folofcll fनिर्मला योग Iर जुलाई-प्रगस्त १६८५ द्विमासिक य पक २० प प क ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्को साक्षात्, श्रीं सहसार स्वामिनो] मोक्ष प्रदायिनी माता जी, थी निर्मला देवी नमो नमः ॥ SAMA प जय श्री माता जी श्री 'निर्मेला' नाम मन्त्र माला ( परमपूज्य श्री माता जो के १०८ नाम ) जय श्री माता जी निर्मला । जय श्री महाराज्ञी जय श्रकुला । १।। जय ।। समुद्यता, विष्णुग्रंथि विभेदिनी भक्तिप्रिया भक्तिगम्या, शर्मदायिनी ।। २।। जय ।। देवकार्य । निरंजना, निल्लेपा, निष्कला । नित्या निराकारा, निराकुला ।।३ ॥। जय ।। जेरे निरविकारा निरुपप्लवा, नित्यमुक्ता, | निरंतरा, निश्चिन्ता , निरहकारा॥४ ॥ जय ।। निर्मोहा, निष्पाया, निःसंशया । निर्ममा, निविकल्पा, निरत्यया ॥५ू ॥ जय । |-र निष्कलंका, निर्गुणा, निराश्रया । निष्कामा, निष्कारणा, निष्क्रिया।।६।। जय ॥ नीरागा, निर्मदा, निरीश्वरा निस्तुला, निर्नाशा नीलचिकुरा ॥७ ॥ जय ।। निरुपाधि, निराबाधा, निरपाया । गंभीरा, निष्परिग्रहा, महामाया ।॥८।॥ जय । । महादेवी, महापूज्या, अहापातकनाशिनी । सान्द्रकरुणा, सुखप्रदा, एकाकिनी ।॥४।। जय ।। महाशक्ति, निर्भवा, महारतिः । विश्वरूपा, पद्मासना, सुधार्त्र ति ॥१o । जय ।। शेष तृतीय कवर पृष्ठ पर) निमंला योग द्वितीय कवर सम्पादकीय 'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बेठे आई। सिर सौंपे सोई पिवं, नहीं तो पिया न जाय ॥ संत कवि श्री कबीर दास जी ने इन दो पंक्तियों में ही सम्पूर्ण सहजयोग को व्यक्त कर दिया है । जब तक हम अहंकार से अपने को अलग नहीं करते, हमारी सम्पूर्ण तपस्या व्यर्थ है । श्री कबीर दास जी कहते हैं कि कलाल की भट्टी पर श्रर्थात् सद्गुरु के पास बहुत लोग आते हैं किन्तु इस मदिरा का पान अर्थात् प्रभु का प्रेम रस, निरानन्द व ही पी सकता है जिसने अहंकाररूपी शीष को हंसी-हंसी सद्गुरु को सौंप दिया को छोड़ दिया है । है, यानि अहंकार कहने का तात्पर्य है कि अहंकार यानि 'मैं' को प्रपने 'स्वयं' से अलग करना अत्यन्त ही आवश्यक है । ॐ त्वमेव साक्षात् श्री महत् अहंकार साक्षात् श्री आ्दिशक्ति माता जी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः|। निर्मला योग निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री श्रानन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वेन्क्ूवर, बी. सी. वी ५ जैड ३ के २ यू .एस.ए. श्रीमती क्रिस्टाइन पंट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्-११२०१ यू के. श्री गेविन ब्राउन भारत श्री एम. वो. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन बोरोवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ व्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमंशन स्विस लि., ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट १३४ लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. ২, इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. पूर्ण समर्पण : एकमेव पथ ४. सहजयोग के लिए भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्व ५. श्री निर्मला नाम मन्त्र माला ३ १४ द्वितीय कवर निर्मला योग २ श्री माताजी निर्मला देवी पूर्ण समर्पण : एकमेव पथ' काउली मैंनर गोष्ठी दिनांक ३१-७-८२ आज में तुम्हें कुछ कहने जा बढ़ता ही जाता है और अन्त में वे पूर्ण विनाश को रही हैं। यह मुझे बहुत पहले प्राप्त होते हैं । किन्तु आप लोग सहजयोगी हैं और बेताना चाहिये था । आपको स्वयं को संवारना है । जैसा मैंने आज अरपको वताया मैं पहले आपके अहंभाव (ego) को ठेस नहीं पचाना चाहती थी । इन शब्दों में आपको बताना कि यह आवश्यक है कि आप मुझ सश्रद्ध मान्यता दे । मान्यता देना निश्चित है, यह शतं अनिवार्य है । मैं इसे बदल नहीं सकती। जैसा ही चाहिती थो। शयद यह पहली बार आपसे में योशु कह रही हैं कि प्रापको अपने को मुझे पूर्ण रूप से समर्पित करना है-सहजोयन को नहीं, बल्कि ने पहले ही कह दिया है, अरप मेरा (योश का) विरोध कर तो वह सहा जा सकता है, उसे क्षमा कर दिया जायगा, किन्तु आदि शक्ति का विरोध तुनिक भी मुझकी । सहजयोग केवल मेरा एक अंग] (पहलू) नहीं। यह एक बहुत बड़ी चेतावनी है। शायद लोग नहीं समझते इसका क्या अर्थ है । यह सच है आरपमे से कोई भी मेरे विरुद्ध नहीं है, यह नि:स्सन्देह है। प द्वारा ही आप यह पा सकते है। आखिर पप मेरी सन्तान हैं। में प्यार करती है और आप मुझे प्यार करते हैं । यह तो केवल येशु ने आपको चेतावनी दी है। सोचना चाहिये जिस वेग से हमें उन्नति करनी चाहिये उस वेग से क्यों नहीं कर रहे हैं। हैं। सच कुछ त्याग कर आपको सम्पणा करना कपशा समर्पण । अन्यथा आप] ऊंचे नहीं उठ पूरग समपण । अन्यथा अआप ऊचे नहीं उठ सकते । विना प्रश्न, विना तक-वितरक। पूर्णं सम- आपको बहुत अभी भी लोग 'बाधा-ग्रस्त होते हैं, अभी भी मम्स्याओों में फंस जाते हैं। इसका क्या कारण है ? बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं-माँ, एक बार आत्मसाक्षात्कार पाने के बाद, के से हम दुबारा जब लोग सम्मोहित ( mesmerise) कर दिये नीचे गिर जाते हैं ? इसका एकमात्र कारण है कि जाते हैं तब वे अपने गुरुओं के सामने विल्कुल लम्बे समर्पण सम्पूर्ण नहीं है । यदि पूर्ण समर्पण स्थापित पड़ जाते हैं । जब उन्हें सम्मोहित कर दिया जाता है नहीं हुआ है, अभी भी जितना चाहिये उतना ज्ञान तो वे सब कुछ दे देते हैं, अपना रुपया-पंसा, घर- आपको नहीं है कि मैं देवो (Divine) सत्ता हैं । परिवार बच्चे, और लम्बे लेट जाते हैं, अपने गुरू मेरा मतलब यह नहीं प्राप सब- किन्तु फिर भी के विषय में बिना कोई प्रश्न पूछे, विना कुछ जांच यदि आप गरपने हृदय में देखें, मस्तिष्क में झाँकें, पड़ताल किये, विना उसकी जीवनी के बारे में कुछ आप देखगे कि पूर्ण श्रद्धा जो आप, उदाहरणार्थ पता लगाने की कोशिश किये। ऐसे लोग बड़ी जल्दी योशु या कृष्णु के प्रति या जो और पहले हो चुके अंधकार में पड़ जाते हैं, और उनका यह अंधकार हैं उनके प्रति अपकी थी वह नहीं है । (* निर्मला योग ( अग्रेजी) नवम्बर दिसम्बर -पुण्ठ ३ से अनुवादित ) । निर्मला योग ३ to नहीं होता। तत्काल उसको पूर्ण शक्ति ओर पूर्ण विश्वास के साथ जकड़़ लेना होता है । कृष्ण ने कहा था 'सर्व धर्माणाम् परित्यज्य मामेकम् शरणम् बरज' सारे सांसारिक धर्मों को भूल जाय्रो । यहां घर्मों का अर्थ यह नहीं है जैसे हिन्दू, ईसाई, मुसलिम प्रादि, किन्तु उनका अ्रभिप्राय जब हम बाघा-ग्रस्त होते हैं, जब हम विकारों था जो 'धारण' अर्थात् समाज रचना का से घिरे होते हैं, हमें उनकी जानकारी होती है और था जो 'वारणा संरक्षण ऐसे धर्मों (घारणाओ्रो) को भूल जाओ और मूझे पूरणं समर्पण दो। यह उन्हेोने छः हजार समय हम दढ़ता से पकड़ना चाहते हैं। किन्तु दूस रा वर्ष पहले कहा था । और आज भी ऐसे श्रनेक हैं जो अभी भी कहते हैं "हमने अ्पने को श्री कृष्ण को पूर्ण समर्पित किया हुआ है।" कस्तु शज (struggle) सा श्ररम्भ हो जाता है । ऐसे समय श्री कृषणा कहां हैं? यहां तक कि वे जिन्हे मैन सुवमे ग्रच्छा रास्ता क्या है? सबसे अच्छा रास्ता आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया है ऐमा कहते हैं। है और सब कुछ भूल जाओो, भूल जाओी कि कोई यह सच है कि कृषण में और में कोई अन्तर नहीं। किन्तु याज वह मैं है जिसने अपको पात्म- (possessed) है या कुछ भी । अपनी जितनी साक्षात्कार प्रदान किया है। किन्तु हमारा प्रथम भी शक्ति है, अपनी सम्पूर्ण शक्ति से मुझे पकड़ ध्यान ग्रपने धन्धे, अपनी निजी समस्यायों औ्रर 'रहो। अपनी पारिवारिक समस्याओं पर रहता है और समर्पण अन्त में प्राता है। हम कुछ भ्रम में पड़ जाते हैं (confused) ऐसे 1. ओर 'वाघाएं आपके मन में ऐसे विचार उत्पन्न करती हैं जो हानिकारक हैं । अत: एक वड़ा द्वन्द मुझ आप पर कोई भूत आराल्ढ़ बाघा है या आ्रता किन्तु हमारी समर्पण की शैली बड़ी फैशनेबल मैं भ्रामक (illusive) है यह सत्य है। मेरा और आधुनिक है जिसमें सहजयोग अल्प महत्व नाम है 'महामाया'। निस्सन्देह मैं भ्रामक है । किन्तु रखता है और मां भी यो ही (by the way) होती है । मुझे खेद है इससे काम नहीं बनेगा यह मुझे आपको बताने की आवश्यकता नहीं क्योंकि यदि आ्रप देवी महात्म्य' पढे तो काफी है। यदि अरब समर्पणा प्रगति, उन्तति का एक वहुत आप देवी के १००० नाम पढ़ें तो भी काफी है कि केवल भक्ति द्वारा प्राप्त की जा सकती है। वह केवल समर्पण द्वारा प्राप्त की जा सकती है। वह खतरा सिर पर है, ऐसे समय जब समस्त विश्व भक्त-प्रेमी, समर्पण-यूक्तों की प्रेमी है । यह कहीं ऐसी ्ापात स्थिति में है जहाँ वह पूर्णा नष्ट होने नहीं लिखा कि वह ऐसे लोगों की प्रेमी है जो जा रहा है, ऐसे समय यह प्रत्यन्त महत्व पूर्ण है कि अच्छा वोलते हैं, जो अच्छा तर्क करते हैं, जिनका आप उस चीज को जो आपको बचाने वाली है पहनावा, रहन-सहन [अच्छा है, जिनका परिवेश surroundings) अच्छा है। बस वह भक्त प्रेमी साथ । जैसे आप यदि साधारण पानो में भीग गये हैं। और यह श्रद्धा, भक्ति एक सनक (frenzy) या ऐसी कुछ नहीं होनी चाहिये, किन्तु स्थायो, डूब रहे हैं और प्रश्न है, यह क्षण जीवन वह क्षण निरन्तर धारावाही, ऊर्ध्वगामी (ever growing) होनी चाहिये। अब अरागे के विकास के लिये वस मैं भ्रम उत्पन्न करती है बस आपको परखने के लिये । महत्वपूर्ण अंश है । क्यों ? क्योंकि जय [शरप ऐसी वह अवस्था में स्थित हैं, जबकि आपके अस्तित्व को जकड़ कर पकड़ ले, पूरणं शक्ति, पूर्ण श्रद्धा के ( हैं तो कोई बात नहीं। किन्तु यदि ग्राप समुद्र में मृत्यु, ऐसे समय अगर कोई हाथ आपको बचाने को अग्रसर होता है तब अरापको और सोचने का समय यही रास्ता है। निर्मला योग 2. हमारे लिये अनेक छोटी-छोटी समस्याएं महत्व उस समय उनका प्रहं भाव उनकी 'परत्मा से रखती हैं। किसी को मकान की, किसी को कालिज अधिक बलशाली होता है-जब वे अपने स्वातत्त्र्य प्रवेश की, किसी को रोजगार की । ये सब यर्म हैं में होते हैं। स्वतन्त्र देशों के सर्वनाश का यही कारण जिनके लिये श्री कृष्ण ने कहा है, "सर्व धर्माणां है क्योंकि प्रहंभाव (ege) कार्यशोल होता है, परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज ।" समस्त घर्मों को न कि आत्मा । जब वे स्वातन्त्रय में स्थित होते हैं स्याग दो-इन सब तथाकथित धर्मों को. जसे 'पत्नि तब वे अपने अहंभाव पर नियन्त्रण नहीं कर घर्म' पत्नी का कर्तव्य है, पति बर्म पति का सकते । केवल जब कोई उनके अहंभाव को उलभा कर बेंधन में जकड़ देता है और उन्हें मेसमेराइज पिता का कर्तव्य है, नागरिक का धर्म, विश्व कर देता है, तब वे ठीक हो जाते है, वे बन्दो हो नागरिक का घर्म । यह सब धर्म पूर्ण रूप से स्याग जाते हैं और पूर्ण समर्परा कर देते हैं । इन कपटी दो। और पूरण रूप से, हृदय से आपको मुझे समपंरण लोगों ने आपको दास वनाने की कला में जैसी निपुराता प्राप्त कर ली हैं, उससे यह स्पष्ट है । कतव्य है, 'पुत्र धर्म पूत्र का कर्तव्य है, 'पिता घर्मं करना है। अपने पूरणं स्वातन्त्र्य में प्रापको समर्पण करना मैं जो है वह है, वही मैं सदैव थी और रहैंगी। मैं न बढ़ंगी, न घटूंगी। मैं एक सनातन व्यक्तित्व चाहिये। है । आप, ज़ितनी आपमें सामर्थ्य है मुझ से प्राप्त कर लें, इस यूग में अपने जन्म का उपयोग कर लें । अपनी पुर्णं परिपक्वता तक बढ़ँ, परमात्मा आपके माध्यम से जो परिकल्पना कार्यान्वित है। इतना ही नहीं उससे स्वातन्त्र्य विक्ृत कान्ति- करना चाहता है उसे क्रियान्वित क रने योग्य बनें । ज्यों ही समर्पण जाग्त होता है, ग्राप गतिमान में स्वातत्त्र्य पूर्ण अह-शून्यता है जिसमें कोई बन जाते हैं। बस उसमें दुढ़ रहे । स्वातन्त्र्य का अर्थ अहंभाव तहीं है, यह आप समझ ल । अहभाव से स्वातन्त्रय का नाश हो जाता 1 हीन व कुरूप हो जाता है। अपने सूक्ष्मतम स्वरूप खुरखुरापन न हो, पूर्ण स्निग्धता, पूर्ण रिवतता (hollowness), बांसुरी की भांति जिससे इसके लिये 'ध्यान एक मात्र पथ है, ऐसा परमात्मा का संगीत सुन्दर बज सके। वह है पूर्ण कहना चाहिये। यह सच है कि अरप वृद्धि से प्रनेक स्वातन्त्र्य । विना किसी श्त के काम कर सकते हैं, तर्क द्वारा आप मूझे स्वीकार कर सकते हैं, भावुकता में आप अपने अरको मेरे निकट कर सकते हैं, किन्तु वास्तविक मार्ग अज्ञान की दलदल पाप की दलदल अज्ञान से हैं, ल कि हम दलदल में फंसे हैमे यह समझ अनुभव है, ध्यान द्वारा, समर्परण द्वारा । 'ध्यान समर्पण पाप उत्पन्न होता है। इस दलदल से हम कैसे के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । पाश्चारय देशों के निकल सकते हैं ? जो हमें उससे निकालने की आधुनिक मानव के लिये वह कठिन काय है । वह कोशिश करेगा वह भी उसमें फस जायगा। जो केवल उनके सामने समर्पण करता है जो उसके पास भी आना चाहता है वह भी दलदल में मेसमेराइज' करते हैं, जो उन्हें पूर्ण 'मेसमेराइज अपनी चेतना-शुन्य) कर द 'मेसमेराइज' कर दें उनके वह पूर्ण दास बन जाते हम और अधिक उन्हें दलदल में खोंच लेते हैं पौर हैं । परन्तु जब वे अपने स्वातनत्त्र्य में स्थित रहते हैं स्वयं नीचे घंसते जाते हैं। फस जाता है, उसमें समा जाता है। हम जितना दूसरों से सहायता लेने की कोशिश करते हैं उतना ं । जो लोग उन्हें निमंना योग ५ू अत: इस कुण्डलिनीरूपी वक्ष की वृद्धि होनी चाहिये । और उस बृक्ष से स्वयं परमान्मा स्वयं किस लिए है ? यह सब आ्राशीर्वाद किस लिए है ? परब्रह्म आपको उस दलदल से बाहर खींच गे । यह यह है इस लिए कि अराप ऊंचे उठे, आरप पूर्ण रूप वृक्ष दलदल से बाहर ऊना बढ़ता है श्रर परबरह्म से दलदल से बाहर निकलं । एक-एक करके आपका हाथ पकड़ेंगे और अरापको झूने की पींग (swing) की तरह बाहर निकालगे । किन्तु फिर भी जब आपको वह बाहर निकाल रहे हैं उस समय यदि आपकी पकड़ मजबूत नहीं है, तो आप फिर फिसल जाते हैं- निकलते हैं और फिर फिसल कर दलदल में अंस पव रखते हैं। हम अरत्यधिक चातुरो दिखाते हैं । जाते हैं। जब दलदल से बाहर निकलत है तो बड़ा आनन्द आता है । किन्तु उस समय भी पर पूरे बाहर नहीं आये हैं । आप पुरे स्वच्छ नहीं हुए हैं। जव तक अाप पुरण स्वच्छ, निर्मल नही होते तब तक आप पूर्ण आशीर्वादित कैसे हो मकते हैं? में अकेल रहे हैं । कोन सी आ्ासक्तियां कोन से नाते पप परमात्मा का पूरणं आशी्वद अजन कर, बाधक है। आपको अपने को इन सबसे अलग किन्तु हम नहीं सोचते यह सब पालन-पोषरण अव, आपको दूढ़ रहना है, आपकी सर्मापत रहना है, आपको श्रद्धालु रहना है। हमारे मन में अनेक किन्तु-परन्तु (reservations) हैं । हम आप थोड़ा बाहर यह खतरनाक स्थिति है आप सब अपने भीतर देखें, कौन से पूर्व-संस्कार आपके पूर्ण समरपंण में बाघक हैं, किन कारणों से आप यह 'किन्तु-परन्तु रखते हैं, कौन सा भय, कौन सा अहंभाव, कौन से चरित्र वैचित्र्य (angularities) अभी भी दलदल परमात्मा के प्रम में रम जाय । केरना है। जब तक अराप पुराण रूप से इससे देख कर आशचर्य होता है कैसे वे लोग जो इन (दलदल से) बाहर नहीं निकलते, काम नहीं बनने कपटी गुरुओं के पास जाते हैं, उनसे चिपक जाते हैं, बाला । ऐसा अपार समर्पण देते हैं कि आप चकित हो जाते हैं। वे ढोले-डाले, अकर्मण्य से हो जाते हैं । (उन्हें जैसा चाहो तोड़ लो, मोड़ लो।) जव तक उनका पूर्ण सर्वनाश नहीं हो जाता त ब तक उनके ने कहा था । उन्होंने कहा था, "तुम मुझे अपनी पास जो कुछ भी है वे समर्पण करते रहते हैं । अवपकी चीजों के लिये यहां जगह नहीं। सवाल है, अभी या कभी नहीं। यह योशु क्राइस्ट और वाकी मुझ पर छोड़ श्रद्धा श्रोर समर्पण दो दो।' किन्तु जब लोग सहजयोग में आते हैं तब वे समर्पण नहीं करते, बल्कि उनका लालन-पालन, उनका पोषण, देख-रेख की जाती है। उनका स्वास्थ्य सुधरता है, आर्थिक उन्नति होती है, वढ़ रहे हैं । मैंने देखा है लोग खूब सुधर रहे हैं । उनकी मानसिक स्थिति सूधरती है, उनके सम्बन्ध मेरे सामने य्राने प्रत्यक्ष मिलने की आरावश्यकता मुधरते हैं, हर प्रकार वे पहले से अरच्छा अनुभव नहीं । मेरी शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं । करते हैं, उनकी हालत सुधरती है। हर समय उन्हें सब कुछ सवचर व्याप्त शक्ति में वतमान है। यही लाभ प्राप्त होता है। हमारे आश्रम हैं, जो सुन्दर मेरी जीवन प्रशाली है और वहू तुम्हारे विषय में हैं, सस्ते हैं, वहां भोजन की सूविधा है, वहाँ उपलब्ध प्रत्येक सुविधा बढ़िया से मैं जानती है अरद्धा और समर्पण में कौन आगे एक-एक बात जानती है। और एकमात्र अपनी भक्ति, अपनी धद्धा और स मर्पण के द्वारा तुम मुझे पा सकते हो । बढिया है । वहाँ सब कुछ उपलब्ध है । निर्मला योग ६ तुम्हारी देवो शक्तियों का सम्पूरणं उदीयमान होना (manifestation) ही मुझे पाना है । आश्ो वह बीती जिन्दगी, वह दलदल । अब यह बड़ा सुगम है, इसे सुगम बनाया गया है । मैं उसका अन्त होना चाहिये। तुम भली भांति समझते उनसे प्रसन्न होती है जो सरल, भोले, निश्छल, हो कसे मैंने अपने प्रम की श क्ति से तुम सबको प्रेम-पूर्ण श्र परस्पर स्नेह युक्त होते हैं । मुभे बचाया है । तुम जानते हो कैसे मैंने एक एक क्षण प्रसन्न करना बड़ा अ्रासान है। जब में तुमको तुम्हें सहायता की है । तुम्हारी प्रत्येक इच्छा पूरी परस्पर प्रेम करते देखती है, एक दूसरे की प्रशंसा करने के लिये मैं आगे आई है। जेसा मैंने करते देखती हैं, परस्पर सहायता करते, परस्पर यह एक तरफ की बात है-पोषण, संवर्धन । किन्तु आदर करते, एक साथ खुलकर हंसते, परस्पर संसर्ग में आनन्द अनुभव करते देखती हैं, तब मुझे चाहिये । तुम्हारा उत्थान, उसके लिये अपना पहला वरदान, पहला आनन्द प्राप्त होता बढ़ी। वह तुम्हें सवयं क्रियान्बित करना होगा । है । अ्रपनी उस पूरानी जिन्दगी से बाहर निकल कहा, अब तुम्हारी उन्नति । वह तुम्हारी प्रोर से प्रानो तुम प्रागे कोई अन्य सहजयोगी अरथवा मेरे द्वारा वह नहीं होगा। मैं तुम्हें केवल सुझाव दे सकती है। इतना ममपण भाव में परस्पर प्रेम करने की ही नहीं, बेतावनियाँ भी देती है । और सब कुछ कोशिश करो, व्योंकि तुम सब मे री सन्तान हो, मेर ापके पास हो है । ऐसी सुन्दर व्यवस्था है। मुझे प्रेम से सृजित किए गये हो। मेरे प्रम के गर्भाशय में सबने वास किया है। अपने हृदय से मने तुम्ह कहीं जाने की जरूरत नहीं। सब कुछ तुम्हारे सब पता रहता है। पहले से में जानती है । तुम्हें तुम ये राशोर्वाद दिये हैं । किन्तु मैं विवलित हो जाती भीतर ही है। तुम्हें रुपया-पैसा नहीं देता, कुछ हैं और मेरे हाथ कांपने लगते हैं औरोर दलदल में गिर पडते हो, जब में तुम को परस्पर कर लो । झगड़ते देखती है, ईष्य्या और क्षुद्रताओं में लिप्त, ऐसी चीजे जो आपके विगत जीवन की साथी थीं। आ्पको मिलने वाली सहायता इतनो स्थुल नहीं है बल्कि वह वड़ी गहन सुरक्षा की जो आपके भाई बहनों को प्रदान की जाती है। राजनीतिज्ञ मनमाना नचाते (manoeuvre) हैं । आपमें गहन प्रम होना चाहिये। स्वार्थ-भाव के लिये सहजयोग में विल्कुल स्थान नहीं । इसी तरह कंजूसी के लिये सहजयोग में स्थान नहीं, वह नहीं कसे ? मानो मेरे हाथ में एक ब्रुश है और मैं कुछ चल सकती । कंजूसी एक संकुचित मस्तिष्क की निशानी है। मैं यह नहीं कहती आप मुझे रुपया दे । किन्तु धन के प्रति हमारी दष्टि, उससे हम कसे करती है, प्रयोग में असुविधाजनक है, वेढंगा चिपके रहते हैं, भौतिक पदार्थ, सम्पत्ति, वस्तएं वेडौल है, तो शरप उससे कैसे काम करेंगे आपको इत्यादि । फिर से नहीं देन। बस प्रपने प्रन्दर वह समर्पण जाग्रत तुम देखो, यह सज्जन जिन्होंने मुझसे भेट (inter- view) की, कहते थे कि वेरोजगार लोगों को अमुभूति है, प अपने आपको परमात्मा को समर्पित कर दें। "प्रभु आपकी जसी रुचि हो हमें नचाये ।" किस्तु चित्रण करना चाहती हूं। [और यदि ब्रश चलने में कठिनाई उत्पन्न करता है, टेढ़ा-मेढा है, परेशान समस्याएं, आपकी सारी बाधाओं से मुक्ति पाने का आपकी महानतम निजी (सम्पदा) है सुगमतम उपाय है समर्पण । भरापकी माँ। उसके द्वारा ही आपको ये प्रपने भाई बहन मिले हैं । वस्तु अब स्वयं प्रपने भीतर झांक औ्रर देखें, क्या निर्मला योग आप समर्पण-मय हैं ? जो मेरा अंधानुसरण करते अत्यन्त द्रतगामी (तेज चलने वाला) मोर था, ( fanatically adhering) हैं, वे भी सही नहीं जो उड़ता था। श्री गरणेश ने मोर की ओर देखा हैं । अधानूसरण ठीक नहीं। सब कुछ तक-संगत ओर कहा, "मेरी मां से बड़ा कोन है? वह आदि- रूप से सामने आता है, अंधानुसरण बिल्कुल शक्ति हैं । यह प्ृथ्वी क्या है ? इसे किसने बनाया ? नहीं । मेरी माँ ने बनाया है। सूर्य को किसने वनाया ? मेरी माँ ने बनाया। मेरी माँ से बड़ा कौन है ? कोई नहीं। फिर क्यों न अपनी माँ की ही परिक्रमा जैसे कोई कहता है, "मुझे डाक्टर के पास जाना है। किन्तु अन्धानूयायी कहेग, "मैं डाक्टर कर लू? सारी पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा के पास नहीं जाऊंगी, क्योंकि माँ ने कहा है वह लगाने की आावश्यकता क्या है ? और कातिकेय के मेरी देख भाल करती है ।" नुयायी बीमार पड़ जाती है तब वह मां के पास पुरस्कार लेकर वराजमान थे । आकर लड़ती है, "मा आपने कहा था आप मे री देख भाल करती हैं । फिर मैं कैसे बोमार पड गई ?" यह प्रन्धानुसरण है । प्रौर जब वह अर्धा- परिक्रमा लगाकर आने से बहुत पहले वह अपना उनके सरल भाव, भोलेपन ने उन्हें यह समझने की बुद्धि दो। यही युक्ति संगत है यह अ्त्यन्त युक्ति पूर्ण है । और घह भी युक्ति संगत है कि मेरा और 'समर्पण क्या है ? भीतर, हृदय की दद मैं जितना अनुभव करता है उससे अधिक मेरी गहराई से आप कहते हैं, "सब कुछ माँ है । वह माँ करती है । जब यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, विद्यमान है। बही मेरी डाक्टर है, वह मेरी तब उनकी मांँ के विषय में [प क्या कहेंगे ? वह विकित्सा करती हैं या नहीं, मैं स्वस्थ होता हू या नहीं इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना । मैं केवल माँ को जानता है। अन्य किसी को मैं नहीं मानव की भाँति कष्ट भोगते देखा । यह कितनी जानता । यह अत्यन्त युक्ति संगत है । आप] युक्ति बड़ी बात है ! अपने को स्वयं की बलि देते पूर्वक जानते हैं कि माँ अधिकतम शक्तिमान हैं- देखा जबकि यह सब समाप्त कर देने की सारी यह सत्य है । और यदि यह सत्य है, वह मुझे स्वस्थ शक्तियाँ उनके हाथ में थीं। किन्तु यह एक बड़ा कर देगी किन्तु यदि वह मुझे रोग-मुक्त नहीं करती तो वह जाने, यह उनकी इच्छा, उनकी शक्ति है । करने का यदि बह मूझे स्वस्थ करना चाहती हैं, तो वह कर देगी। यदि वह ऐसा नहीं चाहती तो मैं अपनी इच्छा क्यों उस पर थोपूं ? स्वयं महालक्ष्मी थीं, अति शक्ति सम्पन्न । अपने पुत्र को उन्होंने प्रपने जीवन का ब लिदान करते देखा, पुत्र नाजुक काम था, इस अाज्ञा चक्र को निर्माण इसका क्या अर्थ है ? क्या इसका अर्थ है उसकी श्रद्धा में कुछ कमी थी ? इसके विपरीत, उनको (माँ को) उन पर इतना विश्वास था कि वह (माँ) श्री गणेश का समर्पण देखिये । जब उनकी मां उनमे ऐसा करने को कह सकती थी । ने कहा, "अ्रच्छा, कार्तिकेय प्रौर वह, दोनों भाइयों में जो धरती माता की परिक्रमा पहले करेगा उसे प्रथम पुरस्कार मिलेगा। अब बेचारे गणश के हैं तो कुछ लोग कहते हैं "माँ, मैं ये शोध-निबंध पास वाहन के रूप में एक छोटा चूहा था । किन्तु (thesis) दे रहा है । मुझे सफलता देना ।' उनके पास बुद्धि थी । "अ्रच्छा बंधन दो," "और प्राप सफल हो जाते जब मां से अपना कूछ काम करवाना चाहते और कातिकेय के पास एक निर्मला योग खोज करते की कोशिश कर रहा हैं। "माँ मैं यह प्राप प्रव ऐसो आत्मा हैं। अरत: आपका पोषरय " अच्छा, तथास्तु ।"माँ, मैं यह रो जगार पाना कार्य हो चुका है, अराप बड़े हो गये हैं, पुषट है। जब लोग सहजयोगियों को देखते हैं तो कहते हैं, ये केसे फुलों जैमे हैं। इनके चेहरे चमकते हैं । केसे आत्म विश्वास युक्त कितने सम्भ्रान्त, कसे चाहता हूँ।" तथास्तु । यह विषरीत क्रम है । कितनों में यीशू जैसा समर्पण है ? किसी में सुन्दर। नहीं। यह सत्य है। वह सबसे बड़ा भाई क्यों है? किन्तु यह सब (पोयरण) किसलिए? इसलिए कि आप परमात्मा के रथ के पहिये बन । अ्रपको सारा भार उठाना है और आत्म-वलिदात-जो बलिदान नहीं रहा। क्योंकि 'शात्मा' (ग्रब ग्राप अात्मा में परिगत हो चुके हैं। में से गूजरी-एक अधिक महान ध्येय, अधिक केवल देता है, कभी रखोता (sacrifices) नही। आनन्द, अ्धिक महान, अधिक ऊचे जेवन के लिए। देना इसका गुण है । [अतः आप कुछ खेते नहीं, वयोंकि उसके समान कोई नहीं है । उसने वह सब दर्दनाक कष्ट सहन किये, क्योंकि बह प्रपनी माँ के अभिन्न अंग थे । उससे (पुत्र से) उन्होने (माँ ने) बहुत रधिक कष्ट भोग किया अरापके लिये अब । वह भी उस वेदना यह सच्चा समर्पण है । आप केवल देते हैं । किन्तु ये छली लोग इसका लाभ उठा सकते हैं। जब वे लोगों को यातना देते हैं तो कहते हैं आखिर आापको कष्ट भोगने हैं । देखिये वे कैसी बात बनाते हैं । वें कहते हैं आपको काष्ट भोगना आबश्यक है क्योंकि अन्यथा आपका कार्य नहीं हो सकता। अतः कष्ट भोगना आवश्यक हैं । माँ पहले प्रसव की पोड़ा सहतो है। ठीक है । के कष्ट सहती है। ठीक है किन्तु जब बच्चा वडा हो जाता है तो वह मां के साथ खड होता है, उसको सहारा देता है, गौरवशाली सब तरह पुत्र बनता है । उसका (पुत्र को) वह ( मा) प्रभिमान अनुभव करती है। उसका (पुत्र का} उसे (माँ को यह अत्यन्त सुक्ष्म समझने वाली बात है, अभिमान है और उसका (माँ का) उसे (प पुत्र का) अत्यन्त सूक्ष्म । आपको इससे स्थष्ट हो जायगा कि आ्रभिमान है । वे एक साथ खड़ होते है और एक साथ लड़ाई लड़ते हैं। यह तभी सम्भव होता है पहले आपका पोषण किया जाता है, प्रापको ऊपर उठाया जाता है, आपका प्रशिक्षणण होता है, आपको जव आप पूरण सम्पण ओर एक सहजयोगी के सही किया जाता है। और उसके पহचात आप जो भावी जीवन को तैया री के लिये गे अये-ऐसा (लड़ाई) सा कष्ट नहीं रह जाते क्योंकि आपका आत्मा' में दीखता है किन्तु भीतर अत्यन्त कृतार्थकारी (fulfilling) है । एक समय था जब मेरे पास जो सहजयोगी आते थे उनके लिये धरती पर बैठना भी एक बहुत बड़ी बात (त्याग) थी। इसी भांति जुते उतार कर बेठना एक बड़ा त्याग था। कल कार्यक्रम में तोन व्यक्ति जूते उतार कर बेठने की इसे (आत्मा को) किसी शस्त्र द्वारा मारा नहीं बात पर उठ कर चले गये, जेसे कोई उन्हें गंजा कुछ करते हैं-कष्ट सहन आदि के लिये जोवन जो वाहर से एक संग्राम रूपान्तिर हो गया है : नेनं छिदन्ति शस्त्रारि, नेनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्तापो, न शोषयति मारुतः ।। जा सकता, हवा इसे फंक नहीं सकती अथवा उड़ा नहीं सकती, प्रग्नि इसे जला नहीं सकती । इसे किसी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता । (bald headed) कर रहा हो । किन्तु सहजयोग में क्यों ऊंचे उठना बढ़ना, निमंला योग ६ ख ड़े होना-एक महान माँ को महान सन्तान के सामने वड़ी हैं, श्रापको दूसरों के सामने खड़ा होना रूप में ! काम महान है, दुर्दन्ति है । यह ऐसे-बसे, है, सर्वसाधारण के सामने खड़ा होना है । मंझोले लोगों के करने का काम नहीं है । पिचके गालों वाले, डरपोक अहंकारी भीरु इसे नहीं कर सकते । उनमें आवश्यक वीरत्व (mettle) नहीं है । समर्पण का अर्थ यह नहीं कि आप सहजयोग की उ्चा न करें । बहुत लोग सोचते हैं शान्त, चुपचाप रहना हो समरपण है। के वल ध्यान में शैन्ति रहती चाहिये । किन्तु बाद में तो उस स्थिति (ध्यान में शान्त) से बाहर अराना होता है । अरतः ध्यान में समर्पण, ध्यान में पूर्ण समर्परण का अ्रभ्यास करना चाहिये। अब यह तुम्हारे ग्रपने तथाकथित सकुचित 'प्रपने' हित के लिये तुम नहीं कर रहे हो। पहले तुम एक नन्हें शिशु थे- संदेश कह दो कि पूनरुत्थान (Resurrection) बालक । अब आप एक समग्र पुरुष (collective being) हैं । अरत: अरब आप 'अपने लिये नहीं करते, वरन उस समग्र पूरुष के लिये करते हैं । प उस समप्र की चेतना में उतरने के लिये ऊँचे मजाक उड़ाता है तो उसे समझदारी उठ रहे हैं जो (समग्र पुरुष) अआप बनने के पथ पर बुद्धिमानी से बातें बताओ। व्यक्तिगत रुचियों, हैं। आरपका काम अपका रुपया, आपकी पत्नी, अरुचियों को त्यागना चाहिये। "मैं ये पसस्द करता आपके पति, बच्चे, पिता, माता, रिव्तेदार-ये सब है, मैं वह पसन्द करता है ।" ऐसो बातें छोड़ देनी बात अब समाप्त हैं। अब श्रप सबको सहजयोग अर्थ यह नहीं प्राप मशीन की भांति का कार्य-भार संभालना है [आपमें से प्रत्येक पूरणो हो जायं नहीं। किन्तु यह "मैं" की दासता को सक्षम है । आपको उसके लिये तयार किया गया छोड़ना चाहिये । आदतों की दासता समाप्त होनी है । आप जिस प्रकार उचित समभोें आपकी जैसी चाहिये। आपको श्चर्य होगा, आपमें समर्पण भी क्षमताएं हों, वैसे करे। बस आपका पूर्ण सम- परण काम करेगा। 'समर्पण ही सार है । पूर्ण समर्पण द्वारा ही आप अर ऊंचे उठ सकते हैं । सारे राष्ट्रों अरर सारे लोगों से यह महान का समय आ गया है- अ्रभी, इ सी समय । और प सब यह कार्य (महान संदेश को फेलाना) भी कुछ करने के योग्य हैं । यदि इसके लिए कोई आपका और चाहिये इसका जाग्रत होने पर आप अधिक नहों खायंगे, कभी कभी पविल्कुल नहीं खायगे, खाने की बात ध्यान रहना भी जरूरी नहीं। आपको ध्यान नहीं रहेगा आपने क्या खाया, आप कहाँ सोये, केसे कुछ सहजयोगी हैं जो प्रधपके हैं । उन्हें हम सोये यह भी ग्रापको ध्यान नहीं रहेगा। यह एक छोड़ दें उन्हें हम अपने साथ नहीं रख सकते । दूरबीन जैसी जिन्दगी होगी-फेलतौ हुई। आप अपने उनके प्रति आप सहानुभूति न रखें । वे बेकार हैं। यदि वे ठीक मिद्ध हुए तो हम उन्हें दवारा अपने क्रियान्वित करेंगे। आप ऐसे सरल, साधारण साथ ले लँगे । किन्तु यह काम आप मुझ पर छोड़ व्यक्ति दीखते हैं किन्तु आप ऐसे नहीं हैं । समर्पण द । आप उनकी ओर गरपना ध्यान अ्रथवा प्रयत्न में, पूरण समर्परण में अब प्रापको यह कार्य करना न करें। आपको ऊंचा उठना है। आ्राप माधक (seekers) थे, तभो आपको यह मिला है, आपने लिए नहीं - वह तो समाप्त हो चुकी है । यह करना उन्नति की है, आप ऊंचे उठे हैं। यह किस लिए ? है दलदल से पूरे वाहर निकलने के लिए, घरती इसलिए कि आप खड़े हों । जैसे मैं आज आपके पर खड़े होकर परम पिता परमेश्व र की ऊंचे स्व र पूर्णं करेंगे, सपने (visions) सृजन करेंगे, उन्हें है, ग्रपने निजी हित, अपनी निजी उपलब्धि के निर्मला योग में स्तुति-गान करने के लिये । जो दलदल में फंसे हैं वे क्या संगीत दे सकते हैं ? क्या गान गा सकते नि: ! अर्थात पूर्णता । बहुत पहले से सहखार के हैं ? वया सुरक्षा दे सकते हैं ? क्या दूसरों की सहा- आनन्द को 'निरानन्द' कहते हैं । प्राचोन काल से इसे यता कर सकते हैं ? आपको उससे पूरा बाहर निरानन्द या निर्मला आानन्द कहा जाता है । बहुत निकलना है । उसके लिये सुदृढ़ बुद्धिमत्ता चाहिये, लोग इसे निर्मला -अरनल्द या निरानन्द कहते हैं स्थिर, प्रत्येक क्षण । उसके लिए अपने बांये पाश्वं (इड़ा नाड़ी) अ्रथवा दांये पाश्वं (पिंगला नाड़ी) को समय भी अनुभव करते हैं । यह आनन्द वह आानन्द दोष देने की आवश्यकता नहीं। बिल्कुल नहीं । आप है जो आप जब आ्पको विष दिया जाता है उस बस बाहर निकल आयें । इसे मजबूती से पकड़ ले । आपकी देखभाल करने के लिये परबरह्य आये हैं । इनको पकड़े रहें । मृत्यु को भी वापस जाना होगा। आनन्द है निरानन्द । फिर इन छोटी-छोटी बातों की क्या गिनती ? 'मल क्या है? यह, यह दलदल है । दलदल से मुक्त, यह आनन्द बह अआनन्द है जो आप सूली पर चढ़ते अक समय भी अनुभव करते हैं । अपनी मृत्यु-शब्या पर लेटे भी आप उस आनत्द का अनुभव करते हैं। वह अतः दूसरे चरण (phase) के लिये तैयार ब] प्रापकी मां का नाम वड़ा शक्तिशाली है । हो जाप्रो । माप मोर्च पर ( रागे) हैं मुझे बहुत आपको पता होना चाहिये यह अन्य सब नामों से कम समय चाहिये। किन्तु मूझ दुढ़ बुद्धिमत्ता ओर शव्तिशाली है । सबसे शक्तिशलीि मन्त्र है । किन्तु समर्पण वाले लोग चाहिये। द ढ़। जो एक क्षण आपको जानना चाहिये इसे कसे उच्चारण करना के लिये भी इधर या उधर विचलित न हों । अब चाहिये। अन्य किसी नाम जैसे नहीं। आप जानते हुम तेजी से प्रगति कर सकते हैं और लडाई लड़ने हैं भारत में जब लोग अपने गुरु का नाम लेते हैं तो के लिये आगे बढ़ सकते हैं। शायद अब अ्ाप असद- अपने कान पकड़ते हैं । इसका अर्थ है कि यह नाम प्रवृत्तियों (वाधाओं) की सूक्ष्मताओं से परिचत हो उच्चारण करते समय यदि मैं कोई भूल चूक कर गये हैं। कैसे वे अपनी शक्ति-जो निस्सन्देह रहा है, तो कृपया क्षमा करें । यह अ्रत्यन्त शक्ति सीमित है-परमात्मा के कार्य को नष्ट करने में शाली मन्त्र है। केवल आपको समर्परण की जरूरत उपयोग करती हैं। और कैसे आपको सचेत, सुसज्जित (equipped) शऔर समर्पित रहना है। यह बात में केवल आपसे बता सकती हैं । यह मैं आज मैंने कहा, "इंग्लंण्ड में अब डेजी-फृूलों में कैक्स्टन हाल में आने वाले सर्व-साधारण लोगों को सुगंध होती है ।" उस महिला को विश्वास नहीं नहीं बता सकती । उनमें से कुछ अधपके होते हैं, । कुछ विल्कुल नये, भोले-से, और कुछ बित्कुल । किन्तु यहां, आज जो प्राप मेरे सामने सुगंध नहीं होती और वे अरजीब गंध के फूल होते उपस्थित है, मैं आपसे बहुत स्पष्ट बताना चाहती T' मैंने कहा, "अच्छा, ये डेजो तुम लो, इनको हैं, जसा कृष्ण ने अजन से कहा था, "सर्व घर्माण सूघा तो वह परित्यन्य मामेकं शरणं ब्रज ।" इसके अलावा चकित रह गई ! आराश्चर्य ! कैसा सूक्ष्म ! आज वे दूसरा रास्ता नहीं है । 'ब्रज' माने जिसने दूस री है-समर्पण का बारूद । हुआ। वह बोली, "मैंने तो ऐसा कभी नहीं देखा इसके विपरीत मेरा तो अनुभव है डेज़ो में कोई बेंकार सुंघ कर देखो।" जब उसने उन्हें इंग्लेण्ड में सबसे अधिक सुगंध वाले फुल हैं । केवल बार जन्म लिया है । एक ठोस व्यवितत्व, एक ठोस पदार्थ की भांँति । जब आप ठोस होंगे, तभी आपका समर्पण होना चाहिये। जब आप पक्के, परिपक्व, नाम, जिसका अर्थ है निष्कलंक, अरर्थात निर्मल , मतलब विल्कुल मल (विकार) - शून्य, स्वच्छ । यह निर्मला योग ११ तभी प्रापको समर्पण करना चाहिये । लगते हैं। ऐसी स्थिति है। क्योंकि आप उतर कर प्रपने तत्व पर प्रा बेठे है। उसी भाति याप प्रत्येक यह ग्पापको दलदल से बाहर निकनने में के तत्व पर उतर कर स्थित हो जाते हैं। किन्तु सहायक होगा और तब यह उस महान कार्य में उस तत्व पर समर्पित हों, क्योंकि इन सबका मैं सहायक होगा । कोई नही समझता मां क्यों में री तत्व हैं। मैं तत्व हैं, तत्वमय है। अपने तत्व पर सहायता करने की कोशिश कर रही हैं। वे समझते स्थित रहें । हैं मा बड़ी उदार है । किन्तु ऐसी वात नहीं। मैं बहुत समझदारी रखती है। क्योंकि आप हो वह लोग हैं जो ईश्वरीय आनन्द] को इस पृथ्वी पर वाली । जो स्थूल रूप से बड़ो दिखती है, ऐसी वस्तू चरितार्थ (manifesting) करने में समर्थ है । के प्रति समर्परग हमारी समझ में प्रा जाता है प वह बासुरी हैं जो परमात्मा का संगीत गान करेगी । परमात्मा आपको उपयोग करंगे और पाते तो इतनी सूक्ष्म (भाव), इतनो सूक्ष्म (आकार) अपनी इच्छानुसार घुमायं-फिरायगे, कार्य जो इतनी गहन है, इतनी गतिशील, इतनी विश्व- करवायगे मैं आपको पूर्ण सूर्योग्य (perfect) व्यापी ओर इतनी सतातन है उसको समर्पणा बनाने के लिये यह सब कर रही है जिससे आप परसार्मा के परम सून्दर यन्त्र बन सक, परमात्मा के सामने समर्पण कर देते हैं जो एक पर्वत जैसा के सही यन्त्र बन सके । मूझे पता नहीं कि आप समझते हैं कि वह जोवन कितना मधुर र सुन्दर अत्याचार करने प्राता है, जो हिटलर जैसा दिखता होगा, समर्पण का जीवन, समझ के साथ, युक्ति है, जो भुठे, कपटी गुरु जंसा होता है। किन्तु अपने संगत । पूर्ण समर्पित, समस्त पोषण अर्जन करने वाला और उसे अ्रधिक ऊँचे उद्देश्य के लिये समर्पित करना. जिसे आ्रप [प्पनी प्रांखों से नहीं देख सकते, करने वाला जेसे कुछ पत्ते मूर्य की किरणा खींचते जिसे (कान से) मुन नहीं सकते, किन्तु जो वास्तव हैं, अपने में रंग ग्रहण करते हैं, ऊंचे घ्येय के लिये में विभक्त किये गये ( Split) एटम बम की भांति कि जिससे बाद में वे मानव द्वारा उपयोग में लाये इतना शक्तिशाली है । विभवत होने (split) से जा सके । इस पृथ्वी पर इस पद्धति के विपरीत पहले यह सब जगह रहता है । किन्तु सूक्ष्मता के कोई कार्य नहीं होता सब कुछ किसी उद्देश्य के वरम बिन्दु पर यह इतना गतिशील (dynamic) लिये होता है, किसो निःस्वार्थ विस्तोर्ण, एक महान होता है कि जब आप इसे (अपने सूक्ष्म स्वरूप गतिशील (dynamic) उद्देश्य के लिये घटित को) अपना लेते हैं तो यह ऊर्जा की ऐसी होता है । में कूइलिनी है। मैं सार है । एक स्थ ल दौखने किन्तु हम एक ऐसी वस्तु के प्रति समपण नहीं कर करने की हम नहीं सोच सकते । हम उस प्पादमी भीमकाय दीखता है, जो परवत की तरह हम पर मुन्दर सूक्ष्म पुरुष (ब्यक्तिस्व, being) को समर्पण गतिमान शक्ति में परिणत हो जाता है । क्योंकि प्रापका चित्त विश्व के सूक्ष्म स्वरूप में पैठ (पहुँच) चुका है, अतः श्रप गहरे और अधिक गहरे उतरते जाय । धरती जो जड़ के निचले सिरे को पानी के उद्गम-स्थल (source) पर ले जाती है, उस उद्गम स्थल से अभिन्न है । आपकी कुण्डलिनी आदि आप सागर बन जाते हैं, आप चन्द्रमा बन जाते हैं, याप सूर्य बन जाते हैं, [प्राप पृथ्वी बन जाते हैं, आप अरकाश (ether firmament) बन जाते हैं और आप अरत्मा बन ज। ते हैं। आप उन सबके लिये कार्य करते हैं । समस्त तारागररा और कूण्डलिनी से अभिन्न है और इसकी शक्ति परब्रह्म भूमंडल आप बन जाते हैं और उनका कार्य करने हैं । निमंला योग १२ ये सब बातं आत्म-साक्षात्कार और परिपक्वता जैसे जहाज वनाया जाता है, समूद्र पर लाया जाता के बाद हो समझी जाती हैं। उससे पहले सम्भव है, उसका परीक्षण होता है और समुद्र में यात्रा नहीं। इसी कारण पिछले आठ साल ये सब बात के लिये उपयुक्तता देखी जाती है। अत: प्रब यह मैंने आपसे नहीं कहीं। मेरी आपके साथ बड़ी दुसरा चरण (phase) है जब आपको यात्रा पर प्रस्थान करना है, जब आपको जहाज का ओर आपको ऐसा दिखाती थी कि जेसे आप मुझ पर समूद्र का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया है यूरणं उपकार कर रहे हैं यद्यपि इसमें अरापका मुझ पर स्वतत्त्रता और बुद्धिमानी से अब आपको अपनी योत्रा करनी है, तूफान, अधी आदि से निर्भीक, क्योंकि अव आप [पूर्णं ज्ञान रखते हैं। आपका काम लूभानी और मीठी व्यवहार शैली थी। और मैं कोई उपकार नहीं है । इन सब विचारों को पार कर आप अपनी है पार पहुचना । 'आत्मा' बन गये हैं, तेयार उत्तरदायी (responsible) बनने के लिये, आपको जिस लिए बनाया गया वह भूमिका ग्रहण करने के लिए । आपको प्रनन्त आशो्वाद । * निर्मल वारणी * हमें इस शरीररूपी मन्दिर की देखभाल के लिए अपना प्रधान कर्तव्य समझक र सतत प्रयत्न करते हुए कार्यान्वित होना है पर यही आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। वह एक अत्यन्त छोटा- सा हिस्सा है अपनी जिन्दगी का, जैसे तमाम जगह स्वच्छ कर आप बाहर आ जाते हैं । यदि आपको कोई समस्या है तो उसे भूल जाइए। क्रमानुसार आपकी दशा में सुधार आ जाएगा मुख्य बात तो यह है कि अपनी आत्मा में रहें, संतुष्ट रहें। बारम्बार आग्रह न करे कि मां हमें ठीक कर। परन्तु कहना चाहिए "माँ हमें आरध्यात्मिक जीवन में स्थापित रखिए ।" आप स्वतः स्वेच्छानुरूप से आरोग्य हो जाएगे। ॐ माया के वर्गर चित्त की तैयारी नहीं होती। इसीलिए इस माया से डरने के बजाय उसे पहचानिए । तब वही आरापका मार्ग प्रकाशित करेगी । जैसे सूर्य को बादल ढक देते हैं और उसके दर्शन भी करा सकते हैं। माया मिथ्या है यह जानते ही बह अलग हट जाती है, और सू्रय का दर्शन हो जाता है सूय (ब्रह्म, सत्य) तो सदा सर्वेदा है ही, परन्तु वादल (माया) का काम क्या होता है ? बादलों की वजह से ही मन में सूर्य-दर्शन की तीव्र इच्छा पंदा होती है । फिर सूर्य क्षणभर के लिए चमकता है और छिप जाता है । इस कारण अखों को सूर्य देखने की ताकत और हिम्मत आरती छु] निर्मला योग १३ परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी सहजयोगियों के लिये भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्त्व दिल्ली २५-३-१६८५ आज नवरात्रि के शुभ अवसर पर सबको वधाई। दूसरी बात बिहार, पंजाब, हर जगह ये पाया जाता है कि हम अपने को कहलाते हैं कि हिन्दू या भारतीय हैं. लेकिन हम अपनी संस्कृति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। हम कुछ भी नहीं जानते कि हमारी जड़े क्या हैं ? किस जड़ के सहारे हम खड़े सहजयोग के प्रति जो उत्कण्ठा और आदर प्रेम प्रप लोगों में है, बो जरूर सराहनीय है, इसमें कोई शंका नहीं। क्योंकि जो हमने उत्तर हैं ? हिन्दुस्तान की स्थिति देखी है, वहाँ पर हमारी परम्परागत जो क्रुछ धारणाए हैं, उसी प्रकार शिक्षा प्रगालियाँ हैं- सब कुछ खोई हुई हैं। बहुत कुछ हम लोगों का अतीत मिट चुका है और हम लोग दूसरों की जड़ अपने अंदर बिटा कर हम पनप नहीं सकते और जो हमारी जड़े हैं वो इतनी महत्वपूर्ण हैं कि उसी से सारे संसार की जड़ें प्लावित होंगी । उसी से बो उच्च स्तर पर उठेगी । एक उधेड़-बुन में लगे हुए हैं कि नवीन वातावरण , 1 जो कि तीन सौ साल की गूलामी के बाद स्वतंत्रता पाने पर तैयार हुआ, बो एक बहुत विस्मयकारी जरू र है, लेकिन विध्वंसकारी भी है। माने कि जैसे कि हम अपने तत्त्वों से उखड़ से प्रजीव वाता- वरण में है, कि न इधर के हैं न उधर के हैं, प्औौर जब भी मैं अन्दर देखती है, तो बड़ा आश्चर्य गए हैं उनका सिचन नहीं हुआ ये बात जरूर है, होता है कि जो गहनतम विशेषताएं दक्षिण में हैं, लेकिन हमारा भी रुझान ज्यादा बाह्य की शर वो यहां एकदम खो सी गई हैं। इस अर हमें चिन्ता रहा-ये उत्तर हिन्दुस्तान पर एक तरह का शाप- करनी चाहिए श्और ध्यान देना चाहिये कि हमने ये सब क्यों खो दिया ? जो हमारा इतना महत्त्व- पुणं ऊचा था, उसे हमने क्यों त्याग दिया। लेकिन यहाँ का मानव ऐसा कुछ मूल-भूत सा है । उत्तर प्रदेश में मैं सोचती है कि सीताजी के हूँ । है. उससे तो मैं सिक्ख लोगों को ध्यादा मानती है, क्योंकि कुछ अपने घर्म के बारे में ऐसा कोई सिख अापको नहीं मिलेगा जो प्रपने धर्म के बारे में कूछ भी न जानता हो । लेकिन ऐसे मिल जाएंगे जो कूछ भी नहीं जानते और उसमें उनको कोई हर्ज भी नहीं है। इसका एक फ़ायदा साथ जो दूुध्यवहार किया गया, उसके फलस्वररूप नहीं तो कुछ न कुछ तो वो जानते हैं अब मेरे ख्याल से घोबियों का ही राज शुरू हो गया है। य्रोर बड़ी दूख की बात है कि जब आप उत्तर प्रदेश में सफ़र करते हैं तो देखते हैं कि लोगों में बड़ा उथलापन, अच्रुरापन अ्रश्रद्धा, अ्नास्था आदि इतने बुरे गुरण आरा गए हैं कि लगता नहीं है कि वहाँ कभी सहजयोग पनप सकता है । प्रापको हजारों हजारों हिन्दू निर्मला योग १४ जरूर होता है कि जब घर्म बहुत ज्यादा संकलित पाओगे । जब जड़ में भी अप इतने उछ खल हैं, होता है, organised (संगठित ) होता है तो तो आप सूक्ष्म में केसे उतरेंगे ? उसकी श्र खलाए जरूर अटकाव रखती हैं, उससे आदमी अति पर जाकर aिnatic (घर्मान्धि) हो सकता है, यह एक बात है । लेकिन दूसरी बात कि हैं, उनको समझे बगेर हो बहुत लोग गलत काम हम बिलकुल प्रनभिज्ञ हैं अपने घर्म के बारे में । प्रपने करते हैं । जैसे कि हाथ में चूड़ी पहनना, एक छोटी विश्वासों के बारे में और अपनी घारगा प्ों के बारे सी चीज है । ये है, क्या चीज है आप जानते हैं ? में होने से-अंग्रे जों को तो कह सकते हैं, विशुद्धि के चक्र में स्त्री में कंकरण होना चाहिये । परदेसी लोगों को कह सकते हैं कि आपको यह सीखना है, आपको यह जानना है. अपने गहरे में उतरना है-लेकिन हिन्दुस्तानियों को क्या कहा पहले पहना नहीं था वहुत दिनों तक । लेकिन जाए ? वो तो अपने को अ ग्रेज ठहराए बेठे हैं ! समझ गई मैं, इसको पहने बगैर काम होगा नहीं, बो सोचते हैं कि हम तो वहत ऊंची पदवी पर इसलिये पहना । पहुँचे हुए हैं। हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषताएं जो पुरुष भो पहले कंकरण पहनते थे । मेरे नाक में ये (नथ), शुक्र का तारा है, ये मुझे पहनना पड़ा । हर चीज हमारी संस्कृति में बहुत नाप-तोल और समझ से बनाई गई है । ये कोई किसी धर्म ने नहीं बनाई। ये द्रष्टाओं ने बनाई हैं, बड़े-बड़े ऋषियों औ्रर मुनियों की बनाई गई चीजें हैं, इको हमें समझ लेना चाहिये। कितना उथला जीवन हम बिता रहे हैं ! इसकी ओर हमारी दृष्टि नहीं । इसलिये हमारी संवेदना, जो आरत्मा की है, वो गहन नहीं हो पाती। आत्मा की संवेदना गहन है, उथली नहीं है । जो मनुष्य उथलेपन से जीता है, वो गहनता को कैसे पाएगा ? हर चीज़ में, हर रहन-सहन में, बात-चीत में, ढंग में हमें पहले भारतीय होना चाहिये । जब तक हम भारतीय नहीं हैं, तब तक सहजयोग आप में बैठने वाला नहीं। क्योंकि जो परदेसी हैं वो हर समय ये कोशिश करते हैं कि हम भारतीय लिवास में कसे रहें, भारतीय तरीके से कैसे उठे-बैठें, बोलें । हर चीज वो ये देखते रहते हैं, और सोखते रहते हैं। कोशिश करते हैं । इस ओर ध्यान देना चाहिये कि इसे हमने क्यों खोया ? और खोने पर अब हमारा सम्बन्ध इससे कैसे हो सकता है ? हम किस तरह से अपने को गहनता में उतार सकते हैं ? एक तो धमं के प्रति हमारी बडी उदासीनता है । मैं कोई बाह्य के धर्म की बात नहीं कर रही हूं, ये आ्रप जानते हैं, पर अंदर का धरम होना बहुत सहजयोगी हमने foreign (परदेस) में देखे, उनकी जरूरी है अन्दर का धर्म, माने संतुलित जीवन जो ग्रास्था और dedication में वो सब चीजों में असर करता है। कोई कहेगा देखा, वो यहां के सह जयोगियों में नहीं है । यहा तो कि 'मां कपड़े पहनने से क्या होता है, बो तो जो है सहजयोगी सिर्फ बोमारी ठीक कराने आते हैं । जड़ वस्तु है । सूक्ष्म में ही सब कुछ है । अरे भाई ! तो हिन्दुस्तानियों का भारतीय होना बड़ा कठिन आप सूक्ष्म में जब जारोगे, तब जड़ को आप दिखाई दे रहा है, बजाय इसके कि परदेसियों का । प्राज ही हमारी बहू ने एक बात कही, कि 'जो (श्रद्धा, भक्ति) निर्मला योग १५ एक तो बुद्धि में उनकी बड़ी शुद्धता है, और दूसरों का भी लिबास इस प्रकार रहे जिसमें कि बहुत चमक है । उस बुद्धि से वो समझते हैं कि जो मनुष्य सौष्ठवपूर्ण हो, असुस्दर न हो । लेकिन आज तक हम लोगों ने ये अरहंकार के सहारे कार्य उसमें वासनामय चोजे न हों । किये हैं, इनको छोड़ देना चाहिये, और सीधे सरल तरीके से जो भारतीयता हमेशा आत्मा की ओर निर्देश करती है, उसे स्वीकार करना चाहिये। वो सोप्ठवपूर्ण होना चाहिये । सोष्ठव का मतलब होता इसे समझते हैं बहुत अच्छी तरह से और गहनता है-'सु' से अता है-जिसमें शुभदायो चीज हो, से और जिस बीज़ को समझते हैं और मानते हैं, सबका मन पवित्रता से भर जाए। ऐसा स्त्री का उसको करते हैं। क्योंकि उनमें बड़ी समग्रता आ स्वरूप पूरुष का स्वरूप होना चाहिये, उनका गई है। लेकिन हम लोग-माँ के सामने एक बात, व्यवहार होना चाहिये । बाद में दूसरी बात-'उसमें क्या हज है, अगर इस त रह से रहा जाए, उस तरह से रहा जाए । जोवन शत्यत जीवन के हर व्यवहार में हमारा कि ले किन हम उनकी जो बुरी बातें हैं पूरी तरह से सीख लेते हैं, और उनकी अच्छी बात हैं, तो हम नहीं सीख पाते । और अपने को ये समझ करके कि हम एकदम से बड़े भारी आधुनिक बन गए हैं, इस आधुनिकता के तो शाप हैं उनसे आप वंचित नहीं रहेंगे। आज मैं अरापके सामने एक ही प्रस्ताव रख रही है, क्योंकि प्राप जानते हैं, हमने 'विश्व निमल घर्म की स्थापना की है । लेकिन विश्व घर्म जो है उसकी संस्कृति भारतीय है संस्कृति बलकुल, पूरी तरह से भारतीय है। उसमें कोई भी हम लवलेश नहीं करेंगे। जो भारत में प्राएं गे. उनको भारतीयों जैसे रहना पड़ेगा । क्योंकि ये संस्कृति हजारों बर्षों में भी भारतीयता आनी चाहिये । बच्चों में प्रादर, से बनाई गई है; सोच-समझ कर । इसमें जो आरस्था, भक्ति, नमरता सव होनी चाहिये ।०० गलतियाँ हैं, उसे ठीक करके करके, इसमें से जो कुछ भी दोष हैं, उसे निकाल करके, ये संस्कृति बनाई गई। अपने बच्चों की ओर नज़र करें । अरपने बच्चों अब आप महाराष्ट्र के बच्चे देखिये, सीधे बैठे रहते हैं। मैंने कभी नहीं देखा कि बच्चे इधर-उघर देख रहे हैं, ये कर रहे हैं, हंस रहे हैं, बोल रहे हैं-कभी नहीं। आप देखिये-शांति से, ध्यान में बैठे रहते हैं ? अ्रगर प अंग्रेज बच्चों को देखिये, तो इतना दौडते हैं कि उनको सबको बाहर रखा जाता है, उनकी मांं को भी बाहर रखा जाता है । । अनेक बर्षों से बिता और इस संस्कृति में एक ही बात निहित है कि अरपना चित्त हमेशा निरोध में रखो। अपने चित्त का निरोध । अपने चित्त को रोकिये । आप देख लीजिये दिल्ली शहर में कहीं भी जाइए, सबकी पअरंख इधर-उघर धूमती रहती है हर सहजयोग इतना गहरा हमारे अन्दर क्यों नहीं समय । किसी की आंख में । उतर रहा । हमें अपनी ओर दृष्टि करके देखना वासना भरी हुई है, जिसे lust श्रोर greed चाहिये कि हम क्या स्वयं गहन हैं ? हमारे अन्दर कहते हैं । तो हमें जान लेना चाहिये कि, क्या बात है ? शुद्धता नहीं पाइएगा गहनता आई हुई है ? भारतीय संस्कृति को जरूर अपनाना होगा, पूरी चित्त का निरोध तभी हो सकता है कि जब हम इस तरह से अ्रपना भी लिबास रखें, और तरह से, शर उसकी पुरी इज्जत करते हुए, निर्मला योग १६ जेसे बड़ों का मान करना। हमने सुना कि कोई पण था। कैसे हो सकता है ? बाप रे बाप ! बो सहजयोगी हैं, अपनी माता को बहुत सताते हैं, तो जल्लाद थे, वो कैसे औरतों के प्रति आकर्षण और बड़े भारी सहजयोगो हैं। ये केसे हो सकता रखेंगे ? विष्णु को दूसरे गंदे स्वरूप में दिखा दिया। है ? सबके अधिकार होते हैं, सबका एक तरोका इस तरह हरेक देव-देवताओं को उन्होंने उतार के होता है । अगर मां कोई ऐसी शैतान हो, या भत- छोड़ा। ग्रस्त हो, तब तो समझ में आई बात । लेकिन किसी भी मां को सताना हमारी संस्क्ृति में मना अब, आप रोम में जाइये। वहाँ की संस्कृति देखिये, तो Romans (रोमन लोगों) के लिये तो लोग कहते हैं कि जहाँ गए, बहां ही सत्यानाश । राक्षसी प्रवृत्ति के लोग थे । Egypt (मिस्र) में दूसरी बात, अपने यहाँ कोई ग्रादमी कोई भी जाइये तो भारी भूत-विद्या । China (चीन) में मेहमान घर में श्राए, उसके लिये हम लोगों को जाइये तो थोड़ा सा आभास] हिन्दुस्तात का मिलता जान दे देनो चाहिये। इसके अनेक उदाहरण हैं। है पर जो भी उनकी संस्कृति है, वो हिन्दुस्तान जो हमने खोया हुआ है, पूरा की पूरा हमें सहज- की संस्कृति पर ही बसी हुई है । जो भी कुछ वो योग से लाना है । पन्नाधाय जैसी औरते, जिसने मानते हैं, वो हिन्दुस्तान से गई हुई सभ्यता पर बसी है उसी प्रकार [आप पअ्रगर] जापान में जाएं, लिये जिसने अपने बच्चे को त्याग दिया पश्मिनी वहाँ भी आप पाते हैं कि हिन्द्स्तान की संस्कृति जैसो स्त्री इतनी लावण्यपूर्ण थी । उन सब को याद पर बसी हुई चीजें, जैसे कि Zen (जेन) शादि हैं, है । भाई-बहनों से दूर भागना भी विलकुल मना है। ये अपने बच्चे को त्याग दिया। युत्रराज को बचाने के करिये जिन्होंने अ्रपनी जान देश की अरान में मिटा दी। उस संस्कृति को छोड़कर के आप किसी भी तरह से सहजयोग में पनप नहीं सकते। ये सब हिन्दुस्तान से गई हुई चोज हैं । संसार को हमें सभ्यता देनी है । हमारी संस्कृति में सारी सभ्यताएं इतनी सुन्दर हैं, सवको भुला करके और प्रव हम उस सभ्यता को ले रहे हैं मैंने सारो संसार की संस्कृतियाँ देख लों। एक तो जो अनादिकाल से संस्कृतियां चली प्रा रही जिसमें कोई भी सभ्य चोज नहीं है, प्रसभ्य है । हैं। Egypt (मिस्र) में कहिए, China (चीन) में कहिए, या अप चाहे तो Greece (यूनान) में कहिये, Italy (इटली) में कहिये, काफी पुरानो हों । सभ्यता ऐसी हो कि हमारे व्यक्तित्व से शुभ सभ्यताएं हैं । हजारों बष की सभ्यताएं हैं, और झरे। तभी संसार ठीक हो सकता है । ऐतिहासिक भी हैं । हमारी तो इतनी पुरानी है कि वो कुछ ऐतिहासिक है, कोई पोराणिक है और कोई तो कोई समझ हो नहीं पाता इतनी पुरानी प्रति गर्वं को दष्टि से देखें । अपने प्रति एक अभि- सभ्यता हमारी है । इतना ही नही कि हम सभ्य हो, हम सुसभ्य तो पहले एक भारतीय होने के नाते आप प्रपने मान रखे कि आप भारतीय है, प्राप के पास से संस्कृति की इतनी संपदा है । और कृपया कोशिश करे कि हमारे हरेक जोवन में हम भारतीयता के साथ रहें। [अप्रेजियत को त्याग दें । विलायती चोजों का इस्तेमाल करना वहुत गलत है । और इन सभी सभ्यताओ्रों ने विकृति को ही माना, और उसमें बहुक गए। उसमें दिखाया कि परशुराम जो थे, उन में श्रौरतों के प्रति वड़ा आक- निर्मला योग १७ आप जानते हैं आपकी माँ सब भारतीय चौज इस्तेमाल करती है । क्रीम तक वो भारतीय लगाएगी, साबुन भारतीय रहेगा, भारतीय होनी चाहिये, चाहें इग्लेंड में रहे, चाहे दुनिया में कहीं भी रहे। और मैं देखती है कि बाहर की कोई चीज लगाओ तो मेरे को तो सुहाती ही नहीं है । कोई क़ीम बाहर की लगाओ तो वो मेरे को सुहाएगी नहीं । मुझे सुहाता नहीं है । औ्रत हमेशा दबाई जाती है । बुरी तरह से उसको सताया जाता है ये बो कहते हैं मुसलमानों से सब चीज़ प्राया है । लेकिन मैं मुसलमान देशों में गई हूं, हैं । हां, मानते हैं वहां चार रियाद में रही बीवियाँ करते हैं, जो भी करते हैं, लेकिन औरत की कितनी इज्जत है वहाँ ! बहुत ख्याल करते हैं कि एक औरत अबला है, उसकी मदद करनी चाहिये। वहुत इज्जत करते हैं । हम न तो मुसल- मान, न हिन्दू, पता नहीं कहाँ के आ गए जो कि इसलिए जो यहां पर, विशेषकर North अररतों को इस तरह से सताते हैं । अपने इस देहली India (उत्तरी भारत) में आप देखते हैं कि लोग बहुत ज्यादा परदेसी चीजों की ओर, परदेसी सभ्यता की ओर, परदेसी व्यवहार की ओर इतने भुके जा रहे हैं। ये कहाँ पहुँचे हैं ? कम से कम अपनी सभ्यता तो सम्हालो । में सुनते हैं वहुत सी bride-burning शहर (वधुओं को जलाना) हो गई। मैं श्रज ये बात इसलिये कह रही है कि मैं परदेस में गई वहाँ मुरझसे लोग ये ही पूछते हैं कि ये क्या आपकी सभ्यता है, कि अराप अपने यहां की bride (वधु) को जला देते हैं !- परब 'कायदा सभ्यता के बाद घर्म का सवाल अाता है। घमे हमारे यहां संतुलन में है। जरूरत से ज्यादा बात पास करो, कोर्दा कराओो। क्या हम लोग प्रन्दर कायदा नहीं रख सकते ? औरत की हम इज्जत नहीं कर सकते ? औरत पर हम विगड़ते हैं। करना, जरूरत से ज्यादा किसी पर श्रतिशयता से करना, किसी पर हावी होना, ये गलत बात है । सबसे तो ज्यादा आश्चर्य की बात ये है कि औरत पर क्रोध करना पाप है [आपको क्या हमारे यहां उत्तर हिन्दुस्तान में औरतों पर बड़ा ज्यादा domination (आधिपत्य ) है औरतों को आपके बच्चों की मां है। औरतों को जरूर चाहिये बहुत बुरी तरह से हम लोग यहां पर सताते हैं । कि वो भी चरित्रवान हों, और वो भी पूजनीय कोई भौरतों की इज्जत ही नहीं हैं उत्तर हिन्दूस्तान रहें । अगर प्रोरत पूजनीय नहीं है, तो भी उस पर में शरत को जिस तरह से भी हो सके दबाया क्रोध करने से फायदा क्या ? लेकिन अगर पूरुष जाए, औरत के प्रति कोई भी श्रद्धा नहीं दिखाई पूजनीय नहीं है तो भी बो क्रोध कर सकता है, देती । फिर औरतें निकलती हैं एकदम यहां से जो और वो महादृष्ट हो और उसे और किसी स्त्री से तो एकदम तूफानमार-फिर वो जूते से ही बोलती लगाव होता तो भी वो दुष्टता कर सकता है । हैं । अ्धिकार है कि आ्रप औरत पर क्रोध करें ? वो ये भारतीय संस्कृति नहीं है । अगर आप इतनी उस चीज को दबा दीजिये तो ऐसी ही औरतें खोपड़ी पर बैठेंगी । मैं तो यू०पी० गई हैं जो पण्डितों के साथ बैठकर वाद-विवाद में देखती है कि वहाँ तो जो औरत वैश्या जैसी किया करती थीं। बो सब कुछ खो गया। या तो है, तो इस देश में इतनी बड़ी-बड़ी महान औरतें हो मानी जाती है, और या जो औरत अब कोई राक्षसो प्रकृति की स्त्री आ जाए उसके बहुत डंडा लेकर लेकर बैठी है। और सीधी-सरल अच्छी सामने आप भुक जाएंगे और या तो कोई बिलकुल निर्मला योग १८ ho ही गिरी हुई औरत हो, तो उसके अागे आप दोड़ेंगे। बिलकुल नहीं है । South India (दक्षिण भारत) ये क्या पुरुषार्थ है ? में भी dowry (दहेज) का system (प्रथा) बहुत चल पड़ा है। उसकी बजह बह दिल्ली में जो आकर उनको सबको बापस करो, या ब रही औरतों की बात कि वो भी और बैठे हैं सब मद्रासी । प्रतों की देखा देखी उस तरह से रहने लग जाती उनको कहो कि मद्रासी बनो। दिल्ली में सीखे हैं हैं जिस तरफ औरतों की नजर जाती है। जैसे इतने रुपये dowry लेंगे, उतने रुपये dowry दमी लोग औरतों की ओर देखते हैं, उधर ही लेंगे ।" वड़ा आश्चर्य होता है ! हां ठीक है, लड़की उनकी नजर जाती है, तो जैसे ये औरतें जिस तरह के नाम से रुपया-पंसा जरूर कर देना चाहिये । का कपड़ा पहनती हैं, इस तरह से घूमती-फिरती है, लेकिन dowry लेने वाले होते ही दूसरे हैं, लड़की इस तरह से बातचीत करती हैं, इनका ढंग जेसा से थोड़े ही कोई संबन्ध रहता है ? बिलकुल छिछोरा है, उसी ढंग से औरतें भी अपने को बनाना शुरू कर देती हैं। भारतीय सभ्यता में ये कहीं भी नहीं है। हमेशा स्त्री का मान। 'राधा कृष्ण कहा जाता हैं । क्योंकि औरत में व्यक्तित्व ही नहीं है । उसको कृष्ण, राधा के बगेर कुछ भी नहीं हैं। मान लीजिये, दबा-दबा कर मार डाला। वो सोचवती है, भई जब कंस को मारना था तब भी उन्होंने राधा को याद किया। राधा की ही शक्ति से ही मारा है, वो क्या मार सकते थे मपने मामा को ? अगर मार इसी बहाने खुश हो जाए आदमी । मैं तो इसमें दोषी पुरुषों को समझूगी हर हालत में । क्योंकि जब पूरुष औरत को बढ़ावा दे, उसकी महानता बढ़ाए, तभी औरत बढ़ती है इस देश में । सकते तो जब पैदा हुए तभी मार डालते । हमारे यहाँ 'सीता-राम कहा जाता है । हमारी संस्कृति में सब चीजें इतनी सुन्दर-सुन्दर हैं कि तो इसका ये कभी भी मतलब नहीं कि औरत उसको अगर बारीकी से देखा जाए मनुष्य प्रादमी के सामने बोले श्ररत को सम्मान के साथ अपने पति के साथ रहना चाहिये। उसकी हर इच्छा को पूर्ण करना चाहिये, उसमें कुछ नहीं जाता । (धरतो) जेसी है, उसके पास अनंत शक्ति है । धरा में कहाँ-कहाँ छेद हों, उसका अनुभव कि इसमें जैसे उसे पति को प्लावित करना चाहिये । लेकिन ये खराबी है, वो खराबी है। कोई ये बात अगर आप हर समय घरा को चूसते रहें. तो एक नहीं लिखता है कि कितनी बढ़ी भारी बैंक है । दिन अन्दर से ज्वालामुखी निकल अराता है, ये भी लिखता ये है इसमें इघर से छेद है, उधर से छेद हैं। समझ लेना चाहिये । । इसका मतलब नहीं। समझ सकता है कि इसकी सुन्दरता क्या है। ले किन ज्यादातर भारतीय संस्कृति के बारे औरत धरा में लिखने वाले ऐसे लिखते हैं, जैसे कि वेंक वो बनाए इन्होंने ही हैं । हो सकता है उसमें एक दो बातें ठीक करनी भी हों, एक प्राध इंधर- उधर की, लेकिन एक-एक चौज़ पर आप देखिये कि "स्वार्थ" शब्द देखिये । 'स्व' का अर्थ पाना स्वार्थ है । परम स्वार्थ वही है कि जब आपने परम को पा लिया । बाहर जाकर शर्म आती है यह सोच-सोचकर कि जिस तरह के किस्से यहां के लोगों की तरफ फेले । पर ये चीजें महाराष्ट्र में क्यों नहीं होतीं ? महाराष्ट्र में तो dowry system ( दहेज प्रथा) निमंला योग १६ और मैं देख ती हैं कि जो परदेश में भी लोग हैं, वो जब हमारी औरतों को देखते हैं कि हम उनके जैसे कपड़े पहन के घुमती हैं, उनकी जेसे बात-चीत करती हैं, उनको जरा भी इज्जत तहीं करते । और जो औरत अपनी भारतीयता पर खड़ी है, उसकी वड़ी इज्जत होती है ! अपनी इज्जत में खड़े हो ।' हम लोग इतने हैरान हो गए ! हमारी लड़कियाँ और हम तो इतने है रान हो गए कि सञ्ची ये बात है ! इसका निरूपण हम तभी कर सकते हैं जब हम इसे बाहर जाकर देखें । और जब तक हम इस देश में हैं हम नहीं समझ पाते कि हरेक कितनी सुन्दर है और अच्छी बनाई गई है । में, में जब एक बार जापान गई थी १६६० बहुत साल पहले की बात है, तो हर जगह जाएं तो बड़ा हमारा मान-पान हो । रौर जब हम है उसे अलंकार पहन ना चाहिये । विवाहित स्त्री शिकामा नाम के एक बन्दरगाह पर पहुँचे, तो हज़ारों लोगों की भीड़ वहाँ पर थी। तो मैने चाहिये। खासकर के उस पर सारे घर की दारम- ये कीन प्राए हैं ? सब लोग ऋहाँ से बए दार होती है, उसके चक्र ठीक रहने चाहिएं उनको स्त्री के लिए अलंकार आवश्यक बताया गया के लिये बताया गया है कि उसको [अलंकार पहतना कहा, हैं ? तो कहने लगे 'आपको देखने। 'मुझे क्यों ?' कहने लगे, क्योंकि उनके पास ्ववर पहुँची कपड़े पहनना चाहिये, कायदे से रहना चाहिए । कि बिलकुल पूरी भारतीय स्त्री यहाँ पर श्राई हुई है। और उसको देखने से पता हो जाएगा कि बुद्ध की माँ कैसी थी। और सब वहाँ खड़े तरस गए देखने के लिए एक भारतीय स्त्री को । वहाँ सारी सिन्धी कोई भी स्त्री भारत में अपने को आकर्षक वनाने के औरतें आधे कपड़े पहनकर घुमती है। बो तरस गए देखने के लिये कि एक भारतीय नारी कैसी होती है, ०ccasion (अवसर) होता है, उसके अनुसार किस तरह से कपड़े पहनती है, कैसे उस के बाल हैं, वो अपने को इसलिये सजाती है, और इसलिये क्या है । हम लोग जहाँ भी जाएं, हमें वो लोग कुछ उपहार दे दे । एक जगह बरसात हो रही थी, तो हम अन्दर चले गए । वहाँ उन्होंने हमको कुछ उपहार दे दिये। तो जो translate ([अ्नुवाद) कर रहे थे, तो उनसे हमने कहा, 'ये हम को हर जगह उपहार क्यों देते हैं ?' टेक्सी में बैठिये तो टैक्सी नेंगी, यहाँ का पहनेगी, बहाँ का पहनेंगो, best वाला गाड़ी रोक कर कुछ उपहार देगा कहने लगे, क्योंकि आप Royal family ( सम्मानित परिवार) के हैं । हमने कहा Royal family के, जब हमें लेने आए गी, तो सब पहनकर आए गी ये कैसे कहा ? ये तो बात नहीं है। 'नहीं, कहने तो मैंने कहा कि ये सब airport पर पहन कर क्यों लगे- 'देखिये प्राप बाल कसे बनाती हैं। हमारे यहां आई । तो कहने लगीं कि देवी लग-माने देवी के Royal family के लोग ही इस तरह के बाल बनाते मंदिर में जाना है, देवी को देखना है, तो क्या ऐसे हैं। और बाकी के जो हैं hair dresser के जाते हैं। ये तो royal पना की निशानी है कि हैं, कितने सुख में हैं । ? सुशोभित रखना चाहिये। उस तरह से कारयदे से लेकिन अपने को विशेष श्रकर्षक बनाना वर्गरह, ये सब चीजे भारतीय संस्कृति की नहीं हैं। लिये नही पहनती है, पर हरेक समय-समय पर जो कप डे अच्छे से पहनती है, कि जो वो अवसर है, वो औ्र भी सुन्दर हो जाए । जैसे कि महाराष्ट्र में आप देखिये कि अगर अब हमारी पूजा हो रही है, तो नाक की नथ पह- सबसे अच्छी) साड़ी जो होगी वो पहन कर आएंगी। यहां तक कि airport (हवाई अ्ड़) पर ही देखेंगे ? ये दिखाना चाहिये कि हम कितने खुश पास निर्मला योग २० लेकिन शहरी जो हमारी औरतें हैं, महाराष्ट्र नाश करके छोड़ेगी । स्त्री के अदर पूरी इज्जत में तो भी अपने, खासकर दिल्ली से संबंध अगर ओर मान आप दोजिये । बच्चों को भी । हो गया है तो उनके नखरे ही नहीं मिलते । तो दिल्ली से बहुत लोग प्रभावित हैं । इसलिये मैं सोचती है कि आप लोगों को पूरा समझाया जाए वच्चे हैं, आप विशेष हैं, शआाप सहजयोगी हैं। आप बचचों से भी आप मान से बात करिये । "आप] हैं कि भारतीय संस्कृति की एक-एक चीज को आप समझ उसके बारे में पढ़े । का मान होना चाहिये आप सहजयोगियों जेसे बेठिये ।" ये अगर आप ने बच्चो को समझाने लग जाए तो बच्चे कहां । आप बड़ों जैसे बैंठिये । स्त्री की कुल्पना, ये समझना चाहिये कि हरेक से कहां पहुँच सकते हैं। लेकिन ये बात बहुत कम स्त्री एक गृहलक्ष्मी है। घर में उसका मान रखना, पाई जाती है । ज्यादातर हम बच्चों को भिड़कते ही रहते हैं, उनके अन्दर कोई इज्जत की भावना नहीं आतो। जब उनके अन्दर इज्जत को भावना उनको इज्जत से रखना बहुत जरूरी है । दूस री बड़ी मुझे हैरानी होती है कि उत्तरनहीं प्राती है, तो बच्चे उसी तरह से बर्ताव करते हिन्दुस्तान में लोग अपनी पत्नी को इतना नहीं है जसे अरापके नौकर लोग बर्ताव करें । मानते जितना अपनी लड़कियों को मानते हैं । समझ में नहीं आता, लड़की को मानना और बीबी की नहीं मानना, ये बड़ी अ्रजीब सी बात लगती है। लड़की तो कल यहां है, उसको सभ्भाल के वो करना चाहिये । ब्याह होकर चली जाएगो और बोबी तो ज़िन्दगी सारे कुटुम्ब को सम्भाल के, सब को प्यार दे कर के लिये आपकी अपनी है। ये कुछ समझ में के। अपनी न बात करें। जिस तरह से औरतों की बात आती नहीं है। मैं तो कहती हूं नोकरों तक को हम लोगों को एक इज्जत से, बकायदा जैसे कुटुम्ब पद्धति हमारे विलकुल मुसलमानी पद्धति है। भर भी आ्रदत होती है, मैंने देखा कि, "हमें तो ये चीज पसंद नहीं। ये सफ़ाई नहीं हुई। घर में ये नहीं उसी प्रकार अपने पति को कुछ नहीं मानना हुआ। ये ठीक होना चाहिये । आप करिये । ये प्रौर लड़के को सब कुछ मानना, ये भी इधर ज्यादा बोमारी है। लड़का बहुत वड़ी चीज़ है । इधर उत्तर हिन्दुस्तान में लड़का बहुत बड़ी चीज है । किसी के ये आपका शौक है । लड़का न हो गया कि व्या उसके घर में हाथी आ गया ! वो बाद में उठकर मां को लात हो मारे, कोई हर्जा नहीं है। उसका रात-दिन मान ही का शौक होना चाहिये औरत को और दूसरों के करे, कोई हज्जा नहीं, पर लड़का हो गया ! उसके लिये करने की शक्ति होनी चाहिये । लेकिन इसका बाद असल मिठाई बांटो जाएगी । आपका काम है। ओर खुश होइये । और तोन बार खराब हो तो चार बार ठीक करिये । क्योंकि खाना बनाने का शौक होना चाहिये, हर चीज मतलब नहीं कि आदमी खोपड़ी पर चढ़ कर बेठ जाए। वो इस चीज की इज्जत करे प्रोर सोचे... शुरू से ही स्त्री के प्रति ऐसी निन्दनीय बृति रखने से औरत हमेशा असुरक्षित (insecure) इंग्लेण्ड में हर आादमी बर्तन माँजता है हर आदमी । सिवाय हमारे घर के । ओर बो तो अगर आप कह दें कि अ्राप बर्तन मांजिए तो गए, कल रहती है । जो औरत insecure रहती है वो या तो आप को नचा के छोड़ देगी, या आपका सर्व- निर्मला योग २१ वर्तन ही टूट जाएंगे। वो जरूर मांजंगे, जब गुस्सा चढ़े तो। लेकिन अगर वो बर्तन मांजने बैठ जाएं, तो गए काम से । अपने जितने गांव-शहर गंदे रहते हैं इसलिये कि आदमी अपने यहां कोई सफाई न हीं क रते। इंग्लैण्ड में देखिये हर Saturday- Sunday (शनिवार- रविवार) सब आदमी आपस में competition (स्पर्धा) लगाते हैं कि तेरा अरच्छा कि मेरा अच्छा । सब एक special dress (खास पोशाक) पहनकर सब खड़े हो जाते हैं, और अपनी सफाई करते हैं । सबसे बड़ा अहंकार ये है कि "मैं पुरुष हूँ।" पुरुष-श्री कृष्ण के सिवाय, मैं तो किसी को नहीं देख पाती। जो करने वाला है, वही है, और भोगने वाले भी वही हैं। पुरुष और प्रकृति जो है सो है, हम अपने को बेकार ही पूरुष समझ करके बड़ा भारी अहंकार अपने अंदर लिये हुए हैं। हम सब मां के वेटे हैं। इस अहंकार से आप सब लोग छुट्टी पाइए। बहुत ज्यादा है ! अभी भी, सहजयोग में भी बहुत है । सहजयोगियों को कोई हज नहीं है। क्योंकि हमें बदलना है हम दूसरे हैं । हमें कोई हर्ज नहीं है कि हम ये करें । पहले जमाने में हमारी संस्कृति सही थी कि बाहर की सारी सफाई आदमी लोग करते थे, औरतें नहीं। और बही चीज आज भी हमारे अंदर आ जाए तो आाप देखिये कि शुरूआत और फिर यहां तक कि वीबी को मारना, हो जाएगी कि हम बाहर की सफाई और अंदर पीटना। बीबी को मारना, पीटना, ये अधर्म है । फिर बीबी पीटे तो बिलकुल अधर्म हो जाता है। हाँ, होती हैं, ऐसी भी हमने देखी हैं। की सफाई हमारे देश की शुरू हो जाए, तो गंदगी कहाँ रहेगी ? लेकिन उससे बड़े फायदे हो जाते हैं, जब आदमी लोग सफाई करना शुरू कर देते हैं । जसे ले किन समझदारी की बात ये है, हम दोनों रथ के दो पहिये हैं, एक left (बाएं) में हैं, एक ight लंडन पँचे आ्प, तो हमने देखा यहाँ बर्तन धोने (दाएं) में है । कोई सा भी पहिया अगर छोटा हो जोए, तो पहिया गोल-गोल घूमेगा । दोनों एक साथ एक जैसे होने चाहिये, पर दोनों एक जगह भाई ये कैसे किया, यहाँ एक से एक चीजें बनी हुई नहीं हैं, एक Ieft में है, एक right में । right (दायाँ) जो है, उसका कार्य ये है कि वो दिशा दे, बाह्य की तरफ देखे, बाह्य की चीज सम्भाले, घर के बाहर सफाई करे । जैसे वहां करते हैं लोग के, kitchen (रसोई घर) साफ करने इन्तजामात बड़े जबरदस्त हैं। तो हमने कहा कि के, हैं। इससे इसको रगड़ दो तो पांच मिनट में निकल जाएगा। वो कढ़ाई है, उसमें ये लगा दो तो दो मिनट में सफाई हो जाती है। हमने कहा, हम लोग तो रगड़ते-रगड़ते मर जाएं, ये निकलती नहीं बाहर की सफाई आदमियों को करना आना ही कढ़ाई, ये है क्या ? पता हुआ कि आदमियों को चाहिये, सहयोगियों को । क्योंकि वो बाहर की सफाई करनी पड़ती है न ! तो उन्होंने सारे सफाई नहीं करते हैं, इसीलिये अपने वाहर के scientists (बंज्ञानिकों) को बुलाया कि "बाबा अंगन गंदे रहते हैं, अंदर की सब सफाई रहती है। रे ! पता लगाओ इस को निकालने का इंतजाम । श्ररत जो भाड़ मारे, सब करे, घर के अंदर, और नहीं तो हमको कढ़ाई मांजनी पडेगी।" कभी-कभी आदमी जो है वो विलकुल नहीं देखता कि बाहर बतन अगर आदमी मांजे तो कुछ फायदा ही हो सफाई है या नहीं। औरत तो बाहर जा नहीं जाएगा और जब अ्रप काम करते हैं, उनके साथ, सकती, और आदमी करने वाला नहीं है, इसीलिये तो हाथ बंटाने से ये पता होता है कि ये काम निर्मला योग २२ Mho she/ इसलिये जो-जो वहां जा रहे हैं, कृपया सब सोख कर जाएं । नहीं होने वाला । कितना कठिन है, और कितनी मुश्किल का उसके बगर आपका वहीं मान काम है । तो प्रपने प्रति घारणाएं बना लेने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। औ्और मझे तो ये आरश्चर्य होता है कि सब सहजयोगिनी जो हैं, भारतीय भी हैं, तो आनन्द का स्रोत आत्मा है । और उस आनन्द को हमसे कहती हैं, "माँ हमारी शादी बाहर ही करा हमने पाया, और वो हमारे रंग-रग में से बहना दो अच्छा है।" तो मैंने कहा क्यों ? कहने लगे, चाहिये, हमारे जीवन से बहना चाहिये, हमारे हर "ग्रब हमें सहजयोगिनी होकर डंडे नहीं खाने ।" आप सोच लीजिये । बड़ी मुश्किल से ये परदेसी चाहिये ? लड़कियों को भुलावा दे देकर मैं यहां शादी कराती हैं। टिक जाएं तो नसीब समझ लो ! तो ये चीज हम लोग इस पर ले आते हैं कि व्यवहार से बहुना चाहिये। उसके लिये क्या करना पहले, सबसे पहले, हमें देना आना चाहिये । जो आदमी दे नहीं सकता, वो आनन्द का मजा नहीं उठा सकता, क्योंकि जब तक चीज बहेगी नहीं तो केसा मजा आएगा ? जसे एक मेंढक एक छोटे से ले किन वो चले जाते हैं परदेस, फिर सीख जाते जाते हैं वहाँ। हमने देखा कि......खुब वर्तन माँज रहा है ! तो हमने कहा कि भाई करसे क्या मीख तालाब में, जिसका पानी नहीं बहता है, काई में गए? कहने लगे, "यहां सभी सीख जाते हैं !" रहता है। उसी प्रकार अगर हम अपने जीवन को खूब पतोले उठा रहा था हमारे साथ ! प्रोर यहां अगर आप कहते, तो बिगड़ता, और कहता कि. पर-जंसे कि एक मेंढक के शरीर पर भी काई "नहीं, मुझ से नहीं होने वाली ये सब बेकार की जैसे जम जाती है, काई जैसा रंग-ऐसा ही हमारे चीज़ ।" वहाँ मेरे साथ पतीले उठा रहा था। मैंने कहा, "उन लोगों को करने दो, तुम क्यों उठा रहे हो ?" कहने लगे, "मुझे सीखना जो है।" जो आ्ादमी वहां ये सब जानता नहीं उसे वहां 'निठल्लू कहते हैं । 1 बिताएं, तो बिता सकते हैं । और हमारे भी शरीर जीवन का रंग काई जेैसा हो जाएगा। खूब लेकिन जीवन का रस अगर हमें पाना है, और उसका मजा उठाना है, और अात्मा का आनन्द ' देखना है, तो हमें चाहिये कि हम अपना दिल खोल द, और बहाएं इस आनन्द को। उन लोगों से ये चीज जरूर हमें सीखनो है । आप जानते हैं कि आपकी माँ की उम्र अ्रव नसीब से भई हमारे यहाँ ये प्रश्न नहीं, क्योंकि तरेसठ (६३) साल की हो गई हैं, और हिन्दुस्तान हमें तीन servants (नौकर) allowed (मिले) के हिसाब से चौंसठ ( ६४) साल के हो गए। ले किन हैं । तो भगवान की कृपा से हमारे घर वाले तो कितनी मेहनत करती है आपकी माँ। कितना सफर । करीबन हर तीसरे दिन सफर, दूसरे दिन सफर ।। उसके अलावा पहाड़ों जेसी कुण्डलिनी करते हैं। उनको जरा लगता है कि भई देखो सब उठाना, बड़ी मेहनत...I फिर, सारे news paper लोग कर रहे हैं और हम नहीं कर रहे हैं, वो क्या (अरखबार) वाले, कि कुछ हैं, कि कुछ हैं । 'पूरी' समय मेहनत चलती है । हमारे साथ एक देवीजी कभी नहीं कर सकते । हमने ही उनको खराब कर रखा है । लेकिन तो भी मैं कहती हैं कि कोशिश कहेंगे। कोशिश करते हैं । निमंला योग २३ का ्ाई, हमारे से पाँच सात छोटी हैं, और मोदी हमने कहा, क्या कर रहे हो, तीस आदमी हैं हम साहब पूरी समय कहें कि ये बुढ़िया देखो, विचारी लोग कहां आप करोगे ? "मां आप आरओ न, एक कितनी मेहनत कर रही है। मैंने कहा, और मेरी बार मान जाग्रो। हमें बड़ी खुशो होगी।" मुझे बड़ा बात नहीं कर रहे हो तुम ? मैं उनसे पाँच साल force (आग्रह) किया बड़ी हैं। उनके लिए तो ये बुढिया बेचारी कितना हो ? तीस आदमियों का breakfast (नाश्ते) कैसे चल रही है, ये बुढ़िया बेचारी कितना कर रही बनाओगी है। मैंने कहा, मैं कौन हैं। मुझको देखो । वो तो बना हुआहै, ऐसा । सब लोगों ने मिल कर रात सोचते ही नहीं कि मैं बुढ़िया हूँ। । मैंने कहा, क्या कर रही तुम ?...... सुबह छः बजे पहुँचे, तो मंडप को तीन बजे से खाना बनाया। और 'इतनी खुश ! और इतना बढ़िया उन्होंने breakfast (नाश्ता) -क्योंकि अ्रभी तक देने की शक्ति बहुत ज्यादा खिलाया कि मुझे भूलता ही नहीं है और पता है, उसकी क्षमता है। के अन्दर है. तब तक आप कभी भी बूढ़े नहीं हो इन्तजामात किये । और इतनी खुश जैसे वड़ा सकते । इसलिए देना सोखिए। दिल खोल दीजिए, भारी कोई बड़ा सभारंभ हो गया हो। तब आ्रानन्द देखिए । कैसा बहेगा । । जब तक देने की शक्ति अरप नहीं कहां से benches लाकर लगाए, कही से ये हमारा देश है। ये हमारी सभ्यता हैं । इसको मत छोड़िए इसको फिर से पनपाना है, सूक्ष्म में दिल खोल देना चाहिए, कहना चाहिए ले किन ये ही हमारी सभ्यता का तत्व है, कि दो । इसको बढ़ावा देना है। हमारा संगीत, हुमारी जितने-जितने अपने यहां लोग हो गए हैं, बड़े-बड़ कुछ भी है बड़ा गहन है । जिन के आख्यान आपने सुने, चाहे हरिহचन्द्र हैं, उसको समभझिए क्या चीज है। उसकी गहनता में जिनकी आपने बात सुनी होती, ये जो कुछ भी आपने पढ़ा है, उसमें ऐसे लोगों की महानता बताई है, जो दिल खोल करके देते थे । और वही [आपको भी देना है । । कलाए, हमारा जो घुसें । मैं चाहंगी आपसे जितना भी बन पड़े, हमारे संगीत के बारे में, कला के बारे में जानने को प्रयत्न करें जो अपनी कला को नहीं जानते, अपने , संगीत को नहीं जानते, अपनी भारत माता को इस संस्कृति की महत्ता जितनी भी गाई जाए वो कम है । लेकिन सिर्फ महत्ता से नहीं है, वो नहीं जानते, वो इस माता को केसे प्यार कर सकते हमारे अन्दर बिधनी चाहिए। हमारे प्रन्दर उसका है ? इसीलिए तो हम झगड़ेबाजी करते हैं । प्रवेश होना चाहिए। उसके अंग-अंग में हमें पूरा मजा आना चाहिए । और हमें उससे खुश होना चाहिए । आज सिर्फ आपसे बातचीत करनी थी, सो कर ली। अब मैं चाहती है कि अगले समय में शाऊं तो श्राप लोग ये समझ कि हमारे क्या-क्या त्योहार होते हैं, इन त्योहारों में क्या-क्या होता है । अभी भी जहां ये संस्कृति है, वहां वड़ा मजा आता है। एक बार हम गए थे राहूरी के पास । वहां के बहुत तनख्वाह नहीं। छोटे-छोटे घर, जिनमें कि एक वहुत सालों से चली आ रही हैं। छोटी-छोटी बातें छोटी सी वो आई । कहने लगी, "मां, कल आप हैं जैसे केला खाया, उसके बाद चना खाओ या लोग हमारे यहां breakfast (नाश्ते) पर आइए।" कोई चीज खाओ, उस के बाद पानी पिअर । धूप में से इंजीनियर थे वेचारे हमारे यहां छोटी-छोटी दवाइयां हैं जो कि । कोई खास घुप निर्मला योग २४ शिवाजी का चरित्र माना जाता है कि बहुत आ्राए, आप पानी मत पियो। आजकल लोग सब हिन्दुस्तान में बीमार हो जाते हैं । वजह क्या है ? ऊचा था । शिवाजी की न जाने कितनी ही बातें ये छोटे-छोटे नियम जीवन के जो बनाए हुए हैं, आपको बतानी चाहिए, लेकिन उनके चरित्र में मां समझदारी के, वो हम नहीं मानते हैं ।इसमें क्या का बहुत बड़ा स्थान है। लेकिन एक बार सुनते हैं, हो गया ?" हो गया क्या, आप अस्पताल में जाएंगे, कि कल्याण के सूबेदार की बहु कोई उनके सरदार औ्र क्या होएगा ? अब जैसे अंगूर दिया इन्होने पकड़ कर लाए । वो बहुत लावण्यवती थी । ओर समझ लीजिए। अब पहले हमने अरंगुर खा लिया । उसके बाद हम limca (जल पेय) नहीं पी सकते ले आए, उसका सारा माल, उसके सारे जेवरात, अब तो पी लिया, हमने कहा चलो अब क्या कर। और ये और वो, काफ़ी लोगों को पकड़ कर लाए । हमारी बात और है । लेकिन आप लोगों को नहीं करना। फल खाने के बाद पानी पी आइसक्रीम खाने के बाद कॉफी पी ली, या कॉफी थी। तो उन्होंने कहा कि आप अपना नकाब के बाद आइसकीम खा लिया-तब तो गए ! से उसका बहुत खजाना (धन) था, सब कुछ उठा कर शरर जब शिवाजी दरबार में बेठे, उनके सामने पेश किया, तो वो घुंट तो नहीं, पर नकाब पहने हुई लिया, हटाइये । जब उन्होंने नकाब हटाया तो बड़े काव्यमय थे । बजाये इसके कि कहें कि "आप की जो हमारी बहन हैं, उन्होंने कहा कि '"अगर हमारी मां आपकी जितनी खूबसूरत होती, तो हम भी आपके उसके प्रांखि ये छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन छोटी-छोटी चीजे, हरेक, जिसे कहते हैं कि हरेक अणु-परमाणु में जो हमारा जोवन बड़ा ही सूचड़, जितने े आंसू निकल सुव्यवस्थित और ऐसा बनाया गया है जिससे कि आए। उसके बाद उनकी जितनो भी चीजें थीं, जो मनुष्य हमेशा स्वस्थ रहे, उसकी तन्दूरुस्ती स्वस्थ जेवरात थे, हर चोज, उनके हर आदमी को रहे, उसका मन स्वस्थ रहे, उसका चित्त स्वस्थ रहे, बहुत और जिससे अन्त में वो परमात्मा को प्राप्त करे । नाराज हुए। ये हमारे देश का चरित्र है। ऐसा सुन्दर सारा बनाया गया है। लेकिन उसको समझ लेना चाहिए । असू निकल खुबसूरत होते बाइज्जत कल्याण तक पहुँचाया । और 1 राणा प्रताप एक बार जरा झुक गए, क्योंकि बहुत परेशानी में थे । उनकी लड़की के लिए घास और जिम्ह आदमी में चरित्र ही नहीं है, वो की रोटी बनाई, वो तक एक बिडाल ( बिल्ली) उसको देख करके...कहा, राणा देने वाली उसको सजाने वाली, उसको पूरी तरह प्रताप जैसा आज कोई आदमी है अपकी politics से नावित करने वाली जो शक्ति है, वो है आपकी (राजनीति) में ? सब चोर बैठे हैं ।...तो जब वो सभ्यता । सभ्यता से ही आप जानते हैं कि "ये उठाकर ले गई, बिल्ली तो] राशा प्रताप के मन में आ्राया, और वो चिट्रो लिखने बैठे शाह जहां को, कि मैं आपकी शरणागत हैं। जैसे उनकी बोबी ने पढ़ा, आज की हमारी भट में हम चाहेंगे कि आप उन्होंने भाला उठाया और अपनी लड़की को मारने अपनी भारतोय संस्कृति जो है उससको सर-आंखों के लिए दौड़ीं । तो कहने लगे "ये क्या कर रही पर लगाकर मान्य करें, उसे स्वीकार करें, अऔर हो !" कहने लगीं, "इसको ही मार डालती है, उसमें हो आप देखियेगा कि आपका चरित्र ऊंचा जिसकी वजह से तूम ये सोच रहे हो।" ये हमारी आदमी किस काम का ? लेकिन चरित्र को बढ़ावा उठाकर ले गया। सत्य है ये हमें शोभा नहीं देता । देश की औरतों का चिरित्र है । उठता जाएगा । निर्मला योग २५ नजर अएं। मेरी ये ही इच्छा है कि जो अन्दर है, सब मेरे बच्चे पा लें । सब कूछ । और उसी प्रकार दें जैसे मैं दे रही है। उसी मन से, उसी शुद्ध भावना से, उसी प्रेम के साथ सब को ये बांटते रहें । यही मैं चाहती है । और आजकल ये नमुने दिखाई दे रहे हैं ! ये कहां से पैदा हुए यहाँ पता नहीं ! ले किन सहज- योगियों की औरतें इस तरह की होनी चाहिए, और मर्द भी इसी तरह के होने चाहिए । मेरे कुछ संस्कृति में कहा जाता है कि परस्त्री जो है, वो मां समान है । और परकन्या बेटी समान है। तो हम जब शादी होकर यू०पी० में गए, तो लोग कहने लगे ये तो असंभव है। मैंने हैं। ग्रधिकतर तो हम ऐसे ही लोग देख ते हैं। यहां यु०पी० में क्या विशेषता है कि यहाँ असभव बात मामले में मत सनिए। वो तो general (सामान्य है ? आपकी नजर इतनी खराब कैसे है ? हमने तो जिन्दगी भर ऐसे ही लोग देखे हैं। ये कहां से ये चीनी नहीं खा रहे। फिर नमक नहीं खाओर, लोग लोग आ गए? तो हुआ कि नवाब साहब उनकी १६५ .. तो और क्या होगा। उनके सामने ideal (आदर्श) वहत है। उनको आप चीनी दीजिए । लेकिन ऐसी ही ऐसे गंदे हैं वहाँ, तो और क्या होगा ? कोई अच्छे ideal (आरदर्श) तो दिखाई नहीं देते । कोई भी परस्त्री । मां समान है। ...चीनी पानी में घोलक र दीजिए, जिससे कि वो दाँत में न लगे । पानी में घोलकर दी हुई चीनी कहा, हमने तो बहुत ऐसे लोग देखे बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। डॉक्टरों का इस चीज चलाते हैं कि अब चीनी मत खाओ, सब लोग कोई थे, बीवियां थी और पता नहीं क्या-क्या. नमक नहीं खा रहे । भई जिसको जिस चीज की जरूरत है, बो खाओ। बच्चों को चोनी की जरूरत 1. चीनी न दीजिए, जो दाँत में वो खाएं, या इस तरह की । पर चीनी जो कि पेट में चली जाए । जसे लंडन में एक राजा साहब थे, उन्होंने सात बीवियों को मार डाला, तो वहां और क्या होगा ? आजकल वहां औरतें मार रही हैं आदमियों को । दूसरे ये, कि गमियों में 'कोकम नाम का एक फल प्राता है, महाराष्ट्र में मिले गा उसको भिगो लिया रात को। उसके दूसरे दिन चाहे तो थोड़ा उबाल लिया । उसका रस निकाल कर उसमें चीनी डाल दीजिए। चीनी डाल करके उसको रख लोजिए दीजिए । तो प्रपनी संस्कृति जो है, बहुत महत्वपूर्ण है। और उस महत्वपूर्ण संस्कृति को समझना, उसकी गहनता को समझना, हरेक सहजयोगी का परम कर्तव्य है जब आप लोग उसे समझगे, उस पर कुछ लिखेंगे, तभी तो न हमारे परदेश के सहजयोगी भी उसको आत्मसात करंगे वो लोग छोटी-छोटी बातें देखते रहते हैं, और सारा वो जोड़ते रहते हैं के पत्ते को, छोटी-छोटी जो पत्तियाँ होती हैं, उनको अपने अन्दर में, मैं देखती है। लेकिन हम लोग ये उबाल लीजिए। कोमल पत्तियां जिनको कहना नहीं सोखते, की बजह से कोई चीज हम नहीं सीख पाते। । दिन भर बच्चे को वो पीने को अगर जॉन्डिस जैसी बीमारी हो जाए तो मूली चाहिए कि अभी जो निकली हैं । उनको उबाल कर के, उसमें खड़ी शक्कर मिला करके, या चीनौ जो वाइब्रेटिड हो, मिला करके बच्चे को दौजिए। ओर कोई पानी न दें। एक दिन के अन्दर बच्चे का जॉन्डिस ठीक हो सकता है । क्योंकि न इधर के न उधर के रहने आशा है अगली बार मैं आऊ, तो अराप लोग आनन्द से आत्मा का प्रकाश सब अर फलाते हुए निर्मला योग २६ और गर्मियों में अगर मूलो का रस दे सके तो हैं परांठे तो विलकुल बन्द कर दीजिए प्राप बहुत ही अच्छा है। मूली खूब खाने को दीजिए लोग। बच्चों को । बच्चों के लिए मूली बहुत फायदे की चीज है । और उनको ऐसी-ऐसी चीजें दोजिए जिससे कि उन पर बहुत ज्यादा fat (चर्बी) न पहुँचे । हमारे यहां बहुत ज्यादा तली हुई चीज बच्चों को दे देते हैं, कुछ सोचते ही नहीं । तली हुई है, compulsory। हर आदमी को अन्दर बनियान चीज बिलकुल नहीं देना । और दूसरा यहांी पर एक पहनना है [और औरतों को अन्दर से शमीज Liv 52 भी अच्छी दबा मिलती है। यो अगर शुरू पहननी है, अगर साड़ी पहनती हैं तो नहीं, पर कर दें तो एक साल के अन्दर वो भी चल सकती अगर ये पहन रही हैं। और ऊपर से चुनरी लेनो है । लेकिन एक चीज बनती है, जिसको मराठी में है। जरूरी है। नहीं तो सारे सीने में अआपको दर्द कहते हैं 'एरोण्या', छोटी-छोटी काली-काली। होगा। और फिर प्राप आएंगे कि माँ मेरे सीने में नागपुर में बहुत होती है, इसलिए नागपुर में किसी दर्द है। सब लोगों को बनियान पहनना है क्योंकि को liver (जिंगर) की trouble (बोमारी) नहीं प्राप जानते हैं, एक छोटी सी चीज है, कि आपको होती। दूसरा सहजयोग में compulsory (ग्रनिवाय) जब पसीना आता है तो वो पसीना सूख जाता है, और वदन में ठंडक लग जाती है । इसलिए ऐसी चोज होनी चाहिए जो पसीने को खींच ले । बहुत लोगों को ऐसे दर्द होता है । बेकार मुझे परेशान करते हैं । (प्रनिवार्य) है, और प्रौरतों को भी | ओर जब जाड़ा पड़े तो सोंठ थोड़ी सी पीस करके, उसमें चीनी मिला करके, सवेरे दें वच्चों को । जाड़ा पड़ने पर । इसलिए सबको compulsory दूसरी चीज कि गन्ने का रस, जितना बच्चा पी सके उतनी चीज अच्छी है उसके लिए । उसमें अदरक, नींबू डाल करके। य सब फायदा करती हैं। हम भी कालेज में पढ़ते थे, हम भी सलवार कुरता पहनते पे, जब थे, हम हमेशा शर्मीज पहनते थे । स्वाल ही नहीं उठता था, पहले तो समझा जाता था कि बदतमीजी है वरगैर शर्मीज के, चुन्नी और बच्चों को ज्यादातर "ये कर रे, बो कर के कोई लड़की घमे तो । श्रर दूसरी बात ये भी रे" ऐसे नहीं कहना चाहिए। "सवेरे उठो, जल्दी होती थी कि जब तक उस तरह से पहना न जाए, । इससे जब तक समझ लीजिए एक-प्राध कपड़े के साथ इनकी, जिसे तिल्ली कहते हैं, spleen खराब नहीं हो शमीज, तो पहना नहीं जाता था। शर्मीज हो जाती है, और इसी से blood cancer हो पहनने का रिवाज पहले था । अब पता नहीं सब जाता है । Hectic life जो lead करता है, उसे लोग ऐसे fashionable हो गए कि समझ चलो, ये करो" ऐसे नहीं कहना चाहिुए में blood cancer होता है । Hectic नहीं बच्चों नहीं आता । वो किसलिए बनाया गया था ? को बनाना चाहिए । बच्चों को बहुत शांति पूर्वक फायदे के लिए कि आपके पुसीने को absorb कुछ रखना चाहिए। (सोख) कर लेगा । अगर आप साड़ी पहने तो ठीक है । साड़ी आपको पूड़ी खाना, परठि खाना, ये सब गन्दी चीजें निर्मला योग २७ the दुनिया भर की बीमारियाँ मैं देखती है इसीसे होती । टी०बो० तक हो सकता है । इससे इतने कमजोर ढकेगी, पर साड़ी भी आपको लपेट कर रखना चाहिए। जब आप बाहर जाते हैं साड़ी हमेशा इस तरह से पहनना चाहिए जिससे बदन में आपके... इस के सबके फायदे हैं न । शारीरिक हैं। और दूसरे लज्जा स्वरूप हैं। हैं आपके Lungs (फेफड़े) हो जाते हैं । औ्र पता नहीं डॉक्टर लोग जो बताना है वो बताते नहीं शायद । कोई बताने से सूनेगा थोडे ही, आजकल फैशन जो हो गया है । या तो फिर फैशन करो प्रोर अस्पतालों बहुत फायदा होता है अगर आप अ्पने सीने में रहो। को ढक लं, तो जो हवा आपकी है, खासकर यहाँ की हवा के लिए तो बहुत ही जरूरी है । इतना पसीना आता है, सारे आपके सीने में वो जकड़ जाता है, फिर आापको बीमारियाँ हो जाती हैं। है। पूरा बदन ढक कर रहना चाहिए., जब भी । वयोकि नहीं तो तकलीफ हो जाती वाहर जाइए * निर्मल वाणी * यदि आप यह दढ निश्चय कर लें कि हमें अपने स्वयं का सामना करनेा ही है कि हम देखें कि हम कौन (मैं कौन हैं, क्या है ?) हैं तो तत्काल सब दुर्गण एवं त्रुटियां दूर भाग जायेंगी । कू] "में" ही वह है जिसने बार-बार जगत के उद्धार के लिए जन्म लिया है किन्तु इस समय "मैं" अपने पूर्ण रूप में एवं सभी शक्तियों के साथ ग्राई हूं। अब मेरा अवतरण केवल मोक्ष देने के लिए ही नहीं अपितू उद्धार के साथ ही स्वर्गादिक राज्य भी देना है जिसमें आनन्द, वात्सल्य एवं प्राशिप ही है । 'मैं' क की जमने के लिये सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे चारों ओर आस-पास का जो वातावरण है, उससे जूझने की कोई जरूरत नहीं है । आप अपने से ही भगर ठीक हो जायें, अर्थात् पअन्दर से ही आप स्थिर हो जायें, तो बाहर की जितनी भी चीजें हैं, घीरे-धीरे अपने आप स्थिर हो जायेंगी । जो कुछ अन्दर है वही बाहर है, अगर अन्दर से अव्यवस्थित हो तो बाहर जितना भी झझावात हो तो उसका जबर्दस्त अरसर रहेगा। अगर आप अन्दर से बिल्कुल शान्त हैं, तो बाहर कुछ भी हो रहा हो, उसका असर नहीं होगा। उल्टा जो बाहर है, वो भी शान्त हो जाएगा । सबसे बड़ी चीज़ है अपने अापको जमा लेना चाहिए । $ॐ के ॐ निर्मला योग २८ whee (द्वितीय कवर पृष्ठ का शेष) रक्षाकरी, राक्ष घनी, परमेश्वरी । नित्ययौवना, पुण्यलभ्या, शुभकरी ॥११॥॥ जय ।॥ जय आदिशक्तिः, पराशक्ति:, गुरूमूर्तिः । योगदा, शोभना-सुलभागतिः ॥ १२ ॥ जय ॥ जय अचिन्त्यरूपा, सत् । त्रिगुणात्मिका चंडिका, प्राणरूपिणी ।१३॥॥ जय ॥ चिदानंदरूपिणी का जय सुखाराध्या, जय भवानी । लज्जा, महतो, क्षिप्रप्रसादिनी ।॥ १४॥। जय । परमाणु, पाशहंत्री, निराधारा वीरमाता, गविता, धर्माधारा ॥१५ा जय ।॥ स्वस्था, स्वभावमधुरा, भगवती । धीरसम्माचता, परमोदारा शाइ्वती ।। १६॥। जय ।॥। शरमात्मिका, छी सदाशिव, लीलाविनोदिनी । विश्वग्रासा, विश्वगर्भा, विश्वसाक्षिणी ।। १७॥। जय ।। लोकातीता, पुष्टिः, पावनाकृतिः | चंद्रनिभा, रविप्रख्या, चितशक्तिः ॥१८॥ जय ॥ विमला, वरदा, विजया, विलासिनी । वण्दारु जनवत्सला, सहजयोगदायिनी ॥१६॥। जय ।॥ जय श्री माता जी -सो० एल० पटेल निमला योग तृतोय कवर Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 ১ निर्मल वाणी * मैं जो कुछ पसन्द करती है वह मेरो धून है परम्तु इसके बावजूद भी मैंने पपने अ्ापको स्वाभा- विक बना लिया है, क्योंकि मुझे अपके सम्मुख इस प्रकार से होना चाहिए कि प्रापको समझ आ्र जाये कि सिद्धान्त क्या है ? मेरे लिए कोई सिद्धां्त नही है। मैं सिद्धान्त सुजन करती है। क्योंकि घाप मेरे वच्चे है इसलिए मै आापके लिए कार्य करती है और छोटी-छोटी बीजें प्रापको सिखाती है। সापको स्मरस रखना चाहिए कि जब प्राप सोगीं से सहजयोग के सम्बन्ध में बात कर रहें हों तो वे समय आपको देखते रहेगे मीर यह समभने का अयास करेंगे कि इसमें पापकी पंठ कितनी है ? जंसा मैं प्रापको समझती है वैसा हो आप भी उनको ससभने का प्रयास कर । सहजयोग को सामूहिकता लोग समझ नही पाते है, इसलिए बहुत गड़बड होता है । मपको सामूहिकता में धाना पड़ेगा । कि मापके वाइग्रेंशन्स (चंतन्य लहरियां) ठीक इसलिए बनाये गये हैं कि दूसरों को देना होगा। इसलिए नहीं बनाये गये कि अाप प्रपने ही घर बनाते रहिए। फिर बही दीप हो सकता है किल्कुल बुभ जाए। ये दीप सामूहिकता में हो जल सकता है। एक दिन हपते में कम-से-बाम सेन्टर में प्रा] करके प्रापको देखता पड़ेगा है या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दोष आप ही पषनी रुकावट है। और कोई आपकी रूकावट नहीं करं सकता। कोई भी दूनिया का परादमी आप पर तंथ्र-मंत्र प्रादि कोई चीज़ नहीं डाल सकता प्र पहचाने रहे कि कोन आदमी कैसी बातं करता है न कोई दुष्टता आ गयी है। इसमें कोई न कोई खराबी है । उसमें साथ देने की कोई जरूरत नही है । फिर चाहे वो प्रापका पति ही हो, चा हे यापकी बो पल्नो हो। उसमें लडाई झगड़ा करने की कोई जरू रत्त नहीं । वो अपने अाप ही ठोक हो जाएगा। आप हो अपने साथ अगर स्वराबी त । कर । आप खुद हो समझ लगे कि इस धादमी में कोई 1. Edited e Published by Sh. S. C Rai, 43. Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002, One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign ( By Airmail £7 514] ---------------------- 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt folofcll fनिर्मला योग Iर जुलाई-प्रगस्त १६८५ द्विमासिक य पक २० प प क ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्को साक्षात्, श्रीं सहसार स्वामिनो] मोक्ष प्रदायिनी माता जी, थी निर्मला देवी नमो नमः ॥ SAMA प 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt जय श्री माता जी श्री 'निर्मेला' नाम मन्त्र माला ( परमपूज्य श्री माता जो के १०८ नाम ) जय श्री माता जी निर्मला । जय श्री महाराज्ञी जय श्रकुला । १।। जय ।। समुद्यता, विष्णुग्रंथि विभेदिनी भक्तिप्रिया भक्तिगम्या, शर्मदायिनी ।। २।। जय ।। देवकार्य । निरंजना, निल्लेपा, निष्कला । नित्या निराकारा, निराकुला ।।३ ॥। जय ।। जेरे निरविकारा निरुपप्लवा, नित्यमुक्ता, | निरंतरा, निश्चिन्ता , निरहकारा॥४ ॥ जय ।। निर्मोहा, निष्पाया, निःसंशया । निर्ममा, निविकल्पा, निरत्यया ॥५ू ॥ जय । |-र निष्कलंका, निर्गुणा, निराश्रया । निष्कामा, निष्कारणा, निष्क्रिया।।६।। जय ॥ नीरागा, निर्मदा, निरीश्वरा निस्तुला, निर्नाशा नीलचिकुरा ॥७ ॥ जय ।। निरुपाधि, निराबाधा, निरपाया । गंभीरा, निष्परिग्रहा, महामाया ।॥८।॥ जय । । महादेवी, महापूज्या, अहापातकनाशिनी । सान्द्रकरुणा, सुखप्रदा, एकाकिनी ।॥४।। जय ।। महाशक्ति, निर्भवा, महारतिः । विश्वरूपा, पद्मासना, सुधार्त्र ति ॥१o । जय ।। शेष तृतीय कवर पृष्ठ पर) निमंला योग द्वितीय कवर 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt सम्पादकीय 'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बेठे आई। सिर सौंपे सोई पिवं, नहीं तो पिया न जाय ॥ संत कवि श्री कबीर दास जी ने इन दो पंक्तियों में ही सम्पूर्ण सहजयोग को व्यक्त कर दिया है । जब तक हम अहंकार से अपने को अलग नहीं करते, हमारी सम्पूर्ण तपस्या व्यर्थ है । श्री कबीर दास जी कहते हैं कि कलाल की भट्टी पर श्रर्थात् सद्गुरु के पास बहुत लोग आते हैं किन्तु इस मदिरा का पान अर्थात् प्रभु का प्रेम रस, निरानन्द व ही पी सकता है जिसने अहंकाररूपी शीष को हंसी-हंसी सद्गुरु को सौंप दिया को छोड़ दिया है । है, यानि अहंकार कहने का तात्पर्य है कि अहंकार यानि 'मैं' को प्रपने 'स्वयं' से अलग करना अत्यन्त ही आवश्यक है । ॐ त्वमेव साक्षात् श्री महत् अहंकार साक्षात् श्री आ्दिशक्ति माता जी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः|। निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री श्रानन्द स्वरूप मिश्र श्री आर. डी. कुलकर्णी प्रतिनिधि कनाडा : लोरी हायनेक ३१५१, हीदर स्ट्रीट वेन्क्ूवर, बी. सी. वी ५ जैड ३ के २ यू .एस.ए. श्रीमती क्रिस्टाइन पंट नीया २७०, जे स्ट्रीट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयार्-११२०१ यू के. श्री गेविन ब्राउन भारत श्री एम. वो. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन बोरोवली (पश्चिमी) बम्बई-४०००६२ व्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़रमंशन स्विस लि., ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट १३४ लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. ২, इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. पूर्ण समर्पण : एकमेव पथ ४. सहजयोग के लिए भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्व ५. श्री निर्मला नाम मन्त्र माला ३ १४ द्वितीय कवर निर्मला योग २ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt श्री माताजी निर्मला देवी पूर्ण समर्पण : एकमेव पथ' काउली मैंनर गोष्ठी दिनांक ३१-७-८२ आज में तुम्हें कुछ कहने जा बढ़ता ही जाता है और अन्त में वे पूर्ण विनाश को रही हैं। यह मुझे बहुत पहले प्राप्त होते हैं । किन्तु आप लोग सहजयोगी हैं और बेताना चाहिये था । आपको स्वयं को संवारना है । जैसा मैंने आज अरपको वताया मैं पहले आपके अहंभाव (ego) को ठेस नहीं पचाना चाहती थी । इन शब्दों में आपको बताना कि यह आवश्यक है कि आप मुझ सश्रद्ध मान्यता दे । मान्यता देना निश्चित है, यह शतं अनिवार्य है । मैं इसे बदल नहीं सकती। जैसा ही चाहिती थो। शयद यह पहली बार आपसे में योशु कह रही हैं कि प्रापको अपने को मुझे पूर्ण रूप से समर्पित करना है-सहजोयन को नहीं, बल्कि ने पहले ही कह दिया है, अरप मेरा (योश का) विरोध कर तो वह सहा जा सकता है, उसे क्षमा कर दिया जायगा, किन्तु आदि शक्ति का विरोध तुनिक भी मुझकी । सहजयोग केवल मेरा एक अंग] (पहलू) नहीं। यह एक बहुत बड़ी चेतावनी है। शायद लोग नहीं समझते इसका क्या अर्थ है । यह सच है आरपमे से कोई भी मेरे विरुद्ध नहीं है, यह नि:स्सन्देह है। प द्वारा ही आप यह पा सकते है। आखिर पप मेरी सन्तान हैं। में प्यार करती है और आप मुझे प्यार करते हैं । यह तो केवल येशु ने आपको चेतावनी दी है। सोचना चाहिये जिस वेग से हमें उन्नति करनी चाहिये उस वेग से क्यों नहीं कर रहे हैं। हैं। सच कुछ त्याग कर आपको सम्पणा करना कपशा समर्पण । अन्यथा आप] ऊंचे नहीं उठ पूरग समपण । अन्यथा अआप ऊचे नहीं उठ सकते । विना प्रश्न, विना तक-वितरक। पूर्णं सम- आपको बहुत अभी भी लोग 'बाधा-ग्रस्त होते हैं, अभी भी मम्स्याओों में फंस जाते हैं। इसका क्या कारण है ? बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं-माँ, एक बार आत्मसाक्षात्कार पाने के बाद, के से हम दुबारा जब लोग सम्मोहित ( mesmerise) कर दिये नीचे गिर जाते हैं ? इसका एकमात्र कारण है कि जाते हैं तब वे अपने गुरुओं के सामने विल्कुल लम्बे समर्पण सम्पूर्ण नहीं है । यदि पूर्ण समर्पण स्थापित पड़ जाते हैं । जब उन्हें सम्मोहित कर दिया जाता है नहीं हुआ है, अभी भी जितना चाहिये उतना ज्ञान तो वे सब कुछ दे देते हैं, अपना रुपया-पंसा, घर- आपको नहीं है कि मैं देवो (Divine) सत्ता हैं । परिवार बच्चे, और लम्बे लेट जाते हैं, अपने गुरू मेरा मतलब यह नहीं प्राप सब- किन्तु फिर भी के विषय में बिना कोई प्रश्न पूछे, विना कुछ जांच यदि आप गरपने हृदय में देखें, मस्तिष्क में झाँकें, पड़ताल किये, विना उसकी जीवनी के बारे में कुछ आप देखगे कि पूर्ण श्रद्धा जो आप, उदाहरणार्थ पता लगाने की कोशिश किये। ऐसे लोग बड़ी जल्दी योशु या कृष्णु के प्रति या जो और पहले हो चुके अंधकार में पड़ जाते हैं, और उनका यह अंधकार हैं उनके प्रति अपकी थी वह नहीं है । (* निर्मला योग ( अग्रेजी) नवम्बर दिसम्बर -पुण्ठ ३ से अनुवादित ) । निर्मला योग ३ to 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt नहीं होता। तत्काल उसको पूर्ण शक्ति ओर पूर्ण विश्वास के साथ जकड़़ लेना होता है । कृष्ण ने कहा था 'सर्व धर्माणाम् परित्यज्य मामेकम् शरणम् बरज' सारे सांसारिक धर्मों को भूल जाय्रो । यहां घर्मों का अर्थ यह नहीं है जैसे हिन्दू, ईसाई, मुसलिम प्रादि, किन्तु उनका अ्रभिप्राय जब हम बाघा-ग्रस्त होते हैं, जब हम विकारों था जो 'धारण' अर्थात् समाज रचना का से घिरे होते हैं, हमें उनकी जानकारी होती है और था जो 'वारणा संरक्षण ऐसे धर्मों (घारणाओ्रो) को भूल जाओ और मूझे पूरणं समर्पण दो। यह उन्हेोने छः हजार समय हम दढ़ता से पकड़ना चाहते हैं। किन्तु दूस रा वर्ष पहले कहा था । और आज भी ऐसे श्रनेक हैं जो अभी भी कहते हैं "हमने अ्पने को श्री कृष्ण को पूर्ण समर्पित किया हुआ है।" कस्तु शज (struggle) सा श्ररम्भ हो जाता है । ऐसे समय श्री कृषणा कहां हैं? यहां तक कि वे जिन्हे मैन सुवमे ग्रच्छा रास्ता क्या है? सबसे अच्छा रास्ता आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया है ऐमा कहते हैं। है और सब कुछ भूल जाओो, भूल जाओी कि कोई यह सच है कि कृषण में और में कोई अन्तर नहीं। किन्तु याज वह मैं है जिसने अपको पात्म- (possessed) है या कुछ भी । अपनी जितनी साक्षात्कार प्रदान किया है। किन्तु हमारा प्रथम भी शक्ति है, अपनी सम्पूर्ण शक्ति से मुझे पकड़ ध्यान ग्रपने धन्धे, अपनी निजी समस्यायों औ्रर 'रहो। अपनी पारिवारिक समस्याओं पर रहता है और समर्पण अन्त में प्राता है। हम कुछ भ्रम में पड़ जाते हैं (confused) ऐसे 1. ओर 'वाघाएं आपके मन में ऐसे विचार उत्पन्न करती हैं जो हानिकारक हैं । अत: एक वड़ा द्वन्द मुझ आप पर कोई भूत आराल्ढ़ बाघा है या आ्रता किन्तु हमारी समर्पण की शैली बड़ी फैशनेबल मैं भ्रामक (illusive) है यह सत्य है। मेरा और आधुनिक है जिसमें सहजयोग अल्प महत्व नाम है 'महामाया'। निस्सन्देह मैं भ्रामक है । किन्तु रखता है और मां भी यो ही (by the way) होती है । मुझे खेद है इससे काम नहीं बनेगा यह मुझे आपको बताने की आवश्यकता नहीं क्योंकि यदि आ्रप देवी महात्म्य' पढे तो काफी है। यदि अरब समर्पणा प्रगति, उन्तति का एक वहुत आप देवी के १००० नाम पढ़ें तो भी काफी है कि केवल भक्ति द्वारा प्राप्त की जा सकती है। वह केवल समर्पण द्वारा प्राप्त की जा सकती है। वह खतरा सिर पर है, ऐसे समय जब समस्त विश्व भक्त-प्रेमी, समर्पण-यूक्तों की प्रेमी है । यह कहीं ऐसी ्ापात स्थिति में है जहाँ वह पूर्णा नष्ट होने नहीं लिखा कि वह ऐसे लोगों की प्रेमी है जो जा रहा है, ऐसे समय यह प्रत्यन्त महत्व पूर्ण है कि अच्छा वोलते हैं, जो अच्छा तर्क करते हैं, जिनका आप उस चीज को जो आपको बचाने वाली है पहनावा, रहन-सहन [अच्छा है, जिनका परिवेश surroundings) अच्छा है। बस वह भक्त प्रेमी साथ । जैसे आप यदि साधारण पानो में भीग गये हैं। और यह श्रद्धा, भक्ति एक सनक (frenzy) या ऐसी कुछ नहीं होनी चाहिये, किन्तु स्थायो, डूब रहे हैं और प्रश्न है, यह क्षण जीवन वह क्षण निरन्तर धारावाही, ऊर्ध्वगामी (ever growing) होनी चाहिये। अब अरागे के विकास के लिये वस मैं भ्रम उत्पन्न करती है बस आपको परखने के लिये । महत्वपूर्ण अंश है । क्यों ? क्योंकि जय [शरप ऐसी वह अवस्था में स्थित हैं, जबकि आपके अस्तित्व को जकड़ कर पकड़ ले, पूरणं शक्ति, पूर्ण श्रद्धा के ( हैं तो कोई बात नहीं। किन्तु यदि ग्राप समुद्र में मृत्यु, ऐसे समय अगर कोई हाथ आपको बचाने को अग्रसर होता है तब अरापको और सोचने का समय यही रास्ता है। निर्मला योग 2. 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt हमारे लिये अनेक छोटी-छोटी समस्याएं महत्व उस समय उनका प्रहं भाव उनकी 'परत्मा से रखती हैं। किसी को मकान की, किसी को कालिज अधिक बलशाली होता है-जब वे अपने स्वातत्त्र्य प्रवेश की, किसी को रोजगार की । ये सब यर्म हैं में होते हैं। स्वतन्त्र देशों के सर्वनाश का यही कारण जिनके लिये श्री कृष्ण ने कहा है, "सर्व धर्माणां है क्योंकि प्रहंभाव (ege) कार्यशोल होता है, परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज ।" समस्त घर्मों को न कि आत्मा । जब वे स्वातन्त्रय में स्थित होते हैं स्याग दो-इन सब तथाकथित धर्मों को. जसे 'पत्नि तब वे अपने अहंभाव पर नियन्त्रण नहीं कर घर्म' पत्नी का कर्तव्य है, पति बर्म पति का सकते । केवल जब कोई उनके अहंभाव को उलभा कर बेंधन में जकड़ देता है और उन्हें मेसमेराइज पिता का कर्तव्य है, नागरिक का धर्म, विश्व कर देता है, तब वे ठीक हो जाते है, वे बन्दो हो नागरिक का घर्म । यह सब धर्म पूर्ण रूप से स्याग जाते हैं और पूर्ण समर्परा कर देते हैं । इन कपटी दो। और पूरण रूप से, हृदय से आपको मुझे समपंरण लोगों ने आपको दास वनाने की कला में जैसी निपुराता प्राप्त कर ली हैं, उससे यह स्पष्ट है । कतव्य है, 'पुत्र धर्म पूत्र का कर्तव्य है, 'पिता घर्मं करना है। अपने पूरणं स्वातन्त्र्य में प्रापको समर्पण करना मैं जो है वह है, वही मैं सदैव थी और रहैंगी। मैं न बढ़ंगी, न घटूंगी। मैं एक सनातन व्यक्तित्व चाहिये। है । आप, ज़ितनी आपमें सामर्थ्य है मुझ से प्राप्त कर लें, इस यूग में अपने जन्म का उपयोग कर लें । अपनी पुर्णं परिपक्वता तक बढ़ँ, परमात्मा आपके माध्यम से जो परिकल्पना कार्यान्वित है। इतना ही नहीं उससे स्वातन्त्र्य विक्ृत कान्ति- करना चाहता है उसे क्रियान्वित क रने योग्य बनें । ज्यों ही समर्पण जाग्त होता है, ग्राप गतिमान में स्वातत्त्र्य पूर्ण अह-शून्यता है जिसमें कोई बन जाते हैं। बस उसमें दुढ़ रहे । स्वातन्त्र्य का अर्थ अहंभाव तहीं है, यह आप समझ ल । अहभाव से स्वातन्त्रय का नाश हो जाता 1 हीन व कुरूप हो जाता है। अपने सूक्ष्मतम स्वरूप खुरखुरापन न हो, पूर्ण स्निग्धता, पूर्ण रिवतता (hollowness), बांसुरी की भांति जिससे इसके लिये 'ध्यान एक मात्र पथ है, ऐसा परमात्मा का संगीत सुन्दर बज सके। वह है पूर्ण कहना चाहिये। यह सच है कि अरप वृद्धि से प्रनेक स्वातन्त्र्य । विना किसी श्त के काम कर सकते हैं, तर्क द्वारा आप मूझे स्वीकार कर सकते हैं, भावुकता में आप अपने अरको मेरे निकट कर सकते हैं, किन्तु वास्तविक मार्ग अज्ञान की दलदल पाप की दलदल अज्ञान से हैं, ल कि हम दलदल में फंसे हैमे यह समझ अनुभव है, ध्यान द्वारा, समर्परण द्वारा । 'ध्यान समर्पण पाप उत्पन्न होता है। इस दलदल से हम कैसे के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । पाश्चारय देशों के निकल सकते हैं ? जो हमें उससे निकालने की आधुनिक मानव के लिये वह कठिन काय है । वह कोशिश करेगा वह भी उसमें फस जायगा। जो केवल उनके सामने समर्पण करता है जो उसके पास भी आना चाहता है वह भी दलदल में मेसमेराइज' करते हैं, जो उन्हें पूर्ण 'मेसमेराइज अपनी चेतना-शुन्य) कर द 'मेसमेराइज' कर दें उनके वह पूर्ण दास बन जाते हम और अधिक उन्हें दलदल में खोंच लेते हैं पौर हैं । परन्तु जब वे अपने स्वातनत्त्र्य में स्थित रहते हैं स्वयं नीचे घंसते जाते हैं। फस जाता है, उसमें समा जाता है। हम जितना दूसरों से सहायता लेने की कोशिश करते हैं उतना ं । जो लोग उन्हें निमंना योग ५ू 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt अत: इस कुण्डलिनीरूपी वक्ष की वृद्धि होनी चाहिये । और उस बृक्ष से स्वयं परमान्मा स्वयं किस लिए है ? यह सब आ्राशीर्वाद किस लिए है ? परब्रह्म आपको उस दलदल से बाहर खींच गे । यह यह है इस लिए कि अराप ऊंचे उठे, आरप पूर्ण रूप वृक्ष दलदल से बाहर ऊना बढ़ता है श्रर परबरह्म से दलदल से बाहर निकलं । एक-एक करके आपका हाथ पकड़ेंगे और अरापको झूने की पींग (swing) की तरह बाहर निकालगे । किन्तु फिर भी जब आपको वह बाहर निकाल रहे हैं उस समय यदि आपकी पकड़ मजबूत नहीं है, तो आप फिर फिसल जाते हैं- निकलते हैं और फिर फिसल कर दलदल में अंस पव रखते हैं। हम अरत्यधिक चातुरो दिखाते हैं । जाते हैं। जब दलदल से बाहर निकलत है तो बड़ा आनन्द आता है । किन्तु उस समय भी पर पूरे बाहर नहीं आये हैं । आप पुरे स्वच्छ नहीं हुए हैं। जव तक अाप पुरण स्वच्छ, निर्मल नही होते तब तक आप पूर्ण आशीर्वादित कैसे हो मकते हैं? में अकेल रहे हैं । कोन सी आ्ासक्तियां कोन से नाते पप परमात्मा का पूरणं आशी्वद अजन कर, बाधक है। आपको अपने को इन सबसे अलग किन्तु हम नहीं सोचते यह सब पालन-पोषरण अव, आपको दूढ़ रहना है, आपकी सर्मापत रहना है, आपको श्रद्धालु रहना है। हमारे मन में अनेक किन्तु-परन्तु (reservations) हैं । हम आप थोड़ा बाहर यह खतरनाक स्थिति है आप सब अपने भीतर देखें, कौन से पूर्व-संस्कार आपके पूर्ण समरपंण में बाघक हैं, किन कारणों से आप यह 'किन्तु-परन्तु रखते हैं, कौन सा भय, कौन सा अहंभाव, कौन से चरित्र वैचित्र्य (angularities) अभी भी दलदल परमात्मा के प्रम में रम जाय । केरना है। जब तक अराप पुराण रूप से इससे देख कर आशचर्य होता है कैसे वे लोग जो इन (दलदल से) बाहर नहीं निकलते, काम नहीं बनने कपटी गुरुओं के पास जाते हैं, उनसे चिपक जाते हैं, बाला । ऐसा अपार समर्पण देते हैं कि आप चकित हो जाते हैं। वे ढोले-डाले, अकर्मण्य से हो जाते हैं । (उन्हें जैसा चाहो तोड़ लो, मोड़ लो।) जव तक उनका पूर्ण सर्वनाश नहीं हो जाता त ब तक उनके ने कहा था । उन्होंने कहा था, "तुम मुझे अपनी पास जो कुछ भी है वे समर्पण करते रहते हैं । अवपकी चीजों के लिये यहां जगह नहीं। सवाल है, अभी या कभी नहीं। यह योशु क्राइस्ट और वाकी मुझ पर छोड़ श्रद्धा श्रोर समर्पण दो दो।' किन्तु जब लोग सहजयोग में आते हैं तब वे समर्पण नहीं करते, बल्कि उनका लालन-पालन, उनका पोषण, देख-रेख की जाती है। उनका स्वास्थ्य सुधरता है, आर्थिक उन्नति होती है, वढ़ रहे हैं । मैंने देखा है लोग खूब सुधर रहे हैं । उनकी मानसिक स्थिति सूधरती है, उनके सम्बन्ध मेरे सामने य्राने प्रत्यक्ष मिलने की आरावश्यकता मुधरते हैं, हर प्रकार वे पहले से अरच्छा अनुभव नहीं । मेरी शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं । करते हैं, उनकी हालत सुधरती है। हर समय उन्हें सब कुछ सवचर व्याप्त शक्ति में वतमान है। यही लाभ प्राप्त होता है। हमारे आश्रम हैं, जो सुन्दर मेरी जीवन प्रशाली है और वहू तुम्हारे विषय में हैं, सस्ते हैं, वहां भोजन की सूविधा है, वहाँ उपलब्ध प्रत्येक सुविधा बढ़िया से मैं जानती है अरद्धा और समर्पण में कौन आगे एक-एक बात जानती है। और एकमात्र अपनी भक्ति, अपनी धद्धा और स मर्पण के द्वारा तुम मुझे पा सकते हो । बढिया है । वहाँ सब कुछ उपलब्ध है । निर्मला योग ६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt तुम्हारी देवो शक्तियों का सम्पूरणं उदीयमान होना (manifestation) ही मुझे पाना है । आश्ो वह बीती जिन्दगी, वह दलदल । अब यह बड़ा सुगम है, इसे सुगम बनाया गया है । मैं उसका अन्त होना चाहिये। तुम भली भांति समझते उनसे प्रसन्न होती है जो सरल, भोले, निश्छल, हो कसे मैंने अपने प्रम की श क्ति से तुम सबको प्रेम-पूर्ण श्र परस्पर स्नेह युक्त होते हैं । मुभे बचाया है । तुम जानते हो कैसे मैंने एक एक क्षण प्रसन्न करना बड़ा अ्रासान है। जब में तुमको तुम्हें सहायता की है । तुम्हारी प्रत्येक इच्छा पूरी परस्पर प्रेम करते देखती है, एक दूसरे की प्रशंसा करने के लिये मैं आगे आई है। जेसा मैंने करते देखती हैं, परस्पर सहायता करते, परस्पर यह एक तरफ की बात है-पोषण, संवर्धन । किन्तु आदर करते, एक साथ खुलकर हंसते, परस्पर संसर्ग में आनन्द अनुभव करते देखती हैं, तब मुझे चाहिये । तुम्हारा उत्थान, उसके लिये अपना पहला वरदान, पहला आनन्द प्राप्त होता बढ़ी। वह तुम्हें सवयं क्रियान्बित करना होगा । है । अ्रपनी उस पूरानी जिन्दगी से बाहर निकल कहा, अब तुम्हारी उन्नति । वह तुम्हारी प्रोर से प्रानो तुम प्रागे कोई अन्य सहजयोगी अरथवा मेरे द्वारा वह नहीं होगा। मैं तुम्हें केवल सुझाव दे सकती है। इतना ममपण भाव में परस्पर प्रेम करने की ही नहीं, बेतावनियाँ भी देती है । और सब कुछ कोशिश करो, व्योंकि तुम सब मे री सन्तान हो, मेर ापके पास हो है । ऐसी सुन्दर व्यवस्था है। मुझे प्रेम से सृजित किए गये हो। मेरे प्रम के गर्भाशय में सबने वास किया है। अपने हृदय से मने तुम्ह कहीं जाने की जरूरत नहीं। सब कुछ तुम्हारे सब पता रहता है। पहले से में जानती है । तुम्हें तुम ये राशोर्वाद दिये हैं । किन्तु मैं विवलित हो जाती भीतर ही है। तुम्हें रुपया-पैसा नहीं देता, कुछ हैं और मेरे हाथ कांपने लगते हैं औरोर दलदल में गिर पडते हो, जब में तुम को परस्पर कर लो । झगड़ते देखती है, ईष्य्या और क्षुद्रताओं में लिप्त, ऐसी चीजे जो आपके विगत जीवन की साथी थीं। आ्पको मिलने वाली सहायता इतनो स्थुल नहीं है बल्कि वह वड़ी गहन सुरक्षा की जो आपके भाई बहनों को प्रदान की जाती है। राजनीतिज्ञ मनमाना नचाते (manoeuvre) हैं । आपमें गहन प्रम होना चाहिये। स्वार्थ-भाव के लिये सहजयोग में विल्कुल स्थान नहीं । इसी तरह कंजूसी के लिये सहजयोग में स्थान नहीं, वह नहीं कसे ? मानो मेरे हाथ में एक ब्रुश है और मैं कुछ चल सकती । कंजूसी एक संकुचित मस्तिष्क की निशानी है। मैं यह नहीं कहती आप मुझे रुपया दे । किन्तु धन के प्रति हमारी दष्टि, उससे हम कसे करती है, प्रयोग में असुविधाजनक है, वेढंगा चिपके रहते हैं, भौतिक पदार्थ, सम्पत्ति, वस्तएं वेडौल है, तो शरप उससे कैसे काम करेंगे आपको इत्यादि । फिर से नहीं देन। बस प्रपने प्रन्दर वह समर्पण जाग्रत तुम देखो, यह सज्जन जिन्होंने मुझसे भेट (inter- view) की, कहते थे कि वेरोजगार लोगों को अमुभूति है, प अपने आपको परमात्मा को समर्पित कर दें। "प्रभु आपकी जसी रुचि हो हमें नचाये ।" किस्तु चित्रण करना चाहती हूं। [और यदि ब्रश चलने में कठिनाई उत्पन्न करता है, टेढ़ा-मेढा है, परेशान समस्याएं, आपकी सारी बाधाओं से मुक्ति पाने का आपकी महानतम निजी (सम्पदा) है सुगमतम उपाय है समर्पण । भरापकी माँ। उसके द्वारा ही आपको ये प्रपने भाई बहन मिले हैं । वस्तु अब स्वयं प्रपने भीतर झांक औ्रर देखें, क्या निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt आप समर्पण-मय हैं ? जो मेरा अंधानुसरण करते अत्यन्त द्रतगामी (तेज चलने वाला) मोर था, ( fanatically adhering) हैं, वे भी सही नहीं जो उड़ता था। श्री गरणेश ने मोर की ओर देखा हैं । अधानूसरण ठीक नहीं। सब कुछ तक-संगत ओर कहा, "मेरी मां से बड़ा कोन है? वह आदि- रूप से सामने आता है, अंधानुसरण बिल्कुल शक्ति हैं । यह प्ृथ्वी क्या है ? इसे किसने बनाया ? नहीं । मेरी माँ ने बनाया है। सूर्य को किसने वनाया ? मेरी माँ ने बनाया। मेरी माँ से बड़ा कौन है ? कोई नहीं। फिर क्यों न अपनी माँ की ही परिक्रमा जैसे कोई कहता है, "मुझे डाक्टर के पास जाना है। किन्तु अन्धानूयायी कहेग, "मैं डाक्टर कर लू? सारी पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा के पास नहीं जाऊंगी, क्योंकि माँ ने कहा है वह लगाने की आावश्यकता क्या है ? और कातिकेय के मेरी देख भाल करती है ।" नुयायी बीमार पड़ जाती है तब वह मां के पास पुरस्कार लेकर वराजमान थे । आकर लड़ती है, "मा आपने कहा था आप मे री देख भाल करती हैं । फिर मैं कैसे बोमार पड गई ?" यह प्रन्धानुसरण है । प्रौर जब वह अर्धा- परिक्रमा लगाकर आने से बहुत पहले वह अपना उनके सरल भाव, भोलेपन ने उन्हें यह समझने की बुद्धि दो। यही युक्ति संगत है यह अ्त्यन्त युक्ति पूर्ण है । और घह भी युक्ति संगत है कि मेरा और 'समर्पण क्या है ? भीतर, हृदय की दद मैं जितना अनुभव करता है उससे अधिक मेरी गहराई से आप कहते हैं, "सब कुछ माँ है । वह माँ करती है । जब यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, विद्यमान है। बही मेरी डाक्टर है, वह मेरी तब उनकी मांँ के विषय में [प क्या कहेंगे ? वह विकित्सा करती हैं या नहीं, मैं स्वस्थ होता हू या नहीं इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना । मैं केवल माँ को जानता है। अन्य किसी को मैं नहीं मानव की भाँति कष्ट भोगते देखा । यह कितनी जानता । यह अत्यन्त युक्ति संगत है । आप] युक्ति बड़ी बात है ! अपने को स्वयं की बलि देते पूर्वक जानते हैं कि माँ अधिकतम शक्तिमान हैं- देखा जबकि यह सब समाप्त कर देने की सारी यह सत्य है । और यदि यह सत्य है, वह मुझे स्वस्थ शक्तियाँ उनके हाथ में थीं। किन्तु यह एक बड़ा कर देगी किन्तु यदि वह मुझे रोग-मुक्त नहीं करती तो वह जाने, यह उनकी इच्छा, उनकी शक्ति है । करने का यदि बह मूझे स्वस्थ करना चाहती हैं, तो वह कर देगी। यदि वह ऐसा नहीं चाहती तो मैं अपनी इच्छा क्यों उस पर थोपूं ? स्वयं महालक्ष्मी थीं, अति शक्ति सम्पन्न । अपने पुत्र को उन्होंने प्रपने जीवन का ब लिदान करते देखा, पुत्र नाजुक काम था, इस अाज्ञा चक्र को निर्माण इसका क्या अर्थ है ? क्या इसका अर्थ है उसकी श्रद्धा में कुछ कमी थी ? इसके विपरीत, उनको (माँ को) उन पर इतना विश्वास था कि वह (माँ) श्री गणेश का समर्पण देखिये । जब उनकी मां उनमे ऐसा करने को कह सकती थी । ने कहा, "अ्रच्छा, कार्तिकेय प्रौर वह, दोनों भाइयों में जो धरती माता की परिक्रमा पहले करेगा उसे प्रथम पुरस्कार मिलेगा। अब बेचारे गणश के हैं तो कुछ लोग कहते हैं "माँ, मैं ये शोध-निबंध पास वाहन के रूप में एक छोटा चूहा था । किन्तु (thesis) दे रहा है । मुझे सफलता देना ।' उनके पास बुद्धि थी । "अ्रच्छा बंधन दो," "और प्राप सफल हो जाते जब मां से अपना कूछ काम करवाना चाहते और कातिकेय के पास एक निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt खोज करते की कोशिश कर रहा हैं। "माँ मैं यह प्राप प्रव ऐसो आत्मा हैं। अरत: आपका पोषरय " अच्छा, तथास्तु ।"माँ, मैं यह रो जगार पाना कार्य हो चुका है, अराप बड़े हो गये हैं, पुषट है। जब लोग सहजयोगियों को देखते हैं तो कहते हैं, ये केसे फुलों जैमे हैं। इनके चेहरे चमकते हैं । केसे आत्म विश्वास युक्त कितने सम्भ्रान्त, कसे चाहता हूँ।" तथास्तु । यह विषरीत क्रम है । कितनों में यीशू जैसा समर्पण है ? किसी में सुन्दर। नहीं। यह सत्य है। वह सबसे बड़ा भाई क्यों है? किन्तु यह सब (पोयरण) किसलिए? इसलिए कि आप परमात्मा के रथ के पहिये बन । अ्रपको सारा भार उठाना है और आत्म-वलिदात-जो बलिदान नहीं रहा। क्योंकि 'शात्मा' (ग्रब ग्राप अात्मा में परिगत हो चुके हैं। में से गूजरी-एक अधिक महान ध्येय, अधिक केवल देता है, कभी रखोता (sacrifices) नही। आनन्द, अ्धिक महान, अधिक ऊचे जेवन के लिए। देना इसका गुण है । [अतः आप कुछ खेते नहीं, वयोंकि उसके समान कोई नहीं है । उसने वह सब दर्दनाक कष्ट सहन किये, क्योंकि बह प्रपनी माँ के अभिन्न अंग थे । उससे (पुत्र से) उन्होने (माँ ने) बहुत रधिक कष्ट भोग किया अरापके लिये अब । वह भी उस वेदना यह सच्चा समर्पण है । आप केवल देते हैं । किन्तु ये छली लोग इसका लाभ उठा सकते हैं। जब वे लोगों को यातना देते हैं तो कहते हैं आखिर आापको कष्ट भोगने हैं । देखिये वे कैसी बात बनाते हैं । वें कहते हैं आपको काष्ट भोगना आबश्यक है क्योंकि अन्यथा आपका कार्य नहीं हो सकता। अतः कष्ट भोगना आवश्यक हैं । माँ पहले प्रसव की पोड़ा सहतो है। ठीक है । के कष्ट सहती है। ठीक है किन्तु जब बच्चा वडा हो जाता है तो वह मां के साथ खड होता है, उसको सहारा देता है, गौरवशाली सब तरह पुत्र बनता है । उसका (पुत्र को) वह ( मा) प्रभिमान अनुभव करती है। उसका (पुत्र का} उसे (माँ को यह अत्यन्त सुक्ष्म समझने वाली बात है, अभिमान है और उसका (माँ का) उसे (प पुत्र का) अत्यन्त सूक्ष्म । आपको इससे स्थष्ट हो जायगा कि आ्रभिमान है । वे एक साथ खड़ होते है और एक साथ लड़ाई लड़ते हैं। यह तभी सम्भव होता है पहले आपका पोषण किया जाता है, प्रापको ऊपर उठाया जाता है, आपका प्रशिक्षणण होता है, आपको जव आप पूरण सम्पण ओर एक सहजयोगी के सही किया जाता है। और उसके पহचात आप जो भावी जीवन को तैया री के लिये गे अये-ऐसा (लड़ाई) सा कष्ट नहीं रह जाते क्योंकि आपका आत्मा' में दीखता है किन्तु भीतर अत्यन्त कृतार्थकारी (fulfilling) है । एक समय था जब मेरे पास जो सहजयोगी आते थे उनके लिये धरती पर बैठना भी एक बहुत बड़ी बात (त्याग) थी। इसी भांति जुते उतार कर बेठना एक बड़ा त्याग था। कल कार्यक्रम में तोन व्यक्ति जूते उतार कर बेठने की इसे (आत्मा को) किसी शस्त्र द्वारा मारा नहीं बात पर उठ कर चले गये, जेसे कोई उन्हें गंजा कुछ करते हैं-कष्ट सहन आदि के लिये जोवन जो वाहर से एक संग्राम रूपान्तिर हो गया है : नेनं छिदन्ति शस्त्रारि, नेनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्तापो, न शोषयति मारुतः ।। जा सकता, हवा इसे फंक नहीं सकती अथवा उड़ा नहीं सकती, प्रग्नि इसे जला नहीं सकती । इसे किसी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता । (bald headed) कर रहा हो । किन्तु सहजयोग में क्यों ऊंचे उठना बढ़ना, निमंला योग ६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt ख ड़े होना-एक महान माँ को महान सन्तान के सामने वड़ी हैं, श्रापको दूसरों के सामने खड़ा होना रूप में ! काम महान है, दुर्दन्ति है । यह ऐसे-बसे, है, सर्वसाधारण के सामने खड़ा होना है । मंझोले लोगों के करने का काम नहीं है । पिचके गालों वाले, डरपोक अहंकारी भीरु इसे नहीं कर सकते । उनमें आवश्यक वीरत्व (mettle) नहीं है । समर्पण का अर्थ यह नहीं कि आप सहजयोग की उ्चा न करें । बहुत लोग सोचते हैं शान्त, चुपचाप रहना हो समरपण है। के वल ध्यान में शैन्ति रहती चाहिये । किन्तु बाद में तो उस स्थिति (ध्यान में शान्त) से बाहर अराना होता है । अरतः ध्यान में समर्पण, ध्यान में पूर्ण समर्परण का अ्रभ्यास करना चाहिये। अब यह तुम्हारे ग्रपने तथाकथित सकुचित 'प्रपने' हित के लिये तुम नहीं कर रहे हो। पहले तुम एक नन्हें शिशु थे- संदेश कह दो कि पूनरुत्थान (Resurrection) बालक । अब आप एक समग्र पुरुष (collective being) हैं । अरत: अरब आप 'अपने लिये नहीं करते, वरन उस समग्र पूरुष के लिये करते हैं । प उस समप्र की चेतना में उतरने के लिये ऊँचे मजाक उड़ाता है तो उसे समझदारी उठ रहे हैं जो (समग्र पुरुष) अआप बनने के पथ पर बुद्धिमानी से बातें बताओ। व्यक्तिगत रुचियों, हैं। आरपका काम अपका रुपया, आपकी पत्नी, अरुचियों को त्यागना चाहिये। "मैं ये पसस्द करता आपके पति, बच्चे, पिता, माता, रिव्तेदार-ये सब है, मैं वह पसन्द करता है ।" ऐसो बातें छोड़ देनी बात अब समाप्त हैं। अब श्रप सबको सहजयोग अर्थ यह नहीं प्राप मशीन की भांति का कार्य-भार संभालना है [आपमें से प्रत्येक पूरणो हो जायं नहीं। किन्तु यह "मैं" की दासता को सक्षम है । आपको उसके लिये तयार किया गया छोड़ना चाहिये । आदतों की दासता समाप्त होनी है । आप जिस प्रकार उचित समभोें आपकी जैसी चाहिये। आपको श्चर्य होगा, आपमें समर्पण भी क्षमताएं हों, वैसे करे। बस आपका पूर्ण सम- परण काम करेगा। 'समर्पण ही सार है । पूर्ण समर्पण द्वारा ही आप अर ऊंचे उठ सकते हैं । सारे राष्ट्रों अरर सारे लोगों से यह महान का समय आ गया है- अ्रभी, इ सी समय । और प सब यह कार्य (महान संदेश को फेलाना) भी कुछ करने के योग्य हैं । यदि इसके लिए कोई आपका और चाहिये इसका जाग्रत होने पर आप अधिक नहों खायंगे, कभी कभी पविल्कुल नहीं खायगे, खाने की बात ध्यान रहना भी जरूरी नहीं। आपको ध्यान नहीं रहेगा आपने क्या खाया, आप कहाँ सोये, केसे कुछ सहजयोगी हैं जो प्रधपके हैं । उन्हें हम सोये यह भी ग्रापको ध्यान नहीं रहेगा। यह एक छोड़ दें उन्हें हम अपने साथ नहीं रख सकते । दूरबीन जैसी जिन्दगी होगी-फेलतौ हुई। आप अपने उनके प्रति आप सहानुभूति न रखें । वे बेकार हैं। यदि वे ठीक मिद्ध हुए तो हम उन्हें दवारा अपने क्रियान्वित करेंगे। आप ऐसे सरल, साधारण साथ ले लँगे । किन्तु यह काम आप मुझ पर छोड़ व्यक्ति दीखते हैं किन्तु आप ऐसे नहीं हैं । समर्पण द । आप उनकी ओर गरपना ध्यान अ्रथवा प्रयत्न में, पूरण समर्परण में अब प्रापको यह कार्य करना न करें। आपको ऊंचा उठना है। आ्राप माधक (seekers) थे, तभो आपको यह मिला है, आपने लिए नहीं - वह तो समाप्त हो चुकी है । यह करना उन्नति की है, आप ऊंचे उठे हैं। यह किस लिए ? है दलदल से पूरे वाहर निकलने के लिए, घरती इसलिए कि आप खड़े हों । जैसे मैं आज आपके पर खड़े होकर परम पिता परमेश्व र की ऊंचे स्व र पूर्णं करेंगे, सपने (visions) सृजन करेंगे, उन्हें है, ग्रपने निजी हित, अपनी निजी उपलब्धि के निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt में स्तुति-गान करने के लिये । जो दलदल में फंसे हैं वे क्या संगीत दे सकते हैं ? क्या गान गा सकते नि: ! अर्थात पूर्णता । बहुत पहले से सहखार के हैं ? वया सुरक्षा दे सकते हैं ? क्या दूसरों की सहा- आनन्द को 'निरानन्द' कहते हैं । प्राचोन काल से इसे यता कर सकते हैं ? आपको उससे पूरा बाहर निरानन्द या निर्मला आानन्द कहा जाता है । बहुत निकलना है । उसके लिये सुदृढ़ बुद्धिमत्ता चाहिये, लोग इसे निर्मला -अरनल्द या निरानन्द कहते हैं स्थिर, प्रत्येक क्षण । उसके लिए अपने बांये पाश्वं (इड़ा नाड़ी) अ्रथवा दांये पाश्वं (पिंगला नाड़ी) को समय भी अनुभव करते हैं । यह आनन्द वह आानन्द दोष देने की आवश्यकता नहीं। बिल्कुल नहीं । आप है जो आप जब आ्पको विष दिया जाता है उस बस बाहर निकल आयें । इसे मजबूती से पकड़ ले । आपकी देखभाल करने के लिये परबरह्य आये हैं । इनको पकड़े रहें । मृत्यु को भी वापस जाना होगा। आनन्द है निरानन्द । फिर इन छोटी-छोटी बातों की क्या गिनती ? 'मल क्या है? यह, यह दलदल है । दलदल से मुक्त, यह आनन्द बह अआनन्द है जो आप सूली पर चढ़ते अक समय भी अनुभव करते हैं । अपनी मृत्यु-शब्या पर लेटे भी आप उस आनत्द का अनुभव करते हैं। वह अतः दूसरे चरण (phase) के लिये तैयार ब] प्रापकी मां का नाम वड़ा शक्तिशाली है । हो जाप्रो । माप मोर्च पर ( रागे) हैं मुझे बहुत आपको पता होना चाहिये यह अन्य सब नामों से कम समय चाहिये। किन्तु मूझ दुढ़ बुद्धिमत्ता ओर शव्तिशाली है । सबसे शक्तिशलीि मन्त्र है । किन्तु समर्पण वाले लोग चाहिये। द ढ़। जो एक क्षण आपको जानना चाहिये इसे कसे उच्चारण करना के लिये भी इधर या उधर विचलित न हों । अब चाहिये। अन्य किसी नाम जैसे नहीं। आप जानते हुम तेजी से प्रगति कर सकते हैं और लडाई लड़ने हैं भारत में जब लोग अपने गुरु का नाम लेते हैं तो के लिये आगे बढ़ सकते हैं। शायद अब अ्ाप असद- अपने कान पकड़ते हैं । इसका अर्थ है कि यह नाम प्रवृत्तियों (वाधाओं) की सूक्ष्मताओं से परिचत हो उच्चारण करते समय यदि मैं कोई भूल चूक कर गये हैं। कैसे वे अपनी शक्ति-जो निस्सन्देह रहा है, तो कृपया क्षमा करें । यह अ्रत्यन्त शक्ति सीमित है-परमात्मा के कार्य को नष्ट करने में शाली मन्त्र है। केवल आपको समर्परण की जरूरत उपयोग करती हैं। और कैसे आपको सचेत, सुसज्जित (equipped) शऔर समर्पित रहना है। यह बात में केवल आपसे बता सकती हैं । यह मैं आज मैंने कहा, "इंग्लंण्ड में अब डेजी-फृूलों में कैक्स्टन हाल में आने वाले सर्व-साधारण लोगों को सुगंध होती है ।" उस महिला को विश्वास नहीं नहीं बता सकती । उनमें से कुछ अधपके होते हैं, । कुछ विल्कुल नये, भोले-से, और कुछ बित्कुल । किन्तु यहां, आज जो प्राप मेरे सामने सुगंध नहीं होती और वे अरजीब गंध के फूल होते उपस्थित है, मैं आपसे बहुत स्पष्ट बताना चाहती T' मैंने कहा, "अच्छा, ये डेजो तुम लो, इनको हैं, जसा कृष्ण ने अजन से कहा था, "सर्व घर्माण सूघा तो वह परित्यन्य मामेकं शरणं ब्रज ।" इसके अलावा चकित रह गई ! आराश्चर्य ! कैसा सूक्ष्म ! आज वे दूसरा रास्ता नहीं है । 'ब्रज' माने जिसने दूस री है-समर्पण का बारूद । हुआ। वह बोली, "मैंने तो ऐसा कभी नहीं देखा इसके विपरीत मेरा तो अनुभव है डेज़ो में कोई बेंकार सुंघ कर देखो।" जब उसने उन्हें इंग्लेण्ड में सबसे अधिक सुगंध वाले फुल हैं । केवल बार जन्म लिया है । एक ठोस व्यवितत्व, एक ठोस पदार्थ की भांँति । जब आप ठोस होंगे, तभी आपका समर्पण होना चाहिये। जब आप पक्के, परिपक्व, नाम, जिसका अर्थ है निष्कलंक, अरर्थात निर्मल , मतलब विल्कुल मल (विकार) - शून्य, स्वच्छ । यह निर्मला योग ११ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt तभी प्रापको समर्पण करना चाहिये । लगते हैं। ऐसी स्थिति है। क्योंकि आप उतर कर प्रपने तत्व पर प्रा बेठे है। उसी भाति याप प्रत्येक यह ग्पापको दलदल से बाहर निकनने में के तत्व पर उतर कर स्थित हो जाते हैं। किन्तु सहायक होगा और तब यह उस महान कार्य में उस तत्व पर समर्पित हों, क्योंकि इन सबका मैं सहायक होगा । कोई नही समझता मां क्यों में री तत्व हैं। मैं तत्व हैं, तत्वमय है। अपने तत्व पर सहायता करने की कोशिश कर रही हैं। वे समझते स्थित रहें । हैं मा बड़ी उदार है । किन्तु ऐसी वात नहीं। मैं बहुत समझदारी रखती है। क्योंकि आप हो वह लोग हैं जो ईश्वरीय आनन्द] को इस पृथ्वी पर वाली । जो स्थूल रूप से बड़ो दिखती है, ऐसी वस्तू चरितार्थ (manifesting) करने में समर्थ है । के प्रति समर्परग हमारी समझ में प्रा जाता है प वह बासुरी हैं जो परमात्मा का संगीत गान करेगी । परमात्मा आपको उपयोग करंगे और पाते तो इतनी सूक्ष्म (भाव), इतनो सूक्ष्म (आकार) अपनी इच्छानुसार घुमायं-फिरायगे, कार्य जो इतनी गहन है, इतनी गतिशील, इतनी विश्व- करवायगे मैं आपको पूर्ण सूर्योग्य (perfect) व्यापी ओर इतनी सतातन है उसको समर्पणा बनाने के लिये यह सब कर रही है जिससे आप परसार्मा के परम सून्दर यन्त्र बन सक, परमात्मा के सामने समर्पण कर देते हैं जो एक पर्वत जैसा के सही यन्त्र बन सके । मूझे पता नहीं कि आप समझते हैं कि वह जोवन कितना मधुर र सुन्दर अत्याचार करने प्राता है, जो हिटलर जैसा दिखता होगा, समर्पण का जीवन, समझ के साथ, युक्ति है, जो भुठे, कपटी गुरु जंसा होता है। किन्तु अपने संगत । पूर्ण समर्पित, समस्त पोषण अर्जन करने वाला और उसे अ्रधिक ऊँचे उद्देश्य के लिये समर्पित करना. जिसे आ्रप [प्पनी प्रांखों से नहीं देख सकते, करने वाला जेसे कुछ पत्ते मूर्य की किरणा खींचते जिसे (कान से) मुन नहीं सकते, किन्तु जो वास्तव हैं, अपने में रंग ग्रहण करते हैं, ऊंचे घ्येय के लिये में विभक्त किये गये ( Split) एटम बम की भांति कि जिससे बाद में वे मानव द्वारा उपयोग में लाये इतना शक्तिशाली है । विभवत होने (split) से जा सके । इस पृथ्वी पर इस पद्धति के विपरीत पहले यह सब जगह रहता है । किन्तु सूक्ष्मता के कोई कार्य नहीं होता सब कुछ किसी उद्देश्य के वरम बिन्दु पर यह इतना गतिशील (dynamic) लिये होता है, किसो निःस्वार्थ विस्तोर्ण, एक महान होता है कि जब आप इसे (अपने सूक्ष्म स्वरूप गतिशील (dynamic) उद्देश्य के लिये घटित को) अपना लेते हैं तो यह ऊर्जा की ऐसी होता है । में कूइलिनी है। मैं सार है । एक स्थ ल दौखने किन्तु हम एक ऐसी वस्तु के प्रति समपण नहीं कर करने की हम नहीं सोच सकते । हम उस प्पादमी भीमकाय दीखता है, जो परवत की तरह हम पर मुन्दर सूक्ष्म पुरुष (ब्यक्तिस्व, being) को समर्पण गतिमान शक्ति में परिणत हो जाता है । क्योंकि प्रापका चित्त विश्व के सूक्ष्म स्वरूप में पैठ (पहुँच) चुका है, अतः श्रप गहरे और अधिक गहरे उतरते जाय । धरती जो जड़ के निचले सिरे को पानी के उद्गम-स्थल (source) पर ले जाती है, उस उद्गम स्थल से अभिन्न है । आपकी कुण्डलिनी आदि आप सागर बन जाते हैं, आप चन्द्रमा बन जाते हैं, याप सूर्य बन जाते हैं, [प्राप पृथ्वी बन जाते हैं, आप अरकाश (ether firmament) बन जाते हैं और आप अरत्मा बन ज। ते हैं। आप उन सबके लिये कार्य करते हैं । समस्त तारागररा और कूण्डलिनी से अभिन्न है और इसकी शक्ति परब्रह्म भूमंडल आप बन जाते हैं और उनका कार्य करने हैं । निमंला योग १२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt ये सब बातं आत्म-साक्षात्कार और परिपक्वता जैसे जहाज वनाया जाता है, समूद्र पर लाया जाता के बाद हो समझी जाती हैं। उससे पहले सम्भव है, उसका परीक्षण होता है और समुद्र में यात्रा नहीं। इसी कारण पिछले आठ साल ये सब बात के लिये उपयुक्तता देखी जाती है। अत: प्रब यह मैंने आपसे नहीं कहीं। मेरी आपके साथ बड़ी दुसरा चरण (phase) है जब आपको यात्रा पर प्रस्थान करना है, जब आपको जहाज का ओर आपको ऐसा दिखाती थी कि जेसे आप मुझ पर समूद्र का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया है यूरणं उपकार कर रहे हैं यद्यपि इसमें अरापका मुझ पर स्वतत्त्रता और बुद्धिमानी से अब आपको अपनी योत्रा करनी है, तूफान, अधी आदि से निर्भीक, क्योंकि अव आप [पूर्णं ज्ञान रखते हैं। आपका काम लूभानी और मीठी व्यवहार शैली थी। और मैं कोई उपकार नहीं है । इन सब विचारों को पार कर आप अपनी है पार पहुचना । 'आत्मा' बन गये हैं, तेयार उत्तरदायी (responsible) बनने के लिये, आपको जिस लिए बनाया गया वह भूमिका ग्रहण करने के लिए । आपको प्रनन्त आशो्वाद । * निर्मल वारणी * हमें इस शरीररूपी मन्दिर की देखभाल के लिए अपना प्रधान कर्तव्य समझक र सतत प्रयत्न करते हुए कार्यान्वित होना है पर यही आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। वह एक अत्यन्त छोटा- सा हिस्सा है अपनी जिन्दगी का, जैसे तमाम जगह स्वच्छ कर आप बाहर आ जाते हैं । यदि आपको कोई समस्या है तो उसे भूल जाइए। क्रमानुसार आपकी दशा में सुधार आ जाएगा मुख्य बात तो यह है कि अपनी आत्मा में रहें, संतुष्ट रहें। बारम्बार आग्रह न करे कि मां हमें ठीक कर। परन्तु कहना चाहिए "माँ हमें आरध्यात्मिक जीवन में स्थापित रखिए ।" आप स्वतः स्वेच्छानुरूप से आरोग्य हो जाएगे। ॐ माया के वर्गर चित्त की तैयारी नहीं होती। इसीलिए इस माया से डरने के बजाय उसे पहचानिए । तब वही आरापका मार्ग प्रकाशित करेगी । जैसे सूर्य को बादल ढक देते हैं और उसके दर्शन भी करा सकते हैं। माया मिथ्या है यह जानते ही बह अलग हट जाती है, और सू्रय का दर्शन हो जाता है सूय (ब्रह्म, सत्य) तो सदा सर्वेदा है ही, परन्तु वादल (माया) का काम क्या होता है ? बादलों की वजह से ही मन में सूर्य-दर्शन की तीव्र इच्छा पंदा होती है । फिर सूर्य क्षणभर के लिए चमकता है और छिप जाता है । इस कारण अखों को सूर्य देखने की ताकत और हिम्मत आरती छु] निर्मला योग १३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी सहजयोगियों के लिये भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्त्व दिल्ली २५-३-१६८५ आज नवरात्रि के शुभ अवसर पर सबको वधाई। दूसरी बात बिहार, पंजाब, हर जगह ये पाया जाता है कि हम अपने को कहलाते हैं कि हिन्दू या भारतीय हैं. लेकिन हम अपनी संस्कृति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। हम कुछ भी नहीं जानते कि हमारी जड़े क्या हैं ? किस जड़ के सहारे हम खड़े सहजयोग के प्रति जो उत्कण्ठा और आदर प्रेम प्रप लोगों में है, बो जरूर सराहनीय है, इसमें कोई शंका नहीं। क्योंकि जो हमने उत्तर हैं ? हिन्दुस्तान की स्थिति देखी है, वहाँ पर हमारी परम्परागत जो क्रुछ धारणाए हैं, उसी प्रकार शिक्षा प्रगालियाँ हैं- सब कुछ खोई हुई हैं। बहुत कुछ हम लोगों का अतीत मिट चुका है और हम लोग दूसरों की जड़ अपने अंदर बिटा कर हम पनप नहीं सकते और जो हमारी जड़े हैं वो इतनी महत्वपूर्ण हैं कि उसी से सारे संसार की जड़ें प्लावित होंगी । उसी से बो उच्च स्तर पर उठेगी । एक उधेड़-बुन में लगे हुए हैं कि नवीन वातावरण , 1 जो कि तीन सौ साल की गूलामी के बाद स्वतंत्रता पाने पर तैयार हुआ, बो एक बहुत विस्मयकारी जरू र है, लेकिन विध्वंसकारी भी है। माने कि जैसे कि हम अपने तत्त्वों से उखड़ से प्रजीव वाता- वरण में है, कि न इधर के हैं न उधर के हैं, प्औौर जब भी मैं अन्दर देखती है, तो बड़ा आश्चर्य गए हैं उनका सिचन नहीं हुआ ये बात जरूर है, होता है कि जो गहनतम विशेषताएं दक्षिण में हैं, लेकिन हमारा भी रुझान ज्यादा बाह्य की शर वो यहां एकदम खो सी गई हैं। इस अर हमें चिन्ता रहा-ये उत्तर हिन्दुस्तान पर एक तरह का शाप- करनी चाहिए श्और ध्यान देना चाहिये कि हमने ये सब क्यों खो दिया ? जो हमारा इतना महत्त्व- पुणं ऊचा था, उसे हमने क्यों त्याग दिया। लेकिन यहाँ का मानव ऐसा कुछ मूल-भूत सा है । उत्तर प्रदेश में मैं सोचती है कि सीताजी के हूँ । है. उससे तो मैं सिक्ख लोगों को ध्यादा मानती है, क्योंकि कुछ अपने घर्म के बारे में ऐसा कोई सिख अापको नहीं मिलेगा जो प्रपने धर्म के बारे में कूछ भी न जानता हो । लेकिन ऐसे मिल जाएंगे जो कूछ भी नहीं जानते और उसमें उनको कोई हर्ज भी नहीं है। इसका एक फ़ायदा साथ जो दूुध्यवहार किया गया, उसके फलस्वररूप नहीं तो कुछ न कुछ तो वो जानते हैं अब मेरे ख्याल से घोबियों का ही राज शुरू हो गया है। य्रोर बड़ी दूख की बात है कि जब आप उत्तर प्रदेश में सफ़र करते हैं तो देखते हैं कि लोगों में बड़ा उथलापन, अच्रुरापन अ्रश्रद्धा, अ्नास्था आदि इतने बुरे गुरण आरा गए हैं कि लगता नहीं है कि वहाँ कभी सहजयोग पनप सकता है । प्रापको हजारों हजारों हिन्दू निर्मला योग १४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt जरूर होता है कि जब घर्म बहुत ज्यादा संकलित पाओगे । जब जड़ में भी अप इतने उछ खल हैं, होता है, organised (संगठित ) होता है तो तो आप सूक्ष्म में केसे उतरेंगे ? उसकी श्र खलाए जरूर अटकाव रखती हैं, उससे आदमी अति पर जाकर aिnatic (घर्मान्धि) हो सकता है, यह एक बात है । लेकिन दूसरी बात कि हैं, उनको समझे बगेर हो बहुत लोग गलत काम हम बिलकुल प्रनभिज्ञ हैं अपने घर्म के बारे में । प्रपने करते हैं । जैसे कि हाथ में चूड़ी पहनना, एक छोटी विश्वासों के बारे में और अपनी घारगा प्ों के बारे सी चीज है । ये है, क्या चीज है आप जानते हैं ? में होने से-अंग्रे जों को तो कह सकते हैं, विशुद्धि के चक्र में स्त्री में कंकरण होना चाहिये । परदेसी लोगों को कह सकते हैं कि आपको यह सीखना है, आपको यह जानना है. अपने गहरे में उतरना है-लेकिन हिन्दुस्तानियों को क्या कहा पहले पहना नहीं था वहुत दिनों तक । लेकिन जाए ? वो तो अपने को अ ग्रेज ठहराए बेठे हैं ! समझ गई मैं, इसको पहने बगैर काम होगा नहीं, बो सोचते हैं कि हम तो वहत ऊंची पदवी पर इसलिये पहना । पहुँचे हुए हैं। हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषताएं जो पुरुष भो पहले कंकरण पहनते थे । मेरे नाक में ये (नथ), शुक्र का तारा है, ये मुझे पहनना पड़ा । हर चीज हमारी संस्कृति में बहुत नाप-तोल और समझ से बनाई गई है । ये कोई किसी धर्म ने नहीं बनाई। ये द्रष्टाओं ने बनाई हैं, बड़े-बड़े ऋषियों औ्रर मुनियों की बनाई गई चीजें हैं, इको हमें समझ लेना चाहिये। कितना उथला जीवन हम बिता रहे हैं ! इसकी ओर हमारी दृष्टि नहीं । इसलिये हमारी संवेदना, जो आरत्मा की है, वो गहन नहीं हो पाती। आत्मा की संवेदना गहन है, उथली नहीं है । जो मनुष्य उथलेपन से जीता है, वो गहनता को कैसे पाएगा ? हर चीज़ में, हर रहन-सहन में, बात-चीत में, ढंग में हमें पहले भारतीय होना चाहिये । जब तक हम भारतीय नहीं हैं, तब तक सहजयोग आप में बैठने वाला नहीं। क्योंकि जो परदेसी हैं वो हर समय ये कोशिश करते हैं कि हम भारतीय लिवास में कसे रहें, भारतीय तरीके से कैसे उठे-बैठें, बोलें । हर चीज वो ये देखते रहते हैं, और सोखते रहते हैं। कोशिश करते हैं । इस ओर ध्यान देना चाहिये कि इसे हमने क्यों खोया ? और खोने पर अब हमारा सम्बन्ध इससे कैसे हो सकता है ? हम किस तरह से अपने को गहनता में उतार सकते हैं ? एक तो धमं के प्रति हमारी बडी उदासीनता है । मैं कोई बाह्य के धर्म की बात नहीं कर रही हूं, ये आ्रप जानते हैं, पर अंदर का धरम होना बहुत सहजयोगी हमने foreign (परदेस) में देखे, उनकी जरूरी है अन्दर का धर्म, माने संतुलित जीवन जो ग्रास्था और dedication में वो सब चीजों में असर करता है। कोई कहेगा देखा, वो यहां के सह जयोगियों में नहीं है । यहा तो कि 'मां कपड़े पहनने से क्या होता है, बो तो जो है सहजयोगी सिर्फ बोमारी ठीक कराने आते हैं । जड़ वस्तु है । सूक्ष्म में ही सब कुछ है । अरे भाई ! तो हिन्दुस्तानियों का भारतीय होना बड़ा कठिन आप सूक्ष्म में जब जारोगे, तब जड़ को आप दिखाई दे रहा है, बजाय इसके कि परदेसियों का । प्राज ही हमारी बहू ने एक बात कही, कि 'जो (श्रद्धा, भक्ति) निर्मला योग १५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt एक तो बुद्धि में उनकी बड़ी शुद्धता है, और दूसरों का भी लिबास इस प्रकार रहे जिसमें कि बहुत चमक है । उस बुद्धि से वो समझते हैं कि जो मनुष्य सौष्ठवपूर्ण हो, असुस्दर न हो । लेकिन आज तक हम लोगों ने ये अरहंकार के सहारे कार्य उसमें वासनामय चोजे न हों । किये हैं, इनको छोड़ देना चाहिये, और सीधे सरल तरीके से जो भारतीयता हमेशा आत्मा की ओर निर्देश करती है, उसे स्वीकार करना चाहिये। वो सोप्ठवपूर्ण होना चाहिये । सोष्ठव का मतलब होता इसे समझते हैं बहुत अच्छी तरह से और गहनता है-'सु' से अता है-जिसमें शुभदायो चीज हो, से और जिस बीज़ को समझते हैं और मानते हैं, सबका मन पवित्रता से भर जाए। ऐसा स्त्री का उसको करते हैं। क्योंकि उनमें बड़ी समग्रता आ स्वरूप पूरुष का स्वरूप होना चाहिये, उनका गई है। लेकिन हम लोग-माँ के सामने एक बात, व्यवहार होना चाहिये । बाद में दूसरी बात-'उसमें क्या हज है, अगर इस त रह से रहा जाए, उस तरह से रहा जाए । जोवन शत्यत जीवन के हर व्यवहार में हमारा कि ले किन हम उनकी जो बुरी बातें हैं पूरी तरह से सीख लेते हैं, और उनकी अच्छी बात हैं, तो हम नहीं सीख पाते । और अपने को ये समझ करके कि हम एकदम से बड़े भारी आधुनिक बन गए हैं, इस आधुनिकता के तो शाप हैं उनसे आप वंचित नहीं रहेंगे। आज मैं अरापके सामने एक ही प्रस्ताव रख रही है, क्योंकि प्राप जानते हैं, हमने 'विश्व निमल घर्म की स्थापना की है । लेकिन विश्व घर्म जो है उसकी संस्कृति भारतीय है संस्कृति बलकुल, पूरी तरह से भारतीय है। उसमें कोई भी हम लवलेश नहीं करेंगे। जो भारत में प्राएं गे. उनको भारतीयों जैसे रहना पड़ेगा । क्योंकि ये संस्कृति हजारों बर्षों में भी भारतीयता आनी चाहिये । बच्चों में प्रादर, से बनाई गई है; सोच-समझ कर । इसमें जो आरस्था, भक्ति, नमरता सव होनी चाहिये ।०० गलतियाँ हैं, उसे ठीक करके करके, इसमें से जो कुछ भी दोष हैं, उसे निकाल करके, ये संस्कृति बनाई गई। अपने बच्चों की ओर नज़र करें । अरपने बच्चों अब आप महाराष्ट्र के बच्चे देखिये, सीधे बैठे रहते हैं। मैंने कभी नहीं देखा कि बच्चे इधर-उघर देख रहे हैं, ये कर रहे हैं, हंस रहे हैं, बोल रहे हैं-कभी नहीं। आप देखिये-शांति से, ध्यान में बैठे रहते हैं ? अ्रगर प अंग्रेज बच्चों को देखिये, तो इतना दौडते हैं कि उनको सबको बाहर रखा जाता है, उनकी मांं को भी बाहर रखा जाता है । । अनेक बर्षों से बिता और इस संस्कृति में एक ही बात निहित है कि अरपना चित्त हमेशा निरोध में रखो। अपने चित्त का निरोध । अपने चित्त को रोकिये । आप देख लीजिये दिल्ली शहर में कहीं भी जाइए, सबकी पअरंख इधर-उघर धूमती रहती है हर सहजयोग इतना गहरा हमारे अन्दर क्यों नहीं समय । किसी की आंख में । उतर रहा । हमें अपनी ओर दृष्टि करके देखना वासना भरी हुई है, जिसे lust श्रोर greed चाहिये कि हम क्या स्वयं गहन हैं ? हमारे अन्दर कहते हैं । तो हमें जान लेना चाहिये कि, क्या बात है ? शुद्धता नहीं पाइएगा गहनता आई हुई है ? भारतीय संस्कृति को जरूर अपनाना होगा, पूरी चित्त का निरोध तभी हो सकता है कि जब हम इस तरह से अ्रपना भी लिबास रखें, और तरह से, शर उसकी पुरी इज्जत करते हुए, निर्मला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt जेसे बड़ों का मान करना। हमने सुना कि कोई पण था। कैसे हो सकता है ? बाप रे बाप ! बो सहजयोगी हैं, अपनी माता को बहुत सताते हैं, तो जल्लाद थे, वो कैसे औरतों के प्रति आकर्षण और बड़े भारी सहजयोगो हैं। ये केसे हो सकता रखेंगे ? विष्णु को दूसरे गंदे स्वरूप में दिखा दिया। है ? सबके अधिकार होते हैं, सबका एक तरोका इस तरह हरेक देव-देवताओं को उन्होंने उतार के होता है । अगर मां कोई ऐसी शैतान हो, या भत- छोड़ा। ग्रस्त हो, तब तो समझ में आई बात । लेकिन किसी भी मां को सताना हमारी संस्क्ृति में मना अब, आप रोम में जाइये। वहाँ की संस्कृति देखिये, तो Romans (रोमन लोगों) के लिये तो लोग कहते हैं कि जहाँ गए, बहां ही सत्यानाश । राक्षसी प्रवृत्ति के लोग थे । Egypt (मिस्र) में दूसरी बात, अपने यहाँ कोई ग्रादमी कोई भी जाइये तो भारी भूत-विद्या । China (चीन) में मेहमान घर में श्राए, उसके लिये हम लोगों को जाइये तो थोड़ा सा आभास] हिन्दुस्तात का मिलता जान दे देनो चाहिये। इसके अनेक उदाहरण हैं। है पर जो भी उनकी संस्कृति है, वो हिन्दुस्तान जो हमने खोया हुआ है, पूरा की पूरा हमें सहज- की संस्कृति पर ही बसी हुई है । जो भी कुछ वो योग से लाना है । पन्नाधाय जैसी औरते, जिसने मानते हैं, वो हिन्दुस्तान से गई हुई सभ्यता पर बसी है उसी प्रकार [आप पअ्रगर] जापान में जाएं, लिये जिसने अपने बच्चे को त्याग दिया पश्मिनी वहाँ भी आप पाते हैं कि हिन्द्स्तान की संस्कृति जैसो स्त्री इतनी लावण्यपूर्ण थी । उन सब को याद पर बसी हुई चीजें, जैसे कि Zen (जेन) शादि हैं, है । भाई-बहनों से दूर भागना भी विलकुल मना है। ये अपने बच्चे को त्याग दिया। युत्रराज को बचाने के करिये जिन्होंने अ्रपनी जान देश की अरान में मिटा दी। उस संस्कृति को छोड़कर के आप किसी भी तरह से सहजयोग में पनप नहीं सकते। ये सब हिन्दुस्तान से गई हुई चोज हैं । संसार को हमें सभ्यता देनी है । हमारी संस्कृति में सारी सभ्यताएं इतनी सुन्दर हैं, सवको भुला करके और प्रव हम उस सभ्यता को ले रहे हैं मैंने सारो संसार की संस्कृतियाँ देख लों। एक तो जो अनादिकाल से संस्कृतियां चली प्रा रही जिसमें कोई भी सभ्य चोज नहीं है, प्रसभ्य है । हैं। Egypt (मिस्र) में कहिए, China (चीन) में कहिए, या अप चाहे तो Greece (यूनान) में कहिये, Italy (इटली) में कहिये, काफी पुरानो हों । सभ्यता ऐसी हो कि हमारे व्यक्तित्व से शुभ सभ्यताएं हैं । हजारों बष की सभ्यताएं हैं, और झरे। तभी संसार ठीक हो सकता है । ऐतिहासिक भी हैं । हमारी तो इतनी पुरानी है कि वो कुछ ऐतिहासिक है, कोई पोराणिक है और कोई तो कोई समझ हो नहीं पाता इतनी पुरानी प्रति गर्वं को दष्टि से देखें । अपने प्रति एक अभि- सभ्यता हमारी है । इतना ही नही कि हम सभ्य हो, हम सुसभ्य तो पहले एक भारतीय होने के नाते आप प्रपने मान रखे कि आप भारतीय है, प्राप के पास से संस्कृति की इतनी संपदा है । और कृपया कोशिश करे कि हमारे हरेक जोवन में हम भारतीयता के साथ रहें। [अप्रेजियत को त्याग दें । विलायती चोजों का इस्तेमाल करना वहुत गलत है । और इन सभी सभ्यताओ्रों ने विकृति को ही माना, और उसमें बहुक गए। उसमें दिखाया कि परशुराम जो थे, उन में श्रौरतों के प्रति वड़ा आक- निर्मला योग १७ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt आप जानते हैं आपकी माँ सब भारतीय चौज इस्तेमाल करती है । क्रीम तक वो भारतीय लगाएगी, साबुन भारतीय रहेगा, भारतीय होनी चाहिये, चाहें इग्लेंड में रहे, चाहे दुनिया में कहीं भी रहे। और मैं देखती है कि बाहर की कोई चीज लगाओ तो मेरे को तो सुहाती ही नहीं है । कोई क़ीम बाहर की लगाओ तो वो मेरे को सुहाएगी नहीं । मुझे सुहाता नहीं है । औ्रत हमेशा दबाई जाती है । बुरी तरह से उसको सताया जाता है ये बो कहते हैं मुसलमानों से सब चीज़ प्राया है । लेकिन मैं मुसलमान देशों में गई हूं, हैं । हां, मानते हैं वहां चार रियाद में रही बीवियाँ करते हैं, जो भी करते हैं, लेकिन औरत की कितनी इज्जत है वहाँ ! बहुत ख्याल करते हैं कि एक औरत अबला है, उसकी मदद करनी चाहिये। वहुत इज्जत करते हैं । हम न तो मुसल- मान, न हिन्दू, पता नहीं कहाँ के आ गए जो कि इसलिए जो यहां पर, विशेषकर North अररतों को इस तरह से सताते हैं । अपने इस देहली India (उत्तरी भारत) में आप देखते हैं कि लोग बहुत ज्यादा परदेसी चीजों की ओर, परदेसी सभ्यता की ओर, परदेसी व्यवहार की ओर इतने भुके जा रहे हैं। ये कहाँ पहुँचे हैं ? कम से कम अपनी सभ्यता तो सम्हालो । में सुनते हैं वहुत सी bride-burning शहर (वधुओं को जलाना) हो गई। मैं श्रज ये बात इसलिये कह रही है कि मैं परदेस में गई वहाँ मुरझसे लोग ये ही पूछते हैं कि ये क्या आपकी सभ्यता है, कि अराप अपने यहां की bride (वधु) को जला देते हैं !- परब 'कायदा सभ्यता के बाद घर्म का सवाल अाता है। घमे हमारे यहां संतुलन में है। जरूरत से ज्यादा बात पास करो, कोर्दा कराओो। क्या हम लोग प्रन्दर कायदा नहीं रख सकते ? औरत की हम इज्जत नहीं कर सकते ? औरत पर हम विगड़ते हैं। करना, जरूरत से ज्यादा किसी पर श्रतिशयता से करना, किसी पर हावी होना, ये गलत बात है । सबसे तो ज्यादा आश्चर्य की बात ये है कि औरत पर क्रोध करना पाप है [आपको क्या हमारे यहां उत्तर हिन्दुस्तान में औरतों पर बड़ा ज्यादा domination (आधिपत्य ) है औरतों को आपके बच्चों की मां है। औरतों को जरूर चाहिये बहुत बुरी तरह से हम लोग यहां पर सताते हैं । कि वो भी चरित्रवान हों, और वो भी पूजनीय कोई भौरतों की इज्जत ही नहीं हैं उत्तर हिन्दूस्तान रहें । अगर प्रोरत पूजनीय नहीं है, तो भी उस पर में शरत को जिस तरह से भी हो सके दबाया क्रोध करने से फायदा क्या ? लेकिन अगर पूरुष जाए, औरत के प्रति कोई भी श्रद्धा नहीं दिखाई पूजनीय नहीं है तो भी बो क्रोध कर सकता है, देती । फिर औरतें निकलती हैं एकदम यहां से जो और वो महादृष्ट हो और उसे और किसी स्त्री से तो एकदम तूफानमार-फिर वो जूते से ही बोलती लगाव होता तो भी वो दुष्टता कर सकता है । हैं । अ्धिकार है कि आ्रप औरत पर क्रोध करें ? वो ये भारतीय संस्कृति नहीं है । अगर आप इतनी उस चीज को दबा दीजिये तो ऐसी ही औरतें खोपड़ी पर बैठेंगी । मैं तो यू०पी० गई हैं जो पण्डितों के साथ बैठकर वाद-विवाद में देखती है कि वहाँ तो जो औरत वैश्या जैसी किया करती थीं। बो सब कुछ खो गया। या तो है, तो इस देश में इतनी बड़ी-बड़ी महान औरतें हो मानी जाती है, और या जो औरत अब कोई राक्षसो प्रकृति की स्त्री आ जाए उसके बहुत डंडा लेकर लेकर बैठी है। और सीधी-सरल अच्छी सामने आप भुक जाएंगे और या तो कोई बिलकुल निर्मला योग १८ ho 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt ही गिरी हुई औरत हो, तो उसके अागे आप दोड़ेंगे। बिलकुल नहीं है । South India (दक्षिण भारत) ये क्या पुरुषार्थ है ? में भी dowry (दहेज) का system (प्रथा) बहुत चल पड़ा है। उसकी बजह बह दिल्ली में जो आकर उनको सबको बापस करो, या ब रही औरतों की बात कि वो भी और बैठे हैं सब मद्रासी । प्रतों की देखा देखी उस तरह से रहने लग जाती उनको कहो कि मद्रासी बनो। दिल्ली में सीखे हैं हैं जिस तरफ औरतों की नजर जाती है। जैसे इतने रुपये dowry लेंगे, उतने रुपये dowry दमी लोग औरतों की ओर देखते हैं, उधर ही लेंगे ।" वड़ा आश्चर्य होता है ! हां ठीक है, लड़की उनकी नजर जाती है, तो जैसे ये औरतें जिस तरह के नाम से रुपया-पंसा जरूर कर देना चाहिये । का कपड़ा पहनती हैं, इस तरह से घूमती-फिरती है, लेकिन dowry लेने वाले होते ही दूसरे हैं, लड़की इस तरह से बातचीत करती हैं, इनका ढंग जेसा से थोड़े ही कोई संबन्ध रहता है ? बिलकुल छिछोरा है, उसी ढंग से औरतें भी अपने को बनाना शुरू कर देती हैं। भारतीय सभ्यता में ये कहीं भी नहीं है। हमेशा स्त्री का मान। 'राधा कृष्ण कहा जाता हैं । क्योंकि औरत में व्यक्तित्व ही नहीं है । उसको कृष्ण, राधा के बगेर कुछ भी नहीं हैं। मान लीजिये, दबा-दबा कर मार डाला। वो सोचवती है, भई जब कंस को मारना था तब भी उन्होंने राधा को याद किया। राधा की ही शक्ति से ही मारा है, वो क्या मार सकते थे मपने मामा को ? अगर मार इसी बहाने खुश हो जाए आदमी । मैं तो इसमें दोषी पुरुषों को समझूगी हर हालत में । क्योंकि जब पूरुष औरत को बढ़ावा दे, उसकी महानता बढ़ाए, तभी औरत बढ़ती है इस देश में । सकते तो जब पैदा हुए तभी मार डालते । हमारे यहाँ 'सीता-राम कहा जाता है । हमारी संस्कृति में सब चीजें इतनी सुन्दर-सुन्दर हैं कि तो इसका ये कभी भी मतलब नहीं कि औरत उसको अगर बारीकी से देखा जाए मनुष्य प्रादमी के सामने बोले श्ररत को सम्मान के साथ अपने पति के साथ रहना चाहिये। उसकी हर इच्छा को पूर्ण करना चाहिये, उसमें कुछ नहीं जाता । (धरतो) जेसी है, उसके पास अनंत शक्ति है । धरा में कहाँ-कहाँ छेद हों, उसका अनुभव कि इसमें जैसे उसे पति को प्लावित करना चाहिये । लेकिन ये खराबी है, वो खराबी है। कोई ये बात अगर आप हर समय घरा को चूसते रहें. तो एक नहीं लिखता है कि कितनी बढ़ी भारी बैंक है । दिन अन्दर से ज्वालामुखी निकल अराता है, ये भी लिखता ये है इसमें इघर से छेद है, उधर से छेद हैं। समझ लेना चाहिये । । इसका मतलब नहीं। समझ सकता है कि इसकी सुन्दरता क्या है। ले किन ज्यादातर भारतीय संस्कृति के बारे औरत धरा में लिखने वाले ऐसे लिखते हैं, जैसे कि वेंक वो बनाए इन्होंने ही हैं । हो सकता है उसमें एक दो बातें ठीक करनी भी हों, एक प्राध इंधर- उधर की, लेकिन एक-एक चौज़ पर आप देखिये कि "स्वार्थ" शब्द देखिये । 'स्व' का अर्थ पाना स्वार्थ है । परम स्वार्थ वही है कि जब आपने परम को पा लिया । बाहर जाकर शर्म आती है यह सोच-सोचकर कि जिस तरह के किस्से यहां के लोगों की तरफ फेले । पर ये चीजें महाराष्ट्र में क्यों नहीं होतीं ? महाराष्ट्र में तो dowry system ( दहेज प्रथा) निमंला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt और मैं देख ती हैं कि जो परदेश में भी लोग हैं, वो जब हमारी औरतों को देखते हैं कि हम उनके जैसे कपड़े पहन के घुमती हैं, उनकी जेसे बात-चीत करती हैं, उनको जरा भी इज्जत तहीं करते । और जो औरत अपनी भारतीयता पर खड़ी है, उसकी वड़ी इज्जत होती है ! अपनी इज्जत में खड़े हो ।' हम लोग इतने हैरान हो गए ! हमारी लड़कियाँ और हम तो इतने है रान हो गए कि सञ्ची ये बात है ! इसका निरूपण हम तभी कर सकते हैं जब हम इसे बाहर जाकर देखें । और जब तक हम इस देश में हैं हम नहीं समझ पाते कि हरेक कितनी सुन्दर है और अच्छी बनाई गई है । में, में जब एक बार जापान गई थी १६६० बहुत साल पहले की बात है, तो हर जगह जाएं तो बड़ा हमारा मान-पान हो । रौर जब हम है उसे अलंकार पहन ना चाहिये । विवाहित स्त्री शिकामा नाम के एक बन्दरगाह पर पहुँचे, तो हज़ारों लोगों की भीड़ वहाँ पर थी। तो मैने चाहिये। खासकर के उस पर सारे घर की दारम- ये कीन प्राए हैं ? सब लोग ऋहाँ से बए दार होती है, उसके चक्र ठीक रहने चाहिएं उनको स्त्री के लिए अलंकार आवश्यक बताया गया के लिये बताया गया है कि उसको [अलंकार पहतना कहा, हैं ? तो कहने लगे 'आपको देखने। 'मुझे क्यों ?' कहने लगे, क्योंकि उनके पास ्ववर पहुँची कपड़े पहनना चाहिये, कायदे से रहना चाहिए । कि बिलकुल पूरी भारतीय स्त्री यहाँ पर श्राई हुई है। और उसको देखने से पता हो जाएगा कि बुद्ध की माँ कैसी थी। और सब वहाँ खड़े तरस गए देखने के लिए एक भारतीय स्त्री को । वहाँ सारी सिन्धी कोई भी स्त्री भारत में अपने को आकर्षक वनाने के औरतें आधे कपड़े पहनकर घुमती है। बो तरस गए देखने के लिये कि एक भारतीय नारी कैसी होती है, ०ccasion (अवसर) होता है, उसके अनुसार किस तरह से कपड़े पहनती है, कैसे उस के बाल हैं, वो अपने को इसलिये सजाती है, और इसलिये क्या है । हम लोग जहाँ भी जाएं, हमें वो लोग कुछ उपहार दे दे । एक जगह बरसात हो रही थी, तो हम अन्दर चले गए । वहाँ उन्होंने हमको कुछ उपहार दे दिये। तो जो translate ([अ्नुवाद) कर रहे थे, तो उनसे हमने कहा, 'ये हम को हर जगह उपहार क्यों देते हैं ?' टेक्सी में बैठिये तो टैक्सी नेंगी, यहाँ का पहनेगी, बहाँ का पहनेंगो, best वाला गाड़ी रोक कर कुछ उपहार देगा कहने लगे, क्योंकि आप Royal family ( सम्मानित परिवार) के हैं । हमने कहा Royal family के, जब हमें लेने आए गी, तो सब पहनकर आए गी ये कैसे कहा ? ये तो बात नहीं है। 'नहीं, कहने तो मैंने कहा कि ये सब airport पर पहन कर क्यों लगे- 'देखिये प्राप बाल कसे बनाती हैं। हमारे यहां आई । तो कहने लगीं कि देवी लग-माने देवी के Royal family के लोग ही इस तरह के बाल बनाते मंदिर में जाना है, देवी को देखना है, तो क्या ऐसे हैं। और बाकी के जो हैं hair dresser के जाते हैं। ये तो royal पना की निशानी है कि हैं, कितने सुख में हैं । ? सुशोभित रखना चाहिये। उस तरह से कारयदे से लेकिन अपने को विशेष श्रकर्षक बनाना वर्गरह, ये सब चीजे भारतीय संस्कृति की नहीं हैं। लिये नही पहनती है, पर हरेक समय-समय पर जो कप डे अच्छे से पहनती है, कि जो वो अवसर है, वो औ्र भी सुन्दर हो जाए । जैसे कि महाराष्ट्र में आप देखिये कि अगर अब हमारी पूजा हो रही है, तो नाक की नथ पह- सबसे अच्छी) साड़ी जो होगी वो पहन कर आएंगी। यहां तक कि airport (हवाई अ्ड़) पर ही देखेंगे ? ये दिखाना चाहिये कि हम कितने खुश पास निर्मला योग २० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt लेकिन शहरी जो हमारी औरतें हैं, महाराष्ट्र नाश करके छोड़ेगी । स्त्री के अदर पूरी इज्जत में तो भी अपने, खासकर दिल्ली से संबंध अगर ओर मान आप दोजिये । बच्चों को भी । हो गया है तो उनके नखरे ही नहीं मिलते । तो दिल्ली से बहुत लोग प्रभावित हैं । इसलिये मैं सोचती है कि आप लोगों को पूरा समझाया जाए वच्चे हैं, आप विशेष हैं, शआाप सहजयोगी हैं। आप बचचों से भी आप मान से बात करिये । "आप] हैं कि भारतीय संस्कृति की एक-एक चीज को आप समझ उसके बारे में पढ़े । का मान होना चाहिये आप सहजयोगियों जेसे बेठिये ।" ये अगर आप ने बच्चो को समझाने लग जाए तो बच्चे कहां । आप बड़ों जैसे बैंठिये । स्त्री की कुल्पना, ये समझना चाहिये कि हरेक से कहां पहुँच सकते हैं। लेकिन ये बात बहुत कम स्त्री एक गृहलक्ष्मी है। घर में उसका मान रखना, पाई जाती है । ज्यादातर हम बच्चों को भिड़कते ही रहते हैं, उनके अन्दर कोई इज्जत की भावना नहीं आतो। जब उनके अन्दर इज्जत को भावना उनको इज्जत से रखना बहुत जरूरी है । दूस री बड़ी मुझे हैरानी होती है कि उत्तरनहीं प्राती है, तो बच्चे उसी तरह से बर्ताव करते हिन्दुस्तान में लोग अपनी पत्नी को इतना नहीं है जसे अरापके नौकर लोग बर्ताव करें । मानते जितना अपनी लड़कियों को मानते हैं । समझ में नहीं आता, लड़की को मानना और बीबी की नहीं मानना, ये बड़ी अ्रजीब सी बात लगती है। लड़की तो कल यहां है, उसको सभ्भाल के वो करना चाहिये । ब्याह होकर चली जाएगो और बोबी तो ज़िन्दगी सारे कुटुम्ब को सम्भाल के, सब को प्यार दे कर के लिये आपकी अपनी है। ये कुछ समझ में के। अपनी न बात करें। जिस तरह से औरतों की बात आती नहीं है। मैं तो कहती हूं नोकरों तक को हम लोगों को एक इज्जत से, बकायदा जैसे कुटुम्ब पद्धति हमारे विलकुल मुसलमानी पद्धति है। भर भी आ्रदत होती है, मैंने देखा कि, "हमें तो ये चीज पसंद नहीं। ये सफ़ाई नहीं हुई। घर में ये नहीं उसी प्रकार अपने पति को कुछ नहीं मानना हुआ। ये ठीक होना चाहिये । आप करिये । ये प्रौर लड़के को सब कुछ मानना, ये भी इधर ज्यादा बोमारी है। लड़का बहुत वड़ी चीज़ है । इधर उत्तर हिन्दुस्तान में लड़का बहुत बड़ी चीज है । किसी के ये आपका शौक है । लड़का न हो गया कि व्या उसके घर में हाथी आ गया ! वो बाद में उठकर मां को लात हो मारे, कोई हर्जा नहीं है। उसका रात-दिन मान ही का शौक होना चाहिये औरत को और दूसरों के करे, कोई हज्जा नहीं, पर लड़का हो गया ! उसके लिये करने की शक्ति होनी चाहिये । लेकिन इसका बाद असल मिठाई बांटो जाएगी । आपका काम है। ओर खुश होइये । और तोन बार खराब हो तो चार बार ठीक करिये । क्योंकि खाना बनाने का शौक होना चाहिये, हर चीज मतलब नहीं कि आदमी खोपड़ी पर चढ़ कर बेठ जाए। वो इस चीज की इज्जत करे प्रोर सोचे... शुरू से ही स्त्री के प्रति ऐसी निन्दनीय बृति रखने से औरत हमेशा असुरक्षित (insecure) इंग्लेण्ड में हर आादमी बर्तन माँजता है हर आदमी । सिवाय हमारे घर के । ओर बो तो अगर आप कह दें कि अ्राप बर्तन मांजिए तो गए, कल रहती है । जो औरत insecure रहती है वो या तो आप को नचा के छोड़ देगी, या आपका सर्व- निर्मला योग २१ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt वर्तन ही टूट जाएंगे। वो जरूर मांजंगे, जब गुस्सा चढ़े तो। लेकिन अगर वो बर्तन मांजने बैठ जाएं, तो गए काम से । अपने जितने गांव-शहर गंदे रहते हैं इसलिये कि आदमी अपने यहां कोई सफाई न हीं क रते। इंग्लैण्ड में देखिये हर Saturday- Sunday (शनिवार- रविवार) सब आदमी आपस में competition (स्पर्धा) लगाते हैं कि तेरा अरच्छा कि मेरा अच्छा । सब एक special dress (खास पोशाक) पहनकर सब खड़े हो जाते हैं, और अपनी सफाई करते हैं । सबसे बड़ा अहंकार ये है कि "मैं पुरुष हूँ।" पुरुष-श्री कृष्ण के सिवाय, मैं तो किसी को नहीं देख पाती। जो करने वाला है, वही है, और भोगने वाले भी वही हैं। पुरुष और प्रकृति जो है सो है, हम अपने को बेकार ही पूरुष समझ करके बड़ा भारी अहंकार अपने अंदर लिये हुए हैं। हम सब मां के वेटे हैं। इस अहंकार से आप सब लोग छुट्टी पाइए। बहुत ज्यादा है ! अभी भी, सहजयोग में भी बहुत है । सहजयोगियों को कोई हज नहीं है। क्योंकि हमें बदलना है हम दूसरे हैं । हमें कोई हर्ज नहीं है कि हम ये करें । पहले जमाने में हमारी संस्कृति सही थी कि बाहर की सारी सफाई आदमी लोग करते थे, औरतें नहीं। और बही चीज आज भी हमारे अंदर आ जाए तो आाप देखिये कि शुरूआत और फिर यहां तक कि वीबी को मारना, हो जाएगी कि हम बाहर की सफाई और अंदर पीटना। बीबी को मारना, पीटना, ये अधर्म है । फिर बीबी पीटे तो बिलकुल अधर्म हो जाता है। हाँ, होती हैं, ऐसी भी हमने देखी हैं। की सफाई हमारे देश की शुरू हो जाए, तो गंदगी कहाँ रहेगी ? लेकिन उससे बड़े फायदे हो जाते हैं, जब आदमी लोग सफाई करना शुरू कर देते हैं । जसे ले किन समझदारी की बात ये है, हम दोनों रथ के दो पहिये हैं, एक left (बाएं) में हैं, एक ight लंडन पँचे आ्प, तो हमने देखा यहाँ बर्तन धोने (दाएं) में है । कोई सा भी पहिया अगर छोटा हो जोए, तो पहिया गोल-गोल घूमेगा । दोनों एक साथ एक जैसे होने चाहिये, पर दोनों एक जगह भाई ये कैसे किया, यहाँ एक से एक चीजें बनी हुई नहीं हैं, एक Ieft में है, एक right में । right (दायाँ) जो है, उसका कार्य ये है कि वो दिशा दे, बाह्य की तरफ देखे, बाह्य की चीज सम्भाले, घर के बाहर सफाई करे । जैसे वहां करते हैं लोग के, kitchen (रसोई घर) साफ करने इन्तजामात बड़े जबरदस्त हैं। तो हमने कहा कि के, हैं। इससे इसको रगड़ दो तो पांच मिनट में निकल जाएगा। वो कढ़ाई है, उसमें ये लगा दो तो दो मिनट में सफाई हो जाती है। हमने कहा, हम लोग तो रगड़ते-रगड़ते मर जाएं, ये निकलती नहीं बाहर की सफाई आदमियों को करना आना ही कढ़ाई, ये है क्या ? पता हुआ कि आदमियों को चाहिये, सहयोगियों को । क्योंकि वो बाहर की सफाई करनी पड़ती है न ! तो उन्होंने सारे सफाई नहीं करते हैं, इसीलिये अपने वाहर के scientists (बंज्ञानिकों) को बुलाया कि "बाबा अंगन गंदे रहते हैं, अंदर की सब सफाई रहती है। रे ! पता लगाओ इस को निकालने का इंतजाम । श्ररत जो भाड़ मारे, सब करे, घर के अंदर, और नहीं तो हमको कढ़ाई मांजनी पडेगी।" कभी-कभी आदमी जो है वो विलकुल नहीं देखता कि बाहर बतन अगर आदमी मांजे तो कुछ फायदा ही हो सफाई है या नहीं। औरत तो बाहर जा नहीं जाएगा और जब अ्रप काम करते हैं, उनके साथ, सकती, और आदमी करने वाला नहीं है, इसीलिये तो हाथ बंटाने से ये पता होता है कि ये काम निर्मला योग २२ Mho she/ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt इसलिये जो-जो वहां जा रहे हैं, कृपया सब सोख कर जाएं । नहीं होने वाला । कितना कठिन है, और कितनी मुश्किल का उसके बगर आपका वहीं मान काम है । तो प्रपने प्रति घारणाएं बना लेने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। औ्और मझे तो ये आरश्चर्य होता है कि सब सहजयोगिनी जो हैं, भारतीय भी हैं, तो आनन्द का स्रोत आत्मा है । और उस आनन्द को हमसे कहती हैं, "माँ हमारी शादी बाहर ही करा हमने पाया, और वो हमारे रंग-रग में से बहना दो अच्छा है।" तो मैंने कहा क्यों ? कहने लगे, चाहिये, हमारे जीवन से बहना चाहिये, हमारे हर "ग्रब हमें सहजयोगिनी होकर डंडे नहीं खाने ।" आप सोच लीजिये । बड़ी मुश्किल से ये परदेसी चाहिये ? लड़कियों को भुलावा दे देकर मैं यहां शादी कराती हैं। टिक जाएं तो नसीब समझ लो ! तो ये चीज हम लोग इस पर ले आते हैं कि व्यवहार से बहुना चाहिये। उसके लिये क्या करना पहले, सबसे पहले, हमें देना आना चाहिये । जो आदमी दे नहीं सकता, वो आनन्द का मजा नहीं उठा सकता, क्योंकि जब तक चीज बहेगी नहीं तो केसा मजा आएगा ? जसे एक मेंढक एक छोटे से ले किन वो चले जाते हैं परदेस, फिर सीख जाते जाते हैं वहाँ। हमने देखा कि......खुब वर्तन माँज रहा है ! तो हमने कहा कि भाई करसे क्या मीख तालाब में, जिसका पानी नहीं बहता है, काई में गए? कहने लगे, "यहां सभी सीख जाते हैं !" रहता है। उसी प्रकार अगर हम अपने जीवन को खूब पतोले उठा रहा था हमारे साथ ! प्रोर यहां अगर आप कहते, तो बिगड़ता, और कहता कि. पर-जंसे कि एक मेंढक के शरीर पर भी काई "नहीं, मुझ से नहीं होने वाली ये सब बेकार की जैसे जम जाती है, काई जैसा रंग-ऐसा ही हमारे चीज़ ।" वहाँ मेरे साथ पतीले उठा रहा था। मैंने कहा, "उन लोगों को करने दो, तुम क्यों उठा रहे हो ?" कहने लगे, "मुझे सीखना जो है।" जो आ्ादमी वहां ये सब जानता नहीं उसे वहां 'निठल्लू कहते हैं । 1 बिताएं, तो बिता सकते हैं । और हमारे भी शरीर जीवन का रंग काई जेैसा हो जाएगा। खूब लेकिन जीवन का रस अगर हमें पाना है, और उसका मजा उठाना है, और अात्मा का आनन्द ' देखना है, तो हमें चाहिये कि हम अपना दिल खोल द, और बहाएं इस आनन्द को। उन लोगों से ये चीज जरूर हमें सीखनो है । आप जानते हैं कि आपकी माँ की उम्र अ्रव नसीब से भई हमारे यहाँ ये प्रश्न नहीं, क्योंकि तरेसठ (६३) साल की हो गई हैं, और हिन्दुस्तान हमें तीन servants (नौकर) allowed (मिले) के हिसाब से चौंसठ ( ६४) साल के हो गए। ले किन हैं । तो भगवान की कृपा से हमारे घर वाले तो कितनी मेहनत करती है आपकी माँ। कितना सफर । करीबन हर तीसरे दिन सफर, दूसरे दिन सफर ।। उसके अलावा पहाड़ों जेसी कुण्डलिनी करते हैं। उनको जरा लगता है कि भई देखो सब उठाना, बड़ी मेहनत...I फिर, सारे news paper लोग कर रहे हैं और हम नहीं कर रहे हैं, वो क्या (अरखबार) वाले, कि कुछ हैं, कि कुछ हैं । 'पूरी' समय मेहनत चलती है । हमारे साथ एक देवीजी कभी नहीं कर सकते । हमने ही उनको खराब कर रखा है । लेकिन तो भी मैं कहती हैं कि कोशिश कहेंगे। कोशिश करते हैं । निमंला योग २३ का 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt ्ाई, हमारे से पाँच सात छोटी हैं, और मोदी हमने कहा, क्या कर रहे हो, तीस आदमी हैं हम साहब पूरी समय कहें कि ये बुढ़िया देखो, विचारी लोग कहां आप करोगे ? "मां आप आरओ न, एक कितनी मेहनत कर रही है। मैंने कहा, और मेरी बार मान जाग्रो। हमें बड़ी खुशो होगी।" मुझे बड़ा बात नहीं कर रहे हो तुम ? मैं उनसे पाँच साल force (आग्रह) किया बड़ी हैं। उनके लिए तो ये बुढिया बेचारी कितना हो ? तीस आदमियों का breakfast (नाश्ते) कैसे चल रही है, ये बुढ़िया बेचारी कितना कर रही बनाओगी है। मैंने कहा, मैं कौन हैं। मुझको देखो । वो तो बना हुआहै, ऐसा । सब लोगों ने मिल कर रात सोचते ही नहीं कि मैं बुढ़िया हूँ। । मैंने कहा, क्या कर रही तुम ?...... सुबह छः बजे पहुँचे, तो मंडप को तीन बजे से खाना बनाया। और 'इतनी खुश ! और इतना बढ़िया उन्होंने breakfast (नाश्ता) -क्योंकि अ्रभी तक देने की शक्ति बहुत ज्यादा खिलाया कि मुझे भूलता ही नहीं है और पता है, उसकी क्षमता है। के अन्दर है. तब तक आप कभी भी बूढ़े नहीं हो इन्तजामात किये । और इतनी खुश जैसे वड़ा सकते । इसलिए देना सोखिए। दिल खोल दीजिए, भारी कोई बड़ा सभारंभ हो गया हो। तब आ्रानन्द देखिए । कैसा बहेगा । । जब तक देने की शक्ति अरप नहीं कहां से benches लाकर लगाए, कही से ये हमारा देश है। ये हमारी सभ्यता हैं । इसको मत छोड़िए इसको फिर से पनपाना है, सूक्ष्म में दिल खोल देना चाहिए, कहना चाहिए ले किन ये ही हमारी सभ्यता का तत्व है, कि दो । इसको बढ़ावा देना है। हमारा संगीत, हुमारी जितने-जितने अपने यहां लोग हो गए हैं, बड़े-बड़ कुछ भी है बड़ा गहन है । जिन के आख्यान आपने सुने, चाहे हरिহचन्द्र हैं, उसको समभझिए क्या चीज है। उसकी गहनता में जिनकी आपने बात सुनी होती, ये जो कुछ भी आपने पढ़ा है, उसमें ऐसे लोगों की महानता बताई है, जो दिल खोल करके देते थे । और वही [आपको भी देना है । । कलाए, हमारा जो घुसें । मैं चाहंगी आपसे जितना भी बन पड़े, हमारे संगीत के बारे में, कला के बारे में जानने को प्रयत्न करें जो अपनी कला को नहीं जानते, अपने , संगीत को नहीं जानते, अपनी भारत माता को इस संस्कृति की महत्ता जितनी भी गाई जाए वो कम है । लेकिन सिर्फ महत्ता से नहीं है, वो नहीं जानते, वो इस माता को केसे प्यार कर सकते हमारे अन्दर बिधनी चाहिए। हमारे प्रन्दर उसका है ? इसीलिए तो हम झगड़ेबाजी करते हैं । प्रवेश होना चाहिए। उसके अंग-अंग में हमें पूरा मजा आना चाहिए । और हमें उससे खुश होना चाहिए । आज सिर्फ आपसे बातचीत करनी थी, सो कर ली। अब मैं चाहती है कि अगले समय में शाऊं तो श्राप लोग ये समझ कि हमारे क्या-क्या त्योहार होते हैं, इन त्योहारों में क्या-क्या होता है । अभी भी जहां ये संस्कृति है, वहां वड़ा मजा आता है। एक बार हम गए थे राहूरी के पास । वहां के बहुत तनख्वाह नहीं। छोटे-छोटे घर, जिनमें कि एक वहुत सालों से चली आ रही हैं। छोटी-छोटी बातें छोटी सी वो आई । कहने लगी, "मां, कल आप हैं जैसे केला खाया, उसके बाद चना खाओ या लोग हमारे यहां breakfast (नाश्ते) पर आइए।" कोई चीज खाओ, उस के बाद पानी पिअर । धूप में से इंजीनियर थे वेचारे हमारे यहां छोटी-छोटी दवाइयां हैं जो कि । कोई खास घुप निर्मला योग २४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt शिवाजी का चरित्र माना जाता है कि बहुत आ्राए, आप पानी मत पियो। आजकल लोग सब हिन्दुस्तान में बीमार हो जाते हैं । वजह क्या है ? ऊचा था । शिवाजी की न जाने कितनी ही बातें ये छोटे-छोटे नियम जीवन के जो बनाए हुए हैं, आपको बतानी चाहिए, लेकिन उनके चरित्र में मां समझदारी के, वो हम नहीं मानते हैं ।इसमें क्या का बहुत बड़ा स्थान है। लेकिन एक बार सुनते हैं, हो गया ?" हो गया क्या, आप अस्पताल में जाएंगे, कि कल्याण के सूबेदार की बहु कोई उनके सरदार औ्र क्या होएगा ? अब जैसे अंगूर दिया इन्होने पकड़ कर लाए । वो बहुत लावण्यवती थी । ओर समझ लीजिए। अब पहले हमने अरंगुर खा लिया । उसके बाद हम limca (जल पेय) नहीं पी सकते ले आए, उसका सारा माल, उसके सारे जेवरात, अब तो पी लिया, हमने कहा चलो अब क्या कर। और ये और वो, काफ़ी लोगों को पकड़ कर लाए । हमारी बात और है । लेकिन आप लोगों को नहीं करना। फल खाने के बाद पानी पी आइसक्रीम खाने के बाद कॉफी पी ली, या कॉफी थी। तो उन्होंने कहा कि आप अपना नकाब के बाद आइसकीम खा लिया-तब तो गए ! से उसका बहुत खजाना (धन) था, सब कुछ उठा कर शरर जब शिवाजी दरबार में बेठे, उनके सामने पेश किया, तो वो घुंट तो नहीं, पर नकाब पहने हुई लिया, हटाइये । जब उन्होंने नकाब हटाया तो बड़े काव्यमय थे । बजाये इसके कि कहें कि "आप की जो हमारी बहन हैं, उन्होंने कहा कि '"अगर हमारी मां आपकी जितनी खूबसूरत होती, तो हम भी आपके उसके प्रांखि ये छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन छोटी-छोटी चीजे, हरेक, जिसे कहते हैं कि हरेक अणु-परमाणु में जो हमारा जोवन बड़ा ही सूचड़, जितने े आंसू निकल सुव्यवस्थित और ऐसा बनाया गया है जिससे कि आए। उसके बाद उनकी जितनो भी चीजें थीं, जो मनुष्य हमेशा स्वस्थ रहे, उसकी तन्दूरुस्ती स्वस्थ जेवरात थे, हर चोज, उनके हर आदमी को रहे, उसका मन स्वस्थ रहे, उसका चित्त स्वस्थ रहे, बहुत और जिससे अन्त में वो परमात्मा को प्राप्त करे । नाराज हुए। ये हमारे देश का चरित्र है। ऐसा सुन्दर सारा बनाया गया है। लेकिन उसको समझ लेना चाहिए । असू निकल खुबसूरत होते बाइज्जत कल्याण तक पहुँचाया । और 1 राणा प्रताप एक बार जरा झुक गए, क्योंकि बहुत परेशानी में थे । उनकी लड़की के लिए घास और जिम्ह आदमी में चरित्र ही नहीं है, वो की रोटी बनाई, वो तक एक बिडाल ( बिल्ली) उसको देख करके...कहा, राणा देने वाली उसको सजाने वाली, उसको पूरी तरह प्रताप जैसा आज कोई आदमी है अपकी politics से नावित करने वाली जो शक्ति है, वो है आपकी (राजनीति) में ? सब चोर बैठे हैं ।...तो जब वो सभ्यता । सभ्यता से ही आप जानते हैं कि "ये उठाकर ले गई, बिल्ली तो] राशा प्रताप के मन में आ्राया, और वो चिट्रो लिखने बैठे शाह जहां को, कि मैं आपकी शरणागत हैं। जैसे उनकी बोबी ने पढ़ा, आज की हमारी भट में हम चाहेंगे कि आप उन्होंने भाला उठाया और अपनी लड़की को मारने अपनी भारतोय संस्कृति जो है उससको सर-आंखों के लिए दौड़ीं । तो कहने लगे "ये क्या कर रही पर लगाकर मान्य करें, उसे स्वीकार करें, अऔर हो !" कहने लगीं, "इसको ही मार डालती है, उसमें हो आप देखियेगा कि आपका चरित्र ऊंचा जिसकी वजह से तूम ये सोच रहे हो।" ये हमारी आदमी किस काम का ? लेकिन चरित्र को बढ़ावा उठाकर ले गया। सत्य है ये हमें शोभा नहीं देता । देश की औरतों का चिरित्र है । उठता जाएगा । निर्मला योग २५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt नजर अएं। मेरी ये ही इच्छा है कि जो अन्दर है, सब मेरे बच्चे पा लें । सब कूछ । और उसी प्रकार दें जैसे मैं दे रही है। उसी मन से, उसी शुद्ध भावना से, उसी प्रेम के साथ सब को ये बांटते रहें । यही मैं चाहती है । और आजकल ये नमुने दिखाई दे रहे हैं ! ये कहां से पैदा हुए यहाँ पता नहीं ! ले किन सहज- योगियों की औरतें इस तरह की होनी चाहिए, और मर्द भी इसी तरह के होने चाहिए । मेरे कुछ संस्कृति में कहा जाता है कि परस्त्री जो है, वो मां समान है । और परकन्या बेटी समान है। तो हम जब शादी होकर यू०पी० में गए, तो लोग कहने लगे ये तो असंभव है। मैंने हैं। ग्रधिकतर तो हम ऐसे ही लोग देख ते हैं। यहां यु०पी० में क्या विशेषता है कि यहाँ असभव बात मामले में मत सनिए। वो तो general (सामान्य है ? आपकी नजर इतनी खराब कैसे है ? हमने तो जिन्दगी भर ऐसे ही लोग देखे हैं। ये कहां से ये चीनी नहीं खा रहे। फिर नमक नहीं खाओर, लोग लोग आ गए? तो हुआ कि नवाब साहब उनकी १६५ .. तो और क्या होगा। उनके सामने ideal (आदर्श) वहत है। उनको आप चीनी दीजिए । लेकिन ऐसी ही ऐसे गंदे हैं वहाँ, तो और क्या होगा ? कोई अच्छे ideal (आरदर्श) तो दिखाई नहीं देते । कोई भी परस्त्री । मां समान है। ...चीनी पानी में घोलक र दीजिए, जिससे कि वो दाँत में न लगे । पानी में घोलकर दी हुई चीनी कहा, हमने तो बहुत ऐसे लोग देखे बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। डॉक्टरों का इस चीज चलाते हैं कि अब चीनी मत खाओ, सब लोग कोई थे, बीवियां थी और पता नहीं क्या-क्या. नमक नहीं खा रहे । भई जिसको जिस चीज की जरूरत है, बो खाओ। बच्चों को चोनी की जरूरत 1. चीनी न दीजिए, जो दाँत में वो खाएं, या इस तरह की । पर चीनी जो कि पेट में चली जाए । जसे लंडन में एक राजा साहब थे, उन्होंने सात बीवियों को मार डाला, तो वहां और क्या होगा ? आजकल वहां औरतें मार रही हैं आदमियों को । दूसरे ये, कि गमियों में 'कोकम नाम का एक फल प्राता है, महाराष्ट्र में मिले गा उसको भिगो लिया रात को। उसके दूसरे दिन चाहे तो थोड़ा उबाल लिया । उसका रस निकाल कर उसमें चीनी डाल दीजिए। चीनी डाल करके उसको रख लोजिए दीजिए । तो प्रपनी संस्कृति जो है, बहुत महत्वपूर्ण है। और उस महत्वपूर्ण संस्कृति को समझना, उसकी गहनता को समझना, हरेक सहजयोगी का परम कर्तव्य है जब आप लोग उसे समझगे, उस पर कुछ लिखेंगे, तभी तो न हमारे परदेश के सहजयोगी भी उसको आत्मसात करंगे वो लोग छोटी-छोटी बातें देखते रहते हैं, और सारा वो जोड़ते रहते हैं के पत्ते को, छोटी-छोटी जो पत्तियाँ होती हैं, उनको अपने अन्दर में, मैं देखती है। लेकिन हम लोग ये उबाल लीजिए। कोमल पत्तियां जिनको कहना नहीं सोखते, की बजह से कोई चीज हम नहीं सीख पाते। । दिन भर बच्चे को वो पीने को अगर जॉन्डिस जैसी बीमारी हो जाए तो मूली चाहिए कि अभी जो निकली हैं । उनको उबाल कर के, उसमें खड़ी शक्कर मिला करके, या चीनौ जो वाइब्रेटिड हो, मिला करके बच्चे को दौजिए। ओर कोई पानी न दें। एक दिन के अन्दर बच्चे का जॉन्डिस ठीक हो सकता है । क्योंकि न इधर के न उधर के रहने आशा है अगली बार मैं आऊ, तो अराप लोग आनन्द से आत्मा का प्रकाश सब अर फलाते हुए निर्मला योग २६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt और गर्मियों में अगर मूलो का रस दे सके तो हैं परांठे तो विलकुल बन्द कर दीजिए प्राप बहुत ही अच्छा है। मूली खूब खाने को दीजिए लोग। बच्चों को । बच्चों के लिए मूली बहुत फायदे की चीज है । और उनको ऐसी-ऐसी चीजें दोजिए जिससे कि उन पर बहुत ज्यादा fat (चर्बी) न पहुँचे । हमारे यहां बहुत ज्यादा तली हुई चीज बच्चों को दे देते हैं, कुछ सोचते ही नहीं । तली हुई है, compulsory। हर आदमी को अन्दर बनियान चीज बिलकुल नहीं देना । और दूसरा यहांी पर एक पहनना है [और औरतों को अन्दर से शमीज Liv 52 भी अच्छी दबा मिलती है। यो अगर शुरू पहननी है, अगर साड़ी पहनती हैं तो नहीं, पर कर दें तो एक साल के अन्दर वो भी चल सकती अगर ये पहन रही हैं। और ऊपर से चुनरी लेनो है । लेकिन एक चीज बनती है, जिसको मराठी में है। जरूरी है। नहीं तो सारे सीने में अआपको दर्द कहते हैं 'एरोण्या', छोटी-छोटी काली-काली। होगा। और फिर प्राप आएंगे कि माँ मेरे सीने में नागपुर में बहुत होती है, इसलिए नागपुर में किसी दर्द है। सब लोगों को बनियान पहनना है क्योंकि को liver (जिंगर) की trouble (बोमारी) नहीं प्राप जानते हैं, एक छोटी सी चीज है, कि आपको होती। दूसरा सहजयोग में compulsory (ग्रनिवाय) जब पसीना आता है तो वो पसीना सूख जाता है, और वदन में ठंडक लग जाती है । इसलिए ऐसी चोज होनी चाहिए जो पसीने को खींच ले । बहुत लोगों को ऐसे दर्द होता है । बेकार मुझे परेशान करते हैं । (प्रनिवार्य) है, और प्रौरतों को भी | ओर जब जाड़ा पड़े तो सोंठ थोड़ी सी पीस करके, उसमें चीनी मिला करके, सवेरे दें वच्चों को । जाड़ा पड़ने पर । इसलिए सबको compulsory दूसरी चीज कि गन्ने का रस, जितना बच्चा पी सके उतनी चीज अच्छी है उसके लिए । उसमें अदरक, नींबू डाल करके। य सब फायदा करती हैं। हम भी कालेज में पढ़ते थे, हम भी सलवार कुरता पहनते पे, जब थे, हम हमेशा शर्मीज पहनते थे । स्वाल ही नहीं उठता था, पहले तो समझा जाता था कि बदतमीजी है वरगैर शर्मीज के, चुन्नी और बच्चों को ज्यादातर "ये कर रे, बो कर के कोई लड़की घमे तो । श्रर दूसरी बात ये भी रे" ऐसे नहीं कहना चाहिए। "सवेरे उठो, जल्दी होती थी कि जब तक उस तरह से पहना न जाए, । इससे जब तक समझ लीजिए एक-प्राध कपड़े के साथ इनकी, जिसे तिल्ली कहते हैं, spleen खराब नहीं हो शमीज, तो पहना नहीं जाता था। शर्मीज हो जाती है, और इसी से blood cancer हो पहनने का रिवाज पहले था । अब पता नहीं सब जाता है । Hectic life जो lead करता है, उसे लोग ऐसे fashionable हो गए कि समझ चलो, ये करो" ऐसे नहीं कहना चाहिुए में blood cancer होता है । Hectic नहीं बच्चों नहीं आता । वो किसलिए बनाया गया था ? को बनाना चाहिए । बच्चों को बहुत शांति पूर्वक फायदे के लिए कि आपके पुसीने को absorb कुछ रखना चाहिए। (सोख) कर लेगा । अगर आप साड़ी पहने तो ठीक है । साड़ी आपको पूड़ी खाना, परठि खाना, ये सब गन्दी चीजें निर्मला योग २७ the 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt दुनिया भर की बीमारियाँ मैं देखती है इसीसे होती । टी०बो० तक हो सकता है । इससे इतने कमजोर ढकेगी, पर साड़ी भी आपको लपेट कर रखना चाहिए। जब आप बाहर जाते हैं साड़ी हमेशा इस तरह से पहनना चाहिए जिससे बदन में आपके... इस के सबके फायदे हैं न । शारीरिक हैं। और दूसरे लज्जा स्वरूप हैं। हैं आपके Lungs (फेफड़े) हो जाते हैं । औ्र पता नहीं डॉक्टर लोग जो बताना है वो बताते नहीं शायद । कोई बताने से सूनेगा थोडे ही, आजकल फैशन जो हो गया है । या तो फिर फैशन करो प्रोर अस्पतालों बहुत फायदा होता है अगर आप अ्पने सीने में रहो। को ढक लं, तो जो हवा आपकी है, खासकर यहाँ की हवा के लिए तो बहुत ही जरूरी है । इतना पसीना आता है, सारे आपके सीने में वो जकड़ जाता है, फिर आापको बीमारियाँ हो जाती हैं। है। पूरा बदन ढक कर रहना चाहिए., जब भी । वयोकि नहीं तो तकलीफ हो जाती वाहर जाइए * निर्मल वाणी * यदि आप यह दढ निश्चय कर लें कि हमें अपने स्वयं का सामना करनेा ही है कि हम देखें कि हम कौन (मैं कौन हैं, क्या है ?) हैं तो तत्काल सब दुर्गण एवं त्रुटियां दूर भाग जायेंगी । कू] "में" ही वह है जिसने बार-बार जगत के उद्धार के लिए जन्म लिया है किन्तु इस समय "मैं" अपने पूर्ण रूप में एवं सभी शक्तियों के साथ ग्राई हूं। अब मेरा अवतरण केवल मोक्ष देने के लिए ही नहीं अपितू उद्धार के साथ ही स्वर्गादिक राज्य भी देना है जिसमें आनन्द, वात्सल्य एवं प्राशिप ही है । 'मैं' क की जमने के लिये सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे चारों ओर आस-पास का जो वातावरण है, उससे जूझने की कोई जरूरत नहीं है । आप अपने से ही भगर ठीक हो जायें, अर्थात् पअन्दर से ही आप स्थिर हो जायें, तो बाहर की जितनी भी चीजें हैं, घीरे-धीरे अपने आप स्थिर हो जायेंगी । जो कुछ अन्दर है वही बाहर है, अगर अन्दर से अव्यवस्थित हो तो बाहर जितना भी झझावात हो तो उसका जबर्दस्त अरसर रहेगा। अगर आप अन्दर से बिल्कुल शान्त हैं, तो बाहर कुछ भी हो रहा हो, उसका असर नहीं होगा। उल्टा जो बाहर है, वो भी शान्त हो जाएगा । सबसे बड़ी चीज़ है अपने अापको जमा लेना चाहिए । $ॐ के ॐ निर्मला योग २८ whee 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt (द्वितीय कवर पृष्ठ का शेष) रक्षाकरी, राक्ष घनी, परमेश्वरी । नित्ययौवना, पुण्यलभ्या, शुभकरी ॥११॥॥ जय ।॥ जय आदिशक्तिः, पराशक्ति:, गुरूमूर्तिः । योगदा, शोभना-सुलभागतिः ॥ १२ ॥ जय ॥ जय अचिन्त्यरूपा, सत् । त्रिगुणात्मिका चंडिका, प्राणरूपिणी ।१३॥॥ जय ॥ चिदानंदरूपिणी का जय सुखाराध्या, जय भवानी । लज्जा, महतो, क्षिप्रप्रसादिनी ।॥ १४॥। जय । परमाणु, पाशहंत्री, निराधारा वीरमाता, गविता, धर्माधारा ॥१५ा जय ।॥ स्वस्था, स्वभावमधुरा, भगवती । धीरसम्माचता, परमोदारा शाइ्वती ।। १६॥। जय ।॥। शरमात्मिका, छी सदाशिव, लीलाविनोदिनी । विश्वग्रासा, विश्वगर्भा, विश्वसाक्षिणी ।। १७॥। जय ।। लोकातीता, पुष्टिः, पावनाकृतिः | चंद्रनिभा, रविप्रख्या, चितशक्तिः ॥१८॥ जय ॥ विमला, वरदा, विजया, विलासिनी । वण्दारु जनवत्सला, सहजयोगदायिनी ॥१६॥। जय ।॥ जय श्री माता जी -सो० एल० पटेल निमला योग तृतोय कवर 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999 81 ১ निर्मल वाणी * मैं जो कुछ पसन्द करती है वह मेरो धून है परम्तु इसके बावजूद भी मैंने पपने अ्ापको स्वाभा- विक बना लिया है, क्योंकि मुझे अपके सम्मुख इस प्रकार से होना चाहिए कि प्रापको समझ आ्र जाये कि सिद्धान्त क्या है ? मेरे लिए कोई सिद्धां्त नही है। मैं सिद्धान्त सुजन करती है। क्योंकि घाप मेरे वच्चे है इसलिए मै आापके लिए कार्य करती है और छोटी-छोटी बीजें प्रापको सिखाती है। সापको स्मरस रखना चाहिए कि जब प्राप सोगीं से सहजयोग के सम्बन्ध में बात कर रहें हों तो वे समय आपको देखते रहेगे मीर यह समभने का अयास करेंगे कि इसमें पापकी पंठ कितनी है ? जंसा मैं प्रापको समझती है वैसा हो आप भी उनको ससभने का प्रयास कर । सहजयोग को सामूहिकता लोग समझ नही पाते है, इसलिए बहुत गड़बड होता है । मपको सामूहिकता में धाना पड़ेगा । कि मापके वाइग्रेंशन्स (चंतन्य लहरियां) ठीक इसलिए बनाये गये हैं कि दूसरों को देना होगा। इसलिए नहीं बनाये गये कि अाप प्रपने ही घर बनाते रहिए। फिर बही दीप हो सकता है किल्कुल बुभ जाए। ये दीप सामूहिकता में हो जल सकता है। एक दिन हपते में कम-से-बाम सेन्टर में प्रा] करके प्रापको देखता पड़ेगा है या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दोष आप ही पषनी रुकावट है। और कोई आपकी रूकावट नहीं करं सकता। कोई भी दूनिया का परादमी आप पर तंथ्र-मंत्र प्रादि कोई चीज़ नहीं डाल सकता प्र पहचाने रहे कि कोन आदमी कैसी बातं करता है न कोई दुष्टता आ गयी है। इसमें कोई न कोई खराबी है । उसमें साथ देने की कोई जरूरत नही है । फिर चाहे वो प्रापका पति ही हो, चा हे यापकी बो पल्नो हो। उसमें लडाई झगड़ा करने की कोई जरू रत्त नहीं । वो अपने अाप ही ठोक हो जाएगा। आप हो अपने साथ अगर स्वराबी त । कर । आप खुद हो समझ लगे कि इस धादमी में कोई 1. Edited e Published by Sh. S. C Rai, 43. Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Gani, New Delhi-110002, One Issue Rs. 7.00, Annual Subscription Rs. 30.00 Foreign ( By Airmail £7 514]