(ॐ निर्मला योग वर्ष ३ अक १४ जूलाई-प्रगस्त १६८४ द्विमासिक के t. कर ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की, साक्षात् श्री सहस्रार स्वामितो. मोक्ष प्रदायिनी माता जी श्री निमला देवी तमो नमः पुरी प पर ी ॥ श्री माताजी प्रसन्न ॥ %3D परमपूज्य माताजी श्री निर्मला वीमारियाँ ठीक की हैं। उनका मूझसे तथा और 100 लोगों से बहुत प्यार है । यह जिन लोगों से देवी का गुरूपूर्णिमा और नवरात्रि हुआ के दिन अपने आत्मजों को दिया उन्होंने ये किया । मतलब उन लोगों की पूर्व- १६७६-७७ पुण्याई से ये कला अवगत हुई परन्तु हम लोगों में बहुत से बुद्धिजीवी लोग हैं उन्होंने अभी तक अपनी बुद्धि के या wisdom के बलवूते पर विशेष हुआ आशी्वाद । सहजयोगी मंडली, आप सब का 'गुरूपूरिणमा के दिन भ तार नही मारा (विशेव कुछ करके नहीं आपका टेलीग्राम मिल गया । बहुत ही मुन्दर मामिक शब्दों में अरप सभी ने जो भाव प्रदर्शित भजा हप्रा दिखाया ) । व सहजयोग में पूस्तकों की कमी हैं। हर एक भाषा में किताबें लिखनी पड़ेंगी। बहुत से लोग भाषण किए हैं वे हृदयस्थ हो गये। वर्गरा लिखकर मेरे पास भेजते हैं। वह सब एकत्रित करने वाहिए । उसी प्रकार मेरे पत्र भी छापने मैंने आत्म- लंदन में गुरूपूरिगमा मनाई तब दर्शन (self-realization) क्या है श्रर सहज- योग में आपको बह (self-realization) मिला पड़गे । या नहीं यह विस्तारपूर्वक समझा दिया । आप सब के लिए टेप किया हुआ भाषण हम भे ज द्ग। चाहिए कि कलियुग में 'सहजयोग सारे देश-विदेशों में यह समाचार जाना ही साधन है । "आत्म-तत्व पर सोचिए ऐसा मैं ने बताया सारे विश्व को सहारा देने वाला यही एक मार्ग था। आप आत्म-स्वरूप हो, मतलब प्रापकी बुद्धि है । मैं एक किताब लिख रही है। लेकिन वह सभी मन और अहंकार सभी उस अरात्म - ज्योति से के लिए अ्राज उगयोगी नहीं है । सभी को इस पर प्रालोकित होने चाहिए। जब उस ज्योति का प्रकाश सोचना चाहिए। दूसरे केन्द्रों पर ये बातें बतानी समग्र होता है तभी बुद्धि में wisdom (विवेक) चाहिएं। का प्रकाश दिखाई देता है । मन में प्रेम की सुगंध फलती है और अहकार (विराट) से बड़े-बड़े कार्य घटित होते हैं। इन सभी घटनाओं में समग्रता चमकती है । अपने आत्मतत्व पर खड़ा होना आना चाहिए। परन्तु पहले इसे संजोना चाहिए । सहजयोगियों में बहुत से ऐसे हैं कि उन्होंने रनेक सारे सहजयोगियों को माँ के अनेकानेक आशीर्वाद। आपकी संदासवेदा याद करने वाली, आपकी निरमला माँ निर्मला योग द्वितीय कवर कागनी ३ तल र सम्पादकीय परमपूज्य अदिशक्ति श्री माताजी कहती हैं कि पार होने के पश्चात आप सभी को कुण्डलिनी और सहजयोग के विषय में बहुत कुछ जानकारी हो जातो है किन्तु भक्ति के विना समतोलन सम्भव नहीं है अत: अ्रपने प्रापको भक्ति में समा देना चाहिए। भक्ति से ही भावना बढ़ेती है । भक्ति से ही हम विराट में निमग्न हो सकते हैं । परमपरमेश्वरी श्री माताजी से यहो प्रार्थना है कि हम सभी सहजयोगियों को अनन्यभक्ति प्रदान करें । ॥छि निमला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माधुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक-११२०१ : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५.१, हीदर स्ट्रीट वेन्कूवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के २ यू.एस.ए. यू.के, श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन सर्विस लि. : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ भारत १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्जू. १ एन. ५ पी. एच. श्री राजाराम शंकर रजवाडे ८४०, सदाशिव पेठ, पुर्ण-४११०३० लिल स ता पृष्ठ इस अंक में कता ाम सम्पादकीय १. २. ॐ मां (परमपूज्य माताजी के मराठी पत्र का हिन्दी रूपान्तर) ३. कुण्डलिनी और ब्रह्मशक्ति (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ४. देव्याः कवचेम् ५. सहजयोग महिमा ६. जय श्री माताजी निर्मला देवी ( मराठी में प्रार्थना) ७. जोगवा (माग, णं इच्छा) ८. श्री माताजी प्रसन्न ( माताजी का पत्र) ৫. श्री (माताजी का पत्र) ५ १३ १६ १६ ) २० द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थं कवर १०. भजन निर्मला योग २ ॥ ॐ माँ॥ नवरात्रि के दिन सभी सहजयोगियों को स्वतन्त्र है, आज़ांद है । वह जानकार है । वह अनेकानेक आशीर्वाद । घोड़े को भी जानता है और मार्ग को भी जानता है। कलियुग में महान घरमातान युद्ध चाजू है । एक यह नवरात्रि की शुरूवात का मतलब समय है। पीछे हुटकर के आपातकाल का तवरात्रि का की शुरूवात है । महायुद्ध एक एक दिन प्रत्येक महापर्वं की गाथा है । ये युद्ध अनेक युगों में हुआ है - केवल मानव के संरक्षणार्थ । परन्तु उस मानव का संरक्षण क्यों करना है ? सारी सुष्टि ने उन्हें वरदान क्यों देना हैं ? इसे सोचना चाहिए। और वेश्या व्यवसाय शुरू है । इस समय हमारे पद पर राज्य करने के लिए बिठाया परन्तु कलियुग में ने अत्यन्त कषुद्र गति स्वीकार को है। हैं, कुछ लोग लूटमार करके पैसे इक्ट्टा कर रहे हैं । नहीं चलेगा। शैतानों का साम्राज्य हर एक हृदय में प्रस्थापित है। अच्छे बुरे की पहचान नहीं रहो। परमेश्वर और संस्कृति दोनों वाज़ार में राक्षस वेच रहे हैं। नीति नाम की चीज़ कोई मानता ही तहीं। चोरी-डाकाखोरी का नाम, अ्रमीरी मनुष्य को सर्वोच्च घुडसवार (सहजयोगीजन) आपस में गले काट रहे हैं. मनुष्य अपने 'स्व का साम्राज्य क्षुद्रता में क से होगा ? ऐसा जो सामने आएगा तो सहजयोग की दवाई कौन पीएगा ? उसका परहेज करना ही पड़ेगा । श्रापने क्या कमाया वह देखना जरू री है । कौन आप सहजयोगी एक विशेष जीव हैं। इस सारे संसार में कितने लोगों को चैतन्य लहरी का आाभास है ? और कितने लोगों को इस के विषय कोन से कलंक (दाग) छूटे और आप कैसे पविव में ज्ञान है ? हुए (निमंल हुए) ये देखना चाहिए । दूसरों के अच्छे गुरण देखिए और प्रपने दुर्गुण (बुराई) देखिए । फिर अपने आप ग्रापका चित्त काम करेगा ढोल लोग जानते नहीं हैं तो वह दोष अ्ज्ञानता का है । परन्तु जब माप अपने अरप की महत्ता जानते का काम तलवार से मत लीजिए । तलवार का हैं तो दोष किसका है ? अखे खोलकर जो गढ्ढ में गिर जाता है उसे लोग मुर्ख कहते हैं औरर आप से लड़ना है। जो आपकी मर्यादा है वही तोड़ आँख ऊपर करके जो चढ़ता है उसे विजयी कहते हैं। आप क्यों गिरते हैं ? अ्पकी आँखें कहां रहती हैं ? वह देखिए तब समझोगे, आपका लक्ष्य (ध्यान) मार्ग पर है कि दूसरों की तरफ । यह देखना प्यार करना बहुत आसान है। क्योंकि जब वेराग्य जरूरी है। घोड़े के आँख पर दोनों तरफ चमड़े की आता है तब किसी को देना बहुत आसान लगता गही डालते हैं ताकि लक्ष्य इधर उधर न हो पाए। है (सहज लगता है) । परन्तु सहजयोग के आप सवार हो, घोड़े नहीं । की उत्कंठा जागृत होनी चाहिए। पास से गंगा स्वार की आांख पर गही नहीं डालते काम ढाल से लेकर कैसे लड़ाई जीतोगे ? शपने है-विशाल होना है । प्रेम की खाली बातें नहीं चाहिए । मन से परन्तु वराय्य मतलव देने धुडसवार बह रही है लेकिन वह बह रही है ये मालूम । परम्पूज्य परमेश्वरी प्रादिशक्ति श्री माताजी के मराठो पत्र का हिन्दी रूपान्तर निर्मला योग ३ होना चाहिए। उसका कारण आाप खुद ही हैं, सहजयोग को प्के पकड़कर उसका स्वाद ले यह जान लीजिए । दूसरा कोई कसे भी होगा तब रहे हैं। आनन्द सागर में तैर रहे हैं । उन्हें विरह भी आपकी लहरें रुकती नहीं हैं। परन्तु जब आप नहीं है, दुःख नहीं है। उनका जीवन एक सुन्दर की मशीन ठीक होगी तो औरों की भी ठीक काव्य बन गया है। ऐसे भी कई फूल हैं । कभी हो जाएगी और उनकी लहरें भी बढ़ जाएंगी । जो कभी उन्हें भी आप दुख देते हो, कुचलते हो । अरे, आपसे आगे हैं उनके संपर्क में रहिए । आपका ये कोई योगियों के लक्षण हैं क्या ? आज ही ध्यान उस पर होना चाहिए । प्रतिज्ञा कीजिये । अपने स्वयं के दोप, गलतियाँ देखनी हैं। अपने हृदय से सब कुछ शअरपं ण करना सहजयोग कितना अद्भुत है ये जानना चाहिए है, प्रेम करना है सबसे । जो मन दूसरों की और उसके मुताविक अपने आप की विशेषता गुलतियाँ दिखाता है वह घोड़ा उल्टे रास्ते से जा समझनी चाहिए। आप आगे जाते जाते बीच में क्यों रुकते हो ? पीछे मत मूडिए क्योंकि फिसलोगे और चढ़ाई मुश्किल हो जाएगी| रहा है, उसे सीवे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना है । हमने तो आप लोगों पर अपना जीवन अर्पण प्रेम की महत्ता हम क्या गाए ? उसके सुर किया है अर सारा पूण्य आप ही के उद्धार हेतु आप सुनिए और मस्त हो जाइए। इसलिए यह (अच्छाई लिए) लगाया है। आपको भी तो थोड़ा- सारी मेहनत, इतने प्रयत्म, संसार की रचना और योडा पुण्य जोड़ना चाहिए कि नहीं ? अार, खिर जिनको ये मधुर संगीत सुनाने विठाया बो तो औरंगजेब निकले (जिनको इसकी कोई चाह नहीं उल्टे नफ़रत ही है)। ये दुर्भाग्य भाई-बहन हो । एकाकार बनिए, तन्मय हो जाइए, है कि आपकी समझ में नहीं प्रता । सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में जागृत हो जाइए । परन्तु फिर भी हमें संतोष है क्योंकि आप लोगों में कई बड़े शौकीन जोग हैं । उन्होंने अनेक जन्मों में जो कमाया है उसे जानकर, समझकर सभी को आाशीर्वाद, आपकी माँ निर्मला आप वही मांगिये जिसे मांगना चाहिए, और वह है परम् । वह परम्तत्व अरापके हो अन्दर है जिसे श्रापको पाना है।"श्री माताजी लक्ष्मी तत्त्व की जागृति के पश्चात् ही लक्ष्मी जी का आगमन होता है। धन प्रना श्रर चीज़ है और लक्ष्मी तत्व का जागृत होना और चीज है। - श्री माताजी निर्मला योग ४ श्री माताजी प्रसन्न " कुण्डलिनी और ब्रम्हशक्ति आज की विषय है कुण्डलिनी और विण्णु - अन्दर से वह साढे तीन बल दिए हुए हैं। उसका शक्ति तथा ब्रह्मशक्ति । वसे देखा जाय तो ये बहुत बड़ा गरित है परन्तु मैंने कहा कि मैं सभी इस विषय वातों का केवल उल्लेख करूगी उस पर जो किताबें में बहुत यहाँ दी अडवेन्ट (The Advent) एक वहुत सुन्दर किताब है। वह आप पढ़े तो आपको बहुत फॉायदा हे गा । तब भी श्रगर प्रापने ध्यानपूर्वक ये विषय से एक बीज में शक्ति है वैसे ही ये भी एक अपोर तो आप के समझ में अएगी कि भाषण शक्ति है । अव ये जो इच्छाशक्ति है ये जब आप देते समय भी मेरा घ्यान आपकी कुण्डलिनी पर ही इस्तेमाल करने लगे तबव ये प्राप के इड़ा नाड़ी से रहता है। इसलिए आप हाथ में री तरफ रख जसे बहने लगी। तब इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ कुछ मांग रहे हों, इससे पूरे भाषण का अरथ समझ ज्रिया करनी है । केवल इच्छा करने से कोई दृष्य सकते हैं और तभी आप पार हो जाति है । नहीं तो नजर नहीं आएगा। इसलिए उस इच्छा को क्रिया उसका कुछ मतलब नहीं है। पाँव में जूते हो तो में ढालना पड़ेगा ्और उसी इच्छा से क्रियाशक्ति और बही क्रियाशक्ति मराप के दायीं वह आपके शरीर से पिगला नाडी कल मैंने बताया परमेश्वर की शक्ति अप के बायें में से बहती है । यह दोनों नाड़ियां नीचे जहाँ तरफ से इडा नाड़ी से बहती है । उस इच्छाशक्ति मिलती हैं वहाँ श्री गणेश का स्थान है । इच्छा- की वहुत ही वडा विपय है। थोड़ी देर में ही थोड़ा सा जिसे प्रारंभिक ज्ञान कहते हैं लिखी गयी हैं वही आप पड़़िए । हमारे उतना ही बता सकते हैं । वाम सुना उतारकर रखिए । गले में का ले धागे हो, कमर में कुछ बांधा हो, तो उसे भी उतारें तो अच्छा है । निकली है। तरफ आयी है। 1 का थोड़ा सा हिस्सा कुण्डलिनी है। मतलब पर- शक्ति भावनामय है, भावतात्मक है । मनुष्य मेश्वर की इच्छा ही आपकी इस त्रिकोणाकार भावनाएं दिखाई नहीं देती है । उन भावनाओं को अस्थी में रखी है। मनुष्य का पिड तेयार होने के जब साकार रूप आ जाता है तभी उन का आवि- छकार होता है । वह साकार रूप भी उसी शक्ति के कारण सरता है । तभी यह दूसरी क्रियाश क्ति बाएं इसे अंग्रेजी में Residual Energy (अ्वशिष्ट से दायें में आती है । इस क्रियाशक्ति को हम सहज- ऊर्जा) कहते हैं । परंतु ये शुद्ध शक्ति है । वसे योग में महासरस्वती की शक्ति कहते हैं । पहली ही ये शुद्ध इच्छाशक्ति भी है । ये संपूरगंतया पर- महाकाली की व दूसरी महासरस्वती की शक्ति । मेश्वर की इच्छा होने के कारण अथवा इसमें महासरस्वती की शक्ति प्रापके पिगला नाडी में से अपनी इच्छा का कोई समागम न होने के कारण बहती है । यही ब्रह्मशक्ति है । यह ब्रह्मशक्ति जब श्रर उस पर आप की इच्छा का कोई परिणाम न कार्यान्वित होती है अ्रथाति क्रियाशक्ति जब कार्या उसी शुद्धता न्वित होती है तब इसी को ब्रह्मशक्ति कहते हैं और पर यह वहां पर वैठी हुई है। वह त्रिकोणाकार इसके देवता हैं ब ह्देव महासरस्वती, इस बह्म- अस्थि की शक्ति जो बाहर से दिख रही है किन्तु क्रिया को मदद करते हैं । यदि वह शक्ति उनमें से वाद जो बची हुई शक्ति है - वही ये शक्ति है । होने के कारण वह अत्यंत शुद्ध है । निमला योग ५ू होकर बहुती है. तभी बरह्म कार्यान्वित होता है । जागृत हुए । उन देवताओं की जागृत से वे सभी अब जो आपने वेदान्त वर्गरा पढ़ा है बह केवल शक्तियाँ जागृत हो गयीं [श्रौर तब उन से गुण कुछ ब्रह्मशक्ति से लिखा है । आश्चर्य की बात है जब मनुष्य संसार में भाया तब उसे भी क्रिया करने की इच्छा हुई। इच्छाशक्ति तो उसमें थी परन्तु क्रिया करने की इच्छा हुई। ग जागृत कर के, मनुष्य ने सारी सुख-मुविधाएं निमित करके अज मानव्र उच्च स्थिति में पहुँच गया है । ये वहुत वर्षों पुरानी वात है । श्री राम चंद्रजी के जमाने में भी हुवाई-जहाज थे। हवाई जहाजों से लोग घमते थे उन्होंने (रामचन्द्रजी ने) खुद लंका । क्रिया करने के लिए मनुष्य को पहले पचमहा- से अरयोध्या तक सफ़र किया है और अर्जुन के भूतों से सामना करना पडा । ये पंचमहाभूत हमारे समय में अपने यहा चक्र व्यूह था । इस तरह विशेष यहां कहाँ से आए ? उनकी पांच तन्मात्रा एं हार्ती है । साधन थे। ऐसे उपकरण थे कि जिससे आप लोग उससे पहले महद अहंकार (ego) कुल मिलाकर २४ बड़े बड़े युद्ध जीत सकते थे । आयुध (लड़ाई का गुण होते हैं। इन सब शक्तियों से ही २४ गुरण सामान) वगेरा सव्र कुछ अपने यहाँ था । और अ्ब ये गुरणग प्रगट हुए । और उन्होंने इस संसार में पंचमहाभूती एटमबम्ब है, इस प्रकार के अस्त्र भी श्रे । उसी का निर्माण किया। इन पंचमहाभूतों को कैसे हाथ प्रकार अंतरिक्ष में जाने की सभी व्यवस्था थी । में पकड़ना, उन पर मास्टरी (नियन्त्रण) कसे प्राप्त ये बात बिलकुल सच है । करनी और उन्हें किस तरह उपयोग में लाना है ? उन्हें कसे समझना ? तब एक अंदाज मिला कि इन पंचमहाभूतों के एक -एक देवता हैं [्और एक-एक कोई अ्च्छी थी। "भारतीय वास्तुशास्त्र" प्राप कहते को ई शक्ति है और वही शक्ति उन्हें नियमबद्ध हो, उस समय आप उच्चतम स्थिति में थे । लोगों करती है। प्रत्येक पंचमहाभूतों की एक-एक शाक्ति के पास अनेक प्रकार के वाहन थे । प्रासाद वरगरा है और वे उन्हें संभालती हैं । और वही शक्ति उन बहत ही सुन्दर बनाये हुए थे । ये सभी पिगला में अविनाशी रहती है। तब उन्होंने अग्नि, वायु नाड़ी की कृपा से मिले हुए थे। अंग्रेजी में हम इसे वर्गरा प्रत्येक देवता की पूजा शुरू में की । उस समय हिन्दुस्तानियों की स्थिति बहुत ( सुप्रा कान्शस इस प्रांत में उसके बाद उन्होंने यज्ञ-हवन करके इन पंच- अगर मनुष्य आया ्औरर उच्च स्थिति में पहुँचा महाभूतों को जागृत किया। इन्हे जागृत करते तो भू-गर्भ में क्या है, आकाश में क्या है, इसका समय उनको पता चला कि, इनमें सात शक्तियां है । विव रण दे सकता है। परंतु इस पिगला नाड़ी की supra conscious एरिया) कहते हैं। मतलब area उन सातों में से एक है गायत्री व दूस री है सावित्री । प्रार्थना करते समय अनेक वातों का ध्यान रखा ऐसी सात शक्तियाँ हैं। तब गायत्री मंत्र वेदों जाता था । सर्वप्रथम आप की वर्णव्यवस्था कौन में से निकला है। गायत्री मन्त्र, ये भी सी थी। वह वर्णव्यवस्था विदशेष पद्धति से बनी पिंगला नाड़ी पर बैठे हुए सभी देवताओों को ओर थी। लड़का अगर २५ साल का हुआ तब लड़का पंचमहाभूतों के सारे देवताओं को विराट के दाएं या लड़की एक ही यूनिवसिटी में जाते थे और उसे ही हम गोत्र कहते हैं । इस युनिवसिटी के लड़के-लड़ कियाँ विवाह नहीं कर सकते थे। अगर एक महान शक्ति का मनुष्य ने निर्माण किया उनकी ऐसी इच्छा हुई कि यहाँ विवाह कर ले तो और जब उन्होंने पंचमहाभूतों को आहुति देकर यह रूढ़ी के विरोध में होता है । अभी भी अपने उनके देवताओं को आह्वन किया तब वे देवता यहाँ सगोत्र विवाह नहीं होते। पूरे पच्चीस साल तरफ के देवताओं को जागृत करने के लिए है । निर्मला योग ६ ब्रह्मचर्य में रहना पड़ता था । उन के प्रात्म- में लायी तो आप का शरीर बिलकुल ठीक होगा साक्षात्कारी गुरू होते थे । वे उन लड़के-तडड़़कियों क्योंकि शारीरिक और [मानसिक इन दोनों बातों के लिए इसमें से शक्ति बहुती है। परन्तु शरीर को ठीक लगने लगा तो पकी भावनाओं का क्या ? को हठयोग सिखाते थे । आजकल का हटयोग सिनेमा ऐक्टर, ऐक्टुर स] बनाने वाला है । कल ही मुझे सवाल किया गया था, क्योंकि ये सूर्यनाडी है। कई बार ऐसे लोग इतने "माताजी हठयोग और कुण्डलिनी का क्या संबन्ध रूखे होते हैं कि, ऐसे लोगों का जीवन हमेशा है ?" अब आजकल सब गंद होने के कारण पूराना जो पातंजली शास्त्र था उसमें जो अष्टंग नहीं पटेगी और इससे घर में हमेशा अशञांति । इस योग कहा गया है उससे सारे आठों अंगों पर जोर के प्रलावा इन लोगों में एक तरह वरास्य होता है है। इसलिए केव न आसन करने से लोगों के दिमाग और कभी कभी ऐसे लोग इतने गृुस्सेल होते हैं कि में ये आने वाला नहीं था। पूर्व समय में आसन जैसे प्रपने यहँ कुछ पूराने लोग हूं ते थे । वे त्राहि वर्गरा ये सब पच्चोस साल तक जव तक लड़का त्राहि करके सताते थे । ये आपको मालूम भी नहीं या लड़की जिनकी शादी नहीं हुई है और भाई- होगा "विश्ामित्र वषि" ये कोई कल्याणकारी इस मार्ग से चलने वाले लोग अत्यंत रूखे होते हैं. खराव ही होता है। उनकी अपनी बीबी से कभी बहन बनकर एक साथ रहकर किसी अत्म- थे ? ऋषि विश्वामि त्र बहुत पहुँचे तपस्वी थे साक्षात्कारी पुरुष के पास रहकर आसनों की शिक्षा कि जिसे दे बते उसे भस्म करके रख देते । ये कोई लेते थे । आ्राजकल सिखाने वाले आसन भूठे है । प्रव कल्याण का रास्ता है ? ये मारगे हमारा नहीं है सभी आसनों में मैं देख रही है कुण्डलिनी को विरोध और सहजयोग में आपको ये मार्ग अपनाकर नहीं करने वालो घटनाएँ होती हैं । इन आसनों में से चलेगा इस मार्ग से कहते हैं कई लोग महषि बने बहुत ही थोड़े आसन ऐसे हैं जो आति्मिक उन्नति हैं ! बने होंगे !! परन्तु इनका मनुष्य को क्या क गुरू के फ़ायदा ? इन्होंने इतना कर के क्या प्राप्त किया ? हुए लिए पोषक है । पहले जमाने में सच्चे पास जो लड़के होते थे वे गिने चुने रहते थे । उन्हें कभी कभी मुझे लगता है इस तरह के जो आधे बचपन से पच्चीस साल तक बहुत ही कड़ी मेहनत पहुँचे लोग के त्रल सन्यासीपन का पाखड रचाकर से योगाभ्यास सिखाना पड़ता था। इस स्थिति में घूमते रहते हैं। इसोलि ए सत्यासी का सहजयोग में साधक बच्चों की धार्मिकता बहुत प्रच्छी तरह से कोई स्थान नहीं है । सन्यासी वृत्ति पिगला नाड़ी बनायी जाती थी। ऐसे बच्चों में भी कुछ ही गिने- की जागृति से होती है, परन्तु वह नाड़ी सहजयोग चुने बच्चों को ही गुरू आत्मज्ञान देते थे । आजकल में आत्मज्ञान प्राप्त होने के बाद जागृत ऐसा ज्ञान लेने दो-चार लोग गए हुए हैं । हिमालय चाहिए । उससे पहले की जागृति ठोक नहीं है । के सच्चे एकांगी होती है । इसलिए ब पतरती होनी गुरू लोग उन को निकाल देंगे इसमें कोई वह अधूुरी, मतलब आश्चर्य की बात नहीं है। इसके अलावा इस प्रकार हठयोग का ज्ञान समाज में फेलाने वाले जो लोग भगवी वस्त्र पहनने के लिए सन्यासी होते हैं। हैं उन के पास अगर धर्म कা कोई मेल ही मतलब ये कि वयस्क होने के बाद भी उनको गलत है। मैं आप को स्पष्ट कहती हैं सन्यासी अ-गुरु नहीं है तो आत्मज्ञान कही से आएगा? नानाविध करतूते छुटती नहीं हैं, और उसी में फैसे होते हैं। उसके लिए उन्हें अपना पूरा जन्म व्यतीत कुछ लोग कहते हैं कि ऐसे आसनों से हमें करना पड़ता है। अच्छा लगता है । शारीरिक दष्टि से आप को ठी क लगने लगेगा । पिगला नाड़ी आपने ज्यादा उपयोग एक बार आप सहजयोग में अ्राते ही माप के निर्मला योग है कुछ भी करके फिर से संसार में आ जाएं | वे घर्म का साँचा बन जाता है। आप को ज्यादा प्रयास भी नहीं करना पड़ता और मनुष्य में अपने मरने के लिए तैयार नहीं होते । इसलिए वे किसी आप शुद्धता, पविश्ता जागृत होती है। उसे मनुष्य में घुसकर कुछ करते रहते हैं। उनका एक औरतों के प्रति और दूसरी स्त्रियों के प्रति कोई गुरण है कि लोगों को ठी क करना आकर्षरण नहीं रहता कोकि वह समाधानी हो जाता है । ब्रह्मशक्ति मतलब पँच तन्मात्रा और उनमें से निकले हुए पंचमहाभूतों को जागृत करने की शक्ति । जब वेद व श्रुति पंचयरहाभूतों को जागृत किा वह पिगला नाड़ी पर है । मनुष्य जब कोई भी उसी के मूर्तस्वरूप अज प्रपने यहाँ विज्ञान ग्राथा । विज्ञान भी कहां से आया । ये जो वेदमंत्र वर्गरा अगर वह अपने शारीरिक काय के लिए उपयुक्त बोलने वाले लोग थे उन्होंने पाशिचिमात्य देशों में जन्म लिया और उनका जो परमेश्व री शोबकार्य शरीर का आकार अच्छा रहना चाहिए, मैरी अधरा रहा था उसे उन्होंने पंचमहाभूतों को विज्ञान प्रकृति अच्छी रहनी चा हिए, इस तरह की बात के जरिये जीतने का प्रयास किया शर विज्ञान के सोचता रहता है तब ये पिंगला नाड़ी की शक्ति वलार उन्हें लगता है कि विज्ञान के कारण ही वहने लगती है। उसके अलावा अपनी शारीरिक जीतंगे और इसलिए वे अब चांद पर, शुक्र पर स्थिति का उपयोग करने लगता है तब भी ये कहाँ कहाँ जा रहे हैं। परन्तु ये दयो साईड बहुत शक्ति वहने लगती है । मतलब एक ही दात्ति अजीब है । मनुष्य को उसी में ज्यादा महत्ता लगने ज्यादा बहुने से इस मनुष्य में कभी कभी चिकृति लगती है। मतलब ये कि किसी ने [प्ाप से कहा आप आकाश में उड़ सकते हैं हजार पोड देने के लिए तेयार हैं । ये एकदम जाती है। अब दायी तरफ ज्यादा उपयोग में मूर्खतापूर्ण बात है। अब आकाश में उड़ने की बया लाने से कौन सी बीमारियाँ होती है; ये हम देखेंगे । है ? अजी अब पछी बनकर क्या मिलने वाला है ? पंछी से ऊँची स्थिति प्राप्त करोगे ? अब पंछी बनने के लिए हमारे पास हवाई जहाज है, सब कुछ क्रिया करता है और अगे की सोचता है और होता है, मतलब मेरा शरीर अरच्छा रहना चाहिए, हम का निर्मारण हो जाता है । जब श्राप दायी तरफ तो वे तुरन्त एक ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तव बायी तरफ बेकार हों अब सर्वप्रथम ये देखिए हम जब ये शक्ति बहुत उपयोग में लाते हैं तब प्राप को जो मुख्य काम हैं। अब क्या पंछी बनने की स्थिति ऋ्रप की करनता है वह हम नहीं कर सकते। स्वाधिष्ठान चक्र आ्रयी है ? और उड़कर भी क्या मिलने वाला महत्वपूरण स्थान है क्योंकि 'व्रह्मदेव स्वाधिष्ठान ? अमेरिका से प्रपने यहाँ कुछ साल पहले एक बड़े वैज्ञानिक आये थे | मुझे बहुत गाश्चर्य हुआ मैंने उन्हें कहा उड़ने की जो बात है वह हो सकाती जो शक्ति चाहिए उसे देते हैं। अब देखिए अगर है, लेकिन उस में भूतवाधा होती है। उड़ रहे हैं ऐसा लगता है, वह श्रभास होता है । उसे लगता है सब लोग अलग है और मैं अरलग है । ऊपर से मुझे सब कुछ दिख रहा है। ये सब भुतवाधा है । इस दाँयी तरफ के ही वहुत से लोग होते हैं वे अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं। ऐसे लोग जव मरते हैं तव साथ कोई मनुष्य खड़ा नहीं रह सकता। कोई कहता है उनकी आत्मा चक्र पर बंठे हैं और वे इसे शक्ति देते हैं । तो इनका पहला कार्य ये हैं कि सुजन कार्य के लिए आप artist (कलाकार) हैं और सहजयोगी नहीं हैं तो आपको कीन सी बीमारी होने के chances (सम्भावनाएं) हैं। पहली बीमारी ये कि आप बहत कठोर स्वभाव के हो सकते हैं । आप में कोई प्रेम नहीं है। आपके वह वड़ा आटिस्ट होगा । फिर वह दाढ़ी बढ़ाएगा अतप्त] रहती है। उन्हें लगता निर्मला योग ५ कुछ भी दिखावा, हम कोई संयासी वर्गैरा हैं, ये नहीं शरा रही थी। उन्होंने िल्लाने वाले से सभी दिखात्रा इत्यादि । इस तरह को हुरकत करने "आपक्रो क्या चाहिए ?" तो जवाब मिला प्राप लग जाता है। [आटिस्ट का मतलब आप इसे कोन होते हो पूछने वाले ?" मैं पी.ए. हैं," "अरे हज़ारों लोगों में पहचान लेगे "क्यों जी आप पहले बताते तुम ? उन्होंने फिर से कहा मैं पी. ा है।" पूछा टिस्ट हैं ?" ऐसा कहते ही उन्होंने ऋअपनी ए ह पी. ए. बन गये तो कौन बड़ी बात हो गयी ? पिंगला नाड़ी पर जो वहुत कार्य करते हैं ए. ऊपर उठानी । ऐसा मनुष्य बहुत क़ोधी होता काल है । उसका कारण दायी तरफ ज्यादा उपयोग में वे हुन ये कर गे, वो करंगे" ऐसा बोलते रहते हैं । लाने के कारण संतुलन नहीं श्राता भावनाएं कम हो जाती है । है । उसकी उनके पीछे एक अत्यंत विचित्र प्रारी जिंदा होता 1 वह है अरत्थत कठोर हृदय कि जिसको प्रेम का विचार ही नही होता है: अत्यंत कठोर हृदय जिसे किसी के भी सुख-दूख का ख्याल नहीं रहता। अगर कोई में ये सब नहीं दिखाई देता, परन्तु बाकी सभी देशों में इस प्रकार की प्रतियोगिताए बहुत चलती हैं। वहाँ के सारे लोग भागते रहते हैं । हमारे यहाँ ऐसा एक आदमी आया औोर कहने कठिन बोलने का रिवाज महाराष्ट्र में बहुत हैं । लगा, मैं हमेशा भागता रहता है, मुभझो कोई सुख मोटा बोलना अपने यहाँ ज़रा कम है । उस का नहीं है और दुःख नहीं है, मैं सुख-दुख के परे हैं। कारण मुझे लगता है, अपने साधु-सन्तों ने शब्दों मैंने कहा ऐसा कुछ नहीं है । आनन्द एक चोज़ है के वार किये। तब हमें भी लगता है कि हम भी और सुख-दुख के उस पार जाकर सहना, पत्थर दो-चार चिकोटे काटे तो क्या हर्ज है ? परन्तु का होना, इन्सानियत नहीं है । ये मनुष्य मनुष्यता साधु-सन्तों का अलग है उनका परीक्षा लेने का को ही भूल जाता है । मतलब अब कई लोग अरत्यत वही तरीका था। तब भी हमें सब के साथ मीठी स्पष्ट बोलते हैं । किसी को कुछ दुःख होगा, परेशानी बोली बोलनी चाहिए। मीठी वात बोलने में आप किसी होगी या हमारे बोलने से किसी को दर्द होगा, ये की चापलूसी नही कर रहे हैं । एक तो आप किसी उस मतुष्य क्योंकि कभी कभी वह बहुत विजयी भी होता है । बीचों-बीच है कि नहीं ? हमारा सहजयोग जिसे हम विजय कहते हैं वह पांच तत्वों के जीतने मध्यमार्ग में होता है । कहने का उद्दश्य है कि से भी आ सकता है । मतलब कोई मनुष्य बहुत मनुष्य में एक तरह की मिठास होनी चाहिए । बड़ा अफसर है या वह कोई बड़ा सत्ताधीश बना, बोलते समय उस में कुछ भावना चाहिए । दूसरों तो उसे खास पिंगला नाड़ी की बीमारी होगी मतलब ego । सोचना चाहिए। विशेषतः रतों को उ्यादा इस प्रकार के मनुष्य के पास एक ढाल लेक र जाना भावनाएं पड़ता है । सीबे तरीके मे अप मिलने जाओगे तो दूष्टता करती हैं कि भराश्चर्य होता है । इतनी केव आ्प का सर टूटेगा इसका कोई पता नहीं। एक बार एक मनुष्य के पास एक अरादमो मिलने वे बड़ी विचित्र होती हैं। मतलब हमेशा आज आया । वहाँ पर एक और आदमी था। वे सभी पर चिल्ला रहे थे। मिलने गया हुआ आदमी वेचारा खाना भेजना है मेरे पति का ये काम करना है, इस सीधा, गांव का अदमी उसके समझ में कोई बात तरह सारी भविष्य की बातें सोचनी मनुष्य बहुत दोडता है । हिन्दुस्तान अब अपने महाराष्ट्र में लोगों का कहना है कि महाराष्ट्रियन लोग जरा ज्यादा ही कठोर वोलते हैं। एक दिन के दिमाग में ही नहीं आता है । की चापलूसी करेंगे, नहीं तो किसी को तोड़ देंगे । कुछ की भी भावनाएं होती हैं। उन्हें दुखाते समय हमें की (घमन्ड की) वाधा होगी होनी चाहिए । वहो कभी कभी इतनी दूष्टता उन में केसे आतो है? उ सका कारण है। खाना क्या बनाना है ? अब लड़की के श्रफिस में त हैं । निर्मुला योग हं उस समय ये दांयो बाजू (तरफ) पकड़ी जाती दोष हैं । ये बीमारियाँ फेलते ही सारे समाज का है। दायी तरफ जाने वाला मतुष्य एकदम दूखी विनाश होता है। जब पिगला नाड़ी अपने में जोव होता है। क्योंकि ऐसे मनुष्य को कोई भी प्रपने बहुत बलशाली होती है तब मनुष्य में एक तरह की नजदीक नहीं आने देता। ये सबसे बड़ी बोमारी उन्मत्तता आ जाती है और उस वेग में उसे ये भी ये किसो को नजर नहीं पराती। भारत में बड़े समझ नहीं आता कि हम दूसरों को बुरी व ते बड़े विजयी लोग हैं । परन्तु उनके रूखेपन के कार श सुना रहे हैं व उनके साथ बेशरमों की तरह ब्ताव उनका नाम कोई सवेरे लेने के लिए होता । ज्यादा से ज्यादा शाम को ले गे और टूसरों को ठेस पहुँचायी है । अ्रब इस पर क्या इलाज तुरन्त मुंह धो डालेंगे इस तरह से चलने वाले लोगों का-मतलब जो श्रति तँयार नहीं कर रहे हैं । दूसरों को भावनाएं दुखा रहे हैं । ऐसी स्थिति है। अत् करना चाहिए ? । अगर मैंते लोगों से कहा आप नियोजन planning) मत करिए तो उन को लगत। है उत रते हैं, माने अति पर काम करते हैं-वो समझते हैं हम बड़ा भव्य, दिव्य ( काम रहे हैं। ऐसी धारणा बनाकर वाकी सभी माताजी पुराने स्यालात की है। पर मैं कहती हैं से बंचित हैं, ये हो गया एक मार्गी रन । विशेषतः ये हमारे नियोजन देखिए ओर उस के बाद नियोजन देश में बहुत है, औरतों का भी, पूरुषों का भी। कीजिए । परमेश्वर का pilanning पहचानना उन्हें लगता है पूरा समय हमें बाहर कुछ करके चाहिए | जब तक परमैश्वर का नियोजन हम दिखाना चाहिए, दुनिया में तो भी विशेष पहवानते नहीं तब तक आपके নियोजन का कोई करना चाहिए। सब से महस्वपूर्ण बात पैसे कमाने मतलब नहीं। हर एक काम नियोजित है । हर एक चाहिए और किस तरह से कमाने चाहिए ये नियोजन में परमेश्वर का हाथ है क्योंकि उनका दूसरी महत्वपूर्ण बात । इसलिए सारो औरतें व कार्य बहुत वड़ा है । उन की शक्ति भी बहत पुरुष उसी के पीछे लगे हुए हैं। इस पसे कमामे बड़ी है। उनके पास सभी प्रकार की शक्तिपा हैं। की धुन में कभी पति-पत्नी की पटती नहीं अब ये जो ब्रह्मतस्व है ये हम।रे हाथों से आता और किसी से भी किसी की पटती नहीं । अ.प नियोजन मत करिए। पहले परमेश्वर का रह जाते हैं । आवका परिवार है, वच्चे कुछ रहता है। इसका फ़ायदा सहजयोग में कैसा होता है ये अब मैं बताने जा रही हूं । मैं लंदन गयी थी तो मुझे लगा सब कोई कूुत्तों की तरह क्यों भोंक रहे हैं ? बात करते समय लड़ाई पर उतर आएंगे। टेलीविजन पर भी पति- अआाप] में ब्रह्मतत्व जागृत होता है। तब क्या पत्नी की लडाई दिखाएंगे, नहीं तो माँ-बेटों की, होता है ? तो अ्पने हाथों से जो vibrations नहीं तो भाई-बहनों की लड़ाइयाँ दिखाएंगे । (चंतन्य लहरियां) लड़ाइयों के सिवाय और कुछ नहीं । कोई प्यार से साथ बोलने लगते हैं। यहाँ बैठे बैठे आप किसी से बातें कर रहा है ये कभी नहीं दिलाई देता । बता सकते हैं कि आपके पिताजी की हालत कंसी हँसने लगेंगे तो इतने गन्दे हँसे गे कि देखने को जी है ? अपनी माता की स्थिति कैसी है ? देश का नहीं करता । आखिर आप को टेलीविजन बंद क्या हाल है ? Prime Minister (प्रधानमनत्री) की करना पडेगा । आपस में प्यार से रहना चाहिए। स्थिति कैसी है ? वे कहाँ हैं ? उनकी कुण्डलिनी चिक चिक करना, दूसरों को नीचा दिखाना, किसी कहाँ है ? वे कहाँ पर वेठी हैं ? उन्हें क्या परेशानी से बुरी तरह से बातं करना ये सभी मनुष्य के है ? उन्हें कौन सी बीमारी होने वाली है? और अरब आप को आश्चर्य होगा कि सहजयोग से है । तब क्या ते हैं वे हमारे निर्मला योग १० कौन सी बीमारी हुई है ? यहां पर बैठे बैडे आ्राप कह सकते हैं। ठीक हो जाएंगे। ये सब आप से हो सकता है और उसके मजेदार खेल भी होते रहते हैं। अरहंकार ये चीज़ ऐसी है कि ये जब पप में कार्यक्षेत्र में जो कुछ भी हम करते हैं उसभें एक फेल गयी तो वह आप को एकदम अन्धकार में प्रकार की तेजस्विता आती है और उस कृति को खींच सकती है। अपने आप को साधक पहचान एक प्रकार को (discipline) शिष्टबद्धता नहीं सकता इतते यंधकार में मनुष्य जाने लगता श्र जाती है । उसका एक गुरणक संख्यां क है है। अव अहंकार करसे आाता है ये मैं वताती हैं,। (coefficient) है उसका गुणकसंख्यांक निकाला ये इडा नाड़ी ये यहाँ से शुरू होती है और जब ब्रह्मतत्व जागृत होता है तब अपने पूरे ये पिगला नाही ये जब कार्यान्वित होती जाय तो उसके एकदम ठी क vibrations (चंतन्य लहरियां) शुरू होते ही दूसरा जो हैं तब उनमें से निवाला हुआ धुम- कहिए मनुष्य बैठा है उसकी आत्मा को आनन्द होने किसी फेक्ट्रो से धुयँ निकलता है न ?-या उसी का ा लग ना है और उसे भी बह प्राप्त होता है। प्रब कोई by-product (उप-3त्पादन) कहिए, ये दोनों ं हमारे एक सहजयोगी थे, वे मेरे पास गराये और संस्थाए तयार होती हैं। एक है अहुंकार, दूसरा है সरति अहंकार-मतलब हम जो क्रियाशक्ति उपयोग कहने लगे "माताजी मैं कया कहू?" तो मैंने कहा Interior Decorator (घर की भीतरी सजावट के रने वाला) बनिए । तो वे कहने लगे " सर मेरा ! " लकडी किस मुझे पता नहीं और आप मुझे Interior Decorator होने को में लाते हैं उससे हमारे में अहंकार निर्माए होता है। वह ऐसे यहाँ से बांयी निकालकर उल्टी तरफ से निकलता है। ओर जब हम भावतात्मक से काटते हैं ये भी चीज़ (emotional) बर्ताव करते हैं तब प्रति-प्रहंकार आते हैं । इसमें जो लोग अति भा वतात्मक होते हैं बता रही हैं । मैंने उनमें प्रति-प्रहेकार होता है। समझ लीजिए एक कहा करके तो देखिए अ्राप, केवत चेतन्य लहरियों छोटा ब चा माँ का दूध पी रहा है और दूध पीते पर ! और आज उन्होंने लाखों रूपये कमाये हैं । मतलब ये कि केवल vibrations पर मा लुम होता है और जो vibrations पर मा जूम होता है वह जागतिक (universal ) है जो चौज़ से।रे संसार ने मानी हुई है उसे ही अ्च्छे vibrations प्राते है। सौंदर्य दृष्टी समय उसे विलकुल खुश रखना है । उस समय उसकी माँ कहतो है "अब मत रोना । मैं तुझे दूसरी तरफ से पिलाती हैं। माँ ने उसे ऐसे घुमया तो उसमें अहं- इसलिए इन्होंने मेरे अरानन्द में अहंकार आते ही मां आती है अब ने कहा- 'परब रोना नहीं, चुप रहो" तो वह चुप हो यहाँ वैठे बैठे ही आप बता सकते हैं कहाँ अच्छे गया। अब प्रति-प्रहंकार आया । जब अ्रहेकार दवता vibrations हैं, अआप के गुरू कीन हैं ? कोई हज है तब प्रति अ्रहकार परता है। उसे ही Condition - नहीं वे अ्रब इस संसार में नहीं है तब भी आप ing(संस्कारित, चित्रित होना) कहते हैं। हम जितना बता सकते हैं वे सच्चे हैं कि झठे हैं । जयादा से भी पढते हैं, मतलब जितने प्रपने में संस्कार होते हैं वे जयादा आप लंदन फोन कर सकते हैं। लंदन में पराप सारे प्रति-श्रहकार से होते हैं और जो अहकार से के मित्र बीमार हैं या कैसे हैं ये यहाँ वेडे वैठे कह हम कार्य करते हैं वहै तो आ्रप को माजूम है । सकते हैं र उसके लिए आप का एक पंसा भी परन्तु सूख, सूसंस्क्रार अलग बात हैं। संस्कार नहीं लगता । उसका ये है कि वहाँ वे वीमार हैं करवाने के लिए बहुत से लोग कहते हैं, हम इसे तो यहीं से आप उन्हें बन्धन दीजिए तो वे बहां पर मानते नहीं हैं, अपने कुछ अनुभव किया है ? आप कार ग्रा गया। disturb (विध्न ) किया । उसी से निर्मला योग ११ में मन का खुलापन नही है । दूसरा अरह कारी मतुष्य सकती है। तो किसी भी बात की वजह से आकी कहता है मे रा परमेश्व पर विश्वास नहीं है। मैं sympathetic nervous system (सिम्पधटिक परमेश्वर को ही नहीं मानता हैं । मैं किसी को नाड़ी संस्थान) ज्यादा उत्तेजित नहीं होना चाहिए भी नहीं मानता । मततब उस पर कोई संर्कार वेसे भी गलत गूरू करने से व काली विद्या black नहीं है । एक में अरति संस्कार हुए हैं प्और दूसरे में magic की वजह से कैंसर होता हैं । आश्चर्य की कोई संस्कार नहीं है । उसे प्रहंकार और प्रतिश्रहंकार बात है केंसर के पीछे किसी न किसी गुरू का ही कहते हैं । अब ये शक्ति जो पिंगला नाड़ी में है वह हाथ है । कितने प्रकार के गुरु है। मैने जितने हमारे दाँयी System (सिम्पेथेटिक नाड़ी तन्त्र में प्राती है । जब गुरू का प्रकार या काली विद्या, मतलव ये जो हम वह शक्ति उपयोग में लाने लगते हैं- ज्यादा या वहुत ही कम करने लगते हैं - तब हमें केसर है और बांयी तरफ डावटर नहीं जा सकते । वे जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं । कसर जंसी ज्यादा से ज्यादा नाक कार्टगे कान काटेंगे या आंख बीमारी कैसे होती है ये देखना बहुत जरू री है । परंतु केसर वे ठीक नहीं कर सकते । अब जो बीच एक बांयी संस्था है, एरु दांगी संस्था है। उस के की शक्ति है वह है - विष्यणुशक्ति । इस शक्ति के बाद ये इड़ा नाड़ी का कार्य है व दूसरा पिंगला नाड़ी का, और बीच में सुषुम्ना नाड़ी है। अगर हमने ये दायी बाजू ज्यादा इस्तेमाल किया तो बांयी भारी होती है और इस बाजू का चक्र है, अ्रोर इसी शक्ति के दम पर आप ने सहजयोग 1. nervous रोगी ठीक किये हैं उन सभी में किसी न किसी Sympathetic के सर की शक्ति है वह बांयी तरफ से शुरू होती बारे में इतनी थोड़ी देर में मैं नहीं कह पाऊंगी । तो इस शक्ति के बारे में मैं कल बताऊँगी । बाजू बहुत वह टूट जाता है और हमारे उस चक्र पर के देवता एक तो सो जाते हैं या तो कभी कभी लुप्त हो आप की evolution (उत्क्ात्ति) नहीं होता हम जाते हैं। उसके बाद वह बाजू (इडा या विगला अमोबा से मानव नहीं बनते और न ाज इस स्थिति नाड़ी जो ज्यादा भारी हुई है वह) अपने आप चलने लगती है। उससे कंसर जैसी बीमारी हो आशीर्वाद है। अपनाया है । अगर ये दोनों शक्तियां नहीं होतीं तो तक पहुँचते । परमेश्व र अप को सुखी रखे ये मेरा (२३ सितम्बर १९७६ को श्री माताजी द्वारा दादर में अमर हिद मंडल में दिये हुए भाषण पर आधारित) गुरू वही है जो साहिब से मिलाए । श्री माताजी सबके सामने नतमस्तक होना वरजित है । श्री माताजी निरमला योग १२ देव्याः कवचम् नमस्तेऽस्तु महावले महारोद्रे महोत्साहे महाभयविनाशिनि ॥१॥ महाघोरपराक्रमे । य्राहि मां देवि दुष्प्रेक्षये शत्रू गां भयवाद्धिनि ।: प्राच्यां रक्षतु मार्मन्द्री प्रग्नेय्यामग्निदेवता॥२॥ दक्षिणेऽ्वतु वाराही नंऋ्त्यां खङ्गघारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी । ॥३॥ उदीच्यां पातु कोमारी ऐशान्यां शूलघारिणी। ऊर्ध्वं व्रह्माणि में रक्षदयस्ताद् वैष वी तथा ।।४।। दिशो रक्षेत्रामुण्डा शर्ववाहना । जया मे चागतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ॥५।॥ अरजिता वामपाश्शवें तु दक्षिणे चापराजिता । विखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्नि व्यवस्थिता ।॥६॥ मालाधरी ललाटे च भ्र बौ रक्षेद् यवास्विनी । त्रिनेत्रा च भ्र बोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥७ ॥ शह्धिनी कथोली कालिका रक्षेत्वरणंमूले तु शाङ्कुरी ॥८॥ चक्षषोर्मध्ये श्रोत्रयोद्दारिवासिनी। नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चरचिका । अधरे चामृतकला जिह्वायां च संरस्वती ॥8॥ दन्तान् रक्षतु कोमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका । घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥१०॥ कामाक्षी चिवुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वसङ्गला । ग्रोवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे घनुर्धरी ॥११॥ नीलग्रीवा बहिःकण्डे नलिकां स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाह मे बजघारिणो ११२।॥ नलकवरी । हस्तयोदष्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ गुलीष च । नखाञ्छुलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ क्षेरकुलेश्वरी ।।१३।। निर्मला योग १३ स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनःशोकविनाशिनी । हृदये ललिता देवी उदरे शुलधारिणी ।।१४॥ नाभौ च कामिनी रक्षेद गुह्य गुह्य श्वरी तथा। पूतना कामिका मेढं गुदे महिपवाहिनी ।॥१५॥ कट्यों भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी । जड- घे महाबला रक्षत्सर्वकामप्रदायिनी ॥१६॥ पादपृष्ठे तु तंजसी गुल्फयोन्नारसिंही च । पादाङगुलीष् श्री रक्षेत्पादाघस्तलवासिनी ॥१७॥ नखान् दंण्ट्राकराली च केशंश्चिंवोर्वकेशिनी । रोमकूपेषु कीवे री त्वचं वागीश्वरी तथा ॥ १८॥। रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि अन्त्रारिण कालरात्रिश्च पित्तं पारवती । च मुकुटेश्चरी ॥१६ ॥ पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा । जवालामुखी नखज्वालामभंद्या सर्वसन्धिषु ॥२०॥ शुक्रं ब्रह्मािण मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा । अहंकारं मनो बुद्धि रक्षेन्मे घर्मधारिणी ।२१॥ प्राणापानी तथा व्यानमुदानं च समानकम् । वज्हस्ता च मे रक्षत्प्राणं कल्याणशोभना ।॥२२॥॥ रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्श च योंगिनी । सत्त्वं रजस्तमश्चंव रक्षेन्नारायणी सदा ।।२३॥ आयू रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी । यशः कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ॥२४॥ गोंत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष रक्षन्महालक्ष्मीर्भाय्यी चण्डिके रक्षतु भैरवी॥२५॥ ।२५।॥ पुत्रान् पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीविजया सर्वतः स्थिता ।। २६ । ती रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वजितं कवचेन तु । मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।॥२७॥ तत्सव रक्ष ाि निर्मला योग १४ पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः यत्रेव गच्छति ।।२८।॥ कवचेनावृतो नित्यं यंत्र तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सावकामिक: । यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चत म् । परमेश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतल पुमान् ॥२६॥ निर्भयो जायते मत्त्यः त्रेलोक्ये तु भवेत्पूज्य: कवचेनाबृतः पूमान् ॥३० ॥| संग्रामेष्वपराजित । इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ॥३१|| देवी कला भवेतस्य त्रलोक्येण्वपराजित: । जीवेद् वर्षशतं साग्रमपभृत्युविवर्जित: ॥ ३२॥ नश्यन्ति व्याधयः सर्व लुता विस्फोटकादयः । स्थावरं जङ्गमं चेव कृत्रिमं चापि यद्विष म् ।।३३॥ अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भुतले । खे चराश्चेव जलजाश्चोपदेशिकाः ।३४|| भूचराः सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला: ॥ ३५ || ग्रहभूतपिशाचाश्च ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूधमाण्डा यक्षगन्धर्वराक्षसाः । भैरवादयः ।।३६॥ नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते । मानोत्रतिर्भवेद राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।।३७॥। यशसा वद्द्धते सोऽपि कीर्तिमण्डित ।। भूतले जपेत्सप्तशती चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।३८। सशैलवनकाननम् । घत्ते यावद्भूमण्डलं तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपोत्रिकी॥३६॥ यत्सुरंरपि दुर्लभम् । देहान्ते परमं स्थानं प्राप्नोति पूरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥४०॥ लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते । ॐ ॥४१॥ निरमला योग १५ श्री माताजी 5 पE जय सहजयोग-महिमा सहजयोग की महिमा, अगरिणित अमित अपार । छुद्र मानव-मस्तिष्क भला, कैसे पाये पार ।। वेद-पुराण उपनिषद, कर न सके वखान ॥ शारद शेष महेश भी, करते हैं गुणगान ॥ ज्ञान, भक्ति, कर्मयोग, क्रिया, राज हठयोग । ॥ सब योगों में सहजयोग, ही है महायोग सहज में हरि मिले, सहजयोग में आ्य । सहजयोग से दूसरा, और न अन्य उपाय ।। क्यों भूले हो संसार में, कर लो अपने कल्यान । सहजयोग में सहज ही, मिलते श्री भगवान ॥ माँ निर्मला के प्रेम की, सकल विश्व को तारने, शआई है विश्व गंगा । सहजयोग है गंगा । परमात्मा की सृष्टि सहज, सहज सृष्टि का ज्ञान । सहजयोग अन्तिम है, सहज सत्य को जान ।॥ आओ स्वेच्छा से करें, सहजयोग का वरण । सहजयोग ही उत्क्रान्ति का, है अन्तिम चरण ।। माँ निर्मला के सहजयोग ही सबको, देगा सुख-चेन ॥ प्रेम की, सहजयोग है देन पुरजन, परिजन सामान्यजन, कर सकते यह योग। सहजयोंग के नियम सहज, होते नहि भवरोग ।। उम्र, लिंग, वर्णं, ध्म, देश, जाति अनेक । बाल, वृद्ध युवा, नर, नारि, मातृप्रेम में सव एक ।। सहजयोग वर्तमान में सब मंगलों का मूल । सब भव-बाधा हरे, मिट जाये जीवन शूल ।। निर्मला योग १६ दुख-दर्द, व्याधि, भव रोग की, दवा है रामबारण । अपनाकर सहजयोग, कर लो अपने कल्याण ॥ सह जयोग जीवन रक्षा की, एक मात्र परमौपधि । भस्म हो जाते बाइरस सब, बढ़ जाती जीतनावधि ॥ चंतन्य चेतना, चंतन्य लहरे, सहजयोग की देन । तन मन भावों को शुद्ध कर, देता यह सुख चेन ॥ अणुयुद्ध का निरंतर, मानवता को है भय । केवल सहजयोग सबको, दे सकता आरश्रय ।। जड़-विज्ञान की प्रगति अति, मानव अहं न समात । पर महासागर के सामने, बूँद की कीन बिसात ।। क्षमता चंतन्य आण्विक विकिरण सब, पल में होंगे क्षार ।। लहरों की, है असीम अपार । पानी का बुलबुला, तेरा यह अभिमान । फट जायेगा पल में, मूल्य समय का जान ।। सहजयोग में हो, 'स्व' से होता पहिचान । स्व' से बढ़कर नाता, कोई न जग में आन ।। सहजयोग से सहज में, मिट जाता वियोग । प्रश्नहीन हो जाते सब, जब 'स्व' से होता योग । झूठी जग की बातें, मिथ्या जग व्यवहार । की नाव से, हो भवसागर पार ।। सहज सत्य जग को चमक दमक में, जाओ मत भूल । है बाहर केवल भटकाव, भीतर जीवन-मूल ॥ व्यर्थ न जाने दे वंदे ! यह जीवन अनमोल । सौंच कर मातृ प्रेम से, दे इसमें अमृत घोल । कैसे समझावें तुझको, व्यों बनते रनजान । सहज निहित सत्य में, है तेरा ही कल्यान ।। निर्मला योग १७ आया अंत कलियुग का, सतयुग का हुआ विहान । जागी नव चेतना अब, जीवन बना महान ॥ सहजयोग चेतना का, है प्रयोग अद्भुत । करते रिकार्ड परम का, विज्ञानी जीवन्मुक्त ।। सहजयोग ही है, सरल सुगम इस पंथ से, जाते ज्ञानी संत । का पंथ । परमघाम सब जग जीवन का, अन्तिम यह सार । सहजयोग के मार्ग से, जाते प्रभु के द्वार । । दिव्य प्रेम की प्राप्ति, इस जीवन का अर्थ । सहजयोग में यह मिले, बाकी सब व्यर्थ ॥ सबमें, हो जाएगा सुधार । घीरे घीरे सहजयोग के अभ्यास से, हो जावोगे भवपार ।। जो चाहे कर सकते, रख कर सहज का ज्ञान । सहज ज्ञान से हर क्षेत्र में, कर सकते कार्य महान ।। निर्मला योग से अब, निर्मल होगा ज्ञान । सब शंकाओं का सहजयोग समाधान ॥ जातीय, राष्ट्रीय, अ्रतर्राष्ट्रीय, सब प्रश्नों का निदान । सबकी सब समस्याओं का, सहजयोग समाधान ॥ तारे टूटे, सागर सूखे, चाहे सुमेरू जाये टल । पर बिन सहज न भव तरे, यह सद्धान्त अटल ।। -जय श्री माताजी- -सी. एल. पटेल निमला योग १८ जय श्री माताजी श्री निरमला देवी भगवती माता थ्री निमंला देवी। तवकृपेने झालो मी सहजयोगी शआ्राज । ये बूदे ही चैतन्याची लाट ! 1।धू॥ म हिड ।धृ।। ॥क कारीणी तू । माता सुख दुःख हारीणी तू । उद्घारिणी सर्व जगताची ह्या । पार्वती, सीता, सती, मेरी तू । सुबुद्धी तूच दे, वंधुभाव तूच दे । पसरूनि भुवरी सहजयोगाची ही लाट । माई-माता-मम्मी-आई-माँ।।१।। भगवती माता ंसा होती परदेशी एक ग नारायणी तब सहजयोगाने दर्शन मानवा तू देशील ग । स्वामिनी थोर पुण्याईने | मोक्ष प्रदायिनी तु, अंबा, महाकाली तू । माई तव ध्यानात वेगळा अानन्द हा । माई-माता-मम्मी-आई माँ ।।२॥ भगवती िबा क १. म द हिम का रक त्रिभुवनि वसता तुझे ध्यानात । पड़े मला विसर जीवनाचा । दास तुझा हा रमेश देशमुख । सहजयोगी माते ग नेरचा । ग आई हा देत तुझ्या ठायी । ओटीत वे हया सहजयोगी सुताला । माई-माता-मम्मी-अ्राई मां ।॥३॥ भगवती - ं अपण कर -जय श्री माताजी त र श्री रमेश देशमुख निर्मला योग १९ जोगवा (मागणे, इच्छा) सहज मार्गे जाईन चेतन्य घारा घेईन परस्परासी देईन ग ००० सहज ध्यान लावीन ।।५।॥ आज मागतो जोगवा सहज योगाच्या दरबारी गः.. माता निमला सहस्रारी ॥धू ॥ सहज मार्गे जाईन घेईन चंतन्यामृत आईला हृदयी स्मरिन् ग सहज ध्यान लावीन ॥१॥ सहज मार्गे जाईन बेईन साक्षात्कारी होईन ग ..०. सहज ध्यान लावीन ॥६॥ ज्ञान परम सहज मार्गे जाईन वाईट रूढी सोडीन आईच्या शब्दां जागेन ग. लावीन ॥२॥ सहज मार्गे जाईन आत्म तरव ते जाणीन मोक्ष पदची मागेन गः"... सहज ध्यान सहज ध्यान लावीन ॥७॥ सहज मार्गे जाईन सकल विपदा हारिन अंतरी पावन होईन ग.. सहज ध्यान लाबीन ॥३॥ -मोरेश्वर पाटील ठाणे २७-१-८४ (कालाष्टमी) सहज मार्गे जाईन कृपा - शिवाद घेईन निरविचार होईन ग ... ध्यान लावीन ॥४॥ सहज निरमला योग २० श्री प्रिय निरमला, बंठिए । तब हृदय ही सारी पुजा करता है। उस समय प्रानन्द की हवा हो बहती है, क्योंकि 'अरत्म- तत्व' जागृत होता है तब किस वात की चिन्ता? जेमें लोग मदिरा प्यालों में भरते हैं बैसे ही आपकी अनेकानेक प्राशीर्वाद तुम्हारा प्यार भरा पत्र मिला । नवरात्रि के पूजन का अनुभव हमने भी खूब किया । परन्तु पूजा भी एक बाहरी उपादान है। तुम्हारे ही निशानी ओर बोले हुए वाक्य हैं। परन्तु पूजा पूजा । उसमें मदिरा है, श्रद्धा और प्याले हैं, मंत्रो- की सचार व साधना । वह मदिरा तन्मय होकर, जब आप पोते हैं तथ कैसी वि वार और चिन्ता ? तब तो बस वेवल ग्रानन्द के सागर में तैरना है। वह हृदय का फल श्रौर उसका आशो्वाद व प्रसाद कसे मिलता है ये बाते समझनी चाहिएं । आनन्द शब्दों में कसे लाए ? जो मदिरा पेट में गयी वह प्याले में कसे आए ? (जिस आनन्द का पूजा और प्रार्थना ये आपके हृदय की बढ़त हैं। मंत्र प्रापकी कृंडलिनी के शब्द हैं । परन्तु मन में अनुभव किया वह ऊपर से कैसे बतायें ? ) जब हृदय से पूजा नहीं होगी और कुण्डलिनी से ये मदिरा पीकर जो प्रानन्द आ्रता है वह सदासवंदा मंत्र नहीं बोले जाएंगे तो उस पूजा को दिखावा व नाटकीयता का रूप आएगा। पूजा के समय अगर आप निविचार होंगे तब मानना कि हृदय ने साथ दिया। पूजा सामग्री एकत्रित करके सरल मन से अपग करिए उस समर्पण में दिखावा नहीं चाहिए । कुछ भी बन्धन नहीं चाहिए । पाती से अपके व्यक्तिर्व को विशालता (बडप्पन) प्रदान हाथ धौते हो हृदय तो नहीं धुले हैं कि धुले अपना चित्त (लक्ष्य) हृदय पर होगा तब वह दूसरे की नहीं सोचेगा। अपने बाहर से मन (शाति) फोटो को देखकर वह हृदयस्थ कर लिया या पकड़ा है लेकिन किर भी अन्दर से आप मौन (शति) नहीं हैं। अन्दर कुछ सोच-विचार हैं । इसलिए गया तब बह जो आनन्द है वह उसी समय तक देर गंगे की तरह बैठना नही है। म नुण्य का मोमित ते रहकर स्थायी व चिरकालीन हो स्थायी रहने वाला है। बही आपको सम्पन्न बनाता है। ऐसी अनेक पूजा मेरे साम ने हुई है ओर प्रत्येक समय एक विशाल लहर ग्राकर आपको एक नये किनारे पर ले जाती है । उन सभी किनारों के अनुभव आपके स्वयं के होते हैं । वे करते हैं और अरानन्द के नये नये द्वार खोलते हैं । हैं सबसे प्रच्छा तो हृदय में पूजा करना है । अगर बह दृष्य हृदयस्थ हो पूजा होने के बाद शुरू बहुत हृदय साफ नहीं है, तत्र इस गूंगवन से बड़ा नुक- सकता है । सान होता है। दूसरे बहुत इधर उघर की बात भी वड़ी । यह पत्र सभी सहजयोगियों को पढ़ कर बताये औ्र इसकी कापी बनाकर भेजे । नुकसानदायक है. अर पूजा में मंत्र बोलिए परन्तु अरत्यन्त श्रद्धा से, श्रद्धा का दूसरा पर्याय नहीं। श्रद्धा में जब अत्यन्त आदर व दूढ़ता प्राती है तभी पूजा में निमला आपकी माँ निर्मला योग तूतीय कवर Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 जय निर्मला माते 5F भजन मन रे, गा तू मातृ गुरणगगान हैं मां ही महान ॥ मन रे ।। । विश्व की माता, शक्ति कुण्डलिनी । सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी ।। माँ निर्मला को पहिचान ॥ मन रे।। १॥ करुणामयी मां जीवन दायिनी । क्षमामयी मां जीवन दायिनी ॥ देती नव जीवन दान । मन रे ।।२॥ मां निष्कलंका जन कल्यारणी, मां मां निर्मला । सर्वमंगला ।। कर अपने कल्याण ।। मन रे।३।। मिश्या जग में क्यों भरमाया। कर - करण में हैं मा ही समाया ।। सहज संत्य को जान ।॥ मन रे ।1४|| बैद पुराण उपनिपद गुरूग्रंथ गीता । वेद বाइबिल कुरान ॥ महिमा। विज्ञान ।। मन रे ।५ू।। गाते हैं मां की मां ही ज्ञान जीजस, बुद्ध, महावीर, नानक, राम कृषरणा रह्मान । विश्व बंधुस्व, मातृप्रेम में जान ॥ मन रे ।।६॥ एकाल्मा प्रारंभ सतयुत का, मां की महिमा, समय महान । आया मात् चरणों से असृत भरता, कर तू अमृत पान ।। मन रे 11७॥ -सी० एल० पटेल Edited & Published by Sh. S. C. Ral, 43, Bunglow Road, DelnI-110007 and Printed at Ratnadeep Press. Darya Gani. New Deihi-110002. One Issue Rs, 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign[ By Airmail£7 S 14] ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt (ॐ निर्मला योग वर्ष ३ अक १४ जूलाई-प्रगस्त १६८४ द्विमासिक के t. कर ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की, साक्षात् श्री सहस्रार स्वामितो. मोक्ष प्रदायिनी माता जी श्री निमला देवी तमो नमः पुरी प पर ी 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt ॥ श्री माताजी प्रसन्न ॥ %3D परमपूज्य माताजी श्री निर्मला वीमारियाँ ठीक की हैं। उनका मूझसे तथा और 100 लोगों से बहुत प्यार है । यह जिन लोगों से देवी का गुरूपूर्णिमा और नवरात्रि हुआ के दिन अपने आत्मजों को दिया उन्होंने ये किया । मतलब उन लोगों की पूर्व- १६७६-७७ पुण्याई से ये कला अवगत हुई परन्तु हम लोगों में बहुत से बुद्धिजीवी लोग हैं उन्होंने अभी तक अपनी बुद्धि के या wisdom के बलवूते पर विशेष हुआ आशी्वाद । सहजयोगी मंडली, आप सब का 'गुरूपूरिणमा के दिन भ तार नही मारा (विशेव कुछ करके नहीं आपका टेलीग्राम मिल गया । बहुत ही मुन्दर मामिक शब्दों में अरप सभी ने जो भाव प्रदर्शित भजा हप्रा दिखाया ) । व सहजयोग में पूस्तकों की कमी हैं। हर एक भाषा में किताबें लिखनी पड़ेंगी। बहुत से लोग भाषण किए हैं वे हृदयस्थ हो गये। वर्गरा लिखकर मेरे पास भेजते हैं। वह सब एकत्रित करने वाहिए । उसी प्रकार मेरे पत्र भी छापने मैंने आत्म- लंदन में गुरूपूरिगमा मनाई तब दर्शन (self-realization) क्या है श्रर सहज- योग में आपको बह (self-realization) मिला पड़गे । या नहीं यह विस्तारपूर्वक समझा दिया । आप सब के लिए टेप किया हुआ भाषण हम भे ज द्ग। चाहिए कि कलियुग में 'सहजयोग सारे देश-विदेशों में यह समाचार जाना ही साधन है । "आत्म-तत्व पर सोचिए ऐसा मैं ने बताया सारे विश्व को सहारा देने वाला यही एक मार्ग था। आप आत्म-स्वरूप हो, मतलब प्रापकी बुद्धि है । मैं एक किताब लिख रही है। लेकिन वह सभी मन और अहंकार सभी उस अरात्म - ज्योति से के लिए अ्राज उगयोगी नहीं है । सभी को इस पर प्रालोकित होने चाहिए। जब उस ज्योति का प्रकाश सोचना चाहिए। दूसरे केन्द्रों पर ये बातें बतानी समग्र होता है तभी बुद्धि में wisdom (विवेक) चाहिएं। का प्रकाश दिखाई देता है । मन में प्रेम की सुगंध फलती है और अहकार (विराट) से बड़े-बड़े कार्य घटित होते हैं। इन सभी घटनाओं में समग्रता चमकती है । अपने आत्मतत्व पर खड़ा होना आना चाहिए। परन्तु पहले इसे संजोना चाहिए । सहजयोगियों में बहुत से ऐसे हैं कि उन्होंने रनेक सारे सहजयोगियों को माँ के अनेकानेक आशीर्वाद। आपकी संदासवेदा याद करने वाली, आपकी निरमला माँ निर्मला योग द्वितीय कवर 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt कागनी ३ तल र सम्पादकीय परमपूज्य अदिशक्ति श्री माताजी कहती हैं कि पार होने के पश्चात आप सभी को कुण्डलिनी और सहजयोग के विषय में बहुत कुछ जानकारी हो जातो है किन्तु भक्ति के विना समतोलन सम्भव नहीं है अत: अ्रपने प्रापको भक्ति में समा देना चाहिए। भक्ति से ही भावना बढ़ेती है । भक्ति से ही हम विराट में निमग्न हो सकते हैं । परमपरमेश्वरी श्री माताजी से यहो प्रार्थना है कि हम सभी सहजयोगियों को अनन्यभक्ति प्रदान करें । ॥छि निमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माधुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक-११२०१ : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५.१, हीदर स्ट्रीट वेन्कूवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के २ यू.एस.ए. यू.के, श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन सर्विस लि. : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ भारत १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्जू. १ एन. ५ पी. एच. श्री राजाराम शंकर रजवाडे ८४०, सदाशिव पेठ, पुर्ण-४११०३० लिल स ता पृष्ठ इस अंक में कता ाम सम्पादकीय १. २. ॐ मां (परमपूज्य माताजी के मराठी पत्र का हिन्दी रूपान्तर) ३. कुण्डलिनी और ब्रह्मशक्ति (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ४. देव्याः कवचेम् ५. सहजयोग महिमा ६. जय श्री माताजी निर्मला देवी ( मराठी में प्रार्थना) ७. जोगवा (माग, णं इच्छा) ८. श्री माताजी प्रसन्न ( माताजी का पत्र) ৫. श्री (माताजी का पत्र) ५ १३ १६ १६ ) २० द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थं कवर १०. भजन निर्मला योग २ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt ॥ ॐ माँ॥ नवरात्रि के दिन सभी सहजयोगियों को स्वतन्त्र है, आज़ांद है । वह जानकार है । वह अनेकानेक आशीर्वाद । घोड़े को भी जानता है और मार्ग को भी जानता है। कलियुग में महान घरमातान युद्ध चाजू है । एक यह नवरात्रि की शुरूवात का मतलब समय है। पीछे हुटकर के आपातकाल का तवरात्रि का की शुरूवात है । महायुद्ध एक एक दिन प्रत्येक महापर्वं की गाथा है । ये युद्ध अनेक युगों में हुआ है - केवल मानव के संरक्षणार्थ । परन्तु उस मानव का संरक्षण क्यों करना है ? सारी सुष्टि ने उन्हें वरदान क्यों देना हैं ? इसे सोचना चाहिए। और वेश्या व्यवसाय शुरू है । इस समय हमारे पद पर राज्य करने के लिए बिठाया परन्तु कलियुग में ने अत्यन्त कषुद्र गति स्वीकार को है। हैं, कुछ लोग लूटमार करके पैसे इक्ट्टा कर रहे हैं । नहीं चलेगा। शैतानों का साम्राज्य हर एक हृदय में प्रस्थापित है। अच्छे बुरे की पहचान नहीं रहो। परमेश्वर और संस्कृति दोनों वाज़ार में राक्षस वेच रहे हैं। नीति नाम की चीज़ कोई मानता ही तहीं। चोरी-डाकाखोरी का नाम, अ्रमीरी मनुष्य को सर्वोच्च घुडसवार (सहजयोगीजन) आपस में गले काट रहे हैं. मनुष्य अपने 'स्व का साम्राज्य क्षुद्रता में क से होगा ? ऐसा जो सामने आएगा तो सहजयोग की दवाई कौन पीएगा ? उसका परहेज करना ही पड़ेगा । श्रापने क्या कमाया वह देखना जरू री है । कौन आप सहजयोगी एक विशेष जीव हैं। इस सारे संसार में कितने लोगों को चैतन्य लहरी का आाभास है ? और कितने लोगों को इस के विषय कोन से कलंक (दाग) छूटे और आप कैसे पविव में ज्ञान है ? हुए (निमंल हुए) ये देखना चाहिए । दूसरों के अच्छे गुरण देखिए और प्रपने दुर्गुण (बुराई) देखिए । फिर अपने आप ग्रापका चित्त काम करेगा ढोल लोग जानते नहीं हैं तो वह दोष अ्ज्ञानता का है । परन्तु जब माप अपने अरप की महत्ता जानते का काम तलवार से मत लीजिए । तलवार का हैं तो दोष किसका है ? अखे खोलकर जो गढ्ढ में गिर जाता है उसे लोग मुर्ख कहते हैं औरर आप से लड़ना है। जो आपकी मर्यादा है वही तोड़ आँख ऊपर करके जो चढ़ता है उसे विजयी कहते हैं। आप क्यों गिरते हैं ? अ्पकी आँखें कहां रहती हैं ? वह देखिए तब समझोगे, आपका लक्ष्य (ध्यान) मार्ग पर है कि दूसरों की तरफ । यह देखना प्यार करना बहुत आसान है। क्योंकि जब वेराग्य जरूरी है। घोड़े के आँख पर दोनों तरफ चमड़े की आता है तब किसी को देना बहुत आसान लगता गही डालते हैं ताकि लक्ष्य इधर उधर न हो पाए। है (सहज लगता है) । परन्तु सहजयोग के आप सवार हो, घोड़े नहीं । की उत्कंठा जागृत होनी चाहिए। पास से गंगा स्वार की आांख पर गही नहीं डालते काम ढाल से लेकर कैसे लड़ाई जीतोगे ? शपने है-विशाल होना है । प्रेम की खाली बातें नहीं चाहिए । मन से परन्तु वराय्य मतलव देने धुडसवार बह रही है लेकिन वह बह रही है ये मालूम । परम्पूज्य परमेश्वरी प्रादिशक्ति श्री माताजी के मराठो पत्र का हिन्दी रूपान्तर निर्मला योग ३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt होना चाहिए। उसका कारण आाप खुद ही हैं, सहजयोग को प्के पकड़कर उसका स्वाद ले यह जान लीजिए । दूसरा कोई कसे भी होगा तब रहे हैं। आनन्द सागर में तैर रहे हैं । उन्हें विरह भी आपकी लहरें रुकती नहीं हैं। परन्तु जब आप नहीं है, दुःख नहीं है। उनका जीवन एक सुन्दर की मशीन ठीक होगी तो औरों की भी ठीक काव्य बन गया है। ऐसे भी कई फूल हैं । कभी हो जाएगी और उनकी लहरें भी बढ़ जाएंगी । जो कभी उन्हें भी आप दुख देते हो, कुचलते हो । अरे, आपसे आगे हैं उनके संपर्क में रहिए । आपका ये कोई योगियों के लक्षण हैं क्या ? आज ही ध्यान उस पर होना चाहिए । प्रतिज्ञा कीजिये । अपने स्वयं के दोप, गलतियाँ देखनी हैं। अपने हृदय से सब कुछ शअरपं ण करना सहजयोग कितना अद्भुत है ये जानना चाहिए है, प्रेम करना है सबसे । जो मन दूसरों की और उसके मुताविक अपने आप की विशेषता गुलतियाँ दिखाता है वह घोड़ा उल्टे रास्ते से जा समझनी चाहिए। आप आगे जाते जाते बीच में क्यों रुकते हो ? पीछे मत मूडिए क्योंकि फिसलोगे और चढ़ाई मुश्किल हो जाएगी| रहा है, उसे सीवे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना है । हमने तो आप लोगों पर अपना जीवन अर्पण प्रेम की महत्ता हम क्या गाए ? उसके सुर किया है अर सारा पूण्य आप ही के उद्धार हेतु आप सुनिए और मस्त हो जाइए। इसलिए यह (अच्छाई लिए) लगाया है। आपको भी तो थोड़ा- सारी मेहनत, इतने प्रयत्म, संसार की रचना और योडा पुण्य जोड़ना चाहिए कि नहीं ? अार, खिर जिनको ये मधुर संगीत सुनाने विठाया बो तो औरंगजेब निकले (जिनको इसकी कोई चाह नहीं उल्टे नफ़रत ही है)। ये दुर्भाग्य भाई-बहन हो । एकाकार बनिए, तन्मय हो जाइए, है कि आपकी समझ में नहीं प्रता । सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में जागृत हो जाइए । परन्तु फिर भी हमें संतोष है क्योंकि आप लोगों में कई बड़े शौकीन जोग हैं । उन्होंने अनेक जन्मों में जो कमाया है उसे जानकर, समझकर सभी को आाशीर्वाद, आपकी माँ निर्मला आप वही मांगिये जिसे मांगना चाहिए, और वह है परम् । वह परम्तत्व अरापके हो अन्दर है जिसे श्रापको पाना है।"श्री माताजी लक्ष्मी तत्त्व की जागृति के पश्चात् ही लक्ष्मी जी का आगमन होता है। धन प्रना श्रर चीज़ है और लक्ष्मी तत्व का जागृत होना और चीज है। - श्री माताजी निर्मला योग ४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt श्री माताजी प्रसन्न " कुण्डलिनी और ब्रम्हशक्ति आज की विषय है कुण्डलिनी और विण्णु - अन्दर से वह साढे तीन बल दिए हुए हैं। उसका शक्ति तथा ब्रह्मशक्ति । वसे देखा जाय तो ये बहुत बड़ा गरित है परन्तु मैंने कहा कि मैं सभी इस विषय वातों का केवल उल्लेख करूगी उस पर जो किताबें में बहुत यहाँ दी अडवेन्ट (The Advent) एक वहुत सुन्दर किताब है। वह आप पढ़े तो आपको बहुत फॉायदा हे गा । तब भी श्रगर प्रापने ध्यानपूर्वक ये विषय से एक बीज में शक्ति है वैसे ही ये भी एक अपोर तो आप के समझ में अएगी कि भाषण शक्ति है । अव ये जो इच्छाशक्ति है ये जब आप देते समय भी मेरा घ्यान आपकी कुण्डलिनी पर ही इस्तेमाल करने लगे तबव ये प्राप के इड़ा नाड़ी से रहता है। इसलिए आप हाथ में री तरफ रख जसे बहने लगी। तब इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ कुछ मांग रहे हों, इससे पूरे भाषण का अरथ समझ ज्रिया करनी है । केवल इच्छा करने से कोई दृष्य सकते हैं और तभी आप पार हो जाति है । नहीं तो नजर नहीं आएगा। इसलिए उस इच्छा को क्रिया उसका कुछ मतलब नहीं है। पाँव में जूते हो तो में ढालना पड़ेगा ्और उसी इच्छा से क्रियाशक्ति और बही क्रियाशक्ति मराप के दायीं वह आपके शरीर से पिगला नाडी कल मैंने बताया परमेश्वर की शक्ति अप के बायें में से बहती है । यह दोनों नाड़ियां नीचे जहाँ तरफ से इडा नाड़ी से बहती है । उस इच्छाशक्ति मिलती हैं वहाँ श्री गणेश का स्थान है । इच्छा- की वहुत ही वडा विपय है। थोड़ी देर में ही थोड़ा सा जिसे प्रारंभिक ज्ञान कहते हैं लिखी गयी हैं वही आप पड़़िए । हमारे उतना ही बता सकते हैं । वाम सुना उतारकर रखिए । गले में का ले धागे हो, कमर में कुछ बांधा हो, तो उसे भी उतारें तो अच्छा है । निकली है। तरफ आयी है। 1 का थोड़ा सा हिस्सा कुण्डलिनी है। मतलब पर- शक्ति भावनामय है, भावतात्मक है । मनुष्य मेश्वर की इच्छा ही आपकी इस त्रिकोणाकार भावनाएं दिखाई नहीं देती है । उन भावनाओं को अस्थी में रखी है। मनुष्य का पिड तेयार होने के जब साकार रूप आ जाता है तभी उन का आवि- छकार होता है । वह साकार रूप भी उसी शक्ति के कारण सरता है । तभी यह दूसरी क्रियाश क्ति बाएं इसे अंग्रेजी में Residual Energy (अ्वशिष्ट से दायें में आती है । इस क्रियाशक्ति को हम सहज- ऊर्जा) कहते हैं । परंतु ये शुद्ध शक्ति है । वसे योग में महासरस्वती की शक्ति कहते हैं । पहली ही ये शुद्ध इच्छाशक्ति भी है । ये संपूरगंतया पर- महाकाली की व दूसरी महासरस्वती की शक्ति । मेश्वर की इच्छा होने के कारण अथवा इसमें महासरस्वती की शक्ति प्रापके पिगला नाडी में से अपनी इच्छा का कोई समागम न होने के कारण बहती है । यही ब्रह्मशक्ति है । यह ब्रह्मशक्ति जब श्रर उस पर आप की इच्छा का कोई परिणाम न कार्यान्वित होती है अ्रथाति क्रियाशक्ति जब कार्या उसी शुद्धता न्वित होती है तब इसी को ब्रह्मशक्ति कहते हैं और पर यह वहां पर वैठी हुई है। वह त्रिकोणाकार इसके देवता हैं ब ह्देव महासरस्वती, इस बह्म- अस्थि की शक्ति जो बाहर से दिख रही है किन्तु क्रिया को मदद करते हैं । यदि वह शक्ति उनमें से वाद जो बची हुई शक्ति है - वही ये शक्ति है । होने के कारण वह अत्यंत शुद्ध है । निमला योग ५ू 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt होकर बहुती है. तभी बरह्म कार्यान्वित होता है । जागृत हुए । उन देवताओं की जागृत से वे सभी अब जो आपने वेदान्त वर्गरा पढ़ा है बह केवल शक्तियाँ जागृत हो गयीं [श्रौर तब उन से गुण कुछ ब्रह्मशक्ति से लिखा है । आश्चर्य की बात है जब मनुष्य संसार में भाया तब उसे भी क्रिया करने की इच्छा हुई। इच्छाशक्ति तो उसमें थी परन्तु क्रिया करने की इच्छा हुई। ग जागृत कर के, मनुष्य ने सारी सुख-मुविधाएं निमित करके अज मानव्र उच्च स्थिति में पहुँच गया है । ये वहुत वर्षों पुरानी वात है । श्री राम चंद्रजी के जमाने में भी हुवाई-जहाज थे। हवाई जहाजों से लोग घमते थे उन्होंने (रामचन्द्रजी ने) खुद लंका । क्रिया करने के लिए मनुष्य को पहले पचमहा- से अरयोध्या तक सफ़र किया है और अर्जुन के भूतों से सामना करना पडा । ये पंचमहाभूत हमारे समय में अपने यहा चक्र व्यूह था । इस तरह विशेष यहां कहाँ से आए ? उनकी पांच तन्मात्रा एं हार्ती है । साधन थे। ऐसे उपकरण थे कि जिससे आप लोग उससे पहले महद अहंकार (ego) कुल मिलाकर २४ बड़े बड़े युद्ध जीत सकते थे । आयुध (लड़ाई का गुण होते हैं। इन सब शक्तियों से ही २४ गुरण सामान) वगेरा सव्र कुछ अपने यहाँ था । और अ्ब ये गुरणग प्रगट हुए । और उन्होंने इस संसार में पंचमहाभूती एटमबम्ब है, इस प्रकार के अस्त्र भी श्रे । उसी का निर्माण किया। इन पंचमहाभूतों को कैसे हाथ प्रकार अंतरिक्ष में जाने की सभी व्यवस्था थी । में पकड़ना, उन पर मास्टरी (नियन्त्रण) कसे प्राप्त ये बात बिलकुल सच है । करनी और उन्हें किस तरह उपयोग में लाना है ? उन्हें कसे समझना ? तब एक अंदाज मिला कि इन पंचमहाभूतों के एक -एक देवता हैं [्और एक-एक कोई अ्च्छी थी। "भारतीय वास्तुशास्त्र" प्राप कहते को ई शक्ति है और वही शक्ति उन्हें नियमबद्ध हो, उस समय आप उच्चतम स्थिति में थे । लोगों करती है। प्रत्येक पंचमहाभूतों की एक-एक शाक्ति के पास अनेक प्रकार के वाहन थे । प्रासाद वरगरा है और वे उन्हें संभालती हैं । और वही शक्ति उन बहत ही सुन्दर बनाये हुए थे । ये सभी पिगला में अविनाशी रहती है। तब उन्होंने अग्नि, वायु नाड़ी की कृपा से मिले हुए थे। अंग्रेजी में हम इसे वर्गरा प्रत्येक देवता की पूजा शुरू में की । उस समय हिन्दुस्तानियों की स्थिति बहुत ( सुप्रा कान्शस इस प्रांत में उसके बाद उन्होंने यज्ञ-हवन करके इन पंच- अगर मनुष्य आया ्औरर उच्च स्थिति में पहुँचा महाभूतों को जागृत किया। इन्हे जागृत करते तो भू-गर्भ में क्या है, आकाश में क्या है, इसका समय उनको पता चला कि, इनमें सात शक्तियां है । विव रण दे सकता है। परंतु इस पिगला नाड़ी की supra conscious एरिया) कहते हैं। मतलब area उन सातों में से एक है गायत्री व दूस री है सावित्री । प्रार्थना करते समय अनेक वातों का ध्यान रखा ऐसी सात शक्तियाँ हैं। तब गायत्री मंत्र वेदों जाता था । सर्वप्रथम आप की वर्णव्यवस्था कौन में से निकला है। गायत्री मन्त्र, ये भी सी थी। वह वर्णव्यवस्था विदशेष पद्धति से बनी पिंगला नाड़ी पर बैठे हुए सभी देवताओों को ओर थी। लड़का अगर २५ साल का हुआ तब लड़का पंचमहाभूतों के सारे देवताओं को विराट के दाएं या लड़की एक ही यूनिवसिटी में जाते थे और उसे ही हम गोत्र कहते हैं । इस युनिवसिटी के लड़के-लड़ कियाँ विवाह नहीं कर सकते थे। अगर एक महान शक्ति का मनुष्य ने निर्माण किया उनकी ऐसी इच्छा हुई कि यहाँ विवाह कर ले तो और जब उन्होंने पंचमहाभूतों को आहुति देकर यह रूढ़ी के विरोध में होता है । अभी भी अपने उनके देवताओं को आह्वन किया तब वे देवता यहाँ सगोत्र विवाह नहीं होते। पूरे पच्चीस साल तरफ के देवताओं को जागृत करने के लिए है । निर्मला योग ६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt ब्रह्मचर्य में रहना पड़ता था । उन के प्रात्म- में लायी तो आप का शरीर बिलकुल ठीक होगा साक्षात्कारी गुरू होते थे । वे उन लड़के-तडड़़कियों क्योंकि शारीरिक और [मानसिक इन दोनों बातों के लिए इसमें से शक्ति बहुती है। परन्तु शरीर को ठीक लगने लगा तो पकी भावनाओं का क्या ? को हठयोग सिखाते थे । आजकल का हटयोग सिनेमा ऐक्टर, ऐक्टुर स] बनाने वाला है । कल ही मुझे सवाल किया गया था, क्योंकि ये सूर्यनाडी है। कई बार ऐसे लोग इतने "माताजी हठयोग और कुण्डलिनी का क्या संबन्ध रूखे होते हैं कि, ऐसे लोगों का जीवन हमेशा है ?" अब आजकल सब गंद होने के कारण पूराना जो पातंजली शास्त्र था उसमें जो अष्टंग नहीं पटेगी और इससे घर में हमेशा अशञांति । इस योग कहा गया है उससे सारे आठों अंगों पर जोर के प्रलावा इन लोगों में एक तरह वरास्य होता है है। इसलिए केव न आसन करने से लोगों के दिमाग और कभी कभी ऐसे लोग इतने गृुस्सेल होते हैं कि में ये आने वाला नहीं था। पूर्व समय में आसन जैसे प्रपने यहँ कुछ पूराने लोग हूं ते थे । वे त्राहि वर्गरा ये सब पच्चोस साल तक जव तक लड़का त्राहि करके सताते थे । ये आपको मालूम भी नहीं या लड़की जिनकी शादी नहीं हुई है और भाई- होगा "विश्ामित्र वषि" ये कोई कल्याणकारी इस मार्ग से चलने वाले लोग अत्यंत रूखे होते हैं. खराव ही होता है। उनकी अपनी बीबी से कभी बहन बनकर एक साथ रहकर किसी अत्म- थे ? ऋषि विश्वामि त्र बहुत पहुँचे तपस्वी थे साक्षात्कारी पुरुष के पास रहकर आसनों की शिक्षा कि जिसे दे बते उसे भस्म करके रख देते । ये कोई लेते थे । आ्राजकल सिखाने वाले आसन भूठे है । प्रव कल्याण का रास्ता है ? ये मारगे हमारा नहीं है सभी आसनों में मैं देख रही है कुण्डलिनी को विरोध और सहजयोग में आपको ये मार्ग अपनाकर नहीं करने वालो घटनाएँ होती हैं । इन आसनों में से चलेगा इस मार्ग से कहते हैं कई लोग महषि बने बहुत ही थोड़े आसन ऐसे हैं जो आति्मिक उन्नति हैं ! बने होंगे !! परन्तु इनका मनुष्य को क्या क गुरू के फ़ायदा ? इन्होंने इतना कर के क्या प्राप्त किया ? हुए लिए पोषक है । पहले जमाने में सच्चे पास जो लड़के होते थे वे गिने चुने रहते थे । उन्हें कभी कभी मुझे लगता है इस तरह के जो आधे बचपन से पच्चीस साल तक बहुत ही कड़ी मेहनत पहुँचे लोग के त्रल सन्यासीपन का पाखड रचाकर से योगाभ्यास सिखाना पड़ता था। इस स्थिति में घूमते रहते हैं। इसोलि ए सत्यासी का सहजयोग में साधक बच्चों की धार्मिकता बहुत प्रच्छी तरह से कोई स्थान नहीं है । सन्यासी वृत्ति पिगला नाड़ी बनायी जाती थी। ऐसे बच्चों में भी कुछ ही गिने- की जागृति से होती है, परन्तु वह नाड़ी सहजयोग चुने बच्चों को ही गुरू आत्मज्ञान देते थे । आजकल में आत्मज्ञान प्राप्त होने के बाद जागृत ऐसा ज्ञान लेने दो-चार लोग गए हुए हैं । हिमालय चाहिए । उससे पहले की जागृति ठोक नहीं है । के सच्चे एकांगी होती है । इसलिए ब पतरती होनी गुरू लोग उन को निकाल देंगे इसमें कोई वह अधूुरी, मतलब आश्चर्य की बात नहीं है। इसके अलावा इस प्रकार हठयोग का ज्ञान समाज में फेलाने वाले जो लोग भगवी वस्त्र पहनने के लिए सन्यासी होते हैं। हैं उन के पास अगर धर्म कা कोई मेल ही मतलब ये कि वयस्क होने के बाद भी उनको गलत है। मैं आप को स्पष्ट कहती हैं सन्यासी अ-गुरु नहीं है तो आत्मज्ञान कही से आएगा? नानाविध करतूते छुटती नहीं हैं, और उसी में फैसे होते हैं। उसके लिए उन्हें अपना पूरा जन्म व्यतीत कुछ लोग कहते हैं कि ऐसे आसनों से हमें करना पड़ता है। अच्छा लगता है । शारीरिक दष्टि से आप को ठी क लगने लगेगा । पिगला नाड़ी आपने ज्यादा उपयोग एक बार आप सहजयोग में अ्राते ही माप के निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt है कुछ भी करके फिर से संसार में आ जाएं | वे घर्म का साँचा बन जाता है। आप को ज्यादा प्रयास भी नहीं करना पड़ता और मनुष्य में अपने मरने के लिए तैयार नहीं होते । इसलिए वे किसी आप शुद्धता, पविश्ता जागृत होती है। उसे मनुष्य में घुसकर कुछ करते रहते हैं। उनका एक औरतों के प्रति और दूसरी स्त्रियों के प्रति कोई गुरण है कि लोगों को ठी क करना आकर्षरण नहीं रहता कोकि वह समाधानी हो जाता है । ब्रह्मशक्ति मतलब पँच तन्मात्रा और उनमें से निकले हुए पंचमहाभूतों को जागृत करने की शक्ति । जब वेद व श्रुति पंचयरहाभूतों को जागृत किा वह पिगला नाड़ी पर है । मनुष्य जब कोई भी उसी के मूर्तस्वरूप अज प्रपने यहाँ विज्ञान ग्राथा । विज्ञान भी कहां से आया । ये जो वेदमंत्र वर्गरा अगर वह अपने शारीरिक काय के लिए उपयुक्त बोलने वाले लोग थे उन्होंने पाशिचिमात्य देशों में जन्म लिया और उनका जो परमेश्व री शोबकार्य शरीर का आकार अच्छा रहना चाहिए, मैरी अधरा रहा था उसे उन्होंने पंचमहाभूतों को विज्ञान प्रकृति अच्छी रहनी चा हिए, इस तरह की बात के जरिये जीतने का प्रयास किया शर विज्ञान के सोचता रहता है तब ये पिंगला नाड़ी की शक्ति वलार उन्हें लगता है कि विज्ञान के कारण ही वहने लगती है। उसके अलावा अपनी शारीरिक जीतंगे और इसलिए वे अब चांद पर, शुक्र पर स्थिति का उपयोग करने लगता है तब भी ये कहाँ कहाँ जा रहे हैं। परन्तु ये दयो साईड बहुत शक्ति वहने लगती है । मतलब एक ही दात्ति अजीब है । मनुष्य को उसी में ज्यादा महत्ता लगने ज्यादा बहुने से इस मनुष्य में कभी कभी चिकृति लगती है। मतलब ये कि किसी ने [प्ाप से कहा आप आकाश में उड़ सकते हैं हजार पोड देने के लिए तेयार हैं । ये एकदम जाती है। अब दायी तरफ ज्यादा उपयोग में मूर्खतापूर्ण बात है। अब आकाश में उड़ने की बया लाने से कौन सी बीमारियाँ होती है; ये हम देखेंगे । है ? अजी अब पछी बनकर क्या मिलने वाला है ? पंछी से ऊँची स्थिति प्राप्त करोगे ? अब पंछी बनने के लिए हमारे पास हवाई जहाज है, सब कुछ क्रिया करता है और अगे की सोचता है और होता है, मतलब मेरा शरीर अरच्छा रहना चाहिए, हम का निर्मारण हो जाता है । जब श्राप दायी तरफ तो वे तुरन्त एक ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तव बायी तरफ बेकार हों अब सर्वप्रथम ये देखिए हम जब ये शक्ति बहुत उपयोग में लाते हैं तब प्राप को जो मुख्य काम हैं। अब क्या पंछी बनने की स्थिति ऋ्रप की करनता है वह हम नहीं कर सकते। स्वाधिष्ठान चक्र आ्रयी है ? और उड़कर भी क्या मिलने वाला महत्वपूरण स्थान है क्योंकि 'व्रह्मदेव स्वाधिष्ठान ? अमेरिका से प्रपने यहाँ कुछ साल पहले एक बड़े वैज्ञानिक आये थे | मुझे बहुत गाश्चर्य हुआ मैंने उन्हें कहा उड़ने की जो बात है वह हो सकाती जो शक्ति चाहिए उसे देते हैं। अब देखिए अगर है, लेकिन उस में भूतवाधा होती है। उड़ रहे हैं ऐसा लगता है, वह श्रभास होता है । उसे लगता है सब लोग अलग है और मैं अरलग है । ऊपर से मुझे सब कुछ दिख रहा है। ये सब भुतवाधा है । इस दाँयी तरफ के ही वहुत से लोग होते हैं वे अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं। ऐसे लोग जव मरते हैं तव साथ कोई मनुष्य खड़ा नहीं रह सकता। कोई कहता है उनकी आत्मा चक्र पर बंठे हैं और वे इसे शक्ति देते हैं । तो इनका पहला कार्य ये हैं कि सुजन कार्य के लिए आप artist (कलाकार) हैं और सहजयोगी नहीं हैं तो आपको कीन सी बीमारी होने के chances (सम्भावनाएं) हैं। पहली बीमारी ये कि आप बहत कठोर स्वभाव के हो सकते हैं । आप में कोई प्रेम नहीं है। आपके वह वड़ा आटिस्ट होगा । फिर वह दाढ़ी बढ़ाएगा अतप्त] रहती है। उन्हें लगता निर्मला योग ५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt कुछ भी दिखावा, हम कोई संयासी वर्गैरा हैं, ये नहीं शरा रही थी। उन्होंने िल्लाने वाले से सभी दिखात्रा इत्यादि । इस तरह को हुरकत करने "आपक्रो क्या चाहिए ?" तो जवाब मिला प्राप लग जाता है। [आटिस्ट का मतलब आप इसे कोन होते हो पूछने वाले ?" मैं पी.ए. हैं," "अरे हज़ारों लोगों में पहचान लेगे "क्यों जी आप पहले बताते तुम ? उन्होंने फिर से कहा मैं पी. ा है।" पूछा टिस्ट हैं ?" ऐसा कहते ही उन्होंने ऋअपनी ए ह पी. ए. बन गये तो कौन बड़ी बात हो गयी ? पिंगला नाड़ी पर जो वहुत कार्य करते हैं ए. ऊपर उठानी । ऐसा मनुष्य बहुत क़ोधी होता काल है । उसका कारण दायी तरफ ज्यादा उपयोग में वे हुन ये कर गे, वो करंगे" ऐसा बोलते रहते हैं । लाने के कारण संतुलन नहीं श्राता भावनाएं कम हो जाती है । है । उसकी उनके पीछे एक अत्यंत विचित्र प्रारी जिंदा होता 1 वह है अरत्थत कठोर हृदय कि जिसको प्रेम का विचार ही नही होता है: अत्यंत कठोर हृदय जिसे किसी के भी सुख-दूख का ख्याल नहीं रहता। अगर कोई में ये सब नहीं दिखाई देता, परन्तु बाकी सभी देशों में इस प्रकार की प्रतियोगिताए बहुत चलती हैं। वहाँ के सारे लोग भागते रहते हैं । हमारे यहाँ ऐसा एक आदमी आया औोर कहने कठिन बोलने का रिवाज महाराष्ट्र में बहुत हैं । लगा, मैं हमेशा भागता रहता है, मुभझो कोई सुख मोटा बोलना अपने यहाँ ज़रा कम है । उस का नहीं है और दुःख नहीं है, मैं सुख-दुख के परे हैं। कारण मुझे लगता है, अपने साधु-सन्तों ने शब्दों मैंने कहा ऐसा कुछ नहीं है । आनन्द एक चोज़ है के वार किये। तब हमें भी लगता है कि हम भी और सुख-दुख के उस पार जाकर सहना, पत्थर दो-चार चिकोटे काटे तो क्या हर्ज है ? परन्तु का होना, इन्सानियत नहीं है । ये मनुष्य मनुष्यता साधु-सन्तों का अलग है उनका परीक्षा लेने का को ही भूल जाता है । मतलब अब कई लोग अरत्यत वही तरीका था। तब भी हमें सब के साथ मीठी स्पष्ट बोलते हैं । किसी को कुछ दुःख होगा, परेशानी बोली बोलनी चाहिए। मीठी वात बोलने में आप किसी होगी या हमारे बोलने से किसी को दर्द होगा, ये की चापलूसी नही कर रहे हैं । एक तो आप किसी उस मतुष्य क्योंकि कभी कभी वह बहुत विजयी भी होता है । बीचों-बीच है कि नहीं ? हमारा सहजयोग जिसे हम विजय कहते हैं वह पांच तत्वों के जीतने मध्यमार्ग में होता है । कहने का उद्दश्य है कि से भी आ सकता है । मतलब कोई मनुष्य बहुत मनुष्य में एक तरह की मिठास होनी चाहिए । बड़ा अफसर है या वह कोई बड़ा सत्ताधीश बना, बोलते समय उस में कुछ भावना चाहिए । दूसरों तो उसे खास पिंगला नाड़ी की बीमारी होगी मतलब ego । सोचना चाहिए। विशेषतः रतों को उ्यादा इस प्रकार के मनुष्य के पास एक ढाल लेक र जाना भावनाएं पड़ता है । सीबे तरीके मे अप मिलने जाओगे तो दूष्टता करती हैं कि भराश्चर्य होता है । इतनी केव आ्प का सर टूटेगा इसका कोई पता नहीं। एक बार एक मनुष्य के पास एक अरादमो मिलने वे बड़ी विचित्र होती हैं। मतलब हमेशा आज आया । वहाँ पर एक और आदमी था। वे सभी पर चिल्ला रहे थे। मिलने गया हुआ आदमी वेचारा खाना भेजना है मेरे पति का ये काम करना है, इस सीधा, गांव का अदमी उसके समझ में कोई बात तरह सारी भविष्य की बातें सोचनी मनुष्य बहुत दोडता है । हिन्दुस्तान अब अपने महाराष्ट्र में लोगों का कहना है कि महाराष्ट्रियन लोग जरा ज्यादा ही कठोर वोलते हैं। एक दिन के दिमाग में ही नहीं आता है । की चापलूसी करेंगे, नहीं तो किसी को तोड़ देंगे । कुछ की भी भावनाएं होती हैं। उन्हें दुखाते समय हमें की (घमन्ड की) वाधा होगी होनी चाहिए । वहो कभी कभी इतनी दूष्टता उन में केसे आतो है? उ सका कारण है। खाना क्या बनाना है ? अब लड़की के श्रफिस में त हैं । निर्मुला योग हं 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt उस समय ये दांयो बाजू (तरफ) पकड़ी जाती दोष हैं । ये बीमारियाँ फेलते ही सारे समाज का है। दायी तरफ जाने वाला मतुष्य एकदम दूखी विनाश होता है। जब पिगला नाड़ी अपने में जोव होता है। क्योंकि ऐसे मनुष्य को कोई भी प्रपने बहुत बलशाली होती है तब मनुष्य में एक तरह की नजदीक नहीं आने देता। ये सबसे बड़ी बोमारी उन्मत्तता आ जाती है और उस वेग में उसे ये भी ये किसो को नजर नहीं पराती। भारत में बड़े समझ नहीं आता कि हम दूसरों को बुरी व ते बड़े विजयी लोग हैं । परन्तु उनके रूखेपन के कार श सुना रहे हैं व उनके साथ बेशरमों की तरह ब्ताव उनका नाम कोई सवेरे लेने के लिए होता । ज्यादा से ज्यादा शाम को ले गे और टूसरों को ठेस पहुँचायी है । अ्रब इस पर क्या इलाज तुरन्त मुंह धो डालेंगे इस तरह से चलने वाले लोगों का-मतलब जो श्रति तँयार नहीं कर रहे हैं । दूसरों को भावनाएं दुखा रहे हैं । ऐसी स्थिति है। अत् करना चाहिए ? । अगर मैंते लोगों से कहा आप नियोजन planning) मत करिए तो उन को लगत। है उत रते हैं, माने अति पर काम करते हैं-वो समझते हैं हम बड़ा भव्य, दिव्य ( काम रहे हैं। ऐसी धारणा बनाकर वाकी सभी माताजी पुराने स्यालात की है। पर मैं कहती हैं से बंचित हैं, ये हो गया एक मार्गी रन । विशेषतः ये हमारे नियोजन देखिए ओर उस के बाद नियोजन देश में बहुत है, औरतों का भी, पूरुषों का भी। कीजिए । परमेश्वर का pilanning पहचानना उन्हें लगता है पूरा समय हमें बाहर कुछ करके चाहिए | जब तक परमैश्वर का नियोजन हम दिखाना चाहिए, दुनिया में तो भी विशेष पहवानते नहीं तब तक आपके নियोजन का कोई करना चाहिए। सब से महस्वपूर्ण बात पैसे कमाने मतलब नहीं। हर एक काम नियोजित है । हर एक चाहिए और किस तरह से कमाने चाहिए ये नियोजन में परमेश्वर का हाथ है क्योंकि उनका दूसरी महत्वपूर्ण बात । इसलिए सारो औरतें व कार्य बहुत वड़ा है । उन की शक्ति भी बहत पुरुष उसी के पीछे लगे हुए हैं। इस पसे कमामे बड़ी है। उनके पास सभी प्रकार की शक्तिपा हैं। की धुन में कभी पति-पत्नी की पटती नहीं अब ये जो ब्रह्मतस्व है ये हम।रे हाथों से आता और किसी से भी किसी की पटती नहीं । अ.प नियोजन मत करिए। पहले परमेश्वर का रह जाते हैं । आवका परिवार है, वच्चे कुछ रहता है। इसका फ़ायदा सहजयोग में कैसा होता है ये अब मैं बताने जा रही हूं । मैं लंदन गयी थी तो मुझे लगा सब कोई कूुत्तों की तरह क्यों भोंक रहे हैं ? बात करते समय लड़ाई पर उतर आएंगे। टेलीविजन पर भी पति- अआाप] में ब्रह्मतत्व जागृत होता है। तब क्या पत्नी की लडाई दिखाएंगे, नहीं तो माँ-बेटों की, होता है ? तो अ्पने हाथों से जो vibrations नहीं तो भाई-बहनों की लड़ाइयाँ दिखाएंगे । (चंतन्य लहरियां) लड़ाइयों के सिवाय और कुछ नहीं । कोई प्यार से साथ बोलने लगते हैं। यहाँ बैठे बैठे आप किसी से बातें कर रहा है ये कभी नहीं दिलाई देता । बता सकते हैं कि आपके पिताजी की हालत कंसी हँसने लगेंगे तो इतने गन्दे हँसे गे कि देखने को जी है ? अपनी माता की स्थिति कैसी है ? देश का नहीं करता । आखिर आप को टेलीविजन बंद क्या हाल है ? Prime Minister (प्रधानमनत्री) की करना पडेगा । आपस में प्यार से रहना चाहिए। स्थिति कैसी है ? वे कहाँ हैं ? उनकी कुण्डलिनी चिक चिक करना, दूसरों को नीचा दिखाना, किसी कहाँ है ? वे कहाँ पर वेठी हैं ? उन्हें क्या परेशानी से बुरी तरह से बातं करना ये सभी मनुष्य के है ? उन्हें कौन सी बीमारी होने वाली है? और अरब आप को आश्चर्य होगा कि सहजयोग से है । तब क्या ते हैं वे हमारे निर्मला योग १० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt कौन सी बीमारी हुई है ? यहां पर बैठे बैडे आ्राप कह सकते हैं। ठीक हो जाएंगे। ये सब आप से हो सकता है और उसके मजेदार खेल भी होते रहते हैं। अरहंकार ये चीज़ ऐसी है कि ये जब पप में कार्यक्षेत्र में जो कुछ भी हम करते हैं उसभें एक फेल गयी तो वह आप को एकदम अन्धकार में प्रकार की तेजस्विता आती है और उस कृति को खींच सकती है। अपने आप को साधक पहचान एक प्रकार को (discipline) शिष्टबद्धता नहीं सकता इतते यंधकार में मनुष्य जाने लगता श्र जाती है । उसका एक गुरणक संख्यां क है है। अव अहंकार करसे आाता है ये मैं वताती हैं,। (coefficient) है उसका गुणकसंख्यांक निकाला ये इडा नाड़ी ये यहाँ से शुरू होती है और जब ब्रह्मतत्व जागृत होता है तब अपने पूरे ये पिगला नाही ये जब कार्यान्वित होती जाय तो उसके एकदम ठी क vibrations (चंतन्य लहरियां) शुरू होते ही दूसरा जो हैं तब उनमें से निवाला हुआ धुम- कहिए मनुष्य बैठा है उसकी आत्मा को आनन्द होने किसी फेक्ट्रो से धुयँ निकलता है न ?-या उसी का ा लग ना है और उसे भी बह प्राप्त होता है। प्रब कोई by-product (उप-3त्पादन) कहिए, ये दोनों ं हमारे एक सहजयोगी थे, वे मेरे पास गराये और संस्थाए तयार होती हैं। एक है अहुंकार, दूसरा है সरति अहंकार-मतलब हम जो क्रियाशक्ति उपयोग कहने लगे "माताजी मैं कया कहू?" तो मैंने कहा Interior Decorator (घर की भीतरी सजावट के रने वाला) बनिए । तो वे कहने लगे " सर मेरा ! " लकडी किस मुझे पता नहीं और आप मुझे Interior Decorator होने को में लाते हैं उससे हमारे में अहंकार निर्माए होता है। वह ऐसे यहाँ से बांयी निकालकर उल्टी तरफ से निकलता है। ओर जब हम भावतात्मक से काटते हैं ये भी चीज़ (emotional) बर्ताव करते हैं तब प्रति-प्रहंकार आते हैं । इसमें जो लोग अति भा वतात्मक होते हैं बता रही हैं । मैंने उनमें प्रति-प्रहेकार होता है। समझ लीजिए एक कहा करके तो देखिए अ्राप, केवत चेतन्य लहरियों छोटा ब चा माँ का दूध पी रहा है और दूध पीते पर ! और आज उन्होंने लाखों रूपये कमाये हैं । मतलब ये कि केवल vibrations पर मा लुम होता है और जो vibrations पर मा जूम होता है वह जागतिक (universal ) है जो चौज़ से।रे संसार ने मानी हुई है उसे ही अ्च्छे vibrations प्राते है। सौंदर्य दृष्टी समय उसे विलकुल खुश रखना है । उस समय उसकी माँ कहतो है "अब मत रोना । मैं तुझे दूसरी तरफ से पिलाती हैं। माँ ने उसे ऐसे घुमया तो उसमें अहं- इसलिए इन्होंने मेरे अरानन्द में अहंकार आते ही मां आती है अब ने कहा- 'परब रोना नहीं, चुप रहो" तो वह चुप हो यहाँ वैठे बैठे ही आप बता सकते हैं कहाँ अच्छे गया। अब प्रति-प्रहंकार आया । जब अ्रहेकार दवता vibrations हैं, अआप के गुरू कीन हैं ? कोई हज है तब प्रति अ्रहकार परता है। उसे ही Condition - नहीं वे अ्रब इस संसार में नहीं है तब भी आप ing(संस्कारित, चित्रित होना) कहते हैं। हम जितना बता सकते हैं वे सच्चे हैं कि झठे हैं । जयादा से भी पढते हैं, मतलब जितने प्रपने में संस्कार होते हैं वे जयादा आप लंदन फोन कर सकते हैं। लंदन में पराप सारे प्रति-श्रहकार से होते हैं और जो अहकार से के मित्र बीमार हैं या कैसे हैं ये यहाँ वेडे वैठे कह हम कार्य करते हैं वहै तो आ्रप को माजूम है । सकते हैं र उसके लिए आप का एक पंसा भी परन्तु सूख, सूसंस्क्रार अलग बात हैं। संस्कार नहीं लगता । उसका ये है कि वहाँ वे वीमार हैं करवाने के लिए बहुत से लोग कहते हैं, हम इसे तो यहीं से आप उन्हें बन्धन दीजिए तो वे बहां पर मानते नहीं हैं, अपने कुछ अनुभव किया है ? आप कार ग्रा गया। disturb (विध्न ) किया । उसी से निर्मला योग ११ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt में मन का खुलापन नही है । दूसरा अरह कारी मतुष्य सकती है। तो किसी भी बात की वजह से आकी कहता है मे रा परमेश्व पर विश्वास नहीं है। मैं sympathetic nervous system (सिम्पधटिक परमेश्वर को ही नहीं मानता हैं । मैं किसी को नाड़ी संस्थान) ज्यादा उत्तेजित नहीं होना चाहिए भी नहीं मानता । मततब उस पर कोई संर्कार वेसे भी गलत गूरू करने से व काली विद्या black नहीं है । एक में अरति संस्कार हुए हैं प्और दूसरे में magic की वजह से कैंसर होता हैं । आश्चर्य की कोई संस्कार नहीं है । उसे प्रहंकार और प्रतिश्रहंकार बात है केंसर के पीछे किसी न किसी गुरू का ही कहते हैं । अब ये शक्ति जो पिंगला नाड़ी में है वह हाथ है । कितने प्रकार के गुरु है। मैने जितने हमारे दाँयी System (सिम्पेथेटिक नाड़ी तन्त्र में प्राती है । जब गुरू का प्रकार या काली विद्या, मतलव ये जो हम वह शक्ति उपयोग में लाने लगते हैं- ज्यादा या वहुत ही कम करने लगते हैं - तब हमें केसर है और बांयी तरफ डावटर नहीं जा सकते । वे जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं । कसर जंसी ज्यादा से ज्यादा नाक कार्टगे कान काटेंगे या आंख बीमारी कैसे होती है ये देखना बहुत जरू री है । परंतु केसर वे ठीक नहीं कर सकते । अब जो बीच एक बांयी संस्था है, एरु दांगी संस्था है। उस के की शक्ति है वह है - विष्यणुशक्ति । इस शक्ति के बाद ये इड़ा नाड़ी का कार्य है व दूसरा पिंगला नाड़ी का, और बीच में सुषुम्ना नाड़ी है। अगर हमने ये दायी बाजू ज्यादा इस्तेमाल किया तो बांयी भारी होती है और इस बाजू का चक्र है, अ्रोर इसी शक्ति के दम पर आप ने सहजयोग 1. nervous रोगी ठीक किये हैं उन सभी में किसी न किसी Sympathetic के सर की शक्ति है वह बांयी तरफ से शुरू होती बारे में इतनी थोड़ी देर में मैं नहीं कह पाऊंगी । तो इस शक्ति के बारे में मैं कल बताऊँगी । बाजू बहुत वह टूट जाता है और हमारे उस चक्र पर के देवता एक तो सो जाते हैं या तो कभी कभी लुप्त हो आप की evolution (उत्क्ात्ति) नहीं होता हम जाते हैं। उसके बाद वह बाजू (इडा या विगला अमोबा से मानव नहीं बनते और न ाज इस स्थिति नाड़ी जो ज्यादा भारी हुई है वह) अपने आप चलने लगती है। उससे कंसर जैसी बीमारी हो आशीर्वाद है। अपनाया है । अगर ये दोनों शक्तियां नहीं होतीं तो तक पहुँचते । परमेश्व र अप को सुखी रखे ये मेरा (२३ सितम्बर १९७६ को श्री माताजी द्वारा दादर में अमर हिद मंडल में दिये हुए भाषण पर आधारित) गुरू वही है जो साहिब से मिलाए । श्री माताजी सबके सामने नतमस्तक होना वरजित है । श्री माताजी निरमला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt देव्याः कवचम् नमस्तेऽस्तु महावले महारोद्रे महोत्साहे महाभयविनाशिनि ॥१॥ महाघोरपराक्रमे । य्राहि मां देवि दुष्प्रेक्षये शत्रू गां भयवाद्धिनि ।: प्राच्यां रक्षतु मार्मन्द्री प्रग्नेय्यामग्निदेवता॥२॥ दक्षिणेऽ्वतु वाराही नंऋ्त्यां खङ्गघारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी । ॥३॥ उदीच्यां पातु कोमारी ऐशान्यां शूलघारिणी। ऊर्ध्वं व्रह्माणि में रक्षदयस्ताद् वैष वी तथा ।।४।। दिशो रक्षेत्रामुण्डा शर्ववाहना । जया मे चागतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ॥५।॥ अरजिता वामपाश्शवें तु दक्षिणे चापराजिता । विखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्नि व्यवस्थिता ।॥६॥ मालाधरी ललाटे च भ्र बौ रक्षेद् यवास्विनी । त्रिनेत्रा च भ्र बोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥७ ॥ शह्धिनी कथोली कालिका रक्षेत्वरणंमूले तु शाङ्कुरी ॥८॥ चक्षषोर्मध्ये श्रोत्रयोद्दारिवासिनी। नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चरचिका । अधरे चामृतकला जिह्वायां च संरस्वती ॥8॥ दन्तान् रक्षतु कोमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका । घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥१०॥ कामाक्षी चिवुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वसङ्गला । ग्रोवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे घनुर्धरी ॥११॥ नीलग्रीवा बहिःकण्डे नलिकां स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाह मे बजघारिणो ११२।॥ नलकवरी । हस्तयोदष्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ गुलीष च । नखाञ्छुलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ क्षेरकुलेश्वरी ।।१३।। निर्मला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनःशोकविनाशिनी । हृदये ललिता देवी उदरे शुलधारिणी ।।१४॥ नाभौ च कामिनी रक्षेद गुह्य गुह्य श्वरी तथा। पूतना कामिका मेढं गुदे महिपवाहिनी ।॥१५॥ कट्यों भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी । जड- घे महाबला रक्षत्सर्वकामप्रदायिनी ॥१६॥ पादपृष्ठे तु तंजसी गुल्फयोन्नारसिंही च । पादाङगुलीष् श्री रक्षेत्पादाघस्तलवासिनी ॥१७॥ नखान् दंण्ट्राकराली च केशंश्चिंवोर्वकेशिनी । रोमकूपेषु कीवे री त्वचं वागीश्वरी तथा ॥ १८॥। रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि अन्त्रारिण कालरात्रिश्च पित्तं पारवती । च मुकुटेश्चरी ॥१६ ॥ पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा । जवालामुखी नखज्वालामभंद्या सर्वसन्धिषु ॥२०॥ शुक्रं ब्रह्मािण मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा । अहंकारं मनो बुद्धि रक्षेन्मे घर्मधारिणी ।२१॥ प्राणापानी तथा व्यानमुदानं च समानकम् । वज्हस्ता च मे रक्षत्प्राणं कल्याणशोभना ।॥२२॥॥ रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्श च योंगिनी । सत्त्वं रजस्तमश्चंव रक्षेन्नारायणी सदा ।।२३॥ आयू रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी । यशः कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ॥२४॥ गोंत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष रक्षन्महालक्ष्मीर्भाय्यी चण्डिके रक्षतु भैरवी॥२५॥ ।२५।॥ पुत्रान् पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीविजया सर्वतः स्थिता ।। २६ । ती रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वजितं कवचेन तु । मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।॥२७॥ तत्सव रक्ष ाि निर्मला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः यत्रेव गच्छति ।।२८।॥ कवचेनावृतो नित्यं यंत्र तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सावकामिक: । यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चत म् । परमेश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतल पुमान् ॥२६॥ निर्भयो जायते मत्त्यः त्रेलोक्ये तु भवेत्पूज्य: कवचेनाबृतः पूमान् ॥३० ॥| संग्रामेष्वपराजित । इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ॥३१|| देवी कला भवेतस्य त्रलोक्येण्वपराजित: । जीवेद् वर्षशतं साग्रमपभृत्युविवर्जित: ॥ ३२॥ नश्यन्ति व्याधयः सर्व लुता विस्फोटकादयः । स्थावरं जङ्गमं चेव कृत्रिमं चापि यद्विष म् ।।३३॥ अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भुतले । खे चराश्चेव जलजाश्चोपदेशिकाः ।३४|| भूचराः सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला: ॥ ३५ || ग्रहभूतपिशाचाश्च ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूधमाण्डा यक्षगन्धर्वराक्षसाः । भैरवादयः ।।३६॥ नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते । मानोत्रतिर्भवेद राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।।३७॥। यशसा वद्द्धते सोऽपि कीर्तिमण्डित ।। भूतले जपेत्सप्तशती चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।३८। सशैलवनकाननम् । घत्ते यावद्भूमण्डलं तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपोत्रिकी॥३६॥ यत्सुरंरपि दुर्लभम् । देहान्ते परमं स्थानं प्राप्नोति पूरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥४०॥ लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते । ॐ ॥४१॥ निरमला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt श्री माताजी 5 पE जय सहजयोग-महिमा सहजयोग की महिमा, अगरिणित अमित अपार । छुद्र मानव-मस्तिष्क भला, कैसे पाये पार ।। वेद-पुराण उपनिषद, कर न सके वखान ॥ शारद शेष महेश भी, करते हैं गुणगान ॥ ज्ञान, भक्ति, कर्मयोग, क्रिया, राज हठयोग । ॥ सब योगों में सहजयोग, ही है महायोग सहज में हरि मिले, सहजयोग में आ्य । सहजयोग से दूसरा, और न अन्य उपाय ।। क्यों भूले हो संसार में, कर लो अपने कल्यान । सहजयोग में सहज ही, मिलते श्री भगवान ॥ माँ निर्मला के प्रेम की, सकल विश्व को तारने, शआई है विश्व गंगा । सहजयोग है गंगा । परमात्मा की सृष्टि सहज, सहज सृष्टि का ज्ञान । सहजयोग अन्तिम है, सहज सत्य को जान ।॥ आओ स्वेच्छा से करें, सहजयोग का वरण । सहजयोग ही उत्क्रान्ति का, है अन्तिम चरण ।। माँ निर्मला के सहजयोग ही सबको, देगा सुख-चेन ॥ प्रेम की, सहजयोग है देन पुरजन, परिजन सामान्यजन, कर सकते यह योग। सहजयोंग के नियम सहज, होते नहि भवरोग ।। उम्र, लिंग, वर्णं, ध्म, देश, जाति अनेक । बाल, वृद्ध युवा, नर, नारि, मातृप्रेम में सव एक ।। सहजयोग वर्तमान में सब मंगलों का मूल । सब भव-बाधा हरे, मिट जाये जीवन शूल ।। निर्मला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt दुख-दर्द, व्याधि, भव रोग की, दवा है रामबारण । अपनाकर सहजयोग, कर लो अपने कल्याण ॥ सह जयोग जीवन रक्षा की, एक मात्र परमौपधि । भस्म हो जाते बाइरस सब, बढ़ जाती जीतनावधि ॥ चंतन्य चेतना, चंतन्य लहरे, सहजयोग की देन । तन मन भावों को शुद्ध कर, देता यह सुख चेन ॥ अणुयुद्ध का निरंतर, मानवता को है भय । केवल सहजयोग सबको, दे सकता आरश्रय ।। जड़-विज्ञान की प्रगति अति, मानव अहं न समात । पर महासागर के सामने, बूँद की कीन बिसात ।। क्षमता चंतन्य आण्विक विकिरण सब, पल में होंगे क्षार ।। लहरों की, है असीम अपार । पानी का बुलबुला, तेरा यह अभिमान । फट जायेगा पल में, मूल्य समय का जान ।। सहजयोग में हो, 'स्व' से होता पहिचान । स्व' से बढ़कर नाता, कोई न जग में आन ।। सहजयोग से सहज में, मिट जाता वियोग । प्रश्नहीन हो जाते सब, जब 'स्व' से होता योग । झूठी जग की बातें, मिथ्या जग व्यवहार । की नाव से, हो भवसागर पार ।। सहज सत्य जग को चमक दमक में, जाओ मत भूल । है बाहर केवल भटकाव, भीतर जीवन-मूल ॥ व्यर्थ न जाने दे वंदे ! यह जीवन अनमोल । सौंच कर मातृ प्रेम से, दे इसमें अमृत घोल । कैसे समझावें तुझको, व्यों बनते रनजान । सहज निहित सत्य में, है तेरा ही कल्यान ।। निर्मला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt आया अंत कलियुग का, सतयुग का हुआ विहान । जागी नव चेतना अब, जीवन बना महान ॥ सहजयोग चेतना का, है प्रयोग अद्भुत । करते रिकार्ड परम का, विज्ञानी जीवन्मुक्त ।। सहजयोग ही है, सरल सुगम इस पंथ से, जाते ज्ञानी संत । का पंथ । परमघाम सब जग जीवन का, अन्तिम यह सार । सहजयोग के मार्ग से, जाते प्रभु के द्वार । । दिव्य प्रेम की प्राप्ति, इस जीवन का अर्थ । सहजयोग में यह मिले, बाकी सब व्यर्थ ॥ सबमें, हो जाएगा सुधार । घीरे घीरे सहजयोग के अभ्यास से, हो जावोगे भवपार ।। जो चाहे कर सकते, रख कर सहज का ज्ञान । सहज ज्ञान से हर क्षेत्र में, कर सकते कार्य महान ।। निर्मला योग से अब, निर्मल होगा ज्ञान । सब शंकाओं का सहजयोग समाधान ॥ जातीय, राष्ट्रीय, अ्रतर्राष्ट्रीय, सब प्रश्नों का निदान । सबकी सब समस्याओं का, सहजयोग समाधान ॥ तारे टूटे, सागर सूखे, चाहे सुमेरू जाये टल । पर बिन सहज न भव तरे, यह सद्धान्त अटल ।। -जय श्री माताजी- -सी. एल. पटेल निमला योग १८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt जय श्री माताजी श्री निरमला देवी भगवती माता थ्री निमंला देवी। तवकृपेने झालो मी सहजयोगी शआ्राज । ये बूदे ही चैतन्याची लाट ! 1।धू॥ म हिड ।धृ।। ॥क कारीणी तू । माता सुख दुःख हारीणी तू । उद्घारिणी सर्व जगताची ह्या । पार्वती, सीता, सती, मेरी तू । सुबुद्धी तूच दे, वंधुभाव तूच दे । पसरूनि भुवरी सहजयोगाची ही लाट । माई-माता-मम्मी-आई-माँ।।१।। भगवती माता ंसा होती परदेशी एक ग नारायणी तब सहजयोगाने दर्शन मानवा तू देशील ग । स्वामिनी थोर पुण्याईने | मोक्ष प्रदायिनी तु, अंबा, महाकाली तू । माई तव ध्यानात वेगळा अानन्द हा । माई-माता-मम्मी-आई माँ ।।२॥ भगवती िबा क १. म द हिम का रक त्रिभुवनि वसता तुझे ध्यानात । पड़े मला विसर जीवनाचा । दास तुझा हा रमेश देशमुख । सहजयोगी माते ग नेरचा । ग आई हा देत तुझ्या ठायी । ओटीत वे हया सहजयोगी सुताला । माई-माता-मम्मी-अ्राई मां ।॥३॥ भगवती - ं अपण कर -जय श्री माताजी त र श्री रमेश देशमुख निर्मला योग १९ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt जोगवा (मागणे, इच्छा) सहज मार्गे जाईन चेतन्य घारा घेईन परस्परासी देईन ग ००० सहज ध्यान लावीन ।।५।॥ आज मागतो जोगवा सहज योगाच्या दरबारी गः.. माता निमला सहस्रारी ॥धू ॥ सहज मार्गे जाईन घेईन चंतन्यामृत आईला हृदयी स्मरिन् ग सहज ध्यान लावीन ॥१॥ सहज मार्गे जाईन बेईन साक्षात्कारी होईन ग ..०. सहज ध्यान लावीन ॥६॥ ज्ञान परम सहज मार्गे जाईन वाईट रूढी सोडीन आईच्या शब्दां जागेन ग. लावीन ॥२॥ सहज मार्गे जाईन आत्म तरव ते जाणीन मोक्ष पदची मागेन गः"... सहज ध्यान सहज ध्यान लावीन ॥७॥ सहज मार्गे जाईन सकल विपदा हारिन अंतरी पावन होईन ग.. सहज ध्यान लाबीन ॥३॥ -मोरेश्वर पाटील ठाणे २७-१-८४ (कालाष्टमी) सहज मार्गे जाईन कृपा - शिवाद घेईन निरविचार होईन ग ... ध्यान लावीन ॥४॥ सहज निरमला योग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt श्री प्रिय निरमला, बंठिए । तब हृदय ही सारी पुजा करता है। उस समय प्रानन्द की हवा हो बहती है, क्योंकि 'अरत्म- तत्व' जागृत होता है तब किस वात की चिन्ता? जेमें लोग मदिरा प्यालों में भरते हैं बैसे ही आपकी अनेकानेक प्राशीर्वाद तुम्हारा प्यार भरा पत्र मिला । नवरात्रि के पूजन का अनुभव हमने भी खूब किया । परन्तु पूजा भी एक बाहरी उपादान है। तुम्हारे ही निशानी ओर बोले हुए वाक्य हैं। परन्तु पूजा पूजा । उसमें मदिरा है, श्रद्धा और प्याले हैं, मंत्रो- की सचार व साधना । वह मदिरा तन्मय होकर, जब आप पोते हैं तथ कैसी वि वार और चिन्ता ? तब तो बस वेवल ग्रानन्द के सागर में तैरना है। वह हृदय का फल श्रौर उसका आशो्वाद व प्रसाद कसे मिलता है ये बाते समझनी चाहिएं । आनन्द शब्दों में कसे लाए ? जो मदिरा पेट में गयी वह प्याले में कसे आए ? (जिस आनन्द का पूजा और प्रार्थना ये आपके हृदय की बढ़त हैं। मंत्र प्रापकी कृंडलिनी के शब्द हैं । परन्तु मन में अनुभव किया वह ऊपर से कैसे बतायें ? ) जब हृदय से पूजा नहीं होगी और कुण्डलिनी से ये मदिरा पीकर जो प्रानन्द आ्रता है वह सदासवंदा मंत्र नहीं बोले जाएंगे तो उस पूजा को दिखावा व नाटकीयता का रूप आएगा। पूजा के समय अगर आप निविचार होंगे तब मानना कि हृदय ने साथ दिया। पूजा सामग्री एकत्रित करके सरल मन से अपग करिए उस समर्पण में दिखावा नहीं चाहिए । कुछ भी बन्धन नहीं चाहिए । पाती से अपके व्यक्तिर्व को विशालता (बडप्पन) प्रदान हाथ धौते हो हृदय तो नहीं धुले हैं कि धुले अपना चित्त (लक्ष्य) हृदय पर होगा तब वह दूसरे की नहीं सोचेगा। अपने बाहर से मन (शाति) फोटो को देखकर वह हृदयस्थ कर लिया या पकड़ा है लेकिन किर भी अन्दर से आप मौन (शति) नहीं हैं। अन्दर कुछ सोच-विचार हैं । इसलिए गया तब बह जो आनन्द है वह उसी समय तक देर गंगे की तरह बैठना नही है। म नुण्य का मोमित ते रहकर स्थायी व चिरकालीन हो स्थायी रहने वाला है। बही आपको सम्पन्न बनाता है। ऐसी अनेक पूजा मेरे साम ने हुई है ओर प्रत्येक समय एक विशाल लहर ग्राकर आपको एक नये किनारे पर ले जाती है । उन सभी किनारों के अनुभव आपके स्वयं के होते हैं । वे करते हैं और अरानन्द के नये नये द्वार खोलते हैं । हैं सबसे प्रच्छा तो हृदय में पूजा करना है । अगर बह दृष्य हृदयस्थ हो पूजा होने के बाद शुरू बहुत हृदय साफ नहीं है, तत्र इस गूंगवन से बड़ा नुक- सकता है । सान होता है। दूसरे बहुत इधर उघर की बात भी वड़ी । यह पत्र सभी सहजयोगियों को पढ़ कर बताये औ्र इसकी कापी बनाकर भेजे । नुकसानदायक है. अर पूजा में मंत्र बोलिए परन्तु अरत्यन्त श्रद्धा से, श्रद्धा का दूसरा पर्याय नहीं। श्रद्धा में जब अत्यन्त आदर व दूढ़ता प्राती है तभी पूजा में निमला आपकी माँ निर्मला योग तूतीय कवर 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 जय निर्मला माते 5F भजन मन रे, गा तू मातृ गुरणगगान हैं मां ही महान ॥ मन रे ।। । विश्व की माता, शक्ति कुण्डलिनी । सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी ।। माँ निर्मला को पहिचान ॥ मन रे।। १॥ करुणामयी मां जीवन दायिनी । क्षमामयी मां जीवन दायिनी ॥ देती नव जीवन दान । मन रे ।।२॥ मां निष्कलंका जन कल्यारणी, मां मां निर्मला । सर्वमंगला ।। कर अपने कल्याण ।। मन रे।३।। मिश्या जग में क्यों भरमाया। कर - करण में हैं मा ही समाया ।। सहज संत्य को जान ।॥ मन रे ।1४|| बैद पुराण उपनिपद गुरूग्रंथ गीता । वेद বाइबिल कुरान ॥ महिमा। विज्ञान ।। मन रे ।५ू।। गाते हैं मां की मां ही ज्ञान जीजस, बुद्ध, महावीर, नानक, राम कृषरणा रह्मान । विश्व बंधुस्व, मातृप्रेम में जान ॥ मन रे ।।६॥ एकाल्मा प्रारंभ सतयुत का, मां की महिमा, समय महान । आया मात् चरणों से असृत भरता, कर तू अमृत पान ।। मन रे 11७॥ -सी० एल० पटेल Edited & Published by Sh. S. C. Ral, 43, Bunglow Road, DelnI-110007 and Printed at Ratnadeep Press. Darya Gani. New Deihi-110002. One Issue Rs, 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign[ By Airmail£7 S 14]