चैतन्य तहरी अंक 7 संड । हिंदी आवृत्ती क हा ভ ० अने परमपून्य माताजी श्री निर्मलादेवी का ১ ि टा सा ० चैतन्य लड़री हिन्दी अवृत्ति संड । अंक 7 श्री महाविराट पूजा, न्यूयार्क, ।। संकलित अंश? जून ।9 89 के रूप में पूजने श्री महाविराट पूजा, श्री कृष्ण की भूमिपर, श्री माताजी को महाविराट श्री विष्णु का सबसे महत्वपूर्ण अक्तार "विराट" रूपमें है। श्री का यह हमारा सुअवसर था। माताजी ने हमें समझाया कि अपने मस्तिष्क के अन्दर श्री विराट की पूजा करने का यह अवसर है क्योंकि श्री कृष्ण ही महाविराट है। हमारे मस्तिष्क की सम्पूर्णता ही विराट है परन्तु यथार्थता हमारे हुदय में निवास करती है । यह यथार्यता ही सम्पूर्णता की सूक्ष्मता है। इहृदय और मस्तिष्क फी एक जुटता न होना भयानक है, अगर मस्तिष्क का पोषण इृदय से नहीं होता है तो मनुष्य बहुत बाहय- व्यस्त इक्सटोवर्ट ै और निर्दयी हो जाता है। जब हरसिर्फ१ हृदय का शासन हो तो मनुष्य सुद- व्यस्त और आलसी बन जाता है। है विशाल देश जो की खोजी लोगोंसे मरपूर श्री माताजी ने कहा कि यह बड़ा और जब नकारात्मक शवितयों के जाल में फैसा हुआ है। यहां के निर्वासियों का जीवन अध्म, निरर्थक चपलता, दिखावेपन से भरपूर एवं अर्थहीन है । उन्होंने समझाया कि अमेरिका और दूसरे पाश्चात्य देशों में बायीं और हइडा नाडी की कियाशीलता दायीं तरफ से अत्यधिक कार्यशील है। यह प्राचीन काल में पाश्चात्य लोगों दारा की गई शासन १ प्रभुत्व ई की एक प्रतिक्रिया हैं। परिणाम स्वरूप उन लोगों ने आलसीपन को अपनाया हैं। अधिक सम्पन्नता भी खुद -व्यस्तता को जन्म देती है जो कि लोगों के बास्तावकता के प्रति अंथा बना देती है। यथार्वता हृदय में होने के बाकजूद कार्यों दारा व्यक्त होनी चाहिए। इसे कार्यवान्वित करने के लिए हमें और ज्यादा गतिमान बनना चाहिए। श्री माताजी ने समझाया कि आत्मसाक्षात्कार के पहले के हमारे संस्कार जब भी हममें खत्म नहीं हुए हैं बल्कि वे और अधिक सूक्ष्म हो गये हैं हमारे संकीर्ण विचारों और छोटी-छोटी व्यव्तिगत समस्यायों में उलझने के कारण हम एक बड़े जाल में फँस जाते हैं। "विराट" बनने " और स्वयं की हमें बिना किसी कोध या डाइ के, स्वयं को पूर्णरूप से जाँचना होगा के लिप बृध्दि के लिए कुछ करने का निर्णय लेना होगा। हम ये कह सकते हैं हम माँ से प्यार करते हैं 2. परन्तु हम, इसके लिए क्या कर रहे हैं? पक बार डम स्वयं को अन्दर से बनाना शुरू करें तो सब कुछ आश्चर्यजनक तरीके से घटित होने लगेगा और सहजयोगी बहुत महान बन जाएंगे। बाहय जगत में भी सहजयोगियों को कुछ बनकर दिखाना होगा, उनका शिक्षित होना आवश्यक है तथा समाज में भी उनका १आदरणीय स्थान होना जरूरी है। श्री माताजी ने जोर देकर कहा की अमेरीका में सहजयोगियों को दौँय पक्षी राईट साइडेड होने का भय त्याग देना चाहिए, जो आलसीपन की तरफदारी करने का सिर्फ एक बहाना मात्र है परन्तु उनमें अनुशासन होना चाहिए, जल्दी उठना, स्नान करना, पूजा करने के लिए बैठना, जीवन के तौरे तरीकों को बदलना चाहिए एवं वीर की भति गतिशील जीवन जीना चाहिए। श्री माताजी ने कहा कि इंग्लैण्ड और अमेरीका के ज्यादातर सहजयोगी विधिल हैं और सहजयोग को फैलाने का उत्तरदायित्व अपने कंथो पर लेना नही चाहते। उन्होने कहा, "यहीं पर तपस्या है, जहाँ हम रहते हैं। यहीं पर हमें वैराग्य हंडिटैचमेन्ट को कार्यान्वित करमा है। " हममें श्री माताजी के पदचिन्हों पर चलना चाहिए और सहज योग के लिए कड़ी मेहनत हमें अपने पुरातन संस्कारों को उसी तरह से त्यागना चाहिए जिस तरह से करनी चाहिए । एक फूल फल बनते समय अपने विभिन्न अंगों को त्यागता है यह हम्में सम्पूर्ण दिव्य ज्ञान को स्वतंत्र स्प से देसने की क्षमता प्रदान करता हैं । इसके लिए हमें किसी चीज़ को त्यागने की आमश्यकता नहीं है, केवल सहजयोगी के रूप में अपनी अक्स्था के प्रति सचेत और जागृत रहना हैं। "प्रत्येक व्यक्ति को ऊपर उठना हैं " उन्होंने हमसे सहजयोग के विषय में और खुलकर बात करने का अनुरोधकिया। सहजयोगियों को उन सामाजिक नेताओं से सम्पर्क बनाना चाहिए जिनके उचित विचार हैं। परन्तु यह आवश्यक है कि सडजयोगी सहजयोग के सन्दर और मोहक गुणों को प्रतिबिम्बित करे ताकि संचार पूर्ण रूप से कार्यान्वित हो सके। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि हम सहजयोग पर कोई उपकार नहीं कर रहे है, अपिजु हर एक व्यकि्ति को अकेले आर सामूहिकता में सहजयोग की जरूरत है। श्रीभाताजी ने कहा कि प्रत्येक सहजयोगी के पास उनके हभापण की बहुतसी "टेप" होनी चाहिए ताकि वे उसे समझ सके और अपने आप को उस ज्ञान की स्वतंत्रता में ढाल सके। उन्होने अनुरोध किया कि हम सब अपने हृदय से प्रार्थना करे कि "हम उस तथ्य को जो कभी विराट धा अपने जीवन में यथार्थता के रूप में प्रकट कर सके"। मौलिक अगरीकी धार्मिक जीवन वीताना जानते थे । वे बहुतही स्वतंत्र और वैराग्यवृत्ति हडिटेचट्ड के थे। अगर हम स्वयं को न सुधार सके तो सामूहिक स्तर पर समस्यापै सड़ी हो जाएगी, अगर सामूहिकता में समस्याएं है तो वे संपूर्ण जंगो पर हसमाज के अपना प्रभाव प्रतिबिम्बित करेंगी । हम सब को विराट बनना है, अपनी योग्यता जताने के लिए तथा अधिक गहराई में जाने के लिए जिससे अपने को तथा इस देश समाज को बदल स्ें। श्री महाकली पूजा भाषण ककोवर, 17 जून ।989 महाकाली तत्व सबसे पहले इस पृथच्वी पर आयी उन्होने श्री गणेश का निर्माण किया। फिर श्री महासरस्वती ने एक सुन्दर सृष्टि की रचना की और मनुष्यों के लिए विल्कुल उपयुक्त तापमान बनाया। जलवायु ने लोगों के खोजने की शक्ति को प्रभावित किया भारत ध्यान-चारणाके लिए उत्तम है और सत्य सोजनेवालों के लिए का तापमान एक अच्छा बातावरण प्रदान किया, जिन्होने सत्य को पहचाना और कुंडलिनी की सोज की । স্न लोगों ने फिर अलग-अलग होकर विश्वविद्यालयों की शुरूआत की। 5 साल की उम्र होने पर बच्चों को पाठशाला में भेजा जाता था पाठशालाओं में क्षात्रों ने ब्रह्मचर्य जीवन का निर्वाह किया। यह परम्परा आज तक निभाई जाती रही है। भारत में एक ही विश्वविद्यालय के विदार्थी क्ादी नहीं कर सकते थे। इस तरह मुलायार को शक्तिशाली रखा गया, जबकि दूसरे देशों में इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जिन लोगों का मूलायार कमजोर है उन्हे जल्दी "पकड़" होती है। इसी कारण सारे झुठे गुरू पाश्चात्य देशों में आये और बहुत सफल हुए परन्तु अब ज्यादातर ये लोग नष्ट किये जा चुके है। हमारे भीतर की महाकाली श्क्ती ही हमें प्रबल बनाती है क्योंकि वह ही श्री गणेश है। श्री गणेशजी के है। भाव, जैसा कि कार्बन अणु में दर्शाया गया है, स्वास्तिक जीर ऑकार जब स्वास्तिक घड़ी जैसा चक्कर करती है तो निर्माण होता है और जब वह घडी के बिपरीत घूमती है तो विधटन होता है श्री माताजी ने कहा कि पाश्चात्य देशों में मूलाधार व्यभिचार के कारण घड़ी के विपरीत दिशा में चक्कर कर रहा है । श्री माताजीने कहा कि पश्चिमी देशोंमें मुश्किल यह है कि लोग सुनना ही नहीं चाहते कि उन्हे नैतिक होना चाहिए अनैतिकता का परिणाम "एडस्" और दुसरी विमारियां है जिनसे वे लोग सीख रहे हैं परन्तु वे यह स्वीकार नहीं करना चाहते है कि उन्होंने गल्ती की है । फिर भी, क्योंकि वे सत्य खोजी है, उनकी रक्षा करनी है। सहजयोग कोई तीव्र आनन्ददायक अनुभव नहीं है जो आपके भीतर किसी द्वारा आत्मा डालने से होता है उसे तो थीरे घीरे उन्नत होना है । हमे निराश नही होना चाहिए अपितु स्वयं से संतुष्ट और पूर्ण विश्वस्त महसूस करना चाहिए सहजयोग के लिए उत्तम योग्यता के व्यक्तियों की जरूरत है, ऐसे संत ही किसी देश के लिए सोभाग्य लाते है। हमें ध्यान घारणा तथा सामूहिक वार्तालाप द्वारा गहनता में वृध्दी करनी चाहिए। श्री माताजीने कहा कि अति |ा महान कार्य होना चाहिए नकारात्मक व्यक्तियों को प्रथंक किया जा रहा है। परन्तु हमें नकारात्मक निराशाबाद को भी अपने अन्दर नही आने देना चाहिए। अगर कृछ उत्तम योग्यता के व्यव्ति कार्यक्रमों में आये तो यह हजारो ेसाचारण मनुष्यों के अनुभवोसे ज्यादा उपयोगी होंगे श्रीमाताजीने हें बहुत शक्तिशाली गणेश् शव्ति के लिए प्रार्थना करनेको कहा है। यह शवित इमारी नकारात्मक शव्ति को नष्ट कर देगी। श्री महाकाली पूजा, सेनडियागो, 19 जून ।989 की प्रतिबिम्ब है। वेसर्वशक्तिमान सदाशिव की इच्छा सम्पूर्णतया श्री महाकाली आदिशवित शक्ति है। हम सहजयोगियों को यह समझना चाहिए कि उन्ही की शकव्तियों के कारण हम किसी भी चीज की अभिलापा कर सकते है। हमें यह इच्छा करनी चाहिए की सारी नकारात्मक शव्ितयाँ जो हमारे उत्थान के विरोध में है, उनका नाश हो ताकि श्री महाकाली हमारे उत्थान के निर्माण कार्य को जारी रस सके। उन्हे दैवी निर्माण कार्य के विरुध्द काम करनेवाली शव्तयों का विनाश करना है। श्री माताजी ने हमे बताया कि हर सुबह घ्यान के ववत सहजयोगियो को श्री गणेशजी का नाम हुजैसे श्री गणेश अथर्व या ।08 नाम ह दोहराना चाहिये जो श्री महाकाली की शबती है। हमे कहेना है "मेरी इच्छा क्या है? यहा मेरा लक्ष्य है" इस तरह के अभ्यास से हमारी शुध्द इच्छा बढेगी और केनद्रित डोगी। उन्होने यह भी कहा कि अधमने लाग सहजयोग को कार्यान्वित नही कर सकते क्योंकि सहजयोगियों में निम्नलिखित 4 गुण होने चाहिए। प है । ४ साहस ৪28 गहन इच्छा ह4४ मंगलकरण 3 ड ज्ञान उन्होने समझाया कि इमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। सहजयोगी बनने के उपरांत हम अधिक स्नेही बन जाते हैं परन्तु पश्चिम में भी, जहाँ लोग अपने परिवारों पर अधिक महत्व नहीं देते, केवल अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते है, कारणवश वे स्वार्थी बन जाते है। इस स्वार्थपरता से ध्यान हलका पड जाता है और लोगों को अपने उत्थान के प्रति अथमना 5. हाफडारटेड बना देता है। उन्ह़ोने बताया कि किस तरह बच्चों पर देश या घर्म के संस्कारो की मुहर लग जाती है , जिससे गलत निशानी स्थापित हो जाती है। इससे दूसरे संस्कारवालोंसे अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है। हम समाज के रीतिरिवाजों को स्वीकार कर लेते है जिससे संस्कार बन जाते है। इस कृतिमता के प्रति करिया स्वरूप ऊपर उठने की शुध्द इच्छा एवं संस्कारों पर विजय पाने की इच्छा हमारे अन्दर जागृत होती है। उन्होने जोर देकर कहा कि आत्मसाझात्कार प्राप्त होने के लिए हमे महाकाली शक्ति को विकसित करना होगा ताकि उन सभी बाधाओं का, जो हमें आत्मा बनने से रोकती है, नाश हो सके। हमारे भीतर छः शत्रु है और श्री महाकाली उन सभी का नाश करती है परन्तु हमें यह देखना है कि हम उनसे चिपके हए नही रहते। हमारे में यह भावना होनी चाहिए कि " हम वह प्राप्त करना चाहते हैं और वह इसे कार्यवान्वित करने का कार्य कर रही है"। श्री महाकाली हमें शारीरिक और आत्मिक सुख देती है और फिर आनन्द प्रदान करती है। अतः महाकाली शवित को शक्तिशाली होना चांहिए इसके लिए पहले मूलाधार को शव्तिशाली बनना होगा। जब किसी सहजयोगी की इच्छाशकित और नीव मतबूत हो तो इच्छा आकाश में पतंग है। हर इच्छा की पूर्ति होती है, शुध्द आनन्द में जब तक कि पूर्ण के उडान की तरह डीलती अनिव्छा की स्थिति प्राप्त न हो जाय, जहाँ किसी अन्य चीज की जरूरत ही की न महसूस हो। मातृदिवस के दिन माँ का संदेश सहस्त्रार दिवस एवं श्री बुध्द पूजा के बीच का पूरा सप्ताह, मातृ दिवस की शुभ बघाई का संदेश देने के लिए यू के ह ं द्वारा हजारों इग्लैंड में श्री माताजी का घर विश्व के सारे देशों पुष्पी से भर गया धा। उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा आशिर्वाद है कि पार्चात्य संस्कारी दुनिया में लोग अभी भी माँ को याद करते है एवं धन्यवाद देते है। सहजयोगियों दूवारा भेजे गये सुन्दर कार्डो जिन्हे बहुत से सहजयोगी बच्चों ने बनाये थे, को पढकर माँ के नेत्र आँसओंसे भर उठे। माँ सभी को अलग अलग धन्यवाद देना चाहती थी परन्तु काफी व्यस्त दिनचर्या के कारण हर एक को जबाब नही दे सकी। इसलिए इस अंक के दुवारा सभी को उनका हार्दिक आशिर्वाद एवं कन्यवाद पहुँचाया जा रहा है । सहजयोगियों द्वारा भेजे सभी कार्ड, पत्र, उपहार और फोटो को वे उचित स्थान पर सुरक्षित रस रही हैं जिससे वाद में उनके व्यकि्तिगत संग्रहालय में रखा जा सके। 6. श्रीमाताजी की बमेरिका यात्रा माग । जैसे अमेरिका की यह यात्रा आरम्भ हुई, अमेरिका सहजयोग के नये परिभाग में प्रवेश किया और श्रीमाताजी ने सभी स्तरोंपर उत्साहपूर्ण भाग लेने की इच्छा की लहर फैलादी, न्यूयार्क में श्री विराट पूजा के शुरूआत से आत्मसाक्षात्कार खोजनेवालों की संख्या में जिओ मेट्रिक स्तर पर बदौत्तरी हुई जो यात्रा के दौरान भी जारी रही। सिन्सीनाटी मे ।50 टोरेन्टो में 400, केकोवर में 800 और सेनडियागो में ।600 लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया। सबसे नये के्द्र मियामी में भी। 150 लोग कार्यक्रम में शमिल हुए थे। यहाँ तक कि युनाइटेड नेशन्स के उ30 राजनीतिक दूर्तों ने भाग लिया। जुलाई अमेरिका के 21 3 श्री विराट पूजा का प्रभाव तुरन्त ही स्पष्ट हो गया जब 4 वे स्वतंत्रता दिवस को अखबार में यह प्रकाशित हुआ कि माताजी के यात्रा के दौरान शीन ग्रह के अनूठे चित्र सीचे गये जिनमें शन ग्रह का रिंग साफ दिखाई देता है। यह पहली बार है कि पृथ्वी से विशुष्दी के ग्रह का फोटो सीचा गया जिसमे सुदर्शन चक्र साफ दिखता है । श्रीमाताजी विशेष प्रसन्न धी क्योंकि न कि यह पहली बार हे कि इस बार देश की सामुहिकता ने इतनी अधिक मात्रा में आगे आई वल्कि योगीजन भी गहराई तथधा श्रीमाताजी के साक्षात्कार के नये दौर में प्रवेश कर रहे थे । अमेरिका अब एक समन्वित देश जो अपने आगन के बाहर झाकने के लिए अपना सिर उठा रहा है तथा तैयारी कर रहा है ताकि सहजयोग की अन्तर राष्ट्रीय तरक्की में योगदान दे सके। श्रीमाताजी ने हम सभी लोगों को दृढविश्वासी और साहसिक होने का संदेश दया और आवहान किया कि सत्य खोजियों तक पहुँचे और उनके संदेश का प्रचार करे। यह हमारा कर्तव्य है कि सारे संसार को यह अवसर प्रदान करें और इसका परिणाम श्रीमाताजी के चरणों में समर्पित करें। हमे नियगपूर्वक गहनता में उत्तरने के लिए ध्यान-धारणा करना चाहिए, और सहजयोग हमारा प्रधम कर्तव्य होना चाहिए। श्रीमाताजी इग्लंड में ।6 वर्ष रह चुकी है और जैसा कि विमिन्न चलते केन्द्रो के समाचारों से प्रमाणित होगा कि अब विशुष्दी चक्र को स्वयं रूपांतरित चा होने का समय आ गया है। श्री विराट पूजा और सेमिनार हप्तों की तैयारी के उपरांत, अमेरिका, कनाडा और बाहर के देशों से 150 सहजयोगी बेनटम, कनेक्टीकर में श्री विराट पूजा तथा श्रीमाताजी के दौरे के शुरूआत के लिए एकीत्रित हुए और श्री माताजी की अमेरिका यात्रा शुरू हुई। हमसे कडयों का सप्ताहांत न्यूयार्क शहर की तेज 7. अड्डे पर पहुँची वर्षा के दौरान शुरू हुआ। इस घंधोर तूफान के बीच श्रीमाताजी कनेडी हवाई और आन्दित सहजयोगियो ने उनका स्वागत किया। हवाई अड्डेपर फूल बेंचने वालों का सब फूल उसी क्षण बिक गया क्योकि सहजयोगियो ने श्रीमाताजी का स्वागत फूलों के गुवछों से किया | पाल जब तक श्रीमाताजी ने नजदीकी न्यूयार्क आश्रम में आराम किया, सहजयोगियोने कनेक्टीकर में झील के किनारे के शिविर की करीब डेढ घंटे में यात्रा की । प्रत्येक सहजयोगी रातभर मिगोनेवाली वर्षा में, जो कि माताजी व्दारा पूजा की तैयारी और सफई हेतु भेजी गई थी, उत्साहित रो दूसरे दिन जैसे ही सहजयोगी शिविर के बाहर सडकपर एक पंवित में श्रीमाताजी के आने के पूर्वज्ञान में खडे हुए, सूर्य ने उनका स्वागत किया। गाते हुए उत्साहित सहजयोगी जिनके आगे एक गाड़ी में संगीतकार बैठे हुए थे, माताजी के कार के सामने नाचते हुए झील के किनारे स्थित निवास स्थनपर पहुँचे। यह शेभा यात्रा अमेरिका में पहले किस्म की धी। अपने आगमन के कुछ समय उपरांत ही माताजीने उत्तरी अमेरिका के सहज? नेताओं से मिली। उन्होने बताया कि नये सहजयोगियों का न होना आप लोगों की गहराई की कमी को प्रतिबिंबित करता है। हमें निराश न होने के लिए वताया गया क्योकि श्रीमाताजी ही किकार हैं और हम सब हपेन्ट, बुश१ इस नाटक के यंत्र है, पेन्ट, बुश बुरा कैसे महशूस कर सकता है? हमें अपने अन्दर और गहराई में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि खेजीजन हमारी एकता में कुंडलिनी की गहराई को महशूस कर सकें और उसके उपरांत अपने अन्दरईश्वर का महशूस कर सकें। योगियों ने अपने दांई और बांई ओर को साफ करने के लिए गाँ के धर के बाहर तौर पर गिलने का मौका गिला और पूजा ध्यान रखना जारी रक्सा। दोपहर उपरांत अनीपचारिक की तैयारी के लिए हवन का आयोजन किया गया। अमरीकी महिलाओं दारा बनाया गये कागज के सुन्दर फूलोंसे सुसज्जित महाकक्ष में संध्या के समय अनेक विमिन्न प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम हुए। न्यूयार्क और बोस्टन के सहज योगियों ने अमरीकी भारती गय और कविता संगीत के साथ पेश किया। श्री माताजी ने बताया कि पहले सभी देशों के मौलिक व्यक्ति किस तरह से कुंडलिनी के विषयमें अवगत ये और पहले किस तरह गोरों से काले अबोध अमरीकी भारती व्यक्ति मारे जाते थे। इस प्रोजेक्ट के खोज के दौरान यह पता चला कि वहाँ के मौलिक निवासी अमरीकियों की भाषा में " बनटम " का मतलब है " पूजा का स्थान " इसके उपरांत न्यूयार्क के बच्चौ ने उत्कृंति को दर्शाते हुए एक आधुनिक नृत्य पेश किया जिसके पश्चात टोरोन्टो की दो बाल योगिनियों ने अपने नृत्य शिक्षिका के साथ पवित्र भारतीय ৪ - - नृत्य पेश किया। कैन्कोवर के वनीवलिस ने आयुनिक भक्ति संगीत के टेप और विडियो कैसेट प्रस्तुत किये। श्री माताजी ने बतायाकि प्रसिध्ध रॉक संगीत सत्य खोजनेवालो की सहजयोग के प्रति जागृत कराने का एक बहुत अछा साधन किस तरह से बन सकता है। उन्होने यह भी बताया कि अमेरिका में सहजयोग को सफल बनाने में "संगीत" एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकता है। कार्यक्रम की समाप्ति सेनडियागों के योगीनियों दारा की गई भारतीय नृत्य से हुई जिसमें प्रत्येक नर्तकी ने श्री माताजी के चरणों पर फूल अर्पण किये। संध्या का समय समृध्द भजन के साथ समाप्त हुआ जिसके पश्चात माताजीने कहा कि उन्हे पृथ्वी की बहुत गहराई से चैतन्य लडरियो ऊपर उठती हुई महशूस हो रही हैं। रही थी। तब घोषणा की गई सुबह जब हम उठे तो सारे शिविर को तेज हवा हिलोर कि श्री विराटपूजा होगी पूजा में माताजी ने बताया कि किस तरह अमरीकी मस्तिष्क की कई समस्यायें इस पूजा में समाप्त होगी। उन्होने इस विषय में विस्तृत जानकारी दी कि अभी किय ा तरह अमेरिका स्वयंग्रस्त और बाई ओर है, उन्होनें इन्गलेन्ड से इसकी तुलना की। यह अनिवार्य है कि अब हम गतिशील कार्य से केन्द्र चलायें। यह भाषण बहुत जोरदार था जिसका सारांश इस अंक मे शामिल किया गया है। श्री माताजी ने जोर देकर कहा कि हर योगीके पास इस और इसे वे सने। 108 अमरीकी-भारतीय वर्णों के भाषण के टेप की एक प्रति होनी चाहिए नाम पढ़े गये जिससे अमेरिकियों पर बाई तरफ के प्रभाव को सतम करने में सहायता मिले जो कि संहार एवं उपेक्षा के कारण भारतीयों की मृत्यु से प्राप्त हुए थे। पूजा के समाप्त होने पर श्री माताजी के चरणोपर हा्यों से बनी हुई चीरोकी मुरेठा अर्पण किया गया। यह कहा जाता ऐसा है कि श्री माताजी को भारतीयों पर किये गये अत्याचारों के लिए बहुत दुख महशूस हुआ, अगाथ दुख जिसे प्रकट नही किया जा सकता। इस महत्त्वपूर्ण पूजा के उपरांत माताजी को कई उपहार मेंट किये गये जिसमे अरजोना टरकोईस का बना हुआ एक हार और एश्राहम लिंकन की पक पेंटिग सामिल थी। वहाँ के सहजयोगियों वारा बनाई गई कई चित्रकारी भेट की गई। माताजी ने हमें कई सुबसुरत उपहार भेंट किये जिनमें पूलों की आयल पेंटिग भी शामिल थी । न्यूयार्क न्यूयार्क शहर की तरफ सभी का ध्यान गया और सामाजिक कार्यक्रमों की तैयारी के लिए कई सहजयोगी वापस अपने शहर लॉट आयें। न्यूयार्क में दो कार्यक्रम हुए जिनमें केवल 50 लोगोंने भाग लिया। पहले कार्यक्रम में कठिनाई हुई परन्तु दूसरे कार्यक्रम में कई उत्तम म। खोजी आये जिनमें काफी अछी चैतन्य लहरियाँ थी। यद्यपे यह घटना निस्त्साहक थी फिर भी न्यूयार्क के सामूहिक योगियों को प्रचार के नये साधन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। श्री माताजी ने कहा कि न्यूयार्क के लिए पोस्टर दारा प्रचार ज्यादा प्रभावशाली नही हैं। इसलिए दूसरे साधन दूढ्ने होंगे। चूँकि न्यूयार्क में प्रतिरात 300 से अधिक कार्यक्रम होते है इसलिए यह निर्णय लिया गया कि नये प्रचार साधन के लिप किसी व्योसाईक सलाहकार को किराये पर लगाया जाय। श्री माताजी ने न्यूयार्क को सबसे मुश्किल जगह बताया, ऐसी जगह जहाँ सहजयोग की सवसे ज्यादा जरूरत हैं। पर यहाँ के लोग आत्मा के प्रति विल्कुल निःचेतन हो गये है। पात जबतक श्री माताजी अपने उड़ान का इन्तजार करती रही सप्तहान्त अनीपचारिक वार्तालाप में सप्ताह हो गया। जैसे योगीजन श्रीमाताजी के साथ व्यस्त हवाई अड्डे पर बैठे थे उन्होने कई योगियों को अपना व्यासाय और स्थान बदलने की सलाह दी। श्रीमाताजी ने फिर बाकी यात्रा गा। के लिए प्रस्थान किया। हम जानते थे कि हमसे कई उन्हे सिनसिन्नाटी, टोरोन्टो, कैनकोवर सेनडियागों या मियामी में मिलेंगे। जुलाई में युनाइटेड नेशन्स के विशेष "ङन हाउस" अधिवेशन में भाग लेनेके लिए श्रीमाताजी की वापसी की आशा दिलमें लिए हुए यहाँसे न्यूयार्क के सहजयोगियोंने प्रस्थान किया। केरन डी कोकर बोस्टन सिनसिन्नाटी यहाँ के सहजयोगिय्यों को पूजनीय श्रीमाताजीके े दर्शनों की पूर्व अभिलाषा पूर्ति हुई। ।4 जून को ।2 बजे के कुछ पहले श्रीमाताजी सिनसिम्नाटी पहुँची और प्रसन्न योगी योगिनियों ने फूलों से उनका हार्दिक स्वागत किया। हम सब समय से पहले आश्रग वापस पहुँचे और फिर श्रीमाताजी का स्वागत शंखो की गूंज, आरती और माला पहना कर किया। श्रीमाताजी ने आश्रम की शांति और सन्नाटे के बारे में कहा कि यह उनके लंदन के पहले के घर की याद दिलाता है। दोपहर के भोजन के पहले श्रीमाताजीने हमारे साध कुछ देर के लिए बातचीत की और न्यूयार्क के कार्यकरमों की चर्चा की। श्रीमाताजी ने यह भी महसूस किया कि सिनसिन्नाटी में अवछा कार्यक्रम होगा। दोपहर के भोजन के बाद श्रीमाताजी अपने कमरे में विश्राम करने गई औरऔहियो के योगी, बोस्टन, माइनी एवं न्यूयार्क से आये योगियों सहित शहर में सीसनगुड पेेलियन, 10 जो सिनसिन्नाटी के इडन पार्क में स्थिति है, गये इस सुन्दर खुले थियटर को सभी योगी शाम के कार्यक्रम के लिए सजाने गरयें। मंच सजाने का कार्यक्रम बहुत सुन्दर और एकजुट ढंग से हुआ, हर योगी ने कुछ न कुछ काम किया जिससे अंततः सबको सुशी हुई। लाम पुरे दिन, एक-एक कर हलकी बारिश हो रही थी और कई योगी पुजा के लिए किसी दुसरे पूजा के क्वत तक उपयुवत स्थान के विषय में पूछने आए उन्हें आश्वासन दिया गया की सारे बादल छंट जाएंगे और जिस तरह माँ के स्वागत के समय मौसम साफ हो गया था उसी प्रकार फिर से गौसम साफ हो गया। गाताजी कार्यक्रम के लिए करीब आठ बरजे पचारी। उन्होंने 200 व्यक्तियों के जनसमूह को बहुत ही साधारण राहज ढंग से परम सत्य की प्रकृति, जागृतता की जरूरत एवं ईश्वर दारा अपनी बुध्दि और चैतन्य को बदाने के इस मौके के विषय में जानकारी दी। उन्होंने, अपने टि ज्ञान के आधार के गडव संत बनना केसा होता है, जात्मा औरइस नाटक के साक्षी स्वरूप के विपय में वताया श्री माताजी ने, जनसमूह को जागृति प्राप्त होने के पश्चात, उसकी वृद्धदि के उत्तरदयित्य का बोझ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया । माताजी के कहने पर चार लोगों ने प्रश्न पुछे जो काफी गहन और सामाजिक थे । उन प्रश्नोमे यह पूछा गया कि इतिहास में इस समय की क्या विशेषता है, मानवता तथा व्यक्तरयों के विलने के इस सगय का वया परिणाग है, तो क्मों को कैसे जब कुंडलिनी ऊपर उठती है हटाती है। एवं किसा प्रकार बच्चों को अपनी गहनता और शुध्दता खोने से बचाया जा सकता है जिसरे वे पैदा हुए है । जनसमूह मंच से कुछ दूर पर बैठे थे और कई लोग जरूरत से ज्यादा पीछे बैठे घे, इसलिए जागृति देने के पहले श्री माताजी ने उन्हें "वोडा सा आगे" आने को कहा। एकाएक, जैसे राभी गें एकगुट इच्छा की लहर दौड़ी, सम्पूर्ण जन उठकर माताजी के सामने मंच के बिलकुल करीव आकर जमीन पर वैठे गये । यह दृश्य दिल को बहुत आनन्दित करने वाला था। श्री ओह, ये सब यहाँ आ गये, देखों जरा, ये सिनसीन्नाटी माताजी भी काफी प्रपुल्लित होते हुए कहीं, "ओ ओह , कितनी बड़ी बात है, है न?" माताजी ने उनकी कुर्सी को भी मंचके है। सच आगे सिसकाने के लिए कहा ताकी वे उनके और करीब हो सकें। "कितने उत्साह के साथ" उन्होंने माताजी विस्मयचित होकर कहा", कितने सुन्दर लोग हैं, " जागृति देने के उपराम्त श्रीमाताजी ने कहा कि अब कोई भी पेड़ या पत्ता नहीं हिल रहा है, अतः अब हवा बिलकुल नहीं चल रही है और अब हमें जो महसूस हो रहा है वह चैतन्य लहरीयों है। चारों और के वातावरण की मौनता पूर्ण रूप से परिपूर्ण थी काछ भी हिलता हुआ नजर नहीं आ रहा था। जब माताजी ने पूछा की किन किनको चैतन्य लहीरियोँ महसूस हुई तो इतने हाथ उपर उठे की माताजी आश्चर्य चकित होकर कहीं, " हे ईश्वर। ओह। ईश्वर तुम सबको आशीर्वाद दे.। क्या जगह है सिनसीव्ाटी ।क्या जगह। इतने सारे खोजनेवाले मै आप सबको प्रणाम करती हूं;---- वाह | वाह। माताजी से मिलने मंच पर आए योडे बच्चोने मों को कार्यक्रम के अंत में सभी, तुरन्त पहचान लिया। उत्तरी करोलिना से दो वैज्ञानिक भी आए हुए थे। माताजी ने उनसेउनके अनुसंघन के बारे में बात की जिसका विपय चेतना के विभिन्न अवस्थाओं में मनुष्यके मस्तिष्क से निकालती हुई लहरों से संबन्धित चा। बेलोग "सहज चेतना" पर अनुसंयान करने तथा उल्तरी केरोतिना में सम्मेलन आयोजित करने के विषय म्रें काफी दिलचस्पी व्यव्त कर रहे थे। आश्रम बापस लौटने पर माताजी ने कहा की कार्यक्रम से और बहाँ आप हुए लोगों से वे काफी प्रसन्न थी। माताजी को विदा करने अगले दिन प्रातःकाल हम हवाईअड्डे गए। उड़ान की देरीके कारण, माताजी के साथ करीब एक धंटा बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान श्री माताजी ने व्यक्तिगत प्रश्नों के उत्तर दिये। माताजीने कहा की सहजयोग को कार्यवात्वित करने के लिए छोटे शहर ज्यादा आसान है और कुछ सहजयोगियों को उन्होने विक्सलैंड, टिफ्फीन और ओहियो हजौं कई साल पहले माताजी गई थी में कार्यक्म आयोजित करने को कहा। श्री माताजी से बिछड़ते देखकर हम सब को बहुत दुःस हो रहा था परन्तु पिछले रात के कार्यक्रम से हम काफी खुश थे। माताजी के आशीर्बाद से सिसनगुड पैविलियन की पथरीली दिवार पर लिखी हुई निम्नलिखित मनोकामना की पूर्ति अब हो रही है :- इनफ इफ सम्थिंग फाम इवर हैन्डस हैव पावर टू लिय ऐन्ड ऐव्ट फेन्ड सर्व दी फ्यूचर आवर हअगर कुछ है तो काफी है क्योंकि हमारे हाथों में शवित है भविष्य में जीने, काम करने और सेवा करने की कि्यम वर्डसक्व्य स्टोव ओलेनवर्ग, क्रैग विलियमसन, जान डी कोकर - I| - टोरोन्टो श्रीमाताजी ने टोरोन्टो में, 1983 में, स्वयंको आदिशवित के अवतार के सरूप में घोषित किया था। इस साल उन्होंने कहा कि यही यहाँ के सार्वजनिक सफलता का कारण धा। अपने आगमन के पहले तीन सप्ताह के कार्य को तीन दिनों में कार्यरत कर निसंदेही उन्होने स्वयं को फिरसे समय स्थान और शवित की स्वामिनी सिध्द कर दिया। वर्न, लोरी, पवन और डिबोराइ की सहायता से टोरोन्टो के सामूहिक योगियोंने टोरोन्टो के सबसे अच्छे निर्माणित होटल "रायल यार्क" में श्रीमाताजीके ठहरने की व्यकस्था की इस होटल का चुनाव वास्तव में अचेतन का चेतन होने का एक उदाहरण था। किसी दूसरे होटल की चर्चा करने पर विलियमने "रायल यार्क" नाम तीन बार लिया तो पवन ने पूँछा "तुम रायल यार्क क्यो कह रहे हो| वहाँ का आरक्षण अधिकारी काफी उपकारक सावित हुआ और अंत में हमें एक रातके मूल्यमें दो रातों के लिए कमरा मिल गया जिससे हमें श्रीमाताजी के कमरों को सजाने का पर्याप्त समय मिल गया। इस दौरान महिलायें चद्दर, चीनी के वर्तन वगैरह खरीदने के लिए गई और उन्होने पाया कि सभी कुछ के दाम किल्कुल वाजिब थे। लिनन और हाथकी बुनी हुई कनाडा की लेस कवर से माँ बहुत प्रसन्न धी। वर्न और रोवर्ट गलियों में, टोरेन्टो के निर्वासियों को पर्चे बँटे। यह कार्य भी हनुमान के हंसमुख स्वभाव और असीम शव्ति के कारण सफल हुआ। श्रीमाताजी के आगमन के कुछ समय उपरांत वहाँके रेडियो स्टेशन से एक महिला आई उसकी आधे घंटे की मुलाकात करीब दो घंटे चली, अंततः उसकी जागृति के साध समाप्त हुई। उसने कोलम्बिया में नशीली दवाओंके व्यापार और परमाणु मलवा पर लेख लिखे थे और थोडे भारतियों से भी मुलाकात की थी। उसके अनुसार उनके विचार सहजयोगसे काफी मिलते जुलते धे। उसके बार्तालापका विषय कुछ धनी और शवितशाली लोगोंद्वारा पैदा की गई संसार की जलवायुक समस्यायों की ओर था जो आम जनता में विप्लव फैला रही है। किसप्रकारसे सहजयोग से इन समस्यायों को रोका और दूर किया जा सकता है इसपर बातचीत हुई। मुलाकात के बाद यह गहिला हृदय में मानवता के लिप काफी आशा लिए हुए प्रस्थान किया और उसने कहा कि मानवता को सूचारने के लिए हमारे इस आन्दोलन की सहायता करेगी और जो कुछ हो सकेगा लेख लिसेगी। इसके बाद एक वहुत ही सफल सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ जिसमे करीब 400 लोग आये थे जर उसमे कई गहन खोजी थे जिन्होने क्रीमाताजी को तरन्त पहचान लिमा। श्रीमाताजी रात के एक वजे तक प्रत्येक व्यव्ति से मिली, वातचीत की और सुझाव दिये। अगले दिन हवाई अड्डे पर 12 कई सहजयोगियों को आधे पंटे तक बातचीत का सौभाग्य और आनन्द प्राप्त हुआ। यह सुख और शांती का अनुभव श्री माताजी के आनन्द एवं अगले वर्ष फिर आने के आश्वासन का प्रतिबिंब था। प्रस्थान के पहले ब्रम्ह चैतन्य के विषय में बात करते हुए श्रीमाताजीने कहा "तुम्हे सिर्फ इससे पक होना है" पवन किटली, विलियम ब्रिडेन केकेवर कनाडा" 16 जून, सोमवार के दोपहर को श्री माताजीने कन्कोवर की सुन्दरता का अवलोकन किया। श्री माता जी के होटल से लाये हुए गुलाब के फूलों से लदे हुए हम टोरोन्टो से बैत्कोवर 20 मिनट पहले पहुँचे और आशा से भरपूर योगीजन हवाई अड्डेपर दौड़ रहे थे । 6 सालों बाद श्री माताजी की यह यात्रा केन्कोवर के सामूंहिक सपने की मुर्ति थी। श्री माताजीने अपने स्वागत के लिए प्यार तथा आश्रम के सजाने का काम देखकर प्रसन्न हो उठी। उन्होने कहा कि उस दोपहर में उनके प्यार के कारण, जिससे उन्होने कमरा सजाया था, उन्हे बहुत अच्छी और गहरी नींद आई। श्री माताजी जब आराम कर रही थी, डा.ब्रियेन केन्स इन्गलैंड से पधारे। पहली शामको माताजी ने हमारे साथ रात का भोजन ग्रहण किया और आइन्स टाइन, जो कि असल मे फैकेस्टाइन थे के विषय मे हँसी मजाक किया पश्चिमी अहंकार की मृर्ति। पी एच डी लोगों की भी बाते हुई जो एमय.डी. (मैड-पागल) थे। श्री माताजी ने बताया की अनुशासन, त्याग पवं समपर्ण सहज यांगियों के गुण हैं जब हम ये गुण ( गुणों की मूर्ति) बन जाते हैं तो देवगण हमारे समर्पित और साथी हो जाती हैं। श्री माताजी की दया और कृपा हम्में हर स्थिती में आर्शिवाद प्रदान करती है। सबका श्री माताजीसे परिचय कराया गया सार्वजनिक कार्यक्रमों पर वादविवाद हुए और मध्यरात्निको हम स्वर्गीय निद्रा ग्रहण करते थे। शैनेवार को प्रातःकाल महाकाली पूजा आरभ्म हुई। श्री माताजी ने कहा कि सहज योग और यह भी की मूर्ति बनने के लिए शुद्ध इच्छा तथा गहराई के गुणों का होना जर्री है बताया कि किस तरह संगीत और विडीयो उत्तरी अमेरिका में सामूहिक रूपसे कार्य करने में सहायक हो सकते हैं पुसुषों ने माताजीं की पूजा की जो बहुत तीव्र और संक्षिप्त थी। श्री माताजी ने कहा कि इन गुणों को अब सहजयोग में समा जाना चाहिए। जैसे उनके नामों का उच्चारण हमने किया श्री महाकाली ने बाये तरफ की बाधा हैँसते खेलते विनाश कर दिया। पूजा के तुरन्त बाद सबका घ्यान संगीत विद्यालय में हुए सार्वजनिक कार्यक्रम की और आकर्षित हुआ। डा.केस ने जन समूह संबोधित किया। उन्होने जीजों की उपयोगिता तथा दूसरे ढंग की जीवन पध्दती के विषयों पर जपनी निपुणता से सारे कनाडा निवासी ख्वेजियों का मन हर लिए। डा . केस व्यावसायिक, गातिशील पव्र विनोदी थे और उन्होंने सहज रूपसे श्रीमाताजी के आगमन के स्वागत के लिए सारे जनसमूह का नेतृत्व किया। श्रीमाताजी ने खडे होकरही सबको संबोधित किया। लाउड स्पीकर की धोडीसी माया ने अहंकार को उतारा और सभी का ध्यान सोचने के बजाय सुनने को केन्द्रित किया। श्रीमाताजी के मीठे असीमित प्यारने पर्वतों समान संस्कारो को भी पिघला दिया और करीब 50 लागों को जागृति मिली। श्रीमाताजीने कई घंटे तक लगातार हर एक पर काम किया और खोजनेवालों के गुणोंसे बहुत पसंद थी। रविवार की सुबह हम श्रीमाताजी के साथ हवाई अड्डे गये वहाँ पहुँचने पर हमने पाया कि श्रीमाताजी का वैनिटी केस गायब था। डेढ घंटे का दुबारा यात्रा हमने 5 मि- मे तय किया परन्तु हवाई अड्डे पर गाडी खड़ी करते समय अंततः पुलिस ने हमें पकड लिया। हमारे समझाने पर की हमारी माँ अमेरिका जा रही है और ये कुछ महत्वपूर्ण कागज थे , उन लोगोंका ध्यान माताजीके बैज हफोटो पर केनद्रित हुआ। वे कुछ नरम हुए और हमें तीन सिगनल पार करने तथा ।00 मील प्रति घंटे की रफतार से चलनेके लिए सिर्फ चेतावनी दी और चमत्कारपूर्वक हमें छोड़ दिया। जय श्री गणेश । जय श्री हनुमान । श्रीमाताजी हमारी तरफ आई, बैग ली और तब हमने उन्हे इस माया के विषय में बताया तो हँसने लगी। श्रीमाताजी के विदाई के अंतिम शब्द धथे "ध्यान की गहराई में उर्तरिये और सामूहिक रहिए"। श्रीमाताजी के विमान के छूटते ही हम तुरन्त कारमें । 00 मील प्रति घंटे की रफ्तार से सनडियागो की तरफ बढे जो की इस अविश्वसनीय यात्रा का अगला चरण था। अमेरिका पात धन्य हुआ वर्न्स कैकोवर सेनडियागो श्रीमाताजी ।8 जून पितृ दिवस पर सेनडियागो पहुँची। उसी शाम "ओरगन पेविलियन" जो एक सुला रंगमंच है, में पहला सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ। श्रीमाताजी के छोटे भाषण और संगीत के उपरांत करीब 700 लोगोने शाम के शांत वातावरण में चैतन्य लहरियोँ को महसूस किया। भाषणने खोजियों की सत्य पहचानने की योग्यता और अज्ञानता से बिनाश की और कदम THE न उठाने पर ध्यान केन्द्रित किया। है के रूप में श्री माताजी अगली सुबह श्री महाकाली, जो राक्षसीं को नाश करनेवाली 14 - की पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ / अपनी असीमित करूणा में उन्होने कहा कि पूजा की तैयारी पुरे जोर और सावधानी से करे। इससे हमें श्री माताजी के महान कार्य का पूर्ण रूपसे अहसास हुआ। पूजा का आरम्भ श्री गणेश पूजा से हुई जो श्री महाकाली के बच्चे है और जो इडा नाड़ी के मूल आधार है। पूजाके दौरान जब श्री महाकाली के नामों का उच्चारण किया जा रहा धा, कई बार श्रीमाताजी मुस्काई या हँसी और हमने श्री महाकाली को इस सृष्टि की भावना और असीमित आनन्द के रूप में देखा। ा के चरणों को चोये इदोबार फिर सब महिलायों ने पहले सभी पुस्पोंने श्रीमाताजी भेट चढाई। कुछ आश्चर्यजनक रूपसे श्रीमाताजी को दो जोडे सोने के गहने भेट किये गये जिन्हे उन्होने एक साथ पहना, चरणों मे सोने के पायल कवच के समान दिख रही थी। श्रीमाताजीने हेलमेट स्वरूप मुकुट धारण करते समय "हे आदि माँ गाने को कहीं। राक्षसोंकी मुंड माला पहनकर अनेक प्रकार के अस्त्रों, शंख, चक्र, गदा, कुल्हाड़ी, तलवार, फ्सी, चनुप वगेरह से घिरी हुई, बस माताजीने हमें पूर्णात्पसे मंत्रमुग्ध कर दिया। शायद अनकही प्रार्थना के अनुरोध पर ही माताजीने कहा "क्या में अपने सारे हाथों का प्रयोग कर्रू"। सारे शस्त्रों को धारण किये हुए श्रीमाताजी के नेत्रजड़़ित एवं लाल हो गये और उनका दर्शन करना मुश्किल हो गया हमें पेसा लगा मानों किसी छोटे जानवर का ध्यान पूरी तरहसे उसके प्रिय स्वामी के ऊपर केन्द्रित है जबकि मालिक उसकी समझ के बाहर कोधित हो। पूजा की समाप्ति पर सभी सहजयोगियों को सारे नकारात्मक लोगों और शवितयों के नाश के लिए प्रार्थना करने को कहीं| यह बहुत बडे राहत की बाद जब हम माधा टेकने झुके तो श्रीमाताजीने कहा कि इतनी तीव्रता से "इच्छा करो, इच्छा करो" कि शुध्ध इच्छा शवित अधिक गहनता में रूपांतरित होने को उत्साहित हो सके। पूजा के पश्चात श्रीमाताजीने कार्यक्रमों की सफलता और सहजयोग संस्थाओं के लिए बै " पूरे हृदयसे काम करनेकी महत्ता को समझाया और कहा कि पिछले शाम के कार्यक्रम का प्रचार अच्छी तरह से किया गया था और कोशिश जोश में परिपूर्ण धी। उन्होने कई बदलाव सुझावित किये और अमेरिका में हसहजयोग की उन्नति के लिए रास्ता साफ कर दिया। वर्न किस कनाडा के और करन खुराना अमेरिका के नेता होंगे डेविड इनफी सेनडियागो की देखभाल करेंगी, करोलिन केस न्यूयार्क की और जोआन ही कॉकर बोस्टन की। लॉसएन्जलीज और सेनफंसिसको नये क्षेत्र होंगे, जिनकी बढ़ोत्तरी की जाएगी। -15 श्रीमाताजीने कहा कि पश्चिम की रंग भेदनीती बहुत बड़ी समस्या है, जो इसे अपनाये हुए हैं वे सहजयोग में टिक नहीं सकते । चर्म -गहन सहजयोगिय्यों को आज्ञा नहीं है। उन्होने कहा कि अगर ऐसी कोई भावना हमारे अन्दर है तो इसे दूर करें। "मेरा चेहरा साफ रंग एक नाम है कि उनके का हो सकता है परन्तु मेरे हाथ काले है" श्री महाकाली का यह भी हाथ काले है। 19 जून के दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रम में श्रीमाताजी के आगमन तक डेविड स्प्रीओने सहजयोग के विषय में लोगों को जानकारी दी। भाषण के उपरांत श्रीमाताजीने करीब ।600 लोगों को "जागृति" दी हइसके बाद उत्साहित तथा अनुरागित खोजियोंने श्रीमाताजी से पक एक करके मिले, प्रणाम किये और सेनडियागो में पधारने के लिए धन्यवाद दिये। श्रीमाताजी खोजी जर्नोकी उत्तमता पर बहुत खुश धी और उन्होने बताया कि सेनडियागो का अर्थ है "देवताओं का शहर"। भाषण देते समय श्री माताजीने आस्वासन दिया कि सहजयोग का आठ सप्ताह का पाठ्यक्रम होगा। उपरांत कार्यक्रम में करीब 80 लोगों ने भाग लिया जो कि बहुत ही अच्छा तथा उत्साहव्र्यक धा श्रीमाताजी ने 20 जून को दो संवाददाताओं से दो घंटे की भेट वार्ता की जिनको अन्त में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। उनमें से एक महिला लेखिका थी तथा दूसरी स्थानीय साप्ताहिक पत्रिका से थी। श्रीमाताजी इस भेट वार्ता सें बहुत सन्तुष्ट थी तथा उन्होने बताया कि पाश्चात्य समाचार पत्र का यह सबसे अच्छा व्यवहार था। भेट वार्ता के बाद श्री माताजी अपनी पौत्री तथा कुछ सहजयोगियों के साथ सरीदारी के लिये गयी अमेरिका की नाभी स्कच्छ करने के लिएह करन और डेविड ने इस कार्यक्रम की सफलता के उपलक्ष्य में श्री माताजी को पीजा के रात्रि भोज के लिए ले गये श्रीमाताजी ने प्रेमपूर्ण मुस्कान के साथ कहा कि ऐसा स्वादिष्ठ पीजा उन्होने कमी नहीं खाया था। सखरीदारी के बाद श्रीमाताजी का स्वागत उनके निवास स्थान नये सहजयोगियों के साथ केसा पर संगीत के साध किया गया। श्रीमाताजीने बैठने के बाद, व्यवहार करना चाहिए, इसपर बहुत ही हार्दिक वार्ता की । उपसांत कार्यक्रमों के लिए श्री माताजी का सुझाव श्रीमाताजीने सेन्डियागों के उपरांत कार्यक्रमों के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये :- प्रत्येक सहजयोगी को एक अच्छा उदाहरण तथा गरिमा प्रस्तुत करना चाहिए। सामुहिकता की शक्ति दिखाइये : सहजयोगियों के बीच में कोई वाद-विवाद नहीं होना 2. चाहिये। उदाहरण स्वरूप जब आप लोग किसी चक के पकड़ जाने के विषय में बात कर रहे के 16 पत्नी के बीच के मनमुटाव का अनुभव नहीं हैं तो पकमत होना चाहिए। इन लोगों को पत होना चाहिए। सभा में बच्चे नहीं आने चाहिए। 3- अलग 2 समूह में बैठकर, सहजयोग सहजयोगियों की सभा में आदमियों और औरतो को 4- के अनुभव को आपस में बाटना चाहिए सहजयोगी लोग उनको श्री माताजी के तथा उनके चमत्कार के विषय में बता सकते है तथा उनको आश्चर्यचकित फोटो दिखा सकते है । नये लोगो के विपय में सब कुछ जानने की कोशिश करें । उनको बहुत अच्छी तरह 5. समझे और जाने। अगर नये लोग अपनी समस्या बताये तो उनके साथ दया और समझदारी दिखाये। 6- आप उन्हें बतायें कि हमारे साथ भी ऐसी समस्या धी, चाहे पूर्ण सही हो या न । उनको भूत प्रेत तथा नकारात्मता के विषय में बाते करके मत इराओ। 7. अपने आपको बंधनदो। उनकी कुन्डलिनी जागृत करने या समझाने के पहले उनको ৪ । बंधन दो। नये लोगों के सामने न हँसे। वे तिरस्कारित महसूस कर सकते है। 9. श्रीमाताजी आदिशवित है उनको शुरू के दिनों में ही न बताओ। 10. चाय पिलाओं तथा मित्रता और स्नेह का वातावरण बनाओ। 11- श्रीगाताजीने 21 जून को लास ए्जेल्स की यात्रा की। उन्होने माताजी संध्या में महाराष्ट्रीयन संगीत का कार्यक्रम रखा, जिससे लास एम्जलीस के कुछ नये सहजयोगियों नें अतसुंदर लोक शैली में गाना गाया जिसमें प्रत्येक देवता का कुण्डलिनी जागरण के लिए आवाहन किया गया था, जिससे सब लोग आनीदत डो उठे। जैसेही गायक लोग श्री माताजी के चरण स्पर्श के लिए झुके, उन्होंने उनकी पीठ धप थपाया। श्रीमाताजीने उन सहजयोगियों को उर्दू जानते माताजी को आदिर्शाविति के रूप है, एक भारतीय सहजयोगीदूबारा लिखित कविता की टेप जिसमें में बताया है और श्रीमाताजी को अतिपसन्द है सुनने के लिए कहा। दूसरी सुबह श्री माताजी हवाई अड्डे के लिए प्रस्थान करते समय विदाई के शब्द इस प्रकार कहे :- "ध्यान करो ध्यान करो, ध्यान करो" लाइस वानगे और जेनिफर सेटे 8सेन्डियागो? मियागी - श्रीमाताजी वायुयान द्वारा लासपन्जलीस से 22 जून को मियामी पहुँची जहाँ पर -17- उन्होने पिछले साल की यात्रा के समय, कोलम्बिया जाते समय, जो बैतन्य लहरियाँ फैलाई धी, उसने उस स्थान को साफ कर दिया था। श्री माताजीने यात्रा के दौरान बाबेटा से मिलने की इच्छा प्रकट की थी और बाबेटा अपने आप कार्यक्रम बनाकर अन्तिम क्षर्णों में वहाँ पहुँच गयी। हालांकि संपूर्ण पूर्वी तट मौसम की सराबी से बन्द था जो कि श्रीमाताजी के गले में जो कुछ अड्डे पर तीन घंटे महसूस हो रहा था उसकी प्रतिक्रिया थी, और बाबेटा को न्यूयार्क इवाई तक इन्तजार करना पड़ा परन्तु वह फिर भी समय पर पहुँच गयी| डा.बोगडन इग्लैण्ड से इसी कारणवस देर से पहुँचे। वे बहुत आश्चर्यचकित थे कि किस प्रकार पक पुलिस आफिसर नें रात्री में केस के मध्य में पहुँच कर जही पर न तो फोन या सडक है यह सूचना दी कि आपकों आपकी माताजी हश्री माताजी आपसे अमेरिका में मिलना चाहती है। उन्होने उसी समय सब इन्तकाम किये और वहाँ पहुँचे। पैट्िक फोर्ट साउडरडेल ड्रेमियामी के नजदीक के एक अकेले सहजयोगी थे, इसीलिए पूर्वी और पश्चिमी तट के बहुत से सहजयोगियों ने आकर उनकी सहयता की। सुबह के समाचारपत्र में विजली की एक लकीर का चित्र छापा था जिसके विपय में पेट्रिक ने बताया कि माताजी के पहुँचने के पूर्य, यह बार बार दिख रही थी। इस बिजली की लकीर और बिजली तथा गड़गडाहट के साथ वाली आंधी ने जगह को साफ करने में तथा माताजी के आगमन में सहायता की उन्होंने माताजी को मियामी की समस्या इग की सास तौर से के विषय में बताया जो श्रीं माताजी के ध्यानद्वारा हल हो सके। इआाद में 5जुलाई को न्यूयार्क समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ कि फोर्ट लाउडर में पुलिस ने 200 ड्रग सम्बन्धित लोगों की धर पकड़ की है।। शाम का कार्यक्रम रामदा इन होटल मे आयोजित किया गया था जिसमे करीब ।50 लोगों ने भाग लिया तथा आत्साक्षात्कार प्राप्त किया। उनके भाषण के उपरान्त एक कटरपंथी ईसाई ने बाइबल से बिना समझ के उदाहरण देने लगा गरन्त श्री माताजी ने जोरदार और दृढ विश्वास के साथ काइस्ट के विषय में बताया, उससे वह पूरी भीड़ दंग रह गयी और सब लोगों ने यह देखकर खूब तालियोँ बजाई। काफी लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया जिनको आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति नहीं हुई वे लोग मंच के ऊपर आकर प्राप्त किया तथा माताजी को कन्यवाद दिया। बोगोटा श्रीमाताजी का बोगोटा में पहुँचने पर हवाई अड्डे पर जोरदार स्वागत किया गया। श्रीमाताजी के कार्यक्रम में पिछले साल भाग लिए थे, उनका स्वागत करीब 50 सहजयोगी जो करने को हवाई अड्डे पर एकत्रित थे। उन्होने श्री माताजी के स्वागत मे कोलम्बियन लोकनृत्य 18 पेश किये। श्री माताजी ने बताया कि यह लोकनृत्य महाराष्ट्र के लोकनृत्य से मिलता जुलतहै। पूजा, जो रविवार दोयहर को होनेवाली थी, समाचारपत्र दुरदर्शन से भेटवार्ता होने के कारण, दूसरे दिन के यह कार्यक्रम बहुत अव्छा हुआ और उन्होने जोश तथा अन्य ठारा लिए स्थगित कर दी गई। गाये हुए भजन का अभिलेख हरिकार्ड किया। साढ़े चार मिनट का अभिलेखित कार्यक्रम राष्ट्रीय आकाशवाणी पर मुख्य समाचार समय मे प्रसारित हुआ जिसके अंतमे सावीजिक कार्यक्रम के समय क और स्थान की घोषणा की गई। हाल सचासच भरा हुआ था तथा करीब ।। 00 लोगों ने जागृति ली जिनमें से करीब 80 लोगोंने माताजी के " उपरांत कार्यक्रम " मे भाग लेने के लिए दोपहर के बाद छुटुटी ली। उस दिन कोलम्बिया में सहजयोग की बढ़ो-तरी के लिए गणेश पूजा कीगई । ब्राजील - डुइलो ने सलवाडोर तथा ब्रासिल के कार्यक्रम का आयोजन किया जिनमे कमशः 600 और ।500 लोगों ने भाग लिया। सलवाडोर में श्री माताजी ने डुलियों के आतिथ्य का आनन्द उठाया । 800 पंध हैकल्टस और घर्म है। सहजयोग য্राजिला ब्राजील की राजचानी है जहाँ पर ৪ 0। वा है।08 का उल्टाई पंजीकृत हुआ। समाचार पत्र में अच्छे लेख लिखे गये और बहाँ की सरकार ने श्री माताजी के दौरे मे सहायता की। रियो में बुनो तथा जुआन १आस्टेलिया का सहजयोगी एक अर्जेन्टेनियन : ने कार्यक्रम का आयोजन किया। श्रीमती ब्रनो जापानीय सभ्यता और दक्षता की पक अच्छी उदाहरण थी और श्री माताजी ने अपने अपने पड़ाव के दौरान उनके दारा की गई अचछी सैवा के लिए धन्यवाद दिया। अगले साल श्री माताजी उर्गवे, चिली और इक्वेडर की यात्रा करेंगी। श्री माताजी ने कहा कि डुलियो तथा ब्िगेटे ने सहजयोग में ज्वलंत नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया है उन्होने पूरी निष्ठा और आस्था के साथ अपने सर्च की परवाह न करते हुए शील दक्षिणी अमेरिकी की यात्रा की सफलता के लिए काम किया। इलियो अपनी वफादारी और अथक प्रयत्न के लिए अशिवादित हुए जिससे कि ब्राजीन में दैवत्य का जोरदार आगमन हुआ और उनको एक होटल बनाने के लिए 50 लाल डालर का ठेका मिला। न्यूयार्क की पुनः यात्रा श्री माताजी जुआने के साथ 4 जुलाई की सुबह को न्युयार्क पहुँची और संसारभर के सहजयोगियोने उनका स्वागत किया उन्होने हाथ के बने चमड़े के सुन्दर उपहार ब्राजील से लाई थी, महिलाओं रामते 19 - के लिए हाव का झोला और पुरूषों के लिए ओवर नाईट वरग। दोपहर के बाद मैनहाटन के भिन्न भिन्न निर्वासियों को जागृति दिलाने का कार्यक्रम श्री पुरेन्द्र चटर्जी के निवास पर आयोजित किया गया। शाम का समय यू एन प्लाजा होटल के एक कमरे में, जहाँ से हडसन दिखाई देता है, व्यतीत किया। श्री माताजी के पूजनीय संसर्ग में अंतिशवाजी की प्रदर्शनी से हम लोगों का स्वागत किया गया, उन्हाने ने सहजयोगियों के साथ रहना प्रसन्द किया और न्यूयार्क की समस्या और उसके समाधान के संक्षिप्त भाषण दिया। बातचीत टेप पर प्राप्त है। यूएन का कार्यक्रम दोपहर के बाद ।230 से ।500 बजे तक हुआ। 30 में से ज्यादातर राजनीतिक दूर्तोने, जिन्होने कार्यकृम में शामिल थे, उपरांत कार्यक्रम के लिए अपना नाम लिखवाये। शाम की शरीमाताजी अपनी पौत्री, आराधना के साथ यू के हइग्लैन्ड वापस आ गई, इस तरह सफल तथा चकवात पूर्वा अमरीकी यात्रा समाप्त हुई। हनल ऑस्ट्रेलिया में रेडियो सहज धूपपूर्ण ब्रिसबेन में श्रीमाताजी की कृपासे वात्सविक उत्साहपूर्ण चीने हो रही है। सहजयोगियोंद्वारा दो कार्यक्रम रेडियो 4 3 जैड जेड जेड़ दक्षिणी क्वींसलैन्ड में प्रसारण का नौजवानों का एक स्टेशन पर प्रसारित होनेवाले है या हो रहे है हर शुकवार दोपहर बाद 2.30 बजे आधे घंदे के कार्यक्रम "बिग वाइडवर्ड जासन कोपेनलेन्ड के बिदेशी मामले " और "आन्तरराष्ट्रीय संबंधो का पुनःदर्शन"। इससे श्री सी पी. श्रीवार्तव के गणपतिपुले के पिछले किसमस के भाषण, जिसमें उन्होने बताया कि दुनिया में सब जगह शांति बढ रही है, का आंशिक अंश प्रसारित हुआ। आशिक रूप से कार्यक्रम के कारण हम लोग रेडियों स्टेशन से सहजयोग के दूसरे आधे क्ी घंटे खंड के साप्ताहिक कार्यक्रम के लिए संबंध बनाये है। इस कार्यक्रम? के लेखन तथा हुए संक्षेप का कागज पर लिखने के लिए हम पहले से व्यस्त है। इसका नाम "2। वी शताब्दी जो सभी चाम्मिक तर्क वैज्ञानिक, नैतिक, संसार के इतिहासिक तथा दूसरे की उडान" होगा, वर्णन करेगा और इस तरहसे नियोजित होगा कि सहजयोग को उच्च कोटि का प्रसारण प्रदान करेगा। इमारी इच्छा है श्री माताजी के सितम्बर के दौरे के पहले यह कार्यकम चालू रहे । दुनिया के दूसरे सहजयोगी इसकी मदद कर सकते है । अगर किसी के पास कुछ हा, आपके पास है लाभदायक पदार्थ है तो हमे सब कुछ चाहिए जो मिल सके। दो खास जरूरते जासन के कार्यक्रम के लिए दुनिया के मामले का सामान चाहिए इसलिए अगर किसी के पास टेप पर या लिखित माताजी का हया सर सी पी का भाषण हो, जो इस विषय से र 20 संबंधित हो सामाजिक उत्थान और पृथवी के देशों का चक्कों से संबंध वर्णन सहित हो, तो उसके प्रतिलिपि का अत्याधिक स्वागत होगा। और 2 । वी शताब्दी के लिए कोई भी लिखित विचार श्रीमाताजी के श्दो का जो रिकार्डेड या प्रिन्टेड हो या न हो परन्तु जो कि पूर्ण लेख रूप में बनाया गया है इन समी का पूर्णरूप से स्वागत होगा। 4 मेड जेड जेड नवयुवकों का स्टेशन है और हमारा संड हस्लाट दिन में है, हम इसे तीत गतिशील तथा अपौरिचारिक रखना चाहेंगे परन्तु हम लोग गहन अनावरण और व्याख्या जो सब तरह के अच्छे चैतन्य लहरी के संगीत तथा खोजी संदेश युक्त हो, को देने बाले है। इसलिये कृपया उत्पादन किभाग की सहायता करे :- जासन कोपलेन्ड 29 हाथटन स्ट्रीट, रेड हिल, ब्रिसबेन, क्वीन्सलैन्ड 4059आास्टू्लिया। टेल ह7 उ69 8849 हमारी मनोकामना है कि श्री विश्युमाया चैतन्य लहरी को आकाशवाणी पर रखने के हमारे प्रयत्न को मार्गदर्शित तथा आशिर्वादित करे और हमारा काम श्रीमाताजी को आदि्शविति के रूप में औीतम मान्यता दिलाने में मदद करे और पूरी दुनिया को उसकी स्वतंत्रता के संदेश को तीव्रतासे प्रसारित करने में परिणित हो । जासन कोपलेन्ड, आस्ट्रेलिया महत्वपूर्ण बात :- ) माँ ने सहस्त्रार 5 मई ।970 में बोर्डी से 7 कि. मी. उत्तर में नारगोल हभारत में लोला था। ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-0.txt चैतन्य तहरी अंक 7 संड । हिंदी आवृत्ती क हा ভ ० अने परमपून्य माताजी श्री निर्मलादेवी का ১ ि टा सा 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-1.txt ० चैतन्य लड़री हिन्दी अवृत्ति संड । अंक 7 श्री महाविराट पूजा, न्यूयार्क, ।। संकलित अंश? जून ।9 89 के रूप में पूजने श्री महाविराट पूजा, श्री कृष्ण की भूमिपर, श्री माताजी को महाविराट श्री विष्णु का सबसे महत्वपूर्ण अक्तार "विराट" रूपमें है। श्री का यह हमारा सुअवसर था। माताजी ने हमें समझाया कि अपने मस्तिष्क के अन्दर श्री विराट की पूजा करने का यह अवसर है क्योंकि श्री कृष्ण ही महाविराट है। हमारे मस्तिष्क की सम्पूर्णता ही विराट है परन्तु यथार्थता हमारे हुदय में निवास करती है । यह यथार्यता ही सम्पूर्णता की सूक्ष्मता है। इहृदय और मस्तिष्क फी एक जुटता न होना भयानक है, अगर मस्तिष्क का पोषण इृदय से नहीं होता है तो मनुष्य बहुत बाहय- व्यस्त इक्सटोवर्ट ै और निर्दयी हो जाता है। जब हरसिर्फ१ हृदय का शासन हो तो मनुष्य सुद- व्यस्त और आलसी बन जाता है। है विशाल देश जो की खोजी लोगोंसे मरपूर श्री माताजी ने कहा कि यह बड़ा और जब नकारात्मक शवितयों के जाल में फैसा हुआ है। यहां के निर्वासियों का जीवन अध्म, निरर्थक चपलता, दिखावेपन से भरपूर एवं अर्थहीन है । उन्होंने समझाया कि अमेरिका और दूसरे पाश्चात्य देशों में बायीं और हइडा नाडी की कियाशीलता दायीं तरफ से अत्यधिक कार्यशील है। यह प्राचीन काल में पाश्चात्य लोगों दारा की गई शासन १ प्रभुत्व ई की एक प्रतिक्रिया हैं। परिणाम स्वरूप उन लोगों ने आलसीपन को अपनाया हैं। अधिक सम्पन्नता भी खुद -व्यस्तता को जन्म देती है जो कि लोगों के बास्तावकता के प्रति अंथा बना देती है। यथार्वता हृदय में होने के बाकजूद कार्यों दारा व्यक्त होनी चाहिए। इसे कार्यवान्वित करने के लिए हमें और ज्यादा गतिमान बनना चाहिए। श्री माताजी ने समझाया कि आत्मसाक्षात्कार के पहले के हमारे संस्कार जब भी हममें खत्म नहीं हुए हैं बल्कि वे और अधिक सूक्ष्म हो गये हैं हमारे संकीर्ण विचारों और छोटी-छोटी व्यव्तिगत समस्यायों में उलझने के कारण हम एक बड़े जाल में फँस जाते हैं। "विराट" बनने " और स्वयं की हमें बिना किसी कोध या डाइ के, स्वयं को पूर्णरूप से जाँचना होगा के लिप बृध्दि के लिए कुछ करने का निर्णय लेना होगा। हम ये कह सकते हैं हम माँ से प्यार करते हैं 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-2.txt 2. परन्तु हम, इसके लिए क्या कर रहे हैं? पक बार डम स्वयं को अन्दर से बनाना शुरू करें तो सब कुछ आश्चर्यजनक तरीके से घटित होने लगेगा और सहजयोगी बहुत महान बन जाएंगे। बाहय जगत में भी सहजयोगियों को कुछ बनकर दिखाना होगा, उनका शिक्षित होना आवश्यक है तथा समाज में भी उनका १आदरणीय स्थान होना जरूरी है। श्री माताजी ने जोर देकर कहा की अमेरीका में सहजयोगियों को दौँय पक्षी राईट साइडेड होने का भय त्याग देना चाहिए, जो आलसीपन की तरफदारी करने का सिर्फ एक बहाना मात्र है परन्तु उनमें अनुशासन होना चाहिए, जल्दी उठना, स्नान करना, पूजा करने के लिए बैठना, जीवन के तौरे तरीकों को बदलना चाहिए एवं वीर की भति गतिशील जीवन जीना चाहिए। श्री माताजी ने कहा कि इंग्लैण्ड और अमेरीका के ज्यादातर सहजयोगी विधिल हैं और सहजयोग को फैलाने का उत्तरदायित्व अपने कंथो पर लेना नही चाहते। उन्होने कहा, "यहीं पर तपस्या है, जहाँ हम रहते हैं। यहीं पर हमें वैराग्य हंडिटैचमेन्ट को कार्यान्वित करमा है। " हममें श्री माताजी के पदचिन्हों पर चलना चाहिए और सहज योग के लिए कड़ी मेहनत हमें अपने पुरातन संस्कारों को उसी तरह से त्यागना चाहिए जिस तरह से करनी चाहिए । एक फूल फल बनते समय अपने विभिन्न अंगों को त्यागता है यह हम्में सम्पूर्ण दिव्य ज्ञान को स्वतंत्र स्प से देसने की क्षमता प्रदान करता हैं । इसके लिए हमें किसी चीज़ को त्यागने की आमश्यकता नहीं है, केवल सहजयोगी के रूप में अपनी अक्स्था के प्रति सचेत और जागृत रहना हैं। "प्रत्येक व्यक्ति को ऊपर उठना हैं " उन्होंने हमसे सहजयोग के विषय में और खुलकर बात करने का अनुरोधकिया। सहजयोगियों को उन सामाजिक नेताओं से सम्पर्क बनाना चाहिए जिनके उचित विचार हैं। परन्तु यह आवश्यक है कि सडजयोगी सहजयोग के सन्दर और मोहक गुणों को प्रतिबिम्बित करे ताकि संचार पूर्ण रूप से कार्यान्वित हो सके। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि हम सहजयोग पर कोई उपकार नहीं कर रहे है, अपिजु हर एक व्यकि्ति को अकेले आर सामूहिकता में सहजयोग की जरूरत है। श्रीभाताजी ने कहा कि प्रत्येक सहजयोगी के पास उनके हभापण की बहुतसी "टेप" होनी चाहिए ताकि वे उसे समझ सके और अपने आप को उस ज्ञान की स्वतंत्रता में ढाल सके। उन्होने अनुरोध किया कि हम सब अपने हृदय से प्रार्थना करे कि "हम उस तथ्य को जो कभी विराट धा अपने जीवन में यथार्थता के रूप में प्रकट कर सके"। मौलिक अगरीकी धार्मिक जीवन वीताना जानते थे । वे बहुतही स्वतंत्र और वैराग्यवृत्ति हडिटेचट्ड के थे। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-3.txt अगर हम स्वयं को न सुधार सके तो सामूहिक स्तर पर समस्यापै सड़ी हो जाएगी, अगर सामूहिकता में समस्याएं है तो वे संपूर्ण जंगो पर हसमाज के अपना प्रभाव प्रतिबिम्बित करेंगी । हम सब को विराट बनना है, अपनी योग्यता जताने के लिए तथा अधिक गहराई में जाने के लिए जिससे अपने को तथा इस देश समाज को बदल स्ें। श्री महाकली पूजा भाषण ककोवर, 17 जून ।989 महाकाली तत्व सबसे पहले इस पृथच्वी पर आयी उन्होने श्री गणेश का निर्माण किया। फिर श्री महासरस्वती ने एक सुन्दर सृष्टि की रचना की और मनुष्यों के लिए विल्कुल उपयुक्त तापमान बनाया। जलवायु ने लोगों के खोजने की शक्ति को प्रभावित किया भारत ध्यान-चारणाके लिए उत्तम है और सत्य सोजनेवालों के लिए का तापमान एक अच्छा बातावरण प्रदान किया, जिन्होने सत्य को पहचाना और कुंडलिनी की सोज की । স্न लोगों ने फिर अलग-अलग होकर विश्वविद्यालयों की शुरूआत की। 5 साल की उम्र होने पर बच्चों को पाठशाला में भेजा जाता था पाठशालाओं में क्षात्रों ने ब्रह्मचर्य जीवन का निर्वाह किया। यह परम्परा आज तक निभाई जाती रही है। भारत में एक ही विश्वविद्यालय के विदार्थी क्ादी नहीं कर सकते थे। इस तरह मुलायार को शक्तिशाली रखा गया, जबकि दूसरे देशों में इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जिन लोगों का मूलायार कमजोर है उन्हे जल्दी "पकड़" होती है। इसी कारण सारे झुठे गुरू पाश्चात्य देशों में आये और बहुत सफल हुए परन्तु अब ज्यादातर ये लोग नष्ट किये जा चुके है। हमारे भीतर की महाकाली श्क्ती ही हमें प्रबल बनाती है क्योंकि वह ही श्री गणेश है। श्री गणेशजी के है। भाव, जैसा कि कार्बन अणु में दर्शाया गया है, स्वास्तिक जीर ऑकार जब स्वास्तिक घड़ी जैसा चक्कर करती है तो निर्माण होता है और जब वह घडी के बिपरीत घूमती है तो विधटन होता है श्री माताजी ने कहा कि पाश्चात्य देशों में मूलाधार व्यभिचार के कारण घड़ी के विपरीत दिशा में चक्कर कर रहा है । श्री माताजीने कहा कि पश्चिमी देशोंमें मुश्किल यह है कि लोग सुनना ही नहीं चाहते कि उन्हे नैतिक होना चाहिए अनैतिकता का परिणाम "एडस्" और दुसरी विमारियां है जिनसे वे लोग सीख रहे हैं परन्तु वे यह स्वीकार नहीं करना चाहते है कि उन्होंने गल्ती की है । फिर भी, क्योंकि वे सत्य खोजी है, उनकी रक्षा करनी है। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-4.txt सहजयोग कोई तीव्र आनन्ददायक अनुभव नहीं है जो आपके भीतर किसी द्वारा आत्मा डालने से होता है उसे तो थीरे घीरे उन्नत होना है । हमे निराश नही होना चाहिए अपितु स्वयं से संतुष्ट और पूर्ण विश्वस्त महसूस करना चाहिए सहजयोग के लिए उत्तम योग्यता के व्यक्तियों की जरूरत है, ऐसे संत ही किसी देश के लिए सोभाग्य लाते है। हमें ध्यान घारणा तथा सामूहिक वार्तालाप द्वारा गहनता में वृध्दी करनी चाहिए। श्री माताजीने कहा कि अति |ा महान कार्य होना चाहिए नकारात्मक व्यक्तियों को प्रथंक किया जा रहा है। परन्तु हमें नकारात्मक निराशाबाद को भी अपने अन्दर नही आने देना चाहिए। अगर कृछ उत्तम योग्यता के व्यव्ति कार्यक्रमों में आये तो यह हजारो ेसाचारण मनुष्यों के अनुभवोसे ज्यादा उपयोगी होंगे श्रीमाताजीने हें बहुत शक्तिशाली गणेश् शव्ति के लिए प्रार्थना करनेको कहा है। यह शवित इमारी नकारात्मक शव्ति को नष्ट कर देगी। श्री महाकाली पूजा, सेनडियागो, 19 जून ।989 की प्रतिबिम्ब है। वेसर्वशक्तिमान सदाशिव की इच्छा सम्पूर्णतया श्री महाकाली आदिशवित शक्ति है। हम सहजयोगियों को यह समझना चाहिए कि उन्ही की शकव्तियों के कारण हम किसी भी चीज की अभिलापा कर सकते है। हमें यह इच्छा करनी चाहिए की सारी नकारात्मक शव्ितयाँ जो हमारे उत्थान के विरोध में है, उनका नाश हो ताकि श्री महाकाली हमारे उत्थान के निर्माण कार्य को जारी रस सके। उन्हे दैवी निर्माण कार्य के विरुध्द काम करनेवाली शव्तयों का विनाश करना है। श्री माताजी ने हमे बताया कि हर सुबह घ्यान के ववत सहजयोगियो को श्री गणेशजी का नाम हुजैसे श्री गणेश अथर्व या ।08 नाम ह दोहराना चाहिये जो श्री महाकाली की शबती है। हमे कहेना है "मेरी इच्छा क्या है? यहा मेरा लक्ष्य है" इस तरह के अभ्यास से हमारी शुध्द इच्छा बढेगी और केनद्रित डोगी। उन्होने यह भी कहा कि अधमने लाग सहजयोग को कार्यान्वित नही कर सकते क्योंकि सहजयोगियों में निम्नलिखित 4 गुण होने चाहिए। प है । ४ साहस ৪28 गहन इच्छा ह4४ मंगलकरण 3 ड ज्ञान उन्होने समझाया कि इमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। सहजयोगी बनने के उपरांत हम अधिक स्नेही बन जाते हैं परन्तु पश्चिम में भी, जहाँ लोग अपने परिवारों पर अधिक महत्व नहीं देते, केवल अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते है, कारणवश वे स्वार्थी बन जाते है। इस स्वार्थपरता से ध्यान हलका पड जाता है और लोगों को अपने उत्थान के प्रति अथमना 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-5.txt 5. हाफडारटेड बना देता है। उन्ह़ोने बताया कि किस तरह बच्चों पर देश या घर्म के संस्कारो की मुहर लग जाती है , जिससे गलत निशानी स्थापित हो जाती है। इससे दूसरे संस्कारवालोंसे अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है। हम समाज के रीतिरिवाजों को स्वीकार कर लेते है जिससे संस्कार बन जाते है। इस कृतिमता के प्रति करिया स्वरूप ऊपर उठने की शुध्द इच्छा एवं संस्कारों पर विजय पाने की इच्छा हमारे अन्दर जागृत होती है। उन्होने जोर देकर कहा कि आत्मसाझात्कार प्राप्त होने के लिए हमे महाकाली शक्ति को विकसित करना होगा ताकि उन सभी बाधाओं का, जो हमें आत्मा बनने से रोकती है, नाश हो सके। हमारे भीतर छः शत्रु है और श्री महाकाली उन सभी का नाश करती है परन्तु हमें यह देखना है कि हम उनसे चिपके हए नही रहते। हमारे में यह भावना होनी चाहिए कि " हम वह प्राप्त करना चाहते हैं और वह इसे कार्यवान्वित करने का कार्य कर रही है"। श्री महाकाली हमें शारीरिक और आत्मिक सुख देती है और फिर आनन्द प्रदान करती है। अतः महाकाली शवित को शक्तिशाली होना चांहिए इसके लिए पहले मूलाधार को शव्तिशाली बनना होगा। जब किसी सहजयोगी की इच्छाशकित और नीव मतबूत हो तो इच्छा आकाश में पतंग है। हर इच्छा की पूर्ति होती है, शुध्द आनन्द में जब तक कि पूर्ण के उडान की तरह डीलती अनिव्छा की स्थिति प्राप्त न हो जाय, जहाँ किसी अन्य चीज की जरूरत ही की न महसूस हो। मातृदिवस के दिन माँ का संदेश सहस्त्रार दिवस एवं श्री बुध्द पूजा के बीच का पूरा सप्ताह, मातृ दिवस की शुभ बघाई का संदेश देने के लिए यू के ह ं द्वारा हजारों इग्लैंड में श्री माताजी का घर विश्व के सारे देशों पुष्पी से भर गया धा। उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा आशिर्वाद है कि पार्चात्य संस्कारी दुनिया में लोग अभी भी माँ को याद करते है एवं धन्यवाद देते है। सहजयोगियों दूवारा भेजे गये सुन्दर कार्डो जिन्हे बहुत से सहजयोगी बच्चों ने बनाये थे, को पढकर माँ के नेत्र आँसओंसे भर उठे। माँ सभी को अलग अलग धन्यवाद देना चाहती थी परन्तु काफी व्यस्त दिनचर्या के कारण हर एक को जबाब नही दे सकी। इसलिए इस अंक के दुवारा सभी को उनका हार्दिक आशिर्वाद एवं कन्यवाद पहुँचाया जा रहा है । सहजयोगियों द्वारा भेजे सभी कार्ड, पत्र, उपहार और फोटो को वे उचित स्थान पर सुरक्षित रस रही हैं जिससे वाद में उनके व्यकि्तिगत संग्रहालय में रखा जा सके। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-6.txt 6. श्रीमाताजी की बमेरिका यात्रा माग । जैसे अमेरिका की यह यात्रा आरम्भ हुई, अमेरिका सहजयोग के नये परिभाग में प्रवेश किया और श्रीमाताजी ने सभी स्तरोंपर उत्साहपूर्ण भाग लेने की इच्छा की लहर फैलादी, न्यूयार्क में श्री विराट पूजा के शुरूआत से आत्मसाक्षात्कार खोजनेवालों की संख्या में जिओ मेट्रिक स्तर पर बदौत्तरी हुई जो यात्रा के दौरान भी जारी रही। सिन्सीनाटी मे ।50 टोरेन्टो में 400, केकोवर में 800 और सेनडियागो में ।600 लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया। सबसे नये के्द्र मियामी में भी। 150 लोग कार्यक्रम में शमिल हुए थे। यहाँ तक कि युनाइटेड नेशन्स के उ30 राजनीतिक दूर्तों ने भाग लिया। जुलाई अमेरिका के 21 3 श्री विराट पूजा का प्रभाव तुरन्त ही स्पष्ट हो गया जब 4 वे स्वतंत्रता दिवस को अखबार में यह प्रकाशित हुआ कि माताजी के यात्रा के दौरान शीन ग्रह के अनूठे चित्र सीचे गये जिनमें शन ग्रह का रिंग साफ दिखाई देता है। यह पहली बार है कि पृथ्वी से विशुष्दी के ग्रह का फोटो सीचा गया जिसमे सुदर्शन चक्र साफ दिखता है । श्रीमाताजी विशेष प्रसन्न धी क्योंकि न कि यह पहली बार हे कि इस बार देश की सामुहिकता ने इतनी अधिक मात्रा में आगे आई वल्कि योगीजन भी गहराई तथधा श्रीमाताजी के साक्षात्कार के नये दौर में प्रवेश कर रहे थे । अमेरिका अब एक समन्वित देश जो अपने आगन के बाहर झाकने के लिए अपना सिर उठा रहा है तथा तैयारी कर रहा है ताकि सहजयोग की अन्तर राष्ट्रीय तरक्की में योगदान दे सके। श्रीमाताजी ने हम सभी लोगों को दृढविश्वासी और साहसिक होने का संदेश दया और आवहान किया कि सत्य खोजियों तक पहुँचे और उनके संदेश का प्रचार करे। यह हमारा कर्तव्य है कि सारे संसार को यह अवसर प्रदान करें और इसका परिणाम श्रीमाताजी के चरणों में समर्पित करें। हमे नियगपूर्वक गहनता में उत्तरने के लिए ध्यान-धारणा करना चाहिए, और सहजयोग हमारा प्रधम कर्तव्य होना चाहिए। श्रीमाताजी इग्लंड में ।6 वर्ष रह चुकी है और जैसा कि विमिन्न चलते केन्द्रो के समाचारों से प्रमाणित होगा कि अब विशुष्दी चक्र को स्वयं रूपांतरित चा होने का समय आ गया है। श्री विराट पूजा और सेमिनार हप्तों की तैयारी के उपरांत, अमेरिका, कनाडा और बाहर के देशों से 150 सहजयोगी बेनटम, कनेक्टीकर में श्री विराट पूजा तथा श्रीमाताजी के दौरे के शुरूआत के लिए एकीत्रित हुए और श्री माताजी की अमेरिका यात्रा शुरू हुई। हमसे कडयों का सप्ताहांत न्यूयार्क शहर की तेज 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-7.txt 7. अड्डे पर पहुँची वर्षा के दौरान शुरू हुआ। इस घंधोर तूफान के बीच श्रीमाताजी कनेडी हवाई और आन्दित सहजयोगियो ने उनका स्वागत किया। हवाई अड्डेपर फूल बेंचने वालों का सब फूल उसी क्षण बिक गया क्योकि सहजयोगियो ने श्रीमाताजी का स्वागत फूलों के गुवछों से किया | पाल जब तक श्रीमाताजी ने नजदीकी न्यूयार्क आश्रम में आराम किया, सहजयोगियोने कनेक्टीकर में झील के किनारे के शिविर की करीब डेढ घंटे में यात्रा की । प्रत्येक सहजयोगी रातभर मिगोनेवाली वर्षा में, जो कि माताजी व्दारा पूजा की तैयारी और सफई हेतु भेजी गई थी, उत्साहित रो दूसरे दिन जैसे ही सहजयोगी शिविर के बाहर सडकपर एक पंवित में श्रीमाताजी के आने के पूर्वज्ञान में खडे हुए, सूर्य ने उनका स्वागत किया। गाते हुए उत्साहित सहजयोगी जिनके आगे एक गाड़ी में संगीतकार बैठे हुए थे, माताजी के कार के सामने नाचते हुए झील के किनारे स्थित निवास स्थनपर पहुँचे। यह शेभा यात्रा अमेरिका में पहले किस्म की धी। अपने आगमन के कुछ समय उपरांत ही माताजीने उत्तरी अमेरिका के सहज? नेताओं से मिली। उन्होने बताया कि नये सहजयोगियों का न होना आप लोगों की गहराई की कमी को प्रतिबिंबित करता है। हमें निराश न होने के लिए वताया गया क्योकि श्रीमाताजी ही किकार हैं और हम सब हपेन्ट, बुश१ इस नाटक के यंत्र है, पेन्ट, बुश बुरा कैसे महशूस कर सकता है? हमें अपने अन्दर और गहराई में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि खेजीजन हमारी एकता में कुंडलिनी की गहराई को महशूस कर सकें और उसके उपरांत अपने अन्दरईश्वर का महशूस कर सकें। योगियों ने अपने दांई और बांई ओर को साफ करने के लिए गाँ के धर के बाहर तौर पर गिलने का मौका गिला और पूजा ध्यान रखना जारी रक्सा। दोपहर उपरांत अनीपचारिक की तैयारी के लिए हवन का आयोजन किया गया। अमरीकी महिलाओं दारा बनाया गये कागज के सुन्दर फूलोंसे सुसज्जित महाकक्ष में संध्या के समय अनेक विमिन्न प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम हुए। न्यूयार्क और बोस्टन के सहज योगियों ने अमरीकी भारती गय और कविता संगीत के साथ पेश किया। श्री माताजी ने बताया कि पहले सभी देशों के मौलिक व्यक्ति किस तरह से कुंडलिनी के विषयमें अवगत ये और पहले किस तरह गोरों से काले अबोध अमरीकी भारती व्यक्ति मारे जाते थे। इस प्रोजेक्ट के खोज के दौरान यह पता चला कि वहाँ के मौलिक निवासी अमरीकियों की भाषा में " बनटम " का मतलब है " पूजा का स्थान " इसके उपरांत न्यूयार्क के बच्चौ ने उत्कृंति को दर्शाते हुए एक आधुनिक नृत्य पेश किया जिसके पश्चात टोरोन्टो की दो बाल योगिनियों ने अपने नृत्य शिक्षिका के साथ पवित्र भारतीय 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-8.txt ৪ - - नृत्य पेश किया। कैन्कोवर के वनीवलिस ने आयुनिक भक्ति संगीत के टेप और विडियो कैसेट प्रस्तुत किये। श्री माताजी ने बतायाकि प्रसिध्ध रॉक संगीत सत्य खोजनेवालो की सहजयोग के प्रति जागृत कराने का एक बहुत अछा साधन किस तरह से बन सकता है। उन्होने यह भी बताया कि अमेरिका में सहजयोग को सफल बनाने में "संगीत" एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकता है। कार्यक्रम की समाप्ति सेनडियागों के योगीनियों दारा की गई भारतीय नृत्य से हुई जिसमें प्रत्येक नर्तकी ने श्री माताजी के चरणों पर फूल अर्पण किये। संध्या का समय समृध्द भजन के साथ समाप्त हुआ जिसके पश्चात माताजीने कहा कि उन्हे पृथ्वी की बहुत गहराई से चैतन्य लडरियो ऊपर उठती हुई महशूस हो रही हैं। रही थी। तब घोषणा की गई सुबह जब हम उठे तो सारे शिविर को तेज हवा हिलोर कि श्री विराटपूजा होगी पूजा में माताजी ने बताया कि किस तरह अमरीकी मस्तिष्क की कई समस्यायें इस पूजा में समाप्त होगी। उन्होने इस विषय में विस्तृत जानकारी दी कि अभी किय ा तरह अमेरिका स्वयंग्रस्त और बाई ओर है, उन्होनें इन्गलेन्ड से इसकी तुलना की। यह अनिवार्य है कि अब हम गतिशील कार्य से केन्द्र चलायें। यह भाषण बहुत जोरदार था जिसका सारांश इस अंक मे शामिल किया गया है। श्री माताजी ने जोर देकर कहा कि हर योगीके पास इस और इसे वे सने। 108 अमरीकी-भारतीय वर्णों के भाषण के टेप की एक प्रति होनी चाहिए नाम पढ़े गये जिससे अमेरिकियों पर बाई तरफ के प्रभाव को सतम करने में सहायता मिले जो कि संहार एवं उपेक्षा के कारण भारतीयों की मृत्यु से प्राप्त हुए थे। पूजा के समाप्त होने पर श्री माताजी के चरणोपर हा्यों से बनी हुई चीरोकी मुरेठा अर्पण किया गया। यह कहा जाता ऐसा है कि श्री माताजी को भारतीयों पर किये गये अत्याचारों के लिए बहुत दुख महशूस हुआ, अगाथ दुख जिसे प्रकट नही किया जा सकता। इस महत्त्वपूर्ण पूजा के उपरांत माताजी को कई उपहार मेंट किये गये जिसमे अरजोना टरकोईस का बना हुआ एक हार और एश्राहम लिंकन की पक पेंटिग सामिल थी। वहाँ के सहजयोगियों वारा बनाई गई कई चित्रकारी भेट की गई। माताजी ने हमें कई सुबसुरत उपहार भेंट किये जिनमें पूलों की आयल पेंटिग भी शामिल थी । न्यूयार्क न्यूयार्क शहर की तरफ सभी का ध्यान गया और सामाजिक कार्यक्रमों की तैयारी के लिए कई सहजयोगी वापस अपने शहर लॉट आयें। न्यूयार्क में दो कार्यक्रम हुए जिनमें केवल 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-9.txt 50 लोगोंने भाग लिया। पहले कार्यक्रम में कठिनाई हुई परन्तु दूसरे कार्यक्रम में कई उत्तम म। खोजी आये जिनमें काफी अछी चैतन्य लहरियाँ थी। यद्यपे यह घटना निस्त्साहक थी फिर भी न्यूयार्क के सामूहिक योगियों को प्रचार के नये साधन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। श्री माताजी ने कहा कि न्यूयार्क के लिए पोस्टर दारा प्रचार ज्यादा प्रभावशाली नही हैं। इसलिए दूसरे साधन दूढ्ने होंगे। चूँकि न्यूयार्क में प्रतिरात 300 से अधिक कार्यक्रम होते है इसलिए यह निर्णय लिया गया कि नये प्रचार साधन के लिप किसी व्योसाईक सलाहकार को किराये पर लगाया जाय। श्री माताजी ने न्यूयार्क को सबसे मुश्किल जगह बताया, ऐसी जगह जहाँ सहजयोग की सवसे ज्यादा जरूरत हैं। पर यहाँ के लोग आत्मा के प्रति विल्कुल निःचेतन हो गये है। पात जबतक श्री माताजी अपने उड़ान का इन्तजार करती रही सप्तहान्त अनीपचारिक वार्तालाप में सप्ताह हो गया। जैसे योगीजन श्रीमाताजी के साथ व्यस्त हवाई अड्डे पर बैठे थे उन्होने कई योगियों को अपना व्यासाय और स्थान बदलने की सलाह दी। श्रीमाताजी ने फिर बाकी यात्रा गा। के लिए प्रस्थान किया। हम जानते थे कि हमसे कई उन्हे सिनसिन्नाटी, टोरोन्टो, कैनकोवर सेनडियागों या मियामी में मिलेंगे। जुलाई में युनाइटेड नेशन्स के विशेष "ङन हाउस" अधिवेशन में भाग लेनेके लिए श्रीमाताजी की वापसी की आशा दिलमें लिए हुए यहाँसे न्यूयार्क के सहजयोगियोंने प्रस्थान किया। केरन डी कोकर बोस्टन सिनसिन्नाटी यहाँ के सहजयोगिय्यों को पूजनीय श्रीमाताजीके े दर्शनों की पूर्व अभिलाषा पूर्ति हुई। ।4 जून को ।2 बजे के कुछ पहले श्रीमाताजी सिनसिम्नाटी पहुँची और प्रसन्न योगी योगिनियों ने फूलों से उनका हार्दिक स्वागत किया। हम सब समय से पहले आश्रग वापस पहुँचे और फिर श्रीमाताजी का स्वागत शंखो की गूंज, आरती और माला पहना कर किया। श्रीमाताजी ने आश्रम की शांति और सन्नाटे के बारे में कहा कि यह उनके लंदन के पहले के घर की याद दिलाता है। दोपहर के भोजन के पहले श्रीमाताजीने हमारे साध कुछ देर के लिए बातचीत की और न्यूयार्क के कार्यकरमों की चर्चा की। श्रीमाताजी ने यह भी महसूस किया कि सिनसिन्नाटी में अवछा कार्यक्रम होगा। दोपहर के भोजन के बाद श्रीमाताजी अपने कमरे में विश्राम करने गई औरऔहियो के योगी, बोस्टन, माइनी एवं न्यूयार्क से आये योगियों सहित शहर में सीसनगुड पेेलियन, 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-10.txt 10 जो सिनसिन्नाटी के इडन पार्क में स्थिति है, गये इस सुन्दर खुले थियटर को सभी योगी शाम के कार्यक्रम के लिए सजाने गरयें। मंच सजाने का कार्यक्रम बहुत सुन्दर और एकजुट ढंग से हुआ, हर योगी ने कुछ न कुछ काम किया जिससे अंततः सबको सुशी हुई। लाम पुरे दिन, एक-एक कर हलकी बारिश हो रही थी और कई योगी पुजा के लिए किसी दुसरे पूजा के क्वत तक उपयुवत स्थान के विषय में पूछने आए उन्हें आश्वासन दिया गया की सारे बादल छंट जाएंगे और जिस तरह माँ के स्वागत के समय मौसम साफ हो गया था उसी प्रकार फिर से गौसम साफ हो गया। गाताजी कार्यक्रम के लिए करीब आठ बरजे पचारी। उन्होंने 200 व्यक्तियों के जनसमूह को बहुत ही साधारण राहज ढंग से परम सत्य की प्रकृति, जागृतता की जरूरत एवं ईश्वर दारा अपनी बुध्दि और चैतन्य को बदाने के इस मौके के विषय में जानकारी दी। उन्होंने, अपने टि ज्ञान के आधार के गडव संत बनना केसा होता है, जात्मा औरइस नाटक के साक्षी स्वरूप के विपय में वताया श्री माताजी ने, जनसमूह को जागृति प्राप्त होने के पश्चात, उसकी वृद्धदि के उत्तरदयित्य का बोझ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया । माताजी के कहने पर चार लोगों ने प्रश्न पुछे जो काफी गहन और सामाजिक थे । उन प्रश्नोमे यह पूछा गया कि इतिहास में इस समय की क्या विशेषता है, मानवता तथा व्यक्तरयों के विलने के इस सगय का वया परिणाग है, तो क्मों को कैसे जब कुंडलिनी ऊपर उठती है हटाती है। एवं किसा प्रकार बच्चों को अपनी गहनता और शुध्दता खोने से बचाया जा सकता है जिसरे वे पैदा हुए है । जनसमूह मंच से कुछ दूर पर बैठे थे और कई लोग जरूरत से ज्यादा पीछे बैठे घे, इसलिए जागृति देने के पहले श्री माताजी ने उन्हें "वोडा सा आगे" आने को कहा। एकाएक, जैसे राभी गें एकगुट इच्छा की लहर दौड़ी, सम्पूर्ण जन उठकर माताजी के सामने मंच के बिलकुल करीव आकर जमीन पर वैठे गये । यह दृश्य दिल को बहुत आनन्दित करने वाला था। श्री ओह, ये सब यहाँ आ गये, देखों जरा, ये सिनसीन्नाटी माताजी भी काफी प्रपुल्लित होते हुए कहीं, "ओ ओह , कितनी बड़ी बात है, है न?" माताजी ने उनकी कुर्सी को भी मंचके है। सच आगे सिसकाने के लिए कहा ताकी वे उनके और करीब हो सकें। "कितने उत्साह के साथ" उन्होंने माताजी विस्मयचित होकर कहा", कितने सुन्दर लोग हैं, " 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-11.txt जागृति देने के उपराम्त श्रीमाताजी ने कहा कि अब कोई भी पेड़ या पत्ता नहीं हिल रहा है, अतः अब हवा बिलकुल नहीं चल रही है और अब हमें जो महसूस हो रहा है वह चैतन्य लहरीयों है। चारों और के वातावरण की मौनता पूर्ण रूप से परिपूर्ण थी काछ भी हिलता हुआ नजर नहीं आ रहा था। जब माताजी ने पूछा की किन किनको चैतन्य लहीरियोँ महसूस हुई तो इतने हाथ उपर उठे की माताजी आश्चर्य चकित होकर कहीं, " हे ईश्वर। ओह। ईश्वर तुम सबको आशीर्वाद दे.। क्या जगह है सिनसीव्ाटी ।क्या जगह। इतने सारे खोजनेवाले मै आप सबको प्रणाम करती हूं;---- वाह | वाह। माताजी से मिलने मंच पर आए योडे बच्चोने मों को कार्यक्रम के अंत में सभी, तुरन्त पहचान लिया। उत्तरी करोलिना से दो वैज्ञानिक भी आए हुए थे। माताजी ने उनसेउनके अनुसंघन के बारे में बात की जिसका विपय चेतना के विभिन्न अवस्थाओं में मनुष्यके मस्तिष्क से निकालती हुई लहरों से संबन्धित चा। बेलोग "सहज चेतना" पर अनुसंयान करने तथा उल्तरी केरोतिना में सम्मेलन आयोजित करने के विषय म्रें काफी दिलचस्पी व्यव्त कर रहे थे। आश्रम बापस लौटने पर माताजी ने कहा की कार्यक्रम से और बहाँ आप हुए लोगों से वे काफी प्रसन्न थी। माताजी को विदा करने अगले दिन प्रातःकाल हम हवाईअड्डे गए। उड़ान की देरीके कारण, माताजी के साथ करीब एक धंटा बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान श्री माताजी ने व्यक्तिगत प्रश्नों के उत्तर दिये। माताजीने कहा की सहजयोग को कार्यवात्वित करने के लिए छोटे शहर ज्यादा आसान है और कुछ सहजयोगियों को उन्होने विक्सलैंड, टिफ्फीन और ओहियो हजौं कई साल पहले माताजी गई थी में कार्यक्म आयोजित करने को कहा। श्री माताजी से बिछड़ते देखकर हम सब को बहुत दुःस हो रहा था परन्तु पिछले रात के कार्यक्रम से हम काफी खुश थे। माताजी के आशीर्बाद से सिसनगुड पैविलियन की पथरीली दिवार पर लिखी हुई निम्नलिखित मनोकामना की पूर्ति अब हो रही है :- इनफ इफ सम्थिंग फाम इवर हैन्डस हैव पावर टू लिय ऐन्ड ऐव्ट फेन्ड सर्व दी फ्यूचर आवर हअगर कुछ है तो काफी है क्योंकि हमारे हाथों में शवित है भविष्य में जीने, काम करने और सेवा करने की कि्यम वर्डसक्व्य स्टोव ओलेनवर्ग, क्रैग विलियमसन, जान डी कोकर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-12.txt - I| - टोरोन्टो श्रीमाताजी ने टोरोन्टो में, 1983 में, स्वयंको आदिशवित के अवतार के सरूप में घोषित किया था। इस साल उन्होंने कहा कि यही यहाँ के सार्वजनिक सफलता का कारण धा। अपने आगमन के पहले तीन सप्ताह के कार्य को तीन दिनों में कार्यरत कर निसंदेही उन्होने स्वयं को फिरसे समय स्थान और शवित की स्वामिनी सिध्द कर दिया। वर्न, लोरी, पवन और डिबोराइ की सहायता से टोरोन्टो के सामूहिक योगियोंने टोरोन्टो के सबसे अच्छे निर्माणित होटल "रायल यार्क" में श्रीमाताजीके ठहरने की व्यकस्था की इस होटल का चुनाव वास्तव में अचेतन का चेतन होने का एक उदाहरण था। किसी दूसरे होटल की चर्चा करने पर विलियमने "रायल यार्क" नाम तीन बार लिया तो पवन ने पूँछा "तुम रायल यार्क क्यो कह रहे हो| वहाँ का आरक्षण अधिकारी काफी उपकारक सावित हुआ और अंत में हमें एक रातके मूल्यमें दो रातों के लिए कमरा मिल गया जिससे हमें श्रीमाताजी के कमरों को सजाने का पर्याप्त समय मिल गया। इस दौरान महिलायें चद्दर, चीनी के वर्तन वगैरह खरीदने के लिए गई और उन्होने पाया कि सभी कुछ के दाम किल्कुल वाजिब थे। लिनन और हाथकी बुनी हुई कनाडा की लेस कवर से माँ बहुत प्रसन्न धी। वर्न और रोवर्ट गलियों में, टोरेन्टो के निर्वासियों को पर्चे बँटे। यह कार्य भी हनुमान के हंसमुख स्वभाव और असीम शव्ति के कारण सफल हुआ। श्रीमाताजी के आगमन के कुछ समय उपरांत वहाँके रेडियो स्टेशन से एक महिला आई उसकी आधे घंटे की मुलाकात करीब दो घंटे चली, अंततः उसकी जागृति के साध समाप्त हुई। उसने कोलम्बिया में नशीली दवाओंके व्यापार और परमाणु मलवा पर लेख लिखे थे और थोडे भारतियों से भी मुलाकात की थी। उसके अनुसार उनके विचार सहजयोगसे काफी मिलते जुलते धे। उसके बार्तालापका विषय कुछ धनी और शवितशाली लोगोंद्वारा पैदा की गई संसार की जलवायुक समस्यायों की ओर था जो आम जनता में विप्लव फैला रही है। किसप्रकारसे सहजयोग से इन समस्यायों को रोका और दूर किया जा सकता है इसपर बातचीत हुई। मुलाकात के बाद यह गहिला हृदय में मानवता के लिप काफी आशा लिए हुए प्रस्थान किया और उसने कहा कि मानवता को सूचारने के लिए हमारे इस आन्दोलन की सहायता करेगी और जो कुछ हो सकेगा लेख लिसेगी। इसके बाद एक वहुत ही सफल सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ जिसमे करीब 400 लोग आये थे जर उसमे कई गहन खोजी थे जिन्होने क्रीमाताजी को तरन्त पहचान लिमा। श्रीमाताजी रात के एक वजे तक प्रत्येक व्यव्ति से मिली, वातचीत की और सुझाव दिये। अगले दिन हवाई अड्डे पर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-13.txt 12 कई सहजयोगियों को आधे पंटे तक बातचीत का सौभाग्य और आनन्द प्राप्त हुआ। यह सुख और शांती का अनुभव श्री माताजी के आनन्द एवं अगले वर्ष फिर आने के आश्वासन का प्रतिबिंब था। प्रस्थान के पहले ब्रम्ह चैतन्य के विषय में बात करते हुए श्रीमाताजीने कहा "तुम्हे सिर्फ इससे पक होना है" पवन किटली, विलियम ब्रिडेन केकेवर कनाडा" 16 जून, सोमवार के दोपहर को श्री माताजीने कन्कोवर की सुन्दरता का अवलोकन किया। श्री माता जी के होटल से लाये हुए गुलाब के फूलों से लदे हुए हम टोरोन्टो से बैत्कोवर 20 मिनट पहले पहुँचे और आशा से भरपूर योगीजन हवाई अड्डेपर दौड़ रहे थे । 6 सालों बाद श्री माताजी की यह यात्रा केन्कोवर के सामूंहिक सपने की मुर्ति थी। श्री माताजीने अपने स्वागत के लिए प्यार तथा आश्रम के सजाने का काम देखकर प्रसन्न हो उठी। उन्होने कहा कि उस दोपहर में उनके प्यार के कारण, जिससे उन्होने कमरा सजाया था, उन्हे बहुत अच्छी और गहरी नींद आई। श्री माताजी जब आराम कर रही थी, डा.ब्रियेन केन्स इन्गलैंड से पधारे। पहली शामको माताजी ने हमारे साथ रात का भोजन ग्रहण किया और आइन्स टाइन, जो कि असल मे फैकेस्टाइन थे के विषय मे हँसी मजाक किया पश्चिमी अहंकार की मृर्ति। पी एच डी लोगों की भी बाते हुई जो एमय.डी. (मैड-पागल) थे। श्री माताजी ने बताया की अनुशासन, त्याग पवं समपर्ण सहज यांगियों के गुण हैं जब हम ये गुण ( गुणों की मूर्ति) बन जाते हैं तो देवगण हमारे समर्पित और साथी हो जाती हैं। श्री माताजी की दया और कृपा हम्में हर स्थिती में आर्शिवाद प्रदान करती है। सबका श्री माताजीसे परिचय कराया गया सार्वजनिक कार्यक्रमों पर वादविवाद हुए और मध्यरात्निको हम स्वर्गीय निद्रा ग्रहण करते थे। शैनेवार को प्रातःकाल महाकाली पूजा आरभ्म हुई। श्री माताजी ने कहा कि सहज योग और यह भी की मूर्ति बनने के लिए शुद्ध इच्छा तथा गहराई के गुणों का होना जर्री है बताया कि किस तरह संगीत और विडीयो उत्तरी अमेरिका में सामूहिक रूपसे कार्य करने में सहायक हो सकते हैं पुसुषों ने माताजीं की पूजा की जो बहुत तीव्र और संक्षिप्त थी। श्री माताजी ने कहा कि इन गुणों को अब सहजयोग में समा जाना चाहिए। जैसे उनके नामों का उच्चारण हमने किया श्री महाकाली ने बाये तरफ की बाधा हैँसते खेलते विनाश कर दिया। पूजा के तुरन्त बाद सबका घ्यान संगीत विद्यालय में हुए सार्वजनिक कार्यक्रम की और आकर्षित हुआ। डा.केस ने जन समूह संबोधित किया। उन्होने जीजों की उपयोगिता तथा दूसरे 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-14.txt ढंग की जीवन पध्दती के विषयों पर जपनी निपुणता से सारे कनाडा निवासी ख्वेजियों का मन हर लिए। डा . केस व्यावसायिक, गातिशील पव्र विनोदी थे और उन्होंने सहज रूपसे श्रीमाताजी के आगमन के स्वागत के लिए सारे जनसमूह का नेतृत्व किया। श्रीमाताजी ने खडे होकरही सबको संबोधित किया। लाउड स्पीकर की धोडीसी माया ने अहंकार को उतारा और सभी का ध्यान सोचने के बजाय सुनने को केन्द्रित किया। श्रीमाताजी के मीठे असीमित प्यारने पर्वतों समान संस्कारो को भी पिघला दिया और करीब 50 लागों को जागृति मिली। श्रीमाताजीने कई घंटे तक लगातार हर एक पर काम किया और खोजनेवालों के गुणोंसे बहुत पसंद थी। रविवार की सुबह हम श्रीमाताजी के साथ हवाई अड्डे गये वहाँ पहुँचने पर हमने पाया कि श्रीमाताजी का वैनिटी केस गायब था। डेढ घंटे का दुबारा यात्रा हमने 5 मि- मे तय किया परन्तु हवाई अड्डे पर गाडी खड़ी करते समय अंततः पुलिस ने हमें पकड लिया। हमारे समझाने पर की हमारी माँ अमेरिका जा रही है और ये कुछ महत्वपूर्ण कागज थे , उन लोगोंका ध्यान माताजीके बैज हफोटो पर केनद्रित हुआ। वे कुछ नरम हुए और हमें तीन सिगनल पार करने तथा ।00 मील प्रति घंटे की रफतार से चलनेके लिए सिर्फ चेतावनी दी और चमत्कारपूर्वक हमें छोड़ दिया। जय श्री गणेश । जय श्री हनुमान । श्रीमाताजी हमारी तरफ आई, बैग ली और तब हमने उन्हे इस माया के विषय में बताया तो हँसने लगी। श्रीमाताजी के विदाई के अंतिम शब्द धथे "ध्यान की गहराई में उर्तरिये और सामूहिक रहिए"। श्रीमाताजी के विमान के छूटते ही हम तुरन्त कारमें । 00 मील प्रति घंटे की रफ्तार से सनडियागो की तरफ बढे जो की इस अविश्वसनीय यात्रा का अगला चरण था। अमेरिका पात धन्य हुआ वर्न्स कैकोवर सेनडियागो श्रीमाताजी ।8 जून पितृ दिवस पर सेनडियागो पहुँची। उसी शाम "ओरगन पेविलियन" जो एक सुला रंगमंच है, में पहला सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ। श्रीमाताजी के छोटे भाषण और संगीत के उपरांत करीब 700 लोगोने शाम के शांत वातावरण में चैतन्य लहरियोँ को महसूस किया। भाषणने खोजियों की सत्य पहचानने की योग्यता और अज्ञानता से बिनाश की और कदम THE न उठाने पर ध्यान केन्द्रित किया। है के रूप में श्री माताजी अगली सुबह श्री महाकाली, जो राक्षसीं को नाश करनेवाली 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-15.txt 14 - की पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ / अपनी असीमित करूणा में उन्होने कहा कि पूजा की तैयारी पुरे जोर और सावधानी से करे। इससे हमें श्री माताजी के महान कार्य का पूर्ण रूपसे अहसास हुआ। पूजा का आरम्भ श्री गणेश पूजा से हुई जो श्री महाकाली के बच्चे है और जो इडा नाड़ी के मूल आधार है। पूजाके दौरान जब श्री महाकाली के नामों का उच्चारण किया जा रहा धा, कई बार श्रीमाताजी मुस्काई या हँसी और हमने श्री महाकाली को इस सृष्टि की भावना और असीमित आनन्द के रूप में देखा। ा के चरणों को चोये इदोबार फिर सब महिलायों ने पहले सभी पुस्पोंने श्रीमाताजी भेट चढाई। कुछ आश्चर्यजनक रूपसे श्रीमाताजी को दो जोडे सोने के गहने भेट किये गये जिन्हे उन्होने एक साथ पहना, चरणों मे सोने के पायल कवच के समान दिख रही थी। श्रीमाताजीने हेलमेट स्वरूप मुकुट धारण करते समय "हे आदि माँ गाने को कहीं। राक्षसोंकी मुंड माला पहनकर अनेक प्रकार के अस्त्रों, शंख, चक्र, गदा, कुल्हाड़ी, तलवार, फ्सी, चनुप वगेरह से घिरी हुई, बस माताजीने हमें पूर्णात्पसे मंत्रमुग्ध कर दिया। शायद अनकही प्रार्थना के अनुरोध पर ही माताजीने कहा "क्या में अपने सारे हाथों का प्रयोग कर्रू"। सारे शस्त्रों को धारण किये हुए श्रीमाताजी के नेत्रजड़़ित एवं लाल हो गये और उनका दर्शन करना मुश्किल हो गया हमें पेसा लगा मानों किसी छोटे जानवर का ध्यान पूरी तरहसे उसके प्रिय स्वामी के ऊपर केन्द्रित है जबकि मालिक उसकी समझ के बाहर कोधित हो। पूजा की समाप्ति पर सभी सहजयोगियों को सारे नकारात्मक लोगों और शवितयों के नाश के लिए प्रार्थना करने को कहीं| यह बहुत बडे राहत की बाद जब हम माधा टेकने झुके तो श्रीमाताजीने कहा कि इतनी तीव्रता से "इच्छा करो, इच्छा करो" कि शुध्ध इच्छा शवित अधिक गहनता में रूपांतरित होने को उत्साहित हो सके। पूजा के पश्चात श्रीमाताजीने कार्यक्रमों की सफलता और सहजयोग संस्थाओं के लिए बै " पूरे हृदयसे काम करनेकी महत्ता को समझाया और कहा कि पिछले शाम के कार्यक्रम का प्रचार अच्छी तरह से किया गया था और कोशिश जोश में परिपूर्ण धी। उन्होने कई बदलाव सुझावित किये और अमेरिका में हसहजयोग की उन्नति के लिए रास्ता साफ कर दिया। वर्न किस कनाडा के और करन खुराना अमेरिका के नेता होंगे डेविड इनफी सेनडियागो की देखभाल करेंगी, करोलिन केस न्यूयार्क की और जोआन ही कॉकर बोस्टन की। लॉसएन्जलीज और सेनफंसिसको नये क्षेत्र होंगे, जिनकी बढ़ोत्तरी की जाएगी। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-16.txt -15 श्रीमाताजीने कहा कि पश्चिम की रंग भेदनीती बहुत बड़ी समस्या है, जो इसे अपनाये हुए हैं वे सहजयोग में टिक नहीं सकते । चर्म -गहन सहजयोगिय्यों को आज्ञा नहीं है। उन्होने कहा कि अगर ऐसी कोई भावना हमारे अन्दर है तो इसे दूर करें। "मेरा चेहरा साफ रंग एक नाम है कि उनके का हो सकता है परन्तु मेरे हाथ काले है" श्री महाकाली का यह भी हाथ काले है। 19 जून के दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रम में श्रीमाताजी के आगमन तक डेविड स्प्रीओने सहजयोग के विषय में लोगों को जानकारी दी। भाषण के उपरांत श्रीमाताजीने करीब ।600 लोगों को "जागृति" दी हइसके बाद उत्साहित तथा अनुरागित खोजियोंने श्रीमाताजी से पक एक करके मिले, प्रणाम किये और सेनडियागो में पधारने के लिए धन्यवाद दिये। श्रीमाताजी खोजी जर्नोकी उत्तमता पर बहुत खुश धी और उन्होने बताया कि सेनडियागो का अर्थ है "देवताओं का शहर"। भाषण देते समय श्री माताजीने आस्वासन दिया कि सहजयोग का आठ सप्ताह का पाठ्यक्रम होगा। उपरांत कार्यक्रम में करीब 80 लोगों ने भाग लिया जो कि बहुत ही अच्छा तथा उत्साहव्र्यक धा श्रीमाताजी ने 20 जून को दो संवाददाताओं से दो घंटे की भेट वार्ता की जिनको अन्त में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। उनमें से एक महिला लेखिका थी तथा दूसरी स्थानीय साप्ताहिक पत्रिका से थी। श्रीमाताजी इस भेट वार्ता सें बहुत सन्तुष्ट थी तथा उन्होने बताया कि पाश्चात्य समाचार पत्र का यह सबसे अच्छा व्यवहार था। भेट वार्ता के बाद श्री माताजी अपनी पौत्री तथा कुछ सहजयोगियों के साथ सरीदारी के लिये गयी अमेरिका की नाभी स्कच्छ करने के लिएह करन और डेविड ने इस कार्यक्रम की सफलता के उपलक्ष्य में श्री माताजी को पीजा के रात्रि भोज के लिए ले गये श्रीमाताजी ने प्रेमपूर्ण मुस्कान के साथ कहा कि ऐसा स्वादिष्ठ पीजा उन्होने कमी नहीं खाया था। सखरीदारी के बाद श्रीमाताजी का स्वागत उनके निवास स्थान नये सहजयोगियों के साथ केसा पर संगीत के साध किया गया। श्रीमाताजीने बैठने के बाद, व्यवहार करना चाहिए, इसपर बहुत ही हार्दिक वार्ता की । उपसांत कार्यक्रमों के लिए श्री माताजी का सुझाव श्रीमाताजीने सेन्डियागों के उपरांत कार्यक्रमों के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये :- प्रत्येक सहजयोगी को एक अच्छा उदाहरण तथा गरिमा प्रस्तुत करना चाहिए। सामुहिकता की शक्ति दिखाइये : सहजयोगियों के बीच में कोई वाद-विवाद नहीं होना 2. चाहिये। उदाहरण स्वरूप जब आप लोग किसी चक के पकड़ जाने के विषय में बात कर रहे के 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-17.txt 16 पत्नी के बीच के मनमुटाव का अनुभव नहीं हैं तो पकमत होना चाहिए। इन लोगों को पत होना चाहिए। सभा में बच्चे नहीं आने चाहिए। 3- अलग 2 समूह में बैठकर, सहजयोग सहजयोगियों की सभा में आदमियों और औरतो को 4- के अनुभव को आपस में बाटना चाहिए सहजयोगी लोग उनको श्री माताजी के तथा उनके चमत्कार के विषय में बता सकते है तथा उनको आश्चर्यचकित फोटो दिखा सकते है । नये लोगो के विपय में सब कुछ जानने की कोशिश करें । उनको बहुत अच्छी तरह 5. समझे और जाने। अगर नये लोग अपनी समस्या बताये तो उनके साथ दया और समझदारी दिखाये। 6- आप उन्हें बतायें कि हमारे साथ भी ऐसी समस्या धी, चाहे पूर्ण सही हो या न । उनको भूत प्रेत तथा नकारात्मता के विषय में बाते करके मत इराओ। 7. अपने आपको बंधनदो। उनकी कुन्डलिनी जागृत करने या समझाने के पहले उनको ৪ । बंधन दो। नये लोगों के सामने न हँसे। वे तिरस्कारित महसूस कर सकते है। 9. श्रीमाताजी आदिशवित है उनको शुरू के दिनों में ही न बताओ। 10. चाय पिलाओं तथा मित्रता और स्नेह का वातावरण बनाओ। 11- श्रीगाताजीने 21 जून को लास ए्जेल्स की यात्रा की। उन्होने माताजी संध्या में महाराष्ट्रीयन संगीत का कार्यक्रम रखा, जिससे लास एम्जलीस के कुछ नये सहजयोगियों नें अतसुंदर लोक शैली में गाना गाया जिसमें प्रत्येक देवता का कुण्डलिनी जागरण के लिए आवाहन किया गया था, जिससे सब लोग आनीदत डो उठे। जैसेही गायक लोग श्री माताजी के चरण स्पर्श के लिए झुके, उन्होंने उनकी पीठ धप थपाया। श्रीमाताजीने उन सहजयोगियों को उर्दू जानते माताजी को आदिर्शाविति के रूप है, एक भारतीय सहजयोगीदूबारा लिखित कविता की टेप जिसमें में बताया है और श्रीमाताजी को अतिपसन्द है सुनने के लिए कहा। दूसरी सुबह श्री माताजी हवाई अड्डे के लिए प्रस्थान करते समय विदाई के शब्द इस प्रकार कहे :- "ध्यान करो ध्यान करो, ध्यान करो" लाइस वानगे और जेनिफर सेटे 8सेन्डियागो? मियागी - श्रीमाताजी वायुयान द्वारा लासपन्जलीस से 22 जून को मियामी पहुँची जहाँ पर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-18.txt -17- उन्होने पिछले साल की यात्रा के समय, कोलम्बिया जाते समय, जो बैतन्य लहरियाँ फैलाई धी, उसने उस स्थान को साफ कर दिया था। श्री माताजीने यात्रा के दौरान बाबेटा से मिलने की इच्छा प्रकट की थी और बाबेटा अपने आप कार्यक्रम बनाकर अन्तिम क्षर्णों में वहाँ पहुँच गयी। हालांकि संपूर्ण पूर्वी तट मौसम की सराबी से बन्द था जो कि श्रीमाताजी के गले में जो कुछ अड्डे पर तीन घंटे महसूस हो रहा था उसकी प्रतिक्रिया थी, और बाबेटा को न्यूयार्क इवाई तक इन्तजार करना पड़ा परन्तु वह फिर भी समय पर पहुँच गयी| डा.बोगडन इग्लैण्ड से इसी कारणवस देर से पहुँचे। वे बहुत आश्चर्यचकित थे कि किस प्रकार पक पुलिस आफिसर नें रात्री में केस के मध्य में पहुँच कर जही पर न तो फोन या सडक है यह सूचना दी कि आपकों आपकी माताजी हश्री माताजी आपसे अमेरिका में मिलना चाहती है। उन्होने उसी समय सब इन्तकाम किये और वहाँ पहुँचे। पैट्िक फोर्ट साउडरडेल ड्रेमियामी के नजदीक के एक अकेले सहजयोगी थे, इसीलिए पूर्वी और पश्चिमी तट के बहुत से सहजयोगियों ने आकर उनकी सहयता की। सुबह के समाचारपत्र में विजली की एक लकीर का चित्र छापा था जिसके विपय में पेट्रिक ने बताया कि माताजी के पहुँचने के पूर्य, यह बार बार दिख रही थी। इस बिजली की लकीर और बिजली तथा गड़गडाहट के साथ वाली आंधी ने जगह को साफ करने में तथा माताजी के आगमन में सहायता की उन्होंने माताजी को मियामी की समस्या इग की सास तौर से के विषय में बताया जो श्रीं माताजी के ध्यानद्वारा हल हो सके। इआाद में 5जुलाई को न्यूयार्क समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ कि फोर्ट लाउडर में पुलिस ने 200 ड्रग सम्बन्धित लोगों की धर पकड़ की है।। शाम का कार्यक्रम रामदा इन होटल मे आयोजित किया गया था जिसमे करीब ।50 लोगों ने भाग लिया तथा आत्साक्षात्कार प्राप्त किया। उनके भाषण के उपरान्त एक कटरपंथी ईसाई ने बाइबल से बिना समझ के उदाहरण देने लगा गरन्त श्री माताजी ने जोरदार और दृढ विश्वास के साथ काइस्ट के विषय में बताया, उससे वह पूरी भीड़ दंग रह गयी और सब लोगों ने यह देखकर खूब तालियोँ बजाई। काफी लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया जिनको आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति नहीं हुई वे लोग मंच के ऊपर आकर प्राप्त किया तथा माताजी को कन्यवाद दिया। बोगोटा श्रीमाताजी का बोगोटा में पहुँचने पर हवाई अड्डे पर जोरदार स्वागत किया गया। श्रीमाताजी के कार्यक्रम में पिछले साल भाग लिए थे, उनका स्वागत करीब 50 सहजयोगी जो करने को हवाई अड्डे पर एकत्रित थे। उन्होने श्री माताजी के स्वागत मे कोलम्बियन लोकनृत्य 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-19.txt 18 पेश किये। श्री माताजी ने बताया कि यह लोकनृत्य महाराष्ट्र के लोकनृत्य से मिलता जुलतहै। पूजा, जो रविवार दोयहर को होनेवाली थी, समाचारपत्र दुरदर्शन से भेटवार्ता होने के कारण, दूसरे दिन के यह कार्यक्रम बहुत अव्छा हुआ और उन्होने जोश तथा अन्य ठारा लिए स्थगित कर दी गई। गाये हुए भजन का अभिलेख हरिकार्ड किया। साढ़े चार मिनट का अभिलेखित कार्यक्रम राष्ट्रीय आकाशवाणी पर मुख्य समाचार समय मे प्रसारित हुआ जिसके अंतमे सावीजिक कार्यक्रम के समय क और स्थान की घोषणा की गई। हाल सचासच भरा हुआ था तथा करीब ।। 00 लोगों ने जागृति ली जिनमें से करीब 80 लोगोंने माताजी के " उपरांत कार्यक्रम " मे भाग लेने के लिए दोपहर के बाद छुटुटी ली। उस दिन कोलम्बिया में सहजयोग की बढ़ो-तरी के लिए गणेश पूजा कीगई । ब्राजील - डुइलो ने सलवाडोर तथा ब्रासिल के कार्यक्रम का आयोजन किया जिनमे कमशः 600 और ।500 लोगों ने भाग लिया। सलवाडोर में श्री माताजी ने डुलियों के आतिथ्य का आनन्द उठाया । 800 पंध हैकल्टस और घर्म है। सहजयोग য্राजिला ब्राजील की राजचानी है जहाँ पर ৪ 0। वा है।08 का उल्टाई पंजीकृत हुआ। समाचार पत्र में अच्छे लेख लिखे गये और बहाँ की सरकार ने श्री माताजी के दौरे मे सहायता की। रियो में बुनो तथा जुआन १आस्टेलिया का सहजयोगी एक अर्जेन्टेनियन : ने कार्यक्रम का आयोजन किया। श्रीमती ब्रनो जापानीय सभ्यता और दक्षता की पक अच्छी उदाहरण थी और श्री माताजी ने अपने अपने पड़ाव के दौरान उनके दारा की गई अचछी सैवा के लिए धन्यवाद दिया। अगले साल श्री माताजी उर्गवे, चिली और इक्वेडर की यात्रा करेंगी। श्री माताजी ने कहा कि डुलियो तथा ब्िगेटे ने सहजयोग में ज्वलंत नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया है उन्होने पूरी निष्ठा और आस्था के साथ अपने सर्च की परवाह न करते हुए शील दक्षिणी अमेरिकी की यात्रा की सफलता के लिए काम किया। इलियो अपनी वफादारी और अथक प्रयत्न के लिए अशिवादित हुए जिससे कि ब्राजीन में दैवत्य का जोरदार आगमन हुआ और उनको एक होटल बनाने के लिए 50 लाल डालर का ठेका मिला। न्यूयार्क की पुनः यात्रा श्री माताजी जुआने के साथ 4 जुलाई की सुबह को न्युयार्क पहुँची और संसारभर के सहजयोगियोने उनका स्वागत किया उन्होने हाथ के बने चमड़े के सुन्दर उपहार ब्राजील से लाई थी, महिलाओं रामते 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-20.txt 19 - के लिए हाव का झोला और पुरूषों के लिए ओवर नाईट वरग। दोपहर के बाद मैनहाटन के भिन्न भिन्न निर्वासियों को जागृति दिलाने का कार्यक्रम श्री पुरेन्द्र चटर्जी के निवास पर आयोजित किया गया। शाम का समय यू एन प्लाजा होटल के एक कमरे में, जहाँ से हडसन दिखाई देता है, व्यतीत किया। श्री माताजी के पूजनीय संसर्ग में अंतिशवाजी की प्रदर्शनी से हम लोगों का स्वागत किया गया, उन्हाने ने सहजयोगियों के साथ रहना प्रसन्द किया और न्यूयार्क की समस्या और उसके समाधान के संक्षिप्त भाषण दिया। बातचीत टेप पर प्राप्त है। यूएन का कार्यक्रम दोपहर के बाद ।230 से ।500 बजे तक हुआ। 30 में से ज्यादातर राजनीतिक दूर्तोने, जिन्होने कार्यकृम में शामिल थे, उपरांत कार्यक्रम के लिए अपना नाम लिखवाये। शाम की शरीमाताजी अपनी पौत्री, आराधना के साथ यू के हइग्लैन्ड वापस आ गई, इस तरह सफल तथा चकवात पूर्वा अमरीकी यात्रा समाप्त हुई। हनल ऑस्ट्रेलिया में रेडियो सहज धूपपूर्ण ब्रिसबेन में श्रीमाताजी की कृपासे वात्सविक उत्साहपूर्ण चीने हो रही है। सहजयोगियोंद्वारा दो कार्यक्रम रेडियो 4 3 जैड जेड जेड़ दक्षिणी क्वींसलैन्ड में प्रसारण का नौजवानों का एक स्टेशन पर प्रसारित होनेवाले है या हो रहे है हर शुकवार दोपहर बाद 2.30 बजे आधे घंदे के कार्यक्रम "बिग वाइडवर्ड जासन कोपेनलेन्ड के बिदेशी मामले " और "आन्तरराष्ट्रीय संबंधो का पुनःदर्शन"। इससे श्री सी पी. श्रीवार्तव के गणपतिपुले के पिछले किसमस के भाषण, जिसमें उन्होने बताया कि दुनिया में सब जगह शांति बढ रही है, का आंशिक अंश प्रसारित हुआ। आशिक रूप से कार्यक्रम के कारण हम लोग रेडियों स्टेशन से सहजयोग के दूसरे आधे क्ी घंटे खंड के साप्ताहिक कार्यक्रम के लिए संबंध बनाये है। इस कार्यक्रम? के लेखन तथा हुए संक्षेप का कागज पर लिखने के लिए हम पहले से व्यस्त है। इसका नाम "2। वी शताब्दी जो सभी चाम्मिक तर्क वैज्ञानिक, नैतिक, संसार के इतिहासिक तथा दूसरे की उडान" होगा, वर्णन करेगा और इस तरहसे नियोजित होगा कि सहजयोग को उच्च कोटि का प्रसारण प्रदान करेगा। इमारी इच्छा है श्री माताजी के सितम्बर के दौरे के पहले यह कार्यकम चालू रहे । दुनिया के दूसरे सहजयोगी इसकी मदद कर सकते है । अगर किसी के पास कुछ हा, आपके पास है लाभदायक पदार्थ है तो हमे सब कुछ चाहिए जो मिल सके। दो खास जरूरते जासन के कार्यक्रम के लिए दुनिया के मामले का सामान चाहिए इसलिए अगर किसी के पास टेप पर या लिखित माताजी का हया सर सी पी का भाषण हो, जो इस विषय से र 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-21.txt 20 संबंधित हो सामाजिक उत्थान और पृथवी के देशों का चक्कों से संबंध वर्णन सहित हो, तो उसके प्रतिलिपि का अत्याधिक स्वागत होगा। और 2 । वी शताब्दी के लिए कोई भी लिखित विचार श्रीमाताजी के श्दो का जो रिकार्डेड या प्रिन्टेड हो या न हो परन्तु जो कि पूर्ण लेख रूप में बनाया गया है इन समी का पूर्णरूप से स्वागत होगा। 4 मेड जेड जेड नवयुवकों का स्टेशन है और हमारा संड हस्लाट दिन में है, हम इसे तीत गतिशील तथा अपौरिचारिक रखना चाहेंगे परन्तु हम लोग गहन अनावरण और व्याख्या जो सब तरह के अच्छे चैतन्य लहरी के संगीत तथा खोजी संदेश युक्त हो, को देने बाले है। इसलिये कृपया उत्पादन किभाग की सहायता करे :- जासन कोपलेन्ड 29 हाथटन स्ट्रीट, रेड हिल, ब्रिसबेन, क्वीन्सलैन्ड 4059आास्टू्लिया। टेल ह7 उ69 8849 हमारी मनोकामना है कि श्री विश्युमाया चैतन्य लहरी को आकाशवाणी पर रखने के हमारे प्रयत्न को मार्गदर्शित तथा आशिर्वादित करे और हमारा काम श्रीमाताजी को आदि्शविति के रूप में औीतम मान्यता दिलाने में मदद करे और पूरी दुनिया को उसकी स्वतंत्रता के संदेश को तीव्रतासे प्रसारित करने में परिणित हो । जासन कोपलेन्ड, आस्ट्रेलिया महत्वपूर्ण बात :- ) माँ ने सहस्त्रार 5 मई ।970 में बोर्डी से 7 कि. मी. उत्तर में नारगोल हभारत में लोला था।