चैतन्य लहरी खंड 3 अंक - 6 1991 हिन्दी आव 2ल ए. ८ ১< दूर ३ सहजयोगी का पहला लक्षण ये है कि वो शान्त चित्त होता है । और अत्यन्त सक्ल । किसी से डरता नहीं । उसका जीवन अत्यन्त शुद्ध होता है । उसका शरीर शुद्ध होता है, उसका मन शुद्ध होता है और आत्मा के प्रकाश से वो सारी दुनियां में तेज फैलाता है । जो आदमी प्रेम नही कर सकता वो हमारे विचार से सहजयोगी क्ल्कुल है ही नहीं ।' श्री माताजी निर्मला देवी । रला ॐ म अत विष्य सूची पृष्ठ संख्या शिव रात्री पूजा 9.2.91 1. होली पूजा 2. 28.2.91 पहला तालकटोरा पब्लिक प्रोग्राम, दिल्ली 2.3.91 14 3. दूसरा तालकटोरा पब्लिक प्रोग्राम,दिल्ली नोयडा पब्लिक प्रोग्राम 4. 23 3.3.91 4.3.91 32 5. जन्म दिवस पूजा 10.3.91 6. 38 शिव रात्री पूजा दिल्ली 9.2.91 शिवजी के लिए कहा जाता है कि वे बहुत सरल हैं और एक दम भोले हैं । इसलिए उनको जानना बहुत कठिन है । कुण्डलिनी का कार्य ही देवी का कार्य है । देवी ही इस चराचर सृष्टि को बनाती है और अन्त में आपके अन्दर कुण्डलिनी बनकर शिव तक पहुंचा देती है । शिवका पूजन करते चक्त याद रखना चाहिए कि शिव के गुण धर्म हमारे अन्दर विकसित हुए या नहीं । इसीलिए सब से पहले कुण्डलिनी की गति को समझ लेना चाहिए । जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो सर्व प्रथम वो आपके शरीर को स्वस्थ करती है । क्योंकि शरीर का भी स्वस्थ होना जरूरी है । इसलिए आपका चित्त पहले अपने शरीर पर जाता है । शुरूआत में सभी मुझे अपनी शारीरिक तकलीफों, बिमारियों के बारे में बताते हैं । कुछ हृष्ट - पुष्ट लोग अपनी सांसारिक तकलीफ बताते हैं । जब हम लोग जागृत अवस्था में होते हैं तो हमारा चित्त इन सब चीजों के तरफ आकर्षित रहता है और इससे हम लोग काफी तकलीफ मैं रहते हैं । जैसे - जैसे आप सहजयोग में आएं गे आप यही पायेंगे कि आप लोग अपने शरीर की, सांसारिक चीजों की, या मानसिक दुःखों की ही चर्चा करते हैं । इसलिए पहले ये व्यवस्था की गई थी कि शरीर की तरफ ध्यान कही नहीं देना चाहिए । उसको कष्ट देना चाहिए । गर आप पलंग पर सोते हैं तो नीचे उतर कर तख्त पर सोईये । फिर तख्त से आप चटाई पर सोइये । फिर आप जमीन पर सोइये । फिर आप पत्थर पर सोइये । फिर आप दल दल में सोइये । ऐसे अनेक तरह से शरीर को पक्का बनाया जाता था जिससे शरीर बाद में कोई तकलीफ न दे । शरीर का आराम किसी भी तरह से मान्य न था । जैसे एक रात जागरण में यदि तकलीफ हुई तो सात रात जागरण करो फिर तकलीफ हुई तो चौबीस रात जागरण करो । उसी प्रकार खाने पीने की लालसा को वश में करने के लिए लम्बे उपवास करवाए जाते थे । आपको जो चीज पसन्द न हो ऐसी चीज आपको खिलबायी जाती थी । यहां तक कि आप अन्न मत खाओ, सिर्फ फल खाओ फिर गर आपको कपड़ों का बहुत शौक है तो आप सादे कपड़े पहनो । फिर आप हलके कपड़े पहनो । फिर आप हिमालय पर जाओ और वहां पूरे कपड़े उतार कर ठंड में ठुठरो । इसी प्रकार किसी को नखरा हो कि मुझे अच्छा घर चाहिए । तो उसे जंगल में रहने के लिए या तीर्थ स्थान आने को कहा जाता था । कोई काँची का आदमी तीर्थ स्थान में जाए गा तो काशी जाए गा । और काशी का जाए गा तो तीर्थ स्थान में कांची जाए गा । रास्ते में उसको शेर खा जाएं गे । शेर ने छोड़ा तो सांप काट लेगा सांप ने छोड़ा तो मगर खा जाए गा । । इस तरह से लोगों को छांटते - । सहजयोग में उलटा हिसाब किताब किया है । सहजयोग में न तो आपको घर छोड़ना है, न द्वार छोड़ना है न खाना पीना छोड़ना है, न ही बस्त्र और जब तक वो बहां पहुंचते तो हजार में से एक आध ही बच पाता छांट ते उनसे आत्म साक्षातकार की बात की जाती हुआ का कोई बन्धन है आप जैसे हैं वैसे ही रहे । इसी अवस्था में आपकी कुण्डलिनी का जागरण हो जाए गा । परन्तु पहले तो एक हिरण का चर्म बिछा के उसपे बैठ के साधना करके फिर आपकी तपश्चर्या होती थी, उसके बाद कठिन उपवास रखने के बाद भी आपकी परीक्षा होती, आपको उल्टा टांगा जाता । कूंए में डाला जाता दो तीन बार देखा जाता कि किस हालत में आप है । उराके वाद अगर आप जिन्दा रह गए तब फिर केही जाकर के चर्चा होती । अब सहजयोग में उल्टा कारोबार है । पहले तो हमने ऊपर का शिखर बना दिया। खोल दिया उसे सहग्रार खोल दिया। सहम्रार खोलकर के कहा कि आप ही लोग अपने को ठीक करिये । लेकिन अब भी सहजयोग बहुत ही कठिन चीज है । जितनी सरल है उतनी ही कठिन है । हम लोग समझ नहीं पाते । शंक र जी जैसे क्योंकि हमारे अन्दर अनेक नाडियों है हमारा चित्त जो है वो इधर । और उन नाडियों को खोलने का एक ही तरीका है कि उधर न उलझे । तो सहजयोग में ये तो कोई नहीं बताते कि तुम खाना पीन| छोड़ दो । तुम उपवास करो और तुम जाके हिमालय की ठंड में बैठो । लेकिन क्या करना चाहिए जिससे हमें अपनी तरफ अन्तर मैन करके विचार करना चाहिए कि ये में क्या हमारी प्रगति हो ? तो सबसे पहले केर रहा हूं ? जैसे कि अब आप कही गए और आपने देखा कि आपको सोने की जगह नहीं मिली, तो फोरन आप शिकायत करना शुरू कर देंगे कि मां हमें सोने कि जगह नहीं मिली । उस वक्त ये सोचना चाहिए कि मैं ऐसे क्यों क ह रहा हूं ? क्योंकि में अपने शरीर के बारे में चिन्ता कर रहा हूं कि मुझे सोने की जगह नहीं मिली । से जगह नहीं गिली और मैं अपना चित्त इी में डले जा रहा हूं । मुझे ठीक अब उस वक्त हुमे ये सोचना चाहिए कि अच्छा हुआ कि मुझे जगह नहीं मिली । अब सो जैसे सोना है । अब यही सो । अपने शरीर से कहिये । तू सहजयोगी है । यही सोना होगा तुझे सोने के लिए अच्छी जगह क्यों चाहिए । दुनियां में कितने लोग हैं जो रास्ते पर सो जाते हैं तू कोन बड़ा भारी हो गया कि तुझे सोने के लिए अच्छी जगह चाहिए ? और लोग तो खड़े भी क्या जरूरी है । अपने को समझता क्या है तू ? ऐसे अपने शरीर से प्रश्न पृछना चाहिए एक दम आफत खड़े भी सो जाते है तू खड़े खड़े क्यों नहीं सोता ? और फिर सोना आ जाए गी कोई एक बार खाना ने खाए तो । चाहिए । ऐसे शरीर को धिक्कारना चा हिए गर एक दिन खाना ने मिले तो बहुत अच्छा हो गया ऐसा सोचना । एक आजकल तो वहुत ही ज्यादा शरीर के चौचले निकल आए इस तेरह की आधुनिक चीजें निकल हैं । जैसे कि ये हगने कषड़ा पहना, तो उसका मैचिंग होना चाहिए । आई हैं और उसके जो परिणाम हैं वो इतने ज्यादा कृत्रिम है कि हम लोगों को समझ नहीं आता है कि हम इसका मतलब ये नहीं कि आप विक्षिप्त हो जाएँ हैं । लोग इस कत्रिमता के पूरी तरह से गुलाम हुए जा रहे । इसका मतलब ये नहीं कि आप अजीब से कपड़े पहन कर घूगिए और इसका मतलब ये भी नही कि आप हिप्पी हो जाएं । रामझ लीजीए कि किसी स्त्री को एक मैचिंग ब्याऊज नही मिला तो उसाको तो लगता है कि वो गई काम से । बिल्कुल खत्म । पहले जगाने में तो कोई मचिंग पहनता ही नहीं था । अब यदि उसे मैचिंग स्वैटर नहीं मिला तो बस आगई आफत । कौन देखता है आपको कि क्या पहने है आप ? और आप ऐसी कौन सी विभूति हैं कि आपको देखने से किसी का आज्ञा चक्र खुल जाए गा ? या किसी का कोई अन्य चक् खुल जाए गा ? उल्टे आपको देखने से तो कोई पकड़ ही जाए गा । एक बार कोई एक भी चीज़ शुरू हो है जाए जैसे विलायत में है कि आपके बाल बिल्कुल उलझे होने चाहिए । तो सब ऐसे बाल लेकर घूमते पर तुम सहजयोगी हो । तुम विशेष नोग हो, तुम ऐसे वयीं कर रहे हो ? मैं अपने शरीर का इता आराम क्यों देखता हूं ? म तो एक चिशेष हूं । विशेष का मतलब ये कि आपमे चित्त की जो ये चंचलता है उसे रोकना है । चित्त को लीन करना है चेतन्य में । पर चित्त अगर इधर उधर जाता रहै तो वो चैतन्य में कैरी लीन होगा ? आपके हृदय में जहाँ शिवजी का बास है वहां चार नाड़ियाँ हैं । उसमें से एक नाड़ी मूलाधार तक भाती है । और उससे आगे नर्क है । कुछ लोग यही कहते हैं कि इसमें क्या खराबी है ? लेकिन आप अपनी ओर चित्त करके ध्यान देना चा हिए कि मुझमें ये बासना सहजयोगी हैं, आप नर्क काहे को जा रहे हैं ? क्यों है जो मुझे नर्क की ओर ले जा रही है मै तो एक कदम ऊपर रखे हुए हूं और एक कदम कबर में रखे हूं । उसकी दूसरी नाड़ी हमें इच्छाओं के तरफ ले जाती है । इसलिए बुद्ध ने साफ साफ केहा था कि इच्छा करना ही हमारी मृत्यु का केारण है । इच्छा हम में बिल्कुल खत्म हो जानी चाहिए । लेकिन बो खत्म नही होती । एक शुद्ध इच्छा मात्र रहनी चाहिए बो कैसे हो ? शुद्ध इच्छा इस तरह हो सकती है कि आप सोचे मुझे इसकी इच्छा क्यों हो रही है ? इस इच्छा की ओर मैं क्यों दोड़ा जा रहा हूं ? ऐसी मैने अनेक इच्छाएं की, उससे मुझे क्या फायदा हुआ । तो जो कुछ का कर्तव्य है । किसी को इच्छा हुई कि मैं माँ के क्ल्कुल सामने जाकर बैठू या किसी की इच्छा होती है भी मिला है उसी मैं आनन्द पा लेना ही एक सहजयोगी कि हम पहले बहां जाकर खड़े हो जाएं । ऐसी इच्छा क्यों हुई । क्योंकि अज्ञान में ये नही जाना कि माँ हर जगह है । कही जाने की जरूरत क्या है ? तो शुद्ध इच्छा की जब आप इच्छा रखें, तो जब कुण्डलिनी चढ़ती है तो ये जो इच्छा की नाड़ी नीचे की तरफ मुड़ी हुई है उसकी ऊर्ध्वगति हो जाती है । उसमें शुद्ध इच्छा भर जाती है । इच्छा मनुष्य करता है इस विचार से कि इस समय मुझे सुख मिलेगा, आनन्द मिलेगा । पर मिलता नही । तो इस इच्छा को आपको आनन्द में लीन कर देना है । क्योंकि शिव का तत्व जो है ,आनन्द का कुछ तत्व है । उनका स्वभाव आनन्द है । इसलिए हर एक चीज़ में आनन्द खोजना चाहिए तब किसी चीज की त्रुटि ही नही लगेगी । दोष देखना या हर एक चीज़ में, ये ऐसा है । वो जो आप सोच रहे हैं, ऐसा होना चाहिए, वो कार्यान्वित ही नही हो सक ता । आपका कोई मतलब भी नहीं है उससे । जैसे कोई सिनेमा देखता है कि कोई पहाड़ी से गिरने वाला है । तो क हते हैं, अरे तुम पहाड़ी होता तो अच्छा होता, बहुत लोगों को आदत से गिर जाओगे । बो क्या तुम्हारी बात सुन सकता है ? उसी तरह से हर एक चीज का ठेका लेकर बैठते हैं । और इस तरह से अपने बुद्धि में भी पूरी तरह एक विचारों की श्रृंखला बना देते हैं । लेकिन जो कुछ आप देखते हैं वो देखना मात्र हो गया एक कटाक्ष में भी निरीक्षण हो जाए गा जाए गा । लेकिन वो देखना नहीं होता । उसे निरंजन देखना कहते हैं । उसमें कोई रंजना नही होती । उसके प्रति कोई प्रतिक्रिया नही होतो । तो निरंजन देखना भी शिब का ही तत्व है । गए और उनके मूर्ति के दर्शन भी हो गए, किन्तु जब तक उनका प्रकाश हमारे अन्दर नही आया तो सब व्य्थे ही है । । और चित्त सा आपके अन्दर बन ना शिव के स्थान पर भी पहुंच अब जो तीसरी नाड़ी है उसमें प्रम उभरता है । मरा बेटा, मेरी बहन, मेरा भाई, मैरा बाप, मेरा पति सब दुनियां भर की रिश्तेदारी । इसमें भी बहुत लोग उलझे रहते हैं सहजयोग में भी, सालों तक वो छूटता अब यह कहना कि ये रिश्तेदारी व्यर्थ है, तो यह बात ठीक नही अपने बच्चों के लिए आप किसी का खून भी कर दे । कुछ भी कर सकते हैं इस ममत्व के लिए । पत्नी के है । और उसके बाद देखते हैं कि लिए पति के लिए इस कदर उसमें आदमी अपने जीवन को व्यर्थ करता वोही आपको सता रहे हैं। जिनके लिए इतना किया वो ही आपके दुश्मन हैं । । सब से ज्यादा दु:ख बोही दै रहे हैं और आपको और भी ज्यादा दुःख इसलिए होता है कि इन्ही के लिए हमने इतना किया और इन्होंने हमारे लिए क्या किया ? पहले जमाने में कहते थे कि सबको त्याग दो । घर त्यागो, अच्चे त्याग बीबी त्यागो, 3- सब छोड़ के जंगल में जाकर एकान्त वास करो । सहज योग में ऐसा नहीं है । सहज योग में किसी को नहीं त्यागना है । सब्को अपनाना है । क्योंकि सहज योग एक व्यक्तिगत कार्य नही कि आप जाके एकान्त में बैठ गाएं और तपस्या की और बड़े ऊँचे हो गए । तो क्या फायदा हुआ । आप अवधूत बन गए तो क्या फायदा हुआ । एक हसा आदमी हो तो अच्छा भाषण दे सक ता है । हो सकता है कि थोड़ी बहुत चैतन्य की भी वर्षा हमें तो सारे संसार को ठीक करना है । कर सकता है । पर उससे सारा संसार तो ठीक नहीं हो सकता । इसलिए ये सोचना कि मैं क्यों अपनापन सिर्फ थोड़े ही सीमित लोगों में रखता हूं ? एक पेड़ में गर पानी छोड़िये तो उसका जो सत्व पेड़ के हर शाखा में, हर पत्ते में, हर फूल में, हर फल में जाता है । और लौट आता है और नही लौटे ता वो उड़ जाता है । लेकिन गर जो एक फूल में ही फंस जाए तो वो पड़ भी मर जाएगा और फूल भी मर जाए गा । देवी निर्वाज्य प्रेम करती है । देवी जब किसी के लिए कुछ करती है तो फिर उन्हें ये नहीं ख्याल रहता कि ये कुछ किया या हुआ और उसने ऐसे क्यों किया, नही करना चाहिए था । उनका मन किसी भी चीज में उलझता नहीं क्योंकि वो करूणामय है । करूणा के सागर में लीन हो गया । क कि परेशानी में कोई अर्थ नहीं लेकिन उसे छोटी परेशानियां बताते है । हालांकि मैं जानती हूं लोग छोटी बहुत गंभीरता से सुनती हूं । उनके दायरे में मैं नहीं उतर पाती । अगर वो मेरे दायरे मैं नही उतर पा रहे हैं तो ये उनका दोष है । उनको उतरना चाहिए । करूणा, करूणा के लिए होती रिश्ते के लिए नहीं, करूणा को धनी या भिखारी में कोई भेद नहीं इस करूणा में उतरना चाहिए है । किसी काम, मतलब या । जैसे समुद्र, कहों भी गड़ढ़ा हो जाए वो पानी भर देगा कही भी कोई त्रुटी हो, भर देगा । करूणा तो 'स्वभाव' है स्व माने आत्मा । आत्मा की भाव । जब बो आत्मा का भाव आपके अन्दर आ जाए सिर्फ करूणा फिर ये सब चीज टुट जाए गी । कि दिल्ली रहने वाले, बम्बई रहने वाले, इत्यादि । । उसका महत्व कुछ याद नही रहता नही रहता । हर आदमी क्या है वो जरूर आपको याद रहे गा कि ये कोन है । इसको कौन सी तकलीफ है । तट एक दम देखते ही याद आ जाए गा । नजर आपकी कहाँ गई । नजर अगर ये ढूंढ रही है कि दिल्ली वाला कोन है, कलकत्ते वाला कौन है । गर ये नजर आपकी ढुंढ़ रही है कि ये करूणा केहाँ वही चली जा रही है । किसकी ओर खींच रही है मुझे । तो पता होगा कि दुःखी आदमी है । कोई साधक बहुत बड़ा साधक होता है । एक दम हुदय खिंच जाना चाहिए उस आदमी के तरफ । और ये करूणा आपको सुमति भी देती है ओर स्मृति भी देती है । क्योंकि जितनी निकटता करूणा से आती है, उतनी किसी भी रिश्ते से नहीं आती । ऐसी बिशेष चीज है करूणा और इस करूणा में अपने को लीन कर लेना । इस ममत्व को लीन कर लेना । ये सहज योग में उन्नति का मार्ग है । क्योंकि मैने कभी नही कहा कि आप अपने बाल बच्चे छोड़ दो, धर छोड़ दो । ये सहजयोग है । आप जैसे भी हों जहाँ भी हों, अन्दर ही अन्दर बढ़ते जाओ | बो अन्दर देखे बगैर तो यह नहीं होगा । तो फिर ये सोचना है कि क्या मैं करूणामय हूं ? किसी को गर कुछ है और उसे । बहुत बुरा मान जाते हैं । माने सारा ममल्व अपने ही बारे मैं हो ये के हो इस बार नही । नहीं हो सकता । मुझे क्या मिलना है । मैं क्या पाऊँ गा मुझे क्या लाभ होगा। लेकिन ममत्व बाहर नहीं । कोन, किस दशा मैं, कैसा भी हो करूणा अपना रास्ता खुद ही ढूंढ लेती है बड़ी सुन्दरता से । और बड़ा आनन्द -दावी है । करूणा की पाना, उसमें बहना ऑर करूणा में अनेक तरह के कार्य होना, आनन्द-दायी तो है लोकिन उस बार पाऊँ । ( चेतना ) नही होती । कर उसकी प्रशीति आनन्द में लोभ नहीं होता कि ये आनन्द मैं बार - दिया, कर दिया । हो गया, हो गया । जैसे संगीत को सुन लिया, मज़ा आ गया, वही खत्म हो गया । उसी तरह से कोई काम है, कर दिया । अब हृदय में चौथी जो हमारे अन्दर नाड़ी है बो अत्यन्त महत्वपूर्ण है वो चौथी नाड़ी कुण्डलिनी के जागरण से ही जागृत होती है और बाई विशुद्धि से निकल के और मस्तिष्क में जाकर के कमल को खिलाती है । जब हमारा चित्त इन सब चीजों में लीन हो जाता है तो इस कमल में जीव आ जाता है, इसमें शका आ जाती है या ऐसा समझ लीजिए जैसे किसी पौधे में पानी पड़ जाए तो बो जैसे अपने आप बढ़ता है इसी प्रकार होक र के ऐसा शुद्ध चित्त जिस मनुष्य का हो जाता है उसके हृदय की कली खिलती है और बो कमल रूप सहस्रार में छा जाता है । फिर उसका सौरभ, उसका सुगन्ध चारों ओर फैलता है । ऐसा मनुष्य एकदम कोई अगर के हता है कि नतमस्तक हो जाता है एक दम नतमस्तक होकर के सबके सामने झुकা रहता है । आपने बड़ा मेरा काम कर दिया, बड़ा चमत्कार कर दिया तो वो चीज उसे छुती नही । जैसे कि आनन्द की लहरें बाहर की ओर तट पे जाकर के नाद करती है । किन्तु वापस नहीं लोटती । उसी प्रकार जिस मनुष्य की ये स्थिति हो जाती है उसका सारा कार्य बाहर नाद करता है । आवाज करता है । उसका असर बाहर दिखाई देता है । तट पर उसके अन्दर उसका कोई असर नहीं आता । । विचार भी नेहीं आता। जो भी आपके निनाद हैं वो और दूसरे तट पे जाकर छू जाएं गे । मेरे तक छूते ही नहीं मुझे आते ही नहीं । उससे हो सकता है, अन्दर बैठे देवी देवताएं खुश हो जाएं और बो चैतन्य को बहाये या कुछ ध्यान भी नहीं आता करें । पर जहाँ तक मैरा सवाल है मुझे कुछ उसका आभास भी कभी नहीं होता कि आप मेरी जय जयकार गा रहे हैं । मै शायद वहां होती ही नहीं । जब आप स्तुति गाते हैं, खुश होते है, आपके अन्दर के देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं और आपके लिए अनन्त नाड़ीयों से कितने तेज पुंज जैसे, प्रकाश के किरण आपके अन्दर छोड़ते हैं । कितनी मेहनत करते हैं आपके लिए । तो आपके लिए भी बहुत आवश्यक है कि बो जब हमारे लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं तो तो पहले जिस शरीर को हम धिक्कार रहे हैं, मान नही रहे, वोही शरीर एक यज्ञ हो जाता है । यज्ञ माने कि जब हमारा शरीर है, हो रही है तकलीफ, तो इसको तकलीफ होनी ही है, क्योंकि ये यज्ञ है न अच्छी बात है । जैसे की काष्ठ का जलना यज्ञ में जरूरी है, उसी तरह इस शरीर का जलना भी यज्ञ में जरूरी है । लेकिन सहजयोग में सबसे बड़ी बात ये है कि ये जो कृत युग शुरू हो गया है, आपके पर्व पुण्य से, आपको बहुत तकलीफ तो कुछ होती ही नही । सब चीज सामने आके खड़ी हो जाती है । साक्षात्कार होते रहता है । आप कहते हैं चमत्कार हो रहा है । सब चीज आपका सुलभ में सहज हो जाते हैं शोभना - सुलभा गति । आपके शोभा व हमें भी इस शुद्धता को पाना चाहिए । मिल जानी है । बहुत से काम आपके सरल - मान जीवन में अत्यन्त सुलभता से आप इसे प्राप्त कर सकते हैं । कोई भी अशोभनीय काम करने की जरुरत नही । या ये एक तरह की बड़ी सूक्ष्म माया भी है उसमें ये नही सोचना चाहिए कि ये सारे चमत्कार हमारे लिए इसलिए हो रहे हैं क्योंकि हम कोई बड़े भारी सहजयोगी हैं । ये सोचना चाहिए कि ये चमत्कार इसलिए हो रहे हैं कि हमारे अन्दर विश्वास - परमात्मा के प्रति, शिव के प्रति, और कुण्डलिनी के प्रति दृढ़ हो जाएं । इसलिए चमत्कार हो रहे है । और इसको दृढ़ता से करने का कार्य यही है कि हम अपने चित्त को शुद्ध करें क्योंकि शिव चित्त स्वरूप है । उनके चित्त की शक्ति को चित्ती कहते हैं । जो चैतन्य आप जानते हैं, उस चैतन्य का जो चित्त है, वो शिव का प्रसाद है। सारे संसार में उनका चित्त फेैला हुआ है । और जब आप कहते हैं कि चमत्कार हो गया, ये चीज घटित हो गई तब ये जान लेना चाहिए कि ये जो चित्त है जिसे हम चित्ती कहते हैं, उसने ये कार्य किया है । अणु वो चित्त है । माने कि । वो शिव का तत्व है । माने रेणु हर चीज में उनका चित्त है लेकि न चित्त का मतलब ये होता है कि बो साक्षी हैं । देख रहे हैं । और कार्यान्वित जो है बो व्रहम-चैतन्य है । लेकिन जैसे कि संगीतकार गायक को देखकर के बजाता है, उसी चैतन्य उस चित्त की द्ृाष्टि को देखकर के ही कार्यान्वित होता है । उस चित्ती को ब्रह्म चैतन्य जानता है और वो इस कार्य को तब करता है जब उस चित्ती को देखकर वो ठीक समझता है । ब्रहुम चैतन्य देवी की शक्ति है, और वो कार्यान्वित है, उस देखने बाले को जानती है और उस शक्ति की पूरा कभी आप कहते है कि प्रकार ब्रहुम समय यही लीला है कि उस एक देखने वाले को खुश रखना है । इसलिए कभी । इसलिए हो गया कि बो जो चित्ती थी उसका रूख बदल गया था । गर आप मां ऐसे गड़बड़ क्यों हो गया आज शिव की पुजा कर रहे हैं तो ये मैने जो चार नाड़ीयां बताई है उसकी ओर नजर करें । और जिस तरह से मैने आपसे बताया है कि अपने को किस तरह से चित्त को इन चार चीजों में लीन कर लेना चाहिए यह कोई बड़ी गहन बात नहीं है, लेकिन सूक्ष्म है । और फिर आप मुझे बताईये गा कि इस तरह से अन्तर करके जो आपने अपने साथ विचारणा की, या तपस्या की है, या जो वार्तालाप किया है, और जो अपने चित्त को शुद्ध किया है, उससे आप एक दम शिव के सागर में पूरी तरह से डूब गये हैं ऐसी दशा आप सब की मन हो,यही मेरी एक शुद्ध इच्छा है । तजि स होली समारोह 28-2.1991 दिल्ली श्री माताजी निर्मला देवी का भाषण आप तो इतिहास को जानते हैं ओर पोराणिक बात भी जानते हैं कि होलिका जलाने से ही होली जलाई । इस समय तक किसानों का भी सब काम खत्म हो गया और ये सोचकर कि फसल बगैरह को बेच करके आराम से सब बैठे हैं तो थोड़ा सा उसका आनन्द भोगना चाहिए । होली की शुरूआत उसी मैं बिठाई हुई बात है महूरत । यह काम श्री कृष्ण ने किया, क्योंकि श्री राम जब संसार में आए तो श्री राम ने मर्यादाएं बांधी, स्वयं अपने जीवन से, अपने तौर तरीकों से, अपने आदर्शों से, अपने व्यवहार से, कि जो है मर्यादा - पुरूषोत्तम है । ये जो मर्यादा मनुष्य - पुरूषोत्तम, ये एक चरित्र, एक महान आदर्श हम लोगों के सामने रखा गया कि जो राजा है वो हितकारी होना चाहिए हितकारी राजा क हा है, वो आदर्श स्वरूप श्री राम इस संसार में आए । और इतना बड़ा आदर्श उन्होंने सबके सामने रखा कि लोगों के हित के लिए, जनता के लिए उन्होंने अपनी पत्नी तक का त्याग कर दिया । हालाँकि उनकी पत्नी साक्षात महालक्ष्मी थी, बो जानते थे कि उन्हें कुछ नहीं हो सकता, तो भी जिसे सुक्रांत ने बिनेवॅलैन्ट किंग लोकाचार में दुनियां के सामने उन्होंने अपनी पत्नी को त्यागा जिससे लोकमत हमारे प्रति विक्षुब्ध न हो और लोकमत का मान रहे । अब वर्तमान में हम देखते हैं कि हमारे यहां लोकमत का जरा भी विचार लोग बिल्कुल निलेज्जता से राज्य करते हैं, और उसके प्रति ध्यान नही देते बजह ये है कि मर्यादा - पुरूषोत्तम के बारे में लोग जानते नहीं या जानते हैं तो उसे समझते नहीं, और समझते हैं तो उसे अपनाते नहीं । ये कितनी आवश्यक बात है कि जो राज्य करते हों बो अपनी भर्यादाओं मैं रहे । अपने को मर्यादाओं से बाँधे । और तभी सारा संसार उन मर्यादाओं में बाँधा जाए गा । लेकिन राज्य करते हैं बिना किसी मर्यादाओं या आदर्शों के, या किसी विशेष तरह के प्रणालिओं के बगैर |। इस तरह । उसके नही किया जाता । समाज तो घातक होगा ही, पर सबसे ज्यादा जो विश्व बन्धुत्व है बो सारा ही नष्ट हो जाएगा । अज मनुष्य अपने देश में भी बहुत संकीर्ण होता जा रहा है क्योंकि हमने अपनी मर्यादाएं जा बाँधनी थी दो नही बाँधी । जैसे कि बम्बई वाले हैं और दिल्ली बाले हैं फिर बम्बई शहर वाले हो गए । फिर पुरानी दिल्ली बाले हो गए, फिर नोयडा वाले हो गए इस तरह कि हम अपनी सीमाएँ बांधते जा रहे हैं । विश्व नाभ मैं उतर कर भी जहां हम विश्व के एक नागरेिक हो गए हैं, तब भी हम इस तरह बन्धुत्व छोटी संकीर्णताओं में बन्धे हुए हैं और जो मर्यादाएं हमें अपने व्यक्तित्व में बाँधनी चाहिए. कि छोटी बो हमने नही बाँधी । जो श्री राम ने बाँधी थी । क्योंकि श्री राम विश्व के लिए एक आदर्श राजा के रूप मैं आए थे । उनका स्वयं का जीवन एक आदर्श और मर्यादाओं से बंधा हुआ था । तो जिन मर्यादाओं को हगने बाँध रखा है उनसे तो हम क्षुद्र हो जाएँ गे, छोटे हो जाएँ गे, संकीर्ण हो जाएँगे । पर जो मर्यादाएँ थी व राम ने अपने चारों तरफ बाँधी हुई थी, उससे हम सबल हो जाएँ गे । जैसे कि एक हुवाई जहाज है औ- उसके अन्दर के पैंच वगैरह ठीक से न बाँधे जाएँ, बो अगर ठीक से न जोड़े जाएं या वो कार्यान्वित न हो तो जब ये हवाई जहाज उड़े गा तो उसकी सब शक्ति नष्ट हो जाए गी । जो मर्यादाएं हमारी शक्ति को नष्ट करती है वो तो हम बहुत आसानी से बांध लेते हैं किन्तु जो मर्यादाएं हमारे शक्ति को बढ़ाती हैं, हमारा हित करती है , इतना ही नहीं हमें एक प्रभुत्व देती है । एक अस्तित्व देती है, एक बड़प्यन देती है उनको हम नहीं मानते । य ही एक बड़ा दोष हमारी सूझ बुझ का और विचार का है । बिना इन मर्यादाओं को समझे, कर्म काण्ड आदि में फंस कर, एक दूसरे से अलग हट कर जब हम इस तरह संकीर्ण बनते जा रहे हैं तो हमें चाहिए कि हम अपनी ओर थोड़ा विचार करें कि हमने कौन सी मर्यादाएँ बाँध रखी हैं, और कौन सी मर्यादाओं में हम बंधते चले जा रहे हैं ? जो मर्यादाएं हमें बँधनी चाहिए थी कल्कुल बाँधी ही नहीं बन्धुत्व की भावनाएँ, सब एक दम अस्त व्यस्त हो गई, ढीली पड़ गई । जो मर्यादाएं श्री राम ने बांधी थी बुझ बिना उसी तरह कि मर्यादाएं लोग भी बांधने लग गए । और इस तर ह वे कर्म काण्डों में जाने और विश्व उसकी बजह से हमारा सारा सामाजिक जीवन, राजकीय जीवन, । सूझ लग गए । धर्म मानो कोई ऐसी चीज हो जिसमें आप हंस भी नहीं सकते, बोल भी नहीं सकते । आप उपवास और तपास करिये, एकान्त में र हिए । इस तरह के उस बक्त के ब्राहूमणाचार थे । पंडितों ने इस तरह की गलत चीजें बता दी कि य ही धर्म है । लोगों की इस तरह कि धारणाएं तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने जन्म लिया । वे साक्षात श्री राम । उन्होंने लीलाएं रची, और सारे संसार में लीला का प्रचार किया जन की गहराई को किस तरह से সুনা चाहिए । इसमें भी श्री कृष्ण ने खेल रचा । श्री श्री राम का जो जनता की ओर त्याग था बो और था, आप जानते हैं कि विशुद्धि चक्र पर जनः सामूहिक हो जाता है । और नाभी चक्र पे धारणा हो जाती है । विशुद्धि चक्र पे आप सामूहिकता पर आ जाते हैं । सामूहिकता में भी किस तरह से श्री कृष्ण ने लीला से ही लोगों को जागृत करने का प्रयत्न किया। जब छोटे थे, पांच साल की उम्र के थे तो उन्होंने औरतें जो नहा रही थी, उनके कपड़े छिपा लिए । चार कृष्ण की जो लीला थी वो और तर है की थी और पांच साल की उम्र के बच्चों को क्या समझ है । आजकल के बच्चे जुरा ज्यादा ही होशियार हैं, उस जमाने में तो 20 साल तक भी लड़कों को कोई अक्त नहीं होती थी । इस तरह से बड़ी अबोधिता में उन्होंने औरतों के कपड़े छुपा लिए । और ये लोग जब जमुना में नहाती थी, इनमें राधा जी तो साक्षात महालक्ष्मी थी, महालक्ष्मी से ही उत्थान होता है, महालक्ष्मी तत्व से ही आप लोगों ने सहज योग में सभी कुछ प्राप्त किया है । तो उनके पीठ पर देखते कि किस तरह इनकी जागृती हो जाए । दृष्टि उनकी । फिर जो औरतें घड़ा लेकर चलती थी, उनके वड़े पीछे से तोड़ते थे ताकि जमुना जी का चैतन्यित जल उनकी पीछ पर गिर जाए ओर इनकी जागृती हो जाय । उसके बाद रास । रा-माने शक्ति स-माने सहित, जैसे सहज है तो रास खेलते थे हाथ पकड़ के । रा-धा माने शक्ति की धारणा करने वाली । श्री कृष्ण सब्को नचाते थे और रास में नाचकर के वो राधा जी की शक्ति सब में संचारित करते थे । मुरली बजाते थे । मुरली भी एक तरह से कुण्डलिनी ही है । कुण्डलिनी के छः: चक्रों की पीछ पर रखते थे तर ह बांसुरी मैं भी छः छेद होते हैं । उस नृत्य के द्वारा राधा जी की शक्ति सबके हाथों में से बहाते थे । इस प्रकार उन्होंने लीला रचाई । बाद में होली का भी उन्होंने एक बड़ा सुन्दर तरीका ढूंढ़ निकाला । पानी के अन्दर, बहुत संजो करके, पवित्रता पूर्वक सुगन्धित रंग मिलाकर, चैतन्यित पानी सबके बदन पर फेकते जिससे कि सबका अंग - प्रत्यंग चैतन्यित हो जाए । ये उनका विचार था, खेल था । ये नहीं कि आप लोगों पे ऐसे - ऐसे चीज फेंके जिससे सुना है एक के प्राण चले गए । उनके मुंह थे गुब्बारा मारा कितने शुर्म की बात है । किसी अवतरण द्वारा बनाई गई सुन्दर विधि का क्या इस तरह से कबाड़ा गया करना चाहिए ? ये सिर्फ इन्सान से ही हो सकता है । जानवर भी नहीं कर सकते । रंग खेलते खेलते, रंग खत्म हो गया तो कीचड़ उठा लिया, फिर गोबर उठा लिया, फिर उसके बाद तार कोल उठा लिया । अरे, किस चीज के लिए होली हो रही है ? उसका तत्व ही खत्म कर देना, और उसके साथ जो सुन्दरता है उसे भी चेतन्यित जल फेंका जाय जिससे हमारे आपसी प्रेम को बढ़ाबा मिले, और उससे भी बढ़ के आपसी मेल हो जाए , हमारे अन्दर जो भी दुष्ट भावनाएं हैं वो खत्म हो जाएँ । बहुत ही एक तरह से स्वच्छन्द होकर के तन्मय होकर के एक साथ होली खेलें । उसमें कोई पाप की भावना नहीं होनी चाहिए, कोई हृदय में खराबी नही होनी चाहिए । इस तरह से ये इतनी सुन्दर चीज़ बनाई थी । इसी चीज का जो विपर्याय (उलट) जो हम देखते हैं तो बड़ा आश्चर्य होता है । जैसे आजकल गणपति गन्दे सिनेमा के गाने, शराब पीकर के उनके सामने चीखना । गुजरात की आराधना होती है बहाँ गन्दे में आजकल रास बहुत चलता है, नवरात्री में तो शराब पीकर सब लोग आते हैं । औरतें और आदमी, शराब पीकर, बढिया बढ़िया कपड़े पहन कर और क्या वहां शुरू हो जाता है ? एक बार लन्दन में देखा रास लीला में औरतें, मर्द लड़के, लडकियाँ सब शराब पीकर के इतने अश्लील तरीके से व्यवहार कर रहे थे कि वहाँ तो सब भूत ही नाच रहे थे। उसके दूसरे दिन पेपर में आ गया कि इनके यहाँ रास होती है वो ऐसी है और उसमें ऐसा होता है । पाश्चिमात्य लोग जहाँ पर, जिस काम को करने में लज्जित हो जाएं, ( वो तो नैतिक ता में अपने से बहुत ही कम है ) ऐसे हिन्दुस्तानी करते हैं रास । ये बहुत शर्े कि बात है । क्या ये हिन्दुस्तानी यहाँ आकर के प्रदर्शन कर रहें हैं । दूसरे दिन पेपर मैं आया कि रास अनेतिकता का एक बहाना है । जो मर्यादाएं नैतिकता, प्रे, आदर की है उन्हें छोड़कर के आप होली खेलेंगे । होली के बहाने अपने में छिपी हुई जो गन्दगियां हैं उसे आप निकाल रहे हैं । उसकी शोभा ही खत्म हो गई । अशोभनीय काम में मज़ा आ ही नही सकता । खास कर सहजयोगियों को तो आना ही नहीं चाहिए । सब कुछ शोभनीय होना चाहिए । रास भी ताल बद्ध स्वर बदध होता है । रास ये नहीं किडमाडम बजा रहे हैं और एक दूसरे पे गिरा जा रहा है । इसमें शुद्ध चित्त होना चाहिए । इसलिए रास होता है । क्योंकि नृत्य करते वक्त मनुष्य का ध्यान नृत्य के लय और सुर पे होता है इसलिए उसका चित्त शुद्ध हो जाता है । ये होली का त्योहार जो श्री कृष्ण ने, लीलाधर ने, बनाया उसकी विशेषता ही यही थी कि मनुष्य इसे एक लीला समझे । सारा संसार एक लीला है और सहजयोग में आप लोग आकर लीलामय हो गए है संगीत में और हर चीज में आप लोग तन्मय हो जाते हैं और आनन्द से उसका मजा उठाते हैं । ा आपस में इतने प्रेम से, बहुत शुद्ध भाव और बहुत नैतिकता से आप सारा काम बहुत सुन्दरता से करते हैं, इसमें कोई शक नहीं । लेकिन केबल लीलामय होना विशुद्धि पर ख्क जाना होगा । विशुद्धि पे लीलामय है और उससे आगे आज्ञा पर चलना है। जो आज्ञा का चक्र है ये तप है । तब आपको होलिका का जलना सोचना चाहिए कि प्रइलाद के तप के कारण होलिका जली थी । तो हम भी उस तप में आगे बढ़े क्यकि विशुद्धि तक तो हम आ गए । - कभी इसमें भी मुझे शक है । लेकिन विशुद्धि तक ठीक है । हम में सामाजिकता आ गई, आपसी प्रेम आ गया, सारे विश्व-बन्धुत्व में उतरे । अभी भी ऐसे लोग तो बहुत हैं ही जो बहुत गहरे उतर गए हैं लेकिन ऐसे भी बहुत लोग है कि जो अब भी अपनी छोटी - मैं कौन जगह का हूं और फिर ऐसा कैसे हो सकता है । विश्व - बन्धुत्व में तो आपकी जाति देश - विदेश सब छूट जाता है । अगर आप आज अमेरिका में पैदा हुए होते तो आप अमेरिकन हो जाते । आप यहां पैदा हुए तो हिन्दुस्तानी हो गए । मेरा मतलब ये नहीं कि आप हिन्दुस्तानी पैदा हो गए तो आपका रिश्ता अमेरिकनों से नही है । अब आप सभी एक ही मां के बेटे बेटियां हैं । इसलिए विश्व बन्धुत्व में उतरे हुए हैं पहली तो बात सोचनी चाहिए कि हमने विश्द्धि भी लांघनी है या नही। जब हम होली खेल रहे हैं, तब हम मर्यादा में हैं या नही । अभी किसी ने पूछा था कि माँ क्या औरतों के साथ पुरूषों को होली खेलनी चाहिए या नही ? मैने कहा कि सहज योग में नही । क्यूंकि भाई बहन में होली नहीं खेली जाती । क्योंकि श्री कृष्ण ने हमारी मर्यादाएं, जैसे भाभी और देवर । उनके बीच में एक तरह कि मर्यादाएं ही है । देखिए भाई बहन का रिश्ता कितना सुन्दर है, पूरी मयादाएं हैं, पूरा प्रेम है, लेकिन भाई बहन एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नहीं देठ गे । अपने देश की जो विशेष चीज है वो हमारी संस्कृति है । भाई और बहन दोनों एक साथ कभी नहीं बें गे । लेकिन प्रेम भाई बहन में बहुत ज्यादा होता है । अपने आप से । आपस में लड़ाई करेंगे, लेकिन उनकी बहन को कोई कुछ कह, तो वो खून खराबा कर देंगे । इस प्रेम की जो विलक्षण प्रकृति है, विशेष प्रकृति है भाई बहन में और वो निसर्ग से मिली है, कुदरती है । तो भाई बहन में नितान्त श्रद्धा है, लड़ाई झगड़ा भी करेंगे, तू , तू मैं, मैं भी समझ लीजिए कि सब आपस में प्रेम से रहते हैं कभी छोटी बातें सोचते रहते हैं कि मैं कौन जाति का हूँ, और पाति, ह जाए, पर अन्दर से बहुत ज्यादा प्रेम है । और अत्यन्त शुद्ध प्रम है और इस शुद्ध प्रेम की होली हम नहीं खेल सकते कि कहीं हमारी बहन का हमारे हाथों अपमान न हो जाए । भाई बहन में बड़ा ही हो सुन्दर सा, गोपनीय, मर्यादित, बन्धा हुआ प्यार है और उसके संगोपन में, नैतिकता में, अतिशयता है । तो भाई - बहन में होली खेलना मना है । इस लीलामय जीवन से हमें अगर ऊपर उठना है, तो हमें आज्ञा पर उतरना जरूरी है क्यूंकि इस तरह के त्यौहार से जो आनन्द मिलता है, आपस में जो शूद्धता मिलती है, अच्छाई मिलती है, भाई चारा बन्धुत्वता आती है उससे हम फैल से जाते हैं । गहराई को छूने के लिए जरूरी है कि तपस्विता आए । सहजयोग बहुत जल्दी फैलता है । फैलेगा बहुत जल्दी, लेकिन गहरे कितने उतरे है ? सो गहराई के लिए तपस्विता की जरूरत है । तप का मतलब ये नहीं कि बैठकर के आप उपवास होता है, विश्व करो, पर अपना चित्त अगर खाने पर है तो उसे हटाना है । मैरा चित्त कहां है ? इसको देखना ही तपस्विता है । क्योकि चित्त से ही आप अपनी आज्ञा खराब करते हैं । कहां है मेरा चित्त ? मैं क्या सोच रहा हूं ? इस वक्त मैं क्या कर रहा हूं ? ये अपना चित्त अगर आप देखें, अन्तर मन को हमेशा अपने सामने रखे, तो आपका चित्त जो है बो आज्ञा में प्रकाशित हो जाएगा चित्त का निरोध, चित्त का अवलोकन, चित्त का विचार करें । हमेशा मेरा चित्त कहां गया ? इतना । यही तपस्या है कि अपने 10 विचलित चित्त है । मैं बात कर रही हूं और आपका चित्त कहां है ? सो चित्त की ओर नजर रखना | चित्त का निरोध जबरदस्ती नहीं, लेकिन अब आत्मा के प्रकाश में अपने चित्त को देखने से अपना चित्त जो है बो आलोकित हो जाता है । एकाग्र होकर के अपना चित्त देखना चाहिए । जैसे ये खम्बा | इसमें सुन्दर से फूल लगे हैं अब हर कटाक्ष में इनका निरीक्षण हो जाता है । ये सारे मुझे याद है चित्त सा बन गया है क्योंकि चित्त की एकाग्रता है । उसी से ये चित्त बनता है । उसी से परा आपकी स्मृति अच्छी हो जाती है । सब चीज़ पूरी तरह से आप जान सक ते हैं चित्त से ही सब चीज जानी जाती है । लेकिन चित्त अगर विचलित हो तो आप किसी भी चीज़ को गहराई से नही पकड़ सकते । हम देखते है, खासकर बिलायत में, 20 साल के मनुष्य से पूछे तुम्हारा नाम क्या है तो वे काफी देर सोचने के बाद सवाल का जवाब दे सकते हैं जैसे कि उन्होंने ड्रग ले रखा हो । उनके मस्तिष्क का ये हाल असल मैं ड्रग से नहीं हुआ जितना चित्त से हुआ चित्त इतना विचलित हो जाने से कुछ चीज याद ही नहीं रहती । शुद्ध चित्त जो होता है वो एकाग्र होता है और एकाग्र चित्त बो ही चीज लेता है जो लेना है । जो नही लेना है उधर देखता ही नही । उसको दिखाई ही नहीं देता। अपने आप बहां से हट जाता है क्यूंकि बह इतना शुद्ध है कि वो मलिन हो ही नहीं सकता । सहज योग का तप सिर्फ ये है कि मेरा चित्त कहां रहा है । मेरा मन कहां जा रहा है । जब ये तप आपने कर लिया तो आज्ञा को आप लांघ गये । सहस्रार में तो कोई प्रश्न ही नही क्यूंकि हम बैठे हुए हैं । तो अगर आप आज्ञा को नहीं लांघेगे तो सहस्रार में हमें बड़ी मुश्किल हो जाती है । क्योंकि आज्ञा का चक्र बहुत ही ज्यादा संकीर्ण है, उससे खीच निकाला बड़ा कठिन है । तो आज्ञा के लिए जरूरी है कि तप करें और जैसे आप तप करना शुरू कर दें आप अपने आज्ञा को छू लेंगे । नही तो फिर सहज योग में एक साहब बता रहे थे कि एक सहजयोगिनी को कैन्सर हो गया बो आती होगी प्रोग्राम वगैरह में लेकिन चित्त उनका इधर - उधर होगा । ऐसे कैसे हो गया । कैन्सर तो हो नहीं सकता । इसकी वजह ये कि प्रोग्राम मैं आये थे पर कुछ न कुछ अपनी विपदा सोचते रहे । बजाये इसके कि जो कहे जा रहे हैं उसे समझं, अपनी ही अन्दरूनी बात को ही सोच सोचकर आप चली गई उस बहकावे में । और उस बहकावे में आपको कैन्सर की बिमारी हो गई । हम मन से क्या सोच रहे हैं । मन में हमारे कौन से विचार आ रहे है । यही कि हम पे ये दुख है, वो दुख है, ये पहाड़ है । आपको जो आशीर्वाद मिले हैं उनका ध्यान कीजिए । सोचिये, अपने पे कितने आशीवाद सहजयोग मिला है ? हम कोई विशेष व्यक्ति है । कोई ऐसे वैसे नही है कि अपने चित्त को बेकार करें दिल्ली शहर में करोड़ों लोग रहते हैं, कितनों को हैं । | हमें सहज योग मिला है । इसकी धारणा होनी चाहिए अन्दर से । और उस अन्तर मन में उतरना चाहिए । उसी से झूठी मर्यादाएँ सब टूट जाएंगी |। अगर आप नही तोड़िये गा तो किसी न किसी तरह से ऐसे कुछ अनुभव आयेंगे कि अपने आप ये मर्यादाएं टूटती ही जाएंगी हमारा अपना है । आप कह गे आप दिल्ली वाले हैं । एक दिन ऐसा आये गा कि दिल्ली वाले आपको ठिकाने लगायेंगे । जिस चीज को आप सोचेंगे ये । या आप नौयडा वाले हैं तो नौयडा वाले आपके पीछे बन्दुक लेके भाग्गेंगे । तब आपकी समझ में आये गा कि मैं क्यों कहता हूं मै नौयडा बाला हूं । फिर न घर के न घाट के ये हालत आपकी हो सकती है । उसकी वजह ये कि आपका चित्त ही ऐसा है जो घर का न घाट का । जब तक इस गहराई में न उतरेंगे तब तक आप अपने को सहजयोगी कहैं तो भी मैं मानती नही इस चीज़ को । क्योंकि %3D सहजयोगी का पहला लक्षण ये है कि वो शान्त चित्त होता है । और अत्यन्त सबले । किसी से डरता नहीं । उसका जीवन अत्यन्त शुद्ध होता है । उसका शरीर शुद्ध होता है, उसका मन शुद्ध होता है । और आत्मा के प्रकाश से वो सारी दुनियां मैं तेज फैलाता है । जो आदमी प्रेम नही कर सकता बो हमारे विचार से सहजयोगी बिल्कुल है ही नहीं । आप समझें कि आज होली है । होली के दिन तो हम बहुत मजा उठायेंगे कोई बात नहीं । श्री कृष्ण ने जब कह दिया, खेलो, कूदो, सब लीला है सब दुनियां लीला है । पर लीला के ऊपर जो मर्यादाएं हैं उनको पाने के लिए आज्ञा पर आपको तप करना होगा । जैसे आकाश में आप देखते हैं कि बहुत सी बो तो पहली सीढ़ी भी नही चढ़ा है । इस तरह से अगर पतंगे चल रही हैं और कोई भी पतंग हाथ से छूट जाये तो न जाने बो कहां चली जाए गी । वो ही हाथ आत्मा है । तो अपने चित्त को अपनी आत्मा की ओर रखो । अपने को शुद्ध करते जाना ही सहजयोग ये तप है, क्योंकि अग्नि सब चीज को भस्म कर देती है मैं तपस रूप है । आपने आज हवन किया । उसी तरह से, आपके तप से आपके अन्दर जो भी इस तरह के दु्विचार हैं या गलत मर्यादाएं हैं वो सब टूट जाएं गी । आनन्द पाना आपका अधिकार है और आप आनन्द को पा सकते है और पाया है आपने आनन्द को, लेकिन आनन्द बांटने के लिए अपने अन्दर गहराई होनी चाहिए । अगर आप गंगा में एक छोटी सी कटोरी ले जाएं तो आप सिर्फ कटोरी भर पानी लेके आ सकते हैं, लेकिन जब आप एक गागर ले जाएं तो आप गागर भर के ला सकते हैं । लेकिन किसी तरह आप इन्तजाम कर लें कि पूरी तरह पानी बहुता आए आपके तरफ तो आपके चारों तरफ गंगा ही बहते रहे । तो किस स्थिति में आप हैं उसे देखना चाहिए । क्या आप कटोरी भर पानी ही सहज योग से ले रहें हैं ? क्या आप अपने सीमित आनन्द मैं है ? क्या आप सबके आनन्द के लिए हैं ? और क्या आप स्वयं ही इसका स्रोत है ? तब आपके समझ में आ जाए गा कि होली मनाने के लिए भी गहराई चाहिए । और इस आनन्द का हमेशा उपभोग लेने के लिए भी गहराई चाहिए । इसलिए आज्ञा और विशुद्धि का बड़ा नजदीकी रिश्ता है । ये तो बाप बेटे का रिश्ता है । मुंह बनाए रखना बेकार की बातें करना । या बिल्कुल ही नहीं बोलना इस तरह दोनों तरीके से विशुद्धि खराब हो जाती है । लेकिन दूसरों को सुख देने के लिए अच्छी बात करना । दूसरों से प्रेम जोड़ने के लिए अच्छी बात करना । आपसी लड़ाई झगड़े मिटाने के लिए सुन्दरता से बात करना । इन सबसे विशुद्धि चक्र ठीक होते जाता है । और इस तरह से जब आपकी विशुद्धि ठीक हो जाती है तब फिर आप देखते हैं कि जब मैं किसी से बात करता हूं तो ऊपरी तरह से लोग खुश हो रहे हैं । अन्दरूनी तरीके से नहीं हो रहे । तब आपको ख्याल करना चाहिए कि मेरी गहराई अभी नहीं आई । एक छोटा सा फूल भी अगर कोई शुद्ध हृदय से दे तो उसका बहुत असर सहज योग में हो सकता तो जो पूरे हुदय से कोई कार्य करे । विसी से दोस्ती है । ऊपरी - ऊपरी नही रखो । अन्दरूनी रखो 1 जब तक विशुद्धि में आज्ञा की गहराई नही होगी तब तक आपकी विशुद्धि बहुत ही उथली रह जाये गी । आज्ञा की गहराई होना बहुत ही जरूरी है । गहराई न होने का मतलब यह कि विचार करके उसको तोल करके आप हर चीज़ को करते हैं अगर मैं पांच रूपये दें तो मुझे सौ ल्पये मिल जाएं गे । नाप या ऐसे करना चाहिए तो ये हो जाए गा । नहीं । अन्दर से ही मुझे लग रहा है कि करना चाहिए । मुझे- देना ही चाहिए । मैंने नहीं दिया अभी तक । दिखाने के लिए । या पेपर मैं छप जाए । आपने जो भी करना है हृदय से । जब ये स्थिति आपमें आ जाएगी । तब आप समझ लीजिए कि आपकी गहराई विशुद्धि पर काम कर रही है । और गहराई में जब आप विशुद्धि को प्राप्त करेंगे तब आपका कुछ - 12 - जन हित, जन संबंध और विश्व बन्धुत्व है । उससे पहले नहीं । सो आज इस होली के दिन हमें बो सब चीजें जला देनी चाहिए जिससे हमारा चित्त खराब होता है । जिससे हमारी आज्ञा खराब हो जाती है । तो दोनों चीज । ये चित्त भी साफ हो जाए और आनन्द और बोध में हम लोग होली मनाएं । जिस दिन इसका पूर्ण सामन्जस्य बन जाए गा, दानों चक्रों में एकरूपता आ जाएगी तो सहस्रार पे कोई प्रश्न नहीं खड़ा होगा । । विशुद्धि से ही निकल करके आप जानते हैं कि दोनों नाड़ियां ऊपर जाकर के और आज्ञा पर क्रॉस करती है । जब पर ये दोनों चक्र मड़बड़ करते हैं। विशुद्धि की ओर आपका चित्त जाता है तो श्री कृष्ण की विशेषता आहुलाद-दायनी है, आनन्द देने वाली है, उनको देखते ही लोगों को आनन्द आ जाता है, सो वो आहुलाद -दायिनी शक्ति जो फूलों में है, बच्चों में है ) वो आपके अन्दर जागृत हो सकती है । लेकिन जब तक उसमें गहराई नहीं आए गी तब तक ये आहुलाद । तो इन दोनों का मेल आपको सोच लेना चाहिए । हमारे अन्दर गहराई का आना बहुत जरूरी है और गहराई से किसी चीज का आनन्द देना भी बहुत जरूरी है । राधा जी की शक्ति ( जो बडि -दायिनी शक्ति ऊपरी, जबानी रह जाएगी आप सबको अनन्त आशीवाद । - 13 - तालफटोरा स्टेडियम पब्लिक प्रोग्राम दिल्ली 2.3.1991 परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने की जो रत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । आवश्यकता हमारे अंदर पैदा हुई है, उसका क्या कारण है ? आप कहैं गे कि इस दुनियां में हमने अनेक कष्ट उठाए, तकलीफै उठाई गया है, परेशान हो गया है उसे समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा हैं । तब एक नए तरह के । चारों तरफ हाहाकार दिखाई दे रहा है । कलयु ग में मनुष्य भ्रांति में पड़ मानव की उत्पत्ति हुई है, एक सूजन हुआ है । उसे साधक कहते हैं उसको विल्यिम ब्लेक ने मैन ऑफ गाड' कहा है । आजकल तो परमात्मा की बात करना भी मुश्किल है फिर धम की चर्चा करना तो बहुत ही कठिन है क्योंकि परमात्मा की वात कोई करे तो लोग पहले उंगली उठा कर बताएं गे कि जो लोग बड़े परमात्मा को मानते हैं, मन्दिरों में, मस्जिदों में चर्चों में मुख्द्वारों में घूमते हैं, उन्होंने कीन से बड़े भारी उत्तम कार्य किए है ? आपस में लड़ाई, झगड़ा, तमाशे खड़े किए हैं । इन्होंने कोन-सी बड़ी शांति दिखाई है ? ये कोन से सन्मार्ग से चलते हैं । किसी भी धर्म में कोई भी मनुष्य हो किसी भी धर्म का ा पालन करता है, परमात्गा को किसी तरह से भी मानता हो, लेकिन हर एक तरह का पाप वो कर सकता टोक नही, फिर ऐसे धार्मिकता का क्या । उस पर किसी भी तरह का बंधन नहीं, कोई रोक अभिपायः है ? से धर्म किस काम को ? जब ऐसा हमारे रागने नजारा आ जाता है तो घबरा जाते हैं कि म क्या वात है ? लेकिन, अगर आप इस चीज को एक पैज्ञानिक, तरीके से देखना चाह और दिमाग खोलक र सोचें तो, आपको एक बात समझ में आ जाएगी कि धर्म के तत्व को कसी ने भी नहीं पकड़ा । और धीे हृटते गए । सारे धर्मों में जो इनके प्रणयता थे, जो अवतरण थे, धीरे सब उस धर्म से च्युत होते गए, महागुरु थे, उन्हंने एक बात केही थी कि पहले तुम अपने को खोज लो सदा निवासी, रादा अलेपा, तोहे संग समा। । कहै नानक, "विन आपाचीन्हें मिटे न भ्रम की काई। सो । काहे रे बन खोजने जाए, जो है कुरान में भी लिखा हुआ है कि तुम्हें नानक साहब ने कहा, अनादि काल से य ही वात सबने कही । वली होना है, तुम्हें रूह को जानना है । कीनसा ऐसा शास्त्र है जिसमें ये लिखा नही है । ईसा ने कहा, जब तक तुम्हारा दूरारा जन्म नहीं होता है, तुम सगझ नहीं पाओगे । कबीर ने कहा, 'केसे समझाऊ सब जग अंधा । अंधे को अगर आप बताना चाहे कि ये रंग कोन से हैं, तो वो समझ नही पाए गा । उसकी बताने से फायदा नही । इस तर ह की एक वड़ी रागस्या सगाज के सामने, अपने इस विश्व के सामने आज खड़ी है । इसका एक ही इलाज है कि आखं खुल जानी चाहिए आपकी । जब तक आँख आपकी नहीं खुलेगी, बेकार की बातें हो जाएगी, वात की वात रह जाएगी आपस में लड़ते ही रहे गे इसका कोई इलाज होने ही नही । इसका इलाज है 'परिवर्तन । | बेकार की किता्वे पढ़़ पढ़े करके ओर इस परिवर्तन के लिए कुछ न कुछ तो ऐसी विशेष व्यवस्था उस परमेश्यर ने जरूर करी होगी क्या उसने हमें इस दुनियां में इसलिए भेजा है कि हम अपने जीवन को ऐसे भ्रांति में खो दें ? हमारे जीवन का कोई भी अर्थ न निकले ? कि हम अपना जीवन इस तरह उधर की बातों में खत्म कर दे ? क्या हमारे जीवन का यही एक गृहस्थी, इधर से लड़ाई, झगड़ा घर मूल्य है ? क्या इसका कोई और मूल्य नहीं ? इसकी कोई कीमत नही ? इसलिए क्या हम अमीबा से इंसान बने ? कोई न कोई तो विशेष काम होगा, जिससे परमात्मा ने हमें एक मानव का रूप दिया । और जब यह जागृति आपके अंदर आ गई कि, हमें सत्य को जानना है । अब मैं मानती हूं कि जेसे आपने कहा कि इसकी दुकानें खुल गई और दुकानों में चीज़ बिकने भी लग गई खरीद सकते हैं । हो सकता है, यह सब गड़बड़ियां हो गई और उसमें भी बहुत से लोग बहक गए । पैसे बाले सोचते हैं वो भगवान को । किन्तु, असत्य है तो सत्य होना ही चाहिए । और वो सत्य क्या है ? उसे जान लेना भी एक परम कत्त्तव्य है । उसके बाद सब धर्मों का अर्थ निकलेगा क्योंकि यही सबकी सार तत्व है । उस तत्व को छोड़ने के कारण ही तो ये आज हमारे सामने अनेक तरह की रूकावटें आ गई । और हम धर्म की ओर मुड़ना नही चाहते । दूसरी बात ये भी है कि विज्ञान में धर्म की कोई चर्चा ही नहीं है । धर्म के बारे में कोई बोलता नही और आज सारा जमाना विज्ञान में ही चल रहा है । विज्ञान के सामने फिर हम झुक जाते हैं कि विज्ञान तो कोई धर्म की बात ही नहीं करता है, जिन तत्वों के बारे में बोलता है उन सब में उनके घमे हैं, उनकी मर्यादाएं है । जो सोना है उसका । लेकिन विज्ञान जिन बस्तुओं के बारे में कहता एक धर्म है । वो धर्म नही बदल सकता विज्ञान कार्बन का भी एक धर्म है, पशु का भी एक धर्म है । पशु भी परमात्मा के पाश में है और जो जड़ वस्तुएँ हैं, जितने भी जड़ तत्व है, वो सब परमात्मा के पास इसमे भी उसकी मर्यादा है । ऐसे ही मनुष्य में भी उसकी मर्यादा है । मनुष्य की दस मर्यादाएं, हैं में है जो हमारे अंदर भवसागर में उसका वाक्तव्य है । आदि गुरू दत्तत्रेय से लेकर जो भी महान गुरू हो गए, जिन्होंने अनेक बार जन्म लिया, उन्होंने हमारे अंदर धर्म की मर्यादाएं बिठाई है पर इस धर्म की जब तक जागृति नही होगी, जब तक हम उस धर्म के साथ एकाकारिता नहीं स्थापित कर लेते, तब तक धर्म केवल बाहूय काम हो जाता है । लोग कहते ह हैं, "माँ हम इतनी पूजा पाठ सब करते हैं पर अंदर कोई शांति ही नही । सो आप परमात्मा की बात कैसे कर रहे हैं ? हमने कहा कि अब परमात्मा का अनुभव लेने का समय आ गया है, इसे ले लीजिए । एक सर्वसाधारण बुद्धि से भी सोचिए कि सब चीजों के लिए आप पैसा कैसे दे सकते हैं ? कोई आपसे पैसा माँगता है तो आपको पूछना चाहिए कि इसका पैसा ना कैसे दे सकते हैं हम ? क्योंकि ये एक जीवंत क्रिया है । आप अमीबा से इंसान हुए तो कितना पैसा आपने दिया था ? और जब ये फूल धरती माता ने आपको दिए थे तब धरती माता को आपने कितने पैसे दिये थे ? अगर कोई जीवंत क्रिया है तो उसको आप पैसा कैसे दे सकते है ? धरती माता पैसा समझती क्या ? जब ये बात आप समझ लें कि ये एक प्रक्रिया है जो निसर्ग से आपके पास है और जिसे आप निसर्ग से ही प्राप्त कर सकते हैं, ये हमेशा सहज माने स्वतः होती है । उसके लिए आपके अंदर ही सब कुछ धा हुआ है जैसे एक बीज में सारे पेड़, फल, पत्तियाँ और पुष्प जो कुछ बनने वाले हैं, एक छोटे से बीज में उसका सारा चित्र है । उसी तरह से आपके अंदर भी इसी तरह का पूरा एक चित्र बना हुआ 15 अ টি है । अब ये कहना कि साइंस में ये चीजें नहीं है तो सब चीज विज्ञान में है क्या ? विज्ञान में प्यार की कोई बात है ? बताएँ कि माँ बच्चे से क्यों प्यार करती है ? मनुष्य अपने देश से क्यों प्रेम करता है ? बताएं । । जो आँखों के साथने इसकी कारण विज्ञान दे सकती है ? विज्ञान तो बहुत ही सीमित चीज है दिखाई देता है, वही वो बता सकते हैं, और हजारों चीजें ऐसी है जो बिज्ञान नहीं बता सकती । इतनी सीमित है । क्योंकि वे जो दृश्य हम देखते है उसी को जानने का एक तरीका है, वो विज्ञान से समझ सकते हैं । पर, कहां तक ? एक मिट्टी का कण भी तो हम नहीं बना सकते अपनी तरफ से । जो उधर से बदल दिया । कोई पेड़ टूट गया तो मकान बना दिया, और बना-बनाया है उसी को इधर सोचने लगे बाह वाह हमने क्या काम कर दिया । अरे । मरे से मरा बनाया । कोनसा काम किया तुम ने ? जिंदा काम कर सकते हो ? तो अहकार इस से आता है जब मनुष्य सोचता है कि मैं ये करता हूँ, वो करता हूँ, मैने ये किया, मैंने वो किया दिया, और आगे क्या होगा भगवान जाने । तो विज्ञान की सीमा को देखते हुए आपने जानना है कि इस विज्ञान से परे एक और विज्ञान है । यह विज्ञान परमेश्वरी बिज्ञान है । उसे दैवी विज्ञान कह सकते हैं । लेकिन ऐसा कोई विज्ञान है, ऐसी कोई चीज़ है, इस पर लोग अविश्वास करेंगे । लेकिन यह है, और इसके बारे में हज़ारों वर्षों से, इस भारतवर्ष में अनेक शास्त्रों में लिखा गया है शताब्दी में श्री ज्ञानेश्वर अपने गुरू से इसके विषय में लिखने की आज्ञा माँगी मुझे सर्वसाधारण मराठी भाषा । विज्ञान ने जो किया बो देख ही लिया आपने । सददाम साह ब का क्या हाल कर । इतना ही नहीं, बारहवीं मैं यह सत्य कहने की तो आप इजाजुत दे दीजिए । इजाजत मिलने पर ज्ञानेश्वरी गीता में ये बात उन्होंने लिखी ज्ञानेश्वरी, जो कि गीता पर टिका है, उसके छठे अध्याय में उन्होंने साफ - साफ लिख दिया साफ लिख दिया कुण्डलिनी के बारे में कि ऐसी आपके अंदर शक्ति है जो जागृत हो सकती है । साफ । लेकिन धर्ममार्तण्डों, धर्म के नाम पर पैसा बनाने वालों को क्योंकि कुण्डलिनी जगाना आता ही नहीं था इसलिए उन्होने ज्ञानेश्वरी के छठे अध्याय को बेकार कह कर निषिद्ध घोषित कर दिया । उसके ा । बाद तुका राम, कबीर, रामदेव और नानक साहब ने यह बात, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार और हर जगह कुण्डलिनी के बारे में कहा । उन्होंने बताया कि कुण्डलिनी नाम की शक्ति हमारे अंदर स्थित है । जब ये कुण्डलिनी आपके अंदर जागृत हो जाती है तभी आप चारों तरफ फैली हुई इस परमात्मा की शक्ति, जिसे हम परम चैतन्य कहते हैं, उससे एकाकारित प्राप्त करते हैं इसका संबंध (योग) इसके स्रोत से हो जाता है । जब तक आपका योग ही उससे नही होता तब तक आपका कोई अर्थ ही नहीं लगता है । ये बात बाद में सबको कही गई, बताई गई । जनसाधारण तक, ये बात तब आई । आज तक जो कुछ हुआ है जो कुछ कहा गया है सहजयोग में बो प्रत्यक्ष में, अनुभव से कहा गया । इतना ही नहीं कि इसे आप प्राप्त करें, इतना ही नहीं कि जनसाधारण इसे प्राप्त करे, पर सहजयोगिय्ों के पास ये भी शक्ति है कि वो ओर लोगों को भी दे सकें । ये होना ही था । ये जो विजली आप देख रहे हैं पहले एक कही पर टिम टिमाता हुआ एक बल्ब जला लिया था एडीसन ने, 16 क्योंकि जो चीज इस संसार के उद्धार के लिए, इस संसार को उठाने के लिए है, इसको संपूर्णता में लाने के लिए बनाई गई है वो जरूर आनी ही है । इसलिए वो आई है । और उसके बाद आज संसार जगमग है अब जब हम सत्य को खोज रहे हैं तब हमें जान लेना चाहिए कि सत्य क्या है ? सत्य की खोज क्या है ? संक्षिप्र में सत्य को जानना माने अपने आत्मा को जानना है । उसको जानते ही चारों तरफ अब जानना शब्द जों है, उस पर हम लोग गड़बड़ कर फैली हुई परमात्मा की शक्ति को भी जानना है जाते हैं । जानने का मतलब बुद्धि से नहीं । बुद्धि से तो बहुत लोग जानते हैं । सुबह से शाम तक पाठ चलते रहते हैं । मै आत्मा हूँ, अहम ब्रहमस्मि । और फिर भ्रम में लड़ने भी लग जाते हैं । जानने का मतलब है अपनी नसों पर अपने केन्द्रीय स्नायु तंत्र पर आपको जानना है । इसी को बोध कहते हैं, विद कहते हैं जिससे बेद हुआ । इसी 'न' शब्द से ज्ञान बना उसी से बली हुई, कश्यप हुए । हरेक धर्म में दो, ज्यादा नहीं । ये माने गए लोग होते हैं कि जो आत्म साक्षात्कारी हों । लेकिन एक - दो, एक प कार्य कलयु ग में ही होना था । एक तरफ तो कलयुग का गहन अंधकार, अज्ञान और पहाड़ों जैसा अहंकार और ये पहाड़ों जेसा जो अहंकार है वो रोकता है इसान को । इंसान कभी सोच भी नहीं सकता । हम इस शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं । कि इस कलयु ग मैं हम इस ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं किसी से भी बात कीजिए जवाब मिलेगा हो ही नही सकता, आश्चर्य, असंभव लेकिन, जब हो सकता है तो क्यों न इसे प्राप्त करें ? और ये सहज ही है । सहज 'सह' माने आपके साथ, 'ज' माने पैदा हुआ । ये योग आपका जन्म सिद्ध अधिकार है । सहज का दूसरा अर्थ होता है 'आसान' क्योंकि ये बहुत ही आवश्यक तत्व से भरी चीज है वो होना ही चाहिए । आसान जैसे कि हमारा श्वास लेना बहुत जरूरी है तो बो आसान है । यदि श्वास लेने के लिए गुरू बनना और सब करना आवश्यक हो तो कितने लोग जीयें गे । और ये गुरू बनाने का भी रिवाज बन गया है यहां पर अरे भई। वो तो गुरू बने हैं, तुम कौन हो ? तुम तो अभी भी वही बने हो । तो फायदा क्या ऐसे गुरू को रखने से ? मानों पैसा भी नही लेते । । अच्छी बात है । पर ऐसे बहुत से गुरू हैं पैसे वैसे नहीं लेते, अच्छे हैं बिचारे तुमको कुछ बनाएं गे न तभी तो तुम ही क्यों न अपना गुरू बन जाओ ? बहुत आसान है सहजयोग में आप ही अपने गुरू हो जाते है । आप ही अपने को जान जाते हैं और सारा ज्ञान आप ही के सामने आ जाता है । कुण्डलिनी का जागरण के समय बहुत लोग कहते हैं कि बड़ी तकलीफ होती है, गर्मी होती है और परेशानी होती है । कुछ नहीं होता । क्योंकि कुण्डलिनी आपकी मां है, ये समझ लीजिए । ये आदि अपनी व्यक्तिगत मां है ओर ये हैं शक्ति मां का ही आपके अंदर प्रतिबिम्ब है, ये आपकी अपनी आपकी शुद्ध इच्छा की शक्ति । आपकी मां ने जब आपको जन्म दिया था तो आपको क्या तकलीफे दी बिचारी ने । सारी तकलीफें तो खुद ही उठाई । तो इस तरह की भी बातें बहुत से लोग करते हैं कि । शायद वो नहीं चाहते कि आप कुछ पा लें, या वो जानते ही नही और इसमें बड़ी तकलीफ होती है। तीसरा यह हो सकता है कि वो गलत लोग हों, उनको कुछ मालूम ही न हो । तो हो सकता है वे 17 - ो । आज जो वात में आपके सामने रखना चाहती हूं बो ये लोकिन इसये भी गक ऊँची स्थिति जागृती के कार् की अनाधिकार चेष्टा क.ते ही कि आप अपने को ये समझे कि हम मानव स्थिति में तो आए जिस स्थिति को हम आत्मसाक्षात्कारी क हते हैं। । जिसको हम साक्षात्कारी मानव कहते हैं, जिसको है, द्विज (पुनः अवतरित) कहते हैं । ये एक वास्तविक स्थिति है । जब आत्म साक्षात्कारी आप हो जाते हैं है क्यांतरि ये सव्र निहत है, अंदर ही है, बंधा तो उसके अधिकार, उसकी सारी शक्तियाँ आपको मिल जाती दु आ है तो मिलना ही हुआ । तो पहले से शंका मत करिए । पहली बात यह है कि, आपको जानना साढ़े तीन फुट से । जहां आप ैठे है वहां से चा हिए कि क्राति में, विकास में आप चरम शिखर पे हैं उ्यादा आपको चलना नही । ओर ये कार्य घटित हो जाता है क्योंकि आप साधक है अनेक जन्मों के देना आपके पुण्य है और उन पुण्यों के फलस्वरूप ये आप सहज में ्त कर लेते हैं । मेरा लेना कोई नहीं बनता ये भी समझ लीजिए क्योंकि एक अगर दीप है तैयार और दूरारा जला हुआ दीप है । बड़ा भारी उपकार हो गया ? अगर वो उसे छू ले तो ये दीप जल जाए गा । तो उस दीप का कोन सा क्योंकि ये दीप भी तो दूसरे दीप जला सकता है । इरसी प्रकार सहजयोग में, जब आप इसे प्राप्त करते हैं तो आपकी शक्ति से ही आप अन्य लोगों को भी पार कर राकते हैं । इसी तरह से सहजयोग फैल रहा ं है । ऐसा कहते हैं कि 54 देशों में सहजयोग का कार्य चल रहा है । हालाकि, मै सब देश में तो नहीं है । हम कम तीस देशों में मने देखा है कि याहजगोग कहुत जोरी से फैल गया गई हूं लेकिन, कम से कभी हमें देखा नही था जाना रूस गए थे । तो चौद ह हजार, सोलह हजार से कम लोग नही आए । नही था । सिर्फ फोटो देखकर के बो लोग आए । उन्होंने सोचा कि कुछ न कुछ तो है इनकी शक्त में सब पार हो गए । मैं तो हैरान हो गई कि इन्होंने कभी और सबके । पता नहीं कैसे । मै हैरान । भगवान का नाम नही सुना, कभी इन्होंने कोई धर्म की बात नहीं करी । ये लोग, कुछ भी नहीं जानते, विचारे । ये कैसे पार हो गए ? परन्तु धर्म के नाम पर जो कुसंस्कार हम लोगों के बन गए हैं उनकी कभी र्कावटें आ जाती है तथा मिथ्यावाद को हमें त्याग देना चाहिए । इससे रूस में, जहाँ पर कि लोगों ने कभी वजह से हम में कभी धर्म बदनाम हो रहा है, हमारे ऋषि - मुनी बदनाग हो रहे है । धर्म का नाम ही नहीं सुना । मैने सोचा जैसे कोई एकदम स्ाफ ा। सुथरी कोई चद्दर थी । 'दास कबीर पल जतन से ओढ़ी और एकदग से पार हो गए और गहरे उतरने लगे । बडे आश्चर्ष की बात है । और हम जो सब उसके वारे में सुने हैं, जो सब जानते हैं, बड़े ज्ञानी लोग हैं हमारे ऐसे अगर कोई वाद मैं खड़े हों तो आपको लगेगा कि समुद्र में ही कूद पड़ो । लेकिन, अंदर खोखले हैं क्ल्कुल । ऊपरी विवाद तर ह से जो हमने इतना कुछ जाना है और सगझा है, इस चीज की वजह से हमारे अंदर जो असलियत है उतर नहीं पाती क्योंकि नकलिएत को हमने असली मान लिया है । तो पहली चीग है कि इस तरह के हैं । व अप सगझ जाइए गा कि, ये गलत है । जैसे अभी एक साहव ने बताया पालाने उन्होंने हमको नाम दिया कुसास्कार है वहुत गलत कि 'गुरूओं के चक्कर' । ये भी बहुत है । जो हमारे गुरु थे । अरे भई, नाम देने को गुरू काहे को चाहिए । गधा भी दे सकता है नाम गुरू काहे को चाहिए ? मनुष्य को से नहीं मिल सकता । सत्य को आप खरीद नहीं सकते । समझाना चाहिए कि जो सत्य है, वो हमें पैसे और सत्य जो भी हे मिला है आग तक वो इन्सान होने के ताते हमारे मस्तिषपक में हमारे केन्दरीय स्नाय है, उसी से जाना है । किसी के लेकचरबारजी से तंत्र पर यह हमारे शरीर में नसो की तरह से वह रहा I8 कुछ नहीं होता । ये अंदर की जागृति से ही होता है ओर जब इसकी जागृति हो जाती है तब मनुष्य समझता है कि मैं कितना गौरवशाली हूं । मे कितना विशेष हूं । मेरी क्या व्यवस्था परमात्मा ने कर रखी है । और हर क्षण ऐसा लगता है कि किसी नई दुनियां में आप आनंद मग्न है । जीवन चमत्कारों से भर जाता है । हर सहजयोगी के इतने अनुभव है कि उन्हें लिखने की भी सामर्थ्य उनमें नही । हम जानते ही नही उस परमात्मा के प्यार को, उसकी शक्ति को और जो वह हमें देना चाहता है । हति धर्म के नाम पर उपवास करना, शरीर को कष्ट देना आदि कुरसंस्कार ब्राहमणाचार ने हमें दे दिए आप सोचिए कि कोई पिता अपने बच्चों को कष्ट में देखकर प्रसन्न हो सकता है ? माँ को यदि आपने सताना हो तो आप खाना नही खाते । ये सब पाखण्ड हमारे देश में इतने फैले है कि इन्हें छोड़ना बहुत मुश्किल है । प्रेम के सागर परमात्मा तो चाहते हैं कि आप आनन्द में रहें । आत्मसाक्षात्कार के बिना धर्म का मर्म आप नही समझ पाते, इसीलिए धर्म के नाम पर इतना कष्ट आप उठाते हैं । कितना बड़ा ये विज्ञान है कुण्डलिनी का । कैसे मूलाधार पर बैठी हैं । कैसे ये उठती है । इसकी जागृती जब होती है तो सबसे पहले आपकी शारीरिक व्याधाएं दूर हो जाती है । कैंसर, ब्लड कैसर तक ठीक हो जाता है । ऐसे लोग यहां मौजूद है । पर यह तभी हो सकता है जब नमता और शुद्ध इच्छा पूर्वक आप हम से मांगे और अपनी जागृति करवा लें । यहां दिल्ली मैं तीन डाक्टरों ने इस पर एम.डी. पाई है । इनमें से एक का विषय सहजयोग द्वारा अस्थमा रोग का इलाज था । कुण्डलिनी जागृत होकर हमारे सारे चक्रों को प्लावित कर देती है इसके पोषण से चक्र ठीक हो जाते हैं और हम मानसिक, शारीरिक बौद्धिक और आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं । पर यह भी नहीं कि सहजयोग में आने के बाद आपको कोई बिमारी ही नहीं होती । कारण यह कि सहजयोग में आने के बाद जो ध्यान, धारणा तथा प्रगति आपने करनी होती है वो आप नहीं करते । फिर भी आपके कष्ट बहुत घट जाते हैं । सहजयोग में आने के बाद एक महीने में आप पूरी तरह से सहजयोग को समझ सकते हैहै और उसमें उतर भी सकते हैं । पर जिस प्रकार रोज हम लोग स्नान करके अपने शरीर को साफ करते हैं उसी इसके लिए दस मिनट से ज्यादा नही चाहिएं । ये इतनी सहज, सरल पद्धति है । जैसे भी आप हैं पहले साक्षात्कार पा लीजिए । थोड़ा सा भी प्रकाश प्रकार रोज अपने चक्रों को भी आपको साफ करना पड़़े गा । अगर आ जाय तो काम हो जाता है । अंधेरे में रस्सी समझ कर गर आपने सांप पकड़ा हो और अचानक रोशनी हो जाए तो आप फौरन सांप को फेंक देंगे । इसी तरह कुण्डलिनी जागरण के प्रकाश में आप स्वयं ही सब बुराइयां छोड़ दें गे । सभी तरह के तनावों से मुक्त हो कर आप शांति को पा लेते हैं । तनाव (टेन्शन) रोग आज कल बहुत फैल गया है । पहले ये रोग किसी को होता ही नहीं था क्योंकि लोगों की जरूरते बहुत कम थी और वो बहुत सादा जीवन बिताते थे । पर आज ऐसा नहीं है । 19 "AcA "Ace तनाव से मुक्ति दिलाने के नाम पर बड़ी - बड़ी संस्थाएं बन रखी है और लोगों से लाखों रूपये ऐंठे जा रहे हैं । जब आपकी कुण्डलनी चढ़ जाती है तो आप निर्विचारिता में आ जाते हैं और तनाव अपने आप समाप्त हो जाते हैं । हमारे अन्दर तीन नाड़ियां हैं । कहा है कबीर दस जी ने इंडा, पिंगला, सुषमन नाड़ी रे सुषुम्ना नाड़ी हमारे सूक्ष्म नाड़ी तंत्र (पैरा सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम) को प्लाबिव करती है है । और बायीं ओर ईड़ा तथा दायीं ओर ्पिंगला नाड़ियां बायें और दायें स्नायु तंत्र को प्लावित करती है । पोषण करती बोर्न) है । इस प्रकार हमारे स्वायत्त स्नायु तंत्र (आरटो नोमस नवस सिस्टम) का कार्य स्वचालित (आटो ये स्वचालित पद्धति क्या है ? 'आटों यही आत्मा है । इसके विषय में डाक्टरों को कुछ पता नही । उन्हें बाें और दायें स्नायु तंत्र में अन्तर नही पता । हालांकि अब वैज्ञानिकों का ध्यान इधर जाने लगा है । लेकिन सहजयोग में आप एकदम जान जाते हैं कि जब आप बायी ओर होते हैं आप भूतकाल में रहते अवचेतन में पहुंच जाते हैं, सामृहिक अवचेतन में चले हैं, पिछली बातें सोचते हैं और अन्त में सुप्त जाते हैं । तो ईड़ा नाड़ी का काम यह है कि जो भी काम हम करते हैं उसे वो हमारे पास में भरती 1 इसके कारण जो भी हमारे शरीर में कार्य है वो संस्कार युक्त हो जाते हैं । हमारे सभी अच्छे या बुरे - जैसे भी हों, इस नाड़ी की तरफ से बनते हुए लहरों की तरह बायी ओर को जाती संस्कार चेतन बना है और हमारे वहते जाते हैं । जब से ये संसार बना है तब से ही हमारे अन्दर का सुप्त अन्दर है । उसके बाद हमारे जो अनेक जन्म हुए हैं बो भी उसी मैं हैं । माने हमने पशुयोनी से निकलकर मनुष्य रूप में जो जन्म लिये वो भी इसी रूप में है। और जो पल आया और गया, वो भी हमारी पूरी बांयी तरफ से है । । आज भी एक पल, जो अभी आप यहाँ हमारे दांयी ओर मैं जो व्यवस्था है वो ऐसी है कि जो भविष्य की ओर नजर करे । उसमें हमारा शारीरिक कार्य होता है और जिससे हम भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं - कि कल क्या करना है, परसों क्या करना है । ये सारा कार्य दांयी तरफ से होता है । तो दांयी तरफ से कार्य करते वक्त जो कुछ भी शारीरिक कार्य हमें करने है बो रह जाते हैं क्योंकि हम सोचते ही रहते हैं इसलिए जो लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं उनके लिए आजकल की बहुत सारी समस्याएँ खड़ी हो जाती है । इसका एक कारण यह है कि वो लोग एकागीय है, दांयी ओर के है । दायी ओर झुका हुआ मनुष्य सदा आने बाले कल के बारे में सोचेगा और योजनाएँ बनाये गा । आज तक कभी कोई योजना ठीक हुई है ? योजना की असफलता से निराशा ही हाथ लगती है । तो हर बक्त भविष्य के बारे में सोचने वाला व्यक्ति दांवी ओर को होता जाता है । ऐसे आदमी को भी बहुत सारी बिमारियों हो जाती हैं । पहली बिमारी उसको लीवर की हो जाती है दूसरी बिमारी लीबर की गर्मी की है जिसकी वजह से अस्थमा की विमारी हो सकती है एसे मनुष्य को दिल का दौरा आ सक ता है, अंगघात हो सकता है । लीवर की गर्मी जब नीचे की ओर जाती है तो ऐसे आदमी को जानलेवा गुरदा रोग हो सकता है । उसे कञ्ज के रोग भी सकते हैं । जब 20 - है । और की विमारियां हो नाती हमारे अंग आलसी हो जाय, (लेथार्जक) हो जाप उस बक्त हमें दांवी दांयी ओर का आदमी दूसरों को सताताहै और जा बायी और का होता है वो अपने को सताता है । कभी उसका हाथ टूट रहा है और कभी पर कभी उसे जोड़ों का दर्द हो जाता है । तत दिन अपने लिए रोता ही रहता है । एन्जोइना (हृदय शूल) भी बायीं और का रांग है । दिल का दोरा दूसरी चीज है बाबी होती जाती है । ये बिमारियां डाक्टर लोग ठीक नहीं कर सकते । ओर के व्यक्ति की नांत पेशियां क्षीण ये बिमारियां सहज में हो ठीक हो सकती है । फिर ऐपीलप्सी (मिरगी) का रोग है । किसी - किसी का तो दिमाग खराब हो जाता है इस तर ह की सारी मानांसक विमारियां जो कि शरीर पर दिखाई देती है वो । पागल आदमी को कभी दिल का दौरा नही पड़ता क्योंकि वो बांयी आर बांयी और की विमारियों है होता है । इस तरह वांयी और दांवी दोनों ओर की विमारियों को तहजयोग में आप एक साथ ठीक कर स साग से जब कुण्डलिनी ऊपर को पढ़ती है तो आप के चित्त का दांयी और बांयी ओर से खींच कर मध्य में ले जाती है । लैकिन यदि मनुष्य बहुत अधिक वांयी या दांवी ओर का हो और उसी तरफ से अचानक कोई अधिक जार केनि्द्रिय स्नाय तंत्र पर बने किसी चक्र पर पड़ जाय तो यह चक्र टूट भी सकता है और मनुष्य का सम्बन्ध पुरे में ल्दंड से टूट सकता है । और हो गई कंसर जेसी बिमारी आपको । इस तरह के रोगों को मनांद हिक (साई को सामेटिक) रोग कहते हैं । इन विमारियों को डॉक्टर लोग ठीक नही कर सकते हैं परन्तु सहजयोग नें इन्हें डीक करने के आसान तरीके हैं । सहजयोग नें सकते हैं सुषुम्ना मुलभूत सात चक्र है । इन्हें ठीक करने से ज्यादा कुछ करना ही नहीं है । जिस ओर वहुत आसान है । कोई पेड़ यदि बिमार है। कर उसकी जड़ां का इलाज करना होगा। उसके पत्तों का इलाज करने से कोई फायदा नहीं । अपने रोगों को ठीक करने के लिए आपको अपने मूल में उतरना होगा । सुक्ष्म बनना होगा । इसके लिए आपको ओर तीन नाड़ियां उसके नूल नें उत्तर ता का रोग हो उसका इलाज कर लो । बितेट आत्म साक्षात्कार चाहिए । पर आजकल इस पर कोई विश्वास ही नहीं करता । अपनी आंख को देखिये, क्या कमाल का कैसरा है और आपका दिमाग क्या कमाल का कम्प्यूटर है । आप क्या कमाल के बने हुए । जब आत्म साक्षात्कार द्वारा सभी लोग उस है । इसकी जो आत्मिक चीज है उसके ज्ञान को प्राप्त करें 'कैवल ज्ञान को प्राप्त कर लंगे तो सब झगड़ समाप्त हो जाये गे । बही सत्य है और बही परमात्मा का प्रेम भी है । आपकी कुण्डलिनी ऐसी उठती है ' शोभना सुलभागति' बड़ी शोभा से बड़े आराम से धीरे धीरे उठती है । किसी की खटाक से भी उठती है । पर लेकिन आपको पता भी नहीं चलेगा क्यांकि यह चारों तरफ फैले हुए परमात्मा के प्रेम का कार्य है । जब आप पार हो जायें गे तो बातावरण में छोटे छोटे से, कोमा के आकार के, कण चमकते हुए दिखाई देते है । यही सोचते है, सब जानते है, संयोजन करते हैं और सबसे बड़ी बात है कि ये प्यार करते है । प्यार के इतने सुन्दर इतने सुलभ इतने मनभावन संयोजन को देखकर आप आश्चर्य चकेत रह जायें गे । और सोचेंगे कि मेरे जीवन की सारी योजना पहले ही बन चुकी है । लंदन जैसे शहर में जहाँ हजारों लोग बेरोजगार है वहाँ पर आश्चर्य की बात है कि एक भी बेरोजगार तहजयोगी मिलना मुश्किल है हम समझ जाते हैं कि जब सारा ही हम येकार में पुरेशन हो रहे । है । उसका प्रत्यक्ष हो जाता है । केवल इन्तजाम वी करने वाला है तो - 21 - इमके लिए आपके अन्दर पक कु्डलिनी का जागरण आपको अने ऊपर नियय कोना आ । यह। होना आवशय। । । ना ऐमी हो जाय कि आपमे वताया कि आपके मन की रचना हरगी हो जाये f । गव क। सात्कार पाने की इ् त ो जाये । उस की मत आप अकि । चीज है । नहजयोग की वहाने के लिएहुत लोगो ने त्याग किये उन्ही की मेहनत से आज सहजयोग कि यह स्थिति आ गई है कि आपको विना किसी मेहनत के फल प्राप्त हो जाती है । इसलिए मां का आपसे अनुरोध है कि संदिह को छोड़कर अपनी जागृति को प्राप्त कर लें । यह नहीं सोचें कि ये वेकार की ईश्वर आपको आशीवादित करे । दूसरा सार्वजनिक कार्यक्रम ताल कटोरा स्टेडियम दिल्ली-3.3.1991 परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साह ब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैंने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी धीरे एक एक चक्र हमारे एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहृम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और इस कृतयु ग के बाद ही सत्य है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जखूरी था । जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो गया है । अब इस कृतयु ग का अनुभव आपको साक्षात्कार के बाद आये गा । हर पल आये गा । आपको आश्चर्य होगा कि ब्रहृम चैतन्य का कार्य कितना सुन्दर, अनुपम और ईमानदारी का है । इसमें कही कोई गलती नही, इसमें इतना प्रावीण्य है, इतना कुशल है कि आश्चर्य होता है कि ये किस तरह कार्य करता है । तो अब आपका एक कार्य है कि आपका संबंध उस ब्रहुम । इस कृतयु ग में ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया यु ग आ सकता है यारद चैतन्य से हो जाये, उसके लिए आपके अन्दर ये कुण्डलिनी शक्ति साट़े तीन बलयों में बैठी हुई है । बलय को कुण्डल कहा है । इसीलिए इस शक्तित को कुण्डलिनी कहते हैं । ये शक्ति आदि - शक्ति का क प्रतिबिम्ब है और आत्मा परमात्मा का प्रतिविम्ब है । आपसे कल बताया था कि आदिशक्ति परमात्मा की शुद्ध इच्छा है और बो इच्छा ये है कि सब जो कुछ जो इंसान के स्वरूप, मानव के स्वरूप में इस संसार में है, सब उनके सामाज्य में आयें और आनंद का उपभोग करें । यही उनकी एक शुद्ध इच्छा वक्त कुण्डलिनी उठ करके और इन छः चक्रों को भेदती हुई ड्रहृम - रन्ध । जिस को भेदती है और उस सर्वव्यापी ब्रहूमचैतन्य से एकाकारिता प्राप्त करती है उस वक्त क्या चाहिए । सबसे पहले जैसे आप लोगों में से बहुत लोगों को ठंडी ठंडी हवा जो आपको महसूस हुई, जिसका बोध हुआ, यही ब्रहूमचेतन्य है । कुण्डलिनी जब ऊपर चली आई तो बहां से भी आपको ठंडी क्या घटित होता है वह जान लेना ठंडी हवा सी लगती है, ये ठंडी ठंडी हवा का एहसास हुआ । यह तो बाहुय की चीज हुई जिससे कि आप जाने लें कि आप पा गए हैं । इसे हम आत्मसाक्षात्कार कहते हैं । उसकी शुल्आत हो गई किन्तु का 23 आत्मा क्या है ये जान लेना चाहिए । मने कहा है कि आत्मा आपके हृदय में प्रतिबिम्बित होती है । आत्मा सिर्फ एक प्रतिविम्ब मात्र हमारे सारे कार्य को देखने बाला एक दृष्टा है। अभी तक उससे हमारा कोई संबंध नहीं । न बह देखता है और न ही उसका प्रकाश हमारे चित्त में है । हमारा चित्त अब भी अंधकार में ही है । तो इस आत्मा का स्वभाव क्या ? वह जान लेना चाहिए । वो जानते ही आप जान जाये गे कि इस आत्मसाक्षात्कार से आप क्या प्राप्त करते हैं । पहले तो जब कुण्डलिनी इन चक्रों में से गुजरती है तो आपको अनेक प्रकार की नई -नई उपलब्धि होती है, जैसे शायद डॉक्टर साहब आपने बताया क होगा कि क्या-क्या उपलब्धियोँ होती है लेकिन जब आत्मा का प्रकाश आपके चित्त में आ जाता है तब आप आत्मा का इस स्वरूप में जो कार्य है उसे प्राप्त करते हैं । और उसका सबसे बड़ा कार्य यह है कि फर्क उसके प्रकाश में आप केवल सत्य को जानते हैं । मैं कहूं सत्य को नहीं 'केवल सत्य को । इसका समझे आप ? जितने मुँह उतनी बात होती है । जितनी आँखे उतना देखना होता है । किन्तु 'केवल सत्य ' यह होता है कि जब इसे आप प्राप्त कर लें तो सब लोग एक ही चीज को जानते हैं और उसमें दूसरी शक्ति है कि ये केवल ज्ञान को देखती है जैसे कि समझ लीजिए कोई आदमी कहे गा कि ठीक आप कैसे जानियेगा कि ये असली ये एक फोटो हे या एक मूर्ति है या एक साधु है ये असली है । हैं कि नकली है ? इस तरह से आप इसे जान सकते हैं कोई अगर कहता है कि ये असली है, कोई कहता है नकली है, उसकी कोइ पहचान नहीं, उसका कोई ज्ञान नही, तो फिर वो जानने के लिए कोई मार्ग भी नहीं । एक ही मार्ग है कि 'केवल ज्ञान स्वरूप' जो आत्मा है उसके प्रकाश में हर चीज को देखना चाहिए । उस वक्त आप उस आदमी की ओर या उस फोटो की ओर या उस मूर्ति की ओर हाथ करके पूछे - दोनों हाथ आत्म साक्षात्कार के बाद, कि क्या े सत्य है ? ये गुरू सत्य है ? इतना ही पूछना है बस । ऐसे पूछते ही आपके हाय में उस सत्य के दर्शन हो जायें गे । आप जान जाये गे अगर बो सत्य ठंडी हवा चल पड़े गी । जैसे कल यहाँ पर शिर्डी के श्री साईनाथ के बारे में है तो आपके हाथ में ठंडी किसी ने पूछा कि माँ शिर्डी के साईनाथ क्या सच्चे थे ? मैने कहा हाथ करो मेरी ओर, एक दम उनके हुने लगी । ये कुछ बातें शास्त्रों में भी लिखी गई हैं ये जो हाथ में जोर - जोर से ठंडी ठंडी हवा बह कहा है कि परमात्मा है । आजकल तो ऐसे भी लोग हो गये हैं जो कहते हैं कि परमात्मा नही है । ये कहना तो बड़ी अशास्त्रीय ओर अवैज्ञानिक बात है कि परमात्मा नहीं है । आपने खोजा है ? आपने जाना है ? बगैर देखे ही आप कह रहे हैं कि परमात्मा नहीं है । जानने के बाद आप कह तब तो कोई बात भी है । लेकिन अगर आप पूहछे कि परमात्मा है ? एकदम आपके हाथ में ठं०डक सी चलेगी । यदि आप सहजयोग में काफी उतरे हों तो ऐसे लगेगा जैसे ऊपर से नीचे तक गंगा बह रही हैं । एकदम से आदमी शांत हो जाए गा । सो पुरी तरह से जिसे हम केवल ज्ञान क हते हैं वह आप प्राप्त करेंगे । शुरूआत में जब तक पूरी तरह से आप नाव में नहीं बैठे तो हो सकता है कि डगम ग हो, लेकिन जब आप पूरी तरह से उसमें जम जाते हैं तो आश्चर्य होता है कि छोटे ये कच्चे ने ( छोटे बच्चे भी बता सकते हैं कि *मां वह योगी अंग्रेज क्च्चे ने) फोन उठाया और मुझसे कहा साहब कैसे हैं ? अभी एक नहीं है, वह आपसे बात करना चाहता है ये कैसे जाना ? ये चैतन्य जो है उसका आपको बोध होता है। - 24 ल कल मैने आपको बताया कि बोध होने का मतलब होता है कि केन्द्रीय स्नायु तंत्र पे, अपनी मज्जा संस्था पर आप जानते हैं ये कहने से नहीं कि ये ऐसा है, वैसा है । जैसे आप अब देख सकते हैं कि यहाँ एक सफेद चढ्दर बिछी हुई है, सब लोग देख सकते हैं कि यहां एक सफेद चद्दर बिछी हुई है, उसी प्रकार आप जानते हैं अपने सैन्ट्रल नर्वस सिस्टम फ़िर बताने की जरूरत नहीं, केहने की जरूरत नहीं पे कि सत्य क्या है और असत्य क्या है । बुद्धि । सो सत्य को जानना है । से नहीं हो सकता । अगर बुद्धि से होता तो इने झगड़े क्यों खड़े होते ? कही साम्यवाद है, कही पूंजीवाद, कही प्रजातंत्र है कही राकस राज्य ( डेम्नोक्रेसी) । ये सारे वाद झूठे है, किसी में भी सत्य नहीं क्योंकि ये सिर्फ हर एक की अपनी धारणा है और उस धारणा को सत्य मानकर लोग उससे चिपक गए । जैसे हमारी बात लीजिए, आप सब ये कहंगे कि हमारे पास जब सब शक्तियां है तो हम तो बड़े भारी सारी शक्तियां हमारे पास हों तो हम तो बहुत बड़े कैपटलिस्ट है ही परन्तु बहुत ही बड़े कम्युनिस्ट भी हैं क्योंकि बो शक्तियां सबको दिए बगैर हमें चैन नही य (कैपिटलिस्ट) पूंजीवादी हैं, इस उम मैं भी हर तीसरे दिन सफर करते रहते । हैं । चैन ही नहीं । जब तक दिया नहीं अच्छा ही नहीं लगता । देने की शक्ति कम्युनिज्म से नहीं आती और पाने की शक्ति कैपिटलिज्म से नहीं आती । तो हर चीज में जो सत्य का अंश है उसे जानने कोन दुनियां का एक ही तरीका है कि इस आत्मा को प्राप्त करो । तब आप समझ जायें गे कि कौन में आज तक हुए जो कि आत्मसाक्षात्कारी थे । कौन सी धारणाएं सत्य है कोन सी झूठ है । कोन सा हिस्सा धर्म का ठीक है और कौन सा झूठ है । कौन से शास्त्र में कोन सा सच लिखा गया है और कौन सा झूठ । कौन सी बात इसमें असलियत है ओर बाकी नकलियत । जिसे कहते हैं पर्दाफांश कर देना । ये सिर्फ आत्मा के प्रकाश में ही घटित हो सकता है और दूसरी बात कि आपका जो चित्त है आपका चित्त जिसे ध्यान (अटेन्शन) कहते हैं, ये इस प्रकाश से जब प्लावित होता है, इसका पोषण होता है, जब इस प्रकाश से भर जाता है तब जहां भी चित्त से कार्य कर सकते हैं। घुमाइये जहां भी नजर करिए एक कटाक्ष-मात्र से भी आप बैठे कहीं भी दुनियाँ में जो चीज हो गई है, जो । और यहां बेठे बहुत लोग हो गए हैं और जो लोग हैं, किसी के बारे में भी आप जान सकते हैं । ऐसा ये कम्यूनिकेशन है बहुत ही कुशल । आजकल के जैसे नहीं कि टैलीफोन ही नहीं लगते य बेठे आप जान सकते हैं कि किस आदमी में क्या बात है, कोन सा चक्र उसका पकड़ा है । व्यकि्त की बुराई तो बाह्य चीज है, लक्षण है, अंदरूनी चीज ये है कि उसके कौन से चक्र पकड़े हैं । यहां बैठे यहां वैठे बैठे ही आप ।। त उसके चक्र ठीक कर सकते हैं । लेकिन ये कम्यूनिकेशन पूर्णत्या दृढ़ हो जाना चाहिए । एक चित्तमात्र से आप इतना कार्य कर सकते हैं । और आपका चित्त जो है वह एकाग्रता से सब देखता ही रहता है । बस देखता है । मैने आपको कल कहा था कि किसी चीज को देखते हुए सोचने की कोई बात नहीं । देखते बनता है, कितने प्रेम से यह सजाया है, यह भी सोचने की बात है १ या किस कलाकर ने अपनी कला का आनंद यहां भरा है, यह भी सोचने की बात है ? वह जो कुछ सम्पूर्ण में सोचने की बात है । बह जो कुछ सम्पूर्ण में उसने यहां दिया है बो सारे का सारा चैतन्य बनकर के झरने लगजाता है ओर बस आनंद के सागर में मनुष्य डोलायमान रहता है । जिसे हम शुरूवात में कहते हैं कि निर्विचार समाधि प्राप्त हुई । - 25 - हठ योग में जिन लोगों ने सिर्फ व्यायाम करना जाना है उन्हें जानना चाहिए कि व्यायाम एक बहुत थोड़ी सी चीज है । पातांजली का अगर आप पातांजल शास्त्र पढ़े तो उसमें समाधि की ही बात की हैं, पहले निर्विचार, फिर सबिकल्प, फिर निर्विकल्प समाधि । इस तरह से उन्होंने इसकी तीन दशायें अवेयरनेस) दिखाई है, वही आपको सहजयोग में प्राप्त होंगी । समाधि का अंग्रेजी में अर्थ हो सकता है ( चतना, कि आपमे एक नया आयाम, एक नया डायमेन्शन आ जाता है जहां आप बुद्धि से परे उठकर के हर चीज को समझने लग जाते हैं । सहजयोग में आपने सुना होगा कि बहुत से (म्यूजिशयन्स) संगीतकार हैं, बहुत से (आर्टिस्ट) कलाकार हैं (जो बड़े मशहूर आजकल हो गए हैं) यो सहजयोग में आते ही बहुत बड़े आर्टिस्ट हो गए पहले कुछ भी नहीं थे । उसकी वजह यह है कि उनका चित्त इतना सकाग्र हो गया कि जिस भी चीज को देखता है उसका पूरा का पूरा हिसाब -किताब उसका पूरा चित्त ही मानों उसके मनस्पटल पर छा जाता है । बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूलों में पढ़ने में बहुत कमजोर होते हैं, सहजयोग में आ के अब्वल आने लग जाते हैं । यहां तो रिकार्ड है कि एक लड़का 23 साल के अंदर सी. ए. हो गया । अभी तक कोई नहीं हुआ ।। सब चीज के रिकार्डज है । इंजीनियर्स जो कभी इतनी उमर में नहीं हुए थे वे हो गए । सहजयोगी बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत तेज हो जाते हैं । स्वभाव में उनके अदब आ जाता है, अपनी संस्कृति की जो विशेषता है कि हमें अदब करना चाहिए । सुबह से पृथ्वी तत्व को हम नमस्कार करते हैं कि तुझे हम पैर से छुएं गे, क्षमा करना । यह जो अदब है पहले सिखाया जाता था, बताया जाता था, देखा जाता था । अपने आप ही मनुष्य नम हो जाता है । उसमें एक जिन बातों के बारे में धार्मिक पुस्तकों ऐसे लोग जो मशहूर गुस्सेल अदब आ जाता है और उस नमता में बड़ा मजा आता है । जिन में लिखा गया है वह सारे ही तत्व हमारे अंदर जागृत हो जाते है । ऐसे -ऐ थे, गुस्सैल तो क्या कहना चाहिए बहुत ही ज्यादा उपद्रवी लोग थे, जो हाथ में हमेशा तलवार बंदुक लेकर घूमते थे, वो भी हमारे इतने प्यारे बेटे हो गये कि लोगों को समझ ही नही आता कि इनको क्या हो गया है । ऐसे बदल कैसे गये ? ये इतने सुन्दर कैसे हो गए ? तो अपने अंदर का जितना भी गौरव है जितनी भी विशेषताएं हैं जितना भी प्यार है, वो सारा ही एकदम उमड़ पड़ता है और मनुष्य शांति में स्थापित हो जाता है । जैसे एक चक्का है, चक्र है, पहिया है वह घूमता है लेकिन उसका जो मध्य है जो धुरी है वह शांत रहता है । आप चक्के की उस परिधि से निकलकर के मध्य में आ जाते हैं । ये आत्मा आप ही के अन्दर बसा हुआ आपका अपना है और कुण्डलिनी भी आपकी आपनी शक्ति है । आत्मा के प्रकाश में जो सबसे बड़ी चीज देखनी है वह है आनंद । आनंद में सुख ओर दुख नहीं होता । एकमेव चीज निरानंद, सब निराआनंद ओर उस निरामंद को आप अपने आप ही प्राप्त कर लेते हैं । जैसे कि सब कुछ ड्रामा चल रहा है चारों तरफ और फिर भी आप उसमें उलझ जाते हैं गर कोई लड़ रहा हो तो आप उसके साथ लड़ने लग जाते हैं । यदि कोई रो रहा हो तो आप उसके साथ रोने लग जाते हैं । लेकिन जब ड्रामा खत्म हो जाता है तो आपको पता चलता है कि ये तो खत्म हो गया, अरे ये तो ड्रामा था । उसी प्रकार भव सागर पार करके दुनिया के झमेले की ओर आप देखते हैं कि 26 य तो नारा खल है, वे लीला है। क्यॉकि विशान्धर चक्र थी कृप्ण का बात आप समझ सकते हैं । आद फिर सहजयागों गलत काम नही कर रकता । इर से नहीं, बहुत से हैं मुस्ूओं के बताय सारे धम आपके अन्दर जागृत हो जाते हैं । नीग इर से अच्छे हृते हैं, क्योंकि वे अच्छाई का मजा उठाने लग जाते हैं । में मशहूर होते देखा है । अच्छे होने का नजा उठाने लगते मैन ता अंति कंजूस लागों को दानल्व उनके अंदर छपा हुआ दाता उभर आया बाहर । आपती त्रेम । सार विश्व को ये का यह सारा कार्य है। चा दै" परमात्मा का प्रेम निर्वाज्य है, अलिप्त है । जैसे कि एक पेड में उसके अंदर का तत्च सत्व, है । फिर भी किसी एक चीज में अटक पेड़ की हर शाखा पत्ते फूल सबको देता सेब कुछ चहता है । नही जाता है । मान लीजिए कि उसे एक फूल पसंद आ जाय यदि वह सत्व वही अटक जाय तो पड़ एड़ड तो मर जाये गा और भी मर जाये गा । है मरा बेटा, मेरी केटी, मेरा घर, वे ममत्व है । अंत में वही बेटा, बेटी और घर इतना सताते हैं कि अरे बाप रे बाप । अगले जन्म तो बाबा एक बच्चा न हो तो अच्छा है । ये तो सब को अनुभव है । इस अनुभव से जो आपने ज्ञान प्राप्त किया बह बड़ा दुःखदायी लगा होगा । आत्मसाक्षआत्कार से सहज में ही आप जान तो किसी चीज में अटकाव करना ही प्रेम को मारना | न. फूल लेते हैं कि किसी से भी लगाव करने की कोई जरूरत नहीं । जिसके साथ जो करना है वह करना है लेकिन किसी मैं अटकने की कोई जरूरत नहीं । स्वतः ही आपके व्यक्तित्व में बह बात आ जाये गी। । में किसी चीज को मना नहीं करती । परदेश में आप जानते हैं कि बहुत से लोग इरस लेते हैं । यहां भी मैन सुना है थोड़ा बहुत । पर बहां के लोगों में बड़ी ईमानदारी है । वे ढोंगी नहो है शुरू हो नया है बजह य बड़ी रहे, कृष्ण रहे, नानक रहे, कवीर रहे, तुयाराम, सब बड़े । यहाँ पर लोगों में जरा ढोंग है । - बड़ी बारतें हम जानते है हमारे सामने राम बड़े लोग इस देश में आय लक्ष्मण । तो हम लोग यह दिखावा तो हम कर सकते हैं कि दुम सोचते हैं कि चलो कन से कन उन बड़े - बड़े आदशों का भी अच्छे है । मैंदिर में मूर्ति रखेंगे हैं कि सुबह से शाम तक सौ झूठ न बोलें तो वे हिन्दुस्तानी हो ही नहीं सकते हिन्दुस्तानी की पहचान यह है कि झूठ वोलना चाहिए सोचिए करते हैं । हर आदमी अपने को आदर्श बताने की कोशिश करता है । अपने अंदर उसने कभी देखा ही नहीं । ये देखा ही नहीं कि मै क्या हूं ? मैं क्यों झूठ बोलता हूं ? क्या जरूरत है मुझे झूठ बोलने की ? श्री राम की और बीबी को रोज मारेंगे । कोई, - कोई लाग तो ऐसे ये सब चीजें हमारे अंदर इसलिए समा गई कि हम ढोँग ठीक है आप नमता रखें, बोलें ही मत, लेकि न हमारे सामने इतने बड़े - बड़े आदर्श व्यक्तियों की जीवनियां है कि उनको देखकर हमें लगता है कि इनके सामने हम इतने बुरे लगेंगे । इसलिए दिखावा करना अच्छा । चाहे फिर वह धार्मिक हो, चाहे नास्तिक हो, चाहे बह मंदिरों में जाए चाहे मस्जिदों में चाहे वो भगवान को कुछ भी कह द । अपने ये जो साधू संत हो गए हैं उनकी क्या विशेषता थी ? वह क्यों नहीं झूठ बोलते थे ? वे क्यों नहीं दुष्टता करते थे ? उन्होंने ऐसे संघ क्यों नही बनाये जो सबकी मार पीट करें ? उनमें कौन सी ऐसी शक्ति थी कि उनको इतना सताया, इतना तंग किया तो भी वे शांति पूर्वक अपने में ही आनंद विभोर रहते थे ? तो इसमें भी हमारा दोष नहीं । से ति गर हमने ढोंग किए हैं तो उनमे कम ि 27 कम एक वात ती अच्ी है वि हग इन अदर्शो को शे मानते हैं तो मकत हो जाये गे, विदेशों में मैं देखती हूं वहां तो कोई इनसे कुछ सीखने का हमारे लिए है ही नहीं, कुछ भी सीखने का नहीं लेकिन ये दाग छोड़ना पड़े गा। अपनी संस्कृति में कुछ चीजें अत्यन्त युन्दर हैं । | गर अपने ढांग करने छोड़ दिए संस्कृति ह्ी नहीं है । ऐसी नंदी मंस्कृति है कि । इसलिए परदेशी काई आदर्श नही हुए इसलिए ढंग नहीं है । ने ड्रग्स छोड़ है। । क रत में लोगों गहानता में उत्तर जाते राहजयोग में आए औरपार हो ग खुट से । दी जिसके नशे में वेहोशी की हालत में आये थे ्रोग्राम में । शराव छोड़ दी एक रात में । लेकिन । योड़ा टाइम लग जाता है । कुछ लोगों की आदत छूट भी जाती है हिन्दुस्तान में नहीं छूटती जल्दी से । एक साह व सहजयोग में अकर भी तम्बाकू खाते थे । उनसे छूट नहीं रही थी वो आकर कहने लगे माँ पता नहीं क्यों जब में आपके फोटो के साम ने ध्यान करने केउता हूं तो मेरा मुंह ऐसा फूलने लग जाता है । कहीं हनुमान जी तो नहीं हो रहा हूं १ मने कहा कि कोई विशूद्धि का ही कष्ट है । कहने लगे हां विशुद्धि मेरी वहुत दुःखती है । मैने कहा देखिये मैं सच वात वताऊँ ? कहने लगे हें आप तम्बाकू खाते हैं तो आप हनुमान जी जैसे हो ही जायेंगे । तम्बाकू खाना आप छोड़ दीजिए खट से । उनके दिमाग मैं आया मा ने कैसे जाना । उस दिन से तम्बाकू छूट गया । फिर भी साल भर लगा । साल भर तक व ह हुनुगान जी बनते रहे । तक लगा कि सब ठीक हो गया तो सहजयोग में यह भी इलाज है । गर आप ढोंगी पना करेंगे तो चारों तरफ फैला हुआ परग चेतन्य उसका भी इलाज कर लेगा । बहुत बड़ी सजा नहीं देशा थोड़ी सी । एक ऑर साह ब सहजयोग में आये दो साल रहे तो भी सिगरेट पीते थे । कहने लगे कभी पीते हैं । मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि सिगरेट मत पियो, शराब मत पिओ, नही तो आधे लोग ऐसे ही उठ जायें गे । सहजयोग के बाद देखेंगे । तो एक दिन बो गाड़ी चला रहे थे । उनके साथ छः और लड़के घर के गाड़ी में जा रहे थे । अब सात आदमी गाड़ी में कहीं जाकर के एक्सीडंट हो गया । सारी गाड़ी टूट गयी, सव कुछ हो गया सब लड़कों को चोट आई, लेकिन इन महाशय को सिर्फ. विशुद्धि की अंगुली पर चोट आई । जब आप सिगरेट पीते हैं तो दायी विशुद्धि पकड़ती है । तब आये आदि शक्ति की ये जो शक्त्यों है ये कभी - लेकर मेरे पास अंगुली । कहुने लगे माँ आज से सिगरेट छुूट गई । प्रेम से भरी हैं । ऐसे छोटे छोटे तरीकों से आपको वो ठीक करती है । और आप स्वयं ही जानते हैं कि मैरा ये चक्र पकड़ा है । जैसे दिल्ली में जब मे शुरू में आती थी तो लोग कहते माँ मेरा तो आज्ञा पकड़ गया गाने ये कि मैं वड़ा अहकारी हूं, मेरे अंदर अहकार हैं । । लेकिन आप ही माँ इसे ठीक करो क । बताइये अगर आपने किसी से कहा कि तुम अंहकारी हो, सददाग हुसैन से भी कहिए, तो मारने को दोड़े गा बो मानेगा थोड़े ही, कोई नही मानेगा वि मै अंहकारी हूं । पर साक्षात्कार के बाद आप स्वयं कहते हैं । नहीं, अब सारी ही भाषा चक्रा की शुरू हो गयी । चक्रों की ही बात होती माँ मैं वड़ा अहकारी हूं । ऐश है कि मां मेरा आज्ञा पकड़ा है ठीक करो । है । आप एक दुररे को जानने लगते हैं कि इनका क्था पकड़ा है ? एकसाहब सहजयोग के बाद भी वहुत जोर से डांटते थे लड़ाई करते और वाकी सहजयोगी देखते थे । खासकर दिल्ली से कुछ लोग पहुंचे थे उधर इस प्रकार सनुष्य की भाष ही बदल जाती जीर मे हाराप्ट्र में । महाराष्ट्र के लोग जरा दब्ब है । दिल्ली वाले सोचते हैं कि हम राजधानी में रहते हैं सो उन्होंने झाड़ना शुरू कर दिया, ते बुपचान सब खड़े रहे । तो गैने कहा कि तुम लोगों ने कुछ कहा कयो -28 नLEP नहीं ? कहने लगे माँ क्या कहैं इनकी दायी विश्द्धि पकड़ी हुई थी तो बो करते क्या ? राइट विशुद्धि पकड़ी थी तो उनको तो बोलना ही था । हम उनसे बोलकर क्यों अपनी राइट विशुद्धि खराब करते । बोलने दीजिए हर्ज क्या है । तो स्थित प्रज्ञ की जो परि भाषा आपको गीता में बताई है बो मनुष्य के ऊपर है । और जैसे कि विशुद्धि चक्र में बताया कि आपसी प्रेम आये । भी सहजयोगी बन कर जब यहां आते है और महाराष्ट्र के देहातों में घूमते हैं, उनकी झाँपड़ी में बैठ कर के खूब आनंद से गाना गाते हैं मराठी और हिन्दी में बहुत से मुसलमान सहजयोग में आ गए हैं आपको आश्चर्य होगा । और सब गणेश जी की स्तुति करते हैं अकबर करके अपनी विशुद्धि को ठीक करते हैं । तो आपको सहजयोग में मुसलमान भी होना पड़े गा और सिख भी होना पड़ेगा, इसाई भी होना पड़ेगा । असलियत में, नकलियत में नहीं । बाकी सब नकलियत में बैठे हैं । सब धर्मों का जो मजा है उठाइये । ये क्या बेवकूफी है, लड़ रहे हैं । सब धर्मों में इसका मजा है कि ऊंची ऊंची बातें कही हैं । इतनी कुछ हमारी व्यवस्था कर गए उसका मजा उठना चाहिए । एक जमाने में भारत को गुलाम रखने वाले घ्मंडी अंग्रेज और जो कट्टर हिन्दू थे वो भी अल्लाह हो दूसरे का भय, एक सॉँप भी दूसरे साँप से नहीं डरता, कोई जानवर भी अंधकार वश आपस मैं लड़ रहे हो । मैने नही जो एक दूसरे से डरता है । पर इंसान एक दूसरे से बहुत डरता है । और जितना देश सुना प्रब्ल होगा जैसे अमेरिका । अमेरिका में एक अमेरिकन दूसरे से डरता है । जितना वो डरता है वो हम लोग नही डरेंगे । इसकी वजह यह है कि व्यक्तिगत रूप से सबने अपनी अपनी प्रगति कर ली है । व्यक्तिगत प्रगति में मनुष्य अकेला छूट जाता है लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद सामूहिकता में वह पनपता है । जैसे कि आप एक ही विराट के अंग प्रत्यंग हो गये एक ही अकबर के आप अंग - प्रत्यंग हो गये है । सारा संसार आपको मित्र है, एक हाथ को तकलीफ हुई तो दूसरा हाथ फोरन मदद को आ जाता सारा संसार आपकी मदद करने वाला है । ये सब कुछ केवल सहजयोग से हो सकता है । | उत्थान का समय आ गया है । इस उत्थान को आप प्राप्त करें और उसमें जर्मै और अपने आत्मसाक्षात्कार में पूर्णतया जिये । यही आत्मिक आनंद है जिसे आत्मानंद कहते हैं । उसे प्राप्त करना है, उस सुख को उठाना है । सब कुछ आपके लिए तैयार है । पूरा इंतजाम है सिर्फ आपकी मनकी तैयारी हो तो ये कार्यपूर्णतया हो सकता है । सहजयोग में आने के बाद यह जान लेना चाहिए कि अभी भी अंदर चक्रों में कुछ न कुछ दोष है। उसको पूरी तरह पहले स्वच्छ करना है और ठीक से रखना है । किस तरह से करना चाहिए यह आपको सीखना चाहिए । गर आपको अपनी जरा भी इज्जत है जरा भी अपना ख्याल है, जरा भी अपने साक्षात्कार को आप विशेष चीज मानते है तभी आप इसे पा सकते हैं । आलतू फालतू लोगों का यह काम नहीं इसको चाहिए विशेष/जैसे आप विशेष है तभी तो आप यहां आए हैं । लेकिन आपने अपनी विशेषता जानी नहीं । इसे पूरी तरह से जान लें, ये बड़ा भारी काम है । सारें संसार में हो रहा है । हमारे पति भी आप जानते हैं यूनाइटेड नेशन्स में सेक्रेटरी जनरल रहे, और 134 20 देशों में काम किया वह कहते हैं कि सहजयोग बास्तविक यूनाइटेड नेशन्स है । जाते हैं । हर दिसम्बर में हम लोगों का मेला लगता है । आठ -दस दिन हम लोग गणपतिपुले में हजारों आदमी इक़ट्ठे हो कोई झगड़ा नहीं कुछ नही सब आपस में प्रेम से थे कोई झगड़ा । और इतनी शुद्धता । अपने पति के साथ विदेश में रहते हुए मैं देखती हूं कि आदमी किसी औरत के पीछे भाग रहा है वह औरत उस आदमी रहते हैं । इस मर्तबा 56 देशों से लोग आए थे । । नही बच्चों का, स्त्रियों का, पुरूषों का कोई झगड़ा नहीं के पीछे भाग रही है । मुझे समझ नहीं आता । ये सब पागलपन छूट जाता है| मनुष्य एकदम य शुद्धस्वरूप हो जाता है । जैसा हमारा नाम निर्मल ऐसे आप सब निर्मल हो जाइये । ये सब व्याधियों और लालच इनसे आप सब छूट जाते हैं इन्नसे एक दम फारिक हो जाते हैं । मैं आपको कोई बड़े - बड़े आश्वासन नही दे रही। जो आप है इसे आप प्राप्त करें । लेकिन इसमें सामूहिकता से कार्य होना है गर आप कह कि मैं घर में अकेला पूजा करता हूं तो इससे कुछ नहीं होने वाला । इससे आप की गहनता बढ़े गी लेकिन वह रूक जायेगी क्योंकि जब तक पेड़ फैलेगा नहीं तब तक गहनता आयेगी नही और अगर आप सिर्फ फैलते ही गये और गहनता नहीं जोड़ी तो भी आप में असंतुलन आ जाये गा । इसलिए जो संतुलन धर्म का है वह आपके अंदर जागृत होने के लिए है । आपको सामूहिकता में आना है । सामूहिकता में ही यह कार्य हो सकता है । कल भी एक साहब ने बताया यो मैं बर में सब करता ही हं, मैं आपको मानता हूँ तो भी मुझे बीमारी आ गई । मैंने कहा मुझे मानने से कुछ नहीं होगा । आपको सबकी माननी होगी जैसे एक नाखून टूट जाये फिर उसकी कोन परवाह करती है । सहजयोग का आज का तरीका सामूहिकता का है । एक देश ही नहीं सारे संसार के देश इसमें छोटी बातों को हमें बुद्धि से नही छोड़ना सहजयोग से छूट जाये गी । कुण्डलिनी के जागरण से छूट, जायें गी । नहीं तो आप तो जानते हैं कि हम लोगों के दिमाग कैसे है ? छोटे संकीर्ण दिमाग हृमारे बन गए भय के कारण अज्ञान के कारण । प्रकाश में हम जानते हैं कि हम सब एक हैं । तो सारा ही सहजयोग का कार्य प्रेम का है । इस प्रेम की शक्ति को हम आज तक कभी भी उपयोग में नही लाये । सिर्फ द्वेष की शक्ति को इस्तेमाल करते रहे । लोग समझते हैं कि । कोई न कोई बहाना बनाकर उससे द्वेष करो । कोई एक ग्रुप बना लिया, उससे द्वेष करो । लेकिन फ्रेम की शक्ति मानसिक नहीं है, परमात्मा की शक्ति है । और वह समर्थ परमात्मा है । इसकी शक्ति को प्राप्त करने के बाद कौन सी ऐसी दुनियां में शक्ति है जो इसे झुका सकती है ? सारी दुनियां आज आपके भारतवर्ष में आपके चरणों में आ सकती है क्योंकि इसका वरोहर आपका है । आपके पास संस्कृति का इतना बड़ा दान है । बहुत बड़ी सम्पदा है आपके पास । और ये भारत वर्ष साक्षात् योगभूमि है । एक बार हम प्लेन से आ रहे थे । मैने पति से कहा कि आ गए हम बंधे हुए है हमारी छोटी - छोटे द्वेष की शक्ति बड़ी शक्तिशाली होती है। 30 हिन्दुस्तान में । कहने लगे कैसे ? मने कहा देखो चारों तरफ चैलन्य है । चेतन्य कैसे चमक रहा है ? उन्होंने पायलट से जाकर पूछा । उसने कहा अभी एक मिन्ट पहले हम आए है । ये ऐसा अपना भारतवर्ष है । इस पृथ्वी को आप क्या समझते हैं जिस पर आप बेठे हैं ? यहां हजारों साधू संतों ने अपना खून सीचा है । इस पवित्र भूमि पर रह करके आप बहुत आसानी से इस पवित्रता को पा सकते हैं । लेकिन जो कुछ गंद गी इधर उधर इकट्ठी हो गयी है वह छूट जानी चाहिए । इसके लिए गहनता चाहिए । अपने आप से सब चीज घीरे -धीरे छूट जाती है । अब सहयोग दिल्ली में बहुत फेल गया है | और जब मैं यहां पहले -पहले आई थी मारे डर के मेरा सारा बदन संकुचा गया कि मैं कैसे लोगों को सहजयोग समझाउंगी । ओरतें तो फेशन की बात कर रही थी और आदमी नौकरी की बात कर रहे थे । मैने कहा इनके बीच में में कहां चलं और क्या बात करू ? अब देखिए बदल गया जमाना । अब लोग आत्मा की बात कर रहे हैं, प्यार की बात कर रहे हैं । सत्य युग आने में देर नहीं । सब आप ही पर निर्भर है । इसलिए आपसे विनती है कि अगर आपको आत्म साक्षात्कार हो भी जाए तो भी इसको आखिरी चीज नहीं समझना अभी आपको सम्पूर्ण में उतरना है । सम ग्रता में उतरना है । समग्र होना । पूर्ण को प्राप्त करना है और उस पूर्णत्व को प्राप्त करने के लिए आपको थोड़ा सा समय देना है । यहां पर बहुत अच्छे सहजयोगी लोग हैं उनसे पूछ करके आप चल सकते हैं । आप जानते हैं कि है । दरबाजा खुला है, पागल भी अंदर आ ही जाते हैं हर तरह के लोग आ जाते हैं । बहुत से लोग उनको ही देख के भाग जाते हैं । गर वो पागल हैं आप तो पागल नहीं । यहां तो सबके लिए दरवाजा खुला है । बहुत से लड़ाके अंदर आ जाते हैं, बहुत से गुस्सैल आ जाते हैं । हर तरह के लोग अंदर आ जाते हैं आने दीजिए लेकिन आप उनको देखकर भाग मत जाइए ओर बैठकर कोशिश कीजिए कि हम पूरी तरह से इसे ज्ञान को प्राप्त करें और आज का जो महान युग धर्म है इस परिवर्तन का महानकार्य जो कि इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है, वह अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कितना आनंददायी है । यह सोचकर आप लोग सब एकाग्रता से पूर्णतया सहजयोग में उतरें । अपने प्रति एक श्रद्धा रखते हुए, अपने प्रति एक विश्वास रखते हुए कि मैं मानव हूं और मैं अतिमानव हो सकता हूं, इस दृढ़ भावना से आप अपना आत्म साक्षात्कार माँगे और यह कार्य हो सकता है। इस तरह से हमारे पर पूर्ण अधिकार रखते हुए आप इसे प्राप्त हों । आप सबको अनन्त आशीर्वाद । 31 - त नोयडा पन्निलिक प्रोग्राम दिल्ली 4-3-91 परम पूज्य श्री माता जी निर्मला देवी का प्रवचन आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम । सत्य के बारे में लोगों की अनेक कल्पनाएँ और धारणाएँ होती है लेकिन एक पते की बात आपको बताती हूं कि सत्य परमात्मा का प्रेम है । ्रेम ही सत्य है आज तक बहुत कम लोगों ने प्रम की बात की क्योंकि प्रेम का अर्थ वो ठीक से नहीं लगा सके । प्रेम को समझ नहीं पाये । परमात्मा प्रेम मय हूँ और वो सबके और सत्य ही प्रेम है । और वो ही ज्ञान है । लिए प्रेम बांटते हैं । वो रहीम है, बो सबपे रहमत करते हैं वो करूणा के सागर है वो प्रेम के सागर है । ऐसी बातें तो सब ने कर ली । किन्तु ये प्रेम क्या है इसके बारे में खास चर्चा नहीं हुई । उसका कारण यह है कि लोग प्रेम को ममत्व समझ लेते हैं । इसलिए शायद बहुत समझ करके इन सब महानुभावा ने यह जरूर कहा कि परमात्मा प्रेम के सागर है । लेकिन बो प्रेम के सागर है क्या ? सागर को तो सभी ने देखा ही होगा । सागर में हर तरह के भयेकर जानवर रहते हैं और उसकी अपनी कोई है सियत भी नही है । जब चन्द्रमा उसे खींचता है तो उसकी ओर खिंच जाते हैं । तो ये प्रेम के सागर हैं । सारी सृष्टि को उन्होंने बनाया है, मानव को परमात्मा हैं । अन्तरयामी परमात्मा हैं जो सबको जानते ह बनाया है । एक छोटे अमीबा से उठा के इस तरह का बना दिया । उस परमात्मा को हम समझते हैं वो ज्ञान के सागर हैं । पर उनको जो ज्ञान हे बो प्रेम का ज्ञान है । वो जानते हैं कि प्रेम कैसे किया जाता है । हमारे लिए जो प्रेम का ज्ञान है वो संकीर्ण है । सीमित है हमारे लिए हमारा बच्चा हमारा धर्म और हमारा गांव, गांव से थोड़ा बढ़ गए तो अपना देश । इस प्रकार प्रेम में थोड़े से सीमित भाव आएंगे उसमें स्वारथ कुछ स्वार्थ भी । हम लड़े गे अपने लड़के के लिए। हम लड़े गे और किसी चीज के लिए । की भावना होती है । लेकिन परमात्मा का जो प्रेम है वो ज्ञानी है । बो सब कुछ हमारे बारे में जानते हैं । आप क्या हैं ? आपकी क्या परेशानियां है ? आप किस ऊँचाई मैं रहते हैं । आपमें कौन से दोष है । । क्योंकि वो जानते हैं कि इस प्रेम की सब कुछ जानते हैं तो भी वो आपको प्रेम करते हैं। शाक्ति को किस तरह से उपयोग में लाना चाहिए । मनुष्य के प्रेम में कोई शक्ति नही है । परमात्मा के प्रेम में शक्ति है । और वो शक्ति स्वयं ज्ञानी है । जैसे कि एक मां है । वो अपने बच्चों को प्यार करती है । अपने बच्चे को बिगाड़े गी। दूसरे के बच्चे को सताए गी एक बाप है तो वो अपनी पत्नी की बात मानेगा अपने घर बालों को सताए गा । अगर औरों की मानेगा तो बीवी को सताए गा । उसमें संतुलन नहीं । उसमें ये सूझ बूझ नहीं है क्योंकि ज्ञान नहीं है । उसके प्यार की शक्ति में ज्ञान नहीं है । परमात्मा का प्रेम आपके बारे में जानता है और जब भी जानना चाहे जान सकता है । जहां उन्होंने नजर की जहां उनका चित्त गया यो जान जाये गे कि क्या चीज़ है । लेकिन आप तो जान गए अपने चक्रों पर | पर यें भी वो जानते हैं कि इनको ठीक कैसे करना है । और तरीका इतना सुन्दर है और मधुर है कि उसको समझने के लिए हमारे पास दिल होना चाहए जाति की नीची । बुढ़िया थी । उसके दांत टूटे हुए थे दो चार दांत बिचारी के पास थे । जब श्री राम आ रहे थे तो उसने अपने दाँत लगा लगाकर हर एक बेर को चखा । । जैसे शबरी के बेर । शबरी एक भीलनी थी । और खट्टे बेर फेंक कर सिर्फ मीठे 32 रख लिए । उसने वे बेर जब श्री राम को दिये तो उन्होंने उनमें प्रेम की झलक देखी । जान लिया कि ये झूठी चीज़ तो हम किसी की भी नहीं खाते एक भीलिनी के झूठे बेर खा रहे हैं दोनों । लक्ष्मण जी को बड़ा गुस्सा चढ़ रहा था । उन्होंने सोचा कि । और प्यार का दर्शन है । बेर श्री सीता जी ने भी खाये । ये क्या बदतरमीजी है । इतने बड़े साक्षात अवतरण । और ये झूठे बेर खिला रही है जब सीता जी ने के हा कि मैने ऐसे बेर कभी नहीं खाए तब उनका भी जी किया खाने को । बेर खाते ही उनकी गुस्सा उतर गया । एक दम ठंडे हो गए । तो किस तरह से ये छोटी-छोटी चीज़ों से मनुष्य को ऊंचा उठाने का प्रम की ही लहरों में बी ऊपर उठ सक ता है, और कोई तरीका उनको ऊपर नहीं उठा सकता । आप डंडा लेके खड़े हो जाईये । उनसे कहो सवरे वार बजे उठो, नहाओ, सर के बल खड़े हो । ये करो, बो करो । फोज लगा दो । ये परमात्मा ही जानते हैं कि हर आदमी को किस तरह से ठीक करना चाहिए । थोड़ा बहुत हम भी जानते हैं । जैसे एक बार गगना गरि महाराज,जो बहुत शक्ति आई है उनसे जाकर मिल आओ । मेरे पास क्यों आते हो ? जब मैं कोल्हापुर गई तो मैने भी सोचा कि मैं इस महाराज को देख आती हूं । वे बहुत ऊंचाई पर रहते थे । बड़ी चढ़ाई थीं । सबने क हा कि आप तो किसी गुरू के पास नहीं जाते तो मने कहा कि हाथ तो लगाओ और देखो तो सही । उनको चैतन्य की लहरें आने लग गई । जब हम ऊपर चढ़ रहे थे तो खूब जोरों से बरसात हुई । और इन गुरू जी महाराज का, कहते थे, कि इनका बरसात पे बड़ा ही काबू है । और बरसात हुई जा रही है और उनका वश पता नहीं क्या हो गया । जब मैं ऊपर गई तो वो गर्दन हिला के गुस्से में बैठे थे । मैं तो पूरी भीग गई । उनका तो गुस्सा ही नही उतर रहा था । उनकी उनको उठाके लाये ओर सामने बिठाया । कहने लगे "क्या मां, आपने मेरा अहंकार उतारने के लिए ये बरसात की'? मैने कहा 'मुझे व्यूं आपका अहंकार उतारना है'। आप आने वाले हैं मेरे पास, मुझे खबर आ गई । देवी - देवता आके बैठ गये । और आप भीगते हुए मेरे घर पे आये । कितनी शर्म की बात है मेरे लिए । तो मेरा अहंकार तोड़ने के लिए ही आपने ये किया मैंने कहा सच बात ये है कि तुम मेरे सन्यासी बेटे हो । और तुमने मेरे लिए साड़ी ली है । और सुन्यासी से तो साड़ी नहीं ले सकती । लेकिन अब भीगी हुई हूं तो तुमसे लेना ही पड़े गा । 'ये कहते ही उनके आंखों से आंसू बहने लग गए । सारा गुस्सा चला गया और जो बरसात बाहर हुई थी वो अंखों से होने लगी । मां तुमने कैसे जाना कि मेरे पास आपके लिए साड़ी है ? मैने कहा मैने देखा जब तुम प्रयत्न है परमात्मा का । सिर्फ ये गुल्सीले थे, उन्होंने सबसे कहा आदि - दोनों टांगे गई हुई है तो वो चल नही पाते । 1 मैं ने खरीदी तब मैं वही थी' । तब उनकी समझ में बात आई । मैने कहा देखो बेटे । मैं जब आ रही हूँ और मैरे ऊपर से बरसात हो जाए तो सारी सृष्टि में चैतन्य नहीं फैल जाये गा ? सब सुन्दर हो जाये तो क्या हर्ज है कि एक बार में भीग गई । ' तो परमात्मा को समझने के लिए पहले हमें अहंकार को एक तरफ करना चाहिए। अहुंकार की बिमारी जब मनुष्य पर चढ़ जाती है तो उसे पहले गुस्सा चढ़ता है कि हमने ये सोचा था और ऐसे नहीं हुआ । हम ये करना चाह रहे थे, वो नहीं हुआ । जब अहंकार चढ़ जाता है तब परमात्मा इसी प्रेम के ज्ञान से इस तरह से खेलता है कि उस आदमी का अहंकार कम कर दें । इसका इलाज परमात्मा ही कर सकते हैं । इस तरह से करते हैं कि आपको पता भी नहीं चलेगा 33 । अहंकार के कारण, मनुष्य जो वास्तविक है उसे कि ये सब लोग झूठे कि आप में अहंकार है लेकिन आप ठीक हो जाएं गे देख ही नहीं सकता और जो झूठ है उसकी ओर दौड़ता है । किसी ने पूछा मुझ से गुरूओं के पीछे क्यूं भागते हैं, जब वो पैसा लेते हैं जब वो दगा देते हैं, जब उनके शिष्यों ने नहीं पाया । उसकी वजह है कि उन्होंने पैसा बनाया हुआ है तो बो रोल्ज रायस रख लें । फ्रेम को नहीं सोचते । खासकर अमेरिका में भी कुछ क इनमे गुरूओं का अहकार है और यो भी अहंकार का प्रदर्शन करते हैं हर चीज़ पैसे पर चलती है । जो लोग रूपए के पीछे भागते हैं बो परमात्मा के प्रेम को समझ नहीं सकते । पर रूपये वाला सारी रात नही सो सकता उसे चैन नहीं । उसके बच्चे वगैरह खराब जाते हैं । पैसा तो है पर उनका दिमाग ठिकाने से नही जब तक मनुष्य धर्म में खड़ा नही है उसको पैसे का बोझा उठाना आए गा ही नहीं । मनुष्य को निर्वाज्य प्रेम करना चाहिए और ये सोचना चाहिए कि परमात्मा ने गर मुझे रूपया दिया है तो मैं इसका क्या करू जिससे मुझे लाभ हो । असल लाभ हो । मैं ऐसा कौन सा काम करूं जिससे मुझे पुण्य मिलेगा । पर पैसा भगवान के दरबार में नही चलता । परमात्मा को पैसा । पैसा इनंसान ने बनाया है । पसे के वजह से मनुष्य धर्म को छोड़े हुए है और हर तरह की ऐसी क्रियाएं करता है जो मनुष्य को लज्जित कर दे । ऐसे आदमी का भी मान बहुत थोड़े दिन के लिए है । सब लोग उसकी पीठ के पीछे बुराई करते हैं । मनुष्य उसी की इज्जत करेगा जिसमें समझ नही आता असलीयत में प्यार है, धर्म है । जैसे एक पीर के मजार पर अकबर बादशाह के जमाने से अभी तक दीया जल रहा है । आज भी संसार में आप उन्हीं लोगों के नाम सुनते हैं जिन्होंने इस तरह का जीवन बिताया निर्मल स्वल्प था जो बाहर से अन्दर से हर तरह स्वच्छ, सुन्दर, । क्योंकि परमात्मा का प्रेम अत्यन्त स्वच्छ, हमारी इच्छा होनी चाहिए कि हम निर्मल हो जाएँ । और निर्मल है । और सत्य में अगर आप खड़े हैं, कोई सी भी सत्य बात आपने अगर कह दी, तो परमात्मा, उसे सत्य का बड़ी भारी आधार, उसको अपने हाथों हाथ उठाएगा । उसको बचा लेगा । जब हिटलर आया तो वो एक सबक बन गया कि कोई हिटलर न बने । जो हिटलर बनने की कोशिश करेगा उसका वही हाल होगा जो हिटलर का हुआ था । अब जर्मनी के लोग इतने शान्त और कोमल हो गए । उनका स्वभाव इतना अच्छा हो गया कि हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा बढ़िया लोग है जर्मन । सद्दाम का उपर आना, हारना और इस तरह से मुंहीखाना ये भी परमात्मा का काम है । इससे लोग समझ लेंगे कि जो धर्मान्धता है, जो धर्मान्माद में उतरना है कितनी गलत चीज है । ये अन्धापन हमें छोड़ देना चाहिए । इसमें दोष मनुष्य का है क्यांकि मनुष्य ने सक्को बड़े अच्छे से कूड़ा बना दिया संगठित कर दिया । जो जीविन्त क्रिया में विश्वास रखते हैं तो हमारा संगठन प्रेम का है । प्रेम से सब चीज होती है । वोही जब सम्भालने वाले एक बैठे हैं तो हम क्यूं कुछ करें । उनके लोग दौड़ रहे हैं चारों तरफ और अब आप लोग भी खड़े हो गए । आपकी भी मदद कर रहे हैं, आपको भी सहायता दे रहे हैं । आनन्द दे रहें हैं । समझा रहे हैं । बस निश्चित हो जाएं आप । एक कार्य उस प्रेम का ये है कि ये आपको सही रास्ते पर लाकर छोड़े देता रजनीश के पास 25 रोल्ज रॉयस थे। है । जो नहीं आया वो रह गया । जब वो मर गया तो आधे घण्टे में उसे सबसे नजदीक शमशान में फटा फट जला दिया। क्या इज्जत मिली ? ऐसे ही सब गुरू घण्टालों का होने वाला है जैसे हिटलर का, मुसोलिनी का हुआ । सब का और ये हमारे लिए एक मार्ग दर्शक है कि ये य ही होने वाला है क्यकि इसमें परमात्मा का हाथ है । 34 करने से क्या हो गया । उनके रास्ते पर हमें नही जाना है । हमें कौन से रास्ते पर चलना है ? उस रास्ते से कि जब हमारी मृत्यु भी हो तो भी शरीर से हमारा सुगन्ध आए मजार पे हमारे हमेशा रोशनी ये निर्फ प्यार से हो सकता रहे । लोग आके बहां सर टेके । है । और उस प्यार में किसी तरह का स्वार्थ नहीं । किसी तरह छोटेपन की बात नही । किसी तरह की खिचाव नही । अब कहने से कि तुम मोह छोड़ दो। मोह छूटने वाला नहीं । से अगर होता तो सब सर पीट पीटकर चले गए । रोज पढ़ते हैं गीता व गैरह पर कुछ असर तही आता । जैसे थे वैसे ही हैं । ये होगा तभी जब आप आत्म कहने से कि तुम मावा छोड़ दो, माथा छुट ने बाला नहीं । कहने । किताबों में लिखा हुं आ सत्य साक्षात्कार लैंगे सिर्फ आत्मा के प्रकाश में ही अन्दर उतर सकता है । उसके बगैर होता नही। पर आपके अन्दर जो शक्ति जागृत होती है यो प्रेम की शक्ति है । जो मनुष्य सहजयोग में जाकर के भी प्रेम करना नही है कि वो प्रेम जानता वो सहजयोगी नहीं । प्रम एक क्षमा की शक्ति है । सहजयो गियों का पहला लक्षण मय होते हैं । सबके प्रति एक चित्त एक जानकारी होती है । जैसे हम बजार गये तो हर चीज दूसरों की पसन्द कीभावना से खरीदी जाती है । ये जो संसारिक चीजें हैं ये सिर्फ इसलिए हैं कि इनसे अपना छोटी चीजों में कैसे प्यार जताया जाता है ? ये श्री राम ने भीलिनी के लेकिन दर्योधन का प्यार जती सकें । आखिर छोटी बेर खाकर दिखा दिया। श्री कृष्ण भी दासी मैवा नहीं खाते थे के घर जाके खाना खाते थे । पुत्र विदुर है कि प्रेम का आदर करना ही सत्य का आदर करना य एक सहज योगी का लक्षण । है । जब मनुष्य प्रेम करता है तो बो धीरे धीरे निर्मल होता जाता है । उसके अन्दर की सारी मोह, लोभ आदि एक दम से नष्ट हो जाती है । किसी आदमी को मोह होता है क्योंकि उसके अन्दर निर्वाज्य प्रेम नहीं । मद होता है वो अपने को सोचता है कि मैं बड़ा आदमी हो गया हूं । ऐसा सोचने वाला तो पागल होता है । पर जिसको प्यार हो जाता है वो कैसे सोच सकता है कि मैं इनसे कोई बड़ा आदमी हो गया । लेकिन प्यार में हर एक आदमी की बारीकी मालूम रहती है । उसकी चाहत मालूम रहती है । क्या चीज उसको खुश करती है । जब ये परमेश्वरी प्यार आपके अन्दर से बहने लगता है तो सब चीज के बारे में ऐसा कुछ ज्ञान आ जाता है कि जैसे हजारों वर्ष से तुम इन लोगों को जानते हो । जब आप अपने आत्मा मैं उस प्यार को पाकर तृप्त हो जाएं तभी ये हो सकता है । तो सारी तृप्ती ही उस प्यार में है । मानव स्थिति में ये होता है कि जो सबसे बुरी चीज़ होगी बो लाएं गे उपहार में सबसे बाढ़िया अपने लिए, सब से सस्ती दूसरों को लेकिन जब सहजयोगी अपने आत्मा के आसन पर स्थित होता है तो राजा हो जाता है, और छोटी - छोटी चीजों के लिए रोना खत्म हो जाता है । और आत्मा के आनन्द में उसके प्रेम में विभोर हो जाता है । और यही प्रेम हमें आनन्द देता है । चारों तरफ से बरसता रहता है । तो दुखी होने की कोई बात ही नहीं । जब बो परमात्मा हमें प्यार करता है इसका पूर्ण विश्वास हो जाता है । तब कोई चिन्ता नही, कोई परेशानी नहीं, सब सामने चीजें चली आ रही हैं । काम होते जाए गा, आप हैरान हो जाएं गे कि वे सब हुआ कैसे। मैने तो भगवान से कहा भी नहीं, माँगा भी नहीं । मैरे मन में । ओर बाद में ये समझ में आए गा कि इच्छा तक नहीं हुई और उससे पहले परमात्मा ने बात पूरी कर दी इस वक्त मुझे इस चीजू की जलरत थी और मेरे ख्याल में आई नही, पर उनके ख्याल में आ गई । इलनी बारीक चीजों को वो जानते कैसे हैं उनके प्यार के कण (अणु) चैतन्य बनकर चारों तरफ छाए बारीक Inte 35 - ho hoG हुए हैं । जो हर चीज़ को जानते हैं, सोचते हैं, और समझते हैं और परमात्मा के प्यार की समझ अनुसार कार्य करते हैं । परमात्मा ने अपने प्यार की ये सृष्टि चारों तरफ रची हुई है । इसे हम परम चैतन्य कहते हैं । इसे ऋतम्भरा-प्रज्ञा भी कहा है । जिस शक्ति के कारण सारे ऋतु बदलते हैं । प्रझा प्र माने प्रकाशित, चेतित, ज्ञ माने ज्ञान । ये जो सारे रंग बिरंगे फूल खिलते हैं, ये नजारे, आकाश में बापल बदल रहे हैं उसमें इन्द्रधनुषी रंग चल रहे हैं, एक से एक मनोरम दृष्य खेज दिखाई देते हैं । इन्सान के प्यार की जो बड़ी मनोरम छटाएं रोज दिखाई देती है उन्हें देखकर बड़ा सुहावना सा समय चारों ओर घटित होता है । वो ऋतम्भरा-प्रज्ञा है वही ये परम चैतन्य है । ये कौन सी शक्ति है जो ऋतु बदलती हैं ? कभी आकाश में बादल मंडराते हैं । कभी संसार में फूल ही छा जाते हैं, और कभी गर्मियां के जव । ऐसा दिखाई देती है आकाश में जैसे कि कोई बड़ा चित्त सा बन रहा है जबकि सारे पत्ते झड़ जाते हैं । अगर ये पत्ते न झडें तो इस पृथ्वी तत्व को नाइट्रोजन कैसे मिले ? इसलिए और सूर्य की किरणे पहुंचने के लिए पतझड़ होना ही चाहिए । सब चीज के लिए ये सृष्टि समर्पित है । जंगल के सब जानवर भी कायदे में रहते हैं । जहां शेर बैठा हो वहां एक चिड़िया भी नहीं बोलेगी को नहीं मारता । 15 दिन या एक महीने में एक जानवर मारता है । शेर पहले खाता है फिर कायदे से शेर के बच्चे खायें गे, फिर एक के बाद एक सभी जानवर खाते हैं । आखिर में कौआ फिर चील जंगल मैं आईये आपको कही बदबू नहीं आयेगी जाए गा कि इनसान नाम का जानवर घूम गया है यहां से । सो सारी सृष्टि इस परमात्मा के पाा में है, आराम से चल रही है । पर इसीलिए ज्ञान नही है क्योंकि वो पाश में है । इस ज्ञान प्राप्ति के बाद आपको सारी स्वतनत्रता है । स्वतंत्रता इसलिए दी गई क्योंकि बड़ी स्वतंत्रता आपको मिलने वाली है उसे आप जान सकें । सुख की संवेदना और आराम जैसे कि कोई माँ की आचल में छिपा हुआ हो । इसी तरह हर समय लग्ाहाहै । जानकारी के बाद समर्पण होता है । और ऐसा समर्पण उस दशा में पहुंचा देता है जिसे हम कहते हैं प्रेम -मय होना । । शेर भी रोज किसी जानवर । लेकिन चार इन्सान आप जंगल में छोड़ दीजिए पता चल कशिश भी एक चीज़ ऐसी है जो उस प्यार को बांधती जाती है । उस कशिश में आदमी प्यार को ज्यादा महसूस करता है । जैसे कि कही दर्द हो जाए और उसपे कही कोई हाथ फेरे और उससे क शिश ला औराम हो जाए । उस आराम को हम ज्यादा याद करते हैं बनिस्बत कोई ऐसे ही हाथ फेर दे । मनुष्य को बड़ी गहराई में उतार पाती है । और इसलिए जिन्होंने परमात्मा को याद किया, उसकी भक्ती रही, कशिश रही, उसको खोजते रहा । आप किसी भी रास्ते पर चलें । कोई भी गलती करें इससे कोई फर्क पड़ने वाला नही क्योंकि वो प्रेम का सागर हैं । वो आपको जरूर अपने हृदय में स्थान देंगे । अपनी तरफ खींच लेंगे क्योंकि वो भी प्रेम का आदर करते हैं । इसलिए आज से आप जान लीजिए कि सहज योग मैं सर्व प्रथम प्रेम करना सीखो एक दूसरे से । अगर कोई मुझे ऐसा कह दैता है कि ये आदमी ठीक नही, बो आदमी ठीक नहीं तो तकलीफ सी हो जाती है । लेकिन कोई किसी सहज योगी की तारीफ करता है, तो मेरा हृदय आनन्दित हो उठता है । दूसरों के दोष नहीं देखना चाहिए । दूसरों के गुण देखने से ही हमारे अन्दर गुण आर्येगे । जैसे हम दूसरों के दोष देखेंगे ऐसे ही उनके दोष सीधे हमारे अन्दर आ जायें गे । जब लोग मुझसे किसी की शिकायत करते हैं तो मैं कह देती हूं कि वे तो आपकी बड़ी तारीफ कर रहे थे । और फिर देखो तो दोनों एक दूसरे के गले लग रहे हैं । तो अपनी समझ में - 36 - प्यार को भर दो, अपनी द्रष्टि में "यार को भर दो । अपने जीवन में प्यार भर दो । किसी को प्यार करना भी बहुत बड़ी शक्तिशाली चीज है । और ये शक्ति जो है ये अन्दर से आती है । इस प्यार की जो अनन्त आशीर्वादित शक्तियां है उसको आप समझ नहीं पाय गे । किसी के साथ भी आप प्रेम से यदि कुछ करें तो उसको भूल जाये । अगर याद रखेंगे तो परेशानी हो सकती है । प्यार करने का मजा उठा लीजिए । किसी मतलब के लिए नहीं । सिर्फ प्यार के लिए प्यार हो वही परमेश्यरी प्यार है । आज जो प्यार की बात कही है वो धन्य है । और हृदय से सबको ये प्यार बांटे जिससे सारी दुनियां जान ले कि सहजयोगी जो है ये प्रेम योगी हैं प्रेम में बैठे हुए हैं अत्यन्त मधुर है । परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें । 37 - परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी की दिवस पूजा जन्म दिल्ली 10.3.1991 आज आप लोगों ने मेरा जन्म दिवस मनाने की इच्छा प्रकट की थी । अब,मेरे कम से कम चार दिवस मनाइए गा उतने साल बढ़ते जाएँ गे उम के । लेकिन आपकी इच्छा को मैने मान लिया कि इसमें आपको आनन्द मिलता है । तो ठीक है । लेकिन ऐसे दिवस हमेशा आते हैं । उसमें कोई एक नई चीज हमारे जीवन में होनी चाहिए क्योंकि हम सहज योगी हैं, प्रगतिशील है और हमेशा एक नई सीढ़ी पर चढ़ने का यह बड़ा अच्छा मौका है । सहजयोग में जो आज स्थिति है बो बहुत अच्छी है । जब भी हम देश की हालत देखते हैं तो लगता है कि सहजयोग एक स्वर्ग हमने हिन्दुस्तान मेैं खड़ा कर दिया है । और सहजयोग की हमारी जो साधना है, इसमें जो हम समाये हुए हैं, इसका जो हम आनन्द उठा रहे हैं, ये एक स्थिति पर पहुंच गया है और या पांच जन्म दिवस मनाने वाले हैं लोग । जितने जन्म इसका आधार बहुत बड़ा है । इसका आधार है कि आपने अपनी शुद्धता को प्राप्त किया, अपनी शांति को प्राप्त किया और अपने आनन्द को प्राप्त किया । ये आपकी विशेष स्थिति है जो औरों में नहीं पाई जाती | इसको देखकर सब लोग समझ गए है कि ये कोई विशेष लोग हैं और इन्होंने कुछ विशेष प्राप्त किया है । मैं जहां भी जाती हूं लोग मुझे बताते हैं कि हम एक सहज योगी को जानते हैं, वो बहुत नेक तथा बढ़िया आदमी हैं, उसका जीवन एकदम परिवर्तित हो गया है । उन्होंने अपने को सहजयोग के प्रति पूर्णतया समर्पित कर दिया है ओर उनका सारा कारोबार अच्छी तरह चलता है। उनका कुटुम्ब भी बहुत सुखी है, सब तरह से वे एक आनन्दमय बातावरण में रहते हैं ऐसा मुझसे लोग कहते हैं और फिर कहते हैं मां हमें भी बताओ । मैं कहती हूं आओ आप हमारे मेंदिर में आओ, लोगों से मिलो, उनसे बात चीत करो । आप सब लोगों ने भी सहजयोग को इस तरह से अपनाया है और बढ़ाया है कि कमाल की चीज है । हमें एक बात जान लेनी चाहिए कि हमारे पास जो विशेष शक्तियां हैं वो किसी के पास भी नही आई । आज तक कोई भी कुण्डलिनी का जागरण इतनी आसानी से नहीं कर सकता था । कोई भी चक्रों का निदान नही लगा सकता था । ये किसी को मालूम ही नही था कि चक्रों का निदान आप अंगुलिओं पर जान सकते हैं । । किसी ऋषि बताई कि आप अंगुलिओं पर चक्रों का निदान बता सकते हैं । चक्रों पर बात की है, सहस्रार पर भी किसी शास्त्र में ये नही लिखा मुनी ने यह बात नहीं बहुत कम लोगों ने बात की है । आप लोग इतने सूक्ष्म ज्ञान को इतनी आसानी से प्राप्त कर गए क्योंकि आपने इस पर बहुत ध्यान दिया। और आत्मा के प्रकाश में इस सूक्ष्म ज्ञान को आपने प्राप्त कर लिया । अब आप सहजयोग बना रहे हैं और सहजयोग के जो नियम है उनमे आप बहुत सहजता से आ गए हैं । किसी को मैंने इसमें लकावट करते हुए विवाद नहीं किया और आसानी देखा नहीं, किसी ने मुझसे वाद -38: से सब बातों को मान गए । जैसे कि नैने कहा कि हम बाहुय के जाति, धर्म, भेद आदि को नहीं मानते | अभेद को मानते हैं । हम सब एक परमात्मा के अंश है और उस अंश को उस विराट स्वलूप को जानना चाहिए । उसमें जागृत होना चाहिए । ये जो बाहय मे विकृतियां आ गई हैं इनको छोड़ करके अन्तरतम में हमें अपनी एकता जाननी चाहिए । धीरे आने लग गया । यही आनन्द है जो आपको यहां खींच कर लाता है और हर बार आप चाहते हैं किये धीरे में देखती हूं कि सब लोगों में इसका आनन्द आनन्द हम दुसरों से भी बांट खाएं । जैसे एक शराबी अकेले शराब नही पी सकता उसी प्रकार आप भी । तो अगर एक आ दमी सहज योग मैं आ गया तो उसके सारे अकेले इस आनन्द को नहीं उठा सकते रिश्तेदार सहजयोग में आने चाहिएं । सब मिलने वाले, सब दोस्त आने चाहिए और सब्को सहजयोग प्राप्त करना चाहिए । तो पहला प्रलोभन तो शारीरिक होता है, शरीर की व्यथा दूर हो गई मानसिक व्यथाएं दूर हो गई, और आपसी रिश्ते ठीक हो गए । आपस मैं मैल जोल बढ़ गया, बच्चे ठीक से चलने लग गए, हर तरह की आपकी प्रगति हो गई, यहां तक कि लक्ष्मी जी की भी कृपा हो गई । हर पल, हर घड़ी आप देखते हैं कि आप परमात्मा के सामाज्य में हैं और परमात्मा आपकी मदद कर रहे हैं । इतने चमत्कार हो गए सहजयोग में कि उनको लिखकर निकाल ने की किसी की हिम्मत नहीं होती कहते है मां पहले आप इसे छान लो, जो लिखने वाला हो बही लिखें नही तो न जाने कितने ग्रंथ हो जाएं गे । सामाजिक स्तर पे हम लोगों ने बहुत उन्नति की है । और धर्म में भी हम जम गये हैं । देखिए हममें सच्चाई आ गई है, हम लोग प्यार को मानते हैं और उस पर चलते हैं । कुछ बोलते नहीं लेकिन हमारे जीवन में ये सच्चाई आ गई है ये बहुत बड़ी बात है । आपस में, मैने देखा है, कि सहजयोग में कोई पैसा वैसा नहीं खाता । सहजयोग के लिए कुछ रूपया पैसा दीजिए तो कोई उसे नही खाता । बहुत लोग कहते हैं कि मां ये भगवान से डरते हैं इस लिए पैसा -वैसा नहीं खाते । किन्तु मैं सोचती हूं कि सहजयोग में एक तरह का समर्थ बनना अपने आप घटित होता है । समर्थ - सम माने आप अपने साथ अर्थ बनना आप में जो दस धर्म बसे हुए हैं वो जागरूक हो जाते हैं, और मनुष्य समर्थ हो जाता है । उसको अपने गुण अच्छे लगने लग जाते हैं । उसी में उसे मजा आता है और दुर्गुण से बो भागता है । दुर्गुणी व्यक्ति से या तो भागता है या शान्तिपूर्वक कोशिश करता है कि इसके दुर्गुण भाग जाएं । दुर्गुण निकालने के तौर तरीके भी उसे मालुम है, उसे बो इस्तमाल करता है और बहुत बार यशस्वी हो जाता है उसमें यश पा लेता है । इसी प्रकार आपने देखा है कि कला में सहजयोग ने बहुत कुछ कार्य किया है । बहुत से बा कलाकारों में एक नया आयाम आ गया है, एक नई दिशा आ गई है । यही नहीं, विदेशों में भी मैने देखा है कि कलाकार बहुत सी नई - नई बातें सोचने लगे है । बहुत से आर्टिस्ट, पेटर म्यूजिशयन, सबमें एक नया उत्साह, एक नई धारणा, एक नया विचार प्रगठित हो गया है । समाज के भी बहुत से प्रश्न हल हो गए है । आप लोगों के जो छोटे बो ठीक हो गए और जो गर्म मिजाजू थे वो भी ठीक हो गए, जो बहुत ही ठंडे थे बो भी उठ खड़े हुए । छोटे प्रश्न थे वो भी हल हो गए । जो छोटी तबीयत वाले लोग थे अब ये सारी सेना तैयार हो गई । एक विशेष प्रकार की सेना है । किसी देश में नहीं, आप तो जानते हैं ( ऐसा कहते हैं ) कि सहजयोग छप्पन देशों में चल रहा है । मैं कहती हूं तीस देशों में बहुत ही 39 कार्यान्वित है । वहुत कार्य हो रहा है । और सहजयोग बढ रहा है । सहजयोग को बढ़ाना भी बहुत बड़ी चीज है । जो लोग सहजयोग को बढ़ाते हैं वो बहुत बड़ा परमात्मा का कार्य कर रहे हैं । यो आप संगीत के द्वारा बढ़ायें, कला के द्वारा बढ़ायें या भाषणों के द्वारा बढ़ायें । इस तरह से भी यह बढ़ सकता है । आप सहज योग बढ़ाी रहे हैं । वैज्ञानिक तौर पर भी, जैसे अमेरिका के विज्ञान के लोग हैं उन्होंने बहुत बातों पर लिखने का सोचा हुआ है । ऊपर जिम्मेवारी जे करके, कठिन परीश्रम से यह स्थापित कर दिया है कि सहजयोग एक वास्तविक सत्य है । जब मैं संसार में आई और जब मैने दुनियां की तरफ कजर की तो मैं सोचती थी कि इस अन्धेरे में बहुत से डॉक्ट रोने बहुत कुछ यहां कार्य किया है । अपने मेरी यह छोटी सी रोशनी क्या काम कर पाएगी ? कोई देख भी नहीं पाए गा । किसी से इसके बारे में कहने की बात तो छोड़िये इसके बारे में विचार भी करने के लिए मैं सोचती थी कि क्या फायदा । ये तो लोग इतने अन्धकार में है, अज्ञान में हैं । जिन्होंने ज्ञान भी इकट्ठा किया था वो सिर्फ बौद्धिक था । कि ताबें पढ़-पढ़ कर बौद्धिक बातें सीख गए थे । उनके आगे बात करने से कोई विश्वास किसी को नही होता था । कोई सोच भी नहीं सकता था कि मैं यह परिवर्तन की भाषा कह सकती हूं । लेकिन अब साध्य हो गया और आप जानते हैं कि यह सब कुछ हो गया है । आज की शुभ घड़ी पर मैं देख रही हूं कि अपने देश के ये हालात देखते हुए और जिस तरह से सब कुछः हो रहा है, हमको राजकीय क्षेत्र में भी उतरना चाहिए । जब तक हमारे जैसे लोग राजकीय क्षेत्र में नही आएंगे हमारे देश की हालत ठीक नहीं हो सकती । एक दम सड़ कर ये पता नहीं क्या हो गई है ? इसकी आंच सहजयोगियों के भी आने वाली है । ये नहीं कि आप लोग बच जाएंगे । हालांकि आपको इससे कोई तकलीफ नही होनी, हालांकि आप इसमें निकल आए गें, फिर भी यदि आपको अपने देशवासियों का ख्याल है और अगर आपको अपने बच्चों का ख्याल है तो बेहतर है कि हम लोग ही ा समाज के जो कार्य करते रहे हैं उसे राजकीय स्वरूप दें । और राजनीति में उतर के हम सिद्ध कर दें कि जो लोग नेक हैं, धार्मिक हैं, जो सत्य पे चलने वाले लोग हैं, जिनमें लालच नहीं, ऐसे लोग एक नये किसी भी देश में जाइए चाहे वो प्रजातन्त्र हो चाहे साम्यवाद हो तरह का राजकीय राष्ट्र बना सकते है या कुछ और - डिमोक्रेसी में तो मैने कोई ऐसा देश नही देखा जहां पर बेईमानी न हो । कही कम कही ज्यादा । अनैतिकता खुले आम बहुत जगह चल रही है । यदि आप कम्यूनिष्ट दे्शों में जाइये तो तो अब टूट ही गए हैं सारे वो वहां पर जो लोगों से जबरदस्ती काम कराया जाता है उससे उनकी - स्वतन्त्रता तक चली गई है । इसलिए दोनों तरह से एक तरफ तो सत्ता और दूसरी तरफ पैसा दोनों के पीछे ही सब देशों के लोग भाग रहे हैं । अब हमें अपनी जो सतह है इन जिस सतह से हम सब छोटे कस्बे या फिर वो अन्तरराष्ट्रीय प्रश्न हो, राष्ट्रीय हो या हमारे छोटे चीज की तरफ देखते हैं गावों का हो जब हम अपनी सतह से उसे देखते हैं तो विश्वस्तता की दृष्टि से, उसकी विशालता की दृष्टि से हम लोग उसे देखते हैं । ये खराबियां हम कैसे निकाल सकते हैं । ये खराबियां भी हम लोग बहुत आसानी से निकाल सकते हैं दूसरे उसकी गहनता से देखते हैं कि उसमें कौन सी खराबियां है, और क्योंकि आपके पास बहुत बड़ी शक्तियां है, बन्धन के सहारे आप जानते हैं कि आप बहुत कुछ काम कर सकते हैं और वहुत लोगों को अपने सहजयोग मैं ला सकते हैं । अभी मुझे एयर फोर्स के बहुत से लोग मिले थे, वो कहने लगे कि माँ हमें भी ले लीजिए । हम जानते हैं कुछ सहज योग के लोगों को जो एयर 40 । फिर कुछ पुलिस वाले हैं वो भी हमारे साथ चल फोर्स में हैं और उन्होंने बहुत कमाल कर दिया है पड़े हैं । महाराष्ट्र में 'पुलिस टाइम्स सहजयोग के बारे में सभी कुछ छापता है । इसी प्रकार कुछ अखबार वाले भी हमारे साथ मिल गए हैं और बहुत सरकारी नौकर भी सहजयोग में आ गए हैं । जब उनकी बदली हो जाती है तो सहज योग फैलाते हैं, इसी प्रकार यदि हम राजनीति में उतर जाएं तो राजकीय समस्याओं का हल भी हम निकाल सकते हैं । इस्को सबसे पहले हमे जानना चाहिए कि इस मामले में हमारी जो कुछ भी इच्छा हो यो साफ सुथरी होनी चाहिए सिर्फ देश के हालात ठीक करना चाहते हैं और लोगों तक उनके अधिकार पहुंचाना चाहते हैं । इतना ही नही उनके अन्दर धर्म जागृत करना चाहते हैं जिससे कि हमारा देश बहुत सुचारू रूप से तथा सुन्दरता से आगे बढ़े और सारे संसार के लिए एक आदर्श बन जाय । । उसमें शुद्धता होनी चाहिए । हम इस देश में अनेक शक्तियां हैं, बहुत ही ज्यादा अध्यात्मिक देश है । अध्यात्म की शक्ति को, कोई माने न माने, आप तो जानते ही है । इस देश की शक्तियों को अच्छी तरह से हम अपने इस्तमाल मैं ला सकते हैं । इसमें एक बात और हमें याद रखनी चाहिए कि हमें भारतीय संस्कृति में उतरना चाहिए । विदेशी संस्कृति में अगर हम लोग जाने लग जाएं तो विदेश की जो खराबियां है वो हमारे अन्दर आ जाएं गी । भारतीय संस्कृति का जो शुद्ध स्वरूप है वो आत्म साक्षात्कार के लिए बहुत पोषक है । अगर हम भारतीय संस्कृति में नहीं आएंगे तो कभी भी इस देश का हाल ठीक नही हो सकता । ये तो ऐसा है, जैसे मैं सदा कहती हूं, कि आम का पेड़ यदि आप विदेश में लगाइए तो उसमें न आम आएंगे न सेब । इसलिए जो आदमी भारतीय है उसे भारतीय संस्कृति में ही आना चाहिए । और परदेश में जितने भी सहजयोगी है, आश्चर्य की बात है, हमेशा कहते हैं कि मां हमें भारतीय संस्कृति में आप उतारिए । तो ये बहुत सौम्य संस्कृति है । इसमें सब बच्चे, लोग, अत्यन्त सौम्य है, सहन शील है । इतना ही नहीं धार्मिक है । तो जो शुद्ध स्वरूप भारतीय संस्कृति का है उसको हमें बनाना है ओर उस पर विचार करना है । हमारे घर में भी वो संस्कृति आनी चाहिए । बहुत से लोग मुसलमानों द्वारा हम पर लादी गई पदा प्रथा आदि को भारतीय संस्कृति मानते हैं । ऐसा बिल्कुल नहीं है । दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र की औरतें पर्दा आदि कुछ नही करती । वो सब भारतीय संस्कृति से रहती है । पर्दा हिन्दुस्तान में चल पड़ी थी । औरतों को दबाना उनके साथ दुष्ट व्यवहार बिल्कुल भारतीय संस्कृति में नही है । भारतीय संस्कृति में तो, आप जानते ही है, बहुत - बहुत बिद्वान औरतें हुई हैं । उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों के साथ बाद - प्रथा उत्तरीय विवाद कर बड़ी पंडिताई हासिल की । औरत को अपनी संस्कृति में कभी । जब विदेशों के भी नीचा नहीं समझा गया स्त्री तथा पुरूष, दोनों का अपना अपना स्थान माना गग्ना । लोग हमारी संस्कृति को ले रहे हैं तो क्या अपने लिए जरूरी नहीं कि हम भी अपनी संस्कृति को समझे तथा जाने ? बहुत सी बातों में हम सोचते हैं कि उनका अनुकरण करना आसान है । लेकिन वो लोग सोच रहे हैं कि उन्होंने जो भी गरलतियां की इसका कारण उन पर किसी तरह के अंकुश का न होना था । एक कटी पतंग की तरह वो लोग मनमानी करते और अति पर चले जाते । तब उन्हें पता लगता कि गलतियों के कारण कई बिमारियां हो गई, सारा उनका समाज नष्ट भ्रष्ट हो गया । 41 नैतिकता को हमें समझ लेना चाहिए । और हमारी संस्कृति की नैतिकता हमारा अकुश है। । वो जब तक हमारे अन्दर पूरी तरह उतरेगी नहीं हम लोग असली तरह से सहज योगी भी नहीं हो सकते । क्योंकि यह सहजयोग के लिए बहुत पोषक है । मैं इसलिए नहीं कह रही कि मेरा जन्म हिन्दुस्तान हुआ है और मैं हिन्दुस्तानी हूं । बाहर की अच्छी चीजें भी सीखनी चाहिए । लेकिन भारतीय संस्कृति को यदि आप अपना ले तो वो सब अपने आप ही आ जाएंगी । उनके बनाये कारयदे कानून तथा अनुशासन ही उनसे सीखने की चीज है । वो भी अपने आप आ जाय गा क्योंकि भारतीय संस्कृति सब चीज में असर करती है, सब चीज को बो ठीक करती है । जीवन के जितने प्रांगण है, जितने भी आयाम हैं, सबमें बो एक दैवी प्रकृति को प्रस्थापित करती है । यह दैवी प्रकृति को प्रस्थापित करने की बात और किसी भी संस्कृति में नहीं है महत्वपूर्ण समझना चाहिए कि हम लोग भरतीय संस्कृति में उतर गये । मैं गांधी जी के साथ सात साल की उम्र से थी उन्हें देखती थी । उन्होंने धर्म पे बहुत बात की लेकिन गांधी जी बहुत कड़क स्वभाव के आदमी थे । सहजयोग ऐसा नही है । यहां कोई जबरदस्ती नही है । गांधी जी का यह स्वभाव था कि चाहे जो हो जाए सबैरे चार बजे उठना है। अब परदेश के सहजयोगी करते हैं, हम लोगों से बहुत अधिक मेहनत करते हैं । । कहते हैं माँ और तो कोई । इसलिए हमें भारतीय संस्कृति को स्वीकार करना चाहिए ओर उसमें अपने को बहुत हमारे यहां तो कोई आश्रम ही मैं नही रहना चाहता नहीं रहना चाहता अब आप ही आश्रम में रहो । आश्रम बनाया तो लोगों को आश्रम ही नही अच्छा लगता, घर से ही चिपके रहते हैं । गांधी जी का नियम था कि सवैरे चार बजे उठ कर नहा धो कर प्रार्थना में जाओ । वहां सांप वगैरह सब घूमा करते थे, प्रार्थना में सांप दिखाई पड़ जाते थे । इतने तेज वे चलते थे कि उनके साथ सब्को दौड़ना पड़ता था । इतने उनके कार्यदे कानून थे कि खाने के लिए उबला हुआ खाना और चाहें तो उस पर थोड़ा सा सरसों का तेल आप डाल सकते थे । सभी को ऐसा खाना पड़ता मैं थे, सन्यासी थे था चाहे वो जवाहर लाल हो या अब्बुल कलाम आजाद । खुद भी वै बड़े भारी अनुशासन | बहुत कड़क उनका स्वभाव था । कोई भी यदि जरा सी गलती कर दे तो सबके सामने उसे लज्जित कर देते थे । उस वक्त इस चीज की बहुत आवश्यकता भी थी । तब के लोगों ने देश को बहुत प्यार न किया । मेरे माता पिता ने देश के लिए सब कुछ त्याग दिया । हम लोग घर छोड़ झोपड़ियों में रहते थे | इतना त्याग, इतनी श्रद्धा देश को आजाद करवाने के लिए थी । आज आजाद हो कर देश का क्या हाल हुआ है । इसी तरह बड़े वीर लोग थे उस समय । इस तरह की भावना यदि हम लोगों में जाग जाए तो हम अपने देश की पूरी तरह से काया पलट कर सकते हैं । इसमें मुझे कोई शंका नहीं है । लेकिन वो त्याग बुद्धि होनी चाहिए और त्याग में बड़ा गर्वित होना चाहिए । इसमें रोने की कोई बात नहीं होनी चाहिए । आज भी देश के प्रति पूर्णतया समर्पित हो कर ही हम देश की राजकीय स्थिति पूरी तरह ठीक कर सकते हैं । सहजयोग में आपके कोई प्रारग आदि जाने की बात नहीं है । कोई कुछ भी करे आपका जीवन बना हुआ है और हर तरह से आपको सुख है । सुख ही सुख है, आनन्द ही आनन्द है । लेकिन सोचना चाहिए कि ये एक तरह का चाँकलेट है जिसको आप खाते हैं । लेकिन इसके अन्दर एक गहन चीज बो है जहां आपको तप करना होगा । जब तक कि तपस्या नहीं होती तब तक आप पूरी तरह से त - 42 सहजयोग को प्राप्त नहीं कर सकते । ये तपस्या वैसी नहीं जैसे हिमालय पर जाकर कपड़े उतार ठंड में ठिट्रते रहो । ये तपस्या ऐसी है कि मनसा उददेश्य के लिए एक बड़ी चीज के लिए आज तक मैने आपपे किसी चीज का बन्धन नहीं डाला । किसी चीज की मनाही नहीं की । सब प्यार की बातें होती रही, एक प्यार ही देती रही, प्यार बढ़ता रहा सब आपस मैं मज़ा कर्मणा आप को समर्पित होना चाहिए एक बड़े बाचा । तब फिर अपने आप बहुत सी चीजें घटित हो जाएं गी । मज़ा होता रहा । लकिन आज जब आपने जन्म दिन की बात की है तो एक नया आयाम हमारी जिन्दगी में हो जाय, नये इराद हो जांय । जिन इरादों पर हम बाद में गर्द करें ऐसे इरादे हम में हो सकते हैं । आप लोग सहजयोगी हैं, आपका हर इरादा पूरा हो जाता है । मेरा तो कोई इरादा ही नहीं है, मुझे तो कोई इच्छा ही नहीं है लेकिन आप लोग इच्छा अगर करें तो सब चीज ठीक हो सकती है । हमारे देश की स्थिति के लिए आपको मन से प्रार्थना भी करनी चाहिए और आज पूजा भी करनी चाहिए इसी चीज को सोच के कि हमने अपने देश की स्थिति ठीक करनी है, और हमारे अन्दर बो शक्ति आए जहां हम अपनी छोटी ला सी जो जिन्द गी है उसका ख्याल करके कम से कम देश की ओर नजर करें, इसके जो हालात हैं उन्हें समझलें और उसमें कार्यान्वित हों । आज का दिन आप सबको शुभ हो । आशा है कि मैरे जीते जी मैं वो भी दिन देख सकूं कि जब हमारा देश पूरी तरह से इन सब गंदगियों से आजाद हो जाय, अर सहज का झंडा सब तरफ फैल जाए । आप सबको अनन्त आशीर्वाद । ह] 43 ---------------------- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी खंड 3 अंक - 6 1991 हिन्दी आव 2ल ए. ८ ১< दूर ३ सहजयोगी का पहला लक्षण ये है कि वो शान्त चित्त होता है । और अत्यन्त सक्ल । किसी से डरता नहीं । उसका जीवन अत्यन्त शुद्ध होता है । उसका शरीर शुद्ध होता है, उसका मन शुद्ध होता है और आत्मा के प्रकाश से वो सारी दुनियां में तेज फैलाता है । जो आदमी प्रेम नही कर सकता वो हमारे विचार से सहजयोगी क्ल्कुल है ही नहीं ।' श्री माताजी निर्मला देवी । रला ॐ म अत 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-1.txt विष्य सूची पृष्ठ संख्या शिव रात्री पूजा 9.2.91 1. होली पूजा 2. 28.2.91 पहला तालकटोरा पब्लिक प्रोग्राम, दिल्ली 2.3.91 14 3. दूसरा तालकटोरा पब्लिक प्रोग्राम,दिल्ली नोयडा पब्लिक प्रोग्राम 4. 23 3.3.91 4.3.91 32 5. जन्म दिवस पूजा 10.3.91 6. 38 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-2.txt शिव रात्री पूजा दिल्ली 9.2.91 शिवजी के लिए कहा जाता है कि वे बहुत सरल हैं और एक दम भोले हैं । इसलिए उनको जानना बहुत कठिन है । कुण्डलिनी का कार्य ही देवी का कार्य है । देवी ही इस चराचर सृष्टि को बनाती है और अन्त में आपके अन्दर कुण्डलिनी बनकर शिव तक पहुंचा देती है । शिवका पूजन करते चक्त याद रखना चाहिए कि शिव के गुण धर्म हमारे अन्दर विकसित हुए या नहीं । इसीलिए सब से पहले कुण्डलिनी की गति को समझ लेना चाहिए । जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो सर्व प्रथम वो आपके शरीर को स्वस्थ करती है । क्योंकि शरीर का भी स्वस्थ होना जरूरी है । इसलिए आपका चित्त पहले अपने शरीर पर जाता है । शुरूआत में सभी मुझे अपनी शारीरिक तकलीफों, बिमारियों के बारे में बताते हैं । कुछ हृष्ट - पुष्ट लोग अपनी सांसारिक तकलीफ बताते हैं । जब हम लोग जागृत अवस्था में होते हैं तो हमारा चित्त इन सब चीजों के तरफ आकर्षित रहता है और इससे हम लोग काफी तकलीफ मैं रहते हैं । जैसे - जैसे आप सहजयोग में आएं गे आप यही पायेंगे कि आप लोग अपने शरीर की, सांसारिक चीजों की, या मानसिक दुःखों की ही चर्चा करते हैं । इसलिए पहले ये व्यवस्था की गई थी कि शरीर की तरफ ध्यान कही नहीं देना चाहिए । उसको कष्ट देना चाहिए । गर आप पलंग पर सोते हैं तो नीचे उतर कर तख्त पर सोईये । फिर तख्त से आप चटाई पर सोइये । फिर आप जमीन पर सोइये । फिर आप पत्थर पर सोइये । फिर आप दल दल में सोइये । ऐसे अनेक तरह से शरीर को पक्का बनाया जाता था जिससे शरीर बाद में कोई तकलीफ न दे । शरीर का आराम किसी भी तरह से मान्य न था । जैसे एक रात जागरण में यदि तकलीफ हुई तो सात रात जागरण करो फिर तकलीफ हुई तो चौबीस रात जागरण करो । उसी प्रकार खाने पीने की लालसा को वश में करने के लिए लम्बे उपवास करवाए जाते थे । आपको जो चीज पसन्द न हो ऐसी चीज आपको खिलबायी जाती थी । यहां तक कि आप अन्न मत खाओ, सिर्फ फल खाओ फिर गर आपको कपड़ों का बहुत शौक है तो आप सादे कपड़े पहनो । फिर आप हलके कपड़े पहनो । फिर आप हिमालय पर जाओ और वहां पूरे कपड़े उतार कर ठंड में ठुठरो । इसी प्रकार किसी को नखरा हो कि मुझे अच्छा घर चाहिए । तो उसे जंगल में रहने के लिए या तीर्थ स्थान आने को कहा जाता था । कोई काँची का आदमी तीर्थ स्थान में जाए गा तो काशी जाए गा । और काशी का जाए गा तो तीर्थ स्थान में कांची जाए गा । रास्ते में उसको शेर खा जाएं गे । शेर ने छोड़ा तो सांप काट लेगा सांप ने छोड़ा तो मगर खा जाए गा । । इस तरह से लोगों को छांटते - । सहजयोग में उलटा हिसाब किताब किया है । सहजयोग में न तो आपको घर छोड़ना है, न द्वार छोड़ना है न खाना पीना छोड़ना है, न ही बस्त्र और जब तक वो बहां पहुंचते तो हजार में से एक आध ही बच पाता छांट ते उनसे आत्म साक्षातकार की बात की जाती हुआ का कोई बन्धन है आप जैसे हैं वैसे ही रहे । इसी अवस्था में आपकी कुण्डलिनी का जागरण हो जाए गा । परन्तु पहले तो एक हिरण का चर्म बिछा के उसपे बैठ के साधना करके फिर आपकी तपश्चर्या होती थी, उसके बाद कठिन उपवास रखने के बाद भी आपकी परीक्षा होती, आपको उल्टा टांगा जाता । कूंए में डाला 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-3.txt जाता दो तीन बार देखा जाता कि किस हालत में आप है । उराके वाद अगर आप जिन्दा रह गए तब फिर केही जाकर के चर्चा होती । अब सहजयोग में उल्टा कारोबार है । पहले तो हमने ऊपर का शिखर बना दिया। खोल दिया उसे सहग्रार खोल दिया। सहम्रार खोलकर के कहा कि आप ही लोग अपने को ठीक करिये । लेकिन अब भी सहजयोग बहुत ही कठिन चीज है । जितनी सरल है उतनी ही कठिन है । हम लोग समझ नहीं पाते । शंक र जी जैसे क्योंकि हमारे अन्दर अनेक नाडियों है हमारा चित्त जो है वो इधर । और उन नाडियों को खोलने का एक ही तरीका है कि उधर न उलझे । तो सहजयोग में ये तो कोई नहीं बताते कि तुम खाना पीन| छोड़ दो । तुम उपवास करो और तुम जाके हिमालय की ठंड में बैठो । लेकिन क्या करना चाहिए जिससे हमें अपनी तरफ अन्तर मैन करके विचार करना चाहिए कि ये में क्या हमारी प्रगति हो ? तो सबसे पहले केर रहा हूं ? जैसे कि अब आप कही गए और आपने देखा कि आपको सोने की जगह नहीं मिली, तो फोरन आप शिकायत करना शुरू कर देंगे कि मां हमें सोने कि जगह नहीं मिली । उस वक्त ये सोचना चाहिए कि मैं ऐसे क्यों क ह रहा हूं ? क्योंकि में अपने शरीर के बारे में चिन्ता कर रहा हूं कि मुझे सोने की जगह नहीं मिली । से जगह नहीं गिली और मैं अपना चित्त इी में डले जा रहा हूं । मुझे ठीक अब उस वक्त हुमे ये सोचना चाहिए कि अच्छा हुआ कि मुझे जगह नहीं मिली । अब सो जैसे सोना है । अब यही सो । अपने शरीर से कहिये । तू सहजयोगी है । यही सोना होगा तुझे सोने के लिए अच्छी जगह क्यों चाहिए । दुनियां में कितने लोग हैं जो रास्ते पर सो जाते हैं तू कोन बड़ा भारी हो गया कि तुझे सोने के लिए अच्छी जगह चाहिए ? और लोग तो खड़े भी क्या जरूरी है । अपने को समझता क्या है तू ? ऐसे अपने शरीर से प्रश्न पृछना चाहिए एक दम आफत खड़े भी सो जाते है तू खड़े खड़े क्यों नहीं सोता ? और फिर सोना आ जाए गी कोई एक बार खाना ने खाए तो । चाहिए । ऐसे शरीर को धिक्कारना चा हिए गर एक दिन खाना ने मिले तो बहुत अच्छा हो गया ऐसा सोचना । एक आजकल तो वहुत ही ज्यादा शरीर के चौचले निकल आए इस तेरह की आधुनिक चीजें निकल हैं । जैसे कि ये हगने कषड़ा पहना, तो उसका मैचिंग होना चाहिए । आई हैं और उसके जो परिणाम हैं वो इतने ज्यादा कृत्रिम है कि हम लोगों को समझ नहीं आता है कि हम इसका मतलब ये नहीं कि आप विक्षिप्त हो जाएँ हैं । लोग इस कत्रिमता के पूरी तरह से गुलाम हुए जा रहे । इसका मतलब ये नहीं कि आप अजीब से कपड़े पहन कर घूगिए और इसका मतलब ये भी नही कि आप हिप्पी हो जाएं । रामझ लीजीए कि किसी स्त्री को एक मैचिंग ब्याऊज नही मिला तो उसाको तो लगता है कि वो गई काम से । बिल्कुल खत्म । पहले जगाने में तो कोई मचिंग पहनता ही नहीं था । अब यदि उसे मैचिंग स्वैटर नहीं मिला तो बस आगई आफत । कौन देखता है आपको कि क्या पहने है आप ? और आप ऐसी कौन सी विभूति हैं कि आपको देखने से किसी का आज्ञा चक्र खुल जाए गा ? या किसी का कोई अन्य चक् खुल जाए गा ? उल्टे आपको देखने से तो कोई पकड़ ही जाए गा । एक बार कोई एक भी चीज़ शुरू हो है जाए जैसे विलायत में है कि आपके बाल बिल्कुल उलझे होने चाहिए । तो सब ऐसे बाल लेकर घूमते पर तुम सहजयोगी हो । तुम विशेष नोग हो, तुम ऐसे वयीं कर रहे हो ? मैं अपने शरीर का इता आराम क्यों देखता हूं ? म तो एक चिशेष हूं । विशेष का मतलब ये कि आपमे चित्त की जो ये चंचलता है उसे रोकना है । चित्त को लीन करना है चेतन्य में । पर चित्त अगर इधर उधर जाता रहै तो वो चैतन्य में कैरी लीन होगा ? 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-4.txt आपके हृदय में जहाँ शिवजी का बास है वहां चार नाड़ियाँ हैं । उसमें से एक नाड़ी मूलाधार तक भाती है । और उससे आगे नर्क है । कुछ लोग यही कहते हैं कि इसमें क्या खराबी है ? लेकिन आप अपनी ओर चित्त करके ध्यान देना चा हिए कि मुझमें ये बासना सहजयोगी हैं, आप नर्क काहे को जा रहे हैं ? क्यों है जो मुझे नर्क की ओर ले जा रही है मै तो एक कदम ऊपर रखे हुए हूं और एक कदम कबर में रखे हूं । उसकी दूसरी नाड़ी हमें इच्छाओं के तरफ ले जाती है । इसलिए बुद्ध ने साफ साफ केहा था कि इच्छा करना ही हमारी मृत्यु का केारण है । इच्छा हम में बिल्कुल खत्म हो जानी चाहिए । लेकिन बो खत्म नही होती । एक शुद्ध इच्छा मात्र रहनी चाहिए बो कैसे हो ? शुद्ध इच्छा इस तरह हो सकती है कि आप सोचे मुझे इसकी इच्छा क्यों हो रही है ? इस इच्छा की ओर मैं क्यों दोड़ा जा रहा हूं ? ऐसी मैने अनेक इच्छाएं की, उससे मुझे क्या फायदा हुआ । तो जो कुछ का कर्तव्य है । किसी को इच्छा हुई कि मैं माँ के क्ल्कुल सामने जाकर बैठू या किसी की इच्छा होती है भी मिला है उसी मैं आनन्द पा लेना ही एक सहजयोगी कि हम पहले बहां जाकर खड़े हो जाएं । ऐसी इच्छा क्यों हुई । क्योंकि अज्ञान में ये नही जाना कि माँ हर जगह है । कही जाने की जरूरत क्या है ? तो शुद्ध इच्छा की जब आप इच्छा रखें, तो जब कुण्डलिनी चढ़ती है तो ये जो इच्छा की नाड़ी नीचे की तरफ मुड़ी हुई है उसकी ऊर्ध्वगति हो जाती है । उसमें शुद्ध इच्छा भर जाती है । इच्छा मनुष्य करता है इस विचार से कि इस समय मुझे सुख मिलेगा, आनन्द मिलेगा । पर मिलता नही । तो इस इच्छा को आपको आनन्द में लीन कर देना है । क्योंकि शिव का तत्व जो है ,आनन्द का कुछ तत्व है । उनका स्वभाव आनन्द है । इसलिए हर एक चीज़ में आनन्द खोजना चाहिए तब किसी चीज की त्रुटि ही नही लगेगी । दोष देखना या हर एक चीज़ में, ये ऐसा है । वो जो आप सोच रहे हैं, ऐसा होना चाहिए, वो कार्यान्वित ही नही हो सक ता । आपका कोई मतलब भी नहीं है उससे । जैसे कोई सिनेमा देखता है कि कोई पहाड़ी से गिरने वाला है । तो क हते हैं, अरे तुम पहाड़ी होता तो अच्छा होता, बहुत लोगों को आदत से गिर जाओगे । बो क्या तुम्हारी बात सुन सकता है ? उसी तरह से हर एक चीज का ठेका लेकर बैठते हैं । और इस तरह से अपने बुद्धि में भी पूरी तरह एक विचारों की श्रृंखला बना देते हैं । लेकिन जो कुछ आप देखते हैं वो देखना मात्र हो गया एक कटाक्ष में भी निरीक्षण हो जाए गा जाए गा । लेकिन वो देखना नहीं होता । उसे निरंजन देखना कहते हैं । उसमें कोई रंजना नही होती । उसके प्रति कोई प्रतिक्रिया नही होतो । तो निरंजन देखना भी शिब का ही तत्व है । गए और उनके मूर्ति के दर्शन भी हो गए, किन्तु जब तक उनका प्रकाश हमारे अन्दर नही आया तो सब व्य्थे ही है । । और चित्त सा आपके अन्दर बन ना शिव के स्थान पर भी पहुंच अब जो तीसरी नाड़ी है उसमें प्रम उभरता है । मरा बेटा, मेरी बहन, मेरा भाई, मैरा बाप, मेरा पति सब दुनियां भर की रिश्तेदारी । इसमें भी बहुत लोग उलझे रहते हैं सहजयोग में भी, सालों तक वो छूटता अब यह कहना कि ये रिश्तेदारी व्यर्थ है, तो यह बात ठीक नही अपने बच्चों के लिए आप किसी का खून भी कर दे । कुछ भी कर सकते हैं इस ममत्व के लिए । पत्नी के है । और उसके बाद देखते हैं कि लिए पति के लिए इस कदर उसमें आदमी अपने जीवन को व्यर्थ करता वोही आपको सता रहे हैं। जिनके लिए इतना किया वो ही आपके दुश्मन हैं । । सब से ज्यादा दु:ख बोही दै रहे हैं और आपको और भी ज्यादा दुःख इसलिए होता है कि इन्ही के लिए हमने इतना किया और इन्होंने हमारे लिए क्या किया ? पहले जमाने में कहते थे कि सबको त्याग दो । घर त्यागो, अच्चे त्याग बीबी त्यागो, 3- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-5.txt सब छोड़ के जंगल में जाकर एकान्त वास करो । सहज योग में ऐसा नहीं है । सहज योग में किसी को नहीं त्यागना है । सब्को अपनाना है । क्योंकि सहज योग एक व्यक्तिगत कार्य नही कि आप जाके एकान्त में बैठ गाएं और तपस्या की और बड़े ऊँचे हो गए । तो क्या फायदा हुआ । आप अवधूत बन गए तो क्या फायदा हुआ । एक हसा आदमी हो तो अच्छा भाषण दे सक ता है । हो सकता है कि थोड़ी बहुत चैतन्य की भी वर्षा हमें तो सारे संसार को ठीक करना है । कर सकता है । पर उससे सारा संसार तो ठीक नहीं हो सकता । इसलिए ये सोचना कि मैं क्यों अपनापन सिर्फ थोड़े ही सीमित लोगों में रखता हूं ? एक पेड़ में गर पानी छोड़िये तो उसका जो सत्व पेड़ के हर शाखा में, हर पत्ते में, हर फूल में, हर फल में जाता है । और लौट आता है और नही लौटे ता वो उड़ जाता है । लेकिन गर जो एक फूल में ही फंस जाए तो वो पड़ भी मर जाएगा और फूल भी मर जाए गा । देवी निर्वाज्य प्रेम करती है । देवी जब किसी के लिए कुछ करती है तो फिर उन्हें ये नहीं ख्याल रहता कि ये कुछ किया या हुआ और उसने ऐसे क्यों किया, नही करना चाहिए था । उनका मन किसी भी चीज में उलझता नहीं क्योंकि वो करूणामय है । करूणा के सागर में लीन हो गया । क कि परेशानी में कोई अर्थ नहीं लेकिन उसे छोटी परेशानियां बताते है । हालांकि मैं जानती हूं लोग छोटी बहुत गंभीरता से सुनती हूं । उनके दायरे में मैं नहीं उतर पाती । अगर वो मेरे दायरे मैं नही उतर पा रहे हैं तो ये उनका दोष है । उनको उतरना चाहिए । करूणा, करूणा के लिए होती रिश्ते के लिए नहीं, करूणा को धनी या भिखारी में कोई भेद नहीं इस करूणा में उतरना चाहिए है । किसी काम, मतलब या । जैसे समुद्र, कहों भी गड़ढ़ा हो जाए वो पानी भर देगा कही भी कोई त्रुटी हो, भर देगा । करूणा तो 'स्वभाव' है स्व माने आत्मा । आत्मा की भाव । जब बो आत्मा का भाव आपके अन्दर आ जाए सिर्फ करूणा फिर ये सब चीज टुट जाए गी । कि दिल्ली रहने वाले, बम्बई रहने वाले, इत्यादि । । उसका महत्व कुछ याद नही रहता नही रहता । हर आदमी क्या है वो जरूर आपको याद रहे गा कि ये कोन है । इसको कौन सी तकलीफ है । तट एक दम देखते ही याद आ जाए गा । नजर आपकी कहाँ गई । नजर अगर ये ढूंढ रही है कि दिल्ली वाला कोन है, कलकत्ते वाला कौन है । गर ये नजर आपकी ढुंढ़ रही है कि ये करूणा केहाँ वही चली जा रही है । किसकी ओर खींच रही है मुझे । तो पता होगा कि दुःखी आदमी है । कोई साधक बहुत बड़ा साधक होता है । एक दम हुदय खिंच जाना चाहिए उस आदमी के तरफ । और ये करूणा आपको सुमति भी देती है ओर स्मृति भी देती है । क्योंकि जितनी निकटता करूणा से आती है, उतनी किसी भी रिश्ते से नहीं आती । ऐसी बिशेष चीज है करूणा और इस करूणा में अपने को लीन कर लेना । इस ममत्व को लीन कर लेना । ये सहज योग में उन्नति का मार्ग है । क्योंकि मैने कभी नही कहा कि आप अपने बाल बच्चे छोड़ दो, धर छोड़ दो । ये सहजयोग है । आप जैसे भी हों जहाँ भी हों, अन्दर ही अन्दर बढ़ते जाओ | बो अन्दर देखे बगैर तो यह नहीं होगा । तो फिर ये सोचना है कि क्या मैं करूणामय हूं ? किसी को गर कुछ है और उसे । बहुत बुरा मान जाते हैं । माने सारा ममल्व अपने ही बारे मैं हो ये के हो इस बार नही । नहीं हो सकता । मुझे क्या मिलना है । मैं क्या पाऊँ गा मुझे क्या लाभ होगा। लेकिन ममत्व बाहर नहीं । कोन, किस दशा मैं, कैसा भी हो करूणा अपना रास्ता खुद ही ढूंढ लेती है बड़ी सुन्दरता से । और बड़ा आनन्द -दावी है । करूणा की पाना, उसमें बहना ऑर करूणा में अनेक तरह के कार्य होना, आनन्द-दायी तो है लोकिन उस बार पाऊँ । ( चेतना ) नही होती । कर उसकी प्रशीति आनन्द में लोभ नहीं होता कि ये आनन्द मैं बार - दिया, कर दिया । हो गया, हो गया । जैसे संगीत को सुन लिया, मज़ा आ गया, वही खत्म हो गया । उसी तरह से कोई काम है, कर दिया । 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-6.txt अब हृदय में चौथी जो हमारे अन्दर नाड़ी है बो अत्यन्त महत्वपूर्ण है वो चौथी नाड़ी कुण्डलिनी के जागरण से ही जागृत होती है और बाई विशुद्धि से निकल के और मस्तिष्क में जाकर के कमल को खिलाती है । जब हमारा चित्त इन सब चीजों में लीन हो जाता है तो इस कमल में जीव आ जाता है, इसमें शका आ जाती है या ऐसा समझ लीजिए जैसे किसी पौधे में पानी पड़ जाए तो बो जैसे अपने आप बढ़ता है इसी प्रकार होक र के ऐसा शुद्ध चित्त जिस मनुष्य का हो जाता है उसके हृदय की कली खिलती है और बो कमल रूप सहस्रार में छा जाता है । फिर उसका सौरभ, उसका सुगन्ध चारों ओर फैलता है । ऐसा मनुष्य एकदम कोई अगर के हता है कि नतमस्तक हो जाता है एक दम नतमस्तक होकर के सबके सामने झुकা रहता है । आपने बड़ा मेरा काम कर दिया, बड़ा चमत्कार कर दिया तो वो चीज उसे छुती नही । जैसे कि आनन्द की लहरें बाहर की ओर तट पे जाकर के नाद करती है । किन्तु वापस नहीं लोटती । उसी प्रकार जिस मनुष्य की ये स्थिति हो जाती है उसका सारा कार्य बाहर नाद करता है । आवाज करता है । उसका असर बाहर दिखाई देता है । तट पर उसके अन्दर उसका कोई असर नहीं आता । । विचार भी नेहीं आता। जो भी आपके निनाद हैं वो और दूसरे तट पे जाकर छू जाएं गे । मेरे तक छूते ही नहीं मुझे आते ही नहीं । उससे हो सकता है, अन्दर बैठे देवी देवताएं खुश हो जाएं और बो चैतन्य को बहाये या कुछ ध्यान भी नहीं आता करें । पर जहाँ तक मैरा सवाल है मुझे कुछ उसका आभास भी कभी नहीं होता कि आप मेरी जय जयकार गा रहे हैं । मै शायद वहां होती ही नहीं । जब आप स्तुति गाते हैं, खुश होते है, आपके अन्दर के देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं और आपके लिए अनन्त नाड़ीयों से कितने तेज पुंज जैसे, प्रकाश के किरण आपके अन्दर छोड़ते हैं । कितनी मेहनत करते हैं आपके लिए । तो आपके लिए भी बहुत आवश्यक है कि बो जब हमारे लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं तो तो पहले जिस शरीर को हम धिक्कार रहे हैं, मान नही रहे, वोही शरीर एक यज्ञ हो जाता है । यज्ञ माने कि जब हमारा शरीर है, हो रही है तकलीफ, तो इसको तकलीफ होनी ही है, क्योंकि ये यज्ञ है न अच्छी बात है । जैसे की काष्ठ का जलना यज्ञ में जरूरी है, उसी तरह इस शरीर का जलना भी यज्ञ में जरूरी है । लेकिन सहजयोग में सबसे बड़ी बात ये है कि ये जो कृत युग शुरू हो गया है, आपके पर्व पुण्य से, आपको बहुत तकलीफ तो कुछ होती ही नही । सब चीज सामने आके खड़ी हो जाती है । साक्षात्कार होते रहता है । आप कहते हैं चमत्कार हो रहा है । सब चीज आपका सुलभ में सहज हो जाते हैं शोभना - सुलभा गति । आपके शोभा व हमें भी इस शुद्धता को पाना चाहिए । मिल जानी है । बहुत से काम आपके सरल - मान जीवन में अत्यन्त सुलभता से आप इसे प्राप्त कर सकते हैं । कोई भी अशोभनीय काम करने की जरुरत नही । या ये एक तरह की बड़ी सूक्ष्म माया भी है उसमें ये नही सोचना चाहिए कि ये सारे चमत्कार हमारे लिए इसलिए हो रहे हैं क्योंकि हम कोई बड़े भारी सहजयोगी हैं । ये सोचना चाहिए कि ये चमत्कार इसलिए हो रहे हैं कि हमारे अन्दर विश्वास - परमात्मा के प्रति, शिव के प्रति, और कुण्डलिनी के प्रति दृढ़ हो जाएं । इसलिए चमत्कार हो रहे है । और इसको दृढ़ता से करने का कार्य यही है कि हम अपने चित्त को शुद्ध करें क्योंकि शिव चित्त स्वरूप है । उनके चित्त की शक्ति को चित्ती कहते हैं । जो चैतन्य आप जानते हैं, उस चैतन्य का जो चित्त है, वो शिव का प्रसाद है। सारे संसार में उनका चित्त फेैला हुआ है । और जब आप कहते हैं कि चमत्कार हो गया, ये चीज घटित हो गई तब ये जान लेना चाहिए कि ये जो चित्त है जिसे हम चित्ती कहते हैं, उसने ये कार्य किया है । अणु वो चित्त है । माने कि । वो शिव का तत्व है । माने रेणु हर चीज में उनका चित्त है लेकि न चित्त का मतलब ये होता है कि बो साक्षी हैं । देख रहे हैं । 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-7.txt और कार्यान्वित जो है बो व्रहम-चैतन्य है । लेकिन जैसे कि संगीतकार गायक को देखकर के बजाता है, उसी चैतन्य उस चित्त की द्ृाष्टि को देखकर के ही कार्यान्वित होता है । उस चित्ती को ब्रह्म चैतन्य जानता है और वो इस कार्य को तब करता है जब उस चित्ती को देखकर वो ठीक समझता है । ब्रहुम चैतन्य देवी की शक्ति है, और वो कार्यान्वित है, उस देखने बाले को जानती है और उस शक्ति की पूरा कभी आप कहते है कि प्रकार ब्रहुम समय यही लीला है कि उस एक देखने वाले को खुश रखना है । इसलिए कभी । इसलिए हो गया कि बो जो चित्ती थी उसका रूख बदल गया था । गर आप मां ऐसे गड़बड़ क्यों हो गया आज शिव की पुजा कर रहे हैं तो ये मैने जो चार नाड़ीयां बताई है उसकी ओर नजर करें । और जिस तरह से मैने आपसे बताया है कि अपने को किस तरह से चित्त को इन चार चीजों में लीन कर लेना चाहिए यह कोई बड़ी गहन बात नहीं है, लेकिन सूक्ष्म है । और फिर आप मुझे बताईये गा कि इस तरह से अन्तर करके जो आपने अपने साथ विचारणा की, या तपस्या की है, या जो वार्तालाप किया है, और जो अपने चित्त को शुद्ध किया है, उससे आप एक दम शिव के सागर में पूरी तरह से डूब गये हैं ऐसी दशा आप सब की मन हो,यही मेरी एक शुद्ध इच्छा है । तजि स 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-8.txt होली समारोह 28-2.1991 दिल्ली श्री माताजी निर्मला देवी का भाषण आप तो इतिहास को जानते हैं ओर पोराणिक बात भी जानते हैं कि होलिका जलाने से ही होली जलाई । इस समय तक किसानों का भी सब काम खत्म हो गया और ये सोचकर कि फसल बगैरह को बेच करके आराम से सब बैठे हैं तो थोड़ा सा उसका आनन्द भोगना चाहिए । होली की शुरूआत उसी मैं बिठाई हुई बात है महूरत । यह काम श्री कृष्ण ने किया, क्योंकि श्री राम जब संसार में आए तो श्री राम ने मर्यादाएं बांधी, स्वयं अपने जीवन से, अपने तौर तरीकों से, अपने आदर्शों से, अपने व्यवहार से, कि जो है मर्यादा - पुरूषोत्तम है । ये जो मर्यादा मनुष्य - पुरूषोत्तम, ये एक चरित्र, एक महान आदर्श हम लोगों के सामने रखा गया कि जो राजा है वो हितकारी होना चाहिए हितकारी राजा क हा है, वो आदर्श स्वरूप श्री राम इस संसार में आए । और इतना बड़ा आदर्श उन्होंने सबके सामने रखा कि लोगों के हित के लिए, जनता के लिए उन्होंने अपनी पत्नी तक का त्याग कर दिया । हालाँकि उनकी पत्नी साक्षात महालक्ष्मी थी, बो जानते थे कि उन्हें कुछ नहीं हो सकता, तो भी जिसे सुक्रांत ने बिनेवॅलैन्ट किंग लोकाचार में दुनियां के सामने उन्होंने अपनी पत्नी को त्यागा जिससे लोकमत हमारे प्रति विक्षुब्ध न हो और लोकमत का मान रहे । अब वर्तमान में हम देखते हैं कि हमारे यहां लोकमत का जरा भी विचार लोग बिल्कुल निलेज्जता से राज्य करते हैं, और उसके प्रति ध्यान नही देते बजह ये है कि मर्यादा - पुरूषोत्तम के बारे में लोग जानते नहीं या जानते हैं तो उसे समझते नहीं, और समझते हैं तो उसे अपनाते नहीं । ये कितनी आवश्यक बात है कि जो राज्य करते हों बो अपनी भर्यादाओं मैं रहे । अपने को मर्यादाओं से बाँधे । और तभी सारा संसार उन मर्यादाओं में बाँधा जाए गा । लेकिन राज्य करते हैं बिना किसी मर्यादाओं या आदर्शों के, या किसी विशेष तरह के प्रणालिओं के बगैर |। इस तरह । उसके नही किया जाता । समाज तो घातक होगा ही, पर सबसे ज्यादा जो विश्व बन्धुत्व है बो सारा ही नष्ट हो जाएगा । अज मनुष्य अपने देश में भी बहुत संकीर्ण होता जा रहा है क्योंकि हमने अपनी मर्यादाएं जा बाँधनी थी दो नही बाँधी । जैसे कि बम्बई वाले हैं और दिल्ली बाले हैं फिर बम्बई शहर वाले हो गए । फिर पुरानी दिल्ली बाले हो गए, फिर नोयडा वाले हो गए इस तरह कि हम अपनी सीमाएँ बांधते जा रहे हैं । विश्व नाभ मैं उतर कर भी जहां हम विश्व के एक नागरेिक हो गए हैं, तब भी हम इस तरह बन्धुत्व छोटी संकीर्णताओं में बन्धे हुए हैं और जो मर्यादाएं हमें अपने व्यक्तित्व में बाँधनी चाहिए. कि छोटी बो हमने नही बाँधी । जो श्री राम ने बाँधी थी । क्योंकि श्री राम विश्व के लिए एक आदर्श राजा के रूप मैं आए थे । उनका स्वयं का जीवन एक आदर्श और मर्यादाओं से बंधा हुआ था । तो जिन मर्यादाओं को हगने बाँध रखा है उनसे तो हम क्षुद्र हो जाएँ गे, छोटे हो जाएँ गे, संकीर्ण हो जाएँगे । पर जो मर्यादाएँ थी व राम ने अपने चारों तरफ बाँधी हुई थी, उससे हम सबल हो जाएँ गे । जैसे कि एक हुवाई जहाज है औ- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-9.txt उसके अन्दर के पैंच वगैरह ठीक से न बाँधे जाएँ, बो अगर ठीक से न जोड़े जाएं या वो कार्यान्वित न हो तो जब ये हवाई जहाज उड़े गा तो उसकी सब शक्ति नष्ट हो जाए गी । जो मर्यादाएं हमारी शक्ति को नष्ट करती है वो तो हम बहुत आसानी से बांध लेते हैं किन्तु जो मर्यादाएं हमारे शक्ति को बढ़ाती हैं, हमारा हित करती है , इतना ही नहीं हमें एक प्रभुत्व देती है । एक अस्तित्व देती है, एक बड़प्यन देती है उनको हम नहीं मानते । य ही एक बड़ा दोष हमारी सूझ बुझ का और विचार का है । बिना इन मर्यादाओं को समझे, कर्म काण्ड आदि में फंस कर, एक दूसरे से अलग हट कर जब हम इस तरह संकीर्ण बनते जा रहे हैं तो हमें चाहिए कि हम अपनी ओर थोड़ा विचार करें कि हमने कौन सी मर्यादाएँ बाँध रखी हैं, और कौन सी मर्यादाओं में हम बंधते चले जा रहे हैं ? जो मर्यादाएं हमें बँधनी चाहिए थी कल्कुल बाँधी ही नहीं बन्धुत्व की भावनाएँ, सब एक दम अस्त व्यस्त हो गई, ढीली पड़ गई । जो मर्यादाएं श्री राम ने बांधी थी बुझ बिना उसी तरह कि मर्यादाएं लोग भी बांधने लग गए । और इस तर ह वे कर्म काण्डों में जाने और विश्व उसकी बजह से हमारा सारा सामाजिक जीवन, राजकीय जीवन, । सूझ लग गए । धर्म मानो कोई ऐसी चीज हो जिसमें आप हंस भी नहीं सकते, बोल भी नहीं सकते । आप उपवास और तपास करिये, एकान्त में र हिए । इस तरह के उस बक्त के ब्राहूमणाचार थे । पंडितों ने इस तरह की गलत चीजें बता दी कि य ही धर्म है । लोगों की इस तरह कि धारणाएं तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने जन्म लिया । वे साक्षात श्री राम । उन्होंने लीलाएं रची, और सारे संसार में लीला का प्रचार किया जन की गहराई को किस तरह से সুনা चाहिए । इसमें भी श्री कृष्ण ने खेल रचा । श्री श्री राम का जो जनता की ओर त्याग था बो और था, आप जानते हैं कि विशुद्धि चक्र पर जनः सामूहिक हो जाता है । और नाभी चक्र पे धारणा हो जाती है । विशुद्धि चक्र पे आप सामूहिकता पर आ जाते हैं । सामूहिकता में भी किस तरह से श्री कृष्ण ने लीला से ही लोगों को जागृत करने का प्रयत्न किया। जब छोटे थे, पांच साल की उम्र के थे तो उन्होंने औरतें जो नहा रही थी, उनके कपड़े छिपा लिए । चार कृष्ण की जो लीला थी वो और तर है की थी और पांच साल की उम्र के बच्चों को क्या समझ है । आजकल के बच्चे जुरा ज्यादा ही होशियार हैं, उस जमाने में तो 20 साल तक भी लड़कों को कोई अक्त नहीं होती थी । इस तरह से बड़ी अबोधिता में उन्होंने औरतों के कपड़े छुपा लिए । और ये लोग जब जमुना में नहाती थी, इनमें राधा जी तो साक्षात महालक्ष्मी थी, महालक्ष्मी से ही उत्थान होता है, महालक्ष्मी तत्व से ही आप लोगों ने सहज योग में सभी कुछ प्राप्त किया है । तो उनके पीठ पर देखते कि किस तरह इनकी जागृती हो जाए । दृष्टि उनकी । फिर जो औरतें घड़ा लेकर चलती थी, उनके वड़े पीछे से तोड़ते थे ताकि जमुना जी का चैतन्यित जल उनकी पीछ पर गिर जाए ओर इनकी जागृती हो जाय । उसके बाद रास । रा-माने शक्ति स-माने सहित, जैसे सहज है तो रास खेलते थे हाथ पकड़ के । रा-धा माने शक्ति की धारणा करने वाली । श्री कृष्ण सब्को नचाते थे और रास में नाचकर के वो राधा जी की शक्ति सब में संचारित करते थे । मुरली बजाते थे । मुरली भी एक तरह से कुण्डलिनी ही है । कुण्डलिनी के छः: चक्रों की पीछ पर रखते थे तर ह बांसुरी मैं भी छः छेद होते हैं । उस नृत्य के द्वारा राधा जी की शक्ति सबके हाथों में से बहाते थे । इस प्रकार उन्होंने लीला रचाई । बाद में होली का भी उन्होंने एक बड़ा सुन्दर तरीका ढूंढ़ निकाला । 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-10.txt पानी के अन्दर, बहुत संजो करके, पवित्रता पूर्वक सुगन्धित रंग मिलाकर, चैतन्यित पानी सबके बदन पर फेकते जिससे कि सबका अंग - प्रत्यंग चैतन्यित हो जाए । ये उनका विचार था, खेल था । ये नहीं कि आप लोगों पे ऐसे - ऐसे चीज फेंके जिससे सुना है एक के प्राण चले गए । उनके मुंह थे गुब्बारा मारा कितने शुर्म की बात है । किसी अवतरण द्वारा बनाई गई सुन्दर विधि का क्या इस तरह से कबाड़ा गया करना चाहिए ? ये सिर्फ इन्सान से ही हो सकता है । जानवर भी नहीं कर सकते । रंग खेलते खेलते, रंग खत्म हो गया तो कीचड़ उठा लिया, फिर गोबर उठा लिया, फिर उसके बाद तार कोल उठा लिया । अरे, किस चीज के लिए होली हो रही है ? उसका तत्व ही खत्म कर देना, और उसके साथ जो सुन्दरता है उसे भी चेतन्यित जल फेंका जाय जिससे हमारे आपसी प्रेम को बढ़ाबा मिले, और उससे भी बढ़ के आपसी मेल हो जाए , हमारे अन्दर जो भी दुष्ट भावनाएं हैं वो खत्म हो जाएँ । बहुत ही एक तरह से स्वच्छन्द होकर के तन्मय होकर के एक साथ होली खेलें । उसमें कोई पाप की भावना नहीं होनी चाहिए, कोई हृदय में खराबी नही होनी चाहिए । इस तरह से ये इतनी सुन्दर चीज़ बनाई थी । इसी चीज का जो विपर्याय (उलट) जो हम देखते हैं तो बड़ा आश्चर्य होता है । जैसे आजकल गणपति गन्दे सिनेमा के गाने, शराब पीकर के उनके सामने चीखना । गुजरात की आराधना होती है बहाँ गन्दे में आजकल रास बहुत चलता है, नवरात्री में तो शराब पीकर सब लोग आते हैं । औरतें और आदमी, शराब पीकर, बढिया बढ़िया कपड़े पहन कर और क्या वहां शुरू हो जाता है ? एक बार लन्दन में देखा रास लीला में औरतें, मर्द लड़के, लडकियाँ सब शराब पीकर के इतने अश्लील तरीके से व्यवहार कर रहे थे कि वहाँ तो सब भूत ही नाच रहे थे। उसके दूसरे दिन पेपर में आ गया कि इनके यहाँ रास होती है वो ऐसी है और उसमें ऐसा होता है । पाश्चिमात्य लोग जहाँ पर, जिस काम को करने में लज्जित हो जाएं, ( वो तो नैतिक ता में अपने से बहुत ही कम है ) ऐसे हिन्दुस्तानी करते हैं रास । ये बहुत शर्े कि बात है । क्या ये हिन्दुस्तानी यहाँ आकर के प्रदर्शन कर रहें हैं । दूसरे दिन पेपर मैं आया कि रास अनेतिकता का एक बहाना है । जो मर्यादाएं नैतिकता, प्रे, आदर की है उन्हें छोड़कर के आप होली खेलेंगे । होली के बहाने अपने में छिपी हुई जो गन्दगियां हैं उसे आप निकाल रहे हैं । उसकी शोभा ही खत्म हो गई । अशोभनीय काम में मज़ा आ ही नही सकता । खास कर सहजयोगियों को तो आना ही नहीं चाहिए । सब कुछ शोभनीय होना चाहिए । रास भी ताल बद्ध स्वर बदध होता है । रास ये नहीं किडमाडम बजा रहे हैं और एक दूसरे पे गिरा जा रहा है । इसमें शुद्ध चित्त होना चाहिए । इसलिए रास होता है । क्योंकि नृत्य करते वक्त मनुष्य का ध्यान नृत्य के लय और सुर पे होता है इसलिए उसका चित्त शुद्ध हो जाता है । ये होली का त्योहार जो श्री कृष्ण ने, लीलाधर ने, बनाया उसकी विशेषता ही यही थी कि मनुष्य इसे एक लीला समझे । सारा संसार एक लीला है और सहजयोग में आप लोग आकर लीलामय हो गए है संगीत में और हर चीज में आप लोग तन्मय हो जाते हैं और आनन्द से उसका मजा उठाते हैं । ा आपस में इतने प्रेम से, बहुत शुद्ध भाव और बहुत नैतिकता से आप सारा काम बहुत सुन्दरता से करते हैं, इसमें कोई शक नहीं । लेकिन केबल लीलामय होना विशुद्धि पर ख्क जाना होगा । विशुद्धि पे लीलामय है और उससे आगे आज्ञा पर चलना है। जो आज्ञा का चक्र है ये तप है । तब आपको होलिका का जलना सोचना 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-11.txt चाहिए कि प्रइलाद के तप के कारण होलिका जली थी । तो हम भी उस तप में आगे बढ़े क्यकि विशुद्धि तक तो हम आ गए । - कभी इसमें भी मुझे शक है । लेकिन विशुद्धि तक ठीक है । हम में सामाजिकता आ गई, आपसी प्रेम आ गया, सारे विश्व-बन्धुत्व में उतरे । अभी भी ऐसे लोग तो बहुत हैं ही जो बहुत गहरे उतर गए हैं लेकिन ऐसे भी बहुत लोग है कि जो अब भी अपनी छोटी - मैं कौन जगह का हूं और फिर ऐसा कैसे हो सकता है । विश्व - बन्धुत्व में तो आपकी जाति देश - विदेश सब छूट जाता है । अगर आप आज अमेरिका में पैदा हुए होते तो आप अमेरिकन हो जाते । आप यहां पैदा हुए तो हिन्दुस्तानी हो गए । मेरा मतलब ये नहीं कि आप हिन्दुस्तानी पैदा हो गए तो आपका रिश्ता अमेरिकनों से नही है । अब आप सभी एक ही मां के बेटे बेटियां हैं । इसलिए विश्व बन्धुत्व में उतरे हुए हैं पहली तो बात सोचनी चाहिए कि हमने विश्द्धि भी लांघनी है या नही। जब हम होली खेल रहे हैं, तब हम मर्यादा में हैं या नही । अभी किसी ने पूछा था कि माँ क्या औरतों के साथ पुरूषों को होली खेलनी चाहिए या नही ? मैने कहा कि सहज योग में नही । क्यूंकि भाई बहन में होली नहीं खेली जाती । क्योंकि श्री कृष्ण ने हमारी मर्यादाएं, जैसे भाभी और देवर । उनके बीच में एक तरह कि मर्यादाएं ही है । देखिए भाई बहन का रिश्ता कितना सुन्दर है, पूरी मयादाएं हैं, पूरा प्रेम है, लेकिन भाई बहन एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नहीं देठ गे । अपने देश की जो विशेष चीज है वो हमारी संस्कृति है । भाई और बहन दोनों एक साथ कभी नहीं बें गे । लेकिन प्रेम भाई बहन में बहुत ज्यादा होता है । अपने आप से । आपस में लड़ाई करेंगे, लेकिन उनकी बहन को कोई कुछ कह, तो वो खून खराबा कर देंगे । इस प्रेम की जो विलक्षण प्रकृति है, विशेष प्रकृति है भाई बहन में और वो निसर्ग से मिली है, कुदरती है । तो भाई बहन में नितान्त श्रद्धा है, लड़ाई झगड़ा भी करेंगे, तू , तू मैं, मैं भी समझ लीजिए कि सब आपस में प्रेम से रहते हैं कभी छोटी बातें सोचते रहते हैं कि मैं कौन जाति का हूँ, और पाति, ह जाए, पर अन्दर से बहुत ज्यादा प्रेम है । और अत्यन्त शुद्ध प्रम है और इस शुद्ध प्रेम की होली हम नहीं खेल सकते कि कहीं हमारी बहन का हमारे हाथों अपमान न हो जाए । भाई बहन में बड़ा ही हो सुन्दर सा, गोपनीय, मर्यादित, बन्धा हुआ प्यार है और उसके संगोपन में, नैतिकता में, अतिशयता है । तो भाई - बहन में होली खेलना मना है । इस लीलामय जीवन से हमें अगर ऊपर उठना है, तो हमें आज्ञा पर उतरना जरूरी है क्यूंकि इस तरह के त्यौहार से जो आनन्द मिलता है, आपस में जो शूद्धता मिलती है, अच्छाई मिलती है, भाई चारा बन्धुत्वता आती है उससे हम फैल से जाते हैं । गहराई को छूने के लिए जरूरी है कि तपस्विता आए । सहजयोग बहुत जल्दी फैलता है । फैलेगा बहुत जल्दी, लेकिन गहरे कितने उतरे है ? सो गहराई के लिए तपस्विता की जरूरत है । तप का मतलब ये नहीं कि बैठकर के आप उपवास होता है, विश्व करो, पर अपना चित्त अगर खाने पर है तो उसे हटाना है । मैरा चित्त कहां है ? इसको देखना ही तपस्विता है । क्योकि चित्त से ही आप अपनी आज्ञा खराब करते हैं । कहां है मेरा चित्त ? मैं क्या सोच रहा हूं ? इस वक्त मैं क्या कर रहा हूं ? ये अपना चित्त अगर आप देखें, अन्तर मन को हमेशा अपने सामने रखे, तो आपका चित्त जो है बो आज्ञा में प्रकाशित हो जाएगा चित्त का निरोध, चित्त का अवलोकन, चित्त का विचार करें । हमेशा मेरा चित्त कहां गया ? इतना । यही तपस्या है कि अपने 10 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-12.txt विचलित चित्त है । मैं बात कर रही हूं और आपका चित्त कहां है ? सो चित्त की ओर नजर रखना | चित्त का निरोध जबरदस्ती नहीं, लेकिन अब आत्मा के प्रकाश में अपने चित्त को देखने से अपना चित्त जो है बो आलोकित हो जाता है । एकाग्र होकर के अपना चित्त देखना चाहिए । जैसे ये खम्बा | इसमें सुन्दर से फूल लगे हैं अब हर कटाक्ष में इनका निरीक्षण हो जाता है । ये सारे मुझे याद है चित्त सा बन गया है क्योंकि चित्त की एकाग्रता है । उसी से ये चित्त बनता है । उसी से परा आपकी स्मृति अच्छी हो जाती है । सब चीज़ पूरी तरह से आप जान सक ते हैं चित्त से ही सब चीज जानी जाती है । लेकिन चित्त अगर विचलित हो तो आप किसी भी चीज़ को गहराई से नही पकड़ सकते । हम देखते है, खासकर बिलायत में, 20 साल के मनुष्य से पूछे तुम्हारा नाम क्या है तो वे काफी देर सोचने के बाद सवाल का जवाब दे सकते हैं जैसे कि उन्होंने ड्रग ले रखा हो । उनके मस्तिष्क का ये हाल असल मैं ड्रग से नहीं हुआ जितना चित्त से हुआ चित्त इतना विचलित हो जाने से कुछ चीज याद ही नहीं रहती । शुद्ध चित्त जो होता है वो एकाग्र होता है और एकाग्र चित्त बो ही चीज लेता है जो लेना है । जो नही लेना है उधर देखता ही नही । उसको दिखाई ही नहीं देता। अपने आप बहां से हट जाता है क्यूंकि बह इतना शुद्ध है कि वो मलिन हो ही नहीं सकता । सहज योग का तप सिर्फ ये है कि मेरा चित्त कहां रहा है । मेरा मन कहां जा रहा है । जब ये तप आपने कर लिया तो आज्ञा को आप लांघ गये । सहस्रार में तो कोई प्रश्न ही नही क्यूंकि हम बैठे हुए हैं । तो अगर आप आज्ञा को नहीं लांघेगे तो सहस्रार में हमें बड़ी मुश्किल हो जाती है । क्योंकि आज्ञा का चक्र बहुत ही ज्यादा संकीर्ण है, उससे खीच निकाला बड़ा कठिन है । तो आज्ञा के लिए जरूरी है कि तप करें और जैसे आप तप करना शुरू कर दें आप अपने आज्ञा को छू लेंगे । नही तो फिर सहज योग में एक साहब बता रहे थे कि एक सहजयोगिनी को कैन्सर हो गया बो आती होगी प्रोग्राम वगैरह में लेकिन चित्त उनका इधर - उधर होगा । ऐसे कैसे हो गया । कैन्सर तो हो नहीं सकता । इसकी वजह ये कि प्रोग्राम मैं आये थे पर कुछ न कुछ अपनी विपदा सोचते रहे । बजाये इसके कि जो कहे जा रहे हैं उसे समझं, अपनी ही अन्दरूनी बात को ही सोच सोचकर आप चली गई उस बहकावे में । और उस बहकावे में आपको कैन्सर की बिमारी हो गई । हम मन से क्या सोच रहे हैं । मन में हमारे कौन से विचार आ रहे है । यही कि हम पे ये दुख है, वो दुख है, ये पहाड़ है । आपको जो आशीर्वाद मिले हैं उनका ध्यान कीजिए । सोचिये, अपने पे कितने आशीवाद सहजयोग मिला है ? हम कोई विशेष व्यक्ति है । कोई ऐसे वैसे नही है कि अपने चित्त को बेकार करें दिल्ली शहर में करोड़ों लोग रहते हैं, कितनों को हैं । | हमें सहज योग मिला है । इसकी धारणा होनी चाहिए अन्दर से । और उस अन्तर मन में उतरना चाहिए । उसी से झूठी मर्यादाएँ सब टूट जाएंगी |। अगर आप नही तोड़िये गा तो किसी न किसी तरह से ऐसे कुछ अनुभव आयेंगे कि अपने आप ये मर्यादाएं टूटती ही जाएंगी हमारा अपना है । आप कह गे आप दिल्ली वाले हैं । एक दिन ऐसा आये गा कि दिल्ली वाले आपको ठिकाने लगायेंगे । जिस चीज को आप सोचेंगे ये । या आप नौयडा वाले हैं तो नौयडा वाले आपके पीछे बन्दुक लेके भाग्गेंगे । तब आपकी समझ में आये गा कि मैं क्यों कहता हूं मै नौयडा बाला हूं । फिर न घर के न घाट के ये हालत आपकी हो सकती है । उसकी वजह ये कि आपका चित्त ही ऐसा है जो घर का न घाट का । जब तक इस गहराई में न उतरेंगे तब तक आप अपने को सहजयोगी कहैं तो भी मैं मानती नही इस चीज़ को । क्योंकि %3D 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-13.txt सहजयोगी का पहला लक्षण ये है कि वो शान्त चित्त होता है । और अत्यन्त सबले । किसी से डरता नहीं । उसका जीवन अत्यन्त शुद्ध होता है । उसका शरीर शुद्ध होता है, उसका मन शुद्ध होता है । और आत्मा के प्रकाश से वो सारी दुनियां मैं तेज फैलाता है । जो आदमी प्रेम नही कर सकता बो हमारे विचार से सहजयोगी बिल्कुल है ही नहीं । आप समझें कि आज होली है । होली के दिन तो हम बहुत मजा उठायेंगे कोई बात नहीं । श्री कृष्ण ने जब कह दिया, खेलो, कूदो, सब लीला है सब दुनियां लीला है । पर लीला के ऊपर जो मर्यादाएं हैं उनको पाने के लिए आज्ञा पर आपको तप करना होगा । जैसे आकाश में आप देखते हैं कि बहुत सी बो तो पहली सीढ़ी भी नही चढ़ा है । इस तरह से अगर पतंगे चल रही हैं और कोई भी पतंग हाथ से छूट जाये तो न जाने बो कहां चली जाए गी । वो ही हाथ आत्मा है । तो अपने चित्त को अपनी आत्मा की ओर रखो । अपने को शुद्ध करते जाना ही सहजयोग ये तप है, क्योंकि अग्नि सब चीज को भस्म कर देती है मैं तपस रूप है । आपने आज हवन किया । उसी तरह से, आपके तप से आपके अन्दर जो भी इस तरह के दु्विचार हैं या गलत मर्यादाएं हैं वो सब टूट जाएं गी । आनन्द पाना आपका अधिकार है और आप आनन्द को पा सकते है और पाया है आपने आनन्द को, लेकिन आनन्द बांटने के लिए अपने अन्दर गहराई होनी चाहिए । अगर आप गंगा में एक छोटी सी कटोरी ले जाएं तो आप सिर्फ कटोरी भर पानी लेके आ सकते हैं, लेकिन जब आप एक गागर ले जाएं तो आप गागर भर के ला सकते हैं । लेकिन किसी तरह आप इन्तजाम कर लें कि पूरी तरह पानी बहुता आए आपके तरफ तो आपके चारों तरफ गंगा ही बहते रहे । तो किस स्थिति में आप हैं उसे देखना चाहिए । क्या आप कटोरी भर पानी ही सहज योग से ले रहें हैं ? क्या आप अपने सीमित आनन्द मैं है ? क्या आप सबके आनन्द के लिए हैं ? और क्या आप स्वयं ही इसका स्रोत है ? तब आपके समझ में आ जाए गा कि होली मनाने के लिए भी गहराई चाहिए । और इस आनन्द का हमेशा उपभोग लेने के लिए भी गहराई चाहिए । इसलिए आज्ञा और विशुद्धि का बड़ा नजदीकी रिश्ता है । ये तो बाप बेटे का रिश्ता है । मुंह बनाए रखना बेकार की बातें करना । या बिल्कुल ही नहीं बोलना इस तरह दोनों तरीके से विशुद्धि खराब हो जाती है । लेकिन दूसरों को सुख देने के लिए अच्छी बात करना । दूसरों से प्रेम जोड़ने के लिए अच्छी बात करना । आपसी लड़ाई झगड़े मिटाने के लिए सुन्दरता से बात करना । इन सबसे विशुद्धि चक्र ठीक होते जाता है । और इस तरह से जब आपकी विशुद्धि ठीक हो जाती है तब फिर आप देखते हैं कि जब मैं किसी से बात करता हूं तो ऊपरी तरह से लोग खुश हो रहे हैं । अन्दरूनी तरीके से नहीं हो रहे । तब आपको ख्याल करना चाहिए कि मेरी गहराई अभी नहीं आई । एक छोटा सा फूल भी अगर कोई शुद्ध हृदय से दे तो उसका बहुत असर सहज योग में हो सकता तो जो पूरे हुदय से कोई कार्य करे । विसी से दोस्ती है । ऊपरी - ऊपरी नही रखो । अन्दरूनी रखो 1 जब तक विशुद्धि में आज्ञा की गहराई नही होगी तब तक आपकी विशुद्धि बहुत ही उथली रह जाये गी । आज्ञा की गहराई होना बहुत ही जरूरी है । गहराई न होने का मतलब यह कि विचार करके उसको तोल करके आप हर चीज़ को करते हैं अगर मैं पांच रूपये दें तो मुझे सौ ल्पये मिल जाएं गे । नाप या ऐसे करना चाहिए तो ये हो जाए गा । नहीं । अन्दर से ही मुझे लग रहा है कि करना चाहिए । मुझे- देना ही चाहिए । मैंने नहीं दिया अभी तक । दिखाने के लिए । या पेपर मैं छप जाए । आपने जो भी करना है हृदय से । जब ये स्थिति आपमें आ जाएगी । तब आप समझ लीजिए कि आपकी गहराई विशुद्धि पर काम कर रही है । और गहराई में जब आप विशुद्धि को प्राप्त करेंगे तब आपका कुछ - 12 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-14.txt जन हित, जन संबंध और विश्व बन्धुत्व है । उससे पहले नहीं । सो आज इस होली के दिन हमें बो सब चीजें जला देनी चाहिए जिससे हमारा चित्त खराब होता है । जिससे हमारी आज्ञा खराब हो जाती है । तो दोनों चीज । ये चित्त भी साफ हो जाए और आनन्द और बोध में हम लोग होली मनाएं । जिस दिन इसका पूर्ण सामन्जस्य बन जाए गा, दानों चक्रों में एकरूपता आ जाएगी तो सहस्रार पे कोई प्रश्न नहीं खड़ा होगा । । विशुद्धि से ही निकल करके आप जानते हैं कि दोनों नाड़ियां ऊपर जाकर के और आज्ञा पर क्रॉस करती है । जब पर ये दोनों चक्र मड़बड़ करते हैं। विशुद्धि की ओर आपका चित्त जाता है तो श्री कृष्ण की विशेषता आहुलाद-दायनी है, आनन्द देने वाली है, उनको देखते ही लोगों को आनन्द आ जाता है, सो वो आहुलाद -दायिनी शक्ति जो फूलों में है, बच्चों में है ) वो आपके अन्दर जागृत हो सकती है । लेकिन जब तक उसमें गहराई नहीं आए गी तब तक ये आहुलाद । तो इन दोनों का मेल आपको सोच लेना चाहिए । हमारे अन्दर गहराई का आना बहुत जरूरी है और गहराई से किसी चीज का आनन्द देना भी बहुत जरूरी है । राधा जी की शक्ति ( जो बडि -दायिनी शक्ति ऊपरी, जबानी रह जाएगी आप सबको अनन्त आशीवाद । - 13 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-15.txt तालफटोरा स्टेडियम पब्लिक प्रोग्राम दिल्ली 2.3.1991 परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने की जो रत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । आवश्यकता हमारे अंदर पैदा हुई है, उसका क्या कारण है ? आप कहैं गे कि इस दुनियां में हमने अनेक कष्ट उठाए, तकलीफै उठाई गया है, परेशान हो गया है उसे समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा हैं । तब एक नए तरह के । चारों तरफ हाहाकार दिखाई दे रहा है । कलयु ग में मनुष्य भ्रांति में पड़ मानव की उत्पत्ति हुई है, एक सूजन हुआ है । उसे साधक कहते हैं उसको विल्यिम ब्लेक ने मैन ऑफ गाड' कहा है । आजकल तो परमात्मा की बात करना भी मुश्किल है फिर धम की चर्चा करना तो बहुत ही कठिन है क्योंकि परमात्मा की वात कोई करे तो लोग पहले उंगली उठा कर बताएं गे कि जो लोग बड़े परमात्मा को मानते हैं, मन्दिरों में, मस्जिदों में चर्चों में मुख्द्वारों में घूमते हैं, उन्होंने कीन से बड़े भारी उत्तम कार्य किए है ? आपस में लड़ाई, झगड़ा, तमाशे खड़े किए हैं । इन्होंने कोन-सी बड़ी शांति दिखाई है ? ये कोन से सन्मार्ग से चलते हैं । किसी भी धर्म में कोई भी मनुष्य हो किसी भी धर्म का ा पालन करता है, परमात्गा को किसी तरह से भी मानता हो, लेकिन हर एक तरह का पाप वो कर सकता टोक नही, फिर ऐसे धार्मिकता का क्या । उस पर किसी भी तरह का बंधन नहीं, कोई रोक अभिपायः है ? से धर्म किस काम को ? जब ऐसा हमारे रागने नजारा आ जाता है तो घबरा जाते हैं कि म क्या वात है ? लेकिन, अगर आप इस चीज को एक पैज्ञानिक, तरीके से देखना चाह और दिमाग खोलक र सोचें तो, आपको एक बात समझ में आ जाएगी कि धर्म के तत्व को कसी ने भी नहीं पकड़ा । और धीे हृटते गए । सारे धर्मों में जो इनके प्रणयता थे, जो अवतरण थे, धीरे सब उस धर्म से च्युत होते गए, महागुरु थे, उन्हंने एक बात केही थी कि पहले तुम अपने को खोज लो सदा निवासी, रादा अलेपा, तोहे संग समा। । कहै नानक, "विन आपाचीन्हें मिटे न भ्रम की काई। सो । काहे रे बन खोजने जाए, जो है कुरान में भी लिखा हुआ है कि तुम्हें नानक साहब ने कहा, अनादि काल से य ही वात सबने कही । वली होना है, तुम्हें रूह को जानना है । कीनसा ऐसा शास्त्र है जिसमें ये लिखा नही है । ईसा ने कहा, जब तक तुम्हारा दूरारा जन्म नहीं होता है, तुम सगझ नहीं पाओगे । कबीर ने कहा, 'केसे समझाऊ सब जग अंधा । अंधे को अगर आप बताना चाहे कि ये रंग कोन से हैं, तो वो समझ नही पाए गा । उसकी बताने से फायदा नही । इस तर ह की एक वड़ी रागस्या सगाज के सामने, अपने इस विश्व के सामने आज खड़ी है । इसका एक ही इलाज है कि आखं खुल जानी चाहिए आपकी । जब तक आँख आपकी नहीं खुलेगी, बेकार की बातें हो जाएगी, वात की वात रह जाएगी आपस में लड़ते ही रहे गे इसका कोई इलाज होने ही नही । इसका इलाज है 'परिवर्तन । | बेकार की किता्वे पढ़़ पढ़े करके ओर इस 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-16.txt परिवर्तन के लिए कुछ न कुछ तो ऐसी विशेष व्यवस्था उस परमेश्यर ने जरूर करी होगी क्या उसने हमें इस दुनियां में इसलिए भेजा है कि हम अपने जीवन को ऐसे भ्रांति में खो दें ? हमारे जीवन का कोई भी अर्थ न निकले ? कि हम अपना जीवन इस तरह उधर की बातों में खत्म कर दे ? क्या हमारे जीवन का यही एक गृहस्थी, इधर से लड़ाई, झगड़ा घर मूल्य है ? क्या इसका कोई और मूल्य नहीं ? इसकी कोई कीमत नही ? इसलिए क्या हम अमीबा से इंसान बने ? कोई न कोई तो विशेष काम होगा, जिससे परमात्मा ने हमें एक मानव का रूप दिया । और जब यह जागृति आपके अंदर आ गई कि, हमें सत्य को जानना है । अब मैं मानती हूं कि जेसे आपने कहा कि इसकी दुकानें खुल गई और दुकानों में चीज़ बिकने भी लग गई खरीद सकते हैं । हो सकता है, यह सब गड़बड़ियां हो गई और उसमें भी बहुत से लोग बहक गए । पैसे बाले सोचते हैं वो भगवान को । किन्तु, असत्य है तो सत्य होना ही चाहिए । और वो सत्य क्या है ? उसे जान लेना भी एक परम कत्त्तव्य है । उसके बाद सब धर्मों का अर्थ निकलेगा क्योंकि यही सबकी सार तत्व है । उस तत्व को छोड़ने के कारण ही तो ये आज हमारे सामने अनेक तरह की रूकावटें आ गई । और हम धर्म की ओर मुड़ना नही चाहते । दूसरी बात ये भी है कि विज्ञान में धर्म की कोई चर्चा ही नहीं है । धर्म के बारे में कोई बोलता नही और आज सारा जमाना विज्ञान में ही चल रहा है । विज्ञान के सामने फिर हम झुक जाते हैं कि विज्ञान तो कोई धर्म की बात ही नहीं करता है, जिन तत्वों के बारे में बोलता है उन सब में उनके घमे हैं, उनकी मर्यादाएं है । जो सोना है उसका । लेकिन विज्ञान जिन बस्तुओं के बारे में कहता एक धर्म है । वो धर्म नही बदल सकता विज्ञान कार्बन का भी एक धर्म है, पशु का भी एक धर्म है । पशु भी परमात्मा के पाश में है और जो जड़ वस्तुएँ हैं, जितने भी जड़ तत्व है, वो सब परमात्मा के पास इसमे भी उसकी मर्यादा है । ऐसे ही मनुष्य में भी उसकी मर्यादा है । मनुष्य की दस मर्यादाएं, हैं में है जो हमारे अंदर भवसागर में उसका वाक्तव्य है । आदि गुरू दत्तत्रेय से लेकर जो भी महान गुरू हो गए, जिन्होंने अनेक बार जन्म लिया, उन्होंने हमारे अंदर धर्म की मर्यादाएं बिठाई है पर इस धर्म की जब तक जागृति नही होगी, जब तक हम उस धर्म के साथ एकाकारिता नहीं स्थापित कर लेते, तब तक धर्म केवल बाहूय काम हो जाता है । लोग कहते ह हैं, "माँ हम इतनी पूजा पाठ सब करते हैं पर अंदर कोई शांति ही नही । सो आप परमात्मा की बात कैसे कर रहे हैं ? हमने कहा कि अब परमात्मा का अनुभव लेने का समय आ गया है, इसे ले लीजिए । एक सर्वसाधारण बुद्धि से भी सोचिए कि सब चीजों के लिए आप पैसा कैसे दे सकते हैं ? कोई आपसे पैसा माँगता है तो आपको पूछना चाहिए कि इसका पैसा ना कैसे दे सकते हैं हम ? क्योंकि ये एक जीवंत क्रिया है । आप अमीबा से इंसान हुए तो कितना पैसा आपने दिया था ? और जब ये फूल धरती माता ने आपको दिए थे तब धरती माता को आपने कितने पैसे दिये थे ? अगर कोई जीवंत क्रिया है तो उसको आप पैसा कैसे दे सकते है ? धरती माता पैसा समझती क्या ? जब ये बात आप समझ लें कि ये एक प्रक्रिया है जो निसर्ग से आपके पास है और जिसे आप निसर्ग से ही प्राप्त कर सकते हैं, ये हमेशा सहज माने स्वतः होती है । उसके लिए आपके अंदर ही सब कुछ धा हुआ है जैसे एक बीज में सारे पेड़, फल, पत्तियाँ और पुष्प जो कुछ बनने वाले हैं, एक छोटे से बीज में उसका सारा चित्र है । उसी तरह से आपके अंदर भी इसी तरह का पूरा एक चित्र बना हुआ 15 अ টি 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-17.txt है । अब ये कहना कि साइंस में ये चीजें नहीं है तो सब चीज विज्ञान में है क्या ? विज्ञान में प्यार की कोई बात है ? बताएँ कि माँ बच्चे से क्यों प्यार करती है ? मनुष्य अपने देश से क्यों प्रेम करता है ? बताएं । । जो आँखों के साथने इसकी कारण विज्ञान दे सकती है ? विज्ञान तो बहुत ही सीमित चीज है दिखाई देता है, वही वो बता सकते हैं, और हजारों चीजें ऐसी है जो बिज्ञान नहीं बता सकती । इतनी सीमित है । क्योंकि वे जो दृश्य हम देखते है उसी को जानने का एक तरीका है, वो विज्ञान से समझ सकते हैं । पर, कहां तक ? एक मिट्टी का कण भी तो हम नहीं बना सकते अपनी तरफ से । जो उधर से बदल दिया । कोई पेड़ टूट गया तो मकान बना दिया, और बना-बनाया है उसी को इधर सोचने लगे बाह वाह हमने क्या काम कर दिया । अरे । मरे से मरा बनाया । कोनसा काम किया तुम ने ? जिंदा काम कर सकते हो ? तो अहकार इस से आता है जब मनुष्य सोचता है कि मैं ये करता हूँ, वो करता हूँ, मैने ये किया, मैंने वो किया दिया, और आगे क्या होगा भगवान जाने । तो विज्ञान की सीमा को देखते हुए आपने जानना है कि इस विज्ञान से परे एक और विज्ञान है । यह विज्ञान परमेश्वरी बिज्ञान है । उसे दैवी विज्ञान कह सकते हैं । लेकिन ऐसा कोई विज्ञान है, ऐसी कोई चीज़ है, इस पर लोग अविश्वास करेंगे । लेकिन यह है, और इसके बारे में हज़ारों वर्षों से, इस भारतवर्ष में अनेक शास्त्रों में लिखा गया है शताब्दी में श्री ज्ञानेश्वर अपने गुरू से इसके विषय में लिखने की आज्ञा माँगी मुझे सर्वसाधारण मराठी भाषा । विज्ञान ने जो किया बो देख ही लिया आपने । सददाम साह ब का क्या हाल कर । इतना ही नहीं, बारहवीं मैं यह सत्य कहने की तो आप इजाजुत दे दीजिए । इजाजत मिलने पर ज्ञानेश्वरी गीता में ये बात उन्होंने लिखी ज्ञानेश्वरी, जो कि गीता पर टिका है, उसके छठे अध्याय में उन्होंने साफ - साफ लिख दिया साफ लिख दिया कुण्डलिनी के बारे में कि ऐसी आपके अंदर शक्ति है जो जागृत हो सकती है । साफ । लेकिन धर्ममार्तण्डों, धर्म के नाम पर पैसा बनाने वालों को क्योंकि कुण्डलिनी जगाना आता ही नहीं था इसलिए उन्होने ज्ञानेश्वरी के छठे अध्याय को बेकार कह कर निषिद्ध घोषित कर दिया । उसके ा । बाद तुका राम, कबीर, रामदेव और नानक साहब ने यह बात, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार और हर जगह कुण्डलिनी के बारे में कहा । उन्होंने बताया कि कुण्डलिनी नाम की शक्ति हमारे अंदर स्थित है । जब ये कुण्डलिनी आपके अंदर जागृत हो जाती है तभी आप चारों तरफ फैली हुई इस परमात्मा की शक्ति, जिसे हम परम चैतन्य कहते हैं, उससे एकाकारित प्राप्त करते हैं इसका संबंध (योग) इसके स्रोत से हो जाता है । जब तक आपका योग ही उससे नही होता तब तक आपका कोई अर्थ ही नहीं लगता है । ये बात बाद में सबको कही गई, बताई गई । जनसाधारण तक, ये बात तब आई । आज तक जो कुछ हुआ है जो कुछ कहा गया है सहजयोग में बो प्रत्यक्ष में, अनुभव से कहा गया । इतना ही नहीं कि इसे आप प्राप्त करें, इतना ही नहीं कि जनसाधारण इसे प्राप्त करे, पर सहजयोगिय्ों के पास ये भी शक्ति है कि वो ओर लोगों को भी दे सकें । ये होना ही था । ये जो विजली आप देख रहे हैं पहले एक कही पर टिम टिमाता हुआ एक बल्ब जला लिया था एडीसन ने, 16 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-18.txt क्योंकि जो चीज इस संसार के उद्धार के लिए, इस संसार को उठाने के लिए है, इसको संपूर्णता में लाने के लिए बनाई गई है वो जरूर आनी ही है । इसलिए वो आई है । और उसके बाद आज संसार जगमग है अब जब हम सत्य को खोज रहे हैं तब हमें जान लेना चाहिए कि सत्य क्या है ? सत्य की खोज क्या है ? संक्षिप्र में सत्य को जानना माने अपने आत्मा को जानना है । उसको जानते ही चारों तरफ अब जानना शब्द जों है, उस पर हम लोग गड़बड़ कर फैली हुई परमात्मा की शक्ति को भी जानना है जाते हैं । जानने का मतलब बुद्धि से नहीं । बुद्धि से तो बहुत लोग जानते हैं । सुबह से शाम तक पाठ चलते रहते हैं । मै आत्मा हूँ, अहम ब्रहमस्मि । और फिर भ्रम में लड़ने भी लग जाते हैं । जानने का मतलब है अपनी नसों पर अपने केन्द्रीय स्नायु तंत्र पर आपको जानना है । इसी को बोध कहते हैं, विद कहते हैं जिससे बेद हुआ । इसी 'न' शब्द से ज्ञान बना उसी से बली हुई, कश्यप हुए । हरेक धर्म में दो, ज्यादा नहीं । ये माने गए लोग होते हैं कि जो आत्म साक्षात्कारी हों । लेकिन एक - दो, एक प कार्य कलयु ग में ही होना था । एक तरफ तो कलयुग का गहन अंधकार, अज्ञान और पहाड़ों जैसा अहंकार और ये पहाड़ों जेसा जो अहंकार है वो रोकता है इसान को । इंसान कभी सोच भी नहीं सकता । हम इस शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं । कि इस कलयु ग मैं हम इस ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं किसी से भी बात कीजिए जवाब मिलेगा हो ही नही सकता, आश्चर्य, असंभव लेकिन, जब हो सकता है तो क्यों न इसे प्राप्त करें ? और ये सहज ही है । सहज 'सह' माने आपके साथ, 'ज' माने पैदा हुआ । ये योग आपका जन्म सिद्ध अधिकार है । सहज का दूसरा अर्थ होता है 'आसान' क्योंकि ये बहुत ही आवश्यक तत्व से भरी चीज है वो होना ही चाहिए । आसान जैसे कि हमारा श्वास लेना बहुत जरूरी है तो बो आसान है । यदि श्वास लेने के लिए गुरू बनना और सब करना आवश्यक हो तो कितने लोग जीयें गे । और ये गुरू बनाने का भी रिवाज बन गया है यहां पर अरे भई। वो तो गुरू बने हैं, तुम कौन हो ? तुम तो अभी भी वही बने हो । तो फायदा क्या ऐसे गुरू को रखने से ? मानों पैसा भी नही लेते । । अच्छी बात है । पर ऐसे बहुत से गुरू हैं पैसे वैसे नहीं लेते, अच्छे हैं बिचारे तुमको कुछ बनाएं गे न तभी तो तुम ही क्यों न अपना गुरू बन जाओ ? बहुत आसान है सहजयोग में आप ही अपने गुरू हो जाते है । आप ही अपने को जान जाते हैं और सारा ज्ञान आप ही के सामने आ जाता है । कुण्डलिनी का जागरण के समय बहुत लोग कहते हैं कि बड़ी तकलीफ होती है, गर्मी होती है और परेशानी होती है । कुछ नहीं होता । क्योंकि कुण्डलिनी आपकी मां है, ये समझ लीजिए । ये आदि अपनी व्यक्तिगत मां है ओर ये हैं शक्ति मां का ही आपके अंदर प्रतिबिम्ब है, ये आपकी अपनी आपकी शुद्ध इच्छा की शक्ति । आपकी मां ने जब आपको जन्म दिया था तो आपको क्या तकलीफे दी बिचारी ने । सारी तकलीफें तो खुद ही उठाई । तो इस तरह की भी बातें बहुत से लोग करते हैं कि । शायद वो नहीं चाहते कि आप कुछ पा लें, या वो जानते ही नही और इसमें बड़ी तकलीफ होती है। तीसरा यह हो सकता है कि वो गलत लोग हों, उनको कुछ मालूम ही न हो । तो हो सकता है वे 17 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-19.txt ो । आज जो वात में आपके सामने रखना चाहती हूं बो ये लोकिन इसये भी गक ऊँची स्थिति जागृती के कार् की अनाधिकार चेष्टा क.ते ही कि आप अपने को ये समझे कि हम मानव स्थिति में तो आए जिस स्थिति को हम आत्मसाक्षात्कारी क हते हैं। । जिसको हम साक्षात्कारी मानव कहते हैं, जिसको है, द्विज (पुनः अवतरित) कहते हैं । ये एक वास्तविक स्थिति है । जब आत्म साक्षात्कारी आप हो जाते हैं है क्यांतरि ये सव्र निहत है, अंदर ही है, बंधा तो उसके अधिकार, उसकी सारी शक्तियाँ आपको मिल जाती दु आ है तो मिलना ही हुआ । तो पहले से शंका मत करिए । पहली बात यह है कि, आपको जानना साढ़े तीन फुट से । जहां आप ैठे है वहां से चा हिए कि क्राति में, विकास में आप चरम शिखर पे हैं उ्यादा आपको चलना नही । ओर ये कार्य घटित हो जाता है क्योंकि आप साधक है अनेक जन्मों के देना आपके पुण्य है और उन पुण्यों के फलस्वरूप ये आप सहज में ्त कर लेते हैं । मेरा लेना कोई नहीं बनता ये भी समझ लीजिए क्योंकि एक अगर दीप है तैयार और दूरारा जला हुआ दीप है । बड़ा भारी उपकार हो गया ? अगर वो उसे छू ले तो ये दीप जल जाए गा । तो उस दीप का कोन सा क्योंकि ये दीप भी तो दूसरे दीप जला सकता है । इरसी प्रकार सहजयोग में, जब आप इसे प्राप्त करते हैं तो आपकी शक्ति से ही आप अन्य लोगों को भी पार कर राकते हैं । इसी तरह से सहजयोग फैल रहा ं है । ऐसा कहते हैं कि 54 देशों में सहजयोग का कार्य चल रहा है । हालाकि, मै सब देश में तो नहीं है । हम कम तीस देशों में मने देखा है कि याहजगोग कहुत जोरी से फैल गया गई हूं लेकिन, कम से कभी हमें देखा नही था जाना रूस गए थे । तो चौद ह हजार, सोलह हजार से कम लोग नही आए । नही था । सिर्फ फोटो देखकर के बो लोग आए । उन्होंने सोचा कि कुछ न कुछ तो है इनकी शक्त में सब पार हो गए । मैं तो हैरान हो गई कि इन्होंने कभी और सबके । पता नहीं कैसे । मै हैरान । भगवान का नाम नही सुना, कभी इन्होंने कोई धर्म की बात नहीं करी । ये लोग, कुछ भी नहीं जानते, विचारे । ये कैसे पार हो गए ? परन्तु धर्म के नाम पर जो कुसंस्कार हम लोगों के बन गए हैं उनकी कभी र्कावटें आ जाती है तथा मिथ्यावाद को हमें त्याग देना चाहिए । इससे रूस में, जहाँ पर कि लोगों ने कभी वजह से हम में कभी धर्म बदनाम हो रहा है, हमारे ऋषि - मुनी बदनाग हो रहे है । धर्म का नाम ही नहीं सुना । मैने सोचा जैसे कोई एकदम स्ाफ ा। सुथरी कोई चद्दर थी । 'दास कबीर पल जतन से ओढ़ी और एकदग से पार हो गए और गहरे उतरने लगे । बडे आश्चर्ष की बात है । और हम जो सब उसके वारे में सुने हैं, जो सब जानते हैं, बड़े ज्ञानी लोग हैं हमारे ऐसे अगर कोई वाद मैं खड़े हों तो आपको लगेगा कि समुद्र में ही कूद पड़ो । लेकिन, अंदर खोखले हैं क्ल्कुल । ऊपरी विवाद तर ह से जो हमने इतना कुछ जाना है और सगझा है, इस चीज की वजह से हमारे अंदर जो असलियत है उतर नहीं पाती क्योंकि नकलिएत को हमने असली मान लिया है । तो पहली चीग है कि इस तरह के हैं । व अप सगझ जाइए गा कि, ये गलत है । जैसे अभी एक साहव ने बताया पालाने उन्होंने हमको नाम दिया कुसास्कार है वहुत गलत कि 'गुरूओं के चक्कर' । ये भी बहुत है । जो हमारे गुरु थे । अरे भई, नाम देने को गुरू काहे को चाहिए । गधा भी दे सकता है नाम गुरू काहे को चाहिए ? मनुष्य को से नहीं मिल सकता । सत्य को आप खरीद नहीं सकते । समझाना चाहिए कि जो सत्य है, वो हमें पैसे और सत्य जो भी हे मिला है आग तक वो इन्सान होने के ताते हमारे मस्तिषपक में हमारे केन्दरीय स्नाय है, उसी से जाना है । किसी के लेकचरबारजी से तंत्र पर यह हमारे शरीर में नसो की तरह से वह रहा I8 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-20.txt कुछ नहीं होता । ये अंदर की जागृति से ही होता है ओर जब इसकी जागृति हो जाती है तब मनुष्य समझता है कि मैं कितना गौरवशाली हूं । मे कितना विशेष हूं । मेरी क्या व्यवस्था परमात्मा ने कर रखी है । और हर क्षण ऐसा लगता है कि किसी नई दुनियां में आप आनंद मग्न है । जीवन चमत्कारों से भर जाता है । हर सहजयोगी के इतने अनुभव है कि उन्हें लिखने की भी सामर्थ्य उनमें नही । हम जानते ही नही उस परमात्मा के प्यार को, उसकी शक्ति को और जो वह हमें देना चाहता है । हति धर्म के नाम पर उपवास करना, शरीर को कष्ट देना आदि कुरसंस्कार ब्राहमणाचार ने हमें दे दिए आप सोचिए कि कोई पिता अपने बच्चों को कष्ट में देखकर प्रसन्न हो सकता है ? माँ को यदि आपने सताना हो तो आप खाना नही खाते । ये सब पाखण्ड हमारे देश में इतने फैले है कि इन्हें छोड़ना बहुत मुश्किल है । प्रेम के सागर परमात्मा तो चाहते हैं कि आप आनन्द में रहें । आत्मसाक्षात्कार के बिना धर्म का मर्म आप नही समझ पाते, इसीलिए धर्म के नाम पर इतना कष्ट आप उठाते हैं । कितना बड़ा ये विज्ञान है कुण्डलिनी का । कैसे मूलाधार पर बैठी हैं । कैसे ये उठती है । इसकी जागृती जब होती है तो सबसे पहले आपकी शारीरिक व्याधाएं दूर हो जाती है । कैंसर, ब्लड कैसर तक ठीक हो जाता है । ऐसे लोग यहां मौजूद है । पर यह तभी हो सकता है जब नमता और शुद्ध इच्छा पूर्वक आप हम से मांगे और अपनी जागृति करवा लें । यहां दिल्ली मैं तीन डाक्टरों ने इस पर एम.डी. पाई है । इनमें से एक का विषय सहजयोग द्वारा अस्थमा रोग का इलाज था । कुण्डलिनी जागृत होकर हमारे सारे चक्रों को प्लावित कर देती है इसके पोषण से चक्र ठीक हो जाते हैं और हम मानसिक, शारीरिक बौद्धिक और आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं । पर यह भी नहीं कि सहजयोग में आने के बाद आपको कोई बिमारी ही नहीं होती । कारण यह कि सहजयोग में आने के बाद जो ध्यान, धारणा तथा प्रगति आपने करनी होती है वो आप नहीं करते । फिर भी आपके कष्ट बहुत घट जाते हैं । सहजयोग में आने के बाद एक महीने में आप पूरी तरह से सहजयोग को समझ सकते हैहै और उसमें उतर भी सकते हैं । पर जिस प्रकार रोज हम लोग स्नान करके अपने शरीर को साफ करते हैं उसी इसके लिए दस मिनट से ज्यादा नही चाहिएं । ये इतनी सहज, सरल पद्धति है । जैसे भी आप हैं पहले साक्षात्कार पा लीजिए । थोड़ा सा भी प्रकाश प्रकार रोज अपने चक्रों को भी आपको साफ करना पड़़े गा । अगर आ जाय तो काम हो जाता है । अंधेरे में रस्सी समझ कर गर आपने सांप पकड़ा हो और अचानक रोशनी हो जाए तो आप फौरन सांप को फेंक देंगे । इसी तरह कुण्डलिनी जागरण के प्रकाश में आप स्वयं ही सब बुराइयां छोड़ दें गे । सभी तरह के तनावों से मुक्त हो कर आप शांति को पा लेते हैं । तनाव (टेन्शन) रोग आज कल बहुत फैल गया है । पहले ये रोग किसी को होता ही नहीं था क्योंकि लोगों की जरूरते बहुत कम थी और वो बहुत सादा जीवन बिताते थे । पर आज ऐसा नहीं है । 19 "AcA "Ace 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-21.txt तनाव से मुक्ति दिलाने के नाम पर बड़ी - बड़ी संस्थाएं बन रखी है और लोगों से लाखों रूपये ऐंठे जा रहे हैं । जब आपकी कुण्डलनी चढ़ जाती है तो आप निर्विचारिता में आ जाते हैं और तनाव अपने आप समाप्त हो जाते हैं । हमारे अन्दर तीन नाड़ियां हैं । कहा है कबीर दस जी ने इंडा, पिंगला, सुषमन नाड़ी रे सुषुम्ना नाड़ी हमारे सूक्ष्म नाड़ी तंत्र (पैरा सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम) को प्लाबिव करती है है । और बायीं ओर ईड़ा तथा दायीं ओर ्पिंगला नाड़ियां बायें और दायें स्नायु तंत्र को प्लावित करती है । पोषण करती बोर्न) है । इस प्रकार हमारे स्वायत्त स्नायु तंत्र (आरटो नोमस नवस सिस्टम) का कार्य स्वचालित (आटो ये स्वचालित पद्धति क्या है ? 'आटों यही आत्मा है । इसके विषय में डाक्टरों को कुछ पता नही । उन्हें बाें और दायें स्नायु तंत्र में अन्तर नही पता । हालांकि अब वैज्ञानिकों का ध्यान इधर जाने लगा है । लेकिन सहजयोग में आप एकदम जान जाते हैं कि जब आप बायी ओर होते हैं आप भूतकाल में रहते अवचेतन में पहुंच जाते हैं, सामृहिक अवचेतन में चले हैं, पिछली बातें सोचते हैं और अन्त में सुप्त जाते हैं । तो ईड़ा नाड़ी का काम यह है कि जो भी काम हम करते हैं उसे वो हमारे पास में भरती 1 इसके कारण जो भी हमारे शरीर में कार्य है वो संस्कार युक्त हो जाते हैं । हमारे सभी अच्छे या बुरे - जैसे भी हों, इस नाड़ी की तरफ से बनते हुए लहरों की तरह बायी ओर को जाती संस्कार चेतन बना है और हमारे वहते जाते हैं । जब से ये संसार बना है तब से ही हमारे अन्दर का सुप्त अन्दर है । उसके बाद हमारे जो अनेक जन्म हुए हैं बो भी उसी मैं हैं । माने हमने पशुयोनी से निकलकर मनुष्य रूप में जो जन्म लिये वो भी इसी रूप में है। और जो पल आया और गया, वो भी हमारी पूरी बांयी तरफ से है । । आज भी एक पल, जो अभी आप यहाँ हमारे दांयी ओर मैं जो व्यवस्था है वो ऐसी है कि जो भविष्य की ओर नजर करे । उसमें हमारा शारीरिक कार्य होता है और जिससे हम भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं - कि कल क्या करना है, परसों क्या करना है । ये सारा कार्य दांयी तरफ से होता है । तो दांयी तरफ से कार्य करते वक्त जो कुछ भी शारीरिक कार्य हमें करने है बो रह जाते हैं क्योंकि हम सोचते ही रहते हैं इसलिए जो लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं उनके लिए आजकल की बहुत सारी समस्याएँ खड़ी हो जाती है । इसका एक कारण यह है कि वो लोग एकागीय है, दांयी ओर के है । दायी ओर झुका हुआ मनुष्य सदा आने बाले कल के बारे में सोचेगा और योजनाएँ बनाये गा । आज तक कभी कोई योजना ठीक हुई है ? योजना की असफलता से निराशा ही हाथ लगती है । तो हर बक्त भविष्य के बारे में सोचने वाला व्यक्ति दांवी ओर को होता जाता है । ऐसे आदमी को भी बहुत सारी बिमारियों हो जाती हैं । पहली बिमारी उसको लीवर की हो जाती है दूसरी बिमारी लीबर की गर्मी की है जिसकी वजह से अस्थमा की विमारी हो सकती है एसे मनुष्य को दिल का दौरा आ सक ता है, अंगघात हो सकता है । लीवर की गर्मी जब नीचे की ओर जाती है तो ऐसे आदमी को जानलेवा गुरदा रोग हो सकता है । उसे कञ्ज के रोग भी सकते हैं । जब 20 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-22.txt है । और की विमारियां हो नाती हमारे अंग आलसी हो जाय, (लेथार्जक) हो जाप उस बक्त हमें दांवी दांयी ओर का आदमी दूसरों को सताताहै और जा बायी और का होता है वो अपने को सताता है । कभी उसका हाथ टूट रहा है और कभी पर कभी उसे जोड़ों का दर्द हो जाता है । तत दिन अपने लिए रोता ही रहता है । एन्जोइना (हृदय शूल) भी बायीं और का रांग है । दिल का दोरा दूसरी चीज है बाबी होती जाती है । ये बिमारियां डाक्टर लोग ठीक नहीं कर सकते । ओर के व्यक्ति की नांत पेशियां क्षीण ये बिमारियां सहज में हो ठीक हो सकती है । फिर ऐपीलप्सी (मिरगी) का रोग है । किसी - किसी का तो दिमाग खराब हो जाता है इस तर ह की सारी मानांसक विमारियां जो कि शरीर पर दिखाई देती है वो । पागल आदमी को कभी दिल का दौरा नही पड़ता क्योंकि वो बांयी आर बांयी और की विमारियों है होता है । इस तरह वांयी और दांवी दोनों ओर की विमारियों को तहजयोग में आप एक साथ ठीक कर स साग से जब कुण्डलिनी ऊपर को पढ़ती है तो आप के चित्त का दांयी और बांयी ओर से खींच कर मध्य में ले जाती है । लैकिन यदि मनुष्य बहुत अधिक वांयी या दांवी ओर का हो और उसी तरफ से अचानक कोई अधिक जार केनि्द्रिय स्नाय तंत्र पर बने किसी चक्र पर पड़ जाय तो यह चक्र टूट भी सकता है और मनुष्य का सम्बन्ध पुरे में ल्दंड से टूट सकता है । और हो गई कंसर जेसी बिमारी आपको । इस तरह के रोगों को मनांद हिक (साई को सामेटिक) रोग कहते हैं । इन विमारियों को डॉक्टर लोग ठीक नही कर सकते हैं परन्तु सहजयोग नें इन्हें डीक करने के आसान तरीके हैं । सहजयोग नें सकते हैं सुषुम्ना मुलभूत सात चक्र है । इन्हें ठीक करने से ज्यादा कुछ करना ही नहीं है । जिस ओर वहुत आसान है । कोई पेड़ यदि बिमार है। कर उसकी जड़ां का इलाज करना होगा। उसके पत्तों का इलाज करने से कोई फायदा नहीं । अपने रोगों को ठीक करने के लिए आपको अपने मूल में उतरना होगा । सुक्ष्म बनना होगा । इसके लिए आपको ओर तीन नाड़ियां उसके नूल नें उत्तर ता का रोग हो उसका इलाज कर लो । बितेट आत्म साक्षात्कार चाहिए । पर आजकल इस पर कोई विश्वास ही नहीं करता । अपनी आंख को देखिये, क्या कमाल का कैसरा है और आपका दिमाग क्या कमाल का कम्प्यूटर है । आप क्या कमाल के बने हुए । जब आत्म साक्षात्कार द्वारा सभी लोग उस है । इसकी जो आत्मिक चीज है उसके ज्ञान को प्राप्त करें 'कैवल ज्ञान को प्राप्त कर लंगे तो सब झगड़ समाप्त हो जाये गे । बही सत्य है और बही परमात्मा का प्रेम भी है । आपकी कुण्डलिनी ऐसी उठती है ' शोभना सुलभागति' बड़ी शोभा से बड़े आराम से धीरे धीरे उठती है । किसी की खटाक से भी उठती है । पर लेकिन आपको पता भी नहीं चलेगा क्यांकि यह चारों तरफ फैले हुए परमात्मा के प्रेम का कार्य है । जब आप पार हो जायें गे तो बातावरण में छोटे छोटे से, कोमा के आकार के, कण चमकते हुए दिखाई देते है । यही सोचते है, सब जानते है, संयोजन करते हैं और सबसे बड़ी बात है कि ये प्यार करते है । प्यार के इतने सुन्दर इतने सुलभ इतने मनभावन संयोजन को देखकर आप आश्चर्य चकेत रह जायें गे । और सोचेंगे कि मेरे जीवन की सारी योजना पहले ही बन चुकी है । लंदन जैसे शहर में जहाँ हजारों लोग बेरोजगार है वहाँ पर आश्चर्य की बात है कि एक भी बेरोजगार तहजयोगी मिलना मुश्किल है हम समझ जाते हैं कि जब सारा ही हम येकार में पुरेशन हो रहे । है । उसका प्रत्यक्ष हो जाता है । केवल इन्तजाम वी करने वाला है तो - 21 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-23.txt इमके लिए आपके अन्दर पक कु्डलिनी का जागरण आपको अने ऊपर नियय कोना आ । यह। होना आवशय। । । ना ऐमी हो जाय कि आपमे वताया कि आपके मन की रचना हरगी हो जाये f । गव क। सात्कार पाने की इ् त ो जाये । उस की मत आप अकि । चीज है । नहजयोग की वहाने के लिएहुत लोगो ने त्याग किये उन्ही की मेहनत से आज सहजयोग कि यह स्थिति आ गई है कि आपको विना किसी मेहनत के फल प्राप्त हो जाती है । इसलिए मां का आपसे अनुरोध है कि संदिह को छोड़कर अपनी जागृति को प्राप्त कर लें । यह नहीं सोचें कि ये वेकार की ईश्वर आपको आशीवादित करे । 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-24.txt दूसरा सार्वजनिक कार्यक्रम ताल कटोरा स्टेडियम दिल्ली-3.3.1991 परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साह ब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैंने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी धीरे एक एक चक्र हमारे एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहृम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और इस कृतयु ग के बाद ही सत्य है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जखूरी था । जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो गया है । अब इस कृतयु ग का अनुभव आपको साक्षात्कार के बाद आये गा । हर पल आये गा । आपको आश्चर्य होगा कि ब्रहृम चैतन्य का कार्य कितना सुन्दर, अनुपम और ईमानदारी का है । इसमें कही कोई गलती नही, इसमें इतना प्रावीण्य है, इतना कुशल है कि आश्चर्य होता है कि ये किस तरह कार्य करता है । तो अब आपका एक कार्य है कि आपका संबंध उस ब्रहुम । इस कृतयु ग में ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया यु ग आ सकता है यारद चैतन्य से हो जाये, उसके लिए आपके अन्दर ये कुण्डलिनी शक्ति साट़े तीन बलयों में बैठी हुई है । बलय को कुण्डल कहा है । इसीलिए इस शक्तित को कुण्डलिनी कहते हैं । ये शक्ति आदि - शक्ति का क प्रतिबिम्ब है और आत्मा परमात्मा का प्रतिविम्ब है । आपसे कल बताया था कि आदिशक्ति परमात्मा की शुद्ध इच्छा है और बो इच्छा ये है कि सब जो कुछ जो इंसान के स्वरूप, मानव के स्वरूप में इस संसार में है, सब उनके सामाज्य में आयें और आनंद का उपभोग करें । यही उनकी एक शुद्ध इच्छा वक्त कुण्डलिनी उठ करके और इन छः चक्रों को भेदती हुई ड्रहृम - रन्ध । जिस को भेदती है और उस सर्वव्यापी ब्रहूमचैतन्य से एकाकारिता प्राप्त करती है उस वक्त क्या चाहिए । सबसे पहले जैसे आप लोगों में से बहुत लोगों को ठंडी ठंडी हवा जो आपको महसूस हुई, जिसका बोध हुआ, यही ब्रहूमचेतन्य है । कुण्डलिनी जब ऊपर चली आई तो बहां से भी आपको ठंडी क्या घटित होता है वह जान लेना ठंडी हवा सी लगती है, ये ठंडी ठंडी हवा का एहसास हुआ । यह तो बाहुय की चीज हुई जिससे कि आप जाने लें कि आप पा गए हैं । इसे हम आत्मसाक्षात्कार कहते हैं । उसकी शुल्आत हो गई किन्तु का 23 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-25.txt आत्मा क्या है ये जान लेना चाहिए । मने कहा है कि आत्मा आपके हृदय में प्रतिबिम्बित होती है । आत्मा सिर्फ एक प्रतिविम्ब मात्र हमारे सारे कार्य को देखने बाला एक दृष्टा है। अभी तक उससे हमारा कोई संबंध नहीं । न बह देखता है और न ही उसका प्रकाश हमारे चित्त में है । हमारा चित्त अब भी अंधकार में ही है । तो इस आत्मा का स्वभाव क्या ? वह जान लेना चाहिए । वो जानते ही आप जान जाये गे कि इस आत्मसाक्षात्कार से आप क्या प्राप्त करते हैं । पहले तो जब कुण्डलिनी इन चक्रों में से गुजरती है तो आपको अनेक प्रकार की नई -नई उपलब्धि होती है, जैसे शायद डॉक्टर साहब आपने बताया क होगा कि क्या-क्या उपलब्धियोँ होती है लेकिन जब आत्मा का प्रकाश आपके चित्त में आ जाता है तब आप आत्मा का इस स्वरूप में जो कार्य है उसे प्राप्त करते हैं । और उसका सबसे बड़ा कार्य यह है कि फर्क उसके प्रकाश में आप केवल सत्य को जानते हैं । मैं कहूं सत्य को नहीं 'केवल सत्य को । इसका समझे आप ? जितने मुँह उतनी बात होती है । जितनी आँखे उतना देखना होता है । किन्तु 'केवल सत्य ' यह होता है कि जब इसे आप प्राप्त कर लें तो सब लोग एक ही चीज को जानते हैं और उसमें दूसरी शक्ति है कि ये केवल ज्ञान को देखती है जैसे कि समझ लीजिए कोई आदमी कहे गा कि ठीक आप कैसे जानियेगा कि ये असली ये एक फोटो हे या एक मूर्ति है या एक साधु है ये असली है । हैं कि नकली है ? इस तरह से आप इसे जान सकते हैं कोई अगर कहता है कि ये असली है, कोई कहता है नकली है, उसकी कोइ पहचान नहीं, उसका कोई ज्ञान नही, तो फिर वो जानने के लिए कोई मार्ग भी नहीं । एक ही मार्ग है कि 'केवल ज्ञान स्वरूप' जो आत्मा है उसके प्रकाश में हर चीज को देखना चाहिए । उस वक्त आप उस आदमी की ओर या उस फोटो की ओर या उस मूर्ति की ओर हाथ करके पूछे - दोनों हाथ आत्म साक्षात्कार के बाद, कि क्या े सत्य है ? ये गुरू सत्य है ? इतना ही पूछना है बस । ऐसे पूछते ही आपके हाय में उस सत्य के दर्शन हो जायें गे । आप जान जाये गे अगर बो सत्य ठंडी हवा चल पड़े गी । जैसे कल यहाँ पर शिर्डी के श्री साईनाथ के बारे में है तो आपके हाथ में ठंडी किसी ने पूछा कि माँ शिर्डी के साईनाथ क्या सच्चे थे ? मैने कहा हाथ करो मेरी ओर, एक दम उनके हुने लगी । ये कुछ बातें शास्त्रों में भी लिखी गई हैं ये जो हाथ में जोर - जोर से ठंडी ठंडी हवा बह कहा है कि परमात्मा है । आजकल तो ऐसे भी लोग हो गये हैं जो कहते हैं कि परमात्मा नही है । ये कहना तो बड़ी अशास्त्रीय ओर अवैज्ञानिक बात है कि परमात्मा नहीं है । आपने खोजा है ? आपने जाना है ? बगैर देखे ही आप कह रहे हैं कि परमात्मा नहीं है । जानने के बाद आप कह तब तो कोई बात भी है । लेकिन अगर आप पूहछे कि परमात्मा है ? एकदम आपके हाथ में ठं०डक सी चलेगी । यदि आप सहजयोग में काफी उतरे हों तो ऐसे लगेगा जैसे ऊपर से नीचे तक गंगा बह रही हैं । एकदम से आदमी शांत हो जाए गा । सो पुरी तरह से जिसे हम केवल ज्ञान क हते हैं वह आप प्राप्त करेंगे । शुरूआत में जब तक पूरी तरह से आप नाव में नहीं बैठे तो हो सकता है कि डगम ग हो, लेकिन जब आप पूरी तरह से उसमें जम जाते हैं तो आश्चर्य होता है कि छोटे ये कच्चे ने ( छोटे बच्चे भी बता सकते हैं कि *मां वह योगी अंग्रेज क्च्चे ने) फोन उठाया और मुझसे कहा साहब कैसे हैं ? अभी एक नहीं है, वह आपसे बात करना चाहता है ये कैसे जाना ? ये चैतन्य जो है उसका आपको बोध होता है। - 24 ल 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-26.txt कल मैने आपको बताया कि बोध होने का मतलब होता है कि केन्द्रीय स्नायु तंत्र पे, अपनी मज्जा संस्था पर आप जानते हैं ये कहने से नहीं कि ये ऐसा है, वैसा है । जैसे आप अब देख सकते हैं कि यहाँ एक सफेद चढ्दर बिछी हुई है, सब लोग देख सकते हैं कि यहां एक सफेद चद्दर बिछी हुई है, उसी प्रकार आप जानते हैं अपने सैन्ट्रल नर्वस सिस्टम फ़िर बताने की जरूरत नहीं, केहने की जरूरत नहीं पे कि सत्य क्या है और असत्य क्या है । बुद्धि । सो सत्य को जानना है । से नहीं हो सकता । अगर बुद्धि से होता तो इने झगड़े क्यों खड़े होते ? कही साम्यवाद है, कही पूंजीवाद, कही प्रजातंत्र है कही राकस राज्य ( डेम्नोक्रेसी) । ये सारे वाद झूठे है, किसी में भी सत्य नहीं क्योंकि ये सिर्फ हर एक की अपनी धारणा है और उस धारणा को सत्य मानकर लोग उससे चिपक गए । जैसे हमारी बात लीजिए, आप सब ये कहंगे कि हमारे पास जब सब शक्तियां है तो हम तो बड़े भारी सारी शक्तियां हमारे पास हों तो हम तो बहुत बड़े कैपटलिस्ट है ही परन्तु बहुत ही बड़े कम्युनिस्ट भी हैं क्योंकि बो शक्तियां सबको दिए बगैर हमें चैन नही य (कैपिटलिस्ट) पूंजीवादी हैं, इस उम मैं भी हर तीसरे दिन सफर करते रहते । हैं । चैन ही नहीं । जब तक दिया नहीं अच्छा ही नहीं लगता । देने की शक्ति कम्युनिज्म से नहीं आती और पाने की शक्ति कैपिटलिज्म से नहीं आती । तो हर चीज में जो सत्य का अंश है उसे जानने कोन दुनियां का एक ही तरीका है कि इस आत्मा को प्राप्त करो । तब आप समझ जायें गे कि कौन में आज तक हुए जो कि आत्मसाक्षात्कारी थे । कौन सी धारणाएं सत्य है कोन सी झूठ है । कोन सा हिस्सा धर्म का ठीक है और कौन सा झूठ है । कौन से शास्त्र में कोन सा सच लिखा गया है और कौन सा झूठ । कौन सी बात इसमें असलियत है ओर बाकी नकलियत । जिसे कहते हैं पर्दाफांश कर देना । ये सिर्फ आत्मा के प्रकाश में ही घटित हो सकता है और दूसरी बात कि आपका जो चित्त है आपका चित्त जिसे ध्यान (अटेन्शन) कहते हैं, ये इस प्रकाश से जब प्लावित होता है, इसका पोषण होता है, जब इस प्रकाश से भर जाता है तब जहां भी चित्त से कार्य कर सकते हैं। घुमाइये जहां भी नजर करिए एक कटाक्ष-मात्र से भी आप बैठे कहीं भी दुनियाँ में जो चीज हो गई है, जो । और यहां बेठे बहुत लोग हो गए हैं और जो लोग हैं, किसी के बारे में भी आप जान सकते हैं । ऐसा ये कम्यूनिकेशन है बहुत ही कुशल । आजकल के जैसे नहीं कि टैलीफोन ही नहीं लगते य बेठे आप जान सकते हैं कि किस आदमी में क्या बात है, कोन सा चक्र उसका पकड़ा है । व्यकि्त की बुराई तो बाह्य चीज है, लक्षण है, अंदरूनी चीज ये है कि उसके कौन से चक्र पकड़े हैं । यहां बैठे यहां वैठे बैठे ही आप ।। त उसके चक्र ठीक कर सकते हैं । लेकिन ये कम्यूनिकेशन पूर्णत्या दृढ़ हो जाना चाहिए । एक चित्तमात्र से आप इतना कार्य कर सकते हैं । और आपका चित्त जो है वह एकाग्रता से सब देखता ही रहता है । बस देखता है । मैने आपको कल कहा था कि किसी चीज को देखते हुए सोचने की कोई बात नहीं । देखते बनता है, कितने प्रेम से यह सजाया है, यह भी सोचने की बात है १ या किस कलाकर ने अपनी कला का आनंद यहां भरा है, यह भी सोचने की बात है ? वह जो कुछ सम्पूर्ण में सोचने की बात है । बह जो कुछ सम्पूर्ण में उसने यहां दिया है बो सारे का सारा चैतन्य बनकर के झरने लगजाता है ओर बस आनंद के सागर में मनुष्य डोलायमान रहता है । जिसे हम शुरूवात में कहते हैं कि निर्विचार समाधि प्राप्त हुई । - 25 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-27.txt हठ योग में जिन लोगों ने सिर्फ व्यायाम करना जाना है उन्हें जानना चाहिए कि व्यायाम एक बहुत थोड़ी सी चीज है । पातांजली का अगर आप पातांजल शास्त्र पढ़े तो उसमें समाधि की ही बात की हैं, पहले निर्विचार, फिर सबिकल्प, फिर निर्विकल्प समाधि । इस तरह से उन्होंने इसकी तीन दशायें अवेयरनेस) दिखाई है, वही आपको सहजयोग में प्राप्त होंगी । समाधि का अंग्रेजी में अर्थ हो सकता है ( चतना, कि आपमे एक नया आयाम, एक नया डायमेन्शन आ जाता है जहां आप बुद्धि से परे उठकर के हर चीज को समझने लग जाते हैं । सहजयोग में आपने सुना होगा कि बहुत से (म्यूजिशयन्स) संगीतकार हैं, बहुत से (आर्टिस्ट) कलाकार हैं (जो बड़े मशहूर आजकल हो गए हैं) यो सहजयोग में आते ही बहुत बड़े आर्टिस्ट हो गए पहले कुछ भी नहीं थे । उसकी वजह यह है कि उनका चित्त इतना सकाग्र हो गया कि जिस भी चीज को देखता है उसका पूरा का पूरा हिसाब -किताब उसका पूरा चित्त ही मानों उसके मनस्पटल पर छा जाता है । बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूलों में पढ़ने में बहुत कमजोर होते हैं, सहजयोग में आ के अब्वल आने लग जाते हैं । यहां तो रिकार्ड है कि एक लड़का 23 साल के अंदर सी. ए. हो गया । अभी तक कोई नहीं हुआ ।। सब चीज के रिकार्डज है । इंजीनियर्स जो कभी इतनी उमर में नहीं हुए थे वे हो गए । सहजयोगी बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत तेज हो जाते हैं । स्वभाव में उनके अदब आ जाता है, अपनी संस्कृति की जो विशेषता है कि हमें अदब करना चाहिए । सुबह से पृथ्वी तत्व को हम नमस्कार करते हैं कि तुझे हम पैर से छुएं गे, क्षमा करना । यह जो अदब है पहले सिखाया जाता था, बताया जाता था, देखा जाता था । अपने आप ही मनुष्य नम हो जाता है । उसमें एक जिन बातों के बारे में धार्मिक पुस्तकों ऐसे लोग जो मशहूर गुस्सेल अदब आ जाता है और उस नमता में बड़ा मजा आता है । जिन में लिखा गया है वह सारे ही तत्व हमारे अंदर जागृत हो जाते है । ऐसे -ऐ थे, गुस्सैल तो क्या कहना चाहिए बहुत ही ज्यादा उपद्रवी लोग थे, जो हाथ में हमेशा तलवार बंदुक लेकर घूमते थे, वो भी हमारे इतने प्यारे बेटे हो गये कि लोगों को समझ ही नही आता कि इनको क्या हो गया है । ऐसे बदल कैसे गये ? ये इतने सुन्दर कैसे हो गए ? तो अपने अंदर का जितना भी गौरव है जितनी भी विशेषताएं हैं जितना भी प्यार है, वो सारा ही एकदम उमड़ पड़ता है और मनुष्य शांति में स्थापित हो जाता है । जैसे एक चक्का है, चक्र है, पहिया है वह घूमता है लेकिन उसका जो मध्य है जो धुरी है वह शांत रहता है । आप चक्के की उस परिधि से निकलकर के मध्य में आ जाते हैं । ये आत्मा आप ही के अन्दर बसा हुआ आपका अपना है और कुण्डलिनी भी आपकी आपनी शक्ति है । आत्मा के प्रकाश में जो सबसे बड़ी चीज देखनी है वह है आनंद । आनंद में सुख ओर दुख नहीं होता । एकमेव चीज निरानंद, सब निराआनंद ओर उस निरामंद को आप अपने आप ही प्राप्त कर लेते हैं । जैसे कि सब कुछ ड्रामा चल रहा है चारों तरफ और फिर भी आप उसमें उलझ जाते हैं गर कोई लड़ रहा हो तो आप उसके साथ लड़ने लग जाते हैं । यदि कोई रो रहा हो तो आप उसके साथ रोने लग जाते हैं । लेकिन जब ड्रामा खत्म हो जाता है तो आपको पता चलता है कि ये तो खत्म हो गया, अरे ये तो ड्रामा था । उसी प्रकार भव सागर पार करके दुनिया के झमेले की ओर आप देखते हैं कि 26 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-28.txt य तो नारा खल है, वे लीला है। क्यॉकि विशान्धर चक्र थी कृप्ण का बात आप समझ सकते हैं । आद फिर सहजयागों गलत काम नही कर रकता । इर से नहीं, बहुत से हैं मुस्ूओं के बताय सारे धम आपके अन्दर जागृत हो जाते हैं । नीग इर से अच्छे हृते हैं, क्योंकि वे अच्छाई का मजा उठाने लग जाते हैं । में मशहूर होते देखा है । अच्छे होने का नजा उठाने लगते मैन ता अंति कंजूस लागों को दानल्व उनके अंदर छपा हुआ दाता उभर आया बाहर । आपती त्रेम । सार विश्व को ये का यह सारा कार्य है। चा दै" परमात्मा का प्रेम निर्वाज्य है, अलिप्त है । जैसे कि एक पेड में उसके अंदर का तत्च सत्व, है । फिर भी किसी एक चीज में अटक पेड़ की हर शाखा पत्ते फूल सबको देता सेब कुछ चहता है । नही जाता है । मान लीजिए कि उसे एक फूल पसंद आ जाय यदि वह सत्व वही अटक जाय तो पड़ एड़ड तो मर जाये गा और भी मर जाये गा । है मरा बेटा, मेरी केटी, मेरा घर, वे ममत्व है । अंत में वही बेटा, बेटी और घर इतना सताते हैं कि अरे बाप रे बाप । अगले जन्म तो बाबा एक बच्चा न हो तो अच्छा है । ये तो सब को अनुभव है । इस अनुभव से जो आपने ज्ञान प्राप्त किया बह बड़ा दुःखदायी लगा होगा । आत्मसाक्षआत्कार से सहज में ही आप जान तो किसी चीज में अटकाव करना ही प्रेम को मारना | न. फूल लेते हैं कि किसी से भी लगाव करने की कोई जरूरत नहीं । जिसके साथ जो करना है वह करना है लेकिन किसी मैं अटकने की कोई जरूरत नहीं । स्वतः ही आपके व्यक्तित्व में बह बात आ जाये गी। । में किसी चीज को मना नहीं करती । परदेश में आप जानते हैं कि बहुत से लोग इरस लेते हैं । यहां भी मैन सुना है थोड़ा बहुत । पर बहां के लोगों में बड़ी ईमानदारी है । वे ढोंगी नहो है शुरू हो नया है बजह य बड़ी रहे, कृष्ण रहे, नानक रहे, कवीर रहे, तुयाराम, सब बड़े । यहाँ पर लोगों में जरा ढोंग है । - बड़ी बारतें हम जानते है हमारे सामने राम बड़े लोग इस देश में आय लक्ष्मण । तो हम लोग यह दिखावा तो हम कर सकते हैं कि दुम सोचते हैं कि चलो कन से कन उन बड़े - बड़े आदशों का भी अच्छे है । मैंदिर में मूर्ति रखेंगे हैं कि सुबह से शाम तक सौ झूठ न बोलें तो वे हिन्दुस्तानी हो ही नहीं सकते हिन्दुस्तानी की पहचान यह है कि झूठ वोलना चाहिए सोचिए करते हैं । हर आदमी अपने को आदर्श बताने की कोशिश करता है । अपने अंदर उसने कभी देखा ही नहीं । ये देखा ही नहीं कि मै क्या हूं ? मैं क्यों झूठ बोलता हूं ? क्या जरूरत है मुझे झूठ बोलने की ? श्री राम की और बीबी को रोज मारेंगे । कोई, - कोई लाग तो ऐसे ये सब चीजें हमारे अंदर इसलिए समा गई कि हम ढोँग ठीक है आप नमता रखें, बोलें ही मत, लेकि न हमारे सामने इतने बड़े - बड़े आदर्श व्यक्तियों की जीवनियां है कि उनको देखकर हमें लगता है कि इनके सामने हम इतने बुरे लगेंगे । इसलिए दिखावा करना अच्छा । चाहे फिर वह धार्मिक हो, चाहे नास्तिक हो, चाहे बह मंदिरों में जाए चाहे मस्जिदों में चाहे वो भगवान को कुछ भी कह द । अपने ये जो साधू संत हो गए हैं उनकी क्या विशेषता थी ? वह क्यों नहीं झूठ बोलते थे ? वे क्यों नहीं दुष्टता करते थे ? उन्होंने ऐसे संघ क्यों नही बनाये जो सबकी मार पीट करें ? उनमें कौन सी ऐसी शक्ति थी कि उनको इतना सताया, इतना तंग किया तो भी वे शांति पूर्वक अपने में ही आनंद विभोर रहते थे ? तो इसमें भी हमारा दोष नहीं । से ति गर हमने ढोंग किए हैं तो उनमे कम ि 27 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-29.txt कम एक वात ती अच्ी है वि हग इन अदर्शो को शे मानते हैं तो मकत हो जाये गे, विदेशों में मैं देखती हूं वहां तो कोई इनसे कुछ सीखने का हमारे लिए है ही नहीं, कुछ भी सीखने का नहीं लेकिन ये दाग छोड़ना पड़े गा। अपनी संस्कृति में कुछ चीजें अत्यन्त युन्दर हैं । | गर अपने ढांग करने छोड़ दिए संस्कृति ह्ी नहीं है । ऐसी नंदी मंस्कृति है कि । इसलिए परदेशी काई आदर्श नही हुए इसलिए ढंग नहीं है । ने ड्रग्स छोड़ है। । क रत में लोगों गहानता में उत्तर जाते राहजयोग में आए औरपार हो ग खुट से । दी जिसके नशे में वेहोशी की हालत में आये थे ्रोग्राम में । शराव छोड़ दी एक रात में । लेकिन । योड़ा टाइम लग जाता है । कुछ लोगों की आदत छूट भी जाती है हिन्दुस्तान में नहीं छूटती जल्दी से । एक साह व सहजयोग में अकर भी तम्बाकू खाते थे । उनसे छूट नहीं रही थी वो आकर कहने लगे माँ पता नहीं क्यों जब में आपके फोटो के साम ने ध्यान करने केउता हूं तो मेरा मुंह ऐसा फूलने लग जाता है । कहीं हनुमान जी तो नहीं हो रहा हूं १ मने कहा कि कोई विशूद्धि का ही कष्ट है । कहने लगे हां विशुद्धि मेरी वहुत दुःखती है । मैने कहा देखिये मैं सच वात वताऊँ ? कहने लगे हें आप तम्बाकू खाते हैं तो आप हनुमान जी जैसे हो ही जायेंगे । तम्बाकू खाना आप छोड़ दीजिए खट से । उनके दिमाग मैं आया मा ने कैसे जाना । उस दिन से तम्बाकू छूट गया । फिर भी साल भर लगा । साल भर तक व ह हुनुगान जी बनते रहे । तक लगा कि सब ठीक हो गया तो सहजयोग में यह भी इलाज है । गर आप ढोंगी पना करेंगे तो चारों तरफ फैला हुआ परग चेतन्य उसका भी इलाज कर लेगा । बहुत बड़ी सजा नहीं देशा थोड़ी सी । एक ऑर साह ब सहजयोग में आये दो साल रहे तो भी सिगरेट पीते थे । कहने लगे कभी पीते हैं । मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि सिगरेट मत पियो, शराब मत पिओ, नही तो आधे लोग ऐसे ही उठ जायें गे । सहजयोग के बाद देखेंगे । तो एक दिन बो गाड़ी चला रहे थे । उनके साथ छः और लड़के घर के गाड़ी में जा रहे थे । अब सात आदमी गाड़ी में कहीं जाकर के एक्सीडंट हो गया । सारी गाड़ी टूट गयी, सव कुछ हो गया सब लड़कों को चोट आई, लेकिन इन महाशय को सिर्फ. विशुद्धि की अंगुली पर चोट आई । जब आप सिगरेट पीते हैं तो दायी विशुद्धि पकड़ती है । तब आये आदि शक्ति की ये जो शक्त्यों है ये कभी - लेकर मेरे पास अंगुली । कहुने लगे माँ आज से सिगरेट छुूट गई । प्रेम से भरी हैं । ऐसे छोटे छोटे तरीकों से आपको वो ठीक करती है । और आप स्वयं ही जानते हैं कि मैरा ये चक्र पकड़ा है । जैसे दिल्ली में जब मे शुरू में आती थी तो लोग कहते माँ मेरा तो आज्ञा पकड़ गया गाने ये कि मैं वड़ा अहकारी हूं, मेरे अंदर अहकार हैं । । लेकिन आप ही माँ इसे ठीक करो क । बताइये अगर आपने किसी से कहा कि तुम अंहकारी हो, सददाग हुसैन से भी कहिए, तो मारने को दोड़े गा बो मानेगा थोड़े ही, कोई नही मानेगा वि मै अंहकारी हूं । पर साक्षात्कार के बाद आप स्वयं कहते हैं । नहीं, अब सारी ही भाषा चक्रा की शुरू हो गयी । चक्रों की ही बात होती माँ मैं वड़ा अहकारी हूं । ऐश है कि मां मेरा आज्ञा पकड़ा है ठीक करो । है । आप एक दुररे को जानने लगते हैं कि इनका क्था पकड़ा है ? एकसाहब सहजयोग के बाद भी वहुत जोर से डांटते थे लड़ाई करते और वाकी सहजयोगी देखते थे । खासकर दिल्ली से कुछ लोग पहुंचे थे उधर इस प्रकार सनुष्य की भाष ही बदल जाती जीर मे हाराप्ट्र में । महाराष्ट्र के लोग जरा दब्ब है । दिल्ली वाले सोचते हैं कि हम राजधानी में रहते हैं सो उन्होंने झाड़ना शुरू कर दिया, ते बुपचान सब खड़े रहे । तो गैने कहा कि तुम लोगों ने कुछ कहा कयो -28 नLEP 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-30.txt नहीं ? कहने लगे माँ क्या कहैं इनकी दायी विश्द्धि पकड़ी हुई थी तो बो करते क्या ? राइट विशुद्धि पकड़ी थी तो उनको तो बोलना ही था । हम उनसे बोलकर क्यों अपनी राइट विशुद्धि खराब करते । बोलने दीजिए हर्ज क्या है । तो स्थित प्रज्ञ की जो परि भाषा आपको गीता में बताई है बो मनुष्य के ऊपर है । और जैसे कि विशुद्धि चक्र में बताया कि आपसी प्रेम आये । भी सहजयोगी बन कर जब यहां आते है और महाराष्ट्र के देहातों में घूमते हैं, उनकी झाँपड़ी में बैठ कर के खूब आनंद से गाना गाते हैं मराठी और हिन्दी में बहुत से मुसलमान सहजयोग में आ गए हैं आपको आश्चर्य होगा । और सब गणेश जी की स्तुति करते हैं अकबर करके अपनी विशुद्धि को ठीक करते हैं । तो आपको सहजयोग में मुसलमान भी होना पड़े गा और सिख भी होना पड़ेगा, इसाई भी होना पड़ेगा । असलियत में, नकलियत में नहीं । बाकी सब नकलियत में बैठे हैं । सब धर्मों का जो मजा है उठाइये । ये क्या बेवकूफी है, लड़ रहे हैं । सब धर्मों में इसका मजा है कि ऊंची ऊंची बातें कही हैं । इतनी कुछ हमारी व्यवस्था कर गए उसका मजा उठना चाहिए । एक जमाने में भारत को गुलाम रखने वाले घ्मंडी अंग्रेज और जो कट्टर हिन्दू थे वो भी अल्लाह हो दूसरे का भय, एक सॉँप भी दूसरे साँप से नहीं डरता, कोई जानवर भी अंधकार वश आपस मैं लड़ रहे हो । मैने नही जो एक दूसरे से डरता है । पर इंसान एक दूसरे से बहुत डरता है । और जितना देश सुना प्रब्ल होगा जैसे अमेरिका । अमेरिका में एक अमेरिकन दूसरे से डरता है । जितना वो डरता है वो हम लोग नही डरेंगे । इसकी वजह यह है कि व्यक्तिगत रूप से सबने अपनी अपनी प्रगति कर ली है । व्यक्तिगत प्रगति में मनुष्य अकेला छूट जाता है लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद सामूहिकता में वह पनपता है । जैसे कि आप एक ही विराट के अंग प्रत्यंग हो गये एक ही अकबर के आप अंग - प्रत्यंग हो गये है । सारा संसार आपको मित्र है, एक हाथ को तकलीफ हुई तो दूसरा हाथ फोरन मदद को आ जाता सारा संसार आपकी मदद करने वाला है । ये सब कुछ केवल सहजयोग से हो सकता है । | उत्थान का समय आ गया है । इस उत्थान को आप प्राप्त करें और उसमें जर्मै और अपने आत्मसाक्षात्कार में पूर्णतया जिये । यही आत्मिक आनंद है जिसे आत्मानंद कहते हैं । उसे प्राप्त करना है, उस सुख को उठाना है । सब कुछ आपके लिए तैयार है । पूरा इंतजाम है सिर्फ आपकी मनकी तैयारी हो तो ये कार्यपूर्णतया हो सकता है । सहजयोग में आने के बाद यह जान लेना चाहिए कि अभी भी अंदर चक्रों में कुछ न कुछ दोष है। उसको पूरी तरह पहले स्वच्छ करना है और ठीक से रखना है । किस तरह से करना चाहिए यह आपको सीखना चाहिए । गर आपको अपनी जरा भी इज्जत है जरा भी अपना ख्याल है, जरा भी अपने साक्षात्कार को आप विशेष चीज मानते है तभी आप इसे पा सकते हैं । आलतू फालतू लोगों का यह काम नहीं इसको चाहिए विशेष/जैसे आप विशेष है तभी तो आप यहां आए हैं । लेकिन आपने अपनी विशेषता जानी नहीं । इसे पूरी तरह से जान लें, ये बड़ा भारी काम है । सारें संसार में हो रहा है । हमारे पति भी आप जानते हैं यूनाइटेड नेशन्स में सेक्रेटरी जनरल रहे, और 134 20 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-31.txt देशों में काम किया वह कहते हैं कि सहजयोग बास्तविक यूनाइटेड नेशन्स है । जाते हैं । हर दिसम्बर में हम लोगों का मेला लगता है । आठ -दस दिन हम लोग गणपतिपुले में हजारों आदमी इक़ट्ठे हो कोई झगड़ा नहीं कुछ नही सब आपस में प्रेम से थे कोई झगड़ा । और इतनी शुद्धता । अपने पति के साथ विदेश में रहते हुए मैं देखती हूं कि आदमी किसी औरत के पीछे भाग रहा है वह औरत उस आदमी रहते हैं । इस मर्तबा 56 देशों से लोग आए थे । । नही बच्चों का, स्त्रियों का, पुरूषों का कोई झगड़ा नहीं के पीछे भाग रही है । मुझे समझ नहीं आता । ये सब पागलपन छूट जाता है| मनुष्य एकदम य शुद्धस्वरूप हो जाता है । जैसा हमारा नाम निर्मल ऐसे आप सब निर्मल हो जाइये । ये सब व्याधियों और लालच इनसे आप सब छूट जाते हैं इन्नसे एक दम फारिक हो जाते हैं । मैं आपको कोई बड़े - बड़े आश्वासन नही दे रही। जो आप है इसे आप प्राप्त करें । लेकिन इसमें सामूहिकता से कार्य होना है गर आप कह कि मैं घर में अकेला पूजा करता हूं तो इससे कुछ नहीं होने वाला । इससे आप की गहनता बढ़े गी लेकिन वह रूक जायेगी क्योंकि जब तक पेड़ फैलेगा नहीं तब तक गहनता आयेगी नही और अगर आप सिर्फ फैलते ही गये और गहनता नहीं जोड़ी तो भी आप में असंतुलन आ जाये गा । इसलिए जो संतुलन धर्म का है वह आपके अंदर जागृत होने के लिए है । आपको सामूहिकता में आना है । सामूहिकता में ही यह कार्य हो सकता है । कल भी एक साहब ने बताया यो मैं बर में सब करता ही हं, मैं आपको मानता हूँ तो भी मुझे बीमारी आ गई । मैंने कहा मुझे मानने से कुछ नहीं होगा । आपको सबकी माननी होगी जैसे एक नाखून टूट जाये फिर उसकी कोन परवाह करती है । सहजयोग का आज का तरीका सामूहिकता का है । एक देश ही नहीं सारे संसार के देश इसमें छोटी बातों को हमें बुद्धि से नही छोड़ना सहजयोग से छूट जाये गी । कुण्डलिनी के जागरण से छूट, जायें गी । नहीं तो आप तो जानते हैं कि हम लोगों के दिमाग कैसे है ? छोटे संकीर्ण दिमाग हृमारे बन गए भय के कारण अज्ञान के कारण । प्रकाश में हम जानते हैं कि हम सब एक हैं । तो सारा ही सहजयोग का कार्य प्रेम का है । इस प्रेम की शक्ति को हम आज तक कभी भी उपयोग में नही लाये । सिर्फ द्वेष की शक्ति को इस्तेमाल करते रहे । लोग समझते हैं कि । कोई न कोई बहाना बनाकर उससे द्वेष करो । कोई एक ग्रुप बना लिया, उससे द्वेष करो । लेकिन फ्रेम की शक्ति मानसिक नहीं है, परमात्मा की शक्ति है । और वह समर्थ परमात्मा है । इसकी शक्ति को प्राप्त करने के बाद कौन सी ऐसी दुनियां में शक्ति है जो इसे झुका सकती है ? सारी दुनियां आज आपके भारतवर्ष में आपके चरणों में आ सकती है क्योंकि इसका वरोहर आपका है । आपके पास संस्कृति का इतना बड़ा दान है । बहुत बड़ी सम्पदा है आपके पास । और ये भारत वर्ष साक्षात् योगभूमि है । एक बार हम प्लेन से आ रहे थे । मैने पति से कहा कि आ गए हम बंधे हुए है हमारी छोटी - छोटे द्वेष की शक्ति बड़ी शक्तिशाली होती है। 30 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-32.txt हिन्दुस्तान में । कहने लगे कैसे ? मने कहा देखो चारों तरफ चैलन्य है । चेतन्य कैसे चमक रहा है ? उन्होंने पायलट से जाकर पूछा । उसने कहा अभी एक मिन्ट पहले हम आए है । ये ऐसा अपना भारतवर्ष है । इस पृथ्वी को आप क्या समझते हैं जिस पर आप बेठे हैं ? यहां हजारों साधू संतों ने अपना खून सीचा है । इस पवित्र भूमि पर रह करके आप बहुत आसानी से इस पवित्रता को पा सकते हैं । लेकिन जो कुछ गंद गी इधर उधर इकट्ठी हो गयी है वह छूट जानी चाहिए । इसके लिए गहनता चाहिए । अपने आप से सब चीज घीरे -धीरे छूट जाती है । अब सहयोग दिल्ली में बहुत फेल गया है | और जब मैं यहां पहले -पहले आई थी मारे डर के मेरा सारा बदन संकुचा गया कि मैं कैसे लोगों को सहजयोग समझाउंगी । ओरतें तो फेशन की बात कर रही थी और आदमी नौकरी की बात कर रहे थे । मैने कहा इनके बीच में में कहां चलं और क्या बात करू ? अब देखिए बदल गया जमाना । अब लोग आत्मा की बात कर रहे हैं, प्यार की बात कर रहे हैं । सत्य युग आने में देर नहीं । सब आप ही पर निर्भर है । इसलिए आपसे विनती है कि अगर आपको आत्म साक्षात्कार हो भी जाए तो भी इसको आखिरी चीज नहीं समझना अभी आपको सम्पूर्ण में उतरना है । सम ग्रता में उतरना है । समग्र होना । पूर्ण को प्राप्त करना है और उस पूर्णत्व को प्राप्त करने के लिए आपको थोड़ा सा समय देना है । यहां पर बहुत अच्छे सहजयोगी लोग हैं उनसे पूछ करके आप चल सकते हैं । आप जानते हैं कि है । दरबाजा खुला है, पागल भी अंदर आ ही जाते हैं हर तरह के लोग आ जाते हैं । बहुत से लोग उनको ही देख के भाग जाते हैं । गर वो पागल हैं आप तो पागल नहीं । यहां तो सबके लिए दरवाजा खुला है । बहुत से लड़ाके अंदर आ जाते हैं, बहुत से गुस्सैल आ जाते हैं । हर तरह के लोग अंदर आ जाते हैं आने दीजिए लेकिन आप उनको देखकर भाग मत जाइए ओर बैठकर कोशिश कीजिए कि हम पूरी तरह से इसे ज्ञान को प्राप्त करें और आज का जो महान युग धर्म है इस परिवर्तन का महानकार्य जो कि इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है, वह अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कितना आनंददायी है । यह सोचकर आप लोग सब एकाग्रता से पूर्णतया सहजयोग में उतरें । अपने प्रति एक श्रद्धा रखते हुए, अपने प्रति एक विश्वास रखते हुए कि मैं मानव हूं और मैं अतिमानव हो सकता हूं, इस दृढ़ भावना से आप अपना आत्म साक्षात्कार माँगे और यह कार्य हो सकता है। इस तरह से हमारे पर पूर्ण अधिकार रखते हुए आप इसे प्राप्त हों । आप सबको अनन्त आशीर्वाद । 31 - त 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-33.txt नोयडा पन्निलिक प्रोग्राम दिल्ली 4-3-91 परम पूज्य श्री माता जी निर्मला देवी का प्रवचन आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम । सत्य के बारे में लोगों की अनेक कल्पनाएँ और धारणाएँ होती है लेकिन एक पते की बात आपको बताती हूं कि सत्य परमात्मा का प्रेम है । ्रेम ही सत्य है आज तक बहुत कम लोगों ने प्रम की बात की क्योंकि प्रेम का अर्थ वो ठीक से नहीं लगा सके । प्रेम को समझ नहीं पाये । परमात्मा प्रेम मय हूँ और वो सबके और सत्य ही प्रेम है । और वो ही ज्ञान है । लिए प्रेम बांटते हैं । वो रहीम है, बो सबपे रहमत करते हैं वो करूणा के सागर है वो प्रेम के सागर है । ऐसी बातें तो सब ने कर ली । किन्तु ये प्रेम क्या है इसके बारे में खास चर्चा नहीं हुई । उसका कारण यह है कि लोग प्रेम को ममत्व समझ लेते हैं । इसलिए शायद बहुत समझ करके इन सब महानुभावा ने यह जरूर कहा कि परमात्मा प्रेम के सागर है । लेकिन बो प्रेम के सागर है क्या ? सागर को तो सभी ने देखा ही होगा । सागर में हर तरह के भयेकर जानवर रहते हैं और उसकी अपनी कोई है सियत भी नही है । जब चन्द्रमा उसे खींचता है तो उसकी ओर खिंच जाते हैं । तो ये प्रेम के सागर हैं । सारी सृष्टि को उन्होंने बनाया है, मानव को परमात्मा हैं । अन्तरयामी परमात्मा हैं जो सबको जानते ह बनाया है । एक छोटे अमीबा से उठा के इस तरह का बना दिया । उस परमात्मा को हम समझते हैं वो ज्ञान के सागर हैं । पर उनको जो ज्ञान हे बो प्रेम का ज्ञान है । वो जानते हैं कि प्रेम कैसे किया जाता है । हमारे लिए जो प्रेम का ज्ञान है वो संकीर्ण है । सीमित है हमारे लिए हमारा बच्चा हमारा धर्म और हमारा गांव, गांव से थोड़ा बढ़ गए तो अपना देश । इस प्रकार प्रेम में थोड़े से सीमित भाव आएंगे उसमें स्वारथ कुछ स्वार्थ भी । हम लड़े गे अपने लड़के के लिए। हम लड़े गे और किसी चीज के लिए । की भावना होती है । लेकिन परमात्मा का जो प्रेम है वो ज्ञानी है । बो सब कुछ हमारे बारे में जानते हैं । आप क्या हैं ? आपकी क्या परेशानियां है ? आप किस ऊँचाई मैं रहते हैं । आपमें कौन से दोष है । । क्योंकि वो जानते हैं कि इस प्रेम की सब कुछ जानते हैं तो भी वो आपको प्रेम करते हैं। शाक्ति को किस तरह से उपयोग में लाना चाहिए । मनुष्य के प्रेम में कोई शक्ति नही है । परमात्मा के प्रेम में शक्ति है । और वो शक्ति स्वयं ज्ञानी है । जैसे कि एक मां है । वो अपने बच्चों को प्यार करती है । अपने बच्चे को बिगाड़े गी। दूसरे के बच्चे को सताए गी एक बाप है तो वो अपनी पत्नी की बात मानेगा अपने घर बालों को सताए गा । अगर औरों की मानेगा तो बीवी को सताए गा । उसमें संतुलन नहीं । उसमें ये सूझ बूझ नहीं है क्योंकि ज्ञान नहीं है । उसके प्यार की शक्ति में ज्ञान नहीं है । परमात्मा का प्रेम आपके बारे में जानता है और जब भी जानना चाहे जान सकता है । जहां उन्होंने नजर की जहां उनका चित्त गया यो जान जाये गे कि क्या चीज़ है । लेकिन आप तो जान गए अपने चक्रों पर | पर यें भी वो जानते हैं कि इनको ठीक कैसे करना है । और तरीका इतना सुन्दर है और मधुर है कि उसको समझने के लिए हमारे पास दिल होना चाहए जाति की नीची । बुढ़िया थी । उसके दांत टूटे हुए थे दो चार दांत बिचारी के पास थे । जब श्री राम आ रहे थे तो उसने अपने दाँत लगा लगाकर हर एक बेर को चखा । । जैसे शबरी के बेर । शबरी एक भीलनी थी । और खट्टे बेर फेंक कर सिर्फ मीठे 32 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-34.txt रख लिए । उसने वे बेर जब श्री राम को दिये तो उन्होंने उनमें प्रेम की झलक देखी । जान लिया कि ये झूठी चीज़ तो हम किसी की भी नहीं खाते एक भीलिनी के झूठे बेर खा रहे हैं दोनों । लक्ष्मण जी को बड़ा गुस्सा चढ़ रहा था । उन्होंने सोचा कि । और प्यार का दर्शन है । बेर श्री सीता जी ने भी खाये । ये क्या बदतरमीजी है । इतने बड़े साक्षात अवतरण । और ये झूठे बेर खिला रही है जब सीता जी ने के हा कि मैने ऐसे बेर कभी नहीं खाए तब उनका भी जी किया खाने को । बेर खाते ही उनकी गुस्सा उतर गया । एक दम ठंडे हो गए । तो किस तरह से ये छोटी-छोटी चीज़ों से मनुष्य को ऊंचा उठाने का प्रम की ही लहरों में बी ऊपर उठ सक ता है, और कोई तरीका उनको ऊपर नहीं उठा सकता । आप डंडा लेके खड़े हो जाईये । उनसे कहो सवरे वार बजे उठो, नहाओ, सर के बल खड़े हो । ये करो, बो करो । फोज लगा दो । ये परमात्मा ही जानते हैं कि हर आदमी को किस तरह से ठीक करना चाहिए । थोड़ा बहुत हम भी जानते हैं । जैसे एक बार गगना गरि महाराज,जो बहुत शक्ति आई है उनसे जाकर मिल आओ । मेरे पास क्यों आते हो ? जब मैं कोल्हापुर गई तो मैने भी सोचा कि मैं इस महाराज को देख आती हूं । वे बहुत ऊंचाई पर रहते थे । बड़ी चढ़ाई थीं । सबने क हा कि आप तो किसी गुरू के पास नहीं जाते तो मने कहा कि हाथ तो लगाओ और देखो तो सही । उनको चैतन्य की लहरें आने लग गई । जब हम ऊपर चढ़ रहे थे तो खूब जोरों से बरसात हुई । और इन गुरू जी महाराज का, कहते थे, कि इनका बरसात पे बड़ा ही काबू है । और बरसात हुई जा रही है और उनका वश पता नहीं क्या हो गया । जब मैं ऊपर गई तो वो गर्दन हिला के गुस्से में बैठे थे । मैं तो पूरी भीग गई । उनका तो गुस्सा ही नही उतर रहा था । उनकी उनको उठाके लाये ओर सामने बिठाया । कहने लगे "क्या मां, आपने मेरा अहंकार उतारने के लिए ये बरसात की'? मैने कहा 'मुझे व्यूं आपका अहंकार उतारना है'। आप आने वाले हैं मेरे पास, मुझे खबर आ गई । देवी - देवता आके बैठ गये । और आप भीगते हुए मेरे घर पे आये । कितनी शर्म की बात है मेरे लिए । तो मेरा अहंकार तोड़ने के लिए ही आपने ये किया मैंने कहा सच बात ये है कि तुम मेरे सन्यासी बेटे हो । और तुमने मेरे लिए साड़ी ली है । और सुन्यासी से तो साड़ी नहीं ले सकती । लेकिन अब भीगी हुई हूं तो तुमसे लेना ही पड़े गा । 'ये कहते ही उनके आंखों से आंसू बहने लग गए । सारा गुस्सा चला गया और जो बरसात बाहर हुई थी वो अंखों से होने लगी । मां तुमने कैसे जाना कि मेरे पास आपके लिए साड़ी है ? मैने कहा मैने देखा जब तुम प्रयत्न है परमात्मा का । सिर्फ ये गुल्सीले थे, उन्होंने सबसे कहा आदि - दोनों टांगे गई हुई है तो वो चल नही पाते । 1 मैं ने खरीदी तब मैं वही थी' । तब उनकी समझ में बात आई । मैने कहा देखो बेटे । मैं जब आ रही हूँ और मैरे ऊपर से बरसात हो जाए तो सारी सृष्टि में चैतन्य नहीं फैल जाये गा ? सब सुन्दर हो जाये तो क्या हर्ज है कि एक बार में भीग गई । ' तो परमात्मा को समझने के लिए पहले हमें अहंकार को एक तरफ करना चाहिए। अहुंकार की बिमारी जब मनुष्य पर चढ़ जाती है तो उसे पहले गुस्सा चढ़ता है कि हमने ये सोचा था और ऐसे नहीं हुआ । हम ये करना चाह रहे थे, वो नहीं हुआ । जब अहंकार चढ़ जाता है तब परमात्मा इसी प्रेम के ज्ञान से इस तरह से खेलता है कि उस आदमी का अहंकार कम कर दें । इसका इलाज परमात्मा ही कर सकते हैं । इस तरह से करते हैं कि आपको पता भी नहीं चलेगा 33 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-35.txt । अहंकार के कारण, मनुष्य जो वास्तविक है उसे कि ये सब लोग झूठे कि आप में अहंकार है लेकिन आप ठीक हो जाएं गे देख ही नहीं सकता और जो झूठ है उसकी ओर दौड़ता है । किसी ने पूछा मुझ से गुरूओं के पीछे क्यूं भागते हैं, जब वो पैसा लेते हैं जब वो दगा देते हैं, जब उनके शिष्यों ने नहीं पाया । उसकी वजह है कि उन्होंने पैसा बनाया हुआ है तो बो रोल्ज रायस रख लें । फ्रेम को नहीं सोचते । खासकर अमेरिका में भी कुछ क इनमे गुरूओं का अहकार है और यो भी अहंकार का प्रदर्शन करते हैं हर चीज़ पैसे पर चलती है । जो लोग रूपए के पीछे भागते हैं बो परमात्मा के प्रेम को समझ नहीं सकते । पर रूपये वाला सारी रात नही सो सकता उसे चैन नहीं । उसके बच्चे वगैरह खराब जाते हैं । पैसा तो है पर उनका दिमाग ठिकाने से नही जब तक मनुष्य धर्म में खड़ा नही है उसको पैसे का बोझा उठाना आए गा ही नहीं । मनुष्य को निर्वाज्य प्रेम करना चाहिए और ये सोचना चाहिए कि परमात्मा ने गर मुझे रूपया दिया है तो मैं इसका क्या करू जिससे मुझे लाभ हो । असल लाभ हो । मैं ऐसा कौन सा काम करूं जिससे मुझे पुण्य मिलेगा । पर पैसा भगवान के दरबार में नही चलता । परमात्मा को पैसा । पैसा इनंसान ने बनाया है । पसे के वजह से मनुष्य धर्म को छोड़े हुए है और हर तरह की ऐसी क्रियाएं करता है जो मनुष्य को लज्जित कर दे । ऐसे आदमी का भी मान बहुत थोड़े दिन के लिए है । सब लोग उसकी पीठ के पीछे बुराई करते हैं । मनुष्य उसी की इज्जत करेगा जिसमें समझ नही आता असलीयत में प्यार है, धर्म है । जैसे एक पीर के मजार पर अकबर बादशाह के जमाने से अभी तक दीया जल रहा है । आज भी संसार में आप उन्हीं लोगों के नाम सुनते हैं जिन्होंने इस तरह का जीवन बिताया निर्मल स्वल्प था जो बाहर से अन्दर से हर तरह स्वच्छ, सुन्दर, । क्योंकि परमात्मा का प्रेम अत्यन्त स्वच्छ, हमारी इच्छा होनी चाहिए कि हम निर्मल हो जाएँ । और निर्मल है । और सत्य में अगर आप खड़े हैं, कोई सी भी सत्य बात आपने अगर कह दी, तो परमात्मा, उसे सत्य का बड़ी भारी आधार, उसको अपने हाथों हाथ उठाएगा । उसको बचा लेगा । जब हिटलर आया तो वो एक सबक बन गया कि कोई हिटलर न बने । जो हिटलर बनने की कोशिश करेगा उसका वही हाल होगा जो हिटलर का हुआ था । अब जर्मनी के लोग इतने शान्त और कोमल हो गए । उनका स्वभाव इतना अच्छा हो गया कि हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा बढ़िया लोग है जर्मन । सद्दाम का उपर आना, हारना और इस तरह से मुंहीखाना ये भी परमात्मा का काम है । इससे लोग समझ लेंगे कि जो धर्मान्धता है, जो धर्मान्माद में उतरना है कितनी गलत चीज है । ये अन्धापन हमें छोड़ देना चाहिए । इसमें दोष मनुष्य का है क्यांकि मनुष्य ने सक्को बड़े अच्छे से कूड़ा बना दिया संगठित कर दिया । जो जीविन्त क्रिया में विश्वास रखते हैं तो हमारा संगठन प्रेम का है । प्रेम से सब चीज होती है । वोही जब सम्भालने वाले एक बैठे हैं तो हम क्यूं कुछ करें । उनके लोग दौड़ रहे हैं चारों तरफ और अब आप लोग भी खड़े हो गए । आपकी भी मदद कर रहे हैं, आपको भी सहायता दे रहे हैं । आनन्द दे रहें हैं । समझा रहे हैं । बस निश्चित हो जाएं आप । एक कार्य उस प्रेम का ये है कि ये आपको सही रास्ते पर लाकर छोड़े देता रजनीश के पास 25 रोल्ज रॉयस थे। है । जो नहीं आया वो रह गया । जब वो मर गया तो आधे घण्टे में उसे सबसे नजदीक शमशान में फटा फट जला दिया। क्या इज्जत मिली ? ऐसे ही सब गुरू घण्टालों का होने वाला है जैसे हिटलर का, मुसोलिनी का हुआ । सब का और ये हमारे लिए एक मार्ग दर्शक है कि ये य ही होने वाला है क्यकि इसमें परमात्मा का हाथ है । 34 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-36.txt करने से क्या हो गया । उनके रास्ते पर हमें नही जाना है । हमें कौन से रास्ते पर चलना है ? उस रास्ते से कि जब हमारी मृत्यु भी हो तो भी शरीर से हमारा सुगन्ध आए मजार पे हमारे हमेशा रोशनी ये निर्फ प्यार से हो सकता रहे । लोग आके बहां सर टेके । है । और उस प्यार में किसी तरह का स्वार्थ नहीं । किसी तरह छोटेपन की बात नही । किसी तरह की खिचाव नही । अब कहने से कि तुम मोह छोड़ दो। मोह छूटने वाला नहीं । से अगर होता तो सब सर पीट पीटकर चले गए । रोज पढ़ते हैं गीता व गैरह पर कुछ असर तही आता । जैसे थे वैसे ही हैं । ये होगा तभी जब आप आत्म कहने से कि तुम मावा छोड़ दो, माथा छुट ने बाला नहीं । कहने । किताबों में लिखा हुं आ सत्य साक्षात्कार लैंगे सिर्फ आत्मा के प्रकाश में ही अन्दर उतर सकता है । उसके बगैर होता नही। पर आपके अन्दर जो शक्ति जागृत होती है यो प्रेम की शक्ति है । जो मनुष्य सहजयोग में जाकर के भी प्रेम करना नही है कि वो प्रेम जानता वो सहजयोगी नहीं । प्रम एक क्षमा की शक्ति है । सहजयो गियों का पहला लक्षण मय होते हैं । सबके प्रति एक चित्त एक जानकारी होती है । जैसे हम बजार गये तो हर चीज दूसरों की पसन्द कीभावना से खरीदी जाती है । ये जो संसारिक चीजें हैं ये सिर्फ इसलिए हैं कि इनसे अपना छोटी चीजों में कैसे प्यार जताया जाता है ? ये श्री राम ने भीलिनी के लेकिन दर्योधन का प्यार जती सकें । आखिर छोटी बेर खाकर दिखा दिया। श्री कृष्ण भी दासी मैवा नहीं खाते थे के घर जाके खाना खाते थे । पुत्र विदुर है कि प्रेम का आदर करना ही सत्य का आदर करना य एक सहज योगी का लक्षण । है । जब मनुष्य प्रेम करता है तो बो धीरे धीरे निर्मल होता जाता है । उसके अन्दर की सारी मोह, लोभ आदि एक दम से नष्ट हो जाती है । किसी आदमी को मोह होता है क्योंकि उसके अन्दर निर्वाज्य प्रेम नहीं । मद होता है वो अपने को सोचता है कि मैं बड़ा आदमी हो गया हूं । ऐसा सोचने वाला तो पागल होता है । पर जिसको प्यार हो जाता है वो कैसे सोच सकता है कि मैं इनसे कोई बड़ा आदमी हो गया । लेकिन प्यार में हर एक आदमी की बारीकी मालूम रहती है । उसकी चाहत मालूम रहती है । क्या चीज उसको खुश करती है । जब ये परमेश्वरी प्यार आपके अन्दर से बहने लगता है तो सब चीज के बारे में ऐसा कुछ ज्ञान आ जाता है कि जैसे हजारों वर्ष से तुम इन लोगों को जानते हो । जब आप अपने आत्मा मैं उस प्यार को पाकर तृप्त हो जाएं तभी ये हो सकता है । तो सारी तृप्ती ही उस प्यार में है । मानव स्थिति में ये होता है कि जो सबसे बुरी चीज़ होगी बो लाएं गे उपहार में सबसे बाढ़िया अपने लिए, सब से सस्ती दूसरों को लेकिन जब सहजयोगी अपने आत्मा के आसन पर स्थित होता है तो राजा हो जाता है, और छोटी - छोटी चीजों के लिए रोना खत्म हो जाता है । और आत्मा के आनन्द में उसके प्रेम में विभोर हो जाता है । और यही प्रेम हमें आनन्द देता है । चारों तरफ से बरसता रहता है । तो दुखी होने की कोई बात ही नहीं । जब बो परमात्मा हमें प्यार करता है इसका पूर्ण विश्वास हो जाता है । तब कोई चिन्ता नही, कोई परेशानी नहीं, सब सामने चीजें चली आ रही हैं । काम होते जाए गा, आप हैरान हो जाएं गे कि वे सब हुआ कैसे। मैने तो भगवान से कहा भी नहीं, माँगा भी नहीं । मैरे मन में । ओर बाद में ये समझ में आए गा कि इच्छा तक नहीं हुई और उससे पहले परमात्मा ने बात पूरी कर दी इस वक्त मुझे इस चीजू की जलरत थी और मेरे ख्याल में आई नही, पर उनके ख्याल में आ गई । इलनी बारीक चीजों को वो जानते कैसे हैं उनके प्यार के कण (अणु) चैतन्य बनकर चारों तरफ छाए बारीक Inte 35 - ho hoG 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-37.txt हुए हैं । जो हर चीज़ को जानते हैं, सोचते हैं, और समझते हैं और परमात्मा के प्यार की समझ अनुसार कार्य करते हैं । परमात्मा ने अपने प्यार की ये सृष्टि चारों तरफ रची हुई है । इसे हम परम चैतन्य कहते हैं । इसे ऋतम्भरा-प्रज्ञा भी कहा है । जिस शक्ति के कारण सारे ऋतु बदलते हैं । प्रझा प्र माने प्रकाशित, चेतित, ज्ञ माने ज्ञान । ये जो सारे रंग बिरंगे फूल खिलते हैं, ये नजारे, आकाश में बापल बदल रहे हैं उसमें इन्द्रधनुषी रंग चल रहे हैं, एक से एक मनोरम दृष्य खेज दिखाई देते हैं । इन्सान के प्यार की जो बड़ी मनोरम छटाएं रोज दिखाई देती है उन्हें देखकर बड़ा सुहावना सा समय चारों ओर घटित होता है । वो ऋतम्भरा-प्रज्ञा है वही ये परम चैतन्य है । ये कौन सी शक्ति है जो ऋतु बदलती हैं ? कभी आकाश में बादल मंडराते हैं । कभी संसार में फूल ही छा जाते हैं, और कभी गर्मियां के जव । ऐसा दिखाई देती है आकाश में जैसे कि कोई बड़ा चित्त सा बन रहा है जबकि सारे पत्ते झड़ जाते हैं । अगर ये पत्ते न झडें तो इस पृथ्वी तत्व को नाइट्रोजन कैसे मिले ? इसलिए और सूर्य की किरणे पहुंचने के लिए पतझड़ होना ही चाहिए । सब चीज के लिए ये सृष्टि समर्पित है । जंगल के सब जानवर भी कायदे में रहते हैं । जहां शेर बैठा हो वहां एक चिड़िया भी नहीं बोलेगी को नहीं मारता । 15 दिन या एक महीने में एक जानवर मारता है । शेर पहले खाता है फिर कायदे से शेर के बच्चे खायें गे, फिर एक के बाद एक सभी जानवर खाते हैं । आखिर में कौआ फिर चील जंगल मैं आईये आपको कही बदबू नहीं आयेगी जाए गा कि इनसान नाम का जानवर घूम गया है यहां से । सो सारी सृष्टि इस परमात्मा के पाा में है, आराम से चल रही है । पर इसीलिए ज्ञान नही है क्योंकि वो पाश में है । इस ज्ञान प्राप्ति के बाद आपको सारी स्वतनत्रता है । स्वतंत्रता इसलिए दी गई क्योंकि बड़ी स्वतंत्रता आपको मिलने वाली है उसे आप जान सकें । सुख की संवेदना और आराम जैसे कि कोई माँ की आचल में छिपा हुआ हो । इसी तरह हर समय लग्ाहाहै । जानकारी के बाद समर्पण होता है । और ऐसा समर्पण उस दशा में पहुंचा देता है जिसे हम कहते हैं प्रेम -मय होना । । शेर भी रोज किसी जानवर । लेकिन चार इन्सान आप जंगल में छोड़ दीजिए पता चल कशिश भी एक चीज़ ऐसी है जो उस प्यार को बांधती जाती है । उस कशिश में आदमी प्यार को ज्यादा महसूस करता है । जैसे कि कही दर्द हो जाए और उसपे कही कोई हाथ फेरे और उससे क शिश ला औराम हो जाए । उस आराम को हम ज्यादा याद करते हैं बनिस्बत कोई ऐसे ही हाथ फेर दे । मनुष्य को बड़ी गहराई में उतार पाती है । और इसलिए जिन्होंने परमात्मा को याद किया, उसकी भक्ती रही, कशिश रही, उसको खोजते रहा । आप किसी भी रास्ते पर चलें । कोई भी गलती करें इससे कोई फर्क पड़ने वाला नही क्योंकि वो प्रेम का सागर हैं । वो आपको जरूर अपने हृदय में स्थान देंगे । अपनी तरफ खींच लेंगे क्योंकि वो भी प्रेम का आदर करते हैं । इसलिए आज से आप जान लीजिए कि सहज योग मैं सर्व प्रथम प्रेम करना सीखो एक दूसरे से । अगर कोई मुझे ऐसा कह दैता है कि ये आदमी ठीक नही, बो आदमी ठीक नहीं तो तकलीफ सी हो जाती है । लेकिन कोई किसी सहज योगी की तारीफ करता है, तो मेरा हृदय आनन्दित हो उठता है । दूसरों के दोष नहीं देखना चाहिए । दूसरों के गुण देखने से ही हमारे अन्दर गुण आर्येगे । जैसे हम दूसरों के दोष देखेंगे ऐसे ही उनके दोष सीधे हमारे अन्दर आ जायें गे । जब लोग मुझसे किसी की शिकायत करते हैं तो मैं कह देती हूं कि वे तो आपकी बड़ी तारीफ कर रहे थे । और फिर देखो तो दोनों एक दूसरे के गले लग रहे हैं । तो अपनी समझ में - 36 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-38.txt प्यार को भर दो, अपनी द्रष्टि में "यार को भर दो । अपने जीवन में प्यार भर दो । किसी को प्यार करना भी बहुत बड़ी शक्तिशाली चीज है । और ये शक्ति जो है ये अन्दर से आती है । इस प्यार की जो अनन्त आशीर्वादित शक्तियां है उसको आप समझ नहीं पाय गे । किसी के साथ भी आप प्रेम से यदि कुछ करें तो उसको भूल जाये । अगर याद रखेंगे तो परेशानी हो सकती है । प्यार करने का मजा उठा लीजिए । किसी मतलब के लिए नहीं । सिर्फ प्यार के लिए प्यार हो वही परमेश्यरी प्यार है । आज जो प्यार की बात कही है वो धन्य है । और हृदय से सबको ये प्यार बांटे जिससे सारी दुनियां जान ले कि सहजयोगी जो है ये प्रेम योगी हैं प्रेम में बैठे हुए हैं अत्यन्त मधुर है । परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें । 37 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-39.txt परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी की दिवस पूजा जन्म दिल्ली 10.3.1991 आज आप लोगों ने मेरा जन्म दिवस मनाने की इच्छा प्रकट की थी । अब,मेरे कम से कम चार दिवस मनाइए गा उतने साल बढ़ते जाएँ गे उम के । लेकिन आपकी इच्छा को मैने मान लिया कि इसमें आपको आनन्द मिलता है । तो ठीक है । लेकिन ऐसे दिवस हमेशा आते हैं । उसमें कोई एक नई चीज हमारे जीवन में होनी चाहिए क्योंकि हम सहज योगी हैं, प्रगतिशील है और हमेशा एक नई सीढ़ी पर चढ़ने का यह बड़ा अच्छा मौका है । सहजयोग में जो आज स्थिति है बो बहुत अच्छी है । जब भी हम देश की हालत देखते हैं तो लगता है कि सहजयोग एक स्वर्ग हमने हिन्दुस्तान मेैं खड़ा कर दिया है । और सहजयोग की हमारी जो साधना है, इसमें जो हम समाये हुए हैं, इसका जो हम आनन्द उठा रहे हैं, ये एक स्थिति पर पहुंच गया है और या पांच जन्म दिवस मनाने वाले हैं लोग । जितने जन्म इसका आधार बहुत बड़ा है । इसका आधार है कि आपने अपनी शुद्धता को प्राप्त किया, अपनी शांति को प्राप्त किया और अपने आनन्द को प्राप्त किया । ये आपकी विशेष स्थिति है जो औरों में नहीं पाई जाती | इसको देखकर सब लोग समझ गए है कि ये कोई विशेष लोग हैं और इन्होंने कुछ विशेष प्राप्त किया है । मैं जहां भी जाती हूं लोग मुझे बताते हैं कि हम एक सहज योगी को जानते हैं, वो बहुत नेक तथा बढ़िया आदमी हैं, उसका जीवन एकदम परिवर्तित हो गया है । उन्होंने अपने को सहजयोग के प्रति पूर्णतया समर्पित कर दिया है ओर उनका सारा कारोबार अच्छी तरह चलता है। उनका कुटुम्ब भी बहुत सुखी है, सब तरह से वे एक आनन्दमय बातावरण में रहते हैं ऐसा मुझसे लोग कहते हैं और फिर कहते हैं मां हमें भी बताओ । मैं कहती हूं आओ आप हमारे मेंदिर में आओ, लोगों से मिलो, उनसे बात चीत करो । आप सब लोगों ने भी सहजयोग को इस तरह से अपनाया है और बढ़ाया है कि कमाल की चीज है । हमें एक बात जान लेनी चाहिए कि हमारे पास जो विशेष शक्तियां हैं वो किसी के पास भी नही आई । आज तक कोई भी कुण्डलिनी का जागरण इतनी आसानी से नहीं कर सकता था । कोई भी चक्रों का निदान नही लगा सकता था । ये किसी को मालूम ही नही था कि चक्रों का निदान आप अंगुलिओं पर जान सकते हैं । । किसी ऋषि बताई कि आप अंगुलिओं पर चक्रों का निदान बता सकते हैं । चक्रों पर बात की है, सहस्रार पर भी किसी शास्त्र में ये नही लिखा मुनी ने यह बात नहीं बहुत कम लोगों ने बात की है । आप लोग इतने सूक्ष्म ज्ञान को इतनी आसानी से प्राप्त कर गए क्योंकि आपने इस पर बहुत ध्यान दिया। और आत्मा के प्रकाश में इस सूक्ष्म ज्ञान को आपने प्राप्त कर लिया । अब आप सहजयोग बना रहे हैं और सहजयोग के जो नियम है उनमे आप बहुत सहजता से आ गए हैं । किसी को मैंने इसमें लकावट करते हुए विवाद नहीं किया और आसानी देखा नहीं, किसी ने मुझसे वाद -38: 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-40.txt से सब बातों को मान गए । जैसे कि नैने कहा कि हम बाहुय के जाति, धर्म, भेद आदि को नहीं मानते | अभेद को मानते हैं । हम सब एक परमात्मा के अंश है और उस अंश को उस विराट स्वलूप को जानना चाहिए । उसमें जागृत होना चाहिए । ये जो बाहय मे विकृतियां आ गई हैं इनको छोड़ करके अन्तरतम में हमें अपनी एकता जाननी चाहिए । धीरे आने लग गया । यही आनन्द है जो आपको यहां खींच कर लाता है और हर बार आप चाहते हैं किये धीरे में देखती हूं कि सब लोगों में इसका आनन्द आनन्द हम दुसरों से भी बांट खाएं । जैसे एक शराबी अकेले शराब नही पी सकता उसी प्रकार आप भी । तो अगर एक आ दमी सहज योग मैं आ गया तो उसके सारे अकेले इस आनन्द को नहीं उठा सकते रिश्तेदार सहजयोग में आने चाहिएं । सब मिलने वाले, सब दोस्त आने चाहिए और सब्को सहजयोग प्राप्त करना चाहिए । तो पहला प्रलोभन तो शारीरिक होता है, शरीर की व्यथा दूर हो गई मानसिक व्यथाएं दूर हो गई, और आपसी रिश्ते ठीक हो गए । आपस मैं मैल जोल बढ़ गया, बच्चे ठीक से चलने लग गए, हर तरह की आपकी प्रगति हो गई, यहां तक कि लक्ष्मी जी की भी कृपा हो गई । हर पल, हर घड़ी आप देखते हैं कि आप परमात्मा के सामाज्य में हैं और परमात्मा आपकी मदद कर रहे हैं । इतने चमत्कार हो गए सहजयोग में कि उनको लिखकर निकाल ने की किसी की हिम्मत नहीं होती कहते है मां पहले आप इसे छान लो, जो लिखने वाला हो बही लिखें नही तो न जाने कितने ग्रंथ हो जाएं गे । सामाजिक स्तर पे हम लोगों ने बहुत उन्नति की है । और धर्म में भी हम जम गये हैं । देखिए हममें सच्चाई आ गई है, हम लोग प्यार को मानते हैं और उस पर चलते हैं । कुछ बोलते नहीं लेकिन हमारे जीवन में ये सच्चाई आ गई है ये बहुत बड़ी बात है । आपस में, मैने देखा है, कि सहजयोग में कोई पैसा वैसा नहीं खाता । सहजयोग के लिए कुछ रूपया पैसा दीजिए तो कोई उसे नही खाता । बहुत लोग कहते हैं कि मां ये भगवान से डरते हैं इस लिए पैसा -वैसा नहीं खाते । किन्तु मैं सोचती हूं कि सहजयोग में एक तरह का समर्थ बनना अपने आप घटित होता है । समर्थ - सम माने आप अपने साथ अर्थ बनना आप में जो दस धर्म बसे हुए हैं वो जागरूक हो जाते हैं, और मनुष्य समर्थ हो जाता है । उसको अपने गुण अच्छे लगने लग जाते हैं । उसी में उसे मजा आता है और दुर्गुण से बो भागता है । दुर्गुणी व्यक्ति से या तो भागता है या शान्तिपूर्वक कोशिश करता है कि इसके दुर्गुण भाग जाएं । दुर्गुण निकालने के तौर तरीके भी उसे मालुम है, उसे बो इस्तमाल करता है और बहुत बार यशस्वी हो जाता है उसमें यश पा लेता है । इसी प्रकार आपने देखा है कि कला में सहजयोग ने बहुत कुछ कार्य किया है । बहुत से बा कलाकारों में एक नया आयाम आ गया है, एक नई दिशा आ गई है । यही नहीं, विदेशों में भी मैने देखा है कि कलाकार बहुत सी नई - नई बातें सोचने लगे है । बहुत से आर्टिस्ट, पेटर म्यूजिशयन, सबमें एक नया उत्साह, एक नई धारणा, एक नया विचार प्रगठित हो गया है । समाज के भी बहुत से प्रश्न हल हो गए है । आप लोगों के जो छोटे बो ठीक हो गए और जो गर्म मिजाजू थे वो भी ठीक हो गए, जो बहुत ही ठंडे थे बो भी उठ खड़े हुए । छोटे प्रश्न थे वो भी हल हो गए । जो छोटी तबीयत वाले लोग थे अब ये सारी सेना तैयार हो गई । एक विशेष प्रकार की सेना है । किसी देश में नहीं, आप तो जानते हैं ( ऐसा कहते हैं ) कि सहजयोग छप्पन देशों में चल रहा है । मैं कहती हूं तीस देशों में बहुत ही 39 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-41.txt कार्यान्वित है । वहुत कार्य हो रहा है । और सहजयोग बढ रहा है । सहजयोग को बढ़ाना भी बहुत बड़ी चीज है । जो लोग सहजयोग को बढ़ाते हैं वो बहुत बड़ा परमात्मा का कार्य कर रहे हैं । यो आप संगीत के द्वारा बढ़ायें, कला के द्वारा बढ़ायें या भाषणों के द्वारा बढ़ायें । इस तरह से भी यह बढ़ सकता है । आप सहज योग बढ़ाी रहे हैं । वैज्ञानिक तौर पर भी, जैसे अमेरिका के विज्ञान के लोग हैं उन्होंने बहुत बातों पर लिखने का सोचा हुआ है । ऊपर जिम्मेवारी जे करके, कठिन परीश्रम से यह स्थापित कर दिया है कि सहजयोग एक वास्तविक सत्य है । जब मैं संसार में आई और जब मैने दुनियां की तरफ कजर की तो मैं सोचती थी कि इस अन्धेरे में बहुत से डॉक्ट रोने बहुत कुछ यहां कार्य किया है । अपने मेरी यह छोटी सी रोशनी क्या काम कर पाएगी ? कोई देख भी नहीं पाए गा । किसी से इसके बारे में कहने की बात तो छोड़िये इसके बारे में विचार भी करने के लिए मैं सोचती थी कि क्या फायदा । ये तो लोग इतने अन्धकार में है, अज्ञान में हैं । जिन्होंने ज्ञान भी इकट्ठा किया था वो सिर्फ बौद्धिक था । कि ताबें पढ़-पढ़ कर बौद्धिक बातें सीख गए थे । उनके आगे बात करने से कोई विश्वास किसी को नही होता था । कोई सोच भी नहीं सकता था कि मैं यह परिवर्तन की भाषा कह सकती हूं । लेकिन अब साध्य हो गया और आप जानते हैं कि यह सब कुछ हो गया है । आज की शुभ घड़ी पर मैं देख रही हूं कि अपने देश के ये हालात देखते हुए और जिस तरह से सब कुछः हो रहा है, हमको राजकीय क्षेत्र में भी उतरना चाहिए । जब तक हमारे जैसे लोग राजकीय क्षेत्र में नही आएंगे हमारे देश की हालत ठीक नहीं हो सकती । एक दम सड़ कर ये पता नहीं क्या हो गई है ? इसकी आंच सहजयोगियों के भी आने वाली है । ये नहीं कि आप लोग बच जाएंगे । हालांकि आपको इससे कोई तकलीफ नही होनी, हालांकि आप इसमें निकल आए गें, फिर भी यदि आपको अपने देशवासियों का ख्याल है और अगर आपको अपने बच्चों का ख्याल है तो बेहतर है कि हम लोग ही ा समाज के जो कार्य करते रहे हैं उसे राजकीय स्वरूप दें । और राजनीति में उतर के हम सिद्ध कर दें कि जो लोग नेक हैं, धार्मिक हैं, जो सत्य पे चलने वाले लोग हैं, जिनमें लालच नहीं, ऐसे लोग एक नये किसी भी देश में जाइए चाहे वो प्रजातन्त्र हो चाहे साम्यवाद हो तरह का राजकीय राष्ट्र बना सकते है या कुछ और - डिमोक्रेसी में तो मैने कोई ऐसा देश नही देखा जहां पर बेईमानी न हो । कही कम कही ज्यादा । अनैतिकता खुले आम बहुत जगह चल रही है । यदि आप कम्यूनिष्ट दे्शों में जाइये तो तो अब टूट ही गए हैं सारे वो वहां पर जो लोगों से जबरदस्ती काम कराया जाता है उससे उनकी - स्वतन्त्रता तक चली गई है । इसलिए दोनों तरह से एक तरफ तो सत्ता और दूसरी तरफ पैसा दोनों के पीछे ही सब देशों के लोग भाग रहे हैं । अब हमें अपनी जो सतह है इन जिस सतह से हम सब छोटे कस्बे या फिर वो अन्तरराष्ट्रीय प्रश्न हो, राष्ट्रीय हो या हमारे छोटे चीज की तरफ देखते हैं गावों का हो जब हम अपनी सतह से उसे देखते हैं तो विश्वस्तता की दृष्टि से, उसकी विशालता की दृष्टि से हम लोग उसे देखते हैं । ये खराबियां हम कैसे निकाल सकते हैं । ये खराबियां भी हम लोग बहुत आसानी से निकाल सकते हैं दूसरे उसकी गहनता से देखते हैं कि उसमें कौन सी खराबियां है, और क्योंकि आपके पास बहुत बड़ी शक्तियां है, बन्धन के सहारे आप जानते हैं कि आप बहुत कुछ काम कर सकते हैं और वहुत लोगों को अपने सहजयोग मैं ला सकते हैं । अभी मुझे एयर फोर्स के बहुत से लोग मिले थे, वो कहने लगे कि माँ हमें भी ले लीजिए । हम जानते हैं कुछ सहज योग के लोगों को जो एयर 40 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-42.txt । फिर कुछ पुलिस वाले हैं वो भी हमारे साथ चल फोर्स में हैं और उन्होंने बहुत कमाल कर दिया है पड़े हैं । महाराष्ट्र में 'पुलिस टाइम्स सहजयोग के बारे में सभी कुछ छापता है । इसी प्रकार कुछ अखबार वाले भी हमारे साथ मिल गए हैं और बहुत सरकारी नौकर भी सहजयोग में आ गए हैं । जब उनकी बदली हो जाती है तो सहज योग फैलाते हैं, इसी प्रकार यदि हम राजनीति में उतर जाएं तो राजकीय समस्याओं का हल भी हम निकाल सकते हैं । इस्को सबसे पहले हमे जानना चाहिए कि इस मामले में हमारी जो कुछ भी इच्छा हो यो साफ सुथरी होनी चाहिए सिर्फ देश के हालात ठीक करना चाहते हैं और लोगों तक उनके अधिकार पहुंचाना चाहते हैं । इतना ही नही उनके अन्दर धर्म जागृत करना चाहते हैं जिससे कि हमारा देश बहुत सुचारू रूप से तथा सुन्दरता से आगे बढ़े और सारे संसार के लिए एक आदर्श बन जाय । । उसमें शुद्धता होनी चाहिए । हम इस देश में अनेक शक्तियां हैं, बहुत ही ज्यादा अध्यात्मिक देश है । अध्यात्म की शक्ति को, कोई माने न माने, आप तो जानते ही है । इस देश की शक्तियों को अच्छी तरह से हम अपने इस्तमाल मैं ला सकते हैं । इसमें एक बात और हमें याद रखनी चाहिए कि हमें भारतीय संस्कृति में उतरना चाहिए । विदेशी संस्कृति में अगर हम लोग जाने लग जाएं तो विदेश की जो खराबियां है वो हमारे अन्दर आ जाएं गी । भारतीय संस्कृति का जो शुद्ध स्वरूप है वो आत्म साक्षात्कार के लिए बहुत पोषक है । अगर हम भारतीय संस्कृति में नहीं आएंगे तो कभी भी इस देश का हाल ठीक नही हो सकता । ये तो ऐसा है, जैसे मैं सदा कहती हूं, कि आम का पेड़ यदि आप विदेश में लगाइए तो उसमें न आम आएंगे न सेब । इसलिए जो आदमी भारतीय है उसे भारतीय संस्कृति में ही आना चाहिए । और परदेश में जितने भी सहजयोगी है, आश्चर्य की बात है, हमेशा कहते हैं कि मां हमें भारतीय संस्कृति में आप उतारिए । तो ये बहुत सौम्य संस्कृति है । इसमें सब बच्चे, लोग, अत्यन्त सौम्य है, सहन शील है । इतना ही नहीं धार्मिक है । तो जो शुद्ध स्वरूप भारतीय संस्कृति का है उसको हमें बनाना है ओर उस पर विचार करना है । हमारे घर में भी वो संस्कृति आनी चाहिए । बहुत से लोग मुसलमानों द्वारा हम पर लादी गई पदा प्रथा आदि को भारतीय संस्कृति मानते हैं । ऐसा बिल्कुल नहीं है । दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र की औरतें पर्दा आदि कुछ नही करती । वो सब भारतीय संस्कृति से रहती है । पर्दा हिन्दुस्तान में चल पड़ी थी । औरतों को दबाना उनके साथ दुष्ट व्यवहार बिल्कुल भारतीय संस्कृति में नही है । भारतीय संस्कृति में तो, आप जानते ही है, बहुत - बहुत बिद्वान औरतें हुई हैं । उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों के साथ बाद - प्रथा उत्तरीय विवाद कर बड़ी पंडिताई हासिल की । औरत को अपनी संस्कृति में कभी । जब विदेशों के भी नीचा नहीं समझा गया स्त्री तथा पुरूष, दोनों का अपना अपना स्थान माना गग्ना । लोग हमारी संस्कृति को ले रहे हैं तो क्या अपने लिए जरूरी नहीं कि हम भी अपनी संस्कृति को समझे तथा जाने ? बहुत सी बातों में हम सोचते हैं कि उनका अनुकरण करना आसान है । लेकिन वो लोग सोच रहे हैं कि उन्होंने जो भी गरलतियां की इसका कारण उन पर किसी तरह के अंकुश का न होना था । एक कटी पतंग की तरह वो लोग मनमानी करते और अति पर चले जाते । तब उन्हें पता लगता कि गलतियों के कारण कई बिमारियां हो गई, सारा उनका समाज नष्ट भ्रष्ट हो गया । 41 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-43.txt नैतिकता को हमें समझ लेना चाहिए । और हमारी संस्कृति की नैतिकता हमारा अकुश है। । वो जब तक हमारे अन्दर पूरी तरह उतरेगी नहीं हम लोग असली तरह से सहज योगी भी नहीं हो सकते । क्योंकि यह सहजयोग के लिए बहुत पोषक है । मैं इसलिए नहीं कह रही कि मेरा जन्म हिन्दुस्तान हुआ है और मैं हिन्दुस्तानी हूं । बाहर की अच्छी चीजें भी सीखनी चाहिए । लेकिन भारतीय संस्कृति को यदि आप अपना ले तो वो सब अपने आप ही आ जाएंगी । उनके बनाये कारयदे कानून तथा अनुशासन ही उनसे सीखने की चीज है । वो भी अपने आप आ जाय गा क्योंकि भारतीय संस्कृति सब चीज में असर करती है, सब चीज को बो ठीक करती है । जीवन के जितने प्रांगण है, जितने भी आयाम हैं, सबमें बो एक दैवी प्रकृति को प्रस्थापित करती है । यह दैवी प्रकृति को प्रस्थापित करने की बात और किसी भी संस्कृति में नहीं है महत्वपूर्ण समझना चाहिए कि हम लोग भरतीय संस्कृति में उतर गये । मैं गांधी जी के साथ सात साल की उम्र से थी उन्हें देखती थी । उन्होंने धर्म पे बहुत बात की लेकिन गांधी जी बहुत कड़क स्वभाव के आदमी थे । सहजयोग ऐसा नही है । यहां कोई जबरदस्ती नही है । गांधी जी का यह स्वभाव था कि चाहे जो हो जाए सबैरे चार बजे उठना है। अब परदेश के सहजयोगी करते हैं, हम लोगों से बहुत अधिक मेहनत करते हैं । । कहते हैं माँ और तो कोई । इसलिए हमें भारतीय संस्कृति को स्वीकार करना चाहिए ओर उसमें अपने को बहुत हमारे यहां तो कोई आश्रम ही मैं नही रहना चाहता नहीं रहना चाहता अब आप ही आश्रम में रहो । आश्रम बनाया तो लोगों को आश्रम ही नही अच्छा लगता, घर से ही चिपके रहते हैं । गांधी जी का नियम था कि सवैरे चार बजे उठ कर नहा धो कर प्रार्थना में जाओ । वहां सांप वगैरह सब घूमा करते थे, प्रार्थना में सांप दिखाई पड़ जाते थे । इतने तेज वे चलते थे कि उनके साथ सब्को दौड़ना पड़ता था । इतने उनके कार्यदे कानून थे कि खाने के लिए उबला हुआ खाना और चाहें तो उस पर थोड़ा सा सरसों का तेल आप डाल सकते थे । सभी को ऐसा खाना पड़ता मैं थे, सन्यासी थे था चाहे वो जवाहर लाल हो या अब्बुल कलाम आजाद । खुद भी वै बड़े भारी अनुशासन | बहुत कड़क उनका स्वभाव था । कोई भी यदि जरा सी गलती कर दे तो सबके सामने उसे लज्जित कर देते थे । उस वक्त इस चीज की बहुत आवश्यकता भी थी । तब के लोगों ने देश को बहुत प्यार न किया । मेरे माता पिता ने देश के लिए सब कुछ त्याग दिया । हम लोग घर छोड़ झोपड़ियों में रहते थे | इतना त्याग, इतनी श्रद्धा देश को आजाद करवाने के लिए थी । आज आजाद हो कर देश का क्या हाल हुआ है । इसी तरह बड़े वीर लोग थे उस समय । इस तरह की भावना यदि हम लोगों में जाग जाए तो हम अपने देश की पूरी तरह से काया पलट कर सकते हैं । इसमें मुझे कोई शंका नहीं है । लेकिन वो त्याग बुद्धि होनी चाहिए और त्याग में बड़ा गर्वित होना चाहिए । इसमें रोने की कोई बात नहीं होनी चाहिए । आज भी देश के प्रति पूर्णतया समर्पित हो कर ही हम देश की राजकीय स्थिति पूरी तरह ठीक कर सकते हैं । सहजयोग में आपके कोई प्रारग आदि जाने की बात नहीं है । कोई कुछ भी करे आपका जीवन बना हुआ है और हर तरह से आपको सुख है । सुख ही सुख है, आनन्द ही आनन्द है । लेकिन सोचना चाहिए कि ये एक तरह का चाँकलेट है जिसको आप खाते हैं । लेकिन इसके अन्दर एक गहन चीज बो है जहां आपको तप करना होगा । जब तक कि तपस्या नहीं होती तब तक आप पूरी तरह से त - 42 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_6.pdf-page-44.txt सहजयोग को प्राप्त नहीं कर सकते । ये तपस्या वैसी नहीं जैसे हिमालय पर जाकर कपड़े उतार ठंड में ठिट्रते रहो । ये तपस्या ऐसी है कि मनसा उददेश्य के लिए एक बड़ी चीज के लिए आज तक मैने आपपे किसी चीज का बन्धन नहीं डाला । किसी चीज की मनाही नहीं की । सब प्यार की बातें होती रही, एक प्यार ही देती रही, प्यार बढ़ता रहा सब आपस मैं मज़ा कर्मणा आप को समर्पित होना चाहिए एक बड़े बाचा । तब फिर अपने आप बहुत सी चीजें घटित हो जाएं गी । मज़ा होता रहा । लकिन आज जब आपने जन्म दिन की बात की है तो एक नया आयाम हमारी जिन्दगी में हो जाय, नये इराद हो जांय । जिन इरादों पर हम बाद में गर्द करें ऐसे इरादे हम में हो सकते हैं । आप लोग सहजयोगी हैं, आपका हर इरादा पूरा हो जाता है । मेरा तो कोई इरादा ही नहीं है, मुझे तो कोई इच्छा ही नहीं है लेकिन आप लोग इच्छा अगर करें तो सब चीज ठीक हो सकती है । हमारे देश की स्थिति के लिए आपको मन से प्रार्थना भी करनी चाहिए और आज पूजा भी करनी चाहिए इसी चीज को सोच के कि हमने अपने देश की स्थिति ठीक करनी है, और हमारे अन्दर बो शक्ति आए जहां हम अपनी छोटी ला सी जो जिन्द गी है उसका ख्याल करके कम से कम देश की ओर नजर करें, इसके जो हालात हैं उन्हें समझलें और उसमें कार्यान्वित हों । आज का दिन आप सबको शुभ हो । आशा है कि मैरे जीते जी मैं वो भी दिन देख सकूं कि जब हमारा देश पूरी तरह से इन सब गंदगियों से आजाद हो जाय, अर सहज का झंडा सब तरफ फैल जाए । आप सबको अनन्त आशीर्वाद । ह] 43