हिंदी पववन 982 सारस भारत राग र आत ड जीर बंड डाक मारतीय परिशिष्ट अक खांड । और 1 और श्री निर्मला देवी नमो नमः ---- "मेरी इच्छा है कि आप अपनी पवित्रता के दारा अपनी पवित्रता को पहचाने और इसे सम्मानित कर सके। यदि आप स्वच्छ वस्त्र पहने हैं तो आप उनके सम्मान के प्रति जागरूक व सचेत हो जाते है"। श्री माता जी w040------------- ----- ------ श्री माताजी निर्मला देवी का मारत दौरा ।989 दक्षिण भारत तथा गुजरात पर श्री माताजी का विशेष अनुग्रह रहा। उन्होंने हैदराबाद, मद्रास, को म्बतुर, बंगलोर, अहमदाबाद, बडोदा, राजकोट व चोरहाट में सार्वजीनिक भाषण दिये। भारत विमिन्न प्रकार के व्यक्तियों अलग भाषामें बोलते हैं, फिर भी श्री माता जी की प्रेम की भाषा ने सभी के हृदय को छू लिया। जैसा कि श्रीमाताजी ने कहा, "समस्या भाषा की नहीं, ोजने वालों की हैं, सहजयोग खुले दिमाग वाले व्यकितियों के लिए ही है " व संस्कृतियों का देश है। ययपि वे सभी पाँच राज्य, जहाँ श्रीमाताजी गई, अलग हजारों लोगों ने जिन्होंने चैतन्य-लहरी (vibratIons) वे देवी को नत्मस्तक हुए। का नाम भी नहीं सुना धा। अचानक उसी क्षण, मन ही मन, उन्होंने साक्षात्कार को प्राप्त किया तथा आत्म इस शवित को मन्यता दी और उसके लिए उन्हें किसी दूसरी व्यास्या की आवश्यकता नहीं धी। हैदराबाद में उनकी, चार वर्ष के पश्चात, यह दूसरी यात्रा थी और हजारों की संख्या में लोग उनके कार्यकरम में एकत्रित हुए। ही नये केन्द्रो का शुभारंभ हुआ । बंगलौर, कोयम्बटूर, अहमदाबाद राजकोट और चोरहाट में उनकी पहली यात्रा में ब बंगलौर यात्रा का महत्व, उनकी उस विजय हास्य से प्रकट हुआ जब सहजयोगी उनकी प्रशंसा में "महिमासुर मंर्दिनी" गा रहे थे। वे अपने दिव्य रूप में सभी रक्षसों को मारने से पहले उनका प्रकट होने के बाद नष्ट कर पर्दफाश करती हैं, जिस तरह हमारे अंदर की बुराई (Negativity) दी जाती है। उनके प्रत्येक वाक्य व प्रत्येक मोहिनी मुस्कान में सहस्त्र अर्व छिपे होते हैं। उन्होंने बहुत सी अदभुत वाते कहीं जिनमें से कुछ नीचे प्रस्तुत किये है, उनके प्रवचनो को रिकार्ड (Record) करके समस्त विश्व में बाटने के लिए आस्ट्रिया भेज दिया गया है। श्री माता जी के दक्षण भारतीय दोरे में हुई सार्वजनिक वार्ता के संकलित अंश : सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि हम सत्य की न रचना कर सकते है और न ही सत्य को संगठित कर सकते हैं। सत्य है, सत्य था और सत्य रहेगा। हम सत्य को धोखा नहीं दे सकते। हें सत्य को पाने के लिए उसकी ऊंचाई तक पहुंचना होगा। यह कोई सिध्दान्त नहीं है जिसे इम बदल दें। सहजयोग सत्य के प्रमाण को स्थापित करता है। सभी सिध्दान्त सत्य से ही उद्भुत हुए है पर सत्य का अनुभव कहीं नहीं है। सत्य की अपनी खोजू में हमें अपने प्रति बहुत इमानदार होना चाहिए, न कि अपने से धौखा घड़ी करे। जब आप शुध्द भावना के साथ आते हैं तो सत्य आपके पास आ जाता है। जो सच्चे नहीं है, आपको उनका साथ छोड़ देना चाहिप। आप वूसरे के प्रभुत्व की चिन्ता क्यों करते हैं यदि उसे यह प्रभुत्व ईश्वर की कृपा से मिला है। ईश्वर को सहजयोग की आवश्यकता नहीं है, आपको ही आत्म-साक्षात्कार की आवश्यका है। नये लोगों को यह समझना चाहिए कि वह सहजयोग में आकर हम पर उपकार नहीं कर रहें है यह ज्यादा अच्छा होगा कि ज्यादा संख्याके उच्छसल लोगों की अपेक्षा, कुछ सम्प्रांत व्यक्ति ही सहजयोग को अपनाये। सहजयोग कोई प्लास्टिक नहीं है कि आप उसका बड़ी संख्या में उत्पादन करते रहें । इसका आरंभ कुछ ही थोड़े व्यव्ितियोंसे होना हैं। सत बहुत सारे दुष्प्रभाव अब चले गये हैं। यदि मानवता को बचाना है तो आपको लोगों को कुछ दुसरे कार्य करना आसान है एक डॉक्टर, अन्य व्योसायिक व्यव्ति होना आसान है। जो मानवता की रक्षा करेगा उसका बदलना पडेगा। यह एक अत्यधिक बड़ा कार्य है। इन्जिनियर वकील या नाम अध्यात्मवाद के इतिहास मे अमर रहेगा। मानवता को बदलना कितना दुरूह काम है। इसलिए आप स्वयं से तथा अपने चित्त से साव्धान रहें। आत्मसाक्षात्कार देना कोई कठिन कार्य नहीं है परन्तु उसको बनाये रखने के लिए कठिन परिश्म करना पड़ता हैं। क्योंकि मनुष्य आसानीसै विचारों में खो जाता है। यदि आप सहजयोंग सामुहिकता मे करे तो इसकों बनाये रखना कठिन समस्या नहीं है क्यों कि सभी साधन सहज योग दारा बताये गये हैं। अपने विकास में हमने जो पाया है वह हमारे के्द्रीय नाडी मंडल (Central Nervous Syst के ढारा प्रकट होता है। पूर्व में, लोगों का विश्वास धा कि हमें क्षणभगुर वस्तुओं का अनुग्रह करने की बजाय अनन्त प्रकाश की ईच्छा करनी चाहिए। क्षणभगुर वस्तुओं का अस्तित्व है और उनका अस्तित्व बनाये रखने के लिए उनका प्रयोग सही मर्यावा में करना चाहिए जब आप मर्यादाओं को पार कर जाते है और उनमें अत्याधिक लिप्त हो जाते है तो वे विनाशकारी और दुर्माग्यपूर्ण बुराईयाँ बन जाती हैं। पशु व मनुष्य के विकसित होने में अनन्त सर्व देदिप्यमान शक्ति कार्य करती है। ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना इतने संगठित ढंग से की है, और देवी शक्ति इसका प्रत्येक अणु, शाक-सब्जी, बारीकी से ध्यान रखती है परन्तु वह इसे माया दारा अन्ञानता से ढक देता हैं इस माया के कारण मनुष्य आसानी से क्षणिक भावनाओं की और झुक जाता है और उसमें खों जाता है। मनुष्य की समरा एक ही संकुचित रास्ते पर आगे पीछे चलती रहती है परन्तु दैवी शक्ति सभी दिशाओं को एक जैसा प्रकाशमान करती है। आप मुख्यधारा से जौडना पड़ता है। एक बार आप ईश्वर के साम्रान्य में आ जायें तो आपको विदित होगा कि उसका प्रशासन महत्वपूर्ण यह है कि यहाँ प्रेम की शवित दारा कार्य सम्पन्न हैं। सर्वशकवितमान भगवान जिसने इस संसार को बनाया है उसे इसके हित की आपसे कम्प्युटर की तरह है परन्तु कम्प्यूटर को वियुत की प्यार करनेवाला सर्वाधिक उपत और सक्षम है। दयावान, अधिक चिन्ता है। तालाव में कीचड़ व गंदगी होने पर भी वहाँ कमल स्िलते हैं। वह अपनी सुगंध सारे संसार में फैलाते हैं तथा उसे अपनी सुन्दरता से भर देते है । कमल इतना कोमल है परन्तु फिर भी उसकी के लिए खुली रहती हैं इसीप्रकार सहजयोग में आपका व्यक्तित्व, सुन्दर कमल की भाति विकरसित होता है, जिसकी पत्तियों पर पानी नहीं ठहरता है। जिसका पंखुडियाँ काँटेदार पैरों वाले गोबरैला(Beetle) लक्ष्मी तत्व परिपूर्णस जागृत हो जाता है ऐसा 'व्याक्त कमल पर लड़ा हो सकता है। वह किसी पर वो. नहीं बनता। उसका हृदय कमल की भाति सुरगन्धित रहता है। श्री लक्ष्मी एक हाथ से देती हैं व दूसरे हाथ से संरक्षण करती है जैसे कि पिता अपने बच्चों को छतरी से। इसी तरह एक ज्ञानी उ्यमी अपने लोगों की भलाई का हमेशा ध्यान रखता है। रूपये-पैसे का चतन रेखाकीय है और इसके लालचसे बहुत सी विमारियों का जन्म होता है आप लोगों को सोचना चाहिए कि धनी लोगों के बारे में लोग क्या कहते हैं। ৪ -2 -89 को मद्रास में श्री मूर्ति के घर श्री माता जी की पूजा वार्ता : कलियुग में मनुष्य केवल क्षणिक लाभ के लिए दूसरों का ध्यान आकर्षत करने में अपना समय नष्ट कर रहा है। एस पागल संसार में सहजयोगी की स्थिति क्या है? आप देखते है कि संसार क्षणभंगुर बस्तुओं के पीछे भाग रहा है । परन्तु हमें तो अनन्त को खोजना है । नये युग में कुछ नयी परिस्थितियों व बन्धन है सवसे अधिक कोलन बंधन समय का है। समय को बचाने के लिप हम हर समय योजना बनाते रहते है परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कोई भी ची.ज समय पर पूरी नहीं होती है उनमुक्त हँसी है। आज के समय में जीवन इतना गतियुक्त सहज योगी नहीं भविष्य वादी व्यक्ति और कष्टमय हो गया कि विफलता का अनुभव बहुत हानिकारक होता है। उदाहरण के लिए जब ब्यक्ति हाथ में हयाई जहाज का टिकिट लेते हैं तो घबरा जाते है। जिस समय उनको पता चलता हैं कि उन्हें हवाई अडूडे जाना है तो वह कॉपने लगते है। उसका परिणाम यह होता है कि वे कुछ वस्तुपं भूल जाते हैं और उनका हवाई जहाज़ भी छूट जाता है। यदि वह सच्चे सहजयोगी है तो उनका यान कमी नहीं छुट सकता। सहज-योगी को "कालातीत" हसमय के परे होना है। यदि कपका चित्त वर्तमान में नहीं है तब यह मविष्य में है और आप अगली वस्तु के बारे में सोचते रहते हैं। आपका चित्त समय पर केन्द्रित होने के कारण विमय को सग अने में चूक जाता है। और वड बहूमूल्य क्षण नष्ट हो जाता है।अतः आप अपने चित्त को तनावरहित रविविये। आपको अपना चित्त/में रखना है और देखना है कि /हो रहा है आगे-पीछे भाग रहा है । एक बार इंग्लैह में हम एक शादी में गये। लोग उसमें शामिल होने के लिए इतनी जल्दी में थे कि जब ये वहाँ पहुँचे तब चर्च भी हंगिरजाधर नही खुला था। इउन्मुक्त हँसी परन्तु सहज योगी को जानना चाहिय कि मनुष्य कैवल 3. हमें भविष्यवादी नहीं होना चाहिए इससे एकाग्रता टूट जाती है। ठीक समय पर हर चीज़ आखिर हम लोग़ कौनसा ऐसा विशेष व्त याद आती है और प्रत्येक कार्य "सहजता" से हो जाता है। कर रहे हैं - सिर्फ हयाई अड्डे पर प्रतीक्षा। हर्में पूछना चाहिए कि "क्या हम स्वयं में आनद का अनुभव कर रहे हैं।" यदि हम किसी भी प्रकार का आनद नहीं पा सकते तो फिर हम इसे क्यों कर रहे हैं। तत्व यह है कि हमें आनन्द में रहना चाहिए। जब हम पूना हवाई अड्डे पर गये तो, हवाई-जहाज तीन घंटे देरी से था। सभी सहजयोगी का गुझसे सब सहजयोगियों पर केनद्रित किया जो मुझसे मिलने हैदराबाद हवाई सहजयोगियों को पक दूसरे को जान लेने का अवसर मिला। सभी सहजयोगियों ने आपसी वार्तालाप मिलने आये थे। सबने इस समय सामूहिकता का आनन्द लिया। तब मैंने अपना ध्यान उन अड्डे पर आये थे। इससे सब मैं कभी का आनक लिया और अपने अनुभव बाँटे। मानव सम्बन्धों की सुन्दरता का आनन्द लिजिए। कुछ नहीं करती, मैं "अकर्म" की स्थिति में रहती हूँ। अत ः आप भी एक साक्षी के रूप में अपना स्थान बनाईये। अपने आप मे तनाय और रक्तदाब बढाने का क्या उपयोग है? क सबसे प्रधम आपको समय बोध से याहर निकलना सीखना है। तब आप पायेंगे कि हर काम आपके समयानुसार हो रहा है मनुष्य को अत्याधिक कार्यव्यस्त अथवा आलसी होने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक कार्य अपने समय पर होता है जैसे कि महिलाएँ अपना समय लेती है। उन्मुबत हँसी / सहज में मध्य ,८ क्या he सहज योग के आ्शीवादो मे से पक यह है कि आप समय को भूल जाते है। सहज योग का आश्रवाद प्राप्त कीजिए। ि हमे उसी तरह रहना चाहिए जो कि हम है। यदि आप महिला है तो महिला की तरह ही रहिए, यदि पूरूष है तो पुरूष की भाँति रहिए सहज योग में आपको अपने पुरूषत्व को विकसित करना है यदि कोई पुरूष किसी स्त्री के पीछे भागता है तो वह स्त्री है हँसी ऐसे पुरूष को तो डाटर के पास भेज देना चाहिए। उसके अन्दर एक तरह का भूत है। यदि आप हमेशा इधर उधर देख रहे है तो आपका चित्त वहाँ नहीं है। आपका चित्त उस एक झील की तरह शांत डोना चाहिए जिसमें कोई लहर न हो - जो सारे संसार में समस्त आनंद को प्रतिबिंबित करे। सिर्फ एक कटाक्ष" ही आत्मसाक्षत्कार देने के लिए काफी है । सर्वत्र संचार माध्यम में न नन्द हे और न कोई भावना। यह तो एक बहुत चंचल चि्त को जन्म देती है। इससे तमाम शारिरिक समस्याये आरम्भ हो जाती है। एक सहज योगी के लिए भ आवश्यक है कि बह अपने चित्त को स्थिर रखे। मेरे चरणों में घ्यान लगाने से चित्त स्थिर होता है। आपका चित्त शुध्द बना रखने के लिये आपकी दृष्टि भी शुध्द होनी चाहिये। यह एक स्थिति है जहाँ आप केवल एक साक्षी बन जाते है, बिलकुल उस पंखे के पहिए के समान जो धूम तो रहा हे परन्तु क्षपने स्थान पर र्थिर दिखता है। आपको केवल देखना चाहिए सोचना नहीं। यदि आपको कुछ पाने का आनन्द लेना है, तो उसको मुत्य पर ध्यान मृने दे जो आनंद व प्रेम से एक कलाकार अपनी कृति बनाने में लगाता है वह एक आनंद के सागर के समान आपके उपर बरसता है। आप में एक आनन्द के सागर सो लगता है। जिसका अनुभव आप केवल "नि्वाण रोचिए कि आप दूरारों को क्या होने " अवस्था मे रह कर ही कर सकते है। आप दे सकते है। साड़ी स्वरीदते समय भी हमें गें सोचना चाहिए। उनके काम के बारे में भी सोचना चाहिए। प्रत्येक यस्तु के पीछे एक तत्व होता गरीब बुनकरों के बारे है। यद आपका चित्त वहाँ है तो आप उस तत्व को देख सकते है फंशन पक ऐसी बुराई है कि चित्त फैशन का गुलाम बन जाता है और प्रत्येक व्यक्ति अन्धाधुन्द वही पहनता है। सहजयोगी को क्षणभगर कल्पना पर जीने की इच्छा नहीं करनी है केवल इन सब पर हँसना है। हम हमें इन नश्वर क्षणमंगुर विचारों पर अपनी शक्ति बतम नहीं करनी है। रहे है और निरर्थक बातों का उपहास कर आनन्द एक ठोस आधार पर खड़े है, गहराईमे आनन्द/ उठा रहे है । जैसा कि कबीर में हग केवल आनन्द प्राप्त करते है, और दर्द का अनुभव नहीं करते। आप कलियुग की हा्यप्रद स्थिति को देखिये और फेवल उसका आनन्द लीजिए। ने कहा है, "मैं उनको कैसे समझाऊं जो स्वयं अंधे है"। इस अवस्था प. | ले, अन्य व्यक्तियो को आपके अंतरमे एक अनोखा पन, पवित्रता, करूणा व शान्ति दिखाई देनी चाहिये। आप सहजयोग के विज्ञापन है, आप एक प्रकाश है यही निर्मल चर्म के अनुयायी (N1rmali का वर्णन है । जैसा कि नामदेव ने गोराकुंभार से मिलने के पश्चात कहा "मैं तो निर्गुण को देखने आया था और उसको आपके अन्दर सगुण के रूप में देख रहा हूँ ।" किसी दूसरे की यह कितनी अच्छी प्रशंसा है। एक दूसरे के अन्दर के सौन्दर्य को देखिए और उसका आनन्द उठाईये। है आपको अपने ध्यान में केवल यह कहना/"हमे चित्त के प्रकाश की शुध्दता प्रदान हो"। मैं तो आपकी इच्छा पर हूँ। हृदय मे बस जाती हैं, यह तो मेरी उदारता है मुझे सहजयोग की आवश्यकता नहीं है। सहजयोग की आवश्यकता तो आपको है। आप की ही भलाई के लिए मैं यहाँ हूँ। सहज योग का आश्शिवाद प्राप्त यदि आप कहते हैं कि माँ मेरे हुदय में विराजिए तो में आपके कीजिए । ईश्वर आपको सुखी रखे । पुजा के पश्चात सभी सहजयोगियों ने श्री माता जी के श्री चरणों में नम्न प्रार्थना समर्पित की শ त्वमेव साक्षात श्री चित्त शवित साक्षात श्री आदिशवित माता जी श्री निर्मला देवी नमो नमः " हे लज्जा की देवी सारे सहजयोगी आपके समक्ष नतमस्तक है। आपने हमे अपनी पूजा करने का शुभ अवसर दिया, उसके लिये हम हृदय से आभारी है। हम सब आपकी सन्तान जिन्होंने आपकी पूजा के प्रसाद का आनंद उठाया व आपका आर्शीवाद प्राप्त किया, कामना करते है कि हग उन सब सद्गुणों की अनुसरण करे जिन्हें आपने सुले हृदय से हम पर बरसाया है। हम कामना करते है कि हम सहजयोग का संदेश पेलाये और आपके नाम को चार चाँद लगाये। अन्त मे श्री-मूर्ति दारा लिखित एक तंगिल भजन श्री माता जी की स्तुृति में गाया गया देवी सार अत्यधिक प्रसन्न हुई और उन्होंने इच्छा व्यक्त की, कि वह भजन अन््तराष्ट्रीय स्तर पर गाया जाना चाहिए। कार्यक्रम के दौरान प्रश्नोत्तर गुरु की क्या्या बया है? गुरू को अपने शिष्य की पूरी भलाई व धर्मपरायणता का उत्तरदायित्व एक माँ की भांति प्रश्न । लेना पड़ता है। गुरू वह हैं जो अपने शिष्य को ब्रम चैतन्य से जोड़ता है। आप उसे खरीद नहीं सकते। यदि आप गुरू को खरीदते हैं तो कह आपका सेवक हो जाता है, गुरू नहीं रह सकता। राज योग, भवित योग, जप योग व सहज योग में क्या अन्तर है? प्रश्न 2- आधुनिक राजयोग, बिना ईधन को जलाये कार के पहियों को चलाने के प्रत्यन के समान है। राजयोग अपने आप ही सहजयोग. में समाविष्ठ है । जैसे साना खाते ही हमारा पात्नतंत्र स्वयं ही कियाशील हो जाता है। उसी तरह जब कुंडलिनी जागृत होती है तो आप स्वयं ही ईश्वर से जुड़ जाते हैं। जब आप ईश्वर के साम्रह्य में हैं तो एक बार ही ईश्वर का नाम लेना हध्यान देना काफ्री है। बार बार ईश्वर का नाम जपकर यह मत समझिये कि ईश्वर आपकी जेव मे हैं। हउन्मुबत हँसी भादिन भा दो प्रकार की हो सकती है, पहली ऊन्ध भवित, दूसरी जागृत भविति अर्थात सहजयोग। ईश्वर से बिना जुड़े भवित करना व्यर्थ है। बह एक बिना सम्बन्ध जोडे फोन करने के समान है। श्री कृष्णजी के कथनानुसार यह अनन्य मक्ति होनी चांहिए अर्थात इस जैसा अन्य कोई हो ही न । प्रश्न 3 सभी नंदियाँ कहीं न कहीं जाकर समुद्र में गिरती हैं, हमें कैसे ज्ञात होगा कि हम कब पहुँचे? मैं सोचती हैँं की आप, अपनी यात्रा के गंतव्य पर पहुँच गये हैं। यदि आप सोचते हैं कि आप नहीं पहुँचे, तो अच्छा हो कि आप वापिस जायें और फिर अपनी यात्रा कर यहाँ पहुँचे। इउन्मुक्त हँसी प्रश्न 4- गीता का उपदेश अर्जुन को दिया गया था लेकिन इसका आदेश सार्वभौमिक है। सभी ग्रन्थो का उपदेश सारी मानवजाति के लिए है। यह सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं अपितु अपने को उसके अनुसार ढालने में है। एक स्थित प्रज्ञा जागृत आत्मा तथा गीता के अध्ययनकर्ता या उपदेशक में इतना अन्तर क्यो हैं? क्योंकि आपको एक "स्थित प्रज्ञा" बनना है, उसी कार्य के लिए मैं आई हूँ। प्रश्न 5 शिक्षा के सम्बन्ध में? Discretion) उच्च शिक्षा पा लेना ही काफी नहीं है। निर्णय क्षमता/का भी प्रयोग करना है। ्या ध्यान करना(Meditation) गेस्मेरिजम है? मेस्मेरिजम में मानव चेतना नहीं रहतीं। सहजयोग में मानव चेतना जागृत व विस्तृत होती है। बह असीम हो जाती है । मेस्मेरिजम में आपकी आँखे खुली रहती है जिनसे आप अचेत प्रश्न 6- টি अवस्था में पहुँचाये जाते हैं जबकि सहजयोग में ध्यान करते समय आपकी जाे बन्द रहती हैं। इसलिए उनका प्रयोग मेस्मेरिज़म के लिए नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र में अकाल क्यो? जबकि यह एक योग भूमि है । क्योंकि यहाँ के लोगों ने चीनी से शराब बनाना शुरू कर दिया है जो योग भूमि में रह रहे हैं उन्हें ज्ञान होना चाहिए कि वह क्या कर रहें हैं । जो इस योगभूमि में पैदा हुए हैं उनका बड़ा उत्तरदायित्व है कि आत्म जागृति प्राप्त करें । प्रश्न 7. गुजरात लोग पश्चिम की और देखते हैं, परन्तु भौतिक वस्तुओं से सुब नहीं मिलता। आज आपके पास एक वस्तु है कल आप दूसरी वस्तु की इच्छा करेंगे। पहले मॅहगे गुरुओं का फैशन धा, आज सादक द्रव्यों ने उनका स्थान ले लिया है। वह पेसे मादक द्रव्य लेते है जो उनके दिमाग को/ डालता है। फिर वह कान फोड देने वाला पाप संगीत सुनते हैं, इस लिए उनका मस्ति् (Limbfc Area) चेतनाशुन्य व संज्ञाहीन हो जाता है। उन्हें ज्यादा गहरी व तीव्र संवेदना अनुभूति की आवश्यकता होती है। क्या यहीं सब उनकी आजादी ने उन्हें दिया है कि कैसे अपनी जिंदगी बरबाद की जाये? वह तो अपनी आजादी का दिखावा र करते है वह अपने बालों को रंग सकते है, मनचाही पोशाक पहन सकते है, चाहे वह हास्यप्रद व असभ्य ही नजर आये; जैसा कि मैने हालोवीन में देखा। अमेरिका अधिक गरीब देश हो गया है उनका सारा पैसा कहां गया? ऐसी उन्नीत से क्या फायदा जो लोगों को निराशा की चर्मसीमा पर पहुँचाकर आत्महत्या करने को घाध्य करे। स्वीडन, स्विज़रलैंड, और नोखे का रहनसहन सबसे उच्च है फिर भी वह सब इस प्रतियोगिता में रहते हैं कि सबसे अधिक आत्महत्यायें कहाँ होती है। जब हम किसी को गड्डे में गिरते देखते हैं तो हम उसका अनुसरण क्यों करे, ? आप अपने परिवार के लिए कितना परिश्रम करते हैं, क्या आप थोड़ी सी मेहनत अपनी अन्तर आत्मा की खुशी के लिए नहीं कर सकते? जो मनुष्य आत्म साक्षात्कार पा लेता है वह समर्थ बन जाता है। उसकी कोई भी आदत नहीं बनती, न ही कोई उसे वश में कर सकता है। वह तो पहिये की धुरी के समान स्थिर और शान्त रहता है। उसी प्रकार आप जागरूक लोग सभी चीजें देखते हैं परन्तु उनका प्रभाव आप पर नहीं पड़ता। नारी मुक्ति सत्री और पुरूम के अधिकार समान है लेकिन फिर भी यह एक जैसे नहीं है। आँखो को शान्ति देने स्त्री का स्थान धरती माँ के समान है । वह के लिए यह समझना आवश्यक है। 2. Z घुमा, Zऔर आाले हरे परिचान पहनती है, वह पोषण करती है, वह माँ की तरह सहनशील है और हमारे पापों को क्षमा करती है। मैं सोचती हूं कि एक पत्नी अपने पति से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। यदि स्त्री अपनी शवित का उत्तरदायित्व जान लें तो और भी शक्तिशाली हो सकती है। भारतवर्ष में कहा जाता है कि "स्त्री पूज्यनीय है" परन्तु वह पूजा योग्य भी तो होनी चाहिए। तुम्हें पति/पात्न का सुख तो मिल सकता है परन्तु आनंद आत्मा से ही मिलता है। आत्मा सुख और दुख से परे है उससे तो केवल आनंद ही प्रस्पुटित होता है । ार श्री माताजी के दौरे का पक दिन राजकोट के तीन घंटे की धूल भरी कार यात्रा के पश्चात सबसे बड़े समाचार-पत्र के संवाददाता दारा श्री गातजी का स्वागत किया गया अभी श्री माताजी ने अपने कमरें में प्रवेश ही किया था कि दो अधीर पत्रकार कमरें में जबरदक्ती घुस आए् वह अपने समाचार पत्र में छापना चाहते थे जो कुछ घण्टो बाद ही निकलने वाला था। राजेश भाई ऊपर स्पाना लेकर वापिस आय. तो उन्होंने वह जागृत आत्मायें देखी। और श्री माताजी से साक्षात्कार के लिए विनंती करने लगे। यह साक्षात्कार मि अब पत्रकार सम्मोलन का समय हो चुका है। राजेश प्रश्न काल के लिए शान्त बैठे हैे कि प्रश्नोत्तर का उपद्रव एक तेज तरार स्त्री पत्रकार से शुरू होता है। पाँच मिनट के पश्चात मे वह स्त्री पत्रकार मोम की तहर पिघलने लगती है। पत्रकार श्री माता जी से आत्म साक्षात्कार करवाने के लिए प्रार्थना करने लगते है । "क्या तुम्हे विश्वास है कि तुम्हे आत्मसाक्षात्कार पाना है"? श्रीमाताजी ने पूछा। "हाँ, इँ"। सभी पत्रकारों को माता जी के आशीर्वाद से आत्मसाक्षात्कार मिला। प्रश्नों का बया हुआ? व्यवस्थापकों की तरफ से इमरजेन्सी संदेश मिलने शुरू हो गए हैं क्यों कि पब्लिक कार्यकम का समय हो गया है। एक हजार लोगों के लिए बने सभा भवन में ।200 लोग बैठे है। ।0 00 व्यकवरित सभा भवन में और 200 व्यक्ति मंच पर। बाहर उद्यान में भी ।000 प्रतीक्षारत लोगों के लिए लाऊडस्पीकर लगाए गए है। कन श्री माताजी ने जोर दार तालियों की गइगड़ाहट में प्रवेश किया। सबने श्रीमाताजी के व्याख्यान अधीर भीड़ आगे का प्रोग्राम जानने के लिए वैचैन स्वतम होने से पहले ही आत्मसाक्षात्कार पा लिया। थी परन्तु : प्रोग्राम नहीं रखा गया धा। व्यवस्थापक साहिब क्या हुआ उसका? उपरान्त * (Follow up चौरवाइ समुद्र के किनारे एक आथय स्थान है जहाँ राजेश शाह का पेतृक धर है। वहाँ ही श्री माता जी की पूजा की गई। श्री माताजी का स्वागत शहनाई के मधूर संगीत व तुमुल ध्यान से किया गया। कुँबारी कन्याऐ गुलाब की पंखुडियाँ बिखेरते हुए श्री माताजी को मण्डप में ले गई। यह मण्डप नारियल के बाग में बनाया गया धा। हजारों ग्रामीण श्री माताजी की पूजा के लिए एकत्रित हुए। श्री माताजीके कमल चरणोंके नीचे केले के पत्ते रखे गए और गुजरात की प्रचलित माता अम्बा की प्रशंसा में सहृदय आरती गाई। देवी माँ बहुत प्रसन्न हुई। नाचते, गाते, परमानदत जनसमुदाय के साथ श्री माताजी बैलगाड़ी में बैठ कर सार्वजीनक कुँवारी कन्यायें पानी के कलश लिए हुए श्री माता जी का सुभ शगुन स्वागत करती है। अधाह जन समूह उनकी चरण धुलि लेने के लिए झुकता हुआ ऐसा प्रतीत होता कार्यक्म के लिए आती हैं। है मानो असंख्य प्रकाश पुंज पक प्रकाश सागर में लीन हो रहे हों। सायंकाल के लोकनृत्य का समाँ बंधा रहा जो देर रात तक चला परन्तु सूक्ष में श्री माताजी का ध्यान केवल कैन्सर के रोगी को ठीक करने में लगा था और वह बिल्कुल ठीक भी हो गया। अन्त में कार्यक्रम परम आनंद की चरम सीमा पर पहुँच कर श्री कृष्ण के परम प्रिय पवित्र नृत्य डीडिया रास तक पहुँच गया लेकिन श्रीमाताजी के प्यार की रास तो सब सीमाओं को लॉघ सुकी थी जिसकी सुन्दर उ्याल्या तो किसी को भी ज्ञान न धा। कोई कवि ही कर सकता है। हम अब कहा है, इसका उस समय जय श्री मात। जी। हा वार्षिक चंदा |0 8 रूपये कृपया ड्राफ्ट निम्न पत्ते पर भेजे विश्व निर्मल घर्म पो-बा. नं. 190 । कोथरोड, पूना 4।। 029 भारत चैतन्य लहरी अँक २ खंड । ऊँ श्री निर्मला देवी नमो नमः कुछ लोग चनी हैं, कुछ लोग गरीब; यह सब क्षण मंगर चीजें हैं, अपने हृदय के अंदर देखिए और उस प्रेम का आनंद लीजिए। प्रेम के साथय आप ऊपर उठिये और पक बार फिर से महानता को प्राप्त करिए। ंत श्री माताजी श्री माताजी निर्मता देवी फी मारत ात्रा 1909 चैतन्य लहरी के पिछले जंक में दक्षिण भारत और गुजरात में हुए श्री भाताजी के कार्यक्रमों का वर्णन संतेप में किया गया था। भारत यात्रा में नागपुर, दिल्ली लखनऊ, देहरादून, बम्बई, पटना, कलकल्ता और नेपाल के कार्यक्रम भी शामिल हुए। उन्होंने जो अदभुत बातें कही, उन सबके साथ न्याय करने के लिए एक पुस्तक लिलनी पड़ेगी। तब तक के लिप दिव्य संदेश को बॉटने के लिए यह संकलित अंध प्रस्तुत विया जा रहा है। नागपुर हमें अपने घर आने जैसा लगा । हम श्रीमाताजी के पुश्तैनी स्थान होम टाऊन की सुशी और प्यार को महसूस कर रहे थे जो व्यक्ति उन्हें बचपन से जानते धे उन्होंने उनसे संबंधित बहुत सी सुन्दर घटनायें सुनाई। एक सन्जन जो अब एस पी. हैं उन्हेोंने एक छोटी पुस्तक दि्ाई, जिसपर श्री माताजी का नाम एक समाज यल्याण संस्था की अध्याक्षिका के रूप में लिखा था। उनका बचपन अनेक कल्याण कार्य करने में गुजरा। यह आश्चर्य की बात थी कि वह उन सब लोगों को पहचान मानव सकीं, जिनसे वह वर्षों से नहीं मिली थीं यह यादों का प्रकाशित होना था। फिर वहीँ वह विद्यालय था जहाँ उन्होंने पढ़ाई की, गलियाँ और बगीचे जो कभी श्री बालकृष्ण साक्षात के दिव्य लीलाओं के दृश्य बाबा मामा ने अपने अलंकारित भाषा में नागपुरी स्वागत से सब लोगों को गवगद कर दिया तथा थे। उसमें संगीत का आनंद घोल दिया। श्रीमाताजी दुवारा दिल्ली आश्रम का उद्घाटन एक दिव्य घटना थी। जैसे ही दैव्य ने अपने आशिर्वाद बहनों के त्याग पर खुशी के आश्रुओं से भर गये जो कि प्रेम की वर्षा की, हम लोग दिल्ली के भाई के स्मारक के निर्माण में लगा है इस बार दिल्ली में अत्यधिक जन कार्यक्रम हुए इस बार राजधानी दुन घाटी ने पर्वतों की देवी का सुले हृदय से स्वागत किया। सब जगह ऐसा घोषित किया गया कि "सिलने का समय आ गया है"। जिस प्रकार प्रकृति ने रंग-बिरंगे फूलों की अनुपम घटा विरवेरी हुई थी उसी प्रकार देहरादून के लोगों की आत्मजागृति का समय आ गया था। ति 66वे जन्मदिन के उपलक्ष में उनके अभिनंदन के लिए सारे विश्व से सहजयोगी श्रीमाता जी के एकत्रित हुए थे। जैसे उदित होते सूर्य की किरणों के साथ पुष्प की प्रत्येक प्ुडी सुलती है उसीप्रकार श्री माताजी की मधुर जन्मदिन मुस्कान से प्रत्येक हृदय के द्वार खुल गये। उनके जन्मदिन पर हमने अपने पुर्नजीवन का आनंद महसूस किया। हम सब की आत्मार्ये श्री माताजी के प्यार व तेज से दैदीप्यमान थी व उसे प्रतिबिम्बित कर रहीं थीं। कुमारी कीर्ति शेलिदार ने शा्त्रीय संगीत जिसमें पारंपारिक नाट्य अभिनंदन किया। अगले दिन श्री माताजी के जन्मदिन संगीत शैली थी, के दूवारा, श्री माताज़ी का बधाई की पूजा में श्रीमाताजी/पुरे ब्रम्हांड के अपने बच्चों को आशिर्वाद दिया। जय श्री माताजी "सहजयोग में प्रसन्न रहना अनिवार्र्य है", इस पूर्ण विश्वास के साथ कलकल्ता ने सहजयोग ग्रहण किया। "माँ का आहुवान है, आईये" इस नारे नोगो पर बंगाल के दूरदराज से इच्छुक व्यक्ति रिखचे चले आये। पहली दो राते सभी सहज योगियो ने बारासात के एक बहुत ही शान्त कैम्प में एक पीरिवार की भाति गुजारी। बारासात एक गाँव है, जहाँ से हर वर्ष दुर्गा- देवी का जलूस दुर्गा-पूजा के की पवित्रता के साथ जिसे महिपासूरमर्दिनी का लिए आरंभ होता है । बंगाल की उस मिट्टी आशिर्वाद प्राप्त है, लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पाया। "सारी जातियों के लोग आओ, भारत के समुद्रतट पर मौँ का अभिषेक करें" रक्न्रिनाथ टेगोर की यह भविष्यवाणी पूर्ण हुई । कलकत्ता से श्री माताजी नेपाल आई। नेपाल ही शायद एक ऐसा पूर्ण हिन्दू राज्य है जहाँ दवी दुर्गा की पूजा कई रूपो में की जाती है। क्योंकि उनके देनिक जीवन में देवी की मूर्ति-पूजा और मन्त्रों में विश्वास व सयाई का मिश्रण है, इसीलिए वह श्री माताजी को देवी रूप में स्वीकार कर सके। इसकी भ।। अत्यधिक सम्भावना है कि वह दिन दूर नहीं जब वह सब इस आधुनिक युगावतार की सत्यता का आनंद लेंगे। नागयुर में सड़जयोगियों से बार्ता मराठी से अनुवाद किए गए संकिप्त अंश। का ध्यान आता है। नाग माँ का स्थान एका विशेष स्थान है और हमें बहुत सारी बातों में सहजयोग का विस्तार हो यह बात कई चार मेरे घ्यान में आती है परन्तु कभी कभी माँ के र के लोग माँ से ही दूर रहते है। वह नहीं देखते कि उनके चारों तरफ द्या है दूर की कस्तु पर हम ध्यान जल्दी जाता है परन्तु जहाों इम रहते है, जहाँ जीवन मापन करते हैं बह स्थान वहाँ के लोगों लिए इलना पास हो जाता है कि यह हमारी गहराईयां को नहीं पडचान पाते है -यही कारण है नागपुर में सहजयोग देर से आरंभ हुआ| मेरे बल्यकाल के कारण यहाँ बहुत चैतन्य फैला हुआ है। सुक्ष्म रूप से यहाँ काफी कार्य किया जा चुका है और मुझे ज्ञात है कि एक दिन यह यहाँ जरूर मतार फ्लेगा। अपने पिताजी के कारण, जो कि स्वत्त्रता संग्राम के विस्तार के लिए हर स्थान पर जाने कोशिश करते थे, मैं भी बहुत से स्थानों पर गई व बहुत से लोगों से मिली। जब में नौ वर्ष की तो गांधीजी मुझे नेपाली कहते थे। वह मेरे विचारों व योजनाओं का बहुत आदर करते थे। उनका मजनाब र्थित आध्रम कुण्डलिनी के आधार पर ही था जहाँ प्रत्येक चक् के बारे में एक एक करके बताया ग है। मैंने उन्हें कहा कि इसका एक अनुक्रम से अनुसरण करना चाहिए, जिसे उन्होंने प्रधम शाल्त्र पध्ट के सिध्दांत से लेकर ईसा मसीह तक विस्तार से किया। अल्लाह हो अकबर वगैराह सबका उसमे समार ा धा। वह अक्सर मुझसे परामर्श करते थे । जो व्यक्ति मेरे बाल्यकाल में मेरे सम्पर्क में आप वह अभी भी मुझे याद करते हैं। कल ही । विद्यालय के एक अच्यापक यहाँ कार्यक्रम में आपट थे। शायद उनमें कुछ आन्तरिक झञान और बल हो जो उन्हे मुझसे बाँधता है और मुझे इतने वर्षो के बाद पहचानने में सहायता करता है । जब मैं "साईस कालिज" में धी तो 1942 के "भारत छोड़ो" आन्दोलन में मैंने भाग लि धा। सारी पुलिस वहा तोपें लेकर विद्यार्थियों को डराने के लिए पहुँची थी। मैं अकेले उनके सम्मुस द्वार पर सड़ी रही एक वर्ष पहले मेरे प्रधानाचार्य साहिब श्रीकृष्ण मोदी पुणे के एक जन कार्यक्रम में आए थे और आज में इसको प्रत्यक्षरूप में देख रहा हूँ। जिस क्षण मैंनें सहारा लिया, मुझे वहाँ से हटा दिया गया" । जो मुझे बाल्यकाल में जानते थे वह आज भी भूझे पहचानते हैं। उसका एक ही कारण है और प्रेम, क्योंकि मेरा प्रेम निर्व्य, निर्पक्ष व आकांक्षा रहित वह है - है। इस निर्कन्य प्रेम के कारण ही ये लोग अभी तक मुझे जानते हैं। उन तनाव के दिनों में मेरी माताजी मुझसे कहा करती थी कि हमारी तो अपनी कोई पहचान ही नहीं है, हम तो निर्मला की माताजी और निर्मला के पिताजी के रूप में पहचाने जाते है। जब आप इतनी छोटी आयु के हों तो इसका एक ही कारण है - केवल प्रेम। मेरा बाल्यकाल से ही यह स्कपाव रहा है कि जिसने जो क्यतू माँगी उसे वह दे दी। मेरे इृदय में सबके लिए बहुत प्रेम व करूणा मी इसलिए सभी लोगों के दिल की गहराईयों में मेरे लिए स्थान है। उस समय भी मुझे दूसरे लोगों की बुराईयों का ज्ञान धा परन्तु मुझे यह ज्ञात था कि अगर उन व्यक्तियों को निर्व्य प्रेम मिला तो वह एक दिन जरूर सहजयोग में समिमिलित होंगे और सर्व शकवितमान परमेश्वर के दर्शन करेंगे इसलिप यह निर्वत्य प्रेम आप सब में आना चाहिए। इसमें कोई किसी चीज की आशा या इच्छा नहीं करता। कोई आपको कुछ देता है या नहीं इसके लिए आप क्यों परेशान होते हैं। यह सब वस्तुए तो नश्वर हैं। मैंनें अपने बाल्यकाल में कभी भी सहजयोग की बात नहीं की परन्तु मेरे पिताश्री को इस का ज्ञान था और किसी को नहीं। मेरे पिताजी ने माताश्री को यह सब विस्तार से बताया था क्योंकि उन्हें मेरे वारे में एक दिव्य हृडिव्हाइन स्वप्न दिलाई दिया था। जब मेरा जन्म होने वाला धा तो उन्हों ने एक चीता देखने की इच्छा व्यवत की थी और इसी प्रकार के कई स्वप्न उस समय उन्होंने देखे थे। मैंने निर्वन्य प्रेम के बारे में मुख्यतः पक बात देखी है विद्यालय, कालिज व आस पड़ोस में सब मेरे बारे में जानते धे। मुझे आश्चर्य होता था क्योंकि वह और लोगों को तो नहीं जानते थे। मेरे भाई को भी आश्चर्य होता था और वह कहते "निर्मला दीदी को सब व्यक्त केसे जानते हैं" लडकियाँ तजा उसे कहती "हमें मालूम है कि आप निर्मला के ही माई है"। वह कहते "क्या मेरी अपनी कोई पहचान नहीं है"? केवल निर्कन्य प्रेम से ही आप इतने बड़े समूह से मित्रता रख सकते है । मेरे सभी मित्र मुझे इतने सारे पत्र लिखते थे कि कालेज कार्यालय हैरान होता था कि "यह सब क्या चल रहा है, इस महिला को इतने सारे पत्र कैसे आते हैं"। फिर मरा एक बहुत ही पुराने विचारों वाले पोरिवार में विवाह हुआ। एक लम्बे से पूधट के तो क्या कहने, वहाँ सबके चरण स्पर्श करने पडते थे। उस समय भी मैंने क्या किया? मैने प्रत्येक को निर्वन्य प्रेम दिया यदि उनको कोई समस्या होतीं तो मैं उसका समाधान करती थी। वह मुझे इतना ा प्रेम करते है कि यदि मै एक दिन के लिय मी लसनऊ जाती हैं, तो पूरा परिवार मेरे चारों ओर पकत्रित हो जाता है और मुझे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ते। मैंने यह सब पात्र अदा किप है। प्रेममय वातावरण है। लोगों से प्रेमपूर्वक व शिष्टाचार इसप्रकार सब कुछ बहुत आनन्दकारक है । से बाते करनी चाहिए। यदि आप उ्हें उनका पद बताकर उन्हें दोषी ठाहराये या बेइन्जत करते तो यह एकदम अनुचित है। बिनीत भाव से मधुर बोलें और सब कार्य निर्क्य प्रेम से करे। आप को शायद नहीं पता कि भविष्य में यह आपकी कितनी सहायता कर सकता है। उदाहरणार्थ, मेरे भाई के सभी मित्र मेरा सम्मान अपनी बडिन के समान करते है। अगर मैं उन्हे जरा सा संकेत भी कर दूँ तो वह घरती-आकाश एक कर दें। मैं अन्दाजा नहीं लगा सकती कि मैंने उनके लिए क्या किया है यद किसी के लिए कुछ किया है तो मैंने उन्हें केवल प्रेम दिया है। प्रेम में कोई किसी के लिय कुछ करता नहीं है। उन्हे मैंने प्रेम आत्मसन्तुष्टित के लिए दिया और उसका अमूल्य पुरस्कार मुझे मिल रहा है। लि. प्रेम निर्वन्य होना चाहिए अर्धात बिना किसी आशा और स्वार्थ के। इसमें कोई आत्मस्वार्थं नहीं होना चाहिए "यह मैं कह रहा हूँ " और "उसके लिए कह रहा हूँ" आदि उच्च विचार नहीं बल्कि यह अनुचित है। सहजयोग में कुछ पुराने सहजयोगी है और मुझे उनसे बहुत अणीब अनुमव हुए हैं आप लोगों ने इसे आरम्भ और स्थापित किया है। सहजयोगी तो आधार है, यद आधार ही कमजोर होगा तो सारा भवन गिर जायेगा । यदि आपने किसी को आत्म साक्षात्कार दिया है तो इसका क्या मतलब है? आपने तो नहीं दिया। इसलिए आपको कहना चाहिए कि मैँ अकर्मी हूँ यह जागृति तो श्री माताजी दुवारा दी गई है" या फिर इस व्यक्ति को अपनी जागरति मिली"। किसी को यह नहीं कहते रहना चाहिए "मेने यह किया", "मैने यह दिया है", ऐसी भावना कभी भी नहीं आनी चाहिए। परन्तु मनुष्यों के बारे में मेरे अनुभव कहते है कि जो व्यक्वित शुरू में सहजयोग में आये है, उनमें यह झूठा अहंकार आ जाता है कि "हम पुराने सहजयोगी हैं", "हम तो आरम्भ के कृछ सहजयोगियों में से है"। जैसे-जैसे सहजयोग फेल रहा है उसी के अनपात में यह यठा अहंकार भी नद ह है कि े कारण कितने सारे सहजयोगियों े कार परन्तु अब तो करीब-करीब सभी ऐसे अहंकारी व्यक्ति सहजयोग से निकाले जा चुके हैं। मैंने देखा है कि ऐसे अहंकार को पालनेवाले लोगों को भूत पकड़ लेते है। वे अहंकार में इतना पूल जाते है कि वह सहजयोग में बेचनी महसूस करते है । फिर उन्हें गुस्सा आता है वह अपने को स्वयं नियुकत कार्यकरम के कार्याधिकृत ंइनचारज: समझते हैं। "इम ही यह सब कार्य चला रहे है", हमारी ही वजह से सब ठीक चल रहा है"। इसकी बजह से अतिआवश्यक नग्रता और प्रेम समाप्त हो जाता है और यह सब अनचाही और झूठी गिरावट लाता है। मैंने पुराने सहजयोगियों में एक और कमी देखी, वह मेरा नाम लेकर स्वयंरचित विचार मार्ग व मन्त्र प्रचारित करते है। सहजयोग की रचना करने का प्रयत्न न करे। कुछ नया करने की इच्छा पश्चिमी बध्धि में आती है। सहजयोग तो पारम्पारिक है । अब तो आप को फल प्राप्त हो गया है फल के बाढ और क्या करना है? मैने आपको बता दिया है कि ब्या करना है और कैसे करना है। हम नये समूह बनाने में विश्वास नहीं करते। पेसी प्रवृत्ति तो राजनीति से आती है इसलिए नई चीजों का आविष्कार न करे और न ही यह कहे कि "श्रीमाताजी ने कहा है, इसलिप आप ऐसा करे"। वह स्वयं कुछ आविष्कार मेरे नाम का प्रयोग करके, उसे प्रभावकारी बनाकर, अपने ही बुने जाल में फँस जाते है। आप कर, ऐसा सब अस्वीकार कर दें और कहे कि "मै ऐसी वेकार चीज नहीं मानता। मै वही क जो श्री माताजी कहती है"। यदि आप को कोई नया विचार या घारणा मनमें आप, तो मुझे लिख सकते है ताकि मैं उसे पढ़ सर्क और उपयुक्त लगने पर उसके अनुसार बता हुँगी। "यह पेसा होना चाहिए और ऐसा नहीं " ऐसा मैं आपको समझा दूँगी। जिस क्षण भी "मै" की भावना आती है, सहजयोग नहीं रहता। "मै नहीं" की भावना अपने में धारण करनी चाहिए। जहाँ में आ जाता है, वहाँ सब समाप्त हो जाता है यदि आप कुध्द स्वभाव के है तो अपना कोध कम कीजिए। जितने भी गर्म स्थभाव के लोग सहजयोग में आप, वह सब छोड गए। यदि आप गर्म स्कभाव के है तो जानने की कोशिश कीजिए कि यह कहीँ से आता है । यदि यह यकृत से है तो अपना यकृत लिव्हर ठीक करे, पर आप शांत रहे। पूजा के समय बहुत शांति मिलती है जब तक आप अपने भावों को नहीं बदल लेंगे और जरा जरा सी चीज पर कोधित होने पर विजय न पा लेंगे तब तक आप उन्नति नहीं कर सकते। केवल अपने स्क्भाव पर नियंत्रण के लिए हीं नहीं, बल्कि इसे जड से उसाड़ फेंकने के लिए परिश्रम करना है। सहजयोग में इसके लिए एक मार्ग है। इसे कैसे करना है यह आपको अध्ययन करना है जोर समझना हैं। प्रमुख बात यह है कि सब को केन्द्र पर आना है यदि कोई यह सोचता है कि वह अकेला, एकांत में ध्यान कर सकता है तो यह गलत है यदि आप केन्द्र में नहीं आपँगे तो आप कुछ भी नहीं पा सकेंगे। आपको इसकी गहराई में जाना है। इन्हीं गहराईयों से आपको अन्य व्यक्तियों से भी केन्द्र में मित्रता करनी है। इसी मित्रता में हमें विश्व निर्भल घर्म के सिध्धान्तों को सीखना है और अपने जीवन ड में उतारना है। ऊँच -नीच और किसी कहे घर्म, जो अंधायुन्द माने जाते है, की स्टूबादिता हम जाति पौति, को मान्यता नहीं देते। सत्य धर्म का हम सम्मान करते हैं पर दिसावटी किया पध्दति और मतों को हम नहीं मानते। वैधव्य को हम नहीं मानते क्योंकि यह झूठा विचार है। यह पुरुष द्वारा स्त्री पर अन्याय से लादा गया है आप किसी भी सम्प्रदाय की निन्दा से न डरे। कहिये "श्रीमाताजी ने हम लोगों को मस्तक पर कुकुम लगाने का आदेश दिया है" सूने माथे से घूमना मना है। जो अपने को विधवा मानती है वे वास्तव में गलत है। यदि वैधव्य सही होता तो यह पुस्ों पर भी लागू होता। पुरूषों में तो वैध्य नहीं है, फिर स्त्री वैधव्य क्यों भुगते। पुस्ष ने यह वैधव्य स्त्री को घोर यातना पहुँचाने के लिए बनाया है। मेरे विचार में उन्हे इससे कुछ नहीं मिलता। एक और कारण से सहजयोगी में पकड़ आती है वह हैं गलत गुरु को पूजना। यह बहुत सतरनाक है। वह गुरू कभी भी आप में प्रवेश कर सकता है। उसने जो कुछ भी किया हो, अब ईमानदारी से आपको अपना उससे पीछा छुडाना हैं और अपने को स्कच्छ करना है। इसमें दुखी और निराश होने की कोई बात नहीं है। इसके बारे में गलत विचार नहीं पालने चाहिए। यदि एक छोटासा हिस्सा भी ध्यान से निकल गया तो वह बढ़कर हमारे हाथ से निकल जापगा और एक बडे पेड़ का रूप ले लेगा यदि इसका एक छोटा सा टुकड़ा भी रह गया तो विश्वास रखें कि आपकी चैतन्य लहरियाँ समाप्त हो जाएँगी। सीच मन्ट ारे ১ भी विदेशी सहजयोगी कई प्रकार के है। कुछ बहुत गहरे है जो सहजयोग के इृदय तक पहुँच जाते हैं। कुछ अधपके व कुछ व्यर्थ हैं। आपका आचरण उन सबके प्रति ठीक व मधुर होना चाहिए। आप आश्चर्य से देखेंगे कि जो ईमानदार नहीं है वह स्वयं ही बाहर डो जायेंगे। जिन्होंने सहजयोग को अपने अंतर से ठीक से नहीं समझा है आपको उनकी मदद करनी चाहिए। आपको उन्हे बुलाकर उन पर काम करना चाहिए परन्तु मैने देखा है कि बह आपके पास आते है आप यह घोषित कर देते है कि उन्हे तो ने पकड़ रक्ता है। महाराष्ट्र में सत्य बताते समय हम धोडा सा कर्कश हो जाते है "हैलो, आपको भूत तौ बहुत सारे भुत्तों ने पकड़ रखा है, अचछा हो कि अ आाप यहाँ से दफा हो जाए"। यह कर्कशता कमी हम पर अधिकार कर लेती है। जब मैं किसी से पूछती हैं कि तुम सहजयोग से क्यों चले गए हो तो वह कहते हैं कि "माँ, उन्होंने मुझे साफ कह दिया कि मैरे घर में मृत आत्मायें है जैर मुझ पर भू्ती ने अधिकार पा लिया है"। जब मैं सहजयोगियों से युछती हैं तो वह उत्तर देते है कि "इमने तो केवल सत्य कहा था"। परन्तु यादि यह सत्य भी है तो भी सिर्फ उतना ही कहना चाहिए जितना उनके लिए लाभप्रद हो। क्या जो आपने कहा उससे उन्हें लाभ हुआ? बल्कि उन्होंने सहजयोग का शुभावसर लो दिया और चले गये जब आप सत्य बोले तो यह आवश्यक नहीं कि वह मीठा और चशनी चढा हो परत्नु हितकारी हो एसे बोलो जो दूसरों का पोषण करे। याद किसी की कोई बाधा है तो उसे समझे और उन्हें विश्वास दिलाये कि वह बाधा आप जड़मूल से समाप्त कर सकते हैं। क्यों कहे कि यह भूत है। जब आप कहेंगे कि "तुम्हें भूत ने पकड़ रखा है" तो वह व्यक्ति कहेगा कि "डॉक्टर ने तो कभी ऐसा नहीं कहा कि मुझे भूत ने पकड़ा है फिर आप कैसे कह रहे है?" यह अच्छा हुआ कि यह सब मैंने आपको साफ तौर पर बता दिया। आज तक मैंने नये सहज- योगियों की कठिनाईयों के बारे में नहीं बताया था। यह पुराने सहजयोगियों को ठीक से समझना है जिससे वह नये सहजयोगियों को निर्क्य ग्रेम दे सके। परन्त वह किसी प्रकार अपने को अग्रणी रखने के प्रयत्न में लगे रहते है। आप पहली पक्ति मे बैठे व्यक्ति को इंगित कर सकते है कि वह एक पुराना सहजयोगी है, बह पुराना है उसे तो आगे ही बैठना चाहिए। मैं कुछ खास हैँ और मेरी कुछ सांसियत हैं" मतलब ा उन्हें आगे ही बैठना है। तो आप कह सकते है कि वह व्यक्ति व्यर्थ का हैं। यद उसे कुछ कार्य दिया जाये तो उसका उत्तरदायित्व उसी क्षण वह दूसरे पर डाल देगा "तुम यह करो, तुम वह करो" और वह चारों और घूमेगा और अन्य सबसे काम करायेगा | दूसरों पर काम धोपने वाले ऊँट पर बैठकर भेडे हॉकना चाहते हैं । यह हालात है फिर जब में कहती हूँ कि आप सहजयोग छोड़ण दे तो बह जमीन पर गिर पडते है। "श्री माताजी मैं तो इतना पुराना सहजयोगी हूँ।" "समझा, आप तो पुराने ही नहीं घिस भी गये हैं इसीलिए अच्छा हो कि आप हमें छोड दें" । सभी से प्रार्थना हैं कि वह नम्रतापूर्वक व आदरपूर्वक प्रतिज्ञा करे कि "मैंने अभी कुछ नहीं पाया हैं, मुझे अभी और ऊँचा उठना हैं। में दूसरों को ज्योति देता हूँ क्योंकि उससे मुझे और जागृति मिलती है"। आप दूसरों को जरूर जागृति दे। कुछ लोग बहुत पुराने और धसे हुए है और कुछ जो नये है व बहुत विकसित है । कई अवसरोंपर मुझे जो पुराने सहजयोगियों के स्वभाव के अनुभव हुए है मैंने उन्हें कहने का सोच लिया है कि "अच्छा हो कि आप स्वयं की जाँच करे कि कही आपके ही तो भूत ने नहीं पकड़ लिया है" यह अहंकार के भूत है पहेले आप देसे कि आप अहंकार के भूत की पकड़ में तो नहीं है जिसकी वजह से आपको नुकसान होगा। कुछ क्षण के लिए यह सुसदायी है कि आप आदरणीय और समर्थ हो गये यदि आप सहजयोग में आकर प्रभाव पाना चाहते है तो अच्छा हो कि घाम सहजयोगी सहजयोग न ही करे। यह मूल तत्व है। धन का दुरुपयोग करना सहजयेोग में सख्त मना है। यह धर्म के लिलाफ है। धन के बारे में सावधान रहे। धन कमाने के लिए सहजयोग का उपप्रोग न करें। सहजयोग के बाहर आप लाभ उठा सकते हैं। पवित्र स्कभाव वाला बनना अति आवश्यक है। दुर्पयोग का परिणाम बहुत बुरा होता है एक व्यव्ति ने थोडे से ही घन की गड़बडी करी, बैचारा। उसका बेटा ही चल बसा। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति को दिल का दौरा पडा। उसने थोडेसे पैसें की गडबडी की थी। जब मैंने कुछ चीजों का पता लगाना चाहा तो वह कोधित हो गया और आठ दिन के अन्दर उसकी मृत्यू ब हो गई। 10 आप लोग मुझसे असत्य न बोले। एक व्यक्ति मेरे पास आया और एक लड़की के बारे में असत्य बोलने लगा। हैं । आपस वह व्यक्ति अब पकषाघात से पीडित है, अपनी बोलने की शव्ति खो चुका में भी असत्य न बोले। स्पर्धा की जगह प्रेम भावना बढ़ाईये । किसी को मूर्स बनाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। क्योंकि आपने ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश कर लिया है, आपको वहाँ के नियमों को याद रखना चाहिए। वहाँ हम असत्य नहीं बोल सकते, न ही चन का दुरूपयोग कर सकते, और न ही अपनी शवित से दूसरों पर आकरमण कर सकते। याद आप यह तीनों बुराईया छोड दें तो सहजयोग का आपको पूरा आशिर्वाद प्राप्त है। फिर असभ्य व्यवहार की देन स्त्री-पुरुष के भेद, का भ्रम समाप्त हो जाता है। यॉद ऐसा नहीं होता तो वह सहजयोगी नहीं है। व्यसन स्वयं छट जाते है पर यह तीन कमजोरियों रह जाती है। सबसे सतरनाक है शव्ति बोष दृसरे के ऊपर आासन करने की इच्छा। जहीं भी आप ऐसी शवित के इच्छुक सहजयोगी देखते है, विश्वास करे कि वह एक दिन जरूर इस दृश्य से ओझल हो जायेंगे । पसे लोगों के साथ कुछ अजीब घटनायें होती हैं जो उन्हें दूर ले जाती है। सहजयोग में कई ऐसे व्यक्ति हैं जो अग्रभाग मे सदा दाडते रहते हैं । किसी को भी अनावश्यक रूप से सदा आगे आना या सदा अपने को पेश करते नहीं रहना चाहिए। "श्री माताजी" के चरणस्पर्श क्यो? जबकी मैरे चरण तो सदा आपके हृदय में है - चरण स्पर्श से और क्या लाभ होगा। यह आपकी भावना होनी चाहिए। यदि कोई अग्रणी रहने का प्रयत्न करता है तो अगले वर्ष वह गायब हो जायेगा। यह श्री भैरवनाथ का काम है। कोई भी जो बहुत आगे आगे आता है वह अपना सिर स्वयं काट लेता है। मैं उन्हें धैर्य रखने को कहती हैँ लेकिन वे किकुल नहीं सुनते। इसका अर्ध है कि सदा दो शवितयां काम कर रही है। एक केनद्र की ओर लगाने वाला १सेन्ट्रीपेटल यी और दूसरा केन्द्र से दूर लगने वाला ह सेन्द्रीफुयगल एक आपको केन्द्र की तरफ सीचता है व दूसरा केन्द्र ले जाता है, क्योंकि ईश्वर के साम्रान्य में सबके लिए स्थान नहीं है। से दूर सभी व्यक्ती सीधा मुझसे, सम्पर्क करना चाहते है, मेरे पास इतना समय नहीं हैं कि प्रत्येक - मेरी माँ ऐसी 25 पन्नों का पत्र स्वयं देखें, यदि कभी पढ़ भी लिया तो वह निरर्थक बार्तों से भरा है है, मेरी माँ के अंकल, भाई बगैर ह, मुझसे उनसे क्या लेना देना। सहजयोगी संबंधी है और मुझे और आपको, आपके दूसरे सम्बन्धियों से कुछ लेना देना नहीं। जब तक आपके सम्बन्धी सहजयोग में नहीं आते तब तक न मुझे, न आपको और न ही ईश्वर को उनसे कुछ लेना देना है इसीलिप उनके बारे में कुछ न बताये, उन्हें सहजयोग में आने दिजिए। यदि कोई कहता है कि मुझे श्री माताजी के पास ले जाओ जैसे वह सिफ्फरिश चाहता हो, वह आपके लिए जो भी हो परन्तु मुझे उससे क्या करना? उसका सम्बन्ध बनाने के लिए आप उसे मेरी तस्वीर दे दे उसे स्वयं तस्वीर से अपना समाचान करने के लिए कहे। सीचा इताज करने का प्रयत्न न करें। मेरी तस्वीर के आगे ही बैठे। केवल तीन प्रकार के रोग होते है, दाँयी और के रोग बीयी ओोर के रोग व मध्य मार्ग के रोग बायी औओर के रोग भानसिक कारमों व दाँयी और के रोग शारीरिक व मानसिक रोग व मध्य मार्ग के रोग गलत गुरू या अनाधिकृत ज्ञान के अभ्यास के कारण होते हैं। यदि आप इन तीनो में योग्यता हासिल कर लें तो केवल तस्वीर से ही आप किसी भी प्रकार की बाधा बता सकते है। शीघ्र ही हम इसपर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं, तब कोई भी यह नहीं कह सकेगा कि "श्री माताजी ने मुझे ऐसा कहा या वैसा कहा"। प्रत्येक व्यक्ति को स्मरण रहे कि घंटो तक ध्यान लगाने की आवश्यकता नहीं है, केवल ।0 मिनट ही काफी है। यदि किसी केो इतने समय ध्यान लगाने की आवश्यकता है तो वह मूर्ल है। अच्छा हो कि ऐसे पागलपन से बचें। क्योंकि यदि कोई स्थान है और उसका कोईड दूवार है तो उस दूवार से अन्दर आने के लिए कितना समय लगता है? परन्तु यदि आपने प्रथम पर्वत पर चढ़ने का सोचा है तो इसमें तो समय लगेगा ही पर्वबत पर क्यों चढे? जो वक्तु इतनी सहज है यदि उसे पेंचीदा बनाया तो वह सहजयोग नहीं है। इसीलिए आज का भाषण बहुत महत्वपूर्ण है और इसका अनुवाद करके सभी केन्द्रों पर भेजे। 12 कित्ली चाहे कोई भी गलती क्यों न हो, माँ अपने बचों को प्रेम से संभालती है। वह कई चीजों की अतदेखी कर सकती है, परन्तु उन्हें अपने ही ढंग से ठीक करती है। हम अपने ग्रेम से दूसरों की कमजोरियों को दूर करके उन्हें स्व्छ उमी तक हमने प्रेम की कर सकते हैं। यह प्रेम की शक्ित है। शवित का कभी भी प्रयोग नहीं किया है। प्रेम की शविति बहुत अदभुत है । तलबार की शवित का प्रयोग करना बहुत सरल है, परन्तु प्रेम की शक्ति इतनी अधिक है कि हम तलवार की शक्ति को भूल जाते हैं। "निर्वाच" वह प्रेम है जो समी कन्धनों से मुक्त है। यह कोई नहीं समझ सकता कि सिर्फ प्रेम के कारण माँ पूरे संसार का भ्रमण कैसे कर रही है। यह केवल प्रेम का आनन्द है। सहजयोगियों को देखने मात्र से ही मुझे इतना आन्न्द मिलता है कि मैं निर्विचार हो जाती हैं जिस तरह समुद्र की लहरें उमड़ती हैं और विमिन्न आकार बनाती हैं, उसी तरह सब कार्यों को कार्यान्वित होता देख कर मैं आनन्दित होती हैँ। कुछ लोग धनी है, कुछ गरीब, यह सब ्षणमगर चीज़े हैं, अपने हृदय के अन्दर देखिए और उस प्रेम का आनन्द लीजिए। उस प्रेम के साथ आाप उपर उठिये और एक बार फिर से महानता की प्राप्त करिए। हम उस श्रेणी के लोग हैं जो दूसरों को सिर्फ प्यार डी देते है और जह़ीं प्यार डोता है वही जाते हैं। जो व्यक्ति दूसरों को प्यार देता है वह स्वतः ही ठीक हो जाता है। जब इम घर के बाहर जाते है तो हमे अपनी माँ या पत्नी को सूचित करना चाहिए, इस तरह उनके प्यार की शक्ति सदैव हमारे साथ रहती है। 66 वा जन्म दिवस पूजा 2] -3.89, सूर्यवंी हॉल, बम्बई संकलित अ मैं सचमुच समझ नहीं पा रही हूं कि मैं इन सब उपहारों के बारे में, जो कि आप मेरे लिए 13 आपकी कुंडलिनी को बहते हुये देखना ही मेरे लिप उपडार है । पदार्थ का तत्व यह है कि इसके द्वारा आप अपने प्रेम को व्यव्त कर सकते है। इंसिलिए पदार्थ को आप उपहार के रूप / व्यवत करते है । आपके हृंदय में बहुत सी भावनाए हैं जिनको कि व्यक्त करना है। जब आय इन प्रेम की भावनाजं से पदार्थ को देते हैं और मुझे देते हैं तो मेरे लिए एक बहुमूल्य उपहार बन जाता है। जैसे कि साधारण कांच ढक पर जब पारा चढा दिया जाता है तो वह दर्पण बन जाता है ठीक उसी तरह आपके प्रेम से लिपटा यह पदार्थ मेरे प्रतिबिम्ब का दर्पण कर जाता है। जब प्रेम को श में व्यक्त किया जाता है तो आप गदगद हो उठते हैं, परन्तु उपहार के दुवारा इसे व्यक्त किया जा सकता है परन्तु अपने ग्रेम को व्यव्त करने के लिए कीमती उपहार लाने की आवश्यकता नहीं है, पक बहुत ही साथारण सी कलात्मक और जाति पारम्पारिक वस्तु जो कि आपके निवास स्थान का प्रतिनिधित्व करती हो, सबसे उत्तम है। साथ डी बह छोटी होनी चाडिए ताकि मुझे उनके लिप दूसरा मकान न बनाना पड़े। इसी प्रकार पूजा में दी गई भेंट व्यवत करती है आापके प्रेमको जो कि प्रेरणा देता है और वातावरण को सुधारता है थोडा सा कुमकुम इलगाना भी स्क्कछकारी सिध्द हो सकता है। परन्तु कस्तु का प्रयोग आत्मरंजन के बजाय प्रेम केो व्यव्त करने के लिए करना चाहिए तभी वड वातावरण को सुधार सकती है। इसी प्रकार से कलाकार मानवता के प्रति अपना प्रेम प्रक्ट करने के लिए कला की रचना करता है। जब मैं आप के द्वारा लाए हुये इन सब फूलों को देखती हैं तो मैं आपके बारे में सोचती हैं कि जो पहले फूल थे, अब फल के रूप में परिपक्व डो गये हैं यह विचार मुझे महान प्रसन्नता प्रदान करता है। मुझे सुशी है कि दिल्ली में एक नया आश्रम बन गया है। अब सब जगड आश्रम बनने शुरू हो गये हैं। सेवानिवृत्त होने पर सहज योगियों को आश्रम में बकर रहना चाहिए पोती पोतों को भी जिससे दादा दादी अपने पोती पोतों की देखभाल कर सकते हैं और आश्रम में आकर रहना चाहिए। पिता की अपेक्षाकृत, अधिक एक दूसरे के साध का आनन्द ले सकते हैं। बच्चों को दादा दादी, माता पिता बच्चों से मिलने आश्रम में आ सकते हैं । अनुशासित कर सकते है। माता 14 - कर सकते हैं । दो सहज योगियों के बीच कोई अन्तर नही हैं। किसी भी सहज योगी को स्वयं को दूसरो से बड़ा नहीं समझना चाहिए। किसी भी सहजयोगी को सहजयोग के बारे में नई घारणांप बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। आप स्वयं सहज योग बनाने की कोशिश न करें। घन से लगाव, धर्म 'रन्थों और धर्म का अन्यानुकरण तथा कट्टरवाद खत्म डोना चाहिए। सार्वजनिक कार्यक्रमों में सहजयोग की केोई पुस्तक नहीं बेची जानी चीहए। मेरा फोटो मुफ्त में दिया जाना चाहिए। सभी किताबें और लेख, जिनको मेरी स्वीकृति प्राप्त चाहिए। वह नहीं है, जप्त कर ली जानी किताबे जिनमे मंत्र दिये गये है थीघ्र ही बापस लेनी चाहिए। आप कानून की सीमा में रहे और हिंसा को न अपनाये। जिन व्यव्तियों ने दुरस्ट की अनुमत के बिना किताबे छापी हैं, उनको जब्त कर लिया जाना चाहिए कृपया बिमार व्यवि्तियों को न लायें। उनको बताना चाहिए कि वे फोटो के द्वारा स्वयं को रा किस प्रकार ठीक कर सकते हैं। कृपया व्यक्तिगत उपहार और सोने के उपहार न लायें । हमें बहुत से कार्य पूरे करने है और आपको उसके लिए प्रीत माह कुछ धन बचाना चाहिए। उपडार सामुहिक होने चाहिए। मैरे जन्मदिन पर प्रत्येक व्यक्ति को यह सागन्ध लेनी चाहिप कि वह मेरे अगले जन्मदिन पर कम से कम 5। नये सहज योगी लाने की कोशिश करे। आप यदि समूह बना कर गाँव और नये स्थानों पर जायें तो आप यह कार्य बहुत आसानी से कर सकते है। साथारण और मृद् वाणी का प्रयोग करे । मैं आशा करती हैं कि आप मुझे अगले वर्ष इस तरह का उपहार देंगे। यह मेरी इच्छा है । मैं आशा करती हूँ कि आप इसे पूरा करेंगे। भगवान आपको आशाोवाद दे मडालक्मी और ईस्टर पूजा रविवार 26 मार्च, 1989 बरासात कलकत्ता के संकलित अध अमीबा सूक्ष्म जन्तु से मानव तक की उत्क्रंति इब्होल्यूशन सुघुम्ना नाडी के द्वारा हुई है। हम सुपुम्ना नाडी के द्वारा महालक्ष्मी तत्व की ओर बढते है महालक्ष्मी तत्व की स्थापना के लिए हमें बहत सी बातों का ध्यान रसना होगा। - 15 - सबसे पहले, देवी लक्ष्मी अपने हाथों में गुलाबी इंग के दो कमल लिए हुए हैं हमारा हृदय भी उसी हगुलाबी - प्रेम प्रतीक रंग का होना चाहिए, जो कि सदैव प्रेममय हो, सुर और आश्रय देने वाला हो। यहाँ तक कि इसकी हकमल गोद में भौरा सुकमेर काटेदार जीव भी आराम ग्राप्त कर सकता है। कमल अत्यन्त सुन्दर भी होता, है। इमें उसी तरह सुन्दर शिष्ट व्यवडार करना चाहिए जोर मधुर बोलना चाहिए। जब यह पानी की सतह पर होता है तो अपनी सुगन्ध से आकर्भित करता है। क धनवान की तरह उसके पास सैन्दर्य सुगन्ध, सब कुछ है, परन्तु वह हुंकमल यह सब दूसरों को देने की प्रतीक्ञा करता रहता है। वह व्यवित जो सदैव अपने बारे यें कोजता रहता है, लक्ष्मी तत्व को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। एक लक्ष्मीपति सदैव दुसरों की सेवा के लिए तत्पर रहता है और जरूरतमन्वो को सुरक्षा प्रदान करता है। वह हमेया दूसरों की मलाई के लिए क्ार्य करता है। उदाहरण के तीर पर यदि वह किसी संस्था या किसी व्यवसाय का मालिक है तोवह हमेका अपने गजदूसें के रप्यान सुक के बारे में सीचता रहता है, उन्हें आतिथ्य देता है, तथा उनकी एक परिवार के पिता की तरह देवभाल करता है। एक कंजूस व्यक्ति इस तत्व को भी प्राप्त नहीं कर सकता। यीद आप मध्य में हैं तो आप तक्ष्मी तत्व बन सकते हैं, यही तक कि जाप पुरानी प्रसिद्ध फर्म की तरह कीर्ति ग्राप्त कर सकते हे और आपके कछों को उस पर गर्व छोगा। लक्ष्मी तत्व की संतुलित अवस्था को प्राप्त करना है। एक हाथ से लक्ष्मी देती है। ऐसे गुप्त उपहार दिये जाने चाहिए जिनके बारे में कोई भी न जानता हो। जो उपहार आप देते है उनमे आपका कोई लगाव नहीं होना चाहिए हमें इसके बारे में शान के साथ नहीं बोलना चाहिए। परन्तु प्राप्तकर्ता को उससे आनन्द मिलना चाहिए। दूसरों को कुछ देने से बहुत अधिक संतोष प्राप्त होता है। प्रत्येक क्तु की उत्पत्ति देने के कमल किसी पर दबाव नहीं डालता, जैसे कि गमैने यह किया", "में यह हूँ", यह "में" छोड़ना चाहिए, या यह "मेरा" है "मेरे" की देसभाल करने की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। आप ा सिर्फ जानन्द में रहिए। আम चलता रहता है और व्यवसाय आगे बढता हहता है, परन्तु सबसे बडा आनन्द दूसरों को देने में है। प्रेम में आपको पता होता है कि दूसरे को क्या मसन्द है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमें दूससें के प्रति अपने प्रेम को कैसे प्रकट करना है । हमें यह भी जानना चाहिए कि वन को सर्व कैसे करना है। यदि हइम यह जानते होते कि धन को कैसे सर्च करना है तो संसार में इतने दस न डोते। बास्तव में, धनी व्यक्ति को अंधिक समस्याप होती है। यह देसा गया है कि जब समृदध्धि आती है तो लोग आसक्तवादी हो जाते है। शराब की दुकाने खुल जाती हैं, गन्दी महिलायें उन्नति करना शुरू कर देती हैं, आदि। पहले लक्ष्मी तत्व स्थापित होता है, और जब उ्यविति आत्म-साजात्कार के दूबारा सतुलन प्राप्त कर लेता है तो उसके अन्दर महालक्ष्मी तत्व स्थिर हो जाता है। ऐसी स्थिति में आपके पास कुछ मी न होते हुये सब कुछ होता है। यह आत्मा को जानने की हिथिति है। आत्मा, आत्मा के परमसुस का आनन्द प्राप्त करती है। बाहर का आंशिक सुख हमारे अहम का हिस्सा है। इसलिए सहजयोग में हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि आज अपने पुनर्जन्म की स्थापना करे। ठमांडू पूजा 30 मार्च, 1989 स्थत - आ््रম नेपाल की देखमाल ने-पाल नाम के ऋपि करते थे। ईसा मसीह भी नैपाल आये थे धरती माँ द्वारा उत्पन्न किया गया यह विशेष देश है। यह केवल एक समुद्र था। अमृत-मंधन के पश्चात हिमालय ऊपर आना शुरू हुआ और एवरेस्ट तक पहुँचा। इसकी रचना भारत, जो कि विश्व की कुंडलिनी है, की रक्षा करने के लिए की गई। कुंडलिनी को सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक था। वड विराट को मंस्तिष्क है। विराट की कल्पना इस तरह से की गई कि नेपाल सहस्त्रार धा। प्राचीन संस्कृति की रक्षा करने के लिए उन्हे किसी देश के चारों और घेरा बनाना पड़ा। श्रीगणेश जी की भारत में स्थापना की गई। इसीलप मुझे कर्क रेखा पर स्थित इस देश में जन्म लेना पड़ा। जीर नेपाल एक ही टेख है। भारत की विशेषता यह है कि वारुतव में भारत मनुष्य इधद उचर स्वतनत्र कप से घूम सकते है और यहाँ तक कि जंगल में भी रह सकते है, ध्यान कर सकते है, फलों आदि पर भी अपना जीवन जिता सकते है । जातबूझ कर इस देव के आध्यात्मिकता के लिए हैं कयफ भयानक अनुम्य सक्री बनाया गया धा| हालांकि लोगों को देखकर जाप यह नहीं पहचान सकते जगह हैं। लेकिन यही एक ऐसा स्थान हेै जहाँ आंतरिक क्रत्ति डो सकती है। इस देत में गनुष्य जात्मा के बारे में अधिक जानते है। इस तथ्य में कोई भी पल्षपात नहीं है कि आध्यातिम करता के बारे में जानना ही सबसे कठिन कार्य है। लोगों को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। जो लोग आध्यात्षिक हैं उन्के दूसरे सहन नहीं कर सकते। सत्य को पचा पाना मनुच्य के लिए वहुत ही कठिन है। जो लोग आत्म-सक्षात्कारी हैं बही सत्य को समझ सकते हैं, दूसरे नहीं। इसीलिए वे विध्वंसक प्रतिक्रिया करते हैं प्रत्येक देव में ऐसे लोगों ने साधुओं को यातनांप दी है। केवल जापका भोलापन ही आपको सुरक्षित स सकता है। केवल विश्व निर्मल घर्म ही आपके अन्तः का घर्म है। स्वरेस्ट पर चढने से जाप सत्य को नहीं जान सकते हैं। केवल कुंडलिनी के माध्यम से ही सत्य के जाना जा सकता है। ईश्वर के साथ एकाकार हो जाने की शक्ति हमारे अन्दर ही लिहित है । जो कुछ हमारे अँंदर है वह प्रतिमा में और उसके बिना भी प्रदर्शित होता है। प्रतिमा की रचना इसलिए की गई कि हम याह समझ सके कि इस मार्ग पर है अयवा नहीं। इसी प्रकार कैलाश पर्वत के एक और बहत शंत है जबकि उसके दूसरी खेर जो मि अहंकार का है, बहुत ही अशंत है और उसको "राक्षसतल" कहते है। मध्य में भगवान शिव के समान केलाख पर्वत है। श्री ब्रह्मा और श्री वि्णुकी दो और प्रतिमां है। इसी प्रकार जो भी कुंडलिनी के बारे में लिखा गया है उसको खोजना चाहिए आपने मेरे बारे में बहुत सी चीजें देखी है। "ॉकार" में प्रकाश है जोर बह प्रकाश कमरे के दुवारा चित्रित किया गया है सत्य को इस तरह से प्रदर्शित किया गया है कि आप उसे पहचान सके। परन्तु यदि आप नहीं पहचानना चाहते हैं तो कोई आपकी सहायता नहीं कर सकता। सत्य को पहचान कर ही हम सचची भवित प्राप्त कर सकते हैं। से फलों से बदा व्अ नीचे झक पाता पशन यह है कि इ्या भाए यमयदार डो गये है। निय न से फलों मे ला अ नीचे सक शाता 18 परिहास का आनन्द लो। जब तूफान आता है तो बडा पेंड गिर जाता है जबकि घास का छोटा सा तिनका पूर्ववत रहता है। याद रखो कि सर्वशवितमान मगवान ही सब कुछ करता है, हम कुछ नहीं करते हैं । हमें समुद्र के समान जपनी सीमाओं में रहना चाहिए जो कि सदैव अपनी सीमा में रहता है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्रद 6. "मैं मानता हूँ भैने गलती की" सबसे अधिक महत्वपूर्ण शब्द 5n "आपने एक अच्छा कार्य किया" सबसे अधिक महत्वपूर्ण थ्द - "आपकी राय क्या है" सबसे अधिक महत्वपूर्ण शब्द 3. ्याद आप चाहे" सपसे अधिक महात्वपूर्ण शब्द "आपको चन्यवाद" सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्ंद "इम" सबसे कम महत्वपूर्ण शब्द - 19 कुपया याद रखे श्री माताजी का फोटो किसी को न बेंचे। यह सच्चे लोजनेवालों को अनुसरण कार्यक्रम में निशकल्क 1. दिया जाना चाहिए लेकिन किसी सार्वजीनक कार्यक्रम में नहीं। सार्वजनिक कार्यकरमों में कोई पुस्तक नहीं बेची जानी चाहिए। केवल श्रीमाताजी दुवारा स्वीकृत की 2. गई पुस्तके, केन्द्र पर सच्चे खेजनेवालों केो दी जानी चाहिए। किसी रोग से मुकि्ति दिलाने से सम्बन्धित मन्त्रों की कोई किताब नहीं छपी जानी चाहिए। अंगूठी, पेंडल आदि का कोई व्यवसाय नहीं होना चाहिए। इन पर कोई लाभ नहीं लिया जाना चाहिए, 3. ल इन्हे लागत मूल्य पर सिर्फ सहज योगियों को नेचा जाना चाहिए। यदि कोई सहजयोगी, सहजयोग पर कोई किताब छापना चाहे तो उसे लाईफ/ट्रस्ट, बम्बई की पूर्व जनुमति लेनी चाहिए। सर्वाधिकार टूस्ट के पास रेंगे। व्यव्तिगत रूप से बीडियो और कैसेट को कापी नहीं किया जाना चाहिए। यह सब के्র्रों से प्राप्त किया 5. जा सकता है। चैतन्य लहरी की कापी या केरस नहीं करना चाहिए। सबको अपनी प्रति स्वयं सरीदनी चाहिए। 6. कृपया नये सुलने वाले केन्द्रों की सूचना हमें दे। 7· फोटो पर प्रतिदिन कुमकुम लगानी चाहिए और उसे गुलाबजल से साफ करना चाहडिए। 8- ---- ----- अग्रेजी वार्षिक कुत्क : रू 20000 डिन्दी रु.108 .00 मराठी रु.108-00 का कोयरूड "विश्व निर्मल घर्म, पो- बा 90। , , पुणे 4।।029 के पक्ष में भेजे। हाफ्ट ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-0.txt हिंदी पववन 982 सारस भारत राग र आत ड जीर बंड डाक 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-1.txt मारतीय परिशिष्ट अक खांड । और 1 और श्री निर्मला देवी नमो नमः ---- "मेरी इच्छा है कि आप अपनी पवित्रता के दारा अपनी पवित्रता को पहचाने और इसे सम्मानित कर सके। यदि आप स्वच्छ वस्त्र पहने हैं तो आप उनके सम्मान के प्रति जागरूक व सचेत हो जाते है"। श्री माता जी w040------------- ----- ------ श्री माताजी निर्मला देवी का मारत दौरा ।989 दक्षिण भारत तथा गुजरात पर श्री माताजी का विशेष अनुग्रह रहा। उन्होंने हैदराबाद, मद्रास, को म्बतुर, बंगलोर, अहमदाबाद, बडोदा, राजकोट व चोरहाट में सार्वजीनिक भाषण दिये। भारत विमिन्न प्रकार के व्यक्तियों अलग भाषामें बोलते हैं, फिर भी श्री माता जी की प्रेम की भाषा ने सभी के हृदय को छू लिया। जैसा कि श्रीमाताजी ने कहा, "समस्या भाषा की नहीं, ोजने वालों की हैं, सहजयोग खुले दिमाग वाले व्यकितियों के लिए ही है " व संस्कृतियों का देश है। ययपि वे सभी पाँच राज्य, जहाँ श्रीमाताजी गई, अलग हजारों लोगों ने जिन्होंने चैतन्य-लहरी (vibratIons) वे देवी को नत्मस्तक हुए। का नाम भी नहीं सुना धा। अचानक उसी क्षण, मन ही मन, उन्होंने साक्षात्कार को प्राप्त किया तथा आत्म इस शवित को मन्यता दी और उसके लिए उन्हें किसी दूसरी व्यास्या की आवश्यकता नहीं धी। हैदराबाद में उनकी, चार वर्ष के पश्चात, यह दूसरी यात्रा थी और हजारों की संख्या में लोग उनके कार्यकरम में एकत्रित हुए। ही नये केन्द्रो का शुभारंभ हुआ । बंगलौर, कोयम्बटूर, अहमदाबाद राजकोट और चोरहाट में उनकी पहली यात्रा में ब बंगलौर यात्रा का महत्व, उनकी उस विजय हास्य से प्रकट हुआ जब सहजयोगी उनकी प्रशंसा में "महिमासुर मंर्दिनी" गा रहे थे। वे अपने दिव्य रूप में सभी रक्षसों को मारने से पहले उनका प्रकट होने के बाद नष्ट कर पर्दफाश करती हैं, जिस तरह हमारे अंदर की बुराई (Negativity) दी जाती है। उनके प्रत्येक वाक्य व प्रत्येक मोहिनी मुस्कान में सहस्त्र अर्व छिपे होते हैं। उन्होंने बहुत सी अदभुत वाते कहीं जिनमें से कुछ नीचे प्रस्तुत किये है, उनके प्रवचनो को रिकार्ड (Record) करके समस्त विश्व में बाटने के लिए आस्ट्रिया भेज दिया गया है। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-2.txt श्री माता जी के दक्षण भारतीय दोरे में हुई सार्वजनिक वार्ता के संकलित अंश : सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि हम सत्य की न रचना कर सकते है और न ही सत्य को संगठित कर सकते हैं। सत्य है, सत्य था और सत्य रहेगा। हम सत्य को धोखा नहीं दे सकते। हें सत्य को पाने के लिए उसकी ऊंचाई तक पहुंचना होगा। यह कोई सिध्दान्त नहीं है जिसे इम बदल दें। सहजयोग सत्य के प्रमाण को स्थापित करता है। सभी सिध्दान्त सत्य से ही उद्भुत हुए है पर सत्य का अनुभव कहीं नहीं है। सत्य की अपनी खोजू में हमें अपने प्रति बहुत इमानदार होना चाहिए, न कि अपने से धौखा घड़ी करे। जब आप शुध्द भावना के साथ आते हैं तो सत्य आपके पास आ जाता है। जो सच्चे नहीं है, आपको उनका साथ छोड़ देना चाहिप। आप वूसरे के प्रभुत्व की चिन्ता क्यों करते हैं यदि उसे यह प्रभुत्व ईश्वर की कृपा से मिला है। ईश्वर को सहजयोग की आवश्यकता नहीं है, आपको ही आत्म-साक्षात्कार की आवश्यका है। नये लोगों को यह समझना चाहिए कि वह सहजयोग में आकर हम पर उपकार नहीं कर रहें है यह ज्यादा अच्छा होगा कि ज्यादा संख्याके उच्छसल लोगों की अपेक्षा, कुछ सम्प्रांत व्यक्ति ही सहजयोग को अपनाये। सहजयोग कोई प्लास्टिक नहीं है कि आप उसका बड़ी संख्या में उत्पादन करते रहें । इसका आरंभ कुछ ही थोड़े व्यव्ितियोंसे होना हैं। सत बहुत सारे दुष्प्रभाव अब चले गये हैं। यदि मानवता को बचाना है तो आपको लोगों को कुछ दुसरे कार्य करना आसान है एक डॉक्टर, अन्य व्योसायिक व्यव्ति होना आसान है। जो मानवता की रक्षा करेगा उसका बदलना पडेगा। यह एक अत्यधिक बड़ा कार्य है। इन्जिनियर वकील या नाम अध्यात्मवाद के इतिहास मे अमर रहेगा। मानवता को बदलना कितना दुरूह काम है। इसलिए आप स्वयं से तथा अपने चित्त से साव्धान रहें। आत्मसाक्षात्कार देना कोई कठिन कार्य नहीं है परन्तु उसको बनाये रखने के लिए कठिन परिश्म करना पड़ता हैं। क्योंकि मनुष्य आसानीसै विचारों में खो जाता है। यदि आप सहजयोंग सामुहिकता मे करे तो इसकों बनाये रखना कठिन समस्या नहीं है क्यों कि सभी साधन सहज योग दारा बताये गये हैं। अपने विकास में हमने जो पाया है वह हमारे के्द्रीय नाडी मंडल (Central Nervous Syst के ढारा प्रकट होता है। पूर्व में, लोगों का विश्वास धा कि हमें क्षणभगुर वस्तुओं का अनुग्रह करने की बजाय अनन्त प्रकाश की ईच्छा करनी चाहिए। क्षणभगुर वस्तुओं का अस्तित्व है और उनका अस्तित्व बनाये रखने के लिए उनका प्रयोग सही मर्यावा में करना चाहिए जब आप मर्यादाओं को 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-3.txt पार कर जाते है और उनमें अत्याधिक लिप्त हो जाते है तो वे विनाशकारी और दुर्माग्यपूर्ण बुराईयाँ बन जाती हैं। पशु व मनुष्य के विकसित होने में अनन्त सर्व देदिप्यमान शक्ति कार्य करती है। ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना इतने संगठित ढंग से की है, और देवी शक्ति इसका प्रत्येक अणु, शाक-सब्जी, बारीकी से ध्यान रखती है परन्तु वह इसे माया दारा अन्ञानता से ढक देता हैं इस माया के कारण मनुष्य आसानी से क्षणिक भावनाओं की और झुक जाता है और उसमें खों जाता है। मनुष्य की समरा एक ही संकुचित रास्ते पर आगे पीछे चलती रहती है परन्तु दैवी शक्ति सभी दिशाओं को एक जैसा प्रकाशमान करती है। आप मुख्यधारा से जौडना पड़ता है। एक बार आप ईश्वर के साम्रान्य में आ जायें तो आपको विदित होगा कि उसका प्रशासन महत्वपूर्ण यह है कि यहाँ प्रेम की शवित दारा कार्य सम्पन्न हैं। सर्वशकवितमान भगवान जिसने इस संसार को बनाया है उसे इसके हित की आपसे कम्प्युटर की तरह है परन्तु कम्प्यूटर को वियुत की प्यार करनेवाला सर्वाधिक उपत और सक्षम है। दयावान, अधिक चिन्ता है। तालाव में कीचड़ व गंदगी होने पर भी वहाँ कमल स्िलते हैं। वह अपनी सुगंध सारे संसार में फैलाते हैं तथा उसे अपनी सुन्दरता से भर देते है । कमल इतना कोमल है परन्तु फिर भी उसकी के लिए खुली रहती हैं इसीप्रकार सहजयोग में आपका व्यक्तित्व, सुन्दर कमल की भाति विकरसित होता है, जिसकी पत्तियों पर पानी नहीं ठहरता है। जिसका पंखुडियाँ काँटेदार पैरों वाले गोबरैला(Beetle) लक्ष्मी तत्व परिपूर्णस जागृत हो जाता है ऐसा 'व्याक्त कमल पर लड़ा हो सकता है। वह किसी पर वो. नहीं बनता। उसका हृदय कमल की भाति सुरगन्धित रहता है। श्री लक्ष्मी एक हाथ से देती हैं व दूसरे हाथ से संरक्षण करती है जैसे कि पिता अपने बच्चों को छतरी से। इसी तरह एक ज्ञानी उ्यमी अपने लोगों की भलाई का हमेशा ध्यान रखता है। रूपये-पैसे का चतन रेखाकीय है और इसके लालचसे बहुत सी विमारियों का जन्म होता है आप लोगों को सोचना चाहिए कि धनी लोगों के बारे में लोग क्या कहते हैं। ৪ -2 -89 को मद्रास में श्री मूर्ति के घर श्री माता जी की पूजा वार्ता : कलियुग में मनुष्य केवल क्षणिक लाभ के लिए दूसरों का ध्यान आकर्षत करने में अपना समय नष्ट कर रहा है। एस पागल संसार में सहजयोगी की स्थिति क्या है? आप देखते है कि संसार क्षणभंगुर बस्तुओं के पीछे भाग रहा है । परन्तु हमें तो अनन्त को खोजना है । नये युग में कुछ नयी परिस्थितियों व बन्धन है सवसे अधिक कोलन बंधन समय का है। समय को बचाने के लिप हम हर समय योजना बनाते रहते है परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कोई भी ची.ज समय पर पूरी नहीं होती है उनमुक्त हँसी 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-4.txt है। आज के समय में जीवन इतना गतियुक्त सहज योगी नहीं भविष्य वादी व्यक्ति और कष्टमय हो गया कि विफलता का अनुभव बहुत हानिकारक होता है। उदाहरण के लिए जब ब्यक्ति हाथ में हयाई जहाज का टिकिट लेते हैं तो घबरा जाते है। जिस समय उनको पता चलता हैं कि उन्हें हवाई अडूडे जाना है तो वह कॉपने लगते है। उसका परिणाम यह होता है कि वे कुछ वस्तुपं भूल जाते हैं और उनका हवाई जहाज़ भी छूट जाता है। यदि वह सच्चे सहजयोगी है तो उनका यान कमी नहीं छुट सकता। सहज-योगी को "कालातीत" हसमय के परे होना है। यदि कपका चित्त वर्तमान में नहीं है तब यह मविष्य में है और आप अगली वस्तु के बारे में सोचते रहते हैं। आपका चित्त समय पर केन्द्रित होने के कारण विमय को सग अने में चूक जाता है। और वड बहूमूल्य क्षण नष्ट हो जाता है।अतः आप अपने चित्त को तनावरहित रविविये। आपको अपना चित्त/में रखना है और देखना है कि /हो रहा है आगे-पीछे भाग रहा है । एक बार इंग्लैह में हम एक शादी में गये। लोग उसमें शामिल होने के लिए इतनी जल्दी में थे कि जब ये वहाँ पहुँचे तब चर्च भी हंगिरजाधर नही खुला था। इउन्मुक्त हँसी परन्तु सहज योगी को जानना चाहिय कि मनुष्य कैवल 3. हमें भविष्यवादी नहीं होना चाहिए इससे एकाग्रता टूट जाती है। ठीक समय पर हर चीज़ आखिर हम लोग़ कौनसा ऐसा विशेष व्त याद आती है और प्रत्येक कार्य "सहजता" से हो जाता है। कर रहे हैं - सिर्फ हयाई अड्डे पर प्रतीक्षा। हर्में पूछना चाहिए कि "क्या हम स्वयं में आनद का अनुभव कर रहे हैं।" यदि हम किसी भी प्रकार का आनद नहीं पा सकते तो फिर हम इसे क्यों कर रहे हैं। तत्व यह है कि हमें आनन्द में रहना चाहिए। जब हम पूना हवाई अड्डे पर गये तो, हवाई-जहाज तीन घंटे देरी से था। सभी सहजयोगी का गुझसे सब सहजयोगियों पर केनद्रित किया जो मुझसे मिलने हैदराबाद हवाई सहजयोगियों को पक दूसरे को जान लेने का अवसर मिला। सभी सहजयोगियों ने आपसी वार्तालाप मिलने आये थे। सबने इस समय सामूहिकता का आनन्द लिया। तब मैंने अपना ध्यान उन अड्डे पर आये थे। इससे सब मैं कभी का आनक लिया और अपने अनुभव बाँटे। मानव सम्बन्धों की सुन्दरता का आनन्द लिजिए। कुछ नहीं करती, मैं "अकर्म" की स्थिति में रहती हूँ। अत ः आप भी एक साक्षी के रूप में अपना स्थान बनाईये। अपने आप मे तनाय और रक्तदाब बढाने का क्या उपयोग है? क सबसे प्रधम आपको समय बोध से याहर निकलना सीखना है। तब आप पायेंगे कि हर काम आपके समयानुसार हो रहा है मनुष्य को अत्याधिक कार्यव्यस्त अथवा आलसी होने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक कार्य अपने समय पर होता है जैसे कि महिलाएँ अपना समय लेती है। उन्मुबत हँसी / सहज में मध्य ,८ क्या he 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-5.txt सहज योग के आ्शीवादो मे से पक यह है कि आप समय को भूल जाते है। सहज योग का आश्रवाद प्राप्त कीजिए। ि हमे उसी तरह रहना चाहिए जो कि हम है। यदि आप महिला है तो महिला की तरह ही रहिए, यदि पूरूष है तो पुरूष की भाँति रहिए सहज योग में आपको अपने पुरूषत्व को विकसित करना है यदि कोई पुरूष किसी स्त्री के पीछे भागता है तो वह स्त्री है हँसी ऐसे पुरूष को तो डाटर के पास भेज देना चाहिए। उसके अन्दर एक तरह का भूत है। यदि आप हमेशा इधर उधर देख रहे है तो आपका चित्त वहाँ नहीं है। आपका चित्त उस एक झील की तरह शांत डोना चाहिए जिसमें कोई लहर न हो - जो सारे संसार में समस्त आनंद को प्रतिबिंबित करे। सिर्फ एक कटाक्ष" ही आत्मसाक्षत्कार देने के लिए काफी है । सर्वत्र संचार माध्यम में न नन्द हे और न कोई भावना। यह तो एक बहुत चंचल चि्त को जन्म देती है। इससे तमाम शारिरिक समस्याये आरम्भ हो जाती है। एक सहज योगी के लिए भ आवश्यक है कि बह अपने चित्त को स्थिर रखे। मेरे चरणों में घ्यान लगाने से चित्त स्थिर होता है। आपका चित्त शुध्द बना रखने के लिये आपकी दृष्टि भी शुध्द होनी चाहिये। यह एक स्थिति है जहाँ आप केवल एक साक्षी बन जाते है, बिलकुल उस पंखे के पहिए के समान जो धूम तो रहा हे परन्तु क्षपने स्थान पर र्थिर दिखता है। आपको केवल देखना चाहिए सोचना नहीं। यदि आपको कुछ पाने का आनन्द लेना है, तो उसको मुत्य पर ध्यान मृने दे जो आनंद व प्रेम से एक कलाकार अपनी कृति बनाने में लगाता है वह एक आनंद के सागर के समान आपके उपर बरसता है। आप में एक आनन्द के सागर सो लगता है। जिसका अनुभव आप केवल "नि्वाण रोचिए कि आप दूरारों को क्या होने " अवस्था मे रह कर ही कर सकते है। आप दे सकते है। साड़ी स्वरीदते समय भी हमें गें सोचना चाहिए। उनके काम के बारे में भी सोचना चाहिए। प्रत्येक यस्तु के पीछे एक तत्व होता गरीब बुनकरों के बारे है। यद आपका चित्त वहाँ है तो आप उस तत्व को देख सकते है फंशन पक ऐसी बुराई है कि चित्त फैशन का गुलाम बन जाता है और प्रत्येक व्यक्ति अन्धाधुन्द वही पहनता है। सहजयोगी को क्षणभगर कल्पना पर जीने की इच्छा नहीं करनी है केवल इन सब पर हँसना है। हम हमें इन नश्वर क्षणमंगुर विचारों पर अपनी शक्ति बतम नहीं करनी है। रहे है और निरर्थक बातों का उपहास कर आनन्द एक ठोस आधार पर खड़े है, गहराईमे आनन्द/ उठा रहे है । जैसा कि कबीर में हग केवल आनन्द प्राप्त करते है, और दर्द का अनुभव नहीं करते। आप कलियुग की हा्यप्रद स्थिति को देखिये और फेवल उसका आनन्द लीजिए। ने कहा है, "मैं उनको कैसे समझाऊं जो स्वयं अंधे है"। इस अवस्था प. | ले, 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-6.txt अन्य व्यक्तियो को आपके अंतरमे एक अनोखा पन, पवित्रता, करूणा व शान्ति दिखाई देनी चाहिये। आप सहजयोग के विज्ञापन है, आप एक प्रकाश है यही निर्मल चर्म के अनुयायी (N1rmali का वर्णन है । जैसा कि नामदेव ने गोराकुंभार से मिलने के पश्चात कहा "मैं तो निर्गुण को देखने आया था और उसको आपके अन्दर सगुण के रूप में देख रहा हूँ ।" किसी दूसरे की यह कितनी अच्छी प्रशंसा है। एक दूसरे के अन्दर के सौन्दर्य को देखिए और उसका आनन्द उठाईये। है आपको अपने ध्यान में केवल यह कहना/"हमे चित्त के प्रकाश की शुध्दता प्रदान हो"। मैं तो आपकी इच्छा पर हूँ। हृदय मे बस जाती हैं, यह तो मेरी उदारता है मुझे सहजयोग की आवश्यकता नहीं है। सहजयोग की आवश्यकता तो आपको है। आप की ही भलाई के लिए मैं यहाँ हूँ। सहज योग का आश्शिवाद प्राप्त यदि आप कहते हैं कि माँ मेरे हुदय में विराजिए तो में आपके कीजिए । ईश्वर आपको सुखी रखे । पुजा के पश्चात सभी सहजयोगियों ने श्री माता जी के श्री चरणों में नम्न प्रार्थना समर्पित की শ त्वमेव साक्षात श्री चित्त शवित साक्षात श्री आदिशवित माता जी श्री निर्मला देवी नमो नमः " हे लज्जा की देवी सारे सहजयोगी आपके समक्ष नतमस्तक है। आपने हमे अपनी पूजा करने का शुभ अवसर दिया, उसके लिये हम हृदय से आभारी है। हम सब आपकी सन्तान जिन्होंने आपकी पूजा के प्रसाद का आनंद उठाया व आपका आर्शीवाद प्राप्त किया, कामना करते है कि हग उन सब सद्गुणों की अनुसरण करे जिन्हें आपने सुले हृदय से हम पर बरसाया है। हम कामना करते है कि हम सहजयोग का संदेश पेलाये और आपके नाम को चार चाँद लगाये। अन्त मे श्री-मूर्ति दारा लिखित एक तंगिल भजन श्री माता जी की स्तुृति में गाया गया देवी सार अत्यधिक प्रसन्न हुई और उन्होंने इच्छा व्यक्त की, कि वह भजन अन््तराष्ट्रीय स्तर पर गाया जाना चाहिए। कार्यक्रम के दौरान प्रश्नोत्तर गुरु की क्या्या बया है? गुरू को अपने शिष्य की पूरी भलाई व धर्मपरायणता का उत्तरदायित्व एक माँ की भांति प्रश्न । लेना पड़ता है। गुरू वह हैं जो अपने शिष्य को ब्रम चैतन्य से जोड़ता है। आप उसे 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-7.txt खरीद नहीं सकते। यदि आप गुरू को खरीदते हैं तो कह आपका सेवक हो जाता है, गुरू नहीं रह सकता। राज योग, भवित योग, जप योग व सहज योग में क्या अन्तर है? प्रश्न 2- आधुनिक राजयोग, बिना ईधन को जलाये कार के पहियों को चलाने के प्रत्यन के समान है। राजयोग अपने आप ही सहजयोग. में समाविष्ठ है । जैसे साना खाते ही हमारा पात्नतंत्र स्वयं ही कियाशील हो जाता है। उसी तरह जब कुंडलिनी जागृत होती है तो आप स्वयं ही ईश्वर से जुड़ जाते हैं। जब आप ईश्वर के साम्रह्य में हैं तो एक बार ही ईश्वर का नाम लेना हध्यान देना काफ्री है। बार बार ईश्वर का नाम जपकर यह मत समझिये कि ईश्वर आपकी जेव मे हैं। हउन्मुबत हँसी भादिन भा दो प्रकार की हो सकती है, पहली ऊन्ध भवित, दूसरी जागृत भविति अर्थात सहजयोग। ईश्वर से बिना जुड़े भवित करना व्यर्थ है। बह एक बिना सम्बन्ध जोडे फोन करने के समान है। श्री कृष्णजी के कथनानुसार यह अनन्य मक्ति होनी चांहिए अर्थात इस जैसा अन्य कोई हो ही न । प्रश्न 3 सभी नंदियाँ कहीं न कहीं जाकर समुद्र में गिरती हैं, हमें कैसे ज्ञात होगा कि हम कब पहुँचे? मैं सोचती हैँं की आप, अपनी यात्रा के गंतव्य पर पहुँच गये हैं। यदि आप सोचते हैं कि आप नहीं पहुँचे, तो अच्छा हो कि आप वापिस जायें और फिर अपनी यात्रा कर यहाँ पहुँचे। इउन्मुक्त हँसी प्रश्न 4- गीता का उपदेश अर्जुन को दिया गया था लेकिन इसका आदेश सार्वभौमिक है। सभी ग्रन्थो का उपदेश सारी मानवजाति के लिए है। यह सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं अपितु अपने को उसके अनुसार ढालने में है। एक स्थित प्रज्ञा जागृत आत्मा तथा गीता के अध्ययनकर्ता या उपदेशक में इतना अन्तर क्यो हैं? क्योंकि आपको एक "स्थित प्रज्ञा" बनना है, उसी कार्य के लिए मैं आई हूँ। प्रश्न 5 शिक्षा के सम्बन्ध में? Discretion) उच्च शिक्षा पा लेना ही काफी नहीं है। निर्णय क्षमता/का भी प्रयोग करना है। ्या ध्यान करना(Meditation) गेस्मेरिजम है? मेस्मेरिजम में मानव चेतना नहीं रहतीं। सहजयोग में मानव चेतना जागृत व विस्तृत होती है। बह असीम हो जाती है । मेस्मेरिजम में आपकी आँखे खुली रहती है जिनसे आप अचेत प्रश्न 6- টি 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-8.txt अवस्था में पहुँचाये जाते हैं जबकि सहजयोग में ध्यान करते समय आपकी जाे बन्द रहती हैं। इसलिए उनका प्रयोग मेस्मेरिज़म के लिए नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र में अकाल क्यो? जबकि यह एक योग भूमि है । क्योंकि यहाँ के लोगों ने चीनी से शराब बनाना शुरू कर दिया है जो योग भूमि में रह रहे हैं उन्हें ज्ञान होना चाहिए कि वह क्या कर रहें हैं । जो इस योगभूमि में पैदा हुए हैं उनका बड़ा उत्तरदायित्व है कि आत्म जागृति प्राप्त करें । प्रश्न 7. गुजरात लोग पश्चिम की और देखते हैं, परन्तु भौतिक वस्तुओं से सुब नहीं मिलता। आज आपके पास एक वस्तु है कल आप दूसरी वस्तु की इच्छा करेंगे। पहले मॅहगे गुरुओं का फैशन धा, आज सादक द्रव्यों ने उनका स्थान ले लिया है। वह पेसे मादक द्रव्य लेते है जो उनके दिमाग को/ डालता है। फिर वह कान फोड देने वाला पाप संगीत सुनते हैं, इस लिए उनका मस्ति् (Limbfc Area) चेतनाशुन्य व संज्ञाहीन हो जाता है। उन्हें ज्यादा गहरी व तीव्र संवेदना अनुभूति की आवश्यकता होती है। क्या यहीं सब उनकी आजादी ने उन्हें दिया है कि कैसे अपनी जिंदगी बरबाद की जाये? वह तो अपनी आजादी का दिखावा र करते है वह अपने बालों को रंग सकते है, मनचाही पोशाक पहन सकते है, चाहे वह हास्यप्रद व असभ्य ही नजर आये; जैसा कि मैने हालोवीन में देखा। अमेरिका अधिक गरीब देश हो गया है उनका सारा पैसा कहां गया? ऐसी उन्नीत से क्या फायदा जो लोगों को निराशा की चर्मसीमा पर पहुँचाकर आत्महत्या करने को घाध्य करे। स्वीडन, स्विज़रलैंड, और नोखे का रहनसहन सबसे उच्च है फिर भी वह सब इस प्रतियोगिता में रहते हैं कि सबसे अधिक आत्महत्यायें कहाँ होती है। जब हम किसी को गड्डे में गिरते देखते हैं तो हम उसका अनुसरण क्यों करे, ? आप अपने परिवार के लिए कितना परिश्रम करते हैं, क्या आप थोड़ी सी मेहनत अपनी अन्तर आत्मा की खुशी के लिए नहीं कर सकते? जो मनुष्य आत्म साक्षात्कार पा लेता है वह समर्थ बन जाता है। उसकी कोई भी आदत नहीं बनती, न ही कोई उसे वश में कर सकता है। वह तो पहिये की धुरी के समान स्थिर और शान्त रहता है। उसी प्रकार आप जागरूक लोग सभी चीजें देखते हैं परन्तु उनका प्रभाव आप पर नहीं पड़ता। नारी मुक्ति सत्री और पुरूम के अधिकार समान है लेकिन फिर भी यह एक जैसे नहीं है। आँखो को शान्ति देने स्त्री का स्थान धरती माँ के समान है । वह के लिए यह समझना आवश्यक है। 2. Z घुमा, Zऔर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-9.txt आाले हरे परिचान पहनती है, वह पोषण करती है, वह माँ की तरह सहनशील है और हमारे पापों को क्षमा करती है। मैं सोचती हूं कि एक पत्नी अपने पति से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। यदि स्त्री अपनी शवित का उत्तरदायित्व जान लें तो और भी शक्तिशाली हो सकती है। भारतवर्ष में कहा जाता है कि "स्त्री पूज्यनीय है" परन्तु वह पूजा योग्य भी तो होनी चाहिए। तुम्हें पति/पात्न का सुख तो मिल सकता है परन्तु आनंद आत्मा से ही मिलता है। आत्मा सुख और दुख से परे है उससे तो केवल आनंद ही प्रस्पुटित होता है । ार श्री माताजी के दौरे का पक दिन राजकोट के तीन घंटे की धूल भरी कार यात्रा के पश्चात सबसे बड़े समाचार-पत्र के संवाददाता दारा श्री गातजी का स्वागत किया गया अभी श्री माताजी ने अपने कमरें में प्रवेश ही किया था कि दो अधीर पत्रकार कमरें में जबरदक्ती घुस आए् वह अपने समाचार पत्र में छापना चाहते थे जो कुछ घण्टो बाद ही निकलने वाला था। राजेश भाई ऊपर स्पाना लेकर वापिस आय. तो उन्होंने वह जागृत आत्मायें देखी। और श्री माताजी से साक्षात्कार के लिए विनंती करने लगे। यह साक्षात्कार मि अब पत्रकार सम्मोलन का समय हो चुका है। राजेश प्रश्न काल के लिए शान्त बैठे हैे कि प्रश्नोत्तर का उपद्रव एक तेज तरार स्त्री पत्रकार से शुरू होता है। पाँच मिनट के पश्चात मे वह स्त्री पत्रकार मोम की तहर पिघलने लगती है। पत्रकार श्री माता जी से आत्म साक्षात्कार करवाने के लिए प्रार्थना करने लगते है । "क्या तुम्हे विश्वास है कि तुम्हे आत्मसाक्षात्कार पाना है"? श्रीमाताजी ने पूछा। "हाँ, इँ"। सभी पत्रकारों को माता जी के आशीर्वाद से आत्मसाक्षात्कार मिला। प्रश्नों का बया हुआ? व्यवस्थापकों की तरफ से इमरजेन्सी संदेश मिलने शुरू हो गए हैं क्यों कि पब्लिक कार्यकम का समय हो गया है। एक हजार लोगों के लिए बने सभा भवन में ।200 लोग बैठे है। ।0 00 व्यकवरित सभा भवन में और 200 व्यक्ति मंच पर। बाहर उद्यान में भी ।000 प्रतीक्षारत लोगों के लिए लाऊडस्पीकर लगाए गए है। कन श्री माताजी ने जोर दार तालियों की गइगड़ाहट में प्रवेश किया। सबने श्रीमाताजी के व्याख्यान अधीर भीड़ आगे का प्रोग्राम जानने के लिए वैचैन स्वतम होने से पहले ही आत्मसाक्षात्कार पा लिया। थी परन्तु : प्रोग्राम नहीं रखा गया धा। व्यवस्थापक साहिब क्या हुआ उसका? उपरान्त * (Follow up 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-10.txt चौरवाइ समुद्र के किनारे एक आथय स्थान है जहाँ राजेश शाह का पेतृक धर है। वहाँ ही श्री माता जी की पूजा की गई। श्री माताजी का स्वागत शहनाई के मधूर संगीत व तुमुल ध्यान से किया गया। कुँबारी कन्याऐ गुलाब की पंखुडियाँ बिखेरते हुए श्री माताजी को मण्डप में ले गई। यह मण्डप नारियल के बाग में बनाया गया धा। हजारों ग्रामीण श्री माताजी की पूजा के लिए एकत्रित हुए। श्री माताजीके कमल चरणोंके नीचे केले के पत्ते रखे गए और गुजरात की प्रचलित माता अम्बा की प्रशंसा में सहृदय आरती गाई। देवी माँ बहुत प्रसन्न हुई। नाचते, गाते, परमानदत जनसमुदाय के साथ श्री माताजी बैलगाड़ी में बैठ कर सार्वजीनक कुँवारी कन्यायें पानी के कलश लिए हुए श्री माता जी का सुभ शगुन स्वागत करती है। अधाह जन समूह उनकी चरण धुलि लेने के लिए झुकता हुआ ऐसा प्रतीत होता कार्यक्म के लिए आती हैं। है मानो असंख्य प्रकाश पुंज पक प्रकाश सागर में लीन हो रहे हों। सायंकाल के लोकनृत्य का समाँ बंधा रहा जो देर रात तक चला परन्तु सूक्ष में श्री माताजी का ध्यान केवल कैन्सर के रोगी को ठीक करने में लगा था और वह बिल्कुल ठीक भी हो गया। अन्त में कार्यक्रम परम आनंद की चरम सीमा पर पहुँच कर श्री कृष्ण के परम प्रिय पवित्र नृत्य डीडिया रास तक पहुँच गया लेकिन श्रीमाताजी के प्यार की रास तो सब सीमाओं को लॉघ सुकी थी जिसकी सुन्दर उ्याल्या तो किसी को भी ज्ञान न धा। कोई कवि ही कर सकता है। हम अब कहा है, इसका उस समय जय श्री मात। जी। हा वार्षिक चंदा |0 8 रूपये कृपया ड्राफ्ट निम्न पत्ते पर भेजे विश्व निर्मल घर्म पो-बा. नं. 190 । कोथरोड, पूना 4।। 029 भारत 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी अँक २ खंड । ऊँ श्री निर्मला देवी नमो नमः कुछ लोग चनी हैं, कुछ लोग गरीब; यह सब क्षण मंगर चीजें हैं, अपने हृदय के अंदर देखिए और उस प्रेम का आनंद लीजिए। प्रेम के साथय आप ऊपर उठिये और पक बार फिर से महानता को प्राप्त करिए। ंत श्री माताजी श्री माताजी निर्मता देवी फी मारत ात्रा 1909 चैतन्य लहरी के पिछले जंक में दक्षिण भारत और गुजरात में हुए श्री भाताजी के कार्यक्रमों का वर्णन संतेप में किया गया था। भारत यात्रा में नागपुर, दिल्ली लखनऊ, देहरादून, बम्बई, पटना, कलकल्ता और नेपाल के कार्यक्रम भी शामिल हुए। उन्होंने जो अदभुत बातें कही, उन सबके साथ न्याय करने के लिए एक पुस्तक लिलनी पड़ेगी। तब तक के लिप दिव्य संदेश को बॉटने के लिए यह संकलित अंध प्रस्तुत विया जा रहा है। नागपुर हमें अपने घर आने जैसा लगा । हम श्रीमाताजी के पुश्तैनी स्थान होम टाऊन की सुशी और प्यार को महसूस कर रहे थे जो व्यक्ति उन्हें बचपन से जानते धे उन्होंने उनसे संबंधित बहुत सी सुन्दर घटनायें सुनाई। एक सन्जन जो अब एस पी. हैं उन्हेोंने एक छोटी पुस्तक दि्ाई, जिसपर श्री माताजी का नाम एक समाज यल्याण संस्था की अध्याक्षिका के रूप में लिखा था। उनका बचपन अनेक कल्याण कार्य करने में गुजरा। यह आश्चर्य की बात थी कि वह उन सब लोगों को पहचान मानव सकीं, जिनसे वह वर्षों से नहीं मिली थीं यह यादों का प्रकाशित होना था। फिर वहीँ वह विद्यालय था जहाँ उन्होंने पढ़ाई की, गलियाँ और बगीचे जो कभी श्री बालकृष्ण साक्षात के दिव्य लीलाओं के दृश्य बाबा मामा ने अपने अलंकारित भाषा में नागपुरी स्वागत से सब लोगों को गवगद कर दिया तथा थे। उसमें संगीत का आनंद घोल दिया। श्रीमाताजी दुवारा दिल्ली आश्रम का उद्घाटन एक दिव्य घटना थी। जैसे ही दैव्य ने अपने आशिर्वाद बहनों के त्याग पर खुशी के आश्रुओं से भर गये जो कि प्रेम की वर्षा की, हम लोग दिल्ली के भाई के स्मारक के निर्माण में लगा है इस बार दिल्ली में अत्यधिक जन कार्यक्रम हुए इस बार राजधानी 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-12.txt दुन घाटी ने पर्वतों की देवी का सुले हृदय से स्वागत किया। सब जगह ऐसा घोषित किया गया कि "सिलने का समय आ गया है"। जिस प्रकार प्रकृति ने रंग-बिरंगे फूलों की अनुपम घटा विरवेरी हुई थी उसी प्रकार देहरादून के लोगों की आत्मजागृति का समय आ गया था। ति 66वे जन्मदिन के उपलक्ष में उनके अभिनंदन के लिए सारे विश्व से सहजयोगी श्रीमाता जी के एकत्रित हुए थे। जैसे उदित होते सूर्य की किरणों के साथ पुष्प की प्रत्येक प्ुडी सुलती है उसीप्रकार श्री माताजी की मधुर जन्मदिन मुस्कान से प्रत्येक हृदय के द्वार खुल गये। उनके जन्मदिन पर हमने अपने पुर्नजीवन का आनंद महसूस किया। हम सब की आत्मार्ये श्री माताजी के प्यार व तेज से दैदीप्यमान थी व उसे प्रतिबिम्बित कर रहीं थीं। कुमारी कीर्ति शेलिदार ने शा्त्रीय संगीत जिसमें पारंपारिक नाट्य अभिनंदन किया। अगले दिन श्री माताजी के जन्मदिन संगीत शैली थी, के दूवारा, श्री माताज़ी का बधाई की पूजा में श्रीमाताजी/पुरे ब्रम्हांड के अपने बच्चों को आशिर्वाद दिया। जय श्री माताजी "सहजयोग में प्रसन्न रहना अनिवार्र्य है", इस पूर्ण विश्वास के साथ कलकल्ता ने सहजयोग ग्रहण किया। "माँ का आहुवान है, आईये" इस नारे नोगो पर बंगाल के दूरदराज से इच्छुक व्यक्ति रिखचे चले आये। पहली दो राते सभी सहज योगियो ने बारासात के एक बहुत ही शान्त कैम्प में एक पीरिवार की भाति गुजारी। बारासात एक गाँव है, जहाँ से हर वर्ष दुर्गा- देवी का जलूस दुर्गा-पूजा के की पवित्रता के साथ जिसे महिपासूरमर्दिनी का लिए आरंभ होता है । बंगाल की उस मिट्टी आशिर्वाद प्राप्त है, लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पाया। "सारी जातियों के लोग आओ, भारत के समुद्रतट पर मौँ का अभिषेक करें" रक्न्रिनाथ टेगोर की यह भविष्यवाणी पूर्ण हुई । कलकत्ता से श्री माताजी नेपाल आई। नेपाल ही शायद एक ऐसा पूर्ण हिन्दू राज्य है जहाँ दवी दुर्गा की पूजा कई रूपो में की जाती है। क्योंकि उनके देनिक जीवन में देवी की मूर्ति-पूजा और मन्त्रों में विश्वास व सयाई का मिश्रण है, इसीलिए वह श्री माताजी को देवी रूप में स्वीकार कर सके। इसकी भ।। अत्यधिक सम्भावना है कि वह दिन दूर नहीं जब वह सब इस आधुनिक युगावतार की सत्यता का आनंद लेंगे। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-13.txt नागयुर में सड़जयोगियों से बार्ता मराठी से अनुवाद किए गए संकिप्त अंश। का ध्यान आता है। नाग माँ का स्थान एका विशेष स्थान है और हमें बहुत सारी बातों में सहजयोग का विस्तार हो यह बात कई चार मेरे घ्यान में आती है परन्तु कभी कभी माँ के र के लोग माँ से ही दूर रहते है। वह नहीं देखते कि उनके चारों तरफ द्या है दूर की कस्तु पर हम ध्यान जल्दी जाता है परन्तु जहाों इम रहते है, जहाँ जीवन मापन करते हैं बह स्थान वहाँ के लोगों लिए इलना पास हो जाता है कि यह हमारी गहराईयां को नहीं पडचान पाते है -यही कारण है नागपुर में सहजयोग देर से आरंभ हुआ| मेरे बल्यकाल के कारण यहाँ बहुत चैतन्य फैला हुआ है। सुक्ष्म रूप से यहाँ काफी कार्य किया जा चुका है और मुझे ज्ञात है कि एक दिन यह यहाँ जरूर मतार फ्लेगा। अपने पिताजी के कारण, जो कि स्वत्त्रता संग्राम के विस्तार के लिए हर स्थान पर जाने कोशिश करते थे, मैं भी बहुत से स्थानों पर गई व बहुत से लोगों से मिली। जब में नौ वर्ष की तो गांधीजी मुझे नेपाली कहते थे। वह मेरे विचारों व योजनाओं का बहुत आदर करते थे। उनका मजनाब र्थित आध्रम कुण्डलिनी के आधार पर ही था जहाँ प्रत्येक चक् के बारे में एक एक करके बताया ग है। मैंने उन्हें कहा कि इसका एक अनुक्रम से अनुसरण करना चाहिए, जिसे उन्होंने प्रधम शाल्त्र पध्ट के सिध्दांत से लेकर ईसा मसीह तक विस्तार से किया। अल्लाह हो अकबर वगैराह सबका उसमे समार ा धा। वह अक्सर मुझसे परामर्श करते थे । जो व्यक्ति मेरे बाल्यकाल में मेरे सम्पर्क में आप वह अभी भी मुझे याद करते हैं। कल ही । विद्यालय के एक अच्यापक यहाँ कार्यक्रम में आपट थे। शायद उनमें कुछ आन्तरिक झञान और बल हो जो उन्हे मुझसे बाँधता है और मुझे इतने वर्षो के बाद पहचानने में सहायता करता है । जब मैं "साईस कालिज" में धी तो 1942 के "भारत छोड़ो" आन्दोलन में मैंने भाग लि धा। सारी पुलिस वहा तोपें लेकर विद्यार्थियों को डराने के लिए पहुँची थी। मैं अकेले उनके सम्मुस द्वार पर सड़ी रही एक वर्ष पहले मेरे प्रधानाचार्य साहिब श्रीकृष्ण मोदी पुणे के एक जन कार्यक्रम में आए थे 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-14.txt और आज में इसको प्रत्यक्षरूप में देख रहा हूँ। जिस क्षण मैंनें सहारा लिया, मुझे वहाँ से हटा दिया गया" । जो मुझे बाल्यकाल में जानते थे वह आज भी भूझे पहचानते हैं। उसका एक ही कारण है और प्रेम, क्योंकि मेरा प्रेम निर्व्य, निर्पक्ष व आकांक्षा रहित वह है - है। इस निर्कन्य प्रेम के कारण ही ये लोग अभी तक मुझे जानते हैं। उन तनाव के दिनों में मेरी माताजी मुझसे कहा करती थी कि हमारी तो अपनी कोई पहचान ही नहीं है, हम तो निर्मला की माताजी और निर्मला के पिताजी के रूप में पहचाने जाते है। जब आप इतनी छोटी आयु के हों तो इसका एक ही कारण है - केवल प्रेम। मेरा बाल्यकाल से ही यह स्कपाव रहा है कि जिसने जो क्यतू माँगी उसे वह दे दी। मेरे इृदय में सबके लिए बहुत प्रेम व करूणा मी इसलिए सभी लोगों के दिल की गहराईयों में मेरे लिए स्थान है। उस समय भी मुझे दूसरे लोगों की बुराईयों का ज्ञान धा परन्तु मुझे यह ज्ञात था कि अगर उन व्यक्तियों को निर्व्य प्रेम मिला तो वह एक दिन जरूर सहजयोग में समिमिलित होंगे और सर्व शकवितमान परमेश्वर के दर्शन करेंगे इसलिप यह निर्वत्य प्रेम आप सब में आना चाहिए। इसमें कोई किसी चीज की आशा या इच्छा नहीं करता। कोई आपको कुछ देता है या नहीं इसके लिए आप क्यों परेशान होते हैं। यह सब वस्तुए तो नश्वर हैं। मैंनें अपने बाल्यकाल में कभी भी सहजयोग की बात नहीं की परन्तु मेरे पिताश्री को इस का ज्ञान था और किसी को नहीं। मेरे पिताजी ने माताश्री को यह सब विस्तार से बताया था क्योंकि उन्हें मेरे वारे में एक दिव्य हृडिव्हाइन स्वप्न दिलाई दिया था। जब मेरा जन्म होने वाला धा तो उन्हों ने एक चीता देखने की इच्छा व्यवत की थी और इसी प्रकार के कई स्वप्न उस समय उन्होंने देखे थे। मैंने निर्वन्य प्रेम के बारे में मुख्यतः पक बात देखी है विद्यालय, कालिज व आस पड़ोस में सब मेरे बारे में जानते धे। मुझे आश्चर्य होता था क्योंकि वह और लोगों को तो नहीं जानते थे। मेरे भाई को भी आश्चर्य होता था और वह कहते "निर्मला दीदी को सब व्यक्त केसे जानते हैं" लडकियाँ तजा उसे कहती "हमें मालूम है कि आप निर्मला के ही माई है"। वह कहते "क्या मेरी अपनी कोई पहचान नहीं है"? केवल निर्कन्य प्रेम से ही आप इतने बड़े समूह से मित्रता रख सकते है । मेरे सभी मित्र मुझे इतने सारे पत्र लिखते थे कि कालेज कार्यालय हैरान होता था कि "यह सब क्या चल रहा है, इस महिला को इतने सारे पत्र कैसे आते हैं"। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-15.txt फिर मरा एक बहुत ही पुराने विचारों वाले पोरिवार में विवाह हुआ। एक लम्बे से पूधट के तो क्या कहने, वहाँ सबके चरण स्पर्श करने पडते थे। उस समय भी मैंने क्या किया? मैने प्रत्येक को निर्वन्य प्रेम दिया यदि उनको कोई समस्या होतीं तो मैं उसका समाधान करती थी। वह मुझे इतना ा प्रेम करते है कि यदि मै एक दिन के लिय मी लसनऊ जाती हैं, तो पूरा परिवार मेरे चारों ओर पकत्रित हो जाता है और मुझे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ते। मैंने यह सब पात्र अदा किप है। प्रेममय वातावरण है। लोगों से प्रेमपूर्वक व शिष्टाचार इसप्रकार सब कुछ बहुत आनन्दकारक है । से बाते करनी चाहिए। यदि आप उ्हें उनका पद बताकर उन्हें दोषी ठाहराये या बेइन्जत करते तो यह एकदम अनुचित है। बिनीत भाव से मधुर बोलें और सब कार्य निर्क्य प्रेम से करे। आप को शायद नहीं पता कि भविष्य में यह आपकी कितनी सहायता कर सकता है। उदाहरणार्थ, मेरे भाई के सभी मित्र मेरा सम्मान अपनी बडिन के समान करते है। अगर मैं उन्हे जरा सा संकेत भी कर दूँ तो वह घरती-आकाश एक कर दें। मैं अन्दाजा नहीं लगा सकती कि मैंने उनके लिए क्या किया है यद किसी के लिए कुछ किया है तो मैंने उन्हें केवल प्रेम दिया है। प्रेम में कोई किसी के लिय कुछ करता नहीं है। उन्हे मैंने प्रेम आत्मसन्तुष्टित के लिए दिया और उसका अमूल्य पुरस्कार मुझे मिल रहा है। लि. प्रेम निर्वन्य होना चाहिए अर्धात बिना किसी आशा और स्वार्थ के। इसमें कोई आत्मस्वार्थं नहीं होना चाहिए "यह मैं कह रहा हूँ " और "उसके लिए कह रहा हूँ" आदि उच्च विचार नहीं बल्कि यह अनुचित है। सहजयोग में कुछ पुराने सहजयोगी है और मुझे उनसे बहुत अणीब अनुमव हुए हैं आप लोगों ने इसे आरम्भ और स्थापित किया है। सहजयोगी तो आधार है, यद आधार ही कमजोर होगा तो सारा भवन गिर जायेगा । यदि आपने किसी को आत्म साक्षात्कार दिया है तो इसका क्या मतलब है? आपने तो नहीं दिया। इसलिए आपको कहना चाहिए कि मैँ अकर्मी हूँ यह जागृति तो श्री माताजी दुवारा दी गई है" या फिर इस व्यक्ति को अपनी जागरति मिली"। किसी को यह नहीं कहते रहना चाहिए "मेने यह किया", "मैने यह दिया है", ऐसी भावना कभी भी नहीं आनी चाहिए। परन्तु मनुष्यों के बारे में मेरे अनुभव कहते है कि जो व्यक्वित शुरू में सहजयोग में आये है, उनमें यह झूठा अहंकार आ जाता है कि "हम पुराने सहजयोगी हैं", "हम तो आरम्भ के कृछ सहजयोगियों में से है"। जैसे-जैसे सहजयोग फेल रहा है उसी के अनपात में यह यठा अहंकार भी नद ह है कि े कारण कितने सारे सहजयोगियों े कार 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-16.txt परन्तु अब तो करीब-करीब सभी ऐसे अहंकारी व्यक्ति सहजयोग से निकाले जा चुके हैं। मैंने देखा है कि ऐसे अहंकार को पालनेवाले लोगों को भूत पकड़ लेते है। वे अहंकार में इतना पूल जाते है कि वह सहजयोग में बेचनी महसूस करते है । फिर उन्हें गुस्सा आता है वह अपने को स्वयं नियुकत कार्यकरम के कार्याधिकृत ंइनचारज: समझते हैं। "इम ही यह सब कार्य चला रहे है", हमारी ही वजह से सब ठीक चल रहा है"। इसकी बजह से अतिआवश्यक नग्रता और प्रेम समाप्त हो जाता है और यह सब अनचाही और झूठी गिरावट लाता है। मैंने पुराने सहजयोगियों में एक और कमी देखी, वह मेरा नाम लेकर स्वयंरचित विचार मार्ग व मन्त्र प्रचारित करते है। सहजयोग की रचना करने का प्रयत्न न करे। कुछ नया करने की इच्छा पश्चिमी बध्धि में आती है। सहजयोग तो पारम्पारिक है । अब तो आप को फल प्राप्त हो गया है फल के बाढ और क्या करना है? मैने आपको बता दिया है कि ब्या करना है और कैसे करना है। हम नये समूह बनाने में विश्वास नहीं करते। पेसी प्रवृत्ति तो राजनीति से आती है इसलिए नई चीजों का आविष्कार न करे और न ही यह कहे कि "श्रीमाताजी ने कहा है, इसलिप आप ऐसा करे"। वह स्वयं कुछ आविष्कार मेरे नाम का प्रयोग करके, उसे प्रभावकारी बनाकर, अपने ही बुने जाल में फँस जाते है। आप कर, ऐसा सब अस्वीकार कर दें और कहे कि "मै ऐसी वेकार चीज नहीं मानता। मै वही क जो श्री माताजी कहती है"। यदि आप को कोई नया विचार या घारणा मनमें आप, तो मुझे लिख सकते है ताकि मैं उसे पढ़ सर्क और उपयुक्त लगने पर उसके अनुसार बता हुँगी। "यह पेसा होना चाहिए और ऐसा नहीं " ऐसा मैं आपको समझा दूँगी। जिस क्षण भी "मै" की भावना आती है, सहजयोग नहीं रहता। "मै नहीं" की भावना अपने में धारण करनी चाहिए। जहाँ में आ जाता है, वहाँ सब समाप्त हो जाता है यदि आप कुध्द स्वभाव के है तो अपना कोध कम कीजिए। जितने भी गर्म स्थभाव के लोग सहजयोग में आप, वह सब छोड गए। यदि आप गर्म स्कभाव के है तो जानने की कोशिश कीजिए कि यह कहीँ से आता है । यदि यह यकृत से है तो अपना यकृत लिव्हर ठीक करे, पर आप शांत रहे। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-17.txt पूजा के समय बहुत शांति मिलती है जब तक आप अपने भावों को नहीं बदल लेंगे और जरा जरा सी चीज पर कोधित होने पर विजय न पा लेंगे तब तक आप उन्नति नहीं कर सकते। केवल अपने स्क्भाव पर नियंत्रण के लिए हीं नहीं, बल्कि इसे जड से उसाड़ फेंकने के लिए परिश्रम करना है। सहजयोग में इसके लिए एक मार्ग है। इसे कैसे करना है यह आपको अध्ययन करना है जोर समझना हैं। प्रमुख बात यह है कि सब को केन्द्र पर आना है यदि कोई यह सोचता है कि वह अकेला, एकांत में ध्यान कर सकता है तो यह गलत है यदि आप केन्द्र में नहीं आपँगे तो आप कुछ भी नहीं पा सकेंगे। आपको इसकी गहराई में जाना है। इन्हीं गहराईयों से आपको अन्य व्यक्तियों से भी केन्द्र में मित्रता करनी है। इसी मित्रता में हमें विश्व निर्भल घर्म के सिध्धान्तों को सीखना है और अपने जीवन ड में उतारना है। ऊँच -नीच और किसी कहे घर्म, जो अंधायुन्द माने जाते है, की स्टूबादिता हम जाति पौति, को मान्यता नहीं देते। सत्य धर्म का हम सम्मान करते हैं पर दिसावटी किया पध्दति और मतों को हम नहीं मानते। वैधव्य को हम नहीं मानते क्योंकि यह झूठा विचार है। यह पुरुष द्वारा स्त्री पर अन्याय से लादा गया है आप किसी भी सम्प्रदाय की निन्दा से न डरे। कहिये "श्रीमाताजी ने हम लोगों को मस्तक पर कुकुम लगाने का आदेश दिया है" सूने माथे से घूमना मना है। जो अपने को विधवा मानती है वे वास्तव में गलत है। यदि वैधव्य सही होता तो यह पुस्ों पर भी लागू होता। पुरूषों में तो वैध्य नहीं है, फिर स्त्री वैधव्य क्यों भुगते। पुस्ष ने यह वैधव्य स्त्री को घोर यातना पहुँचाने के लिए बनाया है। मेरे विचार में उन्हे इससे कुछ नहीं मिलता। एक और कारण से सहजयोगी में पकड़ आती है वह हैं गलत गुरु को पूजना। यह बहुत सतरनाक है। वह गुरू कभी भी आप में प्रवेश कर सकता है। उसने जो कुछ भी किया हो, अब ईमानदारी से आपको अपना उससे पीछा छुडाना हैं और अपने को स्कच्छ करना है। इसमें दुखी और निराश होने की कोई बात नहीं है। इसके बारे में गलत विचार नहीं पालने चाहिए। यदि एक छोटासा हिस्सा भी ध्यान से निकल गया तो वह बढ़कर हमारे हाथ से निकल जापगा और एक बडे पेड़ का रूप ले लेगा यदि इसका एक छोटा सा टुकड़ा भी रह गया तो विश्वास रखें कि आपकी चैतन्य लहरियाँ समाप्त हो जाएँगी। सीच मन्ट ारे ১ भी 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-18.txt विदेशी सहजयोगी कई प्रकार के है। कुछ बहुत गहरे है जो सहजयोग के इृदय तक पहुँच जाते हैं। कुछ अधपके व कुछ व्यर्थ हैं। आपका आचरण उन सबके प्रति ठीक व मधुर होना चाहिए। आप आश्चर्य से देखेंगे कि जो ईमानदार नहीं है वह स्वयं ही बाहर डो जायेंगे। जिन्होंने सहजयोग को अपने अंतर से ठीक से नहीं समझा है आपको उनकी मदद करनी चाहिए। आपको उन्हे बुलाकर उन पर काम करना चाहिए परन्तु मैने देखा है कि बह आपके पास आते है आप यह घोषित कर देते है कि उन्हे तो ने पकड़ रक्ता है। महाराष्ट्र में सत्य बताते समय हम धोडा सा कर्कश हो जाते है "हैलो, आपको भूत तौ बहुत सारे भुत्तों ने पकड़ रखा है, अचछा हो कि अ आाप यहाँ से दफा हो जाए"। यह कर्कशता कमी हम पर अधिकार कर लेती है। जब मैं किसी से पूछती हैं कि तुम सहजयोग से क्यों चले गए हो तो वह कहते हैं कि "माँ, उन्होंने मुझे साफ कह दिया कि मैरे घर में मृत आत्मायें है जैर मुझ पर भू्ती ने अधिकार पा लिया है"। जब मैं सहजयोगियों से युछती हैं तो वह उत्तर देते है कि "इमने तो केवल सत्य कहा था"। परन्तु यादि यह सत्य भी है तो भी सिर्फ उतना ही कहना चाहिए जितना उनके लिए लाभप्रद हो। क्या जो आपने कहा उससे उन्हें लाभ हुआ? बल्कि उन्होंने सहजयोग का शुभावसर लो दिया और चले गये जब आप सत्य बोले तो यह आवश्यक नहीं कि वह मीठा और चशनी चढा हो परत्नु हितकारी हो एसे बोलो जो दूसरों का पोषण करे। याद किसी की कोई बाधा है तो उसे समझे और उन्हें विश्वास दिलाये कि वह बाधा आप जड़मूल से समाप्त कर सकते हैं। क्यों कहे कि यह भूत है। जब आप कहेंगे कि "तुम्हें भूत ने पकड़ रखा है" तो वह व्यक्ति कहेगा कि "डॉक्टर ने तो कभी ऐसा नहीं कहा कि मुझे भूत ने पकड़ा है फिर आप कैसे कह रहे है?" यह अच्छा हुआ कि यह सब मैंने आपको साफ तौर पर बता दिया। आज तक मैंने नये सहज- योगियों की कठिनाईयों के बारे में नहीं बताया था। यह पुराने सहजयोगियों को ठीक से समझना है जिससे वह नये सहजयोगियों को निर्क्य ग्रेम दे सके। परन्त वह किसी प्रकार अपने को अग्रणी रखने के प्रयत्न में लगे रहते है। आप पहली पक्ति मे बैठे व्यक्ति को इंगित कर सकते है कि वह एक पुराना सहजयोगी है, बह पुराना है उसे तो आगे ही बैठना चाहिए। मैं कुछ खास हैँ और मेरी कुछ सांसियत हैं" मतलब ा उन्हें आगे ही बैठना है। तो आप कह सकते है कि वह व्यक्ति व्यर्थ का हैं। यद उसे कुछ कार्य दिया जाये तो उसका उत्तरदायित्व उसी क्षण वह दूसरे पर डाल देगा "तुम यह करो, तुम वह करो" और 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-19.txt वह चारों और घूमेगा और अन्य सबसे काम करायेगा | दूसरों पर काम धोपने वाले ऊँट पर बैठकर भेडे हॉकना चाहते हैं । यह हालात है फिर जब में कहती हूँ कि आप सहजयोग छोड़ण दे तो बह जमीन पर गिर पडते है। "श्री माताजी मैं तो इतना पुराना सहजयोगी हूँ।" "समझा, आप तो पुराने ही नहीं घिस भी गये हैं इसीलिए अच्छा हो कि आप हमें छोड दें" । सभी से प्रार्थना हैं कि वह नम्रतापूर्वक व आदरपूर्वक प्रतिज्ञा करे कि "मैंने अभी कुछ नहीं पाया हैं, मुझे अभी और ऊँचा उठना हैं। में दूसरों को ज्योति देता हूँ क्योंकि उससे मुझे और जागृति मिलती है"। आप दूसरों को जरूर जागृति दे। कुछ लोग बहुत पुराने और धसे हुए है और कुछ जो नये है व बहुत विकसित है । कई अवसरोंपर मुझे जो पुराने सहजयोगियों के स्वभाव के अनुभव हुए है मैंने उन्हें कहने का सोच लिया है कि "अच्छा हो कि आप स्वयं की जाँच करे कि कही आपके ही तो भूत ने नहीं पकड़ लिया है" यह अहंकार के भूत है पहेले आप देसे कि आप अहंकार के भूत की पकड़ में तो नहीं है जिसकी वजह से आपको नुकसान होगा। कुछ क्षण के लिए यह सुसदायी है कि आप आदरणीय और समर्थ हो गये यदि आप सहजयोग में आकर प्रभाव पाना चाहते है तो अच्छा हो कि घाम सहजयोगी सहजयोग न ही करे। यह मूल तत्व है। धन का दुरुपयोग करना सहजयेोग में सख्त मना है। यह धर्म के लिलाफ है। धन के बारे में सावधान रहे। धन कमाने के लिए सहजयोग का उपप्रोग न करें। सहजयोग के बाहर आप लाभ उठा सकते हैं। पवित्र स्कभाव वाला बनना अति आवश्यक है। दुर्पयोग का परिणाम बहुत बुरा होता है एक व्यव्ति ने थोडे से ही घन की गड़बडी करी, बैचारा। उसका बेटा ही चल बसा। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति को दिल का दौरा पडा। उसने थोडेसे पैसें की गडबडी की थी। जब मैंने कुछ चीजों का पता लगाना चाहा तो वह कोधित हो गया और आठ दिन के अन्दर उसकी मृत्यू ब हो गई। 10 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-20.txt आप लोग मुझसे असत्य न बोले। एक व्यक्ति मेरे पास आया और एक लड़की के बारे में असत्य बोलने लगा। हैं । आपस वह व्यक्ति अब पकषाघात से पीडित है, अपनी बोलने की शव्ति खो चुका में भी असत्य न बोले। स्पर्धा की जगह प्रेम भावना बढ़ाईये । किसी को मूर्स बनाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। क्योंकि आपने ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश कर लिया है, आपको वहाँ के नियमों को याद रखना चाहिए। वहाँ हम असत्य नहीं बोल सकते, न ही चन का दुरूपयोग कर सकते, और न ही अपनी शवित से दूसरों पर आकरमण कर सकते। याद आप यह तीनों बुराईया छोड दें तो सहजयोग का आपको पूरा आशिर्वाद प्राप्त है। फिर असभ्य व्यवहार की देन स्त्री-पुरुष के भेद, का भ्रम समाप्त हो जाता है। यॉद ऐसा नहीं होता तो वह सहजयोगी नहीं है। व्यसन स्वयं छट जाते है पर यह तीन कमजोरियों रह जाती है। सबसे सतरनाक है शव्ति बोष दृसरे के ऊपर आासन करने की इच्छा। जहीं भी आप ऐसी शवित के इच्छुक सहजयोगी देखते है, विश्वास करे कि वह एक दिन जरूर इस दृश्य से ओझल हो जायेंगे । पसे लोगों के साथ कुछ अजीब घटनायें होती हैं जो उन्हें दूर ले जाती है। सहजयोग में कई ऐसे व्यक्ति हैं जो अग्रभाग मे सदा दाडते रहते हैं । किसी को भी अनावश्यक रूप से सदा आगे आना या सदा अपने को पेश करते नहीं रहना चाहिए। "श्री माताजी" के चरणस्पर्श क्यो? जबकी मैरे चरण तो सदा आपके हृदय में है - चरण स्पर्श से और क्या लाभ होगा। यह आपकी भावना होनी चाहिए। यदि कोई अग्रणी रहने का प्रयत्न करता है तो अगले वर्ष वह गायब हो जायेगा। यह श्री भैरवनाथ का काम है। कोई भी जो बहुत आगे आगे आता है वह अपना सिर स्वयं काट लेता है। मैं उन्हें धैर्य रखने को कहती हैँ लेकिन वे किकुल नहीं सुनते। इसका अर्ध है कि सदा दो शवितयां काम कर रही है। एक केनद्र की ओर लगाने वाला १सेन्ट्रीपेटल यी और दूसरा केन्द्र से दूर लगने वाला ह सेन्द्रीफुयगल एक आपको केन्द्र की तरफ सीचता है व दूसरा केन्द्र ले जाता है, क्योंकि ईश्वर के साम्रान्य में सबके लिए स्थान नहीं है। से दूर सभी व्यक्ती सीधा मुझसे, सम्पर्क करना चाहते है, मेरे पास इतना समय नहीं हैं कि प्रत्येक - मेरी माँ ऐसी 25 पन्नों का पत्र स्वयं देखें, यदि कभी पढ़ भी लिया तो वह निरर्थक बार्तों से भरा है है, मेरी माँ के अंकल, भाई बगैर ह, मुझसे उनसे क्या लेना देना। सहजयोगी संबंधी है और मुझे और आपको, आपके दूसरे सम्बन्धियों से कुछ लेना देना नहीं। जब तक आपके सम्बन्धी सहजयोग में नहीं आते 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-21.txt तब तक न मुझे, न आपको और न ही ईश्वर को उनसे कुछ लेना देना है इसीलिप उनके बारे में कुछ न बताये, उन्हें सहजयोग में आने दिजिए। यदि कोई कहता है कि मुझे श्री माताजी के पास ले जाओ जैसे वह सिफ्फरिश चाहता हो, वह आपके लिए जो भी हो परन्तु मुझे उससे क्या करना? उसका सम्बन्ध बनाने के लिए आप उसे मेरी तस्वीर दे दे उसे स्वयं तस्वीर से अपना समाचान करने के लिए कहे। सीचा इताज करने का प्रयत्न न करें। मेरी तस्वीर के आगे ही बैठे। केवल तीन प्रकार के रोग होते है, दाँयी और के रोग बीयी ओोर के रोग व मध्य मार्ग के रोग बायी औओर के रोग भानसिक कारमों व दाँयी और के रोग शारीरिक व मानसिक रोग व मध्य मार्ग के रोग गलत गुरू या अनाधिकृत ज्ञान के अभ्यास के कारण होते हैं। यदि आप इन तीनो में योग्यता हासिल कर लें तो केवल तस्वीर से ही आप किसी भी प्रकार की बाधा बता सकते है। शीघ्र ही हम इसपर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं, तब कोई भी यह नहीं कह सकेगा कि "श्री माताजी ने मुझे ऐसा कहा या वैसा कहा"। प्रत्येक व्यक्ति को स्मरण रहे कि घंटो तक ध्यान लगाने की आवश्यकता नहीं है, केवल ।0 मिनट ही काफी है। यदि किसी केो इतने समय ध्यान लगाने की आवश्यकता है तो वह मूर्ल है। अच्छा हो कि ऐसे पागलपन से बचें। क्योंकि यदि कोई स्थान है और उसका कोईड दूवार है तो उस दूवार से अन्दर आने के लिए कितना समय लगता है? परन्तु यदि आपने प्रथम पर्वत पर चढ़ने का सोचा है तो इसमें तो समय लगेगा ही पर्वबत पर क्यों चढे? जो वक्तु इतनी सहज है यदि उसे पेंचीदा बनाया तो वह सहजयोग नहीं है। इसीलिए आज का भाषण बहुत महत्वपूर्ण है और इसका अनुवाद करके सभी केन्द्रों पर भेजे। 12 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-22.txt कित्ली चाहे कोई भी गलती क्यों न हो, माँ अपने बचों को प्रेम से संभालती है। वह कई चीजों की अतदेखी कर सकती है, परन्तु उन्हें अपने ही ढंग से ठीक करती है। हम अपने ग्रेम से दूसरों की कमजोरियों को दूर करके उन्हें स्व्छ उमी तक हमने प्रेम की कर सकते हैं। यह प्रेम की शक्ित है। शवित का कभी भी प्रयोग नहीं किया है। प्रेम की शविति बहुत अदभुत है । तलबार की शवित का प्रयोग करना बहुत सरल है, परन्तु प्रेम की शक्ति इतनी अधिक है कि हम तलवार की शक्ति को भूल जाते हैं। "निर्वाच" वह प्रेम है जो समी कन्धनों से मुक्त है। यह कोई नहीं समझ सकता कि सिर्फ प्रेम के कारण माँ पूरे संसार का भ्रमण कैसे कर रही है। यह केवल प्रेम का आनन्द है। सहजयोगियों को देखने मात्र से ही मुझे इतना आन्न्द मिलता है कि मैं निर्विचार हो जाती हैं जिस तरह समुद्र की लहरें उमड़ती हैं और विमिन्न आकार बनाती हैं, उसी तरह सब कार्यों को कार्यान्वित होता देख कर मैं आनन्दित होती हैँ। कुछ लोग धनी है, कुछ गरीब, यह सब ्षणमगर चीज़े हैं, अपने हृदय के अन्दर देखिए और उस प्रेम का आनन्द लीजिए। उस प्रेम के साथ आाप उपर उठिये और एक बार फिर से महानता की प्राप्त करिए। हम उस श्रेणी के लोग हैं जो दूसरों को सिर्फ प्यार डी देते है और जह़ीं प्यार डोता है वही जाते हैं। जो व्यक्ति दूसरों को प्यार देता है वह स्वतः ही ठीक हो जाता है। जब इम घर के बाहर जाते है तो हमे अपनी माँ या पत्नी को सूचित करना चाहिए, इस तरह उनके प्यार की शक्ति सदैव हमारे साथ रहती है। 66 वा जन्म दिवस पूजा 2] -3.89, सूर्यवंी हॉल, बम्बई संकलित अ मैं सचमुच समझ नहीं पा रही हूं कि मैं इन सब उपहारों के बारे में, जो कि आप मेरे लिए 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-23.txt 13 आपकी कुंडलिनी को बहते हुये देखना ही मेरे लिप उपडार है । पदार्थ का तत्व यह है कि इसके द्वारा आप अपने प्रेम को व्यव्त कर सकते है। इंसिलिए पदार्थ को आप उपहार के रूप / व्यवत करते है । आपके हृंदय में बहुत सी भावनाए हैं जिनको कि व्यक्त करना है। जब आय इन प्रेम की भावनाजं से पदार्थ को देते हैं और मुझे देते हैं तो मेरे लिए एक बहुमूल्य उपहार बन जाता है। जैसे कि साधारण कांच ढक पर जब पारा चढा दिया जाता है तो वह दर्पण बन जाता है ठीक उसी तरह आपके प्रेम से लिपटा यह पदार्थ मेरे प्रतिबिम्ब का दर्पण कर जाता है। जब प्रेम को श में व्यक्त किया जाता है तो आप गदगद हो उठते हैं, परन्तु उपहार के दुवारा इसे व्यक्त किया जा सकता है परन्तु अपने ग्रेम को व्यव्त करने के लिए कीमती उपहार लाने की आवश्यकता नहीं है, पक बहुत ही साथारण सी कलात्मक और जाति पारम्पारिक वस्तु जो कि आपके निवास स्थान का प्रतिनिधित्व करती हो, सबसे उत्तम है। साथ डी बह छोटी होनी चाडिए ताकि मुझे उनके लिप दूसरा मकान न बनाना पड़े। इसी प्रकार पूजा में दी गई भेंट व्यवत करती है आापके प्रेमको जो कि प्रेरणा देता है और वातावरण को सुधारता है थोडा सा कुमकुम इलगाना भी स्क्कछकारी सिध्द हो सकता है। परन्तु कस्तु का प्रयोग आत्मरंजन के बजाय प्रेम केो व्यव्त करने के लिए करना चाहिए तभी वड वातावरण को सुधार सकती है। इसी प्रकार से कलाकार मानवता के प्रति अपना प्रेम प्रक्ट करने के लिए कला की रचना करता है। जब मैं आप के द्वारा लाए हुये इन सब फूलों को देखती हैं तो मैं आपके बारे में सोचती हैं कि जो पहले फूल थे, अब फल के रूप में परिपक्व डो गये हैं यह विचार मुझे महान प्रसन्नता प्रदान करता है। मुझे सुशी है कि दिल्ली में एक नया आश्रम बन गया है। अब सब जगड आश्रम बनने शुरू हो गये हैं। सेवानिवृत्त होने पर सहज योगियों को आश्रम में बकर रहना चाहिए पोती पोतों को भी जिससे दादा दादी अपने पोती पोतों की देखभाल कर सकते हैं और आश्रम में आकर रहना चाहिए। पिता की अपेक्षाकृत, अधिक एक दूसरे के साध का आनन्द ले सकते हैं। बच्चों को दादा दादी, माता पिता बच्चों से मिलने आश्रम में आ सकते हैं । अनुशासित कर सकते है। माता 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-24.txt 14 - कर सकते हैं । दो सहज योगियों के बीच कोई अन्तर नही हैं। किसी भी सहज योगी को स्वयं को दूसरो से बड़ा नहीं समझना चाहिए। किसी भी सहजयोगी को सहजयोग के बारे में नई घारणांप बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। आप स्वयं सहज योग बनाने की कोशिश न करें। घन से लगाव, धर्म 'रन्थों और धर्म का अन्यानुकरण तथा कट्टरवाद खत्म डोना चाहिए। सार्वजनिक कार्यक्रमों में सहजयोग की केोई पुस्तक नहीं बेची जानी चीहए। मेरा फोटो मुफ्त में दिया जाना चाहिए। सभी किताबें और लेख, जिनको मेरी स्वीकृति प्राप्त चाहिए। वह नहीं है, जप्त कर ली जानी किताबे जिनमे मंत्र दिये गये है थीघ्र ही बापस लेनी चाहिए। आप कानून की सीमा में रहे और हिंसा को न अपनाये। जिन व्यव्तियों ने दुरस्ट की अनुमत के बिना किताबे छापी हैं, उनको जब्त कर लिया जाना चाहिए कृपया बिमार व्यवि्तियों को न लायें। उनको बताना चाहिए कि वे फोटो के द्वारा स्वयं को रा किस प्रकार ठीक कर सकते हैं। कृपया व्यक्तिगत उपहार और सोने के उपहार न लायें । हमें बहुत से कार्य पूरे करने है और आपको उसके लिए प्रीत माह कुछ धन बचाना चाहिए। उपडार सामुहिक होने चाहिए। मैरे जन्मदिन पर प्रत्येक व्यक्ति को यह सागन्ध लेनी चाहिप कि वह मेरे अगले जन्मदिन पर कम से कम 5। नये सहज योगी लाने की कोशिश करे। आप यदि समूह बना कर गाँव और नये स्थानों पर जायें तो आप यह कार्य बहुत आसानी से कर सकते है। साथारण और मृद् वाणी का प्रयोग करे । मैं आशा करती हैं कि आप मुझे अगले वर्ष इस तरह का उपहार देंगे। यह मेरी इच्छा है । मैं आशा करती हूँ कि आप इसे पूरा करेंगे। भगवान आपको आशाोवाद दे मडालक्मी और ईस्टर पूजा रविवार 26 मार्च, 1989 बरासात कलकत्ता के संकलित अध अमीबा सूक्ष्म जन्तु से मानव तक की उत्क्रंति इब्होल्यूशन सुघुम्ना नाडी के द्वारा हुई है। हम सुपुम्ना नाडी के द्वारा महालक्ष्मी तत्व की ओर बढते है महालक्ष्मी तत्व की स्थापना के लिए हमें बहत सी बातों का ध्यान रसना होगा। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-25.txt - 15 - सबसे पहले, देवी लक्ष्मी अपने हाथों में गुलाबी इंग के दो कमल लिए हुए हैं हमारा हृदय भी उसी हगुलाबी - प्रेम प्रतीक रंग का होना चाहिए, जो कि सदैव प्रेममय हो, सुर और आश्रय देने वाला हो। यहाँ तक कि इसकी हकमल गोद में भौरा सुकमेर काटेदार जीव भी आराम ग्राप्त कर सकता है। कमल अत्यन्त सुन्दर भी होता, है। इमें उसी तरह सुन्दर शिष्ट व्यवडार करना चाहिए जोर मधुर बोलना चाहिए। जब यह पानी की सतह पर होता है तो अपनी सुगन्ध से आकर्भित करता है। क धनवान की तरह उसके पास सैन्दर्य सुगन्ध, सब कुछ है, परन्तु वह हुंकमल यह सब दूसरों को देने की प्रतीक्ञा करता रहता है। वह व्यवित जो सदैव अपने बारे यें कोजता रहता है, लक्ष्मी तत्व को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। एक लक्ष्मीपति सदैव दुसरों की सेवा के लिए तत्पर रहता है और जरूरतमन्वो को सुरक्षा प्रदान करता है। वह हमेया दूसरों की मलाई के लिए क्ार्य करता है। उदाहरण के तीर पर यदि वह किसी संस्था या किसी व्यवसाय का मालिक है तोवह हमेका अपने गजदूसें के रप्यान सुक के बारे में सीचता रहता है, उन्हें आतिथ्य देता है, तथा उनकी एक परिवार के पिता की तरह देवभाल करता है। एक कंजूस व्यक्ति इस तत्व को भी प्राप्त नहीं कर सकता। यीद आप मध्य में हैं तो आप तक्ष्मी तत्व बन सकते हैं, यही तक कि जाप पुरानी प्रसिद्ध फर्म की तरह कीर्ति ग्राप्त कर सकते हे और आपके कछों को उस पर गर्व छोगा। लक्ष्मी तत्व की संतुलित अवस्था को प्राप्त करना है। एक हाथ से लक्ष्मी देती है। ऐसे गुप्त उपहार दिये जाने चाहिए जिनके बारे में कोई भी न जानता हो। जो उपहार आप देते है उनमे आपका कोई लगाव नहीं होना चाहिए हमें इसके बारे में शान के साथ नहीं बोलना चाहिए। परन्तु प्राप्तकर्ता को उससे आनन्द मिलना चाहिए। दूसरों को कुछ देने से बहुत अधिक संतोष प्राप्त होता है। प्रत्येक क्तु की उत्पत्ति देने के 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-26.txt कमल किसी पर दबाव नहीं डालता, जैसे कि गमैने यह किया", "में यह हूँ", यह "में" छोड़ना चाहिए, या यह "मेरा" है "मेरे" की देसभाल करने की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। आप ा सिर्फ जानन्द में रहिए। আम चलता रहता है और व्यवसाय आगे बढता हहता है, परन्तु सबसे बडा आनन्द दूसरों को देने में है। प्रेम में आपको पता होता है कि दूसरे को क्या मसन्द है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमें दूससें के प्रति अपने प्रेम को कैसे प्रकट करना है । हमें यह भी जानना चाहिए कि वन को सर्व कैसे करना है। यदि हइम यह जानते होते कि धन को कैसे सर्च करना है तो संसार में इतने दस न डोते। बास्तव में, धनी व्यक्ति को अंधिक समस्याप होती है। यह देसा गया है कि जब समृदध्धि आती है तो लोग आसक्तवादी हो जाते है। शराब की दुकाने खुल जाती हैं, गन्दी महिलायें उन्नति करना शुरू कर देती हैं, आदि। पहले लक्ष्मी तत्व स्थापित होता है, और जब उ्यविति आत्म-साजात्कार के दूबारा सतुलन प्राप्त कर लेता है तो उसके अन्दर महालक्ष्मी तत्व स्थिर हो जाता है। ऐसी स्थिति में आपके पास कुछ मी न होते हुये सब कुछ होता है। यह आत्मा को जानने की हिथिति है। आत्मा, आत्मा के परमसुस का आनन्द प्राप्त करती है। बाहर का आंशिक सुख हमारे अहम का हिस्सा है। इसलिए सहजयोग में हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि आज अपने पुनर्जन्म की स्थापना करे। ठमांडू पूजा 30 मार्च, 1989 स्थत - आ््रম नेपाल की देखमाल ने-पाल नाम के ऋपि करते थे। ईसा मसीह भी नैपाल आये थे धरती माँ द्वारा उत्पन्न किया गया यह विशेष देश है। यह केवल एक समुद्र था। अमृत-मंधन के पश्चात हिमालय ऊपर आना शुरू हुआ और एवरेस्ट तक पहुँचा। इसकी रचना भारत, जो कि विश्व की कुंडलिनी है, की रक्षा करने के लिए की गई। कुंडलिनी को सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक था। वड विराट को मंस्तिष्क है। विराट की कल्पना इस तरह से की गई कि नेपाल सहस्त्रार धा। प्राचीन संस्कृति की रक्षा करने के लिए 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-27.txt उन्हे किसी देश के चारों और घेरा बनाना पड़ा। श्रीगणेश जी की भारत में स्थापना की गई। इसीलप मुझे कर्क रेखा पर स्थित इस देश में जन्म लेना पड़ा। जीर नेपाल एक ही टेख है। भारत की विशेषता यह है कि वारुतव में भारत मनुष्य इधद उचर स्वतनत्र कप से घूम सकते है और यहाँ तक कि जंगल में भी रह सकते है, ध्यान कर सकते है, फलों आदि पर भी अपना जीवन जिता सकते है । जातबूझ कर इस देव के आध्यात्मिकता के लिए हैं कयफ भयानक अनुम्य सक्री बनाया गया धा| हालांकि लोगों को देखकर जाप यह नहीं पहचान सकते जगह हैं। लेकिन यही एक ऐसा स्थान हेै जहाँ आंतरिक क्रत्ति डो सकती है। इस देत में गनुष्य जात्मा के बारे में अधिक जानते है। इस तथ्य में कोई भी पल्षपात नहीं है कि आध्यातिम करता के बारे में जानना ही सबसे कठिन कार्य है। लोगों को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। जो लोग आध्यात्षिक हैं उन्के दूसरे सहन नहीं कर सकते। सत्य को पचा पाना मनुच्य के लिए वहुत ही कठिन है। जो लोग आत्म-सक्षात्कारी हैं बही सत्य को समझ सकते हैं, दूसरे नहीं। इसीलिए वे विध्वंसक प्रतिक्रिया करते हैं प्रत्येक देव में ऐसे लोगों ने साधुओं को यातनांप दी है। केवल जापका भोलापन ही आपको सुरक्षित स सकता है। केवल विश्व निर्मल घर्म ही आपके अन्तः का घर्म है। स्वरेस्ट पर चढने से जाप सत्य को नहीं जान सकते हैं। केवल कुंडलिनी के माध्यम से ही सत्य के जाना जा सकता है। ईश्वर के साथ एकाकार हो जाने की शक्ति हमारे अन्दर ही लिहित है । जो कुछ हमारे अँंदर है वह प्रतिमा में और उसके बिना भी प्रदर्शित होता है। प्रतिमा की रचना इसलिए की गई कि हम याह समझ सके कि इस मार्ग पर है अयवा नहीं। इसी प्रकार कैलाश पर्वत के एक और बहत शंत है जबकि उसके दूसरी खेर जो मि अहंकार का है, बहुत ही अशंत है और उसको "राक्षसतल" कहते है। मध्य में भगवान शिव के समान केलाख पर्वत है। श्री ब्रह्मा और श्री वि्णुकी दो और प्रतिमां है। इसी प्रकार जो भी कुंडलिनी के बारे में लिखा गया है उसको खोजना चाहिए आपने मेरे बारे में बहुत सी चीजें देखी है। "ॉकार" में प्रकाश है जोर बह प्रकाश कमरे के दुवारा चित्रित किया गया है सत्य को इस तरह से प्रदर्शित किया गया है कि आप उसे पहचान सके। परन्तु यदि आप नहीं पहचानना चाहते हैं तो कोई आपकी सहायता नहीं कर सकता। सत्य को पहचान कर ही हम सचची भवित प्राप्त कर सकते हैं। से फलों से बदा व्अ नीचे झक पाता पशन यह है कि इ्या भाए यमयदार डो गये है। निय न से फलों मे ला अ नीचे सक शाता 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-28.txt 18 परिहास का आनन्द लो। जब तूफान आता है तो बडा पेंड गिर जाता है जबकि घास का छोटा सा तिनका पूर्ववत रहता है। याद रखो कि सर्वशवितमान मगवान ही सब कुछ करता है, हम कुछ नहीं करते हैं । हमें समुद्र के समान जपनी सीमाओं में रहना चाहिए जो कि सदैव अपनी सीमा में रहता है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्रद 6. "मैं मानता हूँ भैने गलती की" सबसे अधिक महत्वपूर्ण शब्द 5n "आपने एक अच्छा कार्य किया" सबसे अधिक महत्वपूर्ण थ्द - "आपकी राय क्या है" सबसे अधिक महत्वपूर्ण शब्द 3. ्याद आप चाहे" सपसे अधिक महात्वपूर्ण शब्द "आपको चन्यवाद" सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्ंद "इम" सबसे कम महत्वपूर्ण शब्द - 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-29.txt 19 कुपया याद रखे श्री माताजी का फोटो किसी को न बेंचे। यह सच्चे लोजनेवालों को अनुसरण कार्यक्रम में निशकल्क 1. दिया जाना चाहिए लेकिन किसी सार्वजीनक कार्यक्रम में नहीं। सार्वजनिक कार्यकरमों में कोई पुस्तक नहीं बेची जानी चाहिए। केवल श्रीमाताजी दुवारा स्वीकृत की 2. गई पुस्तके, केन्द्र पर सच्चे खेजनेवालों केो दी जानी चाहिए। किसी रोग से मुकि्ति दिलाने से सम्बन्धित मन्त्रों की कोई किताब नहीं छपी जानी चाहिए। अंगूठी, पेंडल आदि का कोई व्यवसाय नहीं होना चाहिए। इन पर कोई लाभ नहीं लिया जाना चाहिए, 3. ल इन्हे लागत मूल्य पर सिर्फ सहज योगियों को नेचा जाना चाहिए। यदि कोई सहजयोगी, सहजयोग पर कोई किताब छापना चाहे तो उसे लाईफ/ट्रस्ट, बम्बई की पूर्व जनुमति लेनी चाहिए। सर्वाधिकार टूस्ट के पास रेंगे। व्यव्तिगत रूप से बीडियो और कैसेट को कापी नहीं किया जाना चाहिए। यह सब के्র्रों से प्राप्त किया 5. जा सकता है। चैतन्य लहरी की कापी या केरस नहीं करना चाहिए। सबको अपनी प्रति स्वयं सरीदनी चाहिए। 6. कृपया नये सुलने वाले केन्द्रों की सूचना हमें दे। 7· फोटो पर प्रतिदिन कुमकुम लगानी चाहिए और उसे गुलाबजल से साफ करना चाहडिए। 8- ---- ----- अग्रेजी वार्षिक कुत्क : रू 20000 डिन्दी रु.108 .00 मराठी रु.108-00 का कोयरूड "विश्व निर्मल घर्म, पो- बा 90। , , पुणे 4।।029 के पक्ष में भेजे। हाफ्ट