भाग-2 खण्ड । - 2 चैतत्य लहरी 1990 पूजा विशेषांक छ उ ल प्रोक भाह आই ४ श "हम एक लहर के अग्रभाग पर बैठे हैं, जहाँ से हम इससे भी अधिक ऊँची लहर पर छलांग लगाने वाले हैं। परन्तु आप में योग्यता होनी चाहिए। यदि डूब जायेंगे। उाप समुद्र में तैरना नहीं जानते श्री माताजी निर्मला देवी तो क ক छ ক যকা चैतन्य तहरी ।990 माग 2 मण्ड ।-2 नव वर्ष सहजयोग फे सुनहरी युग की पोषमा करता है। श्री माता जी की कृपा से नव युग के प्रारम्भ के लिये परम चैतन्य विश्व में चमत्कारिक परिवर्तन ताया । हम यद्यपि समझ न सके हो, ।989 वर्ष के लोह-आवरण को बेंध परम मो का चित्त बहुत से सुखदायी अ्चम्मे ताया । प्राचीन ग्रैथों की भविष्यवाणी के अनुसार रुस में हजारो की संख्या मैं लोग साक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं तथा वहा से यह सेजी से पूर्वी देशों में फेल रहा है। पूर्व-मध्य देशों के प्रवेशदार तुर्की को भी श्रीमाता जी ने आर्शीवादित किया है। श्री माँ का चित्त अफ्रीका तथा चीन की ओोर जा रहा है और इस प्रकार पुथ्वी ग्रह विराट के शरीर में एक अति आनन्दमयी अंश बन जायेगा| मो परम मो नव वर्ष में हम आपसे प्रार्थना करते हैं। अलिबाग में श्रीमाता जी की परम चैतन्य की करूणा व्षा से हमारी खोज की तीर्थ यात्रा शुरू हुई। वहाँ माँ ने सभी जिन्ञायुओ को बहुमूल्य शिवा दी। वहां से तीर्थ यात्री औरंगाबाद तथा श्री रामपुर की बोर बढ़े। पुषे झील के किनारे कि समस पुजा सक दुर्लभ आनन्द अनुभव धा। ईसा के अवतरण का महत्व बताते हुये श्री माता जी ने समझाया कि ईसा सम पवित्र किस प्रकार बने। यह अनुभव इतना शक्तिशाली धा कि हम मे से बहुतो ने माँ की वार्ता के मध्य अपने पुनर्जन्म का अनुभव किया। ब्रह्मपुरी पुजा में उन्होंने बल दिया कि सन्त होने के नाते मानव उत्थन के लिये हमे कठिन परिश्रम करना है। आनन्दमयी सांगटी पूजा मे नववर्ष मनाया गया। यहाँ विवाहों की घोगण की गई तथा श्री माता जी ने गहनता पूर्वक विवाह सम्बन्धों के विषय में बताया वर्षन केवल रविन्द्रनाथ टैगोर की कविता मे ही हो सकता है: गणपतिपुले का कार्यक्रम तो सक स्वर्गीय अनुभव धा जिसका उन्मुक्त उत्तास में नाचते हुये "भारत के तट पर माँ जाग उठी है"1 क य अलीबाग पूजा बार्ता 17-12-1989 श्री माता जी निर्मला देवी दारा आप सबका स्वागत है। हम सब अब यहां पहुंच चुके है तथा सामुहिक यात्रा दारा हम इस तीर्थ यात्रा का आरम्भ करेंगे। यात्रा अत्यन्त सूक्ष्म प्रकार की है। यदि आप अपने यहां होने का लक्ष्य समझ सके तो यह भी समझ सकेंगे कि पुरा राष्ट्र आप सबको देख रहा है और प्रयत्नशील है कि आपका उत्थान हो। आप अपनी गहराई को जाने तथा जात्म आनन्द प्राप्त करें। सड़के आदि अच्छी न होने के कारण यात्रा बहुत आरामदेङ नहीं होगी । फिर भी यह हमारी उत्थान यात्रा है। पश्चिम में हमारी गति बहुत बढ़ गई है। इस गति को कम करने के लिये हमें ध्यान प्रणाली का प्रयोग करता होगा जिससे अपने अन्दर डी शानित का अनुभव हम कर सके। विचार भी हमारे मक्तिष्क पर बमबारी कर रहे हैं । अपने विचारों तथा दूसरो के प्रत्ि हम शीघ्र ही प्रतिक्रियाशील हो उठते हैं । अतः मनुष्य के अपने अन्दर की घटनाओं का ज्ञान होना चाहिये। विचार आप पर गोलावारी कर रहे हैं। उत्थान के प्रयत्न में विचारों में छुटकारा पाना जापके लिये कठिन है। आपका आपको ललकारा जा रहा है। आपके सम्मुख गाँव के यह सादे लोग सब कुछ देखते है फिर भी उन पर कोई प्रतिक्रिया नईीं। यदि आप प्रतिक्रिया हीन हो जाये तो विचार आपको छोड़ देंगे। न हो। अई तथा परिस्थितियोँ इस विचार-जाल को जन्म दे सकती है। केवल यहीं दो समस्याये है। जतः सर्वप्रथम आपको देखना है कि आपमें प्रतिक्रिया परन्तु आप तो अपनी तथा अपने इर्द-गिर्द के सौदर्य, स्तब्धता, सुक्ष्मता तथा गौरव का आनन्द भनुभव कर रहे हैं। अपनी इस आदत को आपने समाप्त नहीं करना केवल इसकी देखभाल करनी है। इसके विषय में जधिक बातचीत या विचार भी अनावश्यकक है। क्योकि यांद आप सक वृत्ष को देखते है तो इसके विषय में क्या सोचना। यह तो पेड़ ही है। यदि आप इसके विषय में सोचे मी तो भी यह पेड़ ही रहेगा। अतः तनिक सा बुदु दिखाई पड़ने में भी कोई बुराई नहीं है। वास्तविकता यह है कि जब हम आतोचना करने स्लगते हैं तो क्षपने ही स्नायुतन्त्र को विकृत करते हैं तथा अपने मन मास्तिष्क को विषाक्त। अतः किसी वस्तु की आलोचना किये चिना तथा उसके विषय में सोचे बिना बस्तु को देखना ही बास्तविकता है। प्रतिक्रिया किये बिना किसी वस्तु को देखने की बमता का स्तर यदि आप प्राप्त कर लेते हैं तो आप बास्तविकता में है। केवल तभी जअपने चहूँ ओर अपने सम्बन्धों, अपनी मित्रता तथा पूर्ण ब्रहुमाण्ड की सूक्ष्मता का रहस्य ज्ञान आापके अन्दर जागृत होता है। इसी कारणवश मैने कहा है कि इस तीर्थयात्रा में पहली स्मरणीय बात आत्म ज्ञान है। आप दूसरो के विषय में, उनके आचरण, व्यवहार, त्रुटियो आदि के विषय में सोचते हैं तो कोई लाभ नहीं होता। यह सब कार्य क्षपने नेताजों के लिये छोड़ दीजिये। यह आपका कार्य नहीं। मै अफसर प्रवृत्ति के कुछ लोगो को जानती हूं जो स्वभाववश अनहोनी सलाह देते रहते हैं अपरिवर्तनशील वस्तुओं दुरुपयोग है। क्षतः इमे वस्तुओं को उनकी वास्तविक स्थिति में स्वीकार कर लेना चाहिये। जब के विषय में सोचना मन, चित्त और विचारो का स्वीकार करना ही आनन्द मार्ग है। परन्तु स्वीकार का अर्थ मजबूरन सहन करना नहीं। आपके मन मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है। अतः वस्तुजों को जैसी है उसी स्थिति में स्वीकार करके ही लोग आगे बढ़ते सुहन करने के लिये है। मैंने लोगो को स्वीकार करते देखा। पृथ्वी माँ की प्रवृत्ति की तरह यह उनकी शक्ति तथा गभीरता का प्रतीक है। पृथ्वी जो है वही हैं और बह हर चीज को स्वीकार करती है। यदि आप पृथ्वी पर कोई भारी बीज रसे तो वह समान विरोध शक्ति द्वारा उसे स्वीकार करती है। वह नहीं कहती कि मैं इस भार को सह रही है। बाह केवत इसे स्वीकार कर रही है। अतः चीजों को बस्तुस्थिति में स्वीकार करने से ही ज्ञान तथा साक्षी भाव विकसित होता है। मेरे विचार मैं अमुक प्रकार से यह अच्छा होता रेसा कहना बेकार की बात है। "मेरी पसन्द" दूसरी समस्या है। मै केक खाना चाहता हूँ लेकिन केक उपलब्ध नहीं, क्या क? जो भी उपलब्ध के विषय मे सोचते रहने से आप कभी प्रसन्न नहीं है केक के समान डी उसका आनन्द लो। सदा अपनी "पसन्द" रह सकते। जो उपलब्ध है, वही मेरी पसन्द है और यही वास्तविकता भी है। जो उपलब्ध ही नहीं, आप बेशक उसे प्ंद करते हो, कोई क्या कर सकता है। अपनी प्संद-नापसद के मिकार हम इस प्रकार हो जाते हैं कि हमारी इस दर्बलता का लाभ उपमी तोग उठाते हैं। दूरदर्शन, समाचार पत्रो के माध्यम से वे हमारी दुर्बलता को और बढ़वाबा देते हैं तथा हम इन पारिस्थितियों के दास बन जाते हैं "मैं गुलाब के अतिरिक्त जोर कोई अन्य पूल नहीं पसन् करता"। तेकिन क्यो. इस प्रकार पिरस्थति बंधन में हम बास्तविक जानन्व सो देते है। आन्तरिक जानन्द को पाना दूसरा भाग है । यह स्थान किसी भी तरह सुबदायी नहीं है, तो मैं यहाँ ्या हैँ? एक दुसरे से आनन्द पाने के लिए| स्वानन्द प्राप्त करने को अह तथा परिस्थिति बैधनों को माने वाले बाहय प्रलोभनो की जर जितना हम बढ़ेंगे उतना ही हमारा मस्तिष्क इनमें लिप्त होगा और हम किसी भी वस्तु का आनन्द न ले पायेंगे। जब हम सक सूक्ष्म बँधन की ओर आते हैं। राष्ट्र तथा समुदवाद का सूक्ष्म बंधन। समूहवाद बड़े सूक्ष्म रूप से होता है। यह असुरक्षा का ही एक प्रकार है। अतः हम पशुबतः समूह बनाने लगते है। असुरक्षा से भय ग्रस्त पशु औोर मनुष्य तो रेसा कर सकते हैं। परन्तु सन्त और देवदूत नहीं। उनकी कोई राष्ट्रीयता नहीं होती अतः वे इंड नहीं बनाते। राष्ट्रीयता भी एक बन्धन है। सन्तों का कोई देश विशेष नहीं होता। जिसे जैसे और जड़ाँ से आाना धा आ चुका। इमें याद रसना है कि हम सब सहजयोगी है। मे अपने देशों को मूल कर आपस मैं घुलना-मिलना है। कृपया इंड न बनाइए। इसकी कोई जावशयकता नहीं। हवाई अड्डे से बस मे बैठते ही हम अपने समूह बनाने लगते हैं, जो हमारे तौटने तक चलते हैं। ुंड तोड़ कर देशों तथा भिन्न राष्ट्रीयता के तोग यांदि साध रहे तो अच्छा होगा। परस्पर बातचीत कीजिए, सक दूसरे को समরिये । सहजयोग की समस्याओं को सक दूसरे से जानिये। किसी देश विशेष में सहजयोग की क्या समस्यारं है और बहाँ क्या हो रहा हे? पढना सबसे बुरा बंधन है। अन्तर-ज्योति के बिना पढ़ने का कोई ताभ नहीं। प्रदर्शन मात्र के लिए अभी भी लोग अपनी पहले की पढ़ी हुई बातों को याद रखे हुए है दूसरों की सुनना कहीं अच्छा है। दूसरों को बोलने दीजिए| सडजयोग में आप किस विषय पर वाद-विवाद करेंगे? मैं नहीं समझ पाती कि किसी भी चीज़ पर आप कैसे वाद-विवाद कर सकते हैं । यह हरे रंग की वस्तु है। अब इसके विषय में आप क्या वाद-विवाद कर सकते हैं। इस पर सब बाद विवाद व्यर्थ हे। सहजयोग सहजयोग में वाद-विवाद जनावश्यक है। मै समझ नहीं पाती हम क्या विचार विमर्श करने वाले हैं। आप सब जानते हैं आप जानते है कि कुंडलिनी कैसे उठती है और चक्र कैसे साफ है। आप जानते है कि साक्षात्कार कैसे प्राप्त होता है आप जानते है कि कौन कहा पकड़ में है और उसका प्रभाव क्या है। यांद यह सत्य है तो है ही आप इसके विषय में क्या वाद-विवाद करेंगे वाद-विवाद का अब अन्त डो गया है। आप गूढ़ -ज्ञानी है। सहजयोग में आप जपने सम्बन्धों तधा आनन्द की बात कर सकते है बाद-विवाद नहीं। मैंने वाद-विवाद करने वाते लोगों के बारे मे सुना है। मैं समज आपके पास जो ज्ञान है वो आप सबको प्राप्त है। आाप फेवल अपने अनुभवो की बात कर सकते हैं । नहीं पाती कि सहजयोग में वाद-विवाद कैसे हो सकता है। कि अपने ज्ञान को दूसरों से अधिकर बताने के लिए या कोई मिन्न राय देने को वाद-विवाद होता है सहजयोग में "दूसरी राय" है ही नहीं। यदि किसी को नाभि की पकड़ है तो उसे नाभि की ही पकड़ है। इस पर दूसरी राय क्या हो सकती है। तो जब हमारी राय भिन्न-मिन्न होती है तो किसी न किसी के राह से भटके होने की पूरी सम्भावना है, परन्तु आप सब जानते हैं कि वह व्यक्ति भटक गया है इसमे विवाद का प्रश्न ही नही उठता। आप परिषाम पर पहुंच जाते हैं। जब सक सत्य का बोध आपको हो जाता है तो यह सत्य मरम-चैतन्य की परिधि में पहुंच जाता है और इसकी चिंता आपका कार्य नहीं रह जाता। आपको यह चिंता परम् चैतन्य पर छोड़ देनी है , सब ठीक हो जायेगा । यह देश सन्तों तथा योगियों की भूमी है, यही कारम है कि गरीबी असुविधाजों के बावजूद भी परिचिमी देशों की उपलबश्धियों वहा बहुत लोगों को साक्षात्कार प्राप्त हुआ है । मै आश्चर्यचकित थी कि कैसे ये लोग सहजयोग में आये और कैसे इन्होने सहजयोग को स्वींकार किया। को न जानते हुए भी यहाँ के लोग चिन्तित नहीं है। मैं रूस गयी। वह महान् देश हे । भारत के गामीण लोग सहजयोगी नहीं, तो भी सन्तों का मान करते हैं। उनकी नज़र में सन्त किसी भी अन्य चीज से अधिक महत्वपूर्ण है। आपसे कोई कुछ नहीं मंगेगा । यदि आप कुछ देना भी चाहेंगे तो भी कोई नहीं लेगा । यही आधारभूत अन्तर और व्यक्ति को इस विषय मे सावधान रहना है क्या हम भौतिकता के गर्त मे सभा रहे हैं ? निस्सेदेह मे भी सक बड़ी क्रेता हूँ। मै आप सब के लिए सरीदती हैं। मेरे औौर आपके सरीदने में अन्तर यह है कि प्रेमवश मुझे आप सबके लिए खरीदना होता है। मैं जानती हूं कि जहाँ मैं जाउँगी है । मैं जब भी सरीददारी करने जाती हैं तो, चाहे 400 व्यक्तियों के लिए ही क्यों न हो, मुझे सब कुछ वाही मिल जाता है। जब आप खरीदने को जाये तो आपको पता होना चाहिए कि आपने क्या सरीदना है। मैंने सहजयोगियों को गैर सहजयोगियों के लिए सरीदते हुए देखा है। देखभाल करनी चाहिए। जब हम सरीदारी को जाये तो हमे सोचना चाहिए कि हम दूसरे सहजयोगियों के लिए क्या सरीद रहे है । है जिसे हमे समझना चाहिए। भौतिकवाद भारत के अपेक्षा पश्चिम में जल्दी कार्य करता है । सब कुछ सस्ते दामो पर उपतब्य डोगा। सदा सेसा ही होता हमें समझना है कि हम सब एक शरीर है। सक हाथ को दूसरे हाथ की आपको अवश्य याद रखना है कि आप तीर्थयात्रा पर है और हमें अपनी चेतना मे आगे बढ़ूना है। यद आप चेतना में नहीं बढ़ सकते तो इसका कोई लाभ नहीं। एक बार जब आप इस प्रकार सोचने लगेंगे तो अपने ताम तथा उपतब्धि को देस आप आश्चर्यचकित रह जायेगे| आदि का स्थान सहजयोग में नहीं। मेरे विचार में कोई अधिक अनुशासनबढता "यह करो, यह मत करो" भी नहीं है। क्योकि सहजयोग ही आपको अनुासित कर देता है मुझे आपको कुछ नहीं बताना। सहजयोग रक अग्नि है, यदि आप अपना हाथ इसमें डालेंगे तो यह जलेगा ही के विस्द कोई कार्य करेंगे तो आपको दण्ड मुगतना ही पड़ेगा। आप अपनी चैतन्य तहरियों को तो विल्कुल भी नहीं सोना चाहते और न ही दुभी होना चाहते हैं। अतः इस बार आप अपने तथा अपने उत्वान के प्रति पुर्ण सम्मान और गहन सूझ- बूझ दारा एक बहुत ही आनन्ददायक तथा गम्भीर दृष्टिकोण अपनाये । आप बाहे या न चाहे । इसी प्रचकार यीद आप सहजयोग ईश्वर आपको आर्शिवादित करें । त १८ ४ ग +ै १ শু २ %3 ॐ * श्री ूर औरंगाबाद पूजा वार्ता 19-12-1989 द्वारा : श्री माता जी निर्मता देवी मेरे जीवन में औरंगाबाद का विशेष महत्व है, क्योंकि यहाँ से बडुत नज़दीक में धा, नामक स्थान जोकि मूलतः प्रीतष्ठान के नाम से जाना जाता था, से मेरे पूर्वज संवंधित है। महाकाव्य रामायण के लेखक बाल्मीकी सींष यहां रहते थे। बात्मीकी ऋष के आश्रम बडुत से स्थानों पर ये, इस कारण से से झगड़े भी उठ सड़े हुस है । बास्तव मे बात्मीकी बहुत इस क्षेत्र में यहाँ रहते थे । गोदावरी नदी, जो कि प्रतिषठान की जोर जा रही थी, के दूसरी और शाति वाहनों का स राज्य घा। सीता जी यहा रही। उनका एक पुत्र रुस बला गया और दूसरा चीन चीन जाने वाले पुत्र का नाम कुशा जोर रूस वाते का लव धा। रुस के लोगों को स्लाव का लेब कहा जाता है। जो चीन को गये थे वे क्याদ कहताते हैं। यही समीप ही विशाल काय तथा चुस्त चालाक और बुँदिमान पशुओं में विकास के लिए एक बहुत बड़गा सेंघर्ष दिया। नदी मैं बहुत से मगरमच्छ थे। जब हाथियों हुआ। चुस्त पशुओं ने बहुत से विशालकाय पशुओं को समाप्त के का राजा गजेन्द्र पानी पीने के लिए जषाया तो सक बढ़े मगरमंच्छ ने स पर आक्रमण कर दिया। हाबियों का कश समाप्त करने के लिए उसने ऐसा किया। श्री विषु वहा प्रकट हुए होर मगरमच्छ को मारकर गजेन्द्र की रखा की। इन विशलकाय पशुओं मे से आज केवल हाथी ही बचे है, यही कारण है कि इस स्थान को गजेन्द्र मोष कहा जाता है। र बाल्मीकी लोगों को तूटा करते थे। वे मछुआारों की जाति के वे। जब नारद नामक सैत बहाँ जाये तो उसने उन्हें भी तूटा। नारद जी ने उससे पूछा कि वह सेसा क्यो कर रहा है? अपनी पल्नि, बच्चों तथा परिवार के पोपप के लिए बाल्मीकी ने उत्तर दिया मौर कटा कि मैं अकेता कमाने वाता हैँ। नारद जी ने फिर पूछा कि क्या तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे लिए इतना बलिदान कर सकेगे? बाल्मीकी को इसका पूरा विश्वास था । वच्चों तवा परिवार की परीक्षा के लिए चार आधुओं ने बाल्मीकी को मृतक के समान उठा जीर उनके वर ते गये वहां उनके परिवार के सदस्यो ने संतों से कहा कि तूटते हुए वह व्यक्ति मर गया है। यदि इसके परिवार का कोई सदस्य इसकी जगह हो जाये तो वह बच सकता है। पर कोई भी इसके लिए तैयार न हुआ बाल्मीकी उठकर खड़ा डो गया ओर उसे अपनी गलती का आभास हुआ। नारद ने उसे राम-राम जपने को कहा। परन्तु वह कैवल भरा-मरा ही कह सका, जो कि राम-राम ही बन गया नारद ने उसे प्रायश्चित् करने का कहा। बाल्मीकी एक पर्वत पर इस कार्य के लिए बैठ गया| यह पर्वत बाल्मीकी पर्वत के नाम से जाना जाता है। दीमक ने उसके शरीर को गर्दन के सिवाय पृरा सा डाला। तब विष्णु जी प्रकट हुए, उसके शरीर के दीमक को हटाया और उसे साकात्कार दिया। संस्कृत भाषा में दीमक को बाल्मी कहते है। इस प्रकार उसका बाल्मीकी नाम पड़ा। जान देने को तैयार क महत्वपूर्ण भाग यहां पटित हुआा। इसके बाद की कहानी में सीता जी यहाँ आयी। इस प्रकार रामायण का शालिवाइनों ने बाल्मीकी मीदिर बनाने मे बड़ी मदद की और बाल्मीकी जी को सम्मानपूर्वक अपना गुरु माना। वास्तव मैं बहुत समय पूर्व उनका गुरु चौडल्य धा। नीरा नदी के समीप हमने यहीं कुछ जमीन भी ती है। यहाँ के लोगों के मन में ईशवर का भय है जौर बड संतों का सम्मान करते हैं। उन्हें पता है कि सत्चा संत कौन है। जब हम आत्मा के सुख के विषय में सोचते है तो आत्म प्रकाश से जीवन भर जाता है और इस प्रकाश के प्रति हमारे दृष्टिकोप में परिवर्तन आने तगता है। के प्रति हमें पूर्ण विश्वास हो जाता है और हम इनका आनन्द सेते हैं। हम कह सकते हैं कि इस संस्कृति में कोई घूर्तता या बनावट नहीं है यहां न तो लोग बार-बार जापको धन्यवाद कहेंगे और न ही सेद प्रकट करेंगे प्रायः वे डाथ भी नहीं जोड़ेंगे विशेषतया नित्रयों पुरुषों के सामने ह्वाथ जोड़कर नमस्कार नहीं फहेंगी। वे केवल ईश्वर के सम्मुख डी डाथ जोड़ते है। मुझे आाशा हे कि आप उस बात को समझेगे। यहीं नही अपने सद्गुणों ईश्वर आपको जाशिर्वादित करे। बरी रामपुर पूजा वार्ता 21-12-1989 दारा :- "श्रीमाता जी निर्भत देवी" आपको मुझे बहुत ही वस्तुर देना या बहुतेरे अ्पण प्रस्ताव करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं, आपने कितने लोगों को सावात्कार दिया, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात है। आपकी क्या अवस्था है? कया जाप विकसित हो गये हैं? क्या जप स्वतंत्र हो गये है? क्या आप बैंधनमुक्त बोर अर्ह मुक्त हो सकते है? क्या आप अति विनम्, सुन्दर, करूमामय और सामुहिक व्यक्तित्व बन गये हैं? जन्तर-दर्शन १स्वयं को देखना ? का प्रश्न वहुत महत्वपूर्ण है। में न हो हम उसे चला नहीं सकते। इसी प्रकार आपका अस्तित्व याद हास्यास्पद कार जब तक ठीक अवस्था स्विति में है तो आपका उत्थान नहीं हो सकता । यह वास्तविकृता है। हर चीज़ में से आनन्द की प्राप्ति हमारी उपलब्धि का चिन्द है। यदि हमारा बर्तन छोटा ह तो इसमें बहुत कम आनन्द समा सकता है। परन्तु यदि यह सागर समावशाल है तो आनन्द रूपी सभी नंदियाँं इसमे आ गिरेंगी। अतः आनन्द की मात्रा, मनोरंजन की नहीं, महत्वपूर्ण है। मैं छिछोरे या स्तेपन की बात नहीं कर रही, मैं उस गहन-ध्यान-जानन्द की बात कर रही यह आपके अन्दर उमड़ उठता हआपको आानन्दित करता है और आप यह समझ भी नहीं पाते कि आप प्रसन्न क्यों हैं। केवल अपने आनन्द का मज़ा लेते हैं। जब रेसा हो तो व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि वह जपने-योगी बन गया है। इस अवस्था में आप यह आनन्द बांटना चाहते हैं। इसे अपने तक सीमित रसना नहीं चाहते । आप इसे पैलाना चाहते हैं। इस आनन्द को दूसरों को देना चाहते हैं। इसे दूसरों तक पहुँचाये बिना आप सुश नहीं डो सकते । अतः पहले आप पूंजीवादी बनिये और फिर साम्यवादी । हैं जो आप अपने जन्दर पाते हैं पहली बात है कि हमने कितना आनन्द पाया, और दूसरी कि हभारे मंघप्तप्क में अब क्या है? सहजयोग को है, तब रबतः प्रकाश पेलेगा। इमारा स्वयं से क्या संबंध উ? दुँड न बनाने के लिए मे पहले कह ही चुकी हूं। कुछ लोगों की बहुत अधिक गर्दन हिलाने की आदत बन गयी है| गाते हुए वे अपने शरीर और गर्दन को हिलाते हैं [आप अपने शरीर को हिला सकते हैं, परन्तु गर्दन शरीर के साथ ही हिलनी चाहिर। ध्यान में जाने से पहले स्वयं को देखिये, क्षपनी कीमियों को देखिये, तब मेरे फौटोग्राफ के सामने ध्यान मैं जाइये। जब हम आ रहे थे मैंने कहा "यह रास्ता गतत है" उन्होंने कहा माँ आप केसे जानते है? बस मैं जानती हूं। किसी चीज को जानने के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप इसके विषय में हर बात को जाने। यह आपके चैतन्य बनने का चिन्ह है। हर चीज की चेतना होने का यह मतलब बित्कुल नहीं कि आप बेठ जाये और कहे "यह बहुत सुन्दर है या यह बहुत उत्तम है"। यह कोई बात नहीं। प्रमाणित करने या आतोचना करने के लिए नहीं परन्तु जो भी आप जानते हैं उसे बातावरप में अनुभव कीजिए। हमारे पास स्क बहुत बड़ा मस्तिष्क है, और सिर के अैदर दो संड। यह केवल सक मस्तिष्क नहीं है, मरन्तु दो सश्ड है और जब चेतना आपको प्रकाश देने लगती है तो आप अपने अन्दर हर चीज को जानना शुरू कर देते हैं और शान्त रहते है। आप न तो कोई दावा करते हैं और न ही अपना दबाव डालने के लिए कोई चालाकी करते हैं। आप केवत जानते हैं और यही सुन्दर कार्य व्यक्ति को करना है। एक अन्य बहुत महत्व- पूर्ण बात मैें आपको बतलाऊँगी भारत में आय अच्छी तरह अपने बालों को संवार कर रनिये नहीं तो लोग समझेंगे कि आप मिसारी है। केवल भिसषारियों के बाल इस तरह के होते हैं बालों में तेल डालिये औौर इन्हें कायदे से संवारिये। इम बाहर की ओर कैसे फैलायैगे सर्वप्रथम प्रकाश को बढ़ाना आपको अपने लालट { माथे? पर गर्व होना चाहिए। यह एकादश है। अपने इस सकादश से आपको पूरे विश्व से युद्ध करना है। रात्रि के समय बातों में तेल डालिये । यह आपको बहुत आराम पहुँचायैगा। आपको बहुत अच्छा तगेगा। विशेषतया जिगर के तोवर के रोगियो के तिए यह बहुत आवश्यक वे बड़े सुश्क लोग होते हैं । उनके बालों में तेत न होने के कारण बाल बढ़ते नहीं और वे जत्दी डी गैजे हो जाते हैं। है। उन्हें अपने सिर पर तेल जवश्य लगाना चाहिए, क्योकि आपको मेरे बताये बिना ही सड़जू संस्कृति को व्यक्त करना है, इसे स्पष्ट रूप से प्रदार्शित करना है । निर्णय करने का प्रयत्न कीजिए कि आपका चित्त कहाँ है। इर समय अपने चित्त पर चित्त को रविये। मेरा चित्त कडी है? श्रीमान् चित्त जी आप कहाँ लोये हैं? और यह आपके लिए कार्य करेगा। ईश्वर आपको आशिर्वादित करें। ा ति मत ता ा ক्रिसमस पूजा बार्ता पुषे 25-12-1989 चा द्वाराः- श्री माता जी निर्मला देवी नम्ः आज डम ईसा का जन्म मनाने का सकत्र हुए है। जब हम उनके जन्म के विषय मे सोचते हैं तो हमें पता साधारण ग्थान जन्मे तथा पूरा जीवन साधारण रूप में ही व्यतीत किया। स्क सहजयोगी होने चलता है कि वे एक के नाते आप जानते हैं कि वे गणेश का अवतरग घे, जो फि वास्तव में अबोधिता ही है। घर्मान्य तोगों की मूर्ता के कारण डी उनका बलिदान हुआ। वे सक धारव्रत शिशु थे। जब हम ईसा तथा ईसाई धर्म के विषय में बात करते हैं तो जान पड़ता है कि ईसाई धर्म इसी से पूर्पतः उत्टी दिशा यदि सक कबोधिता है तो दूसरा धूर्तता। जहँ-तही भी ईसाई वर्म प्रचलित है वहां इअचम्मे की बात है। अयोधिता का कोई सम्मान नहीं। सतीत्व, जो कि ईसा का सार तत्व है, का वहां कोई स्थान नही। पवित्रतातत्व से ही ईसा बने वे। कभी-कभी आधात पहुंँचता है कि इन तथाकवित राष्ट्रो ने अपने असंख्य तोगों को सब तरह के दुष्का्यों में तिप्त होने की आाज्ञा देकर किस सीमा तक ईसा का अहित किया है। में अला गया है यदि सक सूजन है तो दूसरा विनाश, प ईसा का आत साधारण प्रकार से जन्म लेना, ध्यान देने की दूसरी बात है। ए एक बढ़ई के पुत्र होने के नाते वे बढ़ई की तरह ही रहे। परन्तु पश्चिमी देशों में लोग बहुत ही मौतिकताबादी हैं अपव्ययतापुर्ण जीवन-यापन, वैभव प्रदर्शन, दूसरों का धन तूटना, भौतक लाभ के लिए देश उसे अनुचित नहीं समझते । रेसा करना उनके लिए गर्व का विषय है। के बाद देश लूट तेना उनके लिए अति साधारण कार्य है । े ईसा की महानता इस बात में निहित हैं कि वे चाहते थे कि तोग परस्पर ग्रेम करे और नम बनं, पन्तु ईसाई राष्ट्रो का [पमण्ड ओ अत्याचार देखकर यह समझ नहीं आता कि वे तनिक भी ईसा के समीप है? ईसा ने कहा है "धन्य है वो जो नम है"। वे नम लोग कही रह रहे हैं? पश्चिमी देशो में तो नहीं हैं। उन देशों में तो नहीं है जिनमें ईसा प पूजा होती है, जहाँ ईसा के सम्मान में बड़े-बड़े गिरजे बनाये जाते है ओर जहाँ वर्षो से कुमारी माँ की पूजा होती है। यह कहना कि हम ईसा के पद-चिन्हों पर चलते हैं औरसाथ डी इतने भर्यकर अपराध करना ईसा के प्रति घोर अपराध है। रसे सब लोगों को नरक में जाना पड़ेगा। वे बेशक इसे न समझ सके, लेकिन वे नरक को प्राप्त कर रहे बुरे हैं। प्रतिदिन सक क्रूसारोपण (मा है। वे समस्याओं में पिर चुके हैं। ईसा को बलिदान करने वाले लोगों से भी ये लोग होता है । ईसा तोगों की सब ज्यादतियाँ सहते थे, परन्तु इस सब त्याग के परिषाम इतने भयावने हैं कि कभी-कभी मै चिन्तित हो जाती हैं कि कहीं मेरे प्रति भी ये लोग कुछ सेसा ही न करें । ईसा के क्यनानुसार अब क्ञाप लोगों को पुर्नजन्म हुआ डै। ईसा ने जिस अवस्था की बात की धी, आपने वह प्राप्त कर ली है। आप विशेष प्रकार के लोग है, मुझे कभी ऐसी अाशा न धी। पहती भेंट बहुत मयंकर थी। मैंने सोचा भी न था कि इतने लोग पार हो जायेंगे, परन्तु आपमें से बहतों ने पार होकर ईसा के नाम को माहिमा प्रदान की। मै आपसे प्रार्थना करुंगी कि अब जाप सहजयोगी हैं और ईसा के अनुयायी। शासत्रों में वर्णित गुढ-ज्ञानी आप है। जिन्हें ज्ञान प्राप्त है, वही लोगों को मृुक्त होने में सहायता प्रदान करेंगे। आश्चर्य की बात है कि मैने पाया कि पाश्चात्य जीवन में विध्वनकारी विचार भी अबोधिता को समाप्त न कर सके। परन्तु अब से मै यह कहूँगी कि इस प्रकार की मू्ता त्याग दी जाये। ईसा का जीवन एक तपस्वी का जीवन था, स्क निर्तिप्त व्यक्ति का जीवन था अतः ईसाई मत से आने वासे सहजयोगियों को समझना है कि मूर्खताओों से छुटकारा पाने के लिए वे ईसा की तरह बने। हा ईसाईयों मे विवाह पुरी जीवन-शैली पर छाया रहता है। सहजयोग में यह शैली अरसंगत है। विवाह में यदि एक साधी ठीक न हो तो वह दूसरे पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इससे पूरा व्यक्तित्व ढक जाता है। हिन्दुओं ्षोर मुसलमानों में रेसा नही है। मेरा कहने से अभिग्राय है कि मै भी बवाहित है, परन्तु यह विवाह मेरे पूर्ष अस्तित्व पर छा नहीं जाता। यह सेसा कर भी कैसे सकता है? समस्या यह है कि जब भी कोई चीज़ प्रचलित होती है। इसको कठिनाई का सामना मुझे हर समय करना पडता है। विवाह होते है औौर मुझे पत्र आने शुरू हो जाते है। "मेरे विवाह के साथ सेसी घटना घटी" यह सिर दर्द है। ये अपने पतियों का, पल्नियों का तथा सहजयोग का नाश कर देंगे। ये ईसा ने जिस तरह का जीवन लोगों के लिए ईसाई मस्तिष्क सहजयोग के महत्व को बहत्त ही तच्छ कर देता है। सोचा था और जिस तरह से लोग जी रहे हैं डै कि वे गरिमा और विवेक को अपनाय औोर यह समझे कि वो सहजयोग में उत्तर गये हैं, विवाह आदि का अधिक विहत्व नहीं। यह जीवन तक्ष्य नहीं है। उसमे तनक भी समानता नही। अतः सहजयोगियो के लिख याह आवश्यक मुझे लोगों के बबाह करने पडते हैं, क्योंकि मेरा विश्वास है कि वे उचित विवाहित जीवन व्यतीत करें। बिना विवाह किए यद क्ाप सन्यास ले लेंगे तो आप ढोगी भी बन सकते हैं। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी नहीं कि विवाह सभी है। इसका इतना महत्व नडीं है। यह केवल एक पटना है जो घटित होती है। यह प्रार्थना से जधिक महत्वपूर्ण कुछ नही हैं। और न डी यह घ्यान से अधिक महत्वपूर्ण है। इस का महत्व आपके भोजन करने से अधिक कतई नहीं। इसको जितना अधिक तुल जाप देते हैं, आप उसी गर्त में गिरना शुरू हो जाते है, जिससे मैने आपको निकाता है । हम नरक मे से निकल चुके हैं । अब आप गरिमामव और विवेक्शील बने। महत्वहीन वस्तुओं को इतना महत्व देने से आप ऊँचे नहीं उठ सकेंगे। परन्तु मैं यह भी नहीं कहती कि आप शादी नहीं करो। ज्ाप जवश्य विवाह करो। याद आप एक सड़जयोगिनी हैं और सहजयोग के विषय मे जानती है तो निससेदेड आपको और सहायता आपको अधिक शॉति जधिक आनन्द ओर अाधिक सूझ बूझ प्राप्त डोगी जोकि वहुत अच्छी है । परन्तु आ्तरिक संबंध बहुत महत्व- पूर्ण है। में देखती हूं कि जिस पुरुप से लड़कियों शादी करती हैं उसी से प्रेम में बंध जाती है और समाप्त। पुरूष भी समाप्त और स्त्री भी समाप्त। इस महान् अवसर पर मैं आपको बताती हैँ कि ईसा का जन्म निम्कलंक अवधारमा दारा हुआ। इसी प्रकार मैंने भी आपको आपका दूसरा जन्म दिया और आप इतने पवित्र है। जतः सारी अपुदियों को आप अच्छी तरह देने। मै जानती हूं कि आप इन अशुदियो को पसन्व नही करते फिर भी पह इचर उपर से घुस आती है। अगर आपको इस स्तर पर आना है तो स्वयं को सीढ़ियों से ऊपर रमना पड़ेगा। आप सोचते हैं कि आपने एक व्यवस्थित पांरिवार व्यवस्थित बच्चे पाकर बहुत बड़ी उपलब्धि पा ती है और अब हर समय इन बच्चो की चिन्ता में लगे रहते है। नही यह दूसरा प्रलोभन है, स्क बडुत बड़ा प्रलोमन। अतः ईसा के जन्म के इस माहान् अवसर पर हमे स्वयं को कहना है कि हम सड़जयोग के प्रति समर्पित हैं। यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और बाकी सब कुछ गौण। हम एक तहर के अग्रभाग पर बैठे हैं, जहाँ से हम इससे भी अधिक ऊँची लहर पर छलतग लगाने वाले हैं । बुब जायेगे अतः इमें योग्यता विकसित परन्तु जाप में योग्यता होनी चांडिस। यादि जाप समुद्र में तैरना नही जानतेते तो करनी है। ईसा का उदाहरण हमारे सामने हैं। कितना मुन्दर जीवन था। एक मानव की तरह से वे नम्रतापूर्वक जिर| कितने स्पष्ट रूप से सत्य को उन्होंने कहा। इसी प्रकार आप से मी वह शक्ति आयेगी । जिससे आप जान सकेंगे कि अपनी राष्ट्रीयता से बढ़कर आप बहुत कुछ हैं। आप रक उच्च व्यक्तित्व है, ईश्वर से साम्राज्य में रहने वाले एक सहजयोगी है। यही आनन्द है। परिवार और बचचों का आनन्द नहीं, परमात्मा का आनन्द है। ईश्वर आपको आधिर्वादित करें। १ ॐी ३ ৩ ा ब्रह्मपुरी पूजा वार्ता -30-12-1989- श्रीमाता जी निर्मला देवी दारा ज्रह्मपुरी की तरह से बाहुत से छोटे-छोटे स्थान है जहाँ सन्तों ने बहुत से तोगौ की भलाई के लिए कार्य किया, क्योकि वे सामुहिक वे । इस देश की दीरिद्गता को वे सह न सके। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि हम लोगों को भाग्यवादी बना रहे हैं यह पुरी तरह गलत है, क्योंकि कोई भी संत सेसा नहीं करता । सन्तो ने सदा लोगों को कठिन परिश्रम करके अपनी समस्याओं का हल हुंढने के लिए कहा उन्होंने समाज की बुराईयो की ओर भी इशारा किया। सन्त जाकर हिमाचल पर्वत में नहीं बैठ गये समाज की मुक्ति के लिये कार्य करने को वै स्थान-स्थान पर गये। ईश्वर आपको आशिर्वादित करे। संक्रान्ति पूजा कनल वे 14-1-1990 दवारा :- श्री माता जी निर्मला देवी आज का दिन भारत में हम सब के लिए उत्सव मनाने का दिन है। क्योकि अब सूर्य मकर रेखा पर है और यहाँ से यह कर्क रेखा के क्षेत्र में प्रविष्ट होता है। जब सूर्य पुनः पृथ्वी पर आता है तो घरा माँ की सृजनशक्ति कार्यक्ीत हो जाती है और बह अत्यन्त सुन्दर वस्तुरेँ यथाफूल, पौष्टिक तथा पूर्तिदायक फल और ऑसों को शान्त करने वाली हरियाती का सृजन करती है। सूर्य के आगमन से बहुविधि पृथ्वी मा हमे वन्य करती है। इसी प्रकार सहजयोग रूपी सूर्य भी उदय हो चुका है और अपनी पराकार्ठा पर पहुंच रहा है और इसने, निसंदेड, प्रधम तत्व मूलाधार पर यरिणाम भी दिखाये है आपके मूताघार की कुंडलिनी रुपी सृजनात्मक शक्ति का उत्थान होता चला गया, जिसने आपके आत्म तत्व को सोला और आपके जीवन में शुभ परिषाम प्रदार्शित किर। इसने आपके जीवन को सुन्डर, आनन्दमय और प्रसन्नता से परिपूर्ण बना दिया। अब हम सक सेसे स्थान पर है, जहाँ से हमें रक नई छतांग लगानी है, सक नयी उड़ान भरनी हे । पस नयी उड़ान के लिए हमें अपने विचारों तथा वंधनों में बहुत ही हल्का-पुल्का होना है। आप बहुत ही बंधनलिप्त है। मैरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार आप ससे तुच्छ तथा विवेकहीन वैधनों में बंधकर खो जाते है। यह ऊँची छतौँग जो आपने लगानी है, इसमे बहुत से तोग पिछड़ जायेंगे। जतः इस स्तर पर मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि आप स्वयं को पूर्णतया ध्यान तथा सामूहिकता के प्रति समर्पित कर दें। प्रतिदिन स्वयं से प्रश्न करे कि "मैने सहजयोग के लिए और स्वयं के लिए क्या किया है?" कृपया समझने का प्रयत्न कीजिस कि बहुत बड़ी छलग है जो आपको तगानी है। इसका तेज आरम्भ होना हैं, जिसके लिए मैं चाहुँगी कि आय तैयार रहे पूरी तरह से तैयार, क्योकि इस छलोग में आपके सो जाने की संभावना है। अपने बैधनो पर काबू न पा सकने के कारण बहुत से लोग पीछे भी छुट सकते हैं। बैंधन घहुत प्रकार के हैं: अज्ञनता, औधविश्वास तथा वहुत से अन्य बंधन। देश, जाति, कार्यवधि तथा बहुत सी अन्य वस्तुर, जिनसे हम दूसरो के विषय में निर्षय करते हैं, भी हमारे धन है । क्या हम सहज संस्कृति में है? इस माप्ड से हमें स्वयं की जाँना है अन्यथ हमारे लिए हमें पार ले जाने वाले जहाज पर सवार होना कठिन हो जायेगा | मैं तुम्हे चैतावनी देती हूँ कि बाद में ये न कहिए कि श्री माता जी बहुत से लोग पीछे छुट गये हैं। यादि आप किसी को पिछड़ता पाये तो उसकी सहायता करने का प्रयत्न करें। स्पष्ट आवाज ता स्पष्ट शिवा दारा कृपया उसे सुधारने का प्रयत्न करें। यदि वास्तव में आप किसी को गलती करता हुआ पाते हैं तो उसके हित में उसे बेतावनी दीजिये। मै आज जपको बता रही हैं कि यह वहुत ही निर्णायक समय डै और इसमें से किसी को भी सहजोग को अनुदत्त हैगरान्टिड नहीं समझ सेना है। बरत आपका यह सोचना कि आपकी सांसारिक वस्तुर ठीक-ठाक हैं और आप उनका प्रवन्ध कर सकते है आादि एक छलावा है। ईश्वर किसी धनी या निर्धन की चिन्ता नहीं करते, वे देसते है कि जापके पास अध्या्मिकता का कितना घन है? वे आयकी शिक्षा, प्रमाण-पत्र जीर चमक दमक की परवाह भी नहीं करते। यरमात्मा देखते हैं कि आप कितने निश्वछल अबोध ह है, आपने सहजयोग के लिर कितना कार्य किया है। आापने ईश्वर के लिए क्या किया है। अतः ये सारी प्राथ- मिकता आप अवश्यक बदल दें । मै ज्ञापको बता हूँ कि सहजयोग आपको बहुत ही सूक्ष्मता से परखता है। इस अन्तिम निर्णय में आप तोगों को बहुत वच्छा माना गया है। परन्तु यह दुसरी छलोग जो हम तंगाने वाले हैं, इसके प्रति हमे बहुत सावधान रहना है। जो लोग ये सोचते है कि वो अन्दर से सजयोगी हैं, परन्तु यदि वास्तव में नहीं है तो इस होने वाली तम्बी छलोग में वे पीछे छुट सकते हैं। अतः सुर्योदय होकर सूर्य का चोटी तक पहुंचना महत्वपूर्ण है, क्योकि जिस सूर्य ने हमारे चहुँ और सुन्दर हरियाती रचनी शुरू कर दी है, वही सूर्य चोटी पर पहुंच कर अपने ताप से हमें झूलस भी सकता है। अतः व्यक्ति को सावधान रहना है और से समझना है कि उसे हर समय सहजयोग के मार्गदर्शन में चतना है। हमारे अन्दर क्या कमी है? हमें क्या बोझिल बन्ा रहा है? क्या चीज़ है जो हमे दुःसाध्य बना रही है? मार्गदर्शन आापको देती रही हैं उसे बही आभी तक में बहुत प्रसन्न हूँ कि जो मै क्ापको बताती रही हैू, जो शान्ति तथा माधुर्य के साध स्वोकार किया । बौर अपने इसे अपनी जीवन बेली मे आत्मसात् करने का प्रयत्न किया। वास्तव में कुछ समय बाद मैं नहीं सोचती कि आपको कुछ बताने की आवश्यकता रहेगी। उचित-्नुचित को देसने के लिए आपको अपनी ज्योति प्राप्त हो जायेगी। फिर भी मै कहुँगी कि पूजा में, सँगीत में जौर हर कार्य मे आपको अपना हृदय खोलना है। क्ापको केवल जपना हृदय सोलना है। यदि आप अपना इवय नहीं सोल सकते तो यह कार्य नहीं करेगा , क्योकि हुदय के अन्दर निवास करने वाली आत्मा के जरिये सहजयोग कार्य करता है। जब आप सह़जयोग के लिए अपना डूबय लोलने का निर्णय कर लेंगे तो ापके वंधन तथा आपका अर् मिट जायेगा। ईश्वर आपको आशिर्वादित करें| त कुड पा त मी ৬ चल प ाय MA^A^^^AAAAAM% श्र |ीई ---------------------- 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt भाग-2 खण्ड । - 2 चैतत्य लहरी 1990 पूजा विशेषांक छ उ ल प्रोक भाह आই ४ श "हम एक लहर के अग्रभाग पर बैठे हैं, जहाँ से हम इससे भी अधिक ऊँची लहर पर छलांग लगाने वाले हैं। परन्तु आप में योग्यता होनी चाहिए। यदि डूब जायेंगे। उाप समुद्र में तैरना नहीं जानते श्री माताजी निर्मला देवी तो क ক छ ক যকা 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt चैतन्य तहरी ।990 माग 2 मण्ड ।-2 नव वर्ष सहजयोग फे सुनहरी युग की पोषमा करता है। श्री माता जी की कृपा से नव युग के प्रारम्भ के लिये परम चैतन्य विश्व में चमत्कारिक परिवर्तन ताया । हम यद्यपि समझ न सके हो, ।989 वर्ष के लोह-आवरण को बेंध परम मो का चित्त बहुत से सुखदायी अ्चम्मे ताया । प्राचीन ग्रैथों की भविष्यवाणी के अनुसार रुस में हजारो की संख्या मैं लोग साक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं तथा वहा से यह सेजी से पूर्वी देशों में फेल रहा है। पूर्व-मध्य देशों के प्रवेशदार तुर्की को भी श्रीमाता जी ने आर्शीवादित किया है। श्री माँ का चित्त अफ्रीका तथा चीन की ओोर जा रहा है और इस प्रकार पुथ्वी ग्रह विराट के शरीर में एक अति आनन्दमयी अंश बन जायेगा| मो परम मो नव वर्ष में हम आपसे प्रार्थना करते हैं। अलिबाग में श्रीमाता जी की परम चैतन्य की करूणा व्षा से हमारी खोज की तीर्थ यात्रा शुरू हुई। वहाँ माँ ने सभी जिन्ञायुओ को बहुमूल्य शिवा दी। वहां से तीर्थ यात्री औरंगाबाद तथा श्री रामपुर की बोर बढ़े। पुषे झील के किनारे कि समस पुजा सक दुर्लभ आनन्द अनुभव धा। ईसा के अवतरण का महत्व बताते हुये श्री माता जी ने समझाया कि ईसा सम पवित्र किस प्रकार बने। यह अनुभव इतना शक्तिशाली धा कि हम मे से बहुतो ने माँ की वार्ता के मध्य अपने पुनर्जन्म का अनुभव किया। ब्रह्मपुरी पुजा में उन्होंने बल दिया कि सन्त होने के नाते मानव उत्थन के लिये हमे कठिन परिश्रम करना है। आनन्दमयी सांगटी पूजा मे नववर्ष मनाया गया। यहाँ विवाहों की घोगण की गई तथा श्री माता जी ने गहनता पूर्वक विवाह सम्बन्धों के विषय में बताया वर्षन केवल रविन्द्रनाथ टैगोर की कविता मे ही हो सकता है: गणपतिपुले का कार्यक्रम तो सक स्वर्गीय अनुभव धा जिसका उन्मुक्त उत्तास में नाचते हुये "भारत के तट पर माँ जाग उठी है"1 क य 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt अलीबाग पूजा बार्ता 17-12-1989 श्री माता जी निर्मला देवी दारा आप सबका स्वागत है। हम सब अब यहां पहुंच चुके है तथा सामुहिक यात्रा दारा हम इस तीर्थ यात्रा का आरम्भ करेंगे। यात्रा अत्यन्त सूक्ष्म प्रकार की है। यदि आप अपने यहां होने का लक्ष्य समझ सके तो यह भी समझ सकेंगे कि पुरा राष्ट्र आप सबको देख रहा है और प्रयत्नशील है कि आपका उत्थान हो। आप अपनी गहराई को जाने तथा जात्म आनन्द प्राप्त करें। सड़के आदि अच्छी न होने के कारण यात्रा बहुत आरामदेङ नहीं होगी । फिर भी यह हमारी उत्थान यात्रा है। पश्चिम में हमारी गति बहुत बढ़ गई है। इस गति को कम करने के लिये हमें ध्यान प्रणाली का प्रयोग करता होगा जिससे अपने अन्दर डी शानित का अनुभव हम कर सके। विचार भी हमारे मक्तिष्क पर बमबारी कर रहे हैं । अपने विचारों तथा दूसरो के प्रत्ि हम शीघ्र ही प्रतिक्रियाशील हो उठते हैं । अतः मनुष्य के अपने अन्दर की घटनाओं का ज्ञान होना चाहिये। विचार आप पर गोलावारी कर रहे हैं। उत्थान के प्रयत्न में विचारों में छुटकारा पाना जापके लिये कठिन है। आपका आपको ललकारा जा रहा है। आपके सम्मुख गाँव के यह सादे लोग सब कुछ देखते है फिर भी उन पर कोई प्रतिक्रिया नईीं। यदि आप प्रतिक्रिया हीन हो जाये तो विचार आपको छोड़ देंगे। न हो। अई तथा परिस्थितियोँ इस विचार-जाल को जन्म दे सकती है। केवल यहीं दो समस्याये है। जतः सर्वप्रथम आपको देखना है कि आपमें प्रतिक्रिया परन्तु आप तो अपनी तथा अपने इर्द-गिर्द के सौदर्य, स्तब्धता, सुक्ष्मता तथा गौरव का आनन्द भनुभव कर रहे हैं। अपनी इस आदत को आपने समाप्त नहीं करना केवल इसकी देखभाल करनी है। इसके विषय में जधिक बातचीत या विचार भी अनावश्यकक है। क्योकि यांद आप सक वृत्ष को देखते है तो इसके विषय में क्या सोचना। यह तो पेड़ ही है। यदि आप इसके विषय में सोचे मी तो भी यह पेड़ ही रहेगा। अतः तनिक सा बुदु दिखाई पड़ने में भी कोई बुराई नहीं है। वास्तविकता यह है कि जब हम आतोचना करने स्लगते हैं तो क्षपने ही स्नायुतन्त्र को विकृत करते हैं तथा अपने मन मास्तिष्क को विषाक्त। अतः किसी वस्तु की आलोचना किये चिना तथा उसके विषय में सोचे बिना बस्तु को देखना ही बास्तविकता है। प्रतिक्रिया किये बिना किसी वस्तु को देखने की बमता का स्तर यदि आप प्राप्त कर लेते हैं तो आप बास्तविकता में है। केवल तभी जअपने चहूँ ओर अपने सम्बन्धों, अपनी मित्रता तथा पूर्ण ब्रहुमाण्ड की सूक्ष्मता का रहस्य ज्ञान आापके अन्दर जागृत होता है। इसी कारणवश मैने कहा है कि इस तीर्थयात्रा में पहली स्मरणीय बात आत्म ज्ञान है। आप दूसरो के विषय में, उनके आचरण, व्यवहार, त्रुटियो आदि के विषय में सोचते हैं तो कोई लाभ नहीं होता। यह सब कार्य क्षपने नेताजों के लिये छोड़ दीजिये। यह आपका कार्य नहीं। मै अफसर प्रवृत्ति के कुछ लोगो को जानती हूं जो स्वभाववश अनहोनी सलाह देते रहते हैं अपरिवर्तनशील वस्तुओं दुरुपयोग है। क्षतः इमे वस्तुओं को उनकी वास्तविक स्थिति में स्वीकार कर लेना चाहिये। जब के विषय में सोचना मन, चित्त और विचारो का स्वीकार करना ही आनन्द मार्ग है। परन्तु स्वीकार का अर्थ मजबूरन सहन करना नहीं। आपके मन मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है। अतः वस्तुजों को जैसी है उसी स्थिति में स्वीकार करके ही लोग आगे बढ़ते सुहन करने के लिये है। मैंने लोगो को स्वीकार करते देखा। पृथ्वी माँ की प्रवृत्ति की तरह यह उनकी शक्ति तथा गभीरता का प्रतीक है। पृथ्वी जो है वही हैं और बह हर चीज को स्वीकार करती है। यदि आप पृथ्वी पर कोई भारी बीज रसे तो वह समान विरोध शक्ति द्वारा उसे स्वीकार करती है। वह नहीं कहती कि मैं इस भार को सह रही है। बाह केवत इसे स्वीकार कर रही है। अतः चीजों को बस्तुस्थिति में स्वीकार करने से ही ज्ञान तथा साक्षी भाव विकसित होता है। मेरे विचार मैं अमुक प्रकार से यह अच्छा होता रेसा कहना बेकार की बात है। "मेरी पसन्द" दूसरी समस्या है। मै केक खाना चाहता हूँ लेकिन केक उपलब्ध नहीं, क्या क? जो भी उपलब्ध के विषय मे सोचते रहने से आप कभी प्रसन्न नहीं है केक के समान डी उसका आनन्द लो। सदा अपनी "पसन्द" रह सकते। जो उपलब्ध है, वही मेरी पसन्द है और यही वास्तविकता भी है। जो उपलब्ध ही नहीं, आप बेशक उसे प्ंद करते हो, कोई क्या कर सकता है। अपनी प्संद-नापसद के मिकार हम इस प्रकार हो जाते हैं कि हमारी इस दर्बलता का लाभ उपमी तोग उठाते हैं। दूरदर्शन, समाचार पत्रो के माध्यम से वे हमारी दुर्बलता को और बढ़वाबा देते हैं तथा हम इन पारिस्थितियों के दास 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt बन जाते हैं "मैं गुलाब के अतिरिक्त जोर कोई अन्य पूल नहीं पसन् करता"। तेकिन क्यो. इस प्रकार पिरस्थति बंधन में हम बास्तविक जानन्व सो देते है। आन्तरिक जानन्द को पाना दूसरा भाग है । यह स्थान किसी भी तरह सुबदायी नहीं है, तो मैं यहाँ ्या हैँ? एक दुसरे से आनन्द पाने के लिए| स्वानन्द प्राप्त करने को अह तथा परिस्थिति बैधनों को माने वाले बाहय प्रलोभनो की जर जितना हम बढ़ेंगे उतना ही हमारा मस्तिष्क इनमें लिप्त होगा और हम किसी भी वस्तु का आनन्द न ले पायेंगे। जब हम सक सूक्ष्म बँधन की ओर आते हैं। राष्ट्र तथा समुदवाद का सूक्ष्म बंधन। समूहवाद बड़े सूक्ष्म रूप से होता है। यह असुरक्षा का ही एक प्रकार है। अतः हम पशुबतः समूह बनाने लगते है। असुरक्षा से भय ग्रस्त पशु औोर मनुष्य तो रेसा कर सकते हैं। परन्तु सन्त और देवदूत नहीं। उनकी कोई राष्ट्रीयता नहीं होती अतः वे इंड नहीं बनाते। राष्ट्रीयता भी एक बन्धन है। सन्तों का कोई देश विशेष नहीं होता। जिसे जैसे और जड़ाँ से आाना धा आ चुका। इमें याद रसना है कि हम सब सहजयोगी है। मे अपने देशों को मूल कर आपस मैं घुलना-मिलना है। कृपया इंड न बनाइए। इसकी कोई जावशयकता नहीं। हवाई अड्डे से बस मे बैठते ही हम अपने समूह बनाने लगते हैं, जो हमारे तौटने तक चलते हैं। ुंड तोड़ कर देशों तथा भिन्न राष्ट्रीयता के तोग यांदि साध रहे तो अच्छा होगा। परस्पर बातचीत कीजिए, सक दूसरे को समরिये । सहजयोग की समस्याओं को सक दूसरे से जानिये। किसी देश विशेष में सहजयोग की क्या समस्यारं है और बहाँ क्या हो रहा हे? पढना सबसे बुरा बंधन है। अन्तर-ज्योति के बिना पढ़ने का कोई ताभ नहीं। प्रदर्शन मात्र के लिए अभी भी लोग अपनी पहले की पढ़ी हुई बातों को याद रखे हुए है दूसरों की सुनना कहीं अच्छा है। दूसरों को बोलने दीजिए| सडजयोग में आप किस विषय पर वाद-विवाद करेंगे? मैं नहीं समझ पाती कि किसी भी चीज़ पर आप कैसे वाद-विवाद कर सकते हैं । यह हरे रंग की वस्तु है। अब इसके विषय में आप क्या वाद-विवाद कर सकते हैं। इस पर सब बाद विवाद व्यर्थ हे। सहजयोग सहजयोग में वाद-विवाद जनावश्यक है। मै समझ नहीं पाती हम क्या विचार विमर्श करने वाले हैं। आप सब जानते हैं आप जानते है कि कुंडलिनी कैसे उठती है और चक्र कैसे साफ है। आप जानते है कि साक्षात्कार कैसे प्राप्त होता है आप जानते है कि कौन कहा पकड़ में है और उसका प्रभाव क्या है। यांद यह सत्य है तो है ही आप इसके विषय में क्या वाद-विवाद करेंगे वाद-विवाद का अब अन्त डो गया है। आप गूढ़ -ज्ञानी है। सहजयोग में आप जपने सम्बन्धों तधा आनन्द की बात कर सकते है बाद-विवाद नहीं। मैंने वाद-विवाद करने वाते लोगों के बारे मे सुना है। मैं समज आपके पास जो ज्ञान है वो आप सबको प्राप्त है। आाप फेवल अपने अनुभवो की बात कर सकते हैं । नहीं पाती कि सहजयोग में वाद-विवाद कैसे हो सकता है। कि अपने ज्ञान को दूसरों से अधिकर बताने के लिए या कोई मिन्न राय देने को वाद-विवाद होता है सहजयोग में "दूसरी राय" है ही नहीं। यदि किसी को नाभि की पकड़ है तो उसे नाभि की ही पकड़ है। इस पर दूसरी राय क्या हो सकती है। तो जब हमारी राय भिन्न-मिन्न होती है तो किसी न किसी के राह से भटके होने की पूरी सम्भावना है, परन्तु आप सब जानते हैं कि वह व्यक्ति भटक गया है इसमे विवाद का प्रश्न ही नही उठता। आप परिषाम पर पहुंच जाते हैं। जब सक सत्य का बोध आपको हो जाता है तो यह सत्य मरम-चैतन्य की परिधि में पहुंच जाता है और इसकी चिंता आपका कार्य नहीं रह जाता। आपको यह चिंता परम् चैतन्य पर छोड़ देनी है , सब ठीक हो जायेगा । यह देश सन्तों तथा योगियों की भूमी है, यही कारम है कि गरीबी असुविधाजों के बावजूद भी परिचिमी देशों की उपलबश्धियों वहा बहुत लोगों को साक्षात्कार प्राप्त हुआ है । मै आश्चर्यचकित थी कि कैसे ये लोग सहजयोग में आये और कैसे इन्होने सहजयोग को स्वींकार किया। को न जानते हुए भी यहाँ के लोग चिन्तित नहीं है। मैं रूस गयी। वह महान् देश हे । भारत के गामीण लोग सहजयोगी नहीं, तो भी सन्तों का मान करते हैं। उनकी नज़र में सन्त किसी भी अन्य चीज से अधिक महत्वपूर्ण है। आपसे कोई कुछ नहीं मंगेगा । यदि आप कुछ देना भी चाहेंगे तो भी कोई नहीं लेगा । यही आधारभूत अन्तर और व्यक्ति को इस विषय मे सावधान रहना है क्या हम भौतिकता के गर्त मे सभा रहे हैं ? निस्सेदेह मे भी सक बड़ी क्रेता हूँ। मै आप सब के लिए सरीदती हैं। मेरे औौर आपके सरीदने में अन्तर यह है कि प्रेमवश मुझे आप सबके लिए खरीदना होता है। मैं जानती हूं कि जहाँ मैं जाउँगी है । मैं जब भी सरीददारी करने जाती हैं तो, चाहे 400 व्यक्तियों के लिए ही क्यों न हो, मुझे सब कुछ वाही मिल जाता है। जब आप खरीदने को जाये तो आपको पता होना चाहिए कि आपने क्या सरीदना है। मैंने सहजयोगियों को गैर सहजयोगियों के लिए सरीदते हुए देखा है। देखभाल करनी चाहिए। जब हम सरीदारी को जाये तो हमे सोचना चाहिए कि हम दूसरे सहजयोगियों के लिए क्या सरीद रहे है । है जिसे हमे समझना चाहिए। भौतिकवाद भारत के अपेक्षा पश्चिम में जल्दी कार्य करता है । सब कुछ सस्ते दामो पर उपतब्य डोगा। सदा सेसा ही होता हमें समझना है कि हम सब एक शरीर है। सक हाथ को दूसरे हाथ की 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt आपको अवश्य याद रखना है कि आप तीर्थयात्रा पर है और हमें अपनी चेतना मे आगे बढ़ूना है। यद आप चेतना में नहीं बढ़ सकते तो इसका कोई लाभ नहीं। एक बार जब आप इस प्रकार सोचने लगेंगे तो अपने ताम तथा उपतब्धि को देस आप आश्चर्यचकित रह जायेगे| आदि का स्थान सहजयोग में नहीं। मेरे विचार में कोई अधिक अनुशासनबढता "यह करो, यह मत करो" भी नहीं है। क्योकि सहजयोग ही आपको अनुासित कर देता है मुझे आपको कुछ नहीं बताना। सहजयोग रक अग्नि है, यदि आप अपना हाथ इसमें डालेंगे तो यह जलेगा ही के विस्द कोई कार्य करेंगे तो आपको दण्ड मुगतना ही पड़ेगा। आप अपनी चैतन्य तहरियों को तो विल्कुल भी नहीं सोना चाहते और न ही दुभी होना चाहते हैं। अतः इस बार आप अपने तथा अपने उत्वान के प्रति पुर्ण सम्मान और गहन सूझ- बूझ दारा एक बहुत ही आनन्ददायक तथा गम्भीर दृष्टिकोण अपनाये । आप बाहे या न चाहे । इसी प्रचकार यीद आप सहजयोग ईश्वर आपको आर्शिवादित करें । त १८ ४ ग +ै १ শু २ %3 ॐ * श्री ूर 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt औरंगाबाद पूजा वार्ता 19-12-1989 द्वारा : श्री माता जी निर्मता देवी मेरे जीवन में औरंगाबाद का विशेष महत्व है, क्योंकि यहाँ से बडुत नज़दीक में धा, नामक स्थान जोकि मूलतः प्रीतष्ठान के नाम से जाना जाता था, से मेरे पूर्वज संवंधित है। महाकाव्य रामायण के लेखक बाल्मीकी सींष यहां रहते थे। बात्मीकी ऋष के आश्रम बडुत से स्थानों पर ये, इस कारण से से झगड़े भी उठ सड़े हुस है । बास्तव मे बात्मीकी बहुत इस क्षेत्र में यहाँ रहते थे । गोदावरी नदी, जो कि प्रतिषठान की जोर जा रही थी, के दूसरी और शाति वाहनों का स राज्य घा। सीता जी यहा रही। उनका एक पुत्र रुस बला गया और दूसरा चीन चीन जाने वाले पुत्र का नाम कुशा जोर रूस वाते का लव धा। रुस के लोगों को स्लाव का लेब कहा जाता है। जो चीन को गये थे वे क्याদ कहताते हैं। यही समीप ही विशाल काय तथा चुस्त चालाक और बुँदिमान पशुओं में विकास के लिए एक बहुत बड़गा सेंघर्ष दिया। नदी मैं बहुत से मगरमच्छ थे। जब हाथियों हुआ। चुस्त पशुओं ने बहुत से विशालकाय पशुओं को समाप्त के का राजा गजेन्द्र पानी पीने के लिए जषाया तो सक बढ़े मगरमंच्छ ने स पर आक्रमण कर दिया। हाबियों का कश समाप्त करने के लिए उसने ऐसा किया। श्री विषु वहा प्रकट हुए होर मगरमच्छ को मारकर गजेन्द्र की रखा की। इन विशलकाय पशुओं मे से आज केवल हाथी ही बचे है, यही कारण है कि इस स्थान को गजेन्द्र मोष कहा जाता है। र बाल्मीकी लोगों को तूटा करते थे। वे मछुआारों की जाति के वे। जब नारद नामक सैत बहाँ जाये तो उसने उन्हें भी तूटा। नारद जी ने उससे पूछा कि वह सेसा क्यो कर रहा है? अपनी पल्नि, बच्चों तथा परिवार के पोपप के लिए बाल्मीकी ने उत्तर दिया मौर कटा कि मैं अकेता कमाने वाता हैँ। नारद जी ने फिर पूछा कि क्या तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे लिए इतना बलिदान कर सकेगे? बाल्मीकी को इसका पूरा विश्वास था । वच्चों तवा परिवार की परीक्षा के लिए चार आधुओं ने बाल्मीकी को मृतक के समान उठा जीर उनके वर ते गये वहां उनके परिवार के सदस्यो ने संतों से कहा कि तूटते हुए वह व्यक्ति मर गया है। यदि इसके परिवार का कोई सदस्य इसकी जगह हो जाये तो वह बच सकता है। पर कोई भी इसके लिए तैयार न हुआ बाल्मीकी उठकर खड़ा डो गया ओर उसे अपनी गलती का आभास हुआ। नारद ने उसे राम-राम जपने को कहा। परन्तु वह कैवल भरा-मरा ही कह सका, जो कि राम-राम ही बन गया नारद ने उसे प्रायश्चित् करने का कहा। बाल्मीकी एक पर्वत पर इस कार्य के लिए बैठ गया| यह पर्वत बाल्मीकी पर्वत के नाम से जाना जाता है। दीमक ने उसके शरीर को गर्दन के सिवाय पृरा सा डाला। तब विष्णु जी प्रकट हुए, उसके शरीर के दीमक को हटाया और उसे साकात्कार दिया। संस्कृत भाषा में दीमक को बाल्मी कहते है। इस प्रकार उसका बाल्मीकी नाम पड़ा। जान देने को तैयार क महत्वपूर्ण भाग यहां पटित हुआा। इसके बाद की कहानी में सीता जी यहाँ आयी। इस प्रकार रामायण का शालिवाइनों ने बाल्मीकी मीदिर बनाने मे बड़ी मदद की और बाल्मीकी जी को सम्मानपूर्वक अपना गुरु माना। वास्तव मैं बहुत समय पूर्व उनका गुरु चौडल्य धा। नीरा नदी के समीप हमने यहीं कुछ जमीन भी ती है। यहाँ के लोगों के मन में ईशवर का भय है जौर बड संतों का सम्मान करते हैं। उन्हें पता है कि सत्चा संत कौन है। जब हम आत्मा के सुख के विषय में सोचते है तो आत्म प्रकाश से जीवन भर जाता है और इस प्रकाश के प्रति हमारे दृष्टिकोप में परिवर्तन आने तगता है। के प्रति हमें पूर्ण विश्वास हो जाता है और हम इनका आनन्द सेते हैं। हम कह सकते हैं कि इस संस्कृति में कोई घूर्तता या बनावट नहीं है यहां न तो लोग बार-बार जापको धन्यवाद कहेंगे और न ही सेद प्रकट करेंगे प्रायः वे डाथ भी नहीं जोड़ेंगे विशेषतया नित्रयों पुरुषों के सामने ह्वाथ जोड़कर नमस्कार नहीं फहेंगी। वे केवल ईश्वर के सम्मुख डी डाथ जोड़ते है। मुझे आाशा हे कि आप उस बात को समझेगे। यहीं नही अपने सद्गुणों ईश्वर आपको जाशिर्वादित करे। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt बरी रामपुर पूजा वार्ता 21-12-1989 दारा :- "श्रीमाता जी निर्भत देवी" आपको मुझे बहुत ही वस्तुर देना या बहुतेरे अ्पण प्रस्ताव करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं, आपने कितने लोगों को सावात्कार दिया, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात है। आपकी क्या अवस्था है? कया जाप विकसित हो गये हैं? क्या जप स्वतंत्र हो गये है? क्या आप बैंधनमुक्त बोर अर्ह मुक्त हो सकते है? क्या आप अति विनम्, सुन्दर, करूमामय और सामुहिक व्यक्तित्व बन गये हैं? जन्तर-दर्शन १स्वयं को देखना ? का प्रश्न वहुत महत्वपूर्ण है। में न हो हम उसे चला नहीं सकते। इसी प्रकार आपका अस्तित्व याद हास्यास्पद कार जब तक ठीक अवस्था स्विति में है तो आपका उत्थान नहीं हो सकता । यह वास्तविकृता है। हर चीज़ में से आनन्द की प्राप्ति हमारी उपलब्धि का चिन्द है। यदि हमारा बर्तन छोटा ह तो इसमें बहुत कम आनन्द समा सकता है। परन्तु यदि यह सागर समावशाल है तो आनन्द रूपी सभी नंदियाँं इसमे आ गिरेंगी। अतः आनन्द की मात्रा, मनोरंजन की नहीं, महत्वपूर्ण है। मैं छिछोरे या स्तेपन की बात नहीं कर रही, मैं उस गहन-ध्यान-जानन्द की बात कर रही यह आपके अन्दर उमड़ उठता हआपको आानन्दित करता है और आप यह समझ भी नहीं पाते कि आप प्रसन्न क्यों हैं। केवल अपने आनन्द का मज़ा लेते हैं। जब रेसा हो तो व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि वह जपने-योगी बन गया है। इस अवस्था में आप यह आनन्द बांटना चाहते हैं। इसे अपने तक सीमित रसना नहीं चाहते । आप इसे पैलाना चाहते हैं। इस आनन्द को दूसरों को देना चाहते हैं। इसे दूसरों तक पहुँचाये बिना आप सुश नहीं डो सकते । अतः पहले आप पूंजीवादी बनिये और फिर साम्यवादी । हैं जो आप अपने जन्दर पाते हैं पहली बात है कि हमने कितना आनन्द पाया, और दूसरी कि हभारे मंघप्तप्क में अब क्या है? सहजयोग को है, तब रबतः प्रकाश पेलेगा। इमारा स्वयं से क्या संबंध উ? दुँड न बनाने के लिए मे पहले कह ही चुकी हूं। कुछ लोगों की बहुत अधिक गर्दन हिलाने की आदत बन गयी है| गाते हुए वे अपने शरीर और गर्दन को हिलाते हैं [आप अपने शरीर को हिला सकते हैं, परन्तु गर्दन शरीर के साथ ही हिलनी चाहिर। ध्यान में जाने से पहले स्वयं को देखिये, क्षपनी कीमियों को देखिये, तब मेरे फौटोग्राफ के सामने ध्यान मैं जाइये। जब हम आ रहे थे मैंने कहा "यह रास्ता गतत है" उन्होंने कहा माँ आप केसे जानते है? बस मैं जानती हूं। किसी चीज को जानने के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप इसके विषय में हर बात को जाने। यह आपके चैतन्य बनने का चिन्ह है। हर चीज की चेतना होने का यह मतलब बित्कुल नहीं कि आप बेठ जाये और कहे "यह बहुत सुन्दर है या यह बहुत उत्तम है"। यह कोई बात नहीं। प्रमाणित करने या आतोचना करने के लिए नहीं परन्तु जो भी आप जानते हैं उसे बातावरप में अनुभव कीजिए। हमारे पास स्क बहुत बड़ा मस्तिष्क है, और सिर के अैदर दो संड। यह केवल सक मस्तिष्क नहीं है, मरन्तु दो सश्ड है और जब चेतना आपको प्रकाश देने लगती है तो आप अपने अन्दर हर चीज को जानना शुरू कर देते हैं और शान्त रहते है। आप न तो कोई दावा करते हैं और न ही अपना दबाव डालने के लिए कोई चालाकी करते हैं। आप केवत जानते हैं और यही सुन्दर कार्य व्यक्ति को करना है। एक अन्य बहुत महत्व- पूर्ण बात मैें आपको बतलाऊँगी भारत में आय अच्छी तरह अपने बालों को संवार कर रनिये नहीं तो लोग समझेंगे कि आप मिसारी है। केवल भिसषारियों के बाल इस तरह के होते हैं बालों में तेल डालिये औौर इन्हें कायदे से संवारिये। इम बाहर की ओर कैसे फैलायैगे सर्वप्रथम प्रकाश को बढ़ाना आपको अपने लालट { माथे? पर गर्व होना चाहिए। यह एकादश है। अपने इस सकादश से आपको पूरे विश्व से युद्ध करना है। रात्रि के समय बातों में तेल डालिये । यह आपको बहुत आराम पहुँचायैगा। आपको बहुत अच्छा तगेगा। विशेषतया जिगर के तोवर के रोगियो के तिए यह बहुत आवश्यक वे बड़े सुश्क लोग होते हैं । उनके बालों में तेत न होने के कारण बाल बढ़ते नहीं और वे जत्दी डी गैजे हो जाते हैं। है। उन्हें अपने सिर पर तेल जवश्य लगाना चाहिए, क्योकि आपको मेरे बताये बिना ही सड़जू संस्कृति को व्यक्त करना है, इसे स्पष्ट रूप से प्रदार्शित करना है । निर्णय करने का प्रयत्न कीजिए कि आपका चित्त कहाँ है। इर समय अपने चित्त पर चित्त को रविये। मेरा चित्त कडी है? श्रीमान् चित्त जी आप कहाँ लोये हैं? और यह आपके लिए कार्य करेगा। ईश्वर आपको आशिर्वादित करें। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt ा ति मत ता ा ক्रिसमस पूजा बार्ता पुषे 25-12-1989 चा द्वाराः- श्री माता जी निर्मला देवी नम्ः आज डम ईसा का जन्म मनाने का सकत्र हुए है। जब हम उनके जन्म के विषय मे सोचते हैं तो हमें पता साधारण ग्थान जन्मे तथा पूरा जीवन साधारण रूप में ही व्यतीत किया। स्क सहजयोगी होने चलता है कि वे एक के नाते आप जानते हैं कि वे गणेश का अवतरग घे, जो फि वास्तव में अबोधिता ही है। घर्मान्य तोगों की मूर्ता के कारण डी उनका बलिदान हुआ। वे सक धारव्रत शिशु थे। जब हम ईसा तथा ईसाई धर्म के विषय में बात करते हैं तो जान पड़ता है कि ईसाई धर्म इसी से पूर्पतः उत्टी दिशा यदि सक कबोधिता है तो दूसरा धूर्तता। जहँ-तही भी ईसाई वर्म प्रचलित है वहां इअचम्मे की बात है। अयोधिता का कोई सम्मान नहीं। सतीत्व, जो कि ईसा का सार तत्व है, का वहां कोई स्थान नही। पवित्रतातत्व से ही ईसा बने वे। कभी-कभी आधात पहुंँचता है कि इन तथाकवित राष्ट्रो ने अपने असंख्य तोगों को सब तरह के दुष्का्यों में तिप्त होने की आाज्ञा देकर किस सीमा तक ईसा का अहित किया है। में अला गया है यदि सक सूजन है तो दूसरा विनाश, प ईसा का आत साधारण प्रकार से जन्म लेना, ध्यान देने की दूसरी बात है। ए एक बढ़ई के पुत्र होने के नाते वे बढ़ई की तरह ही रहे। परन्तु पश्चिमी देशों में लोग बहुत ही मौतिकताबादी हैं अपव्ययतापुर्ण जीवन-यापन, वैभव प्रदर्शन, दूसरों का धन तूटना, भौतक लाभ के लिए देश उसे अनुचित नहीं समझते । रेसा करना उनके लिए गर्व का विषय है। के बाद देश लूट तेना उनके लिए अति साधारण कार्य है । े ईसा की महानता इस बात में निहित हैं कि वे चाहते थे कि तोग परस्पर ग्रेम करे और नम बनं, पन्तु ईसाई राष्ट्रो का [पमण्ड ओ अत्याचार देखकर यह समझ नहीं आता कि वे तनिक भी ईसा के समीप है? ईसा ने कहा है "धन्य है वो जो नम है"। वे नम लोग कही रह रहे हैं? पश्चिमी देशो में तो नहीं हैं। उन देशों में तो नहीं है जिनमें ईसा प पूजा होती है, जहाँ ईसा के सम्मान में बड़े-बड़े गिरजे बनाये जाते है ओर जहाँ वर्षो से कुमारी माँ की पूजा होती है। यह कहना कि हम ईसा के पद-चिन्हों पर चलते हैं औरसाथ डी इतने भर्यकर अपराध करना ईसा के प्रति घोर अपराध है। रसे सब लोगों को नरक में जाना पड़ेगा। वे बेशक इसे न समझ सके, लेकिन वे नरक को प्राप्त कर रहे बुरे हैं। प्रतिदिन सक क्रूसारोपण (मा है। वे समस्याओं में पिर चुके हैं। ईसा को बलिदान करने वाले लोगों से भी ये लोग होता है । ईसा तोगों की सब ज्यादतियाँ सहते थे, परन्तु इस सब त्याग के परिषाम इतने भयावने हैं कि कभी-कभी मै चिन्तित हो जाती हैं कि कहीं मेरे प्रति भी ये लोग कुछ सेसा ही न करें । ईसा के क्यनानुसार अब क्ञाप लोगों को पुर्नजन्म हुआ डै। ईसा ने जिस अवस्था की बात की धी, आपने वह प्राप्त कर ली है। आप विशेष प्रकार के लोग है, मुझे कभी ऐसी अाशा न धी। पहती भेंट बहुत मयंकर थी। मैंने सोचा भी न था कि इतने लोग पार हो जायेंगे, परन्तु आपमें से बहतों ने पार होकर ईसा के नाम को माहिमा प्रदान की। मै आपसे प्रार्थना करुंगी कि अब जाप सहजयोगी हैं और ईसा के अनुयायी। शासत्रों में वर्णित गुढ-ज्ञानी आप है। जिन्हें ज्ञान प्राप्त है, वही लोगों को मृुक्त होने में सहायता प्रदान करेंगे। आश्चर्य की बात है कि मैने पाया कि पाश्चात्य जीवन में विध्वनकारी विचार भी अबोधिता को समाप्त न कर सके। परन्तु अब से मै यह कहूँगी कि इस प्रकार की मू्ता त्याग दी जाये। ईसा का जीवन एक तपस्वी का जीवन था, स्क निर्तिप्त व्यक्ति का जीवन था अतः ईसाई मत से आने वासे सहजयोगियों को समझना है कि मूर्खताओों से छुटकारा पाने के लिए वे ईसा की तरह बने। हा ईसाईयों मे विवाह पुरी जीवन-शैली पर छाया रहता है। सहजयोग में यह शैली अरसंगत है। विवाह में यदि एक साधी ठीक न हो तो वह दूसरे पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इससे पूरा व्यक्तित्व ढक जाता है। हिन्दुओं ्षोर मुसलमानों में रेसा नही है। मेरा कहने से अभिग्राय है कि मै भी बवाहित है, परन्तु यह विवाह मेरे पूर्ष अस्तित्व पर छा नहीं जाता। यह सेसा कर भी कैसे सकता है? समस्या यह है कि जब भी कोई चीज़ प्रचलित होती है। इसको कठिनाई का सामना मुझे हर समय करना पडता है। विवाह होते है औौर मुझे पत्र आने शुरू हो जाते है। "मेरे विवाह के साथ सेसी घटना घटी" यह सिर दर्द है। ये अपने पतियों का, पल्नियों का तथा सहजयोग का नाश कर देंगे। ये ईसा ने जिस तरह का जीवन लोगों के लिए ईसाई मस्तिष्क सहजयोग के महत्व को बहत्त ही तच्छ कर देता है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt सोचा था और जिस तरह से लोग जी रहे हैं डै कि वे गरिमा और विवेक को अपनाय औोर यह समझे कि वो सहजयोग में उत्तर गये हैं, विवाह आदि का अधिक विहत्व नहीं। यह जीवन तक्ष्य नहीं है। उसमे तनक भी समानता नही। अतः सहजयोगियो के लिख याह आवश्यक मुझे लोगों के बबाह करने पडते हैं, क्योंकि मेरा विश्वास है कि वे उचित विवाहित जीवन व्यतीत करें। बिना विवाह किए यद क्ाप सन्यास ले लेंगे तो आप ढोगी भी बन सकते हैं। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी नहीं कि विवाह सभी है। इसका इतना महत्व नडीं है। यह केवल एक पटना है जो घटित होती है। यह प्रार्थना से जधिक महत्वपूर्ण कुछ नही हैं। और न डी यह घ्यान से अधिक महत्वपूर्ण है। इस का महत्व आपके भोजन करने से अधिक कतई नहीं। इसको जितना अधिक तुल जाप देते हैं, आप उसी गर्त में गिरना शुरू हो जाते है, जिससे मैने आपको निकाता है । हम नरक मे से निकल चुके हैं । अब आप गरिमामव और विवेक्शील बने। महत्वहीन वस्तुओं को इतना महत्व देने से आप ऊँचे नहीं उठ सकेंगे। परन्तु मैं यह भी नहीं कहती कि आप शादी नहीं करो। ज्ाप जवश्य विवाह करो। याद आप एक सड़जयोगिनी हैं और सहजयोग के विषय मे जानती है तो निससेदेड आपको और सहायता आपको अधिक शॉति जधिक आनन्द ओर अाधिक सूझ बूझ प्राप्त डोगी जोकि वहुत अच्छी है । परन्तु आ्तरिक संबंध बहुत महत्व- पूर्ण है। में देखती हूं कि जिस पुरुप से लड़कियों शादी करती हैं उसी से प्रेम में बंध जाती है और समाप्त। पुरूष भी समाप्त और स्त्री भी समाप्त। इस महान् अवसर पर मैं आपको बताती हैँ कि ईसा का जन्म निम्कलंक अवधारमा दारा हुआ। इसी प्रकार मैंने भी आपको आपका दूसरा जन्म दिया और आप इतने पवित्र है। जतः सारी अपुदियों को आप अच्छी तरह देने। मै जानती हूं कि आप इन अशुदियो को पसन्व नही करते फिर भी पह इचर उपर से घुस आती है। अगर आपको इस स्तर पर आना है तो स्वयं को सीढ़ियों से ऊपर रमना पड़ेगा। आप सोचते हैं कि आपने एक व्यवस्थित पांरिवार व्यवस्थित बच्चे पाकर बहुत बड़ी उपलब्धि पा ती है और अब हर समय इन बच्चो की चिन्ता में लगे रहते है। नही यह दूसरा प्रलोभन है, स्क बडुत बड़ा प्रलोमन। अतः ईसा के जन्म के इस माहान् अवसर पर हमे स्वयं को कहना है कि हम सड़जयोग के प्रति समर्पित हैं। यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और बाकी सब कुछ गौण। हम एक तहर के अग्रभाग पर बैठे हैं, जहाँ से हम इससे भी अधिक ऊँची लहर पर छलतग लगाने वाले हैं । बुब जायेगे अतः इमें योग्यता विकसित परन्तु जाप में योग्यता होनी चांडिस। यादि जाप समुद्र में तैरना नही जानतेते तो करनी है। ईसा का उदाहरण हमारे सामने हैं। कितना मुन्दर जीवन था। एक मानव की तरह से वे नम्रतापूर्वक जिर| कितने स्पष्ट रूप से सत्य को उन्होंने कहा। इसी प्रकार आप से मी वह शक्ति आयेगी । जिससे आप जान सकेंगे कि अपनी राष्ट्रीयता से बढ़कर आप बहुत कुछ हैं। आप रक उच्च व्यक्तित्व है, ईश्वर से साम्राज्य में रहने वाले एक सहजयोगी है। यही आनन्द है। परिवार और बचचों का आनन्द नहीं, परमात्मा का आनन्द है। ईश्वर आपको आधिर्वादित करें। १ ॐी ३ ৩ ा 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt ब्रह्मपुरी पूजा वार्ता -30-12-1989- श्रीमाता जी निर्मला देवी दारा ज्रह्मपुरी की तरह से बाहुत से छोटे-छोटे स्थान है जहाँ सन्तों ने बहुत से तोगौ की भलाई के लिए कार्य किया, क्योकि वे सामुहिक वे । इस देश की दीरिद्गता को वे सह न सके। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि हम लोगों को भाग्यवादी बना रहे हैं यह पुरी तरह गलत है, क्योंकि कोई भी संत सेसा नहीं करता । सन्तो ने सदा लोगों को कठिन परिश्रम करके अपनी समस्याओं का हल हुंढने के लिए कहा उन्होंने समाज की बुराईयो की ओर भी इशारा किया। सन्त जाकर हिमाचल पर्वत में नहीं बैठ गये समाज की मुक्ति के लिये कार्य करने को वै स्थान-स्थान पर गये। ईश्वर आपको आशिर्वादित करे। संक्रान्ति पूजा कनल वे 14-1-1990 दवारा :- श्री माता जी निर्मला देवी आज का दिन भारत में हम सब के लिए उत्सव मनाने का दिन है। क्योकि अब सूर्य मकर रेखा पर है और यहाँ से यह कर्क रेखा के क्षेत्र में प्रविष्ट होता है। जब सूर्य पुनः पृथ्वी पर आता है तो घरा माँ की सृजनशक्ति कार्यक्ीत हो जाती है और बह अत्यन्त सुन्दर वस्तुरेँ यथाफूल, पौष्टिक तथा पूर्तिदायक फल और ऑसों को शान्त करने वाली हरियाती का सृजन करती है। सूर्य के आगमन से बहुविधि पृथ्वी मा हमे वन्य करती है। इसी प्रकार सहजयोग रूपी सूर्य भी उदय हो चुका है और अपनी पराकार्ठा पर पहुंच रहा है और इसने, निसंदेड, प्रधम तत्व मूलाधार पर यरिणाम भी दिखाये है आपके मूताघार की कुंडलिनी रुपी सृजनात्मक शक्ति का उत्थान होता चला गया, जिसने आपके आत्म तत्व को सोला और आपके जीवन में शुभ परिषाम प्रदार्शित किर। इसने आपके जीवन को सुन्डर, आनन्दमय और प्रसन्नता से परिपूर्ण बना दिया। अब हम सक सेसे स्थान पर है, जहाँ से हमें रक नई छतांग लगानी है, सक नयी उड़ान भरनी हे । पस नयी उड़ान के लिए हमें अपने विचारों तथा वंधनों में बहुत ही हल्का-पुल्का होना है। आप बहुत ही बंधनलिप्त है। मैरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार आप ससे तुच्छ तथा विवेकहीन वैधनों में बंधकर खो जाते है। यह ऊँची छतौँग जो आपने लगानी है, इसमे बहुत से तोग पिछड़ जायेंगे। जतः इस स्तर पर मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि आप स्वयं को पूर्णतया ध्यान तथा सामूहिकता के प्रति समर्पित कर दें। प्रतिदिन स्वयं से प्रश्न करे कि "मैने सहजयोग के लिए और स्वयं के लिए क्या किया है?" कृपया समझने का प्रयत्न कीजिस कि बहुत बड़ी छलग है जो आपको तगानी है। इसका तेज आरम्भ होना हैं, जिसके लिए मैं चाहुँगी कि आय तैयार रहे पूरी तरह से तैयार, क्योकि इस छलोग में आपके सो जाने की संभावना है। अपने बैधनो पर काबू न पा सकने के कारण बहुत से लोग पीछे भी छुट सकते हैं। बैंधन घहुत प्रकार के हैं: अज्ञनता, औधविश्वास तथा वहुत से अन्य बंधन। देश, जाति, कार्यवधि तथा बहुत सी अन्य वस्तुर, जिनसे हम दूसरो के विषय में निर्षय करते हैं, भी हमारे धन है । क्या हम सहज संस्कृति में है? इस माप्ड से हमें स्वयं की जाँना है अन्यथ हमारे लिए हमें पार ले जाने वाले जहाज पर सवार होना कठिन हो जायेगा | मैं तुम्हे चैतावनी देती हूँ कि बाद में ये न कहिए कि श्री माता जी बहुत से लोग पीछे छुट गये हैं। यादि आप किसी को 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt पिछड़ता पाये तो उसकी सहायता करने का प्रयत्न करें। स्पष्ट आवाज ता स्पष्ट शिवा दारा कृपया उसे सुधारने का प्रयत्न करें। यदि वास्तव में आप किसी को गलती करता हुआ पाते हैं तो उसके हित में उसे बेतावनी दीजिये। मै आज जपको बता रही हैं कि यह वहुत ही निर्णायक समय डै और इसमें से किसी को भी सहजोग को अनुदत्त हैगरान्टिड नहीं समझ सेना है। बरत आपका यह सोचना कि आपकी सांसारिक वस्तुर ठीक-ठाक हैं और आप उनका प्रवन्ध कर सकते है आादि एक छलावा है। ईश्वर किसी धनी या निर्धन की चिन्ता नहीं करते, वे देसते है कि जापके पास अध्या्मिकता का कितना घन है? वे आयकी शिक्षा, प्रमाण-पत्र जीर चमक दमक की परवाह भी नहीं करते। यरमात्मा देखते हैं कि आप कितने निश्वछल अबोध ह है, आपने सहजयोग के लिर कितना कार्य किया है। आापने ईश्वर के लिए क्या किया है। अतः ये सारी प्राथ- मिकता आप अवश्यक बदल दें । मै ज्ञापको बता हूँ कि सहजयोग आपको बहुत ही सूक्ष्मता से परखता है। इस अन्तिम निर्णय में आप तोगों को बहुत वच्छा माना गया है। परन्तु यह दुसरी छलोग जो हम तंगाने वाले हैं, इसके प्रति हमे बहुत सावधान रहना है। जो लोग ये सोचते है कि वो अन्दर से सजयोगी हैं, परन्तु यदि वास्तव में नहीं है तो इस होने वाली तम्बी छलोग में वे पीछे छुट सकते हैं। अतः सुर्योदय होकर सूर्य का चोटी तक पहुंचना महत्वपूर्ण है, क्योकि जिस सूर्य ने हमारे चहुँ और सुन्दर हरियाती रचनी शुरू कर दी है, वही सूर्य चोटी पर पहुंच कर अपने ताप से हमें झूलस भी सकता है। अतः व्यक्ति को सावधान रहना है और से समझना है कि उसे हर समय सहजयोग के मार्गदर्शन में चतना है। हमारे अन्दर क्या कमी है? हमें क्या बोझिल बन्ा रहा है? क्या चीज़ है जो हमे दुःसाध्य बना रही है? मार्गदर्शन आापको देती रही हैं उसे बही आभी तक में बहुत प्रसन्न हूँ कि जो मै क्ापको बताती रही हैू, जो शान्ति तथा माधुर्य के साध स्वोकार किया । बौर अपने इसे अपनी जीवन बेली मे आत्मसात् करने का प्रयत्न किया। वास्तव में कुछ समय बाद मैं नहीं सोचती कि आपको कुछ बताने की आवश्यकता रहेगी। उचित-्नुचित को देसने के लिए आपको अपनी ज्योति प्राप्त हो जायेगी। फिर भी मै कहुँगी कि पूजा में, सँगीत में जौर हर कार्य मे आपको अपना हृदय खोलना है। क्ापको केवल जपना हृदय सोलना है। यदि आप अपना इवय नहीं सोल सकते तो यह कार्य नहीं करेगा , क्योकि हुदय के अन्दर निवास करने वाली आत्मा के जरिये सहजयोग कार्य करता है। जब आप सह़जयोग के लिए अपना डूबय लोलने का निर्णय कर लेंगे तो ापके वंधन तथा आपका अर् मिट जायेगा। ईश्वर आपको आशिर्वादित करें| त कुड पा त मी ৬ चल प ाय MA^A^^^AAAAAM% श्र |ीई