fनिर्मला योग सितम्बर प्रक्टूबर १६८४ वर्ष ३ अक १५. द्विमासिक + री गीत हे जग जननी ! तुझे प्रणाम । तेरे गुरणग गायें हम आठ याम ॥ से भी बढ़कर, गंगा यमुना तेरा प्रेम प्रवाह । करे यह पाप जन्मों के, हो जाती पूरी सब चाह ॥ कट जाते सब हे जग बंदनि ! तुझे प्रणाम । तेरे गुण गायें हम आठों याम ।।१॥ अब तेरे, प्रेम की गंगा बह रही है । सारें में जग तेरी ज्योति से जन मानस, है. रही जग %3D है दिव्य जननी ! तुझ प्रणाम । तेरे गायें हम आठो याम ॥२ ॥ गुण खिल सर्वत्र, रहे हैं कमल छाने लगे सुगंध । गायें, में दशों दिशाओं मकरद ॥ गुरागान है सहस्रदल स्वामिनी ! तुझे प्रणाम । तेरे गूण गाय हम आठों याम ।॥३॥ गुरग हैं तेरे, हम दास तेरी इच्छा के हैं गुलाम । करें समर्पण चरणों पर तेरे, तन मन जीवन धन धाम ।। हे मोक्ष प्रदायिनी मां ! तुझे प्रणाम । आठों याम ॥४ ॥ तेरे गुरण गाय हम निमंला योग द्वितीय कवर औe het श्र सम्पादकीय परमपूज्य आदिशक्ति श्रीमाताजी ने विश्व निर्मला धर्म की स्थापना कर दी है । विश्व निर्मला धर्म की मर्यादा के अन्दर रहना और उसकी रक्षा करना प्रत्येक सहजयोगी का परम कर्तव्य है । लिए विश्व निर्मला धर्म से प्राी- समस्त विश्व की रक्षा के मात्र को अवगत कराना हमारा परम पुनीत कार्य है । श्रीमाताजी से हम सभी प्रार्थी हैं कि वह हमें शक्ति श्रर निष्ठा प्रदान करें ताकि हम अपने कर्तव्य को समुचित रूप से पूरा कर सकें । निर्मला योग १ े ४८ निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम्पूज्य माता जी श्री निर्मला देवो डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल : श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वेन्कृवर, बी. सी. वी ५ जैड ३ के २ श्रीमती क्रिस्टा इन पट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवालालेन बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५, पी. एच. इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. हृदय व विशुद्धि चक्र (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ३. परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन ४. श्री माताजी निर्मला देवी के १०८ नाम ५. गीत ६. गीत १ ३ १८ ३० द्वितीय कवर | । म तृतीय कवर नतुर्थ कवर ७. भजन निर्मला योग २ हृदय व विशुद्धि चक्र दिल्ली १६ मार्च, १६८४ और शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध सादे आदमी हैं। वो मेरे पैर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, "माँ, ये सब मैंने किया। ले किन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? आपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता आ गयी । कहने लगे मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने ग्रपने अन्दर जो नाभि चक्र हैं उसके धी कि इम सभत्ता से दूनिया इतनी खराव ही वारे में बताया था कि ये नाभि चक्र हमारे अन्दर सबसे बड़ी शक्ति देता है जिससे हम अपने क्षेम को पाते हैं। जैसे कि कृष्ण ने कहा था 'योग हयहै । यहा श राब इस कदर ज्यादा चलने लग क्षेम वहाम्पहम"। पहले योग होना चाहिए, फिर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरत श्लेम होंगा। योग के बरगर क्षम नहीं हो सकता ोर ी अपने को पसे में ही तोलने लग गई हैं। ये क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खोजा नहीं इस लिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं । क्षेम के बारे में मैंने बताया था कि दुनिया में हम लोग सोवते हैं, कि जिन देशो में सभ्यता हो तो आपको बात ये लोग शायद सन ले शर शायद गयी और बहुत पेसा हो गया तो लोग हमसे कहीं मुड पड़ें। क्योंकि ये रास्ता हो इन्होंने गलत ले अधिक सुखी हैं । ये बड़ी गलतफ़हमी है । जायेगी । हमारे यहाँ लोग जो हैं इसने आदततयो को गये हैं। यहँ शराव इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहाँ पर बच्चे विलकुल वाहियात हो गये सब देखक र के मझे लगता है कि ये मैंने क्या कर दिया। मेरी तो कोई सुनेगा नहीं, क्योंकि गाड़ी बहुत चल पड़ी। लेकिन मां अआप सन्त हैं, अप कहेंगे लिया है। इनके यहां divorces (तलाक) होने लग गये इनके बच्चे भाग करके आजकल गांजा वर्गरा अभी मैं एक जगह वरणानिगर महाराष्ट्र में पीते हैं और बड़ी दूर्दशा है । जो कुछ भी हमने वहाँ गयी थी। वहाँ एक 'कौरे साहब है, उन्होंने किया-बहुत बिचारों ने किया हुआ है-लेकिन वो बहुत मेहनत करके उस वरणनिगर में सुभत्ता कहते हैं कि यहां मनुष्य बिलकुल शान्त नहीं । लायी हुई है। वहाँ पर जिस तरह से लंदन में वड़े-बड़े Departmental Stores हैं इस तरह के किसी भी तरह से व्यवस्था वहाँ पर कुटुम्ब की Stores हैं प्रौर सब तरह के प्रसाधन वहाँ मिलते नहीं है, जिसे आप कह सकते हैं कि ये कुटुम्ब ठीक हैं औरतों के लिए वहाँ पर सब शोभा के लिए beauty aids (सोन्दर्य प्रसाधन) वगे रा सब कुछ हैं। वहाँ जाने पर लगता है कि जेसे आप विलायत के किसी अच्छे district (जिला) की अन्दर लक्ष्मी का तत्व जागृत होना चाहिए । और जगह पर आ गए। कौरे साहब विचारे निःस्वार्थी, औीर बहुत दुखी जीव हैं, आरपस में झगड़े, टंटे। है । इसलिए मैंने आपसे कल कहा था कि हमारे लक्ष्मी का तत्व कुण्डलिनी से जागृत होता है। पैंसा निर्मला योग ३ आप दुनिया में कमा सकते हैं । ग्राज पंजाब का शक्ति नहीं है कि आप अपनी शान्ति' को प्राप्त हाल देखिए, जहाँ लोगों ने कितना लाखों रूपया कमा करके ऐसा सोचा था कि अब हनमें और अपना आनन्द मिले । इसमें ये शक्ति नहीं है कि श्रकाश में कोई अन्तर नहीं रह गया । उस वक्त भगवान का नाम भी लेता उस पंजाब में मूश्किल हो गया और [प्राज] उसी पंजाब का ये हाल है कि लोगों को समझ नहीं आ रहा कि क्या होने वाला इतनी ऊंची हस्ती से कहाँ ाकिर गिरे । है। वही हाल हरियाणा का है । इतने जोर से ये लोग अपने को बढ़ावा देते चले गये। लेकिन इन्होंने ये नहीं सोवा कि हमारी जड़ कहाँ है। को पकड़ा नहीं । इसलिए उध्वस्त होकर के रह गए । यही हाल पुतंगाल का हैं, यही हाल इंग्लैंड का है । हरेक देश में आप जाइए, तो लग रहा है सन्तुलन देता है। अभी आपने जो गाना सुना, ये धीरे-धीरे जेसे इन पर हर तरह की गरीबी, हर तरह की परेशानियां, हर तरह की इसलिए इनमें बहुत ही फ़र्क आर गया है गाने में । घोरे छा रही है। अपने शहरों में भी यहो हाल हो करें। इसमें ये शक्ति नहीं हैं कि इस से आपको आपको चित्त उस ऊंचे स्तर पर जाए । आप विलकुल नोचे गिरते-गिरते ऐसी दशा में पहुँच जाएंगे कि आपको स्वयं आश्चर्य होगा कि हम इसलिए हमारे अन्दर कुण्डलिनी का जागरण वहन अवश्यक है। ये जागरण जब नाभि चक्र 1 । उस जड़ से और तरफ फेलता है, चारों तरफ, तो मैने आपसे कहा था कि यहाँ गूरू का तत्त्व है जो आपको स्वय पार हो गए । साक्षात्कार हो गया इन्हें । दुण्टता घोरे- प्र वो गाना जो है वो अरन्दोलित करता है आत्मा के तार को । क्योंकि भारत का जो संगीत है ये भी 'ओम्' से बना हुआ है। हमारे साथ बहुत से रहा है । इसकी वजह क्या ै ? ऐसी कौन सी बात है, विदेशी लोग रहते हैं हर समय, और हमेशा अपने जिसके कारण मनुष्य खराब हो गया है ? एक ही Indian classical music (भारतीय शास्त्रीय व जह सीधी है कि उसके अन्दर लक्ष्मी तत्त्व जागृत संगीत) को विलकुल वेसुध होकर सुनते हैं । । उसके अन्दर अगर पंसा ओी जाए, तो ऐसे राग जो कि 'श्रो ओर 'मारवाह'-ऐसे राग नहीं है पे सा बहुत ही दुखदायी चीज है । निरा पैसा अगर किसी में आा जाए तो उससे बढ़कर दुखदायों चीज़ भोर कोई नहीं हो सकती। अब अपने मूल की ओर दृष्टि देनी चाहिए । कि जो हम लोगों ने सुने भी नहीं। जो हम सुनते भी नहीं। हम लोग तो आरजकल इतने सस्ते गाने सनने लग गये हैं। सब मामले में हम लोग इतने cheap (सस्ते हल्के) हो गए हैं। हमारे तौर- तरोके, हमारे रहन-सहन के तरीके, वात-चीत के त रीके, हमारे खोन-पीन के तरीके, सब चीज़ इतनी बहुत से लोग हैं जो कि पैसे से परमात्मा को भी खरीद सकते हैं । अऔर इस लिए वो मंदियों में जाते हैं, वहाँ बहुत-बहुत पसे देकर मंदिर बिलकुल औी हो गयी है कि हम जानते नहीं कि बनवाते हैं, गरूद्वारे बनवाते हैं और दुनिया भर हमारा सगोत कितना ऊंचा है । इस संगीत में सारा की चीज़ करते हैं । और बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि हम किसी गुरू को पैसा दे दें तो उसको हम खरीद सकते हैं । '३म्' है। लेकिन ग्राजकल के संगीतकार भी शराब पीतेहैं, हर तरह कमाने के लिए music (संगीत) गाते हैं । न ही उन्होंने कभी परमात्मा को जाना और न हो उधर उनकी रुचि है। फिर ऐसे संगीतकार क्या व्यसन में घुले हुए हैं। पैसा के आप परमात्मा को नहों खरीद सकते । आ्रप सब दुनिया खरीद सकते हैं, परमात्मा को प्राप दे सकते हैं ? इस संगीत को जानने के लिए भी नहीं खरीद सकते, और इसलिए इस पेसे में ये आपको चाहिए कि आप अपनी आत्मा को प्राप्त निमंला योग तक वो धर्म पर तहीं होगा तब तक यहां के राज- आएगे मिटेगे, लोग थुकगे उन पर करे । नहीं तो इसको गहराई में आप नहीं जान सकते । अव इतने foreign (विदेश) के लोग हैं कारी लोग । हमारे साथ में । हर जगह classical music लेकिन इनका राजकारंग चलने नहीं वाला, (शास्त्रोय संगीत) का प्रोग्राम होता है और एक- घर्म जब तक अपना नहीं हो सकता है, क्योंकि तान सुनते हैं । उनसे पूछिए कि भई तुमने क्या यह देश हमारा भारतवज घमं पर खड़ा हुआ है। सता ? वो उस पर किसी भी तरह का वाद-विवाद जब तक धर्म पर हम राजकरण करना सीखगे नहीं करते। वो कहते हैं कि ये जो ये आत्मा को नहीं, रामचन्द्रजी संगात है, इससे हमारे हाथ के vibrations लाएंगे नहीं, Socrates (सुकरात) का राज- (चंतन्य लहरियाँ) वढ़ते हैं और हमें परम शान्ति कारण हम जब तक लाएगे नहीं, तब तक ये देश मिलती है। लेकिन हमारे लोगों के सामने तो आज कभी भी आगे नहीं बढ़़ सकता । classical musie (शास्त्रीय संगोत मानो गाए कि कहीं लोग लद्र न मारने आ जाएं। वहुत सस्ति त रह का इसको प्रगर छुता music ग वलें और इस तरह का संगीत आजकल धर्म पर खड़े होग्रो-जिस आदमो के लिए आप हमारे यहाँ प्रचलित हो गया है, जिसमें कि किसमी हाथ उठा करके कह सकते थे कि ये आदमी शुद्ध भी तरह की परमात्मा की बू तक न आए। इतना हं, स्वच्छ है गंदा music आजकल हमारे यहाँ चलने लगा है । न जाने कैसे आ जकल हिन्दुस्तान में लोगों ने ये सब चीज मान ली। पहले कुछ गंदे राजे-महाराज या प्रति जिसकी दष्टि नंहीं, इतना हो नहीं, अपने नवाव लोग ऐसे गाते बेठकर सुनते थे । cracy (जनतन्त्रवाद) का मतलब ये हो गया कि हर ग्रादमी वैसा ही गंदा महाराजी बन गया या लोग उस पर । उस पर जब इतिहास लिखेगा, तो गंदा नवाब बन गया है। Dem0cracy (जन- कहेंगा, "इस अ्रादमी ने इस देश का घात किया । तंत्रवाद) का मतलब ये ही हो गैया है कि जितना ये अपना देश है, ऐसा ऊचा देश है। इस देश के गंदगी इन सब दूष्ट लोगों में थी, जिनके पास सत्ता लिए जिनको भी कार्य करना है, पहले अपने धर्म या थोड़ा-सा पेसा था, वही हमारे अन्दर भी आ का जब तक हम राजकरण कल ये देश की भूमि और है, इसकी जमीन शर है। ये समझना चाहिए। इसकी आत्मा और है। है तो करके इंसान जैसे घबड़ा गाना और पता तहीं गाए महात्मा गांधी जैसे अपने प्रौर घर्म पर खड़ा हुआ हमेशा परमात्मा को याद करने वाला है । जो आदमी परमात्मा को याद नहीं करता और परमात्मा के Demo- जीवन में जिसके घम नहीं, वो इस देश में कभी हो नहीं सकता। होगा, लेकिन थकगे सफलोभूत पर खड़े हो । जाए । ये सबसे बड़ी demonocracy (राक्षस- वाद) - मैं तो इसे demonocracy (राक्षसवाद) कहती हैं-जिससे हरेक आदमो demon (राक्षस) होने पर लगा हुआ है। इस democracy से तुम क्या कर रहे हो? "मैं राजकारण कर रहा किस दमी में अपने पाया है क वो उठकर है । मैंने कहा ये कोई धंधा है ? ये क्या चौज के कोई विशेष हो गया : काई पदर्श ऐसा इंसान जो ठोस खड़ा होकर कहे कि कोई मुझे छु वही राजकारण करने लग गया। नहीं सकता, कोई मुझे खरीद नहीं सकता ? जिसको देखिए वही राजकारण में चला आता है । मैं देहात में गयी, मैंने किसी से कहा कि भाई हुई, राजकारण कर रहे हैं ! जैसे कि जो उठा आरज मैं आपके सामने जो चक्र बताने वाली है इस देश में जितना भी राजकारण है, जब जिस पर धीराम विराजमान हैं । श्रर इसीलिए निमंला योग ५ू. १he/ मैंने पापसे बताया कि शरीराम का राज्य इस बारे में जानने का मेरे पिता भी कांग्रेस में थे संसार में आना चाहिए। सबसे पहले इसे हिन्दु- पुराने । मैंने एक-एक आदमी देखे हैं । क्या लोग थे ! स्तान में लाना पड़ेगा। जिसने देश के कारण, लोगों के मत के कारण, अरपनी प्नी का त्याग किया। हालांकि वो अदिशक्ति थी, वो जानते मगिल्ले लोग इस देश में कहाँ से आ गये, मेरी थे कि इनके कोई हाथ नहीं लगा सकता-तो भी. समझ में नहीं श्रता। इनको क्या कहना चाहिए इतनी बड़ी मिस्राल उनके जीवन की हमारे सामने कि जो अपने को हिन्दुस्तानी कहलाते हैं और है और कितने घारमिक, संकोचपूर्ण, कितने अनु- कम्पा से भरे हुए श्रीराम । वो तत्व नहीं है। बगर किसी तत्व के संसार में आप होने चाहिएं । ऐसा हमारे सामने नायक होना केसे चल सकते हैं ? चाहिए जिसे हम देखकर कहें कि ऐसे हम बने । श्राजकल प्राप सिनेमा का नायक देख लीजिए, तो कि ये इतनी बड़ी democracy (जनतंत्र) वो शराब पीता है, खुन खरावा करती है । हर बहुत इनके जैसे लोग अब दिखाई नहीं देते। ये मगिल्ले जिनके अन्दर जरा सा भी ध्येय नहीं है । कोई भी हमारे सामने आदर्श सारे देश आपकी ओर अख उठाये देख रहे हैं ये demonocracy (राक्षसतन्त्र) बन रही है, कि कि ये कुछ विशेष चीज है ? के गलत काम करता है और नोयक, नायक का मतलब क्या है ? हिन्दुस्तान में ऐसा नायक दी इलाज है कि आप धर्म को प्राप्त हो। जब तक पहले नहीं होता था । ये अ्रग्रेजों के नायक होएंगे, अ्रापके देश में धर्म नहीं आ्राएगा, आप चाहे दुनिया या किसी ०० । उनके यहाँ तो था ही नहीं कायद इधर मे उधर कर लीजिए, ये देश अप शोसन में नहीं का आदमी । उनके यहाँ कोन रामचन्द्रजी हो गए। एक राजा ने अपनी सात बीबीयों की गर्दन काट डाली । बताइये ! सात रानियों की जिसने गर्दन काट दी, वहाँ पर एक राजा साहव वी बठे हुए हैं । वहा के प्रति इतनी श्रद्धा हर एक जगह है ! हर एक किसी भी राजा का आप जोवन पढ़ तो इस कद र शराबी-कबाबी, हुई है। और बो वहाँ का राजा है और वहां तो भी, ये कहना चाहिए, ये होते हुए भी, वहां लोग ये जानते हैं कि जब तक हम सही रास्त से उसे समेटना चाहिए। उस पर बुनियाद डालकर नहों चलेंगे, righteousness ( सदाचार ) से नहीं के जिस दिन हम अपनी देश की नई नींव डालेगे, रहेंगे. हमारा राज्य चल नहीं सकता। बात है नहीं, क्योंकि उनके बुनियाद में ही नहीं हैं स्वतंत्रता, गांधी जी लड़े स्वतंत्रता के लिए । अगर बातं । हमारे बुनियाद में क्या? एक से एक, शिवाजो वो जीवित होते तो कहते "स्व जैसे शाहू महाराजा शिवाजी जसे थे । उनका खो ओो। "स्व" का तन्त्र ही सहजयोग। "स्व" के चरित्र क्या था ? किंतने उज्जवल आदमी थे ! मा बारे में जानना ही स्वतन्त्रता है । तरह इसका एक ला सकते । यहाँ प्रराजकता आएगी, यहाँ अशासन आएगा । हमने अपनी, इसमें देखा है कभी भी हम देहात से जा रहे हैं, कहीं से भी जा रहे हों, सत्तों दूनिया भर की उसमें गंदगी भरी जगह । कोई मजाल नहीं कि कोई वहाँ पर अराज- कता करता हो। वो सन्तों की श्रद्धा, वो भक्ति का सागर जो ह हालांकि वैसी तभी हमारा देश असल में स्वतंत्र होगा। क्योंकि का "तुन्ब के भक्त थे । उनको माँ कितनी तेजस्वो स्त्री थीं। एक एक को देखिए हमारे यहां, कि हमारा इतिहास भरा पड़ा है; राए प्रताप । मैं अरभी आ रही थो चौदह हज़ार वर्ष नाईी ग्रन्थ में लिखा हुआ है। लाजपतनगर यहा से । मैंने कहा लाला लाजपत- कि ऐसा होगा इस वक्त में । और सारे दृनिया के राय क्या आदमी थे । मुझे इतफाक़ हुआ उनके देश यहाँ पर भुक्त कर आएगे और हमसे सीखेंगे कि ऐसा होना चाहिए और होगा भी, क्योंकि पूर्व निर्मला योग अब आपके Ieft hand side (बांयो तरफ) में चाहिए। लेकिन आप लोग सत अपने पर विश्वास जो heart (हृदय) के चक्र का दोष होता है, वो रखें, सहजयोग में गहरे उतरिये तभी ये कार्य हो आपकी मां की वजह से आता है। अगर आपकी में विश्वास नहीं करती, आपको गलत रास्ते पर ले जाती है, या जरूरत से ज्यादा आपको प्यार करके आपको खराब करती है तो भी सां घर्म क्या है और परमात्मा क्या है । ऐसा होना मांँ परमात्मा सकता है। हृदय चक्र जो है उसमें तोन उसकी sides हैं । एक तो left (वाये), बीच की। right side में श्रीराम का स्थान है । थरीराम जो पितातूल्य हैं, जोकि benevolent king (उदार राजा) हैं। जो Socrates (सुकरात) ने (प्रयोग) में ऐसा देखा कि एइंसान आकर बताया ऐसे रा जा थे । जिनको सिताय लोगों के हित के उसे बार-बार बताता था कि मेरी मां का के और कुछ सूझता नहीं था हित कसे होगा, लोगों मुझे स्वप्न आता है कि वो एक witch का टीक कसे होगा, उनका भला केसे होगा। (पिशाचिनी ) है, एक राक्षसनी है बार-बार मूझे नन्होंने जो कुछ किया है, इस संार में सि्फ़ एक ऐसा स्वप्न आाता है। विचार से कि मनुष्य का भला कैसे होगा। नगे से पूछा कि भाई तुम्हारी मां का तुम्हारे साथ पाव वत में गये कि वहां की भूमि उनके चरराों से व्यव्हार कसा है । उन्होंने कहा कि भई मेरी मां तो vibrate (चेतत्यमय) हो जाए। सारा नाटक खेला ऐसी है कि मुझवी इतना pamper (अत्याधिक दुःखदायी नाटक था । शरीर तो उनवा था ही जो लाड़) करती हैं, इस कदर उसने मुझे spoil सहन करता था, ले कन ये सार नाटक उन्होंने खेला सिर्फ ये दिखाने को कि एक प्रादर्श राजा कं सा होना नहीं। उन्होंने कहा ठीक है, इसका मतलब है चाहिए। एक आ्दर्श पिता कंमे होने चाहिए। एक तुम्हारी मां राक्षसनी है इसका स्वप्न तुम्हारे अचे- आदर्श पुत्र कसे होना चाहिए। ये आपका right तन से, unconscious से अ रहा [है] और तुमको heart (दायां हृदय) हे । अगर कोई भी इंसान अरदमी का right heart (दायां हृदय) पकड़ता है, माने ये कि किसी भी इंसान में कोई पिता का दोष हो। हमेशा स्वप्न आता है कि बो सिंहासन पर बैठा है समझ लीजिए उसके पिता की मृत्यु जल्दी हो गयी। उसने पिता का सूख न देखा हो, या अगर उसका कि तुम्हारा अपने लड़के से कैसा अपने पिता से सम्बन्ध ठीक न हो, या पिता प्रगर रिश्ता है ? कहने ल गे मैं ने दूसरी शादी कर ली। गलत रास्ते पर चलता हो या बो पिता से दूश्मनी लिए हुए है। कोई-सा भी पिता का जो तत्व है तो घर में नौकर जेपा ही है, किसी काम का नहीं । अगर खराब हो जाए तो ऐसे अादमी का ight और मुझे ऐसा स्वप्न आराता है । heart (दांया हृदय) पकड़ता हैं और ऐसे आदमी रहा था कि तुम्हारा लड़का जो है बो सिहासन पर को asthma (दमा) होने का अंदेशा है। अब बैठने लायक है, और तुभ उसके नीचे खड़े हुए हो, देखिए कहां से बात कहाँ ला दी। इस वक्त आपको उसके नतमस्तक तुम्हें रहना चाहिए, बजाय इसके श्रीराम का ध्यान करना चाहिए, जब प्पको कि उससे तुम छल करो और उसे किसी तरह asthma हो। इससे आपका asthma ठीक हो से, इस तरह से व्यवहार करो जिससे वो नगण्य हो एक ight (दायें) और एक बड़ी दोपी है। ने अ्रपने एक experiment Jung /यंग) तो उन्होंने अ लड़के (बिगाड) करके रखा है कि मैं कि सी काम का बता रहा है कि सम्भल के रही। एक बताता था कि मुझे अपने बेटे के बारे में ऐसा औ्र उसके सामने मैं हमेशा नतमस्तक हैं । Jung ( यु ग) ने पूछा मैं उस लड़के की परवाह नहीं करता है । वह पचेतन उसे बता तुम सकता है । जाए । निर्मला योग यही बात है कि मां और बाप का बहुत बड़ा करते हम पगला जाते हैं। खास कर टी. बी. की है । एक तो अपने देश में बोमारी जो ये मां से होती है । किसी को अगर जां बाप का इस क़दर अपने बच्चों के प्रति स्वार्थ टी. बी. की बीमारी है तो जिसकी मां बचपन में होता है, इतना ज्यादा स्वार्थ होता है कि आ्रश्चर्य मर गयी हो या मां का प्यार जिसे न मिला हो, है ! इसी देश में पन्ना घायो जैसी औरतें हो गयी जिस अ्रादमी ने मां को जाना नहीं उसे टी. बी. की इसो देश में ऐसे लोग हो गये जिन्होंने प्रपने बच्चे बीमारी हो जाती है । आप सोचिए इस देश में, करते देना बच्चों को होता देश के लिए कुर्बान कर दिए। हम खुद अपने बाप देश में जहाँ मां की लोग पूजा इस महात की बात कह सकते हैं कि जो हम लोगाँ को कुर्बान वहाँ कितने लोगों को टी. बी. हो जाती है। इसका करने में एक क्षण भी न ठहरें, और उसमें वो मतलब ये है कि मां जो है बच्चों को खराब कर बड़ा अपने को गर्व समझते थे । और ऐसे हमने रही है, मां उनको दोष लगा रही है, मां उनसे नक इनके मित्रों को देखा और अने क लोगों को बुरी तरह से पेश अ रहो है। इसकी मतलब ये देखा उस उच्र के, जो प्रपने बच्वों से कहते कि नहीं कि आप बचुत्ों को हर समय डांटते रहें, फट- कारते रहें । लेकिन अपनी प्रतिष्ठा के साथ, कुर्वान हो जाओ अपने देश के लिए । ाम अपने बच्चों के सामने ऐसा एक उदाहरण रखना वो गया एक तरफ भगतसिंह का जमाना श्र आज ये आया है कि मेरा बेटा, मैरों बैटा, मेरा, कउनका बर्ताव कैसा है और हमारा बताब कस मेरा, मेरा । यहाँ पर भी जो बता रहे थे, बात सही है कि आकर के मेरा बाप ऐसा, मेरी मां ऐसी. मेरा बेटा ऐसा, मेरा ये ऐसा । दूसरा लगो रहें या पति से हर समय लड़ती रहें, ता वी है । ग्राप ही उनके सामने (अ्रभद्र) तरीके से रहें, रात दिन अपने श्ृ गार में अगर बहुत cheap extreme (पराकाण्ठा) हे इंगलेड में जो मैंने आप से कल बताया कि अपने बच्तों को ही मार डालते हैं। काम सफ़ा । आपकी क्या इज्जत करेगा ? स्त्री में जब तक वो बात नहीं प्राएगी, तब तक बच्चे में कसे श्राएगी ? वही बात पिता की है । अगर पिता बचचा भी ये दो extremes (पराकाष्ठाओं) के बीच में स्त्रयं शराब पीता है आवारा है, घुमता है, घर में मनुष्य को रहना चाहिए। अपने बच्बों के प्रति भी नहीं बेठता है, बच्चों से मिलता जुलता [नहीं हैं, आपका बड़ा भारी परम कर्त्तव्य है कि उन को बीबो को बातें सुनाता है, ऐसों के बच्चे केमे होगे ? क्या वड़े अछे हो सकते हैं ? खराव न करें। उनको ये नहीं लगना चाहिए कि हमारे मां बाप हमारे आदर्शों से छोटे हैं। लड़के हैं बो जगह जहाँ "यान्हनेवे भागने लग्न संस्कार' सिगरेट पीते हैं बचपन से । उनको बुरी श्रादत लगती छोटे-छोटे उम्र में जो संस्कार हमारे ऊपर हैं। इसका कारण उनके मां बाप हैं । श्रौर कोई नही। अगर लड़के बिगड़ते हैं तो मां बाप उसके लगते हैं वो ऐसे हो होति हैं जसे कि जिस घुड़े के कारण हैं। मां बाप अगर उनके साथ रहें उनके कचे रहते वक्त जो उस पर दाग पड़ जाए, उसी अ्रकार वी पक्क हो जाते हैं। उस वक्त इतना सम्भालना जरूरी. है, इतना उनको प्रेम देना जरूरी कि विससे उनकी जो बृद्धि है वो कारयदे से हो जाए। पर ऐसा होता नहीं है । ज्यादातर ऐसा होता नहीं है। हम या तो उनको ज्यादा ही पानी बीचों-बीच खड़े रहकर साथ घमें फिर, उन से दोस्तो कर, उनसे इज्जत से पेश आएं तो वच्चे नहीं विगड़ सकते । अब ये दोनों चक्र जो हमारे परन्दर हैं। और मां के दोष से अनेक रोग आ सकते हैं। मां के दोष से ऐसे ऐसे रोग आते हैं कि जिसका निवारण करते- देते हैं ग्रौर या नहीं देते । निर्मला योग ८ के देखना चाहिए कि हमारे बच्चे किस रास्ते पर कहते हैं अोर माता जी दूसरो वात कहती हैं । चल रहे हैं । साक्षात्कार प्राप्त हम। री लड़की की लड़की है। वो फिर ये कहना समाज ऐसा बना हुआ है, realised soul है । वो एक दिन कहती है कि "नानी माँ क्या करें ? लड़के खराव हो ही जाते हैं । केसे ? एक वात बताइये ये जो शेर होता है पूर्व जन्म में आपको चित्त ही नहीं है बच्चे की ओर कम से कम आप तो कोई शिकायत नहीं कर सकते। इंगलेंड, कि उसके मां बाप कहते हैं कि तुम इंसान को खाओ प्रमेरिका में तो लड़ कों को dole (बेरोज़गारो र उपको भगवान कहता है कि मत खाओ, तो वो भत्ता) मिल जाता है १८ साल में, तो वो बेकार कुया करे ? देखिए ! उसके सामने ये प्रश्न खडा हो जाते हैं। पर आप लोग, अरप लोग तो जिन्देगी गया कि इसने पर्व जन्म में कूछ बूरे कर्म करे होंगे, भर उन बच्चों को पालते हैं ।"किर भी कया नहीं तो ये ऐेसे मां बाप से क्यों पेदा हुआ कि जो हप्रा थोडा सा शराब ही तो पीता हैं ना। सिंगरट कहते हैं इस न वो स्वा लो । यही प्रश्न हमारे दिमाग पीता है तो आजकल सभी पीते हैं उसकी गदी में ग्राता चाहिए प्राखिर ऐसा कौन सा हमने पूर्वजन्म आ्दते है थोड़ी बहुत, औरतों के पीछे भागता है में क्म किया है कि जिमके कारण हम अपने बच्चों कोई हजर्जा नहीं ! के प्रति अपना रुझान रखें, ये तो इसको मैं कहती है कि आरप उनके दूष्मन हो गये क्योंकि जो आप दोनों स्थितियां जो है ठीक हो जाती है। आप ग्रगर का कर्तव्य है उससे अगर आप च्युत हो गए तो आपने उनको तो ऐसे ही गढे में घकेल दिया यहां तक मैंने है, कुछ लोग जो अपने की बहुत जाते हैं। ग्गर प्राप मां हैं, तो आग मां की दृष्टि अं प्रेज समझते हैं क्ि 'साहव मेैं तो अपने बैट के साथ बैठकर शराब पीता है।" कवा कहने आपके ! इस प्रकार की जितकी मनोबृत्ति है ऐसे लोग जाने क्यों मां बाप हो जाते हैं ? और होने पर भी उन बच्चों को रात दिन खराब किये जाते हैं। युवक हैं ये संभलगे । नहीं तो इतना बच्चों के साथ कड़ा रुख होता है कि बच्चे घर से भाग खड़े हैं । सोचते हैं हमारे मां बाप का हमारे प्रति कोई प्रेम ही न ही। उनको कोई दुलार ही नहीं है । कृछ खराब काम किए होंगे। मैंने कहा कपों ? क्यों "-इस तरह से अप अपने बच्चो को मीक रास्ते पर नहीं लगा सकते । ये दोनों चक्र ठीक हो जाने से, आपकी मां अोर बाप, बाप हैं तो प्राप वाष की दुष्टि से ठीक हो जाते है। अगर आप पुत्र हैं तो आप पूत्र की दष्टि से ठीक हो सुना से ठीक हो जाते हैं। अगर आप मां की बेटी हैं या पुत्र है तो उस तरह से ठीक हो जाते हैं । ये दोनों चक्र ठीक हो जाने से ही अपने देश के जो नब- ा EGO प जानते हैं कि हजारों लोग परदेश से हमारे शिष्य हैं। इनके मां-बाप तो पागल ही लोग हैं अ्धिकतर । बो लोग शराब पीना, रात भर वहां की शीरतं चार-चार बार बाहर रहना। इसलिए मैं कहती है कि आप सहजयोग में शादियां करती हैं। आदमी छः छः वार शादियां पने बच्चों को लाएं । पार होने के बाद फिर हम करते हैं। और सव ग्रनाथालिय में बुढ़ापा काटते देख ले गे । उसके बाद बात और हो जाती है। पर हैं ऐसे विचारों ने कोन से पूर्वकर्म किए हैं कि पहले प्राप पार होइये। अगर मां बाप की ही प्रक्त उनको ऐसे माँ-बराप भिले । पर ये लोग जब सहज- खराब हो तो बच्चों को पार करा के भी क्या योग में आ गए तब से सम्भल गए हैं कि अव] फ़ायदा ? वो तो गलत रास्ते अ्रपने जो हैं प्राप हमारी शादियाँ हो गयी सहजयोगियों में । प्रब बच्चों] को सिखाएंगे और हम उनको सही रास्ते हमरे यहाँ बड़े-बड़े ऋषि मुनि पदा हो रहे हैं । और सिखाएंगे तो बो कहेंगे, हमारे वाप तो एक बात इनके लिए हमें कसे बर्ताव रखना चाहिए । उन्होंने 1 निमंला योग हं एक नयी धारा बना ली है कि इनके सामने किस हो जाता है, जब जगदम्बा का चक्र आपके अन्दर तरह से रहना चाहिए । जो जो भी कार्य अ्रब जागृत हो जाता है तो श्रापके अ्पन्दर से भय, सहजयोग में हो रहा है, उसमें सबसे बड़ी चीज जो आशंका सब भाग जाती है । कोई किसी प्रकार ध्यान में रखने की है कि हमारी आत्मा क्या बोलती की भय-अशका नहीं रह जाती। है । और ये चेतन्य लहरियों से बोलती है और उसी से जाना जाता है कि हम कहां चल रहे हैं । आत्मा शब्दों से बोलती नहीं है । जिस वक्त किसी स्त्री में ये चक्र पकड़ जाता है जव भय हो जाता है उसे या उसका विशेष करके जब left heart (वाया हृदय) उसका पकड़ता है और उसे ये लगता है क्ि उमका मातृत्व दम्बा का है । जो कि सारी सुष्ट की मां है । ये जो है, उस पर हो अघात आ रहा है, उसका पति जो ग्रौर ओरतों के पीछे भाग रहा है, उसके मातृत्व भक्त, इस गौल जगह बना हुआ जगह जहां है, जहां को हो ग्रब कि पी तर ह से लाछन आने वाली है तब पर कि भक्त लोग सब भगवान को खोजते हैं, उसको जो बोमारी होतो है इसे हम लोग breast उनका रक्षण करती है । उनके लिए उन्होंने राक्षसों cancer कहते हैं । ये इन दो चक्रों की वजह से का वध किया, उनका रक्त पिया, उनके भूतों के औरतों में होती है । विशेष करके left चक्र को भूत खा लिए, उन्होंने संहार कर करके इन लोगों व जह से, जब कि माँ का मातृत्व जो है वो आदमी सोचना है कि हमें क्या करना है, हमारी बीची है ं तो क्या । हम जे मे चाहेंगे, हमें बहुत से लोग ऐसा कहते हैं भई हिन्दुप्रों के स्वतन्त्रता है, हम जैसे चाहे रहें | ऐसे पतियों की देवी देवता जो है ये वड़े कुर हैं, और nonvege- परेशानी की बजह से प्रतों को breast cancer अब बीच का जो चक्र है, ये साक्षात् देवी जग- जगदम्बा जो है ये भक्तों का रक्षण करती है । जो है को ठोक क्रिया । जैसे तो क्या, बच्च हैं tarian (मांस भक्षी) हैं । तो मैं कहती हैं अगर ये अमेरिका में भी लोग कहते हैं राक्षसों को देवी न खाएं तो क्या आप लॉग खाइयेगा ? इसमें क्या है ? ये मब कुछ टीक नहीं ? एक ही इन राक्षसों को देवी न मारे तो क्या आप लोग पत्नी क्यों होनी चाहिए ? और औरते भी एक ही पति क्यों होना क्या आप लोग मारते ? रावण को राम न मारते नाहिए ? पर वहाँ फिर औरतों को breast तो कौन मारता ? उस पर बहुतों का ये कहना है, cancer वर्यों हो जाता है ? [्र आदमियों को श्रर ये सबको मारते परेशानियाँ क यों हो जाती हैं ? अगर ये चीज हो जाता है । इस्लेंड, मारियेगा ? कंस को अगर कृष्ण नहीं मारते तो कहती हैं कि ये तो देव यौनी के लोग हैं कुछ रहते हैं। इस तरह का विचार करने से आ्राप जो अच्छी होती, नै पंमक चीज होती, तो मनुष्य और राक्षस हैं उन सबको खोपड़ी पर बिठा उससे सुखी होता । पर आपने कभी देखा है ले । उनका नाश न करिए, उनको आप किसी तरह जिस आदमी ने अपनी पत्नी को छोडा है और से नष्ट न करिए, उनके साथ कोई दुर्व्यवहार न दूसरे परादमो के साथ स्वेच्छाचार कर रहा है वो दुष्ट म] करिए, उनको विठा करके उनकी आरती उतारिए । सुखी है ? तो इस वजह से हमारी जो विवाह संस्था है उमका वडा मान करना चाहिए । और ये समझ लेना चाहिए कि प्रपनी पत्नी जो है ये घर की गृह- लक्ष्मी है। इसका अपमान करने से, इसको जगदम्बा ने अनेक वार जन्म लिए । इनके ऐसे तो नौ जन्म वहुत विशेष माने जाते हैं, ले किन उनके हजार जन्म कम से कम हुए हैं। और हजार बार संसार में आ्राकर उन्होंने, जो भक्त लोग थे, उनकी दुख रक्षा की । जब ये चक्र अापके अन्दर जागृत देने से, इसको तक नीक़ देने से हम अपनी घर की निमला योग गृहलक्ष्मी को सता रहे हैं। अर्थात् जसे मैने कल का स्थान बहत ऊंची चीज है। श्री गणेश इतने शपसे बताया कि गृहलक्ष्मी को भी इस यो य होना ऊने स्थान पर इसलिए हैं क्योंकि वो अपनी मां को चाहिए कि वो गृहलक्ष्मी कहला ये | ही मानते हैं औौर किसी को मानते ही नही। क्यों कि वो जानते हैं कि माँ ही शक्ति हैं । गुरू दुनिया भर के जो भी सही गुरू हो गए, वो भी मां को मानते हैं। वेद हैं वे भी माँ को मानते हैं । दृनिया ले किन ये सब होते हुए, ऐसी पत्नियों [श्रोर ऐसी दूखी पत्नियों को, जाए, तो उसके लिए हमें समझ लेना चाहिए कि में कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं जो आदि मां को न इनके घर में हो कोई तकलीफ़ ऐसो बन रही है। जिसकी वजह मानता हो। जा रही है। अगर कोई तकलीफ़ हो प्र हम भी मां को मानते हैं। लेकिन हम ये नहीं जानते कि मां चीज़ कितनी ऊंची है। कभी-कभी ये भी होता है कि मनुष्य के अन्दर से ये स्त्री विचारी वीरे-घ्ररे धुलती अब जो जगदम्बा का चक्र है उसकी वजह से आशंका ओर भय इस वजह से प्राता है कि-उसको जब पकड़ जाता है, तब मनुष्य जो है वो भीतू उसके मां वाप से वो प्यार, वो संरक्षण हो सकता हो जाता है, डरपोक हो जाता है उसको भय सा है-उसे किसो ओर भी वजह से भय आ जाए, रहता है, वो हृर समय इरता है। केैसे भाषण दें. क्या बोल, किससे क्या कहे, मुझे तो डर ल गता है मैं जरत नहीं । नहीं कह सकता । और जब उसका ये चक्र ठीक हो जाता है तब उसके अन्दर घेर्य अ्र जाता है। भई तुम्हा रे बाप कैसे हैं, तुम्हारी मां कैसी बो उद्दंड नहीं होत।, बो किसी तरह से arro- है, तुम्हारी क्या कैंसा। ज्यादा से ज्यादा gance (उद्द्डता) नहीं करता लेकिन उ म की भावा में एक तरह की ममता, उस मां की, जो कि उसके लेकिन जैसे ही वो जागृत हो जाता है, जैसे ही ये अन्दर जागृत हो गयी है, आ जाती है। लेकिन वो चरु जागून हो जाते हैं, मनुष्य एकदम शेर दिल हो किसी से डरता नहीं । ईस मसीह का उदाहरण आप देख लीजिए कि जिन्होंने सूली पर चढ़के ये शेर पर ही विराजती हैं । वहुत से लोग दुरग्गाजी को कहा कि प्रभु ये लोग जानते नहीं, क्या करें, इन को माफ़ कर दें । वो ही हाथ में हंटर लेकर के थ्द्धा है और उनके बारे में जानकारी बह़त उन्होंने सबको मारा था जो वहाँ पर चीज़ें बेच रहे कम है । वहुत कम जानका री है कि वो कितनी थे । और जिस तरह मारी मगदागलनी (नामक) प्रभावशाली हैं और एक बार अंगर उनको प्रसन्न एक वेश्या थी-वेश्या और सन्तों का क्या सम्बन्ध, कर लीजिए तो दुनिया में किसी से डरने की बात कुछ हो ही नहीं सकता-जब लोग उसको पत्थर उठाकर मारने लगे तो उनके सामने जाकर के छाती खोल कर खड़े हो गए अरर कहा कि तुममें से जिसने कोई पाप नही किया हो, वो मुझे पत्थर मारे । ये हिम्मत ! ये अपने पर विश्वास । ये देवी की कृपा से, माँ की कृपा से होता है ! इसलिए कल ही श्री कृष्ण के चक्र पर जितना कहें सो हमारे यहाँ शक्ति को बहत वड़ा मानते हैं। लेकिन कम । इस चक्र में सोलह कलि्याँ हैं. क्योंकि सोलह हम लोग खुद ही अपने को शक्तिहीन कर लेते हैं। कितने लोग संसार में हैं जो ये समझते हैं कि मां हजार बीवियाँ थीं वो उनकी सारी शक्तियाँ थीं, उसकी कोई सी भी वजह हो जा ए, उसमें जाने की हम लोग psychologist (मनोवैज्ञानिक) जैसे ये नहीं पूछते बैठते कि वेपा कंस। । ज्यादा से ज्यादा ये पूछेगे कि तुम्हारे मां बाप जिन्दा हैं या नहीं। जाता है। शर दिल हो जाता है । क्योंकि देवी जो मानते हैं । मैं मानती हैं कि उनके प्रति बहुतों की मात नहीं । इसके बाद जो चक्र इससे ऊपर है, जिसे कि विशुद्धि चक्र कहते हैं, ये बहुत महत्वपूर्ण चक्र है । ये चक्र श्री कृष्ण का है और अब होली आरा रही है, उनकी कला हैं-श्री कृष्णा की। श्रर उनकी जो सोलह । निर्मला योग ११ जिनको कि उन्होंने इस संसार में जन्म देकर के थे उनको कुछ माजूमात नहीं था। लेकिन जब उस राजा के यहाँ फंसाया और उसके बाद उनसे विवाह कर लिया । कृष्ण की लीला समझते के लिए भी महजयोग करना पड़ता है । उस के बरगर realisation के बाद । मैंने पूतछा क्या देखा ? कहने आप कृष्ण को नहीं समझ सकते । उनके होलो का लगे मैंने ये देखा कि बहुत से हम लोग बच्चे खेल अर्थ भी आप नहीं समझ सकते, होली क्या थी ? रहे हैं और एक बड़ा प्रदीप्त लड़का है जिसका रंग होली में यही था कि जो पानी जमुना जो में बहता थोड़ा सांवला है, लेकिन बड़ा प्रदीप्त है, और बो था उसमें श्री राधा के पेर पड़ने से वो चैतन्यमय हम लोगों का पिरामिड (pyramid) बना कर हो जाता था, उस पानी को गगरी में ले कर के उस हमारे उपर चढ़ गया।और उपर में एक मिट्टी का में लाल रंग घोल करके और जब वो किसी के पीठ pot (धड़।) रखा पर छोड़ते थे तो वो असल में उनकी कुण्डलिनी उसने अपने हाथ की एक लकड़ो से तोड़ा । ओर बो ही जागृत करते थे। उन्होंने बचपन में जो कुछ हमारे सब के ऊपर घर-घर-घर, देखिए, वहने लग उनकी लीलाएं की सबमें सहजयोग किया । उस गया और वहते ही हमारे अन्दर एकदम बक्त कोई ऐसे हॉल (hall) नहीं बने हुए थे । ऐसे चंतन्य श्राने लगा । उसने जो बात बतायी तो मूझे परमात्मा को खोजने वाले लोग नहीं थे। कोई इस बडा आश्चर्य हम्रा कि इसने कैसे जाना। उसने कभी तरह की व्यवस्था नहीं थी । ऐसे यंत्र नहीं थे । ये तो सब अब देन हो गयी है अपने Science ये जाऊर के ऊर क्यों तोड़ते थे । ये ही उनकी (विज्ञान) की, कर सकते हैं। लोलाएं करी वो सब लीला सिर्फ सहजयोग की थीं। धर पानी तीचे आ जाए जिससे लोग जागृत जैसे कि गोपियाँ थीं वो जब पानी भरने जाती थीं, वो अपने सर पर गगरी रखके जब लोटती थी तो पीछे से उनको कंकड़ मारते थे । उसमे वो जो पानी था, जो चैतन्यमय उनके पीठ के रोढ की हड्डी पर दौड़े, जिससे इनमें जागति अा जाए। रास, रास माने 'रा' माने शक्ति प्रर 'स' माने साहित्य । जैसे सहज है वसे ही। हाथ में सब के हाथ पकड़ करके और अपनी शक्ति सबमें बो दोड़ाते थे अ्रौर उसके फल का देना मेरे लिए साध्य है, मुझे देना इसी को 'रास' कहते थे । ये 'रासलीला' जो होती ही होगा। ऐसे कृष्ण के बारे में क्या कहें और थी, उसी से वो शक्ति दौड़ा करके और लोभों को कितनी बातें बताएं । उनको 1ealisation (साक्षात्कार) हुआ तो भुझे कहने लगे कि मां मैंने एक अरजीब चीज़ देखी उसको था । हुआ जाना नहीं था कि गोपाल काला वया होता है औ्र कि जिसको हम इस्तेमाल लाला थी, जिससे वो सबके सहलार पर चढ़के और वक्त उन्होंने जो बहां से वो पानी तोड़ते थे जिससे सबके ऊपर घर- उस हो जाए। उनकी सारी लीलाएं जितनी थीं सब सहजयोग की थीं। ग्रोर उन्होंने जो कृषि की है इसलिए उनको कृष्ण कहा जाता है उन्होंने जो कृषि की है वही आज बढ़क र के प्राप लोगों के रूप में मेरे सामने आ्राज बो तैयार चोज प्रायी हुई है जिससे कि इ जागृत कारते थे । ा गीता, जिसके बारे में लोग हजारों बातें कहते मैं जब अ्रमेरिका में पहली बार गयी वहां पर हैं, समझने के लिए भी आपको सहजयोग में आना उन्होंने कभी चाहिए। उसके बगेर [आाप] गीता भी नहीं समझ भी तो, उन दिनों में मैं तो गयी हुई थयो १६७३ में, सकते । सिफ़ गीता पढ़ पढ़ के कुछ गीता समझ उन दिनों उन्होंने कोई कृष्ण के बारे में सुना नहीं में नहीं प्राएगी । गीता जो जिसने सुनायी है, वो था प्रोर वो प्रोहियो में बोवों-बोच प्रमेरिका के रहते कोत थे । पहले उतके बारे में जान लेता चाहिए एक ईजीनियर Lord साहब मिले निमला योग १२ बड़े होशियार हैं । होशियार ही नहीं थे, बो उस वो बतायी वहुत मजे तरीके से, कर्म की । कि वेटे तुम कसं करते रहो और सब कर्म परमात्मा के चरण में डाल दो। हो नहीं सकता, absurd (असंभव) ! बहुत से लोग आकर कहते हैं, माताजी हम जो भी कम राजदूत थे, और diplomacy का विल्वुल वक्त के जो प्र्थ है, essence है, उसको जानते थे । अत्र diplomacy का क्या 65sence है ? कि कोई ऐसी absurd (वाहियात) बात करो कि निसके करने करते हैं वो हम परमात्मा के चरराों में डाल देते से आदमी मंह के बल गिरे । कृष्ण का खेल जो है हैं मैने कहा 'प्रच्छा', ये के से ? फिर शरप कर्म उसको समझने के लिए पहले आपको सहजयोग में उत रना चाहिए। अच्छा, मैं समझाने की कोशिश डालते हैं तो प्रप ऐसा क्यों कहते हैं कि मैं जो कम करती है। लेकिन श्रप समझते को कोनिश कर । d ही नहीं करते। अगर पराप परमात्मा के चरण में केरता है ? इस तरह की हमारे अन्दर [अपने वारे में ए myth (भरान्ति) हम लोग बना ले ते हैं कि हम जै से कि उन्होंने शुरू शुरू में ही वता दिया । तो भाई जो भी करते हैं परमात्मा के चरणों में क्योंकि दुकानदार तो थे नहीं कि पह ते ुरी चाज डाल देते हैं। लेकिन कुछु ऐसे सयाने लोग हैं जो दिखाओ, किर घोरे-धीरे श्रच्छी चोज दिख। प्रो । तो उन्होंते पहले ही बढ़िया चोज दिखा दी। उन्होंने कि आपको जञान होना जाहि।। जान माने अकर कहते हैं कि मां हम तो सोचते थे कि मैं परमात्मा के चरगों में डालता हैं, पर होता नहीं े है। कोई न कोई गड़बड़ बात । सो कृष्ण ने ब्या कहा क्या ? बुद्धि से नहीं, बुद्धि से नही। ज्ञान माने कहा। उन्होंने जो बताया, एक absurd बीत बता आपके central nervous system में ग्रापकी दो, कि आप ऐसा करते रहिए । माने जेसे आप जानना चाहिए, आपको प्रचीती होनी चाहिए, कि समझलीजिए, एक लड़का है वो बैलगाड़ी हाक रहा परम क्या है जिससे आप स्थितप्रज्ञ होते हैं। साफ है और घोड़ा पीछे रखा है। तो बाप आ्या बाहर। साफ उन्होंने दूसरे हो chapter (खण्ड)में कह दिया, उसने कहा, बेटा, क्या कर रहे हो, कहने लगा मैं व्याख्या दे दी कि सहजयोगी कैसा होना चाहिए गाड़ी हाक रहा है पर उसके बाद उन्होंने देख। कि प्रज न तो जो हैं करो तब गाड़ी हाकेंगे । नहीं, मैं तो गाड़ी हांकूगा । बो अपनी लगा रहे थे । उन्होंने कहा कि इधर तो तुम कह रहे हो कि तुम साक्षी बनो, इधर तूम कह रखना। जब तक तुम घोड़े पर चित्त रखोगे, तो रहे हो कि तुम ज्ञानी बनो और उधर तुम कह रहे हो कि तुम युद्ध में जाो । तो ये के से हो सकता । अ्रब तो जान गए कि ये सीधे नहीं ने वाले । । उन्होंने यहा, भई घोड़ा सामने घोड़े पर चित्त उन्होंने कहा, अच्छा, हकिते रहो, किर गाडी चलेगी प्रौर वो गाडी चली नहीं। लेकिन मां की ये वात नहीं । माँ ने कहा 'बेटे वो घोड़ा सामने रखो और बाँधो नहीं तो कोड़ी नहीं चलने वाली । और न ही धोड़ी चलेगी और न ही तुम्हारी है। जो है उस वक्त का भक्त है समझ गाडी चलने वाली है । तुम जब तक ये नहीं करोगे लीजिए। उसको वो, उसका बो प्रतिनिधितव तब तक हो नहीं सकता । पहले आत्मा को प्राप्त करो करता है, represent करता है । अजन ने फिर आगे की बात करो । जब आ्रप पार हो जाते उनसे पूछा कि ये कैसे हो सकता है ? कि अगर मैं हैं तो आप क्या कहते हैं, "आ रहा है, जा रहा है, हो साक्षी हो जाऊं, फिर तो मैं लड़ गा ही नहीं। वैसे भी रहा है।" आप ये नहीं कहते कि मैं आ रहा हैं, मेरे मैं कर नहीं करूगा, मैं बिल्कुल बेकार हो जाऊंगा । अन्दर से प्र् रहा है, मैें ये हूँं, मैं कर रहा है। ऐसे कहा अब इनको तो कोई नहीं कहता । अभी आपने सहजयोगियों को देखा होगा ' मां इनका नहीं बन रहा, इसका नहीं जमता है, ये जमने नहीं वाला"। Third कुछ ये सब वातें क्या हैं ? सो कृष्ण ने सीवे तरी के से समझाने से नहीं होगा । उल्टे तरीके से से मझाओ । तो पहली चीज उन्होंने जो वतायी, निर्मला योग १३ person । क्योंकि ्राप उस परमात्मा के अंग और लगता है-प्रकर्म ! हम अमेरिका गए थे तो एक प्रत्यंग वन जाते है । यही विराट का स्वरूप है । स्त्री हमारे साथ गयी थी। वो कहने लगी मां मेरे लेकिन स्वरूप को पाना चाहिए और Jung (श्री लड़के को जरूर पार करा देना। मैंने कहा भाई युन्ग) ने साफ-साफ कहा है कि अव मनुष्य कभी तुम ही certificate दे दो । मैंने तो हाथ तोड़ हाले, अब तुम ही पार करा दो । कहने लगो मां, लेकिन हिक चेतनायुक्त) होगा। साभूहिक चेतना में जागृत अगर पार तहीं होता तो केसे certificate दे । तो होगा। ये नहीं कि हम आप भाई-भाई और मैंने कहा, यही तो बात है जब होता ही नहीं है वो पार, तो तुम उसको false (झु्ा) तो certi- हमारे शरीर के अ्ंग प्रत्य ग वन गये सामूहिक ficate (स्टीफिकेट) दे नहीं सकतीं तो उसको पार चेतना में आप जागृत हो गये। तभी कृण्ण का काम करायो । पहली बात पार कराओ। ये तो नहीं कह सकते कि तुमने पार करा दिया। क्योंकि जब विराट बन जाता है । इस सर में जो सात चक्र हैं हआ नहीं तो पार कैसे ? यो तो होता ही नहीं। उसके पीठ है, उस पीठ पर बैठे हुए वो विराट है । तो जो तृतीय पुरुष में हम लोग बोलना शुरू करते हैं, अक्म में मनुष्य हो जाता है, बो ये नहीं सोचता मैं कर रहा है । कोई विवार ही नहीं आता कि भक्ति हुई, तो कृष्ण ने उसमें भी चालाकी करी है । आप अरकर्म में कर रहे हैं, कोई काम कर रहे हैं । क्योकि भक्त भी बड़े ग्रासानी से हाथ नहीं लगते । कोई लोग कहते हैं, मां अपने हमें ठोक कर दिया। बो भी एक one trek mind (एक ही रास्ते पर मुझे तो याद भी नहीं रहता । मैं पूछती हैं, भैया क्या बीमारी थी, वताओ्रो । कहने लगे, मां तो लग गये अब हम भक्ति कर रहे हैं भगवान गये ? मेरे को angiana (अन्जायना) था, की। कृषण ने कहा कि 'पत्रम् पुष्पम् फलं तोयम् (ततीय पुरुष) में आदमी बात करने दूसरा है उठेगा तो वो collectively conscious (सामू- 1 अगर मौकी मिला तो कले सरफूटव्बल । अब आप होगा। यही विशुद्धी चक्र है, जो यही जा करके मि सौ इस कृष्ण को समझने के लिए जवे कृष्ण चलने वाला दिमाग) जिसे कहते हैं, बस, लग गये, भूल मैं ( होस्टन) अच्छा मेया, क्या ही गया, सो अब क्या बात है । हो गया न, ठीक ! हाँ आप भूल गये क्या ? शब्द में उन्होंने नचाया है जो लोगों की समझ में मैंने कहा, हां मैं तो भूल गयी। मुझे तो याद नहीं नहीं ाता । कहा है कि ले किन तुमको 'अनन्य' भक्ति कि मैंने तुमको ठीक कर दिया, क्योंकि कृष्ण करनी होगी। 'अनन्य जब दूसरा नहीं रह जाता. के हिसाब से आप अगर विराट में पप समा गये, विराट के आप अंग प्रत्यंग हो गए हैं, अकबर हो भक्ति में आप उतर ते हैं तब हम लगे, उससे पहले गये हैं, जिसे हम अल्लाह-हो-प्रकबर कहते हैं, वो नहीं। लेकिन अनन्य शब्द को तो हम खा गये, अगर आप अल्लाह हो गये हैं । तो प्रापकी ये उगली [और बड़े-बड़े Lecture (भापण) लोग देते हैं । मैंने जो हैं, उसी का एक हिस्सा है । अब इस उगली को देखा हआ है, घन्टों Lecture (भाषण) देते हैं । सीधें अगर पपने थोड़ा सा कुछ rub (मसल) करके या तीन इसमें श्राप समभ. सकते हैं. उनका कम योग, इसको किसी तरह से संजो करके ठीक किया उनका ज्ञान योग श्र उनका भक्ति योग। कि रहा जो भी पत्र, पुष्प, फल, पानी कुछ भी आाप दोजिएगा, हम स्वीकारेंगे। ले किन देने के time (समय) में एक Houston था। जब अ्रप हमारे अरग प्रत्यंग हो जाते हैं । जब परा- कुछ तो क्या प्रापने अपने ऊपर उपका र किया है कि अगर परमात्मा को पाना है तो पहले उसके अंग दूसरों के ऊपर उपकार किया। दूसरा है कौन ? प्रत्यंग बनना चाहिए. ' दूसरा कौन है ? ये भावना ही टूट जाती है कि कोई तक अरप अनन्य [हीं हैं शनन्य भक्ति जो है उसको अनन्य होना चाहिए जब निर्मला योग १४ प्राप्त होना चाहिए। ये कृष्ण ने साफ-साफ कह कोई भी गुरू पए उसके चररा छु लिए, उसके दिया है । लेकिन जो पंडित होते हैं और जो वेदाभ्यास चरण छु लिए प्रोर सब चीज़़ के चरर छते फिरे रात करते हैं वो शायद चरमे की वजह से वो चीज दे खते दिन, उनेकी left विशुद्धि पकड़ जाती है । जो आदमी ही नहीं जो देखने की होती है। और कृष्ण को अपने को हमेशा दोषी समझता है, जो समझता है क्योंकि कि मेरे में अनन्त दोष है, उसकी left side पकड़ बुद्धि की बिल्कुल पराकाष्ठा है। आप, उसके जाती है । और जो मनुष्य अपने को सोचता है कि सामने आप ठहर हो नहीं सकते उनकी बुद्धि के मैं तो दुनिया का सबसे बड़ा है, मैं जो करू सो सामने, इतने प्रकाशवान बूद्धिमान बो हैं । और वो कायदा मैं जो कहूं सो दिशा। ऐसा जो आदमी चाहते हैं अरपको जरा नवाएं जिससे आप ठोक बोलता है उस अदमी की right side पकड जाती रास्ते पर आएं। प्रब मैं नाच्यो वहुत गोताल' । है। और right side पकड़ने से spondylitis (स्पोर्डिलाइटिस ) ओर दुनिया भर की बीमारियाँ हो सकती है। Left side पकड़नेसे angina (हृदय समझने के लिए तो तीक्ष्ण दृष्टि चाहिए और जब ये आप उससे कहिएगा कि भईया अव नचाना बंद कर प्रोर मुझे तो बस अपने आ्रत्म- साक्षात्कार में उतार ले, तब ही उतरते है । इस में रक्त संचार कम होने से होने वाली बीमारी लिए उन्होंने कहा मुझे तु शरणागत हो जा। बगरह हो सकता है और right side पकडने से कृष्ण शरणागत हो जा तो। इस িशुद्धि में वसे गुकाम, सदी इतना ही नहीं और जिसे हम कहते कि asthma (दमा) उसका भी इसमें प्रादुर्भावि हो सकता है । जिस आदमी का वहत काम करता है हुए श्री है पड़ेगा। जब तक ये जागृत नहीं होंगे तब तक आपको विशुद्धि चक्र की तकलीफ़ रहेगी। कृष्ण जो हैं इनको आपकी जागृत करना जो आ्रादमी, और वहुत चीख-चीख के बोलता है और सबसे बहुत दरोगागिरी करता है उस आदमी को जो heart attack (दिल का दौरा) आता है अब विशुद्धि चक्र में भी तौन अंग हैं: right, left गरर बीच में । जब श्री कृष्ण बालशवस्था में जिसे हम active heart attack कहते हैं वो आदमी heart attack (दिल का दौरा) उसको माया थी तब उनका left side में, य हा पर प्रादु आ करके, बहुत लोग तो बोलते ही बोलते साफ हो और जब वो बड़े जाते हैं। भाषण देते ही देत समाप्त, सोधे थे, जब उनका जन्म हुआ जब उतकी वहन विष्णु- भावि था, बाल कृष्ण की तरह होकर के राजा हो गए तो उनका right .side यहाँ पर 'विट्ठल' यहाँ पर कि वो राजा बन करके और द्वारिका में राज्य करने गए। औोर बीचों बीच । क्योंकि इस कदर अ्रपने को वो शब्दों से दूसरों को दबाते हैं उनको नीचा करते हैं, उनके लिए ऐसी- ऐसी बाते कहते हैं जिससे दूसरा आदमी जो है साक्षात् थी कृष्ण जो कि हर हालत में श्री कृष्ण है। इस तरह से इस चक्र के तीन अंग हैं। अब जिनकी आदत बहुत ज्यादा डॉटते की, चिल्लाने की, ची खने की ओर दुसरों को अपने शब्दों में रखने को और दूसरों को बुरी तरह से बात करने की और दूसरों देने की अपने शब्दों से, ऐसी आदते जिस और बहुत हा एकदम आवाक् रहे जाता है। जपादा उद्दण्ड और घमंड और जिसे क हना चाहिए पूरी तरह से arrogant प्रादमी होता है जिसको किसी की भावना का विचार नहीं रहता है ऋतौर उसे वुरीं तरह से डांटता रहता है, ऐसा आदमी किसी भी विमारी से प्रभावित हो सकता है और को दुःख आदमी की होती है उसकी right विशुद्धि पकड़ी जाती है। ओर उससे अनेक रोग उसे हो जाते हैं जिस आदमी की ये आदत है कि सबके सामने गर्दन उसको दूसरी बीनारी जो हो सकती है वो है paralysis, heart attack, paralysis (लकवा, दिल का दौरा, लकवा) । हाथ उसका जकड़ सकता । 1 झुकी रहती है । चाहे जो भी कहो, हाँ भाई ठीक है, े हैright hand उसका जकड़ सकता है । ऐसे निमला योग १५ प्रादमी जोकि ग्रपने को बड़ा विद्वान समझते हैं दिखाई देती बो एक साक्षी है। इसके ओर साक्षी उनकी तो ये हालत हो सकती है कि वो इतने अति के स्वरूप से देखते हैं। बो जो कूछ भी उनको पहले विद्वान हो जाते हैं कि आपकी जो बुद्धि है वही हरेक चीज़ से लगाव था वो हट करके वो देखता आपको चकाने लगती है। वही आपके खिलाफ है, अरे ! ये तो नाट क था । ये तो नाटक टूट रहे हैं। पहले तो a point (प्रापकी होशियारी किसी वक्त पे प्रापको जब शिवाजी महाराज आाये समझ लीजिए स्टेज घोखा देती है) और अपने को, दूसरों को चकाते पर तो इन्होंने भी तलवार निकाल ली । जब वो चकाते आप अपने को चकाने लग जाते हैं पऔर गुस्सा करने लगे तो ये भी गुस्सा करने लगे । ये भी शिवाजी महाराज हो गये जिस वक्त ये नाटक खत्म हुआ, कहने लगे, है भगवान ये तो को मेरे को कसे चकाने लग गया ? और इसमें नाटक था । तो वो नाटक सब खत्म हो जाता है जगह आ जाता है । ये हैं कि जिसमें वो जब चाहें तब वो ठीक भी नहीं हो श्रीकृष्ण की देन है। ये इन्होंने हम। री चेतना में सकते हैं । व्योंकि जैसे ही वो चाहते हैं उनको विशेष स्वरूप दिया है। कि जब वो जागरूक हो फिर वो चकाने वाली बुद्धि फिर से उनको परास्त जाते हैं तो हम साक्षी स्वरूप हो जाते हैं । और कर देती है । ये सब बातें सही हैं । आपको हम दूसरा एक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, क्योंकि लीला- इसको दिखा सकते हैं । बहत लोगों को ऐसे ही मय है कि हमारे अन्दर जो अहंकार और प्रति- बीमारियों में जब हमने मदद करने की कोशिश अहंकार जिससे कि हम हमेशा डरते हैं प्रौर दूसरों हैं, से दबते हैं, दोनों को वो अ पने अन्दर खींच सकते हैं, दोनों को अपने अन्दर समा सकत है । और इसलिए किसी भी परहंका री शआदमी को अराप देख लौजिए। जैसे कि आपने देखा कि दुर्योंधन को बहुत अरहंकार था, उसको उन्होंने ठिकाने लगा दिया। साड़ी द्रोपदी की बढ़ती गयी, वढ़ती गयी, दुर्योधन थक गया, उसका अहकार चकनाचुर । जो भी अहं- है। होली भी एक लीला है । उस व क्त उन्होंने कारी आदमी होता है उसपर इनकी गदा अगर चल पडे तो वो खेल खेल में ऐसा बचा देते हैं कि वो आदमी परास्त हो जाए । उसी प्रकार अगर कोई । किसी भी विवि दव्बू आदमी है, या कोई अादमी जो समाज से दबा हैं, जिसके पास सुदामा जेसे, उसका मान करना, उसके मित्रत्व को इतना बढ़ावा लिया। उन्होंने हर तरह से जितनी भी विधियां देना और उसके लिए इस कद्र दिल भरके दिल और जितनो भो पारस्परिक गंदगियां थीं उनपर खोल के उसके लिए सब कुछ देना, ये भी काम ऐसी तलवार उठायो कि सब चीज को तोड़-ताड़ श्रीकृण का है। उनकी महिमा जितनी गायी जाये करके, नष्ट करके । ये सारी सृष्टि एक लोला है, सो कम है । आज ६००० बर्ष हो गये बो यहां उनके लिए ये लोला है । और जब सहजयोगी पार पधारे थे । उनको किसने जाना ? सिर्फ गीता लिए भी सारी सूुष्टि जो श्र्जन से बतायी और किसी से बतायो नहीं। पर चलती है।Your intelligence cheats you at गया। अब किस लिए दौड़ पको आश्चर्य होता है कि भई मुझी को मैं चक्ा रहा है । मैं दूसरों को चकाने गया था, मैं अपने फिर कोई-कोई बीमारोयां ऐसी लोगों को हो जाती और मनुष्य अपनी की तो हठात् बो कोई भी काम कर लेते हठात् । लेकिन अगर आप कहें अब पेर हटाइये, तो नहीं हो सकता । क्योंकि उनकी स्खुद ही दुद्धि जो है वो परास्त हो गधी है। अब] पने देखा है कि जो बीच में श्रीकृष्ण हैं वो लीलामय हैं। उनके लिए सब सृष्टि एक लीला संसार में आकर जितनी भी विधि वर्गरह से लोगों को बिल्कुल ग्रसित कर दिया था, उसको प्रच्छे से तोड़-फोड़ करके ठी क कर दिया को नहीं छोड़ा। सुदामा को सिर पर चढ़ा लिया । हग्ाहै, जो दरिंद्र उन्होंने जाकरके और विधुर के घर साग खा हो जाते हैं, तत्र उनके निमला योग १६ । देखिए का मतलब होता है कि जो कुछ भी कृष्ण स्वयं । लिखायी किससे ? बो सोचना चाहिए। कृष्ण की लीला हर जगह किस तरह से बन्धनों उनको राधा क्या थी, अाह्व्वाद आदिशक्ति, जो को तोडती है । लिखाई उससे जो व्यास । ब्यास जो दूनिया को आह्वाद दे, जिससे मन वांछित हो, पराशर का लड़का था, लेकिन वास्तव में वो चाहे ये तो अरापके घर एक धोम रनी का लड़का था । और वो भी किसी कोई सब । जमादार हो सचसे गले मिलिए, सबसे कायदे कानून का तहीं, बेंकायदा । इस लिए व्यास से लिखाई कि ऐसा हो आदमी सद्पुरुष सकता है? क्योंकि जाति और उस के बन्धन घर और हम लोग जो है उस वक्त सबको गाली देते हैं ये बहुत कायदे कानून करने वाने लॉगो हो दिखाने अपनी जबान खराब करते हैं। जो जबान श्रीकृष्ण के लिए कि सदपुरुष कहीं भा पेदा हो सकत। है। स पुरुष की जाति, घर्म आदि कुछ नहीं पूछा जाता। लेकिन यही पूछा जाता है कि स पुरुप कौन है ? कुछ जो वरगरह सब कुछ है, ये सब को श्रीकृष्ण की इसको तोड़ने के लिए, इसका सबका निवेध करने आजा से चलत हैं वहां हम लोग गाली गलोच करते के लिए, श्रोकृष्ण ने गीता भी लिखाई तो किससे, हैं। उनकी सूभत्ता, उनकी मधुरता, उनकी मोहकता, तो व्यास से । उनको जाकर लीला रिह ए तो जसे वो हम रे जोवन में आनी चाहिए। लभी हम कहेंगे कहत हैं कि हरेक को उन्होंने, उनकी जो चुहल थो, कि ये होली हुई। जिसमें कि एक तरह से हमने उस चुहल से हरेक को ठीक कर दि या । उनकी अपने सौदर्य को पाया । हमने सौंदर्य को बांटा, चुहुल वडी प्यारी थी. उनकी चुहल बड़ी गहरी थी और लोगों को इसका मज़ा दिया। लेकिन जिस और इतनी तीक्ष्ण थी कि उसके चक्र से कोई बच नहीं सकता । को मेहतर हो, चाहे । ये कृषण की मुख्य इच्छा थी कं से हो जिस लिए उन्होंने होली का अारम्भ किया था । अपना प्रम बांटिए को वजह से ही चल रही है, ये जबान भी हमारी जो सोलह चीज़ हैं जसे नाक, कान बगरह, सब तरीके से गंदगी और बहुत ही नग्नता से होली खेली जाती है, मेरी समझ में नहीं आता कि लोगों ने हरेक चीज का इतना विपय्यास कसे कर दिया और इस कृष्ण को भी कितना ग्रपमा नित कर कज होली है, आप सबको होली मुबारक हो । होली के दिन हमको ये सोचना चाहिए कि कोई से दिया। कल आपकी होली है, आप लोग खूब होली भी गदे काम करने से कृष्णा का कभी भी विचार खेलिए । लेकिन उस कृष्ण को याद रखें, जिसने नहीं आ सकता। गंदगी करना, गालियां देना, आपसे बताया कि अ्रपको उस विराट के अंग और वरगैरह, ये कृष्ण के काम नहीं है। हनको बहुत प्रत्यंग होना है । माधुर्य से एक दूसरे से बात करनी चाहिए । होली "सहजयोग में एक बहुत ही साधारण बात समझने की है कि आप शरत्मा हैं, श्रर जो आ्ररमा नहीं है उससे आपका कोई तातयर्यं नहीं ।" श्री प्राताजी निर्मला योग १७ परमपूज्य श्री माता जी का प्रवचन बोरिवली, बम्बई १५, जनवरी, १६८४ परमेश्वर की सेवा में रहने वाले सभी साधकों को हमारा नमस्का र । और जब तक गुजराती लोग इसमें खड़े नहीं रहेंगे, उनको समाधान नहीं मिलने वाला । श्रीकृष्ण जैसे इतने महान अवत रण, गुजरात में आकर जिन्होंने राज्य किया, उनकी पूजा कहां ज्यादा होती है । तो पंढरपूर में लोग एक-एक महीना पैदल चलकर सबप्रथम मुझे यहो पूछना यहाँ पर मराठी लोग हैं । था कि न जानने वाले कितने वे हाथ ऊपर करें । दो चार वही जाते हैं, विट्टुल-विट्ठन करते हुए उस परमात्मा को पाने के लिए, जिसने गुजरात में और वृ दावन में हिन्दी लोग आरये हैं। ये भी सोचो मराठियों से वले का है । हिन्दी लोग तो भगवान को खोजते ही सारी लीला की, इससे भी गये बीते तो ये उत्त र प्रदेश नहीं हैं। मराठी लोग दादर में इससे दस गुना ज्यादा आये थे । एक दिन मराठी लोग तो भगवान के यहाँ जाकर बेठ जायेंगे और हिन्दी लोग सच यहीं रह जायेंगे। ये लोग चार आदमी आए हुए हैं हिन्दी गुजराती लोग को तो दोलत से मतलव हो मया है, पैंसा कमाने का । मराठी के मुकाबले में बंठो तो बज ऑपको आनन्दि नहीं दे सकती । आपकी जो फिर जाने । भगवान के यहाँ तो पै सा नहीं गिना आत्मा है वही आपको आनन्द दे सकती है । उस जाता है। कितनों को भगवान की खोज है, वहो देखा आत्मा को पाइये। देखिये घरों में झगडे शुरू हो जाते जाता है ना। रात-दिन सारड़ी, कपड़ा, पेसा, मकान, है । विशेषकर, मैं जव London में थी तो उन मोटर सब यही, इसी चकूर में सब रहते हैं। ऐसे लोगों ने मुझे रासलीला में बुलाया और रासलीला कितने यहाँ पर हैं गुज राती लोग कि जो परमात्मा में श्राशचं्य - चकित हो गई कि परमात्मा की रास- को खोजते हैं । मैं तो उन लोगों के लिए भप्राई है, लोला कर रहे थे वो । मुझे देवा करके वहाँ बुलाया जो परमात्मा को खोजते हैं, ना कि जो पैसा और मेरे सामने सब बच्चे वच्चियां शराव पीकर खोजते हैं। उनके लिए बहुत दुनिया में घूम रहे हैं नाच रहे थे, लोग । इसलिए आप मराठी में ही समझे । चार आदमी गिनकर आये हैं। मैं जानती थी, ये यहां नहीं हैं। यहां से ले करके अ्रमेरिका तक कहीं भी जाइये, तो मराठी आदमी खड़ा रहना है भगवान के नाम आपसे हाथ जोड़कर विनती करूंगी क्रि सबको बता पर । चाहे मराठी लोग कुछ भी हों, लड़ाका हों, दोजिए कि परमात्मा का सात्राज्य आने वाला है । झगड़ालू हों, चाहे जो भी हों, लेकिन परमात्मा के ये साम्राज्य नहीं चलने वाला। औ्र उसमें [अगर नाम पर खड़े रहते हैं, ये बात तो माननी पड़ेगी। मुका- के लोग हैं। और उससे भी गये बीते विहार के लोग हैं। प्रब मैं अपको क्या बताऊँ । इसलिए प्रब जागृत होने की बात आई है। ये सब घन-दोलत और ये पर पड़ने पर पागये हैं। उनकी दूर्दशा हो रही है। इस पेसे से दुनिया खराब हो गई। लेकिन अव आप लोग जागिये । जागना बहुत जरूरी है [और मैं [पाना है] तो] जरूरी] है कि परमात्मा को पहले निर्मला योग १८ पर साक्षात्कारी बनने से पहले मनुष्य में घंटालों में पूमते रहते हैं । वड़े-बड़े organisa इच्छा होनी चाहिए। उसमें इच्छा होनी tions बना लिये हैं । इसमें पसा दों, उसमें पैसा चाहिए कि मैं परमात्मा को प्राप्त करू, मैं अपनी दो। सारे पैसे के धंधे बना रखे हुए हैं । सच्चाई पर आत्मा को जागुत करू। हम लाग कोई अंग्रेज उतरने के लिए जब तक हम लोग तैथार नहीं होंगे, नहीं हैं, हिन्दुस्तानी हैं, हि्दुस्तानी ओर रहेंगे तब तक कोई कार्य नहीं होगा । ये बात नहीं कि हिन्दुस्तानी। ओर भारतवर्ष में अनादि काल से एक आपके गुजरात में या उत्तरप्रदेश में या मध्य प्रदेश ही बात कही गई है कि आपका चित्त कहां है ? साधु संत नहीं। नरसी भगत जैसे वहाँ हुए। अपने चित्त का निरोध करो और उस निरोध से परमात्मा को पाश्रो । सारे चित्त का उसी वक्त खोजिए, अ्रपने आरात्मा को खोजिए । फालतू के गुरु- कितने नरसी भगत आज गुजरात में मिलंगे। एक से एक संत-साधु कबीर, नानक आदि कितने वडे- उत्तमो्तम दर्शन होता है, जब उसमें आत्मा का बड़े साधु संत वह हो गये । ले क्िन सबने जनको प्रकाश अ जाता है। जब यहाँ सारा अ्रबेरा होगा मलियामेट कर दिया। यहाँ तक कि बिहार में यहाँ कुछ भी दिई नहीं देगा। लेकिन जैसे ही जहाँ पर कि उन्होंने 'सूरति' कुण्डलिनी को कहा था। यहाँ प्रकाश आ जयेगा, आप हर चीज़ को पूरी तो वो तम्बाङ्क को 'सुरति' कहते हैं । कहारी यहां तर्ह से देख सकते हैं। इस वात का जागृति हमारे भी बहुत से अाये । नो करी धं। से रहते हैं। लेकिन श्न्दर कब आएगी। पैसे की जागति तो वहत आा गई। और दूसरे सत्ता की 1 दोनों चीज़ इन्सान को नुकसान करती हैं, ये कोई नहीं सोचता। आप नानक साहब ने, नामदेव के तस्व, दोहे जिसे किसी आदमी को १०० रूपया दे दीजिये, वो दुकान पर जायेगा, सीधे समाया, कपोंकि वो आत्म साक्षात्कारी थे उस एक और उसे कोई भाई Minister (मत्री) बना दो जिए तो काम सत्यानाश । अपना भी सत्यानाश करेगा और दूसरों का भी करेगा। उसकी वजह ही आदमी सत्ता प्रौर ऐश्वर्य को इसलिए नहीं भोग सकता, क्योंकि उसके अन्दर भोक्ता ही पेदा नहीं हुआ; उसके अन्दर । कृष्ण ने कहा है कि मैं ही भोक्ता हूँ । उस भोक्ता को जागत करने के लिए ही आत्मा सिद्ध करना पड़ेगा। क्योंकि आत्मा परमात्मा की ओर किसी का वित्त तनहीं। कहते हैं, या पद कहिये, उनको अपने ग्रंथ साहत में सीवे शराब की पद को बहुत सुन्दरता से नामदेव ने कहा । उसको मैं आपके सामने उसके भाषान्तर में वताती है। तो कहा है कि एक छोटा सा लड़का है, पतंग उड़ा रहा है सबसे बात कर रहा है, हंस रहा है, खेल रहा है । सब कुछ चला है। लेकिन उसका चित्त जो है, उस पतंग में है । दूसरा, उन्होंते बताया कि [प्ररत] गई । उन्होंने कंए से अपनी गागर भरी । तीन-तीन गागर यह है, कि अपने सिर पर रखकर चल रही हैं। आपस में हॅँस ही शरपका भीक्ता है। एक चीज़ आप देख लीजिए रही हैं, प्रठल्वेलियां कर रही हैं. बोलते चल रहो हैं। कि हमने एक बड़ी सुन्दर-सी कोई चीज़ खरीद ली। ले किन तरत्त सारा उनका उस गागर पर है । समझ लौजिये, ऐसी मशीन ही हमने खरीद ली तो तीसरा, उन्होंने बताया कि एक मां है, अपने बच्चे हमने सोचा कि यह मशीन ही बड़ी मुल्यवान है । को गोद में रखकर, कभर पर रख कर सारे घर का उसकी अर ध्यान देना चाहिए, उसको सम्भालना गृहकृत्य कर रही है, और कभी झुती है, कभी चा हिए, उसकी परवरिश करनी चाहिए, उसको बैठती है, कभी उठती है, कभी बर्तन उठाती है, देखना चाहिए। सारा समय इसी में हमारा बीत लेकित अगर जाता है कि उस मशान को हम संभाले । पर चित्त उसका सारा उस वच्चे में है। इसी प्रकार एक साक्षात्कारी आदमी का चित्त प्रपनो समझ लीजिए, मशीन हमारी नहीं है, तो हम इसका उपयोग भी करें और इसके लिए हमें कोई आत्मा में होता है । निमंला योग १६ परेशानी भी नहीं। उसको देखना मात्र हो रहा है। जब हम इस चीज़ को पकड़ो, उस चीज़ को पकड़ो,' लालसा में फसे हुए हैं, तब उस लालसा से कौन खींच सकता है । मौर किसी ने भी किसी लालसा दम धकर देती है और उस अंधे पन में बो आदमी] बहकता जाता है । उसको पता नहीं कि वो किस ओर जा रहा है । और जितना जितना कोई सा भी देश पसे से कुछ भी पाया है ? उसका आनन्द कभी नहीं बाला हुआ, जैसे सधसे आज पैसे वाले देवों में तो उठाया। सत्रीडन आप कह सकते हैं और या इसलिए सारा economics ( अ्र्थ-व्यवस्था) आप स्विटजरलैप्ड कह सकते हैं कि सबसे संसार में बना हुआ है कि कोई-सी भी इच्छा रईस देश है वहाँ बड़ी सफाई है, मोटरे अच्छी मनुष्य की तो पूरी हो सकती है, पर सर्व- इच्छा नहीं हैं, घर अच्छे हैं, और पश्चर्य की बात है कि वहां के सब बच्चे इसी चीज़ की planning (योजना) घर बनाना है। घर बना लेगा । उसके वाद कहेगा करते हैं कि किरिस तरह से हम खुदकशी कर ले, घर बना लिया, अब भई, घर से अव एक मोटर श्रात्महस्वा कर ले । तीन लड़कियाँ एक बार मुझे फिर उसे सुझेगा, मिलते आई. तो मैंने उनसे कहा कि बेटे तुम्हें क्या मे री लड़की की शादी करनी है । उसमें रूपया पैसा परेशानी है ? तो कहने लगीं, नहीं, ऐसी तो नहीं, कुछ भी लेकिन है । उनके हाथ से जेमी मुझे चैतन्य की दिखावा होना चाहिए। वो भी हो गया। करते- लहरियां आरा रही थीं, जैसे किसी म रे आदमी की हो, करते तो कितना भी करता जाये, जो कुछ क्रिया जिस तरह से । तो मैंने कहा कि ये अच्छी जवान उसका कोई उसे आनन्द लाभ होता नहीं। प्राज ये दिखने वाली इतनी सुन्दर लड़कियां हैं। इनके अन्दर ऐसी कोन-सी भावना है जिससे ये मुर्दे एक लालची वंदर की तरह मनुष्य का मन एक जैसी, इनके पन्दर से मुझे लहरियाँ आ] रही हैं, जैसे बैटे पूर्ण हो सकतो । याने वो आज कहेगा, मुझे खरीदना है । मोटर खरीद ली । 1 ख चं करना चाहिए। वहुत उसमें, किया, फिर वो चाहिए । वो किया, तो बो चाहिए । चीज़ से दूसरी चीज, दूसरी से तीसरी चीज़, मूर्दे से आती हैं । तब उनसे मैने तुम भिखारी जैसे लगा रहता है । और लोग सोचते क्या रहते हो। कहने लगे हम तोनों भिखारीपन में ही चलता है उसको शर्म भी यहो तथ करते रहते है कि किस तरह से अत्म- नहीं आती कि मैं इस भिखारीपन को खत्म कर हुत्या करें । क्यों भई ! तुम्हारे पास क्या खाने दू । कभी तो बादशाह हो जाऊ । और जैसे-जैसे को नहीं है । नहीं नहीं, व। तो वड़े रईसों की ये चीज़ ज्यादा होने लग जाती है, अरादमी की एक- लड़कियाँ हैं । Aristocratic (ऊंचे) घराने की लड़कियाँ हैं । तुम्हारे पास कोई चीज़ की कमी है ? बच्चा आता है तो एकदम बादशाह जैसी बात तुम्हारा कहीं दिल टूट गया ? ऐसी कोई बात करता है। ये सारो बादशाहत रहतो है, खायेंगे नहीं। सब चीज़ प्रच्छन्न है, प्रच्छन तरीके से सब तो वो खायेंगे, हम यहाँ नहीं बैठेंगे, हम बो नहीं तरह का उनको आराम है। जहां चाहे जाएं, पूरो करंगे। और जैसे-जैसे इन्सान बड़ा होता जाता है तो तरह से उनको स्वतंत्रता है । जैसे प्राजकल ग्रपने इस ग्रानन्द से रहित ची जों के लिए, अपना सारा वच्चे हैं। हम लोगों से लड़ते हैं कि हमें ये घंधा खान, पान, इज्जत, सच्चाई सव कुछ खो देता है। नहीं करने देते, हमें ऐसे डान्स में नहीं जाने देते, और उसको किसी से समझाने से तो ठीक नहीं हमको वो नहीं करने देते, हमको ऐसे कपड़े नहीं होगा। उसको तो बताने से ठीक नहीं होगा, क्यों- पहनने देते। वो सब कर चुके । उन्होंने सब धंधे कि ये कालिख ऐसी चीज है कि वो प्रादमी को एक- कर लिए। सब तरह के कपड़े पहन लिये। सब तरह पूछा, मनुष्य उस दम बादशाहत खत्म हो जाती है । जव पैदा होकर का निर्मला योग २० के डान्स कर लिये। सब तरह के जो कुछ भी विनाश तो इससे दस गुना ज्यादा लोग इकट्ठे होते हैं, के काम हैं, सब करके अब वो बैठे हैं, जा करके और एक भकटके में वो पार नहीं हो सकते, क्योंकि किनारे पर कि भई प्रव तो सब कर लिया, पर बहुत से अन्दर दोष हैं । मेहनत करते हैं और सब आनन्द तो प्राया नहीं। वो आनन्द कहा रह गया ? उसको खोज रहे हैं कि उस आनन्द को खोज । तो उस आनन्द की तलाश में वो देख रहे हैं कि इन परदेव से प्राये है। पर यहाँ दादर से भी लोग सब चीज़ों में कहीं आनन्द नहीं, तो जी के भी क्या आने को तयार नहीं । और यही पास ये रहने करेंगे। एक चीज से दूसरी दूसरी जपह मे तीनरी वाले लोग यहाँ आने को तंयार नहीं । तब इस देश जगह, बन्दर की तरह हम लटकते रहेंगे । पहले की दृर्दशा केपे ठीक होगी । एक शाखा पर, फिर दूसरी शाखा पर, फिर तोसरी शাखा पर । ये हमारा कव खत्म होगा ? इस से तो अच्छा वि अपना जीवन ही खत्म कर दो। मैंने कि ग्राखिर कभी तो भगवान को खोजना चाहिए, कहा, "बेटे जीवन तो खत्म नहीं हो ने वाला । फिर मर खासकर जव कि इतना घोर कलियुग आ गया से तुमको जन्म लेना पड़ेगा।" कहने लगे, 'माँ इस जीवन के झगड़े से हमें से इससे छुड़ा लो । पार होने के बाद भी मेहनत करते हैं। आज आपको पता होना च हिए कि इस देश में दो सौ लोग एक सा के नाते मुझे आश्चय होता हैं है । चारों तरफ मे बादमी tension (तनाव) में छुडा जो । किसो तरह वघ गया है । जबकि देख रहे हैं कि हमारे बच्चे वि।।श की ओर जा रहे हैं, जबकि देख रहे हैं कि सारे संसार में एक आफत मची हुई है, तब तो दूसरा प्रश्न जो हैं, बाहर के देशों को देख कम से कम परमात्मा की बात सोचनी चाहिए या करके हम लोग सोचते हैं कि बड़े वो लोग नहीं ? लेकिन लोग सोचते नहीं हैं। मेरी समझ में सो नहीं। उनसे आता है कि बछ्चे नहीं सोच सकते, लेकिन जो सबसे तो वो लोग रात-दिन परमात्म| का फोटो लगाते हैं उनको डरते हैं। किसी से बात तक नहीं कर सकते। नमस्कार करते हैं, और काफी घर्म से भी रहते और रात दिन शराब पी-पी करके यरोर इस दुनिया है. उनको ये सोचना चाहिए कि कल अपका बेटा से भागना चाहते हैं। चाहते हैं कि हम अपनी ग्रंत ये पूछेगा, कि भई अ।खिर गराप क्यों धर्म करते हैं, ही बंद कर ले । किसी तरह से सारी दुनिया अलग किसलिए अप धर्म से रहते हैं, इससे आपको ब्या परे हट जाए, ओर हम जो हैं, शराब में लाभ होने वाला है, तो शप क्या बतायेंगे ? अापके डूबे रहें, अपने से भागते रहें । हमारे यहाँ कहते हैं पास कोई उत्तर नहीं । आप इसका कोई उत्तर आदमो वी शराब पीता है, जो अपना गम गलत नहीं दे सकते कि आप घर्म में क्यों खड़े हैं, अरप दुख को किसी तरह से मिटाने घर्म से क्यों चल रहे हैं, क्यों आ्राप प्रच्छाई के साथ के लिए शराब पीता है। वहाँ उनका दूख ये है चल रहे हैं, क्या वजह है ? ओर उसकी वजह एक कि उनको कोई दूख नहीं है, दुनियावी । तब तो ही है कि जब आप घर्म में खड़े होते हैं तभी आपका मिलन अ्रात्मा से हो सकता है। जसे कि एक aeroplane (वायूयान) है, समझ लीजिये । screw (पेच) ठीक वह उड़ नहीं सकता । उसी प्रकार आपकी भी उड्डान नहीं चकित है कि जब वो सुनते हैं कि हम प्रा रहे हैं, हो सकती, जब तक आपने अपने को संतुलन में । सुप्रसंस्न औ्र खुशहाल होंगे; दुखी जीव संसार में कोई नहीं । हो जाए, करता है, माने ्रपने देखते हैं कि ये दृनिया है क्या ? ये रात-दिन शराब में पड़े रहते हैं । नहीं तो फिर drugs ( नशोले पदार्थ ) जब तक उसमें लेते हैं। उसी में फंसे रहते हैं, उसमें चलते हैं, लेकिन उनमें और हम लोगों में तो भी अंतर है, वहत बड़ा, जो कि मेरे अनुभव के प्रन्दर है। और मैं प्राशचर्य सब नहीं हो जाते तब तक निमंला योग २१ नहीं रखा । इसलिए धर्म की आवश्यकता थी। आप हज़ारों लोग आ करके प्रात्म -साक्षात्कार लेते लोग भी घमं में बैठ गये और धमं में आ गये । ले किन घर्म में अने के बाद भी आख र करना क्या है ? किसलिए इस दूनिया में हम अये हैं ? भगवान ने हम को amoeba (भ्र ण) से इंसान क्यों बनाया ? हुए थे । मैंने कहा हमारी क्या विशेषता है ? उस ओर दष्टि करनी चाहिए। आज जो सारे संसार में प्राग लगी हई कहा, मा हम को तो अत्म-साक्षात्कार दे दो । है, और जो कुछ आफ़ते हैं, उसको बाहर में नहीं हम तो पहुँच नहीं पाये क्यों कि हम लोग दो बस ठीक कर सकते । जब पेड़ बहुत ऊंचा हो जाता है, तब जरूरी होता है कि अप पेड़ की ज डों तक देखे हुम तो यही तुम्ह।रे इतजार में बैठे रहे। मैंने रास्ते कि वहाँ पानी भी है या नहीं, क्या ये अपने भपोत र कहा, लो आत्म-साक्षात्कार । रास्ते में ही वो तक पहुँचा है या नहीं । अगर आपने इस पेड को सिर्फ बाह्य से देखा। उसके अन्दर अगर कई बीमारी हो तो, उसके एक पत्त को ही श्राप treat- ment (उपचार) देना चाहे तो न हीं दे सकते । अपको इसकी जड़ में उतरना चाहिए शर इसकी उसकी चमक है, उसके अन्दर हम खो गये हैं। ओर जड़ में कैसे उत रा जायेगा ? इतने बढ़ हुए इस पेड़े जो हमारे अन्दर, अत्यंत सून्दर जो आत्मा का को तो भ्रप देख सकते हैं लेकिन इसकी जड़ में कैसे उतरेगे ? एक वार तो ऐसा हुआ कि मैं जा रही थी कहीं पर एक गाँव से दूस रे गाँव। तो रास्ते पर ही सब लोग लेटे ये कौन लेट गये हैं यहाँ। गाडी रोकी । सबने हुए पार हो गये क्योंकि घन्य भाग हमारा कि ऐसे लोग थे, अरीर धन्यभाग उनका कि वो परमात्मा को मिले । ये घन्य जीवन, ये महान जीवन आप पा सकते हैं, च हे अप शहर में रह रहे हैं, चाह गव में रह रहे हैं। पर शहर की जो छुक पक हैं और स्वरूप है उसकी ओर हम मुड़ते नहीं। जब हम इस आत्मा को पा लेते हैं, तभी हम जान सकते हैं कि जड़ में उतरने के लिए आपको सुक्ष्म होना हैम कितने महान, गोरवपूर्ण, वैभवशाली और पड़गा। बल्लभाचार्य जैसे इतने महान लोग गुजरात में हो गये और उनको पाने वाले, उनके बारे में सोचने वाले भी बैधव आदि [अनेक हैं। लेकिन कितने लोग ऐसे हैं जो परमात्मा की ओर ौर कृण्डलिनी नाम की शक्ति त्रिकोणाकार दष्टि करते हैं, उससे ये भी हो सकता है कि परदेश में गस्थि में रखी हुई है । और इस त्रिकोण कार तो लोग परमात्मा के साम्राज्य में चले जाय, ओर इस योग भूमि के लोग यहीं चिपक कर रह जाये । ये इछा हमारे अन्दर होना कि हम अरात्मा का साक्षात्कार लें, अत्यंत स्वाभाविक होनी चाहिए । ले किन वो है नहीं, क्योंकि हम स्वाभाविक नहीं सारी इच्छायें अशुद्ध है । अगर शुद्ध होती तो बो हैं, हम नै ११क नहीं हैं, हम लोग तो artificial पूरी होने के बाद हमारे प्रन्दर समाधान और शांति (कृत्रिम) हो गये हैं, कृत्रिम तरीकों से रहते है विराजती । लेकिन क्योंकि हमारे प्रन्दर समाधान कृत्रिम वातचीत में रहते हैं । इसलिए जो स्वाभा - और शांति विराजती नहीं हैं, इसका मतलब है, विक चीज़ है, वो हमारे अन्दर से हट गई हैं, जेसे ये सब अशुद्ध इस्छाएं हैं । और इन सब अशुद्ध महाराष्ट्र इच्छा्ों पर हम मर रहे हैं । लेकिन जो शुद्ध इच्छा चढ़कर, जेसी भी हालत होगी, उस हालत में लोग, हमारे अन्द र, कुण्डलिनी नाम को शक्ति, हमारे अत्यंत सौदर्य के साधक हैं । इस आत्मा को पाने के लिए हमारे परमात्मा ने सर्व विचार करके अन्दर प्रस्थि में वसी हुई कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना पड़ता है। ये कुण्डलिनी शक्ति, इसको शुद्ध इच्छाशक्ति कहना चाहिए, शुद्ध इच्छाशक्ति, माने, बाकी जितनी भी इच्छाये हमारे अन्दर हैं वो के देहातों में जाइये, तो बैलगाड़ी पर निर्मला योग २२ सtte अन्दर स्थित है, उसकी ओर हमारी न जर नहीं। इसको कौन करता है । कोई डॉक्टर इस तो पहली चीज़ है कि प्रा पके अन्दर शुद्ध इच्छा बात को वताये कि कैसे होता है ? इसको होनी चाहिए। अगर आपके अन्दर शुद्ध इच्छा करने वाला कोन है ? इसको करने वाला नहीं है तो आपको मैं कसे पार करा से रती है ? श्रीगणेश है कुण्डलिनी शक्ति के ऊपर, परमार्मा ने इतनी सुन्दर हुमरा है, हमारे अन्दर सुनता, जिसे wisdom हमारे अन्दर व्यवस्था की हुई है कि छः चक्र कहते हैं, बो देता है । हमारी रक्षा करता है. हमें ऊपर ओर एक चक्र नीचे श्रोगणेश का चक् है। श्रीगणे च र जो है, ये इस ये धीगणेश हमारे अन्दर बसा । वनाया है, जो सम्भालता है, हमारी पवित्रता हमें प्रदान करता है । और जिससे हम जानते हैं ये चीज गलत है या उसके अच्छी है, जिसे हन सद्मत, विवेक बुद्धि कहते हैं. को, गौरी कुछ्डलिनी पावित्र्य को संभालता है, अपनी मं क पविज्रता वो भी यही श्रीगणेश हमारे अन्दर देता है । कोई को सम्भालता है । अब गणेश हैं कि नही ? हम ये क्यों नही सो ता कि ये सद्मत विवेक बृद्धि का गरणेश की पूजा तो करते हैं गेश को हम मानते स्रोत केर है, और ये कहाँ से हमारे अन्दर श्राती हैं, फोटो रखते हैं, पर गणेश हैं कि नहीं । किसी है ? हम तो बड़े ऊारी तौर से देखते हैं, और डॉक्टर को प्गर कहिए कि आ्रपके अन्दर गणेश है जितना भी पाश्चार्य शिक्षण है वो बहुत ऊपरी तो वो कभी नहीं म.नेगा, खासक र हिन्दुस्तानी। तोर का या जिसे कहना चाहिए एकदम shallcw परदेशी मान जायेगा पर हिदुस्तानी नहीं मानने (उथला) है, उसमें कोई भी गहनता नहीं कि । तो इन दोनों ज्ञान का जब मेल क्योंकि अंगेजों से भी बढकर हमारे यहां के उसको समभे वाला, डॉक्टर हो गये ये तो अपने को बंग्रेजी सीखने से, होगा, तभी चीज ठीक बै ठेगी। अगज के बाप समझने लग गये अब वो जी गणेश है वो हमारे अन्दर बसा हुआ है और वो हमारे अन्दर जागृत है। उसकी पहुचान क्या है ? जैसे कि सहजयोग से आप जानते हैं कि केंस र ठीक होता है, और हमने अपने President (राष्ट्र पति) साहब सं जीव रेड्री का केत र ठीक किया । अब देखिये हम लोग सोचते नहीं कि जितनी इसमें कोई शक नहीं। आप चिट्टी लिखकर पूछ जीवन्त क्रिया संपार की होती है, उसमें से एक भी लीजिए। वो अमेरिका गये थे। वहां उनका ailure हम नहीं कर सकते । एक फूल से हम फल नहीं असफल हो गया, वो ब व नहीं सकते थे। तब इतफाक बना सकते । औोर पचासों चोज हैं, उनकी तो छोड़ से मैं लन्दन में गई थी, उनसे मिलने । वो तो मैं ही दीजिए । तो हम किस बात का इतना अपना घमन्ड दसरे ही दर्जे में गई थी, अपने पति के साथ । पर के रते हैं ? किस बात में हम अपने को इतना बड़ा किसी को मेरे बारे में मालुमात था, ओर दस मिनट समझते हैं, जबकि हम एक भी फूल से एक फल के अन्दर उनकी तबियत ठीक हो गई भब सहज- नहीं बना सकते, जहाँ करोड़ों के करोडों अपने- योग से कैंसर का रोग कैसे टीक होता है लोग अपने ऋतुओं में बनते रहते हैं । ये प्रवण्ड पर मात्मा कहेंगे ? और किसी चीज से हो ही नहीं सकता । की जो शक्ति है, जो जीवन्त शक्ति है, उस जी वन्त आप कर लीजिए । कारग ये है कि कुण्डलिनी के जागरग से, ये जो छः चक्र हैं ये आलोकित हो जाते हैं, प्रौर जब ये छः चक्र आलोकित हो जाते हैं बचवा अगर वो आदमो गुजराती है तो उसका तो इसमें बसे हुए देवता भी जागृत हो जाते हैं । अब] [आप देख लीजिए कि हमारे left और अंग्रे ज जैसा बनेगा। इसका चयन कोन करता है, right hand को अगर हम इस तरह से करें, तो হक्ति के अनेक लक्षरण हैं । उसमें से पहला लक्षस ये था । देख लीजिए कि जैसे कोई प्रदमी है, उसका बच्चा तो गुजरातो जैसा वनेगा। अंग्रे ज है, तो निर्मला योग २३ तो ये मेरुदण्ड तैयार हो गया। और ये जो बीच का है, उसमें वया कमाने का है, और क्था करने का हिस्सा है, ये जो हैं, मध्य में यहाँ पर चक्र बनते हैं। एक आदमी को मैंने देखा नहीं कि जो पार हो हैं, left में left sympathetic होती है और गया कितने ही ऐसे organisations है । एक नाम right में right sympathetic। दो तरह को हमारे मैंने कहा, पचसों ऐसे 0rganisations मैंने देखे अन्दर मज्जा व्यवस्था है, जिसे कि हम nervous हैं। मैने तो प्राजतक कोई एक भी ऐसा organi- system (नाड़ी व्यवस्था) कहते हैं। अब ये बीच sation नहीं देवा है कि जिसमें कोई किसी को में जो चक्र तेयार हुआ है, इस चक्र से ही जो हनारी पार कराता है । Special organisations बनते शक्ति आ्राती है, वो सब दूर बहुती है और उसो से जाते हैं। अरे भई भगवान को तुम क्या organise सब जगह लाभ होता है। जब इस चक्र में दोष हो करोगे। हम तो भगवान को भी सोच रहे हैं उसको जाता है, तभी आप वीमार पड़ जाते हैं। अब भी organise करने का कभी President वन। अगर आप बाहर से किसी पेड़ को, उसके फूलों को दिया भगवान को, तो कभी Vice-President व ना या उसके पत्तों को दवा दें तो थोड़ो देर के लिए तो दिया। इसान की बृद्धि इतनी सर्वनाश पर पहुँची ठीक हो जायेगे, फिर सत्यानाश हो जायेगा। पर हृुई है कि वो भगवान को भी ठिकाने लगाने बैठ गया। अगर उसकी जड़ में, उसके जो चक्र है, उन चक्रो क्या उस परमात्मा को जिसने हमें बनाया, जिसने को अगर प्राप ठीक कर दं, तो बीमार पड़ने की ये सारी सुष्टि रची है, उसकी क्या हम organise कोई बात नहीं। और उससे भी ब ढ़क र बात तो कर सकते हैं? बेहुतर तो यह है, कि एक बूंद ये है कि जो ये शक्ति है, ये परमात्मा की शक्ति है, जिसके सहारे हम जन्मते हैं, जिसके में मिल जाओ । वो ग्रपने अाप organised है । सहारे हम बढ़ते हैं, जिसके सहारे हम जीते हैं, जिसके सहारे सारे संसार में यह सुष्टि हुई, वो शक्ति प्रगर हमारे से अव्याहत पूरे समय बहने लग जाये, तब फिर कोनसी बीमारी हमें परा सकती है ? फिर हमें जन्म, मरण, मुत्यु सबसे छुटटी मिल मुझ प्रकर कहते हैं कि माँ हमने तो इतनी भक्ति सकती है । इतना ही नहीं बल्कि हर समय हम एक बड़े ही आनन्द से विचरण करते हैं। जेसे सागर में मिल जाती है, इसी तरह उस सागर अभी तक तो उसकी, परमात्मा की लीला ही को नहीं जानते। उसके कार्यदे, कानून नहीं जानते उसके साम्राज्य ही में नहीं आये । और फिर लोग परमात्मा की की तो भी हमें केसर हो गया। लोग कहते हैं कि परमात्मा में क्यों विश्वास किया जाये, जब उनके भक्त ही इस तरह से मरते हैं । किसी को अब ये तथाकथित या ऐसी ही बातें नहीं हैं । ये कोई बीमारी हो जाती है. किमी को कोई बीमारी असलियत है, और ये चीजें सब हमारे अन्दर हैं । लेकिन हमारा विश्वास ऐसे आदमी पर नहीं होता जो है। किसो पर परेशानी आ जाती है । लेकिन रूपया पंसा नहीं लेता, जिसका कोई organi- श्री कृष्ण ने कहा है कि "योग क्षम वहम्यहम् sation (संस्था) नहीं होता घुमता है । अज यहाँ प्रोग्राम दिया गया। ऐसे हर समय जो परमात्मा से एकाकार हो, उनसे इंसान पर हमारा विश्वास नहीं होता है । हमारा सम्बन्धित हो, तब वो योग कराके और फिर क्षेम तो विश्वास ऐसे आदमी पर होता है, जो कुछ नाटक करते हैं । पहले योग घटित होना चाहिए और खेलता है, एक organisation (संस्था) बना लिया। फिर क्षेम होता है। ये तो नहीं कि आप मंदिर अब उसमें पैसे दो, स्वामोनारायण । कितने लोग में गये, पांच रूपये रख दिये, काम खत्म । भगवान उसमें पागल हो रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आता जी अपने हाथ में ग्रा गये। बहत से लोग है, हो जाती है, या तो किसी को कोई दूखख हो जाता जो धूम्रकेतू जेसा भऔोर जब नित्य अरभियुक्त हो । तब । मतलब निर्मला योग २४ गणेश जी को लगा दिया, बेठ जाओ। जैसे कोई का सार। brain (मस्तिषक) श्रीकृष्ण हैं। तो आप उनके नोकर हैं। उनके घर सम्हालने के लिए समझ सकते हैं कि जितना भी जो आपका brain है और सब चीज के लिए यहां बैठ जाओो । अरे वो उन्हीं के चरणों की घूल के बराब र है । तो उसको उसको समझने के लिए वुद्धि चातुर्य चाहिए । पगर आप में पूना, अचन। समझता चाहिए। पर उस पूजा, चातुर्य नहों है तो आप समझ नहीं सकते, अर्चना का भी कोई प्रथं नहों लगेगा, जव तक उनकी चातुरी । तो उससे ये कहा कि तुम जो कुछ आपका connection (यो) ही नहीं । जसे समझ कम करो वो परमात्मा के हृवाले करो। मैं इसका लोजिए इसका ( माइक का) connection नहीं एक किस्सा ऐसा सुनाती है, कि एक बेटा वाहर हो, तो यहां मैं कितना भी चिल्लाऊ, उसमें से तो बैठा है और खुब जोर से हटर मार रहा है। और आवाज जाने वाली नहीं। पहले connection धोड़ा पीछे में, गाड़ी आगे में । उसका बाप अराता तो होना चाहिए। जब तक हुमारा परमात्मा है। उससे कहता है, "बेटा, घोड़ा शगे कर लो तब ना गाडी चलेगी।" वो कहता है, "नहीं, मैं यहीं बेठकर हमारे पूजा में कुछ है, ना ।" अच्छा ठीक, तू घोड़े को मारता रह यहीं बठर, वित्त अपना घोड़े पर रखे हुए । हो ही नही सकता । ऐसो असम्भव बात कह डाली कि जिससे मनुष्य महामूख बन जाए। और वही आप लोग बन गये जब उन्होंने कहा कि सब कर्म करो पौर भगवान पर छोड़ो। आप छोड़ ही परमात्मा हैं वाबा वो भगवान हैं। हूँ, 1 से connection नहीं होगा तब तक तिसो चीज में घोड़े को मारूंगा कुछ लगता है । जेमें कृष्ण ने हो खुद कहा है, वो भक्ति मार्ग में आादमी थे. और वो जानते थे कि इन्सान सोधे उ गली में ठीक नहीं आयेगा । टेढी उ गवी से उन्होंने कहा है। वो बहुत होशियार नहीं सकते । जब तक आप पार नहीं होगे, आप नहीं सकते । ज तक आप पार नहीं होंगे, आप ही घी निकलेगा इन्सान से । बात कही। एक नहीं, दो तीन टेढ़ी बात ऐसी गीता में तो कह दीं जो खोपड़ी में लोगों के नहीं प्रा सकतीं । पहली तो बात उन्होंने ये कही कि बेटे बनाना पड़ता है। तो उन्होंने कहा सब कर्म करो । तुम परमात्मा को पाओ, ज्ञान को पाओ । ज्ञान को पाना माने बुद्धि में किताबे पढ़ना न हीं । ज्ञान के माने, आपका जो central nervous system है उसमें जाता जाये, जिसे मराठी में जावीव' हैं। उसको जो जाना जाये, माने अत्मा को पात । कहता है कि भगबान तू ही सब काम करता है। क्योंकि दुकानदार थे नहीं। इसलिए वढ़िया चीज मैने कहा कल तुम murder (हत्या) करोगे तो भी पहले कह दो। दुकानदार पहले घटिया से बढिया भगवान ही करता है ? सब चीज़ भगवान करता पर जाता है । पर परमात्मा थे तो उन्होंने पहले ह वढिया चीज कह दी कि इस को पाओ। अर्जन ने उनमे शंका की तो उन्होंने कहा कि इसको समझाने का तरीका और है । ये सोंवें उगली परमात्मा पर डालता है, अपनी दिशा से घी नहीं निकल सकता । आप समझने की कोशिश करिये, बहुत बुद्धि समझने के लिए बूद्धि चातुर्य चाहिए क्योंकि व्रिराट तो उन्होंते एक टेढ़ी अकम में उतर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि इन्सान जब सीधे रास्ते नहीं चलता, तो उसको बेवकूफ़ माताजी में सारा बहुत लग आते है मेरे पास । " कम करता हूँ और मैं सब भगवान पर छोड़ता हैं। मैंने कहा, कसे छोड़ते हो ? कौन-सा मार्ग है ? कौनसा तरीका है? नहीं, मतलब ये है कि मैं कहते है, ये कोई तरीका हुा ? बृद्धि से आप अगर समझ लं कि भगवान आपकी जेब में है तो गलत बात है। ऐसा कहना कि जो भी मैं कर्म करता है, ले किन भूल कर देना है [अपने को गलत तरीके पर डाल देना होंगे, चातुर्यं वाहिए । क्ृष्ण को हैं । जब तक अप आरत्मा से एकाकार नहीं तब तक आप जो भी कर्म करते हैं, उसका भोग निमंला योग २५ आपके ऊपर है, क्योंकि आपका प्रहंकार अभी बना चक्र है । बहत से लोग अपने घर में बैठकर बहुत जोर जोर से भजन गायगे, जिससे सब लोग, सो न सकें । दिखाने के लिए कि हम बड़े भारी भगत है यहाँ प्रहंकार को आप देखिये, कहाँ पर आ्पकी भगवान के. ये हरे रामा वाले वहाँ पर बद्तमीजी हुँआ है । स्थिति, कहां अ्हंकार आपके सामने । जो भी आप करते हैं, प्रौक्षफोर्ड स्ट्रीट में । धोती पहननी नहीं कार्य करते हैं, उसमें निकलता हूुआ धुंआ आपको अती, और बाजार में बोदो मिलती है। बाल अहंकार में डालता है। कोई अआदमी कहे कि मुझे मंडवा कर वहाँ पर ऐसी बोदी चिपकाते हैं, और वाल नहीं मडबाये तो ऊर से प्लास्टिक लगाके के सिवाय मनुष्य हो ही नहीं सकता। उसके अन्दर तमाशा करने के लिए ऐसे, और ऊपर से बोदी लगाते हैं। ओर वसफो्ड स्ट्रीट में वहाँ भरे बाजार लेकिन अरहंकार होता है । जब कुण्डलिनी का में खड़े होकर डान्स करते हैं । औरते भी, उनकी जागरण होता है और जब अज्ञाचक़ को वो धोती भी छुटती है साड़ी भी छूटती है। वेबकु कहीं भेदती है, और वहां जब महाविष्णु का जागरण की, और कहें हम परमात्मा को भज रहे हैं। 'हरे होता है, तभी अहंकार और प्रतिप्रहंकार दोनों राम हरे कृष्ण' कर रहे हैं । ये 'हरे राम, हरे खिच जाते हैं। मनस और अहंकार दोनों खिचने कृष्ण करने का कोई तरीका हूप्रा ? कोई उसमें की बजह से हो, यहाँ की जो जगह है। जिसे कि किसी भी तरह की इज्जत तहीं हुई, भगवान 'ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं, वो खुल जाता है। और जब तक उनको बेडज्जत करता है, श्र उन सबको यहाँ कुण्डलिनी का जागरण हो करके आप पार नहीं केसर हो जाता है throat (गले) में, जो कि श्रीकृष्ण का स्थान है। फिर मेरे पास आते हैं कि मां हमें करता है परमात्मा पर छोड़ता है, ये गलत बात ठीक कर दो। ओर मेरे पास उनके वो भक्ति है। फिर मैं भक्ति करता है, भगवान की भक्ति। वेदान्त आये थे। तो मुझे कहने लगे कि आपने "कुछ भक्ति भी भगवान ने कह दिया, साफ-साफ । छोड़ा ही नहीं माँ। प्रब] तो मर गये बेचारे, कुछ साफ कहा । नहीं कहा, क्योंकि निर्बवदधों को नहीं छोड़ा ही नहीं, माँ।" आप तो सारे ऐश्वर्य में बैठे हैं, और भगवान की बात कसे करते हैं? मैने कहा, आयेगा । साफ कह दिया कि 'अनन्य' भक्ति करो कोई मेरा ऐड्वर्य- वैश्वयं नहीं हैं। मैं तो प्रपने ऐश्वर्य भाई। उन्होंने कहा कि पुष्पम, पत्रम, फलम, तोयम, में हैं जो प्रन्दर का है । वो तो मेरे पति और ससुराल ऐश्वर्य है, उसमें बैठो हुई हूँ । मुझे इससे कोई कि 'अनन्य भक्ति करो । मतलव नहीं। मैंने कहा, मैं जब कुछ पकड़ा ही, नहीं तो मैं क्या छोड़ने वाली हैं ? मैंने कोई चीज tion (योग) परमात्मा से हो जाता है, तभी वह पकड़ी नहीं है। अच्छा, मैंने कहा, देख भाई, तुमको भक्ति है, नहीं तो अ्र्थ क्या है ? अगर टेलीफोन में इस घर में कोई सी भी चीज़ ऐसी दिखाई दी, या श्रापका Connection नहीं है तो आप टेलीफोन मेरे ऊपर में, जो कि उस श्रोकृष्ण के पांवि के घुल के बराबर हो ? और होनी चाहिए, तो तुम उठा लो । देखने लगे इधर-उधर, इधर- उधर । उठाय, इसलिए लोग विठ्ठल, विठ्ठल, विट्ठल कहते, मैंने कहा कोई सी भी चीज़ मांग लो, मगर उनके पांव के धुल के वरावर होती चाहिए । मैंने कहा, उनकी विशुद्धि पकड़ती हैं, जो श्रीकृषण का फिर तुमने छोड़ा क्या है ? धूल, पत्थर, मिट्टो क्या बिलकुल अहंकार नहीं, हो हो नहीं सकता। अरहकार अरहुंकार होगा। किसी में ज्यादा, किसी में कम । होंगे तब तक ये कहना कि मैं जो भी कम क सें समझ में आने वाला पर सृबूद्ध को समझ जो भी कुछ होगा, वो मैं लुंगा । देने के time कहते हैं क 'अनत्य माने जव दूसरा कोई नहीं होता है। माने जब आपका connec- किसको करगे? कहते चले जा रहे हैं । विट्ठल तो गया। घुन निर्मता योग २६ छोड़ा? दछोड़ दिया, हमने तमाशे करने के लिए, में हैं। सच्चाई से परमात्मा को जाना जाता है । दिखाने के लिए । मारे दिखाने के नंगे होकर घुम प्रपने में सच्चाई रखो, कम से कम । जिसने प्रपने रहे हैं। दिखाने के लिए ये कर रहे हैं । अन्दर तो में सच्चाई रखी है उसमें परमात्मा जरूर प्रगट परमात्मा की कोई भी शक्ति नहीं हैं। होंगे । और ये दिन आ गये हैं, ये विशेष दिन आ जिस आदमी के अ्रन्दर परमात्मा की शक्ति होती है, यदि हाथ रख दे. तो आदमी ठीक हो गये हैं ? जबक्ति आप जानते हैं, नल-दमयन्ती का जायेगा, नजर कर दे ठीक हो जायेगा, आकर खडा हो जाये तो ठीक हो जा येा। सरे मिल गया । नल और दमयन्ती का विछोडा हुआा था. अशुभ काम संसार में हो रहे हैं, ग्रौर ता नल कोल से बहुत नाराज था। उसने उसकी अपने को बड़े भगवान के भगत समभते हैं, और कहते हैं कि हमने ये परमात्मा का काम किया, हो डालगां क्योंकि तुने मेरे साथ इतनी । वो परमात्मा का काम किया। ये सारे काम परमात्मा के नहीं, ये भाई न मुझे मार डाल में तुझे मना नहीं करता से लोगों में ये भी बौमारी है, जब हो जाये तो social work (सनाज कार्य / करना । एक सराद वड़ा सुन्दर है कि नल को एक बार कलि गर्दन दबोच दी और कहा कि अव तो मैं तुझे मार दुष्टता की महत्म्य नहीं कि तू इस संसार में रहे तेरा नाश ही हो जाना चाहिए। तो कलि ने कहा, बहुत भाई तू मनुष्य के काम हैं । जैसे बहुत पर एक बात है कि मेरा अभो महात्म्य है। कहने लग कत्ा महात्म्प है वताश्रो, तुम्हारा क्या महात्म्य है ? जब तुम संसार में प्राते हो तो लोग भ्रान्त हो जाते हैं। आपस] में झगडा हो जाता है, परेशानी हो जाती है । भुठ हो जाते हैं, कृत्रिम हो जाते हैं । गरदन काटते हैं। तुम्हारा कोई फ़ायदा नहीं। ये भी एक नमुना होता है । उससे फिर ये कि social work किया तो हार पहनाओ उनको, ्र उनकी बड़ी इज्जत करो और उनको कुछ रूपया पेसा चढ़ाओ। ज्यादातर लोग तो social work पेसा ही करते खाने का है। वो नहीं किया तो वाकी का sOcial work भी तुम इन्सान को राक्षस बना देते हो। ओर बो अंधे- व्या होता है ? जैसे प्रब है कि कोई दूसरा ही नहीं रह जाता । जब मेरी ही उ गलौ है और इसको दुख है, और इस उ गली को मैं अगर ठीक कर रही हैं, तो मैं कौनसा social work कर रह्ही साधू संत हैं। अगर आप दूसरे कोई हैं ही नही । जब एक विराट के शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं, तो उसका कोन social work प्राप करिएगा । अरपनी ही तो आप ठीक कर रहे हैं । उसमें कीनसा social work हो सकता है। फिर उसके लिए तमगे देते हैं अर उसमें शांति के बड़े ये देते हैं कि शान्ति इन्होंने दी, तो एक इनके लिए शान्ति की पताका लगाओं इनके सिर पर । हालांकि अगर उस इन्सान के हृदय झांक कर प देखें, उसके मन में जरा भी शान्ति मैं है। मेरा कोई लेना-देना आपसे नहीं बनता है । नहीं। वह श्रादमी बहुत अशांत है इसलिए इन हाँ, मां का प्यार जरूर है। और चाहेँगी कि आप झठो चीज़ों में परमात्मा नहीं । परमात्मा सच्चाई सब पार हो जाय। आपके अन्दर बसी हुई कुण्ड- . पन में प्रपना बहकता है। उसको ये समझ ही नहीं आता कि बो क्या करे । कहा, मेरी महारम्य है कि जिस वक्त मेरा राज्य संसार में ्येगी, उसे घूम रहे हैं, ये की तरह से रहेंगे, और उसी वक्त उनका कल्याण होगा। उसी वक्त उनको । आज वही साधु संत आप लोग हुए हैं. ये समझ लेना चाहिए। वक्त जो ये गिरि कंदराओं में एक से।धारण गृहस्थ आत्मा प्राप्त होगी बनकर यहां अये पूर्व- कोई विशेष ही कृपा है, जिसमें आप अराये हैं। जन्म का संचित है इसलिए आये हैं। उस पूर्वजन्म के सचित को आपको [आज पा लेना है । %2: जैसे कि एक Cashier बैंके में होता है, ऐसे ही निर्मला योग २७ लिनी जागृत हो जाये । ये अत्यंत हृदय से मैं उसी प्रकार ऐसे लोगों की हालत हो जाती है । चाहँगी, मेरा कोई म्ाप पर उपकार नहीं है। मैंने कुछ आपके साथ विशेषता नहीं करी । जो ग्रापकी महाराष्ट्र को जो धरती है, इसे महाराष्ट्र इसलिए अपनी कुण्डलिनी है और आपकी अपनी प्रात्म है, कहा गया है कि यहाँ साढ़ तीन वलय में कुण्डलिनी उस कुण्डलिनी का जागरण करके आपको श्रगर मैंने आपका ही घन दे दिया, तो उस में कौनसी विशेषता है ? इसमें कोई अहंकार केरने की बात नहीं है । वहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि मां आरप ही ये काम क्यों करती हैं ? मैंने कहा बेटे तुम करो, के दशांन होने वाले हैं, इसलिए अ्राप अय हुए हैं । और उस पर मेहतत करूंगी लेकिन इसलिए इस धरती पर, विशेषकर यह घरती, साक्षात बैठी हुई हैं । सारे विश्व की कुण्डलिनी इस ] महाराषट् में है। विशेष वंदनीय जगह आाप श्राये] हुए हैं। और जो भी आप जहाँ से भी आये हैं, चाहे गुजरात से आये है, जाहे बंगाल से आये हैं, ये ६हां पर प्रापको इस पूरण्यभूमि में विक्ेष रूप से परमात्मा मैं बड़ी खुश होऊंगी । मेरे अपने वच्चे हैं, वच्चों के बच्चे हैं। उन सबको छोड़कर मैं जगलों में घ मती ्राम जो जब इस पर प्राये और धीमीता जो कि है । अगर तुम ये काम कर लो तो मैं तो छुट्टी कर जाऊ । मुझे बड़ी खुशी होगी। लेकिन कर नहीं सकते ना। बड़ी मेहनत का काम है। मेहनत औी है प्यार भी है और इतना इसके लिए जान लगानी पड़ती है । क्या तुम लगा लोगे? अगर लगा सकते हो तो लगा लो। मैं तो बड़ी खुश है । तुम आकेर वैठो, तुम्हारा बरण हो जाये। इससे भी मोटा हार गोरव है, उसके प्रति नजर करें और सोच कि मैं तुमको पहना दूंगी। लेकिन हो नहीं सकता । क्या करू ? भगवान ने मेरे ही सिर पर ये काम भेज दिया। उसमें इतना अहकार क्यों दुखी होता है तुम्हारा? और जिस वक्त तुम पार हो जाओगे, घर में हाथी झुमते हों, कोई जरूरत नहीं । जब तक तुम भी ये काम कर सकते हो। तुम भी दूसरों को पार करा सकते हो, तुम भी दूसरों को दे सकते हो । पर एक तरह से जो बहुत ही उच्छ - रख लता प्रौर shallowness (उथलापन) हमारी life (जीवन) में श्रा में भी, इस कदर जो हम लोग जो विलकुल (भाषण) मेरे हो चुके हैं, उच्छ खल और विलकुल ही ऊपर के सतह पर रहने ना जाने कितने इंग्लिश में हुए हैं । इसके वाले लोग हैं, उनके अन्दर इस शक्ति का जागरण अलावा अमेरिका और हर जगह मैं बोलती रहती कठिन हो जाता है क्योकि वो विलकूल ही है। हर जगह मेरे श्रनेक lectures हो चुके है । गहनता से दूर, जैसे कि उखड़े हुए लोग या उखड़ा एक lecture में पूरी बात हप्रा एक पेड़ इधर से उघर पानी के प्रवाह से बहता लेकिन यह नहीं कि [अभी] [किसी ओर का lecture रहता है, कह अ्रटकता है, कहीं लगता हैं, कहीं चल रहा है, फिर माताजी का lecture दौड़ता है, उसको अपनी कोई भारता नहीं होती, और चले साक्षात आदिशक्ति थीं, उन्होंने सब अपने पांव के जूते उतार दिये थे, ओर नंगे पैर इस भूमि पर उन्होंने चला। लोग इसको समझ ही नहीं पाते कि , कुं नगे पेर श्री राम चलते थे । कितनो महान भूमि पर आप बैठे हुए हैं। फिर इस भूमि के उपयोग से आप कहां से कहां तक पहुँच सकते हैं। अपने अन्दर की जो महानता है, अपने अन्दर का जो 1. हम भी इसे पा सकते हैं। हम भा आत्मा हैं, हमारे अन्दर सब शक्ति है। तो क्यों ना पाय ? इसकी जरूर त नहीं कि अप बड़े-बड़े रईस हों, या श्रापके पप मां के में हैं, काम खत्म । उससे ज्यादा आपको कुछ करने का नही है । और अ्राशा है आज भी यह कार्य हो सकता है । हुृदय सहजयोग के बारे में हजारों lectures लन्दन में तो गई है, बचचों कहने की नहीं है । लिया सुन । ये बहुत गलत बात है । क्योंकि निर्मला योग २८ जागृति के बाद में जमना बहुत जरूरी है । जब मान्यता है मैं मनुष्य है । मैें इतनी योनियों में से आपकी जागति हो जाती है, उसके बाद आपिको आज मनुष्य बनकर प्रया हैं। और मुझे आत्मा जमना चाहिए । जैसे अंकुर निकलने के बाद बीज बनने का है । और इस अआत्मा के प्रकाश में मुझे जम जाता है। बीज जमने के बाद ही उसका पेड़ चलने का है, जिससे कि मैं परमात्मा के साम्राज्य हो सकता है । नहीं तो उस का फलस्वरूप कुछ नहीं में अन-त जीवन और अनन्तकाल तक आनन्द में है और सब व्यर्थ हो जाता है। इसलिए मेरी हाथ रहें । जोड़कर विनती है, आप सबको वहुत है कि कृपया आपके मूहल्ले की, अपकी सारी व्यवस्था में सबमें अपनी आ्स्था और अपने प्रति शरादर होना आमूल रद्दोबदल आरा जायेगा । चाहिए। अपने जोवन के प्रति एक तरह की नहीं जब हम लोग वो बहुत बड़ा स्वरशं- दिन मान्यता का विचार होना चाहिए । इसकी कयो देखेगे । इससे अापके घर की, आपके बच्चों की, और वो दिन दूर ८ best compli ments f=০ : INDCON UDYOG 407 MANSAROVER, 90, NEHRU PLACE, NEW DELHI-110019 निर्मला योग २६ ै भि श्री माताजी निर्मला देवी के १०८ नाम श्री ललित सहल्नाम में दिये १००० नामों में से १०८ नाम नीचे दिये हैं । ये नाम देवी के विस्तीर्ण क्षेत्र के केवल कतिपय पहलुओं पर संकेत करते हैं । मन्त्रोच्चारण के समय चित्त माताजी श्री निर्मला देवी पर केन्द्रित रहे । उच्चारण विधि : रिक्त स्थान पर नाम का उच्चारण करे । न मो नमः 1 ॐ साक्षात् भक्ति प्रिया श्री माताजी मक्ति गम्या श्री महाराज्ञी देवकार्य समुद्यता शर्म दायिनी निराधारा अरकुला निरंजना विष्णु ग्रन्थिविभेदिनी निर्लेपा भवानी निर्मला योग ३० निर्विकल्पा निर्मला निरावाधा नিषकलंका निर्नाशा नित्या निष्क्रिया निराकारा निषपरिग्रहा निराकुला निर्गुणा निस्तुला नीलचिकुरर निषकला क निरपाया निषकामा निरत्यया निरूपप्लवा नित्य मुक्ता सुखप्रदा सांद्र करुणा निर्विकारा निराश्रया महा देवी निरंतरा महा पूज्या निष्कारणा महापातक नाशिनी महाशक्तिः निरूपाधि: निरीश्वरा महामाया महारतिः नीरागा विश्वरूपन निर्मदा निश्चिन्ता पद्मासना भगवती निरहंकारा निर्मोहा रक्षाकरी निर्ममा राक्षसध्नी परमेश्वरी निष रापा नित्ययौवना निःसंशया निर्भवा पुण्यलभ्या ३१ नि मंला योग चय रूपा विश्वग्रासा पराशक्ति: स्वस्था गुरूमूर्तिः स्वभावमधुरा धोरसमचिता दिशक्तिः योगदा परमोदारा एकाकिनी হश्वती लोकातीता सुखाराध्या शोभना सुलभागतिः शमात्मिका लीलाविनोदनी सत्चित्आरनन्द रूपिणी श्री सदाशिव लज्जा शुभकरी पुष्टि: चण्डिका चंद्रनिभा त्रिगुणात्मिका महती रविप्रख्या पावनाकृतिः प्रागरूविणी विश्वगर्भा चित्शक्तिः परमाणुः पाशहुंती विश्वसाक्षिणो वीरमाता विमला गम्भीरा वरदा गविता विलासिनी क्षिप्रप्रसादिनी विजया सुधास्त्र तिः वण्दारु जन वरत्सला धर्माधारा सहजयोग दायिनी निर्मला योग ३२ जय श्री माता जी !F गीत हे माँ ! ते री शरण जो आता है, निभय जाता है। बह हो है. दुख-दर्द जाता भूल आनन्द म्न हो जाता है । स्वच्छन्द विचरता है जग में, गीत प्रेम के गाता है। है, है । जहाँ जहां जाता प्रमानन्द बरसाता निलिप्त रहता सुख-दुख में, जीवन सहज बनाता है। *मैं और मेरा नहीं रह जाता, तेरा हो जाता हैं। जब सब कुछ पा जाता सहज में, जोवन धन्य हो जाता है। दिव्य देखता है करण करण में, दिव्यता से भर जाता है। मुक्त उन्मुक्त हो जाता है, जो तुझमें मिल जाता है । प्रेमामृत करता, का पान अमर हो जाता है। वह ॐ शांति -सी० एल० पटेल निर्मला योग तृतीय कवर ho Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36959/81 जय श्री माताजी निमंला भजलो माँ मनवा निमंल निर्मल होई बाग लगायो महल बनायो मेरी तेरी छोड़ दे मनव ये होई मिथ्या सब माँ निर्मला भजलो मनवा निर्मल निरमल होई मन हो मन्दिर मस्जिद है ही ডयोती से ज्योति जलालो] मनवा निमल है गुरूढ्वारा मन निर्मल होई मां निरमंला भजलो मतरवां निर्मल होई निमल ना जानूं मैं वेद पूराण में गीता ना जानू ते री शरण में गके मनवां निरमल निर्मल होई माँ निर्मला भजलो मनवो निर्मल निरमंल होई जनम जनम से भटके मनवां पायो माँ अरब तू छग छर की तकीमत करले ते री हो होई माँ माँ निर्मला भजलो मनर्वा निमंल निमल होई जय श्री माताजी -मनोमा पान्डेय Edited & Publisled by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, Newv Delhi-110002. One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign [By Airmail£7 5 14 1 शत ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt fनिर्मला योग सितम्बर प्रक्टूबर १६८४ वर्ष ३ अक १५. द्विमासिक + री 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt गीत हे जग जननी ! तुझे प्रणाम । तेरे गुरणग गायें हम आठ याम ॥ से भी बढ़कर, गंगा यमुना तेरा प्रेम प्रवाह । करे यह पाप जन्मों के, हो जाती पूरी सब चाह ॥ कट जाते सब हे जग बंदनि ! तुझे प्रणाम । तेरे गुण गायें हम आठों याम ।।१॥ अब तेरे, प्रेम की गंगा बह रही है । सारें में जग तेरी ज्योति से जन मानस, है. रही जग %3D है दिव्य जननी ! तुझ प्रणाम । तेरे गायें हम आठो याम ॥२ ॥ गुण खिल सर्वत्र, रहे हैं कमल छाने लगे सुगंध । गायें, में दशों दिशाओं मकरद ॥ गुरागान है सहस्रदल स्वामिनी ! तुझे प्रणाम । तेरे गूण गाय हम आठों याम ।॥३॥ गुरग हैं तेरे, हम दास तेरी इच्छा के हैं गुलाम । करें समर्पण चरणों पर तेरे, तन मन जीवन धन धाम ।। हे मोक्ष प्रदायिनी मां ! तुझे प्रणाम । आठों याम ॥४ ॥ तेरे गुरण गाय हम निमंला योग द्वितीय कवर औe het 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt श्र सम्पादकीय परमपूज्य आदिशक्ति श्रीमाताजी ने विश्व निर्मला धर्म की स्थापना कर दी है । विश्व निर्मला धर्म की मर्यादा के अन्दर रहना और उसकी रक्षा करना प्रत्येक सहजयोगी का परम कर्तव्य है । लिए विश्व निर्मला धर्म से प्राी- समस्त विश्व की रक्षा के मात्र को अवगत कराना हमारा परम पुनीत कार्य है । श्रीमाताजी से हम सभी प्रार्थी हैं कि वह हमें शक्ति श्रर निष्ठा प्रदान करें ताकि हम अपने कर्तव्य को समुचित रूप से पूरा कर सकें । निर्मला योग १ े ४८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परम्पूज्य माता जी श्री निर्मला देवो डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल : श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : श्रीमति लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वेन्कृवर, बी. सी. वी ५ जैड ३ के २ श्रीमती क्रिस्टा इन पट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू.एस.ए. यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन : श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मेन्सन गंजवालालेन बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५, पी. एच. इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. हृदय व विशुद्धि चक्र (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ३. परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन ४. श्री माताजी निर्मला देवी के १०८ नाम ५. गीत ६. गीत १ ३ १८ ३० द्वितीय कवर | । म तृतीय कवर नतुर्थ कवर ७. भजन निर्मला योग २ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt हृदय व विशुद्धि चक्र दिल्ली १६ मार्च, १६८४ और शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध सादे आदमी हैं। वो मेरे पैर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, "माँ, ये सब मैंने किया। ले किन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? आपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता आ गयी । कहने लगे मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने ग्रपने अन्दर जो नाभि चक्र हैं उसके धी कि इम सभत्ता से दूनिया इतनी खराव ही वारे में बताया था कि ये नाभि चक्र हमारे अन्दर सबसे बड़ी शक्ति देता है जिससे हम अपने क्षेम को पाते हैं। जैसे कि कृष्ण ने कहा था 'योग हयहै । यहा श राब इस कदर ज्यादा चलने लग क्षेम वहाम्पहम"। पहले योग होना चाहिए, फिर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरत श्लेम होंगा। योग के बरगर क्षम नहीं हो सकता ोर ी अपने को पसे में ही तोलने लग गई हैं। ये क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खोजा नहीं इस लिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं । क्षेम के बारे में मैंने बताया था कि दुनिया में हम लोग सोवते हैं, कि जिन देशो में सभ्यता हो तो आपको बात ये लोग शायद सन ले शर शायद गयी और बहुत पेसा हो गया तो लोग हमसे कहीं मुड पड़ें। क्योंकि ये रास्ता हो इन्होंने गलत ले अधिक सुखी हैं । ये बड़ी गलतफ़हमी है । जायेगी । हमारे यहाँ लोग जो हैं इसने आदततयो को गये हैं। यहँ शराव इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहाँ पर बच्चे विलकुल वाहियात हो गये सब देखक र के मझे लगता है कि ये मैंने क्या कर दिया। मेरी तो कोई सुनेगा नहीं, क्योंकि गाड़ी बहुत चल पड़ी। लेकिन मां अआप सन्त हैं, अप कहेंगे लिया है। इनके यहां divorces (तलाक) होने लग गये इनके बच्चे भाग करके आजकल गांजा वर्गरा अभी मैं एक जगह वरणानिगर महाराष्ट्र में पीते हैं और बड़ी दूर्दशा है । जो कुछ भी हमने वहाँ गयी थी। वहाँ एक 'कौरे साहब है, उन्होंने किया-बहुत बिचारों ने किया हुआ है-लेकिन वो बहुत मेहनत करके उस वरणनिगर में सुभत्ता कहते हैं कि यहां मनुष्य बिलकुल शान्त नहीं । लायी हुई है। वहाँ पर जिस तरह से लंदन में वड़े-बड़े Departmental Stores हैं इस तरह के किसी भी तरह से व्यवस्था वहाँ पर कुटुम्ब की Stores हैं प्रौर सब तरह के प्रसाधन वहाँ मिलते नहीं है, जिसे आप कह सकते हैं कि ये कुटुम्ब ठीक हैं औरतों के लिए वहाँ पर सब शोभा के लिए beauty aids (सोन्दर्य प्रसाधन) वगे रा सब कुछ हैं। वहाँ जाने पर लगता है कि जेसे आप विलायत के किसी अच्छे district (जिला) की अन्दर लक्ष्मी का तत्व जागृत होना चाहिए । और जगह पर आ गए। कौरे साहब विचारे निःस्वार्थी, औीर बहुत दुखी जीव हैं, आरपस में झगड़े, टंटे। है । इसलिए मैंने आपसे कल कहा था कि हमारे लक्ष्मी का तत्व कुण्डलिनी से जागृत होता है। पैंसा निर्मला योग ३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt आप दुनिया में कमा सकते हैं । ग्राज पंजाब का शक्ति नहीं है कि आप अपनी शान्ति' को प्राप्त हाल देखिए, जहाँ लोगों ने कितना लाखों रूपया कमा करके ऐसा सोचा था कि अब हनमें और अपना आनन्द मिले । इसमें ये शक्ति नहीं है कि श्रकाश में कोई अन्तर नहीं रह गया । उस वक्त भगवान का नाम भी लेता उस पंजाब में मूश्किल हो गया और [प्राज] उसी पंजाब का ये हाल है कि लोगों को समझ नहीं आ रहा कि क्या होने वाला इतनी ऊंची हस्ती से कहाँ ाकिर गिरे । है। वही हाल हरियाणा का है । इतने जोर से ये लोग अपने को बढ़ावा देते चले गये। लेकिन इन्होंने ये नहीं सोवा कि हमारी जड़ कहाँ है। को पकड़ा नहीं । इसलिए उध्वस्त होकर के रह गए । यही हाल पुतंगाल का हैं, यही हाल इंग्लैंड का है । हरेक देश में आप जाइए, तो लग रहा है सन्तुलन देता है। अभी आपने जो गाना सुना, ये धीरे-धीरे जेसे इन पर हर तरह की गरीबी, हर तरह की परेशानियां, हर तरह की इसलिए इनमें बहुत ही फ़र्क आर गया है गाने में । घोरे छा रही है। अपने शहरों में भी यहो हाल हो करें। इसमें ये शक्ति नहीं हैं कि इस से आपको आपको चित्त उस ऊंचे स्तर पर जाए । आप विलकुल नोचे गिरते-गिरते ऐसी दशा में पहुँच जाएंगे कि आपको स्वयं आश्चर्य होगा कि हम इसलिए हमारे अन्दर कुण्डलिनी का जागरण वहन अवश्यक है। ये जागरण जब नाभि चक्र 1 । उस जड़ से और तरफ फेलता है, चारों तरफ, तो मैने आपसे कहा था कि यहाँ गूरू का तत्त्व है जो आपको स्वय पार हो गए । साक्षात्कार हो गया इन्हें । दुण्टता घोरे- प्र वो गाना जो है वो अरन्दोलित करता है आत्मा के तार को । क्योंकि भारत का जो संगीत है ये भी 'ओम्' से बना हुआ है। हमारे साथ बहुत से रहा है । इसकी वजह क्या ै ? ऐसी कौन सी बात है, विदेशी लोग रहते हैं हर समय, और हमेशा अपने जिसके कारण मनुष्य खराब हो गया है ? एक ही Indian classical music (भारतीय शास्त्रीय व जह सीधी है कि उसके अन्दर लक्ष्मी तत्त्व जागृत संगीत) को विलकुल वेसुध होकर सुनते हैं । । उसके अन्दर अगर पंसा ओी जाए, तो ऐसे राग जो कि 'श्रो ओर 'मारवाह'-ऐसे राग नहीं है पे सा बहुत ही दुखदायी चीज है । निरा पैसा अगर किसी में आा जाए तो उससे बढ़कर दुखदायों चीज़ भोर कोई नहीं हो सकती। अब अपने मूल की ओर दृष्टि देनी चाहिए । कि जो हम लोगों ने सुने भी नहीं। जो हम सुनते भी नहीं। हम लोग तो आरजकल इतने सस्ते गाने सनने लग गये हैं। सब मामले में हम लोग इतने cheap (सस्ते हल्के) हो गए हैं। हमारे तौर- तरोके, हमारे रहन-सहन के तरीके, वात-चीत के त रीके, हमारे खोन-पीन के तरीके, सब चीज़ इतनी बहुत से लोग हैं जो कि पैसे से परमात्मा को भी खरीद सकते हैं । अऔर इस लिए वो मंदियों में जाते हैं, वहाँ बहुत-बहुत पसे देकर मंदिर बिलकुल औी हो गयी है कि हम जानते नहीं कि बनवाते हैं, गरूद्वारे बनवाते हैं और दुनिया भर हमारा सगोत कितना ऊंचा है । इस संगीत में सारा की चीज़ करते हैं । और बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि हम किसी गुरू को पैसा दे दें तो उसको हम खरीद सकते हैं । '३म्' है। लेकिन ग्राजकल के संगीतकार भी शराब पीतेहैं, हर तरह कमाने के लिए music (संगीत) गाते हैं । न ही उन्होंने कभी परमात्मा को जाना और न हो उधर उनकी रुचि है। फिर ऐसे संगीतकार क्या व्यसन में घुले हुए हैं। पैसा के आप परमात्मा को नहों खरीद सकते । आ्रप सब दुनिया खरीद सकते हैं, परमात्मा को प्राप दे सकते हैं ? इस संगीत को जानने के लिए भी नहीं खरीद सकते, और इसलिए इस पेसे में ये आपको चाहिए कि आप अपनी आत्मा को प्राप्त निमंला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt तक वो धर्म पर तहीं होगा तब तक यहां के राज- आएगे मिटेगे, लोग थुकगे उन पर करे । नहीं तो इसको गहराई में आप नहीं जान सकते । अव इतने foreign (विदेश) के लोग हैं कारी लोग । हमारे साथ में । हर जगह classical music लेकिन इनका राजकारंग चलने नहीं वाला, (शास्त्रोय संगीत) का प्रोग्राम होता है और एक- घर्म जब तक अपना नहीं हो सकता है, क्योंकि तान सुनते हैं । उनसे पूछिए कि भई तुमने क्या यह देश हमारा भारतवज घमं पर खड़ा हुआ है। सता ? वो उस पर किसी भी तरह का वाद-विवाद जब तक धर्म पर हम राजकरण करना सीखगे नहीं करते। वो कहते हैं कि ये जो ये आत्मा को नहीं, रामचन्द्रजी संगात है, इससे हमारे हाथ के vibrations लाएंगे नहीं, Socrates (सुकरात) का राज- (चंतन्य लहरियाँ) वढ़ते हैं और हमें परम शान्ति कारण हम जब तक लाएगे नहीं, तब तक ये देश मिलती है। लेकिन हमारे लोगों के सामने तो आज कभी भी आगे नहीं बढ़़ सकता । classical musie (शास्त्रीय संगोत मानो गाए कि कहीं लोग लद्र न मारने आ जाएं। वहुत सस्ति त रह का इसको प्रगर छुता music ग वलें और इस तरह का संगीत आजकल धर्म पर खड़े होग्रो-जिस आदमो के लिए आप हमारे यहाँ प्रचलित हो गया है, जिसमें कि किसमी हाथ उठा करके कह सकते थे कि ये आदमी शुद्ध भी तरह की परमात्मा की बू तक न आए। इतना हं, स्वच्छ है गंदा music आजकल हमारे यहाँ चलने लगा है । न जाने कैसे आ जकल हिन्दुस्तान में लोगों ने ये सब चीज मान ली। पहले कुछ गंदे राजे-महाराज या प्रति जिसकी दष्टि नंहीं, इतना हो नहीं, अपने नवाव लोग ऐसे गाते बेठकर सुनते थे । cracy (जनतन्त्रवाद) का मतलब ये हो गया कि हर ग्रादमी वैसा ही गंदा महाराजी बन गया या लोग उस पर । उस पर जब इतिहास लिखेगा, तो गंदा नवाब बन गया है। Dem0cracy (जन- कहेंगा, "इस अ्रादमी ने इस देश का घात किया । तंत्रवाद) का मतलब ये ही हो गैया है कि जितना ये अपना देश है, ऐसा ऊचा देश है। इस देश के गंदगी इन सब दूष्ट लोगों में थी, जिनके पास सत्ता लिए जिनको भी कार्य करना है, पहले अपने धर्म या थोड़ा-सा पेसा था, वही हमारे अन्दर भी आ का जब तक हम राजकरण कल ये देश की भूमि और है, इसकी जमीन शर है। ये समझना चाहिए। इसकी आत्मा और है। है तो करके इंसान जैसे घबड़ा गाना और पता तहीं गाए महात्मा गांधी जैसे अपने प्रौर घर्म पर खड़ा हुआ हमेशा परमात्मा को याद करने वाला है । जो आदमी परमात्मा को याद नहीं करता और परमात्मा के Demo- जीवन में जिसके घम नहीं, वो इस देश में कभी हो नहीं सकता। होगा, लेकिन थकगे सफलोभूत पर खड़े हो । जाए । ये सबसे बड़ी demonocracy (राक्षस- वाद) - मैं तो इसे demonocracy (राक्षसवाद) कहती हैं-जिससे हरेक आदमो demon (राक्षस) होने पर लगा हुआ है। इस democracy से तुम क्या कर रहे हो? "मैं राजकारण कर रहा किस दमी में अपने पाया है क वो उठकर है । मैंने कहा ये कोई धंधा है ? ये क्या चौज के कोई विशेष हो गया : काई पदर्श ऐसा इंसान जो ठोस खड़ा होकर कहे कि कोई मुझे छु वही राजकारण करने लग गया। नहीं सकता, कोई मुझे खरीद नहीं सकता ? जिसको देखिए वही राजकारण में चला आता है । मैं देहात में गयी, मैंने किसी से कहा कि भाई हुई, राजकारण कर रहे हैं ! जैसे कि जो उठा आरज मैं आपके सामने जो चक्र बताने वाली है इस देश में जितना भी राजकारण है, जब जिस पर धीराम विराजमान हैं । श्रर इसीलिए निमंला योग ५ू. १he/ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt मैंने पापसे बताया कि शरीराम का राज्य इस बारे में जानने का मेरे पिता भी कांग्रेस में थे संसार में आना चाहिए। सबसे पहले इसे हिन्दु- पुराने । मैंने एक-एक आदमी देखे हैं । क्या लोग थे ! स्तान में लाना पड़ेगा। जिसने देश के कारण, लोगों के मत के कारण, अरपनी प्नी का त्याग किया। हालांकि वो अदिशक्ति थी, वो जानते मगिल्ले लोग इस देश में कहाँ से आ गये, मेरी थे कि इनके कोई हाथ नहीं लगा सकता-तो भी. समझ में नहीं श्रता। इनको क्या कहना चाहिए इतनी बड़ी मिस्राल उनके जीवन की हमारे सामने कि जो अपने को हिन्दुस्तानी कहलाते हैं और है और कितने घारमिक, संकोचपूर्ण, कितने अनु- कम्पा से भरे हुए श्रीराम । वो तत्व नहीं है। बगर किसी तत्व के संसार में आप होने चाहिएं । ऐसा हमारे सामने नायक होना केसे चल सकते हैं ? चाहिए जिसे हम देखकर कहें कि ऐसे हम बने । श्राजकल प्राप सिनेमा का नायक देख लीजिए, तो कि ये इतनी बड़ी democracy (जनतंत्र) वो शराब पीता है, खुन खरावा करती है । हर बहुत इनके जैसे लोग अब दिखाई नहीं देते। ये मगिल्ले जिनके अन्दर जरा सा भी ध्येय नहीं है । कोई भी हमारे सामने आदर्श सारे देश आपकी ओर अख उठाये देख रहे हैं ये demonocracy (राक्षसतन्त्र) बन रही है, कि कि ये कुछ विशेष चीज है ? के गलत काम करता है और नोयक, नायक का मतलब क्या है ? हिन्दुस्तान में ऐसा नायक दी इलाज है कि आप धर्म को प्राप्त हो। जब तक पहले नहीं होता था । ये अ्रग्रेजों के नायक होएंगे, अ्रापके देश में धर्म नहीं आ्राएगा, आप चाहे दुनिया या किसी ०० । उनके यहाँ तो था ही नहीं कायद इधर मे उधर कर लीजिए, ये देश अप शोसन में नहीं का आदमी । उनके यहाँ कोन रामचन्द्रजी हो गए। एक राजा ने अपनी सात बीबीयों की गर्दन काट डाली । बताइये ! सात रानियों की जिसने गर्दन काट दी, वहाँ पर एक राजा साहव वी बठे हुए हैं । वहा के प्रति इतनी श्रद्धा हर एक जगह है ! हर एक किसी भी राजा का आप जोवन पढ़ तो इस कद र शराबी-कबाबी, हुई है। और बो वहाँ का राजा है और वहां तो भी, ये कहना चाहिए, ये होते हुए भी, वहां लोग ये जानते हैं कि जब तक हम सही रास्त से उसे समेटना चाहिए। उस पर बुनियाद डालकर नहों चलेंगे, righteousness ( सदाचार ) से नहीं के जिस दिन हम अपनी देश की नई नींव डालेगे, रहेंगे. हमारा राज्य चल नहीं सकता। बात है नहीं, क्योंकि उनके बुनियाद में ही नहीं हैं स्वतंत्रता, गांधी जी लड़े स्वतंत्रता के लिए । अगर बातं । हमारे बुनियाद में क्या? एक से एक, शिवाजो वो जीवित होते तो कहते "स्व जैसे शाहू महाराजा शिवाजी जसे थे । उनका खो ओो। "स्व" का तन्त्र ही सहजयोग। "स्व" के चरित्र क्या था ? किंतने उज्जवल आदमी थे ! मा बारे में जानना ही स्वतन्त्रता है । तरह इसका एक ला सकते । यहाँ प्रराजकता आएगी, यहाँ अशासन आएगा । हमने अपनी, इसमें देखा है कभी भी हम देहात से जा रहे हैं, कहीं से भी जा रहे हों, सत्तों दूनिया भर की उसमें गंदगी भरी जगह । कोई मजाल नहीं कि कोई वहाँ पर अराज- कता करता हो। वो सन्तों की श्रद्धा, वो भक्ति का सागर जो ह हालांकि वैसी तभी हमारा देश असल में स्वतंत्र होगा। क्योंकि का "तुन्ब के भक्त थे । उनको माँ कितनी तेजस्वो स्त्री थीं। एक एक को देखिए हमारे यहां, कि हमारा इतिहास भरा पड़ा है; राए प्रताप । मैं अरभी आ रही थो चौदह हज़ार वर्ष नाईी ग्रन्थ में लिखा हुआ है। लाजपतनगर यहा से । मैंने कहा लाला लाजपत- कि ऐसा होगा इस वक्त में । और सारे दृनिया के राय क्या आदमी थे । मुझे इतफाक़ हुआ उनके देश यहाँ पर भुक्त कर आएगे और हमसे सीखेंगे कि ऐसा होना चाहिए और होगा भी, क्योंकि पूर्व निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt अब आपके Ieft hand side (बांयो तरफ) में चाहिए। लेकिन आप लोग सत अपने पर विश्वास जो heart (हृदय) के चक्र का दोष होता है, वो रखें, सहजयोग में गहरे उतरिये तभी ये कार्य हो आपकी मां की वजह से आता है। अगर आपकी में विश्वास नहीं करती, आपको गलत रास्ते पर ले जाती है, या जरूरत से ज्यादा आपको प्यार करके आपको खराब करती है तो भी सां घर्म क्या है और परमात्मा क्या है । ऐसा होना मांँ परमात्मा सकता है। हृदय चक्र जो है उसमें तोन उसकी sides हैं । एक तो left (वाये), बीच की। right side में श्रीराम का स्थान है । थरीराम जो पितातूल्य हैं, जोकि benevolent king (उदार राजा) हैं। जो Socrates (सुकरात) ने (प्रयोग) में ऐसा देखा कि एइंसान आकर बताया ऐसे रा जा थे । जिनको सिताय लोगों के हित के उसे बार-बार बताता था कि मेरी मां का के और कुछ सूझता नहीं था हित कसे होगा, लोगों मुझे स्वप्न आता है कि वो एक witch का टीक कसे होगा, उनका भला केसे होगा। (पिशाचिनी ) है, एक राक्षसनी है बार-बार मूझे नन्होंने जो कुछ किया है, इस संार में सि्फ़ एक ऐसा स्वप्न आाता है। विचार से कि मनुष्य का भला कैसे होगा। नगे से पूछा कि भाई तुम्हारी मां का तुम्हारे साथ पाव वत में गये कि वहां की भूमि उनके चरराों से व्यव्हार कसा है । उन्होंने कहा कि भई मेरी मां तो vibrate (चेतत्यमय) हो जाए। सारा नाटक खेला ऐसी है कि मुझवी इतना pamper (अत्याधिक दुःखदायी नाटक था । शरीर तो उनवा था ही जो लाड़) करती हैं, इस कदर उसने मुझे spoil सहन करता था, ले कन ये सार नाटक उन्होंने खेला सिर्फ ये दिखाने को कि एक प्रादर्श राजा कं सा होना नहीं। उन्होंने कहा ठीक है, इसका मतलब है चाहिए। एक आ्दर्श पिता कंमे होने चाहिए। एक तुम्हारी मां राक्षसनी है इसका स्वप्न तुम्हारे अचे- आदर्श पुत्र कसे होना चाहिए। ये आपका right तन से, unconscious से अ रहा [है] और तुमको heart (दायां हृदय) हे । अगर कोई भी इंसान अरदमी का right heart (दायां हृदय) पकड़ता है, माने ये कि किसी भी इंसान में कोई पिता का दोष हो। हमेशा स्वप्न आता है कि बो सिंहासन पर बैठा है समझ लीजिए उसके पिता की मृत्यु जल्दी हो गयी। उसने पिता का सूख न देखा हो, या अगर उसका कि तुम्हारा अपने लड़के से कैसा अपने पिता से सम्बन्ध ठीक न हो, या पिता प्रगर रिश्ता है ? कहने ल गे मैं ने दूसरी शादी कर ली। गलत रास्ते पर चलता हो या बो पिता से दूश्मनी लिए हुए है। कोई-सा भी पिता का जो तत्व है तो घर में नौकर जेपा ही है, किसी काम का नहीं । अगर खराब हो जाए तो ऐसे अादमी का ight और मुझे ऐसा स्वप्न आराता है । heart (दांया हृदय) पकड़ता हैं और ऐसे आदमी रहा था कि तुम्हारा लड़का जो है बो सिहासन पर को asthma (दमा) होने का अंदेशा है। अब बैठने लायक है, और तुभ उसके नीचे खड़े हुए हो, देखिए कहां से बात कहाँ ला दी। इस वक्त आपको उसके नतमस्तक तुम्हें रहना चाहिए, बजाय इसके श्रीराम का ध्यान करना चाहिए, जब प्पको कि उससे तुम छल करो और उसे किसी तरह asthma हो। इससे आपका asthma ठीक हो से, इस तरह से व्यवहार करो जिससे वो नगण्य हो एक ight (दायें) और एक बड़ी दोपी है। ने अ्रपने एक experiment Jung /यंग) तो उन्होंने अ लड़के (बिगाड) करके रखा है कि मैं कि सी काम का बता रहा है कि सम्भल के रही। एक बताता था कि मुझे अपने बेटे के बारे में ऐसा औ्र उसके सामने मैं हमेशा नतमस्तक हैं । Jung ( यु ग) ने पूछा मैं उस लड़के की परवाह नहीं करता है । वह पचेतन उसे बता तुम सकता है । जाए । निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt यही बात है कि मां और बाप का बहुत बड़ा करते हम पगला जाते हैं। खास कर टी. बी. की है । एक तो अपने देश में बोमारी जो ये मां से होती है । किसी को अगर जां बाप का इस क़दर अपने बच्चों के प्रति स्वार्थ टी. बी. की बीमारी है तो जिसकी मां बचपन में होता है, इतना ज्यादा स्वार्थ होता है कि आ्रश्चर्य मर गयी हो या मां का प्यार जिसे न मिला हो, है ! इसी देश में पन्ना घायो जैसी औरतें हो गयी जिस अ्रादमी ने मां को जाना नहीं उसे टी. बी. की इसो देश में ऐसे लोग हो गये जिन्होंने प्रपने बच्चे बीमारी हो जाती है । आप सोचिए इस देश में, करते देना बच्चों को होता देश के लिए कुर्बान कर दिए। हम खुद अपने बाप देश में जहाँ मां की लोग पूजा इस महात की बात कह सकते हैं कि जो हम लोगाँ को कुर्बान वहाँ कितने लोगों को टी. बी. हो जाती है। इसका करने में एक क्षण भी न ठहरें, और उसमें वो मतलब ये है कि मां जो है बच्चों को खराब कर बड़ा अपने को गर्व समझते थे । और ऐसे हमने रही है, मां उनको दोष लगा रही है, मां उनसे नक इनके मित्रों को देखा और अने क लोगों को बुरी तरह से पेश अ रहो है। इसकी मतलब ये देखा उस उच्र के, जो प्रपने बच्वों से कहते कि नहीं कि आप बचुत्ों को हर समय डांटते रहें, फट- कारते रहें । लेकिन अपनी प्रतिष्ठा के साथ, कुर्वान हो जाओ अपने देश के लिए । ाम अपने बच्चों के सामने ऐसा एक उदाहरण रखना वो गया एक तरफ भगतसिंह का जमाना श्र आज ये आया है कि मेरा बेटा, मैरों बैटा, मेरा, कउनका बर्ताव कैसा है और हमारा बताब कस मेरा, मेरा । यहाँ पर भी जो बता रहे थे, बात सही है कि आकर के मेरा बाप ऐसा, मेरी मां ऐसी. मेरा बेटा ऐसा, मेरा ये ऐसा । दूसरा लगो रहें या पति से हर समय लड़ती रहें, ता वी है । ग्राप ही उनके सामने (अ्रभद्र) तरीके से रहें, रात दिन अपने श्ृ गार में अगर बहुत cheap extreme (पराकाण्ठा) हे इंगलेड में जो मैंने आप से कल बताया कि अपने बच्तों को ही मार डालते हैं। काम सफ़ा । आपकी क्या इज्जत करेगा ? स्त्री में जब तक वो बात नहीं प्राएगी, तब तक बच्चे में कसे श्राएगी ? वही बात पिता की है । अगर पिता बचचा भी ये दो extremes (पराकाष्ठाओं) के बीच में स्त्रयं शराब पीता है आवारा है, घुमता है, घर में मनुष्य को रहना चाहिए। अपने बच्बों के प्रति भी नहीं बेठता है, बच्चों से मिलता जुलता [नहीं हैं, आपका बड़ा भारी परम कर्त्तव्य है कि उन को बीबो को बातें सुनाता है, ऐसों के बच्चे केमे होगे ? क्या वड़े अछे हो सकते हैं ? खराव न करें। उनको ये नहीं लगना चाहिए कि हमारे मां बाप हमारे आदर्शों से छोटे हैं। लड़के हैं बो जगह जहाँ "यान्हनेवे भागने लग्न संस्कार' सिगरेट पीते हैं बचपन से । उनको बुरी श्रादत लगती छोटे-छोटे उम्र में जो संस्कार हमारे ऊपर हैं। इसका कारण उनके मां बाप हैं । श्रौर कोई नही। अगर लड़के बिगड़ते हैं तो मां बाप उसके लगते हैं वो ऐसे हो होति हैं जसे कि जिस घुड़े के कारण हैं। मां बाप अगर उनके साथ रहें उनके कचे रहते वक्त जो उस पर दाग पड़ जाए, उसी अ्रकार वी पक्क हो जाते हैं। उस वक्त इतना सम्भालना जरूरी. है, इतना उनको प्रेम देना जरूरी कि विससे उनकी जो बृद्धि है वो कारयदे से हो जाए। पर ऐसा होता नहीं है । ज्यादातर ऐसा होता नहीं है। हम या तो उनको ज्यादा ही पानी बीचों-बीच खड़े रहकर साथ घमें फिर, उन से दोस्तो कर, उनसे इज्जत से पेश आएं तो वच्चे नहीं विगड़ सकते । अब ये दोनों चक्र जो हमारे परन्दर हैं। और मां के दोष से अनेक रोग आ सकते हैं। मां के दोष से ऐसे ऐसे रोग आते हैं कि जिसका निवारण करते- देते हैं ग्रौर या नहीं देते । निर्मला योग ८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt के देखना चाहिए कि हमारे बच्चे किस रास्ते पर कहते हैं अोर माता जी दूसरो वात कहती हैं । चल रहे हैं । साक्षात्कार प्राप्त हम। री लड़की की लड़की है। वो फिर ये कहना समाज ऐसा बना हुआ है, realised soul है । वो एक दिन कहती है कि "नानी माँ क्या करें ? लड़के खराव हो ही जाते हैं । केसे ? एक वात बताइये ये जो शेर होता है पूर्व जन्म में आपको चित्त ही नहीं है बच्चे की ओर कम से कम आप तो कोई शिकायत नहीं कर सकते। इंगलेंड, कि उसके मां बाप कहते हैं कि तुम इंसान को खाओ प्रमेरिका में तो लड़ कों को dole (बेरोज़गारो र उपको भगवान कहता है कि मत खाओ, तो वो भत्ता) मिल जाता है १८ साल में, तो वो बेकार कुया करे ? देखिए ! उसके सामने ये प्रश्न खडा हो जाते हैं। पर आप लोग, अरप लोग तो जिन्देगी गया कि इसने पर्व जन्म में कूछ बूरे कर्म करे होंगे, भर उन बच्चों को पालते हैं ।"किर भी कया नहीं तो ये ऐेसे मां बाप से क्यों पेदा हुआ कि जो हप्रा थोडा सा शराब ही तो पीता हैं ना। सिंगरट कहते हैं इस न वो स्वा लो । यही प्रश्न हमारे दिमाग पीता है तो आजकल सभी पीते हैं उसकी गदी में ग्राता चाहिए प्राखिर ऐसा कौन सा हमने पूर्वजन्म आ्दते है थोड़ी बहुत, औरतों के पीछे भागता है में क्म किया है कि जिमके कारण हम अपने बच्चों कोई हजर्जा नहीं ! के प्रति अपना रुझान रखें, ये तो इसको मैं कहती है कि आरप उनके दूष्मन हो गये क्योंकि जो आप दोनों स्थितियां जो है ठीक हो जाती है। आप ग्रगर का कर्तव्य है उससे अगर आप च्युत हो गए तो आपने उनको तो ऐसे ही गढे में घकेल दिया यहां तक मैंने है, कुछ लोग जो अपने की बहुत जाते हैं। ग्गर प्राप मां हैं, तो आग मां की दृष्टि अं प्रेज समझते हैं क्ि 'साहव मेैं तो अपने बैट के साथ बैठकर शराब पीता है।" कवा कहने आपके ! इस प्रकार की जितकी मनोबृत्ति है ऐसे लोग जाने क्यों मां बाप हो जाते हैं ? और होने पर भी उन बच्चों को रात दिन खराब किये जाते हैं। युवक हैं ये संभलगे । नहीं तो इतना बच्चों के साथ कड़ा रुख होता है कि बच्चे घर से भाग खड़े हैं । सोचते हैं हमारे मां बाप का हमारे प्रति कोई प्रेम ही न ही। उनको कोई दुलार ही नहीं है । कृछ खराब काम किए होंगे। मैंने कहा कपों ? क्यों "-इस तरह से अप अपने बच्चो को मीक रास्ते पर नहीं लगा सकते । ये दोनों चक्र ठीक हो जाने से, आपकी मां अोर बाप, बाप हैं तो प्राप वाष की दुष्टि से ठीक हो जाते है। अगर आप पुत्र हैं तो आप पूत्र की दष्टि से ठीक हो सुना से ठीक हो जाते हैं। अगर आप मां की बेटी हैं या पुत्र है तो उस तरह से ठीक हो जाते हैं । ये दोनों चक्र ठीक हो जाने से ही अपने देश के जो नब- ा EGO प जानते हैं कि हजारों लोग परदेश से हमारे शिष्य हैं। इनके मां-बाप तो पागल ही लोग हैं अ्धिकतर । बो लोग शराब पीना, रात भर वहां की शीरतं चार-चार बार बाहर रहना। इसलिए मैं कहती है कि आप सहजयोग में शादियां करती हैं। आदमी छः छः वार शादियां पने बच्चों को लाएं । पार होने के बाद फिर हम करते हैं। और सव ग्रनाथालिय में बुढ़ापा काटते देख ले गे । उसके बाद बात और हो जाती है। पर हैं ऐसे विचारों ने कोन से पूर्वकर्म किए हैं कि पहले प्राप पार होइये। अगर मां बाप की ही प्रक्त उनको ऐसे माँ-बराप भिले । पर ये लोग जब सहज- खराब हो तो बच्चों को पार करा के भी क्या योग में आ गए तब से सम्भल गए हैं कि अव] फ़ायदा ? वो तो गलत रास्ते अ्रपने जो हैं प्राप हमारी शादियाँ हो गयी सहजयोगियों में । प्रब बच्चों] को सिखाएंगे और हम उनको सही रास्ते हमरे यहाँ बड़े-बड़े ऋषि मुनि पदा हो रहे हैं । और सिखाएंगे तो बो कहेंगे, हमारे वाप तो एक बात इनके लिए हमें कसे बर्ताव रखना चाहिए । उन्होंने 1 निमंला योग हं 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt एक नयी धारा बना ली है कि इनके सामने किस हो जाता है, जब जगदम्बा का चक्र आपके अन्दर तरह से रहना चाहिए । जो जो भी कार्य अ्रब जागृत हो जाता है तो श्रापके अ्पन्दर से भय, सहजयोग में हो रहा है, उसमें सबसे बड़ी चीज जो आशंका सब भाग जाती है । कोई किसी प्रकार ध्यान में रखने की है कि हमारी आत्मा क्या बोलती की भय-अशका नहीं रह जाती। है । और ये चेतन्य लहरियों से बोलती है और उसी से जाना जाता है कि हम कहां चल रहे हैं । आत्मा शब्दों से बोलती नहीं है । जिस वक्त किसी स्त्री में ये चक्र पकड़ जाता है जव भय हो जाता है उसे या उसका विशेष करके जब left heart (वाया हृदय) उसका पकड़ता है और उसे ये लगता है क्ि उमका मातृत्व दम्बा का है । जो कि सारी सुष्ट की मां है । ये जो है, उस पर हो अघात आ रहा है, उसका पति जो ग्रौर ओरतों के पीछे भाग रहा है, उसके मातृत्व भक्त, इस गौल जगह बना हुआ जगह जहां है, जहां को हो ग्रब कि पी तर ह से लाछन आने वाली है तब पर कि भक्त लोग सब भगवान को खोजते हैं, उसको जो बोमारी होतो है इसे हम लोग breast उनका रक्षण करती है । उनके लिए उन्होंने राक्षसों cancer कहते हैं । ये इन दो चक्रों की वजह से का वध किया, उनका रक्त पिया, उनके भूतों के औरतों में होती है । विशेष करके left चक्र को भूत खा लिए, उन्होंने संहार कर करके इन लोगों व जह से, जब कि माँ का मातृत्व जो है वो आदमी सोचना है कि हमें क्या करना है, हमारी बीची है ं तो क्या । हम जे मे चाहेंगे, हमें बहुत से लोग ऐसा कहते हैं भई हिन्दुप्रों के स्वतन्त्रता है, हम जैसे चाहे रहें | ऐसे पतियों की देवी देवता जो है ये वड़े कुर हैं, और nonvege- परेशानी की बजह से प्रतों को breast cancer अब बीच का जो चक्र है, ये साक्षात् देवी जग- जगदम्बा जो है ये भक्तों का रक्षण करती है । जो है को ठोक क्रिया । जैसे तो क्या, बच्च हैं tarian (मांस भक्षी) हैं । तो मैं कहती हैं अगर ये अमेरिका में भी लोग कहते हैं राक्षसों को देवी न खाएं तो क्या आप लॉग खाइयेगा ? इसमें क्या है ? ये मब कुछ टीक नहीं ? एक ही इन राक्षसों को देवी न मारे तो क्या आप लोग पत्नी क्यों होनी चाहिए ? और औरते भी एक ही पति क्यों होना क्या आप लोग मारते ? रावण को राम न मारते नाहिए ? पर वहाँ फिर औरतों को breast तो कौन मारता ? उस पर बहुतों का ये कहना है, cancer वर्यों हो जाता है ? [्र आदमियों को श्रर ये सबको मारते परेशानियाँ क यों हो जाती हैं ? अगर ये चीज हो जाता है । इस्लेंड, मारियेगा ? कंस को अगर कृष्ण नहीं मारते तो कहती हैं कि ये तो देव यौनी के लोग हैं कुछ रहते हैं। इस तरह का विचार करने से आ्राप जो अच्छी होती, नै पंमक चीज होती, तो मनुष्य और राक्षस हैं उन सबको खोपड़ी पर बिठा उससे सुखी होता । पर आपने कभी देखा है ले । उनका नाश न करिए, उनको आप किसी तरह जिस आदमी ने अपनी पत्नी को छोडा है और से नष्ट न करिए, उनके साथ कोई दुर्व्यवहार न दूसरे परादमो के साथ स्वेच्छाचार कर रहा है वो दुष्ट म] करिए, उनको विठा करके उनकी आरती उतारिए । सुखी है ? तो इस वजह से हमारी जो विवाह संस्था है उमका वडा मान करना चाहिए । और ये समझ लेना चाहिए कि प्रपनी पत्नी जो है ये घर की गृह- लक्ष्मी है। इसका अपमान करने से, इसको जगदम्बा ने अनेक वार जन्म लिए । इनके ऐसे तो नौ जन्म वहुत विशेष माने जाते हैं, ले किन उनके हजार जन्म कम से कम हुए हैं। और हजार बार संसार में आ्राकर उन्होंने, जो भक्त लोग थे, उनकी दुख रक्षा की । जब ये चक्र अापके अन्दर जागृत देने से, इसको तक नीक़ देने से हम अपनी घर की निमला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt गृहलक्ष्मी को सता रहे हैं। अर्थात् जसे मैने कल का स्थान बहत ऊंची चीज है। श्री गणेश इतने शपसे बताया कि गृहलक्ष्मी को भी इस यो य होना ऊने स्थान पर इसलिए हैं क्योंकि वो अपनी मां को चाहिए कि वो गृहलक्ष्मी कहला ये | ही मानते हैं औौर किसी को मानते ही नही। क्यों कि वो जानते हैं कि माँ ही शक्ति हैं । गुरू दुनिया भर के जो भी सही गुरू हो गए, वो भी मां को मानते हैं। वेद हैं वे भी माँ को मानते हैं । दृनिया ले किन ये सब होते हुए, ऐसी पत्नियों [श्रोर ऐसी दूखी पत्नियों को, जाए, तो उसके लिए हमें समझ लेना चाहिए कि में कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं जो आदि मां को न इनके घर में हो कोई तकलीफ़ ऐसो बन रही है। जिसकी वजह मानता हो। जा रही है। अगर कोई तकलीफ़ हो प्र हम भी मां को मानते हैं। लेकिन हम ये नहीं जानते कि मां चीज़ कितनी ऊंची है। कभी-कभी ये भी होता है कि मनुष्य के अन्दर से ये स्त्री विचारी वीरे-घ्ररे धुलती अब जो जगदम्बा का चक्र है उसकी वजह से आशंका ओर भय इस वजह से प्राता है कि-उसको जब पकड़ जाता है, तब मनुष्य जो है वो भीतू उसके मां वाप से वो प्यार, वो संरक्षण हो सकता हो जाता है, डरपोक हो जाता है उसको भय सा है-उसे किसो ओर भी वजह से भय आ जाए, रहता है, वो हृर समय इरता है। केैसे भाषण दें. क्या बोल, किससे क्या कहे, मुझे तो डर ल गता है मैं जरत नहीं । नहीं कह सकता । और जब उसका ये चक्र ठीक हो जाता है तब उसके अन्दर घेर्य अ्र जाता है। भई तुम्हा रे बाप कैसे हैं, तुम्हारी मां कैसी बो उद्दंड नहीं होत।, बो किसी तरह से arro- है, तुम्हारी क्या कैंसा। ज्यादा से ज्यादा gance (उद्द्डता) नहीं करता लेकिन उ म की भावा में एक तरह की ममता, उस मां की, जो कि उसके लेकिन जैसे ही वो जागृत हो जाता है, जैसे ही ये अन्दर जागृत हो गयी है, आ जाती है। लेकिन वो चरु जागून हो जाते हैं, मनुष्य एकदम शेर दिल हो किसी से डरता नहीं । ईस मसीह का उदाहरण आप देख लीजिए कि जिन्होंने सूली पर चढ़के ये शेर पर ही विराजती हैं । वहुत से लोग दुरग्गाजी को कहा कि प्रभु ये लोग जानते नहीं, क्या करें, इन को माफ़ कर दें । वो ही हाथ में हंटर लेकर के थ्द्धा है और उनके बारे में जानकारी बह़त उन्होंने सबको मारा था जो वहाँ पर चीज़ें बेच रहे कम है । वहुत कम जानका री है कि वो कितनी थे । और जिस तरह मारी मगदागलनी (नामक) प्रभावशाली हैं और एक बार अंगर उनको प्रसन्न एक वेश्या थी-वेश्या और सन्तों का क्या सम्बन्ध, कर लीजिए तो दुनिया में किसी से डरने की बात कुछ हो ही नहीं सकता-जब लोग उसको पत्थर उठाकर मारने लगे तो उनके सामने जाकर के छाती खोल कर खड़े हो गए अरर कहा कि तुममें से जिसने कोई पाप नही किया हो, वो मुझे पत्थर मारे । ये हिम्मत ! ये अपने पर विश्वास । ये देवी की कृपा से, माँ की कृपा से होता है ! इसलिए कल ही श्री कृष्ण के चक्र पर जितना कहें सो हमारे यहाँ शक्ति को बहत वड़ा मानते हैं। लेकिन कम । इस चक्र में सोलह कलि्याँ हैं. क्योंकि सोलह हम लोग खुद ही अपने को शक्तिहीन कर लेते हैं। कितने लोग संसार में हैं जो ये समझते हैं कि मां हजार बीवियाँ थीं वो उनकी सारी शक्तियाँ थीं, उसकी कोई सी भी वजह हो जा ए, उसमें जाने की हम लोग psychologist (मनोवैज्ञानिक) जैसे ये नहीं पूछते बैठते कि वेपा कंस। । ज्यादा से ज्यादा ये पूछेगे कि तुम्हारे मां बाप जिन्दा हैं या नहीं। जाता है। शर दिल हो जाता है । क्योंकि देवी जो मानते हैं । मैं मानती हैं कि उनके प्रति बहुतों की मात नहीं । इसके बाद जो चक्र इससे ऊपर है, जिसे कि विशुद्धि चक्र कहते हैं, ये बहुत महत्वपूर्ण चक्र है । ये चक्र श्री कृष्ण का है और अब होली आरा रही है, उनकी कला हैं-श्री कृष्णा की। श्रर उनकी जो सोलह । निर्मला योग ११ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt जिनको कि उन्होंने इस संसार में जन्म देकर के थे उनको कुछ माजूमात नहीं था। लेकिन जब उस राजा के यहाँ फंसाया और उसके बाद उनसे विवाह कर लिया । कृष्ण की लीला समझते के लिए भी महजयोग करना पड़ता है । उस के बरगर realisation के बाद । मैंने पूतछा क्या देखा ? कहने आप कृष्ण को नहीं समझ सकते । उनके होलो का लगे मैंने ये देखा कि बहुत से हम लोग बच्चे खेल अर्थ भी आप नहीं समझ सकते, होली क्या थी ? रहे हैं और एक बड़ा प्रदीप्त लड़का है जिसका रंग होली में यही था कि जो पानी जमुना जो में बहता थोड़ा सांवला है, लेकिन बड़ा प्रदीप्त है, और बो था उसमें श्री राधा के पेर पड़ने से वो चैतन्यमय हम लोगों का पिरामिड (pyramid) बना कर हो जाता था, उस पानी को गगरी में ले कर के उस हमारे उपर चढ़ गया।और उपर में एक मिट्टी का में लाल रंग घोल करके और जब वो किसी के पीठ pot (धड़।) रखा पर छोड़ते थे तो वो असल में उनकी कुण्डलिनी उसने अपने हाथ की एक लकड़ो से तोड़ा । ओर बो ही जागृत करते थे। उन्होंने बचपन में जो कुछ हमारे सब के ऊपर घर-घर-घर, देखिए, वहने लग उनकी लीलाएं की सबमें सहजयोग किया । उस गया और वहते ही हमारे अन्दर एकदम बक्त कोई ऐसे हॉल (hall) नहीं बने हुए थे । ऐसे चंतन्य श्राने लगा । उसने जो बात बतायी तो मूझे परमात्मा को खोजने वाले लोग नहीं थे। कोई इस बडा आश्चर्य हम्रा कि इसने कैसे जाना। उसने कभी तरह की व्यवस्था नहीं थी । ऐसे यंत्र नहीं थे । ये तो सब अब देन हो गयी है अपने Science ये जाऊर के ऊर क्यों तोड़ते थे । ये ही उनकी (विज्ञान) की, कर सकते हैं। लोलाएं करी वो सब लीला सिर्फ सहजयोग की थीं। धर पानी तीचे आ जाए जिससे लोग जागृत जैसे कि गोपियाँ थीं वो जब पानी भरने जाती थीं, वो अपने सर पर गगरी रखके जब लोटती थी तो पीछे से उनको कंकड़ मारते थे । उसमे वो जो पानी था, जो चैतन्यमय उनके पीठ के रोढ की हड्डी पर दौड़े, जिससे इनमें जागति अा जाए। रास, रास माने 'रा' माने शक्ति प्रर 'स' माने साहित्य । जैसे सहज है वसे ही। हाथ में सब के हाथ पकड़ करके और अपनी शक्ति सबमें बो दोड़ाते थे अ्रौर उसके फल का देना मेरे लिए साध्य है, मुझे देना इसी को 'रास' कहते थे । ये 'रासलीला' जो होती ही होगा। ऐसे कृष्ण के बारे में क्या कहें और थी, उसी से वो शक्ति दौड़ा करके और लोभों को कितनी बातें बताएं । उनको 1ealisation (साक्षात्कार) हुआ तो भुझे कहने लगे कि मां मैंने एक अरजीब चीज़ देखी उसको था । हुआ जाना नहीं था कि गोपाल काला वया होता है औ्र कि जिसको हम इस्तेमाल लाला थी, जिससे वो सबके सहलार पर चढ़के और वक्त उन्होंने जो बहां से वो पानी तोड़ते थे जिससे सबके ऊपर घर- उस हो जाए। उनकी सारी लीलाएं जितनी थीं सब सहजयोग की थीं। ग्रोर उन्होंने जो कृषि की है इसलिए उनको कृष्ण कहा जाता है उन्होंने जो कृषि की है वही आज बढ़क र के प्राप लोगों के रूप में मेरे सामने आ्राज बो तैयार चोज प्रायी हुई है जिससे कि इ जागृत कारते थे । ा गीता, जिसके बारे में लोग हजारों बातें कहते मैं जब अ्रमेरिका में पहली बार गयी वहां पर हैं, समझने के लिए भी आपको सहजयोग में आना उन्होंने कभी चाहिए। उसके बगेर [आाप] गीता भी नहीं समझ भी तो, उन दिनों में मैं तो गयी हुई थयो १६७३ में, सकते । सिफ़ गीता पढ़ पढ़ के कुछ गीता समझ उन दिनों उन्होंने कोई कृष्ण के बारे में सुना नहीं में नहीं प्राएगी । गीता जो जिसने सुनायी है, वो था प्रोर वो प्रोहियो में बोवों-बोच प्रमेरिका के रहते कोत थे । पहले उतके बारे में जान लेता चाहिए एक ईजीनियर Lord साहब मिले निमला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt बड़े होशियार हैं । होशियार ही नहीं थे, बो उस वो बतायी वहुत मजे तरीके से, कर्म की । कि वेटे तुम कसं करते रहो और सब कर्म परमात्मा के चरण में डाल दो। हो नहीं सकता, absurd (असंभव) ! बहुत से लोग आकर कहते हैं, माताजी हम जो भी कम राजदूत थे, और diplomacy का विल्वुल वक्त के जो प्र्थ है, essence है, उसको जानते थे । अत्र diplomacy का क्या 65sence है ? कि कोई ऐसी absurd (वाहियात) बात करो कि निसके करने करते हैं वो हम परमात्मा के चरराों में डाल देते से आदमी मंह के बल गिरे । कृष्ण का खेल जो है हैं मैने कहा 'प्रच्छा', ये के से ? फिर शरप कर्म उसको समझने के लिए पहले आपको सहजयोग में उत रना चाहिए। अच्छा, मैं समझाने की कोशिश डालते हैं तो प्रप ऐसा क्यों कहते हैं कि मैं जो कम करती है। लेकिन श्रप समझते को कोनिश कर । d ही नहीं करते। अगर पराप परमात्मा के चरण में केरता है ? इस तरह की हमारे अन्दर [अपने वारे में ए myth (भरान्ति) हम लोग बना ले ते हैं कि हम जै से कि उन्होंने शुरू शुरू में ही वता दिया । तो भाई जो भी करते हैं परमात्मा के चरणों में क्योंकि दुकानदार तो थे नहीं कि पह ते ुरी चाज डाल देते हैं। लेकिन कुछु ऐसे सयाने लोग हैं जो दिखाओ, किर घोरे-धीरे श्रच्छी चोज दिख। प्रो । तो उन्होंते पहले ही बढ़िया चोज दिखा दी। उन्होंने कि आपको जञान होना जाहि।। जान माने अकर कहते हैं कि मां हम तो सोचते थे कि मैं परमात्मा के चरगों में डालता हैं, पर होता नहीं े है। कोई न कोई गड़बड़ बात । सो कृष्ण ने ब्या कहा क्या ? बुद्धि से नहीं, बुद्धि से नही। ज्ञान माने कहा। उन्होंने जो बताया, एक absurd बीत बता आपके central nervous system में ग्रापकी दो, कि आप ऐसा करते रहिए । माने जेसे आप जानना चाहिए, आपको प्रचीती होनी चाहिए, कि समझलीजिए, एक लड़का है वो बैलगाड़ी हाक रहा परम क्या है जिससे आप स्थितप्रज्ञ होते हैं। साफ है और घोड़ा पीछे रखा है। तो बाप आ्या बाहर। साफ उन्होंने दूसरे हो chapter (खण्ड)में कह दिया, उसने कहा, बेटा, क्या कर रहे हो, कहने लगा मैं व्याख्या दे दी कि सहजयोगी कैसा होना चाहिए गाड़ी हाक रहा है पर उसके बाद उन्होंने देख। कि प्रज न तो जो हैं करो तब गाड़ी हाकेंगे । नहीं, मैं तो गाड़ी हांकूगा । बो अपनी लगा रहे थे । उन्होंने कहा कि इधर तो तुम कह रहे हो कि तुम साक्षी बनो, इधर तूम कह रखना। जब तक तुम घोड़े पर चित्त रखोगे, तो रहे हो कि तुम ज्ञानी बनो और उधर तुम कह रहे हो कि तुम युद्ध में जाो । तो ये के से हो सकता । अ्रब तो जान गए कि ये सीधे नहीं ने वाले । । उन्होंने यहा, भई घोड़ा सामने घोड़े पर चित्त उन्होंने कहा, अच्छा, हकिते रहो, किर गाडी चलेगी प्रौर वो गाडी चली नहीं। लेकिन मां की ये वात नहीं । माँ ने कहा 'बेटे वो घोड़ा सामने रखो और बाँधो नहीं तो कोड़ी नहीं चलने वाली । और न ही धोड़ी चलेगी और न ही तुम्हारी है। जो है उस वक्त का भक्त है समझ गाडी चलने वाली है । तुम जब तक ये नहीं करोगे लीजिए। उसको वो, उसका बो प्रतिनिधितव तब तक हो नहीं सकता । पहले आत्मा को प्राप्त करो करता है, represent करता है । अजन ने फिर आगे की बात करो । जब आ्रप पार हो जाते उनसे पूछा कि ये कैसे हो सकता है ? कि अगर मैं हैं तो आप क्या कहते हैं, "आ रहा है, जा रहा है, हो साक्षी हो जाऊं, फिर तो मैं लड़ गा ही नहीं। वैसे भी रहा है।" आप ये नहीं कहते कि मैं आ रहा हैं, मेरे मैं कर नहीं करूगा, मैं बिल्कुल बेकार हो जाऊंगा । अन्दर से प्र् रहा है, मैें ये हूँं, मैं कर रहा है। ऐसे कहा अब इनको तो कोई नहीं कहता । अभी आपने सहजयोगियों को देखा होगा ' मां इनका नहीं बन रहा, इसका नहीं जमता है, ये जमने नहीं वाला"। Third कुछ ये सब वातें क्या हैं ? सो कृष्ण ने सीवे तरी के से समझाने से नहीं होगा । उल्टे तरीके से से मझाओ । तो पहली चीज उन्होंने जो वतायी, निर्मला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt person । क्योंकि ्राप उस परमात्मा के अंग और लगता है-प्रकर्म ! हम अमेरिका गए थे तो एक प्रत्यंग वन जाते है । यही विराट का स्वरूप है । स्त्री हमारे साथ गयी थी। वो कहने लगी मां मेरे लेकिन स्वरूप को पाना चाहिए और Jung (श्री लड़के को जरूर पार करा देना। मैंने कहा भाई युन्ग) ने साफ-साफ कहा है कि अव मनुष्य कभी तुम ही certificate दे दो । मैंने तो हाथ तोड़ हाले, अब तुम ही पार करा दो । कहने लगो मां, लेकिन हिक चेतनायुक्त) होगा। साभूहिक चेतना में जागृत अगर पार तहीं होता तो केसे certificate दे । तो होगा। ये नहीं कि हम आप भाई-भाई और मैंने कहा, यही तो बात है जब होता ही नहीं है वो पार, तो तुम उसको false (झु्ा) तो certi- हमारे शरीर के अ्ंग प्रत्य ग वन गये सामूहिक ficate (स्टीफिकेट) दे नहीं सकतीं तो उसको पार चेतना में आप जागृत हो गये। तभी कृण्ण का काम करायो । पहली बात पार कराओ। ये तो नहीं कह सकते कि तुमने पार करा दिया। क्योंकि जब विराट बन जाता है । इस सर में जो सात चक्र हैं हआ नहीं तो पार कैसे ? यो तो होता ही नहीं। उसके पीठ है, उस पीठ पर बैठे हुए वो विराट है । तो जो तृतीय पुरुष में हम लोग बोलना शुरू करते हैं, अक्म में मनुष्य हो जाता है, बो ये नहीं सोचता मैं कर रहा है । कोई विवार ही नहीं आता कि भक्ति हुई, तो कृष्ण ने उसमें भी चालाकी करी है । आप अरकर्म में कर रहे हैं, कोई काम कर रहे हैं । क्योकि भक्त भी बड़े ग्रासानी से हाथ नहीं लगते । कोई लोग कहते हैं, मां अपने हमें ठोक कर दिया। बो भी एक one trek mind (एक ही रास्ते पर मुझे तो याद भी नहीं रहता । मैं पूछती हैं, भैया क्या बीमारी थी, वताओ्रो । कहने लगे, मां तो लग गये अब हम भक्ति कर रहे हैं भगवान गये ? मेरे को angiana (अन्जायना) था, की। कृषण ने कहा कि 'पत्रम् पुष्पम् फलं तोयम् (ततीय पुरुष) में आदमी बात करने दूसरा है उठेगा तो वो collectively conscious (सामू- 1 अगर मौकी मिला तो कले सरफूटव्बल । अब आप होगा। यही विशुद्धी चक्र है, जो यही जा करके मि सौ इस कृष्ण को समझने के लिए जवे कृष्ण चलने वाला दिमाग) जिसे कहते हैं, बस, लग गये, भूल मैं ( होस्टन) अच्छा मेया, क्या ही गया, सो अब क्या बात है । हो गया न, ठीक ! हाँ आप भूल गये क्या ? शब्द में उन्होंने नचाया है जो लोगों की समझ में मैंने कहा, हां मैं तो भूल गयी। मुझे तो याद नहीं नहीं ाता । कहा है कि ले किन तुमको 'अनन्य' भक्ति कि मैंने तुमको ठीक कर दिया, क्योंकि कृष्ण करनी होगी। 'अनन्य जब दूसरा नहीं रह जाता. के हिसाब से आप अगर विराट में पप समा गये, विराट के आप अंग प्रत्यंग हो गए हैं, अकबर हो भक्ति में आप उतर ते हैं तब हम लगे, उससे पहले गये हैं, जिसे हम अल्लाह-हो-प्रकबर कहते हैं, वो नहीं। लेकिन अनन्य शब्द को तो हम खा गये, अगर आप अल्लाह हो गये हैं । तो प्रापकी ये उगली [और बड़े-बड़े Lecture (भापण) लोग देते हैं । मैंने जो हैं, उसी का एक हिस्सा है । अब इस उगली को देखा हआ है, घन्टों Lecture (भाषण) देते हैं । सीधें अगर पपने थोड़ा सा कुछ rub (मसल) करके या तीन इसमें श्राप समभ. सकते हैं. उनका कम योग, इसको किसी तरह से संजो करके ठीक किया उनका ज्ञान योग श्र उनका भक्ति योग। कि रहा जो भी पत्र, पुष्प, फल, पानी कुछ भी आाप दोजिएगा, हम स्वीकारेंगे। ले किन देने के time (समय) में एक Houston था। जब अ्रप हमारे अरग प्रत्यंग हो जाते हैं । जब परा- कुछ तो क्या प्रापने अपने ऊपर उपका र किया है कि अगर परमात्मा को पाना है तो पहले उसके अंग दूसरों के ऊपर उपकार किया। दूसरा है कौन ? प्रत्यंग बनना चाहिए. ' दूसरा कौन है ? ये भावना ही टूट जाती है कि कोई तक अरप अनन्य [हीं हैं शनन्य भक्ति जो है उसको अनन्य होना चाहिए जब निर्मला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt प्राप्त होना चाहिए। ये कृष्ण ने साफ-साफ कह कोई भी गुरू पए उसके चररा छु लिए, उसके दिया है । लेकिन जो पंडित होते हैं और जो वेदाभ्यास चरण छु लिए प्रोर सब चीज़़ के चरर छते फिरे रात करते हैं वो शायद चरमे की वजह से वो चीज दे खते दिन, उनेकी left विशुद्धि पकड़ जाती है । जो आदमी ही नहीं जो देखने की होती है। और कृष्ण को अपने को हमेशा दोषी समझता है, जो समझता है क्योंकि कि मेरे में अनन्त दोष है, उसकी left side पकड़ बुद्धि की बिल्कुल पराकाष्ठा है। आप, उसके जाती है । और जो मनुष्य अपने को सोचता है कि सामने आप ठहर हो नहीं सकते उनकी बुद्धि के मैं तो दुनिया का सबसे बड़ा है, मैं जो करू सो सामने, इतने प्रकाशवान बूद्धिमान बो हैं । और वो कायदा मैं जो कहूं सो दिशा। ऐसा जो आदमी चाहते हैं अरपको जरा नवाएं जिससे आप ठोक बोलता है उस अदमी की right side पकड जाती रास्ते पर आएं। प्रब मैं नाच्यो वहुत गोताल' । है। और right side पकड़ने से spondylitis (स्पोर्डिलाइटिस ) ओर दुनिया भर की बीमारियाँ हो सकती है। Left side पकड़नेसे angina (हृदय समझने के लिए तो तीक्ष्ण दृष्टि चाहिए और जब ये आप उससे कहिएगा कि भईया अव नचाना बंद कर प्रोर मुझे तो बस अपने आ्रत्म- साक्षात्कार में उतार ले, तब ही उतरते है । इस में रक्त संचार कम होने से होने वाली बीमारी लिए उन्होंने कहा मुझे तु शरणागत हो जा। बगरह हो सकता है और right side पकडने से कृष्ण शरणागत हो जा तो। इस িशुद्धि में वसे गुकाम, सदी इतना ही नहीं और जिसे हम कहते कि asthma (दमा) उसका भी इसमें प्रादुर्भावि हो सकता है । जिस आदमी का वहत काम करता है हुए श्री है पड़ेगा। जब तक ये जागृत नहीं होंगे तब तक आपको विशुद्धि चक्र की तकलीफ़ रहेगी। कृष्ण जो हैं इनको आपकी जागृत करना जो आ्रादमी, और वहुत चीख-चीख के बोलता है और सबसे बहुत दरोगागिरी करता है उस आदमी को जो heart attack (दिल का दौरा) आता है अब विशुद्धि चक्र में भी तौन अंग हैं: right, left गरर बीच में । जब श्री कृष्ण बालशवस्था में जिसे हम active heart attack कहते हैं वो आदमी heart attack (दिल का दौरा) उसको माया थी तब उनका left side में, य हा पर प्रादु आ करके, बहुत लोग तो बोलते ही बोलते साफ हो और जब वो बड़े जाते हैं। भाषण देते ही देत समाप्त, सोधे थे, जब उनका जन्म हुआ जब उतकी वहन विष्णु- भावि था, बाल कृष्ण की तरह होकर के राजा हो गए तो उनका right .side यहाँ पर 'विट्ठल' यहाँ पर कि वो राजा बन करके और द्वारिका में राज्य करने गए। औोर बीचों बीच । क्योंकि इस कदर अ्रपने को वो शब्दों से दूसरों को दबाते हैं उनको नीचा करते हैं, उनके लिए ऐसी- ऐसी बाते कहते हैं जिससे दूसरा आदमी जो है साक्षात् थी कृष्ण जो कि हर हालत में श्री कृष्ण है। इस तरह से इस चक्र के तीन अंग हैं। अब जिनकी आदत बहुत ज्यादा डॉटते की, चिल्लाने की, ची खने की ओर दुसरों को अपने शब्दों में रखने को और दूसरों को बुरी तरह से बात करने की और दूसरों देने की अपने शब्दों से, ऐसी आदते जिस और बहुत हा एकदम आवाक् रहे जाता है। जपादा उद्दण्ड और घमंड और जिसे क हना चाहिए पूरी तरह से arrogant प्रादमी होता है जिसको किसी की भावना का विचार नहीं रहता है ऋतौर उसे वुरीं तरह से डांटता रहता है, ऐसा आदमी किसी भी विमारी से प्रभावित हो सकता है और को दुःख आदमी की होती है उसकी right विशुद्धि पकड़ी जाती है। ओर उससे अनेक रोग उसे हो जाते हैं जिस आदमी की ये आदत है कि सबके सामने गर्दन उसको दूसरी बीनारी जो हो सकती है वो है paralysis, heart attack, paralysis (लकवा, दिल का दौरा, लकवा) । हाथ उसका जकड़ सकता । 1 झुकी रहती है । चाहे जो भी कहो, हाँ भाई ठीक है, े हैright hand उसका जकड़ सकता है । ऐसे निमला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt प्रादमी जोकि ग्रपने को बड़ा विद्वान समझते हैं दिखाई देती बो एक साक्षी है। इसके ओर साक्षी उनकी तो ये हालत हो सकती है कि वो इतने अति के स्वरूप से देखते हैं। बो जो कूछ भी उनको पहले विद्वान हो जाते हैं कि आपकी जो बुद्धि है वही हरेक चीज़ से लगाव था वो हट करके वो देखता आपको चकाने लगती है। वही आपके खिलाफ है, अरे ! ये तो नाट क था । ये तो नाटक टूट रहे हैं। पहले तो a point (प्रापकी होशियारी किसी वक्त पे प्रापको जब शिवाजी महाराज आाये समझ लीजिए स्टेज घोखा देती है) और अपने को, दूसरों को चकाते पर तो इन्होंने भी तलवार निकाल ली । जब वो चकाते आप अपने को चकाने लग जाते हैं पऔर गुस्सा करने लगे तो ये भी गुस्सा करने लगे । ये भी शिवाजी महाराज हो गये जिस वक्त ये नाटक खत्म हुआ, कहने लगे, है भगवान ये तो को मेरे को कसे चकाने लग गया ? और इसमें नाटक था । तो वो नाटक सब खत्म हो जाता है जगह आ जाता है । ये हैं कि जिसमें वो जब चाहें तब वो ठीक भी नहीं हो श्रीकृष्ण की देन है। ये इन्होंने हम। री चेतना में सकते हैं । व्योंकि जैसे ही वो चाहते हैं उनको विशेष स्वरूप दिया है। कि जब वो जागरूक हो फिर वो चकाने वाली बुद्धि फिर से उनको परास्त जाते हैं तो हम साक्षी स्वरूप हो जाते हैं । और कर देती है । ये सब बातें सही हैं । आपको हम दूसरा एक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, क्योंकि लीला- इसको दिखा सकते हैं । बहत लोगों को ऐसे ही मय है कि हमारे अन्दर जो अहंकार और प्रति- बीमारियों में जब हमने मदद करने की कोशिश अहंकार जिससे कि हम हमेशा डरते हैं प्रौर दूसरों हैं, से दबते हैं, दोनों को वो अ पने अन्दर खींच सकते हैं, दोनों को अपने अन्दर समा सकत है । और इसलिए किसी भी परहंका री शआदमी को अराप देख लौजिए। जैसे कि आपने देखा कि दुर्योंधन को बहुत अरहंकार था, उसको उन्होंने ठिकाने लगा दिया। साड़ी द्रोपदी की बढ़ती गयी, वढ़ती गयी, दुर्योधन थक गया, उसका अहकार चकनाचुर । जो भी अहं- है। होली भी एक लीला है । उस व क्त उन्होंने कारी आदमी होता है उसपर इनकी गदा अगर चल पडे तो वो खेल खेल में ऐसा बचा देते हैं कि वो आदमी परास्त हो जाए । उसी प्रकार अगर कोई । किसी भी विवि दव्बू आदमी है, या कोई अादमी जो समाज से दबा हैं, जिसके पास सुदामा जेसे, उसका मान करना, उसके मित्रत्व को इतना बढ़ावा लिया। उन्होंने हर तरह से जितनी भी विधियां देना और उसके लिए इस कद्र दिल भरके दिल और जितनो भो पारस्परिक गंदगियां थीं उनपर खोल के उसके लिए सब कुछ देना, ये भी काम ऐसी तलवार उठायो कि सब चीज को तोड़-ताड़ श्रीकृण का है। उनकी महिमा जितनी गायी जाये करके, नष्ट करके । ये सारी सृष्टि एक लोला है, सो कम है । आज ६००० बर्ष हो गये बो यहां उनके लिए ये लोला है । और जब सहजयोगी पार पधारे थे । उनको किसने जाना ? सिर्फ गीता लिए भी सारी सूुष्टि जो श्र्जन से बतायी और किसी से बतायो नहीं। पर चलती है।Your intelligence cheats you at गया। अब किस लिए दौड़ पको आश्चर्य होता है कि भई मुझी को मैं चक्ा रहा है । मैं दूसरों को चकाने गया था, मैं अपने फिर कोई-कोई बीमारोयां ऐसी लोगों को हो जाती और मनुष्य अपनी की तो हठात् बो कोई भी काम कर लेते हठात् । लेकिन अगर आप कहें अब पेर हटाइये, तो नहीं हो सकता । क्योंकि उनकी स्खुद ही दुद्धि जो है वो परास्त हो गधी है। अब] पने देखा है कि जो बीच में श्रीकृष्ण हैं वो लीलामय हैं। उनके लिए सब सृष्टि एक लीला संसार में आकर जितनी भी विधि वर्गरह से लोगों को बिल्कुल ग्रसित कर दिया था, उसको प्रच्छे से तोड़-फोड़ करके ठी क कर दिया को नहीं छोड़ा। सुदामा को सिर पर चढ़ा लिया । हग्ाहै, जो दरिंद्र उन्होंने जाकरके और विधुर के घर साग खा हो जाते हैं, तत्र उनके निमला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt । देखिए का मतलब होता है कि जो कुछ भी कृष्ण स्वयं । लिखायी किससे ? बो सोचना चाहिए। कृष्ण की लीला हर जगह किस तरह से बन्धनों उनको राधा क्या थी, अाह्व्वाद आदिशक्ति, जो को तोडती है । लिखाई उससे जो व्यास । ब्यास जो दूनिया को आह्वाद दे, जिससे मन वांछित हो, पराशर का लड़का था, लेकिन वास्तव में वो चाहे ये तो अरापके घर एक धोम रनी का लड़का था । और वो भी किसी कोई सब । जमादार हो सचसे गले मिलिए, सबसे कायदे कानून का तहीं, बेंकायदा । इस लिए व्यास से लिखाई कि ऐसा हो आदमी सद्पुरुष सकता है? क्योंकि जाति और उस के बन्धन घर और हम लोग जो है उस वक्त सबको गाली देते हैं ये बहुत कायदे कानून करने वाने लॉगो हो दिखाने अपनी जबान खराब करते हैं। जो जबान श्रीकृष्ण के लिए कि सदपुरुष कहीं भा पेदा हो सकत। है। स पुरुष की जाति, घर्म आदि कुछ नहीं पूछा जाता। लेकिन यही पूछा जाता है कि स पुरुप कौन है ? कुछ जो वरगरह सब कुछ है, ये सब को श्रीकृष्ण की इसको तोड़ने के लिए, इसका सबका निवेध करने आजा से चलत हैं वहां हम लोग गाली गलोच करते के लिए, श्रोकृष्ण ने गीता भी लिखाई तो किससे, हैं। उनकी सूभत्ता, उनकी मधुरता, उनकी मोहकता, तो व्यास से । उनको जाकर लीला रिह ए तो जसे वो हम रे जोवन में आनी चाहिए। लभी हम कहेंगे कहत हैं कि हरेक को उन्होंने, उनकी जो चुहल थो, कि ये होली हुई। जिसमें कि एक तरह से हमने उस चुहल से हरेक को ठीक कर दि या । उनकी अपने सौदर्य को पाया । हमने सौंदर्य को बांटा, चुहुल वडी प्यारी थी. उनकी चुहल बड़ी गहरी थी और लोगों को इसका मज़ा दिया। लेकिन जिस और इतनी तीक्ष्ण थी कि उसके चक्र से कोई बच नहीं सकता । को मेहतर हो, चाहे । ये कृषण की मुख्य इच्छा थी कं से हो जिस लिए उन्होंने होली का अारम्भ किया था । अपना प्रम बांटिए को वजह से ही चल रही है, ये जबान भी हमारी जो सोलह चीज़ हैं जसे नाक, कान बगरह, सब तरीके से गंदगी और बहुत ही नग्नता से होली खेली जाती है, मेरी समझ में नहीं आता कि लोगों ने हरेक चीज का इतना विपय्यास कसे कर दिया और इस कृष्ण को भी कितना ग्रपमा नित कर कज होली है, आप सबको होली मुबारक हो । होली के दिन हमको ये सोचना चाहिए कि कोई से दिया। कल आपकी होली है, आप लोग खूब होली भी गदे काम करने से कृष्णा का कभी भी विचार खेलिए । लेकिन उस कृष्ण को याद रखें, जिसने नहीं आ सकता। गंदगी करना, गालियां देना, आपसे बताया कि अ्रपको उस विराट के अंग और वरगैरह, ये कृष्ण के काम नहीं है। हनको बहुत प्रत्यंग होना है । माधुर्य से एक दूसरे से बात करनी चाहिए । होली "सहजयोग में एक बहुत ही साधारण बात समझने की है कि आप शरत्मा हैं, श्रर जो आ्ररमा नहीं है उससे आपका कोई तातयर्यं नहीं ।" श्री प्राताजी निर्मला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt परमपूज्य श्री माता जी का प्रवचन बोरिवली, बम्बई १५, जनवरी, १६८४ परमेश्वर की सेवा में रहने वाले सभी साधकों को हमारा नमस्का र । और जब तक गुजराती लोग इसमें खड़े नहीं रहेंगे, उनको समाधान नहीं मिलने वाला । श्रीकृष्ण जैसे इतने महान अवत रण, गुजरात में आकर जिन्होंने राज्य किया, उनकी पूजा कहां ज्यादा होती है । तो पंढरपूर में लोग एक-एक महीना पैदल चलकर सबप्रथम मुझे यहो पूछना यहाँ पर मराठी लोग हैं । था कि न जानने वाले कितने वे हाथ ऊपर करें । दो चार वही जाते हैं, विट्टुल-विट्ठन करते हुए उस परमात्मा को पाने के लिए, जिसने गुजरात में और वृ दावन में हिन्दी लोग आरये हैं। ये भी सोचो मराठियों से वले का है । हिन्दी लोग तो भगवान को खोजते ही सारी लीला की, इससे भी गये बीते तो ये उत्त र प्रदेश नहीं हैं। मराठी लोग दादर में इससे दस गुना ज्यादा आये थे । एक दिन मराठी लोग तो भगवान के यहाँ जाकर बेठ जायेंगे और हिन्दी लोग सच यहीं रह जायेंगे। ये लोग चार आदमी आए हुए हैं हिन्दी गुजराती लोग को तो दोलत से मतलव हो मया है, पैंसा कमाने का । मराठी के मुकाबले में बंठो तो बज ऑपको आनन्दि नहीं दे सकती । आपकी जो फिर जाने । भगवान के यहाँ तो पै सा नहीं गिना आत्मा है वही आपको आनन्द दे सकती है । उस जाता है। कितनों को भगवान की खोज है, वहो देखा आत्मा को पाइये। देखिये घरों में झगडे शुरू हो जाते जाता है ना। रात-दिन सारड़ी, कपड़ा, पेसा, मकान, है । विशेषकर, मैं जव London में थी तो उन मोटर सब यही, इसी चकूर में सब रहते हैं। ऐसे लोगों ने मुझे रासलीला में बुलाया और रासलीला कितने यहाँ पर हैं गुज राती लोग कि जो परमात्मा में श्राशचं्य - चकित हो गई कि परमात्मा की रास- को खोजते हैं । मैं तो उन लोगों के लिए भप्राई है, लोला कर रहे थे वो । मुझे देवा करके वहाँ बुलाया जो परमात्मा को खोजते हैं, ना कि जो पैसा और मेरे सामने सब बच्चे वच्चियां शराव पीकर खोजते हैं। उनके लिए बहुत दुनिया में घूम रहे हैं नाच रहे थे, लोग । इसलिए आप मराठी में ही समझे । चार आदमी गिनकर आये हैं। मैं जानती थी, ये यहां नहीं हैं। यहां से ले करके अ्रमेरिका तक कहीं भी जाइये, तो मराठी आदमी खड़ा रहना है भगवान के नाम आपसे हाथ जोड़कर विनती करूंगी क्रि सबको बता पर । चाहे मराठी लोग कुछ भी हों, लड़ाका हों, दोजिए कि परमात्मा का सात्राज्य आने वाला है । झगड़ालू हों, चाहे जो भी हों, लेकिन परमात्मा के ये साम्राज्य नहीं चलने वाला। औ्र उसमें [अगर नाम पर खड़े रहते हैं, ये बात तो माननी पड़ेगी। मुका- के लोग हैं। और उससे भी गये बीते विहार के लोग हैं। प्रब मैं अपको क्या बताऊँ । इसलिए प्रब जागृत होने की बात आई है। ये सब घन-दोलत और ये पर पड़ने पर पागये हैं। उनकी दूर्दशा हो रही है। इस पेसे से दुनिया खराब हो गई। लेकिन अव आप लोग जागिये । जागना बहुत जरूरी है [और मैं [पाना है] तो] जरूरी] है कि परमात्मा को पहले निर्मला योग १८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt पर साक्षात्कारी बनने से पहले मनुष्य में घंटालों में पूमते रहते हैं । वड़े-बड़े organisa इच्छा होनी चाहिए। उसमें इच्छा होनी tions बना लिये हैं । इसमें पसा दों, उसमें पैसा चाहिए कि मैं परमात्मा को प्राप्त करू, मैं अपनी दो। सारे पैसे के धंधे बना रखे हुए हैं । सच्चाई पर आत्मा को जागुत करू। हम लाग कोई अंग्रेज उतरने के लिए जब तक हम लोग तैथार नहीं होंगे, नहीं हैं, हिन्दुस्तानी हैं, हि्दुस्तानी ओर रहेंगे तब तक कोई कार्य नहीं होगा । ये बात नहीं कि हिन्दुस्तानी। ओर भारतवर्ष में अनादि काल से एक आपके गुजरात में या उत्तरप्रदेश में या मध्य प्रदेश ही बात कही गई है कि आपका चित्त कहां है ? साधु संत नहीं। नरसी भगत जैसे वहाँ हुए। अपने चित्त का निरोध करो और उस निरोध से परमात्मा को पाश्रो । सारे चित्त का उसी वक्त खोजिए, अ्रपने आरात्मा को खोजिए । फालतू के गुरु- कितने नरसी भगत आज गुजरात में मिलंगे। एक से एक संत-साधु कबीर, नानक आदि कितने वडे- उत्तमो्तम दर्शन होता है, जब उसमें आत्मा का बड़े साधु संत वह हो गये । ले क्िन सबने जनको प्रकाश अ जाता है। जब यहाँ सारा अ्रबेरा होगा मलियामेट कर दिया। यहाँ तक कि बिहार में यहाँ कुछ भी दिई नहीं देगा। लेकिन जैसे ही जहाँ पर कि उन्होंने 'सूरति' कुण्डलिनी को कहा था। यहाँ प्रकाश आ जयेगा, आप हर चीज़ को पूरी तो वो तम्बाङ्क को 'सुरति' कहते हैं । कहारी यहां तर्ह से देख सकते हैं। इस वात का जागृति हमारे भी बहुत से अाये । नो करी धं। से रहते हैं। लेकिन श्न्दर कब आएगी। पैसे की जागति तो वहत आा गई। और दूसरे सत्ता की 1 दोनों चीज़ इन्सान को नुकसान करती हैं, ये कोई नहीं सोचता। आप नानक साहब ने, नामदेव के तस्व, दोहे जिसे किसी आदमी को १०० रूपया दे दीजिये, वो दुकान पर जायेगा, सीधे समाया, कपोंकि वो आत्म साक्षात्कारी थे उस एक और उसे कोई भाई Minister (मत्री) बना दो जिए तो काम सत्यानाश । अपना भी सत्यानाश करेगा और दूसरों का भी करेगा। उसकी वजह ही आदमी सत्ता प्रौर ऐश्वर्य को इसलिए नहीं भोग सकता, क्योंकि उसके अन्दर भोक्ता ही पेदा नहीं हुआ; उसके अन्दर । कृष्ण ने कहा है कि मैं ही भोक्ता हूँ । उस भोक्ता को जागत करने के लिए ही आत्मा सिद्ध करना पड़ेगा। क्योंकि आत्मा परमात्मा की ओर किसी का वित्त तनहीं। कहते हैं, या पद कहिये, उनको अपने ग्रंथ साहत में सीवे शराब की पद को बहुत सुन्दरता से नामदेव ने कहा । उसको मैं आपके सामने उसके भाषान्तर में वताती है। तो कहा है कि एक छोटा सा लड़का है, पतंग उड़ा रहा है सबसे बात कर रहा है, हंस रहा है, खेल रहा है । सब कुछ चला है। लेकिन उसका चित्त जो है, उस पतंग में है । दूसरा, उन्होंते बताया कि [प्ररत] गई । उन्होंने कंए से अपनी गागर भरी । तीन-तीन गागर यह है, कि अपने सिर पर रखकर चल रही हैं। आपस में हॅँस ही शरपका भीक्ता है। एक चीज़ आप देख लीजिए रही हैं, प्रठल्वेलियां कर रही हैं. बोलते चल रहो हैं। कि हमने एक बड़ी सुन्दर-सी कोई चीज़ खरीद ली। ले किन तरत्त सारा उनका उस गागर पर है । समझ लौजिये, ऐसी मशीन ही हमने खरीद ली तो तीसरा, उन्होंने बताया कि एक मां है, अपने बच्चे हमने सोचा कि यह मशीन ही बड़ी मुल्यवान है । को गोद में रखकर, कभर पर रख कर सारे घर का उसकी अर ध्यान देना चाहिए, उसको सम्भालना गृहकृत्य कर रही है, और कभी झुती है, कभी चा हिए, उसकी परवरिश करनी चाहिए, उसको बैठती है, कभी उठती है, कभी बर्तन उठाती है, देखना चाहिए। सारा समय इसी में हमारा बीत लेकित अगर जाता है कि उस मशान को हम संभाले । पर चित्त उसका सारा उस वच्चे में है। इसी प्रकार एक साक्षात्कारी आदमी का चित्त प्रपनो समझ लीजिए, मशीन हमारी नहीं है, तो हम इसका उपयोग भी करें और इसके लिए हमें कोई आत्मा में होता है । निमंला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt परेशानी भी नहीं। उसको देखना मात्र हो रहा है। जब हम इस चीज़ को पकड़ो, उस चीज़ को पकड़ो,' लालसा में फसे हुए हैं, तब उस लालसा से कौन खींच सकता है । मौर किसी ने भी किसी लालसा दम धकर देती है और उस अंधे पन में बो आदमी] बहकता जाता है । उसको पता नहीं कि वो किस ओर जा रहा है । और जितना जितना कोई सा भी देश पसे से कुछ भी पाया है ? उसका आनन्द कभी नहीं बाला हुआ, जैसे सधसे आज पैसे वाले देवों में तो उठाया। सत्रीडन आप कह सकते हैं और या इसलिए सारा economics ( अ्र्थ-व्यवस्था) आप स्विटजरलैप्ड कह सकते हैं कि सबसे संसार में बना हुआ है कि कोई-सी भी इच्छा रईस देश है वहाँ बड़ी सफाई है, मोटरे अच्छी मनुष्य की तो पूरी हो सकती है, पर सर्व- इच्छा नहीं हैं, घर अच्छे हैं, और पश्चर्य की बात है कि वहां के सब बच्चे इसी चीज़ की planning (योजना) घर बनाना है। घर बना लेगा । उसके वाद कहेगा करते हैं कि किरिस तरह से हम खुदकशी कर ले, घर बना लिया, अब भई, घर से अव एक मोटर श्रात्महस्वा कर ले । तीन लड़कियाँ एक बार मुझे फिर उसे सुझेगा, मिलते आई. तो मैंने उनसे कहा कि बेटे तुम्हें क्या मे री लड़की की शादी करनी है । उसमें रूपया पैसा परेशानी है ? तो कहने लगीं, नहीं, ऐसी तो नहीं, कुछ भी लेकिन है । उनके हाथ से जेमी मुझे चैतन्य की दिखावा होना चाहिए। वो भी हो गया। करते- लहरियां आरा रही थीं, जैसे किसी म रे आदमी की हो, करते तो कितना भी करता जाये, जो कुछ क्रिया जिस तरह से । तो मैंने कहा कि ये अच्छी जवान उसका कोई उसे आनन्द लाभ होता नहीं। प्राज ये दिखने वाली इतनी सुन्दर लड़कियां हैं। इनके अन्दर ऐसी कोन-सी भावना है जिससे ये मुर्दे एक लालची वंदर की तरह मनुष्य का मन एक जैसी, इनके पन्दर से मुझे लहरियाँ आ] रही हैं, जैसे बैटे पूर्ण हो सकतो । याने वो आज कहेगा, मुझे खरीदना है । मोटर खरीद ली । 1 ख चं करना चाहिए। वहुत उसमें, किया, फिर वो चाहिए । वो किया, तो बो चाहिए । चीज़ से दूसरी चीज, दूसरी से तीसरी चीज़, मूर्दे से आती हैं । तब उनसे मैने तुम भिखारी जैसे लगा रहता है । और लोग सोचते क्या रहते हो। कहने लगे हम तोनों भिखारीपन में ही चलता है उसको शर्म भी यहो तथ करते रहते है कि किस तरह से अत्म- नहीं आती कि मैं इस भिखारीपन को खत्म कर हुत्या करें । क्यों भई ! तुम्हारे पास क्या खाने दू । कभी तो बादशाह हो जाऊ । और जैसे-जैसे को नहीं है । नहीं नहीं, व। तो वड़े रईसों की ये चीज़ ज्यादा होने लग जाती है, अरादमी की एक- लड़कियाँ हैं । Aristocratic (ऊंचे) घराने की लड़कियाँ हैं । तुम्हारे पास कोई चीज़ की कमी है ? बच्चा आता है तो एकदम बादशाह जैसी बात तुम्हारा कहीं दिल टूट गया ? ऐसी कोई बात करता है। ये सारो बादशाहत रहतो है, खायेंगे नहीं। सब चीज़ प्रच्छन्न है, प्रच्छन तरीके से सब तो वो खायेंगे, हम यहाँ नहीं बैठेंगे, हम बो नहीं तरह का उनको आराम है। जहां चाहे जाएं, पूरो करंगे। और जैसे-जैसे इन्सान बड़ा होता जाता है तो तरह से उनको स्वतंत्रता है । जैसे प्राजकल ग्रपने इस ग्रानन्द से रहित ची जों के लिए, अपना सारा वच्चे हैं। हम लोगों से लड़ते हैं कि हमें ये घंधा खान, पान, इज्जत, सच्चाई सव कुछ खो देता है। नहीं करने देते, हमें ऐसे डान्स में नहीं जाने देते, और उसको किसी से समझाने से तो ठीक नहीं हमको वो नहीं करने देते, हमको ऐसे कपड़े नहीं होगा। उसको तो बताने से ठीक नहीं होगा, क्यों- पहनने देते। वो सब कर चुके । उन्होंने सब धंधे कि ये कालिख ऐसी चीज है कि वो प्रादमी को एक- कर लिए। सब तरह के कपड़े पहन लिये। सब तरह पूछा, मनुष्य उस दम बादशाहत खत्म हो जाती है । जव पैदा होकर का निर्मला योग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt के डान्स कर लिये। सब तरह के जो कुछ भी विनाश तो इससे दस गुना ज्यादा लोग इकट्ठे होते हैं, के काम हैं, सब करके अब वो बैठे हैं, जा करके और एक भकटके में वो पार नहीं हो सकते, क्योंकि किनारे पर कि भई प्रव तो सब कर लिया, पर बहुत से अन्दर दोष हैं । मेहनत करते हैं और सब आनन्द तो प्राया नहीं। वो आनन्द कहा रह गया ? उसको खोज रहे हैं कि उस आनन्द को खोज । तो उस आनन्द की तलाश में वो देख रहे हैं कि इन परदेव से प्राये है। पर यहाँ दादर से भी लोग सब चीज़ों में कहीं आनन्द नहीं, तो जी के भी क्या आने को तयार नहीं । और यही पास ये रहने करेंगे। एक चीज से दूसरी दूसरी जपह मे तीनरी वाले लोग यहाँ आने को तंयार नहीं । तब इस देश जगह, बन्दर की तरह हम लटकते रहेंगे । पहले की दृर्दशा केपे ठीक होगी । एक शाखा पर, फिर दूसरी शाखा पर, फिर तोसरी शাखा पर । ये हमारा कव खत्म होगा ? इस से तो अच्छा वि अपना जीवन ही खत्म कर दो। मैंने कि ग्राखिर कभी तो भगवान को खोजना चाहिए, कहा, "बेटे जीवन तो खत्म नहीं हो ने वाला । फिर मर खासकर जव कि इतना घोर कलियुग आ गया से तुमको जन्म लेना पड़ेगा।" कहने लगे, 'माँ इस जीवन के झगड़े से हमें से इससे छुड़ा लो । पार होने के बाद भी मेहनत करते हैं। आज आपको पता होना च हिए कि इस देश में दो सौ लोग एक सा के नाते मुझे आश्चय होता हैं है । चारों तरफ मे बादमी tension (तनाव) में छुडा जो । किसो तरह वघ गया है । जबकि देख रहे हैं कि हमारे बच्चे वि।।श की ओर जा रहे हैं, जबकि देख रहे हैं कि सारे संसार में एक आफत मची हुई है, तब तो दूसरा प्रश्न जो हैं, बाहर के देशों को देख कम से कम परमात्मा की बात सोचनी चाहिए या करके हम लोग सोचते हैं कि बड़े वो लोग नहीं ? लेकिन लोग सोचते नहीं हैं। मेरी समझ में सो नहीं। उनसे आता है कि बछ्चे नहीं सोच सकते, लेकिन जो सबसे तो वो लोग रात-दिन परमात्म| का फोटो लगाते हैं उनको डरते हैं। किसी से बात तक नहीं कर सकते। नमस्कार करते हैं, और काफी घर्म से भी रहते और रात दिन शराब पी-पी करके यरोर इस दुनिया है. उनको ये सोचना चाहिए कि कल अपका बेटा से भागना चाहते हैं। चाहते हैं कि हम अपनी ग्रंत ये पूछेगा, कि भई अ।खिर गराप क्यों धर्म करते हैं, ही बंद कर ले । किसी तरह से सारी दुनिया अलग किसलिए अप धर्म से रहते हैं, इससे आपको ब्या परे हट जाए, ओर हम जो हैं, शराब में लाभ होने वाला है, तो शप क्या बतायेंगे ? अापके डूबे रहें, अपने से भागते रहें । हमारे यहाँ कहते हैं पास कोई उत्तर नहीं । आप इसका कोई उत्तर आदमो वी शराब पीता है, जो अपना गम गलत नहीं दे सकते कि आप घर्म में क्यों खड़े हैं, अरप दुख को किसी तरह से मिटाने घर्म से क्यों चल रहे हैं, क्यों आ्राप प्रच्छाई के साथ के लिए शराब पीता है। वहाँ उनका दूख ये है चल रहे हैं, क्या वजह है ? ओर उसकी वजह एक कि उनको कोई दूख नहीं है, दुनियावी । तब तो ही है कि जब आप घर्म में खड़े होते हैं तभी आपका मिलन अ्रात्मा से हो सकता है। जसे कि एक aeroplane (वायूयान) है, समझ लीजिये । screw (पेच) ठीक वह उड़ नहीं सकता । उसी प्रकार आपकी भी उड्डान नहीं चकित है कि जब वो सुनते हैं कि हम प्रा रहे हैं, हो सकती, जब तक आपने अपने को संतुलन में । सुप्रसंस्न औ्र खुशहाल होंगे; दुखी जीव संसार में कोई नहीं । हो जाए, करता है, माने ्रपने देखते हैं कि ये दृनिया है क्या ? ये रात-दिन शराब में पड़े रहते हैं । नहीं तो फिर drugs ( नशोले पदार्थ ) जब तक उसमें लेते हैं। उसी में फंसे रहते हैं, उसमें चलते हैं, लेकिन उनमें और हम लोगों में तो भी अंतर है, वहत बड़ा, जो कि मेरे अनुभव के प्रन्दर है। और मैं प्राशचर्य सब नहीं हो जाते तब तक निमंला योग २१ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt नहीं रखा । इसलिए धर्म की आवश्यकता थी। आप हज़ारों लोग आ करके प्रात्म -साक्षात्कार लेते लोग भी घमं में बैठ गये और धमं में आ गये । ले किन घर्म में अने के बाद भी आख र करना क्या है ? किसलिए इस दूनिया में हम अये हैं ? भगवान ने हम को amoeba (भ्र ण) से इंसान क्यों बनाया ? हुए थे । मैंने कहा हमारी क्या विशेषता है ? उस ओर दष्टि करनी चाहिए। आज जो सारे संसार में प्राग लगी हई कहा, मा हम को तो अत्म-साक्षात्कार दे दो । है, और जो कुछ आफ़ते हैं, उसको बाहर में नहीं हम तो पहुँच नहीं पाये क्यों कि हम लोग दो बस ठीक कर सकते । जब पेड़ बहुत ऊंचा हो जाता है, तब जरूरी होता है कि अप पेड़ की ज डों तक देखे हुम तो यही तुम्ह।रे इतजार में बैठे रहे। मैंने रास्ते कि वहाँ पानी भी है या नहीं, क्या ये अपने भपोत र कहा, लो आत्म-साक्षात्कार । रास्ते में ही वो तक पहुँचा है या नहीं । अगर आपने इस पेड को सिर्फ बाह्य से देखा। उसके अन्दर अगर कई बीमारी हो तो, उसके एक पत्त को ही श्राप treat- ment (उपचार) देना चाहे तो न हीं दे सकते । अपको इसकी जड़ में उतरना चाहिए शर इसकी उसकी चमक है, उसके अन्दर हम खो गये हैं। ओर जड़ में कैसे उत रा जायेगा ? इतने बढ़ हुए इस पेड़े जो हमारे अन्दर, अत्यंत सून्दर जो आत्मा का को तो भ्रप देख सकते हैं लेकिन इसकी जड़ में कैसे उतरेगे ? एक वार तो ऐसा हुआ कि मैं जा रही थी कहीं पर एक गाँव से दूस रे गाँव। तो रास्ते पर ही सब लोग लेटे ये कौन लेट गये हैं यहाँ। गाडी रोकी । सबने हुए पार हो गये क्योंकि घन्य भाग हमारा कि ऐसे लोग थे, अरीर धन्यभाग उनका कि वो परमात्मा को मिले । ये घन्य जीवन, ये महान जीवन आप पा सकते हैं, च हे अप शहर में रह रहे हैं, चाह गव में रह रहे हैं। पर शहर की जो छुक पक हैं और स्वरूप है उसकी ओर हम मुड़ते नहीं। जब हम इस आत्मा को पा लेते हैं, तभी हम जान सकते हैं कि जड़ में उतरने के लिए आपको सुक्ष्म होना हैम कितने महान, गोरवपूर्ण, वैभवशाली और पड़गा। बल्लभाचार्य जैसे इतने महान लोग गुजरात में हो गये और उनको पाने वाले, उनके बारे में सोचने वाले भी बैधव आदि [अनेक हैं। लेकिन कितने लोग ऐसे हैं जो परमात्मा की ओर ौर कृण्डलिनी नाम की शक्ति त्रिकोणाकार दष्टि करते हैं, उससे ये भी हो सकता है कि परदेश में गस्थि में रखी हुई है । और इस त्रिकोण कार तो लोग परमात्मा के साम्राज्य में चले जाय, ओर इस योग भूमि के लोग यहीं चिपक कर रह जाये । ये इछा हमारे अन्दर होना कि हम अरात्मा का साक्षात्कार लें, अत्यंत स्वाभाविक होनी चाहिए । ले किन वो है नहीं, क्योंकि हम स्वाभाविक नहीं सारी इच्छायें अशुद्ध है । अगर शुद्ध होती तो बो हैं, हम नै ११क नहीं हैं, हम लोग तो artificial पूरी होने के बाद हमारे प्रन्दर समाधान और शांति (कृत्रिम) हो गये हैं, कृत्रिम तरीकों से रहते है विराजती । लेकिन क्योंकि हमारे प्रन्दर समाधान कृत्रिम वातचीत में रहते हैं । इसलिए जो स्वाभा - और शांति विराजती नहीं हैं, इसका मतलब है, विक चीज़ है, वो हमारे अन्दर से हट गई हैं, जेसे ये सब अशुद्ध इस्छाएं हैं । और इन सब अशुद्ध महाराष्ट्र इच्छा्ों पर हम मर रहे हैं । लेकिन जो शुद्ध इच्छा चढ़कर, जेसी भी हालत होगी, उस हालत में लोग, हमारे अन्द र, कुण्डलिनी नाम को शक्ति, हमारे अत्यंत सौदर्य के साधक हैं । इस आत्मा को पाने के लिए हमारे परमात्मा ने सर्व विचार करके अन्दर प्रस्थि में वसी हुई कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना पड़ता है। ये कुण्डलिनी शक्ति, इसको शुद्ध इच्छाशक्ति कहना चाहिए, शुद्ध इच्छाशक्ति, माने, बाकी जितनी भी इच्छाये हमारे अन्दर हैं वो के देहातों में जाइये, तो बैलगाड़ी पर निर्मला योग २२ सtte 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt अन्दर स्थित है, उसकी ओर हमारी न जर नहीं। इसको कौन करता है । कोई डॉक्टर इस तो पहली चीज़ है कि प्रा पके अन्दर शुद्ध इच्छा बात को वताये कि कैसे होता है ? इसको होनी चाहिए। अगर आपके अन्दर शुद्ध इच्छा करने वाला कोन है ? इसको करने वाला नहीं है तो आपको मैं कसे पार करा से रती है ? श्रीगणेश है कुण्डलिनी शक्ति के ऊपर, परमार्मा ने इतनी सुन्दर हुमरा है, हमारे अन्दर सुनता, जिसे wisdom हमारे अन्दर व्यवस्था की हुई है कि छः चक्र कहते हैं, बो देता है । हमारी रक्षा करता है. हमें ऊपर ओर एक चक्र नीचे श्रोगणेश का चक् है। श्रीगणे च र जो है, ये इस ये धीगणेश हमारे अन्दर बसा । वनाया है, जो सम्भालता है, हमारी पवित्रता हमें प्रदान करता है । और जिससे हम जानते हैं ये चीज गलत है या उसके अच्छी है, जिसे हन सद्मत, विवेक बुद्धि कहते हैं. को, गौरी कुछ्डलिनी पावित्र्य को संभालता है, अपनी मं क पविज्रता वो भी यही श्रीगणेश हमारे अन्दर देता है । कोई को सम्भालता है । अब गणेश हैं कि नही ? हम ये क्यों नही सो ता कि ये सद्मत विवेक बृद्धि का गरणेश की पूजा तो करते हैं गेश को हम मानते स्रोत केर है, और ये कहाँ से हमारे अन्दर श्राती हैं, फोटो रखते हैं, पर गणेश हैं कि नहीं । किसी है ? हम तो बड़े ऊारी तौर से देखते हैं, और डॉक्टर को प्गर कहिए कि आ्रपके अन्दर गणेश है जितना भी पाश्चार्य शिक्षण है वो बहुत ऊपरी तो वो कभी नहीं म.नेगा, खासक र हिन्दुस्तानी। तोर का या जिसे कहना चाहिए एकदम shallcw परदेशी मान जायेगा पर हिदुस्तानी नहीं मानने (उथला) है, उसमें कोई भी गहनता नहीं कि । तो इन दोनों ज्ञान का जब मेल क्योंकि अंगेजों से भी बढकर हमारे यहां के उसको समभे वाला, डॉक्टर हो गये ये तो अपने को बंग्रेजी सीखने से, होगा, तभी चीज ठीक बै ठेगी। अगज के बाप समझने लग गये अब वो जी गणेश है वो हमारे अन्दर बसा हुआ है और वो हमारे अन्दर जागृत है। उसकी पहुचान क्या है ? जैसे कि सहजयोग से आप जानते हैं कि केंस र ठीक होता है, और हमने अपने President (राष्ट्र पति) साहब सं जीव रेड्री का केत र ठीक किया । अब देखिये हम लोग सोचते नहीं कि जितनी इसमें कोई शक नहीं। आप चिट्टी लिखकर पूछ जीवन्त क्रिया संपार की होती है, उसमें से एक भी लीजिए। वो अमेरिका गये थे। वहां उनका ailure हम नहीं कर सकते । एक फूल से हम फल नहीं असफल हो गया, वो ब व नहीं सकते थे। तब इतफाक बना सकते । औोर पचासों चोज हैं, उनकी तो छोड़ से मैं लन्दन में गई थी, उनसे मिलने । वो तो मैं ही दीजिए । तो हम किस बात का इतना अपना घमन्ड दसरे ही दर्जे में गई थी, अपने पति के साथ । पर के रते हैं ? किस बात में हम अपने को इतना बड़ा किसी को मेरे बारे में मालुमात था, ओर दस मिनट समझते हैं, जबकि हम एक भी फूल से एक फल के अन्दर उनकी तबियत ठीक हो गई भब सहज- नहीं बना सकते, जहाँ करोड़ों के करोडों अपने- योग से कैंसर का रोग कैसे टीक होता है लोग अपने ऋतुओं में बनते रहते हैं । ये प्रवण्ड पर मात्मा कहेंगे ? और किसी चीज से हो ही नहीं सकता । की जो शक्ति है, जो जीवन्त शक्ति है, उस जी वन्त आप कर लीजिए । कारग ये है कि कुण्डलिनी के जागरग से, ये जो छः चक्र हैं ये आलोकित हो जाते हैं, प्रौर जब ये छः चक्र आलोकित हो जाते हैं बचवा अगर वो आदमो गुजराती है तो उसका तो इसमें बसे हुए देवता भी जागृत हो जाते हैं । अब] [आप देख लीजिए कि हमारे left और अंग्रे ज जैसा बनेगा। इसका चयन कोन करता है, right hand को अगर हम इस तरह से करें, तो হक्ति के अनेक लक्षरण हैं । उसमें से पहला लक्षस ये था । देख लीजिए कि जैसे कोई प्रदमी है, उसका बच्चा तो गुजरातो जैसा वनेगा। अंग्रे ज है, तो निर्मला योग २३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt तो ये मेरुदण्ड तैयार हो गया। और ये जो बीच का है, उसमें वया कमाने का है, और क्था करने का हिस्सा है, ये जो हैं, मध्य में यहाँ पर चक्र बनते हैं। एक आदमी को मैंने देखा नहीं कि जो पार हो हैं, left में left sympathetic होती है और गया कितने ही ऐसे organisations है । एक नाम right में right sympathetic। दो तरह को हमारे मैंने कहा, पचसों ऐसे 0rganisations मैंने देखे अन्दर मज्जा व्यवस्था है, जिसे कि हम nervous हैं। मैने तो प्राजतक कोई एक भी ऐसा organi- system (नाड़ी व्यवस्था) कहते हैं। अब ये बीच sation नहीं देवा है कि जिसमें कोई किसी को में जो चक्र तेयार हुआ है, इस चक्र से ही जो हनारी पार कराता है । Special organisations बनते शक्ति आ्राती है, वो सब दूर बहुती है और उसो से जाते हैं। अरे भई भगवान को तुम क्या organise सब जगह लाभ होता है। जब इस चक्र में दोष हो करोगे। हम तो भगवान को भी सोच रहे हैं उसको जाता है, तभी आप वीमार पड़ जाते हैं। अब भी organise करने का कभी President वन। अगर आप बाहर से किसी पेड़ को, उसके फूलों को दिया भगवान को, तो कभी Vice-President व ना या उसके पत्तों को दवा दें तो थोड़ो देर के लिए तो दिया। इसान की बृद्धि इतनी सर्वनाश पर पहुँची ठीक हो जायेगे, फिर सत्यानाश हो जायेगा। पर हृुई है कि वो भगवान को भी ठिकाने लगाने बैठ गया। अगर उसकी जड़ में, उसके जो चक्र है, उन चक्रो क्या उस परमात्मा को जिसने हमें बनाया, जिसने को अगर प्राप ठीक कर दं, तो बीमार पड़ने की ये सारी सुष्टि रची है, उसकी क्या हम organise कोई बात नहीं। और उससे भी ब ढ़क र बात तो कर सकते हैं? बेहुतर तो यह है, कि एक बूंद ये है कि जो ये शक्ति है, ये परमात्मा की शक्ति है, जिसके सहारे हम जन्मते हैं, जिसके में मिल जाओ । वो ग्रपने अाप organised है । सहारे हम बढ़ते हैं, जिसके सहारे हम जीते हैं, जिसके सहारे सारे संसार में यह सुष्टि हुई, वो शक्ति प्रगर हमारे से अव्याहत पूरे समय बहने लग जाये, तब फिर कोनसी बीमारी हमें परा सकती है ? फिर हमें जन्म, मरण, मुत्यु सबसे छुटटी मिल मुझ प्रकर कहते हैं कि माँ हमने तो इतनी भक्ति सकती है । इतना ही नहीं बल्कि हर समय हम एक बड़े ही आनन्द से विचरण करते हैं। जेसे सागर में मिल जाती है, इसी तरह उस सागर अभी तक तो उसकी, परमात्मा की लीला ही को नहीं जानते। उसके कार्यदे, कानून नहीं जानते उसके साम्राज्य ही में नहीं आये । और फिर लोग परमात्मा की की तो भी हमें केसर हो गया। लोग कहते हैं कि परमात्मा में क्यों विश्वास किया जाये, जब उनके भक्त ही इस तरह से मरते हैं । किसी को अब ये तथाकथित या ऐसी ही बातें नहीं हैं । ये कोई बीमारी हो जाती है. किमी को कोई बीमारी असलियत है, और ये चीजें सब हमारे अन्दर हैं । लेकिन हमारा विश्वास ऐसे आदमी पर नहीं होता जो है। किसो पर परेशानी आ जाती है । लेकिन रूपया पंसा नहीं लेता, जिसका कोई organi- श्री कृष्ण ने कहा है कि "योग क्षम वहम्यहम् sation (संस्था) नहीं होता घुमता है । अज यहाँ प्रोग्राम दिया गया। ऐसे हर समय जो परमात्मा से एकाकार हो, उनसे इंसान पर हमारा विश्वास नहीं होता है । हमारा सम्बन्धित हो, तब वो योग कराके और फिर क्षेम तो विश्वास ऐसे आदमी पर होता है, जो कुछ नाटक करते हैं । पहले योग घटित होना चाहिए और खेलता है, एक organisation (संस्था) बना लिया। फिर क्षेम होता है। ये तो नहीं कि आप मंदिर अब उसमें पैसे दो, स्वामोनारायण । कितने लोग में गये, पांच रूपये रख दिये, काम खत्म । भगवान उसमें पागल हो रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आता जी अपने हाथ में ग्रा गये। बहत से लोग है, हो जाती है, या तो किसी को कोई दूखख हो जाता जो धूम्रकेतू जेसा भऔोर जब नित्य अरभियुक्त हो । तब । मतलब निर्मला योग २४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt गणेश जी को लगा दिया, बेठ जाओ। जैसे कोई का सार। brain (मस्तिषक) श्रीकृष्ण हैं। तो आप उनके नोकर हैं। उनके घर सम्हालने के लिए समझ सकते हैं कि जितना भी जो आपका brain है और सब चीज के लिए यहां बैठ जाओो । अरे वो उन्हीं के चरणों की घूल के बराब र है । तो उसको उसको समझने के लिए वुद्धि चातुर्य चाहिए । पगर आप में पूना, अचन। समझता चाहिए। पर उस पूजा, चातुर्य नहों है तो आप समझ नहीं सकते, अर्चना का भी कोई प्रथं नहों लगेगा, जव तक उनकी चातुरी । तो उससे ये कहा कि तुम जो कुछ आपका connection (यो) ही नहीं । जसे समझ कम करो वो परमात्मा के हृवाले करो। मैं इसका लोजिए इसका ( माइक का) connection नहीं एक किस्सा ऐसा सुनाती है, कि एक बेटा वाहर हो, तो यहां मैं कितना भी चिल्लाऊ, उसमें से तो बैठा है और खुब जोर से हटर मार रहा है। और आवाज जाने वाली नहीं। पहले connection धोड़ा पीछे में, गाड़ी आगे में । उसका बाप अराता तो होना चाहिए। जब तक हुमारा परमात्मा है। उससे कहता है, "बेटा, घोड़ा शगे कर लो तब ना गाडी चलेगी।" वो कहता है, "नहीं, मैं यहीं बेठकर हमारे पूजा में कुछ है, ना ।" अच्छा ठीक, तू घोड़े को मारता रह यहीं बठर, वित्त अपना घोड़े पर रखे हुए । हो ही नही सकता । ऐसो असम्भव बात कह डाली कि जिससे मनुष्य महामूख बन जाए। और वही आप लोग बन गये जब उन्होंने कहा कि सब कर्म करो पौर भगवान पर छोड़ो। आप छोड़ ही परमात्मा हैं वाबा वो भगवान हैं। हूँ, 1 से connection नहीं होगा तब तक तिसो चीज में घोड़े को मारूंगा कुछ लगता है । जेमें कृष्ण ने हो खुद कहा है, वो भक्ति मार्ग में आादमी थे. और वो जानते थे कि इन्सान सोधे उ गली में ठीक नहीं आयेगा । टेढी उ गवी से उन्होंने कहा है। वो बहुत होशियार नहीं सकते । जब तक आप पार नहीं होगे, आप नहीं सकते । ज तक आप पार नहीं होंगे, आप ही घी निकलेगा इन्सान से । बात कही। एक नहीं, दो तीन टेढ़ी बात ऐसी गीता में तो कह दीं जो खोपड़ी में लोगों के नहीं प्रा सकतीं । पहली तो बात उन्होंने ये कही कि बेटे बनाना पड़ता है। तो उन्होंने कहा सब कर्म करो । तुम परमात्मा को पाओ, ज्ञान को पाओ । ज्ञान को पाना माने बुद्धि में किताबे पढ़ना न हीं । ज्ञान के माने, आपका जो central nervous system है उसमें जाता जाये, जिसे मराठी में जावीव' हैं। उसको जो जाना जाये, माने अत्मा को पात । कहता है कि भगबान तू ही सब काम करता है। क्योंकि दुकानदार थे नहीं। इसलिए वढ़िया चीज मैने कहा कल तुम murder (हत्या) करोगे तो भी पहले कह दो। दुकानदार पहले घटिया से बढिया भगवान ही करता है ? सब चीज़ भगवान करता पर जाता है । पर परमात्मा थे तो उन्होंने पहले ह वढिया चीज कह दी कि इस को पाओ। अर्जन ने उनमे शंका की तो उन्होंने कहा कि इसको समझाने का तरीका और है । ये सोंवें उगली परमात्मा पर डालता है, अपनी दिशा से घी नहीं निकल सकता । आप समझने की कोशिश करिये, बहुत बुद्धि समझने के लिए बूद्धि चातुर्य चाहिए क्योंकि व्रिराट तो उन्होंते एक टेढ़ी अकम में उतर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि इन्सान जब सीधे रास्ते नहीं चलता, तो उसको बेवकूफ़ माताजी में सारा बहुत लग आते है मेरे पास । " कम करता हूँ और मैं सब भगवान पर छोड़ता हैं। मैंने कहा, कसे छोड़ते हो ? कौन-सा मार्ग है ? कौनसा तरीका है? नहीं, मतलब ये है कि मैं कहते है, ये कोई तरीका हुा ? बृद्धि से आप अगर समझ लं कि भगवान आपकी जेब में है तो गलत बात है। ऐसा कहना कि जो भी मैं कर्म करता है, ले किन भूल कर देना है [अपने को गलत तरीके पर डाल देना होंगे, चातुर्यं वाहिए । क्ृष्ण को हैं । जब तक अप आरत्मा से एकाकार नहीं तब तक आप जो भी कर्म करते हैं, उसका भोग निमंला योग २५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt आपके ऊपर है, क्योंकि आपका प्रहंकार अभी बना चक्र है । बहत से लोग अपने घर में बैठकर बहुत जोर जोर से भजन गायगे, जिससे सब लोग, सो न सकें । दिखाने के लिए कि हम बड़े भारी भगत है यहाँ प्रहंकार को आप देखिये, कहाँ पर आ्पकी भगवान के. ये हरे रामा वाले वहाँ पर बद्तमीजी हुँआ है । स्थिति, कहां अ्हंकार आपके सामने । जो भी आप करते हैं, प्रौक्षफोर्ड स्ट्रीट में । धोती पहननी नहीं कार्य करते हैं, उसमें निकलता हूुआ धुंआ आपको अती, और बाजार में बोदो मिलती है। बाल अहंकार में डालता है। कोई अआदमी कहे कि मुझे मंडवा कर वहाँ पर ऐसी बोदी चिपकाते हैं, और वाल नहीं मडबाये तो ऊर से प्लास्टिक लगाके के सिवाय मनुष्य हो ही नहीं सकता। उसके अन्दर तमाशा करने के लिए ऐसे, और ऊपर से बोदी लगाते हैं। ओर वसफो्ड स्ट्रीट में वहाँ भरे बाजार लेकिन अरहंकार होता है । जब कुण्डलिनी का में खड़े होकर डान्स करते हैं । औरते भी, उनकी जागरण होता है और जब अज्ञाचक़ को वो धोती भी छुटती है साड़ी भी छूटती है। वेबकु कहीं भेदती है, और वहां जब महाविष्णु का जागरण की, और कहें हम परमात्मा को भज रहे हैं। 'हरे होता है, तभी अहंकार और प्रतिप्रहंकार दोनों राम हरे कृष्ण' कर रहे हैं । ये 'हरे राम, हरे खिच जाते हैं। मनस और अहंकार दोनों खिचने कृष्ण करने का कोई तरीका हूप्रा ? कोई उसमें की बजह से हो, यहाँ की जो जगह है। जिसे कि किसी भी तरह की इज्जत तहीं हुई, भगवान 'ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं, वो खुल जाता है। और जब तक उनको बेडज्जत करता है, श्र उन सबको यहाँ कुण्डलिनी का जागरण हो करके आप पार नहीं केसर हो जाता है throat (गले) में, जो कि श्रीकृष्ण का स्थान है। फिर मेरे पास आते हैं कि मां हमें करता है परमात्मा पर छोड़ता है, ये गलत बात ठीक कर दो। ओर मेरे पास उनके वो भक्ति है। फिर मैं भक्ति करता है, भगवान की भक्ति। वेदान्त आये थे। तो मुझे कहने लगे कि आपने "कुछ भक्ति भी भगवान ने कह दिया, साफ-साफ । छोड़ा ही नहीं माँ। प्रब] तो मर गये बेचारे, कुछ साफ कहा । नहीं कहा, क्योंकि निर्बवदधों को नहीं छोड़ा ही नहीं, माँ।" आप तो सारे ऐश्वर्य में बैठे हैं, और भगवान की बात कसे करते हैं? मैने कहा, आयेगा । साफ कह दिया कि 'अनन्य' भक्ति करो कोई मेरा ऐड्वर्य- वैश्वयं नहीं हैं। मैं तो प्रपने ऐश्वर्य भाई। उन्होंने कहा कि पुष्पम, पत्रम, फलम, तोयम, में हैं जो प्रन्दर का है । वो तो मेरे पति और ससुराल ऐश्वर्य है, उसमें बैठो हुई हूँ । मुझे इससे कोई कि 'अनन्य भक्ति करो । मतलव नहीं। मैंने कहा, मैं जब कुछ पकड़ा ही, नहीं तो मैं क्या छोड़ने वाली हैं ? मैंने कोई चीज tion (योग) परमात्मा से हो जाता है, तभी वह पकड़ी नहीं है। अच्छा, मैंने कहा, देख भाई, तुमको भक्ति है, नहीं तो अ्र्थ क्या है ? अगर टेलीफोन में इस घर में कोई सी भी चीज़ ऐसी दिखाई दी, या श्रापका Connection नहीं है तो आप टेलीफोन मेरे ऊपर में, जो कि उस श्रोकृष्ण के पांवि के घुल के बराबर हो ? और होनी चाहिए, तो तुम उठा लो । देखने लगे इधर-उधर, इधर- उधर । उठाय, इसलिए लोग विठ्ठल, विठ्ठल, विट्ठल कहते, मैंने कहा कोई सी भी चीज़ मांग लो, मगर उनके पांव के धुल के वरावर होती चाहिए । मैंने कहा, उनकी विशुद्धि पकड़ती हैं, जो श्रीकृषण का फिर तुमने छोड़ा क्या है ? धूल, पत्थर, मिट्टो क्या बिलकुल अहंकार नहीं, हो हो नहीं सकता। अरहकार अरहुंकार होगा। किसी में ज्यादा, किसी में कम । होंगे तब तक ये कहना कि मैं जो भी कम क सें समझ में आने वाला पर सृबूद्ध को समझ जो भी कुछ होगा, वो मैं लुंगा । देने के time कहते हैं क 'अनत्य माने जव दूसरा कोई नहीं होता है। माने जब आपका connec- किसको करगे? कहते चले जा रहे हैं । विट्ठल तो गया। घुन निर्मता योग २६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt छोड़ा? दछोड़ दिया, हमने तमाशे करने के लिए, में हैं। सच्चाई से परमात्मा को जाना जाता है । दिखाने के लिए । मारे दिखाने के नंगे होकर घुम प्रपने में सच्चाई रखो, कम से कम । जिसने प्रपने रहे हैं। दिखाने के लिए ये कर रहे हैं । अन्दर तो में सच्चाई रखी है उसमें परमात्मा जरूर प्रगट परमात्मा की कोई भी शक्ति नहीं हैं। होंगे । और ये दिन आ गये हैं, ये विशेष दिन आ जिस आदमी के अ्रन्दर परमात्मा की शक्ति होती है, यदि हाथ रख दे. तो आदमी ठीक हो गये हैं ? जबक्ति आप जानते हैं, नल-दमयन्ती का जायेगा, नजर कर दे ठीक हो जायेगा, आकर खडा हो जाये तो ठीक हो जा येा। सरे मिल गया । नल और दमयन्ती का विछोडा हुआा था. अशुभ काम संसार में हो रहे हैं, ग्रौर ता नल कोल से बहुत नाराज था। उसने उसकी अपने को बड़े भगवान के भगत समभते हैं, और कहते हैं कि हमने ये परमात्मा का काम किया, हो डालगां क्योंकि तुने मेरे साथ इतनी । वो परमात्मा का काम किया। ये सारे काम परमात्मा के नहीं, ये भाई न मुझे मार डाल में तुझे मना नहीं करता से लोगों में ये भी बौमारी है, जब हो जाये तो social work (सनाज कार्य / करना । एक सराद वड़ा सुन्दर है कि नल को एक बार कलि गर्दन दबोच दी और कहा कि अव तो मैं तुझे मार दुष्टता की महत्म्य नहीं कि तू इस संसार में रहे तेरा नाश ही हो जाना चाहिए। तो कलि ने कहा, बहुत भाई तू मनुष्य के काम हैं । जैसे बहुत पर एक बात है कि मेरा अभो महात्म्य है। कहने लग कत्ा महात्म्प है वताश्रो, तुम्हारा क्या महात्म्य है ? जब तुम संसार में प्राते हो तो लोग भ्रान्त हो जाते हैं। आपस] में झगडा हो जाता है, परेशानी हो जाती है । भुठ हो जाते हैं, कृत्रिम हो जाते हैं । गरदन काटते हैं। तुम्हारा कोई फ़ायदा नहीं। ये भी एक नमुना होता है । उससे फिर ये कि social work किया तो हार पहनाओ उनको, ्र उनकी बड़ी इज्जत करो और उनको कुछ रूपया पेसा चढ़ाओ। ज्यादातर लोग तो social work पेसा ही करते खाने का है। वो नहीं किया तो वाकी का sOcial work भी तुम इन्सान को राक्षस बना देते हो। ओर बो अंधे- व्या होता है ? जैसे प्रब है कि कोई दूसरा ही नहीं रह जाता । जब मेरी ही उ गलौ है और इसको दुख है, और इस उ गली को मैं अगर ठीक कर रही हैं, तो मैं कौनसा social work कर रह्ही साधू संत हैं। अगर आप दूसरे कोई हैं ही नही । जब एक विराट के शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं, तो उसका कोन social work प्राप करिएगा । अरपनी ही तो आप ठीक कर रहे हैं । उसमें कीनसा social work हो सकता है। फिर उसके लिए तमगे देते हैं अर उसमें शांति के बड़े ये देते हैं कि शान्ति इन्होंने दी, तो एक इनके लिए शान्ति की पताका लगाओं इनके सिर पर । हालांकि अगर उस इन्सान के हृदय झांक कर प देखें, उसके मन में जरा भी शान्ति मैं है। मेरा कोई लेना-देना आपसे नहीं बनता है । नहीं। वह श्रादमी बहुत अशांत है इसलिए इन हाँ, मां का प्यार जरूर है। और चाहेँगी कि आप झठो चीज़ों में परमात्मा नहीं । परमात्मा सच्चाई सब पार हो जाय। आपके अन्दर बसी हुई कुण्ड- . पन में प्रपना बहकता है। उसको ये समझ ही नहीं आता कि बो क्या करे । कहा, मेरी महारम्य है कि जिस वक्त मेरा राज्य संसार में ्येगी, उसे घूम रहे हैं, ये की तरह से रहेंगे, और उसी वक्त उनका कल्याण होगा। उसी वक्त उनको । आज वही साधु संत आप लोग हुए हैं. ये समझ लेना चाहिए। वक्त जो ये गिरि कंदराओं में एक से।धारण गृहस्थ आत्मा प्राप्त होगी बनकर यहां अये पूर्व- कोई विशेष ही कृपा है, जिसमें आप अराये हैं। जन्म का संचित है इसलिए आये हैं। उस पूर्वजन्म के सचित को आपको [आज पा लेना है । %2: जैसे कि एक Cashier बैंके में होता है, ऐसे ही निर्मला योग २७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt लिनी जागृत हो जाये । ये अत्यंत हृदय से मैं उसी प्रकार ऐसे लोगों की हालत हो जाती है । चाहँगी, मेरा कोई म्ाप पर उपकार नहीं है। मैंने कुछ आपके साथ विशेषता नहीं करी । जो ग्रापकी महाराष्ट्र को जो धरती है, इसे महाराष्ट्र इसलिए अपनी कुण्डलिनी है और आपकी अपनी प्रात्म है, कहा गया है कि यहाँ साढ़ तीन वलय में कुण्डलिनी उस कुण्डलिनी का जागरण करके आपको श्रगर मैंने आपका ही घन दे दिया, तो उस में कौनसी विशेषता है ? इसमें कोई अहंकार केरने की बात नहीं है । वहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि मां आरप ही ये काम क्यों करती हैं ? मैंने कहा बेटे तुम करो, के दशांन होने वाले हैं, इसलिए अ्राप अय हुए हैं । और उस पर मेहतत करूंगी लेकिन इसलिए इस धरती पर, विशेषकर यह घरती, साक्षात बैठी हुई हैं । सारे विश्व की कुण्डलिनी इस ] महाराषट् में है। विशेष वंदनीय जगह आाप श्राये] हुए हैं। और जो भी आप जहाँ से भी आये हैं, चाहे गुजरात से आये है, जाहे बंगाल से आये हैं, ये ६हां पर प्रापको इस पूरण्यभूमि में विक्ेष रूप से परमात्मा मैं बड़ी खुश होऊंगी । मेरे अपने वच्चे हैं, वच्चों के बच्चे हैं। उन सबको छोड़कर मैं जगलों में घ मती ्राम जो जब इस पर प्राये और धीमीता जो कि है । अगर तुम ये काम कर लो तो मैं तो छुट्टी कर जाऊ । मुझे बड़ी खुशी होगी। लेकिन कर नहीं सकते ना। बड़ी मेहनत का काम है। मेहनत औी है प्यार भी है और इतना इसके लिए जान लगानी पड़ती है । क्या तुम लगा लोगे? अगर लगा सकते हो तो लगा लो। मैं तो बड़ी खुश है । तुम आकेर वैठो, तुम्हारा बरण हो जाये। इससे भी मोटा हार गोरव है, उसके प्रति नजर करें और सोच कि मैं तुमको पहना दूंगी। लेकिन हो नहीं सकता । क्या करू ? भगवान ने मेरे ही सिर पर ये काम भेज दिया। उसमें इतना अहकार क्यों दुखी होता है तुम्हारा? और जिस वक्त तुम पार हो जाओगे, घर में हाथी झुमते हों, कोई जरूरत नहीं । जब तक तुम भी ये काम कर सकते हो। तुम भी दूसरों को पार करा सकते हो, तुम भी दूसरों को दे सकते हो । पर एक तरह से जो बहुत ही उच्छ - रख लता प्रौर shallowness (उथलापन) हमारी life (जीवन) में श्रा में भी, इस कदर जो हम लोग जो विलकुल (भाषण) मेरे हो चुके हैं, उच्छ खल और विलकुल ही ऊपर के सतह पर रहने ना जाने कितने इंग्लिश में हुए हैं । इसके वाले लोग हैं, उनके अन्दर इस शक्ति का जागरण अलावा अमेरिका और हर जगह मैं बोलती रहती कठिन हो जाता है क्योकि वो विलकूल ही है। हर जगह मेरे श्रनेक lectures हो चुके है । गहनता से दूर, जैसे कि उखड़े हुए लोग या उखड़ा एक lecture में पूरी बात हप्रा एक पेड़ इधर से उघर पानी के प्रवाह से बहता लेकिन यह नहीं कि [अभी] [किसी ओर का lecture रहता है, कह अ्रटकता है, कहीं लगता हैं, कहीं चल रहा है, फिर माताजी का lecture दौड़ता है, उसको अपनी कोई भारता नहीं होती, और चले साक्षात आदिशक्ति थीं, उन्होंने सब अपने पांव के जूते उतार दिये थे, ओर नंगे पैर इस भूमि पर उन्होंने चला। लोग इसको समझ ही नहीं पाते कि , कुं नगे पेर श्री राम चलते थे । कितनो महान भूमि पर आप बैठे हुए हैं। फिर इस भूमि के उपयोग से आप कहां से कहां तक पहुँच सकते हैं। अपने अन्दर की जो महानता है, अपने अन्दर का जो 1. हम भी इसे पा सकते हैं। हम भा आत्मा हैं, हमारे अन्दर सब शक्ति है। तो क्यों ना पाय ? इसकी जरूर त नहीं कि अप बड़े-बड़े रईस हों, या श्रापके पप मां के में हैं, काम खत्म । उससे ज्यादा आपको कुछ करने का नही है । और अ्राशा है आज भी यह कार्य हो सकता है । हुृदय सहजयोग के बारे में हजारों lectures लन्दन में तो गई है, बचचों कहने की नहीं है । लिया सुन । ये बहुत गलत बात है । क्योंकि निर्मला योग २८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt जागृति के बाद में जमना बहुत जरूरी है । जब मान्यता है मैं मनुष्य है । मैें इतनी योनियों में से आपकी जागति हो जाती है, उसके बाद आपिको आज मनुष्य बनकर प्रया हैं। और मुझे आत्मा जमना चाहिए । जैसे अंकुर निकलने के बाद बीज बनने का है । और इस अआत्मा के प्रकाश में मुझे जम जाता है। बीज जमने के बाद ही उसका पेड़ चलने का है, जिससे कि मैं परमात्मा के साम्राज्य हो सकता है । नहीं तो उस का फलस्वरूप कुछ नहीं में अन-त जीवन और अनन्तकाल तक आनन्द में है और सब व्यर्थ हो जाता है। इसलिए मेरी हाथ रहें । जोड़कर विनती है, आप सबको वहुत है कि कृपया आपके मूहल्ले की, अपकी सारी व्यवस्था में सबमें अपनी आ्स्था और अपने प्रति शरादर होना आमूल रद्दोबदल आरा जायेगा । चाहिए। अपने जोवन के प्रति एक तरह की नहीं जब हम लोग वो बहुत बड़ा स्वरशं- दिन मान्यता का विचार होना चाहिए । इसकी कयो देखेगे । इससे अापके घर की, आपके बच्चों की, और वो दिन दूर ८ best compli ments f=০ : INDCON UDYOG 407 MANSAROVER, 90, NEHRU PLACE, NEW DELHI-110019 निर्मला योग २६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt ै भि श्री माताजी निर्मला देवी के १०८ नाम श्री ललित सहल्नाम में दिये १००० नामों में से १०८ नाम नीचे दिये हैं । ये नाम देवी के विस्तीर्ण क्षेत्र के केवल कतिपय पहलुओं पर संकेत करते हैं । मन्त्रोच्चारण के समय चित्त माताजी श्री निर्मला देवी पर केन्द्रित रहे । उच्चारण विधि : रिक्त स्थान पर नाम का उच्चारण करे । न मो नमः 1 ॐ साक्षात् भक्ति प्रिया श्री माताजी मक्ति गम्या श्री महाराज्ञी देवकार्य समुद्यता शर्म दायिनी निराधारा अरकुला निरंजना विष्णु ग्रन्थिविभेदिनी निर्लेपा भवानी निर्मला योग ३० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt निर्विकल्पा निर्मला निरावाधा नিषकलंका निर्नाशा नित्या निष्क्रिया निराकारा निषपरिग्रहा निराकुला निर्गुणा निस्तुला नीलचिकुरर निषकला क निरपाया निषकामा निरत्यया निरूपप्लवा नित्य मुक्ता सुखप्रदा सांद्र करुणा निर्विकारा निराश्रया महा देवी निरंतरा महा पूज्या निष्कारणा महापातक नाशिनी महाशक्तिः निरूपाधि: निरीश्वरा महामाया महारतिः नीरागा विश्वरूपन निर्मदा निश्चिन्ता पद्मासना भगवती निरहंकारा निर्मोहा रक्षाकरी निर्ममा राक्षसध्नी परमेश्वरी निष रापा नित्ययौवना निःसंशया निर्भवा पुण्यलभ्या ३१ नि मंला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt चय रूपा विश्वग्रासा पराशक्ति: स्वस्था गुरूमूर्तिः स्वभावमधुरा धोरसमचिता दिशक्तिः योगदा परमोदारा एकाकिनी হश्वती लोकातीता सुखाराध्या शोभना सुलभागतिः शमात्मिका लीलाविनोदनी सत्चित्आरनन्द रूपिणी श्री सदाशिव लज्जा शुभकरी पुष्टि: चण्डिका चंद्रनिभा त्रिगुणात्मिका महती रविप्रख्या पावनाकृतिः प्रागरूविणी विश्वगर्भा चित्शक्तिः परमाणुः पाशहुंती विश्वसाक्षिणो वीरमाता विमला गम्भीरा वरदा गविता विलासिनी क्षिप्रप्रसादिनी विजया सुधास्त्र तिः वण्दारु जन वरत्सला धर्माधारा सहजयोग दायिनी निर्मला योग ३२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt जय श्री माता जी !F गीत हे माँ ! ते री शरण जो आता है, निभय जाता है। बह हो है. दुख-दर्द जाता भूल आनन्द म्न हो जाता है । स्वच्छन्द विचरता है जग में, गीत प्रेम के गाता है। है, है । जहाँ जहां जाता प्रमानन्द बरसाता निलिप्त रहता सुख-दुख में, जीवन सहज बनाता है। *मैं और मेरा नहीं रह जाता, तेरा हो जाता हैं। जब सब कुछ पा जाता सहज में, जोवन धन्य हो जाता है। दिव्य देखता है करण करण में, दिव्यता से भर जाता है। मुक्त उन्मुक्त हो जाता है, जो तुझमें मिल जाता है । प्रेमामृत करता, का पान अमर हो जाता है। वह ॐ शांति -सी० एल० पटेल निर्मला योग तृतीय कवर ho 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36959/81 जय श्री माताजी निमंला भजलो माँ मनवा निमंल निर्मल होई बाग लगायो महल बनायो मेरी तेरी छोड़ दे मनव ये होई मिथ्या सब माँ निर्मला भजलो मनवा निर्मल निरमल होई मन हो मन्दिर मस्जिद है ही ডयोती से ज्योति जलालो] मनवा निमल है गुरूढ्वारा मन निर्मल होई मां निरमंला भजलो मतरवां निर्मल होई निमल ना जानूं मैं वेद पूराण में गीता ना जानू ते री शरण में गके मनवां निरमल निर्मल होई माँ निर्मला भजलो मनवो निर्मल निरमंल होई जनम जनम से भटके मनवां पायो माँ अरब तू छग छर की तकीमत करले ते री हो होई माँ माँ निर्मला भजलो मनर्वा निमंल निमल होई जय श्री माताजी -मनोमा पान्डेय Edited & Publisled by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, Newv Delhi-110002. One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign [By Airmail£7 5 14 1 शत