ॐ निर्मला योग मार्व-प्रप्रेल १६८५ द्विमासिक वर्ष ३ शक [१ म एल ॐ त्वमव माकषात्, श्री कल्की साक्षात, श्री सहत्रार स्वामिनी. मोक्ष प्रदायिनी, माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। प पी ी निर्भल * वाणी भयंकर से भयंकर बीमारियाँ सहजयोग से ठीक होती हैं। परन्तु बीमारी ठीक होने के बाद लोग सहजयोग को सहजता से लेते हैं । ऐसे लोगों को बीमारी ठीक होने के लिए सहजयोग श्रर माताजी चाहिए ! ऐसे लोगों को सहजय, ग क्यों ठीक करे ? जो परमात्मा का दीप नहीं बनना चाहते, परमात्मा का संयंत्र नहीं बनना चाहते, ऐसे लोगों को परमात्मा ने ठीक भी किया तो उनसे इस दुनिया को प्रकाश नहीं मिलेगा । १. जिस मनुष्य में सहजयोग का कार्य करने की इच्छा है, जिस मनुष्य ऐसे ही लोगों की परमात्मा मदद करेंगे और ऐसे ही दीप जलाएंगे जिनसे इस पूरे विश्व में प्रकाश फैलेगा । में दीप वनने का सामर्थ्य है, श्री कल्की चक्र ठीक रखने के लिए सवंप्रथम मनुण्य में परमात्मा के प्रति अत्यंत आदर, प्रेम व २. प्रदरयुक्त भय (awe) होना जरूरी है । अपने में निर्विचारिता कसे आएगी श्रर वह ज्यादा से ज्यादा समय कंसे टिककर रहेगी इसका ३. सहजयोगियों को ध्यान रखना है। पूजा के समय अगर अाप निर्विचार होंगे तो मानना कि हृदय ने साथ दिया। पूजा सामग्री एकत्रित करके सरल-सीधे मन से अपण कीजिए। उस समर्पण में दिखावा नहीं चाहिए । कोई भी Gonditions (बंधन) अपना चित्त जब हृदय पर होगा तब वह दूसरों को नहीं सोचेगा । नहीं चाहिए । पानी से हाथ धोते हो, हृदय तो नहीं घोए ? आपने बाहर से मौन घरा है लेकिन अंदेर से आप सोच विचार कर रहे हैं । इसलिए बहुत देर तक गूगे की तरह नहीं बैठना चाहिए। मनुष्य का हृदय जब साफ नहीं होगा तो ऐसे गंगेपन से बहुत नुकसान होता है । उसके विपरीत बहुत ज्यादा इधर-उधर की ऊटपटांग बात भी बहुत नुकसानकारक हैं । ५. द्वितीय कवर निर्मला योग हेी |ु सम्पादकीय अनुशासन का अपना महत्व है। आध्यात्मिक क्षेत्र में भी इसे नकारा हर क्षत्र में नहीं जा सकता है। अनुशासन सहजयोग का भी एक अंग है । अरंतर] इतना अवश्य है कि सहजयोग में अनुशातन स्वयं का अन्दर से होना चाहिए, बाह्य से थोपा हुआ नहीं। क श्री माताजी ने भी अनुशासन पर काफी बल दिया है हम सभी सहजयोगी अनुशासन-बद्ध होकर ही प्रगति के पथ पर अग्रसर सकते हैं । हो श्री माताजी की आजा का अनुसरण] करना ही हमारा अनुशासन होगा। निमला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माताजी थी निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकराी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ : लोरी हायनेक ३१५१, होदर स्ट्रीट वेन्क्रवर, बौ. सी. बी ५ जेड ३ के २ यू .एस.ए. यू के. श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेंशन स्विस लि., १३४ ग्रंट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्ल. १ एन. ५ पी. एच. श्री एम. बी. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ भारत इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. त्योहार ५. कुण्डलिनी प्रौर श्री गणेश पूजा (परमपूज्य माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी प्नुवाद) ६. निर्मल वाणी १ २ ेक्री ३ १३ १४ द्वितीय कवर ।। जय श्री माता जो ।। वमशाला ३१-३-८५ घमशाला के मातृभक्तों को मेरा कार्य पसन्द नहीं पराता तो वो ्राँख मुंद लेते हैं और सारा नजारा भी खत्म हो जाता है। परवाह तो माँ को करनी पड़ती है कि मेरे बच्चे ठीक से रहें। सं सार एक बड़ा सून्दर आलीशान ऐसा विशेष प्रणाम् ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन विया जिसके लिए मैं उनकी बहुत धन्यवाद मानती है । ल में इतना सत्कार अर अनद मम रूप का आद्श हो कि जिसे देखकर परमात्मा संतुष्ट हो जाएं, ये लेकिन प्राप जानते हैं कि हर बार ऐसे प्रयत्न हुए । पूरा प्रयत्न होता रहता है । दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रम की भावना अने क अरवतार इस संसार में आए और अनेक उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है । कलियुग में कहा जाता है कि काई भी माँ को नहीं मानता । ये कलियुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं । लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । प्रयत्न हुए । ले किन मनुष्य की अक्ल उलटी बैठ जाती है। कोई बात उसे बताओ "नहीं करो", तो वो जरूर वही काम करता है । त अभी आपसे योगी जी ने कहा कि अपआप शराब मत पीना, अगर प मां के भक्त हो । ले किन ऐसा माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने कहने से और ज्यादा ही पीना शुरू कर देंगे । मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को देखा है कि वच्चों से कोई चीज़ मना करो तो वे समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल-घोल कर इस इबल (दोगूना)करते हैं, कि क्यों मना किया इसीलिए तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हम करंगे, अरहुंकार की वजह से । इसका बेहतर हर चीज करने को तयार हो जाता है । ये प्यार तरीका मैंने सोचा कि इनके प्रन्दर ज्योत जला दो- की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ जयोत जल जाएगी तो उस ज्योत के प्रकाश में खुद का होना. उनकी हरियाली उसके वाद एक पेड़ में ही देखेंगे कि हमारे अन्दर क्या दोष हैं ? अगर चाहे वो टिमटिमाती क्यों न हो । योड़़ी-सी ही से फुल हो जाना और फूल में से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कोन कहे कि भई तुम तो रस्सी की जगह साँप पकड़े हो करता है ? ये सब करने वाली जो शक्ति हैं वी परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम ग्रादि- शक्ति कहते हैं। समझ लीजिए आप हाथ में सांप पकड़े हैं श्और कोई सब करने वाली जो शक्ति है वो छोड़ दो। तो कहेंगे कि, "नहीं, मैं तो इसको पकड ही रहूँगा ।" बो मनुष्य की बुद्धि हुई ना ! लेकिन उस वक्त प्गर कोई उसके सामने ज्योत दिखा दे तो देखे कि सांप है तो उसको अपने आप ही छोड़ दे। परमात्मा तो सिर्फ नजारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य करसे हो रहा है ? जब उनको वो निर्मला योग ३ इसलिए आज का हमारा जो सहज योग है, चलो इसके अन्दर एक दीप क्यों न जला दें । इसके उस में प्रपकी पहले कण्ड लिनी हम जगा देते हैं, अन्दर प्रगर दीप जल गया तो उस दीप में ये स्वयं चाहे आप कैसे भी हों, कुछ भी आपके त रीके हों, ही देख लेगा कि, "जो मैं ये कार्य करता रहा है ये में रे लिए इतना हानिकारक है ।" और वो समर्थ हों। उसके जगने के बाद फिर अप प्रपने ही आ्प हो जाय कि इस हा निकारक चौज को वो छोड़ दे, तो फिर कोई सवाल ही नहीं उठता। उसको कृछ कहने की जरूरत नहीं, उससे कोई झगड़ा मोल लेने की जरूरत नहीं। कहते ही साथ वो चीज़ अपने ही आप छुट जाती है । ऐसे ही चीज होता चाहिए । कोई भी ग्राप गलत रास्ते पर हों, कुछ भी करते ठीक हो जाते हैं । कुछ कहने की माँ को जरूरत नहीं पड़ती । क्योंकि आप खुद ही देखते हैं कि ये केसी चीज़ है ? अब शुराव ही की बात देखिए कि विलायत में तो अ्राप जानते हैं कि लोग हर रो ज सुबह-साम शराब पीते रहते हैं । बहुत ही शरा बी लोग हैं। हम आत्म-विधि नहीं हुप्रा, हमने अ्रगर ग्रपने आात्मा] और उनका जीवन भी बड़ा ही अधर्मी है । हम आज हम उस कगार पर पहच चुके है कि अगर है । ये बात विल्कुल सही है, क्योंकि कलियुग अब लोग उनसे बहुत ऊँचे किस्म के लोग हैं। हमारे अन्दर मा-बहन है। हम बहुत धर्म समझते हैं । रा चरम समा में पहुँच गया है। कुछ तो बीमारी হাराब ओप अब पीने लग गये थोड़ी-बहुत, वो दूसरी से होगा। वहुत से लोग ऐसी-ऐसी बीमारियों में बात है, बाकी हम लोगों में बहुत धम्म है । उन लोगों को, जब उनको जागृति हो जाती है, तो वि्वसक चौजों से हो सकता है। न जाने कितनी वो दूसरे ही दिन सब छोड़-छाड के खड़े हो जाते चाज हमने अ्रपते को नष्ट करने की जोड ली है हैं। कुछ मैं उनसे कहती नहीं । मैंने शुरू से ही ऐसा रवेया ही नहीं रखा कि कहो कि शराव मत पियो, जुआ मत खेलो, नहीं तो प्राधे लोग वसे ही उठ के विल्कुल भी सुखी नहीं हैं, आपसे बहुत दुखी जीव चले जाए वहाँ-प्राचे से ज्यादा ही। यहाँ तो कम से कम ये हाल नहीं होगा। इसलिए में कहती है, न कोई समाज है, न कोई माँ है, न कोई भाई है, कुछ नही, जेसे भी हो बैठे रहो। तुम्हें जागृति मुझे बस देने दो। जागृति देने से उनका अरहकार भी टूटता है और उनके अन्दर जो आदते बैठी हुई हैं. वो भी टूट जाती हैं। अपने आप वो आदते छुट जाने से वो समर्थ हो जाते हैं। फंस जाएंगे कि उससे बच नहीं पाएंगे। बहुत हम लोग सोचते हैं परदेस में लोगों के पास पैसा है, तो वो बड़े सुखी जीव होगे बहुत ज्यादा । हैं। आपसे बहुत ज्यादा दुखी है। क्योंकि उनके यहाँ न कोई वहन है। आप सोविए कि आपके पास वहुत सारा धन दे द और आपसे कहें कि अरप] अरकेले कहीं लट के रहिए, तो याप क्या सुखी रहेंगे ? জ- ऐसी उनकी हालत है । इतना पसा होने पर भी वो सब लोग कोशिश ये करते हैं कि हम अ्रत्महत्या केसे करे? आपको आश्चर्य होगा। उनके बच्चे ये से लोग मन से तो सोचते हैं कि ही सोचते रहते हैं कि हम कैसे आत्महत्या करें ? असल में बहुत खराब काम है, लेकिन उसे छोड़ नहीं पाते। उसकी बजह ये हैं कि कोई आदत पड़ गयो, तो एक माँ की दुृष्टि ये है कि जब बच्चे को आदत पड़ गयी तो सव हो जाएगा, सो बात नहीं। लेकिन पेसा भी उसको किस तरह से छुड़ानी चाहिए। उसको होना चाहिए । उसके लिए भी कुण्डलिनी का जाग डांटने से, फटकारने से, मना करने से तो छुटेगो रण ठीक है, क्योंकि प्रपने अन्दर देवी, जो लक्ष्मी नहीं। तो किस तरह से ? एक माँ सोचती है कि जी हैं, वो भी बसती हैं । जब हमारी कुण्डलिनी तो ये बात हम जो समझते हैं कि पैसा होने से निर्मला योग कुण्डलिनी शक्ति जो हमारे शन्दर है, ये हमारी शुद्ध इच्छा है । बाकी जितनी हुमारे अन्दर इच्छाएं हैं. जैसे कोई प्राएगी कहेगी, "माँ, मेरा बेटा नहीं चलो भई तुम्हारे बेटा हो जाएगा। बेटा हो गया। उसके बाद कहे गी कि, "मां, बेटा तो हो गया, अब मुझे नाती चाहिए।" वो भी हो गया। अ्रब मुझे घर चाहिए", घर के बाद "वो चाहिए", उसके बाद "वो चाहिए ।" इसका कोई अन्त ही नहीं है। इसका मतलब, हमारे अन्दर जो इच्छाएं हैं, वो इच्छाएं शुद्ध नहीं हैं । नाभि पर आ जाती है, जब हमारी लक्ष्मी की कूण्डलिनी खुल जाती है, तो हमारे अन्दर वो जागृति आ जाती है, जिससे लक्ष्मी जी का स्वरूप हमारे अन्दर प्रकट हो जाता है । । " अब जिन्होंने सोव के लक्ष्मी जी बनायीं वो भी बहुत सोच-समझ के बनायी हैं कि लक्ष्मी जी जो होती हैं, जो लक्ष्मीपति होता है, वो एक माँ स्वरूप होना चाहिए। आजकल तो जिसके पास पेसा आ जाता है वो तो राक्षस स्वूप हो जाता है। इमका मतलब पना पाना लक्ष्मीपति होना नहीं है । दूसरे उतके एक हाथ में दान है, एक हाथ में आश्रय है, एक हाथ से बो देती हैं और दूसरे हाथ से लोगों को आ य देता चाहिए दूसरे जो दो हाथ है, उसके मात्मा से एकाकार होने की एक, किसी तरह से, ये अन्दर कमल के गुलाबी फूल सहन, उनकी शक्ल-सूरत ऐसी होी चाहिए जैसे जाए कि हम ये परमात्मा की जो चारों तरफ फैली कि कमल का पूष्प हो। और उनके अन्दर वे ी ही हुई शक्ति है, जिससे सारा जीवन्त कार्य होता है, विचारधारा होती चाहिए, वेसा ही स्वागत होना चाहिए जैसा कि एक कमल काटों बवाल भीर की इस्छा है पर ये शुद्ध इच्छा की शक्ति ही कुण्डलिनी अपने यहाँ सोने की व्यवस्था करता है। कोई भी मेहमान उसके घर में आए, उसमें कित ने ही कांटे हों तो भी उसकी आवभगत करे उसको आराम दे, वहो लक्ष्मीपति है दो विचारी इतनी सीधी-सरल है कि एक कमल ही पर खड़ी है। उसको कोई और परमात्मी की छाया और जो हमारी कुण्डलिनी चीज़ की जरूरत नहीं। सारे तरफ कीचड़ फैला है उसी में एक कमल के ऊपर खडी हुई लक्ष्मी जो. को प्रतिबिम्ब है। उसकी जो इच्छा. जो ग्राटि- जिनको हम इतना मानते हैं, ऐसी देवी हमारे अन्दर जागृत हो जाती है, और उसके ये सारे लक्षण हमारे अन्दर दिखायी देते हैं । शुद्ध इड्छा 'एकमात्र है वो ये है कि हमें पर- है। माने उनका रहत- एक यूक्ति जुट जाए। किसी तरह से ये काम बन उससे हम एकाकार हो जाए यही हमारी शुद्ध है, श्रर जो ग्रादिशक्ति जो कि परमात्मा की इच्छा है उसी की ये प्रतिविम्ब है वही हमारे अन्दर छाया हुआ है। हसारे हृदय में जी अरात्मा है, वो हैं. त्रिकोणाकार प्रस्थि में है, व परमात्मा की इच्छा शक्ति है, उसकी छाया है, प्रतीक छः या है। ह इसको अगर आ्राप समझ ल तो फिर आपकी समझ में आ जाएगा कि हम धर्म के नाम में भी कितने भटकाव में घूम रहे हैं। वही आदिशाक्ति जो है, वही हमारी मां है । हम सबकी अलग-प्रलग माँ है । हमारे अन्दर बसो हुई है। ध्रोकृष्ण ने साफ-साफ कहा था कि, "जब योग क्षम करू गा। पहले योग को साधो।" लोग बड़ा-वड़ा लेकनर (भाषण) देगे को ही वो प्रदान देती है जो कि कोई भी माँ नहीं जिससे किसी के समझ में भी नहीं अएगा, सब द सकती। वयोक ये आदिशक्ति जो है पावन मति दे परमात्मा की शक्ति है, जो हमारे अन्दर वो सोचंगे पता नहीं क्या बक रहे हैं? ले किन सही बात गुरग ये हैं कि पहले योग को प्राप्त करें । जिसने योग को देती है जो परमात्मा को प्रसन्न रखे और हमारे अन्दर वो सामर्थ्य दे देती है, व। शक्ति दे देती है जो प्राप्त कर लिया वो सभावान में आ जाता है, उसके सारे प्रश्न अपने आप मिट जाते हैं। परमात्मा के सामर्थ्यं लगते हैं। निर्मला योग ५ जैसे कि अब कोई कहता है कि, "माँ मुझे ये समझते । वताइये कि एक फूल से फल बनता है तो प्रश्न है ।" अच्छा, हमने कहा तुम घर जाओ, ठीक हुम क्या बना सकते हैं ? नहीं बना सकते । और हो जाएगा। घर जाते ही देखता है कि प्रश्न तो ऐसे हज़ारों करोड़ों हम बनते देख ते हैं, हमको कोई ठीक हो गया। माँ ने क्या चमत्कार कर दिया। भी चमत्कार नही लगता । एक पहाड़ी का बच्चा कुछ चमत्कार मैंने किया नहीं। कोई बात मैंने की पहाड़ी होता है । एक देसी का वच्चा देसी होता नहीं। क्या हुआ ? कि आपकी कुण्डलिनी मैंने है । शक्ल-सूरत वैसी बनी रहती है, कौन बनाता है ? ये सोचिये इसका चयन कौन करता है ? ये किस तरह से बारीक से बारीक चीजें हजारों जागरण कर दो। कुण्डलिनी जो है वो किसी भी कारण प्और करोड़ों ऐसी चीजे संसार में होती हैं । वो जो शक्ति परिणाम से परे चीज है । कोई है, किसी से पूछा ये कार्य करती है, जब वो हमारे अन्दर बहने लग भई तुमको क्या परेशानी है? हमारे पास पैसा नहीं जाए तो फिर व्या हम समर्थ हो ही जाएगे, हम इसलिए हम परेशान हैं । यही न ? कारण ये है कि शक्तिवान हो जाएगे, शक्तिशाली हो जाएंगे । पैसा नहीं है । और इसलिए आप परेशान है । लेकिन समझ ल आप कारण से परे ही चले जाएं, तो कारण भी खत्म हो गया और उसका परिणाम कि आज रामनवमी का शुभ अवसर है। इस शुभ भी खत्म हो गया। यही शारीरिक आधि-व्याधि रहती है । जब हमारे अन्दर ऐसी ही विशेष बात होगी, जहृी पर कि मुझे यहां शारीरिक अधि-व्याघि रहती है. तो हम सोचते हैं आज ही आना था । यहां सात देवियों का स्थान कि 'इसलिए हमें जुकाम हो गया क्योंकि हम सर्दी है। सात देवियां अने क बार प्राई । उन्होंने आकर में गये थे । अच्छा ! लेकिन ऐसी भी कोई दशा के युद्ध किये यहां । बहुत राक्षसों को मारा। बहुत होगी कि जहां जुकाम ही नहीं होता । "हमें इसलिए दुष्टों को मारा। केसर हो गया क्योंकि हमने ये गलत काम किया । या "हमें इसलिए ये बीमारी हो गई कथोकि हमने ये बदपरहेजी करी ।" लेकिन कोई ऐसा भी स्थान होगा जहां ये चीज होती ही नहीं। जहां प गलती ही नहीं कर सकते, या जहा ये केोरण ही नहीं व लोग काली विद्या करते हैं। [आप उस परेशानी वसते । इसको मेडिकल साइंस (चिकित्सा-शास्त्र # parasympathetic nervous system ( नाड़ी जाल) कहते हैं । लेकिन डॉक्टर लोग इसको समझने के लिए पहले सहजयोग को समझ लें, डाक्टर लोगों के पास जाइये, तो कहेंगे कि आपको तब उसको समझ पाएंगे। इन पहाड़ों में देवी का स्थान है । आप जानते हैं चीज़़ होतो है जब हमें अवसर पर ही आप से मिलना था। कोई तो भी आज भी मैं देखती है कि यहां बहुत से लोग तांत्रिक वनके और गुरू बनके शर झुठ मूठ करके घुम रहे हैं । उसके पीछे में श्रप लोग लग जाते हैं । ि) में फंस जाते हैं। झूठ-मूठ के लोगों के पीछे में लग करके आपने अपना काफी नाश कर लिया । आप कोई बीमारी ही नहीं है। लगता ही नहीं कि आपको कोई बोमारो है । चले जा रहे हैं । घर में रोज कलह हो रहा है, ले किन कमजोर आप हुए लेकिन प्रप लोग इसको बहुत आसानी से झगड़ा हो रहा है । कूछ समझ नहीं आता है, वच्चों समझ सकते हैं । जिसे लोग चमत्कार कहते हैं कोई का मन पढ़ने में नहीं लगता है, चंचलता आ गई | चमत्कार नहीं है । इसमें कोई चमत्कार नहीं है । सारी परेशानी कहां से आई ? सब इन तांत्रिकों के हम तो रोज के चमत्कार को चमत्कार नहीं । पीछे लगने से । इन भूठे गुरूओं के पीछे लगने से निमला योग आपको पता होना चाहिए कि परमात्मा को आज के राक्षसों का मर्दन यही है कि सारे तांत्रिकों पसा-वंसा कुछ समझ में नहीं आता है । प ये र सारे गुरुओं के पीछे मैं हाथ घोकर लगी हूं । जमीन है. इस जमीन को अप कहें कि मैं तेरे को दो पैसा देती है तो मेरा इतना काम कर दे । उसको समझ में आएगा। आप उसमें एक बाज डाल दोजिए, अ्रपने अरप उसमें बृक्ष आ जाएगा आ जाएगा । उसके लिए कोई आपको बो जमोन के लिए कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ेंगी। सिर्फ ये है गुरुआ के रूप में घूम रहे हैं श्रर उनके पीछे की उसकी अपनी शक्ति है । उस शक्त में जब बीज हुजारो पागल हैं । पड़ गया, तो प्रपने आप पुनप गया। लेकिन अरप में सोचते हैं कि हम ये करें, वी करें, इसे करने से, उसे करने से भगवान खुश हो जाएंगे। ये बिल्कुल जाने दीजिए। लेकिन जो अच्छे भले लोग हैं, जो बात नहीं। १६७० साल में मैंने खुले आम बम्बई में इन सव राक्षसों के नाम बताए थे कि सबने जन्म लिया हुआ है । इनसे बचकर रहें। एक-एक राक्षस चण्ड मुण्ड, सबने जन्म ले रखा हुमा है। और सारे प्रकुर । जाने दीजिए, इन बेवकूफ लोगों को उनके पीछे सादे-सरल हृदय के लोग हैं, वो भी ऐसे चक्करों में फंस जाते हैं । और उनके घरों में कलह, उनके सिर्फ प्रापका परमात्मा में पूर्ण विश्वास और शरीर में क्लेश, आदि कितनो तकलीफे होती हैं। भक्ति होनी चाहिए। और ये जानना चाहिए कि इसलिए इस चक्कर में विल्कुल नही पड़ना चाहिए । परमात्मा हैं। चाहे आप माने या न माने, परमात्मा कोई तात्रिक आए, आपके यहां हाथ में डोरा बाँधे ये चीज है जो इतने 'हजारों तरह के कार्य संसार आप उसको कहना, "माफ करिए, मुझे डोरा नहीं में करते हैं। वो परमात्मा जरूर हैं । लेकिन उनको वांधने का ।" बहुत से लोग काशो से गंडा ले आते अभी तक अपने जाना नहीं। मां को देंखे वगेर ही, हैं एक कोड़ी का कहीं से उठालाए, श्रर कहे जाने वगेर ही इतनी आपके अन्दर भक्ति है, तो काशो का गंडा है, बांधों इसे । काशी का गंडा आप क्या प्रापको मां मिलेगी नहीं ? ऐसे कसे हो सकता बाँधे रहे हैं। उसका प्रापने दो रुपया ले लिया। प्रब है ? क्या मा के अन्दर हृदय नही है ? क्या मां नहीं आप बाध लिया, लेकिन आप क्या जानते हैं उसके सोचती कि मेरे बच्चे मुझे याद कर रहे हैं ? तो उनके अंदर कोई चीज बंधी हुई है जो आरापको पकड़ लेगी। पास जाना ही होगा ऐसा तो कोई नहीं सोच ये न तो डाक्टर पहचान सकता है, न कोई हकीम सकता कि कोई मां को बुलावे और मां न प्राए । पहचान सकता है, न कोई वद्य पहचान सकता है। ये तो वही पहचान सकता है कि जिसको आत्म बोध ही गया है। वो बेत। देगा आपको कि आपमें पूकड़ श्री गयी है। लेकिन दोष कभी-कभी ऐसा हो जाता है, समय समय का, कि मनुष्य गलत रास्ते पर चला जाता है । गलत रास्ते पर जाने पर बो कार्य नहीं बनता है । ले किन जब समय आ जाता है तो जरू री है कि जो आपने चाहा अपनी भक्ति में बो फलित होना हो आते ही साथ कहा कि [अभी रात भर तो मूझे है। और ये कार्य आप लोगों की कुण्इलिनी के लड़ना है सबके साथ यहां पर, रात भर युद्ध होगा । जागरण के बाद जरूरी से करना है। ओर इस तरह की चीज़ यहां पर बहुते है, मैंने तोन दिन से रात भर युद्ध हो रहा है। श्और यहां ऐसी बहुत सी गंदी, मैली विद्यायें करने वाले पहले तो बात ये है कि कोई भी तांत्रिक के पास लोग छिपे बठे हुए है और वो गांव में अकर के जाने की जरूरत नहीं । यही आज का मदन है। ओरतो पर या आदमियों पर नजर डाल कर और निर्मला योग उनसे रुपया समेट रहे हैं। कोई कहेग। मुझे सिर्फ सब चोजों को आप छोड़ दीजिए। प्रगर इसको चावल दे दीजिए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए । आप छोड़़ दें, तो आप सो वे ही परमात्मा के मृझे ये चोज दे दी जिए, कभी भी आपने सुना हैं कि राम ने या कृष्णा ने किसी से भीख मांगी थी कि तूम मुझे चावल दे दो? या गडे बाँते थे ? या किसी से कहा था कि साम्राज्य में जा सकते हैं । कोई परेशानी नहीं होगी। मुे कुछ नहीं चाहिए । ये जो इस देश में रहने वाले लोग हैं खास कर ये तु म नाम ले लो भगवान का तो तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा ? हमें नासमझो है, लेकिन नासमझी इतनो हृद तक नहीं गुज रनी चाहिए कि हम भगवान में शर शैतान में फ्क ही न कर सक । हम ये भी न जा परदेश में रहने बाले लोग हैं, इनमें से क्ितने जाएगे भगवान के दरबार में ? बहुत कम । इनको तो मां के दरबार में प्राने की हिम्मत ही नहीं होने वाली । उसके लायक ही नहीं हैं। उसके योग्य ही नहीं हैं । उनका कुछ भी नहीं भला होने वाला । में आपसे बता रही है। हालांकि मैं परदेश में मेरे पति हैं, वहां रहती है, इतने सालों से मेहनत कर रही हैं। सब बेकार। आप लोग मेरे अपने हैं। [आप] लोग मेरे जान के प्यारे हो । लेकिन आप लोग भी से गलत फहमी में फंसे हुए, इधर-उधर भटक गये हैं, तो एक मां के लिए कितनी आतंता और कितनी न पहचान सके कि ये शेतान है, ये तो राक्षस हैं । ये तो हमारे लिए एक बड़ा भारो दूष्ट आ्रया हुप्रा है । हैमा रा मदेन काल अ्था हुआा है, उसको न पहचाने शकव-सूरत और हम भगतान की न पहचाने । से आप पहचान सकते हैं कि ये राक्षसी आदमी है। सकते हैं । वयोंकि उसके तौर तरीके से अप पहचान से आप इस वातावरण में रहते, आपक अरदर स्वदना वरेडानी की बात है। ये सोच लेना चाहिए कि है, आप समझ सकते हैं कि ये तो शैतान लगता है मां ने कहा है कि किसी तांत्रिक, किसी किसी गुरु, धंटाल के पास जाने की जरूरत नहीं। हम लाग ये आ्रादमी ठीक नहीं। उनके साथ बहू-बेटियों बैठगी, नुकसान प एग उनके साथ आदमी बंगे, तो नुकसान पाएं तो यहस्थ के लाग है । गृहस्थी के लोगों को गहस्थी से सम्बन्ध रखना चाहिए। हमा रा साधू सतन्यासियों से कोई मतलब नहीं । हम लोग कमाएं, हम यज्ञ कर के लोग हैं कभी भी आपके घर में तरक्की तुरुसन पाए गे। नहीं आएगी। ये सबसे बड़ी चीज यहां पर है और इसीलिए देवियां यहां पर हमेशा जन्म लेती रहीं । रहे हैं. हम गृहस्थी में वठे हुए हैं । क्या हमें चाहिए कि हमारा पसा उठा के इन साधु सन्यासियों को ले किन अव कलियुग में जो खराबी आ गयी तो दें ? कोई जरूरत नहीं । एक बार सोता जी तक ये है कि राक्षस ऐसे सामने खड़ हो ती उतनकी ग्दन साधू-सन्यासी से फंस गयी थी और आप जानते काट के फिकवा दें । लेकिन वो तो ऐसे सामने खड़ हैं वेवारी को सारा रामायण उसके बाद रच गया। नहीं हैं, सबके दिमाग में धुसे हुए हैं । सारे भक्तों इसलिए इस चक्करों में विल्कुल नहीं आने का । के दिमाग में, बच्चों के दिमाग में अगर राक्षस घुस आप खास कर औरतो पर इनका ज्यादा ्रसर जाएं तो मां का क्या हाल होगा। ये सोच लो । आ्प ही सोचिए। क्या प्रप एक माँ हैं या बाप हैं आप कितने परेशान हो जाएं ? ओर ये ही प्राज दशा देखती है लोगों की, कि सादे, भोले, अच्छे लोगों पर ये चीज बडी छाती है । ये शौक अरप छोड़ दीजिए । किसी गुरुगं के पास जाना, तांत्रिक के पास जाना, मांत्रिक के पास जाता, ज्योतिषो के पास जाना, ये आता है क्योंकि ग्रोर [ज्यादा सोदी सादो हाती हैं । अपने वच्चों को, अपने पर को, अपने पति को इससे में बचा कर रसिए। हमारे यहाँ की रामाज व्यवस्था अत्यन्त सुन्दर है अप नहीं जानते बाह्य में क्या है । कोई मर जाए तो पूछने वाला नहीं। वहां किसी को पता ही निमंला योग LF नहीं चलता कि कोई मर गया। बाप मर गया तो कि जब देवी का अवतरण होता है तो सब जगह भी बच्चों को नहीं पता चलता । बच्चे मर गये तो ठंडी हवा आती है। उनके बदन से ठंडी हवा आती बॉप को पता नहीं चलता । उस लंदन शहर में एक है। इसलिए ये ऐसे-ऐसे गाने बने हुए हैं। ये पारम्प- हरते में तोन बच्चे, चार बच्चे मां बाप म र डालते रिक जो गाने बने हुए हैं, इसके अन्दर बडी खूबी से हैं। क्यों मारते हैं ? क्योंकि तंग आ गये । आरप है सोचिये कि कम से कम दो बच्चे तो मार ही डालते और देवो को कैसे पहचानना चाहिए । हैं। अ्रपने कहीं सुना है किसी मां को, बाप को, अपने देश में, चाहे दस बच्चे हो जाएं, वो पकड़ के मारता है ? इतनी जालिम उनकी आदत है, और सम्पदा है, वड़ी आपके पास में सुझ-बूझ है, समझ हम लोग इतने सहज सरल प्रेम के लोग हैं। हमको इस चक्कर पें बस नहीं फंना चाहिए । सारी बात लिखी हुई हैं कि देवी क्या चीज़ तो इस तरह से आप लोगों के पास तो बड़ी है, और आप सीधे साधे सरल स्वभाव के लोग हैं । जो कठिन स्वभाव के लोग हैं वो बड़े मु्किल होते हैं। आप लोगों को पार कराना कोई मुश्किल नहीं। बाकी आपको मैं जागृति आज दे दूँगी। आप लेकिन एक ही ववन देना है कि ये गुरू घंटालों को लोग पार हो जाएं। एक बार आत्म बोध होने के आप छोड़ देंगी और इस के आगे पीछे नहीं जाएंगी । बाद आपके हाथ में से चैतन्य की लहरियां शुरू हो उससे बड़े नुकसान पपने उठाये हैं और उठायेंगी। जाएंगी। आपके नस-नस में ये चीज बहना चाहिए। इस लिए पहले सबसे पहले आप लोग सब जागति ये नहीं कि कोई बता दे आप पार हो गए आपके हो जाए । सर में से कुण्डलिनी का जो ब्रह्मरंध्र है, छिद करके वहां से ठंडी हुवा आयेगो। यहां से ठंडी हवा आ जाएगी। आप देखेंगे कि अपके सर में से ठंडी हवा निकल रही है । हाथ में से ठंडी हवा श्रएगी द सुना कि यहां पर गाना गाते लोगो के बदन में शरीर हिलने लग जाता है । कहते हैं देवी आती है। ये गलत फहमी है बहुत बड़ी । दे ी किसी के बदन में नहीं आ सकती। बहुत और आप गाते भी हैं कि ठंडी हवा आयी और मुश्किल । देवी का काम करना आसान है ? देवी । के प्रन्दर तो हजारों चक्र होते हैं। उन चक्रों को आपने गाना भी गाया । हमसे योगी महाजन पूछ संभालना, उनको ठोक से उसका चलाना, उसमें रहे थे कि मां इनको कसे पता कि ठंडी हुवा आती से ठंडी ठंडी लहर बहाना, लोगों का भला करना है जत देवी आती है ? इनको कैसे पता चला ? ये और ऐसे इंसान का चरित्र भी तो उज्जवल होना रे वम्बई में जितनी नोकरानियाँ हैं, देवी तो यहाँ प्रनेक वर्षों से है । तो जिन लोगों ने शराब पीती हैं, सब ढंग करती हैं, उनके वदन में गाया होगा, पहले बताया होग। कि जब देवी आती शआती हैं देवी। बतायो, ऐसे कोई देवी कोई पागल है तब उनसे ठंडी हुवआती है । तो आदि है किसी के अन्दर भी आने के लिए । देवी तो एक शकराचार्य ने वरणंन किया है कि सलिलम- शुद्ध चित्त में ही आ सकती है । और फिर वो देवी सलिलम हाथ से ऐसी ठंडी-ठंडी हवा आनी आकर बताती भी क्या है कि तुम उसको सार डालो चाहिए। ये देवी की पहचान है। जिसके बदन में तो अच्छा होगा। घोड़े का नम्बर क्या है । फलाना ठंडी-ठंडो हवा आए बही अवतार है। ये देवी की क्या है, मटका खेलने का नम्बर क्या है । ऐसा कभी पहचान है । ये इन्होंने कहा था । लेकिन हमारे गांव देवी बता सकती है ? देवी तो हमेशा ऊंची बात उन्होंने देखा है करेगी, परमात्मा की बात करेगी, अ्रच्छी बात दूसरा मैंने ये जा ाी चांदी के पत्ते हिलने लग गये और देवी आयी तो, मैंने कहा, कि आदि काल से चला आ रहा हो । चाहिए हमा में जो परम्परा से चले आ रहे हैं, निमला योग ho करेगी ऐसी गंदी बातें तो नहीं करने वाली। आप विल्कुल ठीक हैं । प्रापमें औोर कोई दोष नहीं। ये जब आप देखते हैं तब भी आप ऐसी [औरत के पैर पर आते हैं। ये तो भूत है । ये तो भूत हैं जो देखती है कि अज्ञान में, अंघकार में, आप गलत इन औरतों के अन्दर आ जाते हैं अऔर वो बोलने लोगों के पीछे में कभी-कभी चले जाते हैं । जो लग जाती हैं और आप उनको मानने लग जाती जितना नाटक करता है उतना उससे दूर रहिए हैं । ये जरूर है कि भूत को कुछ-कुछ वात मालूम होती हैं, वो बता देता है। लेकिन उस में क्या रखा है ? इन सब चीजों में क्या रखा हुआ है ? उसकी है। वास्तविकता है। कोई नाटक या भठ से नहीं प्रोर जाने से औ्र नुकमान ही होने बाला है मगर होता । अभी तक आपको अनुभव नहीं था, तो आज श्रप भूत के यहां गये, तो कल वो आपके अनुभव हम आपको दे देते हैं । अनुभव शून्य होने पकड़ जाएगा आपका खानदान खा जाएगा। की वजह से आप जानते नहीं कि कोन अच्छा हैं, हेसी औरतों को दरवाजे में आने नहीं देना चाहिए। बुरा है । अब आप [अनुभव पाएगे तो आ्ाप जानेगे। उनके धर खाना नहीं खाना चाहिए। बिल्कुल दूर रखना चाहिए, क्योंकि वो बाधित लोग हैं, उनसे बीमारियां होती हैं गंदी । जिस औरत के ब दन में देवी को मानते हो तुम, चिंतपूर्णी को मानते हो, क्यों? आता है उसको चाहिए कि वो और किसी दोष को मैं नहीं देखती है । सिर्फ यही । परमात्मा कोई नाटक नहीं है । बो असलियत अब कोई अगर आपसे पूछे कि भई तुन नैना वो तो एक पत्थर मात्र है। उसको क्यों मानते हो ? अपना भूत treatment (इलाज) करा ले और ठीव हो जाए। क्या जवाब है आपके पास । कोई जवाब नहीं कि अन्त में पागल होकर ही मरती हैं । ऐसी सब औरत क्यों मानते हो ? इनको शंकर जी को मानते हो ? पागल हो जाती हैं, पागल खाने में जाकर मरती शंकर जी के बाहर ज्योतिर्लिंग है वयों ? बारह ही आप लोग सब जानती हैं जो आर के यहां की बुढ़े हैं, उनसे पूछ लीजिए ऐसा होता है या नहीं । तो इस तरह की औरतों के पास या द्यादमियों के हो गए, बड़े बड़े ऊंचे पहुँचे हए, जो बड़े बड़े मुनि पास जाने की जरूरत नहीं, जिनके बदन में भूत ऋषिगरा लोग अपने यहां हो गए, प्रते हैं । इनको कहते आदमी भी लोग बहुत सारे होते हैं, जिनके अन्दर महमूस किया और कहा कि ये तो पृथ्वी तत्व ने वयों हैं ? क्या बात है ? आपको पूछना चाहिए कि क्यों भई कैसे क्या ? कसे जाना? जो बड़े-ब ड़े फकीर उनके दर हैं देव प्रा गये । और [ऐसे चंतन्य की लहरियां थी । उन्होंने इस चेतन्य को आ्र जाते हैं और खूब नाचने लग जाते हैं निकाली हुई चीज है। ये तो बाईवल में भी निखा में भूत अरजीव-गरजीव बातें करते हैं और मुंह से kerosene oil (मिट्टी का तेल) रखके ऐसे आग जलात हैं, और नीबू लगाते हैं, पता नहीं क्या-क्या तमाशे करते हैं । और लोग उस तमाशे पर ही ये हो जाते हैं । " । कि पृथ्वी तत्त्व में से निकलेगी चीज-स्वयम्भू ये स्वयम्भू चीज निकली है । पर पब वो स्वयम्भू की कोई भी मुर्ति बनाए, फिर कोई भी गंदा आदमी और भी मुर्तियां बनाकर उसको बेचे, मंहगा करे, ये सब चीजें परमात्मा की नहीं होती। जो स्वयम्भू चीज है, जिसमें से चंतन्य बह रहा है, वो सिर्फ तमाशा हो तो ठीक है, लेकिन ये तमाशा नहीं है। इसके पीछे में बड़ी जहरीली चीज है । ये सांप औ्र नाग से भी बदतर लोग हैं। क्योंकि ये प्रगर पको डस गये तो गये आप काम से । उससे ग्राप बच नहीं सकते । इसलिये इन लोगों से प्ाप दुर एक जगह है, जिसको कि राहुरी कहते हैं, जहां पर रहिये । इतना ही ज्ञान आपके लिए काफी है । बाकी कि हमारे वाप-दादे राज करते थे , वहां पर गए एक फकोर बता सकता है। इसका एक उदाहरण बताए एक बार हम, THE निर्मला योग १० थे । वहां किसी ने बताया कि मां यहां एक बड़ी कि आपके अन्दर प्रकाश आ जाए, और प्रकाश इस अजीब सी जगह है। यहां पर एक अंग्रे ज था कुण्डलिनी से अता है जो छः चक्रों को छेदती है, पचास साल पहले । तो बो यहां पर एक dam जिसको "पटचक्र-भेदन" कहते हैं। ये चक्र जव छिद (बांध) बना रहा था। जब बांध डाल रहा था तो जाते हैं तो एक तरफ तो हमारो तन्दुरुस्ती अच्छी उसने देखा कि एक जगह ऐसी है-करीबन सौ हो जाती है, अरोर दूसरे तरफ हमारा मन शान्त हो की जगह ऐसो-कि वहां कुछ भी करिए, आप खोद जाता है। शोर तीसरो तरफ हमें अत्मा की प्राप्ति ही नहीं सकते । और बहां आप कूछ बनाइये तो है। जाती है। आत्मा जो है सच्चिदानन्द है । माने वो ढह जाता है। रात में ढह जाए और सवेरे जो श्राप इस चेतन अवस्था में सर्य को जान सकते हैं। है फिर वो लोग बनाए, फिर वो रात में ढह जाए । तो ह ता कथा है कुछ समझ में नहीं प्रा रहा ? बडी चमत्कार की चीज है। तो एक फर्की र ने आ्राकर जानिएगा? जब तक आपके अन्दर चेतन्य की कहा. 'इमे छोड़ दो, ये मां का स्थान है, इसको नहीं छूता तुम ।" कि मैं क्या हूँ ? उसने कहा, "जो भी है, मैं कह रहा हैं कि इससे अ्लग हट जाओ। तो आप देखिए कि बांध ऐसा सीधा बनना चाहिए तो उस जगह बांध ऐसा बना चित्त जो है वो प्रकाशित हो जाता है। जैसे यहाँ हुआ है। तो मैं वहां गयी मैंने कहा ये तो सारा आप बेठे बंठे आप किसी के बारे में सोचे पऔर एक सहस्रार है । उन्होंने कहा, केसे ? मैंने कहा चलो, लोग तो सब पार हो। देखो इसमें से ठंडक आ हमारे यहाँ लंदन में जब पहले एक साहब पोर हुए फुट अरभी तक तो आपको सत्य-असत्य का फ्क ही नहीं मालूम । अब में भी सेत्य है या असत्य है अप क्या लहरियाँ नहीं आएगी तब तक आप क्या जानिएगा कि मैं क्या है ? उसने कहा, इसको कसे मालूम ? उसी प्रकार आप इसको चित्त कहिए कि आपका दम यहाँ पर समझ लो जलन आ गयी, माने क्या ? तुम रही है । ऐसी ठंडी-उंडी लहरें बदन पर ाने लग तो वहां के लोग शक्की ज्यादा हैं, आप लोग जैसे गई । अब जितने ज्योतिर्लिंग हैं उसमें से ऐसी बात भक्ति तो उनमें, शक्की हैं, ज्यादातर शक्की लोग है । अब आप जाइये, जब अआप कुण्डलिनी जागरण के बाद आप जाइये कहीं, वेषणो देवी जाइये, और शुरू करना जाकर देखिए । "अराप साक्षात् व्षी देवी है ? पूछिए, उनके अन्दर से ठंडी- ठंडी हवा अरानी शुरू हो जाएगी। तो असल है कि नकल है, ये पहुंचान पिता के लिए पूछा था सवाल । मैंने कहा ये आपके आ जाती है । होते हैं । उनकी समझता तो कुछ भी नहीं, देवी वर्गैरह| उनसे तो गणपति का 'ग' से पड़ता है। तो उनके यहाँ चमक आ गयी। तो कहने लगे, "मां यहाँ क्यों चमक आ रही है ? मैंने अ्रपने पिता के चक्र हैं प्रोर हो सकता है कि उनको बड़ा बुरा Bronchitis गले में शिकायत हो गयी, क्योंकि ये विशुद्धि चक्त है । तो कहा, "अच्छा मैं अभी फोन करता है।" स्काटलंड में फोन किया तो उनका अभ्मा ने यही कहा कि तुम्हारे बाप को बहुत bronchitis हो गया है और बीमार पड़े हैं। े कहा कि अच्छा। तो अब कहने लगे, "माँ कोई आदमी अगर आपके सामने ऐसा-वेसा आ जाए तो आप फीरन जान लोजिएगा । उससे गरम- गरम हवा आएगी। नहीं अएगी तो हाथ में कभी कभी फोड़े भी आ जाते हैं, कूछ ऐसे दृष्ट श्रादमियों से जो ऐ से दु्ट आदमियों दुष्ट होते हैं, वो फोरन आपको पता चल बुरा जाएंगे । आपको किसी से पूछना नहीं, होगा, आप फोरन कहेंगे कि इस आदमी से मेरा कोई मतलब नहीं, जाइये। साफ कह देंगे । इसका निदान क्या है ? और अब इसको कसे ठीक किया जाए।" तो निदान तो हो गया, मैंने कहा । अब इसको ठीक करने का तरीका हम तुमको बतात हैं कि तुम इसको किस तरह से कवच दो। जैसे ही अब अन्दर बाहर जानने का एक ही तरीका है निमला योग ११ उन्होंने कवच दिया आवे घंटे में उनकी अम्मा का के लोगों ने एम्बुलेन्स मंगवाई । जब तक फोन आया कि पता नहीं क्या हुआ तुम्हारे बाप तो एम्बुलेन्स आयी, लड़का चढ़ के ऊपर चला आया । लोगों ने पूछ भई तुम ऊपर चढ़ आए ? तो उन्होंने कहा वो, पता नहीं मुझे, एक श्ायीं थी। उन्होंने मुझे ठीक कर दिया । तो उन्होंने सोचा ये तो जो चित्त है वो आ्रालोकित हो जाता है । पागल हो गया है कि क्या ? तो उसको अस्पताल ले मेरी बुखार उतर गया है और दौड़ रहे हैं। वो तो बाहर चले गए। इस प्रकार ये चीज़ घटित होती है। कसे चित्त में प्रकाश आ जाता है । आप जिस के भी बारे गये वहां पूलिस ग्रायी। उसने पुलिस से बताया, बात मानिए, एक स्त्री थी, वो एक सफेद मोटर में यहाँ बैठे-बैठे जानेंगे। अब देखिए अ्रपने सुना होगा आयो। (हमारी सफेद मोटर है ) । और सफद कि रेडियो होता है, टेलीविजन होता है, कहाँ पर साड़ी पहनी हुई थी। और एक हिन्दुस्तानी स्त्री थी। प्रोग्राम होता है, यहां सुनाई देता है । उसी प्रकार उसने आ्राकर के और मूझे हाथ फेरा । इससे मैं ठीक हो गया। तो उन्होंने कहा कि भई ऐसे तो कोई जाल फैला हुआ है, 'हजारों उनके हाथ हैं. उसी से आया नहीं, हम तो पूलिया पर खड़े देख रहे थे, कार्य होता है। पर पहले उनके राज्य में तो उतरिए। और ये तो ऊपर चढ़ा आया | कहा कि नहीं, हुआ उनके साम्राज्य में तो प्रइये । अगर [शप उनके तो सही । ये तो बात है क्योंकि इसके तो कोई चोट राज्य में नहीं बैठे हैं, प्राप तो दूसरों के राज्य में वोट है नहीं । दूसरे दिन उन्होंने हमारा फोटो देखा, वेठे हैं तो वो ही आपकी परवाह कर । जब ओप तो बताया यही तो वो स्त्री थी जिसने हमें बचाया। परमात्मा के राज्य में अएंगे तब आपका पूरा तो पूछा कि तुमने किया क्या ? कहने लगे बस जिस इन्तजाम है बहां । सारे उनके देवदूत, गण आदि वक्त मैं गिरने लगा, तो मैने यही कहा कि, "हे सारे आपकी सेवा में खड़े हुए हैं। स ब के सब वहां पावन मां, Divine Mother मुझे तुम बचाओ पर पूरी तरह से आपकी व्यवस्था करगे और हर बस इतना मैंने कहा। मैने उसको याद किया सिफ । आपके प्रश्न जो हैं उसके वो इस तरह से आ्पको और कुछ नहीं। और जैसे मैं गिरा उसके बाद पता उसकी हल मिलेंगे कि प्राप हैरान हो जाइएगा कि नहीं कसे, ये एकदम आर गयीं, इन्होंने ऐसे हाथ किया। मैंने गाड़ी को आते देखा और उस से उतरते देखा और झट से नीचे आयीं और कर के मुझे में सोचेंगे, जो भी करना चाहेंगे उसके बारे में आप ऐसी किरणों हैं ऐसा उनका परमात्म। की 'अनन्त 1. 1 ये कैसे हो गया। ये मां हमें केसे प्राप्त हुआ । कते अनेक ऐसे उदारहण हैं, अनेक ऐसे उदाहरण ठीक भी कर दिया। ये उन्होंने साफ कहा, तो वो सहजयोग में देखे गये कि जिसका उत्तर कोई भी लोग परेशान हो गए । नहीं दे पाया। बहुत बार कहीं हुम आकाश से एकदम देखते हैं कि प्रकाश की ज्योत की कहा कि ऐसे तो वहुत किस्से India (भारत)में हुए ज्योत आ रही है । वो केमरा में पकड़ आ जाता है। है लेकिन अब इंग्लेण्ड में भी हो रहे हैं। अच्छी बात कही कुछ. कहीं कुछ । एक बार हम बैडफर्ड में थे । है। इसमें कोई विशेष बात नहीं है। क्योंकि जब. ये तो वहां के पेपरों ने भी छापा कि बेडफ्ड में हम जिसके हजारों हाथ हैं, जिसके हजारों शक्तियां है, गए थे । हम तो लेक्चर दे रहे थे, काफी लोग थे उस बक्त कोई नो बजे के करीब, या प्राठ बजे के करीब कोई लड़का ऊपर से नीचे गिर पड़ा । अस्सी फुट नीचे गिरा । उसके पास मोटर साईकल थी । पुलिया पर से जब गिरा तो लोगों ने, पुलिया पर बात है । क्योंकि उसके अन्दर ये शक्ति है ही जो उन्होंने चिट्टियाँ लिखीं उन्होंने कहा कि ये कैसे क्या हो गया ? तो उन्होंने बैठे हुए हैं। उसके लिए क्या विशेष बात है । 1 अगर हम कुछ हैं भी तो उसमें कौन-सी विशेष बात है। अगर सूर्य है, तो है, उसमें कोन-सी उसकी निर्मला योग १२ है सो है। उसमें कोन सी विशेष बात है लेकिन ये आपका वड़प्पन है । इसीलिए मैंने सबसे पहले आपकी विशेष वात है कि आप इंसान से बढ़कर आप सबको प्रसाम किया था । इसीलिए मैंने कहा आज परमात्मा के दरवाजे आए हैं । और ये ही था कि आप सबको मेरा प्रणाम । नहीं आज आप इंसान से भी ऊँचे उठ करके अति मानव होने वाले हैं। आप एक आत्म बोध पाने वाले इंसान होने वाले हैं। ये अपकी विशेषता है । का प्रयोग करेंगे अब हम लोग थोड़ी देर में कुण्डलिनी जागरण स्योहार अंग्रेजी दिनांक/हिन्दी सम्वत् विवरण नाम कु डलिनी पूजा नाग पंचमी २० अगस्त १६८५ श्रावण शुक्ल पंचमी) शुद्ध स्नेह और संरक्षण के प्रतीक- स्वरूप बहन भाई के सूत्र (राखी) बांधती है । ३० श्रगस्त १६८५ रक्षा बंवन (श्रावण शुक्ल पूरिए मा) २० सितम्बर १६८५ गौरी पूजा (भाद्र शुक्ल पष्टी) नौ दिन तक आदि शक्ति की पूजा १४ से २१ अक्तूबर १६८५ (श्रावरण शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक) नवरात्रि आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय के प्रतीक-स्वरूप श्री राम २२ अक्टुबर १६८५ (श्रावण शुक्ल देशमी) दशहरा (विजया दशमी) द्वारा राक्षस पति रावण का हुनन । श्री लक्ष्मी की पूजा । भक्तजन सम्पूर्ण रात्रि जागते हैं और देवी की स्तुति में भजन गाते हैं । खोजागिरी पूजा २७ अ्रक्टूबर १६८५ (प्राश्विन शुक्ल पूरिणमा) (शरद् पूरणिमा) निर्मला योग १३ । जय श्री माता जी ।। अमरहिद मंडल दादर, बम्बई २२ सितम्बर १६७९ गणेश प्ूजा कुराडलिनी और श्री श्री गणेश की आराधना अनादि है, वे प्रत्येक योग के लिये प्रारम्भिक मूख्य साधना हैं। यही कारण है, श्री आदिशक्ति ने ब्रह्मांड की रचना से पहले सर्वप्रथम श्री गणेश को बनाया इस विशेष तत्व की आराधना, श्री गणशजी की पूजा जिस महाराष्ट्र भूमिमें विशेष रूप से होती है, वहाँ के साधक क्या कभी जानेगे ? इसका उत्तर यदि 'हाँ में है तो आप के लिए परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवीजी का निम्न भाषण पढ़कर सहजयोग आत्मसात करने के अलावा दूसरा कोई भी मारग्ग नहीं है । आज के इस नवरात्रि प्रथम दिन शुभ घड़ी में, अब 'घट का क्या मतलव है, यह ऋत्यन्त गहनता ऐसे इस सुन्दर वातावरण में इतना सुन्दर विषय, से समझ लेना जरूरी है। प्रथम ब्रह्मतत्व में जो सभी योगायोग मिले हुए दिखते हैं। [आ्ज स्थिति है, वहाँ परमेश्वर का वास्तव्य होता है तक मुझे किसी ने पूजा की बात नहीं कही थी उसे हम अंग्रेजी में entrophy कहेंगे। इस स्थिति परन्तु वह बहुत महत्वपूर्ण है । विशेषत: इस भारत भूमि में, महाराष्ट्र की विनाशकों की रचना सृष्टि देवी ने ( प्रकृति ने) परमेश्वर को आती है, तब उसी में परमेश्वर की की है । वहां श्री गणेश का वया महत्व हैं, ये बातें इच्छा समा जाती है। वह इच्छा ऐसी है कि अब से लोगों को मालूम नहीं हैं। इसका मुझे बहुत इस संसार में कुछ सृजन करना चाहिए। यह में कहीं कुछ हल चल नहीं होती है । परन्तु स्थिति में जब इच्छा का उद्गम होता है या इच्छा की लहर पुण्य भूमि में, जहां अष्ट- बहुत आश्चर्य है । हो सकता है जिन्हें सब कुछ पता था इच्छा उन्हें क्यों होती है ? वह उनकी इच्छा ! या जिन्हें सब कुछ मालूम था ऐसे बड़े-बड़े साधु सन्त परमेश्वर को इच्छा कयों होती है, ये समझना मनुषण्य इस आपकी सन्त भूमि में हुए हैं, उन्हें किसी ने की बुद्धि से परे है । ऐसी बहुत सी बातें मनुष्य की बोलने का मौका नहीं दिया या उनकी किसी ने सुनी नहीं। परन्तु इसके बारे में जितना क हा जाए उतना कोई बात मान ले ते हैं, वेसे ही ये भी मानना कम है और एक के जगह सात भाषरण भी रखते तो पड़ेगा कि परमेश्वर की इच्छा उनका शोक है । भी श्री गणेश के बारे में बोलने के लिए मुझे वो उनकी इच्छा, उन्हें जो कुछ करना है वे करते रहते कम होता । सर्वसाधारण बुद्धिमत्ता से परे हैं । परन्तु जैसे हम हैं । यह इच्छा उन्हीं में विलोन होती है (एकरूप होती है) और बह फिर से जागृत होती है। जैसे आज का सुमुहूरतं घटपूजन का है। घटस्थापना कोई मनुष्य सो जाता है रर फिर जग जाता है । अनादि है मतलब जब इस सृष्टि की रचना हुई, सो जाने के बाद भी उसकी इच्छाएं उसी के साथ (सृष्टि की रनना एक ही समय नहीं हुई वह अनेक सोती हैं, परन्तु वे वही होती हैं और जगने के बाद बार हुई है।) तब पहले धटस्थापना क रनी पड़ी । कार्यान्वित होता हैं । वैसे हो परमेश्वर का है । जब निर्मला थोग १४ जो नवरात्रि के नव दिन ( समारंभ होते हैं वे इस महाकाली के जो अवतरण हुए हैं विशेषकर महाराष्ट्र में) उन्हें इच्छा हुई कि अब एक सृद्ि्ट की रचना करें, तब इस सारी सृष्टि की रचना की इच्छा को, जिसे हम तरंग कहेंगे या जो लहरे हैं, वह एकवित अनेक कुछ उनके बारे में है । अव महाकाली करके एक घट में भर दिया । यही वह शक्ति से पहले यानी इच्छा शक्ति के पहले कुछ भी नहीं हो सकता । इसीलिए इच्छा शक्ति आदि है, और अंत भी उसी में होता है। प्रथम इच्छा से ही मतलब परमैश्वर व उनकी इच्छाश वित अपर सर्व कुछ बनता है और उसी में विलीन होता है । अलग की जाय, हम अगर ऐसा समझ सके तो तो ये सुदाशिव की शक्ति या आदिशक्ति है। ये समझ में अराएगा। आपका भी उसो तरह है, परन्तु आप में महाकाली की शक्ति बनकर बहती अगर अपना शरीर विराट का अंशस्वरूप माना तो घट है । थोड़ा सा फके है। आप] ओर आप] की इच्छा शक्ति इसमें फर्क है । वह पहले जन्म लेती है। जब उसमें जो बायी तरफ की शक्ति है वह आप की इड़ा नाड़ी से प्रवाहित होती है। उस शक्ति को तक कोई काम नहीं होता। मतलब अ्रव जो ये सुन्दर महाकाली की शक्त कहते हैं। इसका मनुष्य में विश्व बना है वह किसी की इच्छा के कारण है। सवसे ज्यादा प्रादुभ्भाव हुआ है । पशुओं में उतना हर एक बात इच्छा होने पर हो कार्यास्वस होतो नहीं है अपने में वह (मनुष्य प्राणी में) अपनी है। प्रोर १रमेश्वर को इच्छा कार्यानि्वित होने के दायीं तरफ से सिर में से निरलती है । उसके बाद लिए उसे उनसे अलग करना पड़ता है। अगर बायीं तरफ जाकर त्रिकोणाकार अस्थि के नीचे गणेश का स्थान है वहां खत्म होती है । मतलब महाकाली की शक्ति ने सर्वप्रथम केवल श्री होती है। उसे हम 'आदिशक्रित' कहंगे। ये प्रथम गरणेश को जन्म दिया । तव श्री गरेश स्थापित हुए । स्थिति जब आयी तब घटस्थापना हुई। यह अनादि श्र गणेश सर्वं प्रथम स्थापित किए हुए देवता हैं । काल से अनेक बार हुआ है। और शज भी जब ओर इसी तरह, जिस प्रकार श्री महाकाली का है, हम घटस्थापना करते हैं। तो उस अनादि अरनंत क्रिया उसी प्रकार श्री गणेश का है । ये बौज है और बीज से सारा विश्व निकल कर उसी में वापस समा जाता है। श्री गणेश, ये जो कुछ है, उसी का बीज कृति में हैं, तक आपकी किसो बात की इच्छा नहीं होती तब बह परमेश्वर में समायो रहेगी तो निद्रावस्था में जो श्री रहेगी। इसलिए वह उनसे अलग हो कर कार्यान्वित को याद करते हैं। तो उप् नवरात्रि के प्रथम दिन हम घटस्थापना करते हैं। मतलव कितनी बड़ी ये चीज़ है ! याद रखिए। उस समय परमे इव र ने भी 1. है, जो ग्रापको अंख से दिख रहा है, इच्छा की बह कार्यान्वित करने से पहले एकत्रित इच्छा में है, उसका बीज है । इसीलिए श्री गेग की और एक घट में भर दी । उसी 'इच्छा का हम को प्रमुख देवता माना जाता हैं। इतना ही नहीं, আज पूजन कर रहे हैं। उसी का आज हमने पूजन श्री गरणेश का पूजन किए बगेर आप कोई भी कार्य किया। वह इच्छा परमेश्वर को हुई, उन्होंने आज नहीं कर सकते । फिर वे कोई भी हो, शिव हो, हमें मनुष्यत्व तक लाया, इतनी बडी स्थिति तक वष्ण व ही या ब्रह्मदेव को मानने वाले हो, सभी प्रथम श्री गणेश का पूजन करते हैं । उसका कारण है कि ्री गेश तर्व परमेश्वर ने सबसे पहले इस सृष्टि में स्थापित किया । श्री गणेश तत्व मतलब जिसे हम अबोधिता कह ते हैं या अंग्रेजी में innocence कहते हैं । अब ये तत्व बहुत ही सूक्ष्म है, ये हमारी समझ में नहीं आता । जो बच्चों में पहुँचाया, तब आपका ये परम कर्तव्य है कि उनकी इस इच्छा की पहले वंदन करें । उस इच्छा को हमारे सहजयोग की भाषा में श्री 'महाकाली की इच्छा कहते हैं या 'महाकाली की হাक्ति क हते हैं । ये महाकाली की शकवत है और ये निर्मला योग १५ रहता है, जिसकी चारों तरफ कमी है और जिसका उसमें एक बात बहुत महत्वपूर्ण है । वह है सुगंध फंला हुआ है। इसीलिए छोटे बच्चे इतने उसकी 'मां प्यारे लगते हैं । ऐसा यह प्रबोधिता का तत्व है वह इस श्री गणेश में समाया है । अब ये मनुष्य को बात नहीं । उसे कुछ नहीं मालूम, पेसा नहीं समझना जरा मुश्किल है कि एक ही देवता में ये मालूम है, पढ़ाई नहीं मालू म, कुछ नहीं मालूम । सब कुछ समाया है ? परन्तु अगर हमने सूरज को उसे केवल एक ही बात माजूम है । वह है उसकी देखा तो जैसी उनमें प्रकाश देने की शक्ति है उसी मां। यह मेरी मां है, ये मेरी जन्मदाबी है, यही प्रकार श्री गणेश में ये अ्रबोधिता है। तो ये जो मेरी सब कुछ है। वह मां से ज्यादा किसी भी अबोधिता की शक्ति परमेश्वर ने हममें भरी है, उसकी हमें पूजा करनी है। मतलब हम भी इसी बचपन से ये बी जतत्व है। इसीलिए हम अपनी माँ प्रकार प्रवोध हो जाएं । प्रबोधिता का अर्थ बहुतों को नहीं छोड़ते । हमें पता रहता है उसने हमें जन्म को लगना है 'अज्ञानी ' । परन्तु प्रवोधिता मतलब भोलापन, जो किसी बच्चे में है या मासूमियत परमेश्वर ने आपमें आपको दी है और वही मां कहिए, वह हमारे में अनी चाहिए। ये कितना बड़ा तत्व है ये अ्राप नहीं समझते हैं। एक छोटा वच्चा अगर खेलने लगे । वेसे आजकल के बच्चों में भोला- ने विठायो है वह आपकी मां हैं । उसे आ्रप पन नहीं रहा है । उसका कारण आप बड़ लोग ही हमेश। खोजते हैं। आपकी सभी खोजों में फिर वो हैं । हम दूसरों को क्या बताएं, हम कौन से अपने धर्म का पालन कर रहे हैं ? कितने घामिक हम हैं ? हो, किसी भी चीज़ का आपको शौक हो, उन सभी जो अपने बच्चों को घार्मिक बनाएं ? ये सब उसी शौकों के पीछे आप उस कुण्डलिनी मां को खोजते पर निर्भर है। इसीलिए वच्चे ऐसे हैं अब ये जो है। यह कुण्डलिनी मां आपको परम पद को मनुष्य में 'श्रबोधिता' का लक्षण है वह किसी बच्चे पहुँचाती है, जहां सभी तरह का समाधान मिलता को देखकर पहचाना जा सकत। है। जिस में हैं। इस मां की खोज, माने इस मं के प्रति सिंचाव, अबोधिता होती है वह कितना भी बड़ा हो) वह उसमें रहती है । जैसे कोई छोटा बच्चा खेनेगा, खेल गणेश तत्व के कारण जागृत रहती है। में वह शिवाजी राजा बने गा, किला बनवाएगा, सब करेगा, उसके बाद सब कुछ छोड़कर वह चला ' । उसकी मां वह नहीं छोड़ता । बाकी सब कुछ आपने उससे निकाल लिया तो कोई । चोज़ को महत्व नहीं देता । मतलब हम सभी में खिवाय एक दूसरी मां अबोधिता मतलब दिया है। परन्तु उसके अपने आप में आपकी 'कुण्डलिनी' है । कुण्डलिनती माता, जो आपमें त्रिकोणाकार अस्थि में परमेश्वर राज-काज में हो, सामाजिक हो या शिक्षा-क्षेत्र में मनुष्य जो प्रापमें प्रदृश्यता में होती है, वह ग्रापमें श्री जिस मनुष्य का श्री गणेश तत्व एकदम नष्ट कुछ जाएगा। मतलव सब कुछ करके उससे प्रलिप्त (प्रलग) रहना। जो कुछ किया, गाव । उसके पीछे दौड़ना नहीं । हुआ होता है उसमें अबोधिता नहीं होती है। ्रबो- धिता में बहुत से गुरणग मनुष्य मतलब मां-बहन, भाई उनके प्रति पवित्रता रखना । जीवन में बतव करते समय, संसार में रहते समय परमेश्वर ने एक अपनी पत्ी और वाकी सब लोग जो हैं उनसे आपका पबित्र रिइता है, ऐसा परमेश्वर ने बताया है, और ऐसा अगर आपके व्यवहार में दिखने लगा तो मानना पड़ेगा कि इस मनुष्य में सच्ची अवोधिता है । यह उनकी सच्चो पहचान हे । अवोधिता की ये पहचान है कि मनुष्य में उस्कृर्त से होते हैं । उसके प्रति प्रल- ये साधारणतया एक बच्चे का बर्ताव होता है । गपने किसी भी बच्चे को कुछ भी दिया तो वह उ सको संभालकर रखेगा। फिर थोड़ी देर बाद आपने उसे कुछ फुसताकर वह वापस ले लिया तो उसे उसका कोई दु:ख नहीं रहेगा। परन्तु कुछ व।तं ऐसी हैं जो छोटा व्त्रा कभी नहीं छो इत। है। । निमंला योग १६ मा को सभी में पवित्रता दिखाई देती है क्योंकि अपने अरोर उसका क्षालन ये बाते समभाने का कोई आप पत्रित्र होने के कारण बह अपविश्र नजरों मतलव ही नहीं है। मनुष्य में पाप और पुण्य से किसी को नहों देतता समझाने की बात नहीं है। अपने यहा पवित्रता क्या से भाव नहीं हैं। अब देखिए किसी जानवर को आप है ये मतद्य को मा जूम है । इस्लेंड में अरमेरिका में समझाता पड़ता है क्योंकि उतके दियाग ठिकाने बदबृ तहीं । उसे सॉंदर्य क्या है ये भी नहीं नहीं होते। परन्तु अप अभी भी सही हो । विशे त. इस भारत भूमि से परमेश्वर कृा से, का विचार आता है आराप जानने है ये पाप है, ये अष्टवि वायक से, गलत है इसे नहीं करना है। ये पुण्य है इसे करना पपके गुरु-सन्तों की को हुई से वा के कार चाहिए पृथ्वी पर महाराष्ट्र एक ऐसी भूमि है कि जहां से ये अार में वैडे श्री गणेश इसका हिसाब करते हैं । पवित्रता अभी तक नहीं हिली है। और इसी प्रत्येक मनुष्य में श्री गणेश का स्थान है वह प्रोस्टेट पवित्रता का आज आप पूजन कर रहे हैं। मतलब ग्लड (Prostate gland) के पास होकर, उसे हम पूजन करते समय मापमें बह पवित्रता है कि नहीं मुलाधार चकक कहते हैं। त्रिकोणाकार अस्थि को है इधर ध्यान देना जरूरी है। अब हभ रे नहजयोग में जिनमें गणेश तत्व नहीं है वह व्पक्त किसी च का म का नहीं, क्यों कि ये जो गणेश बिठाये है वे की रक्षा करते हैं । गौरी के पूत्र हैं प्रोर श्री गोरी आप की कुण्डलिना डोगा श्री गणेश की स्थापना श्री गौनी नेकैसे की शक्ि है। यही ये गौरी शक्नि है । आज औी गौरी थो । उन की शादी हुई थी पर अभी पति से भट । अव श्रपते यहाी पविवता भाव है, जानवरों में नही है। जानवरों में बहुत गोवर में से ले जाओो या गन्दगी में से ले जाय्रो उसे माम। ग्राप मतुष्य बनते हैी प्रापको पाप-पुण्य कुपा से या प्रापकी पूर्वपुण्याई । प T9-पुणप का न्याय आप नहीं करते, मुलाधार कहा है । वहां कूण्इलिनी माँ बैटी है। उस त्रिकोणाकार ्रस्थि के नीचे श्री गरेश उनकी ल्जा प्ब ग्रापको मालूम पूजन है और आज श्री गणेश पूज न है। मत नब कितता बड़ा दिन है । ये प्राप समक तीजिए पा (बदने का) मैल ओ था उससे श्री गरीशा बनाये । में जो आपका री गएेतत्व शरी गो री से उत्पन्न है, अब देखिविए हाथ में अगर चलहरे (vibratior s) ये मनुष्य सुन्दर व्यवस्था की है ये आप देखिए । नहीं हुई थो । उस समय वह नहाने गयीं और अपुना ठो क है कि नहीं, मतलब उसमें कितनी है तो सारे शरीर को भी चैतव्य लहर होंगी तो वह चैतन्य गौरी माता ने मैल में ले लिया तो वह मेल भी चैतन्यमय होगा और उसी मेल का उन्होंने श्री इडा और पिंगला ये दो नाड़ियों अाप में है। गाेश बनाया। उसे अपने स्नानघर के बाहर रखा। मा इसमें एक महाकालो और एक महासरस्ती है । अब देखिए सामने नहीं रखा, क्योंकि स्नानघर से महाकाली से महासरस्वती निकल है । मह- सारी गन्दगी बहकर बाहर आती है। अपने वहा सरस्वती क्रियाशक्ति है । यहली इच्छाश वित है और वहुत दुसरी क्रियाशक्ति है। इन दोनों शवितयों मे बरापने नहुत जो कूछ इस जन्म में किया है, पू्व जन्मों में किया है, से लोगों को माजूम है। ये जो स्नातधर का बहता पानी है उसमें लोग अरबी के पत्ते व कभी- जा कुछ सुकृत है और दुष्कृत है उन सबका द्यौरा ये कभी कमल के ल उगाते हैं और वहां पर ही वे श्री गरेश वहां बेठकर देखते हैं । वे देख ते हैं इस अच्छे उगते हैं। ठीक इसी तरह थी गणेथा का है मनुष्य ने कितना पूरण्य किया है। अब पूण्य क्या है, मतलब सबसे गन्दगी का जो हिस्सी है उस हिन्से म नहीं गोर के ऊपर ये कमल है औरर वह अपने सुगंव से उस उस वारे में उन्हें कोई मतलब नहीं। लोगों को सारी गन्गी को सुगं घित करता है। ये जो उनकी लगता है इसमें क्या रखा है ? पूण्य वश है, कितना शक्त है वह आपके जीवन में भी आपकी बहत है ? अर पाप-पुण्य की भावना ही नहीं है तो पाप मदद करती है। अपने में जो कुछ, गन्दगी दिखाई क ये तो आजकल के माँडन लोगों को माल १७ निमंला योग देती है वह इस श्रीगणेश तत्व के कारण दूर होती है । अब इस श्री गणेश तत्व से कुण्डलिनी का, माने के विरोध में है, उनमें परमेश्वर शक्ति नही है । सुगध बिल्कुल अच्छा नहीं लगता श्री गोरी का, पहले पूजन करना पड़ता है । मतलब उसमें कुछ भयंकर दोष हैं और परमेश्वर के विरोधी तत्व बैठे हुए हैं, यह निश् वत है । क्योंकि जिस मनुष्य को निश्वित है। व्योकि सुगंध पृथ्वी तत्व का एक महान् तत्व है । योगभाषा में उसके अनेक नाम हैं । परन्तु कहना ये है कि जो कुछ पंचमहातत्व हैं और उनके पहले उनके जो प्राणतत्व है, उस प्राणतत्व में पराद्य या सर्वप्रथम अपने में अबोधिता होनी चाहिए। आपको आश्चर्य होगा, जब अपनी कुण्डलिनी का जाग रण होता है तब श्री गणेश तत्व की सुगंध सारे शरीर में फैलती है । बहुतों को, विशेषतः सहजयोगियों की जिस सुगंध हैं। उसी तत्व से हमारी पृथ्वी भी बनी है । समय कुण्डलिनी का जागरण होता है उस समय खुशबू प्राती है। क्योंकि श्री गणेश तत्व पृथ्वी गरणश का पूजन करते समय प्रथम हमें अ्पने प्राप तत्व से वना है। इस श्री महागरणेश ने पृथ्वी है । तो अपने में जो श्री गणेश हैं, वे भी उसी प्राणतत्व से बना हुआ श्री गणश है। तो श्री का सुगाधत करना। चाहिए। मतलब यह कि प्रपना बनायी जीवन अति सूक्ष्मता में सुगंधित होना चाहिए । पृथ्वो तत्व से बने हैं। अब आरपको मालम है कि वाह्यतः मनुष्य जितना दुष्ट होगा, बूरा होगा सारे सुगंघ सुगंध पृथ्वो में से आते हैं । इसलिए कुण्डलिनी का जागरण होते समय बहुतो की अनेक प्रकार के है। सुगंध ऐसा होना चाहिए कि मनुष्य आकर्षक सगंध आते हैं। इतना ही नहीं बहुत से सहजयोगी तो मुझे कहते हैं, श्री माताजी आपकी याद आते हो अ्रत्यंत खुशबू अरती है । वहुतो को भ्रम होता लगे तो वह मनुष्य सच में सुगंधित है । दूसरा है कि श्री माताजी कुछ इत्र वर्गैरा लगाती हैं। पर ऐसा नहीं है । अगर प्राप में श्री गणश तत्व रही है उस मनष्य के पास जाकर खड़े होने से जागृत हो तो अंदर से खुशबू आती है। तरह- तरह के सुगंध मनुष्य के अंदर से आत हैं। परन्तु लोगों को अच्छा भी लगता होगा। यह उनमें कछ दुनिया में ऐसे भी लोग है जा अपने आपको साधु-सन्त कहलवाते हैं और उन्हें सुगंध नहीं है। अच्छा नहीं लगता। अपने आपको परमेश्वर कह- लाते हैं और उत्हें सुगंध प्रच्छा नहीं लगता । अपने पको परमेश्वर कहलाते हैं त्रौर उन्हें सुगंध उतना ही वह दुर्गंधी होता है । हमारे सहजयोग के हिसाब से ऐसा मनुष्य दुर्गधी है । ऊपर से उसने लगायी होंगी तो भी वह मनुष्य सुगंधित नही पृथ्वी में से प्राते हैं । सारे फुलों के खुश बू लगे किसी मनुष्य के पास जाकर खड़े होने पर अगर उस मनुष्य के प्रति सुपरसन्नता ्रौर पवित्रता मनुष्य जिसमें से लालसा और गन्दगी बाहर बह गन्दा लगेगा। परन्तु ऐसे मनुष्य को देखकर कुछ दोष पर निर्भर है । वे लोग श्री गणेश तत्व के श्री गणेश तत्व वाला मतुष्य अत्यंत स।त्विक होता है। उस मनुष्य में एक त रह का विशेष आक- पंग होता है। उस आकर्षकता में इतनी पवित्रता होती है कि वह आकर्षकता ही मनुष्य को सुखी प्रिय हैं, वे कुसूमप्रिय भी हैं, और कमलप्रिय है । वसे रखती है । अब अाकषकता की कल्पनाएं भी ही श्री विष्णु के बर्णनों में लिखा है. श्री देवी के विक्षिप्त हो गयी हैं इसका कारण ह कि मनुष्य व रण नों में लिखा है । इसका मतलव है कि जिन में श्री गणेश तत्व रहा नहीं हैं। [अगर मनुष्य में से नफरत है । अपने यहाँ किसी भी देवता का वर्णन आपने पढ़ा होगा, विशेषत: श्री गणेश तो सूगंध- पा लोगों को सूगंध प्रिय नहीं व जिनको सुगंध अच्छा नहीं लगता उनमें कुछ भयंकर दोष हैं । वे परमेश्वर श्री गणेश तत्व होगा तो प्रकर्षकता भी श्री गणेश तत्व पर निर्भर हे । सहज ही हे । जहां आकर्षकता निर्मला योग १८ the/ नहीं हैं । नही जसे चंद्र और चंद्रिका या सूर्य और (श्री गणेश तत्व) हूँ वहां वह तत्व अ्पने में होगा। तभी अपने को आकर्षकता महसूस होगी। परन्तु सुय की किरण, बंसी उनमें एकता मनुष्य के समझ आजकल के प्राधुनिक युग में अगर आपने पवित्रता में नहीं आएगा? मनुष्य को लगता है पलि ओर की बातें की तो आप में जो बड़े-बड़े बृद्धिजोबी पत्नी में लड़ाइयां होनी ही चाहिए। अगर लड़ाइयां लोग हैं, उन्हें यह बिल्कुल मान्य नहीं होगा। उन्हें नहीं हुई तो ये कोई अजीब बात है। एक तरह का लगता है ये सब पुरानी कल्पनाएं हैं । और इसी एक अरत्यंत पवित्र बंधन पति व पत्नों में या कहना पुरानी कल्पनाओं से कहते हैं 'यह मत करो, वह चाहिए श्री सदाशिव व श्री पार्त्रती में है और अपना मत करो, ऐसा मत करो वैसा मत करो, ऐसा नहीं पुत्र श्री गेश श्री पार्वती ने केवल अपनी पवित्रता केरना वाहिए, वसा नहीं करना चाहिए । इस तरह से आप लोगों की conditioning है उनकी पवित्रिता में ! उन्होंने यह संकल्प से सिद्ध करते हैं ।' ऐसी बातों से फिर मनुष्य बुरे मार्ग किया हुआ है सहजयोग में हमने हमारा जो की तरफ बढ़ता है । कहने का मतलब है कुछ भी पुण्य है वह लगाया है। उससे जितने लोगों कि मनुय को आर्म साक्षात्कार देना संभव है उतनों को है। प्रथ मतः अगर मां पवित्र नहीं होगी तो बेटे का देना यही एक हमारे जीवन का अर्थ है । फिर भी पवित्र रहना बहुत मुश्किल हे । परन्तु कोई ऐसा कोई हमें "श्री माताजी देवी हैं कहता है तो वह एक जीव होता है जो अत्यंत बुरी औरत के यहां जन्म लेता है और वह इसोलिए पैदा होता है कि उस ओोरत का उद्धार हो जाए। औ्र वह खुद वहुत कहने की ? उन्हें गुस्या आर एगा अपने से कोई वड़ा जो व होता है विशेष पुष्यवान प्रात्मा हाती है। ऊंचा है, ऐसा कहते ही मनुष्य को गुसूसा आता है । मेतलव जैसे गन्दगी में कमल का फूलना वैसे ही परन्तु धूर्त लोगों ने प्रपने -पाप को देवता या और संकल्प से पंदा किया है। कितनी महानता में पविव्रतो मां-बाप की संगति से प्राती नही कहना । क्यों लोगों को यह पसन्द नहीं है। क्या जरू रत है यह पसन्द नहीं । ऐसा कुछ कहना है ? वह मनुष्य जन्म लेता है । ऐसा दात्मक है ? निसर्गतः अगर मां पवित्र होगो टेकते हैं। उन्हें वे एकदम भगवान मानने लगते हैं, तो लड़का या लड़की पवित्र होती है, या सहजता क्योंकि वे बेवकुक बनाने की प्रेतविद्या, भूतविद्या में उन्हें पवित्रता प्राप्त हो है । है, पर ये प्रपवा- भगवान कहलवाया तो लोग उनके सामने माथा व श्मश।नविद्या, संमोहनविद्या काम में लाते हैं । उससे मनुष्य का दिमाग काम नहीं करता । उन्हें पवित्रता में सर्वप्रथम वात है, उसे परपने पति विल्कुल नंगा बनाकर नचाया या पैसे के लिए निष्ठा होनी जरूरो है । अग र श्री पा्वती में श्री शंकर के लिए निष्ठा नहीं तो उसमें भगवान कहेंगे परन्तु जो सच्चा है उसे पाना होता क्या कोई अर्थ है ? श्री पार्वती का श्री शंकर के है । और अगर वो आप पा लगे तो आप समझगे विना कोई अर्थ नहीं । वह श्री शं कर से ज्यादा उसमें कितना अरथ है और क्यों ऐसा कहना पड़ता शक्तिशाली हैं। परन्तु वह शक्ति श्री शंकर की है । है ? वह मैं आज आपको बताने जा रही हूं। मतलब श्री सदाशिव की वह शक्ति प्रथम शं कर की शरण गयी है। परन्तु वह उनकी शक्ति है । परमेश्वर की नहीं चलेगा। परन्तु वह प्रत्यक्ष में नहीं दिखाई व अन्य देवताओं की वातें अलग होती हैं अ्रीर देता । इसलिए लोगों को समझ में नहीं आरता । एक मनुष्य की अलग । मनुष्य की समझ में ये डॉक्टर भी घर में थी गणेश की फोटो रखेगा, उसे नहीं श्एगा पति और पल्नी में इतनी एकता कि उनमें दो हिस्से लूट कर दिवालिया बनाया तो भी चलेगा, पर वे उन्हें श्री गणश को अगर आपने भगवान नहीं माना तो उसे श्रगर । उन्हें समझ में नहीं आएगा कुंकुम् लगाएगा, टीका लग।एगा । परन्तु आपने बताया कि श्री गणेशतत्व [ऋआपके शरौर निर्मला योग १६ में स्थित है और उससे आपको कितने शारीरिक केवल विज्ञान को ही मानते हैं। फिर देख लीजिए. फायदे होंगे तो वह ये कभी भी मानने को तेयारनहीं। आपका केन्सर श्री गणेश तत्व को माने वगैर परन्तु उन्हें मैंने कहा, आप श्री गणेश की ये ठीक नहीं होने वाला। श्री गरणेश तत्व खराब फोटो उतारकर रख दीजिए, तो ये भी वे मानेंगे नहीं । लेकिन मैंने ये कहा श्री गणश तर्व के बिना प्रत्येक अरणु-रेणु (करणा-करण) में सब तरफ संतुलन आप हिल भी नहीं सकते तो वे ये बात मानने को देखते हैं । हम कैनसर ठीक कान्ते है, किया है. और तैयार नहीं हैं। अब देवत्व अप नहीों मानते परन्तु करंगे। ५र ये हमारा व्यत नाथ नही है । तो ये श्री सहजयोग में श्री गणश को मानना ही पड़ेगा। उसका कारण है कि आपको कोई बीमारी या दं उतनी कम है । परेशानी इस गरणेश तत्व के कारण हुई होगी तो आपको श्री गणश को हो भजना पड़ेगा। मतलव कि आपमें स्थित श्री गणेश नाराज होते हैं तो गुणोश तत्व हम में है । इस चार पंखुडियों के वेत प्ापका श्री गणेश तत्व खराब होता है परोर आपको हुए ग्ेश तत्व् में बीचों गच बैठे गणेश हमारे प्रोस्टेट ग्लेंड की तकलीफ व युटरस का के सर चर्गरा होता है। श्री गणश तत्व को अगर अरपने ठाक से प्रंग है । उनके चार पंग होते हैं । उसमें से पहला होने से कैन्सर होता है । श्री गणेश तस्व हर जगह गणेश तस्व कितना मह्वपूरण है, उसे जितनी महता ये अ्रत्यन्त सुन्दर चार पंखुडियों से बना श्री शरीर में हैं । मतलब अपने शरीर में उन के एक-एक नहीं रखा, मतलब अपने पुत्र से अगर ठीक से अंग मानसिक अंग। मानसिक अंग का जो बीज है वह श्री गणेश तत्व का है। इच्छाश क्ति, माने जो भावना नहीं हो तो इन संब बाें तरफ की शविन है, जो अपने में सारी भावनाएं यटरस का कैन्सर होता है श्री गणेश तत्व के कुछ पेदा करती है, उन भावना ओं के जड़ में श्री बहत पवित्र नियम हैं । उनका अगर आपने गणोश बैठे हैं। मतलब मनूष्य पागल है, उसका श्री हीक से पालन नहीं किया तो आयको ऐसी तकलाफ गणेश तत्व खराब है। इसका मतलब ये नहीं कि होती हैं। परन्तु इन तकलोफों का संबंध डॉक्टिर श्री वह मनुष्य अपवित्र है । परन्तु उसकी पवित्रता को पर उनका किसी ठेस पहुँचाने पर उसे ऐसा होता है किसी को अगर दूसरे लोगों ने बहुत सताया तो भी उसका श्री गणश तत्व खराब हो सकता है । क्योंकि प्लेक्सस (pelvic plexus) उसे लगता है अगर श्री गणेश है तो इस मनुष्य को खराब हो गया है। परन्तु इसके पीछे जो परमत्मी वे मार क्यों नहीं देते ? इस तरह के सवाल उसके व्यवहार नहीं किया, माने अपमें मातृत्वता की बाता के कारण गणेश तत्व के साथ नहीं जान स कते संबंध ध्री गणेश के हो साथ है । वे यहां तक ही जानते हैं कि प्रोस्टेट ग्लेंड खराब है या ज्यादा से । मनुष्य पेलबव्हिक ज्यादा का हाथ है, मतलब अंतर ज्ञान का या या कहिए परोक्षज्ञान से जो जाना जाता है, जो ऊपरी ज्ञान से मनमें आने पर धीरे-धीरे उसकी बायीं वाजु खराव होने लगती। बायी बाजू खराब होने से वह पागल परे है, जो प्रापको दिखाई नहीं देता, उसके लिए बनने लगता है । अब देखिए गणेश तत्व का प्रापके पास अभी अलें नहीं हैं, संवेदना नहीं है, कितना संतुलन है । अगर अापने बहुत परिश्रम अभी तक आपकी परिपूर्ति नहीं हुई है, तो आप करसे किया और तकलीफें उठायीं, बुद्धि से बहुत मेहनत करी और आगे का माने भविष्य का बहत विचार समझोगे कि ये तकलीफे श्री गरणेश तत्व खराव होने से हो गई हैं। श्रो ग ण हम से नाराज हैं तो किया (आजकल के लोगों में एक बीमारी लगी हुई है सोचने की) माने बहुत ज्यादा विचार किया सकते । ऐसा कहते ही वे डॉक्टर एक दम विगड़ और उसमें कहीं संतुलन नहीं रहा तो ग्रापकी बायीं बाजू एकदम खराब हो जाती है । दायीं वाजू जो उन्हें प्रसन्न किये बिना हम सहजयोग नहीं पा मये। हम श्री गणश को मानने को तयार नहीं, हुन निर्मला योग २० है वह सूख जाती है। उससे बायीं त रफ की जो बीमारियां हैं बह सब गणश तत्व ख राब होने के होगी तो वह (कुडलिनी) वहां जाकर घपूधप करेगी । कारण होती हैं। उसमें डायबिटीस ये बी सारी श्री आपकी आँखों से दिग्खाई देगा। आ्गर पका नाभि- गणश तत्व खराब होने के कारण होती है । श्री चक्र पकड़ा हूआ होगा या नाभिचक्र पर पकड़ परयी गरणश की जो संतुलत व्यबस्था है, वे यह वीमारी होंगी तो नाभिचक्र के पास कूण्डलिनी जब उठेगी ठीक करने के लिए लगाते हैं । ऐसा मनुष्य काम कम करता है । उसी प्रकार हृदयविकार (दिल की हैं । किसी व्यक्ति को अगर भूतबाधा होगी तो वह बीमारी) भी है। आपने बुद्धि से बहुत ज्यादा पूरी पीठ पर जेैसे धपुथप करेगो। आपको आश्चर्य काम किया तो हृदयविकार होता है क्योंकि श्री होगा ! हमने उस पर फिल्म लो है । कुण्ड लिनी हमसे गणे जी का स्वस्तिक अपने शरीर में बना है जागृत होती है इसमें कोई शक नहीं है। कुण्डलिनी अगर किसी को Liver (जिगर) की तकलीफ तव आप अपनी आँखों से उसका स्पंदन देख सकते का वह दो बाती की तरह दिखने वाली शवितयां एका- उठती हूं परन्तु प्रगर श्री गग तत्व खराब होगा कोर होती हैं। एक बायीं तरफ की शक्त] महाकाली तो श्री गश उसे फिर नीचे खींच लेते हैं । वह की इस तरह अ्राती है व दूसरी दायीं तरफ की ऊपर आयो हुई भी वापस नीचे अ् जाएगी। मतलब शक्ति महासरस्वती की । बीवोंबी व उनका मिलन सवप्रथम अरपकों श्री गणेशतत्व सूघारना पड़ेगा विदु महालक्ष्मी शक्ति के बीच की खड़ी रेखा में है । बाये तरफ की सिपथेटिक नव्हस सिस्टम जो है बह महाकाली की शक्ति से चलती है। माने इच्छाशा क्ति आनी चाहिए । किसी किसी लोगों में बहुत गरमी से चालित है । अब किसी मनुष्य की इच्छा के विरोध होती है । वह श्री गरणश तत्व के खराब होने से में बहुत कार्य हुआ और उसकी एक भी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह पागल हो जाता है । नहीं तो उसे मुझे तार दिया था कि किसी विकृति के कारण हाटप्रटेक (दिल का दौरा) प्राता है । मतलब ऊपर वह यहाँ से वहाँ इतना भागता था कि जैसे उसे कही गयी सारी बीमारियां प्रति सो ने से होती हैं । कुण्ड लिनी जागृत होने पर हाथ में ठंडी हवा होती है । दिल्ली के पास रहने वाले एक रादमी ने हजार बिच्छू काट रहे हैं । बह कहता था श्री माता जी महीना हुआ मुझे इस तकलीफ ने ऐसा सताया और उसका संतुलन श्री गणेश ला देते हैं। ये शरी गणेश का काम है। आपने देखा होगा कि लोग है जसे बिच्छू काट रहे हैं । तब मैंने कहा दो मिनट बं ठिए । उनसे बिल्कुल बैठा नहीं जा रहा था। तब कितनी भी जल्दी में हों तब भी श्री गणश का मन्दिर ने उनके पास जाकर उन्हें शांत किया पाँच देखते ही नमस्कार कर लगे। सिद्धिविनायक के मिनट में । इसका कारण ये पुथ्वी माता। वे जमीन मन्दिर में भी कितनी वड़ी लाइन लगती है । परन्तु पर खड़े थे उससे कोई लाभ है? वह करके तब ही फायदा होगा बहत खशी हुई। आज बिल्कुल सभी बात मिल गयी जब परापमें प्रात्मसाक्षात्कारया होगा। अगर आप में आत्मसाक्षात्कार आया नहीं ता ग्रापका परमात्मा ली । श्रब श्राप कसे पृथ्वी माता से कहेंगे कि है से कनेक्शन (सम्बन्ध) नहीं होगा। कोौन झुठा गुरू पृथ्वी माता ! आप हमारी सारी गर्मी निकाल है, कौन सच्चा गुरू है, ये भी आपके समझ में नहीं लीजिए। वह नहीं निकालेगी, पर सहजयोगी भएगा । मतलब अ्पमें ये जो बीज श्री गणश का की वह निकाल लेगी । उसका कारण है कि है बह कुण्डलिनी उठने पर उसको सर्व प्रथम समझा वार घ्ी गणश तन्व अपमें जागृत होने पर देते हैं और ये कुण्डलिनी दिखा देती है उस मनुष्य वही तत्व इस पृथ्वी में होने के कारण, उसी तत्व को कौन सी तकलीफ है। । अप आज जमीन पर बेठे हो मुझे हैं। उस पृथ्वी माता ने उनकी सारी गरमी खींच एक पर यह पृथ्वी चलने के कारण, वह सब खींच लेती निर्मला योग २१ औ्र इसीलिए अपने में यह तत्व जागृत रखना बहुत करती हैं । ) कुछ आमुक लाख जप होना ही चाहिए और वह पवित्र रखना चाहिुए । इतना चाहिए । परन्तु जो करना जरूरी है, वह उनसे नहीं सहजयोग में वह सहजयोगी जो पवित्रता की नहीं होता। मतलब बत्तयाँ बनाते समय अपनी मुर्ति है उसे चलाने वाला बादशाह श्री गणश बहुओं की या लड़कियों की बुराइयां करना; इस है; उस देश में वह राज्य करता है। ऐसे श्री गणेश तरह की अजीब बात हमारे यहां हैं। तो कहना को तीन बार नमस्कार करके उसका पावित्रय अपने है कि सहजयोग इस तरह के लोगों में नहीं फलने में लाने का हमें प्रयत्न करना चाहिए । वाला । "ये-या गवाळया वे काम नोहे (हसे ऐरे- गै रों का ये काम तहीं) । श्री रामदास जी ने हमारे अब जो बातें करनी नहीं चाहिए और जो लोग काम की पूरी पूर्व-पीठिका वनायी है। अगर आपने कहते हैं उनका बहुत बोलवाला हुआ है । और इसी दासबोध' पढ़ा तो आपको कुछ बताने की जरूरत तरह बहुत से तान्त्रिकों ने भी हम।रे देश में अआरक्रमण किया है। उनका आक्रमण राजकीय नहीं है, फिर हुआ मराठी ग्रंथ है)। उन्होंने ये सारा बताया हुआ भी वह इतना अनेतिक और इतना घातक है कि है और वह सच है । जिस मतुष्य में उतना घयें है उस की तकलीफ हम ग्राजउठा रहे हैं । इन तांत्रिकों और जो सचमृच उतती ऊँचाई का होगा, उसी मतू्य सारी गंदगी फैला रखी है। इसका कारण ये है को सहजयोग प्राप्त होगा। सत्र को नहीं होग। मतलब कि उस समय के राजा लोग बहुत ही विलासी, चैतन्य लहरियाँ ग्राएंगी, पार भी होंगे, पर उसमें बेपारवाह थे । इस तरह के लोगोंके पैसोंपर तान्त्रिक फलने वाले थोड़़े हैं। हमने हुजारों लोगों को जागृति ने मजा उड़ाया। ज्यादा पेंसा होने से यही होता है। दो । क्योंकि लोगों की नज़ र ही उल्टी तरफ जाती सबसे पहले ज्यादा होने से वह पहले श्री गणश तत्व के पीछे समय श्राया है। अगरे अब सहजयोग नहीं हुआ पड़ता है। जतरान लड़कियों के पीछे पड़ना, छोटो- ये परमेश्वर के घर का न्याय है ये आपको समझ अबोध लड़कियों को सताना, ये सब श्री गणेश तत्व । अभी खोने की निशानियाँ हैं। ये तान्ब्िक लोग भी यही आपको पार होना पडेगा । आगे जो कुछ होने करते हैं । कोई अबोध नारी दिखायी दी कि वाला है वहां पर फिर आपको अ्रवसर मिलने उसे सताना । कोई भी अवोध मनुष्य दिखायी देने पर उसे मारना। अपनी भी अबोधिता खत्म करना। इससे मालूम होता है कि ये विलासी लोग काफी है अौर एकादश माने ग्यारह। जब ग्यारह रुद्र परमात्मा से दूर रहे। इसी प्रकार अने क क्मठ लोग आएगे तब आप उ नकी कल्पना नहीं कर सकते जिन्होंने परमेश्वर के पास जाने का बहुत प्रयत्न वे पूरी तरह खत्म कर देंगे। उससे पहले जिन लोगों किया फिर भी परमेश्वर उन्हें नहीं प्राप्त हुए । अअने] में विलासिता को तरह कमठता भी बहुत है। योग से होगा महाराष्ट्र में तो कमंठता कुछ ज्यादा ही है। मतलब सुबह १७ बार हाथ धोने जरूरी हैं । किसने बताया छोटी-छोटी बातों को लेकर बैठ जाना और चले पता नहीं ! अगर उस औरत ने १६ बार धोये जाना। अगर हम कुछ पैसे लेते और पाखड रचते १७ बार नहीं धोये तो उसे नींद नहीं [आएगी। कुछ तो लोगों को पसन्द प्राता तो बत्तियां (बाती) बनाना ही चाहिए (महा। राष्टर में दीपक की बक्तियाँ बनाने का काम बूढ़ी औ्ीरत नहीं। ('दासबोध गुरू रामदास जी का लिखा श्री गणश तत्व खराब । पेसा है तो हमें ही जागृत करना पड़ेगा। श्रर वेसा ही तो लेना चाहिए । अब ऐसा कुछ नहीं चलेगा वाला नहीं। उस समय 'एकादशरुद्र पने वाले हैं । एक हो रुद्र इस पूरे विश्व को खत्म करने के लिए को चुनना है वह हो जाएगा। वह न्याय अ्रभी सहज- । और लोगों को उसे पाना चाहिए। पर ज्यादातर लोगों का ये होता है कि मतलब मनुष्य के अहंकार को बढ़ावा दिया निमला योग २२ he जाए तो मनुष्य आने के लिए तैयार है। परंतु पढ़ते हैं । कुछ विज्ञापन तो पूरी तरह अवलीलता सहजयोग में तो ये सब सहज घटित होता है । उसे पसे की जरूरत नहीं है । एक फूल से है और ये जो शहरों में हुआ है वही अब गांवों में जसे फल बनता है, वैसे ही आपका भी होने वाला भी गया है। उस मे कुछ लोग इतने दुखी हैं कि है। जिस तरह आपको नाक, आँें, मुंह और ये अब रात-दिन उनकी योजना बन रही है कि हम स्थिति मिलो है, उसी तरह अतिमानव स्थिति किस प्रकार आत्महत्या करें ! यह उनकी स्थिति परमेश्वर ही पापको देने वाले हैं, ये उनका दात है । वह श्रापको जो दे रहे हैं उसमें अ्रप कुछ नहीं बोल सोचना चाहिए। उसी प्रकार लूढीवादी लोगों को सकते । ये भूमिका मानने को मनुष्य बिल्कुल तेयार सोचना होगा हर एक पुरानी बात हम क्यों कर नहीं है। उसे इतना अहंकार है कि उसे लगता है रहे मैं जब तक सर के बल दस दिन खड़ा नहीं होऊंगा इसका अरथ जानना होगा। जिन्दगीभर वही-वही तब तक मुझे कुछ मिलने वाला नहीं है। पहले ये बात करने में कोई अर्थ नहीं समझना चाहिए कि जिस परमात्मा ने ये अनंत चौजें बनायी हैं उसमें से हम एक भी नहीं तैयार परमेश्वर के नाम से चिपके हुए हैं। सुबह उठकर कर सकते । कोई भी जीवंत कार्य प्राप नहीं करने भगवान को दिया दिखाया, घंटी बजायी कि हो बाले। परन्तु इतना हो होता है कि पार होने पर गया काम पुरा । इस तरह का बतवि करने वाले से भरे रहते हैं और पूरी तरह की उनमें अ्पवित्रता है। तो श्पने उनके मार्ग पर चलते समय ठीक से हैं ? हम मनुष्य स्थिति तक आये हैं तो हमको है । जसे-जेसे लोग परमेश्वर को तत्वतः छोड़ रहे हैं वैसे-वैसे वे केवल 1 मनुष्य को मनुष्य योनि में ही मालूम होता है कि लोग हैं। उन्हें समझ लेना होगा कि इस तरह की मैं पार हो गया है। ये पहली बात है। दूसरी उसमें फिजूल की बातों से परमात्मा कदापि प्राप्त नहीं वह शक्ति आती है कि जिससे वह दूस रों को पार हैग । परमात्मा रप में है। उन्हें जागृत करना करा सकता है । उसमें से बह शक्ति बहने लगती पड़ेंगा और हमेशा जागृत रखना पड़ेंगा, और दूसरों है । वह एक-एक करके अनेक हो सकता है । मतलब उसे देवत्व प्राप्त होता है। बह स्वयं देवस्वता में उत- है अर श्री गणश उनकी कृति हैं और श्री गरणेश रता है। अब] ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अच्छे-प्रच्छे गुरू बनाये हैं । गुरू बड़े-बड़े हैं, पर उनके शिष्यों में मैंने देवस्व आया हुआ नहीं देखा । उनमें परिवर्तन नहीं हुआ । वे जहां पर हैं वहीं पर है। क्योंकि, शिष्य भी तो भय के कारण, या श्रद्धा से वे पूरी तरह घटित नहीं हुए हैं। वह घटना घटित नहीं हुई है । वह परिवर्तन अंदर से नहीं प्राया है । हैं जिस हाथ में सर्प दिखाते हैं वही ये कुण्डलिनी मतलब इनकी अगर जड़े ही ठीक करनी है या फुल है । उसी प्रकार हमारे सहजयोगियों का है। का फल बनाना है तो पूर्णतः बदलना पड़ता है। अआशचर्य की बात ये है कि सहजयोगी ये जो पार ऐसी स्थिति अभी किसी की नहीं आयी है । तो होते हैं उनके हाथ पर कुण्डलिनी चढ़ती है । उनके कहना ये है कि उसके लिए अपना श्री गणेश तत्व जागृत होना चाहिए लना चाहिए। आजकल के जमाने में हम तरह-तरह भी कूण्डलिनी ऊपर उठाता है । दो-दो साल के बच्चे, मेंवह जागृत करना चाहिए। [अगर कु्डलिनो मां उनकी जड़ है । आपमें जो कूण्डलिनी है वह श्री गणेश के हाथ पर घुमती है। श्री गणेश के हाथ में क्या है ये ने देखा होगा । उनके पेट पर एक सर्प बंधा रहता है । यों कहा जाए तो श्री गणश के चार ही हाथ हैं, परन्तु सच कहा जाए तो उनके अनंत हाथ हुए 1 हाथ ऊपर करते ही दूसरों की कुण्डलिनी ऊपर उठती है । मतलब अ्रब छोटा सा सहजयोगी लड़का । उसे आपको सवंप्रथम संभा- के सिनेमा नाटक देखते हैं, विज्ञापन देखते हैं और पांच-छः साल के बच्चे आपको कहेंगे आपकी निर्मला योग २३ सिने मा के अभिनेता, अभिने त्रियां है । वहां पर सभी तरह की सुभत्ता श्रौर सुविधा होते हुए कुण्डलिनी कहां पर अटकी है, उसकी व्या स्थिति है। मेरी नाती सात-प्राठमहीने की थीं, तब ये श्री मोदी मेरे यहां आये थे, और उनका श्राज्ञा-चक्र भी वहाँ के लोग बच्चों को प्यार नहीं देते। छोटा पकड़ा हआ था तो बातें करते करते उनकी कुछ बच्चा जन्मने पर उसकी माँ उसकी हिन्दूस्तानी समझ में नहीं परा रहा था। वह घुटनों पर चलते मां की तरह परवरिश नहीं करती, उसे एक कमरे चलते प्रपने श्रर उनके माथे पर कुमकुम् लगाया और उनका को मां की ममता व प्यार तहीं मिलता आज्ञाचक्र उसने छुड़ाया। हर वक्त उसका यही काम होता है । यही मैंने मेरे और सहजयोगियों के बच्चों में देखा है । कितने लोग जन्म से ही पार हैं। धावणे' (छोटे बच्चे का मंदगति से क्रीड़ा मय जन्म से पार होना कितनी बड़ी बात है । परमेश्वर आमोदकारी भागना-दौड़ना) इस क्रिया का प्रति- ने अब शुरूआत की है। मतलब साक्षात जन्म से ही शब्द ही नहीं है । छोटे बच्चों को वे कभी भागते पार अ्रब संसार में पेदा हो रहे हैं । उस के लिएद संन्यास की जरूरत नहीं है। जिसे संन्यास लेने की यहां 'दूडदूड धावणे वात्सल्य रस है । अपने जरूरत लगती है समझ वे अभी तक पार नहीं हुए यहाँ श्री कृष्ण का या श्री राम का बचपन का की डिबिया लेकर आयों में डाल देती है। इसीलिए बचपन में वहाँ के वच्चों हाथ में कुमकुम् मजे की बात देखिए वहाँ की भाषा में 'दूडदूङ दौड़ते हुए देखते भी हैं कि नहीं पता नहीं। जाते हैं । वर्णन पढ़ते समय आनन्द होता है होने के बाद आप अन्दर से छुटते परन्तु आपको हैं। पार ऐसा होने से संन्यास बाहर से लेने को जरूरत नहीं उनकी भाषा में येसु ख्र स्त का बचपन का बरणन है । यदि अन्दर से संन्यास लिया है तो उसका प्रदर्शन कहीं नहीं मिलेगा । व विज्ञापन करने की क्या आवश्यकता है? अगर आप पुरुष हैं तो आ्राप चेहरे को देखकर ही लोग कहेंगे ये पुरुष है या स्त्री है । उसका आप विज्ञापन है ? पवित्रता माने क्या ? मैं ही सब कुछ हैं', ऐसा लगाकर तो नहीं घूमते कि हम पुरुष है हम स्त्री जो समझता है उसका ये श्री गणश तत्व नष्ट हो हैं। उसी तरह ये हो गया हैं तो बहुत कुछ होने पर भी गंदर से इस शरीर में ऐहिक, पारमार्थिक सुख, समाधान वर्गरा सहजयोग में सहज मिलता है । उसके लिए संन्यास वर्गरा नेने नहीं रखना । की कोई आवश्यकता नहीं है । संसार से (प्रपंच से) जाने की भी आ्रवश्यकता नहीं है। श्री शंकर जी की ही आपको परमेश्वर- प्राप्ति होगी और देवत्व जो स्थिति है या कहिए श्री शकर जी ने जो स्थिति चाहिए तो भी संसार में रहना होगा। अगर शरपने प्राप्त करी है उसके लिए उन्हें भी श्री गणेश बहुत तीव् प्रौर कठिन वैराग्य का पालन किया तो निर्माण करने पड़़े । उसी प्रकार आापको भी श्री ब्रह्मषिपद मिल सकता है । परन्तु मुझे ऐसा मह- गणश निर्माण करने होंगे । श्री गणेश क्या है ? [श्र श्री गणेश तत्व क्या के प मन से संन्यासो जाता है । परन्तु उसका एक सुन्दर उदाहरण है- सन्यास लेना और विवाह नहीं करना। धर से बाहर रहना और दूसरे किसी के साथ सम्बन्ध ये भी दूसरे ही लोग हैं । श्रीगणश तत्व अगर आप में जागत है तो संसार में रहकर सूस होने लगा है कि ब्रह्म्षि भी बहुत पहुँचे हुए हैं, मैं जानती है उन लोगों को, परन्तु वे अ्रब कुछ करने पश्चिमात्य देशों में नयी-नयो मूर्खता पूर्ण को तयार नहीं हैं, उनमें इतनी आन्तरिकता, कल्पनाएं बनाकर उन्होंने उनके जीवन से अ्रबोधिता आत्मीयता नहीं शर वे मेहनत करने को भी खत्म कर दी है । वे कहते हैं, बच्चों ने दुबला-पतला तैयार नहीं हैं । मुझे बहुत दुःख होता रहनाहै । पुष्ट नहीं होना है क्योकि उनके आदर्श है । उनकी भावना है कि ये जो भक्त लोग हैं, उन कभी-कभी निरमला योग २४ भी तेयारी नहीं है। पर, जिन को माँ या गुरु माना जाय, श्रपने से बड़ा भक्तों की श्रभी तक कुछ अगर मेहनत की तो हम तेयारी कर सकते हैं माना जाए, उन्होंने अगर 'स्व' का मतलब नहीं और उसे (भक्त को) आगे बढ़ा सकते हैं । वहत जाना तो आपको उनके जीवन से क्या आदर्श बार मुझे लगता है ये सभी मेरी मदद के लिए अरब दौड़कर आये तो कितना अचछा होगा। मुझे बहुत आपकी आत्मा । मानने वाले एक कलकत्ता के पास हैं, उनका नाम श्रो व्रह्मचारी है और वे बहुत पहँचे हुए हैं । उहोने मेरे बारे में किसी श्रमेरिकन मनुष्य प्रभी मिलने वाला है ? सहजयोग में 'स्व' का मतलत है, मूलाधार चक्र पर श्रीगणश का स्थान करसे हैं, उसमें कडलिनी-की आवाज कैसे होती हैं और कुंडलिनी केसे घूमती है, हर-एक पंखुडी में कितनी तरह-तरह के रंग हैं और वे किस तरह पंखूडी में हते हैं ग्रौर सारा शोभित करते हैं, ब गैरा बहुत कुछ है। उसका सब ज्ञान आपको मिलना चाहिए। और वह मिलेगा। और उसमें से हम कुछ भी छिपा कर प्रमे रिका क्यों नहीं जाते ? वे अमीरिको गये परन्तु नहीं रखेंगे । हर-एक बात हम आपको बताने के लिए वहां से पाँव दिनों में भाग आये र मुझ कहने नैयार हैं । परन्तु प्रपको भी तो पार होकर लगे, मुझे ऐसे लोगों से नहीं मिलना है, वे एकदम परुथार्थ करना होगा। आपने पूरुषार्थ नहीं किया को कहा कि श्रीमाता जी अच साक्षात आयो है तो हम अब उतका काम देख रहे हैं । हमें भी यही काम करनी है और कुछ राक्षसों का नाश हुन मनन-शक्ति से करते हैं । वे मेरे पास आने पर मैंने उन्हें कहा आप मतलब ये त्रह्मचारी जसे लोग रहने की वजह से एकदम माणरसधाणे (मनुष्य जिसे बदबू आये ऐसा) हुए हैं । ऐसा ही करना चाहिए । ऐसे कोई साधू- सन्त आने परे आप ज्यादा से ज्यादा उनके चररों पर जाओोगे । उनपर श्रद्धा रखागे उसके कारण गन्दे लोग हैं । तो आ्रापको कोई फायदा नहीं होने वाला । मनुष्यों में न अ्रव पूजा में क्या कारना चाहिए यह सवाल लोगों का रहता है। श्रीमाता जी गरेश का पूजन कैसे करें ? क्योंकि, हम 'परोक्ष विद्या' जानते हैं, आपकी स्थिति में सुधार आए गा। पर फिर आपके जो आपको दिखाई नहीं देता, जिसे नानक जी ने अलख कहा है। उस श्राख से हम देखते हैं। जो साक्षात्कार का क्या ? क्यों कि उसके लिए होयें काडना है, सर्वप्रथम देखिये आप में पावित्र चलाने पड़ते हैं । बच्चे को ठीक करना है, उसे हैमे वहना है, सर्वप्रथ म देखिये आप में पावित्र्य संभालना है तो माँ को गन्दगी में हाथ डालना है कि नहीं। स्तान वगरा करना ये तो है ही, परन्तु पड़ता है। अगर वह 'गन्द-गन्द कहने लगी तो उसका इतना महत्व नहीं है, वह अगर न भी हो तो कोई बात नहीं। एक मुसलमान भी धीगणश बच्चे को कौन साफ करेगा ? अ्रौर इसीलिए ये एक पूजा बहुत अच्छी करता है। आपको आश्चर्य होगा, लजीरिया के करीब पांच सौ मुस लमौन सहज- योगी हैं। जवान लड़के-लड़कियां पार हुए हैं । परस्तु उनका प्रमुख जो है, उसका नाम है श्री जमेल और वह श्री गराश पूजा इतनी सुन्दर करता है कि देखने लाय क । श्री गरणश को रखकर स्वयं उनकी सून्दर पूजा क रता है। मतलव सहजयोग में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सभी आते हैं और फिर उनके देव-देवता केसे सहजयोग में हैं, बह उसमें अब ये श्री गेश तत्व माँ का काम है और वही हम सहजयोग में करते हैं । आप सब उसमें नहा लीजिए, उसका आनन्द उठोइये, यही एक माँ की इच्छा है । माँ की एक ही इच्छा होती है, ग्पनी शक्ति अपने बच्चे में आनी चाहिए । जब तक सामान्यजन को उसका फायदा नहीं होता, जब तक सामान्यजन उसमें से कुछ प्राप्त नहीं करने और जब तक उनको अरपनी माँ को शक्तियाँ नहीं प्राप्त होती तो ऐसी माँ का क्या अच्छा तो दिखाया है फायदा ? ऐसी माँ न हो तो च्छ । निमंला योग २५ू Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 आनेवाला नही । इसीलिए क्षमा करना जरू री है । संसार में आए है। देवी महात्म्य म्थात देवी कयोकि जब तक नाक नही पकड़ो तब तक मनुष्य भागवत, जो मार्कण्डेय जी ने लिखा है, ये आप कोई बात मानने के लिए राजी नहीं है । इसीलिए ये ू सभो बीमारियाँ आ्रायी हैं, ऐो सा मुझे लगने लगा प्ाप पढ़िये । उस्होंने कहा है, श्री राधा जी ने अ्रपना है। क्योंकि, कितना भी मनुष्य को समझाओो फिर पृत्र तयार किया था. जिस तरह श्री पावती जी ने भी वह एक पर एक अरपनी बुद्धि चलाता है। इसका मतलव है अपको अरभी प्रपने भापको अर्थ है धर उस धी गेश तल्व [पर पাघारित जो नही मालूम हुआ है। [श्रपका संयन्त्र जुड़ा नहीं है। पूत्र वनाया था वह इस संसार में श्री येसु रिब्रस्त पहले उसे जोड़ लीजिए । पहले आरारम-साक्षात्कार शया । शअब 'क्रिस्त क्योंकि, राधा पा लीजिए, यही हमारा कहना है । उसमें अपनी जो विचारों से, पुस्तक पढ़कर नहीं होता, वह पन्दर से होना चाहिए ये घटना श्रर इसी तरह उन्होंने ये जो गसदा तर्व है. उसको घटित होनी चाहिए। कभी-कभी इतने महामुख पूर्ण रूप से अ्रभिव्यक्त किया, वह श्री स्ब्रस्त लोग होते हैं, विशेषत: शहरो में, गाँवों में नहीं । वे स्वरूप में है । अव ये अरपने आपको क्रिश्चन कहते हैं, प्रजी हमारा तो कडलिती जागरण हुआ कहने वालों को मालूम नहीं है कि वे येशु रिक्रस्त ही नहीं है। देखिए हम करसे ? मतलब बहुत अरच्छे आपका कुडलिनी बहुत बड़ा शारीरिक हो, मानसिक हो, वोिक निकलवा लीजिए। वह कुछ अच्छा न ही आज्ञाचक्र पर प्राकर थी येसू क्रिस्त के स्वरूप में पढ़िये । उसमें जो श्री महाविष्यु का वरांन है, वह किया था। परन्तु श्री गणाश तत्व उनमें मुख्य तत्व बनकर जी ने बनाया था इसलिए कृष्ण के नाम पर वह ध्री क्रिस्त हुआ प्रोर यशोदा है वहाँ, इसलिए येशु। मत चलाइए पहले श्री गणश थे प्रोर मे श्री गणेश तरव का आविभाव है वह अब एकादशरुद्र में किस तरह जागरण नही हप्रा है तो ग्राप में कोई आने वाला है वह मैं आपको बाद में बताऊगी । दोष है। कहने का मतलब है कि मूलाधार चक्र पर जो श्री गश परशु हाथ में लेकर सबको थाड-थाड मारते है पप। क्या कहने ? अगर हो, उसे ं हैं। साफ होना पड़ेगा। साफ होने के बाद ही आनन्द ये बही ्ज्ञा चक्र एर प्राकर क्षमा का एक तस्व प्रन वाला हैं । यह जानना होगा। फिर सब कुछ ठीक होगा बन गये। क्ष मा करना ये मनुध्य का सबसे बडा हथि- यार है। यह एक साधन होने से उसे हाथ में तल- । प्रब जो अहंकार का भाव है व धरी गराश वार भी नहीं चाहिए। केचल उन्होंने लोगों को क्षमा जी के चरों में प्र्पण की जिए। शरी गराश की किया तो उन्हें कोई तकलीक नहीं होगी इसलिए प्रार्थना करिए, 'इमारा अहंकार निकाल लीजिए। प्राजकल के जमाने में सहजयोग में जिसका प्राज्ञाचक्र ऐसा अगर पने उन्हें अआज कहा तो मेरे लिए पकडता है उसे हम इतना ही कहते हैं,"सबको माफ बहुत आनन्द को वात होगी क्योंकि, धी गगेश करो" । घोर उससे कितना फायदा होता है, जैसा सबका पुत्र हो, ऐोसा हम कहते हैं। उनके वह कितनों को पत। है? अ्रर सह जयोगी लोगों ने केवल नाम से हमाग पू रा হरीर चंतन्य लहरियों से नहानलगता है। ऐसे सुन्दर श्री गणश को नम स्कार करके अराज का भाषरण पूरा करती है । उसे मान्यता दी है। देखा है, सब फुछ सहज- योग में प्रत्यक्ष में है। अगर मापने क्षमा नहीं की तो मापका प्राज्ञाचक्र नही खूलने वाला, आापका सिर- दर्द नहीं जाने वाला और आपका भार भी नीचे भाषण का हिन्दी अनूवाद) ( भवित-संगम', अप्रेल १६८३ में मुद्रित मराठी Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002, One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription As. 30.00 Foreign [ By AirmailE75 14] ---------------------- 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt ॐ निर्मला योग मार्व-प्रप्रेल १६८५ द्विमासिक वर्ष ३ शक [१ म एल ॐ त्वमव माकषात्, श्री कल्की साक्षात, श्री सहत्रार स्वामिनी. मोक्ष प्रदायिनी, माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। प पी ी 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt निर्भल * वाणी भयंकर से भयंकर बीमारियाँ सहजयोग से ठीक होती हैं। परन्तु बीमारी ठीक होने के बाद लोग सहजयोग को सहजता से लेते हैं । ऐसे लोगों को बीमारी ठीक होने के लिए सहजयोग श्रर माताजी चाहिए ! ऐसे लोगों को सहजय, ग क्यों ठीक करे ? जो परमात्मा का दीप नहीं बनना चाहते, परमात्मा का संयंत्र नहीं बनना चाहते, ऐसे लोगों को परमात्मा ने ठीक भी किया तो उनसे इस दुनिया को प्रकाश नहीं मिलेगा । १. जिस मनुष्य में सहजयोग का कार्य करने की इच्छा है, जिस मनुष्य ऐसे ही लोगों की परमात्मा मदद करेंगे और ऐसे ही दीप जलाएंगे जिनसे इस पूरे विश्व में प्रकाश फैलेगा । में दीप वनने का सामर्थ्य है, श्री कल्की चक्र ठीक रखने के लिए सवंप्रथम मनुण्य में परमात्मा के प्रति अत्यंत आदर, प्रेम व २. प्रदरयुक्त भय (awe) होना जरूरी है । अपने में निर्विचारिता कसे आएगी श्रर वह ज्यादा से ज्यादा समय कंसे टिककर रहेगी इसका ३. सहजयोगियों को ध्यान रखना है। पूजा के समय अगर अाप निर्विचार होंगे तो मानना कि हृदय ने साथ दिया। पूजा सामग्री एकत्रित करके सरल-सीधे मन से अपण कीजिए। उस समर्पण में दिखावा नहीं चाहिए । कोई भी Gonditions (बंधन) अपना चित्त जब हृदय पर होगा तब वह दूसरों को नहीं सोचेगा । नहीं चाहिए । पानी से हाथ धोते हो, हृदय तो नहीं घोए ? आपने बाहर से मौन घरा है लेकिन अंदेर से आप सोच विचार कर रहे हैं । इसलिए बहुत देर तक गूगे की तरह नहीं बैठना चाहिए। मनुष्य का हृदय जब साफ नहीं होगा तो ऐसे गंगेपन से बहुत नुकसान होता है । उसके विपरीत बहुत ज्यादा इधर-उधर की ऊटपटांग बात भी बहुत नुकसानकारक हैं । ५. द्वितीय कवर निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt हेी |ु सम्पादकीय अनुशासन का अपना महत्व है। आध्यात्मिक क्षेत्र में भी इसे नकारा हर क्षत्र में नहीं जा सकता है। अनुशासन सहजयोग का भी एक अंग है । अरंतर] इतना अवश्य है कि सहजयोग में अनुशातन स्वयं का अन्दर से होना चाहिए, बाह्य से थोपा हुआ नहीं। क श्री माताजी ने भी अनुशासन पर काफी बल दिया है हम सभी सहजयोगी अनुशासन-बद्ध होकर ही प्रगति के पथ पर अग्रसर सकते हैं । हो श्री माताजी की आजा का अनुसरण] करना ही हमारा अनुशासन होगा। निमला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक : परमपूज्य माताजी थी निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आनन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकराी प्रतिनिधि कनाडा श्रीमती क्रिस्टाइन पेट्र नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२०१ : लोरी हायनेक ३१५१, होदर स्ट्रीट वेन्क्रवर, बौ. सी. बी ५ जेड ३ के २ यू .एस.ए. यू के. श्री गेविन ब्राउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेंशन स्विस लि., १३४ ग्रंट पोर्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्ल. १ एन. ५ पी. एच. श्री एम. बी. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ भारत इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य माताजी का प्रवचन ४. त्योहार ५. कुण्डलिनी प्रौर श्री गणेश पूजा (परमपूज्य माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी प्नुवाद) ६. निर्मल वाणी १ २ ेक्री ३ १३ १४ द्वितीय कवर 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt ।। जय श्री माता जो ।। वमशाला ३१-३-८५ घमशाला के मातृभक्तों को मेरा कार्य पसन्द नहीं पराता तो वो ्राँख मुंद लेते हैं और सारा नजारा भी खत्म हो जाता है। परवाह तो माँ को करनी पड़ती है कि मेरे बच्चे ठीक से रहें। सं सार एक बड़ा सून्दर आलीशान ऐसा विशेष प्रणाम् ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन विया जिसके लिए मैं उनकी बहुत धन्यवाद मानती है । ल में इतना सत्कार अर अनद मम रूप का आद्श हो कि जिसे देखकर परमात्मा संतुष्ट हो जाएं, ये लेकिन प्राप जानते हैं कि हर बार ऐसे प्रयत्न हुए । पूरा प्रयत्न होता रहता है । दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रम की भावना अने क अरवतार इस संसार में आए और अनेक उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है । कलियुग में कहा जाता है कि काई भी माँ को नहीं मानता । ये कलियुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं । लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । प्रयत्न हुए । ले किन मनुष्य की अक्ल उलटी बैठ जाती है। कोई बात उसे बताओ "नहीं करो", तो वो जरूर वही काम करता है । त अभी आपसे योगी जी ने कहा कि अपआप शराब मत पीना, अगर प मां के भक्त हो । ले किन ऐसा माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने कहने से और ज्यादा ही पीना शुरू कर देंगे । मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को देखा है कि वच्चों से कोई चीज़ मना करो तो वे समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल-घोल कर इस इबल (दोगूना)करते हैं, कि क्यों मना किया इसीलिए तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हम करंगे, अरहुंकार की वजह से । इसका बेहतर हर चीज करने को तयार हो जाता है । ये प्यार तरीका मैंने सोचा कि इनके प्रन्दर ज्योत जला दो- की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ जयोत जल जाएगी तो उस ज्योत के प्रकाश में खुद का होना. उनकी हरियाली उसके वाद एक पेड़ में ही देखेंगे कि हमारे अन्दर क्या दोष हैं ? अगर चाहे वो टिमटिमाती क्यों न हो । योड़़ी-सी ही से फुल हो जाना और फूल में से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कोन कहे कि भई तुम तो रस्सी की जगह साँप पकड़े हो करता है ? ये सब करने वाली जो शक्ति हैं वी परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम ग्रादि- शक्ति कहते हैं। समझ लीजिए आप हाथ में सांप पकड़े हैं श्और कोई सब करने वाली जो शक्ति है वो छोड़ दो। तो कहेंगे कि, "नहीं, मैं तो इसको पकड ही रहूँगा ।" बो मनुष्य की बुद्धि हुई ना ! लेकिन उस वक्त प्गर कोई उसके सामने ज्योत दिखा दे तो देखे कि सांप है तो उसको अपने आप ही छोड़ दे। परमात्मा तो सिर्फ नजारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य करसे हो रहा है ? जब उनको वो निर्मला योग ३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt इसलिए आज का हमारा जो सहज योग है, चलो इसके अन्दर एक दीप क्यों न जला दें । इसके उस में प्रपकी पहले कण्ड लिनी हम जगा देते हैं, अन्दर प्रगर दीप जल गया तो उस दीप में ये स्वयं चाहे आप कैसे भी हों, कुछ भी आपके त रीके हों, ही देख लेगा कि, "जो मैं ये कार्य करता रहा है ये में रे लिए इतना हानिकारक है ।" और वो समर्थ हों। उसके जगने के बाद फिर अप प्रपने ही आ्प हो जाय कि इस हा निकारक चौज को वो छोड़ दे, तो फिर कोई सवाल ही नहीं उठता। उसको कृछ कहने की जरूरत नहीं, उससे कोई झगड़ा मोल लेने की जरूरत नहीं। कहते ही साथ वो चीज़ अपने ही आप छुट जाती है । ऐसे ही चीज होता चाहिए । कोई भी ग्राप गलत रास्ते पर हों, कुछ भी करते ठीक हो जाते हैं । कुछ कहने की माँ को जरूरत नहीं पड़ती । क्योंकि आप खुद ही देखते हैं कि ये केसी चीज़ है ? अब शुराव ही की बात देखिए कि विलायत में तो अ्राप जानते हैं कि लोग हर रो ज सुबह-साम शराब पीते रहते हैं । बहुत ही शरा बी लोग हैं। हम आत्म-विधि नहीं हुप्रा, हमने अ्रगर ग्रपने आात्मा] और उनका जीवन भी बड़ा ही अधर्मी है । हम आज हम उस कगार पर पहच चुके है कि अगर है । ये बात विल्कुल सही है, क्योंकि कलियुग अब लोग उनसे बहुत ऊँचे किस्म के लोग हैं। हमारे अन्दर मा-बहन है। हम बहुत धर्म समझते हैं । रा चरम समा में पहुँच गया है। कुछ तो बीमारी হাराब ओप अब पीने लग गये थोड़ी-बहुत, वो दूसरी से होगा। वहुत से लोग ऐसी-ऐसी बीमारियों में बात है, बाकी हम लोगों में बहुत धम्म है । उन लोगों को, जब उनको जागृति हो जाती है, तो वि्वसक चौजों से हो सकता है। न जाने कितनी वो दूसरे ही दिन सब छोड़-छाड के खड़े हो जाते चाज हमने अ्रपते को नष्ट करने की जोड ली है हैं। कुछ मैं उनसे कहती नहीं । मैंने शुरू से ही ऐसा रवेया ही नहीं रखा कि कहो कि शराव मत पियो, जुआ मत खेलो, नहीं तो प्राधे लोग वसे ही उठ के विल्कुल भी सुखी नहीं हैं, आपसे बहुत दुखी जीव चले जाए वहाँ-प्राचे से ज्यादा ही। यहाँ तो कम से कम ये हाल नहीं होगा। इसलिए में कहती है, न कोई समाज है, न कोई माँ है, न कोई भाई है, कुछ नही, जेसे भी हो बैठे रहो। तुम्हें जागृति मुझे बस देने दो। जागृति देने से उनका अरहकार भी टूटता है और उनके अन्दर जो आदते बैठी हुई हैं. वो भी टूट जाती हैं। अपने आप वो आदते छुट जाने से वो समर्थ हो जाते हैं। फंस जाएंगे कि उससे बच नहीं पाएंगे। बहुत हम लोग सोचते हैं परदेस में लोगों के पास पैसा है, तो वो बड़े सुखी जीव होगे बहुत ज्यादा । हैं। आपसे बहुत ज्यादा दुखी है। क्योंकि उनके यहाँ न कोई वहन है। आप सोविए कि आपके पास वहुत सारा धन दे द और आपसे कहें कि अरप] अरकेले कहीं लट के रहिए, तो याप क्या सुखी रहेंगे ? জ- ऐसी उनकी हालत है । इतना पसा होने पर भी वो सब लोग कोशिश ये करते हैं कि हम अ्रत्महत्या केसे करे? आपको आश्चर्य होगा। उनके बच्चे ये से लोग मन से तो सोचते हैं कि ही सोचते रहते हैं कि हम कैसे आत्महत्या करें ? असल में बहुत खराब काम है, लेकिन उसे छोड़ नहीं पाते। उसकी बजह ये हैं कि कोई आदत पड़ गयो, तो एक माँ की दुृष्टि ये है कि जब बच्चे को आदत पड़ गयी तो सव हो जाएगा, सो बात नहीं। लेकिन पेसा भी उसको किस तरह से छुड़ानी चाहिए। उसको होना चाहिए । उसके लिए भी कुण्डलिनी का जाग डांटने से, फटकारने से, मना करने से तो छुटेगो रण ठीक है, क्योंकि प्रपने अन्दर देवी, जो लक्ष्मी नहीं। तो किस तरह से ? एक माँ सोचती है कि जी हैं, वो भी बसती हैं । जब हमारी कुण्डलिनी तो ये बात हम जो समझते हैं कि पैसा होने से निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt कुण्डलिनी शक्ति जो हमारे शन्दर है, ये हमारी शुद्ध इच्छा है । बाकी जितनी हुमारे अन्दर इच्छाएं हैं. जैसे कोई प्राएगी कहेगी, "माँ, मेरा बेटा नहीं चलो भई तुम्हारे बेटा हो जाएगा। बेटा हो गया। उसके बाद कहे गी कि, "मां, बेटा तो हो गया, अब मुझे नाती चाहिए।" वो भी हो गया। अ्रब मुझे घर चाहिए", घर के बाद "वो चाहिए", उसके बाद "वो चाहिए ।" इसका कोई अन्त ही नहीं है। इसका मतलब, हमारे अन्दर जो इच्छाएं हैं, वो इच्छाएं शुद्ध नहीं हैं । नाभि पर आ जाती है, जब हमारी लक्ष्मी की कूण्डलिनी खुल जाती है, तो हमारे अन्दर वो जागृति आ जाती है, जिससे लक्ष्मी जी का स्वरूप हमारे अन्दर प्रकट हो जाता है । । " अब जिन्होंने सोव के लक्ष्मी जी बनायीं वो भी बहुत सोच-समझ के बनायी हैं कि लक्ष्मी जी जो होती हैं, जो लक्ष्मीपति होता है, वो एक माँ स्वरूप होना चाहिए। आजकल तो जिसके पास पेसा आ जाता है वो तो राक्षस स्वूप हो जाता है। इमका मतलब पना पाना लक्ष्मीपति होना नहीं है । दूसरे उतके एक हाथ में दान है, एक हाथ में आश्रय है, एक हाथ से बो देती हैं और दूसरे हाथ से लोगों को आ य देता चाहिए दूसरे जो दो हाथ है, उसके मात्मा से एकाकार होने की एक, किसी तरह से, ये अन्दर कमल के गुलाबी फूल सहन, उनकी शक्ल-सूरत ऐसी होी चाहिए जैसे जाए कि हम ये परमात्मा की जो चारों तरफ फैली कि कमल का पूष्प हो। और उनके अन्दर वे ी ही हुई शक्ति है, जिससे सारा जीवन्त कार्य होता है, विचारधारा होती चाहिए, वेसा ही स्वागत होना चाहिए जैसा कि एक कमल काटों बवाल भीर की इस्छा है पर ये शुद्ध इच्छा की शक्ति ही कुण्डलिनी अपने यहाँ सोने की व्यवस्था करता है। कोई भी मेहमान उसके घर में आए, उसमें कित ने ही कांटे हों तो भी उसकी आवभगत करे उसको आराम दे, वहो लक्ष्मीपति है दो विचारी इतनी सीधी-सरल है कि एक कमल ही पर खड़ी है। उसको कोई और परमात्मी की छाया और जो हमारी कुण्डलिनी चीज़ की जरूरत नहीं। सारे तरफ कीचड़ फैला है उसी में एक कमल के ऊपर खडी हुई लक्ष्मी जो. को प्रतिबिम्ब है। उसकी जो इच्छा. जो ग्राटि- जिनको हम इतना मानते हैं, ऐसी देवी हमारे अन्दर जागृत हो जाती है, और उसके ये सारे लक्षण हमारे अन्दर दिखायी देते हैं । शुद्ध इड्छा 'एकमात्र है वो ये है कि हमें पर- है। माने उनका रहत- एक यूक्ति जुट जाए। किसी तरह से ये काम बन उससे हम एकाकार हो जाए यही हमारी शुद्ध है, श्रर जो ग्रादिशक्ति जो कि परमात्मा की इच्छा है उसी की ये प्रतिविम्ब है वही हमारे अन्दर छाया हुआ है। हसारे हृदय में जी अरात्मा है, वो हैं. त्रिकोणाकार प्रस्थि में है, व परमात्मा की इच्छा शक्ति है, उसकी छाया है, प्रतीक छः या है। ह इसको अगर आ्राप समझ ल तो फिर आपकी समझ में आ जाएगा कि हम धर्म के नाम में भी कितने भटकाव में घूम रहे हैं। वही आदिशाक्ति जो है, वही हमारी मां है । हम सबकी अलग-प्रलग माँ है । हमारे अन्दर बसो हुई है। ध्रोकृष्ण ने साफ-साफ कहा था कि, "जब योग क्षम करू गा। पहले योग को साधो।" लोग बड़ा-वड़ा लेकनर (भाषण) देगे को ही वो प्रदान देती है जो कि कोई भी माँ नहीं जिससे किसी के समझ में भी नहीं अएगा, सब द सकती। वयोक ये आदिशक्ति जो है पावन मति दे परमात्मा की शक्ति है, जो हमारे अन्दर वो सोचंगे पता नहीं क्या बक रहे हैं? ले किन सही बात गुरग ये हैं कि पहले योग को प्राप्त करें । जिसने योग को देती है जो परमात्मा को प्रसन्न रखे और हमारे अन्दर वो सामर्थ्य दे देती है, व। शक्ति दे देती है जो प्राप्त कर लिया वो सभावान में आ जाता है, उसके सारे प्रश्न अपने आप मिट जाते हैं। परमात्मा के सामर्थ्यं लगते हैं। निर्मला योग ५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt जैसे कि अब कोई कहता है कि, "माँ मुझे ये समझते । वताइये कि एक फूल से फल बनता है तो प्रश्न है ।" अच्छा, हमने कहा तुम घर जाओ, ठीक हुम क्या बना सकते हैं ? नहीं बना सकते । और हो जाएगा। घर जाते ही देखता है कि प्रश्न तो ऐसे हज़ारों करोड़ों हम बनते देख ते हैं, हमको कोई ठीक हो गया। माँ ने क्या चमत्कार कर दिया। भी चमत्कार नही लगता । एक पहाड़ी का बच्चा कुछ चमत्कार मैंने किया नहीं। कोई बात मैंने की पहाड़ी होता है । एक देसी का वच्चा देसी होता नहीं। क्या हुआ ? कि आपकी कुण्डलिनी मैंने है । शक्ल-सूरत वैसी बनी रहती है, कौन बनाता है ? ये सोचिये इसका चयन कौन करता है ? ये किस तरह से बारीक से बारीक चीजें हजारों जागरण कर दो। कुण्डलिनी जो है वो किसी भी कारण प्और करोड़ों ऐसी चीजे संसार में होती हैं । वो जो शक्ति परिणाम से परे चीज है । कोई है, किसी से पूछा ये कार्य करती है, जब वो हमारे अन्दर बहने लग भई तुमको क्या परेशानी है? हमारे पास पैसा नहीं जाए तो फिर व्या हम समर्थ हो ही जाएगे, हम इसलिए हम परेशान हैं । यही न ? कारण ये है कि शक्तिवान हो जाएगे, शक्तिशाली हो जाएंगे । पैसा नहीं है । और इसलिए आप परेशान है । लेकिन समझ ल आप कारण से परे ही चले जाएं, तो कारण भी खत्म हो गया और उसका परिणाम कि आज रामनवमी का शुभ अवसर है। इस शुभ भी खत्म हो गया। यही शारीरिक आधि-व्याधि रहती है । जब हमारे अन्दर ऐसी ही विशेष बात होगी, जहृी पर कि मुझे यहां शारीरिक अधि-व्याघि रहती है. तो हम सोचते हैं आज ही आना था । यहां सात देवियों का स्थान कि 'इसलिए हमें जुकाम हो गया क्योंकि हम सर्दी है। सात देवियां अने क बार प्राई । उन्होंने आकर में गये थे । अच्छा ! लेकिन ऐसी भी कोई दशा के युद्ध किये यहां । बहुत राक्षसों को मारा। बहुत होगी कि जहां जुकाम ही नहीं होता । "हमें इसलिए दुष्टों को मारा। केसर हो गया क्योंकि हमने ये गलत काम किया । या "हमें इसलिए ये बीमारी हो गई कथोकि हमने ये बदपरहेजी करी ।" लेकिन कोई ऐसा भी स्थान होगा जहां ये चीज होती ही नहीं। जहां प गलती ही नहीं कर सकते, या जहा ये केोरण ही नहीं व लोग काली विद्या करते हैं। [आप उस परेशानी वसते । इसको मेडिकल साइंस (चिकित्सा-शास्त्र # parasympathetic nervous system ( नाड़ी जाल) कहते हैं । लेकिन डॉक्टर लोग इसको समझने के लिए पहले सहजयोग को समझ लें, डाक्टर लोगों के पास जाइये, तो कहेंगे कि आपको तब उसको समझ पाएंगे। इन पहाड़ों में देवी का स्थान है । आप जानते हैं चीज़़ होतो है जब हमें अवसर पर ही आप से मिलना था। कोई तो भी आज भी मैं देखती है कि यहां बहुत से लोग तांत्रिक वनके और गुरू बनके शर झुठ मूठ करके घुम रहे हैं । उसके पीछे में श्रप लोग लग जाते हैं । ि) में फंस जाते हैं। झूठ-मूठ के लोगों के पीछे में लग करके आपने अपना काफी नाश कर लिया । आप कोई बीमारी ही नहीं है। लगता ही नहीं कि आपको कोई बोमारो है । चले जा रहे हैं । घर में रोज कलह हो रहा है, ले किन कमजोर आप हुए लेकिन प्रप लोग इसको बहुत आसानी से झगड़ा हो रहा है । कूछ समझ नहीं आता है, वच्चों समझ सकते हैं । जिसे लोग चमत्कार कहते हैं कोई का मन पढ़ने में नहीं लगता है, चंचलता आ गई | चमत्कार नहीं है । इसमें कोई चमत्कार नहीं है । सारी परेशानी कहां से आई ? सब इन तांत्रिकों के हम तो रोज के चमत्कार को चमत्कार नहीं । पीछे लगने से । इन भूठे गुरूओं के पीछे लगने से निमला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt आपको पता होना चाहिए कि परमात्मा को आज के राक्षसों का मर्दन यही है कि सारे तांत्रिकों पसा-वंसा कुछ समझ में नहीं आता है । प ये र सारे गुरुओं के पीछे मैं हाथ घोकर लगी हूं । जमीन है. इस जमीन को अप कहें कि मैं तेरे को दो पैसा देती है तो मेरा इतना काम कर दे । उसको समझ में आएगा। आप उसमें एक बाज डाल दोजिए, अ्रपने अरप उसमें बृक्ष आ जाएगा आ जाएगा । उसके लिए कोई आपको बो जमोन के लिए कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ेंगी। सिर्फ ये है गुरुआ के रूप में घूम रहे हैं श्रर उनके पीछे की उसकी अपनी शक्ति है । उस शक्त में जब बीज हुजारो पागल हैं । पड़ गया, तो प्रपने आप पुनप गया। लेकिन अरप में सोचते हैं कि हम ये करें, वी करें, इसे करने से, उसे करने से भगवान खुश हो जाएंगे। ये बिल्कुल जाने दीजिए। लेकिन जो अच्छे भले लोग हैं, जो बात नहीं। १६७० साल में मैंने खुले आम बम्बई में इन सव राक्षसों के नाम बताए थे कि सबने जन्म लिया हुआ है । इनसे बचकर रहें। एक-एक राक्षस चण्ड मुण्ड, सबने जन्म ले रखा हुमा है। और सारे प्रकुर । जाने दीजिए, इन बेवकूफ लोगों को उनके पीछे सादे-सरल हृदय के लोग हैं, वो भी ऐसे चक्करों में फंस जाते हैं । और उनके घरों में कलह, उनके सिर्फ प्रापका परमात्मा में पूर्ण विश्वास और शरीर में क्लेश, आदि कितनो तकलीफे होती हैं। भक्ति होनी चाहिए। और ये जानना चाहिए कि इसलिए इस चक्कर में विल्कुल नही पड़ना चाहिए । परमात्मा हैं। चाहे आप माने या न माने, परमात्मा कोई तात्रिक आए, आपके यहां हाथ में डोरा बाँधे ये चीज है जो इतने 'हजारों तरह के कार्य संसार आप उसको कहना, "माफ करिए, मुझे डोरा नहीं में करते हैं। वो परमात्मा जरूर हैं । लेकिन उनको वांधने का ।" बहुत से लोग काशो से गंडा ले आते अभी तक अपने जाना नहीं। मां को देंखे वगेर ही, हैं एक कोड़ी का कहीं से उठालाए, श्रर कहे जाने वगेर ही इतनी आपके अन्दर भक्ति है, तो काशो का गंडा है, बांधों इसे । काशी का गंडा आप क्या प्रापको मां मिलेगी नहीं ? ऐसे कसे हो सकता बाँधे रहे हैं। उसका प्रापने दो रुपया ले लिया। प्रब है ? क्या मा के अन्दर हृदय नही है ? क्या मां नहीं आप बाध लिया, लेकिन आप क्या जानते हैं उसके सोचती कि मेरे बच्चे मुझे याद कर रहे हैं ? तो उनके अंदर कोई चीज बंधी हुई है जो आरापको पकड़ लेगी। पास जाना ही होगा ऐसा तो कोई नहीं सोच ये न तो डाक्टर पहचान सकता है, न कोई हकीम सकता कि कोई मां को बुलावे और मां न प्राए । पहचान सकता है, न कोई वद्य पहचान सकता है। ये तो वही पहचान सकता है कि जिसको आत्म बोध ही गया है। वो बेत। देगा आपको कि आपमें पूकड़ श्री गयी है। लेकिन दोष कभी-कभी ऐसा हो जाता है, समय समय का, कि मनुष्य गलत रास्ते पर चला जाता है । गलत रास्ते पर जाने पर बो कार्य नहीं बनता है । ले किन जब समय आ जाता है तो जरू री है कि जो आपने चाहा अपनी भक्ति में बो फलित होना हो आते ही साथ कहा कि [अभी रात भर तो मूझे है। और ये कार्य आप लोगों की कुण्इलिनी के लड़ना है सबके साथ यहां पर, रात भर युद्ध होगा । जागरण के बाद जरूरी से करना है। ओर इस तरह की चीज़ यहां पर बहुते है, मैंने तोन दिन से रात भर युद्ध हो रहा है। श्और यहां ऐसी बहुत सी गंदी, मैली विद्यायें करने वाले पहले तो बात ये है कि कोई भी तांत्रिक के पास लोग छिपे बठे हुए है और वो गांव में अकर के जाने की जरूरत नहीं । यही आज का मदन है। ओरतो पर या आदमियों पर नजर डाल कर और निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt उनसे रुपया समेट रहे हैं। कोई कहेग। मुझे सिर्फ सब चोजों को आप छोड़ दीजिए। प्रगर इसको चावल दे दीजिए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए । आप छोड़़ दें, तो आप सो वे ही परमात्मा के मृझे ये चोज दे दी जिए, कभी भी आपने सुना हैं कि राम ने या कृष्णा ने किसी से भीख मांगी थी कि तूम मुझे चावल दे दो? या गडे बाँते थे ? या किसी से कहा था कि साम्राज्य में जा सकते हैं । कोई परेशानी नहीं होगी। मुे कुछ नहीं चाहिए । ये जो इस देश में रहने वाले लोग हैं खास कर ये तु म नाम ले लो भगवान का तो तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा ? हमें नासमझो है, लेकिन नासमझी इतनो हृद तक नहीं गुज रनी चाहिए कि हम भगवान में शर शैतान में फ्क ही न कर सक । हम ये भी न जा परदेश में रहने बाले लोग हैं, इनमें से क्ितने जाएगे भगवान के दरबार में ? बहुत कम । इनको तो मां के दरबार में प्राने की हिम्मत ही नहीं होने वाली । उसके लायक ही नहीं हैं। उसके योग्य ही नहीं हैं । उनका कुछ भी नहीं भला होने वाला । में आपसे बता रही है। हालांकि मैं परदेश में मेरे पति हैं, वहां रहती है, इतने सालों से मेहनत कर रही हैं। सब बेकार। आप लोग मेरे अपने हैं। [आप] लोग मेरे जान के प्यारे हो । लेकिन आप लोग भी से गलत फहमी में फंसे हुए, इधर-उधर भटक गये हैं, तो एक मां के लिए कितनी आतंता और कितनी न पहचान सके कि ये शेतान है, ये तो राक्षस हैं । ये तो हमारे लिए एक बड़ा भारो दूष्ट आ्रया हुप्रा है । हैमा रा मदेन काल अ्था हुआा है, उसको न पहचाने शकव-सूरत और हम भगतान की न पहचाने । से आप पहचान सकते हैं कि ये राक्षसी आदमी है। सकते हैं । वयोंकि उसके तौर तरीके से अप पहचान से आप इस वातावरण में रहते, आपक अरदर स्वदना वरेडानी की बात है। ये सोच लेना चाहिए कि है, आप समझ सकते हैं कि ये तो शैतान लगता है मां ने कहा है कि किसी तांत्रिक, किसी किसी गुरु, धंटाल के पास जाने की जरूरत नहीं। हम लाग ये आ्रादमी ठीक नहीं। उनके साथ बहू-बेटियों बैठगी, नुकसान प एग उनके साथ आदमी बंगे, तो नुकसान पाएं तो यहस्थ के लाग है । गृहस्थी के लोगों को गहस्थी से सम्बन्ध रखना चाहिए। हमा रा साधू सतन्यासियों से कोई मतलब नहीं । हम लोग कमाएं, हम यज्ञ कर के लोग हैं कभी भी आपके घर में तरक्की तुरुसन पाए गे। नहीं आएगी। ये सबसे बड़ी चीज यहां पर है और इसीलिए देवियां यहां पर हमेशा जन्म लेती रहीं । रहे हैं. हम गृहस्थी में वठे हुए हैं । क्या हमें चाहिए कि हमारा पसा उठा के इन साधु सन्यासियों को ले किन अव कलियुग में जो खराबी आ गयी तो दें ? कोई जरूरत नहीं । एक बार सोता जी तक ये है कि राक्षस ऐसे सामने खड़ हो ती उतनकी ग्दन साधू-सन्यासी से फंस गयी थी और आप जानते काट के फिकवा दें । लेकिन वो तो ऐसे सामने खड़ हैं वेवारी को सारा रामायण उसके बाद रच गया। नहीं हैं, सबके दिमाग में धुसे हुए हैं । सारे भक्तों इसलिए इस चक्करों में विल्कुल नहीं आने का । के दिमाग में, बच्चों के दिमाग में अगर राक्षस घुस आप खास कर औरतो पर इनका ज्यादा ्रसर जाएं तो मां का क्या हाल होगा। ये सोच लो । आ्प ही सोचिए। क्या प्रप एक माँ हैं या बाप हैं आप कितने परेशान हो जाएं ? ओर ये ही प्राज दशा देखती है लोगों की, कि सादे, भोले, अच्छे लोगों पर ये चीज बडी छाती है । ये शौक अरप छोड़ दीजिए । किसी गुरुगं के पास जाना, तांत्रिक के पास जाना, मांत्रिक के पास जाता, ज्योतिषो के पास जाना, ये आता है क्योंकि ग्रोर [ज्यादा सोदी सादो हाती हैं । अपने वच्चों को, अपने पर को, अपने पति को इससे में बचा कर रसिए। हमारे यहाँ की रामाज व्यवस्था अत्यन्त सुन्दर है अप नहीं जानते बाह्य में क्या है । कोई मर जाए तो पूछने वाला नहीं। वहां किसी को पता ही निमंला योग LF 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt नहीं चलता कि कोई मर गया। बाप मर गया तो कि जब देवी का अवतरण होता है तो सब जगह भी बच्चों को नहीं पता चलता । बच्चे मर गये तो ठंडी हवा आती है। उनके बदन से ठंडी हवा आती बॉप को पता नहीं चलता । उस लंदन शहर में एक है। इसलिए ये ऐसे-ऐसे गाने बने हुए हैं। ये पारम्प- हरते में तोन बच्चे, चार बच्चे मां बाप म र डालते रिक जो गाने बने हुए हैं, इसके अन्दर बडी खूबी से हैं। क्यों मारते हैं ? क्योंकि तंग आ गये । आरप है सोचिये कि कम से कम दो बच्चे तो मार ही डालते और देवो को कैसे पहचानना चाहिए । हैं। अ्रपने कहीं सुना है किसी मां को, बाप को, अपने देश में, चाहे दस बच्चे हो जाएं, वो पकड़ के मारता है ? इतनी जालिम उनकी आदत है, और सम्पदा है, वड़ी आपके पास में सुझ-बूझ है, समझ हम लोग इतने सहज सरल प्रेम के लोग हैं। हमको इस चक्कर पें बस नहीं फंना चाहिए । सारी बात लिखी हुई हैं कि देवी क्या चीज़ तो इस तरह से आप लोगों के पास तो बड़ी है, और आप सीधे साधे सरल स्वभाव के लोग हैं । जो कठिन स्वभाव के लोग हैं वो बड़े मु्किल होते हैं। आप लोगों को पार कराना कोई मुश्किल नहीं। बाकी आपको मैं जागृति आज दे दूँगी। आप लेकिन एक ही ववन देना है कि ये गुरू घंटालों को लोग पार हो जाएं। एक बार आत्म बोध होने के आप छोड़ देंगी और इस के आगे पीछे नहीं जाएंगी । बाद आपके हाथ में से चैतन्य की लहरियां शुरू हो उससे बड़े नुकसान पपने उठाये हैं और उठायेंगी। जाएंगी। आपके नस-नस में ये चीज बहना चाहिए। इस लिए पहले सबसे पहले आप लोग सब जागति ये नहीं कि कोई बता दे आप पार हो गए आपके हो जाए । सर में से कुण्डलिनी का जो ब्रह्मरंध्र है, छिद करके वहां से ठंडी हुवा आयेगो। यहां से ठंडी हवा आ जाएगी। आप देखेंगे कि अपके सर में से ठंडी हवा निकल रही है । हाथ में से ठंडी हवा श्रएगी द सुना कि यहां पर गाना गाते लोगो के बदन में शरीर हिलने लग जाता है । कहते हैं देवी आती है। ये गलत फहमी है बहुत बड़ी । दे ी किसी के बदन में नहीं आ सकती। बहुत और आप गाते भी हैं कि ठंडी हवा आयी और मुश्किल । देवी का काम करना आसान है ? देवी । के प्रन्दर तो हजारों चक्र होते हैं। उन चक्रों को आपने गाना भी गाया । हमसे योगी महाजन पूछ संभालना, उनको ठोक से उसका चलाना, उसमें रहे थे कि मां इनको कसे पता कि ठंडी हुवा आती से ठंडी ठंडी लहर बहाना, लोगों का भला करना है जत देवी आती है ? इनको कैसे पता चला ? ये और ऐसे इंसान का चरित्र भी तो उज्जवल होना रे वम्बई में जितनी नोकरानियाँ हैं, देवी तो यहाँ प्रनेक वर्षों से है । तो जिन लोगों ने शराब पीती हैं, सब ढंग करती हैं, उनके वदन में गाया होगा, पहले बताया होग। कि जब देवी आती शआती हैं देवी। बतायो, ऐसे कोई देवी कोई पागल है तब उनसे ठंडी हुवआती है । तो आदि है किसी के अन्दर भी आने के लिए । देवी तो एक शकराचार्य ने वरणंन किया है कि सलिलम- शुद्ध चित्त में ही आ सकती है । और फिर वो देवी सलिलम हाथ से ऐसी ठंडी-ठंडी हवा आनी आकर बताती भी क्या है कि तुम उसको सार डालो चाहिए। ये देवी की पहचान है। जिसके बदन में तो अच्छा होगा। घोड़े का नम्बर क्या है । फलाना ठंडी-ठंडो हवा आए बही अवतार है। ये देवी की क्या है, मटका खेलने का नम्बर क्या है । ऐसा कभी पहचान है । ये इन्होंने कहा था । लेकिन हमारे गांव देवी बता सकती है ? देवी तो हमेशा ऊंची बात उन्होंने देखा है करेगी, परमात्मा की बात करेगी, अ्रच्छी बात दूसरा मैंने ये जा ाी चांदी के पत्ते हिलने लग गये और देवी आयी तो, मैंने कहा, कि आदि काल से चला आ रहा हो । चाहिए हमा में जो परम्परा से चले आ रहे हैं, निमला योग ho 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt करेगी ऐसी गंदी बातें तो नहीं करने वाली। आप विल्कुल ठीक हैं । प्रापमें औोर कोई दोष नहीं। ये जब आप देखते हैं तब भी आप ऐसी [औरत के पैर पर आते हैं। ये तो भूत है । ये तो भूत हैं जो देखती है कि अज्ञान में, अंघकार में, आप गलत इन औरतों के अन्दर आ जाते हैं अऔर वो बोलने लोगों के पीछे में कभी-कभी चले जाते हैं । जो लग जाती हैं और आप उनको मानने लग जाती जितना नाटक करता है उतना उससे दूर रहिए हैं । ये जरूर है कि भूत को कुछ-कुछ वात मालूम होती हैं, वो बता देता है। लेकिन उस में क्या रखा है ? इन सब चीजों में क्या रखा हुआ है ? उसकी है। वास्तविकता है। कोई नाटक या भठ से नहीं प्रोर जाने से औ्र नुकमान ही होने बाला है मगर होता । अभी तक आपको अनुभव नहीं था, तो आज श्रप भूत के यहां गये, तो कल वो आपके अनुभव हम आपको दे देते हैं । अनुभव शून्य होने पकड़ जाएगा आपका खानदान खा जाएगा। की वजह से आप जानते नहीं कि कोन अच्छा हैं, हेसी औरतों को दरवाजे में आने नहीं देना चाहिए। बुरा है । अब आप [अनुभव पाएगे तो आ्ाप जानेगे। उनके धर खाना नहीं खाना चाहिए। बिल्कुल दूर रखना चाहिए, क्योंकि वो बाधित लोग हैं, उनसे बीमारियां होती हैं गंदी । जिस औरत के ब दन में देवी को मानते हो तुम, चिंतपूर्णी को मानते हो, क्यों? आता है उसको चाहिए कि वो और किसी दोष को मैं नहीं देखती है । सिर्फ यही । परमात्मा कोई नाटक नहीं है । बो असलियत अब कोई अगर आपसे पूछे कि भई तुन नैना वो तो एक पत्थर मात्र है। उसको क्यों मानते हो ? अपना भूत treatment (इलाज) करा ले और ठीव हो जाए। क्या जवाब है आपके पास । कोई जवाब नहीं कि अन्त में पागल होकर ही मरती हैं । ऐसी सब औरत क्यों मानते हो ? इनको शंकर जी को मानते हो ? पागल हो जाती हैं, पागल खाने में जाकर मरती शंकर जी के बाहर ज्योतिर्लिंग है वयों ? बारह ही आप लोग सब जानती हैं जो आर के यहां की बुढ़े हैं, उनसे पूछ लीजिए ऐसा होता है या नहीं । तो इस तरह की औरतों के पास या द्यादमियों के हो गए, बड़े बड़े ऊंचे पहुँचे हए, जो बड़े बड़े मुनि पास जाने की जरूरत नहीं, जिनके बदन में भूत ऋषिगरा लोग अपने यहां हो गए, प्रते हैं । इनको कहते आदमी भी लोग बहुत सारे होते हैं, जिनके अन्दर महमूस किया और कहा कि ये तो पृथ्वी तत्व ने वयों हैं ? क्या बात है ? आपको पूछना चाहिए कि क्यों भई कैसे क्या ? कसे जाना? जो बड़े-ब ड़े फकीर उनके दर हैं देव प्रा गये । और [ऐसे चंतन्य की लहरियां थी । उन्होंने इस चेतन्य को आ्र जाते हैं और खूब नाचने लग जाते हैं निकाली हुई चीज है। ये तो बाईवल में भी निखा में भूत अरजीव-गरजीव बातें करते हैं और मुंह से kerosene oil (मिट्टी का तेल) रखके ऐसे आग जलात हैं, और नीबू लगाते हैं, पता नहीं क्या-क्या तमाशे करते हैं । और लोग उस तमाशे पर ही ये हो जाते हैं । " । कि पृथ्वी तत्त्व में से निकलेगी चीज-स्वयम्भू ये स्वयम्भू चीज निकली है । पर पब वो स्वयम्भू की कोई भी मुर्ति बनाए, फिर कोई भी गंदा आदमी और भी मुर्तियां बनाकर उसको बेचे, मंहगा करे, ये सब चीजें परमात्मा की नहीं होती। जो स्वयम्भू चीज है, जिसमें से चंतन्य बह रहा है, वो सिर्फ तमाशा हो तो ठीक है, लेकिन ये तमाशा नहीं है। इसके पीछे में बड़ी जहरीली चीज है । ये सांप औ्र नाग से भी बदतर लोग हैं। क्योंकि ये प्रगर पको डस गये तो गये आप काम से । उससे ग्राप बच नहीं सकते । इसलिये इन लोगों से प्ाप दुर एक जगह है, जिसको कि राहुरी कहते हैं, जहां पर रहिये । इतना ही ज्ञान आपके लिए काफी है । बाकी कि हमारे वाप-दादे राज करते थे , वहां पर गए एक फकोर बता सकता है। इसका एक उदाहरण बताए एक बार हम, THE निर्मला योग १० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt थे । वहां किसी ने बताया कि मां यहां एक बड़ी कि आपके अन्दर प्रकाश आ जाए, और प्रकाश इस अजीब सी जगह है। यहां पर एक अंग्रे ज था कुण्डलिनी से अता है जो छः चक्रों को छेदती है, पचास साल पहले । तो बो यहां पर एक dam जिसको "पटचक्र-भेदन" कहते हैं। ये चक्र जव छिद (बांध) बना रहा था। जब बांध डाल रहा था तो जाते हैं तो एक तरफ तो हमारो तन्दुरुस्ती अच्छी उसने देखा कि एक जगह ऐसी है-करीबन सौ हो जाती है, अरोर दूसरे तरफ हमारा मन शान्त हो की जगह ऐसो-कि वहां कुछ भी करिए, आप खोद जाता है। शोर तीसरो तरफ हमें अत्मा की प्राप्ति ही नहीं सकते । और बहां आप कूछ बनाइये तो है। जाती है। आत्मा जो है सच्चिदानन्द है । माने वो ढह जाता है। रात में ढह जाए और सवेरे जो श्राप इस चेतन अवस्था में सर्य को जान सकते हैं। है फिर वो लोग बनाए, फिर वो रात में ढह जाए । तो ह ता कथा है कुछ समझ में नहीं प्रा रहा ? बडी चमत्कार की चीज है। तो एक फर्की र ने आ्राकर जानिएगा? जब तक आपके अन्दर चेतन्य की कहा. 'इमे छोड़ दो, ये मां का स्थान है, इसको नहीं छूता तुम ।" कि मैं क्या हूँ ? उसने कहा, "जो भी है, मैं कह रहा हैं कि इससे अ्लग हट जाओ। तो आप देखिए कि बांध ऐसा सीधा बनना चाहिए तो उस जगह बांध ऐसा बना चित्त जो है वो प्रकाशित हो जाता है। जैसे यहाँ हुआ है। तो मैं वहां गयी मैंने कहा ये तो सारा आप बेठे बंठे आप किसी के बारे में सोचे पऔर एक सहस्रार है । उन्होंने कहा, केसे ? मैंने कहा चलो, लोग तो सब पार हो। देखो इसमें से ठंडक आ हमारे यहाँ लंदन में जब पहले एक साहब पोर हुए फुट अरभी तक तो आपको सत्य-असत्य का फ्क ही नहीं मालूम । अब में भी सेत्य है या असत्य है अप क्या लहरियाँ नहीं आएगी तब तक आप क्या जानिएगा कि मैं क्या है ? उसने कहा, इसको कसे मालूम ? उसी प्रकार आप इसको चित्त कहिए कि आपका दम यहाँ पर समझ लो जलन आ गयी, माने क्या ? तुम रही है । ऐसी ठंडी-उंडी लहरें बदन पर ाने लग तो वहां के लोग शक्की ज्यादा हैं, आप लोग जैसे गई । अब जितने ज्योतिर्लिंग हैं उसमें से ऐसी बात भक्ति तो उनमें, शक्की हैं, ज्यादातर शक्की लोग है । अब आप जाइये, जब अआप कुण्डलिनी जागरण के बाद आप जाइये कहीं, वेषणो देवी जाइये, और शुरू करना जाकर देखिए । "अराप साक्षात् व्षी देवी है ? पूछिए, उनके अन्दर से ठंडी- ठंडी हवा अरानी शुरू हो जाएगी। तो असल है कि नकल है, ये पहुंचान पिता के लिए पूछा था सवाल । मैंने कहा ये आपके आ जाती है । होते हैं । उनकी समझता तो कुछ भी नहीं, देवी वर्गैरह| उनसे तो गणपति का 'ग' से पड़ता है। तो उनके यहाँ चमक आ गयी। तो कहने लगे, "मां यहाँ क्यों चमक आ रही है ? मैंने अ्रपने पिता के चक्र हैं प्रोर हो सकता है कि उनको बड़ा बुरा Bronchitis गले में शिकायत हो गयी, क्योंकि ये विशुद्धि चक्त है । तो कहा, "अच्छा मैं अभी फोन करता है।" स्काटलंड में फोन किया तो उनका अभ्मा ने यही कहा कि तुम्हारे बाप को बहुत bronchitis हो गया है और बीमार पड़े हैं। े कहा कि अच्छा। तो अब कहने लगे, "माँ कोई आदमी अगर आपके सामने ऐसा-वेसा आ जाए तो आप फीरन जान लोजिएगा । उससे गरम- गरम हवा आएगी। नहीं अएगी तो हाथ में कभी कभी फोड़े भी आ जाते हैं, कूछ ऐसे दृष्ट श्रादमियों से जो ऐ से दु्ट आदमियों दुष्ट होते हैं, वो फोरन आपको पता चल बुरा जाएंगे । आपको किसी से पूछना नहीं, होगा, आप फोरन कहेंगे कि इस आदमी से मेरा कोई मतलब नहीं, जाइये। साफ कह देंगे । इसका निदान क्या है ? और अब इसको कसे ठीक किया जाए।" तो निदान तो हो गया, मैंने कहा । अब इसको ठीक करने का तरीका हम तुमको बतात हैं कि तुम इसको किस तरह से कवच दो। जैसे ही अब अन्दर बाहर जानने का एक ही तरीका है निमला योग ११ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt उन्होंने कवच दिया आवे घंटे में उनकी अम्मा का के लोगों ने एम्बुलेन्स मंगवाई । जब तक फोन आया कि पता नहीं क्या हुआ तुम्हारे बाप तो एम्बुलेन्स आयी, लड़का चढ़ के ऊपर चला आया । लोगों ने पूछ भई तुम ऊपर चढ़ आए ? तो उन्होंने कहा वो, पता नहीं मुझे, एक श्ायीं थी। उन्होंने मुझे ठीक कर दिया । तो उन्होंने सोचा ये तो जो चित्त है वो आ्रालोकित हो जाता है । पागल हो गया है कि क्या ? तो उसको अस्पताल ले मेरी बुखार उतर गया है और दौड़ रहे हैं। वो तो बाहर चले गए। इस प्रकार ये चीज़ घटित होती है। कसे चित्त में प्रकाश आ जाता है । आप जिस के भी बारे गये वहां पूलिस ग्रायी। उसने पुलिस से बताया, बात मानिए, एक स्त्री थी, वो एक सफेद मोटर में यहाँ बैठे-बैठे जानेंगे। अब देखिए अ्रपने सुना होगा आयो। (हमारी सफेद मोटर है ) । और सफद कि रेडियो होता है, टेलीविजन होता है, कहाँ पर साड़ी पहनी हुई थी। और एक हिन्दुस्तानी स्त्री थी। प्रोग्राम होता है, यहां सुनाई देता है । उसी प्रकार उसने आ्राकर के और मूझे हाथ फेरा । इससे मैं ठीक हो गया। तो उन्होंने कहा कि भई ऐसे तो कोई जाल फैला हुआ है, 'हजारों उनके हाथ हैं. उसी से आया नहीं, हम तो पूलिया पर खड़े देख रहे थे, कार्य होता है। पर पहले उनके राज्य में तो उतरिए। और ये तो ऊपर चढ़ा आया | कहा कि नहीं, हुआ उनके साम्राज्य में तो प्रइये । अगर [शप उनके तो सही । ये तो बात है क्योंकि इसके तो कोई चोट राज्य में नहीं बैठे हैं, प्राप तो दूसरों के राज्य में वोट है नहीं । दूसरे दिन उन्होंने हमारा फोटो देखा, वेठे हैं तो वो ही आपकी परवाह कर । जब ओप तो बताया यही तो वो स्त्री थी जिसने हमें बचाया। परमात्मा के राज्य में अएंगे तब आपका पूरा तो पूछा कि तुमने किया क्या ? कहने लगे बस जिस इन्तजाम है बहां । सारे उनके देवदूत, गण आदि वक्त मैं गिरने लगा, तो मैने यही कहा कि, "हे सारे आपकी सेवा में खड़े हुए हैं। स ब के सब वहां पावन मां, Divine Mother मुझे तुम बचाओ पर पूरी तरह से आपकी व्यवस्था करगे और हर बस इतना मैंने कहा। मैने उसको याद किया सिफ । आपके प्रश्न जो हैं उसके वो इस तरह से आ्पको और कुछ नहीं। और जैसे मैं गिरा उसके बाद पता उसकी हल मिलेंगे कि प्राप हैरान हो जाइएगा कि नहीं कसे, ये एकदम आर गयीं, इन्होंने ऐसे हाथ किया। मैंने गाड़ी को आते देखा और उस से उतरते देखा और झट से नीचे आयीं और कर के मुझे में सोचेंगे, जो भी करना चाहेंगे उसके बारे में आप ऐसी किरणों हैं ऐसा उनका परमात्म। की 'अनन्त 1. 1 ये कैसे हो गया। ये मां हमें केसे प्राप्त हुआ । कते अनेक ऐसे उदारहण हैं, अनेक ऐसे उदाहरण ठीक भी कर दिया। ये उन्होंने साफ कहा, तो वो सहजयोग में देखे गये कि जिसका उत्तर कोई भी लोग परेशान हो गए । नहीं दे पाया। बहुत बार कहीं हुम आकाश से एकदम देखते हैं कि प्रकाश की ज्योत की कहा कि ऐसे तो वहुत किस्से India (भारत)में हुए ज्योत आ रही है । वो केमरा में पकड़ आ जाता है। है लेकिन अब इंग्लेण्ड में भी हो रहे हैं। अच्छी बात कही कुछ. कहीं कुछ । एक बार हम बैडफर्ड में थे । है। इसमें कोई विशेष बात नहीं है। क्योंकि जब. ये तो वहां के पेपरों ने भी छापा कि बेडफ्ड में हम जिसके हजारों हाथ हैं, जिसके हजारों शक्तियां है, गए थे । हम तो लेक्चर दे रहे थे, काफी लोग थे उस बक्त कोई नो बजे के करीब, या प्राठ बजे के करीब कोई लड़का ऊपर से नीचे गिर पड़ा । अस्सी फुट नीचे गिरा । उसके पास मोटर साईकल थी । पुलिया पर से जब गिरा तो लोगों ने, पुलिया पर बात है । क्योंकि उसके अन्दर ये शक्ति है ही जो उन्होंने चिट्टियाँ लिखीं उन्होंने कहा कि ये कैसे क्या हो गया ? तो उन्होंने बैठे हुए हैं। उसके लिए क्या विशेष बात है । 1 अगर हम कुछ हैं भी तो उसमें कौन-सी विशेष बात है। अगर सूर्य है, तो है, उसमें कोन-सी उसकी निर्मला योग १२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt है सो है। उसमें कोन सी विशेष बात है लेकिन ये आपका वड़प्पन है । इसीलिए मैंने सबसे पहले आपकी विशेष वात है कि आप इंसान से बढ़कर आप सबको प्रसाम किया था । इसीलिए मैंने कहा आज परमात्मा के दरवाजे आए हैं । और ये ही था कि आप सबको मेरा प्रणाम । नहीं आज आप इंसान से भी ऊँचे उठ करके अति मानव होने वाले हैं। आप एक आत्म बोध पाने वाले इंसान होने वाले हैं। ये अपकी विशेषता है । का प्रयोग करेंगे अब हम लोग थोड़ी देर में कुण्डलिनी जागरण स्योहार अंग्रेजी दिनांक/हिन्दी सम्वत् विवरण नाम कु डलिनी पूजा नाग पंचमी २० अगस्त १६८५ श्रावण शुक्ल पंचमी) शुद्ध स्नेह और संरक्षण के प्रतीक- स्वरूप बहन भाई के सूत्र (राखी) बांधती है । ३० श्रगस्त १६८५ रक्षा बंवन (श्रावण शुक्ल पूरिए मा) २० सितम्बर १६८५ गौरी पूजा (भाद्र शुक्ल पष्टी) नौ दिन तक आदि शक्ति की पूजा १४ से २१ अक्तूबर १६८५ (श्रावरण शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक) नवरात्रि आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय के प्रतीक-स्वरूप श्री राम २२ अक्टुबर १६८५ (श्रावण शुक्ल देशमी) दशहरा (विजया दशमी) द्वारा राक्षस पति रावण का हुनन । श्री लक्ष्मी की पूजा । भक्तजन सम्पूर्ण रात्रि जागते हैं और देवी की स्तुति में भजन गाते हैं । खोजागिरी पूजा २७ अ्रक्टूबर १६८५ (प्राश्विन शुक्ल पूरिणमा) (शरद् पूरणिमा) निर्मला योग १३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt । जय श्री माता जी ।। अमरहिद मंडल दादर, बम्बई २२ सितम्बर १६७९ गणेश प्ूजा कुराडलिनी और श्री श्री गणेश की आराधना अनादि है, वे प्रत्येक योग के लिये प्रारम्भिक मूख्य साधना हैं। यही कारण है, श्री आदिशक्ति ने ब्रह्मांड की रचना से पहले सर्वप्रथम श्री गणेश को बनाया इस विशेष तत्व की आराधना, श्री गणशजी की पूजा जिस महाराष्ट्र भूमिमें विशेष रूप से होती है, वहाँ के साधक क्या कभी जानेगे ? इसका उत्तर यदि 'हाँ में है तो आप के लिए परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवीजी का निम्न भाषण पढ़कर सहजयोग आत्मसात करने के अलावा दूसरा कोई भी मारग्ग नहीं है । आज के इस नवरात्रि प्रथम दिन शुभ घड़ी में, अब 'घट का क्या मतलव है, यह ऋत्यन्त गहनता ऐसे इस सुन्दर वातावरण में इतना सुन्दर विषय, से समझ लेना जरूरी है। प्रथम ब्रह्मतत्व में जो सभी योगायोग मिले हुए दिखते हैं। [आ्ज स्थिति है, वहाँ परमेश्वर का वास्तव्य होता है तक मुझे किसी ने पूजा की बात नहीं कही थी उसे हम अंग्रेजी में entrophy कहेंगे। इस स्थिति परन्तु वह बहुत महत्वपूर्ण है । विशेषत: इस भारत भूमि में, महाराष्ट्र की विनाशकों की रचना सृष्टि देवी ने ( प्रकृति ने) परमेश्वर को आती है, तब उसी में परमेश्वर की की है । वहां श्री गणेश का वया महत्व हैं, ये बातें इच्छा समा जाती है। वह इच्छा ऐसी है कि अब से लोगों को मालूम नहीं हैं। इसका मुझे बहुत इस संसार में कुछ सृजन करना चाहिए। यह में कहीं कुछ हल चल नहीं होती है । परन्तु स्थिति में जब इच्छा का उद्गम होता है या इच्छा की लहर पुण्य भूमि में, जहां अष्ट- बहुत आश्चर्य है । हो सकता है जिन्हें सब कुछ पता था इच्छा उन्हें क्यों होती है ? वह उनकी इच्छा ! या जिन्हें सब कुछ मालूम था ऐसे बड़े-बड़े साधु सन्त परमेश्वर को इच्छा कयों होती है, ये समझना मनुषण्य इस आपकी सन्त भूमि में हुए हैं, उन्हें किसी ने की बुद्धि से परे है । ऐसी बहुत सी बातें मनुष्य की बोलने का मौका नहीं दिया या उनकी किसी ने सुनी नहीं। परन्तु इसके बारे में जितना क हा जाए उतना कोई बात मान ले ते हैं, वेसे ही ये भी मानना कम है और एक के जगह सात भाषरण भी रखते तो पड़ेगा कि परमेश्वर की इच्छा उनका शोक है । भी श्री गणेश के बारे में बोलने के लिए मुझे वो उनकी इच्छा, उन्हें जो कुछ करना है वे करते रहते कम होता । सर्वसाधारण बुद्धिमत्ता से परे हैं । परन्तु जैसे हम हैं । यह इच्छा उन्हीं में विलोन होती है (एकरूप होती है) और बह फिर से जागृत होती है। जैसे आज का सुमुहूरतं घटपूजन का है। घटस्थापना कोई मनुष्य सो जाता है रर फिर जग जाता है । अनादि है मतलब जब इस सृष्टि की रचना हुई, सो जाने के बाद भी उसकी इच्छाएं उसी के साथ (सृष्टि की रनना एक ही समय नहीं हुई वह अनेक सोती हैं, परन्तु वे वही होती हैं और जगने के बाद बार हुई है।) तब पहले धटस्थापना क रनी पड़ी । कार्यान्वित होता हैं । वैसे हो परमेश्वर का है । जब निर्मला थोग १४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt जो नवरात्रि के नव दिन ( समारंभ होते हैं वे इस महाकाली के जो अवतरण हुए हैं विशेषकर महाराष्ट्र में) उन्हें इच्छा हुई कि अब एक सृद्ि्ट की रचना करें, तब इस सारी सृष्टि की रचना की इच्छा को, जिसे हम तरंग कहेंगे या जो लहरे हैं, वह एकवित अनेक कुछ उनके बारे में है । अव महाकाली करके एक घट में भर दिया । यही वह शक्ति से पहले यानी इच्छा शक्ति के पहले कुछ भी नहीं हो सकता । इसीलिए इच्छा शक्ति आदि है, और अंत भी उसी में होता है। प्रथम इच्छा से ही मतलब परमैश्वर व उनकी इच्छाश वित अपर सर्व कुछ बनता है और उसी में विलीन होता है । अलग की जाय, हम अगर ऐसा समझ सके तो तो ये सुदाशिव की शक्ति या आदिशक्ति है। ये समझ में अराएगा। आपका भी उसो तरह है, परन्तु आप में महाकाली की शक्ति बनकर बहती अगर अपना शरीर विराट का अंशस्वरूप माना तो घट है । थोड़ा सा फके है। आप] ओर आप] की इच्छा शक्ति इसमें फर्क है । वह पहले जन्म लेती है। जब उसमें जो बायी तरफ की शक्ति है वह आप की इड़ा नाड़ी से प्रवाहित होती है। उस शक्ति को तक कोई काम नहीं होता। मतलब अ्रव जो ये सुन्दर महाकाली की शक्त कहते हैं। इसका मनुष्य में विश्व बना है वह किसी की इच्छा के कारण है। सवसे ज्यादा प्रादुभ्भाव हुआ है । पशुओं में उतना हर एक बात इच्छा होने पर हो कार्यास्वस होतो नहीं है अपने में वह (मनुष्य प्राणी में) अपनी है। प्रोर १रमेश्वर को इच्छा कार्यानि्वित होने के दायीं तरफ से सिर में से निरलती है । उसके बाद लिए उसे उनसे अलग करना पड़ता है। अगर बायीं तरफ जाकर त्रिकोणाकार अस्थि के नीचे गणेश का स्थान है वहां खत्म होती है । मतलब महाकाली की शक्ति ने सर्वप्रथम केवल श्री होती है। उसे हम 'आदिशक्रित' कहंगे। ये प्रथम गरणेश को जन्म दिया । तव श्री गरेश स्थापित हुए । स्थिति जब आयी तब घटस्थापना हुई। यह अनादि श्र गणेश सर्वं प्रथम स्थापित किए हुए देवता हैं । काल से अनेक बार हुआ है। और शज भी जब ओर इसी तरह, जिस प्रकार श्री महाकाली का है, हम घटस्थापना करते हैं। तो उस अनादि अरनंत क्रिया उसी प्रकार श्री गणेश का है । ये बौज है और बीज से सारा विश्व निकल कर उसी में वापस समा जाता है। श्री गणेश, ये जो कुछ है, उसी का बीज कृति में हैं, तक आपकी किसो बात की इच्छा नहीं होती तब बह परमेश्वर में समायो रहेगी तो निद्रावस्था में जो श्री रहेगी। इसलिए वह उनसे अलग हो कर कार्यान्वित को याद करते हैं। तो उप् नवरात्रि के प्रथम दिन हम घटस्थापना करते हैं। मतलव कितनी बड़ी ये चीज़ है ! याद रखिए। उस समय परमे इव र ने भी 1. है, जो ग्रापको अंख से दिख रहा है, इच्छा की बह कार्यान्वित करने से पहले एकत्रित इच्छा में है, उसका बीज है । इसीलिए श्री गेग की और एक घट में भर दी । उसी 'इच्छा का हम को प्रमुख देवता माना जाता हैं। इतना ही नहीं, আज पूजन कर रहे हैं। उसी का आज हमने पूजन श्री गरणेश का पूजन किए बगेर आप कोई भी कार्य किया। वह इच्छा परमेश्वर को हुई, उन्होंने आज नहीं कर सकते । फिर वे कोई भी हो, शिव हो, हमें मनुष्यत्व तक लाया, इतनी बडी स्थिति तक वष्ण व ही या ब्रह्मदेव को मानने वाले हो, सभी प्रथम श्री गणेश का पूजन करते हैं । उसका कारण है कि ्री गेश तर्व परमेश्वर ने सबसे पहले इस सृष्टि में स्थापित किया । श्री गणेश तत्व मतलब जिसे हम अबोधिता कह ते हैं या अंग्रेजी में innocence कहते हैं । अब ये तत्व बहुत ही सूक्ष्म है, ये हमारी समझ में नहीं आता । जो बच्चों में पहुँचाया, तब आपका ये परम कर्तव्य है कि उनकी इस इच्छा की पहले वंदन करें । उस इच्छा को हमारे सहजयोग की भाषा में श्री 'महाकाली की इच्छा कहते हैं या 'महाकाली की হাक्ति क हते हैं । ये महाकाली की शकवत है और ये निर्मला योग १५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt रहता है, जिसकी चारों तरफ कमी है और जिसका उसमें एक बात बहुत महत्वपूर्ण है । वह है सुगंध फंला हुआ है। इसीलिए छोटे बच्चे इतने उसकी 'मां प्यारे लगते हैं । ऐसा यह प्रबोधिता का तत्व है वह इस श्री गणेश में समाया है । अब ये मनुष्य को बात नहीं । उसे कुछ नहीं मालूम, पेसा नहीं समझना जरा मुश्किल है कि एक ही देवता में ये मालूम है, पढ़ाई नहीं मालू म, कुछ नहीं मालूम । सब कुछ समाया है ? परन्तु अगर हमने सूरज को उसे केवल एक ही बात माजूम है । वह है उसकी देखा तो जैसी उनमें प्रकाश देने की शक्ति है उसी मां। यह मेरी मां है, ये मेरी जन्मदाबी है, यही प्रकार श्री गणेश में ये अ्रबोधिता है। तो ये जो मेरी सब कुछ है। वह मां से ज्यादा किसी भी अबोधिता की शक्ति परमेश्वर ने हममें भरी है, उसकी हमें पूजा करनी है। मतलब हम भी इसी बचपन से ये बी जतत्व है। इसीलिए हम अपनी माँ प्रकार प्रवोध हो जाएं । प्रबोधिता का अर्थ बहुतों को नहीं छोड़ते । हमें पता रहता है उसने हमें जन्म को लगना है 'अज्ञानी ' । परन्तु प्रवोधिता मतलब भोलापन, जो किसी बच्चे में है या मासूमियत परमेश्वर ने आपमें आपको दी है और वही मां कहिए, वह हमारे में अनी चाहिए। ये कितना बड़ा तत्व है ये अ्राप नहीं समझते हैं। एक छोटा वच्चा अगर खेलने लगे । वेसे आजकल के बच्चों में भोला- ने विठायो है वह आपकी मां हैं । उसे आ्रप पन नहीं रहा है । उसका कारण आप बड़ लोग ही हमेश। खोजते हैं। आपकी सभी खोजों में फिर वो हैं । हम दूसरों को क्या बताएं, हम कौन से अपने धर्म का पालन कर रहे हैं ? कितने घामिक हम हैं ? हो, किसी भी चीज़ का आपको शौक हो, उन सभी जो अपने बच्चों को घार्मिक बनाएं ? ये सब उसी शौकों के पीछे आप उस कुण्डलिनी मां को खोजते पर निर्भर है। इसीलिए वच्चे ऐसे हैं अब ये जो है। यह कुण्डलिनी मां आपको परम पद को मनुष्य में 'श्रबोधिता' का लक्षण है वह किसी बच्चे पहुँचाती है, जहां सभी तरह का समाधान मिलता को देखकर पहचाना जा सकत। है। जिस में हैं। इस मां की खोज, माने इस मं के प्रति सिंचाव, अबोधिता होती है वह कितना भी बड़ा हो) वह उसमें रहती है । जैसे कोई छोटा बच्चा खेनेगा, खेल गणेश तत्व के कारण जागृत रहती है। में वह शिवाजी राजा बने गा, किला बनवाएगा, सब करेगा, उसके बाद सब कुछ छोड़कर वह चला ' । उसकी मां वह नहीं छोड़ता । बाकी सब कुछ आपने उससे निकाल लिया तो कोई । चोज़ को महत्व नहीं देता । मतलब हम सभी में खिवाय एक दूसरी मां अबोधिता मतलब दिया है। परन्तु उसके अपने आप में आपकी 'कुण्डलिनी' है । कुण्डलिनती माता, जो आपमें त्रिकोणाकार अस्थि में परमेश्वर राज-काज में हो, सामाजिक हो या शिक्षा-क्षेत्र में मनुष्य जो प्रापमें प्रदृश्यता में होती है, वह ग्रापमें श्री जिस मनुष्य का श्री गणेश तत्व एकदम नष्ट कुछ जाएगा। मतलव सब कुछ करके उससे प्रलिप्त (प्रलग) रहना। जो कुछ किया, गाव । उसके पीछे दौड़ना नहीं । हुआ होता है उसमें अबोधिता नहीं होती है। ्रबो- धिता में बहुत से गुरणग मनुष्य मतलब मां-बहन, भाई उनके प्रति पवित्रता रखना । जीवन में बतव करते समय, संसार में रहते समय परमेश्वर ने एक अपनी पत्ी और वाकी सब लोग जो हैं उनसे आपका पबित्र रिइता है, ऐसा परमेश्वर ने बताया है, और ऐसा अगर आपके व्यवहार में दिखने लगा तो मानना पड़ेगा कि इस मनुष्य में सच्ची अवोधिता है । यह उनकी सच्चो पहचान हे । अवोधिता की ये पहचान है कि मनुष्य में उस्कृर्त से होते हैं । उसके प्रति प्रल- ये साधारणतया एक बच्चे का बर्ताव होता है । गपने किसी भी बच्चे को कुछ भी दिया तो वह उ सको संभालकर रखेगा। फिर थोड़ी देर बाद आपने उसे कुछ फुसताकर वह वापस ले लिया तो उसे उसका कोई दु:ख नहीं रहेगा। परन्तु कुछ व।तं ऐसी हैं जो छोटा व्त्रा कभी नहीं छो इत। है। । निमंला योग १६ मा 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt को सभी में पवित्रता दिखाई देती है क्योंकि अपने अरोर उसका क्षालन ये बाते समभाने का कोई आप पत्रित्र होने के कारण बह अपविश्र नजरों मतलव ही नहीं है। मनुष्य में पाप और पुण्य से किसी को नहों देतता समझाने की बात नहीं है। अपने यहा पवित्रता क्या से भाव नहीं हैं। अब देखिए किसी जानवर को आप है ये मतद्य को मा जूम है । इस्लेंड में अरमेरिका में समझाता पड़ता है क्योंकि उतके दियाग ठिकाने बदबृ तहीं । उसे सॉंदर्य क्या है ये भी नहीं नहीं होते। परन्तु अप अभी भी सही हो । विशे त. इस भारत भूमि से परमेश्वर कृा से, का विचार आता है आराप जानने है ये पाप है, ये अष्टवि वायक से, गलत है इसे नहीं करना है। ये पुण्य है इसे करना पपके गुरु-सन्तों की को हुई से वा के कार चाहिए पृथ्वी पर महाराष्ट्र एक ऐसी भूमि है कि जहां से ये अार में वैडे श्री गणेश इसका हिसाब करते हैं । पवित्रता अभी तक नहीं हिली है। और इसी प्रत्येक मनुष्य में श्री गणेश का स्थान है वह प्रोस्टेट पवित्रता का आज आप पूजन कर रहे हैं। मतलब ग्लड (Prostate gland) के पास होकर, उसे हम पूजन करते समय मापमें बह पवित्रता है कि नहीं मुलाधार चकक कहते हैं। त्रिकोणाकार अस्थि को है इधर ध्यान देना जरूरी है। अब हभ रे नहजयोग में जिनमें गणेश तत्व नहीं है वह व्पक्त किसी च का म का नहीं, क्यों कि ये जो गणेश बिठाये है वे की रक्षा करते हैं । गौरी के पूत्र हैं प्रोर श्री गोरी आप की कुण्डलिना डोगा श्री गणेश की स्थापना श्री गौनी नेकैसे की शक्ि है। यही ये गौरी शक्नि है । आज औी गौरी थो । उन की शादी हुई थी पर अभी पति से भट । अव श्रपते यहाी पविवता भाव है, जानवरों में नही है। जानवरों में बहुत गोवर में से ले जाओो या गन्दगी में से ले जाय्रो उसे माम। ग्राप मतुष्य बनते हैी प्रापको पाप-पुण्य कुपा से या प्रापकी पूर्वपुण्याई । प T9-पुणप का न्याय आप नहीं करते, मुलाधार कहा है । वहां कूण्इलिनी माँ बैटी है। उस त्रिकोणाकार ्रस्थि के नीचे श्री गरेश उनकी ल्जा प्ब ग्रापको मालूम पूजन है और आज श्री गणेश पूज न है। मत नब कितता बड़ा दिन है । ये प्राप समक तीजिए पा (बदने का) मैल ओ था उससे श्री गरीशा बनाये । में जो आपका री गएेतत्व शरी गो री से उत्पन्न है, अब देखिविए हाथ में अगर चलहरे (vibratior s) ये मनुष्य सुन्दर व्यवस्था की है ये आप देखिए । नहीं हुई थो । उस समय वह नहाने गयीं और अपुना ठो क है कि नहीं, मतलब उसमें कितनी है तो सारे शरीर को भी चैतव्य लहर होंगी तो वह चैतन्य गौरी माता ने मैल में ले लिया तो वह मेल भी चैतन्यमय होगा और उसी मेल का उन्होंने श्री इडा और पिंगला ये दो नाड़ियों अाप में है। गाेश बनाया। उसे अपने स्नानघर के बाहर रखा। मा इसमें एक महाकालो और एक महासरस्ती है । अब देखिए सामने नहीं रखा, क्योंकि स्नानघर से महाकाली से महासरस्वती निकल है । मह- सारी गन्दगी बहकर बाहर आती है। अपने वहा सरस्वती क्रियाशक्ति है । यहली इच्छाश वित है और वहुत दुसरी क्रियाशक्ति है। इन दोनों शवितयों मे बरापने नहुत जो कूछ इस जन्म में किया है, पू्व जन्मों में किया है, से लोगों को माजूम है। ये जो स्नातधर का बहता पानी है उसमें लोग अरबी के पत्ते व कभी- जा कुछ सुकृत है और दुष्कृत है उन सबका द्यौरा ये कभी कमल के ल उगाते हैं और वहां पर ही वे श्री गरेश वहां बेठकर देखते हैं । वे देख ते हैं इस अच्छे उगते हैं। ठीक इसी तरह थी गणेथा का है मनुष्य ने कितना पूरण्य किया है। अब पूण्य क्या है, मतलब सबसे गन्दगी का जो हिस्सी है उस हिन्से म नहीं गोर के ऊपर ये कमल है औरर वह अपने सुगंव से उस उस वारे में उन्हें कोई मतलब नहीं। लोगों को सारी गन्गी को सुगं घित करता है। ये जो उनकी लगता है इसमें क्या रखा है ? पूण्य वश है, कितना शक्त है वह आपके जीवन में भी आपकी बहत है ? अर पाप-पुण्य की भावना ही नहीं है तो पाप मदद करती है। अपने में जो कुछ, गन्दगी दिखाई क ये तो आजकल के माँडन लोगों को माल १७ निमंला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt देती है वह इस श्रीगणेश तत्व के कारण दूर होती है । अब इस श्री गणेश तत्व से कुण्डलिनी का, माने के विरोध में है, उनमें परमेश्वर शक्ति नही है । सुगध बिल्कुल अच्छा नहीं लगता श्री गोरी का, पहले पूजन करना पड़ता है । मतलब उसमें कुछ भयंकर दोष हैं और परमेश्वर के विरोधी तत्व बैठे हुए हैं, यह निश् वत है । क्योंकि जिस मनुष्य को निश्वित है। व्योकि सुगंध पृथ्वी तत्व का एक महान् तत्व है । योगभाषा में उसके अनेक नाम हैं । परन्तु कहना ये है कि जो कुछ पंचमहातत्व हैं और उनके पहले उनके जो प्राणतत्व है, उस प्राणतत्व में पराद्य या सर्वप्रथम अपने में अबोधिता होनी चाहिए। आपको आश्चर्य होगा, जब अपनी कुण्डलिनी का जाग रण होता है तब श्री गणेश तत्व की सुगंध सारे शरीर में फैलती है । बहुतों को, विशेषतः सहजयोगियों की जिस सुगंध हैं। उसी तत्व से हमारी पृथ्वी भी बनी है । समय कुण्डलिनी का जागरण होता है उस समय खुशबू प्राती है। क्योंकि श्री गणेश तत्व पृथ्वी गरणश का पूजन करते समय प्रथम हमें अ्पने प्राप तत्व से वना है। इस श्री महागरणेश ने पृथ्वी है । तो अपने में जो श्री गणेश हैं, वे भी उसी प्राणतत्व से बना हुआ श्री गणश है। तो श्री का सुगाधत करना। चाहिए। मतलब यह कि प्रपना बनायी जीवन अति सूक्ष्मता में सुगंधित होना चाहिए । पृथ्वो तत्व से बने हैं। अब आरपको मालम है कि वाह्यतः मनुष्य जितना दुष्ट होगा, बूरा होगा सारे सुगंघ सुगंध पृथ्वो में से आते हैं । इसलिए कुण्डलिनी का जागरण होते समय बहुतो की अनेक प्रकार के है। सुगंध ऐसा होना चाहिए कि मनुष्य आकर्षक सगंध आते हैं। इतना ही नहीं बहुत से सहजयोगी तो मुझे कहते हैं, श्री माताजी आपकी याद आते हो अ्रत्यंत खुशबू अरती है । वहुतो को भ्रम होता लगे तो वह मनुष्य सच में सुगंधित है । दूसरा है कि श्री माताजी कुछ इत्र वर्गैरा लगाती हैं। पर ऐसा नहीं है । अगर प्राप में श्री गणश तत्व रही है उस मनष्य के पास जाकर खड़े होने से जागृत हो तो अंदर से खुशबू आती है। तरह- तरह के सुगंध मनुष्य के अंदर से आत हैं। परन्तु लोगों को अच्छा भी लगता होगा। यह उनमें कछ दुनिया में ऐसे भी लोग है जा अपने आपको साधु-सन्त कहलवाते हैं और उन्हें सुगंध नहीं है। अच्छा नहीं लगता। अपने आपको परमेश्वर कह- लाते हैं और उत्हें सुगंध प्रच्छा नहीं लगता । अपने पको परमेश्वर कहलाते हैं त्रौर उन्हें सुगंध उतना ही वह दुर्गंधी होता है । हमारे सहजयोग के हिसाब से ऐसा मनुष्य दुर्गधी है । ऊपर से उसने लगायी होंगी तो भी वह मनुष्य सुगंधित नही पृथ्वी में से प्राते हैं । सारे फुलों के खुश बू लगे किसी मनुष्य के पास जाकर खड़े होने पर अगर उस मनुष्य के प्रति सुपरसन्नता ्रौर पवित्रता मनुष्य जिसमें से लालसा और गन्दगी बाहर बह गन्दा लगेगा। परन्तु ऐसे मनुष्य को देखकर कुछ दोष पर निर्भर है । वे लोग श्री गणेश तत्व के श्री गणेश तत्व वाला मतुष्य अत्यंत स।त्विक होता है। उस मनुष्य में एक त रह का विशेष आक- पंग होता है। उस आकर्षकता में इतनी पवित्रता होती है कि वह आकर्षकता ही मनुष्य को सुखी प्रिय हैं, वे कुसूमप्रिय भी हैं, और कमलप्रिय है । वसे रखती है । अब अाकषकता की कल्पनाएं भी ही श्री विष्णु के बर्णनों में लिखा है. श्री देवी के विक्षिप्त हो गयी हैं इसका कारण ह कि मनुष्य व रण नों में लिखा है । इसका मतलव है कि जिन में श्री गणेश तत्व रहा नहीं हैं। [अगर मनुष्य में से नफरत है । अपने यहाँ किसी भी देवता का वर्णन आपने पढ़ा होगा, विशेषत: श्री गणेश तो सूगंध- पा लोगों को सूगंध प्रिय नहीं व जिनको सुगंध अच्छा नहीं लगता उनमें कुछ भयंकर दोष हैं । वे परमेश्वर श्री गणेश तत्व होगा तो प्रकर्षकता भी श्री गणेश तत्व पर निर्भर हे । सहज ही हे । जहां आकर्षकता निर्मला योग १८ the/ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt नहीं हैं । नही जसे चंद्र और चंद्रिका या सूर्य और (श्री गणेश तत्व) हूँ वहां वह तत्व अ्पने में होगा। तभी अपने को आकर्षकता महसूस होगी। परन्तु सुय की किरण, बंसी उनमें एकता मनुष्य के समझ आजकल के प्राधुनिक युग में अगर आपने पवित्रता में नहीं आएगा? मनुष्य को लगता है पलि ओर की बातें की तो आप में जो बड़े-बड़े बृद्धिजोबी पत्नी में लड़ाइयां होनी ही चाहिए। अगर लड़ाइयां लोग हैं, उन्हें यह बिल्कुल मान्य नहीं होगा। उन्हें नहीं हुई तो ये कोई अजीब बात है। एक तरह का लगता है ये सब पुरानी कल्पनाएं हैं । और इसी एक अरत्यंत पवित्र बंधन पति व पत्नों में या कहना पुरानी कल्पनाओं से कहते हैं 'यह मत करो, वह चाहिए श्री सदाशिव व श्री पार्त्रती में है और अपना मत करो, ऐसा मत करो वैसा मत करो, ऐसा नहीं पुत्र श्री गेश श्री पार्वती ने केवल अपनी पवित्रता केरना वाहिए, वसा नहीं करना चाहिए । इस तरह से आप लोगों की conditioning है उनकी पवित्रिता में ! उन्होंने यह संकल्प से सिद्ध करते हैं ।' ऐसी बातों से फिर मनुष्य बुरे मार्ग किया हुआ है सहजयोग में हमने हमारा जो की तरफ बढ़ता है । कहने का मतलब है कुछ भी पुण्य है वह लगाया है। उससे जितने लोगों कि मनुय को आर्म साक्षात्कार देना संभव है उतनों को है। प्रथ मतः अगर मां पवित्र नहीं होगी तो बेटे का देना यही एक हमारे जीवन का अर्थ है । फिर भी पवित्र रहना बहुत मुश्किल हे । परन्तु कोई ऐसा कोई हमें "श्री माताजी देवी हैं कहता है तो वह एक जीव होता है जो अत्यंत बुरी औरत के यहां जन्म लेता है और वह इसोलिए पैदा होता है कि उस ओोरत का उद्धार हो जाए। औ्र वह खुद वहुत कहने की ? उन्हें गुस्या आर एगा अपने से कोई वड़ा जो व होता है विशेष पुष्यवान प्रात्मा हाती है। ऊंचा है, ऐसा कहते ही मनुष्य को गुसूसा आता है । मेतलव जैसे गन्दगी में कमल का फूलना वैसे ही परन्तु धूर्त लोगों ने प्रपने -पाप को देवता या और संकल्प से पंदा किया है। कितनी महानता में पविव्रतो मां-बाप की संगति से प्राती नही कहना । क्यों लोगों को यह पसन्द नहीं है। क्या जरू रत है यह पसन्द नहीं । ऐसा कुछ कहना है ? वह मनुष्य जन्म लेता है । ऐसा दात्मक है ? निसर्गतः अगर मां पवित्र होगो टेकते हैं। उन्हें वे एकदम भगवान मानने लगते हैं, तो लड़का या लड़की पवित्र होती है, या सहजता क्योंकि वे बेवकुक बनाने की प्रेतविद्या, भूतविद्या में उन्हें पवित्रता प्राप्त हो है । है, पर ये प्रपवा- भगवान कहलवाया तो लोग उनके सामने माथा व श्मश।नविद्या, संमोहनविद्या काम में लाते हैं । उससे मनुष्य का दिमाग काम नहीं करता । उन्हें पवित्रता में सर्वप्रथम वात है, उसे परपने पति विल्कुल नंगा बनाकर नचाया या पैसे के लिए निष्ठा होनी जरूरो है । अग र श्री पा्वती में श्री शंकर के लिए निष्ठा नहीं तो उसमें भगवान कहेंगे परन्तु जो सच्चा है उसे पाना होता क्या कोई अर्थ है ? श्री पार्वती का श्री शंकर के है । और अगर वो आप पा लगे तो आप समझगे विना कोई अर्थ नहीं । वह श्री शं कर से ज्यादा उसमें कितना अरथ है और क्यों ऐसा कहना पड़ता शक्तिशाली हैं। परन्तु वह शक्ति श्री शंकर की है । है ? वह मैं आज आपको बताने जा रही हूं। मतलब श्री सदाशिव की वह शक्ति प्रथम शं कर की शरण गयी है। परन्तु वह उनकी शक्ति है । परमेश्वर की नहीं चलेगा। परन्तु वह प्रत्यक्ष में नहीं दिखाई व अन्य देवताओं की वातें अलग होती हैं अ्रीर देता । इसलिए लोगों को समझ में नहीं आरता । एक मनुष्य की अलग । मनुष्य की समझ में ये डॉक्टर भी घर में थी गणेश की फोटो रखेगा, उसे नहीं श्एगा पति और पल्नी में इतनी एकता कि उनमें दो हिस्से लूट कर दिवालिया बनाया तो भी चलेगा, पर वे उन्हें श्री गणश को अगर आपने भगवान नहीं माना तो उसे श्रगर । उन्हें समझ में नहीं आएगा कुंकुम् लगाएगा, टीका लग।एगा । परन्तु आपने बताया कि श्री गणेशतत्व [ऋआपके शरौर निर्मला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt में स्थित है और उससे आपको कितने शारीरिक केवल विज्ञान को ही मानते हैं। फिर देख लीजिए. फायदे होंगे तो वह ये कभी भी मानने को तेयारनहीं। आपका केन्सर श्री गणेश तत्व को माने वगैर परन्तु उन्हें मैंने कहा, आप श्री गणेश की ये ठीक नहीं होने वाला। श्री गरणेश तत्व खराब फोटो उतारकर रख दीजिए, तो ये भी वे मानेंगे नहीं । लेकिन मैंने ये कहा श्री गणश तर्व के बिना प्रत्येक अरणु-रेणु (करणा-करण) में सब तरफ संतुलन आप हिल भी नहीं सकते तो वे ये बात मानने को देखते हैं । हम कैनसर ठीक कान्ते है, किया है. और तैयार नहीं हैं। अब देवत्व अप नहीों मानते परन्तु करंगे। ५र ये हमारा व्यत नाथ नही है । तो ये श्री सहजयोग में श्री गणश को मानना ही पड़ेगा। उसका कारण है कि आपको कोई बीमारी या दं उतनी कम है । परेशानी इस गरणेश तत्व के कारण हुई होगी तो आपको श्री गणश को हो भजना पड़ेगा। मतलव कि आपमें स्थित श्री गणेश नाराज होते हैं तो गुणोश तत्व हम में है । इस चार पंखुडियों के वेत प्ापका श्री गणेश तत्व खराब होता है परोर आपको हुए ग्ेश तत्व् में बीचों गच बैठे गणेश हमारे प्रोस्टेट ग्लेंड की तकलीफ व युटरस का के सर चर्गरा होता है। श्री गणश तत्व को अगर अरपने ठाक से प्रंग है । उनके चार पंग होते हैं । उसमें से पहला होने से कैन्सर होता है । श्री गणेश तस्व हर जगह गणेश तस्व कितना मह्वपूरण है, उसे जितनी महता ये अ्रत्यन्त सुन्दर चार पंखुडियों से बना श्री शरीर में हैं । मतलब अपने शरीर में उन के एक-एक नहीं रखा, मतलब अपने पुत्र से अगर ठीक से अंग मानसिक अंग। मानसिक अंग का जो बीज है वह श्री गणेश तत्व का है। इच्छाश क्ति, माने जो भावना नहीं हो तो इन संब बाें तरफ की शविन है, जो अपने में सारी भावनाएं यटरस का कैन्सर होता है श्री गणेश तत्व के कुछ पेदा करती है, उन भावना ओं के जड़ में श्री बहत पवित्र नियम हैं । उनका अगर आपने गणोश बैठे हैं। मतलब मनूष्य पागल है, उसका श्री हीक से पालन नहीं किया तो आयको ऐसी तकलाफ गणेश तत्व खराब है। इसका मतलब ये नहीं कि होती हैं। परन्तु इन तकलोफों का संबंध डॉक्टिर श्री वह मनुष्य अपवित्र है । परन्तु उसकी पवित्रता को पर उनका किसी ठेस पहुँचाने पर उसे ऐसा होता है किसी को अगर दूसरे लोगों ने बहुत सताया तो भी उसका श्री गणश तत्व खराब हो सकता है । क्योंकि प्लेक्सस (pelvic plexus) उसे लगता है अगर श्री गणेश है तो इस मनुष्य को खराब हो गया है। परन्तु इसके पीछे जो परमत्मी वे मार क्यों नहीं देते ? इस तरह के सवाल उसके व्यवहार नहीं किया, माने अपमें मातृत्वता की बाता के कारण गणेश तत्व के साथ नहीं जान स कते संबंध ध्री गणेश के हो साथ है । वे यहां तक ही जानते हैं कि प्रोस्टेट ग्लेंड खराब है या ज्यादा से । मनुष्य पेलबव्हिक ज्यादा का हाथ है, मतलब अंतर ज्ञान का या या कहिए परोक्षज्ञान से जो जाना जाता है, जो ऊपरी ज्ञान से मनमें आने पर धीरे-धीरे उसकी बायीं वाजु खराव होने लगती। बायी बाजू खराब होने से वह पागल परे है, जो प्रापको दिखाई नहीं देता, उसके लिए बनने लगता है । अब देखिए गणेश तत्व का प्रापके पास अभी अलें नहीं हैं, संवेदना नहीं है, कितना संतुलन है । अगर अापने बहुत परिश्रम अभी तक आपकी परिपूर्ति नहीं हुई है, तो आप करसे किया और तकलीफें उठायीं, बुद्धि से बहुत मेहनत करी और आगे का माने भविष्य का बहत विचार समझोगे कि ये तकलीफे श्री गरणेश तत्व खराव होने से हो गई हैं। श्रो ग ण हम से नाराज हैं तो किया (आजकल के लोगों में एक बीमारी लगी हुई है सोचने की) माने बहुत ज्यादा विचार किया सकते । ऐसा कहते ही वे डॉक्टर एक दम विगड़ और उसमें कहीं संतुलन नहीं रहा तो ग्रापकी बायीं बाजू एकदम खराब हो जाती है । दायीं वाजू जो उन्हें प्रसन्न किये बिना हम सहजयोग नहीं पा मये। हम श्री गणश को मानने को तयार नहीं, हुन निर्मला योग २० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt है वह सूख जाती है। उससे बायीं त रफ की जो बीमारियां हैं बह सब गणश तत्व ख राब होने के होगी तो वह (कुडलिनी) वहां जाकर घपूधप करेगी । कारण होती हैं। उसमें डायबिटीस ये बी सारी श्री आपकी आँखों से दिग्खाई देगा। आ्गर पका नाभि- गणश तत्व खराब होने के कारण होती है । श्री चक्र पकड़ा हूआ होगा या नाभिचक्र पर पकड़ परयी गरणश की जो संतुलत व्यबस्था है, वे यह वीमारी होंगी तो नाभिचक्र के पास कूण्डलिनी जब उठेगी ठीक करने के लिए लगाते हैं । ऐसा मनुष्य काम कम करता है । उसी प्रकार हृदयविकार (दिल की हैं । किसी व्यक्ति को अगर भूतबाधा होगी तो वह बीमारी) भी है। आपने बुद्धि से बहुत ज्यादा पूरी पीठ पर जेैसे धपुथप करेगो। आपको आश्चर्य काम किया तो हृदयविकार होता है क्योंकि श्री होगा ! हमने उस पर फिल्म लो है । कुण्ड लिनी हमसे गणे जी का स्वस्तिक अपने शरीर में बना है जागृत होती है इसमें कोई शक नहीं है। कुण्डलिनी अगर किसी को Liver (जिगर) की तकलीफ तव आप अपनी आँखों से उसका स्पंदन देख सकते का वह दो बाती की तरह दिखने वाली शवितयां एका- उठती हूं परन्तु प्रगर श्री गग तत्व खराब होगा कोर होती हैं। एक बायीं तरफ की शक्त] महाकाली तो श्री गश उसे फिर नीचे खींच लेते हैं । वह की इस तरह अ्राती है व दूसरी दायीं तरफ की ऊपर आयो हुई भी वापस नीचे अ् जाएगी। मतलब शक्ति महासरस्वती की । बीवोंबी व उनका मिलन सवप्रथम अरपकों श्री गणेशतत्व सूघारना पड़ेगा विदु महालक्ष्मी शक्ति के बीच की खड़ी रेखा में है । बाये तरफ की सिपथेटिक नव्हस सिस्टम जो है बह महाकाली की शक्ति से चलती है। माने इच्छाशा क्ति आनी चाहिए । किसी किसी लोगों में बहुत गरमी से चालित है । अब किसी मनुष्य की इच्छा के विरोध होती है । वह श्री गरणश तत्व के खराब होने से में बहुत कार्य हुआ और उसकी एक भी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह पागल हो जाता है । नहीं तो उसे मुझे तार दिया था कि किसी विकृति के कारण हाटप्रटेक (दिल का दौरा) प्राता है । मतलब ऊपर वह यहाँ से वहाँ इतना भागता था कि जैसे उसे कही गयी सारी बीमारियां प्रति सो ने से होती हैं । कुण्ड लिनी जागृत होने पर हाथ में ठंडी हवा होती है । दिल्ली के पास रहने वाले एक रादमी ने हजार बिच्छू काट रहे हैं । बह कहता था श्री माता जी महीना हुआ मुझे इस तकलीफ ने ऐसा सताया और उसका संतुलन श्री गणेश ला देते हैं। ये शरी गणेश का काम है। आपने देखा होगा कि लोग है जसे बिच्छू काट रहे हैं । तब मैंने कहा दो मिनट बं ठिए । उनसे बिल्कुल बैठा नहीं जा रहा था। तब कितनी भी जल्दी में हों तब भी श्री गणश का मन्दिर ने उनके पास जाकर उन्हें शांत किया पाँच देखते ही नमस्कार कर लगे। सिद्धिविनायक के मिनट में । इसका कारण ये पुथ्वी माता। वे जमीन मन्दिर में भी कितनी वड़ी लाइन लगती है । परन्तु पर खड़े थे उससे कोई लाभ है? वह करके तब ही फायदा होगा बहत खशी हुई। आज बिल्कुल सभी बात मिल गयी जब परापमें प्रात्मसाक्षात्कारया होगा। अगर आप में आत्मसाक्षात्कार आया नहीं ता ग्रापका परमात्मा ली । श्रब श्राप कसे पृथ्वी माता से कहेंगे कि है से कनेक्शन (सम्बन्ध) नहीं होगा। कोौन झुठा गुरू पृथ्वी माता ! आप हमारी सारी गर्मी निकाल है, कौन सच्चा गुरू है, ये भी आपके समझ में नहीं लीजिए। वह नहीं निकालेगी, पर सहजयोगी भएगा । मतलब अ्पमें ये जो बीज श्री गणश का की वह निकाल लेगी । उसका कारण है कि है बह कुण्डलिनी उठने पर उसको सर्व प्रथम समझा वार घ्ी गणश तन्व अपमें जागृत होने पर देते हैं और ये कुण्डलिनी दिखा देती है उस मनुष्य वही तत्व इस पृथ्वी में होने के कारण, उसी तत्व को कौन सी तकलीफ है। । अप आज जमीन पर बेठे हो मुझे हैं। उस पृथ्वी माता ने उनकी सारी गरमी खींच एक पर यह पृथ्वी चलने के कारण, वह सब खींच लेती निर्मला योग २१ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt औ्र इसीलिए अपने में यह तत्व जागृत रखना बहुत करती हैं । ) कुछ आमुक लाख जप होना ही चाहिए और वह पवित्र रखना चाहिुए । इतना चाहिए । परन्तु जो करना जरूरी है, वह उनसे नहीं सहजयोग में वह सहजयोगी जो पवित्रता की नहीं होता। मतलब बत्तयाँ बनाते समय अपनी मुर्ति है उसे चलाने वाला बादशाह श्री गणश बहुओं की या लड़कियों की बुराइयां करना; इस है; उस देश में वह राज्य करता है। ऐसे श्री गणेश तरह की अजीब बात हमारे यहां हैं। तो कहना को तीन बार नमस्कार करके उसका पावित्रय अपने है कि सहजयोग इस तरह के लोगों में नहीं फलने में लाने का हमें प्रयत्न करना चाहिए । वाला । "ये-या गवाळया वे काम नोहे (हसे ऐरे- गै रों का ये काम तहीं) । श्री रामदास जी ने हमारे अब जो बातें करनी नहीं चाहिए और जो लोग काम की पूरी पूर्व-पीठिका वनायी है। अगर आपने कहते हैं उनका बहुत बोलवाला हुआ है । और इसी दासबोध' पढ़ा तो आपको कुछ बताने की जरूरत तरह बहुत से तान्त्रिकों ने भी हम।रे देश में अआरक्रमण किया है। उनका आक्रमण राजकीय नहीं है, फिर हुआ मराठी ग्रंथ है)। उन्होंने ये सारा बताया हुआ भी वह इतना अनेतिक और इतना घातक है कि है और वह सच है । जिस मतुष्य में उतना घयें है उस की तकलीफ हम ग्राजउठा रहे हैं । इन तांत्रिकों और जो सचमृच उतती ऊँचाई का होगा, उसी मतू्य सारी गंदगी फैला रखी है। इसका कारण ये है को सहजयोग प्राप्त होगा। सत्र को नहीं होग। मतलब कि उस समय के राजा लोग बहुत ही विलासी, चैतन्य लहरियाँ ग्राएंगी, पार भी होंगे, पर उसमें बेपारवाह थे । इस तरह के लोगोंके पैसोंपर तान्त्रिक फलने वाले थोड़़े हैं। हमने हुजारों लोगों को जागृति ने मजा उड़ाया। ज्यादा पेंसा होने से यही होता है। दो । क्योंकि लोगों की नज़ र ही उल्टी तरफ जाती सबसे पहले ज्यादा होने से वह पहले श्री गणश तत्व के पीछे समय श्राया है। अगरे अब सहजयोग नहीं हुआ पड़ता है। जतरान लड़कियों के पीछे पड़ना, छोटो- ये परमेश्वर के घर का न्याय है ये आपको समझ अबोध लड़कियों को सताना, ये सब श्री गणेश तत्व । अभी खोने की निशानियाँ हैं। ये तान्ब्िक लोग भी यही आपको पार होना पडेगा । आगे जो कुछ होने करते हैं । कोई अबोध नारी दिखायी दी कि वाला है वहां पर फिर आपको अ्रवसर मिलने उसे सताना । कोई भी अवोध मनुष्य दिखायी देने पर उसे मारना। अपनी भी अबोधिता खत्म करना। इससे मालूम होता है कि ये विलासी लोग काफी है अौर एकादश माने ग्यारह। जब ग्यारह रुद्र परमात्मा से दूर रहे। इसी प्रकार अने क क्मठ लोग आएगे तब आप उ नकी कल्पना नहीं कर सकते जिन्होंने परमेश्वर के पास जाने का बहुत प्रयत्न वे पूरी तरह खत्म कर देंगे। उससे पहले जिन लोगों किया फिर भी परमेश्वर उन्हें नहीं प्राप्त हुए । अअने] में विलासिता को तरह कमठता भी बहुत है। योग से होगा महाराष्ट्र में तो कमंठता कुछ ज्यादा ही है। मतलब सुबह १७ बार हाथ धोने जरूरी हैं । किसने बताया छोटी-छोटी बातों को लेकर बैठ जाना और चले पता नहीं ! अगर उस औरत ने १६ बार धोये जाना। अगर हम कुछ पैसे लेते और पाखड रचते १७ बार नहीं धोये तो उसे नींद नहीं [आएगी। कुछ तो लोगों को पसन्द प्राता तो बत्तियां (बाती) बनाना ही चाहिए (महा। राष्टर में दीपक की बक्तियाँ बनाने का काम बूढ़ी औ्ीरत नहीं। ('दासबोध गुरू रामदास जी का लिखा श्री गणश तत्व खराब । पेसा है तो हमें ही जागृत करना पड़ेगा। श्रर वेसा ही तो लेना चाहिए । अब ऐसा कुछ नहीं चलेगा वाला नहीं। उस समय 'एकादशरुद्र पने वाले हैं । एक हो रुद्र इस पूरे विश्व को खत्म करने के लिए को चुनना है वह हो जाएगा। वह न्याय अ्रभी सहज- । और लोगों को उसे पाना चाहिए। पर ज्यादातर लोगों का ये होता है कि मतलब मनुष्य के अहंकार को बढ़ावा दिया निमला योग २२ he 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt जाए तो मनुष्य आने के लिए तैयार है। परंतु पढ़ते हैं । कुछ विज्ञापन तो पूरी तरह अवलीलता सहजयोग में तो ये सब सहज घटित होता है । उसे पसे की जरूरत नहीं है । एक फूल से है और ये जो शहरों में हुआ है वही अब गांवों में जसे फल बनता है, वैसे ही आपका भी होने वाला भी गया है। उस मे कुछ लोग इतने दुखी हैं कि है। जिस तरह आपको नाक, आँें, मुंह और ये अब रात-दिन उनकी योजना बन रही है कि हम स्थिति मिलो है, उसी तरह अतिमानव स्थिति किस प्रकार आत्महत्या करें ! यह उनकी स्थिति परमेश्वर ही पापको देने वाले हैं, ये उनका दात है । वह श्रापको जो दे रहे हैं उसमें अ्रप कुछ नहीं बोल सोचना चाहिए। उसी प्रकार लूढीवादी लोगों को सकते । ये भूमिका मानने को मनुष्य बिल्कुल तेयार सोचना होगा हर एक पुरानी बात हम क्यों कर नहीं है। उसे इतना अहंकार है कि उसे लगता है रहे मैं जब तक सर के बल दस दिन खड़ा नहीं होऊंगा इसका अरथ जानना होगा। जिन्दगीभर वही-वही तब तक मुझे कुछ मिलने वाला नहीं है। पहले ये बात करने में कोई अर्थ नहीं समझना चाहिए कि जिस परमात्मा ने ये अनंत चौजें बनायी हैं उसमें से हम एक भी नहीं तैयार परमेश्वर के नाम से चिपके हुए हैं। सुबह उठकर कर सकते । कोई भी जीवंत कार्य प्राप नहीं करने भगवान को दिया दिखाया, घंटी बजायी कि हो बाले। परन्तु इतना हो होता है कि पार होने पर गया काम पुरा । इस तरह का बतवि करने वाले से भरे रहते हैं और पूरी तरह की उनमें अ्पवित्रता है। तो श्पने उनके मार्ग पर चलते समय ठीक से हैं ? हम मनुष्य स्थिति तक आये हैं तो हमको है । जसे-जेसे लोग परमेश्वर को तत्वतः छोड़ रहे हैं वैसे-वैसे वे केवल 1 मनुष्य को मनुष्य योनि में ही मालूम होता है कि लोग हैं। उन्हें समझ लेना होगा कि इस तरह की मैं पार हो गया है। ये पहली बात है। दूसरी उसमें फिजूल की बातों से परमात्मा कदापि प्राप्त नहीं वह शक्ति आती है कि जिससे वह दूस रों को पार हैग । परमात्मा रप में है। उन्हें जागृत करना करा सकता है । उसमें से बह शक्ति बहने लगती पड़ेंगा और हमेशा जागृत रखना पड़ेंगा, और दूसरों है । वह एक-एक करके अनेक हो सकता है । मतलब उसे देवत्व प्राप्त होता है। बह स्वयं देवस्वता में उत- है अर श्री गणश उनकी कृति हैं और श्री गरणेश रता है। अब] ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अच्छे-प्रच्छे गुरू बनाये हैं । गुरू बड़े-बड़े हैं, पर उनके शिष्यों में मैंने देवस्व आया हुआ नहीं देखा । उनमें परिवर्तन नहीं हुआ । वे जहां पर हैं वहीं पर है। क्योंकि, शिष्य भी तो भय के कारण, या श्रद्धा से वे पूरी तरह घटित नहीं हुए हैं। वह घटना घटित नहीं हुई है । वह परिवर्तन अंदर से नहीं प्राया है । हैं जिस हाथ में सर्प दिखाते हैं वही ये कुण्डलिनी मतलब इनकी अगर जड़े ही ठीक करनी है या फुल है । उसी प्रकार हमारे सहजयोगियों का है। का फल बनाना है तो पूर्णतः बदलना पड़ता है। अआशचर्य की बात ये है कि सहजयोगी ये जो पार ऐसी स्थिति अभी किसी की नहीं आयी है । तो होते हैं उनके हाथ पर कुण्डलिनी चढ़ती है । उनके कहना ये है कि उसके लिए अपना श्री गणेश तत्व जागृत होना चाहिए लना चाहिए। आजकल के जमाने में हम तरह-तरह भी कूण्डलिनी ऊपर उठाता है । दो-दो साल के बच्चे, मेंवह जागृत करना चाहिए। [अगर कु्डलिनो मां उनकी जड़ है । आपमें जो कूण्डलिनी है वह श्री गणेश के हाथ पर घुमती है। श्री गणेश के हाथ में क्या है ये ने देखा होगा । उनके पेट पर एक सर्प बंधा रहता है । यों कहा जाए तो श्री गणश के चार ही हाथ हैं, परन्तु सच कहा जाए तो उनके अनंत हाथ हुए 1 हाथ ऊपर करते ही दूसरों की कुण्डलिनी ऊपर उठती है । मतलब अ्रब छोटा सा सहजयोगी लड़का । उसे आपको सवंप्रथम संभा- के सिनेमा नाटक देखते हैं, विज्ञापन देखते हैं और पांच-छः साल के बच्चे आपको कहेंगे आपकी निर्मला योग २३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt सिने मा के अभिनेता, अभिने त्रियां है । वहां पर सभी तरह की सुभत्ता श्रौर सुविधा होते हुए कुण्डलिनी कहां पर अटकी है, उसकी व्या स्थिति है। मेरी नाती सात-प्राठमहीने की थीं, तब ये श्री मोदी मेरे यहां आये थे, और उनका श्राज्ञा-चक्र भी वहाँ के लोग बच्चों को प्यार नहीं देते। छोटा पकड़ा हआ था तो बातें करते करते उनकी कुछ बच्चा जन्मने पर उसकी माँ उसकी हिन्दूस्तानी समझ में नहीं परा रहा था। वह घुटनों पर चलते मां की तरह परवरिश नहीं करती, उसे एक कमरे चलते प्रपने श्रर उनके माथे पर कुमकुम् लगाया और उनका को मां की ममता व प्यार तहीं मिलता आज्ञाचक्र उसने छुड़ाया। हर वक्त उसका यही काम होता है । यही मैंने मेरे और सहजयोगियों के बच्चों में देखा है । कितने लोग जन्म से ही पार हैं। धावणे' (छोटे बच्चे का मंदगति से क्रीड़ा मय जन्म से पार होना कितनी बड़ी बात है । परमेश्वर आमोदकारी भागना-दौड़ना) इस क्रिया का प्रति- ने अब शुरूआत की है। मतलब साक्षात जन्म से ही शब्द ही नहीं है । छोटे बच्चों को वे कभी भागते पार अ्रब संसार में पेदा हो रहे हैं । उस के लिएद संन्यास की जरूरत नहीं है। जिसे संन्यास लेने की यहां 'दूडदूड धावणे वात्सल्य रस है । अपने जरूरत लगती है समझ वे अभी तक पार नहीं हुए यहाँ श्री कृष्ण का या श्री राम का बचपन का की डिबिया लेकर आयों में डाल देती है। इसीलिए बचपन में वहाँ के वच्चों हाथ में कुमकुम् मजे की बात देखिए वहाँ की भाषा में 'दूडदूङ दौड़ते हुए देखते भी हैं कि नहीं पता नहीं। जाते हैं । वर्णन पढ़ते समय आनन्द होता है होने के बाद आप अन्दर से छुटते परन्तु आपको हैं। पार ऐसा होने से संन्यास बाहर से लेने को जरूरत नहीं उनकी भाषा में येसु ख्र स्त का बचपन का बरणन है । यदि अन्दर से संन्यास लिया है तो उसका प्रदर्शन कहीं नहीं मिलेगा । व विज्ञापन करने की क्या आवश्यकता है? अगर आप पुरुष हैं तो आ्राप चेहरे को देखकर ही लोग कहेंगे ये पुरुष है या स्त्री है । उसका आप विज्ञापन है ? पवित्रता माने क्या ? मैं ही सब कुछ हैं', ऐसा लगाकर तो नहीं घूमते कि हम पुरुष है हम स्त्री जो समझता है उसका ये श्री गणश तत्व नष्ट हो हैं। उसी तरह ये हो गया हैं तो बहुत कुछ होने पर भी गंदर से इस शरीर में ऐहिक, पारमार्थिक सुख, समाधान वर्गरा सहजयोग में सहज मिलता है । उसके लिए संन्यास वर्गरा नेने नहीं रखना । की कोई आवश्यकता नहीं है । संसार से (प्रपंच से) जाने की भी आ्रवश्यकता नहीं है। श्री शंकर जी की ही आपको परमेश्वर- प्राप्ति होगी और देवत्व जो स्थिति है या कहिए श्री शकर जी ने जो स्थिति चाहिए तो भी संसार में रहना होगा। अगर शरपने प्राप्त करी है उसके लिए उन्हें भी श्री गणेश बहुत तीव् प्रौर कठिन वैराग्य का पालन किया तो निर्माण करने पड़़े । उसी प्रकार आापको भी श्री ब्रह्मषिपद मिल सकता है । परन्तु मुझे ऐसा मह- गणश निर्माण करने होंगे । श्री गणेश क्या है ? [श्र श्री गणेश तत्व क्या के प मन से संन्यासो जाता है । परन्तु उसका एक सुन्दर उदाहरण है- सन्यास लेना और विवाह नहीं करना। धर से बाहर रहना और दूसरे किसी के साथ सम्बन्ध ये भी दूसरे ही लोग हैं । श्रीगणश तत्व अगर आप में जागत है तो संसार में रहकर सूस होने लगा है कि ब्रह्म्षि भी बहुत पहुँचे हुए हैं, मैं जानती है उन लोगों को, परन्तु वे अ्रब कुछ करने पश्चिमात्य देशों में नयी-नयो मूर्खता पूर्ण को तयार नहीं हैं, उनमें इतनी आन्तरिकता, कल्पनाएं बनाकर उन्होंने उनके जीवन से अ्रबोधिता आत्मीयता नहीं शर वे मेहनत करने को भी खत्म कर दी है । वे कहते हैं, बच्चों ने दुबला-पतला तैयार नहीं हैं । मुझे बहुत दुःख होता रहनाहै । पुष्ट नहीं होना है क्योकि उनके आदर्श है । उनकी भावना है कि ये जो भक्त लोग हैं, उन कभी-कभी निरमला योग २४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt भी तेयारी नहीं है। पर, जिन को माँ या गुरु माना जाय, श्रपने से बड़ा भक्तों की श्रभी तक कुछ अगर मेहनत की तो हम तेयारी कर सकते हैं माना जाए, उन्होंने अगर 'स्व' का मतलब नहीं और उसे (भक्त को) आगे बढ़ा सकते हैं । वहत जाना तो आपको उनके जीवन से क्या आदर्श बार मुझे लगता है ये सभी मेरी मदद के लिए अरब दौड़कर आये तो कितना अचछा होगा। मुझे बहुत आपकी आत्मा । मानने वाले एक कलकत्ता के पास हैं, उनका नाम श्रो व्रह्मचारी है और वे बहुत पहँचे हुए हैं । उहोने मेरे बारे में किसी श्रमेरिकन मनुष्य प्रभी मिलने वाला है ? सहजयोग में 'स्व' का मतलत है, मूलाधार चक्र पर श्रीगणश का स्थान करसे हैं, उसमें कडलिनी-की आवाज कैसे होती हैं और कुंडलिनी केसे घूमती है, हर-एक पंखुडी में कितनी तरह-तरह के रंग हैं और वे किस तरह पंखूडी में हते हैं ग्रौर सारा शोभित करते हैं, ब गैरा बहुत कुछ है। उसका सब ज्ञान आपको मिलना चाहिए। और वह मिलेगा। और उसमें से हम कुछ भी छिपा कर प्रमे रिका क्यों नहीं जाते ? वे अमीरिको गये परन्तु नहीं रखेंगे । हर-एक बात हम आपको बताने के लिए वहां से पाँव दिनों में भाग आये र मुझ कहने नैयार हैं । परन्तु प्रपको भी तो पार होकर लगे, मुझे ऐसे लोगों से नहीं मिलना है, वे एकदम परुथार्थ करना होगा। आपने पूरुषार्थ नहीं किया को कहा कि श्रीमाता जी अच साक्षात आयो है तो हम अब उतका काम देख रहे हैं । हमें भी यही काम करनी है और कुछ राक्षसों का नाश हुन मनन-शक्ति से करते हैं । वे मेरे पास आने पर मैंने उन्हें कहा आप मतलब ये त्रह्मचारी जसे लोग रहने की वजह से एकदम माणरसधाणे (मनुष्य जिसे बदबू आये ऐसा) हुए हैं । ऐसा ही करना चाहिए । ऐसे कोई साधू- सन्त आने परे आप ज्यादा से ज्यादा उनके चररों पर जाओोगे । उनपर श्रद्धा रखागे उसके कारण गन्दे लोग हैं । तो आ्रापको कोई फायदा नहीं होने वाला । मनुष्यों में न अ्रव पूजा में क्या कारना चाहिए यह सवाल लोगों का रहता है। श्रीमाता जी गरेश का पूजन कैसे करें ? क्योंकि, हम 'परोक्ष विद्या' जानते हैं, आपकी स्थिति में सुधार आए गा। पर फिर आपके जो आपको दिखाई नहीं देता, जिसे नानक जी ने अलख कहा है। उस श्राख से हम देखते हैं। जो साक्षात्कार का क्या ? क्यों कि उसके लिए होयें काडना है, सर्वप्रथम देखिये आप में पावित्र चलाने पड़ते हैं । बच्चे को ठीक करना है, उसे हैमे वहना है, सर्वप्रथ म देखिये आप में पावित्र्य संभालना है तो माँ को गन्दगी में हाथ डालना है कि नहीं। स्तान वगरा करना ये तो है ही, परन्तु पड़ता है। अगर वह 'गन्द-गन्द कहने लगी तो उसका इतना महत्व नहीं है, वह अगर न भी हो तो कोई बात नहीं। एक मुसलमान भी धीगणश बच्चे को कौन साफ करेगा ? अ्रौर इसीलिए ये एक पूजा बहुत अच्छी करता है। आपको आश्चर्य होगा, लजीरिया के करीब पांच सौ मुस लमौन सहज- योगी हैं। जवान लड़के-लड़कियां पार हुए हैं । परस्तु उनका प्रमुख जो है, उसका नाम है श्री जमेल और वह श्री गराश पूजा इतनी सुन्दर करता है कि देखने लाय क । श्री गरणश को रखकर स्वयं उनकी सून्दर पूजा क रता है। मतलव सहजयोग में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सभी आते हैं और फिर उनके देव-देवता केसे सहजयोग में हैं, बह उसमें अब ये श्री गेश तत्व माँ का काम है और वही हम सहजयोग में करते हैं । आप सब उसमें नहा लीजिए, उसका आनन्द उठोइये, यही एक माँ की इच्छा है । माँ की एक ही इच्छा होती है, ग्पनी शक्ति अपने बच्चे में आनी चाहिए । जब तक सामान्यजन को उसका फायदा नहीं होता, जब तक सामान्यजन उसमें से कुछ प्राप्त नहीं करने और जब तक उनको अरपनी माँ को शक्तियाँ नहीं प्राप्त होती तो ऐसी माँ का क्या अच्छा तो दिखाया है फायदा ? ऐसी माँ न हो तो च्छ । निमंला योग २५ू 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 आनेवाला नही । इसीलिए क्षमा करना जरू री है । संसार में आए है। देवी महात्म्य म्थात देवी कयोकि जब तक नाक नही पकड़ो तब तक मनुष्य भागवत, जो मार्कण्डेय जी ने लिखा है, ये आप कोई बात मानने के लिए राजी नहीं है । इसीलिए ये ू सभो बीमारियाँ आ्रायी हैं, ऐो सा मुझे लगने लगा प्ाप पढ़िये । उस्होंने कहा है, श्री राधा जी ने अ्रपना है। क्योंकि, कितना भी मनुष्य को समझाओो फिर पृत्र तयार किया था. जिस तरह श्री पावती जी ने भी वह एक पर एक अरपनी बुद्धि चलाता है। इसका मतलव है अपको अरभी प्रपने भापको अर्थ है धर उस धी गेश तल्व [पर पাघारित जो नही मालूम हुआ है। [श्रपका संयन्त्र जुड़ा नहीं है। पूत्र वनाया था वह इस संसार में श्री येसु रिब्रस्त पहले उसे जोड़ लीजिए । पहले आरारम-साक्षात्कार शया । शअब 'क्रिस्त क्योंकि, राधा पा लीजिए, यही हमारा कहना है । उसमें अपनी जो विचारों से, पुस्तक पढ़कर नहीं होता, वह पन्दर से होना चाहिए ये घटना श्रर इसी तरह उन्होंने ये जो गसदा तर्व है. उसको घटित होनी चाहिए। कभी-कभी इतने महामुख पूर्ण रूप से अ्रभिव्यक्त किया, वह श्री स्ब्रस्त लोग होते हैं, विशेषत: शहरो में, गाँवों में नहीं । वे स्वरूप में है । अव ये अरपने आपको क्रिश्चन कहते हैं, प्रजी हमारा तो कडलिती जागरण हुआ कहने वालों को मालूम नहीं है कि वे येशु रिक्रस्त ही नहीं है। देखिए हम करसे ? मतलब बहुत अरच्छे आपका कुडलिनी बहुत बड़ा शारीरिक हो, मानसिक हो, वोिक निकलवा लीजिए। वह कुछ अच्छा न ही आज्ञाचक्र पर प्राकर थी येसू क्रिस्त के स्वरूप में पढ़िये । उसमें जो श्री महाविष्यु का वरांन है, वह किया था। परन्तु श्री गणाश तत्व उनमें मुख्य तत्व बनकर जी ने बनाया था इसलिए कृष्ण के नाम पर वह ध्री क्रिस्त हुआ प्रोर यशोदा है वहाँ, इसलिए येशु। मत चलाइए पहले श्री गणश थे प्रोर मे श्री गणेश तरव का आविभाव है वह अब एकादशरुद्र में किस तरह जागरण नही हप्रा है तो ग्राप में कोई आने वाला है वह मैं आपको बाद में बताऊगी । दोष है। कहने का मतलब है कि मूलाधार चक्र पर जो श्री गश परशु हाथ में लेकर सबको थाड-थाड मारते है पप। क्या कहने ? अगर हो, उसे ं हैं। साफ होना पड़ेगा। साफ होने के बाद ही आनन्द ये बही ्ज्ञा चक्र एर प्राकर क्षमा का एक तस्व प्रन वाला हैं । यह जानना होगा। फिर सब कुछ ठीक होगा बन गये। क्ष मा करना ये मनुध्य का सबसे बडा हथि- यार है। यह एक साधन होने से उसे हाथ में तल- । प्रब जो अहंकार का भाव है व धरी गराश वार भी नहीं चाहिए। केचल उन्होंने लोगों को क्षमा जी के चरों में प्र्पण की जिए। शरी गराश की किया तो उन्हें कोई तकलीक नहीं होगी इसलिए प्रार्थना करिए, 'इमारा अहंकार निकाल लीजिए। प्राजकल के जमाने में सहजयोग में जिसका प्राज्ञाचक्र ऐसा अगर पने उन्हें अआज कहा तो मेरे लिए पकडता है उसे हम इतना ही कहते हैं,"सबको माफ बहुत आनन्द को वात होगी क्योंकि, धी गगेश करो" । घोर उससे कितना फायदा होता है, जैसा सबका पुत्र हो, ऐोसा हम कहते हैं। उनके वह कितनों को पत। है? अ्रर सह जयोगी लोगों ने केवल नाम से हमाग पू रा হरीर चंतन्य लहरियों से नहानलगता है। ऐसे सुन्दर श्री गणश को नम स्कार करके अराज का भाषरण पूरा करती है । उसे मान्यता दी है। देखा है, सब फुछ सहज- योग में प्रत्यक्ष में है। अगर मापने क्षमा नहीं की तो मापका प्राज्ञाचक्र नही खूलने वाला, आापका सिर- दर्द नहीं जाने वाला और आपका भार भी नीचे भाषण का हिन्दी अनूवाद) ( भवित-संगम', अप्रेल १६८३ में मुद्रित मराठी Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani. New Delhi-110002, One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription As. 30.00 Foreign [ By AirmailE75 14]