चैत्य लहरी ंदी वाकली रजी संद । अंक 8 श क परमपूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी ोे VOL. 1, No. 8, देवी पूजा हमेलून, फैंस श्री कृष्ण भाव, आत्हाद दायनी हश्री रायाह सं्षेप में सामूहिकता की नीव बहुत गहरी है । गहरी समझ ही आपको बता सकती है सामूहिकता कै का आधार अग्रवत प्रेम है। सिर्फ प्रेम ही एक मार्ग है। 2 ता बिना असवत प्रेम के सामूहिकता संभव नही। फस के लोगों ने इस विषय पर कई प्रेम उपन्यास लिखे हैं। लेकिन जैसा की हम समझते है, निर्मल प्रेम अब सहज योगियों को आपस में व्यक्त करना है। हम सब एक परमात्मा दारा बनाये गये है, और एक माँ दवारा रचित सहज योगी है इसलिये हमारे बीचमे किसी प्रकार ०) दन का मतमेद नही होना चाहिए हमे यह समझना चाहिए हम में ऐसा कोई विशेष अंतर है। शाग अगर हम इस समस्या को समझ ले तो हमारे लिये यह समझना और आसान हो जायेगा স2 ) कि हमारा प्रेम इतना बंधन क्यूँ बन जाता है और छाटा होता जाता है जिसकी वजह से मनुष्य अंत में सिर्फ अपने आप से प्यार करने लगता है । हमारे संस्कार एक मुख्य कारण है जिसकी वजह से हम में यह समस्या उत्पन्न होती है। हर्में इस तरह का संस्कार दिया गया है कि हम यह जानते ही नहीं कि प्रेम कैसे किया जाता है। लोग पुरब और पश्चिम की बात करते हैं लेकिन दोनों के बीच सीमा रेखा कहाँ है, नही जानते क्यूकि दुनिया गोल है। संस्कार दो तरह के होते है। पहली है प्रतिशोध की। संतुर्टी पाने का सबसे अच्छा तरीका प्रतिशोध है। इमें किसी को क्षमा नही करना चाहिए इस प्रकार के संस्कार हमें बाहर से मिलती है। अगर हम प्रतिशोध नही लेगें तो हमारा महत्व नही रह जाएगा। इतिहास भी हमें यही दिखाता है कि जब तक प्रतिशोध नहीं लिया जाता तब तक कोई आराम नहीं करे सकता। मुझे लगता है कि यह एक सॉप का लक्षण है सॉप प्रतिशोध लेने के लिए जिंदगी भर किसी का पीछा कर सकता है। अगर कोई गलती से सॉप के ऊपर पाँव रख दे तो साँप कपट से उसका पीछा करता है। इसी तरह मनुध्य उसको नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करता है जिसने उसको कुछ तकलीफ पहुँचायी हो। अगर इस तरह यह सिलसिला चलता रहाँ तो इसका कभी अंत ही नही होगा। ा यह बहुत ही मूर्खता पूर्ण बात है। एक बार किसी ने बुध्द का अपमान किया था। जब वे चले गए तो उस व्यकि्ति को बहुत पश्चाताप हुआ और अगले दिन वह बुध्द के निकट गया और क्षमा माँगी। पर बुध्द ने कहा कल तो अब बीत चुका है । आज तुम मेरे साथ -2- ही तुम कल की बात क्यूँ कर रहे हो। ाँसीसी लोग फाँस में हुआ राजद्रोह मना रहे है । मुझे लगता है की मारी जनटयोनट को मारने की कोई जरूरत नहीं थी। फ्राँस के लोगों के हिसाब से उसने वहुत सा पैसा बरसाईल्स में खर्च किया और यह सब सुंदर फर्नीचर बनवाया, लेकिन आज ये लोग सिर्फ यही फर्नीचर दिलाते है। राजद्रोह जीतकर उन्होने एक नयी सरकार स्थापित की। उनकेो उससे आगे नही बढना चाहिये था। क्या दुनिया उस राजद्रोह से सूधर गई? राजद्रोह सत्ता बदलने के लिए हमारा दूसरा संस्कार यह है कि सलोगों की हत्या करने के लिए नही। इसलिए होना चाहिए। जब हम प्रतिशोध लेते है, हम मानवता की हर सीमा को पार कर जाते है। अगर मॉरी ंडा अनटयोनैट जिंदा रह जाती तो उन लोगों को संतोष नही मिलता। इसका यह मतलब नही है कि देश के लोगों के प्रति जो अन्याय करे, उसे अन्याय करने का मौका मिलता रहे। पर आप अपने कोध को किस हृद तक ले जाते हैं, यह देखना है । सहजयोग का विवेक यही समझ लेने में है, कि आप किस हद तक अपना कोध उसे दिव्य शव्ति पर है या प्रतिशोध किसी पर व्यक्त कर सकते है । पर सबसे अच्छा तरीका छोड़ देना। हम सब दैवी शव्ति के भीतर जीते है। कुछ भी उसके बाहर नही है यह दैवी शवित दया और प्रेम की शक्ित है जो सब कुछ करती है। पर जब हम कोई उत्तर दायित्व लेते है, जब हम निश्चय कर लेते है कि हमको कुछ करना है और दिव्य शविति के विरूध्द जाने की कोशिश करते हैं, तो हम मुर्ख बन जाते है। सहजयोगी को यह दिव्य शविति के हाथों छोड देना चाहिए। और सिर्फ उसका साधन बन जाना चाहिए। दिव्य प्रेम और करूणा इतनी अधिक ऋराठिक है कि वह पूर्ण प्रज्ञा है। जिस मनुष्य में दया नही, वह बुदध्दिमान नहीं हो सकता। वह दुनियादारी हो सकता है पर बुध्दिमान नही। इसलिये जो यधार्ववादी होने में विश्वास स्थते है, गोवेक ० उन्हे यह प्रता होना গ चाहिए कि दिव्य शवित उसका निषेध करेगी । मनुष्य का स्वभाव (चंचल) और शिविल होना चाहिए। उदाहरण के लिये अभी मैं अचानक पहुँच गयी शायद आप लोगों को बताया नहीं गया था मुझे लाईन में सडे नही थे। और आपकी तैयारिया पूरी नही हुई थी। आप फौज की तरह मैं किसी भी रूप मे व्याकुल या दुखी नही हूँ। मैं आप लोगों को उससे कोई फर्क नही पडता । देखकर बहुत प्रसन्न हुई क्यूंकि मै आप सब से प्रेम करती हैं और आप सब मुझसे। हम सब एक परिवार की तरह है और परिवार में शिष्टाचार नहीं होता आपके और सर्वशक्तिमान परमात्मा के बीच में कोई थिष्टाचार नहीं है। लेकिन हमे यह समझ लेना चाहिये कि हम क्या कर रहे / है। मनुष्य या तो अत्यन्त शिधिल हो जाता है या बहुत ही आलसी। या फिर भ्रम में पड जाता है । दूसरा पहलू है बहुत ज्यादा शिष्टाचार। शरी माताज़ी आ रही हमे उन्हें कुछ देना है, कुछ क्री रह गयी हो। पर कोई बात नही। उससे कुछ फर्क है, नही पडता। आप लोगों को तनाव मे नही रहना चाहिए। अगर आप तनाव में है तो आप मेरे चैतन्य लहरों को ग्रहण नही कर सकते। या आप अगर आलसी स्थिति में है तो भी आप उन्हे ग्रहण नही कर सकते। आपको मध्याकस्था में रहना है। मध्यायस्था प्रत ग्रहणीय अवस्था है। जैसे पक बच्चा होता है आपको हर्ष और आशापूर्वक चैतन्य लहरे ग्रहण करनी है हमें माँ का स्वागत करना है। लेकिन तनाव के साथ नहीं, फि यह नही हुआ वों नही हुआ। मुझे तो सब बहे सुन्दर ढंग से किया हु नजर आ रहा है यह सारी कल्पनाएं आपका प्रेम व्यवत करने का साधन है, तनाव व्यक्त करने का नहीं। क्या हम इसलिए तनाव में है क्यूंकि हम अत्याधिक सावधान है। या इसीलिये कि हम भागने की कोशिश कर रहे है । इन दोनों के बीच का मार्ग है सहजयोग। आप बहुत देर से ल्याकुलता से इंतजार कर रहे है। आप अपने दिल से कुछ करने की इच्छा रसते है और जब आप वह कार्य कर लेते है तो आपको संतुष्टि मिलती है जिसका आप आनन्द उठाते है। लेकिन जब मैं आती हूँ में देखती हूं कि आप तोगों को तनाब के वजड से सिरदर्द है तो मुझे जाप लोगो से कहना पडता है कि आप सब पहले अपना सिरदर्द दूर करिये तब मैं आप सबसे बात कँगी। हम लोगों के बीच में शिथिल संबंध होना चाहिए। शिथिल का मतलब जालस्य नही है। इस प्रकार से हमारा एक संस्कार यह है कि हम चाहते है कि लोग या तो अधिक सावधान हो या किन्कुल ही सावधान न हो। हमारे संस्कार का यही दोष हैं कि हम हद से बाहर चले जाते है । बगर आप किल्कुल आलसी, विसरे हुये, पदराये हुए है तो आप मध्ये में नही है। और अगर आप बहुत दृढ़ है जियरालटर के चट्टान की तरह या फिर हिटलर की तरह समय से पहले हर जगह पहुँच जाना। हर काम कार्यदे से करना तो यह सहजयोग नही है। फुलों को एक एक करके देखिये, ये कितने सुन्दर है। हर फुल जनोला है। एक पत्ता इन दूसरे पत्ते से मिलता जुलता नही है। एक पंखुडी दुसरी जैसी नही है। यह सब पक दूसरे से भिन्न है लेकिन कितने शिथिल है। सुंदर है, और हमे फितना आनन्द देते हैं। ये भिन्न है लेकिन इनमें एकता है कि ये सब हमे आनन्द देना चाहते है। आप तनाव मे हैं तो आप आनन्द नही दे सकते । पश्चिम मे तनाव होना बहुत सामात्य बात है। इस प्रकार के संस्कार भूतकाल के रहने सहने के ढंग से आये है। अब फिर कभी वाटरलू का युध्द नही होने बाला। अंग्रेज कहते है कि वे जीत गये क्यूकि वे समय पर पहुँच गये, लेकिन वाटरलू का युध्द इसलिये यह बात नही है व युद्द दिव्य शव्ति के कारण जीत गये अगर वे देर से पहुँच जाते तो भी जीत जाते। जो भी होता है दिवय शकिति के दवारा होता है। इसलिए तनावपूर्ण स्थिति में रहने की कोई जरूरत नही। अब आप लोग कहेंगे चलो वैठकर आराम करते है, क्यूँकी सब कुछ दिव्य शक्ति दुवारा हो जाएगा। दिव्य शकिति आपके मध्यम से आपको अपना साधन बनाकर ह काम करेगी। इसलिये आप लोगों को चौकनना रहना चाहिए। जो व्यक्ति शिथित हो जरूरी नही कि वो आलसी भी हो। आप चौकन्ना और शिथिल दोनो हो सकते हैं। क्योकि आप सहजयोगी है। आप दूसरे लोगों के तरह नही है । जब कोई हवाई अड्डे का नाम लेता है तो दूसरे लोग किल्कुिल पागल जैसे हो जाते है। समझिये कि आप तनाव पूर्वक है और आपकी उडान छूट जाती है। तो क्या हुआ। ज्यादा से ज्यादा आपकी मौत ही हो जाएगी। यह अनिवार्य है क्योंकि इम जन्म लेते है तो हमे मरना तो है ही यही पक सत्य है जाकी सब मजाक है। इस बात से कोई फर्क नही पडता कि आप तनाव पूर्वक है या नही। लेकिन जब तनाव कम होता है तब हृदय खुलता है। और इम परम सुस और आनन्द के समुद्र बन जाते है। फिर हमें तनाव क्यू होना चाहिए। हर देश के संस्कार उनके वाग््यवहार के अनुसार होते है। जंस में यह संस्कार है कि आपको सुश नही दिखना चाहिए। यह संस्कार इतना मूर्खतापूर्ण है कि इसके अनुसार जो कुछ भी कुरुप है वह सुंदर बन गया है। यह तिरछा तनावपूर्ण नज सिया हमें वास्तविकता नहीं देखने देता। हम ु बम्ब हो। ऐसे बुलबुले के बारे में ऐसा चिन्ता करते है जैसे कि वे परमा अनावश्यक चीजों के बारे में हम चिन्ता करते रहते है जब हम निरन्तर चिन्ता करते रहते हैं तो जो भी हमारे करीब आता है हम उस पर टूट पडते है। आप किस बारे में चिंतित है? आपकी क्या समस्या है। मैं तो चिंता करती ही नही। अगर मुझे कोई चिंता है तो यही कि मेरे बचौ को एक दूसरे से प्रेम होना चाहिए। अगर हमें कोई चिन्ता है तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम अपने किसी मित्र को बता दे। मैत्री ऐसा सम्बन्ध है कि आप अपने गुप्त बाते भी बाँट सकते है । अगर आप लीहर भी है तब भी आप पहले मित्र है। आप अपनी समस्या या कष्ट मुझसे बॉँटते है तो आप आपस में क्यो नही बाँट सकते? सब सहजयोगी एक दूसरे के मित्र है मुझे लगता है कि 5. मित्रता का रिश्ता बाकी सब रिश्तों से ऊँचा है क्योंकि मित्र एक दूसे का लाभ नही उठाना चाहते । इसका कभी ्त नही होता और आप सिर्फ अपनी मित्रता का आनन्द उठाते है। आपस के रिश्तों का यह सबसे निर्मल रूप है। सच्च मित्र वही है जो हमेशा अपने मित्र के बारे में चिंतित रहे। निर्मल मैत्री का इतना सुन्दर रूप डोता है कि आप दूसरे की खुशी में स्वयं आनन्द महसूस करते है। जब हम युवास्था में थे तब हमने ऐसी मित्रता देखी है। उन दिनों लोग खुले दिल के होते थे । मेरे पिताजी के मित्र पूराने विचारों के ब्राम्हण थे और जिस पाठशाला में मै पढ़ती थी उसके सभापति थे। जब मेरे पिताजी को कही दूर जाना पड़ा तब उन्होने मुझे अपने मित्र की देखरेख में विद्यार्थीग्रह में रस दिया। ब्राम्हण कभी अंडों को हाथ नही लगाते, लेकिन उनको पता था कि मैं अंडे साती है, इसीलिये हर सुबह वे चुपचाप खुद अपने हाथों से मेरे लिये अंडा बनाकर लाते थे। मेरे मना करने पर भी वे अंडा बनाकर लाते थे और बड़े प्यार से कहते कि तुम्हारी परीक्षा के लिये तुम्हे पौष्टिक आहार की जरूरत है तुम्हारे पिता चलै गये है और मुझे तुम्हारा नियम खुद तोड रहे स्याल रखना है। वे पाठशाला के सभापति थे और मैरे लिए अपने बनाये हुए थे। मुझे ऐसी मित्रता पर ताज्जुब हुआ। मेरे पिताजी और उनके मित्र में शायद डी कुछ सामान्यता धी फिर भी वे बहुत अच्छे मित्र थे। मैंने ऐसी मेत्री देखी हैं। जब मेरे पिताजी जेल में थे तब उनके मित्र हमें अभने घर ले जाते थे। मुझे उनके बच्चों में और अपने में कभी केई अंतर नहीं मसूस हुआ। बल्कि इमें हमेशा यह भहसूस हुआ कि अभने बच्चों से भी अधिक वो हमारा स्याल करते हैं । किसी का मित्र डोने के लिए वहुत बडा दिल चाहिए। एक पिता ये जिनका पक मित्र था और उस पिता का एक बेटा था जिक्का भी मित्र था। पिता ने पुत्र से कहा कि सर्ची मित्रता वही है जब हभ अपने मित्र पर भरोसा कर सकें। बेटे ने गर्व से कहा कि उसके कई मित्र है तब पिता ने कहा चलो हम दोनों अपने अपने मित्रों की परीक्षा लेते हैं। उन्होंने अपने बेटे से कहा कि तुम अपने मित्रों से कडो कि तुमने किसी की हत्या कर दी है। और तुम्हे मदद जवाब दिया "तुमने चाहिये। जब वे पहले मित्र के पास गये तो उसने कत्ल किया है" बाहर निकल जाओे"| दूसरेने कहाँ, "नही नही, किसी से कभी कहना भी मत कि तुम मित्रने थोड़ी इस घर में आये थे, चले जाओ । वे फिर उसके पिता के मित्र के पास गये देर के बाद दरवाजा खोला और माफी माँगते हुए कहा "मुझे पता था कि कुछ गडबड है तभी आप इतनी रात को मेरे घर आये है। इसीलिये मै अपनी पत्नी के गहने इक्कठे कर रहा चा कि कहीं आपको पैसे की जरूरत न पड जाए। इसलिए मुझे दरवाजा खोलने में इतनी देर हो गई। तुमने किसी का कत्ल किया है, कोई बात नही। तुम्हारे बच्चे है, मेरी कोई औलाद भी नही है तो तुम कह दो कि कत्ल मैने किया है बेट आश्चर्यचकित रह गया। एक सच्चा मित्र वीस बेकार के मित्रों से बहतर है यही सच्ची मित्रता है। सित्र के साथ आप तनावपूर्वक नही रह सकते। आप आराम से एक दूसरे के साथ में आनन्द पाते है। अगर आपको तर्क करना है तो तर्क करे। अगर आपके विचार अलग है तब भी कोई फर्क नही पडता। उसे अपने मित्र पर लादने की कोई जरूरत नही है। हमे एक दूसरे को समझने की कोशिश करना चाहिए। इसी तरह हम एक दूसरे से कुछ सीख सकते है। मैने अपने मित्रों उदाहरण के लिये मैने फ्रांससी लोगों से बहुत कुछ से बहुत कुछ सीखा है। सीखा है। संगीत, सभ्यता और कला संबंधी विचार जाने है। आपके अब हर जगह मित्र है। आप मेरा बैज लगाकर कही भी जाये, आपके लिये वे कुछ भी कर देंगे। यही मित्रता है। इस दुनिया में हमारे हजारो मित्र है लेकिन हमे भी ख़ुद मित्रभाव रसना चाहिए। दो. मित्रों के बीच में स्पष्टता होनी चाहिए। प्रेम का मतलब है अपने और दूसरों के प्रति पूर्ण स्वतंत्रता । यह ग्रेम बहुत निर्मल होना चाहेए। अपने मित्रों पर गर्व करने के लिये आपको खुद ऐसी मैत्री का अनुभव नही है। जरा सोचिये इसके पहले हमारे यहा कितने साधु संत करना पड़ेगा। आप अकेले और महान आत्मारएँ पैदा हुई है, जिनको समझा गया और उन्हे सताया गया या मार डाला गया। वे अकेले धे । लेकिन आप अकेले नही है। एक दूसरे के मित्र है। आपका सबसे बड़ा मित्र दिव्य शक्षित है जो आपका स्याल रखती है और आपके लिये सब कुछ करती है। यह देश पस है जड़ाँ हमे मुक्ति मिली। आइये हम आत्मा की सची मुक्ति को पाएँ जिससे इम त हर बात का आनन्द ले सके बुदध्दिमान होकर। परमात्मा आपको आशीर्वाद दे। सार्कजनिक कार्यक्रम हवियेना} 25.1- 89 रं्षेप मे । breakthim आरम्भ में ही हमें यह समझ लेना चाहिए कि सत्य विचारधारित नही किया जा सकता तीन् बडोनती নीরএন यह कोई मानसिक कार्य नही है मनुष्य के बुध्दि की अपनी सीमा होती है। हमें उसमे लंडन) चाहते है। मानसिक गति सीधी करना पडेगा यदि हम अपना व्याक्तित्व उससे उँचे ले जाना रेखाओं से निर्मित होती है । जब वो पीछे हट जाती है तो उसे अपने आपको सम्भालना नही आता। पम उदाहरण के लिये (सीधी रेसा से निर्मित यह गति के कारण प्रकृति में जो असंतुलता आ गई है मेकीप हैं उससे पोधों को हरे रखनावाला घर जैसा प्रभाव पड गया है। इसी तरह अेडस की बीमारी -7- आदि जैसे कष्ट हमें अपनी गलतीयों के कारण ही होते है। लेकिन जिसने इस सुन्दर सृष्टि की रचना की है, उन्होने कुछ और ही सोचा होगा और वे अपनी इस रचना को नष्ट नही होने दे सकते। आपके अन्दर एक यंत्र है जिसके दूवारा आप सृष्टिकर्ता के साथ संयोग अनुभव कर क सकते है। यह संबंध आप घर्म के दुवारा नही जोड सकते क्यूंकि धर्म भी मानसिक होता है | हमारे अन्दर ऐसी कोई शक्ति नहीं है। जिससे हमे अपने परित्याग को दबा सके। उदाहरण के लिए हमारे अंदर ऐसी कोई शचिल नही है जो हमें नशीली पदा्च , शराब इत्यादि लेने से रोक सके। हमने कौन से गलती की है जिसकी वजह से हम दिव्य शक्ति को नही देख पाते। हर रोज हम बीज अंकुरित होते देखते है। पूलों को लिलते देखते है, फलों को फलते देखते है, TeiE लेकिन हम यह नही सोचते कि यह कैसे होता है एक शक्ति है जो यह सब कुछ करती है। अब समय आ गया है कि हमारे अंदर जो साधन है उसके दूवारा हम इस शक्ति को अनुभव करें। आपकी मानवीय चेतना में आपको एक उँचा परिमाण लाना है जो मानसिक विचारचारणा से ऊपर हो। यह एक होनी है यह सबसे आखरी सीडी है। जो हमने पार करनी है । मानवीय ल दासरी चेतना में यह (प्रवेशता लाना जरूरी है नही तो इस विश्व को बचाना असभ्भव है। इस यंत्र का कोई अर्थ नहीं जब तक उर्जा के लाईन से जुङ न. हो। हमें अपनी क्षमता और सुनदूरता का डी२ ज्ञान ही नही है, पर एक बार आप विशेष लाईन से जुड जाएँ तो आप अपनी/ शक्षिन 00000/ इसके प्रभाव पर आश्चर्यचकत रह जाएँगे अपने आप को एक सुचार का साथन मानना ही और सही पुर्नजीवन है । दूसरे दिन का भाषण संगीत के कोई शब्द नही होते, यह विचारों को जन्म नही देता। संगीत के द्वारा | क हम विचारों को अपने मन से निकाल सकते है। की शिसा पर रहते है । जब हम भूतकाल या भविष्यकाल में होते है तब हम वर्तमान में नही हो सकते। जब एक विचार समाप्त होता है तब दूसरा उभरता है। दूसरा उभरने से पहले, दोनो विचारों के बीच का जो अन्तर है वही बर्तमान होता है। जब कुंडलीनी जागृत होती है तब विचारों के बीच का अन्तर कम होता जाता है, और मध्य स्थिति फैलने लगती है, फिर हम निर्विचार स्थिति में पहुँच जाते है। उदाहरण के लिए अगर हम यह सोचते रहे कि हमारी कालीन खराब नही होनी चाहिए तो हम उसकी सुन्दरता का आनन्द नहीं उठा सकते। लेकिन जब कुंडलिनी जागृत dio डो जाती है और हम विचारहीन हों जाते है तब हम उसकी सुल्दरता का आनन्द उठा सकते है। इसके लिए, सबसे पहले हमें निर्विचार स्थिती में जाना होगा। यह तब हो सकता है जब हम आज्ञा चक्र को समझ लें। जब कुंडलिनी इसके बीच से गुजरती है तब वह उसके देवता येसु काईस्ट को जागृत कर देती है। वह सबसे पहले परमात्मा दूवारा मूलाधार चक्र में विचारधारित किये गए थे। वे भोलेपन का प्रतीक है, जिन्होने इस धरती पर अवतार लिया। चैतन्य लहरी से काईस्ट के शरीर का निर्माण हु आ था इसलिये वे पानी पर चल सके। उन्होंने कहा है कि हमें क्षमा करना चाहिए। जैसे ही हम दूसरों को क्षमा करते है, यह देवता हम में जागृत मर ॐ और प्रति अहंकार को सोस लेते हैं । हो जाते हैं और अहंकार हमारा भेजा लिम्बिक स्थान में प्रक कमल की फूल की तरह सुल जाता है और कुंडलिनी सिर के नर्म हड्डी के स्थान से गुजर जाती है। यर इस चक को पूरी तरह खोलना है। हमारे कर्मों का क्या? श्रीमाताजी मनुष्य ही सोचते है कि वे कर्म करते है, जानवर ऐसा नही सोचते। हमने गलत किया है या सही। हम अपने अहंकार की वजह से सोचते है, जानवर यह नहीं सोचते। केते वास्तविकृता क है कि मनुष्य यह नही जानता कि सही क्या है और गलत क्या है क्योंकि मকন हम (सम्बन्धित दुनिया में रहते है । लेकिन पूर्ण सत्य क्या है, आप चैतन्य लहरी दूवारा ही जान सकते है। तब सब के सोचने का ढंग एक हो जाता है। सही और गलत साफ नजर आने लगता है। जैसे जानवर गंदी नाली से गुजर जाते है, लेकिन मनुष्य वहाँ से नहीं जा पाता। जब आप साधू बन जाएँंगे तो आपको पता चल जायेगा सत्य क्या हैं और असत्य क्या है। आप कोई गलत कार्य नही कर सकते और आप एक नये परिमाण को समझने लगते है। लेकिन उसके पहले आपके संस्कार होते है और आपके अहंकार के कारण आपका व्यक्तित्व बन्द हो जाता है । लेकिन क्ाईस्ट आपके अहंकार और संस्कार को सोल लेते है । काईस्ट का हमारे पापों के लिए मरने का यही मतलब है जिसके लिए वे जागृत किये गए थे। अपनी शव्तियों के द्वारा वे हमारे सब पापों को सोख सकते है । इसलिये आपके अंदर अपराध भावना नही होनी चाहिए क्योंकि हमारे सब कर्म सोख लिये गए है। दुसी रहने का विचार उन लोगों से शुरू हुआ जो आपको दुखी रखना चाहते है। उनका यह कहना है कि आपने पाप किया है तो आपको उसका हिसाब चुकाना होगा। पर परमात्मा पैसे को नहीं समझते। क्या हम काईस्ट से अधिक पीडा सहनेवाले है? सैंट थोमस सहजयोग के बारे में ही बात कर रहे थे जब. उन्होने कहा धा कि सर्व शव्तिमान पिता जब इतने दयाल्ञ और कृपालु है तब वे आपको दुकी रहने को कैसे कह सकते है। उन्होंने कहा है कि हमारे पिता बहुत उत्सुक है कि हम उनके साम्राज्य में प्रवेश करे। तो चलिये हम आनन्दित और सुखी रहें तथा दुखी रहने का विचार छोड़ दे। आपको दुसी और दोषी नहीं होना है। प्रश्न : क्या मधुमेह का इलाज किया जा सकता है? सोचते है तो स्वाधिष्ठान चकर अल क श्रीमाताजी मथुमेह अधिक विचार करने से होती है जब हम मम्े भास्व भेजे के सैल का निर्माण करता है। यह चक् चरबी के सैल को (भेजे के सेल में रूपान्तर करता है। आप अगर अत्याधिक विचार करेंगे तो यह चक केवल यही काम करेगा। लेकिन इस चक को कई और भी कार्य करने होते है उसे जिगर का ध्यान रखना पडता है इत्यादि । जब आप बहुत ही ज्यादा सोचते है तब इन अंगो की उपेक्षा हो जाती है। भारत में लोग चीनी बहुत साते है लेकिन ज्यादा विचार नहीं करते। इसलये उन्हे मघूमेह की तकलीफ नहीं होती। लेकिन जब हमारा दिमाग आधुनिक हो जाता है तब विचार न करना बहुत ही कठिन हो जाता है। इसका इलाज करने के लिए विचारों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये। जब आपके विचारों पर आक्रमण हो रहा हो तब आप तीन बार कृहिये "मै क्षमा करता/करती हूँ और शान्ति छा जाएगी। वियेना जा्रम में सहजयोगियों को माझ्म उपका मा सहजयोग आपके परोपकार के लिये है लेकिन यह पक न्यास भी है। आप कैसट टेपो का अध्ययन करें। किसी ने मुझसे एक बार कहा मेरा बच्चा बीमार है। इसका मतलब है कि आपने सहजयोग का अध्ययन नही किया। मैंने कई अवसरों पर बताया है कि आपको बच्चों के लिए क्या करना है। अगर आप वो सब करते रहें तो आपके बच्चे कभी बीमार नही होंगे। ार यह गुरू तत्व का दूसरा रूप है। आपको बहुत ज्ञानी होना चाहिए आपकी बाते सुनकर किसी को यह नही लगना चाहिये कि आप श्रीमाताजी के आधीन दास है। अगर आपको ज्ञान नही है तो आप गुरु नहीं हो सकते। सारा ज्ञान आपके अंदर आपके दिमाग में है बस তি आप ध्यान लगायें और मनोभावनायें खुद आपके दिमाग में आ जायेगी। लेकिन ध्यान जुध्द और ह पूर्ण होना चाहिए। समाचार श्री माताजी की रुस यात्रा |989 एक पैतिहासिक दिन धा। रूस ने श्री माताजी के प्रति अपना 4 अगस्त हृदय खोल दिया। श्रीमाताजी ने सेवियत कर्मचारियों और वर्तमानपत्र के लोगों को सहजयोग ४ । के बारे में बताया और उन्हें जागृति भी दी। पक मुख्य भारतीय सोवियत संप के सभापतिने 10 - सबने चैतन्य लहरी को महसूस किया। उनके नियमित जीवन और उनके चरण स्पर्श मभी किये। वागळ्यवहार के कारण उनके चक् स्वस्थ और प्रबल है। सोवियत यूनियन आज्ञा चक् का आगे का भाग है और चीन आज्ञा चक का पीछे का भाग है। स्वास्थ्य मंत्रालय में डाक्टर, वेज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक सहजयोग और सहजयोगियों के अनुभवो से बहुत प्रमावित हुए सहजयोग के आरोग्यकर की सोज और प्रयोग के लिये सोवियत युनियन और लाईफ इटरनल दूस्ट के बीच एक मूललिपी पर मिलकर हस्ताक्षर किय गये। दुनिया में सोवियत यूनियन पहला देश है जिसने इस महायोग की महानता को पहचाना है। लब जार कुश के बंश के कारण वे इस परम सत्य को आसानी से पह़चान पाये है। |8 अगस्त को श्रीमाताजी ने 2000 से ज्यादा लोगों के जनसमुह को लनिनग्राड के पैलँंस ऑफ यूथ में सम्बोधित किया। लगभग तीन हजार लोगों को लौट जाना पडा क्योंकि हॉल पूरी तरह भर गया था। 20 तारील के मॉस्को में भी पसा ही दृश्य देखने को मिला। रूस के लोग आ रहे है- . लैकिन हजारो की तदाद में। पलिया व अधिक गर्म जिगर का आहार श्री माताजी दृवारा सृचित किया गया रोज सुबह, व शाम पक ग्लास भुली के पते का चीनी के साथ उबाला हुआ रस पीजीप| रोज सुबह एक ग्लास कोकम शरबत पीजीए। 2. बाये हाथ मे पकड कर बर्फ कपडे में लिपटा, जिगर पर रखे और दाये हाथ को 3. प .प. श्रीमाताजी की तस्वीर की ओर करे । तस्वीर के सामने विना कोई दिया या मेणबत्ती जलाकर ध्यान करे। बंगाली मिठाईयाँ खा सकते है। हरसगल्ला इत्यादि, मलाई के बिगैर 3 4. चर्बी, तेल, लाल मिर्च और तला हुआा सान किसी मी स्थिति में नही साना चाहिये। 5+ हलस्सी जिससे मक्तन निकाला हो, मछली जर दूध से बने पदार्थ मना है। मठ्ठा 6- लिया जा सकता है। टीन का पनीर किंकुल मना है। 7- लिय 4 गोलियाँ दो महीने तक 52 की गोलियाँ दिन में 5 - 8- सब नींबू का सट फल सा सकते है। आम सेब, केला, पपीता या 9-1 ( Citrus ) चीकू मना है। 11- गन्ने का रस व गन्ना बहुत अच्छा है। 10- 11 4 मक्लन मना है। उडद व अरहर इतुअर ह दाल मना है। 120 उबले चावल, सब सब्जियां और मुंग डाल ठीक है। 13- खाने में मिर्च किल्कुल नही। 14- अदरक, प्याज, आलू, काकडी हखीरा ठीक है। 15. |6. नियमित रूप से बाईब्रेटिड चीनी को नींबू में डाल पीना है । आईस कीम साना मना है। 17 औवले का मुरब्या अच्छा होता है, और सुबह शाम दोनो बार साया जा सकता है। 18. | 9. खाने पर चौँदी का बर्क अच्छा डोता है। 20 . धरती के नीचे पैदा हुए सब सब्जियाँ व फल ला सकते है । 2। मूँगफली व मूँगफलीं का तेल मना है। मूंगफली व मुँगफली का तेल गुर्दो के लिए 21. बहुत सराब है। धोडी मात्रा में सूरजमुखी के तेल में पकाना ठीक है। ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-0.txt चैत्य लहरी ंदी वाकली रजी संद । अंक 8 श क परमपूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी ोे 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-1.txt VOL. 1, No. 8, देवी पूजा हमेलून, फैंस श्री कृष्ण भाव, आत्हाद दायनी हश्री रायाह सं्षेप में सामूहिकता की नीव बहुत गहरी है । गहरी समझ ही आपको बता सकती है सामूहिकता कै का आधार अग्रवत प्रेम है। सिर्फ प्रेम ही एक मार्ग है। 2 ता बिना असवत प्रेम के सामूहिकता संभव नही। फस के लोगों ने इस विषय पर कई प्रेम उपन्यास लिखे हैं। लेकिन जैसा की हम समझते है, निर्मल प्रेम अब सहज योगियों को आपस में व्यक्त करना है। हम सब एक परमात्मा दारा बनाये गये है, और एक माँ दवारा रचित सहज योगी है इसलिये हमारे बीचमे किसी प्रकार ०) दन का मतमेद नही होना चाहिए हमे यह समझना चाहिए हम में ऐसा कोई विशेष अंतर है। शाग अगर हम इस समस्या को समझ ले तो हमारे लिये यह समझना और आसान हो जायेगा স2 ) कि हमारा प्रेम इतना बंधन क्यूँ बन जाता है और छाटा होता जाता है जिसकी वजह से मनुष्य अंत में सिर्फ अपने आप से प्यार करने लगता है । हमारे संस्कार एक मुख्य कारण है जिसकी वजह से हम में यह समस्या उत्पन्न होती है। हर्में इस तरह का संस्कार दिया गया है कि हम यह जानते ही नहीं कि प्रेम कैसे किया जाता है। लोग पुरब और पश्चिम की बात करते हैं लेकिन दोनों के बीच सीमा रेखा कहाँ है, नही जानते क्यूकि दुनिया गोल है। संस्कार दो तरह के होते है। पहली है प्रतिशोध की। संतुर्टी पाने का सबसे अच्छा तरीका प्रतिशोध है। इमें किसी को क्षमा नही करना चाहिए इस प्रकार के संस्कार हमें बाहर से मिलती है। अगर हम प्रतिशोध नही लेगें तो हमारा महत्व नही रह जाएगा। इतिहास भी हमें यही दिखाता है कि जब तक प्रतिशोध नहीं लिया जाता तब तक कोई आराम नहीं करे सकता। मुझे लगता है कि यह एक सॉप का लक्षण है सॉप प्रतिशोध लेने के लिए जिंदगी भर किसी का पीछा कर सकता है। अगर कोई गलती से सॉप के ऊपर पाँव रख दे तो साँप कपट से उसका पीछा करता है। इसी तरह मनुध्य उसको नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करता है जिसने उसको कुछ तकलीफ पहुँचायी हो। अगर इस तरह यह सिलसिला चलता रहाँ तो इसका कभी अंत ही नही होगा। ा यह बहुत ही मूर्खता पूर्ण बात है। एक बार किसी ने बुध्द का अपमान किया था। जब वे चले गए तो उस व्यकि्ति को बहुत पश्चाताप हुआ और अगले दिन वह बुध्द के निकट गया और क्षमा माँगी। पर बुध्द ने कहा कल तो अब बीत चुका है । आज तुम मेरे साथ -2- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-2.txt ही तुम कल की बात क्यूँ कर रहे हो। ाँसीसी लोग फाँस में हुआ राजद्रोह मना रहे है । मुझे लगता है की मारी जनटयोनट को मारने की कोई जरूरत नहीं थी। फ्राँस के लोगों के हिसाब से उसने वहुत सा पैसा बरसाईल्स में खर्च किया और यह सब सुंदर फर्नीचर बनवाया, लेकिन आज ये लोग सिर्फ यही फर्नीचर दिलाते है। राजद्रोह जीतकर उन्होने एक नयी सरकार स्थापित की। उनकेो उससे आगे नही बढना चाहिये था। क्या दुनिया उस राजद्रोह से सूधर गई? राजद्रोह सत्ता बदलने के लिए हमारा दूसरा संस्कार यह है कि सलोगों की हत्या करने के लिए नही। इसलिए होना चाहिए। जब हम प्रतिशोध लेते है, हम मानवता की हर सीमा को पार कर जाते है। अगर मॉरी ंडा अनटयोनैट जिंदा रह जाती तो उन लोगों को संतोष नही मिलता। इसका यह मतलब नही है कि देश के लोगों के प्रति जो अन्याय करे, उसे अन्याय करने का मौका मिलता रहे। पर आप अपने कोध को किस हृद तक ले जाते हैं, यह देखना है । सहजयोग का विवेक यही समझ लेने में है, कि आप किस हद तक अपना कोध उसे दिव्य शव्ति पर है या प्रतिशोध किसी पर व्यक्त कर सकते है । पर सबसे अच्छा तरीका छोड़ देना। हम सब दैवी शव्ति के भीतर जीते है। कुछ भी उसके बाहर नही है यह दैवी शवित दया और प्रेम की शक्ित है जो सब कुछ करती है। पर जब हम कोई उत्तर दायित्व लेते है, जब हम निश्चय कर लेते है कि हमको कुछ करना है और दिव्य शविति के विरूध्द जाने की कोशिश करते हैं, तो हम मुर्ख बन जाते है। सहजयोगी को यह दिव्य शविति के हाथों छोड देना चाहिए। और सिर्फ उसका साधन बन जाना चाहिए। दिव्य प्रेम और करूणा इतनी अधिक ऋराठिक है कि वह पूर्ण प्रज्ञा है। जिस मनुष्य में दया नही, वह बुदध्दिमान नहीं हो सकता। वह दुनियादारी हो सकता है पर बुध्दिमान नही। इसलिये जो यधार्ववादी होने में विश्वास स्थते है, गोवेक ० उन्हे यह प्रता होना গ चाहिए कि दिव्य शवित उसका निषेध करेगी । मनुष्य का स्वभाव (चंचल) और शिविल होना चाहिए। उदाहरण के लिये अभी मैं अचानक पहुँच गयी शायद आप लोगों को बताया नहीं गया था मुझे लाईन में सडे नही थे। और आपकी तैयारिया पूरी नही हुई थी। आप फौज की तरह मैं किसी भी रूप मे व्याकुल या दुखी नही हूँ। मैं आप लोगों को उससे कोई फर्क नही पडता । देखकर बहुत प्रसन्न हुई क्यूंकि मै आप सब से प्रेम करती हैं और आप सब मुझसे। हम सब एक परिवार की तरह है और परिवार में शिष्टाचार नहीं होता आपके और सर्वशक्तिमान परमात्मा 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-3.txt के बीच में कोई थिष्टाचार नहीं है। लेकिन हमे यह समझ लेना चाहिये कि हम क्या कर रहे / है। मनुष्य या तो अत्यन्त शिधिल हो जाता है या बहुत ही आलसी। या फिर भ्रम में पड जाता है । दूसरा पहलू है बहुत ज्यादा शिष्टाचार। शरी माताज़ी आ रही हमे उन्हें कुछ देना है, कुछ क्री रह गयी हो। पर कोई बात नही। उससे कुछ फर्क है, नही पडता। आप लोगों को तनाव मे नही रहना चाहिए। अगर आप तनाव में है तो आप मेरे चैतन्य लहरों को ग्रहण नही कर सकते। या आप अगर आलसी स्थिति में है तो भी आप उन्हे ग्रहण नही कर सकते। आपको मध्याकस्था में रहना है। मध्यायस्था प्रत ग्रहणीय अवस्था है। जैसे पक बच्चा होता है आपको हर्ष और आशापूर्वक चैतन्य लहरे ग्रहण करनी है हमें माँ का स्वागत करना है। लेकिन तनाव के साथ नहीं, फि यह नही हुआ वों नही हुआ। मुझे तो सब बहे सुन्दर ढंग से किया हु नजर आ रहा है यह सारी कल्पनाएं आपका प्रेम व्यवत करने का साधन है, तनाव व्यक्त करने का नहीं। क्या हम इसलिए तनाव में है क्यूंकि हम अत्याधिक सावधान है। या इसीलिये कि हम भागने की कोशिश कर रहे है । इन दोनों के बीच का मार्ग है सहजयोग। आप बहुत देर से ल्याकुलता से इंतजार कर रहे है। आप अपने दिल से कुछ करने की इच्छा रसते है और जब आप वह कार्य कर लेते है तो आपको संतुष्टि मिलती है जिसका आप आनन्द उठाते है। लेकिन जब मैं आती हूँ में देखती हूं कि आप तोगों को तनाब के वजड से सिरदर्द है तो मुझे जाप लोगो से कहना पडता है कि आप सब पहले अपना सिरदर्द दूर करिये तब मैं आप सबसे बात कँगी। हम लोगों के बीच में शिथिल संबंध होना चाहिए। शिथिल का मतलब जालस्य नही है। इस प्रकार से हमारा एक संस्कार यह है कि हम चाहते है कि लोग या तो अधिक सावधान हो या किन्कुल ही सावधान न हो। हमारे संस्कार का यही दोष हैं कि हम हद से बाहर चले जाते है । बगर आप किल्कुल आलसी, विसरे हुये, पदराये हुए है तो आप मध्ये में नही है। और अगर आप बहुत दृढ़ है जियरालटर के चट्टान की तरह या फिर हिटलर की तरह समय से पहले हर जगह पहुँच जाना। हर काम कार्यदे से करना तो यह सहजयोग नही है। फुलों को एक एक करके देखिये, ये कितने सुन्दर है। हर फुल जनोला है। एक पत्ता इन दूसरे पत्ते से मिलता जुलता नही है। एक पंखुडी दुसरी जैसी नही है। यह सब पक दूसरे से भिन्न है लेकिन कितने शिथिल है। सुंदर है, और हमे फितना आनन्द देते हैं। ये भिन्न है लेकिन इनमें एकता है कि ये सब हमे आनन्द देना चाहते है। आप तनाव मे हैं तो आप आनन्द नही दे सकते । 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-4.txt पश्चिम मे तनाव होना बहुत सामात्य बात है। इस प्रकार के संस्कार भूतकाल के रहने सहने के ढंग से आये है। अब फिर कभी वाटरलू का युध्द नही होने बाला। अंग्रेज कहते है कि वे जीत गये क्यूकि वे समय पर पहुँच गये, लेकिन वाटरलू का युध्द इसलिये यह बात नही है व युद्द दिव्य शव्ति के कारण जीत गये अगर वे देर से पहुँच जाते तो भी जीत जाते। जो भी होता है दिवय शकिति के दवारा होता है। इसलिए तनावपूर्ण स्थिति में रहने की कोई जरूरत नही। अब आप लोग कहेंगे चलो वैठकर आराम करते है, क्यूँकी सब कुछ दिव्य शक्ति दुवारा हो जाएगा। दिव्य शकिति आपके मध्यम से आपको अपना साधन बनाकर ह काम करेगी। इसलिये आप लोगों को चौकनना रहना चाहिए। जो व्यक्ति शिथित हो जरूरी नही कि वो आलसी भी हो। आप चौकन्ना और शिथिल दोनो हो सकते हैं। क्योकि आप सहजयोगी है। आप दूसरे लोगों के तरह नही है । जब कोई हवाई अड्डे का नाम लेता है तो दूसरे लोग किल्कुिल पागल जैसे हो जाते है। समझिये कि आप तनाव पूर्वक है और आपकी उडान छूट जाती है। तो क्या हुआ। ज्यादा से ज्यादा आपकी मौत ही हो जाएगी। यह अनिवार्य है क्योंकि इम जन्म लेते है तो हमे मरना तो है ही यही पक सत्य है जाकी सब मजाक है। इस बात से कोई फर्क नही पडता कि आप तनाव पूर्वक है या नही। लेकिन जब तनाव कम होता है तब हृदय खुलता है। और इम परम सुस और आनन्द के समुद्र बन जाते है। फिर हमें तनाव क्यू होना चाहिए। हर देश के संस्कार उनके वाग््यवहार के अनुसार होते है। जंस में यह संस्कार है कि आपको सुश नही दिखना चाहिए। यह संस्कार इतना मूर्खतापूर्ण है कि इसके अनुसार जो कुछ भी कुरुप है वह सुंदर बन गया है। यह तिरछा तनावपूर्ण नज सिया हमें वास्तविकता नहीं देखने देता। हम ु बम्ब हो। ऐसे बुलबुले के बारे में ऐसा चिन्ता करते है जैसे कि वे परमा अनावश्यक चीजों के बारे में हम चिन्ता करते रहते है जब हम निरन्तर चिन्ता करते रहते हैं तो जो भी हमारे करीब आता है हम उस पर टूट पडते है। आप किस बारे में चिंतित है? आपकी क्या समस्या है। मैं तो चिंता करती ही नही। अगर मुझे कोई चिंता है तो यही कि मेरे बचौ को एक दूसरे से प्रेम होना चाहिए। अगर हमें कोई चिन्ता है तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम अपने किसी मित्र को बता दे। मैत्री ऐसा सम्बन्ध है कि आप अपने गुप्त बाते भी बाँट सकते है । अगर आप लीहर भी है तब भी आप पहले मित्र है। आप अपनी समस्या या कष्ट मुझसे बॉँटते है तो आप आपस में क्यो नही बाँट सकते? सब सहजयोगी एक दूसरे के मित्र है मुझे लगता है कि 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-5.txt 5. मित्रता का रिश्ता बाकी सब रिश्तों से ऊँचा है क्योंकि मित्र एक दूसे का लाभ नही उठाना चाहते । इसका कभी ्त नही होता और आप सिर्फ अपनी मित्रता का आनन्द उठाते है। आपस के रिश्तों का यह सबसे निर्मल रूप है। सच्च मित्र वही है जो हमेशा अपने मित्र के बारे में चिंतित रहे। निर्मल मैत्री का इतना सुन्दर रूप डोता है कि आप दूसरे की खुशी में स्वयं आनन्द महसूस करते है। जब हम युवास्था में थे तब हमने ऐसी मित्रता देखी है। उन दिनों लोग खुले दिल के होते थे । मेरे पिताजी के मित्र पूराने विचारों के ब्राम्हण थे और जिस पाठशाला में मै पढ़ती थी उसके सभापति थे। जब मेरे पिताजी को कही दूर जाना पड़ा तब उन्होने मुझे अपने मित्र की देखरेख में विद्यार्थीग्रह में रस दिया। ब्राम्हण कभी अंडों को हाथ नही लगाते, लेकिन उनको पता था कि मैं अंडे साती है, इसीलिये हर सुबह वे चुपचाप खुद अपने हाथों से मेरे लिये अंडा बनाकर लाते थे। मेरे मना करने पर भी वे अंडा बनाकर लाते थे और बड़े प्यार से कहते कि तुम्हारी परीक्षा के लिये तुम्हे पौष्टिक आहार की जरूरत है तुम्हारे पिता चलै गये है और मुझे तुम्हारा नियम खुद तोड रहे स्याल रखना है। वे पाठशाला के सभापति थे और मैरे लिए अपने बनाये हुए थे। मुझे ऐसी मित्रता पर ताज्जुब हुआ। मेरे पिताजी और उनके मित्र में शायद डी कुछ सामान्यता धी फिर भी वे बहुत अच्छे मित्र थे। मैंने ऐसी मेत्री देखी हैं। जब मेरे पिताजी जेल में थे तब उनके मित्र हमें अभने घर ले जाते थे। मुझे उनके बच्चों में और अपने में कभी केई अंतर नहीं मसूस हुआ। बल्कि इमें हमेशा यह भहसूस हुआ कि अभने बच्चों से भी अधिक वो हमारा स्याल करते हैं । किसी का मित्र डोने के लिए वहुत बडा दिल चाहिए। एक पिता ये जिनका पक मित्र था और उस पिता का एक बेटा था जिक्का भी मित्र था। पिता ने पुत्र से कहा कि सर्ची मित्रता वही है जब हभ अपने मित्र पर भरोसा कर सकें। बेटे ने गर्व से कहा कि उसके कई मित्र है तब पिता ने कहा चलो हम दोनों अपने अपने मित्रों की परीक्षा लेते हैं। उन्होंने अपने बेटे से कहा कि तुम अपने मित्रों से कडो कि तुमने किसी की हत्या कर दी है। और तुम्हे मदद जवाब दिया "तुमने चाहिये। जब वे पहले मित्र के पास गये तो उसने कत्ल किया है" बाहर निकल जाओे"| दूसरेने कहाँ, "नही नही, किसी से कभी कहना भी मत कि तुम मित्रने थोड़ी इस घर में आये थे, चले जाओ । वे फिर उसके पिता के मित्र के पास गये देर के बाद दरवाजा खोला और माफी माँगते हुए कहा "मुझे पता था कि कुछ गडबड है तभी आप इतनी रात को मेरे घर आये है। इसीलिये मै अपनी पत्नी के गहने इक्कठे कर रहा चा कि कहीं आपको पैसे की जरूरत न पड जाए। इसलिए मुझे दरवाजा खोलने में इतनी देर 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-6.txt हो गई। तुमने किसी का कत्ल किया है, कोई बात नही। तुम्हारे बच्चे है, मेरी कोई औलाद भी नही है तो तुम कह दो कि कत्ल मैने किया है बेट आश्चर्यचकित रह गया। एक सच्चा मित्र वीस बेकार के मित्रों से बहतर है यही सच्ची मित्रता है। सित्र के साथ आप तनावपूर्वक नही रह सकते। आप आराम से एक दूसरे के साथ में आनन्द पाते है। अगर आपको तर्क करना है तो तर्क करे। अगर आपके विचार अलग है तब भी कोई फर्क नही पडता। उसे अपने मित्र पर लादने की कोई जरूरत नही है। हमे एक दूसरे को समझने की कोशिश करना चाहिए। इसी तरह हम एक दूसरे से कुछ सीख सकते है। मैने अपने मित्रों उदाहरण के लिये मैने फ्रांससी लोगों से बहुत कुछ से बहुत कुछ सीखा है। सीखा है। संगीत, सभ्यता और कला संबंधी विचार जाने है। आपके अब हर जगह मित्र है। आप मेरा बैज लगाकर कही भी जाये, आपके लिये वे कुछ भी कर देंगे। यही मित्रता है। इस दुनिया में हमारे हजारो मित्र है लेकिन हमे भी ख़ुद मित्रभाव रसना चाहिए। दो. मित्रों के बीच में स्पष्टता होनी चाहिए। प्रेम का मतलब है अपने और दूसरों के प्रति पूर्ण स्वतंत्रता । यह ग्रेम बहुत निर्मल होना चाहेए। अपने मित्रों पर गर्व करने के लिये आपको खुद ऐसी मैत्री का अनुभव नही है। जरा सोचिये इसके पहले हमारे यहा कितने साधु संत करना पड़ेगा। आप अकेले और महान आत्मारएँ पैदा हुई है, जिनको समझा गया और उन्हे सताया गया या मार डाला गया। वे अकेले धे । लेकिन आप अकेले नही है। एक दूसरे के मित्र है। आपका सबसे बड़ा मित्र दिव्य शक्षित है जो आपका स्याल रखती है और आपके लिये सब कुछ करती है। यह देश पस है जड़ाँ हमे मुक्ति मिली। आइये हम आत्मा की सची मुक्ति को पाएँ जिससे इम त हर बात का आनन्द ले सके बुदध्दिमान होकर। परमात्मा आपको आशीर्वाद दे। सार्कजनिक कार्यक्रम हवियेना} 25.1- 89 रं्षेप मे । breakthim आरम्भ में ही हमें यह समझ लेना चाहिए कि सत्य विचारधारित नही किया जा सकता तीन् बडोनती নीরএন यह कोई मानसिक कार्य नही है मनुष्य के बुध्दि की अपनी सीमा होती है। हमें उसमे लंडन) चाहते है। मानसिक गति सीधी करना पडेगा यदि हम अपना व्याक्तित्व उससे उँचे ले जाना रेखाओं से निर्मित होती है । जब वो पीछे हट जाती है तो उसे अपने आपको सम्भालना नही आता। पम उदाहरण के लिये (सीधी रेसा से निर्मित यह गति के कारण प्रकृति में जो असंतुलता आ गई है मेकीप हैं उससे पोधों को हरे रखनावाला घर जैसा प्रभाव पड गया है। इसी तरह अेडस की बीमारी 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-7.txt -7- आदि जैसे कष्ट हमें अपनी गलतीयों के कारण ही होते है। लेकिन जिसने इस सुन्दर सृष्टि की रचना की है, उन्होने कुछ और ही सोचा होगा और वे अपनी इस रचना को नष्ट नही होने दे सकते। आपके अन्दर एक यंत्र है जिसके दूवारा आप सृष्टिकर्ता के साथ संयोग अनुभव कर क सकते है। यह संबंध आप घर्म के दुवारा नही जोड सकते क्यूंकि धर्म भी मानसिक होता है | हमारे अन्दर ऐसी कोई शक्ति नहीं है। जिससे हमे अपने परित्याग को दबा सके। उदाहरण के लिए हमारे अंदर ऐसी कोई शचिल नही है जो हमें नशीली पदा्च , शराब इत्यादि लेने से रोक सके। हमने कौन से गलती की है जिसकी वजह से हम दिव्य शक्ति को नही देख पाते। हर रोज हम बीज अंकुरित होते देखते है। पूलों को लिलते देखते है, फलों को फलते देखते है, TeiE लेकिन हम यह नही सोचते कि यह कैसे होता है एक शक्ति है जो यह सब कुछ करती है। अब समय आ गया है कि हमारे अंदर जो साधन है उसके दूवारा हम इस शक्ति को अनुभव करें। आपकी मानवीय चेतना में आपको एक उँचा परिमाण लाना है जो मानसिक विचारचारणा से ऊपर हो। यह एक होनी है यह सबसे आखरी सीडी है। जो हमने पार करनी है । मानवीय ल दासरी चेतना में यह (प्रवेशता लाना जरूरी है नही तो इस विश्व को बचाना असभ्भव है। इस यंत्र का कोई अर्थ नहीं जब तक उर्जा के लाईन से जुङ न. हो। हमें अपनी क्षमता और सुनदूरता का डी२ ज्ञान ही नही है, पर एक बार आप विशेष लाईन से जुड जाएँ तो आप अपनी/ शक्षिन 00000/ इसके प्रभाव पर आश्चर्यचकत रह जाएँगे अपने आप को एक सुचार का साथन मानना ही और सही पुर्नजीवन है । दूसरे दिन का भाषण संगीत के कोई शब्द नही होते, यह विचारों को जन्म नही देता। संगीत के द्वारा | क हम विचारों को अपने मन से निकाल सकते है। की शिसा पर रहते है । जब हम भूतकाल या भविष्यकाल में होते है तब हम वर्तमान में नही हो सकते। जब एक विचार समाप्त होता है तब दूसरा उभरता है। दूसरा उभरने से पहले, दोनो विचारों के बीच का जो अन्तर है वही बर्तमान होता है। जब कुंडलीनी जागृत होती है तब विचारों के बीच का अन्तर कम होता जाता है, और मध्य स्थिति फैलने लगती है, फिर हम निर्विचार स्थिति में पहुँच जाते है। उदाहरण के लिए अगर हम यह सोचते रहे कि हमारी कालीन खराब नही होनी चाहिए तो हम उसकी सुन्दरता का आनन्द नहीं उठा सकते। लेकिन जब कुंडलिनी जागृत dio 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-8.txt डो जाती है और हम विचारहीन हों जाते है तब हम उसकी सुल्दरता का आनन्द उठा सकते है। इसके लिए, सबसे पहले हमें निर्विचार स्थिती में जाना होगा। यह तब हो सकता है जब हम आज्ञा चक्र को समझ लें। जब कुंडलिनी इसके बीच से गुजरती है तब वह उसके देवता येसु काईस्ट को जागृत कर देती है। वह सबसे पहले परमात्मा दूवारा मूलाधार चक्र में विचारधारित किये गए थे। वे भोलेपन का प्रतीक है, जिन्होने इस धरती पर अवतार लिया। चैतन्य लहरी से काईस्ट के शरीर का निर्माण हु आ था इसलिये वे पानी पर चल सके। उन्होंने कहा है कि हमें क्षमा करना चाहिए। जैसे ही हम दूसरों को क्षमा करते है, यह देवता हम में जागृत मर ॐ और प्रति अहंकार को सोस लेते हैं । हो जाते हैं और अहंकार हमारा भेजा लिम्बिक स्थान में प्रक कमल की फूल की तरह सुल जाता है और कुंडलिनी सिर के नर्म हड्डी के स्थान से गुजर जाती है। यर इस चक को पूरी तरह खोलना है। हमारे कर्मों का क्या? श्रीमाताजी मनुष्य ही सोचते है कि वे कर्म करते है, जानवर ऐसा नही सोचते। हमने गलत किया है या सही। हम अपने अहंकार की वजह से सोचते है, जानवर यह नहीं सोचते। केते वास्तविकृता क है कि मनुष्य यह नही जानता कि सही क्या है और गलत क्या है क्योंकि मকন हम (सम्बन्धित दुनिया में रहते है । लेकिन पूर्ण सत्य क्या है, आप चैतन्य लहरी दूवारा ही जान सकते है। तब सब के सोचने का ढंग एक हो जाता है। सही और गलत साफ नजर आने लगता है। जैसे जानवर गंदी नाली से गुजर जाते है, लेकिन मनुष्य वहाँ से नहीं जा पाता। जब आप साधू बन जाएँंगे तो आपको पता चल जायेगा सत्य क्या हैं और असत्य क्या है। आप कोई गलत कार्य नही कर सकते और आप एक नये परिमाण को समझने लगते है। लेकिन उसके पहले आपके संस्कार होते है और आपके अहंकार के कारण आपका व्यक्तित्व बन्द हो जाता है । लेकिन क्ाईस्ट आपके अहंकार और संस्कार को सोल लेते है । काईस्ट का हमारे पापों के लिए मरने का यही मतलब है जिसके लिए वे जागृत किये गए थे। अपनी शव्तियों के द्वारा वे हमारे सब पापों को सोख सकते है । इसलिये आपके अंदर अपराध भावना नही होनी चाहिए क्योंकि हमारे सब कर्म सोख लिये गए है। दुसी रहने का विचार उन लोगों से शुरू हुआ जो आपको दुखी रखना चाहते है। उनका यह कहना है कि आपने पाप किया है तो आपको उसका हिसाब चुकाना होगा। पर परमात्मा पैसे को नहीं समझते। क्या हम काईस्ट से अधिक पीडा सहनेवाले है? सैंट थोमस सहजयोग के बारे में ही बात कर रहे थे जब. उन्होने कहा धा कि सर्व शव्तिमान पिता जब इतने दयाल्ञ 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-9.txt और कृपालु है तब वे आपको दुकी रहने को कैसे कह सकते है। उन्होंने कहा है कि हमारे पिता बहुत उत्सुक है कि हम उनके साम्राज्य में प्रवेश करे। तो चलिये हम आनन्दित और सुखी रहें तथा दुखी रहने का विचार छोड़ दे। आपको दुसी और दोषी नहीं होना है। प्रश्न : क्या मधुमेह का इलाज किया जा सकता है? सोचते है तो स्वाधिष्ठान चकर अल क श्रीमाताजी मथुमेह अधिक विचार करने से होती है जब हम मम्े भास्व भेजे के सैल का निर्माण करता है। यह चक् चरबी के सैल को (भेजे के सेल में रूपान्तर करता है। आप अगर अत्याधिक विचार करेंगे तो यह चक केवल यही काम करेगा। लेकिन इस चक को कई और भी कार्य करने होते है उसे जिगर का ध्यान रखना पडता है इत्यादि । जब आप बहुत ही ज्यादा सोचते है तब इन अंगो की उपेक्षा हो जाती है। भारत में लोग चीनी बहुत साते है लेकिन ज्यादा विचार नहीं करते। इसलये उन्हे मघूमेह की तकलीफ नहीं होती। लेकिन जब हमारा दिमाग आधुनिक हो जाता है तब विचार न करना बहुत ही कठिन हो जाता है। इसका इलाज करने के लिए विचारों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये। जब आपके विचारों पर आक्रमण हो रहा हो तब आप तीन बार कृहिये "मै क्षमा करता/करती हूँ और शान्ति छा जाएगी। वियेना जा्रम में सहजयोगियों को माझ्म उपका मा सहजयोग आपके परोपकार के लिये है लेकिन यह पक न्यास भी है। आप कैसट टेपो का अध्ययन करें। किसी ने मुझसे एक बार कहा मेरा बच्चा बीमार है। इसका मतलब है कि आपने सहजयोग का अध्ययन नही किया। मैंने कई अवसरों पर बताया है कि आपको बच्चों के लिए क्या करना है। अगर आप वो सब करते रहें तो आपके बच्चे कभी बीमार नही होंगे। ार यह गुरू तत्व का दूसरा रूप है। आपको बहुत ज्ञानी होना चाहिए आपकी बाते सुनकर किसी को यह नही लगना चाहिये कि आप श्रीमाताजी के आधीन दास है। अगर आपको ज्ञान नही है तो आप गुरु नहीं हो सकते। सारा ज्ञान आपके अंदर आपके दिमाग में है बस তি आप ध्यान लगायें और मनोभावनायें खुद आपके दिमाग में आ जायेगी। लेकिन ध्यान जुध्द और ह पूर्ण होना चाहिए। समाचार श्री माताजी की रुस यात्रा |989 एक पैतिहासिक दिन धा। रूस ने श्री माताजी के प्रति अपना 4 अगस्त हृदय खोल दिया। श्रीमाताजी ने सेवियत कर्मचारियों और वर्तमानपत्र के लोगों को सहजयोग 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-10.txt ४ । के बारे में बताया और उन्हें जागृति भी दी। पक मुख्य भारतीय सोवियत संप के सभापतिने 10 - सबने चैतन्य लहरी को महसूस किया। उनके नियमित जीवन और उनके चरण स्पर्श मभी किये। वागळ्यवहार के कारण उनके चक् स्वस्थ और प्रबल है। सोवियत यूनियन आज्ञा चक् का आगे का भाग है और चीन आज्ञा चक का पीछे का भाग है। स्वास्थ्य मंत्रालय में डाक्टर, वेज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक सहजयोग और सहजयोगियों के अनुभवो से बहुत प्रमावित हुए सहजयोग के आरोग्यकर की सोज और प्रयोग के लिये सोवियत युनियन और लाईफ इटरनल दूस्ट के बीच एक मूललिपी पर मिलकर हस्ताक्षर किय गये। दुनिया में सोवियत यूनियन पहला देश है जिसने इस महायोग की महानता को पहचाना है। लब जार कुश के बंश के कारण वे इस परम सत्य को आसानी से पह़चान पाये है। |8 अगस्त को श्रीमाताजी ने 2000 से ज्यादा लोगों के जनसमुह को लनिनग्राड के पैलँंस ऑफ यूथ में सम्बोधित किया। लगभग तीन हजार लोगों को लौट जाना पडा क्योंकि हॉल पूरी तरह भर गया था। 20 तारील के मॉस्को में भी पसा ही दृश्य देखने को मिला। रूस के लोग आ रहे है- . लैकिन हजारो की तदाद में। पलिया व अधिक गर्म जिगर का आहार श्री माताजी दृवारा सृचित किया गया रोज सुबह, व शाम पक ग्लास भुली के पते का चीनी के साथ उबाला हुआ रस पीजीप| रोज सुबह एक ग्लास कोकम शरबत पीजीए। 2. बाये हाथ मे पकड कर बर्फ कपडे में लिपटा, जिगर पर रखे और दाये हाथ को 3. प .प. श्रीमाताजी की तस्वीर की ओर करे । तस्वीर के सामने विना कोई दिया या मेणबत्ती जलाकर ध्यान करे। बंगाली मिठाईयाँ खा सकते है। हरसगल्ला इत्यादि, मलाई के बिगैर 3 4. चर्बी, तेल, लाल मिर्च और तला हुआा सान किसी मी स्थिति में नही साना चाहिये। 5+ हलस्सी जिससे मक्तन निकाला हो, मछली जर दूध से बने पदार्थ मना है। मठ्ठा 6- लिया जा सकता है। टीन का पनीर किंकुल मना है। 7- लिय 4 गोलियाँ दो महीने तक 52 की गोलियाँ दिन में 5 - 8- सब नींबू का सट फल सा सकते है। आम सेब, केला, पपीता या 9-1 ( Citrus ) चीकू मना है। 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-11.txt 11- गन्ने का रस व गन्ना बहुत अच्छा है। 10- 11 4 मक्लन मना है। उडद व अरहर इतुअर ह दाल मना है। 120 उबले चावल, सब सब्जियां और मुंग डाल ठीक है। 13- खाने में मिर्च किल्कुल नही। 14- अदरक, प्याज, आलू, काकडी हखीरा ठीक है। 15. |6. नियमित रूप से बाईब्रेटिड चीनी को नींबू में डाल पीना है । आईस कीम साना मना है। 17 औवले का मुरब्या अच्छा होता है, और सुबह शाम दोनो बार साया जा सकता है। 18. | 9. खाने पर चौँदी का बर्क अच्छा डोता है। 20 . धरती के नीचे पैदा हुए सब सब्जियाँ व फल ला सकते है । 2। मूँगफली व मूँगफलीं का तेल मना है। मूंगफली व मुँगफली का तेल गुर्दो के लिए 21. बहुत सराब है। धोडी मात्रा में सूरजमुखी के तेल में पकाना ठीक है।