foि्fला योग मार्च-प्रप्रेल १६८४ वर्ष २ अंक द्विमासिक १२ ১) ञंड का का हि ि क ॐ तब मे व साक्षात् श्री कल्की, साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी =ि ने व ी पुर मा कविता हे दयामयी ! मुझे उबारा, कैसे व्यक्त करें हे माँ, दिव्य प्रेम में नहलाया । तेरा यह निर्मल प्रेम । कर प्रेमामृत, पुचका रा सींच भूल गया मैं जग सारा, हुआ पुलकित रोम रोम।१॥ सहलाया ।४॥ तुने, मुझको रखा सम प्राण भटक गया था पथ संभाल । मैं नादान । बालक फिर भय अब कैसा, खो गया भूल भुलेया में, करे तू देखभाल पर तुने लिया पहचान |२॥ |५। बंद हुईं सिसकियां मेरी, उलझ गया था बीच भंवर में, अब सहज प्रम पाया । असहाय होकर पुकारो । इसीलिये हृदय मेरा, हर बार आतं को, तूने दिया सहारा ।३। प्रेम का ही गोत पाया ।६॥ With Compliments Cणे : नmems Rishi Electronics B-16, OKHLA INDUSTRIAL AREA NEW DELHI-11 0020 ा मी ी की सम्पादकोय ब्रह्मानन्वं परम सुखदं केवलं ज्ञानमर्तिम् । द्वंद्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमल मवलं सर्वधी साक्षिभूतम् । भवातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।॥ सदगुरू को बार-बार प्रणाम है जो साक्षात् ब्रह्मानन्द हैं, ज्ञानमय है, आसमान के समान प्रसन्नता देने वाला है, द्वेताद्वत से परे है, परम शुद्ध है, नित्य है, अविचल है, साक्षी है, भावुकता और तीनों गुणों से परे है । रखोजी-जनों को जन्म-जन्मान्तर की इच्छा पूर्ति के लिए ही साक्षात् परब्रह्म परमेश्वरी, आदि- शक्ति ने अाज शरीर धारण कर, भक्तों को अ्पने में जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु यह उनकी दयालुता औ्र प्यार ही है जो हमें आत्म-साक्षात्कार के रूप में बिना किसी प्रयास के मिल रहा है। चरणों में स्थान दिया है। सदगुरू की तलाश हमें तन-मन-धन सब कुछ अपने सद्गुरू को सौंप देना चाहिए। श्री माता जी को तन और धन नहीं चाहिए चूंकि सम्पूर्ण व्रह्माण्ड उन्हीं का है। मात्र मन अर्थात् चित सौंपने से ही सब कुछ हो जाता है । सहजयोग के कार्य में साधन बनना ही हमारा ध्येय होना चाहिए । निमला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम्पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वैन्क्रवर, बी. सी. बी ५ जैड ३ के २ श्रीमती क्रिस्टाइन पेट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यूँ.एस.ए. यू.के, श्री गेविन ब्राउत्त ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन सर्विस लि. १३४ ग्रेट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्जू. १ एन. ५ पी. एच. भारत : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० इस अंक में पृष्ठ सम्पादकोय १. २. प्रतिनिधि ३. मूलाधार व नाभि (परम्पूज्य माताजी का प्रवचन) ४. नव वर्ष १६८४ ( ५ू. बोर्डी पूजा २ ३ ) ) २० ३३ *** निरमला योग २ श्री माताजी का प्रवचन मावलंकर हॉल, नई दिल्ली दिनाँक १५-३-८४ मूलाधार व नाभि अब हमारे समाज में, खासकर के शहरों में परमात्मा को खोजने वाले विविध विचारों के लोग रहते हैं। कुछ तो जो कि सभी सात्विक साधकों को हमारा परमात्मा में विश्वास करते हैं । इस तरह विश्वास करते हैं, कि जेमे कि किसो मंदिर में गये, नमस्कार कर दिया । कुछ लोग हैं जो कहते हैं "नहीं, पर- और धम से प्रणाम ! आज दो तरह के गाने आपने मात्मा की साधना करनी चाहिए सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह रहना चाहिए, उनके मंगल गीत गाने चाहिये, में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपरा भक्ति हमेशा उनको भजना चाहिए, जिससे वो हमेशा कहते हैं। और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे याद रहें ।" कुछ लोग ऐसे होते हैं कि वो जो कहते हैं करबीर ने पाया था, तो उसे परा भक्ति कहते हैं। कि "परमात्मा वगरेह सब ढकोसला है, यह झुठी दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति चौज है । परमात्मा नाम की कोई चीज ही कहा है- जहां दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ नहीं है।" साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने परा भक्त सब तरह के विचार करने का अधिकार पर- मात्मा ने मनुष्य को दे दिया है यह मनुष्य को दी हुई देन परमात्मा की ही है कि वो स्वतन्त्र है । कहा- प्रनत्य भक्ति । किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं, जो चाहे वो सोच सकता है इस बुद्धि से । लेकिन उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो हम लोगों को तीनों जाती है। जब इन्सान को इस चीज़़ की अदत- चाहिए कि आज तक हमने जो भी किया, सी हो जाती है, तो उस आदत से छुटने में उसे चाहे परमात्मा में विश्वास किया, उनकी भजा बड़ा समय लग जाता है। वह मानने को तेयार या उनके ऊपर लैकवर दिये, या उन पर किताबें ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह पढ़ीं, जो भी मेहतत करी या हमने उन पर खत्म होने की बेला आई है । और इसी वजह विश्वास नहीं किया, उनको कहा कि वे हैं नहीं। से भक्तों ने भी दुष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को उनसे हमने मुठभेड़ की और कहा कि देखते हैं पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेश परमात्मा कहाँ है ? इन सभी दशाओं में हमें पह सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानो पड़ीं । यह सोचना चाहिए कि " नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने किया ? हमें क्या लाभ हुआ ? हमारे अन्दर कौन सताया उनको किसी ने रोका नहीं और उनको सी ऐसी कोई नई प्रकृति आ गयी जिसके कारण समझाया नहीं कि ये सन्त हैं, साधू हैं । दशा में ये ही सोचना कुछ इसने हमारा क्या भला हमने जो भी किया सो ठीक है हमारे बाप दादे ३ निमंला योग र भी यही करते आए हैं । और उनके बाप दादा भी पास नहीं, और जो लोग वहाँ जाते हैं बो भी यही करते आए । ओर हजारों बर्षों से यही चीज चलती रही ।" " हम लोग इसी प्रकार परमात्मा के पास नहीं । हर समय कभी कोई अखंड पाठ कर रहे हैं, कभी कोई परमात्मा को याद कर रहे हैं। सहजयोग में हम लोग इड़ा और पिगला, दो नाड़ी पर ध्यान दे रहे ये। इसमें से जो इडा हैं. यह भक्ति-प्रबल है। इड़ा नाड़ी पर लोग भक्ति याद करते रहते हैं । उससे एक चोज़ जरूर है में लीन हो जाते हैं, अपने भावना में वह जाते हैं, कि परमात्मा की तरफ हमारा चित्त है । नामदेव ते और परमात्मा में लीन होकर के आनन्द से उनका गान गाते हैं। हमारे महाराष्ट्र में जो कि मैं पतंग आकाश में जा रही है, उधर सब बच्चे सोचती हूँ हिन्दुस्तान में एक बहुत बड़ा प्रदेश है, उसके साथ खेल रहे हैं । वो बाते भी कर रहा है, क्योंकि यहां पर पारम्परिक लोग धार्मिक हैं । [और यहाँ का आराध्य-देव श्री कृष्ण विट्रल है । भी उसका नित्त उसी आकाश के ऊपर तनाया लोग एक-एक लिए हुए गाते , प्रकार एक साक्षात्कारी मनुष्य का हो जाता है मंह में तम्बाकू रखे । अब तम्बाकू है, ये कृषण कि उसका पूरा चित्त उसी ओर होता है । के विरोध है । बिल्कुल विरोध में पड़ती है, क्यू कि विशुद्धी चक्र में श्री कृष्ण का स्थान है। और उससे "विट्ठल विट्ठल" कह रहे हैं। श्री कृष्ण का नाम ले नहीं पाया उसके लिए उचित था कि वो परमात्मा रहें हैं, और उनका जो विरोध है उसी को मुंह को याद करे। लेकिन यह सब करने से गर पर- में रखे चले जा रहे हैं । ऐसे बहुत से लोग मैंने मात्मा को याद किया और परमात्मा ही नहीं देखे जो मुझसे आकर कहते हैं कि "माँ, हेम तो मिले -जैसे आपने कहा कि यह आकुल-ध्याकुल जिन्दगो भर विठठल ही की वारी करते रहे । हर लोग हं ढ रहे हैं परमात्मा को, श्रौर उनको प्रगर बार वहाँ पेदल जाते रहे और एक-एक महीना परमात्मा नहीं मिले - तो जरूरी है कि मनुष्य हमने मेहनत करी।" बहुत से पढ़ लिखे लोग भी कहेगा कि, "हां, परमात्मा नाम की कोई चीज़ ऐसा कार्य करते हैं-"लेकिन हमें तो परमात्मा ही नहीं है ।" लेकिन, क्यू कि हमें उसका अनुभव मिले नहीं । एक मुसलमान साहब थे, जो कि नहीं हुआ, प्रचिति नहीं हुई इसलिये उस चीज को बहुत परमात्मा को खोजते थे । अन्त में वो हिन्दू हो गए। उनका कहना था कि परमात्मा मुसलमान उसको जाने बगर उसकी प्रतिति पाए बगर होने से तो मिलता नहीं, चलो हिन्दू होकर मिल उसको कह देना कि वो नहीं है-कोई सी भी चीज़ जाए, तो वो हिन्दू हो गये। हो-मरे रुपाल से एक तरह से escapism इसी तरह से विट्ल विट्ठल" करते जाते थे । तो उन्होंने कह। कि "पहले तो नमाज पढ़ पढ़ के मेरे तो घुटने छिल गए, तलुए सब छिल गए, यह देखा कि परमात्मा तो मिला नहीं । जो विदठल बनाता है ? इन फूलों से फल कौन बनाता है ? हमें के सामने लोग खड़े हैं, वो भी परमात्मा के अपने मं-बाप जैसे कौन बनाता है ? कीन हमारे नाडी इस प्रकार हम अपनी भक्ति में परमात्मा को कहा है कि एक लड़का गर पतंग उड़ा रहा है र सबसे मजाक कर रहा है । [और यह करते वक्त श्रर महीना हाथ में झांझर हुए जाते हैं "विट्ठुल, विट्ठल, विठ्ठल' जो हुआ जो उसका पतंग है, उसकी ओर है। इस ले किन जो नहीं हूप्रा, जिसने साक्षात्त्कार 1. पूरी तरह से मना करना, मेरे र्याल से, अशास्त्रीय हिन्दू होकर के बो (पलायनवाद) है । फिर वारी कर कर के मंरे परमात्मा है, चाहे आप उसे माने या न मानें । मैंने मैंने आपको बताया था कि यह फुल इसको कौन और यह सव होते हुए निर्मला योग अन्दर हमारे हृदय को चलाता है ? हमारे अन्दर जायेगा कि जो मैं बाते कह रही हैं वो प्रापको अनेक ऐसे व्यवहार हैं जो medical science पहले देख लेनो चाहिये, जान लेनी चाहिये, फिर (चिकित्सा विज्ञान ) कभी भी समझा नहीं सकती कि प्रचिति आने के बाद में उसको आपको जाँचना कसे होते हैं । इसीलिए ही मनुष्य भक्ति पर उतरता है और परमात्मा को याद करता है । चा हये कि यह बात सत्य है या नहीं; परमात्मा है या नहीं। लेकिन पहले घारणा तो करनी पड़ती है। ये घारसा तो करनी पड़ती है कि ऐसी पिंगला नाड़ी पर जब हम आते हैं तो वहा रतेसी बार्त हैं, इसे सूनना चाहिये। उसी बात पर ने रवी है, इस सृष्टि जो में पाँच पंवमहाभत है, जो अप अगर उखड़े हुये है तो फिर आगे बढ़ ही नहीं elements हैं उसके बारे में जान लिया जाए उन पर प्रभुत्व पाया जाए। तो उन्होंने यज्ञ-प्रादि वर्गैरह शुरू कर दिया, वेद वर्गरह रखे गये । पर वेद में भी अगर विद' नहीं हुआ, अगर उसकी प्रचिति नहीं अलग चक्रों के बारे में बताना चाहती है। आपके आई, तो सारा वेद परायण हो गया। सकते । पहले आप इसे घारिये, जो मैं बात कह रही हैं, इसको आप समझने का प्रयत्न कर । मैंने आपसे इन तीनों नाड़ियों के बारे में संक्षिप्त बिल्कुल शुरू में लिखा है कि वेद से में बताया हुआ था | आज में आपको अलग- अन्दर सात चक्र मुख्य हैं। यह नहीं कि सात ही इस भारतवर्ष की एक महिमा है, बहुत प्न हैं। सात मुख्य चक्र माने जाते हैं। यह सब महिमा है । कोई कितना भी बड़ा श स्त्री हो, पंडित हो, वेद व्यास हो, कुछ हो, लोग उसके । यह बड़े बड़े ऋषि- सामने हाथ नहीं जोड़ते । पर अगर कोई सन्त, फकीर हों, हाथ में झोली लिये भी हो, श्रर संत हो, हैं, अौर दसरा यह भी है कि ये उपलब्ध भी नहीं। माना हआ संत हो तो लोग उसके सामने भुक जाते है, यह सात चक्र हमारे अन्दर ऐसे बनाये हुये है, फिर वो राजा हो, चाहे वो कुछ हो। यह अपने देश बहिया तरीके से, कि जैसे कि एक के बाद एक की बड़ी महिमा है । ऐसे आापको कहीं भी नहीं माने सोढियाँ हों। ये सीढ़ियाँ दिखाई देगा यह इसी देश में होता है क्यू कि बनाई गई। जब से हम का्बन थे, तब से लेकर इस देश की अपनी एक बड़ी विशेष पुण्य है । यहा बड़े बड़े पुण्यात्मा घर्मात्मा संत-साधु हुए हैं। हमारी दष्टि जो वाह्य की ओर लग गईहै इससे अनुसार जैसे कि एक एक माईल- सब मे वडा प्रश्न खड़ा हुआा है कि अब सत्रका टोन ( Milestone) बनाया गया है। दृष्टि घन्तमख कैसे करे ? और सबसे पहले कि यह लोग जाने कि इसी देश में, इसी महान देश में ही यह सारा ज्ञान बसा हूप्रा है। बड़ी ज्ञान हमारे देश के मूल का ज्ञान है। यह मापको किताबों में नहीं मिलेंगा मुलियों ने इसका पता लगाया और कुछ कुछ इस र किताबें भी हैं। लेकिन वड़े सकील तोर की हमारे उत्क्रान्ति में के घीरे धीरे जैसे हम उठने लग गए व से वैसे हर उत्क्रान्ति का जो एक एक टप्पा हमने हासिल किया, उसके सबसे पहले कावबत का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भावि हुआ; वो है पहला चक्र, जिसे कि 'मूला- धार-चक्र कहते हैं । इस चक्र के बारे में भी ब जो भी बातें मैं अ्राप से बता रही हूँ, इस बहुत से लोगों को बहुत गलत-फहमियां है। को आप इस तरह से देखिए जेसे एक Scientist कण्डलिनी के बारे में तो, जिसे देखिये वो ही मैंने ऐसी भी किताबें पढ़ी (धारणा) रखी जाये । अगर आप उसको इस है कि जिनको पढने के बाद आदमी यह कहेगा, के पास जाने की कोई जरूरत नहीं। है । के सामने कोई Hypothesis लिखने लग जाता है । (बंज्ञानिक) देखें तो आपको समझ में आ दृष्टि से 'कुण्डलिनी निर्मला योग ५ hco एक साहब ने लिखा है कि उसको कुण्डलिनी से गलत रास्ते पर गए, आप ने क्या क्या अपने साथ जागरण हो गया, उसके अन्दर बिजली चमकने दुर्यंवहार किया है, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार लग गई। किसी ने लिखा कि मेरे अन्दर छाले किया है, क्या क्या आपने ऐसे काम किए हैं जो आ गए । किसी ने कहा मैं मेंढक जैसे कूदने लग परमेश्व र के मागं में एक तरह से रुकावटे हो पड़ा। हिन्दी में ही नहीं, शंगजी में भी ऐसी किताबे सकते हैं, बधिक हो सकते हैं । वो सब कुछ तो बहुत छपी हैं । जानती है । उसके पास इसका हिसाब किताब पूरी है। वास्तविक कुण्डलिनी आपकी मांँ है । हरेक इन्सान की माँ है। अपनी एक-एक व्यक्तिगत माँ है। और यह माँ प्रापको आपका दूसरा जन्म देती कि मेरा बेटा कितना दोषी है। वो यह सोचती है । यह जो माँ है, यह माँ कया आप को कोई तक- है किस तरह से इस बेटे को जो है; मैं उसका जो ्लीफ़ देगी की माँ ने आरपको तकलीफ़ दी, या सब तकलीफ़ माँ का ये नहीं विचार ग्राता-समझ लीजिए किसी सखुद उठाई ? फिर यह जो माँ, जो विशेष एक का बच्चा डूब रहा हो, तो माँ यह नहीं देवी मां है, तो क्या आपको तकली फ़ देगी? या सोचली है कि इसने मेरे साथ क्या क्या दूष्टता आपको परेशान करेगी ? बुद्धि से भी काम लेना की, कितना सताया । वो सोचती है जो भी हो चाहिए । जो लोग इस तरह की बाते करते हैं सब माफ़ । इस वक्त यह बच्चा बच जाए । इसी या तो वो इस काबिल नहीं हैं कि कूण्डलिनी पर प्रकार से ये माँ आपकी यही सोचती है कि आप] कोई भी हाथ चलाएं । हो सकता है वो धर्म- को किसी तरह से बचा लिया जाए। लेकिन इस परायण न हों, अधर्मी हों । उनके चरित्र अच्छे साँ के लिए आप का जो बाल्यावस्था में पाया न हों, वो रुपया पैसा बनाते हों, लोगों को ठगते हुआ अ्रबोधिता का धन है, जिसे हम लोग inno- हो। हर तरह की उनमें गड़बड़ हो सकती है। cence कहते हैं, वो मूलाधार चक्र पर स्थित है । हो सकता है कि उनको इसके बारे में कुछ भी ये कुण्डलिनी जो है ऊपर स्थित है, और मूला- जानकारी न हो । हो सकता है कि उन पर किसी धार चक्र नीचे में है । कुण्डलिनी स्वयं मूलाधार ने कुछ भूत-प्रेत विद्या करके उनको भस्मसात कर में बसी है । 'मूलाधार किसे कहते हैं कि 'मूल का लिया हो । कुछ भी हो सकता है । लेकिन कुण्ड- आधार। अगर मूल कुण्डलिनी है, तो उसका आधार लिनी जागरण से आज तक हजारों लोगों की माने उसका गुह. उसका घर जो है वो आपकी ये कुण्डलिनी का जागरण हो गया है सहजयोग से त्रिकोणाकार अस्थ है, और उसके नीचे गणेश ले किन हमने कहीं नहीं देखा कि लोगों में ये परे- तत्व जो बसा हुआ शानी या तकलोफ़ होती है । ले किन वो आपकी माँ है । माँ ये नहीं सोचती ? जब आपका जन्म हुआा था तो आ्राप धन है उसे दे दें । किस तरह से उसे मैं वचा लू । त। है वो अ्पके अम्दर वसी हुई अवोधिता है । कुण्डलिनी खुद सूझ-बूझ रखती है । पूरी तरह की आजकल तो चालाकी करना, होशियारी अन्दर है। और जंसे दिखाना, बदतमीजी करना, या ऐसे कहें कि अपने सूझ-बूझ कुण्डलिनी के कोई एक टेप-रिकार्ड होता है उ सी प्रकार चरित्र के साथ हर समय विडम्बना, यह एक तरह इस साढ़ तीन वलह में इसने आपका पूरा इतिहास लिखा हुआ है जब से आप आज तक का पूरा इतिहास इसमें है। यह जानती पवित्रता के साथ छलना करना, अपने साथी के है कि आप ने क्था क्या गलतियां कीं, आप कौन साथ हमेशा कोई न कोई उपाधि लगा लेना, इस का लोगों का बड़ा शोक हो गया है । लोग सोचते काबन थे, तब से हैं कि इसमें उन्होंने बहुत कुछ कमा लिया । अपने कि निर्मला योग ६ पर हमारा बड़ा विचार चलता है कि किस त रह का तत्व जो है, जितना सुखदाई है उतना ही से कसे वया किया जाए । क्षोभकारी है। अत्यन्त क्रोधवान है। यह चक्र जो है हमारे अन्दर बहुत महत्वपूरण है। हालांकि इस देश में यह चक्र बहुत बलवान है आप जानते हैं, ये जागृत हैं, पृथ्वी के तत्व से क्योंकि कूछ भी हो, इस देश में पतित्रता का अर्थ निकले हैं । अब हम लोग मानते तो हैं कि वैष्णों लोगों को माजूम है। लोग गलत काम करते हैं, ले किन वो जानते हैं कि यह गलत है । इन परदेश में मैंने देखा कि वो गलत काम करते हैं, इस तरह क्या है? क्या हम जानते हैं ये जागृत तस्व क्या है ? से विचित्र वातें करते हैं कि सभझ में नहीं प्राता क्या ऐसी कोई सच्ची बात है कि वास्तविक कोई कि यह इन्सान हैं या जानवर है अर वी यह तसे जागत तत्व्व का कोई स्थान है ? ऐसा स्थान सोचते हैं कि उन्होंने बड़ी कमाई क र ली, वे तो है। क्योकि पथ्वी तत्व जो है, यह स्वयं साक्षात् भारतवर्ष में गणेश आठ अष्ट विनायक हम देवी, वहां जाना चाहिए। इस मंदिर में जाना है, उस मंदिर में जाना है। लेकिन यह जागृत तत्व एकदम freedom (स्वतन्त्रता) पे आ गए। उन्होंने बहुत कुछ पा लिया कि इस तरह के गन्दे काम वो कर रहे हैं । जागृत है । पको आवचर्य होगा, मैं एक छोटी-सी जगह मुसलवाड़ी में गई, वहां पर लोगों ने मुझे बताया श्री गणेश विशेष करके जो बनाए गए हैं, कि यह जागत स्थान है, और वहां पर कोई भी उनका रूप ऐसा है कि उनके सिर पर हाथी का दीवार नईहीं बना सके। एक अंप्रेज ने कहा कि सिर है । वजह यह [कि हाथी एक पशु है, और पशु कभी भी अहंकार एकत्रित नहीं करता। इसी- दीवार नहीं बना सकते, कोई बन्ध नहीं बना लिए उसके अन्दर अहम् की भावना नही है; सकते । तो बंध को ऐसे सीधे लेने के बजाए उसे वो चिर का बालक होता है । और गणेश जी चिर के गोल घुमा बालक हैं । लेकिन उनके अन्दर वा आयुध है और शरर पता यह हआ कि ये जगह पर एक फ़कीर ने जो विशेष तरह के उनके पास में जो क्य वस्थाएं है, ग्राकर बताया कि "यह जगह माँ की है, इसे छोड़ उन सब व्यवस्थाओं से बो मनुष्य के अन्दर जो pelvic plexus है उसको सम्भालते हैं । पर ये इतने शक्तिशाली हैं कि अगर प कसी भी तरह से कुण्डलिनी पर अधात करने का प्रयत्न करें, या जो आदमी धर्म-रहित है, जिसमें चरित्रहीनता है, ऐसा आदमी कोशिश करे कि कुण्डलिनी को चढ़ाए सन्त-साधु या कोई सहजयोगी ही बता सकता है । वो इस कदर नाराज हो जाते हैं (गरणेश सबसे जिसको इसको अनुभूति नहीं है वो नहीं बता सकता नीचे बेठे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही इडा नाड़ी कि यह चीज जागृत है या यह भूठ है । या यह आर जुड़ी हुई है) कि इड़ा नाड़ो पर उनका क्रोध जब सच है या भूठ है । इसके लिए आपको तो ऊंची चढ़ता है तो मी के शरीर में यहाँ से लेर यहाँ तक (बॉँए भाग में नीचे से ऊपर तक) blisters हैं, उसमें जागृत होना पड़ता है । फिर मैं कहँगी (फफोले) भी आ सकते हैं। ऐसा आदमी गर्मी से तड़प कि अ्रापको जागृत होना पड़ता है। सिर्फ लेक्चर- सकता है, उसको तकलीफ़ हो सकती है यह गणेश बाजी से नहीं होता है । आपको होना है । जब तक यहां पर अजीव-सी जगह, यहाँ पर कोई आप दिया, और फिर इस तरह से लें गए दीजिए।" जब हम लोगों ने जाके देखा तो उसके अंदर से, चैतन्य की लहरियाँ-ठंड़ी ठंडी, लहर-सी चल रही थी-साक्षात् सारा सहस्रार । ले किन यह चीज सिर्फ एक फ्रकीर या कोई संवेदना, जिसे कि हम लोग सामुहिक संवेदना कहते निर्मला योग आप इसमें प्राप्त न होंगे, जब आ्रपके अन्दर इसकी एक मिनट अपने बुद्धि से यह पूछ कि "प्रगर इससे प्रचिति' नहीं आएगी जब तक यह अापको 'विद हमारे प्रश्न किसी तरह से सुलझ सकते हैं, नहीं होगा, तब तक आपमें और उन साक्षात् तो क्यूँ न इस चीज़ को हम समझे कि श्री गरेश कारियों में हमेशा अन्तर रहेगा। इस चक्र की क्या है और उनका हुमारे अन्दर जागृत होना कितना विशेषता यह है कि जब कुण्डलिनी का जागरण जरूरी है ? एक महाशय थे, वो हमारे पास आये, होता है-जैसे आप मेरे ओर अपने हाथ खोल के और कहने लगे कि "माँ मुझे prostate की बैठे, तो अ्रच्छा रहेगा भाषण करते हो काम हो तकलीफ़ हो गयी है, डाक्टर कहते हैं कि आपरेशन सकता है, आप मेरे और इस तरह से हाथ करके करवाओ। वो बड़े सहजयोगो थे, दूसरे गणेश बेठे हुए हैं, तब आपकी ये जो पाँच उंग लियों में भक्त । मैंने कहा आप इतने बड़े गणेश भक्त हैं. nervous system के आपको करसे prostate हो गया ? मेरी समझ ends है इस प्रकार सात चक्र left side मे में नहीं प्राता। क्या गणेश आपसे नाराज़ हो ग ए और सात चक्र right side में । अब यह जो है? कहने लगे "माँ, पता नहीं मैं तो बड़ी गणेग ।" मैंने कहा "अच्छा । तो भई बताया था, आपसे में मिल जाते है, प्रोर सुपुम्ना चना खाओ । आज हमारा प्रसाद चना हैं, तो चना GT Sympathetic सात चक्र हमारे left और right में हैं. जसे मैने की भक्ति करता है नाड़ी ऐसे उनके बीच में होती है। ्ाइये ।" । मैंने आनताकानी क्य कर रहे हैं ?" कहने लगे परव ाप जब मेरी ओर हाथ करके बेठे हैं, "पराज संकण्टी है, और संकष्टी में मैं उपवास तो धीरे-घीरे, धीरे-धीरे इस में से चेतन्य वहना करता हैँ।" मैंने कहा "यही तो वजह है। जिस शुरू हो जाता है। जब चेतन्य बहना शुरू हो दिन गणेशजी का जन्म हुआ तो उस दिन आप गया तो वो जाकर वहाँ (मूलाधार चक्र) पर श्री उपवास कर रहे हैं ? यह किसने आप को बताया गणेश को खबर देता है कि अब कोई अधिकारी है कि जिस दिन जन्म हो उस दिन आप उपवास सामने खड़ा है । यह अरधिकार आपको स्कूलों में, करें ?" अब घर्म में कितने दोष हैं देख लीजिये । बहुत कालेजों में या किसी theosophical society से लोग कहते हैं कि "धर्मं हम इतना करते हैं । में या theology में या पठन आदि से किसी से हम इतने घामिक हैं माँ तो भी हम बीमार हैं। भी नहीं मिलता । यह अरधिकार जो, हैं यह साक्षात्- अव देखं, छोटा सा दोष देख ले, कि जब राम का को ही अधिकार है । जब ऐसा व्यक्ति जन्म होता है, तब उपवास करगे, कृष्ण का जून्म जो जानकार हो, उसके सामने आप इस प्रकार होगा तब उपवास करंगे। और न्कचतुर्दशी, जिस हाथ फैलाते हैं, तो गयेशजी को पहले इसका न्योता दिन न्क का द्वार खुलता है, उस दिन बैठकर सवेरे मिलता है कि आप कुण्डलिनी से [अ्रव कहें कि आपको खाना खायेंगे । सब उल्टी वातें। विल्कृल उल्टी निमन्त्रण है और प्ाप चढ़े। गणेश जी के वर्गर बातें । यह पता नहीं किसने सिखाया । जिस दिन यह काम नहीं हो सकता । अवर अगर किसी डाक्टर आपके घर में बेटा पंदा होगा उस दिन आप क्या से कहा जाए कि गणेश जो हैं यह आपके prost- उपवान करगे ? जिस दिन दत्तावय पेदा हुए उस सम्भालते हैं, संत्रास्ते दिन उपवास है देख लीजिए, जिस दिन जिसका , जन्म हआ उस दिन उपवास करते हैं। उस दिन तो इधर उधर देखने लग गये र कहा " कारी मनुष्य ate gland को देखते हैं, हैं तो कहेंगे कि 'क्या बात कर रहे हैं माता जी गरणेश जी का श्रर medical का क्या सम्बन्ध ?" उपवास करने की क्या जरूरत है। मेरी समझ medical science जो है, यह तो ऊपर में है । में नहीं अरता । दूसरा यह कि परमात्मा के नाम ले किन उसके जड़ में अगर श्री गणेश बैठे हैं तो पर क्यों उपवास करते हो ? उसने कब कहा था तिर्मला योग कि प्राप उपवास करिये ? प्रापको करना है हो है । क्योंकि वो कुण्डलिनी का जागरण नहीं । आप करिये । आपको शोकिया करना है, ही लोग उपवास में रहते हैं। लेकिन धम में हुम हो सकते हैं। इतनी गलतियाँ करते हैं और त्रिल्कुल नासमझी से, जिसने जैसे कह दिया। स्त्रियोंचार, बाह्मणाचार की वजह से हमारे घर्म में भो इतने दोष आर गए उससे ऊपर में जो चक्र है वास्तविक यही दूसरा हैं। वही हाल मुसलमानों का है, वही हाल चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं । क्योंकि इसी चक्र इसाईमो का है, यही सिकखो को है । सब की एक जसे निकलता है, और चारों तरफ घुमघूम करके- ही है कि त्रपनी बुद्धि से हम उसको समझते नहीं हैं कि किस वक्त व्या करना चौहिए। ब इनसे कि भवसा ग क ते हैं, अपने पेट की जो जगह है मैंने कहा कि खाइये । आपको विश्वास नहीं होगी, उन्होंने बो खाया। मैंने कहा "पब छोडिये, अज से भी उसमें organs हैं, इन्द्र याँ हैं, सबको को शक्ति आप यह promise (प्रतिज्ञा) करिये कि सकष्टी के दिन मोदक अराप बना कर खाये । क्यू कि उनकी मादक वगे र ह बीमारियां हो जाती हैं । लेकिन आज उस प्रिय है, इसलिए आ्रप मौदक बना के खाय कि "मा मैं आपको Promise (वचन) देता है कि मैं मोदक खाऊंगा।" आपको आश्चरय होगा कि उनका उपवास वो आप के sympathetic nervous system करिये । इस देश में तो ऐसे की overactivity हो जाती है जिससे प्राप पागल अ्रब श्री गणेश के बशद स्वादिष्ठान चक्र है । से स्वाधिष्ठान चक्र वाहर निकल कर के कमल और यह जो बाच में जो जगह वनी हुई है जिसे जिसे Viscera कहते हैं. इसके पूरी इसको, जितने हैं। इस चुक में problem आने से diabetes देते ता कहा । के जड़ में जो चक्र है जिसे कि नाभि चक्र कहते हैं, उसके बारे में मैं आपको बताऊँगी। नाभि चक्र जो है, यह विष्णु का चक्र है, नारायण का चक्र है । अब कोई कहेगा कि "मां, आप तो सब हिन्दू घर्म में कह रहे हैं ।" लेकिन और भी लोग बहुत सारे सब इसी से विधटित हैं । ईसा मसीह ने भी कहा पूना वो पहुँचे ग्और उन्होंने चिट् ी उसकी prostate - भेजी कि माँ मे रा prostate गायब - तकलीफ़ ही गायब । इसी प्रकार घर्म में हम श्रनेक, अनेक, यनेक गरलतियाँ करते हैं । और इस लिए जब हम कहते हैं कि "हमने घर्म धारण किया है कि जो मेरे विरूद्ध नहीं हैं, वो मेरे साथ हैं. है। हम यह करते है वो करते हैं, फिर हमें माँ कयों Ihose who are not against me are with हुँआ?" मत दोजिये । दोष है जिसने आपको समझाया और कि ओर तो कौन हैं। उन्होंने तो बता दिया कि बताया । जैसे कि लोग बताते हैं कि जब कुण्डलिनी जागरणा होता है तो बड़ी गर्मी होती है और ऐसा लिया कि मोहम्सद के सिवाय और कोई नहीं । होता है, बेसा है। सब झुछ है । एकदम झठ है । इस तरह से उन्होंने सबको एक एक छाँट छॉट के ऐसा कुछ भी नहीं । इस बात पर आप' विल्कुल अलग कर दिया, जैसा कि एक आदमी लटका मत विश्वास रेख । यह लोग सव पैसा बनाने वाले हुँआा कही पड़ा हुमा था। सबकी रिश्तेदारी आपको डरा डरा के ऐसा दिखाते हैं कि यह बड़े कहीं के पहुँचे हुए लोग हैं । और इस से आपको के झगड़ा करते हैं । इस चक्र के आस-पास [आप] गलत रास्ते पर डाल देते हैं, और [शप फिर ये देखिये कि ये जो यह पेट का हिस्सा है, इसमें दस पूछने लग जाते हैं कि "भई हमारी कुण्डलिनी गुरू के तत्व है। इसमें से आप सोच सकते हैं कि जागरण हुआ उससे तो हमारी हालत हो खराब शुरू से, 'अ्रादि नादय' से लेकर के उनके गुरू हुए हो गई। हम तो पागलखाने पहुँच गए। होना जैसे Socrates हैं, Lao-Tse, यह सब इसी में परमात्मा पर कोई दोष me पर ईसाई लोग ये जाकर पता नहीं लगायेंगे इसका ईसा के सिवाय और कोरई नहीं। इस्लाभ ने बना आपस में है । सिंर्फ हम हो लोग उनके नाम ले लेकर निर्मला योग ६ ते हैं। Moses हैं, Abraham । [और प्रपने देश 'सन्यास प्रन्दर का भाव होता है बाहर का नहीं होता 1 साहब और आप जानते हैं कि राजा जनक को विदेही कहा में राजा जनक, नानक, मोहम्मद Zoroster (जरथस ) प्रीर प्रभी आखिरी वक्त जो करते थे और उनकी लड़की को देही क्योंकि हैए हैं, वो हैं श्री साईनाथ 'शिरडी के । यह सब विदेही से पदा हुई थी इनके दस मूख्य ग्रवतरण हुए। वसे अनेक गुरू हुए हैं जैसे रहते थे, राजा जे से करते थे और सनार में, लेकिन दस मुख्य अवतरण हैं । [अब जो उनके सामने बड़े बड़े साधू, सन्त, दुण्टा, नत मस्तक लोग । वो स्वयं राजा थे। राजा आभूषण गुरू को मान रहते थे क्योंकि उनकी दशा वही थी, क्योंकि वो को मानते हैं, कि गुरु लिया " देखिये गुरू को मान लेना भी एक वड़ी स्वयं साक्षात् दत्ताओरेय के अवतरण थे आदि गुरू के गलत फ़हमी की बात है । 'गुरू वही है जो साहिब अत्रतरण ये। लेकिन आजकल हमारे देश में इसकी से मिलाये। जो साहिब से मिलाए. जो परमात्मा संवेदना जाती रही । लोग वहुत ही भ्रांत हो से मिलाए, गए हैं और ऊपरी तरह से कोई ऊपर से कोई तरह के गुरू निकल आये हैं । और आप जानते कि हम इतने विक्षिप्त हो गए है, इतने परौतमय लोग उसके चरणों में पहले जाते हैं। कोई कोई हो गए हैं कि कोई भी आदमी जेल से प्रौर बैठ जाये गेरुआ वस्त्र पहन के; लगे उसके पीछे में भागना हम लोगों में एक स्वभाव की एक चररा छने । पहली तो बात यह है कि गैरुआं वेस्न से हमारा क्या सम्बन्ध ? हम तो गृहस्थ के लाग उसके पीछे हम भागते हैं । फिर 'हजारो लोग हैं। गृहस्थियों का गेरुआ वस्त्र से कोई भी सम्बन्ध उसके चरणों में जायेगे। अररे भाई और फिर नहीं होना चाहिए। आप जानते हैं, अगर आपने झठी झटी बातें उसके बारे में फैलाना कि उसने पढ़ा हो कि बाल्मीकि रामायण में. सीता जी ने पुरा chapter (ग्रध्याय) इन सन्यावियों के बारे में कहा है, कि जो सन्यासी हैं उनको शहर में तो आना ही नहीं चाहिए। किसी गाँव में नहीं आना कि हम उस गुरू के पास गये थे, हमको नाहिये । उसकी बहुत सारी मर्यादायें बताई । उस शान्ति मिल गई। मैंने कहा कैसी शन्ति वही गुरू है। लेकिन हमारे यहाँ हर हैं दिखाने वाला तमाशा वाला [आदमी पहुँचा है, तो ं छूट करके तमाचा वो करना जानता हो, किसी भी तमाशे के बात होती है कि कोई तभाशाखोर पहैँच जाए तो इुस ग्रादमी को ठीक कर दिया, वो ठीक हो गया, उनको शान्ति मिल गई। गलत फ़हमियाँ। इस तरह की हैं बहुत से लोग कहते हैं। में यह कहा कि गाँव के बाहर उस्हें झोंपडी में रहना चाहिए और किसी भी लॉघनी नहीं चाहिए। हां जो गृहस्थ है गृहस्थ ले किन जिसने सन्यास ले लिया उसको यह सब करना मना है। लेकिन हमारे यहाँ तो. देखिये कि हो गई। हम लोग गृहस्थी के लोग यज्ञ करने में लगे हुए हैं, व्यवस्था हो गी । क्योंकि यह लोग जो घन्वे करते अपने बाल-बच्चों को सम्भानते हैं। कायदे से हैं, जिस तरह से यह काम करते हैं, यह आप जानते रहते, और उन (सन्यासों) लोगों का पालन- पोषख है। हम तो काफी उमर वाले हैं और हम सब हमारी खोपड़ी पर । एक तो हमारे बाल-बच्चे पलते जानते थे इसके बारे में । अब तो आप लोग सव नहीं और ऊपर से इनके काशाय वस्त्र वालों को Younger generation के लोग हैं, शायद आपने संवार कर बैठे रहिये सुबह से शाम तक । एक सीधी जाना ही नहीं होगा कि भानुमती, श्मशान विद्या, बात यह है कि कोई भी सन्यास लेने से परमात्मा प्रेत विद्या, तात्रिक विद्या अपने देश में बहत हैं । के पास नहीं जा सकता। यह तो ऊपरी चीज़ है। अब मिलो प्रापको, श्मशान शान्ति मिली होगी । आ्रव की ड्रयोढी गृहस्थ आप हिल ही नहीं सकते, शरापको अश्ञान्ति तो है ही, है। ले किन वो अशान्ति जो है वो एकदम जम के पत्थर अब आप हिल नहीं सकते ऐसी ही इस समय कुछ मुझे लगता है कि दिल्ली के लोगों निमला योग १० का मन तांत्रिकों से कुछ हटा हूुआ है, नहीं तो दिमाग खराव हो गया है । इस गुरू के कारण जहां जिस गलो में जाइये वहाँ एक तांत्रिक बैठा केन्सर जेली बीमारी होती है। गलत गुरू के हुआा था, इस प्रापको राजधानी में । इन तोंत्रिकों सामने अपनी पेशानी झुकाना। इसलिए किसी ने क। शोक अ1 पको भ्रांत हो गया है और इसमें कहा है कि अपनी पेशानी सब के सामने मत आप फस गए। ऐसे छोटी-छोटी चीजो के पीछे में झुकाओ । यहाँ तक की मंदिरों में जब अरप जाते भागने वाले लोग परमात्मा को कसे पाय गे ? अगर हैं, कोई भी प्रादमी आापको टीका लगा दे । हर एक मांगता है, तो कोई परम चीज माँगनी चाहिये। आदमी से आप अपने माथे पर टीका लगा लेते हैं, श्रीर परम में ही सब कुछ मिल जाता है- बहुत गलत दोष है । किसी का क्या अधिकार है ने कहा है कि 'योग क्षेत्र बहाम्यहम् कि वे प्रापके माथे को छुये ? प जानते हैं कि पहले जब योग होगा, तो तुम्हारा! पूरी तरह से कषम आपने तो कहा कि 6-१० साल मिलन को लागे। कि हजारों वर्षों से रुम्ती प्रच्छी करो।" मेरे पास बहुत से पहलवान श्रापको बना बना कर के आज परमार्मा ने मनुष्य आते हैं. कहते हैं "माँ हमें तो कोई शान्ति नहीं । बनाया है। श्रर उसका आप किसो के सामने भी काई दनी कहता है "माँ मेरे पास पैसा नही, सर झुकता देते हैं ? किसी के सामने भी सर भुकाने दूसरा रईस आदमी आता है कहता है "मुझसे तो को हमेशा लोगों ने मना किया है । सि्फ साक्षात्- । इसका मतलब कारी जो आदमी है वो ही जानता है कि किसके यह है कि सब संसार दुखी है । और इस दुखी सामने सर भुकाना चाहिए। हम तो कहते हैं कि संसार में आप अगर किसी को ये सोच कि दूसरे हमारे भी पैर छुने की आपको कोई जरूरत नहीं । के पास कोरई चीज़ है तो उससे वो सुखी है, ये प्रप और न छु तो अच्छा है । जब तक आप पार न को गलतफ़हमी है । [आप] इस पर वश्वास कर हों, जब तक आप के हाथ में चंतन्य नहीं आया, हम औप के लिए वेसे ही, जैसे दूसरे हैं । जसे कि है। आप मंदिरों में जाते हैं वैसे हम यहाँ वैठे हुए हमसे इस लिए जिस चीज को आप मांग रहै हैं उससे आपको छने से क्या फ़ायदा ? चरणों में प्राने का आपको सूख नही होने वाला । आप जिस चीज़ की तभी फायदा हो सकता है अगर आपके अन्दर वो । और वो connection (योग) शुरू हो गया । अगर हम परम् तत्थ आपके ही [अन्दर है, जिसको आपको माइक्रोफोन के सामने बात कर रहे हैं और यह पाना है। इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं, connection (योग) ही नहीं है तो वात करने से किसी की कुछ देने की जरूरत नहीं, कुछ उसमें फ़ायदा क्या ? इसलिए किसी को भी पेर पे जाना आस्डबर नहीं, बहुत सीधी सरल चीज है । जसे कि और पेर पे लेना दोनों ही दोष हैं, मैं समझती है । एक बीज को आप अकुर ला सकते हैं, यदि घरती मां क्योंकि लोग अब बहुत जबरदस्ती करेंगे अगर के उदर में डाल दें, उसी प्रकार यह कार्य हो सकता किसी से कह दें कि भई पैर न छुए तो उनको तो है । लेकिन मनुष्य के लिए सोधा-सादा होना भी लगता है कि माँ ने तो जैसे कि उनको शाप ही दे कठिन हो जाता है । क्योंकि वो सोधे तरह से खाना दिया। मैं यह कहती है, बेटे, तुम क्यों छ रहे खाना अब जानता ही नहीं। उल्टा हाथ फिरा के हो ? तुमको मैंने क्या दिया ? किसलिए मेरे पर ही वो खाना खाता है। कोई काम सीधे तरीके से छु रहे हो? जब तक तुमको कोई भी मैंने आत्मा करना उसकी बुद्धि के परे हो गया है, उसकी बुद्धि का परिचय दिया नहीं, तब तक आप मेरे पैर क्यों इतनी जटिल हो गई सोच सोच करके उसका छ रहे हैं ? मैं भी कोई ढोंगी हो सकती है, मैं भी क्योंकि श्री कृष्ण होगा। कोई महाशय कहते हैं कि "म मेरी तन्द- मैं तो यही कहती हूं दुखी कोई दुनिया में है ही नहीं कि जिस मनुष्य को प्राप सुखी समझते हैं वो महा दुखी हो सकता है। लेकिन आपको पता नहीं माँगना है, उसे मांग और वो है परम् 1 ११ निमंला योग कोई खुद गतत हो सकती है। से लोग आप मेरे पेर छुये ? अ्रादत है। की व जह से हमारा एकादश जो है, हमारे माथे पर एक गुरू महाराज कोई हैं उनके पीछे में इतने नत- जो एक बड़ा भारी चक्र होता है जिसमें ११ रुद्र वेठे हैं। रुद्र जो आप जानते हैं कि संहार-शक्ति मिली थीं। वो कह रही थीं कि "अपने देश ऐसे से हैं। अगर आप किसी और को इस तरह से गुरू ऐसे आ्ाप गुरू घण्टाल यहाँ भेजते हैं कि उनका नया मान लें, तो दायें तरफ में आपके रुद्र पकड़ जाते करें ? कुछ समझ नहीं आता । हमारे यहाँ पचास हैं। औ्र जेसे ही पकड़ जाते हैं, ऐसे ही केन्सर की हज़ार युवा लोग एकदम पागल हो गये इस बोमारी तो पहली चीज़ा है । कोई आदमी भी समझो तरह के न जाने कितने तरह-तरह के लोग आपने एक politician (राजनीतिज्ञ) है, समझो किसी बाहर भेज दिये हैं । [आपको Export (निय्यात) के प्रागे बहत झुकता है । वो भी हो सकता है । एक लिए श्रौर तो कुछ मिला नहीं इस देश में तो बढ़िया अगर economics (अरथ-शास्त्र) वाला गरादमी से उठा उठा कर ऐसे लोगों को बाहर भेज दिया है है, या Business (ब्यवसाय) वाला [आदमी कि सबने वाक कटाकर रख दी है । गऔर उनके लिए है वो अगर किसी के आगे जरूरत से ज्यादा नत- अगर कुछ कहें तो लोग कहते हैं कि माँ आाप तो मस्तक होता है, अपने Business (व्यवसाय) के बहुत intolerant (पअरसहिष्ण) हैं तो क्या ऐसे लोगों लिए, वो भी कोई भी आदमी जरूरत से ज्यादा अ्रगर को हम हार पहनाये ? उनकी आरती उतारें और किसी के सामने सिर झकाए, तो उसको केंसर उनको सिंहासन पर बिठायें ? पहले जमाने में तो को बीमारी हो सकती है। उसके । मार के उनकी पूर्ण- क्या वजह है कि जैसे उनके पीछे लगे रहें। अभी ऐसे बहुत | औ्और इस आदत मैंने देखे । स्पेन में ५ू०,००० लोग ऐसे हैं कि जो मस्तक है कि पागल हैं स्पेन की महारानी हमें इधर की देयों को मारा जाता था जो ५ रुद्र में से पचो रुद्र पकड़ सकते हैं। इसलिए तया ह्या कर दी गई लेकिन अरव कम से कम उन सब के सामने नतमस्तक होना मनुष्य के लिए की कहा तो जाए कि ये देत्य हैं और राक्षस रवरजत है लेकिन किसी से अकड़ना भी उसमें ग्राप लोगों को क्यों इतनी परेशानी हो जाती है? क्या आप भी उन्हीं के साथ मिल हुए बिल्कुन है। वैगी बात है । कि "मैं ही गुरू हू, में है। भगवान है है ? दसरे लोगों को लूटना, खसोटना, उनसे पसा वेगी बात है। कि "मैं ही गुरू हैं, मैं ही भगवान है. में ही सब कुछ है, मैं ही सब कुछ क रता है, मझे हैं कोन बताने वाला है हैं कि ै।" ऐसे भी लोग हैं जो कहते लेना, उनको दूसरे मार्ग में डालना, यह कहाँ का तुम ही गुरू हो, और तुम इसे खोजो, दूसरों वम है ? अ्रर वो भी भारतीय होकरके आपको क्या की खोजने मत दो। अधिकार है? यह एक तरह का अजीव-सा छिपा हुथरा भी बात गलत है। कोकि आप मक्त साक्षात्कारी 9gresion (ग्रत्याचार) हैं । और मह इस तरह से नहीं है । जब तक एक दोप जला न हीं, तब तक वो छोया हुआ है कि आप आश्चर्यचकित होंगे कि एक अपने अाप से जल नहीं स कता । एक जला हुआ दीप ही उसे जला सकता है। पर उस में लैना-देना प्ाऊ। प्रथ सब लड़कों ने एक साल भर सिर्फ तुम ही हो सब कुछ । यह साहव, लंदन आते हैं और उन्होंने ने कहा मेरे लिए अगर आप Rolls Royce (प्रालीशान कर) दे तो कोई नहीं बनता है। उसमें किसी तरह का स्वार्थ नीं होता है। किसी भी तरह कা उपकार नही Royce दी । एक लामा साहव पहुँचे वहाँ-यह लोग होता। यह तो आपका दीप जला नहीं ओर जो आकर मुझे बताते हैं तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। दीप जला हम्रा उसे गया, आप जल गए उसमें लामा साहब, जो कि बहत साधु सन्यासी बनते हैं, किती भी तरह की ऐसी बात नहीं अाती कि जिसमें वहाँ पहचे तो कहा कि 'हमें तो Marble के Floor সापको पूरी तरह से यह कहना है कि आपका कोई (संगमरमर का फर्श)के सिवा और कूछ नहीं चाहिये। व्यक्तिव ही न रह जाए कि आप एकदम से पागल वहाँ Marble बड़ा महगा मिलता है, स्वीडन में । आजू खाया, पैसा बचाया शर उनको Rolls छू निर्मला योग १२ तो स्वीडन के विचारे लोगों ने भूक्खे रहकर को कुछ कहते नहीं बस बड़बड़ाते चलते हैं सुबह उनके लिए Marble का Floor (फश बनाया, से शोम तक ऐसे तो वो पश्ारे बहाँ। ओर पधारने के बाद, यह चीज रूपाल से वहाँं इस तरह के प्रकार बहुत हो चुके हैं। कि आप उनके सामने जाइये तो एक हजार एक लोगों ने बार आप उनके सामने भुको । मैं आपको इसलिए तो इस तरह कि गुरू हों कि जो सि्फ वातचीत हो यह सब वाते बता रही है कि सब चक्क र में अरप बातचीत करें अपको कहेंगे पचास पारायरण करो । लोग होते ही हैं। सवेरे दस आदमी मिलने आए दत्तात्रेय का उसमें से नो उस चक्कर में कि माहमें स १भ नहीं अता आप पारायण करो हमने तो गलती नहीं करी । मैंने कह। कि तुम खीज बाद में मिला क्या ? क महाशय हमारे पास आए] ने क्या गये थे, यह बताओो । जिसने परम की बात हमसे कहने लगे मा हमने तो चौदह वर्षों की की और जिसने परम दिया, उसी के नरस में तपस्या की । मैंने कहा 'अच्छा, ओर ?" "उन्होंने जाना चाहिए और उसी के शरस में भी जाना सिफ पारयरणा करने को कहा और शिवजी का चाहिये, बाकी सब बेकार हैं। ये बात जो हैं- बातों से तो इन्सान कोा दिमाग खराब हो जाता है। लगे "एक मिनट में कुण्डलिनी जागरण हुआ । आपने सूना होगा बहुत से लोग वेद पर बात करते तो मैंने कहा, "भाई यह सो वना चाहिये, पारायण हैं। वेद वेदाचार्य, यह वो। एक महाशय बम्बई में करने से परमात्मा मिलता है तो अपने देश में तो है, बड़े भारी वेदाचार्य हैं। पडितों के पंडित वो कितने लोग हैं जो पढ़ भी नहीं सकते । इसका मत- उमर में हमसे छोटे हैं। लेकिन वो जब बात करते लब कि उनको परमात्मा नहीं मिलेगा? सिर्फ पढ़े हैं तो ऐसा लगता है कि सठिया गए हैं । जो बकते लिखे लोगों को मिलेगा ? जो वेदाचार्य है, उनको चले जाते हैं, ऐसे बकते चले जाते हैं कि कोई उनके मिलेगा ? जो वेद पढ़ सकते हैं संस्कृत जानने वाले पास पाँच मिनट खड़ा होना नहीं चाहता । उनको समझ नहीं आता कि लोग उनसे भागते वाले कितने लोग है ? या बाईबिल पढने वाले कितने क्यों हैं ? इस कदर क़ोधो ओर तापमय इन्सान हैं, लोग हैं ? मतलब जो पढ़ते नहीं वो काम से गए। कि जो भी उनके पास बैठता है कहुता है, "बाप बाप यह तो एकदम तूफान आ गया।" गुस्सा उनको इतना आता है कि अगर उनकी बात वाला है, वो कभी ऐसे काम करेंगे ?" इसलिए जो किसी को समझ नहीं आई तो कहते हैं कि तुम गुरू-तत्व में खराबी आ जाती है उससे आप सब तो ऐसे ट हो, तुम तो ऐसे खराब हो; श्रौर लेकर बचकर रहिए । और यह गुरू तत्व् हर तरह से मिलते हैं फाँस में । मेरे बहुत करके । अध्ययन बहुत अध्ययन, हैं आप पारायण करो । गुरू की । पचास पारायण करने के मन्दिर घोता रहा । "और अ्रब बया हुआ । कहने अब कितने लोग हैं ? मैं कहती है; कुरान-शरीफ़ पढ़ने रे ऐसे कैसे हो सकता है ? जो परमात्मा है, सबका और ही निर्माण करने वाला है, सबको ही प्रेम करने दुष्ट मारना शुरू कर देते हैं। अब बताइये इतने आपके अन्दर एक हृद, एक तरह की सीमा बाँध देता वेदाचार्य श्रर फलाने ढिकाने होते हुए उनके यह है । "कि हम यह करके दिखायं गे।" उन्होंने कहा सारा बाहुर ही रह गया है। कुछ उनके हृदय ४ दिन को उपवास । बस हम करके दिखायेंगे । यह कुछ नहीं गया। न उनमें दया, न अनुकम्पा, न कुछ, सब चौज़ों से परमात्मा नहीं मिलता है। सहज- बस वडबड़ाते रहृते हैं सुबह-शाम । ऐसे मैंने फाँस में सरल बहुत से देखे । वो तो बस में चढ़ते हुए बडबड़ाते चाहिए । जो चीज़़ सहज नहीं है जिसमें अरसहज है, हैं। पूछा क्या, तो क्या कहने लगे कि ये बड़े भारी वो परमात्मा की चीज हो ही नहीं सकती। एक पादरी थे । मैंने कहा वाह भाई, यह पादरियों का सोधी बात आप सोचिये कि आप इन्सान बने, अन्त । एक बड़े भारी पादरी थे इसलए हम उन आपने कौन सी मेहनत करी ? आप क्या सिर के में सहज समावि लागे । सहज । सहज होना । निमंला योग १३ वल खड़े हुये, कि अपने क्या अ्रपनी दूम काटी थी ? कदर सब के साथ ये तुष्णा है, वो आदमी कभी भी किस तरह से आप बन गए ? आप इन्सान अपने परमात्मा का अरादमी हो नहीं सकता । आप सहज सरल बन गये। इसी प्रकार ऊरची स्थिति में जाने के लिए भी 'सहज हो भाव हाना इमके बारे में मैं जरूर पपको बताना चाहगी चाहिए । और जब तक सह न भाव नहीं आता है तब तक आप जो भी ऐसी ऊट-पटांग चीजें करते पयाकि श्रपने देश में हर एक जगह जाइये तो लोग है उससे आपको नुकसान होगा, तकली फ होंगी, मुझम ऐस कहते हैं कि माँ हमारी गरीबी का चक्र पकड़ गे, आपको परेशानी होगी-चाहे बो क्या होगा ? जैसे कि इन लोनों ने गरीबी का शारीरिक हो, मानसिक हो, या बौद्धिक हो, मगर आप परेशानती में फँस जायेंगे। इसलिये मैंने पहले ही कहा सहज भाव से बैठे और कहा कबीर को गओ। क्योंकि कबीर सहज भाव में गाते थे। उनका मिलन हो चुका था, इसलिए वो मिलन में गाते थे । अब, भवसागर के बीच में जो विणु का तत्व । ১ कुछ ठीक ही किया होगा जो मुझसे कहते हैं कि गरीबो का क्या होगा। बही बात हुई "कृष्ण ने कहा कि 'योग क्षम वाहम्यहम उसके वाद प्रापका मैं क्षम करूंगा । जिस जिस '-पहले योग को प्राप्त हो, गाँव में सहजयोग हुआ, जहां-जहां हम गये, जिन्हों ने योग पाया, उनके स ब प्रश्न S0lve (हल) हो गये। किस प्रकार? सबसे पहले तो सारी गन्दी आदत अब यह जो नाभि चक्र है इसमें एक दफा तो छूट जाती है; धरम जागृत हो जाता है। मनुष्य के अन्दर यह हुआ कि जहाँ अरापने किसी को भी गुरू मान की जितनी भी आदते हैं, जिससे मनुष्य जकड़ा हुआ है लिया ऐरा-गेरा नत्थ-खैरा जिसे कहते हैं कि किसी वो सारी ही एक साथ टूट जाती हैं । आप जानते को भी गुरू मान लें । गलत आदमी को गुरू मान हैं कि बता रहे थे। कि २०० आदमी हमारे साथ परदेश से घुम रहे थे, इन लोगों में से न जाने कितने Drug (मादक द्रव्य) लेते थे, कितने alcoholics देख ते लिया । लिया । गलत चीजों में सिर भुका दूसरे ऐसे होते हैं कि जो किसी को मानते ही (शराबी) थे, कितने कैसे कैसे ये । हम तो कुछ नहीं। भगवान को भी नहीं मानते । "मैं ही सब नहीं। जो आया उसे पहले पार करो । पार होने का गुरू है ।" तो बायें और के पच रुद्र है वा के बाद धर्म जागृत हो गया। एक महाशय थे वो पकड़ जाते हैं । इस प्रकार के दो प्रकृति के आदमी बहुत शराब पीते थे । फिर सहजयोग में आते ही दूसरे दिन से उनकी शराब छुट गई । होते हैं । अब जो किसी को नहीं मानते, जो बड़े एकदम भारी वेदाभ्यास करने वाले हैं, इनके बारे में मैंने शराब गई। तो एक बार जर्मनी गये थे, आपको वर्णन कर ही दिया कि किस तरह के उन्होंने कहा कि देखें कोसा क्या है उनको एक होते हैं । और उनके जो प्रभूति होती है इस कदर शराव बहुत पसन्द थी। पीने के साथ कहने लगे घनी-भूत तरीके से, क्रोधी होती है कि इस आदमी ऐसी उल्टियां हुई, और उसमें से ऐसी गन्दी बदवू के पास भगवान हो ही सकता है, ऐसा कोई भी आने लग गई कि हमने कहा कि यह क्या भगवान इनके पास से Molasses पी रहे हैं कि व्या 'काक" पी रहे हैं, गुजर सकते हैं, ऐसा भी कोई नहीं विश्वास कर और समझ ही नहीं प्रा रहा कि क्या पी रहे हैं ? श्र उल्टी पर उल्टी, उल्टी पर उल्टी । उससे इतनी घूणा हो गई । हमने तो कुछ नहीं पिया । छूट विश्वास नहीं करता । सकता। परमात्मा जो है, वो प्रेम का, सोख्य का और अनुकेम्पा की सागर है, क्षमा का सागर है । जिस प्रादमी में इस कद र क्रोध, इस आनन्द का, हप तो वहीं लन्दन में बैठे हुये थे । लेकिन आप ही स्वयं धर्म हो जाने के वजह निर्मला योग १४ से क्योंकि यह प्रापके अन्दर दस गुरू जागृत हो जाते जय इनके पास लक्ष्मी का प्रसाद है ? पर लक्ष्मी हैं जो साक्षात् घर्म हैं । इसकी वजह से प्रपने आप का प्रसाद नहीं, सिर्फ पैसा है । गे के ऊपर आप प्रगर नोट लगा दीजिए तो क्या वो लक्ष्मी गन्दी आदतें छुट ह गई । फिर उसके बाद, गन्दी दित छूटने के बाद में आपकी दष्टि वहां जानेपति हो जायेगा? तो ऐसे पसे वाले से वो लगी कि जिससे अरपको लक्ष्मी का है । जैसे एक लय्षमी पति, जो पपने 'शान' में अपने 'गौरव' में महाशय-परापको विश्वास इस वात का भी होना खडे रहते हैं। जो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। जब है, तब बांटते ही रहते हैं । ऐसे हमने अ्रेपनी । ज़रा कठिन है लेकिन ग्पसे बताये एक हमारे पहचान के थे उन्होंने हमें बताया कि माँ जब मे आँखों से लोग देखे हये हैं। ऐसे हमने जाने हैं लोग जो होते हैं। स्वयं हम। रे पिता इस तरह के थे । हुआ।" मैंने कह क्या हुआ। ? कहने लगे कि उनकी इतनी दानी प्रवृत्ति थी कि वो सवेरे हर जिस जमीन पर मैं ऐसे टहलता था, उसकी मिट्टो इववार को चीजें वांटा करते थे । किसी दिन कंवल इतनी बढ़िया हो गयी कि एक प्रादमी प्राकर मुझसे बाट दिया, किसी दिन कुछ । [प्रर उनकी आँख कहने लगा कि भई किसी फ़कीर ने आकर हमसे हमेशा नीचे रहती थी, और देते रहते थे । देते। बनाया कि यहाँ की मिट्टी थोडी-सी लेकर के पगर रहते थे । लोग दो-दो ले जाये, तीन-तीन ले जायें तो कोई क्या उनसे कहें कि "बया कर रहे हैं आप ? और वो हमारे यहां आ्राया और हमसे तो विल्कुल तोल दीदा तीन-तीन केवल आदमी लिये जा रहे हैं. ।" आँत क्यों तीची की हैं ?" कहते "भई मैं दे नहीं रा हूँ, दे कोई और रहा है। इसलिये मूझे शर्म लगती है। सब लोग कहते हैं आप दे रहे हैं ।" ऐसे । पेसा तो बड़े स्वतन्त्र वीर थे, ले किन बो इस मामले में मैं सहजयोग करने लग गया है बड़ा चमकार तुम ईंटे बनाओ्ों तो पत्थर जैसी हो जायेंगी| तो ले किन पहले जागृति कर मिट्टो ले जाता है। होनी चाहिये, लक्ष्मी तत्व की । लक्ष्मी तत्व की जागृति किये बगैर, अगर आे चाहें आपके अन्दैर लक्ष्मी आएगी तो नहीं। पैसा अ जायेगा आ जाएगा, पर लक्ष्मी जी नहीं आयेंगी। शर उन्हें शर्म लगती थी। कि लोग मुझसे कह रहे हैं. लक्ष्मी जी कसी होती हैं ? एक हाथ से उनके दान मुझे बड़ी लज़्जा आती है, लोग मुझे कह रहे हैं कि हैं। एक हाथ से उनका अश्रय है, और हाथ में दे रहे ही तुम अरोर देते वक्त में कहने लगे "देने वाला जो बो जाने मूझेब्या करने का है। के मैं तो प्रतीक है," और इतना ही नहीं, एक-भँवरा जिसके वौच में खड़ा हुआ्रा हैं। ऐसे लोग थे पहले इस भारत में । अब तो पता नहीं कुंछ दिखाई नहीं दे रहा इस तरह का तरीका । पेसे वाले का मतलब तो यही हो गया कि बहुत घमण्डो, बहु त कर और ऐसी लक्ष्मी पति आप हो सकते हैं जो समाधान किसी की परवाह नहीं। झपनी माँ-बाप की पर- में, इतने सन्तुलन में खड़़ी हैं। वो कमल पर ही खड़ी वाह नहीं, शपने भाई बहनों की परवाह नहीं, अपने रहती हैं इतनी सांदगो से, इतनी dignity (मर्यादा) को बहुत सब कुछ समझना । यह पैसे वाले के से बो रहती हैं। मैं तो बहुत प्राजकल देखती हूँ कि लक्षण, हैं । दुनिया में किसी की भी परवाहनहीं जो पसे वाले हैं उनके अन्दर कोई dignity ही करना। यह जो हमारे यहां अब पैसे का भूत सवार नहीं। उनके अन्दर दिखाई नहीं देता है कि इनके हो गया है, इस भूत से हमारी जो समाज-व्यवस्था अंदर कोई प्रतिष्ठा हो। बिल्कुल प्रप्रतिष्ठित तरीके से है पूरी तरह से टूट जायेगी । औरतों के लिये भी इस तरह से करते हैं कि समझ में नहीं आता कि अव यह हो गया है कि पति से बढ़कर के पैसा, इलनी चांपलूसी करने की इनको क्या जरूरत है उनकी, बच्चों से बढ़कर के पसा हो गया। हर दो कमल के सुन्दर पु्प हैं, जो कि उनके प्रेम अन्दर इतने कांटे हैं, उसे तक वो अपने अन्दर् समा मं लेती हैं। रत र] निर्मला योग fre १५ hece. चीज में पैसा। जहाँ पैसा मुख्य हो जाता है और ऐसे ही नगर हैं ।" उनको झोंपड़़ी दी तो उसमें प्रेम नगव्य हो जाता है, शराव शुरू कर दी, और १०० रुपये दे दिये तो उस ्खर्म हो जाता है। वहां सव लक्ष्मी का स्वप ने गराब शुरू कर दी। यह कोई गरीबी हटाने का रखत्म हो जाता है। और उस जगह सिर्फ पॅसे का एकदम 'रूखा जीवन आ जाता है जो आज आपको हुटेगी । यह तो शराब ऐसे पीछे पड़ गयी कि इस परदेश में दिखाई देता है । यहाँ से भी हिन्दुस्तानी में से ५० फीसदी गरीब मर ही जायेंगे. तो परदेश में जाते हैं उनको पता नहीं क्या हो जाता गरोबी मिट ही जायेगी । इलाज तो ऐसा ही हो है, सारी परम्परा टूट करके वो बेतहाशा पसे के रहा है कि लोग जीने ही नहीं वाले । त रफ दौड़ते हैं । मैं तो उन लोगों को देखकर के ऐसे घड धड़ गिर रहे थे, उनमें कोई ताकत नहीं है रान होती है कि यह क्या मेरे देश के लोग हैं ? थी। क्षीण-हीन ऐसे वहाँ लक्ष्मी का स्वरूप लक्षण नहीं दिखा । इस तरह से गरीबी नहीं रास्ते पर हये लोग इनकी गरीबी ए. इम तर मे जब हम अपने को गलत राम्ते आप क्या हेटो सकते हैं ? इनको तो पैसा वो सब देने से इन्होंने शराब पी-पी करके औौर धन्वे कर- पर डाल देते हैं, तब उस पर बहत जोर का मार आता है। से पें से वालों को बड़त वरे दिन भी कर के अर अपना सर्व-सत्यानाश कर लेना है अब गरीबी हटाने पर एक और प्रशन है कि जा ब हम इस तरह की तांत्रिक वद्या और ऐसी करते हैं। ऐसे पसे वालों के लिए कोई भी आशी- मेली विद्या करते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे पर से र्वाद नहीं होता। आप जाकर देखि ये, रात रात चुली जाती हैं। जिस घर में तांत्रिक विद्या शुरू भर सोते नहीं। उनको परेशानियाँ हैं । तो जो हो जायेगी, लक्ष्मी जी दूसरे पेर से चली जायेंगी। हैं, उस पसे को आप प्राप्त प्राज मैं विशेषकर घर्म पर वात कर रहीं है क्योंकि देखने पड़ते हैं । उनके बच्चे, जो वाहियात निकल जाते हैं, इधर उधर दौड़ जाते हैं अोर गलत काम ए पसा लक्ष्मी स्वरूप करो। उस समात्ति को, उस घन को आप प्राप्त करते हैं, जो लक्ष्मी की देन है जब आपक अन्दर गुलतियाँ करते हैं। जो लोग अपने कुण इलिनी जागृत होती है। ओर इसलिए इस देश दिवाली मनाते हैं, हर जगह दीप जलाते हैं रात का जो दारिद्र है, उसी दिन दूर होगा जब यहाँ को क्योंकि वाहर रात्रि थी । उस बक्त यह न हो पर लोग योग को प्राप्त हो। उससे पहले कभी कि लक्ष्मी कहीं लौट के चली जाये। उनको अन्धेरा यह जानना बहुत जरूरी है कि हम घर्म में कितनी घर में नहीं हो सकता; आप कोशिश कर ली जिये । और जितनी मली विद्या, जितनी पसन्द नहीं। पतंतरे मैं गई थी. राहरी में, मैंने देखा कि खुब भूत विद्या, प्रेत विद्या श्मशान विद्या और यह झोपडियाँ बनी हुई थीं। कहने लगे, यह झोंपड़ियाँ दुष्ट गुरूग्रों का जो नक्कर है चला, जो प्रगुरू लोग बनाई। मैंने कहा "पच्छा ।" योई नगर वनाया जो हैं, इन्होंने जो चक्कर चलाए हये हैं, इन्हीं सब गया है । मैंने कह, यह नगर कैसा ? पता नहीं । चक्करों के वजह से अपने देश में विल्कुल कालिख वहाँ से जा रहे थे तो सामने रास्ते पर लोग खुब पुत गई है, एकदम काला अन्धकार हो गया है। शराब पी-पी करके आकर धड़ाधड़ गिर रहे थे । और वो काला अन्धकार होने के वजह से अपना एक तो हमारे मोटर के सामने गिर गया। और देश उठ नहीं पाता । जब तक इन लोगों को आप एक नहीं, दो नहीं, काफ़ी सारे लोग वहाँ से निकले सपुद्र में नहीं डाल दीजिएगा, जब इनको आप जा रहे थे । मैं ने कहा, यह कौन सा न गर बनाया ? अपने हृदय से निकाल नहीं दीजियेगा और इस यह कहें यह झोंड़ियों का नगर बनाया, इसमें तरह की चीजे जब तक आपके समाज से जायेंगी सिर्फ शराब ही चलती है ? कहने लगे, हाँ "यह तो नहीं आपके समाज की गरीबी कभी हट नहीं सकती निर्मला योग १६ उसमें कभी भी आपको यश नहीं शयेगा। आप करके देख लीजिये कोई आदमी लास््रों रुपया इस क्योंकि लक्ष्मी जी ऐसे स्थान में बसती नहीं । तोसरी चीज जिससे लक्ष्मी जी हमारे देश में तरह से ले ले उसको कोई न कोई घाटा आएगा, नहीं है, उसका मुख्य कारण यह है कि कोई न कोई बड़ी बर्बादी होगी और वो ऐसी "यत्ञ नारिया पूज्यंते तत्र रमंते देवता" माने दशा में पहुँच जाएगा कि जहाँ से निकल नहीं या तो कोई ऐसे बीमारी में फैंस जाएगा यह कि जो इन्सान स्त्री की पूजा करता है स्त्री पयिगा । को मानता है, उसकी इज्जत करता है, वहा देवता या एसे कोई बेंकारी में फॅस जायेगा। कोई न कोई का रम होता है। लेकिन र्त्री भी पूज्पनीय होनी च हिये। स्त्री भी ऐसी हो कि जिसकी पूजा न की जाए, तो ऐसी स्त्री से फ़ायदा क्या ऐसी होनी चाहिये जो पूजी जाए जो पूज्यतीय हो जो पवित्र हो। जो उच्च विचार लेकर के संसार है और वो पूज्यनीय नहीं है, उसके वारे में में में [आये]। प्रेम से अपने घर और रिश्तेदार और सबको सम्भाल के रखे । ऐसी जो स्त्री हो, जो कहुंगी कि यहा को स्त्री बहुत पूज्यनीय है । अब भी पूजी जाये, ऐसी स्व्री के पति जो हों उसकी इज्जत करें, घर बाले उनको इज्जत कर । सत्री की, बच्चों की, लड़कियों की, माँ की, जहाँ इज जत होती है वहां देवता रमण करते हैं। नहीं तो भतों का नान गुरू अपने देश में स्त्री की क्या स्थिति है। मैं तो तब नही करता। अगर परदेश में जाकर मैं कहें कि भी कहूँगी कि हिन्दुस्तान की नारी एक विशेष हमारे देश में तो chastity ( पवित्रता) के पोछे स्वरूप की औरत है। जिसने वहत कुछ सङन औरती ने जौहर कर दिया तो कहते हैं यह हो किपा। पुरुषों की उयादतो जितनी हिन्दूस्तानी ही नहीं सकता है। मैंने कहा तुम क्या समझोगे, नारी ऐोसी चीज़ उसे मिल जाएगी कि जिससे बो पछ- ताएगा। क्योकि किसी भी सती स्त्री, किसी भी स्त्री जाति का अपमात करना श क्ति का अपमान ? तो स्त्री , है । अगर वो स्त्री इसी तरह की है कि जो बेकार नहीं कह रही। पर अपने भारतवर्ष में ग्राज मैं जरूर औरत हमारे यहाँ glamour (चमक-दमक) वग रह में विश्वास नहीं करतीं। अ्रब हैं कुछ पागल, उनको छोड़िये । लेकिन अधिकतर औरत सादगी से, अपने चरित्र को सम्भालते हुए रहती हैं। जिस देश में पद्मनी जैसे लोगों ने जौहर कियेकोई विश्वास हो जाता है । आबआप सुन रहे हैं कि उस ऊँचो चीज़ को तुमने जाना नहीं। उन आदर्शों को तुमने जाना नहीं । सहन करती है और कोई नहीं सहन करता। और अपना समाज ही पूरा ऐसा बन गया है कि आज विल्कुल हम लोग इस मामले में निलंज्जता से बात करते हैं। कोई कहता है कि "साहब इतने लाखों रुपये dowry (दहे त) में दीजिए श्रोर इन पागलों के पीछे अगर भागना शुरू कर दें तो नहीं तो आपको हनारे दरवाजे में प्रवेश नहीं ।" मैं आपसे बता रही है कि गरीबी जो नहीं आनी विल्कुल उन आती, इस तरह की बात करने को । तरह की चोज इतनी हमारे समाज में आज प्रच- तो समझती हैं इनसे गरीब कोई नहीं। इनके अगर लित हो रही हैं। जितनी जितनी ये बढ़ती जायेगो घर जाइयेगा और एक कप चाय दिया तो उनका उतनी उतनी आरपके देश में गरीबी प्रायेगी किसी दिल बैठ जायेगा। अरगर एक कप चाय उनके घर लडके को बेचकर के और लड़की के नाम पर प्रगर से खर्च हो गया तो उनका दिल बैठ जायेगा। और आपने रूपया इबकठा किया, आप देखि ये लीजिये हम लोग दिलदार हैं । गरीब भी हैं तो भी हमारे यराज उन आदर्शों को सब को छोड़ के और हम । और इन लोगों में क्या कम और इस गरीबी है? आप इनको समझते हैं रईस हैं ? मैं लोगों को इस मामले में शर्म भी नहीं थी. वो ग्रा जायेगी निमंला योग १७ घर में कोई आता है, तो उसे चाय पानीं कुछ होगा ही, क्यों नहीं होगा ?- उस बक्त सारी दुनिया_ न कुछ, कुछ नहीं है तो गुड़ ही, खाने को दे देंगे । जो के देश आपके चरणों में लोटेंगे और जानेगे कि भी घर में है, जो हो अपने हमारे साथ लोग सफ़र कर रहे थे देहातों में । वो इंस देश में हैं। यब भी लोग देखते हैं तो हैरान थे, कि लोग झोपड़ियों में रहते हैं मगर उन का दिल है कि राजा जैसे ओर यह लोग भहलों लोग साफ़ लोटा माँझकर के उसमें दूध लेकर के में रहते हैं अर ये हैं बिल्कुल भिखारी । मैं तो रोज आ गयेगे हमें देने के लिये ।" के अनुभव लन्दन में देखती है कि जितने भी विदेशी नही कर सकते कि इतने वड़े हृदय के लोग इनके लोग हैं बड़ी-बड़ी position (पद) में है, वड़ी-बड़ी इस देहातों में कसे रहते हैं । में हैं। आप उनको कितने भी presents (उपहार) दे दीजिये, कुछ भी कर दोजिये, उनसे एक पंसा नहीं निकलेगा । हमा रे साहब की सेक्रेटरी हैं, वो ऐसा आया है कि हम खो रहे हैं। हमारे बच्चे साहब से कहती हैं कि प्रापके grand children बिड़ रहे है अर उस अर हम जा रहे हैं। इस वक्त (नाती) आ रहे हैं, तो आप परेशान नहीं उन्होंने कहा क्यों? "अ्रापका सारा घर गरन्दा हो जाएगा।" उन्होंने कहा यह, किसके लिए घर है। यह क्या लक्ष्मी तत्व जागृत करके उनके अन्दर यह गौरव मेरे लिए घर है ? यह तो उनके लिए घर है जो भेर दीजियें । मेरे बच्चे आये हैं। उनका यह था कि कहती हैं "जो हमारी grand mother थीं जव तक दो पेंस हमसे नहीं लेती थीं हमको टेलीफोन नहीं करने देती बात को है, क्योंकि ये बहुत जरूरी चीज है । श्राप] थीं।" और उसी लन्दन शहर में आप प्राइचर्य लोगि जान कि हमारा देश गरीब्र क्यों है ? ग्रर करगे, कि दो बच्चे हर हपते में मारे जाते हैं। तो इसकी गरीबी आप गरीबों को रूपये देने से नहीं ऐसे द्वेश की affluence (घन-सम्पत्ति) से भगवान बचाये रखें । हृदय से निकालकर । असली श्रीवन्ती जो है, असली रियासत जो है - अाँखें खुल जाती हैं कि कहते हैं कि "इतने गरीब यह लोग विश्वास सो उस चीज को खोना नहीं है। और ये समय बहुत जरूरी है कि सह जयोग की स्थापना करके और प्रपने बच्चों को रोक लीजिये। उनके अन्दर श्राज मैंने आपसे विशेष करके लक्ष्मी तत्व पर अपि होगा। आप देकर देखिये। आप किसी भी गरीब आदमी को सौ रुपया दीजिये । न बो शराब अड्डे पे गया तो कहाँ जाएगा। कोई भलाई नहीं । इसलिए आाप लोग उस ओर जाने की कोशिश न करें। आप जान लीजिये कि पेसे को झेलने के लिए भी जो कुछ है उसमें समाधान से परमत्मा को दष्टि लक्ष्मी तत्व जूरी है। ऐसे ही रईस लोगों को देकर के अपने लक्ष्मी तत्व को इस देश का लक्ष्मी तत्व विल्कुल जागृत हो सकता हमारे लिए दान के लिए दिया है। हम बीच में है, पर सीष्ठव और उनका गौरव समझते । एक माध्यम बने खड़े हुए हैं, और उसको दान के अगर हम उसको न समझ और व्यर्थ की चेष्टाओों लिए दिया हुआ है इसका जो कुछ शुभ कर्म हो से, चाहें कि लक्ष्मी इक्कठा कर कभी भी हमारे अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत नहीं हो सकता । यह ही अ्रपने देश का कर्मोपाय है, कि अपने धर्म में जागृत हों। यह हमारे देश के लिए करने चाहिए। सबसे बड़ी चीज है परमात्मा का एक ही तरीक़ा है । भी सीचना चाहिए कि पंसा जो है वो परमात्मा ने प्राप जागृत करें । हुए सकता है वो करना है और इससे जो भी लोगों की मंदद हो सकती है, वो करना चाहिए और अच्छे मार्ग में, सत्मगि में रहना चाहिए । अच्छे काम लें, तो शीश्ष सब चीज़ व्य्र्थ है। उसमें कोई शोभा हो नहीं हैं। जव तक उसका अाशीश नहीं मिलेगा, इतना ही नहीं, लेकित जब ऐसा होगा-ओर ऐसे घर में जाय तो आपकी टांगे टूटने लग जाती ८ १८ निर्मला योग हैं। आपको लगता है "कब भागें इस घर से ।" के लिए आपको बुद्धि के कोई घोड़े दौड़ाने की उनका खाना खाओ तो आपको उल्टी हो जायेगी । जरूरत नहीं, कोई बिशेष सोचने की जरूरत नहीं । कोई न कोई तकलीफ़ हो जायेगी । ऐसे लोग जो सिर्फ कुण्डलिनी का जागूरणा होते ही यह कार्य हो बिल्कुल ही पेसे से जुटे हुए हैं मशीन बन सकता है । तो इसे क्यों न करें ? और इसे करना जाते हैं। उनके अन्दर कोई हृदय नहीं है । वे लोग नितान्त आवश्यक है । और यह होने का समय विशेष सोचते हैं हमारे घर में कुछ भी नहीं है, हम भूखे आ गया है। एक विशेष चीज हैं कि जायेगे ऐसे लोगों के घर का खाना न लीजिये यह समय आ गया है ओर इस विशेष समय पर अरप । रह मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि हमारे इस वक्त उपस्थित हैं। इसका आप पूरी तरह से अन्दर परमात्मा ने स्वयं साक्षात् लक्ष्मी का स्थान रखा है। वो हमारे अन्दर बसी हुई हैं। सिर्फ कर । उनको जागृतमात्र करना है। और उस जागृति उपयोग करें अर अपने लक्ष्मी तत्व को पहले जागृत ल With imenjs Cिंणय: JAGANNATH SURENDRA KUMAR 132 Bapu Street, FIROZABAD-283203 WHOLESALE DEALER IN ALL KIND S OF PAPER निमला योग १६ नव वर्ष १६८४ दिल्ली आथम ३-१८४ हर साल नया साल आता है अपसे मेहनत कराते थे "मेहनत करो" सफाई कराते और पुराना साल खत्म हो जाता थे, मन की शान्ति उससे पहले मन की शुद्धता करो। है । सहजयोगियों के लिए 'हर शारीरिक सुख से पहले शरीर को काफी तकलीफ क्षरा एक नया साल है, वयोंकि दो। बहुत तपस्या के वाद लोग परमात्मा को पा वो वर्तमान में रहता है । न तो सकते थे, श्रर इस चेतन्य को, जो ग्रापने सहज में दरम वो भविष्य में रहता है, और न ही बो बोते हुए भूत- काल में रहृता है । हर क्षण उसके लिए एक नया साल आता है, एक नई उमंग हैं, एक नई लहर है । पाया हैं, उसे जान स करते थे । ले किन माँ की व्यवस्था शऔर है कि पहले चैतन्य को पा लो जान लो कि परमात्मा है, उस जैसे कि समुद्र पर तेरते हुए हर क्षण कोई पर विश्वास करो जो अन्वविश्वास नहीं है, समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सत्य के रूप में । शर प्रव थोड़ी सी" मेहनत से भी सहजयोगी को आनन्द, प्रेम, शान्ति का आहाद बहुत बड़ा काम हो सकता है । जैसे कि किसी को मिलते रहता है । बस बात ये है कि व्या हम पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। तेरना सीख गये हैं या नहीं । सहजयोग लेक्वर दिया जाए। पहले तुम अपने को जमीन पर में जिसने तेरना सीख लिया वो अरानन्द में ही तरता है, आनन्द के सागर में तैरता है। सहज योग और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर में अगर कोई दोष है या त्रटि है, तो इतना ही है घीरे-बीरे पानी में लाया जाए । जैसे पानी देखा कि पार होने के बाद बनना पड़ता है । बगेर बने सहज योग हाथ नहीं लगता। मां ने आपको पानी में उतार दिया लेकिन तंराक बन करके भी पको सीखना होगा कि आप दूसरों को कसे सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द के तेरा सकते हैं दूसरों को कैसे बचा सकते हैं, सागर में घकेल दिए गये । अब इसका मजा उठाना दूसरों को तैरना कैसे सिखा सकते हैं । आपको पूरी है तो थोड़ा सा कष्ट उठाना पड़ेगा । और वो कष्ट तरह से बनना पड़ता है । और यही प्रगर एक त टि ऐसा है अपको बनना होगा। बने बगर नहीं होता है, तो सहजयोग में है। लेकिन वो अनेक त्र टियों को भरता है। ही तैरा के देखो । वहीं पर हाथ मारो दो-चार । फिर भाग गए । न== और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सह जयोगी उसे कहना चाहिए जिसमें पूरा समाधान हो, जिसने पा लिया, जिसकी शुद्ध इच्छा जैसे पहले गुरू लोग आपकी शान्ति और पूरी हो गयी क्योंकि कुण्डलिनी शुद्ध इच्छाशक्ति आनन्द की व्यवस्था नहीं करते थे। पहले तो वो है। जिसकी शुद्ध इच्छाशव्ति पूरी हो गयी, जिसकी निर्मला योग २० अपना है इसमें कोई कठिन तपस्या नहीं है । कोई महनत शुद्ध इच्छा शक्ति ने पूरी तरह से चमत्कार दिखा दिया, फिर कोई इच्छा ही नहीं की तपस्था नहीं है । रह गयो। जो प्रादमी पूरी तरह से समाधानी ही हो गया, वो असल में सहज योगी है। कोई सा भी अससाधान बचा हुआ है, इसका मतलव कुण्डलिनी करना सोखना चाहिए । सबसे वड़ी चीज का जागरण ठीक से नहीं हुआ । अभी तक आप है। जैसे मैं किसी के लिये शिकायत सुनती है, कि पूरी तरह से सहजयोगी बने नहीं । तो पहली तो चीज़ सहजयोगियों को प्रेम ये सहजयोगी, आप तो कहते हैं कि सह जयोग ही l-treat बड़े आइचर्य की बात है. कि वगैर सहजयोगी वड़ी अच्छी चीज है, अ्पनी माँ को भी आशी्वाद आते ही रहते हैं, चमतकार बने हुए दुव्य वहार) करते हैं। उनकी बीवी की वात चलती होते ही रहते हैं, लाभ होते ही रहते हैं, प्राप जानते हैं। वो अ्रपनी बहन को पीटते हैं, अपनी बीवी को रहते हैं कि "हम चल रहे हैं, ठीक हो रहा है, मारते हैं। कीई है, अपने पति का ध्यान नहीं करते । मामला बन रही है। ओर हम अग्रसर हो रहे हैं।" बचचों की तरफ ध्यान नहीं है । हजयोग में ये तो अनायास ही हो जाना चाहिए । 'अनायास ले किन सह नयोगी का सबसे बड़ा आशीर्बाद ही सब घटित होता है । अगर ये नहीं हुप तो ये है कि उसमें देने की क्षमता अ जाती है, वी सहजयोग क्या वना ? जब आप वक्ष हो गये तो देता है । और देता ही नहीं है, उस देने का जो वक्ष की छाया में जो बेठे हैं उस पर तो को ई सी भी प्रानन्द है, जो कि बहुत ही अनुठा आनन्द उसे आफत नहीं आ सकती न ! बुक्ष सारी आफत उठा वो भोगता है। वो अनन्द आप किसी सांसारिक लेता है । आपकी छाया में जितने लोग हैं उनसे चीजों से कभी पा ही नहों सकते । और सारे जितने अपके सम्बन्ध बहुत ही प्रममय ग्रौर निकटतम होने blessings ( वरदान) वरगेरह हैं इसे किसी से प्राप चाहिए । पा नहीं सकते । सबसे वड़ी blessing है कि आप की अपनी शक्ति बढ़ जाए और आप में ये क्षमता है अब मैं जी कह रही हैं सब प्रापको अलग अ्लग, गुरु आा जाए कि आ्रप दूसरों को दे सके । ये जिस दिन अप ही को, कह रही हैं । किसी और के लिये नहीं क्षमता आप में आ गई. बस फिर समझ लोजिए, कह रही, ये बात समझ के सूनिएगा । बहुत से लोग कि माँ का काम तो पूरा हो गया और आपका हैं जैसे मैं कहती है तो दूसरे का सोचते हैं कि काम शुरू हो गया। ऐसी जब तक दशा नहीं प्राती माताजी उनके बारे में तो नहीं कह रहीं । तो तव तक मेहनत करनी होगी और बनना होगा । अपनी औ्रोर ये चित्त देना चाहिए कि माँ हम सब यही एक सहजयोग की त्रुटिहै जिसे एक माँ के को अलग-घलग प्यार करती हैं । हरेक के बारे रूप में मैं कहती हैं कि मैं पूरी कोशिश करती है कि में जानती हैं अलग-अलग इसी प्रकार हमको अपनी तरफ से कोई ऐसी कमी न रह जाए। वहुत भी हरेक बारे में अलग-अलग जानना है । जब कुछ करती है, कि अरपनी तरफ से कूछ न रह जाए। कि मेरी किसी बात की वजह से मेरे बचतों में तो हभ बाहर वालों को नहीं कर सकते कमी रह जाए । हूँ हम अपने घर वालों को ही प्यार नहीं कर पाएँगे वर वालों की जरूरत-मानते हैं बहुत से लोग लेकिन आपकी भी तपस्या जरूरी है उसके पार भी नहीं होते। हो सकता है उनमें त्रुटियाँ बगेर काम नहीं होगा। पर जो तपस्या का स्वरूप होंगी। लेकिन उनकी जो जरूरते हैं, उसे करिये । उग्र है या संतप्त है, ऐसा नहीं हैं। 'श न्त' तपस्या पार की बात तभी मानेंगे जब आप में कोई अन्तर निर्मला योग २१ देखेंगे। अगर आप डंडा लेकर कहें "तुम पार क्यों से ही शन्ति अ्रती है । जिसमें क्षमा नहीं आएगी, नहीं होते हो, तुम सहजयोग में क्यों नहीं आते, उसे शान्ति नहीं मिल सकती । पहले तो श्राप सब तो कोई सहजयोग में नहीं आएगा। उल्टे यह को क्षमा करें और फिर अपने को भी क्षमा करें । तरीका सहजयोग का नहीं है । सहजयोग का दोनों चीजें जब आप कर पायेगे तभी आप देखियेगा तरीका है कि पहले अपने अरदश से, अपने स्वयं कि यपके अन्दर स्वयं वा्ति अ जाएगी । आज्ञा व्यक्तिस्व से दुसरों को प्रभावित क र ना । जब दूसरा प्रभावित हो जाएगा, तो घोरे-धीरे उसे सहज में लागो । कोई ठेल-उाल के आप ले भी अए, समझ लोजिए, ढकेलते हुए वहां से, ले आए किसी की की मेहनत जो है उममें एक तरह को discipline आप, विश दिया। तो क्या वो पार हो जाएगा ? -यह आप ही बताइये । पूर्ण स्वतन्त्रता में उसे आना होता है आज नहीं, कल ठीक हो जाएगा कि "माँ देखो मूझे ये तकलोफ थी ओर ये तो ये ख्पाल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे हैं मेरी तकलोफ ठीक नहीं हुई" तो मैं भी कह सकती तो हमारे साथ 'अनेक पनेक हैं उनकी दण्टि हमारे ऊपर है। हम कस बन मि ज प्रापके लिए मेंरे पास हमेशा time रहता है। रहे हैं ये बहुत जरूरी चीज है । और इसमें ये बात र काम चौवीस घन्टे चलते रहता है। आपको सिफ़् है समझ लीजिए, आपके कोई गुरू हों- realised- soul भी हों, तो वो त्रिचारे श्रपनी ही मेहनत से जो चक्र खुल जाएगा तो शान्ति के द्वार खूल जायेंगे । अब दूसरी बात जो मेरे सामने हमेशा रहती है औ्र मैं आपसे कहती भी हैं, कि इस बनने में आप 1. अनुशासन) आना पडड़ेगा मुझे time (समय) नहीं मिलता।" और फिर आप कहिएगा ( बहुत से लोग-"माँ । बन रहे हैं । और बो जो । चाहे मैं आपसे मिले या न हैं मुझे time नहीं था अपना हो कम करने काहै। इसके लिए आपको time और discipline जरूर जोड़ना पड़गा । इस शरीर को discipline किए वर्गैर ये वैसी होी मोटर-कार हो जाएगो, जो सबको रौदती चलेगी और न जाने किस गढु में जाकर गिर जाए। कुछ करना है, करते हैं । आपसे नहीं कहेंगे कि आप भी कुछ बनिए । कहेंगे ये तो वेकार हैं ही, चलो बस हमको गुरू मान लिया इसी में धन्य समझो; अगले जन्म में देखा जायगा। लेकिन माँ ने जरा बड़ा काम निकाला है । वो चाहती है कि हरेक को गुरू बनाना है जरा कठिन काम है। ओर नहीं भी है। आप जानते है कि अप लोग सब बन रहे हैं, धीरे-धीरे । सब घड़ते जा रहे हैं, वनते जा रहे इसलिए जिस वक्त आप बन रहे हैं, आप उसमें ये होना चाहिए एक ही इच्छा होनी चाहिए. रों का ख्याल बहुत कर । अपके अड़ोसी-पड़ोसी 'शुद्ध इच्छा । शुद्ध इच्छा क्या है ? कि आत्मा- इसको discipline करने के लिए बहुत आसान त रीका है । पहले अन्दर दो शक्तियां जो चल रही हैं, एक तो इच्छा शक्ति और दूसरी कार्य शक्ति । इच्छा शक्ति जो है अपने ओर देखें कि इसके दूस सब लोग, सबको आप लोग क्या माफ कर देते हैं? क्या आपने सबको क्षमा कर दिया ? क्षमा करना ये शुद्ध इच्छा है। बाकी सब इच्छाएँ आप छोड़ बहुत सीखना है । बहुत बार कहा है कि ये क्षमा जो दीजिए, अभी इस वक्त । एक क्षण के लिए तो है, ये सबसे बड़ा साधन और सबसे बड़ा आयुध छोडिए । "बस, हमारे पास में है । और इस जब बड़े आयुध की हम आत्मा से एकाकार हो जाएं ।" एक ही शुद्ध इच्छा इस्तेमाल नहीं करंगे, इसका उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे पास और कोई इस कलयुग में श्रोर साधन ये चाहिए, वो चाहिए. घर चाहिए, मकान चाहिए, नहीं जुट पायेंगे। 'क्षमा' का साधन करके, 'क्षमा ये सब चौज छोड़ दीजिए इस वक्त । इस बक्त सिर्फ, ये की दुष्टि से लोगों की ओर देखना चाहिए । कार हम हो जाएं । प्रात्मा से एकाकार हो जाए । श्रर कुछ नहीं माँ से मांगना, ह को मांगे। वाकी सव छोड़ दीजिए । कि ये होना है. अपने मन में विचार करें कि "एक शुद्ध इच्छा है, कि क्षमा, 1 निर्मला योग २२ परमात्मा से एकाकार होना है, हमें आत्मा से समझदार हो गये हैं।" हमारे अन्दर समझदारी जो एकाकार होना है और हमें कोई इच्छा नहीं है। है ये हमारा एक प्रतीक है, हमारा एक ध्येय है । देखिये कुषि इलिनी इसी वक्त सब अपकी चढ़ गई। समभदारी जो है उसको हम अपने ऊपर-जसे कोई आदमी शान से तिलक लगाता है ऐसे समझदारी का चाहिए हो। महज का हैमने तिलक लगाया और हम समंभदार हैं। समझ- और दूसरी, क्रिया शक्ति में ये होना भी हो वो सहज हमसे कि जो कुछ मतलब लोग सोचते हैं कि हम बैठे रहें और हमारे दारो का मतलव है जो आदमी समझदार होता है गोद में चीज आ जाए । ये बड़ी गलत भावना है। वा antrum (झझलाहट) में नहीं जाता बिगड़ता ये बड़ी ग तत भावना हमारे अन्दर सहज के बारे में नहीं। छोटो-छोटी ची जों के लिए फिसलता नहीं है, य कि हम बैठे रहें अर हमें सब चीज निरिल जाए आपने देखा है कि ए 5 बीज है, उसको जब हम मा चौज ठीक नहीं ह के इस पृथ्वी में छोडते हैं, उसके उदर में, तो दिखने बड़पन की निशानी है, maturity की निशानी है । को तो दो सहज ही से sprout (अंकुरित) होता है ले किन क्या बो सहज है ? आवने उसकी मेहनत देखी. हो सकता वो सहजयोग के लायक नहीं है, सहजयोग विचारे ए का छोटे से एक उसके अंकरूर की, जो कि के लायक नही है । आपको mature होता पड़ता उस घरती को फोडकर निकल ऋता है । आपने है और समझदार भी । उस छोटे से मूल की मेहनत देखी जिसका एक छोटा सा cell (कोष) किनारे में होता है, आख री है ता है। हमने छोटे छोटे बच्चों को भी देखा है सहज है, जो कितनी मेहनत से अपने को अन्दर गढ़ता है। योग में; बड़े समझदा र, और हर चीज को बड़ी अब उसकी शुद्ध इच्छा क्या है, किक इस पड़ की में समझदारी से समभते हैं । उसी तरह से अरप में ये गढ़ दं जैसा भी हो । उसकी ओर कोई इच्छा समझदारी का तिलक लग गया है कि आप सहज पने देखी ? उसमें सिर्फ एक हो वचार होता। है योगी हैं और समझदार भी और इसमें अपके मां किसी तरह से मैं जमीन के प्न्द र ऐसी जगह पहुँच की शान की बात है। जो नासमझ है उनके लिए जाऊँ जहां से पानी का स्रोत को पह ता दं और लोंग ये हो कहेंगे कि इनकी मां ने कोई इनको शिक्षा वहाँ से पानी खींचकर के मैं इस पेड़ को दे सक । नहीं दी, बिल्कुल बेकार। वाहने को तो आदिशक्षित और कहता तहीं है कि ये चीज ठीक तहीं है, वो । समझदारी से कहता है। सहजयोग में जो आदमी mature (परिपक्व) नहीं । दिखने में चीज जितनी कठिन है उतनी नहीं कुछ नहीं सोचता । और 'कितनी मेहनत, है. श्रर कुछ बच्चे देखो तो विह्कुल वेकार हैं । और वो पत्थरों से लड़ता है, मिट्टी से लड़ता है, तो कोई उसे इस समझदारी को लेते आदमी को ग्रपनी ग्रोर रौंदता है कभी कुछ करता है । सब चीज से देखना चाहिए "कि हमारे ऊपर इसका उत्तर- गुजरता हुआ्रा घीरे-धीरे, वड़े wisdom (बुद्धि) के दायित्व है, जिम्मेदारी है, कि हम संसार के सामने साथ अपता चलते जाता है। कोई पेड़ आया या क्रूछ एक समझदार इन्सान बने । आया बीच में तो उसके गोल घुम जायगा. उसकी जड़े आयगी तो उसके गोल घूम जायगा। औ्र कहीं अगर कोई पत्थर-वत्थर होगा तो उसके भी गोल एक बात कहना चवाहती हैं कि अब सहजयोग में घमकर और अपना मार्ग बन। लेगा। हुए आरज नया साल के इस शुभ अवसर पर मैं अपसे हम लोगों को बहत mature होना है । नये लोग आए, बड़ी खुशी की बात है । उन् के आगे जो उसी तरह, एक सहजयोगी को बहुत सूझ-बूझ पुराने सहजयोगी हैं, उनकी समझदा री ग्रानी चाहिये। के साथ चलना चाहिए श्रर समभदारी प्रपने ऊपर आए हैं, अभी पार तहीं हुए, कुछ हैं। किसी में थोड़े जिम्मेदारी के तौर पर लेनी चाहिए, कि "हम vibrations ( हैं, चंतऱ्य-लहरियां) आररहे निमंला योग २३ किसी में नहीं आ्रा खराब है । यहाँ दू ढे से भी कारयदे का एक आदमी । अ्ब सहजयोग में आने के बाद अगर रहे हैं। कमी कुछ है किसी में कुछ problem (वाधा) है। कोई नहीं मिलता एकदम से हो ज्यादा पार हो गधा है तो वो अ्रपने आप अपने हालात ठीक नहीं करेंगे तो जैसे करोड़ों को समझ बैठा कि मैं बहुत वड़ा आदमी हैं । सब इस देश में पड़े हैं वसे ही आप होंगे, विशेष क्या तरह की गल्तियाँ होती है । आपने भी ये गल्तियां होंगे ? आपको एक विशेष रूप में होना है । करी हैं, उसको भूलना नहीं। इसलिए उनके प्रति एक तरह का बड़णपन-बड़प्पन का मतलब नहीं कि नखरे करना या अपने को दिखाना कि हम कोई भई आजकल अगर बेईमारनी नहीं करो तो पेट नईीं बड़े आदमी हैं। बड़प्पन का मतलब है कि एक तरह की भरता । ये बात सही नहीं है । आप छोड़के देखिये । paternal 'पिता जसो feeling 'भावना है, पितस्व परमात्मा के साम्राज्य में कोई भूखानहीं मरसकता । को feeling, मातृर्व की feeling । इसमे उनकी 'योग. क्षेम वहाम्यहम् । योगः क्षेम वहाम्हयम् । और देखना, उनके प्रति प्रेम, जो कि माँ का प्राप फिर से कहेंगे, योगः क्षम वहाम्यहम् । योग होने के पर प्रम है. उसी तरह का आ्राप को प्रेम होना वाद क्षेम की जिम्मेदारी हमारी है । इसलिए कोई चाहिए। अगर हम ये सोचते कि दुनिया के लोग कोई भी गड़बड़ काम करने की जरूरत नहीं, वाकी जो हैं वो विल्कुल वेकार हैं, तो कुछ काम होता क्या सहजयोग में ? या गअगर हम बेठे रहते, तो हम तो बिल्कुल अकेले हैं दुनिया उसके लिए आप निश्विन्त रहिए । में किस से तौले अपने को ? लेकिन वो सवाल हो नहीं उठता । यहाँ तो ये है कि कितनों को अपने पाचल में भर ले । अभो हमारा वजन ही कम हो रहा है । इस आंचल में किस-किस को भर लें. हर तरह के नक्कर हैं जिनमें से सहजयोगियों को किसे-किसे रखे-यही फिक्र लगी रहती है । १H. = अब बहुत से लोग ये कहेंगे कि "माँ, देखो कमे कसे हालात से आपको सव हम देख लंगे। अपने सी तौलते परमात्मा ने बचाया है और बो बचायेंगे आपको । इसीलिये किसी भी चक्कर में आने की जरूरत नहीं है । आजकल हजारों चक्कर चल पड़े हैं । निकलना है समझदारी क्या है ? अब जैसे कि हमारे यहाँ भी dowry system (दहेज प्रथा) चल कि इसी प्रकार आपकी भी दष्टि में वो समभदारी रहा है। सहजयोगियों को किसी को भी dowry का प्यार होना चाहिए। उसमें ये नहीं कि आप देना शोभा नहीं देता, न लेना । लोगों को कहें कि कोई आप बहुत वड़े अरकड़खा हैं । लेकिन एक अत्यन्त सरल, सहज प्र म-भाव अपने पहेली बात ये है कि ऐसी ओछी बात नहीं करनी । दूसरी ये कि वहुत से लोगों में होता है कि अन्दर रखना चाहिए । और उस सहज-मरल प्रम भाव में पितृत्व की धारण, एक समझदारी हमारी ही जाति में हम विवाह करेंगे ये भी की भवना रखनी चाहिए । मैं तो प्राप पर बड़त मूखता का लक्षारण है । आपकी जाति कीन सी है ? विश्वास रखती हैं, किसी भी मामले में। जाहे वो आपकी तो जाति नहीं है, आप तो योगी हो गये योगियों की कोई जाति नहीं होती। सन्यासियों की भी कोई जाति होती है क्या ? अभी हम एक दरगाह पर गये थे तो उन्होंने कहा कि 'साहब ये तो लिया चिश्ती, - चिश्ती जो थे उनके nephew, कहा "औलिया की क्या जात होती है" कहने लगे "औौलिया की तो कोई जात नहीं होती । हम भी ओलिया है पसे की बात हो चाहे, समझदारी की । मैं यही सोवती हैं कि मरे बच्चे कभी नासमझ नहीं हो सकते । कभी-कभी होते हैं। लेकिन विश्वास मेरा पूरा है कि आप लोग सब समझदार, वहत ऊसे किस्म के आदमी हैं। (भरतीजे ) ये भी पलिया] थे। तो मैंने ग्ब देखिये प्रपने देश में भी कितने हालात निर्मला योग २४ किये ?ये सोचना चाहिए । जान बूझकर क्यों किए ? क्योंकि इस तरह की जो प्रथाए अपने देश जात का मतलब होता है apritude। जाति । में ठ्यवस्थित हो रही थीं-जाति-पाति सब फालतु जात -जो जन्म से पाया हो। जन्म से बी पानी नहीं को चोजें-उसको पुरी तरह से तोड़ने के लिए होता कि ब्राह्मण कुल में पेदा हुए, कि वश्य में, कि अब सोचिए, हजारों वर्ष पहले ये का म हुआ राक्षस शद में- ये नहीं होता। आप जो पेंदा हुए, अ्रपका के धर में प्रह्नाद को पैदा किया स्व्रयं कृष्ण के हमारी तो कोई जात नहीं । शुद्ध aptitude (क्षमता) क्या है ? मामा राक्षस थे । कहां से कहां देखिये उनकी कृषया भी उतरेकहां, तो मामा राक्षस ! अरे भई कोई और अच्छा नहीं ताड़, नानक मिला था तुमको ! कंस ही को मामा बनना था ? क्यों बनाया ? सोनना चाहिए। इसलिए कि मामा । छलाँग कहा मारी, देखिए अपने देश की दूसरी बीमारी है, जाति। जिसको नानक साहब ने बहुत तोड़ा है। बहत साइव ने, कवीर ने तोड़ा । लेकिन अरब इन्हान ले किन अब इन्होंने । दुसरी जाति बना ली । उसमें भी अब जाति बन है।ते भी उसका मदन करना है । गयी। सिक्खों में भी कोई कम जातिया है ? वो भी जातिये हो गई । सिक्ख एक जात हो ही नहीं रिश्तेदारी जो है, जिसके पीछे में हम लोग देश सकती । जो सिक्ख हैं वो तो जात हो ही नहीं वेत देते हैं-ये रिश्तेदार, मेरा भाई, ये मेरा बेटा, सकती । वही तो बात है। जो कुछ जो तोड़ता है ये फलाना, ये गब हो जाए, ऐसी जो व्यर्थ की चीजों में हम जो इतना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि "कस अगर राक्षस है तो चाहे वो मेरा मामा इसलिए इस तरह को भरी जाति थीं, वो सारी अपने कर्म के अनुसार था । जो हमारे अन्दर, हिन्दुस्तानियों की खास चीज नहीं तो प्राप ही बताइये कि मत्स्यगधी, जा कि है। अंग्रेजों की बात और है, उनसे बात करते वक्त एक धीमरनी थी, उसका लड़को, जी कि उसका तो अर वात करनी पढती है, आप लोग की बात विवाहित रूप में बच्चा नहीं जन्मा था. इस तरह और है। उन लोग के यहां तो बेटा क्या, बो तो का बच्चा व्यास हुआ जिसने गता लिखो साचिय किसी को तहीं मानते । माने तो और उससे नजदीक कहां से कहां बात पहुँ व गयी। को? ऐसा ववो रिश्ता कोई नहीं होता। बेटा है बाप को मार क्यों नहीं किसी बराह्मण कुल का 'शुद्ध' मनुष्य जिसे डालेगा, बाप है बेटे को मार डालेगा। मानो सभी कहते हैं-ये तो बड़ा भारी मजाक है ! ले किन, एसे राक्षस हैं इस मामले में । ओर हिन्दुस्तान के लोग ्रादमी ने ब्यों नहीं गीता लिखी ? सोचना चाहिए। ये हैं कि अगर बेटा, अगर वो murderer (खूनी) काहण ने व्यास से क्यों लिखवाई ? व्या बात भी है तो भी माँ जो है कहेगी "बेटे कोई बात नहीं है? वो तो इसलिए कि यही धारणा ताड़न के murder ही करके आया है न, हाथ धो लो खाना लिए कि मत्स्यगंधा से जो पुत्र हुआा है, उससे में खा लो । कुछ बात नहीं है तुम तो मेरी जान हो, गीता लिखवाऊ। विद्र के घर जाकर उन्होंने साग कूछ हर्जा नहीं । तुम ये खाना खा लो चाहे वही वो बन जाता है, पता नहीं कैसे ? हिन्दुप्रों में जो जातियां थीं वो भी सारी जितनी हो, उसको मारेंगे। खाया, क्यों ? इसी ची ज को तोड़ने के लिये । भीलनी के झंठे बेर राम ने खाए। क्यों ?क्यों कि ये सी जो हमारी अंधी [आख है, उसको खोलने के इसी तरह की बेवकूफी की वात तोड़ने के लिए । वो लिए ही ये किया । इसी प्रकार जाति-पांति में फिर क्या वेर के बरगैर जी नहीं सकते थे ? और पर कोई हमारा जो एक अंध-विश्वास मन्दिरों में, मस्जिदों खा भी ले क्थोंकि रामचन्द्र जी ने खाए, तो फोरन में ओर इन सब चौजो में है, मैं तो कह जाकर मुह धो लेंगे। ये सब काम उन्होंने क्यों में भी, उसकी तरफ दृष्टि उठाने के लिए भी लोगों murder करके आए हो। ये अरना देश है ! गुरुद्वारों निमंला योग २५ू ने बड़ी मेहनत की, बड़ी मेहनत की । नानक मामले में मैं नहीं साहब ने खुद ग्रंथ साहब इसलिए बनाया कि कहुँगी लेकिन इतना जरूर कहँगी कि जब इन्सान उन्होंने कहा कि शास््रों में ये लोग तो interpre- को किसी भी चीज़ के बारे में इस तरह से लोग तंग tations (अर्थ) लगाते हैं, तो उन्होंने जो realised कर देते हैं तो वो उस तरह की कहानी भी बना जब धर्म के नाम पर इतने अत्याचबार, ग्रंथ साहब बनाया। अब वी ही ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं खून-खराबी, ये वो सब हो रहा है, तो भगवान को अरे भई उसमें क्या लिखा है वो तो देखो। जो बात भी लोग कह सकते हैं कि भगवान कोई चीज़ नहीं उन्होंने असल कही है उसका essence (नि्ाड़) है । भगवान में भी विश्वास करना असम्भव सा तो पकड़ो, नहीं तो तानक साहब के साथ भी तो हो जाता है । उसमें मैं उनका दोष नहीं समझती, ज्यादती हो रही है । इसलिए इस तरह का क्योंकि जो भगवान का नाम लेकर के काम कर confusion (भ्रंत स्थिति) अपने सभी ब्मों में रहे हैं वो अगर इतने महादष्ट हैं-अ्रब समझ इतनी बुरी तरह से हो गयी है । यहां तक लोग लीजिए एक योगी साहब हैं वो बन्दूक बना रहे हैं। तथ्य है या नहीं इस 1 souls (सिद्ध आत्माए) थे, ऐसे ही गुरुग्रो का वो सकता है । कहते हैं कि मुहम्मद गजनी स्वयं साक्षात् अभी मेरी तो कूछ समझ में हो नहीं अराता कि कृष्ण का अवतार वा क्योंकि ब्राह्मणों ने लूट योगी का अर बन्दूक का क्या सम्बन्ध है (भई मचायी थी, इसलिए 'कृष्ण' ने मुहम्मद गजनी का तुम बता दो, तुम्हारा नाम योगी है) । मुझसे बहुतों अवतार लिया था। । ? THE कहानी ऐसी है पर जब ने पुछा कि योग का बन्दूक का क्या सम्बन्ध है उन्होंने सोमनाथ को लूटा तो बहां से शंकर जी मैंने कहा न तो कृष्ण का अरायुध है, न देवी का- भागे और भागते-भागते भेरों नाथ जो के मनदिर बन्दूक, वहरहाल ये कोई प्रायुध जोड़ रहे होंगे ! तो में घुस गये और उनसे कहा"भईया तुम इस प्रकारके विक्षिप्त और विचित्र लोग आजकल के मुझे बचाओ उससे, ये तो मेरे पीछे पड़ गयो।" जमाने में संसार में अआए हुए हैं। इससे भी भगवान का नाम जो है, जोग सोचते हैं कि ये तो कहने की इरते हैं ? आपको क्या डरने की बात है, आप तो बात है कि भगवान है, भगवान हो नहीं सकता । एक नेत्र खोल दीजिए तो ठीक हो जाए।" उन्होंने अरब सहजयोगी ही सिर्फ जानते हैं पवको बात 'जानते' है । बो सो माने सिर्फ बृद्धि से नहीं, लेकिन vibration (चेतन्य लहरियों) मे कि परमात्मा है और उनकी विश्वव्यापी नाथ जी जो गए तो उन्होंने देखा कि वहां विराट शक्ति जो है संचालित है । सिर्फ सहजयोगी जानते हैं। अब जान तो बहुत कुछ लिया है [प्राप लोगों ने । उन्होंने कहा कि "आप तो शिकजी है, प्राप किससे कहा "भईया, तुम जावे देखो ये कोन रहा है ।" जाकर देखा इन्होंने-कहते हैं, भैरों साक्षात् सो रहे हैं। उन्होंने कहा, '"वाबा रे बाबा इनको कौन मारेगा ?" तो भेरोंनाथ जी ने कहा मैं प्रापसे बताती है कि आप लोग जितना जानते हैं। कि "एक चीज मां ने मुझे दी है, बो शक्ति मैं बड़े-बड़े योगी भी नहीं जानते-माने असली योगी । इस्तेमाल करता है।" तो भ्रमण देवी ने भ्र गों की असली योगी की बात कह रही हैं, वो भी नहीं হাक्ति दी थी । तो उन्होंने भ्र गों की शक्ति के जानते होंगे। लेकिन कुछ जानना ऐसा हो गया इस्तेमाल करने से भ्रमर गए और उन्होंने जैसे रेडियो के प्रत्दरसे music (संगीत) आता है और गुनगुना के उनको सोने ही नहीं दिया। तो कृष्ण को रेडियो पर असर नहीं होता। आर-पार। जो कुछ श्रौर सोना जरूरी है, बोच-बीच में, नहीं तो वहत ही भी जाना है, बहुत कुछ जान गये आप लोग और उपद्रव हो जाय संसार भर में। वयोंकि उनकी vibrations में भी जाना है । लेकित वो कुछ हनन शक्ति बहुत जबरदस्त है। और वो परेशान vibrations ग्रपने 'अ्र-दर' नहीं चल रहे । वाहर होकर के चले गये, ऐसा लोग कहते हैं । इसमें सही चल रहे हैं । उनको कुछ 'अन्दर' भी चलाना निमंला योग २६ चाहिए। इसलिए मैं कहती हूं कि अपने को disci- अव कोई राजकीय या सामाजिक और जितने भी pline करिए। अपना instrument ( करके इन vibrations को अन्दर" ले लीजिए । यंत्र) ठोक तरह के इक है, वो सबमें आत्मा का ही प्रादूर्भाव होगा, नहीं तो काम नहीं चलने वाला । इसमें मैं कहती है कि महाराष्ट्र में लोग मेहनत बहुत करते हैं। बड़े मेहनती हैं। श्और इस लिए सहजयोग में उनकी प्रगति वड़ी गहन हो मुझे प्छना ये है कि आप में से इतने कौन लोग रही है। गहरी हो रही है। इसलिए आपको ध्यान हैं जो इसके लिए तैया र है कि प्रपना जीवन एक देना चाहिए कि रोज सबेरे उठ करके-अरब शुद्ध इंग्लेंड में जहां इतनी ठंड पड़ती है प्रौर अंग्रेज को Dynamic (कार्यशील) बनाएं । निरभंय, पूरी तरह सबसे बड़ा गुनाह है, चाहे आप मार डालिए, से निर्भय होकर के, हम विशोप रूप के इंसान बनने उसका खुन कर डालिए बो कुछ नहीं कहेगा, वाले हैं और हैं। आपको हो गया है। आप- लेकिन अगर उस को जैसे कहते हैं कि द्रिज हो गये एक अंडा था, जैसे गया, खत्म । उसके बाद, इससे वढ़कर महान पाप समझ लोजिये ये ego, superego का, टूट है ही नहीं इंग्लेंड में । अगर पपने किसी को सवेरे करके और अप अब पक्षी हो गये । ले किन एक नो बजे से पहले जगा दिया तो बस परापमे महापापी, छोटा-सा बच्चा पक्षी एक अंडे से भी कमजोर दुष्ट, राक्षस कोई नहीं बजे उठकर नहाते हैं, चार बजे । । क्योंकि वो जो पहले ही discipline थी अब रखिये; प्रम 'शुद्ध होना चाहिए । शुद्ध' प्रम । उन्होंने सहजयोग में लगा दी । हम लोग तो कभी इसकी भी भावना बहत कम लोगों को है। disciplined हो नहीं रहे । हम लोग तो सब मूक्त लोग हैं । सब लोग ब्रह्म बने बेठे हैं उन लोगों ने इतनो मेहनत को तो क्या हम लोग नहीं कर सकते ? रब सवेरे चार बजे 9reed (लालच) है शर न ही किसी प्रकार की माताजी उठने को मत बोलिए, ब हुत ज्याद। हो जाएगा ।" मैं नहीं बोलती । पर आप खुद ही दो बहते रहता है। सोचिए कि आपको time ही कव है ? सवेरे उठकर के ध्यान में वो लोग बैठते है, लन्दन की ठंड में । और उस मेहनत से ही वो लोग पा गए। नर्क है। जब न्क में उन्होंने स्वगं खड़ा किया है चाहिए। और जब ये होने लग जाता है तभी आप तो स्वर्ग में थोड़े से दीप लगाना कोई मुश्किल वन्दनीय सह जयोगी हो जाते हैं । उससे पहले नहीं । नहीं है । ये तो स्वर्ग ही है । ऊपरी बाते छोड़ दोजिए। ये तो बड़ी चीज़ है । ये देश बहुत महान देश है । इसमें ये काम करना कोई मुश्किल काम नहीं है । कल के नेता आप लोग हैं। आप ही में से, सहजयोग से ही तैयार होंगे । और अब से एवम् पूरी त रह सुन्दर सुबह प्पने जगा दिया तो बो ये । ऐसे देश में लोग चार होता है इ स लिए इसे बहुत बढावा देना चाहिए । सम्भालना चाहिए, संजोना चाहिए । श्रर शुद्धता उनकी महतत प्रेम क्या होता है? शुद्ध प्रेम वो होता ये शुद्ध है कि जिस में न तो कोई किसी प्रकार का ust है, माने न कोई तरह की लालसा है, न लालच औ्र न ही उसमें कोई तरह की गंदगी हैं । वो बहुते रहता है। इस शुद्ध प्रम का अपने अन्दर से प्रकाश वहा तो बहना चाहिए । ये शुद्ध इच्छा हमारे अन्दर होनी और ये एक जो बनने की विशेषता है, इसकी और जरूर ध्यान दिया जाए। आप अ्राज कहेंगे कि 'देखिए मा हमारा ये चीज ठीक कर दीजिए, माँ बो ठीक कर दीजिए । हों, भई चलो ठीक कर तो इसलिए मैं बता रही है कि कल के, भविष्य देंगे। कर देगे। लेकिन आपका कुछ बनेगा नहीं के जो नेता लोग हैं तो आ्रप ही यहां बैठे हुए हैं। मामला । कोई बच्चा है कहता है "माँ हमें ये दे हैं. निमला योग २७ दो।" चलो भई लो, तुमको चाहिए, लो । लेकिन है दूसरे की । वाह्य को दृष्टि जो है इसमें चित्त आप कोई विशेष तो बने नहीं । आपने कुछ पाया हमारा बड़ा उलभता है। तो नहीं । शराप ऐसे ही मांके आगे पोछे दौड़ते रहे । क्या फायदा ? आपका मो बनाना नाहती हैं वो अगर आप नहीं बनगे तो मां की भी तो इच्छा पूरी नहीं होती। एक प्रजाब तरह का बात हैं, कि आपको बनाना चाहिए, ये मेरे अन्दर शुद्ध चित्त को 'गहन उतारना पड़ता है । Peni- trating, गहन । तब कमसे possible (सभव) शुद्ध क।जगर अप पहले ही देखते साथ, "साहव वी ती जो कुछ ठीक नहीं है, इनका ठीक नहीं है ।" हो गया काम इच्छा है। औ्र ग्रापके अन्दर श द्ध इच्छा है कि खत्म । वा झादिमो खत्म, जसकी सब आत्मा खत्म । आपको कुछ बनना चाहिए। जब हमारा ऐसा उसका सब जो कुछ भगवान ने मेहनत की है वो मेल बैंठा हुआ है तो सिर्फ शुद्ध इच्छ। से रहें हम | सब खत्म । "वो तो ठीक नहीं है -वस हो गया काम । आप उसके गहन उतरे क्या ? देखा वया ? स्त्ोजा है का, क्या चीज है ? गहन उतरके देखिए । शुद्धता लाने के लिए और फिर राप देखेंगे कि गहन में तो भई कमाल औ्र शुद्ध इच्छा पर रहने के लिए, शुद्ध' प्रम पहली चीज । शुद्ध प्रेम । और अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए । हम किसी के है। ऊपर से चाहे जते भी हो, और ज्यादातर से जो यहां जाते हैं, तो क्या देबते हैं- 'प्रे इनके यहां ऊपर में बहुत होते हैं कभी-२ वड़े गड़बड़ होते हैं, इतनी अच्छी चीज़ ग्रायी है, ये कहाँ से प्प्रा गयी ? अन्दर से । ये कैसे आ गई ?" लगा दिमाग दोड़ने। ये नहीं देखते कितती परच्छी चीज़ है, कैसी बनी है; बाह, वाह, वाह ! देखिये इसका मजा उठाइये । अच्छा हैं, सरदद अपनी नहीं, दूसरे की है, वडा प्रचश हैं। महन चौज है। किसी को ओर दृष्टि करने में उसकी इस लिए गहन में क्या है उथर व्या? फिर देखिये प्रेम कितना बढता है । 'श्रेम दष्टि है गहनता को नाप । और आप खुद ही गहत उतरते इस तरह से जब प्राप दूसरों की ओर देखेंगे appre. चले जाएगे। एक है न, "दिल में किसी के राह ciative temperament(खुश मिजा ज)होना चाहिए किए जा रहा है। किसी के दिल में मैं राह किए ले किन ज्यादातर दृष्टि दोषों पर जाती है मनुष्यों जा रहा है। रास्ता बनाते जा रहा है । इसी की। जैसे कोई कहेगा "साहब वो अ चर्छी तो है प्रकार उसकी गहनता पर उतरिये;: Superficia - लडकी, लेकिन attractive (आकर्षक) नहीं है मतलब lities (बाह्य बातों पर ) पर रहने से आदमी का क्या ? attractive माने क्या ? अाप एकदम जाके, चित्त गहन नहीं उतर सकता । और जब तक एकदम क्या उससे 'चिपक जायेगे क्या, attractive चित्त गहन नहीं उतरेगा, तब तक आपकी गहनता क्या होता है ? मेरी आज तक समझ नहीं गराया, नहीं बढ़ने वालो । कि 'attractive' के माने क्या होता है। ख.सकर तो चित्त को पहले गहन उतारिये। वाह्य की चीजों में बहुत है। जैसे हमारे ladies हैं- प्रादमियों का भी बताऊ गो,क अब व्लाऊज़ match हुआ कि नहीं हुआ, उसके लिए सर फोड़ डालेंगी । Blouse attractive शब्द आज तक मे रे समझ में नहीं आया। कि "साहब वो attractive नहीं है।" मैंने कहा भई attractive के माने वया होता है ? क्या चीज attract श्रापको करती है ? उसका नाक मुह, हाथ, skin (चमड़ी), कपडे, शपडे व्या ? Should be natching । जब हम लोग यहां थे तो कौनसी चीज ? कोई matching क्लाऊज़ ही नहीं पहता था। नीले रंग की साडो तो पीले रंग का क्लाऊज । Attract तो एक हो चीज करनी चाहिए, सीधा हिस।ब | और पीला नहीं हुआ तो लाल रंग । दूसरे की आत्मा; वह तो आनतन्द देने वाली चोज़ चल जाएगा ! मतलब contrast border तो निमला योग २८ पहले होता नहीं था, वो contrast कर लिया । नहीं रही हैं क्योंकि हम घड़ी के गुलाम हैं । हो सकता हुआ तो नहीं, पहन लिया। पहले होती ही कितनी साड़ियां थी किसी के पास में दो या तीन चाहे भी पागल बना देता है । कितने भी रईस हों । उयादा कपड़े कोई रखता हो नहीं था। अव साहब तो matching हो गया । औरतों का इतना problem हैं कि। औरत matching पहन के नहीं श्रायी तो खुलबली अ।इए प्राराम से राजा साहब जसे ! plane जाने मच जाएगी सारे शहर में। क्या कृपडे पहन के वाला नहीं है, चाहे कुछ हो जाए। plane यहां खडा आयी थो बेबकूफ जैसे !" लेकिन वो अ्रगर अरजीव- २हेगा; या देरी से आ रहा होगा। अगर आपको सा jean पहन के आए, दो सींग लगा के प्राए तो देर हो रही है तो कोई हजं नहीं, राजा साहब जैसे वो माडने है, वो modern (प्राधुनिक) हो गयी। है। इतनी वड़ी की गुलामी करना भी आदमी को जब आप सहजयोग में आते हैं, अापको पता होना चाहिए कि plane खड़ा रहेगा आपके लिए । प्रगर कोई जाईये र अगर समझ लीजिए ले न miss (छुट) भी हो गया, दुसरे प्लेन से जाईये, हो सकता है । ऐसी जो हम norms (असूल) बना ली हैं, norms में हम उलझे रहते हैं। अब ग्रादमियों की जुसका तांता आप जोडते जाएं तो कहा से कह दुसरी बीमारी होती है । उनको इतना कृपड़ों से मेंचिंग बैचिग का time कहां, वो तो घड़ी देखते रहते हैं। हरेक आदमी की घड़ी,"कितना बजा रही है ?""कितना ?" जब निकलने का time होगा, तो वजाय इसके कभी भी-ये भी एक आइचर्य की बात है । कि ने चीज लोगों उसमें कोई चीज बनने बाली हो । कोई सहजयोग अपनी उस पिलने वाला है ऐसा बहुत कुछ होता है। और पहुँच जाता है । एक बार में Geneva से जा रहो थो । बहरहोल मेरा तो प्लेन miss नहीं हआ][प्रभी तक time हो रहा है। बाहर निकल जाए, इस्मेनान करें, ओ्रतों के एक साहब का miss हो गया था। तो वो तडपडाते पीछे में 'चलो भई दो मिनट बचे हैं; एक मिनट हुए पहुँचे पलेन में । और उनको इत्तफ़ा क से मेरे पास ब चा है। time keeper रहे होंगे ! उतने में ग्रीरतं जगह भी मिली । बड़े nervous (परेशान ), उनकी जो हैं पच्चीस चीज भूल गये, वो भी भूल गए औ्र हालत खराव । महाराष्ट्रीयन थे। तो मैंने समझ भाग बाहर । हड़बड़, हड़बड़, हुइबड़।"इतना time ही गया। घड़ो देखना, और बताना औरक । जताना, ये भी modern चीज है पहले जमाने में ती मैन मराठी में कहा "साहव आपको परेशानी कोई ऐसा नहीं करता था । क्योंकि न तो पहले व्या हो गयी" तो उन्होंने मराठी में शुरू कर रेल गाड़ियां थीं, शरीर रेलगाड़ी कीन शरपके यहां दिया, असली मराठी में । कहने लगे "ये पलेन मैंने time रखती हैं, जो आप इतनी जल्दी कर रहे हैं ? miss कर दिया । देखिये कितनी ये हो गया ।" न plane (जहाज ) कौन आपका time रखते हैं ? मैंने कहा "कुछ नहीं miss किया आ्रापने। लेन में भागे जाओ, आपको पता है, yesterday आपके लिए कुछ अच्छी चीज़ ही होने वाली है इस (काल) आपके सवेरे के गए हुए वहीं शाम ्लेन में ।" मे री ओर देखा, उन्होंने कहा, "क्या तक बेठे रहे, plane ही नहीं बै लिया कि ये र गए मेरे चक्कर में ! मैंने कहा 'करेला नीम चढ़ा इनको अब फाँसना चाहिए आया । अच्छी चीज होंगी ?" तो देखा । क्या आरप हुए हैं । लेकिन घर से निकलते हुए माताजी निर्मला देवी हैं ?" मैंने कहा "हाँ । वो ऐसी हइवड़, सड़बड़ उसमें ये रह गया रे, वो रह गए काम से ! हो गए पार, प्लेन में ही ! उनका गया। तीन बार गाड़ी जाके लायी, तो भी प्लेन नाम है डॉ० मुततालिक। और उन्होंने कहा, "साहब नहीं आया ! आप कहोगे कि मां ही ये सब कर मैं तो इतना परेशान था और मुझे क्या मालूम निमंला योग २६ था, कि आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है ।" मैंने है। ये मैं नहीं कहती कि गलत बात है । अंग्रेजों वहा "हा, इस्मिनान से चलो । ओर उसके बाद ने ये बात बनायी कि अव समय से जाने से उन्होंने मालूम है कहां से कहां बात पहुँच गयी UN में 'वाटरलू' की लड़ाई जीत ली। पर हार भी सकते वो ले आए, इसको ले आए, उसको ले आए। वो बहुत बड़े आदमो हैं, WHO के बो डायरेक्टर गया था तो जीत गये ओऔर हार गये। इसका हैं। लेकिन 'वैसे वो ना आते शायद इत्तफ़ाक-सहज, हो गए पार । तो ये सब मज़ बजे है तो आप नौ बजे आरइये । जिसके लिए ये देखने के हैं । तो इतनी ज्यादा घड़ी की गुलामी योगी परेशान हैं, और वर्मा साहब कि माँ जब नहीं करनी चाहिए । थे वो। time से कोई फ़र्क नही । जव time ग्रा । और मतलब नहीं है कि अगर माताजी का प्रोग्राम छः भापण देती हैं तब चले आते हैं बीबी-बच्चे, सब ल। इन से चले आा रहे हैं, मा बोल रही हैं शपने खिर ये सोचिए कि इतने दिन घड़ी बैध चुले ग्रा रहे हैं । तो कहते हैं कि भई माँ के दरवाजे के भी हमने क्या पाया ? यूं ही-मतलब अपने सबको बंद नहीं । बाप-दा दाओं ने भी ६ड़ी बाँधी ही थी, हलांकि उनकी ज्यादातर खराब ही रहती होगी। इतनी घड़ी से अपने को बाँध के सिवाय nervousness तो ठोक, लेकिन दरबार है, वहाँ 'वहत से बैठे के हमने कुछ नहीं पाया, और इस घड़ी की गुलामी हैं। वहुत से ऐसे-बसे बैठे हुए हैं जिनसे 'वहत' बच में जो आजकल श्रर जो निकन आायी है वो है Leukaemia, ये हमा रे ग्राने से पहले से ही सब जमे हुए यहीं (बीमारी जिसमें रक्त की कमी हो जाती है ) पर बैठे हुए इसलिए अगर आपको Leukaemia नहीं पान। है हैं, वहां भी बैठे हैं । इसलि ए माँ के साथ liberty तो इस घड़ी को आाप तिलांजली दे दोजिए । ( कभी इसको आगे रखिए कभी पीछे रखिए । भी ऐसे ही करती हैं । या एक ही काँटा रख लीजिए। जंसे किसी ने पूछा "कितना वजा है ?" होके आ्ाइये। जान लेना चाहिए । लेकिन ये disci- तो कहना "साढ़े । या "पौना"। ठीक है । pline (अनुशासन ) आप अपना लगाइये, मैं नहीं किसी से भी जोड़ लीजिए, कोई सा भी नम्बर लगाने वाली दो चार रपट पड़ेगी फिर आप लोग फिर समझ लीजिये। नहीं तो time हो नहीं रहेगा enjoy आ जायगे। नुकसान होंगा। समय से पहले वहाँ (मौज-मस्ती) करने का अगर ग्राप हरसमय घड़ी पहुँचना चाहिए । अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर के की ही गुलामी करियेगा तो आरपके पास time ही ग्राप जिम्मेदार लोग हैं । पहले से पहुचना चाहिए । कहाँ है enjoy करने के लिए ? "भई अभी time वच्चों को भी सिखाएं । "माँ का प्रोग्राम है। नहीं enjoyment के लिए ।" पर कहाँ जा रहे कोई हर्ज नहीं एक कप चाय कम पी ली तो कोई हैं आप ? इसको पकड़ ना है, उसको पकड़ना है । हज नहीं। चलो, आज माँ का प्रोग्राम है बहुत ये जो भागा-दौड़ है इसे आप बद की जिए । सब बड़ी वात है।" इसलिए समय से पहले पहुँचना पागल जैसे भाग रहे हैं। लेकिन माँ का तो दरबार होता है । दरवाजे हुए modern चीज हमने जानी है के चलना चाहिए । ये आपको पता होना चाहिए । हैं। वो इधर भी बैठे हैं, उधर भी बैठे स्वच्छन्दता) नहीं लेनी चाहिए इस तरह की। वहाँ मैं पर समय से पहले पहुँचना चाहिए। परमार्मा का काम है। परमात्मा के काम के लिए पहले से सुसज्ज चाहिए । लेकिन मैं नहीं कहूँगी। मैंने इनसे भी कहा दरवाजा खुला रखो । इसी प्रकार स्त्री की वातें ग्रोर होती है पुरुषों को बातें और होती हैं। लेकिन हमने ग्रपने norms (नियम) बना लिए हैं । जसे समय से जरूर जाना जानना है, और अराप ही को मानना है और अपने ले किन आप हो को समझना है, आप ही को मा निरमला योग ३० अभी लन्दन में शादी हुई थी वहाँ के युवराज की। बहुत दूर-दूर से लोग आए थे क्या उसका को सम्भालना है किसी पर भी सहजयोग में जब र- दस्ती, जुल्म, नहीं है हमारी शर से। लेकिन वो हो ही जाता है तमाशा भा, पता नहीं । लेकिन उसके लिए automatically (स्वतः) अाप जानते हैं। आप पर अमेरिका से रीगन साहब की बीवी आयीं। और वो automatically इसका प्रतिबन्ध लग जाता है १५ मिनट देर से आयी, दौड़ते दौड़ते। और सारे लोग क्योंकि परमात्मा के साम्राज्य का जो आवन्द है वी commentary (ताने बाजी) ये हुई कि "ये औरत तो प्रादी रहा है, लेकिन उनके rules-regulations क्या समझेगी, ये एक model थी । अभी हो गयी नियम-प्रविनियम) भी चलते हैं और वो बड़े ही राष्ट्रपति की बीबी तो क्या हुआ ? जो असली [था कमाल के rules regulations हैं इसलिए अ्रपने वो तो सामने सामने नजर आ गयी । ये क्या को ही सम्भाल के रखना है । नतमस्तक होकर के ये समझेगी कार्यदे ?" सोचना है कि "आज दरबार में जाने का है ।" समझ लीजिए आपको-दिल्ली दरबार में पहले लोग जाते थे, अपको पता होगा। तो दो महीने पहले ही नहीं। से तेयारी होती थी। special (खास) कपड़े पहनाये जाते थे और कैसे जाते हैं उसका rehearsal उसको समझे। और इस महानता को पहचानते (पूर्वाभ्यास) होता था और अगर आप गये हैं, तो हो आप स्वयं उस महानता का विशेष आदर victory (जोत) के सामने ्आप पीठ नहीं दिखा करंगे । सकते। झुक । कोई चोज का restriction (रोक) तो वो तो कोई चीज़ ही नहीं। वो तो कोई चीज ले किन ये जो चीज है उससे कितनी बड़ी' है, कितनी 'ऊंची' है, कितनी 'महान' है, के और पीछे ऐसे सीधे चले प्राइये मैं कोई restriction बन्धन) नहीं अरे ये वायसराय होता किस बला का नाम डालती आप पर, आपको ही खुद grow (बढ़ना) है। परमात्मा के पैर के घुल के बराबर भी होना है जो नहीं है। उससे भी कम । उसका तो इतना महात्म्य है फिर, वो हमारी माँ क्यों न हो, ले किन दरबार वो स्वयं को वेसे ही संवार लेगा । उसको कहने भरा हुआ है। और जो बड़े-बड़े देवता लोग हैं वो की जरूरत नहीं। व हने से जो काम होगा वो फिर कायदे से बैठे रहते हैं, सब आ्रायुध पहन के । क्या सहज हुआ ? आप 'खुद' [अपनी समझदा री इंतजाम रहता है। पूरे खड़े रहते हैं। तयारी से पहुँचते हैं। देखिये vibrations भी आा आप स्वयं प्रतिष्ठित हैं और उस 'स्वयं को गए। किंतने जोर की vibrations छूट रहे हैं। सामने रखक र के चलिये । वो सब सज्ज होते हैं इस वक्त । जब हम बोलते हैं आपसी का बोलना चालना , सब चीज में 'स्वयं तो देखिए कैसे vibrations छुटते हैं। इसलिए चालित होना चाहिए। Owner Driven को स्वयं- आपको भी सतर्क होना चाहिए। वो देख रहे हैं आाप सबको, कि कैसे आप चलते है। इसालए है। और उस तंत्र सम्भल करके, बहुत नतमस्तक होकर के आना चाहिए। ये बात प्रापको धीरे-धीरे जान जाएगी कि आप कहाँ पहुँचे हैं, आपका स्थान क्या है, आप कौन सी ऊंची दशा में हैं। उस दशा के अनुसार होएगा, खुद खुद ही इसमें बढ़कर के ऊँचा उठेगा, grow जो पूरा ऋऔर सब से इसमें एक बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा लेकर उठें | आपसी बातचीत, ) चालित कहते हैं । पर स्व तो missing (गायव होता है उसमें । आपका स्व जागृत है । उस 'स्व' के तंत्र में चलिए । वही स्वतन्त्र में चलते हुए जो एक 'विशेष रूप' आप धारण करते हैं उसको देखकर ही लोग सोचंगे "बाह, बाह। ये क्या चीज़ सामने चली आ रही है। इस पागल दुनिया में बहुत जुरूरत है इस बक्त। आप चले । निर्मला योग ३१ ट मुझे थोड़ी सी आपकी मदद की जरूरत है ; अगर से कहाँ आपने पहुँचना है । आज नव वर्ष के दिन हो जाए तो ये दुनिया पलटने वाली है, वहुत जल्दी विशेष रूप से ये कहने का है । "आानन्द से रहें, सुख से रहें, चन से रहें, हँसते रहें ।" पर अपनी प्रतिष्ठा में वंधे रहें, प्रतिष्ठा अपनी छोड़ न । और दूर नहीं कि जब कि आप देखिएगा कि पलट जाएगी। लोग सव मिलकर के कोशिश करें । पूरी आप बो दिन कोशिश करें कि अपना महात्म्य समभझ । माताजादनिया सारी शरप लोग रोशन कर देंगे । व का महात्म्य है, जो तो बहुत लिख गये। अब आप अपना महात्म्य लिखिये कहाँ से कहाँ आप लोग पहुँच गए हैं, और कहा । और ये जानिये कि आप सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद । With Best Compliments From M/s. HANSA PAINTS & CHEMICALS MANUFACTURERS OF SPARTAN PAINTS I/21 ASAF ALI ROAD, NEW DELHI With Best Compliments From MONTARI PHARMACEUTICALS PRIVATE LIMITED X-60 OKHLA INDUSTRIAL AREA, PHASE-II, NEW DELHI-110020 PH. NO.-631861 MANUFACTURERS OF ETHICAL DRUGS Surplus capacity for manufacturing of tablets and cap- sules on loan licence available. Interested parties please contact Manager at the above address. निमंला योग ३२ बोर्डी पूजा : श्री माताजी का प्रवचन बोर्डी १२ २-८४ वर्षत सकळ मंगली ईशवरीनष्ठांची मंदियाळो अनवरत भूमंडला भेटतू भूता ॥ चला कल्पतरूचे अ्राख चेतना चिन्तामरीचे गाव बोलते जे अणंव पीपूषंचे॥ चन्द्रमें जे प्रलांछन मार्तन्ड जे तापहीन ते सर्वाही सदा सज्जन सोयरे होत।॥ किवहना सर्व सुखो पूर्ण होउनि तिही लोको भजिजो अदिपुरुखी [अ्रवंडित । साथ निघड़ित रखना सह जयोग ऊचाई है उसके ओर दृष्ट रखनी वाहिये । ये चाहिए। और उसकी जो अब मैहिन्दी में प्रापको थोड़ा सा बताना चाहती हैं । कि में हम लोग अब ये नहीं जानते कि ऊँचाई जो भी इ्होंने हासिल की है, तो इस हमारे वारे में हजारों वर्ष से ये वातावरण से लड़ कर, झगड़ करर, वाहर अ्राकर, अट बताया गया था कि ऐसे महान लोग संसार में अ्रायेगे । और पहाड़ के सर दुनियाई चीजों के लिये, कृत्रिम चीजों के लिए सर ऊ चा उठाकर की है । औौर जो लोग आअपना पहाड़ ऐसे बड़े-बड़े वृक्षों के ऐसे अरण्य संसार में वाह्य चीजों के लिये भझका लेते हैं, तो कैसे उठ घूमेंगे जो बोलते इच्छाओं की पूरति के कर्प तरु जेसे उनको आशोर्वाद देंगे । औ्र उनके एक-एक व्यक्ति में जैसे सागर उमइते हों, जिसमें अमृत बोलता हो ऐसे सांगर । ऐसे सूरज होएंगे चमकते हुए सूरज अंदर कोई भी दाह नहीं, अरग्नि नहीं, ऐसे चन्द्रमा जिसके ऊपर कोई कलंक नहीं। हुए, चलते हुए, दुनिया को उनकी सकते हैं ? या जो अपना चित्त इस घरती मां से हटा लेते हैं. वो तो मर ही जाएंगे । इसलिये हर सहजयोगी का ये कर्तव्य' है- ये पूरी तरह से करतंव्य है - कि वो जाने कि सारी दुनिया आपकी तरफ अंख लगाए बैठी हुई है और आप ग्रपने गौरव को पहचान । कि जिसके प लोग यहां मुर्झे बचत देने आए है, इस International Seminar ( अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठी) में कि "माँ जितनी तुम मेहनत करती हो, ये आपके वर्णन लोगों ने किये बर्ष पहले ज्ञानेश्वर जी ने; कि कितना अपका म कितना महत्व कि कितना उसी तरह से हम भी मेंहनत करेंगे ।" । और तीन सौ महत्व उन्होंते बताया । जरूरी है, सारी दुनिया के लिए एक आशा दीो। उस शान्तिमय गौरव में अप अ्रपने को ऊचा उठाइये । अपने वारे में पूरी आपको कल्पना होनी जािये, कि प्राप हैं क्या !:श्राप सरबसे यही इस तरह से हो रहा है और हो गया। लाकन अभी इसकी प्रगति मरे विचार से बहुत, बहुत धीमी; इसकी प्रगति वजह से धीमी हो जाती है । ऐसी जगह चित्त विनता है कि कृपया अपनी ओर नजर करें । ग्राप अ्रपना जाता है जहं हम अवने को गिरा लेते हैं । धीमी। प्रगति अपको बहुत सब सिंहासन पर बेठिए, उस सिंहासन को पाइये, उसके जैसे होइये । दुनिया के मुकावले में प्राप अपना वित्त, इस पेड का जेसा पृथ्वी से पूरी बहुत बड़ी चीज़ हैं । तरह से निर्धड़ित है, ऐसा आपको अरपनी मां के माताजी श्री निर्मला देवी निर्मला योग ३३ ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt foि्fला योग मार्च-प्रप्रेल १६८४ वर्ष २ अंक द्विमासिक १२ ১) ञंड का का हि ि क ॐ तब मे व साक्षात् श्री कल्की, साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी =ि ने व ी पुर 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt मा कविता हे दयामयी ! मुझे उबारा, कैसे व्यक्त करें हे माँ, दिव्य प्रेम में नहलाया । तेरा यह निर्मल प्रेम । कर प्रेमामृत, पुचका रा सींच भूल गया मैं जग सारा, हुआ पुलकित रोम रोम।१॥ सहलाया ।४॥ तुने, मुझको रखा सम प्राण भटक गया था पथ संभाल । मैं नादान । बालक फिर भय अब कैसा, खो गया भूल भुलेया में, करे तू देखभाल पर तुने लिया पहचान |२॥ |५। बंद हुईं सिसकियां मेरी, उलझ गया था बीच भंवर में, अब सहज प्रम पाया । असहाय होकर पुकारो । इसीलिये हृदय मेरा, हर बार आतं को, तूने दिया सहारा ।३। प्रेम का ही गोत पाया ।६॥ With Compliments Cणे : नmems Rishi Electronics B-16, OKHLA INDUSTRIAL AREA NEW DELHI-11 0020 ा मी 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt ी की सम्पादकोय ब्रह्मानन्वं परम सुखदं केवलं ज्ञानमर्तिम् । द्वंद्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमल मवलं सर्वधी साक्षिभूतम् । भवातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।॥ सदगुरू को बार-बार प्रणाम है जो साक्षात् ब्रह्मानन्द हैं, ज्ञानमय है, आसमान के समान प्रसन्नता देने वाला है, द्वेताद्वत से परे है, परम शुद्ध है, नित्य है, अविचल है, साक्षी है, भावुकता और तीनों गुणों से परे है । रखोजी-जनों को जन्म-जन्मान्तर की इच्छा पूर्ति के लिए ही साक्षात् परब्रह्म परमेश्वरी, आदि- शक्ति ने अाज शरीर धारण कर, भक्तों को अ्पने में जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु यह उनकी दयालुता औ्र प्यार ही है जो हमें आत्म-साक्षात्कार के रूप में बिना किसी प्रयास के मिल रहा है। चरणों में स्थान दिया है। सदगुरू की तलाश हमें तन-मन-धन सब कुछ अपने सद्गुरू को सौंप देना चाहिए। श्री माता जी को तन और धन नहीं चाहिए चूंकि सम्पूर्ण व्रह्माण्ड उन्हीं का है। मात्र मन अर्थात् चित सौंपने से ही सब कुछ हो जाता है । सहजयोग के कार्य में साधन बनना ही हमारा ध्येय होना चाहिए । निमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम्पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वैन्क्रवर, बी. सी. बी ५ जैड ३ के २ श्रीमती क्रिस्टाइन पेट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यूँ.एस.ए. यू.के, श्री गेविन ब्राउत्त ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन सर्विस लि. १३४ ग्रेट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्जू. १ एन. ५ पी. एच. भारत : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ८४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० इस अंक में पृष्ठ सम्पादकोय १. २. प्रतिनिधि ३. मूलाधार व नाभि (परम्पूज्य माताजी का प्रवचन) ४. नव वर्ष १६८४ ( ५ू. बोर्डी पूजा २ ३ ) ) २० ३३ *** निरमला योग २ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt श्री माताजी का प्रवचन मावलंकर हॉल, नई दिल्ली दिनाँक १५-३-८४ मूलाधार व नाभि अब हमारे समाज में, खासकर के शहरों में परमात्मा को खोजने वाले विविध विचारों के लोग रहते हैं। कुछ तो जो कि सभी सात्विक साधकों को हमारा परमात्मा में विश्वास करते हैं । इस तरह विश्वास करते हैं, कि जेमे कि किसो मंदिर में गये, नमस्कार कर दिया । कुछ लोग हैं जो कहते हैं "नहीं, पर- और धम से प्रणाम ! आज दो तरह के गाने आपने मात्मा की साधना करनी चाहिए सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह रहना चाहिए, उनके मंगल गीत गाने चाहिये, में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपरा भक्ति हमेशा उनको भजना चाहिए, जिससे वो हमेशा कहते हैं। और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे याद रहें ।" कुछ लोग ऐसे होते हैं कि वो जो कहते हैं करबीर ने पाया था, तो उसे परा भक्ति कहते हैं। कि "परमात्मा वगरेह सब ढकोसला है, यह झुठी दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति चौज है । परमात्मा नाम की कोई चीज ही कहा है- जहां दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ नहीं है।" साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने परा भक्त सब तरह के विचार करने का अधिकार पर- मात्मा ने मनुष्य को दे दिया है यह मनुष्य को दी हुई देन परमात्मा की ही है कि वो स्वतन्त्र है । कहा- प्रनत्य भक्ति । किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं, जो चाहे वो सोच सकता है इस बुद्धि से । लेकिन उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो हम लोगों को तीनों जाती है। जब इन्सान को इस चीज़़ की अदत- चाहिए कि आज तक हमने जो भी किया, सी हो जाती है, तो उस आदत से छुटने में उसे चाहे परमात्मा में विश्वास किया, उनकी भजा बड़ा समय लग जाता है। वह मानने को तेयार या उनके ऊपर लैकवर दिये, या उन पर किताबें ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह पढ़ीं, जो भी मेहतत करी या हमने उन पर खत्म होने की बेला आई है । और इसी वजह विश्वास नहीं किया, उनको कहा कि वे हैं नहीं। से भक्तों ने भी दुष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को उनसे हमने मुठभेड़ की और कहा कि देखते हैं पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेश परमात्मा कहाँ है ? इन सभी दशाओं में हमें पह सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानो पड़ीं । यह सोचना चाहिए कि " नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने किया ? हमें क्या लाभ हुआ ? हमारे अन्दर कौन सताया उनको किसी ने रोका नहीं और उनको सी ऐसी कोई नई प्रकृति आ गयी जिसके कारण समझाया नहीं कि ये सन्त हैं, साधू हैं । दशा में ये ही सोचना कुछ इसने हमारा क्या भला हमने जो भी किया सो ठीक है हमारे बाप दादे ३ निमंला योग र 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt भी यही करते आए हैं । और उनके बाप दादा भी पास नहीं, और जो लोग वहाँ जाते हैं बो भी यही करते आए । ओर हजारों बर्षों से यही चीज चलती रही ।" " हम लोग इसी प्रकार परमात्मा के पास नहीं । हर समय कभी कोई अखंड पाठ कर रहे हैं, कभी कोई परमात्मा को याद कर रहे हैं। सहजयोग में हम लोग इड़ा और पिगला, दो नाड़ी पर ध्यान दे रहे ये। इसमें से जो इडा हैं. यह भक्ति-प्रबल है। इड़ा नाड़ी पर लोग भक्ति याद करते रहते हैं । उससे एक चोज़ जरूर है में लीन हो जाते हैं, अपने भावना में वह जाते हैं, कि परमात्मा की तरफ हमारा चित्त है । नामदेव ते और परमात्मा में लीन होकर के आनन्द से उनका गान गाते हैं। हमारे महाराष्ट्र में जो कि मैं पतंग आकाश में जा रही है, उधर सब बच्चे सोचती हूँ हिन्दुस्तान में एक बहुत बड़ा प्रदेश है, उसके साथ खेल रहे हैं । वो बाते भी कर रहा है, क्योंकि यहां पर पारम्परिक लोग धार्मिक हैं । [और यहाँ का आराध्य-देव श्री कृष्ण विट्रल है । भी उसका नित्त उसी आकाश के ऊपर तनाया लोग एक-एक लिए हुए गाते , प्रकार एक साक्षात्कारी मनुष्य का हो जाता है मंह में तम्बाकू रखे । अब तम्बाकू है, ये कृषण कि उसका पूरा चित्त उसी ओर होता है । के विरोध है । बिल्कुल विरोध में पड़ती है, क्यू कि विशुद्धी चक्र में श्री कृष्ण का स्थान है। और उससे "विट्ठल विट्ठल" कह रहे हैं। श्री कृष्ण का नाम ले नहीं पाया उसके लिए उचित था कि वो परमात्मा रहें हैं, और उनका जो विरोध है उसी को मुंह को याद करे। लेकिन यह सब करने से गर पर- में रखे चले जा रहे हैं । ऐसे बहुत से लोग मैंने मात्मा को याद किया और परमात्मा ही नहीं देखे जो मुझसे आकर कहते हैं कि "माँ, हेम तो मिले -जैसे आपने कहा कि यह आकुल-ध्याकुल जिन्दगो भर विठठल ही की वारी करते रहे । हर लोग हं ढ रहे हैं परमात्मा को, श्रौर उनको प्रगर बार वहाँ पेदल जाते रहे और एक-एक महीना परमात्मा नहीं मिले - तो जरूरी है कि मनुष्य हमने मेहनत करी।" बहुत से पढ़ लिखे लोग भी कहेगा कि, "हां, परमात्मा नाम की कोई चीज़ ऐसा कार्य करते हैं-"लेकिन हमें तो परमात्मा ही नहीं है ।" लेकिन, क्यू कि हमें उसका अनुभव मिले नहीं । एक मुसलमान साहब थे, जो कि नहीं हुआ, प्रचिति नहीं हुई इसलिये उस चीज को बहुत परमात्मा को खोजते थे । अन्त में वो हिन्दू हो गए। उनका कहना था कि परमात्मा मुसलमान उसको जाने बगर उसकी प्रतिति पाए बगर होने से तो मिलता नहीं, चलो हिन्दू होकर मिल उसको कह देना कि वो नहीं है-कोई सी भी चीज़ जाए, तो वो हिन्दू हो गये। हो-मरे रुपाल से एक तरह से escapism इसी तरह से विट्ल विट्ठल" करते जाते थे । तो उन्होंने कह। कि "पहले तो नमाज पढ़ पढ़ के मेरे तो घुटने छिल गए, तलुए सब छिल गए, यह देखा कि परमात्मा तो मिला नहीं । जो विदठल बनाता है ? इन फूलों से फल कौन बनाता है ? हमें के सामने लोग खड़े हैं, वो भी परमात्मा के अपने मं-बाप जैसे कौन बनाता है ? कीन हमारे नाडी इस प्रकार हम अपनी भक्ति में परमात्मा को कहा है कि एक लड़का गर पतंग उड़ा रहा है र सबसे मजाक कर रहा है । [और यह करते वक्त श्रर महीना हाथ में झांझर हुए जाते हैं "विट्ठुल, विट्ठल, विठ्ठल' जो हुआ जो उसका पतंग है, उसकी ओर है। इस ले किन जो नहीं हूप्रा, जिसने साक्षात्त्कार 1. पूरी तरह से मना करना, मेरे र्याल से, अशास्त्रीय हिन्दू होकर के बो (पलायनवाद) है । फिर वारी कर कर के मंरे परमात्मा है, चाहे आप उसे माने या न मानें । मैंने मैंने आपको बताया था कि यह फुल इसको कौन और यह सव होते हुए निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt अन्दर हमारे हृदय को चलाता है ? हमारे अन्दर जायेगा कि जो मैं बाते कह रही हैं वो प्रापको अनेक ऐसे व्यवहार हैं जो medical science पहले देख लेनो चाहिये, जान लेनी चाहिये, फिर (चिकित्सा विज्ञान ) कभी भी समझा नहीं सकती कि प्रचिति आने के बाद में उसको आपको जाँचना कसे होते हैं । इसीलिए ही मनुष्य भक्ति पर उतरता है और परमात्मा को याद करता है । चा हये कि यह बात सत्य है या नहीं; परमात्मा है या नहीं। लेकिन पहले घारणा तो करनी पड़ती है। ये घारसा तो करनी पड़ती है कि ऐसी पिंगला नाड़ी पर जब हम आते हैं तो वहा रतेसी बार्त हैं, इसे सूनना चाहिये। उसी बात पर ने रवी है, इस सृष्टि जो में पाँच पंवमहाभत है, जो अप अगर उखड़े हुये है तो फिर आगे बढ़ ही नहीं elements हैं उसके बारे में जान लिया जाए उन पर प्रभुत्व पाया जाए। तो उन्होंने यज्ञ-प्रादि वर्गैरह शुरू कर दिया, वेद वर्गरह रखे गये । पर वेद में भी अगर विद' नहीं हुआ, अगर उसकी प्रचिति नहीं अलग चक्रों के बारे में बताना चाहती है। आपके आई, तो सारा वेद परायण हो गया। सकते । पहले आप इसे घारिये, जो मैं बात कह रही हैं, इसको आप समझने का प्रयत्न कर । मैंने आपसे इन तीनों नाड़ियों के बारे में संक्षिप्त बिल्कुल शुरू में लिखा है कि वेद से में बताया हुआ था | आज में आपको अलग- अन्दर सात चक्र मुख्य हैं। यह नहीं कि सात ही इस भारतवर्ष की एक महिमा है, बहुत प्न हैं। सात मुख्य चक्र माने जाते हैं। यह सब महिमा है । कोई कितना भी बड़ा श स्त्री हो, पंडित हो, वेद व्यास हो, कुछ हो, लोग उसके । यह बड़े बड़े ऋषि- सामने हाथ नहीं जोड़ते । पर अगर कोई सन्त, फकीर हों, हाथ में झोली लिये भी हो, श्रर संत हो, हैं, अौर दसरा यह भी है कि ये उपलब्ध भी नहीं। माना हआ संत हो तो लोग उसके सामने भुक जाते है, यह सात चक्र हमारे अन्दर ऐसे बनाये हुये है, फिर वो राजा हो, चाहे वो कुछ हो। यह अपने देश बहिया तरीके से, कि जैसे कि एक के बाद एक की बड़ी महिमा है । ऐसे आापको कहीं भी नहीं माने सोढियाँ हों। ये सीढ़ियाँ दिखाई देगा यह इसी देश में होता है क्यू कि बनाई गई। जब से हम का्बन थे, तब से लेकर इस देश की अपनी एक बड़ी विशेष पुण्य है । यहा बड़े बड़े पुण्यात्मा घर्मात्मा संत-साधु हुए हैं। हमारी दष्टि जो वाह्य की ओर लग गईहै इससे अनुसार जैसे कि एक एक माईल- सब मे वडा प्रश्न खड़ा हुआा है कि अब सत्रका टोन ( Milestone) बनाया गया है। दृष्टि घन्तमख कैसे करे ? और सबसे पहले कि यह लोग जाने कि इसी देश में, इसी महान देश में ही यह सारा ज्ञान बसा हूप्रा है। बड़ी ज्ञान हमारे देश के मूल का ज्ञान है। यह मापको किताबों में नहीं मिलेंगा मुलियों ने इसका पता लगाया और कुछ कुछ इस र किताबें भी हैं। लेकिन वड़े सकील तोर की हमारे उत्क्रान्ति में के घीरे धीरे जैसे हम उठने लग गए व से वैसे हर उत्क्रान्ति का जो एक एक टप्पा हमने हासिल किया, उसके सबसे पहले कावबत का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भावि हुआ; वो है पहला चक्र, जिसे कि 'मूला- धार-चक्र कहते हैं । इस चक्र के बारे में भी ब जो भी बातें मैं अ्राप से बता रही हूँ, इस बहुत से लोगों को बहुत गलत-फहमियां है। को आप इस तरह से देखिए जेसे एक Scientist कण्डलिनी के बारे में तो, जिसे देखिये वो ही मैंने ऐसी भी किताबें पढ़ी (धारणा) रखी जाये । अगर आप उसको इस है कि जिनको पढने के बाद आदमी यह कहेगा, के पास जाने की कोई जरूरत नहीं। है । के सामने कोई Hypothesis लिखने लग जाता है । (बंज्ञानिक) देखें तो आपको समझ में आ दृष्टि से 'कुण्डलिनी निर्मला योग ५ hco 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt एक साहब ने लिखा है कि उसको कुण्डलिनी से गलत रास्ते पर गए, आप ने क्या क्या अपने साथ जागरण हो गया, उसके अन्दर बिजली चमकने दुर्यंवहार किया है, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार लग गई। किसी ने लिखा कि मेरे अन्दर छाले किया है, क्या क्या आपने ऐसे काम किए हैं जो आ गए । किसी ने कहा मैं मेंढक जैसे कूदने लग परमेश्व र के मागं में एक तरह से रुकावटे हो पड़ा। हिन्दी में ही नहीं, शंगजी में भी ऐसी किताबे सकते हैं, बधिक हो सकते हैं । वो सब कुछ तो बहुत छपी हैं । जानती है । उसके पास इसका हिसाब किताब पूरी है। वास्तविक कुण्डलिनी आपकी मांँ है । हरेक इन्सान की माँ है। अपनी एक-एक व्यक्तिगत माँ है। और यह माँ प्रापको आपका दूसरा जन्म देती कि मेरा बेटा कितना दोषी है। वो यह सोचती है । यह जो माँ है, यह माँ कया आप को कोई तक- है किस तरह से इस बेटे को जो है; मैं उसका जो ्लीफ़ देगी की माँ ने आरपको तकलीफ़ दी, या सब तकलीफ़ माँ का ये नहीं विचार ग्राता-समझ लीजिए किसी सखुद उठाई ? फिर यह जो माँ, जो विशेष एक का बच्चा डूब रहा हो, तो माँ यह नहीं देवी मां है, तो क्या आपको तकली फ़ देगी? या सोचली है कि इसने मेरे साथ क्या क्या दूष्टता आपको परेशान करेगी ? बुद्धि से भी काम लेना की, कितना सताया । वो सोचती है जो भी हो चाहिए । जो लोग इस तरह की बाते करते हैं सब माफ़ । इस वक्त यह बच्चा बच जाए । इसी या तो वो इस काबिल नहीं हैं कि कूण्डलिनी पर प्रकार से ये माँ आपकी यही सोचती है कि आप] कोई भी हाथ चलाएं । हो सकता है वो धर्म- को किसी तरह से बचा लिया जाए। लेकिन इस परायण न हों, अधर्मी हों । उनके चरित्र अच्छे साँ के लिए आप का जो बाल्यावस्था में पाया न हों, वो रुपया पैसा बनाते हों, लोगों को ठगते हुआ अ्रबोधिता का धन है, जिसे हम लोग inno- हो। हर तरह की उनमें गड़बड़ हो सकती है। cence कहते हैं, वो मूलाधार चक्र पर स्थित है । हो सकता है कि उनको इसके बारे में कुछ भी ये कुण्डलिनी जो है ऊपर स्थित है, और मूला- जानकारी न हो । हो सकता है कि उन पर किसी धार चक्र नीचे में है । कुण्डलिनी स्वयं मूलाधार ने कुछ भूत-प्रेत विद्या करके उनको भस्मसात कर में बसी है । 'मूलाधार किसे कहते हैं कि 'मूल का लिया हो । कुछ भी हो सकता है । लेकिन कुण्ड- आधार। अगर मूल कुण्डलिनी है, तो उसका आधार लिनी जागरण से आज तक हजारों लोगों की माने उसका गुह. उसका घर जो है वो आपकी ये कुण्डलिनी का जागरण हो गया है सहजयोग से त्रिकोणाकार अस्थ है, और उसके नीचे गणेश ले किन हमने कहीं नहीं देखा कि लोगों में ये परे- तत्व जो बसा हुआ शानी या तकलोफ़ होती है । ले किन वो आपकी माँ है । माँ ये नहीं सोचती ? जब आपका जन्म हुआा था तो आ्राप धन है उसे दे दें । किस तरह से उसे मैं वचा लू । त। है वो अ्पके अम्दर वसी हुई अवोधिता है । कुण्डलिनी खुद सूझ-बूझ रखती है । पूरी तरह की आजकल तो चालाकी करना, होशियारी अन्दर है। और जंसे दिखाना, बदतमीजी करना, या ऐसे कहें कि अपने सूझ-बूझ कुण्डलिनी के कोई एक टेप-रिकार्ड होता है उ सी प्रकार चरित्र के साथ हर समय विडम्बना, यह एक तरह इस साढ़ तीन वलह में इसने आपका पूरा इतिहास लिखा हुआ है जब से आप आज तक का पूरा इतिहास इसमें है। यह जानती पवित्रता के साथ छलना करना, अपने साथी के है कि आप ने क्था क्या गलतियां कीं, आप कौन साथ हमेशा कोई न कोई उपाधि लगा लेना, इस का लोगों का बड़ा शोक हो गया है । लोग सोचते काबन थे, तब से हैं कि इसमें उन्होंने बहुत कुछ कमा लिया । अपने कि निर्मला योग ६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt पर हमारा बड़ा विचार चलता है कि किस त रह का तत्व जो है, जितना सुखदाई है उतना ही से कसे वया किया जाए । क्षोभकारी है। अत्यन्त क्रोधवान है। यह चक्र जो है हमारे अन्दर बहुत महत्वपूरण है। हालांकि इस देश में यह चक्र बहुत बलवान है आप जानते हैं, ये जागृत हैं, पृथ्वी के तत्व से क्योंकि कूछ भी हो, इस देश में पतित्रता का अर्थ निकले हैं । अब हम लोग मानते तो हैं कि वैष्णों लोगों को माजूम है। लोग गलत काम करते हैं, ले किन वो जानते हैं कि यह गलत है । इन परदेश में मैंने देखा कि वो गलत काम करते हैं, इस तरह क्या है? क्या हम जानते हैं ये जागृत तस्व क्या है ? से विचित्र वातें करते हैं कि सभझ में नहीं प्राता क्या ऐसी कोई सच्ची बात है कि वास्तविक कोई कि यह इन्सान हैं या जानवर है अर वी यह तसे जागत तत्व्व का कोई स्थान है ? ऐसा स्थान सोचते हैं कि उन्होंने बड़ी कमाई क र ली, वे तो है। क्योकि पथ्वी तत्व जो है, यह स्वयं साक्षात् भारतवर्ष में गणेश आठ अष्ट विनायक हम देवी, वहां जाना चाहिए। इस मंदिर में जाना है, उस मंदिर में जाना है। लेकिन यह जागृत तत्व एकदम freedom (स्वतन्त्रता) पे आ गए। उन्होंने बहुत कुछ पा लिया कि इस तरह के गन्दे काम वो कर रहे हैं । जागृत है । पको आवचर्य होगा, मैं एक छोटी-सी जगह मुसलवाड़ी में गई, वहां पर लोगों ने मुझे बताया श्री गणेश विशेष करके जो बनाए गए हैं, कि यह जागत स्थान है, और वहां पर कोई भी उनका रूप ऐसा है कि उनके सिर पर हाथी का दीवार नईहीं बना सके। एक अंप्रेज ने कहा कि सिर है । वजह यह [कि हाथी एक पशु है, और पशु कभी भी अहंकार एकत्रित नहीं करता। इसी- दीवार नहीं बना सकते, कोई बन्ध नहीं बना लिए उसके अन्दर अहम् की भावना नही है; सकते । तो बंध को ऐसे सीधे लेने के बजाए उसे वो चिर का बालक होता है । और गणेश जी चिर के गोल घुमा बालक हैं । लेकिन उनके अन्दर वा आयुध है और शरर पता यह हआ कि ये जगह पर एक फ़कीर ने जो विशेष तरह के उनके पास में जो क्य वस्थाएं है, ग्राकर बताया कि "यह जगह माँ की है, इसे छोड़ उन सब व्यवस्थाओं से बो मनुष्य के अन्दर जो pelvic plexus है उसको सम्भालते हैं । पर ये इतने शक्तिशाली हैं कि अगर प कसी भी तरह से कुण्डलिनी पर अधात करने का प्रयत्न करें, या जो आदमी धर्म-रहित है, जिसमें चरित्रहीनता है, ऐसा आदमी कोशिश करे कि कुण्डलिनी को चढ़ाए सन्त-साधु या कोई सहजयोगी ही बता सकता है । वो इस कदर नाराज हो जाते हैं (गरणेश सबसे जिसको इसको अनुभूति नहीं है वो नहीं बता सकता नीचे बेठे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही इडा नाड़ी कि यह चीज जागृत है या यह भूठ है । या यह आर जुड़ी हुई है) कि इड़ा नाड़ो पर उनका क्रोध जब सच है या भूठ है । इसके लिए आपको तो ऊंची चढ़ता है तो मी के शरीर में यहाँ से लेर यहाँ तक (बॉँए भाग में नीचे से ऊपर तक) blisters हैं, उसमें जागृत होना पड़ता है । फिर मैं कहँगी (फफोले) भी आ सकते हैं। ऐसा आदमी गर्मी से तड़प कि अ्रापको जागृत होना पड़ता है। सिर्फ लेक्चर- सकता है, उसको तकलीफ़ हो सकती है यह गणेश बाजी से नहीं होता है । आपको होना है । जब तक यहां पर अजीव-सी जगह, यहाँ पर कोई आप दिया, और फिर इस तरह से लें गए दीजिए।" जब हम लोगों ने जाके देखा तो उसके अंदर से, चैतन्य की लहरियाँ-ठंड़ी ठंडी, लहर-सी चल रही थी-साक्षात् सारा सहस्रार । ले किन यह चीज सिर्फ एक फ्रकीर या कोई संवेदना, जिसे कि हम लोग सामुहिक संवेदना कहते निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt आप इसमें प्राप्त न होंगे, जब आ्रपके अन्दर इसकी एक मिनट अपने बुद्धि से यह पूछ कि "प्रगर इससे प्रचिति' नहीं आएगी जब तक यह अापको 'विद हमारे प्रश्न किसी तरह से सुलझ सकते हैं, नहीं होगा, तब तक आपमें और उन साक्षात् तो क्यूँ न इस चीज़ को हम समझे कि श्री गरेश कारियों में हमेशा अन्तर रहेगा। इस चक्र की क्या है और उनका हुमारे अन्दर जागृत होना कितना विशेषता यह है कि जब कुण्डलिनी का जागरण जरूरी है ? एक महाशय थे, वो हमारे पास आये, होता है-जैसे आप मेरे ओर अपने हाथ खोल के और कहने लगे कि "माँ मुझे prostate की बैठे, तो अ्रच्छा रहेगा भाषण करते हो काम हो तकलीफ़ हो गयी है, डाक्टर कहते हैं कि आपरेशन सकता है, आप मेरे और इस तरह से हाथ करके करवाओ। वो बड़े सहजयोगो थे, दूसरे गणेश बेठे हुए हैं, तब आपकी ये जो पाँच उंग लियों में भक्त । मैंने कहा आप इतने बड़े गणेश भक्त हैं. nervous system के आपको करसे prostate हो गया ? मेरी समझ ends है इस प्रकार सात चक्र left side मे में नहीं प्राता। क्या गणेश आपसे नाराज़ हो ग ए और सात चक्र right side में । अब यह जो है? कहने लगे "माँ, पता नहीं मैं तो बड़ी गणेग ।" मैंने कहा "अच्छा । तो भई बताया था, आपसे में मिल जाते है, प्रोर सुपुम्ना चना खाओ । आज हमारा प्रसाद चना हैं, तो चना GT Sympathetic सात चक्र हमारे left और right में हैं. जसे मैने की भक्ति करता है नाड़ी ऐसे उनके बीच में होती है। ्ाइये ।" । मैंने आनताकानी क्य कर रहे हैं ?" कहने लगे परव ाप जब मेरी ओर हाथ करके बेठे हैं, "पराज संकण्टी है, और संकष्टी में मैं उपवास तो धीरे-घीरे, धीरे-धीरे इस में से चेतन्य वहना करता हैँ।" मैंने कहा "यही तो वजह है। जिस शुरू हो जाता है। जब चेतन्य बहना शुरू हो दिन गणेशजी का जन्म हुआ तो उस दिन आप गया तो वो जाकर वहाँ (मूलाधार चक्र) पर श्री उपवास कर रहे हैं ? यह किसने आप को बताया गणेश को खबर देता है कि अब कोई अधिकारी है कि जिस दिन जन्म हो उस दिन आप उपवास सामने खड़ा है । यह अरधिकार आपको स्कूलों में, करें ?" अब घर्म में कितने दोष हैं देख लीजिये । बहुत कालेजों में या किसी theosophical society से लोग कहते हैं कि "धर्मं हम इतना करते हैं । में या theology में या पठन आदि से किसी से हम इतने घामिक हैं माँ तो भी हम बीमार हैं। भी नहीं मिलता । यह अरधिकार जो, हैं यह साक्षात्- अव देखं, छोटा सा दोष देख ले, कि जब राम का को ही अधिकार है । जब ऐसा व्यक्ति जन्म होता है, तब उपवास करगे, कृष्ण का जून्म जो जानकार हो, उसके सामने आप इस प्रकार होगा तब उपवास करंगे। और न्कचतुर्दशी, जिस हाथ फैलाते हैं, तो गयेशजी को पहले इसका न्योता दिन न्क का द्वार खुलता है, उस दिन बैठकर सवेरे मिलता है कि आप कुण्डलिनी से [अ्रव कहें कि आपको खाना खायेंगे । सब उल्टी वातें। विल्कृल उल्टी निमन्त्रण है और प्ाप चढ़े। गणेश जी के वर्गर बातें । यह पता नहीं किसने सिखाया । जिस दिन यह काम नहीं हो सकता । अवर अगर किसी डाक्टर आपके घर में बेटा पंदा होगा उस दिन आप क्या से कहा जाए कि गणेश जो हैं यह आपके prost- उपवान करगे ? जिस दिन दत्तावय पेदा हुए उस सम्भालते हैं, संत्रास्ते दिन उपवास है देख लीजिए, जिस दिन जिसका , जन्म हआ उस दिन उपवास करते हैं। उस दिन तो इधर उधर देखने लग गये र कहा " कारी मनुष्य ate gland को देखते हैं, हैं तो कहेंगे कि 'क्या बात कर रहे हैं माता जी गरणेश जी का श्रर medical का क्या सम्बन्ध ?" उपवास करने की क्या जरूरत है। मेरी समझ medical science जो है, यह तो ऊपर में है । में नहीं अरता । दूसरा यह कि परमात्मा के नाम ले किन उसके जड़ में अगर श्री गणेश बैठे हैं तो पर क्यों उपवास करते हो ? उसने कब कहा था तिर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt कि प्राप उपवास करिये ? प्रापको करना है हो है । क्योंकि वो कुण्डलिनी का जागरण नहीं । आप करिये । आपको शोकिया करना है, ही लोग उपवास में रहते हैं। लेकिन धम में हुम हो सकते हैं। इतनी गलतियाँ करते हैं और त्रिल्कुल नासमझी से, जिसने जैसे कह दिया। स्त्रियोंचार, बाह्मणाचार की वजह से हमारे घर्म में भो इतने दोष आर गए उससे ऊपर में जो चक्र है वास्तविक यही दूसरा हैं। वही हाल मुसलमानों का है, वही हाल चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं । क्योंकि इसी चक्र इसाईमो का है, यही सिकखो को है । सब की एक जसे निकलता है, और चारों तरफ घुमघूम करके- ही है कि त्रपनी बुद्धि से हम उसको समझते नहीं हैं कि किस वक्त व्या करना चौहिए। ब इनसे कि भवसा ग क ते हैं, अपने पेट की जो जगह है मैंने कहा कि खाइये । आपको विश्वास नहीं होगी, उन्होंने बो खाया। मैंने कहा "पब छोडिये, अज से भी उसमें organs हैं, इन्द्र याँ हैं, सबको को शक्ति आप यह promise (प्रतिज्ञा) करिये कि सकष्टी के दिन मोदक अराप बना कर खाये । क्यू कि उनकी मादक वगे र ह बीमारियां हो जाती हैं । लेकिन आज उस प्रिय है, इसलिए आ्रप मौदक बना के खाय कि "मा मैं आपको Promise (वचन) देता है कि मैं मोदक खाऊंगा।" आपको आश्चरय होगा कि उनका उपवास वो आप के sympathetic nervous system करिये । इस देश में तो ऐसे की overactivity हो जाती है जिससे प्राप पागल अ्रब श्री गणेश के बशद स्वादिष्ठान चक्र है । से स्वाधिष्ठान चक्र वाहर निकल कर के कमल और यह जो बाच में जो जगह वनी हुई है जिसे जिसे Viscera कहते हैं. इसके पूरी इसको, जितने हैं। इस चुक में problem आने से diabetes देते ता कहा । के जड़ में जो चक्र है जिसे कि नाभि चक्र कहते हैं, उसके बारे में मैं आपको बताऊँगी। नाभि चक्र जो है, यह विष्णु का चक्र है, नारायण का चक्र है । अब कोई कहेगा कि "मां, आप तो सब हिन्दू घर्म में कह रहे हैं ।" लेकिन और भी लोग बहुत सारे सब इसी से विधटित हैं । ईसा मसीह ने भी कहा पूना वो पहुँचे ग्और उन्होंने चिट् ी उसकी prostate - भेजी कि माँ मे रा prostate गायब - तकलीफ़ ही गायब । इसी प्रकार घर्म में हम श्रनेक, अनेक, यनेक गरलतियाँ करते हैं । और इस लिए जब हम कहते हैं कि "हमने घर्म धारण किया है कि जो मेरे विरूद्ध नहीं हैं, वो मेरे साथ हैं. है। हम यह करते है वो करते हैं, फिर हमें माँ कयों Ihose who are not against me are with हुँआ?" मत दोजिये । दोष है जिसने आपको समझाया और कि ओर तो कौन हैं। उन्होंने तो बता दिया कि बताया । जैसे कि लोग बताते हैं कि जब कुण्डलिनी जागरणा होता है तो बड़ी गर्मी होती है और ऐसा लिया कि मोहम्सद के सिवाय और कोई नहीं । होता है, बेसा है। सब झुछ है । एकदम झठ है । इस तरह से उन्होंने सबको एक एक छाँट छॉट के ऐसा कुछ भी नहीं । इस बात पर आप' विल्कुल अलग कर दिया, जैसा कि एक आदमी लटका मत विश्वास रेख । यह लोग सव पैसा बनाने वाले हुँआा कही पड़ा हुमा था। सबकी रिश्तेदारी आपको डरा डरा के ऐसा दिखाते हैं कि यह बड़े कहीं के पहुँचे हुए लोग हैं । और इस से आपको के झगड़ा करते हैं । इस चक्र के आस-पास [आप] गलत रास्ते पर डाल देते हैं, और [शप फिर ये देखिये कि ये जो यह पेट का हिस्सा है, इसमें दस पूछने लग जाते हैं कि "भई हमारी कुण्डलिनी गुरू के तत्व है। इसमें से आप सोच सकते हैं कि जागरण हुआ उससे तो हमारी हालत हो खराब शुरू से, 'अ्रादि नादय' से लेकर के उनके गुरू हुए हो गई। हम तो पागलखाने पहुँच गए। होना जैसे Socrates हैं, Lao-Tse, यह सब इसी में परमात्मा पर कोई दोष me पर ईसाई लोग ये जाकर पता नहीं लगायेंगे इसका ईसा के सिवाय और कोरई नहीं। इस्लाभ ने बना आपस में है । सिंर्फ हम हो लोग उनके नाम ले लेकर निर्मला योग ६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt ते हैं। Moses हैं, Abraham । [और प्रपने देश 'सन्यास प्रन्दर का भाव होता है बाहर का नहीं होता 1 साहब और आप जानते हैं कि राजा जनक को विदेही कहा में राजा जनक, नानक, मोहम्मद Zoroster (जरथस ) प्रीर प्रभी आखिरी वक्त जो करते थे और उनकी लड़की को देही क्योंकि हैए हैं, वो हैं श्री साईनाथ 'शिरडी के । यह सब विदेही से पदा हुई थी इनके दस मूख्य ग्रवतरण हुए। वसे अनेक गुरू हुए हैं जैसे रहते थे, राजा जे से करते थे और सनार में, लेकिन दस मुख्य अवतरण हैं । [अब जो उनके सामने बड़े बड़े साधू, सन्त, दुण्टा, नत मस्तक लोग । वो स्वयं राजा थे। राजा आभूषण गुरू को मान रहते थे क्योंकि उनकी दशा वही थी, क्योंकि वो को मानते हैं, कि गुरु लिया " देखिये गुरू को मान लेना भी एक वड़ी स्वयं साक्षात् दत्ताओरेय के अवतरण थे आदि गुरू के गलत फ़हमी की बात है । 'गुरू वही है जो साहिब अत्रतरण ये। लेकिन आजकल हमारे देश में इसकी से मिलाये। जो साहिब से मिलाए. जो परमात्मा संवेदना जाती रही । लोग वहुत ही भ्रांत हो से मिलाए, गए हैं और ऊपरी तरह से कोई ऊपर से कोई तरह के गुरू निकल आये हैं । और आप जानते कि हम इतने विक्षिप्त हो गए है, इतने परौतमय लोग उसके चरणों में पहले जाते हैं। कोई कोई हो गए हैं कि कोई भी आदमी जेल से प्रौर बैठ जाये गेरुआ वस्त्र पहन के; लगे उसके पीछे में भागना हम लोगों में एक स्वभाव की एक चररा छने । पहली तो बात यह है कि गैरुआं वेस्न से हमारा क्या सम्बन्ध ? हम तो गृहस्थ के लाग उसके पीछे हम भागते हैं । फिर 'हजारो लोग हैं। गृहस्थियों का गेरुआ वस्त्र से कोई भी सम्बन्ध उसके चरणों में जायेगे। अररे भाई और फिर नहीं होना चाहिए। आप जानते हैं, अगर आपने झठी झटी बातें उसके बारे में फैलाना कि उसने पढ़ा हो कि बाल्मीकि रामायण में. सीता जी ने पुरा chapter (ग्रध्याय) इन सन्यावियों के बारे में कहा है, कि जो सन्यासी हैं उनको शहर में तो आना ही नहीं चाहिए। किसी गाँव में नहीं आना कि हम उस गुरू के पास गये थे, हमको नाहिये । उसकी बहुत सारी मर्यादायें बताई । उस शान्ति मिल गई। मैंने कहा कैसी शन्ति वही गुरू है। लेकिन हमारे यहाँ हर हैं दिखाने वाला तमाशा वाला [आदमी पहुँचा है, तो ं छूट करके तमाचा वो करना जानता हो, किसी भी तमाशे के बात होती है कि कोई तभाशाखोर पहैँच जाए तो इुस ग्रादमी को ठीक कर दिया, वो ठीक हो गया, उनको शान्ति मिल गई। गलत फ़हमियाँ। इस तरह की हैं बहुत से लोग कहते हैं। में यह कहा कि गाँव के बाहर उस्हें झोंपडी में रहना चाहिए और किसी भी लॉघनी नहीं चाहिए। हां जो गृहस्थ है गृहस्थ ले किन जिसने सन्यास ले लिया उसको यह सब करना मना है। लेकिन हमारे यहाँ तो. देखिये कि हो गई। हम लोग गृहस्थी के लोग यज्ञ करने में लगे हुए हैं, व्यवस्था हो गी । क्योंकि यह लोग जो घन्वे करते अपने बाल-बच्चों को सम्भानते हैं। कायदे से हैं, जिस तरह से यह काम करते हैं, यह आप जानते रहते, और उन (सन्यासों) लोगों का पालन- पोषख है। हम तो काफी उमर वाले हैं और हम सब हमारी खोपड़ी पर । एक तो हमारे बाल-बच्चे पलते जानते थे इसके बारे में । अब तो आप लोग सव नहीं और ऊपर से इनके काशाय वस्त्र वालों को Younger generation के लोग हैं, शायद आपने संवार कर बैठे रहिये सुबह से शाम तक । एक सीधी जाना ही नहीं होगा कि भानुमती, श्मशान विद्या, बात यह है कि कोई भी सन्यास लेने से परमात्मा प्रेत विद्या, तात्रिक विद्या अपने देश में बहत हैं । के पास नहीं जा सकता। यह तो ऊपरी चीज़ है। अब मिलो प्रापको, श्मशान शान्ति मिली होगी । आ्रव की ड्रयोढी गृहस्थ आप हिल ही नहीं सकते, शरापको अश्ञान्ति तो है ही, है। ले किन वो अशान्ति जो है वो एकदम जम के पत्थर अब आप हिल नहीं सकते ऐसी ही इस समय कुछ मुझे लगता है कि दिल्ली के लोगों निमला योग १० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt का मन तांत्रिकों से कुछ हटा हूुआ है, नहीं तो दिमाग खराव हो गया है । इस गुरू के कारण जहां जिस गलो में जाइये वहाँ एक तांत्रिक बैठा केन्सर जेली बीमारी होती है। गलत गुरू के हुआा था, इस प्रापको राजधानी में । इन तोंत्रिकों सामने अपनी पेशानी झुकाना। इसलिए किसी ने क। शोक अ1 पको भ्रांत हो गया है और इसमें कहा है कि अपनी पेशानी सब के सामने मत आप फस गए। ऐसे छोटी-छोटी चीजो के पीछे में झुकाओ । यहाँ तक की मंदिरों में जब अरप जाते भागने वाले लोग परमात्मा को कसे पाय गे ? अगर हैं, कोई भी प्रादमी आापको टीका लगा दे । हर एक मांगता है, तो कोई परम चीज माँगनी चाहिये। आदमी से आप अपने माथे पर टीका लगा लेते हैं, श्रीर परम में ही सब कुछ मिल जाता है- बहुत गलत दोष है । किसी का क्या अधिकार है ने कहा है कि 'योग क्षेत्र बहाम्यहम् कि वे प्रापके माथे को छुये ? प जानते हैं कि पहले जब योग होगा, तो तुम्हारा! पूरी तरह से कषम आपने तो कहा कि 6-१० साल मिलन को लागे। कि हजारों वर्षों से रुम्ती प्रच्छी करो।" मेरे पास बहुत से पहलवान श्रापको बना बना कर के आज परमार्मा ने मनुष्य आते हैं. कहते हैं "माँ हमें तो कोई शान्ति नहीं । बनाया है। श्रर उसका आप किसो के सामने भी काई दनी कहता है "माँ मेरे पास पैसा नही, सर झुकता देते हैं ? किसी के सामने भी सर भुकाने दूसरा रईस आदमी आता है कहता है "मुझसे तो को हमेशा लोगों ने मना किया है । सि्फ साक्षात्- । इसका मतलब कारी जो आदमी है वो ही जानता है कि किसके यह है कि सब संसार दुखी है । और इस दुखी सामने सर भुकाना चाहिए। हम तो कहते हैं कि संसार में आप अगर किसी को ये सोच कि दूसरे हमारे भी पैर छुने की आपको कोई जरूरत नहीं । के पास कोरई चीज़ है तो उससे वो सुखी है, ये प्रप और न छु तो अच्छा है । जब तक आप पार न को गलतफ़हमी है । [आप] इस पर वश्वास कर हों, जब तक आप के हाथ में चंतन्य नहीं आया, हम औप के लिए वेसे ही, जैसे दूसरे हैं । जसे कि है। आप मंदिरों में जाते हैं वैसे हम यहाँ वैठे हुए हमसे इस लिए जिस चीज को आप मांग रहै हैं उससे आपको छने से क्या फ़ायदा ? चरणों में प्राने का आपको सूख नही होने वाला । आप जिस चीज़ की तभी फायदा हो सकता है अगर आपके अन्दर वो । और वो connection (योग) शुरू हो गया । अगर हम परम् तत्थ आपके ही [अन्दर है, जिसको आपको माइक्रोफोन के सामने बात कर रहे हैं और यह पाना है। इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं, connection (योग) ही नहीं है तो वात करने से किसी की कुछ देने की जरूरत नहीं, कुछ उसमें फ़ायदा क्या ? इसलिए किसी को भी पेर पे जाना आस्डबर नहीं, बहुत सीधी सरल चीज है । जसे कि और पेर पे लेना दोनों ही दोष हैं, मैं समझती है । एक बीज को आप अकुर ला सकते हैं, यदि घरती मां क्योंकि लोग अब बहुत जबरदस्ती करेंगे अगर के उदर में डाल दें, उसी प्रकार यह कार्य हो सकता किसी से कह दें कि भई पैर न छुए तो उनको तो है । लेकिन मनुष्य के लिए सोधा-सादा होना भी लगता है कि माँ ने तो जैसे कि उनको शाप ही दे कठिन हो जाता है । क्योंकि वो सोधे तरह से खाना दिया। मैं यह कहती है, बेटे, तुम क्यों छ रहे खाना अब जानता ही नहीं। उल्टा हाथ फिरा के हो ? तुमको मैंने क्या दिया ? किसलिए मेरे पर ही वो खाना खाता है। कोई काम सीधे तरीके से छु रहे हो? जब तक तुमको कोई भी मैंने आत्मा करना उसकी बुद्धि के परे हो गया है, उसकी बुद्धि का परिचय दिया नहीं, तब तक आप मेरे पैर क्यों इतनी जटिल हो गई सोच सोच करके उसका छ रहे हैं ? मैं भी कोई ढोंगी हो सकती है, मैं भी क्योंकि श्री कृष्ण होगा। कोई महाशय कहते हैं कि "म मेरी तन्द- मैं तो यही कहती हूं दुखी कोई दुनिया में है ही नहीं कि जिस मनुष्य को प्राप सुखी समझते हैं वो महा दुखी हो सकता है। लेकिन आपको पता नहीं माँगना है, उसे मांग और वो है परम् 1 ११ निमंला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt कोई खुद गतत हो सकती है। से लोग आप मेरे पेर छुये ? अ्रादत है। की व जह से हमारा एकादश जो है, हमारे माथे पर एक गुरू महाराज कोई हैं उनके पीछे में इतने नत- जो एक बड़ा भारी चक्र होता है जिसमें ११ रुद्र वेठे हैं। रुद्र जो आप जानते हैं कि संहार-शक्ति मिली थीं। वो कह रही थीं कि "अपने देश ऐसे से हैं। अगर आप किसी और को इस तरह से गुरू ऐसे आ्ाप गुरू घण्टाल यहाँ भेजते हैं कि उनका नया मान लें, तो दायें तरफ में आपके रुद्र पकड़ जाते करें ? कुछ समझ नहीं आता । हमारे यहाँ पचास हैं। औ्र जेसे ही पकड़ जाते हैं, ऐसे ही केन्सर की हज़ार युवा लोग एकदम पागल हो गये इस बोमारी तो पहली चीज़ा है । कोई आदमी भी समझो तरह के न जाने कितने तरह-तरह के लोग आपने एक politician (राजनीतिज्ञ) है, समझो किसी बाहर भेज दिये हैं । [आपको Export (निय्यात) के प्रागे बहत झुकता है । वो भी हो सकता है । एक लिए श्रौर तो कुछ मिला नहीं इस देश में तो बढ़िया अगर economics (अरथ-शास्त्र) वाला गरादमी से उठा उठा कर ऐसे लोगों को बाहर भेज दिया है है, या Business (ब्यवसाय) वाला [आदमी कि सबने वाक कटाकर रख दी है । गऔर उनके लिए है वो अगर किसी के आगे जरूरत से ज्यादा नत- अगर कुछ कहें तो लोग कहते हैं कि माँ आाप तो मस्तक होता है, अपने Business (व्यवसाय) के बहुत intolerant (पअरसहिष्ण) हैं तो क्या ऐसे लोगों लिए, वो भी कोई भी आदमी जरूरत से ज्यादा अ्रगर को हम हार पहनाये ? उनकी आरती उतारें और किसी के सामने सिर झकाए, तो उसको केंसर उनको सिंहासन पर बिठायें ? पहले जमाने में तो को बीमारी हो सकती है। उसके । मार के उनकी पूर्ण- क्या वजह है कि जैसे उनके पीछे लगे रहें। अभी ऐसे बहुत | औ्और इस आदत मैंने देखे । स्पेन में ५ू०,००० लोग ऐसे हैं कि जो मस्तक है कि पागल हैं स्पेन की महारानी हमें इधर की देयों को मारा जाता था जो ५ रुद्र में से पचो रुद्र पकड़ सकते हैं। इसलिए तया ह्या कर दी गई लेकिन अरव कम से कम उन सब के सामने नतमस्तक होना मनुष्य के लिए की कहा तो जाए कि ये देत्य हैं और राक्षस रवरजत है लेकिन किसी से अकड़ना भी उसमें ग्राप लोगों को क्यों इतनी परेशानी हो जाती है? क्या आप भी उन्हीं के साथ मिल हुए बिल्कुन है। वैगी बात है । कि "मैं ही गुरू हू, में है। भगवान है है ? दसरे लोगों को लूटना, खसोटना, उनसे पसा वेगी बात है। कि "मैं ही गुरू हैं, मैं ही भगवान है. में ही सब कुछ है, मैं ही सब कुछ क रता है, मझे हैं कोन बताने वाला है हैं कि ै।" ऐसे भी लोग हैं जो कहते लेना, उनको दूसरे मार्ग में डालना, यह कहाँ का तुम ही गुरू हो, और तुम इसे खोजो, दूसरों वम है ? अ्रर वो भी भारतीय होकरके आपको क्या की खोजने मत दो। अधिकार है? यह एक तरह का अजीव-सा छिपा हुथरा भी बात गलत है। कोकि आप मक्त साक्षात्कारी 9gresion (ग्रत्याचार) हैं । और मह इस तरह से नहीं है । जब तक एक दोप जला न हीं, तब तक वो छोया हुआ है कि आप आश्चर्यचकित होंगे कि एक अपने अाप से जल नहीं स कता । एक जला हुआ दीप ही उसे जला सकता है। पर उस में लैना-देना प्ाऊ। प्रथ सब लड़कों ने एक साल भर सिर्फ तुम ही हो सब कुछ । यह साहव, लंदन आते हैं और उन्होंने ने कहा मेरे लिए अगर आप Rolls Royce (प्रालीशान कर) दे तो कोई नहीं बनता है। उसमें किसी तरह का स्वार्थ नीं होता है। किसी भी तरह कা उपकार नही Royce दी । एक लामा साहव पहुँचे वहाँ-यह लोग होता। यह तो आपका दीप जला नहीं ओर जो आकर मुझे बताते हैं तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। दीप जला हम्रा उसे गया, आप जल गए उसमें लामा साहब, जो कि बहत साधु सन्यासी बनते हैं, किती भी तरह की ऐसी बात नहीं अाती कि जिसमें वहाँ पहचे तो कहा कि 'हमें तो Marble के Floor সापको पूरी तरह से यह कहना है कि आपका कोई (संगमरमर का फर्श)के सिवा और कूछ नहीं चाहिये। व्यक्तिव ही न रह जाए कि आप एकदम से पागल वहाँ Marble बड़ा महगा मिलता है, स्वीडन में । आजू खाया, पैसा बचाया शर उनको Rolls छू निर्मला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt तो स्वीडन के विचारे लोगों ने भूक्खे रहकर को कुछ कहते नहीं बस बड़बड़ाते चलते हैं सुबह उनके लिए Marble का Floor (फश बनाया, से शोम तक ऐसे तो वो पश्ारे बहाँ। ओर पधारने के बाद, यह चीज रूपाल से वहाँं इस तरह के प्रकार बहुत हो चुके हैं। कि आप उनके सामने जाइये तो एक हजार एक लोगों ने बार आप उनके सामने भुको । मैं आपको इसलिए तो इस तरह कि गुरू हों कि जो सि्फ वातचीत हो यह सब वाते बता रही है कि सब चक्क र में अरप बातचीत करें अपको कहेंगे पचास पारायरण करो । लोग होते ही हैं। सवेरे दस आदमी मिलने आए दत्तात्रेय का उसमें से नो उस चक्कर में कि माहमें स १भ नहीं अता आप पारायण करो हमने तो गलती नहीं करी । मैंने कह। कि तुम खीज बाद में मिला क्या ? क महाशय हमारे पास आए] ने क्या गये थे, यह बताओो । जिसने परम की बात हमसे कहने लगे मा हमने तो चौदह वर्षों की की और जिसने परम दिया, उसी के नरस में तपस्या की । मैंने कहा 'अच्छा, ओर ?" "उन्होंने जाना चाहिए और उसी के शरस में भी जाना सिफ पारयरणा करने को कहा और शिवजी का चाहिये, बाकी सब बेकार हैं। ये बात जो हैं- बातों से तो इन्सान कोा दिमाग खराब हो जाता है। लगे "एक मिनट में कुण्डलिनी जागरण हुआ । आपने सूना होगा बहुत से लोग वेद पर बात करते तो मैंने कहा, "भाई यह सो वना चाहिये, पारायण हैं। वेद वेदाचार्य, यह वो। एक महाशय बम्बई में करने से परमात्मा मिलता है तो अपने देश में तो है, बड़े भारी वेदाचार्य हैं। पडितों के पंडित वो कितने लोग हैं जो पढ़ भी नहीं सकते । इसका मत- उमर में हमसे छोटे हैं। लेकिन वो जब बात करते लब कि उनको परमात्मा नहीं मिलेगा? सिर्फ पढ़े हैं तो ऐसा लगता है कि सठिया गए हैं । जो बकते लिखे लोगों को मिलेगा ? जो वेदाचार्य है, उनको चले जाते हैं, ऐसे बकते चले जाते हैं कि कोई उनके मिलेगा ? जो वेद पढ़ सकते हैं संस्कृत जानने वाले पास पाँच मिनट खड़ा होना नहीं चाहता । उनको समझ नहीं आता कि लोग उनसे भागते वाले कितने लोग है ? या बाईबिल पढने वाले कितने क्यों हैं ? इस कदर क़ोधो ओर तापमय इन्सान हैं, लोग हैं ? मतलब जो पढ़ते नहीं वो काम से गए। कि जो भी उनके पास बैठता है कहुता है, "बाप बाप यह तो एकदम तूफान आ गया।" गुस्सा उनको इतना आता है कि अगर उनकी बात वाला है, वो कभी ऐसे काम करेंगे ?" इसलिए जो किसी को समझ नहीं आई तो कहते हैं कि तुम गुरू-तत्व में खराबी आ जाती है उससे आप सब तो ऐसे ट हो, तुम तो ऐसे खराब हो; श्रौर लेकर बचकर रहिए । और यह गुरू तत्व् हर तरह से मिलते हैं फाँस में । मेरे बहुत करके । अध्ययन बहुत अध्ययन, हैं आप पारायण करो । गुरू की । पचास पारायण करने के मन्दिर घोता रहा । "और अ्रब बया हुआ । कहने अब कितने लोग हैं ? मैं कहती है; कुरान-शरीफ़ पढ़ने रे ऐसे कैसे हो सकता है ? जो परमात्मा है, सबका और ही निर्माण करने वाला है, सबको ही प्रेम करने दुष्ट मारना शुरू कर देते हैं। अब बताइये इतने आपके अन्दर एक हृद, एक तरह की सीमा बाँध देता वेदाचार्य श्रर फलाने ढिकाने होते हुए उनके यह है । "कि हम यह करके दिखायं गे।" उन्होंने कहा सारा बाहुर ही रह गया है। कुछ उनके हृदय ४ दिन को उपवास । बस हम करके दिखायेंगे । यह कुछ नहीं गया। न उनमें दया, न अनुकम्पा, न कुछ, सब चौज़ों से परमात्मा नहीं मिलता है। सहज- बस वडबड़ाते रहृते हैं सुबह-शाम । ऐसे मैंने फाँस में सरल बहुत से देखे । वो तो बस में चढ़ते हुए बडबड़ाते चाहिए । जो चीज़़ सहज नहीं है जिसमें अरसहज है, हैं। पूछा क्या, तो क्या कहने लगे कि ये बड़े भारी वो परमात्मा की चीज हो ही नहीं सकती। एक पादरी थे । मैंने कहा वाह भाई, यह पादरियों का सोधी बात आप सोचिये कि आप इन्सान बने, अन्त । एक बड़े भारी पादरी थे इसलए हम उन आपने कौन सी मेहनत करी ? आप क्या सिर के में सहज समावि लागे । सहज । सहज होना । निमंला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt वल खड़े हुये, कि अपने क्या अ्रपनी दूम काटी थी ? कदर सब के साथ ये तुष्णा है, वो आदमी कभी भी किस तरह से आप बन गए ? आप इन्सान अपने परमात्मा का अरादमी हो नहीं सकता । आप सहज सरल बन गये। इसी प्रकार ऊरची स्थिति में जाने के लिए भी 'सहज हो भाव हाना इमके बारे में मैं जरूर पपको बताना चाहगी चाहिए । और जब तक सह न भाव नहीं आता है तब तक आप जो भी ऐसी ऊट-पटांग चीजें करते पयाकि श्रपने देश में हर एक जगह जाइये तो लोग है उससे आपको नुकसान होगा, तकली फ होंगी, मुझम ऐस कहते हैं कि माँ हमारी गरीबी का चक्र पकड़ गे, आपको परेशानी होगी-चाहे बो क्या होगा ? जैसे कि इन लोनों ने गरीबी का शारीरिक हो, मानसिक हो, या बौद्धिक हो, मगर आप परेशानती में फँस जायेंगे। इसलिये मैंने पहले ही कहा सहज भाव से बैठे और कहा कबीर को गओ। क्योंकि कबीर सहज भाव में गाते थे। उनका मिलन हो चुका था, इसलिए वो मिलन में गाते थे । अब, भवसागर के बीच में जो विणु का तत्व । ১ कुछ ठीक ही किया होगा जो मुझसे कहते हैं कि गरीबो का क्या होगा। बही बात हुई "कृष्ण ने कहा कि 'योग क्षम वाहम्यहम उसके वाद प्रापका मैं क्षम करूंगा । जिस जिस '-पहले योग को प्राप्त हो, गाँव में सहजयोग हुआ, जहां-जहां हम गये, जिन्हों ने योग पाया, उनके स ब प्रश्न S0lve (हल) हो गये। किस प्रकार? सबसे पहले तो सारी गन्दी आदत अब यह जो नाभि चक्र है इसमें एक दफा तो छूट जाती है; धरम जागृत हो जाता है। मनुष्य के अन्दर यह हुआ कि जहाँ अरापने किसी को भी गुरू मान की जितनी भी आदते हैं, जिससे मनुष्य जकड़ा हुआ है लिया ऐरा-गेरा नत्थ-खैरा जिसे कहते हैं कि किसी वो सारी ही एक साथ टूट जाती हैं । आप जानते को भी गुरू मान लें । गलत आदमी को गुरू मान हैं कि बता रहे थे। कि २०० आदमी हमारे साथ परदेश से घुम रहे थे, इन लोगों में से न जाने कितने Drug (मादक द्रव्य) लेते थे, कितने alcoholics देख ते लिया । लिया । गलत चीजों में सिर भुका दूसरे ऐसे होते हैं कि जो किसी को मानते ही (शराबी) थे, कितने कैसे कैसे ये । हम तो कुछ नहीं। भगवान को भी नहीं मानते । "मैं ही सब नहीं। जो आया उसे पहले पार करो । पार होने का गुरू है ।" तो बायें और के पच रुद्र है वा के बाद धर्म जागृत हो गया। एक महाशय थे वो पकड़ जाते हैं । इस प्रकार के दो प्रकृति के आदमी बहुत शराब पीते थे । फिर सहजयोग में आते ही दूसरे दिन से उनकी शराब छुट गई । होते हैं । अब जो किसी को नहीं मानते, जो बड़े एकदम भारी वेदाभ्यास करने वाले हैं, इनके बारे में मैंने शराब गई। तो एक बार जर्मनी गये थे, आपको वर्णन कर ही दिया कि किस तरह के उन्होंने कहा कि देखें कोसा क्या है उनको एक होते हैं । और उनके जो प्रभूति होती है इस कदर शराव बहुत पसन्द थी। पीने के साथ कहने लगे घनी-भूत तरीके से, क्रोधी होती है कि इस आदमी ऐसी उल्टियां हुई, और उसमें से ऐसी गन्दी बदवू के पास भगवान हो ही सकता है, ऐसा कोई भी आने लग गई कि हमने कहा कि यह क्या भगवान इनके पास से Molasses पी रहे हैं कि व्या 'काक" पी रहे हैं, गुजर सकते हैं, ऐसा भी कोई नहीं विश्वास कर और समझ ही नहीं प्रा रहा कि क्या पी रहे हैं ? श्र उल्टी पर उल्टी, उल्टी पर उल्टी । उससे इतनी घूणा हो गई । हमने तो कुछ नहीं पिया । छूट विश्वास नहीं करता । सकता। परमात्मा जो है, वो प्रेम का, सोख्य का और अनुकेम्पा की सागर है, क्षमा का सागर है । जिस प्रादमी में इस कद र क्रोध, इस आनन्द का, हप तो वहीं लन्दन में बैठे हुये थे । लेकिन आप ही स्वयं धर्म हो जाने के वजह निर्मला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt से क्योंकि यह प्रापके अन्दर दस गुरू जागृत हो जाते जय इनके पास लक्ष्मी का प्रसाद है ? पर लक्ष्मी हैं जो साक्षात् घर्म हैं । इसकी वजह से प्रपने आप का प्रसाद नहीं, सिर्फ पैसा है । गे के ऊपर आप प्रगर नोट लगा दीजिए तो क्या वो लक्ष्मी गन्दी आदतें छुट ह गई । फिर उसके बाद, गन्दी दित छूटने के बाद में आपकी दष्टि वहां जानेपति हो जायेगा? तो ऐसे पसे वाले से वो लगी कि जिससे अरपको लक्ष्मी का है । जैसे एक लय्षमी पति, जो पपने 'शान' में अपने 'गौरव' में महाशय-परापको विश्वास इस वात का भी होना खडे रहते हैं। जो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। जब है, तब बांटते ही रहते हैं । ऐसे हमने अ्रेपनी । ज़रा कठिन है लेकिन ग्पसे बताये एक हमारे पहचान के थे उन्होंने हमें बताया कि माँ जब मे आँखों से लोग देखे हये हैं। ऐसे हमने जाने हैं लोग जो होते हैं। स्वयं हम। रे पिता इस तरह के थे । हुआ।" मैंने कह क्या हुआ। ? कहने लगे कि उनकी इतनी दानी प्रवृत्ति थी कि वो सवेरे हर जिस जमीन पर मैं ऐसे टहलता था, उसकी मिट्टो इववार को चीजें वांटा करते थे । किसी दिन कंवल इतनी बढ़िया हो गयी कि एक प्रादमी प्राकर मुझसे बाट दिया, किसी दिन कुछ । [प्रर उनकी आँख कहने लगा कि भई किसी फ़कीर ने आकर हमसे हमेशा नीचे रहती थी, और देते रहते थे । देते। बनाया कि यहाँ की मिट्टी थोडी-सी लेकर के पगर रहते थे । लोग दो-दो ले जाये, तीन-तीन ले जायें तो कोई क्या उनसे कहें कि "बया कर रहे हैं आप ? और वो हमारे यहां आ्राया और हमसे तो विल्कुल तोल दीदा तीन-तीन केवल आदमी लिये जा रहे हैं. ।" आँत क्यों तीची की हैं ?" कहते "भई मैं दे नहीं रा हूँ, दे कोई और रहा है। इसलिये मूझे शर्म लगती है। सब लोग कहते हैं आप दे रहे हैं ।" ऐसे । पेसा तो बड़े स्वतन्त्र वीर थे, ले किन बो इस मामले में मैं सहजयोग करने लग गया है बड़ा चमकार तुम ईंटे बनाओ्ों तो पत्थर जैसी हो जायेंगी| तो ले किन पहले जागृति कर मिट्टो ले जाता है। होनी चाहिये, लक्ष्मी तत्व की । लक्ष्मी तत्व की जागृति किये बगैर, अगर आे चाहें आपके अन्दैर लक्ष्मी आएगी तो नहीं। पैसा अ जायेगा आ जाएगा, पर लक्ष्मी जी नहीं आयेंगी। शर उन्हें शर्म लगती थी। कि लोग मुझसे कह रहे हैं. लक्ष्मी जी कसी होती हैं ? एक हाथ से उनके दान मुझे बड़ी लज़्जा आती है, लोग मुझे कह रहे हैं कि हैं। एक हाथ से उनका अश्रय है, और हाथ में दे रहे ही तुम अरोर देते वक्त में कहने लगे "देने वाला जो बो जाने मूझेब्या करने का है। के मैं तो प्रतीक है," और इतना ही नहीं, एक-भँवरा जिसके वौच में खड़ा हुआ्रा हैं। ऐसे लोग थे पहले इस भारत में । अब तो पता नहीं कुंछ दिखाई नहीं दे रहा इस तरह का तरीका । पेसे वाले का मतलब तो यही हो गया कि बहुत घमण्डो, बहु त कर और ऐसी लक्ष्मी पति आप हो सकते हैं जो समाधान किसी की परवाह नहीं। झपनी माँ-बाप की पर- में, इतने सन्तुलन में खड़़ी हैं। वो कमल पर ही खड़ी वाह नहीं, शपने भाई बहनों की परवाह नहीं, अपने रहती हैं इतनी सांदगो से, इतनी dignity (मर्यादा) को बहुत सब कुछ समझना । यह पैसे वाले के से बो रहती हैं। मैं तो बहुत प्राजकल देखती हूँ कि लक्षण, हैं । दुनिया में किसी की भी परवाहनहीं जो पसे वाले हैं उनके अन्दर कोई dignity ही करना। यह जो हमारे यहां अब पैसे का भूत सवार नहीं। उनके अन्दर दिखाई नहीं देता है कि इनके हो गया है, इस भूत से हमारी जो समाज-व्यवस्था अंदर कोई प्रतिष्ठा हो। बिल्कुल प्रप्रतिष्ठित तरीके से है पूरी तरह से टूट जायेगी । औरतों के लिये भी इस तरह से करते हैं कि समझ में नहीं आता कि अव यह हो गया है कि पति से बढ़कर के पैसा, इलनी चांपलूसी करने की इनको क्या जरूरत है उनकी, बच्चों से बढ़कर के पसा हो गया। हर दो कमल के सुन्दर पु्प हैं, जो कि उनके प्रेम अन्दर इतने कांटे हैं, उसे तक वो अपने अन्दर् समा मं लेती हैं। रत र] निर्मला योग fre १५ hece. 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt चीज में पैसा। जहाँ पैसा मुख्य हो जाता है और ऐसे ही नगर हैं ।" उनको झोंपड़़ी दी तो उसमें प्रेम नगव्य हो जाता है, शराव शुरू कर दी, और १०० रुपये दे दिये तो उस ्खर्म हो जाता है। वहां सव लक्ष्मी का स्वप ने गराब शुरू कर दी। यह कोई गरीबी हटाने का रखत्म हो जाता है। और उस जगह सिर्फ पॅसे का एकदम 'रूखा जीवन आ जाता है जो आज आपको हुटेगी । यह तो शराब ऐसे पीछे पड़ गयी कि इस परदेश में दिखाई देता है । यहाँ से भी हिन्दुस्तानी में से ५० फीसदी गरीब मर ही जायेंगे. तो परदेश में जाते हैं उनको पता नहीं क्या हो जाता गरोबी मिट ही जायेगी । इलाज तो ऐसा ही हो है, सारी परम्परा टूट करके वो बेतहाशा पसे के रहा है कि लोग जीने ही नहीं वाले । त रफ दौड़ते हैं । मैं तो उन लोगों को देखकर के ऐसे घड धड़ गिर रहे थे, उनमें कोई ताकत नहीं है रान होती है कि यह क्या मेरे देश के लोग हैं ? थी। क्षीण-हीन ऐसे वहाँ लक्ष्मी का स्वरूप लक्षण नहीं दिखा । इस तरह से गरीबी नहीं रास्ते पर हये लोग इनकी गरीबी ए. इम तर मे जब हम अपने को गलत राम्ते आप क्या हेटो सकते हैं ? इनको तो पैसा वो सब देने से इन्होंने शराब पी-पी करके औौर धन्वे कर- पर डाल देते हैं, तब उस पर बहत जोर का मार आता है। से पें से वालों को बड़त वरे दिन भी कर के अर अपना सर्व-सत्यानाश कर लेना है अब गरीबी हटाने पर एक और प्रशन है कि जा ब हम इस तरह की तांत्रिक वद्या और ऐसी करते हैं। ऐसे पसे वालों के लिए कोई भी आशी- मेली विद्या करते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे पर से र्वाद नहीं होता। आप जाकर देखि ये, रात रात चुली जाती हैं। जिस घर में तांत्रिक विद्या शुरू भर सोते नहीं। उनको परेशानियाँ हैं । तो जो हो जायेगी, लक्ष्मी जी दूसरे पेर से चली जायेंगी। हैं, उस पसे को आप प्राप्त प्राज मैं विशेषकर घर्म पर वात कर रहीं है क्योंकि देखने पड़ते हैं । उनके बच्चे, जो वाहियात निकल जाते हैं, इधर उधर दौड़ जाते हैं अोर गलत काम ए पसा लक्ष्मी स्वरूप करो। उस समात्ति को, उस घन को आप प्राप्त करते हैं, जो लक्ष्मी की देन है जब आपक अन्दर गुलतियाँ करते हैं। जो लोग अपने कुण इलिनी जागृत होती है। ओर इसलिए इस देश दिवाली मनाते हैं, हर जगह दीप जलाते हैं रात का जो दारिद्र है, उसी दिन दूर होगा जब यहाँ को क्योंकि वाहर रात्रि थी । उस बक्त यह न हो पर लोग योग को प्राप्त हो। उससे पहले कभी कि लक्ष्मी कहीं लौट के चली जाये। उनको अन्धेरा यह जानना बहुत जरूरी है कि हम घर्म में कितनी घर में नहीं हो सकता; आप कोशिश कर ली जिये । और जितनी मली विद्या, जितनी पसन्द नहीं। पतंतरे मैं गई थी. राहरी में, मैंने देखा कि खुब भूत विद्या, प्रेत विद्या श्मशान विद्या और यह झोपडियाँ बनी हुई थीं। कहने लगे, यह झोंपड़ियाँ दुष्ट गुरूग्रों का जो नक्कर है चला, जो प्रगुरू लोग बनाई। मैंने कहा "पच्छा ।" योई नगर वनाया जो हैं, इन्होंने जो चक्कर चलाए हये हैं, इन्हीं सब गया है । मैंने कह, यह नगर कैसा ? पता नहीं । चक्करों के वजह से अपने देश में विल्कुल कालिख वहाँ से जा रहे थे तो सामने रास्ते पर लोग खुब पुत गई है, एकदम काला अन्धकार हो गया है। शराब पी-पी करके आकर धड़ाधड़ गिर रहे थे । और वो काला अन्धकार होने के वजह से अपना एक तो हमारे मोटर के सामने गिर गया। और देश उठ नहीं पाता । जब तक इन लोगों को आप एक नहीं, दो नहीं, काफ़ी सारे लोग वहाँ से निकले सपुद्र में नहीं डाल दीजिएगा, जब इनको आप जा रहे थे । मैं ने कहा, यह कौन सा न गर बनाया ? अपने हृदय से निकाल नहीं दीजियेगा और इस यह कहें यह झोंड़ियों का नगर बनाया, इसमें तरह की चीजे जब तक आपके समाज से जायेंगी सिर्फ शराब ही चलती है ? कहने लगे, हाँ "यह तो नहीं आपके समाज की गरीबी कभी हट नहीं सकती निर्मला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt उसमें कभी भी आपको यश नहीं शयेगा। आप करके देख लीजिये कोई आदमी लास््रों रुपया इस क्योंकि लक्ष्मी जी ऐसे स्थान में बसती नहीं । तोसरी चीज जिससे लक्ष्मी जी हमारे देश में तरह से ले ले उसको कोई न कोई घाटा आएगा, नहीं है, उसका मुख्य कारण यह है कि कोई न कोई बड़ी बर्बादी होगी और वो ऐसी "यत्ञ नारिया पूज्यंते तत्र रमंते देवता" माने दशा में पहुँच जाएगा कि जहाँ से निकल नहीं या तो कोई ऐसे बीमारी में फैंस जाएगा यह कि जो इन्सान स्त्री की पूजा करता है स्त्री पयिगा । को मानता है, उसकी इज्जत करता है, वहा देवता या एसे कोई बेंकारी में फॅस जायेगा। कोई न कोई का रम होता है। लेकिन र्त्री भी पूज्पनीय होनी च हिये। स्त्री भी ऐसी हो कि जिसकी पूजा न की जाए, तो ऐसी स्त्री से फ़ायदा क्या ऐसी होनी चाहिये जो पूजी जाए जो पूज्यतीय हो जो पवित्र हो। जो उच्च विचार लेकर के संसार है और वो पूज्यनीय नहीं है, उसके वारे में में में [आये]। प्रेम से अपने घर और रिश्तेदार और सबको सम्भाल के रखे । ऐसी जो स्त्री हो, जो कहुंगी कि यहा को स्त्री बहुत पूज्यनीय है । अब भी पूजी जाये, ऐसी स्व्री के पति जो हों उसकी इज्जत करें, घर बाले उनको इज्जत कर । सत्री की, बच्चों की, लड़कियों की, माँ की, जहाँ इज जत होती है वहां देवता रमण करते हैं। नहीं तो भतों का नान गुरू अपने देश में स्त्री की क्या स्थिति है। मैं तो तब नही करता। अगर परदेश में जाकर मैं कहें कि भी कहूँगी कि हिन्दुस्तान की नारी एक विशेष हमारे देश में तो chastity ( पवित्रता) के पोछे स्वरूप की औरत है। जिसने वहत कुछ सङन औरती ने जौहर कर दिया तो कहते हैं यह हो किपा। पुरुषों की उयादतो जितनी हिन्दूस्तानी ही नहीं सकता है। मैंने कहा तुम क्या समझोगे, नारी ऐोसी चीज़ उसे मिल जाएगी कि जिससे बो पछ- ताएगा। क्योकि किसी भी सती स्त्री, किसी भी स्त्री जाति का अपमात करना श क्ति का अपमान ? तो स्त्री , है । अगर वो स्त्री इसी तरह की है कि जो बेकार नहीं कह रही। पर अपने भारतवर्ष में ग्राज मैं जरूर औरत हमारे यहाँ glamour (चमक-दमक) वग रह में विश्वास नहीं करतीं। अ्रब हैं कुछ पागल, उनको छोड़िये । लेकिन अधिकतर औरत सादगी से, अपने चरित्र को सम्भालते हुए रहती हैं। जिस देश में पद्मनी जैसे लोगों ने जौहर कियेकोई विश्वास हो जाता है । आबआप सुन रहे हैं कि उस ऊँचो चीज़ को तुमने जाना नहीं। उन आदर्शों को तुमने जाना नहीं । सहन करती है और कोई नहीं सहन करता। और अपना समाज ही पूरा ऐसा बन गया है कि आज विल्कुल हम लोग इस मामले में निलंज्जता से बात करते हैं। कोई कहता है कि "साहब इतने लाखों रुपये dowry (दहे त) में दीजिए श्रोर इन पागलों के पीछे अगर भागना शुरू कर दें तो नहीं तो आपको हनारे दरवाजे में प्रवेश नहीं ।" मैं आपसे बता रही है कि गरीबी जो नहीं आनी विल्कुल उन आती, इस तरह की बात करने को । तरह की चोज इतनी हमारे समाज में आज प्रच- तो समझती हैं इनसे गरीब कोई नहीं। इनके अगर लित हो रही हैं। जितनी जितनी ये बढ़ती जायेगो घर जाइयेगा और एक कप चाय दिया तो उनका उतनी उतनी आरपके देश में गरीबी प्रायेगी किसी दिल बैठ जायेगा। अरगर एक कप चाय उनके घर लडके को बेचकर के और लड़की के नाम पर प्रगर से खर्च हो गया तो उनका दिल बैठ जायेगा। और आपने रूपया इबकठा किया, आप देखि ये लीजिये हम लोग दिलदार हैं । गरीब भी हैं तो भी हमारे यराज उन आदर्शों को सब को छोड़ के और हम । और इन लोगों में क्या कम और इस गरीबी है? आप इनको समझते हैं रईस हैं ? मैं लोगों को इस मामले में शर्म भी नहीं थी. वो ग्रा जायेगी निमंला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt घर में कोई आता है, तो उसे चाय पानीं कुछ होगा ही, क्यों नहीं होगा ?- उस बक्त सारी दुनिया_ न कुछ, कुछ नहीं है तो गुड़ ही, खाने को दे देंगे । जो के देश आपके चरणों में लोटेंगे और जानेगे कि भी घर में है, जो हो अपने हमारे साथ लोग सफ़र कर रहे थे देहातों में । वो इंस देश में हैं। यब भी लोग देखते हैं तो हैरान थे, कि लोग झोपड़ियों में रहते हैं मगर उन का दिल है कि राजा जैसे ओर यह लोग भहलों लोग साफ़ लोटा माँझकर के उसमें दूध लेकर के में रहते हैं अर ये हैं बिल्कुल भिखारी । मैं तो रोज आ गयेगे हमें देने के लिये ।" के अनुभव लन्दन में देखती है कि जितने भी विदेशी नही कर सकते कि इतने वड़े हृदय के लोग इनके लोग हैं बड़ी-बड़ी position (पद) में है, वड़ी-बड़ी इस देहातों में कसे रहते हैं । में हैं। आप उनको कितने भी presents (उपहार) दे दीजिये, कुछ भी कर दोजिये, उनसे एक पंसा नहीं निकलेगा । हमा रे साहब की सेक्रेटरी हैं, वो ऐसा आया है कि हम खो रहे हैं। हमारे बच्चे साहब से कहती हैं कि प्रापके grand children बिड़ रहे है अर उस अर हम जा रहे हैं। इस वक्त (नाती) आ रहे हैं, तो आप परेशान नहीं उन्होंने कहा क्यों? "अ्रापका सारा घर गरन्दा हो जाएगा।" उन्होंने कहा यह, किसके लिए घर है। यह क्या लक्ष्मी तत्व जागृत करके उनके अन्दर यह गौरव मेरे लिए घर है ? यह तो उनके लिए घर है जो भेर दीजियें । मेरे बच्चे आये हैं। उनका यह था कि कहती हैं "जो हमारी grand mother थीं जव तक दो पेंस हमसे नहीं लेती थीं हमको टेलीफोन नहीं करने देती बात को है, क्योंकि ये बहुत जरूरी चीज है । श्राप] थीं।" और उसी लन्दन शहर में आप प्राइचर्य लोगि जान कि हमारा देश गरीब्र क्यों है ? ग्रर करगे, कि दो बच्चे हर हपते में मारे जाते हैं। तो इसकी गरीबी आप गरीबों को रूपये देने से नहीं ऐसे द्वेश की affluence (घन-सम्पत्ति) से भगवान बचाये रखें । हृदय से निकालकर । असली श्रीवन्ती जो है, असली रियासत जो है - अाँखें खुल जाती हैं कि कहते हैं कि "इतने गरीब यह लोग विश्वास सो उस चीज को खोना नहीं है। और ये समय बहुत जरूरी है कि सह जयोग की स्थापना करके और प्रपने बच्चों को रोक लीजिये। उनके अन्दर श्राज मैंने आपसे विशेष करके लक्ष्मी तत्व पर अपि होगा। आप देकर देखिये। आप किसी भी गरीब आदमी को सौ रुपया दीजिये । न बो शराब अड्डे पे गया तो कहाँ जाएगा। कोई भलाई नहीं । इसलिए आाप लोग उस ओर जाने की कोशिश न करें। आप जान लीजिये कि पेसे को झेलने के लिए भी जो कुछ है उसमें समाधान से परमत्मा को दष्टि लक्ष्मी तत्व जूरी है। ऐसे ही रईस लोगों को देकर के अपने लक्ष्मी तत्व को इस देश का लक्ष्मी तत्व विल्कुल जागृत हो सकता हमारे लिए दान के लिए दिया है। हम बीच में है, पर सीष्ठव और उनका गौरव समझते । एक माध्यम बने खड़े हुए हैं, और उसको दान के अगर हम उसको न समझ और व्यर्थ की चेष्टाओों लिए दिया हुआ है इसका जो कुछ शुभ कर्म हो से, चाहें कि लक्ष्मी इक्कठा कर कभी भी हमारे अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत नहीं हो सकता । यह ही अ्रपने देश का कर्मोपाय है, कि अपने धर्म में जागृत हों। यह हमारे देश के लिए करने चाहिए। सबसे बड़ी चीज है परमात्मा का एक ही तरीक़ा है । भी सीचना चाहिए कि पंसा जो है वो परमात्मा ने प्राप जागृत करें । हुए सकता है वो करना है और इससे जो भी लोगों की मंदद हो सकती है, वो करना चाहिए और अच्छे मार्ग में, सत्मगि में रहना चाहिए । अच्छे काम लें, तो शीश्ष सब चीज़ व्य्र्थ है। उसमें कोई शोभा हो नहीं हैं। जव तक उसका अाशीश नहीं मिलेगा, इतना ही नहीं, लेकित जब ऐसा होगा-ओर ऐसे घर में जाय तो आपकी टांगे टूटने लग जाती ८ १८ निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt हैं। आपको लगता है "कब भागें इस घर से ।" के लिए आपको बुद्धि के कोई घोड़े दौड़ाने की उनका खाना खाओ तो आपको उल्टी हो जायेगी । जरूरत नहीं, कोई बिशेष सोचने की जरूरत नहीं । कोई न कोई तकलीफ़ हो जायेगी । ऐसे लोग जो सिर्फ कुण्डलिनी का जागूरणा होते ही यह कार्य हो बिल्कुल ही पेसे से जुटे हुए हैं मशीन बन सकता है । तो इसे क्यों न करें ? और इसे करना जाते हैं। उनके अन्दर कोई हृदय नहीं है । वे लोग नितान्त आवश्यक है । और यह होने का समय विशेष सोचते हैं हमारे घर में कुछ भी नहीं है, हम भूखे आ गया है। एक विशेष चीज हैं कि जायेगे ऐसे लोगों के घर का खाना न लीजिये यह समय आ गया है ओर इस विशेष समय पर अरप । रह मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि हमारे इस वक्त उपस्थित हैं। इसका आप पूरी तरह से अन्दर परमात्मा ने स्वयं साक्षात् लक्ष्मी का स्थान रखा है। वो हमारे अन्दर बसी हुई हैं। सिर्फ कर । उनको जागृतमात्र करना है। और उस जागृति उपयोग करें अर अपने लक्ष्मी तत्व को पहले जागृत ल With imenjs Cिंणय: JAGANNATH SURENDRA KUMAR 132 Bapu Street, FIROZABAD-283203 WHOLESALE DEALER IN ALL KIND S OF PAPER निमला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt नव वर्ष १६८४ दिल्ली आथम ३-१८४ हर साल नया साल आता है अपसे मेहनत कराते थे "मेहनत करो" सफाई कराते और पुराना साल खत्म हो जाता थे, मन की शान्ति उससे पहले मन की शुद्धता करो। है । सहजयोगियों के लिए 'हर शारीरिक सुख से पहले शरीर को काफी तकलीफ क्षरा एक नया साल है, वयोंकि दो। बहुत तपस्या के वाद लोग परमात्मा को पा वो वर्तमान में रहता है । न तो सकते थे, श्रर इस चेतन्य को, जो ग्रापने सहज में दरम वो भविष्य में रहता है, और न ही बो बोते हुए भूत- काल में रहृता है । हर क्षण उसके लिए एक नया साल आता है, एक नई उमंग हैं, एक नई लहर है । पाया हैं, उसे जान स करते थे । ले किन माँ की व्यवस्था शऔर है कि पहले चैतन्य को पा लो जान लो कि परमात्मा है, उस जैसे कि समुद्र पर तेरते हुए हर क्षण कोई पर विश्वास करो जो अन्वविश्वास नहीं है, समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सत्य के रूप में । शर प्रव थोड़ी सी" मेहनत से भी सहजयोगी को आनन्द, प्रेम, शान्ति का आहाद बहुत बड़ा काम हो सकता है । जैसे कि किसी को मिलते रहता है । बस बात ये है कि व्या हम पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। तेरना सीख गये हैं या नहीं । सहजयोग लेक्वर दिया जाए। पहले तुम अपने को जमीन पर में जिसने तेरना सीख लिया वो अरानन्द में ही तरता है, आनन्द के सागर में तैरता है। सहज योग और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर में अगर कोई दोष है या त्रटि है, तो इतना ही है घीरे-बीरे पानी में लाया जाए । जैसे पानी देखा कि पार होने के बाद बनना पड़ता है । बगेर बने सहज योग हाथ नहीं लगता। मां ने आपको पानी में उतार दिया लेकिन तंराक बन करके भी पको सीखना होगा कि आप दूसरों को कसे सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द के तेरा सकते हैं दूसरों को कैसे बचा सकते हैं, सागर में घकेल दिए गये । अब इसका मजा उठाना दूसरों को तैरना कैसे सिखा सकते हैं । आपको पूरी है तो थोड़ा सा कष्ट उठाना पड़ेगा । और वो कष्ट तरह से बनना पड़ता है । और यही प्रगर एक त टि ऐसा है अपको बनना होगा। बने बगर नहीं होता है, तो सहजयोग में है। लेकिन वो अनेक त्र टियों को भरता है। ही तैरा के देखो । वहीं पर हाथ मारो दो-चार । फिर भाग गए । न== और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सह जयोगी उसे कहना चाहिए जिसमें पूरा समाधान हो, जिसने पा लिया, जिसकी शुद्ध इच्छा जैसे पहले गुरू लोग आपकी शान्ति और पूरी हो गयी क्योंकि कुण्डलिनी शुद्ध इच्छाशक्ति आनन्द की व्यवस्था नहीं करते थे। पहले तो वो है। जिसकी शुद्ध इच्छाशव्ति पूरी हो गयी, जिसकी निर्मला योग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt अपना है इसमें कोई कठिन तपस्या नहीं है । कोई महनत शुद्ध इच्छा शक्ति ने पूरी तरह से चमत्कार दिखा दिया, फिर कोई इच्छा ही नहीं की तपस्था नहीं है । रह गयो। जो प्रादमी पूरी तरह से समाधानी ही हो गया, वो असल में सहज योगी है। कोई सा भी अससाधान बचा हुआ है, इसका मतलव कुण्डलिनी करना सोखना चाहिए । सबसे वड़ी चीज का जागरण ठीक से नहीं हुआ । अभी तक आप है। जैसे मैं किसी के लिये शिकायत सुनती है, कि पूरी तरह से सहजयोगी बने नहीं । तो पहली तो चीज़ सहजयोगियों को प्रेम ये सहजयोगी, आप तो कहते हैं कि सह जयोग ही l-treat बड़े आइचर्य की बात है. कि वगैर सहजयोगी वड़ी अच्छी चीज है, अ्पनी माँ को भी आशी्वाद आते ही रहते हैं, चमतकार बने हुए दुव्य वहार) करते हैं। उनकी बीवी की वात चलती होते ही रहते हैं, लाभ होते ही रहते हैं, प्राप जानते हैं। वो अ्रपनी बहन को पीटते हैं, अपनी बीवी को रहते हैं कि "हम चल रहे हैं, ठीक हो रहा है, मारते हैं। कीई है, अपने पति का ध्यान नहीं करते । मामला बन रही है। ओर हम अग्रसर हो रहे हैं।" बचचों की तरफ ध्यान नहीं है । हजयोग में ये तो अनायास ही हो जाना चाहिए । 'अनायास ले किन सह नयोगी का सबसे बड़ा आशीर्बाद ही सब घटित होता है । अगर ये नहीं हुप तो ये है कि उसमें देने की क्षमता अ जाती है, वी सहजयोग क्या वना ? जब आप वक्ष हो गये तो देता है । और देता ही नहीं है, उस देने का जो वक्ष की छाया में जो बेठे हैं उस पर तो को ई सी भी प्रानन्द है, जो कि बहुत ही अनुठा आनन्द उसे आफत नहीं आ सकती न ! बुक्ष सारी आफत उठा वो भोगता है। वो अनन्द आप किसी सांसारिक लेता है । आपकी छाया में जितने लोग हैं उनसे चीजों से कभी पा ही नहों सकते । और सारे जितने अपके सम्बन्ध बहुत ही प्रममय ग्रौर निकटतम होने blessings ( वरदान) वरगेरह हैं इसे किसी से प्राप चाहिए । पा नहीं सकते । सबसे वड़ी blessing है कि आप की अपनी शक्ति बढ़ जाए और आप में ये क्षमता है अब मैं जी कह रही हैं सब प्रापको अलग अ्लग, गुरु आा जाए कि आ्रप दूसरों को दे सके । ये जिस दिन अप ही को, कह रही हैं । किसी और के लिये नहीं क्षमता आप में आ गई. बस फिर समझ लोजिए, कह रही, ये बात समझ के सूनिएगा । बहुत से लोग कि माँ का काम तो पूरा हो गया और आपका हैं जैसे मैं कहती है तो दूसरे का सोचते हैं कि काम शुरू हो गया। ऐसी जब तक दशा नहीं प्राती माताजी उनके बारे में तो नहीं कह रहीं । तो तव तक मेहनत करनी होगी और बनना होगा । अपनी औ्रोर ये चित्त देना चाहिए कि माँ हम सब यही एक सहजयोग की त्रुटिहै जिसे एक माँ के को अलग-घलग प्यार करती हैं । हरेक के बारे रूप में मैं कहती हैं कि मैं पूरी कोशिश करती है कि में जानती हैं अलग-अलग इसी प्रकार हमको अपनी तरफ से कोई ऐसी कमी न रह जाए। वहुत भी हरेक बारे में अलग-अलग जानना है । जब कुछ करती है, कि अरपनी तरफ से कूछ न रह जाए। कि मेरी किसी बात की वजह से मेरे बचतों में तो हभ बाहर वालों को नहीं कर सकते कमी रह जाए । हूँ हम अपने घर वालों को ही प्यार नहीं कर पाएँगे वर वालों की जरूरत-मानते हैं बहुत से लोग लेकिन आपकी भी तपस्या जरूरी है उसके पार भी नहीं होते। हो सकता है उनमें त्रुटियाँ बगेर काम नहीं होगा। पर जो तपस्या का स्वरूप होंगी। लेकिन उनकी जो जरूरते हैं, उसे करिये । उग्र है या संतप्त है, ऐसा नहीं हैं। 'श न्त' तपस्या पार की बात तभी मानेंगे जब आप में कोई अन्तर निर्मला योग २१ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt देखेंगे। अगर आप डंडा लेकर कहें "तुम पार क्यों से ही शन्ति अ्रती है । जिसमें क्षमा नहीं आएगी, नहीं होते हो, तुम सहजयोग में क्यों नहीं आते, उसे शान्ति नहीं मिल सकती । पहले तो श्राप सब तो कोई सहजयोग में नहीं आएगा। उल्टे यह को क्षमा करें और फिर अपने को भी क्षमा करें । तरीका सहजयोग का नहीं है । सहजयोग का दोनों चीजें जब आप कर पायेगे तभी आप देखियेगा तरीका है कि पहले अपने अरदश से, अपने स्वयं कि यपके अन्दर स्वयं वा्ति अ जाएगी । आज्ञा व्यक्तिस्व से दुसरों को प्रभावित क र ना । जब दूसरा प्रभावित हो जाएगा, तो घोरे-धीरे उसे सहज में लागो । कोई ठेल-उाल के आप ले भी अए, समझ लोजिए, ढकेलते हुए वहां से, ले आए किसी की की मेहनत जो है उममें एक तरह को discipline आप, विश दिया। तो क्या वो पार हो जाएगा ? -यह आप ही बताइये । पूर्ण स्वतन्त्रता में उसे आना होता है आज नहीं, कल ठीक हो जाएगा कि "माँ देखो मूझे ये तकलोफ थी ओर ये तो ये ख्पाल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे हैं मेरी तकलोफ ठीक नहीं हुई" तो मैं भी कह सकती तो हमारे साथ 'अनेक पनेक हैं उनकी दण्टि हमारे ऊपर है। हम कस बन मि ज प्रापके लिए मेंरे पास हमेशा time रहता है। रहे हैं ये बहुत जरूरी चीज है । और इसमें ये बात र काम चौवीस घन्टे चलते रहता है। आपको सिफ़् है समझ लीजिए, आपके कोई गुरू हों- realised- soul भी हों, तो वो त्रिचारे श्रपनी ही मेहनत से जो चक्र खुल जाएगा तो शान्ति के द्वार खूल जायेंगे । अब दूसरी बात जो मेरे सामने हमेशा रहती है औ्र मैं आपसे कहती भी हैं, कि इस बनने में आप 1. अनुशासन) आना पडड़ेगा मुझे time (समय) नहीं मिलता।" और फिर आप कहिएगा ( बहुत से लोग-"माँ । बन रहे हैं । और बो जो । चाहे मैं आपसे मिले या न हैं मुझे time नहीं था अपना हो कम करने काहै। इसके लिए आपको time और discipline जरूर जोड़ना पड़गा । इस शरीर को discipline किए वर्गैर ये वैसी होी मोटर-कार हो जाएगो, जो सबको रौदती चलेगी और न जाने किस गढु में जाकर गिर जाए। कुछ करना है, करते हैं । आपसे नहीं कहेंगे कि आप भी कुछ बनिए । कहेंगे ये तो वेकार हैं ही, चलो बस हमको गुरू मान लिया इसी में धन्य समझो; अगले जन्म में देखा जायगा। लेकिन माँ ने जरा बड़ा काम निकाला है । वो चाहती है कि हरेक को गुरू बनाना है जरा कठिन काम है। ओर नहीं भी है। आप जानते है कि अप लोग सब बन रहे हैं, धीरे-धीरे । सब घड़ते जा रहे हैं, वनते जा रहे इसलिए जिस वक्त आप बन रहे हैं, आप उसमें ये होना चाहिए एक ही इच्छा होनी चाहिए. रों का ख्याल बहुत कर । अपके अड़ोसी-पड़ोसी 'शुद्ध इच्छा । शुद्ध इच्छा क्या है ? कि आत्मा- इसको discipline करने के लिए बहुत आसान त रीका है । पहले अन्दर दो शक्तियां जो चल रही हैं, एक तो इच्छा शक्ति और दूसरी कार्य शक्ति । इच्छा शक्ति जो है अपने ओर देखें कि इसके दूस सब लोग, सबको आप लोग क्या माफ कर देते हैं? क्या आपने सबको क्षमा कर दिया ? क्षमा करना ये शुद्ध इच्छा है। बाकी सब इच्छाएँ आप छोड़ बहुत सीखना है । बहुत बार कहा है कि ये क्षमा जो दीजिए, अभी इस वक्त । एक क्षण के लिए तो है, ये सबसे बड़ा साधन और सबसे बड़ा आयुध छोडिए । "बस, हमारे पास में है । और इस जब बड़े आयुध की हम आत्मा से एकाकार हो जाएं ।" एक ही शुद्ध इच्छा इस्तेमाल नहीं करंगे, इसका उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे पास और कोई इस कलयुग में श्रोर साधन ये चाहिए, वो चाहिए. घर चाहिए, मकान चाहिए, नहीं जुट पायेंगे। 'क्षमा' का साधन करके, 'क्षमा ये सब चौज छोड़ दीजिए इस वक्त । इस बक्त सिर्फ, ये की दुष्टि से लोगों की ओर देखना चाहिए । कार हम हो जाएं । प्रात्मा से एकाकार हो जाए । श्रर कुछ नहीं माँ से मांगना, ह को मांगे। वाकी सव छोड़ दीजिए । कि ये होना है. अपने मन में विचार करें कि "एक शुद्ध इच्छा है, कि क्षमा, 1 निर्मला योग २२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt परमात्मा से एकाकार होना है, हमें आत्मा से समझदार हो गये हैं।" हमारे अन्दर समझदारी जो एकाकार होना है और हमें कोई इच्छा नहीं है। है ये हमारा एक प्रतीक है, हमारा एक ध्येय है । देखिये कुषि इलिनी इसी वक्त सब अपकी चढ़ गई। समभदारी जो है उसको हम अपने ऊपर-जसे कोई आदमी शान से तिलक लगाता है ऐसे समझदारी का चाहिए हो। महज का हैमने तिलक लगाया और हम समंभदार हैं। समझ- और दूसरी, क्रिया शक्ति में ये होना भी हो वो सहज हमसे कि जो कुछ मतलब लोग सोचते हैं कि हम बैठे रहें और हमारे दारो का मतलव है जो आदमी समझदार होता है गोद में चीज आ जाए । ये बड़ी गलत भावना है। वा antrum (झझलाहट) में नहीं जाता बिगड़ता ये बड़ी ग तत भावना हमारे अन्दर सहज के बारे में नहीं। छोटो-छोटी ची जों के लिए फिसलता नहीं है, य कि हम बैठे रहें अर हमें सब चीज निरिल जाए आपने देखा है कि ए 5 बीज है, उसको जब हम मा चौज ठीक नहीं ह के इस पृथ्वी में छोडते हैं, उसके उदर में, तो दिखने बड़पन की निशानी है, maturity की निशानी है । को तो दो सहज ही से sprout (अंकुरित) होता है ले किन क्या बो सहज है ? आवने उसकी मेहनत देखी. हो सकता वो सहजयोग के लायक नहीं है, सहजयोग विचारे ए का छोटे से एक उसके अंकरूर की, जो कि के लायक नही है । आपको mature होता पड़ता उस घरती को फोडकर निकल ऋता है । आपने है और समझदार भी । उस छोटे से मूल की मेहनत देखी जिसका एक छोटा सा cell (कोष) किनारे में होता है, आख री है ता है। हमने छोटे छोटे बच्चों को भी देखा है सहज है, जो कितनी मेहनत से अपने को अन्दर गढ़ता है। योग में; बड़े समझदा र, और हर चीज को बड़ी अब उसकी शुद्ध इच्छा क्या है, किक इस पड़ की में समझदारी से समभते हैं । उसी तरह से अरप में ये गढ़ दं जैसा भी हो । उसकी ओर कोई इच्छा समझदारी का तिलक लग गया है कि आप सहज पने देखी ? उसमें सिर्फ एक हो वचार होता। है योगी हैं और समझदार भी और इसमें अपके मां किसी तरह से मैं जमीन के प्न्द र ऐसी जगह पहुँच की शान की बात है। जो नासमझ है उनके लिए जाऊँ जहां से पानी का स्रोत को पह ता दं और लोंग ये हो कहेंगे कि इनकी मां ने कोई इनको शिक्षा वहाँ से पानी खींचकर के मैं इस पेड़ को दे सक । नहीं दी, बिल्कुल बेकार। वाहने को तो आदिशक्षित और कहता तहीं है कि ये चीज ठीक तहीं है, वो । समझदारी से कहता है। सहजयोग में जो आदमी mature (परिपक्व) नहीं । दिखने में चीज जितनी कठिन है उतनी नहीं कुछ नहीं सोचता । और 'कितनी मेहनत, है. श्रर कुछ बच्चे देखो तो विह्कुल वेकार हैं । और वो पत्थरों से लड़ता है, मिट्टी से लड़ता है, तो कोई उसे इस समझदारी को लेते आदमी को ग्रपनी ग्रोर रौंदता है कभी कुछ करता है । सब चीज से देखना चाहिए "कि हमारे ऊपर इसका उत्तर- गुजरता हुआ्रा घीरे-धीरे, वड़े wisdom (बुद्धि) के दायित्व है, जिम्मेदारी है, कि हम संसार के सामने साथ अपता चलते जाता है। कोई पेड़ आया या क्रूछ एक समझदार इन्सान बने । आया बीच में तो उसके गोल घुम जायगा. उसकी जड़े आयगी तो उसके गोल घूम जायगा। औ्र कहीं अगर कोई पत्थर-वत्थर होगा तो उसके भी गोल एक बात कहना चवाहती हैं कि अब सहजयोग में घमकर और अपना मार्ग बन। लेगा। हुए आरज नया साल के इस शुभ अवसर पर मैं अपसे हम लोगों को बहत mature होना है । नये लोग आए, बड़ी खुशी की बात है । उन् के आगे जो उसी तरह, एक सहजयोगी को बहुत सूझ-बूझ पुराने सहजयोगी हैं, उनकी समझदा री ग्रानी चाहिये। के साथ चलना चाहिए श्रर समभदारी प्रपने ऊपर आए हैं, अभी पार तहीं हुए, कुछ हैं। किसी में थोड़े जिम्मेदारी के तौर पर लेनी चाहिए, कि "हम vibrations ( हैं, चंतऱ्य-लहरियां) आररहे निमंला योग २३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt किसी में नहीं आ्रा खराब है । यहाँ दू ढे से भी कारयदे का एक आदमी । अ्ब सहजयोग में आने के बाद अगर रहे हैं। कमी कुछ है किसी में कुछ problem (वाधा) है। कोई नहीं मिलता एकदम से हो ज्यादा पार हो गधा है तो वो अ्रपने आप अपने हालात ठीक नहीं करेंगे तो जैसे करोड़ों को समझ बैठा कि मैं बहुत वड़ा आदमी हैं । सब इस देश में पड़े हैं वसे ही आप होंगे, विशेष क्या तरह की गल्तियाँ होती है । आपने भी ये गल्तियां होंगे ? आपको एक विशेष रूप में होना है । करी हैं, उसको भूलना नहीं। इसलिए उनके प्रति एक तरह का बड़णपन-बड़प्पन का मतलब नहीं कि नखरे करना या अपने को दिखाना कि हम कोई भई आजकल अगर बेईमारनी नहीं करो तो पेट नईीं बड़े आदमी हैं। बड़प्पन का मतलब है कि एक तरह की भरता । ये बात सही नहीं है । आप छोड़के देखिये । paternal 'पिता जसो feeling 'भावना है, पितस्व परमात्मा के साम्राज्य में कोई भूखानहीं मरसकता । को feeling, मातृर्व की feeling । इसमे उनकी 'योग. क्षेम वहाम्यहम् । योगः क्षेम वहाम्हयम् । और देखना, उनके प्रति प्रेम, जो कि माँ का प्राप फिर से कहेंगे, योगः क्षम वहाम्यहम् । योग होने के पर प्रम है. उसी तरह का आ्राप को प्रेम होना वाद क्षेम की जिम्मेदारी हमारी है । इसलिए कोई चाहिए। अगर हम ये सोचते कि दुनिया के लोग कोई भी गड़बड़ काम करने की जरूरत नहीं, वाकी जो हैं वो विल्कुल वेकार हैं, तो कुछ काम होता क्या सहजयोग में ? या गअगर हम बेठे रहते, तो हम तो बिल्कुल अकेले हैं दुनिया उसके लिए आप निश्विन्त रहिए । में किस से तौले अपने को ? लेकिन वो सवाल हो नहीं उठता । यहाँ तो ये है कि कितनों को अपने पाचल में भर ले । अभो हमारा वजन ही कम हो रहा है । इस आंचल में किस-किस को भर लें. हर तरह के नक्कर हैं जिनमें से सहजयोगियों को किसे-किसे रखे-यही फिक्र लगी रहती है । १H. = अब बहुत से लोग ये कहेंगे कि "माँ, देखो कमे कसे हालात से आपको सव हम देख लंगे। अपने सी तौलते परमात्मा ने बचाया है और बो बचायेंगे आपको । इसीलिये किसी भी चक्कर में आने की जरूरत नहीं है । आजकल हजारों चक्कर चल पड़े हैं । निकलना है समझदारी क्या है ? अब जैसे कि हमारे यहाँ भी dowry system (दहेज प्रथा) चल कि इसी प्रकार आपकी भी दष्टि में वो समभदारी रहा है। सहजयोगियों को किसी को भी dowry का प्यार होना चाहिए। उसमें ये नहीं कि आप देना शोभा नहीं देता, न लेना । लोगों को कहें कि कोई आप बहुत वड़े अरकड़खा हैं । लेकिन एक अत्यन्त सरल, सहज प्र म-भाव अपने पहेली बात ये है कि ऐसी ओछी बात नहीं करनी । दूसरी ये कि वहुत से लोगों में होता है कि अन्दर रखना चाहिए । और उस सहज-मरल प्रम भाव में पितृत्व की धारण, एक समझदारी हमारी ही जाति में हम विवाह करेंगे ये भी की भवना रखनी चाहिए । मैं तो प्राप पर बड़त मूखता का लक्षारण है । आपकी जाति कीन सी है ? विश्वास रखती हैं, किसी भी मामले में। जाहे वो आपकी तो जाति नहीं है, आप तो योगी हो गये योगियों की कोई जाति नहीं होती। सन्यासियों की भी कोई जाति होती है क्या ? अभी हम एक दरगाह पर गये थे तो उन्होंने कहा कि 'साहब ये तो लिया चिश्ती, - चिश्ती जो थे उनके nephew, कहा "औलिया की क्या जात होती है" कहने लगे "औौलिया की तो कोई जात नहीं होती । हम भी ओलिया है पसे की बात हो चाहे, समझदारी की । मैं यही सोवती हैं कि मरे बच्चे कभी नासमझ नहीं हो सकते । कभी-कभी होते हैं। लेकिन विश्वास मेरा पूरा है कि आप लोग सब समझदार, वहत ऊसे किस्म के आदमी हैं। (भरतीजे ) ये भी पलिया] थे। तो मैंने ग्ब देखिये प्रपने देश में भी कितने हालात निर्मला योग २४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt किये ?ये सोचना चाहिए । जान बूझकर क्यों किए ? क्योंकि इस तरह की जो प्रथाए अपने देश जात का मतलब होता है apritude। जाति । में ठ्यवस्थित हो रही थीं-जाति-पाति सब फालतु जात -जो जन्म से पाया हो। जन्म से बी पानी नहीं को चोजें-उसको पुरी तरह से तोड़ने के लिए होता कि ब्राह्मण कुल में पेदा हुए, कि वश्य में, कि अब सोचिए, हजारों वर्ष पहले ये का म हुआ राक्षस शद में- ये नहीं होता। आप जो पेंदा हुए, अ्रपका के धर में प्रह्नाद को पैदा किया स्व्रयं कृष्ण के हमारी तो कोई जात नहीं । शुद्ध aptitude (क्षमता) क्या है ? मामा राक्षस थे । कहां से कहां देखिये उनकी कृषया भी उतरेकहां, तो मामा राक्षस ! अरे भई कोई और अच्छा नहीं ताड़, नानक मिला था तुमको ! कंस ही को मामा बनना था ? क्यों बनाया ? सोनना चाहिए। इसलिए कि मामा । छलाँग कहा मारी, देखिए अपने देश की दूसरी बीमारी है, जाति। जिसको नानक साहब ने बहुत तोड़ा है। बहत साइव ने, कवीर ने तोड़ा । लेकिन अरब इन्हान ले किन अब इन्होंने । दुसरी जाति बना ली । उसमें भी अब जाति बन है।ते भी उसका मदन करना है । गयी। सिक्खों में भी कोई कम जातिया है ? वो भी जातिये हो गई । सिक्ख एक जात हो ही नहीं रिश्तेदारी जो है, जिसके पीछे में हम लोग देश सकती । जो सिक्ख हैं वो तो जात हो ही नहीं वेत देते हैं-ये रिश्तेदार, मेरा भाई, ये मेरा बेटा, सकती । वही तो बात है। जो कुछ जो तोड़ता है ये फलाना, ये गब हो जाए, ऐसी जो व्यर्थ की चीजों में हम जो इतना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि "कस अगर राक्षस है तो चाहे वो मेरा मामा इसलिए इस तरह को भरी जाति थीं, वो सारी अपने कर्म के अनुसार था । जो हमारे अन्दर, हिन्दुस्तानियों की खास चीज नहीं तो प्राप ही बताइये कि मत्स्यगधी, जा कि है। अंग्रेजों की बात और है, उनसे बात करते वक्त एक धीमरनी थी, उसका लड़को, जी कि उसका तो अर वात करनी पढती है, आप लोग की बात विवाहित रूप में बच्चा नहीं जन्मा था. इस तरह और है। उन लोग के यहां तो बेटा क्या, बो तो का बच्चा व्यास हुआ जिसने गता लिखो साचिय किसी को तहीं मानते । माने तो और उससे नजदीक कहां से कहां बात पहुँ व गयी। को? ऐसा ववो रिश्ता कोई नहीं होता। बेटा है बाप को मार क्यों नहीं किसी बराह्मण कुल का 'शुद्ध' मनुष्य जिसे डालेगा, बाप है बेटे को मार डालेगा। मानो सभी कहते हैं-ये तो बड़ा भारी मजाक है ! ले किन, एसे राक्षस हैं इस मामले में । ओर हिन्दुस्तान के लोग ्रादमी ने ब्यों नहीं गीता लिखी ? सोचना चाहिए। ये हैं कि अगर बेटा, अगर वो murderer (खूनी) काहण ने व्यास से क्यों लिखवाई ? व्या बात भी है तो भी माँ जो है कहेगी "बेटे कोई बात नहीं है? वो तो इसलिए कि यही धारणा ताड़न के murder ही करके आया है न, हाथ धो लो खाना लिए कि मत्स्यगंधा से जो पुत्र हुआा है, उससे में खा लो । कुछ बात नहीं है तुम तो मेरी जान हो, गीता लिखवाऊ। विद्र के घर जाकर उन्होंने साग कूछ हर्जा नहीं । तुम ये खाना खा लो चाहे वही वो बन जाता है, पता नहीं कैसे ? हिन्दुप्रों में जो जातियां थीं वो भी सारी जितनी हो, उसको मारेंगे। खाया, क्यों ? इसी ची ज को तोड़ने के लिये । भीलनी के झंठे बेर राम ने खाए। क्यों ?क्यों कि ये सी जो हमारी अंधी [आख है, उसको खोलने के इसी तरह की बेवकूफी की वात तोड़ने के लिए । वो लिए ही ये किया । इसी प्रकार जाति-पांति में फिर क्या वेर के बरगैर जी नहीं सकते थे ? और पर कोई हमारा जो एक अंध-विश्वास मन्दिरों में, मस्जिदों खा भी ले क्थोंकि रामचन्द्र जी ने खाए, तो फोरन में ओर इन सब चौजो में है, मैं तो कह जाकर मुह धो लेंगे। ये सब काम उन्होंने क्यों में भी, उसकी तरफ दृष्टि उठाने के लिए भी लोगों murder करके आए हो। ये अरना देश है ! गुरुद्वारों निमंला योग २५ू 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt ने बड़ी मेहनत की, बड़ी मेहनत की । नानक मामले में मैं नहीं साहब ने खुद ग्रंथ साहब इसलिए बनाया कि कहुँगी लेकिन इतना जरूर कहँगी कि जब इन्सान उन्होंने कहा कि शास््रों में ये लोग तो interpre- को किसी भी चीज़ के बारे में इस तरह से लोग तंग tations (अर्थ) लगाते हैं, तो उन्होंने जो realised कर देते हैं तो वो उस तरह की कहानी भी बना जब धर्म के नाम पर इतने अत्याचबार, ग्रंथ साहब बनाया। अब वी ही ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं खून-खराबी, ये वो सब हो रहा है, तो भगवान को अरे भई उसमें क्या लिखा है वो तो देखो। जो बात भी लोग कह सकते हैं कि भगवान कोई चीज़ नहीं उन्होंने असल कही है उसका essence (नि्ाड़) है । भगवान में भी विश्वास करना असम्भव सा तो पकड़ो, नहीं तो तानक साहब के साथ भी तो हो जाता है । उसमें मैं उनका दोष नहीं समझती, ज्यादती हो रही है । इसलिए इस तरह का क्योंकि जो भगवान का नाम लेकर के काम कर confusion (भ्रंत स्थिति) अपने सभी ब्मों में रहे हैं वो अगर इतने महादष्ट हैं-अ्रब समझ इतनी बुरी तरह से हो गयी है । यहां तक लोग लीजिए एक योगी साहब हैं वो बन्दूक बना रहे हैं। तथ्य है या नहीं इस 1 souls (सिद्ध आत्माए) थे, ऐसे ही गुरुग्रो का वो सकता है । कहते हैं कि मुहम्मद गजनी स्वयं साक्षात् अभी मेरी तो कूछ समझ में हो नहीं अराता कि कृष्ण का अवतार वा क्योंकि ब्राह्मणों ने लूट योगी का अर बन्दूक का क्या सम्बन्ध है (भई मचायी थी, इसलिए 'कृष्ण' ने मुहम्मद गजनी का तुम बता दो, तुम्हारा नाम योगी है) । मुझसे बहुतों अवतार लिया था। । ? THE कहानी ऐसी है पर जब ने पुछा कि योग का बन्दूक का क्या सम्बन्ध है उन्होंने सोमनाथ को लूटा तो बहां से शंकर जी मैंने कहा न तो कृष्ण का अरायुध है, न देवी का- भागे और भागते-भागते भेरों नाथ जो के मनदिर बन्दूक, वहरहाल ये कोई प्रायुध जोड़ रहे होंगे ! तो में घुस गये और उनसे कहा"भईया तुम इस प्रकारके विक्षिप्त और विचित्र लोग आजकल के मुझे बचाओ उससे, ये तो मेरे पीछे पड़ गयो।" जमाने में संसार में अआए हुए हैं। इससे भी भगवान का नाम जो है, जोग सोचते हैं कि ये तो कहने की इरते हैं ? आपको क्या डरने की बात है, आप तो बात है कि भगवान है, भगवान हो नहीं सकता । एक नेत्र खोल दीजिए तो ठीक हो जाए।" उन्होंने अरब सहजयोगी ही सिर्फ जानते हैं पवको बात 'जानते' है । बो सो माने सिर्फ बृद्धि से नहीं, लेकिन vibration (चेतन्य लहरियों) मे कि परमात्मा है और उनकी विश्वव्यापी नाथ जी जो गए तो उन्होंने देखा कि वहां विराट शक्ति जो है संचालित है । सिर्फ सहजयोगी जानते हैं। अब जान तो बहुत कुछ लिया है [प्राप लोगों ने । उन्होंने कहा कि "आप तो शिकजी है, प्राप किससे कहा "भईया, तुम जावे देखो ये कोन रहा है ।" जाकर देखा इन्होंने-कहते हैं, भैरों साक्षात् सो रहे हैं। उन्होंने कहा, '"वाबा रे बाबा इनको कौन मारेगा ?" तो भेरोंनाथ जी ने कहा मैं प्रापसे बताती है कि आप लोग जितना जानते हैं। कि "एक चीज मां ने मुझे दी है, बो शक्ति मैं बड़े-बड़े योगी भी नहीं जानते-माने असली योगी । इस्तेमाल करता है।" तो भ्रमण देवी ने भ्र गों की असली योगी की बात कह रही हैं, वो भी नहीं হাक्ति दी थी । तो उन्होंने भ्र गों की शक्ति के जानते होंगे। लेकिन कुछ जानना ऐसा हो गया इस्तेमाल करने से भ्रमर गए और उन्होंने जैसे रेडियो के प्रत्दरसे music (संगीत) आता है और गुनगुना के उनको सोने ही नहीं दिया। तो कृष्ण को रेडियो पर असर नहीं होता। आर-पार। जो कुछ श्रौर सोना जरूरी है, बोच-बीच में, नहीं तो वहत ही भी जाना है, बहुत कुछ जान गये आप लोग और उपद्रव हो जाय संसार भर में। वयोंकि उनकी vibrations में भी जाना है । लेकित वो कुछ हनन शक्ति बहुत जबरदस्त है। और वो परेशान vibrations ग्रपने 'अ्र-दर' नहीं चल रहे । वाहर होकर के चले गये, ऐसा लोग कहते हैं । इसमें सही चल रहे हैं । उनको कुछ 'अन्दर' भी चलाना निमंला योग २६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt चाहिए। इसलिए मैं कहती हूं कि अपने को disci- अव कोई राजकीय या सामाजिक और जितने भी pline करिए। अपना instrument ( करके इन vibrations को अन्दर" ले लीजिए । यंत्र) ठोक तरह के इक है, वो सबमें आत्मा का ही प्रादूर्भाव होगा, नहीं तो काम नहीं चलने वाला । इसमें मैं कहती है कि महाराष्ट्र में लोग मेहनत बहुत करते हैं। बड़े मेहनती हैं। श्और इस लिए सहजयोग में उनकी प्रगति वड़ी गहन हो मुझे प्छना ये है कि आप में से इतने कौन लोग रही है। गहरी हो रही है। इसलिए आपको ध्यान हैं जो इसके लिए तैया र है कि प्रपना जीवन एक देना चाहिए कि रोज सबेरे उठ करके-अरब शुद्ध इंग्लेंड में जहां इतनी ठंड पड़ती है प्रौर अंग्रेज को Dynamic (कार्यशील) बनाएं । निरभंय, पूरी तरह सबसे बड़ा गुनाह है, चाहे आप मार डालिए, से निर्भय होकर के, हम विशोप रूप के इंसान बनने उसका खुन कर डालिए बो कुछ नहीं कहेगा, वाले हैं और हैं। आपको हो गया है। आप- लेकिन अगर उस को जैसे कहते हैं कि द्रिज हो गये एक अंडा था, जैसे गया, खत्म । उसके बाद, इससे वढ़कर महान पाप समझ लोजिये ये ego, superego का, टूट है ही नहीं इंग्लेंड में । अगर पपने किसी को सवेरे करके और अप अब पक्षी हो गये । ले किन एक नो बजे से पहले जगा दिया तो बस परापमे महापापी, छोटा-सा बच्चा पक्षी एक अंडे से भी कमजोर दुष्ट, राक्षस कोई नहीं बजे उठकर नहाते हैं, चार बजे । । क्योंकि वो जो पहले ही discipline थी अब रखिये; प्रम 'शुद्ध होना चाहिए । शुद्ध' प्रम । उन्होंने सहजयोग में लगा दी । हम लोग तो कभी इसकी भी भावना बहत कम लोगों को है। disciplined हो नहीं रहे । हम लोग तो सब मूक्त लोग हैं । सब लोग ब्रह्म बने बेठे हैं उन लोगों ने इतनो मेहनत को तो क्या हम लोग नहीं कर सकते ? रब सवेरे चार बजे 9reed (लालच) है शर न ही किसी प्रकार की माताजी उठने को मत बोलिए, ब हुत ज्याद। हो जाएगा ।" मैं नहीं बोलती । पर आप खुद ही दो बहते रहता है। सोचिए कि आपको time ही कव है ? सवेरे उठकर के ध्यान में वो लोग बैठते है, लन्दन की ठंड में । और उस मेहनत से ही वो लोग पा गए। नर्क है। जब न्क में उन्होंने स्वगं खड़ा किया है चाहिए। और जब ये होने लग जाता है तभी आप तो स्वर्ग में थोड़े से दीप लगाना कोई मुश्किल वन्दनीय सह जयोगी हो जाते हैं । उससे पहले नहीं । नहीं है । ये तो स्वर्ग ही है । ऊपरी बाते छोड़ दोजिए। ये तो बड़ी चीज़ है । ये देश बहुत महान देश है । इसमें ये काम करना कोई मुश्किल काम नहीं है । कल के नेता आप लोग हैं। आप ही में से, सहजयोग से ही तैयार होंगे । और अब से एवम् पूरी त रह सुन्दर सुबह प्पने जगा दिया तो बो ये । ऐसे देश में लोग चार होता है इ स लिए इसे बहुत बढावा देना चाहिए । सम्भालना चाहिए, संजोना चाहिए । श्रर शुद्धता उनकी महतत प्रेम क्या होता है? शुद्ध प्रेम वो होता ये शुद्ध है कि जिस में न तो कोई किसी प्रकार का ust है, माने न कोई तरह की लालसा है, न लालच औ्र न ही उसमें कोई तरह की गंदगी हैं । वो बहुते रहता है। इस शुद्ध प्रम का अपने अन्दर से प्रकाश वहा तो बहना चाहिए । ये शुद्ध इच्छा हमारे अन्दर होनी और ये एक जो बनने की विशेषता है, इसकी और जरूर ध्यान दिया जाए। आप अ्राज कहेंगे कि 'देखिए मा हमारा ये चीज ठीक कर दीजिए, माँ बो ठीक कर दीजिए । हों, भई चलो ठीक कर तो इसलिए मैं बता रही है कि कल के, भविष्य देंगे। कर देगे। लेकिन आपका कुछ बनेगा नहीं के जो नेता लोग हैं तो आ्रप ही यहां बैठे हुए हैं। मामला । कोई बच्चा है कहता है "माँ हमें ये दे हैं. निमला योग २७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt दो।" चलो भई लो, तुमको चाहिए, लो । लेकिन है दूसरे की । वाह्य को दृष्टि जो है इसमें चित्त आप कोई विशेष तो बने नहीं । आपने कुछ पाया हमारा बड़ा उलभता है। तो नहीं । शराप ऐसे ही मांके आगे पोछे दौड़ते रहे । क्या फायदा ? आपका मो बनाना नाहती हैं वो अगर आप नहीं बनगे तो मां की भी तो इच्छा पूरी नहीं होती। एक प्रजाब तरह का बात हैं, कि आपको बनाना चाहिए, ये मेरे अन्दर शुद्ध चित्त को 'गहन उतारना पड़ता है । Peni- trating, गहन । तब कमसे possible (सभव) शुद्ध क।जगर अप पहले ही देखते साथ, "साहव वी ती जो कुछ ठीक नहीं है, इनका ठीक नहीं है ।" हो गया काम इच्छा है। औ्र ग्रापके अन्दर श द्ध इच्छा है कि खत्म । वा झादिमो खत्म, जसकी सब आत्मा खत्म । आपको कुछ बनना चाहिए। जब हमारा ऐसा उसका सब जो कुछ भगवान ने मेहनत की है वो मेल बैंठा हुआ है तो सिर्फ शुद्ध इच्छ। से रहें हम | सब खत्म । "वो तो ठीक नहीं है -वस हो गया काम । आप उसके गहन उतरे क्या ? देखा वया ? स्त्ोजा है का, क्या चीज है ? गहन उतरके देखिए । शुद्धता लाने के लिए और फिर राप देखेंगे कि गहन में तो भई कमाल औ्र शुद्ध इच्छा पर रहने के लिए, शुद्ध' प्रम पहली चीज । शुद्ध प्रेम । और अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए । हम किसी के है। ऊपर से चाहे जते भी हो, और ज्यादातर से जो यहां जाते हैं, तो क्या देबते हैं- 'प्रे इनके यहां ऊपर में बहुत होते हैं कभी-२ वड़े गड़बड़ होते हैं, इतनी अच्छी चीज़ ग्रायी है, ये कहाँ से प्प्रा गयी ? अन्दर से । ये कैसे आ गई ?" लगा दिमाग दोड़ने। ये नहीं देखते कितती परच्छी चीज़ है, कैसी बनी है; बाह, वाह, वाह ! देखिये इसका मजा उठाइये । अच्छा हैं, सरदद अपनी नहीं, दूसरे की है, वडा प्रचश हैं। महन चौज है। किसी को ओर दृष्टि करने में उसकी इस लिए गहन में क्या है उथर व्या? फिर देखिये प्रेम कितना बढता है । 'श्रेम दष्टि है गहनता को नाप । और आप खुद ही गहत उतरते इस तरह से जब प्राप दूसरों की ओर देखेंगे appre. चले जाएगे। एक है न, "दिल में किसी के राह ciative temperament(खुश मिजा ज)होना चाहिए किए जा रहा है। किसी के दिल में मैं राह किए ले किन ज्यादातर दृष्टि दोषों पर जाती है मनुष्यों जा रहा है। रास्ता बनाते जा रहा है । इसी की। जैसे कोई कहेगा "साहब वो अ चर्छी तो है प्रकार उसकी गहनता पर उतरिये;: Superficia - लडकी, लेकिन attractive (आकर्षक) नहीं है मतलब lities (बाह्य बातों पर ) पर रहने से आदमी का क्या ? attractive माने क्या ? अाप एकदम जाके, चित्त गहन नहीं उतर सकता । और जब तक एकदम क्या उससे 'चिपक जायेगे क्या, attractive चित्त गहन नहीं उतरेगा, तब तक आपकी गहनता क्या होता है ? मेरी आज तक समझ नहीं गराया, नहीं बढ़ने वालो । कि 'attractive' के माने क्या होता है। ख.सकर तो चित्त को पहले गहन उतारिये। वाह्य की चीजों में बहुत है। जैसे हमारे ladies हैं- प्रादमियों का भी बताऊ गो,क अब व्लाऊज़ match हुआ कि नहीं हुआ, उसके लिए सर फोड़ डालेंगी । Blouse attractive शब्द आज तक मे रे समझ में नहीं आया। कि "साहब वो attractive नहीं है।" मैंने कहा भई attractive के माने वया होता है ? क्या चीज attract श्रापको करती है ? उसका नाक मुह, हाथ, skin (चमड़ी), कपडे, शपडे व्या ? Should be natching । जब हम लोग यहां थे तो कौनसी चीज ? कोई matching क्लाऊज़ ही नहीं पहता था। नीले रंग की साडो तो पीले रंग का क्लाऊज । Attract तो एक हो चीज करनी चाहिए, सीधा हिस।ब | और पीला नहीं हुआ तो लाल रंग । दूसरे की आत्मा; वह तो आनतन्द देने वाली चोज़ चल जाएगा ! मतलब contrast border तो निमला योग २८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt पहले होता नहीं था, वो contrast कर लिया । नहीं रही हैं क्योंकि हम घड़ी के गुलाम हैं । हो सकता हुआ तो नहीं, पहन लिया। पहले होती ही कितनी साड़ियां थी किसी के पास में दो या तीन चाहे भी पागल बना देता है । कितने भी रईस हों । उयादा कपड़े कोई रखता हो नहीं था। अव साहब तो matching हो गया । औरतों का इतना problem हैं कि। औरत matching पहन के नहीं श्रायी तो खुलबली अ।इए प्राराम से राजा साहब जसे ! plane जाने मच जाएगी सारे शहर में। क्या कृपडे पहन के वाला नहीं है, चाहे कुछ हो जाए। plane यहां खडा आयी थो बेबकूफ जैसे !" लेकिन वो अ्रगर अरजीव- २हेगा; या देरी से आ रहा होगा। अगर आपको सा jean पहन के आए, दो सींग लगा के प्राए तो देर हो रही है तो कोई हजं नहीं, राजा साहब जैसे वो माडने है, वो modern (प्राधुनिक) हो गयी। है। इतनी वड़ी की गुलामी करना भी आदमी को जब आप सहजयोग में आते हैं, अापको पता होना चाहिए कि plane खड़ा रहेगा आपके लिए । प्रगर कोई जाईये र अगर समझ लीजिए ले न miss (छुट) भी हो गया, दुसरे प्लेन से जाईये, हो सकता है । ऐसी जो हम norms (असूल) बना ली हैं, norms में हम उलझे रहते हैं। अब ग्रादमियों की जुसका तांता आप जोडते जाएं तो कहा से कह दुसरी बीमारी होती है । उनको इतना कृपड़ों से मेंचिंग बैचिग का time कहां, वो तो घड़ी देखते रहते हैं। हरेक आदमी की घड़ी,"कितना बजा रही है ?""कितना ?" जब निकलने का time होगा, तो वजाय इसके कभी भी-ये भी एक आइचर्य की बात है । कि ने चीज लोगों उसमें कोई चीज बनने बाली हो । कोई सहजयोग अपनी उस पिलने वाला है ऐसा बहुत कुछ होता है। और पहुँच जाता है । एक बार में Geneva से जा रहो थो । बहरहोल मेरा तो प्लेन miss नहीं हआ][प्रभी तक time हो रहा है। बाहर निकल जाए, इस्मेनान करें, ओ्रतों के एक साहब का miss हो गया था। तो वो तडपडाते पीछे में 'चलो भई दो मिनट बचे हैं; एक मिनट हुए पहुँचे पलेन में । और उनको इत्तफ़ा क से मेरे पास ब चा है। time keeper रहे होंगे ! उतने में ग्रीरतं जगह भी मिली । बड़े nervous (परेशान ), उनकी जो हैं पच्चीस चीज भूल गये, वो भी भूल गए औ्र हालत खराव । महाराष्ट्रीयन थे। तो मैंने समझ भाग बाहर । हड़बड़, हड़बड़, हुइबड़।"इतना time ही गया। घड़ो देखना, और बताना औरक । जताना, ये भी modern चीज है पहले जमाने में ती मैन मराठी में कहा "साहव आपको परेशानी कोई ऐसा नहीं करता था । क्योंकि न तो पहले व्या हो गयी" तो उन्होंने मराठी में शुरू कर रेल गाड़ियां थीं, शरीर रेलगाड़ी कीन शरपके यहां दिया, असली मराठी में । कहने लगे "ये पलेन मैंने time रखती हैं, जो आप इतनी जल्दी कर रहे हैं ? miss कर दिया । देखिये कितनी ये हो गया ।" न plane (जहाज ) कौन आपका time रखते हैं ? मैंने कहा "कुछ नहीं miss किया आ्रापने। लेन में भागे जाओ, आपको पता है, yesterday आपके लिए कुछ अच्छी चीज़ ही होने वाली है इस (काल) आपके सवेरे के गए हुए वहीं शाम ्लेन में ।" मे री ओर देखा, उन्होंने कहा, "क्या तक बेठे रहे, plane ही नहीं बै लिया कि ये र गए मेरे चक्कर में ! मैंने कहा 'करेला नीम चढ़ा इनको अब फाँसना चाहिए आया । अच्छी चीज होंगी ?" तो देखा । क्या आरप हुए हैं । लेकिन घर से निकलते हुए माताजी निर्मला देवी हैं ?" मैंने कहा "हाँ । वो ऐसी हइवड़, सड़बड़ उसमें ये रह गया रे, वो रह गए काम से ! हो गए पार, प्लेन में ही ! उनका गया। तीन बार गाड़ी जाके लायी, तो भी प्लेन नाम है डॉ० मुततालिक। और उन्होंने कहा, "साहब नहीं आया ! आप कहोगे कि मां ही ये सब कर मैं तो इतना परेशान था और मुझे क्या मालूम निमंला योग २६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt था, कि आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है ।" मैंने है। ये मैं नहीं कहती कि गलत बात है । अंग्रेजों वहा "हा, इस्मिनान से चलो । ओर उसके बाद ने ये बात बनायी कि अव समय से जाने से उन्होंने मालूम है कहां से कहां बात पहुँच गयी UN में 'वाटरलू' की लड़ाई जीत ली। पर हार भी सकते वो ले आए, इसको ले आए, उसको ले आए। वो बहुत बड़े आदमो हैं, WHO के बो डायरेक्टर गया था तो जीत गये ओऔर हार गये। इसका हैं। लेकिन 'वैसे वो ना आते शायद इत्तफ़ाक-सहज, हो गए पार । तो ये सब मज़ बजे है तो आप नौ बजे आरइये । जिसके लिए ये देखने के हैं । तो इतनी ज्यादा घड़ी की गुलामी योगी परेशान हैं, और वर्मा साहब कि माँ जब नहीं करनी चाहिए । थे वो। time से कोई फ़र्क नही । जव time ग्रा । और मतलब नहीं है कि अगर माताजी का प्रोग्राम छः भापण देती हैं तब चले आते हैं बीबी-बच्चे, सब ल। इन से चले आा रहे हैं, मा बोल रही हैं शपने खिर ये सोचिए कि इतने दिन घड़ी बैध चुले ग्रा रहे हैं । तो कहते हैं कि भई माँ के दरवाजे के भी हमने क्या पाया ? यूं ही-मतलब अपने सबको बंद नहीं । बाप-दा दाओं ने भी ६ड़ी बाँधी ही थी, हलांकि उनकी ज्यादातर खराब ही रहती होगी। इतनी घड़ी से अपने को बाँध के सिवाय nervousness तो ठोक, लेकिन दरबार है, वहाँ 'वहत से बैठे के हमने कुछ नहीं पाया, और इस घड़ी की गुलामी हैं। वहुत से ऐसे-बसे बैठे हुए हैं जिनसे 'वहत' बच में जो आजकल श्रर जो निकन आायी है वो है Leukaemia, ये हमा रे ग्राने से पहले से ही सब जमे हुए यहीं (बीमारी जिसमें रक्त की कमी हो जाती है ) पर बैठे हुए इसलिए अगर आपको Leukaemia नहीं पान। है हैं, वहां भी बैठे हैं । इसलि ए माँ के साथ liberty तो इस घड़ी को आाप तिलांजली दे दोजिए । ( कभी इसको आगे रखिए कभी पीछे रखिए । भी ऐसे ही करती हैं । या एक ही काँटा रख लीजिए। जंसे किसी ने पूछा "कितना वजा है ?" होके आ्ाइये। जान लेना चाहिए । लेकिन ये disci- तो कहना "साढ़े । या "पौना"। ठीक है । pline (अनुशासन ) आप अपना लगाइये, मैं नहीं किसी से भी जोड़ लीजिए, कोई सा भी नम्बर लगाने वाली दो चार रपट पड़ेगी फिर आप लोग फिर समझ लीजिये। नहीं तो time हो नहीं रहेगा enjoy आ जायगे। नुकसान होंगा। समय से पहले वहाँ (मौज-मस्ती) करने का अगर ग्राप हरसमय घड़ी पहुँचना चाहिए । अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर के की ही गुलामी करियेगा तो आरपके पास time ही ग्राप जिम्मेदार लोग हैं । पहले से पहुचना चाहिए । कहाँ है enjoy करने के लिए ? "भई अभी time वच्चों को भी सिखाएं । "माँ का प्रोग्राम है। नहीं enjoyment के लिए ।" पर कहाँ जा रहे कोई हर्ज नहीं एक कप चाय कम पी ली तो कोई हैं आप ? इसको पकड़ ना है, उसको पकड़ना है । हज नहीं। चलो, आज माँ का प्रोग्राम है बहुत ये जो भागा-दौड़ है इसे आप बद की जिए । सब बड़ी वात है।" इसलिए समय से पहले पहुँचना पागल जैसे भाग रहे हैं। लेकिन माँ का तो दरबार होता है । दरवाजे हुए modern चीज हमने जानी है के चलना चाहिए । ये आपको पता होना चाहिए । हैं। वो इधर भी बैठे हैं, उधर भी बैठे स्वच्छन्दता) नहीं लेनी चाहिए इस तरह की। वहाँ मैं पर समय से पहले पहुँचना चाहिए। परमार्मा का काम है। परमात्मा के काम के लिए पहले से सुसज्ज चाहिए । लेकिन मैं नहीं कहूँगी। मैंने इनसे भी कहा दरवाजा खुला रखो । इसी प्रकार स्त्री की वातें ग्रोर होती है पुरुषों को बातें और होती हैं। लेकिन हमने ग्रपने norms (नियम) बना लिए हैं । जसे समय से जरूर जाना जानना है, और अराप ही को मानना है और अपने ले किन आप हो को समझना है, आप ही को मा निरमला योग ३० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt अभी लन्दन में शादी हुई थी वहाँ के युवराज की। बहुत दूर-दूर से लोग आए थे क्या उसका को सम्भालना है किसी पर भी सहजयोग में जब र- दस्ती, जुल्म, नहीं है हमारी शर से। लेकिन वो हो ही जाता है तमाशा भा, पता नहीं । लेकिन उसके लिए automatically (स्वतः) अाप जानते हैं। आप पर अमेरिका से रीगन साहब की बीवी आयीं। और वो automatically इसका प्रतिबन्ध लग जाता है १५ मिनट देर से आयी, दौड़ते दौड़ते। और सारे लोग क्योंकि परमात्मा के साम्राज्य का जो आवन्द है वी commentary (ताने बाजी) ये हुई कि "ये औरत तो प्रादी रहा है, लेकिन उनके rules-regulations क्या समझेगी, ये एक model थी । अभी हो गयी नियम-प्रविनियम) भी चलते हैं और वो बड़े ही राष्ट्रपति की बीबी तो क्या हुआ ? जो असली [था कमाल के rules regulations हैं इसलिए अ्रपने वो तो सामने सामने नजर आ गयी । ये क्या को ही सम्भाल के रखना है । नतमस्तक होकर के ये समझेगी कार्यदे ?" सोचना है कि "आज दरबार में जाने का है ।" समझ लीजिए आपको-दिल्ली दरबार में पहले लोग जाते थे, अपको पता होगा। तो दो महीने पहले ही नहीं। से तेयारी होती थी। special (खास) कपड़े पहनाये जाते थे और कैसे जाते हैं उसका rehearsal उसको समझे। और इस महानता को पहचानते (पूर्वाभ्यास) होता था और अगर आप गये हैं, तो हो आप स्वयं उस महानता का विशेष आदर victory (जोत) के सामने ्आप पीठ नहीं दिखा करंगे । सकते। झुक । कोई चोज का restriction (रोक) तो वो तो कोई चीज़ ही नहीं। वो तो कोई चीज ले किन ये जो चीज है उससे कितनी बड़ी' है, कितनी 'ऊंची' है, कितनी 'महान' है, के और पीछे ऐसे सीधे चले प्राइये मैं कोई restriction बन्धन) नहीं अरे ये वायसराय होता किस बला का नाम डालती आप पर, आपको ही खुद grow (बढ़ना) है। परमात्मा के पैर के घुल के बराबर भी होना है जो नहीं है। उससे भी कम । उसका तो इतना महात्म्य है फिर, वो हमारी माँ क्यों न हो, ले किन दरबार वो स्वयं को वेसे ही संवार लेगा । उसको कहने भरा हुआ है। और जो बड़े-बड़े देवता लोग हैं वो की जरूरत नहीं। व हने से जो काम होगा वो फिर कायदे से बैठे रहते हैं, सब आ्रायुध पहन के । क्या सहज हुआ ? आप 'खुद' [अपनी समझदा री इंतजाम रहता है। पूरे खड़े रहते हैं। तयारी से पहुँचते हैं। देखिये vibrations भी आा आप स्वयं प्रतिष्ठित हैं और उस 'स्वयं को गए। किंतने जोर की vibrations छूट रहे हैं। सामने रखक र के चलिये । वो सब सज्ज होते हैं इस वक्त । जब हम बोलते हैं आपसी का बोलना चालना , सब चीज में 'स्वयं तो देखिए कैसे vibrations छुटते हैं। इसलिए चालित होना चाहिए। Owner Driven को स्वयं- आपको भी सतर्क होना चाहिए। वो देख रहे हैं आाप सबको, कि कैसे आप चलते है। इसालए है। और उस तंत्र सम्भल करके, बहुत नतमस्तक होकर के आना चाहिए। ये बात प्रापको धीरे-धीरे जान जाएगी कि आप कहाँ पहुँचे हैं, आपका स्थान क्या है, आप कौन सी ऊंची दशा में हैं। उस दशा के अनुसार होएगा, खुद खुद ही इसमें बढ़कर के ऊँचा उठेगा, grow जो पूरा ऋऔर सब से इसमें एक बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा लेकर उठें | आपसी बातचीत, ) चालित कहते हैं । पर स्व तो missing (गायव होता है उसमें । आपका स्व जागृत है । उस 'स्व' के तंत्र में चलिए । वही स्वतन्त्र में चलते हुए जो एक 'विशेष रूप' आप धारण करते हैं उसको देखकर ही लोग सोचंगे "बाह, बाह। ये क्या चीज़ सामने चली आ रही है। इस पागल दुनिया में बहुत जुरूरत है इस बक्त। आप चले । निर्मला योग ३१ ट 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt मुझे थोड़ी सी आपकी मदद की जरूरत है ; अगर से कहाँ आपने पहुँचना है । आज नव वर्ष के दिन हो जाए तो ये दुनिया पलटने वाली है, वहुत जल्दी विशेष रूप से ये कहने का है । "आानन्द से रहें, सुख से रहें, चन से रहें, हँसते रहें ।" पर अपनी प्रतिष्ठा में वंधे रहें, प्रतिष्ठा अपनी छोड़ न । और दूर नहीं कि जब कि आप देखिएगा कि पलट जाएगी। लोग सव मिलकर के कोशिश करें । पूरी आप बो दिन कोशिश करें कि अपना महात्म्य समभझ । माताजादनिया सारी शरप लोग रोशन कर देंगे । व का महात्म्य है, जो तो बहुत लिख गये। अब आप अपना महात्म्य लिखिये कहाँ से कहाँ आप लोग पहुँच गए हैं, और कहा । और ये जानिये कि आप सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद । With Best Compliments From M/s. HANSA PAINTS & CHEMICALS MANUFACTURERS OF SPARTAN PAINTS I/21 ASAF ALI ROAD, NEW DELHI With Best Compliments From MONTARI PHARMACEUTICALS PRIVATE LIMITED X-60 OKHLA INDUSTRIAL AREA, PHASE-II, NEW DELHI-110020 PH. NO.-631861 MANUFACTURERS OF ETHICAL DRUGS Surplus capacity for manufacturing of tablets and cap- sules on loan licence available. Interested parties please contact Manager at the above address. निमंला योग ३२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt बोर्डी पूजा : श्री माताजी का प्रवचन बोर्डी १२ २-८४ वर्षत सकळ मंगली ईशवरीनष्ठांची मंदियाळो अनवरत भूमंडला भेटतू भूता ॥ चला कल्पतरूचे अ्राख चेतना चिन्तामरीचे गाव बोलते जे अणंव पीपूषंचे॥ चन्द्रमें जे प्रलांछन मार्तन्ड जे तापहीन ते सर्वाही सदा सज्जन सोयरे होत।॥ किवहना सर्व सुखो पूर्ण होउनि तिही लोको भजिजो अदिपुरुखी [अ्रवंडित । साथ निघड़ित रखना सह जयोग ऊचाई है उसके ओर दृष्ट रखनी वाहिये । ये चाहिए। और उसकी जो अब मैहिन्दी में प्रापको थोड़ा सा बताना चाहती हैं । कि में हम लोग अब ये नहीं जानते कि ऊँचाई जो भी इ्होंने हासिल की है, तो इस हमारे वारे में हजारों वर्ष से ये वातावरण से लड़ कर, झगड़ करर, वाहर अ्राकर, अट बताया गया था कि ऐसे महान लोग संसार में अ्रायेगे । और पहाड़ के सर दुनियाई चीजों के लिये, कृत्रिम चीजों के लिए सर ऊ चा उठाकर की है । औौर जो लोग आअपना पहाड़ ऐसे बड़े-बड़े वृक्षों के ऐसे अरण्य संसार में वाह्य चीजों के लिये भझका लेते हैं, तो कैसे उठ घूमेंगे जो बोलते इच्छाओं की पूरति के कर्प तरु जेसे उनको आशोर्वाद देंगे । औ्र उनके एक-एक व्यक्ति में जैसे सागर उमइते हों, जिसमें अमृत बोलता हो ऐसे सांगर । ऐसे सूरज होएंगे चमकते हुए सूरज अंदर कोई भी दाह नहीं, अरग्नि नहीं, ऐसे चन्द्रमा जिसके ऊपर कोई कलंक नहीं। हुए, चलते हुए, दुनिया को उनकी सकते हैं ? या जो अपना चित्त इस घरती मां से हटा लेते हैं. वो तो मर ही जाएंगे । इसलिये हर सहजयोगी का ये कर्तव्य' है- ये पूरी तरह से करतंव्य है - कि वो जाने कि सारी दुनिया आपकी तरफ अंख लगाए बैठी हुई है और आप ग्रपने गौरव को पहचान । कि जिसके प लोग यहां मुर्झे बचत देने आए है, इस International Seminar ( अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठी) में कि "माँ जितनी तुम मेहनत करती हो, ये आपके वर्णन लोगों ने किये बर्ष पहले ज्ञानेश्वर जी ने; कि कितना अपका म कितना महत्व कि कितना उसी तरह से हम भी मेंहनत करेंगे ।" । और तीन सौ महत्व उन्होंते बताया । जरूरी है, सारी दुनिया के लिए एक आशा दीो। उस शान्तिमय गौरव में अप अ्रपने को ऊचा उठाइये । अपने वारे में पूरी आपको कल्पना होनी जािये, कि प्राप हैं क्या !:श्राप सरबसे यही इस तरह से हो रहा है और हो गया। लाकन अभी इसकी प्रगति मरे विचार से बहुत, बहुत धीमी; इसकी प्रगति वजह से धीमी हो जाती है । ऐसी जगह चित्त विनता है कि कृपया अपनी ओर नजर करें । ग्राप अ्रपना जाता है जहं हम अवने को गिरा लेते हैं । धीमी। प्रगति अपको बहुत सब सिंहासन पर बेठिए, उस सिंहासन को पाइये, उसके जैसे होइये । दुनिया के मुकावले में प्राप अपना वित्त, इस पेड का जेसा पृथ्वी से पूरी बहुत बड़ी चीज़ हैं । तरह से निर्धड़ित है, ऐसा आपको अरपनी मां के माताजी श्री निर्मला देवी निर्मला योग ३३