ॐ निर्मला योग द्विमासिक वर्ष ३ अंक १३ मई-जून १६८४ अभ शा हि ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निरमला देवी नमो नमः ।। ए पज पर प कि।। निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डा शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनत्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेंट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक्-११२०१ : श्रीमति लोरी हायनेका ३१५१, होदर स्ट्रीट बैन्कूवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के २ यू.एस.ए. यू.के. श्री गेविन ब्राउन वाउन्स जियोलॉजिकल इन्फर्मॅशन सविस लि. १३४ ग्रेट पोर्टलण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पी. एच. भारत : श्री एम० बो० रत्नान्नवर १३. मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ५४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० पृष्ठ इस अंक में १. गणपत्यथर्वंशीषंस् १ २. सम्पादकीय ३. सत्य (परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. दीपावली आशीर्वाद (माताजी का ५. निर्मला माऊली ( मराठी में प्रार्थना ) ६. महायोग (मराठी में कविता) ७. आनंद भुमी ( ३ ५ू पत्र) २१ ও । २२ २३ ) २४ ै। ।। २५ ८. ध्यान ২. परमपूज्य माताजी का भारत में कार्यक्र म ( जनवरी से मार्च १९८५ ) २८ ततीय कवर १०. प्राथना "श्री गणपत्यथर्वशो्षम् " ॐ नमस्ते गणपतये | अब चोध्वत्तात्, सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥३॥ वघरात्तात् त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि । त्वमेव केवलं कर्ता्ऽसि । त्वं वाङ्कयस्त्वं चिन्मयः । ड्गप त्वमानन्दमयस्त्वं अह्ममयः । त्वं सचिचिदानन्दाद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं व्रह्मासि । त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥४ ॥ त्वमेव केवलं धर्ताऽसि । त्वमेव केवलं हर्ताऽसि । त्वमेव सर्व खल्विदं बह्मासि । स्वं साक्षादात्माःसि नित्यम् ॥१॥ सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते । सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठुति । सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति । ऋतं वच्मि, सत्यं वचिम ॥२॥ अव त्वं माम् अव वक्तारम् । ब श्रोतारम्, अब दातारम् । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः । त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥५ ॥ अव धातारम् ॥ अवानूचानमव शिष्यम् । अव] पश्चात्तात् अव अवोत्तरात्तात, अव दक्षिणात्तात् त्वं गुणत्रयातीतः । त्वं देहत्रयातीतः, त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ॥ पुरस्तात् । । निर्मला योग १ एकदन्तं चतुर्हस्तं त्वं शक्तित्रयात्मकः। पाशमंकुशधारिणम् । त्वा योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं विष्ण स्त्वं रदं च वरदं हस्तर् त्वं ब्रह्मा रुद्रस्स्वमिन्द्रस्त्वमरिवस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ॥६॥ गरणादि पूर्वमुच्चार्य वरणादि तदनन्तरम् । विभ्राणं मूषकध्वजम् %3D रक्तं लम्बोदरं शुपंकरणक रक्तवाससम् । रक्तगन्धान् लिप्तांग रव्तपुष्पेः सुपूजितम् ।। भक्तानुकम्पिनं देवं अनुस्वार: परतरः । जगत्कारणमच्युतम् । श्रविभ तं च सृष्ट्यादों प्रकृतेः पुरुषात्परम् ॥ अर्धेन्दुलसितम्, तारेण ऋद्धम् | एतत्तव मनुस्वरूपम् । गकारः पूर्वरूपम् अकारो मध्यमरूपम् । एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥8 ॥ नमो व्रातपतये, अनुस्वार३्चान्त्यरूपम । बिन्दुरुत्तररूपम् । नादः सन्धानम्, संहिता सन्धिः । १ सेवा गणेश विद्या |॥| नमो गणपतये । नमः प्रमथपतये, नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकसैदन्ताय । गणक ऋषिः] निचुद्गायत्रीच्छन्दः । गएपतिदेवता । ॐ गं गरणपतये नमः ॥७॥ विध्ननाशिने शिवसुताय । श्रीवरदमुतंये नमो नमः ॥ १०॥ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तघ्रो दंती प्रचोदयात् ॥॥ प० पू० श्री माताजी का आदेश है कि सभी इस गणेपाथर्वशीर्ष को कंठस्थ कर लें व नित्य पाठ करें । निर्मला योग ॐ कस सम्पादकीय सहजयोग में हम लोग कितने अधिक भाग्य- से, हमारी सब मानसिक चेष्टाओं से परे है-वह शाली हैं, इसका अनुमान अपनी छोटी बुद्धि व सीमित इंद्रियों से नहीं कर सकते। effortless (अनायास) है हम निाविचारिता में ही बढ़ते हैं, आ्रात्मिक आध्यात्मिक उन्तति करते हैं । इस के लिए कुछ मानसिक चेष्टा करने की आवश्यकता है ही नहीं । केवल अपने प्न्दर 'शुद्ध इच्छा चाहिए; श्री माताजी के प्रति पूर्ण-श्रद्धा, असीम-अ्रनंत-निराकार आदिशक्ति' हमारे बीच साकार साक्षात् माँ के रूप में हमें अपने लाड़- प्यार से दुलार रही हैं व हमको आत्म-साक्षात्कार पुर्ण विश्वास, पूर्ण समर्परण;-" पूर्ण समर्पण तो प्रदान कर हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनी समस्त शक्तियों व देवताओं को अ्रपनी देहु में उनसे विनती व प्रार्थना करने पर सहज में ही हो विद्यमान होते हुए किस महामाया से मानवीय रूप से जाता है, यही करना चाहिए। पुवकारते-लाड़-प्यार से हमें उभार रहो हैं-यह इस कृत युग का सबसे बड़ा अचम्भा, अविश्वासनीय महान सत्य व युग की महिमा है । इस शुद्ध इच्छा को पूर्ण श्रद्धापूर्वक प्रगट करने पर, हमारी मां सर्व शक्तियों से सुसज्जित हैं, उनके सामने negativity (बाधाएं) ठहर नहीं सकतीं तथा उनके स्मरण व प्रार्थना मात्र से ही क्षण सहजयोग में श्रपनी उन्नति करने के लिए भर में छूट कर भाग जाती हैं । वो हम सबके समझे जाने वाले प्रथास आध्यात्मिक उत्थान के लिए हर समय प्रयत्नशील की आवश्यकता नहीं, हैं परम्तु हमको इसका पूरा लाभ नहीं होता क्योंकि क्योंकि वह effortless (अनायास) है; उस के बारे अभी हम पूर्ण रूप से अपने को श्री माताजी से में सोचने की जरूरत नहीं क्योंकि व ह मस्तिष्क identify करने की श्रपेक्षा अधिक identified की सीमा के परे है, विचारों के परे है; हमारी हैं । और चीजज़ों से, अपने अहंकार, शरीर इस्यादि साक्षी- रूप से आमतौर पर (effort) करने को से बस हमें अपने planning (योजना ) या मस्तिष्क की कार्यवाही निर्मला योग ३ देखना चाहिए। कौन सी negativity (बाधाएं) महसूस करना चाहिए ऐसा करने से हमारी हमें नुकसान पहुँचा रही हैं, हमारे उत्थान के रास्ते उत्थान की गति रुकती है। हमें अपने को face में आ रही हैं, हमारे ग्रंदर क्रोध या लोभ, मोह, अहं- (निरीक्षण) करना है साक्षी रूप से, अपने दोष कार पैदा कर रही हैं. दूसरों के बारे में कुछ बुरा जानने के लिए ना कि judge करना (जांचना, सोचने में मदद कर रही हैं इस्यादि इत्यादि- | वो परखना) । क्योंकि यह तो अपने नजरिये से होगा दते जी हमारी उन्नति रोक रही हैं, उनसे अपने हमेशा को अलग करना है वो भी सहजयोग में बहुत अपने को दोपी लगेंगे । आसान है। हम थी माताजी से प्रार्थना करें कि वो परखना) तो किसी को भी नहीं करना है न अपने इनमे हमें दूर करें, हमारे का काम है । सब (मोह-बंधन, आसक्तियां) को हटाएं-बस अपने misidentification (मोह बंधन, आसंक्तियां ) एक हैं ! सब माँ के अंग-प्रत्यंग है, हम आपसे में सिर्फ ही क्षण में श्री माताजी दूर कर देती हैं। उनका लेते ही बाधाएं दूर भागती हैं। biased (एकतरफा) होगा, अर हम इसलिए judge (जाँचना, misidentification को न दूसरों को वोमाँ सहजयोगी भाई-वहन माँ ने judge कर के पार किये प्यार दे सकते हैं मीठा वाट सकते हैं । यदि किसी में पकड़ है, तो उसको बन्धन दे सव ते हैं, व सम्भव हो तो नाम चुपचाप सहज हो में उनको दूर करने का प्रयत्न कर सकते हैं, मँ से प्रार्थयना करें । सहजयोग सरलतम है । श्री माताजी कृपा से इस महायोग द्वारा आज हम आप जैसे सवसाधारण गृहस्थी, इस लिए, हम सहजयोगियों को सहजयोग की नियमित क्रियाशों के अरतिरिक्त कुछ विशेष करने की आवश्यकता ही नहीं होती। सिर्फ शुद्ध इच्छा अपने उत्थान की व माँ में पूर्ण श्रद्धा के साथ नतमस्तक होकर रहने की आवश्यकता है। (पर्ण संसार के सव मामूली कार्य निभाते हुए भी इस विश्वास व पूर्ण समर्प र.. दोनों ही श्रद्धा में अ्रा गए; मां ने श्वद्धा की बड़ी महिमा बताई है) सहज- योग बहुत ही आसान व सरल है । जीवन में अत्म-साक्षात्कार पाकर पूर्ग आनन्द के में साग र हर क्षण अग्रसर हो रहे हैं। श्री माताजी स्वरयं इस अवतरण में हमारे उत्थान के लिए इतना प्रयत्न कर रही हैं- (इससे पहले श्री जीजस अपने में कुछ कमी है; हमें तो मुझमें ऐसा है, इससे मुझे छुड़ाओ ।" अपना उनके चरण कमलों में केवल श्रद्धापूर्व क नतमस्तक रखकर, ही रहना है- जिन चर की घूल के एक करण दोष से अपने को अलग कर के (या यों कहें; साक्षी जिससे समस्त विश्व की रचना हुई है व सारे संसार कहो, "श्री माताजी, ने हमारे सारे sin (पाप) खा लिए) - में माँ identification भाव से देखते हुए) माँ से प्रार्थना करं, और के उद्घार का सामर्थ्यं है । श्री माताजी तत्काल व तत्क्षण उसे दूर कर देती हैं। ল बोलो साक्षात् श्री आदिशक्ति महामाया परब्रह्म निष्कलंका परमेक्वरी नित्यमूक्ता लीला माताजी श्री सबसे ज्यादा समझने की बात है कि मां के विनोदिनी पद्यासना भुवनेश्वरी बच्चे होने के कारण "हम वास्तव में निर्दोष हैं" निर्मला देवी की जय (We are not guilty)! दोषी विल्कुल भी नहीं निमला योग परम्पूज्य माताजी का प्रवचन गांधी भवन, दिल्ली ७- २ -१९५३ सत्य आज के विषय में मैं चाहूँगी सत्य है या नहीं। कि 'सत्य का अन्वेषण इस विषय अब science (विज्ञान) की उपलब्धि जो पर मैं खासकर बात करूं । क्यों कि बहुत लोगों ने इस पर लिखा हम हुई है, तो science में हम अग्रसर हए, है- "In the search of SCience में हमने बहुत सारी बातें जान लीं । अणु, परमाणु तक हम पहुँच गए। गतिविधियों को जो समझा है बो जो भी सब कुछ, जो कुछ भी सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए जड़ है, उसके बारे में । 'जीवंत' कार्य ये सब किस कि सत्य को खोज निकालना है, हरेक चौज़ का तरह से होता है संसार में, इसकी ओर किसी की कि truth" । और बहुत से लोग सत्य निकालना चाहिए । दृष्टि नहीं गई । अ्रब जब मानव दशा में मनुष्य रहता है, तो सत्य के अन्वेषण में सबसे पहले बात ये सोचनी ऐसी स्थिति होती है कि वो सिर्फ बुद्धि उसकी चाहिए कि जो कुछ मनुष्य कर सकता है उससे परे कोई सुष्टि है या नहीं। जैसे कि जीवंत हम देखते हैं-मनुष्य का चलना, टहलना, उसका के माध्यम से ही सत्य को खोजता है। और उसके क वस्तु को पास कोई माध्यम नहीं। जैसे कि science (विज्ञान) की उपलब्धि जो भी है, ये हमें सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से हुई है लेकिन बुद्धि जो है वो, दृष्य संसार में चीज़ जो है उसी के बारे हैम इस और नज़र नही करते हैं, इस तरफ हमारी में बात-चीत कर सकती है, जो अ्रदृश्य है उसे नहीं बता सकती । बढ़ना, उद्विगंत होना, सब कुछ देखते हैं। लेकिन दष्टि नही पड़ पाती है, कि ये आदमी बनाया गया है, सो क्यों ? पहली बात । क्योंकि उसका उत्तर हमारे पास नहीं है । और सत्य और अदश्य में क्यो नहीं बता सकती । तब पहले वे अन्तर है ये भी सोचना चाहिए कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है तो सर्वप्रथम उसका यही विचार उत्तर उसके पास नहीं है उधर से वो मुंह मोड़ बनता होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना तो लेता है । ओर कहता है कि जिसका हम उत्तर दे कुछ भी नहीं जाना; तो भी हम भ्रम में बने रहे बुद्धि से जानी हुई बात जितनी भी हमने शराज तक वो सोचता है कि गलत बात हो जाएगी । जानी है, उससे इतना जरूर हुआ जो दृष्य में हैं उसे हमने ज्ञात कर लिया । लेकिन जो कुछ प्रदृश्य में है बो भी नहीं जाना, और ये भी नहीं जान ने ही बताया कि एक अमीवा (amoeba) से ही पाए कि वाकई जो हमने दृश्य जाना है ये परम् मनुष्य बना है । तो फोरन ये बात दिमाग में आनी मनुष्य की 'विशेषता' ये है कि जिस चीज का सकते हैं, वहीं तक हम रहेंगे, उससे परे जाना भी । तेते ले किन मनुष्य संसार में आया, science निर्मला योग ५ू चाहिए कि ये इस तरह की जो विशेष चीज की ments (तत्व) हैं, उसमें से एक भी element सकता है ? उसकी valencies सृजित हुआ, बनाया गया, उत्कांत हुआा, तो इसकी (इकाईयाँ) अ्रादि इस कदर सुन्दरता से बनी हुई कोई न कोई वजह जरूर होनी हैं, क्या मैं ऐसी कोई रचना कर सकता है ?" ये जिस शक्ति ने इसे बनाया है उसने कुछ सोचकर तो ठीक है, मरी हुई चीज़ को जोड़ दिया आपने । ही बनाया होगा । और अगर नहीं सोचकर लेकिन उनकी रचना में आप कुछ भी inter- बनाया तो भी तो वो कोई शक्ति तो होनी ही ference (हस्तक्षेप) कर सकते हैं, उसमें कोई चाहिए जिसने उसे बनाया है । तो ये शक्ति आप का हस्तक्षप हो सकता है ?-नहीं हो सकता। आप कोई चीज उसमें से बदल नहीं सकते । बो जैसी है बैसी है । [आप उसके compounds (योगिक) क्योंकि हमारी दृष्टि ऐसी होती है कि 'मनुष्य बना सकते हैं, mixtures (मिश्रण) वता सकते घटनायें घटित हुई और जिसकी वजह से ये मनुष्य खुद बना लाहिए । क्योंकि क्या है ? जो है वो खोज सकता है । यहले तो हमने बाकी हैं, लेकिन अगर sulphur ( गंधक) को जलाया सब चीज़ को negate (इन्कार) कर दिया, खत्म जाए और उसके crystals (स्फटिक) बनाइये कर दिया; हम खोज सकते हैं, हम देख सकते हैं, तो उसी हंग के बनेगे जैसे Sulphur (गंधक) के हम जान सकते हैं। इसलिए हम science को बनते हैं। आप अगर चाहें कि अपनी तरह के crystals (स्फटिक) बनाएं बो तक आप नहीं ओर दृष्टि यही करते हैं कि हम science से पहचान सकते हैं, हम इसको जान सकते हैं, उस चीज़ को हम पहचान सकते हैं । इस तरह का जो बना सकते । properties उसकी (विशेषतायें) हैं, उस पर आप का हस्तक्षेप नहीं जब भाव आ गया और दूसरी सब चौज खत्म है है। हां. उन properties को आप इस्तेमल कर गईं, तो फिर मनुष्य अपने से जो परे है, उस चीज़ को कैसे जान सकेगा ? जब वो अपने ही जानने सकते हैं । लेकिन जो बृनियादी fundamental आ properties हैं उसको आप नहीं बदल सकते । तो ये किसने बनाए ? और ये किसकी शक्ति में है कि जो इसे बदल सकता है ? इधर भी एक दुृष्टिक्षेप होना चाहिए। अंधेरे में रहकर जो की बात पर अभी तक उतरा नहीं, जो अपने से निम्न है, जो अ्रपने से हम कार्यान्वित कर सकते में ले सकते हैं वो तो पथोंकि जिस पर हम हैं, जिसको हम अपने है हैम से निम्न ही हुआ। हाथ लगा सकते हैं, वो हमसे निम्न होना चाहिए के आप ये कहें कि उजियारा नहीं है, तो ये तो नहीं तो हम उसे हाथ कसे लगा रहे हैं ? जैसे बात गलत हैं। लेकिन अगर कोई कहता है कि इस मकान को बनाना है। ठीक है, पत्थ र है, मिटो उजियारा है, तो कोई scientist (वैज्ञानिक) हो, कोई भी बुद्धिजीवी आदमी हो, उसको कहना है। ये सब हमसे निम्न है। ये जड़ वस्तु है । इसको हम बना सकते हैं। मनुष्य की दुष्टि बहाँ चाहिए कि अगर उजियारा है तो देखना चाहिए । तक पहुँचती है कि भई हम इसे बना रहे हैं, तो मनुष्य के मन में कौतु- इसे हमने बनाया और हम बहुत ऊंचे इंसान हो हैल होना चाहिए किे शखिर ये अगर कह रहा गये, या हमने बड़ा भारी काम कर लिया । लेकिन इस है। कि इसके परे कोई प्रकाश है, तो क्यों न देखा चाहिए । कौतुहल होना ही ? लेकिन इस तरह से हम 'अपने से ही प्रभा- वित हैं, auto-hypnosis में इतने ज्यादा हैं, कि हम सोचते हैं, जिस पर हम हाथ चला सकते हैं, थोड़े नम्रतापूर्वक मनुष्य सोचे "क्या मैं ये वही चीज सत्य है, और जिस पर हम हाथ नहीं चला पत्थर स्वयं वना सकता है ?" जितने भी ele- सकते उधर देखने की जारूरत नहीं। इस तरह से जाए का एक पत्थर भी इसान नहीं बना सकता । एक अरणु, रेणु कुछ भी नहीं बना सकता । निमला योग ६ कि ही भूठ बोलते थे; इसका क्या proof (प्रमाण है ? अगर आप कहें, तो हम आपके हाथ नहीं पकड़ सकते न ? परमात्मा है या नहीं; ये भी अगर वाद- पहला प्रश्न ये, कि ये सुष्टि रची, तो रचाई विवाद उठे ती हम आपके हाथ नहीं पकड़ सकते । किसने ? और इस सृष्टि के अरणु रेणु, परमाणु लेकिन प्रगर हम कहें कि इसकी हम सिद्धता आपको जितने भी हैं, उसमें इतनी सुन्दर व्यवस्था किसने हे सक ते हैं, तो क्यों न उस तरफ हम आगे बढ़े ? हम सत्य से कितने दूर हैं, ये समझ सकते हैं । कि उसके तो मूलभूत चीजों को हमने छुआ नहीं। की ? उनको इतने व्यवस्थित रूप में किसने बनाया? ये व्यवस्थापक कोन हैं ? एक अगर सत्य के अआप पुजारी हैं और सत्य को आप चीज कह सकते जानता चाहते हैं, अ्गर कोई कहता है कि इसमें प्रप हैं कि ईमानदार हैं लोग, कहते हैं कि हुम इससे प्रग्रसर हो सकते हैं; इतना ही नहीं, उस सत्य को आगे नहीं बढ़ सकते, हम यहीं तक रहते हैं । पर आप पूरी तरह से जान सकते हैं, तो क्यों न हम अगर हम कहते हैं कि आप 'बढ सकते है; इससे स्वीकार करें कि आगे आप जा सकते हैं, अ्रोर इससे थगे एक चलें भई कोन सा वो मार्ग माँ बता रही हैं, देखें इसे अत्यन्त नम्रतापूर्वक प्रांगण और भी है एक dimension श्रर भी तो सही है भी कि नहीं । है", तो क्यों न अपनी अँख खोले इस बक्त ? र, अभी तक मान लिया कि ये चीज़ जागृति की नहीं थी, थोडे इस बारे में जानते थे, इसलिए गलत- सिर्फ हमारे पास एक अरहंकार मात्र हैं कि सामूहिक की नहीं थी ओर लोग हमने ये किया, हमने ये पता लगाया, हमारे पास ये है, वो हैं। लेकिन जो भी है वो आप से निम्न फहमियाँ हो गई। लेकिन जितनी science की ही है। [अगर आपको ऊपर उठना है कही भी, चीज ये बिजली आदि चीज़ें जितनी भी अन्वेषित तो 'ऊपर' की चीज पकड़नी चाहिए। कहीं भी है, ये जिस तरह आज सामूहिक हैं [और जागृतिक चढ़ना होता है, आपने देखा होगा कि जब लोग किसी बही पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो वहं पर ऊपर ऐसे अ्गर चीज कोई अगर कहे कि आपके अन्दर पहले एक कोल ठोकते हैं; फिर उसको पकड़ते हैं। बसी हुई है तो उसमें शंका कुशंका करना भी तो, इसी को आप Science में hypothesis अ्रादि मेरे ख्याल से कोई बडा scientific attitude कहते हैं कि जहाँ एक धारणा बना लेते हैं । उस (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) नहीं है । ये बैज्ञानिक दृष्टि- धारणा की कील ठोक दी, फिर उस कील को पकड़े कोण नहीं होता है जब कि मनुष्य किसी चीज़ को कर आप ऊँचे उठ गए। एकदम ही मना कर दे और कहे कि नहीं, ये बात जाकर देखा कि क्या होता है। बहुत हैं और सर्वहित के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। और फिर उससे आगे है ही नहीं । वास्तविक ये कील ठोकी है या नहीं, वहाँ पर हम पहुँचे हैं या नहीं, ये यथार्थ में पहुँच के ही जो आज तक हमने इस्तेमाल करी, अपने से नीचे मनुष्य देख सकता है । लेकिन एकदम मुंह मोड़ लेने वाली चीजों को पाने के लिये प्र हस्तगत करने से ये काम नहीं होने वाला । अब अगर हम ये कहें के लिए; इतना ही नहीं, उन पर अधिकार जमाने कि जो बड़े बड़े सन्त साधु हो गए, जो यहाँ पर के लिए-उस चीज का उपयोग छोड़ देना होगा। बड़े बड़े अ्रवतार हो गए इस अपने भारतवर्ष में, जैसे कि अनगर दिल्ली में घुूमना है तो मोटर ठीक इस योग-भूमि में, जिन्होंने बड़े बड़े कार्य किये, है, लेकिन ऊपर जाना है तो वायु-यान चाहिए । जिन्हें आ्राज संसार पूज रहा है अर मान रहा है, उसकी गति भी अलग होती है, उसका तौर-तरीका ये लोग झूठ नहीं बोलते थे। तो आप लोग कहेंगे अलग होता है उसके सारे प्रकल्प अलग होते हैं । अपने से ऊपर की चीज को जब पाना है, तब निरमला योग मोटर की जो है, वो चीज और है, वो जमीन पर आत्मा के बारे में ऐसा नहीं होता। क्योंकि चलती है, और ये आकाश में उड़ने वाला बायुू- मनुष्य यही जानना चाहता है कि "जो आज मैं हैं, इसी से मुझे सत्र मिलना चाहिए; और इससे आगे उठे ! माने ये मेरे साथ अपना ही अनादर है ! यान है । इसी प्रकार जब अपके लिए मैं कह रही हैं कि आपको आत्मा को जानना होगा, आत्मा को इस्ते- माल करना होगा, आस्मा ही के सहारे आप परमात्मा को जान सकते हैं, तो इसका मतलब ये किया तो वहा भाग। जायेगा। तब नहीं सोचता हैं कि जो बुद्धि के सहारे सारे संसार को आप कि हम हिन्दुस्तानी हम ब्यों इनके पीछे भागे समझते हैं अरापने जान लिया है, उस से परे कोई जा रहे हैं ? कुछ अगर रूस ने किया तो उसके चीज आपको पानी पड़ेगी-वो है आत्मा । Science के मामले में ऐसा नहीं सोचता । Science के बारे में अमेरिका ने कोई अन्वेषर पीछे भागा जाएगा । लेकित कुछ अगर अन्वेषण और किसी प्रांगण में हुआ तो उसकी श्र मनुष्य की Science में अगर आत्मा का उल्लेख नहीं रुचि नहीं होती। बाहर के पेड़ के बारे में मनुष्य है. तो इतना ही कहना चाहिए कि आज अभी तक सब जानता है, लेकिन इस के मूल के बारे में science उस ओर बढ़ नहीं पाया है और कभी नहीं जानता । वो जान भी नहीं पाएगा। कयोंकि जिस मर्यादित क्षेत्र से आप उसे जानना चाहते हैं, उससे वो १रे है। उससे आप देख ही नहीं पाएंगे। उसका range (सीमा) जो है वो ही नहीं है कि वो उसको । अगर आप चाहें कि जान पाए । सो इस machiney (यंत्र) का जो range है, वो बढ़ाना पड़े गा। ओर उस range में नहीं आती है। जब भी मैं भाषण आदि देती को बढ़ाने के वक्त अगर हम कहें कि इसमें आत्मा की दष्टि जब तक नहीं श्राएगी तब तक कार्य नहीं होता है कि : फलानी किताबों में ऐसा लिखा है । हो सकता है, तो आपको मान्य करना चाहिए कि हो गया फिर ! क्या करे ? जो भी लिखा है वो "वो हमें प्राप्त हो । कुछ. के। और उसके मुल को जानने के लिए आपको सूक्ष्म होना पड़ेगा। और वो सुक्ष्मता अापको पाने के लिए नम्रता चाहिए आप अपने बुद्धि के दम पर आप उसे पा ले तो नहीं पा सकते । ये एक सौधी बात लोगों के समझ हैं, कूछ भी, तो में देखती हैं कि पहला प्रश्न ये । आपकी बूद्धि से तो प्रकेले नहीं होने वाला; उसको आप नहीं समझ पाएंगे । हम कह रहे हैं कि नहीं समझ पायगे-तो समझ लीजिये कि बगर चशमे के हमें दिखाई नही देता तो हमें चश्मा लगाना जरूरी हैं, ये तो बात हमारी समझ में आती है। और अगर प्रत्मा के सिथा हम परमात्मा को नहीं समझ पाते, जैसे हम देखते हैं, एक साहब के पास बड़ा अच्छा microscope (सूक्ष्मदर्शी) है उससे वो देखता है कि हरेक पेशियाँ कैसी चलन वलन केसा है, ये सब हम देखते रहते हैं । ले किन जब देखते हैं, कि दूसरे आदमी के पास तो आाहमा को पाना चाहिए-सीधी सादी बात कोई अच्छी मशीन है इससे भी उयादा, तो हम बयों नहीं समझ में अआनी चाहिए ? उसमें शंका- चाहते हैं कि किसी तरह से इसे पा लें, हस्त गत कर ल। उसी प्रकार अगर एक मनुष्य देखता है कि दूसरे आदमी के पास कोई विशेष चीज है तो उसको इच्छा यही होती चाहिए कि उस बिशेष चौज को वाकई प्राप सत्यको जानना चाहते हैं, तो सबसे हम पा ले । लेकिन होता है ? हैं और उसमें रक्त की ुशका करने से क्या आप सत्य को खोज पाएंगे ? अगर आप 'वास्तव में सत्य के पूजारी हैं और पहले ये नम्रता होनी चाहिए कि 'ग्रभी तक हमने निमंला योग ेई सत्य को पाया नहीं है । है, नम्रता । मनुष्य कुछ भी सीख लेता है, ले किन नम्रता नहीं सीख पाता । े बहुत बड़ा गुरण है एक सर्व-साधारण मनुष्य समझ सकता है । मनुष्य मनुष्य को मारता फिरे इसकी क्या जरूरत है ? एक आदमी को छोड़कर के कोई सा भी जानवर हाथ में arms (शस्त्र) लेकर के अपस में मारता नरता में आप करते क्या हैं? किसी किसी नहीं है। उसको पकड़ने की शक्ति नहीं होती । लोगों को ऐसा विचार आता है कि न मर होने का मतलब है आप किसी के अगे भुक गए बहुत गलतकहमी है । की बात है ? "आपने यपने को खोल दिया है, कि स्वीकार' रें ।" कोई नई विचार-धारा को स्वीकार कर । कोई नई बात को आप स्वीकार करं, दे खे, परखें, सकती है ? लोगों के अन्दर सुबुद्धि भरने का इलाज समझ इसमें उतरे । नम्रता का कभी भी ये अगर कर दे, तो हम मान जाय । किसी के आन्दर मतलब नहीं होता कि आप किसी के आगे भुक भी नहीं शा सकती science से । चाहे वो जायें । जेसे कि पेड़ की शाखायें कितनी भी ऊँची उठ बनाना चाहे तो ऐटम बम्ब बना दे और चाहे वो जाये, जब तक उसकी जड़ नोवे त के जम न खदि तो एक-प्राध अच्छा अस्पताल भी बना सकता है । करके खोत तक नहीं पहुेंच जाधे उस पेड़ में कोई पुर ये चाहने पर है। ये कोई अ्रचल चीज नहीं है, सी भी शक्ति नहीं आ सकती । भगवान ने हमको हाथ दे दिये, तो अब] उसमें हम बन्दुकों को लेकर दूसरों को मारते हैं । ये बड़े अक्ल ये न म्रता का मत्तलब होता है कि इसका इलाज science तो नहीं कर सकती। कर सुजता ये चलायमान है। आज वो बडा अ्रस्पताल बना- एगा, बड़ा भारी एक.........बनाएगा । वहीं जाए और कितना भी ये science (विज्ञान) का हणारा लॉगो को वो ठीक करेगा; और एक दिन भमेला बढ़ जाए, लेकिन जब तक সापने अ्रपनी अकस्मात उसी पर बम्ब गिरा कर उसी का सर्व- श्ात्मा को नहीं खोजा है, ये सारा का सारा जो नाश भी कर सकता है। कोई आप उसकी है, बिल्कुल एक बबुले जैसा नष्ट हो जाएगा, खत्म 9uarantee (गारन्टी) नहीं दे सकते । क्या science इसकी गारंटी देता है कि जो आदमी हो जाएगा । इसमें से कुछ भी नहीं बचने वाला । -और वही हो रहा है ! संसार भर में यही हो आज science की बजह से अच्छा काम कर रहा है, कल उसका विध्वंस नहीं करेगा ? मनुष्य रही है। की कोई गारटी दे सकते है क्या आप Science से ! अभी एक देवीजी मुझे मिलीं, कहने लगीं कि हम armament (शस्त्रों) के disarmament (नि.शस्त्रीकरण) के लिए गए, इतनी मेहनत करी, ये देखना चाहिए कि इसका जो प्रकाश है, वो लोगों से कहाdisarmament क रिये और disarma- इतना धुधला क्यों है? इस के प्रकाश में इसान ment करने सेearth (पृथ्री) ठीक हो जाएगा, और कभी तो डंगर पर खड़ा नजर आता है और कभी वड़े झगड़े हुए और चार महीने हमने वहाँ मेहनत करी और किसी ने कोई बात नहीं मानी and मनुष्य समर्थ नहीं होता है, जब तक मनुष्य में सत्य we were great failures (अरौर हम बहुत की प्ररणा बलवती नहीं होती है तब तक आप चाह असफल रहे)। बताइये ! इसका मतलब है कि दुनिया का कोई-सा social work ( सामाजिक मनुष्य की बुद्धि ही बिल्कुल उसको छुट्टो दे गई। कार्य) Disarmament (नि:शस्त्रीकरण) होना चाहिए, कोई सा भी बुद्धि से कर लीजिये, उसका कोई भी जब science इतना अधूरा पड़ा हुआा है, तब खाई में गिर जाता है । ऐसा ब्यों ? और जब तक political work (राजनैेतिक कार्य ) निर्मला योग গ ठिकाना नहीं। आज आप अरसमान में वठंगे, कल पर रहता है । आप नदी में डूबगे । क्योंकि 'स्थिर' जो मुल्य थे, वो खत्म हो जाते हैं जब मनुष्य भ्रांत हो जाता है, तो उसके स्थिर मूल्य जरूर खत्म हो जायगे। जब युद्ध ने ललकारा और जब यूरोपोय देशों में युद्ध छा गया, जब लोगों ये, वो बहुत कम हो गए; खत्म हो गए- करोबन खत्म क्योंकि science किसी भी मनुष्य को 'समर्थ नहीं बनाती-और बना भी नहीं सं करती । अहंकार से कभी भी सम्य नहीं हो सकता । सम ।- मनुष्य अर्थ सो इस नतीजे पर हमको-Iogical con- की इतनी दूर्दशा हो गई तो वहाँ के जो मूल्य थे, clusion (युक्तिपूर्ण निष्कष्ष पहुँचना चाहिए और सोचना चाहिए कि सिर्फ बुद्धि से । क्योंकि जब सभी चीज़ डगमग डोलने लग से हम सत्य को नहीं खोज सकते । बुद्धि से ये बता गई, तब लोगों की समझ ही में नहीं आया कि सकते हैं कि यहाँ सफेद चादर बिछीं है, खादी की किस चीज़ को पकड़े ? इस चीज़ को पकड़े तो वो चढर है- बस, ओर क्या ? और कहा तक जायगे इगडगा रही है, उस चीज़ को पकड़े तो वो डगडगा आप ? लेकिन क्या आप इस खादी की चट्दर बता सकते हैं, कि क्या इसे एक साघु या किसी राक्षस ने पहुना था ? जिसे कहते हैं- में रही है । ने पहुना था, ले किन तब ये विचार मनुष्य के मन में शना चाहिए कि "हो सकता है, कि हमने उस चीज को Science से तो आप ये भी नहीं बता सेकते पुकड़ा ही नहीं जो स्थिर' और अचल है। है कि ये इंसान राक्षस है कि मनुष्य है । श्रर ये ऐसा मन में विचार तो उठना ही चाहिए । हरेक भी नहीं कह सकते कि अरज तो मनुष्य लग रहा बुद्धिवादी के मन में ये विचार तो उठना हो है कल भुत बनकर सर पर सवार हो जाए तो पता नहीं । किसी चीज़ का कोई ठिकाना नहीं- सब चलायमान है. अस्थिर है। इसीलिए आ्रज चाहिए । और ये सब देखकर मनुष्य का मन कटुता से कालयुग में कहते हैं कि पूर्णतया मनुष्य 'भ्रांति' में भर जाता है । बड़़ा कटु उसका हृदय हो जाता है । वो सोचता है कि "कहाँ है मिठास ? कहा है प्यार ? किसी तरह से जीना ही तो अव रह गया है।" कोई ग्रपना ही गला घोंटता है, तो कोई दूसरे का है, confusion में है । और इस कोलाहल में मनुष्य जब सोचता है, कि "अरे भई ! ये तो आज कलयुग आ गया, अब इसमें माताजी ये क्या बात कर रहीं हैं, अब तो कलयुग में ऐसा ही होता है; ये तो कलयुग है । माने एक गारंटी हो गयी सब चीज़ की: [अब] कल- बताएंगे। कोई कहेगा इसका कारण है सामाजिक यूग है। "अब इसमें ये काम न करिये तो कसे होगा, अव्यवस्था, कोई कहेगा राजकीय [अव्यवस्था । ये तो करना ही पड़ेगा, ये तो कलयूग आ गया । इसमें अगर इस रास्ते से नहीं चले तो काम ही कोई कहेगा capitalism ( पूजीवाद) अच्छा । कोई नहीं बनने वाला ये ही रास्ता है; कलयुग है |" कहेगा कुछ अच्छा कोई कहे गा कुछ अ्रच्छा । और में आप कैसे भी मोड़ते रहिये, अपने रास्ते लोग उसको चिपक भी जायेगे। कोई कॉम्यूनिस्ट गला धोंटता है । और इसके उत्तर में हजारों लोग हजारों बातें कोई कहेगा communism (साम्यबाद) अच्छा, कलयुग किधर से चलिये, किसी तरह से आप दायें-वायें (साम्यवादी) होजायेगा, कोई capitalist (पूंजीवादो) घूमते रहिये। किसी तरह से आप जीते रहिये !- हो जाएगा कोई democratic (प्रजातांत्रिक ) हो ऐसा मनुष्य compromise (समझते की प्रवृत्ति) जाएगा, कोई socialist (समाजवादी) हो जाएगा निर्मला योग १० पc/। तो कोई गरीब हो जाएगा कोई जाएगा-मतलब कुछ न कुछ group (दल) वना- बोझल जिन्दगी से दबै हुए हैं। तब समझ में नहीं कर के वो सोचेगा कि ग्रप बन कर जी सकते हैं । आता कि ऐसा क्यों ? अगर परमात्मा ने अपने और संघर्ष-पूरी तरह संघर्ष । प्रौर इस संघय प्रम से हमें वनाया, संजोकर बनाया, इतने आनन्द में भी चाहते क्या हैं. ?सो उन को पता नहीं। दल है, कोई है बो आतलाई दल है । ऐसे करके आफ़त में क्यों फ स गए दल-बंदियाँ हो गई । हमारे आँख से ओझाल हो गया, ओ्र हम एक बहुत अमीर हो दलित से उसने ये सुच्टि रची, तो आधिर हम इतनी बड़ी म इसका कारण ये है, कि हमने खुद ही अपनी ले किन सब आपसे में हम इंसान हैते हुए दन गर्दन कटा ली है। गदन कटाना-सहजयोग में जिसे कंसे बन गए ? इसके पीछे का वड़ा भारी] एक कि विशूद्धि चक्र कहते हैं, जिसमें 'विराट' का रहस्य है। श्ीर रहस्य ये है कि उस परम्-विता स्थान है। गदन कटाने का मतलब होता है, कि परमात्मा के प्रम को हम देख नहीं पात। हम आपने विराट से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया । ' ये उस समझ नहीं पाते कि 'कितने प्रेम से उसने ये बड़े-विराट' से, जिसके हम अंग-प्रत्यंग हैं, जो सूष्टि तयार की है । परमात्मा के नाम से जाना जाता है, उससे ही हमने अपना रि्ता तोड लिया है। और बहुक गए हैं अपनी ही दिशा में और अपने ही विचारों में, अपने ही खयालों में सोचकर के कि ये चीज ही सही है और वाकी जितनी भी चीजे हैं वो गलत हैं। आप लोग तो एक बीज से एक पेड़ नहीं निकाल सकते, एक फुल से एक फल नहीं निकाल सकते । आप के बस का कुछ भी नहीं है। जरा सोचिये "कितना परमात्मा ने हमें सोदर्य दिया, और कितना कुछ हमारे लिए कर दिया।" इस प्रादगी गलत हैं । ने ये भुला करके कि जिसने हमें बनाया, इतना बड़ा किया, एक अमीबा से इपान बना दिया, उसके प्रति कोई भी कृतज्ञता नहीं है, उधर कोई भी चित्त नहीं है, उधर कोई भी विचार नहीं है ।-इसलिए अधूरापन आ गया है । इस मोड पर ही आज सहजयोग एक 'महायोग' के रूप में आपके सामने आया है। इसको सोच- विचारने से आप जान नहीं सकते, क्योंकि मैंने पहले ही कहा कि सोच विचारने से, शरपसे जो 'निम्न' चीज है वो पाई जाएगी। आपसे जो 'ऊ ची' चीज़ और जो कुछ कह गए लोग, जो कुछ बता गए, है, वो प्रापकी कल्पना के बाहर ही है । कल्पना से उनको या तो जिन्होंने माना वो गलत तरीके से आप सोच सकते हैं कि हम श्रकाश में घूम रहे हैं, नहीं है, कुछ लोगों ने कहा कि ये तो सब ऐसी बात है, reality नहीं है, यथार्थ नही है । ये मान लेना चाहिए कि जो कुछ भी हम सोचते वदते रहते हैं कि हम फलाने है और ढिकाने हैं और ऐसा हो गया, वैसा हो गया, यथार्थ नहीं है। तब तो ये ही समझ लेना चाहिए कि यथार्थ में जो हमने पाया, अपने नजर में परमात्मा का प्रम भी नही झलकती । से निम्न ही पाया, और अपने से जो ऊचा पाना है अभी मेरे सामने देखिए कि कोहरे में से थोड़े-थोड़े उसके लिए 'यथार्थ में कोई चीज होनी चाहिए । 1 मान लिया, उसकी भी दल बंदियाँ बना लीं। ओर लेकिन वो यथाथ नही है। वो यथाथ इसमें कोई अर्थ नही है; सब झूठ हैं । हैं। ऐसी दशा में, मनुष्य एकदम निराश और हताश है, और कटुता से भरा हुआ है, अ्रौर उसकी से ये पते दिखाई दे रहे हैं । 'कितना सुन्दर बना और यथार्थ में क्या होना चाहिए।-इसका भी हूपरा है ये सब ! इसका आनम्द अन्दर झरा जा रहा है !-श्रौर ये सब सृष्टि का सौन्दरयं भी विचार उस बनाने वाले ने कर रखा है । वही ११ निर्मल योग इसको करने वाले हैं, 'उसका' विचार है । जिसने कुछ न करते हुए भी प्रकाश देता है, और कार्या- आपको ये आंखें, नाक, मुंह सब कुछ, शरीर दिया न्वित है । है; मन, बुद्धि, अहंकार आदि सब चीजें आपके अन्दर दी हैं, वही आपको वो भी खंटी दे देगा जिसमें पहुँचकर आप इससे ऊंचे दशा में अरा जाएं । उसने भी यही सोचकर ही आपको मनुष्य दिश्वध्यापी नहों हो सकती । अगर होती तो अभी इस बात को मेरे रुपाल से यूनिवर्सिटी में इस लिए कही गई है क्योंकि University का मतलब ही होता है विश्वव्यापी । लेकिन बुद्धि बनाया है। वर तक हो गई होती हरेक की बृद्धि तो वही-वही लेकिन सबसे पहले तो बुद्धिजीबी को सोतना चलती है; एक का दूसरे से मेल नहीं बैठता । चाहिए कि ये बुद्धि कहाँ तक पहैचती है ? ये कितनी सीमित चीज है । और जब असीम की नम्रतापूर्वक ये स्वीकार करना चाहिए कि अभी] बात हो रही है, तब बुद्धि का बीच मे रगड़ना ठीक तक हमने जो कुछ जाना है वो सीमित हैं। और नहीं है । तो इस चीज़ को पाने के लिए सबसे पहले असीम को जानने के लिए कोई न कोई घटना हमारे अन्दर घटित होनी वाहिए, कोई न कोई अंकुर इस असोम को जानने के बाद, पहचानने के हमारे अन्दर जागना च हिए जिससे हम, जो आज बाद, जैसे नानक साहब ने कहा है-- चीन्हने के से सीमित से लग रहे हैं, वो अरकाश बन कर के बाद, तब आप ये समझ सकते हैं कि "आप क्यीं छा जाएं । वडों ने समझाने के लिए बहुत तरीके हैं," "आप क्यों इस संसार में आए हैं" और से कहा है कि "बूंद को सागर होना चाहिए।" ये जो सवध्यापी, परमात्मा की 'जीवंत' शक्ति है, ये कौन से कार्य को करती है और कैसे करती है । इतना ही नहीं, जब आपके अन्दर आत्मा का हैं, या analogies अब सब similes (उपमाएं) भी जो (समानताए) भी जो साक्षात्कार हो जाता है, तब ये शक्ति आपके हैं, बो भी निम्न चीजों से ही हैं। ये तो एक वड़ा भारी प्रश्न है, कि वो भी कहाँ से लाएं, क्यों कि ऊची चीज़ की तो बात ही नहीं कर सकते प्र जो analogy करते हैं वो नीची चीज़ की करेंगे और जो भी नीची चीज की करेंगे वो आपको और नीचे की तरफ खिसकाती जाएगी जैसे कहा कि "अ्राप बुंद से सागर हो जाइये" वो कहेंगे कि साहब बूंद से सागर केसे हो सकते हैं ? अन्दर से बहुती है और 'कार्यान्वित' होती है- अब इस शब्द पर जरूर नजर करें । ये शक्ति बोलती नहीं, सोचती नहीं, कार्य करती है-कार्या- न्वित है । बोलना और सोचने का काम तो बुद्ध का है- निरर्थक । इससे कोई कार्य थोड़े ही होता है । जैसे मोटर में बठिये अरप प्ीर [सोचने ल ग जाइये; क्यों कितने भी गोल मोटर चलेगो आ्रापकी ? कुछ करना होता है ! के बात समझाई जाए घुमाकर समझ में नहीं आएगी, क्योंकि समझने वाला जो है वो ये बुद्धि का ही एक प्रकार है । लेकिन ये शक्ति ऐसी है कि जब अरापके अन्दर से बहने लगती है तो कार्यान्वित होती है, कार्य करती है। जसे प्रकाश है, कार्यान्वित है । जब उसमें बृद्धि से क्या समझाया जा सकता है ? औप ही से प्रकाश आ रहा है तो प्रकाश दीख रहा है, कार्य कर रहा है-automatic (स्वतः) । न कुछ करते सहजयोगी प्राए हुए हैं । ये आपके संगीत के बारे में हुए भी प्रकाश दे रहा है। उसी प्रकार ऐसा इंसान जब समझना आत्मा से ही हो सकता है, तब बताइये । जैसे कि हमारे यहाँ बहुत से विदेशी सा, रे, ग, म भी नहीं जानते, अपने संगीत के बारे निर्मला योग १२ में सब जानते हैं। आपके संगीत-शास्त्र के बारे में को क्या शिकायत है । दूसरा कोई रह ही नहीं कुछ नहीं जानते। राग-रागिनियों के नाम नहीं जाता इतना गहन प्रेम है । सब अपने अंग प्रत्यंग जानते । लेकिन अगर कोई सा भो हिन्दुस्तानी हो गए; जब दूसरा कोई नहीं रहा, तो किस पर - बजाया जाए तो कितना उपकार करने जा रहे हैं ? और जब ये प्रेम किसी भी कठिन राग हो, उसमें मस्त हो जाते हैं । उस पर भी प्रकाशित होता है तो सारा सत्य, उस का वो राग नहीं खोजते, उसके आलापकारी नहीं आदमी का, पूरा के पूरा' सामने नज़र आ जाता देखते, पर उसका जो असर है, उसका जो कार्य है है पूरी की पूरी चीज, पूरी तस्वीर सामने प्रा जाती है । उस प्रकाश में आप जान लेते हैं कि ये जो आपका अंग-श्रत्यंग है, इसमें क्या तकलीफ़ शास्त्रीय संगीत -शुद्ध उनके अन्दर बन जाता है। य नहीं तो अ्गर अपने हिस्दुस्तानी सुनने वेटठेंगे, तो पहले पूछगे कि साहव गाने वाली कोन है ? है। कार्यान्वित हैं । प्रकाश से, प्रकाश में अपको फिर, ये राग कौन-सा है ?-विचा र आ गया में ।-इनका घराना कौन-सा है ? इनके बाप-दादे । एक ही नहीं, कौन से हैं, ये ठेका कोन सा लगा ? दीखना चाहिए, साफ-साफ नजर आना चाहिए बीच उसमें गलती नहीं होनी बाहिए सब लोग जो देखगे, तो एक ही बात कहेंगे। कि "मा ने सफ़ेद रंग की साड़ी पहनी हुई है।" उ उसमें ले किन जो इस चीज पर बैठा नहीं है, वो सिफ़ अनेक विचार नहीं हो सकते, उसमें झगड़े की बात अपनी आत्मा से इसका अनुभव ले रहा है, उसका नहीं हो सकती । मजा ले रहा है । और वो राग जिस चीज के लिए वनाया गया था, वी अनन्द पूरा पूरा उस प्रादमी में समाये जा रहा है । जिस आनन्द से वो बनाया गया था, वही 'पूरा के पूरा' आनन्द उस में समाये जा रहा है, और उसमें कार्यान्वित है । 'एक हो सत्य हो सकता है। और जो एक ही सत्य होता है, बो अनेक होते हुए भी 'एक ही जंसा दिखता है । के ले क्िनत इस प्रेम को अज तक कि सी ने जाना थोड़ों ने जाना । और जिन्होंने जाना इस प्रानन्द की प्राप्ति आप संब की हो सकता उनसे किसी ने जानना नहीं चाहा, उनको परेशान नहीं। बहुत है, ये हमारा कहना है। आप अगर कहैं। ता हम किया, उनको सलाया, और उनके मरने के बाद भी इस बात को मान जायगे। अगर आप कह कि मंदिर खड़े कर दिये, चर्च खडे कर दिये और हम ही क्यों ये काम कर रहे हैं, तो हम कहे, आप आप जरूर करिए । हमें तो गुरुद्वारे खड़े कर दिये गरौर सब चीज़ खड़ी कर दी । लेकिन उस प्रेम को नहीं जाना वड़ी खुशी हो, अप लोग कर ल ती वडी अच्छा जिस प्रम के सहारे ये सब चीज़ खड़ी हैं । दुनिया भर के है । कोई भी कर ले । इससे बढ़कर और कौन सी बात हो सकती है कि हमारी जगह शर कोई उस प्रेप को जानने के लिए भी आर्मा का ही काम कर ले, ये तो बहुत अच्छो चींज़ है । इस काम अवलंबन करना पड़ेगा जैसे लौवि क चीज जानने के लिए शायद हम ही को करना पड़ेगा कुछ दिनों के लिए हम बुद्धि का अ्रवलंबन करते हैं, वैसे ही तक अगर आप से हो सकता है तो ग्प करिए। अलोकिक चीजें जानने के लिए हमें अत्मा का अवलबन करना पड़ता है । है। और प्रेम काम है जटिल, 'प्रम' का काम सत्य है और सत्य प्रम है । इतना गहन प्रेम ह ये कि इसमें मनुष्य फौरन पहचान जाता है कि दूसरों पहले ही भगड़ा क्यों लेकर बेठ गए ? पहले ही अब कोई कहेगा-"्रात्मा है या नहीं । निर्मला योग १३ से इसका आप वो क्यों हैं ? भई है या नहीं अब तो हम सिद्ध करने आए हैं। पहले के लोगों आप लोगों को सब के श्रन्दर ऐसी भावना शायद को प कह सकते थे कि वो सच थे कि भठ थे हो गई हो-' माँ जो कह रही हैं, उसमें कुछ उनके बारे में आप पचासों बातें कहिये। लेकिन सच्चाई भी है।" अब तो हम आपको सिद्ध करने आए हैं कि आपके - कि आत्मा कसे पाया जाए।" तो मुझे आशा है कि र अब आपको कोई प्रश्न हो तो पूछिये । अर आत्मा का स्थान है और परमात्मा सर्व- व्यापी अपने साम्राज्य में आपको आमन्त्रित भात करता है । प्रश्न : आत्मा क्या है ? ये सर्वध्यापी शक्ति उस परम्-पिता परमात्मा श्री माताजी : त्मा उस परमाাत्मा की पर- जो के प्रेम की लहर है । उसका आनन्द देने के लिए ही परमात्मा ने आपको इंसान वनाया । अहकार छोई है । आत्मा उस परमात्मा का श्रतिविव से मनुष्य को सुख हो सकता है, अानन्द नहीं हो इस मानव में दृष्टिगोचर हो सकता है । सकता । सुख के बाद दुःख भी हो सकता है। लेकिन आनन्द में सुख और दुख, दोनों भावनाएँ के ি दुटकर एकमात्र अनन्द होता है, जिसको शब्दों में वरांन नहीं करा जा सकता, सिर्फ़ अनुभव किया है? जा सकता है । ले किन उसका अनुभव भी इस हृदय है जिसको आप हृदय कहते हैं। इसको हृदय नहीं कहना चाहिए क्योंकि अ्रगर ये हृदय है तो ये तो कभी रुलाता है, कभी हुँसाता है हृद : जो जाने- वो आत्मा है । ऋ शब्द से । 'तऋ का मतलब है पशन : कुण्डलिनी और आत्मा में क्या सम्बन्ध श्री माताजी : अब पहले मैंने बताया आपसे कि परमात्मा का प्रतिविंध जो है, वो आत्मा है । एक बात हो गई ? और परमात्मा की जो शक्ति है उसे आदिशक्ति वहते हैं, Holy Ghost कहते हैं, या चाहिए तो उसको आप रूह' कहिए। इस शक्ति का प्रतिबिब जो मनुष्य में होता है वो से नहीं कुण्ड- लिनी है। जब तक ये दोनों चीज मिलती नहीं तब योग घटित नहीं होता। योग माने union. energy-, रा-रा माने है energy-श क्ति । इस प्रेम की शक्ति को जो देने वाला है, वो हृद है। इसलिए बो प्रेम की शक्ति को देने वाला, या जानने वाला ये आत्मा जो है, इसको पाना चाहिए। इतने तक अगर आप सब [बुद्धिवादी उतर से फिर analogy (सादृश्य) बताए गे , कि जो ये तो फिर आगे की बात हम कह सकते हैं। विलकुल निम्न चीज है, उसकी।-कि जैसे इसकी जो इतने तक पहले उतर आइये। ये बहुत जरूरी connection (संयोग) है, जंसे हो mains से लग चीज है, क्योंकि नहीं तो बीच ही में अरपकी बुद्धि जाता है, तो जो ( plug) सखग है, उसमें इसको लगा खड़ी हो गई; "पर माताजी ! इसका ऐसे कैसे ? देने से ही इसका connection चल जाता है। तो बुद्धि की सतह पर इस बात का जयाब कुछ भी इसमें कहिये कि कुण्डलिनी येहै, और plug जो है दें, आप संतुष्ट नहीं हो सकते । क्योंकि वो संपूर्ण बो आत्मा है। अब है बहत gross ( स्थल) चीज, जवाब हो नहीं सकता । हालांकि logically (युक्ति-पर करें क्या ? कोई सी भी analogy दोजिए, अनुसार) प्रापको ले आई हूै, इस point (विषय) कितनी भी काव्यमय बना इये, तो भी वो निम्न तो पर कि आप ये कहेंगे कि "अच्छा, तो मां बताओ होगी ही । पोर जैसे ही ये चीज घटित हो जाती है, तो जैसे कि समझलीजिए-ये एक बहुत ही gross (स्थूल) तरीके मैं र निरमला योग १४ बो हो जाएगा| इतना निकट संबंध है एक दूसरे से । पर जब ये energy आप के अन्दर से बहने लग जाए, तव इसके वारे में सीखना पड़ेगा, जानना पड़ेगा । क्योंकि योग तो घटित हो गया । ले किन योग का दूसरा अर्थ होता है 'युक्ति, कौशलम समझना चाहिए इसकी कुशलता व्या है ? किस तरह प्रश्न : मनुष्य को अंबेरे से डर क्यों लगता है ? श्री माताजी : सब मनुष्यों को नहीं लगता । ये बात सही नहीं है । प्रश्न अधुरा है, बेटा । लेकिन डर इसलिए लगता है अधेरे से, वो ही बात आ राई न. कि प्रदण्य से इंसान डरता है। अ्रबर में जा- से इसको work-out (क्रियान्वित) करना चाहिए । जो गड़बड़ियाँ की ईसान ने, इंसान के ऊपर में इसी से बो डरता है। और भी बहुत सारा बातें हैं । । माने, योग जानने के बाद आपको , 'योग का एक ही अर्थ नहीं होता। योग का अर्थ एक तो हो गया कि union हो गया शऔर उसके बाद में उसकी कुशलता आनी चाहिए, उसकी deftness आनी चाहिए । 1 पर खास बात ये है कि इंसान के अन्दर जब अधेरा होता है तब उसे ज्यादा डर लगता है । जब बो प्रकाश में आ जाता है, उस को अंधेरा और किसी से डर नहीं लगता। अन्दर में अधैरा है बाहर अंधेरा हो तो बहुत ही ज्यादा हो जाता है। में कछ मनुष्य घव्डा जाता है कि "बाबा रे वाबा रास्ता नहीं खाद्यो, ये तो वसे हो नहीं भिल रहा, ऊपर से अंवैरा । प्रश्न : आत्मिक विकास के लिए किसी धर्म चीज़ बताते हैं, कोई कुछ बताते हैं, कि ये नहीं करो । इसके बारे में सही व्या है ? ॥क लेकिन जब अन्दर प्रकाश हो जाता है तो बाहर के अंधेरे कोई दिखाई नहीं देते । श्री माताजी : जो चीजें प्रात्मा के विरोघ में पडती है, वो चीजे नहीं खानी चाहिए। जो चीज़ आत्मा के विरोध में पड़ती है, या चेतना के विरोध अभी अंवेरा है. आप सोचते हैं, और मैं इसमें भी बड़ी सुन्दर चीजें दे ख रही है में पड़ती है वो नहीं करनी चाहिए । ! अब जब मोहम्मद साहव आए थे तो उन्होंने बताया "भई शराब मत पियो-क्यों कि तब तक प्रश्न : आत्मा के साक्षात्तकार के लिए जो भी सिंगरेट नहीं आई थी। इससलिए वो नानक साहब फार्मला (उपाय), या जो भी हम कर सकते हैं बन कर अ ए, उन्होंने कहा "भैया अब सिगरेट मत कृपया बताये, ताकि वह energy (शक्ति) मेरे पियो ।" तो अब कुछ लोग श्रकर मूझे कहते हैं शरीर के साथ synchronise (तालमेल) या कि इन दोनों ने ये तों नहीं कहा था कि गाँजा मत पियो। तो मैंने इनसे ये कहा कि सव की resonance(प्रतिध्वनि) कर सके । तुम list (सूची) बना कर दे दो जो जो पी सकते हैं। श्री माताजी: ये प्रश्न किन साहब का है ?... मुझे तो माजूम भी नहीं क्या-व्या पी सकते हैं लोग आपका है बेटे ? बहुत खूशो की वात है। इस्होने अओर ब्ा-व्या करते हैं। मतलब ये तो ऐसी चीजू है बहुत सही बात पूछी क्ि "मुझे प्रात्म-साक्षात्कार न, कि "प्रा बैल मुझे मार" ये policy (नीति ) । बस हो गया ! बस इतना बहुत है, अच्छे भले बेठे हुए हैं, एकदम से आपने शुरूआत 1. चा हिए निर्मला योग १५ कर दी पीने की, तो उससे क्या कहा जाए ? लेकित है, वो खाता चाहिए। अव्र इसका मतलब है- अब ये हैं, कि समझ लो कि हो सकता है कि मैंने नान क साहब थे, वो भी गोशत खाते थे । कबीर एक-दो बात नहीं कही श्रौर हम चल बसे, तो दास खाते थे गोश्त अपने मोहम्मद साहब खाते लोग कहेंगे कि माताजी ने इसको तो मना नहीं किया थे राम खाते थे, था, तो ये ही करो। अरे भई ! सीघा हिसाब ये भी खाते थे । लगाइए कि जो चीज अपने चेतना के विरोध में जाती है.........। माने ये, कि जो आ्राप शराब पिये, वो श्रपके चेतना के विरोध में जाती है तो खाने पर ही लग गए । क्योंकि खाने पीने कि नहीं जाती है-सीधा हिसाब है न। तो वो कर । अच्छा, सिंगरेट पियें, (के सर) होता है न ? वो आपके शरीर के विरोध हो जाये । और उससे भी [असर आता है कि में जाती है । बुद्ध भी खाते थे । श्और महावीर ले किन उनका ये नहीं था कि खाने पर आए न से अ्रास्मा पर असर तब अता है, जब आपके अन्दर ऐसी प्रवृत्तियां आ जायें जिससे अराप हिसक उससे cancer अगर आप एकदम बंद-गोभी होकर पड़े रहें- cabbages (बंद गोभी) । कुछ लोग जो होते हैं वो अच्छा, रही बात गोश्त खाने की, इसके बारे विल्कुल उस प्रकार हो जाते हैं कि जैसे कि कुछ "में क्रिसी ने भी नहीं कहा। गोश्त मत खाप्रो" उनके अन्दर कुछ शक्ति नहीं है । -ऐसा किसी ने नहीं कहा, गोशत मत खाप्रो । ये तो बनाई हुई चीजे हैं । ऐसा नहीं कहा । लेकिन ये जरूर कहा है कि आप, जो भी है खाना खाइये। vegetarian लो। गोव्त खाने पर जब लोग आते हैं तो मछली, मुग्गा, घोड़ा, गाड़ी सब खा जाते हैं । और जब vegetarian पर आते हैं तो ये हद हो जाती है कि खटमलों को बनायंगे, mos- quitoes (मच्छरों) को ब वाएंगे। भई कोई चीज़ का तुक होना चाहिए ! अब आप देखियेगा कि बीमारियां भी इस बनन तरह से आती हैं-प्रतिशयता से । जो लोग बहुत जया दा गोश्त खाते हैं, वो आततायी होते हैं, अहंकारी होते हैं । और उनके अन्दर बीमारियां क्या आ जाती है? ऐसे लोगों का blood- संतुलित (शाकाहारी) हैं , Vegetarian Pressure (२क्त दाब) ज्यादा हो सकता है। Heart-attack (दिल का दोरा) हो सकता है क्योंकि है। over-activity (अति कार्यशीलता) होती है । जो लोग सिफ्फ घास खा कर रहते हैं, समझ हरेक चीज़ का तुक्त होता है, जिसका कोई मतलब हो। जैसे आप समझते हैं कूछ लोग ऐसे होते लोजिये, उनको सब Iethargy (सूस्ती) आ जाती हैं कि mosquito को । प्रब mosquito (मच्छ रों) है । उनका lethargic heart (सुस्त हृदय) होता को क्या मैं आत्म-साक्षात्त्कार दे सकती है ? एक है। अज ही एक साहब आए थे, अग्रवाल थे वेचारे। सीधा हिसाब-दे सकती है क्या ? खटमलों को दे तो कहने लगे, उनके Iethargic heart, lethar- सकती हैं ? मुगियों को दे सकती है क्या ?-नहीं दे gic liver, lethargic intestine (कम जोर । तो मैंने कहा अप सकते क्योंकि आपने कभी खाया ही नहीं। लेकिन आप ऐसा करिये कि proein (प्रोटीन) खायें, ज्यादा । तो कहने लगे, "माँ, प्रोटीत कहाँ ?" मैंने कहा मिलता है, खोजोगे suit करता अगर तुम । अव खा नहीं सकते और। ये बहुत दिल जिगर व अति ) तो गोश्त नहीं खा सकती । ले किन शारीरिक दुष्ट्या जिस आदमी को जिस चीज़ की जरूरत है वो खूब खाए। लेकिन अगर लोग सिर्फ गंदो ही चोजों खाना चाहें, उसे क्या कह सकते हैं ? जिसको जो निमंला योग १६ र खा चुके carbohydrate (कार्बोहाइड् ट) नहीं खाना चाहिए तुमको ।"-ये समझाने की बात देगा कि इसमें कैसे आप घुस सकते हैं । बराबर । होती है। जा कर पूछिए किसी बैंक के बारे में, तो वो ये बता लेकिन उसके मैंनेजर से पूछिए तो वो कहेगा कि देखिए इसमें ये मजबूती है, ये मज़बूरूती है, वो अरब किसी ने कहा कि "भई गोता में लिखा मुजबती है। लेकिन चोर ही बता सकता है आप है।" बहरहाल, मैं तो इतना ही कहूँ गी कि गीता मजबूत ने सबसे पहले ये कहा कि, "अर्जुन, तू इन बना दोजिये, तो भी हम उसमें घुस के दखायगे । इसमें कैसे धुस सकते हैं । कितने भी ह FIL में कृष्रण सबको 'मार।" अहिंसा की तो कोई बात ही नहीं करी। मतलब उनको अहिसा में कंसे ला कर डाल दिया। पता नहीं। उन्होंने तो 'इन्सान' को मारने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि भई को कहा, जानवर को तो छोड़ो । औ्र उस पर को अकल तो मिले । अत्र महावीर जी को इस हृद गुरू तक को मारने को कहा, तो को कसे कहेंगे तक पहेचा दिया कि अब तटमल,.....एक वराह्मरण कि तू इस को नहीं मार, उस को नहीं मार । बो को कहा कि तुमको खटमल लगा तो पहले ही कहते कि सव मरा हुआ है । ये इंसान की खुबी है। हर धर्म प्रचारकों ने इन्सान संदि लाए। उसको देते हैं, और तुमको इतना पसा देते हैं । उसके बाद खटमल उसको जब चूस लेते हैं और ब्राह्मण बाइ- की छुट्टी हो जाती है. तो बड़ा घम-कार्य हो गया हमने इतने खटमलों को खिला दिया, एक बाहाण श्रब ये कोई तरीका हुआ ? ऐसी उल्टी बातें भी सब जगह हुई हैं। ! बिल में भी बहुत गलत गलत दिया है। कुरान में भी ऐसी चीजे हैं। ये तो सबका धंधा है, क्योंकि ऐसा नहीं करेंगे तो इनकी चलेगी केसे ? कुछ न कुछ ऐसा बना देते हैं कि जिससे कोई न कोई चोज एक group (दल) बन जाए। ये सब जो हैं गठबंधन बनाये हुए हैं, समझने की बात है, ये चेतता के विरोध में सब, शराब वर्गरह थे जाता है। कीक नहीं है। रात-दिन जो आरादमी खाने-पीने का इसलिए शराब के विरुद्ध सबने कहा है. चाहे Moses (मुसा) को ले लौजिये आप । अब ईसा मसीह ने नहीं कहा, आप कहेंगे। लेकिन ऐोसी बात नहीं है। ईसा मसीह यहां (अाज्ञा चक्र) पंदा हुए हैं, श्रोर ये जगह जो है, वहां पर दुसरी बात करने"क्या खायगे ? कल उपवास है।" और मार हाय- की थी। यहाँ जो बात करनी थी वो ही तो वात होएगी। अव मैं वृण्डलिनी के जागरण के लिए अगर आई है, तो मैं उसी की वात करूगो आपसे । लेकिन इस वक्त ऐसा है कि सभी बात करनी पड़ेगी । नहीं तो मुझे डर लगता है कि जो बात नहीं करूगी, उसी को पकड़ बेठिएगा। इसलिए बेहतर है कि नहीं करेंगा, भगवान के नाम पर । अपने लिए मैं सभी बात कह जाऊ ! लेकिन तो भी पकड़ने करना है तो करो । लेकिन जो आदमी उपवास वाले पकड़ेंगे। जिनको ये ही काम है सुबह से करेगा, उसे गाँव से बाहर जाना चाहिए; क्योंकि शाम कि इसकी पकड़-1oopholes जिसे कहते किसी को उनकी बातें नहीं सुनने की । यहाँ तो हैं न । जैसे अब कोई अगर आप चोर के पास सब में शहीदीपना है। का। मनुष्य को मामले में बहुत कम । सूझ-बूझ वहुत है, लेकिन धर्म के और खाने पीने के बारे में ज्यादा विचार करना भी ही विचार कर के रहेगा, वो आरत्मा को क्या पाएगा ? आप ही बताइये। अब उपवास होने का है, तो उपवास ही के बारे में लोग सोचते रहेंगे । | अ्व] हैय तोबा मच जाएगी, हनुम।न जी का अवतार हो जाएगा। उस बक्त, "कि इतका उपवास है। दूर ही से पता हो जाता है कि कोई पवास कर रहा है । भगवान बचाए रखे ऐसे उपवासियों से तो । सहजयोग में दूसरा नियम है कि कोई उपवास न । "मैने इतना उपवास निमंला योग १७ किया । तो मैं सबको डंडे मार स कता है ।" वो भी होशियार है। वो भी अलग-प्रलग खाना मैंने देश के लिए इतना त्याग किया। तो मैं सब बना-बना कर आदमी की जबान खराब कर देती की जान खा सकता है ।" किसने बताया था ? वो भी एक martyrdom का, उसकी जबान पहले खराब कर दी जाए । जब (शहादत) है, दिमागी जमा-खचं किया तो किया मजे में रहो । है क्योंकि प्रच्छा तरीका है आदमी को घर बुलाने भई काहे को किया, ! उसको काबू में कर लिया, तब वो फिर दीड़ता- फिरता है इत जीभ के पीछे में । और इस कदर नखरे खाने के मामले में हैं कि तो खाने पीने का विचार अति रखना भी दोषमय है। पर पार हो जाइए, फिर वात करेंगे । मै श्रापसे बता नहीं सकती । कि बंगाल में अरब क्योंकि अभी बात करने में आप वृद्धि के दम पर जैसे है रोहू मछली खाएंगे । वहाँ रोह चलेंगे । इसलिए पहले पार हो जाइये। किसी पर कोई होता नहीं; तो रोह खायेंगे ! वही खायेंगे चीज़ का compulsion (बन्धन) नहीं है खाने जो होता नहीं। अोर वो जाता है central India पीने का । लेकिन अपने से जो बड़े जानवर हैं, उनको मत खाइये। अप संबको गोश्त ही खाना है या ये ही खाना है। छटे पखर में मिल जाती थी-तो भूखे मरने जो खा रहे हैं, वो ठीक है; ज्यादा मत खाइये । कम खाइये, और कम भी इतना नहीं खाइये कि इक्कट्ा करके एक पूरा जहाज का भूखे मरिये । दोनों के बोच में रहना है -मध्य मार्ग। जहाज़ भेजा । उन्होंने वापस कर दिया कि "हम कोई चीज़ का extreme (पराकाण्टठा पूर्ण) (विचार) मत लीजिए। जो आपको बीमारी होगी, लाटसाहवी देखिये ! और सब का सब बापस कर उसके अनुसार आप अपना diet (खुराक़) रखिए । ।" हम तो सिर्फ इसमें कहेंगे कि किसे प्रोटीन खाना है, किसे कार्बोहाइडट खाना है, और किसको fats (विकनाई) खाना है समझ न ? प्रर की बठा तो वो चाहिए, ये चाहिए, इसमें नमक ठीक इस पर आप अपना तथ कर लीजिए, प्राप जिस नहीं है, उसमें.....ये सब कहीं नहीं होता ये तरह से भी खाना खाना चाहें। उसके प्रति बहुत ज्यादा विचार करना है, तो अपने हिन्दुस्तानियों हैम हृद ? का ध्यान ही, चित्त ही खाने पर है । ये भी वात है । हिन्दुस्तानी लोग बहुत ज्यादा खाने को सोचते | रात-दिन उनका विचार, पता नही क्या, इतना का time (समय) आएगा, अभी time नहीं है ! खाने पर ? और इतने नखरे खाने में करते हैं कि मैंने कोई देश में इतने नखरे करने वाले लोग नहीं देखे जितने हिन्दुस्तान में । और हालांकि हम लोग गरीब लोग नखरे हिन्दूस्तानियों के हैं अापको कहीं नहीं मिलेंगे ऐसे, इतने नखरे हम करते हैं । श्रौरत जो है, मध्य भारत) से । एक बार वहां रोह fish (मछली) नहीं मिली। मतलब उनके वहाँ छोंटे- और सहजयोग में ये नहीं कि लग गए । तो हमारे बबई से कुछ लोगों ने बड़ा पैसा-बैसा sea-fish (समृद्र की मछली) खाते ही नहीं view ती । दिया, "sea-fish हम नहीं खा सकते में कोई ऐसा नहीं, आप कहीं जाकर देखिये, कि दुनिया जी sea-fish नहीं खाता ये fish खाता है, खाने अपने ही देश में है । और इतने ज्यादा खाने के लोग शौकीन हैं कि जिसकी कोई नहीं इसलिए खाने की तो बात आप जरी भूल ही जाइये थोड़ो देर के लिए। अभी थोड़ी देर बाद खाने God looks after you. For God what s Miracle ? What is Miracle for God ? हैं, कहने के लिए ! लेकिन जितने (इच्छुक श्रोताओं में से एक ने बताया के कैसे निमला योग १५ बो सहजयोग में आए सिर्फ़ दो हफ्ते और करसे मां की कृपा से सड़क दृर्घटना उनके साथ होने से बची) उन्होंने कहा कि "भई ये तो कुछ समझ में नहीं । न तुम्हारी हड्डी टूटी, न कुछ हुआ। तुम तो-जसे कोई फूटबाल उड़ाता है, इस तरह से तुम नीचे गिरे, और जैसे के वैसे । आया श्री माताजी : ऐसे बहुतों की बचत हुई । बहुतों की । बहुतों ने मुभे चिठ्ठी लिखकर भेजी । तो उन्होंने कहा कि, "जब मैं गिरा तो बड़ी चौट प.ई धी. लेकिन एक lady (महिला) आई, सफेद साड़ी में; और सफ़ेद साड़ी पहनी थी Indian lady (भारतीय महिला); और उसने उतर के मुझ्े हाथ लगाया औोर मझे ठीक किया । उस से मैं ठीक हो एक ने लिखी; उनकी वस गिर गई थी प्रस्सी नीचे । और दो बार गोल घूम करक, चारों फुट पेर जमोन पर जम गए और उस में कोई मरा नहीं, कुछ नहीं हुआ। और जो ड्राईवर साहब थे, मारे डर के भाग खड़े हुए। एक ने कहा कि भई मुझे तो बस चलाना आता है । उन्होंने कहा कि "अब बस का क्या वचा होगा ।" वो (समाचार पत्र) वालों को तो ये चीज़ चाहिए। उतरे, उन्होंने चाभी चलाई तो चाभी चल गई, गाड़ी अपर आ गई और स्र लोग चले आए । तो गथा ।-आप तो जोनते है newspaper तो उन्होंने छाप-छूप दिया कि एक Indian lady आई, ये हुआा। उसके बाद तीसरे दिन उन्होंने हमारा photo- araph (चित्र) देखा newspaper में । तो वो में तो उन्होंने कहा कि इसमें कोई न कोई संत बैठा हुआ है।-महाराष्ट्र को बात है, महाराष्ट्र दौडे-दौडे गए बताने के लिए कि ' ये ही बो लेडी है लोग मुझे जानते हैं ।-तो उस में हमारी जिसने ठीक कर दिया .....।" तो उन्होंने फिर योगिनी बैठी थी, उसके हाथ में मेरी अंगूठी थी । "हां, हो, ये हो माताजी की संत है-सब उसी के पेर पर आने लगे "तुमने ब वाया ।" एक सहुज- एक विट्रि लिखी व्यवस्थापको को । हमारे गविन ब्राउन करके साहब हैं, उनके पास चिटठी हैं। तो इन्होंने एक फिर चिट्ठो लिखकर भेजी कि माताजी ये तो कुछ भी नहीं ! लेकिन आगे की बात के लिए ये कोई अश्चय की बात तहीं। ऐसा पहले वताये आ्रप से कि अभी-अभी बैडफ़ोर्ड (लंदन) में बहुत बार India (भरत) में हो चुका है । हम एक दिन भाषण दे रहे थे । अाठ बजे का वक्त होगा । सात बजे से भाषण शुरू हुआआ । अठ वज -वो हमारे साथ बठ हुए कुछ बात कर रहे थे । भूल के समय एक लड़का कही चार-पाच मौल को दूरी गुए कि उनको हा ई को्ट जाना है, श्रोर एक case पर, और ऊपर से नीचे गिरा । पनो माटर- साइकिल से गिरा र बो जाकर के एक नदी की तो मवविकल ने फोन किया कि, "भई ब्या हुआ उस एक बार एक साहब, हमारे trustee (ट्रस्टी) हैं (मुकदमा) है, ज्रर उसको लड़ना है। जब धर गए side (किनारे) जा के गिर पड़ा। तो सब ने सोचा कि "अब तो खत्म हो गया ये लड़का । उसी समय ambulance वर्गरह आई-उसमें पन्द्रह-बीस मिनट लग गए । जब लड़के को लाए तो देखा विल्कुल ठीक, उसकी हड्डी नहीं टूटी, कुछ मुकदमे का क्या हुआा नहीं। उसने हमें कभी देखा नहीं था, कुछ मतलब आप तो कल आए थे और जिरह हुई और आप की नहीं। और विल्कूल ठीक ! लेकिन एक जगह दर्द तरफ से Judgement (फ मला) भी हो गया। उन्हों- हो रहा था। तो उसको जब अस्पताल ले गए तो ने जाकर judgement (फसला) पढ़ा। उसमें तीन case का ? उन्होंने वहा अच्छा, में कल जाकर देखता हूै । दूसरे दिन वो गए तो उन्होंने पूछा, 'भई उस ?" कहने लगे क्या मतलब ? निर्मला योग १६ बार उनका नाम लिखा था कि, "इस 1time (समय) में गिरी रएकदम हम सोग उस के अन्दर घुस प्रधान साहब ने बड़े brilliantly (योग्यता पूर्वक) गए। पता नहीं कैसे ? ओर जब बाहर आए वात करी, और बड़े ही inteligent points (युक्तिरूरणं मुद्द ) out of the way (पसामान्य) चीज कह डालो; सा गई तब में ने कान पकड़े कि अब मैं सिगरेट औ्र इसमें कोई ये हो नहीं दिखता है कि नहीं पिऊँगा ! और इतनो-सी चोट खा गई - इनके favour (हक) में case जाएगा।" वो तो मेरे साथ बैठे थे अोर आठ-दस खा गई दमी वहां बैठे थे ! इस प्रकार अनेक बार हुआ। लेकित इसमें प्राएगा। अभी तो जाती ही नहीं, जब जानिये तथ कोई प्राशचर्य की नात नहीं । क्योकि अगर मैने देखिये क्या खेल खेलते हैं । उसकी लीला अपरम्पार कहा कि परमात्मा ही आश्चर्यजनक है, तो फिर है, वेटा । अब तुम्हारा दिश्वास वैठा न ?- इसलिए । इसमें आपको आश्चर्य क्यों है? अरगर परमात्मा ये विद्वास बैठाने के लिए ही ये सब लीला करते हैं । आपको सम्भालने वाले बेठे हुए है, तो उसका थोडा-सा जानकारी किसी प्रचिति से तो होगा ने। जाए तो एक किताब लिख डाले । सब के एक एक तो प्रचिति मिलती रहती है । इससे आपका अनुभव है। अब इस का explanation(स्पष्टीकरण) तो विल्कुल हमें कुछ नहीं हुपा था, सिफ्फ मेरी ये अंगुली कुछ (जिसमें विशुद्धि चक्र होता है) वो जरा-सी चोट निकाले, और मुक दमा) बतायया उन्होंने-कि इतनी-सी मेरी ऊँगली चोट । फिर परमात्मा का खेल आप देखिये, बडा मजा यहीं पर हर सहजयोगी आपको अगर वताने लग विश्व्रास बढ़ता जाता है परमात्मा में । ले किन पार होने से पहले नहीं मिलेगा।- Science से परे है, senses (इन्द्रियों) से परे हैं ब ये लड़का जो था, ये पेंदा पार था । बहुत लोग मिलते हैं. कहते हैं. "माँ हमने आपको स्वप्न की मशीन शओर है। में देखा । हमने पहले सो आपको देखा नहीं था । से लोग । अब ये कैसे हो गया ? अब इसकी है,कि आप (फिर से हर हुएते) आइये ध्यान-धारणा व्या द Science में ? तो कुछ नहीं बैठने बाला । से ये मशीन और है, मैंने प्रपसे कह दिया। भगवान अच्छा अब पार हो ल, कोशिश करे। पर ये बहुत लम्बी-चौड़ी बात है। ये तो दूसरी मशीन है । सहजयोगी ये बात बहुत बार देख चुके हैं । योग को प्राप्त करें और दूसरी चीज है इसमें यहाँ हजारों ऐसे case (उदाहरण) हैं कूशलता, प्रवीणता करें और परमात्मा के आशो- Accident (दुधंटना) सहजयोगी होगा तो accident टल जाएगा, और हुआ भी तो किसी को चोट नहीं आएगी हमारे एक सहजयोगो-पहले हम कहते नहीं दया का सागर है, क्षमा का सागर है। सब चीज़ थे किसी से कि सिगरेट मत पियो या कुछ करो-- आपकीएक क्षरण में खत्म कर सकता है तो, सिगरेट की उनको थोड़ी आदत थी, ज्यादा नहीं, सब छूट गया था। चलाते वक्त हाथ में उनके सिगरेट थी और उनके हैं कि मेरे पूर्व-कर्म खराब थे, ये था, सो तो कुछ पांच-छः दोस्त भी साथ में सिगरेट पो रहे थे। सब बात बनने नहीं वाली । आप ये सोचिए कि मैं ने force (मनबूर) किया कि सिगरेट रखो हाथ में । कहने लगे, "मैंने उसको पिया भी नहीं, हाथ ही बनना चाहता है । इसी विचार से जो आदमी में ही थी, इतने में हमारी मोटर जाकर खड्ड आयेंगे, वही पार हो सकते हैं । कर । इसमें उतरना पड़ता है। पहली चीज़़ है कि होगा नहीं, अगर वहाँ बाद से आप पूरी तरह से सिचित रहें । परमात्मा को आप जानते हैं लेकिन समभते नहीं हैं। परमात्मा जो हैं वो प्रेम का सागर है , आप विल्कूल ये न सोचें - कर्म, संस्कार - कुछ न सोविये। लेकिन एक दिन मोटर ये सोंचना भी नू कसानदेह है । अगर आप सोचते अात्मा हैं, और आत्मा निर्दोष है और मैं प्रात्मा निमला थोग २० दीपावली आशीर्वाद प्रिय सहजयोगी, मेरे प्यारे बच्चों, दिनांक : २१ - १० ७६ यह दिपावली तुम सबको प्रेम के प्रकाश से होगी मैं जो भी कहती है उसे विपरीत रूप देने आलोकित करे- तुम स्वयं दीप हो । जो दीप जल से भी जो सत्य है वह रहेगा हो । तुम उसका खूप उठते हैं वे आवरण में दबाये नहीं जा सकते हैं । नहीं बदल सकते । तूम ही आ्नजान रह जाओगे, आवरण से बे कहीं अरधिक शक्तिशाली हो जाते हैं । तुम ही पिछड़े रह जाओोगे । इससे मै दूखी हैं। यह उनकी अपनी संपदा है। उन के ऊपर जब आधात होते हैं वे विचलित होते हैं और बुझ जाते हैं। करी दिवाली नये आह्वान का दिन है । सारे विश्व को आहान करो। अनेक दीप जलाने हैं । उन्हें संवारना है । उनमें तेल प्रेम का डालो, ज्योत आपके दीप विचलित क्यों होते हैं ? इस पर की रूई कुण्डलिनी है और अपने अन्दर के आत्म विचार करना होगा उन पर क्या कोई पारदर्शी प्रकाश से औरों की कुण्डलिनी जागृत करो । क आच्छादन नहीं है ? क्या आपके माँ का प्यार आप भूल गये हैं ? क्या इसलिए आप इतने विच- यह कुण्डलिनी की ज्योति जलेगी और तुम्हारे अन्दर मशाल बनेगी। मशाल बुभरती नहीं है। लित हैं ? जैसे कांच दीप का रक्षण करती है उसी र फिर मेरा प्रेम का निषकलंक आवरण बनेगा। प्रकार मेरा प्रेम तुम्हारी रक्षा करेगा । न उसकी सोमा रहेगी न अन्त । में तुम्हें देखती किन्तु इस कांच को साफ रखना है। मैं किस रहंगी। प्रकार समझाऊँ ? क्या कृष्ण के जैसे कहना तुम सबके प्रति मेरा स्नेह अनेक अने क वद वन कर उमड़ रहा हैं। आशरी- होगा " सर्वधर्मानाम् परित्याज्य मामेक शरणं ब्रज ।" या इस मसीह जैसे कहना होगा मैं ही रास्ता है, मैं ही द्वार है । यह दिवाली का अरभिनन्दन है । मैं तो बताना चाहती हैं कि मैं ही बह मजिल (Destination) हूं । किन्तु क्या प लोग इसे स्वीकार करेंगे और क्या यह बात आत्मसात तुम्हारी सदैव प्रेम करने वाली मां निर्मला निर्मला योग २१ निर्मला माऊली आमुची निर्मला माऊली सहजयोगीयांचो साऊली । श्री माता बसली मूळाधारी तिची शोभा सहस्त्रारी ॥धृ॥ चैतन्ये गणेश निमिला ठेविला त्यासी मूळाधारी । अरवखळ बाळ रक्षितो बाळ म्हण आई आई ॥१ ॥ इडेवरी । माता बसली संट ग्रबियल भैरवनाथ साथ त्वरीतची करी ॥२॥ इच्छाशक्ती रूपी कार्यशक्ति महासरस्वतीची वाहे पिगलतुूनी । सट मायकल, हनुमान जमले अवती भवती ।।३॥ अळगतयी उभी । महालक्ष्मी षट्चक्र भेदन करण्या साथ सुष्म्नेवर करो ।।४॥ कमळावरी विष्ण अवतार घेऊनी शेषशाही निद्रा घेई । ब्रह्मदेव सरस्वती होऊनी बैसे स्वाधिष्टानी 1॥४॥ महंमद पैगंबर श्री दत्त गुरू बसले भव सागरी । दहा घर्माची निती शिकवीती त्या स्थळी ॥६॥ माता अनाहती येई असुरांचे वध करी कृष्ण अवतार घेऊनी कुरूक्षत्री गिता सांगी ।|७॥ गौतम बुद्ध महावीर मध्ये शोभे छान । जिजस रूपामध्ये माता येई आज्ञा चक्रावर ।।८। शक्ति साधकांचे रक्षण करी । एकादश रूद्र आदिशक्ती सहस्त्रावरी आत्म साक्षात्कार देई ॥8॥ -सौ. शकुंतला निकोलस अंधेरी केन्द्र निर्मला योग २२ ।। महायोग ।। पडती अंगावरती चैतन्याची फुले । टप् टप् भिर भिर भिर भिर त्या तालावर ध्यान आमुचे जुळ ।। धृ॥ कुरणावरती काडखाली । ऊन सावली विणते जाळी । ये तो वारा पहा भरारा । खुषीने डुले ॥ १॥ आत्मा वहाती । दूर दूर हे सूर उन्हात पिकळ्या पहा नाहती । हसते धरती फांदीवरती । राजयोग हा झुळे ॥२॥ |।२॥ ध्यान आमुचे भुळ भुळ वारा । ध्यान आमुचे ल कल के तारा ।। पाऊस बारा मोरपिसारा ॥ ध्यानातून या फुल i॥३॥ फुलासारखे सर्व फुला रे । सुरांत मिसळूनो सूर चला रे । ध्यान करीती तेय बाकी सारे राहाण । खुळ ॥४ ॥ फळारे । फळासारखे योग सब साधूनी पुढे चलारे महायोगाची प्रगति पाहूनि । माता आमुची । डुले ॥ ५॥ -बेवी कुंतल, १२ वर्ष अंवेरी केन्द्र निर्मला योग २३ श्री आनंद-भमी जहाँ श्री माताजी हैं,-वही आनंद - भूमीहै ॥धृ॥ माँ का अपना सब कुछ प्यारा लगन भी प्यारी, बोल भी प्यारा गुण गान कहूँ क्या मैं ? वही आनंद भूमी है ।।१॥ माँ की दृष्टी उठती है जब लगता नयन न कमल सखिले तब निरंतर प्रेम बरसता है । वही आनंद भूमी है ॥२॥ माँ की आवाज जब मैं सुनता लगता बरसे प्रेम सदा का उसी में भीग जाते हम हैं । वही आनंद भूमी है ॥३॥ मां की सुनकर बातें भाता बरस रही हैं सावन घारा जैसे मोती विखरते हैं वही आनंद भूमी है ।॥४॥ । ा मां का हरदम हँसता चेहरा विश्वरूप देखते हम सब भूलते हैं। वही आनंद भूमी है ।॥५॥ जैसा परमात्मा माँ के सहजयोग को पाकर दूस रो जन्म हुआ धरती पर चैतन्य लहरिओं में खोना है । वही आनंद भूमी है ॥६॥ त। सहजयोगिनी विजया प्रधान लोनावला निमंला योग २४ श्री माता जी ध्यान* मंत्र से प्रारम्भ कर सकते हैं फिर जीसस की प्रार्थना कर, तत्वचात् कहें - "मैं क्षमा करती है । " यह कार्य करेगा। तब श्राप निविचार चेतना में हैं । इस के पूर्व कोई घ्यान नहीं। है । जब विचार उते हैं-'मुझे चाय पीना है আातः काल अप उठ जाइए। और ध्यान कीजिए सुबह ही सुबरह वात-चीत विल्कुूल न अव ग्राप ध्यान करे । करें । बैंठे ध्यान करें, क्योंकि उस समय देवी (ईश्वरीय) में व्या कूगा 'मुझे क्या करना है 'यह कौन है चैतन्य किरणों आती हैं-सूर्य बाद में आता है। और वह कोन है' ये सभी बहा होंगे अतः पहले उसी से चिड़ियाँ उठती हैं। उसी से फल खिलते हैं। आप निविचार चेतता में आएं । निविचार अवस्था उसी (ईश्व रींय शक्ति) से सभी जागृत होते हैं के बाद ही आध्यात्मिक स्थिति (Spirituality) श्र यदि आ्रप संवेदनशील (sensitive) हैं तो प्रात: प्रारम्भ होती है-इसके पूर्व नहीं। इसको जानना काल उठने से महसूस कर सकते हैं कि आप इससे चाहिए। तर्क व युक्ति आदि के आधार पर आप कम से कम दस वर्ष कम आयु के लगगे । सच ! सहजयोग में उठ नहीं सकते । अतः प्रथमतः आप प्रात: काल उठना इतना अच्छा है । और स्वाभा- निविचार अवस्था में स्थित हो। आप महमूस विक रूप से आप जल्दी सोएगे भी। यह सिफ़़ करेंगे कि अभी भी कुछ चक्कों में यहां वहाँ रुकावटें उठने के विषय में है । सोने के लिए मुझे कहने की हैं। इसको भूल जाइए। आप इसको केवल भूल आवश्यकता नहीं-इसका प्रबन्ध आप स्वयं कर जाएं। लेंगे। अगर चाहें तो उठते ही स्नान कीजिए, व चाय पीकर तत्पश्चात् सुबह में आप ध्यान कर। बातचीत न करें । शुरू कर द । अव यदि कोई चक्र पकड़ रहा है तो पको कहना चाहिए "माँ ! मैं इसे आप को समर्पण करता है " अन्य चीजों करने के स्थान पर आप सिर्फ़ यह कह स्खुले आँख से मेरे चित्र को देखे और को शिश कर सकते हैं। परन्तु इस समर्पण को यूक्ति, तर्क आदि कि विचार उठना बंद हो जाए। अपने विचार को के स्तर पर नहीं उतारना चाहिए यदि आप रोकना चाहिए-जब आप घ्यान में हैं विचारों फिर भी तर्क-वितर्क या चन्ता करते हैं कि इसको को रोकने के लिए सहज तरीका है-जीसस की कहने की जरुरत क्या है ? तो यह कभी कारगर यदि सच्चा प्रेम और हृदय की पवि- (चक़्) की स्थिति है। अत: प्रातः काल जीसस त्रता आप में है, तो यह सर्वोत्तम वात है । यह की प्रार्थना या श्री गणेश जी का मंत्र स्म र कर । करना ही समर्पण है। अपनी सभी चिन्ताएं अपनी दोनों एक हो हैं । या पाप यह भी कह सकते हैं 'माँ पर छोड़ दें। सब कुछ अपनी 'मां के ऊपर; 'मैं क्षमा करता है ।" आप श्री गरेश जी के लेकिन समर्पण करना एक बहुत बड़ी बात है, जो निर्मला योग के अंग्र जी अक ४, संख्या १६ (जनवरी फरवरी १६८४) पृष्ठ ३४-३५ का अब अपना समर्पण घ्यान में अपने विचारों को रोकने का प्रयास करें । प्रार्थना (Lord's prayer)। क्थोंकि वह आज्ञा नहीं होगा । - हिन्दी रूपान्तर निर्मला योग २५ अहकार-ग्रस्त समाज के लिए अत्यन्त कठिन है। उसके बिषय में बात-चीत करने में भी मैं चिन्ता आएं। निःसंदेह आप देखेंगे कि अब विचार आना महसूस करती हैं। परन्तु यदि कोई विचार आप तो रुक गया है लेकिन अब भी सिर में दबाब अा में उठते हों या कोई चक्र पकड़ रहा है"तो समर्पण रहा है। अतः यदि यह अहंकार है तो आप को कर । और आप पाएंगे कि वह चक्र साफ़ (clear) चाहिए- हो गया। प्रातः काल ऐसा वंसा न कर, बिल्कुल ं। प्रात: काल अपने हाथ की ज्योदा हिलाए इसके बाद अपने अहंकार रूपो बाधा पर कहना ओम त्वमेव साक्षात्, श्री महत् अहंकार साक्षात्, श्री आदि शक्ति माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।" महत् का अर्थ है-बड़ा, अहंकार-यानि ego । नहीं डुलाएं नहीं। आप पाएंगे कि ध्यानाबस्था में अधिकांश चक्र स्वतः साफ़ हो गए । अपने हृदय को प्रेममय बनाने की कोशिश आप इसे तीन बार कहें । करें। अपने हृदय में ऐसा,प्रयास करें व अपने गुरू को उसके अन्तरंग में बैठायें हृदय में बिठाने के लगता है तो बाएं भाग (side) को प्राप ऊपर उठाएं पश्चात् हमें पूर्ण भक्ति व समपण क साथ उनके जिससे यह (अहंकार) बाएं से दाहिने तरफ घकल प्रति नमन करना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् अब आप जो कुछ भी अपने मंस्तिक से करते हैं-वह केवल कल्पनामात्र तहीं है-क्योकि व दाये भाग को नीचे, जिससे अहंकार व प्रति अब] प्राप का मस्तिक, आप की कल्पनाए- स्वयं प्रकाशित है | [आप अपने को ऐसे प्रस्तुत करे जसे अपने 'गुरु' अपनो 'माँ' के चरणों पर नम्रतापूर्वक महसूस कर रहे हैं. इसको देखने की कोशिश करें । (समर्पण) हो रहे हों और शरप ध्यान के लिए आवश्यक प्रवृत्ति व वातावरण की विनती करें । #"ध्यान-तब यदि अब भी आप को अहंकार विद्यमान जाए। इसे हाथ द्वारा करें,-एक हाथ चित्र की तरफ रहना चाहिए । बाएं भाग को ऊपर उठाइए अहंकार संतुलनावस्था में आ जाए इसको सात बार करें । आप देखें, श्राप अ्न्दर की तरफ़ केसा इस प्रकार जब एक बार ्ाप अपने को -तब है-जब आप ईश्वर (परमात्मा) संतुलित कर लेते हैं-तब सबसे उत्तम यह होगा के साथ एकरूप हो जाय ! विशेष समस्याएं अपने मनोभावना अपना चित्त पर लगाएं,- मनःशक्ति पर । उनको देखें । आप अपनी मां का विचार करते हुए प्रपनी मनो- कि आप ब यदि अन्दर विचार आ्र रहे हों तो पहले भावना को प्रकाशित कर सकते हैं । ठीक ? उसको आप को पहला मंत्र बोलना चाहिए और तत्प- आलोकित करें । मन में जो कुछ भी समस्याएं हैं হचात् अन्दर की ओर देख । आपको श्री गणेश जी यह आपकी सभी समस्याएं सूलझती है । अत: का मंत्र भी बोलना चाहिए-कुछ लोगों को इससे जब आप अपनी भावना से सम्बन्धित हो जाते हैं मदद मिलेगी। उसके बाद अन्दर देख । आप अपने और ध्यानावस्था में उस पर ध्यान देना शुरू कर को ही देखें कि हमारे अन्दर कौन सी सबसे बड़ी देते हैं तब अ्रप पाएंगे कि वे भावनाएं आप के बाधा है । पहली है विचार, उसके लिए-निरतविचार अपनी 'माँ को सुपुर्द करें ( श्री माता जी' के चरण मंत्र पढ़ें। "ओम् त्वमेव साक्षात्, श्री निरविचार कमलों में अ्र्षण करें) तो वे भावनाएं विलीन साक्षात्, श्री आदि शक्ति माता जी, श्री निमंला होना शुरू हो जायेंगी व फेलने सी लगेंगी । देवी नमों नमः ।" अतः अन्दर उठती हैं। और यदि ये भवनाएं आप उनको इस तरह विस्तृत करें आप निर्मला योग २६ कि आप को लगेगा-वे आपके नियंत्रण रखें । तब कुछ समय के लिए वाहर ही रोके में हैं। उन भावनाओं को नियंत्रित करने से आप रखें । पूनः ऐसा ही करें। इसके बाद आप पाएंगे व शक्ति- कि कुछ समय तक अपका सांस लेना बंद हो गया। बहुत अच्छा ! देखें, प्रब आप स्थिर हो गए हैं आप के प्राण व मन के बीच 'लय" घटित हो गई है। दोनों शक्तियां मिलकर (अब) एक हो जाती हैं । की भावनाएं ग्रर विकसित, प्रकाशित शाली होती हैं । अ्रव आप ऐसा करें कि अपनी सांस को देखना शुरू करें । देखे......अपनी सांस को धीमी करने का प्रयास करें, इसको कम करें । इसका तात्पर्य यह है कि आप साँस बाहर निकाले -कुछ सहस्रार के ऊपर प्रोर उसको वहाँ बाँध दें। पुनः क्षण के लिए रुकें-तब सांस अन्दर ले-लम्बे कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं- सिर के ऊपर और समय तक । तब पुनः साँस बाहर करें । इ स प्रकार उसको बाँध दें। पुतः कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं एक मिनट के अन्तंगत आप की स सि साधारण व उसको तीन बार बाँधे । तोर पर पहले से कम हो जायेगी ठीक ! इसका अभ्यास करें-अपना ध्यान भाचनाओं पर रखें । देखा आपने ! इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित हो जान बार उचचारण करं-"ओम त्वमेव साक्षात अब आ्प अपनी कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं- अब आप सहस्रार के ऊपर-सहल्रार का मंत्र श्री कल्की, साक्षात्- श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी, माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः ।" गया। अच्छा ! देखिये कि कुण्डलिनी ऊपर उठती है ? अ्ब जब आप सांस ले रहे हैं-प्राप पायेंगे कि यदि श्राप देख तो यह (सहस्त्रार) अब खूला मिलेगा । उसके (साँस लेने व छोड़ने के) बीच में थोड़ा समय (विलम्ब) है जो प्राप रिक्त (खाली) रहने दें। साँस अन्दर लें । उसको वहां रोके रख । अब सांस बाहर निकालें और साँस बाहर निकालते रहें । एक बार ऐसा हो गया तब आप घ्यान में अब सांस अन्दर लें। अब इस तरह साँस लेना .....। जारी रखें कि वास्तव में सास धीमी हो जाय । आप का चित्त ( चाहिए अथवा आपकी मनोभावना पर । अच्छा होगा कि कूछ समय तक सांस प्न्दर रोके रखें । रोके रहें । इसको बाहर करें । बाहर रोके ३स प्रकार आप सहस्रार को पुन: खोल सकते हैं । श्रर आप देखेंगे कि वहाँ आप जम गए हैं । उतरिए. साँस धीमा रखना अच्छा होगा आप अपनी ध्यान) आप के हृदय पर होना साँस को धीमा करें जैसे कि इसे रोक रहे हों परन्तु यह इसके प्रति श्रम न करें । "जय श्री माताजी" निरमला योग २७ परमपूज्य श्री माताजी का भारत में कार्यक्रम १६८५ विदेशों से सहजयोगियों का श्रागमन जनवरी १२ १२,१३,१४ बम्बई में कार्यक्र १५,१६,१७ वैतरना में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम १८ २१ से २६ राहुरो में कार्यक्रम (२६-१-८५ को विवाहों का आयोजन ) पूना २७ सतारा २८ २६,३०,३१ कोल्हापुर तथा निकटवर्ती स्थान मल्हारपेट फरवरी ३ अरलुज शुगर फैक्ट्री में कार्यक्रम तथा ४ पूना को प्रस्थान पूना से प्रस्थान तथा बोरडी में आागमन ५ू बोर्डी कार्यक्रन ५ से १० १४ से २६ दिल्ली में कार्यक्रम बम्बई से आस्ट्रेलिया प्रस्थान आस्ट्रेलिया से बम्बई आगमन २८ मार्च २२ बम्बई में सार्वजनिक जन्म दिवस कार्य क्रम २३ बम्बई में जन्म दिवस पूजा २४ दिल्ली (पूजा) २५,२६ बम्बई श्रगमन २६,२७ अप्रैल लन्दन प्रस्थान ६ निर्मला योग 25 *Iচ श्री। मन्दिर में ? भगवान रहे क्या जब भरी ब्रह्मशक्ति इस जग में भगवान रहे क्या मंदिर में ? ॥ध॥ भगवान को मानव ने पाने में मंदिर में रक्खा सजाकर यह भूल नहीं तो और ही क्या ? अज्ञान नहीं तो और हो क्या ? ॥१ ॥ भोग चढ़ाये सुबह शाम उसे जमाये अन्नदान पुण्य का यह रिश्वत नहीं तो और हो क्या ? बह पायेगा भगवान को क्या ? ॥२॥ जन्म मृत्यु नहीं हाथ में उसके कुछ देकर पाना यही वह सोचे यह भीख ही लेना और ही क्या ? मानव तू भिखारी और ही क्या ? ॥३॥ खेल शक्ति का अधिकारी न तू किसी बात देना लेना का यह गर्व हो तेरा और ही क्या ? तू भी तो खिलौना और ही क्या ? ॥४॥। है सच और तुझे हो जाना जब है यह पथ तेरा जो झठा है यह शरीर ही मंदिर और हो क्या ? भगवान है इसमें और ही व्या |५।॥ जानना इस शक्ति से आसान सहजयोग को तू ध्यान करे तो और भी क्या ? जो अपनाये मं मिल जाये तूझे भगवान भला ॥६॥ सहजयोगिनी विजया प्रधान लोनावला ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt ॐ निर्मला योग द्विमासिक वर्ष ३ अंक १३ मई-जून १६८४ अभ शा हि ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निरमला देवी नमो नमः ।। ए पज पर प कि।। 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डा शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनत्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेंट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक्-११२०१ : श्रीमति लोरी हायनेका ३१५१, होदर स्ट्रीट बैन्कूवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के २ यू.एस.ए. यू.के. श्री गेविन ब्राउन वाउन्स जियोलॉजिकल इन्फर्मॅशन सविस लि. १३४ ग्रेट पोर्टलण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पी. एच. भारत : श्री एम० बो० रत्नान्नवर १३. मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ श्री राजाराम शंकर रजवाड़ ५४०, सदाशिव पेठ, पुरण-४११०३० पृष्ठ इस अंक में १. गणपत्यथर्वंशीषंस् १ २. सम्पादकीय ३. सत्य (परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. दीपावली आशीर्वाद (माताजी का ५. निर्मला माऊली ( मराठी में प्रार्थना ) ६. महायोग (मराठी में कविता) ७. आनंद भुमी ( ३ ५ू पत्र) २१ ও । २२ २३ ) २४ ै। ।। २५ ८. ध्यान ২. परमपूज्य माताजी का भारत में कार्यक्र म ( जनवरी से मार्च १९८५ ) २८ ततीय कवर १०. प्राथना 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt "श्री गणपत्यथर्वशो्षम् " ॐ नमस्ते गणपतये | अब चोध्वत्तात्, सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥३॥ वघरात्तात् त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि । त्वमेव केवलं कर्ता्ऽसि । त्वं वाङ्कयस्त्वं चिन्मयः । ड्गप त्वमानन्दमयस्त्वं अह्ममयः । त्वं सचिचिदानन्दाद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं व्रह्मासि । त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥४ ॥ त्वमेव केवलं धर्ताऽसि । त्वमेव केवलं हर्ताऽसि । त्वमेव सर्व खल्विदं बह्मासि । स्वं साक्षादात्माःसि नित्यम् ॥१॥ सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते । सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठुति । सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति । ऋतं वच्मि, सत्यं वचिम ॥२॥ अव त्वं माम् अव वक्तारम् । ब श्रोतारम्, अब दातारम् । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः । त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥५ ॥ अव धातारम् ॥ अवानूचानमव शिष्यम् । अव] पश्चात्तात् अव अवोत्तरात्तात, अव दक्षिणात्तात् त्वं गुणत्रयातीतः । त्वं देहत्रयातीतः, त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ॥ पुरस्तात् । । निर्मला योग १ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt एकदन्तं चतुर्हस्तं त्वं शक्तित्रयात्मकः। पाशमंकुशधारिणम् । त्वा योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं विष्ण स्त्वं रदं च वरदं हस्तर् त्वं ब्रह्मा रुद्रस्स्वमिन्द्रस्त्वमरिवस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ॥६॥ गरणादि पूर्वमुच्चार्य वरणादि तदनन्तरम् । विभ्राणं मूषकध्वजम् %3D रक्तं लम्बोदरं शुपंकरणक रक्तवाससम् । रक्तगन्धान् लिप्तांग रव्तपुष्पेः सुपूजितम् ।। भक्तानुकम्पिनं देवं अनुस्वार: परतरः । जगत्कारणमच्युतम् । श्रविभ तं च सृष्ट्यादों प्रकृतेः पुरुषात्परम् ॥ अर्धेन्दुलसितम्, तारेण ऋद्धम् | एतत्तव मनुस्वरूपम् । गकारः पूर्वरूपम् अकारो मध्यमरूपम् । एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥8 ॥ नमो व्रातपतये, अनुस्वार३्चान्त्यरूपम । बिन्दुरुत्तररूपम् । नादः सन्धानम्, संहिता सन्धिः । १ सेवा गणेश विद्या |॥| नमो गणपतये । नमः प्रमथपतये, नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकसैदन्ताय । गणक ऋषिः] निचुद्गायत्रीच्छन्दः । गएपतिदेवता । ॐ गं गरणपतये नमः ॥७॥ विध्ननाशिने शिवसुताय । श्रीवरदमुतंये नमो नमः ॥ १०॥ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तघ्रो दंती प्रचोदयात् ॥॥ प० पू० श्री माताजी का आदेश है कि सभी इस गणेपाथर्वशीर्ष को कंठस्थ कर लें व नित्य पाठ करें । निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt ॐ कस सम्पादकीय सहजयोग में हम लोग कितने अधिक भाग्य- से, हमारी सब मानसिक चेष्टाओं से परे है-वह शाली हैं, इसका अनुमान अपनी छोटी बुद्धि व सीमित इंद्रियों से नहीं कर सकते। effortless (अनायास) है हम निाविचारिता में ही बढ़ते हैं, आ्रात्मिक आध्यात्मिक उन्तति करते हैं । इस के लिए कुछ मानसिक चेष्टा करने की आवश्यकता है ही नहीं । केवल अपने प्न्दर 'शुद्ध इच्छा चाहिए; श्री माताजी के प्रति पूर्ण-श्रद्धा, असीम-अ्रनंत-निराकार आदिशक्ति' हमारे बीच साकार साक्षात् माँ के रूप में हमें अपने लाड़- प्यार से दुलार रही हैं व हमको आत्म-साक्षात्कार पुर्ण विश्वास, पूर्ण समर्परण;-" पूर्ण समर्पण तो प्रदान कर हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनी समस्त शक्तियों व देवताओं को अ्रपनी देहु में उनसे विनती व प्रार्थना करने पर सहज में ही हो विद्यमान होते हुए किस महामाया से मानवीय रूप से जाता है, यही करना चाहिए। पुवकारते-लाड़-प्यार से हमें उभार रहो हैं-यह इस कृत युग का सबसे बड़ा अचम्भा, अविश्वासनीय महान सत्य व युग की महिमा है । इस शुद्ध इच्छा को पूर्ण श्रद्धापूर्वक प्रगट करने पर, हमारी मां सर्व शक्तियों से सुसज्जित हैं, उनके सामने negativity (बाधाएं) ठहर नहीं सकतीं तथा उनके स्मरण व प्रार्थना मात्र से ही क्षण सहजयोग में श्रपनी उन्नति करने के लिए भर में छूट कर भाग जाती हैं । वो हम सबके समझे जाने वाले प्रथास आध्यात्मिक उत्थान के लिए हर समय प्रयत्नशील की आवश्यकता नहीं, हैं परम्तु हमको इसका पूरा लाभ नहीं होता क्योंकि क्योंकि वह effortless (अनायास) है; उस के बारे अभी हम पूर्ण रूप से अपने को श्री माताजी से में सोचने की जरूरत नहीं क्योंकि व ह मस्तिष्क identify करने की श्रपेक्षा अधिक identified की सीमा के परे है, विचारों के परे है; हमारी हैं । और चीजज़ों से, अपने अहंकार, शरीर इस्यादि साक्षी- रूप से आमतौर पर (effort) करने को से बस हमें अपने planning (योजना ) या मस्तिष्क की कार्यवाही निर्मला योग ३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt देखना चाहिए। कौन सी negativity (बाधाएं) महसूस करना चाहिए ऐसा करने से हमारी हमें नुकसान पहुँचा रही हैं, हमारे उत्थान के रास्ते उत्थान की गति रुकती है। हमें अपने को face में आ रही हैं, हमारे ग्रंदर क्रोध या लोभ, मोह, अहं- (निरीक्षण) करना है साक्षी रूप से, अपने दोष कार पैदा कर रही हैं. दूसरों के बारे में कुछ बुरा जानने के लिए ना कि judge करना (जांचना, सोचने में मदद कर रही हैं इस्यादि इत्यादि- | वो परखना) । क्योंकि यह तो अपने नजरिये से होगा दते जी हमारी उन्नति रोक रही हैं, उनसे अपने हमेशा को अलग करना है वो भी सहजयोग में बहुत अपने को दोपी लगेंगे । आसान है। हम थी माताजी से प्रार्थना करें कि वो परखना) तो किसी को भी नहीं करना है न अपने इनमे हमें दूर करें, हमारे का काम है । सब (मोह-बंधन, आसक्तियां) को हटाएं-बस अपने misidentification (मोह बंधन, आसंक्तियां ) एक हैं ! सब माँ के अंग-प्रत्यंग है, हम आपसे में सिर्फ ही क्षण में श्री माताजी दूर कर देती हैं। उनका लेते ही बाधाएं दूर भागती हैं। biased (एकतरफा) होगा, अर हम इसलिए judge (जाँचना, misidentification को न दूसरों को वोमाँ सहजयोगी भाई-वहन माँ ने judge कर के पार किये प्यार दे सकते हैं मीठा वाट सकते हैं । यदि किसी में पकड़ है, तो उसको बन्धन दे सव ते हैं, व सम्भव हो तो नाम चुपचाप सहज हो में उनको दूर करने का प्रयत्न कर सकते हैं, मँ से प्रार्थयना करें । सहजयोग सरलतम है । श्री माताजी कृपा से इस महायोग द्वारा आज हम आप जैसे सवसाधारण गृहस्थी, इस लिए, हम सहजयोगियों को सहजयोग की नियमित क्रियाशों के अरतिरिक्त कुछ विशेष करने की आवश्यकता ही नहीं होती। सिर्फ शुद्ध इच्छा अपने उत्थान की व माँ में पूर्ण श्रद्धा के साथ नतमस्तक होकर रहने की आवश्यकता है। (पर्ण संसार के सव मामूली कार्य निभाते हुए भी इस विश्वास व पूर्ण समर्प र.. दोनों ही श्रद्धा में अ्रा गए; मां ने श्वद्धा की बड़ी महिमा बताई है) सहज- योग बहुत ही आसान व सरल है । जीवन में अत्म-साक्षात्कार पाकर पूर्ग आनन्द के में साग र हर क्षण अग्रसर हो रहे हैं। श्री माताजी स्वरयं इस अवतरण में हमारे उत्थान के लिए इतना प्रयत्न कर रही हैं- (इससे पहले श्री जीजस अपने में कुछ कमी है; हमें तो मुझमें ऐसा है, इससे मुझे छुड़ाओ ।" अपना उनके चरण कमलों में केवल श्रद्धापूर्व क नतमस्तक रखकर, ही रहना है- जिन चर की घूल के एक करण दोष से अपने को अलग कर के (या यों कहें; साक्षी जिससे समस्त विश्व की रचना हुई है व सारे संसार कहो, "श्री माताजी, ने हमारे सारे sin (पाप) खा लिए) - में माँ identification भाव से देखते हुए) माँ से प्रार्थना करं, और के उद्घार का सामर्थ्यं है । श्री माताजी तत्काल व तत्क्षण उसे दूर कर देती हैं। ল बोलो साक्षात् श्री आदिशक्ति महामाया परब्रह्म निष्कलंका परमेक्वरी नित्यमूक्ता लीला माताजी श्री सबसे ज्यादा समझने की बात है कि मां के विनोदिनी पद्यासना भुवनेश्वरी बच्चे होने के कारण "हम वास्तव में निर्दोष हैं" निर्मला देवी की जय (We are not guilty)! दोषी विल्कुल भी नहीं निमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt परम्पूज्य माताजी का प्रवचन गांधी भवन, दिल्ली ७- २ -१९५३ सत्य आज के विषय में मैं चाहूँगी सत्य है या नहीं। कि 'सत्य का अन्वेषण इस विषय अब science (विज्ञान) की उपलब्धि जो पर मैं खासकर बात करूं । क्यों कि बहुत लोगों ने इस पर लिखा हम हुई है, तो science में हम अग्रसर हए, है- "In the search of SCience में हमने बहुत सारी बातें जान लीं । अणु, परमाणु तक हम पहुँच गए। गतिविधियों को जो समझा है बो जो भी सब कुछ, जो कुछ भी सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए जड़ है, उसके बारे में । 'जीवंत' कार्य ये सब किस कि सत्य को खोज निकालना है, हरेक चौज़ का तरह से होता है संसार में, इसकी ओर किसी की कि truth" । और बहुत से लोग सत्य निकालना चाहिए । दृष्टि नहीं गई । अ्रब जब मानव दशा में मनुष्य रहता है, तो सत्य के अन्वेषण में सबसे पहले बात ये सोचनी ऐसी स्थिति होती है कि वो सिर्फ बुद्धि उसकी चाहिए कि जो कुछ मनुष्य कर सकता है उससे परे कोई सुष्टि है या नहीं। जैसे कि जीवंत हम देखते हैं-मनुष्य का चलना, टहलना, उसका के माध्यम से ही सत्य को खोजता है। और उसके क वस्तु को पास कोई माध्यम नहीं। जैसे कि science (विज्ञान) की उपलब्धि जो भी है, ये हमें सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से हुई है लेकिन बुद्धि जो है वो, दृष्य संसार में चीज़ जो है उसी के बारे हैम इस और नज़र नही करते हैं, इस तरफ हमारी में बात-चीत कर सकती है, जो अ्रदृश्य है उसे नहीं बता सकती । बढ़ना, उद्विगंत होना, सब कुछ देखते हैं। लेकिन दष्टि नही पड़ पाती है, कि ये आदमी बनाया गया है, सो क्यों ? पहली बात । क्योंकि उसका उत्तर हमारे पास नहीं है । और सत्य और अदश्य में क्यो नहीं बता सकती । तब पहले वे अन्तर है ये भी सोचना चाहिए कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है तो सर्वप्रथम उसका यही विचार उत्तर उसके पास नहीं है उधर से वो मुंह मोड़ बनता होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना तो लेता है । ओर कहता है कि जिसका हम उत्तर दे कुछ भी नहीं जाना; तो भी हम भ्रम में बने रहे बुद्धि से जानी हुई बात जितनी भी हमने शराज तक वो सोचता है कि गलत बात हो जाएगी । जानी है, उससे इतना जरूर हुआ जो दृष्य में हैं उसे हमने ज्ञात कर लिया । लेकिन जो कुछ प्रदृश्य में है बो भी नहीं जाना, और ये भी नहीं जान ने ही बताया कि एक अमीवा (amoeba) से ही पाए कि वाकई जो हमने दृश्य जाना है ये परम् मनुष्य बना है । तो फोरन ये बात दिमाग में आनी मनुष्य की 'विशेषता' ये है कि जिस चीज का सकते हैं, वहीं तक हम रहेंगे, उससे परे जाना भी । तेते ले किन मनुष्य संसार में आया, science निर्मला योग ५ू 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt चाहिए कि ये इस तरह की जो विशेष चीज की ments (तत्व) हैं, उसमें से एक भी element सकता है ? उसकी valencies सृजित हुआ, बनाया गया, उत्कांत हुआा, तो इसकी (इकाईयाँ) अ्रादि इस कदर सुन्दरता से बनी हुई कोई न कोई वजह जरूर होनी हैं, क्या मैं ऐसी कोई रचना कर सकता है ?" ये जिस शक्ति ने इसे बनाया है उसने कुछ सोचकर तो ठीक है, मरी हुई चीज़ को जोड़ दिया आपने । ही बनाया होगा । और अगर नहीं सोचकर लेकिन उनकी रचना में आप कुछ भी inter- बनाया तो भी तो वो कोई शक्ति तो होनी ही ference (हस्तक्षेप) कर सकते हैं, उसमें कोई चाहिए जिसने उसे बनाया है । तो ये शक्ति आप का हस्तक्षप हो सकता है ?-नहीं हो सकता। आप कोई चीज उसमें से बदल नहीं सकते । बो जैसी है बैसी है । [आप उसके compounds (योगिक) क्योंकि हमारी दृष्टि ऐसी होती है कि 'मनुष्य बना सकते हैं, mixtures (मिश्रण) वता सकते घटनायें घटित हुई और जिसकी वजह से ये मनुष्य खुद बना लाहिए । क्योंकि क्या है ? जो है वो खोज सकता है । यहले तो हमने बाकी हैं, लेकिन अगर sulphur ( गंधक) को जलाया सब चीज़ को negate (इन्कार) कर दिया, खत्म जाए और उसके crystals (स्फटिक) बनाइये कर दिया; हम खोज सकते हैं, हम देख सकते हैं, तो उसी हंग के बनेगे जैसे Sulphur (गंधक) के हम जान सकते हैं। इसलिए हम science को बनते हैं। आप अगर चाहें कि अपनी तरह के crystals (स्फटिक) बनाएं बो तक आप नहीं ओर दृष्टि यही करते हैं कि हम science से पहचान सकते हैं, हम इसको जान सकते हैं, उस चीज़ को हम पहचान सकते हैं । इस तरह का जो बना सकते । properties उसकी (विशेषतायें) हैं, उस पर आप का हस्तक्षेप नहीं जब भाव आ गया और दूसरी सब चौज खत्म है है। हां. उन properties को आप इस्तेमल कर गईं, तो फिर मनुष्य अपने से जो परे है, उस चीज़ को कैसे जान सकेगा ? जब वो अपने ही जानने सकते हैं । लेकिन जो बृनियादी fundamental आ properties हैं उसको आप नहीं बदल सकते । तो ये किसने बनाए ? और ये किसकी शक्ति में है कि जो इसे बदल सकता है ? इधर भी एक दुृष्टिक्षेप होना चाहिए। अंधेरे में रहकर जो की बात पर अभी तक उतरा नहीं, जो अपने से निम्न है, जो अ्रपने से हम कार्यान्वित कर सकते में ले सकते हैं वो तो पथोंकि जिस पर हम हैं, जिसको हम अपने है हैम से निम्न ही हुआ। हाथ लगा सकते हैं, वो हमसे निम्न होना चाहिए के आप ये कहें कि उजियारा नहीं है, तो ये तो नहीं तो हम उसे हाथ कसे लगा रहे हैं ? जैसे बात गलत हैं। लेकिन अगर कोई कहता है कि इस मकान को बनाना है। ठीक है, पत्थ र है, मिटो उजियारा है, तो कोई scientist (वैज्ञानिक) हो, कोई भी बुद्धिजीवी आदमी हो, उसको कहना है। ये सब हमसे निम्न है। ये जड़ वस्तु है । इसको हम बना सकते हैं। मनुष्य की दुष्टि बहाँ चाहिए कि अगर उजियारा है तो देखना चाहिए । तक पहुँचती है कि भई हम इसे बना रहे हैं, तो मनुष्य के मन में कौतु- इसे हमने बनाया और हम बहुत ऊंचे इंसान हो हैल होना चाहिए किे शखिर ये अगर कह रहा गये, या हमने बड़ा भारी काम कर लिया । लेकिन इस है। कि इसके परे कोई प्रकाश है, तो क्यों न देखा चाहिए । कौतुहल होना ही ? लेकिन इस तरह से हम 'अपने से ही प्रभा- वित हैं, auto-hypnosis में इतने ज्यादा हैं, कि हम सोचते हैं, जिस पर हम हाथ चला सकते हैं, थोड़े नम्रतापूर्वक मनुष्य सोचे "क्या मैं ये वही चीज सत्य है, और जिस पर हम हाथ नहीं चला पत्थर स्वयं वना सकता है ?" जितने भी ele- सकते उधर देखने की जारूरत नहीं। इस तरह से जाए का एक पत्थर भी इसान नहीं बना सकता । एक अरणु, रेणु कुछ भी नहीं बना सकता । निमला योग ६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt कि ही भूठ बोलते थे; इसका क्या proof (प्रमाण है ? अगर आप कहें, तो हम आपके हाथ नहीं पकड़ सकते न ? परमात्मा है या नहीं; ये भी अगर वाद- पहला प्रश्न ये, कि ये सुष्टि रची, तो रचाई विवाद उठे ती हम आपके हाथ नहीं पकड़ सकते । किसने ? और इस सृष्टि के अरणु रेणु, परमाणु लेकिन प्रगर हम कहें कि इसकी हम सिद्धता आपको जितने भी हैं, उसमें इतनी सुन्दर व्यवस्था किसने हे सक ते हैं, तो क्यों न उस तरफ हम आगे बढ़े ? हम सत्य से कितने दूर हैं, ये समझ सकते हैं । कि उसके तो मूलभूत चीजों को हमने छुआ नहीं। की ? उनको इतने व्यवस्थित रूप में किसने बनाया? ये व्यवस्थापक कोन हैं ? एक अगर सत्य के अआप पुजारी हैं और सत्य को आप चीज कह सकते जानता चाहते हैं, अ्गर कोई कहता है कि इसमें प्रप हैं कि ईमानदार हैं लोग, कहते हैं कि हुम इससे प्रग्रसर हो सकते हैं; इतना ही नहीं, उस सत्य को आगे नहीं बढ़ सकते, हम यहीं तक रहते हैं । पर आप पूरी तरह से जान सकते हैं, तो क्यों न हम अगर हम कहते हैं कि आप 'बढ सकते है; इससे स्वीकार करें कि आगे आप जा सकते हैं, अ्रोर इससे थगे एक चलें भई कोन सा वो मार्ग माँ बता रही हैं, देखें इसे अत्यन्त नम्रतापूर्वक प्रांगण और भी है एक dimension श्रर भी तो सही है भी कि नहीं । है", तो क्यों न अपनी अँख खोले इस बक्त ? र, अभी तक मान लिया कि ये चीज़ जागृति की नहीं थी, थोडे इस बारे में जानते थे, इसलिए गलत- सिर्फ हमारे पास एक अरहंकार मात्र हैं कि सामूहिक की नहीं थी ओर लोग हमने ये किया, हमने ये पता लगाया, हमारे पास ये है, वो हैं। लेकिन जो भी है वो आप से निम्न फहमियाँ हो गई। लेकिन जितनी science की ही है। [अगर आपको ऊपर उठना है कही भी, चीज ये बिजली आदि चीज़ें जितनी भी अन्वेषित तो 'ऊपर' की चीज पकड़नी चाहिए। कहीं भी है, ये जिस तरह आज सामूहिक हैं [और जागृतिक चढ़ना होता है, आपने देखा होगा कि जब लोग किसी बही पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो वहं पर ऊपर ऐसे अ्गर चीज कोई अगर कहे कि आपके अन्दर पहले एक कोल ठोकते हैं; फिर उसको पकड़ते हैं। बसी हुई है तो उसमें शंका कुशंका करना भी तो, इसी को आप Science में hypothesis अ्रादि मेरे ख्याल से कोई बडा scientific attitude कहते हैं कि जहाँ एक धारणा बना लेते हैं । उस (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) नहीं है । ये बैज्ञानिक दृष्टि- धारणा की कील ठोक दी, फिर उस कील को पकड़े कोण नहीं होता है जब कि मनुष्य किसी चीज़ को कर आप ऊँचे उठ गए। एकदम ही मना कर दे और कहे कि नहीं, ये बात जाकर देखा कि क्या होता है। बहुत हैं और सर्वहित के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। और फिर उससे आगे है ही नहीं । वास्तविक ये कील ठोकी है या नहीं, वहाँ पर हम पहुँचे हैं या नहीं, ये यथार्थ में पहुँच के ही जो आज तक हमने इस्तेमाल करी, अपने से नीचे मनुष्य देख सकता है । लेकिन एकदम मुंह मोड़ लेने वाली चीजों को पाने के लिये प्र हस्तगत करने से ये काम नहीं होने वाला । अब अगर हम ये कहें के लिए; इतना ही नहीं, उन पर अधिकार जमाने कि जो बड़े बड़े सन्त साधु हो गए, जो यहाँ पर के लिए-उस चीज का उपयोग छोड़ देना होगा। बड़े बड़े अ्रवतार हो गए इस अपने भारतवर्ष में, जैसे कि अनगर दिल्ली में घुूमना है तो मोटर ठीक इस योग-भूमि में, जिन्होंने बड़े बड़े कार्य किये, है, लेकिन ऊपर जाना है तो वायु-यान चाहिए । जिन्हें आ्राज संसार पूज रहा है अर मान रहा है, उसकी गति भी अलग होती है, उसका तौर-तरीका ये लोग झूठ नहीं बोलते थे। तो आप लोग कहेंगे अलग होता है उसके सारे प्रकल्प अलग होते हैं । अपने से ऊपर की चीज को जब पाना है, तब निरमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt मोटर की जो है, वो चीज और है, वो जमीन पर आत्मा के बारे में ऐसा नहीं होता। क्योंकि चलती है, और ये आकाश में उड़ने वाला बायुू- मनुष्य यही जानना चाहता है कि "जो आज मैं हैं, इसी से मुझे सत्र मिलना चाहिए; और इससे आगे उठे ! माने ये मेरे साथ अपना ही अनादर है ! यान है । इसी प्रकार जब अपके लिए मैं कह रही हैं कि आपको आत्मा को जानना होगा, आत्मा को इस्ते- माल करना होगा, आस्मा ही के सहारे आप परमात्मा को जान सकते हैं, तो इसका मतलब ये किया तो वहा भाग। जायेगा। तब नहीं सोचता हैं कि जो बुद्धि के सहारे सारे संसार को आप कि हम हिन्दुस्तानी हम ब्यों इनके पीछे भागे समझते हैं अरापने जान लिया है, उस से परे कोई जा रहे हैं ? कुछ अगर रूस ने किया तो उसके चीज आपको पानी पड़ेगी-वो है आत्मा । Science के मामले में ऐसा नहीं सोचता । Science के बारे में अमेरिका ने कोई अन्वेषर पीछे भागा जाएगा । लेकित कुछ अगर अन्वेषण और किसी प्रांगण में हुआ तो उसकी श्र मनुष्य की Science में अगर आत्मा का उल्लेख नहीं रुचि नहीं होती। बाहर के पेड़ के बारे में मनुष्य है. तो इतना ही कहना चाहिए कि आज अभी तक सब जानता है, लेकिन इस के मूल के बारे में science उस ओर बढ़ नहीं पाया है और कभी नहीं जानता । वो जान भी नहीं पाएगा। कयोंकि जिस मर्यादित क्षेत्र से आप उसे जानना चाहते हैं, उससे वो १रे है। उससे आप देख ही नहीं पाएंगे। उसका range (सीमा) जो है वो ही नहीं है कि वो उसको । अगर आप चाहें कि जान पाए । सो इस machiney (यंत्र) का जो range है, वो बढ़ाना पड़े गा। ओर उस range में नहीं आती है। जब भी मैं भाषण आदि देती को बढ़ाने के वक्त अगर हम कहें कि इसमें आत्मा की दष्टि जब तक नहीं श्राएगी तब तक कार्य नहीं होता है कि : फलानी किताबों में ऐसा लिखा है । हो सकता है, तो आपको मान्य करना चाहिए कि हो गया फिर ! क्या करे ? जो भी लिखा है वो "वो हमें प्राप्त हो । कुछ. के। और उसके मुल को जानने के लिए आपको सूक्ष्म होना पड़ेगा। और वो सुक्ष्मता अापको पाने के लिए नम्रता चाहिए आप अपने बुद्धि के दम पर आप उसे पा ले तो नहीं पा सकते । ये एक सौधी बात लोगों के समझ हैं, कूछ भी, तो में देखती हैं कि पहला प्रश्न ये । आपकी बूद्धि से तो प्रकेले नहीं होने वाला; उसको आप नहीं समझ पाएंगे । हम कह रहे हैं कि नहीं समझ पायगे-तो समझ लीजिये कि बगर चशमे के हमें दिखाई नही देता तो हमें चश्मा लगाना जरूरी हैं, ये तो बात हमारी समझ में आती है। और अगर प्रत्मा के सिथा हम परमात्मा को नहीं समझ पाते, जैसे हम देखते हैं, एक साहब के पास बड़ा अच्छा microscope (सूक्ष्मदर्शी) है उससे वो देखता है कि हरेक पेशियाँ कैसी चलन वलन केसा है, ये सब हम देखते रहते हैं । ले किन जब देखते हैं, कि दूसरे आदमी के पास तो आाहमा को पाना चाहिए-सीधी सादी बात कोई अच्छी मशीन है इससे भी उयादा, तो हम बयों नहीं समझ में अआनी चाहिए ? उसमें शंका- चाहते हैं कि किसी तरह से इसे पा लें, हस्त गत कर ल। उसी प्रकार अगर एक मनुष्य देखता है कि दूसरे आदमी के पास कोई विशेष चीज है तो उसको इच्छा यही होती चाहिए कि उस बिशेष चौज को वाकई प्राप सत्यको जानना चाहते हैं, तो सबसे हम पा ले । लेकिन होता है ? हैं और उसमें रक्त की ुशका करने से क्या आप सत्य को खोज पाएंगे ? अगर आप 'वास्तव में सत्य के पूजारी हैं और पहले ये नम्रता होनी चाहिए कि 'ग्रभी तक हमने निमंला योग ेई 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt सत्य को पाया नहीं है । है, नम्रता । मनुष्य कुछ भी सीख लेता है, ले किन नम्रता नहीं सीख पाता । े बहुत बड़ा गुरण है एक सर्व-साधारण मनुष्य समझ सकता है । मनुष्य मनुष्य को मारता फिरे इसकी क्या जरूरत है ? एक आदमी को छोड़कर के कोई सा भी जानवर हाथ में arms (शस्त्र) लेकर के अपस में मारता नरता में आप करते क्या हैं? किसी किसी नहीं है। उसको पकड़ने की शक्ति नहीं होती । लोगों को ऐसा विचार आता है कि न मर होने का मतलब है आप किसी के अगे भुक गए बहुत गलतकहमी है । की बात है ? "आपने यपने को खोल दिया है, कि स्वीकार' रें ।" कोई नई विचार-धारा को स्वीकार कर । कोई नई बात को आप स्वीकार करं, दे खे, परखें, सकती है ? लोगों के अन्दर सुबुद्धि भरने का इलाज समझ इसमें उतरे । नम्रता का कभी भी ये अगर कर दे, तो हम मान जाय । किसी के आन्दर मतलब नहीं होता कि आप किसी के आगे भुक भी नहीं शा सकती science से । चाहे वो जायें । जेसे कि पेड़ की शाखायें कितनी भी ऊँची उठ बनाना चाहे तो ऐटम बम्ब बना दे और चाहे वो जाये, जब तक उसकी जड़ नोवे त के जम न खदि तो एक-प्राध अच्छा अस्पताल भी बना सकता है । करके खोत तक नहीं पहुेंच जाधे उस पेड़ में कोई पुर ये चाहने पर है। ये कोई अ्रचल चीज नहीं है, सी भी शक्ति नहीं आ सकती । भगवान ने हमको हाथ दे दिये, तो अब] उसमें हम बन्दुकों को लेकर दूसरों को मारते हैं । ये बड़े अक्ल ये न म्रता का मत्तलब होता है कि इसका इलाज science तो नहीं कर सकती। कर सुजता ये चलायमान है। आज वो बडा अ्रस्पताल बना- एगा, बड़ा भारी एक.........बनाएगा । वहीं जाए और कितना भी ये science (विज्ञान) का हणारा लॉगो को वो ठीक करेगा; और एक दिन भमेला बढ़ जाए, लेकिन जब तक সापने अ्रपनी अकस्मात उसी पर बम्ब गिरा कर उसी का सर्व- श्ात्मा को नहीं खोजा है, ये सारा का सारा जो नाश भी कर सकता है। कोई आप उसकी है, बिल्कुल एक बबुले जैसा नष्ट हो जाएगा, खत्म 9uarantee (गारन्टी) नहीं दे सकते । क्या science इसकी गारंटी देता है कि जो आदमी हो जाएगा । इसमें से कुछ भी नहीं बचने वाला । -और वही हो रहा है ! संसार भर में यही हो आज science की बजह से अच्छा काम कर रहा है, कल उसका विध्वंस नहीं करेगा ? मनुष्य रही है। की कोई गारटी दे सकते है क्या आप Science से ! अभी एक देवीजी मुझे मिलीं, कहने लगीं कि हम armament (शस्त्रों) के disarmament (नि.शस्त्रीकरण) के लिए गए, इतनी मेहनत करी, ये देखना चाहिए कि इसका जो प्रकाश है, वो लोगों से कहाdisarmament क रिये और disarma- इतना धुधला क्यों है? इस के प्रकाश में इसान ment करने सेearth (पृथ्री) ठीक हो जाएगा, और कभी तो डंगर पर खड़ा नजर आता है और कभी वड़े झगड़े हुए और चार महीने हमने वहाँ मेहनत करी और किसी ने कोई बात नहीं मानी and मनुष्य समर्थ नहीं होता है, जब तक मनुष्य में सत्य we were great failures (अरौर हम बहुत की प्ररणा बलवती नहीं होती है तब तक आप चाह असफल रहे)। बताइये ! इसका मतलब है कि दुनिया का कोई-सा social work ( सामाजिक मनुष्य की बुद्धि ही बिल्कुल उसको छुट्टो दे गई। कार्य) Disarmament (नि:शस्त्रीकरण) होना चाहिए, कोई सा भी बुद्धि से कर लीजिये, उसका कोई भी जब science इतना अधूरा पड़ा हुआा है, तब खाई में गिर जाता है । ऐसा ब्यों ? और जब तक political work (राजनैेतिक कार्य ) निर्मला योग গ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt ठिकाना नहीं। आज आप अरसमान में वठंगे, कल पर रहता है । आप नदी में डूबगे । क्योंकि 'स्थिर' जो मुल्य थे, वो खत्म हो जाते हैं जब मनुष्य भ्रांत हो जाता है, तो उसके स्थिर मूल्य जरूर खत्म हो जायगे। जब युद्ध ने ललकारा और जब यूरोपोय देशों में युद्ध छा गया, जब लोगों ये, वो बहुत कम हो गए; खत्म हो गए- करोबन खत्म क्योंकि science किसी भी मनुष्य को 'समर्थ नहीं बनाती-और बना भी नहीं सं करती । अहंकार से कभी भी सम्य नहीं हो सकता । सम ।- मनुष्य अर्थ सो इस नतीजे पर हमको-Iogical con- की इतनी दूर्दशा हो गई तो वहाँ के जो मूल्य थे, clusion (युक्तिपूर्ण निष्कष्ष पहुँचना चाहिए और सोचना चाहिए कि सिर्फ बुद्धि से । क्योंकि जब सभी चीज़ डगमग डोलने लग से हम सत्य को नहीं खोज सकते । बुद्धि से ये बता गई, तब लोगों की समझ ही में नहीं आया कि सकते हैं कि यहाँ सफेद चादर बिछीं है, खादी की किस चीज़ को पकड़े ? इस चीज़ को पकड़े तो वो चढर है- बस, ओर क्या ? और कहा तक जायगे इगडगा रही है, उस चीज़ को पकड़े तो वो डगडगा आप ? लेकिन क्या आप इस खादी की चट्दर बता सकते हैं, कि क्या इसे एक साघु या किसी राक्षस ने पहुना था ? जिसे कहते हैं- में रही है । ने पहुना था, ले किन तब ये विचार मनुष्य के मन में शना चाहिए कि "हो सकता है, कि हमने उस चीज को Science से तो आप ये भी नहीं बता सेकते पुकड़ा ही नहीं जो स्थिर' और अचल है। है कि ये इंसान राक्षस है कि मनुष्य है । श्रर ये ऐसा मन में विचार तो उठना ही चाहिए । हरेक भी नहीं कह सकते कि अरज तो मनुष्य लग रहा बुद्धिवादी के मन में ये विचार तो उठना हो है कल भुत बनकर सर पर सवार हो जाए तो पता नहीं । किसी चीज़ का कोई ठिकाना नहीं- सब चलायमान है. अस्थिर है। इसीलिए आ्रज चाहिए । और ये सब देखकर मनुष्य का मन कटुता से कालयुग में कहते हैं कि पूर्णतया मनुष्य 'भ्रांति' में भर जाता है । बड़़ा कटु उसका हृदय हो जाता है । वो सोचता है कि "कहाँ है मिठास ? कहा है प्यार ? किसी तरह से जीना ही तो अव रह गया है।" कोई ग्रपना ही गला घोंटता है, तो कोई दूसरे का है, confusion में है । और इस कोलाहल में मनुष्य जब सोचता है, कि "अरे भई ! ये तो आज कलयुग आ गया, अब इसमें माताजी ये क्या बात कर रहीं हैं, अब तो कलयुग में ऐसा ही होता है; ये तो कलयुग है । माने एक गारंटी हो गयी सब चीज़ की: [अब] कल- बताएंगे। कोई कहेगा इसका कारण है सामाजिक यूग है। "अब इसमें ये काम न करिये तो कसे होगा, अव्यवस्था, कोई कहेगा राजकीय [अव्यवस्था । ये तो करना ही पड़ेगा, ये तो कलयूग आ गया । इसमें अगर इस रास्ते से नहीं चले तो काम ही कोई कहेगा capitalism ( पूजीवाद) अच्छा । कोई नहीं बनने वाला ये ही रास्ता है; कलयुग है |" कहेगा कुछ अच्छा कोई कहे गा कुछ अ्रच्छा । और में आप कैसे भी मोड़ते रहिये, अपने रास्ते लोग उसको चिपक भी जायेगे। कोई कॉम्यूनिस्ट गला धोंटता है । और इसके उत्तर में हजारों लोग हजारों बातें कोई कहेगा communism (साम्यबाद) अच्छा, कलयुग किधर से चलिये, किसी तरह से आप दायें-वायें (साम्यवादी) होजायेगा, कोई capitalist (पूंजीवादो) घूमते रहिये। किसी तरह से आप जीते रहिये !- हो जाएगा कोई democratic (प्रजातांत्रिक ) हो ऐसा मनुष्य compromise (समझते की प्रवृत्ति) जाएगा, कोई socialist (समाजवादी) हो जाएगा निर्मला योग १० पc/। 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt तो कोई गरीब हो जाएगा कोई जाएगा-मतलब कुछ न कुछ group (दल) वना- बोझल जिन्दगी से दबै हुए हैं। तब समझ में नहीं कर के वो सोचेगा कि ग्रप बन कर जी सकते हैं । आता कि ऐसा क्यों ? अगर परमात्मा ने अपने और संघर्ष-पूरी तरह संघर्ष । प्रौर इस संघय प्रम से हमें वनाया, संजोकर बनाया, इतने आनन्द में भी चाहते क्या हैं. ?सो उन को पता नहीं। दल है, कोई है बो आतलाई दल है । ऐसे करके आफ़त में क्यों फ स गए दल-बंदियाँ हो गई । हमारे आँख से ओझाल हो गया, ओ्र हम एक बहुत अमीर हो दलित से उसने ये सुच्टि रची, तो आधिर हम इतनी बड़ी म इसका कारण ये है, कि हमने खुद ही अपनी ले किन सब आपसे में हम इंसान हैते हुए दन गर्दन कटा ली है। गदन कटाना-सहजयोग में जिसे कंसे बन गए ? इसके पीछे का वड़ा भारी] एक कि विशूद्धि चक्र कहते हैं, जिसमें 'विराट' का रहस्य है। श्ीर रहस्य ये है कि उस परम्-विता स्थान है। गदन कटाने का मतलब होता है, कि परमात्मा के प्रम को हम देख नहीं पात। हम आपने विराट से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया । ' ये उस समझ नहीं पाते कि 'कितने प्रेम से उसने ये बड़े-विराट' से, जिसके हम अंग-प्रत्यंग हैं, जो सूष्टि तयार की है । परमात्मा के नाम से जाना जाता है, उससे ही हमने अपना रि्ता तोड लिया है। और बहुक गए हैं अपनी ही दिशा में और अपने ही विचारों में, अपने ही खयालों में सोचकर के कि ये चीज ही सही है और वाकी जितनी भी चीजे हैं वो गलत हैं। आप लोग तो एक बीज से एक पेड़ नहीं निकाल सकते, एक फुल से एक फल नहीं निकाल सकते । आप के बस का कुछ भी नहीं है। जरा सोचिये "कितना परमात्मा ने हमें सोदर्य दिया, और कितना कुछ हमारे लिए कर दिया।" इस प्रादगी गलत हैं । ने ये भुला करके कि जिसने हमें बनाया, इतना बड़ा किया, एक अमीबा से इपान बना दिया, उसके प्रति कोई भी कृतज्ञता नहीं है, उधर कोई भी चित्त नहीं है, उधर कोई भी विचार नहीं है ।-इसलिए अधूरापन आ गया है । इस मोड पर ही आज सहजयोग एक 'महायोग' के रूप में आपके सामने आया है। इसको सोच- विचारने से आप जान नहीं सकते, क्योंकि मैंने पहले ही कहा कि सोच विचारने से, शरपसे जो 'निम्न' चीज है वो पाई जाएगी। आपसे जो 'ऊ ची' चीज़ और जो कुछ कह गए लोग, जो कुछ बता गए, है, वो प्रापकी कल्पना के बाहर ही है । कल्पना से उनको या तो जिन्होंने माना वो गलत तरीके से आप सोच सकते हैं कि हम श्रकाश में घूम रहे हैं, नहीं है, कुछ लोगों ने कहा कि ये तो सब ऐसी बात है, reality नहीं है, यथार्थ नही है । ये मान लेना चाहिए कि जो कुछ भी हम सोचते वदते रहते हैं कि हम फलाने है और ढिकाने हैं और ऐसा हो गया, वैसा हो गया, यथार्थ नहीं है। तब तो ये ही समझ लेना चाहिए कि यथार्थ में जो हमने पाया, अपने नजर में परमात्मा का प्रम भी नही झलकती । से निम्न ही पाया, और अपने से जो ऊचा पाना है अभी मेरे सामने देखिए कि कोहरे में से थोड़े-थोड़े उसके लिए 'यथार्थ में कोई चीज होनी चाहिए । 1 मान लिया, उसकी भी दल बंदियाँ बना लीं। ओर लेकिन वो यथाथ नही है। वो यथाथ इसमें कोई अर्थ नही है; सब झूठ हैं । हैं। ऐसी दशा में, मनुष्य एकदम निराश और हताश है, और कटुता से भरा हुआ है, अ्रौर उसकी से ये पते दिखाई दे रहे हैं । 'कितना सुन्दर बना और यथार्थ में क्या होना चाहिए।-इसका भी हूपरा है ये सब ! इसका आनम्द अन्दर झरा जा रहा है !-श्रौर ये सब सृष्टि का सौन्दरयं भी विचार उस बनाने वाले ने कर रखा है । वही ११ निर्मल योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt इसको करने वाले हैं, 'उसका' विचार है । जिसने कुछ न करते हुए भी प्रकाश देता है, और कार्या- आपको ये आंखें, नाक, मुंह सब कुछ, शरीर दिया न्वित है । है; मन, बुद्धि, अहंकार आदि सब चीजें आपके अन्दर दी हैं, वही आपको वो भी खंटी दे देगा जिसमें पहुँचकर आप इससे ऊंचे दशा में अरा जाएं । उसने भी यही सोचकर ही आपको मनुष्य दिश्वध्यापी नहों हो सकती । अगर होती तो अभी इस बात को मेरे रुपाल से यूनिवर्सिटी में इस लिए कही गई है क्योंकि University का मतलब ही होता है विश्वव्यापी । लेकिन बुद्धि बनाया है। वर तक हो गई होती हरेक की बृद्धि तो वही-वही लेकिन सबसे पहले तो बुद्धिजीबी को सोतना चलती है; एक का दूसरे से मेल नहीं बैठता । चाहिए कि ये बुद्धि कहाँ तक पहैचती है ? ये कितनी सीमित चीज है । और जब असीम की नम्रतापूर्वक ये स्वीकार करना चाहिए कि अभी] बात हो रही है, तब बुद्धि का बीच मे रगड़ना ठीक तक हमने जो कुछ जाना है वो सीमित हैं। और नहीं है । तो इस चीज़ को पाने के लिए सबसे पहले असीम को जानने के लिए कोई न कोई घटना हमारे अन्दर घटित होनी वाहिए, कोई न कोई अंकुर इस असोम को जानने के बाद, पहचानने के हमारे अन्दर जागना च हिए जिससे हम, जो आज बाद, जैसे नानक साहब ने कहा है-- चीन्हने के से सीमित से लग रहे हैं, वो अरकाश बन कर के बाद, तब आप ये समझ सकते हैं कि "आप क्यीं छा जाएं । वडों ने समझाने के लिए बहुत तरीके हैं," "आप क्यों इस संसार में आए हैं" और से कहा है कि "बूंद को सागर होना चाहिए।" ये जो सवध्यापी, परमात्मा की 'जीवंत' शक्ति है, ये कौन से कार्य को करती है और कैसे करती है । इतना ही नहीं, जब आपके अन्दर आत्मा का हैं, या analogies अब सब similes (उपमाएं) भी जो (समानताए) भी जो साक्षात्कार हो जाता है, तब ये शक्ति आपके हैं, बो भी निम्न चीजों से ही हैं। ये तो एक वड़ा भारी प्रश्न है, कि वो भी कहाँ से लाएं, क्यों कि ऊची चीज़ की तो बात ही नहीं कर सकते प्र जो analogy करते हैं वो नीची चीज़ की करेंगे और जो भी नीची चीज की करेंगे वो आपको और नीचे की तरफ खिसकाती जाएगी जैसे कहा कि "अ्राप बुंद से सागर हो जाइये" वो कहेंगे कि साहब बूंद से सागर केसे हो सकते हैं ? अन्दर से बहुती है और 'कार्यान्वित' होती है- अब इस शब्द पर जरूर नजर करें । ये शक्ति बोलती नहीं, सोचती नहीं, कार्य करती है-कार्या- न्वित है । बोलना और सोचने का काम तो बुद्ध का है- निरर्थक । इससे कोई कार्य थोड़े ही होता है । जैसे मोटर में बठिये अरप प्ीर [सोचने ल ग जाइये; क्यों कितने भी गोल मोटर चलेगो आ्रापकी ? कुछ करना होता है ! के बात समझाई जाए घुमाकर समझ में नहीं आएगी, क्योंकि समझने वाला जो है वो ये बुद्धि का ही एक प्रकार है । लेकिन ये शक्ति ऐसी है कि जब अरापके अन्दर से बहने लगती है तो कार्यान्वित होती है, कार्य करती है। जसे प्रकाश है, कार्यान्वित है । जब उसमें बृद्धि से क्या समझाया जा सकता है ? औप ही से प्रकाश आ रहा है तो प्रकाश दीख रहा है, कार्य कर रहा है-automatic (स्वतः) । न कुछ करते सहजयोगी प्राए हुए हैं । ये आपके संगीत के बारे में हुए भी प्रकाश दे रहा है। उसी प्रकार ऐसा इंसान जब समझना आत्मा से ही हो सकता है, तब बताइये । जैसे कि हमारे यहाँ बहुत से विदेशी सा, रे, ग, म भी नहीं जानते, अपने संगीत के बारे निर्मला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt में सब जानते हैं। आपके संगीत-शास्त्र के बारे में को क्या शिकायत है । दूसरा कोई रह ही नहीं कुछ नहीं जानते। राग-रागिनियों के नाम नहीं जाता इतना गहन प्रेम है । सब अपने अंग प्रत्यंग जानते । लेकिन अगर कोई सा भो हिन्दुस्तानी हो गए; जब दूसरा कोई नहीं रहा, तो किस पर - बजाया जाए तो कितना उपकार करने जा रहे हैं ? और जब ये प्रेम किसी भी कठिन राग हो, उसमें मस्त हो जाते हैं । उस पर भी प्रकाशित होता है तो सारा सत्य, उस का वो राग नहीं खोजते, उसके आलापकारी नहीं आदमी का, पूरा के पूरा' सामने नज़र आ जाता देखते, पर उसका जो असर है, उसका जो कार्य है है पूरी की पूरी चीज, पूरी तस्वीर सामने प्रा जाती है । उस प्रकाश में आप जान लेते हैं कि ये जो आपका अंग-श्रत्यंग है, इसमें क्या तकलीफ़ शास्त्रीय संगीत -शुद्ध उनके अन्दर बन जाता है। य नहीं तो अ्गर अपने हिस्दुस्तानी सुनने वेटठेंगे, तो पहले पूछगे कि साहव गाने वाली कोन है ? है। कार्यान्वित हैं । प्रकाश से, प्रकाश में अपको फिर, ये राग कौन-सा है ?-विचा र आ गया में ।-इनका घराना कौन-सा है ? इनके बाप-दादे । एक ही नहीं, कौन से हैं, ये ठेका कोन सा लगा ? दीखना चाहिए, साफ-साफ नजर आना चाहिए बीच उसमें गलती नहीं होनी बाहिए सब लोग जो देखगे, तो एक ही बात कहेंगे। कि "मा ने सफ़ेद रंग की साड़ी पहनी हुई है।" उ उसमें ले किन जो इस चीज पर बैठा नहीं है, वो सिफ़ अनेक विचार नहीं हो सकते, उसमें झगड़े की बात अपनी आत्मा से इसका अनुभव ले रहा है, उसका नहीं हो सकती । मजा ले रहा है । और वो राग जिस चीज के लिए वनाया गया था, वी अनन्द पूरा पूरा उस प्रादमी में समाये जा रहा है । जिस आनन्द से वो बनाया गया था, वही 'पूरा के पूरा' आनन्द उस में समाये जा रहा है, और उसमें कार्यान्वित है । 'एक हो सत्य हो सकता है। और जो एक ही सत्य होता है, बो अनेक होते हुए भी 'एक ही जंसा दिखता है । के ले क्िनत इस प्रेम को अज तक कि सी ने जाना थोड़ों ने जाना । और जिन्होंने जाना इस प्रानन्द की प्राप्ति आप संब की हो सकता उनसे किसी ने जानना नहीं चाहा, उनको परेशान नहीं। बहुत है, ये हमारा कहना है। आप अगर कहैं। ता हम किया, उनको सलाया, और उनके मरने के बाद भी इस बात को मान जायगे। अगर आप कह कि मंदिर खड़े कर दिये, चर्च खडे कर दिये और हम ही क्यों ये काम कर रहे हैं, तो हम कहे, आप आप जरूर करिए । हमें तो गुरुद्वारे खड़े कर दिये गरौर सब चीज़ खड़ी कर दी । लेकिन उस प्रेम को नहीं जाना वड़ी खुशी हो, अप लोग कर ल ती वडी अच्छा जिस प्रम के सहारे ये सब चीज़ खड़ी हैं । दुनिया भर के है । कोई भी कर ले । इससे बढ़कर और कौन सी बात हो सकती है कि हमारी जगह शर कोई उस प्रेप को जानने के लिए भी आर्मा का ही काम कर ले, ये तो बहुत अच्छो चींज़ है । इस काम अवलंबन करना पड़ेगा जैसे लौवि क चीज जानने के लिए शायद हम ही को करना पड़ेगा कुछ दिनों के लिए हम बुद्धि का अ्रवलंबन करते हैं, वैसे ही तक अगर आप से हो सकता है तो ग्प करिए। अलोकिक चीजें जानने के लिए हमें अत्मा का अवलबन करना पड़ता है । है। और प्रेम काम है जटिल, 'प्रम' का काम सत्य है और सत्य प्रम है । इतना गहन प्रेम ह ये कि इसमें मनुष्य फौरन पहचान जाता है कि दूसरों पहले ही भगड़ा क्यों लेकर बेठ गए ? पहले ही अब कोई कहेगा-"्रात्मा है या नहीं । निर्मला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt से इसका आप वो क्यों हैं ? भई है या नहीं अब तो हम सिद्ध करने आए हैं। पहले के लोगों आप लोगों को सब के श्रन्दर ऐसी भावना शायद को प कह सकते थे कि वो सच थे कि भठ थे हो गई हो-' माँ जो कह रही हैं, उसमें कुछ उनके बारे में आप पचासों बातें कहिये। लेकिन सच्चाई भी है।" अब तो हम आपको सिद्ध करने आए हैं कि आपके - कि आत्मा कसे पाया जाए।" तो मुझे आशा है कि र अब आपको कोई प्रश्न हो तो पूछिये । अर आत्मा का स्थान है और परमात्मा सर्व- व्यापी अपने साम्राज्य में आपको आमन्त्रित भात करता है । प्रश्न : आत्मा क्या है ? ये सर्वध्यापी शक्ति उस परम्-पिता परमात्मा श्री माताजी : त्मा उस परमाাत्मा की पर- जो के प्रेम की लहर है । उसका आनन्द देने के लिए ही परमात्मा ने आपको इंसान वनाया । अहकार छोई है । आत्मा उस परमात्मा का श्रतिविव से मनुष्य को सुख हो सकता है, अानन्द नहीं हो इस मानव में दृष्टिगोचर हो सकता है । सकता । सुख के बाद दुःख भी हो सकता है। लेकिन आनन्द में सुख और दुख, दोनों भावनाएँ के ি दुटकर एकमात्र अनन्द होता है, जिसको शब्दों में वरांन नहीं करा जा सकता, सिर्फ़ अनुभव किया है? जा सकता है । ले किन उसका अनुभव भी इस हृदय है जिसको आप हृदय कहते हैं। इसको हृदय नहीं कहना चाहिए क्योंकि अ्रगर ये हृदय है तो ये तो कभी रुलाता है, कभी हुँसाता है हृद : जो जाने- वो आत्मा है । ऋ शब्द से । 'तऋ का मतलब है पशन : कुण्डलिनी और आत्मा में क्या सम्बन्ध श्री माताजी : अब पहले मैंने बताया आपसे कि परमात्मा का प्रतिविंध जो है, वो आत्मा है । एक बात हो गई ? और परमात्मा की जो शक्ति है उसे आदिशक्ति वहते हैं, Holy Ghost कहते हैं, या चाहिए तो उसको आप रूह' कहिए। इस शक्ति का प्रतिबिब जो मनुष्य में होता है वो से नहीं कुण्ड- लिनी है। जब तक ये दोनों चीज मिलती नहीं तब योग घटित नहीं होता। योग माने union. energy-, रा-रा माने है energy-श क्ति । इस प्रेम की शक्ति को जो देने वाला है, वो हृद है। इसलिए बो प्रेम की शक्ति को देने वाला, या जानने वाला ये आत्मा जो है, इसको पाना चाहिए। इतने तक अगर आप सब [बुद्धिवादी उतर से फिर analogy (सादृश्य) बताए गे , कि जो ये तो फिर आगे की बात हम कह सकते हैं। विलकुल निम्न चीज है, उसकी।-कि जैसे इसकी जो इतने तक पहले उतर आइये। ये बहुत जरूरी connection (संयोग) है, जंसे हो mains से लग चीज है, क्योंकि नहीं तो बीच ही में अरपकी बुद्धि जाता है, तो जो ( plug) सखग है, उसमें इसको लगा खड़ी हो गई; "पर माताजी ! इसका ऐसे कैसे ? देने से ही इसका connection चल जाता है। तो बुद्धि की सतह पर इस बात का जयाब कुछ भी इसमें कहिये कि कुण्डलिनी येहै, और plug जो है दें, आप संतुष्ट नहीं हो सकते । क्योंकि वो संपूर्ण बो आत्मा है। अब है बहत gross ( स्थल) चीज, जवाब हो नहीं सकता । हालांकि logically (युक्ति-पर करें क्या ? कोई सी भी analogy दोजिए, अनुसार) प्रापको ले आई हूै, इस point (विषय) कितनी भी काव्यमय बना इये, तो भी वो निम्न तो पर कि आप ये कहेंगे कि "अच्छा, तो मां बताओ होगी ही । पोर जैसे ही ये चीज घटित हो जाती है, तो जैसे कि समझलीजिए-ये एक बहुत ही gross (स्थूल) तरीके मैं र निरमला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt बो हो जाएगा| इतना निकट संबंध है एक दूसरे से । पर जब ये energy आप के अन्दर से बहने लग जाए, तव इसके वारे में सीखना पड़ेगा, जानना पड़ेगा । क्योंकि योग तो घटित हो गया । ले किन योग का दूसरा अर्थ होता है 'युक्ति, कौशलम समझना चाहिए इसकी कुशलता व्या है ? किस तरह प्रश्न : मनुष्य को अंबेरे से डर क्यों लगता है ? श्री माताजी : सब मनुष्यों को नहीं लगता । ये बात सही नहीं है । प्रश्न अधुरा है, बेटा । लेकिन डर इसलिए लगता है अधेरे से, वो ही बात आ राई न. कि प्रदण्य से इंसान डरता है। अ्रबर में जा- से इसको work-out (क्रियान्वित) करना चाहिए । जो गड़बड़ियाँ की ईसान ने, इंसान के ऊपर में इसी से बो डरता है। और भी बहुत सारा बातें हैं । । माने, योग जानने के बाद आपको , 'योग का एक ही अर्थ नहीं होता। योग का अर्थ एक तो हो गया कि union हो गया शऔर उसके बाद में उसकी कुशलता आनी चाहिए, उसकी deftness आनी चाहिए । 1 पर खास बात ये है कि इंसान के अन्दर जब अधेरा होता है तब उसे ज्यादा डर लगता है । जब बो प्रकाश में आ जाता है, उस को अंधेरा और किसी से डर नहीं लगता। अन्दर में अधैरा है बाहर अंधेरा हो तो बहुत ही ज्यादा हो जाता है। में कछ मनुष्य घव्डा जाता है कि "बाबा रे वाबा रास्ता नहीं खाद्यो, ये तो वसे हो नहीं भिल रहा, ऊपर से अंवैरा । प्रश्न : आत्मिक विकास के लिए किसी धर्म चीज़ बताते हैं, कोई कुछ बताते हैं, कि ये नहीं करो । इसके बारे में सही व्या है ? ॥क लेकिन जब अन्दर प्रकाश हो जाता है तो बाहर के अंधेरे कोई दिखाई नहीं देते । श्री माताजी : जो चीजें प्रात्मा के विरोघ में पडती है, वो चीजे नहीं खानी चाहिए। जो चीज़ आत्मा के विरोध में पड़ती है, या चेतना के विरोध अभी अंवेरा है. आप सोचते हैं, और मैं इसमें भी बड़ी सुन्दर चीजें दे ख रही है में पड़ती है वो नहीं करनी चाहिए । ! अब जब मोहम्मद साहव आए थे तो उन्होंने बताया "भई शराब मत पियो-क्यों कि तब तक प्रश्न : आत्मा के साक्षात्तकार के लिए जो भी सिंगरेट नहीं आई थी। इससलिए वो नानक साहब फार्मला (उपाय), या जो भी हम कर सकते हैं बन कर अ ए, उन्होंने कहा "भैया अब सिगरेट मत कृपया बताये, ताकि वह energy (शक्ति) मेरे पियो ।" तो अब कुछ लोग श्रकर मूझे कहते हैं शरीर के साथ synchronise (तालमेल) या कि इन दोनों ने ये तों नहीं कहा था कि गाँजा मत पियो। तो मैंने इनसे ये कहा कि सव की resonance(प्रतिध्वनि) कर सके । तुम list (सूची) बना कर दे दो जो जो पी सकते हैं। श्री माताजी: ये प्रश्न किन साहब का है ?... मुझे तो माजूम भी नहीं क्या-व्या पी सकते हैं लोग आपका है बेटे ? बहुत खूशो की वात है। इस्होने अओर ब्ा-व्या करते हैं। मतलब ये तो ऐसी चीजू है बहुत सही बात पूछी क्ि "मुझे प्रात्म-साक्षात्कार न, कि "प्रा बैल मुझे मार" ये policy (नीति ) । बस हो गया ! बस इतना बहुत है, अच्छे भले बेठे हुए हैं, एकदम से आपने शुरूआत 1. चा हिए निर्मला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt कर दी पीने की, तो उससे क्या कहा जाए ? लेकित है, वो खाता चाहिए। अव्र इसका मतलब है- अब ये हैं, कि समझ लो कि हो सकता है कि मैंने नान क साहब थे, वो भी गोशत खाते थे । कबीर एक-दो बात नहीं कही श्रौर हम चल बसे, तो दास खाते थे गोश्त अपने मोहम्मद साहब खाते लोग कहेंगे कि माताजी ने इसको तो मना नहीं किया थे राम खाते थे, था, तो ये ही करो। अरे भई ! सीघा हिसाब ये भी खाते थे । लगाइए कि जो चीज अपने चेतना के विरोध में जाती है.........। माने ये, कि जो आ्राप शराब पिये, वो श्रपके चेतना के विरोध में जाती है तो खाने पर ही लग गए । क्योंकि खाने पीने कि नहीं जाती है-सीधा हिसाब है न। तो वो कर । अच्छा, सिंगरेट पियें, (के सर) होता है न ? वो आपके शरीर के विरोध हो जाये । और उससे भी [असर आता है कि में जाती है । बुद्ध भी खाते थे । श्और महावीर ले किन उनका ये नहीं था कि खाने पर आए न से अ्रास्मा पर असर तब अता है, जब आपके अन्दर ऐसी प्रवृत्तियां आ जायें जिससे अराप हिसक उससे cancer अगर आप एकदम बंद-गोभी होकर पड़े रहें- cabbages (बंद गोभी) । कुछ लोग जो होते हैं वो अच्छा, रही बात गोश्त खाने की, इसके बारे विल्कुल उस प्रकार हो जाते हैं कि जैसे कि कुछ "में क्रिसी ने भी नहीं कहा। गोश्त मत खाप्रो" उनके अन्दर कुछ शक्ति नहीं है । -ऐसा किसी ने नहीं कहा, गोशत मत खाप्रो । ये तो बनाई हुई चीजे हैं । ऐसा नहीं कहा । लेकिन ये जरूर कहा है कि आप, जो भी है खाना खाइये। vegetarian लो। गोव्त खाने पर जब लोग आते हैं तो मछली, मुग्गा, घोड़ा, गाड़ी सब खा जाते हैं । और जब vegetarian पर आते हैं तो ये हद हो जाती है कि खटमलों को बनायंगे, mos- quitoes (मच्छरों) को ब वाएंगे। भई कोई चीज़ का तुक होना चाहिए ! अब आप देखियेगा कि बीमारियां भी इस बनन तरह से आती हैं-प्रतिशयता से । जो लोग बहुत जया दा गोश्त खाते हैं, वो आततायी होते हैं, अहंकारी होते हैं । और उनके अन्दर बीमारियां क्या आ जाती है? ऐसे लोगों का blood- संतुलित (शाकाहारी) हैं , Vegetarian Pressure (२क्त दाब) ज्यादा हो सकता है। Heart-attack (दिल का दोरा) हो सकता है क्योंकि है। over-activity (अति कार्यशीलता) होती है । जो लोग सिफ्फ घास खा कर रहते हैं, समझ हरेक चीज़ का तुक्त होता है, जिसका कोई मतलब हो। जैसे आप समझते हैं कूछ लोग ऐसे होते लोजिये, उनको सब Iethargy (सूस्ती) आ जाती हैं कि mosquito को । प्रब mosquito (मच्छ रों) है । उनका lethargic heart (सुस्त हृदय) होता को क्या मैं आत्म-साक्षात्त्कार दे सकती है ? एक है। अज ही एक साहब आए थे, अग्रवाल थे वेचारे। सीधा हिसाब-दे सकती है क्या ? खटमलों को दे तो कहने लगे, उनके Iethargic heart, lethar- सकती हैं ? मुगियों को दे सकती है क्या ?-नहीं दे gic liver, lethargic intestine (कम जोर । तो मैंने कहा अप सकते क्योंकि आपने कभी खाया ही नहीं। लेकिन आप ऐसा करिये कि proein (प्रोटीन) खायें, ज्यादा । तो कहने लगे, "माँ, प्रोटीत कहाँ ?" मैंने कहा मिलता है, खोजोगे suit करता अगर तुम । अव खा नहीं सकते और। ये बहुत दिल जिगर व अति ) तो गोश्त नहीं खा सकती । ले किन शारीरिक दुष्ट्या जिस आदमी को जिस चीज़ की जरूरत है वो खूब खाए। लेकिन अगर लोग सिर्फ गंदो ही चोजों खाना चाहें, उसे क्या कह सकते हैं ? जिसको जो निमंला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt र खा चुके carbohydrate (कार्बोहाइड् ट) नहीं खाना चाहिए तुमको ।"-ये समझाने की बात देगा कि इसमें कैसे आप घुस सकते हैं । बराबर । होती है। जा कर पूछिए किसी बैंक के बारे में, तो वो ये बता लेकिन उसके मैंनेजर से पूछिए तो वो कहेगा कि देखिए इसमें ये मजबूती है, ये मज़बूरूती है, वो अरब किसी ने कहा कि "भई गोता में लिखा मुजबती है। लेकिन चोर ही बता सकता है आप है।" बहरहाल, मैं तो इतना ही कहूँ गी कि गीता मजबूत ने सबसे पहले ये कहा कि, "अर्जुन, तू इन बना दोजिये, तो भी हम उसमें घुस के दखायगे । इसमें कैसे धुस सकते हैं । कितने भी ह FIL में कृष्रण सबको 'मार।" अहिंसा की तो कोई बात ही नहीं करी। मतलब उनको अहिसा में कंसे ला कर डाल दिया। पता नहीं। उन्होंने तो 'इन्सान' को मारने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि भई को कहा, जानवर को तो छोड़ो । औ्र उस पर को अकल तो मिले । अत्र महावीर जी को इस हृद गुरू तक को मारने को कहा, तो को कसे कहेंगे तक पहेचा दिया कि अब तटमल,.....एक वराह्मरण कि तू इस को नहीं मार, उस को नहीं मार । बो को कहा कि तुमको खटमल लगा तो पहले ही कहते कि सव मरा हुआ है । ये इंसान की खुबी है। हर धर्म प्रचारकों ने इन्सान संदि लाए। उसको देते हैं, और तुमको इतना पसा देते हैं । उसके बाद खटमल उसको जब चूस लेते हैं और ब्राह्मण बाइ- की छुट्टी हो जाती है. तो बड़ा घम-कार्य हो गया हमने इतने खटमलों को खिला दिया, एक बाहाण श्रब ये कोई तरीका हुआ ? ऐसी उल्टी बातें भी सब जगह हुई हैं। ! बिल में भी बहुत गलत गलत दिया है। कुरान में भी ऐसी चीजे हैं। ये तो सबका धंधा है, क्योंकि ऐसा नहीं करेंगे तो इनकी चलेगी केसे ? कुछ न कुछ ऐसा बना देते हैं कि जिससे कोई न कोई चोज एक group (दल) बन जाए। ये सब जो हैं गठबंधन बनाये हुए हैं, समझने की बात है, ये चेतता के विरोध में सब, शराब वर्गरह थे जाता है। कीक नहीं है। रात-दिन जो आरादमी खाने-पीने का इसलिए शराब के विरुद्ध सबने कहा है. चाहे Moses (मुसा) को ले लौजिये आप । अब ईसा मसीह ने नहीं कहा, आप कहेंगे। लेकिन ऐोसी बात नहीं है। ईसा मसीह यहां (अाज्ञा चक्र) पंदा हुए हैं, श्रोर ये जगह जो है, वहां पर दुसरी बात करने"क्या खायगे ? कल उपवास है।" और मार हाय- की थी। यहाँ जो बात करनी थी वो ही तो वात होएगी। अव मैं वृण्डलिनी के जागरण के लिए अगर आई है, तो मैं उसी की वात करूगो आपसे । लेकिन इस वक्त ऐसा है कि सभी बात करनी पड़ेगी । नहीं तो मुझे डर लगता है कि जो बात नहीं करूगी, उसी को पकड़ बेठिएगा। इसलिए बेहतर है कि नहीं करेंगा, भगवान के नाम पर । अपने लिए मैं सभी बात कह जाऊ ! लेकिन तो भी पकड़ने करना है तो करो । लेकिन जो आदमी उपवास वाले पकड़ेंगे। जिनको ये ही काम है सुबह से करेगा, उसे गाँव से बाहर जाना चाहिए; क्योंकि शाम कि इसकी पकड़-1oopholes जिसे कहते किसी को उनकी बातें नहीं सुनने की । यहाँ तो हैं न । जैसे अब कोई अगर आप चोर के पास सब में शहीदीपना है। का। मनुष्य को मामले में बहुत कम । सूझ-बूझ वहुत है, लेकिन धर्म के और खाने पीने के बारे में ज्यादा विचार करना भी ही विचार कर के रहेगा, वो आरत्मा को क्या पाएगा ? आप ही बताइये। अब उपवास होने का है, तो उपवास ही के बारे में लोग सोचते रहेंगे । | अ्व] हैय तोबा मच जाएगी, हनुम।न जी का अवतार हो जाएगा। उस बक्त, "कि इतका उपवास है। दूर ही से पता हो जाता है कि कोई पवास कर रहा है । भगवान बचाए रखे ऐसे उपवासियों से तो । सहजयोग में दूसरा नियम है कि कोई उपवास न । "मैने इतना उपवास निमंला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt किया । तो मैं सबको डंडे मार स कता है ।" वो भी होशियार है। वो भी अलग-प्रलग खाना मैंने देश के लिए इतना त्याग किया। तो मैं सब बना-बना कर आदमी की जबान खराब कर देती की जान खा सकता है ।" किसने बताया था ? वो भी एक martyrdom का, उसकी जबान पहले खराब कर दी जाए । जब (शहादत) है, दिमागी जमा-खचं किया तो किया मजे में रहो । है क्योंकि प्रच्छा तरीका है आदमी को घर बुलाने भई काहे को किया, ! उसको काबू में कर लिया, तब वो फिर दीड़ता- फिरता है इत जीभ के पीछे में । और इस कदर नखरे खाने के मामले में हैं कि तो खाने पीने का विचार अति रखना भी दोषमय है। पर पार हो जाइए, फिर वात करेंगे । मै श्रापसे बता नहीं सकती । कि बंगाल में अरब क्योंकि अभी बात करने में आप वृद्धि के दम पर जैसे है रोहू मछली खाएंगे । वहाँ रोह चलेंगे । इसलिए पहले पार हो जाइये। किसी पर कोई होता नहीं; तो रोह खायेंगे ! वही खायेंगे चीज़ का compulsion (बन्धन) नहीं है खाने जो होता नहीं। अोर वो जाता है central India पीने का । लेकिन अपने से जो बड़े जानवर हैं, उनको मत खाइये। अप संबको गोश्त ही खाना है या ये ही खाना है। छटे पखर में मिल जाती थी-तो भूखे मरने जो खा रहे हैं, वो ठीक है; ज्यादा मत खाइये । कम खाइये, और कम भी इतना नहीं खाइये कि इक्कट्ा करके एक पूरा जहाज का भूखे मरिये । दोनों के बोच में रहना है -मध्य मार्ग। जहाज़ भेजा । उन्होंने वापस कर दिया कि "हम कोई चीज़ का extreme (पराकाण्टठा पूर्ण) (विचार) मत लीजिए। जो आपको बीमारी होगी, लाटसाहवी देखिये ! और सब का सब बापस कर उसके अनुसार आप अपना diet (खुराक़) रखिए । ।" हम तो सिर्फ इसमें कहेंगे कि किसे प्रोटीन खाना है, किसे कार्बोहाइडट खाना है, और किसको fats (विकनाई) खाना है समझ न ? प्रर की बठा तो वो चाहिए, ये चाहिए, इसमें नमक ठीक इस पर आप अपना तथ कर लीजिए, प्राप जिस नहीं है, उसमें.....ये सब कहीं नहीं होता ये तरह से भी खाना खाना चाहें। उसके प्रति बहुत ज्यादा विचार करना है, तो अपने हिन्दुस्तानियों हैम हृद ? का ध्यान ही, चित्त ही खाने पर है । ये भी वात है । हिन्दुस्तानी लोग बहुत ज्यादा खाने को सोचते | रात-दिन उनका विचार, पता नही क्या, इतना का time (समय) आएगा, अभी time नहीं है ! खाने पर ? और इतने नखरे खाने में करते हैं कि मैंने कोई देश में इतने नखरे करने वाले लोग नहीं देखे जितने हिन्दुस्तान में । और हालांकि हम लोग गरीब लोग नखरे हिन्दूस्तानियों के हैं अापको कहीं नहीं मिलेंगे ऐसे, इतने नखरे हम करते हैं । श्रौरत जो है, मध्य भारत) से । एक बार वहां रोह fish (मछली) नहीं मिली। मतलब उनके वहाँ छोंटे- और सहजयोग में ये नहीं कि लग गए । तो हमारे बबई से कुछ लोगों ने बड़ा पैसा-बैसा sea-fish (समृद्र की मछली) खाते ही नहीं view ती । दिया, "sea-fish हम नहीं खा सकते में कोई ऐसा नहीं, आप कहीं जाकर देखिये, कि दुनिया जी sea-fish नहीं खाता ये fish खाता है, खाने अपने ही देश में है । और इतने ज्यादा खाने के लोग शौकीन हैं कि जिसकी कोई नहीं इसलिए खाने की तो बात आप जरी भूल ही जाइये थोड़ो देर के लिए। अभी थोड़ी देर बाद खाने God looks after you. For God what s Miracle ? What is Miracle for God ? हैं, कहने के लिए ! लेकिन जितने (इच्छुक श्रोताओं में से एक ने बताया के कैसे निमला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt बो सहजयोग में आए सिर्फ़ दो हफ्ते और करसे मां की कृपा से सड़क दृर्घटना उनके साथ होने से बची) उन्होंने कहा कि "भई ये तो कुछ समझ में नहीं । न तुम्हारी हड्डी टूटी, न कुछ हुआ। तुम तो-जसे कोई फूटबाल उड़ाता है, इस तरह से तुम नीचे गिरे, और जैसे के वैसे । आया श्री माताजी : ऐसे बहुतों की बचत हुई । बहुतों की । बहुतों ने मुभे चिठ्ठी लिखकर भेजी । तो उन्होंने कहा कि, "जब मैं गिरा तो बड़ी चौट प.ई धी. लेकिन एक lady (महिला) आई, सफेद साड़ी में; और सफ़ेद साड़ी पहनी थी Indian lady (भारतीय महिला); और उसने उतर के मुझ्े हाथ लगाया औोर मझे ठीक किया । उस से मैं ठीक हो एक ने लिखी; उनकी वस गिर गई थी प्रस्सी नीचे । और दो बार गोल घूम करक, चारों फुट पेर जमोन पर जम गए और उस में कोई मरा नहीं, कुछ नहीं हुआ। और जो ड्राईवर साहब थे, मारे डर के भाग खड़े हुए। एक ने कहा कि भई मुझे तो बस चलाना आता है । उन्होंने कहा कि "अब बस का क्या वचा होगा ।" वो (समाचार पत्र) वालों को तो ये चीज़ चाहिए। उतरे, उन्होंने चाभी चलाई तो चाभी चल गई, गाड़ी अपर आ गई और स्र लोग चले आए । तो गथा ।-आप तो जोनते है newspaper तो उन्होंने छाप-छूप दिया कि एक Indian lady आई, ये हुआा। उसके बाद तीसरे दिन उन्होंने हमारा photo- araph (चित्र) देखा newspaper में । तो वो में तो उन्होंने कहा कि इसमें कोई न कोई संत बैठा हुआ है।-महाराष्ट्र को बात है, महाराष्ट्र दौडे-दौडे गए बताने के लिए कि ' ये ही बो लेडी है लोग मुझे जानते हैं ।-तो उस में हमारी जिसने ठीक कर दिया .....।" तो उन्होंने फिर योगिनी बैठी थी, उसके हाथ में मेरी अंगूठी थी । "हां, हो, ये हो माताजी की संत है-सब उसी के पेर पर आने लगे "तुमने ब वाया ।" एक सहुज- एक विट्रि लिखी व्यवस्थापको को । हमारे गविन ब्राउन करके साहब हैं, उनके पास चिटठी हैं। तो इन्होंने एक फिर चिट्ठो लिखकर भेजी कि माताजी ये तो कुछ भी नहीं ! लेकिन आगे की बात के लिए ये कोई अश्चय की बात तहीं। ऐसा पहले वताये आ्रप से कि अभी-अभी बैडफ़ोर्ड (लंदन) में बहुत बार India (भरत) में हो चुका है । हम एक दिन भाषण दे रहे थे । अाठ बजे का वक्त होगा । सात बजे से भाषण शुरू हुआआ । अठ वज -वो हमारे साथ बठ हुए कुछ बात कर रहे थे । भूल के समय एक लड़का कही चार-पाच मौल को दूरी गुए कि उनको हा ई को्ट जाना है, श्रोर एक case पर, और ऊपर से नीचे गिरा । पनो माटर- साइकिल से गिरा र बो जाकर के एक नदी की तो मवविकल ने फोन किया कि, "भई ब्या हुआ उस एक बार एक साहब, हमारे trustee (ट्रस्टी) हैं (मुकदमा) है, ज्रर उसको लड़ना है। जब धर गए side (किनारे) जा के गिर पड़ा। तो सब ने सोचा कि "अब तो खत्म हो गया ये लड़का । उसी समय ambulance वर्गरह आई-उसमें पन्द्रह-बीस मिनट लग गए । जब लड़के को लाए तो देखा विल्कुल ठीक, उसकी हड्डी नहीं टूटी, कुछ मुकदमे का क्या हुआा नहीं। उसने हमें कभी देखा नहीं था, कुछ मतलब आप तो कल आए थे और जिरह हुई और आप की नहीं। और विल्कूल ठीक ! लेकिन एक जगह दर्द तरफ से Judgement (फ मला) भी हो गया। उन्हों- हो रहा था। तो उसको जब अस्पताल ले गए तो ने जाकर judgement (फसला) पढ़ा। उसमें तीन case का ? उन्होंने वहा अच्छा, में कल जाकर देखता हूै । दूसरे दिन वो गए तो उन्होंने पूछा, 'भई उस ?" कहने लगे क्या मतलब ? निर्मला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt बार उनका नाम लिखा था कि, "इस 1time (समय) में गिरी रएकदम हम सोग उस के अन्दर घुस प्रधान साहब ने बड़े brilliantly (योग्यता पूर्वक) गए। पता नहीं कैसे ? ओर जब बाहर आए वात करी, और बड़े ही inteligent points (युक्तिरूरणं मुद्द ) out of the way (पसामान्य) चीज कह डालो; सा गई तब में ने कान पकड़े कि अब मैं सिगरेट औ्र इसमें कोई ये हो नहीं दिखता है कि नहीं पिऊँगा ! और इतनो-सी चोट खा गई - इनके favour (हक) में case जाएगा।" वो तो मेरे साथ बैठे थे अोर आठ-दस खा गई दमी वहां बैठे थे ! इस प्रकार अनेक बार हुआ। लेकित इसमें प्राएगा। अभी तो जाती ही नहीं, जब जानिये तथ कोई प्राशचर्य की नात नहीं । क्योकि अगर मैने देखिये क्या खेल खेलते हैं । उसकी लीला अपरम्पार कहा कि परमात्मा ही आश्चर्यजनक है, तो फिर है, वेटा । अब तुम्हारा दिश्वास वैठा न ?- इसलिए । इसमें आपको आश्चर्य क्यों है? अरगर परमात्मा ये विद्वास बैठाने के लिए ही ये सब लीला करते हैं । आपको सम्भालने वाले बेठे हुए है, तो उसका थोडा-सा जानकारी किसी प्रचिति से तो होगा ने। जाए तो एक किताब लिख डाले । सब के एक एक तो प्रचिति मिलती रहती है । इससे आपका अनुभव है। अब इस का explanation(स्पष्टीकरण) तो विल्कुल हमें कुछ नहीं हुपा था, सिफ्फ मेरी ये अंगुली कुछ (जिसमें विशुद्धि चक्र होता है) वो जरा-सी चोट निकाले, और मुक दमा) बतायया उन्होंने-कि इतनी-सी मेरी ऊँगली चोट । फिर परमात्मा का खेल आप देखिये, बडा मजा यहीं पर हर सहजयोगी आपको अगर वताने लग विश्व्रास बढ़ता जाता है परमात्मा में । ले किन पार होने से पहले नहीं मिलेगा।- Science से परे है, senses (इन्द्रियों) से परे हैं ब ये लड़का जो था, ये पेंदा पार था । बहुत लोग मिलते हैं. कहते हैं. "माँ हमने आपको स्वप्न की मशीन शओर है। में देखा । हमने पहले सो आपको देखा नहीं था । से लोग । अब ये कैसे हो गया ? अब इसकी है,कि आप (फिर से हर हुएते) आइये ध्यान-धारणा व्या द Science में ? तो कुछ नहीं बैठने बाला । से ये मशीन और है, मैंने प्रपसे कह दिया। भगवान अच्छा अब पार हो ल, कोशिश करे। पर ये बहुत लम्बी-चौड़ी बात है। ये तो दूसरी मशीन है । सहजयोगी ये बात बहुत बार देख चुके हैं । योग को प्राप्त करें और दूसरी चीज है इसमें यहाँ हजारों ऐसे case (उदाहरण) हैं कूशलता, प्रवीणता करें और परमात्मा के आशो- Accident (दुधंटना) सहजयोगी होगा तो accident टल जाएगा, और हुआ भी तो किसी को चोट नहीं आएगी हमारे एक सहजयोगो-पहले हम कहते नहीं दया का सागर है, क्षमा का सागर है। सब चीज़ थे किसी से कि सिगरेट मत पियो या कुछ करो-- आपकीएक क्षरण में खत्म कर सकता है तो, सिगरेट की उनको थोड़ी आदत थी, ज्यादा नहीं, सब छूट गया था। चलाते वक्त हाथ में उनके सिगरेट थी और उनके हैं कि मेरे पूर्व-कर्म खराब थे, ये था, सो तो कुछ पांच-छः दोस्त भी साथ में सिगरेट पो रहे थे। सब बात बनने नहीं वाली । आप ये सोचिए कि मैं ने force (मनबूर) किया कि सिगरेट रखो हाथ में । कहने लगे, "मैंने उसको पिया भी नहीं, हाथ ही बनना चाहता है । इसी विचार से जो आदमी में ही थी, इतने में हमारी मोटर जाकर खड्ड आयेंगे, वही पार हो सकते हैं । कर । इसमें उतरना पड़ता है। पहली चीज़़ है कि होगा नहीं, अगर वहाँ बाद से आप पूरी तरह से सिचित रहें । परमात्मा को आप जानते हैं लेकिन समभते नहीं हैं। परमात्मा जो हैं वो प्रेम का सागर है , आप विल्कूल ये न सोचें - कर्म, संस्कार - कुछ न सोविये। लेकिन एक दिन मोटर ये सोंचना भी नू कसानदेह है । अगर आप सोचते अात्मा हैं, और आत्मा निर्दोष है और मैं प्रात्मा निमला थोग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt दीपावली आशीर्वाद प्रिय सहजयोगी, मेरे प्यारे बच्चों, दिनांक : २१ - १० ७६ यह दिपावली तुम सबको प्रेम के प्रकाश से होगी मैं जो भी कहती है उसे विपरीत रूप देने आलोकित करे- तुम स्वयं दीप हो । जो दीप जल से भी जो सत्य है वह रहेगा हो । तुम उसका खूप उठते हैं वे आवरण में दबाये नहीं जा सकते हैं । नहीं बदल सकते । तूम ही आ्नजान रह जाओगे, आवरण से बे कहीं अरधिक शक्तिशाली हो जाते हैं । तुम ही पिछड़े रह जाओोगे । इससे मै दूखी हैं। यह उनकी अपनी संपदा है। उन के ऊपर जब आधात होते हैं वे विचलित होते हैं और बुझ जाते हैं। करी दिवाली नये आह्वान का दिन है । सारे विश्व को आहान करो। अनेक दीप जलाने हैं । उन्हें संवारना है । उनमें तेल प्रेम का डालो, ज्योत आपके दीप विचलित क्यों होते हैं ? इस पर की रूई कुण्डलिनी है और अपने अन्दर के आत्म विचार करना होगा उन पर क्या कोई पारदर्शी प्रकाश से औरों की कुण्डलिनी जागृत करो । क आच्छादन नहीं है ? क्या आपके माँ का प्यार आप भूल गये हैं ? क्या इसलिए आप इतने विच- यह कुण्डलिनी की ज्योति जलेगी और तुम्हारे अन्दर मशाल बनेगी। मशाल बुभरती नहीं है। लित हैं ? जैसे कांच दीप का रक्षण करती है उसी र फिर मेरा प्रेम का निषकलंक आवरण बनेगा। प्रकार मेरा प्रेम तुम्हारी रक्षा करेगा । न उसकी सोमा रहेगी न अन्त । में तुम्हें देखती किन्तु इस कांच को साफ रखना है। मैं किस रहंगी। प्रकार समझाऊँ ? क्या कृष्ण के जैसे कहना तुम सबके प्रति मेरा स्नेह अनेक अने क वद वन कर उमड़ रहा हैं। आशरी- होगा " सर्वधर्मानाम् परित्याज्य मामेक शरणं ब्रज ।" या इस मसीह जैसे कहना होगा मैं ही रास्ता है, मैं ही द्वार है । यह दिवाली का अरभिनन्दन है । मैं तो बताना चाहती हैं कि मैं ही बह मजिल (Destination) हूं । किन्तु क्या प लोग इसे स्वीकार करेंगे और क्या यह बात आत्मसात तुम्हारी सदैव प्रेम करने वाली मां निर्मला निर्मला योग २१ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt निर्मला माऊली आमुची निर्मला माऊली सहजयोगीयांचो साऊली । श्री माता बसली मूळाधारी तिची शोभा सहस्त्रारी ॥धृ॥ चैतन्ये गणेश निमिला ठेविला त्यासी मूळाधारी । अरवखळ बाळ रक्षितो बाळ म्हण आई आई ॥१ ॥ इडेवरी । माता बसली संट ग्रबियल भैरवनाथ साथ त्वरीतची करी ॥२॥ इच्छाशक्ती रूपी कार्यशक्ति महासरस्वतीची वाहे पिगलतुूनी । सट मायकल, हनुमान जमले अवती भवती ।।३॥ अळगतयी उभी । महालक्ष्मी षट्चक्र भेदन करण्या साथ सुष्म्नेवर करो ।।४॥ कमळावरी विष्ण अवतार घेऊनी शेषशाही निद्रा घेई । ब्रह्मदेव सरस्वती होऊनी बैसे स्वाधिष्टानी 1॥४॥ महंमद पैगंबर श्री दत्त गुरू बसले भव सागरी । दहा घर्माची निती शिकवीती त्या स्थळी ॥६॥ माता अनाहती येई असुरांचे वध करी कृष्ण अवतार घेऊनी कुरूक्षत्री गिता सांगी ।|७॥ गौतम बुद्ध महावीर मध्ये शोभे छान । जिजस रूपामध्ये माता येई आज्ञा चक्रावर ।।८। शक्ति साधकांचे रक्षण करी । एकादश रूद्र आदिशक्ती सहस्त्रावरी आत्म साक्षात्कार देई ॥8॥ -सौ. शकुंतला निकोलस अंधेरी केन्द्र निर्मला योग २२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt ।। महायोग ।। पडती अंगावरती चैतन्याची फुले । टप् टप् भिर भिर भिर भिर त्या तालावर ध्यान आमुचे जुळ ।। धृ॥ कुरणावरती काडखाली । ऊन सावली विणते जाळी । ये तो वारा पहा भरारा । खुषीने डुले ॥ १॥ आत्मा वहाती । दूर दूर हे सूर उन्हात पिकळ्या पहा नाहती । हसते धरती फांदीवरती । राजयोग हा झुळे ॥२॥ |।२॥ ध्यान आमुचे भुळ भुळ वारा । ध्यान आमुचे ल कल के तारा ।। पाऊस बारा मोरपिसारा ॥ ध्यानातून या फुल i॥३॥ फुलासारखे सर्व फुला रे । सुरांत मिसळूनो सूर चला रे । ध्यान करीती तेय बाकी सारे राहाण । खुळ ॥४ ॥ फळारे । फळासारखे योग सब साधूनी पुढे चलारे महायोगाची प्रगति पाहूनि । माता आमुची । डुले ॥ ५॥ -बेवी कुंतल, १२ वर्ष अंवेरी केन्द्र निर्मला योग २३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt श्री आनंद-भमी जहाँ श्री माताजी हैं,-वही आनंद - भूमीहै ॥धृ॥ माँ का अपना सब कुछ प्यारा लगन भी प्यारी, बोल भी प्यारा गुण गान कहूँ क्या मैं ? वही आनंद भूमी है ।।१॥ माँ की दृष्टी उठती है जब लगता नयन न कमल सखिले तब निरंतर प्रेम बरसता है । वही आनंद भूमी है ॥२॥ माँ की आवाज जब मैं सुनता लगता बरसे प्रेम सदा का उसी में भीग जाते हम हैं । वही आनंद भूमी है ॥३॥ मां की सुनकर बातें भाता बरस रही हैं सावन घारा जैसे मोती विखरते हैं वही आनंद भूमी है ।॥४॥ । ा मां का हरदम हँसता चेहरा विश्वरूप देखते हम सब भूलते हैं। वही आनंद भूमी है ।॥५॥ जैसा परमात्मा माँ के सहजयोग को पाकर दूस रो जन्म हुआ धरती पर चैतन्य लहरिओं में खोना है । वही आनंद भूमी है ॥६॥ त। सहजयोगिनी विजया प्रधान लोनावला निमंला योग २४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt श्री माता जी ध्यान* मंत्र से प्रारम्भ कर सकते हैं फिर जीसस की प्रार्थना कर, तत्वचात् कहें - "मैं क्षमा करती है । " यह कार्य करेगा। तब श्राप निविचार चेतना में हैं । इस के पूर्व कोई घ्यान नहीं। है । जब विचार उते हैं-'मुझे चाय पीना है আातः काल अप उठ जाइए। और ध्यान कीजिए सुबह ही सुबरह वात-चीत विल्कुूल न अव ग्राप ध्यान करे । करें । बैंठे ध्यान करें, क्योंकि उस समय देवी (ईश्वरीय) में व्या कूगा 'मुझे क्या करना है 'यह कौन है चैतन्य किरणों आती हैं-सूर्य बाद में आता है। और वह कोन है' ये सभी बहा होंगे अतः पहले उसी से चिड़ियाँ उठती हैं। उसी से फल खिलते हैं। आप निविचार चेतता में आएं । निविचार अवस्था उसी (ईश्व रींय शक्ति) से सभी जागृत होते हैं के बाद ही आध्यात्मिक स्थिति (Spirituality) श्र यदि आ्रप संवेदनशील (sensitive) हैं तो प्रात: प्रारम्भ होती है-इसके पूर्व नहीं। इसको जानना काल उठने से महसूस कर सकते हैं कि आप इससे चाहिए। तर्क व युक्ति आदि के आधार पर आप कम से कम दस वर्ष कम आयु के लगगे । सच ! सहजयोग में उठ नहीं सकते । अतः प्रथमतः आप प्रात: काल उठना इतना अच्छा है । और स्वाभा- निविचार अवस्था में स्थित हो। आप महमूस विक रूप से आप जल्दी सोएगे भी। यह सिफ़़ करेंगे कि अभी भी कुछ चक्कों में यहां वहाँ रुकावटें उठने के विषय में है । सोने के लिए मुझे कहने की हैं। इसको भूल जाइए। आप इसको केवल भूल आवश्यकता नहीं-इसका प्रबन्ध आप स्वयं कर जाएं। लेंगे। अगर चाहें तो उठते ही स्नान कीजिए, व चाय पीकर तत्पश्चात् सुबह में आप ध्यान कर। बातचीत न करें । शुरू कर द । अव यदि कोई चक्र पकड़ रहा है तो पको कहना चाहिए "माँ ! मैं इसे आप को समर्पण करता है " अन्य चीजों करने के स्थान पर आप सिर्फ़ यह कह स्खुले आँख से मेरे चित्र को देखे और को शिश कर सकते हैं। परन्तु इस समर्पण को यूक्ति, तर्क आदि कि विचार उठना बंद हो जाए। अपने विचार को के स्तर पर नहीं उतारना चाहिए यदि आप रोकना चाहिए-जब आप घ्यान में हैं विचारों फिर भी तर्क-वितर्क या चन्ता करते हैं कि इसको को रोकने के लिए सहज तरीका है-जीसस की कहने की जरुरत क्या है ? तो यह कभी कारगर यदि सच्चा प्रेम और हृदय की पवि- (चक़्) की स्थिति है। अत: प्रातः काल जीसस त्रता आप में है, तो यह सर्वोत्तम वात है । यह की प्रार्थना या श्री गणेश जी का मंत्र स्म र कर । करना ही समर्पण है। अपनी सभी चिन्ताएं अपनी दोनों एक हो हैं । या पाप यह भी कह सकते हैं 'माँ पर छोड़ दें। सब कुछ अपनी 'मां के ऊपर; 'मैं क्षमा करता है ।" आप श्री गरेश जी के लेकिन समर्पण करना एक बहुत बड़ी बात है, जो निर्मला योग के अंग्र जी अक ४, संख्या १६ (जनवरी फरवरी १६८४) पृष्ठ ३४-३५ का अब अपना समर्पण घ्यान में अपने विचारों को रोकने का प्रयास करें । प्रार्थना (Lord's prayer)। क्थोंकि वह आज्ञा नहीं होगा । - हिन्दी रूपान्तर निर्मला योग २५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt अहकार-ग्रस्त समाज के लिए अत्यन्त कठिन है। उसके बिषय में बात-चीत करने में भी मैं चिन्ता आएं। निःसंदेह आप देखेंगे कि अब विचार आना महसूस करती हैं। परन्तु यदि कोई विचार आप तो रुक गया है लेकिन अब भी सिर में दबाब अा में उठते हों या कोई चक्र पकड़ रहा है"तो समर्पण रहा है। अतः यदि यह अहंकार है तो आप को कर । और आप पाएंगे कि वह चक्र साफ़ (clear) चाहिए- हो गया। प्रातः काल ऐसा वंसा न कर, बिल्कुल ं। प्रात: काल अपने हाथ की ज्योदा हिलाए इसके बाद अपने अहंकार रूपो बाधा पर कहना ओम त्वमेव साक्षात्, श्री महत् अहंकार साक्षात्, श्री आदि शक्ति माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।" महत् का अर्थ है-बड़ा, अहंकार-यानि ego । नहीं डुलाएं नहीं। आप पाएंगे कि ध्यानाबस्था में अधिकांश चक्र स्वतः साफ़ हो गए । अपने हृदय को प्रेममय बनाने की कोशिश आप इसे तीन बार कहें । करें। अपने हृदय में ऐसा,प्रयास करें व अपने गुरू को उसके अन्तरंग में बैठायें हृदय में बिठाने के लगता है तो बाएं भाग (side) को प्राप ऊपर उठाएं पश्चात् हमें पूर्ण भक्ति व समपण क साथ उनके जिससे यह (अहंकार) बाएं से दाहिने तरफ घकल प्रति नमन करना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् अब आप जो कुछ भी अपने मंस्तिक से करते हैं-वह केवल कल्पनामात्र तहीं है-क्योकि व दाये भाग को नीचे, जिससे अहंकार व प्रति अब] प्राप का मस्तिक, आप की कल्पनाए- स्वयं प्रकाशित है | [आप अपने को ऐसे प्रस्तुत करे जसे अपने 'गुरु' अपनो 'माँ' के चरणों पर नम्रतापूर्वक महसूस कर रहे हैं. इसको देखने की कोशिश करें । (समर्पण) हो रहे हों और शरप ध्यान के लिए आवश्यक प्रवृत्ति व वातावरण की विनती करें । #"ध्यान-तब यदि अब भी आप को अहंकार विद्यमान जाए। इसे हाथ द्वारा करें,-एक हाथ चित्र की तरफ रहना चाहिए । बाएं भाग को ऊपर उठाइए अहंकार संतुलनावस्था में आ जाए इसको सात बार करें । आप देखें, श्राप अ्न्दर की तरफ़ केसा इस प्रकार जब एक बार ्ाप अपने को -तब है-जब आप ईश्वर (परमात्मा) संतुलित कर लेते हैं-तब सबसे उत्तम यह होगा के साथ एकरूप हो जाय ! विशेष समस्याएं अपने मनोभावना अपना चित्त पर लगाएं,- मनःशक्ति पर । उनको देखें । आप अपनी मां का विचार करते हुए प्रपनी मनो- कि आप ब यदि अन्दर विचार आ्र रहे हों तो पहले भावना को प्रकाशित कर सकते हैं । ठीक ? उसको आप को पहला मंत्र बोलना चाहिए और तत्प- आलोकित करें । मन में जो कुछ भी समस्याएं हैं হचात् अन्दर की ओर देख । आपको श्री गणेश जी यह आपकी सभी समस्याएं सूलझती है । अत: का मंत्र भी बोलना चाहिए-कुछ लोगों को इससे जब आप अपनी भावना से सम्बन्धित हो जाते हैं मदद मिलेगी। उसके बाद अन्दर देख । आप अपने और ध्यानावस्था में उस पर ध्यान देना शुरू कर को ही देखें कि हमारे अन्दर कौन सी सबसे बड़ी देते हैं तब अ्रप पाएंगे कि वे भावनाएं आप के बाधा है । पहली है विचार, उसके लिए-निरतविचार अपनी 'माँ को सुपुर्द करें ( श्री माता जी' के चरण मंत्र पढ़ें। "ओम् त्वमेव साक्षात्, श्री निरविचार कमलों में अ्र्षण करें) तो वे भावनाएं विलीन साक्षात्, श्री आदि शक्ति माता जी, श्री निमंला होना शुरू हो जायेंगी व फेलने सी लगेंगी । देवी नमों नमः ।" अतः अन्दर उठती हैं। और यदि ये भवनाएं आप उनको इस तरह विस्तृत करें आप निर्मला योग २६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt कि आप को लगेगा-वे आपके नियंत्रण रखें । तब कुछ समय के लिए वाहर ही रोके में हैं। उन भावनाओं को नियंत्रित करने से आप रखें । पूनः ऐसा ही करें। इसके बाद आप पाएंगे व शक्ति- कि कुछ समय तक अपका सांस लेना बंद हो गया। बहुत अच्छा ! देखें, प्रब आप स्थिर हो गए हैं आप के प्राण व मन के बीच 'लय" घटित हो गई है। दोनों शक्तियां मिलकर (अब) एक हो जाती हैं । की भावनाएं ग्रर विकसित, प्रकाशित शाली होती हैं । अ्रव आप ऐसा करें कि अपनी सांस को देखना शुरू करें । देखे......अपनी सांस को धीमी करने का प्रयास करें, इसको कम करें । इसका तात्पर्य यह है कि आप साँस बाहर निकाले -कुछ सहस्रार के ऊपर प्रोर उसको वहाँ बाँध दें। पुनः क्षण के लिए रुकें-तब सांस अन्दर ले-लम्बे कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं- सिर के ऊपर और समय तक । तब पुनः साँस बाहर करें । इ स प्रकार उसको बाँध दें। पुतः कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं एक मिनट के अन्तंगत आप की स सि साधारण व उसको तीन बार बाँधे । तोर पर पहले से कम हो जायेगी ठीक ! इसका अभ्यास करें-अपना ध्यान भाचनाओं पर रखें । देखा आपने ! इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित हो जान बार उचचारण करं-"ओम त्वमेव साक्षात अब आ्प अपनी कुण्डलिनी को ऊपर उठाएं- अब आप सहस्रार के ऊपर-सहल्रार का मंत्र श्री कल्की, साक्षात्- श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी, माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः ।" गया। अच्छा ! देखिये कि कुण्डलिनी ऊपर उठती है ? अ्ब जब आप सांस ले रहे हैं-प्राप पायेंगे कि यदि श्राप देख तो यह (सहस्त्रार) अब खूला मिलेगा । उसके (साँस लेने व छोड़ने के) बीच में थोड़ा समय (विलम्ब) है जो प्राप रिक्त (खाली) रहने दें। साँस अन्दर लें । उसको वहां रोके रख । अब सांस बाहर निकालें और साँस बाहर निकालते रहें । एक बार ऐसा हो गया तब आप घ्यान में अब सांस अन्दर लें। अब इस तरह साँस लेना .....। जारी रखें कि वास्तव में सास धीमी हो जाय । आप का चित्त ( चाहिए अथवा आपकी मनोभावना पर । अच्छा होगा कि कूछ समय तक सांस प्न्दर रोके रखें । रोके रहें । इसको बाहर करें । बाहर रोके ३स प्रकार आप सहस्रार को पुन: खोल सकते हैं । श्रर आप देखेंगे कि वहाँ आप जम गए हैं । उतरिए. साँस धीमा रखना अच्छा होगा आप अपनी ध्यान) आप के हृदय पर होना साँस को धीमा करें जैसे कि इसे रोक रहे हों परन्तु यह इसके प्रति श्रम न करें । "जय श्री माताजी" निरमला योग २७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt परमपूज्य श्री माताजी का भारत में कार्यक्रम १६८५ विदेशों से सहजयोगियों का श्रागमन जनवरी १२ १२,१३,१४ बम्बई में कार्यक्र १५,१६,१७ वैतरना में कार्यक्रम नासिक में कार्यक्रम १८ २१ से २६ राहुरो में कार्यक्रम (२६-१-८५ को विवाहों का आयोजन ) पूना २७ सतारा २८ २६,३०,३१ कोल्हापुर तथा निकटवर्ती स्थान मल्हारपेट फरवरी ३ अरलुज शुगर फैक्ट्री में कार्यक्रम तथा ४ पूना को प्रस्थान पूना से प्रस्थान तथा बोरडी में आागमन ५ू बोर्डी कार्यक्रन ५ से १० १४ से २६ दिल्ली में कार्यक्रम बम्बई से आस्ट्रेलिया प्रस्थान आस्ट्रेलिया से बम्बई आगमन २८ मार्च २२ बम्बई में सार्वजनिक जन्म दिवस कार्य क्रम २३ बम्बई में जन्म दिवस पूजा २४ दिल्ली (पूजा) २५,२६ बम्बई श्रगमन २६,२७ अप्रैल लन्दन प्रस्थान ६ निर्मला योग 25 *Iচ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt श्री। मन्दिर में ? भगवान रहे क्या जब भरी ब्रह्मशक्ति इस जग में भगवान रहे क्या मंदिर में ? ॥ध॥ भगवान को मानव ने पाने में मंदिर में रक्खा सजाकर यह भूल नहीं तो और ही क्या ? अज्ञान नहीं तो और हो क्या ? ॥१ ॥ भोग चढ़ाये सुबह शाम उसे जमाये अन्नदान पुण्य का यह रिश्वत नहीं तो और हो क्या ? बह पायेगा भगवान को क्या ? ॥२॥ जन्म मृत्यु नहीं हाथ में उसके कुछ देकर पाना यही वह सोचे यह भीख ही लेना और ही क्या ? मानव तू भिखारी और ही क्या ? ॥३॥ खेल शक्ति का अधिकारी न तू किसी बात देना लेना का यह गर्व हो तेरा और ही क्या ? तू भी तो खिलौना और ही क्या ? ॥४॥। है सच और तुझे हो जाना जब है यह पथ तेरा जो झठा है यह शरीर ही मंदिर और हो क्या ? भगवान है इसमें और ही व्या |५।॥ जानना इस शक्ति से आसान सहजयोग को तू ध्यान करे तो और भी क्या ? जो अपनाये मं मिल जाये तूझे भगवान भला ॥६॥ सहजयोगिनी विजया प्रधान लोनावला