folofell ula द्विमासिक वर्ष ४ अ्रक २२ नवम्बर-दिसम्बर १६८५ प अ + + ी क घे क ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनो. मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निर्मला देवो नमो नमः ॥ ी निर्मला विद्या निर्मला विद्या एक विशिष्ट शक्ति है जिसके आमंत्रित कीजिये द्वारा सम्पूर्ण देवी कार्य सम्पन्न होता है। यहां तक युक्ति (तकनोक) आपके समक्ष उपस्थित होकर कि क्षमायापन भी इसी के द्वारा सम्पन्न होता है । अनुचर समान आज्ञापालन को तत्पर होगी। आपको जब आ्राप कहते हैं (प्रार्थना करते हैं) "मां हमें क्षमा चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। यह घटना प्रदान करें ।" वह तकनीक जिसके द्वारा मैं क्षमा विश्व भर में कहीं भी, किसी भी गवर्नमेंट में करती है वह भी निर्मला विद्या की परिधि में श्राता वटित नहीं होती है । आप केवल उस गवन्नमेन्ट को है । वह तकनीक जिसके द्वारा मैं तुम सबसे प्रेम करती है निमला विद्या है द्वारा मंत्र स्वयं प्रत्यक्ष रूप में उ.द्रा पित होकर सृष्टि में इस तकनीक (युक्ति) को निर्मल विद्या के स्पष्टीकरण करते हैं और प्रभावशाली (effective) नाम से जाना जाता है (बिस्यात है) । इस तकनीक होते हैं, वह निर्मला विद्या हो है । निमल शब्द की में कुशलता प्राप्त करने हेतु तल्लीनता से समर्पण व्युत्पत्ति एवं व्याख्या सन्धि विच्छिद द्वारा होती है। करना होता है। जहां कुशलता ( mastery) प्राप्त यथा नि:- मल= निर्मल अरथात् जिसमें किसी प्रकार हृुई यह तल्लीनता से आज्ञा पालन करने को उद्यत का भी मैल (मल) न हो, यानि कि विशुद्ध । 'विद्या रहती है। यह श्री गरेश शक्ति है, यह सरलता, सह- का अर्थ है ज्ञान। अतः 'निर्मल विद्या' विशुद्धतम जता एवं निर्मलतायुक्त शक्ति है । यही सौजन्यता ज्ञान है। दूसरे शब्दों में इसको तकनीकी ज्ञात है। यह सौजन्यमयी सरलता ही [सर्वशक्ति सम्पन्न (यूक्ति संगत ज्ञान) की संज्ञा भी दी जाती है। यह है। जब सरलता वागडोर सम्भाल लेती है और लगाव अथवा मोह उत्पन्न करता है। शक्ति राग स्वयं सब प्रबन्ध करती है तो इस प्रकार से सक्रिय की जन्मदात्री भी है जिसमें भिन्न-२ प्रकार की आकृतियों का प्रादुर्भाव होता सक्रिय होकर अशुद्ध अनंच्छिक वस्तुओं की ओर आकर्षित होती है और अपनो शक्ति से ओोत प्रोत कर देती है। यह एक युक्ति ( technique) है. जा बहुत में यह विशद्धि तक अती है। वहां [आप स्वयं श्रप- पवित्र है जिसकी विस्तृत व्याख्या मैं आपके समक्ष न कर पा सकंगी । क्योंकि आपका संयंत्र सक्रिय नहीं है। अथवा आपके पास यह (विशेष यत्र) संयंत्र है ही नहीं। वह सम्पूर्ण वस्तु अभिजात्य सम्बोधित करें और सम्पूर्ण वस्तु सक्रिय (गतिमान ) हो उठती है । विश्व भर में पूर्णारूप से समस्त । वह तकनी क जिसके होकर गतिमान होती है। है। फलस्वरूप यह यह निरन्तर उच्चावस्था में प्रगति करती तब इसे पराशक्ति कहा जाता है। शक्ति से भी परे यह मध्यमा का रूप घारण कर लेती है। वामाग राधा बन जाते हैं। इसका कारण है प्रापकी अप- राधी प्रकृति की भावना। और आप कटु वचन कह कर दुव्यवहार करते हैं । वामांग की विशुद्धि श्री गणोश शक्ति की बाधा (ब्याधि, पकड़) है। श्रीगणेश सर्वाधिक मृद्ल हैं । जब आप श्री गणेशजी के दर्शन लाभ करते हैं अर विचार करते हैं तो प्रापको कौतुक दूष्टिगोचर होगा-यह सरल प्रशस्त स्त्रोत शेष तूतोय कवर पर) परन्तु आ्रप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह कितना रहस्यमय है। निर्मंला विद्यা के उच्चारण मात्र से ही आप उस महान शक्ति का आह्वान कर निमंला योग द्वितीय कव र त ० श० सम्पादकीय बिन पावन की राह है, बिन बस्ती का देस। बिना पिड का पुरुष है, कहैं कबीर संदेस ॥ -श्री कबीर दास जी सन्त कवि श्री कबीर दास जी निर्विकल स्थिति का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि वास्तविकता निराकार में ही है । यह देश बिना बस्ती का है, मनुष्य विना पिण्ड (शरीर) का है और मार्ग बिना साधन का है । वास्तव में हम सहजयोगियों को निराकार का ही चिन्तन साकार के माध्यम से करना चाहिए । यही साध्य है और यही अभीष्ट भी । निमंला योग १ निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर श्री प्रानन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी सम्पादक मण्डल प्रतिनिधि कनाडा : लोरी एवं कैरी हायनेक 1540, टेलर वे वैस्ट बेन्कूवर, B.C. VIS 1N4 श्रीमती क्रिस्टाइन पंट नीया २७०, जे स्ट्रोट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाकं-११२०१ यू .एस.ए. यू ,के. श्री गेविन द्वाउन श्री एम. बो. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी), बेम्बई-४०००६२ भारत ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. पृष्ठ इस अंक में १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन ४. सहस्रोर चक्र (परमपूज्य माताजो के अंग्रजी भाषरण का अनुवाद) ५. महामानव (The Superman) ६. निर्मल विद्या श २ ... १५. २७ द्वितीय कवर निमंना योग २ परमपूज्य श्री माताजों का प्रवचन नई दिल्ली १७ फरवरी, १६८१ प्रादर से और स्नेह के साथ जो ढकोसला बना ले, कोई उसको पेसे में बेचे, कोई आपने मेरा स्वागत किया है यह उसको कोई भर तरीके से बेचे. कुछ उसका रूप सब देख करके मेरा हृदय अ्रत्यन्त प्रेम से भर आया । यह भक्ति अ्रोर और वो जो तत्व है उसका नाम है ब्ह्मतत्व | परमेश्वर को पाने की महान इच्छा इसी ब्रह्मतत्व से सारी सृष्टि की रचना हुई। इस कहां देखने की मिलती है ? आजकल ब्रह्मतत्व को पाना हो जीवन का लक्ष्य है। और वना लीजिए, लेकिन जो तत्व है वह सनातन है के इस कलियुग में इस तरह के लोगों को देख करके दुनिया भर के काम आप करते रहे हैं और करते हमारे जेैसे एक माँ का हृदय किंतना प्रानन्दित हो रहेंगे, अनेक जन्मों में भी किए हैं प्रौर प्रतेक जन्मों सकता है आप जान नहीं सकते। आजकल घोर कलि- में करते रहे हैं और करते रहेंगे। आनेक जन्मों में युग है, घोर कलियुग। इससे बड़ा कलियुग कभी भी आपने भक्ति की है और मांगा है कि हमें यह ब्रह्म नहीं आया और न आएगा| कलियुग की विशेषता तत्व प्राप्त हो. यह आज की भक्ति का फल नहीं है. कि हर चीज के मामले में भ्रान्ति ही भ्रान्ति इन्सान को । हर चीज भ्रान्तिमय है । इन्सान इतना बुरा नहीं है जितनी कि यह भ्रान्ति बुरी है। हर चीज में, अंग्रेजी में जिसे curious (अजीव) कहते हैं, हर चीज में जिसे समझ में नहीं आता कि यह बात सही है कि वो वात सही है, कोई कहता है यह करो और कोई कहता है वो करो, कोई कहता है इस रास्ते जाओ भाई, तो कोई कहता है उस रास्ते जाओ । तो कौन से रास्ते जाएं ? हर मामले में भ्रान्ति है । है है और आश्चर्य की बात तो यह है कि इसी घोर कलियुग में ही यह मिलने वाला है । लेकिन वहुत साफ तरीके से लिखा है कि इसी घोर कलियूग में ही जब इन्सान दलदल में फंस जायेगा तभी यह चीज मिलने की है। इसका मतलब कभी भी यह नहीं कि जो पहले हो चुके हैं, जो व्रधष्टा थे, जो साधुसन्त हो गए हैं, जो गुरु हो गए हैं, जो सतगुरु हो गए हैं प्रोर भी हमारे बेद और पूराणों में लिखा है पुराश आप पढे तो उसमें जो कुछ वह झुछ है । एक शब्द भी झूठ नहीं है। [और भगडा लेकर वो लोग बैठते हैं पौर बातें करते हैं कि वेद में यह लिखा है और पुराण में यह लिखा है, तो दोनों का मेल कसे बैठे । यह झगड़े बहुत होते हैं. और कोई सनातन बनता है और कोई कुछ बनता पर सबसे ज्यादा धर्म के मामले में भ्रान्ति है। पर जो सनातन है, जो अनादि है, वो क भी भी नष्ट नहीं हो सकता, कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वो अनन्त है। वो नष्ट नहीं हो सकता । उसका स्वरूप कोई कुछ बना ले, कोई कुछ बना है और मुझे हंसी आती है। इसी के बारे में थोडी ले, कोई कुछ ढकोसला बना ले, और कोई सी आज चर्चा करूंगी क्योंकि यह बड़ा झगड़ा कुछ निमंला योग सहो है । पहले अ्रमीबा थे। अरमोबा] से होते ह आ्राज हमें मनुष्य बन गए। और यह जो हम मनुष्य बने हैं, इसके दस धर्म हैं । और वह दस घर्म हमारे हमारे देश में चल रहा है । होते तरह की शक्तियां विराजती हमारे अन्दर तोन हैं। पहली जो शक्ति है मुख्यतः जो शक्ति है वो है अन्दर बसते हैं । इसको हम जोड़ के नहीं रखते । इच्छाशक्ति । अगर परमात्मा की इच्छा ही नहीं होती तो संसार क्यों बनाते। उनकी इच्छाशक्ति जाते हैं । इसका यह मतलब के अन्दर से ही बाकी की शक्तियां निकली हैं। पठन कर या कुछ करें या lecture (भाषण) सुन । इसी शक्ति को हमारे सहजयोग भ।षा में महाकाली इसका मतलब है धमं में आप स्थित रहें । जैसे कि की शक्ति कहते हैं। इसी शक्ति की वजह से आज आप भी भक्ति में रस ले रहे हैं। क्योंकि अन्दर जैसे कि एक कार्बन का है कि उसके अन्दर चार इच्छा ही होती है कि भक्ति में चलें, भक्ति का मजा वेलेंसी होती हैं। उसी प्रकार मानव का धरम है । आ रहा है, भक्ति में रहें, परमात्मा को याद करे, उनको बूलाएं । यह मानव हो करता है । जानवर तो नहीं करता जानवर तो भक्ति नहीं करता। । संजोया नहीं तो हम धमंच्युत हो जाते हैं, गिर नहीं है कि आप कोई सोने का घर्म है कि उसका रंग खराब नहीं होता। उसके अन्दर दस घम हैं। मानव के प्रन्दर घम के प्रति जाग्रति भी है। यह दस घमं कोई नाम देने लायक चीज नहीं हैं। अब यह दस धम को जब हमने बिठा लिया, इस धम से ही हमारा evolution (उत्क्रान्ति) हुप्रा उत्क्रान्ति हुई है, हम श्रमीबा उसके साथ हमारे अन्दर एक दूसरी शक्ति है बने । धम हमारे अन्दर बदलत गए। जब इन्सान वो है इच्छा शक्ति को क्रिया में लाने वाली के धर्म में हम आ गए तो हम इन्सान कहलाने क्रियान्वित करने वाली शक्ति, क्रियाश क्ति । उसे लगे जैसे कि जानवर को आप किसी गंदी जगह पर बिठा दोजिए उसको गंदगो नहीं आती। लेकिन हैं। मैं कोई हिन्दू घर्म सिखा रही हैं या मुसलमान इन्सान को गंदगी का मालूम है । वो इन्सान जो है मानव ही करता है। सहजयोग भाषा में मां सरस्वती की शक्ति कहते उसका घम जानवर से ऊंचा है । घर्म सिखा रही हैं या सिख घर्म सिखा रहो है, वो मेरे समझ में नहीं आई । जो बात मैं सिखा रही हैं वो तत्व की सिखा रही है, वो सब धर्म में एक है। अब जो दशा आने वाली है वह धर्म से परे है। इसलिए कोई भी यह न सोचे कि मैं उन्हीं मां काली अ्रब आपको कोई घर्म का पालन नहीं करना पड़गा आप हो ही जाएगे घर्म में, धर्मातीत जिसे गुरग हमारे लगता तो उसको आप क्रियाशक्ति कह लीजिए। अन्दर हैं। जैसे कि इच्छाशक्ति से हमारे अन्दर गुण आता है वो तमोगुण, और जो क्रियाशक्ति से अता है वो रजोगुण, और हमारे धम की शक्ति और जो तीसरी शक्ति है वो हमारे आअन्दर से हमारे अन्दर जो गुण उत्पन्न होता है वो है सत्वगुरण । इस प्रकार हमारे अन्दर तीन गुण हैं और इन्हीं तीनों गुणों के हेर-फेर से जिसे अंग्रेजी घम का मतलब यह नहीं कि हम इस धम के हैं या में permutations and combinations से ही उस धर्म के हैं लेकिन अन्दरूनी घर्म जो हम धारण अनेक जातियां तेयार हुई हैं । यह क्या है ? आप करते हैं । यानि अब हम जानवर नहीं, ये तो बात अपने को हिन्दू कहें, ईसाई कहें, मुसलमान कहें, प्र मां सरस्वती की बात कर रही है जिसे कि हिन्दू धर्म में लोग मानते हैं । यदि प्रच्छा नहीं कहते हैं । और इसी तरह से यह तोन ले किन वो महासरस्वती की शक्ति है। विराजती है । परमात्मा ने हमारे [अन्दर दी हुई है। इसी शक्ति से हम धर्म को धारण करते हैं । निमंला योग ४ कोई फर्क नहीं पड़ता । सब एक चीज है । [अब परमात्मा का साक्षात्कार है, क्योंकि आत्मा को देखिए इन्सान में भी कितनी चीजें एक जैसी हैं। जाने बगैर आप परमात्मा को नहीं जान सकते । सब हंसते एक जैसे हैं, रोत एक जैसे हैं, सिर्फ भाषा का फर्क है । इस बजह से हम समझ नहीं पात कि जब तक आपने आत्मा को जाना नहीं परमात्मा सारी सृष्टि चराचर में जो एक हो ब्रह्म तत्त्व बहुता को जान नहीं सकत । लेकिन मैं प्रगर कह कि अ्राप है, वो ही ब्रह्मतत्व जो, उसकी ही भाषा अनेक हो आत्मा को जानिए, प्रात्मा को जानिए, तो आप भी जाती हैं, माने प्याले अलग हों लेकिन उसके अन्दर रट, अ्ाप प्रात्मा को जानिए, अआत्मा को जानिए । जो अमृत है वो सब जगह एक ही है। अब झगड़ा रटने से नहीं जान सकते । उसको पाना होगा । लोग यह करते हैं कि प्याले ठीक हैं कि अरमृत ठोक यह घटना धटित होनी होगी। है, झगड़ा यह है । असल में दोनों ही ठोक हैं। कुछ कुछ ऐसे भी प्याले भगवान बना देते हैं कि उसमें पूरा का पूरा अमृत प्राकर बेठ जाता है। आ्ाखिर ची जो से होती है । पहली तो व्यवस्था यह हुई कि अमृत भी तो प्याले में हो आएगा। [अगर प्यालाह नहीं होगा तो अमृत कसे आएगा । यही भगड़े की कर, होम करें, हवन करें । निराकार ही को सोच बात है कि लोग प्याला और अरमृत को अलग रहे थे इस वक्त । उन्होंने साकार की बात तब नहीं समझते हैं। यानि यही व्रह्म तत्व को जानने के लिए करी। उस वक्त उन्होंने निराकार की बात ही ही वेद लिखे गए । वेद तब लिखे गए । 'वेद 'विद' करी कि हम निराकार को जान । होम करें, हवन से होता है। 'विद शब्द का मतलब हैं जानना । और अगर सारे वेद पढ़ करके भी आापने प्रपने को जागति हो जाए। इसके फलस्वरूप संसार में अव- नहीं जाना तो बेद व्यर्थ हैं। वेद का अरथ हो खत्म हो गया अगर आपने अपने को नहीं जाना। आप निराकार है तो वो साकार होकर संसार में आया । गए और वहां आपके उसको अ्राना ही पड़़ेगा । झगर साकार नहीं आएगा और आपने अपने को नहीं जाना। बगैर आँख के आाप देख नहीं सकते । उसी तरह अपने देश में तीन तरह की व्यवस्था इन तीन हैम इस बह्म तत्व को जाने, उसके लिए कूछ क्रिया कर, ये कर, वो करें, मन्त्र कहें । किसी तरह से तरण हुए । जब आपने अमृत को माना जो कि बहुत भाषण हुए, लेकचर शप सिद्ध तो आप कसे जानिएगा । जैसे कि एक दीप की लो हुए, ही कैसे करेंगे कि परमात्मा है ? कोई सिद्धान्त है देख रहे हैं । दिखने को तो आकार है लेकिन सब अपके पास ? आपके वच्चे अ्रजकल यहाँ मन्दिर तरफ फैली हुई है। उसी प्रकार निराकार साकार में नहीं प्राएंगे। कहेंगे कि क्या भगवान हैं, कोई नहीं होगा तो आप निराकार को जान ही नहीं सिद्धता नहीं । इसलिए जब अ्रपने को जान लेते हैं सकेंगे। इसोलिए संसार में अनेक अवतरण हुए । तो आपके अन्दर से ही ब्रह्म बहुना शुरू हो जाता है । मैं यहां आपको वही चीज देने [गराई है। जिसको आप हजारों वर्षों से खोज रहे थे । यह उसकी वजह है कि श्री विष्णु जो ही हमारे प्रन्दर आपकी अपनी ही है आपकी प्रपनी ही है, सिर्फ घर्म की संस्थापना करते हैं और हमारा उत्क्रान्ति मुझे उसकी कुंजी मालूम है । मैं कुछ अपना नहीं का मार्ग बनाते हैं । इसलिए श्री विष्णु जी की दे रही है । आपका जो है आपको ही सौंपने आई स्थापना हुई। इसका मतलब कभी भी नहीं कि है। आप अपने को जान लोजिए और इस ब्रह्म शिवजी का कोई महत्व नहीं। बहुत से लोग कहते तत्व को पा लोजिए। यही अ्रात्म-साक्षात्कार है, हैं कि भई, हम विष्ण जी को मानते हैं भीर क्योंकि आत्मा का प्रकाश ही बह्म तत्व है । यही उसमें से श्री विष्णु जी के अवतरण हुए हैं। शिवजी को नहीं मानते। यह तो भई ऐसा ही हुआ निमंला योग ५ कि हम अपनी नाक को मानते हैं और आख को नहीं हैं तो इसको समझ के उन्होंने भक्ति कर दी । तो उसी में लिपट गए वो । माने यह है कि फूल के अन्दर शहद है समझ लोजिए। तो प्रापको फूल का स्वरूप है। उसके अन्दर अगर उनका हृदय है तो शहद लेना चाहिए, यह तो वात सही है। लेकिन शहूद और वह्म देव जी हैं वो फूल के बगेर तो नहीं होता । लोगों ने कहा कि भई उनकी क्रिया शक्ति को सम्भाले हुए हैं। उन्होंने फिर फूल की बात करो। एक शहद की बात करने क्रिया करके सारी सृष्टि रची, सुन्दरता से सब कुछ लग गए, एक फूल की बात करने लग गए । उसके बाद उन्होंने कहा कि फूल की बात करो । तो फूल करके उन्होंने सारी सृष्टि रची और जब लोगों ने ही में प्रटक गए वह लोग । अपने मन से मूर्तियां इन पंच महाभूतों को हो, उसी को, सोचा कि उनकी बनानी शुरू कर दी । उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं सेवा करने से या उनको जागरूक करने से हो करी । उसमें जागृति नहीं दो। उसको कारयदे से परमात्मा को जानें, तो वो साक्षात्कार परमात्मा के नहीं बिठाया । और शुरू हो गया। तो अटक गए। जो विष्णु स्वरूप जी अंग हैं, कहना चाहिए कि तब लोगों ने शुरू किया, वन्द करो भई, अब निरा- कार की बात करो। वो कभी निराकार से साकार में जाएं, साकार से निराकार में जाए। यह भगड़ा चल गया। और झगड़ी कोई है ही नहीं। एक के शुरू मानते, जब कि वे एक ही शरीर के प्रंग प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए विराट श्री विष्णु जी का सबसे बड़ा उसमें शिवजी बसे हैं । बनाया। पांच महाभूतों, पंच महाभूतों को ले विष्णु स्वरूप जो उनके प्रवतरण हैं, वह हुए । संसार में ग्राप जानते हैं कि दशाबतार हुए । अब हुए हैं कि नहीं हुए, इसकी सिद्धता देने के लिएबगैर दूसरा नहीं है और दूसरे के बगैर पहला नहीं हम शए हैं इस संसार में । क्योंकि किसी ने बता है। ऐसी सीधी बात है। क्यों कि दोनों ही बातें वन दिया इसलिए आपने विश्वास कर लिया। लेकिन यह दस अवतरण हुए हैं और इन्हीं प्रवतरणों के सहारे की करी, भ्र दोनों ही बातें ही रह गई वातें रह ही हमारी उत्क्रान्ति हुई है याने पहले-पहले सब गई, बातें ही रह गई प्रोर [आज तक बातें ही लोग मछलियों में ही थे समुद्र में ही जीव धारणा रह गई हैं। तो दोनों ही बात सही हैं। वो भी सही हुई है । सब लोग कहते हैं। अर उसके बाद कुछ है, यह भी सही है। उसका खंडन इसलिए हुआ, मछलियाँ बाहर की ओर चली आई। उन मछलियों उन्होंने खंडन इसलिए किया कि जब जनसाधारण कों पहली बार लाने वाला मत्स्य अवतार हुआ। वो श्री विष्णु का स्वरूप था । उसके बाद आप जानते हैं कि वो दस रूप में अते रहे। यह प्रगवाई यहां ठिकाने से बेठों । जब देखा कि इस तरफ बहत करने का जो कार्य है वो परमात्मा को ही करना बहुते जा रहे हैं तो फर उनकी उस तरफ ले आए । पड़ा । यह परमात्मा का कार्य है । उसे नहीं कर सकता । या एक मछली नहीं कर सकती । इस लिए पहले जो अगवाई करने का काम था उसके नाम है आदिगुरु दत्तात्रेय जी, अआदिनाथ हैं, अआदि लिए साक्षात् परमात्मा संसार में अवतरित हुए। गुरु हैं । वो ही अने क बार संसार में आए और इसमें कोई शक नहीं । गई । एक ने फुल की बात करी और एक ने शहद में देखा कि एक तरफ खूब बहते चले जा रहे हैं तो उनको खींच कर दूसरी तरफ ले ए कि बाबा मनुष्य जो ला रहे हैं वो एक ही इन्सान हैं। उनका उन्होंने कहा कि भई, हां, ठीक है, अवतरण हुए हैं. मानिए इसे । लोग अवतरण को चिपक गए। राम, लेकिन जब लोगों ने दूसरी चीज शुरू कर दी, राम, राम । रास्ते में जा रहे तो ' राम, राम', भक्ति। कि परमात्मा तो संसार में प्रवतार ले रहे बाजार में जाओ तो 'राम, राम, इधर देखो तो निर्मला योग राम-राम' । कोई किसी की अकल नहीं रह गई सारे समय प्पने चित्त को देखता रहता है कि कह कि इस तरह से राम का नाम तहीं लेना चाहिए। छलक न जाए मेरा सारा चित्त ।" यह अव- हर समय राम को आप इतना संस्ता किए दे रहे तरण है। राजा जनक एक प्रवतरण हैं। बहुत हैं। उसका भी एक तरीका है। तब फिर उन्होंने बड़े अरवतरण है। वो इस संसार में गुरू के रूप में कहा कि चलिए यह भी बात बन्द करिए । वो ही आए । उनके यहां प्रनेक अवतरण हुए हैं । उन्होंने प्रपना ही इस लिए खंडन किया। भी इन्हें जिसको कि आज हम लोग सिरफूटोवल करत हैं, मुहम्मद साहब भी वही हैं। कोई अन्तर नहीं । और उनकी जो लड़की थी वो साक्षात् वही संसार में राजा जनक के रूप में जानकी ही थी । इसकी अापको हम सिद्धता दे दगे। ्राए थे। और राजा जनक ने एक नोचकता को ही आत्म-साक्षात्कार दिया था । राजा जनक के बारे में अआप जानते हैं कि उनकी उत्होंने भी वही बात करी । लोग 'विदेही' कहते हैं। और उनसे लोगों ने पूछा कि भई अपको विदेही कैसे कहते हैं। नारद ने कहा कि तुमको विदेही कसे कहते हैं ? तुम तो संसार मुसलमान इतने गये हो गए तब बो संसार में आए में रहत हो, तुम विदेही हो ?"कहा बहुत आसान है । र आपको मालुम है कि गुरु नानक के नाम से भई ऐसा करे शाम को बात करना। प्रभी तो तुम संसार में उन्होंने कार्यं किया । एक कोम करो। एक कटोरे में है। उसे लेकर चलो । ओर शाम को मुझे बताना । अव वीद्ध का । कटोरा ऐसा था कि उसमें दूध छलक जाएगा। परन्तु किसी चीज में भर उन्होंने हमारे धरम को हमेशा उन्होंने कहा था कि एक बूंद भी नहीी छलकना संभाला और आखिरी बार वो प्राए थे शिरड़ी के चाहिए, इसी को देखते रहना और छलकना नहों चाहिए एक भी बूंद । तब मैं वताऊंगा कि मझो दिदेही क्यों कहते हैं । लिए लिए घूम रहे हैं। वो उसके साथ सारी दुनिया में गए और परेशान हो गए। जब दा मि का लाट ता ोर उनका जीवन भी उसी तरह से अत्यन्त निष्पाप उन्होंने कहा "अब तो बताइए मैें तो तंग आ गया सारा दिन इस तरह आपके साथ घुमता रहा।" लगे "पहले तो यह बताओ कि तुमने क्या देखा ?" उन्होंने कहा, "क्या देखा ! मैं क्था देखता ? मैं तो पूरे समय दूध ही देखता रहा कि गिर न जाए कहते लगे "मैं procession (शोभी यात्रा, जलूस) कोई शंका की बात नहीं है मेरे लिए। लेकिन में गया। फिर मेरा बड़ा भारी दरबार था प्रर प्रापके लिए हो सकती है । वहां नृत्य हुआ, कुछ नहीं देखा तुमने ?" कहने लगे, "कुछ नहीं देखा । राजा जनक ने कहा कि, बेटे मेरा यही हाल है । मैं कुछ देखता नहीं है। मैं क्योंकि जब तक आपके आंख नहीं आाती आप वेकार में हम । हां अगर मुसलमान खराब है तो वो दूसरो बात है। लेकिन मुहम्मद साहब नही थे । और फिर जब मुहम्मद साहब ने देखा कि 1 दूध वो सभी निराकार ही की बात कर रहे थे वों कि उन्हें मालूम था कि इन्सान चपक जाएगा साई नाथ बन कर। ऐसे इनके अने क अवतरण हुए हैं। श्र यह कोई इन्सान १रमात्मा का सबसे अबोधिता का तत्व या, जिसे innocence कहना चाहिए, उसके अवतरण थे । नहीं थे । यह शाम तक विचारे वो प्रपने और निर्मल था । और वो साक्षात् शक्ति उनके साथ कहने या तो बहन जेसी जनक की लड़की सीताजी थी, ह्मद साहब को लड़को फातिमाजी थी अर अरपको मालू म है कि गुरु नानक जी की बहन नानकी I" यह जानकीजी थीं जो साक्षात् थीं। इसमें ले किन इसको मैं सिद्ध कर सकती है । निमंला योग ७ यह बात गुप्त । श्री कृष्ण ने यह बात एक अजु न से बताई और वह भी घुमा-फिरा कर बताई क्योंकि सकते, ठीक है। लेकिन इसको नहीं मान कि पको अरंख देने पर तो मानना हो पडेगा सफेद सफेद है, झूठ झुठ है। तो किस बात का उन्होंने देखा कि अभी समझ में नहीं आ रही इनके झगड़ा है फिर । यह तो अंधेरे में ही लोग आपस में बात । अब गीता पर फिर मैं कभी बोलूगी। आज एक-दूसरे को मार रहे हैं। एक बार [पाँख] खुलने तो इतना समय नहीं है। अब जब हमने देखा बाद पर, मैं बताती है आपसे, आप यह सारे संसार की में कि लोगों में ऐसा है और लोग बेकार में झगडा जो सबसे बड़ी माया है उसको पहचान लेंगे । यह कर रहे है तब स्वय नानक जी संसार में आए थे वो । और उन्होंने कहा कि बेकार में भगड़ा कर रहे. हो । क्योंकि उन्होने सोचा कि मैं ही तो था और हैं. सब लोग एक हैं। इनमें कोई अन्तर नहीं । अब जो हमने वेद वर्गरह रचे और जिससे हमने पंच महाभूतों का हमने कहा कि पांच महाभूतों को मानिए और उसका उससे करिए । निराकार की बात हो गई। मेरी ही जगह अब सेंरे ही यह शिष्य लोग अब झगड़ा कर रहे हैं । वो उन्होंने आ करके समझाया कि भई क्यों भगड़ा कर रहे हो ? वो चीज एक ही थो, चोज एक ही थी। अब जो यह गुप्त रूप से काम डीक है तो ही रहा था वो उसके बाद। आपको आश्चरय होगा. बहुत माश्चयं की बात है कि उस बवत जो दो बच्चे पेदा हुए थे सौता जी के, वो लव और कुश लेकिन साकार भी जीज है। भक्ति भी है और साकार परमात्मा राम, श्री राम, परशुराम। इतना ही नहीं श्री कृष्ण साक्षात् इस संसार में आए । अवतरण उन्होंने किया। यह साक्षातू श्री विष्ण उन्हें कहते हैं । आपको श्चर्य होगा और अभी भी के अवतरण है, इसमें कोई भी शंका की बात नहीं आपको पता है कि नहीं, लेकिन हमको तो पता है। मेरे लिए । पर शिव प्रवतरण नहीं लेते । शिव आप पता करें, कि दोनों हिन्दुस्तान छोड़ कर उत्तर का अवतरण नहीं होता। ब्रह्म देव्र ने भी एक ही की ओर चले गए। उसमें से लव जो थे वो अवतरण लिए हैं। लेकिन शिवजी ने कभी अवतरगा कोकेशियम की तरफ का गए और जा करके इन्होने वहाँ राज किया। और इसीलिए रशिया वर्गैरह में लाव कहते हैं, सलब । इसलिए स्लाव कहते हैं जो न नहीं लिया, क्योंकि वो सदाशिव हैं। के विष्णु | का अवतरण हुए हैं और उन अरवतरणों में श्रापको जान लेना चाहिए कि उन्होंने संसार में आ करके हमें आज मनुष्य बना दिया। उनकी वजह से हम थे वो चीन की तरफ गए और उन्होंने अपने को बने हैं। और उन्हीं की वजह से हमने यह भी जाना ' है कि संसार में अवतार प्राते हैं । लेकिन श्री कृष्ण जी ने यह बाते सिर्फ एक अजू न से बताई। एक अजु न से बताई। सबसे नहीं बताई। सब जन- साधारण को बताने की बात है। भक्ति की मार्ग है, एक कुशान कहलाते हैं। और दोनों में ही सारे चल रहा था । भक्ति में लोग आह्वान कर रहे थे सस्कृत शब्द है। गर प्रप देखिए तो रूसी भाषा परमात्मा को। और इधर लोग जो हैं वेद में वो लोग में इतने संस्कृत शब्द हैं, जरा बिगाड़ हए । जैसे बो जितने भी पंचमहाभूतों को जागरूक कर रहे थे । किसी चीज को कहेंगे कि बहुत अच्छा है या किसी और एक बहुत गुप्त तरीके से दूसरा जो मार्ग बन को मिलेंगे तो नमस्ते करेंगे तो 'रखोशो, हरो शिवाय' । रहा था उसमें राजा जनक जैसे लोग प्रयत्न कर उनके इसमें 'प्रवद' कहें गे, उनके आपने यहां रहे थे कि आत्मा का साक्षात्कार हो जाए। लेकिन सुना होगा newspaper 'प्रवद' । वह श्रापके वेद उनको। उनकी भाषा ही स्लाव है। और कुश कुटा न कहलवाया । पता नहीं, इन लोगों को भी पता है कि नहीं कि लव और कुश की खानदान है शर पपस में लड़ रहे हैं, बेवकुफ लब और कुश के खानदान हैं। एक स्लाव कहलाते जैसे । दोनों हो 1 निमंला योग ८ से 'बद' और 'प्र माने जिसे कहना चाहिए जागरूक (enlightened)। उनकी सारी भाषा में आप देखिए सारा संस्कृत में ही है । इधर मैं चीन गई थी, मूझे अब भी वहां के सारे शब्द संस्कृत के बने हैं। ले किन बो भी नहीं जानते कि हम भाई बहन हैं। और मूर्ख जैसे लड़ रहे हैं । क्या करें? कौन उनको समझाए कि दोनों जुड़वे भाई के लड़के हो औ्र क्या कर रहे हो ? किस चीज़ के लिए लड़ रहे हो ? इससे कोई तुम्हारे माँ को सुख होने वाला है ? क्योंकि मैं जानती है और आपको बता रही है और उसकी मैं आपको सिद्धता दे सकती है कि यह बुद्ध और महावीर जो थे बो कोई प्रर दूसरे नहीं थे । यह श्री राम के लड़के लब और कुश थे । वो अ्रपने हो थे, कोई पराए नहीं थे । कोई कहते हैं कि हम बुद्ध घर्मी हो गए, हम जैनी हो गए। अरे वो हैं कौन? सब सनातन ही तो हैं। जब आप कहते हैं कि हम सनातनी है तो आपको सोचना भी चाहिए कि सनातन का अचल बहुत बड़ा है। उसके नीचे सब लोग आ गए, कोई छूटने वाला नहीं। यही बुद्ध जब कि आए और संसार में इन्होंने सिखाया कि तुम अब जो यह बीच की घर्म व्यवस्था हमारे आप मूर्ति पूजा नहीं करो, यह नहीं करो, वो नहीं अन्दर बनी हुई है जिसमें प्रवतरण होते गए और करो। क्योकि लोगों ने मू्ति पुजा की हद कर दी बहुत ही गुप्त रूप से कार्य होता गया। तो उस ववत था, उन्होंने इसके लिए सिखाया । और फिर देखा यही दोनों बेटे इस संसार में बार-बार पंदा हुए। कि वी चीज छूटे कर बुद्ध धर्म इतनी बुरी तरह से उसके बारे में हम लोगों को मालूमात नहीं झगड़ा करने में हम लोग बहुत होशि यार हैं। पर दी हैं तो खुद उन्होंने ही इस संसार में जन्म लिया उसकी हमें मालूमात नहीं, क्योंकि history और वो ही हमारे हित्दू धर्म के संस्थापक, जिन्हें (इतिहास) में कोई इस चीज को कोई लिखता है ? हम मानते हैं, अदि शंकराचार्य जी वो ही थे। यह और महावीर यह दोनों बैटे थे । यही दोनों बुद्ध ही थे। वे फिर से आए अपना ख्डन करने के फेल गया है और उन्होंने इतनी बेवकूफियां शुरू कर ले किन । बुद्ध बेटे बुद्ध और महावीर बन कर अए और हम लोग लिए । क्योंकि इन बृद्ध लोगों को कोन समझाए, झगड़ा कर रहे हैं। अरे श्रगर हिन्दू राम को मानते कि 'वुद्ध' माने 'जागरूक । जिसने जान लिया ऐसे हैं तो उन्हीं के यह दोनों बेटे हैं । झगड़ा किस चीज कितने 'बुद्ध हैं ? बुद्ध, बेवकुफ । जैसे वो उनसे कहा का कर रहे हो तुम ? और फिर भी हुम उस चौज कि पुजा नहीं करो तो एक दांत लेकर के बैठ गए, की आपको सिद्धता दे सकते हैं । और उसी से झगड़ा। फलाना लेकर के बेठ गए, इन्सान को कोई न कोई बहाना चाहििए झगड़ा से लोगों का यह कहना है कि यह बहुत चीज किताब में लिखी नहीं। हरेक चीज किताब में करने के लिए । और सबमें एक ही तत्व है। सबमें लिखने की होती भी नहीं। किताब पढ़ कर आप एक ही तत्व है। पर झगड़ा पता नहीं क्यों ? कसे पूरी बात, गीता तो मेरे समझ में बहुत ही थोड़े हुंढ लेते हैं ? कोई न कोई बात झगड़े की हूंढ लेते लोगों के समझ में आई है उसका बहुत ही simple हैं । आरादि शंकराचार्य ने कहा था कि 'न योगे न सरल) सी बात है। बहुत ही सीधी सी बात है सांख्येन', योग, सांख्य से कुछ नहीं होने वाला माँ कि किसी की खोपड़ी में आई ही नही। सबके की ही कृपा से ही सब कुछ होने वाला है । उन्होंने खोपड़ी में से चली गई तो इसमें यह समझ लेना वहुत वड़ी किताब लिखी थी विवेक चूड़ामणि चाहिए कि मैं जो बात कर रही है उसमें से बहुत पता नहीं आप लोग पढ़ते हैं कि नहीं। सी बातें आपको किताबों में भी नहीं मिलेंगी । अब पढ़ते होंगे जरूर, क्योंकि आप लोग सनातन घर्मी है। लेकिन निर्मला योग जिन्होंने इसकी संस्थापना करी वो तो पढ़ते ही अब और कोई सा घर्म कर लें । फिर मैंने सब घर्म होंगे। इतनी बड़ी किताब विवेक चूड़ामरिण लिखने किए। यह घम किया, वो धर्मं किया, मेरे हाथ पैर के बाद उन्होंने एक दूस री किताब लिखी जो टूट गए। मेरी हालत खराब हो गई मेरो सौन्दर्य लहरी' है। पता नहीं आप लोग पढ़े होंगे। तन्दुरुस्ती चौपट हो गई मैंने कहा कि यह केसा सारा उसमें मां का बरणन है, पूरा । यहां तक कि मेरी सब उनका आकार-प्रकार, उनका तोर तरीका तन्दरुस्ती ही चौपटा देगा, तो मैं केसे उसको उनको कौन सा तेल पसन्द है, सर में कौन सा तेल जानुंगा?" और जब उन्होंने जाना कि हम बहां गए लगाती हैं । इतना बारीक लिख गए । विवेक चुड़ामणिणि तो इतनी भारी चौज लिख दी और अब यह माँ का वरणन । यह क्या लिख रहे हैं कहने इधर से उधर, अपने दल वदलते रहे । अपने माथे लगे उसके सिवाय इलाज नहीं । माँ के सिवाय पर लिखा हुआ बदलने से कुछ नहीं होता कि मैं इलाज नहीं । वो ही सब करेंगी। यह शक्ति का काम है । इसलिए हम सब शक्ति के पूजारी हैं । पहली बात । और दूसरे तुम परमात्मा के पूत्र हो। आज तक आप किसी भी ध्म में रहे, आप सब तुम आत्मा हो और कुछ नहीं। उसको तुम्हें पाना शक्ति के पूजारी हैं। वेद में मां को 'ई करके है । इस तरह से अपने ऊपर bond (बन्धन) मत कहा गया है। 'ई शब्द से, उसका श ब्दों का फर्क मारो। लड़ाई झगड़े होते हैं । आत्मा ही सनातन है, है, लेकिन शक्ति को ही पाना है। और शक्ति भी क्या शक्ति है ? यह ब्रह्म की शक्ति है । ओ्र ब्रह्म है सबने यही कहा है कि क्यों भई इधर-उघर क्या है ? यह परमात्मा को इच्छा है, और परमात्मा भटकते हो । अपने हो अ्रन्दर खोजो, अपने ही अन्दर का प्यार है। अगर परमात्मा को प्रापसे प्यार न होता तो यह सरदर्द को क्यों लेते ? यह सारी सृष्टि बनाना भी एक बड़ा भारी सर दर्द है। इतनी सारी सृष्टि उन्होंने बनाई क्योंकि उनको आपसे प्यार या । और आज भी उसी प्यार में वो चाहते हैं कि आप उनके साम्राज्य में उतर। यह सारे कहां है ? उनको जागरूक कैसे करना है ? इनको झगड़े थे। झगड़ों में कुछ नहीं। सबसे बड़ी सनातन बात यह है कि हम ब्रह्म शक्ति से बने हैं और हमें करनी है ? तो सिर्फ ब्ह्म की 'बात ही नहीं है। उसको पाना है । और अगर आपने उसे जाना नहीं हा को 'पाना है औौर उसके बाद इस सारी ब्रह्म तो आपने शक्ति को पाया नहीं। इसको मैं खोज रहा हूँ । औ्रर यह भगवान है । हुए हैं तो हमसे मिलने प्राए प्रौर कहने लगे कि माँ अब बताओ मैं क्या करू? मैंने कहा बेकार में तुम फलाना है, ठिकाना हैं। तुम सिर्फ इन्सान हो, उसको पाना है। आत्मा ही एक चीज है जिसे पाना आत्मा है । जब आप आत्मा को पाइयेगा तभी [आपको पता होगा कि इन सब मूर्तियों का भी क्या अरथ है ? यह क्या चीज है ? और इसका हमारे अन्दर स्थान जागरूक कसे करना है ? इनकी प्राण प्रतिष्ठा कैसे विद्या को आपको पूरी तरह से जान लेना है । सारी ब्रह्म विद्या आप जान जाएंगे यही सहजयोग ...कहने लंगे कि "वहां वारकरी लोग होते हैं। है इसको सहज कहते हैं क्योंकि सहज ( 'सह' एक एक महीना, दो-दो महोना पंदल चलकर के जाते साथ -'ज'3जन्मा) आपके साथ पैदा हुआ है | आपके अ्रन्दर कुण्डलिनी शक्ति है, जो आपके साथ पदा हुई है । यह जोवन्त है कोई मरी हुई चीज नहीं है, जीवन्त है । जैसे कि अंकुर होता है उस परेशान हुआ भगवान नहीं मिले। फिर मैंने सोचा तरह से वो आपके अन्दर स्थित है । वो जागरूक हैं वो हुआ । मैं बहुत पेदल चल कर जाता था । महोना-महीना पेदल चलता था, वहाँ जाता था। तो मेरा सर ही फोड़ देते थे लोग र उसमें निमंला योग १० हो जाती है । और वो जागरूक होने के बाद प्पके अन्दर से ठण्डी-ठण्डी हवा जैसे चैतन्य की लहरियां, जिसका वर्णत आदि शंकराचार्य प्रादि सब ने किया हुआ है, ईसामसीह ने भी किया है, वह बहने लग जाती है। तो आप अपनी शक्ति को प्राप्त होके औ्र उसके बाद इस ब्रह्म को प्राप्त होने के बाद । यह ब्रह्म विद्या आपको जाननी है। पड़ा हुआ है। पंजाब तो ऐसा चैतन्य से भरा है । ले किन मेरी समझ में नहीं अता कि partition (देश विभाजन) हो गया तो क्या हो गया ? पता नही, लोगों की श्रद्धा ही टूट गई है। और श्रद्धा में एक तरह की नरमाई आ गई । और उसकी वजह श्रोर नहीं जाता कि उसको पाना है। से मनुष्य इस यो उच्छ खल है । थोड़ी देर के लिए बो भगवान के हिन्दुस्तान में भी सहजयोग बहुत जोर से फेल पास आ गया, वो सोचता है बहुत हो गया। रास्ते रहा है । लेकिन उसका ज्यादा हिस्सा महाराष्ट्र में चलते कोई भगवान मिल गया तो सोचता है बहुत बहुत ज्यादा चल रहा है । इसकी वजह यह है कि हो गया। उसके बाद उनकी यपनी दूसरी परवाह ल गी रहती है। उसमें कूछ मेहनत करनो पड़ेगी। कुछ उसके प्रति वाकई (सच्ची) अद्धा से लगना पड़ेगा। उधर ध्यान देना होगा । इसलिए मैं देखती बड़े सम्त हुए। हम लोगों ने उनको माना है कि जितना फैलाव होना चाहिए उतना होता नहीं असल से । दक्षिण में महाराष्ट्र में ऐसी बात नहीं है। लोग इस पर श्रद्धा से बैठते नहीं । मेहनत । लेकिन मुझे बड़ी खुशी हुई कि पिछली कि हो सकता है रामचन्द्र जी वहाँ पैदल चल कर मतंबा (बार) मेैं आई थी ओर इस मतंबा भी गए थे, सीता जी के भी वहां चंतन्य फेले हुए हैं। आप लोगों ने मुझे यहां बुलाया औ्रर इतती श्रद्धा के लेकिन लोगों में जरा इस मामले में गहराई। वो साथ ग्राप लोगों ने मेरी बात चोत सुनी है। और इम बात को जानते हैं। और ज्ञानेश्वर जी ने बहुत इसे पा भी लीजिए पूरी तरह से पाकर के मैं तो साफ-साफ लिखा था कि कुण्डलिनी नाम की शक्ति चाहंगी कि यहाँ पर आप कभी भी चाहे यहाँ पर हमारे अन्दर है और वो अभ्बास्वरूप माताजी हमारे हत से सहजयोगी लोग रहते हैं जिन्होंने इस जब होंगी तभी आपको उसकी प्राप्ति हो सकती है. चोज को माना है और पाया हुपरा है । यहाँ पर आदि अनेक चीजें उन्होंने लिख कर रखी हैं । शायद बहुत से लोग ऐसे हैं जो कि यह जानते हैं, ब्रह्य इसी वजह से वो इससे जागरूक हैं। इंग्लेण्ड में विद्या को भी। उनसे भी आप लाभ उठा सकते है । भी लोग बहुत जागरूक हैं, क्योंकि इंग्लैण्ड में बडे बस इतना जानना है कि इसमें कोई पेसा और कोई चीज़ नहीं चाहिए । परमात्मा को आप पै से से नहीं लिखा है कि वो समय आएगा जब इंग्लेण्ड में यह खरीद सकते । और जब पाने की बात है तब तो कार्य अआापको कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन पाने के बाद संजोना पड़ता है । उससे पहले ग्रापको कोई भी मेहनत नहीं करनी। उसके पहले ही प्रापुके पास है, सहज (साथ जन्मा)। इसलि ये हो जाता है । 1. सन्तों की भूमि है, और वहां लोगों ने सन्तों को मुलाया नहीं। वामपंयियों ने बड़ी मेहनत करी है । आपके यहां भी गुरु नानक श्रौर कबीर जैसे बड़- ले किन के है कि न जाने कसे क्यों मेरी यह समझ नहीं आता करते नहीं भारी विलियम ब्लेक' करके कवि हुए हैं । उन्होंने शुरू होगा। और उन्होंने यहाँ तक कि हमारे आश्रम की जगह तक लिख दी । जहाँ मैं रहती है उस जगह का नाम भी लिख दिया । लेकिन मैं यह नहीं कहूँगी कि यहां सन्तों ने मेहनत नहीं करी । सन्तों ने बड़ी मेहनत करी है । बिहार में मैं गई थी । बिहार में देखा कि सारे के सारे चेतन्य भरा पड़ा है। बंगाल में, पंजाब में, सारा चंतन्य भरा पर आज सहजयोग 'महायोग' की स्थिति में आ गया है क्योंकि पहले सहजयोग जो था जनक निमंला योग ११ के समय में तो एक नचिकेता के ही लिए बना था । उसके बाद एक दो फूल अए, किर तीन चार और फूल आए । लेकिन प्राज समय है वो 'बहार' आ गई प्रौर इस बहार पड़गा कि फिर क्षेम, क्योंकि आप उनके साम्राज्य में आ गए। आप उनके नगर के बासी हो गए तो वो आपको सम्भालंगे और देखेंगे । और देखते ही है। में अनेक फुल फल होने वाले यहां हरेक सहूजयोगी आपको बताएगा, एक-एक सिर्फ आरप अपनी तह तक, प्राप अपनी प्रादमी अगर लिखने जाए तो पोथो लिख हैं । गहराई तक उतरिए । असल में होता क्या के रख सकता है क्योंकि कितने चमत्कार हुए हैं । है कि अव देखो कि यह ओरतें चली जा ऐसे-ऐसे accidents (दूघंटनाएं) हुए हैं कि लोग ८०-८० फुट से गिर गए प्रीर जंसे कि किसी ने उठा लिया हो। बहुत बड़ो-बड़ी बातें हो गई हैं वो सब बताने बैठु तो उसका कोई अंत ही नहीं । रहो हैं। इसका क्या मतलब है ? क इनमें गह- राई नहीं है वि्कुल | पा करके थोड़ा उसमें गहरे उतरो । थोड़ी सो । चीज को पा लो मैं कहती है। गहराई में उतरना वाहिए और उस गहराई में आपका सारा पूर्व जन्म का पूण्य कृत है । उसमें आप फिर समाइये । पहले थोड़ो सो मेहनत करके गहराई अ्ा गए हैं। यह गणेश की पूजा कर रहे हैं, और में आप उतर जाइए । मोर उसके बाद वहा जो यह शिव जी की प जा कर रहे हैं और यह विष्णु पूर्वसचित जितना कुछ है उसे आप पाइयेगा। लेकिन जी की पूजा कर रहे हैं। इस लिए नहीं कि मैंने इस तरह से लोग क्या है? एक माताजी का भाषण उनसे कहा । इस लिए क्योंकि वो जान गए है कि यह सुन गए, दूसरे का सुन गए । इस तर ह से जो लोग करते है ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है । पर इसका नुकसान बाद में होगा। अभी इसके जो कर सकते हैं कि प्रापके कोन से चक्र पकड़े हुए हैं । फायदे हैं उनकी लेना चाहिए । इसके प्रनेक फायदे और उन चक्रों पर कौन से देवता हैं। उनको आप होते हैं। आप जानते हैं यहां पर एक देवी जी बठी जान सकते हैं अोर पूछ सकते हैं, यह देवता हैं या हैं। उनका लड़का एकदम पागल जसा था । दो नहीं। इतना ही नहीं आप लोग जब मुहम्मद अ्भी यही है। उसका पागलपन एकदम ठीक हो साहब को जानेंगे, ईसा मसीह को जानेंगे जिन्होंने गया। कितने ही लोग हैं यहाँ दुनिया में जिनको अब तक कुछ नहीं जाना बो और जान जाएगे। लाभ हुआ है, जिनकी तन्दूरुस्ती ठीक हो गई और यह लोग जितना जानते हैं प्रप लोग नहीं क्योंकि यह सारे सात चक्रों में सारे ही देवता जानते। वजह यह है कि इन लोगों में और हमारे विराजते है। वो जागरूक हो जाने से उन का आशी- में फर्क है । हम योग भूमि में रह रहे हैं । भारतवर्ष वाद मिलता है । आपके हर तरह के प्रशन हल होगे जब की जो छत्र-छाया है उसमें हम लोग भट से पार हो कि आप योग में उतरंगे । कृष्णा ने भो कहा है कि जाते हैं। कोई समय नहीं लगने वाला । आप सबके 'योग क्षेम वहाम्यहम् । योग से पहले आप भगवान से कहें भगवान यह कर दो, वो कर दो। आपका जानती है सम्बन्ध ही नहीं है भगवान से, तो क्षेम करसे होगा । फिर प्राप कहें कि मैं भगवान से गिड़गिड़ाता रहा। मिल जाती है उसकी कदर नहीं होती। और इन भगवान ने मेरा काम ही नहीं किया। पहले आप लोगों के एक एक पर मैंने तीन-तीन महीने हाथ योग' connection करवा लोजिए। Connec- तोड़े । तो इनको वड़ी कदर है । यह गहराई में उतर tion (योग) के बाद फिर आपको कहना भी नहीं गए हैं । यह गहराई में उतर गए हैं । उसको इन्होंने लोग शज भपके मंदिर में परदेस से भी बहुत बात सही है। वो जान गए हैं। उनके अदर जो बीजञ है उमे जान गए हैं । उगलियों पे आप महसूस सब बहुत जल्दी पार हो जाएंगे, मुझे मालू म है। मैं एक क्षण भी नहीं लगने वाला । ले किन चलने वाला नहीं वो । क्योंकि जो चीज़ आसानो से निर्मला योग १२ मा को हम हथिया ले तो हम हाथ आने वाले नहीं । ऐसे हमें लोग नहीं चाहिए। वो चाहिएं कि जो मब मिल करके काम करें वाद फिर पहुँचे कि फिर मूझे कोई तकलीफ होने लग गई है। तो मैंने कहा कि अव आ गए प्राप डिकाने । तो कहने लगे कि क्या मांमूझे सजा मिली है ? तो मैंने कहा कि सजा नही है । यह जिस छुत्र छाया में आप बंठते हैं उसकी आप छोड करके अगर आराप गए तो उसे वह छत्र -छाया क्या करेगी ? फिर से उस छुत्र छाया में आ जाएं । यह सामूुहिक कार्य है । और इस सामूहिक कार्य को सबको सामू हिक बिल्कुल ब्रह्म विद्या को साक्षात पा लिया है । तो जो भारतीय, जो कि अने क जन्मों से पूण्य से इस भारत वर्ष में पदा हुआ है, वो इनसे कम पड जाता है । ओर यह पूण्य आपके पास बहुत है। क्योंकि आप अपनी गहराई नहीं छु पाते । यह मैं आपसे पहले ही प्रागाह ( सचेत) करती है कि पार करने को तो मैं कर दुंगी लेकिन आगे का पआरापको देखना होगा। आगे जो मेहनत है वो प्रापको करनी पड़ेगी। अगर नहीं करी तो 'जो पाया सो खोया होता है अनेक बार। अनेक लोगों का ऐसे होता है । ओ्र फिर एक साल । मैंने दखा है एक साहब अए थे और चिल्लाने तरकि ने करन। है। अगर आप चाहें कि माँ का लग गए। एक बड़े भारी आंगन में प्रोगाम हो रहा था । 'माताजी ! माताजी ! मेंरे तो प्रत्दर से तो कर रहे हैं तो सो बात मुझे मंजुर ही नहीं है। बहुत आग निकल रही है। मेरे ग्रन्दर से मैं मर रहा सबको एक होना है यह ब हुत बड़ा सामुहिक कार्य है । आप मूझे ठीक करिए। सारे बदन में blisters है । सबको मिल जुल के रहना है सब भाई बहन (फाले) और जाने क्या-क्या हैं । मैंने कहा अच्छा है। और है कि नहीं, वो। पाप उसका साक्षात्कार आपके यहाँ आते हैं ।" बहुत भीड थी उनके यहाँ, करिएगा। वहाँ। करते करते उनके पहुँचे हम । उनको कुण्डलिनी जागरूक करने से पाँच मिनट में उनका सब कूछ ठीक हो गया । पाँच मिनट के अन्दर । वो पति हैं उनके बहुत से प्रश्न दूर अभी भी हैं यहाँ पर । उसके बाद कभी वी आए तदरुस्तियाँ ठीक हो गई । उनके मन ठीक हो गए। नहीं। कभी उन्होंने पता नहीं किया, कुछ नहीं किया । दिन मैं बाजार गई थी कोई चीज़ खरीदने । ठोक हो गई हैं अर सबसे बड़ा कि उनका लक्ष्मी फोटो हम वर ले गए और रोज हम आरती पूजा जो लोग सहजयोग में इस तरह ब्रह्म विद्या को हो गए। उनकी खानंदान ठीक हो गए। आपस की रिश्तेदारियां एक वहाँ सिले । अरे, वहां एकदम से पाँव छुआ । मैने तत्व भी जागरूक हैो गया है। इससे बहुत रईस कहा "कौन है भई आप ?" मैंने कहा "भई मुझे तो याद नहीं। ओर बहुत' नहीं होती। अतिशयता तो होती ही नहीं । मुझे याद भी नहीं रहता।"असल बात करो। फिर लेकिन समृद्ध हो गए हैं, समर्थ हो गए हैं, और उन्होंने बताया। बात कहने लगे "मैने अआपका फोटो दूसरों का भला कर रहे हैं । [अपने को भी ठीक रखें मैंने अपने मोटर में भी रखा है । मैंने अपने मन में प्रौर दूसरों को भी ठो क रख । सहजयोग में पार भी रखा है। आपके शरणागत हैं। ये है, वो है। होने के बाद आप लोगों की जागृति कर सकते हैं ? मैंने कहा "भई देखो, सहजयोग जो है, वो सामूहिक और लोगों को पार करा सकते हैं यह शक्ति आरपमें काम है। अकेले का काम नही है, कि आप घर मेले ग्रा जाती है । कोई भी हो, पढ़ा नहीं हो, कूछ फ्क गए या जंगल में बैठ करके, उसमें नहीं । जहाँ नहीं पड़ता । कोन साधु-सत लोग पढ़ लिखे थे ? दस लोग बैठेंगे वहीं यह कार्य होने बाला है तो वही हम रहेंगे। और जहां एक अरकेला सोचेगा कि आजकल संसार में बहुत से बड़े-बड़ लोग जन्म ले कहने लगे "मां भूल गए तो कोई भी नहीं होता। इससे कोई सी भी चोज इसको पढ़ने की जरूरत नहीं । यह अदर होता है । निमंला योग १३ मैं एक भी बात झूठ नहीं बोलती हूं रहे हैं । बहुत से बड़े-बड़े जीव जन्म ले रहे हैं । ओर क्यों कहा । यह लोग सब पैदायश (जन्म) से पार हैं । ओर वो ओर मुझे आपसे कूछ भी लेने का नहीं । Election जानते हैं कुण्डलिनी का शास्त्र । यहाँ पर भी बहुत (चुनाव) भी जीतने का नहीं। मेरा कोई लेना से बच्चे ऐसे हैं कि बचपन से ही कुण्डलिनी का नहीं बन पड़ता । आपको बस देना ही देना है । इस- शास्त्र जानते हैं। हमारे भो यह है, नातिन है । धोर लिए आप इस तरह की बेकार की बातें कभी न हमारे चार, जिसमें तीन तो नातिन हैं पऔर एक सोचना कि मां ने ऐसे क्यों कहा, वैसे क्यों कहा । लड़की का लड़का है। वो भी चारों के चारों पार मांको सत्र बोलना पड़ेगा । हालांकि बहुत मिठास हैं और बचपन से ही वो कुण्डलिनी का शास्त्र जानते हैं । छोटे-छोटे बच्चे भी, छु-छः महीने के बुद्धि है न, मैंने पहले हो कहा, यह हर चोज को बच्चे भी, आप को दिखा देंगे। अभी एक लड़की पकड़ लेगी, जिससे झगड़ा खड़ा हो और यह अप लाए थे। पार है, छः महीने की। वो बता रही थी हो से झगड़ा प्राप अपना कर रहे हैं, किसी दूसरे कि कौन सा चक्र पकड़ रहा है बरावर उ गली में ं। से बता रही हैं सब बात, लेकिन हो सकता है कि, से नहीं, क्योंकि आपको अपनी शक्त पानी है, आपको समर्थ होना है और आपको अपनी आत्मा को जानना है। इस में कोई शक नही। झीर बही कार्य है और उसके मामले में बेकार के झगड़े अपने ही से मत कर । प्रापने पहा लिखा होगा, उसको एक तरफ रख दीजिए। सारे पढ़ लिखने से भी ऊचो चीज है आत्मा को पढ़ लेना । 'एक ही अक्षर प्रम का पढ़े सो पण्डित होए।' यह प्रेम वो नहीं है, अपने बच्चं को प्यार करो, यह प्रेम तहीं है। यह मुहै डाल रही थी और बरावर बता रही थी कि कोन सा चक्र पकड़ा है । इतने ज्ञानी लोग आज पेदा हो रहे हैं कि ओर उनको जानने के लिए ऐसे मां वाप बनता चाहिए, ऐसे नाना नानी और वाबा दादी बनना चाहिए, कि जिससे अ्राप उनको समझ सके । ओर वहत वड़ा काम संसार में होने वाला है प्र उसकी तयारी करें । ज में यहीं तक कहेगी और बाद में कभी परमात्मा का प्रम है, जो ब्रह्मशकिति के रूप में मौका होगा तो 'कल्की' की बात कहू गी, जो अच्छी आपमें से बहना शुरू हो जाता है । इसे आप प्राप्त नही रहेगी इतनी क्योंकि उसमें फिर पआपको सम- झाने वाला कोई नहों होगा । उसमें फिर विरी] सफाई का मामला है। वो समय आने से पहले ही सब लोग पार हो जाएं । जिसके लिए शरज तक ( आपने भगवान को माना उसका साक्षात करें, अीर है। इसको आप पा ले । उसके बाद आप फिर बात आप उसे लें, यही मृझे प्रापसे विनती है। और कर । वस ऐसे हाथ करना है सीधे । उसमें कोई मैं माँ के रूप में मैं अपको समझाती हैं । किसी भी ज्यादा मूश्किल नहीं। ऐसें सोधे हाथ करके और बात का बुरा न माने और इसे बुद्धि में न बेठाएं आप प्रखि बंद कर ल, बस । चोखट पर, कि मां ने ऐसा क्यों कहा, माँ ने वेसा करें । वहत-बहुत घन्यवाद अप लोगों का । अब doctor (डाक्टर) हो, scientist वज्ञानिक) हो, कोई हो यह चीज सब ज्ञानों से परे निमला योग १४ सहस्त्रार चक्र नई दिल्ली ४ फरवरी, १६८३ आज मैं प्रापको प्रन्तिम चक्र, सहस्रार, के बारे है। यह बहुत ही महत्वपूणं बात है जो हमें पता में बताऊगी। यह सहलार अन्तिम चक्र, जो है होनी चाहिए। श्री चक्र दांयीं प्रोर की कार्य शक्ति वो मस्तिष्क के तालू क्षेत्र (Limbic area) है और ललिता चक्र बायी औ्र की कार्य शक्ति है । पगिक कोत्र' के अन्दर होता है । हमारा सिर अतः जब कुण्डलिनी नहीं जागृत होती, तो हम दांयों एक नारियल जैसा हैं । नारियल के ऊपर जटाएं बोर की शक्ति से शारीरिक और मानसिक कार्य होती हैं फिर उसका एक सख्त खोल (Nut) होता है, करते है, इसलिये हमारा मस्तिष्क दांयी ओर की फिर एक काला खोल और उसके अन्दर सफेद किया करता है । अत: हमारा मस्तिषक श्रीफल गिरी ओर उसके अन्दर रिक्त स्थान ( space) प्रर की तरह है। सहखार, वस्तव में छः चक्रों का पानी होता है। हमारा मस्तिष्क भी इसी प्रकार समूह है, प्रोर यह एक खाली स्थान है, जिसके बना होता है । इसोलिए नारियल को "अ्रीफल" दोनों तरफ एक हजार नाड़ियां होती हैं प्रोर जब कहा जाता है यह धोशक्ति जो है उसका फल है। श्री शक्ति दाँयीं तरफ को शक्ति है, ओर बाँयों को प्रज्ज्वलन होता है और वे लो (ज्वाला) के तरफ की शक्ति ललिता-शक्ति है। तो हमारे अन्दर समान दिखाई देती हैं, बहुत हो सोम्य लो के समान दो चक हैं-बाये कधे के जरा नीचे ललिता चक्र दिखाई देती हैं और इन सबकी लौ में वो सभी सात और दाहिने कंधे के जरा नौचे श्री चक्र । ये दो रंग होते हैं, जो इन्द्रधनुष में दिखाई देते हैं। परन्तु चक्र, दाँयों तरफ महासरस्वती शक्ति श्रोर बाँयों अन्तिम लो अन्त में समग्र लौ बन जाती है, यह तरफ महाकाली शक्ति को चलाते हैं । कुण्डलिनो शक्ति दोनों के मध्य दोचोंबीत् है । उसे उठकर अत: ये सव सात तरह के प्रकाश अत्त में एक अलग-अ्लग चक्रों को भेदकर Limbic area में स्वव्छ (crystal clear) प्रकाश बन जाते हैं। प्रवेश करना होता है तर वहां सात चक्रों को प्रकाशित करना होता है । तो भी वह छः चक्रों को भेदकर Limbic area में प्रवेश करतो है और मस्तिषक में स्थित सात पीठों को, जो Limbic मस्तिष्क को प्राडा (transverse) कारट या समतल area की मध्य रेखा पर रखे गये हैं, प्रकाशित (horizontal) काट ता आ्राप देख सकते हैं कि ये करती है । तो अगर हम पोछे से शुरू करें तो सबसे पीछे मूलाधार चक्र है, उसके चारों तरफ स्वाधिष्ठात, फिर नाभि, फिर अनहत, फिर विशुद्धि इस तरह से (vertically, खड़ी) कार्ट, तो आप और उसके बाद आज्ञा चक्र होता है । इस तरह पायेंगे यह छः चक्र मिलकर सातवों चक्र सहस्रार वनता সकाश Limbic area में आता है, तब इन नाडियों नि विलकुल (crystal clear) स्वच्छ लो होती है । सेहस्ीर में एक हजार नाड़ियां होती हैं जिन्हें एक हजार पंबुडियां बोलते हैं । लेकिन यदि प्राप सब नाडियां इस तरह से, पंखुड़ि यों की तरह, Limbic area में रखा होतो हैं । और अगर आप हरे नाड़ियों के संग्रह में कई नाड़ियां हैं । इस प्रकार मस्तिष्क प्रदीप्त होने के कि *परम पूज्य माता जो श्री निर्मला देवो जी के अंग्रे जो भाषण का अतुवाद निर्मला योग १५ पश्चात् सहस्रार लौ के एक जलते हुए गटठे आपकी आत्मा का प्रकाश इसमें प्रकाशित नहीं (burning bundle) के समान दिखाई देता है । होता। यह बड़ा गहन विषय है । में अभिव्यक्त होती है, हृदय में में आ्रात्मा हृदय प्रतिबिम्बित होती है । अ्रात्मा का केन्द्र हृदय होता है ऐसा कह सकते हैं । लेकिन वास्तव में आ्ररमा का स्थान ऊपर यहां है, जो सबंशक्तिमान भगवान की श्रात्मा है, जिसे श्राप 'परवरदिगार कहते हैं या 'सदाशिव' या आप इसे रहीम' क ह सकते हैं । आप उसे प्रनेक नामों से पूकार सकते हैं, जो प्रसु निरंजन के बारे में प्रयोग होते हैं-निरंजन, निरंकार, हरेक प्रकार के शब्द जो "निर", 'निः' से शुरू होते हैं। शरी र में हरेक चक्र पर अाप एक हैं, पप रंगों के अलग-गलग रूप देख सकते हैं, आप अलग प्रकार का आनन्द प्राप्त करते हैं। कुण्डल ना वस्तु की उत्तमता (quality) को देख सकते हैं । जागने के बाद हरेक चक्र का एक अलग प्रकार का लेकिन आप यह नहीं बता सकते कि क्या यह कालीन आनन्द होता है और कुण्डलिनी के ऊपर चढ़ते समय किसी संत ने इस्तेमाल किया हुआरा है ? आप यह प्रत्येक चक्र पर जो श्रानन्द प्राप्त होता है उसकी इस प्रकार कुण्डलिनी द्वारा मस्तिष्क प्रदीप्त कर देने पर सत्य की आपके मस्तिक में अनुभूति होती है। इसीलिए यह 'सत्यखण्ड कहलाता है। यानि आप सत्य को, जो आपके मस्तिष्क द्वारा ग्रहण होता है, देखना शुरू कर देतें हैं। क्योकि इससे पहले जो कुछ भी आप अपने मस्तिष्क द्वारा देखते हैं, सत्य नहीं होता। जो आप देखते है सिर्फ बाह्य रूप हो है। यानि आप रंग देख सकते नहीं बता सकते कि यह किसी देवी कयक्ति ने बनाया है या किसी दानव ने । अरप यह भीनही बता सकते कि यह व्यक्ति अ्रच्छा है या बुरा है । आ्प अ्लग-अ्लग नाम है। जब कुण्डलिनी सहस्रार में प्रती है, तब जो प्रानन्द प्राप्त होता है, उसे 'निरा- नन्द कहते हैं। 'निर' का प्रर्थ है सिर्फ, आनन्द ही यह भी नहीं बता सकते कि यह देवता (deity) अनन्द, और भी नहीं। आश्चर्य कि मेरा नाम कुछ घरतो माता के अन्दर से निकले हैं या नहीं। आप प्रपने किसी रिश्तेदार के बारे में यह नहीं बता सकते कि यह अच्छा रिश्तेदार है या बुरा रिश्तेदार, या वह किस प्रकार का व्यक्ति है, वहु गलत प्रकार भी नोरा' है । अपने परिवार में मूझे नीरा पुकारा जाता है। नीरा का मतलब है 'मेरी', 'मरियम, क्योंकि इसका अर्थं है में रीन (marine), 'नीरा जल है, संस्कृत भाषा में 'नीर का अर्थ जल होता के लोगों के पास जाता है या सही लोगों के पास है तो मस्तिष्क में इसे निरानन्द कहते हैं । जाता है, उसके गलत सम्बन्ध हैं या ठीक ? यहां 'ठीक का मतलब देवी से है। तो आप अपने मस्तिष्क से देवी के बारे में कुछ भी नहीं जानते। कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं जानते। एक मनुष्य अन्त में इस अ्रवस्था का उन्मोचन (शुभारम्भ) होता है । सर्वप्रथम आपको जो अनुभूति प्राप्त होती है वह 'सत्य' होती हैं । इन सज्जन को क्या की प्राध्यात्मिकता को परखना आपके लिए असंभव तकलीफ है, यह अाप अपनी उगलियों पर देखते है जब तक कुण्डलिनी Limbic area में न पहुँचे हैं। तो पहले आप अपने चित्त से उ गलियों पर देखते हैं। आप अपने चित्त से जानते हैं कि कोन- सा चक्र, कोन सो उ गली की 'पकड़ है। तब आप नहीं। क्योंकि देव्यता (Divinity) की श्पके अपने अपने मस्तिष्क की सहायता से पहचानते हैं कि मस्तिष्क में अनुभूति नहीं हो सकती, जब तक कि कौनसा चक्र खराब है । क्योंकि अगर कहें कि । जाये। आप यह नहीं मालूम कर सकते कि यह मनुष्य सच्चा है या नहीं। यह गुरु सच्चा है या निमंला योग १६ इस उगली की पकड़ है तो इसका मतलब यह आपको यहाँ कुछ तकलोफ हैं ? वह कहता है, नहीं कि यह विशुद्धि चक्र है । लेकिन आपका हां है " तब आपका मुझमें विश्वास होता है मस्तिष्क यह बता सकता है कि यह विशुद्धि चक्र और आप विश्वास केरते हैं कि यह जो विशुद्धि है और वह दर्शाता है कि इस व्यक्ति को विशुद्धि चक्र दिखाई दे रहा है सो सत्य है । यह एक तक्क चक्र की तकलीफ है । लेकिन फिर भी यह मस्तिष्क पर आधारित निष्कषं है। क्योंकि आपने प्रयोग पर धारित (rational ) हैं क्योंकि आप पहले किया, ाप देख रहे हैं पोर फिर भी सन्देह कर देखते हैं कि कौनसो उगली की पकड़' है और रहे हैं कि माताजी जो बताती है वह सत्य है या फिर आप बताते हैं कि कौनसा च क् खराब है । नही । किर आप निश्चित हो जाते हैं कि हां, यह लेकिन जब 'सत्यखण्ड यानि सहस्रार और यह ऐसा हो है। आपने देखा है कि यह विशुद्धि ज्यादा खुल जाता है, तो आपको सोचने की जरुरत क्र ही है। अतः सत्य तकनुसार मस्तिष्क को नहीं पड़ती; आप तुरन्त कह देते हैं। उस समय ्वाकाय हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क बाह्य स्तर आपके वित्त' में और प्रापके 'सत्य' में कोई अन्तर नहीं रह जाता। प्रकाशमान चित्त प्रोर प्रकाशमान मस्तिष्क एकाकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए कोई समस्या नहीं रह जाती पऔर उं गलियों विशवास करते हैं, पक्की तरह से जान जाते है कि पर देखने की जरूरत नहीं पड़ती है। उ गलियों पर কछ देख कर प्रोर किर मस्तिष्क से जानने की कोई शका नहीं। इस प्रकार 'निरविकल्प' की अवस्था जरूरत नहीं रह जाती है। जंसा कि आपने सहज- योग में सोखा है कि अगर इस उगली में कुछ बारे में कोई शंका नहीं रह जाती। लेकिन उस (gross level) पर ही कार्यशोल रहता है । दूस री अवस्था में, जसा मैंने बताय आप] इसका अर्थ विशुद्धि चक्र है, इसके बारे में कोई आरम्भ हो जाती है, जब मेरे और सहजयोग के समय आपके अन्दर मस्तिष्क का ओर उन्मोचन गडबड़ है, तो इसका मतलब अज्ञा चक्र खराब है, यह प्वश्यक नहीं। प्राप बस कह देते हैं कि आ्रज्ञा चक्र लराब है । आपने जैसा कहा, वास्तव में वैसा ही होता है। खुलना ) प्रारम्भ हो जाता है। इसके लिए प्रापको 'ध्यान (meditation) करना पड़ता है। नम्रता में (in humility) स्थित होकर आपको ध्यान करना पड़ता है। इस नई अवस्था के लिए जब आपका वित्त स्वयं , में विलय हो जाता है इसके लिए व्यक्ति को अत्यन्त सवाई और नम्रतापूर्वक सहजयोग को त्मरू मंण करना पड़ता है। उसके बाद, मस्तिष्क ओर भी ज्यादा खुलता है । स वं प्रथम, जैसे मैंने बताया यहै चित्त के साथ एकाकार हो जाता है। फिर, जब यह पूर्णतयां आत्मा के साथ एका कार हो जाता है, तब प्राप जो कुछ भो कहते हैं वह सत्य हो होता है । प्राप बस देते हैं, ओर वही वास्तव में होता है । इस ओपके मस्तिष्क, प्रदीप्त मस्तिष्क अब जब ग्राप चैतन्यलहरियां (vibrations) कह प्रकार यह मस्तिष्क तीन नये आयामों में उन्मुक्त प्राप्त कर लेते हैं तब श्प क्या करते हैं ? लोगों होता है, खुलता है । सर्वप्रथम यह ताकिक निष्कर्षों की अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है । कुछ लोग इन (logical conclusions) द्वारा सत्य को व्यक्त लहरियों का मूल्य तक नहीं समझते । कुछ लोग करता है । जैसा मैंने बताया, मेरे अगर इस उगलो सीखने की कोशिश करते हैं कि इसका क्या अर्थ की पकड़ है तो इसका मतलब विशुद्धि चक्र खराब है ? प्रौर कुछ लोग सोचने लगते हैं, "अ्रब है, और फिर प्राप उस व्यक्ति से पूछते हैं, "क्या हम आत्मसाक्षात्कारी हो गए हैं और इसको, उसको तुरन्त निर्मला योग १७ आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं ।", वे अहंकार की उससे बचते हैं । मान लीजिए कि खाना खा रहे सवारी (egotrip) करने लगते हैं। जब वे भ्रहंकार हैं या सफर कर रहे हैं या विदेश से प्रा रहे हैं, तो की सवारी करने लगते हैं, तो वे अपने आपको उन्हें अपने सफर के लिए और खाने-पीने के लिए असफल पाते हैं और उन्हें जहां से शुरू किया पेसा देना चाहिये । आपको पता है बहुत वार था वहीं वापस आना पड़ता है । यह सांप और भारी पैसा देना पडता है सीढ़ी, के खेल की तरह होता है । तो चेतन्यलहरियों इसका विचार नहीं करती। लेकिन यह आरपके के प्रति बहुत ही विनम्र और ग्राही, आदरपूर्ण लिए ठीक नहीं । मुख्य बात यह है कि यह आपके (receptive) प्रतिक्रिया होनी चाहिए । कोई बात नहीं, मैं 1 लिए ठीक नहीं है। तो पैसे के मामले में अ्रापके सहजयोग के प्रति कंसे प्राचरण हैं, यह भी बहुत बाह्य रूप में, जैसा मैंने आपको बताया कि महत्वपूर्ण बात है। यद्यपि वह बहुत ही स्थूल सी मस्तिष्क में पिता (सदाशिव) का स्थान है । इस लिये प्रगर परप पिता (सदाशिव) के विरुद्ध कोई उन्नति में बहुत समस्या उपन्न कर सकती है, पाप करते हैं, तो आगामी नये अआयाम खुलने में क्योंकि उससे नाभि खराब हो जाता है । और समय लगता है। फिर हम पुस्तक पढने लगते हैं जैसा कि प जानते हैं कि अगर नाभि खराब हो और यद्यपि बताया गया है कि पहले पूस्तक की गई तो यह खराबी सारे भवसागर ( void) पर चैतन्य लहरियाँ (vibrations) देखो और फिर व्याप्त हो जातो हैं, और अगर भवसागर खराव उसे पढ़ो। लेकिन आप कहते हैं, क्या बूरी बात हो गया तो एकादश रूद्र की संहार शक्तियां जो है, हमें अन्य पुस्तकें भो पढ़नी चाहिये । तो जैसा यहां पर हैं, पकड़ी जाती हैं। मैंने बताया आप सांप सीढ़ी के खेल में नीचे गिर जाते हैं। यह भी एक सांप है सोचते है "ध्यान करने की क्या श्रवश्यकता है? मेरे पास समय (gross) प्रतीत होतो है, लेकिन यह आपकी तो सहजयोग में आने से पहले यह सब ठीक था। आप सब प्रकार के दूषकम करते थे अ्रोर आप अनयस नरक में पहुँच जाते । नरक में जाना तो नही है, मुझे यह करना है, वह करना है" परि- णाम आपकी उन्नति नहीं होती है । बहुत ही आसान है । दो छलांग लगाओ और नरक में पहुँच जाओ। वाकी सब कूछ आप जाने । लेकिन नरक में जाना सब आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती । लेकिन से आसान काम है। इस के लिए दूस री बात बड़ी स्थूल है । कुछ बहुत ही स्थूल (gross) व्यक्ति सहजयोग में प्रवेश कर लेते कोई बात नहीं । लेकिन पहली बात जो आपको जब ्प ऊपर उठ रहे हैं, उन्तति कर रहे है, तब शोडा कठिन। ई है। प्रापको ध्यान रखना है कि आप जरूर जाननी चाहिए, वह यह है कि आपको सहजयोग में ईमानदार, बहुत ही ईमानदा र रहना पड़ेंगा । ईमानदा री से मतलब है, मैंने देखा है जैसे कि कहीं कोई भोज(खाना-पोना)या शादी की पार्टी है तो वे आत्म सम्मान को तिलाजलि देकर चुपके लोगों से घुस जायेंगे । उन्हें कोई विचार नहीं कि इसके में सहजयोग को नुकसान पहचा कर पेसा बचाने लिए पैसा कौन देगा ? वे अपने सारे परिवार को की पआादत होती है । कुछ लोगों को सहजयोग को ले आएंगे और बैठ जाएंगे। फिर, ऐसे लोग भी क्षति पहुंचा कर पेसा कमाने की आदत होती है । होते हैं जो सहजयोग में जो पैसा देना चाहिए, लड़खड़ाए (डगमगाएं) नहीं, गिरें नहों, और ऊपर उठते रहें । इसलिये आपको सतर्क रहना है कि आप अपनी पुरानी आदतों में तो नहीं फंस रहे हैं । कुछ लोगों को उन्हें जो पसा देना चाहिये बह न कुछ निर्मला योग १८ देने को ग्रादत होती है, इत्वादि । यह छल-कपट के के पास गया तो मेरा सहस्त्रार खुल गया । यह समान है । ये लोग शीघ्र सहजयोग से बाहर चले हुआ, वह हुआ लेकिन आप स्वयं ऐसा काम जाते हैं। भले ही शुरू में ये लोग बहुत बड़े नेता क्यों नहीं करते जो आपका सहस्रार खोलने में लल गें. लेकिन वे देखते-देखते यों हो बाहर निकल सहायक हो । तो सहस्रार का खुलना बहुत हो जाते हैं । कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि प्राप] पसे का हिसाब-किताब ( account) क्यों नहीं रखती हैं ? परन्तु सहजयोग में मुझे कीई हिसाब में ति आवश्यक है । आश्चर्य की बात है ऐसी रचना है कि सहखार ब्रह्मरन्त्र एक ऐसे बिन्दु पर है जहां हृदय (अ्रनहत) चक्र है । अतः यह जानना आवश्यक है किताब (account) प्रादि रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सहयोगी मेरे मूनीम हैं। अगर आप सहजयोग से चाल-बाजियां करने की कोशिश करते हैं, तो आपका नाभि चक्र क्षति ग्रस्त होता है और कर के बाह्य रूप में (superficially) ही करंगे, आप पपनी चेतना खो बैठते हैं । जो आपके साथ कभी नहीं हुआा होता। एक ओर अपने हैजारी रुपये बनाए, किन्तु दूसरी ओर हजा रों रुपये यह है कि अपको इसमें पूर्ण., हृदय देना है । जैसे कि (सहजयोग की बहुमूल्य सम्पदा) आ्पको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना होना चाहिए था" वर्गरह-ब गैरह, ऐसे लोगों को करना पड़ सकता है, जो मैं नहीं बता सकती । और ईसा-मसीह ने " " फिर आप कहते हैं कि यह समस्या कसे आई ? प्रतः यदि प्राप अपनी साधना (seeking) में था "इन बडबूडाने बाली जीवात्माओं से सावधान ईमानदार नहीं हैं तो नाभि चक्र की पकड़ तब रहो।" ऐसे सभी व्यक्ति जो पीछे बुड़बुड़ाते हैं और आती है। साधना (seeking) की ईमानदा री का सिर्फ यह मतलब नहीं कि शब्दों में कह देना "मैं की कोशिश कर रहे हों, ऐसे लोग बहुत दुःख उठा साधक हैं बल्कि इसका यह अर्थ भी है कि आपका अपने प्रति और दूसरों के प्रति केसा प्राचरण है प्रभु के साम्राज्य में जब आप प्रवेश करते हैं तो यह शपको अपने प्रति ईमानदार रहना चाहिए कि दोहरा छल बहुत ही खतरनाक होता है। किसी भी आप ध्यान (meditation) के लिए बेठे, अपना अन्तर-योग सुधारने की कोशिश करें और प्रपनी हैं और आप उसके प्रति विश्वासघात करते हैं, तो निविवार चेतना ( thoughtless awareness) को बढ़ाए। उस स्थिति को प्राप्त करने की कोशिश में, यह इतनो आनन्दमय है, पूर्णतया आनन्दमय, करें, जहां आप संचमुच हो नि्वि वार अनुभव कर । पूर्ण आशीर्वाद भाप पर न्यैछावर कर दिये जाते इस ईमानदारी का मधुर रस मिलता है और अपने हैं, पूर्णतया, हर सम्पदा - स्वास्थ्य, घन, मानसिक, निजी अ्रस्तित्व (being) प्रथात अरात्मा में आप उत्तरोत्तर ऊंचे ग्रोर गहरे उत रते जाते हैं । ब्रह्मरन्ध्र का आपके हृदय से सीधा (direct) सम्बन्ध है। अगर आप सहजयोग को हृदय से न कि तो ग्राप बहुत ऊंचे नहीं उठ सकते । मुख्य बात कुछ लोग सहजयोग में भाते है और पीछे बुडबुडाते खो बेठते हैं। हते हैं, "यह ऐसा होता चाहिए था, वह ऐसा 'बुड़बुडाने वाली जीवात्माएं (murmuring souls) कहा है उन्होने कहा फायदा उठाते रहते हैं, जेसे कि वे दूसरों को बचाने सकते हैं । क्योंकि वे एक दोहरा छल कर रहे हैं । राज्य के, किसी भी राज्य के अगर आप नागरिक आपको दण्ड मिलता है लेकिन 'प्रभु के साम्राज्य भावनात्मक सभौ प्रकार की सम्पदा आपको सहज- योग में प्राप्त होती है, निस्संदेह। लेकिन जब आप इतने सम्पन्न (blessed) किये जाते हैं, तो आपको क्षमा भी प्रदान की जाती है, अनेक बार की जाती "आखिर माताजी सब कुछ करेंगो। जब मैं माताजी है और अ्रापको बहुत लम्बा अवसर प्रदान किया सर्वप्रथम आप मुझ पर निर्भर करते हैं कि निमंला योग १६ या कायरता की वजह से ऐसा करते हैं। एक और चीज जो आपको बेईमान बना सकती है वह है आपके पूर्वजन्मों के संस्कार पोर उसी के अनुसार प्राप जन्म लेते हैं और उसोके अनुसार आपकी जाता है । किन्तु यदि आप नहीं संभलते तो आपका विनाश होता है, पूर्णा विनाश. प्राधा नहीं। अतः वे लोग जो सोचते हैं कि वे सहजयोग से बेईमानी कर सकते हैं. बहुत सतर्क रहें । कृपया कुण्डलिनी की अवस्था होती है। ऐसा न करें, अगर पराप सहजयोग में रहना नहीं चाहते, तो अच्छा होगा आप चले जाएं, हमारे लिए और आपके लिए भी यही अच्छा है। क्योंकि महान पुरुषार्थी शऔर संनकल्प वाले होते हैं इतनी अगर प्राप बेईमानी करते हैं, या छल-कपट करते प्रगति से ऊंचे उठते हैं कि तारों, ग्रहों, नक्षत्रों ग्रादि हैं तो आप कष्ट भोगते हैं और फिर आप अरजीब की सारी समस्याएं लुष्त हो जाती हैं। और आप और हास्यास्पद (funny) लगते हैं। तो लोग कहने एक 'सहजयोगी बन जाते हैं अर्थात् एक नवजात, लगते हैं कि सहजयोग में क्या बुराई है ? और हम वेमतलब भुगतेंगे (बदनामी के कारण)। क्योंकि हम जिसका अपने विगत जीवन से कोई सम्बन्ध नही आपको दर्पण में नहीं दिखा सकते कि यह प्रादमो होता, जिस प्रकार एक अंडे का एक सुन्दर पक्षी बहुत ही, बहुत ही ज्यादा विश्वासघाती रहा था । बन जाता है । हम यह नहीं दिखा सकते। इस प्रकार पहले हमें बदनामी मिलेगी और दूसरे इस तर ह के आचरण से आपको भी हानि होगी। अगर आपको हानि है तो सहस्रार में प्रवेश पाने के मार्ग में सर्वप्रथम हुई तो भी हमें बदनामी मिले गी कि ऐसा कैसे जो रुकावट अरती है वह है एकादश रुद्र । वयारह हुआा ? लेकिन अ्गर प सहजयोग अरऔर अपनी संहार शक्तियाँ यहाँ होती हैं, पांच इस तरफ, पाँच साधना (seeking) के बारे में ईमानदार हैं तो उस तरफ, और एक बीच में । हमारे द्वारा किये गये अनुमान नहीं लगा सकते कि भगवान शरापकी दो प्रकार के पापों से इन रुकावटों का निर्माण कितनी देखभाल करते हैं। जो भी व्यक्ति जो होता है। अगर हम अपना सिर गलत ( मिथ्या) आपको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा, वह बहुत हानि भोगेगा और उसे आपके रास्ते से हटा अपनाते हैं तो दाहिनी ओर की पांच रुद्र शक्तियों दिया जाएगा। भगवान आपकी प्रत्येक बात में में खराबी आती है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति रक्षा करते हैं और पूरे चित्त से और पूरी सावधानी के आगे भुके हैं जो गलत किस्म का व्यक्ति है और से आपकी देखभाल करते हैं। वे इतना प्रेम करते भगवान के विरुद्ध है तो दायीं ओर समस्या उत्पन्न हैं कि उनकी दया का बखान शब्दों में नहीं किया हो जाती है । अगर पराप यह सोचते हैं 'मैं अपनी जा सकता है । उसकी केवल अनुभूति की जा सकती देखभाल खुद कर सकता है, मैं प्रपना गुरू स्वयं हैं, ले किन आत्मसाक्षात्कार के बाद जो लोग भिन्न व्यक्तित्व (personality) बिलकुल पृक्षी यह आदमी तो, जब यह कुण्डलिनी यहां पहुँच जाती आप गुरुओं के आगे भुकाते हैं, उनके दूष्ट मार्ग को मुझे कौन शिक्षा दे सकता है, मैं किसी को बात है औोर बह समझा जा सकता है । नहीं सुनना चाहता और मैं भगवान में विश्वास अब समस्या यह है कि जो लोग बेईमान होते नहीं करता, भगवान कोन है ? मैं भगवान की वे अपने पूर्व संस्कार (background) की परवाह नहीं करता। अगर इस प्रकार की वजह से, कभी-कभी अपनी शिक्षा की वजह से, भावनाएं आपके अन्दर हैं तो आपकी दायीं ओर अपने पालन - पोषरण (upbringing) की बजह से नहीं, बल्कि बायीं श्ोर खराबी आ जाती है । निर्मला योग मो क्योंकि श्रपका दायां भाग (पाश्व्व, बाजू) घुम कर आत्म-समरपंण कर दें, प्रपनी त्रुटियों को स्वीकार इधर (बायीं प्रोर) और बायां भाग दाहिनी तरफ करें, और कहें कि मैं स्वयं ही गुरू है, तो वे आ जाते हैं। अतः ये दस चीजें और एक विराट ठीक हो सकते हैं । [और जो लोग यह कहते हैं मैं विष्णु का स्थान, क्योंकि हमारे पेट (stomach) ही सबसे बड़ा हैं, मैं भगवान में विश्वास नहीं करता, मैं किसी भी ईश्वर के दुत (prophet) में में भी दस गुरुओं के स्थान हैं और एक त्रिष्णु का स्थान है, इन सब में खराबी आ जाती है। तब बिश्वास नहीं करता-ईश्व र के विरुद्ध या ईशवर साधना में भी गलती होती है और ये दस गुरू अपना के दूत के विरुद्ध होना एक ही बात है-ईशवर स्थान त्याग कर देते हैं । तब प्राफपको इस एकादश विरोधी व्यक्तिव जो इस तरह की बात करते हैं, रुद्र की पकड़ हो जाती है। जब इस प्रकार की चीज और इस लिये समस्याग्रों का निर्मारण करते हैं, आपके अन्दर आ जाती है, जेसे कि मैंने बताया, एक इस ओर (ईड़ा) और एक उस ्रर (पिंगला), सुपर कींशस' (super conscious) प्रथ्थात मध्य तो जिन लोगों ने गलत प्रकार के व्यक्तियों के मार्ग को परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश पाने का आगे सिर झुकाया है, उनका ऐसा स्वभाव या ऐसा एक मात्र मार्ग के रूप में स्वीकार करें तो वे भी व्यक्ति बन जाता है जिससे केंसर जेसी असाध्य (incurable) बीमारियों का आक्मण हो सकता है । जिन लोगों ने गलत व्यक्तियों के प्रागे सिर झुकाया है उनको केसर या इस प्रकार की कोई गये हैं। मैंने देखा कि जो लोग सब प्रकार की गलत भी बीमारी हो सकती है । ार गर वे अपने को विनम्र बनाएं प्रोर सहजयोग को, ठी क हो सकते हैं। मैंने देखा है कि जो लोग तांत्रिक थे, बचा लिए न । चीज कर चूके थे, बचा लिए गये हैं। जो लोग विभिन्न संगठनों के सदस्य थे, वचा लिए गये हैं । लकिन किसी को भी विश्वास दिलाना कि जो कुछ अ्रब जो लोग सोचते हैं कि मैं किसी और से अच्छा है, मैं भगवान की परवाह नहीं करता, मुे भी वे कर रहे हैं गलत काम है और उन्हें सही भगवान नहीं चाहिए, मुझे इससे कोई मतलब नहीं, ऐसे लोगों के बायीं ओर के एकादश रुद्र में खराबी आती है । और बायीं ओर के एकादश रुद्र की पकड़ भी अत्यधिक खतरनाक होती है क्योंकि ऐसे लोगों को शारीरिक रूप में दायीं ओर (पिगला) की तकलीफें, जैसे हृदय रोग, और दायों ओर की अन्य प्रकार को तकलीफ है जाता है। लिए हैं। अ्रतः जो लोग अन्धाधु व गलत माग पर रास्ते पर आ जाना चाहिए, बहुत कठिन काम है । अतः प्लूटो के विरुद्ध एक नक्षत्र उत्पन्न हुआ प्रर यही नक्षत्र है जो कसर की बीमारी लाया है । क्योंकि प्लूटो नाम का नक्षत्र केंसर की वीमारी को ठोक करता है, यही सब असाध्य बीमारियों के अतः कुण्डलिनी के सहस्त्रार में प्रवेश पाने के चलते जाते हैं, उन्हें अजीब तरह के हृदय- विरुद्ध जो सबसे बड़ी रुकावट आती है, वह एकादश रोग, दिल-बड़कना (palpitation), श्रनिद्रा रुद्र है, जो भवसागर (void) से आता है, और जो मेधा' यानी मस्तिष्क के फर्श (plate) को ढकता बकना, हो जाते हैं । गलत गुरू के पास जीना है । इस तरह यह लिम्बिक (तालू) क्षेत्र (Ilimbic प्औौर उसके आगे सिर झुकाना बहुत ही गम्भीर area) में प्रवेश नहीं कर सकती । यहां तक कि बात है। इस प्रकार के आदमी के लिये सहस्र्रार वे लोग जो गलत गुरुआओं के पास जा चूके हैं, प्रगर में प्रवेश निषिद्ध हो जाता है । जो लोग सहजयोग सही निष्कर्ष पर पहुँचे अऔर सहजयोग के सम्मुख के विरुद्ध हैं उनका सहलार बहुत ही कठोर (सख्त) ( insomnia), उल्टियां, चक्कर आना उल्टासीघा निरमला योग २१ होता है, एक बादाम या अखरोट के बाहरी खोल (vibrations) आानी शुरू हो गई। तो सहक्रार पर सहजयोग की पहचान कराने (मान्यता प्रदान अगर आप हथोड़ी का भी उपयोग करें तो भी आप कराने) का भार है, यह उसको सिद्ध करता है और विश्वास करवाता है। और अगर सिद्ध करने पर भी आप उसे पहचानते नहीं, तो आप आत्म- (nut) की भांति, जो तोड़ा नहीं जा सकता । नहीं तोड़ सकते ! आज समय आ गया है कि सहजयोग को साक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते । पहचानना (मान्यता देना) आवश्यक है। आपको पहचानना हो पड़ेगा। आपने किसी संत, किसी लेकिन जो पहचानते भी हैं, वे आंशिक रूप में पंगम्बर, किसी अवतार, किसो को भी नहीं पहंचानते हैं, वे अनधिकार स्वतनत्त्रता लेते हैं । पहुनाना । लेकिन आज तो यह शतं है कि अ्रापको आचरण में यथोचचत् आदर भाव, नम्रता व संयम पहचानना पड़ेगा। अगर आपने तहीं पहचाना, तो नहीं बरतते, वे हास्यास्पद प्रकार से व्यवहार करते यह नहीं समझते कि यहां पर यह महापुरुष आपका सहस्रार नहीं खुलेगा, क्योंकि यही समय है हैं जो हैं, वह कोन हैं? मैंने कई वार देखा है कि मैं भाषणा दे रही होतो है और लोग हाथ ऊपर करके ही शवशयक बात है कि आप सहजयोग को कुण्डलिनी चढ़ा रहे होते हैं या गपे मार रहे होते पहचाने । कई लोग ऐसे हैं जो कहते हैं, मां है। मुझे प्राइचर्य होता है। क्योंकि अरगर आपने पहचाना है, तो प्रापको पता होना चाहिए कि आप जबकि सहल्रार खोला गया, और आपको अपना आत्मसाक्षातकार प्राप्त करना है । यह एक बहुत सहजयोग में इस तरह क्यों विश्वास करें ? हम बस शपको मा पुकार सकते हैं, आप हमारी मां हो किसके सम्मुख खड़े हैं । क्योंकि यह मेरे फायदे के ।" ठीक है । कोई बात नहीं। लेकिन लिए नहीं हैं। मेरी इसमें कोई हानि नहीं होने वाली । बस यह केवल यह दर्शाता है कि अपनी उत्क्रान्ति में आपने पहचाना नहीं, मान्यता देने में सकती हो । आप आत्मसाक्षालार नहीं प्राप्त कर सकते । ओर अग र अपने यह प्राप्त कर भी लिया तो ग्राप इसे स्थायी नहीं रख सकते । आपको असमर्थ रहे । पहुचानना पड़ेगा। पूजा है। प्गर आप पहुँचानना हो सहजयोग की सहजयोग में भगवान को जानना चाहते हैं तो पहचानना हो पूजा है सहजयोग में न्य सभो जमाते गण, देवता, देवो, शक्ति एक ही हैं। प्रोर जो कोई एकाधिका र जमाने की कोई आवश्यकता नहीं । भी सहजयोग को नहीं पहचानता, उन्हें (गण, देवता कोई भो मुझ पर अधिकार नहीं जमा सकता । कुछ आदि को) उस व्यक्ति को परवाह नहीं, वह किस लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं 'मां गलत समझी । मुझे प्रकार का मनुष्य है उदाहरणार्थ, एक आदमी कभी भो गलतफहमी नहीं होतो, सवाल ही पंदा जो शिवजो की पूजा करता है मेरे पास आयो। और मैंने देखा कि उसका अनहत पकड़ा हुआ्रा है कीजिए, बह कीजिए" यह भी आवश्यक नहीं । यह आश्चय की बात है। उसने कहा, "मां मैं अपने आपको इस मयादा (protocol) में डालने शिवजी को पूजा करता हूँ, फिर मेरा अनहत केंसे को कोशिश करो, जो सहजयोग में बहुत ही पकड़ा हुआ है ?" मैंने कहा, "तुम्हें सहजयोग को आवश्यक है, और जिसे प्राज मैंने पहली बार हो पह चानना पड़ेगा। शिवजी से पूछो ।" और जब बताया है, कि आप सम्पूर्णतया पहचानने की उसने शिवजी से प्रश्न पूछा तभी चैतन्य लहरियां कोशिश करें । और [अगर आप नहीं पहचानते, तो और जिस प्रकार कूछ लोग मूझपर एकाधिकार हैं, वह भी बिल्कुल गलत है मुझ पर नहीं होता । या कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं, "यह निर्मला योग २२ मुझे खेद है, मैं आपको आत्मसाक्षास्कार नहीं दे कोई समझौता नहीं हो सकता, आपके व्यक्तिर्व का सकती जो कि स्थायी रहे। क्षणि क रूप से आप पूर्णतया समग्रीकर आवश्यक है । आपने वमों को इसे पा सकते हैं किन्तु बह स्थायी नहीं होगा। ठीक करना पड़ेगा। आप गलत काम करके और कहें कि मैं सहजयोगी है यह चल नहीं सकता । तो अपनी उच्च अवस्था को प्राप्त करने का सरलतम मार्ग है, शप शन: व्शनेः (बीरे-धी रे) पहचान । मान्यता प्रदान करें । यदि कि सी में कोई आ्पकी आत्मा आपको बसन प्रदान करती है, आप दोष या कमी है तो उसे वह बताना कठिन है, वस अपनी संकल्प शक्ति लगाते हैं कि हां, मेरी असम्भव है। सहजयोग में आने के बाद मैं यह बता आत्मा कार्य करे और आप अपनी आत्मा के सकती है कि यह चक्र पकड़ा है, वह चक्र पकड़ा प्नुसार ही कार्य करने लगते हैं। और जहां आप है । लेकिन, क्योंकि आपको यह ज्ञात है कि उक्त चक्र पकड़ने का क्या अर्थ है। आप फिर आते हैं और आप देखते हैं कि आप किसी चीज के दास नहीं हैं । कहते हैं, "नहीं, नहीं मां देखो, ऐसा नही हैं, वैसा आप समर्थ हो जाते हैं, अर्थात् (सम- अ्र्थ ) अपने नहीं है। अर्थ के समतूल्य; सम प्रथ,; समर्थ का अर्थ शक्ति- चक्र खराब है? आपको स्वयं ही अपने प्रापको शाली व्यक्तित्व भी है। तो आपका वह शक्तिवाली सवच्छ करना है, पूरी ईमानदारी से । ले किन सर्व- व्यक्तित्व बन जाता है जिसे कोई भी प्रलोभन नहीं प्रथम आपको पूरी समझदारी और नरता से पहचानना है । एक बार आपने पहचान लिया. तो नहीं होती, कोई समस्या तहीं होती। घीरे-धीरे आप बह सब कुछ करगे जो करना है, आप जान जाते हैं क्या करना है । लेकिन इसके लिए सामश्थ्य अन्दर से आती है। अपनी आत्मा के अरनुसार कार्य करने लगते हैं । तो मैं प्रापको क्यों बताऊ कि आपका होता कोई भी असद्-विनार नहीं होता, कोई पकड़ स्वार्थी लोग के वल अपने आपको ही नुकसान पहुँचा रहे हैं, सहजयोग को नहीं । सहजयोग तो सहस्रार का सार समयीकरण (integration) प्रस्थापित होगा ही यदि इस नौका में दस आादमी है । सहस्रार में सारे चक्र स्थित हैं । अत: सब ही हों, तो भी ईश्वर को परवाह नहीं । मां होने देवता/देवी का समग्रीकरणु समग्रीकरण की प्नुभूति कर सकते हो । होने की वजह से मैं चाहती है कि इस नोका में अर्थात् जब आपकी कुण्डलिनी सहस्रार में पहुँच अधिकतम लोग आएं] । लेकिन एक वार नोका में जाती हैं तो आपका मानसिक, भावात्मक और सवार होने के बाद बेईमानी के काम करके वापस श्राध्यात्मिक व्यक्तित्व एक ही हो जाता है । आपका कुदने की कोशिश न करे । शारीरिक व्यक्तित्व भी इसी में विलय हो जाता है । तब आपको कोई भी समस्या नहीं रहती, जैसे कि "मुझे मां से प्रेम है, किन्तु मुझे खेद है मुझे यह हो जाएं । समग्रीक़रण से आापको वह शक्ति पैसा अवश्य चुराना है । मुझे पता है, मैने माताजो मिलती है जिससे आप जैसा समझते हैं तदनुसार को पहचाना है, मैं जानता है कि वे महान हैं, कार्य करते हैं, ग्रौर जैसा प्राप समझते हैं उससे ले किन मैं कुछ नहीं कर सकता, मुझे झूठ बोलना आप प्रसन्न रहते हैं । तो आप ऐसी अवस्था में ही पड़गा" या मुझे यह गलत काम करना ही पहेंच जाते हैं जहां आप इस 'निरानन्द को पाते पड़गा क्योंकि अन्य कुछ उपाय नहीं ।" मेरे साथ हैं। और यह निरानन्द आपको मिलता है जब आप औ्र प्राप उनके की वजह से मुझे ही परवाह करनी पड़ती है। मां अतः यह बहुत सरल है कि आप समग्र निर्मला योग २३ पूर्णतया आ्रत्मा स्वरूप बन जाते हैं। निरानन्द उनके जो क्रिया-कलाप हैं वे वास्तव में श्रात्मा के अवस्था में कोई भेद-भाव नहीं रह जाता । यह धर्म नहीं हैं। लेकित धीरे-धीरे हमने अपनी जडें अद्व त है । 'एक' क्यवितत्व होता है पूर्णतया समग्र हो जाते हैं और [प्रानन्द में कहीं सत्य को अपने अन्दर जड़े जमाने दो । ओर जब सहस्रार के मध्य से इस जमा ली हैं। अब ओ थात आप । न्युनता (अपूर्णता) नहीं है। इसमें प्रसन्नता या दूःख के पहलू नहीं होते, मागदशन करता है, ऐसा प्रकाश जो भापका पोषण बल्कि यह बस 'आनन्द' होता है ।आनन्द का अर्थ करता है, ऐसा प्रकाश जो आपको प्रदीष्त करता यह नहीं कि आप ठहाका मार कर हंसे या मुस्कराते है और आपको एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करता है रहें। यह निस्तव्धता (stillness) अरापके अन्तरतम का विश्राम भाव (quietitude), शान्ति (peace) कि आपका सहलार आपकी आत्मा द्वारा पूरणंतया आपके स्थक्तित्व की, आपकी आत्मा की जो चंतन्य प्रज्ज्वलित हो गया है आपका मुखमंडल ऐसा प रहती। वह सम्पूर्ण होता यह सत्य उस प्रकाश में बदल जाय जो आपका जिसमें प्रकराश है, तभी आपको समझना चाहिए नहरियों के रूप में स्फूरित होती है, जिनकी आापको होना वाहिए कि लोग जाने कि यह जो व्यक्तिर्व अनुभूति होती है। जब आपको उस शान्ति की सामने खड़ा है वह प्रकाश है । इसी प्रकार सहत्रार अनुभूति होती है तब आप अपने को मुर्य के प्रकाश के ममान अनुभव करते हैं, उस सौन्दयं की छटा चारों और बिखरतो रहती है। की देखभाल करनी है। सहस्रार की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर डके । सदियों में सिर ढकना अच्छा है ताकि मस्तिष्क किन्तु पहले हम अपने निजो, स्वार्थी, मूर्ख कल्पनाओं से भयभीत होते हैं । उनको फंक दो। 0 ड से ना जमे क्योंकि मस्तिष्क भी मेधा (fat) वे हम पर छायी होती हैं क्योंकि हम असुरक्षित थे और कयोंकि हमारे गलत विचार थे । उन्हें फक उ्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने मस्तिष्क दो ईइतर के साथ एकरूप होकर खड़े रहो । आप पाओगे कि ये सब भय व्यर्थ थे । हमारी शुद्धता बहुत आवश्यक है। यह शुद्धता तब श्राती है जब आप सहजयोग में बताई विधि के अनुसार आप बास्तव में शुद्धिकरण करे । का बना होता है । ओर फिर मस्तिहक को बहुत को ठीक रखने के लिए, आपको हर समय घूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए, जेसा कि कुछ पाइचात्य लोग करते हैं। उससे आपका मस्तिध्क पिघल जाता है शरोर आप एक सनकी मनूष्य बन जाते हैं, जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ समय बाद पागल होने की सम्भावना है । अगर आप धूप में भी बैठे तो अपना सिर हके रखें। सिर ढकना बहुत [आवश्यक है लेकिन सिर को कभी कभी है। सहस्रार बेधना वहुत कठिन कार्य है। ओर ढकना चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर अप जब मैंने सचमुच भारी पट्टा बाँधे रहें तो यह कार्य इतना सफल होगा। पहले मैंने सोचा कि रक्त का संचार ठीक प्रकार से नहीं होगा और उचित समय से पहले हो गया। क्योंकि कई ग्रापके रक्त संचार में तकलीफ होगी। अत: केवल राक्षस प्रभो भी गलियों में प्रपना माल ेच रहे हैं कभी कभी (हमेशा नहीं ) सिर को सूर्य अथवा और कई ऐसे धर्मान्ध लोग भी हैं जो तथाकथित चन्द्रमा के प्रकाश में खुला रखना उचित है । नहीं तो घमं के नाम को दूहाई देते हैं किन्तु वास्तव में अआप चांद के प्रकाश में प्रत्यधिक बैठे तो पागलखाने मैं कहूँगी सहस्रार देव ईश्वर) का अाशी- वाद है। यह ऐसे सुन्दर रूप से क्रियान्वित हुआ का इसे वेधा तो मुझे पता नहीं था कि हमेशा ही सिर पर एक यह निमंला योग २४ पहुँच जाएंगे। मैं जो कुछ भी बताती है, आपको विचारों (ideas) से नहीं चिपकना चाहिये गोर समझनाचाहिए कि सहजयोग में किसी भी चीज में न व्यक्तियों से चिपकना चाहिये। आपको हमेशा अ्रति ना करें। यहां तक कि पानी में भी लोग तीन- गतिमान रहना चाहिये, इसका यह मतलब नहीं कि तीन घंटे तक बैठे रहते हैं। मैंने ऐसा कभी नहीं इस गतिशीलता में आप कहीं गिर जाएं प्रौंर सोचे कहा। सिर्फ दस मिनट के लिए आपको पानी में अरे, हम तो बहुत उम्नति कर रहे हैं क्योंकि हम बैठना है, किन्तु वह पूरे हृदय से । अगर मैं उनसे गिर रहे हैं ।" आपको ऊंचा उठना है, गिरना कुछ करने को कहती है तो वे वह चार घंटे तक नहीं है । करते रहेंगे। इसकी कोई आवश्यकता नहीं । केवल दस मिनट के लिए कीजिए। हू तो जब आप सहजयोग में कुछ प्राप्ति कर रहे हैं तो आपको सर्वप्रथम देखना चाहिए कि आपका अपने शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रनुभव, स्वास्थ्य ठीक रहे, आपका मस्तिष्क सुचारु उपचार (treatment) दोजिए, हमेशा एक हो ( normal) रहे, आप एक सामान्य (normal ) व्यवस्था नहीं। इस तरह तो आपका शरीर नीरस उयक्ति हों। अगर आप अभी भी लोगों पर भौकते (bored) हो जाएगा या बोझल (over- है (अश्रिय बोलते हैं) तो आपको यह जान लेना burdened) अनुभव करेगा अगर आप किसी को चाहिए कि आपमें कुछ दोष है । या आप मन में बताएं कि अ्रापके लिए यह मन्त्र है तो इसे तभी उदास, उद्विग्न और रकारण कुपित होते या अरापकी मन स्थिति बिगडती है तो आप समझ लें कि तक प्रयोग करना चाहिए जब तक कि आप इस ERNINTE चक्र की बाधा से छुटकारा न पा ले । उसके आप अभी सहजयोगी नहीं हैं। आप अपने अराप की पश्चात् नहीं । मान लीजिए इस जगह एक पंच जांच कर सकते हैं। अगर आप एक पक्षी की तरह लगाना है। तो आप इसको तभी तक घुमाएंगे जब स्वच्छन्द (free) हैं तो ठीक है। लेकिन इसका तक कि यह मजबूती से न गड़ जाए। आप इसको यह प्रथ नहीं कि आाप सड़क पर चिड़िया की तरह गड़ने के बाद भी घुमाते नहीं जाते। क्या आप गाते फिरें या पेड़ों पर फुदकते फिर । एक मूढ़ इसको लगातार घुमाते हो चले जाए गे ताकि सारी आदमी के सामने मैं कोई भी उपमा दें वह अत्यन्त चीज बिगड़ जाए ? अच्छा है कि आप सद्बुद्धि मूर्खता पूर्ण आचरण करेगा । लेकिन वहो एक विवेक का प्रयोग करें । और इस सद्बुद्धि के लिए सद्बुद्धिमान के सामने देने से वह उसका सही आपको श्री गणेश या ईसामसीह को जानना उपयोग करेगा । तो यह समझना चाहिए कि सहज- द्वारा विवेक पूर्वक दे योग विवेकी मनुष्यों चाहिए । जाना जाता है । ईसामसीह, जो सिर के दोनों तरफ हैं, यहां (पोछे) महागणेश हैं और यहां ( सामने माथा) ईसामसीह हैं । दोनों आपकी दृष्टि ठोक करने को दूढ़ता पूर्वक पकड़ लेते हैं । वह चीज है आपकी में आ्ापकी सहायता करते हैं और अरपको समझदारी आत्मा और आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक पतंग व सद्बुद्धि प्रदान करते हैं । चीज से चिपकने में नहीं है । सहजयोगी चिपकने चीज के ऊपर उड़ती फिरती है । आप एक ही चीज वाले लोग नहीं हैं। अगर वे चिपक जाते हैं तो से चिपके रहते हैं, वह है आपकी आरात्मा । अगर समझ लो वे उन्नति नहीं कर रहे हैं। आपको आप सचमुच ऐसा कर सके, यथार्थ में और सहजयोग में होता क्या कि है धाप एक चीज तो सद्वुद्धि किसी की तरह विचरण करता है, जैसे एक पतंग हरेक निरमला योग २५ ईमानदारी से, पैसा, परिवार और अन्य समांस रिक सामूहिक नहीं हैं, अरगर प्राप निराले या हास्यास्पद वस्तुओं के बारे में प्रधिक चिन्ता किए बिना, तो हैं, श्रगर ्राप दूसरों से विचार संचार नहीं आ्प सहजयोग में सफल हैं। इनके बारे मे बस चिन्ता न करें, अपको चिन्ता करने की आवश्यकता कुछ गड़बड़ है । और तब आप अपने आपका नहीं। बस बन्धन दीजिए। अगर ऐसा नहीं हो स पाता तो आपका सहजयोग समाप्त । अगर हो ठ (communicate) कर सकते, तो समझ ल कि सामना करें (अपने को जांचे) और अपने आपको ठीक करने की कोशिश करें। जसे एक साड़ी को उतार कर साफ किया जाता है। आप अपने को अपने 'स्व' से अलग कर के साफ करें । इसी प्रकार वही हो (Thy will be सहजयोगी प्रगति करेंगे । जब कूछ सहजयोगी जाता है तो बहुत अच्छा। आपकी व्यक्तिगत इच्छा का महत्व नहीं, प्रभु की इच्छा का महत्व है- प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो done) प्राप कहें प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो । ऊंचे उठंगे तो और [अनेक उनसे प्रभावित होंगे और प्र कंसा आश्चर्य है कि आपकी इच्छाएं बदल ऊंचे उठेगे । इस प्रकार सब सहजयोगी समुदाय जाती हैं, आपके संकल्प बदल जाते हैं और जो कुछ बहुत तीव्रता से ऊंचे उठ सकता है । लेकिन तुम भी आप कहते हैं वही हो जाता है। लेकिन जव लोग जो ऊचे उठ रहे हो, श्रर ज्यादा उन्नति करो, ऐसा हो जाता है तो लोगों में अहंका र उत्पन्न हो विना अपनी उन्नति के बारे में सोचते हुए । यह जाता है । अत: सतर्क रहें । यह सब 'श क्ति' द्वारा किया जाता है, आपके द्वारा नहीं। [आपकी 'आत्मा द्वारा, आप द्वारा नहीं। अरपको आरत्मा होना है। और जब अ्रप आत्मा हो ही जाते हैं तो याप अकमं में होते हैं, जहां प्राप जानते नहीं कि आप कर रहे हैं, बस हो जाता है, प्राप अनुभव नहीं करते, आरप अवगत नहीं होते । वहुत आवश्यक है । श्रवश्यक है । जो लोग सोचते हैं कि दूसरे लोग उनसे ऊंचे हैं वे भी गलत सोचते हैं, क्योंकि ऐसी बात नहीं है । समस्त ही ऊंचा उठ रहा है। कोई इस प्रकार अपने , को निम्न न समझे या अपमानित अनुभव न करे कि कोई उन्हें निम्न समझता है । औरों को सोचने दो. उससे क्या होता है, भगवान तो ऐसा नही इन संब भाषणों के बाद, आप के ज्यादातर सोनता । तो ये छोटी-छोटी बातों से आप सतर्क चक्र खुल गए होंगे । लेकिन यह सब 'मेरा' कार्य रहे । इस कृतयुग में आत्मसाक्षात्कार का चरम है। अब आपको भी कूछ घुर जाकर काम (home work) करना है । आपको भी अभ्यास करना है ओ्र अपने आपको देखना है। सावधान रहो। अपने प्रापको दर्पण में देखने और अपना सामना करने की कोशिश करो। आप देखें आप कितने आप अभी पुछ लें। ले किन सिर्फ सहस्रार के बारे में, ईमानदार रहे हैं, आप कितने शुद्ध रहे हैं, सामूहिकता में आप कितने मित्रता पूर्ण हैं. जो मेरे से अन्य विषय के बजाय सिर्फ सहस्रार के बारे सहजयोग में बहुत महत्व रखता है । अगर आप में ही प्रश्न पूछ । लक्ष्य प्राप्त केरना बहुत ही औसान है । मैं सोचती है कि मैंने सहस्रार के बारे में बहुत कुछ बताया है। अगर आपकी कोई समस्या है तो 1. और किसी के बारे में नहीं। अच्छा होगा कि आप नि निर्मला योग. २६ LF जय श्री माता जो न महामानव (The Superman) सहजयोग हो सहजमार्ग, और न कोई आन । चल कर इस पथ पर, बन तु मानव महान ॥ १॥ बाहर से स्थिर तू, भीतर से गतिमान । यात्रा यह जीवन अनन्त की, हे मानव महान ! ॥२॥ शगे बढ़ना सहज में, कर दूर अज्ञान । होगा प्रमर जीवन तेरा, हे मानव महान !॥३॥ ।।३|॥ चल अब निरन्तर, अ्रसत् से सत् की प्रोर । तम से ज्योति, मृत से अमृत, कोई न जिसकी छोर ।।४॥ तज दिया जग सारा, छोड़ दिये घर बीर । साथ तेरे चलने को, हो गये हम भी तेयार ।।1५।। पत होकर गृहस्थ हो, तय कर यह पंथ । पढ़ना-सोखना सह ज हो, सहज हो तेरा ग्रन्थ ।।६।। "प्रभु का अन्तिम निर्णय" ही, हे मानव महान ! । असीम क्षमता तेरी, दे बदल यह जहोन ॥७॥ आनन्द ही आनन्द धरा पर, होगा जीवन प्रनन्त । भय-शोक दूःख-दर्द का, प्राया प्रब अन्त ॥८॥ KOLLA काम _० पर निरन्तर, रहते जिनके ध्यान मृदुभाषिता, विनम्रता के, हैं जो मूर्तिमान ।। ।। मातृ पदकमलों । सहज सद्गुरण सम्पन्न, सुहृद हे क्षमावान ! । धन्य-धन्य हो तुम, हे मानव महान ! ॥ १०॥ हिंद म विचार। तन मन भाव शुद्ध, मृदू वचन मुक्त नित्य पवित्र चिन्तन, सतुलित तेरा व्यवहार ।। ११॥ निमंना,योग २७ rho माँ के प्रिय बालक हो, हो तुम प्रान समान । बदलेगा तू इतिहास, हे मानव महान !॥ १२।। कहां गया अहं तेरा, गये कहाँ षट् विकार । हुमा विशुद्ध मन, पाया प्रात्म साक्षात्कार ।। १३।। सहज जीवन के आधार, मानवता के हो प्रान। विनम्र-प्रिणिपात चरणों पर तेरे, हे मानव महान !॥ १४ ॥ मातृप्रम से प्रालोंकित पथ तेरा, पाया आरत्म ज्ञान । करो मार्ग दर्शन मानवता का, है मानव महान ! ।।१५।। With best compliments from: S. K. GUPTA A.B. CORPORATION 1-C/27, Rohtak Road New Delhi-110005 Phones : 5719379, 5725601 निमंना योग २८ (द्वितीय कवर का शेषांश) पपके ओष्ट (अ्रधर) वाम विशुद्धि की ओोर जाकर विकृत हो जायेगे| बहुना आरम्भ कर देता है आप इस पर विचार कीजिए आपको महतो प्रसन्नता एवं आह्वाद का अनुभव होगा। यह सरलता वामांग विशुद्धि में श्रकर कटू एवं कठिन कण्टदायक वन जाता है सा प्राप सब प्रपनी वामांग विशुद्धि पर नियंत्र र कर जाती है तब यह फिर औ्र ऊँचे उठकर प्रवयवी मृद्ल वाणी द्वारा मंजुल शब्दों का प्रयोग क्र आपको भाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए मृदु होना अनिवार्य है । विशेषतया पूरुष वर्ग को अपनी सह- जब यह स्राव उचवस्थ आज्ञा चक्र में पहुँचता है जहाँ श्री गराश शक्ति सर्वोत्कृष्ट क्षमाशक्ति बन । क्षेत्र (Limbic area) में पहुँचती है जहां श्रीगणेश श कि्ति, जोसुर्य से परे है, विराजती है । त व विशिष्ट धमिणियों से मृद्ल संभाषरण (मोठी-बात) कारनी अह (Superego) ऊपर उभरती है। यह शक्ति चाहिए। अब यह मृदुलता आपकी बामांग विशुद्धियों को शुद्ध कर देगी। आप सदैव वारणो की ह शिव के सिर पर विरा जमान होती है। यह एक ही प्रयोग करें । मृदूल अपराध भावना की सुधारते का क्योंकि यदि आप किसी को भी कटुव वन कहते हैं से हमारी इच्छा ही आत्मा (Spirit) बन तो प्राप अपनी चिर-अभ्यस्तता प्रनुसार जाती है। आपकी इच्छा श्ौर आत्मा का समस्वय करते हैं तथा ऐसा करने में आपको प्रसन्नता का भी होता है जैसे ही आप अपने कथोप- चंद्रमा की शक्ति है । यहाँ चंद्रमा की आत्मा है। यही आात्मा (Spirit) वन जाती है। यह सदा मृदुल प्रक्रिया से संबोधन ही आ्रपनी सविश्रष्ठ माग है बात है । श्री गणेश की शक्ति की सम्पूर्ण उत्क्रान्ति, जैसा कि प्राप देखते है, अति सुन्दर है। इस प्रकार ही ऐसा के (एकीकरण) हो जाता है परन्तु कभी-२ यह बाधा बहुत ही निककष्ट बन जाती है। तुमने देखा है कि अनुभव कथन की समाप्ति करते हैं तो आपको पश्चाताप तम सबके सब जिनकी वाम विशुद्धि है जब कठोर भी होता है और आप कहते हैं कि-"हे भगवान मैं क्था कह गया।" यही सबसे बड़ा अपराध है । पतः सर्देव प्रत्येक व्यक्ति को सुन्दर चुनकर प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिये । नहीं कर सकती और न ही भ्रण्ट कर सकती है। देखिए चिड़ियों का कलरव (चहचहाना ) हो यह कठोर शब्द तभी प्रयोग करेगी जब इसकी वचन बोलते हैं तो आपको ज्ञान होना चाहिए कि यह आ्प नहीं वोल रहे हैं। वस्तुतः नहीं, क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा कठोर वचन उच्चारण मोठे-मीठे शब्द अ रहा है। इसी प्रकार आपको भी सब प्रकार की ध्वनियाँ सीखनी चाहिए जिससे आप अपनी अत्यन्त आवश्यकता होगी, परन्तु चिन्मात्र पुन्निमित मी आप इस पर बिशेप ध्यान दें । यह कार्य किसी अन्य शक्ति द्वार सम्पन्न होना है । मृदुल । यह अति है । नहीं तो प्रापकी बामांग विशुद्धि अ्यधिक बढ़ जायेगी और श्रप वा्तालाप का अलग मार्ग (ढंग) विकसित कर लगे जिसके फलस्व रूप मजुल वारणी से सबको प्रसन्न कर सक महत्वपूर्ण वस्तु श्री माताजी राहरी, दिनांक ३१-१२-८० निर्मला योग तृतोय कवर Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 * निर्मल वाणी हर जिस समय अरपके मन में परमात्मा के प्रति प्रम, प्रादर व आदरयूवत भय (awe) रहता है तब ये विश्वास हो जाता है कि परमा्मा हो सर्वशक्तिमान है और वही हमारा पालन कर रहा है। वह अपनी शक्रिति से हम पर आशोर्वाद की वषों कर रहे हैं। परमात्मा अत्यन्त करुण मय है । वे कितने करुणामय हैं इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते । परन्तु वे जितने करुण मय हैं उतने ही कठोर हैं। अगर उनका कोप हो गया तो वचना महा मुश्तिल है। उन्हें कोई नहीं रोक सकता, मेरा प्यार भी नहीं रोक सकता । क्योंकि वे कहें गे आएने वच्चों को बहुत छुट दे रखी है। इसलिए वे खराब हो गये इसलिए मैं कहती नाम बदनाम न कीजिए । मैं ग्रापको फिर से कहती हैं अपना समय व्यर्थ की बातों में मत गॅवाइए और पूरी तरह से सहजयोग अपनाइए । है कि कोई भी बुरा कृत्य मत कीजिए और अपनी मौ का श्री कराइस्ट के पास एकादश रुद्र की হक्तियां हैं, माने ग्यारह सहार शक्तयां । इन शक्तियों के स्थान प्रपने माथे के चारों औोर है । जिस समय श्री कल्को शव्ति का अवत रण होता है उस समय ये सभी शक्तियाँ संहार का काम करती है । सहजयोग में अरने के बाद आपको समरषित होना जरूरी है, क्योंकि सब मिलने के बाद उसमें टिकना, जमना और उसमें स्थिर होना वहुत महत्वपूर्ण है । वहुत से लोग मुझसे पूछते हैं "हम स्थिर कव होंगे ?" इसका उत्तर है समझ लीजिए आप किसी नाव में वैठकर जा रहे हैं। नाव का स्थिर होना आपकी समझ में पराता है । आप प्रगर दो पहिये वाली साईकल चला रहे हैं वह चलाते समय जय आप डावॉडोल नहीं होते और स्थिर हो जाते हैं ये जैसे आप समभते हैं उसी तरह सहजयोग में आपका स्थिर होना आाप समझ । मैं श्रापके लिए रात-दिन मेहनत करती है । परमेश्वर प्राप्ति के लिए जो आखिरी परोक्षा है वह उत्तो्णं होने के लिए मैं आप पर मेहनत करूंगी लेकिन इसमें अप का भी भूझे पूरी तरह सह- कार्य होना चाहिए। ये सभी प्राप्त करने के लिए स्वतोषरी यत्न करने चाहिए और जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में लगाना चाहिए। सहजयोग महान है, बहुत ही कीमतो है, वह अत्मसात करने के लिए अपना समय उसमें लगाना है । Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 8.00, Annuel Subscription Rs. 40.00 Foreign [ By Airmail £ 12 $ 16] ---------------------- 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt folofell ula द्विमासिक वर्ष ४ अ्रक २२ नवम्बर-दिसम्बर १६८५ प अ + + ी क घे क ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनो. मोक्ष प्रदायिनी माता जी, श्री निर्मला देवो नमो नमः ॥ ी 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt निर्मला विद्या निर्मला विद्या एक विशिष्ट शक्ति है जिसके आमंत्रित कीजिये द्वारा सम्पूर्ण देवी कार्य सम्पन्न होता है। यहां तक युक्ति (तकनोक) आपके समक्ष उपस्थित होकर कि क्षमायापन भी इसी के द्वारा सम्पन्न होता है । अनुचर समान आज्ञापालन को तत्पर होगी। आपको जब आ्राप कहते हैं (प्रार्थना करते हैं) "मां हमें क्षमा चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। यह घटना प्रदान करें ।" वह तकनीक जिसके द्वारा मैं क्षमा विश्व भर में कहीं भी, किसी भी गवर्नमेंट में करती है वह भी निर्मला विद्या की परिधि में श्राता वटित नहीं होती है । आप केवल उस गवन्नमेन्ट को है । वह तकनीक जिसके द्वारा मैं तुम सबसे प्रेम करती है निमला विद्या है द्वारा मंत्र स्वयं प्रत्यक्ष रूप में उ.द्रा पित होकर सृष्टि में इस तकनीक (युक्ति) को निर्मल विद्या के स्पष्टीकरण करते हैं और प्रभावशाली (effective) नाम से जाना जाता है (बिस्यात है) । इस तकनीक होते हैं, वह निर्मला विद्या हो है । निमल शब्द की में कुशलता प्राप्त करने हेतु तल्लीनता से समर्पण व्युत्पत्ति एवं व्याख्या सन्धि विच्छिद द्वारा होती है। करना होता है। जहां कुशलता ( mastery) प्राप्त यथा नि:- मल= निर्मल अरथात् जिसमें किसी प्रकार हृुई यह तल्लीनता से आज्ञा पालन करने को उद्यत का भी मैल (मल) न हो, यानि कि विशुद्ध । 'विद्या रहती है। यह श्री गरेश शक्ति है, यह सरलता, सह- का अर्थ है ज्ञान। अतः 'निर्मल विद्या' विशुद्धतम जता एवं निर्मलतायुक्त शक्ति है । यही सौजन्यता ज्ञान है। दूसरे शब्दों में इसको तकनीकी ज्ञात है। यह सौजन्यमयी सरलता ही [सर्वशक्ति सम्पन्न (यूक्ति संगत ज्ञान) की संज्ञा भी दी जाती है। यह है। जब सरलता वागडोर सम्भाल लेती है और लगाव अथवा मोह उत्पन्न करता है। शक्ति राग स्वयं सब प्रबन्ध करती है तो इस प्रकार से सक्रिय की जन्मदात्री भी है जिसमें भिन्न-२ प्रकार की आकृतियों का प्रादुर्भाव होता सक्रिय होकर अशुद्ध अनंच्छिक वस्तुओं की ओर आकर्षित होती है और अपनो शक्ति से ओोत प्रोत कर देती है। यह एक युक्ति ( technique) है. जा बहुत में यह विशद्धि तक अती है। वहां [आप स्वयं श्रप- पवित्र है जिसकी विस्तृत व्याख्या मैं आपके समक्ष न कर पा सकंगी । क्योंकि आपका संयंत्र सक्रिय नहीं है। अथवा आपके पास यह (विशेष यत्र) संयंत्र है ही नहीं। वह सम्पूर्ण वस्तु अभिजात्य सम्बोधित करें और सम्पूर्ण वस्तु सक्रिय (गतिमान ) हो उठती है । विश्व भर में पूर्णारूप से समस्त । वह तकनी क जिसके होकर गतिमान होती है। है। फलस्वरूप यह यह निरन्तर उच्चावस्था में प्रगति करती तब इसे पराशक्ति कहा जाता है। शक्ति से भी परे यह मध्यमा का रूप घारण कर लेती है। वामाग राधा बन जाते हैं। इसका कारण है प्रापकी अप- राधी प्रकृति की भावना। और आप कटु वचन कह कर दुव्यवहार करते हैं । वामांग की विशुद्धि श्री गणोश शक्ति की बाधा (ब्याधि, पकड़) है। श्रीगणेश सर्वाधिक मृद्ल हैं । जब आप श्री गणेशजी के दर्शन लाभ करते हैं अर विचार करते हैं तो प्रापको कौतुक दूष्टिगोचर होगा-यह सरल प्रशस्त स्त्रोत शेष तूतोय कवर पर) परन्तु आ्रप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह कितना रहस्यमय है। निर्मंला विद्यা के उच्चारण मात्र से ही आप उस महान शक्ति का आह्वान कर निमंला योग द्वितीय कव र 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt त ० श० सम्पादकीय बिन पावन की राह है, बिन बस्ती का देस। बिना पिड का पुरुष है, कहैं कबीर संदेस ॥ -श्री कबीर दास जी सन्त कवि श्री कबीर दास जी निर्विकल स्थिति का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि वास्तविकता निराकार में ही है । यह देश बिना बस्ती का है, मनुष्य विना पिण्ड (शरीर) का है और मार्ग बिना साधन का है । वास्तव में हम सहजयोगियों को निराकार का ही चिन्तन साकार के माध्यम से करना चाहिए । यही साध्य है और यही अभीष्ट भी । निमंला योग १ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर श्री प्रानन्द स्वरूप मिश्र श्री आार. डी. कुलकर्णी सम्पादक मण्डल प्रतिनिधि कनाडा : लोरी एवं कैरी हायनेक 1540, टेलर वे वैस्ट बेन्कूवर, B.C. VIS 1N4 श्रीमती क्रिस्टाइन पंट नीया २७०, जे स्ट्रोट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाकं-११२०१ यू .एस.ए. यू ,के. श्री गेविन द्वाउन श्री एम. बो. रत्नान्नवर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी), बेम्बई-४०००६२ भारत ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पोर्टलैण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. पृष्ठ इस अंक में १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन ४. सहस्रोर चक्र (परमपूज्य माताजो के अंग्रजी भाषरण का अनुवाद) ५. महामानव (The Superman) ६. निर्मल विद्या श २ ... १५. २७ द्वितीय कवर निमंना योग २ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt परमपूज्य श्री माताजों का प्रवचन नई दिल्ली १७ फरवरी, १६८१ प्रादर से और स्नेह के साथ जो ढकोसला बना ले, कोई उसको पेसे में बेचे, कोई आपने मेरा स्वागत किया है यह उसको कोई भर तरीके से बेचे. कुछ उसका रूप सब देख करके मेरा हृदय अ्रत्यन्त प्रेम से भर आया । यह भक्ति अ्रोर और वो जो तत्व है उसका नाम है ब्ह्मतत्व | परमेश्वर को पाने की महान इच्छा इसी ब्रह्मतत्व से सारी सृष्टि की रचना हुई। इस कहां देखने की मिलती है ? आजकल ब्रह्मतत्व को पाना हो जीवन का लक्ष्य है। और वना लीजिए, लेकिन जो तत्व है वह सनातन है के इस कलियुग में इस तरह के लोगों को देख करके दुनिया भर के काम आप करते रहे हैं और करते हमारे जेैसे एक माँ का हृदय किंतना प्रानन्दित हो रहेंगे, अनेक जन्मों में भी किए हैं प्रौर प्रतेक जन्मों सकता है आप जान नहीं सकते। आजकल घोर कलि- में करते रहे हैं और करते रहेंगे। आनेक जन्मों में युग है, घोर कलियुग। इससे बड़ा कलियुग कभी भी आपने भक्ति की है और मांगा है कि हमें यह ब्रह्म नहीं आया और न आएगा| कलियुग की विशेषता तत्व प्राप्त हो. यह आज की भक्ति का फल नहीं है. कि हर चीज के मामले में भ्रान्ति ही भ्रान्ति इन्सान को । हर चीज भ्रान्तिमय है । इन्सान इतना बुरा नहीं है जितनी कि यह भ्रान्ति बुरी है। हर चीज में, अंग्रेजी में जिसे curious (अजीव) कहते हैं, हर चीज में जिसे समझ में नहीं आता कि यह बात सही है कि वो वात सही है, कोई कहता है यह करो और कोई कहता है वो करो, कोई कहता है इस रास्ते जाओ भाई, तो कोई कहता है उस रास्ते जाओ । तो कौन से रास्ते जाएं ? हर मामले में भ्रान्ति है । है है और आश्चर्य की बात तो यह है कि इसी घोर कलियुग में ही यह मिलने वाला है । लेकिन वहुत साफ तरीके से लिखा है कि इसी घोर कलियूग में ही जब इन्सान दलदल में फंस जायेगा तभी यह चीज मिलने की है। इसका मतलब कभी भी यह नहीं कि जो पहले हो चुके हैं, जो व्रधष्टा थे, जो साधुसन्त हो गए हैं, जो गुरु हो गए हैं, जो सतगुरु हो गए हैं प्रोर भी हमारे बेद और पूराणों में लिखा है पुराश आप पढे तो उसमें जो कुछ वह झुछ है । एक शब्द भी झूठ नहीं है। [और भगडा लेकर वो लोग बैठते हैं पौर बातें करते हैं कि वेद में यह लिखा है और पुराण में यह लिखा है, तो दोनों का मेल कसे बैठे । यह झगड़े बहुत होते हैं. और कोई सनातन बनता है और कोई कुछ बनता पर सबसे ज्यादा धर्म के मामले में भ्रान्ति है। पर जो सनातन है, जो अनादि है, वो क भी भी नष्ट नहीं हो सकता, कभी भी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वो अनन्त है। वो नष्ट नहीं हो सकता । उसका स्वरूप कोई कुछ बना ले, कोई कुछ बना है और मुझे हंसी आती है। इसी के बारे में थोडी ले, कोई कुछ ढकोसला बना ले, और कोई सी आज चर्चा करूंगी क्योंकि यह बड़ा झगड़ा कुछ निमंला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt सहो है । पहले अ्रमीबा थे। अरमोबा] से होते ह आ्राज हमें मनुष्य बन गए। और यह जो हम मनुष्य बने हैं, इसके दस धर्म हैं । और वह दस घर्म हमारे हमारे देश में चल रहा है । होते तरह की शक्तियां विराजती हमारे अन्दर तोन हैं। पहली जो शक्ति है मुख्यतः जो शक्ति है वो है अन्दर बसते हैं । इसको हम जोड़ के नहीं रखते । इच्छाशक्ति । अगर परमात्मा की इच्छा ही नहीं होती तो संसार क्यों बनाते। उनकी इच्छाशक्ति जाते हैं । इसका यह मतलब के अन्दर से ही बाकी की शक्तियां निकली हैं। पठन कर या कुछ करें या lecture (भाषण) सुन । इसी शक्ति को हमारे सहजयोग भ।षा में महाकाली इसका मतलब है धमं में आप स्थित रहें । जैसे कि की शक्ति कहते हैं। इसी शक्ति की वजह से आज आप भी भक्ति में रस ले रहे हैं। क्योंकि अन्दर जैसे कि एक कार्बन का है कि उसके अन्दर चार इच्छा ही होती है कि भक्ति में चलें, भक्ति का मजा वेलेंसी होती हैं। उसी प्रकार मानव का धरम है । आ रहा है, भक्ति में रहें, परमात्मा को याद करे, उनको बूलाएं । यह मानव हो करता है । जानवर तो नहीं करता जानवर तो भक्ति नहीं करता। । संजोया नहीं तो हम धमंच्युत हो जाते हैं, गिर नहीं है कि आप कोई सोने का घर्म है कि उसका रंग खराब नहीं होता। उसके अन्दर दस घम हैं। मानव के प्रन्दर घम के प्रति जाग्रति भी है। यह दस घमं कोई नाम देने लायक चीज नहीं हैं। अब यह दस धम को जब हमने बिठा लिया, इस धम से ही हमारा evolution (उत्क्रान्ति) हुप्रा उत्क्रान्ति हुई है, हम श्रमीबा उसके साथ हमारे अन्दर एक दूसरी शक्ति है बने । धम हमारे अन्दर बदलत गए। जब इन्सान वो है इच्छा शक्ति को क्रिया में लाने वाली के धर्म में हम आ गए तो हम इन्सान कहलाने क्रियान्वित करने वाली शक्ति, क्रियाश क्ति । उसे लगे जैसे कि जानवर को आप किसी गंदी जगह पर बिठा दोजिए उसको गंदगो नहीं आती। लेकिन हैं। मैं कोई हिन्दू घर्म सिखा रही हैं या मुसलमान इन्सान को गंदगी का मालूम है । वो इन्सान जो है मानव ही करता है। सहजयोग भाषा में मां सरस्वती की शक्ति कहते उसका घम जानवर से ऊंचा है । घर्म सिखा रही हैं या सिख घर्म सिखा रहो है, वो मेरे समझ में नहीं आई । जो बात मैं सिखा रही हैं वो तत्व की सिखा रही है, वो सब धर्म में एक है। अब जो दशा आने वाली है वह धर्म से परे है। इसलिए कोई भी यह न सोचे कि मैं उन्हीं मां काली अ्रब आपको कोई घर्म का पालन नहीं करना पड़गा आप हो ही जाएगे घर्म में, धर्मातीत जिसे गुरग हमारे लगता तो उसको आप क्रियाशक्ति कह लीजिए। अन्दर हैं। जैसे कि इच्छाशक्ति से हमारे अन्दर गुण आता है वो तमोगुण, और जो क्रियाशक्ति से अता है वो रजोगुण, और हमारे धम की शक्ति और जो तीसरी शक्ति है वो हमारे आअन्दर से हमारे अन्दर जो गुण उत्पन्न होता है वो है सत्वगुरण । इस प्रकार हमारे अन्दर तीन गुण हैं और इन्हीं तीनों गुणों के हेर-फेर से जिसे अंग्रेजी घम का मतलब यह नहीं कि हम इस धम के हैं या में permutations and combinations से ही उस धर्म के हैं लेकिन अन्दरूनी घर्म जो हम धारण अनेक जातियां तेयार हुई हैं । यह क्या है ? आप करते हैं । यानि अब हम जानवर नहीं, ये तो बात अपने को हिन्दू कहें, ईसाई कहें, मुसलमान कहें, प्र मां सरस्वती की बात कर रही है जिसे कि हिन्दू धर्म में लोग मानते हैं । यदि प्रच्छा नहीं कहते हैं । और इसी तरह से यह तोन ले किन वो महासरस्वती की शक्ति है। विराजती है । परमात्मा ने हमारे [अन्दर दी हुई है। इसी शक्ति से हम धर्म को धारण करते हैं । निमंला योग ४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt कोई फर्क नहीं पड़ता । सब एक चीज है । [अब परमात्मा का साक्षात्कार है, क्योंकि आत्मा को देखिए इन्सान में भी कितनी चीजें एक जैसी हैं। जाने बगैर आप परमात्मा को नहीं जान सकते । सब हंसते एक जैसे हैं, रोत एक जैसे हैं, सिर्फ भाषा का फर्क है । इस बजह से हम समझ नहीं पात कि जब तक आपने आत्मा को जाना नहीं परमात्मा सारी सृष्टि चराचर में जो एक हो ब्रह्म तत्त्व बहुता को जान नहीं सकत । लेकिन मैं प्रगर कह कि अ्राप है, वो ही ब्रह्मतत्व जो, उसकी ही भाषा अनेक हो आत्मा को जानिए, प्रात्मा को जानिए, तो आप भी जाती हैं, माने प्याले अलग हों लेकिन उसके अन्दर रट, अ्ाप प्रात्मा को जानिए, अआत्मा को जानिए । जो अमृत है वो सब जगह एक ही है। अब झगड़ा रटने से नहीं जान सकते । उसको पाना होगा । लोग यह करते हैं कि प्याले ठीक हैं कि अरमृत ठोक यह घटना धटित होनी होगी। है, झगड़ा यह है । असल में दोनों ही ठोक हैं। कुछ कुछ ऐसे भी प्याले भगवान बना देते हैं कि उसमें पूरा का पूरा अमृत प्राकर बेठ जाता है। आ्ाखिर ची जो से होती है । पहली तो व्यवस्था यह हुई कि अमृत भी तो प्याले में हो आएगा। [अगर प्यालाह नहीं होगा तो अमृत कसे आएगा । यही भगड़े की कर, होम करें, हवन करें । निराकार ही को सोच बात है कि लोग प्याला और अरमृत को अलग रहे थे इस वक्त । उन्होंने साकार की बात तब नहीं समझते हैं। यानि यही व्रह्म तत्व को जानने के लिए करी। उस वक्त उन्होंने निराकार की बात ही ही वेद लिखे गए । वेद तब लिखे गए । 'वेद 'विद' करी कि हम निराकार को जान । होम करें, हवन से होता है। 'विद शब्द का मतलब हैं जानना । और अगर सारे वेद पढ़ करके भी आापने प्रपने को जागति हो जाए। इसके फलस्वरूप संसार में अव- नहीं जाना तो बेद व्यर्थ हैं। वेद का अरथ हो खत्म हो गया अगर आपने अपने को नहीं जाना। आप निराकार है तो वो साकार होकर संसार में आया । गए और वहां आपके उसको अ्राना ही पड़़ेगा । झगर साकार नहीं आएगा और आपने अपने को नहीं जाना। बगैर आँख के आाप देख नहीं सकते । उसी तरह अपने देश में तीन तरह की व्यवस्था इन तीन हैम इस बह्म तत्व को जाने, उसके लिए कूछ क्रिया कर, ये कर, वो करें, मन्त्र कहें । किसी तरह से तरण हुए । जब आपने अमृत को माना जो कि बहुत भाषण हुए, लेकचर शप सिद्ध तो आप कसे जानिएगा । जैसे कि एक दीप की लो हुए, ही कैसे करेंगे कि परमात्मा है ? कोई सिद्धान्त है देख रहे हैं । दिखने को तो आकार है लेकिन सब अपके पास ? आपके वच्चे अ्रजकल यहाँ मन्दिर तरफ फैली हुई है। उसी प्रकार निराकार साकार में नहीं प्राएंगे। कहेंगे कि क्या भगवान हैं, कोई नहीं होगा तो आप निराकार को जान ही नहीं सिद्धता नहीं । इसलिए जब अ्रपने को जान लेते हैं सकेंगे। इसोलिए संसार में अनेक अवतरण हुए । तो आपके अन्दर से ही ब्रह्म बहुना शुरू हो जाता है । मैं यहां आपको वही चीज देने [गराई है। जिसको आप हजारों वर्षों से खोज रहे थे । यह उसकी वजह है कि श्री विष्णु जो ही हमारे प्रन्दर आपकी अपनी ही है आपकी प्रपनी ही है, सिर्फ घर्म की संस्थापना करते हैं और हमारा उत्क्रान्ति मुझे उसकी कुंजी मालूम है । मैं कुछ अपना नहीं का मार्ग बनाते हैं । इसलिए श्री विष्णु जी की दे रही है । आपका जो है आपको ही सौंपने आई स्थापना हुई। इसका मतलब कभी भी नहीं कि है। आप अपने को जान लोजिए और इस ब्रह्म शिवजी का कोई महत्व नहीं। बहुत से लोग कहते तत्व को पा लोजिए। यही अ्रात्म-साक्षात्कार है, हैं कि भई, हम विष्ण जी को मानते हैं भीर क्योंकि आत्मा का प्रकाश ही बह्म तत्व है । यही उसमें से श्री विष्णु जी के अवतरण हुए हैं। शिवजी को नहीं मानते। यह तो भई ऐसा ही हुआ निमंला योग ५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt कि हम अपनी नाक को मानते हैं और आख को नहीं हैं तो इसको समझ के उन्होंने भक्ति कर दी । तो उसी में लिपट गए वो । माने यह है कि फूल के अन्दर शहद है समझ लोजिए। तो प्रापको फूल का स्वरूप है। उसके अन्दर अगर उनका हृदय है तो शहद लेना चाहिए, यह तो वात सही है। लेकिन शहूद और वह्म देव जी हैं वो फूल के बगेर तो नहीं होता । लोगों ने कहा कि भई उनकी क्रिया शक्ति को सम्भाले हुए हैं। उन्होंने फिर फूल की बात करो। एक शहद की बात करने क्रिया करके सारी सृष्टि रची, सुन्दरता से सब कुछ लग गए, एक फूल की बात करने लग गए । उसके बाद उन्होंने कहा कि फूल की बात करो । तो फूल करके उन्होंने सारी सृष्टि रची और जब लोगों ने ही में प्रटक गए वह लोग । अपने मन से मूर्तियां इन पंच महाभूतों को हो, उसी को, सोचा कि उनकी बनानी शुरू कर दी । उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं सेवा करने से या उनको जागरूक करने से हो करी । उसमें जागृति नहीं दो। उसको कारयदे से परमात्मा को जानें, तो वो साक्षात्कार परमात्मा के नहीं बिठाया । और शुरू हो गया। तो अटक गए। जो विष्णु स्वरूप जी अंग हैं, कहना चाहिए कि तब लोगों ने शुरू किया, वन्द करो भई, अब निरा- कार की बात करो। वो कभी निराकार से साकार में जाएं, साकार से निराकार में जाए। यह भगड़ा चल गया। और झगड़ी कोई है ही नहीं। एक के शुरू मानते, जब कि वे एक ही शरीर के प्रंग प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए विराट श्री विष्णु जी का सबसे बड़ा उसमें शिवजी बसे हैं । बनाया। पांच महाभूतों, पंच महाभूतों को ले विष्णु स्वरूप जो उनके प्रवतरण हैं, वह हुए । संसार में ग्राप जानते हैं कि दशाबतार हुए । अब हुए हैं कि नहीं हुए, इसकी सिद्धता देने के लिएबगैर दूसरा नहीं है और दूसरे के बगैर पहला नहीं हम शए हैं इस संसार में । क्योंकि किसी ने बता है। ऐसी सीधी बात है। क्यों कि दोनों ही बातें वन दिया इसलिए आपने विश्वास कर लिया। लेकिन यह दस अवतरण हुए हैं और इन्हीं प्रवतरणों के सहारे की करी, भ्र दोनों ही बातें ही रह गई वातें रह ही हमारी उत्क्रान्ति हुई है याने पहले-पहले सब गई, बातें ही रह गई प्रोर [आज तक बातें ही लोग मछलियों में ही थे समुद्र में ही जीव धारणा रह गई हैं। तो दोनों ही बात सही हैं। वो भी सही हुई है । सब लोग कहते हैं। अर उसके बाद कुछ है, यह भी सही है। उसका खंडन इसलिए हुआ, मछलियाँ बाहर की ओर चली आई। उन मछलियों उन्होंने खंडन इसलिए किया कि जब जनसाधारण कों पहली बार लाने वाला मत्स्य अवतार हुआ। वो श्री विष्णु का स्वरूप था । उसके बाद आप जानते हैं कि वो दस रूप में अते रहे। यह प्रगवाई यहां ठिकाने से बेठों । जब देखा कि इस तरफ बहत करने का जो कार्य है वो परमात्मा को ही करना बहुते जा रहे हैं तो फर उनकी उस तरफ ले आए । पड़ा । यह परमात्मा का कार्य है । उसे नहीं कर सकता । या एक मछली नहीं कर सकती । इस लिए पहले जो अगवाई करने का काम था उसके नाम है आदिगुरु दत्तात्रेय जी, अआदिनाथ हैं, अआदि लिए साक्षात् परमात्मा संसार में अवतरित हुए। गुरु हैं । वो ही अने क बार संसार में आए और इसमें कोई शक नहीं । गई । एक ने फुल की बात करी और एक ने शहद में देखा कि एक तरफ खूब बहते चले जा रहे हैं तो उनको खींच कर दूसरी तरफ ले ए कि बाबा मनुष्य जो ला रहे हैं वो एक ही इन्सान हैं। उनका उन्होंने कहा कि भई, हां, ठीक है, अवतरण हुए हैं. मानिए इसे । लोग अवतरण को चिपक गए। राम, लेकिन जब लोगों ने दूसरी चीज शुरू कर दी, राम, राम । रास्ते में जा रहे तो ' राम, राम', भक्ति। कि परमात्मा तो संसार में प्रवतार ले रहे बाजार में जाओ तो 'राम, राम, इधर देखो तो निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt राम-राम' । कोई किसी की अकल नहीं रह गई सारे समय प्पने चित्त को देखता रहता है कि कह कि इस तरह से राम का नाम तहीं लेना चाहिए। छलक न जाए मेरा सारा चित्त ।" यह अव- हर समय राम को आप इतना संस्ता किए दे रहे तरण है। राजा जनक एक प्रवतरण हैं। बहुत हैं। उसका भी एक तरीका है। तब फिर उन्होंने बड़े अरवतरण है। वो इस संसार में गुरू के रूप में कहा कि चलिए यह भी बात बन्द करिए । वो ही आए । उनके यहां प्रनेक अवतरण हुए हैं । उन्होंने प्रपना ही इस लिए खंडन किया। भी इन्हें जिसको कि आज हम लोग सिरफूटोवल करत हैं, मुहम्मद साहब भी वही हैं। कोई अन्तर नहीं । और उनकी जो लड़की थी वो साक्षात् वही संसार में राजा जनक के रूप में जानकी ही थी । इसकी अापको हम सिद्धता दे दगे। ्राए थे। और राजा जनक ने एक नोचकता को ही आत्म-साक्षात्कार दिया था । राजा जनक के बारे में अआप जानते हैं कि उनकी उत्होंने भी वही बात करी । लोग 'विदेही' कहते हैं। और उनसे लोगों ने पूछा कि भई अपको विदेही कैसे कहते हैं। नारद ने कहा कि तुमको विदेही कसे कहते हैं ? तुम तो संसार मुसलमान इतने गये हो गए तब बो संसार में आए में रहत हो, तुम विदेही हो ?"कहा बहुत आसान है । र आपको मालुम है कि गुरु नानक के नाम से भई ऐसा करे शाम को बात करना। प्रभी तो तुम संसार में उन्होंने कार्यं किया । एक कोम करो। एक कटोरे में है। उसे लेकर चलो । ओर शाम को मुझे बताना । अव वीद्ध का । कटोरा ऐसा था कि उसमें दूध छलक जाएगा। परन्तु किसी चीज में भर उन्होंने हमारे धरम को हमेशा उन्होंने कहा था कि एक बूंद भी नहीी छलकना संभाला और आखिरी बार वो प्राए थे शिरड़ी के चाहिए, इसी को देखते रहना और छलकना नहों चाहिए एक भी बूंद । तब मैं वताऊंगा कि मझो दिदेही क्यों कहते हैं । लिए लिए घूम रहे हैं। वो उसके साथ सारी दुनिया में गए और परेशान हो गए। जब दा मि का लाट ता ोर उनका जीवन भी उसी तरह से अत्यन्त निष्पाप उन्होंने कहा "अब तो बताइए मैें तो तंग आ गया सारा दिन इस तरह आपके साथ घुमता रहा।" लगे "पहले तो यह बताओ कि तुमने क्या देखा ?" उन्होंने कहा, "क्या देखा ! मैं क्था देखता ? मैं तो पूरे समय दूध ही देखता रहा कि गिर न जाए कहते लगे "मैं procession (शोभी यात्रा, जलूस) कोई शंका की बात नहीं है मेरे लिए। लेकिन में गया। फिर मेरा बड़ा भारी दरबार था प्रर प्रापके लिए हो सकती है । वहां नृत्य हुआ, कुछ नहीं देखा तुमने ?" कहने लगे, "कुछ नहीं देखा । राजा जनक ने कहा कि, बेटे मेरा यही हाल है । मैं कुछ देखता नहीं है। मैं क्योंकि जब तक आपके आंख नहीं आाती आप वेकार में हम । हां अगर मुसलमान खराब है तो वो दूसरो बात है। लेकिन मुहम्मद साहब नही थे । और फिर जब मुहम्मद साहब ने देखा कि 1 दूध वो सभी निराकार ही की बात कर रहे थे वों कि उन्हें मालूम था कि इन्सान चपक जाएगा साई नाथ बन कर। ऐसे इनके अने क अवतरण हुए हैं। श्र यह कोई इन्सान १रमात्मा का सबसे अबोधिता का तत्व या, जिसे innocence कहना चाहिए, उसके अवतरण थे । नहीं थे । यह शाम तक विचारे वो प्रपने और निर्मल था । और वो साक्षात् शक्ति उनके साथ कहने या तो बहन जेसी जनक की लड़की सीताजी थी, ह्मद साहब को लड़को फातिमाजी थी अर अरपको मालू म है कि गुरु नानक जी की बहन नानकी I" यह जानकीजी थीं जो साक्षात् थीं। इसमें ले किन इसको मैं सिद्ध कर सकती है । निमंला योग ७ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt यह बात गुप्त । श्री कृष्ण ने यह बात एक अजु न से बताई और वह भी घुमा-फिरा कर बताई क्योंकि सकते, ठीक है। लेकिन इसको नहीं मान कि पको अरंख देने पर तो मानना हो पडेगा सफेद सफेद है, झूठ झुठ है। तो किस बात का उन्होंने देखा कि अभी समझ में नहीं आ रही इनके झगड़ा है फिर । यह तो अंधेरे में ही लोग आपस में बात । अब गीता पर फिर मैं कभी बोलूगी। आज एक-दूसरे को मार रहे हैं। एक बार [पाँख] खुलने तो इतना समय नहीं है। अब जब हमने देखा बाद पर, मैं बताती है आपसे, आप यह सारे संसार की में कि लोगों में ऐसा है और लोग बेकार में झगडा जो सबसे बड़ी माया है उसको पहचान लेंगे । यह कर रहे है तब स्वय नानक जी संसार में आए थे वो । और उन्होंने कहा कि बेकार में भगड़ा कर रहे. हो । क्योंकि उन्होने सोचा कि मैं ही तो था और हैं. सब लोग एक हैं। इनमें कोई अन्तर नहीं । अब जो हमने वेद वर्गरह रचे और जिससे हमने पंच महाभूतों का हमने कहा कि पांच महाभूतों को मानिए और उसका उससे करिए । निराकार की बात हो गई। मेरी ही जगह अब सेंरे ही यह शिष्य लोग अब झगड़ा कर रहे हैं । वो उन्होंने आ करके समझाया कि भई क्यों भगड़ा कर रहे हो ? वो चीज एक ही थो, चोज एक ही थी। अब जो यह गुप्त रूप से काम डीक है तो ही रहा था वो उसके बाद। आपको आश्चरय होगा. बहुत माश्चयं की बात है कि उस बवत जो दो बच्चे पेदा हुए थे सौता जी के, वो लव और कुश लेकिन साकार भी जीज है। भक्ति भी है और साकार परमात्मा राम, श्री राम, परशुराम। इतना ही नहीं श्री कृष्ण साक्षात् इस संसार में आए । अवतरण उन्होंने किया। यह साक्षातू श्री विष्ण उन्हें कहते हैं । आपको श्चर्य होगा और अभी भी के अवतरण है, इसमें कोई भी शंका की बात नहीं आपको पता है कि नहीं, लेकिन हमको तो पता है। मेरे लिए । पर शिव प्रवतरण नहीं लेते । शिव आप पता करें, कि दोनों हिन्दुस्तान छोड़ कर उत्तर का अवतरण नहीं होता। ब्रह्म देव्र ने भी एक ही की ओर चले गए। उसमें से लव जो थे वो अवतरण लिए हैं। लेकिन शिवजी ने कभी अवतरगा कोकेशियम की तरफ का गए और जा करके इन्होने वहाँ राज किया। और इसीलिए रशिया वर्गैरह में लाव कहते हैं, सलब । इसलिए स्लाव कहते हैं जो न नहीं लिया, क्योंकि वो सदाशिव हैं। के विष्णु | का अवतरण हुए हैं और उन अरवतरणों में श्रापको जान लेना चाहिए कि उन्होंने संसार में आ करके हमें आज मनुष्य बना दिया। उनकी वजह से हम थे वो चीन की तरफ गए और उन्होंने अपने को बने हैं। और उन्हीं की वजह से हमने यह भी जाना ' है कि संसार में अवतार प्राते हैं । लेकिन श्री कृष्ण जी ने यह बाते सिर्फ एक अजू न से बताई। एक अजु न से बताई। सबसे नहीं बताई। सब जन- साधारण को बताने की बात है। भक्ति की मार्ग है, एक कुशान कहलाते हैं। और दोनों में ही सारे चल रहा था । भक्ति में लोग आह्वान कर रहे थे सस्कृत शब्द है। गर प्रप देखिए तो रूसी भाषा परमात्मा को। और इधर लोग जो हैं वेद में वो लोग में इतने संस्कृत शब्द हैं, जरा बिगाड़ हए । जैसे बो जितने भी पंचमहाभूतों को जागरूक कर रहे थे । किसी चीज को कहेंगे कि बहुत अच्छा है या किसी और एक बहुत गुप्त तरीके से दूसरा जो मार्ग बन को मिलेंगे तो नमस्ते करेंगे तो 'रखोशो, हरो शिवाय' । रहा था उसमें राजा जनक जैसे लोग प्रयत्न कर उनके इसमें 'प्रवद' कहें गे, उनके आपने यहां रहे थे कि आत्मा का साक्षात्कार हो जाए। लेकिन सुना होगा newspaper 'प्रवद' । वह श्रापके वेद उनको। उनकी भाषा ही स्लाव है। और कुश कुटा न कहलवाया । पता नहीं, इन लोगों को भी पता है कि नहीं कि लव और कुश की खानदान है शर पपस में लड़ रहे हैं, बेवकुफ लब और कुश के खानदान हैं। एक स्लाव कहलाते जैसे । दोनों हो 1 निमंला योग ८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt से 'बद' और 'प्र माने जिसे कहना चाहिए जागरूक (enlightened)। उनकी सारी भाषा में आप देखिए सारा संस्कृत में ही है । इधर मैं चीन गई थी, मूझे अब भी वहां के सारे शब्द संस्कृत के बने हैं। ले किन बो भी नहीं जानते कि हम भाई बहन हैं। और मूर्ख जैसे लड़ रहे हैं । क्या करें? कौन उनको समझाए कि दोनों जुड़वे भाई के लड़के हो औ्र क्या कर रहे हो ? किस चीज़ के लिए लड़ रहे हो ? इससे कोई तुम्हारे माँ को सुख होने वाला है ? क्योंकि मैं जानती है और आपको बता रही है और उसकी मैं आपको सिद्धता दे सकती है कि यह बुद्ध और महावीर जो थे बो कोई प्रर दूसरे नहीं थे । यह श्री राम के लड़के लब और कुश थे । वो अ्रपने हो थे, कोई पराए नहीं थे । कोई कहते हैं कि हम बुद्ध घर्मी हो गए, हम जैनी हो गए। अरे वो हैं कौन? सब सनातन ही तो हैं। जब आप कहते हैं कि हम सनातनी है तो आपको सोचना भी चाहिए कि सनातन का अचल बहुत बड़ा है। उसके नीचे सब लोग आ गए, कोई छूटने वाला नहीं। यही बुद्ध जब कि आए और संसार में इन्होंने सिखाया कि तुम अब जो यह बीच की घर्म व्यवस्था हमारे आप मूर्ति पूजा नहीं करो, यह नहीं करो, वो नहीं अन्दर बनी हुई है जिसमें प्रवतरण होते गए और करो। क्योकि लोगों ने मू्ति पुजा की हद कर दी बहुत ही गुप्त रूप से कार्य होता गया। तो उस ववत था, उन्होंने इसके लिए सिखाया । और फिर देखा यही दोनों बेटे इस संसार में बार-बार पंदा हुए। कि वी चीज छूटे कर बुद्ध धर्म इतनी बुरी तरह से उसके बारे में हम लोगों को मालूमात नहीं झगड़ा करने में हम लोग बहुत होशि यार हैं। पर दी हैं तो खुद उन्होंने ही इस संसार में जन्म लिया उसकी हमें मालूमात नहीं, क्योंकि history और वो ही हमारे हित्दू धर्म के संस्थापक, जिन्हें (इतिहास) में कोई इस चीज को कोई लिखता है ? हम मानते हैं, अदि शंकराचार्य जी वो ही थे। यह और महावीर यह दोनों बैटे थे । यही दोनों बुद्ध ही थे। वे फिर से आए अपना ख्डन करने के फेल गया है और उन्होंने इतनी बेवकूफियां शुरू कर ले किन । बुद्ध बेटे बुद्ध और महावीर बन कर अए और हम लोग लिए । क्योंकि इन बृद्ध लोगों को कोन समझाए, झगड़ा कर रहे हैं। अरे श्रगर हिन्दू राम को मानते कि 'वुद्ध' माने 'जागरूक । जिसने जान लिया ऐसे हैं तो उन्हीं के यह दोनों बेटे हैं । झगड़ा किस चीज कितने 'बुद्ध हैं ? बुद्ध, बेवकुफ । जैसे वो उनसे कहा का कर रहे हो तुम ? और फिर भी हुम उस चौज कि पुजा नहीं करो तो एक दांत लेकर के बैठ गए, की आपको सिद्धता दे सकते हैं । और उसी से झगड़ा। फलाना लेकर के बेठ गए, इन्सान को कोई न कोई बहाना चाहििए झगड़ा से लोगों का यह कहना है कि यह बहुत चीज किताब में लिखी नहीं। हरेक चीज किताब में करने के लिए । और सबमें एक ही तत्व है। सबमें लिखने की होती भी नहीं। किताब पढ़ कर आप एक ही तत्व है। पर झगड़ा पता नहीं क्यों ? कसे पूरी बात, गीता तो मेरे समझ में बहुत ही थोड़े हुंढ लेते हैं ? कोई न कोई बात झगड़े की हूंढ लेते लोगों के समझ में आई है उसका बहुत ही simple हैं । आरादि शंकराचार्य ने कहा था कि 'न योगे न सरल) सी बात है। बहुत ही सीधी सी बात है सांख्येन', योग, सांख्य से कुछ नहीं होने वाला माँ कि किसी की खोपड़ी में आई ही नही। सबके की ही कृपा से ही सब कुछ होने वाला है । उन्होंने खोपड़ी में से चली गई तो इसमें यह समझ लेना वहुत वड़ी किताब लिखी थी विवेक चूड़ामणि चाहिए कि मैं जो बात कर रही है उसमें से बहुत पता नहीं आप लोग पढ़ते हैं कि नहीं। सी बातें आपको किताबों में भी नहीं मिलेंगी । अब पढ़ते होंगे जरूर, क्योंकि आप लोग सनातन घर्मी है। लेकिन निर्मला योग 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt जिन्होंने इसकी संस्थापना करी वो तो पढ़ते ही अब और कोई सा घर्म कर लें । फिर मैंने सब घर्म होंगे। इतनी बड़ी किताब विवेक चूड़ामरिण लिखने किए। यह घम किया, वो धर्मं किया, मेरे हाथ पैर के बाद उन्होंने एक दूस री किताब लिखी जो टूट गए। मेरी हालत खराब हो गई मेरो सौन्दर्य लहरी' है। पता नहीं आप लोग पढ़े होंगे। तन्दुरुस्ती चौपट हो गई मैंने कहा कि यह केसा सारा उसमें मां का बरणन है, पूरा । यहां तक कि मेरी सब उनका आकार-प्रकार, उनका तोर तरीका तन्दरुस्ती ही चौपटा देगा, तो मैं केसे उसको उनको कौन सा तेल पसन्द है, सर में कौन सा तेल जानुंगा?" और जब उन्होंने जाना कि हम बहां गए लगाती हैं । इतना बारीक लिख गए । विवेक चुड़ामणिणि तो इतनी भारी चौज लिख दी और अब यह माँ का वरणन । यह क्या लिख रहे हैं कहने इधर से उधर, अपने दल वदलते रहे । अपने माथे लगे उसके सिवाय इलाज नहीं । माँ के सिवाय पर लिखा हुआ बदलने से कुछ नहीं होता कि मैं इलाज नहीं । वो ही सब करेंगी। यह शक्ति का काम है । इसलिए हम सब शक्ति के पूजारी हैं । पहली बात । और दूसरे तुम परमात्मा के पूत्र हो। आज तक आप किसी भी ध्म में रहे, आप सब तुम आत्मा हो और कुछ नहीं। उसको तुम्हें पाना शक्ति के पूजारी हैं। वेद में मां को 'ई करके है । इस तरह से अपने ऊपर bond (बन्धन) मत कहा गया है। 'ई शब्द से, उसका श ब्दों का फर्क मारो। लड़ाई झगड़े होते हैं । आत्मा ही सनातन है, है, लेकिन शक्ति को ही पाना है। और शक्ति भी क्या शक्ति है ? यह ब्रह्म की शक्ति है । ओ्र ब्रह्म है सबने यही कहा है कि क्यों भई इधर-उघर क्या है ? यह परमात्मा को इच्छा है, और परमात्मा भटकते हो । अपने हो अ्रन्दर खोजो, अपने ही अन्दर का प्यार है। अगर परमात्मा को प्रापसे प्यार न होता तो यह सरदर्द को क्यों लेते ? यह सारी सृष्टि बनाना भी एक बड़ा भारी सर दर्द है। इतनी सारी सृष्टि उन्होंने बनाई क्योंकि उनको आपसे प्यार या । और आज भी उसी प्यार में वो चाहते हैं कि आप उनके साम्राज्य में उतर। यह सारे कहां है ? उनको जागरूक कैसे करना है ? इनको झगड़े थे। झगड़ों में कुछ नहीं। सबसे बड़ी सनातन बात यह है कि हम ब्रह्म शक्ति से बने हैं और हमें करनी है ? तो सिर्फ ब्ह्म की 'बात ही नहीं है। उसको पाना है । और अगर आपने उसे जाना नहीं हा को 'पाना है औौर उसके बाद इस सारी ब्रह्म तो आपने शक्ति को पाया नहीं। इसको मैं खोज रहा हूँ । औ्रर यह भगवान है । हुए हैं तो हमसे मिलने प्राए प्रौर कहने लगे कि माँ अब बताओ मैं क्या करू? मैंने कहा बेकार में तुम फलाना है, ठिकाना हैं। तुम सिर्फ इन्सान हो, उसको पाना है। आत्मा ही एक चीज है जिसे पाना आत्मा है । जब आप आत्मा को पाइयेगा तभी [आपको पता होगा कि इन सब मूर्तियों का भी क्या अरथ है ? यह क्या चीज है ? और इसका हमारे अन्दर स्थान जागरूक कसे करना है ? इनकी प्राण प्रतिष्ठा कैसे विद्या को आपको पूरी तरह से जान लेना है । सारी ब्रह्म विद्या आप जान जाएंगे यही सहजयोग ...कहने लंगे कि "वहां वारकरी लोग होते हैं। है इसको सहज कहते हैं क्योंकि सहज ( 'सह' एक एक महीना, दो-दो महोना पंदल चलकर के जाते साथ -'ज'3जन्मा) आपके साथ पैदा हुआ है | आपके अ्रन्दर कुण्डलिनी शक्ति है, जो आपके साथ पदा हुई है । यह जोवन्त है कोई मरी हुई चीज नहीं है, जीवन्त है । जैसे कि अंकुर होता है उस परेशान हुआ भगवान नहीं मिले। फिर मैंने सोचा तरह से वो आपके अन्दर स्थित है । वो जागरूक हैं वो हुआ । मैं बहुत पेदल चल कर जाता था । महोना-महीना पेदल चलता था, वहाँ जाता था। तो मेरा सर ही फोड़ देते थे लोग र उसमें निमंला योग १० 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt हो जाती है । और वो जागरूक होने के बाद प्पके अन्दर से ठण्डी-ठण्डी हवा जैसे चैतन्य की लहरियां, जिसका वर्णत आदि शंकराचार्य प्रादि सब ने किया हुआ है, ईसामसीह ने भी किया है, वह बहने लग जाती है। तो आप अपनी शक्ति को प्राप्त होके औ्र उसके बाद इस ब्रह्म को प्राप्त होने के बाद । यह ब्रह्म विद्या आपको जाननी है। पड़ा हुआ है। पंजाब तो ऐसा चैतन्य से भरा है । ले किन मेरी समझ में नहीं अता कि partition (देश विभाजन) हो गया तो क्या हो गया ? पता नही, लोगों की श्रद्धा ही टूट गई है। और श्रद्धा में एक तरह की नरमाई आ गई । और उसकी वजह श्रोर नहीं जाता कि उसको पाना है। से मनुष्य इस यो उच्छ खल है । थोड़ी देर के लिए बो भगवान के हिन्दुस्तान में भी सहजयोग बहुत जोर से फेल पास आ गया, वो सोचता है बहुत हो गया। रास्ते रहा है । लेकिन उसका ज्यादा हिस्सा महाराष्ट्र में चलते कोई भगवान मिल गया तो सोचता है बहुत बहुत ज्यादा चल रहा है । इसकी वजह यह है कि हो गया। उसके बाद उनकी यपनी दूसरी परवाह ल गी रहती है। उसमें कूछ मेहनत करनो पड़ेगी। कुछ उसके प्रति वाकई (सच्ची) अद्धा से लगना पड़ेगा। उधर ध्यान देना होगा । इसलिए मैं देखती बड़े सम्त हुए। हम लोगों ने उनको माना है कि जितना फैलाव होना चाहिए उतना होता नहीं असल से । दक्षिण में महाराष्ट्र में ऐसी बात नहीं है। लोग इस पर श्रद्धा से बैठते नहीं । मेहनत । लेकिन मुझे बड़ी खुशी हुई कि पिछली कि हो सकता है रामचन्द्र जी वहाँ पैदल चल कर मतंबा (बार) मेैं आई थी ओर इस मतंबा भी गए थे, सीता जी के भी वहां चंतन्य फेले हुए हैं। आप लोगों ने मुझे यहां बुलाया औ्रर इतती श्रद्धा के लेकिन लोगों में जरा इस मामले में गहराई। वो साथ ग्राप लोगों ने मेरी बात चोत सुनी है। और इम बात को जानते हैं। और ज्ञानेश्वर जी ने बहुत इसे पा भी लीजिए पूरी तरह से पाकर के मैं तो साफ-साफ लिखा था कि कुण्डलिनी नाम की शक्ति चाहंगी कि यहाँ पर आप कभी भी चाहे यहाँ पर हमारे अन्दर है और वो अभ्बास्वरूप माताजी हमारे हत से सहजयोगी लोग रहते हैं जिन्होंने इस जब होंगी तभी आपको उसकी प्राप्ति हो सकती है. चोज को माना है और पाया हुपरा है । यहाँ पर आदि अनेक चीजें उन्होंने लिख कर रखी हैं । शायद बहुत से लोग ऐसे हैं जो कि यह जानते हैं, ब्रह्य इसी वजह से वो इससे जागरूक हैं। इंग्लेण्ड में विद्या को भी। उनसे भी आप लाभ उठा सकते है । भी लोग बहुत जागरूक हैं, क्योंकि इंग्लैण्ड में बडे बस इतना जानना है कि इसमें कोई पेसा और कोई चीज़ नहीं चाहिए । परमात्मा को आप पै से से नहीं लिखा है कि वो समय आएगा जब इंग्लेण्ड में यह खरीद सकते । और जब पाने की बात है तब तो कार्य अआापको कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन पाने के बाद संजोना पड़ता है । उससे पहले ग्रापको कोई भी मेहनत नहीं करनी। उसके पहले ही प्रापुके पास है, सहज (साथ जन्मा)। इसलि ये हो जाता है । 1. सन्तों की भूमि है, और वहां लोगों ने सन्तों को मुलाया नहीं। वामपंयियों ने बड़ी मेहनत करी है । आपके यहां भी गुरु नानक श्रौर कबीर जैसे बड़- ले किन के है कि न जाने कसे क्यों मेरी यह समझ नहीं आता करते नहीं भारी विलियम ब्लेक' करके कवि हुए हैं । उन्होंने शुरू होगा। और उन्होंने यहाँ तक कि हमारे आश्रम की जगह तक लिख दी । जहाँ मैं रहती है उस जगह का नाम भी लिख दिया । लेकिन मैं यह नहीं कहूँगी कि यहां सन्तों ने मेहनत नहीं करी । सन्तों ने बड़ी मेहनत करी है । बिहार में मैं गई थी । बिहार में देखा कि सारे के सारे चेतन्य भरा पड़ा है। बंगाल में, पंजाब में, सारा चंतन्य भरा पर आज सहजयोग 'महायोग' की स्थिति में आ गया है क्योंकि पहले सहजयोग जो था जनक निमंला योग ११ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt के समय में तो एक नचिकेता के ही लिए बना था । उसके बाद एक दो फूल अए, किर तीन चार और फूल आए । लेकिन प्राज समय है वो 'बहार' आ गई प्रौर इस बहार पड़गा कि फिर क्षेम, क्योंकि आप उनके साम्राज्य में आ गए। आप उनके नगर के बासी हो गए तो वो आपको सम्भालंगे और देखेंगे । और देखते ही है। में अनेक फुल फल होने वाले यहां हरेक सहूजयोगी आपको बताएगा, एक-एक सिर्फ आरप अपनी तह तक, प्राप अपनी प्रादमी अगर लिखने जाए तो पोथो लिख हैं । गहराई तक उतरिए । असल में होता क्या के रख सकता है क्योंकि कितने चमत्कार हुए हैं । है कि अव देखो कि यह ओरतें चली जा ऐसे-ऐसे accidents (दूघंटनाएं) हुए हैं कि लोग ८०-८० फुट से गिर गए प्रीर जंसे कि किसी ने उठा लिया हो। बहुत बड़ो-बड़ी बातें हो गई हैं वो सब बताने बैठु तो उसका कोई अंत ही नहीं । रहो हैं। इसका क्या मतलब है ? क इनमें गह- राई नहीं है वि्कुल | पा करके थोड़ा उसमें गहरे उतरो । थोड़ी सो । चीज को पा लो मैं कहती है। गहराई में उतरना वाहिए और उस गहराई में आपका सारा पूर्व जन्म का पूण्य कृत है । उसमें आप फिर समाइये । पहले थोड़ो सो मेहनत करके गहराई अ्ा गए हैं। यह गणेश की पूजा कर रहे हैं, और में आप उतर जाइए । मोर उसके बाद वहा जो यह शिव जी की प जा कर रहे हैं और यह विष्णु पूर्वसचित जितना कुछ है उसे आप पाइयेगा। लेकिन जी की पूजा कर रहे हैं। इस लिए नहीं कि मैंने इस तरह से लोग क्या है? एक माताजी का भाषण उनसे कहा । इस लिए क्योंकि वो जान गए है कि यह सुन गए, दूसरे का सुन गए । इस तर ह से जो लोग करते है ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है । पर इसका नुकसान बाद में होगा। अभी इसके जो कर सकते हैं कि प्रापके कोन से चक्र पकड़े हुए हैं । फायदे हैं उनकी लेना चाहिए । इसके प्रनेक फायदे और उन चक्रों पर कौन से देवता हैं। उनको आप होते हैं। आप जानते हैं यहां पर एक देवी जी बठी जान सकते हैं अोर पूछ सकते हैं, यह देवता हैं या हैं। उनका लड़का एकदम पागल जसा था । दो नहीं। इतना ही नहीं आप लोग जब मुहम्मद अ्भी यही है। उसका पागलपन एकदम ठीक हो साहब को जानेंगे, ईसा मसीह को जानेंगे जिन्होंने गया। कितने ही लोग हैं यहाँ दुनिया में जिनको अब तक कुछ नहीं जाना बो और जान जाएगे। लाभ हुआ है, जिनकी तन्दूरुस्ती ठीक हो गई और यह लोग जितना जानते हैं प्रप लोग नहीं क्योंकि यह सारे सात चक्रों में सारे ही देवता जानते। वजह यह है कि इन लोगों में और हमारे विराजते है। वो जागरूक हो जाने से उन का आशी- में फर्क है । हम योग भूमि में रह रहे हैं । भारतवर्ष वाद मिलता है । आपके हर तरह के प्रशन हल होगे जब की जो छत्र-छाया है उसमें हम लोग भट से पार हो कि आप योग में उतरंगे । कृष्णा ने भो कहा है कि जाते हैं। कोई समय नहीं लगने वाला । आप सबके 'योग क्षेम वहाम्यहम् । योग से पहले आप भगवान से कहें भगवान यह कर दो, वो कर दो। आपका जानती है सम्बन्ध ही नहीं है भगवान से, तो क्षेम करसे होगा । फिर प्राप कहें कि मैं भगवान से गिड़गिड़ाता रहा। मिल जाती है उसकी कदर नहीं होती। और इन भगवान ने मेरा काम ही नहीं किया। पहले आप लोगों के एक एक पर मैंने तीन-तीन महीने हाथ योग' connection करवा लोजिए। Connec- तोड़े । तो इनको वड़ी कदर है । यह गहराई में उतर tion (योग) के बाद फिर आपको कहना भी नहीं गए हैं । यह गहराई में उतर गए हैं । उसको इन्होंने लोग शज भपके मंदिर में परदेस से भी बहुत बात सही है। वो जान गए हैं। उनके अदर जो बीजञ है उमे जान गए हैं । उगलियों पे आप महसूस सब बहुत जल्दी पार हो जाएंगे, मुझे मालू म है। मैं एक क्षण भी नहीं लगने वाला । ले किन चलने वाला नहीं वो । क्योंकि जो चीज़ आसानो से निर्मला योग १२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt मा को हम हथिया ले तो हम हाथ आने वाले नहीं । ऐसे हमें लोग नहीं चाहिए। वो चाहिएं कि जो मब मिल करके काम करें वाद फिर पहुँचे कि फिर मूझे कोई तकलीफ होने लग गई है। तो मैंने कहा कि अव आ गए प्राप डिकाने । तो कहने लगे कि क्या मांमूझे सजा मिली है ? तो मैंने कहा कि सजा नही है । यह जिस छुत्र छाया में आप बंठते हैं उसकी आप छोड करके अगर आराप गए तो उसे वह छत्र -छाया क्या करेगी ? फिर से उस छुत्र छाया में आ जाएं । यह सामूुहिक कार्य है । और इस सामूहिक कार्य को सबको सामू हिक बिल्कुल ब्रह्म विद्या को साक्षात पा लिया है । तो जो भारतीय, जो कि अने क जन्मों से पूण्य से इस भारत वर्ष में पदा हुआ है, वो इनसे कम पड जाता है । ओर यह पूण्य आपके पास बहुत है। क्योंकि आप अपनी गहराई नहीं छु पाते । यह मैं आपसे पहले ही प्रागाह ( सचेत) करती है कि पार करने को तो मैं कर दुंगी लेकिन आगे का पआरापको देखना होगा। आगे जो मेहनत है वो प्रापको करनी पड़ेगी। अगर नहीं करी तो 'जो पाया सो खोया होता है अनेक बार। अनेक लोगों का ऐसे होता है । ओ्र फिर एक साल । मैंने दखा है एक साहब अए थे और चिल्लाने तरकि ने करन। है। अगर आप चाहें कि माँ का लग गए। एक बड़े भारी आंगन में प्रोगाम हो रहा था । 'माताजी ! माताजी ! मेंरे तो प्रत्दर से तो कर रहे हैं तो सो बात मुझे मंजुर ही नहीं है। बहुत आग निकल रही है। मेरे ग्रन्दर से मैं मर रहा सबको एक होना है यह ब हुत बड़ा सामुहिक कार्य है । आप मूझे ठीक करिए। सारे बदन में blisters है । सबको मिल जुल के रहना है सब भाई बहन (फाले) और जाने क्या-क्या हैं । मैंने कहा अच्छा है। और है कि नहीं, वो। पाप उसका साक्षात्कार आपके यहाँ आते हैं ।" बहुत भीड थी उनके यहाँ, करिएगा। वहाँ। करते करते उनके पहुँचे हम । उनको कुण्डलिनी जागरूक करने से पाँच मिनट में उनका सब कूछ ठीक हो गया । पाँच मिनट के अन्दर । वो पति हैं उनके बहुत से प्रश्न दूर अभी भी हैं यहाँ पर । उसके बाद कभी वी आए तदरुस्तियाँ ठीक हो गई । उनके मन ठीक हो गए। नहीं। कभी उन्होंने पता नहीं किया, कुछ नहीं किया । दिन मैं बाजार गई थी कोई चीज़ खरीदने । ठोक हो गई हैं अर सबसे बड़ा कि उनका लक्ष्मी फोटो हम वर ले गए और रोज हम आरती पूजा जो लोग सहजयोग में इस तरह ब्रह्म विद्या को हो गए। उनकी खानंदान ठीक हो गए। आपस की रिश्तेदारियां एक वहाँ सिले । अरे, वहां एकदम से पाँव छुआ । मैने तत्व भी जागरूक हैो गया है। इससे बहुत रईस कहा "कौन है भई आप ?" मैंने कहा "भई मुझे तो याद नहीं। ओर बहुत' नहीं होती। अतिशयता तो होती ही नहीं । मुझे याद भी नहीं रहता।"असल बात करो। फिर लेकिन समृद्ध हो गए हैं, समर्थ हो गए हैं, और उन्होंने बताया। बात कहने लगे "मैने अआपका फोटो दूसरों का भला कर रहे हैं । [अपने को भी ठीक रखें मैंने अपने मोटर में भी रखा है । मैंने अपने मन में प्रौर दूसरों को भी ठो क रख । सहजयोग में पार भी रखा है। आपके शरणागत हैं। ये है, वो है। होने के बाद आप लोगों की जागृति कर सकते हैं ? मैंने कहा "भई देखो, सहजयोग जो है, वो सामूहिक और लोगों को पार करा सकते हैं यह शक्ति आरपमें काम है। अकेले का काम नही है, कि आप घर मेले ग्रा जाती है । कोई भी हो, पढ़ा नहीं हो, कूछ फ्क गए या जंगल में बैठ करके, उसमें नहीं । जहाँ नहीं पड़ता । कोन साधु-सत लोग पढ़ लिखे थे ? दस लोग बैठेंगे वहीं यह कार्य होने बाला है तो वही हम रहेंगे। और जहां एक अरकेला सोचेगा कि आजकल संसार में बहुत से बड़े-बड़ लोग जन्म ले कहने लगे "मां भूल गए तो कोई भी नहीं होता। इससे कोई सी भी चोज इसको पढ़ने की जरूरत नहीं । यह अदर होता है । निमंला योग १३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt मैं एक भी बात झूठ नहीं बोलती हूं रहे हैं । बहुत से बड़े-बड़े जीव जन्म ले रहे हैं । ओर क्यों कहा । यह लोग सब पैदायश (जन्म) से पार हैं । ओर वो ओर मुझे आपसे कूछ भी लेने का नहीं । Election जानते हैं कुण्डलिनी का शास्त्र । यहाँ पर भी बहुत (चुनाव) भी जीतने का नहीं। मेरा कोई लेना से बच्चे ऐसे हैं कि बचपन से ही कुण्डलिनी का नहीं बन पड़ता । आपको बस देना ही देना है । इस- शास्त्र जानते हैं। हमारे भो यह है, नातिन है । धोर लिए आप इस तरह की बेकार की बातें कभी न हमारे चार, जिसमें तीन तो नातिन हैं पऔर एक सोचना कि मां ने ऐसे क्यों कहा, वैसे क्यों कहा । लड़की का लड़का है। वो भी चारों के चारों पार मांको सत्र बोलना पड़ेगा । हालांकि बहुत मिठास हैं और बचपन से ही वो कुण्डलिनी का शास्त्र जानते हैं । छोटे-छोटे बच्चे भी, छु-छः महीने के बुद्धि है न, मैंने पहले हो कहा, यह हर चोज को बच्चे भी, आप को दिखा देंगे। अभी एक लड़की पकड़ लेगी, जिससे झगड़ा खड़ा हो और यह अप लाए थे। पार है, छः महीने की। वो बता रही थी हो से झगड़ा प्राप अपना कर रहे हैं, किसी दूसरे कि कौन सा चक्र पकड़ रहा है बरावर उ गली में ं। से बता रही हैं सब बात, लेकिन हो सकता है कि, से नहीं, क्योंकि आपको अपनी शक्त पानी है, आपको समर्थ होना है और आपको अपनी आत्मा को जानना है। इस में कोई शक नही। झीर बही कार्य है और उसके मामले में बेकार के झगड़े अपने ही से मत कर । प्रापने पहा लिखा होगा, उसको एक तरफ रख दीजिए। सारे पढ़ लिखने से भी ऊचो चीज है आत्मा को पढ़ लेना । 'एक ही अक्षर प्रम का पढ़े सो पण्डित होए।' यह प्रेम वो नहीं है, अपने बच्चं को प्यार करो, यह प्रेम तहीं है। यह मुहै डाल रही थी और बरावर बता रही थी कि कोन सा चक्र पकड़ा है । इतने ज्ञानी लोग आज पेदा हो रहे हैं कि ओर उनको जानने के लिए ऐसे मां वाप बनता चाहिए, ऐसे नाना नानी और वाबा दादी बनना चाहिए, कि जिससे अ्राप उनको समझ सके । ओर वहत वड़ा काम संसार में होने वाला है प्र उसकी तयारी करें । ज में यहीं तक कहेगी और बाद में कभी परमात्मा का प्रम है, जो ब्रह्मशकिति के रूप में मौका होगा तो 'कल्की' की बात कहू गी, जो अच्छी आपमें से बहना शुरू हो जाता है । इसे आप प्राप्त नही रहेगी इतनी क्योंकि उसमें फिर पआपको सम- झाने वाला कोई नहों होगा । उसमें फिर विरी] सफाई का मामला है। वो समय आने से पहले ही सब लोग पार हो जाएं । जिसके लिए शरज तक ( आपने भगवान को माना उसका साक्षात करें, अीर है। इसको आप पा ले । उसके बाद आप फिर बात आप उसे लें, यही मृझे प्रापसे विनती है। और कर । वस ऐसे हाथ करना है सीधे । उसमें कोई मैं माँ के रूप में मैं अपको समझाती हैं । किसी भी ज्यादा मूश्किल नहीं। ऐसें सोधे हाथ करके और बात का बुरा न माने और इसे बुद्धि में न बेठाएं आप प्रखि बंद कर ल, बस । चोखट पर, कि मां ने ऐसा क्यों कहा, माँ ने वेसा करें । वहत-बहुत घन्यवाद अप लोगों का । अब doctor (डाक्टर) हो, scientist वज्ञानिक) हो, कोई हो यह चीज सब ज्ञानों से परे निमला योग १४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt सहस्त्रार चक्र नई दिल्ली ४ फरवरी, १६८३ आज मैं प्रापको प्रन्तिम चक्र, सहस्रार, के बारे है। यह बहुत ही महत्वपूणं बात है जो हमें पता में बताऊगी। यह सहलार अन्तिम चक्र, जो है होनी चाहिए। श्री चक्र दांयीं प्रोर की कार्य शक्ति वो मस्तिष्क के तालू क्षेत्र (Limbic area) है और ललिता चक्र बायी औ्र की कार्य शक्ति है । पगिक कोत्र' के अन्दर होता है । हमारा सिर अतः जब कुण्डलिनी नहीं जागृत होती, तो हम दांयों एक नारियल जैसा हैं । नारियल के ऊपर जटाएं बोर की शक्ति से शारीरिक और मानसिक कार्य होती हैं फिर उसका एक सख्त खोल (Nut) होता है, करते है, इसलिये हमारा मस्तिष्क दांयी ओर की फिर एक काला खोल और उसके अन्दर सफेद किया करता है । अत: हमारा मस्तिषक श्रीफल गिरी ओर उसके अन्दर रिक्त स्थान ( space) प्रर की तरह है। सहखार, वस्तव में छः चक्रों का पानी होता है। हमारा मस्तिष्क भी इसी प्रकार समूह है, प्रोर यह एक खाली स्थान है, जिसके बना होता है । इसोलिए नारियल को "अ्रीफल" दोनों तरफ एक हजार नाड़ियां होती हैं प्रोर जब कहा जाता है यह धोशक्ति जो है उसका फल है। श्री शक्ति दाँयीं तरफ को शक्ति है, ओर बाँयों को प्रज्ज्वलन होता है और वे लो (ज्वाला) के तरफ की शक्ति ललिता-शक्ति है। तो हमारे अन्दर समान दिखाई देती हैं, बहुत हो सोम्य लो के समान दो चक हैं-बाये कधे के जरा नीचे ललिता चक्र दिखाई देती हैं और इन सबकी लौ में वो सभी सात और दाहिने कंधे के जरा नौचे श्री चक्र । ये दो रंग होते हैं, जो इन्द्रधनुष में दिखाई देते हैं। परन्तु चक्र, दाँयों तरफ महासरस्वती शक्ति श्रोर बाँयों अन्तिम लो अन्त में समग्र लौ बन जाती है, यह तरफ महाकाली शक्ति को चलाते हैं । कुण्डलिनो शक्ति दोनों के मध्य दोचोंबीत् है । उसे उठकर अत: ये सव सात तरह के प्रकाश अत्त में एक अलग-अ्लग चक्रों को भेदकर Limbic area में स्वव्छ (crystal clear) प्रकाश बन जाते हैं। प्रवेश करना होता है तर वहां सात चक्रों को प्रकाशित करना होता है । तो भी वह छः चक्रों को भेदकर Limbic area में प्रवेश करतो है और मस्तिषक में स्थित सात पीठों को, जो Limbic मस्तिष्क को प्राडा (transverse) कारट या समतल area की मध्य रेखा पर रखे गये हैं, प्रकाशित (horizontal) काट ता आ्राप देख सकते हैं कि ये करती है । तो अगर हम पोछे से शुरू करें तो सबसे पीछे मूलाधार चक्र है, उसके चारों तरफ स्वाधिष्ठात, फिर नाभि, फिर अनहत, फिर विशुद्धि इस तरह से (vertically, खड़ी) कार्ट, तो आप और उसके बाद आज्ञा चक्र होता है । इस तरह पायेंगे यह छः चक्र मिलकर सातवों चक्र सहस्रार वनता সकाश Limbic area में आता है, तब इन नाडियों नि विलकुल (crystal clear) स्वच्छ लो होती है । सेहस्ीर में एक हजार नाड़ियां होती हैं जिन्हें एक हजार पंबुडियां बोलते हैं । लेकिन यदि प्राप सब नाडियां इस तरह से, पंखुड़ि यों की तरह, Limbic area में रखा होतो हैं । और अगर आप हरे नाड़ियों के संग्रह में कई नाड़ियां हैं । इस प्रकार मस्तिष्क प्रदीप्त होने के कि *परम पूज्य माता जो श्री निर्मला देवो जी के अंग्रे जो भाषण का अतुवाद निर्मला योग १५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt पश्चात् सहस्रार लौ के एक जलते हुए गटठे आपकी आत्मा का प्रकाश इसमें प्रकाशित नहीं (burning bundle) के समान दिखाई देता है । होता। यह बड़ा गहन विषय है । में अभिव्यक्त होती है, हृदय में में आ्रात्मा हृदय प्रतिबिम्बित होती है । अ्रात्मा का केन्द्र हृदय होता है ऐसा कह सकते हैं । लेकिन वास्तव में आ्ररमा का स्थान ऊपर यहां है, जो सबंशक्तिमान भगवान की श्रात्मा है, जिसे श्राप 'परवरदिगार कहते हैं या 'सदाशिव' या आप इसे रहीम' क ह सकते हैं । आप उसे प्रनेक नामों से पूकार सकते हैं, जो प्रसु निरंजन के बारे में प्रयोग होते हैं-निरंजन, निरंकार, हरेक प्रकार के शब्द जो "निर", 'निः' से शुरू होते हैं। शरी र में हरेक चक्र पर अाप एक हैं, पप रंगों के अलग-गलग रूप देख सकते हैं, आप अलग प्रकार का आनन्द प्राप्त करते हैं। कुण्डल ना वस्तु की उत्तमता (quality) को देख सकते हैं । जागने के बाद हरेक चक्र का एक अलग प्रकार का लेकिन आप यह नहीं बता सकते कि क्या यह कालीन आनन्द होता है और कुण्डलिनी के ऊपर चढ़ते समय किसी संत ने इस्तेमाल किया हुआरा है ? आप यह प्रत्येक चक्र पर जो श्रानन्द प्राप्त होता है उसकी इस प्रकार कुण्डलिनी द्वारा मस्तिष्क प्रदीप्त कर देने पर सत्य की आपके मस्तिक में अनुभूति होती है। इसीलिए यह 'सत्यखण्ड कहलाता है। यानि आप सत्य को, जो आपके मस्तिष्क द्वारा ग्रहण होता है, देखना शुरू कर देतें हैं। क्योकि इससे पहले जो कुछ भी आप अपने मस्तिष्क द्वारा देखते हैं, सत्य नहीं होता। जो आप देखते है सिर्फ बाह्य रूप हो है। यानि आप रंग देख सकते नहीं बता सकते कि यह किसी देवी कयक्ति ने बनाया है या किसी दानव ने । अरप यह भीनही बता सकते कि यह व्यक्ति अ्रच्छा है या बुरा है । आ्प अ्लग-अ्लग नाम है। जब कुण्डलिनी सहस्रार में प्रती है, तब जो प्रानन्द प्राप्त होता है, उसे 'निरा- नन्द कहते हैं। 'निर' का प्रर्थ है सिर्फ, आनन्द ही यह भी नहीं बता सकते कि यह देवता (deity) अनन्द, और भी नहीं। आश्चर्य कि मेरा नाम कुछ घरतो माता के अन्दर से निकले हैं या नहीं। आप प्रपने किसी रिश्तेदार के बारे में यह नहीं बता सकते कि यह अच्छा रिश्तेदार है या बुरा रिश्तेदार, या वह किस प्रकार का व्यक्ति है, वहु गलत प्रकार भी नोरा' है । अपने परिवार में मूझे नीरा पुकारा जाता है। नीरा का मतलब है 'मेरी', 'मरियम, क्योंकि इसका अर्थं है में रीन (marine), 'नीरा जल है, संस्कृत भाषा में 'नीर का अर्थ जल होता के लोगों के पास जाता है या सही लोगों के पास है तो मस्तिष्क में इसे निरानन्द कहते हैं । जाता है, उसके गलत सम्बन्ध हैं या ठीक ? यहां 'ठीक का मतलब देवी से है। तो आप अपने मस्तिष्क से देवी के बारे में कुछ भी नहीं जानते। कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं जानते। एक मनुष्य अन्त में इस अ्रवस्था का उन्मोचन (शुभारम्भ) होता है । सर्वप्रथम आपको जो अनुभूति प्राप्त होती है वह 'सत्य' होती हैं । इन सज्जन को क्या की प्राध्यात्मिकता को परखना आपके लिए असंभव तकलीफ है, यह अाप अपनी उगलियों पर देखते है जब तक कुण्डलिनी Limbic area में न पहुँचे हैं। तो पहले आप अपने चित्त से उ गलियों पर देखते हैं। आप अपने चित्त से जानते हैं कि कोन- सा चक्र, कोन सो उ गली की 'पकड़ है। तब आप नहीं। क्योंकि देव्यता (Divinity) की श्पके अपने अपने मस्तिष्क की सहायता से पहचानते हैं कि मस्तिष्क में अनुभूति नहीं हो सकती, जब तक कि कौनसा चक्र खराब है । क्योंकि अगर कहें कि । जाये। आप यह नहीं मालूम कर सकते कि यह मनुष्य सच्चा है या नहीं। यह गुरु सच्चा है या निमंला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt इस उगली की पकड़ है तो इसका मतलब यह आपको यहाँ कुछ तकलोफ हैं ? वह कहता है, नहीं कि यह विशुद्धि चक्र है । लेकिन आपका हां है " तब आपका मुझमें विश्वास होता है मस्तिष्क यह बता सकता है कि यह विशुद्धि चक्र और आप विश्वास केरते हैं कि यह जो विशुद्धि है और वह दर्शाता है कि इस व्यक्ति को विशुद्धि चक्र दिखाई दे रहा है सो सत्य है । यह एक तक्क चक्र की तकलीफ है । लेकिन फिर भी यह मस्तिष्क पर आधारित निष्कषं है। क्योंकि आपने प्रयोग पर धारित (rational ) हैं क्योंकि आप पहले किया, ाप देख रहे हैं पोर फिर भी सन्देह कर देखते हैं कि कौनसो उगली की पकड़' है और रहे हैं कि माताजी जो बताती है वह सत्य है या फिर आप बताते हैं कि कौनसा च क् खराब है । नही । किर आप निश्चित हो जाते हैं कि हां, यह लेकिन जब 'सत्यखण्ड यानि सहस्रार और यह ऐसा हो है। आपने देखा है कि यह विशुद्धि ज्यादा खुल जाता है, तो आपको सोचने की जरुरत क्र ही है। अतः सत्य तकनुसार मस्तिष्क को नहीं पड़ती; आप तुरन्त कह देते हैं। उस समय ्वाकाय हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क बाह्य स्तर आपके वित्त' में और प्रापके 'सत्य' में कोई अन्तर नहीं रह जाता। प्रकाशमान चित्त प्रोर प्रकाशमान मस्तिष्क एकाकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए कोई समस्या नहीं रह जाती पऔर उं गलियों विशवास करते हैं, पक्की तरह से जान जाते है कि पर देखने की जरूरत नहीं पड़ती है। उ गलियों पर কछ देख कर प्रोर किर मस्तिष्क से जानने की कोई शका नहीं। इस प्रकार 'निरविकल्प' की अवस्था जरूरत नहीं रह जाती है। जंसा कि आपने सहज- योग में सोखा है कि अगर इस उगली में कुछ बारे में कोई शंका नहीं रह जाती। लेकिन उस (gross level) पर ही कार्यशोल रहता है । दूस री अवस्था में, जसा मैंने बताय आप] इसका अर्थ विशुद्धि चक्र है, इसके बारे में कोई आरम्भ हो जाती है, जब मेरे और सहजयोग के समय आपके अन्दर मस्तिष्क का ओर उन्मोचन गडबड़ है, तो इसका मतलब अज्ञा चक्र खराब है, यह प्वश्यक नहीं। प्राप बस कह देते हैं कि आ्रज्ञा चक्र लराब है । आपने जैसा कहा, वास्तव में वैसा ही होता है। खुलना ) प्रारम्भ हो जाता है। इसके लिए प्रापको 'ध्यान (meditation) करना पड़ता है। नम्रता में (in humility) स्थित होकर आपको ध्यान करना पड़ता है। इस नई अवस्था के लिए जब आपका वित्त स्वयं , में विलय हो जाता है इसके लिए व्यक्ति को अत्यन्त सवाई और नम्रतापूर्वक सहजयोग को त्मरू मंण करना पड़ता है। उसके बाद, मस्तिष्क ओर भी ज्यादा खुलता है । स वं प्रथम, जैसे मैंने बताया यहै चित्त के साथ एकाकार हो जाता है। फिर, जब यह पूर्णतयां आत्मा के साथ एका कार हो जाता है, तब प्राप जो कुछ भो कहते हैं वह सत्य हो होता है । प्राप बस देते हैं, ओर वही वास्तव में होता है । इस ओपके मस्तिष्क, प्रदीप्त मस्तिष्क अब जब ग्राप चैतन्यलहरियां (vibrations) कह प्रकार यह मस्तिष्क तीन नये आयामों में उन्मुक्त प्राप्त कर लेते हैं तब श्प क्या करते हैं ? लोगों होता है, खुलता है । सर्वप्रथम यह ताकिक निष्कर्षों की अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है । कुछ लोग इन (logical conclusions) द्वारा सत्य को व्यक्त लहरियों का मूल्य तक नहीं समझते । कुछ लोग करता है । जैसा मैंने बताया, मेरे अगर इस उगलो सीखने की कोशिश करते हैं कि इसका क्या अर्थ की पकड़ है तो इसका मतलब विशुद्धि चक्र खराब है ? प्रौर कुछ लोग सोचने लगते हैं, "अ्रब है, और फिर प्राप उस व्यक्ति से पूछते हैं, "क्या हम आत्मसाक्षात्कारी हो गए हैं और इसको, उसको तुरन्त निर्मला योग १७ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं ।", वे अहंकार की उससे बचते हैं । मान लीजिए कि खाना खा रहे सवारी (egotrip) करने लगते हैं। जब वे भ्रहंकार हैं या सफर कर रहे हैं या विदेश से प्रा रहे हैं, तो की सवारी करने लगते हैं, तो वे अपने आपको उन्हें अपने सफर के लिए और खाने-पीने के लिए असफल पाते हैं और उन्हें जहां से शुरू किया पेसा देना चाहिये । आपको पता है बहुत वार था वहीं वापस आना पड़ता है । यह सांप और भारी पैसा देना पडता है सीढ़ी, के खेल की तरह होता है । तो चेतन्यलहरियों इसका विचार नहीं करती। लेकिन यह आरपके के प्रति बहुत ही विनम्र और ग्राही, आदरपूर्ण लिए ठीक नहीं । मुख्य बात यह है कि यह आपके (receptive) प्रतिक्रिया होनी चाहिए । कोई बात नहीं, मैं 1 लिए ठीक नहीं है। तो पैसे के मामले में अ्रापके सहजयोग के प्रति कंसे प्राचरण हैं, यह भी बहुत बाह्य रूप में, जैसा मैंने आपको बताया कि महत्वपूर्ण बात है। यद्यपि वह बहुत ही स्थूल सी मस्तिष्क में पिता (सदाशिव) का स्थान है । इस लिये प्रगर परप पिता (सदाशिव) के विरुद्ध कोई उन्नति में बहुत समस्या उपन्न कर सकती है, पाप करते हैं, तो आगामी नये अआयाम खुलने में क्योंकि उससे नाभि खराब हो जाता है । और समय लगता है। फिर हम पुस्तक पढने लगते हैं जैसा कि प जानते हैं कि अगर नाभि खराब हो और यद्यपि बताया गया है कि पहले पूस्तक की गई तो यह खराबी सारे भवसागर ( void) पर चैतन्य लहरियाँ (vibrations) देखो और फिर व्याप्त हो जातो हैं, और अगर भवसागर खराव उसे पढ़ो। लेकिन आप कहते हैं, क्या बूरी बात हो गया तो एकादश रूद्र की संहार शक्तियां जो है, हमें अन्य पुस्तकें भो पढ़नी चाहिये । तो जैसा यहां पर हैं, पकड़ी जाती हैं। मैंने बताया आप सांप सीढ़ी के खेल में नीचे गिर जाते हैं। यह भी एक सांप है सोचते है "ध्यान करने की क्या श्रवश्यकता है? मेरे पास समय (gross) प्रतीत होतो है, लेकिन यह आपकी तो सहजयोग में आने से पहले यह सब ठीक था। आप सब प्रकार के दूषकम करते थे अ्रोर आप अनयस नरक में पहुँच जाते । नरक में जाना तो नही है, मुझे यह करना है, वह करना है" परि- णाम आपकी उन्नति नहीं होती है । बहुत ही आसान है । दो छलांग लगाओ और नरक में पहुँच जाओ। वाकी सब कूछ आप जाने । लेकिन नरक में जाना सब आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती । लेकिन से आसान काम है। इस के लिए दूस री बात बड़ी स्थूल है । कुछ बहुत ही स्थूल (gross) व्यक्ति सहजयोग में प्रवेश कर लेते कोई बात नहीं । लेकिन पहली बात जो आपको जब ्प ऊपर उठ रहे हैं, उन्तति कर रहे है, तब शोडा कठिन। ई है। प्रापको ध्यान रखना है कि आप जरूर जाननी चाहिए, वह यह है कि आपको सहजयोग में ईमानदार, बहुत ही ईमानदा र रहना पड़ेंगा । ईमानदा री से मतलब है, मैंने देखा है जैसे कि कहीं कोई भोज(खाना-पोना)या शादी की पार्टी है तो वे आत्म सम्मान को तिलाजलि देकर चुपके लोगों से घुस जायेंगे । उन्हें कोई विचार नहीं कि इसके में सहजयोग को नुकसान पहचा कर पेसा बचाने लिए पैसा कौन देगा ? वे अपने सारे परिवार को की पआादत होती है । कुछ लोगों को सहजयोग को ले आएंगे और बैठ जाएंगे। फिर, ऐसे लोग भी क्षति पहुंचा कर पेसा कमाने की आदत होती है । होते हैं जो सहजयोग में जो पैसा देना चाहिए, लड़खड़ाए (डगमगाएं) नहीं, गिरें नहों, और ऊपर उठते रहें । इसलिये आपको सतर्क रहना है कि आप अपनी पुरानी आदतों में तो नहीं फंस रहे हैं । कुछ लोगों को उन्हें जो पसा देना चाहिये बह न कुछ निर्मला योग १८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt देने को ग्रादत होती है, इत्वादि । यह छल-कपट के के पास गया तो मेरा सहस्त्रार खुल गया । यह समान है । ये लोग शीघ्र सहजयोग से बाहर चले हुआ, वह हुआ लेकिन आप स्वयं ऐसा काम जाते हैं। भले ही शुरू में ये लोग बहुत बड़े नेता क्यों नहीं करते जो आपका सहस्रार खोलने में लल गें. लेकिन वे देखते-देखते यों हो बाहर निकल सहायक हो । तो सहस्रार का खुलना बहुत हो जाते हैं । कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि प्राप] पसे का हिसाब-किताब ( account) क्यों नहीं रखती हैं ? परन्तु सहजयोग में मुझे कीई हिसाब में ति आवश्यक है । आश्चर्य की बात है ऐसी रचना है कि सहखार ब्रह्मरन्त्र एक ऐसे बिन्दु पर है जहां हृदय (अ्रनहत) चक्र है । अतः यह जानना आवश्यक है किताब (account) प्रादि रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सहयोगी मेरे मूनीम हैं। अगर आप सहजयोग से चाल-बाजियां करने की कोशिश करते हैं, तो आपका नाभि चक्र क्षति ग्रस्त होता है और कर के बाह्य रूप में (superficially) ही करंगे, आप पपनी चेतना खो बैठते हैं । जो आपके साथ कभी नहीं हुआा होता। एक ओर अपने हैजारी रुपये बनाए, किन्तु दूसरी ओर हजा रों रुपये यह है कि अपको इसमें पूर्ण., हृदय देना है । जैसे कि (सहजयोग की बहुमूल्य सम्पदा) आ्पको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना होना चाहिए था" वर्गरह-ब गैरह, ऐसे लोगों को करना पड़ सकता है, जो मैं नहीं बता सकती । और ईसा-मसीह ने " " फिर आप कहते हैं कि यह समस्या कसे आई ? प्रतः यदि प्राप अपनी साधना (seeking) में था "इन बडबूडाने बाली जीवात्माओं से सावधान ईमानदार नहीं हैं तो नाभि चक्र की पकड़ तब रहो।" ऐसे सभी व्यक्ति जो पीछे बुड़बुड़ाते हैं और आती है। साधना (seeking) की ईमानदा री का सिर्फ यह मतलब नहीं कि शब्दों में कह देना "मैं की कोशिश कर रहे हों, ऐसे लोग बहुत दुःख उठा साधक हैं बल्कि इसका यह अर्थ भी है कि आपका अपने प्रति और दूसरों के प्रति केसा प्राचरण है प्रभु के साम्राज्य में जब आप प्रवेश करते हैं तो यह शपको अपने प्रति ईमानदार रहना चाहिए कि दोहरा छल बहुत ही खतरनाक होता है। किसी भी आप ध्यान (meditation) के लिए बेठे, अपना अन्तर-योग सुधारने की कोशिश करें और प्रपनी हैं और आप उसके प्रति विश्वासघात करते हैं, तो निविवार चेतना ( thoughtless awareness) को बढ़ाए। उस स्थिति को प्राप्त करने की कोशिश में, यह इतनो आनन्दमय है, पूर्णतया आनन्दमय, करें, जहां आप संचमुच हो नि्वि वार अनुभव कर । पूर्ण आशीर्वाद भाप पर न्यैछावर कर दिये जाते इस ईमानदारी का मधुर रस मिलता है और अपने हैं, पूर्णतया, हर सम्पदा - स्वास्थ्य, घन, मानसिक, निजी अ्रस्तित्व (being) प्रथात अरात्मा में आप उत्तरोत्तर ऊंचे ग्रोर गहरे उत रते जाते हैं । ब्रह्मरन्ध्र का आपके हृदय से सीधा (direct) सम्बन्ध है। अगर आप सहजयोग को हृदय से न कि तो ग्राप बहुत ऊंचे नहीं उठ सकते । मुख्य बात कुछ लोग सहजयोग में भाते है और पीछे बुडबुडाते खो बेठते हैं। हते हैं, "यह ऐसा होता चाहिए था, वह ऐसा 'बुड़बुडाने वाली जीवात्माएं (murmuring souls) कहा है उन्होने कहा फायदा उठाते रहते हैं, जेसे कि वे दूसरों को बचाने सकते हैं । क्योंकि वे एक दोहरा छल कर रहे हैं । राज्य के, किसी भी राज्य के अगर आप नागरिक आपको दण्ड मिलता है लेकिन 'प्रभु के साम्राज्य भावनात्मक सभौ प्रकार की सम्पदा आपको सहज- योग में प्राप्त होती है, निस्संदेह। लेकिन जब आप इतने सम्पन्न (blessed) किये जाते हैं, तो आपको क्षमा भी प्रदान की जाती है, अनेक बार की जाती "आखिर माताजी सब कुछ करेंगो। जब मैं माताजी है और अ्रापको बहुत लम्बा अवसर प्रदान किया सर्वप्रथम आप मुझ पर निर्भर करते हैं कि निमंला योग १६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt या कायरता की वजह से ऐसा करते हैं। एक और चीज जो आपको बेईमान बना सकती है वह है आपके पूर्वजन्मों के संस्कार पोर उसी के अनुसार प्राप जन्म लेते हैं और उसोके अनुसार आपकी जाता है । किन्तु यदि आप नहीं संभलते तो आपका विनाश होता है, पूर्णा विनाश. प्राधा नहीं। अतः वे लोग जो सोचते हैं कि वे सहजयोग से बेईमानी कर सकते हैं. बहुत सतर्क रहें । कृपया कुण्डलिनी की अवस्था होती है। ऐसा न करें, अगर पराप सहजयोग में रहना नहीं चाहते, तो अच्छा होगा आप चले जाएं, हमारे लिए और आपके लिए भी यही अच्छा है। क्योंकि महान पुरुषार्थी शऔर संनकल्प वाले होते हैं इतनी अगर प्राप बेईमानी करते हैं, या छल-कपट करते प्रगति से ऊंचे उठते हैं कि तारों, ग्रहों, नक्षत्रों ग्रादि हैं तो आप कष्ट भोगते हैं और फिर आप अरजीब की सारी समस्याएं लुष्त हो जाती हैं। और आप और हास्यास्पद (funny) लगते हैं। तो लोग कहने एक 'सहजयोगी बन जाते हैं अर्थात् एक नवजात, लगते हैं कि सहजयोग में क्या बुराई है ? और हम वेमतलब भुगतेंगे (बदनामी के कारण)। क्योंकि हम जिसका अपने विगत जीवन से कोई सम्बन्ध नही आपको दर्पण में नहीं दिखा सकते कि यह प्रादमो होता, जिस प्रकार एक अंडे का एक सुन्दर पक्षी बहुत ही, बहुत ही ज्यादा विश्वासघाती रहा था । बन जाता है । हम यह नहीं दिखा सकते। इस प्रकार पहले हमें बदनामी मिलेगी और दूसरे इस तर ह के आचरण से आपको भी हानि होगी। अगर आपको हानि है तो सहस्रार में प्रवेश पाने के मार्ग में सर्वप्रथम हुई तो भी हमें बदनामी मिले गी कि ऐसा कैसे जो रुकावट अरती है वह है एकादश रुद्र । वयारह हुआा ? लेकिन अ्गर प सहजयोग अरऔर अपनी संहार शक्तियाँ यहाँ होती हैं, पांच इस तरफ, पाँच साधना (seeking) के बारे में ईमानदार हैं तो उस तरफ, और एक बीच में । हमारे द्वारा किये गये अनुमान नहीं लगा सकते कि भगवान शरापकी दो प्रकार के पापों से इन रुकावटों का निर्माण कितनी देखभाल करते हैं। जो भी व्यक्ति जो होता है। अगर हम अपना सिर गलत ( मिथ्या) आपको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा, वह बहुत हानि भोगेगा और उसे आपके रास्ते से हटा अपनाते हैं तो दाहिनी ओर की पांच रुद्र शक्तियों दिया जाएगा। भगवान आपकी प्रत्येक बात में में खराबी आती है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति रक्षा करते हैं और पूरे चित्त से और पूरी सावधानी के आगे भुके हैं जो गलत किस्म का व्यक्ति है और से आपकी देखभाल करते हैं। वे इतना प्रेम करते भगवान के विरुद्ध है तो दायीं ओर समस्या उत्पन्न हैं कि उनकी दया का बखान शब्दों में नहीं किया हो जाती है । अगर पराप यह सोचते हैं 'मैं अपनी जा सकता है । उसकी केवल अनुभूति की जा सकती देखभाल खुद कर सकता है, मैं प्रपना गुरू स्वयं हैं, ले किन आत्मसाक्षात्कार के बाद जो लोग भिन्न व्यक्तित्व (personality) बिलकुल पृक्षी यह आदमी तो, जब यह कुण्डलिनी यहां पहुँच जाती आप गुरुओं के आगे भुकाते हैं, उनके दूष्ट मार्ग को मुझे कौन शिक्षा दे सकता है, मैं किसी को बात है औोर बह समझा जा सकता है । नहीं सुनना चाहता और मैं भगवान में विश्वास अब समस्या यह है कि जो लोग बेईमान होते नहीं करता, भगवान कोन है ? मैं भगवान की वे अपने पूर्व संस्कार (background) की परवाह नहीं करता। अगर इस प्रकार की वजह से, कभी-कभी अपनी शिक्षा की वजह से, भावनाएं आपके अन्दर हैं तो आपकी दायीं ओर अपने पालन - पोषरण (upbringing) की बजह से नहीं, बल्कि बायीं श्ोर खराबी आ जाती है । निर्मला योग मो 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt क्योंकि श्रपका दायां भाग (पाश्व्व, बाजू) घुम कर आत्म-समरपंण कर दें, प्रपनी त्रुटियों को स्वीकार इधर (बायीं प्रोर) और बायां भाग दाहिनी तरफ करें, और कहें कि मैं स्वयं ही गुरू है, तो वे आ जाते हैं। अतः ये दस चीजें और एक विराट ठीक हो सकते हैं । [और जो लोग यह कहते हैं मैं विष्णु का स्थान, क्योंकि हमारे पेट (stomach) ही सबसे बड़ा हैं, मैं भगवान में विश्वास नहीं करता, मैं किसी भी ईश्वर के दुत (prophet) में में भी दस गुरुओं के स्थान हैं और एक त्रिष्णु का स्थान है, इन सब में खराबी आ जाती है। तब बिश्वास नहीं करता-ईश्व र के विरुद्ध या ईशवर साधना में भी गलती होती है और ये दस गुरू अपना के दूत के विरुद्ध होना एक ही बात है-ईशवर स्थान त्याग कर देते हैं । तब प्राफपको इस एकादश विरोधी व्यक्तिव जो इस तरह की बात करते हैं, रुद्र की पकड़ हो जाती है। जब इस प्रकार की चीज और इस लिये समस्याग्रों का निर्मारण करते हैं, आपके अन्दर आ जाती है, जेसे कि मैंने बताया, एक इस ओर (ईड़ा) और एक उस ्रर (पिंगला), सुपर कींशस' (super conscious) प्रथ्थात मध्य तो जिन लोगों ने गलत प्रकार के व्यक्तियों के मार्ग को परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश पाने का आगे सिर झुकाया है, उनका ऐसा स्वभाव या ऐसा एक मात्र मार्ग के रूप में स्वीकार करें तो वे भी व्यक्ति बन जाता है जिससे केंसर जेसी असाध्य (incurable) बीमारियों का आक्मण हो सकता है । जिन लोगों ने गलत व्यक्तियों के प्रागे सिर झुकाया है उनको केसर या इस प्रकार की कोई गये हैं। मैंने देखा कि जो लोग सब प्रकार की गलत भी बीमारी हो सकती है । ार गर वे अपने को विनम्र बनाएं प्रोर सहजयोग को, ठी क हो सकते हैं। मैंने देखा है कि जो लोग तांत्रिक थे, बचा लिए न । चीज कर चूके थे, बचा लिए गये हैं। जो लोग विभिन्न संगठनों के सदस्य थे, वचा लिए गये हैं । लकिन किसी को भी विश्वास दिलाना कि जो कुछ अ्रब जो लोग सोचते हैं कि मैं किसी और से अच्छा है, मैं भगवान की परवाह नहीं करता, मुे भी वे कर रहे हैं गलत काम है और उन्हें सही भगवान नहीं चाहिए, मुझे इससे कोई मतलब नहीं, ऐसे लोगों के बायीं ओर के एकादश रुद्र में खराबी आती है । और बायीं ओर के एकादश रुद्र की पकड़ भी अत्यधिक खतरनाक होती है क्योंकि ऐसे लोगों को शारीरिक रूप में दायीं ओर (पिगला) की तकलीफें, जैसे हृदय रोग, और दायों ओर की अन्य प्रकार को तकलीफ है जाता है। लिए हैं। अ्रतः जो लोग अन्धाधु व गलत माग पर रास्ते पर आ जाना चाहिए, बहुत कठिन काम है । अतः प्लूटो के विरुद्ध एक नक्षत्र उत्पन्न हुआ प्रर यही नक्षत्र है जो कसर की बीमारी लाया है । क्योंकि प्लूटो नाम का नक्षत्र केंसर की वीमारी को ठोक करता है, यही सब असाध्य बीमारियों के अतः कुण्डलिनी के सहस्त्रार में प्रवेश पाने के चलते जाते हैं, उन्हें अजीब तरह के हृदय- विरुद्ध जो सबसे बड़ी रुकावट आती है, वह एकादश रोग, दिल-बड़कना (palpitation), श्रनिद्रा रुद्र है, जो भवसागर (void) से आता है, और जो मेधा' यानी मस्तिष्क के फर्श (plate) को ढकता बकना, हो जाते हैं । गलत गुरू के पास जीना है । इस तरह यह लिम्बिक (तालू) क्षेत्र (Ilimbic प्औौर उसके आगे सिर झुकाना बहुत ही गम्भीर area) में प्रवेश नहीं कर सकती । यहां तक कि बात है। इस प्रकार के आदमी के लिये सहस्र्रार वे लोग जो गलत गुरुआओं के पास जा चूके हैं, प्रगर में प्रवेश निषिद्ध हो जाता है । जो लोग सहजयोग सही निष्कर्ष पर पहुँचे अऔर सहजयोग के सम्मुख के विरुद्ध हैं उनका सहलार बहुत ही कठोर (सख्त) ( insomnia), उल्टियां, चक्कर आना उल्टासीघा निरमला योग २१ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt होता है, एक बादाम या अखरोट के बाहरी खोल (vibrations) आानी शुरू हो गई। तो सहक्रार पर सहजयोग की पहचान कराने (मान्यता प्रदान अगर आप हथोड़ी का भी उपयोग करें तो भी आप कराने) का भार है, यह उसको सिद्ध करता है और विश्वास करवाता है। और अगर सिद्ध करने पर भी आप उसे पहचानते नहीं, तो आप आत्म- (nut) की भांति, जो तोड़ा नहीं जा सकता । नहीं तोड़ सकते ! आज समय आ गया है कि सहजयोग को साक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते । पहचानना (मान्यता देना) आवश्यक है। आपको पहचानना हो पड़ेगा। आपने किसी संत, किसी लेकिन जो पहचानते भी हैं, वे आंशिक रूप में पंगम्बर, किसी अवतार, किसो को भी नहीं पहंचानते हैं, वे अनधिकार स्वतनत्त्रता लेते हैं । पहुनाना । लेकिन आज तो यह शतं है कि अ्रापको आचरण में यथोचचत् आदर भाव, नम्रता व संयम पहचानना पड़ेगा। अगर आपने तहीं पहचाना, तो नहीं बरतते, वे हास्यास्पद प्रकार से व्यवहार करते यह नहीं समझते कि यहां पर यह महापुरुष आपका सहस्रार नहीं खुलेगा, क्योंकि यही समय है हैं जो हैं, वह कोन हैं? मैंने कई वार देखा है कि मैं भाषणा दे रही होतो है और लोग हाथ ऊपर करके ही शवशयक बात है कि आप सहजयोग को कुण्डलिनी चढ़ा रहे होते हैं या गपे मार रहे होते पहचाने । कई लोग ऐसे हैं जो कहते हैं, मां है। मुझे प्राइचर्य होता है। क्योंकि अरगर आपने पहचाना है, तो प्रापको पता होना चाहिए कि आप जबकि सहल्रार खोला गया, और आपको अपना आत्मसाक्षातकार प्राप्त करना है । यह एक बहुत सहजयोग में इस तरह क्यों विश्वास करें ? हम बस शपको मा पुकार सकते हैं, आप हमारी मां हो किसके सम्मुख खड़े हैं । क्योंकि यह मेरे फायदे के ।" ठीक है । कोई बात नहीं। लेकिन लिए नहीं हैं। मेरी इसमें कोई हानि नहीं होने वाली । बस यह केवल यह दर्शाता है कि अपनी उत्क्रान्ति में आपने पहचाना नहीं, मान्यता देने में सकती हो । आप आत्मसाक्षालार नहीं प्राप्त कर सकते । ओर अग र अपने यह प्राप्त कर भी लिया तो ग्राप इसे स्थायी नहीं रख सकते । आपको असमर्थ रहे । पहुचानना पड़ेगा। पूजा है। प्गर आप पहुँचानना हो सहजयोग की सहजयोग में भगवान को जानना चाहते हैं तो पहचानना हो पूजा है सहजयोग में न्य सभो जमाते गण, देवता, देवो, शक्ति एक ही हैं। प्रोर जो कोई एकाधिका र जमाने की कोई आवश्यकता नहीं । भी सहजयोग को नहीं पहचानता, उन्हें (गण, देवता कोई भो मुझ पर अधिकार नहीं जमा सकता । कुछ आदि को) उस व्यक्ति को परवाह नहीं, वह किस लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं 'मां गलत समझी । मुझे प्रकार का मनुष्य है उदाहरणार्थ, एक आदमी कभी भो गलतफहमी नहीं होतो, सवाल ही पंदा जो शिवजो की पूजा करता है मेरे पास आयो। और मैंने देखा कि उसका अनहत पकड़ा हुआ्रा है कीजिए, बह कीजिए" यह भी आवश्यक नहीं । यह आश्चय की बात है। उसने कहा, "मां मैं अपने आपको इस मयादा (protocol) में डालने शिवजी को पूजा करता हूँ, फिर मेरा अनहत केंसे को कोशिश करो, जो सहजयोग में बहुत ही पकड़ा हुआ है ?" मैंने कहा, "तुम्हें सहजयोग को आवश्यक है, और जिसे प्राज मैंने पहली बार हो पह चानना पड़ेगा। शिवजी से पूछो ।" और जब बताया है, कि आप सम्पूर्णतया पहचानने की उसने शिवजी से प्रश्न पूछा तभी चैतन्य लहरियां कोशिश करें । और [अगर आप नहीं पहचानते, तो और जिस प्रकार कूछ लोग मूझपर एकाधिकार हैं, वह भी बिल्कुल गलत है मुझ पर नहीं होता । या कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं, "यह निर्मला योग २२ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt मुझे खेद है, मैं आपको आत्मसाक्षास्कार नहीं दे कोई समझौता नहीं हो सकता, आपके व्यक्तिर्व का सकती जो कि स्थायी रहे। क्षणि क रूप से आप पूर्णतया समग्रीकर आवश्यक है । आपने वमों को इसे पा सकते हैं किन्तु बह स्थायी नहीं होगा। ठीक करना पड़ेगा। आप गलत काम करके और कहें कि मैं सहजयोगी है यह चल नहीं सकता । तो अपनी उच्च अवस्था को प्राप्त करने का सरलतम मार्ग है, शप शन: व्शनेः (बीरे-धी रे) पहचान । मान्यता प्रदान करें । यदि कि सी में कोई आ्पकी आत्मा आपको बसन प्रदान करती है, आप दोष या कमी है तो उसे वह बताना कठिन है, वस अपनी संकल्प शक्ति लगाते हैं कि हां, मेरी असम्भव है। सहजयोग में आने के बाद मैं यह बता आत्मा कार्य करे और आप अपनी आत्मा के सकती है कि यह चक्र पकड़ा है, वह चक्र पकड़ा प्नुसार ही कार्य करने लगते हैं। और जहां आप है । लेकिन, क्योंकि आपको यह ज्ञात है कि उक्त चक्र पकड़ने का क्या अर्थ है। आप फिर आते हैं और आप देखते हैं कि आप किसी चीज के दास नहीं हैं । कहते हैं, "नहीं, नहीं मां देखो, ऐसा नही हैं, वैसा आप समर्थ हो जाते हैं, अर्थात् (सम- अ्र्थ ) अपने नहीं है। अर्थ के समतूल्य; सम प्रथ,; समर्थ का अर्थ शक्ति- चक्र खराब है? आपको स्वयं ही अपने प्रापको शाली व्यक्तित्व भी है। तो आपका वह शक्तिवाली सवच्छ करना है, पूरी ईमानदारी से । ले किन सर्व- व्यक्तित्व बन जाता है जिसे कोई भी प्रलोभन नहीं प्रथम आपको पूरी समझदारी और नरता से पहचानना है । एक बार आपने पहचान लिया. तो नहीं होती, कोई समस्या तहीं होती। घीरे-धीरे आप बह सब कुछ करगे जो करना है, आप जान जाते हैं क्या करना है । लेकिन इसके लिए सामश्थ्य अन्दर से आती है। अपनी आत्मा के अरनुसार कार्य करने लगते हैं । तो मैं प्रापको क्यों बताऊ कि आपका होता कोई भी असद्-विनार नहीं होता, कोई पकड़ स्वार्थी लोग के वल अपने आपको ही नुकसान पहुँचा रहे हैं, सहजयोग को नहीं । सहजयोग तो सहस्रार का सार समयीकरण (integration) प्रस्थापित होगा ही यदि इस नौका में दस आादमी है । सहस्रार में सारे चक्र स्थित हैं । अत: सब ही हों, तो भी ईश्वर को परवाह नहीं । मां होने देवता/देवी का समग्रीकरणु समग्रीकरण की प्नुभूति कर सकते हो । होने की वजह से मैं चाहती है कि इस नोका में अर्थात् जब आपकी कुण्डलिनी सहस्रार में पहुँच अधिकतम लोग आएं] । लेकिन एक वार नोका में जाती हैं तो आपका मानसिक, भावात्मक और सवार होने के बाद बेईमानी के काम करके वापस श्राध्यात्मिक व्यक्तित्व एक ही हो जाता है । आपका कुदने की कोशिश न करे । शारीरिक व्यक्तित्व भी इसी में विलय हो जाता है । तब आपको कोई भी समस्या नहीं रहती, जैसे कि "मुझे मां से प्रेम है, किन्तु मुझे खेद है मुझे यह हो जाएं । समग्रीक़रण से आापको वह शक्ति पैसा अवश्य चुराना है । मुझे पता है, मैने माताजो मिलती है जिससे आप जैसा समझते हैं तदनुसार को पहचाना है, मैं जानता है कि वे महान हैं, कार्य करते हैं, ग्रौर जैसा प्राप समझते हैं उससे ले किन मैं कुछ नहीं कर सकता, मुझे झूठ बोलना आप प्रसन्न रहते हैं । तो आप ऐसी अवस्था में ही पड़गा" या मुझे यह गलत काम करना ही पहेंच जाते हैं जहां आप इस 'निरानन्द को पाते पड़गा क्योंकि अन्य कुछ उपाय नहीं ।" मेरे साथ हैं। और यह निरानन्द आपको मिलता है जब आप औ्र प्राप उनके की वजह से मुझे ही परवाह करनी पड़ती है। मां अतः यह बहुत सरल है कि आप समग्र निर्मला योग २३ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt पूर्णतया आ्रत्मा स्वरूप बन जाते हैं। निरानन्द उनके जो क्रिया-कलाप हैं वे वास्तव में श्रात्मा के अवस्था में कोई भेद-भाव नहीं रह जाता । यह धर्म नहीं हैं। लेकित धीरे-धीरे हमने अपनी जडें अद्व त है । 'एक' क्यवितत्व होता है पूर्णतया समग्र हो जाते हैं और [प्रानन्द में कहीं सत्य को अपने अन्दर जड़े जमाने दो । ओर जब सहस्रार के मध्य से इस जमा ली हैं। अब ओ थात आप । न्युनता (अपूर्णता) नहीं है। इसमें प्रसन्नता या दूःख के पहलू नहीं होते, मागदशन करता है, ऐसा प्रकाश जो भापका पोषण बल्कि यह बस 'आनन्द' होता है ।आनन्द का अर्थ करता है, ऐसा प्रकाश जो आपको प्रदीष्त करता यह नहीं कि आप ठहाका मार कर हंसे या मुस्कराते है और आपको एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करता है रहें। यह निस्तव्धता (stillness) अरापके अन्तरतम का विश्राम भाव (quietitude), शान्ति (peace) कि आपका सहलार आपकी आत्मा द्वारा पूरणंतया आपके स्थक्तित्व की, आपकी आत्मा की जो चंतन्य प्रज्ज्वलित हो गया है आपका मुखमंडल ऐसा प रहती। वह सम्पूर्ण होता यह सत्य उस प्रकाश में बदल जाय जो आपका जिसमें प्रकराश है, तभी आपको समझना चाहिए नहरियों के रूप में स्फूरित होती है, जिनकी आापको होना वाहिए कि लोग जाने कि यह जो व्यक्तिर्व अनुभूति होती है। जब आपको उस शान्ति की सामने खड़ा है वह प्रकाश है । इसी प्रकार सहत्रार अनुभूति होती है तब आप अपने को मुर्य के प्रकाश के ममान अनुभव करते हैं, उस सौन्दयं की छटा चारों और बिखरतो रहती है। की देखभाल करनी है। सहस्रार की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर डके । सदियों में सिर ढकना अच्छा है ताकि मस्तिष्क किन्तु पहले हम अपने निजो, स्वार्थी, मूर्ख कल्पनाओं से भयभीत होते हैं । उनको फंक दो। 0 ड से ना जमे क्योंकि मस्तिष्क भी मेधा (fat) वे हम पर छायी होती हैं क्योंकि हम असुरक्षित थे और कयोंकि हमारे गलत विचार थे । उन्हें फक उ्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने मस्तिष्क दो ईइतर के साथ एकरूप होकर खड़े रहो । आप पाओगे कि ये सब भय व्यर्थ थे । हमारी शुद्धता बहुत आवश्यक है। यह शुद्धता तब श्राती है जब आप सहजयोग में बताई विधि के अनुसार आप बास्तव में शुद्धिकरण करे । का बना होता है । ओर फिर मस्तिहक को बहुत को ठीक रखने के लिए, आपको हर समय घूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए, जेसा कि कुछ पाइचात्य लोग करते हैं। उससे आपका मस्तिध्क पिघल जाता है शरोर आप एक सनकी मनूष्य बन जाते हैं, जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ समय बाद पागल होने की सम्भावना है । अगर आप धूप में भी बैठे तो अपना सिर हके रखें। सिर ढकना बहुत [आवश्यक है लेकिन सिर को कभी कभी है। सहस्रार बेधना वहुत कठिन कार्य है। ओर ढकना चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर अप जब मैंने सचमुच भारी पट्टा बाँधे रहें तो यह कार्य इतना सफल होगा। पहले मैंने सोचा कि रक्त का संचार ठीक प्रकार से नहीं होगा और उचित समय से पहले हो गया। क्योंकि कई ग्रापके रक्त संचार में तकलीफ होगी। अत: केवल राक्षस प्रभो भी गलियों में प्रपना माल ेच रहे हैं कभी कभी (हमेशा नहीं ) सिर को सूर्य अथवा और कई ऐसे धर्मान्ध लोग भी हैं जो तथाकथित चन्द्रमा के प्रकाश में खुला रखना उचित है । नहीं तो घमं के नाम को दूहाई देते हैं किन्तु वास्तव में अआप चांद के प्रकाश में प्रत्यधिक बैठे तो पागलखाने मैं कहूँगी सहस्रार देव ईश्वर) का अाशी- वाद है। यह ऐसे सुन्दर रूप से क्रियान्वित हुआ का इसे वेधा तो मुझे पता नहीं था कि हमेशा ही सिर पर एक यह निमंला योग २४ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt पहुँच जाएंगे। मैं जो कुछ भी बताती है, आपको विचारों (ideas) से नहीं चिपकना चाहिये गोर समझनाचाहिए कि सहजयोग में किसी भी चीज में न व्यक्तियों से चिपकना चाहिये। आपको हमेशा अ्रति ना करें। यहां तक कि पानी में भी लोग तीन- गतिमान रहना चाहिये, इसका यह मतलब नहीं कि तीन घंटे तक बैठे रहते हैं। मैंने ऐसा कभी नहीं इस गतिशीलता में आप कहीं गिर जाएं प्रौंर सोचे कहा। सिर्फ दस मिनट के लिए आपको पानी में अरे, हम तो बहुत उम्नति कर रहे हैं क्योंकि हम बैठना है, किन्तु वह पूरे हृदय से । अगर मैं उनसे गिर रहे हैं ।" आपको ऊंचा उठना है, गिरना कुछ करने को कहती है तो वे वह चार घंटे तक नहीं है । करते रहेंगे। इसकी कोई आवश्यकता नहीं । केवल दस मिनट के लिए कीजिए। हू तो जब आप सहजयोग में कुछ प्राप्ति कर रहे हैं तो आपको सर्वप्रथम देखना चाहिए कि आपका अपने शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रनुभव, स्वास्थ्य ठीक रहे, आपका मस्तिष्क सुचारु उपचार (treatment) दोजिए, हमेशा एक हो ( normal) रहे, आप एक सामान्य (normal ) व्यवस्था नहीं। इस तरह तो आपका शरीर नीरस उयक्ति हों। अगर आप अभी भी लोगों पर भौकते (bored) हो जाएगा या बोझल (over- है (अश्रिय बोलते हैं) तो आपको यह जान लेना burdened) अनुभव करेगा अगर आप किसी को चाहिए कि आपमें कुछ दोष है । या आप मन में बताएं कि अ्रापके लिए यह मन्त्र है तो इसे तभी उदास, उद्विग्न और रकारण कुपित होते या अरापकी मन स्थिति बिगडती है तो आप समझ लें कि तक प्रयोग करना चाहिए जब तक कि आप इस ERNINTE चक्र की बाधा से छुटकारा न पा ले । उसके आप अभी सहजयोगी नहीं हैं। आप अपने अराप की पश्चात् नहीं । मान लीजिए इस जगह एक पंच जांच कर सकते हैं। अगर आप एक पक्षी की तरह लगाना है। तो आप इसको तभी तक घुमाएंगे जब स्वच्छन्द (free) हैं तो ठीक है। लेकिन इसका तक कि यह मजबूती से न गड़ जाए। आप इसको यह प्रथ नहीं कि आाप सड़क पर चिड़िया की तरह गड़ने के बाद भी घुमाते नहीं जाते। क्या आप गाते फिरें या पेड़ों पर फुदकते फिर । एक मूढ़ इसको लगातार घुमाते हो चले जाए गे ताकि सारी आदमी के सामने मैं कोई भी उपमा दें वह अत्यन्त चीज बिगड़ जाए ? अच्छा है कि आप सद्बुद्धि मूर्खता पूर्ण आचरण करेगा । लेकिन वहो एक विवेक का प्रयोग करें । और इस सद्बुद्धि के लिए सद्बुद्धिमान के सामने देने से वह उसका सही आपको श्री गणेश या ईसामसीह को जानना उपयोग करेगा । तो यह समझना चाहिए कि सहज- द्वारा विवेक पूर्वक दे योग विवेकी मनुष्यों चाहिए । जाना जाता है । ईसामसीह, जो सिर के दोनों तरफ हैं, यहां (पोछे) महागणेश हैं और यहां ( सामने माथा) ईसामसीह हैं । दोनों आपकी दृष्टि ठोक करने को दूढ़ता पूर्वक पकड़ लेते हैं । वह चीज है आपकी में आ्ापकी सहायता करते हैं और अरपको समझदारी आत्मा और आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक पतंग व सद्बुद्धि प्रदान करते हैं । चीज से चिपकने में नहीं है । सहजयोगी चिपकने चीज के ऊपर उड़ती फिरती है । आप एक ही चीज वाले लोग नहीं हैं। अगर वे चिपक जाते हैं तो से चिपके रहते हैं, वह है आपकी आरात्मा । अगर समझ लो वे उन्नति नहीं कर रहे हैं। आपको आप सचमुच ऐसा कर सके, यथार्थ में और सहजयोग में होता क्या कि है धाप एक चीज तो सद्वुद्धि किसी की तरह विचरण करता है, जैसे एक पतंग हरेक निरमला योग २५ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt ईमानदारी से, पैसा, परिवार और अन्य समांस रिक सामूहिक नहीं हैं, अरगर प्राप निराले या हास्यास्पद वस्तुओं के बारे में प्रधिक चिन्ता किए बिना, तो हैं, श्रगर ्राप दूसरों से विचार संचार नहीं आ्प सहजयोग में सफल हैं। इनके बारे मे बस चिन्ता न करें, अपको चिन्ता करने की आवश्यकता कुछ गड़बड़ है । और तब आप अपने आपका नहीं। बस बन्धन दीजिए। अगर ऐसा नहीं हो स पाता तो आपका सहजयोग समाप्त । अगर हो ठ (communicate) कर सकते, तो समझ ल कि सामना करें (अपने को जांचे) और अपने आपको ठीक करने की कोशिश करें। जसे एक साड़ी को उतार कर साफ किया जाता है। आप अपने को अपने 'स्व' से अलग कर के साफ करें । इसी प्रकार वही हो (Thy will be सहजयोगी प्रगति करेंगे । जब कूछ सहजयोगी जाता है तो बहुत अच्छा। आपकी व्यक्तिगत इच्छा का महत्व नहीं, प्रभु की इच्छा का महत्व है- प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो done) प्राप कहें प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो । ऊंचे उठंगे तो और [अनेक उनसे प्रभावित होंगे और प्र कंसा आश्चर्य है कि आपकी इच्छाएं बदल ऊंचे उठेगे । इस प्रकार सब सहजयोगी समुदाय जाती हैं, आपके संकल्प बदल जाते हैं और जो कुछ बहुत तीव्रता से ऊंचे उठ सकता है । लेकिन तुम भी आप कहते हैं वही हो जाता है। लेकिन जव लोग जो ऊचे उठ रहे हो, श्रर ज्यादा उन्नति करो, ऐसा हो जाता है तो लोगों में अहंका र उत्पन्न हो विना अपनी उन्नति के बारे में सोचते हुए । यह जाता है । अत: सतर्क रहें । यह सब 'श क्ति' द्वारा किया जाता है, आपके द्वारा नहीं। [आपकी 'आत्मा द्वारा, आप द्वारा नहीं। अरपको आरत्मा होना है। और जब अ्रप आत्मा हो ही जाते हैं तो याप अकमं में होते हैं, जहां प्राप जानते नहीं कि आप कर रहे हैं, बस हो जाता है, प्राप अनुभव नहीं करते, आरप अवगत नहीं होते । वहुत आवश्यक है । श्रवश्यक है । जो लोग सोचते हैं कि दूसरे लोग उनसे ऊंचे हैं वे भी गलत सोचते हैं, क्योंकि ऐसी बात नहीं है । समस्त ही ऊंचा उठ रहा है। कोई इस प्रकार अपने , को निम्न न समझे या अपमानित अनुभव न करे कि कोई उन्हें निम्न समझता है । औरों को सोचने दो. उससे क्या होता है, भगवान तो ऐसा नही इन संब भाषणों के बाद, आप के ज्यादातर सोनता । तो ये छोटी-छोटी बातों से आप सतर्क चक्र खुल गए होंगे । लेकिन यह सब 'मेरा' कार्य रहे । इस कृतयुग में आत्मसाक्षात्कार का चरम है। अब आपको भी कूछ घुर जाकर काम (home work) करना है । आपको भी अभ्यास करना है ओ्र अपने आपको देखना है। सावधान रहो। अपने प्रापको दर्पण में देखने और अपना सामना करने की कोशिश करो। आप देखें आप कितने आप अभी पुछ लें। ले किन सिर्फ सहस्रार के बारे में, ईमानदार रहे हैं, आप कितने शुद्ध रहे हैं, सामूहिकता में आप कितने मित्रता पूर्ण हैं. जो मेरे से अन्य विषय के बजाय सिर्फ सहस्रार के बारे सहजयोग में बहुत महत्व रखता है । अगर आप में ही प्रश्न पूछ । लक्ष्य प्राप्त केरना बहुत ही औसान है । मैं सोचती है कि मैंने सहस्रार के बारे में बहुत कुछ बताया है। अगर आपकी कोई समस्या है तो 1. और किसी के बारे में नहीं। अच्छा होगा कि आप नि निर्मला योग. २६ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt LF जय श्री माता जो न महामानव (The Superman) सहजयोग हो सहजमार्ग, और न कोई आन । चल कर इस पथ पर, बन तु मानव महान ॥ १॥ बाहर से स्थिर तू, भीतर से गतिमान । यात्रा यह जीवन अनन्त की, हे मानव महान ! ॥२॥ शगे बढ़ना सहज में, कर दूर अज्ञान । होगा प्रमर जीवन तेरा, हे मानव महान !॥३॥ ।।३|॥ चल अब निरन्तर, अ्रसत् से सत् की प्रोर । तम से ज्योति, मृत से अमृत, कोई न जिसकी छोर ।।४॥ तज दिया जग सारा, छोड़ दिये घर बीर । साथ तेरे चलने को, हो गये हम भी तेयार ।।1५।। पत होकर गृहस्थ हो, तय कर यह पंथ । पढ़ना-सोखना सह ज हो, सहज हो तेरा ग्रन्थ ।।६।। "प्रभु का अन्तिम निर्णय" ही, हे मानव महान ! । असीम क्षमता तेरी, दे बदल यह जहोन ॥७॥ आनन्द ही आनन्द धरा पर, होगा जीवन प्रनन्त । भय-शोक दूःख-दर्द का, प्राया प्रब अन्त ॥८॥ KOLLA काम _० पर निरन्तर, रहते जिनके ध्यान मृदुभाषिता, विनम्रता के, हैं जो मूर्तिमान ।। ।। मातृ पदकमलों । सहज सद्गुरण सम्पन्न, सुहृद हे क्षमावान ! । धन्य-धन्य हो तुम, हे मानव महान ! ॥ १०॥ हिंद म विचार। तन मन भाव शुद्ध, मृदू वचन मुक्त नित्य पवित्र चिन्तन, सतुलित तेरा व्यवहार ।। ११॥ निमंना,योग २७ rho 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt माँ के प्रिय बालक हो, हो तुम प्रान समान । बदलेगा तू इतिहास, हे मानव महान !॥ १२।। कहां गया अहं तेरा, गये कहाँ षट् विकार । हुमा विशुद्ध मन, पाया प्रात्म साक्षात्कार ।। १३।। सहज जीवन के आधार, मानवता के हो प्रान। विनम्र-प्रिणिपात चरणों पर तेरे, हे मानव महान !॥ १४ ॥ मातृप्रम से प्रालोंकित पथ तेरा, पाया आरत्म ज्ञान । करो मार्ग दर्शन मानवता का, है मानव महान ! ।।१५।। With best compliments from: S. K. GUPTA A.B. CORPORATION 1-C/27, Rohtak Road New Delhi-110005 Phones : 5719379, 5725601 निमंना योग २८ 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt (द्वितीय कवर का शेषांश) पपके ओष्ट (अ्रधर) वाम विशुद्धि की ओोर जाकर विकृत हो जायेगे| बहुना आरम्भ कर देता है आप इस पर विचार कीजिए आपको महतो प्रसन्नता एवं आह्वाद का अनुभव होगा। यह सरलता वामांग विशुद्धि में श्रकर कटू एवं कठिन कण्टदायक वन जाता है सा प्राप सब प्रपनी वामांग विशुद्धि पर नियंत्र र कर जाती है तब यह फिर औ्र ऊँचे उठकर प्रवयवी मृद्ल वाणी द्वारा मंजुल शब्दों का प्रयोग क्र आपको भाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए मृदु होना अनिवार्य है । विशेषतया पूरुष वर्ग को अपनी सह- जब यह स्राव उचवस्थ आज्ञा चक्र में पहुँचता है जहाँ श्री गराश शक्ति सर्वोत्कृष्ट क्षमाशक्ति बन । क्षेत्र (Limbic area) में पहुँचती है जहां श्रीगणेश श कि्ति, जोसुर्य से परे है, विराजती है । त व विशिष्ट धमिणियों से मृद्ल संभाषरण (मोठी-बात) कारनी अह (Superego) ऊपर उभरती है। यह शक्ति चाहिए। अब यह मृदुलता आपकी बामांग विशुद्धियों को शुद्ध कर देगी। आप सदैव वारणो की ह शिव के सिर पर विरा जमान होती है। यह एक ही प्रयोग करें । मृदूल अपराध भावना की सुधारते का क्योंकि यदि आप किसी को भी कटुव वन कहते हैं से हमारी इच्छा ही आत्मा (Spirit) बन तो प्राप अपनी चिर-अभ्यस्तता प्रनुसार जाती है। आपकी इच्छा श्ौर आत्मा का समस्वय करते हैं तथा ऐसा करने में आपको प्रसन्नता का भी होता है जैसे ही आप अपने कथोप- चंद्रमा की शक्ति है । यहाँ चंद्रमा की आत्मा है। यही आात्मा (Spirit) वन जाती है। यह सदा मृदुल प्रक्रिया से संबोधन ही आ्रपनी सविश्रष्ठ माग है बात है । श्री गणेश की शक्ति की सम्पूर्ण उत्क्रान्ति, जैसा कि प्राप देखते है, अति सुन्दर है। इस प्रकार ही ऐसा के (एकीकरण) हो जाता है परन्तु कभी-२ यह बाधा बहुत ही निककष्ट बन जाती है। तुमने देखा है कि अनुभव कथन की समाप्ति करते हैं तो आपको पश्चाताप तम सबके सब जिनकी वाम विशुद्धि है जब कठोर भी होता है और आप कहते हैं कि-"हे भगवान मैं क्था कह गया।" यही सबसे बड़ा अपराध है । पतः सर्देव प्रत्येक व्यक्ति को सुन्दर चुनकर प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिये । नहीं कर सकती और न ही भ्रण्ट कर सकती है। देखिए चिड़ियों का कलरव (चहचहाना ) हो यह कठोर शब्द तभी प्रयोग करेगी जब इसकी वचन बोलते हैं तो आपको ज्ञान होना चाहिए कि यह आ्प नहीं वोल रहे हैं। वस्तुतः नहीं, क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा कठोर वचन उच्चारण मोठे-मीठे शब्द अ रहा है। इसी प्रकार आपको भी सब प्रकार की ध्वनियाँ सीखनी चाहिए जिससे आप अपनी अत्यन्त आवश्यकता होगी, परन्तु चिन्मात्र पुन्निमित मी आप इस पर बिशेप ध्यान दें । यह कार्य किसी अन्य शक्ति द्वार सम्पन्न होना है । मृदुल । यह अति है । नहीं तो प्रापकी बामांग विशुद्धि अ्यधिक बढ़ जायेगी और श्रप वा्तालाप का अलग मार्ग (ढंग) विकसित कर लगे जिसके फलस्व रूप मजुल वारणी से सबको प्रसन्न कर सक महत्वपूर्ण वस्तु श्री माताजी राहरी, दिनांक ३१-१२-८० निर्मला योग तृतोय कवर 1985_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 36999/81 * निर्मल वाणी हर जिस समय अरपके मन में परमात्मा के प्रति प्रम, प्रादर व आदरयूवत भय (awe) रहता है तब ये विश्वास हो जाता है कि परमा्मा हो सर्वशक्तिमान है और वही हमारा पालन कर रहा है। वह अपनी शक्रिति से हम पर आशोर्वाद की वषों कर रहे हैं। परमात्मा अत्यन्त करुण मय है । वे कितने करुणामय हैं इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते । परन्तु वे जितने करुण मय हैं उतने ही कठोर हैं। अगर उनका कोप हो गया तो वचना महा मुश्तिल है। उन्हें कोई नहीं रोक सकता, मेरा प्यार भी नहीं रोक सकता । क्योंकि वे कहें गे आएने वच्चों को बहुत छुट दे रखी है। इसलिए वे खराब हो गये इसलिए मैं कहती नाम बदनाम न कीजिए । मैं ग्रापको फिर से कहती हैं अपना समय व्यर्थ की बातों में मत गॅवाइए और पूरी तरह से सहजयोग अपनाइए । है कि कोई भी बुरा कृत्य मत कीजिए और अपनी मौ का श्री कराइस्ट के पास एकादश रुद्र की হक्तियां हैं, माने ग्यारह सहार शक्तयां । इन शक्तियों के स्थान प्रपने माथे के चारों औोर है । जिस समय श्री कल्को शव्ति का अवत रण होता है उस समय ये सभी शक्तियाँ संहार का काम करती है । सहजयोग में अरने के बाद आपको समरषित होना जरूरी है, क्योंकि सब मिलने के बाद उसमें टिकना, जमना और उसमें स्थिर होना वहुत महत्वपूर्ण है । वहुत से लोग मुझसे पूछते हैं "हम स्थिर कव होंगे ?" इसका उत्तर है समझ लीजिए आप किसी नाव में वैठकर जा रहे हैं। नाव का स्थिर होना आपकी समझ में पराता है । आप प्रगर दो पहिये वाली साईकल चला रहे हैं वह चलाते समय जय आप डावॉडोल नहीं होते और स्थिर हो जाते हैं ये जैसे आप समभते हैं उसी तरह सहजयोग में आपका स्थिर होना आाप समझ । मैं श्रापके लिए रात-दिन मेहनत करती है । परमेश्वर प्राप्ति के लिए जो आखिरी परोक्षा है वह उत्तो्णं होने के लिए मैं आप पर मेहनत करूंगी लेकिन इसमें अप का भी भूझे पूरी तरह सह- कार्य होना चाहिए। ये सभी प्राप्त करने के लिए स्वतोषरी यत्न करने चाहिए और जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में लगाना चाहिए। सहजयोग महान है, बहुत ही कीमतो है, वह अत्मसात करने के लिए अपना समय उसमें लगाना है । Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 8.00, Annuel Subscription Rs. 40.00 Foreign [ By Airmail £ 12 $ 16]