fनिर्मला योग नवम्बर -दिसम्बर १६८४ द्विमासिक वेष ३ अक १६ पुन परी क्षमा प्रार्थना निर्दोषी मैं आपका, मैं निर्दोषी बालक बालक फिर भी यदि कुछ भूल हुई हो, क्षमा करें हे क्षमादायिनी क्षमा करें हे प्रभु गणेश जी, क्षमा करें कुण्डलिनी मां जी क्षमा कर है मातु सरस्वती, क्षमा कर मा लक्ष्मी जी क्षमा करें हे प्रभू शेष जी, क्षमा करें इस बालक को- मैं निर्दोषी आपका मैं निर्दोषी बालक बालक क्षमा करें गुरु दत्तात्रेय जो क्षमा करें माँ पार्वती जी क्षमा करें जगदम्बे माँ जी, क्षमा क्षमा करें विष्णु ग्रंथिविभेदिनी, क्षमा करें इस बालक को-२ करें माँ सीता जी मैं निर्दोषी बालक आपका. में निर्दोषी बालक क्षमा करें हैं प्रभु विराट जी क्षमा करें मा राधा जी क्षमा करें हें यशोदा मां जी, ६्षमा करें विष्णु माया जी क्षमा करें हंसवक़ स्वामिनी, क्षमा करें इस बालक को-३ मैं निर्दोषी बालक आपका, मैं निर्दोषी बालक क्षमा करें प्रभु बुद्ध महावीर जी, क्षमा करें माँ मेरी जी क्षमा करें हे मोक्षप्रदायिनी, क्षमा करें सहब्रार स्वामिनी जी क्षमा करें हें निर्मल माँ जी, क्षमा करें इस बालक को-४ मैं निर्दोषी मैं निर्दोषी वालक आपका, बालक फिर भी यदि कुछ भूल हुई हो, क्षमा कर हें क्षमादायिनी -भरार० आर०] सिंह, पुणे हं শ सम्पादकीय बुंद अपने को सागर में समाहित करके ही सागर को समझ सकता है तथा उसका आनन्द उठा सकता है । उसी प्रकार परमात्मा को समझने के लिए आत्मा शरौर परमात्मा का एकीकरण आवश्यक है। यह कार्य श्री माताजी वर्षों से कर रही हैं । हम सभी का यह परम पुनीत कर्त्तव्य है कि कुण्डलिनी जागृति द्वारा स्वयं प्पने आ्रापको उस परमपिता परमेश्वर में समाहित करके परमानन्द को प्राप्त करें तथा इस कार्य में परमपूज्य परमेश्वरी आदिशक्ति श्री माताजी के कार्य में हर सम्मव सहायता के लिए अपने आपको सम्मापत करे । यही हमारी साधना और भक्ति है । क ओम त्वमेव साक्षात् परम परमेश्वरी आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः । निर्मला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक माताजी श्री निर्मला देवी : परमपूज्य : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पैट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ : लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वन्क्रुवर, बी. सी. बी ५ जैड ३ केर यू .एस.ए. का यू के. श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन सर्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५पी. एच. श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन बोरीवली (पश्चिमी) वम्बई-४००००२ भारत इस अंक में ' १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. प्रचार कार्य ५. सहजयोग प्रर कल्की शक्ति (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ६. निर्मल वाणी पृष्ठ ३ १० १६ ता २२ ७. आत्म कथ्य २३ ८. कविता २४ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर ६. भजन १०. क्षमा प्रार्थना ११. मानव चेतना यंत्र १२. अ्रनन्त जीवन के गीत ला पर नपूज्य श्री माताजी का प्रवचन सहज मंदिर, नई दिल्ली ७ মई १६८३ आपका चित्त अगर इन हैं। तो पहली बात यह है कि चित्त को अ्रपनी (वाह्य) चीज़ों में उलभा रहेगा, तो ठीक वात नहीं है । इसलिए इन सब चीजों को छोड़कर अपने चित्त को प्रपने जाएगा। हृदय मैं लाते हुए प्रात्मा की ओर करें । चित्त श्रात्मा की चाहिए। ध्यान-धारणी करने से आपका चित्त आरत्मा में रखें । माने जिस चीज़ में हम बहुत ज्यादा उलभे हुए हैं उसको आप हटा लें, नहीं ती ये चित्त जो है वह पूरी तरह से इधर-उधर हो उसके लिए आपको ध्यान-धारणा करनी ओर रखें। कभी कभो हम सोचते हैं कि हम अगर ज्यादा रूपया कमा ले तो बड़ा भारी कमाल कर की अर देखते हैं, जब आत्मा चित्त हो जाती है देंगे । लेकिन जो लोग बहुत रूपया कमाते हैं, तो आप आत्मा में साक्षीस्वरूप हो जाते हैं। हर आप उनकी हालत देखिए । यह नहीं कि आप चीज आपको काफी बड़ी dimension (गहनता) रूपया मत कमाइए। लेकिन आपके जीवन का लक्ष्य रूपया कमाना नहीं है। आपके जीवन का लक्ष्य अपनी आत्मा को पाना है। अआत्मा को पाते ही बाकी सब चोज़ खत्म हो जाती हैं। 'अपने आाप बाकी की सब चीजें घटित हो जाती हैं। इसलिए पहले यह सोचना चाहिए कि हमारा चित्त आ्रत्मा । जैसे कि नामदेव ने एक बहुत सुन्दर आत्मा में ही रहेगा। अभी तक तो आप आरत्मा में दिखाई देती है । आज हम गये थे कश्मीर ऐम्पोरीयम और वहाँ पर बहुत से लोगों को पार किया। तत्पश्चात् वहाँ पर कुछ लोग (कर्मचारी) इसी ताक में हैं कि कब लोग जावें कि हम बन्द करें। तभी किसी ने कहा कि "माता जी आज जरूर अपने यहां प्रायेंगी में रहे कविता लिखी है । उस कविता में उन्होंने लिखा है "म.ताजी यहीं हैं और आज श्राने वाली हैं ।" कि एक लड़को आकाश में पतंग उडा रहा है, और वह दोस्तों से बात-चीत भी कर रहा हैं. इधर यह उसे कसे पता चला ? कारण कि जब व्यक्ति अपनी गहनता में जाता है तो उसकी गहनता में ही सारी सामूहिक चेतना है । वहां सब तरह के tele- Communications (दूरसंचार) हैं। सब तरह के इन्तजामात है। जब मनुष्य उस संतह में बंठता है तो बह फोरन सब कुछ जान जाता है । लेकिन जब 1. उधर देख भी रहा है, लेकिन उसका सारा चित्त पतंग की ओर है। एक मां है, अपने बच्चे को गोद में लेकर सारा काम कर रही है, कभी भुकती है, कभी कुछ शर कार्य करती है, लेकिन, उसका चित्त बच्चे की तरफ है। उन्होंने कहा है तक अ्रप उस सतह तक नहीं पहुँचते तभी तक तो पूरा कि एक रखकर चल रही है, उसकी सहेलियां उसके साथ चल रही हैं, हैं, इधर-उधर की बातें हो रही है. वो हंसती भी हैं, लेकिन उसका पूरा चित्त उस मटकी की ओर मूझे इतना रुपया कमाना है, मृभे तोकरी लेनी हैं, आपको परिशानी है यदि आप उस सतह में पहुँच जाएं तो किसी भी चीज़ की परेशानी नहीं रह जाती । आप निर्विचारिता में रहते हैं । औरत अपने सिर पर मटकी बातें कर रही ले किन जब आप हमेशा यह सोचते हैं कि निमला योग ३ मुझे चुनाव लड़ना है इत्यादि, जैसे-जैसे आपका चंतन्यलहरी (बाइय्रेशन) खो गये, शक्ल-सूरत बदल वित्त इन चोजों में पड़ता है, वैसे-वैसे आपकी गई, और सब बेकार चला गया। मातसिकता अर्वरुद्ध हो जाती है । आप बढ़ नहीं सकते । का उसी प्रकार left side की बात है कि आप भावुकता में बढ़ गये, श्रीर तब भी उसी प्रकार हो अब तो हम जा रहे हैं हमारा तो काम यही है गया। कि आप लोगों को ठेलते रहें, ताकि आपको ठेलना आए, और आप लोग उसका मजा उठाएं। आप अपनी ओर चित्त रखें । आप जब प्रथने को ठेलते इसके लिए कोई भी अतिक्रमण (extremes) करने रहिएगा तो आपकी यात्मा जो प्रापके अ्रन्दर की जरूरत नहीं है । कोई भी ऐसा काम करने की विराजमान है, वो जागृत होगी प्रोर वही आ्ापकों जरूरत नहीं है, जिससे आपके अन्दर अतिक्रमणता मार्गदर्शन देगी और आप लोग एक बड़े सन्तोष अतः अपने प्रन्दर का जो धम है उसे संभालिए | आह] (extremity) आए। यदि अपके अन्दर है, तो उसे छोड़ने की कोशिश कीजिए। ही किसी चीज से तिरस करते हैं, तो उसे छोड़ने की कोशिश कीजिए। और मध्य में आने की कोशिश यदि आप बहत में रहेंगे। यह सब बहुतों में घटित हो गई है, बहुतों में हो रही है, और बहुतों में होने वाली है । । इस प्रकार सबको यही सोचना चाहिए कि हम कीजिए जहाँ से मध्य बिन्दु, से, आप पूरी परिवि को यह काम करना है, यह चींज करनी है, ये पर देख सक ते हैं । चीज है । [प्रौर जितनी भी हमारे यहाँ या जो भी चीजें हैं, उनसे उलझने की जरूरत नहीं है । यदि उनसे भी हम धबराते रहेंगे तो उसमें (दाहिने) में चले गये, या left (वांये) में चले गए, भी फंस सकते हैं । अतः उस आर चित्त ले खत्म हो जाने की आवश्यकता नहीं है । हम अपनी आत्मा को ओर चित्त रखे। श्रुटियां हैं अगर भप मध्य बिन्दु से हटकर ight तो सारा ही balance (संतुलन ) जाएगा। तो दो चीजों की ओर बहुत घ्यान रखना चाहिए, कि हमारा चित्त आात्मा की ओर है या एक दूसरी बात और है कि हमा रा संतुलन हमारे अन्दर है या नहीं। यानी हमारा वर्मं अन्दर नहीं, और हम संतुलन में हैं या नहीं । प्रज्ज्वलित है या नहीं। समझ लीजिए, कोई आदमी right sided है, बहुत सोचता है, तो उसे थोड़ा अपने को left side में ले जाना चाहिए। यदि काम करना कोई left sided है, तो उसे चाहिए कि पपने को ये भी करना है, और वो भी सन्तुलन में रखे । बहुत से लोग सोचते हैं कि, "माँ हमें तो बहुत पड़ता है । क्या करे ? हमें करना है । Promotion (पदोन्नति) नहीं हुई, demotion (वनति ) हो गया। हमारा ये हो गया, वो हो गया। इसमें एक मंत्र आप आसानी से समझ side में चला जाता है तो वह चक्कर में फंस सकते हैं कि "जैसे राखहं तँसे ही रहु"-जैसे रखे, जाता है, तो उसे ध्यान नहीं रहता कि मुझे किस वैसे ही रहें । रखने वाला 'वो' है 'बो' जानता ओर लौटकर सहज मार्ग में उतरना है । बस जो है कि आप कौन हैं । आप साधु-संत हैं, आप चक्कर चला, तो चला । गोल-गोल धुमकर जब योगीजन हैं, वो जानता है, आप को कैसे रखना बिल्कुल आखिर में पहुँचे, तो पता चला कि सब हैं | आप लोग कभी-कभी सोचते हैं कि हमारे पास अब यह चककूरबाजी है, यदि आदमी right स निर्मला योग ४ अगर पैसा कम है, तो "उसने हमारे खिए व्या किया ?" अगर हमारे सामने कोई समस्या खड़ी हो गई तो फिर "भई भगवान ने हमारे लिए क्या किया ?" दे देगा। अगर उसके पीछे चलिए तो बो आपको लात मार देगा । इसलिए प्रापको बढ़त संभल कर रहना चाहिए कि आप मन पर सवार रहें । ये नहीं कि मन आप पर, मतलव गधा श्राप पर, सवार रहे। ये गलत बात है। ये तो आपकी अपनी दिमागी समस्याएं हैं परमात्मा ने आपके लिए कोई समस्या नही रखी है । [आप उसे अपनी समस्या समझे तो प्रच्छा है । शोक है, मैं क्या करू ? अब मुझसे नहीं होता ले किन जैसे ही ये आपके अन्दर प्र जे से राखूं तेसे ही रहे" बसे आपका कल्याण हो अगर कहा, तो रह जাइये। इसमें नुकसान आपका जावे । तो मन हमारा यहाँ बह गया मुझे ये जाए कि मै नहीं कर सकता । मुझसे नहीं बनता । ये है, और किसी का नुकसान नहीं। वयोंकि आप सहजयोग में आए हैं, परम् पाने के लिए। और जो परम पाने के लिए आए हैं उनको परम पाना अब प्राप तो माँ को जानते ही है हू में यधोँ सुला दोजिए. हम सो जाएंगे। वहाँ बैठे हम तो भई comfort (गाराम) नाम की चीज़ जानते नहीं। ये तो आप जानते हैं हमारे बारे में । नाहिए। ओर बाकी तो सब्र चीज़ व्यर्थ है। अरब रही बात अति-कर्मी लोगों की, " मूझे रोज़ ये बहुत कोरय है। मुझे ये काम करना है ।" रोचना चाहिए गपने मन में कि हमने आज दिन मं सहजयोग के लिए कौन-सा काम किया। उसी प्रकार आपको जो है, अपने झा रीर को इस level (स्तर) पर लाना चाहिए कि, "साहब आप जो हैं, अब परमात्मा के सामने हैं, इसलिए ज्यादा नखरे करने की जरूरत नहीं है ।" और दूसरे शरीर को कष्ट भी नहीं देने चाहिए । वीचों- कर लिए, मां से वाइब्रेशन ले लिए। "माँ हमको बीच रहना चाहिए। शरी र को प्रति कण्ट भी देना ठीक कर दो। मेरे पति को ठीक कर दो । मेरे वेटे नहीं चाहिए भौर शरीर को 'बहत' ज्यादा आराम को ठोक कर दो। मेरे फलाने को ठीक कर दो । देने की भी कोई बात नहीं । सहजयोगियों के लिए माँ की तो मेहनत चली गई, पर 'य्प ने सहज- जरूरी है कि किस तरह से प्रपने शरीर को संभाल योग के लिए कोन-सा कार्य किया ? इसके बारे अपने लिए तो कर भी लेते हैं, कि हाथ ऐसे में थोड़ा-सा आापको सोचना चाहिए कि "आज सहजयोग के बारे में मैंने ये सोचा कि ऐसा होना चाहिए ।" अपने विचार आाप ही के अन्दर से विवर ह्ाएगे, आप ही के अन्दर से योजनाएं कर रख । जैसा मैंने आपको मन के लिए भी कहा है। मन बगर बहुत किसी चीज की ओर दौड़ता है, ऐसी जगह जहाँ वो बहुत दोड़ता है, उस की रोकना प्ाएगी । इसलिए देखना कि मेरे दिमाग में ये चाहिए । और ये मन जो है वहत स करके आपको 'कमजोर' बनाता है । तो अपनी शक्ति आप खो देते हैं। ऐसे मन से आप कहना को रात-दिन यही रहेगा कि "मेरी नौकरी को कि, "मुझे बो चीज़ करनी ही नहीं जो तू चाहता है।" तब आपका धीरे-धीरे मन भी बीच में आ जाएगा क्योंकि मन भी गे जैसा होता है । अगर मन के आगे अराप चलिए तो आपको सान जो है वहुत से बहाने खोज योजनाएं आाई कि "ऐसा हो जाए तो प्रच्छा रहेगा। ऐसी योजना हो तो अच्छा होगा ।" नहीं क्या हुआ ? मैरे उसका क्या हूया ? आपको ये भी सोचना चाहिए कि सहजयोग में जो आपने नौकरी ली है, उसका क्या करना है? निर्मला योग परमात्मा के जो नोकर आप लोग हैं, उसकी मार खाए चाकरी जो कर रहे हैं, उत्तमें अ्रापने क्या किया ? हुए हैं। जो मार खाए हैं, वो अच्छे हैं। क्योंकि वो झट से गुरू-वुरू छोड़ देते हैं । और जो समझदार हैं, वो भी सोचते हैं कि भई मैंने तो अ्ब सहजयोग में पा लिया है। अ मुझे किसी के पास जाने की जरूरत नहीं। लेकिन जो अधूरे इस तरफ जरूर ध्यान देना चाहिए । फिर मन में भी ये सोचना चाहिए कि जब हम मन से कोई कार्य करते हैं तो क्या हम, किसी के लोग होते हैं, बो ग्राघे तो इंधर गुरू को चिपटते प्रति जो कर रहे हैं, ये क्या हम वास्तव में प्रेम हप्रोर इधर सहजयोग में । ये नहीं कि हम गुरू में कर रहे हैं, या यू ही कर रहे हैं ? अगर हम प्रेम में ही ये कार्य कर रहे हैं, तब तो हम सहज- योगी हैं । लेकिन अगर हम इसलिए ही ये कार्य कर रहे हैं क्योंकि हुमारा मत हमें बाहर बहुका गए, घराप अपने अन्दर आरात्मा हो गए, तब आपको चला ले जा रहा है। ये तो गलत वात है। इस- किमी भी गुरू की शरण में जाने की जरूरत नहीं । लिए मन को control (वश में) करने के लिएमाप प्रपनी आत्मा को पाएं और उसमें ही जितने भी मन से ये पुछो क्या ये सब काम प्रेम में कर रहे हो ?" अच्छी चीज़ है, लेकिन सतगुरू वहुत कम हैं, और भूठे ही गुरू ग्रधिक हैं। और जब आप ही अपने गुरू हो को नहीं मानते हैं । गुरू होना तो बहुत तुम सतगुरू हैं सब हैं। इसलिए ये जो गुरूओं का चक्कर है बड़ा कठिन है । ये समझ लीजिए आपको इच्छा हुई कि आप बहुत' खाना खाएं। साहब क्या करे ? हमें इच्छा हो रही है, हमने खा लिया । अगर कोई आदमी पहले-पहल सहजयोग में श्री जाए और आप उससे कहें, "साहब आप दूसरे गुरू को छोड़िये," तो मार बेठेगा यो। इसलिए बहुत संभल करके ऐसे लोगों से बात करनी चाहिए कि "भई ये तुम्हारे गुरू का चवकर ठीक लिए कर रहे हैं ? क्षा आप प्रपने शरीर के लिएनहीं है । हमारे यहां वहां से लोग आए थे, उनका प्रेम करते हैं ? तो क्या आपको इतना खाना ऐसा-ऐसा हाल हुआ।" धीरे धीरे इस बात को चाहिए ? या क्या प्पपने को इतना नुकसान कर कहता चाहिए क्योकि लोगों को पसन्द नहीं लेना चाहिए ?" हर चीज में श्रगर अराप एक ही आता। गुरू की छाप बड़ी गहरी होती है और लगाएं कि "हम क्या ये चीज़ प्रेम के लिए कर इसलिए आपको इस में बहुत समझकर रहना समझ लीजिए आपने कहा ले किन पूछिये कि 'क्या आप अपने प्रेम के रहे हैं ?" तो आप प्रपने मन को पूरी तरह से चाहिए । जीत सकते हैं । यानि आप उस गवे के ऊपर बैठ सकते हैं, जो गधा आपको बहुका रहा है, बहरहाल आप 'अपते बारे में जब बात सोचते वही आपको वहाँ पहँचा देगा जहाँ प्रापको हैं, तो ये समझे कि "मेरा गुरू मैं ही हैं" माने प्रर उस गुरू को मुझे जागृत कर लेना है और पहुँचना है । उसी से सब कुछ जानना है। जब ये जागृत हो जाता है तो मुझे कुछ नहीं कहना पड़ता। आप खुद ही जानते हैं कि कौन गुरू सही हैं, कोन गुरू सही नहीं है। आप तो उनसे भागा करेंगे। आपने देखा ऐसे गुरू के शि७्य आ्रए, तो उन शिष्यों से भी भागे । लेकिन पहले उतनी sensitivity (संवेदना) के आगे एक और भी आपके अब जो मनुष्य सामने वातें हैं, जो मैं हमेशा रोज-रोज सुनती है कि हम लोगों के गुरूओं के जो चक्कर हैं; फलाने गुरू के पास हम गये थे, उस गुरू के पास हम गये थे, ऐसा हुआ था . क । उसमें से कुछ लोग तो निर्मला योग माने ये कि हमारे अन्दर ये समझ नहीं आती कि थाप मब 'एक ही विराट के अंश हैं। जैसे ये उंगली मेरे हाथ का एक अश है, । उसी प्रर आप आनी चाहिए। उतनी संबेदन शक्ति अरानी चाहिए जिससे शाप समझ सके क्या वात है ? क्योंकि हम लोग इस gुross, बिलबुल, जड़ उस नरिराट के अंग-प्रत्यंग है । और आप जागृत जिसमें रहते हैं, उससे अति-मूक्ष्म में उतरना है । हो गए हैं। अब आपके प्रन्दर अगर colectivity और जड़ हमें बार बरार खींचता रहता है। जड़ न आए इसका मतलब है आप अधूरे जागृत हैं। जो है 'हमेशा आत्मा को दबाता है । देखिये, अब अगर मेरी उगली सुन्न हो जाए समझ लीजिए, आप जसे कुर्सी पर बठे हैं। इमलिए कुर्सी को तो इसको पता ही नहीं चलेगा कि वाकी जने व्या छोड़कर आप नीचे नही बंठ सकते । जड़ जो हैं हए ? है न बात ? अगर आप अभी भी सुन्न दशा हमेशा शरीर को दबाता है और शरीर के माध्यम में होंगे से अपनी आत्मा को दबाता है। इसलिए जड़ के जगह क्या है ? ऊर में इतना हमारा चित्त अगर रहता है, इस को हैटी करके हमको अपने सुक्ष्म में लाना है । ती तो अपको पता नहीं चलेगा कि और तो collectivity के विरोध में बहत लोग े हैं । क्योंकि हमारी आदत क्या है ? पहले जाते और सूक्ष्म में लाने के लिए बहत सारी group (दल) बना लिए, इसके बना लिए, उसके बाघाएं हैं। उसमें से सबसे बड़ी बाधा तो ये, बना लिए । ये हम सब लोगों की आदत है । फिर जिससे एकादश पकड़ जाते हैं , दुनिया भर की हम लोग jealousy (ईर्र्या), सहजयोग में भी, बीमारियां हो जाती हैं, केसर की बीमारियां हो आश्चर्य की बात है ! Jealousy (ईश्या )सहजयोग जाती हैं, और बहुत कठिन चीजें हो जाती हैं | तो में कैसे हो सकती है ? हो ही नहीं सकती। किसी अब आपको संभल जाना चाहिए कि हमें अब] जब को ये भी jealousy होती है कि मां मेरे घर पराई, मां जा रही हैं, तो हम अपने को वृक्ष की तरह उनके घर नहीं आई । तेयार कर लें । हमें एक वृक्ष बनना है । जब मां आएंगी, तो देखेंगी कि वृक्ष है । और दूसरी बात ये है कि उसको करने के लिए माँ ने सीधे सरल ही नहीं। मेरा चिपकना बनता ही नहीं। तो जो जो उपाय बताए हैं अ्रब बहुत से लोग कहते हैं, ऐसा इंसान हैं जो चिपकता ही नहीं है, उसके लिए "माँ, हमें time (समय) नहीं मिलता, ये क्या jealousy (ईर्य्या) करनी ? ये भी बेवकूफी की " जब प्राप उसे कर देंगे, त व मापको बात है । अगर कमल के दल पर आप पानी छोड़िये, दस मैं तो निर्मम गादमी हैं, मैं तो कहीं चिपकरती ं नहीं.। इसीको (time) समय मिलेगा और किसो चीज़ को तो उस पर चिपकता ही नहीं है। अगर एक कमल नहीं । क्योंकि इसमें शांति सारे सुखों का जो है 'पूरा" स्वाद है । इसलिए का दल ये सोचे कि मैं बड़ा ऊंचा, और वाकी सोचे धीरे-धीरे इसमें आपको वढ़ना पड़ता है। जब कि इसके यहाँ पानी चमक रहा है और मेरे यहाँ इसका घपको चस्खा लग जाएगा तव मुझे कहना नहीं तो घोरे से पाती लुढ़क जाएगा । क्योंकि पानी पड़ेगा कि अब कुछ कम कारो । इस तरह की बात उस पर चिपकता नहीं है। इसलिए इस तरह की है। इसलिए धोरे-धीरे इसमें मजा उठाना चाहिए वातें कभी करना नहीं, बड़ी क्षुद्र बातें हैं । ऐसी और इसमें वढ़ना चाहिए। शुरू है, आनन्द है, इसमें के दल पर पानी चमक रहा हैं, प्रौर वो कमल कुद्र बात में नहीं पड़ना चाहिए । अब जो दूस री बात, जिसकी बहुत ही मां ने आपको कहो है, वो है collectivity ( सामूहिकता), हमको बड़ा ध्यान है । विचार 'छोटा-छोटा' रहता आप सब हमारी आंखों के तारे हैं अर सबका निर्मला योग है । ये ग्राप खुद जानते हैं कि छोटी-छोटो बातो ही नहीं है । इसलिए अपनी बातचीत में, अपने में आापका रुयाल रखते हैं। लेकिन आपको भी उयत्रहार में, सब चीज़ में, आप में एक सूचारू रूप आना चाहिए, और प्रापकी जो कुछ भी वृति है इसमें बड़ा दानी होना चाहिए। ये नहीं कि आप एक दूपरे का पूरा खूराल र वना चाहिए । वात करते वक्त बहुत ज्यादा नाराजो से, गुस्मे से, argumentative (बहस का) तरीका नही होना चाहिए। कभी एक-दूसरे से डांट करके या उलट करके बात नहीं करनी चाहिए । वहुत एक दूसरे की मदद करना, एक दूसरे से प्रेम से शतिपूर्वक, प्रेमपूर्वक, सबको समझा करके, आराम, से बात करनी चाहिए, जहां तक हो सके अपने अन्दर है; माने ये कि माधुय लाये । इसकी practice (अभ्यास) करनी जो इस हाथ को दुष्व होगा, वो दूसरे हाथ को भी चाहिए अगर आपके यहाँ माता-पिता ने नहीं होना चाहिए । यहां पर जो दुख होगा, वो यहाँ सिखाया है तो आपको अब सीखना पड़ेगा। किस तरह से हम सुमधुर हों। हमारी आवाज भी जो है, ये एक living organism (जीवन्त संरचना) है । ऐसी नहीं होनी चाहिए कि जिसको सुनते ही सात आठ प्रादमी भाग खड़े हों कि "ये कोन ककेश आ गया ?" इसलिए अवाज में भी मिडास होनी चाहिए । उसमें एक माधुय होना चाहिए एक मोहित करने की शक्ति होनी चाहिए। जिससे मनुष्य को लगे कि ये जो बोल रहे हैं, इसमें खिचाव है। इसका भो हमें करना चाहिए। हमारे व्यवहार का, हमारे तौर-त रीकों रखें ? का, सबमे एक सुचारू रूप से जब हम बन जाएंगे औ्र जब दुनिया आप सहजयोगियों को देखेगी तो कहेगी, "भई वाह, वाकई ये तो०.." कजुसी कर रहे हैं। इस प्रकार एक दुसरे का पूरी रूथाल रखना, रहना और सब त्रोज में एक पूरा living organism ( जीवन्त संरकचना) । ये सबको लगना चाहिए कि पर होना चाहिए धोरे-धीरे, मुझे पूरा विश्वास है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। और धीरे-धीरे collectivity (सामूहिकता) का कितना मजा आएगा ! । उसमें और कोई आपका प्रश्न हो तो पूछिए। प्रश्न : श्री माताजी, चित्त को अत्मा में कैसे अ्रभ्यास श्री माताजी : इसके अनेक तरीके हैं। अपने यहां जैसे मंत्र से बताया गया है [अपने] [right hand (दायें हाथ) को हृदय पर रखे और Ileft hand (बायें हाथ) को आप मेरी ओर रखें । और हालांकि आपके अन्दर दीप तो जल गया, ले किन बाहर का अगर कंडील साफ नहीं है तो बार-बार कहें- बारह म्तबा कम से कम कि-मां, वो दीप कसे लेंगे। बाह्य का भी कंडील साफ मैं श्रत्मा हूँ। करना चाहिए। और बाह्य का कंडील साफ करने के बक्त में ये ध्यान रखिए कि आप में अगर ऐसा Left (वांये) से right (दांये) में अगर आप जें सात मतंबा, तो प्रपका हृदय जो है, वो जागृत आप बहुत ही पैसों की बातें करते हैं, या प्राप ही जाता है। और उ सके बाद आप शिवजी का मंत्र बहुत ही ज्यादा किसी दूसरी चोज की बातें करते अगर कहें, आपके हृदय में बसा हआा शिव का जो हैं, तो लोग कहेंगे कि "साहब ये सहजयोगो है ?" ये सहजयोगी नहीं है, व्योंकि जो योग में रहता है वो योगी है । और फिर किसी से आप को लगाव centre (चक्र) है, वो जागृत हो जाएगा । ये दूसरी बात है कि सहस्रार का जों ये ब्रह्म- रन्ध्र है, यही आपका सदाशिव का स्थान है। निमला योग LF इसलिए बरह्म रन्त्र में व्यान प्रगर रखं, तथ भी तरह की जत् प्रार्थना की जाती है, तब आपका आपका जो कि चित, बह्मरन्त्र, सदाशिव का स्थान चित्त धोरे-धीरे अन्दर बढ़ता जाता है। क्योंकि है, आत्मा में रहेगा। बार-बार अपने चित्त को आप पार हैं, श्रापके लिए हरेक शब्द मंत्र है । हृदय पर अगर ले जाएं तो भी आपका चित्त आापकी प्रत्येक प्रारथना में, जो भी आप कहते हैं, आत्मा में रहेंगा। इन प्रकार आप घ्यान रखकर , कीजिए । उसकी पूर्ति होती है। लेकिन आप मांगते क्या हैं इस पर है न। आप जेता चाहते हैं, बो ही मांगते हैं, ले किन परमात्मा को मांगने वाले लोग हैं, वो हैं परमात्मा के बारे में मंगिगे । प्रर भी इमके अल/वा बहुत से महात्म्य जिसके द्वारा आप प्रपनी आात्मा चित्त में लाते हुए प्रभु से कहें, माने कि प्राथना, प्रारथना करें कि *मां, हमें त्मा बना दो।" मां हमारा जो कृप से ये हो गया, आपकी कृपा से मूझे नौकरी वित्त है वो प्रात्मा में रहे ।" प्रार्थना बहुत बड़ी मिल गई । लेकिन जो लोग ये सोचते हैं कि चीज है सहजयोगियों के लिए, क्योंकि जब आपका योग घटित होता है, अ्राप परमात्मा के साम्राज्य में श्रा गये हैं, आपकी प्रार्थना जानती है, कि "माँ मुझे नौकरी दे दो ।""मांँ, हमें promotion (तरक्की ) दे दो । मा. मेरीह कि "अपको कृपा से ये हो गया, आप लड़की को ठीक कर दो ।" इस प्रकार की प्रार्थना करते हैं। 'मेरी शादी कर दो" नहीं तो "मेरी शादी तोड़ो " दोनों। अघिकतर लोग तो कहते हैं, "माँ आपकी श्रापकी कृपा से मुझे आत्मा मिल गई " वो ही आ्रागे बढ़ गए हैं, वो ही कहना परिपयव हो गए। और जो [आादमी ये ही कहता चाहिए कि । मैं श्रभी तक ये ही से ।" ये तो सारी सांसारिक चीजें की कृपा है, ये होती है, हमारी कृपा ही से तो होती हैं । उसमें कौन-सी विशेष बात है। वो तो क्षेम है। लेकिन 'योग' पूरा होना चाहिए। तभी आपका आत्मा लेकिन ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए कि "माँ, में चित्त रह सकता है, आत्मा से पूर्णतया योग मुझे प्रत्मानन्द दो, होता है । "मुझे निरानन्द दो।" इस ," प्रचार कार्य माता आली भारताला सहजयोगाच्या प्रचाराला ॥घू।॥ किती आटाओटी । पायपिटी केली त्यांनी नातीगोती। अनवाणी सहजयोग प्रचारासाठी सोडीलौ अमेरीका दोरा त्यांनी पूर्णपणे यशस्वी केला । श्रेय त्यांनी दिले सहजयोग प्रार्थनेला ।। १॥ परी पुणा, सांगली सोलापुर, धुळे चालली भणी मलल शरण कोल्हापुर, केले आतां राहिली जेजुरीला आगामी जाती भिऊनी मातेच्या परशुला ।।२।। अरहमदनगर, राहरी । जेजुरी । सालाला । माता सो० शकंतला निकोलस अंधेरी केन्द्र निर्मला योग ह बम्बई सहजयोग और श्री कल्की शक्ति है। मा के प्यार से कोई व्यक्ति सहज में पार आज श्री कल्की देवता व कुण्डलिनी शक्ति इनका क्या सबंध (आत्म-साक्षात्कारी ) होता है और इसलिए ऊपर है, ये कहने का प्रयास किया है। कल्की शब्द निष्कलंक शब्द निर्मित कहो गई 'आखिरी न्याय की बात इतनी सुन्दर, नाजुक व सूक्ष्म बनायी गई हैं, उसमें किसी को भी विचलित नहीं होना है । मैं अ्रपको कहना चाहती है कि सहजयोग से हो आपका आख री न्याय से है। निष्कलंक- माने हुआ जिस पर कलंक या दाग नेहीं ही। हो ने वाला है। प्रप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश ऐसा मतलब अत्यन्त शुद्ध एवं निर्मल है । करने के लायक हैं कि नही इसका निरणंय सहज- योग द्वारा हो होने वाला है । श्री कल्की पूराण में श्री कल्की अरवतरण के बारे में बहुत कुछ लिखा है । उसमें ये कहा है से लोग अलग अलग कारणों से सहज- कि श्री कल्की का अवतरण इस भूतल पर योग की तरफ़ बढ़ते हैं। समाज में कई लाग बहुत बहुत संभालपुर गाँव में एक सफेद घोड़े पर होगा । 'संभाल शब्द का मतलब भाल माने 'कपाल और संभाल माने भाल प्रदेश पर स्थित अर्थात् ही साहसी वृत्ति के, जड़ बृत्ति के, या सुस्त होते हैं । इसमें हैं। लोग मदिरापान अथवा इसी त रह का कुछ दूर भागते हैं । ये लोग इड़ा नाड़ी पर कार्यान्वित होते कटड कुछ श्री कलकी देवता का स्थान हमारे कपाल पर है। दम पीते हैं व इससे ऐसे लोग 'सत्य' से इस शक्ति को श्री महाविष्णु की हुननशक्ति भी दूसरे तरह के कुछ लोग पिंगला नाड़ी पर कार्या- न्वित होते हैं प्रौर बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं, उनकी अपेक्षाएं इतनी अवतरण इस बीच के कालावधि में मनुष्य को विशेष होती हैं कि उससे उनकी दूसरी side (इड़ा- अपने स्वयं का परिवर्तन करके परमेश्वर के राज्य नाड़ी) संपूर्णतः खराब हो जाती है, उससे उनको में प्रवेश करने का मौका है । इसी को बाइबल में अनेक दूषकर रोग हो जाते हैं । उनको परमेश्वर प्राखिरी न्याय या the last judgement कहा से संबन्धित रहना अच्छा नहीं लगता। इस तरह है। इस भूतल के हर एक मनुष्य का ये आखिरी दोनों प्रकार के लोग आपको समाज में मिलेंगे । न्याय होने वाला है । कौन परमेश्वर के राज्य में लोग एक तो बहुत ही तामसी बृत्ति में रहेंगे, नहीं प्रवेश के लिए ठीक है और कौन नहीं, इसकी छंटनी तो बहुत ही राजसी वृत्ति में। इसमें तामसी वृत्ति के लोग शरब तो शराब ही पिएंगे मतलब स्वयं को जागृत स्थिति से, सच्चाई से परे हटक र रखेंगे । सहजयोग से सभी का आखिरी न्याय होने दुसरे प्रकार के लोग जो कुछ सच्चाई है, सुन्दर है उसे नकारते रहते हैं। ऐसे लोग अहंकार से भरे अद्भुत लगेगी परन्तु ये अद्वितीय होकर भ सत्य हुए होते हैं । उसी प्रकार प्रतिभ्रहंकार से भरे हुए कहते हैं। स्वतंत्रता चाहते हैं और श्री येशु का अवतरण व श्री कल्की शक्ति का होने का समय अब आया है। वाला है । हो सकता है बहुत से लोगों को ये बात निमला योग १० अपनी पुरानी आदतों और प्रवृत्तियों में मग्न होते हैं, उनकी स्थिति को 'योगभष्ट' स्थिति कहते हैं । कोई व्यक्ति पार होने के बाद भी अहूं सुस्त, जड़ व लड़ाकू प्रवृत्ति के लोग दिखाई देते हैं। जो लोग बहुत हो महत्बाकांक्षी होते हैं, वे आपसे को होड़ में स्वयं को मजाक बना लेते हैं। उदाहरण - ऊपर कहे गये दोनों तरह के लोग एक तो बहुत कार वृत्ति में फंसा है या पैसे कमाने में ही मग्त महत्वाकंक्षी, माने अरहंकार से भरे हुए व दूसरे है, या अपनी तानाशाहो प्रस्थापित करने में अति प्रति अहकार से भरे हुए सहजयोग में बड़ी कठिनाई मरन है, तो वह व्यक्ति कोई ग्रुप बना सकता से आ सकते हैं । परन्तु जो लोग सात्विक वृत्ति के है और ऐसे युप पर वह व्यक्ति अ्रपना बडण्पन हैं या मध्यम वृत्ति के हैं ऐसे लोग सहजयोग में स्थापित कर सकता है । परन्तु इसमें थोड़े दिनों जल्दी आर सकते हैं । इसी तरह जो लोग बहुत ही बाद ऐसा मालूम होगा कि वह व्यक्ति परमेश्वर से, सीवे हैं वे भी सहतयोग को बिना मेहनत के प्राप्त सच्चाई से, वंचित हो गया, और अन्त में उसका होते हैं । वे पार भी सहज में होते हैं । आपने देखा सर्वनाश हो गया। उसके बाद उस व्यक्ति से होगा कि सहजयोग के निए शहर के कुछ गिने-बुने सम्बन्धित लोग भी सच्चाई से, यानी परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और उनका भी सर्वताश हो सकता पाँच से छः हजार लोग आते हैं। और विशेषता ये है है ऐसा सहजयोग में आकर भी घटित हो सकता कि सभी के सभी लोगों को आत्म-साक्षात्कार की है। इस बंवई में ऐसी अनेक घटनाएं बार-बार कहना चाहिए। इसमें कोई व्यक्ति अपने योग से च्युत होता है क्योंकि को संपूर्ण स्वतन्त्रता होती है। किसी व्यक्ति की योग में बढोतरी या अरधोगति यह उस व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अवलंबित है। कुछ सच्चे व महान गुरूप्रों के पास अलग तरह की नष्ट करें ? इस संदर्भ में मुझे ये बात कहना जरूरी योग-साधना सिखाई जाती है । उससे साधक का है कि सहजयोग ही आपको सही रास्ते पर ले जा अंतःशुद्धिकरण होता है और जीवन बचपन से सकता है व परमेश्वरो ज्ञान मूलतः खोलकर शिष्टवद्ध बनाया जाता है । इससे उस साधक का बता सकता है। सारे परमेश्वर के खोजने वालों जीवन कष्टप्रद बनाया जाता है। और उस साधक को सहज ही परमेश्वरी ज्ञान खुलकर बताया जा में शारीरिक एवं व्यक्तिरव निर्माण किया जाता है उसका स्वभाव व उसका पूरा व्यक्तित्व ही वदल आत्म-साक्षात्कार विना कष्ट उठाये मिलता है । सहजयोग में सभी बातें इसलिए आपको कुछ भी देते की जरूरत नहीं है आपकी स्वतंत्रता पर निर्भर होती हैं । ये सारी बातें और कोई भी कष्टप्रद आसन भी करने की समझने के लिए आपको हमेशा उस परमेश्वरी शक्ति के साथ सामूहिक चेतना में जुड़ा हुआ रहना लोग आएंगे, परन्तु वहीं गाँ तों में हम जाते हैं तो अनुभूति प्राप्त होती है । इसका कारशण शहरी हुई हैं। इसे 'योगभ्रष्ट' मनुष्य जरूरत से ज्यादा ही कार्यमग्त होता है । उन्हें लगता है, परमेश्वर की खोज करने के सिवाय सहजयोग में और काम महत्वपूर्ण है । परमेश्वर की खोज के लिए शहरी लोगों को समय नहीं हैं। उन्हें लगता है ये बतें फ़िजुल की हैं, इसलिए अपना समय क्यों मनुष्य ु। रहा है। ये सारा सहज में होता है आपको अ्पना दिया जाता है। लेकिन जरूरत नहीं है। अ्यंत आवश्यक है। परन्तु एक वात पक्की ध्यान में रखनी चाहिए । ओत्म-साक्षात्कार के बाद परमेহव र के राज्य में प्रस्थापित होने तक बहुत बाधाएं हैं, श्रर] श्री कल्की शक्ति का संबंध इसी से संलग्न है । भी है । सह जयोग में पअ्राकर प्राप दिखावा नहीं कर रत्म-साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग सकते। किसी विशेष बात के लिए ग्रथथाजी नहीं हर-एक चीज का इस संसार में बिलकूल सही हंग से नियमन रहता है । उसी प्रकार सहजयोग में मa । निमंला योग ११ कर सकते । सहजयोग में आने के बाद इस प्रकार भरों को मत सताओो, उनकी अच्छाइयों का के लोगों का बहुत जल्दी भंडा फूटता है। क्योंकि ऐसे कृत्य करने वाले लोगों के सारे चक्रों पर जोरों जताकर व्यर्थ वातें मत बनाओ। क्योंकि कल्की की पकड़ आती है और उसकी जानकारी उत देवता ने प्राप के जीवन में संहार कार्य की शुरूवात व्यक्तियों को नहीं रहती है। ज्यादा से ज्यादा उन्हें की तो अ्राप क्या क र और क्या न करे' की स्थिति चैतन्य लहरियों की संवेदना रह सकती है, परन्तु आ सकती है । थोड़े समय में ही ऐसे लोगों का नाश होता है । फायदा मत उठाओ, और अपना रुतबा, वडूष्पन इसी प्रकार जब आप अज्ञानता से या अनजाने इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति किसी सहज- में किसी व्यक्ति को भजते हैं या उसके संपर्क में होते हैं, तब आपको भी इससे परेशानी उठानी घटित होना यही वड़ा कठिन काम है । उसमें भी पड़ती है। ऐसे समय किसी निष्पापी (मासूम) योग घटित होने के बाद अगर इस प्रकार की मनुष्य को भी तकलीफ़ होती है। तो किसी गैर योगभ्रष्ट स्थिति पैदा हो रही है, तो वह व्यक्ति व्यक्ति के कारण आप पागल मत बनिए। अगर ऐसा किया तो उसकी कीमत आपको चुकानी दुष्ट योगी को आना बड़ी बुरी घटना है एक तो योग श्री कृष्णजी के अनुसार राक्षस योनि में जाता है। पड़ेगी । जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें इसमें जमकर टिकना पड़ेगा, नहीं तो वे योग को प्राप्त न होकर किसी न किसी योनि में जा गिरेंगे । उसके बाद कदाचित् उन लोगों का फिर से मनुष्य जन्म स्ट्मैन्ट (मन को समझाना) करते हैं । फिर आप हो सकता है, परन्तु उन लोगों का ये पूरा जीवन सोचते हैं कि, उसमें क्या हुप्रा? फलाने- दिकाने व्यर्थ हो गया। श्री कल्की देवता की शक्ति सहज- हमारे पुरखों के समय से पंडित हैं, तो उन्हें योगियों के साथ गुरूता से प्रत्येक क्षण कार्यान्वित कुछ देना ठीक रहेगा। आप जरा सोचिए कि, रहती है । श्री कल्की देवता सहजयोगी पवित्रता की रक्षा स्वयं के एकादश হक्ति के साथ और उन्हीं के किनारों पर बेंठकर परमेय्वर करते हैं । जो कोई सहजयोग के विरोध में काम के नाम पर आपसे कोई पैसे निकालता है । कितना करेगा उन सभी को बहत परेशानी होगी। इतिहास को देखा जाए तो लोगो ने अनेक संत पुरुषों को बहुत परेशान किया। परन्तु अव आ्प कितना पुण्य कमाया है ? संतों को, साधु लोगों को परेशान नही कर सकते, क्योंकि श्री कल्की देवता की शक्ति पूर्णरूप से कार्यान्वित है जो मनुष्य सीधा-सादा है, संत है, अंधविश्वास से जिन्दगो जीते हैं। ये भारत में ही उसे परेशान किया तो कल्की शक्ति प्रापको कहीं नहीं, इस दुरनिया में सभी जगह देखने को मिलता का नहीं रखेगी और उस समय आपको भागने के लिए ये पृथ्वी भी कम पड़ेगी । जिस समय आप किसी गैर व्यक्ति के कारण प्रभावित होते हैं उस समय अराप कहीं 9र एडज- की पवित्र प्यार की गगा माई एक जगह से बहुती है पागलपन और अधोरीपन है ? उसमें भापको लगता है कि हमने उन पुजारियों को पैसे देकर इस तरह सत्य क्या है, ये न समझकर हम है । कितनी बातें हम अँखों से देखते हैं, फिर भी मंदिरों में जाकर अंधविश्वास से अनेक बातें करते हैं। परमेद्वर के नाम पर एक के पीछे एक ऐसे अनेक पाप हम करते रहते हैं । पाप क्षालन (धोना) करने के बदले पापों में बृद्धि करते हैं । ऐसे लोगों को मैं 'तामसी' कहती हैं । ऐसे लोग अपना दिमाग जरा ऊपर दी गई बातें केवल सहजयोगियों को ही नहीं, प्रपितु दुनिया के सारे लोगों के लिए है औ्र इसलिए आप सभी को सावधानी से रहना पड़ेगा । हैू. निर्मला योग १२ भी नहीं लगाते । इसलिए उन्हें 'मूढ वृद्धि के कहना चाहिए। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं । वह कोई भी चमत्कार की लोग कहते हैं ।"परमेश्वर कहाँ है ?" परमेश्वर वर्गैरा घटनाएँ सुनने के बाद तुरन्त उस पर विश्वास कुछ भी नहीं है, ये सवे कुछ fraud (धोखा) है | करते हैं। चमत्कार करने वालों ने परदेश में जाकर Science (विज्ञान) यही सब कुछ है । मैं कहती है बहुत से लोगों से पसे निकाले है। उस पेसो के आज तक साइन्स से क्या हुआ बदले में उन्हें पक्षाघात या पागलपन इस तरह की दिमाग में आएगा बीमारियां भी साथ दे दीं । इतना सभी होकर भी कितने लोग ऐसे चमत्कार करने वालों के पीछे विज्ञान की बजह से ग्राप मकेवल अहंकारी बने हैं। पागलों की तरह भागते हैं और अपने पापों में वृद्धि पश्चिमी देशों में हर- एक मनुष्य अहंका री है। पाप करवाते हैं। अपनी चालाकी और बुद्धिमानी पर वि वार करते हैं । उन्होंने हमेशा परमेश्वर को नकारा है। ऐसे । आपने देखा तो । साइन्स ने अभी तक बेजान नहीं बनाया। चित्रों के सिवाय कुछ वृद्धि कैसे करनी है, उसके संबंध में वे अनेक जान- कारियां खोज निकालते हैं । गन्दे से गन्दा पाप श्रपके पास जो कुछ सपय मिला हैं, वह सब ओपातकाल (emergency) की तरह और महत्वपूर्ण कस करना है, इसी में वे व्यस्त हैं। उसी में भारत है । और इसीलिए आ्रापको स्वयं आत्म-साक्षात्कार के लिए सावधान रहता चाहिए । इसमें किसी को ्गुरू समझते है परर कहलवाते हैं, वे गये हैं। वे भी दूस रों पर निर्भर नहीं रहना है अपने आप स्वयं साधना करके परमेश्वर के हृदय में ऊँचा स्थान प्राप्त करना चाहिए, अरथाति इसके लिए सहजयोग में आकर स्वयं पार होना जरूरी है, क्योकि पार होने के बाद ही साधना करनी है । से कुछ लोग जो अपने आप को बहुत बड़े उन्हें ऐसे पाप वृद्धि में मदद करते हैं। उससे ये सब लोग जल्दी ही नरक में जाने वाले हैं। जो कुछ गलत है वह गलत हो है । जो कुछ हमारे धर्म के विरोध में है वह सब गलत है । फिर वह कल पहले हो, कभी भी ही या आज हो या १००० साल हो वह गलत ही है । जिस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, उस समय जिन लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति अनुकम्पा (श्रद्धा) व प्रेम नहीं होगा या जिन्हं आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए होगा, ऐसे सभी लोगों का हनन ( नाश) होगा । उस समय श्री कल्की किसी पर भी दया नहीं क रेगे । वे हूँ कि गलत माग का अ्रवलंबन मत करिए। जो रुद्र शक्ति से सिद्ध हैं । उनके पास स्यारह प्रति आपके उत्कान्ति के विरोध में है वह मत करिए वलशाली विनाश शक्तियाँ हैं । इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट मत करिए। चमत्कार के पस किये हुए कृत्यों का पछतावा करने के लिए दिखाने वाले अगुरूप्रों के पीछे 'भगवान भगवान भी समय नहीं रहेगा। उस समय उसमें क्या करके मत दौड़िए। जो सही है उसी को प्रपनाइए हुआ ? इसमें क्या हुआ ? ऐसे सवाल पूछने का भी नहीं तो श्री कल्की शक्ति का अपनी सारी शक्तिप्रों समय नहीं रहेगा एक क्षण में श्री कल्की आपका के साथ संहार करने के लिए अवतार लेकर आने संहार करेगी। ऐसा कहते हैं कि उस समय सारा का समय वहुत नजदीक आया है। आजकल एक नयी बात देखने को मिलती है "उससे क्या हुआ ? क्या गनत बात है ? इस के तरह सारे प्रशनों के उत्तर कल्की शक्ति देगी मैं केवल फिर से एक बार आपको इशारा दे रही यारह ऐसा करोगे तो एक समय ऐसा आएगा जब आप काम प्रचंड होगा। हर एक व्यक्ति अलग अलग छोटा जाएगा उस समय कोई भी कुछ नहीं कह । देखिए सब का विज्ञापन है । सब कुछ कुछ दूसरे तरह के लोग होते हैं । वे हमेशा सकेगा निर्मला योग १३ है यह देखिए । आपका व्यक्तित्व किस तरह का है छा हुआ । स्वयं का निर्णय स्वयं करना है ये स व सहजयोग में ही घटित हो सकता है । एक माइक्रोफोन जो विज्ञान के कोरण बैनाया गया है वह भी इस्तेमाल होता है। अगर मैंने माइक्रोफोन अपने चक्रों पर रखा तो उस माइक्रोफोन में से भी चैतन्य गन्दी-लहरियाँ लहरियाँ बहुती हैं। उसका प्रत्यक्ष अनुभव लोगों अनजाने में आप अनेक पाप करते रहोगे और फिर ने किया है और कर लहरियों से आपको प्रात्म-साक्षात्कार प्राप्त हो अच्छा है, मुझे चैतन्य लहर अ रही हैं ऐसे लोग सकता है । पूरा विज्ञान सहजयोग के काम आने अपने श्रापको और दूस रों को ठगते हैं। [आरपका] वाला है । कुछ दिन पहले दूरदर्शन के कुछ लोग निर्णय कौन करेगा ? आपका ही कम । आपने मेरे पास आये। कहने लगे "माताजी दूरदर्शन पर दूसरों पर कितने उपकार किये ? हमें आपका कार्यक्रम रखना है ।" उस समय मैने उन लोगों से कहा, 'कोई भी कार्यक्रम रखने से पहले आप संभल के रहिए। मुझे त्रिज्ञापन की विद्या) अरदमी पर भरोसा करके आप अपने घर के जरूरत नहों है । जो कुछ भी करोगे सही ढंग से सदस्यों का नाश करना चाहते हैं क्या ? कम से करिए। दूरदर्शन के माध्यम से सहजयोग फैल कम घर के अर सदस्यों के लिए सोचिए। समाज सकता है। जिस समय दू२दर्शन पर मेरा कार्यक्रम में अ्नेक तरह के गलत लोग हैं ऐसे लोगों से पूर्ण- होगा उस समय लोग अपने टी. वी. सैट के सामने तया दूर होना सहजयोग में श्राकर सहज हो हाथ फैलाकर बैठेंगे तो वहुत से लोगों को आत्म- साक्षात्कार की अनुभूति मिल सकती है। ये वास्त- वाले अनेक लोग हैं मुझे मालूम है। मैंने उन्हें विकता है । मेरे इस शरीर से चैतन्य बहुती है, ये वास्तविकता है । इसके का रण किसी दीजिए । आपको तुरन्त समझना चाहिए कि माँ को भी क़ोधित होने का कारण नहीं । अगर मैं ये सारी बातें समझरती हैं । अगर आपकी माँ ने इस तरह की बनायी गयी हैं तो इसमें आपको कोई बात अ्रपसे कही तो वह माननी चाहिए। वुरा मानने का नहीं। सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए आप गलत रास्ते से गये तो आप में से बहुत (bad vibrations) आएंगी । सकते हैं । उन चेतऱ्य- भी मुझसे कहते रहोगे ' माताजी मैं बहुत किसी मोहिनी विद्या वाले (अरविद्या या काली सकता है । लंदन में भी ऐसे गन्दे लोगों को लुभाने 12 लहरियों बहुत बार बताया है कि आप ये गलत रास्ता छोड़ इसमें वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। क्या आप को बाद-विवाद से चंतन्य लहरें प्राप्त होने वाली हैं ? ऐसा सोचए जरा । फिर भी अआप सहजयोग में आकर गलतियाँ करते हैं । लेकिन ये बहुत गलत दूमरा प्रकार अहंकारी और महत्वाकक्षी लोगों के साथ दिखायी देता है । किसी के पास बहुत धन-संपत्ति है ऐसे मनुष्य के पास जाकर पूछिए क्या वह सुखी और खुश है ? उसके जीवन और बुरी बात है, ये समझ लीजिए, क्योंकि ऐसे को जरा गौर से देखिए । जो अपने आपको काम- याव कहलवाते हैं उनके पास जाकर देखिए उन्होंने कोन-सी कामयाबी हासिल की है ? उन्हें कितने क्योंकि सहजयोग ही आखिरी न्याय है [आप] लोग सम्मान देते हैं ? उनकी पोठ फिरते ही लोग परमेश्वर के राज्य के लिए सही है या नहीं, इसकी कहते हैं, 'हे भगवान इनसे शुटकारा दिलवा दो। जाँच-पड़ताल हो सहज आप मंगलकारी हो क्या ? आपके दर्शन से ओरों आकर पार होकर परमेश्वर के राज्य के नागरिक को सुख होता है क्या मुझे सारे सहजयोगियों को भी इशारा देना है योग है आप सहजयोग में बन सकते हैं । उसके पहले अरापको परमेश्व री प्रेम ? आप मंगलमय हो क्था | निमंला योग १४ व परमेश्वरी ज्ञान समझने की पात्रता भी नहीं मनचेगा और उसी समय सबका चयन होने वाला है। उस समय सहजयोग भी किसी को नहीं बचा के नागरिक हैं और आपने कोई गुनाह किया, तो सकता क्योंकि उस समय सहजयोग भी समाप्त हुआ आप सजा के पात्र हैं उसी प्रकार परमेश्वर के होग। । आप सहजयोग से भी अलग किये जाओगे राज्य के बारे में भी है और इसलिए परमेश्व री और प्रत्येक परमेश्वर को सही लगने वाला निकराला जाएगा। बाकी के लोगों को मारा जाएगा और ये हुनन ऐसा वसा न होकर संपूरणं जड़ का ही नाश होगा। पहले देवी के अनेक अवतारों ने अनेक राक्षसों का नाश किया, पर राक्षसों ने फिर से जन्म लिया। परन्तु प्रब संपूर्णतः नाश होने वाला है जिससे पुतः जन्म की भी प्राशञा नहीं रह होती है। समझ लीजिए आप भारतीय गरणराज्य मनुष्य राज्य की नागरिकता मिलने के बाद प्राप सभी को बहुत ही सावधानी बर्तनी पड़ेंगी । दूसरी बात मुझे आयसे वहनी है। वह है श्री कल्की देवता की विनाश-शक्ति के बारे में । श्री कल्की अवतरण बहुत ही कठोर है पहले श्री कृष्णा जो का अवतरण हुआा। उनके पास हनन शक्ति थी । उन्होंने कंस और राक्षसों को मारा। वहुत छोटे से थे वे तभी उन्होंने पूतना राक्षसनी सकती । अभी जो स्थिति है वह भिन्न है और उसे मालूम है । परन्तु थर समझने की आप कोशिश करिए। श्री कृष्णजी क श्री कसे मारा, ये अआपको कृष्ण 'लीला भी करते थे । वे करुणामिय थे । ने वहा है कि, "यदा यदा हो घमस्य ग्लानिर्भवति उन्होंने लोगों को बहुत बार छोड दिया, क्षमा किया । श्रीकृष्ण क्षमाशक्ति से परिपूरण थे । क्षमा संभवामि युगे यूगे ।" करना श्री कृष्ण स्थित गुरणधमें है । परन्तु उस परमेश्वर की करुणा समझने के लिए अगर हम मतलब दुष्ट लोगों का बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने असमर्थ सावित हुए तो इस कल्की शक्ति का बिस्फोट के लिए, आऔर [ग्रागे] [वे कहते हैं कि साधू और संतों होगा प्रोर पूरी क्षमाशीलता आप १र संकटों की को बचाने के लिए मैं पुनः जन्म लूंगा कलियुग तरह आएगी श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि किसी में सीधा सादा, भोला साधु-सन्त मनुष्य मिलना समय मेरे विशेध में कुछ नला लंगे । लेकिन मुश्किल है क्योंकि अनेक राक्षसों ने मनुष्य की आदिशक्ति के विरोध में एक भी शब्द नहीं चलेगा । ऊपर निर्दिष्ट किया हुआ्रा अवतरण होने वाला है, ये पक्की बात है। ऐसे अवतारी व्यक्ति के पास श्री कृष्ण की सारी शक्तियाँ, जो केवल हनन (सर्वनाश) शक्ति श्री शिव है उसकी जय-जय करते हैं । एक बार जब हमने की हननशक्ति अर्थात् ताण्डव का एक हिस्ता ऐसे बुरे मनुष्य का साथ दिया कि अपनी प्रबृत्ति भी स्व-प्रकार की हनन शक्तियों होगी। उस अवतारी शनजाने में गलत बातों की तरफ बढ़ने लगती है और पुरुष के पास श्री भरव का खड्ग होगा, श्री गणेश ये सब श्रापकी बुद्धि में इस तरह जड़ होक र बैठता का परश होगा, श्री की गदा और विनाश है कि ग्राप अ्रपने [प्रापको उस जड़ता की तरफ से की सिद्धियां होंगी। श्री बुद्ध की क्षमाशीलता व हटा नहीं सकते । फिर उस दुष्कृत्यों से आप कैसे श्री महावीर की प्रहिसाशक्ति भी उलटकर गिरेगी, मूक्त होंगे ? या उन दुष्कृत्यों को कैसे नष्ट करोगे ? ऐसी ग्यारह शक्तिपक्त शो कल्की देवता का अत्र- आप एक बहुत प्र्चछे स्वभाव के और बड़े इंसान तरण होने वाला है। उस समय सबवत्र हाहाकोर हो, परन्तु प्रापकी खोपड़ी में दृष्कृत्य भी जड़स्वरूप भारत, परित्राणाय सावूनां विनाशायच दुष्कृतां प्रब इस इ्नोक के अखरी लाइन में श्री कृष्ण कहते हैं कि "विनाशायचदृष्कृता" खोपड़ी में प्रवेश किया है । इसलिए घर्म के नाम एक बहुत बड़ा पर राजनीति में शास्त्रों में शंक्षरिणक क्षेत्र में हुआ ए हर-एक क्षत्र में हम अच्छे मनुष्य के बदले बुरे पर विश्वास करते हैं। जो बुरे काम करता मनुष्य हुनुमान निर्मला योग १५ में वैठी है, तब् आपका भी विनाश होगा । इससे कोई 'स्वयं' का नाश मत करिए। तुरन्त उठिए, जागृत है। मनुष्य सचमुन परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक या जाइए। मेरे पास प्राइए, मैं प्रापकी मदद करूगी। मैं विरोधक है ये कहने के लिए ठोस नियम नहीं कहा आपके लिए रात-दिन मेंहनत करने के लिए तैयार जाएगा| केवल सहजयोंग से ही म तष्य की सफाई है। मैं प्रापके लिए पूरी तरह कोशिश करूंगी, होगी और उससे वह व्यक्ति वरमेश्वर प्राप्ति के आपको अच्छा बनाने के लिए । अपको परमेश्वर लिए पोषक बनाया जा सकता है। ये एक ही बात ऐसो है कि जिससे आ्रापकी अंकुर शक्ति प्रस्फुटित करूंगी। होकर प्रापको आत्म साक्षात्कर प्राप्त करा सकती है । आप स्वयं को, माने अने 'स्व' को, जान सकते प्राप्ति के मार्ग पर लाने के लिए मैं सारी कोशिशे परमेश्वर प्राप्ति के लिए अन्तिम परीक्षा पास हैं औ्र उसी का आनन्द लुटा सकते हैं। जिस करने के लिए में श्रापके लिए मेहनत करूंगी परन्तु समय ऐसा आनन्द मिलता है उस समय ओर मिश्या वात अपने आप ही अलग हो जाती है। प्राप्त करने के लिए आपको भी सर्वोपरि कोशिश आपमें जो भ्रम है बह नहीं रहेगा। और इसलिए आग प्रपना समय नष्ट नहीं करके तुरत्त पुरण योग जो श्रद्धा से 'सहजयोग को स्वीकार करिए । यह अत्यंत आवश्यक है। इससे भूतकाल में हुई गलतियाँ, पाप इन सबसे अपको मुक्ति मिलेगी। ये एक ही बात ऐसी है कि जो आप अपने मित्रों को, रिश्तेदारों को ओर सभी को दे सकते हैं । इसमें आपको मुझे सहयोग देना होगा। ये सब करनी होगी और अपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में व्यतीत करना चाहिए सहज- बहुत ही कीमती है, जो बहुत महान है । वह प्राप्त करने के लिए, ओर प्राप्त होने के बाद प्रात्मसात करने के लिए आप अपना समय उसे दीजिए । अब तक जो सहजयोग में कहा गया है वह सभी जीवंत प्रक्रिया है। जिस समय नये लोगों का सहजयोग की तरफ बढ़ना बिलकुल खत्म हो जाएगा उस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, तो देखते हैं सहजयोग की तरफ कितने लोग बढ़ते हैं। अर्थात् कितने लोग आएगे, उसकी भी मर्यादा है । लोग, लोगों को खाना खाने को प्रामंत्रित कुछ करते हैं, ज्यादा से ज्यादा किसी के जन्म दिवस पर उसे केक देंगे या कुछ उपहार देगे। क्रिसमस के समय लंदन में शुभेच्छा कार्ड भेजने की प्रथा है । तब पोस्ट ऑफिस में एसे कार्डों का ढेर लगता है। इसलिए मैं फिर एक वार अपसे विनती करती तब और चिट्टियाँ लोगों को १०-१० दिन नहीं है। आपका जितना भी मित्र परिवार है, रिश्ते- मिलतीं । इन सबमें योगू के जन्मोत्सव पर वहाँ दार हैं, अरडौसी-पड़ौसी हैं उन सबको लेकर आप के लोग श्री यीशू को पूर्णतः भूले हैं । उल्टे श्री यीशू के जन्म दिन पर वहाँ के लोग शपेन नाम की शराब पीते हैं । इतने महामूरख लोग हैं, कोई मरेगा तब वे शंपेन पिएंगे। इतनी गंदगी है कि शंपेन पीना तो उनका धर्म हो गया है। सहजयोग में आइए। जब इस बंवई में बहुत से लोग रपार ध्द्धा से, गंभी रता से सहजयोग में प्रस्थापित होंगे, सहज- योग में आकर प्यार से मिल-जुलकर रहेंगे उसी समय मुझे बहुत खुशी होगी इस बम्बई में सारे भारत देश के हजारों बुद्धिमान और सार्वक लोग हैं जो इस भारत भूमि के भुषरण हैं । पर वे अभी भी हृदय से छोटे हैं। उन्हें मुझे ये ऊपर बतायी गई बातें जरूर कहनी हैं। क्योंकि अव थोड़़े हो समय उनको परमेश्वर की समझ नहीं । और समझंगे भी कैसे? परमेश्वर के बारे में उनके मन में कपोल कल्पित मिथ्या विवार है। आप वहुत सावधान और सजग रहिए। अपने प्राप से ही मत खेलिए । निर्मला योग १६ इस तरह की बीमारियों से पीड़ित होगा या ऐसे व्यक्ति पर महारपत्ति अने की सूचना है । इस- लिए श्री कल्की चक्र को बहत साफ रखना पड़ेगा । इस चक्र में ग्यारह और चक्र हैं। ये चक्र साफ रखने के लिए इस चक्र के ग्यारह चक्रों में ज्यादा से ज्यादा क साफ रखना बा त जरूरी है उनकी दजह में बहुत-सी मुश्किले आने वाली है । मैं प्रार्थना कारती है कि ऐसे संकटों की शुरूत बंबई से ना हो। वस्बई तो एक-दो बार मुश्किलों से बची है। तो अब साववान रहिए । दूसरी बात ये क्रि, अभी तक बंबई के लोगों को पता नहीं उनके ऊर कोन-सी बड़ी मुश्किल आकर गिरने वालो है। उन्हें ये भी पता नहींी कि परमेश्वर समस्त मान व को अमीवा से तक कसे लाया है। परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग में एक दुर्दवी ये है कि इस देश के सभी लोन बवई के लोगों का अनुकरण करते हैं । बहुत से लोग पर- मेश्वर प्राप्ति के लिए यह्न करने के बजाय सिने नट क्या करना है वह देखते हैं । सर्वप्रथम हमें पर- या नटीयों (film actors or actresses) का अनुक्ररण करने में मनन हैं । ये सब स्वभाव की प्रति अदरयुक्त भय (awe) दोनों ही चाहिए। उथलता है । से आर छोटे छटे चक् चालित कर पाते हैं। पूर के पूर न्यारह चक्रों पर पकड़ होगी तो ऐसे व्यक्तिप्रों को श्रात्म-साक्षात्कार देना बहुत है की स्थिति में मनुष्य कठिन होता है । ब श्री कल्की का चक्र साफ रखने के लिए मेश्वर के प्रति अत्यंत आदर, प्रेम शरर उनके अगर आपको परमेदवर के प्रति व्यार नहीं होगा, अ/दर नहीं होगा या कोई ग लतो या पाप करते समय पर मेश्वर की भय नहीं लग रही है, उस समय थी कल्की शक्ति अपने अरति क्षोभ से (क्रोध से) सिद्ध है, सजज है । अगर आप गलती कर रहे ही प्रौर उसके प्रति आपके मन में परमेश्व र का क श्री कल्की शक्ति का स्थान अपापके कपाल के भाल प्रदेश पर है । जिस समय कल्की चक्र पकड़ा जाता है उस समय ऐसे लोगों का पूरा सिर भारी होता है । कुण्डलिनी को अपने उस चक्र के आगे नहीं ले जा सकते । ऐसे मनुष्य में कुण्डलिनी ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक आ सकती है। परत्त फिर जरी भी डर या भय नहीं है तो समझ लीजिए से कुण्डलिनी नीचे जा गिरती है अपना सिर गलत लोग या अगुरुथों के पाव पर रखा होगा तो आपकी भी स्थिति ऐसी हो सकती है। कि श्राप ये गलत काम कर रहे हैं । अगर आप आपके लिए ये देवसवा (divinity) वहुत ही जहाल । अगर श्रापने ह। श्राप अगर पाप कर रहे हैं या गलती करते हैं तो उसमें मुझसे या जरूरत नहीं हैं। अब अपने आपको ये है औ्र किसी से छिपाने की मालूम इसलिए श्री कल्की शाक्ति का एक हिस्सा खराब हो सकता है और इससे एक तरफ का असंतुलन निर्माण हो सकता है । पूरे कपाल पर अगर एक-दो फोड़े होंगे तो समझना বाहिए कि महसुस हैी रहा है कि हम पाप कर रहे हैं तो कृपा अपना कल्की चक्र खराव है। अंगर कल्की चक्र खराब होगा तो ऐ से व्यक्ति पर निश्चत ही बहुत बड़ी मुश्किल (आपत्ति ) आने वाली है। जिस समय अपने कल्की चक्र पर पकड़ होगी उस समय कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, वही हमारी देख अपने हाथ की सभो उंगलियों पर अर हथेली पर और पूरे बदन पर साधारण से ज्यादा गर्मी लगती है। किसी व्यक्ति वे श्री कल्की शक्ति के चक्र कृपा-प्राशीर्वाद की वर्षा करते हैं। परमेश्वर बहुत में पकड़ होगो तो ऐसा व्यक्ति कर्करोग या सहारोग करुरणामय है, कितने करुणामय हैं इसकी आप हृदय में प्रागको पाप कर रहे हों और प्रापके केर के ऐसा कुछ मत करिए । जिस समय आपको परमेश्वर के प्रति प्रदर, भय और प्रेम रहता है उस समय आप जानते हैं भाल कर रहा है, और वही हमारा उद्घार कर रहा है। वे उनकी शक्ति के कारण हमारे ऊपर निर्मला योग १७ अति उच्च पद मिलेगा । कुल्पना नहीं कर सकते । वे करुणा के सागर हैं । परन्तु वे जितने करुरामय हैं उतने हो वे क्रद्ध भी अगर उन्का कोप हो गया तो बचना वड़ा मुश्किल TI आज आप करोड़पति होंगे, आप बहुत अमीर हैं। हैं। फिर उन्हें कोई नहीं रोक सकता । मे रे प्यार की अवाज भी उस समय नहीं सूनी जाएगी। क्योंकि परन्तु जो परमेश्वर को प्रिय है, जो मान्य है, उन्हों वे उस समय कह सकते हैं कि 'मां, प्रापने वच्चों को छुट दे दी और बच्चे विगड़ गये मैं आपसे कहना चाहती है कि कोई भी गलत या बरे कृत्य मत करो । उससे मेरे नाम पर बुराई मतह होंगे दड़े पुजारी या वेसे ही कुछ ैग या बहुत की परमेश्व र के राज्य में उच्चतम पद पर विराज- मान किया जाएगा। आप रईस या लखोंपती बनने पर आप को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश हैं, ये अगर आपका विचार होगा तो बह बहुत गलत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि परमेश्व र' प्रापति के लिए हम कहाँ हैं ये देखकर प्रथम अपना पर- ।" इसलिए लाओ। आपकी मां का हृदय इतना प्रम से भरा, ईतना नाजुक है कि ये सारी बात प्रापको बताते भी मुझे मुझश्किल लगता है । मैं फिर से आपको हुए मेश्वर से संबंध घटित होना आवश्यक है। स्वयं विनतो करके बताती हैं बर्वाद कीजिए क्योंकि वितामह परमेश्वर वहुत कुपित है । [आपने अगर कोई बूरा कृत्य किया सहजयगि को प्राप्त होने के बाद ही होता है । तो वे अपको सजा देंगे । परन्तु अगर अपने उनके लिए या अपने स्वयं के आत्म-साक्षात्कार के लिए किया तब आप को परमेश्वर के राज्य में की आत्मा कहाँ है. ? परमेश्वर से हम किस तरह संबंधित हो सकते हैं, इन सारी बातों का रहस्य कि पअ्रव व्यर्थ समय मत साधकों को सहजयोग में आकर अपना सर्वोपरि उत्कर्ष साधकर अपना कल्याण कर लेना चाहिए । सभी को अनन्त आशी्वाद । कुछ परमपूज्य श्री माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी अनुवाद With best compliments from MCDOWELL & CO. LTD. (Fast Food Division) PLOT NO. 5, SAKET, NEW DELHI निरमला योग १८ ॥ जय श्री माता जी ॥ *ैं निर्मल वाणी शर सहजयोग में पार होने के बाद बनना पड़ता है। वगेर बने सहजयोग हाथ नहीं लगता । मां ने १. आपको पानी में उतार दिया, लेकिन तैसाक बन करके भी आपको सीखना होगा कि अराप दूसरों को कैसे तेरना सिखा सकते हैं । आपको पूरी तरह से बनना पड़ता है। सहजयोग का तरीका है कि पहले अपने आदर्श से, अपते व्यक्तिस्व से दूसरों को प्रभावित करना । जब दूसरा प्रभावित हो जाए तो धोरे-धीरे उसे सहज में लाओ । पूर्ण स्त्रतन्त्रता में आना होता है । आज नहीं कल ठोक हो जाएगा। ये ख्याल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे हैं तो हमारे साथ अनेक' बन रहे हैं। और वो जो अनेक हैं उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है। हम करसे बन रहे हैं ये बहुत जरूरी चीज़ है । छ] ३. एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से घ्यान में बैठना बहुत बड़ी चीज है । ध्यान में गति करना यही आपका कार्य है । और कुछ भी प्रापका कार्य नहीं है । बाकी स् हो रहा है । ध्यान में बढ़ने के लिए एक गुण बहुत जरूरी है। उसको कहते हैं Innocence -भओलापन, स्वच्छ, एक छोटे बच्चे जैसा- "पूर्णतया Innocent होना चाहिए । कोशिश करनी चाहिए, इससे आ्रपका आज्ञा चक़र भी एकदम साफ हो जाएगा । 1. ॐ आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आप के साथ करेगा । आप उससे कहेंगे "शांति दो" "संतोष दो" "मेरे अदर सुन्दर चरित्र दो", "मेरे अन्दर प्रेम दो", "मुझे माधुयं दो मिठास दो।" जो भी उनसे मांगोंगे, वो तुम्हें देगा।। और कुछ नहीं अपने लिए मांगो- इस बूंद को अपने सागर में समा लो।" "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो ।" उससे प्राथना करिए- "मुभे विशाल करो । मुझके समझदार करो । तुम्हारी चेतना मुझे दो । तुम्हारा ज्ञान मूझे बताओ। सारे संसार में प्रेम का राज्य हो । उसके लिए मेरा दीप जलने दो। उसी में ये शरीर, मन, हृदय रत रहे ।" ४. "मुझे प्रपने चरणों में समा लो । " मेरी निमंला योग १६ इस त रह सुन्दर सुन्दर बातें उस परमात्मा से मांगो। है। लेकिन जो असली है वह मांगो तो क्या वह नहीं देगा ? यूँ ही ऊपरी त रह से नहीं, 'अन्दर से" अंतरिक हो करके मँगो। तुम असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे ही देता अहकार एक दीर्घका्य समस्या है। इसका समाधान दूसरों को क्षमा करता है। आपको क्षमा करना सोखना चाहिए। प्रातःकाल से संध्या तक क्षमाप्रार्थी बने रहें श्रौर ग्रपने दोनों कानों को खींचे, औ्र कहें कि हे परमात्मा हमें क्षमा कर । प्रातःकाल से सायंकाल तक उसका स्मरण करते रहें । सदा याद करने से जेसस क्राइस्ट आपके अ्रहंकार को नीचे ले आयेंगे । छैः ६ जो ग्रादमी सहजयोगो है उसे वीरतापूर्वक प्रपने मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। कितनी भी रुकावटें ६. प्राये । घरबाले हैं परिवार वाले हैं, ये हैं, वो हैं, तमाशे हैं, इनका कोई मतलब नहीं। इस जन्म में आपको पाना है और अपके पाने से और लोग पा गये तो उनका धन्य है, उनका भाग्य है। नहीं पा गये तो आप क्या उनको अपने हाथ से पकड़कर ऊपर ले जाोगे ? यह तो ऐसा हो गया कि प्राप समूद्र में जायें प्रौर प्रपने परों में बड़े बड़े पत्थर जोड़ लें और कहें कि 'समुद्र देखो, मुझे तो तैराकर ले जाओ । समुद्र कहेगा कि, "भई, ये पत्थर तो छोड़ो पहले पेर के, नहीं तो कैसे ले जाऊँगा, मैं ? पेर में आपने बड़े-बड़े भार बाँध दिये तो उनको कटवा ही देना अच्छा है। और नहीं कटा सकते तो इतना तो करो कि उनसे परे रहो। इस तरह की चोजें जो पने पैर में बांध रखी हैं, उसे एकदम तोड़-तोड़ कर ऊपर उठ जाओ । ऐसी कितनी वाधायें हैं और यह फालतू की बावाये लगा लेने से कोई फायदा नही । अन्त में यही कहता चाहिये कि जिस मस्तिष्क में, जिस सहस्त्रार में प्रेम नहीं हो वहाँ हमारा बास नहीं है। दिमाग में सिर्फ प्रेम ही की बात करना है । यही सोचना चाहिए कि सारी चीज़ मैं प्रेम में कर रहा हूँ ? मेरा ये सब कुछ वोलना, करना-घरना क्या प्रेम में हो रहा है ? किसी को मार-पीट भी सकते हैं आप प्रेम में। इसमें हर्ज নहीं। अगर झठ बात हो तो मार सकते हैं, कोई हज नहीं। लेकित यह क्या जम में हो रहा है । जिससे किसी का हित हो वहो प्रेम है । तो क्या आप इस तरह का प्रेम कर रहे हैं कि जिससे उनका हित हो ? एक ही शक्ति है 'प्रम', जिससे आकारित होने से सब चोज सुन्दर, सुडौल ग्रौर व्यवस्थित हो सकती है । आनी चाहिए कि प्रेम के लक्षरण में क्या हैं। ॐ] यदि आपको 'निः भावना अपने प्रन्दर प्रतिष्ठित करनी है तो जब भी आपके मन में विचार आये ८. निर्मला योग २० तो कहिये "यह कुछ नहीं है । यह सब भ्रम है, मिथ्या है ।" प्रापको बारम्बार यहू भाव लाना है । अरतः दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि यह सब "कुछ नहीं है। केवल ब्रह्म सत्य है, अन्य सव मिथ्या है । जीवन के प्रत्येकक्षेत्र में अ्रपको यह दृष्टिकोंण अपनाना है, तब आप सहजयोग को समझंगे । मेरा हृदय, मन, शरीर हर समय आप ही की सेवा में संलग्न है । वह एक पल भी प्रापसे दूर नहीं है । जब भी आप मुझे सिर्फ आँख बंद करके याद कर लें उसी बक्त मैं पूर्ण হान्ति लेकर के, एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा, लेकिन आप को मेरा होना पड़गा, ये जररी है, अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी मुझे नहीं लगेगा, मैं गरापके पास प जाऊंगी। १०. मैंने आपको हिसाब किताब बताया है। तन्त्र अपना साफ रखो और रास्ता अपना ऊपर का देखो, नीचे का नहीं । [फ्ड कः ११. सहजयोगी को संतुष्टता इसके आसपास के वातावरण पर निर्भर नहीं है क्यों न हो, वह उसे सुखदायी ही लगना चाहिए । वातावरण केसा भी १२. "ग्राप अपने हृदय में विनम्र होइए। आपका हृदय आपकी आत्मा है। " ्रा छं] छ १३. "प्रातः से सन्ध्या तक क्षमाप्रार्थी बने रहें और अपने दोनों कानों को खीचे और कहें कि 'हे परमात्मा हमें क्षमा कर । प्रातः से सन्ध्या तक उसका स्मरण करते रहे । सदा याद करने से श्री जेसस क्राइस्ट आपके अहंकार को नी चे ले आयेंगे ।" १४. "समस्त बुराइयोँ अरज्ञा चक्र में एकत्र होती हैं अतः आपको अपनी आंखों को स्वच्छ रखने के लिए अपनी आज्ञा को साफ करना होगा ।" निरमला योग २१ he 5 जय माता जो आरम कथ्य अपने आपके अहं को, कभी न समझो मीत छुद्मवेषष में रह कर, करता है यह प्रीत ॥१॥ कोई नहीं अपने अहं को जीतना, है यही सच्ची जीत।|२॥ है शत्रु, कोई नहीं है मोत । अपने अरहं पर रखो, हरदम कड़ी नजर । अपने व्यवहार से कभी, रहो न बेखवर ।।३ । 'स्व' से लड़ना 'स्व' को जीतना, है सहज सिद्धान्त । फिर 'स्व' से करना मित्रता, तब होता मन शाँत ॥४ ॥ ही शत्रु, स्वयं मित्र, स्वयं सब समर्थ । है जीवन का अर्थ ॥५।। स्वयं स्वयं को ही जीतना, सहज की शक्ति से, करो स्वयं का सुधार । स्वयं ही तू सकता, है अपना उद्धार ।॥६॥ कर कथनी करनी में भला, क्यों रखते हो फर्क । बढ़ता अविश्वास इससे, जीवन होता नर्क ॥७॥ सहज में रहना सीखो, हरदम रहो सतर्कं । करो अपने ही वंधुओं से, कुतर्क ॥८॥ न विचारों, वचनों, करतूतों से, क्यों पहुँचाते ठेस । क्या यही शिष्टता तेरी, देना खुद को क्लेस ।।&॥ प्रिय-वाणी बोलना, है सहज आनन्द । का नहीं पसंद ।॥१०1॥ में किसे, जीना सुख-शांति विन्र, शाँत, सौम्य, शिष्ट, हो तेरा व्यवहार । वचन में, संतुलन ही है सार ।। ११।। खान-पान, आत्म-चिन्तन, आत्म परीक्षण, रहना स्वच्छंद । होकर आत्म परायण, लूटो जीवन का आनन्द ।॥१२॥ निर्मला योग २२ গic. स्वार्थ को पाना ही, इस तन का सदुपयोग । करो निरंतर सहजयोग ।॥१२॥ त्याग आलस्यता को, मंदिर, मसजिद गिरजा, इस तन को जान । परमात्मा, अ्रोर ने दूजो आत्मा ही भगवान ।॥१३॥॥ तन मन, भाव, निर्मल, निर्मल चित और धाम। विचार, वातावरण, निरमंल हों सब वचन, काम ।॥१४॥ सहजयोग के अभ्यास से, धुल जाते सब मैल । 'निर्मत चित्" में देखिये, सुष्टि का सब खेल ।। १५।। पाया आत्म-साक्षात्कार अरजून, देखा रूप विराट । अद्ुत लीलधारी श्री कृष्ण ही, सकल सुष्टि-सम्राट ।। १६।। परमेश्वरि प्रादिशक्ति की है यह अनुपम लीला। शक्ति, भक्ति, मुक्ति सहज में, देतीं माँ निर्मला li१७|। कविता मंडराये जब बादल काले, घनघोर अँघेरा छाये । पंथ सूझ नहि पाये, भटकी मानवता घबराये ।।१।। जब संकेत तेरा, सहज तब जग को राह दिखाये । तेरी रोशनी की किरणें, जीवन-पथ, उज्ज्वल बनायें ।॥२|॥ सारी दुनियाँ तेरा गुलिस्ताँन, जब तेरे गुल मुरझायें । सौंचा, लहरायें ।॥३।| तब तूने जीवनामृत उपवन वन फिर वरसे बरसात, हरी-भरी हुई प्रेमामृत जीवन अब आनंद भरा ॥४॥ धरा । पान कर का निर्मला योग २३ जय निर्मला माता 15 भजन है माँ ! ते री तेरा सब तेरे । हम शाये। में হरण पाये || प्रेम दुख दूर हुए हमारे ॥ हे मां ! ॥१॥ हुआ। हुआ।। हुआ। हुप्रा || पाये जब दर्शन तेरे ।। हे मा! ।।२|॥ तन स्वस्थ मन मुक्त आह्लादित उन्मुक्त हृदय जीवन चिन्ता हटी । गई चाह भय-शोक सब यातनाएं मिटीं । फांद गये भव घेरे ।। हे माँ ! ॥३॥ माया-जाल । कट गया गये जग-जंजाल ।। छुट गये अब जन्म-जन्म के फेरे।।हे मा! ।।४। जल हट गया तम का आवरर आलोकित करण करण। । हुआ अब दूर हुए अंधेरे ॥ हे माँ !।| ५।॥ पवित्र प्रात्मा का दर्शन मिला । अनंत जीवन का कमल खिला ।। प्रभु के साम्राज्य में हैं आनंद घनेरे हि मा ! ॥६॥ जय माता जी ! "सहजयोग में आने के बाद घर्मं का साँचा बन जाता है। आपको ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता है । मनुष्य में अपने प्राप शुद्धता पवित्रता जागृत होती है । उसे दूसरी स्त्रियों के प्रति कोई पाकर्षण नहीं रहता क्योंकि वह समाधानी हो जाता है । री श्री माताजी "जब ब्रह्मतत्व जागृत होता है तब अपने पूरे कार्यक्षेत्र में जो कुछ भी हम करते हैं उसमें एक प्रकार की तेजस्विता आती है और उस कृति में एक प्रकार की शिष्टता आ जाती है । श्री माताजी निरमला योग २४ ি जय श्री माता जी Lन मानव चेतना यंत्र सदृश, शर सर्वोत्तम यह यंत्र है, यंत्रों कोई यंत्र । का निर्माता यंत्र ॥१॥ मानव तन न स्व' के तंत्र से, यंत्र । स्वचालित यह तु परतंत्र ॥२॥ स्वतंत्रता ही आनन्द, मत बन अपने भौतिक यंत्रों के पीछे. क्यों करता उसका नास ।।३।। निरंतर करो विकास | आप के यंत्र का, क म दिखाता दूर-दर्शन । दृश्य को, तन यंत्र में, होता सुष्टि-दर्शन ॥४॥ देश के दूर मानव पर |।४।। उदर पेंठ शिशु राम के, देखा अगरिणत व्रह्माण्ड । विस्मित, विनीत कागभुशु डि., पाया भक्ति अखंड I॥५॥ आश्चर्य चकित मां यशुमति, लखि बाल कृष्ण मुखमांहि । सचराचर, अरद्भुत अपूर्व दिखाँहि ।1३॥ सकल जगत चेतन यंत्र के, हैं है ऊँचे मानव आयाम । क्षेत्र में, करता के अारमा यह काम ।I७।॥ है सहजयोग चेतना करते रिकार्ड परम' प्रयोग का, अदुसुत । विज्ञानी जीवनमुक्त ।।८॥ का, टी० वी०, कैमरा, टेपरिकार्डर, कार फ्रिज और वाच । आ्राधुनिक सबको फैशन-परस्ती, नचाये नाच ।।६।। है कोई नही शांति की ध्वनि सूने, खींचे अलख को चित्र॥१० ॥ यंत्र | मानव तन सदृश, का अर्थ । के रहते हो, है जड़ चीजों इन तन इसके जाते हो ही, जाते सब व्यर्थ ।।११।। he he H ।े Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 जी जय श्री माता जीवन" के गोत "अनंत (१) ( २) वीग्णा के, हे मां ! तेरो वीरणा के, हर पल का तुभ प्रणाम । हो तेरे नाम, हर गीत में तेरा गूरागान ।। जोवन माँ ! है जाये । बन स्वर मधुर संगीत से मत्र जग को, हर साँस में जाये ॥ १|॥| कर मुरध ते री मरली की के तान बन, ्वाल वालों को बुलायं । . तेरे प्रम का प्रकाशित, में हो मुस्कान ।।२॥ में तन कण-क सन्दन । है नीचामयी, तेरी लोला में, पानद मरत हो वाणी चित् हो जायें |२|| हैं। दें. जीवन हों को सुख प्रेम एवन बन कर, गोसे हमार काम । सारे जग में लहराये। महकार्य बातीवरस तेरे उपवन के सुमन का. प्रनाम ।।३। केमल अात सौरभ बन जग में भर जाय ।॥३॥ मक विधि पभिक्यक्ति, तेरी तेरी कृति की वाणी वत विविध प्रेम के तेरे कर तरंग नन सुंदेश दीप पहुँचायं । नाम । कला का प्राकाश कर, बन फैलाये ।।। गान ।।४ । गाये सबंत्र मधूर प्रकाश प्नंत जीवन का पथ बन जाय । वितरण जीवन अनंत जोव। के साम्राज्य में, करें का. यानद बने हर भटके राहो को राह दिखाय। महात । इस जीवन का अर्थ यही, वर्ग धाम ।।५॥ तेरो इक्छा में ढल जाय ।।५।। धरा बने भ० ।त७ पट Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Dlhi-110007 and Printedat Ratnadeep Press. Darys Gani. New Delhi-110002. "৮ her ---------------------- 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt fनिर्मला योग नवम्बर -दिसम्बर १६८४ द्विमासिक वेष ३ अक १६ पुन परी 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt क्षमा प्रार्थना निर्दोषी मैं आपका, मैं निर्दोषी बालक बालक फिर भी यदि कुछ भूल हुई हो, क्षमा करें हे क्षमादायिनी क्षमा करें हे प्रभु गणेश जी, क्षमा करें कुण्डलिनी मां जी क्षमा कर है मातु सरस्वती, क्षमा कर मा लक्ष्मी जी क्षमा करें हे प्रभू शेष जी, क्षमा करें इस बालक को- मैं निर्दोषी आपका मैं निर्दोषी बालक बालक क्षमा करें गुरु दत्तात्रेय जो क्षमा करें माँ पार्वती जी क्षमा करें जगदम्बे माँ जी, क्षमा क्षमा करें विष्णु ग्रंथिविभेदिनी, क्षमा करें इस बालक को-२ करें माँ सीता जी मैं निर्दोषी बालक आपका. में निर्दोषी बालक क्षमा करें हैं प्रभु विराट जी क्षमा करें मा राधा जी क्षमा करें हें यशोदा मां जी, ६्षमा करें विष्णु माया जी क्षमा करें हंसवक़ स्वामिनी, क्षमा करें इस बालक को-३ मैं निर्दोषी बालक आपका, मैं निर्दोषी बालक क्षमा करें प्रभु बुद्ध महावीर जी, क्षमा करें माँ मेरी जी क्षमा करें हे मोक्षप्रदायिनी, क्षमा करें सहब्रार स्वामिनी जी क्षमा करें हें निर्मल माँ जी, क्षमा करें इस बालक को-४ मैं निर्दोषी मैं निर्दोषी वालक आपका, बालक फिर भी यदि कुछ भूल हुई हो, क्षमा कर हें क्षमादायिनी -भरार० आर०] सिंह, पुणे 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt हं শ सम्पादकीय बुंद अपने को सागर में समाहित करके ही सागर को समझ सकता है तथा उसका आनन्द उठा सकता है । उसी प्रकार परमात्मा को समझने के लिए आत्मा शरौर परमात्मा का एकीकरण आवश्यक है। यह कार्य श्री माताजी वर्षों से कर रही हैं । हम सभी का यह परम पुनीत कर्त्तव्य है कि कुण्डलिनी जागृति द्वारा स्वयं प्पने आ्रापको उस परमपिता परमेश्वर में समाहित करके परमानन्द को प्राप्त करें तथा इस कार्य में परमपूज्य परमेश्वरी आदिशक्ति श्री माताजी के कार्य में हर सम्मव सहायता के लिए अपने आपको सम्मापत करे । यही हमारी साधना और भक्ति है । क ओम त्वमेव साक्षात् परम परमेश्वरी आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः । निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक माताजी श्री निर्मला देवी : परमपूज्य : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पैट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ : लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वन्क्रुवर, बी. सी. बी ५ जैड ३ केर यू .एस.ए. का यू के. श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन सर्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५पी. एच. श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन बोरीवली (पश्चिमी) वम्बई-४००००२ भारत इस अंक में ' १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. प्रचार कार्य ५. सहजयोग प्रर कल्की शक्ति (परमपूज्य माताजी का प्रवचन) ६. निर्मल वाणी पृष्ठ ३ १० १६ ता २२ ७. आत्म कथ्य २३ ८. कविता २४ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर ६. भजन १०. क्षमा प्रार्थना ११. मानव चेतना यंत्र १२. अ्रनन्त जीवन के गीत ला 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt पर नपूज्य श्री माताजी का प्रवचन सहज मंदिर, नई दिल्ली ७ মई १६८३ आपका चित्त अगर इन हैं। तो पहली बात यह है कि चित्त को अ्रपनी (वाह्य) चीज़ों में उलभा रहेगा, तो ठीक वात नहीं है । इसलिए इन सब चीजों को छोड़कर अपने चित्त को प्रपने जाएगा। हृदय मैं लाते हुए प्रात्मा की ओर करें । चित्त श्रात्मा की चाहिए। ध्यान-धारणी करने से आपका चित्त आरत्मा में रखें । माने जिस चीज़ में हम बहुत ज्यादा उलभे हुए हैं उसको आप हटा लें, नहीं ती ये चित्त जो है वह पूरी तरह से इधर-उधर हो उसके लिए आपको ध्यान-धारणा करनी ओर रखें। कभी कभो हम सोचते हैं कि हम अगर ज्यादा रूपया कमा ले तो बड़ा भारी कमाल कर की अर देखते हैं, जब आत्मा चित्त हो जाती है देंगे । लेकिन जो लोग बहुत रूपया कमाते हैं, तो आप आत्मा में साक्षीस्वरूप हो जाते हैं। हर आप उनकी हालत देखिए । यह नहीं कि आप चीज आपको काफी बड़ी dimension (गहनता) रूपया मत कमाइए। लेकिन आपके जीवन का लक्ष्य रूपया कमाना नहीं है। आपके जीवन का लक्ष्य अपनी आत्मा को पाना है। अआत्मा को पाते ही बाकी सब चोज़ खत्म हो जाती हैं। 'अपने आाप बाकी की सब चीजें घटित हो जाती हैं। इसलिए पहले यह सोचना चाहिए कि हमारा चित्त आ्रत्मा । जैसे कि नामदेव ने एक बहुत सुन्दर आत्मा में ही रहेगा। अभी तक तो आप आरत्मा में दिखाई देती है । आज हम गये थे कश्मीर ऐम्पोरीयम और वहाँ पर बहुत से लोगों को पार किया। तत्पश्चात् वहाँ पर कुछ लोग (कर्मचारी) इसी ताक में हैं कि कब लोग जावें कि हम बन्द करें। तभी किसी ने कहा कि "माता जी आज जरूर अपने यहां प्रायेंगी में रहे कविता लिखी है । उस कविता में उन्होंने लिखा है "म.ताजी यहीं हैं और आज श्राने वाली हैं ।" कि एक लड़को आकाश में पतंग उडा रहा है, और वह दोस्तों से बात-चीत भी कर रहा हैं. इधर यह उसे कसे पता चला ? कारण कि जब व्यक्ति अपनी गहनता में जाता है तो उसकी गहनता में ही सारी सामूहिक चेतना है । वहां सब तरह के tele- Communications (दूरसंचार) हैं। सब तरह के इन्तजामात है। जब मनुष्य उस संतह में बंठता है तो बह फोरन सब कुछ जान जाता है । लेकिन जब 1. उधर देख भी रहा है, लेकिन उसका सारा चित्त पतंग की ओर है। एक मां है, अपने बच्चे को गोद में लेकर सारा काम कर रही है, कभी भुकती है, कभी कुछ शर कार्य करती है, लेकिन, उसका चित्त बच्चे की तरफ है। उन्होंने कहा है तक अ्रप उस सतह तक नहीं पहुँचते तभी तक तो पूरा कि एक रखकर चल रही है, उसकी सहेलियां उसके साथ चल रही हैं, हैं, इधर-उधर की बातें हो रही है. वो हंसती भी हैं, लेकिन उसका पूरा चित्त उस मटकी की ओर मूझे इतना रुपया कमाना है, मृभे तोकरी लेनी हैं, आपको परिशानी है यदि आप उस सतह में पहुँच जाएं तो किसी भी चीज़ की परेशानी नहीं रह जाती । आप निर्विचारिता में रहते हैं । औरत अपने सिर पर मटकी बातें कर रही ले किन जब आप हमेशा यह सोचते हैं कि निमला योग ३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt मुझे चुनाव लड़ना है इत्यादि, जैसे-जैसे आपका चंतन्यलहरी (बाइय्रेशन) खो गये, शक्ल-सूरत बदल वित्त इन चोजों में पड़ता है, वैसे-वैसे आपकी गई, और सब बेकार चला गया। मातसिकता अर्वरुद्ध हो जाती है । आप बढ़ नहीं सकते । का उसी प्रकार left side की बात है कि आप भावुकता में बढ़ गये, श्रीर तब भी उसी प्रकार हो अब तो हम जा रहे हैं हमारा तो काम यही है गया। कि आप लोगों को ठेलते रहें, ताकि आपको ठेलना आए, और आप लोग उसका मजा उठाएं। आप अपनी ओर चित्त रखें । आप जब प्रथने को ठेलते इसके लिए कोई भी अतिक्रमण (extremes) करने रहिएगा तो आपकी यात्मा जो प्रापके अ्रन्दर की जरूरत नहीं है । कोई भी ऐसा काम करने की विराजमान है, वो जागृत होगी प्रोर वही आ्ापकों जरूरत नहीं है, जिससे आपके अन्दर अतिक्रमणता मार्गदर्शन देगी और आप लोग एक बड़े सन्तोष अतः अपने प्रन्दर का जो धम है उसे संभालिए | आह] (extremity) आए। यदि अपके अन्दर है, तो उसे छोड़ने की कोशिश कीजिए। ही किसी चीज से तिरस करते हैं, तो उसे छोड़ने की कोशिश कीजिए। और मध्य में आने की कोशिश यदि आप बहत में रहेंगे। यह सब बहुतों में घटित हो गई है, बहुतों में हो रही है, और बहुतों में होने वाली है । । इस प्रकार सबको यही सोचना चाहिए कि हम कीजिए जहाँ से मध्य बिन्दु, से, आप पूरी परिवि को यह काम करना है, यह चींज करनी है, ये पर देख सक ते हैं । चीज है । [प्रौर जितनी भी हमारे यहाँ या जो भी चीजें हैं, उनसे उलझने की जरूरत नहीं है । यदि उनसे भी हम धबराते रहेंगे तो उसमें (दाहिने) में चले गये, या left (वांये) में चले गए, भी फंस सकते हैं । अतः उस आर चित्त ले खत्म हो जाने की आवश्यकता नहीं है । हम अपनी आत्मा को ओर चित्त रखे। श्रुटियां हैं अगर भप मध्य बिन्दु से हटकर ight तो सारा ही balance (संतुलन ) जाएगा। तो दो चीजों की ओर बहुत घ्यान रखना चाहिए, कि हमारा चित्त आात्मा की ओर है या एक दूसरी बात और है कि हमा रा संतुलन हमारे अन्दर है या नहीं। यानी हमारा वर्मं अन्दर नहीं, और हम संतुलन में हैं या नहीं । प्रज्ज्वलित है या नहीं। समझ लीजिए, कोई आदमी right sided है, बहुत सोचता है, तो उसे थोड़ा अपने को left side में ले जाना चाहिए। यदि काम करना कोई left sided है, तो उसे चाहिए कि पपने को ये भी करना है, और वो भी सन्तुलन में रखे । बहुत से लोग सोचते हैं कि, "माँ हमें तो बहुत पड़ता है । क्या करे ? हमें करना है । Promotion (पदोन्नति) नहीं हुई, demotion (वनति ) हो गया। हमारा ये हो गया, वो हो गया। इसमें एक मंत्र आप आसानी से समझ side में चला जाता है तो वह चक्कर में फंस सकते हैं कि "जैसे राखहं तँसे ही रहु"-जैसे रखे, जाता है, तो उसे ध्यान नहीं रहता कि मुझे किस वैसे ही रहें । रखने वाला 'वो' है 'बो' जानता ओर लौटकर सहज मार्ग में उतरना है । बस जो है कि आप कौन हैं । आप साधु-संत हैं, आप चक्कर चला, तो चला । गोल-गोल धुमकर जब योगीजन हैं, वो जानता है, आप को कैसे रखना बिल्कुल आखिर में पहुँचे, तो पता चला कि सब हैं | आप लोग कभी-कभी सोचते हैं कि हमारे पास अब यह चककूरबाजी है, यदि आदमी right स निर्मला योग ४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt अगर पैसा कम है, तो "उसने हमारे खिए व्या किया ?" अगर हमारे सामने कोई समस्या खड़ी हो गई तो फिर "भई भगवान ने हमारे लिए क्या किया ?" दे देगा। अगर उसके पीछे चलिए तो बो आपको लात मार देगा । इसलिए प्रापको बढ़त संभल कर रहना चाहिए कि आप मन पर सवार रहें । ये नहीं कि मन आप पर, मतलव गधा श्राप पर, सवार रहे। ये गलत बात है। ये तो आपकी अपनी दिमागी समस्याएं हैं परमात्मा ने आपके लिए कोई समस्या नही रखी है । [आप उसे अपनी समस्या समझे तो प्रच्छा है । शोक है, मैं क्या करू ? अब मुझसे नहीं होता ले किन जैसे ही ये आपके अन्दर प्र जे से राखूं तेसे ही रहे" बसे आपका कल्याण हो अगर कहा, तो रह जাइये। इसमें नुकसान आपका जावे । तो मन हमारा यहाँ बह गया मुझे ये जाए कि मै नहीं कर सकता । मुझसे नहीं बनता । ये है, और किसी का नुकसान नहीं। वयोंकि आप सहजयोग में आए हैं, परम् पाने के लिए। और जो परम पाने के लिए आए हैं उनको परम पाना अब प्राप तो माँ को जानते ही है हू में यधोँ सुला दोजिए. हम सो जाएंगे। वहाँ बैठे हम तो भई comfort (गाराम) नाम की चीज़ जानते नहीं। ये तो आप जानते हैं हमारे बारे में । नाहिए। ओर बाकी तो सब्र चीज़ व्यर्थ है। अरब रही बात अति-कर्मी लोगों की, " मूझे रोज़ ये बहुत कोरय है। मुझे ये काम करना है ।" रोचना चाहिए गपने मन में कि हमने आज दिन मं सहजयोग के लिए कौन-सा काम किया। उसी प्रकार आपको जो है, अपने झा रीर को इस level (स्तर) पर लाना चाहिए कि, "साहब आप जो हैं, अब परमात्मा के सामने हैं, इसलिए ज्यादा नखरे करने की जरूरत नहीं है ।" और दूसरे शरीर को कष्ट भी नहीं देने चाहिए । वीचों- कर लिए, मां से वाइब्रेशन ले लिए। "माँ हमको बीच रहना चाहिए। शरी र को प्रति कण्ट भी देना ठीक कर दो। मेरे पति को ठीक कर दो । मेरे वेटे नहीं चाहिए भौर शरीर को 'बहत' ज्यादा आराम को ठोक कर दो। मेरे फलाने को ठीक कर दो । देने की भी कोई बात नहीं । सहजयोगियों के लिए माँ की तो मेहनत चली गई, पर 'य्प ने सहज- जरूरी है कि किस तरह से प्रपने शरीर को संभाल योग के लिए कोन-सा कार्य किया ? इसके बारे अपने लिए तो कर भी लेते हैं, कि हाथ ऐसे में थोड़ा-सा आापको सोचना चाहिए कि "आज सहजयोग के बारे में मैंने ये सोचा कि ऐसा होना चाहिए ।" अपने विचार आाप ही के अन्दर से विवर ह्ाएगे, आप ही के अन्दर से योजनाएं कर रख । जैसा मैंने आपको मन के लिए भी कहा है। मन बगर बहुत किसी चीज की ओर दौड़ता है, ऐसी जगह जहाँ वो बहुत दोड़ता है, उस की रोकना प्ाएगी । इसलिए देखना कि मेरे दिमाग में ये चाहिए । और ये मन जो है वहत स करके आपको 'कमजोर' बनाता है । तो अपनी शक्ति आप खो देते हैं। ऐसे मन से आप कहना को रात-दिन यही रहेगा कि "मेरी नौकरी को कि, "मुझे बो चीज़ करनी ही नहीं जो तू चाहता है।" तब आपका धीरे-धीरे मन भी बीच में आ जाएगा क्योंकि मन भी गे जैसा होता है । अगर मन के आगे अराप चलिए तो आपको सान जो है वहुत से बहाने खोज योजनाएं आाई कि "ऐसा हो जाए तो प्रच्छा रहेगा। ऐसी योजना हो तो अच्छा होगा ।" नहीं क्या हुआ ? मैरे उसका क्या हूया ? आपको ये भी सोचना चाहिए कि सहजयोग में जो आपने नौकरी ली है, उसका क्या करना है? निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt परमात्मा के जो नोकर आप लोग हैं, उसकी मार खाए चाकरी जो कर रहे हैं, उत्तमें अ्रापने क्या किया ? हुए हैं। जो मार खाए हैं, वो अच्छे हैं। क्योंकि वो झट से गुरू-वुरू छोड़ देते हैं । और जो समझदार हैं, वो भी सोचते हैं कि भई मैंने तो अ्ब सहजयोग में पा लिया है। अ मुझे किसी के पास जाने की जरूरत नहीं। लेकिन जो अधूरे इस तरफ जरूर ध्यान देना चाहिए । फिर मन में भी ये सोचना चाहिए कि जब हम मन से कोई कार्य करते हैं तो क्या हम, किसी के लोग होते हैं, बो ग्राघे तो इंधर गुरू को चिपटते प्रति जो कर रहे हैं, ये क्या हम वास्तव में प्रेम हप्रोर इधर सहजयोग में । ये नहीं कि हम गुरू में कर रहे हैं, या यू ही कर रहे हैं ? अगर हम प्रेम में ही ये कार्य कर रहे हैं, तब तो हम सहज- योगी हैं । लेकिन अगर हम इसलिए ही ये कार्य कर रहे हैं क्योंकि हुमारा मत हमें बाहर बहुका गए, घराप अपने अन्दर आरात्मा हो गए, तब आपको चला ले जा रहा है। ये तो गलत वात है। इस- किमी भी गुरू की शरण में जाने की जरूरत नहीं । लिए मन को control (वश में) करने के लिएमाप प्रपनी आत्मा को पाएं और उसमें ही जितने भी मन से ये पुछो क्या ये सब काम प्रेम में कर रहे हो ?" अच्छी चीज़ है, लेकिन सतगुरू वहुत कम हैं, और भूठे ही गुरू ग्रधिक हैं। और जब आप ही अपने गुरू हो को नहीं मानते हैं । गुरू होना तो बहुत तुम सतगुरू हैं सब हैं। इसलिए ये जो गुरूओं का चक्कर है बड़ा कठिन है । ये समझ लीजिए आपको इच्छा हुई कि आप बहुत' खाना खाएं। साहब क्या करे ? हमें इच्छा हो रही है, हमने खा लिया । अगर कोई आदमी पहले-पहल सहजयोग में श्री जाए और आप उससे कहें, "साहब आप दूसरे गुरू को छोड़िये," तो मार बेठेगा यो। इसलिए बहुत संभल करके ऐसे लोगों से बात करनी चाहिए कि "भई ये तुम्हारे गुरू का चवकर ठीक लिए कर रहे हैं ? क्षा आप प्रपने शरीर के लिएनहीं है । हमारे यहां वहां से लोग आए थे, उनका प्रेम करते हैं ? तो क्या आपको इतना खाना ऐसा-ऐसा हाल हुआ।" धीरे धीरे इस बात को चाहिए ? या क्या प्पपने को इतना नुकसान कर कहता चाहिए क्योकि लोगों को पसन्द नहीं लेना चाहिए ?" हर चीज में श्रगर अराप एक ही आता। गुरू की छाप बड़ी गहरी होती है और लगाएं कि "हम क्या ये चीज़ प्रेम के लिए कर इसलिए आपको इस में बहुत समझकर रहना समझ लीजिए आपने कहा ले किन पूछिये कि 'क्या आप अपने प्रेम के रहे हैं ?" तो आप प्रपने मन को पूरी तरह से चाहिए । जीत सकते हैं । यानि आप उस गवे के ऊपर बैठ सकते हैं, जो गधा आपको बहुका रहा है, बहरहाल आप 'अपते बारे में जब बात सोचते वही आपको वहाँ पहँचा देगा जहाँ प्रापको हैं, तो ये समझे कि "मेरा गुरू मैं ही हैं" माने प्रर उस गुरू को मुझे जागृत कर लेना है और पहुँचना है । उसी से सब कुछ जानना है। जब ये जागृत हो जाता है तो मुझे कुछ नहीं कहना पड़ता। आप खुद ही जानते हैं कि कौन गुरू सही हैं, कोन गुरू सही नहीं है। आप तो उनसे भागा करेंगे। आपने देखा ऐसे गुरू के शि७्य आ्रए, तो उन शिष्यों से भी भागे । लेकिन पहले उतनी sensitivity (संवेदना) के आगे एक और भी आपके अब जो मनुष्य सामने वातें हैं, जो मैं हमेशा रोज-रोज सुनती है कि हम लोगों के गुरूओं के जो चक्कर हैं; फलाने गुरू के पास हम गये थे, उस गुरू के पास हम गये थे, ऐसा हुआ था . क । उसमें से कुछ लोग तो निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt माने ये कि हमारे अन्दर ये समझ नहीं आती कि थाप मब 'एक ही विराट के अंश हैं। जैसे ये उंगली मेरे हाथ का एक अश है, । उसी प्रर आप आनी चाहिए। उतनी संबेदन शक्ति अरानी चाहिए जिससे शाप समझ सके क्या वात है ? क्योंकि हम लोग इस gुross, बिलबुल, जड़ उस नरिराट के अंग-प्रत्यंग है । और आप जागृत जिसमें रहते हैं, उससे अति-मूक्ष्म में उतरना है । हो गए हैं। अब आपके प्रन्दर अगर colectivity और जड़ हमें बार बरार खींचता रहता है। जड़ न आए इसका मतलब है आप अधूरे जागृत हैं। जो है 'हमेशा आत्मा को दबाता है । देखिये, अब अगर मेरी उगली सुन्न हो जाए समझ लीजिए, आप जसे कुर्सी पर बठे हैं। इमलिए कुर्सी को तो इसको पता ही नहीं चलेगा कि वाकी जने व्या छोड़कर आप नीचे नही बंठ सकते । जड़ जो हैं हए ? है न बात ? अगर आप अभी भी सुन्न दशा हमेशा शरीर को दबाता है और शरीर के माध्यम में होंगे से अपनी आत्मा को दबाता है। इसलिए जड़ के जगह क्या है ? ऊर में इतना हमारा चित्त अगर रहता है, इस को हैटी करके हमको अपने सुक्ष्म में लाना है । ती तो अपको पता नहीं चलेगा कि और तो collectivity के विरोध में बहत लोग े हैं । क्योंकि हमारी आदत क्या है ? पहले जाते और सूक्ष्म में लाने के लिए बहत सारी group (दल) बना लिए, इसके बना लिए, उसके बाघाएं हैं। उसमें से सबसे बड़ी बाधा तो ये, बना लिए । ये हम सब लोगों की आदत है । फिर जिससे एकादश पकड़ जाते हैं , दुनिया भर की हम लोग jealousy (ईर्र्या), सहजयोग में भी, बीमारियां हो जाती हैं, केसर की बीमारियां हो आश्चर्य की बात है ! Jealousy (ईश्या )सहजयोग जाती हैं, और बहुत कठिन चीजें हो जाती हैं | तो में कैसे हो सकती है ? हो ही नहीं सकती। किसी अब आपको संभल जाना चाहिए कि हमें अब] जब को ये भी jealousy होती है कि मां मेरे घर पराई, मां जा रही हैं, तो हम अपने को वृक्ष की तरह उनके घर नहीं आई । तेयार कर लें । हमें एक वृक्ष बनना है । जब मां आएंगी, तो देखेंगी कि वृक्ष है । और दूसरी बात ये है कि उसको करने के लिए माँ ने सीधे सरल ही नहीं। मेरा चिपकना बनता ही नहीं। तो जो जो उपाय बताए हैं अ्रब बहुत से लोग कहते हैं, ऐसा इंसान हैं जो चिपकता ही नहीं है, उसके लिए "माँ, हमें time (समय) नहीं मिलता, ये क्या jealousy (ईर्य्या) करनी ? ये भी बेवकूफी की " जब प्राप उसे कर देंगे, त व मापको बात है । अगर कमल के दल पर आप पानी छोड़िये, दस मैं तो निर्मम गादमी हैं, मैं तो कहीं चिपकरती ं नहीं.। इसीको (time) समय मिलेगा और किसो चीज़ को तो उस पर चिपकता ही नहीं है। अगर एक कमल नहीं । क्योंकि इसमें शांति सारे सुखों का जो है 'पूरा" स्वाद है । इसलिए का दल ये सोचे कि मैं बड़ा ऊंचा, और वाकी सोचे धीरे-धीरे इसमें आपको वढ़ना पड़ता है। जब कि इसके यहाँ पानी चमक रहा है और मेरे यहाँ इसका घपको चस्खा लग जाएगा तव मुझे कहना नहीं तो घोरे से पाती लुढ़क जाएगा । क्योंकि पानी पड़ेगा कि अब कुछ कम कारो । इस तरह की बात उस पर चिपकता नहीं है। इसलिए इस तरह की है। इसलिए धोरे-धीरे इसमें मजा उठाना चाहिए वातें कभी करना नहीं, बड़ी क्षुद्र बातें हैं । ऐसी और इसमें वढ़ना चाहिए। शुरू है, आनन्द है, इसमें के दल पर पानी चमक रहा हैं, प्रौर वो कमल कुद्र बात में नहीं पड़ना चाहिए । अब जो दूस री बात, जिसकी बहुत ही मां ने आपको कहो है, वो है collectivity ( सामूहिकता), हमको बड़ा ध्यान है । विचार 'छोटा-छोटा' रहता आप सब हमारी आंखों के तारे हैं अर सबका निर्मला योग 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt है । ये ग्राप खुद जानते हैं कि छोटी-छोटो बातो ही नहीं है । इसलिए अपनी बातचीत में, अपने में आापका रुयाल रखते हैं। लेकिन आपको भी उयत्रहार में, सब चीज़ में, आप में एक सूचारू रूप आना चाहिए, और प्रापकी जो कुछ भी वृति है इसमें बड़ा दानी होना चाहिए। ये नहीं कि आप एक दूपरे का पूरा खूराल र वना चाहिए । वात करते वक्त बहुत ज्यादा नाराजो से, गुस्मे से, argumentative (बहस का) तरीका नही होना चाहिए। कभी एक-दूसरे से डांट करके या उलट करके बात नहीं करनी चाहिए । वहुत एक दूसरे की मदद करना, एक दूसरे से प्रेम से शतिपूर्वक, प्रेमपूर्वक, सबको समझा करके, आराम, से बात करनी चाहिए, जहां तक हो सके अपने अन्दर है; माने ये कि माधुय लाये । इसकी practice (अभ्यास) करनी जो इस हाथ को दुष्व होगा, वो दूसरे हाथ को भी चाहिए अगर आपके यहाँ माता-पिता ने नहीं होना चाहिए । यहां पर जो दुख होगा, वो यहाँ सिखाया है तो आपको अब सीखना पड़ेगा। किस तरह से हम सुमधुर हों। हमारी आवाज भी जो है, ये एक living organism (जीवन्त संरचना) है । ऐसी नहीं होनी चाहिए कि जिसको सुनते ही सात आठ प्रादमी भाग खड़े हों कि "ये कोन ककेश आ गया ?" इसलिए अवाज में भी मिडास होनी चाहिए । उसमें एक माधुय होना चाहिए एक मोहित करने की शक्ति होनी चाहिए। जिससे मनुष्य को लगे कि ये जो बोल रहे हैं, इसमें खिचाव है। इसका भो हमें करना चाहिए। हमारे व्यवहार का, हमारे तौर-त रीकों रखें ? का, सबमे एक सुचारू रूप से जब हम बन जाएंगे औ्र जब दुनिया आप सहजयोगियों को देखेगी तो कहेगी, "भई वाह, वाकई ये तो०.." कजुसी कर रहे हैं। इस प्रकार एक दुसरे का पूरी रूथाल रखना, रहना और सब त्रोज में एक पूरा living organism ( जीवन्त संरकचना) । ये सबको लगना चाहिए कि पर होना चाहिए धोरे-धीरे, मुझे पूरा विश्वास है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। और धीरे-धीरे collectivity (सामूहिकता) का कितना मजा आएगा ! । उसमें और कोई आपका प्रश्न हो तो पूछिए। प्रश्न : श्री माताजी, चित्त को अत्मा में कैसे अ्रभ्यास श्री माताजी : इसके अनेक तरीके हैं। अपने यहां जैसे मंत्र से बताया गया है [अपने] [right hand (दायें हाथ) को हृदय पर रखे और Ileft hand (बायें हाथ) को आप मेरी ओर रखें । और हालांकि आपके अन्दर दीप तो जल गया, ले किन बाहर का अगर कंडील साफ नहीं है तो बार-बार कहें- बारह म्तबा कम से कम कि-मां, वो दीप कसे लेंगे। बाह्य का भी कंडील साफ मैं श्रत्मा हूँ। करना चाहिए। और बाह्य का कंडील साफ करने के बक्त में ये ध्यान रखिए कि आप में अगर ऐसा Left (वांये) से right (दांये) में अगर आप जें सात मतंबा, तो प्रपका हृदय जो है, वो जागृत आप बहुत ही पैसों की बातें करते हैं, या प्राप ही जाता है। और उ सके बाद आप शिवजी का मंत्र बहुत ही ज्यादा किसी दूसरी चोज की बातें करते अगर कहें, आपके हृदय में बसा हआा शिव का जो हैं, तो लोग कहेंगे कि "साहब ये सहजयोगो है ?" ये सहजयोगी नहीं है, व्योंकि जो योग में रहता है वो योगी है । और फिर किसी से आप को लगाव centre (चक्र) है, वो जागृत हो जाएगा । ये दूसरी बात है कि सहस्रार का जों ये ब्रह्म- रन्ध्र है, यही आपका सदाशिव का स्थान है। निमला योग LF 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt इसलिए बरह्म रन्त्र में व्यान प्रगर रखं, तथ भी तरह की जत् प्रार्थना की जाती है, तब आपका आपका जो कि चित, बह्मरन्त्र, सदाशिव का स्थान चित्त धोरे-धीरे अन्दर बढ़ता जाता है। क्योंकि है, आत्मा में रहेगा। बार-बार अपने चित्त को आप पार हैं, श्रापके लिए हरेक शब्द मंत्र है । हृदय पर अगर ले जाएं तो भी आपका चित्त आापकी प्रत्येक प्रारथना में, जो भी आप कहते हैं, आत्मा में रहेंगा। इन प्रकार आप घ्यान रखकर , कीजिए । उसकी पूर्ति होती है। लेकिन आप मांगते क्या हैं इस पर है न। आप जेता चाहते हैं, बो ही मांगते हैं, ले किन परमात्मा को मांगने वाले लोग हैं, वो हैं परमात्मा के बारे में मंगिगे । प्रर भी इमके अल/वा बहुत से महात्म्य जिसके द्वारा आप प्रपनी आात्मा चित्त में लाते हुए प्रभु से कहें, माने कि प्राथना, प्रारथना करें कि *मां, हमें त्मा बना दो।" मां हमारा जो कृप से ये हो गया, आपकी कृपा से मूझे नौकरी वित्त है वो प्रात्मा में रहे ।" प्रार्थना बहुत बड़ी मिल गई । लेकिन जो लोग ये सोचते हैं कि चीज है सहजयोगियों के लिए, क्योंकि जब आपका योग घटित होता है, अ्राप परमात्मा के साम्राज्य में श्रा गये हैं, आपकी प्रार्थना जानती है, कि "माँ मुझे नौकरी दे दो ।""मांँ, हमें promotion (तरक्की ) दे दो । मा. मेरीह कि "अपको कृपा से ये हो गया, आप लड़की को ठीक कर दो ।" इस प्रकार की प्रार्थना करते हैं। 'मेरी शादी कर दो" नहीं तो "मेरी शादी तोड़ो " दोनों। अघिकतर लोग तो कहते हैं, "माँ आपकी श्रापकी कृपा से मुझे आत्मा मिल गई " वो ही आ्रागे बढ़ गए हैं, वो ही कहना परिपयव हो गए। और जो [आादमी ये ही कहता चाहिए कि । मैं श्रभी तक ये ही से ।" ये तो सारी सांसारिक चीजें की कृपा है, ये होती है, हमारी कृपा ही से तो होती हैं । उसमें कौन-सी विशेष बात है। वो तो क्षेम है। लेकिन 'योग' पूरा होना चाहिए। तभी आपका आत्मा लेकिन ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए कि "माँ, में चित्त रह सकता है, आत्मा से पूर्णतया योग मुझे प्रत्मानन्द दो, होता है । "मुझे निरानन्द दो।" इस ," प्रचार कार्य माता आली भारताला सहजयोगाच्या प्रचाराला ॥घू।॥ किती आटाओटी । पायपिटी केली त्यांनी नातीगोती। अनवाणी सहजयोग प्रचारासाठी सोडीलौ अमेरीका दोरा त्यांनी पूर्णपणे यशस्वी केला । श्रेय त्यांनी दिले सहजयोग प्रार्थनेला ।। १॥ परी पुणा, सांगली सोलापुर, धुळे चालली भणी मलल शरण कोल्हापुर, केले आतां राहिली जेजुरीला आगामी जाती भिऊनी मातेच्या परशुला ।।२।। अरहमदनगर, राहरी । जेजुरी । सालाला । माता सो० शकंतला निकोलस अंधेरी केन्द्र निर्मला योग ह 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt बम्बई सहजयोग और श्री कल्की शक्ति है। मा के प्यार से कोई व्यक्ति सहज में पार आज श्री कल्की देवता व कुण्डलिनी शक्ति इनका क्या सबंध (आत्म-साक्षात्कारी ) होता है और इसलिए ऊपर है, ये कहने का प्रयास किया है। कल्की शब्द निष्कलंक शब्द निर्मित कहो गई 'आखिरी न्याय की बात इतनी सुन्दर, नाजुक व सूक्ष्म बनायी गई हैं, उसमें किसी को भी विचलित नहीं होना है । मैं अ्रपको कहना चाहती है कि सहजयोग से हो आपका आख री न्याय से है। निष्कलंक- माने हुआ जिस पर कलंक या दाग नेहीं ही। हो ने वाला है। प्रप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश ऐसा मतलब अत्यन्त शुद्ध एवं निर्मल है । करने के लायक हैं कि नही इसका निरणंय सहज- योग द्वारा हो होने वाला है । श्री कल्की पूराण में श्री कल्की अरवतरण के बारे में बहुत कुछ लिखा है । उसमें ये कहा है से लोग अलग अलग कारणों से सहज- कि श्री कल्की का अवतरण इस भूतल पर योग की तरफ़ बढ़ते हैं। समाज में कई लाग बहुत बहुत संभालपुर गाँव में एक सफेद घोड़े पर होगा । 'संभाल शब्द का मतलब भाल माने 'कपाल और संभाल माने भाल प्रदेश पर स्थित अर्थात् ही साहसी वृत्ति के, जड़ बृत्ति के, या सुस्त होते हैं । इसमें हैं। लोग मदिरापान अथवा इसी त रह का कुछ दूर भागते हैं । ये लोग इड़ा नाड़ी पर कार्यान्वित होते कटड कुछ श्री कलकी देवता का स्थान हमारे कपाल पर है। दम पीते हैं व इससे ऐसे लोग 'सत्य' से इस शक्ति को श्री महाविष्णु की हुननशक्ति भी दूसरे तरह के कुछ लोग पिंगला नाड़ी पर कार्या- न्वित होते हैं प्रौर बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं, उनकी अपेक्षाएं इतनी अवतरण इस बीच के कालावधि में मनुष्य को विशेष होती हैं कि उससे उनकी दूसरी side (इड़ा- अपने स्वयं का परिवर्तन करके परमेश्वर के राज्य नाड़ी) संपूर्णतः खराब हो जाती है, उससे उनको में प्रवेश करने का मौका है । इसी को बाइबल में अनेक दूषकर रोग हो जाते हैं । उनको परमेश्वर प्राखिरी न्याय या the last judgement कहा से संबन्धित रहना अच्छा नहीं लगता। इस तरह है। इस भूतल के हर एक मनुष्य का ये आखिरी दोनों प्रकार के लोग आपको समाज में मिलेंगे । न्याय होने वाला है । कौन परमेश्वर के राज्य में लोग एक तो बहुत ही तामसी बृत्ति में रहेंगे, नहीं प्रवेश के लिए ठीक है और कौन नहीं, इसकी छंटनी तो बहुत ही राजसी वृत्ति में। इसमें तामसी वृत्ति के लोग शरब तो शराब ही पिएंगे मतलब स्वयं को जागृत स्थिति से, सच्चाई से परे हटक र रखेंगे । सहजयोग से सभी का आखिरी न्याय होने दुसरे प्रकार के लोग जो कुछ सच्चाई है, सुन्दर है उसे नकारते रहते हैं। ऐसे लोग अहंकार से भरे अद्भुत लगेगी परन्तु ये अद्वितीय होकर भ सत्य हुए होते हैं । उसी प्रकार प्रतिभ्रहंकार से भरे हुए कहते हैं। स्वतंत्रता चाहते हैं और श्री येशु का अवतरण व श्री कल्की शक्ति का होने का समय अब आया है। वाला है । हो सकता है बहुत से लोगों को ये बात निमला योग १० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt अपनी पुरानी आदतों और प्रवृत्तियों में मग्न होते हैं, उनकी स्थिति को 'योगभष्ट' स्थिति कहते हैं । कोई व्यक्ति पार होने के बाद भी अहूं सुस्त, जड़ व लड़ाकू प्रवृत्ति के लोग दिखाई देते हैं। जो लोग बहुत हो महत्बाकांक्षी होते हैं, वे आपसे को होड़ में स्वयं को मजाक बना लेते हैं। उदाहरण - ऊपर कहे गये दोनों तरह के लोग एक तो बहुत कार वृत्ति में फंसा है या पैसे कमाने में ही मग्त महत्वाकंक्षी, माने अरहंकार से भरे हुए व दूसरे है, या अपनी तानाशाहो प्रस्थापित करने में अति प्रति अहकार से भरे हुए सहजयोग में बड़ी कठिनाई मरन है, तो वह व्यक्ति कोई ग्रुप बना सकता से आ सकते हैं । परन्तु जो लोग सात्विक वृत्ति के है और ऐसे युप पर वह व्यक्ति अ्रपना बडण्पन हैं या मध्यम वृत्ति के हैं ऐसे लोग सहजयोग में स्थापित कर सकता है । परन्तु इसमें थोड़े दिनों जल्दी आर सकते हैं । इसी तरह जो लोग बहुत ही बाद ऐसा मालूम होगा कि वह व्यक्ति परमेश्वर से, सीवे हैं वे भी सहतयोग को बिना मेहनत के प्राप्त सच्चाई से, वंचित हो गया, और अन्त में उसका होते हैं । वे पार भी सहज में होते हैं । आपने देखा सर्वनाश हो गया। उसके बाद उस व्यक्ति से होगा कि सहजयोग के निए शहर के कुछ गिने-बुने सम्बन्धित लोग भी सच्चाई से, यानी परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और उनका भी सर्वताश हो सकता पाँच से छः हजार लोग आते हैं। और विशेषता ये है है ऐसा सहजयोग में आकर भी घटित हो सकता कि सभी के सभी लोगों को आत्म-साक्षात्कार की है। इस बंवई में ऐसी अनेक घटनाएं बार-बार कहना चाहिए। इसमें कोई व्यक्ति अपने योग से च्युत होता है क्योंकि को संपूर्ण स्वतन्त्रता होती है। किसी व्यक्ति की योग में बढोतरी या अरधोगति यह उस व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अवलंबित है। कुछ सच्चे व महान गुरूप्रों के पास अलग तरह की नष्ट करें ? इस संदर्भ में मुझे ये बात कहना जरूरी योग-साधना सिखाई जाती है । उससे साधक का है कि सहजयोग ही आपको सही रास्ते पर ले जा अंतःशुद्धिकरण होता है और जीवन बचपन से सकता है व परमेश्वरो ज्ञान मूलतः खोलकर शिष्टवद्ध बनाया जाता है । इससे उस साधक का बता सकता है। सारे परमेश्वर के खोजने वालों जीवन कष्टप्रद बनाया जाता है। और उस साधक को सहज ही परमेश्वरी ज्ञान खुलकर बताया जा में शारीरिक एवं व्यक्तिरव निर्माण किया जाता है उसका स्वभाव व उसका पूरा व्यक्तित्व ही वदल आत्म-साक्षात्कार विना कष्ट उठाये मिलता है । सहजयोग में सभी बातें इसलिए आपको कुछ भी देते की जरूरत नहीं है आपकी स्वतंत्रता पर निर्भर होती हैं । ये सारी बातें और कोई भी कष्टप्रद आसन भी करने की समझने के लिए आपको हमेशा उस परमेश्वरी शक्ति के साथ सामूहिक चेतना में जुड़ा हुआ रहना लोग आएंगे, परन्तु वहीं गाँ तों में हम जाते हैं तो अनुभूति प्राप्त होती है । इसका कारशण शहरी हुई हैं। इसे 'योगभ्रष्ट' मनुष्य जरूरत से ज्यादा ही कार्यमग्त होता है । उन्हें लगता है, परमेश्वर की खोज करने के सिवाय सहजयोग में और काम महत्वपूर्ण है । परमेश्वर की खोज के लिए शहरी लोगों को समय नहीं हैं। उन्हें लगता है ये बतें फ़िजुल की हैं, इसलिए अपना समय क्यों मनुष्य ु। रहा है। ये सारा सहज में होता है आपको अ्पना दिया जाता है। लेकिन जरूरत नहीं है। अ्यंत आवश्यक है। परन्तु एक वात पक्की ध्यान में रखनी चाहिए । ओत्म-साक्षात्कार के बाद परमेহव र के राज्य में प्रस्थापित होने तक बहुत बाधाएं हैं, श्रर] श्री कल्की शक्ति का संबंध इसी से संलग्न है । भी है । सह जयोग में पअ्राकर प्राप दिखावा नहीं कर रत्म-साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग सकते। किसी विशेष बात के लिए ग्रथथाजी नहीं हर-एक चीज का इस संसार में बिलकूल सही हंग से नियमन रहता है । उसी प्रकार सहजयोग में मa । निमंला योग ११ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt कर सकते । सहजयोग में आने के बाद इस प्रकार भरों को मत सताओो, उनकी अच्छाइयों का के लोगों का बहुत जल्दी भंडा फूटता है। क्योंकि ऐसे कृत्य करने वाले लोगों के सारे चक्रों पर जोरों जताकर व्यर्थ वातें मत बनाओ। क्योंकि कल्की की पकड़ आती है और उसकी जानकारी उत देवता ने प्राप के जीवन में संहार कार्य की शुरूवात व्यक्तियों को नहीं रहती है। ज्यादा से ज्यादा उन्हें की तो अ्राप क्या क र और क्या न करे' की स्थिति चैतन्य लहरियों की संवेदना रह सकती है, परन्तु आ सकती है । थोड़े समय में ही ऐसे लोगों का नाश होता है । फायदा मत उठाओ, और अपना रुतबा, वडूष्पन इसी प्रकार जब आप अज्ञानता से या अनजाने इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति किसी सहज- में किसी व्यक्ति को भजते हैं या उसके संपर्क में होते हैं, तब आपको भी इससे परेशानी उठानी घटित होना यही वड़ा कठिन काम है । उसमें भी पड़ती है। ऐसे समय किसी निष्पापी (मासूम) योग घटित होने के बाद अगर इस प्रकार की मनुष्य को भी तकलीफ़ होती है। तो किसी गैर योगभ्रष्ट स्थिति पैदा हो रही है, तो वह व्यक्ति व्यक्ति के कारण आप पागल मत बनिए। अगर ऐसा किया तो उसकी कीमत आपको चुकानी दुष्ट योगी को आना बड़ी बुरी घटना है एक तो योग श्री कृष्णजी के अनुसार राक्षस योनि में जाता है। पड़ेगी । जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें इसमें जमकर टिकना पड़ेगा, नहीं तो वे योग को प्राप्त न होकर किसी न किसी योनि में जा गिरेंगे । उसके बाद कदाचित् उन लोगों का फिर से मनुष्य जन्म स्ट्मैन्ट (मन को समझाना) करते हैं । फिर आप हो सकता है, परन्तु उन लोगों का ये पूरा जीवन सोचते हैं कि, उसमें क्या हुप्रा? फलाने- दिकाने व्यर्थ हो गया। श्री कल्की देवता की शक्ति सहज- हमारे पुरखों के समय से पंडित हैं, तो उन्हें योगियों के साथ गुरूता से प्रत्येक क्षण कार्यान्वित कुछ देना ठीक रहेगा। आप जरा सोचिए कि, रहती है । श्री कल्की देवता सहजयोगी पवित्रता की रक्षा स्वयं के एकादश হक्ति के साथ और उन्हीं के किनारों पर बेंठकर परमेय्वर करते हैं । जो कोई सहजयोग के विरोध में काम के नाम पर आपसे कोई पैसे निकालता है । कितना करेगा उन सभी को बहत परेशानी होगी। इतिहास को देखा जाए तो लोगो ने अनेक संत पुरुषों को बहुत परेशान किया। परन्तु अव आ्प कितना पुण्य कमाया है ? संतों को, साधु लोगों को परेशान नही कर सकते, क्योंकि श्री कल्की देवता की शक्ति पूर्णरूप से कार्यान्वित है जो मनुष्य सीधा-सादा है, संत है, अंधविश्वास से जिन्दगो जीते हैं। ये भारत में ही उसे परेशान किया तो कल्की शक्ति प्रापको कहीं नहीं, इस दुरनिया में सभी जगह देखने को मिलता का नहीं रखेगी और उस समय आपको भागने के लिए ये पृथ्वी भी कम पड़ेगी । जिस समय आप किसी गैर व्यक्ति के कारण प्रभावित होते हैं उस समय अराप कहीं 9र एडज- की पवित्र प्यार की गगा माई एक जगह से बहुती है पागलपन और अधोरीपन है ? उसमें भापको लगता है कि हमने उन पुजारियों को पैसे देकर इस तरह सत्य क्या है, ये न समझकर हम है । कितनी बातें हम अँखों से देखते हैं, फिर भी मंदिरों में जाकर अंधविश्वास से अनेक बातें करते हैं। परमेद्वर के नाम पर एक के पीछे एक ऐसे अनेक पाप हम करते रहते हैं । पाप क्षालन (धोना) करने के बदले पापों में बृद्धि करते हैं । ऐसे लोगों को मैं 'तामसी' कहती हैं । ऐसे लोग अपना दिमाग जरा ऊपर दी गई बातें केवल सहजयोगियों को ही नहीं, प्रपितु दुनिया के सारे लोगों के लिए है औ्र इसलिए आप सभी को सावधानी से रहना पड़ेगा । हैू. निर्मला योग १२ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt भी नहीं लगाते । इसलिए उन्हें 'मूढ वृद्धि के कहना चाहिए। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं । वह कोई भी चमत्कार की लोग कहते हैं ।"परमेश्वर कहाँ है ?" परमेश्वर वर्गैरा घटनाएँ सुनने के बाद तुरन्त उस पर विश्वास कुछ भी नहीं है, ये सवे कुछ fraud (धोखा) है | करते हैं। चमत्कार करने वालों ने परदेश में जाकर Science (विज्ञान) यही सब कुछ है । मैं कहती है बहुत से लोगों से पसे निकाले है। उस पेसो के आज तक साइन्स से क्या हुआ बदले में उन्हें पक्षाघात या पागलपन इस तरह की दिमाग में आएगा बीमारियां भी साथ दे दीं । इतना सभी होकर भी कितने लोग ऐसे चमत्कार करने वालों के पीछे विज्ञान की बजह से ग्राप मकेवल अहंकारी बने हैं। पागलों की तरह भागते हैं और अपने पापों में वृद्धि पश्चिमी देशों में हर- एक मनुष्य अहंका री है। पाप करवाते हैं। अपनी चालाकी और बुद्धिमानी पर वि वार करते हैं । उन्होंने हमेशा परमेश्वर को नकारा है। ऐसे । आपने देखा तो । साइन्स ने अभी तक बेजान नहीं बनाया। चित्रों के सिवाय कुछ वृद्धि कैसे करनी है, उसके संबंध में वे अनेक जान- कारियां खोज निकालते हैं । गन्दे से गन्दा पाप श्रपके पास जो कुछ सपय मिला हैं, वह सब ओपातकाल (emergency) की तरह और महत्वपूर्ण कस करना है, इसी में वे व्यस्त हैं। उसी में भारत है । और इसीलिए आ्रापको स्वयं आत्म-साक्षात्कार के लिए सावधान रहता चाहिए । इसमें किसी को ्गुरू समझते है परर कहलवाते हैं, वे गये हैं। वे भी दूस रों पर निर्भर नहीं रहना है अपने आप स्वयं साधना करके परमेश्वर के हृदय में ऊँचा स्थान प्राप्त करना चाहिए, अरथाति इसके लिए सहजयोग में आकर स्वयं पार होना जरूरी है, क्योकि पार होने के बाद ही साधना करनी है । से कुछ लोग जो अपने आप को बहुत बड़े उन्हें ऐसे पाप वृद्धि में मदद करते हैं। उससे ये सब लोग जल्दी ही नरक में जाने वाले हैं। जो कुछ गलत है वह गलत हो है । जो कुछ हमारे धर्म के विरोध में है वह सब गलत है । फिर वह कल पहले हो, कभी भी ही या आज हो या १००० साल हो वह गलत ही है । जिस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, उस समय जिन लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति अनुकम्पा (श्रद्धा) व प्रेम नहीं होगा या जिन्हं आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए होगा, ऐसे सभी लोगों का हनन ( नाश) होगा । उस समय श्री कल्की किसी पर भी दया नहीं क रेगे । वे हूँ कि गलत माग का अ्रवलंबन मत करिए। जो रुद्र शक्ति से सिद्ध हैं । उनके पास स्यारह प्रति आपके उत्कान्ति के विरोध में है वह मत करिए वलशाली विनाश शक्तियाँ हैं । इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट मत करिए। चमत्कार के पस किये हुए कृत्यों का पछतावा करने के लिए दिखाने वाले अगुरूप्रों के पीछे 'भगवान भगवान भी समय नहीं रहेगा। उस समय उसमें क्या करके मत दौड़िए। जो सही है उसी को प्रपनाइए हुआ ? इसमें क्या हुआ ? ऐसे सवाल पूछने का भी नहीं तो श्री कल्की शक्ति का अपनी सारी शक्तिप्रों समय नहीं रहेगा एक क्षण में श्री कल्की आपका के साथ संहार करने के लिए अवतार लेकर आने संहार करेगी। ऐसा कहते हैं कि उस समय सारा का समय वहुत नजदीक आया है। आजकल एक नयी बात देखने को मिलती है "उससे क्या हुआ ? क्या गनत बात है ? इस के तरह सारे प्रशनों के उत्तर कल्की शक्ति देगी मैं केवल फिर से एक बार आपको इशारा दे रही यारह ऐसा करोगे तो एक समय ऐसा आएगा जब आप काम प्रचंड होगा। हर एक व्यक्ति अलग अलग छोटा जाएगा उस समय कोई भी कुछ नहीं कह । देखिए सब का विज्ञापन है । सब कुछ कुछ दूसरे तरह के लोग होते हैं । वे हमेशा सकेगा निर्मला योग १३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt है यह देखिए । आपका व्यक्तित्व किस तरह का है छा हुआ । स्वयं का निर्णय स्वयं करना है ये स व सहजयोग में ही घटित हो सकता है । एक माइक्रोफोन जो विज्ञान के कोरण बैनाया गया है वह भी इस्तेमाल होता है। अगर मैंने माइक्रोफोन अपने चक्रों पर रखा तो उस माइक्रोफोन में से भी चैतन्य गन्दी-लहरियाँ लहरियाँ बहुती हैं। उसका प्रत्यक्ष अनुभव लोगों अनजाने में आप अनेक पाप करते रहोगे और फिर ने किया है और कर लहरियों से आपको प्रात्म-साक्षात्कार प्राप्त हो अच्छा है, मुझे चैतन्य लहर अ रही हैं ऐसे लोग सकता है । पूरा विज्ञान सहजयोग के काम आने अपने श्रापको और दूस रों को ठगते हैं। [आरपका] वाला है । कुछ दिन पहले दूरदर्शन के कुछ लोग निर्णय कौन करेगा ? आपका ही कम । आपने मेरे पास आये। कहने लगे "माताजी दूरदर्शन पर दूसरों पर कितने उपकार किये ? हमें आपका कार्यक्रम रखना है ।" उस समय मैने उन लोगों से कहा, 'कोई भी कार्यक्रम रखने से पहले आप संभल के रहिए। मुझे त्रिज्ञापन की विद्या) अरदमी पर भरोसा करके आप अपने घर के जरूरत नहों है । जो कुछ भी करोगे सही ढंग से सदस्यों का नाश करना चाहते हैं क्या ? कम से करिए। दूरदर्शन के माध्यम से सहजयोग फैल कम घर के अर सदस्यों के लिए सोचिए। समाज सकता है। जिस समय दू२दर्शन पर मेरा कार्यक्रम में अ्नेक तरह के गलत लोग हैं ऐसे लोगों से पूर्ण- होगा उस समय लोग अपने टी. वी. सैट के सामने तया दूर होना सहजयोग में श्राकर सहज हो हाथ फैलाकर बैठेंगे तो वहुत से लोगों को आत्म- साक्षात्कार की अनुभूति मिल सकती है। ये वास्त- वाले अनेक लोग हैं मुझे मालूम है। मैंने उन्हें विकता है । मेरे इस शरीर से चैतन्य बहुती है, ये वास्तविकता है । इसके का रण किसी दीजिए । आपको तुरन्त समझना चाहिए कि माँ को भी क़ोधित होने का कारण नहीं । अगर मैं ये सारी बातें समझरती हैं । अगर आपकी माँ ने इस तरह की बनायी गयी हैं तो इसमें आपको कोई बात अ्रपसे कही तो वह माननी चाहिए। वुरा मानने का नहीं। सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए आप गलत रास्ते से गये तो आप में से बहुत (bad vibrations) आएंगी । सकते हैं । उन चेतऱ्य- भी मुझसे कहते रहोगे ' माताजी मैं बहुत किसी मोहिनी विद्या वाले (अरविद्या या काली सकता है । लंदन में भी ऐसे गन्दे लोगों को लुभाने 12 लहरियों बहुत बार बताया है कि आप ये गलत रास्ता छोड़ इसमें वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। क्या आप को बाद-विवाद से चंतन्य लहरें प्राप्त होने वाली हैं ? ऐसा सोचए जरा । फिर भी अआप सहजयोग में आकर गलतियाँ करते हैं । लेकिन ये बहुत गलत दूमरा प्रकार अहंकारी और महत्वाकक्षी लोगों के साथ दिखायी देता है । किसी के पास बहुत धन-संपत्ति है ऐसे मनुष्य के पास जाकर पूछिए क्या वह सुखी और खुश है ? उसके जीवन और बुरी बात है, ये समझ लीजिए, क्योंकि ऐसे को जरा गौर से देखिए । जो अपने आपको काम- याव कहलवाते हैं उनके पास जाकर देखिए उन्होंने कोन-सी कामयाबी हासिल की है ? उन्हें कितने क्योंकि सहजयोग ही आखिरी न्याय है [आप] लोग सम्मान देते हैं ? उनकी पोठ फिरते ही लोग परमेश्वर के राज्य के लिए सही है या नहीं, इसकी कहते हैं, 'हे भगवान इनसे शुटकारा दिलवा दो। जाँच-पड़ताल हो सहज आप मंगलकारी हो क्या ? आपके दर्शन से ओरों आकर पार होकर परमेश्वर के राज्य के नागरिक को सुख होता है क्या मुझे सारे सहजयोगियों को भी इशारा देना है योग है आप सहजयोग में बन सकते हैं । उसके पहले अरापको परमेश्व री प्रेम ? आप मंगलमय हो क्था | निमंला योग १४ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt व परमेश्वरी ज्ञान समझने की पात्रता भी नहीं मनचेगा और उसी समय सबका चयन होने वाला है। उस समय सहजयोग भी किसी को नहीं बचा के नागरिक हैं और आपने कोई गुनाह किया, तो सकता क्योंकि उस समय सहजयोग भी समाप्त हुआ आप सजा के पात्र हैं उसी प्रकार परमेश्वर के होग। । आप सहजयोग से भी अलग किये जाओगे राज्य के बारे में भी है और इसलिए परमेश्व री और प्रत्येक परमेश्वर को सही लगने वाला निकराला जाएगा। बाकी के लोगों को मारा जाएगा और ये हुनन ऐसा वसा न होकर संपूरणं जड़ का ही नाश होगा। पहले देवी के अनेक अवतारों ने अनेक राक्षसों का नाश किया, पर राक्षसों ने फिर से जन्म लिया। परन्तु प्रब संपूर्णतः नाश होने वाला है जिससे पुतः जन्म की भी प्राशञा नहीं रह होती है। समझ लीजिए आप भारतीय गरणराज्य मनुष्य राज्य की नागरिकता मिलने के बाद प्राप सभी को बहुत ही सावधानी बर्तनी पड़ेंगी । दूसरी बात मुझे आयसे वहनी है। वह है श्री कल्की देवता की विनाश-शक्ति के बारे में । श्री कल्की अवतरण बहुत ही कठोर है पहले श्री कृष्णा जो का अवतरण हुआा। उनके पास हनन शक्ति थी । उन्होंने कंस और राक्षसों को मारा। वहुत छोटे से थे वे तभी उन्होंने पूतना राक्षसनी सकती । अभी जो स्थिति है वह भिन्न है और उसे मालूम है । परन्तु थर समझने की आप कोशिश करिए। श्री कृष्णजी क श्री कसे मारा, ये अआपको कृष्ण 'लीला भी करते थे । वे करुणामिय थे । ने वहा है कि, "यदा यदा हो घमस्य ग्लानिर्भवति उन्होंने लोगों को बहुत बार छोड दिया, क्षमा किया । श्रीकृष्ण क्षमाशक्ति से परिपूरण थे । क्षमा संभवामि युगे यूगे ।" करना श्री कृष्ण स्थित गुरणधमें है । परन्तु उस परमेश्वर की करुणा समझने के लिए अगर हम मतलब दुष्ट लोगों का बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने असमर्थ सावित हुए तो इस कल्की शक्ति का बिस्फोट के लिए, आऔर [ग्रागे] [वे कहते हैं कि साधू और संतों होगा प्रोर पूरी क्षमाशीलता आप १र संकटों की को बचाने के लिए मैं पुनः जन्म लूंगा कलियुग तरह आएगी श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि किसी में सीधा सादा, भोला साधु-सन्त मनुष्य मिलना समय मेरे विशेध में कुछ नला लंगे । लेकिन मुश्किल है क्योंकि अनेक राक्षसों ने मनुष्य की आदिशक्ति के विरोध में एक भी शब्द नहीं चलेगा । ऊपर निर्दिष्ट किया हुआ्रा अवतरण होने वाला है, ये पक्की बात है। ऐसे अवतारी व्यक्ति के पास श्री कृष्ण की सारी शक्तियाँ, जो केवल हनन (सर्वनाश) शक्ति श्री शिव है उसकी जय-जय करते हैं । एक बार जब हमने की हननशक्ति अर्थात् ताण्डव का एक हिस्ता ऐसे बुरे मनुष्य का साथ दिया कि अपनी प्रबृत्ति भी स्व-प्रकार की हनन शक्तियों होगी। उस अवतारी शनजाने में गलत बातों की तरफ बढ़ने लगती है और पुरुष के पास श्री भरव का खड्ग होगा, श्री गणेश ये सब श्रापकी बुद्धि में इस तरह जड़ होक र बैठता का परश होगा, श्री की गदा और विनाश है कि ग्राप अ्रपने [प्रापको उस जड़ता की तरफ से की सिद्धियां होंगी। श्री बुद्ध की क्षमाशीलता व हटा नहीं सकते । फिर उस दुष्कृत्यों से आप कैसे श्री महावीर की प्रहिसाशक्ति भी उलटकर गिरेगी, मूक्त होंगे ? या उन दुष्कृत्यों को कैसे नष्ट करोगे ? ऐसी ग्यारह शक्तिपक्त शो कल्की देवता का अत्र- आप एक बहुत प्र्चछे स्वभाव के और बड़े इंसान तरण होने वाला है। उस समय सबवत्र हाहाकोर हो, परन्तु प्रापकी खोपड़ी में दृष्कृत्य भी जड़स्वरूप भारत, परित्राणाय सावूनां विनाशायच दुष्कृतां प्रब इस इ्नोक के अखरी लाइन में श्री कृष्ण कहते हैं कि "विनाशायचदृष्कृता" खोपड़ी में प्रवेश किया है । इसलिए घर्म के नाम एक बहुत बड़ा पर राजनीति में शास्त्रों में शंक्षरिणक क्षेत्र में हुआ ए हर-एक क्षत्र में हम अच्छे मनुष्य के बदले बुरे पर विश्वास करते हैं। जो बुरे काम करता मनुष्य हुनुमान निर्मला योग १५ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt में वैठी है, तब् आपका भी विनाश होगा । इससे कोई 'स्वयं' का नाश मत करिए। तुरन्त उठिए, जागृत है। मनुष्य सचमुन परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक या जाइए। मेरे पास प्राइए, मैं प्रापकी मदद करूगी। मैं विरोधक है ये कहने के लिए ठोस नियम नहीं कहा आपके लिए रात-दिन मेंहनत करने के लिए तैयार जाएगा| केवल सहजयोंग से ही म तष्य की सफाई है। मैं प्रापके लिए पूरी तरह कोशिश करूंगी, होगी और उससे वह व्यक्ति वरमेश्वर प्राप्ति के आपको अच्छा बनाने के लिए । अपको परमेश्वर लिए पोषक बनाया जा सकता है। ये एक ही बात ऐसो है कि जिससे आ्रापकी अंकुर शक्ति प्रस्फुटित करूंगी। होकर प्रापको आत्म साक्षात्कर प्राप्त करा सकती है । आप स्वयं को, माने अने 'स्व' को, जान सकते प्राप्ति के मार्ग पर लाने के लिए मैं सारी कोशिशे परमेश्वर प्राप्ति के लिए अन्तिम परीक्षा पास हैं औ्र उसी का आनन्द लुटा सकते हैं। जिस करने के लिए में श्रापके लिए मेहनत करूंगी परन्तु समय ऐसा आनन्द मिलता है उस समय ओर मिश्या वात अपने आप ही अलग हो जाती है। प्राप्त करने के लिए आपको भी सर्वोपरि कोशिश आपमें जो भ्रम है बह नहीं रहेगा। और इसलिए आग प्रपना समय नष्ट नहीं करके तुरत्त पुरण योग जो श्रद्धा से 'सहजयोग को स्वीकार करिए । यह अत्यंत आवश्यक है। इससे भूतकाल में हुई गलतियाँ, पाप इन सबसे अपको मुक्ति मिलेगी। ये एक ही बात ऐसी है कि जो आप अपने मित्रों को, रिश्तेदारों को ओर सभी को दे सकते हैं । इसमें आपको मुझे सहयोग देना होगा। ये सब करनी होगी और अपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में व्यतीत करना चाहिए सहज- बहुत ही कीमती है, जो बहुत महान है । वह प्राप्त करने के लिए, ओर प्राप्त होने के बाद प्रात्मसात करने के लिए आप अपना समय उसे दीजिए । अब तक जो सहजयोग में कहा गया है वह सभी जीवंत प्रक्रिया है। जिस समय नये लोगों का सहजयोग की तरफ बढ़ना बिलकुल खत्म हो जाएगा उस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, तो देखते हैं सहजयोग की तरफ कितने लोग बढ़ते हैं। अर्थात् कितने लोग आएगे, उसकी भी मर्यादा है । लोग, लोगों को खाना खाने को प्रामंत्रित कुछ करते हैं, ज्यादा से ज्यादा किसी के जन्म दिवस पर उसे केक देंगे या कुछ उपहार देगे। क्रिसमस के समय लंदन में शुभेच्छा कार्ड भेजने की प्रथा है । तब पोस्ट ऑफिस में एसे कार्डों का ढेर लगता है। इसलिए मैं फिर एक वार अपसे विनती करती तब और चिट्टियाँ लोगों को १०-१० दिन नहीं है। आपका जितना भी मित्र परिवार है, रिश्ते- मिलतीं । इन सबमें योगू के जन्मोत्सव पर वहाँ दार हैं, अरडौसी-पड़ौसी हैं उन सबको लेकर आप के लोग श्री यीशू को पूर्णतः भूले हैं । उल्टे श्री यीशू के जन्म दिन पर वहाँ के लोग शपेन नाम की शराब पीते हैं । इतने महामूरख लोग हैं, कोई मरेगा तब वे शंपेन पिएंगे। इतनी गंदगी है कि शंपेन पीना तो उनका धर्म हो गया है। सहजयोग में आइए। जब इस बंवई में बहुत से लोग रपार ध्द्धा से, गंभी रता से सहजयोग में प्रस्थापित होंगे, सहज- योग में आकर प्यार से मिल-जुलकर रहेंगे उसी समय मुझे बहुत खुशी होगी इस बम्बई में सारे भारत देश के हजारों बुद्धिमान और सार्वक लोग हैं जो इस भारत भूमि के भुषरण हैं । पर वे अभी भी हृदय से छोटे हैं। उन्हें मुझे ये ऊपर बतायी गई बातें जरूर कहनी हैं। क्योंकि अव थोड़़े हो समय उनको परमेश्वर की समझ नहीं । और समझंगे भी कैसे? परमेश्वर के बारे में उनके मन में कपोल कल्पित मिथ्या विवार है। आप वहुत सावधान और सजग रहिए। अपने प्राप से ही मत खेलिए । निर्मला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt इस तरह की बीमारियों से पीड़ित होगा या ऐसे व्यक्ति पर महारपत्ति अने की सूचना है । इस- लिए श्री कल्की चक्र को बहत साफ रखना पड़ेगा । इस चक्र में ग्यारह और चक्र हैं। ये चक्र साफ रखने के लिए इस चक्र के ग्यारह चक्रों में ज्यादा से ज्यादा क साफ रखना बा त जरूरी है उनकी दजह में बहुत-सी मुश्किले आने वाली है । मैं प्रार्थना कारती है कि ऐसे संकटों की शुरूत बंबई से ना हो। वस्बई तो एक-दो बार मुश्किलों से बची है। तो अब साववान रहिए । दूसरी बात ये क्रि, अभी तक बंबई के लोगों को पता नहीं उनके ऊर कोन-सी बड़ी मुश्किल आकर गिरने वालो है। उन्हें ये भी पता नहींी कि परमेश्वर समस्त मान व को अमीवा से तक कसे लाया है। परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग में एक दुर्दवी ये है कि इस देश के सभी लोन बवई के लोगों का अनुकरण करते हैं । बहुत से लोग पर- मेश्वर प्राप्ति के लिए यह्न करने के बजाय सिने नट क्या करना है वह देखते हैं । सर्वप्रथम हमें पर- या नटीयों (film actors or actresses) का अनुक्ररण करने में मनन हैं । ये सब स्वभाव की प्रति अदरयुक्त भय (awe) दोनों ही चाहिए। उथलता है । से आर छोटे छटे चक् चालित कर पाते हैं। पूर के पूर न्यारह चक्रों पर पकड़ होगी तो ऐसे व्यक्तिप्रों को श्रात्म-साक्षात्कार देना बहुत है की स्थिति में मनुष्य कठिन होता है । ब श्री कल्की का चक्र साफ रखने के लिए मेश्वर के प्रति अत्यंत आदर, प्रेम शरर उनके अगर आपको परमेदवर के प्रति व्यार नहीं होगा, अ/दर नहीं होगा या कोई ग लतो या पाप करते समय पर मेश्वर की भय नहीं लग रही है, उस समय थी कल्की शक्ति अपने अरति क्षोभ से (क्रोध से) सिद्ध है, सजज है । अगर आप गलती कर रहे ही प्रौर उसके प्रति आपके मन में परमेश्व र का क श्री कल्की शक्ति का स्थान अपापके कपाल के भाल प्रदेश पर है । जिस समय कल्की चक्र पकड़ा जाता है उस समय ऐसे लोगों का पूरा सिर भारी होता है । कुण्डलिनी को अपने उस चक्र के आगे नहीं ले जा सकते । ऐसे मनुष्य में कुण्डलिनी ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक आ सकती है। परत्त फिर जरी भी डर या भय नहीं है तो समझ लीजिए से कुण्डलिनी नीचे जा गिरती है अपना सिर गलत लोग या अगुरुथों के पाव पर रखा होगा तो आपकी भी स्थिति ऐसी हो सकती है। कि श्राप ये गलत काम कर रहे हैं । अगर आप आपके लिए ये देवसवा (divinity) वहुत ही जहाल । अगर श्रापने ह। श्राप अगर पाप कर रहे हैं या गलती करते हैं तो उसमें मुझसे या जरूरत नहीं हैं। अब अपने आपको ये है औ्र किसी से छिपाने की मालूम इसलिए श्री कल्की शाक्ति का एक हिस्सा खराब हो सकता है और इससे एक तरफ का असंतुलन निर्माण हो सकता है । पूरे कपाल पर अगर एक-दो फोड़े होंगे तो समझना বाहिए कि महसुस हैी रहा है कि हम पाप कर रहे हैं तो कृपा अपना कल्की चक्र खराव है। अंगर कल्की चक्र खराब होगा तो ऐ से व्यक्ति पर निश्चत ही बहुत बड़ी मुश्किल (आपत्ति ) आने वाली है। जिस समय अपने कल्की चक्र पर पकड़ होगी उस समय कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, वही हमारी देख अपने हाथ की सभो उंगलियों पर अर हथेली पर और पूरे बदन पर साधारण से ज्यादा गर्मी लगती है। किसी व्यक्ति वे श्री कल्की शक्ति के चक्र कृपा-प्राशीर्वाद की वर्षा करते हैं। परमेश्वर बहुत में पकड़ होगो तो ऐसा व्यक्ति कर्करोग या सहारोग करुरणामय है, कितने करुणामय हैं इसकी आप हृदय में प्रागको पाप कर रहे हों और प्रापके केर के ऐसा कुछ मत करिए । जिस समय आपको परमेश्वर के प्रति प्रदर, भय और प्रेम रहता है उस समय आप जानते हैं भाल कर रहा है, और वही हमारा उद्घार कर रहा है। वे उनकी शक्ति के कारण हमारे ऊपर निर्मला योग १७ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt अति उच्च पद मिलेगा । कुल्पना नहीं कर सकते । वे करुणा के सागर हैं । परन्तु वे जितने करुरामय हैं उतने हो वे क्रद्ध भी अगर उन्का कोप हो गया तो बचना वड़ा मुश्किल TI आज आप करोड़पति होंगे, आप बहुत अमीर हैं। हैं। फिर उन्हें कोई नहीं रोक सकता । मे रे प्यार की अवाज भी उस समय नहीं सूनी जाएगी। क्योंकि परन्तु जो परमेश्वर को प्रिय है, जो मान्य है, उन्हों वे उस समय कह सकते हैं कि 'मां, प्रापने वच्चों को छुट दे दी और बच्चे विगड़ गये मैं आपसे कहना चाहती है कि कोई भी गलत या बरे कृत्य मत करो । उससे मेरे नाम पर बुराई मतह होंगे दड़े पुजारी या वेसे ही कुछ ैग या बहुत की परमेश्व र के राज्य में उच्चतम पद पर विराज- मान किया जाएगा। आप रईस या लखोंपती बनने पर आप को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश हैं, ये अगर आपका विचार होगा तो बह बहुत गलत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि परमेश्व र' प्रापति के लिए हम कहाँ हैं ये देखकर प्रथम अपना पर- ।" इसलिए लाओ। आपकी मां का हृदय इतना प्रम से भरा, ईतना नाजुक है कि ये सारी बात प्रापको बताते भी मुझे मुझश्किल लगता है । मैं फिर से आपको हुए मेश्वर से संबंध घटित होना आवश्यक है। स्वयं विनतो करके बताती हैं बर्वाद कीजिए क्योंकि वितामह परमेश्वर वहुत कुपित है । [आपने अगर कोई बूरा कृत्य किया सहजयगि को प्राप्त होने के बाद ही होता है । तो वे अपको सजा देंगे । परन्तु अगर अपने उनके लिए या अपने स्वयं के आत्म-साक्षात्कार के लिए किया तब आप को परमेश्वर के राज्य में की आत्मा कहाँ है. ? परमेश्वर से हम किस तरह संबंधित हो सकते हैं, इन सारी बातों का रहस्य कि पअ्रव व्यर्थ समय मत साधकों को सहजयोग में आकर अपना सर्वोपरि उत्कर्ष साधकर अपना कल्याण कर लेना चाहिए । सभी को अनन्त आशी्वाद । कुछ परमपूज्य श्री माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी अनुवाद With best compliments from MCDOWELL & CO. LTD. (Fast Food Division) PLOT NO. 5, SAKET, NEW DELHI निरमला योग १८ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt ॥ जय श्री माता जी ॥ *ैं निर्मल वाणी शर सहजयोग में पार होने के बाद बनना पड़ता है। वगेर बने सहजयोग हाथ नहीं लगता । मां ने १. आपको पानी में उतार दिया, लेकिन तैसाक बन करके भी आपको सीखना होगा कि अराप दूसरों को कैसे तेरना सिखा सकते हैं । आपको पूरी तरह से बनना पड़ता है। सहजयोग का तरीका है कि पहले अपने आदर्श से, अपते व्यक्तिस्व से दूसरों को प्रभावित करना । जब दूसरा प्रभावित हो जाए तो धोरे-धीरे उसे सहज में लाओ । पूर्ण स्त्रतन्त्रता में आना होता है । आज नहीं कल ठोक हो जाएगा। ये ख्याल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे हैं तो हमारे साथ अनेक' बन रहे हैं। और वो जो अनेक हैं उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है। हम करसे बन रहे हैं ये बहुत जरूरी चीज़ है । छ] ३. एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से घ्यान में बैठना बहुत बड़ी चीज है । ध्यान में गति करना यही आपका कार्य है । और कुछ भी प्रापका कार्य नहीं है । बाकी स् हो रहा है । ध्यान में बढ़ने के लिए एक गुण बहुत जरूरी है। उसको कहते हैं Innocence -भओलापन, स्वच्छ, एक छोटे बच्चे जैसा- "पूर्णतया Innocent होना चाहिए । कोशिश करनी चाहिए, इससे आ्रपका आज्ञा चक़र भी एकदम साफ हो जाएगा । 1. ॐ आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आप के साथ करेगा । आप उससे कहेंगे "शांति दो" "संतोष दो" "मेरे अदर सुन्दर चरित्र दो", "मेरे अन्दर प्रेम दो", "मुझे माधुयं दो मिठास दो।" जो भी उनसे मांगोंगे, वो तुम्हें देगा।। और कुछ नहीं अपने लिए मांगो- इस बूंद को अपने सागर में समा लो।" "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो ।" उससे प्राथना करिए- "मुभे विशाल करो । मुझके समझदार करो । तुम्हारी चेतना मुझे दो । तुम्हारा ज्ञान मूझे बताओ। सारे संसार में प्रेम का राज्य हो । उसके लिए मेरा दीप जलने दो। उसी में ये शरीर, मन, हृदय रत रहे ।" ४. "मुझे प्रपने चरणों में समा लो । " मेरी निमंला योग १६ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt इस त रह सुन्दर सुन्दर बातें उस परमात्मा से मांगो। है। लेकिन जो असली है वह मांगो तो क्या वह नहीं देगा ? यूँ ही ऊपरी त रह से नहीं, 'अन्दर से" अंतरिक हो करके मँगो। तुम असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे ही देता अहकार एक दीर्घका्य समस्या है। इसका समाधान दूसरों को क्षमा करता है। आपको क्षमा करना सोखना चाहिए। प्रातःकाल से संध्या तक क्षमाप्रार्थी बने रहें श्रौर ग्रपने दोनों कानों को खींचे, औ्र कहें कि हे परमात्मा हमें क्षमा कर । प्रातःकाल से सायंकाल तक उसका स्मरण करते रहें । सदा याद करने से जेसस क्राइस्ट आपके अ्रहंकार को नीचे ले आयेंगे । छैः ६ जो ग्रादमी सहजयोगो है उसे वीरतापूर्वक प्रपने मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। कितनी भी रुकावटें ६. प्राये । घरबाले हैं परिवार वाले हैं, ये हैं, वो हैं, तमाशे हैं, इनका कोई मतलब नहीं। इस जन्म में आपको पाना है और अपके पाने से और लोग पा गये तो उनका धन्य है, उनका भाग्य है। नहीं पा गये तो आप क्या उनको अपने हाथ से पकड़कर ऊपर ले जाोगे ? यह तो ऐसा हो गया कि प्राप समूद्र में जायें प्रौर प्रपने परों में बड़े बड़े पत्थर जोड़ लें और कहें कि 'समुद्र देखो, मुझे तो तैराकर ले जाओ । समुद्र कहेगा कि, "भई, ये पत्थर तो छोड़ो पहले पेर के, नहीं तो कैसे ले जाऊँगा, मैं ? पेर में आपने बड़े-बड़े भार बाँध दिये तो उनको कटवा ही देना अच्छा है। और नहीं कटा सकते तो इतना तो करो कि उनसे परे रहो। इस तरह की चोजें जो पने पैर में बांध रखी हैं, उसे एकदम तोड़-तोड़ कर ऊपर उठ जाओ । ऐसी कितनी वाधायें हैं और यह फालतू की बावाये लगा लेने से कोई फायदा नही । अन्त में यही कहता चाहिये कि जिस मस्तिष्क में, जिस सहस्त्रार में प्रेम नहीं हो वहाँ हमारा बास नहीं है। दिमाग में सिर्फ प्रेम ही की बात करना है । यही सोचना चाहिए कि सारी चीज़ मैं प्रेम में कर रहा हूँ ? मेरा ये सब कुछ वोलना, करना-घरना क्या प्रेम में हो रहा है ? किसी को मार-पीट भी सकते हैं आप प्रेम में। इसमें हर्ज নहीं। अगर झठ बात हो तो मार सकते हैं, कोई हज नहीं। लेकित यह क्या जम में हो रहा है । जिससे किसी का हित हो वहो प्रेम है । तो क्या आप इस तरह का प्रेम कर रहे हैं कि जिससे उनका हित हो ? एक ही शक्ति है 'प्रम', जिससे आकारित होने से सब चोज सुन्दर, सुडौल ग्रौर व्यवस्थित हो सकती है । आनी चाहिए कि प्रेम के लक्षरण में क्या हैं। ॐ] यदि आपको 'निः भावना अपने प्रन्दर प्रतिष्ठित करनी है तो जब भी आपके मन में विचार आये ८. निर्मला योग २० 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt तो कहिये "यह कुछ नहीं है । यह सब भ्रम है, मिथ्या है ।" प्रापको बारम्बार यहू भाव लाना है । अरतः दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि यह सब "कुछ नहीं है। केवल ब्रह्म सत्य है, अन्य सव मिथ्या है । जीवन के प्रत्येकक्षेत्र में अ्रपको यह दृष्टिकोंण अपनाना है, तब आप सहजयोग को समझंगे । मेरा हृदय, मन, शरीर हर समय आप ही की सेवा में संलग्न है । वह एक पल भी प्रापसे दूर नहीं है । जब भी आप मुझे सिर्फ आँख बंद करके याद कर लें उसी बक्त मैं पूर्ण হान्ति लेकर के, एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा, लेकिन आप को मेरा होना पड़गा, ये जररी है, अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी मुझे नहीं लगेगा, मैं गरापके पास प जाऊंगी। १०. मैंने आपको हिसाब किताब बताया है। तन्त्र अपना साफ रखो और रास्ता अपना ऊपर का देखो, नीचे का नहीं । [फ्ड कः ११. सहजयोगी को संतुष्टता इसके आसपास के वातावरण पर निर्भर नहीं है क्यों न हो, वह उसे सुखदायी ही लगना चाहिए । वातावरण केसा भी १२. "ग्राप अपने हृदय में विनम्र होइए। आपका हृदय आपकी आत्मा है। " ्रा छं] छ १३. "प्रातः से सन्ध्या तक क्षमाप्रार्थी बने रहें और अपने दोनों कानों को खीचे और कहें कि 'हे परमात्मा हमें क्षमा कर । प्रातः से सन्ध्या तक उसका स्मरण करते रहे । सदा याद करने से श्री जेसस क्राइस्ट आपके अहंकार को नी चे ले आयेंगे ।" १४. "समस्त बुराइयोँ अरज्ञा चक्र में एकत्र होती हैं अतः आपको अपनी आंखों को स्वच्छ रखने के लिए अपनी आज्ञा को साफ करना होगा ।" निरमला योग २१ he 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt 5 जय माता जो आरम कथ्य अपने आपके अहं को, कभी न समझो मीत छुद्मवेषष में रह कर, करता है यह प्रीत ॥१॥ कोई नहीं अपने अहं को जीतना, है यही सच्ची जीत।|२॥ है शत्रु, कोई नहीं है मोत । अपने अरहं पर रखो, हरदम कड़ी नजर । अपने व्यवहार से कभी, रहो न बेखवर ।।३ । 'स्व' से लड़ना 'स्व' को जीतना, है सहज सिद्धान्त । फिर 'स्व' से करना मित्रता, तब होता मन शाँत ॥४ ॥ ही शत्रु, स्वयं मित्र, स्वयं सब समर्थ । है जीवन का अर्थ ॥५।। स्वयं स्वयं को ही जीतना, सहज की शक्ति से, करो स्वयं का सुधार । स्वयं ही तू सकता, है अपना उद्धार ।॥६॥ कर कथनी करनी में भला, क्यों रखते हो फर्क । बढ़ता अविश्वास इससे, जीवन होता नर्क ॥७॥ सहज में रहना सीखो, हरदम रहो सतर्कं । करो अपने ही वंधुओं से, कुतर्क ॥८॥ न विचारों, वचनों, करतूतों से, क्यों पहुँचाते ठेस । क्या यही शिष्टता तेरी, देना खुद को क्लेस ।।&॥ प्रिय-वाणी बोलना, है सहज आनन्द । का नहीं पसंद ।॥१०1॥ में किसे, जीना सुख-शांति विन्र, शाँत, सौम्य, शिष्ट, हो तेरा व्यवहार । वचन में, संतुलन ही है सार ।। ११।। खान-पान, आत्म-चिन्तन, आत्म परीक्षण, रहना स्वच्छंद । होकर आत्म परायण, लूटो जीवन का आनन्द ।॥१२॥ निर्मला योग २२ গic. 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt स्वार्थ को पाना ही, इस तन का सदुपयोग । करो निरंतर सहजयोग ।॥१२॥ त्याग आलस्यता को, मंदिर, मसजिद गिरजा, इस तन को जान । परमात्मा, अ्रोर ने दूजो आत्मा ही भगवान ।॥१३॥॥ तन मन, भाव, निर्मल, निर्मल चित और धाम। विचार, वातावरण, निरमंल हों सब वचन, काम ।॥१४॥ सहजयोग के अभ्यास से, धुल जाते सब मैल । 'निर्मत चित्" में देखिये, सुष्टि का सब खेल ।। १५।। पाया आत्म-साक्षात्कार अरजून, देखा रूप विराट । अद्ुत लीलधारी श्री कृष्ण ही, सकल सुष्टि-सम्राट ।। १६।। परमेश्वरि प्रादिशक्ति की है यह अनुपम लीला। शक्ति, भक्ति, मुक्ति सहज में, देतीं माँ निर्मला li१७|। कविता मंडराये जब बादल काले, घनघोर अँघेरा छाये । पंथ सूझ नहि पाये, भटकी मानवता घबराये ।।१।। जब संकेत तेरा, सहज तब जग को राह दिखाये । तेरी रोशनी की किरणें, जीवन-पथ, उज्ज्वल बनायें ।॥२|॥ सारी दुनियाँ तेरा गुलिस्ताँन, जब तेरे गुल मुरझायें । सौंचा, लहरायें ।॥३।| तब तूने जीवनामृत उपवन वन फिर वरसे बरसात, हरी-भरी हुई प्रेमामृत जीवन अब आनंद भरा ॥४॥ धरा । पान कर का निर्मला योग २३ 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt जय निर्मला माता 15 भजन है माँ ! ते री तेरा सब तेरे । हम शाये। में হरण पाये || प्रेम दुख दूर हुए हमारे ॥ हे मां ! ॥१॥ हुआ। हुआ।। हुआ। हुप्रा || पाये जब दर्शन तेरे ।। हे मा! ।।२|॥ तन स्वस्थ मन मुक्त आह्लादित उन्मुक्त हृदय जीवन चिन्ता हटी । गई चाह भय-शोक सब यातनाएं मिटीं । फांद गये भव घेरे ।। हे माँ ! ॥३॥ माया-जाल । कट गया गये जग-जंजाल ।। छुट गये अब जन्म-जन्म के फेरे।।हे मा! ।।४। जल हट गया तम का आवरर आलोकित करण करण। । हुआ अब दूर हुए अंधेरे ॥ हे माँ !।| ५।॥ पवित्र प्रात्मा का दर्शन मिला । अनंत जीवन का कमल खिला ।। प्रभु के साम्राज्य में हैं आनंद घनेरे हि मा ! ॥६॥ जय माता जी ! "सहजयोग में आने के बाद घर्मं का साँचा बन जाता है। आपको ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता है । मनुष्य में अपने प्राप शुद्धता पवित्रता जागृत होती है । उसे दूसरी स्त्रियों के प्रति कोई पाकर्षण नहीं रहता क्योंकि वह समाधानी हो जाता है । री श्री माताजी "जब ब्रह्मतत्व जागृत होता है तब अपने पूरे कार्यक्षेत्र में जो कुछ भी हम करते हैं उसमें एक प्रकार की तेजस्विता आती है और उस कृति में एक प्रकार की शिष्टता आ जाती है । श्री माताजी निरमला योग २४ ি 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt जय श्री माता जी Lन मानव चेतना यंत्र सदृश, शर सर्वोत्तम यह यंत्र है, यंत्रों कोई यंत्र । का निर्माता यंत्र ॥१॥ मानव तन न स्व' के तंत्र से, यंत्र । स्वचालित यह तु परतंत्र ॥२॥ स्वतंत्रता ही आनन्द, मत बन अपने भौतिक यंत्रों के पीछे. क्यों करता उसका नास ।।३।। निरंतर करो विकास | आप के यंत्र का, क म दिखाता दूर-दर्शन । दृश्य को, तन यंत्र में, होता सुष्टि-दर्शन ॥४॥ देश के दूर मानव पर |।४।। उदर पेंठ शिशु राम के, देखा अगरिणत व्रह्माण्ड । विस्मित, विनीत कागभुशु डि., पाया भक्ति अखंड I॥५॥ आश्चर्य चकित मां यशुमति, लखि बाल कृष्ण मुखमांहि । सचराचर, अरद्भुत अपूर्व दिखाँहि ।1३॥ सकल जगत चेतन यंत्र के, हैं है ऊँचे मानव आयाम । क्षेत्र में, करता के अारमा यह काम ।I७।॥ है सहजयोग चेतना करते रिकार्ड परम' प्रयोग का, अदुसुत । विज्ञानी जीवनमुक्त ।।८॥ का, टी० वी०, कैमरा, टेपरिकार्डर, कार फ्रिज और वाच । आ्राधुनिक सबको फैशन-परस्ती, नचाये नाच ।।६।। है कोई नही शांति की ध्वनि सूने, खींचे अलख को चित्र॥१० ॥ यंत्र | मानव तन सदृश, का अर्थ । के रहते हो, है जड़ चीजों इन तन इसके जाते हो ही, जाते सब व्यर्थ ।।११।। he he H ।े 1984_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 जी जय श्री माता जीवन" के गोत "अनंत (१) ( २) वीग्णा के, हे मां ! तेरो वीरणा के, हर पल का तुभ प्रणाम । हो तेरे नाम, हर गीत में तेरा गूरागान ।। जोवन माँ ! है जाये । बन स्वर मधुर संगीत से मत्र जग को, हर साँस में जाये ॥ १|॥| कर मुरध ते री मरली की के तान बन, ्वाल वालों को बुलायं । . तेरे प्रम का प्रकाशित, में हो मुस्कान ।।२॥ में तन कण-क सन्दन । है नीचामयी, तेरी लोला में, पानद मरत हो वाणी चित् हो जायें |२|| हैं। दें. जीवन हों को सुख प्रेम एवन बन कर, गोसे हमार काम । सारे जग में लहराये। महकार्य बातीवरस तेरे उपवन के सुमन का. प्रनाम ।।३। केमल अात सौरभ बन जग में भर जाय ।॥३॥ मक विधि पभिक्यक्ति, तेरी तेरी कृति की वाणी वत विविध प्रेम के तेरे कर तरंग नन सुंदेश दीप पहुँचायं । नाम । कला का प्राकाश कर, बन फैलाये ।।। गान ।।४ । गाये सबंत्र मधूर प्रकाश प्नंत जीवन का पथ बन जाय । वितरण जीवन अनंत जोव। के साम्राज्य में, करें का. यानद बने हर भटके राहो को राह दिखाय। महात । इस जीवन का अर्थ यही, वर्ग धाम ।।५॥ तेरो इक्छा में ढल जाय ।।५।। धरा बने भ० ।त७ पट Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Dlhi-110007 and Printedat Ratnadeep Press. Darys Gani. New Delhi-110002. "৮ her