\ चे त न्य ल ह री खंड 2. अक 7 -६ जब तक आपका हृदय विशाल नहीं, आपकी आज्ञा अच्छी नहीं हो सकती । बुध्द पूजा (रशिया) का चेतन्य लहरी" "ईस्टर पूजा वार्ता सारशि" ईस्ट बोर्न - इंग्लैंड अप्रैल 22,।990 ईस्टर पूजा में परम् पूज्य श्रीमाता जी ने इक्कीसवें सहस्त्रार दिवस पर लगाई जाने वाली लम्बी छलंग के लिए हमें तैयार किया। उन्होंने बताया कि श्री ईसा मसीह के पुनर्सत्थान की पूजा करने तथा हमें एक आदर्श समर्पित, गहन तथा सन्त सुलभ जीवन प्रदान करने के लिए उनका धन्यवाद करने का यह अवसर है। विशेपकर पश्चिमी देशों के सहजयोगी ईसा मसीह के प्रति अत्यन्त समर्पित हैं। फिर भी यह समर्पण प्रकाशमय होना चाहिए। सक्षात्कार से पूर्व मी लोग किसी महान् शक्ति में विश्वास करते हैं। परन्तु योग अध्यावहारिक के अभाव में यह विश्वास एक प्रकार से भ्रम का रूप ले लेता है। उनमें एक मनगढ़न्त विश्वास होता है कि ईश्वर से उनका विशेष सम्वन्ध है और इससे भी बुरी बात यह है कि यह अन्ध विश्वास प्राय: लोगों में एक भ्रम पैदा कर देता है कि उनके उस विश्वास के कारण ईश्वर पर उनका विशेषाधिकार बन गया है और उनकी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करना ईश्वर का कर्तव्य बन गया हैं। ऐसे लोगों को चेतावनी देते हुए ईसा ने कहा है "ईसा करके तुम मुझे बुलाओगे। परन्तु मैं तृम्हे पहचानूंगा नहीं"। आत्मसाक्षात्कार के बाद में ही सभी देवी देवताओं से हमारा सम्बन्ध जुड़ता है। परन्तु जब सहज योगियों में गहराई की कमी होती है तो सूक्ष्म रूप से इस सम्बन्ध का पतन उनकी आन्तरिक गहराई का स्तर हो जाता है। वह सहजयोगी यह आशा करते हैं कि उनके धन-धान्य का प्रबन्ध करना सहजयोग का कर्तव्य है। श्री माता जी ने वर्णन किया कि आत्मसाक्षात्कार के उपरान्त जब हम ईसा से सम्बन्धित हो जाते हैं तो हमारा दृष्टिकोण पूर्णतया बदल जाना चाहिए। हमें अपने अन्दर ईसा के सभी गुण आत्मसात् कर लेने चाहिएं। ईसा का जीवन हमें एक ऐसा जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करे "जिसकी प्रतिष्ठा हो सके और जिसे ईसा के जीवन की एक झलक कहा जा सके "ईसा ने पूरे विश्व के प्रति कर्तव्य को महसूस किया। देवी पुराण में उन्हें पूरे ब्रहुमाण्ड का आधार कहा गया है। सहजयोगियों को भी मानव- मात्र की स्वतंत्रता तथा सामूहिक उत्थान के लिए स्वयं को उत्तरदायी समझना चाहिए। हमें सावधान तथा अपनी जिम्मेवारियों के प्रत जागरूक होना है। ईसा सर्वदा विश्व के हित के लिए चिन्तित रहते धे। वे स्वयं ज्ञान धे और अपना लक्ष्य जानते थे पूर्ण साहस, गहनता तथा समर्पण से वह सत्य बोलते थे। सहजयोगियों को भी सहजयोग का ज्ञान होना चाहिये और उन्हें साहस, समर्पण तथा बिना किसी व्यव्तित्व के माध्यम से अपने आप मिथ्यामिमान के सहजयोग के विषय में बताना चाहिये। को प्रकट करने का सामर्थ्य सत्य में है। यदि अपने सहजयोगी होने का हमें सच्चा किश्वास है तो सहज योग के विधय में बताने की योग्यता हममें वैसे ही होनी चाहिये जैसे ईसा में सत्य के विपय में बोल ने की धी। यदि हम यह नहीं कर सकते हैं तो हम में ईसा सुलभ गहनता का अभाव है। ईसा ईश्वर के कार्य का मूल्य जानते थे तथा अपने बहुमूल्य समय की तुच्छ बातों में खराब नहीं करते थे। हमें भी अपने म प सहजयोग में अपने आत्म साक्षात्कार का मुल्य समझना है तथा कार्य के प्रति गहन तथा समार्पित होना है । ईसा के यह गुण जब हम ग्रहण कर लैंगे तब ध्यान का न आनन्द हमें प्राप्त होगा। श्री माता जी ने समझाया कि जो व्यावेत अपने ध्यान का आनन्द नहीं ले सकता वह सहजयोगी नहीं हो सकता। ध्यान लगाने के लिए समय की तलाश में रहना संहजयोगी की प्रथम पहचान है। "यही वह समय है, जब आप वास्तव में परमात्मा से जुड़े होते है और सर्वाधिक आनन्द पाते हैं"। सहजयोगियों का ध्यान के लिए उठ न पाना या जागते न रह सकना, उनके अन्दर ईसा के जागृत न होने के कारण है। ईसा की कृपा यदि आज्ञा चक पर है तो हम ध्यान का आनन्द ले सकेंगे और ध्यान मुद्रा में से बाहर भी न आ सकेंगे। किसी भी मूल्य पर सहजयोगी यह आनन्द त्याग नही सकते। श्री माता जी ने इस आनन्द की तुलना जीभ पर बूंद-बूंद कर टपकने वाले अमृत से की है। इसका आनन्द लेने के लिए हमें अपनी गहराई को छुना होगा। गहराई र जन्मयोगियों में है उन्हें उसे छूना है। ईसा पूर्ण त्याग का जीवन जिये और इन्हें पुनर्त्थान क पाना था। अपने लक्ष्य के प्रति वे समर्पित थे। सहजयोगियों को भी पूर्ण रूप से समर्पित होना है। भारा तो हर अगला लक्ष्य आनन्दमयी है। सहजयोगियों को अपने आलस्य का बलिदान देना होगा। सहजयोगी जब यह कहते हैं कि उन्होंने अपना कार्य कर दिया है और बाकी का कार्य छोटी आयु के लोगो का है तो इनमें एक सूक्ष्म प्रकार का आलस्य कार्यरत होता है। इमारे लिप बहुत कार्य करने को है। श्री माता जी ने कहा, "क्षितिजावस्था में अपने विकास को सन्तुलित करने के लिए आपके ऊध्ध्वावस्था इवरटीकली में विकसित होने के लिए कठिन परिश्रम करना है" "हर क्षण आपको सोचना है कि आप सहजयोगी हैं और सहजयोग में अपने लक्ष्य को आप कैसे प्राप्त करेंगे। जब तक उस श्रेष्ठता को न पा लें, आपको संतोष नही होना चाहिये। सहजयोग में सामान्य योग्यता का कोई स्थान नहीं। श्रेष्ठाता दारा ही आप आनन्द पायेगे। श्रेष्ठ बनकर ही आप वास्तीविक सहजयोगी बन पायेंगे"। ईसा जानते थे कि वे एक यन्त्र हैं। आज्ञा चक को खोलने वाले वे ही थे अपने पुनरूत्थान दारा उन्होंने इस लक्ष्य को पाना था और यह उन्होंने पाया। आज्ञा चक के खुले विना सहस्त्रार को खोल पाना कमी सम्भव न हो पाता। होने के लिए वे ही उपकरण हुयन्त्र है। यह तर्क कि "परम् चैतन्य समी कार्य करेगा तथा हमारी देखमाल करेगा" किल्कुल असंगत है। यदि ऐसा होता, तो मानव रचना की आक्श्यकता ही नहीं होती। अपने पर हुई कृपाओं को गिनने के स्थान पर सहजयोगियों को अब अपने कार्यो को गिनना चाहिए। अपनी गहराइयों तक उन्हें पहुंचना है। "जब तक आप गहन नही हो जाते, परम चैतन्य गतिशील नही हो सकता। यह असहायु है। आपके जरिये ही यह कार्य कर पायेगा। अत: परम् चैतन्य का अपना ही तरीका है। यदि आप लोग चाहेंगे तभी यह कार्य कर सकेगा "यह ऊर्जा है और आप उपकरण कि गहन तथा गम्भीर यन्त्र बनना है तथा देखना है कि कितनी श्रेष्ठता सहजयोगियों को भी समझना है कि परम् चैतन्य शक्ति के कार्यान्वत "। श्री माता जी ने कहा हमें सहजयोग का समार्पत, का से आप लोगों तक पहुंचते हैं। कितने लोगों को साक्षात्कार दे सकते हैं, कितने लोगों के स्वस्थय मानसिक दशा को सुधारने में आप सहायक हो सकते हैं, और फिर सहजयोग के विषय में कितना आप बताते हैं"। श्री माता जी ने कहा कि इस प्रकार सहज योग मानव मात्र का सामूहिक उत्थान कर सकेगा । तथा की 3. चैतन्य लहरी "पृथ्वी ग्रह के आज्ञा चक़ का खोलना" "सोवियत संघ" मई, 1990. | 2-17 पिछले छः माह में आदि शवित ने चौथी बार सोवियत संघ को आशीर्वादित किया। परिणाम आश्चर्य- जनक है। मास्को, कीव और लेनिनग्रे आदि मुख्य नगरों में नियमित रूप से ध्यान करने वाले सहजयोगियें की संख्या दो हजार से भी अधिक है। हजार कुर्सियों वाले हाल भी खचा खच भर गये थे। अतः अन्र में चार हजार कुर्सियों वाला एक स्टेडियम किराये पर लेना पड़ा, ताकि जनता की लम्बी लाइनों को स्थान दिया जा सके। पहले हवाई अड्डे पर तथा फिर स्टूडियोज में राष्ट्रीय दूरदर्शन ने श्री माता जी से भें की। अतः इस प्रकार अब सिनेमा माध्यम से भी लावों तोगों के लिए साक्षात्कार ले प्राना सम्भव हो जायेगा इच्छुक साधकों को श्री माता जी के चित्र डाक दारा मेजे जायेंगे, जिससे वे सहजयोग का अभ्यास का सकेंगे। कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष और कई अ्य मौत्रयों ने भी आत्म -साक्षात्कार प्राप्त किया। शिक्षा मंत्रालय ने मास्कों के एक स्कूल में सहजयोग चालू किया है और शनै:- शनै ः इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जायेंगे। शरीर चिकित्सा समस्याओं के समाधान के लिए है। श्री माता जी ने पूरे सोवियत संघ से आये 300 चिकित्सकों के एक विशेष सम्मेलन को सम्बोधित किया और उन्हें आत्म-सक्षात्कार दिया। उनकी रुचि सहजयोग में इतनी बढ़ी कि सहजयोगी चिकित्सकों को भारत तथा अन्य देशों से पहली जून से नौ जून तक होने वाले चिकित्सक सम्मेलन के लिए निर्मत्रित किया गया। र्सी जिज्ञासुओं पर श्री माता जी इतने प्रसन्न हुए कि वे जून के ऊन्त में सोवियत संघ को पुनः आशीर्वादित करने के लिए सहमत हो गये हम प्रार्थना करते हैं कि आज्ञा चक् अवश्य खुल जाये। श्री माता जी ने रूसी जिज्ञासुओं की समझदारी की सराहना की और कहा कि बुदिधि के बिना स्वतंत्रता को नही सम्भाला जा सकता। देखो अमेरिकन लोगों का क्या हाल हुआ है! स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सहजयोग केद्र स्थापित किया "मास्को के चिकित्सक सम्मेलन में श्री माता जी का भाषण" "सारशि" रोगियों का उपचार करना अत्यन्त साधारण है। यदि एक पेड़ रोगी है तो उसके पत्तों के इलाज से काम नहीं चलेगा। सूक्ष्म बनकर यदि आप उसकी जड़ों का इलाज करें तो यह कार्य करेगा । इसी प्रकार यदि जड़ों तक पहुँचकर हम रोगी के केनंद्रों का पोषण करें तो कुन्डलिनी रूपी शक्ति दारा संबंधित होकर जो सन्तुलन प्राप्त कर पायेंगे, वह आश्चर्यजनक कार्य करेगा । जिगर और प्लीहा" जिगर से निकली गर्मी कुछ समय पश्चात् फेफड़ों को दुर्बल कर देती है तथा अस्थमा रोग हो जाता है अब जिगर को पर्याप्त पोषण नहीं प्राप्त होता तो यह अत्यधिक सकिय हो उठता है। इस प्रकार यह प्लीहा को भी हानि पहुंचाता है यदि एक गर्भवती स्त्री का जिगर अत्यधिक सकिय हो जाये तो होने वाले बच्चे के प्लीहा को भी हानि पहुँच सकती है। शोक समाचार भी प्लीहा में अशानिति उत्पन्न कर देता है प्लीहा शरीर में आपात् स्थिति के आधुनिक जीवन सदा ही आपात् स्थिात में है। प्लीहा पर लगातार लगने वाले शोक इसे पागल बना देते हैं। और यह केंसर से मुकाबले के लिए दुर्बल हो जाता है। इस अवस्था में यदि बाँई ओर से कोई समस्या हो जाये या कोई कुगुरू सिर पर हाथ रख दे तो लिए लाल रवत लोहाणु उत्पन्न करता है। असुरक्षित रक्त-केंसर हो जाता है। "वायरस" विषाणु" विषाणु बॉई ओर से आते हैं ये मृत आस्त्व होते हैं, जो कि सामूहिक अवचेतना में बैठ जाते हैं। "आत्मा" हमारी आत्मा पीठ की ओर है। यह सात कुल्डलों में होती है और आठवां कुन्डल हमारी पवित्र अस्थि हत्रिकोणाकार अस्थिह में होता है। सारे धनात्मक तत्वों से इसकी रचना होती है। यह सब अंतग्रावी और बाहिनी हीन ग्रन्थियों की देखभाल करता है। यह हमारी प्रतिवीर्त किया हरिफ्लेक्स एक्शन के लिए कम कार्य करता है। यह कम्प्यूटर कार्यक्रम की तरह है । अब चिकित्सा विज्ञान ने खोज निकाला है कि हर कोशिका में उसी कुन्डल के आकार का एक अभिग्राही हरिसेप्टर होता है। जब अभिग्राही में एक डेपोमा -इन बन जाता है। तो यह मिर्गी, पागलपन, उद्ासी आदि तक पहुंचा देता है जब कोई दूसरी आत्मा पीठ और व्यकि्तित्व पर बैठ जाती है तो यह डेपोमाइन पैदा हो जाता है और मनुष्य एक विशेष प्रकार से, जिसे हम भूतवाधा कहते मनुष्य के दायें और बैठ जाये तो भी यह भूत बाधा हो सकती है। हैं, बर्ताव करना शुरू कर देता है। "हिटलर जैसी मृत आत्माएं यदि पा। "श्री बुधपूजा वार्ता" लेनिनग्रेउ ।4 मई,1990 "सारोश" रूस आगे का और चीन पीछे का आज्ञा चक्र है । आज की बुध पूजा इस चक्र को खोलने के लिए आज्ञा चक्र के स्तर पर विचार होते हैं । क्योंकि आप सब परम शक्ति से जुड़े हो अतः की जा रही है । आप में विचार भेद नही हो रुकता । यदि विचार भेद है तो आप सहजयोगी भी नही है पा आपको अवश्य याद रखना है कि सत्य के सामाज्य में आपकी देखभाल होती है ५" हर कदम पर कोई आपकी रक्षा करता है । नहीं है । प्रवास अधिकारी केवल मुस्कराया और बिना किसी प्रश्न पूछे मुझे बीजा दे दिया । से सारे सहजयोगी आश्चर्यचकि त थे । सूक्ष्म जब मास्को हवाई अड्डे पर पहुंची तो मुझे याद आया कि पर्स में मेरा बीजा इस चमत्कार शक्ति छोटी - छोटी बातों का ध्यान रख कर चमत्कार कर अपना अस्तित्व आप पर प्रकट करती है । - 5 सहजयोगियों में भय किल्कुल नहीं होना चाहिये। भय को निकाल फेकिये। यदि कोई आपको डरा का प्रयत्न करता है तो उसे सहजयोग से निकाल फेंका जायेगा। आपकी आत्मा के अतिरिक्त कोई औ शवित से अंधिक शंक्तिशाली कोई शव्ति नहीं। सहज योग बडिलता नह आपको नियान्त न करे। प्रेम है, यह सुख : द आनन्द है। यह एक अवस्था है। आपको कोई हानि नही पहुँचा सकता अब समय आपका गुलाम है। आप समय से ऊपर है। जो भी आपसे चालाकी करेगा वह अपनी चालाकी का शिकार हो जायेगा। सहजयोग के प्रकाश में अप हाथ में पकड़े सांप को देखो और इसे फेंक दो। अब आप न बच्चे हैं न बुद । आप केवल आनन्दपूर्व जीवित हैं। विशाल हृदय के बिना आपकी आज्ञा अवछी नहीं हो सकती। आज्ञा का मंत्र है "क्षम" में क्षम करता हैं। पीछे की आज्ञा का मंत्र है "हं" "मैं हूँ"। इस प्रकार "हैं", "क्षम"। ब ईश्वर आपको आशीर्वादित करे। चैकन्य लहरी सहस्त्रार पूजा सारंश रोम, इटली मई 6,1990 "पिछले कई वर्षों से मैं इक्कीसवें सहस्त्रार दिवस की प्रतीक्षा करती रही हूँ। अब एक नया परिवर्त आना है जिसकी घोषणा आप देख सकते हैं हविजली का जोर से कड़कना। अभी तक हम सामूहिक चेतन चक तथा नाडियों पर कार्य करते रहे हैं परन्तु शायद हमें यह पता नहीं है कि पिछले इक्कीस सालं में तुम्हारे अन्दर कितनी शव्तियां विकसित हो उठी हैं। परम चैतन्य सब कुछ जानता है और सारी प्रकृति ठीक समय पर आपके लाभ और उन्नी के लिए कार्य करती है। । आप की समझ के अन्दर या अब विश्वस्त हो जाइये कि आप में शक्तियां हैं नया परिवर्तन आने वाला है। अब तक आप जानते थे कि आप लहरियों का अनुभव कर सकते हैं लोगों को ठीक कर सकते हैं, परम चैतन्य का अनुभव कितनी परिवर्तनशील शव्तियां आपके अन्दर कर सकते हैं, परन्तु आप यह नहीं जानते वि कार्य कर रही हैं और यह नया परिवर्तन आने वाला है इस नये परिवर्तन के साथ आपको एक नयी विशेषता अपनानी होगी। घोषणा मेघ गर्जन । अब तद में आपको सहज योग के विषय में खुलकर न बोलने के लिए कहती थी परन्तु अब समय आ गया है कि हम सबसे सहज योग के विषय में बताना, बोलना और इसकी घोषणा करना शुरू कर दें, नेहीं नी.] तो यह किश्व कहेगा कि उसे इसका पता ही नहीं पड़ा। अभी तक हमने सहज योग की गति को धीमा रखा क्योंकि में चाहती थी कि पहले आप सब लोग बहुत सुन्दर सहज योगियों के रूप में विकसित हो जायें और आपकी जीवन शैली, आचरण सूझबूझ और विचारों से लोग जान जायें कि ये कोई बहुत है भिन्न प्रकार के विशिष्ट लोग हैं। आप को समझना है कि यह सब शक्तियों आपमें चुल-मुला रही है परन्तु आप कुछ कारणों से इन्हें छुपाए हुए है। 6. वै दिन अब समाप्त हो चुके हैं जब मां आपका सिर दर्द ठीक करती थी, आपके परिवार, पत्नी और बच्चों की देखभाल करती थी। यह सब बातें अब समाप्त हो गयी है। अब आप केवल अपने लिए ही नहीं अपने आश्रमों नगरों, देशों तथा पूरे विश्व के प्रति उत्तरदायी हैं। अब आप "राज दरबार" में हैं। अपने उत्तरदायित्व को सम्हालिए। स्वयं को पहचानिए, अपनी शवितयों को जानिए और समझिए कि आप क्या कर सकते हैं । अपने पर हुई कृपाओं तथा चमत्कारों को गिनने के दिन समाप्त हो चुके। अब आपको अपनी शक्तियां गिननी है तथा यह जानना है कि मैं इनका प्रयोग कैसे कर सकता हूँ। 1 आज से हम एक नये यूग का आरम्भ कर रहे हैं। आज तक मैं प्रतीक्षा कर रही धी कि आप समझ सकें कि आप अपने परिवार के, जाति के, या अपने राष्ट्र के स्वार्थ के लिए सहज योगी नहीं है। आप पूरे विश्व के हित के लिए सहज योगी हैं। अपना विस्तार कीजिए| मानव जाति को मुक्त करने का बह स्वप्न, जो मैंने बहुत बार आपके सामने रख्खा है अवश्य आपके सम्मुख्य होना चाहिए। आत्म-संशय को छोड़ दीजिए। यह कार्य किन्हीं विशेष लोगों दारा होने बाला नहीं क्योंकि वे तो अहं-ग्रस्त होते हैं। अपनी महान सफलताओं, हो वे लोग इस कार्य को कर सकेंगे। ईसा ने कहा है कि सूई के छेद में से ऊंट तो निकल सकता है उपलब्धियों तथा वैभव का अह जिसे न परन्तु एक वैभव्शाली व्यक्ति ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि उसका अहं हाथी से भी बड़ा होता है। हमें अपने व्यर्थ के बन्धनों के लिए चिन्तित नहीं होना क्योंकि हम एक नयी चेतना में प्रवेश कर रहे हैं । केवल एक स्वीकृति देनी है कि "मैं एक सहज योगी हूँ और इक्कासवें सहस्त्रार के पश्चात् मैं एक महायोगी हूँ। अब हमने खुलकर इन कटुटरपीथियों से बताना है कि "आप सत्य तथा परमात्मा की कार्यरत शवित के विषय में नही जानते। मृगतृष्णा के पीछे दौडने वाले आप मूर्ख लोग है जिनका अन्त नर्क है"। आपको लोगों से बताना है कि असत्य के पीछे दौडुकर वे परमात्मा को नहीं पा सकतें। हम घृणा की नहीं प्रेम की शवित में विश्वास करते हैं । हमें किश्विस है कि हर व्यक्ति में सत्य को प्राप्त करने की तथा परमात्मा के साम्राज्य तथा [स्वर्ग को पा लेने की बोग्यता है। पहले मेरा परिवार, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा घर, मेरी जायदाद, मेरा धन-यह सब मेरा- पन आदि व्यर्थ की समस्याएं समाप्त होनी चाहिए क्योंकि जैसे एक उत्तम राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए होता है वैसे ही आप भी पुरे विश्व के लिए हैं अब आप पूर्णतया स्वतंत्र है और आपके आनन्द का साधन है आपकी आत्मा। आप हर वस्तु से निर्लिप्त हैं। उस नि्लिप्तावस्था में आपने सबका पोषण करना है निर्विचार-समाधि दारा नि्लिप्तता प्राप्त होती है। जब भी आप किसी को देखें निर्विचार समाधि में आ जायें। शीघ्र ही नित्तिप्तता का अनुभव म।। कर आप पूरी समस्या का समाधान में है ज्ञानी १सुविज् है हैं। केवल निर्विचार समाधि में चले जाइये और ज्ञान का पूरा भंडार आपके सम्मुख खुल सकता है। हर क्षेत्र में आप बहुत आगे बढ़े हैं जिससे हमें कभी-कभी धोड़ी सी प्रसन्नता प्राप्त हो जाती जान जायेंगे। आपकी सर्वोच्च शक्ति आपके मस्तिष्क कि आप है। मुख्य बात तो यह है कि हम कितने लोगों को साक्षात्कार देते हैं और कितना प्रचार सहज योग का करते हैं। सहज योग महत्वहीन नही है। सहज योग पूर्ण समर्पण तथा लगन है और इनके अभाव में आप सहज योग के लिए किलकुल व्यव हैं। धोड़े से समर्पित लोग व्यर्थ के हजारों लोगों से कहीं अचटे हैं तो हमें देखना है कि आपने अपने तथा सहज योग के लिए क्या निर्णय लिया है। यदि आपने सहज योग को चुना है तो जान लीजिए कि यही मुल्य कार्य है जो आपको करना है। पूरा ध्यान सहज योग पर रखना है। सहज योग में क्या कार्य हो रहा है? [हम कहां हैं? हम कहां जा रड़े हैं ? माँ कहां है? वे विश्व के कौन से भाग में हैं ?ये क्या कर रही हैं? यदि आप अपना ध्यान इन बातों पर देंगे तो आपकी अशुद्धयां पूर्णतया समाप्त हो जायेंगी। तो] अब आप महायोगी हैं और हमने सहजयोग को भी महायोग वनाना है। जब तक आप वह स्तर प्राप्त नहीं कर लेते आपको सोचना चाहिए कि आप पिछड़े हुए है और पहिये के घूमने पर में नही जानती, कितने लोग पिछड़ जायेंगे। अपने पर सभी संदेहों को छोड़कर पूरी शक्ित से सहज योग की सभी मर्यादाओं के साथ आगे आतरिक्त चारित्रिक तथा आचरण संबंधी मर्यादाएँ बढ़िये। अतः मर्यादाओं का होना भी आवश्यक है। इसके भी होनी चाहिएँ। सहज योग में बहुत अधिक मर्यादाएें नही हैं परन्तु एक मुख्य मर्यादा यह है कि आपको उच्च चोरत्र का व्यक्ति होना है के और अपने दिखावे तथा आचरण से भी घृणित व्यक्ति नहीं बनना है। आज यहां पर विश्व भर से लोग आये हुए हैं आप सब जाकर मेरा संदेश उन सब सहजयोगियों उनसे कहो कि "मा ने घोषणा कर दी है, विष्णु माया के माध्यम को भी दो जिनसे मैें नहीं मिली। से भी, कि आप सब महायोगी बन गये हो, यह स्पष्ट रूप से प्रकट करने का प्रयत्न करो कि स्वयं मैं पूर्ण विश्वास के साथ और इस प्रेम की शवित से मुझे पूरा विश्वास है, हम सब विजयी होगे। क० c३ ४ 8. विशुद्िय चक गुणः बायी किशादिध :- बहन भाई सम्बन्ध, आत्म सम्मान। पकड़ के कारण :- दोष भावना का होना अनैतिकता कपटपूर्ण वार्तालाप का ढंग, व्यंग्यातमकता, आत्म सम्मान का अभाव और शब्द दारिद्य। उपचार श्री विष्णुमाता १ कृष्ण जी की बहन का मंन्त्र प्रयोग । "श्री माता जी , आपकी कृपा से में आत्मा हूँ और पूर्णतया निर्दोष हूँ। में किस प्रकार दोपी हो 1- 2- सकता हूँ। अपने विशुद्िध चक् को चैततन्यित करना बाइब्रेशंस देना कोई गलती करने के बाद या अहम् का आनन्द लेने के बाद स्वरयं को दोषहीनता की भावना 3- 4- ग्रस्त न होने देना। बहन-भाई सम्बन्धों की शुद्धता के स्तर को ऊँचा करना। 5- इस सत्य का ज्ञान कि श्रीमाता जी हमें क्षमा करती हैं अतः हमें भूतकाल में किये कुकूत्यों तथा दुराचारों के कारण दोष भावना ग्रस्त नहीं होना चाहिए। 6- स्वयं को व्यर्थ तथा अपर्याप्त न समझकर स्वयं को परमात्मा के प्रेम की अभिव्यविति मानकर 7- अपना मूल्यांकन करना चाहिए। दूसरों को स्वयं पर प्रभुत्व नहीं जमाने देना चाहिए। दूसरों से सहजयोग के विषय में आत्म-विश्वास के साथ बातचीत करना। 8- भाव-विभोर हो परमात्मा के भजन गाना तथा अपने कण्ठ का प्रयोग श्री माता जी की पूजा के 9- लिए करना। व्यंग्यात्मक तथा मानव देी न बनिये। 810- स किसी कुंगुरू रहे थे तो स्वयं को दोष मुक्त दारा दिये गये मन्त्र का उच्चारण योदि आप कर करना इस बात की पुष्टि करते हुए कि श्री माता जी आप ही सभी महान् मंत्रों की दाता है" या "ऊँ त्वमेय साक्षात् श्री सर्व मन्त्र सिद्धी साक्षात् श्री आदिशवित माता जी श्री निर्मला देव्यै नमो नम ः"। मध्य विशुद्धि : - गुण :- भाव, सर्कय्यापकता और सामूहिक चेतना धाइरा दिव्य व्यवहार कौशल, आनन्दमय साक्षी ग्लॅड के लिए पकड़ के कारण आकामक स्वभाव, अअवडपन, सामूहिक भावना की कमी तथा साकषीपन का अभाव। उपचार श्री राधा-कृष्ण के मन्त्रका उच्चारण। " श्री माता जी मुझे साक्षी बना दीजिए"। "श्री माता जी मुझे विराट का अंग-प्रत्यंग बना दीजिए' 2- श्री माता जी मुझे भले -बुरे की पहचान करने वाला तथा स्वदोष सुधारक व्यव्ति बना दीजिए। अपने विशुदिध चक् को बाइब्रेशन्स दीजिए। अपने हाथों की पहली अँगुलियां अपने कानों में डालकर गर्दन को पीछे की ओर झुकाकर आका की और देखते हुए । 6 बार जोर से अल्लाह-हो-अकबर गाइये । निर्लिप्तता तथा साक्षी भाव अपने अन्दर विकसित कीजिए| घी-मक्खन या तेल से विशुद्िध क्षेत्र की मालिश कीजिए और गले के अन्दर मक्खन लगाइये। नमक के पानी से सुबह-शाम गरारे कीजिए। तुलसी की चाय का उपयोग कीजिए और घर 3- 5- 6- 7- काफूर जलाइये अपने नासिका मार्ग, गले की नाडिियां तथा श्वासनली को साफ करने के लिए अजवाइन धू ৪ - लीजिए। अपनी ठुड्डी को गर्दन की जड़ में दबाइये, जीभ को अन्दर की ओर इस प्रकार मोडिये जे इसे निगल रहे हों और जीभ मसूडों को भी न छुये। इस प्रकार एक मिनट तक बहुत है ा धीरे-धीरे श्वास अन्दर बाहर लेते रहिये। ति नाक से संस लीजिये कुछ देर श्वास को अन्दर रोकिये और फिर श्वास को छोड़िये तथ कुछ देर श्वास को अन्दर न जाने दीजिये। श्वास खींचते हुए धोड़ी सी कम हवा अंदर लीजिए 10- तान बार दोहराइये। धोड़ा सा बाइबरेटिड पानी हल्का सा नमक डालकर नाक के रास्ते से पीजिए। 11- दरयी विशुद्धि गुण :- आत्मुसाक्षी तथा शब्द, आवाज, विचारों और आचरण में मधुरता । ंजि चक की पकड़ के कारण :- जुकाम, अत्यधिक उत्तरदायित्व, तम्बाकू की लत , कसमें खाना तथा कटु बोलना, गले की नाडियों की खराबी तथा अत्याधिक गाना और बोलना। 10 उपचार श्री यशोदा जी का मन्त्रोपयोग । "श्री माता जी मेरे शब्दों और कार्यो की मधूराता आप स्वयं हैं" इस पुष्टि का प्रयोग तथा प्रार्थना कि "श्री माता जी मेरी आकामकता तथा दूसरों को दबाने की आदत समाप्त कर मुझे मधुर 2- वाणी प्रदान करो और मुझे मधुर तधा सामूहिक व्यक्ति वना दो। दायी विशुद्ध को बाइबरेशन्स देना। कम बोलें, यदि बोलना भी पड़े तो अपनी कटु आवाज से दूसरों को दबाने का प्रयास न करें। दूसरों से मधुर बोलने का गुण विकसित करें । 4- 5- स्पाने के स्वाद पर कम ध्यान रदें। 6- सबको क्षमा कर अपने कोध को समाप्त कर दें । 7- लोगों से बहस न करें और न ही अपने विचार मनवाने के लिए अधिक समय खर्च करें। ৪ - 11 लोगों को प्रभावित कैसे करें? " श्री माता जी - निर्मला देवी" हालैंड ह्वेग 17-9-86" दूसरों को प्रभावित करने के लिए हमें जानना है कि हमारा स्वयं पर कितना अनुशासन कहै। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उदाहरण के रूप में अस्तित्वविहीन लोग यदि दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास करें तो मजाक बन जाते हैं। जब तक आपकी अपनी कोई पहचान नही है, आपसे कोई प्रभावित नहीं होगा। अतः बाहय व्यक्तित्व से पहले बातचीत करते हुए बातचीत करने की आपकी अपनी एक सुन्दर शेली का होना आवश्य क आन्तरिक व्यक्तित्व का विकसित होना आवश्यक है। लोगों से है। आपकी चाल भी सधी हुई होनी चाहिए। शिथितता से टांगों को इधर-उधर फेंकते हुए न चलकर सीधे चलें और सीधे ही बैठे। लोगों को आपके आत्मविश्वास का पता चले। आत्मविश्वासहीन आचरण दूसरों को प्रभावित नहीं कर सकता। आपके आचरण जैसे बातचीत, चालढाल , बैठने तथा संवाद के ढंग से आपका आत्मृविश्वास छतकना चाहिए। आत्मविश्वास की एक झलक होनी चाहिए। परन्तु पूर्ण तथा सुरक्षित उत्पन्न होता है सहजयोग में यदि आपके मध्य हृदय में असुरक्षा की भावना है तो स्वयं को आश्वस्त कीजिए कि "श्री माता जी मेरे साथ है, मेरी संहायता कर रही हैं और मैं मां के साथ हूँ। मुझे किसी बात की चिन्ता नही है" तब आपका मध्य-इृदय ठीक होगा। निस्संदेह आप यह सब दूसरों को नहीं बतला सकते फिर भी यदि आपमें व्यक्तित्व है तो आप इसे सहज ही दूसरों में भर सकते हैं परन्तु आत्मविश्वास- विहीन आप यह कार्य नहीं कर सकते। अतः सर्वप्रथम आपको अपने अन्दर आत्मविश्वास स्थापित करना है। सहज योगियों के लिए यह कहना अति सुगम है कि "मैं आत्मा हूँ, मैं अबोध हूँ, और मुझे स्वयं महसूस करने पर ही आत्मविश्वास त आदि-शकिति ने चुना है" अतः आपके अन्दर जबरदस्त आत्मविश्वास होना चाहिए। जब कोई व्यकि्ति आपके पास आए, तो उसे देय-सम जान, उससे बहुत ही मधुरता से बातचीत करें। मेरे सम आत्मा उसमें भी तो हैं। अतः आप उसे अच्छा स्थान बैठने को दें, ध्यान रखें कि वह आराम से है, उससे चाय आदि पूरछे। उसे आभास करायें कि उसके आने से आप अशा्त या परेशान नहीं प्रसन्न हुए हैं [अतः आप भी प्रेम से उसके साथ वैठिये। आत्मूविश्वास की कमी के कारण कभी- कभी आप किसी व्यक्ति विशेष से घवरा जाते हैं। यह घवराहट आपके अन्दर छिपी असूरक्षा की भावना के कारण होती है किसी से बात करते क्वत घवराइये नही। आपको इस प्रकार वात करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति आश्वस्त होकर आपको बहुत ही भला व्यक्ति समझें। दूसरों को बात करने का अवसर देना एक और तरीका है। दूसरों को ध्यान से सुनिये, स्वयं ही न बोलते जाइये। जब वह कह चुके तो कहिए "निस्संदेह यह सच है, मैं आपसे सहमत हूँ परन्तु तब अपनी बात शुरू कीजिए। "नहीं बिल्कुल नहीं" कह कर दूसरों पर आधात् न पहुँचाइये। इसके विपरीत आप देखिये कि वे क्या कहते हैं। आप मुझे देख सकते हैं। मैं भी बहुत बार ऐसा करती हैँ। जब कोई व्यक्ति कुछ कहता है तो "हा यह सच है, परन्तु यह इस प्रकार है" तौ उन्हें बुरा नहीं लगता। वे सोचते हैं कि आपने विषय का दूसरा पक्ष भी देखा है, कि आप संतुलित हैं और अपने विचारों से केवल प्रभावित करने का प्रयत्न ही नहीं करते। आप ऐसा कर भी रहे हों तो भी दूसरे व्यक्ति को इसका आभास नहीं होना चाहिए। 12 "और अब वेशमूषा" वेशभूषा अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। यदि आप किसी अधिकारी के साथ कार्यरत हैं तो आपका वेश उसके उपयुक्त होना चाहिए, जिससे आप चुस्त प्रतीत हो। "मैं" का प्रयोग न कर "हम" कह कर बात कीजिए। अपने संगठन के विषय में बात करते हुए मैं घूणा करता हूँ। मेरा ऐसा हम ऐसा सोचते हैं। सदा संगठन की बात कीजिए अपनी नहीं। "मैं ऐसा कार्य नहीं कूँगा । विश्वास है" यह कहना अत्यंत बेतृका है। हमें क्या करना है - हमें विश्वास है । या आप अपने संगठन, उत्पादन या किसी अ्य चीजू के विषय में जो बताना आपकी व्या राय है आदि चाहें। आपको कहना है "आप देखिए यह उपलब्ध है और हमने देखा है कि इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य करता है। हमने इसकी बहुत प्रशंसा सूुनी है। आप भी विवरण देख सकते हैं। यदि आप चाहें तो प्रयोग कर स्वयं जान लें। आपको पूरी तरह तैयार होना चाहिए। अपने उत्पादन का आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए। विवरणिका हसूचना पुस्तिका आपके पास होनी चाहिए। "कृपया इसे साथ इसे पेश करने लीजिए और स्वयं देखिये" बाजार पर छाने के लिए उत्पादन के गुणों के साथ की शैली भी महत्वपूर्ण है । यदि किसी की कोई समस्या हो तो बड़ी ही सहृदयता से पूछ सकते हैं कि क्या समस्या है "यह वह व्यक्ति बुरा नहीं मानेगा। है। अब आप इसका समाधान बताइये" ऐसा कहने पर समस्या हमारे सम्मुख यदि आप सीधा ही किसी से कहेंगे तो उसे अच्छा नही लगेगा । यदि मैं तुम्हें कोई बात साफ-साफ कह दूं तो तुम्हें भी अच्छी नहीं लगेगी। परन्तु मैं तुम्हें सब कुछ कह देती हूँ। परन्तु सब कुछ बड़े नम्र, जिसे आप आसानी से समझ और अपना लेते हैं। ठीक प्रकार का बर्ताव और अनुकूल ढंग से कहती हैं, ठीक प्रकार का आचरण और ऐसी शेली जिसे लोग समझ सकें, बहुत ही महत्वपूर्ण है। वास्तव में तो दूसरों को प्रभावित न करने से लोग स्वयं ही प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला निहित. है । इसके विषय में कोई भी सावधानी प्रकट नहीं होनी चाहिए। दूसरे व्यक्ति से बातचीत करते हुए भी चाहे आपको पूरी तरह से समझ न आ रहा हो फिर भी आप ऐसा प्रकट कीजिए कि आप सब सुन और समझ रहे हैं। जब आप तीन, पंच या दस व्यक्तियों से सम्पर्क कर रहे हों तो आपको सदा उनके बीच में उत्तम भावनाएं बनानी चाहिए। जैसे में चाहूंगी कि आप शादी करें। फिर मैं आपको किसी लड़के के बारे में बताऊँगी कि वह कैसा है, और इस तरह विना चोट पहुँचाये तृम्हें तैयार कसँगी. क्योंकि बाद में उसके विषय में पता चलेगा तो आप कहेंगे कि मां ने पहले ऐसा नहीं बताया। अत :बड़े प्रेम से आप कहें "उसमें यह बातें धोड़ी-धोड़ी ही हैं, परन्तु सब ठीक है। वह बहुत ही भला हो सकता क है। वह ऐसा करने में समर्थ है" अब यह आप पर निर्भर है कि आप किस तरह से निभायेंगे। आप पूरी तरह से सूचित हैं और उस व्यक्ति के बारे में आपको पूरा ज्ञान है। अतः अब आपका उत्तरदायित्व है। मैं कुछ युवितयों का प्रयोग करती हैूँ, ये युवितयां मेरे स्वभाव में हैं। परन्तु आप भी इन्हें आत्मसात् कर सकते हैं ऐसा करना कठिन नहीं है। इन छोटी-छोटी बातों का बहुत प्रभाव पडुता है। आपको पतन की ओर नहीं बढ़ना। प्रभावित करने के लिए आपको ऊपर उठना है । परन्तु । लोग सोचेंगे कि आप आपने यह प्रकट नहीं होने देना अन्यथा ईर्ष्या उत्पन्न हो जायेगी ऊपर जाते हुए ा। बड़े अंहकारी हैं। अतः बहुत ही नमर बनिए। 13 = यो गी शि ष्य = बुध्द गौतम की एक कथा का सुना है हमने ऐसे बखान सत्य अहिंसा के पथ पर चल रहे थे जिनके शिष्य महान ॥रे कभी किसीने था यह सुनाया कथन वह था कुछ ऐसे आया बैठे थे बुध्द की छाया प्रणाम करने तब शिष्य आया । दृष्टी उठाकर कहा बुध्दने क्यूँ हो अचानक सामने आये ' गुख्देव में भ्रमण करूँगा". कहे शिष्य सुनबुध्द मुस्काये कहा बुध्दने शिष्यसे अपने जाओगे तुम संसार मे तपने इस सृष्टी में माया भरी हैं, सत्य के पास नही आते सपने भले बुरें कर्मों के भागी स्वार्थी मिलेंगे-मिलें गे त्यागी अभागी कुछ कुछ तुम्हारा सम्मान करेंगे-करेंगे निंदा बुध्दने शिष्य का सत्व टटोला शिष्य विनम होकर बोला "निंदक भी मुझे प्रीय ही होगे वे केवल निंदा ही करेंगे ना मुझको चाँटे मारेंगे ना मुझ पर माटी फे्के गे" सुन कर शिष्य का उत्तर प्यारा बोले बुध्द उससे दोबारा "ऐसा भी तो हो सकता है उनमे कुछ ऐसा भी करेंगे माटी फेकेंगे' कुछ तुमको चाँटै मारेंगे कुछ तुमपर अपने गुरू की बालें सुनकर कहा शिष्यने ऑँखे मुँदकर "तब भी वे मेरे प्रिय रहेंगे मारके चाँटे माटी फेकेंगे लाठी से तो माटी भली है अचल रहुँगा वै देखेंगे' बुध्दने चाहा शिष्य की भकिति देखें कितनी हैं इसमें सहनशक्ति देखें 14 "संभव है लाठी भी चलेगी दस पाँच की टोली होगी तुम निहत्थे क्या कर पाओगे तुम्हारी केवल झोली होगी. शिष्यने अपना शीष झुकाया उत्तर बुध्दने उससे यह पाया 'लाठी से तो शस्त्र है भारी इस लिये मुझे लाठी है प्यारी जब तक ना वे शस्त्र चलाये लाठी खाने की है तैयारी" बुध्दने देखा शिष्य है यह निराला तुरंत अगला प्रश्न कर डाला "इस देश का है बडा विस्तार मिलेंगे जंगल घने खँखार ठग और लुटेरे मिल सकते है चलायगे तुम पर तलवार सत्य अहिंसा का था शिष्य पुजारी बुध्द के साथ थी उमर गुजारी सुन कर गुरू की बातें सारी शिक्षा जीवन भर की कह डारी "जब तक ना वे जान से मारें लगेंगे मुझे प्राण से प्यारे - मृत्यु का मुझे भय ही नहीं है समय से पहले कौन किसे मारे यदि मार भी दिया उन्होने ऐसे विधी का सत्य में त्यामू कैसे ईएवर इच्छा प्रमाण होगी आयेगी मृत्यु लिखी हो जैसे" सुनकर शिष्य के उँचे बिचार संतोष बुध्द को हुआ अपार जो ले वे शिष्य से अंतिम बार कहीं ज्ञान की बातें चार *भ्रमण को शिष्य तुम जा सकते हो इसके योग्य तुम मुझे लगते हो सत्य स्थिती का ज्ञान है तुमको ईश्वर इच्छा का मान है तुमको सबको भला समझ के चलना गुण है संन्यासीका ना ढलना कहलाने तुम संन्यासी पात्र हो शिष्य मेरे तुम संन्यासी मात्र हो 15 प्रसन्न हूँ मैं तुम भ्रमण को जाओ सत्य क्या है जग को समझाओ कितना सुंदर कथन सुनाया क्या क्या बुध्दने है समझाया आओ इसमें घ्यान करें इस सीख का उचित मान करें प्रेम भाव की है यह गाथा इसके आगे झुकाये माथा नभ मंडल मे चुद्र किरण हो वृक्ष है होना तो चंदन हो ऐसा शीतल योगी का मन हो क्षमा प्रेम ही उसका धन हो शब्द शत्रु नही जिसके कोष मे वही है रहता सदा होश में देखे वो ममता सब के दोष मे ढुँढे बंधुत्व सबके शेष में रार क्या माटी क्या लाठी या शस्त्र क्षमा से बड़ा नही कोई अस्त्र मान अभिमान है झूठे वस्त्र सत्य है सुंदर चाहे हो विवस्त्र आते है जो सहज के द्वारे जीवन अपना ऐसे गुजारे सूर्य चंद्र के है दो किनारे रज और तम के है दो धारे निर्मल पथ बीचो बीच धरा है सत्य गुण ही जीवन में खरा है व्यर्थ मे मनुष्य मृत्युसे डरा है भाँ से दूर तो जीवित भी मरा है । P ह ८ ३. クD ० ०० ০ 04 र ---------------------- 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt \ चे त न्य ल ह री खंड 2. अक 7 -६ जब तक आपका हृदय विशाल नहीं, आपकी आज्ञा अच्छी नहीं हो सकती । बुध्द पूजा (रशिया) 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt का चेतन्य लहरी" "ईस्टर पूजा वार्ता सारशि" ईस्ट बोर्न - इंग्लैंड अप्रैल 22,।990 ईस्टर पूजा में परम् पूज्य श्रीमाता जी ने इक्कीसवें सहस्त्रार दिवस पर लगाई जाने वाली लम्बी छलंग के लिए हमें तैयार किया। उन्होंने बताया कि श्री ईसा मसीह के पुनर्सत्थान की पूजा करने तथा हमें एक आदर्श समर्पित, गहन तथा सन्त सुलभ जीवन प्रदान करने के लिए उनका धन्यवाद करने का यह अवसर है। विशेपकर पश्चिमी देशों के सहजयोगी ईसा मसीह के प्रति अत्यन्त समर्पित हैं। फिर भी यह समर्पण प्रकाशमय होना चाहिए। सक्षात्कार से पूर्व मी लोग किसी महान् शक्ति में विश्वास करते हैं। परन्तु योग अध्यावहारिक के अभाव में यह विश्वास एक प्रकार से भ्रम का रूप ले लेता है। उनमें एक मनगढ़न्त विश्वास होता है कि ईश्वर से उनका विशेष सम्वन्ध है और इससे भी बुरी बात यह है कि यह अन्ध विश्वास प्राय: लोगों में एक भ्रम पैदा कर देता है कि उनके उस विश्वास के कारण ईश्वर पर उनका विशेषाधिकार बन गया है और उनकी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करना ईश्वर का कर्तव्य बन गया हैं। ऐसे लोगों को चेतावनी देते हुए ईसा ने कहा है "ईसा करके तुम मुझे बुलाओगे। परन्तु मैं तृम्हे पहचानूंगा नहीं"। आत्मसाक्षात्कार के बाद में ही सभी देवी देवताओं से हमारा सम्बन्ध जुड़ता है। परन्तु जब सहज योगियों में गहराई की कमी होती है तो सूक्ष्म रूप से इस सम्बन्ध का पतन उनकी आन्तरिक गहराई का स्तर हो जाता है। वह सहजयोगी यह आशा करते हैं कि उनके धन-धान्य का प्रबन्ध करना सहजयोग का कर्तव्य है। श्री माता जी ने वर्णन किया कि आत्मसाक्षात्कार के उपरान्त जब हम ईसा से सम्बन्धित हो जाते हैं तो हमारा दृष्टिकोण पूर्णतया बदल जाना चाहिए। हमें अपने अन्दर ईसा के सभी गुण आत्मसात् कर लेने चाहिएं। ईसा का जीवन हमें एक ऐसा जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करे "जिसकी प्रतिष्ठा हो सके और जिसे ईसा के जीवन की एक झलक कहा जा सके "ईसा ने पूरे विश्व के प्रति कर्तव्य को महसूस किया। देवी पुराण में उन्हें पूरे ब्रहुमाण्ड का आधार कहा गया है। सहजयोगियों को भी मानव- मात्र की स्वतंत्रता तथा सामूहिक उत्थान के लिए स्वयं को उत्तरदायी समझना चाहिए। हमें सावधान तथा अपनी जिम्मेवारियों के प्रत जागरूक होना है। ईसा सर्वदा विश्व के हित के लिए चिन्तित रहते धे। वे स्वयं ज्ञान धे और अपना लक्ष्य जानते थे पूर्ण साहस, गहनता तथा समर्पण से वह सत्य बोलते थे। सहजयोगियों को भी सहजयोग का ज्ञान होना चाहिये और उन्हें साहस, समर्पण तथा बिना किसी व्यव्तित्व के माध्यम से अपने आप मिथ्यामिमान के सहजयोग के विषय में बताना चाहिये। को प्रकट करने का सामर्थ्य सत्य में है। यदि अपने सहजयोगी होने का हमें सच्चा किश्वास है तो सहज योग के विधय में बताने की योग्यता हममें वैसे ही होनी चाहिये जैसे ईसा में सत्य के विपय में बोल ने की धी। यदि हम यह नहीं कर सकते हैं तो हम में ईसा सुलभ गहनता का अभाव है। ईसा ईश्वर के कार्य का मूल्य जानते थे तथा अपने बहुमूल्य समय की तुच्छ बातों में खराब नहीं करते थे। हमें भी अपने म प सहजयोग में अपने आत्म साक्षात्कार का मुल्य समझना है तथा कार्य के प्रति गहन तथा समार्पित होना है । ईसा के यह गुण जब हम ग्रहण कर लैंगे तब ध्यान का न 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt आनन्द हमें प्राप्त होगा। श्री माता जी ने समझाया कि जो व्यावेत अपने ध्यान का आनन्द नहीं ले सकता वह सहजयोगी नहीं हो सकता। ध्यान लगाने के लिए समय की तलाश में रहना संहजयोगी की प्रथम पहचान है। "यही वह समय है, जब आप वास्तव में परमात्मा से जुड़े होते है और सर्वाधिक आनन्द पाते हैं"। सहजयोगियों का ध्यान के लिए उठ न पाना या जागते न रह सकना, उनके अन्दर ईसा के जागृत न होने के कारण है। ईसा की कृपा यदि आज्ञा चक पर है तो हम ध्यान का आनन्द ले सकेंगे और ध्यान मुद्रा में से बाहर भी न आ सकेंगे। किसी भी मूल्य पर सहजयोगी यह आनन्द त्याग नही सकते। श्री माता जी ने इस आनन्द की तुलना जीभ पर बूंद-बूंद कर टपकने वाले अमृत से की है। इसका आनन्द लेने के लिए हमें अपनी गहराई को छुना होगा। गहराई र जन्मयोगियों में है उन्हें उसे छूना है। ईसा पूर्ण त्याग का जीवन जिये और इन्हें पुनर्त्थान क पाना था। अपने लक्ष्य के प्रति वे समर्पित थे। सहजयोगियों को भी पूर्ण रूप से समर्पित होना है। भारा तो हर अगला लक्ष्य आनन्दमयी है। सहजयोगियों को अपने आलस्य का बलिदान देना होगा। सहजयोगी जब यह कहते हैं कि उन्होंने अपना कार्य कर दिया है और बाकी का कार्य छोटी आयु के लोगो का है तो इनमें एक सूक्ष्म प्रकार का आलस्य कार्यरत होता है। इमारे लिप बहुत कार्य करने को है। श्री माता जी ने कहा, "क्षितिजावस्था में अपने विकास को सन्तुलित करने के लिए आपके ऊध्ध्वावस्था इवरटीकली में विकसित होने के लिए कठिन परिश्रम करना है" "हर क्षण आपको सोचना है कि आप सहजयोगी हैं और सहजयोग में अपने लक्ष्य को आप कैसे प्राप्त करेंगे। जब तक उस श्रेष्ठता को न पा लें, आपको संतोष नही होना चाहिये। सहजयोग में सामान्य योग्यता का कोई स्थान नहीं। श्रेष्ठाता दारा ही आप आनन्द पायेगे। श्रेष्ठ बनकर ही आप वास्तीविक सहजयोगी बन पायेंगे"। ईसा जानते थे कि वे एक यन्त्र हैं। आज्ञा चक को खोलने वाले वे ही थे अपने पुनरूत्थान दारा उन्होंने इस लक्ष्य को पाना था और यह उन्होंने पाया। आज्ञा चक के खुले विना सहस्त्रार को खोल पाना कमी सम्भव न हो पाता। होने के लिए वे ही उपकरण हुयन्त्र है। यह तर्क कि "परम् चैतन्य समी कार्य करेगा तथा हमारी देखमाल करेगा" किल्कुल असंगत है। यदि ऐसा होता, तो मानव रचना की आक्श्यकता ही नहीं होती। अपने पर हुई कृपाओं को गिनने के स्थान पर सहजयोगियों को अब अपने कार्यो को गिनना चाहिए। अपनी गहराइयों तक उन्हें पहुंचना है। "जब तक आप गहन नही हो जाते, परम चैतन्य गतिशील नही हो सकता। यह असहायु है। आपके जरिये ही यह कार्य कर पायेगा। अत: परम् चैतन्य का अपना ही तरीका है। यदि आप लोग चाहेंगे तभी यह कार्य कर सकेगा "यह ऊर्जा है और आप उपकरण कि गहन तथा गम्भीर यन्त्र बनना है तथा देखना है कि कितनी श्रेष्ठता सहजयोगियों को भी समझना है कि परम् चैतन्य शक्ति के कार्यान्वत "। श्री माता जी ने कहा हमें सहजयोग का समार्पत, का से आप लोगों तक पहुंचते हैं। कितने लोगों को साक्षात्कार दे सकते हैं, कितने लोगों के स्वस्थय मानसिक दशा को सुधारने में आप सहायक हो सकते हैं, और फिर सहजयोग के विषय में कितना आप बताते हैं"। श्री माता जी ने कहा कि इस प्रकार सहज योग मानव मात्र का सामूहिक उत्थान कर सकेगा । तथा की 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt 3. चैतन्य लहरी "पृथ्वी ग्रह के आज्ञा चक़ का खोलना" "सोवियत संघ" मई, 1990. | 2-17 पिछले छः माह में आदि शवित ने चौथी बार सोवियत संघ को आशीर्वादित किया। परिणाम आश्चर्य- जनक है। मास्को, कीव और लेनिनग्रे आदि मुख्य नगरों में नियमित रूप से ध्यान करने वाले सहजयोगियें की संख्या दो हजार से भी अधिक है। हजार कुर्सियों वाले हाल भी खचा खच भर गये थे। अतः अन्र में चार हजार कुर्सियों वाला एक स्टेडियम किराये पर लेना पड़ा, ताकि जनता की लम्बी लाइनों को स्थान दिया जा सके। पहले हवाई अड्डे पर तथा फिर स्टूडियोज में राष्ट्रीय दूरदर्शन ने श्री माता जी से भें की। अतः इस प्रकार अब सिनेमा माध्यम से भी लावों तोगों के लिए साक्षात्कार ले प्राना सम्भव हो जायेगा इच्छुक साधकों को श्री माता जी के चित्र डाक दारा मेजे जायेंगे, जिससे वे सहजयोग का अभ्यास का सकेंगे। कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष और कई अ्य मौत्रयों ने भी आत्म -साक्षात्कार प्राप्त किया। शिक्षा मंत्रालय ने मास्कों के एक स्कूल में सहजयोग चालू किया है और शनै:- शनै ः इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जायेंगे। शरीर चिकित्सा समस्याओं के समाधान के लिए है। श्री माता जी ने पूरे सोवियत संघ से आये 300 चिकित्सकों के एक विशेष सम्मेलन को सम्बोधित किया और उन्हें आत्म-सक्षात्कार दिया। उनकी रुचि सहजयोग में इतनी बढ़ी कि सहजयोगी चिकित्सकों को भारत तथा अन्य देशों से पहली जून से नौ जून तक होने वाले चिकित्सक सम्मेलन के लिए निर्मत्रित किया गया। र्सी जिज्ञासुओं पर श्री माता जी इतने प्रसन्न हुए कि वे जून के ऊन्त में सोवियत संघ को पुनः आशीर्वादित करने के लिए सहमत हो गये हम प्रार्थना करते हैं कि आज्ञा चक् अवश्य खुल जाये। श्री माता जी ने रूसी जिज्ञासुओं की समझदारी की सराहना की और कहा कि बुदिधि के बिना स्वतंत्रता को नही सम्भाला जा सकता। देखो अमेरिकन लोगों का क्या हाल हुआ है! स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सहजयोग केद्र स्थापित किया "मास्को के चिकित्सक सम्मेलन में श्री माता जी का भाषण" "सारशि" रोगियों का उपचार करना अत्यन्त साधारण है। यदि एक पेड़ रोगी है तो उसके पत्तों के इलाज से काम नहीं चलेगा। सूक्ष्म बनकर यदि आप उसकी जड़ों का इलाज करें तो यह कार्य करेगा । इसी प्रकार यदि जड़ों तक पहुँचकर हम रोगी के केनंद्रों का पोषण करें तो कुन्डलिनी रूपी शक्ति दारा संबंधित होकर जो सन्तुलन प्राप्त कर पायेंगे, वह आश्चर्यजनक कार्य करेगा । जिगर और प्लीहा" जिगर से निकली गर्मी कुछ समय पश्चात् फेफड़ों को दुर्बल कर देती है तथा अस्थमा रोग हो जाता है अब जिगर को पर्याप्त पोषण नहीं प्राप्त होता तो यह अत्यधिक सकिय हो उठता है। इस प्रकार यह प्लीहा को भी हानि पहुंचाता है यदि एक गर्भवती स्त्री का जिगर अत्यधिक सकिय हो जाये तो होने वाले बच्चे के प्लीहा को भी हानि पहुँच सकती है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt शोक समाचार भी प्लीहा में अशानिति उत्पन्न कर देता है प्लीहा शरीर में आपात् स्थिति के आधुनिक जीवन सदा ही आपात् स्थिात में है। प्लीहा पर लगातार लगने वाले शोक इसे पागल बना देते हैं। और यह केंसर से मुकाबले के लिए दुर्बल हो जाता है। इस अवस्था में यदि बाँई ओर से कोई समस्या हो जाये या कोई कुगुरू सिर पर हाथ रख दे तो लिए लाल रवत लोहाणु उत्पन्न करता है। असुरक्षित रक्त-केंसर हो जाता है। "वायरस" विषाणु" विषाणु बॉई ओर से आते हैं ये मृत आस्त्व होते हैं, जो कि सामूहिक अवचेतना में बैठ जाते हैं। "आत्मा" हमारी आत्मा पीठ की ओर है। यह सात कुल्डलों में होती है और आठवां कुन्डल हमारी पवित्र अस्थि हत्रिकोणाकार अस्थिह में होता है। सारे धनात्मक तत्वों से इसकी रचना होती है। यह सब अंतग्रावी और बाहिनी हीन ग्रन्थियों की देखभाल करता है। यह हमारी प्रतिवीर्त किया हरिफ्लेक्स एक्शन के लिए कम कार्य करता है। यह कम्प्यूटर कार्यक्रम की तरह है । अब चिकित्सा विज्ञान ने खोज निकाला है कि हर कोशिका में उसी कुन्डल के आकार का एक अभिग्राही हरिसेप्टर होता है। जब अभिग्राही में एक डेपोमा -इन बन जाता है। तो यह मिर्गी, पागलपन, उद्ासी आदि तक पहुंचा देता है जब कोई दूसरी आत्मा पीठ और व्यकि्तित्व पर बैठ जाती है तो यह डेपोमाइन पैदा हो जाता है और मनुष्य एक विशेष प्रकार से, जिसे हम भूतवाधा कहते मनुष्य के दायें और बैठ जाये तो भी यह भूत बाधा हो सकती है। हैं, बर्ताव करना शुरू कर देता है। "हिटलर जैसी मृत आत्माएं यदि पा। "श्री बुधपूजा वार्ता" लेनिनग्रेउ ।4 मई,1990 "सारोश" रूस आगे का और चीन पीछे का आज्ञा चक्र है । आज की बुध पूजा इस चक्र को खोलने के लिए आज्ञा चक्र के स्तर पर विचार होते हैं । क्योंकि आप सब परम शक्ति से जुड़े हो अतः की जा रही है । आप में विचार भेद नही हो रुकता । यदि विचार भेद है तो आप सहजयोगी भी नही है पा आपको अवश्य याद रखना है कि सत्य के सामाज्य में आपकी देखभाल होती है ५" हर कदम पर कोई आपकी रक्षा करता है । नहीं है । प्रवास अधिकारी केवल मुस्कराया और बिना किसी प्रश्न पूछे मुझे बीजा दे दिया । से सारे सहजयोगी आश्चर्यचकि त थे । सूक्ष्म जब मास्को हवाई अड्डे पर पहुंची तो मुझे याद आया कि पर्स में मेरा बीजा इस चमत्कार शक्ति छोटी - छोटी बातों का ध्यान रख कर चमत्कार कर अपना अस्तित्व आप पर प्रकट करती है । 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt - 5 सहजयोगियों में भय किल्कुल नहीं होना चाहिये। भय को निकाल फेकिये। यदि कोई आपको डरा का प्रयत्न करता है तो उसे सहजयोग से निकाल फेंका जायेगा। आपकी आत्मा के अतिरिक्त कोई औ शवित से अंधिक शंक्तिशाली कोई शव्ति नहीं। सहज योग बडिलता नह आपको नियान्त न करे। प्रेम है, यह सुख : द आनन्द है। यह एक अवस्था है। आपको कोई हानि नही पहुँचा सकता अब समय आपका गुलाम है। आप समय से ऊपर है। जो भी आपसे चालाकी करेगा वह अपनी चालाकी का शिकार हो जायेगा। सहजयोग के प्रकाश में अप हाथ में पकड़े सांप को देखो और इसे फेंक दो। अब आप न बच्चे हैं न बुद । आप केवल आनन्दपूर्व जीवित हैं। विशाल हृदय के बिना आपकी आज्ञा अवछी नहीं हो सकती। आज्ञा का मंत्र है "क्षम" में क्षम करता हैं। पीछे की आज्ञा का मंत्र है "हं" "मैं हूँ"। इस प्रकार "हैं", "क्षम"। ब ईश्वर आपको आशीर्वादित करे। चैकन्य लहरी सहस्त्रार पूजा सारंश रोम, इटली मई 6,1990 "पिछले कई वर्षों से मैं इक्कीसवें सहस्त्रार दिवस की प्रतीक्षा करती रही हूँ। अब एक नया परिवर्त आना है जिसकी घोषणा आप देख सकते हैं हविजली का जोर से कड़कना। अभी तक हम सामूहिक चेतन चक तथा नाडियों पर कार्य करते रहे हैं परन्तु शायद हमें यह पता नहीं है कि पिछले इक्कीस सालं में तुम्हारे अन्दर कितनी शव्तियां विकसित हो उठी हैं। परम चैतन्य सब कुछ जानता है और सारी प्रकृति ठीक समय पर आपके लाभ और उन्नी के लिए कार्य करती है। । आप की समझ के अन्दर या अब विश्वस्त हो जाइये कि आप में शक्तियां हैं नया परिवर्तन आने वाला है। अब तक आप जानते थे कि आप लहरियों का अनुभव कर सकते हैं लोगों को ठीक कर सकते हैं, परम चैतन्य का अनुभव कितनी परिवर्तनशील शव्तियां आपके अन्दर कर सकते हैं, परन्तु आप यह नहीं जानते वि कार्य कर रही हैं और यह नया परिवर्तन आने वाला है इस नये परिवर्तन के साथ आपको एक नयी विशेषता अपनानी होगी। घोषणा मेघ गर्जन । अब तद में आपको सहज योग के विषय में खुलकर न बोलने के लिए कहती थी परन्तु अब समय आ गया है कि हम सबसे सहज योग के विषय में बताना, बोलना और इसकी घोषणा करना शुरू कर दें, नेहीं नी.] तो यह किश्व कहेगा कि उसे इसका पता ही नहीं पड़ा। अभी तक हमने सहज योग की गति को धीमा रखा क्योंकि में चाहती थी कि पहले आप सब लोग बहुत सुन्दर सहज योगियों के रूप में विकसित हो जायें और आपकी जीवन शैली, आचरण सूझबूझ और विचारों से लोग जान जायें कि ये कोई बहुत है भिन्न प्रकार के विशिष्ट लोग हैं। आप को समझना है कि यह सब शक्तियों आपमें चुल-मुला रही है परन्तु आप कुछ कारणों से इन्हें छुपाए हुए है। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt 6. वै दिन अब समाप्त हो चुके हैं जब मां आपका सिर दर्द ठीक करती थी, आपके परिवार, पत्नी और बच्चों की देखभाल करती थी। यह सब बातें अब समाप्त हो गयी है। अब आप केवल अपने लिए ही नहीं अपने आश्रमों नगरों, देशों तथा पूरे विश्व के प्रति उत्तरदायी हैं। अब आप "राज दरबार" में हैं। अपने उत्तरदायित्व को सम्हालिए। स्वयं को पहचानिए, अपनी शवितयों को जानिए और समझिए कि आप क्या कर सकते हैं । अपने पर हुई कृपाओं तथा चमत्कारों को गिनने के दिन समाप्त हो चुके। अब आपको अपनी शक्तियां गिननी है तथा यह जानना है कि मैं इनका प्रयोग कैसे कर सकता हूँ। 1 आज से हम एक नये यूग का आरम्भ कर रहे हैं। आज तक मैं प्रतीक्षा कर रही धी कि आप समझ सकें कि आप अपने परिवार के, जाति के, या अपने राष्ट्र के स्वार्थ के लिए सहज योगी नहीं है। आप पूरे विश्व के हित के लिए सहज योगी हैं। अपना विस्तार कीजिए| मानव जाति को मुक्त करने का बह स्वप्न, जो मैंने बहुत बार आपके सामने रख्खा है अवश्य आपके सम्मुख्य होना चाहिए। आत्म-संशय को छोड़ दीजिए। यह कार्य किन्हीं विशेष लोगों दारा होने बाला नहीं क्योंकि वे तो अहं-ग्रस्त होते हैं। अपनी महान सफलताओं, हो वे लोग इस कार्य को कर सकेंगे। ईसा ने कहा है कि सूई के छेद में से ऊंट तो निकल सकता है उपलब्धियों तथा वैभव का अह जिसे न परन्तु एक वैभव्शाली व्यक्ति ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि उसका अहं हाथी से भी बड़ा होता है। हमें अपने व्यर्थ के बन्धनों के लिए चिन्तित नहीं होना क्योंकि हम एक नयी चेतना में प्रवेश कर रहे हैं । केवल एक स्वीकृति देनी है कि "मैं एक सहज योगी हूँ और इक्कासवें सहस्त्रार के पश्चात् मैं एक महायोगी हूँ। अब हमने खुलकर इन कटुटरपीथियों से बताना है कि "आप सत्य तथा परमात्मा की कार्यरत शवित के विषय में नही जानते। मृगतृष्णा के पीछे दौडने वाले आप मूर्ख लोग है जिनका अन्त नर्क है"। आपको लोगों से बताना है कि असत्य के पीछे दौडुकर वे परमात्मा को नहीं पा सकतें। हम घृणा की नहीं प्रेम की शवित में विश्वास करते हैं । हमें किश्विस है कि हर व्यक्ति में सत्य को प्राप्त करने की तथा परमात्मा के साम्राज्य तथा [स्वर्ग को पा लेने की बोग्यता है। पहले मेरा परिवार, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा घर, मेरी जायदाद, मेरा धन-यह सब मेरा- पन आदि व्यर्थ की समस्याएं समाप्त होनी चाहिए क्योंकि जैसे एक उत्तम राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए होता है वैसे ही आप भी पुरे विश्व के लिए हैं अब आप पूर्णतया स्वतंत्र है और आपके आनन्द का साधन है आपकी आत्मा। आप हर वस्तु से निर्लिप्त हैं। उस नि्लिप्तावस्था में आपने सबका पोषण करना है निर्विचार-समाधि दारा नि्लिप्तता प्राप्त होती है। जब भी आप किसी को देखें निर्विचार समाधि में आ जायें। शीघ्र ही नित्तिप्तता का अनुभव म।। कर आप पूरी समस्या का समाधान में है ज्ञानी १सुविज् है हैं। केवल निर्विचार समाधि में चले जाइये और ज्ञान का पूरा भंडार आपके सम्मुख खुल सकता है। हर क्षेत्र में आप बहुत आगे बढ़े हैं जिससे हमें कभी-कभी धोड़ी सी प्रसन्नता प्राप्त हो जाती जान जायेंगे। आपकी सर्वोच्च शक्ति आपके मस्तिष्क कि आप है। मुख्य बात तो यह है कि हम कितने लोगों को साक्षात्कार देते हैं और कितना प्रचार सहज योग का करते हैं। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt सहज योग महत्वहीन नही है। सहज योग पूर्ण समर्पण तथा लगन है और इनके अभाव में आप सहज योग के लिए किलकुल व्यव हैं। धोड़े से समर्पित लोग व्यर्थ के हजारों लोगों से कहीं अचटे हैं तो हमें देखना है कि आपने अपने तथा सहज योग के लिए क्या निर्णय लिया है। यदि आपने सहज योग को चुना है तो जान लीजिए कि यही मुल्य कार्य है जो आपको करना है। पूरा ध्यान सहज योग पर रखना है। सहज योग में क्या कार्य हो रहा है? [हम कहां हैं? हम कहां जा रड़े हैं ? माँ कहां है? वे विश्व के कौन से भाग में हैं ?ये क्या कर रही हैं? यदि आप अपना ध्यान इन बातों पर देंगे तो आपकी अशुद्धयां पूर्णतया समाप्त हो जायेंगी। तो] अब आप महायोगी हैं और हमने सहजयोग को भी महायोग वनाना है। जब तक आप वह स्तर प्राप्त नहीं कर लेते आपको सोचना चाहिए कि आप पिछड़े हुए है और पहिये के घूमने पर में नही जानती, कितने लोग पिछड़ जायेंगे। अपने पर सभी संदेहों को छोड़कर पूरी शक्ित से सहज योग की सभी मर्यादाओं के साथ आगे आतरिक्त चारित्रिक तथा आचरण संबंधी मर्यादाएँ बढ़िये। अतः मर्यादाओं का होना भी आवश्यक है। इसके भी होनी चाहिएँ। सहज योग में बहुत अधिक मर्यादाएें नही हैं परन्तु एक मुख्य मर्यादा यह है कि आपको उच्च चोरत्र का व्यक्ति होना है के और अपने दिखावे तथा आचरण से भी घृणित व्यक्ति नहीं बनना है। आज यहां पर विश्व भर से लोग आये हुए हैं आप सब जाकर मेरा संदेश उन सब सहजयोगियों उनसे कहो कि "मा ने घोषणा कर दी है, विष्णु माया के माध्यम को भी दो जिनसे मैें नहीं मिली। से भी, कि आप सब महायोगी बन गये हो, यह स्पष्ट रूप से प्रकट करने का प्रयत्न करो कि स्वयं मैं पूर्ण विश्वास के साथ और इस प्रेम की शवित से मुझे पूरा विश्वास है, हम सब विजयी होगे। क० c३ ४ 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt 8. विशुद्िय चक गुणः बायी किशादिध :- बहन भाई सम्बन्ध, आत्म सम्मान। पकड़ के कारण :- दोष भावना का होना अनैतिकता कपटपूर्ण वार्तालाप का ढंग, व्यंग्यातमकता, आत्म सम्मान का अभाव और शब्द दारिद्य। उपचार श्री विष्णुमाता १ कृष्ण जी की बहन का मंन्त्र प्रयोग । "श्री माता जी , आपकी कृपा से में आत्मा हूँ और पूर्णतया निर्दोष हूँ। में किस प्रकार दोपी हो 1- 2- सकता हूँ। अपने विशुद्िध चक् को चैततन्यित करना बाइब्रेशंस देना कोई गलती करने के बाद या अहम् का आनन्द लेने के बाद स्वरयं को दोषहीनता की भावना 3- 4- ग्रस्त न होने देना। बहन-भाई सम्बन्धों की शुद्धता के स्तर को ऊँचा करना। 5- इस सत्य का ज्ञान कि श्रीमाता जी हमें क्षमा करती हैं अतः हमें भूतकाल में किये कुकूत्यों तथा दुराचारों के कारण दोष भावना ग्रस्त नहीं होना चाहिए। 6- स्वयं को व्यर्थ तथा अपर्याप्त न समझकर स्वयं को परमात्मा के प्रेम की अभिव्यविति मानकर 7- अपना मूल्यांकन करना चाहिए। दूसरों को स्वयं पर प्रभुत्व नहीं जमाने देना चाहिए। दूसरों से सहजयोग के विषय में आत्म-विश्वास के साथ बातचीत करना। 8- भाव-विभोर हो परमात्मा के भजन गाना तथा अपने कण्ठ का प्रयोग श्री माता जी की पूजा के 9- लिए करना। व्यंग्यात्मक तथा मानव देी न बनिये। 810- स किसी कुंगुरू रहे थे तो स्वयं को दोष मुक्त दारा दिये गये मन्त्र का उच्चारण योदि आप कर करना इस बात की पुष्टि करते हुए कि श्री माता जी आप ही सभी महान् मंत्रों की दाता है" या "ऊँ त्वमेय साक्षात् श्री सर्व मन्त्र सिद्धी साक्षात् श्री आदिशवित माता जी श्री निर्मला देव्यै नमो नम ः"। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt मध्य विशुद्धि : - गुण :- भाव, सर्कय्यापकता और सामूहिक चेतना धाइरा दिव्य व्यवहार कौशल, आनन्दमय साक्षी ग्लॅड के लिए पकड़ के कारण आकामक स्वभाव, अअवडपन, सामूहिक भावना की कमी तथा साकषीपन का अभाव। उपचार श्री राधा-कृष्ण के मन्त्रका उच्चारण। " श्री माता जी मुझे साक्षी बना दीजिए"। "श्री माता जी मुझे विराट का अंग-प्रत्यंग बना दीजिए' 2- श्री माता जी मुझे भले -बुरे की पहचान करने वाला तथा स्वदोष सुधारक व्यव्ति बना दीजिए। अपने विशुदिध चक् को बाइब्रेशन्स दीजिए। अपने हाथों की पहली अँगुलियां अपने कानों में डालकर गर्दन को पीछे की ओर झुकाकर आका की और देखते हुए । 6 बार जोर से अल्लाह-हो-अकबर गाइये । निर्लिप्तता तथा साक्षी भाव अपने अन्दर विकसित कीजिए| घी-मक्खन या तेल से विशुद्िध क्षेत्र की मालिश कीजिए और गले के अन्दर मक्खन लगाइये। नमक के पानी से सुबह-शाम गरारे कीजिए। तुलसी की चाय का उपयोग कीजिए और घर 3- 5- 6- 7- काफूर जलाइये अपने नासिका मार्ग, गले की नाडिियां तथा श्वासनली को साफ करने के लिए अजवाइन धू ৪ - लीजिए। अपनी ठुड्डी को गर्दन की जड़ में दबाइये, जीभ को अन्दर की ओर इस प्रकार मोडिये जे इसे निगल रहे हों और जीभ मसूडों को भी न छुये। इस प्रकार एक मिनट तक बहुत है ा धीरे-धीरे श्वास अन्दर बाहर लेते रहिये। ति नाक से संस लीजिये कुछ देर श्वास को अन्दर रोकिये और फिर श्वास को छोड़िये तथ कुछ देर श्वास को अन्दर न जाने दीजिये। श्वास खींचते हुए धोड़ी सी कम हवा अंदर लीजिए 10- तान बार दोहराइये। धोड़ा सा बाइबरेटिड पानी हल्का सा नमक डालकर नाक के रास्ते से पीजिए। 11- दरयी विशुद्धि गुण :- आत्मुसाक्षी तथा शब्द, आवाज, विचारों और आचरण में मधुरता । ंजि चक की पकड़ के कारण :- जुकाम, अत्यधिक उत्तरदायित्व, तम्बाकू की लत , कसमें खाना तथा कटु बोलना, गले की नाडियों की खराबी तथा अत्याधिक गाना और बोलना। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt 10 उपचार श्री यशोदा जी का मन्त्रोपयोग । "श्री माता जी मेरे शब्दों और कार्यो की मधूराता आप स्वयं हैं" इस पुष्टि का प्रयोग तथा प्रार्थना कि "श्री माता जी मेरी आकामकता तथा दूसरों को दबाने की आदत समाप्त कर मुझे मधुर 2- वाणी प्रदान करो और मुझे मधुर तधा सामूहिक व्यक्ति वना दो। दायी विशुद्ध को बाइबरेशन्स देना। कम बोलें, यदि बोलना भी पड़े तो अपनी कटु आवाज से दूसरों को दबाने का प्रयास न करें। दूसरों से मधुर बोलने का गुण विकसित करें । 4- 5- स्पाने के स्वाद पर कम ध्यान रदें। 6- सबको क्षमा कर अपने कोध को समाप्त कर दें । 7- लोगों से बहस न करें और न ही अपने विचार मनवाने के लिए अधिक समय खर्च करें। ৪ - 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt 11 लोगों को प्रभावित कैसे करें? " श्री माता जी - निर्मला देवी" हालैंड ह्वेग 17-9-86" दूसरों को प्रभावित करने के लिए हमें जानना है कि हमारा स्वयं पर कितना अनुशासन कहै। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उदाहरण के रूप में अस्तित्वविहीन लोग यदि दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास करें तो मजाक बन जाते हैं। जब तक आपकी अपनी कोई पहचान नही है, आपसे कोई प्रभावित नहीं होगा। अतः बाहय व्यक्तित्व से पहले बातचीत करते हुए बातचीत करने की आपकी अपनी एक सुन्दर शेली का होना आवश्य क आन्तरिक व्यक्तित्व का विकसित होना आवश्यक है। लोगों से है। आपकी चाल भी सधी हुई होनी चाहिए। शिथितता से टांगों को इधर-उधर फेंकते हुए न चलकर सीधे चलें और सीधे ही बैठे। लोगों को आपके आत्मविश्वास का पता चले। आत्मविश्वासहीन आचरण दूसरों को प्रभावित नहीं कर सकता। आपके आचरण जैसे बातचीत, चालढाल , बैठने तथा संवाद के ढंग से आपका आत्मृविश्वास छतकना चाहिए। आत्मविश्वास की एक झलक होनी चाहिए। परन्तु पूर्ण तथा सुरक्षित उत्पन्न होता है सहजयोग में यदि आपके मध्य हृदय में असुरक्षा की भावना है तो स्वयं को आश्वस्त कीजिए कि "श्री माता जी मेरे साथ है, मेरी संहायता कर रही हैं और मैं मां के साथ हूँ। मुझे किसी बात की चिन्ता नही है" तब आपका मध्य-इृदय ठीक होगा। निस्संदेह आप यह सब दूसरों को नहीं बतला सकते फिर भी यदि आपमें व्यक्तित्व है तो आप इसे सहज ही दूसरों में भर सकते हैं परन्तु आत्मविश्वास- विहीन आप यह कार्य नहीं कर सकते। अतः सर्वप्रथम आपको अपने अन्दर आत्मविश्वास स्थापित करना है। सहज योगियों के लिए यह कहना अति सुगम है कि "मैं आत्मा हूँ, मैं अबोध हूँ, और मुझे स्वयं महसूस करने पर ही आत्मविश्वास त आदि-शकिति ने चुना है" अतः आपके अन्दर जबरदस्त आत्मविश्वास होना चाहिए। जब कोई व्यकि्ति आपके पास आए, तो उसे देय-सम जान, उससे बहुत ही मधुरता से बातचीत करें। मेरे सम आत्मा उसमें भी तो हैं। अतः आप उसे अच्छा स्थान बैठने को दें, ध्यान रखें कि वह आराम से है, उससे चाय आदि पूरछे। उसे आभास करायें कि उसके आने से आप अशा्त या परेशान नहीं प्रसन्न हुए हैं [अतः आप भी प्रेम से उसके साथ वैठिये। आत्मूविश्वास की कमी के कारण कभी- कभी आप किसी व्यक्ति विशेष से घवरा जाते हैं। यह घवराहट आपके अन्दर छिपी असूरक्षा की भावना के कारण होती है किसी से बात करते क्वत घवराइये नही। आपको इस प्रकार वात करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति आश्वस्त होकर आपको बहुत ही भला व्यक्ति समझें। दूसरों को बात करने का अवसर देना एक और तरीका है। दूसरों को ध्यान से सुनिये, स्वयं ही न बोलते जाइये। जब वह कह चुके तो कहिए "निस्संदेह यह सच है, मैं आपसे सहमत हूँ परन्तु तब अपनी बात शुरू कीजिए। "नहीं बिल्कुल नहीं" कह कर दूसरों पर आधात् न पहुँचाइये। इसके विपरीत आप देखिये कि वे क्या कहते हैं। आप मुझे देख सकते हैं। मैं भी बहुत बार ऐसा करती हैँ। जब कोई व्यक्ति कुछ कहता है तो "हा यह सच है, परन्तु यह इस प्रकार है" तौ उन्हें बुरा नहीं लगता। वे सोचते हैं कि आपने विषय का दूसरा पक्ष भी देखा है, कि आप संतुलित हैं और अपने विचारों से केवल प्रभावित करने का प्रयत्न ही नहीं करते। आप ऐसा कर भी रहे हों तो भी दूसरे व्यक्ति को इसका आभास नहीं होना चाहिए। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt 12 "और अब वेशमूषा" वेशभूषा अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। यदि आप किसी अधिकारी के साथ कार्यरत हैं तो आपका वेश उसके उपयुक्त होना चाहिए, जिससे आप चुस्त प्रतीत हो। "मैं" का प्रयोग न कर "हम" कह कर बात कीजिए। अपने संगठन के विषय में बात करते हुए मैं घूणा करता हूँ। मेरा ऐसा हम ऐसा सोचते हैं। सदा संगठन की बात कीजिए अपनी नहीं। "मैं ऐसा कार्य नहीं कूँगा । विश्वास है" यह कहना अत्यंत बेतृका है। हमें क्या करना है - हमें विश्वास है । या आप अपने संगठन, उत्पादन या किसी अ्य चीजू के विषय में जो बताना आपकी व्या राय है आदि चाहें। आपको कहना है "आप देखिए यह उपलब्ध है और हमने देखा है कि इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य करता है। हमने इसकी बहुत प्रशंसा सूुनी है। आप भी विवरण देख सकते हैं। यदि आप चाहें तो प्रयोग कर स्वयं जान लें। आपको पूरी तरह तैयार होना चाहिए। अपने उत्पादन का आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए। विवरणिका हसूचना पुस्तिका आपके पास होनी चाहिए। "कृपया इसे साथ इसे पेश करने लीजिए और स्वयं देखिये" बाजार पर छाने के लिए उत्पादन के गुणों के साथ की शैली भी महत्वपूर्ण है । यदि किसी की कोई समस्या हो तो बड़ी ही सहृदयता से पूछ सकते हैं कि क्या समस्या है "यह वह व्यक्ति बुरा नहीं मानेगा। है। अब आप इसका समाधान बताइये" ऐसा कहने पर समस्या हमारे सम्मुख यदि आप सीधा ही किसी से कहेंगे तो उसे अच्छा नही लगेगा । यदि मैं तुम्हें कोई बात साफ-साफ कह दूं तो तुम्हें भी अच्छी नहीं लगेगी। परन्तु मैं तुम्हें सब कुछ कह देती हूँ। परन्तु सब कुछ बड़े नम्र, जिसे आप आसानी से समझ और अपना लेते हैं। ठीक प्रकार का बर्ताव और अनुकूल ढंग से कहती हैं, ठीक प्रकार का आचरण और ऐसी शेली जिसे लोग समझ सकें, बहुत ही महत्वपूर्ण है। वास्तव में तो दूसरों को प्रभावित न करने से लोग स्वयं ही प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला निहित. है । इसके विषय में कोई भी सावधानी प्रकट नहीं होनी चाहिए। दूसरे व्यक्ति से बातचीत करते हुए भी चाहे आपको पूरी तरह से समझ न आ रहा हो फिर भी आप ऐसा प्रकट कीजिए कि आप सब सुन और समझ रहे हैं। जब आप तीन, पंच या दस व्यक्तियों से सम्पर्क कर रहे हों तो आपको सदा उनके बीच में उत्तम भावनाएं बनानी चाहिए। जैसे में चाहूंगी कि आप शादी करें। फिर मैं आपको किसी लड़के के बारे में बताऊँगी कि वह कैसा है, और इस तरह विना चोट पहुँचाये तृम्हें तैयार कसँगी. क्योंकि बाद में उसके विषय में पता चलेगा तो आप कहेंगे कि मां ने पहले ऐसा नहीं बताया। अत :बड़े प्रेम से आप कहें "उसमें यह बातें धोड़ी-धोड़ी ही हैं, परन्तु सब ठीक है। वह बहुत ही भला हो सकता क है। वह ऐसा करने में समर्थ है" अब यह आप पर निर्भर है कि आप किस तरह से निभायेंगे। आप पूरी तरह से सूचित हैं और उस व्यक्ति के बारे में आपको पूरा ज्ञान है। अतः अब आपका उत्तरदायित्व है। मैं कुछ युवितयों का प्रयोग करती हैूँ, ये युवितयां मेरे स्वभाव में हैं। परन्तु आप भी इन्हें आत्मसात् कर सकते हैं ऐसा करना कठिन नहीं है। इन छोटी-छोटी बातों का बहुत प्रभाव पडुता है। आपको पतन की ओर नहीं बढ़ना। प्रभावित करने के लिए आपको ऊपर उठना है । परन्तु । लोग सोचेंगे कि आप आपने यह प्रकट नहीं होने देना अन्यथा ईर्ष्या उत्पन्न हो जायेगी ऊपर जाते हुए ा। बड़े अंहकारी हैं। अतः बहुत ही नमर बनिए। 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt 13 = यो गी शि ष्य = बुध्द गौतम की एक कथा का सुना है हमने ऐसे बखान सत्य अहिंसा के पथ पर चल रहे थे जिनके शिष्य महान ॥रे कभी किसीने था यह सुनाया कथन वह था कुछ ऐसे आया बैठे थे बुध्द की छाया प्रणाम करने तब शिष्य आया । दृष्टी उठाकर कहा बुध्दने क्यूँ हो अचानक सामने आये ' गुख्देव में भ्रमण करूँगा". कहे शिष्य सुनबुध्द मुस्काये कहा बुध्दने शिष्यसे अपने जाओगे तुम संसार मे तपने इस सृष्टी में माया भरी हैं, सत्य के पास नही आते सपने भले बुरें कर्मों के भागी स्वार्थी मिलेंगे-मिलें गे त्यागी अभागी कुछ कुछ तुम्हारा सम्मान करेंगे-करेंगे निंदा बुध्दने शिष्य का सत्व टटोला शिष्य विनम होकर बोला "निंदक भी मुझे प्रीय ही होगे वे केवल निंदा ही करेंगे ना मुझको चाँटे मारेंगे ना मुझ पर माटी फे्के गे" सुन कर शिष्य का उत्तर प्यारा बोले बुध्द उससे दोबारा "ऐसा भी तो हो सकता है उनमे कुछ ऐसा भी करेंगे माटी फेकेंगे' कुछ तुमको चाँटै मारेंगे कुछ तुमपर अपने गुरू की बालें सुनकर कहा शिष्यने ऑँखे मुँदकर "तब भी वे मेरे प्रिय रहेंगे मारके चाँटे माटी फेकेंगे लाठी से तो माटी भली है अचल रहुँगा वै देखेंगे' बुध्दने चाहा शिष्य की भकिति देखें कितनी हैं इसमें सहनशक्ति देखें 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt 14 "संभव है लाठी भी चलेगी दस पाँच की टोली होगी तुम निहत्थे क्या कर पाओगे तुम्हारी केवल झोली होगी. शिष्यने अपना शीष झुकाया उत्तर बुध्दने उससे यह पाया 'लाठी से तो शस्त्र है भारी इस लिये मुझे लाठी है प्यारी जब तक ना वे शस्त्र चलाये लाठी खाने की है तैयारी" बुध्दने देखा शिष्य है यह निराला तुरंत अगला प्रश्न कर डाला "इस देश का है बडा विस्तार मिलेंगे जंगल घने खँखार ठग और लुटेरे मिल सकते है चलायगे तुम पर तलवार सत्य अहिंसा का था शिष्य पुजारी बुध्द के साथ थी उमर गुजारी सुन कर गुरू की बातें सारी शिक्षा जीवन भर की कह डारी "जब तक ना वे जान से मारें लगेंगे मुझे प्राण से प्यारे - मृत्यु का मुझे भय ही नहीं है समय से पहले कौन किसे मारे यदि मार भी दिया उन्होने ऐसे विधी का सत्य में त्यामू कैसे ईएवर इच्छा प्रमाण होगी आयेगी मृत्यु लिखी हो जैसे" सुनकर शिष्य के उँचे बिचार संतोष बुध्द को हुआ अपार जो ले वे शिष्य से अंतिम बार कहीं ज्ञान की बातें चार *भ्रमण को शिष्य तुम जा सकते हो इसके योग्य तुम मुझे लगते हो सत्य स्थिती का ज्ञान है तुमको ईश्वर इच्छा का मान है तुमको सबको भला समझ के चलना गुण है संन्यासीका ना ढलना कहलाने तुम संन्यासी पात्र हो शिष्य मेरे तुम संन्यासी मात्र हो 1990_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt 15 प्रसन्न हूँ मैं तुम भ्रमण को जाओ सत्य क्या है जग को समझाओ कितना सुंदर कथन सुनाया क्या क्या बुध्दने है समझाया आओ इसमें घ्यान करें इस सीख का उचित मान करें प्रेम भाव की है यह गाथा इसके आगे झुकाये माथा नभ मंडल मे चुद्र किरण हो वृक्ष है होना तो चंदन हो ऐसा शीतल योगी का मन हो क्षमा प्रेम ही उसका धन हो शब्द शत्रु नही जिसके कोष मे वही है रहता सदा होश में देखे वो ममता सब के दोष मे ढुँढे बंधुत्व सबके शेष में रार क्या माटी क्या लाठी या शस्त्र क्षमा से बड़ा नही कोई अस्त्र मान अभिमान है झूठे वस्त्र सत्य है सुंदर चाहे हो विवस्त्र आते है जो सहज के द्वारे जीवन अपना ऐसे गुजारे सूर्य चंद्र के है दो किनारे रज और तम के है दो धारे निर्मल पथ बीचो बीच धरा है सत्य गुण ही जीवन में खरा है व्यर्थ मे मनुष्य मृत्युसे डरा है भाँ से दूर तो जीवित भी मरा है । P ह ८ ३. クD ० ०० ০ 04 र