স 3 श्री इनुमान पुजा, 1989 : सारांश इंगलेन्ड के दक्षिण पूर्वी समुद्र तट पर, विलिफ्टन नामक शहर में, अप्रैल 23 को श्री हनुमान पूजा की गई। सहज योगियों से बात करते हुए, श्री माताजी ने समझाया कि श्री हनुमान एक से देवदूत बन गए हैं । बौई ओर गणों का सथान हे और और सहज योगी इस देवदूत थे और हम लोग सब मनुष्य दाहिनी ओर देवदूतों का। संस्कृत में देवदूत का अर्थ है "भगवान पृथ्वी पर यहीं कार्य कर रहे हैं। के दूत" देवदूतों की एक विशेषता है कि वे सत्य का साथ किसी भी कीमत पर नही छोड़ते हैं । वे झूठ और दिखावे से सदैव परे रहते हैं, विषय में क्या सोचते हैं। सत्य ही उनका जीवन है और ये सत्य की स्थापना और सत्य का जीवन व्यतीत करने वालों की रक्षा के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। अगर सहज योगी सत्य और इस बात की चिन्ता नही करते हैं कि दूसरे उनके के पध पर तत्पर रहें, तो ईश्वर की विशेष कृपा उन पर होती है, और उनकी पूर्ण सुरक्षा का भार भी ईश्वर उठाते हैं। हम अपने स्थान से अनभिज्ञ हैं। श्री माताजी ने इस बात पर जोर देकर कहा, कि उन्होंने हमें देवदूत बनाया है, और अगर हम इस बात को जान लें, तो हमारे सर्वर्व गुण चमक कर हमारे सम्मुख आ जाएँगे उन्होंने हमें महात्माओं का निर्माण नही करतीं। सन्त महात्मा अपने ही प्रयासों से बन जाते हैं। गणेश, कार्तिकेय ें महात्मा नही परन्तु देवदूत बनाया है। श्री माताजी स्त एवम् हनुमान जैसे देवदूतों का बगेर परिश्रम के निर्माण किया जा सकता है, और सहज योगी भी इसी प्रकार बनते हैं। महात्माओं में और देवदूतों में एक मौलिक असमानता होती है । सन्त महात्माओं को परेशान किया जा सकता है, तंग किया जा सकता है और उन्हें अपने स्थान से और अपने सिटाम्तों से डिगाया भी जा सकता है। दूसरी ओर , देवदूत अपने ऊपर कोई समस्या नही लेते, वे केवल समस्याओं को हल करते हैं। अवतार भी आात्म प्रतारण और यातना स्वीकार करते हैं, जिससे कि उनके जीवन की घटनाएं उनके विशेष गुणों को जन समुदाय के सम्मुस प्रस्तुत कर सके। देवदूत इस बात को अच्छी प्रकार जानते हे कि ईश्वर उनकी सुरक्षा करते हैं और उनमें आत्मविश्वास भी बहुत होता है। देवदूत होने के कारण, श्री हनुमान में अधिक क्षमताएँ और शवितियाँ विधमान हैं, को ये याद दिलाने के लिये कि ईश्वर और उनका प्रयोग करना उनका अधिकार है। मनुष्य हे, और बलवान हे, देवदूत अनेक ऐसी घटनाएँ मनुष्य के सम्मुख प्रस्तुत और वह अत्यन्त ही सुदर करते हैं, जिससे उसको यह विश्वास हों सके कि ईश्वर सर्व विधमान और सर्व रवितमान है । श्री माताजी ने समझाया कि इश्वर के क्षेत्र में, सहज योगियों को देवदूतों से भी अधिक यह शक्ति प्रदान की गई है, कि वे औरों की कुनलिनी जागृत कर सकते हैं और लोगों को आत्म साक्षातुकार प्रदान कर सकते हैं। देवदूत मनुष्य को नहीं वदल सकते। हमारे पास अवुभूत शक्तियां हैं, पर हम उनको प्रकट करने में और उनके विषय में बात करने से भी डरते हैं। प :2: श्री हनुमान इस पृथ्वी पर इसलिए आए थे कि जो निर्णय दूसरे करते हैं और जो आज्ञा चक के दवारा प्रकट होते है, ये उन्हें दूर कर सरकें। जब आज्ञा दाप से बाँई ओर चलता है तो हमारा अहम् प्रकट होता है जैर इसी अहम् को निकाल फेकने का प्रयत्न श्री हनुमान ने किया। ह् अपने अहम् का नाश नहीं करना है हमें सहज योग की उन्नति के लिए उसका प्रयोग करना है। इस प्रकार, अगर हें यह ज्ञान हो जाए कि हम देवदूत हैं तो हममें अहम् का भाव प्रकट ही नही होगा। हमारी सारी शवितयाँ सहज योग के लिए है, और जिस प्रकार श्री माताजी सहज योग के लिए कार्य करती हैं, उसी प्रकार हमें भी सहज योग की उन्नति के कार्य में तत्पर रहना चाहीए। ब उन्होंनें यह शवितयां हर पक को प्रदान सहज योग आदि शवित दारा नहीं किया जाता। की हैं और सहज योग इन्ही आन्तरिक शवितयों द्वारा धरती माँ है और और बीज से उत्पन्न हुआ आगे बद़ रहा है। श्री माताजी ने कहा कि वे यहाँ माँ है , हमारी पावन आदि शक्ति के रूप में नहीं है। वे हसारी और पूजनीय माँ, और पूजनीय माँ के रूप में उन्होंने हमारा पय प्रदर्शन कर दिया है, पर कार्य हमें स्वयं ही करना होगा । हम परम पूज्य परमात्मा के हधियार हैं और हमें कार्य अवश्य पूर्ण करना पडेगा । आदरणीय श्री माताजी ने इस बात पर भी जोर डाला कि अगर इमें कार्य फल देखना है तो हमें तीव्रता से कार्य करना होगा। उन्होंने इस विषय में ये भी काम कहा कि हम सहज योग की बढोत्तरी के लिए समय का ध्यान नहीं रखते। यह पूजनीय कार्य हमारा है एवम् इस कार्य को और कोई नहीं करेगा । हमें सहज यांग अवश्य फैलाना है और उसे उस स्तर तक लाना है जहाँ से सर्वस्व जग उसे देख सके। सहज योगियों को निडरता से अग्रसर होना है और वे ये अकेले कर सकते है या समुदाय में कर सकते हैं । उन्हें यह विश्वास हो जाना नहिये कि परम चैतत्य उनके प्रयत्नों को सफल करेंगे और विश्व को बदलने के कार्य में भी उनकी सहायता करेंगे। जय श्री माताजी निर्गला माँ। सर श्रीवास्तव से साकषात्कार | 2/30/88, अलीबाग-भारत आजकल की विश्व स्थिति पर बात करना अच्छा है। मैं इन्टरनेशनल मैरिटाईम आर्गनाइजेशन में सेकेटरी जनरल के पद पर कार्य करता हूँ। यह आर्गनाइजेशन, युनाइटिड नेशन्स का पक हिस्सा है। युनाइटिड नेशन्स की स्थापना जग में शाह्ति पैलाने के लिये और मानव के उत्थान के लिए हुई थी। और जब से स्थापना हुई है, तब से यू. एन और उसके अत्य मार्गों ने अनेक कार्य करें हैं। हर क्षेत्र में यू. एन. ने काम किया है स्वास्थ्य के क्षेत्र में डब्ल्यू- एच ओ ने अनेक देशों में कार्य किये हैं। जैसे चेचक केो समाप्त करना और मलेरिया एवम् अन्य बीमारियों के विषय :3: में सोचना। इसी प्रकार युनेस्को ने भी बहुत काम किया है। यू एन शानित लाने के प्रयास में लगा रहता है। हमारी मेरिटाईम आर्गनाईजेशन विश्व के देशों के अच्छे सम्बन्धों पर मेरिटाइम क्षेत्र में कार्य करती है । पर मेरा विचार है कि केवल लडाई रोकने का अर्थ शान्ति नहीं है। लड़ाई रोकना आवश्यक है। हमें खुश होना चाहिये कि गल्फ क्षेत्र में लडाई रूक गई है और दोनों देशों में आपस में बातचीत आरम्भ हो गई है। नामीबिया स्वतंत्र हो गया है और अफगानिस्तान ने भी अपनी म्जी से अपनी सेनाएँ हटा ली हैं। ये सब बहुत अच्छे विकास हैं पर शायद क्योंकि में भारतीय हूं, मुझे लगता है कि हमें अभी और गहराई मं जाना है। हमें मानव और मानवता के विषय में सोचना है । विज्ञान में खूब उन्नति हुई है। संसार के किसी भी हिस्से से लोग किसी भी समय पकदूसरे से बातचीत कर सकते हैं और किसी भी समय एक दूसरे से मिल सकते हैं तकनीक में इतना विकास हुआ हैं और ये कम्प्यूटर है। औयोगिक कृ्ति के बाद संसार में कई कान्तियों हुई। आज सम्पर्क की कन्ति का समय है पर फिर भी यो क्या मुल तत्व है जिस पर शान्ति निर्भर है ? शान्ति इन्सान के दिल और दिमाग पर निर्भर है और इस बात पर भी निर्भर है कि हर आदमी इस बात को मान लें कि ये विश्व एक बड़ा परिवार है और हम सब भाई बहन हैं जब तक हम इस मूल समस्या और विशेष कर विल का इल नहीं ढूँढते तब तक कुछ नही कर पाएँगे हमें इन्सानी दिमाग से से यह बातें निकाल फेंकनी है कि हमें हिस्से बाटने डैं, अपनी उन्नत दूसरे को दबा कर करनी है। मैं ये मानता हूँ, कि हमें पक दूसरे से लड़ना हे और हमें नहीं कर पाते, तब तक जब तक हम ये सब को उस स्तर तक नहीं ला सकते जहाँ हर देश एक दूसरें हम मानव से शान्ति सहित रह सके। ये समस्या मेरे अन्दर हर समय उभरती है और मेरा विचार है कि पूरे विश्व में मानव की ओर अधिक ध्यान देना आवश्यक है। हमें एक पल के लिये भी यह नहीं मानना चाहिए कि मानव प्रवृतित वैसी ही है जैसी दिखाई और तथु है। " पर ये एक सीमित दृष्टिकोण देती है। होन्ज ने कहा है कि "मानव प्रृत्ति दुष्ट, कूर है। कभी कभी मानव ये कूरता दिखाता है पर असल में ऐसा होता नहीं है। मानव जब अपनी सीमा पर होता है तो उसकी प्रवृत्ति दैनिक होती है और आन्तरिक होती ये क्षमता होती है कि वो अपने को सके और ये वो आध्यात्म से कर सकता है। मैं एक धर्म की बात नहीं कर रहा। मेरे विचार में सब घर्म परमात्मा तक ले जाते है। एक ही परमात्मा है। इर मनुष्य के अदर सुधार है और हम सब उसकी सनतान हैं। हम सब उसके हिस्से हैं और हम सबको यह अधिकार है कि हम कोई भी हिस्सा चुन लें। बस हमें ये अधिकार नहीं है कि हम एक दूसरे ये बात कभी समझ में नहीं आती और बड़ा आश्चर्य भी होता है कि जिस परमात्मा के आगे हम सब झुकते हैं, हम उसी के नाम पर आपस में झगड़ते क्यों हैं ? से लड़ें। मुझे |ु 14: यही पर में मानता हूँ कि सहज योग का बडा ही महत्वपूर्ण स्थान है। आरिवर सहज योग है क्या ? मनुष्य को परमात्मा ने बनाया है और हर सहज योग में मुख्य बात ये है कि हर में वह शक्ति है, जो अगर जागृत हो जाए तो उससे मनुष्य को आत्मसक्षात्कार प्राप्त मनुष्य ही सकता है। हर मनुष्य उस ऊँचाई तक पहुँच सकता है जो उसका अधिकार है और यही उसकी उन्नति की चाबी है। केवल बातें करने से शन्ति नही मिलती। यह आवश्यक है कि कार्य करते रहें, देशों को एक साथ मिलाते रहें और एक सन्दर संसार का निर्माण करें। और ये तब ही हो सकता है जब हम अपने अन्तर में झाँके और जब हमारा अन्तर जागरूक होकर उठेगा तब ही हम ऊँचाई तक पहुँच सकते है । और मैंने ऐसे सहज योगी देले हैं जो मानवीय उत्तमता की चरम सीमा पर है । ऐसा क्यों है कि उन्होंने यह राह चुनी है ? ऐसा क्यों है कि उन्होंने झूठ को त्याग दिया है और बोलते हैं और क्यों दोस्ती, दयालुता का साथ देते हैं और सबसे मिल बाँट कर रहते हैं ? र डग्स छोड़ दी है । वहुतों ने शराब क्यो छोड़ दी है ? व क्यों सच ये सब इसलिए कि अब उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त है। अब उनकी आअन्तरिक शवितयां उभर देना है। आई हैं और उनकी अच्छाई उनकी दैनिक शक्ति बन चुकी है। इसी चीज को बढ़ावा और यह ही उन्नति की चाबी है । एक व्यावहारिक आदमी वो है जो संसार को जैसा हे वैसा ही मान लेता है। क्या बो इस बात को गानेगा 2 क्या हम सपना नहीं देख रहें । क्या ये हमारी केवल कत्पना नहीं ? ये संसार कैसे बदलेगा ? ये तो वर्षों से पेसा है। अगर आप सोचे तो मैं एक सुलझा हुआ आदमी हूँ। मैं भावनाओं को हावी नहीं होने देता। मैं एक कुशत कार्यकर्ता और एक नीतिवान इन्सान हूँ। मुझे दिमाग से काम लेना है और दिमाग एक सीमित हाययार है। अगर आप दिमाग लगाएँ, तो पक और है विनाश न्यूक्लीयर और पेसे हधियार जो विश्व का सर्वनाश कर देंगे चार गुना। क्या हम ऐसी दुनिया चाहते हैं ? और क्या हम ऐसी दुनिया में जी सकते है ? आज नहीं तो कल ऐसा अवश्य एक दिन आपगा, जब किसी एक कीगलती से विश्व पर सर्वनाश का बादल छा जाएगा। तब कोन जीवित रहेगा ? मानव कद्दापि नही जीवित रह सकता। ये सब बातें हमसे दूर नही है। आज की बाततें हैं। एक उदाहरण और लीजिए-वातावरण। आजकल हम हर देश का एक दवस मनाते हैं और हमने सीमाएँ बाध ली हैं। पर बातावरण की कोई सीमा नहीं। अगर एक देश में विनाश के बादल छाएँ तो दूसरे देशों पर भी उनका असर ला। पड़ता है, ये आप जानते हैं। शरनोंबिल सर्वनाश, जुहरीले पदार्थों का फेंकना, ओजीन की तडों का सर्वनाश एवम् "ग्रीन हाऊस इफेक्ट "। ये सब विश्व की समस्यापं है। होकर कितने और स्थानों पर इसका असर होता है। तो जब हम पक शन्तिपूर्ण देश के विषय में एक स्थान पर आरम्भ केवल हमें उसे पहचानना बात करते हैंतो वो एक सपना नहीं है वो आजकल हमारे पास हे है, समझना है और उसका हल निकालना है अब हमारे पास समय कम है । दस साल पहले वातावरण की इतनी समस्या नहीं थी। तब वातावरण केवल पएक आंतरिक शब्द था पर आज ये 55 :5: बात नहीं है। अगर हम अपना रहन सहन बदलेंगे नहीं, अपने आगे आने वाले रिश्तां पर विचार नही करेंगे और ये नहीं सोचेंगे कि आपस में देश किस प्रकार एक दूसरे की सदद कर सकते हैं, तो हम मुसीबत में फैस जाएँगे। ऐसे समय में सहज योग की महत्ता है। सहज योग केवल आत्मिक है और हर वो आदमी जो अपनी उन्नति करना चाहता है सहज योग अपना सकता है। ये ही उन्नति की चाबी हे । सहज योग भारतीय है और भारत की एक अपनी ही संस्कृति है। भारत में ऐसे लोग हैजिनकी जड़ें हजारों साल पहले की हैं और भारत की संस्कृति में महात्माओं का ध्यान लगाने का और आध्यात्म का बड़ा महत्ववपूर्ण स्थान रहा है। दो हज़ार साल पहते लोग अपने से ये मूल सवाल कर रहे थे। हम यहाँ क्यों हैं ? ईश्वर कौन है और इमारा रिश्ता क्या है ? ये सवालत एक विकसित दिमाग के हं, पिछड़े हुए दिमाग के नहीं। और दो हजार साल पहले पेसे दिमाग ये जो पूर्णतः विकसित थे और इतिहास गवाह है। ये ही संस्कृति है। भारत की संस्कृति रही है आध्यात्म, ध्यान लगाना, मानवता के लिये सही पथ, धर्म और धर्म के साथ रहना। सब यहाँ नहीं पहुँच सकते पर ये ही मूत दर्शन रहा है। चीन में में कहुँगा अत्यन्त बौदिकता है देश आज विश्व को बहुत कुछ दे सकते हैं । पर हुआ क्या है कि पशिचरमी देश सूब विकास कर गए है क्यों कि वहाँ तकनकी कालिति सीमा पार एक महान संस्कृति, और पूरबीय कर गई है। उन्होंने चमत्कार दिखाए हैं पर मानव को पीछे छोड़ आए प्रकार से उनके जीवन में एक असमानता आ गई हैं उनके अन्दर शान्ति नहीं है। उनके पास सब कुछ है पर क्या वे खुश हैं ? क्या उनके पास शान्ति है। ओोर इस हे ? क्यों नही है ? क्योंकि उन्होंने एक बहा फ़ासला तकनीक और मानव के बीच का दिया है। है, मानय की सत्ता की ओर पूरव में अब तक तकनीक हावी नहीं हुई है । एक सन्तुलन आध्यात्मिक झुकाव है। पूरव और पश्चिम की आध्यात्मिकता एक साथ भी आध्यात्म है पर भौतिकवाद इतना बढ़ गया है कि आध्यात्मिकता ढक चुकी हे। मेरी यही आशा और प्रार्थना है कि ये दोनों जग मिल जाएँं। हमें इसी ओर कार्य करना है। पश्चिम में आ सकती है। ईश्वर के प्रतिनिधि, श्री हनुमान की पूजा पिछले इ्ते में उपस्थित थे। वहाँ हम सब श के कुछ दृश्य आपके सम्मुख प्रस्तुत है। श्री हनुमान पूजा के लिए मारगेट, इंगलेण्ड इंगलैण्ड के दक्षिण -पूर्वी सिरे पर केन्ट नामक जिला है। उस जिले में समुद्र तट पर एक छोटी सी, शा्त जगह है, मारगेट। हम सब वहाँ शुक्रवार की शाम को पहुँचे। शनिचर की सुबह :6: मारगेट पहुँचीं और स्टेशन पहुँची और स्टेशन पहुँचते ही उन्होंने उस जगह को "इंगलेण्ड का बगीचा" कह कर उसका नामकरण किया। ब्राइटन के बटालि-स होटल में सबके सोने श्री माताजी के लिए चार सो विछौनों का प्रकध किया गया था। वहाँ के सहज योगियों ने अक्श्य कधन लगाए होंगे जिससे कि इतने लोग आय्ये कि सारे विछौने भर जाएँ। अन्त में वहाँ लगभग छ: सो सहज योगी थे और सब वड़े आराम से रविवार की सुबह पूजा के लिये ग्ँड होटल के बड़े कमरे में तैयार बैठे थे। शनिवार सबेरे सब बडे उत्साह से श्री माताजी के स्वागत के लिए स्टेशन पहुँचे। उस दिन बहुत सर्दी नहीं थी पर अक्सर जैसा मौसम इंगलेण्ड में होता है, वैसा ही था। बादल छाप हुए थे, समुद्री हवा चल रही थी और कहीं कहीं धूप भी सिली हुई थी। पूरा स्टेशन योगियों से उमड़ रहा था और सबने अपनी पूज्यनीया माँ को पुष्य भेट किए। जन-समुवाय/ एक -आध पुलिस के देख कर आदमी भी वहां आ गए, पर वातावरण इतना आनंदमय था कि वे भी कह न सके। तब श्री माताजी गाड़ी में सेन्ट जॉर्ज होटल के लिए रबाना हुई और हम सब पैदल या कार में अपने अपने होटल वापिस लौट गए। शनिचर को, रात को खाने के पश्चात, हम सब श्री माताजी के सम्मुख एक रंगारंग कार्यक्रम के लिए एकत्रित हुए। सबसे पहले इग्लैण्ड के छोटे छोटे नाटक के रूप में प्रस्तुत किया । लड़कों ने बड़े चाव और गर्व से अपनी अपनी वानर की पोशालें पहनी हुई थी। इसके पश्चात, सेक्सपियर के नाटक "अमडसमर नाइट्स डीम" का एक अंश प्रस्तुत बच्चों ने श्री हनुमान की कथा को एक पतं जा किया गया। उसमें "पक" का पात्र जोन ग्लोवर ने निभाया । एक स्थान पर जब नृत्य के लिए संगीत बजाना था तो कैसेट सो गया और निक ग्रैनबी ने सबका मनोरंजन किया और सब लोगों को खूब हैसाया। उन्हें अपने रात का भोजन मिल नहीं रहा था। रिकत स्थानों को भरने के लिए और उसी को लेकर उन्होने सबको प्रसन्न किया। उसके बाद पकदम संगीत अत्य्त याद आ रहा था। आरम्भ हो गया। औश्रीवास्तव ने निक ग्रेन्बी को उनके अभिनय के लिए मुंबारकवाद वी प्रताप जर के पश्चात संगीत श्री प्रिक्षम पवार द्वारा किया गया कत्थक नृत्य अत्यत ही प्रभावशाली था। नृत्य था, इंगलेण्ड के सहज योगियों ने भजन गाए और रे हेरिस की बहन शेरोन ने एक गीत सुनाया, माताजी को नृत्य बहुत अधिक पसन्द आया । रविवार पूजा का दिन था। श्री माताजी ने देवदृतों के विषय पर बात की । श्री हनुमान एक देवदूत हैं और श्री माताजी ने बताया की उन्होने हमको भी देवदूत बना दिया है। श्री माताजी हमें सन्त नहीं बना सकती थी क्योंकि सत अपने स्वयं के प्रयासों से सन्त बनता है, परन्तु देवदूत को अपनी ओर से तनिक भी प्रयास नहीं करना पडता। उसे तो उसकी आदरणीय माँ निर्मित करती श्री इनुमान और हमारे मध्य एक मौलिक असमानता है। श्री हनुमान को ये ज्ञान हैं। लेकिन 7. :7: है कि बे एक देवदूत है और उनमें ज्ञान नही है, या हम इस बात को भूल जाते हैं। आक्श्यक बात ये है कि देवदूतों को सुरक्षा प्रदान हे। सहज योगियों को प्रतारणों से पूर्ण सुरक्षा प्राप्त है। श्री माताजी ने कहा कि सनतों को प्रतारणाएँ मिल सकती हैं, अवतारों को मुसीबतें घेर सकती हैं है। श्री माताजी ने श्री हनुमान के विषय में और भी बहुत कुछ बताया और कहा कि जब श्री क्या शव्तिरयां विद्यमान है। जब कि हमें या तो इस बात का परन्तु सहज योगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान श्री ने सूर्य को निगला या तो ये इस बात का प्रतीक था कि उनका अपने अहम् पर और इनुमान अपनी दाँई ओर पर पूर्ण नियंत्रण घा। पूजा तीन चार क्टों तक चली। पूजा के ने श्री माताजी को अनेक उपहार भेंट किए इन उपहारों में एक श्री हनुमान की तस्वीर थी जो कि फ्रेन्च बच्चों ने अपनी गर्मियों की छ से था एक एननसिएशनकी मुर्ति का पूजा के दौरान भजन गाए गए और इंग्लेण्ड के सहज योगियों ने श्री तुलसीदास जी की हनुमान चालिसा का पाठ गाकर सुनाया, जो श्री माताजी को विशेषकर उपरान्त सारे देशों से एकत्रित सहज योगियों पक विशेष उपहार स्विटज़रलैण्ड छुट्टियों में बनाई थी। पसद आया। ये सब आनन्द रविवार की शाम को सुबह तट पर एक हवन के साथ समाप्त हुआ। हम लोग क्धेरे में और हल्की फुहार में सड़े, श्री माताजी के ।08 नामो का उच्चारण कर रहे थे। उस समय श्री माताजी अपने कक्ष में विश्राम कर रही धी। परन्तु उनका ध्यान हम सब पर ही लगा हवन करने का विचार एकाएक किया गया था और समुद्र तटि पर एक रिक्त बडस्टैन्ड- से कुछ लोग बैठे थे और कुछ चारों ओर खडे हो गए हवन के पश्चात एक साथ सबने "कुन्डलिनी कुन्डलिनी" अधवा और अनेक गीत गाए और फिर हम सब होटल लौज गए। अत का दृश्य मुझे याद है जब जोजी, हवन के पश्चात, स्नैक बार में बैठा था। स्थान में हवन की तैयारी की गई। आनन्द का विवरण कर रहा था और सब प्रसन्नता से पुर्ण थे। परन्त में अधिक विवरण नहीं दे पाऊगां। सारे आप सब को ये तो अवश्य याद होगा कि अगले शनिचर- इतवार को सोरेंन्टो में, नेपोली के समुद्री 1. तट पर, सहसरार पूजा की जाएगी। पेसा कहा गया है कि एक पानी के जहाज के दारा हम सब को कैपरी के ढीप पर ले जाया जाएगा। सहसरार पुजा के पश्चात अगले शनिचर- मई को आता है, बारसलोना में बुदध पूजा होगी। उसके बाद ।। जून इतवार को, जो कि 2 को एक पूजा न्यू यार्क में होगी। तत्पश्चात । 4 में देवी पूजा होगी। स्विटजरलैण्ड में गणेश पूजा, आसट्िया में गुरू पूजा पवम् इंग्लेण्ड में श्री कृष्ण पूजा भी की जाएगी। श्री माताजी का विचार हेलसिन्की, लेनिनग्राड और ऐथ्ज जाने का भी है। । जुलाई को बैसटील की दो सौवी शतान्दी पर फ्रानस ৪ । पूणे में श्री माताजी का भाष्न मारत अमण ।988 श्री माताजी ने सहज योगियों के घर्म के विषय में विस्तार से बातचीत की और यह भी समझाया कि एक सहज योगी को किन नियमों का पालन करना चाहिये। उन्होने बड़े सदर उदाहरण देकर समझाया कि घर्म और सत्य में कितनी शक्ति है। शास्त्रों में पुणे को "पुण्य पट्णा यहाँ हम अपने पुण्यों के लिए अथवा पुण्य कमाने के लिए पूजा कर रहे आप सबका पुण में स्वागत है। " कहा गया है और इसका अर्थ है "पुण्यों का शहर। " हैं। अब सवाल यह है कि पुण्य क्या है ? पुण्य किस प्रकार मिलते है ? हमें इस सबकी जानकारी अवश्य होनी चाहिए। री इन धर्मो का पालन करना हमारे अन्दर कुछ धर्म है और हमें पुण्य कमाने के लिए पड़ेगा । सहज योगी का पहला घर्म है कि उसमें भोलापन हो और यह पावन हो ही दूसरा धर्म यह है कि हमें प्रकृति की सुन्दरता को समझाना चाहिये और उसके साथ रहना चाहिए अथवा हर भददी चीज को अपने से दूर रखना चाहिए असुन्दर लोग ही कुरूप चीजों ने हकि का साथ देते हैं। और जिनके अन्दर हिंसा/ जनक दिलना चाहते हैं और जंगली रहना पसव करते क हैं। नभी का घर्म समझना अत्यन्त आवश्यक है। नाभी का पहला धर्म है कि हम एक अच्छा उदाहरण के तौर पर एक धर्म के अपने नियम और तौर तरीके होते हैं। गृहस्थ होना पड़ेगा। की तरह । पर हा, उसे आदमी को एक आदमी की तरह आचरण करना चाहिये न क राक्षस अपन पत्नी से दबना भी नहीं चाहिए। हर धर्म की अपनी मर्यादा होती है और धर्म का पालन कवक करना आकश्यक है। धर्म का आदर करने से ही धर्म का पालन किया जा सकता है। एक धर्म होता है राज घर्म। इस घर्म में हमें कानून का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। मन के धर्म का पालन तब होता है जब हमारे दिल में दूसरे के प्रति कोमल भाव हो और हम दयावान हो। तत्पश्चात आता है सामूडिक धर्म सहसरार पर होता है "इसलाम"- जिसका अर्थ है समर्पण। क्या समर्पण करना ? समर्पण अपने अहम का और अपनी बुरी भावनाओं का। इस बात का इ्ञान और समझ/ हमें सहज योग कर के लिये कार्य करना है, दूसरों का हित करना है और हित करने में ही आननद प्राप्त करना है- ये ही सबसे बड़ा पुण्य है। -सदा आशिर्वाद । :9: श्री सी. पी श्रीवास्तव का भारण, गणपतीपुले, ।988 ऐसे अवसर पर बोलना कोई सरल कार्य नही हे। राजेश ने मेरे विपय में इतना कुछ कह डाला हे और मेरी इतनी प्रशंसा की है कि में समझ नहीं पा रहा कि मैं इस प्रशंसा का अधिकारी हूं भी या नही। और अगर में ये मान लें कि ये सब सत्य है तो में बड़ा ही खुशनसीब आदमी हैं और ऐसा मनुष्य हूँ जिस पर परम पूज्य की असीम कृपा द्ृष्टि है और बो और कोई नही आपकी तालियाँ । साल हो चुके हैं और जो कुछ भीराजेश ने बताया वो सब इन्हीं पसारे सहज हमारी शादी को बयालीस अयालिस सालों में हुआ-- मेरे जीवन के स्वर्णिम बयालिस साल । मेरे प्यारे मित्रों, योगियों और प्यारी सहज योगिनियों आप पूरे विश्व से यहाँ एकत्रित हुए हैं। में आप लोगों से आपके , देशों में मिला था और आज मुझे अपने ही देश में आप से मिलकर बड़ी खुशी हो रही है । मैं सबसे देवकर में बहुत प्रसन हैं । सयको यहाँ पहले आप सबका भारत में स्वागत करता हैं और आप मुझे याद है कि आप में से बहुतों से मैं इस सात के आरम्भ में फ्रश्त स्पेन, इटली और स्थिटजरलेन्ड में मिला था और वह मुलाकात में कभी भूल नहीं सकता। मैं भारत में पला बढ़ा और मुझे भारतवासी होने का बड़ा गर्व भी है। पर उसके साथ साथ मुझे ये भी गर्व है कि मैँ इस विश्व का वासी भी हूँ। आपकी माँ की तरह, मैं भी ये मानता हैं कि ये पूर्ण जग एक परिवार है और हम सब भाई बहन हैं। हम सब को प्रेम और शान्ति सहित इस संसार में रहना चाहिये। आप सब एक अल्यन्त ही सुदर दुनियाँ में रहते हैं, दूसरे ही प्रकार की दुनिया में कार्य करता हैँ जो आप की दुनिया सी सुन्दर नही है। आपकी दुनिया परन्तु में एक सा। अलग है। एक बार मुझे कुछ सहज योगियों से बातज करने का अवसर प्राप्त हुआ था। कोई चार साल पहले की बात है। तब मैंने उनसे कहा था कि दो एकदम अलग जगत हैं। एक आपका जग है-- जहाँ प्रेम वास करता है, पवित्रता है, मिल बाँट कर रहना है और जहाँ मनुष्य प्रवृत्ति अपनी है। वो वह जग हे जहाँ मैं रहता हूँ और जहाँ सीमा पर है। दूसरा जग इस जग से मुझे कार्य करना पड़ता है। और मेरा जग वो नही है जो आप यहाँ देखते है। उस जग में लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं, अपने लिप कार्य करते हैं, रहते है और दूसरों को दबाते हैं। बहुत दूर एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड में युनाइटेड नेशन्स, जिसके लिये मैं कार्य करता हैँ, इसलिये स्थापित की गई थी कि पक नया संसार बन सके, एक नयी राजनीतिक और आर्थिक व्यक्स्था आ सके-- एक न्यायपूर्ण व्यवस्था और इस युनाइटेड नेशन्स के परिवार में काफी कृछ कार्य हो रहा है। बहुत प्रयत्न किए गए हैं, और तकनीक को बदावा देने के। पर मेरे प्यारे साधियों, आप सब जानते हैं कि मनुष्य इस शान्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान पक विया गया --वो है मनुष्य । और बात पर कभी ध्यान नहीं :10: संसार में सबसे उल्तम है। और यहीं पर हार हुई है । विज्ञान की बढोत्तरी हुई है, टेवनोलोजी बने हैं । आगे बढ़ी है, नप अणु विज्ञान खूब विकसित हुआ है और बहुत कुछ र प्रकार के हथियार हुआ है परन्तु - परन्तु मनुष्यता पीछे, बहुत पीछे रह गई है। दिया गया। और आप मानेंग की सबसे कठिन कार्य है मनुष्यता का विकास। इन तीन अरब लोगों इन्सानियत पर ध्यान ही नहीं में से हर शवि्ति का अलग एक व्यकवितत्व है। इसलिये हर प्राणी से व्यवहार रखना कोई सरल कार्य नहीं हैं। और कोई शक्रित ऐसी ही उठनी चाहिये जो इस मतलबीपन के जोर को समाप्त कर दे। और वो जोर तब उत्पन्न हुआ जब आपकी मां ने सहज योग का विकास किया। आप में से बहुत लोग जानते हैं या नहीं भी जानते कि हमारी दो बेटिया हैं एक यहीं बैठी हे। जब हमारी ये दो बेटियां हुई तो हमने अप्रने वीच एक निश्चय किया की जब तक हमारी ये बेटियाँ बड़ी नहीं हो जाती और इनका विवाह नहीं हो जाता आप उनकी देखभाल करेंगी। आपकी माँ मान गई और उन्होंने हमारी बैटियों को बड़ा किया और उनके विवाह किए। जब ये सब हो गया तब हमने सोचा कि अब आपकी माँ को जग के सामने आ जाना चाहिये। और तब ही सहज योग का बीज फूटा। ती आज जो में यहाँ देस रहर है वो एक चमत्कार है। मुझे याद है वो धोड़े से लोग जो सबसे पहले इनके पास आते थे और आज भी यहाँ हैं। तब ये विचार था और एक कल्पना थी । तब से अब तक सहज योग बढ़ा है और पसका विकास हुआ है और उसी का फल है ये मुस्कुराते चेहरों का समुह। मैं आपको बता नहीं सकता कि ओ आज आपके मध्य मुझे कितना गौरव प्राप्त हुए हो रहा है में ये बात दिल से कह रहा है। और आपके बीच होना मेरे लिये एक ओत्साहिक और सोभाग्य की बात है। मैं ये नहीं कह सकता कि में आपके स्तर पर हैँ। आप मुझसे कहीं उच्च स्तर पर है। आपकी माँ की कृपा से आप है। उनको इसके लिये धन्यवाद है। लोर्गों ने मनुष्य की कुरुपता और जाहिलता पर विजय प्राप्त कर ली में कभी कभी अपनी दोस्तों को कहता है कि अगर मैं इस संसार में एक आदमी को भी और उसका कायाकल्प कर सकता है और उसे भलाई और अच्छाई के पथ पर बदल सकता है डात सकता तो मैं समझता की मैने बहुत कुछ पा लिया है। ओर जिसने हजारों लाखों को बदल डाता वा तो एक करिश्मा है। में सच कहता है, आप में से पक एक मेरे लिये एक करिश्मे से कम नहीं। दूँ। एक सन्देश है मेरे पास । राजेश ने मुझसे कहा है कि मैं आप सब को एक सदेश The केज 2113 "आज को विश्व एक अद्भूत विकास से गुजर रहा है । आज वे चीजें हो रही है जिनके बारें में तीन साल पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। जब चार साल पहले मैने पक सहज योगियों के समूह से बात की थीं तो में जरा चिन्तित या। मैं ये नहीं समझ पा रहा था कि जिस खुदगज जग में में रहता और काम करता हैं वो आपके स्तर ते पहुँच पाएगा भी या नही मैंने उस समय कुछ होना चाहिये। का प्रकाश नहीं देखा था। हाँ, मेरी प्रार्थना ये अवश्य रही है कि इस जग को और हुआ क्या है कि पिछले तीन वर्षों में आपकी म दो वार यु.एन. हो आई हे। भर ग्रेगोर को ध्यवाद देना चाहिये जिसने इस मुलाकात का प्रकध किया। और आप मानिए कि यू- एन का कायाकल्प होना आरम्भ हो गया है। चार वर्ष पहले मुझे अपने यू-एन. पर में दुली, चिन्तित और निराश घा। आज में आशासे पूर्ण हैं। बल्कि आज गर्व है। हर ओर जेसे शान्ति पूटी पड़ रही है। ता अपगानिस्तान में सैनिक लोट रहे हैं नामीबिया स्वतंत्र हो जायेगा|। इरान जर इराक जिनका युद्ध रूकने का नाम नहीं ले रहा था, अरबों रूपये उर्च हो गया था और डजारों लोग मर रहे थे। आज उनके बीच शान्ति है। कोर्ड यद्ध नहीं है। आप संसार में चारो ओर नजर डालिए। भारत और चीन उच्च स्तर पर मिलकर आज दोस्त हो गए हैं पाकिस्तान में नया शासन स्थापित हो गया है और तोक तंत्र आ गया है मेरे मित्रं समस्त संसार में परिवर्तन हो रहा है । ही पेतिहारिसक समय है और आप सब इस मुख्य भूमिका निभा रहे हैं । ये समय बड़ा आप ये कदापि नहीं मानियेगा कि सहज योग केवल यहाँ उपस्थित लोगों तक सीमित है । आज का समय वो है जब आपकी और इनकी चैतन्य लक्षीरियाँ फेल रही हैं और आप इस पेतिहासिक समय के पात्र हैं जो सहज योग का सन्देश फेला रहे हैं । हूँ। हम बड़े ही सुशनसीब है कि हम सब ऐसे प्यारे मित्रों, अब मै औरदया कह सकता समय में रह रहे हैं आपको मालूम होगा कि प्लेटो एक बड़ा दा्शनक धा। उसका कहना था कि सम्पूर्ण सत्ता एक दार्शीनक राजा के हाथों में होनी चाहिये। स्सी उनके बहुत बाद में आया। उसका कहना है था कि दार्शनक राजा को सत्ता दे देनी चाहिए पर ये इर नही रहना चाहिये कि सत्ता को दुरूपयोग हो। और आपके पास तो वो है के लिये है। जिनके हाथों में देविक शक्षित भी केवल आशीर्वादसें मैं आप सब को आपके प्रेग, प्यार दया और सद्भावना के तिये बहुत बहुत कन्यवाद देता है और इस बात का भी आभारी हूँ कि आपने साथ रहने का मुझे अवसर दिया । आप लोगों ने जी कुछ कहा और किया में उस सब के योग्य तो नहीं हैं, पर योसव आपका प्रेम है और उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। मे आपका यह बताना चाहंगा कि मँने यह निर्णय लिया है कि जब मेरा चौथा कार्यकाल , जिसमें कि अब मैं कार्यरत हैँं, समाप्त हो जायेगा , तब मैं और आगे कार्य 12 :12: नहीं कंगा। यह कार्यकाल 3। दिसम्बर ।989 को समाप्त होता है और मैने यह बात अपनी आर्गनाइजेशन को बता दी है। तब में यू. पन. क्या होगा इसका ज्ञान नहीं। जो कार्य मेरे पथ पर आपैँगे मैं उसके लिए तैयार रहुँगा। के कार्य से मुकत हो जाऊँगा और उसके पश्चात धन्यवाद। वेवाहिक शपयथे, गणपतीपुले , 1988-89- पवित्र जीनके चारों ओोर फेरे वर वय से कहता है: पहला फेराः मैं श्री आदि शविति का हृदय में स्मरण करता हैँ और तुमसे कहता हैँ कि अच्छे मूलाधार के लिए तुम्हें अपनी पवित्रता रखनी होगी, इमारी भलाई जर हमारा मंगल इसी में है कि हम पूर्ण आदर और भोलेपन से रहें और चालाकी त्याग दें । दूसरा फेराः कहता हैू कि परभात्मा की सुन्दरता में श्री आदि शक्ति का हृदय में स्मरण करता है और और कला हमारे निजी जीवन का भाग हो और हमारा घर सज़ा धजा रहे। जेसे सितारे और ग्रह के अनुसार जीवन व्यतीत करें और अपने अपने पध पर चलते है उसी प्रकार हम भी केवल घर्म कार्य करें। में सारे सहज योगियों का स्वागत कुंगा और पूरी तरह तुम्हारी सहायता करंगा कि हम धर्म के प्रति अपना फूर्ज निभा सकें। तीसरा फेराः में श्री आदि शवित का हृदय में स्मरण करता हूँ और कहता हूँ कि जो भी कमाऊँगा वो है कि जो भी मेरे पास आता है वो तुम्हारे ही पुषण्य का उपहार है। तुम घन सोच समझकर और मेरी ही सलाह से खर्च करोगी। हर्में यह ध्यान में इसलिएप भगवान का आशीर्वाद समझ कर ही यह घन सब तुमको दे दूँगा क्योंकि यह मुझे ज्ञात निम रखकर चाहिये कि सब धन ईश्वर का है और धन बर्च करना चाहिये हमें सांसारिक वस्तुओं के पीछे नहीं भागना है। हमें पूर्णतः अलग होकर अपने महालक्ष्मी तत्व को बढ़ाना है। 13 चोश्या फेराः मैं श्री आदि शक्ति का अपने हृदय में स्मरण करता हैँ कि और कहता हूँ कि तुम्हारी भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुँचाऊँगा और पूर्व जन्मों में की गई अपनी और तुम्हारी गरलतियों को भुता दढूँगा। मेरा प्यार तुम्हारे लिए और तुम्हारा प्रेम मेरे लिए असीमित होना चाहिये। कभी अपनी भावनाओं को दबाना नहीं और उन्हें मुझसे कभी छुपा कर नहीं रखना । कभी मुझे अगर तुम परेशान हो या किसी ने तुम्हें परेशान किया हो। मैंने सदा तुम्हारा साथ दूँगा, तुम्हारी रक्षा करूंगा और तुम्हारे बारे में कोई असत्य बात नही मानूंगा। बताने में हिचकिचाना नहीं वधु वर से कहती है पाँचवा फेराः कि दैवी मिठास तुम्हारे मैं श्री आदि शवित का हृदय में स्मरण करती हैं और कहता हूँ जीवन में भर दूँगी और जो तुम्हें आनद दे मैं वैसा ही भोजन तुम्हारे लिये बनाऊँगी। हमें केवल सहज योगियों के हाथ बना भोजन चाहिये। कृपया मुझ पर यह जोर नहीं डालियेगा कि में उनसे मिलें जो अच्छे सहज योगी नही हैं। हम आपस में कभी ऐ दूसरे पर चिल्लायेंगे नहीं और कभी भी बुरी भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे। तुम मेरी सुनना और मैं तुम्हारी सुनूँगी। छठा फेराः में श्री आदि शकबित का हृदय में स्मरण करती हैं और कहती हैं कि हम नियम से रोज ध्यान लगायेंगे और अपने बच्चों को और मित्रों को भी ध्यान लगाना सिखायेंगे। हमारा जीवन एक प्रायश्चित होना चाहिये और बेकार में हमें इसकी दूसरों से शिकायत नहीं करनी चाहिये पवम् हर हाल में प्रसन्न रहनर चाहिये। तुम्हारी आँखे शुद्ध होना चाहिये और दूसरी नारियों का विचार नहीं आना चाहिये और लालच भी नहीं होनी चाहिए। सातवी फेराः में श्री आदि शक्त को हृदय में स्मरण करती हैं कि परम पूज्य श्र माता जी निर्मला देवी के हम पर असीम आशीर्वाद है और हमें अपने दिल तन, मन और बुदि को होना चाहिये। हमें यह याद रखना चाहिये कार्य कितना महान और महत्वपूर्ण है एवम और सब कुछ हमारे जीवन में जरूरी है और कोई मतलब उन्हें पूर्णतः समर्पित कर देने चाहिये। समर्पण कि आत्म साक्षात्कार का कार 14: नही रखता। मेरी यह शर्त है कि दिन रात हम उनसे बहती चैकन्य लहरियों का आनन्द लें और अपना सब कुछ उन्हें सॉपकर उनकी फोटो की पूजा मर्यादा पूर्वक करें। हमें उनके सम्मुख अत्य्त विनम्र रहना चाहिये। अगर मैं ये सब ना कर पाऊँ तो तुम मुझे याद विला देना। वर क्यु साथ साव कहते हैं। मुझे परम् पूज्य श्री माताजी के आशीर्वाद से मोक्ष का पथ प्राप्त हुआ है, सो वो पथ में औरों को भी दिखाऊँंगा और महान और आत्म सक्षात्कार प्राप्त लोगों के साथ मिल कर सारे संसार को मंगलमय करुंगा । इबन की समाप्तिः वर तीन बार हवन में घी डालते हुए कहे :- ओम अग्नेय स्वाः ओम अग्नेय स्वाः ओ मूं अग्नेय स्वाः ओम तत्सत औम् तत्सत औम तत्सत ओमू पूर्णमघ ः पूर्णभदम। XX४xX*,XX % .x ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-0.txt স 3 श्री इनुमान पुजा, 1989 : सारांश इंगलेन्ड के दक्षिण पूर्वी समुद्र तट पर, विलिफ्टन नामक शहर में, अप्रैल 23 को श्री हनुमान पूजा की गई। सहज योगियों से बात करते हुए, श्री माताजी ने समझाया कि श्री हनुमान एक से देवदूत बन गए हैं । बौई ओर गणों का सथान हे और और सहज योगी इस देवदूत थे और हम लोग सब मनुष्य दाहिनी ओर देवदूतों का। संस्कृत में देवदूत का अर्थ है "भगवान पृथ्वी पर यहीं कार्य कर रहे हैं। के दूत" देवदूतों की एक विशेषता है कि वे सत्य का साथ किसी भी कीमत पर नही छोड़ते हैं । वे झूठ और दिखावे से सदैव परे रहते हैं, विषय में क्या सोचते हैं। सत्य ही उनका जीवन है और ये सत्य की स्थापना और सत्य का जीवन व्यतीत करने वालों की रक्षा के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। अगर सहज योगी सत्य और इस बात की चिन्ता नही करते हैं कि दूसरे उनके के पध पर तत्पर रहें, तो ईश्वर की विशेष कृपा उन पर होती है, और उनकी पूर्ण सुरक्षा का भार भी ईश्वर उठाते हैं। हम अपने स्थान से अनभिज्ञ हैं। श्री माताजी ने इस बात पर जोर देकर कहा, कि उन्होंने हमें देवदूत बनाया है, और अगर हम इस बात को जान लें, तो हमारे सर्वर्व गुण चमक कर हमारे सम्मुख आ जाएँगे उन्होंने हमें महात्माओं का निर्माण नही करतीं। सन्त महात्मा अपने ही प्रयासों से बन जाते हैं। गणेश, कार्तिकेय ें महात्मा नही परन्तु देवदूत बनाया है। श्री माताजी स्त एवम् हनुमान जैसे देवदूतों का बगेर परिश्रम के निर्माण किया जा सकता है, और सहज योगी भी इसी प्रकार बनते हैं। महात्माओं में और देवदूतों में एक मौलिक असमानता होती है । सन्त महात्माओं को परेशान किया जा सकता है, तंग किया जा सकता है और उन्हें अपने स्थान से और अपने सिटाम्तों से डिगाया भी जा सकता है। दूसरी ओर , देवदूत अपने ऊपर कोई समस्या नही लेते, वे केवल समस्याओं को हल करते हैं। अवतार भी आात्म प्रतारण और यातना स्वीकार करते हैं, जिससे कि उनके जीवन की घटनाएं उनके विशेष गुणों को जन समुदाय के सम्मुस प्रस्तुत कर सके। देवदूत इस बात को अच्छी प्रकार जानते हे कि ईश्वर उनकी सुरक्षा करते हैं और उनमें आत्मविश्वास भी बहुत होता है। देवदूत होने के कारण, श्री हनुमान में अधिक क्षमताएँ और शवितियाँ विधमान हैं, को ये याद दिलाने के लिये कि ईश्वर और उनका प्रयोग करना उनका अधिकार है। मनुष्य हे, और बलवान हे, देवदूत अनेक ऐसी घटनाएँ मनुष्य के सम्मुख प्रस्तुत और वह अत्यन्त ही सुदर करते हैं, जिससे उसको यह विश्वास हों सके कि ईश्वर सर्व विधमान और सर्व रवितमान है । श्री माताजी ने समझाया कि इश्वर के क्षेत्र में, सहज योगियों को देवदूतों से भी अधिक यह शक्ति प्रदान की गई है, कि वे औरों की कुनलिनी जागृत कर सकते हैं और लोगों को आत्म साक्षातुकार प्रदान कर सकते हैं। देवदूत मनुष्य को नहीं वदल सकते। हमारे पास अवुभूत शक्तियां हैं, पर हम उनको प्रकट करने में और उनके विषय में बात करने से भी डरते हैं। प 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-1.txt :2: श्री हनुमान इस पृथ्वी पर इसलिए आए थे कि जो निर्णय दूसरे करते हैं और जो आज्ञा चक के दवारा प्रकट होते है, ये उन्हें दूर कर सरकें। जब आज्ञा दाप से बाँई ओर चलता है तो हमारा अहम् प्रकट होता है जैर इसी अहम् को निकाल फेकने का प्रयत्न श्री हनुमान ने किया। ह् अपने अहम् का नाश नहीं करना है हमें सहज योग की उन्नति के लिए उसका प्रयोग करना है। इस प्रकार, अगर हें यह ज्ञान हो जाए कि हम देवदूत हैं तो हममें अहम् का भाव प्रकट ही नही होगा। हमारी सारी शवितयाँ सहज योग के लिए है, और जिस प्रकार श्री माताजी सहज योग के लिए कार्य करती हैं, उसी प्रकार हमें भी सहज योग की उन्नति के कार्य में तत्पर रहना चाहीए। ब उन्होंनें यह शवितयां हर पक को प्रदान सहज योग आदि शवित दारा नहीं किया जाता। की हैं और सहज योग इन्ही आन्तरिक शवितयों द्वारा धरती माँ है और और बीज से उत्पन्न हुआ आगे बद़ रहा है। श्री माताजी ने कहा कि वे यहाँ माँ है , हमारी पावन आदि शक्ति के रूप में नहीं है। वे हसारी और पूजनीय माँ, और पूजनीय माँ के रूप में उन्होंने हमारा पय प्रदर्शन कर दिया है, पर कार्य हमें स्वयं ही करना होगा । हम परम पूज्य परमात्मा के हधियार हैं और हमें कार्य अवश्य पूर्ण करना पडेगा । आदरणीय श्री माताजी ने इस बात पर भी जोर डाला कि अगर इमें कार्य फल देखना है तो हमें तीव्रता से कार्य करना होगा। उन्होंने इस विषय में ये भी काम कहा कि हम सहज योग की बढोत्तरी के लिए समय का ध्यान नहीं रखते। यह पूजनीय कार्य हमारा है एवम् इस कार्य को और कोई नहीं करेगा । हमें सहज यांग अवश्य फैलाना है और उसे उस स्तर तक लाना है जहाँ से सर्वस्व जग उसे देख सके। सहज योगियों को निडरता से अग्रसर होना है और वे ये अकेले कर सकते है या समुदाय में कर सकते हैं । उन्हें यह विश्वास हो जाना नहिये कि परम चैतत्य उनके प्रयत्नों को सफल करेंगे और विश्व को बदलने के कार्य में भी उनकी सहायता करेंगे। जय श्री माताजी निर्गला माँ। सर श्रीवास्तव से साकषात्कार | 2/30/88, अलीबाग-भारत आजकल की विश्व स्थिति पर बात करना अच्छा है। मैं इन्टरनेशनल मैरिटाईम आर्गनाइजेशन में सेकेटरी जनरल के पद पर कार्य करता हूँ। यह आर्गनाइजेशन, युनाइटिड नेशन्स का पक हिस्सा है। युनाइटिड नेशन्स की स्थापना जग में शाह्ति पैलाने के लिये और मानव के उत्थान के लिए हुई थी। और जब से स्थापना हुई है, तब से यू. एन और उसके अत्य मार्गों ने अनेक कार्य करें हैं। हर क्षेत्र में यू. एन. ने काम किया है स्वास्थ्य के क्षेत्र में डब्ल्यू- एच ओ ने अनेक देशों में कार्य किये हैं। जैसे चेचक केो समाप्त करना और मलेरिया एवम् अन्य बीमारियों के विषय 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-2.txt :3: में सोचना। इसी प्रकार युनेस्को ने भी बहुत काम किया है। यू एन शानित लाने के प्रयास में लगा रहता है। हमारी मेरिटाईम आर्गनाईजेशन विश्व के देशों के अच्छे सम्बन्धों पर मेरिटाइम क्षेत्र में कार्य करती है । पर मेरा विचार है कि केवल लडाई रोकने का अर्थ शान्ति नहीं है। लड़ाई रोकना आवश्यक है। हमें खुश होना चाहिये कि गल्फ क्षेत्र में लडाई रूक गई है और दोनों देशों में आपस में बातचीत आरम्भ हो गई है। नामीबिया स्वतंत्र हो गया है और अफगानिस्तान ने भी अपनी म्जी से अपनी सेनाएँ हटा ली हैं। ये सब बहुत अच्छे विकास हैं पर शायद क्योंकि में भारतीय हूं, मुझे लगता है कि हमें अभी और गहराई मं जाना है। हमें मानव और मानवता के विषय में सोचना है । विज्ञान में खूब उन्नति हुई है। संसार के किसी भी हिस्से से लोग किसी भी समय पकदूसरे से बातचीत कर सकते हैं और किसी भी समय एक दूसरे से मिल सकते हैं तकनीक में इतना विकास हुआ हैं और ये कम्प्यूटर है। औयोगिक कृ्ति के बाद संसार में कई कान्तियों हुई। आज सम्पर्क की कन्ति का समय है पर फिर भी यो क्या मुल तत्व है जिस पर शान्ति निर्भर है ? शान्ति इन्सान के दिल और दिमाग पर निर्भर है और इस बात पर भी निर्भर है कि हर आदमी इस बात को मान लें कि ये विश्व एक बड़ा परिवार है और हम सब भाई बहन हैं जब तक हम इस मूल समस्या और विशेष कर विल का इल नहीं ढूँढते तब तक कुछ नही कर पाएँगे हमें इन्सानी दिमाग से से यह बातें निकाल फेंकनी है कि हमें हिस्से बाटने डैं, अपनी उन्नत दूसरे को दबा कर करनी है। मैं ये मानता हूँ, कि हमें पक दूसरे से लड़ना हे और हमें नहीं कर पाते, तब तक जब तक हम ये सब को उस स्तर तक नहीं ला सकते जहाँ हर देश एक दूसरें हम मानव से शान्ति सहित रह सके। ये समस्या मेरे अन्दर हर समय उभरती है और मेरा विचार है कि पूरे विश्व में मानव की ओर अधिक ध्यान देना आवश्यक है। हमें एक पल के लिये भी यह नहीं मानना चाहिए कि मानव प्रवृतित वैसी ही है जैसी दिखाई और तथु है। " पर ये एक सीमित दृष्टिकोण देती है। होन्ज ने कहा है कि "मानव प्रृत्ति दुष्ट, कूर है। कभी कभी मानव ये कूरता दिखाता है पर असल में ऐसा होता नहीं है। मानव जब अपनी सीमा पर होता है तो उसकी प्रवृत्ति दैनिक होती है और आन्तरिक होती ये क्षमता होती है कि वो अपने को सके और ये वो आध्यात्म से कर सकता है। मैं एक धर्म की बात नहीं कर रहा। मेरे विचार में सब घर्म परमात्मा तक ले जाते है। एक ही परमात्मा है। इर मनुष्य के अदर सुधार है और हम सब उसकी सनतान हैं। हम सब उसके हिस्से हैं और हम सबको यह अधिकार है कि हम कोई भी हिस्सा चुन लें। बस हमें ये अधिकार नहीं है कि हम एक दूसरे ये बात कभी समझ में नहीं आती और बड़ा आश्चर्य भी होता है कि जिस परमात्मा के आगे हम सब झुकते हैं, हम उसी के नाम पर आपस में झगड़ते क्यों हैं ? से लड़ें। मुझे |ु 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-3.txt 14: यही पर में मानता हूँ कि सहज योग का बडा ही महत्वपूर्ण स्थान है। आरिवर सहज योग है क्या ? मनुष्य को परमात्मा ने बनाया है और हर सहज योग में मुख्य बात ये है कि हर में वह शक्ति है, जो अगर जागृत हो जाए तो उससे मनुष्य को आत्मसक्षात्कार प्राप्त मनुष्य ही सकता है। हर मनुष्य उस ऊँचाई तक पहुँच सकता है जो उसका अधिकार है और यही उसकी उन्नति की चाबी है। केवल बातें करने से शन्ति नही मिलती। यह आवश्यक है कि कार्य करते रहें, देशों को एक साथ मिलाते रहें और एक सन्दर संसार का निर्माण करें। और ये तब ही हो सकता है जब हम अपने अन्तर में झाँके और जब हमारा अन्तर जागरूक होकर उठेगा तब ही हम ऊँचाई तक पहुँच सकते है । और मैंने ऐसे सहज योगी देले हैं जो मानवीय उत्तमता की चरम सीमा पर है । ऐसा क्यों है कि उन्होंने यह राह चुनी है ? ऐसा क्यों है कि उन्होंने झूठ को त्याग दिया है और बोलते हैं और क्यों दोस्ती, दयालुता का साथ देते हैं और सबसे मिल बाँट कर रहते हैं ? र डग्स छोड़ दी है । वहुतों ने शराब क्यो छोड़ दी है ? व क्यों सच ये सब इसलिए कि अब उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त है। अब उनकी आअन्तरिक शवितयां उभर देना है। आई हैं और उनकी अच्छाई उनकी दैनिक शक्ति बन चुकी है। इसी चीज को बढ़ावा और यह ही उन्नति की चाबी है । एक व्यावहारिक आदमी वो है जो संसार को जैसा हे वैसा ही मान लेता है। क्या बो इस बात को गानेगा 2 क्या हम सपना नहीं देख रहें । क्या ये हमारी केवल कत्पना नहीं ? ये संसार कैसे बदलेगा ? ये तो वर्षों से पेसा है। अगर आप सोचे तो मैं एक सुलझा हुआ आदमी हूँ। मैं भावनाओं को हावी नहीं होने देता। मैं एक कुशत कार्यकर्ता और एक नीतिवान इन्सान हूँ। मुझे दिमाग से काम लेना है और दिमाग एक सीमित हाययार है। अगर आप दिमाग लगाएँ, तो पक और है विनाश न्यूक्लीयर और पेसे हधियार जो विश्व का सर्वनाश कर देंगे चार गुना। क्या हम ऐसी दुनिया चाहते हैं ? और क्या हम ऐसी दुनिया में जी सकते है ? आज नहीं तो कल ऐसा अवश्य एक दिन आपगा, जब किसी एक कीगलती से विश्व पर सर्वनाश का बादल छा जाएगा। तब कोन जीवित रहेगा ? मानव कद्दापि नही जीवित रह सकता। ये सब बातें हमसे दूर नही है। आज की बाततें हैं। एक उदाहरण और लीजिए-वातावरण। आजकल हम हर देश का एक दवस मनाते हैं और हमने सीमाएँ बाध ली हैं। पर बातावरण की कोई सीमा नहीं। अगर एक देश में विनाश के बादल छाएँ तो दूसरे देशों पर भी उनका असर ला। पड़ता है, ये आप जानते हैं। शरनोंबिल सर्वनाश, जुहरीले पदार्थों का फेंकना, ओजीन की तडों का सर्वनाश एवम् "ग्रीन हाऊस इफेक्ट "। ये सब विश्व की समस्यापं है। होकर कितने और स्थानों पर इसका असर होता है। तो जब हम पक शन्तिपूर्ण देश के विषय में एक स्थान पर आरम्भ केवल हमें उसे पहचानना बात करते हैंतो वो एक सपना नहीं है वो आजकल हमारे पास हे है, समझना है और उसका हल निकालना है अब हमारे पास समय कम है । दस साल पहले वातावरण की इतनी समस्या नहीं थी। तब वातावरण केवल पएक आंतरिक शब्द था पर आज ये 55 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-4.txt :5: बात नहीं है। अगर हम अपना रहन सहन बदलेंगे नहीं, अपने आगे आने वाले रिश्तां पर विचार नही करेंगे और ये नहीं सोचेंगे कि आपस में देश किस प्रकार एक दूसरे की सदद कर सकते हैं, तो हम मुसीबत में फैस जाएँगे। ऐसे समय में सहज योग की महत्ता है। सहज योग केवल आत्मिक है और हर वो आदमी जो अपनी उन्नति करना चाहता है सहज योग अपना सकता है। ये ही उन्नति की चाबी हे । सहज योग भारतीय है और भारत की एक अपनी ही संस्कृति है। भारत में ऐसे लोग हैजिनकी जड़ें हजारों साल पहले की हैं और भारत की संस्कृति में महात्माओं का ध्यान लगाने का और आध्यात्म का बड़ा महत्ववपूर्ण स्थान रहा है। दो हज़ार साल पहते लोग अपने से ये मूल सवाल कर रहे थे। हम यहाँ क्यों हैं ? ईश्वर कौन है और इमारा रिश्ता क्या है ? ये सवालत एक विकसित दिमाग के हं, पिछड़े हुए दिमाग के नहीं। और दो हजार साल पहले पेसे दिमाग ये जो पूर्णतः विकसित थे और इतिहास गवाह है। ये ही संस्कृति है। भारत की संस्कृति रही है आध्यात्म, ध्यान लगाना, मानवता के लिये सही पथ, धर्म और धर्म के साथ रहना। सब यहाँ नहीं पहुँच सकते पर ये ही मूत दर्शन रहा है। चीन में में कहुँगा अत्यन्त बौदिकता है देश आज विश्व को बहुत कुछ दे सकते हैं । पर हुआ क्या है कि पशिचरमी देश सूब विकास कर गए है क्यों कि वहाँ तकनकी कालिति सीमा पार एक महान संस्कृति, और पूरबीय कर गई है। उन्होंने चमत्कार दिखाए हैं पर मानव को पीछे छोड़ आए प्रकार से उनके जीवन में एक असमानता आ गई हैं उनके अन्दर शान्ति नहीं है। उनके पास सब कुछ है पर क्या वे खुश हैं ? क्या उनके पास शान्ति है। ओोर इस हे ? क्यों नही है ? क्योंकि उन्होंने एक बहा फ़ासला तकनीक और मानव के बीच का दिया है। है, मानय की सत्ता की ओर पूरव में अब तक तकनीक हावी नहीं हुई है । एक सन्तुलन आध्यात्मिक झुकाव है। पूरव और पश्चिम की आध्यात्मिकता एक साथ भी आध्यात्म है पर भौतिकवाद इतना बढ़ गया है कि आध्यात्मिकता ढक चुकी हे। मेरी यही आशा और प्रार्थना है कि ये दोनों जग मिल जाएँं। हमें इसी ओर कार्य करना है। पश्चिम में आ सकती है। ईश्वर के प्रतिनिधि, श्री हनुमान की पूजा पिछले इ्ते में उपस्थित थे। वहाँ हम सब श के कुछ दृश्य आपके सम्मुख प्रस्तुत है। श्री हनुमान पूजा के लिए मारगेट, इंगलेण्ड इंगलैण्ड के दक्षिण -पूर्वी सिरे पर केन्ट नामक जिला है। उस जिले में समुद्र तट पर एक छोटी सी, शा्त जगह है, मारगेट। हम सब वहाँ शुक्रवार की शाम को पहुँचे। शनिचर की सुबह 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-5.txt :6: मारगेट पहुँचीं और स्टेशन पहुँची और स्टेशन पहुँचते ही उन्होंने उस जगह को "इंगलेण्ड का बगीचा" कह कर उसका नामकरण किया। ब्राइटन के बटालि-स होटल में सबके सोने श्री माताजी के लिए चार सो विछौनों का प्रकध किया गया था। वहाँ के सहज योगियों ने अक्श्य कधन लगाए होंगे जिससे कि इतने लोग आय्ये कि सारे विछौने भर जाएँ। अन्त में वहाँ लगभग छ: सो सहज योगी थे और सब वड़े आराम से रविवार की सुबह पूजा के लिये ग्ँड होटल के बड़े कमरे में तैयार बैठे थे। शनिवार सबेरे सब बडे उत्साह से श्री माताजी के स्वागत के लिए स्टेशन पहुँचे। उस दिन बहुत सर्दी नहीं थी पर अक्सर जैसा मौसम इंगलेण्ड में होता है, वैसा ही था। बादल छाप हुए थे, समुद्री हवा चल रही थी और कहीं कहीं धूप भी सिली हुई थी। पूरा स्टेशन योगियों से उमड़ रहा था और सबने अपनी पूज्यनीया माँ को पुष्य भेट किए। जन-समुवाय/ एक -आध पुलिस के देख कर आदमी भी वहां आ गए, पर वातावरण इतना आनंदमय था कि वे भी कह न सके। तब श्री माताजी गाड़ी में सेन्ट जॉर्ज होटल के लिए रबाना हुई और हम सब पैदल या कार में अपने अपने होटल वापिस लौट गए। शनिचर को, रात को खाने के पश्चात, हम सब श्री माताजी के सम्मुख एक रंगारंग कार्यक्रम के लिए एकत्रित हुए। सबसे पहले इग्लैण्ड के छोटे छोटे नाटक के रूप में प्रस्तुत किया । लड़कों ने बड़े चाव और गर्व से अपनी अपनी वानर की पोशालें पहनी हुई थी। इसके पश्चात, सेक्सपियर के नाटक "अमडसमर नाइट्स डीम" का एक अंश प्रस्तुत बच्चों ने श्री हनुमान की कथा को एक पतं जा किया गया। उसमें "पक" का पात्र जोन ग्लोवर ने निभाया । एक स्थान पर जब नृत्य के लिए संगीत बजाना था तो कैसेट सो गया और निक ग्रैनबी ने सबका मनोरंजन किया और सब लोगों को खूब हैसाया। उन्हें अपने रात का भोजन मिल नहीं रहा था। रिकत स्थानों को भरने के लिए और उसी को लेकर उन्होने सबको प्रसन्न किया। उसके बाद पकदम संगीत अत्य्त याद आ रहा था। आरम्भ हो गया। औश्रीवास्तव ने निक ग्रेन्बी को उनके अभिनय के लिए मुंबारकवाद वी प्रताप जर के पश्चात संगीत श्री प्रिक्षम पवार द्वारा किया गया कत्थक नृत्य अत्यत ही प्रभावशाली था। नृत्य था, इंगलेण्ड के सहज योगियों ने भजन गाए और रे हेरिस की बहन शेरोन ने एक गीत सुनाया, माताजी को नृत्य बहुत अधिक पसन्द आया । रविवार पूजा का दिन था। श्री माताजी ने देवदृतों के विषय पर बात की । श्री हनुमान एक देवदूत हैं और श्री माताजी ने बताया की उन्होने हमको भी देवदूत बना दिया है। श्री माताजी हमें सन्त नहीं बना सकती थी क्योंकि सत अपने स्वयं के प्रयासों से सन्त बनता है, परन्तु देवदूत को अपनी ओर से तनिक भी प्रयास नहीं करना पडता। उसे तो उसकी आदरणीय माँ निर्मित करती श्री इनुमान और हमारे मध्य एक मौलिक असमानता है। श्री हनुमान को ये ज्ञान हैं। लेकिन 7. 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-6.txt :7: है कि बे एक देवदूत है और उनमें ज्ञान नही है, या हम इस बात को भूल जाते हैं। आक्श्यक बात ये है कि देवदूतों को सुरक्षा प्रदान हे। सहज योगियों को प्रतारणों से पूर्ण सुरक्षा प्राप्त है। श्री माताजी ने कहा कि सनतों को प्रतारणाएँ मिल सकती हैं, अवतारों को मुसीबतें घेर सकती हैं है। श्री माताजी ने श्री हनुमान के विषय में और भी बहुत कुछ बताया और कहा कि जब श्री क्या शव्तिरयां विद्यमान है। जब कि हमें या तो इस बात का परन्तु सहज योगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान श्री ने सूर्य को निगला या तो ये इस बात का प्रतीक था कि उनका अपने अहम् पर और इनुमान अपनी दाँई ओर पर पूर्ण नियंत्रण घा। पूजा तीन चार क्टों तक चली। पूजा के ने श्री माताजी को अनेक उपहार भेंट किए इन उपहारों में एक श्री हनुमान की तस्वीर थी जो कि फ्रेन्च बच्चों ने अपनी गर्मियों की छ से था एक एननसिएशनकी मुर्ति का पूजा के दौरान भजन गाए गए और इंग्लेण्ड के सहज योगियों ने श्री तुलसीदास जी की हनुमान चालिसा का पाठ गाकर सुनाया, जो श्री माताजी को विशेषकर उपरान्त सारे देशों से एकत्रित सहज योगियों पक विशेष उपहार स्विटज़रलैण्ड छुट्टियों में बनाई थी। पसद आया। ये सब आनन्द रविवार की शाम को सुबह तट पर एक हवन के साथ समाप्त हुआ। हम लोग क्धेरे में और हल्की फुहार में सड़े, श्री माताजी के ।08 नामो का उच्चारण कर रहे थे। उस समय श्री माताजी अपने कक्ष में विश्राम कर रही धी। परन्तु उनका ध्यान हम सब पर ही लगा हवन करने का विचार एकाएक किया गया था और समुद्र तटि पर एक रिक्त बडस्टैन्ड- से कुछ लोग बैठे थे और कुछ चारों ओर खडे हो गए हवन के पश्चात एक साथ सबने "कुन्डलिनी कुन्डलिनी" अधवा और अनेक गीत गाए और फिर हम सब होटल लौज गए। अत का दृश्य मुझे याद है जब जोजी, हवन के पश्चात, स्नैक बार में बैठा था। स्थान में हवन की तैयारी की गई। आनन्द का विवरण कर रहा था और सब प्रसन्नता से पुर्ण थे। परन्त में अधिक विवरण नहीं दे पाऊगां। सारे आप सब को ये तो अवश्य याद होगा कि अगले शनिचर- इतवार को सोरेंन्टो में, नेपोली के समुद्री 1. तट पर, सहसरार पूजा की जाएगी। पेसा कहा गया है कि एक पानी के जहाज के दारा हम सब को कैपरी के ढीप पर ले जाया जाएगा। सहसरार पुजा के पश्चात अगले शनिचर- मई को आता है, बारसलोना में बुदध पूजा होगी। उसके बाद ।। जून इतवार को, जो कि 2 को एक पूजा न्यू यार्क में होगी। तत्पश्चात । 4 में देवी पूजा होगी। स्विटजरलैण्ड में गणेश पूजा, आसट्िया में गुरू पूजा पवम् इंग्लेण्ड में श्री कृष्ण पूजा भी की जाएगी। श्री माताजी का विचार हेलसिन्की, लेनिनग्राड और ऐथ्ज जाने का भी है। । जुलाई को बैसटील की दो सौवी शतान्दी पर फ्रानस 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-7.txt ৪ । पूणे में श्री माताजी का भाष्न मारत अमण ।988 श्री माताजी ने सहज योगियों के घर्म के विषय में विस्तार से बातचीत की और यह भी समझाया कि एक सहज योगी को किन नियमों का पालन करना चाहिये। उन्होने बड़े सदर उदाहरण देकर समझाया कि घर्म और सत्य में कितनी शक्ति है। शास्त्रों में पुणे को "पुण्य पट्णा यहाँ हम अपने पुण्यों के लिए अथवा पुण्य कमाने के लिए पूजा कर रहे आप सबका पुण में स्वागत है। " कहा गया है और इसका अर्थ है "पुण्यों का शहर। " हैं। अब सवाल यह है कि पुण्य क्या है ? पुण्य किस प्रकार मिलते है ? हमें इस सबकी जानकारी अवश्य होनी चाहिए। री इन धर्मो का पालन करना हमारे अन्दर कुछ धर्म है और हमें पुण्य कमाने के लिए पड़ेगा । सहज योगी का पहला घर्म है कि उसमें भोलापन हो और यह पावन हो ही दूसरा धर्म यह है कि हमें प्रकृति की सुन्दरता को समझाना चाहिये और उसके साथ रहना चाहिए अथवा हर भददी चीज को अपने से दूर रखना चाहिए असुन्दर लोग ही कुरूप चीजों ने हकि का साथ देते हैं। और जिनके अन्दर हिंसा/ जनक दिलना चाहते हैं और जंगली रहना पसव करते क हैं। नभी का घर्म समझना अत्यन्त आवश्यक है। नाभी का पहला धर्म है कि हम एक अच्छा उदाहरण के तौर पर एक धर्म के अपने नियम और तौर तरीके होते हैं। गृहस्थ होना पड़ेगा। की तरह । पर हा, उसे आदमी को एक आदमी की तरह आचरण करना चाहिये न क राक्षस अपन पत्नी से दबना भी नहीं चाहिए। हर धर्म की अपनी मर्यादा होती है और धर्म का पालन कवक करना आकश्यक है। धर्म का आदर करने से ही धर्म का पालन किया जा सकता है। एक धर्म होता है राज घर्म। इस घर्म में हमें कानून का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। मन के धर्म का पालन तब होता है जब हमारे दिल में दूसरे के प्रति कोमल भाव हो और हम दयावान हो। तत्पश्चात आता है सामूडिक धर्म सहसरार पर होता है "इसलाम"- जिसका अर्थ है समर्पण। क्या समर्पण करना ? समर्पण अपने अहम का और अपनी बुरी भावनाओं का। इस बात का इ्ञान और समझ/ हमें सहज योग कर के लिये कार्य करना है, दूसरों का हित करना है और हित करने में ही आननद प्राप्त करना है- ये ही सबसे बड़ा पुण्य है। -सदा आशिर्वाद । 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-8.txt :9: श्री सी. पी श्रीवास्तव का भारण, गणपतीपुले, ।988 ऐसे अवसर पर बोलना कोई सरल कार्य नही हे। राजेश ने मेरे विपय में इतना कुछ कह डाला हे और मेरी इतनी प्रशंसा की है कि में समझ नहीं पा रहा कि मैं इस प्रशंसा का अधिकारी हूं भी या नही। और अगर में ये मान लें कि ये सब सत्य है तो में बड़ा ही खुशनसीब आदमी हैं और ऐसा मनुष्य हूँ जिस पर परम पूज्य की असीम कृपा द्ृष्टि है और बो और कोई नही आपकी तालियाँ । साल हो चुके हैं और जो कुछ भीराजेश ने बताया वो सब इन्हीं पसारे सहज हमारी शादी को बयालीस अयालिस सालों में हुआ-- मेरे जीवन के स्वर्णिम बयालिस साल । मेरे प्यारे मित्रों, योगियों और प्यारी सहज योगिनियों आप पूरे विश्व से यहाँ एकत्रित हुए हैं। में आप लोगों से आपके , देशों में मिला था और आज मुझे अपने ही देश में आप से मिलकर बड़ी खुशी हो रही है । मैं सबसे देवकर में बहुत प्रसन हैं । सयको यहाँ पहले आप सबका भारत में स्वागत करता हैं और आप मुझे याद है कि आप में से बहुतों से मैं इस सात के आरम्भ में फ्रश्त स्पेन, इटली और स्थिटजरलेन्ड में मिला था और वह मुलाकात में कभी भूल नहीं सकता। मैं भारत में पला बढ़ा और मुझे भारतवासी होने का बड़ा गर्व भी है। पर उसके साथ साथ मुझे ये भी गर्व है कि मैँ इस विश्व का वासी भी हूँ। आपकी माँ की तरह, मैं भी ये मानता हैं कि ये पूर्ण जग एक परिवार है और हम सब भाई बहन हैं। हम सब को प्रेम और शान्ति सहित इस संसार में रहना चाहिये। आप सब एक अल्यन्त ही सुदर दुनियाँ में रहते हैं, दूसरे ही प्रकार की दुनिया में कार्य करता हैँ जो आप की दुनिया सी सुन्दर नही है। आपकी दुनिया परन्तु में एक सा। अलग है। एक बार मुझे कुछ सहज योगियों से बातज करने का अवसर प्राप्त हुआ था। कोई चार साल पहले की बात है। तब मैंने उनसे कहा था कि दो एकदम अलग जगत हैं। एक आपका जग है-- जहाँ प्रेम वास करता है, पवित्रता है, मिल बाँट कर रहना है और जहाँ मनुष्य प्रवृत्ति अपनी है। वो वह जग हे जहाँ मैं रहता हूँ और जहाँ सीमा पर है। दूसरा जग इस जग से मुझे कार्य करना पड़ता है। और मेरा जग वो नही है जो आप यहाँ देखते है। उस जग में लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं, अपने लिप कार्य करते हैं, रहते है और दूसरों को दबाते हैं। बहुत दूर एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड में युनाइटेड नेशन्स, जिसके लिये मैं कार्य करता हैँ, इसलिये स्थापित की गई थी कि पक नया संसार बन सके, एक नयी राजनीतिक और आर्थिक व्यक्स्था आ सके-- एक न्यायपूर्ण व्यवस्था और इस युनाइटेड नेशन्स के परिवार में काफी कृछ कार्य हो रहा है। बहुत प्रयत्न किए गए हैं, और तकनीक को बदावा देने के। पर मेरे प्यारे साधियों, आप सब जानते हैं कि मनुष्य इस शान्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान पक विया गया --वो है मनुष्य । और बात पर कभी ध्यान नहीं 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-9.txt :10: संसार में सबसे उल्तम है। और यहीं पर हार हुई है । विज्ञान की बढोत्तरी हुई है, टेवनोलोजी बने हैं । आगे बढ़ी है, नप अणु विज्ञान खूब विकसित हुआ है और बहुत कुछ र प्रकार के हथियार हुआ है परन्तु - परन्तु मनुष्यता पीछे, बहुत पीछे रह गई है। दिया गया। और आप मानेंग की सबसे कठिन कार्य है मनुष्यता का विकास। इन तीन अरब लोगों इन्सानियत पर ध्यान ही नहीं में से हर शवि्ति का अलग एक व्यकवितत्व है। इसलिये हर प्राणी से व्यवहार रखना कोई सरल कार्य नहीं हैं। और कोई शक्रित ऐसी ही उठनी चाहिये जो इस मतलबीपन के जोर को समाप्त कर दे। और वो जोर तब उत्पन्न हुआ जब आपकी मां ने सहज योग का विकास किया। आप में से बहुत लोग जानते हैं या नहीं भी जानते कि हमारी दो बेटिया हैं एक यहीं बैठी हे। जब हमारी ये दो बेटियां हुई तो हमने अप्रने वीच एक निश्चय किया की जब तक हमारी ये बेटियाँ बड़ी नहीं हो जाती और इनका विवाह नहीं हो जाता आप उनकी देखभाल करेंगी। आपकी माँ मान गई और उन्होंने हमारी बैटियों को बड़ा किया और उनके विवाह किए। जब ये सब हो गया तब हमने सोचा कि अब आपकी माँ को जग के सामने आ जाना चाहिये। और तब ही सहज योग का बीज फूटा। ती आज जो में यहाँ देस रहर है वो एक चमत्कार है। मुझे याद है वो धोड़े से लोग जो सबसे पहले इनके पास आते थे और आज भी यहाँ हैं। तब ये विचार था और एक कल्पना थी । तब से अब तक सहज योग बढ़ा है और पसका विकास हुआ है और उसी का फल है ये मुस्कुराते चेहरों का समुह। मैं आपको बता नहीं सकता कि ओ आज आपके मध्य मुझे कितना गौरव प्राप्त हुए हो रहा है में ये बात दिल से कह रहा है। और आपके बीच होना मेरे लिये एक ओत्साहिक और सोभाग्य की बात है। मैं ये नहीं कह सकता कि में आपके स्तर पर हैँ। आप मुझसे कहीं उच्च स्तर पर है। आपकी माँ की कृपा से आप है। उनको इसके लिये धन्यवाद है। लोर्गों ने मनुष्य की कुरुपता और जाहिलता पर विजय प्राप्त कर ली में कभी कभी अपनी दोस्तों को कहता है कि अगर मैं इस संसार में एक आदमी को भी और उसका कायाकल्प कर सकता है और उसे भलाई और अच्छाई के पथ पर बदल सकता है डात सकता तो मैं समझता की मैने बहुत कुछ पा लिया है। ओर जिसने हजारों लाखों को बदल डाता वा तो एक करिश्मा है। में सच कहता है, आप में से पक एक मेरे लिये एक करिश्मे से कम नहीं। दूँ। एक सन्देश है मेरे पास । राजेश ने मुझसे कहा है कि मैं आप सब को एक सदेश The केज 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-10.txt 2113 "आज को विश्व एक अद्भूत विकास से गुजर रहा है । आज वे चीजें हो रही है जिनके बारें में तीन साल पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। जब चार साल पहले मैने पक सहज योगियों के समूह से बात की थीं तो में जरा चिन्तित या। मैं ये नहीं समझ पा रहा था कि जिस खुदगज जग में में रहता और काम करता हैं वो आपके स्तर ते पहुँच पाएगा भी या नही मैंने उस समय कुछ होना चाहिये। का प्रकाश नहीं देखा था। हाँ, मेरी प्रार्थना ये अवश्य रही है कि इस जग को और हुआ क्या है कि पिछले तीन वर्षों में आपकी म दो वार यु.एन. हो आई हे। भर ग्रेगोर को ध्यवाद देना चाहिये जिसने इस मुलाकात का प्रकध किया। और आप मानिए कि यू- एन का कायाकल्प होना आरम्भ हो गया है। चार वर्ष पहले मुझे अपने यू-एन. पर में दुली, चिन्तित और निराश घा। आज में आशासे पूर्ण हैं। बल्कि आज गर्व है। हर ओर जेसे शान्ति पूटी पड़ रही है। ता अपगानिस्तान में सैनिक लोट रहे हैं नामीबिया स्वतंत्र हो जायेगा|। इरान जर इराक जिनका युद्ध रूकने का नाम नहीं ले रहा था, अरबों रूपये उर्च हो गया था और डजारों लोग मर रहे थे। आज उनके बीच शान्ति है। कोर्ड यद्ध नहीं है। आप संसार में चारो ओर नजर डालिए। भारत और चीन उच्च स्तर पर मिलकर आज दोस्त हो गए हैं पाकिस्तान में नया शासन स्थापित हो गया है और तोक तंत्र आ गया है मेरे मित्रं समस्त संसार में परिवर्तन हो रहा है । ही पेतिहारिसक समय है और आप सब इस मुख्य भूमिका निभा रहे हैं । ये समय बड़ा आप ये कदापि नहीं मानियेगा कि सहज योग केवल यहाँ उपस्थित लोगों तक सीमित है । आज का समय वो है जब आपकी और इनकी चैतन्य लक्षीरियाँ फेल रही हैं और आप इस पेतिहासिक समय के पात्र हैं जो सहज योग का सन्देश फेला रहे हैं । हूँ। हम बड़े ही सुशनसीब है कि हम सब ऐसे प्यारे मित्रों, अब मै औरदया कह सकता समय में रह रहे हैं आपको मालूम होगा कि प्लेटो एक बड़ा दा्शनक धा। उसका कहना था कि सम्पूर्ण सत्ता एक दार्शीनक राजा के हाथों में होनी चाहिये। स्सी उनके बहुत बाद में आया। उसका कहना है था कि दार्शनक राजा को सत्ता दे देनी चाहिए पर ये इर नही रहना चाहिये कि सत्ता को दुरूपयोग हो। और आपके पास तो वो है के लिये है। जिनके हाथों में देविक शक्षित भी केवल आशीर्वादसें मैं आप सब को आपके प्रेग, प्यार दया और सद्भावना के तिये बहुत बहुत कन्यवाद देता है और इस बात का भी आभारी हूँ कि आपने साथ रहने का मुझे अवसर दिया । आप लोगों ने जी कुछ कहा और किया में उस सब के योग्य तो नहीं हैं, पर योसव आपका प्रेम है और उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। मे आपका यह बताना चाहंगा कि मँने यह निर्णय लिया है कि जब मेरा चौथा कार्यकाल , जिसमें कि अब मैं कार्यरत हैँं, समाप्त हो जायेगा , तब मैं और आगे कार्य 12 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-11.txt :12: नहीं कंगा। यह कार्यकाल 3। दिसम्बर ।989 को समाप्त होता है और मैने यह बात अपनी आर्गनाइजेशन को बता दी है। तब में यू. पन. क्या होगा इसका ज्ञान नहीं। जो कार्य मेरे पथ पर आपैँगे मैं उसके लिए तैयार रहुँगा। के कार्य से मुकत हो जाऊँगा और उसके पश्चात धन्यवाद। वेवाहिक शपयथे, गणपतीपुले , 1988-89- पवित्र जीनके चारों ओोर फेरे वर वय से कहता है: पहला फेराः मैं श्री आदि शविति का हृदय में स्मरण करता हैँ और तुमसे कहता हैँ कि अच्छे मूलाधार के लिए तुम्हें अपनी पवित्रता रखनी होगी, इमारी भलाई जर हमारा मंगल इसी में है कि हम पूर्ण आदर और भोलेपन से रहें और चालाकी त्याग दें । दूसरा फेराः कहता हैू कि परभात्मा की सुन्दरता में श्री आदि शक्ति का हृदय में स्मरण करता है और और कला हमारे निजी जीवन का भाग हो और हमारा घर सज़ा धजा रहे। जेसे सितारे और ग्रह के अनुसार जीवन व्यतीत करें और अपने अपने पध पर चलते है उसी प्रकार हम भी केवल घर्म कार्य करें। में सारे सहज योगियों का स्वागत कुंगा और पूरी तरह तुम्हारी सहायता करंगा कि हम धर्म के प्रति अपना फूर्ज निभा सकें। तीसरा फेराः में श्री आदि शवित का हृदय में स्मरण करता हूँ और कहता हूँ कि जो भी कमाऊँगा वो है कि जो भी मेरे पास आता है वो तुम्हारे ही पुषण्य का उपहार है। तुम घन सोच समझकर और मेरी ही सलाह से खर्च करोगी। हर्में यह ध्यान में इसलिएप भगवान का आशीर्वाद समझ कर ही यह घन सब तुमको दे दूँगा क्योंकि यह मुझे ज्ञात निम रखकर चाहिये कि सब धन ईश्वर का है और धन बर्च करना चाहिये हमें सांसारिक वस्तुओं के पीछे नहीं भागना है। हमें पूर्णतः अलग होकर अपने महालक्ष्मी तत्व को बढ़ाना है। 13 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-12.txt चोश्या फेराः मैं श्री आदि शक्ति का अपने हृदय में स्मरण करता हैँ कि और कहता हूँ कि तुम्हारी भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुँचाऊँगा और पूर्व जन्मों में की गई अपनी और तुम्हारी गरलतियों को भुता दढूँगा। मेरा प्यार तुम्हारे लिए और तुम्हारा प्रेम मेरे लिए असीमित होना चाहिये। कभी अपनी भावनाओं को दबाना नहीं और उन्हें मुझसे कभी छुपा कर नहीं रखना । कभी मुझे अगर तुम परेशान हो या किसी ने तुम्हें परेशान किया हो। मैंने सदा तुम्हारा साथ दूँगा, तुम्हारी रक्षा करूंगा और तुम्हारे बारे में कोई असत्य बात नही मानूंगा। बताने में हिचकिचाना नहीं वधु वर से कहती है पाँचवा फेराः कि दैवी मिठास तुम्हारे मैं श्री आदि शवित का हृदय में स्मरण करती हैं और कहता हूँ जीवन में भर दूँगी और जो तुम्हें आनद दे मैं वैसा ही भोजन तुम्हारे लिये बनाऊँगी। हमें केवल सहज योगियों के हाथ बना भोजन चाहिये। कृपया मुझ पर यह जोर नहीं डालियेगा कि में उनसे मिलें जो अच्छे सहज योगी नही हैं। हम आपस में कभी ऐ दूसरे पर चिल्लायेंगे नहीं और कभी भी बुरी भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे। तुम मेरी सुनना और मैं तुम्हारी सुनूँगी। छठा फेराः में श्री आदि शकबित का हृदय में स्मरण करती हैं और कहती हैं कि हम नियम से रोज ध्यान लगायेंगे और अपने बच्चों को और मित्रों को भी ध्यान लगाना सिखायेंगे। हमारा जीवन एक प्रायश्चित होना चाहिये और बेकार में हमें इसकी दूसरों से शिकायत नहीं करनी चाहिये पवम् हर हाल में प्रसन्न रहनर चाहिये। तुम्हारी आँखे शुद्ध होना चाहिये और दूसरी नारियों का विचार नहीं आना चाहिये और लालच भी नहीं होनी चाहिए। सातवी फेराः में श्री आदि शक्त को हृदय में स्मरण करती हैं कि परम पूज्य श्र माता जी निर्मला देवी के हम पर असीम आशीर्वाद है और हमें अपने दिल तन, मन और बुदि को होना चाहिये। हमें यह याद रखना चाहिये कार्य कितना महान और महत्वपूर्ण है एवम और सब कुछ हमारे जीवन में जरूरी है और कोई मतलब उन्हें पूर्णतः समर्पित कर देने चाहिये। समर्पण कि आत्म साक्षात्कार का कार 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_3.pdf-page-13.txt 14: नही रखता। मेरी यह शर्त है कि दिन रात हम उनसे बहती चैकन्य लहरियों का आनन्द लें और अपना सब कुछ उन्हें सॉपकर उनकी फोटो की पूजा मर्यादा पूर्वक करें। हमें उनके सम्मुख अत्य्त विनम्र रहना चाहिये। अगर मैं ये सब ना कर पाऊँ तो तुम मुझे याद विला देना। वर क्यु साथ साव कहते हैं। मुझे परम् पूज्य श्री माताजी के आशीर्वाद से मोक्ष का पथ प्राप्त हुआ है, सो वो पथ में औरों को भी दिखाऊँंगा और महान और आत्म सक्षात्कार प्राप्त लोगों के साथ मिल कर सारे संसार को मंगलमय करुंगा । इबन की समाप्तिः वर तीन बार हवन में घी डालते हुए कहे :- ओम अग्नेय स्वाः ओम अग्नेय स्वाः ओ मूं अग्नेय स्वाः ओम तत्सत औम् तत्सत औम तत्सत ओमू पूर्णमघ ः पूर्णभदम। XX४xX*,XX % .x