का नियंत्रंण कार सकते हैं । यदि आप जानते हैं कि कोई आपको कुछ हानि पहुँचाने जा का स्वामित्व प्राप्त कर सकते है । आप वास्तव में परमात्मा आपको सदा सूखी रखे । रहा है तो आप उसका नाम अपनीो आज्ञा चक्र पर लं, वह वैसा नहीं कर पायेंगा। यह पार व्यक्तियों ॐ माता जी धी निर्मला माँ नमो नमः With Best Compliments From: SOUTHERN ASBESTOS CEMENT LIMITED Manufacturers of : "RAMCO" Asbestos Cement Roofing Sheets, Flat Sheets, Accessories, Gutter Fittings etc. HEAD OFFICE : NEW DELHI OFFICE: C, Front Portion Sagar Apartments, 6 Tilak Marg, FACTORIES: "Chordia Mansion", ARKONAM 739, Anna Salai, (Tamilnadu) Madras-600 002. KARUR New Delhi-110 001. (Karnataka) MAKSI (Madhya Pradesh) निमंला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt 5 ॐ श्री माता जी नमो नमः 5 सहज दोहे ज्ञान विज्ञान में धेष्ठ है, सहज योग का ज्ञान । आत्म तत्त्व का ज्ञान यह, सब ज्ञानों का ज्ञान ।।१।। सब कुछ है मिथ्या, स्वप्न, जगत अभिमान । रत्मा हो सत्य है, तु केवल उसको जान ॥२॥ सहजयोग से आत्मा मिले, मिले सूष्टि का ज्ञान । कर विश्वास जो करे, होता उसका कल्याण ।।३।॥ निर्मला विद्या " ा" सत्य है, कर ले तु विश्वास । दे जीवन का अर्थ यह, करे क्लेश का नास ।।४ ॥ ि जीवन का सच्चा आनंद, सहज योग में समाय । अनंत आनंद के अरगार को, क्यों न लूटे आय ।|५।। मुक्ति का सुमार्गं यह, देता सहज प्रेम की नाव से, हो भवसागर पार ||६।॥ आत्म-साक्षात्कार । सहजयोग की नाव से, बैठ के जाबो पार |। इस पार बेठे पछतावोगे, आवे न अरवसर हर वार ।।७।॥। देर वंधु ने करो ! समय बीतता जाय । दोष अपने को देवोगे, पीछे रहोगे पछताय ।।८॥ दान दक्षिणा व्रत अरु, जप तप घ्यान योग । कर्मकांड, तीर्थाटन अब, क्यों करते हैं लोग ।8॥ सहज में हरि मिले, सहज योग में आय सहजयोग से दूसरा, कोई न और उपाय ।॥१०|॥| प्लि मंदिर, मसजिद, गिरजा इस तन को ही जान । आत्मा ही परमात्मा, ओर न दूजो भगवान ।।११|॥ है धमं । का ही सहजयोग मान्यतायें अब बदल गई, वदल गये अब कम ।।१२।। धर्मों सब निमंला योग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt जो रुलाये, नचाये, वस्त्र छीने, वदले वस्त्रों का रंग । धर्म वह है नहीं, है आडम्बरों का हो अग।।१३॥ आत्मा का दर्शन कराये वही है सच्चा धर्म । सहजयोग ही वह घर्म है, सब घर्मों का धर्म।॥ १४॥। मोहम्मद, नानक, महावीर, जीसस, बुद्ध, गणेश | सहजयोग ही में मिले, राम, कृष्ण, ब्रह्मा विष्णु महेश ॥१५/।। लक्ष्मी गौरी, राधा, सीता, सरस्वती, भवानी ही हैं निर्मला अंबा ।१ १६। मेरी, काली दुर्गा जगदंबा । सहजयोग से ही होंयगा, मानवता का कल्याण । और न दूसरा रास्ता, सहज सत्य को जान ।।१७॥ पुरजन, परिजन, सामान्य जन, कर सकते यह योग । सहजयोग के नियम सहज, होता नहिं भवरोग । १८॥। सहजयोग से सब मिटे, देहिक, दैविक भवरोग । डाक्टर, हकीम खुद अपने, बन जाते हैं लोग ।।१९।। ल धुम्रपान अरु मद्यपान से, होते लोग बेहोश | प्रेम पान कर सहज में, आ जाता है होश ।।२०॥ अपने अनुभव के अंश को, देते हैं बतलाय । "प्रभु का अंतिम निर्णय" यह, भलि भाँति समुझाय ।।२१॥ ॐ जय माता जी ऊ -सी० एल० पटेल निमंला योग २१ hot 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt शारीरिक चिकित्सा एवं सहजयोग-(३) शराइये, वीमारियों के बारे में विचार करें । बोमारियोँ हम पर इड़ा अरथवा पिगला नाड़ी के जिसका उद्गम माँ से नहीं है वह सत्य नहीं है । माध्यम से प्रभाव डाल सकती हैं, कारण दोनों, विशेषकर इड़ा, अगरिणित प्रेतात्माओं (अस न्तुष्ट- मृतजीबों) द्वारा आक्रान्त होती हैं । माँ ही इन गुणों का सरोत हैं कुछ भी और अन्य देवी द्वारा सृजित प्राणगी होने के नाते हम उतकी आराधना करते हैं, किन्तु उनकी सन्तान होने के नाते हमारी सीधी पहुँच उन तक है | उनके चरणों में हमें हमारी समस्याएं, उलभने, जब शरीर के चेतनात्मक रक्षा स्थल (vibratory defences) दुर्बैल होते हैं, तभी दूर्बलता और समर्थताएं रखने की सुविधा उपलब्ध कोई बीमारी शरीर में प्रवेश पा सकती है । मूला- है, और वे मां की तरह हमारा पोषण, संगठन धार श्रर आज्ञा चक्र तथा बांया हुृदय शरीर के शक्तिशाली रक्षक विन्दू हैं। ये तीन चक्र विशेष रूप से उन देवताओं के स्थल है जो आत्मा, की सर्वोच्च सत्ता के साथ ऐसा सीधा संबंध रखना पवित्रता, सत्य और भौतिक जगत (matter) पर आत्मा की विजय, इन त्त्वों के बाचक हैं । इन तीनों में मूलाघार चक्र सबसे अधिक आधार भूत है । शिक्षा देती हैं और पूनः उत्क्रान्ति के मांग पर शग्रसर कराती हैं । ब्रह्मा्ड के उत्क्लान्ति शक्ति एक बहुत वड़ी बात हैं । कुछ दुृष्ट से हमारे अस्तित्व में जो कुछ भी है उसका यह साराश है । इसकी प्रतिष्वनि रूप में थी महालक्ष्मी ने जीसस क्राइस्ट को जन्म दिया और चरम सत्य के अन्तिम मूलाधार चक्र के ्वामी श्री गेश है । इनका सिंहद्दार पर प्रतिष्ठित किया प्रमुख गुरण माँ के रूप में आदिश क्ति के प्रति श्रद्धा है । यह देवी का बो पहलू है जो सार्वभौम (paramount) है मां के प्रति नितान्त संहारकर्ता, मुक्तिदाता एवं उसक्रान्तिकर्ता हैं श्रद्धो व विश्वास इसके सहचरी गुरण है और एक बुद्धिमान बालक यह जानता है, इसके अति- सन्तान पर न्यौछावर होने की मां की स्वाभाविक रिक्त ्ौर कुछ नहीं । बह यह भी जानता है कि प्रवृत्ति (instinct) है । एक श्रबोध, भोला बालक यह समझता है और अपनी पूर्ण थद्धा, विश्वास, (अर्थात देवी) द्वारा निर्मित प्रत्येक द्वार और मोड़- अपता पूर्ण हृदय उनके चरणों को समपित कर देता है । उसके साथ प्रवाहित होते हैं सरल, निष्छल श्रद्धा, प्रेम भक्ति, सहज व स्वतः जिसमें न अतिरिक्त ओर कुछ नहीं-केवल परमात्मा ही है । कोई विचार है और न कर्मकाण्ड । देवी इस विश्व की सृष्टिकत्त्ता, पालनकर्ता, । वह (ग्र्थात् देवी) मानव अस्तित्व के स्वयं उसी य विन्दू पर विभिन्न रूपों में तथा विभिन्न शक्तियों तथा गुरों से सम्पन्न खड़ी हैं। विश्व में इसके और जो व्यक्ति अपने विचार व चित्त को सांसारिक विपयों में लगाता है, चाहे वह विज्ञान अथवा जिस प्राणी का चित्त अनम्य रूप से मां पर साहित्य प्रथवा राजनीति या प्रन्य कुछ ऐसे ही प्रच्छे कहलाने वाले विषय क्यों न हों, बह कालान्तर में पवित्रता (chastity) आज्ञाकारिता और प्रेम अपने प्राज्ञा चक्र व मूलाधार चक्र दोनों को दुबल बना और सबसे बढ़कर पवित्रता (purity) उपजते हैं। लेता है। जो भी वस्तु आत्मा और उसकी महान इसका कारण है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एकमात्र शक्तिको प्रतिबिन्बित नहीं करती वह विकास के क्षेत्र केन्द्रित होता है उसमें स्वतः ही शुद्ध बुद्धि ज्ञान, निमंला योग २२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt में कोई अर्थ (मुल्य) नहीं रखती और कालान्तर में छ्यक्ति को सन्तुलनच्युत कर देती है। उस परम को मानव रूप में जानने का हमको सौ- भार्य प्राप्त हुआा है और उनको इस साक्षात् स्वरूप जिस तरह वो हैं, पहचानने का सुअवसर श्राप्त हुआ है और उनकी यह सुअवसरग्रौर सौंभाग्य इतना महान है कि शब्दों में इसे प्रकट अरथवा माप (encompass) नहीं सकते । हमें अपना चित्त और भावना इस पर स्थापित शुरू में मैंने विभिन्न रोगों का पृथक पृथक वर्णन करने का सोचा था, किन्तु उससे चेतना सारभूत के स्थान पर गौरण वस्तुओं पर जैसा आप जानते हैं कोई भी असन्तुलन-ध्यक्ति को ढेर कर सकता है। का निरन्तर प्रवाह तथा उसका शक्तिाली बल (force) ही, जो जहां भी कुछ असन्तुलन होता है, पुन: सन्तुलित कर देता है, सहजयोग को स्थायो करता है, उसे अग्रसर करता है और उसे गतिशील करता है । सिर्फ कुडंलिनी मां उसे केरनी चाहिये । । चली जा एगी अत: मैं उसकी चर्चा न हीं करूंगा सारभूत तत्व है उनकी मानव का चेतना अथवा चित्त; जो निर्णय करती है कि व्यक्ति क्या है अरथवा क्या बनेगा । श्री माता जी ने कहा है कि जहां भी व्यक्ति की चेतना जाती है, वही (stomach) में प्रवस्थित है और जब उसे केन्द्रित वह बन जाता है । मानव में शक्ति के पीड़ (seats) किया जाता है, यह अनायास (effortlessly) भौतिक अरथवा स्थूल नहीं हैं, किन्तु सूक्ष्म व की स्निग्धता में से होकर सहस्त्रार में स्वयं अ-भौतिक है जो चेतना के सूक्ष्म तन्तुओं (fila- श्री सदाशिव के चरणों का स्प्श करके ऊप र चढ़ता ments) द्वारा परस्पर बंधे हुए हैं । यदि चेतना है और उसके बाद मानव जिन उच्चतम स्तरों पर निर्मल (pure) है तब व्यक्ति पर स्थूल दोष या वि- पहुँचने की आकांक्षा कर सकता है उनकी ओर कार (impurity) शपनाप्रभाव नहीं डॉलते । किन्तु अपना आरोहण क्रम (चढ़ना) चालू रखता है । यदि यह दोषपूर्ण (impure) है, तो कोई भी स्थूल अ्रतः अपने चित्त को व्यूर्थ न गंवायें । इसे निमंल निरमलता की स्थिति केवल अल्प-कालिक होती है और टिक नहीं पाती। विश्व में केवल दो ही वस्तु आक्रमण नहीं कर सकतो - प्रौर अरंघकार की कोई चिन्तन अथवा ध्यान करने योग्य हैं-परमात्मा शक्ति आपको परम सत्य (the absolute) और उसके चारों और व्याप्त उसकी शक्तियां । वास्तव में ये दोनों एक हो हैं और इनहोंने परम सकती । पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के रूप में अवतार लिया है । चित्त (attention) नाभि के माध्यम से उदर सुधुम्ना pure) रखे- और तब कोई बीमारी आप पर ( सत्ता की ओर आपके आरोहण को नहीं रोक जय श्री माता जी श्री निर्मला मात्रेय नमो नमः अब] हम अपनी स्थिति पर विचार करें। यह वास्तव में हमारे लिए बहुत ही वड़ी बात है कि हमें -डॉ० रुस्तम निर्मला बोग २३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt जय श्री माताजी (जय गीत) जय जय जय मां ! तेरी जय जय कार । तेरी लीला अपरंपार ।। जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥ १।॥ ार तेरे हो गुण गायें हम । तेरे चरणों पर शोश भुकायें हम ॥ जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥२॥ सारी धरती पर तेरी विजय पताका लहराये । जय जय की ध्वनि से, गगन गूंजता जाये ।। ति जय जय जय मां ! ि तेरी जय जय कार ।।३।। जय भेरी बज रही है, शारती तेरी सज रही है। जय जय जय माँ ! तरी जय जय कार ।।४।॥ सब जन मिल कर, तेरी पूजा करेंगे। जय जय जय, गान करेंगे।। गुरण जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥५।॥ तेरे दर्शन से कटे सब भय पाशा, हो गई पूरी सारी आशा । जय जय जय माँ ! तेरी जय जय कार ॥६॥ निर्मला योग २४