माग-2 सण्ड 5-6 चैतत्य लहरी ह पे 1990 पठ)2. ा को वयकी एक नया दौर शुरू हो रहा है। जहाँ हमारे प्रश्न नहीं रहे। सत्रके पृश्न, सारे विश्व के प्रश्न हमारे ता बड़ापन और एक ऊँचाई चाहिए। इसकी ज़िम्मेदारी आप लोगों पर है। प्रवलता, प्रश्न हो गए इ सके लिए ये सबके घर घर में पहुँचना है। सबको आनन्द देना है। जिस प्रकाश को आपने प्राप्त किया बोही आपको के साध। सवको देना है, पूरे आत्म विश्वास के साथ। उत्तर मारत का दौरा 1990 जयपुर श्री माताजी का उत्तर भारत का दौरा जयपुर से शुरू हुआ। वहाँ उनका हार्दिक स्वागत किया पोग्राम किए गए ये पहली बार था जब कि इस मौदर में ऐसे गया। गोविंदजी की मीदर में दो कार्यक्रम करनेकी आज्ञा, जयपुर की महारानी ने दिया। जयपुर में गणगौरी का त्यौहार बहुत प्रसिध्ध है। श्री माताजी ने समझाया कि ये श्री गणेश जी और श्री गौरी जी की पूजा है। परम्परा के अनुसार जयपुर की महारानी, श्री गौरी जी की मुर्ति का पूजन करतीं हैं, और फिर उस मुर्ति को रीति अनुसार कर सजाय गए हाथीओं और घोडों के साथ एक बहुत ही रंग बिरंगे जलूस में, जयपुर शहर में घुमाया जाता है। लाखों लोग इस जलूस को देखने और देवी का दर्शन करने आते हैं। इस बार , जलूस निकालने से पहले, जयपुर के राजघराने ने श्री माताजी की पूजन, बहुतही सुन्दर राजघराने की रीति अनुसार की। फिर, श्री माताजी ने गौरी की मुर्ति को वाईब्रेट किया। वो मूर्ति फिर जयपुर का सारा शहर घूमी, जिससे सारे शहर में चैतन्य फैल गया । हरयाना इसके बाद, करनाल और यमुना नगर में दो प्रोग्राम रखे गए यह पहली बार था कि हरयाना में ऐसा कार्यक्म रखा गया । श्री माताजी ने समझाया कि करनाल शहर का नाम महाभारतके प्रसिद्ध मौदर का हॉल योदा कर्ण के पीछे पड़ा, जिन्होंने महाभारत युध्द में अपना शिविर यहाँ लगाया धा। लोगों से भरा हुआ था। कई बाहर बैठे थे। जागृति देने के पश्चात, एक गँगा और बहरा लड़का, श्री माताजी से आर्शीवाद लेने स्टेज पर आया। श्री माताजी ने उसका विशध्दि चक ठीक किया, तो कमाल की बातु, कि वो लड़का बोलने और सुनने लगा। ये चमत्कार सबके सामने हुआ। और इस चमत्कार से सहज योग तीव्र अग्नी की भात्ति वहाँ फैलना शरू हो गया है । दिन्ली दिल्ली का रामलीला मैदान एक बहुत ही ऐतिहासिक महत्व रखता है! वहाँ एक बहुत ही सुन्दर बनाया हुआ मचान है, जहाँ से हिन्दुस्थान के सबसे मशहूर राजनीतिज्ञों ने व्याख्यान दिये हैं ये ऐतिहासिक मेदान तो इतना धन्य हो गया जब श्री आदि शक्ति के वाईब्रेशन की प्रतिध्वनि चारों तरफ गूँजी और हजारों लोग पार हो गए | दिल्ली तो तीन बार धन्य हुआ। पहले, श्री माताजी के जन्म दियस का त्यौडार मनाया गया। फिर, श्री सी पी श्रीवास्तव का सत्तर वर्ष होने पर, और श्री माताजी व श्रीवास्तव साहब की शादी Gty का वर्षगाठ मनाया गया सब सहज योगीयों ने श्रीवास्तव साहब से निवेदन किया कि उन्हें "पापा जी" आज्ञा दे दी। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि, बुलाया जाए। उन्होंने बड़े विनय पूर्वक के नाम से "माँ का तो प्रेम विशाल होता ही है, पर आप सबको दिलासा देना चाहता हूँ कि पिता का प्रेम भी कुछ कम नहीं है।" फिर, श्री देवू चौधरी के सितार वादन ने उस शाम में एक बहुत ही आनन्द दायक रंग भर दिया। कलकत्ता परम्परा अनुसार, बंगाल में, एक रेश्म की साड़ी को देवी पर चदाया जाता है। श्री माताजी अपने बच्चों की भक्ति देखकर इतनी खुश हुई कि उन्होंने पहली बार श्री आदि शक्ति की पूजा कलकत्ता में करवाई। उनकी अपार कृपा से सब ध्यान में बहुत ही गहरे उतर गए। तिवोली पार्क में दो पत्लिक प्रोग्राम हुए जिसमें वैसे ही गहराई का अनुभव पाया गया जो पूजा में पाया गया था। फिर, सहज योगीयों के साथ श्री माताजी ने एक नाव पर हुबली नदी का दौरा किया। ये दोरा तो सच मुच गंगा में स्नान करके पवित्र होने समान था, क्यूंकि श्री माताजी ने सबको पवित्र कर दिया। पुराने सहज योगी सारे रस्ते नाचते और गाते गए। और नये सहज योगीयों को श्री माताजी से मिलने का मौका मिला। बंम्बई बम्बई शहर को श्री माताजी के प्रवचन सुनने का सबसे ज्यादा मौका मिला है। मगर इस बार तो सत्य को खोजूने वालों की संख्या और उनकी उत्तमता तो कमाल ही कर गई, जिससे सहज योग के जागृति के बाद सब लोग गहरे ध्यान में बैठे रहे और जब नये दौर की स्थापना हो गयी है । खोजीयों तक श्री माताजी ने वहाँ से प्रस्थान नहीं कर लिया, कोई हिला तक नहीं। इतने सारे नयें के साथ एक ऐसे सामूहिक गहराई का अनुभव पाना एक बहुत ही आनन्दमय अवसर था। दूसरे दिन श्री माताजी मसकट के लिए रवाना हो गई, शायद अमीरत में नया क्षितिज खोलने के लिए । নा ------ ----------- सूचना हिन्दी चैतन्य लहरी का वार्षिक अंशदान रूपये ।08/- है। कृपया अपना पूरा पता व पिन कोड सहित "डिवाईन कूल ब्रीजु" के नाम एक डिमान्ड ड्राफूट भेज दें। जो वो कृपया अपना पूरा पता व पिन कोड सहित रूपये ।08 /- नकद, अपना पुरा पता नकद पैसे देना अपने केंद्र के प्रमुख को दें। पता - डिवाईन कूल ब्रीजू वार्षिक अंशदान - डिवाईन कूल ब्रीजू प -बानं ।90। अंग्रजी : रूपये 200 वार्षिक ।990 कोधरूड रूपये ।08 वार्षिक 1990 पुणे 411 029 . हिन्दी : रूपये ।08 वार्षिक ।99 0 जन्मदिन का माषण, मुंबई 24/3/1990 अत् बीस साल हो गए हैं सहजयोग करते करते। उसपर जितना काम होना चाहिए था, उतना हो नहीं पाया है। ऐसा मुझे लगता है। उसकी वजह है कि हम लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि ये कितना बड़ा काम है, कितना दिव्य है। ऐसा तो कभी काम हुआ ही नहीं। पेसा किसी भी अवतरण में नहीं हुआ। सब तरह से आप सहजयोग की ओर दृष्टि डालें कि समाज में भी इसमें फर्क आ गया है। स्वतंत्रता के बाद लोग जो स्वराचार में फसने वाले थे , दूसरे देशों में जो फँस गप थे और जिनका पूर्णतय सर्वनाश हो गया, ऐसे देशों में भी सहजयोगने बहुतों को बचा लिया। और पसा तो कभी कहीं हुआ ही नहीं। बहुत से अवतरण हुए, पर किसी को भी ऐसी अन्दर की शक्ति नहीं मिली कि जिससे वो उसके अन्दर स्थापित हो जाती। मनुष्य सारे समय कुछ न कुछ करते रहता है। कोई अपने को हिन्दु कोई मुसलमान, कोई ईसाई या कुछ सोचता है। और सब सोचते हैं कि हम सबसे ठीक हैं। लेकिन इन में कोई सा भी घर्म ऐसा नहीं है, जिस घर्म के अन्दर रहने से आप धां्मिक हो जाएँ कोई भी आदमी कोई सा भी पाप कर सकता 1. है किसी भी धर्म के नाम। कोई धर्म का बन्धन नही। सहजयोग में आत्मा का बन्धन पड़ जाता है। आत्मा की जागृति बहुत बड़ी चीज है, जो हमारे जीवन को प्रकाशित कर देता है। इसके बारे में सारे ही अवतरणों आप अपने को जानो। अपने को जाने बगैर हो नही सकता । और वो समय जिसके बारे में ने कहा है कि इन्होंने कहा धा वो आज आ गया है। और अब मी लोग अन्धो जेसे घुम रहे हैं और हम लोग ये समझ नहीं पाते कि हमारे पास कितनी बड़ी शक्ति आ गई है। और हमें इसे कितना बढ़ाना चाहिए। और हमारा क्या उत्तरदाईत्व है। अमी तक हम लोग छोटी छोटी चीजों में उलझ जाते हैं। आश्चर्य की बात है। हाँ धार्मिकता तो आ गई, लेकिन और छोटी छोटी चीज़े बहुत सी ऐसी हैं जो हमें गड़बड़ में डालती हैं। और ये बडी पुरातन चीज है। सहजयोग इतना गहन व सूक्ष्म है। हमारी जो दृष्टि है वो भी सूक्ष्म हो गई है। हमारे समझ में नहीं आता कि हमारे साथ क्या हुआ है। और इसलिप आज इतने साल होने के बाद भी सहजयोग में लोगों की उन्नीत जितनी होनी चाहिए आपसी झगड़े बहुत सूक्ष्म रूप ले चुके हैं। जिसे कहते हैं मस्त थी उतनी हो नहीं पाई ल अ्दर न बाहर। ी मौला वो बात आई नहीं है । अमी में आस्ट्रेलिया गई थी। वहाँ में हैरान हो गई, कि ऑस्ट्रेलिया में इतना काम किया था, इतने हज़ार लोगों को पार कराया। तो उसके बाद हर एक सैन्टर में से पचास फीसदी लोगों को निकाल दिया। पचास फीसदी लोगों से कहा कि आप किसी काम के नहीं, आप निकल जाओ। फिर तरह तरह के रूपए इक्कठे किए गए। अजीब गरीब चीजें जो में सोच भी नहीं सकती कि कोई सहजयोगी कर सकता है और आपस के लीडरो का झगडा। मुझे देखते सब रो पड़े। "मा, आप कहाँ चले गए थे"। itio मैने जो मी देखा सारे तरफ तकलीफें बहुत सूक्ष्म हो गई। आपस का प्यार, आपस का सम्बन्ध, इसकी सूझबूझ जब तक हम में नहीं आयेगी, हम इस आनन्द को नहीं ले पायेंगे। हम लोगों के आपसी रिश्ते इतने इतने नाजुक जाएँ। क्यौकि क व इतने बढिया है, कि उनको . समझे बगैर हो सकता है वो टूट सुन्दर है, उसके सूत्र बहुत नाजुक है। वहाँ मेहनत करने के बाद देखा गया कि फिरसे लोग एक साध जुड़ गए। फिर से आनन्द विभोर हो गए। सब के सब इक्कडे हो गए और अन्दर चले गये तो हमारे लिए एक बहुत बड़ी चीज है कि हम तो आनन्द के सागर में इब रहे है। और आनन्द को हमने प्राप्त किया। अब इसको बाँटना है। और इस आनन्द को शाश्वत बनाना है, हमेशा के लिए। ये आनन्द तभी शाश्वत रह सकता है जब हम अपने क्षुद्रता को छोड़ दें। जैसे कि एक बुँद जो सागर हो गई। उसकी सारी क्षुद्रता खत्म हो गई, उसकी मर्यादाएँ टूट गई। और उस सागर के साथ ही वो उठता है , गिरता है, और उस. सांगर के साथ ही सारे कार्य करता है। माने ये कि जो परम चैक्तन्य जिसे हम जानते हैं, जो हर समय डमें देखता है| एक कार्य को देखता है। उस परम चैतन्य को हमने सब कुछ सोंप दिया। सम्भालता है, और हमारे हर जो वो परम चेतन्य जो है इतना कार्यान्वत है, उसकी तो कमाल है । बो जिस तरह से कार्य करता है, उसका कार्य चलता है। और उस कार्य भी कुछ करता है, सिर्फ आपके यश व हित के लिए| पूरी समय में हमें कुछ करने का नहीं। सिर्फ हमें उसमें रत होना है उसमें एक जान होना है एक नया संसार हर्में बसाना है । और उस संसार में हजारों के तायदाद में हमें उतरना पड़ेगा। खासकर बम्बई में बहुत मेहनत की है। बहुत सालों से मेहनत की है। और उस मेहनत में सबको सोचना चाहिए, सबेरे उठकर रोज, कि हमने सहजयोग के लिए क्या किया और आज क्या करेंगे और हर शाम को सोचना चाहिए, आज हमने क्या किया , और आगे सहजयोग के लिए क्या करेंगे। विचारधारा अगर सहजयोग की बना रहे तो ।उनमे शन्ती होती है, उनमें विचारता स्थापित होती है। जबके हम कुछ कर नहीं रहे। ये तो सारा कार्य परम चेतन्य कर रहा है । , और दो हज़ार आदमी अन्दर हाल में थे। ओर में जब रूस गई धी तो दो हजार आदमी बाहर सारे के सारे पार हो गए| कीब, मॉस्को, व लेनिनग्राइ गए। और उन लोगों में मैंने देखा कि इतनी गहनता क। और वहाँ से सात लोग रूस के ऐमबसी से आप और पार हो गए। है। हम कैनबरा गए, तो पता नहीं हमारे अन्दर जो धर्म का परभाव है, ये ज्यादा है, जो कि मनुष्य का बनाया हुआ धर्म ये है। या हमारे अन्दर अहंकार की बड़ी ज़बरदस्त छाप है। सहजयोग के लिए हम तयार हैं या नहीं, हमें इस कार्य में ही सोचना चाहिए। हम इसके सिपाही हैं। परमात्मा ने हमें इसके लिए चुना है। और चैतन्य को ऐसे गहरे लोग चाहिएँ| दो चार भी गहरे लोग हो जाएँ तो करनेवाले हैं। परम उनके देश का कल्याण हो सकता है। जैसे पूर्वी कलाक के लोग सारे पार हो गए, रूसमें और जेसे वो अपने वे हैं गहरे लोग। बरलिन की दिवार गिर गई। देश गए, हर एक देश में बदल हो गया एक दम से। कतंस छोटी छोटी चीजों में भी हम अमी मी उलझे हुए लैकिन अपने यहाँ ये बात नहीं है। वो गहरापन नहीं है। ये करना है, वो करना है। ठीक है। रुकावट है । हम लोग सब कार्य करते रहते हैं, हैं। कुछ ना कुछ लेकिन यो मुख्य नही है। मुख्य है सहजयोग। आप इसलिप दुनिया में आयें हैं कि आप लोग सहजयोग करें । और सहजयोग में आप पूरीतरह चिपके रहें। इसलिए अपने देश का क्ल्याण नहीं हो रहा। इतने बड़े सहजयोगी वैठे हुए है। इस देश का कितना बड़ा क्ल्याण होना चाहिए धा। पर हो नहीं रहा। क्या वजह है? जहाँ कि तीन चार लोगों ने देशों को बदल डाला। ऑस्ट्रेलिया में भी हमने देखा कि पहले वहाँ कछ कैदी लोग गए और उनके साथ जेलर मी गए। और शुरूआ द ऐसी हुई ऑस्ट्रेलिया की । और उसके बाद अभी पेसे लोग जो लीडर थे वो तो हो गए जेलर , बाकी सब कैदी। और कैद खाने में हैं। वहाँ ये बात समझ में आती है कि गडबड़ हो गई और चीज ठीक हो जापगी। पर मुझे हिंदुस्थान में समझ नहीं आता कि यहाँ पेसे ओछेपन की बात क्यूँ होती है। कि लीडर कौन है, क्यूँ है । ये छोटी चीजे हैं ये तो यहाँ ही गिर जाएँगी आपके अन्दर स्वयं स्वयंभू की शकती है। ব। इतनी शक्ती है आपके अन्दर, जिसको अभी आपने उपयोग में ही नहीं लाया। सहजयोग की बाते करेंगे इथर गप्पे मॉरेंगे कुछ लोग सोचते हैं कि हम सहजयोगी हो गए तो बड़े उँचे आदमी हो गए सहजयोगी के बहुत से लक्षण हैं। है कि मैं उजाला ही हैूं मुझसे उसका पहला लक्षण ये है कि और लोगों से घुल मिलाना। बो जानता जो लोग हैं उनसे मैंने जाना। वो निरालापन है इसलिप मैं बहुत ही ज़्यादा नम हूँ । और मुझे इन लोगों पर दया आती है कि क्या ये लोग सब नर्क में जाएँगे? इनका क्या हाल होने वाला है। मेरा इनका रिश्ता सिर्फ इस दुनिया का है। और अगर इनके अकल नहीं आई तो इनका मैं कुछ नहीं कर सकता। जाने दो इनको। ये सब जाएँगे। इस तरह से एक बहुत सुझबूझ, समझ रखने वाला इन्सान सहजयोगी कहा जा सकता है। जो किसी भी चीज में ममत्व में छुटा हुआ हो मेरी बीवी, मेरे बच्चे, मेरी माता, मेरे पिता, मेरा ये घर, इत्यादि। "मेरा" "मेरा"।। मैं कहूँगी ये मेरा शरीर है, ये मेरी बुध्दि है, ये मेरा अहंकार है, म मेरा मूँह है। मेरा है ना, तो "मैं कोन हैं। उस "मैं" को जानना है और वो "मैं" कौन हैँ? वो "मैं" ही आत्मा हूँ। जब तक आप "मैं" पर नहीं पहुँचते तब तक "मेरा" "मेरा" चलते रहेगा। ये ममत्व से छुटना चाहिए। जिसका अभी छुटा नही वो अब तक सहजयोगी नहीं हुआ। वो सहज में आए है, लेकिन अभी ऐसे वैसे हैं। दूसरी बात हे कि उसका विश्वास अपने अन्द्रणी धर्म पर है, बाहर पर नहीं। बाहय के किसी भी घर्म अन्दूणी अपने घर्म को मानता है को नहीं मानता। सब बेकार की बाहय की चीज़ से बिल्कुल छुटा हुआ है। है बो हर तरह से नम्र है किसी को दुखाता जो असली धर्म है। पूरी तरह से वो उसी धर्म में बैठा हुआ नहीं। किसी को तकलीफ नहीं देता। किसी को परेशान नहीं करता । किसी के साथ ज्यादिती मी नईीं करता। वो सत्य बोलता है और जहाँ नहीं बोलना, वहाँ नही बोलता। हर समय बोलते ही नहीं रहता। दुसरो व की चीज़े नही लेता, उनकी तरफ, नजर नहीं रखता है तो मस्ती में रहता है। जो मिला सो मिला, जो नही मिला सो नहीं मिला। आराम से बैठा है। आज जन्मदिन के लिए ये नहीं कहना चाहिए, लेकिन मेंने सोचा बीस साल हो गए हैं, आज बताना चाहिए कि असली हीरा कैसे बनता है। दुसरा ये, कि वो कारयदे में रहता है। बिना कायदे काम नहीं करता। मैंने पति पत्नी में रोज़ झगड़ा होते देखा कि तुम सहजयोगी नहीं हो । पेसे नहीं हो, वैसे नहीं हो। नहीं है तो नही है। लड़ने से क्या फायदा। नही हैं तो रहने दो । लड़ाई नहीं करता किसीसे। उसकी लड़ाई जो है, उसकी शक्ती हैं। उसका ा प्यार है। आप अगर लड़ाई करना बन्द कर दें, तो पचासों काम हो सकते हैं। दुसरों से लड़ना, दुसरोंसे कोध करना, ये सब सहजयोगी नही करते। वे अपनी शन्ती में खड़े रहत्ते हैं। जैसे की एक चांनी राजाने अपने दो मुर्गे लड़ाईमें ट्रेन होने के लिए एक साधु के पास छोड़ दिए। उन्हे वहाँ ट्रेनिंग मिली। उसके बाद राजा जब उन्हें लेकर लड़ाई के आँगन में उतरा, जहाँ बहुतसे मुर्गे थे। सारे मुर्गे एक दुसरोंको मारने लगे ये दोनों अपने आरामसे बैठे रहे। उनकी शान्ती देखकर के बाकी के मर्गे ठंडे हो गए| जितने मुर्गे थे वे है हर जगह जहाँ कोई तकलीफ हो, परेशानी सब भाग गए तो ऐसा इन्सान अत्यंत शान्ती का पुतला होता हो, उसकी शान्ती पकदम प्रबल हो जाती है। उसका एकदम प्रकाश फैलने लग जाता है। जब कोई आफ़त आ गई या तकलीफ़ हो गई, एकदम शान्ती हो जाती है । और पसे आदमी का स्वरूप ही और हो जाता है। इर जगह लड़ाई करना, झगड़ा करना, हर जगह बादविवाद करना, ये सहजयोगीयोंका लक्षण नहीं। शान्ती पूर्वक रहना, शान्तीसे रहना। बहुत से लोगों में ये है की अगर कोई रेलगाडी या हवाइ जहाज से जाना है, बस आफत आ जाती हैं। आप परमचेतन्य के आसरे बैठे हुए हैं। वो सब कर रहा है। तो आप शान्त बैठो। देखते रहो। क्या हो रहा है। जैसे होना है वैसा ही होगा। आपको अगर किसी से नफरत करना एक दुसरों से नफ़रत करना एक महापाप है सहजयोग में । जो है तो आप जाकर के उससे प्यार से बातें करिये । उसके लिए दो चार चीज़े आप तोफ़ा ले आईये। दुष्ट प्रवृत्तीया है, उसके लिए आप कह सकते हैं कि नष्ट हो जाएँ। दुष्ट लोग की नष्टता ठीक हैं। लेकिन सहजयोगीयों का सहजयोगीयों में प्यार नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती। कितना प्यार होना चाहिए। आपके जैसा और है कौन। आप ही तो सब एक दूसरे के भाई बहन हैं। ऐसे जब बाहर के देश से लोग आते हैं तो आप लोग उनसे मिलते नहीं, दोस्ती नहीं करते। सब अपने बाल बच्चों को देखते रहते हैं। कोई बात नहीं करता। अलग अलग रहते हैं। अलग बैठते हैं। और प्यार में तो भाषा की कोई ज़रूरत नहीं। सी सारे विश्व में भी आप सबके भाई बहन हैं, उनसे मिलना भी एक तरह का आदर, प्यार, एक अनीखी चीज़ सी है। आप लागों को उनको चिठ्ठी लिखना चाहिए। उन्के फोटो होने चाहिए। बच्चों के नाम आने चाहिए। कहाँ है। आपसी प्यार खुद बड़ी चीज है, एक बड़ी संग शक्ती हैं। इसके जानना चाहिए, सब लोग कौन है, आगे कोई नहीं झुक सकता। सहजयोग सिर्फ प्यार की शब्ती है, और कोई इसकी शक्ती नहीं। प्यार की शबती इतनी जबरदरुत है कि वो सारी शक्तियों को काट देती है। चालीस देश में हम लोग काम कर रहें हैं। चालीस देश में हमारे भाई बहन हैं। ऐसा कभी हुआ है? जो एक दुसरो की परवाह करें । जो एक दुसरे को माने। जो सहजयोगी होता है वो अत्यन्त चरित्रवान होता है उसके लिए जो स्त्री पुरूष, वेकार की माया कोई औरत है । कोई आदमी मोह है, ये छुते ही नहीं हैं। वो एकदम पूरी तरह से निष्काम हो जाता है। हैं उनके आपसी सम्बन्ध, ये सब फालतु की चीर्जे, जो कि कचरा था, उस कचरे से निकलकर, एक शुद्ध आत्मा स्वरूप हो जाता है ऐेसी आत्मा कितनी जबरदस्त शवती होती है। अपने शुध्दता में उतरना चाहिए। शुध्दता में उतरने का मतलब ये नही कि आप अशान्त हों। जो आदमी शुध्द होता है वो कभी अशान्त हो ही नही सकता। जो चीज़ सब चीज को शुध्द करती हैं वो कैसे अशान्त हो। लेकिन शुध्दता के साथ लोग बहुत ज़बरदस्त ज़ालिम लोग हो जाते हैं। कि हम तो ऐसे हैं, हम वैसे हैं हम बहुत अवछे हैं। हम में वड़़ा डिसिप्लिन (नियम अनुसार ) है। हम सहजयोगी हैं और बाकी तो सब खराब। पसा कभी नहीं सोचना चाहिए। सहजयोगं सोचता है कि सब मेरे ही तो अपने हैं। जो शुध्द चीज़ होगी तभी तो उस में सब चीज़ समा सकेगी । ह ाति , इधर से उधर लगाना, ये सब बहुत अशुध्द बात्ते हें। औछी बारते है। ये सब बात्ते करन बोलना बार झूठ , इधर उधर की बात करना और दो दो पैर ही सहजयोग में अमानीय है । और किसी के पीछे बात करना आपको क्या इतने पैसों से परेशानी। चा अरे, सारी लक्ष्मी आपके पैरों के नीचे है । के लिए परेशान होना। पैसे अगर कह दीये, सहजयोग के लिए दे दो तो मार आफत आ जाती है। आखिर सहजयोग के लिए आप कितना पैसा दिया, जरा सोच कर देखिए। इससे ज्यादा तो आप अपना तेल इस्तेमाल करते हैं । सहजयो में कोई खरचा खास होता नहीं है। इसका मतलब नहीं कि अगर ज़रूरत पड़े तो आप लोग पैसे नहीं देंगे यहाँ तो जान देने के लिए तैयार होना चाहिए, कि आप सहजयोगी हैं। आज जन्म दिन के रोज आप लोगों से यही कहना है कि आप लोग सब बढ़िये मेरे साथ। उम में बढ़ना चाहिए। इसका मतलब है कि मनुष्यता आनी चाहिए। एकाग्रता है सो बात ठीक है। लेकिन एकाग्रत का मतलब है, कि जिस तरह से आपके अन्दर अनेक चक हैं, उसमें से एक मी कुण्डलीनी का जिसे जागृह कहें। इसी तरह एक चक पकडता है। दूसरे का दूसरा पकड़ता है। तीसरे का कोई और चक पकड़ता है सौ इस कुण्डलिनी का जागरण और उसका सारे च्को में से गुजज़र जाना और फिर सहस्त्रार में लीन हो जान अवतरण किसी ने तो मी नहीं कि सन्यासी, महाझषी योगी, कितनी महान चीज हैं । वो किसी साधु, ये काम, जो आप लोग कर रहे हैं इतनी शक्ती आपके अन्दर आ गई लेकिन वो सब शक्ती को बरदा करने के लिए हमारे अन्दर उतना ही सहनता होनी चाहिए। बोलटेज जितना हम बरदाश्त करते हैं, उत बढ़ा सकते हैं । बहुत उ़्यादा। और ये स वोल्टेज हमारे अन्दर आ सकता हैं। लकिन ये वोल्टेज हम बहुत ने तो विशेष रूप धारण किया है इसलिए मैंने सारी बातें कह दी हैं आप के सामने, कि किस तरह से हम लोग अपने अन्दर और बाहर अपने जीवन को प्रफूल्ल कर सकते हैं । है। उसमें ये पगलपन नहीं है, कि मैंने सबेरे नहाया ध्यान धारणा से अन्दर की सफाई हो जाती नहीं। मैंने चार बजे उठना धा, पर में साडे चार बजे उठा। तो क्या हुआ। इस तरह की बात नही है। बाहय के कोई आवरण नहीं हैं। पर ध्यान करना चाहिए। हर समय ध्यान में ही रहना चाहिए। अपनी स्थिती ध्यान में कितनी देर हैं । कोई भी चीज़ आपको गड़बड़ में डाले, तभी ध्यान में जाना चाहिए ध्यान में जाने का मतलब क्या है? आपका सम्बन्ध इस परम चैतन्य से हो गया। जिस समय आप ध्यान में गए, परम चैतन्य से आपने एारिता स्थापि त कर दिया। कितनी देर हम ध्यान में रह सकते हैं। कोई विचार है, और उसके बाद जो प्रकाश है उसे। आए। नहीं चाहिए। ध्यान ।। कोई एक स्थिती, एक व्यक्तित्व लेकरके हमें लोजना है लागों को। उनसे बाते करना हैं। उन्हें प्रकाश देना हैं। पर जब आप लोगों से मिलते है, वो आपकी प्रकाश की ओर नज़र करेगा, वो देखेगा कि आपमें वाके प्रकाश है कि आप ऐसे डी झूठा । आपके व्यक्तित्व को देखेगा। दिलासा लेकर घूम रहें हैं। उस ववत जो भी है, वो आपके चरित्र को देखेगा। । आपने क्या पाया हैं, उसे देखेगा|। और आपमें से बहुत ऊँचे उँचे लोग आप में क्या वात है, उसको जानेगा निकलकर के चारों देश का, सारे दुनिया का उद्दूधार कर सकते हैं। कोई चीज की चिन्ता करनी सहजयोग में माननीय नहीं। क्युकि सारी चिन्ता परम वैतन्य करता हैं। हमें सिर्फ एक ही चिन्ता होनी चाहिए, कि मॅ ध्यान में रह। आनद में कभी कमी नहीं आने पाए और हमेशा मौज में रहो। आपकी भक्ती, सेवा, प्यार देखकर के बहुत खुशी होती है। लेकिन कुछ अपनी भी सेवा पतलि एक करिये। अपना भी विचार रखिये। अपनी भी कोई सजावट हो। अपना भी स्थाल किया जाए। कि आप हीरा हैं। उसे पूरी तरह से तलाश करिये। कि जिसका कोई भेदी होना चाहिए सब विश्व के लोग हैं विश्व निर्मला धर्म में उतरे हुए हैं हम अलग अलग देश में रहते हैं , लेकिन हम हैं एक ही देश के रहने वाले। सबको हम अलाहद उसमें आनन्द और उल्लास से रह रहे हैं। और वो है परमात्मा का सामराज्य और दे रहे हैं। कितनी बड़ी चीज़ है। जेसे कि एक वाटिका में फूल हैं। जिन्हें देखकर के बड़े बडे लेखकों में स्फूर्ती आ जाए इन को देखकर के सब खुश हो जाएँ ऐसे लोग आप हैं ऐसे ही फ्लों की मुझे आशा हैं। मैं चाहती हूँ कि आप कोई विशेष सब लोग कार्य करें। हर एक गाँव में, देहात में, जहाँ आपसे बन पडता है। एक दिन ऐसा आएगा कि बहुत से लोग सहज योगी नज़र आने लग जाएँगे हर जगह। आशा हे आप लोग आज मेंरे जन्म दिन पर एक निश्चय करें। नम्रता पूर्वक, कि हम माँ इस साल सौ आदमी पार कराएँगे। कम से कम हर आदमी कोशिश करें। हो सकता हैं। इर तरह से। लोगों को खाने पर बुलाइये। लोगों को चाय पानी पर बुलाईये, लोगों से बात चीत करिये, कि वो सहजयोग करें। कितने कि चमत्कार हैं, सहजयोग में। उन्हें चमत्कार आप बताईये। अब सबसे बड़ा चमल्कार हो गया है, अब हमने "अॅडस" भी ठीक कर दी। कैन्सर ठीक हो जाएगा। अभी भी बहुतों को ये ही मालूम नही वि कौनसी उँगली पर कौन सा चक है पर फिर भी आप सब लोग अेडस ठीक कर सकते हैं। मानसिक तकलीफे ठीक कर सकते हैं सबको जागृती दे सकते हैं। और आपको अभी तक ये नहीं मालूम कि कौन सा चव तर कहाँ पकड़ रहा है तो इसका ज्ञान होना चाहिए। हर एक को, चाहे स्त्री हो या पुरुष हो। पुर्षों से ज्ञान लो और औरतों से उसकी बाईब्रेशन लो। उसकी सुझ बुझ लौ। उसकी जो प्रगह होती है वो औरतों मे ज्यादा होती है। पुरुषों में बुद्धि का ज्ञान होता है और औरतों में हृदय का ज्ञान होता है। दोनो चीज़ सामान्य से आनी चाहिए। जितना हो सकता है करना चाहिए। इस साल में खासकर मेहनत करना चाहिए। आपको जैसा आनन्द होता है ऐसे सारी दुनिया हो जाए। तो कार्य बहुत जोरों से हो सकता हैं और हम लोग कुछ पा सकते हैं। सबको मेरा आनन्त आशीर्वाद किली 30-3-9( जन्मदिन का मापण, आज नवरात्री की चतुर्ती है। और नवरात्री में रात्री को पूजा होनी चाहीए। अन्धकार को दूर करने के लिए अत्यावश्यक है की प्रकाश को हम रात्री में ही ले आएेँ आज के दिन का एक और संजोग है की आप लोग हमारा जन्म दिन मना रहें हैं। आज के दिन गौरीजी ने अपने विवाह के उपर्त श्री गणेश की स्थपना की। श्री गणेश पावित्र का स्तोत है। सबसे पहले इस संसार में पवित्रता फेलाई गई। जिससे कि जे भी प्राणी, जो भी मनुष्य मात्र इस संसार में आप वो पावित्र से सुरक्षित रहें, और अपवित्र चीजों से दू रहें। इसलिए सारी सृष्टी को गौरी जी ने पवित्रता से नहला दिया। और उसके बाद ही सारी सृष्टी के रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हमारे लिए ये है कि हम अपने अन्दर पावित्र को सबरे ऊंची चीज समझें। लेकिन पावित्र का मतलब ये नहीं कि हम नहायें, धोयें, सफाई करें, अपने शरीर को ठी करें। किन्तु अपने हृदय को स्कछ करना चाहिए। हृदय का सबसे बडा विकार है कोध । और जब मनुष्र में कोध आ जाता है तो जो पवित्र है वो नष्ट हो जाता है । क्युकि पवित्र का दूसरा ही नाम निव््याज प्रे है। वो प्रेम जो सतत बहता है, और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्त इसी में है कि वो बह रहा है ओर जब नहीं बहता तो वो परेशान होता है सो पावित्र का मतलब ये है कि आप अपने हृदय में प्े को भरे। कोध को नहीं। कोध हमारा शत्रु हैं लेकिन वो संसार का शत्रु है। दुनिया में जितने भी युध हुए हैं, जो जो हानियां हुई है ये सामुहिक कोध के कारण हैं। कोध के लिए बहाने बहुत होते हैं। लेकिन युध्द जैसी मयंकर चीज़ भी कोध से ही आती हैं उसके मूल में ये कोध होता है। गर हृदय में प्रेम ह तो कोध नहीं आ सकता, और गर केोध का दिखावा भी होगा तो बो मी प्रेम के ही लिए किसी दुष्ट राक्षर को जब संवार किया जाता है ।, यो मी उसपे प्रेम करने से ही होता है। क्योके ये इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाए जिससे वो और पाप कर्म करे। लेकिन ये कार्य मनुष्य के लिए नहीं है, ये तो दवी का कार्य है जो उन्होंने इन नवरात्रीयों में किया। सो हृदय को विशाल करके हृदय में ये सोचे कि हम किससे पेसा प्रेम करते हैं जो नि्वन्य, निर्म है जिसके प्रति, हम में नही कि ये मेरा बेटा, मेरी बहन है, मेरा घर, मेरी चीज। मनुष्य की जो स्थिती मा है आप उससे बहुत उँची स्थिती में आ गए हैं। क्यूंकि आप सहजयोगी हैं। आप का योग परमेश्वर की वो शवित आपके अन्वर अविरल बह रही है, इस प्रेम की सूक्ष्म शक्ति से हो गया। आप बार बार आपको प्रेरित करती को प्लावित कर रही है। आप को संभाल रही है। आप को उठा रही है। है। और आपको आल्लाहद और मुधुमय प्रेमसे- भर देती है। ऐसे सुन्दर शक्ती से आपका योग हो गया। किन्तु अमी इमारे हृदय में उसके लिए कितना स्थान है ये देखना होगा। हमारे हृदय में मँ के प्रति तो |त प्रेम है, और उस प्यार के कारण आप लोग बहुत आनन्द में है। किन्तु और भी दो प्रकार का प्रेम होना चाहिए, तभी माँ का पूरा प्यार हो सकता है। एक प्यार अपने से हो कि हम सहजयोगी हैं। हमने सहज में शकि्ति प्राप्त की, लेकित अब हमें इसे किस तरह से बढ़ना चाहीए। बहुत से लोग सहजयोग के प्रसार के लिए बहुत कार्य करते है । हॉरिझॉन्टल मुब्हमेन्ट पृथ्वी से समान चारों तरह फैलता हो। वो लोग अपनी ओर नजर नहीं करते। तो जो व्हटिकल मुन्हमेन्ट है उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होती। बाहय में वो बहुत कुछ कर सकते हैं। बाहय में दौडेंगे, काम करेंगे, सबसे मिलेंगे, लेकिन अन्दर की शक्ती को नहीं बढाते। बहुत से लोग हैं, अन्दर के शक्ती के तरफ बहुत ध्यान देते हैं और बाहय के शक्ती की तरफ नहीं। तो उनमें सन्तुलन नहीं आ पाता, और जब लोग सिर्फ बाहय के तरफ बढाने लग जाते हैं तो उनकी अन्दर की शक्ती क्षिन्न होने लगती है ऐसे का होते होते ऐसे कदार पे पहुँच जाते हैं कि फौरन अहंकार में ही इूबने लगते हैं कि हमने इतना सहजयोग का कार्य किया है। इतनी महनत की है। और फिर ऐसे लोगों का एक नया जीवन शुरू हो जाता है जा नहीं। वो अपने को सोचने लगते हैं कि हमारा बहुत महत्व होना कि सहजयोग के लिए विल्कुल उपयुकत चाहिए। (सेल्फ इंपॉर्टन्स)हर चीज में बो अपना महत्व दिखाऐंगे अपनी विशेषता दिखाँगे। अपने को सामने करेंगे। लेकिन अन्दर से खोखलापन आ गया है। फिर उनको कोई बिमारी हो गई, पगला गए, कुछ बड़ी भारी आफत आ गई। तो फिर कहते हैं कि "माँ हमने तो पूरी तरह से आपको समर्पित किया हुआ था। फिर ये कैसे हो गया। " इसकी , जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है कि आप बहकते चले गए। फिर ऐसा आदमी एक तरफ हो जाता है। वो दूसरों से सम्बन्ध नहीं कर पाता है। उनका सम्बन्ध सिर्फ लाग्गों पर रोब झाडने का हो जाता है। और अपने आपको ऊंचा दिखाना। सबसे आगे आना चाहिए, सबमें उनका महत्व होना चाहिए। तो फिर पेसा भी होगा कि वो मूल जाएँगे कि कुछ करने का है। माँ के लिए भी कुछ दान देना है। मैंने देखा कि राहूरी, बम्बई में भी कुछ तरह से ऐसे लोग एक दम से उभरकर ऊपर आ गए औ वो अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे। फिर न वहां आरती होती धी। न फोटो पोछते थे नसीब अपने फोटो नहीं लगाए। अपनी डीग मार मार करके किसी से कुछ पूछना नहीं, हम करेंगे। फिर झग शुरू हो गए। गुप्स बन गए। क्यूकि जिस सूत्रमें आप बन्धे हुए हैं यो आपके माँ का सूत्र है। और उसी सूत्र आप बैधे रहें और पूरी समय ये जानते रहें कि हम एक ही माके बच्चे हैं। न हममें कोई ऊँचा न नीचा नहीं, हम कोई कार्य करते हैं, और ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है । हम कुछ करते ही नही हैं। ये भवन डी जब छूट गई कि हम बडे है डमने ये किया, हम वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है तुझे जो करना कर, जहाँ जाना है जा। चाहे नर्क में जा, चाहे अपने को मिटा ले। अपना सर्वनाश कर ले। वो आपको रोकेग नही क्युंकि आपकी स्वतंत्रता वो मानता है। [आप स्वर्ग में जाना चाहे तो उसकी भी व्यव्स्था है। पर सहजयोग में एक और बडा दोम हे। हम पक सामूहिक विराट शक्ति हैं। हम अकेले अकेले नहीं है। सब एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग हैं। उसमें अगर एक इन्सान ऐसा हो जाए, या दो चार ऐसे हो जाएँ जो अपना अपना गुप बना लें तो जैसे कैन्सर होती है की एक सैल ही बढने की मैलिगन्सी लगता है, अलग से। तो ऐसे ही एक आदमी बढ करके सारे सहजयोग को ग्रस सकता है। और हमारी सारी महनत व्यर्थ जाती है। हमको तो चाहिए कि ्र से सीें कि जो सबसे नीचे है, सब नदीयों को अपने अन्दर समाता समु और अपने को तपा करके, भाषु बनाकर के सारी दनिया में बरसात की सौगात मेजता है। उसकी जो नमरता है वोही उसकी गहराई का लक्षण है। और फिर वोही बरसात नदियों में दौडती हुई उसी समुद्र की ओर जाती है। जब हमारे अन्दर अत्यन्त नम्रता व प्रेम आ जाएगी तब ही इस समुद्र की तरह हम विशाल हो जाएँगे। लेकिति अपना ही महत्व करना, अपने ही को विशेष समझना। फिर इससे सबसे बडी खराबी ये है की परम चेैतन्य आपको काट देगा कि जाओ। फिर आप एक तरफ फिक जापेंगे जो मेरे लिए बहुत दुखदाई बात होती है। ऐसे लोग जो सोचते हैं कि हमने ये कार्य किया वो कार्य किया, उन्हें फौरन पीछे हटकर के देखना चाहीप कि हम ध्यान करते हैं ? हम कितने गहरे हैं? हम किस किसको प्यार करते हैं । कितनों को प्यार करते हैं । और कितनों से दुश्मनी। सहजयोग में कोई लोग बड़े गहरे बैठ गए हैं और बहुत से अमी भी किनारे पे ही डोल रहे हैं और कब वो फिक जाएँगे कह नही सकते। मैंने आपसे पहले ही बताया है कि ।990 साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। और एक छलाँग आपको मारनी होगी। जो आप उस मौहाल से उतर करके उस नई चीज को पकड़ लें। इसमें टिकने के लिए पहली चीज़ हमारे फ्दर पावित्र होना चाहिए, जो नम्रता से भरा हो। अगर आप एकदम मा स्व छि हैं, और पवित्र हैं तो आपको किसी को भी छने में, किसी से भी बात करने में कभी अपवित्रता नहीं ंदि आएगी क्यींक आप हर चीज को ही शुध्द करते हैं। आपका स्वमाव ही शुध्द करने का है । तो आप जिससे 10 मिलॅंगे उसी को आप शुध्द करते जाएँगे उसमें डरने की कौनसी बात है। उसमें किसी को कंडम करने की कौन सी बात है। फिर तो आपकी पवित्रता कम है। गर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है तो वो पबित्रता में भी शक्ति और तेज है और वों इतना शवितिशाली है कि कोई सी भी अपवित्रता को खीच सकता है। जैसे हेर तरह की चीज पूरी तरह से समुद्र में एकाकार हो जाती है। अब दूसरे लोग हैं, जो सिर्फ अपनी ही प्रगति की सोचते है । बो ये सोचते हैं कि हमें दूसरे से क्या और हरें दुनिया से कोई मतलब। हम अपने कमरे में बैठकर माँ की पूजा करते हैं, उनको हम मानते है । क्यूंकि आप शरीर के एक अंग प्रतयंग हैं। फिर आप कहेंगे मतलब नहीं। और दुसरों से कटे रहते हैं। कि माँ मैं तो इतनी पूजा करता हूँ इतने मंत्र बोलता हूँ, मैं तो इतना कार्य करता हैँ। फिर मेरा हाल गए सहजयोग सामूहिक शक्ति है । सो दोनों चीज के ऐसा क्यू? क्यूकि आप उस सामूडिक शक्ति से हट तरफ ध्यान देना है कि इम अपनी शक्ति को भी सम्भाले और सामूहिकता में रचते जाएें। तभी आपके अन्दर सहजयोग के लिए वहुत कार्य किया ।वे काफी पूरा संतुलन आ जाएगा। मैने ऐसे लोग देखें हैं जिन्होंने अव्छे भाषण देते थे , बोलते थे। और अपने भाषणों की टेप बना ली। फिर लोगोंसे कहने लगे कि आप हमारी ० छोड़के उन्हीं की टेप सुनने लगे और उनका ये हाल या कि वो हमारें टेप सुनो। तो लोग हमारी टेप फोटो को तो नमस्कार करेंगे, हमे नही करेंगे क्यूकि उनको फोटो कि आवत पड़ी थी। ऐसे विक्षिप्त लोग हमने देखें हैं । फिर उन्होंने अपने फोटो छपाए, और फोटो सबको दिखा रहें हैं। इस तरीके से वो अपना ही महत्व बढाते हैं। करते करते ऐसे गढे में गिर गए। और फिर छूट गए सहजयोग सें। फेसे लोग क्यूँ निकल गए, क्यूंकि संतुलन नहीं। और जब संतुलन नही रहता तो आदमी या तो लेप्ट या राईट में चला जाता है। दो तरह की शव्तियाँ हमारे अन्दर हैं, जिससे की हम सहजयोग की ओर खिचते भी हैं और दूसरी शक्ति जिससे हम बाहर फेके जाते हैं। तो फिर लोग कम हो गए, तो इसमें सहजयोग का नुकसान तेी हूआ नहीं। इसमें उनका ही नुकसान हुआ। अगर आपको फायदा कर लेना है तो इस चीज को जान लीजिए कि सहजयोग को आपकी जरूरत नहीं है। आपको सहजयोग की जरूरत है। योग का दूसरा अर्थ होता है युक्ति। एक तो है कि सम्बन्ध जुड़ जाना, लेकिन दूसरा है युविति। पहली तो युवित ये है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना चाहिए ज्ञान का मतबले बुध्दी नही। व्यक्ति तो हमारे उँगलीयों में हाथों में। अन्दर कुण्डलीनी की पूर्णतय जागरण होना ये ज्ञान है। फिर और भी ज्ञान हैं । और उनको समझा होने लगते हैं। इस ज्ञान के दूवारा आप लोगों की कुण्डलीनी भी जागृत कर सकते उनके साथ आप वात्तालाप कर सकते भी सकते हैं, और उनसे पूरी तरह से आप एकाग्र हो सकते हैं। हैं। तो आपको बौदधिधक ज्ञान भी उससे आ जाता है। आप सहजयोग समझते हैं, नहीं तो कोई समझ सकता था पहले । कबीर नानकजी की बात कोई समझता था? या ज्ञानेश्वर की बात समझी? तो आपका बुद्धि चातुर्य ा दूसरी युवित क्या है? वो है कि जो आप हमारे प्रति मक्ति करें। उस भवती को मी जब आप कर आप अनन्य मव्ती करते हैं। हैं तव आप हमसे तदाकारी में जुड़ जाते हैं। जैसे हम सोचते हैं ऐसा आप सोचने लग जाते हैं। आज देर हो गई तो हम भी ये कह सकते हैं की हम बहुत थक गए हम बसका नही, लेकिन इमने सोचा नवरात्री है तो रात को ही करना चाहिए और यही मूहूरत हमको मिलना तलि वो हमको करना ही है और बडे आनन्द से हम कर रहे हैं। उसके बारे में हम सोचते भी नहीं कि ह धक गए, हमने आराम नही किया। और आपको मी पेसा सोचना चाहिए कि यही समय माँ ने बांधा है लेकिन आधे अधूरे लोग उल्टी बाते सोचेंगे । ह के लिए। क्यूंकि यही समय हमारे लिए उचित है। पूजा सुबह से बेठे है, हमें भूख लग गई। बचचे सों रहे होंगे। तो बो अनन्य भक्ती नहीं है क्योक मेरा जो से विचार है वो आपके सोच विचार में नही है। किसी के लिए मैं सोचती हैं, तो माँ ये इतना खराब है मैं जो देख रही हूँ ये क्यूं नहीं देख रहे ऐसा है । मैं कहती हैं जी नहीं कि्कूल अवछा है। में सोचती हैं तो अनन्य नही हुआ, अन्य हो गया दूसरा हो गया। इसी प्रकार जैसे इमारा प्यार आप के प्रति है, तो आप भी सबके प्रति वैसा ही प्यार रखें। अग ये बात आपके अन्दर नहीं तो ये अन्य है । अनन्य नहीं। गर हमारे ही शरीर के अंग प्रत्यंग है तो उ जैसे हम सोचते हैं वैसा ही आपको सोचना चाहिए तो ये हम है ऐसे ही उनको होना चाहिए। दुसरा ३ सोचते हैं, ये उल्टी बात क्यूँ सोचते हैं। यही प्रेम का स्तोत है कि जो कूपै में है वोही घट में आना चाहिए हूँं की इन्होंने कोई और क दूसरी चीज कैसे आ सकती है। और कोई दूसरी चीज आती है तो मै सोचती से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं। जब दूसरी बात की माँ हम आपमें शरणागत हैं। जब शरणागत हैतो फिर हम आपको कुछ कह भी ें या कोई चीज समझा दें, या कोई आपके सामने प्रस्ताव रखें, कुछ रखेखे, तो उसको मना करने का सवा ही केसे उठेगा। पर आप और हम एक हो गए, तो उसका सवाल ही कैसे उठना चाहिए। माँ ने कह दिया । कह दिया । हम तो माँ ही हो गए हैं हम नहीं कैसे कर सकते हैं तब आप में ये तदाकारी नहीं आई सो दूसरी युविति है कि माँ मेरे हृदय में आप आओ। मेरे दिमाग में आप आओ, मेरे विचारों में आप आओ मेरे जीवन के हर कण में आप आओ । आप जहाँ भी कहोगे हम हाजिर हैं हाथ जोडकर। पर आप वं कहना तो पड़ेगा न, और पूर्ण हृदय से। किसी मतलब से नहीं। तीसरी बात - हम ये काम कर रहे हैं हमने सहजयोग का ये काम किया, हमने ये सजावट की ठीक ठाक किया। मैने किया। तो सहजयोगी आप नहीं। सहजयोग में सारे आपके कर्म अकर्म हो जाने चाहिए व तो आप देखेंगे कि क्या मैं ऐसा सोचता हूँ, कि मैंने किया जब आप बारीक सूक्ष्म में देखते जाएँं ऐसे मेरे दिमाग में बात आती ही क्यू है। इसका मतलब मेरा योग पूरा नही हुआ। जब योग पूरा ह जाता है तो आप अकर्म में उतर जाते हैं। जैसे की ये हो रहा है, वो हो रहा है, ऐसे आप बोलने ल जात हैं तब आय को पररी नर से तदाकारी पाप्त हो गर्ट| 12 तीसरी युक्ति है जिसको सीखना चाहिए कि जहाँ मैं कुछ नही कर रहा हैँ। मैं क्या कर रहा हूँ| जब तक आप अपना कार्य ढूंढ रहे थे, तब तक आप कुछ कर रहे थे क्याके आपके अन्दर अहम भाव था। जब आप सामुहिकता में आ गए। तब आप कुछ भी नही कर रहे। आप अंग प्रत्यंग है और वो कार्य हो रहा है। ये युक्तियाँ में इस लिए बता हडी हैं कि झलांग जो लगानी है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करें। और अपनी ओर नजर रखें। और देखें कि मैं क्या सोचता हूँ। मैं दूसरे के लिए सोचता उसके अध्छे गुण दिखाई देते हैं कि बुरे ही गुण दिखाई हूँ। वो मुझसे श्रेष्ठ है, उससे मुझे सीखना चाहिए। देते हैं। दूसरों के अच्छे गुण दिश्लाई दें और अपने बुरे गुण तो बहुत अव्छी बात हैं। इस युव्ति की समझ लेना चाहिए कि इसमें हम ढााो डोल हैं तो अपने ही कजह से हैं सहजयोग तो बहुत ही बड़ी चीज़ हैं । लेकिन हम में जो खराबी आ रही हैं या इसका मज़ा हम पूरी तरह से नहीं उठा पा रहे हैं इसकी वजह हममें कोई न कोई दोष है । इस युक्ति को अगर आपने ठीक किया तो सिर्फ आनन्द, मिलेगा। नीरानन्द। आपकी शकल ही बदल जाएगी। और कुछ नही। और फिर चाहिए क्या? और आज इस जन्म दिवस प र में चाहँगी कि आपका भी जन्म दिवस मनाया जाए, कि आज से हम इस यूक्ति को समझे और अपने को इस पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश और पवित्रता से ही मनुष्य प्रेम ही का नाम है। और अगर आप सुबुध्दि को प्राप्त नहीं कर सकते, में सुबुध्धि आती हैं । क्यूकि पवित्रता और प्रेम को आप अपना नहीं सकते तो सहजयोग में आने से अपना समय बरबाद करना हैं। इस कृत ऐसा कुछ समय बन्ध रहा है कि सबको इसमें सनात हो जाना चाहिप, और अपने को परिवर्तन में डालना ही है। परिवर्तित हमको होना ही है। हम में खराबियाँ ही हैं, हमें अपने को पूरी तरह से पवित्र बना देना है। इस परिवर्तन के फूल स्वरूप आशीर्वाद है उस जीवन का जिसका वर्णन नही किया जा सकता। जो कबीर अब मस्त हुए फिर क्या बोले। तो आप सब उस मर्ती में आ जाईए। उस को प्राप्त करें और ने कहा - ये इमारा आशीर्वाद है । उस आनन्द में आप आनन्दित हो जाएँ। 13 श्री माताजी प्रवचन राम तीला मैदान किन्ली 4-4-1990 हमें ये जान लेना चाहिए कि सत्य अपने जगह है। उसको हम अपनी बुध्धि से नहीं समझ सकते, न बना विगाड सकते हैं। वो जैसा है वैसा ही है। मनुष्य अपने अहंकार में सोचता है कि वो परमात्मा का नाम लेकर , और जेसा चाहे उसे बनाये या बिगाड़े। अन्दर वो स्थिती नहीं आई हैं कि जिसने इस चारों तरफ फेली हुई चैतन्य की शवित और रूह को जाना है। इस शवित को महसूस करना सबसे बडा सत्य है। ये शक्ति संसार का सारा काम, सारा जीवित कार्य, संसार को हर तरह से व्यवसिथित रूप से रखने में कार्यान्वित रहती है। और इसका संतुलन, इसकी परवरिश करती है। इसी को रूह या चैतन्य कहा जाता है। या होली गोस्ट भी कहा जाता है। ये शक्ति स्थित है, यह पहला सत्य है। दूसरा सत्य ये है कि आप सवयं, ये शरीर, बुध्धि, अहंकार आदि ये कुछ नहीं है आप सिर्फ शुध्द आत्मा हैं, जो कि इस शव्ति को जान सकता हैं और पूर्णतय इसको अपने अन्दर समा ले सकता है। इस शक्ति को प्राप्त करना ही मनुष्य के उत्थान का औंतम चरण हैं। और उसमें पकाकरिता मिल जाना यही एक योग है। आज आप एक अमीबा से इन्सान बन गए। अब इन्सान के बाद जो उसकी दुसरी दशा है उसमें मनुष्य को अब सन्त बनना है माने उसको आत्म सा्षात्कार चाहिए। इसके सिवाय आप केवल सल्य को नहीं जान सकते। सब धर्मों में एक ही तत्व है, पर उसे समझने के लिए सबसे पहले हमें आत्म स्वरूप हो जाना चाहिए, क्युंकि ये आत्मा उसी परमात्मा का हमारे अन्दर प्रतिबिम्ब है इसके घटित होते ही आपकी तन्दुरूस्ती अच्छी हो जाती हैं, सब से यहले। आप किसी भी धर्म में जाएँ, कुछ मी कर्मकाण्ड करें, किसी भी गुरु के पास,,जाएँ, जागृति विना आपकी तन्दुरुस्ती अच्छी नही हो सकती। आप कोई सा भी विश्वास रखें, पूजा पाठ करें, मन्दिर, मस्जिद, गिरिजायर या गुरूदारे जाएँ तो मी आपके अन्दर शान्ती हमेशा के लिए नही आ सकती। और ये बुलाना, चीखना, चिल्लाना सब व्यर्थ है जब तक मनुष्य का सम्बन्ध परमात्मा है और आप देलिफोन पर बोले जा रहें हैं। रमात्मा से नही हो जाता। जैसे टेलिफोन का कनैक्शन नहीं तो आपको सुन नहीं रहा। लोग प्रश्न ये करतें हैं कि क्या परमात्मा है कि नहीं। परमात्मा किन्कूल हैं लेकिन इस सत्य को जानने होना चाहिए, बली होना चाहिए। क्युकि इसके बिना न आप परमात्मा को के लिए आपको आत्म साक्षातकारी और न इस परम चेतन्य को समझ सकते हैं। अभी एक सीडी मनष्य को ऊपर जाना है इस सीडी को न , अक्बर , के अंग प्रत्यंग लॉंगते ही आप जान जाएँगे कि इस सृष्टि में जितने भी मनुष्य हैं वे एक विराट के हैं। और आपके अन्दर एक नया अयूयाम आ जाता है। इसमें आप अपने नस नस में दूसरे आदमी को आप हमेशा "मेरा" कहते हैं जान सकते हैं, और अपने को भी जान सकते हैं ये सामूहिक चेतना है। - 14 - पर ये मैं कोन हैँ? इसे जब तक आपने जाना नहीं, जब तक आपने अपने अन्दर की आत्मा से अपना चित्त आलोकित किया नही उसमें उसका प्रकाश आया नहीं, आप जो भी कार्य करते हैं , वो अन्येरे में करते हैं। इसीलिए कबीर ने कहा "कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा"। समझने की बात है कि, सन्त, साधू, और साधू, और वली जैसे निजामुदिन साहब, नानक, रामदास बड़े बडे सन्त हो गए दूसरों से कहते थे कि तुम अच्छे रास्ते पर चलो। लेकिन दूसरे इस लिए नहीं चल पाते थे क्यूकि उनके अन्दर आत्मा की शक्ति नहीं थी। जब आत्मा की शक्ति आ जाती है तो आपकी सारी गन्दी आदतें छट जाती है, अपने आप ही। आपके अत्दर जो बसी हुई माँ कुण्डलिनी है जिसे असस भी कहते हैं, ये जब जागृत हो जाती है तो इस कुण्डलिनीके कारण आ प एक दम स्वव्छ हो जाते हैं। और आपकी शारीरिक , मानसिक और बीदिधक की सफाई हो जाती है । सबसे बड़ी बात ये है कि आप केवल सत्य को जानते हैं। इस तरह की चीज़ हुए बगेर न तो अपना देश ठीक हो सकता है और न ही सारा विश्व। विश्व में लोग शान्ती की बात करते हैं पर जिसके हृदय में शान्ती ही नहीं हैं वो किस तरह से शन्ती को प्राप्त करेगा। अलग अलग शान्ती की संस्थाएँ बनाई गई हैं और दोनो आपस में लड़ रहे हैं । धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं। क्यों? क्यूंकि हमने अब तक अपने अ्दर घर्म जागृत नहीं किया । सब का एक ही धर्म है और वो धर्म है इस परम शक्ति को अपने अन्दर प्राप्त कर लेना और उससे अपने को आलोंकित कर लेना, सजा लेना। ये सजावट मनुष्य को बड़ा खूबसूरत बना देती है उसका चरित्र सुन्दर हो, जांता है यो ए्क साक्षीस्रूप हो जाता है। वो किसी चीज की लालच या किसी ओर गन्दी दृष्टि दे ही नहीं सकता। उसकी दृष्टि इतनी. निर्मल हो जाती है, इतनी शुध्द हो जाती हैकि ऐसी दृष्टि मनुष्य पे भी पड़ जाए, जिस घर पर पड़ जाए, जिस जगह वो पहँच जाए वो जगह ही पवित्र हो जाती है , और वहाँ सब शुभ हो जाता है । वहुत से लोग परदेस से मुझे कहते हैं कि माँ आपके देश में इतने धार्मिक लोग हैं पर फिर आपके देश में इतबी गरीबी क्यूँ हैं? वो इसलिए है कि किसी का भी सम्बन्ध परमात्मा से हुआ नहीं। जब परमात्मा का सम्बन्ध हो जाता उसके अन्दर शवि्तियाँ आ जाती हैं । सबसे बडी शब्ति आती है कि आप भी दूसरों को जागरण दे सकते हैं। आप दुसरों को आत्म साक्षा त्कारी बना सकते हैं । एक से हजार बना सकते हैं । उसका विशेष परिवर्तन हो जाता है। गुस्से व झगड़ालु लोग भी एकदम शान्त हो जाते हैं। विचलित इन्सान, या कोई दुखी हैं तकलीफ में है, उसकी सारी व्यथाएँ नष्ट हो जाती हैं, और वो आनन्द के सागर में इूब जाता है। ऐसा इन्सान न आताताई होता है न किसी पर ज़बरदस्ती करता है। वो तो सब को ठीक कर सकता है। इस तरह का व्यक्तिव्य सारे संसार में तैयार हो सकता है क्यूकि कलयुग अब खत्म होके कुतयुग शुरू हो गया है। इस कृतयुग में परमचैतन्य कार्यान्वित है। उसके कार्य के कारण हजारों लोग अब चारेंगे कि उन्हें पार हो जाएँगे, जो आएँगे और जागृत्ति हो। 15 हर देश में साधु सन्त हो गए हैं। नहीं तो पहले एक या दो थे। सबको सताया गया था श्री कृष्ण, श्री राम, मुहम्मद साहब, सोकेटीस, लाऊसे को सताया। और सारे सन्तों को छल छल के सतावा थे । पर अब वो सामुहिकता में आ गए हैं अब कुलयुग में सारे रतों का रक्षण होगा और क्योंकि वे अकेले उन्हें कोई नहीं सता सकता। और जो सताने का प्रयत्न करेगा उसपर कृतयुग का जरूर दण्ड आएगा। अगर आपको अपना हित चाहिए, आप अपना भला चाहते हैं , वास्तीविक में आप अपनी कदुसूसती ठीक करना चाहते हैं , अपनी हालत व हालात ठीक करना चाहते हैं तो क्यूँ न अपने को पा लिजिए जो आप हैं। क्यूँ इस अन्धकार में आप बेकार के झगडे लड़े हुए किये हैं । आपके हर पक के उत्दर शक्ति है। जो आपको पुर्नजन्म देने के लिए आई है ये आप सब की म है, । और जो चाहती है कि आप इसे प्राप्त लाी करो। सारे धर्मों का यही एक सार है कि तुम इस परम को पाओ । अगर आपने परम को नहीं पाया, तो सारा जीवन व्यर्ध गया। हम लोग उस चीज़ को प्राप्त कर लें जिसकी आज सारे संसार को जरूरत है। बाकी सब कार्य व्यर्थ हे जो होते रहेंगे और क्षण भर के हैं। वे रखत्म हो जाएँगे लेकिन ये कार्य हमेशा रहेगा. जिससे आप देखेंगे कि आपके बाल बच्चे और आपका समाज, व सारा विश्व आपको धन्यवाद देगा। ये जीकत किया है। इसके लिए आप पेसा नही दे सकते। जैसे एक बीज बोया जाय तो धरती माता अपने शक्ति से ही उसको उगा देती है उसके लिप प्ैसा तो नहीं देना पड़ता। एक पैसा भी आपसे कोई परमात्मा के नाम से लेता है, समझ लीजीए वे आपके गुरु नही हैं । वो आपके नौकर हैं जो आपके सहारे चलते हैं। धर्म के नाम पे पैसा कमाना महा पाप है। और उनको पैसा देना भी एक मुर्खता का लक्षण है । जब तक आप इस सच्चे दरबार में नही आएँगे, तब तक सब्च और झूठ की पहचान आपको नहीं हो सकती। संशय करना तो बहुत आसान है। पढ़ लिखकर मनुष्य और भी संशय कर लेता है इसलिए कतर । " उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुध्दि के ही तर्क वितर्क ने कहा कि पढ़ी पढ़ी पडित मूर्ख भये से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है सत्य बुध्दि से परे हे। ये इस जीक्त किया के साथ होता है। अगर तो आपको उपने दिमाग को सुला रखना चाहिए। और इसके बाद देखें कि अगर हैं आप एक शार्त्री व वैज्ञानिक ये घटित होता है, और सिध्द हो जाता है तो फिर आपको ये मान लेना चाहिए, अपने इमानदारी में, व्यूंकि ये आपके हित के लिए है, और सारे संसार के हित के लिए है। इसी प्रकार पक दूसरा प्रश्न हुआ है कि कलयुग में अवतार कब होगा। अगर अवतार हुआ तो ास आप क्या उसे पहचानेंगे? पहले ये तो तयारी हो जाए कि हम उन्हें पहचाने जो अवतार होगा। तो सबसे पहले आप में आत्म साक्षात्कार होना चाहिए। तभी आप अवतार को पहचान पार्येंगे। उसके बाद आपको सत्य और असत्य की पहचान हो जाएगी। जैसे अन्धेरे में आपने हाथ में पक साँप पकडा हुआ है जिसे आप रस्सी रम बेठे हैं। लेकिन जैसे प्रकाश आ जाएगा आप अपने आप ही उस सांप को छोड़ देंगे। उसी प्रकार असत्य आप ही छूट जाता है। 16 - पृथ्वी में छोड़ देते हैं, तो ये माता अप कुण्डलीनी जागृण कि्कुल ही सहज है। जैसे की एक बीज आप ही आप उसे जागृत कर देती है, क्यूकि माता में ये सृजन शक्ति है और बीज में भी शवित है, तो अप आप घटित हो जाता है। ये प्रकृति का नियम है । आपके किताबे पढ़ने से, या खेोज बीन करने से, या च करने से क्या वो बीज उग जाएगा? जब तक माँ के भीतर नहीं डालेंगे तब तक वो नहीं उग सकता। उस कदर कोनसी है जिन शबवित के कारण हम अमीब प्रकार ये भी एक जीकत कार्य है। ये सूक्ष्म शक्ति हमारे से इन्सान बन गए। डाक्टर और वैज्ञानिक भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते जिसका जयाब आपको सिर सहजयोग में मिल सकता है। क्यूकि सहजयोग उस शव्ति से एकाकारिता प्राप्त करता है जहाँ से दुनिया भ की चीजे बनी और जिसको आप विज्ञान जानते हैं। आप के जो सामने है, जो दिखता है उसी का विज्ञा जान सकते हैं। जो चीज़ अदृष्य में है, । उसके लिए आपको अदूृश्य में उतरना पड़ेगा पश्चिम देशों में है । सब कु सुशाली नहीं है। उनके पास न मां बाप हैं। न बच्चे, न रिश्तेदारी पैसा पैसा हो जाने से लोग क्ल्कुल त्रस हो गए हैं । जो पेड़़ की मूल है, इसकी जिम्मेदारी आपकी है कि इ क्री शक्ति आप सारे संसार को पईुंचायें। नहीं तो आपके ऊपर ज़िम्मेदारी आ जाएगी कि आपने इसको स्वीक काल से कुण्डलीनी के बारे में अपने देश ही नईीं किया। अब ये हमारा धरोहर हे, विरासत है । अनादि लिखा हुआ है । ताओ भी कुण्डलीनी है और बाईबल में इसे होली गोष्ट कहते हैं, कि इसका वृक्ष तुम्हारे अन्द हैे और ये जो जीवन का वृक्ष है इसी की वजह से आपका पुर्नजन्म होगा। हर जगह कहा गया है कि जो न होने वाली लाफ़ानी चीजों का इस्तेमाल समझ से करना चाहिए। जितने शास्त्र है, जितने धर्म है उनका म तत्व एक ही है कि आप उस अनन्त जीवन को प्राप्त करें। बाकी सब व्यर्थ है। जो कुछ भी हम कर र 1. हैं, प्रार्थना करना, मस्जिद, मोदिर में जाना, इसका हेतु एक ही है कि उस अनन्त जीवन को प्राप्त करे उसे प्राप्त करने के लिए हमें आत्म साक्षात्कार लेना चाहिए। क्यौंकि ये सहज में है तो लोग सोचते है । ये कैसे हो सकता है। अगर ये सहज में नही होता तो आप श्वास तक नहीं ले सकते। अगर श्वास े के लिए आपको किताबे या शास्त्र पढनी पड़ती तो कितने लोग जीवित रहते। इसी तरह से ये मी नित्या आवश्यक चीज़ है। ये किया होनेवाली थी, और घटित होती है। इस पर बूधमुणी ने एक बड़ा ग्रन्थ लिए है जिसे नाड़ी ग्रन्थ कहते हैं । मुश्किल ये है कि आपके सामने स्वयोसध्द रखते हुए भी आपको मिसाले देनी पड़ती हैं पहले । र लोगों के समझ में आता है। अगर में कहूँ कि यहाँ एक अनमोल हीरा पड़ा है, वो आप प्राप्त करें, बगे पेसे दीए, तो क्या आप बेठे रहेंगे ? सारी दुनिया से लोग दौडकर आयेंगे। वो ही बात में अगर कहूँ आपके हृदय में एक हीरा है जिसका प्रकाश अपने चित्न में ले लीजीप तो आप क्या शंका पे शंका करते रहेंगे? फिर एक और बात पूछी कि ये कुृतयुग की बात शास्त्रों में नहीं लिखी। बहुत सी बार्ते शास्त्ों नहीं लिखी गई। अगर सभी बात लिख दी होतीं, तो आज हम यहाँ क्यूँ रखड़े होते? ये भी नहीं लिखा कि कृण्डली 17 - के जाग्रण के बाद आपके उंगलीयों में जागृति आ जाती है। ये भी नहीं लिखा कि इस में आप चक्कों को जान हैं। सब चीज़ जो लिखा है अगर वो आखरी शब्द होता, उसके बाद कुछ बताना ही नहीं होता, फिर ये स अगली बातें क्यूँ कहीं। भविष्य की बात क्यूँ कही? कल युग की बात क्यूँ कही? क्यूंकि कुछ न कुछ कलऱु में मी कार्य होना है और इतना महत्वपूर्ण, इतना ऊँचा, इतना दिव्य कार्य है कि इस कार्य में आप उतरेंगे नहीं आप समझ: ही नहीं सकते। पहाड़ के नीचे खड़े होकर आप किसी सन्दर शहर की शोभा हे नहीं सकते। आपको पहाड़पर चढ़ना होगा अगर आपके अन्दर छिपा हुआ इतना सोन्दर्य, इतना गौरव, इतना सब कुछ हे तो इसे पाने में हिचकिचाना कोई बड़ी भारी अकल की बात तो नहीं। आपकी ही सम्प आपके अन्दर है। कुण्डलीनी तो आपके ही अन्दर है, तो उसे पाने में आपको क्यूँ हिचकिचाना चाहिए? समझ जाएँगे के सारे जित्तने मी धर्म हुए, तो सारे धर्म एक जीवित वृक्ष कुण्डलीनी के जाग्रण से आप । एक फूल की भोति अलग अलग समय आए, और जो लाए उनके सबसे आपस में रिश्तेदारी थी। लेकिन उन लाने के बाद हमने वो फूल तोड़ दीए और उन फूलों को हमने अपने चुंगल में ले लिया और कहने कि ये इमारें फूल हैं । ये फिर फूल मर गए और इन मरे हुए फूलों के लिए परेशान हो गए ये लोग र रिश्तेदार है। सब ये सोंचकर दुनिया में आप थे कि एक के बाद एक हम लोगों को समझाएँगे कि काल 3 वाला है और इस काल में आपको आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त होना है और उसी के बाद आप परमात्मा जान सकेंगे ईसा मसीह ने कहा - अपने को जानो । सब मे यही कहा जो भी विश्व में पहान साधु महारि अवतरण, पेगम्बर समी ने एक ही बात कही कि तुम अपने को जानो और पहचानो । मगर कैसे । यही बात है, इसकी जागृति होनी चाहिए और जागृति होते ही आप इसे प्राप्त कर सकते । कि आपके अन्दर शक्ति स्म. डी. की परदवि मिल गई। करनाल मे एक दिल्ली में दो इाक्टरों को सहजयोग विपय पर साल का लड़का आया जो बचपन से न बोलता था न सुनता था। सहजयोग में आते ही बोलना शुरू किर खून का केन्सर और अन्य बिमारियां ठीक हो गई पर सहजयोग कोई बिमारी ठीक करने के लिए नहीं ये कुण्डलीनी के जागृति के लिए है। अगर आप ठीक से सहजयोग में ेठे व ध्यान धारणा करें तो आप कोई विमारी नहीं होती। असल में शास्त्रों, गीता, रामायण इत्यादि को समझने के लिए वहुत जरूरी है कि हम आत्म साक्षात्व को प्राप्त करें । गीता पे 500 किताबें लिखी हैं। अगर एक ही सत्य है तो इतनी किताबे क्यूट क्यूकि सब दृष्टि सूक्ष्म नहीं। कि है श्री कृष्ण ने। ज्ञान योग का मतलब पढ़ना, रटना, गीता में ज्ञान योग का बर्णन किया जान नहीं। ये ज्ञान योग नहीं, ये तो बुध्दि योग है, जिससे आदमी को घमण्ड आ जाता है। और गीता में, लोग गीता नहीं सुना रहे, वे अपनी ही बकवास सुना रहें हैं ज्ञान का मतलब होता है अपने नसो पे जान- ये कालेज धोड़ी गए थे। उन्होंने अपने नसों प ये वली, बुष्द लागा लोगो ने अपने बुध्ि से नहीं जाना क्यूंकि र 18 अर्जुन इसे न समझ पाए तो उन्होनें भक्ति मार्ग पर चलने मार्ग है । जब आपन अन्दर जाना। यही ज्ञान को बताया। पर उन्होंने कहा कि ये भव्ति अनन्य होनी चाहिए। माने की जिसमें कोई दूसरा न हो। जब आपका सम्बन्ध परमात्मा से हो गया। आप ऐकाकारिता में आ गए रा दिन हरे कुष्ण हरे राम करने से आपको परमात्मा कभी नहीं मिल सकते .। उल्टा आपको कैन्सर की बिमारी हो जाएगी। क्यूकि श्री कृष्ण हमारे विशुध्दि चक में बैठे हैं, और उनका नाम इस तरह से बेकार लें, क्क्यूकि वे हमारे नौकर नहीं हैं जो हर समय उनका नाम ले। एक साधारण गवरनर का भी आप नाम लेते जाएँ तो आपको पुलीस पकड़ लेगी। और उस सबसे ऊँचा परमात्मा का नाम इस तरह से लेते हैं जैसे कि वो हमारे जेब मे ही वैठा है, जैसे कि वो इतना सहता है। फिर वेो नाराज हो जाते हैं और हमारे ऊपर आपत्ति आ जाती है। फिर लोग कहते डै कि हमने दस लाख जप किए, मंत्र पाउ किया ये हुआ क्यूकि आपको अधिकार नहीं है, जब तक आपकी एकाकारिता नहीं हो। आप पहले आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करें फिर एक अक्षर उनका लेने से ही आपका कार्य हो जाएगा। आज तक किसो फायदा हुआ है परमात्मा का फिजुल नाम लेके, संस्था, लोलके, तरह तरह गरीबी, के धन्धे करके घर्म के नाम पर। कोन से धर्म में मनुष्य को फायदा हुआ है। इर जगह आफत, इतने झगड़े हैं। फिर लोगों ने कहा कि परेशानी, और रयीस लोगों के यहाँ बीमारीयां, इतना असंतोष है। परमात्मा है ही नहीं। उनको जानने के लिए सिर्फ आपकी दृष्टि आप प्राप्त कर लें, जब आप उसको जान लेंगे तब आपका ज्ञान मार्ग पूर्ण हो जाएगा। और तभी आप भवित कर सकेंगे। फिर कर्म योग पर भी श्री कृष्ण ने कहा। कृष्ण तो लीला ही करते थे। वो जानते धे कि लीला दण तु जो कुछ कर्म कर रहा है वो कर, पर सब कर्म परमात्मा से ही आप लोग ठीक होंगे। उन्होंने कहा कि के चरणों में रख। पर ऐसा होता नहीं। जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार नही मिलता, तब तक आपका ये अहम भाव , कि ये मैं कर रहा हूँ, जा नहीं सकता। कोई आदमी किसी का खून करे या गलत काम करे, वो कहे कि मैने परमात्मा पर छोड़ दिया। आपका अहम भाव अमी आपके अन्दर हे और उस अहम भाव के ही सहारे आप सब कार्य कर रहे हैं । और हमेशा ये मावना आपके अनदर बनी रहेगी। पर जब कुण्डलीनी के जाग्रण से जब आज्ञा चक को ये भेदती है तो आज्ञा चक में एक तरफ अहंकार, एक तरफ संस्कार जो क है, ये पूरा अन्दर की ओर सखिंच जाता है। तो आपके जो कर्म है वो सारे के सारे खत्म हो जाते हैं। जानवरों में कोई कर्म का विचार नहीं होता। उन्हें पाप नहीं समझता। मनुष्य ही समझता है कि पाप या पुण्य है । ये उसके अहंकार के कारण है कि बो सोचता है कि मैंने ये किया है, ये पाप किया है। आप सबको माफ कर दीजीए और अपने को मी माफ कर दीजीए। उसी से आज्ञा चक खुलता है। सहज में आने के बाद लोग जब काम करते हैं, तो वो कहते हैं कि ये हो रहा है, ये चल रही है, ये वन रहा है सहजयोग में आपको पार होना पड़ता है। अगर वो पार न हो तो उसे झूठे सटिफिकेट नहीं दे सकते कि वो पार है। जै से एक बीज को पेड़ बनना है वैसे ही आपको वृक्ष बनना है धीरे धीरे - 19 कुग्डलीनी आपको बनाती है और उपर आपको ध्यान देना पड़ता है। कुण्डलीनी को जाग्रण करना बहुत सहज है , समझना पड़ता है। आप में से शक्ति बहने लग जाती है। ये कार्य पर उसके वाद उसे संवारना पड़ता है सबसे अधिक दिल्ली जो राजधानी है, यहाँ होना चांहिए। पर यहाँ होता क्या है? झगड़े। धर्म के नाम पर झंगड़ा करना महा बेबकूफी की बात है। धर्म कभी झगड़ा नहीं सिखा सकता। परमात्मा तो रहमत है, रहीम हैं, दया के सागर हैं । उनके आश्रय में रहनेवाले केसे झगडा करेंगे। सहजयोग में हर तरह के लोग हैं । मुसलमान, हिन्दु, ईसाई, इत्यादि । ये सब लोग आपस में इतने प्रेम से रहते हैं उन्हें ऐसा लगता है कि वो विराट के अंग प्रत्यंग में एक हैं। सागर में एक बंद है जो खो गया है और सागर से एक्ससरिता आ गई है और में सागर ही हैं। अब ये आपके लाभ की बात है, और सारे विश्व के कल्याण की बात है। इसे आप समझे के, बुझ से प्राप्त करें और इसमें जम जाएँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद है। ३ॐ आदि शक्ति पूजा, कुलकल्ता 9-4-1990 और में जानती हैँ कि इस शहर कलकत्ता की आप लोगों की प्रगत देखकर बड़ा आनन्द आया। में अनेक लोग बड़े गहन सांधक हैं। उनको अभी मालू म नहीं है कि ऐसा समय आ गया है जहाँ वो जिसे खोजते हैं, वो उसे पा लें। आप लोगों को उनके तक पहुँचा चाहिए, और ऐसे लोगों की खोज बीन रखनी मी चाहिए जो लोग सत्य को खोज रहे हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम लोग अपना विस्तार चारों तरफ करें । बी लेकिन उसी के साथ हमे अपनी भी शकती बढानी चाहिए। अपना भी जीवन परिवर्तत करना चाहिए। अपने जीवन को भी एक अटूट योगी जैसे प्रज्वलित करना चाहिए जिसे लोग देखकर के पहचानंगे कि ये कोई विशेष पति व्यवित है। ध्यान धारणा करना बहुत ज़रूरी है। कलकत्ता एक बड़ा व्यस्त शहर है और इसकी व्यस्तता में मनुष्य डूब जाता है। उसको समय कम मिलता है ये जो समय हम अपने हाथ में बाँधे हैं, ये समय सिर्फ अपने उत्थान के लिए और अपने अन्दर प्रगति के लिए है। हमें अगर अन्दर अपने को पूरी तरह से जान लेना हे तो आवश्यक है कि हमें थोडी समय उसके लिए रोज ध्यान धारणा करना है। शाम के ववत और सुबह थोड़ी देर। उनमें जो करते हैं और जो नहीं करते, उनमें बहुत अन्तर आ जाता है। विशेषकर जो लोग बाहयता बहुत कार्य कर रहे हैं, सहजयोग के लिए बहुत महनत कर रहे है समझाते हैं। उनकी जो रूहानी शक्ती लेकचर देते हैं, और इधर उथर जाते हैं, लोगों से बात चीत करते हैं, है, जो दैत्री शक्ति है, वो धीरे धीरे कम होती जाती है। इसलिए और भी आवश्यक हैं कि ऐसे लोग ध्यान धारणा आवश्य करें । he 20 सोने से पहले आप धोडी देर ध्यान कर लें । सवेरे नहाने के बाद, यही काफी है। लेकिन जब ध्यान होता है तो कैसे पहचाना जायेगा कि आपका ध्यान ठीक हुआ। ध्यान करते कक्त, आपको निर्विचारिता पहले या " नेति" "नेति" इस तरह से अपने विचारों उस वक्त उसको "ये नही" "ये नही" स्थापित करनी चाहिए। को वापस कर देना चाहिए। करते करते पहले श्वास लेने से आप देखेंगे कि आपमें निविचारिता आ जाएगी। बैठना चाहिए। जिस अर्थात फोटो सामने रखना चाहिए। और उसके सामने दीप जलाके, पैर पानी में रखके बक्त निर्विचारिता आ जाए, और दोनों हाथ में चैतन्य बहना शुरू हो तो आप पैर पछकर के जमीन पर ध्यान में बैठ जाएँ। ध्यान में बैठकर के और उसकी गहनता को आप जाने फिर विचार आना शुरू हो जाए तो उसे फिर कहना कि "ये नही" "ये नही"। या "क्षमा" "क्षमा"। क्षमा शुब्द बहुत ज़रूरी है। उस शब्द से भी आपके विचार रूक सकते हैं । जब शान्ती नहीं रही तो आपकी अन्दूरणी प्रगती किस प्रकार हो सकती है । जैसे की भूचाल आ रहा हो, तो भूचाल में किसी कृक्ष की प्रगति नहीं हो सकती। तो उस वक्त मनुष्य एक विचारों के भूजाल में फैसा हुआ होता है तब उसकी प्रगति होना असम्भव है। इसलिए आवश्यक है कि उस बुबत वो अपने को शान्त स्थित कर ले। उसके लिए भी एक दो मन्त्र हैं। जिससे, आपके अन्दर शान्ती पहले प हो। धीरे धीरे आप को आश्चर्य होगा कि ये सब प्रयास करने की जरूरत पडेगी नहीं। आप एकदम परस्थापित निर्विचार हो जाएँगे किसी भी सुन्दर वस्तु या कलात्मिक वस्तु को देखते हडी आप एकदम निर्विचार हो जाएँगे| धीरे धीरे ये आदत बढ़ती जापगी और जैसे जैसे बढढ़ेगी ऐसे ऐसे आपकी अन्द्रूणी प्रगति होती जाएगी। आप एक दालान में आ गए लेकिन और दालान में भी आपको जाना है और पहचानना है अपने को। इसलिए आवश्यक है कि ध्यान धारणा से गहनता में उतरे। उसकी पहचान ये है कि जब आप ध्यान धारणा से उठेँगे आपका मन नहीं चाहेगा कि उठें। धोड़ी देर आप फिर उसी ध्यान में लगे रहेंगे आपको ऐसा लगेगा कि आपको बड़ा आनन्द आ रहा है। एक दम से आप नहीं उठ सकते। गर ध्यान धारणा के बाद आप अपना या बाहर जाना है, चित्त किसी और चीज की ओर ले जा सकते हो, जैसे खाना खाना है, या सोना है तो समझना चाहिए कि ध्यान नही लगा। क्यांकि ध्यान से छुटना ज़रा सा कोठेन होता है। इस तरह से धीरे धीरे आपकी अन्दर प्रगति होती जाएगी और जब आप बाहय में कार्य करेंगे तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा कि आपकी शक्ि दिन्न नही होती, उल्टी बढ़ती जाती है । ऐसा देखा गया है कि जो फौरन्न पार होने के बाद ही दुसरों को जागृति देना चाहते हैं और फिर उनमें पकड़ आ जाते हैं । असल में पकड़ होते नही हैं। जैसे की किसी बैरोमीटर में या किसी यंत्र में आप जान सकते हैं कि यहाँ चुओ निकल रहा है, कि यहा प्रकाश हो रहा है। उसी प्रकार आप भी अपने अन्दर सब कुछ जान सकते हैं। एक तरह का निव्यज स्वभाव आ जाना चाहिए। माने कि निराग आना चाहिए। फिर आपको पकड़ नहीं आएगी। आप कितने भी लोगों पे हाथ चलाएँ, कितनों को भी जागृति दें, कुछ भी कार्य करें । कितनी भी बिमारियाँ ठीक करें, आपके अन्दर उसका कोई असर ुर नहीं आएगा। पर ये दशा आए बगैर ही अगर आप लोगों पर हाथ लगाने लगें तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। - 21 दूसरी बात ये है कि आप लोग पार हो गए हैं, आप बहुत ऊँची स्थिती में आ गए हैं। यड़ी कठिना से ये बात होती है तो आपको ऐसे लोग मिलेंगे जो अभी अभी सहज योग में आए हैं वो समझ लेना चाहिए कि अभी आएँ है। और उनसे कोई भी आकमक बात नही करनी चाहिए। अपने प्रेम से, बड़े जतन से, सम्भात करके, हो सके तो कुछ खिलाने पिलाने की भी व्यवस्था करिये। जिससे बो लोग आपको इतना भयंकर २ समझे कयाकि साधु-सन्त लोग तो ें हाथ में डंडा ही लेके बैठते हैं। उस प्रकार नहीं होना चाहिए। उन्हें महसूस हो जाए कि सारे अपने भाई बहन हैं। उससे ही वो लोग जम सकते हैं। और अधिक्तर मेंने देख है कि एक आद लोग ऐसे आ जाते हैं सहजयोग में, जो लोगों को बहुत ज्यादा डिसिप्तीन सिवाते हैं। यहाँ नहीं खड़े हो, ऐसा नहीं करना है। खास सहज योग में डिसिप्लीन कोई नहीं हैं। क्यूोकि आपकी आत्मा इतरन पुकाशवान है कि उसके प्रकाश में धीरे धीरे स्वयं ही आप अपने को देखते हैं। और फिर धीरे धीरे आ अपने ऊपर हँसने लग जाते हैं। जैसे आपने अपनी प्रगत को प्राप्त किया, घीरे घीरे वो लोग भी अपनी प्रगति को प्राप्त कर लेंगे। ये प्रकाश आपके व्यवहार पे भी पड़ता है और दूसरों के व्यवहार पर भी। सहज योग में साक्षी स्वरूप प्राप्त होता है। साक्षी स्वरूप तत्व में आप किसी चीज़ की ओर देखते मात्र हैं। उसके बारे में सोचते ही नहीं। कोई भी आपके अन्दर उसकी ( रिअँशन ) प्रतिक्रिया नही आनी चाहिए। तो निरंजन देखना चाहिए। माने किसी चीज़ की ओर देखकर के उससे कोई सी भी प्रतिकया न हो। बगैर किसी पतिकिरिया के उसे देखना मात्र, ये सबसे नड़ा आनन्द -दाई चेष्ठाা है। उसके प्रति कोई लालसा नहीं होती। जैसे कि एक गरली चा है। अगर उसके बारे में विचार ही आते रहें कि अगर ये मेरा है तो जल न जाए। खराब न हो जाए। गर दूसरे का है तो कितने का है , कहाँ से लिया। तो इन विचारों के कारण उसका आनन्द तो आपको मिला ही नहीं। तो जैसे निर्विचारीता पे आने पर जैसे कि एक सरोवर एक दम शन्त, उसमें एक भी लहर न हो, न तरंग हो, ऐसे शा्त मन में सरोवर में, जिसके चारों तरफ बना हुआ सुन्दर निसर्ग है वो उसमें पूरी की पूरी प्रतिबिम्बित हो और दिखाई दे, ऐसा ही आपका मन हो जाता है । एक बार एक साधक हमारे पैरो में आए और एक दम से उनकी कुण्डलीनी जागृत हो गई दूसरे कमरे में जो लोग बेठे थे वो अन्दर आ गए क्यूकि उनको एक दम से महसूस हो गया कि माँ के साथ जो है उसमें से जो चैतन्य की लहरीयाँ बह रही थी वो उन्हें महसूस हो गई उन्होंने उसे गले से लगा लिया जब कि वो उसे जानते तक नहीही थे। और सब आल्लाहदित हो गए इसी प्रकार जब आप दूसरें सहज योगीयों से मिलेंगे तो आपको ऐसा अनुभव होगा कि जैसे "मैं मुझ से ही मिल रहा हैूँ।" नामदेव जब गोरा कुंभार से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं तो यहाँ निर्गुण देखने आया धा, वो तो सारा निग्गुण साकार हो गया। इस तरह की समझ व सूझबूझ एक सत को एक दूसरे सन्त के ही लिए हो सकती है। आज तक तो मनुष्य दुवैष,ई्मा, इसी में रहता है। लेकिन जब सहजयोगी हो जाता है तो उसको दूसरा सहजयोगी पसा लगता है कि मैंने जो निर्गुण को जाना था वो ये सगुण में खड़ा हुआ ये निर्गुण है। इस प्रकार आपसी प्रेम जो है ये बड़ा सूक्ष्म ,बड़ा गहन, और बडा आनन्द-दायी हो जाता है। 22 हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम बड़े ही सूक्ष्म और बड़े ही मज़बूत घागे से बन्धे हुए हैं और आपसी प्रेम इस से बढ़कर आनन्द की कोई चीज है ही नहीं। अब बहुत से लोगों में ये बात होती है कि मेरा तड़़का, मेरी बहन, मेरा भाई , मेरा घर। ये जो ममत्व है ये भी काटना है । इस ममत्व को विल्कूल ही कम कर देना चाहिए। और इसके छूटते ही आपमें बहुत ही ज्यादा आनन्द आ जाएगा। "मेरे" की भावना जो है ये अपने को आत्मा से दूर करता है। मैं कौन हैँ? में आत्मा हूँ। और जो कहे कि ये मेरी आत्मा है तो फिर जो सहज योगी नहीं। आत्मा अपनी जगह अकेला खड़ा हुआ है। इसका मेरा कोई नहीं है। इसका तो सिर्फ परमेश्वर से ही रिश्ता है। और आपसे भी ऐसा रिश्ता है जैसे कि एक पेड़ के अन्दर बहता हुआ रस है। जो सब को रस देता है पर किसी में चिपकता नहीं है। मेरा-पन प्रेम की हत्या है। आप एक बूंद मात्र से सागर बन जाएँगे इसी अमर्यादिता में ही आनन्द है क्यीके आप समुद्र के साथ उठते हैं और गिरते है। जब ममत्व छूट जाता है तो आप के अन्दर एक है। इसी तरह से मनुष्य वर्तमान में आ सकता काम है जिससे आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते हैं। और वह़ी शक्ति कार्यान्वित बहुत बड़ा ऑनदोलन हो जाता होती है। और बोही सामूहिकता में बहुत बड़ा कार्य करने वाली है और सारे संसार का उध्दार भी उसी शक्ती के द्वारा हो सकता है। एक नया दौर शुरू हो रहा है। सहजयोग में भी एक नया दौर आज शुरू हो रहा है वो ये दौर है कि अब हम एक बड़े ही आंदोलन में आ गए जहां हमें अपने प्रश्न नहीं रहे। पर सबके प्ृश्न हमारे प्रश्न हो गए सारे संसार के प्ृश्न हमारे हो गए| इसके लिए एक प्रबलता चाहिए, एक बढ़पन चाहिए। एक ऊँचाई चाहिए जिससे की आप सारे प्रश्नों को ठीक से देख सके और उसका हाल दे सकें। इसकी जिम्मेदारी सब आप लोगों पर है। सारे सहजयोगियों की ज़िम्मेदारी बहुत ज्यादा है । यही नहीं कि आप लोंग सहजयोग से ताभ उठायें, उसका फायदा उठाएँ, उसमें रजें। ये सबके घर घर में पहुँचना है और सबको ये आननद दिना है। अगर ये कार्य करते वक्त आप लागों ने किसी तरह से कमज़ोरी दिखाई या किसी तरह से ढिलाई की तो आप उसके लिए ज़िम्मेदार हो जाएँगे, और ये बात बहुत गलत हो जाएगी। इसलिए सहजयोग में पनपे हुए तोगों को चाहिए कि वृक्ष की तरह खडे हो जाएँं| में सारे हिन्दुस्थान का मरम फैँसा हुआ है । इसलिए ज़रूरी है कि आप लोग खड़े हो जाएँ कलकत्ते बढ़े और अपनी प्रगति करें । औरों की प्रगति करें और एक अपने व्यक्ति व को विशाल बनाएं। और आगे जब मी आपके अन्दर विचार आए कि मेरा बेटा ऐसा है, मेरा घर ऐसा है। तो ऐसे "मेरे" विचार को दूर रखो। तभी आप विशाल हो जाएँगे और ऐेसे विशाल लोगों की इस नये आंदोलन में ज़रूरत है। और इसकी तैयारीयाँ पूरी होनी चाहिये। आशा है ये साल आप सबको बड़ा मुबारक हो। बडा विशेष साल है ये। और इस साल में में चाहती हैं कि इस कलकत्ते में बहुत से लोग सजहयोग में आपँगे। उनको सम्भाल के, प्यार से, आदर से, समझा 23 य कर के। कभी कभी आकरमक होते हैं। कभी कभी गलत बातें भी कहते हैं। यहां सब किसी न किसी जाल प्लेट) होता है में फैसे है। में तो न उनको इर, न उनका कोई गुरु , एक दम कोरा कागज़ (स रस उस तरह के लोग धे बहुत आसानी से सबको पार करा। यहाँ तो ऐसा है कि न इधर का न उधर का। में इस इस गुरू का, में उस गुरू का है। आप अपने नहीं तो इसलए बहुत समझा बुझाकर बात करनी चाहिए। फिर यहाँ और भी बिमारी ये है, कि गुरु के दर्शन करने जाना। गुरु का काम है जोध, दर्शन देना नही। लोगों में जागृति करना। जब तक वो कोई ज्ञान ही नहीं देते तो वो गुरू कैसे बने। गुरू का मतलब है ज्ञान देने वाले। ज्ञान माने आपके नसों में आप जाने कि ये चैतन्य क्या है। ये जब तक नहीं दिया तो ऐसे चीजों में फैस जाना भी एक तरह से अपने को नष्ट करना है। आप लोग सब बहुत बड़े साधक थे, और इसी प्रकार आप अनेक लोगों को भी इसका वरदान दें, और उनको सुखी करें। हमारे अन्दर जो कुछ भी घटिया है वो हमारा अपना है, बो यष्टि में भी है , समष्टि में भी है। सामुहिक में भी कुछ कमीयाँ हैं। यही बताएँगे कि कितनी खोज उन सब कमीरयों को देखना चाहिए। हिन्दू, मुसलसान ईसाई, या अन्यधमों के लोग की इन धर्मों में पर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। इसलिए, क्यूंकि ये सब मनुष्य के बनाये हुए धर्म हैं। जिन्होंने धर्म बनाये वे वो नहीं रहे। अब आप लोगों को जो धर्म बनाना है वो असली धर्म है। उसमें नंकलीयत है तो वो गलत होगा ही क्यूकि मनुष्य को अर्भी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। अगर मनुष्य ने धर्म बनाया परमात्मा का सम्बन्ध हुआ ही नहीं। उन्होंने तो अवछे भले धर्मों को गलत रस्ते पर डाल दिया। लेकिन अब आप लोगों को जो धर्म बनाना है, जो विश्व धर्म बनाना है उसमें किसी तरह की मनुष्य की जो गलतीयाँ है, तरो नहीं आनी चहि.ए। क्यूकि ये देवीक़ है. और आप लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है । तो इमानदारी के साथ इसको ऐसा बनाना चाहिए कि जो शुध्द हो| द्रूणी धर्म हो । इसी प्रकार हर आदमी जब देखेगा कि हमने इसमें जो पाया है वो सत्य पाया है फिर ऐसा होगा कि जिस धर्म के आप पहले थे उस धर्म का सतत हमने यहीं पाया है, ये जो है ये हमारे अन्दर जागृत हो गया है। आप किसी भी मनुष्य के बनाये हुए धर्म का पालन करें, आप कोई मी पापकर्म कर सकते हैं। लेकिन सहजयोग में आने के बाद आप वाके में धार्मिक ही हो जाते हैं। आप सबका भला ही कर सकते हैं। पर जो लोग नए आते हैं उनके साथ चर्चा करते समय बहुत सम्भल कर बात करना, क्यूंकि हो सकता है उनको महसूस हो कि उनके ऊपर आकरमण हो रहा है तो बहुत सम्भाल कर उन्हें समझना है कि धर्म हमारे अन्दर जागृत होना चाहिए। जैसे इसा मसीह ने कहा है कि आपकी औँख निरंजन होनी चाहिए। पर किसी किश्चन की औव निरंजन है क्या? इसी प्रकार इन महान लोगों ने बहुत बड़ी बड़ी बारते करीं। लेकिन वो होता ही नहीं। उससे उल्टी बात होती हैं । तो इसको धीरे धीरे समझाना चाहिए क्यूकि ये ऊ्थेरे से पूकाश में आ रहे हैं उन्हें अनुभव देते हुए, उन्हें इस गलत फ़हमी से निकाल लेना है। और उनको धर्म में र्थित - 24 - करना पडेगा। धर्म की घारणा उनके न्दर होनी चाहिए। जो जिस जगह से भी आ जाए उन सबको स्वीकार करना चाहिए। क्यूंकि इनमे से बहुत से लोग ऐसे हैं जो वाके सत्य को खोज रहे हैं। सत्य के मार्ग पर चलने वालोको ही परमात्मा मिल सकते हैं। ज्योत का कार्य क्या है। ज्योत जब तक जला रहे तब सब काम होता है। उसका कार्य होता है प्रकाश देना। जिस प्रकाश को आपने प्राप्त किया है बो ही आपको सबको देना चाहिए और पूर्ण आत्मचिश्वास के साथ। कोई घबरानेकी बात नहीं। छोटे बच्चे बडे आत्मविश्वासी लोग होते हैं। और यो किसी की परवाह नहीं करते। उनको जो ठीक लगता है बो कहते हैं। लेकिन जय हम लोग बढ़े हो जाते है तो विमाग में और चीजें मरी रहती बहुत से संत्कार हो जाते हैं जिनसे निकलता मुश्किल होता है तो सिर्फ ये बात समझ लेनी चाहिये कि हमें एक बहुत सुझ बुझ के साध, समझदारीके साथ पक प्रगल्मता के साथ बढ़पन के साथ सबसे व्यवहार करना चाहिए। सबसे प्यार दिखाना चाहिए क्यूकि ये मॅच्यूरिटी के साथ प्यार ही की शषती है और इसी को प्राप्त करना है। है भावि शक्त की । अदि धव्ति से ही सारी थवितया निकली है। महाकाली महालक्ष्मी, महासरस्वती पूजा भादि पक्त की । आदि शकवित से ही सारी शपितर्यां निक्े यै बसे पहली ड্ीर ये ही 3 शष्तियां फिर उन्हीं मैं ही समाहित होती हैं। [अदि क्अवित के खिवाव ये कार्य ही नही सकता। कारण कि सारे अक्रो में उनका प्रमुत् है। और बौही हैं, जो कि हर तरह के चर्कों के आपसी समब् को सामातती हैं, जिसे त्रम संयोग कहते हैं। बो हर सुक्षम से सूय बार्तोको जानती है। जैसे की किसी भी बौ एूर्ण हैं और हमारा जी उत्पान इ्हॉ्यूजन] हुआ है, उसके हर पक सीडी पर (माजरल- कुसके हए पक सीड़ी पर मारइल अवतरण को देखें र्वक्ार हटौन) बने सड़े हुप हैं। लैकिन सबका पक ही प्रकार का कार्य धा। मैसे वैवी का कार्य धा कुश्टों का संहार स्टो भी कृष्णने लीता रचाई। ये सब लीला है। इसमे इतनी गर्भीरता करना और मक्त्ती को बचाना। इसलिप की कोई बात नही है। श्री कृष्ण ने माधुर्य को था औोर उन्होंने पेसा कर्म किया कि लैकरके सबको जीता के अपने ची हमारी जो भरतियाँ थी, उसे घुमा कर के, ज़ को कह देते थे । चक धोड़़ी मिठास डाल कर और उसके बाद महावीर जी, बुद्द इत्यादी का भी गम्भीर अबतरण रहा।] बड़डा कुबर उनका अवतरण रहा। और गरभीरता से उन्होंने आत्मवर्शन की ही चात की। [और [सम्यज्ञान की बात करी। फिर बहुत गर्भीर चीजे हो गईं और सर्वसाधारण लोग इसकी और नहीं आप। जो आप तो बेकार गरीरता में अले गय। औौर शर अपने रोज के जीवन को बड़ा ही कंठेत बना विया। क्यूकि न चुष्व ने कहा था, त महावीर ने। अब मानव जाती में जब तक आत्म साक्षात्कार नहीं होता, तब तक उसका ज्यादा वेर तक सीधा कहने से जो धर्म की रचना अलना कठिन है। इसा ससीहके बात्र सर्व साधारण लोग आप तौ उन्होंने फिर पोल के पतदि होती गई', और इसलिप करी, उसके चजह हसे सारी गड्डचड्डी्या होगई। इस प्रकार हर यर्म में गड़बड़ीयँ होती गई', भऔोर इसलिप 25 धर्म बड़ा कठिन और अगम्य सा बन गया है । और फिर आधुनिक काल में बहुत से लोगोंने भी कुण्डलीनी के बारे में गलत कह दिया। अब प्रश्न ये था कि मनुष्य को किस तरह से बताया जाय कि परमात्मा हैं, सत्य हे, वो आत्मा स्वरूप है। इसलिए फिर आदि शक्ति का अवतरण जरूरी है । आदि शक्ति ही ये कार्य कर सकती है। वो सब चकं मानुव का कार्य जानती है। और उसे मानव जाती में आकर के जैसा अवतरण लेना पड़ा। जिससे वो समझे कि इनके अन्दर क्या क्या दोष हैं। और फिर वो दोष निकालने के लिए क्या करना चाहिए। कुण्डलीनी का जाग्रण इन् पा दोषों के रहते हुए भी कैसे हो जाए। कैसे ब्रम्ह नाड़ी में से कुण्डलीनी को जाग्रण कर दी जाए, जिससे मनुष्य इसको प्राप्त कर ले। पहले इसको धोड़े प्रकाश से देखे। देखते देखते स्वयं ही समझ जाए कि उसको अपनी ही ओर दृष्टी करके, देख के, उसको वो शक्ति आ जाए कि उसे ठीक कर ले । ये कार्य ऐसा धा कि जिसमें सभी देवी देवताओं का, सभी अवतरणों का और सभी महा पुरुषों का और सबका ही आना जरूरी था। उसी ार शरीर में धारणा कर कर के और इस संसार में अवतरण आना धा। और इसलिए ये अवतरण हुआ है कयूकि सारे संसार का उत्थान होना है। जिस परमात्मा ने ये सृष्टि बो बनाई है, जिसने ये सारा संसार रचा है, कभी नहीं चाहेंगे कि ये संसार मनुष्य के हाथों बरबाद हो। और इसलिए ये कार्य अत्यन्त विशाल है। ये नहीं बातें करते जाएँ इस पर हो सकता कि आप (कॉस) सूली पे चढ जाएँ, ये नहीं हो सकता कि हम मनन पे मनुष्य को बढ़ना होगा, वनाना होगा। काफी मेहनत का काम है। पर ये सिर्फ माँ ही कर सकती है। माँ की ही शक्ती जो इसे कर सकती है । और उसमें प्यार सहनशीलता और सूझबूझ न हो तो वो कर ही नहीं सकती। नाम इसीलिए इस अवतरण की बड़ी महत्ता है । उपूजा करें और इसको पाने पर सब कुछ हो ही जाता है, क्योंक आप जानते हैं कि आदि शक्ति की जो महामाया स्वरूपनी प्रकृति है उसमें एक बड़ा भारी कारणह कि, गर वो महामाया न हो, तो आप उसको कभी जान ही नहीं सकते। वास्तविक में जब तक महामाया स्वरूप है तभी तक आप मेरे नज़दीक आ सकते हैं। नहीं तो आ नहीं सकते। है, इनके पास कैसे जाएँ इनके आप सोचेंगे ये तो शक्ति पैर केसे छुएँ। इनसे बात कैसे करें। तो ये महामाया स्वरूप लेने से ही ये चीज़ बहुत सौम्य हो गई है। और इस सौम्यता के कारण ही आज हम सब एक हो गए हैं। और ये भी बहुत ज़रूरी धा कि इस महा माया स्वरुप में ही हम रहे, और आप लोग उसे प्राप्त करते रहें और खो न जाएँ जैसे समुद्र में खो गए। जैसे कबीर ने कहा "जब मस्त हुए फिर क्या बोले"। आप सबको जागृत रहना है और सबको देना है। में आपको खोने ही नहीं दूंगी। इस आनन्द में पूरी तरह से विबोध होके, कोई नहीं खो सकता है, इस आनन्द को बौटे बगैर आपको चैन ही नहीं आने दुँगी। इस तरह की चीज होगी तभी आप लोग समझेंगे कि आपको क्या कार्य करना से अधिक है कि साधु संतों ने किसी को (रलाईजेशन) जागृती है। तो आपका भी कार्य साधु संतो से एक तरह नही दिया था। हाँ 'उन्हें उपदेश दिया, उन्हें समझाया। आप का कार्य ये है आप सबको जागृती दें। और उनको आत्म साक्षात्कारी बनाएँ और सारे संसार का आप अत्यान प्राप्त करें। बहुत महत्वपूर्ण और दिव्य कार्य है। और hio - 26 इस कार्य के लिए आदि शक्ति का आना ज़रूरी और उस आदि शविति के आगमन से ही ये कार्य शुरू धा । गया है और बहुत अच्छे से हो रहा है। [आशा है आप लोग समझेंगे और बहुत से ऐसे फोटो आ रहें हैं, ज चमत्कारी हैं। पर ये फोटो दूसरे लोगों को दिखाना नहीं चाहिए। क्यूकि उनको विश्वास ही नहीं होगा। औ ये भी फोटो परम चैतन्य बना रहा है, वो मी एक साधारण कैमरा से जिसमें कोई शक्ति नहीं है। और अग इतना प्रकाश मेरे सिर में है तो वो किसी को दिखाई क्यूँ नहीं देता ? सिर्फ बो कैमरा में क्यूँ आ गया.? आ लोगों के लिए में तो महा माया ही हूँ। कैमरा के लिए शायद नही हैं। केमरा के अन्दर की जो अणु रेणु वो मुझे जानते हैं। आपको परमात्मा ने स्वतंत्रता दी है । इन जड़ बस्तुओं को स्वतंत्रता नहीं। वो तो परमात्म के ही आज्ञा से चलते हैं, और पशु भी उन्हीं की आज्ञा में रहते हैं उस स्वतंत्रता में किसी भी तरह की बाधा न आप, इसीलिए महामाया स्वरूप है। आपके जैसे हम हैं। हमारा सारा व्यवहार भी आप के जैसे है आशा है कि आदि शक्ति की आज की पूजा आप लोगों को समापन्न हो। मेरा आनन्त आशीर्वाद - t. कलकता पब्लिक भाषण 9/10-4-1990 सत्य के बारे में जान लेना चाहिए कि सत्य अनादि है और उसे हम मानव बदल नहीं सकते। सत्य को हम इस मानव चेतना में नहीं जान सकते । उसके लिए एक सूक्ष्म चेतना चाहिए। जिसे आत्मिक चेतना कहते हैं। आप अपना दिमाग खुला रखें वैज्ञानिक की तरह और अगर सत्य प्रमाणित हुई तो उसे अपने इमानदारी में मान लेना चाहिए। एक महान सत्य यह है कि सृष्टि की चालना एक सूक्ष्म शक्ति करती है जिसे परम चैतन्य कहते हैं। ये विश्व व्यापी है और हर अणु-रेणु में कार्यान्वित है। हमारे शरीर के स्वयं चालित ( ओटोनॉमस ) संस्था को चलाती है। जो भी जीवित- कार्य होता है वो उससे होता है। पर अभी हममें बो स्थिती नहीं आई है जिससे हम परम चैतन्य को जान लें। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर बुध्दी, अहंकार और भावना्ँ आदि उपादियाँ नहीं हैं। हम केवल आत्मा है। और ये सिध्द हो सकता है। तीसरा सत्य यह है कि हमारे अन्दर एक शक्ति है जो त्रिकोना- कार अस्ती में स्थित है, और यह शवित जब जागृत हो जाती है तो हमारा सम्बन्ध उस परम चैतन्य से प्रस्थापित करती है। और इसी से हमारा आत्म दर्शन हो जाता है। फिर हमारे अन्दर एक नया तरह का अध्याम तैयार हो जाता है, जो हमारे नरसौ पर जाना जाता है। जो नस नस में जानी जाए बोही ज्ञान है। इसको जानने के लिए कुण्डलिनी का जाग्रण होना चाहीए। ये स्वयं आपकी माँ है। ये आपही की है, और ये माँ आप को पुन्जन्म देती है। जिस तरह की पकद से टेप रिकार्डर में आप सबकुछ टेप कर सकते हैं, उसी तरह इस कुण्डलीनी ने आपके बारे में सब कछ जान Lho 27 - लिया है । क्यूकि ये साईे तीन कुण्डलों में बैठी हुई है इसलिए इसे कुण्डलीनी कहते हैं। ये ्द इच्छा की शक् है। कोई भी इच्छा पूर्णतय पूर्ण हो जाने पर भी मनुष्य उससे सन्तुष्ट नहीं होता क्युकि सर्वसाधारण इच्छ तृप्त होती नहीं। जब ये शकती ऊप र की ओर उठती है तो 6 चक्कों में गुजराती, छटे चक से ब्रम्हरंद्र को छेदती हुई बाहर निकल आती है तब ये सूक्ष्म चीज़ आपको चारों तरफ फैले हुए सूक्ष्य शक्ती से पर चैतन्य से एकाकारिता देती है। जैसे माईक है, अगर हमने इसे मेन्स के साथ नही जोड़ा तो ये किल्कुिल बेका है। इसी प्रकार मनुष्य भी उस परम चैतन्य को प्राप्त किए बगैर सत्य को नहीं जान सकता है। सब अपन अपनी बात को सत्य मानते हैं। सत्य में कोई भी मतभेद नहीं होता। वो मतभेद सत्य के अलग पहलू तो अलग ढंग से देखे जाते हैं। जब तक आपके चित्त में आत्मा नहीं आता है तब तक आपके अन्दर आ प्रकाश नहीं आता और आप अन्धेरे में ही टटोलते रहते हैं । मनुष्य ने समाज की धाराणाएँ बनाई हैं इसलि हमारे समाज में त्रुटियाँ है, सतदेह है, मांति है। हमें उस स्थिती को प्राप्त करनी चाहिए जिससे हम बड़े मुनि ,अवतरण,वली , तीर्थत्थन्कर आदि को समझ सकें और इन लोगे के जैसे बन जाएँ ऋषि । मतलब, धर्म की धारणा हमारे अन्दर होती है। मगर जो एक धर्म का ही पालन करता है वो कोई भी पाप कर्म कर सकत है। गलती कर सकता है। क्योंक धर्म की भावना तो सिर्फ आपकी दिमागी जमा खर्च है उसका आपके अन्दर ह प्रवेश नहीं हुआ। धर्म की धारणा अपने अन्दर करने से ही हमारा हित्त होगा। किल्तु ये करते बव्त एक सहज तरीके से कुण्डलीनी उठती है क्यौकि ये एक जीव्ति प्रक्िया है। जैसे पृथ्वी में आप बीज छोड़ दे तो वो सहज में ही पनप जाता है। हर एक में उसी प्रकार ये कुण्डलीनी बैठी हुई है कि जब मेरा वेटा चाहेगा तब मैं उठूंगी। वो ज़बरदस्ती से आपको पुनर्जन्म नहीं देना चाहती है। आपकी स्वतंत्रता को ही देखकर जागृत होगी। और कोई भी इस मामलें में ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। सबसे पहले कुण्डलीनी जाग्रण से आपकी शारीरिक स्थिती ठीक हो जाती है। क्यूकि आपके शरीर में सारे चक पूरे प्लावित हो जाते हैं। इन्हीं चक्कों के शवित के व्वारा हम जीवित हैं और उसी से हमारा सारा व्यवहार चल रहा है। किन्तु जब हम शक्ति को अनायास बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तब ये चक क्षीन हो जाते हैं। इस तरह से हमारे अन्दर बिमारीयां आ जाती हैं। लेकिन कुण्डलीनी जागरण के बाद तो जिन बीमारीयों का इलाज ही नहीं, जो मरने तक आ गए ऐसे बीमारीयाँ एक ही रात में ठीक हो गई| इसके लिए हमें ऋषि मुणियों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने सहज योग ढंढ निकाला। पहले एक या दो इन्सान ही इस योग को जानते धे। किन्तु ऐसा समय आ गया है कि आपको सामूहिक तरीके से जाग्रीत साह्ट हो सकती है । इस तरह की जागृति होने से शारीरिक, मानसिक, बीदि्धिक और सांसारिक व्यथार्प दूर हो जाती हैं। और लक्ष्मी का भी आप पर बहुत आश्शीवाद आता है क्यूंकि हमने लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी का साक्षात पाया नहीं था हमें लगा कि ये सब होता ही नहीं है उसको सिध्द करने का समय आ गया है। ऑस्ट्रेलिया में दो अेडस के आदमी ठीक हो गए सहज योग से। अपने देश में इतनी व्यथार्फ हैं, इतनी गरीबी है । इन 28 लोगों के पास पैसा नहीं कि वौ अपनी बिमारीयाँ ठीक करें, डाक्टरों के बिल भरें, पेसे लोगों के लिए सहज से आपकी खेती में, पशुपालन में सबमें बहुत असर आता है। अनेक क्षेत्रों योग बहुत उपयुक्त है । सहज योग में इसका कार्य हो सकता है सहज योग से आपके अन्दर शान्ती प्रस्थापि त होती है। जिनके अन्दर शान्ती नहीं ा। वो बाहर किस तरह से शान्ती प्रस्थापि त करेंगे। आपके अन्दर साक्षी स्वरूप तत्व आ जाता है। आप के अन्दर निर्विचार समाधि स्थापित हो जाती आ जाती है। आपके नस नस में सामूहिक फिर उसके बाद निर्विकल्प समाधि, माने, चेतना आपके अन्दर है। चेतना जागृत हो जाती है जिसके अनुसन्धान से आप जान सकते हैं कि दूसरे आदमी को कौन सी शिकायत, अगर आप सील लें तो और आपको कौन सी शिकायत और त्टि है। उसको ठीक करने की किया त्रटि है। आप दूसरों की भी मदद कर सकते हैं और अपनी मी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आप पैसा आदि कुछ नहीं दे सकते। जो इन्सान परमात्मा के नाम पर पैसा ले वो आपका गुरू नहीं, आपका नौकर है। में एक माँ हैँ और मैं ये कहूँगी कि जिस गुरू ने आपकी तबीयत ही ठीक नहीं रखी, ऐसे गुरू को रखने से क्या फायदा। है और अनुभव के लिए। इसी तरह पढ़ पढ़ करके गुरु दर्शन के लिए नहीं होता है गुरु ज्ञान के लिए होता आप परमात्मा को नहीं जान सकते । क्यूंकि परमात्मा बुध्दि से परे हैं। प्रश्न पूछने से या उसका उत्तर पाने माम से क्या कुण्डलीनी का जाग्रण हो जाएगा? अमीबा से हम मनुष्य स्वरूप हुए | इससे ऊँची एक और दशा है, कि हमें आत्म स्वरूप होना चाहिए। और जब तक हम आत्म स्वरूप नही होते, हमे चैन नहीं आने वाला। आपकी सम्पत्ती और आपको ही देने आएँ हैं। इससे आपको क्यूँ दिक्कत होना चाहिए। आपके अन्दर एक बड़ा भारी हीरा चमक रहा है जिसे आत्मा कहते हैं। इसे प्राप्त करें। मानव सबसे ऊँची चीज़ है उत्कान्ति में। उसे बस इतना ही प्राप्त करना है। रूस के लोग बहुत Tहरे हैं। उन्होंने कभी धर्म नहीं सुना, कभी देवी का नाम नहीं सुना। पर ये लोग एक दम पार हो गए| इतने शुध्द तबीयत के लोग जो खोज रहें है अन्दर से सत्य। वहां की गोवरमेन्ट ने भी हमें रिकगनाइज कर लया है और साईबीरिया तक सहज योग फैल गया है। मेडीकल में, एज्युकेशन में हर चीज में बहां के मिनिस्टर्स नक। उन लोगों में अहंकार नहीं है । इसीलिए शायद इस तरह से ये कार्य हुआ है। आशा है यहां पर भी इसी प्रकार ये कार्य होगा। ये तो देवी का बड़ा भरा स्थान है और कलकत्ते से तो मुझे बहुत ज्यादा अपेक्षा ा ह जब तक हम सत्य को जान नहीं लेते तो किसी भी बात को प्रमाण मान लेना या सत्य मान लेना हुत बड़ी गलती कर देता है। बहुत लोग सोचते हैं कि ये धर्म सत्य है, वो धर्म सत्य है। सत्य एकही हैं। कुण्डलीनी से किसी को भी तकलीफ़ नहीं होती। उत्कान्ति में हमने जो कुछ पाया है तो हमारे सेन्दुल वर्हस सिस्टिम में जानते हैं। एक जानवर, समझे एक कुत्ता, वो गर गन्दी गली से निकल जाए तो उसे कोई का he 29 ये नहीं कर सकता क्यूकि उसके उन्दर एक चेतना आ गई है जिससे बो तर्कतिफ नहीं होती। लेकिन मनुष्य और गन्दगी को देखता है, समझता है और धूणा करता है। इसी प्रकार हमारी ये चेतना प्रगल हो जाती है, काम नही करता। जैसे सन्त साध कमी गलत हमारे अन्दर ही धर्म धारणा हो जाती है तो फिर वो कोई गलत काम नहीं करते थे। जब कुण्डलीनी का जाग्रण होता है तो हमारे अन्दर पूरी तरह से राजयोग प्रतीत डोता है। जैसे जब मोटर आपने शुरू कर दीं तो उसकी मशीनरी अपने आप चलने लग जाती है, उसी प्रकार जब कुण्डलीनी जागनुत होती है तो किसी भी चक् से गुजरती है तो बो चक़ का बन्ध पड़ जाता है, जिससे कि कुण्डलीनी नीचे न आए। लेकिन जब बिशुध्दी चक पर आती है तो आपकी जुबान भी अन्दर के तरफ धोड़ी सी खिच जाती है बन्द के लिए। इसका मतलब ये नहीं कि मोटर शुरू करने से पहले आप धक्का घुमाना शुरू करें। आजकल के यौग जो मनुष्य ने बनायें हैं वो उसी प्रकार के कृत्रिम हैं हठ योग तभी करना चाहिए जब कुण्डलीनी का जागरण हो। जब शारीरिक दोष हो उस चक पर, तब आपको आसन लगाना चाहिए। हठ योग हम ऐसे करते हैं जैसे रहे हों। ग्राणायम भी हम कृत्रिम तरीके से ही करते हैं । जिस व्वत आपकी की सारी दवाईयां एक साथ खा कुण्डलीनी चढ़ती है मर आपके अन्दर राईट साइड की शकती कम हो जाए, तब हम लोग प्राणायम कर सकते को व्याधियाँ हो करे तो हो सकता है कि आप हैं, पर सूझ बूझ के साथ। पर आप बेकार में ही प्राणायम जाएँ, या आप एक दम शुष्क हो जाएँ। इतने शुष्क हो जाएंगे की आपके अन्दर कोई भावना नहीं रह जाएगी। र हो सकता है कि आप अपने पत्नी को, वच्चों को छोड़ दें और सोचे कि मैं बड़ा भारी साथू सन्यासी बन गया। इस सरह का असंतुलन, जीवन में आ जाता है। जिस ववत जिस चीज़ की ज़रूरत होती है बो सिर्फ कुण्डलीनी के जाग्रण के बाद ही जानी जाती है कि आज कुण्डलीनी उठके कौन से चक पे गई और कं रुकी। हमारे अन्दर तीन नाडीयाँ हैं। पहली है महाकाली की नाड़ी। ये बाएँ ओर की सिम्पयेटिक न०्हस सिस्टिम को देखती है और दाय्े ओर की नाड़ी है महा सरस्वती की, वो हमारे राईट साइड की सिम्पर्थेटिक नव्हस सिरिटम सिस्टिम को देखती है। बाँ को देखती है। बीच की नाड़ी जो सुधुमना नाड़ी है वो हमारी पॉरा सिम्पथैटिक ओर जो है वो सिर्फ हमारी भावनाएँ, हमारे इच्छाओं को पूरा करती है। ये इच्छा शक्ती की इडा नाडी है । या चन्द्र नाडी जो कुछ हमारा भूतकाल है, बो लेप्ट साईड में इसके साथ समाहित है। राईट साइड की नाड़ी को सूर्य नाई़ी या पिंगला नाड़ी कहते हैं। ये हमारे शारीरिक और मस्तिश्क सोचना, विचारना आदि के कार्य करती है। ये कार्यान्वित होती हैं जब हम भविष्य की सोचते हैं । के काम मध्य नाड़ी इन दोनों को संतुलन में रख ती है। जैसे कि आप बहुत जोर से दौडे तो आप के हृदय के ठोके बढ़ जाएँगे। लेकिन इन ठोकों को फिर शान्त कर देना तो किस तरह से बिल्कुल नॉर्मल हो जाते हैं, ये पारा नाड़ी का काम है। जब कुण्डलीनी जागरूत होती है तो सुपुम्ना नाड़ी सिम्पर्येटिक नव्व्हस सिस्टिम या सुषुम्ना के अन्तरतम जो नाड़ी है जिसे ब्रहम नाडी कहते उससे जाती है। और पक बाल के जैसे शक्ती ऊपर जाकर के बरम्हरंद्र को छेदती है । ये छेदन होते ही ऊपर से परम चैतन्य बहने लगता है और उससे आपके संकीर्ण चक खुल जाते हैं। इस प्रकार आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य से हो जाता है जिसकी सूक्ष्म सृष्टि है और जिसे हमने आज तक जाना नहीं। ये जानना हमारे ऊँगलीयों पर होता है हाथ्थों में चैतन्य की लहरीयों बहने - 30 - शुरू हो जाती है । श्री शंकाचार्य ने इसे "सलीलम" कहा है। ठंडी ठंडी हवा, हाथ में आने लग जाती है। लाी ये हया हमको बताती है और जताती है कि हमारे अन्दर कौन से दोष हैं और दूसरों के अन्दर कौन से दोष हैं। जब हमारा बम्हरन्द्र छेद होता है तो हमारे सिर से भी ठंडी हवा आने लगती है। पर जब तक हम इसका उपयोग नहीं करेंगे हम समझ नहीं सकेंगे कि ये ठंडी हवा क्या चीज़ है और इससे क्या प्राप्त होता है। जब मनुष्य अपने भूतकाल के बारे में सोचता है, और हर समय दुखी रहता है और अपने को बहुत न्यून समझता है। उस क्वत हम इस नाडी पर गिरते गिरते हम सामुहिक सुप्त चेतना में चले जाते हैं। (कलेक्टिव्ह की बिमारी हो जाती है। दु :खी किसम इससे हमें बहुत मानसिक त्रास होता है। ऐपिलेप्सी सब- कोनशस) के तोग होते हैं, जो लोग पागल हो जाते हैं, ये सब इसी नाड़ी के कारण । दाये और की नाड़ी कम होती है जब हम बहुत ज्यादा सोचते हैं, या बहुत शारीरिक श्रम करते हैं। अगर हम संकीर्ण होते जाएँगे। और आपकी बहुत ज्यादा सोचने से हमारे अन्दर बहुत असंतुलन आ जाता है| शक्ति भी क्षीण होती जाएगी अगर किसी आयात से, बाँ या दाये इसे तोड़ दे तो आपका सम्बन्ध जो मेन्स कि किड़नी की बिमारी पिंगला नाडी में स्वराबी आने से हो जाती है । से है, वो टूट जाएगा। डायबिटीय, लिव्हर आजकल का जीवन। इसमें हें बहुत संघर्ष इसका एक ही कारण है ब्लड प्रेशर, टेन्शन वगैरड होता है। कीा से रहना पड़ता है। और फिर मनुष्य बहुत सोचता है। आगे की बातें सेचता रहता है। इस सोच विचार से हैं, आपकी स्वाधिष्ठान चक, जिसे एक बहुत ज़रूरी कार्य करना होता है कि हमारे मस्तिक में जो ग्र सेल्स उनको बार यार पूरा करें। बहुत विचार करने से ये गरे सेन्स वत्म होते जाते हैं, और सारा ध्यान इस चक तो बाकी के जो काम वो करता है यो रह जाते है। जैसे लिब्हर को सिर्फ ग्रे सेल्स बदलने में । का जाता है को देखना। तो इन में बिमारीयों हो जाती हैं। ये सिर्फ सहज गुर्दा, अतडी पाचग्रन्थी, प्लीहा, है। और फिर से कुण्डलीनी जाग्रण से इन चर्कों को फिर से जोड देती योग के ढवारा ठीक कर सकते हैं। खोल देती है, और फिर से शक्ति उस चक में आ जाती है और कुण्डलीनी स्वयं ही उस चक को प्लावित कर देती है! तो उनका पैकियास खराब हो जाता है । डायीविटीस बहुत सोच विचार करने बाले लोगों को होती है। खून का कैन्सर हमारे प्लीहा के बजह से होता है आज कल का जीवन बहुत ही उधल पुथलवाला है। तो उसे शोक लगता है फिर ये स्पलीन धक जाती है फिर ब्लड कैल्सर हो जाता है। हमारे आजकल का जीवन बहुत असंतुलन का जीवन हो गया है इस बवत हम कुण्डलीनी जाग्रण से ही अपने चर्कों को प्लावित कर सकते हैं। इडा नाड़ी के बारे में कहना है कि जो मनुष्य रात दिन रोते रहता है। बंगाल में इतनी कला है, देवी का इतना कार्य हुआ तो यहाँ इतनी गरीबी क्यूं। इसका एक कारण ये है कि यहाँ काला जादू, तात्रिक बहुत है। पूरे विश्व' में से यहाँ सब से ज्यादा है। महाकाली के विरोध में ये लोग कार्य करते हैं । अगर इस 1 काली विया को आप उखाड फेकये , तो दरिखये कि लक्ष्मी का वास यहां आ जाएगा| इस काली विद्या से बहुत लोग यहां पर बिमार हैं। अगर आपको सत्य को खोजना है और अगर आप अपना हित चाहते क तो ये सबको छोड़कर के सहज योग में आएँ । ---------------------- 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt माग-2 सण्ड 5-6 चैतत्य लहरी ह पे 1990 पठ)2. ा को वयकी एक नया दौर शुरू हो रहा है। जहाँ हमारे प्रश्न नहीं रहे। सत्रके पृश्न, सारे विश्व के प्रश्न हमारे ता बड़ापन और एक ऊँचाई चाहिए। इसकी ज़िम्मेदारी आप लोगों पर है। प्रवलता, प्रश्न हो गए इ सके लिए ये सबके घर घर में पहुँचना है। सबको आनन्द देना है। जिस प्रकाश को आपने प्राप्त किया बोही आपको के साध। सवको देना है, पूरे आत्म विश्वास के साथ। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt उत्तर मारत का दौरा 1990 जयपुर श्री माताजी का उत्तर भारत का दौरा जयपुर से शुरू हुआ। वहाँ उनका हार्दिक स्वागत किया पोग्राम किए गए ये पहली बार था जब कि इस मौदर में ऐसे गया। गोविंदजी की मीदर में दो कार्यक्रम करनेकी आज्ञा, जयपुर की महारानी ने दिया। जयपुर में गणगौरी का त्यौहार बहुत प्रसिध्ध है। श्री माताजी ने समझाया कि ये श्री गणेश जी और श्री गौरी जी की पूजा है। परम्परा के अनुसार जयपुर की महारानी, श्री गौरी जी की मुर्ति का पूजन करतीं हैं, और फिर उस मुर्ति को रीति अनुसार कर सजाय गए हाथीओं और घोडों के साथ एक बहुत ही रंग बिरंगे जलूस में, जयपुर शहर में घुमाया जाता है। लाखों लोग इस जलूस को देखने और देवी का दर्शन करने आते हैं। इस बार , जलूस निकालने से पहले, जयपुर के राजघराने ने श्री माताजी की पूजन, बहुतही सुन्दर राजघराने की रीति अनुसार की। फिर, श्री माताजी ने गौरी की मुर्ति को वाईब्रेट किया। वो मूर्ति फिर जयपुर का सारा शहर घूमी, जिससे सारे शहर में चैतन्य फैल गया । हरयाना इसके बाद, करनाल और यमुना नगर में दो प्रोग्राम रखे गए यह पहली बार था कि हरयाना में ऐसा कार्यक्म रखा गया । श्री माताजी ने समझाया कि करनाल शहर का नाम महाभारतके प्रसिद्ध मौदर का हॉल योदा कर्ण के पीछे पड़ा, जिन्होंने महाभारत युध्द में अपना शिविर यहाँ लगाया धा। लोगों से भरा हुआ था। कई बाहर बैठे थे। जागृति देने के पश्चात, एक गँगा और बहरा लड़का, श्री माताजी से आर्शीवाद लेने स्टेज पर आया। श्री माताजी ने उसका विशध्दि चक ठीक किया, तो कमाल की बातु, कि वो लड़का बोलने और सुनने लगा। ये चमत्कार सबके सामने हुआ। और इस चमत्कार से सहज योग तीव्र अग्नी की भात्ति वहाँ फैलना शरू हो गया है । दिन्ली दिल्ली का रामलीला मैदान एक बहुत ही ऐतिहासिक महत्व रखता है! वहाँ एक बहुत ही सुन्दर बनाया हुआ मचान है, जहाँ से हिन्दुस्थान के सबसे मशहूर राजनीतिज्ञों ने व्याख्यान दिये हैं ये ऐतिहासिक मेदान तो इतना धन्य हो गया जब श्री आदि शक्ति के वाईब्रेशन की प्रतिध्वनि चारों तरफ गूँजी और हजारों लोग पार हो गए | दिल्ली तो तीन बार धन्य हुआ। पहले, श्री माताजी के जन्म दियस का त्यौडार मनाया गया। फिर, श्री सी पी श्रीवास्तव का सत्तर वर्ष होने पर, और श्री माताजी व श्रीवास्तव साहब की शादी Gty 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt का वर्षगाठ मनाया गया सब सहज योगीयों ने श्रीवास्तव साहब से निवेदन किया कि उन्हें "पापा जी" आज्ञा दे दी। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि, बुलाया जाए। उन्होंने बड़े विनय पूर्वक के नाम से "माँ का तो प्रेम विशाल होता ही है, पर आप सबको दिलासा देना चाहता हूँ कि पिता का प्रेम भी कुछ कम नहीं है।" फिर, श्री देवू चौधरी के सितार वादन ने उस शाम में एक बहुत ही आनन्द दायक रंग भर दिया। कलकत्ता परम्परा अनुसार, बंगाल में, एक रेश्म की साड़ी को देवी पर चदाया जाता है। श्री माताजी अपने बच्चों की भक्ति देखकर इतनी खुश हुई कि उन्होंने पहली बार श्री आदि शक्ति की पूजा कलकत्ता में करवाई। उनकी अपार कृपा से सब ध्यान में बहुत ही गहरे उतर गए। तिवोली पार्क में दो पत्लिक प्रोग्राम हुए जिसमें वैसे ही गहराई का अनुभव पाया गया जो पूजा में पाया गया था। फिर, सहज योगीयों के साथ श्री माताजी ने एक नाव पर हुबली नदी का दौरा किया। ये दोरा तो सच मुच गंगा में स्नान करके पवित्र होने समान था, क्यूंकि श्री माताजी ने सबको पवित्र कर दिया। पुराने सहज योगी सारे रस्ते नाचते और गाते गए। और नये सहज योगीयों को श्री माताजी से मिलने का मौका मिला। बंम्बई बम्बई शहर को श्री माताजी के प्रवचन सुनने का सबसे ज्यादा मौका मिला है। मगर इस बार तो सत्य को खोजूने वालों की संख्या और उनकी उत्तमता तो कमाल ही कर गई, जिससे सहज योग के जागृति के बाद सब लोग गहरे ध्यान में बैठे रहे और जब नये दौर की स्थापना हो गयी है । खोजीयों तक श्री माताजी ने वहाँ से प्रस्थान नहीं कर लिया, कोई हिला तक नहीं। इतने सारे नयें के साथ एक ऐसे सामूहिक गहराई का अनुभव पाना एक बहुत ही आनन्दमय अवसर था। दूसरे दिन श्री माताजी मसकट के लिए रवाना हो गई, शायद अमीरत में नया क्षितिज खोलने के लिए । নा ------ ----------- सूचना हिन्दी चैतन्य लहरी का वार्षिक अंशदान रूपये ।08/- है। कृपया अपना पूरा पता व पिन कोड सहित "डिवाईन कूल ब्रीजु" के नाम एक डिमान्ड ड्राफूट भेज दें। जो वो कृपया अपना पूरा पता व पिन कोड सहित रूपये ।08 /- नकद, अपना पुरा पता नकद पैसे देना अपने केंद्र के प्रमुख को दें। पता - डिवाईन कूल ब्रीजू वार्षिक अंशदान - डिवाईन कूल ब्रीजू प -बानं ।90। अंग्रजी : रूपये 200 वार्षिक ।990 कोधरूड रूपये ।08 वार्षिक 1990 पुणे 411 029 . हिन्दी : रूपये ।08 वार्षिक ।99 0 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt जन्मदिन का माषण, मुंबई 24/3/1990 अत् बीस साल हो गए हैं सहजयोग करते करते। उसपर जितना काम होना चाहिए था, उतना हो नहीं पाया है। ऐसा मुझे लगता है। उसकी वजह है कि हम लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि ये कितना बड़ा काम है, कितना दिव्य है। ऐसा तो कभी काम हुआ ही नहीं। पेसा किसी भी अवतरण में नहीं हुआ। सब तरह से आप सहजयोग की ओर दृष्टि डालें कि समाज में भी इसमें फर्क आ गया है। स्वतंत्रता के बाद लोग जो स्वराचार में फसने वाले थे , दूसरे देशों में जो फँस गप थे और जिनका पूर्णतय सर्वनाश हो गया, ऐसे देशों में भी सहजयोगने बहुतों को बचा लिया। और पसा तो कभी कहीं हुआ ही नहीं। बहुत से अवतरण हुए, पर किसी को भी ऐसी अन्दर की शक्ति नहीं मिली कि जिससे वो उसके अन्दर स्थापित हो जाती। मनुष्य सारे समय कुछ न कुछ करते रहता है। कोई अपने को हिन्दु कोई मुसलमान, कोई ईसाई या कुछ सोचता है। और सब सोचते हैं कि हम सबसे ठीक हैं। लेकिन इन में कोई सा भी घर्म ऐसा नहीं है, जिस घर्म के अन्दर रहने से आप धां्मिक हो जाएँ कोई भी आदमी कोई सा भी पाप कर सकता 1. है किसी भी धर्म के नाम। कोई धर्म का बन्धन नही। सहजयोग में आत्मा का बन्धन पड़ जाता है। आत्मा की जागृति बहुत बड़ी चीज है, जो हमारे जीवन को प्रकाशित कर देता है। इसके बारे में सारे ही अवतरणों आप अपने को जानो। अपने को जाने बगैर हो नही सकता । और वो समय जिसके बारे में ने कहा है कि इन्होंने कहा धा वो आज आ गया है। और अब मी लोग अन्धो जेसे घुम रहे हैं और हम लोग ये समझ नहीं पाते कि हमारे पास कितनी बड़ी शक्ति आ गई है। और हमें इसे कितना बढ़ाना चाहिए। और हमारा क्या उत्तरदाईत्व है। अमी तक हम लोग छोटी छोटी चीजों में उलझ जाते हैं। आश्चर्य की बात है। हाँ धार्मिकता तो आ गई, लेकिन और छोटी छोटी चीज़े बहुत सी ऐसी हैं जो हमें गड़बड़ में डालती हैं। और ये बडी पुरातन चीज है। सहजयोग इतना गहन व सूक्ष्म है। हमारी जो दृष्टि है वो भी सूक्ष्म हो गई है। हमारे समझ में नहीं आता कि हमारे साथ क्या हुआ है। और इसलिप आज इतने साल होने के बाद भी सहजयोग में लोगों की उन्नीत जितनी होनी चाहिए आपसी झगड़े बहुत सूक्ष्म रूप ले चुके हैं। जिसे कहते हैं मस्त थी उतनी हो नहीं पाई ल अ्दर न बाहर। ी मौला वो बात आई नहीं है । अमी में आस्ट्रेलिया गई थी। वहाँ में हैरान हो गई, कि ऑस्ट्रेलिया में इतना काम किया था, इतने हज़ार लोगों को पार कराया। तो उसके बाद हर एक सैन्टर में से पचास फीसदी लोगों को निकाल दिया। पचास फीसदी लोगों से कहा कि आप किसी काम के नहीं, आप निकल जाओ। फिर तरह तरह के रूपए इक्कठे किए गए। अजीब गरीब चीजें जो में सोच भी नहीं सकती कि कोई सहजयोगी कर सकता है और आपस के लीडरो का झगडा। मुझे देखते सब रो पड़े। "मा, आप कहाँ चले गए थे"। itio 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt मैने जो मी देखा सारे तरफ तकलीफें बहुत सूक्ष्म हो गई। आपस का प्यार, आपस का सम्बन्ध, इसकी सूझबूझ जब तक हम में नहीं आयेगी, हम इस आनन्द को नहीं ले पायेंगे। हम लोगों के आपसी रिश्ते इतने इतने नाजुक जाएँ। क्यौकि क व इतने बढिया है, कि उनको . समझे बगैर हो सकता है वो टूट सुन्दर है, उसके सूत्र बहुत नाजुक है। वहाँ मेहनत करने के बाद देखा गया कि फिरसे लोग एक साध जुड़ गए। फिर से आनन्द विभोर हो गए। सब के सब इक्कडे हो गए और अन्दर चले गये तो हमारे लिए एक बहुत बड़ी चीज है कि हम तो आनन्द के सागर में इब रहे है। और आनन्द को हमने प्राप्त किया। अब इसको बाँटना है। और इस आनन्द को शाश्वत बनाना है, हमेशा के लिए। ये आनन्द तभी शाश्वत रह सकता है जब हम अपने क्षुद्रता को छोड़ दें। जैसे कि एक बुँद जो सागर हो गई। उसकी सारी क्षुद्रता खत्म हो गई, उसकी मर्यादाएँ टूट गई। और उस सागर के साथ ही वो उठता है , गिरता है, और उस. सांगर के साथ ही सारे कार्य करता है। माने ये कि जो परम चैक्तन्य जिसे हम जानते हैं, जो हर समय डमें देखता है| एक कार्य को देखता है। उस परम चैतन्य को हमने सब कुछ सोंप दिया। सम्भालता है, और हमारे हर जो वो परम चेतन्य जो है इतना कार्यान्वत है, उसकी तो कमाल है । बो जिस तरह से कार्य करता है, उसका कार्य चलता है। और उस कार्य भी कुछ करता है, सिर्फ आपके यश व हित के लिए| पूरी समय में हमें कुछ करने का नहीं। सिर्फ हमें उसमें रत होना है उसमें एक जान होना है एक नया संसार हर्में बसाना है । और उस संसार में हजारों के तायदाद में हमें उतरना पड़ेगा। खासकर बम्बई में बहुत मेहनत की है। बहुत सालों से मेहनत की है। और उस मेहनत में सबको सोचना चाहिए, सबेरे उठकर रोज, कि हमने सहजयोग के लिए क्या किया और आज क्या करेंगे और हर शाम को सोचना चाहिए, आज हमने क्या किया , और आगे सहजयोग के लिए क्या करेंगे। विचारधारा अगर सहजयोग की बना रहे तो ।उनमे शन्ती होती है, उनमें विचारता स्थापित होती है। जबके हम कुछ कर नहीं रहे। ये तो सारा कार्य परम चेतन्य कर रहा है । , और दो हज़ार आदमी अन्दर हाल में थे। ओर में जब रूस गई धी तो दो हजार आदमी बाहर सारे के सारे पार हो गए| कीब, मॉस्को, व लेनिनग्राइ गए। और उन लोगों में मैंने देखा कि इतनी गहनता क। और वहाँ से सात लोग रूस के ऐमबसी से आप और पार हो गए। है। हम कैनबरा गए, तो पता नहीं हमारे अन्दर जो धर्म का परभाव है, ये ज्यादा है, जो कि मनुष्य का बनाया हुआ धर्म ये है। या हमारे अन्दर अहंकार की बड़ी ज़बरदस्त छाप है। सहजयोग के लिए हम तयार हैं या नहीं, हमें इस कार्य में ही सोचना चाहिए। हम इसके सिपाही हैं। परमात्मा ने हमें इसके लिए चुना है। और चैतन्य को ऐसे गहरे लोग चाहिएँ| दो चार भी गहरे लोग हो जाएँ तो करनेवाले हैं। परम उनके देश का कल्याण हो सकता है। जैसे पूर्वी कलाक के लोग सारे पार हो गए, रूसमें और जेसे वो अपने वे हैं गहरे लोग। बरलिन की दिवार गिर गई। देश गए, हर एक देश में बदल हो गया एक दम से। कतंस 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt छोटी छोटी चीजों में भी हम अमी मी उलझे हुए लैकिन अपने यहाँ ये बात नहीं है। वो गहरापन नहीं है। ये करना है, वो करना है। ठीक है। रुकावट है । हम लोग सब कार्य करते रहते हैं, हैं। कुछ ना कुछ लेकिन यो मुख्य नही है। मुख्य है सहजयोग। आप इसलिप दुनिया में आयें हैं कि आप लोग सहजयोग करें । और सहजयोग में आप पूरीतरह चिपके रहें। इसलिए अपने देश का क्ल्याण नहीं हो रहा। इतने बड़े सहजयोगी वैठे हुए है। इस देश का कितना बड़ा क्ल्याण होना चाहिए धा। पर हो नहीं रहा। क्या वजह है? जहाँ कि तीन चार लोगों ने देशों को बदल डाला। ऑस्ट्रेलिया में भी हमने देखा कि पहले वहाँ कछ कैदी लोग गए और उनके साथ जेलर मी गए। और शुरूआ द ऐसी हुई ऑस्ट्रेलिया की । और उसके बाद अभी पेसे लोग जो लीडर थे वो तो हो गए जेलर , बाकी सब कैदी। और कैद खाने में हैं। वहाँ ये बात समझ में आती है कि गडबड़ हो गई और चीज ठीक हो जापगी। पर मुझे हिंदुस्थान में समझ नहीं आता कि यहाँ पेसे ओछेपन की बात क्यूँ होती है। कि लीडर कौन है, क्यूँ है । ये छोटी चीजे हैं ये तो यहाँ ही गिर जाएँगी आपके अन्दर स्वयं स्वयंभू की शकती है। ব। इतनी शक्ती है आपके अन्दर, जिसको अभी आपने उपयोग में ही नहीं लाया। सहजयोग की बाते करेंगे इथर गप्पे मॉरेंगे कुछ लोग सोचते हैं कि हम सहजयोगी हो गए तो बड़े उँचे आदमी हो गए सहजयोगी के बहुत से लक्षण हैं। है कि मैं उजाला ही हैूं मुझसे उसका पहला लक्षण ये है कि और लोगों से घुल मिलाना। बो जानता जो लोग हैं उनसे मैंने जाना। वो निरालापन है इसलिप मैं बहुत ही ज़्यादा नम हूँ । और मुझे इन लोगों पर दया आती है कि क्या ये लोग सब नर्क में जाएँगे? इनका क्या हाल होने वाला है। मेरा इनका रिश्ता सिर्फ इस दुनिया का है। और अगर इनके अकल नहीं आई तो इनका मैं कुछ नहीं कर सकता। जाने दो इनको। ये सब जाएँगे। इस तरह से एक बहुत सुझबूझ, समझ रखने वाला इन्सान सहजयोगी कहा जा सकता है। जो किसी भी चीज में ममत्व में छुटा हुआ हो मेरी बीवी, मेरे बच्चे, मेरी माता, मेरे पिता, मेरा ये घर, इत्यादि। "मेरा" "मेरा"।। मैं कहूँगी ये मेरा शरीर है, ये मेरी बुध्दि है, ये मेरा अहंकार है, म मेरा मूँह है। मेरा है ना, तो "मैं कोन हैं। उस "मैं" को जानना है और वो "मैं" कौन हैँ? वो "मैं" ही आत्मा हूँ। जब तक आप "मैं" पर नहीं पहुँचते तब तक "मेरा" "मेरा" चलते रहेगा। ये ममत्व से छुटना चाहिए। जिसका अभी छुटा नही वो अब तक सहजयोगी नहीं हुआ। वो सहज में आए है, लेकिन अभी ऐसे वैसे हैं। दूसरी बात हे कि उसका विश्वास अपने अन्द्रणी धर्म पर है, बाहर पर नहीं। बाहय के किसी भी घर्म अन्दूणी अपने घर्म को मानता है को नहीं मानता। सब बेकार की बाहय की चीज़ से बिल्कुल छुटा हुआ है। है बो हर तरह से नम्र है किसी को दुखाता जो असली धर्म है। पूरी तरह से वो उसी धर्म में बैठा हुआ नहीं। किसी को तकलीफ नहीं देता। किसी को परेशान नहीं करता । किसी के साथ ज्यादिती मी नईीं करता। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt वो सत्य बोलता है और जहाँ नहीं बोलना, वहाँ नही बोलता। हर समय बोलते ही नहीं रहता। दुसरो व की चीज़े नही लेता, उनकी तरफ, नजर नहीं रखता है तो मस्ती में रहता है। जो मिला सो मिला, जो नही मिला सो नहीं मिला। आराम से बैठा है। आज जन्मदिन के लिए ये नहीं कहना चाहिए, लेकिन मेंने सोचा बीस साल हो गए हैं, आज बताना चाहिए कि असली हीरा कैसे बनता है। दुसरा ये, कि वो कारयदे में रहता है। बिना कायदे काम नहीं करता। मैंने पति पत्नी में रोज़ झगड़ा होते देखा कि तुम सहजयोगी नहीं हो । पेसे नहीं हो, वैसे नहीं हो। नहीं है तो नही है। लड़ने से क्या फायदा। नही हैं तो रहने दो । लड़ाई नहीं करता किसीसे। उसकी लड़ाई जो है, उसकी शक्ती हैं। उसका ा प्यार है। आप अगर लड़ाई करना बन्द कर दें, तो पचासों काम हो सकते हैं। दुसरों से लड़ना, दुसरोंसे कोध करना, ये सब सहजयोगी नही करते। वे अपनी शन्ती में खड़े रहत्ते हैं। जैसे की एक चांनी राजाने अपने दो मुर्गे लड़ाईमें ट्रेन होने के लिए एक साधु के पास छोड़ दिए। उन्हे वहाँ ट्रेनिंग मिली। उसके बाद राजा जब उन्हें लेकर लड़ाई के आँगन में उतरा, जहाँ बहुतसे मुर्गे थे। सारे मुर्गे एक दुसरोंको मारने लगे ये दोनों अपने आरामसे बैठे रहे। उनकी शान्ती देखकर के बाकी के मर्गे ठंडे हो गए| जितने मुर्गे थे वे है हर जगह जहाँ कोई तकलीफ हो, परेशानी सब भाग गए तो ऐसा इन्सान अत्यंत शान्ती का पुतला होता हो, उसकी शान्ती पकदम प्रबल हो जाती है। उसका एकदम प्रकाश फैलने लग जाता है। जब कोई आफ़त आ गई या तकलीफ़ हो गई, एकदम शान्ती हो जाती है । और पसे आदमी का स्वरूप ही और हो जाता है। इर जगह लड़ाई करना, झगड़ा करना, हर जगह बादविवाद करना, ये सहजयोगीयोंका लक्षण नहीं। शान्ती पूर्वक रहना, शान्तीसे रहना। बहुत से लोगों में ये है की अगर कोई रेलगाडी या हवाइ जहाज से जाना है, बस आफत आ जाती हैं। आप परमचेतन्य के आसरे बैठे हुए हैं। वो सब कर रहा है। तो आप शान्त बैठो। देखते रहो। क्या हो रहा है। जैसे होना है वैसा ही होगा। आपको अगर किसी से नफरत करना एक दुसरों से नफ़रत करना एक महापाप है सहजयोग में । जो है तो आप जाकर के उससे प्यार से बातें करिये । उसके लिए दो चार चीज़े आप तोफ़ा ले आईये। दुष्ट प्रवृत्तीया है, उसके लिए आप कह सकते हैं कि नष्ट हो जाएँ। दुष्ट लोग की नष्टता ठीक हैं। लेकिन सहजयोगीयों का सहजयोगीयों में प्यार नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती। कितना प्यार होना चाहिए। आपके जैसा और है कौन। आप ही तो सब एक दूसरे के भाई बहन हैं। ऐसे जब बाहर के देश से लोग आते हैं तो आप लोग उनसे मिलते नहीं, दोस्ती नहीं करते। सब अपने बाल बच्चों को देखते रहते हैं। कोई बात नहीं करता। अलग अलग रहते हैं। अलग बैठते हैं। और प्यार में तो भाषा की कोई ज़रूरत नहीं। सी सारे विश्व में भी आप सबके भाई बहन हैं, उनसे मिलना भी एक तरह का आदर, प्यार, एक अनीखी चीज़ सी है। आप लागों को उनको चिठ्ठी लिखना चाहिए। उन्के फोटो होने चाहिए। बच्चों के नाम आने चाहिए। कहाँ है। आपसी प्यार खुद बड़ी चीज है, एक बड़ी संग शक्ती हैं। इसके जानना चाहिए, सब लोग कौन है, 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt आगे कोई नहीं झुक सकता। सहजयोग सिर्फ प्यार की शब्ती है, और कोई इसकी शक्ती नहीं। प्यार की शबती इतनी जबरदरुत है कि वो सारी शक्तियों को काट देती है। चालीस देश में हम लोग काम कर रहें हैं। चालीस देश में हमारे भाई बहन हैं। ऐसा कभी हुआ है? जो एक दुसरो की परवाह करें । जो एक दुसरे को माने। जो सहजयोगी होता है वो अत्यन्त चरित्रवान होता है उसके लिए जो स्त्री पुरूष, वेकार की माया कोई औरत है । कोई आदमी मोह है, ये छुते ही नहीं हैं। वो एकदम पूरी तरह से निष्काम हो जाता है। हैं उनके आपसी सम्बन्ध, ये सब फालतु की चीर्जे, जो कि कचरा था, उस कचरे से निकलकर, एक शुद्ध आत्मा स्वरूप हो जाता है ऐेसी आत्मा कितनी जबरदस्त शवती होती है। अपने शुध्दता में उतरना चाहिए। शुध्दता में उतरने का मतलब ये नही कि आप अशान्त हों। जो आदमी शुध्द होता है वो कभी अशान्त हो ही नही सकता। जो चीज़ सब चीज को शुध्द करती हैं वो कैसे अशान्त हो। लेकिन शुध्दता के साथ लोग बहुत ज़बरदस्त ज़ालिम लोग हो जाते हैं। कि हम तो ऐसे हैं, हम वैसे हैं हम बहुत अवछे हैं। हम में वड़़ा डिसिप्लिन (नियम अनुसार ) है। हम सहजयोगी हैं और बाकी तो सब खराब। पसा कभी नहीं सोचना चाहिए। सहजयोगं सोचता है कि सब मेरे ही तो अपने हैं। जो शुध्द चीज़ होगी तभी तो उस में सब चीज़ समा सकेगी । ह ाति , इधर से उधर लगाना, ये सब बहुत अशुध्द बात्ते हें। औछी बारते है। ये सब बात्ते करन बोलना बार झूठ , इधर उधर की बात करना और दो दो पैर ही सहजयोग में अमानीय है । और किसी के पीछे बात करना आपको क्या इतने पैसों से परेशानी। चा अरे, सारी लक्ष्मी आपके पैरों के नीचे है । के लिए परेशान होना। पैसे अगर कह दीये, सहजयोग के लिए दे दो तो मार आफत आ जाती है। आखिर सहजयोग के लिए आप कितना पैसा दिया, जरा सोच कर देखिए। इससे ज्यादा तो आप अपना तेल इस्तेमाल करते हैं । सहजयो में कोई खरचा खास होता नहीं है। इसका मतलब नहीं कि अगर ज़रूरत पड़े तो आप लोग पैसे नहीं देंगे यहाँ तो जान देने के लिए तैयार होना चाहिए, कि आप सहजयोगी हैं। आज जन्म दिन के रोज आप लोगों से यही कहना है कि आप लोग सब बढ़िये मेरे साथ। उम में बढ़ना चाहिए। इसका मतलब है कि मनुष्यता आनी चाहिए। एकाग्रता है सो बात ठीक है। लेकिन एकाग्रत का मतलब है, कि जिस तरह से आपके अन्दर अनेक चक हैं, उसमें से एक मी कुण्डलीनी का जिसे जागृह कहें। इसी तरह एक चक पकडता है। दूसरे का दूसरा पकड़ता है। तीसरे का कोई और चक पकड़ता है सौ इस कुण्डलिनी का जागरण और उसका सारे च्को में से गुजज़र जाना और फिर सहस्त्रार में लीन हो जान अवतरण किसी ने तो मी नहीं कि सन्यासी, महाझषी योगी, कितनी महान चीज हैं । वो किसी साधु, ये काम, जो आप लोग कर रहे हैं इतनी शक्ती आपके अन्दर आ गई लेकिन वो सब शक्ती को बरदा करने के लिए हमारे अन्दर उतना ही सहनता होनी चाहिए। बोलटेज जितना हम बरदाश्त करते हैं, उत बढ़ा सकते हैं । बहुत उ़्यादा। और ये स वोल्टेज हमारे अन्दर आ सकता हैं। लकिन ये वोल्टेज हम बहुत 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt ने तो विशेष रूप धारण किया है इसलिए मैंने सारी बातें कह दी हैं आप के सामने, कि किस तरह से हम लोग अपने अन्दर और बाहर अपने जीवन को प्रफूल्ल कर सकते हैं । है। उसमें ये पगलपन नहीं है, कि मैंने सबेरे नहाया ध्यान धारणा से अन्दर की सफाई हो जाती नहीं। मैंने चार बजे उठना धा, पर में साडे चार बजे उठा। तो क्या हुआ। इस तरह की बात नही है। बाहय के कोई आवरण नहीं हैं। पर ध्यान करना चाहिए। हर समय ध्यान में ही रहना चाहिए। अपनी स्थिती ध्यान में कितनी देर हैं । कोई भी चीज़ आपको गड़बड़ में डाले, तभी ध्यान में जाना चाहिए ध्यान में जाने का मतलब क्या है? आपका सम्बन्ध इस परम चैतन्य से हो गया। जिस समय आप ध्यान में गए, परम चैतन्य से आपने एारिता स्थापि त कर दिया। कितनी देर हम ध्यान में रह सकते हैं। कोई विचार है, और उसके बाद जो प्रकाश है उसे। आए। नहीं चाहिए। ध्यान ।। कोई एक स्थिती, एक व्यक्तित्व लेकरके हमें लोजना है लागों को। उनसे बाते करना हैं। उन्हें प्रकाश देना हैं। पर जब आप लोगों से मिलते है, वो आपकी प्रकाश की ओर नज़र करेगा, वो देखेगा कि आपमें वाके प्रकाश है कि आप ऐसे डी झूठा । आपके व्यक्तित्व को देखेगा। दिलासा लेकर घूम रहें हैं। उस ववत जो भी है, वो आपके चरित्र को देखेगा। । आपने क्या पाया हैं, उसे देखेगा|। और आपमें से बहुत ऊँचे उँचे लोग आप में क्या वात है, उसको जानेगा निकलकर के चारों देश का, सारे दुनिया का उद्दूधार कर सकते हैं। कोई चीज की चिन्ता करनी सहजयोग में माननीय नहीं। क्युकि सारी चिन्ता परम वैतन्य करता हैं। हमें सिर्फ एक ही चिन्ता होनी चाहिए, कि मॅ ध्यान में रह। आनद में कभी कमी नहीं आने पाए और हमेशा मौज में रहो। आपकी भक्ती, सेवा, प्यार देखकर के बहुत खुशी होती है। लेकिन कुछ अपनी भी सेवा पतलि एक करिये। अपना भी विचार रखिये। अपनी भी कोई सजावट हो। अपना भी स्थाल किया जाए। कि आप हीरा हैं। उसे पूरी तरह से तलाश करिये। कि जिसका कोई भेदी होना चाहिए सब विश्व के लोग हैं विश्व निर्मला धर्म में उतरे हुए हैं हम अलग अलग देश में रहते हैं , लेकिन हम हैं एक ही देश के रहने वाले। सबको हम अलाहद उसमें आनन्द और उल्लास से रह रहे हैं। और वो है परमात्मा का सामराज्य और दे रहे हैं। कितनी बड़ी चीज़ है। जेसे कि एक वाटिका में फूल हैं। जिन्हें देखकर के बड़े बडे लेखकों में स्फूर्ती आ जाए इन को देखकर के सब खुश हो जाएँ ऐसे लोग आप हैं ऐसे ही फ्लों की मुझे आशा हैं। मैं चाहती हूँ कि आप कोई विशेष सब लोग कार्य करें। हर एक गाँव में, देहात में, जहाँ आपसे बन पडता है। एक दिन ऐसा आएगा कि बहुत से लोग सहज योगी नज़र आने लग जाएँगे हर जगह। आशा हे आप लोग आज मेंरे जन्म दिन पर एक निश्चय करें। नम्रता पूर्वक, कि हम माँ इस साल सौ आदमी पार कराएँगे। कम से कम हर आदमी कोशिश करें। हो सकता हैं। इर तरह से। लोगों को खाने पर बुलाइये। लोगों को चाय पानी पर बुलाईये, लोगों से बात चीत करिये, कि वो सहजयोग करें। कितने कि चमत्कार हैं, सहजयोग में। उन्हें चमत्कार आप बताईये। अब सबसे बड़ा चमल्कार हो गया है, 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt अब हमने "अॅडस" भी ठीक कर दी। कैन्सर ठीक हो जाएगा। अभी भी बहुतों को ये ही मालूम नही वि कौनसी उँगली पर कौन सा चक है पर फिर भी आप सब लोग अेडस ठीक कर सकते हैं। मानसिक तकलीफे ठीक कर सकते हैं सबको जागृती दे सकते हैं। और आपको अभी तक ये नहीं मालूम कि कौन सा चव तर कहाँ पकड़ रहा है तो इसका ज्ञान होना चाहिए। हर एक को, चाहे स्त्री हो या पुरुष हो। पुर्षों से ज्ञान लो और औरतों से उसकी बाईब्रेशन लो। उसकी सुझ बुझ लौ। उसकी जो प्रगह होती है वो औरतों मे ज्यादा होती है। पुरुषों में बुद्धि का ज्ञान होता है और औरतों में हृदय का ज्ञान होता है। दोनो चीज़ सामान्य से आनी चाहिए। जितना हो सकता है करना चाहिए। इस साल में खासकर मेहनत करना चाहिए। आपको जैसा आनन्द होता है ऐसे सारी दुनिया हो जाए। तो कार्य बहुत जोरों से हो सकता हैं और हम लोग कुछ पा सकते हैं। सबको मेरा आनन्त आशीर्वाद किली 30-3-9( जन्मदिन का मापण, आज नवरात्री की चतुर्ती है। और नवरात्री में रात्री को पूजा होनी चाहीए। अन्धकार को दूर करने के लिए अत्यावश्यक है की प्रकाश को हम रात्री में ही ले आएेँ आज के दिन का एक और संजोग है की आप लोग हमारा जन्म दिन मना रहें हैं। आज के दिन गौरीजी ने अपने विवाह के उपर्त श्री गणेश की स्थपना की। श्री गणेश पावित्र का स्तोत है। सबसे पहले इस संसार में पवित्रता फेलाई गई। जिससे कि जे भी प्राणी, जो भी मनुष्य मात्र इस संसार में आप वो पावित्र से सुरक्षित रहें, और अपवित्र चीजों से दू रहें। इसलिए सारी सृष्टी को गौरी जी ने पवित्रता से नहला दिया। और उसके बाद ही सारी सृष्टी के रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हमारे लिए ये है कि हम अपने अन्दर पावित्र को सबरे ऊंची चीज समझें। लेकिन पावित्र का मतलब ये नहीं कि हम नहायें, धोयें, सफाई करें, अपने शरीर को ठी करें। किन्तु अपने हृदय को स्कछ करना चाहिए। हृदय का सबसे बडा विकार है कोध । और जब मनुष्र में कोध आ जाता है तो जो पवित्र है वो नष्ट हो जाता है । क्युकि पवित्र का दूसरा ही नाम निव््याज प्रे है। वो प्रेम जो सतत बहता है, और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्त इसी में है कि वो बह रहा है ओर जब नहीं बहता तो वो परेशान होता है सो पावित्र का मतलब ये है कि आप अपने हृदय में प्े को भरे। कोध को नहीं। कोध हमारा शत्रु हैं लेकिन वो संसार का शत्रु है। दुनिया में जितने भी युध हुए हैं, जो जो हानियां हुई है ये सामुहिक कोध के कारण हैं। कोध के लिए बहाने बहुत होते हैं। लेकिन युध्द जैसी मयंकर चीज़ भी कोध से ही आती हैं उसके मूल में ये कोध होता है। गर हृदय में प्रेम ह तो कोध नहीं आ सकता, और गर केोध का दिखावा भी होगा तो बो मी प्रेम के ही लिए किसी दुष्ट राक्षर 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt को जब संवार किया जाता है ।, यो मी उसपे प्रेम करने से ही होता है। क्योके ये इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाए जिससे वो और पाप कर्म करे। लेकिन ये कार्य मनुष्य के लिए नहीं है, ये तो दवी का कार्य है जो उन्होंने इन नवरात्रीयों में किया। सो हृदय को विशाल करके हृदय में ये सोचे कि हम किससे पेसा प्रेम करते हैं जो नि्वन्य, निर्म है जिसके प्रति, हम में नही कि ये मेरा बेटा, मेरी बहन है, मेरा घर, मेरी चीज। मनुष्य की जो स्थिती मा है आप उससे बहुत उँची स्थिती में आ गए हैं। क्यूंकि आप सहजयोगी हैं। आप का योग परमेश्वर की वो शवित आपके अन्वर अविरल बह रही है, इस प्रेम की सूक्ष्म शक्ति से हो गया। आप बार बार आपको प्रेरित करती को प्लावित कर रही है। आप को संभाल रही है। आप को उठा रही है। है। और आपको आल्लाहद और मुधुमय प्रेमसे- भर देती है। ऐसे सुन्दर शक्ती से आपका योग हो गया। किन्तु अमी इमारे हृदय में उसके लिए कितना स्थान है ये देखना होगा। हमारे हृदय में मँ के प्रति तो |त प्रेम है, और उस प्यार के कारण आप लोग बहुत आनन्द में है। किन्तु और भी दो प्रकार का प्रेम होना चाहिए, तभी माँ का पूरा प्यार हो सकता है। एक प्यार अपने से हो कि हम सहजयोगी हैं। हमने सहज में शकि्ति प्राप्त की, लेकित अब हमें इसे किस तरह से बढ़ना चाहीए। बहुत से लोग सहजयोग के प्रसार के लिए बहुत कार्य करते है । हॉरिझॉन्टल मुब्हमेन्ट पृथ्वी से समान चारों तरह फैलता हो। वो लोग अपनी ओर नजर नहीं करते। तो जो व्हटिकल मुन्हमेन्ट है उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होती। बाहय में वो बहुत कुछ कर सकते हैं। बाहय में दौडेंगे, काम करेंगे, सबसे मिलेंगे, लेकिन अन्दर की शक्ती को नहीं बढाते। बहुत से लोग हैं, अन्दर के शक्ती के तरफ बहुत ध्यान देते हैं और बाहय के शक्ती की तरफ नहीं। तो उनमें सन्तुलन नहीं आ पाता, और जब लोग सिर्फ बाहय के तरफ बढाने लग जाते हैं तो उनकी अन्दर की शक्ती क्षिन्न होने लगती है ऐसे का होते होते ऐसे कदार पे पहुँच जाते हैं कि फौरन अहंकार में ही इूबने लगते हैं कि हमने इतना सहजयोग का कार्य किया है। इतनी महनत की है। और फिर ऐसे लोगों का एक नया जीवन शुरू हो जाता है जा नहीं। वो अपने को सोचने लगते हैं कि हमारा बहुत महत्व होना कि सहजयोग के लिए विल्कुल उपयुकत चाहिए। (सेल्फ इंपॉर्टन्स)हर चीज में बो अपना महत्व दिखाऐंगे अपनी विशेषता दिखाँगे। अपने को सामने करेंगे। लेकिन अन्दर से खोखलापन आ गया है। फिर उनको कोई बिमारी हो गई, पगला गए, कुछ बड़ी भारी आफत आ गई। तो फिर कहते हैं कि "माँ हमने तो पूरी तरह से आपको समर्पित किया हुआ था। फिर ये कैसे हो गया। " इसकी , जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है कि आप बहकते चले गए। फिर ऐसा आदमी एक तरफ हो जाता है। वो दूसरों से सम्बन्ध नहीं कर पाता है। उनका सम्बन्ध सिर्फ लाग्गों पर रोब झाडने का हो जाता है। और अपने आपको ऊंचा दिखाना। सबसे आगे आना चाहिए, सबमें उनका महत्व होना चाहिए। तो फिर पेसा भी होगा कि वो मूल जाएँगे कि कुछ करने का है। माँ के लिए भी कुछ दान देना 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt है। मैंने देखा कि राहूरी, बम्बई में भी कुछ तरह से ऐसे लोग एक दम से उभरकर ऊपर आ गए औ वो अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे। फिर न वहां आरती होती धी। न फोटो पोछते थे नसीब अपने फोटो नहीं लगाए। अपनी डीग मार मार करके किसी से कुछ पूछना नहीं, हम करेंगे। फिर झग शुरू हो गए। गुप्स बन गए। क्यूकि जिस सूत्रमें आप बन्धे हुए हैं यो आपके माँ का सूत्र है। और उसी सूत्र आप बैधे रहें और पूरी समय ये जानते रहें कि हम एक ही माके बच्चे हैं। न हममें कोई ऊँचा न नीचा नहीं, हम कोई कार्य करते हैं, और ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है । हम कुछ करते ही नही हैं। ये भवन डी जब छूट गई कि हम बडे है डमने ये किया, हम वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है तुझे जो करना कर, जहाँ जाना है जा। चाहे नर्क में जा, चाहे अपने को मिटा ले। अपना सर्वनाश कर ले। वो आपको रोकेग नही क्युंकि आपकी स्वतंत्रता वो मानता है। [आप स्वर्ग में जाना चाहे तो उसकी भी व्यव्स्था है। पर सहजयोग में एक और बडा दोम हे। हम पक सामूहिक विराट शक्ति हैं। हम अकेले अकेले नहीं है। सब एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग हैं। उसमें अगर एक इन्सान ऐसा हो जाए, या दो चार ऐसे हो जाएँ जो अपना अपना गुप बना लें तो जैसे कैन्सर होती है की एक सैल ही बढने की मैलिगन्सी लगता है, अलग से। तो ऐसे ही एक आदमी बढ करके सारे सहजयोग को ग्रस सकता है। और हमारी सारी महनत व्यर्थ जाती है। हमको तो चाहिए कि ्र से सीें कि जो सबसे नीचे है, सब नदीयों को अपने अन्दर समाता समु और अपने को तपा करके, भाषु बनाकर के सारी दनिया में बरसात की सौगात मेजता है। उसकी जो नमरता है वोही उसकी गहराई का लक्षण है। और फिर वोही बरसात नदियों में दौडती हुई उसी समुद्र की ओर जाती है। जब हमारे अन्दर अत्यन्त नम्रता व प्रेम आ जाएगी तब ही इस समुद्र की तरह हम विशाल हो जाएँगे। लेकिति अपना ही महत्व करना, अपने ही को विशेष समझना। फिर इससे सबसे बडी खराबी ये है की परम चेैतन्य आपको काट देगा कि जाओ। फिर आप एक तरफ फिक जापेंगे जो मेरे लिए बहुत दुखदाई बात होती है। ऐसे लोग जो सोचते हैं कि हमने ये कार्य किया वो कार्य किया, उन्हें फौरन पीछे हटकर के देखना चाहीप कि हम ध्यान करते हैं ? हम कितने गहरे हैं? हम किस किसको प्यार करते हैं । कितनों को प्यार करते हैं । और कितनों से दुश्मनी। सहजयोग में कोई लोग बड़े गहरे बैठ गए हैं और बहुत से अमी भी किनारे पे ही डोल रहे हैं और कब वो फिक जाएँगे कह नही सकते। मैंने आपसे पहले ही बताया है कि ।990 साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। और एक छलाँग आपको मारनी होगी। जो आप उस मौहाल से उतर करके उस नई चीज को पकड़ लें। इसमें टिकने के लिए पहली चीज़ हमारे फ्दर पावित्र होना चाहिए, जो नम्रता से भरा हो। अगर आप एकदम मा स्व छि हैं, और पवित्र हैं तो आपको किसी को भी छने में, किसी से भी बात करने में कभी अपवित्रता नहीं ंदि आएगी क्यींक आप हर चीज को ही शुध्द करते हैं। आपका स्वमाव ही शुध्द करने का है । तो आप जिससे 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt 10 मिलॅंगे उसी को आप शुध्द करते जाएँगे उसमें डरने की कौनसी बात है। उसमें किसी को कंडम करने की कौन सी बात है। फिर तो आपकी पवित्रता कम है। गर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है तो वो पबित्रता में भी शक्ति और तेज है और वों इतना शवितिशाली है कि कोई सी भी अपवित्रता को खीच सकता है। जैसे हेर तरह की चीज पूरी तरह से समुद्र में एकाकार हो जाती है। अब दूसरे लोग हैं, जो सिर्फ अपनी ही प्रगति की सोचते है । बो ये सोचते हैं कि हमें दूसरे से क्या और हरें दुनिया से कोई मतलब। हम अपने कमरे में बैठकर माँ की पूजा करते हैं, उनको हम मानते है । क्यूंकि आप शरीर के एक अंग प्रतयंग हैं। फिर आप कहेंगे मतलब नहीं। और दुसरों से कटे रहते हैं। कि माँ मैं तो इतनी पूजा करता हूँ इतने मंत्र बोलता हूँ, मैं तो इतना कार्य करता हैँ। फिर मेरा हाल गए सहजयोग सामूहिक शक्ति है । सो दोनों चीज के ऐसा क्यू? क्यूकि आप उस सामूडिक शक्ति से हट तरफ ध्यान देना है कि इम अपनी शक्ति को भी सम्भाले और सामूहिकता में रचते जाएें। तभी आपके अन्दर सहजयोग के लिए वहुत कार्य किया ।वे काफी पूरा संतुलन आ जाएगा। मैने ऐसे लोग देखें हैं जिन्होंने अव्छे भाषण देते थे , बोलते थे। और अपने भाषणों की टेप बना ली। फिर लोगोंसे कहने लगे कि आप हमारी ० छोड़के उन्हीं की टेप सुनने लगे और उनका ये हाल या कि वो हमारें टेप सुनो। तो लोग हमारी टेप फोटो को तो नमस्कार करेंगे, हमे नही करेंगे क्यूकि उनको फोटो कि आवत पड़ी थी। ऐसे विक्षिप्त लोग हमने देखें हैं । फिर उन्होंने अपने फोटो छपाए, और फोटो सबको दिखा रहें हैं। इस तरीके से वो अपना ही महत्व बढाते हैं। करते करते ऐसे गढे में गिर गए। और फिर छूट गए सहजयोग सें। फेसे लोग क्यूँ निकल गए, क्यूंकि संतुलन नहीं। और जब संतुलन नही रहता तो आदमी या तो लेप्ट या राईट में चला जाता है। दो तरह की शव्तियाँ हमारे अन्दर हैं, जिससे की हम सहजयोग की ओर खिचते भी हैं और दूसरी शक्ति जिससे हम बाहर फेके जाते हैं। तो फिर लोग कम हो गए, तो इसमें सहजयोग का नुकसान तेी हूआ नहीं। इसमें उनका ही नुकसान हुआ। अगर आपको फायदा कर लेना है तो इस चीज को जान लीजिए कि सहजयोग को आपकी जरूरत नहीं है। आपको सहजयोग की जरूरत है। योग का दूसरा अर्थ होता है युक्ति। एक तो है कि सम्बन्ध जुड़ जाना, लेकिन दूसरा है युविति। पहली तो युवित ये है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना चाहिए ज्ञान का मतबले बुध्दी नही। व्यक्ति तो हमारे उँगलीयों में हाथों में। अन्दर कुण्डलीनी की पूर्णतय जागरण होना ये ज्ञान है। फिर और भी ज्ञान हैं । और उनको समझा होने लगते हैं। इस ज्ञान के दूवारा आप लोगों की कुण्डलीनी भी जागृत कर सकते उनके साथ आप वात्तालाप कर सकते भी सकते हैं, और उनसे पूरी तरह से आप एकाग्र हो सकते हैं। हैं। तो आपको बौदधिधक ज्ञान भी उससे आ जाता है। आप सहजयोग समझते हैं, नहीं तो कोई समझ सकता था पहले । कबीर नानकजी की बात कोई समझता था? या ज्ञानेश्वर की बात समझी? तो आपका बुद्धि चातुर्य ा 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt दूसरी युवित क्या है? वो है कि जो आप हमारे प्रति मक्ति करें। उस भवती को मी जब आप कर आप अनन्य मव्ती करते हैं। हैं तव आप हमसे तदाकारी में जुड़ जाते हैं। जैसे हम सोचते हैं ऐसा आप सोचने लग जाते हैं। आज देर हो गई तो हम भी ये कह सकते हैं की हम बहुत थक गए हम बसका नही, लेकिन इमने सोचा नवरात्री है तो रात को ही करना चाहिए और यही मूहूरत हमको मिलना तलि वो हमको करना ही है और बडे आनन्द से हम कर रहे हैं। उसके बारे में हम सोचते भी नहीं कि ह धक गए, हमने आराम नही किया। और आपको मी पेसा सोचना चाहिए कि यही समय माँ ने बांधा है लेकिन आधे अधूरे लोग उल्टी बाते सोचेंगे । ह के लिए। क्यूंकि यही समय हमारे लिए उचित है। पूजा सुबह से बेठे है, हमें भूख लग गई। बचचे सों रहे होंगे। तो बो अनन्य भक्ती नहीं है क्योक मेरा जो से विचार है वो आपके सोच विचार में नही है। किसी के लिए मैं सोचती हैं, तो माँ ये इतना खराब है मैं जो देख रही हूँ ये क्यूं नहीं देख रहे ऐसा है । मैं कहती हैं जी नहीं कि्कूल अवछा है। में सोचती हैं तो अनन्य नही हुआ, अन्य हो गया दूसरा हो गया। इसी प्रकार जैसे इमारा प्यार आप के प्रति है, तो आप भी सबके प्रति वैसा ही प्यार रखें। अग ये बात आपके अन्दर नहीं तो ये अन्य है । अनन्य नहीं। गर हमारे ही शरीर के अंग प्रत्यंग है तो उ जैसे हम सोचते हैं वैसा ही आपको सोचना चाहिए तो ये हम है ऐसे ही उनको होना चाहिए। दुसरा ३ सोचते हैं, ये उल्टी बात क्यूँ सोचते हैं। यही प्रेम का स्तोत है कि जो कूपै में है वोही घट में आना चाहिए हूँं की इन्होंने कोई और क दूसरी चीज कैसे आ सकती है। और कोई दूसरी चीज आती है तो मै सोचती से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं। जब दूसरी बात की माँ हम आपमें शरणागत हैं। जब शरणागत हैतो फिर हम आपको कुछ कह भी ें या कोई चीज समझा दें, या कोई आपके सामने प्रस्ताव रखें, कुछ रखेखे, तो उसको मना करने का सवा ही केसे उठेगा। पर आप और हम एक हो गए, तो उसका सवाल ही कैसे उठना चाहिए। माँ ने कह दिया । कह दिया । हम तो माँ ही हो गए हैं हम नहीं कैसे कर सकते हैं तब आप में ये तदाकारी नहीं आई सो दूसरी युविति है कि माँ मेरे हृदय में आप आओ। मेरे दिमाग में आप आओ, मेरे विचारों में आप आओ मेरे जीवन के हर कण में आप आओ । आप जहाँ भी कहोगे हम हाजिर हैं हाथ जोडकर। पर आप वं कहना तो पड़ेगा न, और पूर्ण हृदय से। किसी मतलब से नहीं। तीसरी बात - हम ये काम कर रहे हैं हमने सहजयोग का ये काम किया, हमने ये सजावट की ठीक ठाक किया। मैने किया। तो सहजयोगी आप नहीं। सहजयोग में सारे आपके कर्म अकर्म हो जाने चाहिए व तो आप देखेंगे कि क्या मैं ऐसा सोचता हूँ, कि मैंने किया जब आप बारीक सूक्ष्म में देखते जाएँं ऐसे मेरे दिमाग में बात आती ही क्यू है। इसका मतलब मेरा योग पूरा नही हुआ। जब योग पूरा ह जाता है तो आप अकर्म में उतर जाते हैं। जैसे की ये हो रहा है, वो हो रहा है, ऐसे आप बोलने ल जात हैं तब आय को पररी नर से तदाकारी पाप्त हो गर्ट| 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt 12 तीसरी युक्ति है जिसको सीखना चाहिए कि जहाँ मैं कुछ नही कर रहा हैँ। मैं क्या कर रहा हूँ| जब तक आप अपना कार्य ढूंढ रहे थे, तब तक आप कुछ कर रहे थे क्याके आपके अन्दर अहम भाव था। जब आप सामुहिकता में आ गए। तब आप कुछ भी नही कर रहे। आप अंग प्रत्यंग है और वो कार्य हो रहा है। ये युक्तियाँ में इस लिए बता हडी हैं कि झलांग जो लगानी है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करें। और अपनी ओर नजर रखें। और देखें कि मैं क्या सोचता हूँ। मैं दूसरे के लिए सोचता उसके अध्छे गुण दिखाई देते हैं कि बुरे ही गुण दिखाई हूँ। वो मुझसे श्रेष्ठ है, उससे मुझे सीखना चाहिए। देते हैं। दूसरों के अच्छे गुण दिश्लाई दें और अपने बुरे गुण तो बहुत अव्छी बात हैं। इस युव्ति की समझ लेना चाहिए कि इसमें हम ढााो डोल हैं तो अपने ही कजह से हैं सहजयोग तो बहुत ही बड़ी चीज़ हैं । लेकिन हम में जो खराबी आ रही हैं या इसका मज़ा हम पूरी तरह से नहीं उठा पा रहे हैं इसकी वजह हममें कोई न कोई दोष है । इस युक्ति को अगर आपने ठीक किया तो सिर्फ आनन्द, मिलेगा। नीरानन्द। आपकी शकल ही बदल जाएगी। और कुछ नही। और फिर चाहिए क्या? और आज इस जन्म दिवस प र में चाहँगी कि आपका भी जन्म दिवस मनाया जाए, कि आज से हम इस यूक्ति को समझे और अपने को इस पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश और पवित्रता से ही मनुष्य प्रेम ही का नाम है। और अगर आप सुबुध्दि को प्राप्त नहीं कर सकते, में सुबुध्धि आती हैं । क्यूकि पवित्रता और प्रेम को आप अपना नहीं सकते तो सहजयोग में आने से अपना समय बरबाद करना हैं। इस कृत ऐसा कुछ समय बन्ध रहा है कि सबको इसमें सनात हो जाना चाहिप, और अपने को परिवर्तन में डालना ही है। परिवर्तित हमको होना ही है। हम में खराबियाँ ही हैं, हमें अपने को पूरी तरह से पवित्र बना देना है। इस परिवर्तन के फूल स्वरूप आशीर्वाद है उस जीवन का जिसका वर्णन नही किया जा सकता। जो कबीर अब मस्त हुए फिर क्या बोले। तो आप सब उस मर्ती में आ जाईए। उस को प्राप्त करें और ने कहा - ये इमारा आशीर्वाद है । उस आनन्द में आप आनन्दित हो जाएँ। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt 13 श्री माताजी प्रवचन राम तीला मैदान किन्ली 4-4-1990 हमें ये जान लेना चाहिए कि सत्य अपने जगह है। उसको हम अपनी बुध्धि से नहीं समझ सकते, न बना विगाड सकते हैं। वो जैसा है वैसा ही है। मनुष्य अपने अहंकार में सोचता है कि वो परमात्मा का नाम लेकर , और जेसा चाहे उसे बनाये या बिगाड़े। अन्दर वो स्थिती नहीं आई हैं कि जिसने इस चारों तरफ फेली हुई चैतन्य की शवित और रूह को जाना है। इस शवित को महसूस करना सबसे बडा सत्य है। ये शक्ति संसार का सारा काम, सारा जीवित कार्य, संसार को हर तरह से व्यवसिथित रूप से रखने में कार्यान्वित रहती है। और इसका संतुलन, इसकी परवरिश करती है। इसी को रूह या चैतन्य कहा जाता है। या होली गोस्ट भी कहा जाता है। ये शक्ति स्थित है, यह पहला सत्य है। दूसरा सत्य ये है कि आप सवयं, ये शरीर, बुध्धि, अहंकार आदि ये कुछ नहीं है आप सिर्फ शुध्द आत्मा हैं, जो कि इस शव्ति को जान सकता हैं और पूर्णतय इसको अपने अन्दर समा ले सकता है। इस शक्ति को प्राप्त करना ही मनुष्य के उत्थान का औंतम चरण हैं। और उसमें पकाकरिता मिल जाना यही एक योग है। आज आप एक अमीबा से इन्सान बन गए। अब इन्सान के बाद जो उसकी दुसरी दशा है उसमें मनुष्य को अब सन्त बनना है माने उसको आत्म सा्षात्कार चाहिए। इसके सिवाय आप केवल सल्य को नहीं जान सकते। सब धर्मों में एक ही तत्व है, पर उसे समझने के लिए सबसे पहले हमें आत्म स्वरूप हो जाना चाहिए, क्युंकि ये आत्मा उसी परमात्मा का हमारे अन्दर प्रतिबिम्ब है इसके घटित होते ही आपकी तन्दुरूस्ती अच्छी हो जाती हैं, सब से यहले। आप किसी भी धर्म में जाएँ, कुछ मी कर्मकाण्ड करें, किसी भी गुरु के पास,,जाएँ, जागृति विना आपकी तन्दुरुस्ती अच्छी नही हो सकती। आप कोई सा भी विश्वास रखें, पूजा पाठ करें, मन्दिर, मस्जिद, गिरिजायर या गुरूदारे जाएँ तो मी आपके अन्दर शान्ती हमेशा के लिए नही आ सकती। और ये बुलाना, चीखना, चिल्लाना सब व्यर्थ है जब तक मनुष्य का सम्बन्ध परमात्मा है और आप देलिफोन पर बोले जा रहें हैं। रमात्मा से नही हो जाता। जैसे टेलिफोन का कनैक्शन नहीं तो आपको सुन नहीं रहा। लोग प्रश्न ये करतें हैं कि क्या परमात्मा है कि नहीं। परमात्मा किन्कूल हैं लेकिन इस सत्य को जानने होना चाहिए, बली होना चाहिए। क्युकि इसके बिना न आप परमात्मा को के लिए आपको आत्म साक्षातकारी और न इस परम चेतन्य को समझ सकते हैं। अभी एक सीडी मनष्य को ऊपर जाना है इस सीडी को न , अक्बर , के अंग प्रत्यंग लॉंगते ही आप जान जाएँगे कि इस सृष्टि में जितने भी मनुष्य हैं वे एक विराट के हैं। और आपके अन्दर एक नया अयूयाम आ जाता है। इसमें आप अपने नस नस में दूसरे आदमी को आप हमेशा "मेरा" कहते हैं जान सकते हैं, और अपने को भी जान सकते हैं ये सामूहिक चेतना है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt - 14 - पर ये मैं कोन हैँ? इसे जब तक आपने जाना नहीं, जब तक आपने अपने अन्दर की आत्मा से अपना चित्त आलोकित किया नही उसमें उसका प्रकाश आया नहीं, आप जो भी कार्य करते हैं , वो अन्येरे में करते हैं। इसीलिए कबीर ने कहा "कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा"। समझने की बात है कि, सन्त, साधू, और साधू, और वली जैसे निजामुदिन साहब, नानक, रामदास बड़े बडे सन्त हो गए दूसरों से कहते थे कि तुम अच्छे रास्ते पर चलो। लेकिन दूसरे इस लिए नहीं चल पाते थे क्यूकि उनके अन्दर आत्मा की शक्ति नहीं थी। जब आत्मा की शक्ति आ जाती है तो आपकी सारी गन्दी आदतें छट जाती है, अपने आप ही। आपके अत्दर जो बसी हुई माँ कुण्डलिनी है जिसे असस भी कहते हैं, ये जब जागृत हो जाती है तो इस कुण्डलिनीके कारण आ प एक दम स्वव्छ हो जाते हैं। और आपकी शारीरिक , मानसिक और बीदिधक की सफाई हो जाती है । सबसे बड़ी बात ये है कि आप केवल सत्य को जानते हैं। इस तरह की चीज़ हुए बगेर न तो अपना देश ठीक हो सकता है और न ही सारा विश्व। विश्व में लोग शान्ती की बात करते हैं पर जिसके हृदय में शान्ती ही नहीं हैं वो किस तरह से शन्ती को प्राप्त करेगा। अलग अलग शान्ती की संस्थाएँ बनाई गई हैं और दोनो आपस में लड़ रहे हैं । धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं। क्यों? क्यूंकि हमने अब तक अपने अ्दर घर्म जागृत नहीं किया । सब का एक ही धर्म है और वो धर्म है इस परम शक्ति को अपने अन्दर प्राप्त कर लेना और उससे अपने को आलोंकित कर लेना, सजा लेना। ये सजावट मनुष्य को बड़ा खूबसूरत बना देती है उसका चरित्र सुन्दर हो, जांता है यो ए्क साक्षीस्रूप हो जाता है। वो किसी चीज की लालच या किसी ओर गन्दी दृष्टि दे ही नहीं सकता। उसकी दृष्टि इतनी. निर्मल हो जाती है, इतनी शुध्द हो जाती हैकि ऐसी दृष्टि मनुष्य पे भी पड़ जाए, जिस घर पर पड़ जाए, जिस जगह वो पहँच जाए वो जगह ही पवित्र हो जाती है , और वहाँ सब शुभ हो जाता है । वहुत से लोग परदेस से मुझे कहते हैं कि माँ आपके देश में इतने धार्मिक लोग हैं पर फिर आपके देश में इतबी गरीबी क्यूँ हैं? वो इसलिए है कि किसी का भी सम्बन्ध परमात्मा से हुआ नहीं। जब परमात्मा का सम्बन्ध हो जाता उसके अन्दर शवि्तियाँ आ जाती हैं । सबसे बडी शब्ति आती है कि आप भी दूसरों को जागरण दे सकते हैं। आप दुसरों को आत्म साक्षा त्कारी बना सकते हैं । एक से हजार बना सकते हैं । उसका विशेष परिवर्तन हो जाता है। गुस्से व झगड़ालु लोग भी एकदम शान्त हो जाते हैं। विचलित इन्सान, या कोई दुखी हैं तकलीफ में है, उसकी सारी व्यथाएँ नष्ट हो जाती हैं, और वो आनन्द के सागर में इूब जाता है। ऐसा इन्सान न आताताई होता है न किसी पर ज़बरदस्ती करता है। वो तो सब को ठीक कर सकता है। इस तरह का व्यक्तिव्य सारे संसार में तैयार हो सकता है क्यूकि कलयुग अब खत्म होके कुतयुग शुरू हो गया है। इस कृतयुग में परमचैतन्य कार्यान्वित है। उसके कार्य के कारण हजारों लोग अब चारेंगे कि उन्हें पार हो जाएँगे, जो आएँगे और जागृत्ति हो। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt 15 हर देश में साधु सन्त हो गए हैं। नहीं तो पहले एक या दो थे। सबको सताया गया था श्री कृष्ण, श्री राम, मुहम्मद साहब, सोकेटीस, लाऊसे को सताया। और सारे सन्तों को छल छल के सतावा थे । पर अब वो सामुहिकता में आ गए हैं अब कुलयुग में सारे रतों का रक्षण होगा और क्योंकि वे अकेले उन्हें कोई नहीं सता सकता। और जो सताने का प्रयत्न करेगा उसपर कृतयुग का जरूर दण्ड आएगा। अगर आपको अपना हित चाहिए, आप अपना भला चाहते हैं , वास्तीविक में आप अपनी कदुसूसती ठीक करना चाहते हैं , अपनी हालत व हालात ठीक करना चाहते हैं तो क्यूँ न अपने को पा लिजिए जो आप हैं। क्यूँ इस अन्धकार में आप बेकार के झगडे लड़े हुए किये हैं । आपके हर पक के उत्दर शक्ति है। जो आपको पुर्नजन्म देने के लिए आई है ये आप सब की म है, । और जो चाहती है कि आप इसे प्राप्त लाी करो। सारे धर्मों का यही एक सार है कि तुम इस परम को पाओ । अगर आपने परम को नहीं पाया, तो सारा जीवन व्यर्ध गया। हम लोग उस चीज़ को प्राप्त कर लें जिसकी आज सारे संसार को जरूरत है। बाकी सब कार्य व्यर्थ हे जो होते रहेंगे और क्षण भर के हैं। वे रखत्म हो जाएँगे लेकिन ये कार्य हमेशा रहेगा. जिससे आप देखेंगे कि आपके बाल बच्चे और आपका समाज, व सारा विश्व आपको धन्यवाद देगा। ये जीकत किया है। इसके लिए आप पेसा नही दे सकते। जैसे एक बीज बोया जाय तो धरती माता अपने शक्ति से ही उसको उगा देती है उसके लिप प्ैसा तो नहीं देना पड़ता। एक पैसा भी आपसे कोई परमात्मा के नाम से लेता है, समझ लीजीए वे आपके गुरु नही हैं । वो आपके नौकर हैं जो आपके सहारे चलते हैं। धर्म के नाम पे पैसा कमाना महा पाप है। और उनको पैसा देना भी एक मुर्खता का लक्षण है । जब तक आप इस सच्चे दरबार में नही आएँगे, तब तक सब्च और झूठ की पहचान आपको नहीं हो सकती। संशय करना तो बहुत आसान है। पढ़ लिखकर मनुष्य और भी संशय कर लेता है इसलिए कतर । " उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुध्दि के ही तर्क वितर्क ने कहा कि पढ़ी पढ़ी पडित मूर्ख भये से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है सत्य बुध्दि से परे हे। ये इस जीक्त किया के साथ होता है। अगर तो आपको उपने दिमाग को सुला रखना चाहिए। और इसके बाद देखें कि अगर हैं आप एक शार्त्री व वैज्ञानिक ये घटित होता है, और सिध्द हो जाता है तो फिर आपको ये मान लेना चाहिए, अपने इमानदारी में, व्यूंकि ये आपके हित के लिए है, और सारे संसार के हित के लिए है। इसी प्रकार पक दूसरा प्रश्न हुआ है कि कलयुग में अवतार कब होगा। अगर अवतार हुआ तो ास आप क्या उसे पहचानेंगे? पहले ये तो तयारी हो जाए कि हम उन्हें पहचाने जो अवतार होगा। तो सबसे पहले आप में आत्म साक्षात्कार होना चाहिए। तभी आप अवतार को पहचान पार्येंगे। उसके बाद आपको सत्य और असत्य की पहचान हो जाएगी। जैसे अन्धेरे में आपने हाथ में पक साँप पकडा हुआ है जिसे आप रस्सी रम बेठे हैं। लेकिन जैसे प्रकाश आ जाएगा आप अपने आप ही उस सांप को छोड़ देंगे। उसी प्रकार असत्य आप ही छूट जाता है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt 16 - पृथ्वी में छोड़ देते हैं, तो ये माता अप कुण्डलीनी जागृण कि्कुल ही सहज है। जैसे की एक बीज आप ही आप उसे जागृत कर देती है, क्यूकि माता में ये सृजन शक्ति है और बीज में भी शवित है, तो अप आप घटित हो जाता है। ये प्रकृति का नियम है । आपके किताबे पढ़ने से, या खेोज बीन करने से, या च करने से क्या वो बीज उग जाएगा? जब तक माँ के भीतर नहीं डालेंगे तब तक वो नहीं उग सकता। उस कदर कोनसी है जिन शबवित के कारण हम अमीब प्रकार ये भी एक जीकत कार्य है। ये सूक्ष्म शक्ति हमारे से इन्सान बन गए। डाक्टर और वैज्ञानिक भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते जिसका जयाब आपको सिर सहजयोग में मिल सकता है। क्यूकि सहजयोग उस शव्ति से एकाकारिता प्राप्त करता है जहाँ से दुनिया भ की चीजे बनी और जिसको आप विज्ञान जानते हैं। आप के जो सामने है, जो दिखता है उसी का विज्ञा जान सकते हैं। जो चीज़ अदृष्य में है, । उसके लिए आपको अदूृश्य में उतरना पड़ेगा पश्चिम देशों में है । सब कु सुशाली नहीं है। उनके पास न मां बाप हैं। न बच्चे, न रिश्तेदारी पैसा पैसा हो जाने से लोग क्ल्कुल त्रस हो गए हैं । जो पेड़़ की मूल है, इसकी जिम्मेदारी आपकी है कि इ क्री शक्ति आप सारे संसार को पईुंचायें। नहीं तो आपके ऊपर ज़िम्मेदारी आ जाएगी कि आपने इसको स्वीक काल से कुण्डलीनी के बारे में अपने देश ही नईीं किया। अब ये हमारा धरोहर हे, विरासत है । अनादि लिखा हुआ है । ताओ भी कुण्डलीनी है और बाईबल में इसे होली गोष्ट कहते हैं, कि इसका वृक्ष तुम्हारे अन्द हैे और ये जो जीवन का वृक्ष है इसी की वजह से आपका पुर्नजन्म होगा। हर जगह कहा गया है कि जो न होने वाली लाफ़ानी चीजों का इस्तेमाल समझ से करना चाहिए। जितने शास्त्र है, जितने धर्म है उनका म तत्व एक ही है कि आप उस अनन्त जीवन को प्राप्त करें। बाकी सब व्यर्थ है। जो कुछ भी हम कर र 1. हैं, प्रार्थना करना, मस्जिद, मोदिर में जाना, इसका हेतु एक ही है कि उस अनन्त जीवन को प्राप्त करे उसे प्राप्त करने के लिए हमें आत्म साक्षात्कार लेना चाहिए। क्यौंकि ये सहज में है तो लोग सोचते है । ये कैसे हो सकता है। अगर ये सहज में नही होता तो आप श्वास तक नहीं ले सकते। अगर श्वास े के लिए आपको किताबे या शास्त्र पढनी पड़ती तो कितने लोग जीवित रहते। इसी तरह से ये मी नित्या आवश्यक चीज़ है। ये किया होनेवाली थी, और घटित होती है। इस पर बूधमुणी ने एक बड़ा ग्रन्थ लिए है जिसे नाड़ी ग्रन्थ कहते हैं । मुश्किल ये है कि आपके सामने स्वयोसध्द रखते हुए भी आपको मिसाले देनी पड़ती हैं पहले । र लोगों के समझ में आता है। अगर में कहूँ कि यहाँ एक अनमोल हीरा पड़ा है, वो आप प्राप्त करें, बगे पेसे दीए, तो क्या आप बेठे रहेंगे ? सारी दुनिया से लोग दौडकर आयेंगे। वो ही बात में अगर कहूँ आपके हृदय में एक हीरा है जिसका प्रकाश अपने चित्न में ले लीजीप तो आप क्या शंका पे शंका करते रहेंगे? फिर एक और बात पूछी कि ये कुृतयुग की बात शास्त्रों में नहीं लिखी। बहुत सी बार्ते शास्त्ों नहीं लिखी गई। अगर सभी बात लिख दी होतीं, तो आज हम यहाँ क्यूँ रखड़े होते? ये भी नहीं लिखा कि कृण्डली 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt 17 - के जाग्रण के बाद आपके उंगलीयों में जागृति आ जाती है। ये भी नहीं लिखा कि इस में आप चक्कों को जान हैं। सब चीज़ जो लिखा है अगर वो आखरी शब्द होता, उसके बाद कुछ बताना ही नहीं होता, फिर ये स अगली बातें क्यूँ कहीं। भविष्य की बात क्यूँ कही? कल युग की बात क्यूँ कही? क्यूंकि कुछ न कुछ कलऱु में मी कार्य होना है और इतना महत्वपूर्ण, इतना ऊँचा, इतना दिव्य कार्य है कि इस कार्य में आप उतरेंगे नहीं आप समझ: ही नहीं सकते। पहाड़ के नीचे खड़े होकर आप किसी सन्दर शहर की शोभा हे नहीं सकते। आपको पहाड़पर चढ़ना होगा अगर आपके अन्दर छिपा हुआ इतना सोन्दर्य, इतना गौरव, इतना सब कुछ हे तो इसे पाने में हिचकिचाना कोई बड़ी भारी अकल की बात तो नहीं। आपकी ही सम्प आपके अन्दर है। कुण्डलीनी तो आपके ही अन्दर है, तो उसे पाने में आपको क्यूँ हिचकिचाना चाहिए? समझ जाएँगे के सारे जित्तने मी धर्म हुए, तो सारे धर्म एक जीवित वृक्ष कुण्डलीनी के जाग्रण से आप । एक फूल की भोति अलग अलग समय आए, और जो लाए उनके सबसे आपस में रिश्तेदारी थी। लेकिन उन लाने के बाद हमने वो फूल तोड़ दीए और उन फूलों को हमने अपने चुंगल में ले लिया और कहने कि ये इमारें फूल हैं । ये फिर फूल मर गए और इन मरे हुए फूलों के लिए परेशान हो गए ये लोग र रिश्तेदार है। सब ये सोंचकर दुनिया में आप थे कि एक के बाद एक हम लोगों को समझाएँगे कि काल 3 वाला है और इस काल में आपको आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त होना है और उसी के बाद आप परमात्मा जान सकेंगे ईसा मसीह ने कहा - अपने को जानो । सब मे यही कहा जो भी विश्व में पहान साधु महारि अवतरण, पेगम्बर समी ने एक ही बात कही कि तुम अपने को जानो और पहचानो । मगर कैसे । यही बात है, इसकी जागृति होनी चाहिए और जागृति होते ही आप इसे प्राप्त कर सकते । कि आपके अन्दर शक्ति स्म. डी. की परदवि मिल गई। करनाल मे एक दिल्ली में दो इाक्टरों को सहजयोग विपय पर साल का लड़का आया जो बचपन से न बोलता था न सुनता था। सहजयोग में आते ही बोलना शुरू किर खून का केन्सर और अन्य बिमारियां ठीक हो गई पर सहजयोग कोई बिमारी ठीक करने के लिए नहीं ये कुण्डलीनी के जागृति के लिए है। अगर आप ठीक से सहजयोग में ेठे व ध्यान धारणा करें तो आप कोई विमारी नहीं होती। असल में शास्त्रों, गीता, रामायण इत्यादि को समझने के लिए वहुत जरूरी है कि हम आत्म साक्षात्व को प्राप्त करें । गीता पे 500 किताबें लिखी हैं। अगर एक ही सत्य है तो इतनी किताबे क्यूट क्यूकि सब दृष्टि सूक्ष्म नहीं। कि है श्री कृष्ण ने। ज्ञान योग का मतलब पढ़ना, रटना, गीता में ज्ञान योग का बर्णन किया जान नहीं। ये ज्ञान योग नहीं, ये तो बुध्दि योग है, जिससे आदमी को घमण्ड आ जाता है। और गीता में, लोग गीता नहीं सुना रहे, वे अपनी ही बकवास सुना रहें हैं ज्ञान का मतलब होता है अपने नसो पे जान- ये कालेज धोड़ी गए थे। उन्होंने अपने नसों प ये वली, बुष्द लागा लोगो ने अपने बुध्ि से नहीं जाना क्यूंकि र 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt 18 अर्जुन इसे न समझ पाए तो उन्होनें भक्ति मार्ग पर चलने मार्ग है । जब आपन अन्दर जाना। यही ज्ञान को बताया। पर उन्होंने कहा कि ये भव्ति अनन्य होनी चाहिए। माने की जिसमें कोई दूसरा न हो। जब आपका सम्बन्ध परमात्मा से हो गया। आप ऐकाकारिता में आ गए रा दिन हरे कुष्ण हरे राम करने से आपको परमात्मा कभी नहीं मिल सकते .। उल्टा आपको कैन्सर की बिमारी हो जाएगी। क्यूकि श्री कृष्ण हमारे विशुध्दि चक में बैठे हैं, और उनका नाम इस तरह से बेकार लें, क्क्यूकि वे हमारे नौकर नहीं हैं जो हर समय उनका नाम ले। एक साधारण गवरनर का भी आप नाम लेते जाएँ तो आपको पुलीस पकड़ लेगी। और उस सबसे ऊँचा परमात्मा का नाम इस तरह से लेते हैं जैसे कि वो हमारे जेब मे ही वैठा है, जैसे कि वो इतना सहता है। फिर वेो नाराज हो जाते हैं और हमारे ऊपर आपत्ति आ जाती है। फिर लोग कहते डै कि हमने दस लाख जप किए, मंत्र पाउ किया ये हुआ क्यूकि आपको अधिकार नहीं है, जब तक आपकी एकाकारिता नहीं हो। आप पहले आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करें फिर एक अक्षर उनका लेने से ही आपका कार्य हो जाएगा। आज तक किसो फायदा हुआ है परमात्मा का फिजुल नाम लेके, संस्था, लोलके, तरह तरह गरीबी, के धन्धे करके घर्म के नाम पर। कोन से धर्म में मनुष्य को फायदा हुआ है। इर जगह आफत, इतने झगड़े हैं। फिर लोगों ने कहा कि परेशानी, और रयीस लोगों के यहाँ बीमारीयां, इतना असंतोष है। परमात्मा है ही नहीं। उनको जानने के लिए सिर्फ आपकी दृष्टि आप प्राप्त कर लें, जब आप उसको जान लेंगे तब आपका ज्ञान मार्ग पूर्ण हो जाएगा। और तभी आप भवित कर सकेंगे। फिर कर्म योग पर भी श्री कृष्ण ने कहा। कृष्ण तो लीला ही करते थे। वो जानते धे कि लीला दण तु जो कुछ कर्म कर रहा है वो कर, पर सब कर्म परमात्मा से ही आप लोग ठीक होंगे। उन्होंने कहा कि के चरणों में रख। पर ऐसा होता नहीं। जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार नही मिलता, तब तक आपका ये अहम भाव , कि ये मैं कर रहा हूँ, जा नहीं सकता। कोई आदमी किसी का खून करे या गलत काम करे, वो कहे कि मैने परमात्मा पर छोड़ दिया। आपका अहम भाव अमी आपके अन्दर हे और उस अहम भाव के ही सहारे आप सब कार्य कर रहे हैं । और हमेशा ये मावना आपके अनदर बनी रहेगी। पर जब कुण्डलीनी के जाग्रण से जब आज्ञा चक को ये भेदती है तो आज्ञा चक में एक तरफ अहंकार, एक तरफ संस्कार जो क है, ये पूरा अन्दर की ओर सखिंच जाता है। तो आपके जो कर्म है वो सारे के सारे खत्म हो जाते हैं। जानवरों में कोई कर्म का विचार नहीं होता। उन्हें पाप नहीं समझता। मनुष्य ही समझता है कि पाप या पुण्य है । ये उसके अहंकार के कारण है कि बो सोचता है कि मैंने ये किया है, ये पाप किया है। आप सबको माफ कर दीजीए और अपने को मी माफ कर दीजीए। उसी से आज्ञा चक खुलता है। सहज में आने के बाद लोग जब काम करते हैं, तो वो कहते हैं कि ये हो रहा है, ये चल रही है, ये वन रहा है सहजयोग में आपको पार होना पड़ता है। अगर वो पार न हो तो उसे झूठे सटिफिकेट नहीं दे सकते कि वो पार है। जै से एक बीज को पेड़ बनना है वैसे ही आपको वृक्ष बनना है धीरे धीरे 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt - 19 कुग्डलीनी आपको बनाती है और उपर आपको ध्यान देना पड़ता है। कुण्डलीनी को जाग्रण करना बहुत सहज है , समझना पड़ता है। आप में से शक्ति बहने लग जाती है। ये कार्य पर उसके वाद उसे संवारना पड़ता है सबसे अधिक दिल्ली जो राजधानी है, यहाँ होना चांहिए। पर यहाँ होता क्या है? झगड़े। धर्म के नाम पर झंगड़ा करना महा बेबकूफी की बात है। धर्म कभी झगड़ा नहीं सिखा सकता। परमात्मा तो रहमत है, रहीम हैं, दया के सागर हैं । उनके आश्रय में रहनेवाले केसे झगडा करेंगे। सहजयोग में हर तरह के लोग हैं । मुसलमान, हिन्दु, ईसाई, इत्यादि । ये सब लोग आपस में इतने प्रेम से रहते हैं उन्हें ऐसा लगता है कि वो विराट के अंग प्रत्यंग में एक हैं। सागर में एक बंद है जो खो गया है और सागर से एक्ससरिता आ गई है और में सागर ही हैं। अब ये आपके लाभ की बात है, और सारे विश्व के कल्याण की बात है। इसे आप समझे के, बुझ से प्राप्त करें और इसमें जम जाएँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद है। ३ॐ आदि शक्ति पूजा, कुलकल्ता 9-4-1990 और में जानती हैँ कि इस शहर कलकत्ता की आप लोगों की प्रगत देखकर बड़ा आनन्द आया। में अनेक लोग बड़े गहन सांधक हैं। उनको अभी मालू म नहीं है कि ऐसा समय आ गया है जहाँ वो जिसे खोजते हैं, वो उसे पा लें। आप लोगों को उनके तक पहुँचा चाहिए, और ऐसे लोगों की खोज बीन रखनी मी चाहिए जो लोग सत्य को खोज रहे हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम लोग अपना विस्तार चारों तरफ करें । बी लेकिन उसी के साथ हमे अपनी भी शकती बढानी चाहिए। अपना भी जीवन परिवर्तत करना चाहिए। अपने जीवन को भी एक अटूट योगी जैसे प्रज्वलित करना चाहिए जिसे लोग देखकर के पहचानंगे कि ये कोई विशेष पति व्यवित है। ध्यान धारणा करना बहुत ज़रूरी है। कलकत्ता एक बड़ा व्यस्त शहर है और इसकी व्यस्तता में मनुष्य डूब जाता है। उसको समय कम मिलता है ये जो समय हम अपने हाथ में बाँधे हैं, ये समय सिर्फ अपने उत्थान के लिए और अपने अन्दर प्रगति के लिए है। हमें अगर अन्दर अपने को पूरी तरह से जान लेना हे तो आवश्यक है कि हमें थोडी समय उसके लिए रोज ध्यान धारणा करना है। शाम के ववत और सुबह थोड़ी देर। उनमें जो करते हैं और जो नहीं करते, उनमें बहुत अन्तर आ जाता है। विशेषकर जो लोग बाहयता बहुत कार्य कर रहे हैं, सहजयोग के लिए बहुत महनत कर रहे है समझाते हैं। उनकी जो रूहानी शक्ती लेकचर देते हैं, और इधर उथर जाते हैं, लोगों से बात चीत करते हैं, है, जो दैत्री शक्ति है, वो धीरे धीरे कम होती जाती है। इसलिए और भी आवश्यक हैं कि ऐसे लोग ध्यान धारणा आवश्य करें । he 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt 20 सोने से पहले आप धोडी देर ध्यान कर लें । सवेरे नहाने के बाद, यही काफी है। लेकिन जब ध्यान होता है तो कैसे पहचाना जायेगा कि आपका ध्यान ठीक हुआ। ध्यान करते कक्त, आपको निर्विचारिता पहले या " नेति" "नेति" इस तरह से अपने विचारों उस वक्त उसको "ये नही" "ये नही" स्थापित करनी चाहिए। को वापस कर देना चाहिए। करते करते पहले श्वास लेने से आप देखेंगे कि आपमें निविचारिता आ जाएगी। बैठना चाहिए। जिस अर्थात फोटो सामने रखना चाहिए। और उसके सामने दीप जलाके, पैर पानी में रखके बक्त निर्विचारिता आ जाए, और दोनों हाथ में चैतन्य बहना शुरू हो तो आप पैर पछकर के जमीन पर ध्यान में बैठ जाएँ। ध्यान में बैठकर के और उसकी गहनता को आप जाने फिर विचार आना शुरू हो जाए तो उसे फिर कहना कि "ये नही" "ये नही"। या "क्षमा" "क्षमा"। क्षमा शुब्द बहुत ज़रूरी है। उस शब्द से भी आपके विचार रूक सकते हैं । जब शान्ती नहीं रही तो आपकी अन्दूरणी प्रगती किस प्रकार हो सकती है । जैसे की भूचाल आ रहा हो, तो भूचाल में किसी कृक्ष की प्रगति नहीं हो सकती। तो उस वक्त मनुष्य एक विचारों के भूजाल में फैसा हुआ होता है तब उसकी प्रगति होना असम्भव है। इसलिए आवश्यक है कि उस बुबत वो अपने को शान्त स्थित कर ले। उसके लिए भी एक दो मन्त्र हैं। जिससे, आपके अन्दर शान्ती पहले प हो। धीरे धीरे आप को आश्चर्य होगा कि ये सब प्रयास करने की जरूरत पडेगी नहीं। आप एकदम परस्थापित निर्विचार हो जाएँगे किसी भी सुन्दर वस्तु या कलात्मिक वस्तु को देखते हडी आप एकदम निर्विचार हो जाएँगे| धीरे धीरे ये आदत बढ़ती जापगी और जैसे जैसे बढढ़ेगी ऐसे ऐसे आपकी अन्द्रूणी प्रगति होती जाएगी। आप एक दालान में आ गए लेकिन और दालान में भी आपको जाना है और पहचानना है अपने को। इसलिए आवश्यक है कि ध्यान धारणा से गहनता में उतरे। उसकी पहचान ये है कि जब आप ध्यान धारणा से उठेँगे आपका मन नहीं चाहेगा कि उठें। धोड़ी देर आप फिर उसी ध्यान में लगे रहेंगे आपको ऐसा लगेगा कि आपको बड़ा आनन्द आ रहा है। एक दम से आप नहीं उठ सकते। गर ध्यान धारणा के बाद आप अपना या बाहर जाना है, चित्त किसी और चीज की ओर ले जा सकते हो, जैसे खाना खाना है, या सोना है तो समझना चाहिए कि ध्यान नही लगा। क्यांकि ध्यान से छुटना ज़रा सा कोठेन होता है। इस तरह से धीरे धीरे आपकी अन्दर प्रगति होती जाएगी और जब आप बाहय में कार्य करेंगे तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा कि आपकी शक्ि दिन्न नही होती, उल्टी बढ़ती जाती है । ऐसा देखा गया है कि जो फौरन्न पार होने के बाद ही दुसरों को जागृति देना चाहते हैं और फिर उनमें पकड़ आ जाते हैं । असल में पकड़ होते नही हैं। जैसे की किसी बैरोमीटर में या किसी यंत्र में आप जान सकते हैं कि यहाँ चुओ निकल रहा है, कि यहा प्रकाश हो रहा है। उसी प्रकार आप भी अपने अन्दर सब कुछ जान सकते हैं। एक तरह का निव्यज स्वभाव आ जाना चाहिए। माने कि निराग आना चाहिए। फिर आपको पकड़ नहीं आएगी। आप कितने भी लोगों पे हाथ चलाएँ, कितनों को भी जागृति दें, कुछ भी कार्य करें । कितनी भी बिमारियाँ ठीक करें, आपके अन्दर उसका कोई असर ुर नहीं आएगा। पर ये दशा आए बगैर ही अगर आप लोगों पर हाथ लगाने लगें तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt - 21 दूसरी बात ये है कि आप लोग पार हो गए हैं, आप बहुत ऊँची स्थिती में आ गए हैं। यड़ी कठिना से ये बात होती है तो आपको ऐसे लोग मिलेंगे जो अभी अभी सहज योग में आए हैं वो समझ लेना चाहिए कि अभी आएँ है। और उनसे कोई भी आकमक बात नही करनी चाहिए। अपने प्रेम से, बड़े जतन से, सम्भात करके, हो सके तो कुछ खिलाने पिलाने की भी व्यवस्था करिये। जिससे बो लोग आपको इतना भयंकर २ समझे कयाकि साधु-सन्त लोग तो ें हाथ में डंडा ही लेके बैठते हैं। उस प्रकार नहीं होना चाहिए। उन्हें महसूस हो जाए कि सारे अपने भाई बहन हैं। उससे ही वो लोग जम सकते हैं। और अधिक्तर मेंने देख है कि एक आद लोग ऐसे आ जाते हैं सहजयोग में, जो लोगों को बहुत ज्यादा डिसिप्तीन सिवाते हैं। यहाँ नहीं खड़े हो, ऐसा नहीं करना है। खास सहज योग में डिसिप्लीन कोई नहीं हैं। क्यूोकि आपकी आत्मा इतरन पुकाशवान है कि उसके प्रकाश में धीरे धीरे स्वयं ही आप अपने को देखते हैं। और फिर धीरे धीरे आ अपने ऊपर हँसने लग जाते हैं। जैसे आपने अपनी प्रगत को प्राप्त किया, घीरे घीरे वो लोग भी अपनी प्रगति को प्राप्त कर लेंगे। ये प्रकाश आपके व्यवहार पे भी पड़ता है और दूसरों के व्यवहार पर भी। सहज योग में साक्षी स्वरूप प्राप्त होता है। साक्षी स्वरूप तत्व में आप किसी चीज़ की ओर देखते मात्र हैं। उसके बारे में सोचते ही नहीं। कोई भी आपके अन्दर उसकी ( रिअँशन ) प्रतिक्रिया नही आनी चाहिए। तो निरंजन देखना चाहिए। माने किसी चीज़ की ओर देखकर के उससे कोई सी भी प्रतिकया न हो। बगैर किसी पतिकिरिया के उसे देखना मात्र, ये सबसे नड़ा आनन्द -दाई चेष्ठाা है। उसके प्रति कोई लालसा नहीं होती। जैसे कि एक गरली चा है। अगर उसके बारे में विचार ही आते रहें कि अगर ये मेरा है तो जल न जाए। खराब न हो जाए। गर दूसरे का है तो कितने का है , कहाँ से लिया। तो इन विचारों के कारण उसका आनन्द तो आपको मिला ही नहीं। तो जैसे निर्विचारीता पे आने पर जैसे कि एक सरोवर एक दम शन्त, उसमें एक भी लहर न हो, न तरंग हो, ऐसे शा्त मन में सरोवर में, जिसके चारों तरफ बना हुआ सुन्दर निसर्ग है वो उसमें पूरी की पूरी प्रतिबिम्बित हो और दिखाई दे, ऐसा ही आपका मन हो जाता है । एक बार एक साधक हमारे पैरो में आए और एक दम से उनकी कुण्डलीनी जागृत हो गई दूसरे कमरे में जो लोग बेठे थे वो अन्दर आ गए क्यूकि उनको एक दम से महसूस हो गया कि माँ के साथ जो है उसमें से जो चैतन्य की लहरीयाँ बह रही थी वो उन्हें महसूस हो गई उन्होंने उसे गले से लगा लिया जब कि वो उसे जानते तक नहीही थे। और सब आल्लाहदित हो गए इसी प्रकार जब आप दूसरें सहज योगीयों से मिलेंगे तो आपको ऐसा अनुभव होगा कि जैसे "मैं मुझ से ही मिल रहा हैूँ।" नामदेव जब गोरा कुंभार से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं तो यहाँ निर्गुण देखने आया धा, वो तो सारा निग्गुण साकार हो गया। इस तरह की समझ व सूझबूझ एक सत को एक दूसरे सन्त के ही लिए हो सकती है। आज तक तो मनुष्य दुवैष,ई्मा, इसी में रहता है। लेकिन जब सहजयोगी हो जाता है तो उसको दूसरा सहजयोगी पसा लगता है कि मैंने जो निर्गुण को जाना था वो ये सगुण में खड़ा हुआ ये निर्गुण है। इस प्रकार आपसी प्रेम जो है ये बड़ा सूक्ष्म ,बड़ा गहन, और बडा आनन्द-दायी हो जाता है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt 22 हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम बड़े ही सूक्ष्म और बड़े ही मज़बूत घागे से बन्धे हुए हैं और आपसी प्रेम इस से बढ़कर आनन्द की कोई चीज है ही नहीं। अब बहुत से लोगों में ये बात होती है कि मेरा तड़़का, मेरी बहन, मेरा भाई , मेरा घर। ये जो ममत्व है ये भी काटना है । इस ममत्व को विल्कूल ही कम कर देना चाहिए। और इसके छूटते ही आपमें बहुत ही ज्यादा आनन्द आ जाएगा। "मेरे" की भावना जो है ये अपने को आत्मा से दूर करता है। मैं कौन हैँ? में आत्मा हूँ। और जो कहे कि ये मेरी आत्मा है तो फिर जो सहज योगी नहीं। आत्मा अपनी जगह अकेला खड़ा हुआ है। इसका मेरा कोई नहीं है। इसका तो सिर्फ परमेश्वर से ही रिश्ता है। और आपसे भी ऐसा रिश्ता है जैसे कि एक पेड़ के अन्दर बहता हुआ रस है। जो सब को रस देता है पर किसी में चिपकता नहीं है। मेरा-पन प्रेम की हत्या है। आप एक बूंद मात्र से सागर बन जाएँगे इसी अमर्यादिता में ही आनन्द है क्यीके आप समुद्र के साथ उठते हैं और गिरते है। जब ममत्व छूट जाता है तो आप के अन्दर एक है। इसी तरह से मनुष्य वर्तमान में आ सकता काम है जिससे आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते हैं। और वह़ी शक्ति कार्यान्वित बहुत बड़ा ऑनदोलन हो जाता होती है। और बोही सामूहिकता में बहुत बड़ा कार्य करने वाली है और सारे संसार का उध्दार भी उसी शक्ती के द्वारा हो सकता है। एक नया दौर शुरू हो रहा है। सहजयोग में भी एक नया दौर आज शुरू हो रहा है वो ये दौर है कि अब हम एक बड़े ही आंदोलन में आ गए जहां हमें अपने प्रश्न नहीं रहे। पर सबके प्ृश्न हमारे प्रश्न हो गए सारे संसार के प्ृश्न हमारे हो गए| इसके लिए एक प्रबलता चाहिए, एक बढ़पन चाहिए। एक ऊँचाई चाहिए जिससे की आप सारे प्रश्नों को ठीक से देख सके और उसका हाल दे सकें। इसकी जिम्मेदारी सब आप लोगों पर है। सारे सहजयोगियों की ज़िम्मेदारी बहुत ज्यादा है । यही नहीं कि आप लोंग सहजयोग से ताभ उठायें, उसका फायदा उठाएँ, उसमें रजें। ये सबके घर घर में पहुँचना है और सबको ये आननद दिना है। अगर ये कार्य करते वक्त आप लागों ने किसी तरह से कमज़ोरी दिखाई या किसी तरह से ढिलाई की तो आप उसके लिए ज़िम्मेदार हो जाएँगे, और ये बात बहुत गलत हो जाएगी। इसलिए सहजयोग में पनपे हुए तोगों को चाहिए कि वृक्ष की तरह खडे हो जाएँं| में सारे हिन्दुस्थान का मरम फैँसा हुआ है । इसलिए ज़रूरी है कि आप लोग खड़े हो जाएँ कलकत्ते बढ़े और अपनी प्रगति करें । औरों की प्रगति करें और एक अपने व्यक्ति व को विशाल बनाएं। और आगे जब मी आपके अन्दर विचार आए कि मेरा बेटा ऐसा है, मेरा घर ऐसा है। तो ऐसे "मेरे" विचार को दूर रखो। तभी आप विशाल हो जाएँगे और ऐेसे विशाल लोगों की इस नये आंदोलन में ज़रूरत है। और इसकी तैयारीयाँ पूरी होनी चाहिये। आशा है ये साल आप सबको बड़ा मुबारक हो। बडा विशेष साल है ये। और इस साल में में चाहती हैं कि इस कलकत्ते में बहुत से लोग सजहयोग में आपँगे। उनको सम्भाल के, प्यार से, आदर से, समझा 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt 23 य कर के। कभी कभी आकरमक होते हैं। कभी कभी गलत बातें भी कहते हैं। यहां सब किसी न किसी जाल प्लेट) होता है में फैसे है। में तो न उनको इर, न उनका कोई गुरु , एक दम कोरा कागज़ (स रस उस तरह के लोग धे बहुत आसानी से सबको पार करा। यहाँ तो ऐसा है कि न इधर का न उधर का। में इस इस गुरू का, में उस गुरू का है। आप अपने नहीं तो इसलए बहुत समझा बुझाकर बात करनी चाहिए। फिर यहाँ और भी बिमारी ये है, कि गुरु के दर्शन करने जाना। गुरु का काम है जोध, दर्शन देना नही। लोगों में जागृति करना। जब तक वो कोई ज्ञान ही नहीं देते तो वो गुरू कैसे बने। गुरू का मतलब है ज्ञान देने वाले। ज्ञान माने आपके नसों में आप जाने कि ये चैतन्य क्या है। ये जब तक नहीं दिया तो ऐसे चीजों में फैस जाना भी एक तरह से अपने को नष्ट करना है। आप लोग सब बहुत बड़े साधक थे, और इसी प्रकार आप अनेक लोगों को भी इसका वरदान दें, और उनको सुखी करें। हमारे अन्दर जो कुछ भी घटिया है वो हमारा अपना है, बो यष्टि में भी है , समष्टि में भी है। सामुहिक में भी कुछ कमीयाँ हैं। यही बताएँगे कि कितनी खोज उन सब कमीरयों को देखना चाहिए। हिन्दू, मुसलसान ईसाई, या अन्यधमों के लोग की इन धर्मों में पर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। इसलिए, क्यूंकि ये सब मनुष्य के बनाये हुए धर्म हैं। जिन्होंने धर्म बनाये वे वो नहीं रहे। अब आप लोगों को जो धर्म बनाना है वो असली धर्म है। उसमें नंकलीयत है तो वो गलत होगा ही क्यूकि मनुष्य को अर्भी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। अगर मनुष्य ने धर्म बनाया परमात्मा का सम्बन्ध हुआ ही नहीं। उन्होंने तो अवछे भले धर्मों को गलत रस्ते पर डाल दिया। लेकिन अब आप लोगों को जो धर्म बनाना है, जो विश्व धर्म बनाना है उसमें किसी तरह की मनुष्य की जो गलतीयाँ है, तरो नहीं आनी चहि.ए। क्यूकि ये देवीक़ है. और आप लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है । तो इमानदारी के साथ इसको ऐसा बनाना चाहिए कि जो शुध्द हो| द्रूणी धर्म हो । इसी प्रकार हर आदमी जब देखेगा कि हमने इसमें जो पाया है वो सत्य पाया है फिर ऐसा होगा कि जिस धर्म के आप पहले थे उस धर्म का सतत हमने यहीं पाया है, ये जो है ये हमारे अन्दर जागृत हो गया है। आप किसी भी मनुष्य के बनाये हुए धर्म का पालन करें, आप कोई मी पापकर्म कर सकते हैं। लेकिन सहजयोग में आने के बाद आप वाके में धार्मिक ही हो जाते हैं। आप सबका भला ही कर सकते हैं। पर जो लोग नए आते हैं उनके साथ चर्चा करते समय बहुत सम्भल कर बात करना, क्यूंकि हो सकता है उनको महसूस हो कि उनके ऊपर आकरमण हो रहा है तो बहुत सम्भाल कर उन्हें समझना है कि धर्म हमारे अन्दर जागृत होना चाहिए। जैसे इसा मसीह ने कहा है कि आपकी औँख निरंजन होनी चाहिए। पर किसी किश्चन की औव निरंजन है क्या? इसी प्रकार इन महान लोगों ने बहुत बड़ी बड़ी बारते करीं। लेकिन वो होता ही नहीं। उससे उल्टी बात होती हैं । तो इसको धीरे धीरे समझाना चाहिए क्यूकि ये ऊ्थेरे से पूकाश में आ रहे हैं उन्हें अनुभव देते हुए, उन्हें इस गलत फ़हमी से निकाल लेना है। और उनको धर्म में र्थित 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt - 24 - करना पडेगा। धर्म की घारणा उनके न्दर होनी चाहिए। जो जिस जगह से भी आ जाए उन सबको स्वीकार करना चाहिए। क्यूंकि इनमे से बहुत से लोग ऐसे हैं जो वाके सत्य को खोज रहे हैं। सत्य के मार्ग पर चलने वालोको ही परमात्मा मिल सकते हैं। ज्योत का कार्य क्या है। ज्योत जब तक जला रहे तब सब काम होता है। उसका कार्य होता है प्रकाश देना। जिस प्रकाश को आपने प्राप्त किया है बो ही आपको सबको देना चाहिए और पूर्ण आत्मचिश्वास के साथ। कोई घबरानेकी बात नहीं। छोटे बच्चे बडे आत्मविश्वासी लोग होते हैं। और यो किसी की परवाह नहीं करते। उनको जो ठीक लगता है बो कहते हैं। लेकिन जय हम लोग बढ़े हो जाते है तो विमाग में और चीजें मरी रहती बहुत से संत्कार हो जाते हैं जिनसे निकलता मुश्किल होता है तो सिर्फ ये बात समझ लेनी चाहिये कि हमें एक बहुत सुझ बुझ के साध, समझदारीके साथ पक प्रगल्मता के साथ बढ़पन के साथ सबसे व्यवहार करना चाहिए। सबसे प्यार दिखाना चाहिए क्यूकि ये मॅच्यूरिटी के साथ प्यार ही की शषती है और इसी को प्राप्त करना है। है भावि शक्त की । अदि धव्ति से ही सारी थवितया निकली है। महाकाली महालक्ष्मी, महासरस्वती पूजा भादि पक्त की । आदि शकवित से ही सारी शपितर्यां निक्े यै बसे पहली ड্ीर ये ही 3 शष्तियां फिर उन्हीं मैं ही समाहित होती हैं। [अदि क्अवित के खिवाव ये कार्य ही नही सकता। कारण कि सारे अक्रो में उनका प्रमुत् है। और बौही हैं, जो कि हर तरह के चर्कों के आपसी समब् को सामातती हैं, जिसे त्रम संयोग कहते हैं। बो हर सुक्षम से सूय बार्तोको जानती है। जैसे की किसी भी बौ एूर्ण हैं और हमारा जी उत्पान इ्हॉ्यूजन] हुआ है, उसके हर पक सीडी पर (माजरल- कुसके हए पक सीड़ी पर मारइल अवतरण को देखें र्वक्ार हटौन) बने सड़े हुप हैं। लैकिन सबका पक ही प्रकार का कार्य धा। मैसे वैवी का कार्य धा कुश्टों का संहार स्टो भी कृष्णने लीता रचाई। ये सब लीला है। इसमे इतनी गर्भीरता करना और मक्त्ती को बचाना। इसलिप की कोई बात नही है। श्री कृष्ण ने माधुर्य को था औोर उन्होंने पेसा कर्म किया कि लैकरके सबको जीता के अपने ची हमारी जो भरतियाँ थी, उसे घुमा कर के, ज़ को कह देते थे । चक धोड़़ी मिठास डाल कर और उसके बाद महावीर जी, बुद्द इत्यादी का भी गम्भीर अबतरण रहा।] बड़डा कुबर उनका अवतरण रहा। और गरभीरता से उन्होंने आत्मवर्शन की ही चात की। [और [सम्यज्ञान की बात करी। फिर बहुत गर्भीर चीजे हो गईं और सर्वसाधारण लोग इसकी और नहीं आप। जो आप तो बेकार गरीरता में अले गय। औौर शर अपने रोज के जीवन को बड़ा ही कंठेत बना विया। क्यूकि न चुष्व ने कहा था, त महावीर ने। अब मानव जाती में जब तक आत्म साक्षात्कार नहीं होता, तब तक उसका ज्यादा वेर तक सीधा कहने से जो धर्म की रचना अलना कठिन है। इसा ससीहके बात्र सर्व साधारण लोग आप तौ उन्होंने फिर पोल के पतदि होती गई', और इसलिप करी, उसके चजह हसे सारी गड्डचड्डी्या होगई। इस प्रकार हर यर्म में गड़बड़ीयँ होती गई', भऔोर इसलिप 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt 25 धर्म बड़ा कठिन और अगम्य सा बन गया है । और फिर आधुनिक काल में बहुत से लोगोंने भी कुण्डलीनी के बारे में गलत कह दिया। अब प्रश्न ये था कि मनुष्य को किस तरह से बताया जाय कि परमात्मा हैं, सत्य हे, वो आत्मा स्वरूप है। इसलिए फिर आदि शक्ति का अवतरण जरूरी है । आदि शक्ति ही ये कार्य कर सकती है। वो सब चकं मानुव का कार्य जानती है। और उसे मानव जाती में आकर के जैसा अवतरण लेना पड़ा। जिससे वो समझे कि इनके अन्दर क्या क्या दोष हैं। और फिर वो दोष निकालने के लिए क्या करना चाहिए। कुण्डलीनी का जाग्रण इन् पा दोषों के रहते हुए भी कैसे हो जाए। कैसे ब्रम्ह नाड़ी में से कुण्डलीनी को जाग्रण कर दी जाए, जिससे मनुष्य इसको प्राप्त कर ले। पहले इसको धोड़े प्रकाश से देखे। देखते देखते स्वयं ही समझ जाए कि उसको अपनी ही ओर दृष्टी करके, देख के, उसको वो शक्ति आ जाए कि उसे ठीक कर ले । ये कार्य ऐसा धा कि जिसमें सभी देवी देवताओं का, सभी अवतरणों का और सभी महा पुरुषों का और सबका ही आना जरूरी था। उसी ार शरीर में धारणा कर कर के और इस संसार में अवतरण आना धा। और इसलिए ये अवतरण हुआ है कयूकि सारे संसार का उत्थान होना है। जिस परमात्मा ने ये सृष्टि बो बनाई है, जिसने ये सारा संसार रचा है, कभी नहीं चाहेंगे कि ये संसार मनुष्य के हाथों बरबाद हो। और इसलिए ये कार्य अत्यन्त विशाल है। ये नहीं बातें करते जाएँ इस पर हो सकता कि आप (कॉस) सूली पे चढ जाएँ, ये नहीं हो सकता कि हम मनन पे मनुष्य को बढ़ना होगा, वनाना होगा। काफी मेहनत का काम है। पर ये सिर्फ माँ ही कर सकती है। माँ की ही शक्ती जो इसे कर सकती है । और उसमें प्यार सहनशीलता और सूझबूझ न हो तो वो कर ही नहीं सकती। नाम इसीलिए इस अवतरण की बड़ी महत्ता है । उपूजा करें और इसको पाने पर सब कुछ हो ही जाता है, क्योंक आप जानते हैं कि आदि शक्ति की जो महामाया स्वरूपनी प्रकृति है उसमें एक बड़ा भारी कारणह कि, गर वो महामाया न हो, तो आप उसको कभी जान ही नहीं सकते। वास्तविक में जब तक महामाया स्वरूप है तभी तक आप मेरे नज़दीक आ सकते हैं। नहीं तो आ नहीं सकते। है, इनके पास कैसे जाएँ इनके आप सोचेंगे ये तो शक्ति पैर केसे छुएँ। इनसे बात कैसे करें। तो ये महामाया स्वरूप लेने से ही ये चीज़ बहुत सौम्य हो गई है। और इस सौम्यता के कारण ही आज हम सब एक हो गए हैं। और ये भी बहुत ज़रूरी धा कि इस महा माया स्वरुप में ही हम रहे, और आप लोग उसे प्राप्त करते रहें और खो न जाएँ जैसे समुद्र में खो गए। जैसे कबीर ने कहा "जब मस्त हुए फिर क्या बोले"। आप सबको जागृत रहना है और सबको देना है। में आपको खोने ही नहीं दूंगी। इस आनन्द में पूरी तरह से विबोध होके, कोई नहीं खो सकता है, इस आनन्द को बौटे बगैर आपको चैन ही नहीं आने दुँगी। इस तरह की चीज होगी तभी आप लोग समझेंगे कि आपको क्या कार्य करना से अधिक है कि साधु संतों ने किसी को (रलाईजेशन) जागृती है। तो आपका भी कार्य साधु संतो से एक तरह नही दिया था। हाँ 'उन्हें उपदेश दिया, उन्हें समझाया। आप का कार्य ये है आप सबको जागृती दें। और उनको आत्म साक्षात्कारी बनाएँ और सारे संसार का आप अत्यान प्राप्त करें। बहुत महत्वपूर्ण और दिव्य कार्य है। और hio 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt - 26 इस कार्य के लिए आदि शक्ति का आना ज़रूरी और उस आदि शविति के आगमन से ही ये कार्य शुरू धा । गया है और बहुत अच्छे से हो रहा है। [आशा है आप लोग समझेंगे और बहुत से ऐसे फोटो आ रहें हैं, ज चमत्कारी हैं। पर ये फोटो दूसरे लोगों को दिखाना नहीं चाहिए। क्यूकि उनको विश्वास ही नहीं होगा। औ ये भी फोटो परम चैतन्य बना रहा है, वो मी एक साधारण कैमरा से जिसमें कोई शक्ति नहीं है। और अग इतना प्रकाश मेरे सिर में है तो वो किसी को दिखाई क्यूँ नहीं देता ? सिर्फ बो कैमरा में क्यूँ आ गया.? आ लोगों के लिए में तो महा माया ही हूँ। कैमरा के लिए शायद नही हैं। केमरा के अन्दर की जो अणु रेणु वो मुझे जानते हैं। आपको परमात्मा ने स्वतंत्रता दी है । इन जड़ बस्तुओं को स्वतंत्रता नहीं। वो तो परमात्म के ही आज्ञा से चलते हैं, और पशु भी उन्हीं की आज्ञा में रहते हैं उस स्वतंत्रता में किसी भी तरह की बाधा न आप, इसीलिए महामाया स्वरूप है। आपके जैसे हम हैं। हमारा सारा व्यवहार भी आप के जैसे है आशा है कि आदि शक्ति की आज की पूजा आप लोगों को समापन्न हो। मेरा आनन्त आशीर्वाद - t. कलकता पब्लिक भाषण 9/10-4-1990 सत्य के बारे में जान लेना चाहिए कि सत्य अनादि है और उसे हम मानव बदल नहीं सकते। सत्य को हम इस मानव चेतना में नहीं जान सकते । उसके लिए एक सूक्ष्म चेतना चाहिए। जिसे आत्मिक चेतना कहते हैं। आप अपना दिमाग खुला रखें वैज्ञानिक की तरह और अगर सत्य प्रमाणित हुई तो उसे अपने इमानदारी में मान लेना चाहिए। एक महान सत्य यह है कि सृष्टि की चालना एक सूक्ष्म शक्ति करती है जिसे परम चैतन्य कहते हैं। ये विश्व व्यापी है और हर अणु-रेणु में कार्यान्वित है। हमारे शरीर के स्वयं चालित ( ओटोनॉमस ) संस्था को चलाती है। जो भी जीवित- कार्य होता है वो उससे होता है। पर अभी हममें बो स्थिती नहीं आई है जिससे हम परम चैतन्य को जान लें। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर बुध्दी, अहंकार और भावना्ँ आदि उपादियाँ नहीं हैं। हम केवल आत्मा है। और ये सिध्द हो सकता है। तीसरा सत्य यह है कि हमारे अन्दर एक शक्ति है जो त्रिकोना- कार अस्ती में स्थित है, और यह शवित जब जागृत हो जाती है तो हमारा सम्बन्ध उस परम चैतन्य से प्रस्थापित करती है। और इसी से हमारा आत्म दर्शन हो जाता है। फिर हमारे अन्दर एक नया तरह का अध्याम तैयार हो जाता है, जो हमारे नरसौ पर जाना जाता है। जो नस नस में जानी जाए बोही ज्ञान है। इसको जानने के लिए कुण्डलिनी का जाग्रण होना चाहीए। ये स्वयं आपकी माँ है। ये आपही की है, और ये माँ आप को पुन्जन्म देती है। जिस तरह की पकद से टेप रिकार्डर में आप सबकुछ टेप कर सकते हैं, उसी तरह इस कुण्डलीनी ने आपके बारे में सब कछ जान Lho 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt 27 - लिया है । क्यूकि ये साईे तीन कुण्डलों में बैठी हुई है इसलिए इसे कुण्डलीनी कहते हैं। ये ्द इच्छा की शक् है। कोई भी इच्छा पूर्णतय पूर्ण हो जाने पर भी मनुष्य उससे सन्तुष्ट नहीं होता क्युकि सर्वसाधारण इच्छ तृप्त होती नहीं। जब ये शकती ऊप र की ओर उठती है तो 6 चक्कों में गुजराती, छटे चक से ब्रम्हरंद्र को छेदती हुई बाहर निकल आती है तब ये सूक्ष्म चीज़ आपको चारों तरफ फैले हुए सूक्ष्य शक्ती से पर चैतन्य से एकाकारिता देती है। जैसे माईक है, अगर हमने इसे मेन्स के साथ नही जोड़ा तो ये किल्कुिल बेका है। इसी प्रकार मनुष्य भी उस परम चैतन्य को प्राप्त किए बगैर सत्य को नहीं जान सकता है। सब अपन अपनी बात को सत्य मानते हैं। सत्य में कोई भी मतभेद नहीं होता। वो मतभेद सत्य के अलग पहलू तो अलग ढंग से देखे जाते हैं। जब तक आपके चित्त में आत्मा नहीं आता है तब तक आपके अन्दर आ प्रकाश नहीं आता और आप अन्धेरे में ही टटोलते रहते हैं । मनुष्य ने समाज की धाराणाएँ बनाई हैं इसलि हमारे समाज में त्रुटियाँ है, सतदेह है, मांति है। हमें उस स्थिती को प्राप्त करनी चाहिए जिससे हम बड़े मुनि ,अवतरण,वली , तीर्थत्थन्कर आदि को समझ सकें और इन लोगे के जैसे बन जाएँ ऋषि । मतलब, धर्म की धारणा हमारे अन्दर होती है। मगर जो एक धर्म का ही पालन करता है वो कोई भी पाप कर्म कर सकत है। गलती कर सकता है। क्योंक धर्म की भावना तो सिर्फ आपकी दिमागी जमा खर्च है उसका आपके अन्दर ह प्रवेश नहीं हुआ। धर्म की धारणा अपने अन्दर करने से ही हमारा हित्त होगा। किल्तु ये करते बव्त एक सहज तरीके से कुण्डलीनी उठती है क्यौकि ये एक जीव्ति प्रक्िया है। जैसे पृथ्वी में आप बीज छोड़ दे तो वो सहज में ही पनप जाता है। हर एक में उसी प्रकार ये कुण्डलीनी बैठी हुई है कि जब मेरा वेटा चाहेगा तब मैं उठूंगी। वो ज़बरदस्ती से आपको पुनर्जन्म नहीं देना चाहती है। आपकी स्वतंत्रता को ही देखकर जागृत होगी। और कोई भी इस मामलें में ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। सबसे पहले कुण्डलीनी जाग्रण से आपकी शारीरिक स्थिती ठीक हो जाती है। क्यूकि आपके शरीर में सारे चक पूरे प्लावित हो जाते हैं। इन्हीं चक्कों के शवित के व्वारा हम जीवित हैं और उसी से हमारा सारा व्यवहार चल रहा है। किन्तु जब हम शक्ति को अनायास बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तब ये चक क्षीन हो जाते हैं। इस तरह से हमारे अन्दर बिमारीयां आ जाती हैं। लेकिन कुण्डलीनी जागरण के बाद तो जिन बीमारीयों का इलाज ही नहीं, जो मरने तक आ गए ऐसे बीमारीयाँ एक ही रात में ठीक हो गई| इसके लिए हमें ऋषि मुणियों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने सहज योग ढंढ निकाला। पहले एक या दो इन्सान ही इस योग को जानते धे। किन्तु ऐसा समय आ गया है कि आपको सामूहिक तरीके से जाग्रीत साह्ट हो सकती है । इस तरह की जागृति होने से शारीरिक, मानसिक, बीदि्धिक और सांसारिक व्यथार्प दूर हो जाती हैं। और लक्ष्मी का भी आप पर बहुत आश्शीवाद आता है क्यूंकि हमने लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी का साक्षात पाया नहीं था हमें लगा कि ये सब होता ही नहीं है उसको सिध्द करने का समय आ गया है। ऑस्ट्रेलिया में दो अेडस के आदमी ठीक हो गए सहज योग से। अपने देश में इतनी व्यथार्फ हैं, इतनी गरीबी है । इन 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt 28 लोगों के पास पैसा नहीं कि वौ अपनी बिमारीयाँ ठीक करें, डाक्टरों के बिल भरें, पेसे लोगों के लिए सहज से आपकी खेती में, पशुपालन में सबमें बहुत असर आता है। अनेक क्षेत्रों योग बहुत उपयुक्त है । सहज योग में इसका कार्य हो सकता है सहज योग से आपके अन्दर शान्ती प्रस्थापि त होती है। जिनके अन्दर शान्ती नहीं ा। वो बाहर किस तरह से शान्ती प्रस्थापि त करेंगे। आपके अन्दर साक्षी स्वरूप तत्व आ जाता है। आप के अन्दर निर्विचार समाधि स्थापित हो जाती आ जाती है। आपके नस नस में सामूहिक फिर उसके बाद निर्विकल्प समाधि, माने, चेतना आपके अन्दर है। चेतना जागृत हो जाती है जिसके अनुसन्धान से आप जान सकते हैं कि दूसरे आदमी को कौन सी शिकायत, अगर आप सील लें तो और आपको कौन सी शिकायत और त्टि है। उसको ठीक करने की किया त्रटि है। आप दूसरों की भी मदद कर सकते हैं और अपनी मी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आप पैसा आदि कुछ नहीं दे सकते। जो इन्सान परमात्मा के नाम पर पैसा ले वो आपका गुरू नहीं, आपका नौकर है। में एक माँ हैँ और मैं ये कहूँगी कि जिस गुरू ने आपकी तबीयत ही ठीक नहीं रखी, ऐसे गुरू को रखने से क्या फायदा। है और अनुभव के लिए। इसी तरह पढ़ पढ़ करके गुरु दर्शन के लिए नहीं होता है गुरु ज्ञान के लिए होता आप परमात्मा को नहीं जान सकते । क्यूंकि परमात्मा बुध्दि से परे हैं। प्रश्न पूछने से या उसका उत्तर पाने माम से क्या कुण्डलीनी का जाग्रण हो जाएगा? अमीबा से हम मनुष्य स्वरूप हुए | इससे ऊँची एक और दशा है, कि हमें आत्म स्वरूप होना चाहिए। और जब तक हम आत्म स्वरूप नही होते, हमे चैन नहीं आने वाला। आपकी सम्पत्ती और आपको ही देने आएँ हैं। इससे आपको क्यूँ दिक्कत होना चाहिए। आपके अन्दर एक बड़ा भारी हीरा चमक रहा है जिसे आत्मा कहते हैं। इसे प्राप्त करें। मानव सबसे ऊँची चीज़ है उत्कान्ति में। उसे बस इतना ही प्राप्त करना है। रूस के लोग बहुत Tहरे हैं। उन्होंने कभी धर्म नहीं सुना, कभी देवी का नाम नहीं सुना। पर ये लोग एक दम पार हो गए| इतने शुध्द तबीयत के लोग जो खोज रहें है अन्दर से सत्य। वहां की गोवरमेन्ट ने भी हमें रिकगनाइज कर लया है और साईबीरिया तक सहज योग फैल गया है। मेडीकल में, एज्युकेशन में हर चीज में बहां के मिनिस्टर्स नक। उन लोगों में अहंकार नहीं है । इसीलिए शायद इस तरह से ये कार्य हुआ है। आशा है यहां पर भी इसी प्रकार ये कार्य होगा। ये तो देवी का बड़ा भरा स्थान है और कलकत्ते से तो मुझे बहुत ज्यादा अपेक्षा ा ह जब तक हम सत्य को जान नहीं लेते तो किसी भी बात को प्रमाण मान लेना या सत्य मान लेना हुत बड़ी गलती कर देता है। बहुत लोग सोचते हैं कि ये धर्म सत्य है, वो धर्म सत्य है। सत्य एकही हैं। कुण्डलीनी से किसी को भी तकलीफ़ नहीं होती। उत्कान्ति में हमने जो कुछ पाया है तो हमारे सेन्दुल वर्हस सिस्टिम में जानते हैं। एक जानवर, समझे एक कुत्ता, वो गर गन्दी गली से निकल जाए तो उसे कोई का he 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt 29 ये नहीं कर सकता क्यूकि उसके उन्दर एक चेतना आ गई है जिससे बो तर्कतिफ नहीं होती। लेकिन मनुष्य और गन्दगी को देखता है, समझता है और धूणा करता है। इसी प्रकार हमारी ये चेतना प्रगल हो जाती है, काम नही करता। जैसे सन्त साध कमी गलत हमारे अन्दर ही धर्म धारणा हो जाती है तो फिर वो कोई गलत काम नहीं करते थे। जब कुण्डलीनी का जाग्रण होता है तो हमारे अन्दर पूरी तरह से राजयोग प्रतीत डोता है। जैसे जब मोटर आपने शुरू कर दीं तो उसकी मशीनरी अपने आप चलने लग जाती है, उसी प्रकार जब कुण्डलीनी जागनुत होती है तो किसी भी चक् से गुजरती है तो बो चक़ का बन्ध पड़ जाता है, जिससे कि कुण्डलीनी नीचे न आए। लेकिन जब बिशुध्दी चक पर आती है तो आपकी जुबान भी अन्दर के तरफ धोड़ी सी खिच जाती है बन्द के लिए। इसका मतलब ये नहीं कि मोटर शुरू करने से पहले आप धक्का घुमाना शुरू करें। आजकल के यौग जो मनुष्य ने बनायें हैं वो उसी प्रकार के कृत्रिम हैं हठ योग तभी करना चाहिए जब कुण्डलीनी का जागरण हो। जब शारीरिक दोष हो उस चक पर, तब आपको आसन लगाना चाहिए। हठ योग हम ऐसे करते हैं जैसे रहे हों। ग्राणायम भी हम कृत्रिम तरीके से ही करते हैं । जिस व्वत आपकी की सारी दवाईयां एक साथ खा कुण्डलीनी चढ़ती है मर आपके अन्दर राईट साइड की शकती कम हो जाए, तब हम लोग प्राणायम कर सकते को व्याधियाँ हो करे तो हो सकता है कि आप हैं, पर सूझ बूझ के साथ। पर आप बेकार में ही प्राणायम जाएँ, या आप एक दम शुष्क हो जाएँ। इतने शुष्क हो जाएंगे की आपके अन्दर कोई भावना नहीं रह जाएगी। र हो सकता है कि आप अपने पत्नी को, वच्चों को छोड़ दें और सोचे कि मैं बड़ा भारी साथू सन्यासी बन गया। इस सरह का असंतुलन, जीवन में आ जाता है। जिस ववत जिस चीज़ की ज़रूरत होती है बो सिर्फ कुण्डलीनी के जाग्रण के बाद ही जानी जाती है कि आज कुण्डलीनी उठके कौन से चक पे गई और कं रुकी। हमारे अन्दर तीन नाडीयाँ हैं। पहली है महाकाली की नाड़ी। ये बाएँ ओर की सिम्पयेटिक न०्हस सिस्टिम को देखती है और दाय्े ओर की नाड़ी है महा सरस्वती की, वो हमारे राईट साइड की सिम्पर्थेटिक नव्हस सिरिटम सिस्टिम को देखती है। बाँ को देखती है। बीच की नाड़ी जो सुधुमना नाड़ी है वो हमारी पॉरा सिम्पथैटिक ओर जो है वो सिर्फ हमारी भावनाएँ, हमारे इच्छाओं को पूरा करती है। ये इच्छा शक्ती की इडा नाडी है । या चन्द्र नाडी जो कुछ हमारा भूतकाल है, बो लेप्ट साईड में इसके साथ समाहित है। राईट साइड की नाड़ी को सूर्य नाई़ी या पिंगला नाड़ी कहते हैं। ये हमारे शारीरिक और मस्तिश्क सोचना, विचारना आदि के कार्य करती है। ये कार्यान्वित होती हैं जब हम भविष्य की सोचते हैं । के काम मध्य नाड़ी इन दोनों को संतुलन में रख ती है। जैसे कि आप बहुत जोर से दौडे तो आप के हृदय के ठोके बढ़ जाएँगे। लेकिन इन ठोकों को फिर शान्त कर देना तो किस तरह से बिल्कुल नॉर्मल हो जाते हैं, ये पारा नाड़ी का काम है। जब कुण्डलीनी जागरूत होती है तो सुपुम्ना नाड़ी सिम्पर्येटिक नव्व्हस सिस्टिम या सुषुम्ना के अन्तरतम जो नाड़ी है जिसे ब्रहम नाडी कहते उससे जाती है। और पक बाल के जैसे शक्ती ऊपर जाकर के बरम्हरंद्र को छेदती है । ये छेदन होते ही ऊपर से परम चैतन्य बहने लगता है और उससे आपके संकीर्ण चक खुल जाते हैं। इस प्रकार आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य से हो जाता है जिसकी सूक्ष्म सृष्टि है और जिसे हमने आज तक जाना नहीं। ये जानना हमारे ऊँगलीयों पर होता है हाथ्थों में चैतन्य की लहरीयों बहने 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt - 30 - शुरू हो जाती है । श्री शंकाचार्य ने इसे "सलीलम" कहा है। ठंडी ठंडी हवा, हाथ में आने लग जाती है। लाी ये हया हमको बताती है और जताती है कि हमारे अन्दर कौन से दोष हैं और दूसरों के अन्दर कौन से दोष हैं। जब हमारा बम्हरन्द्र छेद होता है तो हमारे सिर से भी ठंडी हवा आने लगती है। पर जब तक हम इसका उपयोग नहीं करेंगे हम समझ नहीं सकेंगे कि ये ठंडी हवा क्या चीज़ है और इससे क्या प्राप्त होता है। जब मनुष्य अपने भूतकाल के बारे में सोचता है, और हर समय दुखी रहता है और अपने को बहुत न्यून समझता है। उस क्वत हम इस नाडी पर गिरते गिरते हम सामुहिक सुप्त चेतना में चले जाते हैं। (कलेक्टिव्ह की बिमारी हो जाती है। दु :खी किसम इससे हमें बहुत मानसिक त्रास होता है। ऐपिलेप्सी सब- कोनशस) के तोग होते हैं, जो लोग पागल हो जाते हैं, ये सब इसी नाड़ी के कारण । दाये और की नाड़ी कम होती है जब हम बहुत ज्यादा सोचते हैं, या बहुत शारीरिक श्रम करते हैं। अगर हम संकीर्ण होते जाएँगे। और आपकी बहुत ज्यादा सोचने से हमारे अन्दर बहुत असंतुलन आ जाता है| शक्ति भी क्षीण होती जाएगी अगर किसी आयात से, बाँ या दाये इसे तोड़ दे तो आपका सम्बन्ध जो मेन्स कि किड़नी की बिमारी पिंगला नाडी में स्वराबी आने से हो जाती है । से है, वो टूट जाएगा। डायबिटीय, लिव्हर आजकल का जीवन। इसमें हें बहुत संघर्ष इसका एक ही कारण है ब्लड प्रेशर, टेन्शन वगैरड होता है। कीा से रहना पड़ता है। और फिर मनुष्य बहुत सोचता है। आगे की बातें सेचता रहता है। इस सोच विचार से हैं, आपकी स्वाधिष्ठान चक, जिसे एक बहुत ज़रूरी कार्य करना होता है कि हमारे मस्तिक में जो ग्र सेल्स उनको बार यार पूरा करें। बहुत विचार करने से ये गरे सेन्स वत्म होते जाते हैं, और सारा ध्यान इस चक तो बाकी के जो काम वो करता है यो रह जाते है। जैसे लिब्हर को सिर्फ ग्रे सेल्स बदलने में । का जाता है को देखना। तो इन में बिमारीयों हो जाती हैं। ये सिर्फ सहज गुर्दा, अतडी पाचग्रन्थी, प्लीहा, है। और फिर से कुण्डलीनी जाग्रण से इन चर्कों को फिर से जोड देती योग के ढवारा ठीक कर सकते हैं। खोल देती है, और फिर से शक्ति उस चक में आ जाती है और कुण्डलीनी स्वयं ही उस चक को प्लावित कर देती है! तो उनका पैकियास खराब हो जाता है । डायीविटीस बहुत सोच विचार करने बाले लोगों को होती है। खून का कैन्सर हमारे प्लीहा के बजह से होता है आज कल का जीवन बहुत ही उधल पुथलवाला है। तो उसे शोक लगता है फिर ये स्पलीन धक जाती है फिर ब्लड कैल्सर हो जाता है। हमारे आजकल का जीवन बहुत असंतुलन का जीवन हो गया है इस बवत हम कुण्डलीनी जाग्रण से ही अपने चर्कों को प्लावित कर सकते हैं। इडा नाड़ी के बारे में कहना है कि जो मनुष्य रात दिन रोते रहता है। बंगाल में इतनी कला है, देवी का इतना कार्य हुआ तो यहाँ इतनी गरीबी क्यूं। इसका एक कारण ये है कि यहाँ काला जादू, तात्रिक बहुत है। पूरे विश्व' में से यहाँ सब से ज्यादा है। महाकाली के विरोध में ये लोग कार्य करते हैं । अगर इस 1 काली विया को आप उखाड फेकये , तो दरिखये कि लक्ष्मी का वास यहां आ जाएगा| इस काली विद्या से बहुत लोग यहां पर बिमार हैं। अगर आपको सत्य को खोजना है और अगर आप अपना हित चाहते क तो ये सबको छोड़कर के सहज योग में आएँ ।