(उ) fनिर्मला योग जनवरी-फरवरी १६८५ वर्ष ३ सक १७ द्विमासिक पर + पन ॐ रवमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्रीं नि मंला देवी नमो नमः ॥ तल प प # ॐ श्री माँ 5 भजन भजन आपने हमको नव जीवन दिया। बथा दे हे माँ ! हम आपको । सहजयोग मां के ही गुरण गाना । अंतिम निणंय प्रभु का यह, वन्दे ! अपनाना १ ॥ सहजयोग अमूल्य रत्न मिला चिता नहीं अब कोई क्षेम का । अवसर चूक न प्रम का । जाना ।। छोड़ माँ के शरण में जाना। पाकर पुनर्जन्म सहज जीवन सफल बनाना ॥२॥ सहजयोग ।। छल - कपट सब अब, कृत-कृत्य हुये हम तृष्त हुये। जोवन में शाही शान दिया ।। आपने ।॥१॥ में, पड़े रहे हम पत्थरों के बीच। रत्न का हमको मान दिया।। माँ का प्रेम निर्मल निर्भर निसदिन अहंकार से दबे हुये थे। आत्म-तत्व का ज्ञान दिया।। [आपने।।२॥ नहाना । चैंतन्य-लहरियों से भर भर अंजुलि, अध्यं पपूर्व चढ़ाना ॥३॥ सहजयोग ।। कोलाहल से भरे ये कान हमारे । शांति का हमको संदेश दिया ।। माँ का हर पल जपते जाना । माँ ही आत्म समर्पित हो जाना ॥४॥ सहजयोग । महामंत्र है, नाम शंकाओं, चिंताओं से घिरे रहे । सहज प्रम का उपदेश दिया ।। अआपने ॥३॥ आरत्मा, परमात्मा, I3D को भूल भुलैया में, जग खाते रहे ठोकरें अधेरे में । अब हये आलोकित पथ हमारे ।। देकर हमको । अब तु भूल न जाना । फंदा, काट ले माया का आत्म - दष्टि भ्रम में क्यों भरमाना ।॥५॥ सहजयोग ॥ ज्ञान दिया।। श्रपने।।४।॥ परमात्मा का प्रम, आनंद का मसीहा बन घरा को स्वग बनाना। के ते स बालक बनना बड़ा सौभाग्य है। वास्तव में, यही 'स्वराज्य' है ॥ 'प्रभु साम्राज्य का नागरिक वन कर, जीवन अनंत पाना।॥६।॥ सहजयोग।। है अनंत जीवन की स्वामिनी ! जीवन हमारा अमर किया ।। आपने ॥५॥ ।॥ जय माता जी ।। -सी० एल० पटेल सम्पादकीय सहजयोग में प्रगति के लिए समर्पण आवश्यक है । समर्पण मानसिक रूप से नहीं अपतु हृदय से होना चाहिए। हालांकि समर्पण अत्यन्त ही कठिन है, फिर भी सहजयोगी यदि श्रपनी बाधाओं को ही निर्विचारिता में समर्पित करना शुरू कर दें तो काफी हद तक हम सभी अपने आपको श्री माताजी के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित कर सकते हैं । ह बिना समर्पण के सहजयोग अधूरा है । निर्मला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली ११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिथ्र श्री आ्रार. डी. कुलकर्णी डॉ शिव सम्पादके मण्डल प्रतिनिधि कनाडा : लोरी हायनेक श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सो ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू एस.ए, ३१५१, होदर स्ट्रीट वेन्क्रवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन सर्विस लि., १३४ ग्रंट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्ल. १ एन. ५ पो. एच. श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ इस अंक में ': पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन **. १ ४. ५ू. मातेर्वरी जगदम्बिके ११ ६. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ७. मधुराष्ट्कम् ८. सद्गुरु तत्व और विशुद्धि तत्व १२ न १५ १६ द्वितीय कवर . भजन १०. चक्रों की शुद्धि के लिए प्रार्थना चतुर्थ कवर L जय श्री माता जी न दिल्ली सहज मन्दिर होली पूरणिमा १७-३-८४ प लोग रूपया तक देने भई सूबह चार बजे उठो, अगर कान्फ्ेन्स है तो । से बबराते हैं। यह गलत वात जो जरूरी चीज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा है । यह सुनकर तो मुके बड़ा goal (उद्देश्य) है उसे देखना चाहिये। जो चीज आरचय हआ कि बम्बई के लोग है, वह है ध्यान करना। Conference (सभा) है, जो और है। अगर पूजा होगी तो जरूरी चीज है, वो है ध्यान करना जो वड़ा यह goal दफ्त र थोड़ा सा आपने नहीं हम कितना रुपया दें। यहाँ किया तो भी कुछ नहीं जायेगा, क्योंकि lower मांगना पड़ता है। रूपया तो कभी बम्बई में goal (निम्न उहदेश्य) है ऐसे हजारों दफ्तर वाले कम नहीं होता । आपको मालूम है कि बम्बई मैंने देख लिये जो कि फाइलों पर फाइलें लाद के में लोग हजारों रुपया खर्च करते हैं ओ्र अपने मर गये लेकिन कोईपूछता भी नहीं कि कहां गये और यहां उन्होंने बना रखा है कि इतना रूपया हम कहाँ खत्म हो गए। हजारों को मैं जानती है क्योंकि भगवान के नाम पर रखेंगे। यह बड़ी शर्म को बात मैंने जिन्दगी भर इन्हीं लोगों के साथ जिन्दगी काटी है कि इन लोगों को अ्पसे रूपया माँगना पड़ता है । तो दपतर की जो महत्ता है वो मैं अव जानती है और इस तरह की चीजें नहीं होनो चाहिए । हैँ. उसकी महत्ता आ्रप मझसे न बतायें कि आज श्रर अ्रगले वक्त मैं ये न सून पाऊं कि प लोगों से दफ्तर में ये था, ऐसा हुआ, दपतर में मैं फंस गया। रूपया माँगा जाता है । यह तो परमात्मा का काम दफ्तर क्या चीज है। [आपसे ध्यान नहीं होता। है । आप यहां आकर के इतना लाभ उठाते हैं। इतनी छोटो-सी चीज आपसे नहीं होती। ये भी आपकी तन्दुरुस्ती ठीक हो जाती है, तवियत ठीक सोचना चाहिये कि हम माँ से हम सब ठीक करवाना उसे देखना चाहिए सब में कशमकश लगी रहेगो कि है । हो जाती है और प्राप टाइम (समय) नहीं दे सकते चाहते हैं, हमने माँ के लिए क्या किया। अपने को, आप ध्यान नहीं कर सकते और भापको दुनिया भर के काम है, लेकिन आपके पास ध्यान सब अपने मन में सोचे कि हमने माँ के लिये मया किया। सबसे निम्त चौज है कि पैसा देना । करने के लिये 'टाइम नहीं है । मतलव यह है कि इससे निम्न कुछ है ही नहीं। माँ कितना रुपया देती *मूझे बाज़ार जाना था, माँ, मैं क्या करू, मुझे रहती हैं हर साल । हमने कितता रुपया दिया। जरूरी जाता था, सुना कि शाज ताजी सब्जी आई बो श्रीवास्तव साहब तो कोई सहजयोगी नहीं । थी तो लेने जाना था" ले किन ध्यान के लिए उनको लेकिन उनकी अक्ल बहुत जबरदस्त हैं कि अगर समय नहीं है ।"मुझे अपने उलाऊ ज का मेंचिन्ग इसमें रुपया पसा दिया जाये तो अपता [लाभ होता आदमियों का दूसरा है और उनको हो हो रहा है। उनको सारा लाभ है, "प्राज दपतर में कान्फ्रेन्स थी, मुझे जाना ही हो रहा है रुपयों पैसों का श्र आप लोगों को लाभ नहीं होता। किर कहेंगे कि हमारी नौकरी करना था, इसलिये मैं गई था इस कान्फरेन्स में, तो मैं ध्यान नहीं कर सका । 1 निर्मला योग ३ नहीं चलती, हमें घाटा आ रहा है होगा ही वो यही हमारे घोबी साहब के यहां है। ही शिवार आदमो है, उन्होंने कहा चलो भया ये तो एक हमारे घोबी साहब थे यहीं दिल्ली में, बहुत पालो, करो। पर अरप लोग दो-दो रुपये, चार-चार दिनों तक रहे, घोजी अभी भी हैं। तो वे एक दिन रुपये के लिये, मुझे तो आश्चर्य है, मोट रों में घू-ते हैं, सबके पास मोटरे हैं, पंट्रोल है, सब चीज, किसी का भी सूट झाडक र पहन लिया ये घोंबी की य।नबाजी बहुत है। ये जो चोज अपर आ गई है जात है । तो किसी का सुट-बूट झाड़िकर अया दिखावे की, दिखावा, ये अरपने North India(उत्त री तो कहने लगा कि माताजी के सा सूट लग रहा है ? भारत) की खास चीज है। ऊपर का दिखावा| अरे मैंने कहा, ये तो साहब का सूट है। कम से कम कपड़े पच्छे होने चाहिये, मोटर होती चाहिये, घर सुन्दर होना चाहिये। लेकिन आपके मन्दिर में था। वो भी काफी लम्बा चौड़ा था, मैने कहा इस कितना दीप जल रहा है, सादगी पे उत र कर । लिये तुम हमें छोड़ते नहीं हो, क्योंकि साहब का सादगो पे आइये, तभी अन्दरके आत्म-दी प की ओर तुम्हें dress (कपड़े) तुम्हें fit (सही) होता नजर जायेगी। पर बठोगी सूटबुट पहतकर अाये, वो तो धोवियों का ये कि हमारे घर तो साहब का सूट पहन कर मत आनता मे. है, इसलिये तुम हमें छोड़ते नहीं हो, मुझे पता है । ये तो हम लोगों की दुर्दशा है । माने ये कि सूट ये मैं नहीं कहती कि आप फकोर बनकर जिये । जरूर झाडेंगे चाहे तो किसी का मारा हुआ हो, ये बात नहीं है, मतलब ये है कि आदमी को कोई हजर्जा नहीं traditional (परम्पराचारी होना च. हिये।Tradi देर का रोव होता है ? ये रोव कितने देर का ? एक tional तरीके से रहिये लेकिन जो glamorous क्षण भी नहीं। अन्दर का रौब होना चाहिये पना (चटक-मटक) है. और जो आदमियों की मनुष्य में, और traditional (परम्पराचारी नहीं हैं शानशोखो है, वो खत्म होनी चाहिये । हम लोग हम कोई अंग्रेज नहीं कि कीमतो सूट पहन करके धूमें। का) पहनकर घूमती हैं । मैंने देखा है औरतों को नया जरूरत है सूट पहनने को ? श्रपना देसी कपड़ा sleeveless फट में पहनंगी । sleeveless पहनना पहनिये । देसी तरीके से रहिये इसमें अपनी शोभा अपने यहाँ कोई देवी देवता, कभी मैंने सुना नहीं है । उसमें अपनापन । बेकार में अपने को show वाजी (दिखावा) करना और दिखाना। यह इतना दिन कहा,"मा यहां सब लड़कियाँ, जब दिल्ली आए show (दिखावा) है मैं त्रपको बता नहीं सकती । अगर किसी के धर जाइये तो मझे तो स मझ नहीं हैं, हम पहने ?" तो हमने कहा, "जंसा एक वार हमारे चपरासी की बीवी म तुम्हारा मन । सूट झाड़कर रीब झाड़ना। कितनी लोग औरत फीरन sleeveless (बिना वाजू sleeveless पहनती थीं। हमारी लड़की ने एक सब लड़कियाँ हमारे स्कूल में sleeveless पहनती आती । है पर तुम क्यों नहीं पहनती ? मैंने मिलने प्राई । तो शनील का सूट श्और शनील का सब कुछ। अब मुझे क्या पता था कि ये चपरासी कभी पहना नहीं। मझे शर्म ग्राती है, ये शरीर क्यों को बोवी है। मैंने कहा भया सोफ पर बठो । वो तो मझसे भी अच्छे कपड़े पहन के आ्राई थी। मतलब मैं ने कहा, 'मैं तो नहीं पहन सकती, क्योंकि मैंने खुला रहे। ये तो चीज ठीक नहीं तो कहने लगी जब ठीक नहीं तो आप कहती कथों नहीं कि ये ठोक सो र पर बठो ता बंठे न । मैंने कहा, हप्रा नहीं।" मेंने कहा आपके पास अक्ल है, आप खुद क्या भई, बैठतो व यों नहीं ? इवर-उचर देखने लगी तय करिये कि अगर हम नहीं पहन ते और अ्रगर] तो कह ती है, कि माँ बात ये है कि मैं चयराती की आपने पहनना है तो हम क्यों अपको जबरदस्ती बीबो है । तो मैंने कहा, अच्छा चलो बठो, कोई ह र्जा नहीं, तुन शनाल पहत कर अई हो, तो कहाँ जमोन कर । पर मैं कभी नहीं पहनुगो । There is no criteria (यह कोई आवश्यक नहीं है ) ये तो कोई निमला योग eriteria (गरवश्यक) नहीं कि मैंने कह दिया तो नहीं । कहने लगे मेरी कोई बीवो नहीं थाई, वो तो वो कहने लगे लगाइये कि माँ क्यों नहीं पहनती। Sleeveless नहीं, कोई नहों पराई । उसके बाद हम बैठे तो सब तरीके उन्होंने कहा कि आपकी कोई सेक्रेट्री आई हुई है । आप छोड दी जिये । सहजयोगियों को ये शोभा नहीं देखा तो उनकी बोबी साहिबा वहाँ जीन पहनकर देता । कायदे के कपड़े पहलिये। जो का्य दे के कपड़े पहँची हुई थी। तो उन्होंने कहा, ये तो कोई सेकट्री । बो अपने को वड़ा खूबसूरत समझ कर धूम में ठीक से पायल होनी चाहिये, आपके पाँव में रही थी। असल में औरत में जब dignity (मर्यादा) विछिया होनो चाहिये. आपके गले में मंगलसूत्र नहीं होगी तो वो मुझे लगेगी जैसे कि कोई क्लक बाबू की बीबी आई हुई हैं, या वहाँ पर कोई जमा- बाल कटाकर बेठ गई, बाल किसलिए कटाने हैं, दारनी के जैसी दिखाई देती है । हिन्दुस्तानी प्रौरत क्यों वाल कटाती हैं आप लोग ? प्राप कोई अंग्रेज जो इस तरह के कथड़े पहनती है बिलकुल जमा- हैं जो बाल कटायें ? क्रिसलिये अ्रापको बाल व टाने दारनी जैसे, और ो से जमादारनी जेसे कपड़े पहन की जरू रत है ? कुछ समझ में नही प्रता । हमारे करके घमना कोई अच्छी बात तहीं। अपनी इंज्जत यहाँ बाल कटाना सिर्फ विधवाओं का होता है रर अपने हाथ में है। [अगर प्राप अपनी इज्जत नहीं विधवाओं को भी बाल कटाना जी होता है, विल्कुल रखेंगे तो दुनिया आपकी इज्जत नहीं करेगी। आप में इन होता है ये नहीं कि बाल क्टाकर के hair लोग किस तरह के बापड पहनते हैं, किस तरह से dress (केश सजजा) बनाकर के घुमना सहज- चलते हैं, कि अ पने देश के गरव के साथ, जो अपने योगियों को दोभा नहीं देता । यही आदमियों का देश का dress ( पहनावा) है वो सबसे अच्छा हाल है । अब ये लोग भी आजकल, मैंने सुना है कि dress (पहनावा) है हाँ कभी-कभी पहनना पड़ता यहाँ के अदमी लोग भी, कुछ सहजयोगी भी काफी है formalities (औपचारिकता) पर, कभी आप फैशन करते हैं । फेशन सहजयोग में बिल्कुल नहीं सुट पहन लीजिये, पर हर समय सूट पहनने की कोई से आने वाली थी, वो कहा चली गई। पते हो कर दिया। मैंने कहा कि आप अपना दिनाग पहनेगी, इतना लम्बा गला पहनेगी, ये होगी हैं, अपने traditional (परम्परागत)तरीके से । पाच होना चाहिये। कारयदे की औरतें होनी चाहिये। ा शोभा देता, आपकी dignity (शान ) में । ऐसे जरूरत नहीं। तो यहा पर मैं देखती है बहुत आदमी को आपको माजूम तहीं कि कोई इज्जत सहजयोगी लोग रोब झाड़ने को जाते हैं अ्रर यहाँ नहीं देता । परंदेश में मैंने देखा है हमारे साय एक पर जो हैं oreign (विदेशों) से अये हुये लोग मुझसे कहते हैं कि माँ हमें इसलिये अच्छा नहीं cabinet minister (केन्द्रीय मंत्री) थीं, cabinet minister नहीं secretary (सवि व ) की बीवी थीं। Chief secretary (मुख्य स चित्र) chief लगता है कि वहाँ पर सब suited-booted (सजे-धजे ) लोग रहते हैं । उनको अच्छा नहीं cabinet secretary की । उसकी दबा आई एक लगता, क्योंकि आप उतका अनुकरण कर रहे है । बार । वो South India (दक्षिण भीरत) की थी । उनको लगता है कि ये लोग क्या अरजीब लोग ले किन बो बीवी अ्रपने को बहुत अफलातून समझती हैं, इनके पास इतने प्रच्छे - प्रच्छे dress (वस्त्र) थीं। तो दूब ली-पतली थीं और एक दिन हम लोग हैं, उसे पहन सकते हैं । इतनो गर्मी हो रही है, उस पार्टी में गये खाना खाने । तो बहाँ पर देखा कि हम वक्त ये लोग अपने ये पहन करके आ रहे हैं। इनको विल्कुल ही अपनी कोई प्रतिष्ठा नहीं । जो स्वयं हमारे husband (पति) भो बैठे ओर ये महाशय अप्रतिष्ठित होते हैं, वो इस तरह से glamour जब वहां बैठे तो उन्होंने कहा कि आपकी बोबी (दिखावे) में रहते हैं । Glamour (दिखावा) तो केहाँ है ? कहने लगे आपकी तो कोई बोबो आई. वो चीज है जिससे अादमी में एक तरह की defi- गये तो हमको बड़ी इजजत के साथ उन्होंने हमें बैठाया । ५ निर्मला योग ciency (हीनता) होता है वो glamour लग ता रुचिकर रसुन्दर है, और जो ऐसे फालतू चीजं है कि सिर पर डालडा का टीन रख लोजिये उसके के पोछे में आदमी जय जाता है तो उसका जो रूप ऊपर में है। जसे कि एक साहब पार्टी टोन या बालों में खूब ऐसे-ऐसे सजा-सजा करके में बहुत बनठन कर गये, तो उन्होंने सोचा कि बरा वाल-वाल बनायें । क्या जरूरत है ? कोई जरूरत है तो उनके हाथ में उन्होंते प्रपने सारे गिलास- वगैरा पकड़ा दिये, और वो अपने को बड़ा लगा के बुफा बनाइये ओर फिर बो डालडी का है वो विद्रप हो जाता मनिः नहीं । आप विल्कुल सादगी से रहिये। कहीं आपने कोई देवी को देखा है कि वो इस तरह के एक टाई-वाई लगा के आये । मैंने कहा, इन राजा- बड़े वेकार के आडम्बर करती हैं। अगर करे, एक महाराजा्रों का ग्वाल ही खराब हो गया बड़े बार हमें जबरदस्ती ठेल-ठाल कर लोग ले गये बन के अाये थे राजे और उनको उन्होंने सबने वो गिलास पकड़बा दिये । मैंने कहा कि भई विचारों तो मैं तो भूत लगने लग गई। मैंने कहा है भगवान फे को इसे, वेकार की चीज, सरदरद हो गया। पर कसे लोग बदर्शत करते हैं अरर क्रिस लिये ये सारा को ऐसे ही पकड़वा दिया उन्होंने । दो-एक दिन मेरे साथ भी ऐसा ही हुआा । मैं एक पार्टो में गई थी, बर्दाश्त करते हैं ? किसनिये ? इस से किसी को लाभ तो वहाँ एक ambassador (राजदूत) साहब नहीं होता है. कोई सुखी नहीं होता, किसो को हिन्दुस्तान के, बड़े अंग्रेज बनकर आये थे। तो मैंने सोचा कि कोई नीग्रो-बोग्रो होगा, उसको भी बैरा बनाकर के भेज दिया होगा । यहाँ पर कोई नीग्रो हैं ही गिलास पकडवा आनंद नहीं आाता। उल्टे घवराहट होने लगती है । तो ये चीजों को समझना चाहिये कि श्रीकृष्ण की कि क्या हैं। तो उसको मैंने जो लीला है, उस लीला में सौष्ठव है, उसमें माधुरय दिया | तो ये दोड़े-दोडे प्राये कि अरे क्या करती हो, है, उसमें इस तरह की गंदगी नहीं है कि जिसको अरे क्या करती हो ? ये प्रपने ambassador (राज- देखते साथ ऐसा लगता है कि ये क्या चले आ रहे दूत) साहब हैं। भई मैंने कहा, कार्यदे से अपना बंद हैं सामने से, बार तरह के बाल रंगा करके, ऐसा कॉलर का पहन करके, कायदे से आते तो मैं कहती बड़ा-सा चश्मा पहन करके, जैसे खुखार इन्सान आपके ऊपर वला आ रहा है। उनके अन्दर सौष्ठय था। उनके dress ( वस्त्र) देखिये, पीताम्बर पहनते तो भी खूब मोटी, ऐसे-ऐसे फूली हुई, बिल्कुल जैसे थे । हमारे यहाँ कितने लोग पीताम्बर पहने हुये हैं, बताइये ? जो कृष्ण पहनते थे । क्योंकि वो तो पीता- पहनो ऐसे ही इग्लैण्ड़ में प्राप देखिये कि रानी का म्वर पहनने से तो, अरे बाप रे ! हम तो विल्कुल जब वो होता है पाटो तो वहाँ भी ये चलता है। ये देहाती हो गये, कोई नहीं पीताम्बर पहनता, और वी मुकुट लगाते थे, वो भी मोर मुकूट लगाते, मोर वहाँ पर ये है कि tail coat (एक प्रकार का बस्त्र मुकुट उसको लगा लेते थे, क्योंकि थे तो भगवान ही आप पहनते हैं, जिसको वो क्या है long suit तो उनको मुकुट चढ़ाना है, तो मोर का लगा लेते (लम्बा सूट) कहते हैं। अ्रब वो सबके पास तो होता थे । लेकिन अपने यहां बूफा बना लेते हैं । वसाइये नहीं, कोई रखता नहीं, तो वहाँ एक Ross Bro- श्र प्रादमी लोग और क्या-प्या तमाशे कर रहे हैं। इससे क्या फायदा ? जो अपलियत पे प्रादमी तो Ross Brothers जो हैं वो सबको देते हैं कि को रहना चाहिये। पहली चीज ये है कि अपने आप ये hire (भाड़े पर) करो। अब भैया अच्छे- को ये समझ लेना चाहिये कि हमें असलियत पर रहना है । असलियत इन्सान की जो है वो बहुत कहा क्या वो तो comfortably (आरामपूर्वक) चल खुद भी कि हिन्दुस्तान के ambassador (रा जदूत) आये हये हैं । ये इतनी जो टाई वाई लगा करके आये ि वैरा लोग लगाते हैं । मैंने कहा तमीौज से कपड़े सब अंगेजों से हमने सीखा हुआ है फालतू का । तो है ) thers (रॉँस बन्धु) करके हैं। Ross Brothers - भले लोग सीधे नहीं चलते, टेढ़े-टेढ़े चलते हैं । मैंने निमंला योग रहे हैं, उनको सब tight ( तंग) कपड़े, कोई लटके पहनेंगे । नहीं तो बिल्कुल जैसे वो beach ( समुद्र हूये हैं, किसी के यहा तक पर जा रहा है, कोई ढीले- किनारे) पर १हन कर घूमते हैं, वैसे पहनकर धूमेंगे। हाले बिल्कुल जोकर बने हुये हैं, clown जै से । मैंने दोनों चीज हम रे देश के लिये शोभा नहीं देै । कहा जो अच्छे-भवे लोग थे ये केसे लग रहे हैं । मुझे हमारा देश भी वहत बड़ा प्रतिष्ठावान है, क्योंकि तो हंसी पे हंसी आती रही। पूरे सम प मुझे हसो बड़े पूर्व जन्म के सुक्ृत से प्रप इस देश में पंदा हुये आतो रही। इन्होंने पूछा तुम्हें हंसी क्यों प्राती है ? हैं इनको पूर्वजन्म का कुछ मालूम ही नहीं । फिर मैंने कहा ये देखो clown (जोकर) ये तो इतना उनके सुकूत को कीन बात करे। तुम्हारे तो पूर्वजन्म अच्छा आदमी है इसको कया हो गया, ये clown के इतने सूकृत हुये. इसी देश में आप पैदा हये और जसे बना चला है। भगवान की कृपा से जब से हम इस देश में पंदा होने के बाद इसकी शान से रहे । पहुँचे तो ये allow (इजाजत) हो गया कि औरतों को भी चाहिये कि इसकी शान से रहे। देखिये आप अपना national dress (राष्ट्रीय पोषाक) आप हिन्दुस्तानी ढंग से कपड़ा पहना की जिये। पहन कर आइये । तो मैंने कहा, नहीं तो मैं तो आपकी इज़्जत होगो लोग आपको पसंद करेंगे, आपके साथ चलती नहीं । Clown (जोकर) बनकर के, मैं चलने नहीं वाली। ये सब भगवान की कृपा काफी ये हैं। आसानी से अपना dress नहीं छुटता, हो गई, समझ ना । फिर उससे अजीव प्रजोब लोग आसानी से सही छूटता और देहातों में तो बिल्कुल dressed आते हैं, varieties (भिन्न-भिन्न रूप) आरती हैं-कोई अजीब तरह का पहन कर आते हैं, छुटता । उनका dress (पहनावा), मैं तो ये कहती जिसको आप अजीब से कहें। वो पर दिखने को तो हैं मिलता है कि इनका national dress (राष्ट्रीय के पप जेबर पहनिये उसमें कोई हर्ज नही, क्योंकि पोषाक) क्था है । Variety (विभिन्नता) से सौंदर्य ये अपने देश का tradition (परम्परा) है, और ये आता है, सब अ्पने tradtion (परम्परा) की तरह सारे जितने भी जेवर हैं ये सारे एक एक चक्रों पे से कपड़े पहनते हैं। उनके देश में जो tradition उसकी शोभा के लिये हैं । ले किन आपको कोई जरू- बनता है । अपने देश में भी जो कुछ tradition बने हैं, रत नहीं कि आप अंग्रेजों जैसे फाक पहनकर घूमिये वो भी इस हिसाब से tradition बने हैं कि जिससे और या उनके जैसे कपड़े पहनिये । हाँ कभी आपको हमारेदेश में जो जरूरी चोज है, जिस तरह का dress formalities (लोकाचार) पर पहनना पड़े । पर वस्त्र) पहना वो घीरे-धीरे वो tradition बाँधते अधिकतर अ्पने ही देश का dress सह जयोगियों महाराष्ट्र में इस मामले में लोग आपको मानगे ही नहीं, चाहे कुछ हो जाये देहातों में विल्कुल नहीं कि traditional dress प्राप पहनिये, सब तरह ( जाता है । जिस तरह का हमारे लिये शोभा देता है, उपयोगी है, उसको छोड़कर एकदम अगज़ों] जैसे कपड़े पहनने की क्या जरूरत है ? और ग्रंग्रेज जेसे को पहनना चाहिये, हरेक ग्रादमी को । जिस देश में रहो, अगर इंग्लैण्ड में रहो तो इंग्लेण्ड जैसा dress पहनो । निर्मला योग ॥ जय श्री माता जी ॥ घर्मशाला देवी पूजा २६-३-८५ आज के शुभ अवसर पर हम पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सव यहीं यहाँ आए हैं। आज देवो का घरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब सप्तमी का दिन है । सक्षमी के दिन देवी ने अनेक २क्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस यही बात अंगेजी में कह रहो थी, वही बात आ्पसे कर डाला। क्योंकि सन्त-साधु जो कह रही हैं। यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ रापका 1eali- zation (साक्षात्कार) होना पूरी बात नहीं है। मैं इस शुभ अवसर पर ये जानना चाहिए कि पर- मात्मा ने अपनी सारी शक्तियां आपकी सुरक्षा के हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने लिए, श्रापके क्षेम के लिए आ्रपकी अच्छाई के लिए इतनी तपस्या की । इनको क्या जरूरत थी इतनी लगा रखी हैं। पूर्णतया परमात्मा आपको आशोवादि penance (तप) करने की, इतनी तपस्या करने दे रहे हैं । पूर्णातया वो प्रापको देखना चाहते हैं कि की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा आप परमात्मा के साम्राज्य में अएं। उसका प्रभि- था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोवते थे वादन है एक तरह से कि आप अपने पिता के घर आइए और आ करके वहाँ पर आप आनन्द से इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान वेठिए । लेकिन उस लायक तो होना चाहिए। अगर में बैठ करके इतनी तपस्विता की। पराज उन्हीं की हम उस लायक नहीं हैं तो कथा हम वहाँ जा सकते कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं? हमारी लियाकत हमें देखनी चाहिए कि क्या थे उनको ये लोग सताते थे । कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर ले । है ? हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया | सबसे पहले बात है कि आप पिता के घर आए, इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहज- योग को समझ लें कि हमारे लिए ए क बड़ी भारी मैं भी आज अपने पिता के घर आयो, ऐसा मूझे देन हो गयी, कोई हम बड़े great people (ऊँचे लगता है, क्योंकि हिमालय मेरा पिता है आते ही लोग) हैँं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, साथ सबसे पहले जो भावना मेरे अन्दर उमड़ी we are chosen people (हम लोग चुने हुए वो मैं शब्दों में नहीं बता पाऊँगी, लेकिन ऐसा मनुष्य हैं) और इस तरह की बात सोचने वाले सोचती है कि जैसे कि आज मेरे पिता के गौरव का लोगो को मैं बताती है बड़ा घकका बंडेगा । ये देखेगे मुझे एक बड़ा अच्छा समय मिल गया है। वड़ा शुभ कि जो लोग यहाँ पर भोले-भाले हैं, जो यहाँ सीधे- प्रवसर प्राप्त हआ है कि इस समय में अ्पने पिता सरल हैं, जो स्वरभाव से अत्यन्त सून्दर हैं, वे सबसे के गोरव की गाथाएं लोगों से कहै कि इस पर ा निमंला योग ८ आ्रकर जिन्होंने भी तपस्याएं क रीं उन्होंने कहा से क्या-क्या नहीं, ये मैं नहीं वता सकती । लेकिन इतना कहाँ अ्रपनी उन्नति कर ली । इस हिमालय को देख ही बताती है कि आज की जो यहां की एक आपको करके जिन्होंने उच्चतम स्थिति प्राप्त करी, उन्होंने बहुत अच्छो संबि मिली है, एक शुभ गरवसर मिला न जाने कहाँ से कहाँ ग्रपने को उठा लिया । ये सहस्रार है जो पृथ्वी ने प्रापके लिए बनाया महानता में उतरने का प्रयत्न करें । औौर ये सोतिए] हुआ्रा है । इस सहलार की पूजा होनी चाहिए । ये सहस्रार बहुत ऊँवी चोज है । पता नहीं आपको हैं। हमारे अन्दर ऐसी कोई भी विशेषता नहीं है कि इसमें से चेनन्य की लहरियां निकलती हुई दिखाई जो हम इस हिमालय के सामने पअ्रपने को उद्दामता दे रही हैं कि नहीं। मेरे चारों प्रोर सिर्फ चंतव्य के और कुछ नहीं दिखाई दे रहा। चारों प्रोंर चेतन्य है ! ही चैतन्य है और इस में रहने वाले लोग भी उस चतन्य से ऐसे लिपटे हुए हैं, ऐसे समाए हुए है कि है। इसने सारी सुष्टि को ही इतना आराम, इतना मानो जैसे सागर में मछलियाँ तेर रही हों। कोई भी उनमें प्रौर उनमें भेद नहीं रहा । जो पानी है अागे हमें और कूछ पाने का नहीं । इस सहस्वार उसी का उपयोग जेसे मछलियां अ्पने तं रने के लिए सारे ही मैंने प्राप लोगों का सहस्रार खोला। इसी कर रही हों। ये जो चेतन्य चारों तरफ फैला हुआ सहस्रार के सहारे मैंने जाना कि जब तक हिमालय है, इतना यहाँ सुन्दर और इतना मनोरम है कि की शान्ति आपके अन्दर नहीं प्राएगी, उसकी उसका वर्णन मैं व.कई शुब्दों में नहीं कर सकती । और ये सारी हिमालय की कृपा है । हिमालय की हैं. है उसकी गहराई में उतरने का प्रयत्न करें। उसकी कि हम इसके सामने एक अकिवन, एक छोटे से क्षुद्र से देख सके। हम हैं ही क्या ? ये तो महान चीज़ और ये सहस्रार, सारी सु्टि का सहस्रार यहाँ सुख र इनना आनन्द दिया हुआ है कि इससे के 1 शीतलता आपके स्वभाव में नहीं आएगी, तब तक आपका सहलार खोलना भी व्यर्थ जाएगा। कूपा है । नहीं तो आग की भट्टी की तरह से ये सहत्रार जलता है । जब मैं देखती है कुछ-कुछ लोगों को, तो हिमालय ! सर्वप्रथम सोचिए कि हम लोग सागर को अपना गुङ मानते हैं । सांगर हैमारा लगता है, हे भगवान मैने इनका सह्रार क्या खोल पिता है और सागर जब सारा मंल छोड़-छाड़ करके दूनिया की सारी गन्दगी उसके अन्दर जब गिरती है, उसे नीचे छोड़ करके और जब बो आकाश में बादल की तरह उठता है तब वो विल्कुल निषपाय, सुन्दर शुद्ध ऐसा बहुता बहुता इस हिमालय के इसके अन्दर से क्था क्या चीज निकल रही हैं । चरणों में जब आता है तब वो यहाँ पर हिम बनके छो जाता है । शब्द भी 'धवल है । घवल माने दुनिया भर की जो जो चीजें गन्दगी की हैं वो सारी 'अति शुद्ध, अ्रत्यन्त स्वच्छ, अत्यन्त निर्ल । ऐसी उभर करके ऊपर चली आती हैं । ये जो घाराएं हैं, ऐसी हो धाराएं इस हिमालय में बह सकती हैं। ये धाराएं वही है जो हमारे मस्तिष्क में भी बहुती हैं और जिसके सहारे हमारा सहस्रार सात दीविया को याद क रके जिन्होंने यहां पर बहुत प्रज्ज्वलित होता है । दिया प्रन्दर से प्राग की भट्टी जल रही है। अन्दर से इतना घंा और इतनो गन्दगी निकल रही है कि अच्छा है इनका फिर से सहस्रार बन्द हो कर दो। ऐसा भानुमती का पिटारा खुल गया है कि पता नहीं देखते के साथ ही आश्चरय होता है कि साँप विच्छु , आज इस हिमालय को याद करके और उन पराक्रम किए हुए हैं, उनको याद करना चाहिए कि हमारे पास भी देवी शक्ति आए । और उस देवी शक्ति को पूर्णतया हुम एक माँ से प्राप्त किए हुए हैं । इसके अन्तर्गत क्या-क्या कहना चाहिए और निमंला योग ८ इस लिए जो माँ का स्वरूप है, उस स्वरूप को लेते हुए हम हिमालय की शरणागत हों । बने । न म्रतापूर्वक इसे करे । कितने हा लोगों ने मुझसे ये शिकायत की है कि माँ हम आप ही के lecture (प्रवचन) में आएंगे अपनी ओर नज़र रखिए। सोवते हैं। ये सोचते हैं, ये अआदमी खराब है That और हम आपके सेन्टर पर नहीं जाएंगे। मुझे बड़ा man is not good, that fellow is not आश्चर्य होता है। हजारों लोग मेरे लेकचर में श्राते good. What about yourself ? See your- हैं और क्यों ऐसे खो जाते हैं ? तो क्या आप बीच self. सत्को अपने को देखना है। दुसरों को नहीं में एक शेतान बनकर वेठे हैए हैं ? कृपया मेरी बात दे वना है ये आदमो ये नहीं करता, वो आदमी वो की ओर ध्यान दें प्रर अपनी ओर देखें । दूसरों की नहीं करता। आप क्या कर रहे हैं, उसे देखिए । हिमालय ये नहीं देखता, हिमालय ये नहीं देखता कि किया है ? क्या हमने ऐसा किया है ? तब श्राप दुनिया ने उनके साथ क्या किया ? कितनी ज्यादती जानगे, जब आप इस चीज को समझ ले, जब आप करी है ? वो ये देखता है कि उसे क्या देना है ? उमे क्या मेहनत करनी है? किस तरह से लोगों को पाएंगे, और तभी आप इस हिमालय की महानता प्लावित करना है ? किस तरह से उनका संरक्षण को जाने गे, नहीं तो आप समझ नहीं पाएंगे करना है ? इस हिमालय की चोटी से ही हमने आपके अन्दर न वो संवेदना है, न ही वो अख हैं, अपनों सुरक्षा पायी । इसी से हमने अपनी गंगा, यमुना ओर सरस्वती की धाराए पायीं ये तीनों घाराएं हमारे अन्दर निर्मल बहती रही हैं । हालाँंकि इसमें हम हर तरह की गंदगी डालते है। हर तरह से उसकी उपेक्षा करते हैं। हर तरह से उसका अप- लोग दूसरों की । हमने ऐसा किया है ? क्या हमने ऐसा ओ्रर नहीं अपनी गलती को देखेगे तभी तो आाप न ठीक कर न ही वो समझ है, न ही वो सूझ-बूझ है कि आप इसे समझ पाएं कि ये क्या चीज है ? जहाँ आप बठे हुए हैं, किसकी गोद में आप आए हैं जिसकी गोंद में हम रहे, पले, वड़े हुए वही ये महान पिता हमारा है। इसका आप मान रखिए मान करते हैं। तो भी हिमालय सततू श्रपनो स्वच्छता उसके अन्दर बहाते रहते हैं। लेकिन सब और इनके सामने नतमस्तक हो करके ये सिद्ध चाजों का अन्त होने वाला है । इस तरह की चीजें और अधिक चलने वाली नहीं । करके दे कि जो हमने कार्य किया यो कि सी काम का रहा। बेकार का नहीं रहा । इसी प्रकार इन सात देवियों का अशोर्वाद धाप सब लोग इसको याद रखिए कि मैं आपकी पर अनन्त है ये ग्रापकी मौसियाँ समझ लीजिए । जबान में मधुरता पाऊं, आपकी बातचीत में मिठास ये सारी आपकी देखभाल करती है। कहते हैं कि पाऊँ, आपके व्यवहार में सुरुचि पाऊँ । मैं इस माँ मर जाए पर मौसी जिए। ऐसा कहा जाता है । चीज़ को अव माफ नहीं करू गी, इसको आप जान क्योंकि मौसी जो होती है वो बच्चे को दुलार से लीजिए। ये करना महापाप है। किसी को भी किसी रखती हैं । उसको संभालती है । उसकी रक्षा करती देना बहुत बुरी बात है । कृपया है। उसकी पूरी तरह से रंचित रखती है। उसका एक दूसरे का आदर करिए। आप सहजयोगी हैं, हमेशा मनोरंजन करती है। हरेक तरह की कठि- दूसरे भी सहजयोगी हैं । आज आप किसी पद पर हैं नाइयों से आपको बचाती है। आप देखते हैं कि छवि घुम रही है कभी आकाश में बहुत सारे बादल दिया हुआ है और जब चाहें इस पद से हम पको आ रहे हैं । वहुत सुन्दर सुन्दर से आप देखते हैं कि हर समय रंग-विरंगे बहां पर नजारे दिखाई देते हैं । 1 चीज के लिए दुख दूसरा नहीं, ये पद आपने पाया हुआ नहीं, हमने ह्टा सकते हैं । इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य निर्मला योग १० ये सब उनके खेल चल रहे हैं, आपको सुन्दरता से really tried first of all to curb you down भरने के लिए। इसी प्रकार प्राप भी एक सुन्दर, and after curbing you down I think you अच्छे व्यक्ति बन । यहां पर बहुत कुछ कमाने काpeople should ascend because many है। अब देखना है कि इस शान्ति क पुण्य से निकल things have fallen out. Now don't try करके आप कितने सुन्दर होते हैं ? क to gather them and go back to them and justify. Try to be without them. आज की पूजा में बहुत महत्व है और हो सकता है इस पूजा में बहुत लोग बहुत कुछ पा लगे । ले किन मथने वित्त को स्थिर करें मर वित्त में पहले शान्ति की आराधना करके कि, "माँ हमें आप शान्ति दीजिए।" शान्ति की माँग करें, जिससे आप अनुवाद : में जानती है यह (कुण्डलिनी जाग- रण) बड़े जोरों से कार्यान्वित होगा। सबसे पहले मैं ते प्रापको दबाने की कोशिश की है और उसके दुनिया में शान्ति फैलाएं । तब् अनन्द ग्राता है । बाद में साचती हैू आप लोगों को ऊपर उठना चाहिये, क्योंकि दबाने से आपकी अनेक बातें (विकार) छूटकर गिर गई हैं । [अब] उनको दुबारा It will work out tremendously, I बटोरकर फिर उनमें लिप्त होने की कोशिश न know it will work out. Because I । आ्नन्द शान्ति के बर्गर नहीं आ सकता । करे । अब उनसे मुक्त रहने का प्रयत्न कर have मातेश्वरी जगदम्बिके मातेश्वरी जगदम्बिके सुन लो हमारी प्रार्थना, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली आदिवाक्ति भगवती कर दो कृपा निर्मलेश्वरी सहस्रार स्वामिनी अम्बिके । जानू न मैं पूजा तेरी, जानू न मैं विधी कोई करुणामयी हे अम्बिके, दे दो जगह चरणों में । की जब से तेरी प्राराधना, माँ अपनी तो यहो साघना ऐसा अगर वर दीजिए, पूर्ण हो सबकी मनोकामना । तेरी कृपा से आज तक चलता रहा जीवन मेरा जीवन की ज्योति हो तुम्हीं, मोक्ष प्रदायिनी अम्बिके । श्रीमती शान्ती देवी घर्मशाला निमला योग ११ ॥ जय श्री माता जी ॥ जन्म महोत्सव नयो दिल्ली २६-३ ८५ इस ऊंचे स्त र पर आ गए। और इससे कहीं अधिक ऊँने स्तर की पोर अग्रसंर] हो रहे हैं, प्रय्नशील हो हे हैं, ये दे बकर मुझे स्वयं ही ग्रौर ग्रत्यानन्द होता है । सारे विश्व के सहजयोगी तथा सत्य को खोजने वाले सारे सात्विक जीवों को मेरा आাহलर्य होता है प्ररम । किसी को धर्म की शिक्षा दी जा ए श्रोर कह इस आपके आदर और आस्था से हृदय इतना अ्रभि- जाए कि ये न कारों तो मनुष्य उसे मानता ही नहीं हो जाता है कि कोई शब्द नहीं मानने वाला । प्रोर लासकर मां से तो कोई भूत समझ में नहीं आते, किस बेहतर यही है कि किस तरह उसके अन्दर उसी य] कुडलिती जागृत कर दी जाए। कुण्डलिनी के जागृत तरह से कहा जाए कि यज कलियुग मानो खत्म हो चुका। कलियुग में माँ की कोई भी परवाह नहीं होते ही जब वो स्वाधिष्ठान चक्र से गुजारती है तब करेगा, माँ का मान नहीं होगा, ऐसा भव्रिष्य है । ले किन आज यहाँ पर जब देखा जाता है कितने ठान चक्न से हमारा एक और कार्य होता रहता है लोगों ने आकरर वहाँ पर एक बड़ा भारी काम हो जाता है । स्वाधि - कि जब हम सोवते हैं तो हमारे मस्तिष्क के cells (कोशिकाएं) जो कि fat cells होते हैं, जो बार-बार हम इस्तेमाल करते रहते हैं, उनको नये cells की प्राप्ति कराना ये कार्य स्वाधिष्ठान का है । वयोंकि जब हम इस्तेमाल करते हैं तो पुराने cells बिल्कुल इस जन्म-दिवस को कितनी सुन्दरता से सजाया है ऐसा। लगता है मातो सत्युग को शुरूप्रात हो चुकी। कुछ भी नहीं हैं। एक माँ हो तो वास्तव में हम ही क्या सकती है ? जो उसके बच्चे हैं वो ही समाप्त होते जाते हैं, और उन्हें सशक्त नये cells सब कुछ हैं । माँ के लिए उसके बच्चों का बड़ा होना की जरूरत पड़ती है। बो हमारा स्वाधिष्ठान श्र अग्रसर होना ही सब कुछ होता है । पर जो चक् वनाता है और उसे रक्त में छोड़ करके बही माँ ब्मं पर खड़ो हो प्रोर जो आरमा से प्लावित् हो, रक्त हमारे मस्तिष्क में जाता है तो वहां पर brain वो ये ही चाहेगी कि जो संसार में अ्रति उत्तम है, (मस्ति०क) में वो cells काम करते हैं । इसीलिए जो सबसे महान है. जो सबसे जप्रादा सुखदायी हमारे यहाँ धर्म का स्थान बहुत ऊँचा माना गया है । और आनन्ददायी है, वही मेरे बच्चे प्राप्त करें । जिस माँ की जितनो नजर होती है उतनी हो प्पेक्षा वो अ्रपने बच्चों के लिए करती है । हमारा वर्म हमारे पेट में होता है जहाँ पर स्त्राधिष्ठान कार्य करता है । जिस वक्त स्वाधिष्ठान च क्र खराब हो जाता है तो हमारा धर्म भी खराब इतने थोड़े से समय में इतने लोग सह नयोग को हो जाता है। लेकित जत्र कुण्ड लिनी जागृत हो जाती प्राप्त हुए । उनके अन्दर अत्मा जागृत हो गयी। वो है तो बो उन cels (कोशिकाओ) में धर्म भर निर्मला योग १२ देती है । प्ठान चकपर स्थापित करत है, जि से पर हम संतु- लन प्रापन करके धर्म को प्राप्त करके, हमारे मस्तिष्क में धर्म भावना जागृत हो जती है। वड़े-बड़े हैपारे यहाँ आदिगुरू के अवतरण हुए हैं। जिन को आप कह सकते हैं इगाहम, कन्स्यूनस धर्म का मतलब ये नहीं कि हम ये सोच कि हम सोकटिम मोजि स, राजा जन F, नानक साहृब, मुहम्मद पाहिब औोर अभी-प्रभो विरडी के साई उसका मोर डाले, इसको पोट डालें. उसका बदला नाथ । हसे अनेक महात पूरुष इस महान तस्व को ल या उपसे इस तर से व्यवहा र करें, इससे हम लेकर इस सपार में प्रव्तरित हुए थे और उन्होंने पूरे समय ए क हो कार्य किया था कि मनुष्य बा धर्म । बांधा जाए। उसकी वजह ये थी कि अग र धर्म नही बाघा जाएगा तो स्वाधिष्ठान चक्र सराब जाएगा प्रकार सवंधर्म एक ही है । लेकिन उनका आपस का घोर ये दिाएं कि हम कोई ् है । योई भी ससार में ध्म एक दूसरे से श्रे ठ नहीं है। वो सब का पूरक है कोई एक अख दूसरे से श्रेष्ठ नहीं हो सकती । उसी पर सनुष्य का मस्तिषक खराब हो जाएगा और रिश्ता उनकी ग्रा की लेत देन समझने के लिए ये ही वजह हैं कि हमने उस घम को पूरी तरह से अपको 9हले आत्मा प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि माना नहीं, समझा नहीं। इस वजह से आज इस आप संतरे में हमेशा ये ही तोचेंगे कि प्राप प्रकेले कलियुग में हम सबका हाल इतता खरा ब है। ही वडे हुए हैं। इसलिए इस पकाश की जरूरत है। पर जब तक घ्म आपके अन्दर संतुलित तोर से पर कृण्डलिती ये कार्य व हुत सहज तरीकि से जागृत नहीं होता है, कुछ भी कर लीजिए, कुण्ड करती है। जब कुछ्डिनी उठे करके स्वाधिष्ठीन लिनती जागृत नहीं होगेी। चक्र में जागृत हो जाती है तो बहाँ के जो cells हैं बो यनायास ही धार्मिक हो जाते हैं । इसीलिए आप देख ने हैं जो सहजयोगी चाहे हिन्दुस्तानी हो, चाहे और इसलिए घर्मं पर पहला लक्ष्य किया था कि पहले अंग्रेज हो, चाहे अस्ट्र लिया का हो, कहीं का भी हो घामिक वनो धर्म में रहो। लेकिन वो बात न हो उसकी मर्यादाएँ एक जैनी बती रहती हैं । वो पारयी । तो ये सोचा गया [कि [अच्छा ठीक है, कोई ईमानदार वन जाता है, वो श्रत्यन्त मोहब्बती वन बात नहीं, जैसे भी अ्राप, जैसे भी असंतुलन जाता है, सहनशील बत जाता है। उस मैं एक तरह हो, केसी भी हालत में आप हों, आपकी कुण्डलिनी का सौष्ठव आ जाता है और एक तरह का बड़ा गम्भीर प्राकर्षण उसके अन्दर श्रा जाता है । ये और कुण्लिनी अागे चल पड़गी और अपको आत्मा सिर्फ स्वाधिष्ठान चक्र को ही कृपा है जिससे कुण्ड- भी प्राप्त हो जाएगा। य ही प्राज का सहजयोग है । लिनी अपना कार्य करती है। ऐसा हो लोगों ने निरधारित किया हुआ था । में आप जागृत कर दी जाए। धोरे-धीरे घम भी बैठ जाएगा उलमें कितना वश मिला है, इसके लिए मैं सिर्फ आप हो को घन्यवाद दे सकती है । क्योंकि हम जो है सो हैं, हमारी क्या विशेषता है, मेरी ये ही समझ में नहीं आता । व्योंकि जो इंसान है उसकी कोई विशेषता होती ही नहीं है । जो नहीं है शर बो हो जाए तो कोई उसकी विशेषता है । जो है, सूर्य है । उससे अगर प्रकाश आता है तो इसमें सर्य की कोन-सी विशेषता है ? पर उस सूर्य के प्रकाश से जो पत्ते हरे हो जाते हैं, उसमें जरूर ये धर्म जो हमारे अन्दर जागृत होता है ये हमें विश्व धर्म की शोर ले जाता है । जहाँ हम देखते हैं कि सारे विश्व के धर्म एक ही चीज़ बताते हैं कि प्रात्म-साक्षात्कार प्राप्त होना चाहिए, आको अपनी आत्मा प्राप्त होनी चाहिए, कयोंकि ग्राप मत-बुद्धि -अहंकार आदि ये शरीर नहीं है, लेकिन आप परात्मा हैं ये सभी के हते हैं। सो ये त्मा पाने का मार्ग यही कुण्डलिनी पहले स्वाधि- आपको अना निर्मला योग १३ he उनकी विशेषता दिखाई देती है । इसी प्रकार सारे दिगन्तु में, सारे संसार में एक आनन्द का आपका बनना, आपका उठना और आत्मा को प्राप्त करना इतनी ऊँची चीज है कि आप श्राज तक किसी भी आत्मिक इतिहास में इतना बड़ा कार्य हुआ नहीं । साम्राज्य फैल सकता है । सब से तो वड़ी चोज ये है कि ये संसार की जड़ें जहाँ से सारी दूनिया प्लावित हो सकती है उसका सुजन यहीं होना चाहिए। भारतीय ही ऐसी बड़ी सारे संसार में जब ये कार्य फेल जाएगा तो भारी चीज है जो इसे पा सकता है । औरों को तो सारी दुनिया की घृणा, वैमनस्य, दुण्टता, सब नष्ट गणपति के 'ग' से शुरूआत करनी पड़ती है । लेकिन वो लोग. जो गणपति के 'ग' से शुरूप्रात करते हैं, कारण श्और परिणाम से परे मनूष्य उस स्थिति में इतने जोर से सहजयोग को पकड़ते हैं, उतना ही हिन्दुस्तानी ये सोचता है कि अरे हम तो हिन्दस्तानी परमात्मा के साम्राज्य में किसी चीज की कमी नहीं हैं, हमें तो सब मिला ही हुआ है वो इतना गहरा । यहां योग पाते ही नहीं उतर पाता । उस गहराई में प्रपने को उतारना चाहिए, जिस गहराई के कारण आप इस महान हो करके शान्ति और आनन्द में मनुष्य विराजेगा । जाएगा। जहां परमात्मा का साम्राज्य होगा। और रहती । योग क्षेम वहा्यहम् आप अपने क्षेम् को प्राप्त होगे और दुनिया पूरी बदल जाएगो। इस दुनिया को बदले बगेर कोई भी कार्य तहीं हो सकता। भारतवर्ष में पैदा हुएहैं । हैं जिसकी वजह से यहाीं ये प्रापके पूर्वपुष्या ई पदा हुए हैं। [अगर आप में पुष्याई नहीं होती तो जैसे कि डॉ० वारन् ने आपसे बताया कि सारी theories, (धारणाएं) theories (धारणाएं) रह इस देश में अप पदा नहीं होते। हालाकि आपको गयी। उसको असलियत पर हम नहीं ला पाये। कुयों इसका पता ही नहीं कि आपके पूर्वपूण्याई क्या हैं ? कि आप जब असलियत में नहीं हैं तो कोई भी चीज इसलिए आपको ये सोचना चाहिए कि जब हम इस जो अप कर रहे हैं वो असलियत में कैसे श्रा सकती है महान भारतवर्ष में पेदा हुए, जो सन्त-साधुओं से । इतनी आशोर्वादित और पल्लवित् है, इस देश में जब हमारा जन्म हुआ तो कोई न कोई हमारे अन्दर चीज़ बहुत सीधी सरल है कि आप ही के अन्दर आपकी आत्मा है। आप ही के अन्दर आ्रपकी माँ विशेष बात होनी ही चाहिए, श्रर उस विशेषता कुण्डलिनी है । उसकी जागृति भी सहज ही है । को हमने अभी तक जाना नहीं, ये हमारी एक तरह उसको प्राप्त करना भी बहुत ही सहज है । लेकिन से भूल हो गयी है। कोई हजं नहीं। [अब भी हम उसको प्राप्त करने के बाद उसकी पूरी इज्जत जान ले और उसके आगे हम अपना पूरा जो भविष्य करना, अपने साक्षात्कार की पूरी देखभाल करना है उसे उज्ज्वल कर और सारे संसार का भविष्य औ्र उसको व्यवस्थित रूप से, उस अंकुर को एक इसी भारतवर्ष से ही ठीक होने वाला है । के रूप में डालना, ये ही काम थोडा-सा आपको बृक्ष करना होगा। कल के नारणंधार हैं । वही कल के अगुआा हैं । उसके लिए जो लोग तैयार हैं वही ये सबसे बड़ी एक अजोब-सी बात है कि भारत- वर्ष के लोग इस बात को जानते नहीं कि सारो दुनिया को आप से ही सीखना है। मैं बार-बार और जो लोग आज आप सोचते भी हैं कि बड़े आपसे यही विनती करती है कि कृपया अपना धरो- यशस्त्री हैं ये बहुत थोड़े दिन की, चन्द दिन की चीज हर, आपने जो पाया हुआा है, उसे जानने की हैं। जो हमेशा अनन्त की चोज है उसे पा लेने से कोशिश करें, उसकी ओर आप आमुख हों, अपनो । निर्मला योग १४ Mho संस्कृति की ओर आप कके, क्योंकि जो भारतीय संस्कृति है ये आत्मा की पोषक है, यही आत्मा को बढ़ावा देने वाली है। बाकी किसी भी संस्कृति में आर्मा की ओर चित्त नहीं दिया गया । ओर ध्यान दें, उसको समझने की कोशिश करें और अपने जीवन में उसे लाने का प्रयत्न करे। परमात्मा आप सबको सूबूद्धि दे, सुमति प्र [आशीर्वाद दे कि प सब अ्रपने आत्मा से तृप्त हो जाए। इसलिए इस संस्क्ृति की ओर चित्त दें उसके परमात्मा ग्रापको अनन्त प्रशीर्वाद दे । मधुराष्टकम अधरं मधुरं, वदनं मधुरं, नयनं मधुरं, हसितं मधुरं हृदय मधुरं, गमनं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं |। ा वचनं मधुरं, चरितं चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुर । मधुर, वसनं मधुरं वलितं मधुरं गीतं मधुरं, पीतं रूपं मधुरं, तिलकं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। मधुर, भुक्तं मधुरं, सुप्तं मधुर करणं मधुरं, तरणं मधुरं, हरणं मधुरं, रमणं मधुरं वमितं मधुरं, शमितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। सलिलं मधुरं, पवनं मधुरं, कमलं मधुरं, दिग्-दिग् मधुरं हृष्टं मधुरं, शिष्टं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं |॥ भक्तं मधुरं गायओ मधुरं, दलितं मधुरं, फलितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। यष्टिमधुरा सृष्टिमंघुरा -श्री वल्लभाचार्य की रचना म से अनुसरित निमला योग १५ ाल सद्गुरू तत्व श्रर विशुद्धि तत्व अभी तक के लेखों के अनुसार अपने शरीर में अलग-प्रलग देवताओं के विशिष्ट स्थान हैं। सद्गुरु का भी स्थान प्पने शरोर में है और यह स्थान हमारे शरीर में हमारो नाभि के चारों तरफ है । नाभिचक पर श्री विष्णुशक्ति का स्थान है । विष्णुशक्ति के कारण ही मानव की अमोवा से उत्करांति हुई है । और इसी विष्णुशक्ति से ही मानव का अरतिमानव होने की धटना घटित होगी। सद्गुरू का स्थान आप में बहुत पहले से स्थित है । अबं गुरूतत्व कैसा है यह समझने की कोशिश करते हैं । यह कार्यशक्ति आप में दायों तरफ होकर आपके सारे दायें तरफ (दायीं सिम्पर्टिक नव्हंस सिस्टम) का संचालन करती है। यह शक्ति कार्यशक्ति कही जाएगी और इस शक्ति का वहन या नियमन पिगला नाड़ी से होता है। ये आपके शरीर में दायीं ओर होती है । इसे महासरस्वती शक्ति के कारण शक्ति मिलती है । 1. कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के बाद आप दोनों (इड़ा और पिगला) नाडियों का संतुलन जान सकते हैं। असंतुलन कहां हो सकता है इसका ज्ञान हो सकता है तथा सहजयोग के कुछ आसान तरीकों से आप संतुलन ठीक कर सकते हैं । कहने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य की ज्यादातर तकलीफे या सभी परेशानियाँ (शरीरिक, मानसिक, बौद्धिक) ऊपर कही गयी दोनों नाड़ियों के ग्रसंतुलन से ही होती हैं । इसलिए इन दोनों नाड़ियों में संतू- इसमें से जो महाकाली की शक्ति है उससे ऐसी लन रहना बहुत अत्यावश्यक बात कही जाएगी। गुरुतत्व अनादि है। आप में अदृश्य रूप से तीन शक्तियां कार्यान्वित हैं। इसमें से पहली शक्ति मुख्य को हम श्री महाकाली की शक्ति, दूसरी को श्री महा- सरस्वती की शक्ति व तीसरी को श्री महालक्ष्मी की शक्ति कहेंगे । स्थिति प्राप्त होती है कि जिससे अपना अस्तित्व टिका हुआ है। इस सुष्टि का अस्तित्व है। इस ऊपर कही गयी दोनों शक्तियों के अलावा हममें है। यह शक्ति भी विश्व का अस्तित्व भी श्री महाकाली शक्ति के तीसरी शक्ति भी स्थि बहुत ही कारण हो टिका है । आप में इस शक्ति का संचालन महवपूर्ण है क्योंकि आज हम जिस मानव चेतना 'इड़ा' नाड़ी से होता है । ये नाड़ी हमारे शरीर के को प्राप्त हुए हैं वह इसी शक्ति के कारण है । इसे महालक्ष्मी की शक्ति कहा जाता है। इसोशक्ति के की अमीवा से उस्क्रांति हुई है । बीयों तरफ है और वह अपने शरीर के बांयी तरफ का सं तालन व नियमत करती है । बांयी सिम्पर्थ टिक नहंस सिस्टम को चालित करती है। इस नाड़ी के कारण हमकी इच्छाशक्ति प्राप्त होती है । इच्छा से ही मनुष्य कार्यान्वित होता है । कारण मतुष्य ये तीनों शक्तियाँ जब बाल स्वरूप एकत्रित होती हैं अरथात जहां तीनों शक्तियों का समन्वय होता है बहाँ किसी भी प्रकार की गंदगी या परेशानी नहीं २५ सितम्बर १६७६ में हिंदूजा ऑडिटोरियम बंबई में थ्री माताजी के भाषण पर धारित] निर्मला योग १६ रहती। ऐसी चीज हमेशा नयी और ताजगी भरी है । ये शक्ति अनेक वार जन्म लेती है । [्रादिकाल होती है। ऐसी वस्तु में किसी भी तरह का प्रहंकार से देखा जाय तो थी आदिनाथ इसी शक्ति के अव - वर्गरा नहीं होता है । यही वह सद्गुरू तस्व है । जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है ैसे-बैसे उसमें दो ग्रंथी और दो विशेष संस्था धीरे-वीरे बनती है, उसमें हैं। परन्तु जन लोगों को श्री आदिनाथजी की शक्ति से एक को अहंकार व दूसरी को प्रति अ्रहंकार के बारे में मालूम नहीं है । तोनों शक्तियों से निर्माण कहते हैं। अग्रेजी भाषा में उन्हें 'ego' व 'Super हाने वाली ये प्रथम शक्ति है। इस शक्ति में धर्मायता ego' कहते हैं । ये दोनों संस्थाए इस्छा व क्रिया शक्ति से बनती हैं। जब एक मतुष्य बहुत इच्छा कहते हैं। इसका अर्थ यही है कि वह सभी जाति व करता है या केवल इच्छी से ही भरा होता है तब घम को मानता है। अगर कोई क्ति कहता है कि प्रति अ्रहंकार प्रस्थापित होता है। दूसरी संस्था माने मैं फलाने जाति का गुरू है, मैं फलाने घर्म का गुरू अरहंकार की संस्था का क्रियाशक्ति से निर्माण होता है। ये संस्था किसी भी मनुष्य में जो कुछ भी काम नहीं है। सत्गुरू तत्व की पहुचान ही ये है कि सारे करता है उसमें प्रस्थापित हो सकती है । मनुष्य उस समय सोचता है कि 'मैने फलान। काम किया, 'मैने सर्वधर्मों का भोलা-भाला रूा है वह इस सत्गुरू सड़क बनाने का काम किया, 'मैंने बांध बनवाया, मैंने मकान बनाया इससे मनुष्य में एक तरह का कत्त्तापन प्राता है और उसी से उसकी [अहंकार की संस्था बढ़ती है। ये संस्था आपके सिर के बायीं है, वैसे ही अनेक व्यक्ति हैं जो अपने आपको धर्मगुरू ओर से शुरू होकर सिर के बीचोंबोच अराती है। जब अहंकार व प्रति अहंकार ये दोनों संस्थाएं बीचों- हैं। फिर एक धर्मपंथियों ने दूसरे धरमंपंथियों पर बीच आकर मिलती हैं तब तालू भर जाता है। इसे - अंग्रेजी में 'Calcification' कहते हैं । सामान्यतः मुललमानों पर, मुसलमानों पर क्रिड्चयन लोगों की, बच्चे की ताजू ३-४ साल तक पूरी भरती है। इस क्रिश्चियन लोगों ने मुसलमानों को । सच कहें तो उमर तक बच्चे बहुत अच्छी तरह से बात करना ऐसे जो लोग हैं वे सब दांभिक व अज्ञानी हैं क्योंकि सीख जाते हैं व अ्रपनी मातृभाषा में बोल सकते हैं । तार हैं । जैन संप्रदाय में श्री प्रादिनाथजी को सत्गुरू मानकर उनका पूजन करते हैं प्रीर प्रार्थना करते नहीं है। संन्यासी की जाति नहीं होती है, ऐसा हम हैं तो निश्चित समझ लीजिए कि वह व्यक्ति सत्गुरु धर्मो का जो सार है या सबंधर्मो की नूतनता या तत्व में शामिल है । इस दृनिया में घर्म के नाम पर कितनी संस्थाएं कहलवाते हैं। उसमें भी कई राजनीतिक संस्थाएं टीका-टिप्णरगी करनी है। उदाहरण हिन्दुओं ने ऐसे लोगों को सत्गुरूतरव माने क्या, इसका ज्ञान नहीं है । कौन सत्गुरू है, कौन नहीं है, ये वे नहीं जानते । प्रव सत्गुरू पहुचानने का चिह्न क्या है यह सत्गुरू तत्व, श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी इन तीन शक्तियों के समन्वय से देख ते हैं। सतुगुरू आरपके पं सा या धन की मांग नहीं (मेल से) बना है। यह गुरूतत्व हमार अन्दर परमे- হবर ने बहुत हो नूतन स्वरूप में स्थित किया है । आप सबको श्री सत्गुरु दत्तात्रेय का जन्म के पे हुआ मालूम है । श्री दत्तात्रेय में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु व श्री महेश इन तीनों देवताओं की शक्ति समन्वित है । के स्वभाव में स्वच्छंदता से रहते हैं। अगर उन्हें ये शक्ति आपकी नाभि के चारों तरफ जिसे भव- सागर कहते हैं, उसमें समा विष्ट है । करंगे। उल्टा वह घन को धूल स मान मानेगे । सत्गुरू को आप सोता या पैसा, हीरे मोती देकर खरीद नहीं सकते । जरा भी आसक्ति नहीं रहती है। सत्गुरू अपने स्वयं सत्गुरूप्ों को इन चीजों की 1 लगा तो वे औरो से बोलेंगे, नहीं तो नहीं। सत्गुरू परमेश्वर प्राप्ति के लिए आपकी विनती करके अ्प के पीछे -पीछे नहीं दौड़ेंगे। ये सब, मैं [प्रपकी माँ हूँ संपूर्ण विराट पुरुष में भी ये शक्ति समाविष्ट निमंला योग १७ he इसोलिए आपसे कह सकती है कि प्रथ म अपने- वाद बहुत त हलीफ होगी। इस तरह की तकलीफ आपका सत्गुरूतत्व जानिए । मुझे कितनी योग- होने के पीछे यदि आप अति सूक्ष्म कारण खोजे तो साधना किये हुए साधू व योगी भिले हैं । ये सारे आपके ध्यान में ये बात राएगी कि प्रकृति लोग बहुत बड़े हैं । उन्हें मैंने कहा, आप परब जंगलों वाले व्यक्ति के घर खाना खाने से हमें तकलीफ हो या पहाड़ों पर बेठने के बजाय समाज में श्राकरलोगों रही है। को परमेश्वर प्राप्ति के लिए उद्यत कीजिए, उनका सत्गुरूसत्व जागृत करवा दीजिए परन्तु इन महा- योगी लोगों को समाज में नहीं ग्राना है । वे कहते हैं कि समाज के लोग प्रभी इतने लायक नहीं हैं कि उन्हें इतनी वड़ी शक्ति सहज में दे दो । लोगों की स्थिति एकदम निराली है। ऐसे महान लोगों के सामने भी अरति विनम्रता से व्यवहार करके सं भल के बातें करनी पड़ती हैं, नहीं तो वे डंडे या विमटे कार्यास्वित होती हैं। जब तक अपना यकृत प्रच्छी दुष्ट कुछ बात विल्कुल स्पष्टता इसके लिए किसी भी प्रकार का बुरा मत मानिए क्योंकि मैं 'माँ हैं इसलिए सब स्पष्टता से बता रहो से वता रही हैं। है। यह सभी लोगों को जान लेना चाहिए । । ऐसे महायोगी सत्गुरूतस्व प्रमुखतः हमारे शरीर में यकृत में स्थित होता है । सतुगुरूतत्व से आप में चेतना शक्ति आपको मार सकते हैं। सत्गुरूओं के आसपास का वातावरण भिन्न प्रकार का व पवित्र होने से वे स्वभाव से भी कठोर होते हैं । वे किसी भी प्रकार अपनी चेतना विचलित होती है। प्रापने देखा होगा का अरधर्म नहीं सह सकते । समाज में परमेश्वर जिस मनूष्य की पित्त प्रवृत्ति होती है उसने तली प्राप्ति के लिए तथा कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने हुई चौजें खायीं तो उसे पित्त की तकलीफ होती है के लिए किसी सत्गुरू रूपी माँ की कार्य पद्धति में दो प्रकार हैं । एक सत्गुरू तत्व व दूसरे मात्-प्रेम । ऐसी माँ का हृदय प्रेमशक्ति से व परमेश्वर की अपना यकृत अच्छी स्थिति में रखना जरूरी है। करुणा से पूरा-पूरा भरा हुआ होता है। ऐसा बहुता अब यकृत क्या करता है ? यकृत हमारे शरीर में से हुआ प्यार और परमेश्वर की शक्ति औरों को देने शरीर के लिए पोषक न होने वाली द्रव्यों (पदार्थों) के लिए बह माँ उत्सुक रहती है। परन्तु इसी के साथ सत्गुरू तत्व को सारी बातों का पूरे उत्तरदायित्व विजातीय द्रब्यों का शरीर के बाहर विसर्जन करने में के साथ पालन करना पड़ता है और इसीलिए औरों ने परमेश्वर प्राप्ति के लिए कोन-सी वाते करनी चाहिए और कौन-सी नहीं करनी है इस पर प्रति- खुराबी होगी तो उसका निदान (diagnosis) होने तरह से कार्य करता है तब तक अपनी चेतना ठोक होती है। जब आपका यकृत खराब होता है तब व उसकी चेतना विचलित होती है। अपना यकृत प्पने चेतना को शोषित करता है और इसीलिए का विश्लेषण करके उन्हें अलग करता है और उन यकृत हमें मदद करता है। यकृत में बिगाड़ होने की क्रिया वहुत मंद होती है और इसीलि ए उसमें बन्ध लगाया है। उसके साधको में अनुशासन होना में देर लगती है औोर उससे यकृत बहुत जल्दी बहुत जरू री है। आपको पहले सतुगुरू तत्व आपके भवसागर में स्थि ति हैं। अब ये तक संसार में जितने सत्गुरूपों का अवतरण हुआ सत्गुरू तत्व प्रापमें कार्यान्वित कैसे है ये देखकर है चाहे वे श्री मोजेज हों, श्री लाओोत्से हों या श्री थोड़ा-सा आश्चर्य होगा। उदाहरण के तोर पर सॉक्रंटीस हों, सभी सत्गुरूअं ने एक बात प्रमुखता समझ लीजिए आप वहुत ही सात्विक विचार के से बतायी है कि मदिरापान मानव धर्म के विरोध में व्यक्ति हैं । आप किसी दूष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति के घर खाना खाने गये तो अपको उसके घर खाने के का स्थान है। मदिरापान से अपनी चेतना पर बहुत बता चुकी हूँ कि खराब होता है । सर्वप्रथम ाती है शराब । अब 1. है । इसका कारण ये है कि अपने पेट में दस घरमों निर्मला योग १८ इसका कारण खून के पाती की घटना में होने वाला परिवर्तन है जिससे मनूष्य में अनेक प्रकार की बौमारियां हो जाती हैं। क्रमण होजा है तो उमसे दसों ध्मों पर आक्रमण ोता है। जब मनूष्य को चेतना ही कम होती है व वह चेतना के विरोध में होता है। इस मामले हमारे सह जयोगी शिष्यों का बहुत गहरा प्रध्ययन और उसके लिए एक को लंदन विश्वविद्यालय ने डाँकटरेट डिग्री दी है। वे माँरेशियस के नि वासी है । उन का नाम है श्री रेजीस। मदिरापान से मनुष्य की तना कम होकर मनुष्य का चेतना के विरोध में पे पतन होता है यह उन्होंने सिद्ध करके बताया है। सच देखा जाय तो मदिरा माने पाহिचिमात्य देशों में जिसे 'wine' कहते हैं। वरह पेथ है । wine' मने ताजे अंगूर का (extreme) के कारण उन्होंने अंगुर के रस को सड़वाकर उमे मदि र। का रूप दिया। इस तरह को मदिरा प्रलग-प्रलग वस्तुश्रों को पालिश करने के लिए इस्ते माल करती चा हिए। उदाहरण, अगर हीरे पॉलिश करने हैं होते हैं या किसी जगह स्प्रिट इस्तेम।ल करते हैं । रस । मनुष्य के ग्रतिश्योक्ति मदिरा से खून के जहरीले द्रव्यों का वर्गोंकरण नहीं हो सकता । अगर कहीं हुआ हर बनकर यकृत की पेशी पर उसका प्रभाव आ्र जाता है । म्रापने ये देखा होगा कि जि स व्यक्ति ने ये सित्रिट पॉलिश की जगह उपयोग में लाने के बजाय मदिरापान किया हो उस मनूष्य के श रीर का ताप- मान नहीं बढ़ता, वोंकि शरीर में निर्माण होने पकड़ती है। मनुष्य की वुद्धि की विपरीतता की वाली सारी गरमो यकृत में या किसो दूसरे हिस्सों कल्पना भी नहीं कर सकते । जो चीज १ॉलिश करने में संग्रहित होती है। पानी के घटकों के बदल से के लिए है उसको पीने में पता नहीं उसे कोन-सा पानी भी शरीर में निर्माण होने वालो गर्मी शोपण आनन्द ता है ? मंदिरापान से मतूष्य की चेतना नहीं कर सकता। ओर उसी से श रीर का एक-एक हिस्सा खराब होने लगता है। उसमें सबसे पहले होकर नहीं देव सकता। वह अ्रपने आपको नहीं जान यकृत पर सवसे ज्यादा प्रभाव होता है। इसो का परिवर्तन गे कर्क रोग महारोग जैसे वीमारी में होता है । कर्क रोग भो हाइड्रोजन व ग्रॉकर्सीजन रहता है 'सत्य बहुत सुन्दर है, मनमोहक, इसमें होने वाले बदल के कारण होता है । किसी शान्तिदायक और सुखकारक है । परन्तु मनुष्य को कर्क रोगी वक्ति को ठोक से देखा होगा तो दिखाई दिया होगा उसके वदन पर अलग-अलग निशान पड़े हुए और उसके शरीरके कुछ हिस्से जले हुए । परन्तु उस व्यक्ति का तापमान हमेंशा की तरह साधारण ' से करने तो उस के यकृत में अगर शरीर में गया, तो उम बजह से बीसारियाँ मतुष्य नष्ट होती है। इसलिए वह अपनी त रफ अन्तर्मख सकता । इससे वह सत्य से बिल्कुल दूर जाता हैं । 'सत्य भयानक नहीं कि जिससे मनुष्य इतना दूर 1 उसकी कल्पना नहीं है और इसीलिए मनुष्य को समझाने के लिए इस पृथ्वी पर प्रनेक सत्गुरू ओं ने को जन्म लिए । एक सादा-सा नुस्खा है कि मनुष्य अपना जीवन समतोल रखना चाहिए । वह व्याव- ही रहेगा। एक बात निरविवाद है सतुगुरूतत्व के हीरक हो या वेवाहिक हो, अगर सामाजिक जीवन हो, सभी में समतोलना (सन्तुलित) होना श्रावश्यक विरोध में कोई भी बात करने से वह शराब पीता हो या ओर कोई भी बात हो, उससे की ह चेतना नष्ट होकर उसमें कर्क रोग जेसी बीमा री हो सकती है । है ' ये बिल्कुल नेसगिक (natural ) है । आपने देखा मनुष्य होंगा कि सर्वसाधारण मनुष्य छः फुट के आसपास लम्बा होता है। वह कभी २०० फुट लम्बा नहीं होता है। वैमे हो इस सृष्टि की और बातों में भी आपको समतोलन देखने को मिलेंगा। जो शराब पीने से एक और बात मनुष्य के इरीर में होती है कि खुन की नली फूल कर मोटी होती है। मनुष्य वहुत ज्यादा स्पर्धा (competition) में रहता है वह निर्मला योग १६ बहुत कामयाव हैं। परन्तु ऐसे व्यक्तियों का व्यक्त गत जीवन गौर से देखा जाय तो ऐसे लोग अत्यन्त अन्त में पागल हो जाता है। बात में race (भाग-दोड़) है। वहाँ का statistics (आरांकड़े) देखा जाए तो हर-एक बात में तेज स्वभावके, तोच श्रौर प्रतिमूखं होते हैं । यह सब competition (a) वजह से बहां के बहुत जैसी हो गयी है। इस प्रतियोगिता के कारण मनुष्य में असाधारण निर्माण होता है, जिससे उसका सर्वागीण (चौतर्फा या चारों तरफ से) विकास नहीं रक्षा कसे करें और इसक लिए क्या करें ? सर्वप्रथम ही सकता । उल्टे उसका नाश होता है । अतः आपके गुरू कोन हैं यह देखना जरूरी है। यह मनुष्य ने सन्तुलित जीवन जीकर अरपने शरीर के समझना जरूरी है। समाज में अनेक प्रकार के सदुगुरू तत्व के संत्गुरू को मजबूत करना बहत गुरु देखने को मिलते हैं । अगर कोई गुरू जरूरी है। उसके बाद हो उसमें धमं को स्थापना हो सकती है। ऐसे सन्तुलित जीवन से मनुष्य अरपने प्रवृत्त करता होगा तो निश्चित सम लीजिए कि स्वयं का धर्म पहचानने में समर्थ होता है । पश्चिमी देशों में हर दिखायी देगो। इस असन्तुलन से होता है । असन्तुलन सद्गुरु तस्व को रक्षा न करने से अाता है। (स्पर्धा) से लोगों की स्थिति पागलों अब आप सवाल करोगे कि सद्गुरू तत्व की हमें नाम लेने (गुरू अपने स्वयं की स्तूति) के लिए वह सद्गुरू नहीं है। परमेश्वर का नाम समझकर और जिस प्रकार की तकलीफ होगी उसके देवता जिस समय मनुष्य स्वयं के दस धुमों से गिर का नाम लेते हैं। सबके लिए एक ही देवता का जाता है तब उसका नाश होता है ्रोर वह असन्तु नाम लेकर काम नहीं बनता । उल्टे उससे ओर परे- लितता में धकेला जाता है । इसीलिए उन दसों धर्मों शानी बड़ती है। इस वारे में यह कह सकते हैं हमें का पालन करना आवश्यक है। इन दस धर्मों के बारे बुखार आया तो डॉ० की दी हुयी एक दवाई हम स्ताते हैं । पर वही दवाई दूसरी बीमारियों पर कैसे काम आाएगी ? उल्टे उससे परेशानी ही होगी। यही बात अलग-प्रलग देवताओं के नामों के बारे में कही में वाइबिल में बिषद रूप से बताया गया है । आप ने समाज पर सुसंस्कार नहीं किये तो आप की क्रियाशाक्ति यानी पिगला नाड़ी कार्यान्वित नहीं जाएगी। रहेगी और इड़ा नाड़ी पर दबाव प्राकर प्रतिअ्रहंकार की संस्था मेंदू में स्थापित होगी और उसी के दबाव में अएगा। इससे उल्टा अगर मनुष्य नहीं हो सकते। मा के पास जो करुणा होती है वह में अहं कार को संस्था ज्यादा प्रस्थापित होगी तो बहुत मेह- वह हिटलर की तरह बनेगा और उसे ऐसा लगने नत की है और उसके बाद उनका अधिष्ठान जमकर लगेगा। कि मैं बहुत बड़ा कार्य कर रहा है बहुत से लोग मुझे हार पहनाएंगे थ्ोर मेरी परारती लिए प्रर लोगों को भी कुण्डलिनी जागृति के लिए उतारेंगे, वरगरा। परन्तु नहीं आता कि वह पूर्णतः प्रहंकार के दबाव में प्रव तक जितने सत्गुरु हुए उ्होंने सहजयोग आने से असन्तुलितता में धकेला जा रहा है ोर का ही मार्ग अपनाया था । उदाहरण श्री ज्ञानेश्वर ऐसा व्यक्ति पूर्णतः अरहंकारी होता है । इसका व गंन महाराज श्री तुकाराम महाराज, श्री ना मदेव, श्री आप बाल्मीकि रामायण में, श्री नारद मुनि ऐसे नानक, श्री कवीर ऐसे अनेक सद्गुरू पों ने समाज अहंकार से किस तरह परसन्तुवितता में धकेले गये, में रहकर लोगों को सेवा की पोर उन्हें धर्मं सिखाने सकते हैं । ऐसे अहंकारी लोगों को लगता है हम जो व्यक्ति अत्म-साक्षात्कारी नहीं वह सद्गुरू मनुष्य पूर्णातया उन लोगों में नहीं होगी। योगी लोगों ने और उन्हें परमेश्वरो शक्ति की अनुभूति मिलती है । इस- को ये समझ में मेहनत करनी चाहिए ऐसा उन्हें लगता है । जग में ऐसे मनुष्य का प्रयास किया ग्रोरठीक मार्ग पर लाने का प्रयास पढ़े निर्मला योग २० किया। परन्तु उस जमाने के लोगों ने इन सभी गुरु प्रो की न सुनकर उन लोगों पर इतने अत्याचार अम जनता तका पहुँचने का समय आया है, पहुँचती तब तक उसका अर्थ नहीं है। अब यह नान किये, बहुत वार उन्हें मारा तक, उनको समाज से क्पोकि आवकी अन्तरचना ज्ञान मिलने के लिए याहर कर दिया, उन्हें खाने को भी नहीं दिगा। अब उने सभी की लोग पालकी लेकर घुमते हैं, जू स से लग जाए बस ! निका लते हैं, उनके नाम से बड़े वड़े सम्मेलन करते हैं, उन्हीं के नाम से पेसे कमाते हैं प्रोर उनके नाम पर अन्नछत्र भी चलाते हैं। लोगों के इस पाखण्डी- श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में मैं अब आपको बतलाती पन का परभूटठेपन का बडा आइचर्य होता है । जब हूँ। सद्गुरू प्रत्यक्ष जिन्दा थे तब उनके साथ बुरा व्यव- हार किया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी जय-जय क ।? यह विल्कुल सद्गुरु तत्व के विरोध में है । परिपूर्ण है केवल आपका करनेक्शन मेन्से (mains) ्रपके सत्गुरूतत्व को नमस्कार करके आपकी मनुष्य में शुरू से ही श्रीकृष्ण शक्ति स्थित है। की उकराति हुई उस समय उसकी (मनुष्य की) गर्दन ऊँतो उठ गयो। ये की बुद्धि स्वतंत्र है । परमेद्वर ने ही उन्हें कार्य में तुष्य की गर्दन में विशुद्धि चक्र के कारण तंत्रता दी है। आज न कल उसे प्रद्भुत शक्ति का हुप। इस चक् में सोलह पंखुडिया हैं। ये चक जिस ज्ञ न हो यही उस विराट परमेश्व्रर की इस्छा है । जगह आपकी गर्दन में स्थित है, उस जगह से बरापकी श्ब तक सहजयोग में बहुत लग सह ज ही पार हुए। गईन ऊची उठी है। यह कार्य विशुद्धि चक्र की कृष्ण होने से हो सका। इससे आपकी जिस समय प्रारणी से मनुष्य मनुष्य क्ति जांगृत अब सहजयोग एक ऊताई पर ग्राकर टिका है । उसे कपको 'महायोग बहना होगा। ज व तक प्रपनी उत्क्रान्ति में परिपूरण आयी ये कहा जाएगा| वु पडलिनी शक्ति का उत्थान न होकर वह ब्रह्मरन्ध उत्क्रान्ति का इतिहास देखा जाय तो सर्वप्रथम एक हआ कैसे कह पेशी अमीबा, उसके बाद मछली, कछुआ ऐसा होते सकते हैं? अब तक जितने भी योग के व णषन हैं वे होते मानत्र उत्कानि्ति की आज को स्थिति तक पहुँचा सारे योग की पूर्व तयारी हैं। परन्तु सहजयोग है । श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें में जिस समय कुण्ड लिनो शक्ति का उत्थान होता है श्रोकृष्ण शक्ति जागृत होतो है तत्र आपका सम्वन्ध उस समय ये सारे योग अपने आप घ टित होते हैं । विराट से होता है । इसमें आपको समर्टि दृष्टि कु इलि तो शक्ति हतार तक प्रातो है श्रोर जिस आती है। इसका अ्थ आर मेरी तरफ या मेरी फोटो सभय कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार में आकर बहा रत्ध की तरफ हाथ फैना कर वे ठोगे तो श्रीकृष्ण गक्ति का छेदन करती है उस समय महायोग' घटित होता जागृत होकर आप विराट से सम्न्धित होते हैं और है। इसोलिए सहजयोग जो अनादि है वह आपके आपके हाथ में ये जो श्री कृष्ण की विराट शक्ति सर्वत्र साथ ही जन्म लेता है और आपके साथ ही अनेक फेलो हुई है, उससे चतत्य जा सकता है । (हाथ में सालों से चलकर आया है, जिसे प्रा न उपकी जा सकता है ) जिस समय आपके हाथ से ये श्रीकृष्ण ' मानना शक्ति बहते लगती है तब आपमें साक्षी भाव आता चाहिए। आप सभी 'महावोग पाने की स्थिति में है। इसका मतलब आप सभी बाते किसी ताटक की आकर पहुँचे हो। प्रव आपके गूतत्व् को फलित तरह देखते हैं । अ्रसल में यह सब नाटक ही है। श्रीकृष्ण जी की उस समय की लौला या प्रभु योग का छेदन नहीं करतो तब तक परिपूर्ति हो रही है । उसे 'महायोग नि का समय आया है । बहुत पहले सद्गुरू दो- श्री ोन शिष्य रखते थे । परन्तु जत्र तक यह बात सर्व- रामचन्द्र जी ने उस समय जो कुछ किया वह सभी सामात्य मनुष्य तक, सारे जनसमुदाय तक, नहीं नाट क ही था । इतने सुन्दर ढंग से उन्होंने वह निरम्मला योग २१ नाटक प्रस्तुत किया कि वे सम्बूर्ंत: उसमें समरस हो गये। श्रीकृषणजी ने अनेक लोलाएं की वे स्थित है । ये शक्ति वहन की है, श्रीकृष्ण की बहन की । पूरण्णावितार थे । जब मनुष्य में पूर्णत्व राता है तब श्रीकृष्ण की जो बहन मारते समय आकाश में उड़ बह विश्व की ओर नाटक की तरह देखता है और गयी और जिसने आकाशवाणी की वही ये विष्णु- वह सम्पूर्ण साक्षित्व में उतरता है। उस समय वह माया शक्ति हैं । जिस मनुष्य की बहन बिमार होगी भ्रमित भी नहीं होता और दुःखी भी नहीं होता, न उसके विशुद्धि चक़् पर बायीं ओर बोझ महसूस सुस्त्री होता। वह आनन्द में समरस रहता है । यह होगा अगर किसी मनुष्य को नजर अपनी बहत श्रीकृष्ण शक्ति से होता है । विशुद्धि चक्र के बायें में श्री विष्णुमाया की शक्ति के प्रति या अन्य महिला प्रों के प्रति ठीक या पवित्र नहीं होगी तो यह चक्र तुरन्त खराब हो जाता है। श्रीकृष्ण शक्ति के दो अंग (शरीर के हिस्स) गजकल के समाज में बहुत लोगों का यह चक्र हैं । एक विशुद्धि चक्र के दायीं और बायीं तरफ श्रौर एक बोचोंबीच में । इसमें जो श क्त बीच में है होती है । अपने पूरातन शास्त्र के अनुसार अपनी वह विराट की तरफ ले जाती है । बायी और की पत्तो के सिवाय औ्र सारी महिलाओों को बहत की शक्ति मनुष्य के मन की कोई गलती या झुठे काम तरह देखना चाहिए। ऐ सा आप करके देखिए तुरन्त करने के बाद बनने वाली भावअओं से खराब होती है । जिस समय मनुष्य को लगता है कि मैंने तरह बर्ताव करने से आपकी कितनी ही परेशानियाँ बहुत पाप किया है और गलती की है तब उसका विशुद्धि चक्र बायीं तरफ खराव हो जाता है। मनुष्य के वायीं तरफ तकलीफ होती है आजकल के को यही पाप की अऔर गलतो की घारणा उसे, उससे सिने मा के कारण लोगों पर बहुत असर होता है । दूर भगाने के लिए, नशीली वस्तुप्रों के पास ले जाती है। इसमें अपने यहां एक चौज इस्तेमाल करते हैं । वह है सिगरेट, बीड़ी, सुरति परर तेजस्विता, भोलापन नहीं दिखायी देता । (तम्बाकू)। सिगरेट या वीड़ी पंना या तम्बाकु कितनों की आखें इधर-उधर घुमती हैं। ये औखे खाना श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है परंतु आपको आश्चर्य होगा कि जिन लोगों को ऐसो अदित पहले घमाने के कारण हमें अरानन्द तो मिलता नहीं हैं थीं उनकी ये आदतें सहजयोग में आने के बाद, पार प्रोर ग्रपने बायीं तरफ़ भूतों का प्रवेश होता है होने के बाद अपने आप छूट गयीं। खराब रहता है । क्योंकि उनकी नजर पवित्र नहीं आपको सन्तोष, शान्ति व पावित्य मिलेगा । इस खत्म होंगी। श्रपवित्रतता के बर्ताव से विशुद्धि चक्र उन सबको उन्होंने जो अपवित्र कृत्य किये हैं उसके लिए भुगतना पड़ेगा। आजकल के लोगों में पवित्रता बहुत ज्यादा लोग भी श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है । ऑँ खे प्रौर उससे बायीं विशुद्धि पर पकड़ अाती है। उससे परमेश्वर ने तम्बाकू कोटाणू नाशक के रूप में ऐसे लगता है मुझे ये बात नहीं करनी चाहिए थी । बनायी। परन्तु मनुष्य की बुद्धि अजीब होने के कारण हमार बचपन में हमारे माता-पिता कहते थे नीचे वह उसी तम्बाकू का उपयोग विपरीत तरीके से सर करके जमोन पर नजर रखकर चलिए । आपको करता है। इसी तम्बाकू के कारण श्रीकृष्ण शक्ति पता होगा कि लक्ष्मणजी ने सोताजी के पाँव को बाधा आती है और सत्गुरूतत्व भी खराब होता हो देखे हैं। उसके ऊपर उन्होंने कभी नजर नहीं है । क्योंकि खायी हुई तम्बाकू पेट में जाकर वहाँ उठायो थी। इसमें उन का कोई वुरा उद्देश्य नहीं से यकृत व्गेरा शरीर के अंगों को खराब करती है। सत्गुरुतत्व अपनी नाभि के चारों तरफ फैला हआा कर चलना। जो लोग नजर नीचे करके चलते हैं वे होने के कारण सारी की सारी परेशानिरयाँ एकदम वादशाही वृद्ति के होते हैं । जो भिखारी या गंदे किसी ापत्ति की तरह आकर गिरती हैं । था। यह एक कारयदा था कि नज र जमीन पर रख- होते हैं वे अपनी नजर हमेशा इवर-उधर घुमाते हैं । निमंला योग २२ अपने विशुद्धि चक्र में जागृत होता है तत्र उसे सुबुद्धि आती है व सन्तुलन आता है। एक होती है ये आल घुमाने की बीमारी ऐसी चली है कि उससे अखों की बीमारियाँ फैलती हैं। लोगों की नजर कमजोर होती है । उस समय फिर हरी धास पर चलने को कहते हैं क्योंकि पृथ्वीमाता हमारी माँ है। एक बार माँ क्या है, ये जानने के बाद बहन क्या है, ये लोग समझ सकंगे । सुबुद्धि व दूसरी है दुर्ब द्धि । बुद्धि गये की तरह भी हो सकती है और मूख की तरह भी। बुद्धि से तर्क, ज्ञान चोरो भी कर सकता है। वह कहेगा मैं क्यों न चोरी करू ? मेरे पास फलानी ची ज नहीं है उस के पास है तो मैं चोरी क रू गा । इसका कारण तर्कबुद्धि है । अव देखिए तर्कबुद्धि के कारण मनुष्य हर-एक चौज की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है । परन्तु सुबुद्धि से वैसा नहीं होता । सुबुद्धि यही बात हमारे अनेक सत्गुरूआ्रों ने कही है । श्री से हमारी व दूसरे को चीज उसी की है ये दिमाग में येशरिव्रस्त ने कहा है आपको नजर उपभि चारों नही झाएगा । मे री चीज़ञ में जो आनन्द है वह दूसरों होती चाहिए। खास करके हमारे इस मध्यम वर्गीय की चीज में नहीं है। सचम् व कोई भी चीज़ किसी लोगों को ये बातें समझ लेनी चाहिए, क्योंकि जिन की नहीं। हमसब सब का सब यहीं छोड़ जाते हैं । के पास वहुत पसा है उनके दिमाग में ये बात नही यह तो सब जमा-खर्च है कि यह मेरा वह मेरा आएंगी। कारण वे अपने पैसों को मस्तो में चुर होग, एक बहुत ही सर्वसाधारण बात है जब संब कुछ उन्हें पाप-पुण्य की बातों को सोचने के लिए समय यहीं छोड़ जाना है तो उसके पीछे इतनी भाग-दौड़ और उससे य मनुष्य कहने का उद्देश्य यह है कि हमें अपनी नजर नीचे रखकर चलना बहुत जरूरो है श्रीर किसा का भी प्रोर अपवित्र नजरों से नहीं देखना चाहिए। नहीं है। मनुष्य को पाप -पुण्य का विचार त्रिशुद्धि काहे की ? चक्र से आता है । अगर पाप-पुण्य का विचार नहीं होगा तो भापकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी । अब दायीं ओर की विशुद्धि के बारे में देखते हैं। विश्व में पाप व पूर्य दोनों हैं । जब आप सहजयोग यह थ्रीकृष्ण गर राधा की शक्ति से बना है इस में आकर पार होते हो तब आपकी श्रीकृण शक्ति शक्ति के विरोध में जब मनुष्य जाता है तब वह जागृत होकर आप प्रतिष्ठित होते हैं। आप पहले से कहता है मैं बहुत बड़ा आदमी है, मैं राजा हैं, मैं ही प्रतिष्ठित हैं, पर पार होने से पहले प्रापको उसकी बहुत बड़ा लोडर हैं और मैं हो सब कुछ हैं। ऐसी जानकारी नहीं थी कि परमेश्वर ने कितने परिश्रम बुत्ति से उस मनुष्य में कसरूपो अहंकार बढ़ता है। से आप में एक एक चक्र बनाया है। आप ये पूरी आपकरो मालूम है कंस ने अपनी सगी बहुन को व शास्त्र जान लीजिए बहन के बच्चों को किस तरह मारा। उसे लगता था लीजिए और अपनी स्थिति जानिए । आप सारे किसी भी प्रकार से मुझे सभी लोगों पर प्रपना विश्व के फूल हैं । उसे दुनिया की और नहीं दिखाई देती । उसे दायीं तरफ की परमात्मा के अंशु हैं । परमेश्वर मापको सन्मान दे विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। परन्तु सर्वप्रथम रहा है और प्रापके सामने नतमस्तक होकर आपकी आाप में सर्दी के कारण दायीं तरफ की विशुद्धि पर और अपनी महता समझ और अ्रव फल में रूपांतरित होने अधिकार जमाना चाहिए का समय अ्रया है, अप यह समझ लोजिए। आप कोई चीज आती है । विनती कर रहा है। आप ये सारा ज्ञাन पा लीजिए । अपने 'स्व' का अर्थ पहचानिए । अपने स्व' को जानने से ही मनुष्य अपनी मनुष्य में दुबुद्धि है तब तक उसकी जागृति नहीं होती। पकड़े छतमिं अब विशुद्धि चक्र के बीचोंवीच जो शक्ति है वह विराट की शक्ति है । इस शक्ति से सुबुद्धि पाता हैं । जब तक परमेश्वर मनुष्य सुबुद्धि विशुद्धि चक्र से जागृत होती है । जब मनुष्य की खोज में रहता है । अगर मैं विराट का एक निर्मला योग हिस्सा है तो परमेश्वर को खोजने का मतलब क्या ? भी खराब होता है । विशुद्धि चक्र खराब होने से इस इसी का मतलब जब तक आपमें सामूहिक चेतना चक्र में से मेंद् के दोनों तरफ संवेदना ले जाने वाली नाड़ियाँ खराब होती हैं। ऐसे मनुध्य की संवेदन क्षमता कम होती है । परन्तु जैसे-जैसे विशुद्धि चक्र सामूहिकता नहीं आएगी। परन्तु ये सामूहिक चेतना जागृत होता है वैसे बैसे संवेदनक्षमता में वृद्धि होती में प्रपने आपघटित होता है जब तक प्राप सहजयोग है । विशुद्धि चक्र जागू त करने के लिए कुछ मंत्र हैं । में आकर आपकी कुण्ड लिनी जागृत नहीं होती तब आपको आश्वर्य होगा, विशुद्धि चक्र जागृत करने के तक प्पकी सामूहिक चेतना जागृत नहीं होगी । एक लिए अ्पनी अनामिका उँगली दोनों कान में डाल- बार आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर आप कर गर्दन पीछे करके औ्र नजर अकाश की ओर पार हो जाओगे तो आप औरों की भावनाएं, संवेदन रखकर जोर से व श्रादर से "अल्जा- हो अकबर ये सब अपने आप में जान सकते हैं । ये श्रापकी मंत्र (१६ वार) कहने से विशुद्धि चक्र साफ होता सामूहिक चेतना जागृत होने से हो सकता है । [आप]है तब आपको जानना होगा कि 'अकबर' माने अपनी तरफ अन्तर्मख होकर देख सकते हैं व आपकी विराट पुरुष परमेश्वर है । श्री गुरूनानक साहब ने दृष्टि Absolute (परम) की तरफ मुड़ती है। भी विराट परमेश्वर के बारे में अर्थात् श्रीकृष्ण के और बातों की तरफ हम पूरणता की तुलना से देखते बारे में बहुत सी बातें लोगों को बतायीं । परन्तु ऐसे हैं। अपनी अतिरिक स्थिति क्या है ये जान सकते कितने लोग हैं जिन्होंने कही हुई बातों का अ्व- हैं । अब अ्रासानी से बताएं तो आपके हाथ की पांच लंबन किया ? उन्होंने कहा था, दोनों हाथ नमाज उंगलियां, उस पर आप अपने शरीर के पांच चक्रों पढ़ते हैं उस तरह हाथ फेलाकर परमेश्वर से प्रार्थना की हालत जान सकते हैं। वैसे ही और दो चक्रों की करनी चाहिए। इस तरह से हाथ फैलाकर प्रार्थना हालत भी अपने हाथ के तलूवे से जान सकते हैं । करने से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है बाये हाथ पर बांयी इड़ा नाड़ी के चक्रों का, तो परन्तु ये बात बहुत से लोगों को मालुम नहीं है । दाहिने हाथ पर दाहिनी पिंगला नाड़ी के चक्रों की गुरू नानक साक्षात दत्तात्रेय के अवतार थे । औ्र हालत आप जान सकते हैं। इस तरह की जानकारी कुण्डलिनी जागरण के लिए जितना काम उन्होंने के वल कुण्डलिनी जागृत होने के बाद पार होने पर किया है उतना किसी ने भी नहीं किया। शैतान को ही होती है। जब मनुष्य पार होता है तब उसके कैसे खत्म करना है इसके बारे में उन्होंने बहुत छोटी मज्जारज्जू के सात चक्र जागृत होते हैं । उसकी छोटो व महत्वपूर्ण बातें बतायो हैं जिनका इस्तेमाल जानकारी दोनों हाथों पर होती है । इसी तरह उस सहजयोग में हम बहुत तरह से करते हैं। श्री आदि सूक्ष्म बात लिख रखी बातो को आप कार्यदे से अपने जीवन ऊपर दी गयी बातें आपके विशुद्धि चक्र से में अपनाएंगे तो सहजयोग में पूरा्णतः पिघल जाओगे। सम्बन्धित हैं हमारे यहाँ सहजयोग में बहुत से लोग अपने देश में साधु-सन्तों ने अवतार लेकर ऐसे ज्ञान आते हैं और पार होते हैं। परन्तु इनमें कितनों को को खोलकर समाज में जागृति करके आप पर चेतन्य लहरियों की संवेदना नहीं होती । इसका अनेक उपकार किये हैं । वशेष करके अपने महाराष्ट्र कारण उनके विशुद्धि चक्र पर को समस्या । इससे में साधु-संतों ने प्रवतार लेकर इस भूमि को पावन पहले विशुद्धि चक्र सिगरेट और बीड़ी पीने से खराब किया है। इन संतों की इतनी तपश्चर्या है कि इनके होता है, ये कहा है। शहरों में अपवित्रता ज्यादा केवल इशारों पर लोग पार होते हैं। मैं जब सहज- होने के कारण ये चक्र सिगरेट या बो ड़ी न पीते हुए योग के प्रचार कार्य के लिए गँवों में जाती है तब नहीं आती तब तक आपको इसका जवाब नहीं मिलेगा । के वल लोगों को भाई बहन मानकर 1 ाई स्थिति में उसे सामूहिक चेतना प्राप्त होती है । बहुत सो হकराचार्यजी ने तो का हैं । इन सुक्ष्म निर्मला योग २४ श्रीकृ्ण शक्ति के बारे में लिखने के लिए बहुत सारी बाते हैं। परस्तु बहुत ही थोड़े शब्दों में यहां हजारों लोग परते हैं। परन्तु शहरी लोगों को आने को फुर्सत नहीं होती क्योंकि गाँव के लोगों को सत्य की पहचान है । और ऐसे ही लोग सहजयोग में पर रखो गयी हैं। आप] सहजयोग में प्राकर पार प्रस्थापित होंगे । यहाँ ऐसों-गंरों का काम नहीं है । होने के बाद कृण्डलिनी का मतलब क्या है ये जान जिन लोगों को प्रपने स्वयं के लिए आदर नहीं, श्रद्धा सकते हैं। उसका स्पंदन आप अपनी नजर से देख नहीं, अगरसत्य की आसक्ति नही, उनके लिए सहज- योग नहीं है। सहजयोग प्राप्ति के लिए वहुत बड़े आप इस ज्ञान के बारे में अनभिज्ञ (अन्जान) होते पंडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है सह जयोग है। परन्तु श्राप पार होने के बाद इस ज्ञान का सर्वसाधारण मध्यमागियों के लिए है उसके प्रकाश आप में आता है। सरबवध्यापी परमेश्वर के लिए शिक्षा की आवश्यकता है ऐसा भी नहीं, परन्तु साथ चतन्य लहरियों से आप बात कर सकते हैं सकते हैं। जब तक आप 'पार नहीं होते तब तक क्योंकि ये परमेश्वरी शक्ति सारे चराचर में भरी है । के पक्के लोग होते चाहिए या राजे-शाही पक्के हृदय स्वभाव के लोग चाहिए। ऐसे लोग सहजयोग में प्रस्थापित होते हैं। प्ाप सबको अनन्त आशीर्वाद ! सभी सहजयोगियों से विनम्र निवेदन है कि समय से अपना वाषिक चन्दे का नवीनीकरण स्वयं करा लें । यदि किसी कारण पतिका आपके पास न पहंचे तो भी हमें सूचित करें । सम्पादक Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 3699 9/81 प जय श्री माताजी प ॥ चक्रों की शुद्धि के लिये प्रार्थना ॥ १. मूलाषार चक्र- है मा! को, हमको युक्ति । करें सबसे, बना देना हमें फ्रिय व्यक्ति ॥ है मा ! मृदुव वन, मधुमुस्कान हम सब वालक तेरे, श्री गेश का द ज्ञान हमें। देना निर्दोषता हम सबको, 'सुबुद्धि' का दं वरदान हमें हे माँ ! देना मधुर व्यवहार %3D २. स्वाधिष्ठान चक्र- 'निमंला विद्या' देना हमको, पवित्र विद्या का हम बशण कर। दें शांति हमारे अंतर में, सामूहिकता, प्ागे हौ बढ़ती जाती है। फलों की, नম्रता से झक जाती है॥ हे म! से मधुरता लदी डालियाँ परिपक्व विचारों, शंकायों को हरण करें । हे माँ ! भाषिपत्यता, अ्राक्रामकता दूर कर, सामूहिक - वेतना में इमको एक करें। गगन गंजे जय जय की ध्वनि से, विराट" का हम धभिपेक करें ।। हे म!] ३. मरिणपुर चक्र- प्रलोधनों, कुद्च्छायों को दूर करें । पवित्र हमारे चित्त करें । क हम, %3D गुरु स्वयं गुर्ता से हमको मथिकृत करें । हे मा ! बने ६. श्रज्ञा चक्र- ४. अनाहत चकर- हैं आए ही आार्मा, परमात्मा, स्वय को हम, सुबके प्रति क्षमाशील बने । क्ष मा कर धत्मा हमें बनायें हे मा ! "प्रभु के साम्राज्य" में प्रवेश मिले, "चंतन्य-चेतना' मे गतिदील बने ।। हे माँ! म आत्मा है" इस मंत्र का, %3D मदी दर्शन हमें करायें हे मां ! ॥ हे मा ! ७. सहलार चक्र- ते रे चरणों पर समर्पित शोश हमारे, हर पल रखना है माँ ! हमको, अपने हौ प्रिय बंधन में । क्षमा हमारे सब अपकार करें । प्रात्मा की गहराइयों में हमें उतारें, स्थापित पात्म साक्षात्कार करें।। हे मां ! पिता हमारे, ही हैं धप रखना सदा संरक्षण में ।। हे मां ! 11 ५. विशुद्धि चक्र- करें दूर सब भ्रम हमारे, सब दोषों को हरण कर। ँ ! मेरी क्षुद्रताओों का क्षरण करें । हे माँ! जय श्री माता जी मैं निर्दोष है" हे मां Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002. One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Re. 30.00 Foreign [By AirmailL75 14) ---------------------- 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt (उ) fनिर्मला योग जनवरी-फरवरी १६८५ वर्ष ३ सक १७ द्विमासिक पर + पन ॐ रवमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्रीं नि मंला देवी नमो नमः ॥ तल प प 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt # ॐ श्री माँ 5 भजन भजन आपने हमको नव जीवन दिया। बथा दे हे माँ ! हम आपको । सहजयोग मां के ही गुरण गाना । अंतिम निणंय प्रभु का यह, वन्दे ! अपनाना १ ॥ सहजयोग अमूल्य रत्न मिला चिता नहीं अब कोई क्षेम का । अवसर चूक न प्रम का । जाना ।। छोड़ माँ के शरण में जाना। पाकर पुनर्जन्म सहज जीवन सफल बनाना ॥२॥ सहजयोग ।। छल - कपट सब अब, कृत-कृत्य हुये हम तृष्त हुये। जोवन में शाही शान दिया ।। आपने ।॥१॥ में, पड़े रहे हम पत्थरों के बीच। रत्न का हमको मान दिया।। माँ का प्रेम निर्मल निर्भर निसदिन अहंकार से दबे हुये थे। आत्म-तत्व का ज्ञान दिया।। [आपने।।२॥ नहाना । चैंतन्य-लहरियों से भर भर अंजुलि, अध्यं पपूर्व चढ़ाना ॥३॥ सहजयोग ।। कोलाहल से भरे ये कान हमारे । शांति का हमको संदेश दिया ।। माँ का हर पल जपते जाना । माँ ही आत्म समर्पित हो जाना ॥४॥ सहजयोग । महामंत्र है, नाम शंकाओं, चिंताओं से घिरे रहे । सहज प्रम का उपदेश दिया ।। अआपने ॥३॥ आरत्मा, परमात्मा, I3D को भूल भुलैया में, जग खाते रहे ठोकरें अधेरे में । अब हये आलोकित पथ हमारे ।। देकर हमको । अब तु भूल न जाना । फंदा, काट ले माया का आत्म - दष्टि भ्रम में क्यों भरमाना ।॥५॥ सहजयोग ॥ ज्ञान दिया।। श्रपने।।४।॥ परमात्मा का प्रम, आनंद का मसीहा बन घरा को स्वग बनाना। के ते स बालक बनना बड़ा सौभाग्य है। वास्तव में, यही 'स्वराज्य' है ॥ 'प्रभु साम्राज्य का नागरिक वन कर, जीवन अनंत पाना।॥६।॥ सहजयोग।। है अनंत जीवन की स्वामिनी ! जीवन हमारा अमर किया ।। आपने ॥५॥ ।॥ जय माता जी ।। -सी० एल० पटेल 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt सम्पादकीय सहजयोग में प्रगति के लिए समर्पण आवश्यक है । समर्पण मानसिक रूप से नहीं अपतु हृदय से होना चाहिए। हालांकि समर्पण अत्यन्त ही कठिन है, फिर भी सहजयोगी यदि श्रपनी बाधाओं को ही निर्विचारिता में समर्पित करना शुरू कर दें तो काफी हद तक हम सभी अपने आपको श्री माताजी के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित कर सकते हैं । ह बिना समर्पण के सहजयोग अधूरा है । निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली ११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : कुमार माथुर श्री आनन्द स्वरूप मिथ्र श्री आ्रार. डी. कुलकर्णी डॉ शिव सम्पादके मण्डल प्रतिनिधि कनाडा : लोरी हायनेक श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सो ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ यू एस.ए, ३१५१, होदर स्ट्रीट वेन्क्रवर, बी. सी. वी ५ जेड ३ के यू.के. भारत श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमेशन सर्विस लि., १३४ ग्रंट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्ल. १ एन. ५ पो. एच. श्री एम० बी० रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ इस अंक में ': पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन **. १ ४. ५ू. मातेर्वरी जगदम्बिके ११ ६. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ७. मधुराष्ट्कम् ८. सद्गुरु तत्व और विशुद्धि तत्व १२ न १५ १६ द्वितीय कवर . भजन १०. चक्रों की शुद्धि के लिए प्रार्थना चतुर्थ कवर 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt L जय श्री माता जी न दिल्ली सहज मन्दिर होली पूरणिमा १७-३-८४ प लोग रूपया तक देने भई सूबह चार बजे उठो, अगर कान्फ्ेन्स है तो । से बबराते हैं। यह गलत वात जो जरूरी चीज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा है । यह सुनकर तो मुके बड़ा goal (उद्देश्य) है उसे देखना चाहिये। जो चीज आरचय हआ कि बम्बई के लोग है, वह है ध्यान करना। Conference (सभा) है, जो और है। अगर पूजा होगी तो जरूरी चीज है, वो है ध्यान करना जो वड़ा यह goal दफ्त र थोड़ा सा आपने नहीं हम कितना रुपया दें। यहाँ किया तो भी कुछ नहीं जायेगा, क्योंकि lower मांगना पड़ता है। रूपया तो कभी बम्बई में goal (निम्न उहदेश्य) है ऐसे हजारों दफ्तर वाले कम नहीं होता । आपको मालूम है कि बम्बई मैंने देख लिये जो कि फाइलों पर फाइलें लाद के में लोग हजारों रुपया खर्च करते हैं ओ्र अपने मर गये लेकिन कोईपूछता भी नहीं कि कहां गये और यहां उन्होंने बना रखा है कि इतना रूपया हम कहाँ खत्म हो गए। हजारों को मैं जानती है क्योंकि भगवान के नाम पर रखेंगे। यह बड़ी शर्म को बात मैंने जिन्दगी भर इन्हीं लोगों के साथ जिन्दगी काटी है कि इन लोगों को अ्पसे रूपया माँगना पड़ता है । तो दपतर की जो महत्ता है वो मैं अव जानती है और इस तरह की चीजें नहीं होनो चाहिए । हैँ. उसकी महत्ता आ्रप मझसे न बतायें कि आज श्रर अ्रगले वक्त मैं ये न सून पाऊं कि प लोगों से दफ्तर में ये था, ऐसा हुआ, दपतर में मैं फंस गया। रूपया माँगा जाता है । यह तो परमात्मा का काम दफ्तर क्या चीज है। [आपसे ध्यान नहीं होता। है । आप यहां आकर के इतना लाभ उठाते हैं। इतनी छोटो-सी चीज आपसे नहीं होती। ये भी आपकी तन्दुरुस्ती ठीक हो जाती है, तवियत ठीक सोचना चाहिये कि हम माँ से हम सब ठीक करवाना उसे देखना चाहिए सब में कशमकश लगी रहेगो कि है । हो जाती है और प्राप टाइम (समय) नहीं दे सकते चाहते हैं, हमने माँ के लिए क्या किया। अपने को, आप ध्यान नहीं कर सकते और भापको दुनिया भर के काम है, लेकिन आपके पास ध्यान सब अपने मन में सोचे कि हमने माँ के लिये मया किया। सबसे निम्त चौज है कि पैसा देना । करने के लिये 'टाइम नहीं है । मतलव यह है कि इससे निम्न कुछ है ही नहीं। माँ कितना रुपया देती *मूझे बाज़ार जाना था, माँ, मैं क्या करू, मुझे रहती हैं हर साल । हमने कितता रुपया दिया। जरूरी जाता था, सुना कि शाज ताजी सब्जी आई बो श्रीवास्तव साहब तो कोई सहजयोगी नहीं । थी तो लेने जाना था" ले किन ध्यान के लिए उनको लेकिन उनकी अक्ल बहुत जबरदस्त हैं कि अगर समय नहीं है ।"मुझे अपने उलाऊ ज का मेंचिन्ग इसमें रुपया पसा दिया जाये तो अपता [लाभ होता आदमियों का दूसरा है और उनको हो हो रहा है। उनको सारा लाभ है, "प्राज दपतर में कान्फ्रेन्स थी, मुझे जाना ही हो रहा है रुपयों पैसों का श्र आप लोगों को लाभ नहीं होता। किर कहेंगे कि हमारी नौकरी करना था, इसलिये मैं गई था इस कान्फरेन्स में, तो मैं ध्यान नहीं कर सका । 1 निर्मला योग ३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt नहीं चलती, हमें घाटा आ रहा है होगा ही वो यही हमारे घोबी साहब के यहां है। ही शिवार आदमो है, उन्होंने कहा चलो भया ये तो एक हमारे घोबी साहब थे यहीं दिल्ली में, बहुत पालो, करो। पर अरप लोग दो-दो रुपये, चार-चार दिनों तक रहे, घोजी अभी भी हैं। तो वे एक दिन रुपये के लिये, मुझे तो आश्चर्य है, मोट रों में घू-ते हैं, सबके पास मोटरे हैं, पंट्रोल है, सब चीज, किसी का भी सूट झाडक र पहन लिया ये घोंबी की य।नबाजी बहुत है। ये जो चोज अपर आ गई है जात है । तो किसी का सुट-बूट झाड़िकर अया दिखावे की, दिखावा, ये अरपने North India(उत्त री तो कहने लगा कि माताजी के सा सूट लग रहा है ? भारत) की खास चीज है। ऊपर का दिखावा| अरे मैंने कहा, ये तो साहब का सूट है। कम से कम कपड़े पच्छे होने चाहिये, मोटर होती चाहिये, घर सुन्दर होना चाहिये। लेकिन आपके मन्दिर में था। वो भी काफी लम्बा चौड़ा था, मैने कहा इस कितना दीप जल रहा है, सादगी पे उत र कर । लिये तुम हमें छोड़ते नहीं हो, क्योंकि साहब का सादगो पे आइये, तभी अन्दरके आत्म-दी प की ओर तुम्हें dress (कपड़े) तुम्हें fit (सही) होता नजर जायेगी। पर बठोगी सूटबुट पहतकर अाये, वो तो धोवियों का ये कि हमारे घर तो साहब का सूट पहन कर मत आनता मे. है, इसलिये तुम हमें छोड़ते नहीं हो, मुझे पता है । ये तो हम लोगों की दुर्दशा है । माने ये कि सूट ये मैं नहीं कहती कि आप फकोर बनकर जिये । जरूर झाडेंगे चाहे तो किसी का मारा हुआ हो, ये बात नहीं है, मतलब ये है कि आदमी को कोई हजर्जा नहीं traditional (परम्पराचारी होना च. हिये।Tradi देर का रोव होता है ? ये रोव कितने देर का ? एक tional तरीके से रहिये लेकिन जो glamorous क्षण भी नहीं। अन्दर का रौब होना चाहिये पना (चटक-मटक) है. और जो आदमियों की मनुष्य में, और traditional (परम्पराचारी नहीं हैं शानशोखो है, वो खत्म होनी चाहिये । हम लोग हम कोई अंग्रेज नहीं कि कीमतो सूट पहन करके धूमें। का) पहनकर घूमती हैं । मैंने देखा है औरतों को नया जरूरत है सूट पहनने को ? श्रपना देसी कपड़ा sleeveless फट में पहनंगी । sleeveless पहनना पहनिये । देसी तरीके से रहिये इसमें अपनी शोभा अपने यहाँ कोई देवी देवता, कभी मैंने सुना नहीं है । उसमें अपनापन । बेकार में अपने को show वाजी (दिखावा) करना और दिखाना। यह इतना दिन कहा,"मा यहां सब लड़कियाँ, जब दिल्ली आए show (दिखावा) है मैं त्रपको बता नहीं सकती । अगर किसी के धर जाइये तो मझे तो स मझ नहीं हैं, हम पहने ?" तो हमने कहा, "जंसा एक वार हमारे चपरासी की बीवी म तुम्हारा मन । सूट झाड़कर रीब झाड़ना। कितनी लोग औरत फीरन sleeveless (बिना वाजू sleeveless पहनती थीं। हमारी लड़की ने एक सब लड़कियाँ हमारे स्कूल में sleeveless पहनती आती । है पर तुम क्यों नहीं पहनती ? मैंने मिलने प्राई । तो शनील का सूट श्और शनील का सब कुछ। अब मुझे क्या पता था कि ये चपरासी कभी पहना नहीं। मझे शर्म ग्राती है, ये शरीर क्यों को बोवी है। मैंने कहा भया सोफ पर बठो । वो तो मझसे भी अच्छे कपड़े पहन के आ्राई थी। मतलब मैं ने कहा, 'मैं तो नहीं पहन सकती, क्योंकि मैंने खुला रहे। ये तो चीज ठीक नहीं तो कहने लगी जब ठीक नहीं तो आप कहती कथों नहीं कि ये ठोक सो र पर बठो ता बंठे न । मैंने कहा, हप्रा नहीं।" मेंने कहा आपके पास अक्ल है, आप खुद क्या भई, बैठतो व यों नहीं ? इवर-उचर देखने लगी तय करिये कि अगर हम नहीं पहन ते और अ्रगर] तो कह ती है, कि माँ बात ये है कि मैं चयराती की आपने पहनना है तो हम क्यों अपको जबरदस्ती बीबो है । तो मैंने कहा, अच्छा चलो बठो, कोई ह र्जा नहीं, तुन शनाल पहत कर अई हो, तो कहाँ जमोन कर । पर मैं कभी नहीं पहनुगो । There is no criteria (यह कोई आवश्यक नहीं है ) ये तो कोई निमला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt eriteria (गरवश्यक) नहीं कि मैंने कह दिया तो नहीं । कहने लगे मेरी कोई बीवो नहीं थाई, वो तो वो कहने लगे लगाइये कि माँ क्यों नहीं पहनती। Sleeveless नहीं, कोई नहों पराई । उसके बाद हम बैठे तो सब तरीके उन्होंने कहा कि आपकी कोई सेक्रेट्री आई हुई है । आप छोड दी जिये । सहजयोगियों को ये शोभा नहीं देखा तो उनकी बोबी साहिबा वहाँ जीन पहनकर देता । कायदे के कपड़े पहलिये। जो का्य दे के कपड़े पहँची हुई थी। तो उन्होंने कहा, ये तो कोई सेकट्री । बो अपने को वड़ा खूबसूरत समझ कर धूम में ठीक से पायल होनी चाहिये, आपके पाँव में रही थी। असल में औरत में जब dignity (मर्यादा) विछिया होनो चाहिये. आपके गले में मंगलसूत्र नहीं होगी तो वो मुझे लगेगी जैसे कि कोई क्लक बाबू की बीबी आई हुई हैं, या वहाँ पर कोई जमा- बाल कटाकर बेठ गई, बाल किसलिए कटाने हैं, दारनी के जैसी दिखाई देती है । हिन्दुस्तानी प्रौरत क्यों वाल कटाती हैं आप लोग ? प्राप कोई अंग्रेज जो इस तरह के कथड़े पहनती है बिलकुल जमा- हैं जो बाल कटायें ? क्रिसलिये अ्रापको बाल व टाने दारनी जैसे, और ो से जमादारनी जेसे कपड़े पहन की जरू रत है ? कुछ समझ में नही प्रता । हमारे करके घमना कोई अच्छी बात तहीं। अपनी इंज्जत यहाँ बाल कटाना सिर्फ विधवाओं का होता है रर अपने हाथ में है। [अगर प्राप अपनी इज्जत नहीं विधवाओं को भी बाल कटाना जी होता है, विल्कुल रखेंगे तो दुनिया आपकी इज्जत नहीं करेगी। आप में इन होता है ये नहीं कि बाल क्टाकर के hair लोग किस तरह के बापड पहनते हैं, किस तरह से dress (केश सजजा) बनाकर के घुमना सहज- चलते हैं, कि अ पने देश के गरव के साथ, जो अपने योगियों को दोभा नहीं देता । यही आदमियों का देश का dress ( पहनावा) है वो सबसे अच्छा हाल है । अब ये लोग भी आजकल, मैंने सुना है कि dress (पहनावा) है हाँ कभी-कभी पहनना पड़ता यहाँ के अदमी लोग भी, कुछ सहजयोगी भी काफी है formalities (औपचारिकता) पर, कभी आप फैशन करते हैं । फेशन सहजयोग में बिल्कुल नहीं सुट पहन लीजिये, पर हर समय सूट पहनने की कोई से आने वाली थी, वो कहा चली गई। पते हो कर दिया। मैंने कहा कि आप अपना दिनाग पहनेगी, इतना लम्बा गला पहनेगी, ये होगी हैं, अपने traditional (परम्परागत)तरीके से । पाच होना चाहिये। कारयदे की औरतें होनी चाहिये। ा शोभा देता, आपकी dignity (शान ) में । ऐसे जरूरत नहीं। तो यहा पर मैं देखती है बहुत आदमी को आपको माजूम तहीं कि कोई इज्जत सहजयोगी लोग रोब झाड़ने को जाते हैं अ्रर यहाँ नहीं देता । परंदेश में मैंने देखा है हमारे साय एक पर जो हैं oreign (विदेशों) से अये हुये लोग मुझसे कहते हैं कि माँ हमें इसलिये अच्छा नहीं cabinet minister (केन्द्रीय मंत्री) थीं, cabinet minister नहीं secretary (सवि व ) की बीवी थीं। Chief secretary (मुख्य स चित्र) chief लगता है कि वहाँ पर सब suited-booted (सजे-धजे ) लोग रहते हैं । उनको अच्छा नहीं cabinet secretary की । उसकी दबा आई एक लगता, क्योंकि आप उतका अनुकरण कर रहे है । बार । वो South India (दक्षिण भीरत) की थी । उनको लगता है कि ये लोग क्या अरजीब लोग ले किन बो बीवी अ्रपने को बहुत अफलातून समझती हैं, इनके पास इतने प्रच्छे - प्रच्छे dress (वस्त्र) थीं। तो दूब ली-पतली थीं और एक दिन हम लोग हैं, उसे पहन सकते हैं । इतनो गर्मी हो रही है, उस पार्टी में गये खाना खाने । तो बहाँ पर देखा कि हम वक्त ये लोग अपने ये पहन करके आ रहे हैं। इनको विल्कुल ही अपनी कोई प्रतिष्ठा नहीं । जो स्वयं हमारे husband (पति) भो बैठे ओर ये महाशय अप्रतिष्ठित होते हैं, वो इस तरह से glamour जब वहां बैठे तो उन्होंने कहा कि आपकी बोबी (दिखावे) में रहते हैं । Glamour (दिखावा) तो केहाँ है ? कहने लगे आपकी तो कोई बोबो आई. वो चीज है जिससे अादमी में एक तरह की defi- गये तो हमको बड़ी इजजत के साथ उन्होंने हमें बैठाया । ५ निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt ciency (हीनता) होता है वो glamour लग ता रुचिकर रसुन्दर है, और जो ऐसे फालतू चीजं है कि सिर पर डालडा का टीन रख लोजिये उसके के पोछे में आदमी जय जाता है तो उसका जो रूप ऊपर में है। जसे कि एक साहब पार्टी टोन या बालों में खूब ऐसे-ऐसे सजा-सजा करके में बहुत बनठन कर गये, तो उन्होंने सोचा कि बरा वाल-वाल बनायें । क्या जरूरत है ? कोई जरूरत है तो उनके हाथ में उन्होंते प्रपने सारे गिलास- वगैरा पकड़ा दिये, और वो अपने को बड़ा लगा के बुफा बनाइये ओर फिर बो डालडी का है वो विद्रप हो जाता मनिः नहीं । आप विल्कुल सादगी से रहिये। कहीं आपने कोई देवी को देखा है कि वो इस तरह के एक टाई-वाई लगा के आये । मैंने कहा, इन राजा- बड़े वेकार के आडम्बर करती हैं। अगर करे, एक महाराजा्रों का ग्वाल ही खराब हो गया बड़े बार हमें जबरदस्ती ठेल-ठाल कर लोग ले गये बन के अाये थे राजे और उनको उन्होंने सबने वो गिलास पकड़बा दिये । मैंने कहा कि भई विचारों तो मैं तो भूत लगने लग गई। मैंने कहा है भगवान फे को इसे, वेकार की चीज, सरदरद हो गया। पर कसे लोग बदर्शत करते हैं अरर क्रिस लिये ये सारा को ऐसे ही पकड़वा दिया उन्होंने । दो-एक दिन मेरे साथ भी ऐसा ही हुआा । मैं एक पार्टो में गई थी, बर्दाश्त करते हैं ? किसनिये ? इस से किसी को लाभ तो वहाँ एक ambassador (राजदूत) साहब नहीं होता है. कोई सुखी नहीं होता, किसो को हिन्दुस्तान के, बड़े अंग्रेज बनकर आये थे। तो मैंने सोचा कि कोई नीग्रो-बोग्रो होगा, उसको भी बैरा बनाकर के भेज दिया होगा । यहाँ पर कोई नीग्रो हैं ही गिलास पकडवा आनंद नहीं आाता। उल्टे घवराहट होने लगती है । तो ये चीजों को समझना चाहिये कि श्रीकृष्ण की कि क्या हैं। तो उसको मैंने जो लीला है, उस लीला में सौष्ठव है, उसमें माधुरय दिया | तो ये दोड़े-दोडे प्राये कि अरे क्या करती हो, है, उसमें इस तरह की गंदगी नहीं है कि जिसको अरे क्या करती हो ? ये प्रपने ambassador (राज- देखते साथ ऐसा लगता है कि ये क्या चले आ रहे दूत) साहब हैं। भई मैंने कहा, कार्यदे से अपना बंद हैं सामने से, बार तरह के बाल रंगा करके, ऐसा कॉलर का पहन करके, कायदे से आते तो मैं कहती बड़ा-सा चश्मा पहन करके, जैसे खुखार इन्सान आपके ऊपर वला आ रहा है। उनके अन्दर सौष्ठय था। उनके dress ( वस्त्र) देखिये, पीताम्बर पहनते तो भी खूब मोटी, ऐसे-ऐसे फूली हुई, बिल्कुल जैसे थे । हमारे यहाँ कितने लोग पीताम्बर पहने हुये हैं, बताइये ? जो कृष्ण पहनते थे । क्योंकि वो तो पीता- पहनो ऐसे ही इग्लैण्ड़ में प्राप देखिये कि रानी का म्वर पहनने से तो, अरे बाप रे ! हम तो विल्कुल जब वो होता है पाटो तो वहाँ भी ये चलता है। ये देहाती हो गये, कोई नहीं पीताम्बर पहनता, और वी मुकुट लगाते थे, वो भी मोर मुकूट लगाते, मोर वहाँ पर ये है कि tail coat (एक प्रकार का बस्त्र मुकुट उसको लगा लेते थे, क्योंकि थे तो भगवान ही आप पहनते हैं, जिसको वो क्या है long suit तो उनको मुकुट चढ़ाना है, तो मोर का लगा लेते (लम्बा सूट) कहते हैं। अ्रब वो सबके पास तो होता थे । लेकिन अपने यहां बूफा बना लेते हैं । वसाइये नहीं, कोई रखता नहीं, तो वहाँ एक Ross Bro- श्र प्रादमी लोग और क्या-प्या तमाशे कर रहे हैं। इससे क्या फायदा ? जो अपलियत पे प्रादमी तो Ross Brothers जो हैं वो सबको देते हैं कि को रहना चाहिये। पहली चीज ये है कि अपने आप ये hire (भाड़े पर) करो। अब भैया अच्छे- को ये समझ लेना चाहिये कि हमें असलियत पर रहना है । असलियत इन्सान की जो है वो बहुत कहा क्या वो तो comfortably (आरामपूर्वक) चल खुद भी कि हिन्दुस्तान के ambassador (रा जदूत) आये हये हैं । ये इतनी जो टाई वाई लगा करके आये ि वैरा लोग लगाते हैं । मैंने कहा तमीौज से कपड़े सब अंगेजों से हमने सीखा हुआ है फालतू का । तो है ) thers (रॉँस बन्धु) करके हैं। Ross Brothers - भले लोग सीधे नहीं चलते, टेढ़े-टेढ़े चलते हैं । मैंने निमंला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt रहे हैं, उनको सब tight ( तंग) कपड़े, कोई लटके पहनेंगे । नहीं तो बिल्कुल जैसे वो beach ( समुद्र हूये हैं, किसी के यहा तक पर जा रहा है, कोई ढीले- किनारे) पर १हन कर घूमते हैं, वैसे पहनकर धूमेंगे। हाले बिल्कुल जोकर बने हुये हैं, clown जै से । मैंने दोनों चीज हम रे देश के लिये शोभा नहीं देै । कहा जो अच्छे-भवे लोग थे ये केसे लग रहे हैं । मुझे हमारा देश भी वहत बड़ा प्रतिष्ठावान है, क्योंकि तो हंसी पे हंसी आती रही। पूरे सम प मुझे हसो बड़े पूर्व जन्म के सुक्ृत से प्रप इस देश में पंदा हुये आतो रही। इन्होंने पूछा तुम्हें हंसी क्यों प्राती है ? हैं इनको पूर्वजन्म का कुछ मालूम ही नहीं । फिर मैंने कहा ये देखो clown (जोकर) ये तो इतना उनके सुकूत को कीन बात करे। तुम्हारे तो पूर्वजन्म अच्छा आदमी है इसको कया हो गया, ये clown के इतने सूकृत हुये. इसी देश में आप पैदा हये और जसे बना चला है। भगवान की कृपा से जब से हम इस देश में पंदा होने के बाद इसकी शान से रहे । पहुँचे तो ये allow (इजाजत) हो गया कि औरतों को भी चाहिये कि इसकी शान से रहे। देखिये आप अपना national dress (राष्ट्रीय पोषाक) आप हिन्दुस्तानी ढंग से कपड़ा पहना की जिये। पहन कर आइये । तो मैंने कहा, नहीं तो मैं तो आपकी इज़्जत होगो लोग आपको पसंद करेंगे, आपके साथ चलती नहीं । Clown (जोकर) बनकर के, मैं चलने नहीं वाली। ये सब भगवान की कृपा काफी ये हैं। आसानी से अपना dress नहीं छुटता, हो गई, समझ ना । फिर उससे अजीव प्रजोब लोग आसानी से सही छूटता और देहातों में तो बिल्कुल dressed आते हैं, varieties (भिन्न-भिन्न रूप) आरती हैं-कोई अजीब तरह का पहन कर आते हैं, छुटता । उनका dress (पहनावा), मैं तो ये कहती जिसको आप अजीब से कहें। वो पर दिखने को तो हैं मिलता है कि इनका national dress (राष्ट्रीय के पप जेबर पहनिये उसमें कोई हर्ज नही, क्योंकि पोषाक) क्था है । Variety (विभिन्नता) से सौंदर्य ये अपने देश का tradition (परम्परा) है, और ये आता है, सब अ्पने tradtion (परम्परा) की तरह सारे जितने भी जेवर हैं ये सारे एक एक चक्रों पे से कपड़े पहनते हैं। उनके देश में जो tradition उसकी शोभा के लिये हैं । ले किन आपको कोई जरू- बनता है । अपने देश में भी जो कुछ tradition बने हैं, रत नहीं कि आप अंग्रेजों जैसे फाक पहनकर घूमिये वो भी इस हिसाब से tradition बने हैं कि जिससे और या उनके जैसे कपड़े पहनिये । हाँ कभी आपको हमारेदेश में जो जरूरी चोज है, जिस तरह का dress formalities (लोकाचार) पर पहनना पड़े । पर वस्त्र) पहना वो घीरे-धीरे वो tradition बाँधते अधिकतर अ्पने ही देश का dress सह जयोगियों महाराष्ट्र में इस मामले में लोग आपको मानगे ही नहीं, चाहे कुछ हो जाये देहातों में विल्कुल नहीं कि traditional dress प्राप पहनिये, सब तरह ( जाता है । जिस तरह का हमारे लिये शोभा देता है, उपयोगी है, उसको छोड़कर एकदम अगज़ों] जैसे कपड़े पहनने की क्या जरूरत है ? और ग्रंग्रेज जेसे को पहनना चाहिये, हरेक ग्रादमी को । जिस देश में रहो, अगर इंग्लैण्ड में रहो तो इंग्लेण्ड जैसा dress पहनो । निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt ॥ जय श्री माता जी ॥ घर्मशाला देवी पूजा २६-३-८५ आज के शुभ अवसर पर हम पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सव यहीं यहाँ आए हैं। आज देवो का घरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब सप्तमी का दिन है । सक्षमी के दिन देवी ने अनेक २क्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस यही बात अंगेजी में कह रहो थी, वही बात आ्पसे कर डाला। क्योंकि सन्त-साधु जो कह रही हैं। यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ रापका 1eali- zation (साक्षात्कार) होना पूरी बात नहीं है। मैं इस शुभ अवसर पर ये जानना चाहिए कि पर- मात्मा ने अपनी सारी शक्तियां आपकी सुरक्षा के हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने लिए, श्रापके क्षेम के लिए आ्रपकी अच्छाई के लिए इतनी तपस्या की । इनको क्या जरूरत थी इतनी लगा रखी हैं। पूर्णतया परमात्मा आपको आशोवादि penance (तप) करने की, इतनी तपस्या करने दे रहे हैं । पूर्णातया वो प्रापको देखना चाहते हैं कि की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा आप परमात्मा के साम्राज्य में अएं। उसका प्रभि- था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोवते थे वादन है एक तरह से कि आप अपने पिता के घर आइए और आ करके वहाँ पर आप आनन्द से इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान वेठिए । लेकिन उस लायक तो होना चाहिए। अगर में बैठ करके इतनी तपस्विता की। पराज उन्हीं की हम उस लायक नहीं हैं तो कथा हम वहाँ जा सकते कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं? हमारी लियाकत हमें देखनी चाहिए कि क्या थे उनको ये लोग सताते थे । कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर ले । है ? हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया | सबसे पहले बात है कि आप पिता के घर आए, इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहज- योग को समझ लें कि हमारे लिए ए क बड़ी भारी मैं भी आज अपने पिता के घर आयो, ऐसा मूझे देन हो गयी, कोई हम बड़े great people (ऊँचे लगता है, क्योंकि हिमालय मेरा पिता है आते ही लोग) हैँं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, साथ सबसे पहले जो भावना मेरे अन्दर उमड़ी we are chosen people (हम लोग चुने हुए वो मैं शब्दों में नहीं बता पाऊँगी, लेकिन ऐसा मनुष्य हैं) और इस तरह की बात सोचने वाले सोचती है कि जैसे कि आज मेरे पिता के गौरव का लोगो को मैं बताती है बड़ा घकका बंडेगा । ये देखेगे मुझे एक बड़ा अच्छा समय मिल गया है। वड़ा शुभ कि जो लोग यहाँ पर भोले-भाले हैं, जो यहाँ सीधे- प्रवसर प्राप्त हआ है कि इस समय में अ्पने पिता सरल हैं, जो स्वरभाव से अत्यन्त सून्दर हैं, वे सबसे के गोरव की गाथाएं लोगों से कहै कि इस पर ा निमंला योग ८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt आ्रकर जिन्होंने भी तपस्याएं क रीं उन्होंने कहा से क्या-क्या नहीं, ये मैं नहीं वता सकती । लेकिन इतना कहाँ अ्रपनी उन्नति कर ली । इस हिमालय को देख ही बताती है कि आज की जो यहां की एक आपको करके जिन्होंने उच्चतम स्थिति प्राप्त करी, उन्होंने बहुत अच्छो संबि मिली है, एक शुभ गरवसर मिला न जाने कहाँ से कहाँ ग्रपने को उठा लिया । ये सहस्रार है जो पृथ्वी ने प्रापके लिए बनाया महानता में उतरने का प्रयत्न करें । औौर ये सोतिए] हुआ्रा है । इस सहलार की पूजा होनी चाहिए । ये सहस्रार बहुत ऊँवी चोज है । पता नहीं आपको हैं। हमारे अन्दर ऐसी कोई भी विशेषता नहीं है कि इसमें से चेनन्य की लहरियां निकलती हुई दिखाई जो हम इस हिमालय के सामने पअ्रपने को उद्दामता दे रही हैं कि नहीं। मेरे चारों प्रोर सिर्फ चंतव्य के और कुछ नहीं दिखाई दे रहा। चारों प्रोंर चेतन्य है ! ही चैतन्य है और इस में रहने वाले लोग भी उस चतन्य से ऐसे लिपटे हुए हैं, ऐसे समाए हुए है कि है। इसने सारी सुष्टि को ही इतना आराम, इतना मानो जैसे सागर में मछलियाँ तेर रही हों। कोई भी उनमें प्रौर उनमें भेद नहीं रहा । जो पानी है अागे हमें और कूछ पाने का नहीं । इस सहस्वार उसी का उपयोग जेसे मछलियां अ्पने तं रने के लिए सारे ही मैंने प्राप लोगों का सहस्रार खोला। इसी कर रही हों। ये जो चेतन्य चारों तरफ फैला हुआ सहस्रार के सहारे मैंने जाना कि जब तक हिमालय है, इतना यहाँ सुन्दर और इतना मनोरम है कि की शान्ति आपके अन्दर नहीं प्राएगी, उसकी उसका वर्णन मैं व.कई शुब्दों में नहीं कर सकती । और ये सारी हिमालय की कृपा है । हिमालय की हैं. है उसकी गहराई में उतरने का प्रयत्न करें। उसकी कि हम इसके सामने एक अकिवन, एक छोटे से क्षुद्र से देख सके। हम हैं ही क्या ? ये तो महान चीज़ और ये सहस्रार, सारी सु्टि का सहस्रार यहाँ सुख र इनना आनन्द दिया हुआ है कि इससे के 1 शीतलता आपके स्वभाव में नहीं आएगी, तब तक आपका सहलार खोलना भी व्यर्थ जाएगा। कूपा है । नहीं तो आग की भट्टी की तरह से ये सहत्रार जलता है । जब मैं देखती है कुछ-कुछ लोगों को, तो हिमालय ! सर्वप्रथम सोचिए कि हम लोग सागर को अपना गुङ मानते हैं । सांगर हैमारा लगता है, हे भगवान मैने इनका सह्रार क्या खोल पिता है और सागर जब सारा मंल छोड़-छाड़ करके दूनिया की सारी गन्दगी उसके अन्दर जब गिरती है, उसे नीचे छोड़ करके और जब बो आकाश में बादल की तरह उठता है तब वो विल्कुल निषपाय, सुन्दर शुद्ध ऐसा बहुता बहुता इस हिमालय के इसके अन्दर से क्था क्या चीज निकल रही हैं । चरणों में जब आता है तब वो यहाँ पर हिम बनके छो जाता है । शब्द भी 'धवल है । घवल माने दुनिया भर की जो जो चीजें गन्दगी की हैं वो सारी 'अति शुद्ध, अ्रत्यन्त स्वच्छ, अत्यन्त निर्ल । ऐसी उभर करके ऊपर चली आती हैं । ये जो घाराएं हैं, ऐसी हो धाराएं इस हिमालय में बह सकती हैं। ये धाराएं वही है जो हमारे मस्तिष्क में भी बहुती हैं और जिसके सहारे हमारा सहस्रार सात दीविया को याद क रके जिन्होंने यहां पर बहुत प्रज्ज्वलित होता है । दिया प्रन्दर से प्राग की भट्टी जल रही है। अन्दर से इतना घंा और इतनो गन्दगी निकल रही है कि अच्छा है इनका फिर से सहस्रार बन्द हो कर दो। ऐसा भानुमती का पिटारा खुल गया है कि पता नहीं देखते के साथ ही आश्चरय होता है कि साँप विच्छु , आज इस हिमालय को याद करके और उन पराक्रम किए हुए हैं, उनको याद करना चाहिए कि हमारे पास भी देवी शक्ति आए । और उस देवी शक्ति को पूर्णतया हुम एक माँ से प्राप्त किए हुए हैं । इसके अन्तर्गत क्या-क्या कहना चाहिए और निमंला योग ८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt इस लिए जो माँ का स्वरूप है, उस स्वरूप को लेते हुए हम हिमालय की शरणागत हों । बने । न म्रतापूर्वक इसे करे । कितने हा लोगों ने मुझसे ये शिकायत की है कि माँ हम आप ही के lecture (प्रवचन) में आएंगे अपनी ओर नज़र रखिए। सोवते हैं। ये सोचते हैं, ये अआदमी खराब है That और हम आपके सेन्टर पर नहीं जाएंगे। मुझे बड़ा man is not good, that fellow is not आश्चर्य होता है। हजारों लोग मेरे लेकचर में श्राते good. What about yourself ? See your- हैं और क्यों ऐसे खो जाते हैं ? तो क्या आप बीच self. सत्को अपने को देखना है। दुसरों को नहीं में एक शेतान बनकर वेठे हैए हैं ? कृपया मेरी बात दे वना है ये आदमो ये नहीं करता, वो आदमी वो की ओर ध्यान दें प्रर अपनी ओर देखें । दूसरों की नहीं करता। आप क्या कर रहे हैं, उसे देखिए । हिमालय ये नहीं देखता, हिमालय ये नहीं देखता कि किया है ? क्या हमने ऐसा किया है ? तब श्राप दुनिया ने उनके साथ क्या किया ? कितनी ज्यादती जानगे, जब आप इस चीज को समझ ले, जब आप करी है ? वो ये देखता है कि उसे क्या देना है ? उमे क्या मेहनत करनी है? किस तरह से लोगों को पाएंगे, और तभी आप इस हिमालय की महानता प्लावित करना है ? किस तरह से उनका संरक्षण को जाने गे, नहीं तो आप समझ नहीं पाएंगे करना है ? इस हिमालय की चोटी से ही हमने आपके अन्दर न वो संवेदना है, न ही वो अख हैं, अपनों सुरक्षा पायी । इसी से हमने अपनी गंगा, यमुना ओर सरस्वती की धाराए पायीं ये तीनों घाराएं हमारे अन्दर निर्मल बहती रही हैं । हालाँंकि इसमें हम हर तरह की गंदगी डालते है। हर तरह से उसकी उपेक्षा करते हैं। हर तरह से उसका अप- लोग दूसरों की । हमने ऐसा किया है ? क्या हमने ऐसा ओ्रर नहीं अपनी गलती को देखेगे तभी तो आाप न ठीक कर न ही वो समझ है, न ही वो सूझ-बूझ है कि आप इसे समझ पाएं कि ये क्या चीज है ? जहाँ आप बठे हुए हैं, किसकी गोद में आप आए हैं जिसकी गोंद में हम रहे, पले, वड़े हुए वही ये महान पिता हमारा है। इसका आप मान रखिए मान करते हैं। तो भी हिमालय सततू श्रपनो स्वच्छता उसके अन्दर बहाते रहते हैं। लेकिन सब और इनके सामने नतमस्तक हो करके ये सिद्ध चाजों का अन्त होने वाला है । इस तरह की चीजें और अधिक चलने वाली नहीं । करके दे कि जो हमने कार्य किया यो कि सी काम का रहा। बेकार का नहीं रहा । इसी प्रकार इन सात देवियों का अशोर्वाद धाप सब लोग इसको याद रखिए कि मैं आपकी पर अनन्त है ये ग्रापकी मौसियाँ समझ लीजिए । जबान में मधुरता पाऊं, आपकी बातचीत में मिठास ये सारी आपकी देखभाल करती है। कहते हैं कि पाऊँ, आपके व्यवहार में सुरुचि पाऊँ । मैं इस माँ मर जाए पर मौसी जिए। ऐसा कहा जाता है । चीज़ को अव माफ नहीं करू गी, इसको आप जान क्योंकि मौसी जो होती है वो बच्चे को दुलार से लीजिए। ये करना महापाप है। किसी को भी किसी रखती हैं । उसको संभालती है । उसकी रक्षा करती देना बहुत बुरी बात है । कृपया है। उसकी पूरी तरह से रंचित रखती है। उसका एक दूसरे का आदर करिए। आप सहजयोगी हैं, हमेशा मनोरंजन करती है। हरेक तरह की कठि- दूसरे भी सहजयोगी हैं । आज आप किसी पद पर हैं नाइयों से आपको बचाती है। आप देखते हैं कि छवि घुम रही है कभी आकाश में बहुत सारे बादल दिया हुआ है और जब चाहें इस पद से हम पको आ रहे हैं । वहुत सुन्दर सुन्दर से आप देखते हैं कि हर समय रंग-विरंगे बहां पर नजारे दिखाई देते हैं । 1 चीज के लिए दुख दूसरा नहीं, ये पद आपने पाया हुआ नहीं, हमने ह्टा सकते हैं । इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य निर्मला योग १० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt ये सब उनके खेल चल रहे हैं, आपको सुन्दरता से really tried first of all to curb you down भरने के लिए। इसी प्रकार प्राप भी एक सुन्दर, and after curbing you down I think you अच्छे व्यक्ति बन । यहां पर बहुत कुछ कमाने काpeople should ascend because many है। अब देखना है कि इस शान्ति क पुण्य से निकल things have fallen out. Now don't try करके आप कितने सुन्दर होते हैं ? क to gather them and go back to them and justify. Try to be without them. आज की पूजा में बहुत महत्व है और हो सकता है इस पूजा में बहुत लोग बहुत कुछ पा लगे । ले किन मथने वित्त को स्थिर करें मर वित्त में पहले शान्ति की आराधना करके कि, "माँ हमें आप शान्ति दीजिए।" शान्ति की माँग करें, जिससे आप अनुवाद : में जानती है यह (कुण्डलिनी जाग- रण) बड़े जोरों से कार्यान्वित होगा। सबसे पहले मैं ते प्रापको दबाने की कोशिश की है और उसके दुनिया में शान्ति फैलाएं । तब् अनन्द ग्राता है । बाद में साचती हैू आप लोगों को ऊपर उठना चाहिये, क्योंकि दबाने से आपकी अनेक बातें (विकार) छूटकर गिर गई हैं । [अब] उनको दुबारा It will work out tremendously, I बटोरकर फिर उनमें लिप्त होने की कोशिश न know it will work out. Because I । आ्नन्द शान्ति के बर्गर नहीं आ सकता । करे । अब उनसे मुक्त रहने का प्रयत्न कर have मातेश्वरी जगदम्बिके मातेश्वरी जगदम्बिके सुन लो हमारी प्रार्थना, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली आदिवाक्ति भगवती कर दो कृपा निर्मलेश्वरी सहस्रार स्वामिनी अम्बिके । जानू न मैं पूजा तेरी, जानू न मैं विधी कोई करुणामयी हे अम्बिके, दे दो जगह चरणों में । की जब से तेरी प्राराधना, माँ अपनी तो यहो साघना ऐसा अगर वर दीजिए, पूर्ण हो सबकी मनोकामना । तेरी कृपा से आज तक चलता रहा जीवन मेरा जीवन की ज्योति हो तुम्हीं, मोक्ष प्रदायिनी अम्बिके । श्रीमती शान्ती देवी घर्मशाला निमला योग ११ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt ॥ जय श्री माता जी ॥ जन्म महोत्सव नयो दिल्ली २६-३ ८५ इस ऊंचे स्त र पर आ गए। और इससे कहीं अधिक ऊँने स्तर की पोर अग्रसंर] हो रहे हैं, प्रय्नशील हो हे हैं, ये दे बकर मुझे स्वयं ही ग्रौर ग्रत्यानन्द होता है । सारे विश्व के सहजयोगी तथा सत्य को खोजने वाले सारे सात्विक जीवों को मेरा आাহलर्य होता है प्ररम । किसी को धर्म की शिक्षा दी जा ए श्रोर कह इस आपके आदर और आस्था से हृदय इतना अ्रभि- जाए कि ये न कारों तो मनुष्य उसे मानता ही नहीं हो जाता है कि कोई शब्द नहीं मानने वाला । प्रोर लासकर मां से तो कोई भूत समझ में नहीं आते, किस बेहतर यही है कि किस तरह उसके अन्दर उसी य] कुडलिती जागृत कर दी जाए। कुण्डलिनी के जागृत तरह से कहा जाए कि यज कलियुग मानो खत्म हो चुका। कलियुग में माँ की कोई भी परवाह नहीं होते ही जब वो स्वाधिष्ठान चक्र से गुजारती है तब करेगा, माँ का मान नहीं होगा, ऐसा भव्रिष्य है । ले किन आज यहाँ पर जब देखा जाता है कितने ठान चक्न से हमारा एक और कार्य होता रहता है लोगों ने आकरर वहाँ पर एक बड़ा भारी काम हो जाता है । स्वाधि - कि जब हम सोवते हैं तो हमारे मस्तिष्क के cells (कोशिकाएं) जो कि fat cells होते हैं, जो बार-बार हम इस्तेमाल करते रहते हैं, उनको नये cells की प्राप्ति कराना ये कार्य स्वाधिष्ठान का है । वयोंकि जब हम इस्तेमाल करते हैं तो पुराने cells बिल्कुल इस जन्म-दिवस को कितनी सुन्दरता से सजाया है ऐसा। लगता है मातो सत्युग को शुरूप्रात हो चुकी। कुछ भी नहीं हैं। एक माँ हो तो वास्तव में हम ही क्या सकती है ? जो उसके बच्चे हैं वो ही समाप्त होते जाते हैं, और उन्हें सशक्त नये cells सब कुछ हैं । माँ के लिए उसके बच्चों का बड़ा होना की जरूरत पड़ती है। बो हमारा स्वाधिष्ठान श्र अग्रसर होना ही सब कुछ होता है । पर जो चक् वनाता है और उसे रक्त में छोड़ करके बही माँ ब्मं पर खड़ो हो प्रोर जो आरमा से प्लावित् हो, रक्त हमारे मस्तिष्क में जाता है तो वहां पर brain वो ये ही चाहेगी कि जो संसार में अ्रति उत्तम है, (मस्ति०क) में वो cells काम करते हैं । इसीलिए जो सबसे महान है. जो सबसे जप्रादा सुखदायी हमारे यहाँ धर्म का स्थान बहुत ऊँचा माना गया है । और आनन्ददायी है, वही मेरे बच्चे प्राप्त करें । जिस माँ की जितनो नजर होती है उतनी हो प्पेक्षा वो अ्रपने बच्चों के लिए करती है । हमारा वर्म हमारे पेट में होता है जहाँ पर स्त्राधिष्ठान कार्य करता है । जिस वक्त स्वाधिष्ठान च क्र खराब हो जाता है तो हमारा धर्म भी खराब इतने थोड़े से समय में इतने लोग सह नयोग को हो जाता है। लेकित जत्र कुण्ड लिनी जागृत हो जाती प्राप्त हुए । उनके अन्दर अत्मा जागृत हो गयी। वो है तो बो उन cels (कोशिकाओ) में धर्म भर निर्मला योग १२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt देती है । प्ठान चकपर स्थापित करत है, जि से पर हम संतु- लन प्रापन करके धर्म को प्राप्त करके, हमारे मस्तिष्क में धर्म भावना जागृत हो जती है। वड़े-बड़े हैपारे यहाँ आदिगुरू के अवतरण हुए हैं। जिन को आप कह सकते हैं इगाहम, कन्स्यूनस धर्म का मतलब ये नहीं कि हम ये सोच कि हम सोकटिम मोजि स, राजा जन F, नानक साहृब, मुहम्मद पाहिब औोर अभी-प्रभो विरडी के साई उसका मोर डाले, इसको पोट डालें. उसका बदला नाथ । हसे अनेक महात पूरुष इस महान तस्व को ल या उपसे इस तर से व्यवहा र करें, इससे हम लेकर इस सपार में प्रव्तरित हुए थे और उन्होंने पूरे समय ए क हो कार्य किया था कि मनुष्य बा धर्म । बांधा जाए। उसकी वजह ये थी कि अग र धर्म नही बाघा जाएगा तो स्वाधिष्ठान चक्र सराब जाएगा प्रकार सवंधर्म एक ही है । लेकिन उनका आपस का घोर ये दिाएं कि हम कोई ् है । योई भी ससार में ध्म एक दूसरे से श्रे ठ नहीं है। वो सब का पूरक है कोई एक अख दूसरे से श्रेष्ठ नहीं हो सकती । उसी पर सनुष्य का मस्तिषक खराब हो जाएगा और रिश्ता उनकी ग्रा की लेत देन समझने के लिए ये ही वजह हैं कि हमने उस घम को पूरी तरह से अपको 9हले आत्मा प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि माना नहीं, समझा नहीं। इस वजह से आज इस आप संतरे में हमेशा ये ही तोचेंगे कि प्राप प्रकेले कलियुग में हम सबका हाल इतता खरा ब है। ही वडे हुए हैं। इसलिए इस पकाश की जरूरत है। पर जब तक घ्म आपके अन्दर संतुलित तोर से पर कृण्डलिती ये कार्य व हुत सहज तरीकि से जागृत नहीं होता है, कुछ भी कर लीजिए, कुण्ड करती है। जब कुछ्डिनी उठे करके स्वाधिष्ठीन लिनती जागृत नहीं होगेी। चक्र में जागृत हो जाती है तो बहाँ के जो cells हैं बो यनायास ही धार्मिक हो जाते हैं । इसीलिए आप देख ने हैं जो सहजयोगी चाहे हिन्दुस्तानी हो, चाहे और इसलिए घर्मं पर पहला लक्ष्य किया था कि पहले अंग्रेज हो, चाहे अस्ट्र लिया का हो, कहीं का भी हो घामिक वनो धर्म में रहो। लेकिन वो बात न हो उसकी मर्यादाएँ एक जैनी बती रहती हैं । वो पारयी । तो ये सोचा गया [कि [अच्छा ठीक है, कोई ईमानदार वन जाता है, वो श्रत्यन्त मोहब्बती वन बात नहीं, जैसे भी अ्राप, जैसे भी असंतुलन जाता है, सहनशील बत जाता है। उस मैं एक तरह हो, केसी भी हालत में आप हों, आपकी कुण्डलिनी का सौष्ठव आ जाता है और एक तरह का बड़ा गम्भीर प्राकर्षण उसके अन्दर श्रा जाता है । ये और कुण्लिनी अागे चल पड़गी और अपको आत्मा सिर्फ स्वाधिष्ठान चक्र को ही कृपा है जिससे कुण्ड- भी प्राप्त हो जाएगा। य ही प्राज का सहजयोग है । लिनी अपना कार्य करती है। ऐसा हो लोगों ने निरधारित किया हुआ था । में आप जागृत कर दी जाए। धोरे-धीरे घम भी बैठ जाएगा उलमें कितना वश मिला है, इसके लिए मैं सिर्फ आप हो को घन्यवाद दे सकती है । क्योंकि हम जो है सो हैं, हमारी क्या विशेषता है, मेरी ये ही समझ में नहीं आता । व्योंकि जो इंसान है उसकी कोई विशेषता होती ही नहीं है । जो नहीं है शर बो हो जाए तो कोई उसकी विशेषता है । जो है, सूर्य है । उससे अगर प्रकाश आता है तो इसमें सर्य की कोन-सी विशेषता है ? पर उस सूर्य के प्रकाश से जो पत्ते हरे हो जाते हैं, उसमें जरूर ये धर्म जो हमारे अन्दर जागृत होता है ये हमें विश्व धर्म की शोर ले जाता है । जहाँ हम देखते हैं कि सारे विश्व के धर्म एक ही चीज़ बताते हैं कि प्रात्म-साक्षात्कार प्राप्त होना चाहिए, आको अपनी आत्मा प्राप्त होनी चाहिए, कयोंकि ग्राप मत-बुद्धि -अहंकार आदि ये शरीर नहीं है, लेकिन आप परात्मा हैं ये सभी के हते हैं। सो ये त्मा पाने का मार्ग यही कुण्डलिनी पहले स्वाधि- आपको अना निर्मला योग १३ he 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt उनकी विशेषता दिखाई देती है । इसी प्रकार सारे दिगन्तु में, सारे संसार में एक आनन्द का आपका बनना, आपका उठना और आत्मा को प्राप्त करना इतनी ऊँची चीज है कि आप श्राज तक किसी भी आत्मिक इतिहास में इतना बड़ा कार्य हुआ नहीं । साम्राज्य फैल सकता है । सब से तो वड़ी चोज ये है कि ये संसार की जड़ें जहाँ से सारी दूनिया प्लावित हो सकती है उसका सुजन यहीं होना चाहिए। भारतीय ही ऐसी बड़ी सारे संसार में जब ये कार्य फेल जाएगा तो भारी चीज है जो इसे पा सकता है । औरों को तो सारी दुनिया की घृणा, वैमनस्य, दुण्टता, सब नष्ट गणपति के 'ग' से शुरूआत करनी पड़ती है । लेकिन वो लोग. जो गणपति के 'ग' से शुरूप्रात करते हैं, कारण श्और परिणाम से परे मनूष्य उस स्थिति में इतने जोर से सहजयोग को पकड़ते हैं, उतना ही हिन्दुस्तानी ये सोचता है कि अरे हम तो हिन्दस्तानी परमात्मा के साम्राज्य में किसी चीज की कमी नहीं हैं, हमें तो सब मिला ही हुआ है वो इतना गहरा । यहां योग पाते ही नहीं उतर पाता । उस गहराई में प्रपने को उतारना चाहिए, जिस गहराई के कारण आप इस महान हो करके शान्ति और आनन्द में मनुष्य विराजेगा । जाएगा। जहां परमात्मा का साम्राज्य होगा। और रहती । योग क्षेम वहा्यहम् आप अपने क्षेम् को प्राप्त होगे और दुनिया पूरी बदल जाएगो। इस दुनिया को बदले बगेर कोई भी कार्य तहीं हो सकता। भारतवर्ष में पैदा हुएहैं । हैं जिसकी वजह से यहाीं ये प्रापके पूर्वपुष्या ई पदा हुए हैं। [अगर आप में पुष्याई नहीं होती तो जैसे कि डॉ० वारन् ने आपसे बताया कि सारी theories, (धारणाएं) theories (धारणाएं) रह इस देश में अप पदा नहीं होते। हालाकि आपको गयी। उसको असलियत पर हम नहीं ला पाये। कुयों इसका पता ही नहीं कि आपके पूर्वपूण्याई क्या हैं ? कि आप जब असलियत में नहीं हैं तो कोई भी चीज इसलिए आपको ये सोचना चाहिए कि जब हम इस जो अप कर रहे हैं वो असलियत में कैसे श्रा सकती है महान भारतवर्ष में पेदा हुए, जो सन्त-साधुओं से । इतनी आशोर्वादित और पल्लवित् है, इस देश में जब हमारा जन्म हुआ तो कोई न कोई हमारे अन्दर चीज़ बहुत सीधी सरल है कि आप ही के अन्दर आपकी आत्मा है। आप ही के अन्दर आ्रपकी माँ विशेष बात होनी ही चाहिए, श्रर उस विशेषता कुण्डलिनी है । उसकी जागृति भी सहज ही है । को हमने अभी तक जाना नहीं, ये हमारी एक तरह उसको प्राप्त करना भी बहुत ही सहज है । लेकिन से भूल हो गयी है। कोई हजं नहीं। [अब भी हम उसको प्राप्त करने के बाद उसकी पूरी इज्जत जान ले और उसके आगे हम अपना पूरा जो भविष्य करना, अपने साक्षात्कार की पूरी देखभाल करना है उसे उज्ज्वल कर और सारे संसार का भविष्य औ्र उसको व्यवस्थित रूप से, उस अंकुर को एक इसी भारतवर्ष से ही ठीक होने वाला है । के रूप में डालना, ये ही काम थोडा-सा आपको बृक्ष करना होगा। कल के नारणंधार हैं । वही कल के अगुआा हैं । उसके लिए जो लोग तैयार हैं वही ये सबसे बड़ी एक अजोब-सी बात है कि भारत- वर्ष के लोग इस बात को जानते नहीं कि सारो दुनिया को आप से ही सीखना है। मैं बार-बार और जो लोग आज आप सोचते भी हैं कि बड़े आपसे यही विनती करती है कि कृपया अपना धरो- यशस्त्री हैं ये बहुत थोड़े दिन की, चन्द दिन की चीज हर, आपने जो पाया हुआा है, उसे जानने की हैं। जो हमेशा अनन्त की चोज है उसे पा लेने से कोशिश करें, उसकी ओर आप आमुख हों, अपनो । निर्मला योग १४ Mho 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt संस्कृति की ओर आप कके, क्योंकि जो भारतीय संस्कृति है ये आत्मा की पोषक है, यही आत्मा को बढ़ावा देने वाली है। बाकी किसी भी संस्कृति में आर्मा की ओर चित्त नहीं दिया गया । ओर ध्यान दें, उसको समझने की कोशिश करें और अपने जीवन में उसे लाने का प्रयत्न करे। परमात्मा आप सबको सूबूद्धि दे, सुमति प्र [आशीर्वाद दे कि प सब अ्रपने आत्मा से तृप्त हो जाए। इसलिए इस संस्क्ृति की ओर चित्त दें उसके परमात्मा ग्रापको अनन्त प्रशीर्वाद दे । मधुराष्टकम अधरं मधुरं, वदनं मधुरं, नयनं मधुरं, हसितं मधुरं हृदय मधुरं, गमनं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं |। ा वचनं मधुरं, चरितं चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुर । मधुर, वसनं मधुरं वलितं मधुरं गीतं मधुरं, पीतं रूपं मधुरं, तिलकं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। मधुर, भुक्तं मधुरं, सुप्तं मधुर करणं मधुरं, तरणं मधुरं, हरणं मधुरं, रमणं मधुरं वमितं मधुरं, शमितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। सलिलं मधुरं, पवनं मधुरं, कमलं मधुरं, दिग्-दिग् मधुरं हृष्टं मधुरं, शिष्टं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं |॥ भक्तं मधुरं गायओ मधुरं, दलितं मधुरं, फलितं मधुरं, मधुरा निर्मला माता मधुरं ।। यष्टिमधुरा सृष्टिमंघुरा -श्री वल्लभाचार्य की रचना म से अनुसरित निमला योग १५ ाल 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt सद्गुरू तत्व श्रर विशुद्धि तत्व अभी तक के लेखों के अनुसार अपने शरीर में अलग-प्रलग देवताओं के विशिष्ट स्थान हैं। सद्गुरु का भी स्थान प्पने शरोर में है और यह स्थान हमारे शरीर में हमारो नाभि के चारों तरफ है । नाभिचक पर श्री विष्णुशक्ति का स्थान है । विष्णुशक्ति के कारण ही मानव की अमोवा से उत्करांति हुई है । और इसी विष्णुशक्ति से ही मानव का अरतिमानव होने की धटना घटित होगी। सद्गुरू का स्थान आप में बहुत पहले से स्थित है । अबं गुरूतत्व कैसा है यह समझने की कोशिश करते हैं । यह कार्यशक्ति आप में दायों तरफ होकर आपके सारे दायें तरफ (दायीं सिम्पर्टिक नव्हंस सिस्टम) का संचालन करती है। यह शक्ति कार्यशक्ति कही जाएगी और इस शक्ति का वहन या नियमन पिगला नाड़ी से होता है। ये आपके शरीर में दायीं ओर होती है । इसे महासरस्वती शक्ति के कारण शक्ति मिलती है । 1. कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के बाद आप दोनों (इड़ा और पिगला) नाडियों का संतुलन जान सकते हैं। असंतुलन कहां हो सकता है इसका ज्ञान हो सकता है तथा सहजयोग के कुछ आसान तरीकों से आप संतुलन ठीक कर सकते हैं । कहने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य की ज्यादातर तकलीफे या सभी परेशानियाँ (शरीरिक, मानसिक, बौद्धिक) ऊपर कही गयी दोनों नाड़ियों के ग्रसंतुलन से ही होती हैं । इसलिए इन दोनों नाड़ियों में संतू- इसमें से जो महाकाली की शक्ति है उससे ऐसी लन रहना बहुत अत्यावश्यक बात कही जाएगी। गुरुतत्व अनादि है। आप में अदृश्य रूप से तीन शक्तियां कार्यान्वित हैं। इसमें से पहली शक्ति मुख्य को हम श्री महाकाली की शक्ति, दूसरी को श्री महा- सरस्वती की शक्ति व तीसरी को श्री महालक्ष्मी की शक्ति कहेंगे । स्थिति प्राप्त होती है कि जिससे अपना अस्तित्व टिका हुआ है। इस सुष्टि का अस्तित्व है। इस ऊपर कही गयी दोनों शक्तियों के अलावा हममें है। यह शक्ति भी विश्व का अस्तित्व भी श्री महाकाली शक्ति के तीसरी शक्ति भी स्थि बहुत ही कारण हो टिका है । आप में इस शक्ति का संचालन महवपूर्ण है क्योंकि आज हम जिस मानव चेतना 'इड़ा' नाड़ी से होता है । ये नाड़ी हमारे शरीर के को प्राप्त हुए हैं वह इसी शक्ति के कारण है । इसे महालक्ष्मी की शक्ति कहा जाता है। इसोशक्ति के की अमीवा से उस्क्रांति हुई है । बीयों तरफ है और वह अपने शरीर के बांयी तरफ का सं तालन व नियमत करती है । बांयी सिम्पर्थ टिक नहंस सिस्टम को चालित करती है। इस नाड़ी के कारण हमकी इच्छाशक्ति प्राप्त होती है । इच्छा से ही मनुष्य कार्यान्वित होता है । कारण मतुष्य ये तीनों शक्तियाँ जब बाल स्वरूप एकत्रित होती हैं अरथात जहां तीनों शक्तियों का समन्वय होता है बहाँ किसी भी प्रकार की गंदगी या परेशानी नहीं २५ सितम्बर १६७६ में हिंदूजा ऑडिटोरियम बंबई में थ्री माताजी के भाषण पर धारित] निर्मला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt रहती। ऐसी चीज हमेशा नयी और ताजगी भरी है । ये शक्ति अनेक वार जन्म लेती है । [्रादिकाल होती है। ऐसी वस्तु में किसी भी तरह का प्रहंकार से देखा जाय तो थी आदिनाथ इसी शक्ति के अव - वर्गरा नहीं होता है । यही वह सद्गुरू तस्व है । जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है ैसे-बैसे उसमें दो ग्रंथी और दो विशेष संस्था धीरे-वीरे बनती है, उसमें हैं। परन्तु जन लोगों को श्री आदिनाथजी की शक्ति से एक को अहंकार व दूसरी को प्रति अ्रहंकार के बारे में मालूम नहीं है । तोनों शक्तियों से निर्माण कहते हैं। अग्रेजी भाषा में उन्हें 'ego' व 'Super हाने वाली ये प्रथम शक्ति है। इस शक्ति में धर्मायता ego' कहते हैं । ये दोनों संस्थाए इस्छा व क्रिया शक्ति से बनती हैं। जब एक मतुष्य बहुत इच्छा कहते हैं। इसका अर्थ यही है कि वह सभी जाति व करता है या केवल इच्छी से ही भरा होता है तब घम को मानता है। अगर कोई क्ति कहता है कि प्रति अ्रहंकार प्रस्थापित होता है। दूसरी संस्था माने मैं फलाने जाति का गुरू है, मैं फलाने घर्म का गुरू अरहंकार की संस्था का क्रियाशक्ति से निर्माण होता है। ये संस्था किसी भी मनुष्य में जो कुछ भी काम नहीं है। सत्गुरू तत्व की पहुचान ही ये है कि सारे करता है उसमें प्रस्थापित हो सकती है । मनुष्य उस समय सोचता है कि 'मैने फलान। काम किया, 'मैने सर्वधर्मों का भोलা-भाला रूा है वह इस सत्गुरू सड़क बनाने का काम किया, 'मैंने बांध बनवाया, मैंने मकान बनाया इससे मनुष्य में एक तरह का कत्त्तापन प्राता है और उसी से उसकी [अहंकार की संस्था बढ़ती है। ये संस्था आपके सिर के बायीं है, वैसे ही अनेक व्यक्ति हैं जो अपने आपको धर्मगुरू ओर से शुरू होकर सिर के बीचोंबोच अराती है। जब अहंकार व प्रति अहंकार ये दोनों संस्थाएं बीचों- हैं। फिर एक धर्मपंथियों ने दूसरे धरमंपंथियों पर बीच आकर मिलती हैं तब तालू भर जाता है। इसे - अंग्रेजी में 'Calcification' कहते हैं । सामान्यतः मुललमानों पर, मुसलमानों पर क्रिड्चयन लोगों की, बच्चे की ताजू ३-४ साल तक पूरी भरती है। इस क्रिश्चियन लोगों ने मुसलमानों को । सच कहें तो उमर तक बच्चे बहुत अच्छी तरह से बात करना ऐसे जो लोग हैं वे सब दांभिक व अज्ञानी हैं क्योंकि सीख जाते हैं व अ्रपनी मातृभाषा में बोल सकते हैं । तार हैं । जैन संप्रदाय में श्री प्रादिनाथजी को सत्गुरू मानकर उनका पूजन करते हैं प्रीर प्रार्थना करते नहीं है। संन्यासी की जाति नहीं होती है, ऐसा हम हैं तो निश्चित समझ लीजिए कि वह व्यक्ति सत्गुरु धर्मो का जो सार है या सबंधर्मो की नूतनता या तत्व में शामिल है । इस दृनिया में घर्म के नाम पर कितनी संस्थाएं कहलवाते हैं। उसमें भी कई राजनीतिक संस्थाएं टीका-टिप्णरगी करनी है। उदाहरण हिन्दुओं ने ऐसे लोगों को सत्गुरूतरव माने क्या, इसका ज्ञान नहीं है । कौन सत्गुरू है, कौन नहीं है, ये वे नहीं जानते । प्रव सत्गुरू पहुचानने का चिह्न क्या है यह सत्गुरू तत्व, श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी इन तीन शक्तियों के समन्वय से देख ते हैं। सतुगुरू आरपके पं सा या धन की मांग नहीं (मेल से) बना है। यह गुरूतत्व हमार अन्दर परमे- হবर ने बहुत हो नूतन स्वरूप में स्थित किया है । आप सबको श्री सत्गुरु दत्तात्रेय का जन्म के पे हुआ मालूम है । श्री दत्तात्रेय में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु व श्री महेश इन तीनों देवताओं की शक्ति समन्वित है । के स्वभाव में स्वच्छंदता से रहते हैं। अगर उन्हें ये शक्ति आपकी नाभि के चारों तरफ जिसे भव- सागर कहते हैं, उसमें समा विष्ट है । करंगे। उल्टा वह घन को धूल स मान मानेगे । सत्गुरू को आप सोता या पैसा, हीरे मोती देकर खरीद नहीं सकते । जरा भी आसक्ति नहीं रहती है। सत्गुरू अपने स्वयं सत्गुरूप्ों को इन चीजों की 1 लगा तो वे औरो से बोलेंगे, नहीं तो नहीं। सत्गुरू परमेश्वर प्राप्ति के लिए आपकी विनती करके अ्प के पीछे -पीछे नहीं दौड़ेंगे। ये सब, मैं [प्रपकी माँ हूँ संपूर्ण विराट पुरुष में भी ये शक्ति समाविष्ट निमंला योग १७ he 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt इसोलिए आपसे कह सकती है कि प्रथ म अपने- वाद बहुत त हलीफ होगी। इस तरह की तकलीफ आपका सत्गुरूतत्व जानिए । मुझे कितनी योग- होने के पीछे यदि आप अति सूक्ष्म कारण खोजे तो साधना किये हुए साधू व योगी भिले हैं । ये सारे आपके ध्यान में ये बात राएगी कि प्रकृति लोग बहुत बड़े हैं । उन्हें मैंने कहा, आप परब जंगलों वाले व्यक्ति के घर खाना खाने से हमें तकलीफ हो या पहाड़ों पर बेठने के बजाय समाज में श्राकरलोगों रही है। को परमेश्वर प्राप्ति के लिए उद्यत कीजिए, उनका सत्गुरूसत्व जागृत करवा दीजिए परन्तु इन महा- योगी लोगों को समाज में नहीं ग्राना है । वे कहते हैं कि समाज के लोग प्रभी इतने लायक नहीं हैं कि उन्हें इतनी वड़ी शक्ति सहज में दे दो । लोगों की स्थिति एकदम निराली है। ऐसे महान लोगों के सामने भी अरति विनम्रता से व्यवहार करके सं भल के बातें करनी पड़ती हैं, नहीं तो वे डंडे या विमटे कार्यास्वित होती हैं। जब तक अपना यकृत प्रच्छी दुष्ट कुछ बात विल्कुल स्पष्टता इसके लिए किसी भी प्रकार का बुरा मत मानिए क्योंकि मैं 'माँ हैं इसलिए सब स्पष्टता से बता रहो से वता रही हैं। है। यह सभी लोगों को जान लेना चाहिए । । ऐसे महायोगी सत्गुरूतस्व प्रमुखतः हमारे शरीर में यकृत में स्थित होता है । सतुगुरूतत्व से आप में चेतना शक्ति आपको मार सकते हैं। सत्गुरूओं के आसपास का वातावरण भिन्न प्रकार का व पवित्र होने से वे स्वभाव से भी कठोर होते हैं । वे किसी भी प्रकार अपनी चेतना विचलित होती है। प्रापने देखा होगा का अरधर्म नहीं सह सकते । समाज में परमेश्वर जिस मनूष्य की पित्त प्रवृत्ति होती है उसने तली प्राप्ति के लिए तथा कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने हुई चौजें खायीं तो उसे पित्त की तकलीफ होती है के लिए किसी सत्गुरू रूपी माँ की कार्य पद्धति में दो प्रकार हैं । एक सत्गुरू तत्व व दूसरे मात्-प्रेम । ऐसी माँ का हृदय प्रेमशक्ति से व परमेश्वर की अपना यकृत अच्छी स्थिति में रखना जरूरी है। करुणा से पूरा-पूरा भरा हुआ होता है। ऐसा बहुता अब यकृत क्या करता है ? यकृत हमारे शरीर में से हुआ प्यार और परमेश्वर की शक्ति औरों को देने शरीर के लिए पोषक न होने वाली द्रव्यों (पदार्थों) के लिए बह माँ उत्सुक रहती है। परन्तु इसी के साथ सत्गुरू तत्व को सारी बातों का पूरे उत्तरदायित्व विजातीय द्रब्यों का शरीर के बाहर विसर्जन करने में के साथ पालन करना पड़ता है और इसीलिए औरों ने परमेश्वर प्राप्ति के लिए कोन-सी वाते करनी चाहिए और कौन-सी नहीं करनी है इस पर प्रति- खुराबी होगी तो उसका निदान (diagnosis) होने तरह से कार्य करता है तब तक अपनी चेतना ठोक होती है। जब आपका यकृत खराब होता है तब व उसकी चेतना विचलित होती है। अपना यकृत प्पने चेतना को शोषित करता है और इसीलिए का विश्लेषण करके उन्हें अलग करता है और उन यकृत हमें मदद करता है। यकृत में बिगाड़ होने की क्रिया वहुत मंद होती है और इसीलि ए उसमें बन्ध लगाया है। उसके साधको में अनुशासन होना में देर लगती है औोर उससे यकृत बहुत जल्दी बहुत जरू री है। आपको पहले सतुगुरू तत्व आपके भवसागर में स्थि ति हैं। अब ये तक संसार में जितने सत्गुरूपों का अवतरण हुआ सत्गुरू तत्व प्रापमें कार्यान्वित कैसे है ये देखकर है चाहे वे श्री मोजेज हों, श्री लाओोत्से हों या श्री थोड़ा-सा आश्चर्य होगा। उदाहरण के तोर पर सॉक्रंटीस हों, सभी सत्गुरूअं ने एक बात प्रमुखता समझ लीजिए आप वहुत ही सात्विक विचार के से बतायी है कि मदिरापान मानव धर्म के विरोध में व्यक्ति हैं । आप किसी दूष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति के घर खाना खाने गये तो अपको उसके घर खाने के का स्थान है। मदिरापान से अपनी चेतना पर बहुत बता चुकी हूँ कि खराब होता है । सर्वप्रथम ाती है शराब । अब 1. है । इसका कारण ये है कि अपने पेट में दस घरमों निर्मला योग १८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt इसका कारण खून के पाती की घटना में होने वाला परिवर्तन है जिससे मनूष्य में अनेक प्रकार की बौमारियां हो जाती हैं। क्रमण होजा है तो उमसे दसों ध्मों पर आक्रमण ोता है। जब मनूष्य को चेतना ही कम होती है व वह चेतना के विरोध में होता है। इस मामले हमारे सह जयोगी शिष्यों का बहुत गहरा प्रध्ययन और उसके लिए एक को लंदन विश्वविद्यालय ने डाँकटरेट डिग्री दी है। वे माँरेशियस के नि वासी है । उन का नाम है श्री रेजीस। मदिरापान से मनुष्य की तना कम होकर मनुष्य का चेतना के विरोध में पे पतन होता है यह उन्होंने सिद्ध करके बताया है। सच देखा जाय तो मदिरा माने पाহिचिमात्य देशों में जिसे 'wine' कहते हैं। वरह पेथ है । wine' मने ताजे अंगूर का (extreme) के कारण उन्होंने अंगुर के रस को सड़वाकर उमे मदि र। का रूप दिया। इस तरह को मदिरा प्रलग-प्रलग वस्तुश्रों को पालिश करने के लिए इस्ते माल करती चा हिए। उदाहरण, अगर हीरे पॉलिश करने हैं होते हैं या किसी जगह स्प्रिट इस्तेम।ल करते हैं । रस । मनुष्य के ग्रतिश्योक्ति मदिरा से खून के जहरीले द्रव्यों का वर्गोंकरण नहीं हो सकता । अगर कहीं हुआ हर बनकर यकृत की पेशी पर उसका प्रभाव आ्र जाता है । म्रापने ये देखा होगा कि जि स व्यक्ति ने ये सित्रिट पॉलिश की जगह उपयोग में लाने के बजाय मदिरापान किया हो उस मनूष्य के श रीर का ताप- मान नहीं बढ़ता, वोंकि शरीर में निर्माण होने पकड़ती है। मनुष्य की वुद्धि की विपरीतता की वाली सारी गरमो यकृत में या किसो दूसरे हिस्सों कल्पना भी नहीं कर सकते । जो चीज १ॉलिश करने में संग्रहित होती है। पानी के घटकों के बदल से के लिए है उसको पीने में पता नहीं उसे कोन-सा पानी भी शरीर में निर्माण होने वालो गर्मी शोपण आनन्द ता है ? मंदिरापान से मतूष्य की चेतना नहीं कर सकता। ओर उसी से श रीर का एक-एक हिस्सा खराब होने लगता है। उसमें सबसे पहले होकर नहीं देव सकता। वह अ्रपने आपको नहीं जान यकृत पर सवसे ज्यादा प्रभाव होता है। इसो का परिवर्तन गे कर्क रोग महारोग जैसे वीमारी में होता है । कर्क रोग भो हाइड्रोजन व ग्रॉकर्सीजन रहता है 'सत्य बहुत सुन्दर है, मनमोहक, इसमें होने वाले बदल के कारण होता है । किसी शान्तिदायक और सुखकारक है । परन्तु मनुष्य को कर्क रोगी वक्ति को ठोक से देखा होगा तो दिखाई दिया होगा उसके वदन पर अलग-अलग निशान पड़े हुए और उसके शरीरके कुछ हिस्से जले हुए । परन्तु उस व्यक्ति का तापमान हमेंशा की तरह साधारण ' से करने तो उस के यकृत में अगर शरीर में गया, तो उम बजह से बीसारियाँ मतुष्य नष्ट होती है। इसलिए वह अपनी त रफ अन्तर्मख सकता । इससे वह सत्य से बिल्कुल दूर जाता हैं । 'सत्य भयानक नहीं कि जिससे मनुष्य इतना दूर 1 उसकी कल्पना नहीं है और इसीलिए मनुष्य को समझाने के लिए इस पृथ्वी पर प्रनेक सत्गुरू ओं ने को जन्म लिए । एक सादा-सा नुस्खा है कि मनुष्य अपना जीवन समतोल रखना चाहिए । वह व्याव- ही रहेगा। एक बात निरविवाद है सतुगुरूतत्व के हीरक हो या वेवाहिक हो, अगर सामाजिक जीवन हो, सभी में समतोलना (सन्तुलित) होना श्रावश्यक विरोध में कोई भी बात करने से वह शराब पीता हो या ओर कोई भी बात हो, उससे की ह चेतना नष्ट होकर उसमें कर्क रोग जेसी बीमा री हो सकती है । है ' ये बिल्कुल नेसगिक (natural ) है । आपने देखा मनुष्य होंगा कि सर्वसाधारण मनुष्य छः फुट के आसपास लम्बा होता है। वह कभी २०० फुट लम्बा नहीं होता है। वैमे हो इस सृष्टि की और बातों में भी आपको समतोलन देखने को मिलेंगा। जो शराब पीने से एक और बात मनुष्य के इरीर में होती है कि खुन की नली फूल कर मोटी होती है। मनुष्य वहुत ज्यादा स्पर्धा (competition) में रहता है वह निर्मला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt बहुत कामयाव हैं। परन्तु ऐसे व्यक्तियों का व्यक्त गत जीवन गौर से देखा जाय तो ऐसे लोग अत्यन्त अन्त में पागल हो जाता है। बात में race (भाग-दोड़) है। वहाँ का statistics (आरांकड़े) देखा जाए तो हर-एक बात में तेज स्वभावके, तोच श्रौर प्रतिमूखं होते हैं । यह सब competition (a) वजह से बहां के बहुत जैसी हो गयी है। इस प्रतियोगिता के कारण मनुष्य में असाधारण निर्माण होता है, जिससे उसका सर्वागीण (चौतर्फा या चारों तरफ से) विकास नहीं रक्षा कसे करें और इसक लिए क्या करें ? सर्वप्रथम ही सकता । उल्टे उसका नाश होता है । अतः आपके गुरू कोन हैं यह देखना जरूरी है। यह मनुष्य ने सन्तुलित जीवन जीकर अरपने शरीर के समझना जरूरी है। समाज में अनेक प्रकार के सदुगुरू तत्व के संत्गुरू को मजबूत करना बहत गुरु देखने को मिलते हैं । अगर कोई गुरू जरूरी है। उसके बाद हो उसमें धमं को स्थापना हो सकती है। ऐसे सन्तुलित जीवन से मनुष्य अरपने प्रवृत्त करता होगा तो निश्चित सम लीजिए कि स्वयं का धर्म पहचानने में समर्थ होता है । पश्चिमी देशों में हर दिखायी देगो। इस असन्तुलन से होता है । असन्तुलन सद्गुरु तस्व को रक्षा न करने से अाता है। (स्पर्धा) से लोगों की स्थिति पागलों अब आप सवाल करोगे कि सद्गुरू तत्व की हमें नाम लेने (गुरू अपने स्वयं की स्तूति) के लिए वह सद्गुरू नहीं है। परमेश्वर का नाम समझकर और जिस प्रकार की तकलीफ होगी उसके देवता जिस समय मनुष्य स्वयं के दस धुमों से गिर का नाम लेते हैं। सबके लिए एक ही देवता का जाता है तब उसका नाश होता है ्रोर वह असन्तु नाम लेकर काम नहीं बनता । उल्टे उससे ओर परे- लितता में धकेला जाता है । इसीलिए उन दसों धर्मों शानी बड़ती है। इस वारे में यह कह सकते हैं हमें का पालन करना आवश्यक है। इन दस धर्मों के बारे बुखार आया तो डॉ० की दी हुयी एक दवाई हम स्ताते हैं । पर वही दवाई दूसरी बीमारियों पर कैसे काम आाएगी ? उल्टे उससे परेशानी ही होगी। यही बात अलग-प्रलग देवताओं के नामों के बारे में कही में वाइबिल में बिषद रूप से बताया गया है । आप ने समाज पर सुसंस्कार नहीं किये तो आप की क्रियाशाक्ति यानी पिगला नाड़ी कार्यान्वित नहीं जाएगी। रहेगी और इड़ा नाड़ी पर दबाव प्राकर प्रतिअ्रहंकार की संस्था मेंदू में स्थापित होगी और उसी के दबाव में अएगा। इससे उल्टा अगर मनुष्य नहीं हो सकते। मा के पास जो करुणा होती है वह में अहं कार को संस्था ज्यादा प्रस्थापित होगी तो बहुत मेह- वह हिटलर की तरह बनेगा और उसे ऐसा लगने नत की है और उसके बाद उनका अधिष्ठान जमकर लगेगा। कि मैं बहुत बड़ा कार्य कर रहा है बहुत से लोग मुझे हार पहनाएंगे थ्ोर मेरी परारती लिए प्रर लोगों को भी कुण्डलिनी जागृति के लिए उतारेंगे, वरगरा। परन्तु नहीं आता कि वह पूर्णतः प्रहंकार के दबाव में प्रव तक जितने सत्गुरु हुए उ्होंने सहजयोग आने से असन्तुलितता में धकेला जा रहा है ोर का ही मार्ग अपनाया था । उदाहरण श्री ज्ञानेश्वर ऐसा व्यक्ति पूर्णतः अरहंकारी होता है । इसका व गंन महाराज श्री तुकाराम महाराज, श्री ना मदेव, श्री आप बाल्मीकि रामायण में, श्री नारद मुनि ऐसे नानक, श्री कवीर ऐसे अनेक सद्गुरू पों ने समाज अहंकार से किस तरह परसन्तुवितता में धकेले गये, में रहकर लोगों को सेवा की पोर उन्हें धर्मं सिखाने सकते हैं । ऐसे अहंकारी लोगों को लगता है हम जो व्यक्ति अत्म-साक्षात्कारी नहीं वह सद्गुरू मनुष्य पूर्णातया उन लोगों में नहीं होगी। योगी लोगों ने और उन्हें परमेश्वरो शक्ति की अनुभूति मिलती है । इस- को ये समझ में मेहनत करनी चाहिए ऐसा उन्हें लगता है । जग में ऐसे मनुष्य का प्रयास किया ग्रोरठीक मार्ग पर लाने का प्रयास पढ़े निर्मला योग २० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt किया। परन्तु उस जमाने के लोगों ने इन सभी गुरु प्रो की न सुनकर उन लोगों पर इतने अत्याचार अम जनता तका पहुँचने का समय आया है, पहुँचती तब तक उसका अर्थ नहीं है। अब यह नान किये, बहुत वार उन्हें मारा तक, उनको समाज से क्पोकि आवकी अन्तरचना ज्ञान मिलने के लिए याहर कर दिया, उन्हें खाने को भी नहीं दिगा। अब उने सभी की लोग पालकी लेकर घुमते हैं, जू स से लग जाए बस ! निका लते हैं, उनके नाम से बड़े वड़े सम्मेलन करते हैं, उन्हीं के नाम से पेसे कमाते हैं प्रोर उनके नाम पर अन्नछत्र भी चलाते हैं। लोगों के इस पाखण्डी- श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में मैं अब आपको बतलाती पन का परभूटठेपन का बडा आइचर्य होता है । जब हूँ। सद्गुरू प्रत्यक्ष जिन्दा थे तब उनके साथ बुरा व्यव- हार किया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी जय-जय क ।? यह विल्कुल सद्गुरु तत्व के विरोध में है । परिपूर्ण है केवल आपका करनेक्शन मेन्से (mains) ्रपके सत्गुरूतत्व को नमस्कार करके आपकी मनुष्य में शुरू से ही श्रीकृष्ण शक्ति स्थित है। की उकराति हुई उस समय उसकी (मनुष्य की) गर्दन ऊँतो उठ गयो। ये की बुद्धि स्वतंत्र है । परमेद्वर ने ही उन्हें कार्य में तुष्य की गर्दन में विशुद्धि चक्र के कारण तंत्रता दी है। आज न कल उसे प्रद्भुत शक्ति का हुप। इस चक् में सोलह पंखुडिया हैं। ये चक जिस ज्ञ न हो यही उस विराट परमेश्व्रर की इस्छा है । जगह आपकी गर्दन में स्थित है, उस जगह से बरापकी श्ब तक सहजयोग में बहुत लग सह ज ही पार हुए। गईन ऊची उठी है। यह कार्य विशुद्धि चक्र की कृष्ण होने से हो सका। इससे आपकी जिस समय प्रारणी से मनुष्य मनुष्य क्ति जांगृत अब सहजयोग एक ऊताई पर ग्राकर टिका है । उसे कपको 'महायोग बहना होगा। ज व तक प्रपनी उत्क्रान्ति में परिपूरण आयी ये कहा जाएगा| वु पडलिनी शक्ति का उत्थान न होकर वह ब्रह्मरन्ध उत्क्रान्ति का इतिहास देखा जाय तो सर्वप्रथम एक हआ कैसे कह पेशी अमीबा, उसके बाद मछली, कछुआ ऐसा होते सकते हैं? अब तक जितने भी योग के व णषन हैं वे होते मानत्र उत्कानि्ति की आज को स्थिति तक पहुँचा सारे योग की पूर्व तयारी हैं। परन्तु सहजयोग है । श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें में जिस समय कुण्ड लिनो शक्ति का उत्थान होता है श्रोकृष्ण शक्ति जागृत होतो है तत्र आपका सम्वन्ध उस समय ये सारे योग अपने आप घ टित होते हैं । विराट से होता है । इसमें आपको समर्टि दृष्टि कु इलि तो शक्ति हतार तक प्रातो है श्रोर जिस आती है। इसका अ्थ आर मेरी तरफ या मेरी फोटो सभय कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार में आकर बहा रत्ध की तरफ हाथ फैना कर वे ठोगे तो श्रीकृष्ण गक्ति का छेदन करती है उस समय महायोग' घटित होता जागृत होकर आप विराट से सम्न्धित होते हैं और है। इसोलिए सहजयोग जो अनादि है वह आपके आपके हाथ में ये जो श्री कृष्ण की विराट शक्ति सर्वत्र साथ ही जन्म लेता है और आपके साथ ही अनेक फेलो हुई है, उससे चतत्य जा सकता है । (हाथ में सालों से चलकर आया है, जिसे प्रा न उपकी जा सकता है ) जिस समय आपके हाथ से ये श्रीकृष्ण ' मानना शक्ति बहते लगती है तब आपमें साक्षी भाव आता चाहिए। आप सभी 'महावोग पाने की स्थिति में है। इसका मतलब आप सभी बाते किसी ताटक की आकर पहुँचे हो। प्रव आपके गूतत्व् को फलित तरह देखते हैं । अ्रसल में यह सब नाटक ही है। श्रीकृष्ण जी की उस समय की लौला या प्रभु योग का छेदन नहीं करतो तब तक परिपूर्ति हो रही है । उसे 'महायोग नि का समय आया है । बहुत पहले सद्गुरू दो- श्री ोन शिष्य रखते थे । परन्तु जत्र तक यह बात सर्व- रामचन्द्र जी ने उस समय जो कुछ किया वह सभी सामात्य मनुष्य तक, सारे जनसमुदाय तक, नहीं नाट क ही था । इतने सुन्दर ढंग से उन्होंने वह निरम्मला योग २१ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt नाटक प्रस्तुत किया कि वे सम्बूर्ंत: उसमें समरस हो गये। श्रीकृषणजी ने अनेक लोलाएं की वे स्थित है । ये शक्ति वहन की है, श्रीकृष्ण की बहन की । पूरण्णावितार थे । जब मनुष्य में पूर्णत्व राता है तब श्रीकृष्ण की जो बहन मारते समय आकाश में उड़ बह विश्व की ओर नाटक की तरह देखता है और गयी और जिसने आकाशवाणी की वही ये विष्णु- वह सम्पूर्ण साक्षित्व में उतरता है। उस समय वह माया शक्ति हैं । जिस मनुष्य की बहन बिमार होगी भ्रमित भी नहीं होता और दुःखी भी नहीं होता, न उसके विशुद्धि चक़् पर बायीं ओर बोझ महसूस सुस्त्री होता। वह आनन्द में समरस रहता है । यह होगा अगर किसी मनुष्य को नजर अपनी बहत श्रीकृष्ण शक्ति से होता है । विशुद्धि चक्र के बायें में श्री विष्णुमाया की शक्ति के प्रति या अन्य महिला प्रों के प्रति ठीक या पवित्र नहीं होगी तो यह चक्र तुरन्त खराब हो जाता है। श्रीकृष्ण शक्ति के दो अंग (शरीर के हिस्स) गजकल के समाज में बहुत लोगों का यह चक्र हैं । एक विशुद्धि चक्र के दायीं और बायीं तरफ श्रौर एक बोचोंबीच में । इसमें जो श क्त बीच में है होती है । अपने पूरातन शास्त्र के अनुसार अपनी वह विराट की तरफ ले जाती है । बायी और की पत्तो के सिवाय औ्र सारी महिलाओों को बहत की शक्ति मनुष्य के मन की कोई गलती या झुठे काम तरह देखना चाहिए। ऐ सा आप करके देखिए तुरन्त करने के बाद बनने वाली भावअओं से खराब होती है । जिस समय मनुष्य को लगता है कि मैंने तरह बर्ताव करने से आपकी कितनी ही परेशानियाँ बहुत पाप किया है और गलती की है तब उसका विशुद्धि चक्र बायीं तरफ खराव हो जाता है। मनुष्य के वायीं तरफ तकलीफ होती है आजकल के को यही पाप की अऔर गलतो की घारणा उसे, उससे सिने मा के कारण लोगों पर बहुत असर होता है । दूर भगाने के लिए, नशीली वस्तुप्रों के पास ले जाती है। इसमें अपने यहां एक चौज इस्तेमाल करते हैं । वह है सिगरेट, बीड़ी, सुरति परर तेजस्विता, भोलापन नहीं दिखायी देता । (तम्बाकू)। सिगरेट या वीड़ी पंना या तम्बाकु कितनों की आखें इधर-उधर घुमती हैं। ये औखे खाना श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है परंतु आपको आश्चर्य होगा कि जिन लोगों को ऐसो अदित पहले घमाने के कारण हमें अरानन्द तो मिलता नहीं हैं थीं उनकी ये आदतें सहजयोग में आने के बाद, पार प्रोर ग्रपने बायीं तरफ़ भूतों का प्रवेश होता है होने के बाद अपने आप छूट गयीं। खराब रहता है । क्योंकि उनकी नजर पवित्र नहीं आपको सन्तोष, शान्ति व पावित्य मिलेगा । इस खत्म होंगी। श्रपवित्रतता के बर्ताव से विशुद्धि चक्र उन सबको उन्होंने जो अपवित्र कृत्य किये हैं उसके लिए भुगतना पड़ेगा। आजकल के लोगों में पवित्रता बहुत ज्यादा लोग भी श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है । ऑँ खे प्रौर उससे बायीं विशुद्धि पर पकड़ अाती है। उससे परमेश्वर ने तम्बाकू कोटाणू नाशक के रूप में ऐसे लगता है मुझे ये बात नहीं करनी चाहिए थी । बनायी। परन्तु मनुष्य की बुद्धि अजीब होने के कारण हमार बचपन में हमारे माता-पिता कहते थे नीचे वह उसी तम्बाकू का उपयोग विपरीत तरीके से सर करके जमोन पर नजर रखकर चलिए । आपको करता है। इसी तम्बाकू के कारण श्रीकृष्ण शक्ति पता होगा कि लक्ष्मणजी ने सोताजी के पाँव को बाधा आती है और सत्गुरूतत्व भी खराब होता हो देखे हैं। उसके ऊपर उन्होंने कभी नजर नहीं है । क्योंकि खायी हुई तम्बाकू पेट में जाकर वहाँ उठायो थी। इसमें उन का कोई वुरा उद्देश्य नहीं से यकृत व्गेरा शरीर के अंगों को खराब करती है। सत्गुरुतत्व अपनी नाभि के चारों तरफ फैला हआा कर चलना। जो लोग नजर नीचे करके चलते हैं वे होने के कारण सारी की सारी परेशानिरयाँ एकदम वादशाही वृद्ति के होते हैं । जो भिखारी या गंदे किसी ापत्ति की तरह आकर गिरती हैं । था। यह एक कारयदा था कि नज र जमीन पर रख- होते हैं वे अपनी नजर हमेशा इवर-उधर घुमाते हैं । निमंला योग २२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt अपने विशुद्धि चक्र में जागृत होता है तत्र उसे सुबुद्धि आती है व सन्तुलन आता है। एक होती है ये आल घुमाने की बीमारी ऐसी चली है कि उससे अखों की बीमारियाँ फैलती हैं। लोगों की नजर कमजोर होती है । उस समय फिर हरी धास पर चलने को कहते हैं क्योंकि पृथ्वीमाता हमारी माँ है। एक बार माँ क्या है, ये जानने के बाद बहन क्या है, ये लोग समझ सकंगे । सुबुद्धि व दूसरी है दुर्ब द्धि । बुद्धि गये की तरह भी हो सकती है और मूख की तरह भी। बुद्धि से तर्क, ज्ञान चोरो भी कर सकता है। वह कहेगा मैं क्यों न चोरी करू ? मेरे पास फलानी ची ज नहीं है उस के पास है तो मैं चोरी क रू गा । इसका कारण तर्कबुद्धि है । अव देखिए तर्कबुद्धि के कारण मनुष्य हर-एक चौज की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है । परन्तु सुबुद्धि से वैसा नहीं होता । सुबुद्धि यही बात हमारे अनेक सत्गुरूआ्रों ने कही है । श्री से हमारी व दूसरे को चीज उसी की है ये दिमाग में येशरिव्रस्त ने कहा है आपको नजर उपभि चारों नही झाएगा । मे री चीज़ञ में जो आनन्द है वह दूसरों होती चाहिए। खास करके हमारे इस मध्यम वर्गीय की चीज में नहीं है। सचम् व कोई भी चीज़ किसी लोगों को ये बातें समझ लेनी चाहिए, क्योंकि जिन की नहीं। हमसब सब का सब यहीं छोड़ जाते हैं । के पास वहुत पसा है उनके दिमाग में ये बात नही यह तो सब जमा-खर्च है कि यह मेरा वह मेरा आएंगी। कारण वे अपने पैसों को मस्तो में चुर होग, एक बहुत ही सर्वसाधारण बात है जब संब कुछ उन्हें पाप-पुण्य की बातों को सोचने के लिए समय यहीं छोड़ जाना है तो उसके पीछे इतनी भाग-दौड़ और उससे य मनुष्य कहने का उद्देश्य यह है कि हमें अपनी नजर नीचे रखकर चलना बहुत जरूरो है श्रीर किसा का भी प्रोर अपवित्र नजरों से नहीं देखना चाहिए। नहीं है। मनुष्य को पाप -पुण्य का विचार त्रिशुद्धि काहे की ? चक्र से आता है । अगर पाप-पुण्य का विचार नहीं होगा तो भापकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी । अब दायीं ओर की विशुद्धि के बारे में देखते हैं। विश्व में पाप व पूर्य दोनों हैं । जब आप सहजयोग यह थ्रीकृष्ण गर राधा की शक्ति से बना है इस में आकर पार होते हो तब आपकी श्रीकृण शक्ति शक्ति के विरोध में जब मनुष्य जाता है तब वह जागृत होकर आप प्रतिष्ठित होते हैं। आप पहले से कहता है मैं बहुत बड़ा आदमी है, मैं राजा हैं, मैं ही प्रतिष्ठित हैं, पर पार होने से पहले प्रापको उसकी बहुत बड़ा लोडर हैं और मैं हो सब कुछ हैं। ऐसी जानकारी नहीं थी कि परमेश्वर ने कितने परिश्रम बुत्ति से उस मनुष्य में कसरूपो अहंकार बढ़ता है। से आप में एक एक चक्र बनाया है। आप ये पूरी आपकरो मालूम है कंस ने अपनी सगी बहुन को व शास्त्र जान लीजिए बहन के बच्चों को किस तरह मारा। उसे लगता था लीजिए और अपनी स्थिति जानिए । आप सारे किसी भी प्रकार से मुझे सभी लोगों पर प्रपना विश्व के फूल हैं । उसे दुनिया की और नहीं दिखाई देती । उसे दायीं तरफ की परमात्मा के अंशु हैं । परमेश्वर मापको सन्मान दे विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। परन्तु सर्वप्रथम रहा है और प्रापके सामने नतमस्तक होकर आपकी आाप में सर्दी के कारण दायीं तरफ की विशुद्धि पर और अपनी महता समझ और अ्रव फल में रूपांतरित होने अधिकार जमाना चाहिए का समय अ्रया है, अप यह समझ लोजिए। आप कोई चीज आती है । विनती कर रहा है। आप ये सारा ज्ञাन पा लीजिए । अपने 'स्व' का अर्थ पहचानिए । अपने स्व' को जानने से ही मनुष्य अपनी मनुष्य में दुबुद्धि है तब तक उसकी जागृति नहीं होती। पकड़े छतमिं अब विशुद्धि चक्र के बीचोंवीच जो शक्ति है वह विराट की शक्ति है । इस शक्ति से सुबुद्धि पाता हैं । जब तक परमेश्वर मनुष्य सुबुद्धि विशुद्धि चक्र से जागृत होती है । जब मनुष्य की खोज में रहता है । अगर मैं विराट का एक निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt हिस्सा है तो परमेश्वर को खोजने का मतलब क्या ? भी खराब होता है । विशुद्धि चक्र खराब होने से इस इसी का मतलब जब तक आपमें सामूहिक चेतना चक्र में से मेंद् के दोनों तरफ संवेदना ले जाने वाली नाड़ियाँ खराब होती हैं। ऐसे मनुध्य की संवेदन क्षमता कम होती है । परन्तु जैसे-जैसे विशुद्धि चक्र सामूहिकता नहीं आएगी। परन्तु ये सामूहिक चेतना जागृत होता है वैसे बैसे संवेदनक्षमता में वृद्धि होती में प्रपने आपघटित होता है जब तक प्राप सहजयोग है । विशुद्धि चक्र जागू त करने के लिए कुछ मंत्र हैं । में आकर आपकी कुण्ड लिनी जागृत नहीं होती तब आपको आश्वर्य होगा, विशुद्धि चक्र जागृत करने के तक प्पकी सामूहिक चेतना जागृत नहीं होगी । एक लिए अ्पनी अनामिका उँगली दोनों कान में डाल- बार आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर आप कर गर्दन पीछे करके औ्र नजर अकाश की ओर पार हो जाओगे तो आप औरों की भावनाएं, संवेदन रखकर जोर से व श्रादर से "अल्जा- हो अकबर ये सब अपने आप में जान सकते हैं । ये श्रापकी मंत्र (१६ वार) कहने से विशुद्धि चक्र साफ होता सामूहिक चेतना जागृत होने से हो सकता है । [आप]है तब आपको जानना होगा कि 'अकबर' माने अपनी तरफ अन्तर्मख होकर देख सकते हैं व आपकी विराट पुरुष परमेश्वर है । श्री गुरूनानक साहब ने दृष्टि Absolute (परम) की तरफ मुड़ती है। भी विराट परमेश्वर के बारे में अर्थात् श्रीकृष्ण के और बातों की तरफ हम पूरणता की तुलना से देखते बारे में बहुत सी बातें लोगों को बतायीं । परन्तु ऐसे हैं। अपनी अतिरिक स्थिति क्या है ये जान सकते कितने लोग हैं जिन्होंने कही हुई बातों का अ्व- हैं । अब अ्रासानी से बताएं तो आपके हाथ की पांच लंबन किया ? उन्होंने कहा था, दोनों हाथ नमाज उंगलियां, उस पर आप अपने शरीर के पांच चक्रों पढ़ते हैं उस तरह हाथ फेलाकर परमेश्वर से प्रार्थना की हालत जान सकते हैं। वैसे ही और दो चक्रों की करनी चाहिए। इस तरह से हाथ फैलाकर प्रार्थना हालत भी अपने हाथ के तलूवे से जान सकते हैं । करने से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है बाये हाथ पर बांयी इड़ा नाड़ी के चक्रों का, तो परन्तु ये बात बहुत से लोगों को मालुम नहीं है । दाहिने हाथ पर दाहिनी पिंगला नाड़ी के चक्रों की गुरू नानक साक्षात दत्तात्रेय के अवतार थे । औ्र हालत आप जान सकते हैं। इस तरह की जानकारी कुण्डलिनी जागरण के लिए जितना काम उन्होंने के वल कुण्डलिनी जागृत होने के बाद पार होने पर किया है उतना किसी ने भी नहीं किया। शैतान को ही होती है। जब मनुष्य पार होता है तब उसके कैसे खत्म करना है इसके बारे में उन्होंने बहुत छोटी मज्जारज्जू के सात चक्र जागृत होते हैं । उसकी छोटो व महत्वपूर्ण बातें बतायो हैं जिनका इस्तेमाल जानकारी दोनों हाथों पर होती है । इसी तरह उस सहजयोग में हम बहुत तरह से करते हैं। श्री आदि सूक्ष्म बात लिख रखी बातो को आप कार्यदे से अपने जीवन ऊपर दी गयी बातें आपके विशुद्धि चक्र से में अपनाएंगे तो सहजयोग में पूरा्णतः पिघल जाओगे। सम्बन्धित हैं हमारे यहाँ सहजयोग में बहुत से लोग अपने देश में साधु-सन्तों ने अवतार लेकर ऐसे ज्ञान आते हैं और पार होते हैं। परन्तु इनमें कितनों को को खोलकर समाज में जागृति करके आप पर चेतन्य लहरियों की संवेदना नहीं होती । इसका अनेक उपकार किये हैं । वशेष करके अपने महाराष्ट्र कारण उनके विशुद्धि चक्र पर को समस्या । इससे में साधु-संतों ने प्रवतार लेकर इस भूमि को पावन पहले विशुद्धि चक्र सिगरेट और बीड़ी पीने से खराब किया है। इन संतों की इतनी तपश्चर्या है कि इनके होता है, ये कहा है। शहरों में अपवित्रता ज्यादा केवल इशारों पर लोग पार होते हैं। मैं जब सहज- होने के कारण ये चक्र सिगरेट या बो ड़ी न पीते हुए योग के प्रचार कार्य के लिए गँवों में जाती है तब नहीं आती तब तक आपको इसका जवाब नहीं मिलेगा । के वल लोगों को भाई बहन मानकर 1 ाई स्थिति में उसे सामूहिक चेतना प्राप्त होती है । बहुत सो হकराचार्यजी ने तो का हैं । इन सुक्ष्म निर्मला योग २४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt श्रीकृ्ण शक्ति के बारे में लिखने के लिए बहुत सारी बाते हैं। परस्तु बहुत ही थोड़े शब्दों में यहां हजारों लोग परते हैं। परन्तु शहरी लोगों को आने को फुर्सत नहीं होती क्योंकि गाँव के लोगों को सत्य की पहचान है । और ऐसे ही लोग सहजयोग में पर रखो गयी हैं। आप] सहजयोग में प्राकर पार प्रस्थापित होंगे । यहाँ ऐसों-गंरों का काम नहीं है । होने के बाद कृण्डलिनी का मतलब क्या है ये जान जिन लोगों को प्रपने स्वयं के लिए आदर नहीं, श्रद्धा सकते हैं। उसका स्पंदन आप अपनी नजर से देख नहीं, अगरसत्य की आसक्ति नही, उनके लिए सहज- योग नहीं है। सहजयोग प्राप्ति के लिए वहुत बड़े आप इस ज्ञान के बारे में अनभिज्ञ (अन्जान) होते पंडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है सह जयोग है। परन्तु श्राप पार होने के बाद इस ज्ञान का सर्वसाधारण मध्यमागियों के लिए है उसके प्रकाश आप में आता है। सरबवध्यापी परमेश्वर के लिए शिक्षा की आवश्यकता है ऐसा भी नहीं, परन्तु साथ चतन्य लहरियों से आप बात कर सकते हैं सकते हैं। जब तक आप 'पार नहीं होते तब तक क्योंकि ये परमेश्वरी शक्ति सारे चराचर में भरी है । के पक्के लोग होते चाहिए या राजे-शाही पक्के हृदय स्वभाव के लोग चाहिए। ऐसे लोग सहजयोग में प्रस्थापित होते हैं। प्ाप सबको अनन्त आशीर्वाद ! सभी सहजयोगियों से विनम्र निवेदन है कि समय से अपना वाषिक चन्दे का नवीनीकरण स्वयं करा लें । यदि किसी कारण पतिका आपके पास न पहंचे तो भी हमें सूचित करें । सम्पादक 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 3699 9/81 प जय श्री माताजी प ॥ चक्रों की शुद्धि के लिये प्रार्थना ॥ १. मूलाषार चक्र- है मा! को, हमको युक्ति । करें सबसे, बना देना हमें फ्रिय व्यक्ति ॥ है मा ! मृदुव वन, मधुमुस्कान हम सब वालक तेरे, श्री गेश का द ज्ञान हमें। देना निर्दोषता हम सबको, 'सुबुद्धि' का दं वरदान हमें हे माँ ! देना मधुर व्यवहार %3D २. स्वाधिष्ठान चक्र- 'निमंला विद्या' देना हमको, पवित्र विद्या का हम बशण कर। दें शांति हमारे अंतर में, सामूहिकता, प्ागे हौ बढ़ती जाती है। फलों की, नম्रता से झक जाती है॥ हे म! से मधुरता लदी डालियाँ परिपक्व विचारों, शंकायों को हरण करें । हे माँ ! भाषिपत्यता, अ्राक्रामकता दूर कर, सामूहिक - वेतना में इमको एक करें। गगन गंजे जय जय की ध्वनि से, विराट" का हम धभिपेक करें ।। हे म!] ३. मरिणपुर चक्र- प्रलोधनों, कुद्च्छायों को दूर करें । पवित्र हमारे चित्त करें । क हम, %3D गुरु स्वयं गुर्ता से हमको मथिकृत करें । हे मा ! बने ६. श्रज्ञा चक्र- ४. अनाहत चकर- हैं आए ही आार्मा, परमात्मा, स्वय को हम, सुबके प्रति क्षमाशील बने । क्ष मा कर धत्मा हमें बनायें हे मा ! "प्रभु के साम्राज्य" में प्रवेश मिले, "चंतन्य-चेतना' मे गतिदील बने ।। हे माँ! म आत्मा है" इस मंत्र का, %3D मदी दर्शन हमें करायें हे मां ! ॥ हे मा ! ७. सहलार चक्र- ते रे चरणों पर समर्पित शोश हमारे, हर पल रखना है माँ ! हमको, अपने हौ प्रिय बंधन में । क्षमा हमारे सब अपकार करें । प्रात्मा की गहराइयों में हमें उतारें, स्थापित पात्म साक्षात्कार करें।। हे मां ! पिता हमारे, ही हैं धप रखना सदा संरक्षण में ।। हे मां ! 11 ५. विशुद्धि चक्र- करें दूर सब भ्रम हमारे, सब दोषों को हरण कर। ँ ! मेरी क्षुद्रताओों का क्षरण करें । हे माँ! जय श्री माता जी मैं निर्दोष है" हे मां Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002. One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Re. 30.00 Foreign [By AirmailL75 14)