चैतन्य लहरी हिंदी आकृत्ती संड । अंक 4 --------- - ो र -------------------------- - ---- परमपूजनीय श्री माताजी श्री निर्मतादेवी परम पूजनीय श्रीमाताजी निर्मला देवी दुवारा 6 मई ।989 को सीरेन्टो में सहस्त्रार दिवस पर दी गई पूजा वार्ता के संकलित अंश आज इम यहाँ उस दिन को मनाने के लिए एकत्र हुए हैं, जिस दिन सहस्त्रार खुला घा। मेरे मस्तिष्क के फेटो में हमने देखा कि सहस्त्रार कैसे खुला। मेरे मस्तिष्क से निकलनेवाला प्रकाशच फेटो में प्रकट हुआ है। यह आधनिक युग की सबसे महान देन है। इस प्रकार से आधुनिक युग में बहुत सी क्स्तुओं की उपलब्धि हुई है जिससे दिव्यता के अस्तित्व की पुष्टि होती है। यह मेरे बारे में प्रमाण दे सकता है। आपको साबित कर सकता है कि में कौन हूँ। मह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक युग में यह आगमन हएडकेन्ट सभी के दुवारा पहचान लिया जाना चाहिए। सभी सहज योगियों के लिए यह एक शर्त है। अब हरें यह देखना चाहिए कि आुनिक युग में मानव के मस्तिष्क में क्या-क्या धाटित हो रहा है। आजकल मनुष्य के दिमाग में सहस्त्रार पर आकरमण हो रहा है। बहुत समय से ऐसा होता रहा है परन्तु बुरी तरह से आकमण हो रहा है । आधुनिक समय में सबसे इस निरशावादी विचार , और बहुत ही निराशापूर्ण संगीत जैसे कि ग्रीक ट्रेजेडी, दुवारा मस्तिष्क के वास तालू क्षेत्र हीलिम्बिक एरिया को बहुत अधिक संवेदनहीन बना दे रहे हैं इन सभी कस्तुओं का समावेश् मध्ये युग में हुआ जब लोगों ने अपने कथित दुो से भागने के लिए शराब लेना शुरू किया था। लेकिन तभी इस आधुनिक युग का आगमन हुआ जिसमें कि मनुष्य जरूरत से ज्यादा क्रियाशील हो गया इस तरह की क्रियाशीलता के साथ हमारा दिमाग भी जरूरत से ज्यादा कियाशील हो गया। जहाँ पहले यह सुस्त धा, अब वह कियाशीलता की अन्तिम चरम सीमा पर पहुँच गया। अतः फिर से इसे सुस्त करने के लिए या कुछ आराम देने के लिए उन्होने नहीले पदार्थ इग्स लेने तुरू किये और बहुत ही भयानक संगीत सुनना शुरू किया। इस तरह से उन्होने इस लिम्बिक क्षेत्र को बहुत ही संवेदनशील बना दिया। इस तरह से जो नशीले पदार्थ उन्होंने अपने आप को अत्यधिक करियाहीन बनाने के लिये, वही अब उन्हें ज्यादा मात्रा में लेने पड़े। बाद में उन्होंने इस तरह के नशीले पदार्थ लिए, जिनका परिणाम गम्भीर था। यह सब इस तरह से बढ़ता रहा और अब हम जानते हैं कि लोग यही सोचते हैं कि वे इन नशीले पदार्थों के द्वारा ही जीवित रह सकते हैं येसा क्यों? वे लोग कहते हैं कि पसा तनाव के कारण है। इस आधुनिक युग में हमारे पास तनाव नाम की चीज़ है । परन्तू पहले ऐसा नही था। मनुष्य कभी किसी भी तनाव के बारें मे बात नही करते थे। अब प्रत्येक व्यक्ति कहता है कि मैं तनावग्रस्त हूँ, तुमने मुझे तनाव दिया हैं, यह तनाव है क्या? यही मेरे आगमन एडके्ट के कारण है। लिम्बिक क्षेत्र मेरे बारे में जानना चाहता है। जैसे- जैसे सहजयोग का प्रसार होता जा रहा है, कुंडलिनी भी और दूसरे लोगों में उठने की कोशिश कर रही है क्योंकि आप दूसरों के लिये एक प्रवाह पथ हचनेल बन गये हैं जहाँ कहीं आप जाते हैं, आप चैतन्य लहीरियां उत्पन्न कर देते हैं और ये चैतन्य लहरियाँ अनेक व्यक्तियों की कुंडलिनी को चुनौती या संदेश देती है और इस तरह कुंडलिनी उपर उठ जाती है। यह सहस्त्रार तक उठ मी सकती है और नही प्रत्येक समय, वे कुछ भी और उनके अज्ञान के कारण वापस नीचे भी आ सकती है। अतः बि ऐसा करते हैं जिससे कुंडलिनी उपर उठ जाती है और क्योंकि उनका सहस्त्रार खुला नही होता, यह उस पर दबाव डालती है। यह एक बन्द दूवार है। इसी बन्द दूवार के कारण कुंडलिनीं अनेक दिमाग में एक प्रकार का दबाव बना देती है, जिसको कि वह समझ नही पाते हैं और इसे तनाव का नाम दे देते है। यास्तव में कुंडलिनी अपने आप को बाहर चकेलने की चेष्टा करती हैं। जिसमें वह सफल नहीं हो पाती। वे लोग भी जो आत्मसाक्षात्कार तो प्राप्त कर लेते हैं परन्तु अपने सहस्त्रार को ठीक नहीं रख पाते हैं, इस तरह के तनाव का सामना करते है। प । यर्यपि काफी वर्ष पूर्व सहस्त्रार खोला जा चुका है फिर भी कुछ और करना बाकी है; हमै सहस्त्रार को शुध्दि करना है। पहले सहस्त्रार को खोलना होता है जिससे ब्रहमरंघ सुल जाता है। तभी हम उस दिव्य आनन्द को महसूस करते हैं, यह आनन्द हमारी इडा और पिंगला नाडियों में प्रवेश करता है हकुंडलिनी नही, बल्कि यह आनन्द जो कि सभी तरफ चैतन्य है। और हमारी दायीं और बायीं दोनों ओर शान्ति प्रदान करता है, जिससे हमारे सभी चक्र सुल जाते हैं और कुंडलिनीकी और अधिक धारामें सहस्त्रार को भेद कर बाहर निकलना शुरू कर देती हैं। इसीलिप मैं सदैव सहजयोगियों से कहती हैं कि ध्यान करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि आपका सहस्त्रार ठीक है, तो आपके सारे चक ठीक हो जायेंगे, क्योंकि सभी चक्को को नियन्त्रित करने का केन्द्र या पीठा, इमारे मस्तिष्क में लिम्बिक क्षेत्र के चारों ओर है। अतः यदि आपका सहस्त्रार शुध्द क तो प्रत्येक चीज एक अलग ही ढंग से कार्य करती है। लोग मुझसे यह पुछते है कि सहस्त्रार को किस प्रकार शुध्द रखा जाए। आप जानते है कि मेरा निवास सहस्त्रार में है। कमल की एक हज़ार पखडियों पर मैरा सकी और सोल भी सकी। जैसी कि में आज हूँ, आप अवतार हुआ, इसी कारण मैं इसे तौड़ मुझे वेसे ही देखते हे। वास्तव में सहस्त्रार महामाया है जैसा कि कहा जाता है। अतः यह एक भ्रम है जो कि सदैव आपके समक्ष रहता है यह इसी तरह से रहना चाहिए, क्योंकि जैेसा कि कल आपने देखा, अन्यथा आप मुझे मेरे सभी प्रकाश के साथ जो कि मेरे अन्दर से फूटते हैं, मेरा सामना नही कर सकते थे, कुछ प्रकार के सौम्य हऐव्स्रेक्टरंग है जो चारों और किखेरे गये है और प्रकाश बाहर की और किसेरा गया है। । यह आपकी मॅा का मन्दिर है। जब आप आपको इस सहस्त्रार की देमाल करनी है कहते हैं कि आपने मुझे अपने हृदय में बसा लिया है, वास्तव में आप मुझे अपने सहस्त्रार में बसाते है क्योंकि जैसा कि आप जानते है यह ब्रहमरंथ, तालू १फेन्टेनल बोन क्षेत्र पीठा सीट१ कहलाता है, जो कि सदाशिव का स्थान है, जिसको कि आप शिव कहते है । जब आप मुझे हृदय में बसाते है, वास्तव में आप मुझे यहा तालू पर बसाते है । इसलिए इसको हुृदय से उठा कर यहा तक लाना, दो तरह के लौगों के लिए समस्या है। कुछ व्यक्ति जो अपने इृदय में संवेदनशील हैं, उदाहरण के लिए युरोप में हम कह सकते हैं कि इटली के लोग अपने हृदय में संवेदनशील हैं। , मुझे देखते ही सबसे पहला काम वे यह करते है कि अपना हाथ हृदय पर रख लेते हैं। बास्तविक चीज यही है कि यदि आप मुझे अपने हुंदय में महसूस करना चाहते हैं तो यह बहुत ही सरल हो जाता है आप यह कह सकते हैं कि आप मुझे हृदय में कैसे महसूस करें? आपको मुझे उसी प्रकार से प्रेम करना होगा जैसे कि मैं आपको करती हैँ। आपको आपस में एक दूसरे से प्रेम करना मगा क्योंकि आप सब कhc এe मुझमें निहित हैं। आप किसी को प्रेम करना नही सिला सकते क्योंकि प्रेम अन्दर निहित होता ा है और वह तभी प्रकट होता है जब आप अपने इृदय को विशल बनाते हैं? हृदय को विशाल बनाने से कौन रोकता है? आइये इसका निरीक्षण करें। पहली चीज है संस्कार कंडीशनिंग यदि किसी व्यव्ति नै आपके लिए कोई अच्छा कार्य किया है तो आप उसे प्रेम करते है। परन्तु यदि स्वयं "आदि शक्ति" ने आपको पुर्नजन्म दिमा है तो उसे प्रेम करना सबसे सरल होना चाहिए और यदि वह कहती है कि आप सब उसके शरीर के अन्दर हैं तो एक दूसरे को प्रेम करना ओर भी सरल हो जाना चाहिए। सहस्त्रार की सम्पूर्ण शुध्दि - इसी प्रेम के दूवारा की जाती है। यह प्रेम जो कि विना शर्त है, जो कहीं समाया नही है, जो कि कोई आदर नही चाहता, जो कि कुछ बदले में नही भांगता "निर्विजय" परन्तु संस्कार बहुत है। संस्कार की सबसे पहली समस्या तब शुरू होती है जब आप सोचते है कि यह शर्त मुझे किसी से घृणा करने को मजबूर करती है या मैं किसी को प्रेम नही कर सकती क्योंकि यह शर्त है। परन्तु वास्तव में -यह संस्कार स्वयं में ही बहुत भददी है। इसे एक-एक करके देखिए। इसे सरल बनाने के लिए मैं आपको संस्कार वाली बात समझानी चाहती हैँ। हम देखते है कि कोई व्यक्ति कितना ज्ञानी है, कितना कियाशील है और कितना चमत्कारी है। यह सब सोचना कि किसी एक तरह के व्यकिति प्रेम करने योग्य है, हमारे दिमाग की पक संस्कार है यह सब बाहय है। क लोग ऐसे भी है जो वास्तव में प्रेम नही करते लेकिन यह दर्शाते हैं कि वे दूसरे से प्रेम करते है, क्योंकि उसके पास पैसा है भले ही वह व्यक्ति पैसा बांटनेवाला नही है, या फिर किसी के पास अच्छी कार है, अच्छे कपडे है, इत्यादि। इस तरह का विचार भी प्रेम को नष्ट कर देता है। यदि प्रेम नष्ट हो गया तो आनन्द समाप्त हो जाता है। आप प्रेम के बिना आनन्द को प्राप्त नही कर सकते। आनन्द व प्रेम दोनों एक ही है। पेडों में उनका द्रव्य हसैप ऊपर उठता है, प्रत्येक हिस्से में जाता है और वापस आ जाता है। वह किसी से बन्धित नहीं है। यदि वह किसी एक हिस्से से या किसी एक फूल भी भर से बंचा रहेगा, क्योंकि वह फूल अधिक सुन्दर है तो पेड़ मर जायेगा और साथ ही फुल जायेगा। इसी प्रकार प्रेम भी जो आसवत या बौधत होता है, मर जाता है। आत्मा का प्रेम संस्कारित मस्तिष्क से की अलग होता है। एक संस्कारित मस्तिष्क सीमित रूप से ही प्रेम कर सकता है क्योंकि वह संस्कारयुक्त है । प्रेम का सबसे बड़ा शत्रू हमारे अन्दर का अहंकार है जो कि सिर के ऊपर एक गुव्बारे की तरह है, और यह अहंकार हमें बहुत बड़ा धोखा देता है वे जब एक कालीन को देखते है जो कि उनके दिमाग की त्थिति के अनुसार नहीं है तो उसकी आलोचना करते हैं। इस तरह की स्थिति बहुत ही निम्न स्तर की है और दूसरी इसलिए आप कहते और, ऊँचे स्तर पर, अधिक से अधिक आप अपने देश को प्रेम करते है। भोर है कि आपका देश सबसे अच्छा है। चाहे वह लोगों का मारना हो या विश्व शान्ति को नष्ट करना परन्तु आपके लिए सब ठीक है क्योंकि यह आपका देश है। वास्तव में, यह आश्चर्य की बात है। में रवी्द्रनाथ ठाकुर की एक पुस्तक पद रही धी। एक अंग्रेज ने उसकी बहुत अच्छी भूमिका दी है जिसमें उसने लिखा है कि पश्चिम में सृजनात्मकता नष्ट हो गई है। उसने एक भारतीय आलोचक से पूछा कि क्या आप अपने कविरयों की आलोचना करते हैं, क्या आपके यहाँ आलोचक है? भारतीय ने कहा कि हाँ, हैं, वे यह आलोचना कर सकते है कि इस समय वर्षा नही होगी या हमें यह समस्या है। अंग्रेज ने जोर देकर पूछा कि क्या वे कवि ओर कलाकार की आलोचना नहीं करते। भारतीय ने उत्तर दिया, "जिसकी रचना की गई है वह आलोचना के योग्य नही है। यदि कोई कलाकार गन्दी रचना करता है तो निश्चित रूप से हम उसे पसन्द नहीं करते परन्तु यदि उसकी रचना एक सुम्दर दिमाग से की गई है तो वह अवश्य ही सुन्दर होगी परन्तु हम आलोचना नहीं करते। क्योंकि हम ऐसी रचना नही कर सकते इसलिए हम आलोचना नही करते है । हमने कला और रचना के कुछ मापदंड बनाये है ।" हमें यह कालीन पसन्द नही है, क्या? क्योंकि यह हमारे उन बौध्दिक माप दंडो की समझ के अनुसार नही है और उनमें यह ठीक नही बैठता, इसलिए हमें पसन्द नही है। क्या आप उसका एक इन्च भी बना सकते है? इस प्रकार यह आपको एक अनाधिकार प्रयत्न करने का अवसर देता है, यह अनाधिकार है- "अनाधिकार चेष्टा" आपको आलोचना करने का कोई अधिकार नही है । जब आप कुछ कर ही नही सकते तो आपको आलोचना क्यों करनी चाहिए। बेहतर होगा आप प्रशंसा करे। इस बात का स्वयं ध्यान रखे कि, आपका कोई अधिकार नही है, आप आलोचना करने के योग्य नही है। इसके अतिरिव्त, आपको यह भी जानना चाहिए कि आप अपने अहंकार के दास है आपका अहंकार जो कुछ भी थोपता है और आपकी बुध्दि आपको उस स्थान तक ले जाती है जहाँ वह किसी विशेष जाति, देश या सिध्वन्त का सामूहिक अहंकार बन जाती है। इसलिए वे सोचते हैं कि यह कोई कला नही है। यही कारण है कि अब कला में पारंगत कलाकार ही नही रहे। अब हम रिम्कन् नहीं पा सकते है । वेचारे रिम्कन्ट ने स्वयं बहुत यातनाएँ सही होगी इन सब कलाकारों ने बहुत कुछ सहा है, सिर्फ आर्थिक रूप से ही नही परन्तु दूसरी तरह से भी। यह बेहतर होगा कि हम स्वयं की, अपने देश की और अपनी सभी आदती की आलोचना करे, और स्वयं पर हँसे, यही सबसे अच्छा रास्ता है। यदि आप स्वयं पर हँस सकते है तो आप किसी दूसरे ज्यक्ति की रचनात्मकता के रास्ते में नही आयेंगे और न ही उसकी बुराई करेंगे। एक सन्त की तरह आप पता लगा सकतें है कि किसे पकड़ है और किसको समस्या है। यह कोई संस्कार हूँकोडशनिंग नहीं है क्योोंकि इसे आप अपनी अँगुलियों पर मइसूस कर सकते हैं। तो आपको क्या करना चाहिए? यदि संभव हो तो, अपने प्रेम में, आपको दूसरों से कहना है "आपके साथ यह बाचा है, इसे सही करना बेहतर होगा परन्तु इस तरह कि वह उसे करे । इसके विपरीत यदि आप उससे इस तरह कहें कि वह अपनी स्थिति से और भी नीचे गिर जाय, तो आप उस व्यक्ति से किसी भी तरह का प्रेम नहीं कर पाये। सभी को बढ़ने देना चाहिए। सहजयोग में बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जो बहुत अनछे हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो कि काफी जटिल है, उनके सिर में एक प्रकार की दरार या और कुछ है। अन्यथा वे बहुत ज्ञानी और तेज हो सकते हैं परन्तु वे सहजयोग में उस स्तर तक नहीं उठ सकते। आप यह पूछ सकते हैं कि वे सहजयोग में कैसे उन्नति कर सकते हैं) मान लीजिए कि धरती माँ सूर्य की तरह बहुत गर्म होती तब कोई उत्पत्ति नही हो सकती थी या यदि वह बहुत ठंडी होती तब भी कोई उत्पत्ति नही हो सकती थी। उसको मध्य में आना पड़ा जहँ उत्पत्ति के लिए उसमें दोनों चीजें एक सही मात्रा में थी। ठैक इसी तरह मनुष्य को भी गहनता व संतुलन बनाये रखने के लिए कार्य करना है। आपको यह समझना चाहिए कि किसी चीज की अति नही होनी चाहिए। यह संतुलन आप तभी सीलते हैं जब आप किसी से प्रेम करते हैं । कभी - कभी हम कुछ लोगों को सहजयोग छोड़ने के लिये कहते हैं। यह प्रेमवश किया ....7 जाता है क्योंकि वे सहजयोग छोड़ने के बाद सुधार करते हैं। क्योंकि जब तक वे सहजयोग परिवार में रहते हैं वे बैवकुफ प्रवृत्ति के हो जाते हैं। जब वे बाहर चले जाते हैं तो उनकी बेवकूफी खत्म हो जाती है, यह स्कमाविक है और व्यक्ति समझ जाता है कि अब वह और अधिक विनाशकारी नही हो सकता। हालांकि आपको सम्पूर्ण घैर्य व समन्वय बनाये रखना चाहिये, आपको पक प्रेमी वि की तरह बात करना चाहिए। मैं फूलो से प्यार करती हूं, मँ को अपना प्रेम बताने के लिए आप मुझे फूल मेट दैते हैं। मैं जानती हूँ कि आप मुझे प्रेम करते है । परन्तु आप उसे मजबूत करना चाहते हैं। इस प्रकार यह समी भौतिक वस्तए प्रेम को व्यवत करने के लिए प्रयोग की जा सकती है। यह बहुत ही साचारण तरीके से इस प्रकार व्यक्त की जा सकती है कि दूसरा व्यव्ति जान सके। परन्तु सहस्त्रार की सम्पूर्ण शवित प्रेम है। इसलिए आपको यह देसना है कि आपका मस्तिष्क प्रेम प =ाः करता है। अपने दिमाग और बुध्दि के दूवारा सहजयोग की शव्ति को परखने के पश्चात जब आप परीक्षण आदि का कोई उपयोग उस स्थान पर पहुँच जाते हैं जहाँ आप समझते है कि विश्लेधण, नही है यह केवल प्रेम है। ठीक यही स्थिति सहस्त्रार के साथ है, जो कि मस्तिष्क है, जिसका प्रयोग विश्लेषण, आलोचना, और सब तरह की फालतू बातों के लिए किया जाता है, अब प्रेम करना चाहता है और प्रेम का आनन्द उठाना चाहता है। यह सर्वेच्च स्थिति हैं जहाँ मस्तिष्क सिर्फ प्रेम करता है, हर्में यह समझना चाहिए क्योंकि इसने प्रेम की शक्ति देखी है। " जब आप इस स्थान पर पहुँच जाते है तब आप कह सकते है कि आप "निर्विकल्प में हैं - आपके मस्तिष्क में किसी प्रकार का कोई संदेह नही है क्योंकि आप प्रेम करते हैं। प्रेम में हम संदेह नही करते जब सोचते है तो संदेह करते है। केवल आप प्रेम का आनन्द उठाते त 1 इसीलिए प्रेम ही आनन्द है और आनन्द ही प्रेम। हमें पुनः सहस्त्रार को ध्यान के दूबारा, स्वयं की और दूसरों की समझ के द्वारा, सोलना है। अब इसके अतिरिक्त केोई रास्ता नहीं है, हम इसके अन्त तक पहुँच गये है। सभी विवाद अब समाप्त हो गये है। अब प्रेम के समुद्र में कुछ पड़िए, बस। एक बार जब वाद आप प्रेम के समुद्र में कूद पड़ते हैं तो कुडः बाकी नहीं रह जाता। केवल इसकी प्रत्येक लहर का आनन्द लीजिए, एक एक बूंद का आनन्द लीजिए, एक एक स्पर्श का आनन्द लीजिए। हमें यही सीखना है कि सहजयोग और कुछ नही, केवल प्रेम है। समाचार और नोट रही हों तब कृपया फोटो न लें । श्रीमाताजी जब स्वयं जब श्रीमाताजी पूजा वार्ता कर आज्ञा दें तब फैटो खींचे जा सकते हैं। सार्वजीनिक कार्यक्रम 20 व 22 जून को बंगलौर में दो 1 बंगलौर सार्वजनिक कार्यक्रम सफलतापूर्वक सपन्न हुये। आरम्भ में बंगलोर में सहजयोग सिर्फ एक सहजयोगी दुवारा शुरू हुआ। इस वर्ष फरवरी में श्रीमाताजी के प्रधम सार्वजनिक कार्यक्रम के पश्चात पक छोटा केन्द्र स्थापित हुआ। यह इस केन्द्र का प्रथम प्रयास था और जनता के उत्साह को देखते हुये बंगलौर केन्द्र सेला गया । में दूसरा 2 উदराबाद - इस वर्ष कुछ दन पूर्व श्रीमाताजी के कार्यक्रम ने सहजयोग परिवार को ।00 तक बदा दिया। 300 से अधिक लोगों ने हाल ही मैं 24 व 25 जून को हुये हुये सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लिया। नये आने वाले लोगों में अपने अनुभव को परिपक्व करने की उत्सुकता इत्तनी अधिक थी कि ऐसा लगने लगा कि साप्ताहिक एक मीटिंग शायद कम हो। इसलिए सौ से अधिक सोजने वालों हसीकर्स के लिये सात दिन के एक कोर्स का संचालन किया गया। देहरादून सेमिनार सम्पूर्ण उत्तर भारत के सहजयोगियों ने जून के मध्य में इस सुन्दर पहाड़ी पर होने त वाली तीन दिन की गोष्ठी में भाग लिया। नोयडा की भजन मंडली ने अपने भव्ति संगीत से श्रीमाताजी के लिए सबके हृदयों को खोल दिया। जब हमारे हुदय से आवाज आती है तो माँ सदैव उत्तर देती है और यही हुआ भी, तोगों के एक ধटे समूह Ob9 ने हवन के पश्चात रथ में बैठी देवी मा की दृष्टि से आशीर्वाद प्राप्त किया। चमत्कारी परेटो श्रीरामपुर में पूजा में लिए गये श्रीमाताजी के फोटो के फोटो में दीपक की लो ऊपर उठती हुई और श्रीमाताजी के फोटो की प्रदक्षिणा करती हुई दिखती है। ा नये केन्द्र श्रीमाताजी के आशीर्वाद से जून में केन्हापूर में एक केन्द्र की स्थापना की गई। XXXXXXXX> XXXXXXXX ४XXXXX ८४ हमारी वार्षिक शुल्क इस प्रकार है। अंग्रेजी 200/- रूपये हिंदी T 08/- रूपये मराठी |0 8/- रूपये विश्व निर्मला घर्म। आप अपना ड्राफूट इस नामसे भेजिये । हमारा पता विश्व निर्मला घर्म पो- बॉ- नं.० 1 90 । , कोयरुड, पुणे - 29. ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी हिंदी आकृत्ती संड । अंक 4 --------- - ो र -------------------------- - ---- परमपूजनीय श्री माताजी श्री निर्मतादेवी 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-1.txt परम पूजनीय श्रीमाताजी निर्मला देवी दुवारा 6 मई ।989 को सीरेन्टो में सहस्त्रार दिवस पर दी गई पूजा वार्ता के संकलित अंश आज इम यहाँ उस दिन को मनाने के लिए एकत्र हुए हैं, जिस दिन सहस्त्रार खुला घा। मेरे मस्तिष्क के फेटो में हमने देखा कि सहस्त्रार कैसे खुला। मेरे मस्तिष्क से निकलनेवाला प्रकाशच फेटो में प्रकट हुआ है। यह आधनिक युग की सबसे महान देन है। इस प्रकार से आधुनिक युग में बहुत सी क्स्तुओं की उपलब्धि हुई है जिससे दिव्यता के अस्तित्व की पुष्टि होती है। यह मेरे बारे में प्रमाण दे सकता है। आपको साबित कर सकता है कि में कौन हूँ। मह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक युग में यह आगमन हएडकेन्ट सभी के दुवारा पहचान लिया जाना चाहिए। सभी सहज योगियों के लिए यह एक शर्त है। अब हरें यह देखना चाहिए कि आुनिक युग में मानव के मस्तिष्क में क्या-क्या धाटित हो रहा है। आजकल मनुष्य के दिमाग में सहस्त्रार पर आकरमण हो रहा है। बहुत समय से ऐसा होता रहा है परन्तु बुरी तरह से आकमण हो रहा है । आधुनिक समय में सबसे इस निरशावादी विचार , और बहुत ही निराशापूर्ण संगीत जैसे कि ग्रीक ट्रेजेडी, दुवारा मस्तिष्क के वास तालू क्षेत्र हीलिम्बिक एरिया को बहुत अधिक संवेदनहीन बना दे रहे हैं इन सभी कस्तुओं का समावेश् मध्ये युग में हुआ जब लोगों ने अपने कथित दुो से भागने के लिए शराब लेना शुरू किया था। लेकिन तभी इस आधुनिक युग का आगमन हुआ जिसमें कि मनुष्य जरूरत से ज्यादा क्रियाशील हो गया इस तरह की क्रियाशीलता के साथ हमारा दिमाग भी जरूरत से ज्यादा कियाशील हो गया। जहाँ पहले यह सुस्त धा, अब वह कियाशीलता की अन्तिम चरम सीमा पर पहुँच गया। अतः फिर से इसे सुस्त करने के लिए या कुछ आराम देने के लिए उन्होने नहीले पदार्थ इग्स लेने तुरू किये और बहुत ही भयानक संगीत सुनना शुरू किया। इस तरह से उन्होने इस लिम्बिक क्षेत्र को बहुत ही संवेदनशील बना दिया। इस तरह से जो नशीले पदार्थ उन्होंने अपने आप को अत्यधिक करियाहीन बनाने के लिये, वही अब उन्हें ज्यादा मात्रा में लेने पड़े। बाद में उन्होंने इस तरह के नशीले पदार्थ लिए, जिनका परिणाम गम्भीर था। यह सब इस तरह से बढ़ता रहा और अब हम जानते हैं कि लोग यही 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-2.txt सोचते हैं कि वे इन नशीले पदार्थों के द्वारा ही जीवित रह सकते हैं येसा क्यों? वे लोग कहते हैं कि पसा तनाव के कारण है। इस आधुनिक युग में हमारे पास तनाव नाम की चीज़ है । परन्तू पहले ऐसा नही था। मनुष्य कभी किसी भी तनाव के बारें मे बात नही करते थे। अब प्रत्येक व्यक्ति कहता है कि मैं तनावग्रस्त हूँ, तुमने मुझे तनाव दिया हैं, यह तनाव है क्या? यही मेरे आगमन एडके्ट के कारण है। लिम्बिक क्षेत्र मेरे बारे में जानना चाहता है। जैसे- जैसे सहजयोग का प्रसार होता जा रहा है, कुंडलिनी भी और दूसरे लोगों में उठने की कोशिश कर रही है क्योंकि आप दूसरों के लिये एक प्रवाह पथ हचनेल बन गये हैं जहाँ कहीं आप जाते हैं, आप चैतन्य लहीरियां उत्पन्न कर देते हैं और ये चैतन्य लहरियाँ अनेक व्यक्तियों की कुंडलिनी को चुनौती या संदेश देती है और इस तरह कुंडलिनी उपर उठ जाती है। यह सहस्त्रार तक उठ मी सकती है और नही प्रत्येक समय, वे कुछ भी और उनके अज्ञान के कारण वापस नीचे भी आ सकती है। अतः बि ऐसा करते हैं जिससे कुंडलिनी उपर उठ जाती है और क्योंकि उनका सहस्त्रार खुला नही होता, यह उस पर दबाव डालती है। यह एक बन्द दूवार है। इसी बन्द दूवार के कारण कुंडलिनीं अनेक दिमाग में एक प्रकार का दबाव बना देती है, जिसको कि वह समझ नही पाते हैं और इसे तनाव का नाम दे देते है। यास्तव में कुंडलिनी अपने आप को बाहर चकेलने की चेष्टा करती हैं। जिसमें वह सफल नहीं हो पाती। वे लोग भी जो आत्मसाक्षात्कार तो प्राप्त कर लेते हैं परन्तु अपने सहस्त्रार को ठीक नहीं रख पाते हैं, इस तरह के तनाव का सामना करते है। प । यर्यपि काफी वर्ष पूर्व सहस्त्रार खोला जा चुका है फिर भी कुछ और करना बाकी है; हमै सहस्त्रार को शुध्दि करना है। पहले सहस्त्रार को खोलना होता है जिससे ब्रहमरंघ सुल जाता है। तभी हम उस दिव्य आनन्द को महसूस करते हैं, यह आनन्द हमारी इडा और पिंगला नाडियों में प्रवेश करता है हकुंडलिनी नही, बल्कि यह आनन्द जो कि सभी तरफ चैतन्य है। और हमारी दायीं और बायीं दोनों ओर शान्ति प्रदान करता है, जिससे हमारे सभी चक्र सुल जाते हैं और कुंडलिनीकी और अधिक धारामें सहस्त्रार को भेद कर बाहर निकलना शुरू कर देती हैं। इसीलिप 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-3.txt मैं सदैव सहजयोगियों से कहती हैं कि ध्यान करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि आपका सहस्त्रार ठीक है, तो आपके सारे चक ठीक हो जायेंगे, क्योंकि सभी चक्को को नियन्त्रित करने का केन्द्र या पीठा, इमारे मस्तिष्क में लिम्बिक क्षेत्र के चारों ओर है। अतः यदि आपका सहस्त्रार शुध्द क तो प्रत्येक चीज एक अलग ही ढंग से कार्य करती है। लोग मुझसे यह पुछते है कि सहस्त्रार को किस प्रकार शुध्द रखा जाए। आप जानते है कि मेरा निवास सहस्त्रार में है। कमल की एक हज़ार पखडियों पर मैरा सकी और सोल भी सकी। जैसी कि में आज हूँ, आप अवतार हुआ, इसी कारण मैं इसे तौड़ मुझे वेसे ही देखते हे। वास्तव में सहस्त्रार महामाया है जैसा कि कहा जाता है। अतः यह एक भ्रम है जो कि सदैव आपके समक्ष रहता है यह इसी तरह से रहना चाहिए, क्योंकि जैेसा कि कल आपने देखा, अन्यथा आप मुझे मेरे सभी प्रकाश के साथ जो कि मेरे अन्दर से फूटते हैं, मेरा सामना नही कर सकते थे, कुछ प्रकार के सौम्य हऐव्स्रेक्टरंग है जो चारों और किखेरे गये है और प्रकाश बाहर की और किसेरा गया है। । यह आपकी मॅा का मन्दिर है। जब आप आपको इस सहस्त्रार की देमाल करनी है कहते हैं कि आपने मुझे अपने हृदय में बसा लिया है, वास्तव में आप मुझे अपने सहस्त्रार में बसाते है क्योंकि जैसा कि आप जानते है यह ब्रहमरंथ, तालू १फेन्टेनल बोन क्षेत्र पीठा सीट१ कहलाता है, जो कि सदाशिव का स्थान है, जिसको कि आप शिव कहते है । जब आप मुझे हृदय में बसाते है, वास्तव में आप मुझे यहा तालू पर बसाते है । इसलिए इसको हुृदय से उठा कर यहा तक लाना, दो तरह के लौगों के लिए समस्या है। कुछ व्यक्ति जो अपने इृदय में संवेदनशील हैं, उदाहरण के लिए युरोप में हम कह सकते हैं कि इटली के लोग अपने हृदय में संवेदनशील हैं। , मुझे देखते ही सबसे पहला काम वे यह करते है कि अपना हाथ हृदय पर रख लेते हैं। बास्तविक चीज यही है कि यदि आप मुझे अपने हुंदय में महसूस करना चाहते हैं तो यह बहुत ही सरल हो जाता है आप यह कह सकते हैं कि आप मुझे हृदय में कैसे महसूस करें? आपको मुझे उसी प्रकार से प्रेम करना होगा जैसे कि मैं आपको करती हैँ। आपको आपस में एक दूसरे से प्रेम करना मगा क्योंकि आप सब कhc এe 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-4.txt मुझमें निहित हैं। आप किसी को प्रेम करना नही सिला सकते क्योंकि प्रेम अन्दर निहित होता ा है और वह तभी प्रकट होता है जब आप अपने इृदय को विशल बनाते हैं? हृदय को विशाल बनाने से कौन रोकता है? आइये इसका निरीक्षण करें। पहली चीज है संस्कार कंडीशनिंग यदि किसी व्यव्ति नै आपके लिए कोई अच्छा कार्य किया है तो आप उसे प्रेम करते है। परन्तु यदि स्वयं "आदि शक्ति" ने आपको पुर्नजन्म दिमा है तो उसे प्रेम करना सबसे सरल होना चाहिए और यदि वह कहती है कि आप सब उसके शरीर के अन्दर हैं तो एक दूसरे को प्रेम करना ओर भी सरल हो जाना चाहिए। सहस्त्रार की सम्पूर्ण शुध्दि - इसी प्रेम के दूवारा की जाती है। यह प्रेम जो कि विना शर्त है, जो कहीं समाया नही है, जो कि कोई आदर नही चाहता, जो कि कुछ बदले में नही भांगता "निर्विजय" परन्तु संस्कार बहुत है। संस्कार की सबसे पहली समस्या तब शुरू होती है जब आप सोचते है कि यह शर्त मुझे किसी से घृणा करने को मजबूर करती है या मैं किसी को प्रेम नही कर सकती क्योंकि यह शर्त है। परन्तु वास्तव में -यह संस्कार स्वयं में ही बहुत भददी है। इसे एक-एक करके देखिए। इसे सरल बनाने के लिए मैं आपको संस्कार वाली बात समझानी चाहती हैँ। हम देखते है कि कोई व्यक्ति कितना ज्ञानी है, कितना कियाशील है और कितना चमत्कारी है। यह सब सोचना कि किसी एक तरह के व्यकिति प्रेम करने योग्य है, हमारे दिमाग की पक संस्कार है यह सब बाहय है। क लोग ऐसे भी है जो वास्तव में प्रेम नही करते लेकिन यह दर्शाते हैं कि वे दूसरे से प्रेम करते है, क्योंकि उसके पास पैसा है भले ही वह व्यक्ति पैसा बांटनेवाला नही है, या फिर किसी के पास अच्छी कार है, अच्छे कपडे है, इत्यादि। इस तरह का विचार भी प्रेम को नष्ट कर देता है। यदि प्रेम नष्ट हो गया तो आनन्द समाप्त हो जाता है। आप प्रेम के बिना आनन्द को प्राप्त नही कर सकते। आनन्द व प्रेम दोनों एक ही है। पेडों में उनका द्रव्य हसैप ऊपर उठता है, प्रत्येक हिस्से में जाता है और वापस आ जाता है। वह किसी से बन्धित नहीं है। यदि वह किसी एक हिस्से से या किसी एक फूल भी भर से बंचा रहेगा, क्योंकि वह फूल अधिक सुन्दर है तो पेड़ मर जायेगा और साथ ही फुल जायेगा। इसी प्रकार प्रेम भी जो आसवत या बौधत होता है, मर जाता है। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-5.txt आत्मा का प्रेम संस्कारित मस्तिष्क से की अलग होता है। एक संस्कारित मस्तिष्क सीमित रूप से ही प्रेम कर सकता है क्योंकि वह संस्कारयुक्त है । प्रेम का सबसे बड़ा शत्रू हमारे अन्दर का अहंकार है जो कि सिर के ऊपर एक गुव्बारे की तरह है, और यह अहंकार हमें बहुत बड़ा धोखा देता है वे जब एक कालीन को देखते है जो कि उनके दिमाग की त्थिति के अनुसार नहीं है तो उसकी आलोचना करते हैं। इस तरह की स्थिति बहुत ही निम्न स्तर की है और दूसरी इसलिए आप कहते और, ऊँचे स्तर पर, अधिक से अधिक आप अपने देश को प्रेम करते है। भोर है कि आपका देश सबसे अच्छा है। चाहे वह लोगों का मारना हो या विश्व शान्ति को नष्ट करना परन्तु आपके लिए सब ठीक है क्योंकि यह आपका देश है। वास्तव में, यह आश्चर्य की बात है। में रवी्द्रनाथ ठाकुर की एक पुस्तक पद रही धी। एक अंग्रेज ने उसकी बहुत अच्छी भूमिका दी है जिसमें उसने लिखा है कि पश्चिम में सृजनात्मकता नष्ट हो गई है। उसने एक भारतीय आलोचक से पूछा कि क्या आप अपने कविरयों की आलोचना करते हैं, क्या आपके यहाँ आलोचक है? भारतीय ने कहा कि हाँ, हैं, वे यह आलोचना कर सकते है कि इस समय वर्षा नही होगी या हमें यह समस्या है। अंग्रेज ने जोर देकर पूछा कि क्या वे कवि ओर कलाकार की आलोचना नहीं करते। भारतीय ने उत्तर दिया, "जिसकी रचना की गई है वह आलोचना के योग्य नही है। यदि कोई कलाकार गन्दी रचना करता है तो निश्चित रूप से हम उसे पसन्द नहीं करते परन्तु यदि उसकी रचना एक सुम्दर दिमाग से की गई है तो वह अवश्य ही सुन्दर होगी परन्तु हम आलोचना नहीं करते। क्योंकि हम ऐसी रचना नही कर सकते इसलिए हम आलोचना नही करते है । हमने कला और रचना के कुछ मापदंड बनाये है ।" हमें यह कालीन पसन्द नही है, क्या? क्योंकि यह हमारे उन बौध्दिक माप दंडो की समझ के अनुसार नही है और उनमें यह ठीक नही बैठता, इसलिए हमें पसन्द नही है। क्या आप उसका एक इन्च भी बना सकते है? इस प्रकार यह आपको एक अनाधिकार प्रयत्न करने का अवसर देता है, यह अनाधिकार है- "अनाधिकार चेष्टा" आपको आलोचना करने का कोई अधिकार नही है । जब आप कुछ कर ही नही सकते तो आपको आलोचना क्यों करनी चाहिए। बेहतर होगा आप प्रशंसा करे। इस बात का स्वयं ध्यान रखे कि, आपका कोई अधिकार नही है, आप आलोचना करने के योग्य नही है। इसके अतिरिव्त, आपको यह भी जानना चाहिए कि आप अपने अहंकार के दास है आपका 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-6.txt अहंकार जो कुछ भी थोपता है और आपकी बुध्दि आपको उस स्थान तक ले जाती है जहाँ वह किसी विशेष जाति, देश या सिध्वन्त का सामूहिक अहंकार बन जाती है। इसलिए वे सोचते हैं कि यह कोई कला नही है। यही कारण है कि अब कला में पारंगत कलाकार ही नही रहे। अब हम रिम्कन् नहीं पा सकते है । वेचारे रिम्कन्ट ने स्वयं बहुत यातनाएँ सही होगी इन सब कलाकारों ने बहुत कुछ सहा है, सिर्फ आर्थिक रूप से ही नही परन्तु दूसरी तरह से भी। यह बेहतर होगा कि हम स्वयं की, अपने देश की और अपनी सभी आदती की आलोचना करे, और स्वयं पर हँसे, यही सबसे अच्छा रास्ता है। यदि आप स्वयं पर हँस सकते है तो आप किसी दूसरे ज्यक्ति की रचनात्मकता के रास्ते में नही आयेंगे और न ही उसकी बुराई करेंगे। एक सन्त की तरह आप पता लगा सकतें है कि किसे पकड़ है और किसको समस्या है। यह कोई संस्कार हूँकोडशनिंग नहीं है क्योोंकि इसे आप अपनी अँगुलियों पर मइसूस कर सकते हैं। तो आपको क्या करना चाहिए? यदि संभव हो तो, अपने प्रेम में, आपको दूसरों से कहना है "आपके साथ यह बाचा है, इसे सही करना बेहतर होगा परन्तु इस तरह कि वह उसे करे । इसके विपरीत यदि आप उससे इस तरह कहें कि वह अपनी स्थिति से और भी नीचे गिर जाय, तो आप उस व्यक्ति से किसी भी तरह का प्रेम नहीं कर पाये। सभी को बढ़ने देना चाहिए। सहजयोग में बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जो बहुत अनछे हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो कि काफी जटिल है, उनके सिर में एक प्रकार की दरार या और कुछ है। अन्यथा वे बहुत ज्ञानी और तेज हो सकते हैं परन्तु वे सहजयोग में उस स्तर तक नहीं उठ सकते। आप यह पूछ सकते हैं कि वे सहजयोग में कैसे उन्नति कर सकते हैं) मान लीजिए कि धरती माँ सूर्य की तरह बहुत गर्म होती तब कोई उत्पत्ति नही हो सकती थी या यदि वह बहुत ठंडी होती तब भी कोई उत्पत्ति नही हो सकती थी। उसको मध्य में आना पड़ा जहँ उत्पत्ति के लिए उसमें दोनों चीजें एक सही मात्रा में थी। ठैक इसी तरह मनुष्य को भी गहनता व संतुलन बनाये रखने के लिए कार्य करना है। आपको यह समझना चाहिए कि किसी चीज की अति नही होनी चाहिए। यह संतुलन आप तभी सीलते हैं जब आप किसी से प्रेम करते हैं । कभी - कभी हम कुछ लोगों को सहजयोग छोड़ने के लिये कहते हैं। यह प्रेमवश किया ....7 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-7.txt जाता है क्योंकि वे सहजयोग छोड़ने के बाद सुधार करते हैं। क्योंकि जब तक वे सहजयोग परिवार में रहते हैं वे बैवकुफ प्रवृत्ति के हो जाते हैं। जब वे बाहर चले जाते हैं तो उनकी बेवकूफी खत्म हो जाती है, यह स्कमाविक है और व्यक्ति समझ जाता है कि अब वह और अधिक विनाशकारी नही हो सकता। हालांकि आपको सम्पूर्ण घैर्य व समन्वय बनाये रखना चाहिये, आपको पक प्रेमी वि की तरह बात करना चाहिए। मैं फूलो से प्यार करती हूं, मँ को अपना प्रेम बताने के लिए आप मुझे फूल मेट दैते हैं। मैं जानती हूँ कि आप मुझे प्रेम करते है । परन्तु आप उसे मजबूत करना चाहते हैं। इस प्रकार यह समी भौतिक वस्तए प्रेम को व्यवत करने के लिए प्रयोग की जा सकती है। यह बहुत ही साचारण तरीके से इस प्रकार व्यक्त की जा सकती है कि दूसरा व्यव्ति जान सके। परन्तु सहस्त्रार की सम्पूर्ण शवित प्रेम है। इसलिए आपको यह देसना है कि आपका मस्तिष्क प्रेम प =ाः करता है। अपने दिमाग और बुध्दि के दूवारा सहजयोग की शव्ति को परखने के पश्चात जब आप परीक्षण आदि का कोई उपयोग उस स्थान पर पहुँच जाते हैं जहाँ आप समझते है कि विश्लेधण, नही है यह केवल प्रेम है। ठीक यही स्थिति सहस्त्रार के साथ है, जो कि मस्तिष्क है, जिसका प्रयोग विश्लेषण, आलोचना, और सब तरह की फालतू बातों के लिए किया जाता है, अब प्रेम करना चाहता है और प्रेम का आनन्द उठाना चाहता है। यह सर्वेच्च स्थिति हैं जहाँ मस्तिष्क सिर्फ प्रेम करता है, हर्में यह समझना चाहिए क्योंकि इसने प्रेम की शक्ति देखी है। " जब आप इस स्थान पर पहुँच जाते है तब आप कह सकते है कि आप "निर्विकल्प में हैं - आपके मस्तिष्क में किसी प्रकार का कोई संदेह नही है क्योंकि आप प्रेम करते हैं। प्रेम में हम संदेह नही करते जब सोचते है तो संदेह करते है। केवल आप प्रेम का आनन्द उठाते त 1 इसीलिए प्रेम ही आनन्द है और आनन्द ही प्रेम। हमें पुनः सहस्त्रार को ध्यान के दूबारा, स्वयं की और दूसरों की समझ के द्वारा, सोलना है। अब इसके अतिरिक्त केोई रास्ता नहीं है, हम इसके अन्त तक पहुँच गये है। सभी विवाद अब समाप्त हो गये है। अब प्रेम के समुद्र में कुछ पड़िए, बस। एक बार जब वाद आप प्रेम के समुद्र में कूद पड़ते हैं तो कुडः बाकी नहीं रह जाता। केवल इसकी प्रत्येक लहर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-8.txt का आनन्द लीजिए, एक एक बूंद का आनन्द लीजिए, एक एक स्पर्श का आनन्द लीजिए। हमें यही सीखना है कि सहजयोग और कुछ नही, केवल प्रेम है। समाचार और नोट रही हों तब कृपया फोटो न लें । श्रीमाताजी जब स्वयं जब श्रीमाताजी पूजा वार्ता कर आज्ञा दें तब फैटो खींचे जा सकते हैं। सार्वजीनिक कार्यक्रम 20 व 22 जून को बंगलौर में दो 1 बंगलौर सार्वजनिक कार्यक्रम सफलतापूर्वक सपन्न हुये। आरम्भ में बंगलोर में सहजयोग सिर्फ एक सहजयोगी दुवारा शुरू हुआ। इस वर्ष फरवरी में श्रीमाताजी के प्रधम सार्वजनिक कार्यक्रम के पश्चात पक छोटा केन्द्र स्थापित हुआ। यह इस केन्द्र का प्रथम प्रयास था और जनता के उत्साह को देखते हुये बंगलौर केन्द्र सेला गया । में दूसरा 2 উदराबाद - इस वर्ष कुछ दन पूर्व श्रीमाताजी के कार्यक्रम ने सहजयोग परिवार को ।00 तक बदा दिया। 300 से अधिक लोगों ने हाल ही मैं 24 व 25 जून को हुये हुये सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लिया। नये आने वाले लोगों में अपने अनुभव को परिपक्व करने की उत्सुकता इत्तनी अधिक थी कि ऐसा लगने लगा कि साप्ताहिक एक मीटिंग शायद कम हो। इसलिए सौ से अधिक सोजने वालों हसीकर्स के लिये सात दिन के एक कोर्स का संचालन किया गया। देहरादून सेमिनार सम्पूर्ण उत्तर भारत के सहजयोगियों ने जून के मध्य में इस सुन्दर पहाड़ी पर होने त वाली तीन दिन की गोष्ठी में भाग लिया। नोयडा की भजन मंडली ने अपने भव्ति संगीत से श्रीमाताजी के लिए सबके हृदयों को खोल दिया। जब हमारे हुदय से आवाज आती है तो माँ सदैव उत्तर देती है और यही हुआ भी, तोगों के एक ধटे समूह Ob9 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4.pdf-page-9.txt ने हवन के पश्चात रथ में बैठी देवी मा की दृष्टि से आशीर्वाद प्राप्त किया। चमत्कारी परेटो श्रीरामपुर में पूजा में लिए गये श्रीमाताजी के फोटो के फोटो में दीपक की लो ऊपर उठती हुई और श्रीमाताजी के फोटो की प्रदक्षिणा करती हुई दिखती है। ा नये केन्द्र श्रीमाताजी के आशीर्वाद से जून में केन्हापूर में एक केन्द्र की स्थापना की गई। XXXXXXXX> XXXXXXXX ४XXXXX ८४ हमारी वार्षिक शुल्क इस प्रकार है। अंग्रेजी 200/- रूपये हिंदी T 08/- रूपये मराठी |0 8/- रूपये विश्व निर्मला घर्म। आप अपना ड्राफूट इस नामसे भेजिये । हमारा पता विश्व निर्मला घर्म पो- बॉ- नं.० 1 90 । , कोयरुड, पुणे - 29.