चैतत्य लहरी श्री माताजी निर्मला देवी भाग । अंक 9 जब आपका चित्त दूसरों के प्रति प्रेम व करूणामय हो जाये तमी आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। श्री माताजी वि भाग । - अंक 9 चैतन्य लडरी श्री सारांख श्री बुध्द पूजा स्पेन, 2 मई, 1989 श्री बुध्द गौतम का जन्म राज घराने में हुआ था। वै इस कारण योगी बने थे, क्योंकि वह मानव की उन समस्यांको देखना चाहते थे जो इच्छाओं के कारण उमरती है। अवतार होने के कारण, श्री बुध्द को अपनी ज्ञानसिध्दी तक पहुँचना था, जिससे कि उनकी समस्त सक्रियता एक मामूली अन्वेषक से इट कर खुल सके। उसके पश्चात, उन्हे ज्ञात हुआ कि हमें निरिच्छुक हो जाना चाहिए। श्री वुध्द नै शिक्षा दी कि अहम् के कारण ही मनुष्य की सब समस्यापं उठती है और उसी के कारण मनुष्य हर चीज की चरम सीमा तक पहुँच जाता है। उ्होने पिंगला नाडी पर कार्य किया और अहम् पर अपना स्थान बनाया जिससे कि उसे नियंत्रित कर सर्कें। काइस्ट महावीर और बुध्द उस आज्ञा चक के शासक और स्वामी है जिसका सम्बन्ध तपस या प्रायश्चित से है। उन्होंने हमारे लिए तप और कष्टसाध्यता कर ली है इसलिए हमें करने की आवश्यकता नही है। श्री बुध्द की शिक्षा का सार तत्व है सच्चाई तथा स्वयं से ईमानदारी। श्री माताजी ने समझाया कि कई लोग दुसरो को और स्वयं को तर्क जौर व्याख्यान देकर सत्य से भागने पतंलि का प्रयत्न करते है। सहजयोगियों को यह जान लेना चाहिए कि वे ब्राम्हन है क्योकि उन्हे उस ब्रम्ह का आभास हो चुका है जो कि एक सर्व विद्यमान शक्ति है । उन्हे साइसी और परिश्रमी जीवन व्यतीत करना चाहिए। जिनमें अहम् है, वे उनसे खूब प्रभावित होते है जो उनकी तरह अहम् रसते है। आधूनिक पैशन के साथ औख बंद कर के चलना इसका एक उदाहरण है। अगर इमारी आत्मा और अहम् सही है तो हमारा अपना एक चरित्र होना चाहिए, एक अपना ही व्यक्तित्व और पक अपना ही स्वभाव होना, चाहिए! जुब हम है अक्म् के वश में हो जाते नषाल क पातिट तो हमारी बाँई ओर कमजोर पड जाती है उस सुक्ष्म व्यवस्था में धमने का कोई तरीका नहीं रह जाता और हमारी शुध्दता और पवित्रता भी मैली पड जाती है। इसीलिए श्री बुध्द ने ब्रम्हचर्य का पक्ष समर्थन किया था जिनका वाई और झुकाव होता है, उनमें अधिक उलझने और जटिलताएँ नत उत्पन्न हो जाती है। आरम्भ तब होता है जब ये भाव आता है कि इसमे क्या खरावी है? यह भाव रूलेपन, शीघ्रता और बचे ना होने की हृद तक पहुँचा देता है। अहम् को नीचे उतारने के लिए हमे श्री बुध्द को पूजना चाहिए, और ये करने के लिए हमें पहले अपनी पवित्रता का आदर करना होगा। ये विवाह और परिवार जीवन के प्रसंग में ही हो सकता है। श्री माताजी ने समझाया कि तीन प्रकार के लोग होते है । पडलेवो, जिन्हे दूसरों की चिन्ता एकदम नहीं होती और अधिकतम अपने में ही खोप और उलझे रहते हैं। वे बहुत कुर और कठोर हो सकते है। वे समझते है कि उनसे अवछा कोई नही है और वे ही सबसे होशियार है, पर कोई उन्हे पसन्द नही करता। दूसरे प्रकार का मनुष्य खूद ही असंतोष प्रकट गना भे करता रहता है वह यह सोचता है कि उसे बहुत सी बीमारियाँ है और हर बात एक निषेधार्के पहलू प्रस्तुत करता है। पहले प्रकार का आदमी कुछ अधिकही सन्तुष्ट रहता है, दूसरे प्रकार का आदमी कभी सन्तुष्ट नही होता और तीसरे प्रकार का मनुष्य साधू होता है, जो ये नही या नही, उसे केवल दूसरों की संतुष्ट या संतोष का विचार रहता जानता कि वह सन्तुष्ट है है। श्री बुध्द इस तीसरे प्रकार के व्यवित के समान है। সल्चाल श्री बुध्द ने तीन मंत्र में इन तीन प्रकार के लोगों को संबोधित किया है "बुध्दम् मैं उन सब को नमन करता हैँ जो सिथ्द आत्मापँ है। सब सहजयोगिर्यों शरणम् गच्छामि" का आदर होना चाहिए और उनका आत्म समर्पण बुध्द के समान स्वीकृत करना चाहिए, चाहे वे जीवन में किसी भी त्थिति में हों। दूसरा है , "चमम् शरणम् गच्छামি ", मैं अपने धर्म को नमन करता हूँ, जो विश्व निर्मला धर्म है। इसके लिए हरें ये पूछना चाहिए कि हम सहजयोग के लिए क्या कर सकते है। इर आदमी को हर प्रकार का कार्य करना चाहिए और दूसरेों अ G०। की समालोचना नहीं करनी चाहिए, विशेष तार पर तब जब हमने अपनी योग्यता पहले ना परखी हो । तीसरा मंत्र है, "संगम शरणम्, मच्छामि ", मैं सामूहिकता को नमन करता हूँ । परसी हो म শন্न्ट। भ. 2ी] 1 अन्तर से कटाव और अलगाव ही श्री इुध्द की शिक्षा का सतू है। आत्म सक्षात्कार ही लक्ष्य है, न कि गलत राह पर चल कर बाहरी रूपों का पूजन। श्री बुध्द के बाद के अनुयायियों को ये बात समझ नहीं आई और उन्होंने बुध्द की शिक्षा को दृषित कर दिया। परन्तु सहजयोगी, सहजयोग को दूषित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से उनकी चैतन्य लहरियाँ नष्ट हो जाएँगी। लेकिन हमें चौकन्ना रहना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अहम् हमें घोखा दे सकता है। यहाँ तक कि हमें इस बात का विश्वास हो सकता है कि हमारे पास चैतन्य लहरियाँ हैं, जब कि नहीं हैं। अपने (मनोयोग से और दाँई ओर के माध्यम से हम श्री बृध्द के सत्य संदेश को )০) ह का जान सकते हैं। सहजयोगी होने के नाते हमें अपनी एकता का ज्ञात होना चाहिए, और यह पहचान तेना चाहिए कि हमने इस विश्व धर्म को गहराई से महसूस करा हैं और पूर्णता से इसमें हमारा विश्वास है। हमें जागरूक रहना चाहिए कि हमारा जीवन ईश्वर के कार्य के लिए हैं, और उसके लिए हमें शुध्द होना होगा और अपने पर ढृष्टि रखनी होगी। अहम् के कारण ना तो हें पाण्डी बनना है और ना ही अपने को धोखा देना है। हमें श्री बुध्द के गुणों को ध्यान में रसना है जो हम्में करूणा, कडी मेहनत, समर्पण और त्याग की शिक्षा देते है । "सत्य ही हमें रन्दर बनाएगा"। श्री ऐयीना पूजा सारांश ऐज, ग्रीस, 24 मई, 1989 सहजयोग के इतिहास में पहली श्री पथीना पूजा के निरयारित विपय थे एकीकरण और आदर। इर व्यक्ति और राष्ट्र को विकरिसत होने के लिए ये गुण अभिव्यवत करने होंगे । सारे विश्व की नाभी के केन्द्र ग्रीस ने, ये गुण अपने इतिहास में प्रकट किए हैं और अब वह समस्त संसार को इन क्षेत्रों में आगे लें जाएगा। श्री पथीना आदि शवित हैं, जो एकत्तावध्द और एकीकरण करती हैं। श्री माताजी ने कहा कि ये करने के लिए, वे इस पृथ्वी पर भातिक रूप में ग्रीस आई हैं, श्री ऐथीना के रूप में। वे एकीकरण बल की सृष्टि करेंगी और उससे सारा चैतन्य एक एकीकरण शक्ति के शवित ने देवलोक की सृष्टि की है। यह वो क्षेत्र समान पैल जाएगा। आदि है जहाँ ग्रीस में देवों की सृष्टि हुई है। गणों की सृष्टि नेपाल क्षेत्र के बाँई ओर हुई धी। ै ग्रीक पुराणशास्त्र से पता लगता है कि ग्री देवों के विपय में जानते थे। परन्तु, ग्रीक, देवों को मनुष्य के स्तर पर ले आए थे, और इसी कारण उनकी अवनति हुई थी। नाभी में, धर्म के द्वारा , ग्रीस विश्व को संतुलन प्रदान करता है। ग्रीक लोगों का एक विशेष कार्य ये है कि वे दाई और बाँई ओर झुके लोगों का एकीकरण करते है । एकीकरण का ये ग्रीक गुण पलेगजेन्डर के जीवन में झलकता है। वह भारत को जीतने चला था पर पीछे मुड गया। एकीकरण बल कार्यरत तव दिखता है, जब कोई लक्ष्य की और बढे, परन्तु जब लक्ष्य शुध्द ना हो तो वो पीछे हट जाए। हमारे अतीत के गुरूओं का एक विशेष कार्य धा - संतुलन की सृष्टि। लोगों में अज्ञानता अनैतिकता का सामना करके एव्रहैम, मोजूज और मुहम्मद बाँई और शुक गये थे, इसलिए उन्हें टे शी ोका मो पाईे मीए ाँक भोन भोहान्ता भा रले काढी कयोड पल 5 )५ को दाढे | Y) ఇT दहे ६৫: 4 - दाँई ओर हटना पडा। वे लोगों को ये नहीं समझा सके कि उनकी मुमित में घर्म है। उन्हें नियम बनाने पड़े और प्रोल्साइन के लिए दण्ड का प्रयोग किया। सौकटीज के समय तक, ककि लोग उस सीमा तक विकसित हो चुके थे, कि सौकटीज विवेक, ईमानदारी सत्यनिष्ठा, शान्ति और अनेक अनन्त गुणों के विपय में बात कर सकते थे। वे तर्कशास्त्र के गुरू थे। तर्कशास्त्र शुध्द है, जुबकि 'न्यायिक बुध्दि अन्धयापन है"। सहजयोग मैं, श्री माताजी पहले साक्षातुकार देती है, और फिर बोलती है ताकि हम समझ सकें। श्री माताजीने समझाया कि दो प्रकार के लाग है, सहजयोगी और जो सहजयोगी नहीं हैं। कुछ सहजयौगी योग्य नहीं होते। वे वापस जा सकते हैं पर वे इस योग्य बन सकते हैं कि उन्हें ज्ञान समझ आ जाए। कुन्डलिनी हमें योग्य बनाती है। सहसरार हमें मदद करता है ज्ञान सोखने में, तर्क देखने में जौर सत्य की जाँचने में। सब पुरातन धर्मो ने पैसा बनाया है और अवतार के नाम पर वे अपने अनुरागियों को न्क की और ले गए हैं सहजयोगियों को दूसरों को बाहर खींचनना चाहिए, न कि अपने आप नीचे जाँप। ग्रीस, इजिप्ट और चींन के कई स्थानों में आज भी पकीकरण, संतुलन और संस्कृत की ओर आदर जैसे गुण प्रकट हो रहे हैं परन्तु उन स्थानों में भारत जैसी जानकारी की गहराई नहीं है। श्री माताजी अब ग्रीस आई हैं क्योंकि ग्रीस को अब सहसरार की सीमा तक बढना है। श्री ऐथीना अब सहसरार में हैं। ग्रीक लौगों को आसव्ति की गुणहीनता की समझ है। कलयुग का एक असर है कि हम पशि्वमी लोगों की नकल करते हैं और इ्तीसे जनतिकता आई है। पर अब भी वे ठोस हैं और आदर करते हैं चरित्रवान नारी का और मा का। श्री माताजी ने फिर आदर की बात की। ग्रीक आदर के कारण, पेलेगजुन्डर भारता गया और आत्मिक तार से उसका विकास हुआ। औग्रेज वहाँ तीन सा साल रहे पर उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। हें दूसरों का और दूसरों की संस्कृति का आदर करना चाहिए। अगर ँग्रेज सच्चे आदर को विकसित कर ले तो विश्व का कायाकल्प हो जाएगा हमें निश्चित रूप से दूसरे सहजयोगियों का आदर करना चाहिए। वह आदर जो दिल से उभरता है यह दिखाता है कि हमें ईश्वर की उत्तमता का ज्ञान है हें आदि शवित का आदर दिल से करना है, ना कि केवल दिखावा करना है। जब ये हो जाएगा, तो पूर्ण रूप से हमारा कायाकल्प हो जाएगा। जैसे देवता आदि शव्ति का आदर करते है, हमें भी वो ही आदर सीखना है ग्रीक लोग इस आदर में सबसे आगे होंगे । ন व्यवितिगत स्तर पर सहजयोगियों को, दाँई और बाई और के गुणों में एक संतुलन बनाना है। पेधीना की एकीकरण शव्ति योगियों के अन्दर विकसित होनी है और ऐथीना को ति 5. ग्रीस में जागना ही होगा। तब ग्रीस शुध्ध हो जाएगा और समस्त विश्व के लिए एक संतुलन बना दैगा। ब्म्ह [चैतन्य पूजा - सारंख म्यूनिक, जर्मनी, जुलाई 1989 यह पहली पूजा धी जिसमें सहजयोगियो ने श्री माताजी की पूजा, परम चैतन्य म्प में की। परमचैतन्य ईश्वर के प्रेम की सर्व विद्यमान शक्ति है। श्री माताजी ने समझाया कि परम चैतन्य ही सब कुछ करता है ये आदि शवित का बल है और सब कुछ अपने अन्दर है, वैसे ही ये भी हर्में अलगअलग दिखता है, पर समेटे है। जैसे हमें देशों में अन्तर दिखता कि वास्तांवकता में ये निरन्तर है जो, स्वयं के भीतर कार्यरत है। ये सहजयोगियों की और विशेष ध्यान देता है अगर हमारी एकता परम चैतन्य से है, लो जो भी हम इच्छा करते हैं वे परम चैतन्य से ही आती है। इस निराकार उर्जा में बए समस्त (बुध्धि है, समन्वय है और व्यवस्था है। सबसे उत्तम तो ये बात है कि ये हमारी माँ को और प्रभु का प्रेम है। इस परम चैतन्य से एक होने के लिए हमें वास्तविकक्ा की सच्चाई वनना है श्री माताजी ने समझाया कि दूसरों कि फोटोग्राफ से सहजयोग नही हो सकता क्योंकि वे वास्तविकता नहीं बने है। ही बारिश की तस्वीर से ना कुछ गीला होता है और ना वो तस्वीर पूल लिला सकती है। इसी प्रकार हमें जान लेना चाहिए कि वास्तविकता में हम करते हैं और सब कुछ परमचैतन्य के दूवारा कुछ नहीं ही हौता है। क सहजयोगी इसकी सत्यता दिल में महसूस करता है जब कि जो सहजयोगी नही है, वो इसे समझ तो सकता २ हग लि )) है पर अपने अस्तित्व का हिस्सा होना नही महसूस कर सकता। 1 ७xi4र परम चैतन्य दविक प्रेम है। श्री माताजी ने समझाया कि प्रेम का अर्ध है पागल व्यवहार। हम अपने परिवार और बचचों को प्यार करते हैं, जो कि बास्तविकता नहीं है और जिसका कोई भविष्य नहीं बताया जा सकता। परन्तु परम चैतन्य प्रेम व्यव्त करना जानते हैं और प्रेम का सार है "हित" एवं परोपकार। किसी भी रूप में आकर, कूर या प्रेमपूर्ण रूप में, पर वह सदा ही हमारे दोप दूर करते है । वे हमेशा व्यक्ति और सामूहिक हित के चाहिए। हर आदमी से अलग व्यवहार करते हैं। अगर सहजयोगी ये समझ लें कि वे हमेशा उनके दोष हटाने के लिए कार्य लिए कार्य करते हैं और भूली भांति जानते हैं कि क्या करन এস कर रहे हैं, तो सहजयोगी कभी अपने जीवन से निराश नहीं हैंगे। श्री माताजी ने ध्यान दिया कि <-6 - जब से सहजयोगियों को ये परमचैतन्य और उनके साथ आन्तरिक संबंध मिला है, तब से उन्हें चिन्ता करना छोड़ देना चाहिए और इसमें कुद कर इस वास्तविकता का हिस्सा बन जाना चाहिए। श्री माताजी ने समझाया कि अतीत में जर्मनी में बहुत ही भयानक चीजे हुई थी, जैसे युध्द और खून खरावे। घर उनके दूवारा एक शिक्षा हर्में प्राप्त हुई थी। उससे हम और सामूहिक हो गए और राष्ट्रीयता और जातीयता के ऊपर उठ गए थे । इर युध्द के पश्चात् एक विस्फोटक गति से हम उस ज्ञान की ओर बटे हैं कि हममें कुछ सरावी है। श्री माताजी का ने आधनिक समस्याओं पर बात करी जैसे एडजू, नशीली दवाएँ, गरीबी और वातावरण से सम्बन्धिदित समस्यापँ। उन्होंने कहा कि लीडर्ज इन समस्याओं का समाधान करना नहीं जानते और अधिकतर लोग अपनी गर्लातयाँ ना तो पहचानते हैं, हैं, ना उनका सामना करते हैं, जर ना उन्हें ठीक करते हैं। कलयुग के इस समय में, जो चीज अकुलीन है, घृणित है और वैकार है, यह ही लोगों के लिए अच्छी हो जाती है। अपनी बात के अन्त में श्री माताजी ने सहजयोगियाँ से कहा कि वै प्रार्थना करें कि प हम ज्यादा से न्यादा जानकार हो जाएँ और यह जान लें कि हम परमचैतन्य का एक अंश है और उसे महसूस कर सकते है, उसका प्रयोग कर सकते हैं और उसके साथ कार्यान्वित हो सकते हैं। सहजयोगियों के लिए आवश्यक आचरण श्री माताजी ने सब सहजयोगियों को यह परामर्श दिया। श्री माताजी के सार्वजीनक कार्यकर्मी में इन बातों का विशेष ध्यान रखना है : श्री माताजी की तस्वीर किसीको बेचनी नहीं है। सार्वजनिक कार्यक्रमों में और उनके पश्चात किए जाने वाले कार्यक्र्मों में तस्वीर केवल विशुध्द अन्यम्कों को दी जानी चाहिए। श्री माताजी की पुजा के दौरान या उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों के बीच किसी भगी 2. व्यक्ति को हसहजयागी या प्रेस रिपोर्टर फोटो लेने की इजाजत न दी जाए, जब तक कि श्री माताजी ही ना कहें। हर सहजयोगी को इस बात पर चौक्ना रहना चाहिए और अगर कोई इजाजत लिए बिना कुछ कर रहा हो तो उसे एकदम रोक देना चाहिए। कुछ भी छपी सामग्री सार्वननिक कार्यक्रों में ना बेची जाए जब तक उसे माताजी 3. की मंजूरी ना मिली हो और उन्हें बेचने की इजाजत दी गई हो। जो पुस्तके श्री माताजी ने - 7 - स्वीकृत की हों, उन्हें केन्द्रों पर बेचा जा सकता है विशुध्द अन्वेपकों को। हरँकिसी भी छपी सामग्रीम पाम में ऐसे मन्त्र नहीं होने चाहिएँ जो आरोग्यकर गुण रखते हों। किसी भी सार्वजानक कार्यक्रम में अँगूठिय्यों, पेन्डेन्ट इत्यादि व्स्तुओं में व्यापार नहीं 4. होना चाहिए ये चीजे सहजयोगियों को बेची जा सकती हैं पर खरीदी दाम पर। उन पर कोई लाभ ना लिया जाए। उनकी पूजा के व्यास्यानों की या सार्वजनिक कार्यक्रमों की कोई ओडियो या वीडि 50 रिकार्डिंग अनअधिकृत तौर पर नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिगत तार पर औडिओ और बीडि ओ औ ही कैसेट ना बनाए जाएँ। कैन्द्रों से ये कैसेट सरीदे जा सकते हैं । किसी भी पूजा या सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान काई भी माँ की और पैर ना बढाएँ। इससे माँ का अनादर होता है। पूजा या सार्वजनिक कार्यक्र्मों में कोई अखि ना बन्द करें और ना ही बन्धन लगाएँ, 7. जब तक कि माँ ही उसे ये सब करने को न कहं। कुर्सी को पक श्री माताजी की जरी के आसन से ढकना चाहिए और वे जरी आसन ৪ - केवल उसी प्रयोग के लिए खरीदा जाना चाहिए। कोई भी सहजयोगी अपनी साडी या शाल उनके बैठने या चलने के लिए प्रयोग नहीं कर सकता। जो क्स्तु श्री माताजी प्रयोग में लाई हा उसे अलग रख देना चाहिए और फिर कोई उसका प्रयोग ना करे। स्टेज पर, श्री माताजी की कुर्सी की दाई ओर, हलोगों की ओर फिरी हुई एक 9• मेज पर एक छोटा पड़ा पानी से भरा और उस पर पक ग्लास उल्टा करा और ढका हुआ रसखना चाहिए। उनकी बाँई ओर एक स्टैन्ड पर एक मोमबत्ती रसनी चाहिए। उनकी बौई ओर ही विराट तालिका स्टैन्ड पर होनी चाहिए। काफी चना तैयार रला होना चाहिए ताकि कार्यक्रम के पश्चात् उसे वाइब्रेट कर के प्रसाद के रूप में बौट दिया जाए। उनकी पूजा या व्याख्यान के दौरान कोई भी स्टेज पर न बैठे, न सडा हो और ना चले। स्टेज पर उनकी कुर्सी की दाँई और एक मेज़ कपड़े से ढकी हुई रखी हो और उस पर श्री माताजी की एक फरेम की हुई तस्वीर रखी होनी चाहिए। अच्छा होगा अगर उनकी ध्यान मुद्रा वाली फोटो हो १काली सफेद फोटो जो "भय दान" मुद्रा में है। या कोई और, हमें ध्यान रखना चाहिए कि कोई पूजा की फौटो ना प्रयोग हो। उनकी फोटो के सामने घूप जली होनी चाहिए। एक मोमबल्ती जली हो और फूल और हार भी चढा सकते हैं। च को इन रंगों में तालिका पर दिखाया जाए :- 10- 8 - मूंगिया लाल मूलाधार पीला स्वाधिष्ठान पन्ने की प्रकार हरा मणिपुर माणिक्य लाल अनाइत नीलमी नीला विशुध्द मौतिया सफेद आज्ञा सब रंग सहसरार ध्यान दे :- 11- श्री माताजी की कोई फोटो केवल सजावट के तौर पर दीवार पर ना प्रयोग की जाए क्योकि उनकी हर फोटो की ओर एक आदर आवश्यक है। हर रोज फोटो को गुलाब जल से चोना चाहिए, उस पर कुमकुम और इतर लगाना चाहिए, फूल चढाने चाहिएँ, धूप जलानी चाडिए और फूजा करनी चाहिए। अगर हम फोटो का आदर नही करते हैं तो उनका ध्यान उस पर से हट जाएगा। अगर श्री माताजी की खाई हुई कोई चीज बच जाए तो उसे अकेले नही खाना चाहिए। 12. जी चीज सव में बाट कर खाई जाए वह ही प्रसाद कहलाता है। कोई भी सहजयागी अपना केंद्र या दैश छोड कर दूसरे केन्द्र या देश में प्रतिनिधित्व 13. नहीं कर सकता है, जब तक वाह अपने लीडर सै आज्ञा ना ले। वै किसी आश्रम में ना रहें, के यहाँ। अगर कोई लीडर इस उन्हे स्ययं इन्तजाम करना चाहिए किसी दोस्त या रिश्तैदार सम्बन्ध में पत्र दे औैर मेजबान लीडर आराम से रख सर्के तब ही आश्रम में रह सकते हैं और वो भी अपने खर्चे पर । भारतीयों के लिए :गेंदे का फूल श्री माताजी पर नही चढाना चाहिए । 14 आरी अबरें श्री माताजी ने सव व्यवसायिक सहजयोगियों से कहा है कि वे अपने छपे हुए पत्र कागजी पर सहजयोग का वैज्ञानिक और तर्कसंगत तरीका लिखे और ये भी लिखे कि वे कैसे सहजयोग में आए और उनकी प्रगति हुई। उन्होंने यह भी राय दी कि वो सहजयोगी जिनके कार्य में जब से वे सहजयोगी बने हैं तौ उनका वैवाहिक जीवन सुधरा है, या वै प्रगत हुई है या झूठे गुरूओं के चैंगुल से छुट गए है वे सब ये लिख कर अपने केन्द्र के लीडर की भैंज दें । जिन लोगों को बीमारियों से छुटकारा मिला है वै सब लिख कर मेजें। हो सके तौ सब डाक्टर के कागजात शुरू से लेकर आखिर तक भेजे। वे सब लोग जिन्हें आर्थिक, भावात्मिक, मानसिक ज) हीट 2क ৫১3 और आत्मिक लाभ हुए हैंवे सब उन्हें घन्यवाद दें और लीडर को दे । एक भारतीय सहजयोगी, डाक्टर दीपक चुग को अभी पकडी. की डिग्री प्राप्त हुई ा। जंतु बनस्पति विज्ञान पर सहजयोग का असर। विषय था है और उनका --- न्यूयॉर्क के पाँच उपनगरों में से एक है क्वीन्ज़। वहाँ एक नया आश्रम स्थापित किया गया है। डाक्टर निगम और डाक्टर राय हाल ही मैं मौस्को गए थे सार्वजीनिक कार्यक्रम के पश्चात। स्वास्थ्य केन्द्र से जो हमारी सहमति हुई है वे उस विषय को ब्रढावा देंगे। 17/8/1989 दैवी पूजा - हेलसिंकी, फिनलैंड नये जाये हुए लोग के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाए तो अब हम फिनलैंड मैं हैं। यह प्ृथवी का औंतम छोर है। सारी कठिनाईयाँ आकर इस औीतम छोर में बस जाती है । यहा ईश्वर को सोजनैवाले बहुत लोग हैं इसलिये यहाँ निषेधार्थक काते शव्तियोंके लिए अधिक आकर्षक है कि वे ऐसे लोगों पर आकृमण करें। जब आप सहजयोग में प्रवेश करते हैं , तब आपको यह समझ लेना चाहिए कि सहजयोग थीरे आपको सब कुछ दिखा देती है। उदाहरण के लिये उस रोशनी की तरह है जो धीरे :- अँधेरे में आप अपने हाथ में साँप लेकर चल रहें हो लेकिन आप उसे रस्सी समझकर जा फेकना नही चाहते। लेकिन जब प्रकाश हो जाता है और आप साँप को देखते है तो आप डर जाते हैं और उसे दूर फेंक देते हैं। लेकिन कुछ लोग यह समझकर भाग जायेंगे कि यह सौंप सहजयोग से आया है| सहजयोग में आने वाले लोग भी ऐसे हो सकते हैं और अपने बारे में ऐसा सोचते इसलिये आपको उनके साये बहुत धेर्यं और हों। वे वास्तविकता का सामना नही करना चाहेंगे । सावधानी के साथ व्यवहार करना पडेगा क्योंकि वे अज्ञानी हैं और घोर अंधेरे और अज्ञानता से आ रहे है । आप उसकी मानसिक स्थिती नहीं जानते होगे। हो सकता है कि वह आधा 10 पागल हो या किसी भयानक बीमारी से पीडीत हो या उसका कोई भयानक गुरू हो। या हो सकता है कि वे इतने दःसी हों कि अब उनको उसका अहसास ही न होता हो। इसलिये यह बहुत ही उलझा हुआ मसला है। होना चाहिए। कभी कभी सहजयोग का पहला सिध्दान्त यह है कि कभी निराश नहीं आपको कठीन परिश्रम करना पडता है। मैने लोगों पर बीस घंटे परिश्रम किया और पाया कि उनपर कोई असर नहीं हुआ पत्थर की तरह। पत्थरों से कम से कम मैं गणेश की रचना तो कर सकती थी। हो सकता है वहुत कठिन परिश्रम करने के बाद आप यह अनुभव करें कि आपको उसका कुछ भी फल नहीं मिला। लेकिन सहजयोग में निराशा के लिये VATOL केाई स्थान नहीं है। जो हमारा कर्तव्य है उसे हमें पूरा करना है । हमें उसका क्या फल मिलेगा इसकी चिंता हमें नहीं करनी चाहिए। यह गीता के प्रमुख सिध्दान्तों में से एक है । "क्म करो लेकिन उसके फल की चिंता मत करो" यह सिध्वान्त आपको सही रास्ते पर रकगा । नही तो आप निराश हो सकते हैं। बॉस्टन में एक बार सब बहुत चिंतित थे जर उन्होंने पूछा कि क्या वे सब लोग नरक जायेगे मैंने कहा आप लोगों को आशा नहीं छोड़नी चाहिए और ऑंतिम समय तक लोगों को नरक से बचाने की कोशिश करनी चाहिए और अब वहाँ सहजयोग चल पडा है। आपको भांति जान लेनी चाहिये कि शुरू - शुरू में कभी भी ज्यादा लोग नहीं आते यह बात भली और परमात्मा भी नहीं चाहते कि बहुत लोग हीं क्योंकि उस तरह कई व्यर्थ लोग भी हमारे साध हो जायेंगे। सबसे पहले हमारे पास सच्चे सहजयोगी होने चाहिये। जो लोग अपने आपको कहलाते है उन्हें अपने आपको इस प्रकार से बढ़ाना है कि वे अच्छे सहजयोगी बने। उनमें कोई पकड़ न हो और उनका चित्त अच्छा हो। एक बार ऐसे लोग नीव बन जायें तो हम उनपर सारे भवन का निर्माण कर सकते है । तेकिन अगर नीव कमजोर हो तो सारा भवन ही ढह जायेगा | इसीलिये हमें धोड़े सहजयोगी चाहिए। हम ज्यादा अभी तक नहीं रह सकते। आप दैखते हैं कि जहाँ भी में जाती हूँ वहाँ पक बडा जनसमूह इकठ्ठा हो जाता है। इटली में मैं मिलानो गई थी। बहाँ के लौगों ने कभी भी मैरा चेहरा नही दैखा धा न ही वे जानते थे कि मैं कौन हूँ लेकिन हॉल पूर्ण रूप से भरा हुआ था। कई हजार लोग आये थे और उनके बीच से दूसरी ओर जाने में बड़ी कठीनाई होती थी। लैकिन मैं भविष्य भी देख सकती थी। उन हजारों में से हमें दस लोग मिले। फिर दस और फिर दस इस तरह लोग बढ़ने लगे। क्योंकि सहजयोग में आपको होना पडता है। नही तो आप सहजयोग के लिए बेकार हैं । यह एक बडी समस्या है। आपको कभी भी निराश नही होना चाहिए। अगर आपसे तन कोई कुछ कहता है तो आपको उस पर दया करनी चाहिए क्योंकि वह अंधा है और कोधित/ का नहीं होना चाहिए। कुड हठधर्मी सहजयोग के विसुथ्द हो सकते हैं क्योंकि वे वास्तविकता का सामना नहीं करना चाहते। जापको चैर्य और पूर्ण सहनशिलता दिखानी होगी यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आपको निराश नहीं होना चाहिए हमारे जितने भी सहजयोगी हैं चाहे उनकी संख्या कम ही क्यों न हो हमे उन्हे परिपूर्ण बनाने की कोशिश करनी चाहिये क्योंकि इसीसे हमारी नीव मजबूत होंगी। एक बार नीव मजबूत हो जाये तब आप आगे बढ सकते हैं। सर्वप्रथम आप तोगों को मेरे बारे में अधिक नहीं बताएँ। आपको कहना चाहिए कि इस समय हमें श्री माताजी के बारे विवाद नहीं करना है यहले हम अपने आपको पहचान लें फिर उनको भी पहचान लेंगे। अगर आप उन्हें यह समझा दें ये स्वयं उनके हित के लिए, अपने ही बल व कुशलता के लिए ये सब कुछ कर रहे और उन्हे स्वयं अपने ही लिये ये करना चाहिए तो वे प्रसन्न हो जायेंगे। लैकिन मेरे वारे में ज्यादा नहीं बताइये। सहजयोग के चमत्कारी घटनाओं के बारे मैं ना ही बात करनी चाहिये। ना ही उनका वर्णन करना चाहिए। विधिवत् आपको उन्हें कोई भी चमत्कारी फोटो नहीं दिसानी चाहिए। लोग कहेंगे अपने चतुराई या कपट से ऐसे फोटो लिये हैं। आपको अपनी बाते उन्हे सहजयोग और कुंडलिनी इत्यादि के बारे में बताने तक ही सीमित रलनी चाहिए इसे व्यापक रूप से बताईये और यह जरुरी नहीं है कि सबको पूजा के बारे मे पता हो। लेकिन आप उन्हे चक के बारें में बता सकते है कि वकैसे उन्हें संतुलन में रख सकते है और आपको उनकी कुंडलिनी जागृत करनी चाहिये। आप उनसे कह सकते हैं कि शुरू में हम माँ की तस्वीर का प्रयोग करते है और बाद में जब आप नियुण हो जायेंगे तब आपको इसका प्रयोग करने की जरूरत नहीं पडेगी। इस तरह वे कभी भी फोटो का प्रयोग करना नहीं छोडेंगे । उत्टा वे फोटो रखने के लिये तढंगे । तीसरी बात यह है कि यह लोग सामूहिकता से डरते है इसलिये आपको यह कहना चाहिये कि क्यूंकि हम सामूहिक नहीं हैं इसलिये हम डरे हुए हैं और अगर सारे अच्छे और धार्मिक लोग इकठ्ठा हो जाये तो उन्हें सामूहिक होने में डर नहीं लगेगा । आप लाग देखते हैं कि सिर्फ ठग चौर डाकू ही ऐसे होते है । सच्चे लोग कभी भी एक नहीं होते इसलिये हमें एक होना है अगर आप ऐसे समझायेंगे तो वे समझ जायेगे और उन्हे कोध भी नही आयगा लेकिन अगर आप कहेंगे कि सामूहिकता होना जसूरी है तो उन्हें शक होने लगेगा । आपने देखा होगा कि लोग किसी भी लडाई के लिये एक हो जाते है । पक दूसरे से घृणा करने এhc 12 के लिए एक हो जाते है। लेकिन कोई भी प्रेम के लिये एक नहीं होता अगर आप कहेंगे कि हम प्रेम के लिये हैं तो लोग कहेंगे कि हम जानते है यह कैसी प्रेम कहानी है । अगर आप शास्त्रार्थ और बाद-वाद दुवारा अपनी ओर लाना चाहते हैं तो आपका साधन होना चाहिये सहजयोग का संपूर्ण ज्ञान। आपकी ऐसी चितवृत्त, पेसा भाव और ऐसा व्यवितत्व होना चाहिये कि लोगों को देख के लगे के इस व्यक्ति में कोई विशेष बात है। और वै आपको ज्यादा अच्छा स्वीकार कर लेंगे आपको निराश नहीं होना चाहिए। यह बस सेल हैं और कुछ नहीं। अगर हमें यह नहीं मिला तो दूसरा मिल जाएगा कोई फरक नहीं पडता। मैने कई देश पूमे है। जब में पहली वार इटली गई थी जो आज एक महत्वपूर्ण सहजयागी देश है मैने एक बड़े हॉल के लिये पैसा भरा। वहा पक बड़ी सभा व पत्रकारों का सम्मेलन होने बाला धा। जब हम वहाँ गये तो हमने देखा कि इन्सान तो क्या वहाँ पक अकेला मकीडा भी नही धा। और उसके पहले मै, खुद, इंश्तिहार चिपकाने गई क्यूंकि हम दो तीन लोग ही थे। और मैने सुद जाकर चिपकाप। पर उसके पश्चात एक भी व्यकि्ति सम्मेलन में नहीं आया। पर बडा मजा आया। औरे ये घटना उस समय पर बीती तौ अब आप आज इतना इंस सकते" है। क जब वे सहजयोग में पूर्ण तरह से आ जाएँगे, तभी उन्हे इसका अनुभव होगा कि वे कितने मूर्ख थे, किस किसम के थे, क्या नमूने थे और उन्हें स्वयं इसका मजा आएगा। प्रत्येक चीज को एक लेल के तार से समझना चाहिए। मैरी इच्छा है कि आप लोग इस बात की समझ लें और इस विषय पर संतुष्ट हो जाएँं। पर कभी भी निराश नही होना चाहिए। लहरे हुहायब्रेशन न आती हो, तो आपको अरार कौई व्यकि्ति ठी ना हो या उसे चैतन्य धोडासा मुस्कुराकर कहना चाहिए ---- कोई बात नही, अगली बार । परमात्मा आपको आशीर्वाद दें। ---------------------- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-0.txt चैतत्य लहरी श्री माताजी निर्मला देवी भाग । अंक 9 जब आपका चित्त दूसरों के प्रति प्रेम व करूणामय हो जाये तमी आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। श्री माताजी वि 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-1.txt भाग । - अंक 9 चैतन्य लडरी श्री सारांख श्री बुध्द पूजा स्पेन, 2 मई, 1989 श्री बुध्द गौतम का जन्म राज घराने में हुआ था। वै इस कारण योगी बने थे, क्योंकि वह मानव की उन समस्यांको देखना चाहते थे जो इच्छाओं के कारण उमरती है। अवतार होने के कारण, श्री बुध्द को अपनी ज्ञानसिध्दी तक पहुँचना था, जिससे कि उनकी समस्त सक्रियता एक मामूली अन्वेषक से इट कर खुल सके। उसके पश्चात, उन्हे ज्ञात हुआ कि हमें निरिच्छुक हो जाना चाहिए। श्री वुध्द नै शिक्षा दी कि अहम् के कारण ही मनुष्य की सब समस्यापं उठती है और उसी के कारण मनुष्य हर चीज की चरम सीमा तक पहुँच जाता है। उ्होने पिंगला नाडी पर कार्य किया और अहम् पर अपना स्थान बनाया जिससे कि उसे नियंत्रित कर सर्कें। काइस्ट महावीर और बुध्द उस आज्ञा चक के शासक और स्वामी है जिसका सम्बन्ध तपस या प्रायश्चित से है। उन्होंने हमारे लिए तप और कष्टसाध्यता कर ली है इसलिए हमें करने की आवश्यकता नही है। श्री बुध्द की शिक्षा का सार तत्व है सच्चाई तथा स्वयं से ईमानदारी। श्री माताजी ने समझाया कि कई लोग दुसरो को और स्वयं को तर्क जौर व्याख्यान देकर सत्य से भागने पतंलि का प्रयत्न करते है। सहजयोगियों को यह जान लेना चाहिए कि वे ब्राम्हन है क्योकि उन्हे उस ब्रम्ह का आभास हो चुका है जो कि एक सर्व विद्यमान शक्ति है । उन्हे साइसी और परिश्रमी जीवन व्यतीत करना चाहिए। जिनमें अहम् है, वे उनसे खूब प्रभावित होते है जो उनकी तरह अहम् रसते है। आधूनिक पैशन के साथ औख बंद कर के चलना इसका एक उदाहरण है। अगर इमारी आत्मा और अहम् सही है तो हमारा अपना एक चरित्र होना चाहिए, एक अपना ही व्यक्तित्व और पक अपना ही स्वभाव होना, चाहिए! जुब हम है अक्म् के वश में हो जाते नषाल क पातिट तो हमारी बाँई ओर कमजोर पड जाती है उस सुक्ष्म व्यवस्था में धमने का कोई तरीका नहीं रह जाता और हमारी शुध्दता और पवित्रता भी मैली पड जाती है। इसीलिए श्री बुध्द ने ब्रम्हचर्य का पक्ष समर्थन किया था जिनका वाई और झुकाव होता है, उनमें अधिक उलझने और जटिलताएँ नत उत्पन्न हो जाती है। आरम्भ तब होता है जब ये भाव आता है कि इसमे क्या खरावी है? यह भाव रूलेपन, शीघ्रता और बचे ना होने की हृद तक पहुँचा देता है। अहम् को नीचे 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-2.txt उतारने के लिए हमे श्री बुध्द को पूजना चाहिए, और ये करने के लिए हमें पहले अपनी पवित्रता का आदर करना होगा। ये विवाह और परिवार जीवन के प्रसंग में ही हो सकता है। श्री माताजी ने समझाया कि तीन प्रकार के लोग होते है । पडलेवो, जिन्हे दूसरों की चिन्ता एकदम नहीं होती और अधिकतम अपने में ही खोप और उलझे रहते हैं। वे बहुत कुर और कठोर हो सकते है। वे समझते है कि उनसे अवछा कोई नही है और वे ही सबसे होशियार है, पर कोई उन्हे पसन्द नही करता। दूसरे प्रकार का मनुष्य खूद ही असंतोष प्रकट गना भे करता रहता है वह यह सोचता है कि उसे बहुत सी बीमारियाँ है और हर बात एक निषेधार्के पहलू प्रस्तुत करता है। पहले प्रकार का आदमी कुछ अधिकही सन्तुष्ट रहता है, दूसरे प्रकार का आदमी कभी सन्तुष्ट नही होता और तीसरे प्रकार का मनुष्य साधू होता है, जो ये नही या नही, उसे केवल दूसरों की संतुष्ट या संतोष का विचार रहता जानता कि वह सन्तुष्ट है है। श्री बुध्द इस तीसरे प्रकार के व्यवित के समान है। সल्चाल श्री बुध्द ने तीन मंत्र में इन तीन प्रकार के लोगों को संबोधित किया है "बुध्दम् मैं उन सब को नमन करता हैँ जो सिथ्द आत्मापँ है। सब सहजयोगिर्यों शरणम् गच्छामि" का आदर होना चाहिए और उनका आत्म समर्पण बुध्द के समान स्वीकृत करना चाहिए, चाहे वे जीवन में किसी भी त्थिति में हों। दूसरा है , "चमम् शरणम् गच्छামি ", मैं अपने धर्म को नमन करता हूँ, जो विश्व निर्मला धर्म है। इसके लिए हरें ये पूछना चाहिए कि हम सहजयोग के लिए क्या कर सकते है। इर आदमी को हर प्रकार का कार्य करना चाहिए और दूसरेों अ G०। की समालोचना नहीं करनी चाहिए, विशेष तार पर तब जब हमने अपनी योग्यता पहले ना परखी हो । तीसरा मंत्र है, "संगम शरणम्, मच्छामि ", मैं सामूहिकता को नमन करता हूँ । परसी हो म শন্न्ट। भ. 2ी] 1 अन्तर से कटाव और अलगाव ही श्री इुध्द की शिक्षा का सतू है। आत्म सक्षात्कार ही लक्ष्य है, न कि गलत राह पर चल कर बाहरी रूपों का पूजन। श्री बुध्द के बाद के अनुयायियों को ये बात समझ नहीं आई और उन्होंने बुध्द की शिक्षा को दृषित कर दिया। परन्तु सहजयोगी, सहजयोग को दूषित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से उनकी चैतन्य लहरियाँ नष्ट हो जाएँगी। लेकिन हमें चौकन्ना रहना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अहम् हमें घोखा दे सकता है। यहाँ तक कि हमें इस बात का विश्वास हो सकता है कि हमारे पास चैतन्य लहरियाँ हैं, जब कि नहीं हैं। अपने (मनोयोग से और दाँई ओर के माध्यम से हम श्री बृध्द के सत्य संदेश को 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-3.txt )০) ह का जान सकते हैं। सहजयोगी होने के नाते हमें अपनी एकता का ज्ञात होना चाहिए, और यह पहचान तेना चाहिए कि हमने इस विश्व धर्म को गहराई से महसूस करा हैं और पूर्णता से इसमें हमारा विश्वास है। हमें जागरूक रहना चाहिए कि हमारा जीवन ईश्वर के कार्य के लिए हैं, और उसके लिए हमें शुध्द होना होगा और अपने पर ढृष्टि रखनी होगी। अहम् के कारण ना तो हें पाण्डी बनना है और ना ही अपने को धोखा देना है। हमें श्री बुध्द के गुणों को ध्यान में रसना है जो हम्में करूणा, कडी मेहनत, समर्पण और त्याग की शिक्षा देते है । "सत्य ही हमें रन्दर बनाएगा"। श्री ऐयीना पूजा सारांश ऐज, ग्रीस, 24 मई, 1989 सहजयोग के इतिहास में पहली श्री पथीना पूजा के निरयारित विपय थे एकीकरण और आदर। इर व्यक्ति और राष्ट्र को विकरिसत होने के लिए ये गुण अभिव्यवत करने होंगे । सारे विश्व की नाभी के केन्द्र ग्रीस ने, ये गुण अपने इतिहास में प्रकट किए हैं और अब वह समस्त संसार को इन क्षेत्रों में आगे लें जाएगा। श्री पथीना आदि शवित हैं, जो एकत्तावध्द और एकीकरण करती हैं। श्री माताजी ने कहा कि ये करने के लिए, वे इस पृथ्वी पर भातिक रूप में ग्रीस आई हैं, श्री ऐथीना के रूप में। वे एकीकरण बल की सृष्टि करेंगी और उससे सारा चैतन्य एक एकीकरण शक्ति के शवित ने देवलोक की सृष्टि की है। यह वो क्षेत्र समान पैल जाएगा। आदि है जहाँ ग्रीस में देवों की सृष्टि हुई है। गणों की सृष्टि नेपाल क्षेत्र के बाँई ओर हुई धी। ै ग्रीक पुराणशास्त्र से पता लगता है कि ग्री देवों के विपय में जानते थे। परन्तु, ग्रीक, देवों को मनुष्य के स्तर पर ले आए थे, और इसी कारण उनकी अवनति हुई थी। नाभी में, धर्म के द्वारा , ग्रीस विश्व को संतुलन प्रदान करता है। ग्रीक लोगों का एक विशेष कार्य ये है कि वे दाई और बाँई ओर झुके लोगों का एकीकरण करते है । एकीकरण का ये ग्रीक गुण पलेगजेन्डर के जीवन में झलकता है। वह भारत को जीतने चला था पर पीछे मुड गया। एकीकरण बल कार्यरत तव दिखता है, जब कोई लक्ष्य की और बढे, परन्तु जब लक्ष्य शुध्द ना हो तो वो पीछे हट जाए। हमारे अतीत के गुरूओं का एक विशेष कार्य धा - संतुलन की सृष्टि। लोगों में अज्ञानता अनैतिकता का सामना करके एव्रहैम, मोजूज और मुहम्मद बाँई और शुक गये थे, इसलिए उन्हें टे शी ोका मो पाईे मीए ाँक भोन भोहान्ता भा रले काढी कयोड पल 5 )५ को दाढे | Y) ఇT दहे ६৫: 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-4.txt 4 - दाँई ओर हटना पडा। वे लोगों को ये नहीं समझा सके कि उनकी मुमित में घर्म है। उन्हें नियम बनाने पड़े और प्रोल्साइन के लिए दण्ड का प्रयोग किया। सौकटीज के समय तक, ककि लोग उस सीमा तक विकसित हो चुके थे, कि सौकटीज विवेक, ईमानदारी सत्यनिष्ठा, शान्ति और अनेक अनन्त गुणों के विपय में बात कर सकते थे। वे तर्कशास्त्र के गुरू थे। तर्कशास्त्र शुध्द है, जुबकि 'न्यायिक बुध्दि अन्धयापन है"। सहजयोग मैं, श्री माताजी पहले साक्षातुकार देती है, और फिर बोलती है ताकि हम समझ सकें। श्री माताजीने समझाया कि दो प्रकार के लाग है, सहजयोगी और जो सहजयोगी नहीं हैं। कुछ सहजयौगी योग्य नहीं होते। वे वापस जा सकते हैं पर वे इस योग्य बन सकते हैं कि उन्हें ज्ञान समझ आ जाए। कुन्डलिनी हमें योग्य बनाती है। सहसरार हमें मदद करता है ज्ञान सोखने में, तर्क देखने में जौर सत्य की जाँचने में। सब पुरातन धर्मो ने पैसा बनाया है और अवतार के नाम पर वे अपने अनुरागियों को न्क की और ले गए हैं सहजयोगियों को दूसरों को बाहर खींचनना चाहिए, न कि अपने आप नीचे जाँप। ग्रीस, इजिप्ट और चींन के कई स्थानों में आज भी पकीकरण, संतुलन और संस्कृत की ओर आदर जैसे गुण प्रकट हो रहे हैं परन्तु उन स्थानों में भारत जैसी जानकारी की गहराई नहीं है। श्री माताजी अब ग्रीस आई हैं क्योंकि ग्रीस को अब सहसरार की सीमा तक बढना है। श्री ऐथीना अब सहसरार में हैं। ग्रीक लौगों को आसव्ति की गुणहीनता की समझ है। कलयुग का एक असर है कि हम पशि्वमी लोगों की नकल करते हैं और इ्तीसे जनतिकता आई है। पर अब भी वे ठोस हैं और आदर करते हैं चरित्रवान नारी का और मा का। श्री माताजी ने फिर आदर की बात की। ग्रीक आदर के कारण, पेलेगजुन्डर भारता गया और आत्मिक तार से उसका विकास हुआ। औग्रेज वहाँ तीन सा साल रहे पर उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। हें दूसरों का और दूसरों की संस्कृति का आदर करना चाहिए। अगर ँग्रेज सच्चे आदर को विकसित कर ले तो विश्व का कायाकल्प हो जाएगा हमें निश्चित रूप से दूसरे सहजयोगियों का आदर करना चाहिए। वह आदर जो दिल से उभरता है यह दिखाता है कि हमें ईश्वर की उत्तमता का ज्ञान है हें आदि शवित का आदर दिल से करना है, ना कि केवल दिखावा करना है। जब ये हो जाएगा, तो पूर्ण रूप से हमारा कायाकल्प हो जाएगा। जैसे देवता आदि शव्ति का आदर करते है, हमें भी वो ही आदर सीखना है ग्रीक लोग इस आदर में सबसे आगे होंगे । ন व्यवितिगत स्तर पर सहजयोगियों को, दाँई और बाई और के गुणों में एक संतुलन बनाना है। पेधीना की एकीकरण शव्ति योगियों के अन्दर विकसित होनी है और ऐथीना को ति 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-5.txt 5. ग्रीस में जागना ही होगा। तब ग्रीस शुध्ध हो जाएगा और समस्त विश्व के लिए एक संतुलन बना दैगा। ब्म्ह [चैतन्य पूजा - सारंख म्यूनिक, जर्मनी, जुलाई 1989 यह पहली पूजा धी जिसमें सहजयोगियो ने श्री माताजी की पूजा, परम चैतन्य म्प में की। परमचैतन्य ईश्वर के प्रेम की सर्व विद्यमान शक्ति है। श्री माताजी ने समझाया कि परम चैतन्य ही सब कुछ करता है ये आदि शवित का बल है और सब कुछ अपने अन्दर है, वैसे ही ये भी हर्में अलगअलग दिखता है, पर समेटे है। जैसे हमें देशों में अन्तर दिखता कि वास्तांवकता में ये निरन्तर है जो, स्वयं के भीतर कार्यरत है। ये सहजयोगियों की और विशेष ध्यान देता है अगर हमारी एकता परम चैतन्य से है, लो जो भी हम इच्छा करते हैं वे परम चैतन्य से ही आती है। इस निराकार उर्जा में बए समस्त (बुध्धि है, समन्वय है और व्यवस्था है। सबसे उत्तम तो ये बात है कि ये हमारी माँ को और प्रभु का प्रेम है। इस परम चैतन्य से एक होने के लिए हमें वास्तविकक्ा की सच्चाई वनना है श्री माताजी ने समझाया कि दूसरों कि फोटोग्राफ से सहजयोग नही हो सकता क्योंकि वे वास्तविकता नहीं बने है। ही बारिश की तस्वीर से ना कुछ गीला होता है और ना वो तस्वीर पूल लिला सकती है। इसी प्रकार हमें जान लेना चाहिए कि वास्तविकता में हम करते हैं और सब कुछ परमचैतन्य के दूवारा कुछ नहीं ही हौता है। क सहजयोगी इसकी सत्यता दिल में महसूस करता है जब कि जो सहजयोगी नही है, वो इसे समझ तो सकता २ हग लि )) है पर अपने अस्तित्व का हिस्सा होना नही महसूस कर सकता। 1 ७xi4र परम चैतन्य दविक प्रेम है। श्री माताजी ने समझाया कि प्रेम का अर्ध है पागल व्यवहार। हम अपने परिवार और बचचों को प्यार करते हैं, जो कि बास्तविकता नहीं है और जिसका कोई भविष्य नहीं बताया जा सकता। परन्तु परम चैतन्य प्रेम व्यव्त करना जानते हैं और प्रेम का सार है "हित" एवं परोपकार। किसी भी रूप में आकर, कूर या प्रेमपूर्ण रूप में, पर वह सदा ही हमारे दोप दूर करते है । वे हमेशा व्यक्ति और सामूहिक हित के चाहिए। हर आदमी से अलग व्यवहार करते हैं। अगर सहजयोगी ये समझ लें कि वे हमेशा उनके दोष हटाने के लिए कार्य लिए कार्य करते हैं और भूली भांति जानते हैं कि क्या करन এস कर रहे हैं, तो सहजयोगी कभी अपने जीवन से निराश नहीं हैंगे। श्री माताजी ने ध्यान दिया कि 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-6.txt <-6 - जब से सहजयोगियों को ये परमचैतन्य और उनके साथ आन्तरिक संबंध मिला है, तब से उन्हें चिन्ता करना छोड़ देना चाहिए और इसमें कुद कर इस वास्तविकता का हिस्सा बन जाना चाहिए। श्री माताजी ने समझाया कि अतीत में जर्मनी में बहुत ही भयानक चीजे हुई थी, जैसे युध्द और खून खरावे। घर उनके दूवारा एक शिक्षा हर्में प्राप्त हुई थी। उससे हम और सामूहिक हो गए और राष्ट्रीयता और जातीयता के ऊपर उठ गए थे । इर युध्द के पश्चात् एक विस्फोटक गति से हम उस ज्ञान की ओर बटे हैं कि हममें कुछ सरावी है। श्री माताजी का ने आधनिक समस्याओं पर बात करी जैसे एडजू, नशीली दवाएँ, गरीबी और वातावरण से सम्बन्धिदित समस्यापँ। उन्होंने कहा कि लीडर्ज इन समस्याओं का समाधान करना नहीं जानते और अधिकतर लोग अपनी गर्लातयाँ ना तो पहचानते हैं, हैं, ना उनका सामना करते हैं, जर ना उन्हें ठीक करते हैं। कलयुग के इस समय में, जो चीज अकुलीन है, घृणित है और वैकार है, यह ही लोगों के लिए अच्छी हो जाती है। अपनी बात के अन्त में श्री माताजी ने सहजयोगियाँ से कहा कि वै प्रार्थना करें कि प हम ज्यादा से न्यादा जानकार हो जाएँ और यह जान लें कि हम परमचैतन्य का एक अंश है और उसे महसूस कर सकते है, उसका प्रयोग कर सकते हैं और उसके साथ कार्यान्वित हो सकते हैं। सहजयोगियों के लिए आवश्यक आचरण श्री माताजी ने सब सहजयोगियों को यह परामर्श दिया। श्री माताजी के सार्वजीनक कार्यकर्मी में इन बातों का विशेष ध्यान रखना है : श्री माताजी की तस्वीर किसीको बेचनी नहीं है। सार्वजनिक कार्यक्रमों में और उनके पश्चात किए जाने वाले कार्यक्र्मों में तस्वीर केवल विशुध्द अन्यम्कों को दी जानी चाहिए। श्री माताजी की पुजा के दौरान या उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों के बीच किसी भगी 2. व्यक्ति को हसहजयागी या प्रेस रिपोर्टर फोटो लेने की इजाजत न दी जाए, जब तक कि श्री माताजी ही ना कहें। हर सहजयोगी को इस बात पर चौक्ना रहना चाहिए और अगर कोई इजाजत लिए बिना कुछ कर रहा हो तो उसे एकदम रोक देना चाहिए। कुछ भी छपी सामग्री सार्वननिक कार्यक्रों में ना बेची जाए जब तक उसे माताजी 3. की मंजूरी ना मिली हो और उन्हें बेचने की इजाजत दी गई हो। जो पुस्तके श्री माताजी ने 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-7.txt - 7 - स्वीकृत की हों, उन्हें केन्द्रों पर बेचा जा सकता है विशुध्द अन्वेपकों को। हरँकिसी भी छपी सामग्रीम पाम में ऐसे मन्त्र नहीं होने चाहिएँ जो आरोग्यकर गुण रखते हों। किसी भी सार्वजानक कार्यक्रम में अँगूठिय्यों, पेन्डेन्ट इत्यादि व्स्तुओं में व्यापार नहीं 4. होना चाहिए ये चीजे सहजयोगियों को बेची जा सकती हैं पर खरीदी दाम पर। उन पर कोई लाभ ना लिया जाए। उनकी पूजा के व्यास्यानों की या सार्वजनिक कार्यक्रमों की कोई ओडियो या वीडि 50 रिकार्डिंग अनअधिकृत तौर पर नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिगत तार पर औडिओ और बीडि ओ औ ही कैसेट ना बनाए जाएँ। कैन्द्रों से ये कैसेट सरीदे जा सकते हैं । किसी भी पूजा या सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान काई भी माँ की और पैर ना बढाएँ। इससे माँ का अनादर होता है। पूजा या सार्वजनिक कार्यक्र्मों में कोई अखि ना बन्द करें और ना ही बन्धन लगाएँ, 7. जब तक कि माँ ही उसे ये सब करने को न कहं। कुर्सी को पक श्री माताजी की जरी के आसन से ढकना चाहिए और वे जरी आसन ৪ - केवल उसी प्रयोग के लिए खरीदा जाना चाहिए। कोई भी सहजयोगी अपनी साडी या शाल उनके बैठने या चलने के लिए प्रयोग नहीं कर सकता। जो क्स्तु श्री माताजी प्रयोग में लाई हा उसे अलग रख देना चाहिए और फिर कोई उसका प्रयोग ना करे। स्टेज पर, श्री माताजी की कुर्सी की दाई ओर, हलोगों की ओर फिरी हुई एक 9• मेज पर एक छोटा पड़ा पानी से भरा और उस पर पक ग्लास उल्टा करा और ढका हुआ रसखना चाहिए। उनकी बाँई ओर एक स्टैन्ड पर एक मोमबत्ती रसनी चाहिए। उनकी बौई ओर ही विराट तालिका स्टैन्ड पर होनी चाहिए। काफी चना तैयार रला होना चाहिए ताकि कार्यक्रम के पश्चात् उसे वाइब्रेट कर के प्रसाद के रूप में बौट दिया जाए। उनकी पूजा या व्याख्यान के दौरान कोई भी स्टेज पर न बैठे, न सडा हो और ना चले। स्टेज पर उनकी कुर्सी की दाँई और एक मेज़ कपड़े से ढकी हुई रखी हो और उस पर श्री माताजी की एक फरेम की हुई तस्वीर रखी होनी चाहिए। अच्छा होगा अगर उनकी ध्यान मुद्रा वाली फोटो हो १काली सफेद फोटो जो "भय दान" मुद्रा में है। या कोई और, हमें ध्यान रखना चाहिए कि कोई पूजा की फौटो ना प्रयोग हो। उनकी फोटो के सामने घूप जली होनी चाहिए। एक मोमबल्ती जली हो और फूल और हार भी चढा सकते हैं। च को इन रंगों में तालिका पर दिखाया जाए :- 10- 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-8.txt 8 - मूंगिया लाल मूलाधार पीला स्वाधिष्ठान पन्ने की प्रकार हरा मणिपुर माणिक्य लाल अनाइत नीलमी नीला विशुध्द मौतिया सफेद आज्ञा सब रंग सहसरार ध्यान दे :- 11- श्री माताजी की कोई फोटो केवल सजावट के तौर पर दीवार पर ना प्रयोग की जाए क्योकि उनकी हर फोटो की ओर एक आदर आवश्यक है। हर रोज फोटो को गुलाब जल से चोना चाहिए, उस पर कुमकुम और इतर लगाना चाहिए, फूल चढाने चाहिएँ, धूप जलानी चाडिए और फूजा करनी चाहिए। अगर हम फोटो का आदर नही करते हैं तो उनका ध्यान उस पर से हट जाएगा। अगर श्री माताजी की खाई हुई कोई चीज बच जाए तो उसे अकेले नही खाना चाहिए। 12. जी चीज सव में बाट कर खाई जाए वह ही प्रसाद कहलाता है। कोई भी सहजयागी अपना केंद्र या दैश छोड कर दूसरे केन्द्र या देश में प्रतिनिधित्व 13. नहीं कर सकता है, जब तक वाह अपने लीडर सै आज्ञा ना ले। वै किसी आश्रम में ना रहें, के यहाँ। अगर कोई लीडर इस उन्हे स्ययं इन्तजाम करना चाहिए किसी दोस्त या रिश्तैदार सम्बन्ध में पत्र दे औैर मेजबान लीडर आराम से रख सर्के तब ही आश्रम में रह सकते हैं और वो भी अपने खर्चे पर । भारतीयों के लिए :गेंदे का फूल श्री माताजी पर नही चढाना चाहिए । 14 आरी अबरें श्री माताजी ने सव व्यवसायिक सहजयोगियों से कहा है कि वे अपने छपे हुए पत्र कागजी पर सहजयोग का वैज्ञानिक और तर्कसंगत तरीका लिखे और ये भी लिखे कि वे कैसे सहजयोग में आए और उनकी प्रगति हुई। उन्होंने यह भी राय दी कि वो सहजयोगी जिनके कार्य में जब से वे सहजयोगी बने हैं तौ उनका वैवाहिक जीवन सुधरा है, या वै प्रगत हुई है या 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-9.txt झूठे गुरूओं के चैंगुल से छुट गए है वे सब ये लिख कर अपने केन्द्र के लीडर की भैंज दें । जिन लोगों को बीमारियों से छुटकारा मिला है वै सब लिख कर मेजें। हो सके तौ सब डाक्टर के कागजात शुरू से लेकर आखिर तक भेजे। वे सब लोग जिन्हें आर्थिक, भावात्मिक, मानसिक ज) हीट 2क ৫১3 और आत्मिक लाभ हुए हैंवे सब उन्हें घन्यवाद दें और लीडर को दे । एक भारतीय सहजयोगी, डाक्टर दीपक चुग को अभी पकडी. की डिग्री प्राप्त हुई ा। जंतु बनस्पति विज्ञान पर सहजयोग का असर। विषय था है और उनका --- न्यूयॉर्क के पाँच उपनगरों में से एक है क्वीन्ज़। वहाँ एक नया आश्रम स्थापित किया गया है। डाक्टर निगम और डाक्टर राय हाल ही मैं मौस्को गए थे सार्वजीनिक कार्यक्रम के पश्चात। स्वास्थ्य केन्द्र से जो हमारी सहमति हुई है वे उस विषय को ब्रढावा देंगे। 17/8/1989 दैवी पूजा - हेलसिंकी, फिनलैंड नये जाये हुए लोग के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाए तो अब हम फिनलैंड मैं हैं। यह प्ृथवी का औंतम छोर है। सारी कठिनाईयाँ आकर इस औीतम छोर में बस जाती है । यहा ईश्वर को सोजनैवाले बहुत लोग हैं इसलिये यहाँ निषेधार्थक काते शव्तियोंके लिए अधिक आकर्षक है कि वे ऐसे लोगों पर आकृमण करें। जब आप सहजयोग में प्रवेश करते हैं , तब आपको यह समझ लेना चाहिए कि सहजयोग थीरे आपको सब कुछ दिखा देती है। उदाहरण के लिये उस रोशनी की तरह है जो धीरे :- अँधेरे में आप अपने हाथ में साँप लेकर चल रहें हो लेकिन आप उसे रस्सी समझकर जा फेकना नही चाहते। लेकिन जब प्रकाश हो जाता है और आप साँप को देखते है तो आप डर जाते हैं और उसे दूर फेंक देते हैं। लेकिन कुछ लोग यह समझकर भाग जायेंगे कि यह सौंप सहजयोग से आया है| सहजयोग में आने वाले लोग भी ऐसे हो सकते हैं और अपने बारे में ऐसा सोचते इसलिये आपको उनके साये बहुत धेर्यं और हों। वे वास्तविकता का सामना नही करना चाहेंगे । सावधानी के साथ व्यवहार करना पडेगा क्योंकि वे अज्ञानी हैं और घोर अंधेरे और अज्ञानता से आ रहे है । आप उसकी मानसिक स्थिती नहीं जानते होगे। हो सकता है कि वह आधा 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-10.txt 10 पागल हो या किसी भयानक बीमारी से पीडीत हो या उसका कोई भयानक गुरू हो। या हो सकता है कि वे इतने दःसी हों कि अब उनको उसका अहसास ही न होता हो। इसलिये यह बहुत ही उलझा हुआ मसला है। होना चाहिए। कभी कभी सहजयोग का पहला सिध्दान्त यह है कि कभी निराश नहीं आपको कठीन परिश्रम करना पडता है। मैने लोगों पर बीस घंटे परिश्रम किया और पाया कि उनपर कोई असर नहीं हुआ पत्थर की तरह। पत्थरों से कम से कम मैं गणेश की रचना तो कर सकती थी। हो सकता है वहुत कठिन परिश्रम करने के बाद आप यह अनुभव करें कि आपको उसका कुछ भी फल नहीं मिला। लेकिन सहजयोग में निराशा के लिये VATOL केाई स्थान नहीं है। जो हमारा कर्तव्य है उसे हमें पूरा करना है । हमें उसका क्या फल मिलेगा इसकी चिंता हमें नहीं करनी चाहिए। यह गीता के प्रमुख सिध्दान्तों में से एक है । "क्म करो लेकिन उसके फल की चिंता मत करो" यह सिध्वान्त आपको सही रास्ते पर रकगा । नही तो आप निराश हो सकते हैं। बॉस्टन में एक बार सब बहुत चिंतित थे जर उन्होंने पूछा कि क्या वे सब लोग नरक जायेगे मैंने कहा आप लोगों को आशा नहीं छोड़नी चाहिए और ऑंतिम समय तक लोगों को नरक से बचाने की कोशिश करनी चाहिए और अब वहाँ सहजयोग चल पडा है। आपको भांति जान लेनी चाहिये कि शुरू - शुरू में कभी भी ज्यादा लोग नहीं आते यह बात भली और परमात्मा भी नहीं चाहते कि बहुत लोग हीं क्योंकि उस तरह कई व्यर्थ लोग भी हमारे साध हो जायेंगे। सबसे पहले हमारे पास सच्चे सहजयोगी होने चाहिये। जो लोग अपने आपको कहलाते है उन्हें अपने आपको इस प्रकार से बढ़ाना है कि वे अच्छे सहजयोगी बने। उनमें कोई पकड़ न हो और उनका चित्त अच्छा हो। एक बार ऐसे लोग नीव बन जायें तो हम उनपर सारे भवन का निर्माण कर सकते है । तेकिन अगर नीव कमजोर हो तो सारा भवन ही ढह जायेगा | इसीलिये हमें धोड़े सहजयोगी चाहिए। हम ज्यादा अभी तक नहीं रह सकते। आप दैखते हैं कि जहाँ भी में जाती हूँ वहाँ पक बडा जनसमूह इकठ्ठा हो जाता है। इटली में मैं मिलानो गई थी। बहाँ के लौगों ने कभी भी मैरा चेहरा नही दैखा धा न ही वे जानते थे कि मैं कौन हूँ लेकिन हॉल पूर्ण रूप से भरा हुआ था। कई हजार लोग आये थे और उनके बीच से दूसरी ओर जाने में बड़ी कठीनाई होती थी। लैकिन मैं भविष्य भी देख सकती थी। उन हजारों में से हमें दस लोग मिले। फिर दस और फिर दस इस तरह लोग बढ़ने लगे। क्योंकि सहजयोग में आपको होना पडता है। नही तो आप सहजयोग के लिए बेकार हैं । 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-11.txt यह एक बडी समस्या है। आपको कभी भी निराश नही होना चाहिए। अगर आपसे तन कोई कुछ कहता है तो आपको उस पर दया करनी चाहिए क्योंकि वह अंधा है और कोधित/ का नहीं होना चाहिए। कुड हठधर्मी सहजयोग के विसुथ्द हो सकते हैं क्योंकि वे वास्तविकता का सामना नहीं करना चाहते। जापको चैर्य और पूर्ण सहनशिलता दिखानी होगी यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आपको निराश नहीं होना चाहिए हमारे जितने भी सहजयोगी हैं चाहे उनकी संख्या कम ही क्यों न हो हमे उन्हे परिपूर्ण बनाने की कोशिश करनी चाहिये क्योंकि इसीसे हमारी नीव मजबूत होंगी। एक बार नीव मजबूत हो जाये तब आप आगे बढ सकते हैं। सर्वप्रथम आप तोगों को मेरे बारे में अधिक नहीं बताएँ। आपको कहना चाहिए कि इस समय हमें श्री माताजी के बारे विवाद नहीं करना है यहले हम अपने आपको पहचान लें फिर उनको भी पहचान लेंगे। अगर आप उन्हें यह समझा दें ये स्वयं उनके हित के लिए, अपने ही बल व कुशलता के लिए ये सब कुछ कर रहे और उन्हे स्वयं अपने ही लिये ये करना चाहिए तो वे प्रसन्न हो जायेंगे। लैकिन मेरे वारे में ज्यादा नहीं बताइये। सहजयोग के चमत्कारी घटनाओं के बारे मैं ना ही बात करनी चाहिये। ना ही उनका वर्णन करना चाहिए। विधिवत् आपको उन्हें कोई भी चमत्कारी फोटो नहीं दिसानी चाहिए। लोग कहेंगे अपने चतुराई या कपट से ऐसे फोटो लिये हैं। आपको अपनी बाते उन्हे सहजयोग और कुंडलिनी इत्यादि के बारे में बताने तक ही सीमित रलनी चाहिए इसे व्यापक रूप से बताईये और यह जरुरी नहीं है कि सबको पूजा के बारे मे पता हो। लेकिन आप उन्हे चक के बारें में बता सकते है कि वकैसे उन्हें संतुलन में रख सकते है और आपको उनकी कुंडलिनी जागृत करनी चाहिये। आप उनसे कह सकते हैं कि शुरू में हम माँ की तस्वीर का प्रयोग करते है और बाद में जब आप नियुण हो जायेंगे तब आपको इसका प्रयोग करने की जरूरत नहीं पडेगी। इस तरह वे कभी भी फोटो का प्रयोग करना नहीं छोडेंगे । उत्टा वे फोटो रखने के लिये तढंगे । तीसरी बात यह है कि यह लोग सामूहिकता से डरते है इसलिये आपको यह कहना चाहिये कि क्यूंकि हम सामूहिक नहीं हैं इसलिये हम डरे हुए हैं और अगर सारे अच्छे और धार्मिक लोग इकठ्ठा हो जाये तो उन्हें सामूहिक होने में डर नहीं लगेगा । आप लाग देखते हैं कि सिर्फ ठग चौर डाकू ही ऐसे होते है । सच्चे लोग कभी भी एक नहीं होते इसलिये हमें एक होना है अगर आप ऐसे समझायेंगे तो वे समझ जायेगे और उन्हे कोध भी नही आयगा लेकिन अगर आप कहेंगे कि सामूहिकता होना जसूरी है तो उन्हें शक होने लगेगा । आपने देखा होगा कि लोग किसी भी लडाई के लिये एक हो जाते है । पक दूसरे से घृणा करने এhc 1989_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9.pdf-page-12.txt 12 के लिए एक हो जाते है। लेकिन कोई भी प्रेम के लिये एक नहीं होता अगर आप कहेंगे कि हम प्रेम के लिये हैं तो लोग कहेंगे कि हम जानते है यह कैसी प्रेम कहानी है । अगर आप शास्त्रार्थ और बाद-वाद दुवारा अपनी ओर लाना चाहते हैं तो आपका साधन होना चाहिये सहजयोग का संपूर्ण ज्ञान। आपकी ऐसी चितवृत्त, पेसा भाव और ऐसा व्यवितत्व होना चाहिये कि लोगों को देख के लगे के इस व्यक्ति में कोई विशेष बात है। और वै आपको ज्यादा अच्छा स्वीकार कर लेंगे आपको निराश नहीं होना चाहिए। यह बस सेल हैं और कुछ नहीं। अगर हमें यह नहीं मिला तो दूसरा मिल जाएगा कोई फरक नहीं पडता। मैने कई देश पूमे है। जब में पहली वार इटली गई थी जो आज एक महत्वपूर्ण सहजयागी देश है मैने एक बड़े हॉल के लिये पैसा भरा। वहा पक बड़ी सभा व पत्रकारों का सम्मेलन होने बाला धा। जब हम वहाँ गये तो हमने देखा कि इन्सान तो क्या वहाँ पक अकेला मकीडा भी नही धा। और उसके पहले मै, खुद, इंश्तिहार चिपकाने गई क्यूंकि हम दो तीन लोग ही थे। और मैने सुद जाकर चिपकाप। पर उसके पश्चात एक भी व्यकि्ति सम्मेलन में नहीं आया। पर बडा मजा आया। औरे ये घटना उस समय पर बीती तौ अब आप आज इतना इंस सकते" है। क जब वे सहजयोग में पूर्ण तरह से आ जाएँगे, तभी उन्हे इसका अनुभव होगा कि वे कितने मूर्ख थे, किस किसम के थे, क्या नमूने थे और उन्हें स्वयं इसका मजा आएगा। प्रत्येक चीज को एक लेल के तार से समझना चाहिए। मैरी इच्छा है कि आप लोग इस बात की समझ लें और इस विषय पर संतुष्ट हो जाएँं। पर कभी भी निराश नही होना चाहिए। लहरे हुहायब्रेशन न आती हो, तो आपको अरार कौई व्यकि्ति ठी ना हो या उसे चैतन्य धोडासा मुस्कुराकर कहना चाहिए ---- कोई बात नही, अगली बार । परमात्मा आपको आशीर्वाद दें।