ॐ fनिर्मला योग जनवरी-फरवरी १६८६ वर्ष ४ अंक २३ द्विमासिक परी + ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनो, मोक्ष प्रदायिनो, माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। परी पड ी दिव्य जीवन की ओर दिव्यता के प्रकाश में, क्रितयुग के आगमन से अब, नवीन इतिहास लिखते जायेंगे । आधुनिक, प्राचीन सब, पन्धविश्वास मिटते जायेंगे |१॥ आने ही बढ़ते जायेगे ॥४॥ सत्य अहिसा, प्रेम के हो, अब] गोत गाये जायेगे । परम्पराय प्राचीन श्रब, पीछे छुट भेद-भाव, छल कपट के घड़, मिट जायगे कलंक जोवन के, अब "कृल्कि अवतार" आयगे ॥५॥ जायेंगे। असत्य, अधमं, अन्याय के अब फूट जायगे ॥२॥ अब अन्त हो जायगे। विश्व वधुत्व, एकार्मता में, सहज सत्य के उदय से, सब अन्धकार मिट जायेंगे । से, सब सन्त हो जायगे ।।६।। सहजयोग के अभ्यास मातृप्रेम में निरत रहेंगे, आत्म साक्षास्कार पायगे ॥३।॥ कम करते जाय गे शुभ साम्राज्य प्रभु का होगा धरा पर, । है भत्रिष्य उज्ज्वल सामने, जोवन अनन्त पायेगे ॥७॥ नव निर्माण करते जायेगे | सो० एल० पटेल जय श्री माताजी 5 गीत असत् से सम्बन्ध टूटा अब, उड़ रहा सुगन्ध घरा से, संग संत् के जाने लगा है ।। ३॥ गगन में छाने लगा है धाज मक्ति का बोध हुआ, तोड़ केर तम का आवरण, गोत मंगल गाने लगा है ।।१।। ज्योति अमर जगाने लगा है । सत्चिदानन्द के सागर में, अनन्त जीवन का राही, गोते लगाने लगा है ॥४॥ पथ परम पर जाने लगा है । लाघ कर सब सीमायें, प्रभु के साम्राज्य में प्रवेश मिला, पद परम पाने लगा है। असोम में समाने लगा है ।।२॥॥ परस मातृपद कमल सहज में, सत्य का साक्षात्कार हुआ, जोवन सफल बनाने लगी है ।।५।।। भ्रम-भूतों को भुलाने लगा है । सी० एल० पटेल स निमंला योग द्वितीय कवर है नड ी न |कि पा ज लि सम्पादकीय "प्रवधू बेगम देस हमारा" श्री कबीर निर्विचारिता की स्थिति बिना गम अर्थात सुखद होती है । श्री कबीर दास जी इसी स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे साधू हमारे देश में अर्थात शरीर में किसी प्रकार का दुःख नहीं है । परमपूज्य आदिशक्ति श्री माताजी जन मानस को कुण्डलिनी जागृति द्वारा यह स्थिति अनायास सुलभ करा रही हैं । इस सन्देश को जन जन तक पहुंचाना औ इस आनन्दमय स्थिति से पअवगत कराना ही हमारा धर्म है । ॐ साक्षात् परमानन्द दायिनी साक्षात आ्दिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः । ती ॥ि निर्मला योग १ निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आानन्द स्वरूप मिश्र श्री आ्रार. डी. कुलकर ও प्रतिनिधि कनाडा : लोरी एवं कैरी हायनेक 1540, टेलर वे वैस्ट बैन्कूवर, B.C. VIS 1N4 श्रीमती क्रिस्टाइन पेटू नीया २७०, जे स्ट्रोट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक्-११२०१ यू .एस.ए. भारत यू .के. श्री एम. बो. रत्नान्नबर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी), बम्बई-४०००६२ श्री गेविन बाउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पो्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य श्री माताजी का ६३वें जन्म दिवस पर प्रवचन ४. संक्रान्ति पूजा ५. श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु रिव्रस्त ६. सहजयोग ओर शारीरिक चिकित्सा-(४) १ २ ३ १३ १७ २५ ३१ ७. वतमान का महत्व ८. सहजयोग का कल्प बृक्ष &. दिव्य जीवन की ओर १०. त्यौहार ११. निमंल माता कृण्डलिनी माता ा ३२ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर के = २ निमंना योग कतस पल परमपूज्य श्री माताजी का ६३वें जन्म दिवस पर प्रवचन तम मुम्बई २-४-८५ आज के 63rd Birthday व हत लोग सोचते हैं कि सहजयोग में अने से (तिरेंसठवें जन्म दिवस) पर शपने हमारी घर की सांपत्तिक स्थिति ठीक हो गयी या हमारे बच्चे ठीक हो गये लड़कियों की शादियां एक मां को क्या कहना चाहिए ? हो गयी लड़कों को नौकरियां मिल गयीं हर क्योंकि जो कुछ भी है सब आपकेतरह का क्षेम हो गया यह सब देखते हुए भी, जानते हुए आपको उन लोगों के लिए सोचना आपके लिए है इसलिए इसके लिए यदि आप इस चाहिए जिन्होंने प्रभी तक इसमें से कुछ भी नहीं समारोह को मनाते हैं तो इतना ही कहना है कि पाया है. जो अज्ञान के सागर में डूबे हुए हैं। इस पर हमेशा चर्चा होनी चाहिए, इस पर हमेशा विचार होना चाहिए। आप तो जानते हैं मुझे महत्वपूर्ण है आज तक परमात्मा ने अनैक लोगों किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। मैं पूरी तरह से तप्त जोव हैं। ले किन मूझे सम्पूर्णं संसार को बचाना है। सारे संसार के लोगों को बचाना है । उसके उसी कार्य के अशो्वाद स्वरूप शप लॉगो ने लिए बहुत मेहनत करनी है। सालो बोल गए सहजयोग पाया है। लेकिन अभी तक आप लोग पहले तो मेहनत की कि किस तरह से सहजयोग शायद इसका महत्व नहीं जान पाए। पहले तो एक सामूहिक चेतना का कार्य करे । बहुत मेहनत लोग पहाड़ों में घुमते थे, बहुत तपহचयों केरते थे, की । हर-एक आदमी की पोर ध्यान देकर के ओर भस् जो समारोह रचा है उसके लिए लिए ही है । ये सारी उम्र भी यह प्रपनी चीज है । और इसका आपको पूरा उपयोग करना चाहिए। क्योंकि जिन्दगी वहुत को संसार में भेजा। उन्होंने भी कार्य किया है । उस कार्य की ही अब फलश्रुति हो रही है । प्राज ा परमात्मा की खोज में रहते थे । उसको अभ्यास करके परोर समझा कि इस अ्रादमी के करसे दोष हैं फिर उसका वर्गीकरण किया, आपने सहज में ही आरज अपनी आत्मा को अलग-अलग उसको बिठाया, फिर प्राप्त किया, इतना सहज और सरल मिला है, विश्लेषण किया । हजारों लोग जो जीवन में आए. और उससे इतना क्षेम प्राप्त हुआा है इस कदर जिनके बारे में मैं पढती थी, मैं जब छोटी थी भपने शक्तियों को प्राप्त किया है. उस में कभी भी हमेशा लोगों की जी वनी पढ़ती थी । स्कूल में लड़ ऐसा आपको लगा नहीं कि इस चीज को मिलने कियों को बड़ी हंसी भ्राती थी ये अभी प्राइमरी में कितना प्रयत्न करना पड़ा, कितने जन्म लेने स्कूल में है और सबकी जीवनी पढ़ती रहती है । पड़े, कितनी जिन्दगियां बितानी पड़ीं, उसके बाद आज आप सहजयोग को प्राप्त हुए। और इस दशा रहे हैं, कोई जापान में हुआ उसकी पढ़ रहे हैं, कोई में आए हो कि आज आ्रप एक साधु स्वरूप है । अमेरिका में हुआ उसकी पढ़ रहे हैं, हमेशा हम नें उसका कोई प्रास्ट्रेलिया में प्रादमी हो गया, उसकी पढ़ निर्मला योग ३ जोवनियां पढ़ते थे । पिछले जीवन में इसको कौन योग के कार्य में संलग्न रहना, हर समय सहजयोग से प्रश्न आए ? इसका हल उसने के से निकाला ? के बारे में सोचना है। मैं हर समय सोचती रहती ये आदमी केसा होगा ? इसकी प्रकृति क सी होगी फिर इसकी इस जन्म में प्रकृति क्या रहेगी ? इस प्रकार अनेक जीवनी में पढ़ती रहती थी। श्रर मैं कुछ हैं, बहुत तेजस्वी बच्चे हैं। अब इन वच्चों को एक खास पढ़ती नहीं थी। मेरा मुख्य उद्देश्य था सबको स्कूल में रखना चाहिए। अ्रब जिन मां-बाप के पास जीवनी पढ़ें । जब भी लायव री जाऊं तो जीवनी बच्चे हैं वे इसमें Interested (रुचि रखते) हैं, बाकी निकाली। प्रब मैं जानती हैं कि उसके कितने तरीके हैं ? और उसमें क्या-क्या दोष कहा कि चलो हम ऐ सा कुछ कार्य करे कि जहां पर हैं, ? और जब मैं ये पढ़ने लगो और देखने लगी हिन्दूस्तान के कला के द्वार खुले । हम विदेश के तब मैंने सोचा कि मैं जिस कार्य के लिए संसार में लोगों को वृलाएं । मू भो कला से कोई मतलब नहीं श्रयो है वह मुश्किल न होगा। सामूहिक चेतना है। वैसे देखा जाय तो कला तो मैं कसे भी हो बना संसार में प्रानी चाहिए और लोगों की कुण्डलिनी ही सकती सहज जागृत हीनो चाहिए । ये कार्य में संसार में कुला के माध्यम से हम औ्रों को अ्राका्षत कर करके जाऊंगो । लेकित बड़ा कठिन काम था । सुकते हैं, इस देश में ला सकते हैं । उनको पार अब इतनी मेहनत करने के बाद आप लोग इतने कर सकते हैं । उसको महत्वपूरण तरीके से करना पार होने के बाद आज आपके सामने जब में बेठी है। जितको कला के क्षेत्र में Interest (रचि) है है। मूझे एक प्रश्न लगता है कि अरआप लोगों को ये वे लोग कहते हैं माँ ये प्राप वड़ा अच्छा काम कर केसे समझाया जाय कि सहजयोग कितनी महत्व- रही हैं। इसकी ओर देखने की दुष्टि न तो इतनी पूर्ण चीज है ये अपके घर द्वार के संभालने की गहन है और न विशञाल । दमी जितना गहन चीज नहीं है या आपके बीवो-बच्चों को संभालने होगा उतना विशाल होगा। की चीज नहीं है क्योंकि ये सब temporary (अस्थाई) है । आपके न जाने कितने बच्चे हो चुके, कितनी बीवियां हो चुकीं, क्या-क्या हो चुका और सहजयोगी के लिए नहीं, यह तो संसार के लिए अब कितने political Iives आपन lead (राज- है। मैं मानती है कि मेरा विचार बहुत वड़ा है । नीतिक जीवन विताए) कितना क्या-्क्या किया। लोग कहेंगे कि माँ बहुत महत्वाकांक्षी हैं। ऐसा अब जो सबसे बडी चीज ये हैं कि इन सहजयोगियों कसे हो सकता है ? हो सकता है । मैं जब छोटी को कैसे समझाया जाय कि ये बहुत ही महद्वपूण थी तो मैंने अपनी माँ से कहा मैं तो ऐसा चाहती चीज है । और संसार का कोई सा भी कार्य इससे ह माँ दुनिया के हर आदमी का परमात्मा से एका- ऊंचा नहीं है । बहुत से लोग कहते हैं सहजयोग बहुत बड़ी चीज है, बहुत से कहते हैं अरब हम सहज- में री मां मुझासे कहती थी "वेटी तु अगर एक से योग के बगर रह नहीं सकते । कोई कहते हैं कि दूसरा भी बना ले तो मैं तुमको घन्य समझगो सहजयोग से हमको बड़ा लाभ हुआ्रा लेकिन अब] ये और मेरे पति मुझसे शुरू में यही कहते थे तुम तो कसे समझाया जाय कि हमारे लिए तो सहजयोग अवलिया हो, लेकिन तुम दूसरों को अपने जेसा हो सब कुछ है और इसका कार्य करना ही हमारा बनाने का यत्न न करो । ये वड़े पत्थर लोग हैं । जोवन है। हमें जो नया जन्म मिला है सिर्फ सहज- कोई नहीं बन सकता । तो पहलो तो हमारो स्थिति हैं अब ये जो दच्चे आए हैं जो कि हमारे यहां पैदा हैं ये सब Realised souls (पार हुए लोग) ? हुए मनुष्य कैंसा है । नहीं। नहीं तो दूसरे ऐसे लोग हैं जिनके लिए हमने हैं और चला ही सकती है । लेकिन इस हूँ सहजयोग व्यक्तिगत नहीं, समाज के लिए नहीं, कार हो जाय, कम से कम कुछ तो हो जाय। तो निमला योग आ गयो पहली स्थिति में हम ठीक हैं । इस स्थिति ये बताया जाय कि तुम्हारा प्रकाश वहुत महत्वपूर्ण में हम पहुँच गए कि हम सहजयोगी हैं। ये हमें है और वो उनके सर में टिक जाय । यह कैसे विश्वास हो गया। और मां आदिशक्ति है ये भी किया जाय ? आजकल मेरा मनन इन सब बातों विश्वास हो गया इसमें कोई शंका नहीं। परन्तु पर हो रहा है कि इन सहजयोगियों में ये बात इस पर दूस री शक्ति आनी है कि सहजयोग आज एक महायोगहै, प देखते हैं कोई आदमो भागा जा रहा है, भागा जा रहा है, भई क्या ? मैं एक बड़ा भारी प्रॉजेक्ट बना रहा है, खासकर सरकारी नोकरों को तन्खाह जिस्दगी भर उस बीवी की गूलामी की श्रौर ग्रव उतनो हो मिलती है चाहे प्रॉजेक्ट बनाओ, नहीं भी करते रही। अन्त में तुम्हारा क्या हाल होगा? बनाओ । गधे हो चाहे घोड़े हो, एक ही तन्खाह अगले जन्म में तुम उसको बीवो बनोगे कि क्या मिलने वालो है। उनका कुछ बढ़ता नहीं। तो वो भी जूटे रहते हैं। भई क्यों ? काहे मरे जा रहे हो ? तुमको क्या मिलेगा ? नहीं नहीं, ये मेरा कर्तव्य है । चाहिए। श्राप समझ नहींीं रहे हैं। इस तरह प्पना तन्स्वाह तो तुमको इतनो ही मिलने वाली है। पंसे के लिए थोड़े कर रहा है। मैं तो तन्खा ह के लिए ुछ नही कर रहे हैं। सभी काम इतनी सुन्दरता नहीं कर रहा है। तो काहे के लिए केर रहे हो ? से होति है । इसके साथ में ऐसे बन जाते हैं कि आशन्य मैं तो कर्तव्य के लिए फर रहा है। करतव्य क्या होता है ? तो उनका अगर कर्तत्य इतना महत्वपर्ण है तो ये कतव्य कितना बडा है ? इस कर्तव्य को सहजयोग में लोग पेंसा योडा बहत देते हैं कि मेरे कितने महत्व से करना चाहिए? हम हर श्रादमी एक महान गुरुस्वरूप हो गए, ये भी आप नहीं जानते । आ्ाप करके देख लीजिए, आप प्रपनी शक्ति को इस्तेमाल करके देख लीजिए कि [आप] है कि नहीं है । इसमें कोई अहंकार की बात नहीं, आप है सो हैं । इसमें काहे का अहंकार । आप हो ही गए इसके प्रागे क्या होने का ? अप पूछिएगा अ्ब तो हैं बड़े, आप हैं हो ऊचे । भी आप जिन चीजों को महत्व देना चाहिए उनको तुम्हें दाता होना च| हिए । जो राजा है तो उसको नहीं देते हैं। अब जो भी कार्य करें इस दृष्टि से राजा बनाकर बिठा दिया तो वो देख रहा है कितने करे कि इसका सहजयोग में फायदा हो, सहजयोग उच्चासन पर मैं बेठा है। वाह ! वाह ! कितनी बहिया। के लिए ही कर रहे हैं । औरहमें कुछ करने का चीजें रखी हैं मो को कृपा से । बड़ा अच्छा सब नहीं। अब ये समझाना बड़ा कठिन है। कुण्डलिनी बना हप्रा है । भई, तुम राजा हो, देने को बात करो। जागृति आसान है। उसका बिठाना ठीक है । राक्षसों को मारना ठीक है । भूतों को भगाना ठीक लेकिन समझ लो , थोड़े हो तो कोई ह्ज नहीं, लेकिन है। वो तो हमारे काम ही हुए । लेकिन जो साधु देने की बात करो। मेरा मतलब पैसे से कभी भी सन्त हो गए, जो स्वयं ही प्रकाशमान हो गए, उनसे नहीं होता, आप जानते हैं अपना पूरा चित्त भर जाय कि इसमे महत्वपूर्ण दुनिया की दूसरी कोई चीज नहीं। जितना करना था कर लिया मैने । कई साहब हैं कि मेरी बीवी नहीं मानती । कितनी उम्र है आपकी ? सि्फ साठ साल की है। और सबसे महत्व का काम है। म होगा ? ऐसा ही लगता है क्योंकि गुल मी तुमने की तो उसके फलस्वरूप तुमको भी तो मिलना कुछ समय ब्वदि करने से अप परमात्मा की शात में की बात । लेकिन सहजयोग में ध्यान धारण लोग इसलिए करते हैं कि मेरे भूत भाग जाय, [अ्रधिकतर। पास घत आ जाय। या तो उसके गागे लोग सोचते हैं कि सहजयोग में आने से मुझे कोई Position (पद) मिल जाएगी। सहजयोग में आने से प्राप आकाश, प्राताल ओर पृथ्वो तोनों लोक के राजा हो जाते हैं । अब लेकिन इंतने ऊंचे होकर हो गया पूरा, अब प्रागे क्या होना? इसके प्रागे और राजा हो तो थोड़े बहुत भिखारी अरभी हो ही । का निर्मला योग ५ सहजयोग में देना चाहिए। पूरी तरह से सहजयोग प्रश्न पूछना है 'मैंने क्या किया सहजयोग के लिए' ? ये प्रश्न किसी और का नहीं, क्योंकि अब मैं बोल रही हैं। तो कहेंगे हां, श्री माताजी उनके बारे में (प्रब यहां से मराठी भाषण का अनुवाद है।) कह रही हैं, मेरे बारे में नहीं कह रही हैं। वे तो मेरे बारे में क्ुछ नहीं कहती। हमेंशा औरों के बारे में कहती हैं। मैं तो वहुत हो अच्छा है। लेकिन ये हमारी स्थिति तंगे वालों की जैसी है या धोबियों सब में हर एक को कह रहो हैं । सबको देखना है जैसो । यहाँ पर बैठे हो तो एकत्रित होकर मुझे इस साल हम मां को कुछ करके दिखाएँगे। अव सुनिए। वहां पीछे किसलिए देखना है ? क्या आपने मैं लन्दन जा रही है। मुझे पुरण पोली बनाकर लोग नहीं देखे है ? यह ध्यान में रखिए कि आप खिला दी तब हो गया काम, ऐसा श्ररतें समझती सहजपोगी हैं । राजे महाराजे पीछे मुड़ने के लिए हैं । श्री माताजी को हमने पुरण पोली बनाकर पहले दस हजार मोती गिनवाएंगे। फिर प्रपनी खिलाई, नहीं तो श्रीखंड ज्यादा से ज्यादा । मुझे गर्दन पीछे घुमाएंगे । हम कोई ताँगे वाले थोड़े ही क्या करना है पुरण पोली और श्रीखंड से ओर क्या हैं इधर उघर देखकर चलने के लिए । तो वह करनी है साड़ी ? मेरा स व कूछ विश्व है । उसकी जो शान है वो भी आई नहीं। जब डॉटना होता है जो महत्वपूर्ण चीज है उसका कुछ कीजिए। पिछला तब मुझे मराठी में अच्छी तरह से अ्राता है । हिन्दी जो हुआरा बस हुआ। जो कुछ देवी की स्तुति हुई जरा posh (शाहो) भाषा है । मैं हंस कर वो सब ग्रापने कर लौ । हमने स्वीकार कर लिया, करना ही पड़़ता है, क्या करें ? जो भुगतना है अब जरा मराठी में बता रही हैं कि रामदास वह भुगतना ही पड़ता है। अब देवी होकर प्राए स्वामी अपने यहाँ हुए, ज्ञानेश्वर हो गए। नाम हैं। तो वह सब ताम-झाम चाहिए ही और वे सब हम करते हो हैं । परन्तु इतना सब करके भी आप होती हैं। केवल नाम से ही सारी सप्तशती कहने कहां जा रहे हैं ? केवल पंडितजी बनकर बैठोगे जेसे एक नाम में ही सब कुछ है । ये किससे ? क्या ? हमको भी कुछ सहजयोग में करके दिखाना ? है, हर-एक को । हर-एक लड़की को, हर-एक मां साई नाथ का केवल नाम लेने से ही मेरा सारा को, हर पिता को और हर-एक लड़के को, सभी को समझना चाहिए । सब लोग पीछे मुड़कर मत देखिए । अभी तक टाल रही है, लेकिन आज का विषय गम्भीर है। लेते ही vibrations (चंतन्य नहरियां) शुरू सारे चक्र एकदम उत्तेजित होते हैं । किस लिए शरीर डोलने लगता है। किस कार ण ? क्योंकि वे थे ही बहुत बड़े । आप भी हो सकते हैं । आपको की। तुम्हारी कोई चार सहेलियाँ हैं । उन्हीं को हल्दी- वह बनना है इस तरह की कुछ महत्वाकक्षिा । कु कुम के कार्यक्रम में बुलाकर सहजयोग बताओो रखिए । नहीं तो अब हो गया, हम आ गए, हमारा कितनी बार कहा है। हल्दी-कु कुम का समारोह सब कुछ ठीक-ठाक है। ये जो सहजयोगी की स्थिति है इसे बदलना है, ये मे रा वि वार हैं। बीवो-बच्चों की बहुत सेवा की । ये हुंआा, वह हुआ बहू को चार बातं सुन करो और प्रौरतों को बूलाओरो । उन्हें सहजयोग के वारे में बताओो, श्री माताजी के बारे में बताओो । सहजयोग इस तरह से फेलाना चाहिए । नये तरीकों लों । प्रब आगे का हमें किस तरह से फलाना चाहिए। गहन होने के लिए आ्प लोगों लोगों ने से प्राप्त होगा ये देखना चाहिए। परब भी हमारा को ध्यान-धारणा करना जरूरी है। कुछ दिमाग कहा जा रहा है ? किस तरफ बहे जा रहे. किया है, थोड़ा-बहुत । परन्तु इसका कोई अन्त है हैं ? क्या स्थिति है ? हर मनुष्य को अरपने आपसे क्या ? मैंने प्रगर कहा कि पव मैंने बहुत कर लिया, निमला योग ६ अब बस हो गया, बहुत हो गया, अब कल से मेरा है, इस तरह लगता है । एकदम सूज्ञ और विवेकी मुंह नहीं देखना । मान्य है बापको ? है मान्य ? मनुष्य थे । उनका लड़का कैसा है, उसमें कभी इतनी उग्र हो गई है फिर भी किसी को नहीं उनका चित्त नहीं लगता कि मेरी उम्र हुई है । अभी मेरें सारे प्रोग्राम नहीं करते । कभी भी गरम शब्द नहीं उनके लिखकर आए हैं । अब वहाँ जाने के बाद मुझे में, कभी भी गरमी से उस मनुष्य ने बात नहीं की । शटलकॉक गेंद की तरह वे इधर-उधर घुमाएंगे। अब अजातशत्र'। एक भी मनुष्य हमें क्या करना है ? मैंने किया वह बहुत कुछ है । नहीं होगा, अजातशत्रू| गरम शब्द कभी बोलते आज मेरा जन्म दिन है । लेकिन अब साठ साल के ही नहीं थे । कभी भी बहपपन नहीं दिखाते थे । बाद जो जन्म दिन ग्राता है वह (उतरत्या दशेला) अत्यन्त गूरगवान मतुष्य थे । कभी भी उन्होंने पेसों ढलने लग जाता है । ध्यान देना है कि ये समय की गडबड नहीं की । किसी चीज में कोई गलती आपातकाल का है। औ्र माँ को कुछ करके दिखाना नहीं। उनसे छोटी उम्र वाले लोग उन्हें जबाब देते है। अरब प्रधान साहब चल बसे तो मुझे लगा कितना थे। मझे बड़ा मेरा नूकसान हो गया। प्रधान कितने काम के थे । फिर मभझे भी रोना आता या । उनसे हा, आदमी थे। उन्होंने क्या मेहनत की उस उम्र तक ! इतना ही नहीं, सारे जजों को मेरे बारे में है। उन लोगों से कुछ कहेंगे तो उन्हें लगेगा बताया, सारे वकीलों को बताया। उन्हें ले प्राए मेरे पास । वह तो किया ही । मेरे अमेरिका जाने । सूुज्ञ व्यक्ति कभी ज्यादा बड़बड़ मुह 1 प्रधान जी का दु्ष्मन बताते थे । उनकी प्रांख में अंसू प्रा जाते प्रधान जी, सह लोजिए, क्या करें ? सहजयोगी ही श्री माताजी प्रापका पक्षपात करती हैं। हमने उनके लिए कुछ भी नहीं किया । कुछ करने लगते तो उनके वच्चे कहते कुछ कीजिए। पर अब उनकी तरह के लोग कहाँ से आएंगे ? पर मेरे लिए अपना खर्चा करके आते थे । एक बार मैं अपना खर्चा करके उन्हें ले गई थी। फिर वे हमेशा अपने पैसे ख्च करके मेरे पास गरते थे , हमारे पास पैसे हैं, आप मत उनका इतना प्यार था। कोई भी सरकारी काम हो, कानूनी काम हो, मुझे आकर बताते थे । देखिए, श्री माताजी, मैंने ये काम लिया है । य हां इसमें खोट सुची बनी रहेगी। कोई आया गया सबकी है। फिर मैं उन्हें कहती थी, इसे इस त रह से आप चिन्ता रखते थे । Airport (हवाई अ्रड्डा) आाते तो कीजिए तो वे हमेशा कहते थे, श्री माताजी, आप से बड़ा वकील मैंने नहीं देखा है । कोई भी उन्हें कहां बंठा, सब कुछ। और भी दिखावा नहीं, काम दो। लड़कियों की शादो करनी है, शये समाज मैं कर रहा है, मैं कुछ है । अब ऐसे परिपक्व लोग में जाकर पता निकालकर लाएंगे। हॉल बुक कर लिया । पत्नी का उन्हें कुछ सहाय्य था, पर बनोगे तो ये बीच का रिक्त स्थान करसे भरेगा ? वह जरा कमजोर औरत है। ज व वे चल बसे उससे पहले मैंने तीन बार यह्न किया मैं उनके यहां जाऊ, पर न जा सकी। तभी मैंने सोचा अरब यम की डांटा नहीं । कभी भी उन्होंने किसी के विरोध में कोई इच्छा नहीं है, मैं जाऊं । इसोलिए मेरा वहाँ मुझे नहीं कहा। केवल किसी ने यदि उनका अप - जाना नहीं हुमा । पर बह मनुष्य कि तने काम के थे बार-बार मुझे उनकी याद आती है। बीच किया है । आज बड़ा खुशी का दिन है मेरा जन्म - में ही कहती है, प्रधान से पूछ लीजिए सब ठीक है दिन है। पर आज मुझे उनकी बहुत याद प्रा रही है। कि नहीं। बिलकुल अपने पास का कुछ खो गया हमसे जो कुछ होगा वह हम उनके लिए करेंगे। कुछ भी काम हो, प्रधान को फोन करे, सबकी सबका ख्याल रखते कोन कोन अ्राया, कहाँ गया, कुछ करो, दुनिया से जाएंगे और ्ाप प्रगर वैसे परिपक्व नहीं अजातवात्र थे वे । कभी भी किसी को उन्होंने मान किया तो बताते थे, इसने मेरा बहुत अपमान निमंला योग ७ को देखिए । ऐसा कुछ नहीं। कभी पैसों का रोना- परन्तु प्राज आरप निश्चय करिए कि जिस तरह সरधानजी ने धरी माताजी की मदद की उस तरह हम घोना नहीं । अमेरिका आये] तो मैंने पूछा, प्रधानजी, भी करेंगे। कभी पत्नी का रोना नहीं, बेटे का नहीं, अआप को कुछ पैसा चाहिए ? नहीं, श्री माताजी, मेरे कभी भी नहीं। उनकी पत्नी ऐसी पकड़ (बाधा) पास बहुत है। मेरे बेटे कमाते हैं । जरा सा उनके वाली थी, परन्तु उन्हें कभी भी पकड़ नहीं लिए कुछ किया तो कितना उन्हें याद रहता था । आई, मुझे बड़ा आश्चर्य होता था। उनका कोई एक बार लंदन आये थे, तो मैं उन्हें पंरिस ले गई । सा भी चक्र कभी भी नहीं पकड़ता था। आपको वहाँ पर खचा मैने किया । तो सौ वार कहते थे, आवचर्य होगा, कभी माज्ञा भी उनका नहीं पत इता था । कोई भी चक्र नहीं पकड़ता था, श्चर्य की बात है। अपने यहां जिसकी पत्नो पकड़ वाली हो उसका पति उससे भी ज्यादा पकड़ा हुआ्रा रहता हो, "मेरे बैटे का ऐसा वरिए, बेटी का फलाना है। ऐसे लोग हुए हैं। परर लोगों ने प्रपमान किया. क तो भी उनका कभी भी मेरे साथ वाद-विवाद नहीं । उन्होंने मेरा अपमान किया, कभी नहीं। उलटे मेंरा अमान किया. जाने दो उतना हो। हमारे यहा बहुत से लोग सहजयोग में आते हैं। प्रोर क्षेम भी बहतो को मिला है । जिन्हें नौकरियों नहीं थी उन्हें अच्छी-ग्रच्छी नौकरियां मिल गई, पेसा बना, लिए हम तंयार हैं। अ्रब एक प्रधान जी चले गये तो किसी का व्यापार परच्छा हुआ बहुत कुछ बन माताजी, भापके कारण सब कूछ हुआरी। मैंने कहा, पेरिस ले गई तो ऐसा क्या हुआ ? अरब ऐसे सुज्ञ लोग कहां है ? हर समय मेरे सामने आते 1 करिए" । मूझे वोरियत हो गई है इन बातों से ! आपको पता नहीं कसे नहीं होती ? परन्तु सभी लोग इस तरह नहीं हैं। वहत से लोग अत्यग्त constuctive (गरस्छा का्य करने वाले) है। प्रर हर एक को ऐसा कहना चाहिये, मां हमें सहजयोग के लिए क्या करना है? इतना ही कहिए आ्ाप। जो कहिए वह करने के सौ आादमी उनकी जगह तैयार होने चाहिए । तो आप सहजयोगी हैं। एक रक्तबीज का एक सिपाही गया। परन्तु प्रधान जी का ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनके सारे वच्चों की अच्छी नौकरियाँ थी। और मरा, तो उसके खून की एक वू द से एक राक्षस, पैसों की उन्हें चिन्ता नहीं थी, उम्र के हिसाब से भी इस हिसाब से राक्षस बने । अब इन सहजयोगियों कहिए। लेकिन पहले से थोड़़ी अच्छी स्थिति थी । परन्तु वह कभी भूले नहीं । श्री माताजी वाहिए। और जो काम करते हैं वे गरम लोग हैं । कुछ चाहिए तो कहिये। कुछ कहना है तो कहिए । अगर मैंने कहा-प्रधान जी, पांच बजे प्राइए, तो कुछ कामचोर हैं । [अब बिलकुल ध्यान में तो में कहीं भी रहंगी तो भी वे वहा पहुँचते थे । रखना है कि हम श्री माताजी के हाथ के ऐसे कुछ इंतने वृद्ध, ग्रहस्थ, पर समय से पहुँचते थे । मेरी सांधन बनेंगे ऐसे सूत्र बनेगे कि माताजी को लड़की का मकान इतनी दूर था । वहां भी बिलकुल समय से पहुँचते थे । कहीं भी बुलाओ, एकदम समय से ! कभी भी उन्होंने मोटर की मांग नहीं की, गाड़ी की मांग नहीं की मेरे घर खाना खाने गये थे, वहां से घर्मशाला । कुछ भी नहीं पढ़े आइए, ये भी आग्रह नहीं किया । केवल एक दो बार हुए, एकदम अनपढ़ लोग, गांव के लोग उन्हें कहा कहा होगा, तो मैने कहा, प्रधान जी वेसा कुछ मत कहिए, तो कहते, अ्रच्छा धो माताजी, नहीं कहू गा गये, "हम तो देवी जागरण के लिए आएंगे" ढाई मेरे लड़के को देखिए, बह को देखिए, उसके समूर का क्या होने वाला है ? सौ आदमी खड़े होने गरम नहीं तो अखडू लोग हैं । अखडू नहीं, लगेगा कि हम ये सारा विश्व जीत लंगे । आपको आश्चर्य होगा, अभी हम पठातकोट गया, देवो आने वाली है। मेरा चेहरा देखा, पहुचान हजार नोग प्रोगाम में पराए और तुरन्त पार हो निमला योग गये। कितनी उन्हें देवी को श्रद्धा ! सारी शक्तियां उनमें बहने लगों ! हमें तो देवी जागरर करना ! ओर क्या सब लगने लगी। इतनी जोरों से चंतन्य को लहरे आ रहो थीं। पीछे एक पहाड़ जंसा था । उससे टकरा- कर प्रा रहो थी। सबको ठण्ड लगने लगी यूप था। क्या उनके वे तेजस्वी चेहरे ! देखने लायक था । मूझे लगा अव में श्रपते बठे थे, तब भे ठ्ड लग रही थी। एक पत्ता भी कुछ, घर में आा गई है। बिलकुल नन्दन वन देवी का नहीं हिल रहा था। लग रहा था हैम 'आदिशक्ति वणन ! वह स्वतः मरणीपुर (चक्र) रहती हैं। ऐसे हैं। यहां पर मुझे शक हो जाता है कि है या नहीं? लगा हम अपने घर आये हैं । सब लोग नये -नये कपड़े वहाँ सचमुच लगा कि हम आदिशक्ति हैं | पहनकर आये थे। यहां तो पूजा में फटे कपड़े पहन- कर आते हैं। कहीं बैठकर साड़ी गरन्दी हो गई तो ! श्राज मेरी भी साड़ी फटी है।) जैसे अनिच्छा से वहां भयंकर बारिश हो रही थी। तीन दिन से सतत बारिश हो रही थी बाहर निकलने की ( सब कुछ करते हों । उन लोगों का वरगंन नहीं कर कल थी। विजली कड़क रही थो। ऐसे में बहा सकते, इतना उनमें उल्लास था। इतना सब वाता- वरण आह्लाददायी था, मैं आपसे कह नहीं सकती मुझे लगा यहां से कहीं जाएं ही नहीं। वे कहते थे जीय, बहुत जनता आएगी ।" मैंने कहा, हां वह शेरावालो', 'पहाड़ों वाली' ! मुझे लगता ही नहीं था कि मेरी उम्र हो गई है। मैं वहां ऊपर चढ़ती उसे दिन, बिलकुल निरभ्र (साफ सूथरा।) । उस दिन थी, कहीं से भी उतरती थी, कुछ नहीं लगता था । क्या वे का सारा ह गया। यहा तो पूजा के बाद मुझे इतती परेशानी वातावरण !मेरे दिमाग में वुम रहा है कि उन्हें ही अपने साथ में लेना चाहिए ! यहां पर महाराष्ट्र वरगरा में ताला लगा दें भरर वहीं चले बाद हैी सारा सफर किया। कुछ नहीं हुआ| ्रोर जाय, वही अच्छा होगा। और फिर उन्हें यहां पर यहा पूजा के बाद मोटर तक जाने की हिम्मत नहीं लाना चाहिए । आप] लोग नौकरियां संभालते रहिए। इतने सीधे-सरल, पहुँचे हुए वे लोग हैं । सारा आनन्द ही आतन्द, बहुत मजा आपा, उत्त लोगों को भी और हमें भी। उन्हें कुछ बताना भी हम संसार में दे सकते हैं, उसकी कल्पना आपको नहीं पड़ा । बीस-बीस मोलों से लोग पेदल आये थे यहां हम नही आ सके माताजी क्योंकि, हमें टेक्सी बहाव केसे होता है ? एक तरफ से ही दरवाजा नहीं मिलो। Air-conditioned (वातानुक्कूलित) गाडी चाहिए तब हम आएग । नही ता कसे अए ? लिए एक नाला रख दिया और उसी में घूमते रहे बीस-बीस मीलों से लोग छोटे-छोटे बच्चे लेकर के तो उसकी गन्दगो फिर में री तरफ आती है। परन्तु प्राए थे। सवेरे से निकले होंगे प्रोग्राम दस बजे देने के मन से आप बंठेंगे तो आज से निश्चय था। बस देखने लायक था ! स्वग जमीन पर उतरा करिए, जो कुछ हमें माताजी ने दिया है वह सब था। वहां पर कोई इतनी अच्छी व्यवस्था नहीं थी के एक व्यक्ति ने मुझे कहा, "मां, ऐसी कृपा करें जो बादल फ़ट जाय प्रौर सारा वातावरण शुद्ध तो । हो सब में कर दूँगी। फिर एकदम निरध्र काश था वहां मेरी पूजा हुई औोर मुझे कुछ नहींहुआरा। ये सब लोग ! और क्या वहाँ की सारा होती है । पूजा के बाद लगता है प्रब क्या करू । ं लेकिन बहां कुछ नहीं, सब साफ हो गया उसके ऐसी हालत होती है। उसका कारण है कि आप भी हो गये है तब भी उस शुद्धता का कधा अ्रथ शुदध हैं, उसका क्या महात्म्य है, उसकी कितना प्रकाश । नहीं है । दिये ब्गर आपमें बहेगा कंसे ? हृवा का खोला तो दूस री तरफ से कैसे आएगा? केवल प्पने कुछ हम बांट देंगे त तकलीफ नहीं होगी पहले ही आपके प्याले में गन्दगी होगी तो मैं उसमें क्या भरू? यहां से भरने तब भापके पास आएगा और मुझे । उसके पीछे एक बड़ा पहाड़ था। इतने खुला vibrations (चतन्य लहरियाँ) थे कि मुझ्के ठण्ड निर्मला योग ८ बैठी थो, वह तो उसमें जाता नहीं और मेरी ही उपकार हैं पाप पर, बड़े-बड़े सन्त-साधुशओं के, माने तरफ फिर से आ जाता है। अब कहना है कि सिवखों के दसवें गुरू वे भी यहां नांदेड में अब प्पना प्याला वाली कर दोजिए श्रर उस रखाली प्याली में ग्रमृत भर लोजिए। अमृत भर-भर महाराज जसा राजा हमारे यहां हो गया। पूरी के देना पड़ता है। इतना जमकर सब बैठा है, वह दुतियाँ में ऐसा राजा नहीं मिलेगा। ऐसे हमारे सब निकाल दोजिए । आकर शिवाजी महाराज से मिले थे । शिवाजी शिवाजी, दूसरा नहीं मिलेगा ऐसा। इसका दुःख हैम धर्मशाला गये थे । उसका नाम है होता है। तो एक नाले में दो कमल उग आये मौर वे कहने लगे हम कमल हैं, हम कमल हैं । उससे कुछ धर्मशिला-धर्म की शिला। ऋर हिमालय के परों तले । प्रापको पता है, वे देवी के पिता नहीं बनने वाला। हम कमल हो सकते हैं, यह ध्यान है। अब वहां होकर आने के बाद लगता है में रखकर कमल बनकर दिखाना है। मैं फिर से न जाएं दिल्ली अ्र न जाएं मम्बई । श्रर लन्दन तो उनसे भी गया वीता है। है। अब तक जो कुछ हुआ्रा वह बहुत हुआ्र| अब घरमात्मा ने बनाया है पता नहीं। परन्तु फिर से आप लोगों को देखने के बाद, मांँ का हृदय ! केसे जाना है । इसके प्रागे युद्ध है । बहुत बड़ा यूद्ध है । भी हो, तो क्या ? अपने ही तो हैं। मे रे ही हैं सब । माँ को क्या ? केसे भी हो, खून भी बेटे ने किया तो कहेंगी, तू प्रब मेरा भी एक खूत कर दे । वेसे हो हैं सब । अब प्रापको इतना बड़ा किया, इतने पद पर पकड़ेंगा ? बन्धन कोहे की डाल रहे हो ? जहाँ आरप विठाया । अब मेरी भी उम्र हो गई है। तब इस उम्र के हिसाब से अ्रापको भी समझ लेना चाहिए और कार्यान्वित होना चाहिए । कार्य करना किसलिए अपने आपको बन्धन दिये जा रहे हो ? चाहिए । चार लोग काम कर रहे हैं, दो इधर जा डरे-डरे से क्यों हैं ? तलवार नहीं है ऐसी बात नहीं रहे हैं, दो उधर देख रहे हैं। पूरी तरह जुट जाना है सब कुछ है। आपके पास केवल इच्छा चाहिए । है । ये हम माँ को करके दिखाएंगे। प्रब मराठी में ही कहती है। मराठी भाषा प्रत्थन्त प्रेम की, औरतें। ओर पुरुषों की जो ज्यादती है वह खत्म होनी सौष्ठवपूर्ण व सुन्दर भाषा है । परन्तु उसमें की चाहिए । सहजयोग का एक प्रतिष्ठावान व्यक्ति जितनी कठोरता है वही हम सीखे हैं। [अत्यन्त विनती करती है क्योंकि अव मैं कल जा रही किसलिए इसके आगे हर-एक को कमर कुसकर तेयारी में जुट उसे लड़ना है। सारा समय खुद की सफाई में मत लगाओ। मैं अब यहां बात कर रही हैं, तब भी लोग यही पर बन्धन दे रहे हैं। आपको कौन बेठोगे वहां बन्धन पड़ेंगे, इतनी अ्रप में शक्ति है, जानते हैं ? जहां नजर जाएगी वहां बन्धन पड़ेंगे । अब डरपोक स्वभाव नहीं रहना चाहिए, विशेषतः बनकर मैं आचरण करू गा, ऐसा एक निश्चय मन सुन्दर भाषा है। परमात्मा कী भाषा है कहना में रकर अ्ब चलना है अगली बार जब मैं चाहिए। संस्कृत के इतनी निकटतम, इतनी अ्रच्छी, निव्ज ! इस में (मराठी में) आपको कुछ कहना मनुष्य ने हजार हजार लोग ख ड़े किए हैं । आपको है । हमें तो उससे आपसे हमें कुछ भी लेना ही नहीं मैं विश्वास दिलाती हैं, अराप भाषण दे सकते हैं । है । बस बह रही है। पस्खलित, इतनी सुन्दर है । सहजयोग सासा आप सीखे हैं । आपको सब कुछ और उस भाषा में रहकर भी आापको [अभी प्यार मालूम है । ये सारा केवल दिमाग में रखकर शम- से बोलना नहीं प्राता । उस मराठी भापा का दूसरा उपकार ये है कि पूरी कुण्डलिनी उस मराठी भाषा में लिखी है। नाथपंथ (मराठी ग्रन्थ) के इतने मस्तिष्क में हमने प्रकाश डाला है । कल जैसे सब के आऊँगी तब मुझे दोखना चाहिए कि एक-एक ह दान में भस्म होने के लिये नहीं है। उसका प्रकाश सब तरफ जाना चाहिए उसके लिए ही आपके निमला योग १० सर शमशान में फूकते हैं वसे आपके नहीं हैं। उसका तो आज मेरा जन्म दिन मना रहे हैं । आज मेरा प्रकाश जब सारो दुनियां में फेलेगा तब आपको पूजन है । तो आज मेरा पूजन कृपया हृदय से मालूम होगा। सहजयोग के योगी को कभी भो जलाते कीजिए । यह मैं इस उम्र में मांग रही हैं। इतना नहीं हैं। प्रधान जो को आपने जला दिया, ये मुझे मुझे दोजिए । हृदय में एक ही बात कहना है अच्छा नहीं लगा । परन्तु में कुछ नहीो बोली । उनकी श्री माताजी हम बीरों की माता हैं, भगेड ओं की हमको समाधी बनवानी चाहिए थो। अभी तक नहीं। गांधीजी ने केवल स्वतन्त्रता की लड़ाई उसकी कुछ व्यवस्था नहीं हुई है वह व्यवस्था लड़ी तो हमारे पिता जी जैसे लोग सारा घर- करनी चाहिए। परन्तु सहजयोगी उस प्रकार द्वार छोड़कर जंगल-जंगल घूमे । हम राजमहलों में का होना चाहिए। उसकी समाधि से चैतन्य पले लोग ! कितना सहन किया ! आपको तो लहरियां आ्राएंगी। उस पर कितती भी हरे आश्चर्य होगा। हमारे पढ़ाई के लिए पंसे नहीं चढ़ाने के बाद भी की । घर के जेवरात वचकर आएगी इस तरह आपकी स्थिति है । केसे कहा जाय ? होरे को कहना, तु हीरा और ये सहजयोग उससे कितना बड़ा है। सारे विश्व है. गन्दगी में मत लेटो । औरी माताजी महान हैं, पर की स्वतन्रता की ये बात है और उस हिंसाब से आप भी कुछ कम नहीं। ये याद रखना है। हम कर क्या रहै है ? राजकारण अभी तक मैंने परन्तु उसकी केवल अहंकारी वृत्ति रखने से कोई अर्थ नहीं शक्ति है, तो हममें भी है । सब कूछ शक्तिया पापके पास हैं उस छोटे से अंडे में आप हुए करके दिखाना है। बाद में किया तो नहीं छिपे हो, निकलो बाहर । तो उस से बाहर होने वाला । टूसरा ये है कि इस साल 'क्रोधन निकल कर आकाश की तरफ आपको समष्टि नाम का सबवस्सर है । इसलिए थोड़े से क्रोध को (collectivity) डालनी है तब ही कुछ होगा । अब कल में जा रही है। परन्तु मेरा ध्यान इधर रहता है मुबई वालों पर सबसे ज्यादा कहने का तात्पय है कि प्राज मेंने लम्बा-चौड़ा जिम्मेदारो है क्योंकि मैंने मू बई में सबसे ज्यादा काम किया है और मेहनत की है । और इसी मुबई में महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का उद्भव क्या करना है, ये भी देखिए । हम ग्रपने गाँव गये थे, हआ है । तो आपको ये दिखाना है, आाराम वहां क्या किया ? बठे थे क्या आप ? नहीं । छोड़कर अओर राजकारण छोड़क र सुज्ञ बनकर मन्दिर में गये, ख रीदारी की, सबसे गाढ़ भट की, हम सहजयोग में क्या कर सकते हैं। ये सभी को दिखाना है। और मुझे आशा है ये सब आप गुलामी छोड़ दोजिए । सुगन्ध थे, कुछ भी नहीं परन्तु हमारी मांने हमें पढ़ाया । ऐसी स्थिति में हम रहे । उन फुलों इतना कुछ नहीं कहा था, परन्तु प्राज कह रही है । क्योंकि अब उम्र होने लगी है। तो दिमाग में रविए, हमें कुछ करके दिखाना है, हमारे होते है। सचमुच अगर माताजी में इतनी काम में लाना पड़ रहा है। शालीवाहन ने ही लिखा है कि इस समय जो साल है बह क्रोध में जाएगा। भाषण किया, सहजयोगियों को समझाने के लिए । आप क्या हो, ये जान लीजिए। वह जानकर हमने प्रच्छा, अरप कोन हो ? प्राप क्या बंलगाड़ी हैं, किसी भी गोंव में जाकर वहाँ से खरोदारी करके चोज लाने के लिए ? जाकर बोझा भर कर लाते हैं ! आप साधु-सन्त है। अपने देश में ऐसे सन्त ओर सम्तरी हो गए नामदेव की बात लीजिए, एक दर्जी थे । कितना बड़ा काम किया उन्होंने । तुकाराम क्या फिर प्रा गए वापस । इस बार मुझे एक अनुभव आया। उससे मुझे आइचर्य हुआा। जिन लोगों पर मैंने इतनी मेहनत की है वे लोग एकदम बेकार के निकले । मेहनत करें ऐसे लोगों पर ? बेकार लोग हैं एकदम ! क्यों इतनी निर्मला योग ११ थे ? चोखा मेना कौन थे ? सजन कसाई कोन कहा भी व्रत नहीं रखना है, तव भी रखते हैं। पता थे ? कितना काम किया उन्होंने ? उनका कोई भी नहीं क्यों रखते हैं । जो मर्यादाएं हमने बनाई हैं साथ देने वाला नहीं था। जना वाई कोन थी ? और जो विश्वघर्म की मर्यादाएं हैं उसमें रहना ही मैंना बाई कौन थी ? कितना काम किया उन्होंने पड़ेगा । और उन मर्यादाओं में प्राप नहीं रहे और परमात्मा का ? ज्ञानेश्वर इतनी छोटी उम्र में उनसे बाहर गए तो आप पर आपत्ति य्राएगो । कितना काम कर गए ? आपने क्या काम किया ? अ्रपके साथ कुछ तो गुजरेगी कल हो एक सज्जन उनको कण्डलिनी जागृति तो नहीं आती थी नहीं मिले थे । कह रहे थे मैं बिलकुल ठीक हो गया था, तो वह भी उन्होंने किया होता। वह भी आपको पर फिर से तकलीफ शृ रू हो गई है। क्या किया हमने दिया है। गणपति के स्थान पर आपको आपने ? फिर से उसी मार्ग पर गए थे क्या ? हा, थोड़े से, ज्यादा नहीं। अच्छा ! तो बहाँ भूत बगल दिखाना ही है। अगली बार मैं आकर देखगी में ही बठे हैं, प्रापको पकड़ कर खाने के लिए | तो किसने क्या किया है ? ओरतों ने हल्दी-क क म विश्वघर्म की मर्यादाओं में रहना पड़ेगा शादी (हदी-का कम महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण ग््ोरतों में दहेज लिया तो, ज्यादा नहीं थोड़ा सा, वस हो गया। उस मर्यादा में ही रहना है बिश्वधर्म की अने घर बुलाना । सबको ठीक से, तौर तरीके से मर्यादा परमात्मा की मर्यादा है। उसे नहीं लाँघना है । अब प्राप मराठी, गुजराती कुछ नहीं रहे, आप हिन्दू, अंग्रेज कुछ नहीं हैं प्राप विद्वव्पापी निर्मला मू विठाया है। अब कुछ करके दिखाइए । आपको का धार्मिक समारोह) करना और औरतों को रहना है। अब भी ऐसे सहजयोगी हैं जो ब्रत रखते हैं । धर्म के प्नुयायी बहुत बड़े हो गए हैं । आ्राज ही प्रतिज्ञा कीजिए अपने स्वयं के दोष व गलतियां देखेंगे । अपने हृदय से सब कुछ अर्पण करेंगे । सबसे प्रेम करेंगे जो मन दूसरों के दोष दिखा रहा है वह घोड़ा उल्टे रास्ते जा रहा है, उसे सीधे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना होगा। -श्री माताजी अपना चित्त इधर-उधर गिरना विखरना नहीं चाहिए। यानी स्थिर होना चाहिए। कहीं छिटक नहीं जाना चाहिए । चित्त को पकड़े रहना चाहिए। चित्त पर नियन्त्रण होना चाहिए। चित्त से ही प्रगति होतो है । -श्री माताजी मैं आप पर कोई बन्घन नहीं डालती। [आपको खुद बढ़ना है । जो खुद ही इसमें बढ़कर के ऊंचा उठेगा, बो स्वयं को अनायास ही संवार लेगा। उसको कहने की जरूरत नहीं। जो काम कहने से हुप्रा वो फिर क्या सहज हुआ ? श्री माताजी निमला योग १२ nce परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन संक्रान्ति पूजा मुम्बई १४ जनवरी, १६८५ प्रब श्रापको कहना है कि इतने लोग हमारे कि श्री माताजी आई हैं। उन्होंने हमें कितना भी यहाँ महमान आए हैं प्रौर आप सबने उन्हें इतने कहा तो भी हमारे दिमाग में बह नहीं आएगा। भी अगर हमारे दिमाग में गरमो होगी तो प्यार से बुलाया, उनकी प्रच्छी व्यवस्था की, उसके कुछ लिए किसी ने भी मुझे कुछ दिखाया नहीं कि नहीं आएगा । ये गरमी निकलनी चाहिए । और ये हमें बहुत परिश्रम करना पड़ा, हमें कण्ट हुए और गरमी हम में कहाँ से आती है ? अहंकार के कारण। वहूत पहले जब मैंने सहजयोग शुरू किया उसके लिए आप सबकी तरफ से व इन सबकी तब सबका लड़ाई-झगड़ा । यहां तक कि एक दूसरे तरफ से मुझे कहना होगा कि मुबईवालों ने के सर नहीं फुटे, यही गर्ी मत है । बाकी सभी के सर ठीक ठाक हैं। परन्तु किसी का किस बात पर, किसी का किस बात पर । देखा आधे अरब जो इनसे (विदेशियों से) अग्रेजी में कहा भाग गए, कुछ बच गए । मैंने सोचा अव सहज- वही आपको कहती हैं। आज के दिन हम लोग योग कुछ नहीं होने वाला । क्योंकि एक आया तिल गुड देते हैं क्योकि सूर्य से जो कष्ट होते काम करने, दो दिन बाद भाग गया, दुसरा माया, हैं वे हमें न हों । सबसे पहला कष्ट यह है कि तोन दिन बाद भाग गया, यै स्थिति थी । उस अया, सूर्य आने पर मनुष्य चिड़चिड़ा होता है एक-दूसरे भागा में प्रव हमने सहजयोग जमाया है। पर को उलटा-सीधा बोलता है उसमें अ्रहंकार बढ़ता उसके लिए आपकी इच्छा चाहिए कि कुछ भी हो है। सूर्य के निकट सम्पर्क में रहने वाले लोगों में हम परमात्मा को पाने आए हैं। हमें परमात्मा का बहुत अहंकार होता है इसलिए ऐसे लोगों को आशीर्वाद चाहिए । हमें परमात्मा का तत्व जानना एक बात याद रखनी चाहिए, उनके लिए ये मन्त्र है। हमें दृुनिया की सारी गलत बातें जिनसे कि है कि गुड़ जैसा बोले (मीठा-मोठा बोलो) । तिल कष्ट और परेशानियाँ हो रही हैं, नष्ट करनी हैं। ख ने से अन्दर गरमी आती है, और तुरन्त तो यहाँ झगड़ नहीं करने हैं। इस अ्रहकार से सारी लगते हैं चिल्लाने । अरे, प्रभी तो तिल-गुड़ खाया, दुनियाँ में इतनी परेशानियाँ हुई हैं। अब सहजयोग तो अ्भी तो कम से कम मीठा बोलो। ये भी नहीं में इसे पूर्णातया तिलाजली देनी पडेगी । तिलांजली होता। तिल-गुढ़ दिया और लगे चिल्लाने । काहे का माने तिल की अंजली। मतलब अब तिल-गुड़ खाकर ! तो [ज के दिन इसकी ( अ्रहुंकार की) अंजली आप दीजिए। मतलब आप तय कर लीजिए। ये बहुत बड़ा सुसंयोग है इसके बाद हम कोई क्रोध नही करेंगे, गुस्सा नहीं मु बई वालों ने विशेषतया बहुत ही मेहनत की है । प्रशंसनीय कार्य किया है । झगड़े बहुत, । गुड़ ये तिल गुड़? फेको, इसे उधर मूल मराठी भाषण से अनुवादित । निमला योग १३ करेंगे। एक वार करके देखिए। देखना चाहिए । गुस्सा न करके कितनी बातों को मनुष्य समेट मिठास से रहना चाहिए, क्योंकि मीठा बोलना ये सकता है। कितनी बातों का सामना कर सकता सबसे आसान है । गुस्सा करना बड़ा कठिन काम है यहुत सी बातें ऐसी हैं जिनमें ज्यादा चित्त नं है, और मारना तो श्राता ही नहीं है । तो इतने रखने से उनके हल मिले हैं । और जो कुछ कठिन काम किसलिए करते हैं ? तो सीधी-सीधी समस्याएं हैं वह पूरी तरह से हल हुई हैं । तो किसी बात मीठा बोलो, वस । बात में आपने बहुत ज्यादा चित्त रखा तो आाप तामसिक स्वभाव के बन गए, ऐसा कहते हैं। तामसिक माने क्या ? तो कोई औरत है। प्रत्र उसका name) "गोडबोले होता है। तो मैंने सोचा पति बीमार है, "मे रा पति बीमार है. में रा परति इनके परिवार में लोग मीठी बोलते होंगे । तो बीमार है।" वाबा, है, मान लिया ! परन्तु तुम तो ठीक हो न ? तुम्हारी तवियत तो अच्छी है। मोठी बात करके लोगों के गले काटते थे । मैंने उसका कुछ नहीं। पति है ये भी तो बड़ी बात है। कहा ये कहीं का मीठी बात करने का तरीका ? तो परन्तु नहीं, एक छोटी सी बात को लेकर के हल्ला मचाना, दूसरों को हैरान करना । ये जो हमारे थ । उनके मीठा बीलने का लोगों ने बहुत फायदा यहां बात है, उसका कारण है हमारे यहां छोटी उठाया । इसलिए अब हम मीठा बोलते हैं प्रौर सी बात को ज्यादा महत्व देना पऔर वडी-बडी लोगों के गले काटे हैं। मैंने कहा, ऐसा क्यों वातों की तरफ घ्यान नहीं देना। इन लोगों (विदेशियों) के लिए बड़ा क्या, छोटा क्या. सब लोग प्रच्छे थे जो मीठा बोलते थे और आराम से बराबर है । कुछ नहीं मालूम। पर आप लोगों को रहते थे । वे सन्तोष में रहते थे । किसी व्यक्ति के समझना चाहिए। क्योंकि हमारा जो बारसा है वह इतना महान है हम इस योगभूमि भारत में काट तो (गले कोटना माने 'बगल में छुरी, मूहै जन्मे हैं। इस योगभूमि में जन्म लेकर हमने क्या प्राप्त किया है ? हजारों वर्षों की तपस्था के फल- स्वरूप इस भारत में जन्म होता है। शऔर उसमें भी हजारों वर्षों से महाराष्ट्र में होता है । लेकिन रास्ते पर पी कर पड़े हुए लोगों को देखकर मेरी समझ में नहीं पाता ये महाराष्ट्र के हैं या और कहीं के ? ये कीड़े यहां कहां से जन्मे है ? यहा नहीं मझे भट से हाथ लगाते हैं उससे मुझे बढ़ी तकलीफ समझ में अता ? प्रब आप सहजयोगी हैं और पकी पूर्व जन्मों की तपस्या अब फोलत हुई है ।से बताएं? इसलिए सहती रहती हूै । जाने दो, प्राप सब को मीठे वोल बोलने चाहिए। ्रौर अब हमारे यहां बहुत से लोगों का नाम (sur- मचमुच वेलोग वहुत मीठा बोलते थे । पर वे बोले, हां, हमारे यहाँ पहले लोग बड़ा मीठा बोलते करते हैं ? इससे अरपको क्या लाभ हुआ है? वही साथ आपकी लड़ाई हो गई, और उस के अरापने गले में राम राम) तो आपने क्या पाया ? हमने क्या प्राप्त किया ? यह देखता है । तो आज का दिन विशेष त्योहार का सभी को अरत्यन्त सुशोभित करने वाला है। इस समय मुझे तो तनिक भी है। बड़े संभालकर मैं बात करती हैं। मैं इतना कटु नहीं बोलना समझकर व्यवहार करती है कि किसी को किसी बात से दुःख न पहुँचे । अब कुछ लोग प्राते हैं, वे होती है । वैसा नहीं करना चाहिए। परन्तु यह इसका मतलब ये नहीं कि बाकी की, इस परन्तु क्या करें ? अब कैसे बताऊँ ? उनको दुःख होगा। ऐसी बहुत सी बातें मैं सहती है। मेरी कोई बात नहीं, मैं सह सकती हैं । जो सहन शक्ति मुझमें है, वह दूसरों में नहीं है । दूसरों को दुःखाने से अच्छा वही दुःख मैं सह लूं । यह वात जानने से उसका जन्म की, तपस्या माताजी ने करनी है. इस जन्म की पहलो तपस्या है पापस में मौठा बोलना, प्यार से रहना। ये पहली बात। इसोलिए पहला दिन हमने पू ना का शुरू किया है । उस दिन निर्मला योग १४ होता। प्रेम के बारे में यही बात सूख बांटने की इच्छा ? इनके लिए व्या क रू दुःख नहीं महसूस है । अपने प्रेम की शक्ति ज्यादा है प्रर दूसरों में इन्हें क्या प्रच्छा लगता है ? दिवाली के समय हम कम है । तो हम बड़े कि वे बड़े ? इस तरह का एक कुछ उपहार देते हैं या संकरान्ति के समय क्या 'वाण विचार ले लिया तो प्राप सहजयोग अच्छी तरह (उपहारस्वरूप वितरण को जाने वाली वस्तु) पा सकते हैं । हमें माँ ने प्रेम की शक्ति ज्यादा दी है, दें उन्हें ? तो जो स्ते से सस्ता होगा ऐसा कुछ तो वे कूछ भी बोले उससे हमारा क्या बिगडता गन्दा सा बाजार से लाकर दे देना इसमें हम है? क्या जरूरत है उनसे लड़ाई-झगड़े करने माहिर है! जो सबसे सस्ती कोई चीज है बह लाकर की ? देते हैं। और ये लीजिए 'वाण ! बहुत अच्छे ! फिर चाहे वह (जिसे दिया) उसको उठाकर फेंक दे । तो हृदय का बड़प्पन हुए बर्गर ये बात नहीं होने धोरे-धीरे आपका स्वभाव शान्ति हो जाएगा। तब आपका चेहरा तेजस्वी दिखाई देगा। जब लोग वाली । अऔर उस हदय के बड़प्पन की आपके लिए आपके निकट आएंगे तो कहेंगे, अरे ये कौन है ? परन्तु शान्त स्वभाव का ये मतलब नही कि, कोई उममें परात्मा का दीप जला है। उसने आपको आपको जूते मारे तो भी आप चुप रहे, ऐसा प्रकाश दिया है। ऐसा स्वच्छ सुन्दर हृदय, उसमें बिलकुल नहीं। केवल सहजयोगियों के लिए ख्रिस्त जो कछ बह रहा है, उसी की तरफ देखते रहना। ने कोई कमी नहीं है। वह हृदय आराप में है ही क्योंकि कहा है। किसी ने आपको एक गाल पे मारा तो मुझे यहां पर प्राप सबको देखकर लगा, अरे इस आप दूसरा गाल आगे करिए, केवल सहजयोगियों के लिए, रिब्रस्त ने कहा है। औरों ने अगर एक मारा तो आप उसे चार मारिए, ये मैं कहूँगी। कि हम सब माताजी के शरीर के अगप्रत्यंग है, क्योंकि उनके जो भुत होंगे वे निकल जाएगे परम्तु सहजयोगियों का आपस में बातचीत करना होगी। उन्हें तकलीफ हो इस तरह का हमें व्यवहार शुद्ध हो । प्यार से आपस में बातें करनी है ये नहीं करना चाहिये। हममें एक तरह की सुजता बडी आवश्यक बात है। ओ्रों के साथ आप कसे होनी चाहिए, एक त रह की पहंचान होनी चाहिए। भी रहें, कोई हज नहीं है । परन्तु जो अपने हैं, ये रोजमर्रा के व्यवहार में शालीनता होनी चाहिए । सहजयोगी सारे मेरे श मेरे शरीर के अन्दर है । अ्रपने अगर एक-दूसरे कभी कुछ बहककर बड़बड़ाते रहना । बहुतो को को लाते मारी, गालियाँ दीं तो मुझ ही गालो दो, गाना गाने की ही आदत होती है। किसी को ऐसा समझना चाहिए । क्योंकि अव देखिए किसी कविता ही पढ़ते रहने की आदत होती है । वे पेड़ की डालियां अरपस में लड़ने लगेगी तो उस पेड़ का कया होगा ? ओर उन पतत्तों का भी क्या हते हैं। ऐसा नहीं । जो ठोक है, व्यवहारी है, होगा ? अब ये लगे, तो क्या होगा ? अगर ये चीज समझ में आर में भी सून्दरता होनी चाहिए। प्रब आप माँ के गई कि हम सब एक हैं, समग्र हैं, हमारे में इतनी लिए सब जेवर बनाते हो (इस दिन तिल के दानों एकता है कि हम सब एक शरीर के अंग-प्रत्यग के जेवर बनाने का रिवाज है । ) कितने हैं। तब आपने किस तरह का व्य वहार करना है वे ! परन्तु आप ही मेरे जेवर हो, आप ही से चाहिए ? आपमें कितनी समझदारी होनी चाहिए ? मैंने प्रपने आपको सजाया है उन जेवरों में प्रगर कितना प्यार होना चाहिए? आपस में कितना स्वच्छता न हो या वे अशुद्ध हों, माने उनका जो हृदय प्रकाश में क्या-क्या देख रही है? कितना मजा या रहा है ? ऐसा ही आपको होना चाहिए, के । हमने कोई गलती की तो माताजी को तकलीफ रोर में हैं । एक-एक मनुष्य कहीं किसी व्यक्ति के पीछे पड़ना (तंग करना), के विता ही बोलते रहते हैं, तो कोई गाने ही गाते एक हाथ अगर दूसरे हाथ से लड़ने सोन्दर्यमय है, वही करना चाहिए । रोज के व्यवहार सुन्दर होते निर्मला योग १५ मुख्य गुरण है, वही अगर उनमें नहीं हो। मान चाहिए । किसी से भी जबदस्ती, जुल्म या जल्द- लीजिए सोते की जगह सोना न होकर पीतल है वाजी करने की जरूरत नहीं है । तो उसका क्या अर्थ है ? वं से ही आपको है । आपमें की जो महत्वपूरणं धातु है वही झुठी होगी तो उसे सजाकर मैं कहा जाऊंगी ? तो आप ही मेरे जेवर दुनियाँ श्रापकी तरफ श्चर्य से देखेगी, 'अरे ये कहाँ हैं, आरप हो मेरे भूषण हैं । मुझे आप ही ने के लोग हैं ? ये कोन पअरए ?' तब मालूम होगा कि विभूषित किया है । मुझ किसी दूसरे आभूषण की ये स्वर्गलोक के दूत हैं, सारी दुनियाँ को संभालने आवश्यकता नहीं है । यही मैं अब रापसे वितती के लिए, सारी दुनियां को यशस्वी बनाने के लिए, करती हैं कि बात करते समय, बच्चों से हो या ओर सबको परमात्मा के साम्राज्य के दरवाजे तक प्रर किसी के साथ हो, अत्यन्त समझदारी से, ले जाने के लिए, ये परमात्मा के भेजे हुए दूत है। अत्पन्त नता से और ्राम से सब कार्य होना ऐसे सभी दूतों को मेरा नमस्कार ! इसी तरह एक दिन ऐसा आएगा जब सारी पूजा में आप मन्त्र बोल रहे हो और देवता जागृत हो रहे हैं प्रौर अरप अपने हृदय में इसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं इसलिए मझे प्रकेली को पतिरिक्त ऊर्जा एकत्रित करनी पड़ती है । इसलिए यह अ्च्छा हैं कि, "आप अपने हृदय को खोलिए ओर पूजा के बारे में न सो चकर साक्षी रहकर उसे के वल देखते रहिए । -श्री माताजी जो प्रधान चीज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा लक्ष्य है उसे देखना चाहिए। वो चोज है ध्यान करना। -श्री माताजी सब लोग यह याद रखिए कि मैं अरव आपकी बारी में मधुरता पाऊ । आपकी बातचीत में मिठास पाऊ, आपके ठ्यवहार में सूरुचि पाऊँ । मैं इस चीज को अब माफ नहीं करू गी, इसको आप जान लोजिए । किसी को भी किसी चीज के लिए दु.ख देना बुरी वात है । कृपया एक- दूसरे का आदर कीजिए। आप सहजयोगों हैं दूस रे भी सहजयोगी आपने पाया हुआ नहीं, हमने दिया हुआ है। ओर जब चाहे इस पद से हम औपको हटा सकते हैं । इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य बने । नम्रतापूर्वक इसे करें । हैं । आज श्रप किसी पद पर हैं दूसरा नहीं, ये पद -श्री माताजी आपके जीवन का लक्ष्य आत्मा को पाना है आत्मा को पाते हो बाकी सब चीजें खत्म हो जाती हैं। श्रपने- प्राप बाकी सब चीजें घ टित हो जाती हैं। इसलिए पहले ये सोचना चाहिए कि अपना चित्त आत्मा में रहे । श्री माताजी निर्मला योग १६ ॥ श्री निर्मला देव्ये नमो नमः ।। श्री कृण्ड लिनी शक्ति व श्री येशु स्रिस्त हिन्दूजा ऑडीटोरियम मुम्बई २७ सितम्ब र, १६७९ "श्री कुण्डलिनी शक्ति पर श्री येशु खिस्त" आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । स्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय 'पार होना आवश्यक है । 'पार होने के बाद आप है, कयोंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु रििस्त के हाथ से चैतन्य लहरियां वहने लगती हैं। जो ओर कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास चीज सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठडी नहीं किया विराट के घर्मरूपी वृक्ष पर अनेक चैतन्य की तरंगें (लहरियां) श्राएंगी और वह देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पूष्प खिले परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को सकते हैं । मालूम है । जहां-जहां ये पुष्प (साधु संत) गए वहा वहां उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया । परन्तु सुगन्ध की कुछ जानते हैं वह बाइबल ग्रन्थ के कारण है। हैं इसका अर्थ है आप को सहजयोग में आकर असत्य होगी तो गरम ल हरें आरएंगी। इसी तरह कोई भी चीज सत्य है कि नहीं इसे आाप जान (विभूतियों) का । उन पूष्पों ईसाई लोग श्री येशु रिव्रस्त के बारे में जो इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग महत्ता नहीं समझ सके । फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदि-शक्ति से हो सकता है यह बात सबव- ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ साधारण की समझ से परे है । बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ (रहस्यमय) है। यह (गहन अरथ) समझ नहीं सके। बाय बल में लिखा है कि 'मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में ये आऊंगा।" इजराइली (यहदी) लोगों ने इसका कह रही है मैं जिस स्थिति पर से आपको ये उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सक तभी मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण आप ऊपर कहीं गयी बात समझ सकते हैं या होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालाएं उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे । वस्तुत: रही हैं वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तंत्र इस इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन अ्ापको समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने सहस्रार में होगा। बाइबल में श्रनेक जगह इसी की सिद्धता प्रपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब है । [तक आापका शारीरिक संयंत्र ऊपर कही गई बात सकते हैं । को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्रार का उल्लेख किन्तु यहां यह सब बिलकुल संक्षेप में कह श्री येशु खिस्त जी ने कहा है कि, जो मेरे आपका संयत्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय मूल मराठी भाषण से अनुवादित । निर्मला योग १७ अब अगर आपने श्री 'खिस्त शब्द का अध्ययन किया (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण शब्द के अपभ्र श से निर्मारण हुआ है । वस्तुत: श्री येशु रित्रस्त के पिताजी श्री कृष्ण ही है और इसीलिए हैं । उनका नाम विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं । इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। आपने अगर ईसाई लोगों को कौन थे तो उन्हें इसका पता नहीं है । पूछा कि ये लोग उन्हें 'रित्रस्त' कहते श्री येशु खिस्त में दो महान शक्तियों का संयोग जीसस जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है । एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु् खरस्त की मूल शक्ति मानी गयी है, और दूस री शक्ति जाता था। उत्तर प्रदेश में [अब] भी किसी का नाम श्री कार्तिकेय की | इस कारण श्री येगु रिख़्रस्त का ग्येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशु" कहते स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तरव, ॐकार रूप है । श्री येशु हैं। इस प्रकार ये स्पप्ट होता है कि, 'यशोदा से रिखरिस्त के पिताजी साक्षात श्री कृष्ण थे । इसलिए ' उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये नाम बना है। थे है। श्री यशोदा माता को 'येशु' नाम से कहा येशु' व उसके 'जशू' व उससे 'जीसस काईस्ट' हुए । उसमें से एक वरदान है कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे। इसका स्पष्टीकरण ये है कि श्री कृष्ण का स्थान हमारौ गर्दन पर जो विशुद्धी चक्र है उस पर है, और श्री खिस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले মাग में जहां दोनों आंखों की ज्योति ले जाने वाली नसे जहां परस्पर छेदती हैं वहां स्थित है । जिस समय श्री खिस्त प्रपने पिताजी की गाथाएं सुनाते थे उस समय वे बास्तव में श्री कृष्रण के बारे में बताते थे, विराट' की बारते बताते थे । यद्यपि श्री कृष्ण ने जीसस रितरस्त के जीवन काल में पूनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीसस खिस्त के उप- देशों का सार था कि साधकों विराट पूरुष सर्वेशक्ति- मान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर संकते दूस रा वरदान श्री कृष्ण ने ये दिया था कि हैं। अर्थात् श्री रिव्स्त की माता साक्षात् श्री आप सारे विश्व के अआधार होंगे। तीसरा वरदान महालक्ष्मी थीं । श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी है कि, पूजा में मुझे जो भेट प्राप्त होगा उसका व प्रादिशक्ति थीं और अ्पनी मां को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित करते इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्री कृष्ण ने थे । श्री खिरिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियां हैं, अर्थात् म्यारह संहार शक्तियां हैं । इन शक्तियों के स्थान अपने माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा होगा तो प्वतरण होता है उस समय ये सारी शक्तियां बातं आप समझ सकते हैं क्योंकि संहार का काम करती हैं । इन ग्यारह शक्तियों में हैं एक शक्ति श्री हनुमान को है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है । इन दोनों शक्तियों को बायबल में 'सेन्ट मायकेल तथा 'सेन्ट गाब्रियल कहा जाता है । सहज- इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन योग में पाकर पार होने के बाद आप इन शक्तियों किया है। आप अगर ध्यान में जाकर यह वरणंन को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर संकते हैं सुनेगे तो आप समझ सकते हैं कि ये वरणन श्री येशु या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं । अपने दायें तरफ की (Right) नाड़ी १६वां हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया जाएगा। उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी । ये सारी श्री मा्केण्डेय जी ने ऐसी पनेक बात जो सूक्ष्म खोलकर कही हैं। खिस्त का है । निर्मना योग १८ LF (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्ति तत्व श्री गणेशा में 'परोक्ष' रूप में है वही तत्व कार्यान्वित होती है। जिस समय प्रपनी पिगला में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुतः क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य । अहकार से बचता है । [श्रगर हमें किसी ने मनुष्य नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस समय श्री हनुमान जी के मत्र से तुरन्त अन्तर पडता है दु ख उसी प्रकार सेन्ट मार्यकेल का मन्त्र बोलने से भी दिया, परेशान विया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार बार यही बात सोचता रहता है की नाडी, इडा नाड़ी सेन्ट गादरिय ल या श्री अर उद्विग्नत रहता है । आप रात दिन उस मैनुष्य भेरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है । उनके के वारे में सोचते रहेंगे प्रौर वीती धटनाएं याद करके अ्पने आपको दुःख देते रहेंगे । इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा ये पिंगला नारडी में अन्तर ग्राएगा । अरपने बाॉये तरफ मन्त्र से इड़ा नाड़ी की तकलोफे टूर होती हैं । ऊपर कही गय बातों की सिद्धता सहज योग में आरकर पार होने के बाद किसी को भी आ सक्रती है । कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलेग-अलग परेशानियों से छूटकारा पा सकते हैं । समझ कर आपस में लड़ना मूखता है। अगर आप ने इस में तत्व की बात जान ली तो अरआापके मस्तिष्क में अाएगा कि ये सब एक ही धर्म के बृक्ष के नेक फूल हैं वआपस में एक ही शक्ति से सम्वन्धित हैं । करने के लिए कहते हैं । दूस रों को क्षमा करना, एक बड़ा आयुध, श्री रिब्रस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे अ्रप टूसरों के कारण होने बाली श्री खिस्तजी के पास अनेक शक्तियां थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तियां पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने प्रपने प्रापको क्यों नहीं बचाया ? श्री रिव्रस्त जी के पास इतनी आपको ये जानकर कदाचित आइचर्यं होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भं र करता है। आराजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है कोकि नक लोग प्हंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं । अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे घम से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा के शक्तियां थीं कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी मां श्री मेरी माता साक्षात् श्री आ्रादिशक्ति थीं | उस मां से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए । परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था सच (मार्ग से भटक जाना) वात तो ये है कि श्रो खिस्त सुख या दुःख, इसमें फंसे हुए नहीं थे । उन्हें ये नाटक खेल ना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीसस रि्रस्त सुख दुख से परे थे । उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुराता से रचना था। जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूुख थे ? उस जमाने के होने की रण वे अरहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते है । इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु रिव्रस्त बहुत सहायक होते हैं । जिस प्रकार भी मोहम्मद पंगम्बर ने दुष्ट दाक्ति गों का कसे विनाश करना है इसके बारे में लिखा है उसी प्रकार श्री रित्रस्त जी ने बहुत ही लोगों की मुखता को नष्ट करने के लिए श्री ख्रिस्त सरल तरीके से आप में कौन-कोन सी शक्तियां है सत्रयं गंधे पर सवार हुए श्े । आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, ्री रिव्रस्त की प्रार्थना करिए कि 'इस दूनिया में जिस किसी उन आायुधों में सबवप्रथम ्मा करना है । जो ने मूझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको व कोन से प्रायुध हैं इसके बारे में कहो है । १६ निर्मला योग उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया। ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं । माफ कीजिए' तो आ्रापका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जायगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आ्कर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब-जब आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आपमें श्री रिरस्त तत्व है वह सहजयोग के परमेश्वर ने अरवतररण लिया या सन्त-महात्माओं माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय ने प्रवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कण्ट दिया हैं। उनसे कुछ सोखने के बजाय खुद मूखो । महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यहीं हुआा वेसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार होता है, उसके बिना नहीं । की तर ह ब्ताव करते थे ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अ्रतिसूक्ष्म द्वार है । इसोलिए श्री रिव्रस्त ने कहा है कि "मैं द्वार हूँ" इस हुम्रा । अरतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री रित्रस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और अपने असत्य से चिपका रहता है । अ्र स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया । अरहभाव के कारण लोगों ने श्री खिरस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाय कि यह मान्य नहीं था। उन्होंने अपने बौद्धिक अहंकार के व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है ? तो सहज- कारण सत्य को ठूकराया । श्री रिव्रस्त ने ऐसा कोन योग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त सा अपराध किया कि जिससे उन को लटकाया ? उलटे उन्होंने दूनिया के कितने लोगों के प्रश्न का 'हां' में उत्तर मिलेगा। विगत ( भूत को अपनी शक्ति से ठीक किया जग में सत्य का प्रचार किया । लोगों को अनेक अच्छी बातें उदाहरणतः किसी विशेष व्यक्ति का शिष्य होने का सिखायीं । लोगों को सुब्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन दंभ। सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थे । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुःख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको नहीं होता है बढ़ हुए अहंकार के कारण गन्दी बातें सिखाते हैं या मुख बनाते हैं उनके आप मनुष्य 'स्व पाँव छुते हैं । मूर्खता की भी ऐरे-गरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों समझ लेना जरूरी है । आज गंगा जिस जगह बहु से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह वाह (खुशामद, रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर प्रशंसा) करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों बेठ जाएं और कहने लग कि गंगा इधर से बह रहो को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता है और हम गंगा के किनारे बैठे हैं, तो ये जिस तरह नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे । लोगों को ठोक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपषुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था। पर कीजिए । श्री रखस्त के समय भी इसी तरह की जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरणा बुद्धि को एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर ग्राप सली पर काल की) बातों से मनुष्य का अहकार बढ़ता है । जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान व' (श्रात्मा) के सचल प्र्थ को भूल ! आजकल कोई जाता है। अब देखिए, 'स्वा्थ माने 'स्व' का अर्थ भूल हृद है ऐसे महामूखं हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार निमंला योग २० स्थिति थी । उस समय श्री खिरस्त जी ने क्रुण्डलिनी है ? पआप प्रमोवा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए जागरणा के अनेक यह्न किये। परन्तु महा मुश्किल हैं। ये कैसे हृप्रा है ? परमेश्वर की अ्रसीम कृपा कि से केवल २१ व्यक्ति पार हुए । सहजयोग में हजारों आपको ये सुन्दर मनुष्य देंह प्राप्त हुप्रा है। क्या पार हुए हैं । श्री खिस्त उस समय बहुतों को पार मानव इसका बदला चुका सकता है ? आप ऐसा करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा शी कोई जोवन्त कार्य कर सकते हैं क्या ? एक टेस्ट ट्यूब रजिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं । वेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े उसके अतिरिक्त कूछ है इसका उन्हें ज्ञान नहीं था । इुसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार कार्य जीवन्त कार्य नहीं हैं। क्योंकि जिस प्रकार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री खिरस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर स्वयं प्रणव थे । ॐकार रूपी थे । इतना सव कुछ यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्यप था तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि थ्री को कितना अहंकार है ! चाँद पर पहुँच गए तो खिस्त परमेश्वर के सुपूत्र ये । कुछ मप्रारों को इकट्ठा करके (क्योंकि, ्और कोई ग्रह बनाए व ये सृष्टि वनारयी उनके सामने क्या लोग उनके साथ आने के लिए तेयार नहीं थे) वडी आपका अहंकार? वास्तव में आपका अहकार मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया । पा दाम्भिक है, झुठा है । उस विराट पुरुष का अहकार होने के बाद ये लोग श्री खिस्त के पास किसी न किसी बोमार को ठीक कराने ले आते थे । हमारे यहां सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठोक हुए हैं। लोगों को जान लेना चाहिए कि हूआर निर्मारण हुआा है। उस में भी वस्तुतः ये अहकार क आप किसी पेड का Cross breeding करते हैं, कितना अहंकार। जिसने चांद-सूरज की तरह अनेक मुश्किल से उन्होंने सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है । विराट पूरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए । तो श्री विराट पूरुष को हैी सब कुछ करने दी जिए। आप एक यंत्र की तरह हैं । समझ अहकार बहुत हो सूक्ष्म है । अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने प्रहंकार के लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही है व साथ लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से माईक में से मे रा बोला हुआ आ्राप तक बह रहा है। बह नष्ट नहीं होता है वह अ्रपने आप ('स्व') में माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का समाना चाहिए। जिस समय अपना चित्त कूण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कृण्डलिती यपने ब्रह्म रन्ध्र है। उसी भांति अप एक परमेश्वर के यन्त्र हैं । को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहकार उस विराट ने आापको बनाया है। तो उस विराट का विलय होता है। विराट शक्ति का प्हंकार ही की शक्ति को आप में से बहने दो। उस स्व का सच्वा अहंकार है । वास्तव में विराट ही वास्तविक मतलब समझ लो जिए। यह मतलब समझने के अहुकार है । अरपका प्रहंकोर छुटता नहीं । आप जो लिए आज्ञा चक्र, बहुत ही मुश्किल चक्र है और करते हैं वह अहंकार है । अहंकरोति सः अहंकार: । आप अपने आप से पूछकर देखिए करते हैं। किसी मृत वस्तु का भाकार वदलने के हुए थे। अब कुण्डलिनो और बी खिस्त का सस्बन्ध सिवा आप क्या कर सकते हैं ? किसी फूल से आप जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी फल बना सकते हैं ? ये नाक, ये मुहै, ये सुन्दर तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है। ये कसे हुआ है उसी प्रकार है। कार्य में कर रहो है व वह शक्ति माइक से बह रही जो जिस पर अति सूक्ष्म तत्व कार, प्रणव स्थित है, कि आप क्या वही अर्थात श्री खिस्ति इस दुनिया में अवतरित निमंता योग २१ श्री कृष्डलिनी ने, माने श्री गौरी माता ने रपनी किया गया तो वहां के यहदी लोगों ने श्री ख्रिस्त হक्ति से, तपस्या से, मनोवल से व पूण्याई से श्री को फांसी दी जाय यह मांग की । आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है, ये अआप जानते हैं। उन्होंने जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धूलने वाला। अभी भी ऐसे लोग अहं का र में डूबे हुए है। उन्हें लगता है, हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है । अभो भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा मांगी जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं । क्या आप ये कि "हे परमात्मा आपके पवित्र तस्व को फंसी विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कसे देने के अपराध के कारण हमें प्राप क्षमा कीजिए। होता है ? आप इवास कैसे लेते हैं ? अपना चलन हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए बलन (movement, action) कसे होता है ? हमें माफ कीजिए" तो परमात्मा लोगों को गणोश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हुए उस समय श्री रिरस्त का जन्म हुआ । इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं तुरन्त माफ कर दगे । परन्तु मनुष्य को क्षमा मांगना बडी संसार में केसे आए हैं ? ऐसी अनेक बाते हैं। क्या कठिन बात लगती है । वह अनेक दूष्टता करता मनुष्य इन सबका अर्थ समझ सकता है ? आप है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है । लेकिन पूजन किया है । आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक यह कहा से श्रायो है ? आपको ऐसी बहुत सी बातें की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया । अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु श्रब में अ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आपमें बह बढ़ता ही कहना चाहती है कि प्रब दुनिया बदल चुकी है । जाएगा। इस संसार में मनुष्य की उस्क्रान्ति के लिएसत्ययुग का आरम्भ हो गया है आप कोशिश कर उसके भ्रम का नष्ट होना जरूरी है। जिस समय सकते हैं, पर अब आप किसी भी सन्त-साधु को ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के नहीं सता पाएंगे। इसका कारण थी खिस्त हैं। लिए बत्न किए तब इस संसार में अवतरर हुए हैं। श्री खिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम गप्रवतार की है, जिससे साधु-सन्त लोगों को परेशान करने लेकर जंगनो में घूमते थे। जिससे मनुष्य ये जान ले वालों को कष्ट भुगतने पड़ेंगे। उन्हें सजा होगी । कि एक आदर्श राजा को कैसा होना चाहिए। इस श्री रिजस्त के एकादश रुद्र प्राज पूर्णंतया सिद्ध है और इसलिए जो कोई साधु सन्तों को सताएगा ने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है ? प्राप इस इस भ्रम को हटाना जरूरी है। जब तक आपका मनुष्य लिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रर्दर्शित किया। इसी प्रकार श्री कृष्ण का जीवन था। और इसी उनका सबवनाश होगा। किसी भी महात्मा को पप घी येशु खिस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए। इस प्रकार की । अगर इस तरह की मूखता आपने फिर से की तो आापका हमेशा के लिए सर्व- सताना ये महापाप है । श्री येशु खिस्त का जोवन बा। तरह श्री रिव्रस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया मूखता मत कीजिए जाय तो एक बात दिखाई देती है। वह है उस समय के लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फांसी पर) चढ़ाया गया। इतनी मुर्खता कि "एक चोर को छोड़ दिया जाए या थरी खिस्त को ?" ऐसा लोगों से सवाल बड़ी बात है। नाश होगा। श्री रिखस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत वह है "जैसे राखहै वेसे ही रहहूँ निर्मला योग २२ शापट उन्होंने अपना घ्येथ कभी नहीं बदला। उन्होंने प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व जमकर अपने आपको संत्यासी समझ कर अपने को समाज रहना, उसमें स्थिर होना ये बहुत महत्वपूर्ण है । से अलग नहीं किया। उलटे वे शादी-ब्पराहों में गये। बहुत लोग हमें पूछते हैं, माताजी हम स्थिर कब वहां उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। होंगे ? ये सवाल ऐसा है कि, समझ लोजिए आप बायबिल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं । नाव स्थिर हुई उन्होंने पानी से अगूर का रस निर्मारण किया। ऐसा वरणंन बायबल में है। अब मनुष्य ने केवल आप साईकिल चला रहे हैं । व्ह चलाते समय जब यही मतलब निकाला कि श्री रि्रस्त ने पानी से आप डगमगाते नहीं हैं कि आप का सन्तुलन हो शराब बनायी, अतः वह शराब पियो करते थे। गया व आप जम गए आपने अगर हितर भाषा का अध्ययन किया तो समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में अकर आपको मालूम होगा कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अंगुर को रस । उसका अरथ दारू नहीं है। कि नहीं ये आप जानते हैं । या ऐसा समझ लीजिए ये जिस प्रकार आपकी । स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है जिस समय सहजयोग में अराप स्थिर होते हैं उस समय र श्री रिखरस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को निविकल्पता प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनो खोलकर प्रापके ्हकार को नष्ट करना । मैरा शाति आ्राज्ञा चक को पार नहीं कर जाती तब तक कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। साधक में आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी छेदन करना। ये समग्रता का कारय होने हर-एक के लिए मुझे करना है । मुभे समग्रता पार करती है, उस समय निर्विचारिता स्थापित में श्री ख्िस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक होती है । अज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार मुझे येश रिव्रस्त की शक्ति से हो कुण्डलिनौ शक्ति के श्री कृष्ण, श्री राम, इनन अरवतारों के बारे में भी लए ्खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए कहना है । उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, श्री रिखस्त की प्रार्थना 'दी लार्डस प्रत्रर बोलनी क्योंकि इन सभी देव-देवताओं की शक्ति आप में पडती है। ये द्वार पार करने के बाद कुण्डलनी अब समग्रता (सामूहिक चेतना) वटित होने शक्ति प्रपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic के कारण है। जिस समय कूण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को ये है । का समय अया है। area) है उसमें प्रवेश करती है। उसीको परमात्मा कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे को सौम्राज्य कहते हैं । कुण्इलिनी जब इस राज्य हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है। और लाखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसकी जो शरीर के सात मुख्य चक्र व ओर अन्य उप- सर्व न्याय भी कलियुग में होते वाला है । सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgment) है । में प्रवेश करती हैं तब ही नि्विवार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र बकों को संचालित करते हैं । इसके बारे में बायबल में वरणन है । सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgment) हैं वह देखते है। आरज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य होगा। परन्तु आपको सहजयोग में प्राने के बाद समर्पित होना बहुत जरूरी है क्योंकि, सब कुछ ध्यान रखना चाहिए । क्योंकि उनका वड़ा महत्व अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता कारण अखि हैं। मनुष्य को अपनी अखों का बहुत निमंला योग २३ है। प्नधिकृत गुरू के सामने झुकने अरथवा उनके गलत व्यक्ति हैं । किसी एक उम्र के बाद चड़्मा चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। खराव हो जाता है। इसी कारण जीसस रिव्रस्त ने परन्तु आखें खराब होती हैं ये अपनी नजर स्थिर न अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने रखने के कारण। बहुत लोगों का चित्त बार बार झुकाने को मना किया है । ऐसा करने से हमने जो इधर-उधर दोड़ता रहता है । ऐसे लोगों को समझा कुछ पाया है बह सब नष्ट हो जाता है। केवल नहीं कि अ्रपनी पँखि इस प्रक्ार इधर- उघर घुमाने परमेश्वरी अवतार के आगे ही अरपना माथा टेकना के कारण ये खराब होती है। आज्ञा चक्र खराब चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्य पढ्ति । को झुकाना ठीक नहीं है। किसी गलत स्थान के समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति भी अपना माथा नहीं भुकाना चाहिए। ये कर्मी हैं । अच्छे काम करते हैं । कोई भी बुरा काम सम्मुख बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति पढ़ना, अरति सिलाई हो या अति श्रध्ययन हो तुरन्त आपका आज्ञा चैक्र पकड़ा चाएगा। या अति विचारशीलता हो । सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही इसका कारण है कि जिस समय आप प्रति कार्य लोगों के आज्ञा चक्र खराब हैं इसका कीरण है करते हैं उस समय आप परमात्मा को भुल जाते लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरू को है उस समय अपने में ईश्वर प्रसिणधान स्थित मानते हैं। परांखों के अनेक रोग इसी कारण से तहीं होता । होते हैं । तो कुण्डलिनी सत्य है यह पवित्र है ये कोई ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा ढोंगबाजी या दुकान में मिलने वालो बीज नहीं है। अच्छे पवित्र घर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र ये नितान्त (Absolute) सत्य है । जब तक आप साहित्य विलकुल नहीं पढ़ना चाहिये । बहुत से सत्य में नहीं उतरेंगे, तब तक आप ये जान नहीं लोग कहते हैं, "इसमें क्या हुआ ? हमारा तो काम सकते । वाम माग (गलत मार्ग) का अवलम्बन ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने करके आप सत्य को नहीं पहचान सकते । जिस पड़ते हैं जो पूर्णतः सही नहीं हैं।" परन्तु ऐसे समय आप सत्य से एकाकार होंगे, तब ही आाप अपवित्र कार्यों के कारण अखें खराव हो जाती हैं। जान सकते हैं कि सत्य क्या है, उसी समय अ्राप मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातं खराब समझगे कि हम परम पिता परमेश्व र के एक साधन हैं, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो ( प्रवाह) हो रहा है, जो परमेश्वरी शक्ति सारे सकता है। श्री रिव्रस्त ने बहुत ही जोर से कहा था विश्व में फैली हुई है, जो सारे विश्व का संचालन कि, आप व्यभिचार मत कीजिए। परन्तु मैं भापसे करती है। उसो पर मेश्वरी प्रेम शक्ति के आ कहती है कि प्राप की नजर भी व्यभिचारी नहीं साधन हैं । इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलि- होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि दान है ? क्योंकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है । अगर आाज्ञा चक्र नहीं खुला तो ऑँखों की तकलीफे होंगी इसका मतलब ये नहीं कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप] [अपवित्र जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका के है वह मनुष्य क्यों करता है ? किसी अपवित्र व आपकी प्रगर नजर अपवित्र होगी तो आपको निर्मला योग २४ मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है । किसी मनुष्य अवतार लिया और वही अवतार जोसस रिस्त का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो का है। श्री ख्रिस्त का स्थान कपाल (खोपड़ी) उनकी कुण्ड लिनी शक्ति जागृत नहीं होगी। आज्ञा के केन्द्र (मध्य) भाग में हैं और इसके चारों प्रोर चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कु कुम लगाते एकादश रुद्र का साम्राज्य है। जीसस रिव्रस्त इस हैं। उससे अइकार व ्ापकी अनेक विपत्तियां दूर साम्राज्य के स्वामी हैं। श्रो महागरणेश और पटानन होतो हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कु कुम लगाया इन्हीं एकादण रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत जाता है तब आपका आज्ञा चक्र खुलता है व होने के प्चात यदि आप आख खोले तो कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है । इतना गहन करेंगे कि प्रापकी आरखों की दृष्टि कुछ घू घली हो सम्बन्ध धो रिखस्त व कुण्डलिनी शक्ति का है। जो गई है । इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर पापकी जागृत होती है तब आपकी आंखों की पुतलियाँ कूणइलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही कुछ फेन जाती हैं प्रोर शोतल हो जाती हैं। यह श्री गणेश प्राज्ञा चक्र पर उस कुण्डोलिनों शक्ति का para-sympathetic nervous system (सुपुम्ना हवार खोलते हैं। अनुभव नाडी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीसस रिवरस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन, 1 यह चक्र ठोक रखने के जिए प्रापको क्या करना नाहिए? उसके लिए अनेक मार्ग हैं। किसी भी अ्रतिशयता के कारण समाज दूषित होता है । प्रर इमीलिए है। मंतलितता मे अपनी अंखों को विश्राम मिलता जीस म रिख्रस्त की मनन-चिन्तन नहीं है । है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं । १रन्तु इसके लिए पहले पार होना आ्रवश्यक है । उसके बाद अ्रखों के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे अपक आज्ञा वक्र ठीक रह सकता है। बताऊगा । स्वंप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी इसमें एक है अपना प्रहंकार देखते और पने आपसे कहना क्यों। क्या विचार चल रहा हैं ? कहां जा रहे हो ?" जैसे कि आप प्राइने में नजी से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं ? अपने आपको देख रहे हैं । उससे गहंकार मे अास्ों श्री खिस्त ने ये बाति २००० साल पहले आपको पर आने वाला तनाव (tension) कम है। मनत करने से आज्ञा नक्र को चन प्राप्त होता है। थ ही येहै भी समझ लेना चाहिये कि जीसस रिद्रस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या श्राचार-विचार या उत्तराधिकारियों की किसी भी प्रकार की पअरतिशयता अनुचित श्ृं खलाओं का अनुसरण अब जो कुछ सनातन सत्य है वह में आपको दुष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी रहना कही हैं। परन्तु उन्होंने ये बातं खुलकर नहीं कही थी और इसीलिए यही बातें में फिर से आपसे कह रही है। श्री रिस्त ने ये बातें आरपसे कहीं तो आपने tension) F a जाता है । इसका महत्वपूर्ण इलाका ( क्षेत्र, अंचल) सिर उन्हें फांसी पर चढ़ाया । श्री खिस्त ने इतना ही कहा के पिछले भाग का बह स्थल है जो माथे (भाल) था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बाते गन्दी हैं के ठीक पीछे स्थित है । यह उस क्षेत्र में स्थित है जो परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा गर्दन के आधार (back of the neck ) से अरठ उंगलियों की मोटाई (लगभग पांच इंव) की ऊंचाई पर स्थित है । यह महागणेश का अंचल पशु समान बर्ताव केरता है क्योंकि रात दिन उसके (इनाका) है । श्री गणेश ने 'महागणेश' के रूप में मन में गरन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है । ं। था । गलत नजर रखने से उसके दूषपरिणाम क्या होते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा है । मनुष्य किसी निमंला योग २५ कण्डलिनी शक्ति को जागूत करना और चित्तवत्ति को संभालकर रखिए और चित्त को उसके बाद उसे सहस्रार तक लाना, तदनन्तर सही मार्ग पर रखिए । अपना चित्त ईशवर के प्रति सहस्र्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति ओर अपनी नेतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया कण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही है । हमारी भूमि योग भूमि है। हम अरहंकारवादी कृण्डलिनी शक्ति का अप्राखरी कार्य है । परन्तु इन नहीं हैं या हमारे में अहंकार आने वाला भी नहीं पादरियों को बाप्तज्म की जरा भी कल्पना नहीं है । हमें अहंकारवादिता नहीं चाहिए । हमें इस है उल्टे वे प्रनाधिकार चेष्टा करते हैं , या फिर भुमि पर योगी की तरह रहना है एक दिन ऐसा ऐसे ये पादरी भूत कामों में लगे हुए हैं । गरीबों की आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस सेवा करो, बीमारों की सेवा करो वरगरा। आप समय सारी दुनिया इस देश के चरणों में भुकेगी। कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं। हीं, ये अच्छा है, उस समय लोग जान जाएंगे श्री खित कोन थे, परन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है । परमात्मा कहाँ से आए थे, प्रोर उनका इस भुमि पर यथा- का ये कार्य नहों है कि पैसे देकर गरीबों की सेवा चित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता है और साम्राज्य में ले जाना और उनसे भट कराना । उन्हें सम्मान दिया जाना है अपने देश में हम आपको सूख, शान्ति समृद्धि शोभा व ऐश्वर्य इन अपनी मां को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब सभी बातों से परपू्ण करना, यही परमेश्वर का भारत में आएंगे तब वे देख गे कि श्री खिस्त का कार्य है। कोई मनूष्य चौरी करता है या झूठ सचचा घरम वास्तव में भारत में अत्यन्त आदर बोलता है या गरीब बनकर घुमता है, परमात्मा पूर्वक पालन किया जा रहा है, ईसाई घ्मानुयायी ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ें गे । ये सेवा का काम है, जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ ख्रिश्चन लोग धर्मान्तिर करने का काम करते हैं । जहाँ कुछ अ्रादिवासी लोग होंगे वहां वे (रब्रश्चन लोग) जाएंगे। वहाँ कुछ सेवा का काम करेंगे। फिर सब को खिश्चन बनाएंगे। परन्तु एक बात प्रथ है इसी कारण अपने योग शास्त्र में लिखा है अपनी राष्ट्रों में नहीं। श्री ख्रस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य को दूस रा जन्म केवल कुण्डलिनी जागति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनो जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहीं है। ओर जब तक मापका दूसरा जन्म नही हीगा। । होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते । आ्प लोग पार होने के बाद बायबल पढ़िए । आपको आशचर्य होगा कि उस में खित्रस्तजी ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखा- ने परमात्मा का कार्य अवाधित है सहजयोग में लोगों की कण्डलिनी जागृत करते सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अरतिरिक्त वटी दयालुता का काम नहीं करते । परन्तु अगर कुछ भी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में हम किसी अस्पताल में गए तो २५-३० बीमार को बताई है। परन्तु जिन लोगों को बह दष्टि प्राप्त सहज (आसानी से) स्वस्थ कर सकते हैं । उनकी नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे कण्डलिनी जागत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो हैं । (मनमाने ढंग ने उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) जाते हैं। श्री खिरस्त ने उनमें बहू रही उसी प्रमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया । श्री खि्रस्त व स्तुओं से सहायता नहीं वास्तव में बारप्तिज्म (Baptism) देने का ने कभी किसी की भोतिक निर्मला योग २६ की । ये सब बाते आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से समझ बीड़ी लिखा हुँप्रा था। यह परमेश्वर का मजाक लेना आवश्यक है । पहले की गयी गलतियों की उड़ाना, परमात्मा का स रासर अपमान करना है । पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए । हर-एक बात प्राप्त कीजिए। ये आपका प्रथम कार्य है । [आत्म- परमास्मा से जोड़कर आप महापाप करते हैं, ये साक्षात्कार के वाद आपकी शक्तियाँ जागृत हो समझ लीजिए । 'साइनाथ बीड़ी' या 'लक्ष्मी हींग जाती है । इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में क्क ये परमात्मा का मजाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियां ठीक हुई से लोगों को क्या लाभ होता है ? कूछ लोग कहते हैं। आप किसी को भी रोग मुक्त करा सकते हैं। केन्सर जेसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से ही ठीक हो सकती हैं। परन्तु लोग ठीक होने के घुन्धा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का बाद फिर से अपने पहले मार्ग प्रौर आदतों पर चले जाते हैं। ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खोजते । उम्हें प्रपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती हैं। अन्यथा उन्हें परमात्मा को व उद्धारार्थ जन्म लिया था । वे किसी जाति या खोजने की आवश्यकता प्रतोत नहीं होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें रूपी प्रणव थे । सत्य थे । परमेश्वर के प्रन्य जो परमात्मा क्यों ठीक करे? ऐसे लोगों को ठोक किया अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्व से बनाये या नहीं किया, उन से दुनिया को प्रकावा नहीं गये थे । परम्तु श्री ख्रिस्त का शरीर आत्म तत्व से मिलने वाला। परमात्मा ऐसे दीप जलाएंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगो। परमात्मा मुख लोगों को क्यों ठीक करेंगे। जिन लोगों में ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों लुगा, उनके नाम का जाप होने लगा और उनके सहायता करे? गरीबी दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यों को ईश्व रीय कार्य नहीं समझना थे, यह मुर्य बात है। यदि लोग उनके उस स्वरूप चाहिए । ा हैं 'माताजी इससे हमारा 'शुभ हुआ है। शुभ का मतलब है ज्यादा पसे प्राप्त हुए इस तरह से प्रपमान होता है । जाति के कल्याणर्थ श्री रिव्रस्त ने सारी मनुष्य समुदाय की निर्जी सम्पदा नहीं थे । वे स्वयं ॐकार बना था । और इसीलिए मृत्यु के बाद उनका पूनरुत्थान हुआ और उस पुनरुत्थान के बाद थे बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने बारे में भाषण होने लगे। वे परमात्मा के अवतरण को अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करे तो चारों तरफ आनन्द हो अरानन्द होगा। आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हो। अनन्त आशीर्वद। कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेহ्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दूकान पर 'साईनाथ सहजयोग में प्राने पर मनुष्य में एकाग्र दृष्ट आती है। ऐसी एकाग्र दृष्टि अगर बढ़ती गई और गरणेश शक्ति जागत हो गई तो उसे 'कटाक्ष-निरीक्षण कहते हैं । जिस पर आप की दृष्टि जाएगी उसकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी। जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता आ जाएगी। इतनी पवित्रता आपकी आंखों में भरा जाती है। ये केवल श्रीगणेश का हो काम है । श्री माताजी निमंला योग २७ सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा-(४) एक साधारण डाक्टरी (चिकित्सा) शिक्षण (connection) क्रमशः अत्मा, कारण शरीर, के काल में यह बताया जाता है कि यह शरीर सुक्ष्म शरीर अन्ततः स्थूल शरीर के माध्यम से है । विभिन्न गों व हड्डियों ग्रादि से मिलकर बना है । अनुसंधान व शिक्षण द्वारा विद्यार्थी को जो जो बात या अवरोध है तो उसका व्यक्तिर्व (existence, षटित होती दुष्टिगोचर होती (दीखती) हैं उन being) परमेश्वर की इच्छा को पूरी तरह नहीं बातों का ओर वह क्यों घटित होती हैं उसका पता व्यक्त करता । चलता है । इस तन्र के किसी भाग में भी यदि कहीं कोई बाधा उपरोक्त तन्त्र (व्यवस्था) के अतिरिक्त, पांच यदि कोई आत्म साक्षात्कार प्राप्त योगी है तो मुलभूत आवरण अ्रथवा कोप होते हैं-पूथ्वी, जल, वह जानता है इस तथाकथित स्थूल হरीर के नीचे तेज (ग्नि), वायू और आकाश । इनमें अकाश एक सूक्ष्म शरीर और उसके भीतर एक कारण (Ether) सूक्ष्मतम पर क्रमशः पृथ्वी स्थूलतम शरीर होता है । हमारे नाड़ी व चक्रों से मिलकर होते हैं । ये आत्मा अथवा हृदय को घेरे हुए रहते हैं यह सुक्ष्म शरीर बनता है ! इनमें से प्रमुख हमे और सुक्ष्म शरीर व तत्पश्चात स्थल शरीर को ज्ञात हैं किन्तु इन प्रमुख नाड़ी व चक्रों के अति- स्थिरता प्रदान कर उनको पाकार प्रदान करते हैं । रिक्त कुल ३३ करोड़ और कम ज्ञात नाड़ी वे चक्र है इस तन्त्र के विभिन्न अगों अरथवा पहलुओं में से जो एक दूसरे को प्रत्येक कल्पनोय विधि से जोड़ते होकर जो ऊर्जा प्रवाहित होती है वह सूक्ष्म स्तर हैं जो मानव मस्तिष्क की ग्रहण शक्ति से बाहर है। पर बेतन्य लहरियों (vibrations) प्रौर स्थूल स्तर पर गतिविधि (activity) के रूप में सुष्टि को व्यवस्था) अथवा यन्त्र (instrument) है, जो कि प्रभावित करती है अथवा उनका उपयोग सुष्टि को आत्मा) स्वयं परमात्मा (परम+आात्मा) का प्रति- प्रभावित करने के लिये किया जाता है कारण बिम्ब है, जो कि (परमात्मा) सृष्टि (universe) शरीर पंच महाभूतों के कारणों अ्रथवा तन्मात्राओं में सर्वोच्च आवि्भुत (manifest) सत्य (Reality) को प्रभावित करते हैं । क्योंकि तीनों (शरीर) परम (The आात्मा की अभिव्यक्तियां (manifestations) है, ये स्थल, सूक्ष्म तथा कारण शरीर प्रात्मा के तन्त्र है औ्र स्वयं परव्रह्म अ्रथवा Absolute) का प्रतिबिम्ब है । ओर इस कारण परमात्मा की इच्छा स्वरूप हैं, ये (तीनों शरीर) अन्त में इसके (आत्मा के) नियन्त्रण सूक्ष्म शरीर जो स्थूल शरीर का नियन्त्रण में हैं प्रत्येक मानव एक कोष (cell) की भांति है करता है. वह साधन है जिसके द्वारा परम (The जो अपने-प्रपने क्षेत् में उस परम इच्छा, गक्ति Absolute) की इच्छा (प्रात्म-स्वरूप होने की) ओर नियन्त्रण के एक अंश] को व्यक्त करता है। इस भौतिक सुष्टि के स्थूल जगत में कार्यान्वित जब यह सम्पूर्ण तन्त्र सुचारु होता है तब यह बिना होती है। इन तीन शरीरों का और कोई कार्य नहीं प्रयास और बिना विचार कार्यान्वित होता है । है । परमात्मा का स्थूल शरीर से सम्बन्ध यदि ऐसा नहीं होता (अ्रर्थात तन्त्र बाधाग्रस्त होता निमंला योग २८ कुछ अनिष्ट नही होगा और जो कुछ पोड़ा और बीमारी है वह हमारे उद्घार प्रक्रिया के अंग हैं जो हमारी कृपालु मां द्वारा प्रदान किये गये हैं और सहर्ष सहन करने चाहिये। यदि कोई सहन नहीं कर सकता ती निवारण कठिन हो जाता है क्योंकि उससे मां परमेश्वरी का हाथ रुक जाता है । है) तब प्रयास व विचार का आगमन होता है। किन्तु ये (प्रयास व विचार) सरलता, निष्प्रयत्नता और सामोप्य (directness) को कसे भी नहीं व्यक्त कर सकते । परम के पूर्णत्व, साधारण सहजयोगी आत्म- जब एक साक्षात्कार प्राप्त करता है उस समय ये अनेक नालियां, नाड़ी ओर चक्र अवरुद्ध होते हैं और उनके दूसरे, कुछ पदार्थ हैं जिनका विशेष चक्रों व योग-स्थल जहां क्रिया होती है वे मड़े-तुड़े होते हैं। नाड़ियों से साम्य (afinities) है । इनका उपयोग इसके प्रतिरिक्त नाडियां जगह-जगह अपने मार्ग से करते अरथवा अपने समीप रखने से ये रुग्ण स्थल इधर -उघर हो जाती हैं पोर उनमें एक रस्सी की का अ्रपनो चंतन्य लहारियां (vibrations) प्रदान गठों की तरह फंदे लग जाते हैं। इससे प्रात्मा की करत है जिनसे उक्त स्थल को बल प्राप्त होता है, शक्ति का प्रदर्शन रुक जाता है। श्रो शिव को अथवा प्रवरुद्ध नाड़ी का अवरोध बाहर फंका जाता है। कभी-कभी वे उक्त स्थान पर ऐसा झटका देत है कि बांधा उखड़ कर फेकी जाती है और मार्ग खुल जाता है जिससे कि आ्मा की शक्ति प्रवाहित शक्तिवाही' भी कहते हैं। इसका अर्थ है कि वे समस्त शक्तियां वहन करते हैं अरथात समस्त शक्ति- सम्पन्न हैं। अधिक उपयुक्त कथन होगा कि सुष्टि को समस्त शक्तिपां परमात्मा की अभिव्यक्तियां हैं जैसे सूर्य की किरणों सूर्य को प्रतिविम्बित करती है ओर चन्द्रमा की क्रिरण चन्द्रमा को। इसी भांति आत्मा अपनी शक्तियों के माध्यम से अपने आप को इस तन्त्र (System) में व्यक्त करने का प्रयत्न के स्थूल अण होने लगती है और उक्त भाग में क्रियान्वित होने लगती है ब्रधिकांश होमियोपेथी चिकित्सा प्रणाली जो कि पदार्थों के सूक्ष्म अंशों का उपयोग करती है इसी पद्धति से कार्य करती है, क्योंकि उसमें पदार्थों व परमाणु (atom and करता है और प्रपनी शक्तियों के द्वारा मागं के molecule) को पतला किया जाता (diluted रधों (प्रड़चनों) को दूर करता है। कभी-कभी Out) है । इस दूसरी विधि के लिये जानकारी व जब ग्रवरोध प्रत्यन्त गरम्भीर (विकट) होता है तब अनुभव की आरावश्यकता होती है. किन्तु चेतन्य व्यक्ति पीड़ा का अनुभव होता है और कभी-कभी लहरियां (vibrations) सहायता प्रदान करती हैं । रोगों के द्योतक लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । बहुधा 'रोग ही उपचार होता है, कारण कि भोतर के तीसरे, विभिन्न निष्कासन प्रक्रियाए आ्ात्मा दोष को यदि ऊपर प्राने दिया जाय और बाहर की शक्ति के द्वारा जो विकार उभर कर आते हैं वे निकाल दिया जाय, तो उस व्यक्ति की वह बाघा वाहर फेंके जाते हैं। इन दष्य प्रक्रियामरों के प्रतिरिक्त स्नान में उपयोग किये जाने वाले पदार्थ त्वचा व बालों को स्वच्छ करते हैं। सहस्रार के लिये शोका- काई उपयोगी है जिसका शरादिशक्ति श्री सीता ने उपयोग किया था। इसी तरह पस pus, मवाद) बाधा को बाहर फेकता है, नि:श्वास (breathing out), विशेषकर प्रासायाम में यही कार्य करता है, श्री माता जो के फोटो के सामने दीप की लो (दोप- अथवा बंपन का पूर्ण निवारण हो जাता है । इस प्रक्रिया की सहायता करने के लिये कुछ उपाय हैं। प्रथम, अपने को दोषी ने समझते हुए ओ्र सक्षम होते के लिये ग्वे अनुभव करते हुए, जो कुछ घटित हो रहा है उसे एक साक्षो की भांति देखते रहना। अच्छा सहजयोगो समझता है कि उसका निर्मला योग २६ शिखा) की ओर देखना, इत्यादि । इसमें सारे पंच प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर सकती है और उप- महाभूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, पाकाश) का चार में सहायक होने की बजाय उसमें हानिकारक उपयोग किया जा सकता है। हो सकती है। इसका कारण है कि उनमें अ्रकेले स्थूल अणु होते है और उनका प्रभाव एक स्थान पर चौथी व अन्तिम विधि, जिसकी पहले वरिणत सीमित रहता है । जड़़ी-बूटियां व नेस गिक औष- तीनों विधियां सहकारी (adjuncts) हैं, चेतन्य घियां परमात्मा द्वारा निर्मित और मानव की लहरियां ग्रहण करना है चैतन्य लहरियां आवश्यकता के अनुसार सन्तुलित की हुई होती हैं । परमार्मा की शक्ति की प्रभिव्यक्ति हैं। श्री माता उनमें विभिन्न पदार्थों का विभिन्न अनुपातों में जी उस शक्ति को साक्षात अवतरण होने के कारण समावेश होता है जो (अनुपात) ऋतुओं और समस्त चेतन्य लहरियों की उद्गम-स्थल हैं। चेतन्य लहरियां उगलियों शऔरर सहत्रार के माध्यम से होते रहते हैं । चन्द्रमा जिसमें हृदय के गुण ग्रहण की जा सकती हैं अ्औौर बाद में सोधे चक्रों के विद्यमान होते हैं, विभिन्न जड़ी बृटियों पर शासन माध्यम से । जब वे सीधे के माध्यम ग्रहण करता है और उन पर प्रबल प्रभाव डालता है। की जानी लगे, तब वे अ्त्यन्त वेग से प्रभाव डालती अकेली जड़ी बूटी बहुगुरग्युक्त होती हैं। यद्यपि हैं, क्योंकि इसलिये अपने बारीर (सुष्टि) का भी स्थल है । यह घटित होने के लिये हृदय श्री माता इस प्रकार श्री शिब ने ही देव चिकित्सक जी के प्रति पूर्ण उन्मुक्त (सम्पित, open, dered) होना आवश्यक है। किन्तु कभी-कभी उनकी शक्ति प्रदान की। हृदय की चैतन्य लहरियां भी बाधाग्रस्त हो सकती हैं और ऐसी स्थिति में उपरोक्त विधियां उपयोग में लाई जा सकती हैं। ज चन्द्रमा की कलाओं के साथ-साथ भी परिवर्तित से हृदय चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान का स्थान दाहिने पाश्श्व में है, किन्तु इसकी शक्ति बये पाश्व्व से आई । हृदय सृजन (सृष्टि) का विन्दु है और शुद्ध सुजन- सेजन- अश्विनियों को 'सोम' का पान कराया अर्थात् उनको surren- उपरोक्त सब कथन केवल साक्षात्कार-प्राप्त त्माग्रों के विषय में लागू होते हैं । केभी कभी आधुनिक (ऐलोपेथिक) चिकित्सा प्रणाली, जो एक असन्तुलित विधि है, स्वयं उपचार डॉ० रुस्तम आप लोग मुझे वचन देने प्राए हैं यहाँ इस International Seminar (अन्तर्राष्ट्रिीय गोष्ठी) में कि, "माँ जितनी आप मेहनत करती है, उसी तरह से हम भी मेहनत करेंगे।" -श्री माताजी सहजयोगी में ऐसा सामर्थ्यं होना चाहिए। अन्य लोगों को अनुभव हो कि वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है। उसके लिए यह सामर्थय प्राप्त करने के लिए में । आप में प्रेम और क्रियाशीलता दोनों शक्तियों सन्तुलन आवश्यक है । वह इतना मनोहारी होना चाहिए कि बिना जाने अन्य] लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों । सहजयोगी को यह गुण अरजन करना चाहिए । - श्री माताजी निर्मला योग ३० जय श्री माता जी 5 L वर्तमान का महत्व कहां जायेंगे वे जिन्होंने, मन्दिर-मस्जिद, गुरुद्वारे बनवाये हैं । विद्यालय विश्वविद्यालय बनवाये. धर्मशाले हस्पताल खुलबाये हैं In७॥ यहीं ओोर अभी" जो होता, वर्तमान कहलाता है । बीत जाता जो कुछ, भूत बन जाता है ।।१।। प्रस्तर- प्रतिमाय स्थापित करवाये, झिलान्यास करवाये हैं । का किसको, कौन कहाँ दिखाता है । अस्तिव भूत चौराहे, गार्डन, गली-कृचों के, जिन्होंने नाम धराये हैं ।I८॥ भृहल्ले, मानस-पटल पर जो, कुछ छाप छोड़ जाता है ।।२॥ इतिहास के पन्नों पर जिसने, पर हर क्षण जोवन, धाक प्पनी जमाये हैं। आगे हो बढ़ता जाता है। नई-नई अभिव्यक्ति जीवन की, अपनी जीवनगाथा-ग्रन्थों के, ढेर के ढेर लगवाये हैं ।।॥ निस्य-नवीन दिखाता है ॥ ३॥ जीवन नित्य त्तिरन्तर, हर प्रचार माध्यम से, छवि अपनी बनवाये हैं। वर्तमान में भासता है । भूत-भविष्य के चक्र में, मर कर भो अमर होने के, सपने जिन्होंने सजाये हैं ॥ १० ॥ मूरख-मन नाचता है ॥४॥ वतमान में क्या सीखना, जो भी दृश्य देखता वह, इतिहास हमें बताता है । क्या व्यक्त उसे कर पाता है । वर्तमान में सीखें तो, आत्म-दृष्टि से केवल, वर्तमान स्वयं सिखाता है ॥११॥ सब कुछ साफ दिखाता है ।1५।॥ कल के कारण अज जो है, कहां गये सदियों पहले जो, वतमान हमें बताता है । इस घरती पर अराये थे । आज कर सो कल होंगे, हर कार्य का फल मिल जाता है।॥१२ ॥ बड़े प्रतापो सम्राटों ने कभी, विजय पताका फहराये थे ।॥६॥ ३१ निर्मला योग पड़ कर भूत-भविष्य के चक्कर में, खाली हाथ चले जाते हैं ।। १४॥। समय के साथ सब ध्वस्त हो जाता, नामों निशा मिट जाता है । पर वर्तमान को जो पा जाता, पल पल समय बीत रहा अब, अ्रमर बह हो जाता है ।।१३।। हाट बन्द हुआ जाता है। वर्तमान को 'सहज' में पाना, बर्तमान को पाते ही, अवसर निकला जाता है।। १५ ।। इस जग में हम आते हैं। सी० एल० पटेल सहजयोग का कल्प बृक्ष नाश हो जाता पापों का, और मन पावन हो जाता है। सहजयोग में जो अता, वो सहज प्रभु को पाता है नाश हो जातা जब-जब भीर पड़ी भक्तों पर, प्रभु ने क्या-क्या रूप लिया। कभी मीन, कभी वामन, तो कभी नरसिं अवतार लिया। संभल अरे नादान संभल रे, कल्कि ने अवतार लिया । मां ने सबको चेत कर दिया, अन्तिम निर्णय आता है । चेतन्य लहरियों को पाता, जो सहजयोग में अ्राता है॥ नाश हो जाता रे ठगों की कमी नहीं दूनियाँ में, बने पड़े भगवान यहाँ । मां का नाम सूर्य जैसा है, उन छलियों के बीच यहाँ| माँ की अमृतवाणी ओ्रर [जो षरणामृत को पाता है । काम पार हो जाता भवसागर, घन्य धन्य हो जाता है। परममोक्ष को पाता है, जो सहजयोग में आता है।। नाश हो जाता सहजयोग गहन सागर है, ज्ञान की नहों है थाह यहाँ । जितना गहरा इसमें उतरो, उतने मोती पाओ यहाँ । ऊपर ऊपर रहने वाला, कभी न कुछ भी पाता है मानव माँ के मार्ग पे चल के, अति-मानव बन जाता है । सहजयोग में जो प्राता, वो कल्प बृक्ष बन जाता है॥ नाश हो जाता -रतन विश्वकर्मा निर्मला योग ३२ ा त्यौहार नव वर्ष शालिवाहन चेत्र शुक्ल १ १०-४-८६ नव रात्रि पुजा प्रारम्भ च त्र शुक्ल नवमी चेंत्र शुक्ल [त्रयोदशी चंत्र पूरिण मा श्री राम जन्म दिवस १८-४-८६ श्री महावौर जन्म दिवस २२-४-८६ श्री हनुमान जन्म दिवस २४-४-८६ सहस्त्रार दिवस श्री आदि शकरा वाय जन्म दिवस बैसाख कृष्ण द्वादशी ५ू.५-८६ वैसाख शुक्ल पंचमी बैसाख पूरिणिमा १४-५-८६ श्री बुद्ध जन्म दिवस श्री गुरू पूजा श्री कुण्डलिनी पूजा (नाग पंचमी ) २३-५-८६ आ्रषाढ़ पूरिणमा २१-७-८६ श्रावर शुक्ल पंचमी १०-८-८६ राखी दिवस श्रावरण पूरिणिमा १६-८-८६ श्री कृष्ण जन्म दिवस श्रीवण कृष्ण अष्टमी २७-८-८६ श्री गरोश जन्म दिवस श्री गोरी पूजा भाद्रपद शुक्ल तृतीया ७-६-८६ भाद्रपद शुक्ल अष्टमी अश्विन शुक्ल १ प्रतिपदा ११-६-८६ नवरात्रि पूजा प्रारम्भ -০४-१ १०-१०-८६ हुवन (नव राधि) विजय दशमी अश्विन शुक्ल संप्तमी अशिविन शुवल दशमो अश्विन पूरिणमा १२-१०-८६ कोजागिरि पूरणिमा (श्री लक्ष्मी पूजा) श्री लक्ष्मी पूजा (दोपावली) १७-१०-८६ अश्विन अमावस्या १-११-८६ कार्तिक पूरिण मा श्री नानक जन्म दिवस १६-११-८६ श्री दत्तावेय जन्म दिवस माघ शुक्ल चतुर्दशी पोष कृष्ण नवमी १५-१२-८६ श्री जीसस जन्म दिवस २५-१२-५६ ततीय कवर निर्मला योग Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 369991 ॥ श्री निर्मला देव्ये नमो नमः ।। L5 । निर्मल माता कुर्डलिनी माता। निर्मल माता, कोंडलिनी माता, आदिश क्ति न देवता तू तू देवता ॥ धु०] |॥ महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली तू सकलां ची निर्मल माता । मान बाँची भाग्यविधातो कुंडलिनी जागृती देऊ नी तू तरी कलियुगो या मानवाला। मोक्ष देतसे तू तरी ।।१।। । ब्रह्मर्घ्र तू छेदिसी कलियगी या मानवस्वरूपी । जन्म घ असूर तो तरी देव ऋषी ही पृथ्वी वरती । जन्म घेऊनी राहती चेतन्यचक्ष नी सहजयोगी ते । पाह ताततेकोण ते ।।२॥ त रो घेतसे तु हृदयाची पावती माता। देव ऋषी ही तुझिया चरणी गौरी माता, सरस्वती तू । लक्ष्मी माता तू कलियुगाची कल की माता । तुच मानवा तारिसी ।।३।॥ त री कलियुगोची कल की माता। मानव देही जन्म चेतसे ऋषो मुनीना ज्ञात होत से । कलकी माता अवतरली शंख. चक्र, गदा, पद्मते । अवनी वरती येतसे ।।४।। सहस्त्रा वरती घ्यान धरावे । मानवाना बरे करावे राधा माता, सीता माता । मेरी माता तू तरी आत्मस्वरूप तू परमेश्वर तू । महामाया तु तरी ।।५।। चिरबालक तो गणेश आता। हनूमन्त नी भेरव नाथा आणिक येसू गण सेवक तो । निर्मल देवी चा असे विरोधात जे मानव असती । शिक्षा करिती ते तरी ।।६।। पूर्वी कधी जे नाही घडले । निर्मले ने करूनी दाविले अनुभवाने अनुभव देता । ये तो आता मानवा दिव्या नेच तो दिवा लाग तो। निर्मल देवी तमो नमः ।।७॥ -विष्णु नारायण फडके (सहजयोग केन्द्र, दादर) Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 8.00, Annual Subscription Rs. 40.00: Foreign [ By Airmail £ 12 S 161 फ़ी ---------------------- 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt ॐ fनिर्मला योग जनवरी-फरवरी १६८६ वर्ष ४ अंक २३ द्विमासिक परी + ॐ त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात्, श्री सहस्रार स्वामिनो, मोक्ष प्रदायिनो, माता जी, श्री निर्मला देवी नमो नमः ।। परी पड ी 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt दिव्य जीवन की ओर दिव्यता के प्रकाश में, क्रितयुग के आगमन से अब, नवीन इतिहास लिखते जायेंगे । आधुनिक, प्राचीन सब, पन्धविश्वास मिटते जायेंगे |१॥ आने ही बढ़ते जायेगे ॥४॥ सत्य अहिसा, प्रेम के हो, अब] गोत गाये जायेगे । परम्पराय प्राचीन श्रब, पीछे छुट भेद-भाव, छल कपट के घड़, मिट जायगे कलंक जोवन के, अब "कृल्कि अवतार" आयगे ॥५॥ जायेंगे। असत्य, अधमं, अन्याय के अब फूट जायगे ॥२॥ अब अन्त हो जायगे। विश्व वधुत्व, एकार्मता में, सहज सत्य के उदय से, सब अन्धकार मिट जायेंगे । से, सब सन्त हो जायगे ।।६।। सहजयोग के अभ्यास मातृप्रेम में निरत रहेंगे, आत्म साक्षास्कार पायगे ॥३।॥ कम करते जाय गे शुभ साम्राज्य प्रभु का होगा धरा पर, । है भत्रिष्य उज्ज्वल सामने, जोवन अनन्त पायेगे ॥७॥ नव निर्माण करते जायेगे | सो० एल० पटेल जय श्री माताजी 5 गीत असत् से सम्बन्ध टूटा अब, उड़ रहा सुगन्ध घरा से, संग संत् के जाने लगा है ।। ३॥ गगन में छाने लगा है धाज मक्ति का बोध हुआ, तोड़ केर तम का आवरण, गोत मंगल गाने लगा है ।।१।। ज्योति अमर जगाने लगा है । सत्चिदानन्द के सागर में, अनन्त जीवन का राही, गोते लगाने लगा है ॥४॥ पथ परम पर जाने लगा है । लाघ कर सब सीमायें, प्रभु के साम्राज्य में प्रवेश मिला, पद परम पाने लगा है। असोम में समाने लगा है ।।२॥॥ परस मातृपद कमल सहज में, सत्य का साक्षात्कार हुआ, जोवन सफल बनाने लगी है ।।५।।। भ्रम-भूतों को भुलाने लगा है । सी० एल० पटेल स निमंला योग द्वितीय कवर है 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt नड ी न |कि पा ज लि सम्पादकीय "प्रवधू बेगम देस हमारा" श्री कबीर निर्विचारिता की स्थिति बिना गम अर्थात सुखद होती है । श्री कबीर दास जी इसी स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे साधू हमारे देश में अर्थात शरीर में किसी प्रकार का दुःख नहीं है । परमपूज्य आदिशक्ति श्री माताजी जन मानस को कुण्डलिनी जागृति द्वारा यह स्थिति अनायास सुलभ करा रही हैं । इस सन्देश को जन जन तक पहुंचाना औ इस आनन्दमय स्थिति से पअवगत कराना ही हमारा धर्म है । ॐ साक्षात् परमानन्द दायिनी साक्षात आ्दिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्ये नमो नमः । ती ॥ि निर्मला योग १ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt निर्मला योग ४३, बंगलो रोड, दिल्ली-११०००७ संस्थापक परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी : डॉ शिव कुमार माथुर सम्पादक मण्डल श्री आानन्द स्वरूप मिश्र श्री आ्रार. डी. कुलकर ও प्रतिनिधि कनाडा : लोरी एवं कैरी हायनेक 1540, टेलर वे वैस्ट बैन्कूवर, B.C. VIS 1N4 श्रीमती क्रिस्टाइन पेटू नीया २७०, जे स्ट्रोट, १/सी ब्रुकलिन, न्यूयाक्-११२०१ यू .एस.ए. भारत यू .के. श्री एम. बो. रत्नान्नबर १३, मेरवान मैन्सन गंजवाला लेन, बोरीवली (पश्चिमी), बम्बई-४०००६२ श्री गेविन बाउन ब्राउन्स जियोलॉजिकल इन्फ़र्मेशन स्विस लि., १३४ ग्रेट पो्टलेण्ड स्ट्रीट लन्दन डब्लू. १ एन. ५ पो. एच. इस अंक में पृष्ठ १. सम्पादकीय २. प्रतिनिधि ३. परमपूज्य श्री माताजी का ६३वें जन्म दिवस पर प्रवचन ४. संक्रान्ति पूजा ५. श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु रिव्रस्त ६. सहजयोग ओर शारीरिक चिकित्सा-(४) १ २ ३ १३ १७ २५ ३१ ७. वतमान का महत्व ८. सहजयोग का कल्प बृक्ष &. दिव्य जीवन की ओर १०. त्यौहार ११. निमंल माता कृण्डलिनी माता ा ३२ द्वितीय कवर तृतीय कवर चतुर्थ कवर के = २ निमंना योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt कतस पल परमपूज्य श्री माताजी का ६३वें जन्म दिवस पर प्रवचन तम मुम्बई २-४-८५ आज के 63rd Birthday व हत लोग सोचते हैं कि सहजयोग में अने से (तिरेंसठवें जन्म दिवस) पर शपने हमारी घर की सांपत्तिक स्थिति ठीक हो गयी या हमारे बच्चे ठीक हो गये लड़कियों की शादियां एक मां को क्या कहना चाहिए ? हो गयी लड़कों को नौकरियां मिल गयीं हर क्योंकि जो कुछ भी है सब आपकेतरह का क्षेम हो गया यह सब देखते हुए भी, जानते हुए आपको उन लोगों के लिए सोचना आपके लिए है इसलिए इसके लिए यदि आप इस चाहिए जिन्होंने प्रभी तक इसमें से कुछ भी नहीं समारोह को मनाते हैं तो इतना ही कहना है कि पाया है. जो अज्ञान के सागर में डूबे हुए हैं। इस पर हमेशा चर्चा होनी चाहिए, इस पर हमेशा विचार होना चाहिए। आप तो जानते हैं मुझे महत्वपूर्ण है आज तक परमात्मा ने अनैक लोगों किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। मैं पूरी तरह से तप्त जोव हैं। ले किन मूझे सम्पूर्णं संसार को बचाना है। सारे संसार के लोगों को बचाना है । उसके उसी कार्य के अशो्वाद स्वरूप शप लॉगो ने लिए बहुत मेहनत करनी है। सालो बोल गए सहजयोग पाया है। लेकिन अभी तक आप लोग पहले तो मेहनत की कि किस तरह से सहजयोग शायद इसका महत्व नहीं जान पाए। पहले तो एक सामूहिक चेतना का कार्य करे । बहुत मेहनत लोग पहाड़ों में घुमते थे, बहुत तपহचयों केरते थे, की । हर-एक आदमी की पोर ध्यान देकर के ओर भस् जो समारोह रचा है उसके लिए लिए ही है । ये सारी उम्र भी यह प्रपनी चीज है । और इसका आपको पूरा उपयोग करना चाहिए। क्योंकि जिन्दगी वहुत को संसार में भेजा। उन्होंने भी कार्य किया है । उस कार्य की ही अब फलश्रुति हो रही है । प्राज ा परमात्मा की खोज में रहते थे । उसको अभ्यास करके परोर समझा कि इस अ्रादमी के करसे दोष हैं फिर उसका वर्गीकरण किया, आपने सहज में ही आरज अपनी आत्मा को अलग-अलग उसको बिठाया, फिर प्राप्त किया, इतना सहज और सरल मिला है, विश्लेषण किया । हजारों लोग जो जीवन में आए. और उससे इतना क्षेम प्राप्त हुआा है इस कदर जिनके बारे में मैं पढती थी, मैं जब छोटी थी भपने शक्तियों को प्राप्त किया है. उस में कभी भी हमेशा लोगों की जी वनी पढ़ती थी । स्कूल में लड़ ऐसा आपको लगा नहीं कि इस चीज को मिलने कियों को बड़ी हंसी भ्राती थी ये अभी प्राइमरी में कितना प्रयत्न करना पड़ा, कितने जन्म लेने स्कूल में है और सबकी जीवनी पढ़ती रहती है । पड़े, कितनी जिन्दगियां बितानी पड़ीं, उसके बाद आज आप सहजयोग को प्राप्त हुए। और इस दशा रहे हैं, कोई जापान में हुआ उसकी पढ़ रहे हैं, कोई में आए हो कि आज आ्रप एक साधु स्वरूप है । अमेरिका में हुआ उसकी पढ़ रहे हैं, हमेशा हम नें उसका कोई प्रास्ट्रेलिया में प्रादमी हो गया, उसकी पढ़ निर्मला योग ३ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt जोवनियां पढ़ते थे । पिछले जीवन में इसको कौन योग के कार्य में संलग्न रहना, हर समय सहजयोग से प्रश्न आए ? इसका हल उसने के से निकाला ? के बारे में सोचना है। मैं हर समय सोचती रहती ये आदमी केसा होगा ? इसकी प्रकृति क सी होगी फिर इसकी इस जन्म में प्रकृति क्या रहेगी ? इस प्रकार अनेक जीवनी में पढ़ती रहती थी। श्रर मैं कुछ हैं, बहुत तेजस्वी बच्चे हैं। अब इन वच्चों को एक खास पढ़ती नहीं थी। मेरा मुख्य उद्देश्य था सबको स्कूल में रखना चाहिए। अ्रब जिन मां-बाप के पास जीवनी पढ़ें । जब भी लायव री जाऊं तो जीवनी बच्चे हैं वे इसमें Interested (रुचि रखते) हैं, बाकी निकाली। प्रब मैं जानती हैं कि उसके कितने तरीके हैं ? और उसमें क्या-क्या दोष कहा कि चलो हम ऐ सा कुछ कार्य करे कि जहां पर हैं, ? और जब मैं ये पढ़ने लगो और देखने लगी हिन्दूस्तान के कला के द्वार खुले । हम विदेश के तब मैंने सोचा कि मैं जिस कार्य के लिए संसार में लोगों को वृलाएं । मू भो कला से कोई मतलब नहीं श्रयो है वह मुश्किल न होगा। सामूहिक चेतना है। वैसे देखा जाय तो कला तो मैं कसे भी हो बना संसार में प्रानी चाहिए और लोगों की कुण्डलिनी ही सकती सहज जागृत हीनो चाहिए । ये कार्य में संसार में कुला के माध्यम से हम औ्रों को अ्राका्षत कर करके जाऊंगो । लेकित बड़ा कठिन काम था । सुकते हैं, इस देश में ला सकते हैं । उनको पार अब इतनी मेहनत करने के बाद आप लोग इतने कर सकते हैं । उसको महत्वपूरण तरीके से करना पार होने के बाद आज आपके सामने जब में बेठी है। जितको कला के क्षेत्र में Interest (रचि) है है। मूझे एक प्रश्न लगता है कि अरआप लोगों को ये वे लोग कहते हैं माँ ये प्राप वड़ा अच्छा काम कर केसे समझाया जाय कि सहजयोग कितनी महत्व- रही हैं। इसकी ओर देखने की दुष्टि न तो इतनी पूर्ण चीज है ये अपके घर द्वार के संभालने की गहन है और न विशञाल । दमी जितना गहन चीज नहीं है या आपके बीवो-बच्चों को संभालने होगा उतना विशाल होगा। की चीज नहीं है क्योंकि ये सब temporary (अस्थाई) है । आपके न जाने कितने बच्चे हो चुके, कितनी बीवियां हो चुकीं, क्या-क्या हो चुका और सहजयोगी के लिए नहीं, यह तो संसार के लिए अब कितने political Iives आपन lead (राज- है। मैं मानती है कि मेरा विचार बहुत वड़ा है । नीतिक जीवन विताए) कितना क्या-्क्या किया। लोग कहेंगे कि माँ बहुत महत्वाकांक्षी हैं। ऐसा अब जो सबसे बडी चीज ये हैं कि इन सहजयोगियों कसे हो सकता है ? हो सकता है । मैं जब छोटी को कैसे समझाया जाय कि ये बहुत ही महद्वपूण थी तो मैंने अपनी माँ से कहा मैं तो ऐसा चाहती चीज है । और संसार का कोई सा भी कार्य इससे ह माँ दुनिया के हर आदमी का परमात्मा से एका- ऊंचा नहीं है । बहुत से लोग कहते हैं सहजयोग बहुत बड़ी चीज है, बहुत से कहते हैं अरब हम सहज- में री मां मुझासे कहती थी "वेटी तु अगर एक से योग के बगर रह नहीं सकते । कोई कहते हैं कि दूसरा भी बना ले तो मैं तुमको घन्य समझगो सहजयोग से हमको बड़ा लाभ हुआ्रा लेकिन अब] ये और मेरे पति मुझसे शुरू में यही कहते थे तुम तो कसे समझाया जाय कि हमारे लिए तो सहजयोग अवलिया हो, लेकिन तुम दूसरों को अपने जेसा हो सब कुछ है और इसका कार्य करना ही हमारा बनाने का यत्न न करो । ये वड़े पत्थर लोग हैं । जोवन है। हमें जो नया जन्म मिला है सिर्फ सहज- कोई नहीं बन सकता । तो पहलो तो हमारो स्थिति हैं अब ये जो दच्चे आए हैं जो कि हमारे यहां पैदा हैं ये सब Realised souls (पार हुए लोग) ? हुए मनुष्य कैंसा है । नहीं। नहीं तो दूसरे ऐसे लोग हैं जिनके लिए हमने हैं और चला ही सकती है । लेकिन इस हूँ सहजयोग व्यक्तिगत नहीं, समाज के लिए नहीं, कार हो जाय, कम से कम कुछ तो हो जाय। तो निमला योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt आ गयो पहली स्थिति में हम ठीक हैं । इस स्थिति ये बताया जाय कि तुम्हारा प्रकाश वहुत महत्वपूर्ण में हम पहुँच गए कि हम सहजयोगी हैं। ये हमें है और वो उनके सर में टिक जाय । यह कैसे विश्वास हो गया। और मां आदिशक्ति है ये भी किया जाय ? आजकल मेरा मनन इन सब बातों विश्वास हो गया इसमें कोई शंका नहीं। परन्तु पर हो रहा है कि इन सहजयोगियों में ये बात इस पर दूस री शक्ति आनी है कि सहजयोग आज एक महायोगहै, प देखते हैं कोई आदमो भागा जा रहा है, भागा जा रहा है, भई क्या ? मैं एक बड़ा भारी प्रॉजेक्ट बना रहा है, खासकर सरकारी नोकरों को तन्खाह जिस्दगी भर उस बीवी की गूलामी की श्रौर ग्रव उतनो हो मिलती है चाहे प्रॉजेक्ट बनाओ, नहीं भी करते रही। अन्त में तुम्हारा क्या हाल होगा? बनाओ । गधे हो चाहे घोड़े हो, एक ही तन्खाह अगले जन्म में तुम उसको बीवो बनोगे कि क्या मिलने वालो है। उनका कुछ बढ़ता नहीं। तो वो भी जूटे रहते हैं। भई क्यों ? काहे मरे जा रहे हो ? तुमको क्या मिलेगा ? नहीं नहीं, ये मेरा कर्तव्य है । चाहिए। श्राप समझ नहींीं रहे हैं। इस तरह प्पना तन्स्वाह तो तुमको इतनो ही मिलने वाली है। पंसे के लिए थोड़े कर रहा है। मैं तो तन्खा ह के लिए ुछ नही कर रहे हैं। सभी काम इतनी सुन्दरता नहीं कर रहा है। तो काहे के लिए केर रहे हो ? से होति है । इसके साथ में ऐसे बन जाते हैं कि आशन्य मैं तो कर्तव्य के लिए फर रहा है। करतव्य क्या होता है ? तो उनका अगर कर्तत्य इतना महत्वपर्ण है तो ये कतव्य कितना बडा है ? इस कर्तव्य को सहजयोग में लोग पेंसा योडा बहत देते हैं कि मेरे कितने महत्व से करना चाहिए? हम हर श्रादमी एक महान गुरुस्वरूप हो गए, ये भी आप नहीं जानते । आ्ाप करके देख लीजिए, आप प्रपनी शक्ति को इस्तेमाल करके देख लीजिए कि [आप] है कि नहीं है । इसमें कोई अहंकार की बात नहीं, आप है सो हैं । इसमें काहे का अहंकार । आप हो ही गए इसके प्रागे क्या होने का ? अप पूछिएगा अ्ब तो हैं बड़े, आप हैं हो ऊचे । भी आप जिन चीजों को महत्व देना चाहिए उनको तुम्हें दाता होना च| हिए । जो राजा है तो उसको नहीं देते हैं। अब जो भी कार्य करें इस दृष्टि से राजा बनाकर बिठा दिया तो वो देख रहा है कितने करे कि इसका सहजयोग में फायदा हो, सहजयोग उच्चासन पर मैं बेठा है। वाह ! वाह ! कितनी बहिया। के लिए ही कर रहे हैं । औरहमें कुछ करने का चीजें रखी हैं मो को कृपा से । बड़ा अच्छा सब नहीं। अब ये समझाना बड़ा कठिन है। कुण्डलिनी बना हप्रा है । भई, तुम राजा हो, देने को बात करो। जागृति आसान है। उसका बिठाना ठीक है । राक्षसों को मारना ठीक है । भूतों को भगाना ठीक लेकिन समझ लो , थोड़े हो तो कोई ह्ज नहीं, लेकिन है। वो तो हमारे काम ही हुए । लेकिन जो साधु देने की बात करो। मेरा मतलब पैसे से कभी भी सन्त हो गए, जो स्वयं ही प्रकाशमान हो गए, उनसे नहीं होता, आप जानते हैं अपना पूरा चित्त भर जाय कि इसमे महत्वपूर्ण दुनिया की दूसरी कोई चीज नहीं। जितना करना था कर लिया मैने । कई साहब हैं कि मेरी बीवी नहीं मानती । कितनी उम्र है आपकी ? सि्फ साठ साल की है। और सबसे महत्व का काम है। म होगा ? ऐसा ही लगता है क्योंकि गुल मी तुमने की तो उसके फलस्वरूप तुमको भी तो मिलना कुछ समय ब्वदि करने से अप परमात्मा की शात में की बात । लेकिन सहजयोग में ध्यान धारण लोग इसलिए करते हैं कि मेरे भूत भाग जाय, [अ्रधिकतर। पास घत आ जाय। या तो उसके गागे लोग सोचते हैं कि सहजयोग में आने से मुझे कोई Position (पद) मिल जाएगी। सहजयोग में आने से प्राप आकाश, प्राताल ओर पृथ्वो तोनों लोक के राजा हो जाते हैं । अब लेकिन इंतने ऊंचे होकर हो गया पूरा, अब प्रागे क्या होना? इसके प्रागे और राजा हो तो थोड़े बहुत भिखारी अरभी हो ही । का निर्मला योग ५ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt सहजयोग में देना चाहिए। पूरी तरह से सहजयोग प्रश्न पूछना है 'मैंने क्या किया सहजयोग के लिए' ? ये प्रश्न किसी और का नहीं, क्योंकि अब मैं बोल रही हैं। तो कहेंगे हां, श्री माताजी उनके बारे में (प्रब यहां से मराठी भाषण का अनुवाद है।) कह रही हैं, मेरे बारे में नहीं कह रही हैं। वे तो मेरे बारे में क्ुछ नहीं कहती। हमेंशा औरों के बारे में कहती हैं। मैं तो वहुत हो अच्छा है। लेकिन ये हमारी स्थिति तंगे वालों की जैसी है या धोबियों सब में हर एक को कह रहो हैं । सबको देखना है जैसो । यहाँ पर बैठे हो तो एकत्रित होकर मुझे इस साल हम मां को कुछ करके दिखाएँगे। अव सुनिए। वहां पीछे किसलिए देखना है ? क्या आपने मैं लन्दन जा रही है। मुझे पुरण पोली बनाकर लोग नहीं देखे है ? यह ध्यान में रखिए कि आप खिला दी तब हो गया काम, ऐसा श्ररतें समझती सहजपोगी हैं । राजे महाराजे पीछे मुड़ने के लिए हैं । श्री माताजी को हमने पुरण पोली बनाकर पहले दस हजार मोती गिनवाएंगे। फिर प्रपनी खिलाई, नहीं तो श्रीखंड ज्यादा से ज्यादा । मुझे गर्दन पीछे घुमाएंगे । हम कोई ताँगे वाले थोड़े ही क्या करना है पुरण पोली और श्रीखंड से ओर क्या हैं इधर उघर देखकर चलने के लिए । तो वह करनी है साड़ी ? मेरा स व कूछ विश्व है । उसकी जो शान है वो भी आई नहीं। जब डॉटना होता है जो महत्वपूर्ण चीज है उसका कुछ कीजिए। पिछला तब मुझे मराठी में अच्छी तरह से अ्राता है । हिन्दी जो हुआरा बस हुआ। जो कुछ देवी की स्तुति हुई जरा posh (शाहो) भाषा है । मैं हंस कर वो सब ग्रापने कर लौ । हमने स्वीकार कर लिया, करना ही पड़़ता है, क्या करें ? जो भुगतना है अब जरा मराठी में बता रही हैं कि रामदास वह भुगतना ही पड़ता है। अब देवी होकर प्राए स्वामी अपने यहाँ हुए, ज्ञानेश्वर हो गए। नाम हैं। तो वह सब ताम-झाम चाहिए ही और वे सब हम करते हो हैं । परन्तु इतना सब करके भी आप होती हैं। केवल नाम से ही सारी सप्तशती कहने कहां जा रहे हैं ? केवल पंडितजी बनकर बैठोगे जेसे एक नाम में ही सब कुछ है । ये किससे ? क्या ? हमको भी कुछ सहजयोग में करके दिखाना ? है, हर-एक को । हर-एक लड़की को, हर-एक मां साई नाथ का केवल नाम लेने से ही मेरा सारा को, हर पिता को और हर-एक लड़के को, सभी को समझना चाहिए । सब लोग पीछे मुड़कर मत देखिए । अभी तक टाल रही है, लेकिन आज का विषय गम्भीर है। लेते ही vibrations (चंतन्य नहरियां) शुरू सारे चक्र एकदम उत्तेजित होते हैं । किस लिए शरीर डोलने लगता है। किस कार ण ? क्योंकि वे थे ही बहुत बड़े । आप भी हो सकते हैं । आपको की। तुम्हारी कोई चार सहेलियाँ हैं । उन्हीं को हल्दी- वह बनना है इस तरह की कुछ महत्वाकक्षिा । कु कुम के कार्यक्रम में बुलाकर सहजयोग बताओो रखिए । नहीं तो अब हो गया, हम आ गए, हमारा कितनी बार कहा है। हल्दी-कु कुम का समारोह सब कुछ ठीक-ठाक है। ये जो सहजयोगी की स्थिति है इसे बदलना है, ये मे रा वि वार हैं। बीवो-बच्चों की बहुत सेवा की । ये हुंआा, वह हुआ बहू को चार बातं सुन करो और प्रौरतों को बूलाओरो । उन्हें सहजयोग के वारे में बताओो, श्री माताजी के बारे में बताओो । सहजयोग इस तरह से फेलाना चाहिए । नये तरीकों लों । प्रब आगे का हमें किस तरह से फलाना चाहिए। गहन होने के लिए आ्प लोगों लोगों ने से प्राप्त होगा ये देखना चाहिए। परब भी हमारा को ध्यान-धारणा करना जरूरी है। कुछ दिमाग कहा जा रहा है ? किस तरफ बहे जा रहे. किया है, थोड़ा-बहुत । परन्तु इसका कोई अन्त है हैं ? क्या स्थिति है ? हर मनुष्य को अरपने आपसे क्या ? मैंने प्रगर कहा कि पव मैंने बहुत कर लिया, निमला योग ६ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt अब बस हो गया, बहुत हो गया, अब कल से मेरा है, इस तरह लगता है । एकदम सूज्ञ और विवेकी मुंह नहीं देखना । मान्य है बापको ? है मान्य ? मनुष्य थे । उनका लड़का कैसा है, उसमें कभी इतनी उग्र हो गई है फिर भी किसी को नहीं उनका चित्त नहीं लगता कि मेरी उम्र हुई है । अभी मेरें सारे प्रोग्राम नहीं करते । कभी भी गरम शब्द नहीं उनके लिखकर आए हैं । अब वहाँ जाने के बाद मुझे में, कभी भी गरमी से उस मनुष्य ने बात नहीं की । शटलकॉक गेंद की तरह वे इधर-उधर घुमाएंगे। अब अजातशत्र'। एक भी मनुष्य हमें क्या करना है ? मैंने किया वह बहुत कुछ है । नहीं होगा, अजातशत्रू| गरम शब्द कभी बोलते आज मेरा जन्म दिन है । लेकिन अब साठ साल के ही नहीं थे । कभी भी बहपपन नहीं दिखाते थे । बाद जो जन्म दिन ग्राता है वह (उतरत्या दशेला) अत्यन्त गूरगवान मतुष्य थे । कभी भी उन्होंने पेसों ढलने लग जाता है । ध्यान देना है कि ये समय की गडबड नहीं की । किसी चीज में कोई गलती आपातकाल का है। औ्र माँ को कुछ करके दिखाना नहीं। उनसे छोटी उम्र वाले लोग उन्हें जबाब देते है। अरब प्रधान साहब चल बसे तो मुझे लगा कितना थे। मझे बड़ा मेरा नूकसान हो गया। प्रधान कितने काम के थे । फिर मभझे भी रोना आता या । उनसे हा, आदमी थे। उन्होंने क्या मेहनत की उस उम्र तक ! इतना ही नहीं, सारे जजों को मेरे बारे में है। उन लोगों से कुछ कहेंगे तो उन्हें लगेगा बताया, सारे वकीलों को बताया। उन्हें ले प्राए मेरे पास । वह तो किया ही । मेरे अमेरिका जाने । सूुज्ञ व्यक्ति कभी ज्यादा बड़बड़ मुह 1 प्रधान जी का दु्ष्मन बताते थे । उनकी प्रांख में अंसू प्रा जाते प्रधान जी, सह लोजिए, क्या करें ? सहजयोगी ही श्री माताजी प्रापका पक्षपात करती हैं। हमने उनके लिए कुछ भी नहीं किया । कुछ करने लगते तो उनके वच्चे कहते कुछ कीजिए। पर अब उनकी तरह के लोग कहाँ से आएंगे ? पर मेरे लिए अपना खर्चा करके आते थे । एक बार मैं अपना खर्चा करके उन्हें ले गई थी। फिर वे हमेशा अपने पैसे ख्च करके मेरे पास गरते थे , हमारे पास पैसे हैं, आप मत उनका इतना प्यार था। कोई भी सरकारी काम हो, कानूनी काम हो, मुझे आकर बताते थे । देखिए, श्री माताजी, मैंने ये काम लिया है । य हां इसमें खोट सुची बनी रहेगी। कोई आया गया सबकी है। फिर मैं उन्हें कहती थी, इसे इस त रह से आप चिन्ता रखते थे । Airport (हवाई अ्रड्डा) आाते तो कीजिए तो वे हमेशा कहते थे, श्री माताजी, आप से बड़ा वकील मैंने नहीं देखा है । कोई भी उन्हें कहां बंठा, सब कुछ। और भी दिखावा नहीं, काम दो। लड़कियों की शादो करनी है, शये समाज मैं कर रहा है, मैं कुछ है । अब ऐसे परिपक्व लोग में जाकर पता निकालकर लाएंगे। हॉल बुक कर लिया । पत्नी का उन्हें कुछ सहाय्य था, पर बनोगे तो ये बीच का रिक्त स्थान करसे भरेगा ? वह जरा कमजोर औरत है। ज व वे चल बसे उससे पहले मैंने तीन बार यह्न किया मैं उनके यहां जाऊ, पर न जा सकी। तभी मैंने सोचा अरब यम की डांटा नहीं । कभी भी उन्होंने किसी के विरोध में कोई इच्छा नहीं है, मैं जाऊं । इसोलिए मेरा वहाँ मुझे नहीं कहा। केवल किसी ने यदि उनका अप - जाना नहीं हुमा । पर बह मनुष्य कि तने काम के थे बार-बार मुझे उनकी याद आती है। बीच किया है । आज बड़ा खुशी का दिन है मेरा जन्म - में ही कहती है, प्रधान से पूछ लीजिए सब ठीक है दिन है। पर आज मुझे उनकी बहुत याद प्रा रही है। कि नहीं। बिलकुल अपने पास का कुछ खो गया हमसे जो कुछ होगा वह हम उनके लिए करेंगे। कुछ भी काम हो, प्रधान को फोन करे, सबकी सबका ख्याल रखते कोन कोन अ्राया, कहाँ गया, कुछ करो, दुनिया से जाएंगे और ्ाप प्रगर वैसे परिपक्व नहीं अजातवात्र थे वे । कभी भी किसी को उन्होंने मान किया तो बताते थे, इसने मेरा बहुत अपमान निमंला योग ७ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt को देखिए । ऐसा कुछ नहीं। कभी पैसों का रोना- परन्तु प्राज आरप निश्चय करिए कि जिस तरह সरधानजी ने धरी माताजी की मदद की उस तरह हम घोना नहीं । अमेरिका आये] तो मैंने पूछा, प्रधानजी, भी करेंगे। कभी पत्नी का रोना नहीं, बेटे का नहीं, अआप को कुछ पैसा चाहिए ? नहीं, श्री माताजी, मेरे कभी भी नहीं। उनकी पत्नी ऐसी पकड़ (बाधा) पास बहुत है। मेरे बेटे कमाते हैं । जरा सा उनके वाली थी, परन्तु उन्हें कभी भी पकड़ नहीं लिए कुछ किया तो कितना उन्हें याद रहता था । आई, मुझे बड़ा आश्चर्य होता था। उनका कोई एक बार लंदन आये थे, तो मैं उन्हें पंरिस ले गई । सा भी चक्र कभी भी नहीं पकड़ता था। आपको वहाँ पर खचा मैने किया । तो सौ वार कहते थे, आवचर्य होगा, कभी माज्ञा भी उनका नहीं पत इता था । कोई भी चक्र नहीं पकड़ता था, श्चर्य की बात है। अपने यहां जिसकी पत्नो पकड़ वाली हो उसका पति उससे भी ज्यादा पकड़ा हुआ्रा रहता हो, "मेरे बैटे का ऐसा वरिए, बेटी का फलाना है। ऐसे लोग हुए हैं। परर लोगों ने प्रपमान किया. क तो भी उनका कभी भी मेरे साथ वाद-विवाद नहीं । उन्होंने मेरा अपमान किया, कभी नहीं। उलटे मेंरा अमान किया. जाने दो उतना हो। हमारे यहा बहुत से लोग सहजयोग में आते हैं। प्रोर क्षेम भी बहतो को मिला है । जिन्हें नौकरियों नहीं थी उन्हें अच्छी-ग्रच्छी नौकरियां मिल गई, पेसा बना, लिए हम तंयार हैं। अ्रब एक प्रधान जी चले गये तो किसी का व्यापार परच्छा हुआ बहुत कुछ बन माताजी, भापके कारण सब कूछ हुआरी। मैंने कहा, पेरिस ले गई तो ऐसा क्या हुआ ? अरब ऐसे सुज्ञ लोग कहां है ? हर समय मेरे सामने आते 1 करिए" । मूझे वोरियत हो गई है इन बातों से ! आपको पता नहीं कसे नहीं होती ? परन्तु सभी लोग इस तरह नहीं हैं। वहत से लोग अत्यग्त constuctive (गरस्छा का्य करने वाले) है। प्रर हर एक को ऐसा कहना चाहिये, मां हमें सहजयोग के लिए क्या करना है? इतना ही कहिए आ्ाप। जो कहिए वह करने के सौ आादमी उनकी जगह तैयार होने चाहिए । तो आप सहजयोगी हैं। एक रक्तबीज का एक सिपाही गया। परन्तु प्रधान जी का ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनके सारे वच्चों की अच्छी नौकरियाँ थी। और मरा, तो उसके खून की एक वू द से एक राक्षस, पैसों की उन्हें चिन्ता नहीं थी, उम्र के हिसाब से भी इस हिसाब से राक्षस बने । अब इन सहजयोगियों कहिए। लेकिन पहले से थोड़़ी अच्छी स्थिति थी । परन्तु वह कभी भूले नहीं । श्री माताजी वाहिए। और जो काम करते हैं वे गरम लोग हैं । कुछ चाहिए तो कहिये। कुछ कहना है तो कहिए । अगर मैंने कहा-प्रधान जी, पांच बजे प्राइए, तो कुछ कामचोर हैं । [अब बिलकुल ध्यान में तो में कहीं भी रहंगी तो भी वे वहा पहुँचते थे । रखना है कि हम श्री माताजी के हाथ के ऐसे कुछ इंतने वृद्ध, ग्रहस्थ, पर समय से पहुँचते थे । मेरी सांधन बनेंगे ऐसे सूत्र बनेगे कि माताजी को लड़की का मकान इतनी दूर था । वहां भी बिलकुल समय से पहुँचते थे । कहीं भी बुलाओ, एकदम समय से ! कभी भी उन्होंने मोटर की मांग नहीं की, गाड़ी की मांग नहीं की मेरे घर खाना खाने गये थे, वहां से घर्मशाला । कुछ भी नहीं पढ़े आइए, ये भी आग्रह नहीं किया । केवल एक दो बार हुए, एकदम अनपढ़ लोग, गांव के लोग उन्हें कहा कहा होगा, तो मैने कहा, प्रधान जी वेसा कुछ मत कहिए, तो कहते, अ्रच्छा धो माताजी, नहीं कहू गा गये, "हम तो देवी जागरण के लिए आएंगे" ढाई मेरे लड़के को देखिए, बह को देखिए, उसके समूर का क्या होने वाला है ? सौ आदमी खड़े होने गरम नहीं तो अखडू लोग हैं । अखडू नहीं, लगेगा कि हम ये सारा विश्व जीत लंगे । आपको आश्चर्य होगा, अभी हम पठातकोट गया, देवो आने वाली है। मेरा चेहरा देखा, पहुचान हजार नोग प्रोगाम में पराए और तुरन्त पार हो निमला योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt गये। कितनी उन्हें देवी को श्रद्धा ! सारी शक्तियां उनमें बहने लगों ! हमें तो देवी जागरर करना ! ओर क्या सब लगने लगी। इतनी जोरों से चंतन्य को लहरे आ रहो थीं। पीछे एक पहाड़ जंसा था । उससे टकरा- कर प्रा रहो थी। सबको ठण्ड लगने लगी यूप था। क्या उनके वे तेजस्वी चेहरे ! देखने लायक था । मूझे लगा अव में श्रपते बठे थे, तब भे ठ्ड लग रही थी। एक पत्ता भी कुछ, घर में आा गई है। बिलकुल नन्दन वन देवी का नहीं हिल रहा था। लग रहा था हैम 'आदिशक्ति वणन ! वह स्वतः मरणीपुर (चक्र) रहती हैं। ऐसे हैं। यहां पर मुझे शक हो जाता है कि है या नहीं? लगा हम अपने घर आये हैं । सब लोग नये -नये कपड़े वहाँ सचमुच लगा कि हम आदिशक्ति हैं | पहनकर आये थे। यहां तो पूजा में फटे कपड़े पहन- कर आते हैं। कहीं बैठकर साड़ी गरन्दी हो गई तो ! श्राज मेरी भी साड़ी फटी है।) जैसे अनिच्छा से वहां भयंकर बारिश हो रही थी। तीन दिन से सतत बारिश हो रही थी बाहर निकलने की ( सब कुछ करते हों । उन लोगों का वरगंन नहीं कर कल थी। विजली कड़क रही थो। ऐसे में बहा सकते, इतना उनमें उल्लास था। इतना सब वाता- वरण आह्लाददायी था, मैं आपसे कह नहीं सकती मुझे लगा यहां से कहीं जाएं ही नहीं। वे कहते थे जीय, बहुत जनता आएगी ।" मैंने कहा, हां वह शेरावालो', 'पहाड़ों वाली' ! मुझे लगता ही नहीं था कि मेरी उम्र हो गई है। मैं वहां ऊपर चढ़ती उसे दिन, बिलकुल निरभ्र (साफ सूथरा।) । उस दिन थी, कहीं से भी उतरती थी, कुछ नहीं लगता था । क्या वे का सारा ह गया। यहा तो पूजा के बाद मुझे इतती परेशानी वातावरण !मेरे दिमाग में वुम रहा है कि उन्हें ही अपने साथ में लेना चाहिए ! यहां पर महाराष्ट्र वरगरा में ताला लगा दें भरर वहीं चले बाद हैी सारा सफर किया। कुछ नहीं हुआ| ्रोर जाय, वही अच्छा होगा। और फिर उन्हें यहां पर यहा पूजा के बाद मोटर तक जाने की हिम्मत नहीं लाना चाहिए । आप] लोग नौकरियां संभालते रहिए। इतने सीधे-सरल, पहुँचे हुए वे लोग हैं । सारा आनन्द ही आतन्द, बहुत मजा आपा, उत्त लोगों को भी और हमें भी। उन्हें कुछ बताना भी हम संसार में दे सकते हैं, उसकी कल्पना आपको नहीं पड़ा । बीस-बीस मोलों से लोग पेदल आये थे यहां हम नही आ सके माताजी क्योंकि, हमें टेक्सी बहाव केसे होता है ? एक तरफ से ही दरवाजा नहीं मिलो। Air-conditioned (वातानुक्कूलित) गाडी चाहिए तब हम आएग । नही ता कसे अए ? लिए एक नाला रख दिया और उसी में घूमते रहे बीस-बीस मीलों से लोग छोटे-छोटे बच्चे लेकर के तो उसकी गन्दगो फिर में री तरफ आती है। परन्तु प्राए थे। सवेरे से निकले होंगे प्रोग्राम दस बजे देने के मन से आप बंठेंगे तो आज से निश्चय था। बस देखने लायक था ! स्वग जमीन पर उतरा करिए, जो कुछ हमें माताजी ने दिया है वह सब था। वहां पर कोई इतनी अच्छी व्यवस्था नहीं थी के एक व्यक्ति ने मुझे कहा, "मां, ऐसी कृपा करें जो बादल फ़ट जाय प्रौर सारा वातावरण शुद्ध तो । हो सब में कर दूँगी। फिर एकदम निरध्र काश था वहां मेरी पूजा हुई औोर मुझे कुछ नहींहुआरा। ये सब लोग ! और क्या वहाँ की सारा होती है । पूजा के बाद लगता है प्रब क्या करू । ं लेकिन बहां कुछ नहीं, सब साफ हो गया उसके ऐसी हालत होती है। उसका कारण है कि आप भी हो गये है तब भी उस शुद्धता का कधा अ्रथ शुदध हैं, उसका क्या महात्म्य है, उसकी कितना प्रकाश । नहीं है । दिये ब्गर आपमें बहेगा कंसे ? हृवा का खोला तो दूस री तरफ से कैसे आएगा? केवल प्पने कुछ हम बांट देंगे त तकलीफ नहीं होगी पहले ही आपके प्याले में गन्दगी होगी तो मैं उसमें क्या भरू? यहां से भरने तब भापके पास आएगा और मुझे । उसके पीछे एक बड़ा पहाड़ था। इतने खुला vibrations (चतन्य लहरियाँ) थे कि मुझ्के ठण्ड निर्मला योग ८ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt बैठी थो, वह तो उसमें जाता नहीं और मेरी ही उपकार हैं पाप पर, बड़े-बड़े सन्त-साधुशओं के, माने तरफ फिर से आ जाता है। अब कहना है कि सिवखों के दसवें गुरू वे भी यहां नांदेड में अब प्पना प्याला वाली कर दोजिए श्रर उस रखाली प्याली में ग्रमृत भर लोजिए। अमृत भर-भर महाराज जसा राजा हमारे यहां हो गया। पूरी के देना पड़ता है। इतना जमकर सब बैठा है, वह दुतियाँ में ऐसा राजा नहीं मिलेगा। ऐसे हमारे सब निकाल दोजिए । आकर शिवाजी महाराज से मिले थे । शिवाजी शिवाजी, दूसरा नहीं मिलेगा ऐसा। इसका दुःख हैम धर्मशाला गये थे । उसका नाम है होता है। तो एक नाले में दो कमल उग आये मौर वे कहने लगे हम कमल हैं, हम कमल हैं । उससे कुछ धर्मशिला-धर्म की शिला। ऋर हिमालय के परों तले । प्रापको पता है, वे देवी के पिता नहीं बनने वाला। हम कमल हो सकते हैं, यह ध्यान है। अब वहां होकर आने के बाद लगता है में रखकर कमल बनकर दिखाना है। मैं फिर से न जाएं दिल्ली अ्र न जाएं मम्बई । श्रर लन्दन तो उनसे भी गया वीता है। है। अब तक जो कुछ हुआ्रा वह बहुत हुआ्र| अब घरमात्मा ने बनाया है पता नहीं। परन्तु फिर से आप लोगों को देखने के बाद, मांँ का हृदय ! केसे जाना है । इसके प्रागे युद्ध है । बहुत बड़ा यूद्ध है । भी हो, तो क्या ? अपने ही तो हैं। मे रे ही हैं सब । माँ को क्या ? केसे भी हो, खून भी बेटे ने किया तो कहेंगी, तू प्रब मेरा भी एक खूत कर दे । वेसे हो हैं सब । अब प्रापको इतना बड़ा किया, इतने पद पर पकड़ेंगा ? बन्धन कोहे की डाल रहे हो ? जहाँ आरप विठाया । अब मेरी भी उम्र हो गई है। तब इस उम्र के हिसाब से अ्रापको भी समझ लेना चाहिए और कार्यान्वित होना चाहिए । कार्य करना किसलिए अपने आपको बन्धन दिये जा रहे हो ? चाहिए । चार लोग काम कर रहे हैं, दो इधर जा डरे-डरे से क्यों हैं ? तलवार नहीं है ऐसी बात नहीं रहे हैं, दो उधर देख रहे हैं। पूरी तरह जुट जाना है सब कुछ है। आपके पास केवल इच्छा चाहिए । है । ये हम माँ को करके दिखाएंगे। प्रब मराठी में ही कहती है। मराठी भाषा प्रत्थन्त प्रेम की, औरतें। ओर पुरुषों की जो ज्यादती है वह खत्म होनी सौष्ठवपूर्ण व सुन्दर भाषा है । परन्तु उसमें की चाहिए । सहजयोग का एक प्रतिष्ठावान व्यक्ति जितनी कठोरता है वही हम सीखे हैं। [अत्यन्त विनती करती है क्योंकि अव मैं कल जा रही किसलिए इसके आगे हर-एक को कमर कुसकर तेयारी में जुट उसे लड़ना है। सारा समय खुद की सफाई में मत लगाओ। मैं अब यहां बात कर रही हैं, तब भी लोग यही पर बन्धन दे रहे हैं। आपको कौन बेठोगे वहां बन्धन पड़ेंगे, इतनी अ्रप में शक्ति है, जानते हैं ? जहां नजर जाएगी वहां बन्धन पड़ेंगे । अब डरपोक स्वभाव नहीं रहना चाहिए, विशेषतः बनकर मैं आचरण करू गा, ऐसा एक निश्चय मन सुन्दर भाषा है। परमात्मा कী भाषा है कहना में रकर अ्ब चलना है अगली बार जब मैं चाहिए। संस्कृत के इतनी निकटतम, इतनी अ्रच्छी, निव्ज ! इस में (मराठी में) आपको कुछ कहना मनुष्य ने हजार हजार लोग ख ड़े किए हैं । आपको है । हमें तो उससे आपसे हमें कुछ भी लेना ही नहीं मैं विश्वास दिलाती हैं, अराप भाषण दे सकते हैं । है । बस बह रही है। पस्खलित, इतनी सुन्दर है । सहजयोग सासा आप सीखे हैं । आपको सब कुछ और उस भाषा में रहकर भी आापको [अभी प्यार मालूम है । ये सारा केवल दिमाग में रखकर शम- से बोलना नहीं प्राता । उस मराठी भापा का दूसरा उपकार ये है कि पूरी कुण्डलिनी उस मराठी भाषा में लिखी है। नाथपंथ (मराठी ग्रन्थ) के इतने मस्तिष्क में हमने प्रकाश डाला है । कल जैसे सब के आऊँगी तब मुझे दोखना चाहिए कि एक-एक ह दान में भस्म होने के लिये नहीं है। उसका प्रकाश सब तरफ जाना चाहिए उसके लिए ही आपके निमला योग १० 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt सर शमशान में फूकते हैं वसे आपके नहीं हैं। उसका तो आज मेरा जन्म दिन मना रहे हैं । आज मेरा प्रकाश जब सारो दुनियां में फेलेगा तब आपको पूजन है । तो आज मेरा पूजन कृपया हृदय से मालूम होगा। सहजयोग के योगी को कभी भो जलाते कीजिए । यह मैं इस उम्र में मांग रही हैं। इतना नहीं हैं। प्रधान जो को आपने जला दिया, ये मुझे मुझे दोजिए । हृदय में एक ही बात कहना है अच्छा नहीं लगा । परन्तु में कुछ नहीो बोली । उनकी श्री माताजी हम बीरों की माता हैं, भगेड ओं की हमको समाधी बनवानी चाहिए थो। अभी तक नहीं। गांधीजी ने केवल स्वतन्त्रता की लड़ाई उसकी कुछ व्यवस्था नहीं हुई है वह व्यवस्था लड़ी तो हमारे पिता जी जैसे लोग सारा घर- करनी चाहिए। परन्तु सहजयोगी उस प्रकार द्वार छोड़कर जंगल-जंगल घूमे । हम राजमहलों में का होना चाहिए। उसकी समाधि से चैतन्य पले लोग ! कितना सहन किया ! आपको तो लहरियां आ्राएंगी। उस पर कितती भी हरे आश्चर्य होगा। हमारे पढ़ाई के लिए पंसे नहीं चढ़ाने के बाद भी की । घर के जेवरात वचकर आएगी इस तरह आपकी स्थिति है । केसे कहा जाय ? होरे को कहना, तु हीरा और ये सहजयोग उससे कितना बड़ा है। सारे विश्व है. गन्दगी में मत लेटो । औरी माताजी महान हैं, पर की स्वतन्रता की ये बात है और उस हिंसाब से आप भी कुछ कम नहीं। ये याद रखना है। हम कर क्या रहै है ? राजकारण अभी तक मैंने परन्तु उसकी केवल अहंकारी वृत्ति रखने से कोई अर्थ नहीं शक्ति है, तो हममें भी है । सब कूछ शक्तिया पापके पास हैं उस छोटे से अंडे में आप हुए करके दिखाना है। बाद में किया तो नहीं छिपे हो, निकलो बाहर । तो उस से बाहर होने वाला । टूसरा ये है कि इस साल 'क्रोधन निकल कर आकाश की तरफ आपको समष्टि नाम का सबवस्सर है । इसलिए थोड़े से क्रोध को (collectivity) डालनी है तब ही कुछ होगा । अब कल में जा रही है। परन्तु मेरा ध्यान इधर रहता है मुबई वालों पर सबसे ज्यादा कहने का तात्पय है कि प्राज मेंने लम्बा-चौड़ा जिम्मेदारो है क्योंकि मैंने मू बई में सबसे ज्यादा काम किया है और मेहनत की है । और इसी मुबई में महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का उद्भव क्या करना है, ये भी देखिए । हम ग्रपने गाँव गये थे, हआ है । तो आपको ये दिखाना है, आाराम वहां क्या किया ? बठे थे क्या आप ? नहीं । छोड़कर अओर राजकारण छोड़क र सुज्ञ बनकर मन्दिर में गये, ख रीदारी की, सबसे गाढ़ भट की, हम सहजयोग में क्या कर सकते हैं। ये सभी को दिखाना है। और मुझे आशा है ये सब आप गुलामी छोड़ दोजिए । सुगन्ध थे, कुछ भी नहीं परन्तु हमारी मांने हमें पढ़ाया । ऐसी स्थिति में हम रहे । उन फुलों इतना कुछ नहीं कहा था, परन्तु प्राज कह रही है । क्योंकि अब उम्र होने लगी है। तो दिमाग में रविए, हमें कुछ करके दिखाना है, हमारे होते है। सचमुच अगर माताजी में इतनी काम में लाना पड़ रहा है। शालीवाहन ने ही लिखा है कि इस समय जो साल है बह क्रोध में जाएगा। भाषण किया, सहजयोगियों को समझाने के लिए । आप क्या हो, ये जान लीजिए। वह जानकर हमने प्रच्छा, अरप कोन हो ? प्राप क्या बंलगाड़ी हैं, किसी भी गोंव में जाकर वहाँ से खरोदारी करके चोज लाने के लिए ? जाकर बोझा भर कर लाते हैं ! आप साधु-सन्त है। अपने देश में ऐसे सन्त ओर सम्तरी हो गए नामदेव की बात लीजिए, एक दर्जी थे । कितना बड़ा काम किया उन्होंने । तुकाराम क्या फिर प्रा गए वापस । इस बार मुझे एक अनुभव आया। उससे मुझे आइचर्य हुआा। जिन लोगों पर मैंने इतनी मेहनत की है वे लोग एकदम बेकार के निकले । मेहनत करें ऐसे लोगों पर ? बेकार लोग हैं एकदम ! क्यों इतनी निर्मला योग ११ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt थे ? चोखा मेना कौन थे ? सजन कसाई कोन कहा भी व्रत नहीं रखना है, तव भी रखते हैं। पता थे ? कितना काम किया उन्होंने ? उनका कोई भी नहीं क्यों रखते हैं । जो मर्यादाएं हमने बनाई हैं साथ देने वाला नहीं था। जना वाई कोन थी ? और जो विश्वघर्म की मर्यादाएं हैं उसमें रहना ही मैंना बाई कौन थी ? कितना काम किया उन्होंने पड़ेगा । और उन मर्यादाओं में प्राप नहीं रहे और परमात्मा का ? ज्ञानेश्वर इतनी छोटी उम्र में उनसे बाहर गए तो आप पर आपत्ति य्राएगो । कितना काम कर गए ? आपने क्या काम किया ? अ्रपके साथ कुछ तो गुजरेगी कल हो एक सज्जन उनको कण्डलिनी जागृति तो नहीं आती थी नहीं मिले थे । कह रहे थे मैं बिलकुल ठीक हो गया था, तो वह भी उन्होंने किया होता। वह भी आपको पर फिर से तकलीफ शृ रू हो गई है। क्या किया हमने दिया है। गणपति के स्थान पर आपको आपने ? फिर से उसी मार्ग पर गए थे क्या ? हा, थोड़े से, ज्यादा नहीं। अच्छा ! तो बहाँ भूत बगल दिखाना ही है। अगली बार मैं आकर देखगी में ही बठे हैं, प्रापको पकड़ कर खाने के लिए | तो किसने क्या किया है ? ओरतों ने हल्दी-क क म विश्वघर्म की मर्यादाओं में रहना पड़ेगा शादी (हदी-का कम महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण ग््ोरतों में दहेज लिया तो, ज्यादा नहीं थोड़ा सा, वस हो गया। उस मर्यादा में ही रहना है बिश्वधर्म की अने घर बुलाना । सबको ठीक से, तौर तरीके से मर्यादा परमात्मा की मर्यादा है। उसे नहीं लाँघना है । अब प्राप मराठी, गुजराती कुछ नहीं रहे, आप हिन्दू, अंग्रेज कुछ नहीं हैं प्राप विद्वव्पापी निर्मला मू विठाया है। अब कुछ करके दिखाइए । आपको का धार्मिक समारोह) करना और औरतों को रहना है। अब भी ऐसे सहजयोगी हैं जो ब्रत रखते हैं । धर्म के प्नुयायी बहुत बड़े हो गए हैं । आ्राज ही प्रतिज्ञा कीजिए अपने स्वयं के दोष व गलतियां देखेंगे । अपने हृदय से सब कुछ अर्पण करेंगे । सबसे प्रेम करेंगे जो मन दूसरों के दोष दिखा रहा है वह घोड़ा उल्टे रास्ते जा रहा है, उसे सीधे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना होगा। -श्री माताजी अपना चित्त इधर-उधर गिरना विखरना नहीं चाहिए। यानी स्थिर होना चाहिए। कहीं छिटक नहीं जाना चाहिए । चित्त को पकड़े रहना चाहिए। चित्त पर नियन्त्रण होना चाहिए। चित्त से ही प्रगति होतो है । -श्री माताजी मैं आप पर कोई बन्घन नहीं डालती। [आपको खुद बढ़ना है । जो खुद ही इसमें बढ़कर के ऊंचा उठेगा, बो स्वयं को अनायास ही संवार लेगा। उसको कहने की जरूरत नहीं। जो काम कहने से हुप्रा वो फिर क्या सहज हुआ ? श्री माताजी निमला योग १२ nce 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt परमपूज्य श्री माताजी का प्रवचन संक्रान्ति पूजा मुम्बई १४ जनवरी, १६८५ प्रब श्रापको कहना है कि इतने लोग हमारे कि श्री माताजी आई हैं। उन्होंने हमें कितना भी यहाँ महमान आए हैं प्रौर आप सबने उन्हें इतने कहा तो भी हमारे दिमाग में बह नहीं आएगा। भी अगर हमारे दिमाग में गरमो होगी तो प्यार से बुलाया, उनकी प्रच्छी व्यवस्था की, उसके कुछ लिए किसी ने भी मुझे कुछ दिखाया नहीं कि नहीं आएगा । ये गरमी निकलनी चाहिए । और ये हमें बहुत परिश्रम करना पड़ा, हमें कण्ट हुए और गरमी हम में कहाँ से आती है ? अहंकार के कारण। वहूत पहले जब मैंने सहजयोग शुरू किया उसके लिए आप सबकी तरफ से व इन सबकी तब सबका लड़ाई-झगड़ा । यहां तक कि एक दूसरे तरफ से मुझे कहना होगा कि मुबईवालों ने के सर नहीं फुटे, यही गर्ी मत है । बाकी सभी के सर ठीक ठाक हैं। परन्तु किसी का किस बात पर, किसी का किस बात पर । देखा आधे अरब जो इनसे (विदेशियों से) अग्रेजी में कहा भाग गए, कुछ बच गए । मैंने सोचा अव सहज- वही आपको कहती हैं। आज के दिन हम लोग योग कुछ नहीं होने वाला । क्योंकि एक आया तिल गुड देते हैं क्योकि सूर्य से जो कष्ट होते काम करने, दो दिन बाद भाग गया, दुसरा माया, हैं वे हमें न हों । सबसे पहला कष्ट यह है कि तोन दिन बाद भाग गया, यै स्थिति थी । उस अया, सूर्य आने पर मनुष्य चिड़चिड़ा होता है एक-दूसरे भागा में प्रव हमने सहजयोग जमाया है। पर को उलटा-सीधा बोलता है उसमें अ्रहंकार बढ़ता उसके लिए आपकी इच्छा चाहिए कि कुछ भी हो है। सूर्य के निकट सम्पर्क में रहने वाले लोगों में हम परमात्मा को पाने आए हैं। हमें परमात्मा का बहुत अहंकार होता है इसलिए ऐसे लोगों को आशीर्वाद चाहिए । हमें परमात्मा का तत्व जानना एक बात याद रखनी चाहिए, उनके लिए ये मन्त्र है। हमें दृुनिया की सारी गलत बातें जिनसे कि है कि गुड़ जैसा बोले (मीठा-मोठा बोलो) । तिल कष्ट और परेशानियाँ हो रही हैं, नष्ट करनी हैं। ख ने से अन्दर गरमी आती है, और तुरन्त तो यहाँ झगड़ नहीं करने हैं। इस अ्रहकार से सारी लगते हैं चिल्लाने । अरे, प्रभी तो तिल-गुड़ खाया, दुनियाँ में इतनी परेशानियाँ हुई हैं। अब सहजयोग तो अ्भी तो कम से कम मीठा बोलो। ये भी नहीं में इसे पूर्णातया तिलाजली देनी पडेगी । तिलांजली होता। तिल-गुढ़ दिया और लगे चिल्लाने । काहे का माने तिल की अंजली। मतलब अब तिल-गुड़ खाकर ! तो [ज के दिन इसकी ( अ्रहुंकार की) अंजली आप दीजिए। मतलब आप तय कर लीजिए। ये बहुत बड़ा सुसंयोग है इसके बाद हम कोई क्रोध नही करेंगे, गुस्सा नहीं मु बई वालों ने विशेषतया बहुत ही मेहनत की है । प्रशंसनीय कार्य किया है । झगड़े बहुत, । गुड़ ये तिल गुड़? फेको, इसे उधर मूल मराठी भाषण से अनुवादित । निमला योग १३ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt करेंगे। एक वार करके देखिए। देखना चाहिए । गुस्सा न करके कितनी बातों को मनुष्य समेट मिठास से रहना चाहिए, क्योंकि मीठा बोलना ये सकता है। कितनी बातों का सामना कर सकता सबसे आसान है । गुस्सा करना बड़ा कठिन काम है यहुत सी बातें ऐसी हैं जिनमें ज्यादा चित्त नं है, और मारना तो श्राता ही नहीं है । तो इतने रखने से उनके हल मिले हैं । और जो कुछ कठिन काम किसलिए करते हैं ? तो सीधी-सीधी समस्याएं हैं वह पूरी तरह से हल हुई हैं । तो किसी बात मीठा बोलो, वस । बात में आपने बहुत ज्यादा चित्त रखा तो आाप तामसिक स्वभाव के बन गए, ऐसा कहते हैं। तामसिक माने क्या ? तो कोई औरत है। प्रत्र उसका name) "गोडबोले होता है। तो मैंने सोचा पति बीमार है, "मे रा पति बीमार है. में रा परति इनके परिवार में लोग मीठी बोलते होंगे । तो बीमार है।" वाबा, है, मान लिया ! परन्तु तुम तो ठीक हो न ? तुम्हारी तवियत तो अच्छी है। मोठी बात करके लोगों के गले काटते थे । मैंने उसका कुछ नहीं। पति है ये भी तो बड़ी बात है। कहा ये कहीं का मीठी बात करने का तरीका ? तो परन्तु नहीं, एक छोटी सी बात को लेकर के हल्ला मचाना, दूसरों को हैरान करना । ये जो हमारे थ । उनके मीठा बीलने का लोगों ने बहुत फायदा यहां बात है, उसका कारण है हमारे यहां छोटी उठाया । इसलिए अब हम मीठा बोलते हैं प्रौर सी बात को ज्यादा महत्व देना पऔर वडी-बडी लोगों के गले काटे हैं। मैंने कहा, ऐसा क्यों वातों की तरफ घ्यान नहीं देना। इन लोगों (विदेशियों) के लिए बड़ा क्या, छोटा क्या. सब लोग प्रच्छे थे जो मीठा बोलते थे और आराम से बराबर है । कुछ नहीं मालूम। पर आप लोगों को रहते थे । वे सन्तोष में रहते थे । किसी व्यक्ति के समझना चाहिए। क्योंकि हमारा जो बारसा है वह इतना महान है हम इस योगभूमि भारत में काट तो (गले कोटना माने 'बगल में छुरी, मूहै जन्मे हैं। इस योगभूमि में जन्म लेकर हमने क्या प्राप्त किया है ? हजारों वर्षों की तपस्था के फल- स्वरूप इस भारत में जन्म होता है। शऔर उसमें भी हजारों वर्षों से महाराष्ट्र में होता है । लेकिन रास्ते पर पी कर पड़े हुए लोगों को देखकर मेरी समझ में नहीं पाता ये महाराष्ट्र के हैं या और कहीं के ? ये कीड़े यहां कहां से जन्मे है ? यहा नहीं मझे भट से हाथ लगाते हैं उससे मुझे बढ़ी तकलीफ समझ में अता ? प्रब आप सहजयोगी हैं और पकी पूर्व जन्मों की तपस्या अब फोलत हुई है ।से बताएं? इसलिए सहती रहती हूै । जाने दो, प्राप सब को मीठे वोल बोलने चाहिए। ्रौर अब हमारे यहां बहुत से लोगों का नाम (sur- मचमुच वेलोग वहुत मीठा बोलते थे । पर वे बोले, हां, हमारे यहाँ पहले लोग बड़ा मीठा बोलते करते हैं ? इससे अरपको क्या लाभ हुआ है? वही साथ आपकी लड़ाई हो गई, और उस के अरापने गले में राम राम) तो आपने क्या पाया ? हमने क्या प्राप्त किया ? यह देखता है । तो आज का दिन विशेष त्योहार का सभी को अरत्यन्त सुशोभित करने वाला है। इस समय मुझे तो तनिक भी है। बड़े संभालकर मैं बात करती हैं। मैं इतना कटु नहीं बोलना समझकर व्यवहार करती है कि किसी को किसी बात से दुःख न पहुँचे । अब कुछ लोग प्राते हैं, वे होती है । वैसा नहीं करना चाहिए। परन्तु यह इसका मतलब ये नहीं कि बाकी की, इस परन्तु क्या करें ? अब कैसे बताऊँ ? उनको दुःख होगा। ऐसी बहुत सी बातें मैं सहती है। मेरी कोई बात नहीं, मैं सह सकती हैं । जो सहन शक्ति मुझमें है, वह दूसरों में नहीं है । दूसरों को दुःखाने से अच्छा वही दुःख मैं सह लूं । यह वात जानने से उसका जन्म की, तपस्या माताजी ने करनी है. इस जन्म की पहलो तपस्या है पापस में मौठा बोलना, प्यार से रहना। ये पहली बात। इसोलिए पहला दिन हमने पू ना का शुरू किया है । उस दिन निर्मला योग १४ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt होता। प्रेम के बारे में यही बात सूख बांटने की इच्छा ? इनके लिए व्या क रू दुःख नहीं महसूस है । अपने प्रेम की शक्ति ज्यादा है प्रर दूसरों में इन्हें क्या प्रच्छा लगता है ? दिवाली के समय हम कम है । तो हम बड़े कि वे बड़े ? इस तरह का एक कुछ उपहार देते हैं या संकरान्ति के समय क्या 'वाण विचार ले लिया तो प्राप सहजयोग अच्छी तरह (उपहारस्वरूप वितरण को जाने वाली वस्तु) पा सकते हैं । हमें माँ ने प्रेम की शक्ति ज्यादा दी है, दें उन्हें ? तो जो स्ते से सस्ता होगा ऐसा कुछ तो वे कूछ भी बोले उससे हमारा क्या बिगडता गन्दा सा बाजार से लाकर दे देना इसमें हम है? क्या जरूरत है उनसे लड़ाई-झगड़े करने माहिर है! जो सबसे सस्ती कोई चीज है बह लाकर की ? देते हैं। और ये लीजिए 'वाण ! बहुत अच्छे ! फिर चाहे वह (जिसे दिया) उसको उठाकर फेंक दे । तो हृदय का बड़प्पन हुए बर्गर ये बात नहीं होने धोरे-धीरे आपका स्वभाव शान्ति हो जाएगा। तब आपका चेहरा तेजस्वी दिखाई देगा। जब लोग वाली । अऔर उस हदय के बड़प्पन की आपके लिए आपके निकट आएंगे तो कहेंगे, अरे ये कौन है ? परन्तु शान्त स्वभाव का ये मतलब नही कि, कोई उममें परात्मा का दीप जला है। उसने आपको आपको जूते मारे तो भी आप चुप रहे, ऐसा प्रकाश दिया है। ऐसा स्वच्छ सुन्दर हृदय, उसमें बिलकुल नहीं। केवल सहजयोगियों के लिए ख्रिस्त जो कछ बह रहा है, उसी की तरफ देखते रहना। ने कोई कमी नहीं है। वह हृदय आराप में है ही क्योंकि कहा है। किसी ने आपको एक गाल पे मारा तो मुझे यहां पर प्राप सबको देखकर लगा, अरे इस आप दूसरा गाल आगे करिए, केवल सहजयोगियों के लिए, रिब्रस्त ने कहा है। औरों ने अगर एक मारा तो आप उसे चार मारिए, ये मैं कहूँगी। कि हम सब माताजी के शरीर के अगप्रत्यंग है, क्योंकि उनके जो भुत होंगे वे निकल जाएगे परम्तु सहजयोगियों का आपस में बातचीत करना होगी। उन्हें तकलीफ हो इस तरह का हमें व्यवहार शुद्ध हो । प्यार से आपस में बातें करनी है ये नहीं करना चाहिये। हममें एक तरह की सुजता बडी आवश्यक बात है। ओ्रों के साथ आप कसे होनी चाहिए, एक त रह की पहंचान होनी चाहिए। भी रहें, कोई हज नहीं है । परन्तु जो अपने हैं, ये रोजमर्रा के व्यवहार में शालीनता होनी चाहिए । सहजयोगी सारे मेरे श मेरे शरीर के अन्दर है । अ्रपने अगर एक-दूसरे कभी कुछ बहककर बड़बड़ाते रहना । बहुतो को को लाते मारी, गालियाँ दीं तो मुझ ही गालो दो, गाना गाने की ही आदत होती है। किसी को ऐसा समझना चाहिए । क्योंकि अव देखिए किसी कविता ही पढ़ते रहने की आदत होती है । वे पेड़ की डालियां अरपस में लड़ने लगेगी तो उस पेड़ का कया होगा ? ओर उन पतत्तों का भी क्या हते हैं। ऐसा नहीं । जो ठोक है, व्यवहारी है, होगा ? अब ये लगे, तो क्या होगा ? अगर ये चीज समझ में आर में भी सून्दरता होनी चाहिए। प्रब आप माँ के गई कि हम सब एक हैं, समग्र हैं, हमारे में इतनी लिए सब जेवर बनाते हो (इस दिन तिल के दानों एकता है कि हम सब एक शरीर के अंग-प्रत्यग के जेवर बनाने का रिवाज है । ) कितने हैं। तब आपने किस तरह का व्य वहार करना है वे ! परन्तु आप ही मेरे जेवर हो, आप ही से चाहिए ? आपमें कितनी समझदारी होनी चाहिए ? मैंने प्रपने आपको सजाया है उन जेवरों में प्रगर कितना प्यार होना चाहिए? आपस में कितना स्वच्छता न हो या वे अशुद्ध हों, माने उनका जो हृदय प्रकाश में क्या-क्या देख रही है? कितना मजा या रहा है ? ऐसा ही आपको होना चाहिए, के । हमने कोई गलती की तो माताजी को तकलीफ रोर में हैं । एक-एक मनुष्य कहीं किसी व्यक्ति के पीछे पड़ना (तंग करना), के विता ही बोलते रहते हैं, तो कोई गाने ही गाते एक हाथ अगर दूसरे हाथ से लड़ने सोन्दर्यमय है, वही करना चाहिए । रोज के व्यवहार सुन्दर होते निर्मला योग १५ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt मुख्य गुरण है, वही अगर उनमें नहीं हो। मान चाहिए । किसी से भी जबदस्ती, जुल्म या जल्द- लीजिए सोते की जगह सोना न होकर पीतल है वाजी करने की जरूरत नहीं है । तो उसका क्या अर्थ है ? वं से ही आपको है । आपमें की जो महत्वपूरणं धातु है वही झुठी होगी तो उसे सजाकर मैं कहा जाऊंगी ? तो आप ही मेरे जेवर दुनियाँ श्रापकी तरफ श्चर्य से देखेगी, 'अरे ये कहाँ हैं, आरप हो मेरे भूषण हैं । मुझे आप ही ने के लोग हैं ? ये कोन पअरए ?' तब मालूम होगा कि विभूषित किया है । मुझ किसी दूसरे आभूषण की ये स्वर्गलोक के दूत हैं, सारी दुनियाँ को संभालने आवश्यकता नहीं है । यही मैं अब रापसे वितती के लिए, सारी दुनियां को यशस्वी बनाने के लिए, करती हैं कि बात करते समय, बच्चों से हो या ओर सबको परमात्मा के साम्राज्य के दरवाजे तक प्रर किसी के साथ हो, अत्यन्त समझदारी से, ले जाने के लिए, ये परमात्मा के भेजे हुए दूत है। अत्पन्त नता से और ्राम से सब कार्य होना ऐसे सभी दूतों को मेरा नमस्कार ! इसी तरह एक दिन ऐसा आएगा जब सारी पूजा में आप मन्त्र बोल रहे हो और देवता जागृत हो रहे हैं प्रौर अरप अपने हृदय में इसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं इसलिए मझे प्रकेली को पतिरिक्त ऊर्जा एकत्रित करनी पड़ती है । इसलिए यह अ्च्छा हैं कि, "आप अपने हृदय को खोलिए ओर पूजा के बारे में न सो चकर साक्षी रहकर उसे के वल देखते रहिए । -श्री माताजी जो प्रधान चीज है वह है ध्यान करना। जो बड़ा लक्ष्य है उसे देखना चाहिए। वो चोज है ध्यान करना। -श्री माताजी सब लोग यह याद रखिए कि मैं अरव आपकी बारी में मधुरता पाऊ । आपकी बातचीत में मिठास पाऊ, आपके ठ्यवहार में सूरुचि पाऊँ । मैं इस चीज को अब माफ नहीं करू गी, इसको आप जान लोजिए । किसी को भी किसी चीज के लिए दु.ख देना बुरी वात है । कृपया एक- दूसरे का आदर कीजिए। आप सहजयोगों हैं दूस रे भी सहजयोगी आपने पाया हुआ नहीं, हमने दिया हुआ है। ओर जब चाहे इस पद से हम औपको हटा सकते हैं । इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य बने । नम्रतापूर्वक इसे करें । हैं । आज श्रप किसी पद पर हैं दूसरा नहीं, ये पद -श्री माताजी आपके जीवन का लक्ष्य आत्मा को पाना है आत्मा को पाते हो बाकी सब चीजें खत्म हो जाती हैं। श्रपने- प्राप बाकी सब चीजें घ टित हो जाती हैं। इसलिए पहले ये सोचना चाहिए कि अपना चित्त आत्मा में रहे । श्री माताजी निर्मला योग १६ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt ॥ श्री निर्मला देव्ये नमो नमः ।। श्री कृण्ड लिनी शक्ति व श्री येशु स्रिस्त हिन्दूजा ऑडीटोरियम मुम्बई २७ सितम्ब र, १६७९ "श्री कुण्डलिनी शक्ति पर श्री येशु खिस्त" आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । स्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय 'पार होना आवश्यक है । 'पार होने के बाद आप है, कयोंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु रििस्त के हाथ से चैतन्य लहरियां वहने लगती हैं। जो ओर कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास चीज सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठडी नहीं किया विराट के घर्मरूपी वृक्ष पर अनेक चैतन्य की तरंगें (लहरियां) श्राएंगी और वह देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पूष्प खिले परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को सकते हैं । मालूम है । जहां-जहां ये पुष्प (साधु संत) गए वहा वहां उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया । परन्तु सुगन्ध की कुछ जानते हैं वह बाइबल ग्रन्थ के कारण है। हैं इसका अर्थ है आप को सहजयोग में आकर असत्य होगी तो गरम ल हरें आरएंगी। इसी तरह कोई भी चीज सत्य है कि नहीं इसे आाप जान (विभूतियों) का । उन पूष्पों ईसाई लोग श्री येशु रिव्रस्त के बारे में जो इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग महत्ता नहीं समझ सके । फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदि-शक्ति से हो सकता है यह बात सबव- ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ साधारण की समझ से परे है । बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ (रहस्यमय) है। यह (गहन अरथ) समझ नहीं सके। बाय बल में लिखा है कि 'मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में ये आऊंगा।" इजराइली (यहदी) लोगों ने इसका कह रही है मैं जिस स्थिति पर से आपको ये उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सक तभी मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण आप ऊपर कहीं गयी बात समझ सकते हैं या होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालाएं उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे । वस्तुत: रही हैं वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तंत्र इस इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन अ्ापको समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने सहस्रार में होगा। बाइबल में श्रनेक जगह इसी की सिद्धता प्रपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब है । [तक आापका शारीरिक संयंत्र ऊपर कही गई बात सकते हैं । को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्रार का उल्लेख किन्तु यहां यह सब बिलकुल संक्षेप में कह श्री येशु खिस्त जी ने कहा है कि, जो मेरे आपका संयत्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय मूल मराठी भाषण से अनुवादित । निर्मला योग १७ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt अब अगर आपने श्री 'खिस्त शब्द का अध्ययन किया (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण शब्द के अपभ्र श से निर्मारण हुआ है । वस्तुत: श्री येशु रित्रस्त के पिताजी श्री कृष्ण ही है और इसीलिए हैं । उनका नाम विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं । इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। आपने अगर ईसाई लोगों को कौन थे तो उन्हें इसका पता नहीं है । पूछा कि ये लोग उन्हें 'रित्रस्त' कहते श्री येशु खिस्त में दो महान शक्तियों का संयोग जीसस जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है । एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु् खरस्त की मूल शक्ति मानी गयी है, और दूस री शक्ति जाता था। उत्तर प्रदेश में [अब] भी किसी का नाम श्री कार्तिकेय की | इस कारण श्री येगु रिख़्रस्त का ग्येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशु" कहते स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तरव, ॐकार रूप है । श्री येशु हैं। इस प्रकार ये स्पप्ट होता है कि, 'यशोदा से रिखरिस्त के पिताजी साक्षात श्री कृष्ण थे । इसलिए ' उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये नाम बना है। थे है। श्री यशोदा माता को 'येशु' नाम से कहा येशु' व उसके 'जशू' व उससे 'जीसस काईस्ट' हुए । उसमें से एक वरदान है कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे। इसका स्पष्टीकरण ये है कि श्री कृष्ण का स्थान हमारौ गर्दन पर जो विशुद्धी चक्र है उस पर है, और श्री खिस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले মাग में जहां दोनों आंखों की ज्योति ले जाने वाली नसे जहां परस्पर छेदती हैं वहां स्थित है । जिस समय श्री खिस्त प्रपने पिताजी की गाथाएं सुनाते थे उस समय वे बास्तव में श्री कृष्रण के बारे में बताते थे, विराट' की बारते बताते थे । यद्यपि श्री कृष्ण ने जीसस रितरस्त के जीवन काल में पूनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीसस खिस्त के उप- देशों का सार था कि साधकों विराट पूरुष सर्वेशक्ति- मान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर संकते दूस रा वरदान श्री कृष्ण ने ये दिया था कि हैं। अर्थात् श्री रिव्स्त की माता साक्षात् श्री आप सारे विश्व के अआधार होंगे। तीसरा वरदान महालक्ष्मी थीं । श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी है कि, पूजा में मुझे जो भेट प्राप्त होगा उसका व प्रादिशक्ति थीं और अ्पनी मां को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित करते इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्री कृष्ण ने थे । श्री खिरिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियां हैं, अर्थात् म्यारह संहार शक्तियां हैं । इन शक्तियों के स्थान अपने माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा होगा तो प्वतरण होता है उस समय ये सारी शक्तियां बातं आप समझ सकते हैं क्योंकि संहार का काम करती हैं । इन ग्यारह शक्तियों में हैं एक शक्ति श्री हनुमान को है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है । इन दोनों शक्तियों को बायबल में 'सेन्ट मायकेल तथा 'सेन्ट गाब्रियल कहा जाता है । सहज- इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन योग में पाकर पार होने के बाद आप इन शक्तियों किया है। आप अगर ध्यान में जाकर यह वरणंन को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर संकते हैं सुनेगे तो आप समझ सकते हैं कि ये वरणन श्री येशु या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं । अपने दायें तरफ की (Right) नाड़ी १६वां हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया जाएगा। उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी । ये सारी श्री मा्केण्डेय जी ने ऐसी पनेक बात जो सूक्ष्म खोलकर कही हैं। खिस्त का है । निर्मना योग १८ LF 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्ति तत्व श्री गणेशा में 'परोक्ष' रूप में है वही तत्व कार्यान्वित होती है। जिस समय प्रपनी पिगला में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुतः क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य । अहकार से बचता है । [श्रगर हमें किसी ने मनुष्य नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस समय श्री हनुमान जी के मत्र से तुरन्त अन्तर पडता है दु ख उसी प्रकार सेन्ट मार्यकेल का मन्त्र बोलने से भी दिया, परेशान विया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार बार यही बात सोचता रहता है की नाडी, इडा नाड़ी सेन्ट गादरिय ल या श्री अर उद्विग्नत रहता है । आप रात दिन उस मैनुष्य भेरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है । उनके के वारे में सोचते रहेंगे प्रौर वीती धटनाएं याद करके अ्पने आपको दुःख देते रहेंगे । इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा ये पिंगला नारडी में अन्तर ग्राएगा । अरपने बाॉये तरफ मन्त्र से इड़ा नाड़ी की तकलोफे टूर होती हैं । ऊपर कही गय बातों की सिद्धता सहज योग में आरकर पार होने के बाद किसी को भी आ सक्रती है । कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलेग-अलग परेशानियों से छूटकारा पा सकते हैं । समझ कर आपस में लड़ना मूखता है। अगर आप ने इस में तत्व की बात जान ली तो अरआापके मस्तिष्क में अाएगा कि ये सब एक ही धर्म के बृक्ष के नेक फूल हैं वआपस में एक ही शक्ति से सम्वन्धित हैं । करने के लिए कहते हैं । दूस रों को क्षमा करना, एक बड़ा आयुध, श्री रिब्रस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे अ्रप टूसरों के कारण होने बाली श्री खिस्तजी के पास अनेक शक्तियां थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तियां पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने प्रपने प्रापको क्यों नहीं बचाया ? श्री रिव्रस्त जी के पास इतनी आपको ये जानकर कदाचित आइचर्यं होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भं र करता है। आराजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है कोकि नक लोग प्हंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं । अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे घम से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा के शक्तियां थीं कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी मां श्री मेरी माता साक्षात् श्री आ्रादिशक्ति थीं | उस मां से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए । परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था सच (मार्ग से भटक जाना) वात तो ये है कि श्रो खिस्त सुख या दुःख, इसमें फंसे हुए नहीं थे । उन्हें ये नाटक खेल ना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीसस रि्रस्त सुख दुख से परे थे । उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुराता से रचना था। जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूुख थे ? उस जमाने के होने की रण वे अरहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते है । इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु रिव्रस्त बहुत सहायक होते हैं । जिस प्रकार भी मोहम्मद पंगम्बर ने दुष्ट दाक्ति गों का कसे विनाश करना है इसके बारे में लिखा है उसी प्रकार श्री रित्रस्त जी ने बहुत ही लोगों की मुखता को नष्ट करने के लिए श्री ख्रिस्त सरल तरीके से आप में कौन-कोन सी शक्तियां है सत्रयं गंधे पर सवार हुए श्े । आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, ्री रिव्रस्त की प्रार्थना करिए कि 'इस दूनिया में जिस किसी उन आायुधों में सबवप्रथम ्मा करना है । जो ने मूझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको व कोन से प्रायुध हैं इसके बारे में कहो है । १६ निर्मला योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया। ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं । माफ कीजिए' तो आ्रापका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जायगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आ्कर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब-जब आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आपमें श्री रिरस्त तत्व है वह सहजयोग के परमेश्वर ने अरवतररण लिया या सन्त-महात्माओं माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय ने प्रवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कण्ट दिया हैं। उनसे कुछ सोखने के बजाय खुद मूखो । महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यहीं हुआा वेसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार होता है, उसके बिना नहीं । की तर ह ब्ताव करते थे ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अ्रतिसूक्ष्म द्वार है । इसोलिए श्री रिव्रस्त ने कहा है कि "मैं द्वार हूँ" इस हुम्रा । अरतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री रित्रस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और अपने असत्य से चिपका रहता है । अ्र स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया । अरहभाव के कारण लोगों ने श्री खिरस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाय कि यह मान्य नहीं था। उन्होंने अपने बौद्धिक अहंकार के व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है ? तो सहज- कारण सत्य को ठूकराया । श्री रिव्रस्त ने ऐसा कोन योग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त सा अपराध किया कि जिससे उन को लटकाया ? उलटे उन्होंने दूनिया के कितने लोगों के प्रश्न का 'हां' में उत्तर मिलेगा। विगत ( भूत को अपनी शक्ति से ठीक किया जग में सत्य का प्रचार किया । लोगों को अनेक अच्छी बातें उदाहरणतः किसी विशेष व्यक्ति का शिष्य होने का सिखायीं । लोगों को सुब्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन दंभ। सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थे । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुःख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको नहीं होता है बढ़ हुए अहंकार के कारण गन्दी बातें सिखाते हैं या मुख बनाते हैं उनके आप मनुष्य 'स्व पाँव छुते हैं । मूर्खता की भी ऐरे-गरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों समझ लेना जरूरी है । आज गंगा जिस जगह बहु से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह वाह (खुशामद, रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर प्रशंसा) करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों बेठ जाएं और कहने लग कि गंगा इधर से बह रहो को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता है और हम गंगा के किनारे बैठे हैं, तो ये जिस तरह नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे । लोगों को ठोक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपषुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था। पर कीजिए । श्री रखस्त के समय भी इसी तरह की जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरणा बुद्धि को एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर ग्राप सली पर काल की) बातों से मनुष्य का अहकार बढ़ता है । जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान व' (श्रात्मा) के सचल प्र्थ को भूल ! आजकल कोई जाता है। अब देखिए, 'स्वा्थ माने 'स्व' का अर्थ भूल हृद है ऐसे महामूखं हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार निमंला योग २० 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt स्थिति थी । उस समय श्री खिरस्त जी ने क्रुण्डलिनी है ? पआप प्रमोवा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए जागरणा के अनेक यह्न किये। परन्तु महा मुश्किल हैं। ये कैसे हृप्रा है ? परमेश्वर की अ्रसीम कृपा कि से केवल २१ व्यक्ति पार हुए । सहजयोग में हजारों आपको ये सुन्दर मनुष्य देंह प्राप्त हुप्रा है। क्या पार हुए हैं । श्री खिस्त उस समय बहुतों को पार मानव इसका बदला चुका सकता है ? आप ऐसा करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा शी कोई जोवन्त कार्य कर सकते हैं क्या ? एक टेस्ट ट्यूब रजिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं । वेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े उसके अतिरिक्त कूछ है इसका उन्हें ज्ञान नहीं था । इुसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार कार्य जीवन्त कार्य नहीं हैं। क्योंकि जिस प्रकार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री खिरस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर स्वयं प्रणव थे । ॐकार रूपी थे । इतना सव कुछ यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्यप था तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि थ्री को कितना अहंकार है ! चाँद पर पहुँच गए तो खिस्त परमेश्वर के सुपूत्र ये । कुछ मप्रारों को इकट्ठा करके (क्योंकि, ्और कोई ग्रह बनाए व ये सृष्टि वनारयी उनके सामने क्या लोग उनके साथ आने के लिए तेयार नहीं थे) वडी आपका अहंकार? वास्तव में आपका अहकार मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया । पा दाम्भिक है, झुठा है । उस विराट पुरुष का अहकार होने के बाद ये लोग श्री खिस्त के पास किसी न किसी बोमार को ठीक कराने ले आते थे । हमारे यहां सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठोक हुए हैं। लोगों को जान लेना चाहिए कि हूआर निर्मारण हुआा है। उस में भी वस्तुतः ये अहकार क आप किसी पेड का Cross breeding करते हैं, कितना अहंकार। जिसने चांद-सूरज की तरह अनेक मुश्किल से उन्होंने सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है । विराट पूरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए । तो श्री विराट पूरुष को हैी सब कुछ करने दी जिए। आप एक यंत्र की तरह हैं । समझ अहकार बहुत हो सूक्ष्म है । अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने प्रहंकार के लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही है व साथ लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से माईक में से मे रा बोला हुआ आ्राप तक बह रहा है। बह नष्ट नहीं होता है वह अ्रपने आप ('स्व') में माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का समाना चाहिए। जिस समय अपना चित्त कूण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कृण्डलिती यपने ब्रह्म रन्ध्र है। उसी भांति अप एक परमेश्वर के यन्त्र हैं । को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहकार उस विराट ने आापको बनाया है। तो उस विराट का विलय होता है। विराट शक्ति का प्हंकार ही की शक्ति को आप में से बहने दो। उस स्व का सच्वा अहंकार है । वास्तव में विराट ही वास्तविक मतलब समझ लो जिए। यह मतलब समझने के अहुकार है । अरपका प्रहंकोर छुटता नहीं । आप जो लिए आज्ञा चक्र, बहुत ही मुश्किल चक्र है और करते हैं वह अहंकार है । अहंकरोति सः अहंकार: । आप अपने आप से पूछकर देखिए करते हैं। किसी मृत वस्तु का भाकार वदलने के हुए थे। अब कुण्डलिनो और बी खिस्त का सस्बन्ध सिवा आप क्या कर सकते हैं ? किसी फूल से आप जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी फल बना सकते हैं ? ये नाक, ये मुहै, ये सुन्दर तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है। ये कसे हुआ है उसी प्रकार है। कार्य में कर रहो है व वह शक्ति माइक से बह रही जो जिस पर अति सूक्ष्म तत्व कार, प्रणव स्थित है, कि आप क्या वही अर्थात श्री खिस्ति इस दुनिया में अवतरित निमंता योग २१ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt श्री कृष्डलिनी ने, माने श्री गौरी माता ने रपनी किया गया तो वहां के यहदी लोगों ने श्री ख्रिस्त হक्ति से, तपस्या से, मनोवल से व पूण्याई से श्री को फांसी दी जाय यह मांग की । आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है, ये अआप जानते हैं। उन्होंने जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धूलने वाला। अभी भी ऐसे लोग अहं का र में डूबे हुए है। उन्हें लगता है, हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है । अभो भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा मांगी जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं । क्या आप ये कि "हे परमात्मा आपके पवित्र तस्व को फंसी विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कसे देने के अपराध के कारण हमें प्राप क्षमा कीजिए। होता है ? आप इवास कैसे लेते हैं ? अपना चलन हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए बलन (movement, action) कसे होता है ? हमें माफ कीजिए" तो परमात्मा लोगों को गणोश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हुए उस समय श्री रिरस्त का जन्म हुआ । इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं तुरन्त माफ कर दगे । परन्तु मनुष्य को क्षमा मांगना बडी संसार में केसे आए हैं ? ऐसी अनेक बाते हैं। क्या कठिन बात लगती है । वह अनेक दूष्टता करता मनुष्य इन सबका अर्थ समझ सकता है ? आप है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है । लेकिन पूजन किया है । आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक यह कहा से श्रायो है ? आपको ऐसी बहुत सी बातें की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया । अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु श्रब में अ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आपमें बह बढ़ता ही कहना चाहती है कि प्रब दुनिया बदल चुकी है । जाएगा। इस संसार में मनुष्य की उस्क्रान्ति के लिएसत्ययुग का आरम्भ हो गया है आप कोशिश कर उसके भ्रम का नष्ट होना जरूरी है। जिस समय सकते हैं, पर अब आप किसी भी सन्त-साधु को ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के नहीं सता पाएंगे। इसका कारण थी खिस्त हैं। लिए बत्न किए तब इस संसार में अवतरर हुए हैं। श्री खिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम गप्रवतार की है, जिससे साधु-सन्त लोगों को परेशान करने लेकर जंगनो में घूमते थे। जिससे मनुष्य ये जान ले वालों को कष्ट भुगतने पड़ेंगे। उन्हें सजा होगी । कि एक आदर्श राजा को कैसा होना चाहिए। इस श्री रिजस्त के एकादश रुद्र प्राज पूर्णंतया सिद्ध है और इसलिए जो कोई साधु सन्तों को सताएगा ने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है ? प्राप इस इस भ्रम को हटाना जरूरी है। जब तक आपका मनुष्य लिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रर्दर्शित किया। इसी प्रकार श्री कृष्ण का जीवन था। और इसी उनका सबवनाश होगा। किसी भी महात्मा को पप घी येशु खिस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए। इस प्रकार की । अगर इस तरह की मूखता आपने फिर से की तो आापका हमेशा के लिए सर्व- सताना ये महापाप है । श्री येशु खिस्त का जोवन बा। तरह श्री रिव्रस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया मूखता मत कीजिए जाय तो एक बात दिखाई देती है। वह है उस समय के लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फांसी पर) चढ़ाया गया। इतनी मुर्खता कि "एक चोर को छोड़ दिया जाए या थरी खिस्त को ?" ऐसा लोगों से सवाल बड़ी बात है। नाश होगा। श्री रिखस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत वह है "जैसे राखहै वेसे ही रहहूँ निर्मला योग २२ शापट 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt उन्होंने अपना घ्येथ कभी नहीं बदला। उन्होंने प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व जमकर अपने आपको संत्यासी समझ कर अपने को समाज रहना, उसमें स्थिर होना ये बहुत महत्वपूर्ण है । से अलग नहीं किया। उलटे वे शादी-ब्पराहों में गये। बहुत लोग हमें पूछते हैं, माताजी हम स्थिर कब वहां उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। होंगे ? ये सवाल ऐसा है कि, समझ लोजिए आप बायबिल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं । नाव स्थिर हुई उन्होंने पानी से अगूर का रस निर्मारण किया। ऐसा वरणंन बायबल में है। अब मनुष्य ने केवल आप साईकिल चला रहे हैं । व्ह चलाते समय जब यही मतलब निकाला कि श्री रि्रस्त ने पानी से आप डगमगाते नहीं हैं कि आप का सन्तुलन हो शराब बनायी, अतः वह शराब पियो करते थे। गया व आप जम गए आपने अगर हितर भाषा का अध्ययन किया तो समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में अकर आपको मालूम होगा कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अंगुर को रस । उसका अरथ दारू नहीं है। कि नहीं ये आप जानते हैं । या ऐसा समझ लीजिए ये जिस प्रकार आपकी । स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है जिस समय सहजयोग में अराप स्थिर होते हैं उस समय र श्री रिखरस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को निविकल्पता प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनो खोलकर प्रापके ्हकार को नष्ट करना । मैरा शाति आ्राज्ञा चक को पार नहीं कर जाती तब तक कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। साधक में आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी छेदन करना। ये समग्रता का कारय होने हर-एक के लिए मुझे करना है । मुभे समग्रता पार करती है, उस समय निर्विचारिता स्थापित में श्री ख्िस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक होती है । अज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार मुझे येश रिव्रस्त की शक्ति से हो कुण्डलिनौ शक्ति के श्री कृष्ण, श्री राम, इनन अरवतारों के बारे में भी लए ्खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए कहना है । उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, श्री रिखस्त की प्रार्थना 'दी लार्डस प्रत्रर बोलनी क्योंकि इन सभी देव-देवताओं की शक्ति आप में पडती है। ये द्वार पार करने के बाद कुण्डलनी अब समग्रता (सामूहिक चेतना) वटित होने शक्ति प्रपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic के कारण है। जिस समय कूण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को ये है । का समय अया है। area) है उसमें प्रवेश करती है। उसीको परमात्मा कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे को सौम्राज्य कहते हैं । कुण्इलिनी जब इस राज्य हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है। और लाखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसकी जो शरीर के सात मुख्य चक्र व ओर अन्य उप- सर्व न्याय भी कलियुग में होते वाला है । सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgment) है । में प्रवेश करती हैं तब ही नि्विवार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र बकों को संचालित करते हैं । इसके बारे में बायबल में वरणन है । सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgment) हैं वह देखते है। आरज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य होगा। परन्तु आपको सहजयोग में प्राने के बाद समर्पित होना बहुत जरूरी है क्योंकि, सब कुछ ध्यान रखना चाहिए । क्योंकि उनका वड़ा महत्व अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता कारण अखि हैं। मनुष्य को अपनी अखों का बहुत निमंला योग २३ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt है। प्नधिकृत गुरू के सामने झुकने अरथवा उनके गलत व्यक्ति हैं । किसी एक उम्र के बाद चड़्मा चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। खराव हो जाता है। इसी कारण जीसस रिव्रस्त ने परन्तु आखें खराब होती हैं ये अपनी नजर स्थिर न अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने रखने के कारण। बहुत लोगों का चित्त बार बार झुकाने को मना किया है । ऐसा करने से हमने जो इधर-उधर दोड़ता रहता है । ऐसे लोगों को समझा कुछ पाया है बह सब नष्ट हो जाता है। केवल नहीं कि अ्रपनी पँखि इस प्रक्ार इधर- उघर घुमाने परमेश्वरी अवतार के आगे ही अरपना माथा टेकना के कारण ये खराब होती है। आज्ञा चक्र खराब चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्य पढ्ति । को झुकाना ठीक नहीं है। किसी गलत स्थान के समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति भी अपना माथा नहीं भुकाना चाहिए। ये कर्मी हैं । अच्छे काम करते हैं । कोई भी बुरा काम सम्मुख बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति पढ़ना, अरति सिलाई हो या अति श्रध्ययन हो तुरन्त आपका आज्ञा चैक्र पकड़ा चाएगा। या अति विचारशीलता हो । सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही इसका कारण है कि जिस समय आप प्रति कार्य लोगों के आज्ञा चक्र खराब हैं इसका कीरण है करते हैं उस समय आप परमात्मा को भुल जाते लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरू को है उस समय अपने में ईश्वर प्रसिणधान स्थित मानते हैं। परांखों के अनेक रोग इसी कारण से तहीं होता । होते हैं । तो कुण्डलिनी सत्य है यह पवित्र है ये कोई ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा ढोंगबाजी या दुकान में मिलने वालो बीज नहीं है। अच्छे पवित्र घर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र ये नितान्त (Absolute) सत्य है । जब तक आप साहित्य विलकुल नहीं पढ़ना चाहिये । बहुत से सत्य में नहीं उतरेंगे, तब तक आप ये जान नहीं लोग कहते हैं, "इसमें क्या हुआ ? हमारा तो काम सकते । वाम माग (गलत मार्ग) का अवलम्बन ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने करके आप सत्य को नहीं पहचान सकते । जिस पड़ते हैं जो पूर्णतः सही नहीं हैं।" परन्तु ऐसे समय आप सत्य से एकाकार होंगे, तब ही आाप अपवित्र कार्यों के कारण अखें खराव हो जाती हैं। जान सकते हैं कि सत्य क्या है, उसी समय अ्राप मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातं खराब समझगे कि हम परम पिता परमेश्व र के एक साधन हैं, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो ( प्रवाह) हो रहा है, जो परमेश्वरी शक्ति सारे सकता है। श्री रिव्रस्त ने बहुत ही जोर से कहा था विश्व में फैली हुई है, जो सारे विश्व का संचालन कि, आप व्यभिचार मत कीजिए। परन्तु मैं भापसे करती है। उसो पर मेश्वरी प्रेम शक्ति के आ कहती है कि प्राप की नजर भी व्यभिचारी नहीं साधन हैं । इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलि- होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि दान है ? क्योंकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है । अगर आाज्ञा चक्र नहीं खुला तो ऑँखों की तकलीफे होंगी इसका मतलब ये नहीं कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप] [अपवित्र जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका के है वह मनुष्य क्यों करता है ? किसी अपवित्र व आपकी प्रगर नजर अपवित्र होगी तो आपको निर्मला योग २४ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है । किसी मनुष्य अवतार लिया और वही अवतार जोसस रिस्त का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो का है। श्री ख्रिस्त का स्थान कपाल (खोपड़ी) उनकी कुण्ड लिनी शक्ति जागृत नहीं होगी। आज्ञा के केन्द्र (मध्य) भाग में हैं और इसके चारों प्रोर चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कु कुम लगाते एकादश रुद्र का साम्राज्य है। जीसस रिव्रस्त इस हैं। उससे अइकार व ्ापकी अनेक विपत्तियां दूर साम्राज्य के स्वामी हैं। श्रो महागरणेश और पटानन होतो हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कु कुम लगाया इन्हीं एकादण रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत जाता है तब आपका आज्ञा चक्र खुलता है व होने के प्चात यदि आप आख खोले तो कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है । इतना गहन करेंगे कि प्रापकी आरखों की दृष्टि कुछ घू घली हो सम्बन्ध धो रिखस्त व कुण्डलिनी शक्ति का है। जो गई है । इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर पापकी जागृत होती है तब आपकी आंखों की पुतलियाँ कूणइलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही कुछ फेन जाती हैं प्रोर शोतल हो जाती हैं। यह श्री गणेश प्राज्ञा चक्र पर उस कुण्डोलिनों शक्ति का para-sympathetic nervous system (सुपुम्ना हवार खोलते हैं। अनुभव नाडी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीसस रिवरस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन, 1 यह चक्र ठोक रखने के जिए प्रापको क्या करना नाहिए? उसके लिए अनेक मार्ग हैं। किसी भी अ्रतिशयता के कारण समाज दूषित होता है । प्रर इमीलिए है। मंतलितता मे अपनी अंखों को विश्राम मिलता जीस म रिख्रस्त की मनन-चिन्तन नहीं है । है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं । १रन्तु इसके लिए पहले पार होना आ्रवश्यक है । उसके बाद अ्रखों के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे अपक आज्ञा वक्र ठीक रह सकता है। बताऊगा । स्वंप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी इसमें एक है अपना प्रहंकार देखते और पने आपसे कहना क्यों। क्या विचार चल रहा हैं ? कहां जा रहे हो ?" जैसे कि आप प्राइने में नजी से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं ? अपने आपको देख रहे हैं । उससे गहंकार मे अास्ों श्री खिस्त ने ये बाति २००० साल पहले आपको पर आने वाला तनाव (tension) कम है। मनत करने से आज्ञा नक्र को चन प्राप्त होता है। थ ही येहै भी समझ लेना चाहिये कि जीसस रिद्रस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या श्राचार-विचार या उत्तराधिकारियों की किसी भी प्रकार की पअरतिशयता अनुचित श्ृं खलाओं का अनुसरण अब जो कुछ सनातन सत्य है वह में आपको दुष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी रहना कही हैं। परन्तु उन्होंने ये बातं खुलकर नहीं कही थी और इसीलिए यही बातें में फिर से आपसे कह रही है। श्री रिस्त ने ये बातें आरपसे कहीं तो आपने tension) F a जाता है । इसका महत्वपूर्ण इलाका ( क्षेत्र, अंचल) सिर उन्हें फांसी पर चढ़ाया । श्री खिस्त ने इतना ही कहा के पिछले भाग का बह स्थल है जो माथे (भाल) था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बाते गन्दी हैं के ठीक पीछे स्थित है । यह उस क्षेत्र में स्थित है जो परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा गर्दन के आधार (back of the neck ) से अरठ उंगलियों की मोटाई (लगभग पांच इंव) की ऊंचाई पर स्थित है । यह महागणेश का अंचल पशु समान बर्ताव केरता है क्योंकि रात दिन उसके (इनाका) है । श्री गणेश ने 'महागणेश' के रूप में मन में गरन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है । ं। था । गलत नजर रखने से उसके दूषपरिणाम क्या होते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा है । मनुष्य किसी निमंला योग २५ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt कण्डलिनी शक्ति को जागूत करना और चित्तवत्ति को संभालकर रखिए और चित्त को उसके बाद उसे सहस्रार तक लाना, तदनन्तर सही मार्ग पर रखिए । अपना चित्त ईशवर के प्रति सहस्र्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति ओर अपनी नेतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया कण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही है । हमारी भूमि योग भूमि है। हम अरहंकारवादी कृण्डलिनी शक्ति का अप्राखरी कार्य है । परन्तु इन नहीं हैं या हमारे में अहंकार आने वाला भी नहीं पादरियों को बाप्तज्म की जरा भी कल्पना नहीं है । हमें अहंकारवादिता नहीं चाहिए । हमें इस है उल्टे वे प्रनाधिकार चेष्टा करते हैं , या फिर भुमि पर योगी की तरह रहना है एक दिन ऐसा ऐसे ये पादरी भूत कामों में लगे हुए हैं । गरीबों की आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस सेवा करो, बीमारों की सेवा करो वरगरा। आप समय सारी दुनिया इस देश के चरणों में भुकेगी। कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं। हीं, ये अच्छा है, उस समय लोग जान जाएंगे श्री खित कोन थे, परन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है । परमात्मा कहाँ से आए थे, प्रोर उनका इस भुमि पर यथा- का ये कार्य नहों है कि पैसे देकर गरीबों की सेवा चित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता है और साम्राज्य में ले जाना और उनसे भट कराना । उन्हें सम्मान दिया जाना है अपने देश में हम आपको सूख, शान्ति समृद्धि शोभा व ऐश्वर्य इन अपनी मां को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब सभी बातों से परपू्ण करना, यही परमेश्वर का भारत में आएंगे तब वे देख गे कि श्री खिस्त का कार्य है। कोई मनूष्य चौरी करता है या झूठ सचचा घरम वास्तव में भारत में अत्यन्त आदर बोलता है या गरीब बनकर घुमता है, परमात्मा पूर्वक पालन किया जा रहा है, ईसाई घ्मानुयायी ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ें गे । ये सेवा का काम है, जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ ख्रिश्चन लोग धर्मान्तिर करने का काम करते हैं । जहाँ कुछ अ्रादिवासी लोग होंगे वहां वे (रब्रश्चन लोग) जाएंगे। वहाँ कुछ सेवा का काम करेंगे। फिर सब को खिश्चन बनाएंगे। परन्तु एक बात प्रथ है इसी कारण अपने योग शास्त्र में लिखा है अपनी राष्ट्रों में नहीं। श्री ख्रस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य को दूस रा जन्म केवल कुण्डलिनी जागति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनो जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहीं है। ओर जब तक मापका दूसरा जन्म नही हीगा। । होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते । आ्प लोग पार होने के बाद बायबल पढ़िए । आपको आशचर्य होगा कि उस में खित्रस्तजी ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखा- ने परमात्मा का कार्य अवाधित है सहजयोग में लोगों की कण्डलिनी जागृत करते सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अरतिरिक्त वटी दयालुता का काम नहीं करते । परन्तु अगर कुछ भी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में हम किसी अस्पताल में गए तो २५-३० बीमार को बताई है। परन्तु जिन लोगों को बह दष्टि प्राप्त सहज (आसानी से) स्वस्थ कर सकते हैं । उनकी नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे कण्डलिनी जागत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो हैं । (मनमाने ढंग ने उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) जाते हैं। श्री खिरस्त ने उनमें बहू रही उसी प्रमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया । श्री खि्रस्त व स्तुओं से सहायता नहीं वास्तव में बारप्तिज्म (Baptism) देने का ने कभी किसी की भोतिक निर्मला योग २६ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt की । ये सब बाते आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से समझ बीड़ी लिखा हुँप्रा था। यह परमेश्वर का मजाक लेना आवश्यक है । पहले की गयी गलतियों की उड़ाना, परमात्मा का स रासर अपमान करना है । पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए । हर-एक बात प्राप्त कीजिए। ये आपका प्रथम कार्य है । [आत्म- परमास्मा से जोड़कर आप महापाप करते हैं, ये साक्षात्कार के वाद आपकी शक्तियाँ जागृत हो समझ लीजिए । 'साइनाथ बीड़ी' या 'लक्ष्मी हींग जाती है । इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में क्क ये परमात्मा का मजाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियां ठीक हुई से लोगों को क्या लाभ होता है ? कूछ लोग कहते हैं। आप किसी को भी रोग मुक्त करा सकते हैं। केन्सर जेसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से ही ठीक हो सकती हैं। परन्तु लोग ठीक होने के घुन्धा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का बाद फिर से अपने पहले मार्ग प्रौर आदतों पर चले जाते हैं। ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खोजते । उम्हें प्रपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती हैं। अन्यथा उन्हें परमात्मा को व उद्धारार्थ जन्म लिया था । वे किसी जाति या खोजने की आवश्यकता प्रतोत नहीं होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें रूपी प्रणव थे । सत्य थे । परमेश्वर के प्रन्य जो परमात्मा क्यों ठीक करे? ऐसे लोगों को ठोक किया अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्व से बनाये या नहीं किया, उन से दुनिया को प्रकावा नहीं गये थे । परम्तु श्री ख्रिस्त का शरीर आत्म तत्व से मिलने वाला। परमात्मा ऐसे दीप जलाएंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगो। परमात्मा मुख लोगों को क्यों ठीक करेंगे। जिन लोगों में ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों लुगा, उनके नाम का जाप होने लगा और उनके सहायता करे? गरीबी दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यों को ईश्व रीय कार्य नहीं समझना थे, यह मुर्य बात है। यदि लोग उनके उस स्वरूप चाहिए । ा हैं 'माताजी इससे हमारा 'शुभ हुआ है। शुभ का मतलब है ज्यादा पसे प्राप्त हुए इस तरह से प्रपमान होता है । जाति के कल्याणर्थ श्री रिव्रस्त ने सारी मनुष्य समुदाय की निर्जी सम्पदा नहीं थे । वे स्वयं ॐकार बना था । और इसीलिए मृत्यु के बाद उनका पूनरुत्थान हुआ और उस पुनरुत्थान के बाद थे बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने बारे में भाषण होने लगे। वे परमात्मा के अवतरण को अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करे तो चारों तरफ आनन्द हो अरानन्द होगा। आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हो। अनन्त आशीर्वद। कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेহ्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दूकान पर 'साईनाथ सहजयोग में प्राने पर मनुष्य में एकाग्र दृष्ट आती है। ऐसी एकाग्र दृष्टि अगर बढ़ती गई और गरणेश शक्ति जागत हो गई तो उसे 'कटाक्ष-निरीक्षण कहते हैं । जिस पर आप की दृष्टि जाएगी उसकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी। जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता आ जाएगी। इतनी पवित्रता आपकी आंखों में भरा जाती है। ये केवल श्रीगणेश का हो काम है । श्री माताजी निमंला योग २७ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt सहजयोग और शारीरिक चिकित्सा-(४) एक साधारण डाक्टरी (चिकित्सा) शिक्षण (connection) क्रमशः अत्मा, कारण शरीर, के काल में यह बताया जाता है कि यह शरीर सुक्ष्म शरीर अन्ततः स्थूल शरीर के माध्यम से है । विभिन्न गों व हड्डियों ग्रादि से मिलकर बना है । अनुसंधान व शिक्षण द्वारा विद्यार्थी को जो जो बात या अवरोध है तो उसका व्यक्तिर्व (existence, षटित होती दुष्टिगोचर होती (दीखती) हैं उन being) परमेश्वर की इच्छा को पूरी तरह नहीं बातों का ओर वह क्यों घटित होती हैं उसका पता व्यक्त करता । चलता है । इस तन्र के किसी भाग में भी यदि कहीं कोई बाधा उपरोक्त तन्त्र (व्यवस्था) के अतिरिक्त, पांच यदि कोई आत्म साक्षात्कार प्राप्त योगी है तो मुलभूत आवरण अ्रथवा कोप होते हैं-पूथ्वी, जल, वह जानता है इस तथाकथित स्थूल হरीर के नीचे तेज (ग्नि), वायू और आकाश । इनमें अकाश एक सूक्ष्म शरीर और उसके भीतर एक कारण (Ether) सूक्ष्मतम पर क्रमशः पृथ्वी स्थूलतम शरीर होता है । हमारे नाड़ी व चक्रों से मिलकर होते हैं । ये आत्मा अथवा हृदय को घेरे हुए रहते हैं यह सुक्ष्म शरीर बनता है ! इनमें से प्रमुख हमे और सुक्ष्म शरीर व तत्पश्चात स्थल शरीर को ज्ञात हैं किन्तु इन प्रमुख नाड़ी व चक्रों के अति- स्थिरता प्रदान कर उनको पाकार प्रदान करते हैं । रिक्त कुल ३३ करोड़ और कम ज्ञात नाड़ी वे चक्र है इस तन्त्र के विभिन्न अगों अरथवा पहलुओं में से जो एक दूसरे को प्रत्येक कल्पनोय विधि से जोड़ते होकर जो ऊर्जा प्रवाहित होती है वह सूक्ष्म स्तर हैं जो मानव मस्तिष्क की ग्रहण शक्ति से बाहर है। पर बेतन्य लहरियों (vibrations) प्रौर स्थूल स्तर पर गतिविधि (activity) के रूप में सुष्टि को व्यवस्था) अथवा यन्त्र (instrument) है, जो कि प्रभावित करती है अथवा उनका उपयोग सुष्टि को आत्मा) स्वयं परमात्मा (परम+आात्मा) का प्रति- प्रभावित करने के लिये किया जाता है कारण बिम्ब है, जो कि (परमात्मा) सृष्टि (universe) शरीर पंच महाभूतों के कारणों अ्रथवा तन्मात्राओं में सर्वोच्च आवि्भुत (manifest) सत्य (Reality) को प्रभावित करते हैं । क्योंकि तीनों (शरीर) परम (The आात्मा की अभिव्यक्तियां (manifestations) है, ये स्थल, सूक्ष्म तथा कारण शरीर प्रात्मा के तन्त्र है औ्र स्वयं परव्रह्म अ्रथवा Absolute) का प्रतिबिम्ब है । ओर इस कारण परमात्मा की इच्छा स्वरूप हैं, ये (तीनों शरीर) अन्त में इसके (आत्मा के) नियन्त्रण सूक्ष्म शरीर जो स्थूल शरीर का नियन्त्रण में हैं प्रत्येक मानव एक कोष (cell) की भांति है करता है. वह साधन है जिसके द्वारा परम (The जो अपने-प्रपने क्षेत् में उस परम इच्छा, गक्ति Absolute) की इच्छा (प्रात्म-स्वरूप होने की) ओर नियन्त्रण के एक अंश] को व्यक्त करता है। इस भौतिक सुष्टि के स्थूल जगत में कार्यान्वित जब यह सम्पूर्ण तन्त्र सुचारु होता है तब यह बिना होती है। इन तीन शरीरों का और कोई कार्य नहीं प्रयास और बिना विचार कार्यान्वित होता है । है । परमात्मा का स्थूल शरीर से सम्बन्ध यदि ऐसा नहीं होता (अ्रर्थात तन्त्र बाधाग्रस्त होता निमंला योग २८ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt कुछ अनिष्ट नही होगा और जो कुछ पोड़ा और बीमारी है वह हमारे उद्घार प्रक्रिया के अंग हैं जो हमारी कृपालु मां द्वारा प्रदान किये गये हैं और सहर्ष सहन करने चाहिये। यदि कोई सहन नहीं कर सकता ती निवारण कठिन हो जाता है क्योंकि उससे मां परमेश्वरी का हाथ रुक जाता है । है) तब प्रयास व विचार का आगमन होता है। किन्तु ये (प्रयास व विचार) सरलता, निष्प्रयत्नता और सामोप्य (directness) को कसे भी नहीं व्यक्त कर सकते । परम के पूर्णत्व, साधारण सहजयोगी आत्म- जब एक साक्षात्कार प्राप्त करता है उस समय ये अनेक नालियां, नाड़ी ओर चक्र अवरुद्ध होते हैं और उनके दूसरे, कुछ पदार्थ हैं जिनका विशेष चक्रों व योग-स्थल जहां क्रिया होती है वे मड़े-तुड़े होते हैं। नाड़ियों से साम्य (afinities) है । इनका उपयोग इसके प्रतिरिक्त नाडियां जगह-जगह अपने मार्ग से करते अरथवा अपने समीप रखने से ये रुग्ण स्थल इधर -उघर हो जाती हैं पोर उनमें एक रस्सी की का अ्रपनो चंतन्य लहारियां (vibrations) प्रदान गठों की तरह फंदे लग जाते हैं। इससे प्रात्मा की करत है जिनसे उक्त स्थल को बल प्राप्त होता है, शक्ति का प्रदर्शन रुक जाता है। श्रो शिव को अथवा प्रवरुद्ध नाड़ी का अवरोध बाहर फंका जाता है। कभी-कभी वे उक्त स्थान पर ऐसा झटका देत है कि बांधा उखड़ कर फेकी जाती है और मार्ग खुल जाता है जिससे कि आ्मा की शक्ति प्रवाहित शक्तिवाही' भी कहते हैं। इसका अर्थ है कि वे समस्त शक्तियां वहन करते हैं अरथात समस्त शक्ति- सम्पन्न हैं। अधिक उपयुक्त कथन होगा कि सुष्टि को समस्त शक्तिपां परमात्मा की अभिव्यक्तियां हैं जैसे सूर्य की किरणों सूर्य को प्रतिविम्बित करती है ओर चन्द्रमा की क्रिरण चन्द्रमा को। इसी भांति आत्मा अपनी शक्तियों के माध्यम से अपने आप को इस तन्त्र (System) में व्यक्त करने का प्रयत्न के स्थूल अण होने लगती है और उक्त भाग में क्रियान्वित होने लगती है ब्रधिकांश होमियोपेथी चिकित्सा प्रणाली जो कि पदार्थों के सूक्ष्म अंशों का उपयोग करती है इसी पद्धति से कार्य करती है, क्योंकि उसमें पदार्थों व परमाणु (atom and करता है और प्रपनी शक्तियों के द्वारा मागं के molecule) को पतला किया जाता (diluted रधों (प्रड़चनों) को दूर करता है। कभी-कभी Out) है । इस दूसरी विधि के लिये जानकारी व जब ग्रवरोध प्रत्यन्त गरम्भीर (विकट) होता है तब अनुभव की आरावश्यकता होती है. किन्तु चेतन्य व्यक्ति पीड़ा का अनुभव होता है और कभी-कभी लहरियां (vibrations) सहायता प्रदान करती हैं । रोगों के द्योतक लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । बहुधा 'रोग ही उपचार होता है, कारण कि भोतर के तीसरे, विभिन्न निष्कासन प्रक्रियाए आ्ात्मा दोष को यदि ऊपर प्राने दिया जाय और बाहर की शक्ति के द्वारा जो विकार उभर कर आते हैं वे निकाल दिया जाय, तो उस व्यक्ति की वह बाघा वाहर फेंके जाते हैं। इन दष्य प्रक्रियामरों के प्रतिरिक्त स्नान में उपयोग किये जाने वाले पदार्थ त्वचा व बालों को स्वच्छ करते हैं। सहस्रार के लिये शोका- काई उपयोगी है जिसका शरादिशक्ति श्री सीता ने उपयोग किया था। इसी तरह पस pus, मवाद) बाधा को बाहर फेकता है, नि:श्वास (breathing out), विशेषकर प्रासायाम में यही कार्य करता है, श्री माता जो के फोटो के सामने दीप की लो (दोप- अथवा बंपन का पूर्ण निवारण हो जাता है । इस प्रक्रिया की सहायता करने के लिये कुछ उपाय हैं। प्रथम, अपने को दोषी ने समझते हुए ओ्र सक्षम होते के लिये ग्वे अनुभव करते हुए, जो कुछ घटित हो रहा है उसे एक साक्षो की भांति देखते रहना। अच्छा सहजयोगो समझता है कि उसका निर्मला योग २६ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt शिखा) की ओर देखना, इत्यादि । इसमें सारे पंच प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर सकती है और उप- महाभूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, पाकाश) का चार में सहायक होने की बजाय उसमें हानिकारक उपयोग किया जा सकता है। हो सकती है। इसका कारण है कि उनमें अ्रकेले स्थूल अणु होते है और उनका प्रभाव एक स्थान पर चौथी व अन्तिम विधि, जिसकी पहले वरिणत सीमित रहता है । जड़़ी-बूटियां व नेस गिक औष- तीनों विधियां सहकारी (adjuncts) हैं, चेतन्य घियां परमात्मा द्वारा निर्मित और मानव की लहरियां ग्रहण करना है चैतन्य लहरियां आवश्यकता के अनुसार सन्तुलित की हुई होती हैं । परमार्मा की शक्ति की प्रभिव्यक्ति हैं। श्री माता उनमें विभिन्न पदार्थों का विभिन्न अनुपातों में जी उस शक्ति को साक्षात अवतरण होने के कारण समावेश होता है जो (अनुपात) ऋतुओं और समस्त चेतन्य लहरियों की उद्गम-स्थल हैं। चेतन्य लहरियां उगलियों शऔरर सहत्रार के माध्यम से होते रहते हैं । चन्द्रमा जिसमें हृदय के गुण ग्रहण की जा सकती हैं अ्औौर बाद में सोधे चक्रों के विद्यमान होते हैं, विभिन्न जड़ी बृटियों पर शासन माध्यम से । जब वे सीधे के माध्यम ग्रहण करता है और उन पर प्रबल प्रभाव डालता है। की जानी लगे, तब वे अ्त्यन्त वेग से प्रभाव डालती अकेली जड़ी बूटी बहुगुरग्युक्त होती हैं। यद्यपि हैं, क्योंकि इसलिये अपने बारीर (सुष्टि) का भी स्थल है । यह घटित होने के लिये हृदय श्री माता इस प्रकार श्री शिब ने ही देव चिकित्सक जी के प्रति पूर्ण उन्मुक्त (सम्पित, open, dered) होना आवश्यक है। किन्तु कभी-कभी उनकी शक्ति प्रदान की। हृदय की चैतन्य लहरियां भी बाधाग्रस्त हो सकती हैं और ऐसी स्थिति में उपरोक्त विधियां उपयोग में लाई जा सकती हैं। ज चन्द्रमा की कलाओं के साथ-साथ भी परिवर्तित से हृदय चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान का स्थान दाहिने पाश्श्व में है, किन्तु इसकी शक्ति बये पाश्व्व से आई । हृदय सृजन (सृष्टि) का विन्दु है और शुद्ध सुजन- सेजन- अश्विनियों को 'सोम' का पान कराया अर्थात् उनको surren- उपरोक्त सब कथन केवल साक्षात्कार-प्राप्त त्माग्रों के विषय में लागू होते हैं । केभी कभी आधुनिक (ऐलोपेथिक) चिकित्सा प्रणाली, जो एक असन्तुलित विधि है, स्वयं उपचार डॉ० रुस्तम आप लोग मुझे वचन देने प्राए हैं यहाँ इस International Seminar (अन्तर्राष्ट्रिीय गोष्ठी) में कि, "माँ जितनी आप मेहनत करती है, उसी तरह से हम भी मेहनत करेंगे।" -श्री माताजी सहजयोगी में ऐसा सामर्थ्यं होना चाहिए। अन्य लोगों को अनुभव हो कि वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है। उसके लिए यह सामर्थय प्राप्त करने के लिए में । आप में प्रेम और क्रियाशीलता दोनों शक्तियों सन्तुलन आवश्यक है । वह इतना मनोहारी होना चाहिए कि बिना जाने अन्य] लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों । सहजयोगी को यह गुण अरजन करना चाहिए । - श्री माताजी निर्मला योग ३० 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt जय श्री माता जी 5 L वर्तमान का महत्व कहां जायेंगे वे जिन्होंने, मन्दिर-मस्जिद, गुरुद्वारे बनवाये हैं । विद्यालय विश्वविद्यालय बनवाये. धर्मशाले हस्पताल खुलबाये हैं In७॥ यहीं ओोर अभी" जो होता, वर्तमान कहलाता है । बीत जाता जो कुछ, भूत बन जाता है ।।१।। प्रस्तर- प्रतिमाय स्थापित करवाये, झिलान्यास करवाये हैं । का किसको, कौन कहाँ दिखाता है । अस्तिव भूत चौराहे, गार्डन, गली-कृचों के, जिन्होंने नाम धराये हैं ।I८॥ भृहल्ले, मानस-पटल पर जो, कुछ छाप छोड़ जाता है ।।२॥ इतिहास के पन्नों पर जिसने, पर हर क्षण जोवन, धाक प्पनी जमाये हैं। आगे हो बढ़ता जाता है। नई-नई अभिव्यक्ति जीवन की, अपनी जीवनगाथा-ग्रन्थों के, ढेर के ढेर लगवाये हैं ।।॥ निस्य-नवीन दिखाता है ॥ ३॥ जीवन नित्य त्तिरन्तर, हर प्रचार माध्यम से, छवि अपनी बनवाये हैं। वर्तमान में भासता है । भूत-भविष्य के चक्र में, मर कर भो अमर होने के, सपने जिन्होंने सजाये हैं ॥ १० ॥ मूरख-मन नाचता है ॥४॥ वतमान में क्या सीखना, जो भी दृश्य देखता वह, इतिहास हमें बताता है । क्या व्यक्त उसे कर पाता है । वर्तमान में सीखें तो, आत्म-दृष्टि से केवल, वर्तमान स्वयं सिखाता है ॥११॥ सब कुछ साफ दिखाता है ।1५।॥ कल के कारण अज जो है, कहां गये सदियों पहले जो, वतमान हमें बताता है । इस घरती पर अराये थे । आज कर सो कल होंगे, हर कार्य का फल मिल जाता है।॥१२ ॥ बड़े प्रतापो सम्राटों ने कभी, विजय पताका फहराये थे ।॥६॥ ३१ निर्मला योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt पड़ कर भूत-भविष्य के चक्कर में, खाली हाथ चले जाते हैं ।। १४॥। समय के साथ सब ध्वस्त हो जाता, नामों निशा मिट जाता है । पर वर्तमान को जो पा जाता, पल पल समय बीत रहा अब, अ्रमर बह हो जाता है ।।१३।। हाट बन्द हुआ जाता है। वर्तमान को 'सहज' में पाना, बर्तमान को पाते ही, अवसर निकला जाता है।। १५ ।। इस जग में हम आते हैं। सी० एल० पटेल सहजयोग का कल्प बृक्ष नाश हो जाता पापों का, और मन पावन हो जाता है। सहजयोग में जो अता, वो सहज प्रभु को पाता है नाश हो जातা जब-जब भीर पड़ी भक्तों पर, प्रभु ने क्या-क्या रूप लिया। कभी मीन, कभी वामन, तो कभी नरसिं अवतार लिया। संभल अरे नादान संभल रे, कल्कि ने अवतार लिया । मां ने सबको चेत कर दिया, अन्तिम निर्णय आता है । चेतन्य लहरियों को पाता, जो सहजयोग में अ्राता है॥ नाश हो जाता रे ठगों की कमी नहीं दूनियाँ में, बने पड़े भगवान यहाँ । मां का नाम सूर्य जैसा है, उन छलियों के बीच यहाँ| माँ की अमृतवाणी ओ्रर [जो षरणामृत को पाता है । काम पार हो जाता भवसागर, घन्य धन्य हो जाता है। परममोक्ष को पाता है, जो सहजयोग में आता है।। नाश हो जाता सहजयोग गहन सागर है, ज्ञान की नहों है थाह यहाँ । जितना गहरा इसमें उतरो, उतने मोती पाओ यहाँ । ऊपर ऊपर रहने वाला, कभी न कुछ भी पाता है मानव माँ के मार्ग पे चल के, अति-मानव बन जाता है । सहजयोग में जो प्राता, वो कल्प बृक्ष बन जाता है॥ नाश हो जाता -रतन विश्वकर्मा निर्मला योग ३२ 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt ा त्यौहार नव वर्ष शालिवाहन चेत्र शुक्ल १ १०-४-८६ नव रात्रि पुजा प्रारम्भ च त्र शुक्ल नवमी चेंत्र शुक्ल [त्रयोदशी चंत्र पूरिण मा श्री राम जन्म दिवस १८-४-८६ श्री महावौर जन्म दिवस २२-४-८६ श्री हनुमान जन्म दिवस २४-४-८६ सहस्त्रार दिवस श्री आदि शकरा वाय जन्म दिवस बैसाख कृष्ण द्वादशी ५ू.५-८६ वैसाख शुक्ल पंचमी बैसाख पूरिणिमा १४-५-८६ श्री बुद्ध जन्म दिवस श्री गुरू पूजा श्री कुण्डलिनी पूजा (नाग पंचमी ) २३-५-८६ आ्रषाढ़ पूरिणमा २१-७-८६ श्रावर शुक्ल पंचमी १०-८-८६ राखी दिवस श्रावरण पूरिणिमा १६-८-८६ श्री कृष्ण जन्म दिवस श्रीवण कृष्ण अष्टमी २७-८-८६ श्री गरोश जन्म दिवस श्री गोरी पूजा भाद्रपद शुक्ल तृतीया ७-६-८६ भाद्रपद शुक्ल अष्टमी अश्विन शुक्ल १ प्रतिपदा ११-६-८६ नवरात्रि पूजा प्रारम्भ -০४-१ १०-१०-८६ हुवन (नव राधि) विजय दशमी अश्विन शुक्ल संप्तमी अशिविन शुवल दशमो अश्विन पूरिणमा १२-१०-८६ कोजागिरि पूरणिमा (श्री लक्ष्मी पूजा) श्री लक्ष्मी पूजा (दोपावली) १७-१०-८६ अश्विन अमावस्या १-११-८६ कार्तिक पूरिण मा श्री नानक जन्म दिवस १६-११-८६ श्री दत्तावेय जन्म दिवस माघ शुक्ल चतुर्दशी पोष कृष्ण नवमी १५-१२-८६ श्री जीसस जन्म दिवस २५-१२-५६ ततीय कवर निर्मला योग 1986_Nirmala_Yoga_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt Registered with the Registrar of Newspapers under Regn. No. 369991 ॥ श्री निर्मला देव्ये नमो नमः ।। L5 । निर्मल माता कुर्डलिनी माता। निर्मल माता, कोंडलिनी माता, आदिश क्ति न देवता तू तू देवता ॥ धु०] |॥ महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली तू सकलां ची निर्मल माता । मान बाँची भाग्यविधातो कुंडलिनी जागृती देऊ नी तू तरी कलियुगो या मानवाला। मोक्ष देतसे तू तरी ।।१।। । ब्रह्मर्घ्र तू छेदिसी कलियगी या मानवस्वरूपी । जन्म घ असूर तो तरी देव ऋषी ही पृथ्वी वरती । जन्म घेऊनी राहती चेतन्यचक्ष नी सहजयोगी ते । पाह ताततेकोण ते ।।२॥ त रो घेतसे तु हृदयाची पावती माता। देव ऋषी ही तुझिया चरणी गौरी माता, सरस्वती तू । लक्ष्मी माता तू कलियुगाची कल की माता । तुच मानवा तारिसी ।।३।॥ त री कलियुगोची कल की माता। मानव देही जन्म चेतसे ऋषो मुनीना ज्ञात होत से । कलकी माता अवतरली शंख. चक्र, गदा, पद्मते । अवनी वरती येतसे ।।४।। सहस्त्रा वरती घ्यान धरावे । मानवाना बरे करावे राधा माता, सीता माता । मेरी माता तू तरी आत्मस्वरूप तू परमेश्वर तू । महामाया तु तरी ।।५।। चिरबालक तो गणेश आता। हनूमन्त नी भेरव नाथा आणिक येसू गण सेवक तो । निर्मल देवी चा असे विरोधात जे मानव असती । शिक्षा करिती ते तरी ।।६।। पूर्वी कधी जे नाही घडले । निर्मले ने करूनी दाविले अनुभवाने अनुभव देता । ये तो आता मानवा दिव्या नेच तो दिवा लाग तो। निर्मल देवी तमो नमः ।।७॥ -विष्णु नारायण फडके (सहजयोग केन्द्र, दादर) Edited & Published by Sh. S. C. Rai, 43, Bunglow Road, Delhi-110007 and Printed at Ratnadeep Press, Darya Ganj, New Delhi-110002. One Issue Rs. 8.00, Annual Subscription Rs. 40.00: Foreign [ By Airmail £ 12 S 161 फ़ी