चैतन्य लहरी 1991 ीय स7 ड, हन्दो आवत्ति है क हे ু ब्रुरा मानना सहज्योगियों का लक्षण नही है । महज्यागियों को तो किसी भी चीज़ का बुरा तहीं मानना चाहिए क्योंकि आप बुरे है ही नहीं तो आप बुरा कैसे नान कते है । विष्य सूची विष्य क्र. सं. पृष्ठ सं. जन्म दिवस पूजा 1. श्री माता जी निर्मला देवी मुम्बई 2। -3-9। काड जन साधारण कार्यक्रम 6 2. श्री माता जी निर्मला देवी का भाषण मुम्बई मार्च 1991 राम नौमी पूजा 13 कलकत्ता 25-3-91 3. जन्म दिवस फूजा श्री माता जी निर्मला देवी मुम्बई -21-3-91 सारे विश्व में आज हमार जन्म दिन की सोशयों मनाई जा रही है । यह सत्र देवकर जा भर आता है । आज तक कसी भी बचचों ने जपनी माँ के इतना पयार नही दिया होगा जितना आ्ाप मुझ देते है । ये श्री गणेश की माहमा है जो अपनी मा को सारे दवताओ से भी ऊँचा समझते थे और उनकी सेवा में लगे रहते थे की अपने बचों से प्यार होता है और वह अपने अचों के लिये हवर तरह । इस लये वे सर्व साद प्राप्त कर गये । यह नो नैसा्गक है कि हर मा । और का न्याग करती है उसे उनसे कोई अपेक्षा भी नहीं होती । नोक्न हर माँ चाहती है कि मेरा बेटा चारत्रवान हो, नाम का का कमाये, पेसा भी कमाये । इस तरह की एक सासारिक मा की इचाये होती है । नोकन आध्यात्मिक माँ का । मै सोच रही थी कि मे कौन सी बात कहू स्थान जो आपने मुझे दिया है मुझे तो कोई भी कज नहीं क्योक मुझे कोई इान नहीं । शायद इस दशा मे कोई इछ न रह जाये । तेकन बगेर इन किये ही याद सब कार्य हो जाये, इन के उद्भव होने से पहले ही भप सब कृछ कर रहे हैं तो और किस चीज की इच्दा कर ? जैसा मैने चाहा धा और सोचा था, मेरे बचे अन्यंत चारत्रवान,उज्जवल स्वभावि, दानवीर, शूरवीर, सारे वश्व का कल्याण का करने आले सो तो मैं देख रही हूं कि हो रहा है किसी मै क्म हो रहा है, किसा मे ज्यादा हो रहा है । दानयों ऐसे व्यक्तित्व वाले महान गुम ग । होगे भर घूमकर,दुनियाँ भर में जा जा कर संसार के सब प्राणयों मे उदार देने का कार्य भी मे दख रहा है गुण उनये पस थे उनका प्रयोग सहजयोग के कार्य मे हो रहा है । कृछ कहना नहीं पड़ा काछ बताना नही पड़ा । सब कि हो रहा है । कितने ही लोग कला में उतर गये कोव हो गये और जितने भी को लोगो ने ना जाने कैसे उस बात को ले लया कि हमें सहजयोग को फैलाना है । सहजयोग को फैलाने में कोई काठनाई भी नहीं होना चाहिये क्योंक आप आशायीदन है, ऐसे । आप के लिये कोई आशीर्वाद किसी भी सन्तो को नहीं मिले । सन्तो ने तो बहुत तकलीफे उठाई तकलीफ नहीं । लेकन आप के अन्दर अनन्त शक्तयों है । उन सब शक्तियो को जान लेना चाहये, भाप उन शाक्तियों को पूरी तरह से उपयोग मे लाना चाहिये । जब तक आप उन्हे उपयोग नहीं करेगे तो जैसे एक मशीन याद आग उपयोग मे न ताये तो सड जायेगी । ये जाती है, ये शाक्तयों भी सड़ शोक्तयों आप मे जागृत हुई है और जागृत से ही किसी किसी में तो इनका वहुत ज्यादा प्रादर्भाव है और वो कार्यान्वत भी है । पर इसके लिये हमें क्या करना चाहिये ? ऐसा अगर आप मुझसे पाठे तो वो मैं आपसे बताना चाहती हैं । सबसे पहले हमें अपनी ओर नजर करनी चाहिये कि हम सहजयोग के लिये क्या कर सकते हैं । सुबह से शाम तक हम बस हमारे बचचे हमारा घर-बार, यही कुछ हम करते हैं या कुछ और हम कर रहे हैं । ये भी विचार आना चाहये कि हमारी माँ इस उम्र में भी कितना सफर करती हैं,इधर-उधर जाती हैं । कम से कम हम अपने अडोस पड़ोस मे इ्थर -उधर जाकर के लोगो को ये बात बतायें । कगर आज आप उन्हे नहीं बताते तो कल वो आफको दोपी ठहरायेंगे कि क्यो नही बताया हमें ? याद भापने हमे बताया होता तो हम भी इस अमृत को पा सकते थे । तो एक तरह की जिम्मेदारियों आप पर क्षा गया हैं । ं इसीलये बहुत जम्री है कि इसे आप दूसरो क्योंकि आप लोग उसे पहले ही पा गये हैं । को भी दें । अपने पास ही न रखे । आप लोगो के लये भी वसे देखा जाये तो मैने कोई खास काम नही किया । किन्तु आपके भन्दर ये शाक्तयों जमूर जागृत हो गयी है । बो शाक्तयाँ कार्यात्वत है कि तरह से इस आप साश्चर्यनाकन है कि ये कैसे चमत्कार हो गया-बो कैसे चमत्कार हो गया । क्योंकि आप परमात्मा के सामराज्य मैं आ गये है सब काम कपने आप हो रहे हैं । फिर भी हमें साचना | म चाहिये कि हम परमात्मा के सामग्राज्य मे क्या करने आये है ? जैसे आप देखते है राजनात में एक निर्वाचन क्षेत्र से एक आदमी निर्वाीचत होकर आता है और जाकर के लोक सभा में बैठ जाता है । उसे लोक सभा के अधिकार और सुवधाये भी मिल जाती है । पर उस पर एक बन्धन ओर भी पड़ जाता है उनको बढावा देना कि जिस निर्वाचन क्षेत्र से वो आया है उसके लोगों को जाकर के देखना, सम्भालना, है । ये और उनकी प्रगात करना । अब आप भी समझ लीजये कि आप एक निर्वाचन क्षेत्र से आये शोक्तियों आपको सारा प्राप्त हो गयी । अब इन शोक्तया को बढ़ावा देना उनकी प्रगात करना बहुत जनरी है । अगर आपने ये नही किया तो शाक्तयां सुप्त हो जायेगी ओर जिन लोगो को ये शक्तियां देनी हैवो भी रह जायेंगे, उन्हे कुछ नही मिलेगा इस लये हमको ये सोचना चाहिये करना है । सहजयोग मे ध्यान धारणा से अपनी गहराई बढ़ा ली । लेकन जब तक आप बीटियेगा नही तब तक ये गहराई एक सामा तक पहुँचकर रूक जायेगी आप गाते तो अछे से है लोकन ये गाना आप बाहर क्यो नही ते जाते आप दूसरो को जाकर क्यो नही आपने कि अब हमे क्या बहुते से लोग बहुत सुन्दर गाना गाते है र सुनाते ? और जगह जाईये ये गाना सुनाईये । लोग इसे सुनकर बहुत ही आनन्द उठायेगे । ऐसे ही अनेक चीजे है जो लोगो के पास है लेकिन वो बस घर ही मैें बैठकर सब करते हे। बहुत से लोग बहुत अच्छा भापण देते है प्रवचन करते है । मैने उनसे कहा कि आप बम्बई और दिल्ली शहर में ही क्यों रहते है आप जाईये बाहर और प्रयत्न कीजिये । बो ज्यादा कान बाहर तोगो को सुनाईये भाषण र । रहेगा बोनश्वत उसके कि जिन लोगो को हम पार चुके है उनको सुनाने से क्या फ्ययदा है. बाहर फेलने में जो सामुाहकता है तो सरल बात ये है कि हमें बाहर फेलना चाहये । उसको अमझना चाहिये । उसमें अनेक प्रश्न भी सड़े हो सकते हैं अनेक झगड़े भी सड़े हो सकते है अनेक तरह के लोग आपको हर तरह से चेलेज भी कर सकते है । ऐसे लोगो से भड़ने की जरूरत नही | उनसे सीधा कहना चाहिये कि याद आपको कुंडालनी का जागरण चाहये तो आप आईये । और अगर यांद वो चिल्लायें तो उनसे कोहये कि आपका विशुद्धि चक झगडा ही करना है वो बेकार की बात है । के और फिर कभी आत्मसाक्षात्कार न मिल सकेगा । इस तरह से बहुत ही सूझ बुझ खरात्र हो जायेगा साथ, समझदारी के साथ उनसे बात चीत करनी चाहिये । अब मे सुन रही हैं कि अलवर मैं सहजयोग चल रहा है । पता नही कैसे लोग वहाँ गये । एक साहब का तबादला वही हुआ और वहाँ सहजयोग चल पडा। पटना मे भी मुझे बताया गया क दो सी सहजयोगी है । बड़े आश्चर्य की बात है । पटना तो में कभी गयी ही नहीं । कानपुर इतने सहजयोगी है । एक शर्माजी बहाँ गये और इतने लोगो को आत्मासाक्षात्कार दे दिया । फर्ण रूप से यही कार्य कर रहे है । किसको साक्षात्कार देना है, किसको ठीक करना है, पूरा उनका यही काम चल रहा है । एक मिनट भी वो ऐसा साचते नही है कि चलो कुछ देर बैठ जायें या मुझे तो करना नही है या ठीक हे मे जतना चाहता हूँ उतना कर लेता हूं । इस तरह की बात बो कभी सोचते ही नही है । इसी प्रकार हमें भी सोचना चाहिये कि रात दिन हमें सहजयोग ही के बारे मे सोचना है और जब तक उसी मै हमे मजा आता है तो हम आगे जायें ओर काम बन सकते है । आपने मेरा जन्म दिन इतने प्यार से मनाया । पता नही आप लोग क्यो मनाते हैं मेरा जन्म दिन ? मै यही समझ पाती हूं कि आप लोग सोचते है कि मेरे संसार मे आने से कोई बहत बड़ा बात । मै तो यह सोचती हूं कि जिस दिन आप लोग पार हो जायेंगे हो गयी है । सो मै नही सोचती बहुत बड़ा दिन होगा । जिस दिन मेने पहले इन्सान को पार किया धा उस दिन मेने सोचा घा कि बहुत वडा दिन हैे । १he* जब मै पेदा हुई थी तो चारो तरफ अन्धकार था देखती थी कि कस तरह से य बानें नोगो से । और सत साधु तो कोई है नही । आधकनर नोग विल्कुत लोगों की तो बाट कुंठित है कहंगी । अन्धकार में, अज्ञान में कसे है । इनको में किस तरह से बान समझाउँंगी ? इनसे में क्या कह सुगी सुनेगा । तब मेने सोचा कि जब तक मै सामूहिक चेतना को जागृत नही की मेरी बात कोई नहीं शुरू से मैने जान लिया कि कोई भ करनी है । इस पर मैने विचार किया, प्रयोग किये, जितने लोगो को जानती थी उनके चको को मैने देखा और हैे । किस तरह से ये सब के सब लोग एक भोर बात कहने से पहले मुझे सामाहिक चेतना जागृत करने की व्यव स्था सोचा कि उनके चक केसे ठीक हो सकते सामुहिकता में आ जाये और पार हो जाये लेकन अगर कोई कहे कि मैने इसके लिये बहुत तपस्या की- आदि -तो मुझे कभी भी ऐसा नही लगा कि मैने बहुत सारा का र्य किया । सबेरे चार ा बजे उठने की अन्दर डालकर क किस फ्रकार वैसे आदन थी । उठकर मे विचार करती थी अन्दर में । विचार को या कुंडातनी का जागरण हो सकता है घीरे-धीरे आपके अन्दर ये विचार अन्दर डानने की चिल्त मे डालने की जो एक व्यवस्था है उसे आप सीख । अब ये सारे तरीके जो है अभी शायद आपके पार आये नही है पर । फिर जो भी विचार आयेगा उसे आप चित्त में डाल सकते है । जैसे कम्प्यूटर मे प्रोग्रामग करते जायेंगे है उसी प्रकार जो हम सहजयोगी है एक क्म्प्यूटर है और उसी प्रकार हम चित्त में प्रोग्रामिग कर सकते है विचार का प्रोग्रांमंग करके याद हम चित्त में डाल दे तो वो सब कार्यान्यत हो सकता है । परन्तु उसके लिये कमप्यूटर भी प्रगत्भ होना चाहिये और जो कर रहा है उसके अन्दर भी सफाई होनी चाहिये । समझ लीजिये कि कम्प्यूटर में काई खराबा हो गया तो कोई लाभ नहीं । इसलिये आपको अपने को बहुत स्वत्द निर्मल बनाना चाहिये । सबसे तो बड़ी बात जो बहुत सुखदायी बात हे, वो ये कि विश्वं-निर्मलता-धर्म की स्थापना हई पंचि-छह साल हो गये तब से विश्व -निर्मना - धर्म बदता जा रहा है और आज कम से कम मेरे स्व्याल से, लोग इसमे पूरी तरह से आ गये । अब जो सहजयोगी पहले किसी भी तरह से नही मानते थे उसी धर्म पर चलते थे, ओर वही रट लगाये रहते थे , गलत गुम्ओ के पास जात थे, मन्दिरों में मास्जदों में वे कोशिप कर रहे घूमते थे, घर्म को पाले । है कि हम किसी तरह से अपने अन्दर इस अब आकर के जम गये है विश्व-निर्मला-धर्म को । ये नया धर्म ऐसा है कि इसमे सारे नये धर्म समाये है । हर धर्म के बारे मैं इसमें जानकारी होती है और उसके तत्य को समझाया जाता है । इसके कारण मनुष्य यह जान जाता है क ये सारे तत्व एक ही धर्म के हैं और जो शुद्ध धर्म है उसमे ये सारे ही धर्म पुरी तरह से निहित है । उसी में बैठे हुए है उसी मे जमे हुए है । इस प्रकार जब हम देखते है तब जो दुसरे नोग है, जो किसी भी धर्म का अनुसरण करते है,उसके पाछे पागत जैसे भागते है उनके बारे में हम सोचते है कि वो पार नहीं है ।उनका धर्म और है । हम उनके घर्म के नहीं है । इस घर्म मे आने से हमारे अन्दर अर्हकार जो था वो चला गया । हमारे अन्दर जो दुष्ट भावनाऐँ थी वो चली गयी और सबसे बड़ी बात हमारे अन्दर शोक्ति के बगैर कोई क्यों कि ये सब प्रकाश है, धर्म शाक्त है । जो अन्धावश्वास थे वो सत्म हो गये जब ये प्रेम कार्यान्यत होता है तो शोक्ति इस तरह कार्य नही हो सकता और शाक्त में प्रेम पा है । से दोड़ती है जिससे कोई भी ऐसा बात नही हो सकती जो परमात्मा की दृष्ट से गेर कानूनी हो क्योकि उस शक्ति में ज्ञान है, इसमें प्रेम एपा हे और पूर्ण सुझ-बुझ के साथ ये शाक्त कार्यान्वत हे । सहजयोग में आकर जो लोग शाक्त सम्फ्न हो गये उनके अन्दर अहेकार आने के बजाय अंत्यन्त नमता । ये सब चीजे जब होना है तो अत्यन्त सौम्यता आती है और बहुत माधुर्य आ जाता है आली है, 3- मनुष्य कभी-कभी साचता है कि मै ऐसा हो गया ? मुझे ये सब कैसे प्राप्त हो गया ? ये स ब तो नुम्हारे अन्दर ही था पर तब तुम अपने को जानते नही थे और अब तुमने जान लिया है । जन्म दिवस के दिन पर यही स्यान आता है कि एक माँ अपने बच्चे को जन्म देकर किस प्रकार से रसे कि मेरे बचे को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिये मुझे चाहे कोई तकलीफ हो जाये मेरे बचचों को कोई तकलीफ नही होनी चाहिये । कुछ भी हो कैसा भी हो, मेरा बच्चा है उसको कसी भी तरह कोई तकलीफ ना हो । चाहे वो मुझे बो सताता भी हो, परेशान भी करता हो तो मेरे बच्चे को कोई तकलीफ नही होनी चाहिये । इस प्रकार जब आप सोचते है कि मुझसे ये गलती हो गया, वो गतती हो गयी और इस प्रकार जब आप अपने अन्दर ममत्व की भावना लाते है तो मुझे हापको ये कहना है कि इस तरह की कोई बड़ी गलती आप कर ही नहीं सकते जसे में माफ नही कर सकती । किन्तु आपको यद अपना ही गौरब बढाना है और अपना जीवन विशेष बनाना है तो आवश्यक है कि हम अपने को किसी गरिमा से, किसी बडुप्पन से देखे जैसा हम जानना चाहते है । सिर्फ हम माता जी को मानते है, उनके हमने फेटो लगा लिये, उनका हमने बैज लगा लिया और हम माता जी को मानते है। मेने अभी किसी भापण में कहा था कि किसी को मानने से भी,याद आप किसी को मानते है तो अची बात है कमत मान लिया । लेकिन उस । इसकी ये तो पहचान है कि आपने कम से कम किसी अचे आदमी को अचछे आदमी का जो कुछ भी व्याक्तत्व जो कुछ भी है वो आपके अन्दर कितना है? आपने उससे कतना प्राप्त किया या आपने उसके लिये कितना त्याग किया । ये विचार करना है । किसी को मानने ही ? समझ तीजये कि एक गर्वनर हे, आप कोहये कि मै गर्वनर साहब को मानता मानने से क्या फ्ायदा ार हूं तो क्या वे आपको अन्दर आने देंगे ? बो कहेगे ठीक है आप गवर्नर साहब को मानते हे आप यहाँ । मान्यता से, आप बीठये । इसी प्रकार आध्यात्म में भी किसी को मानने से कार्य नहीं होने वाला । लेकिन आप की जो प्रगल्भता है वो तो आप ही के उपर जानते है कि वारेशन हलहारियाँ बढ़ते है। निर्भर है, आप ही की मेहनत है । आपने अगर हमे मान लिया तो आपने ये तो स्वीकार कर लिया ये व्यक्ति काठ विशेष है, कहाँ तक हमने उतारा है ? कहाँ तक हम पहुँचे है ? जैसे सहजयोग में बहुत सी शिकायते होती है । और हमे लगता है कि कुछ तो बहुत अजीव सी बात है । सहजयोग जो है वो आपके हित के लिये है, आपकी शक्ति के लिये है, आपके गौरव के लिये है, मुझे इसमे क्या है ? मेरे पास तो है ही । काछ आदर्श है । पर उस आद र्श को भी अपने जावन मे हमने उतारा है ? पुराने सहजयोगी है जो जिस तरह से चल रहे है बो जरा कुछ मुझे सहजयोग करने की क्या जमरत है ले । बच्चा कहता है कि अब माँ है वो बच्चे को कहती है कि दूध पी सहजयोग आपको करना है । ठीक हो जायेगी । वो हर समय इसी नहीं। माँ उससे कहती है कि दूध पीने से तुम्हारी तन्दुस्स्ती में है ? अगर बच्चा अपने हित को समझ चिन्ता मे लगी रहती है कि इस बच्चे का हित किस चीज लेगा तो माँ का भी कर्तव्य पुरा हो जायगा । हालाँकि मेरे अन्दर कोई इछ नही है फिर भी मेरा कर्तव्य है कि मै आपको बताउँ कि आपको क्या प्राप्त करना चाहिये और आप कौनसी दशा में है । अब बहुत से झगड़े और ओ ी बाते खत्म हो आ गये । में गयी । इसमे कोई शक नही । आप लोग बहुत आनन्द मे आ गये ,प्यार के बन्धन स। फिर भी एक बात जो मुझे तगती है वो ये है कि सहजयोग करने के लिये हमारे पास फुरसत ही नहीं है । आपने जो पाया है उसे देने की उत्कट ाछ होनी चाहिये । किस तरह से इसे दू? किस तरह से मुझे देना है ? इस तरह की भावना जब तक आपमे जागृत नही होती,इसालये नहीं कि में अपने आपको दिखाना चाहती हैं हूँ, हूं, नेसक है इसालये नहीं कि मै बड़ा भारी संगीतज कि मै कोई बड़ा भारी वक्ता या बडा भारी काव हूं पर इसलये कि मैं इसे देना चाहता हूं । इसालये नहीं कि मैं पैसा या नाम कमाना चाहता हैं पर इसालये क में इसे देना चाहता हूँ । ऐसे अन्दर से शुद्ध झा होना चाहये । तब आप दोखऐेगा कि कुडालनी बढ़नी है मुझे आत्मसाक्षान्कार देना है । कौन इसे ले सकत। है कीन नही ते सकता है ? लोगो को पार कराने की । नब ये शुद्ध इका का ये स्वन्ध भ जायेगा मेरी शुद् इज है कि जबरद स्त भावना अन्दर मे होनी चांहये । ऐसा आदमी विना दूसरों की व्ालोचना किये जपने लक्ष्य का इ ही मेरी सब कुछ है । मेरे अन्दर तो ये जवरद स्ते इान है । ये और अग्रसर होना जाता है । सहजयोग में इसी प्रकार फक जबरद स्त इतन होनी चाहिये कि हम सहजयोग को कायदे से फैलाये । अव लोगो को मैने छेड दिया है । इसका प्रचार करे। हर जगह जाये लोगो को बनाये कि सहजयोग क्षाप क्या है ? सहजयोग से क्या-क्या लाभ होता है । वासकर दोहातो में आप कार्य करे । जो लोग बम्बई है उनसे बिनती है कि स गँव-गाव जाये नोगो को समझाये । कम से दिल्ली शहर में बैठे हुए या कम भारत वर्ष के हर गांँव मे क्या आप नही सोचते कि मेरा सदेश पहुँचना चाहये । सच लोगो को या क्या आप ही इसका मजा उठाते रहे इसका पला होना चाहिये अत: आप सबको मेरा कहना है कि रोज दिन चया में आप लिखे "आन मेने सहजयोग के लिये क्या किया ?" कितने लोगो को हमने पार किया ? कितने लोगो से सहजयोग की बात की इतना ही सब लोग मिनकर इसको बना सकते है कि कितने लोग वहाँ जायेगे-इतने लोग यहाँ जायेगे । इसी प्रकार से आपकी कुडालनी का नया रुप आ जायेगा । आपके अन्दर से चैतन्य बहना जायेगा । आपके अन्दर से चैतन्य की लहौरियाँ ऐसे बहेगी नैसे सूर्य की किरणे । लेकिन उसके लिये सबसे पहली चीज जो मैने बतायी वो ये कि आपके अन्दर देने की इन होना चाहिये । आज भी बहुत हो शुभ से लोग है जो आकर ये बताते है कि उसकी ये तकलीफ ठीक कर दी, उसकी वो तकलीफ ठीक क दी । आपने देखना है कि किसी को क्या दे तो आपने ये नही देखना कि कससे क्या मिल सकता है सकते है । किसकी क्या तकलीफ ठीक कर सकते है । किसी का याद मेर रज्जु खराब हो गया है तो अनेक प्रकार की दुषिधाए । इसी प्रकार बहुत लोगो ने है जिन्के उसके बहुत से चक स्वराव हो गये होगे आप आसानी से मेहनत करके निकाल सकते है । हर एक आदमी को मैं नही देख सकती, हर फक आदमी को मै नहीं ठीक कर सकती लेकिन आपने यद शुस्वात करद तो आप जान लीजिये कि आप । ये जरूरी नही कि मै ही सबको ठीक सर्वशाक्त शाली हो जायेगे और आप सबको ठीक कर सकेंगे ाि क, कोई जरूरी नहीं । आप थोडी सी मेहनत से सबको ठीक कर सकते हे और आपकी मेहनत से ही आपके अन्दर की शोक्त एक नये र्वरूप में आ जायेगी और आप बेठे-बैठे यहाँ से ही लोगो के बारे में बता सकते है । यही एक आज दिन मेरी इ, में री एक ही इान है कि इस चैतन्य से सारे भारतवर्ष में नहीं सारे संसार में अमन चैन होना चाहिये । सारे संसार में शोंति होनी चाहिये, सारा संसार ठोक होना चाहिये। ये मेरा अपना फूरण विश्वास है कि जब आप लोग इसमें उस इठछा को लेकर, उस उत्क ट के साथ गर आप इसमे पड़ जाये तो किसी की मजाल नहीं हकोई कुछ नहीं कर सकता ।ै कि आप अपना ক়া लक्ष न पाये । वो सहजयोग? बढता ही जायेगा, बढता ही जायेगा क्योंक आपके साथ परमात्मा साक्षात चल रहे है, सारे देवदूत चल रहे हैं । इसालये आप प्रयत्न करके दौखये । इसी प्रकार आपको सोचना चाहये कि मै सहजयोग के लये क्या कर रहा हूं ? चलो कही । और जो काठ भी करे एकजान होकर करे । इसी प्रकार हर एक को जाकर सहजयोग के लिये काढ करे म । हर एक को दूसरे के कार्य का खचर होनी चाहये कि सहजयोग के लिये यथाशांक्त कार्य करना चाहिये ३ । ये सब आप ही कर सकते है । वा क्या कर रहा है सहजयोग की जो भी प्रगत हुई है वो सव आपकी ही वजह से हुई है क्यों कि मै तो अब क्या करुगी प्रगत, मेरी तो प्रगोत हो चुकी । ये सब आपके लिये है और इस प्रगत के माध्यम से ही आप और भी प्रगात कर सकते है । इसके लिये मे यही कहूँगी कि अगलने अन्म दिन से पहले आप भारत वर्ष मे सहजयोग को फेलाये तो आपसे दुगने लोग सहजयोगी हो सकते है और आशा है कि अगले जन्म दिन के वक्त मैं सुनूगी कि आपसे किस कदर आपने सहजयोगी बढ़ाये । सहजयोग के जो नियम है उन्हे जरूर पालना चाहिये । जैसे कल एक साहव आये थे उनकी दो पंनयाँ है । कहने लगे ये सहजयोग मे आने से पहले है । मैने कहा सहजयोग में अगर आफ्को आना है तो आप पक ही फनी के साथ रह सकते है, दो के साथ नही इस प्रकार हर आदमी को सोचना चाहिये कि मै इस नयी दुनियां में आया हूं । मेरा चारत्र कितना उज्जवल है । यह बात चरित्र की है, । मै कितना बदल गया हूँ । ये सब ध्यान में आना चाहिये । लेकन ये सब किस लिये बनाया जाता है । इसका कुछ न कुछ तो कारण होना चाहिये । क्यो आप अपने जीवन को बदले ? बदलना इसांलये आवश्यक है कि आफ्की कुंडोलनी उन्मर आ सके । आज मेरा आपको अनन्त आशीर्वाद है । मेरे बचे जो बहुत प्यारे है वो युग-युग जिये' और संसार की भलाई करें । यह मेरा अनन्त आशीर्वाद आप लोगों के साथ है । .Oeer जनसाधारण कार्यक्रम श्री माताजी निर्मला देवी का भाषण मुम्बई-मार्च 1991 श्री रामकृष्ण जी और श्री चन्द्रशेखर जी तथा यहाँ उपास्थित सब सत्य के साधकों को हमारा नम स्कार । इतने सुन्दर भापण आप लोगो ने दिये और इतनी प्यारी-प्यारी बाते आप लोगों ने कही । एक बहन के लिये ये आनन्द की बात है ही किन्तु न जाने क्यों हृदय मर आता है कि आज मेरे भाई मेरे साथ सडे है । हमने सुना कि धर्म की क्या ग्लानि आपने देवी है और धर्म के नाम पर कितने किन्तु गलत कान होते है जो धर्म समाज के काम नही आ सकता ऐसा धर्म किसी काम का नही बास्तोविक बात ये है कि धर्म जिन्होने बनाया है जो बडे-बडे अवतरण संसार में है और जो पगम्बर आये, इन लोगो ने जो धर्म बनाये वो शूद्र धर्म थे, समयाचार के हिसाब से वो धर्म बनाये ये घर्ममार्तष्य जो भी कुछ और जो बड़े-बडे सन्त हुए आये, दार्शीनक लेकिन बाद में एक नयी पीढी तैयार हुई उसे कहते है घर्म-मार्तडंय इन महानुभावों ने कार्य किया उसके बराबर विरोध मे खडे हो गये महानुभूतियोँ इस संसार में आयों और उन्होने ने भी जो महान कार्य किये उन कार्यो को जब हम देखते है तो आश्चर्य होता है कि वह सब पैसा कमाने का एक धन्धा है । मै स्वय ईसाई घर्म में पैदा हुई थी गये । । । अच्छा ही हुआ क्योंकि ईसाईयो की सारी पोल पट्टी तो मेरी समझ में आ गयी । मेरे पिता स्वयं संस्कृत के बड़े भारी विदान थे । माँ भी बहुत संस्कृत जानती धी । उस ववत जब मेने बाईवल में पढ़ा कि एक पौल साहब आये हुए है और वो घर्म के बारे मे बोल रहे है तो मैने अपने पिताजी से पूछ कि ये पील कौन है ? मेरे पिताजी आत्मसाक्षातकारी थे । उन्होने कहा बेटा तुम समझी नही । ये है "घुसपीठया" । उसने जब देखा कि एक बहुत बड़ा मंच बन गया है, बड़े सारे लोग इसमे आ गये है। ार तो मंच पर चढ गया और अगुआ बन बेठा । बाद में उसी का जन्म अगस्टान की तरह से मनाया जाने त गये है उन्होने उनके ्विलाफ बहुत काछ लिखा है वड़े सन्त जो । सन्त नगा । कोय जिब्राल बहुत ज्ञानेश्वर को भी इन धर्म मार्तण्डयो ने बहुत सताया । उसके बाद हमारे देश में नुकाराम जैसे महान महान आत्मा हुए उन्हे जताया नहीं गया नो उनकी बदनाम किया गया, सताया गया और उनके मरने के बाद उन्ही के नाम पर मान्दर बनाये गये बडी-बड़ी सस्थाए वनायी गयी और बहुत से कार्य हुए । अभी मैने एक किताव पदी थी जिससे मे हैरान हैं क आत्मा को कितना ल्ता गया । हर देश में वाटकन ने जो कि पाँप की अपनी पूरी राज्य व्यवस्था है ने दो वलयन दो अरब झुठी सिक्योरिी गपा समझ तीजिये कि परमात्मा कार्य करनी बाली संस्थाए इस तरह से भगवान को भी बेचती है पैसा तो कमाती ही है, माफिया बना हुई है । और ये साधे यादे भोले और धर्म को भी बेचती है । ग मन्दरो में चर्च में जाते है और सोचते है कि वहा परमात्मा है जसने हमें बनाया, ओर उसी की ल भाक्ति व श्रदा में हम रहे । पसी एक से क बढकर चीज आप देख सकते है । आपने का ना घदारा नाम सुना होगा । हर एक धर्म मे एक से एक बढ़कर के धर्म मार्तण्डय बेठे हुए है जो कि माफि्या है | अब तो मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान में कितने ही माफिया शुक हो गये हैं । सबसे पहली चीज है ये पैसा । धर्म में पेसा कमाना । जब पैसा कमाना शुरू हो जाता हैता आप समझ लीजये कि ये धर्म हो ही नही सकता क्यो कि परमात्मा पेसा नहीं समझते । मे तो पेये के मामले में बहुत बेवकृफ है । आप तो व्यापार बाले है लेकन मेरा वजनेस पैसे के बगैर चलता है । न जाने कहाँ से मदद आ जाती है, न जाने कहाँ से सब हो जाता है । एक अर्थ-शास्त्र ऐसा विषय है ना आपका कानून है इसान का विल्कुल मेरी खोपड़ी में नहीं घुसता क्योकि इन्सान बनाया है और दूसरे बनाया हुआ कानून मेरी स्वोपडी में नही घुसता, परमात्मा का कानून में समझ सकती हूं । लीकन ये भी कानून जो हम इस्तेमाल कर रहे है ये भी परमात्मा से आया है । हमारे अन्दर ये विवेक का गुण परमात्मा ने दिया हुआ है । हम जो लोग जो कायदा बनाते है उसे हम स्वीकार करे । क्यो कि मनुप्य ने जो कायदे बनाये है उनमे अनेक दोष है लेकन परमात्मा के । जेसे कि कायदे मे कोई दोप नहीं आपने अभी कहा कि आज अपने दे श मे गरीबी है, किनने लोग परेशान हे हर तरह से तंग है । आप नोग बताइये । क्यो हम लोग तेग है ? क्यों परेशान है इसका इनाज क्या हो सकता है। क्यो हम गरीब है ? आपको पता होना चाहिये कि हमारे बहुते से शिष्य स्विस बेंक मे भी है, और विश्व वो बताते है कि विश्व बेक से वो हमारे देश में बहुत सा कर्जा देते हैे । तो हम तो बैक मे भी है । कर्जे में आ गये और बो पेसा वापिस स्विस बैक चला जाता है । स्विस बैक फिर वो पैसा विश्व बेक को देता है और विश्व बेक फिर से कर्जा देता है । इस तरह से पेसा घृमता रहता है और हम है कि हमारे और पैसा बैठा है स्विस बैंक में। पर कर्जा चढता ही जा रहा है । ये जो चक चला हुआ है इसका इलाज क्या है ? आज जो अराजकता फेली हुई है, जिस तरह से भ्रष्टाचार फेला हुआ है, जिस तरह से नातक मुल्य गिर गये है इन सबका इलाज क ही है क्यो कि इसकी जड़ है मनुष्य । मनुष्य गिर गया इस वजह से ये सब चीजे गिर गयीं । परमात्मा ने इसमे कोई विगाड नही किया । फूल उसी तरह से आते है आकाश में चन्द्रमा उसी तरह से विराजमान है । ये जो ऋतम्भरा प्रज्ञा है ये अंपना कार्य अची तरह से कर रही है । । लोग अडोसी पड़ोसी को नहीं जानते । सही बात है । पर इसके मम मे, इसके तत्व मे याद आप पहुँचे जैसे आपने फरमाया कि बम्बई में लेकन इसमे कहीं कोई दोष है वो इनसान में है तो आपको एक बात समझ में आ जायेगी कि मनुष्य ही इसका कारण हे । जानवर तो पशु हे, परमात्मा भर के पास में है । शेर-शेर हा रहता है, गीदड नेही हो सकता मनुष्च शेर, गीदड, सॉँप , वच्छू कुछ भी हो सकता है । कारण परमात्मा ने उसे ये स्वतन्त्रा दी है कि चाहे स्वर्ग मे जाओ चाहे नर्क मे जानो । तब एक बात आती है कि ये मनुष्य कुछ अधूरा सा है । माना कि अमीबा से इन्सान हो गया । इसे बहुत सी बाते आ गयी जैसे किसी जानवर को आप चाहे तो वो गदै नाले से चला जायेगा पर मनुष्य नही जो सकता क्योंकि उसको दुर्गन्ध आयेगी । उसको सौन्दर्य समझ मे आता है । उसको वहुत सा । अभी केवल सत्य पर नही पहुँचा । जब केवल सल्य में पहुँच । जैसे अधैर में खड़े हुए हाथ में हमने कुछ पकड़ लिया । कोई कह रहा है कि सॉप है तो भी हम कभी न छोड़े । धोड़े से प्रकाश के आते ही हम उसे छोड देगे । । इसी प्रकार मेने ये सोचा धा कि संसार में मनुष्य । मे जानती थी कि मेरा ये काम है, मेरे पिता भी जानते थे । बाते समझ में आती है तो भी अधूरा है जायेगा तो उस प्रकाश में वो बदल तो. जायगा ही किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं का पारिवर्तन होना जरूरी है | इस परिवर्तन को लाना आंत आवश्यक था उसके लिये हमारे अन्दर यह व्यस्था है ये में नहीं जानती धी । हमारे अनेक शास्त्रो में भी लिखा हुआ है कुरान में भी इसे असस कहा गया है । मोहम्मद साहव ने भी हाथ बोलेगे, बाईबल में भी जीवन वृक्षहद ्ी आफ कहा है कि जब तुम्हारा पुनः उत्थधान होगा तो तुम्हारे लाइफ का बहुत सुन्दर वर्णन कया हुआ । जैसे एक बात जो उन्होंने घूमा पफराकर कही वो ये कि यह कार्य कुडोलनी की जाग्रात से होना है हालाँक संस्कृत मे अनेक ग्रन्थो तथा उपांनपदों हे जैसे गीता में है पर इसकी जिया है । रूप से भी बताया गया है । ये सब होते हुए भी ओर अग्रेजी राज्य आने की बजह से हमने सेस्मृत पदना हेड दिया अग्रेजी को हमने बहुत महत्व एर्ण समझ धा कि आप अग्रेजी स्कूल नहीं पट़ेगे आपको हिन्दुस्तानी कही-कही तो बहुत विपद लिया इस मामले मे मेरे पिता का एक कटाकषा स्कुल में पढना है, मराठी भाषा पहले सीखो, फिर हिन्दी सीखो । तुम्हे अगर हिन्दी भाषा नही भाती तो तो तुम हिन्दुस्तानी नही हो । अग्रेजी तो किसी को भी आ सकती है । में देखती हैं कि मैने अंग्रेजी कभी पढ़ी-लिखी नहीं हूं फिर भी अग्रेजी काफी साफ बोल लेती हूँ । ओर सस्कृत से भी मुझे बहुत क्लिचर्पी धी । बहरहाल हमारे पास जो गहन सम्पदा थी उसे कभी देखा ही नही,जाना ही नही तोगों को कुडलिनी का नाम भी न मालुम था । वो तो कुडालनी को कुठली सकझते थे । उत्तरी भारत में तो अपने फिता इससे भी बदतर हालत है । मैं यह साचती थी कि इनसे बात अभी करे कैसे । इसपर मै से चर्चा करती थी । उन्होने मुझसे कहा कि बेटे अभी आप इसके बारे मे कोई बात मत करो । तुम्हे सामुहिक चेतना जाग्रत करनी है । सामुहिक रूप से कुडोलनी निकालो । दूसरी बात अपना देश भी स्वतन्त्र नही धा । पर मनुष्य को समझना मुश्किल बात धी उसपर का जागरण करना है, पहले इसका तरीका जरूर मैने अपनी चित्ती के साथ-एक विशेष चीज होती है चित्ती-चित्त को जो चलाती है वो है चित्ती । उस सूक्ष्म चीज से मैने मनुष्य के बारे में जानने की कोशप की मेरे पिता जी ही बहुत सोशल आदमी थे फिर आपके पिता जी जमना लाल जी मेरे चाचा जैसे थे उनसे । अनेक तोगो से मैं मिली । पहले तो गाँधी जी से भी बहुत बाते होती धी किन्तु जो बात में जानना चाहती थी भी बहुत बाते होती थी । । कि मनुष्य मे ऐसा कौनसा दोष है कि वो आत्मसाझातकार को प्राप्त नही हो सकता । इस चीज को ढूंड- ढूँड कर अन्दर इसपर ध्यान करती । जब मुझे यह पता हो गया कि कुंडलिनी का जागरण अब हो सकता है, सामुहिकता से, सहस्त्रार का खोलना जब बन पड़ा तब मेने सहजयोग शुरू किया-एक रूत्री ने । अगर आप कोई नकली चीज बनाना चाहे तो आपको कोई आपक मेहनत नही करनी पडती पर किसी असली चीज को बनाने पर तो समय लगता है । इसलिये एक स्त्री से शुरूवात हुई, आगे बढ़ते-बढ़ते आज सहजयोग तो भी मुफती साहब हमेशा कहते धे कि माँ बहुत से लोग एक दम बुदू है । में बहुत बढ़ गया है । ये कहूँ कि अज्ञान में है, अन्धकार में है । वो समझ नहीं पाते कि वो है क्या । उनके अन्दर इतनी आप ही का अपना स्वरूप है । जब सब मुझसे कहने बडी शक्त अपनी है, आपकी ही अपनी शाक्त है, है माँ आपने ये किया, माँ आपने वो किया तो में देखती रहती हैं कि मैने क्या किया । एक जना हुआा ? ये आपकी अपनी शाक्त है और तो उसने कौनसा काम कर दिया दीप अगर दूसरे दीप को जलाता है ये याद जाग्रत हो जाती है तो इसालये कि आपने बहुत पण्य किये है और इसका समय आ गया है इस कर बात को बहुत कम लोग समझते है । कुठ यह समय मेरे जन्म से ही आ गया है और अक्षय पूजा के क दिन भी यह जो बृहम चैतन्य चारो तरफ फेलला हुआ है उसे अनेक तरह से सम्बोधत किया जाता है । हठयोग मे इसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते है और बाईबल मे इसे आाल परवाडग पावर आफ गाइ परम चैतन्य कहते है, परान मे इसे रूह कहते हैं । अनेक तरह से इसका वर्णन किया जाता है । ये अभी तक लेकन एक दम से कृतयुग की शुरूवात हो गयी और वे । ये बहुत बड़ी चीज है । ये समय है तटस्थ रूप से देख रही थी इस कलयुगे को । जो अपने चारो ओर फैली हुई शक्त है ये कार्यान्वत हो गयी सर इसका फरयदा अगर हम उठा रहे है तो कोई विशेष बात नहीं क्योकि समय ही वदल गया है । को नाने इसके कि आप अपने असली स्वरूप और समय इसलये बदल गया है कि परमात्मा चाहते हैं । मिली है परिणोम स्वरूप बहुत सी बाते हो जाती है सहजयोग में और साठ डाक्टर लन्दन में इसपर प्रयोग कर । आप तो जानते ही है कि तीन डाक्टरो को प पदरवी रहे है और वो हेरान है । भी डाक्टर साहव बता रहे थे कि रूस में चार सौ डावटर सहजयोग कर रहे है । उन्होने कहा मा सोध में क्या रखा है हमे सहजयोग का अभ्यास करना है । ये तो सहजयोग मे सर्वप्रथम तन्दुर्स्ती आ जाती है ताबयन आपका अव हो जाता है अपने देश के लिये बहुत अची बात है । अपने गरीब देश में वना पेसा खर्च किये याद लाग ठाक हो जाये तो हमारी आधी विपोत्त समाप्त हो जाये । किसी जमाने में सरकार ने मुझसे कह । था पर मेने वैसे में इसके लिये कार्य कर सकती हूँ । ये बात जध्यान्मक कहा कि मै बन्धन में नही बध सकती । आया गया हो गया ही है इस तरह से बात हम केवल शरीर ही तो नही है कि शरीर को ही ठोक करते रहे । लोग शरीर के पाे बहुत दौड़ते है । हठयोगी बगैरा बहुत ही कोध हो जाते है कभी -व्भी तो उन लोगो से मुझे इत नी गर्मी आती है कि मै कहती हैं कि हठयोगी मेरे पास आने से पहले कुछ दिन पाना मे बेठे । हमें जान लेना चाहिये कि अपने शरीर की इतनी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं । जब आप सहजयोग में आ जाईएगा तो आपका शरीर अपने आप ठीक हो जाएगा और आपको कोई बीमारी नहीं होगी आज तक मं किसी दाँतो के डावटर के पास नही गयी । ये जो रोशनी मेरे आँखो पर डालते है इसके कारण चार सालो से ये चश्मा मुझे कभी-कभी लगाना पटता है । जब ये शाक्त जपके स-्दर दौड रही है तो भफ्को क्यो अपने शरीर की चिन्ता करने की जमूरत है । जिन चको की सखरायी से आपका शरीर पराव होना है वही । फिर यही चक ठीक हो जाने से आपकी मानासक स्थिति ठीक हो जाती है ठीक हो जाते है। टेन्शन बगैरा सब ठीक हो जाते हे गरीब साधे-सादे लोगो को टैन्शन नह हाती बहुत व्यस्त लाग इसके वो भी सहजयोग में आकर विल्कुल शान्त चिन्त हो जाते है जब तक आप इस स्वस्थ माहौल शिकार है । से झझते रहेगे आपकी समस्याओ का कोई हल नही पर आप अगर इससे बाहर आ जाये, पानी से जैसे आप बाहर आ. जाये तो आफ्को तहरो का डर नही रह जाता, आप केवल देखते है पर आप अगर नाब में वेठ आ जाये तो आप दुसरो को भी अपने साथ लाच सकने है और तैराक हो जाये तो नाव की भी जनूरत नहीं । इसी प्रकार मनुष् के न्दर जब ये शाक्त कपना प्रादरभाव प्रदार्शत करती है उस वक्त वह आदमी एक अजीबो-गरीब एक व शेष तरह का मानव हो जाता है । जैसे मैने कल बताया था-अन्हे का पक्षी होना उसी प्रकार मनुप्य का आत्मसाक्षात्कारी होना । क तो उससे भय आ्षद सब भाग जाते है चिन्ता आदि सब भाग जाती है । वो असनी माने में स्वतन्त्र हो जाता है क्यो क कोई सी भी आदत उसे चफकती नहीं । अमीर देश जहा लोग नशाली दवाऐ लेते है बहाँ भी सहजयोग ने कमान कर दिया है इग्स लेंने वाले एक रात मे इग्स छोडकर खडे हो गये । शराब पाने वानो ने एक त में शराव छेड दी जब आत्मा का प्रकाश आता है तो मनुष्य सब गन्दगी अपने आप छोड देता है । इन आदतों को छोड़ देने से उसकी पेसे की भी बचत हो जाती है और उसकी बादध इतनी प्रगत्भ हो नाती है कि बो अनेक कार्य बगैर परेशानी कर लेता है । लन्दन मे आपने सुना होगा कि बहुत बेकारी है नेकन नाम मात्र के लिये भी कोई सहजयोगी वहाँ वेकार नहीं है । जो एक बार सहजयोग के समूद्र में आाया उसको ग नौकरी मिल गयी उसका आत्मसम्मान भी बढ़ गया । अभी भआपने जाशीष को गाते हुए सुना. उसने इननी जल्दी अपने झतहान पास कर लिये । यहाँ काछ लड़के इजीनयर है वो अक्यत दजे में पास हो गय बहुत सी छात्रवृत्तियों वरजीके सहजयोगियो को ही मिलते है इनको कायदा कानून भी नहीं बताना पडता । उनके अन्दर धर्म जागृत हो जाता है । बो गनत काम । उनकी बाद इतनी सूझ-बृझ बाला है कि ? बहुत गुस्सैल लोग आत नमर होकर प्यारी- करते ही नही । है कभी सन्त-साभ ने गलत काम किये प्यारी बाते करने लगते है ये जो पारवर्तन मनुष्य मे आ नाता है उससे बो एक प्रचन्ड व्यक्त भी हो जाता है डायनामक इसके ओर बहुत से पहलू है मनुष्य शान्त हो जाता है, आनन्द मय हो जाता है सामाहक चेतना जागृत होने से विश्व बन्धुत्व आ जाता है । अब हमारे यहाँ 56 देशो के लोग आते हैं । मैने कभी उनको लड़ते झगडते नही देखा सर्फ आपस में चुहल जनूर रहती है । एक -दूसरे को चिदायेगे, विदेशी लोग संस्कृत मजाक चलते रहते है । परन्तु अपशब्द कहते हुए मेने उन्हे कभी नही सुना । बोलते है और भारतीय विदेशी भापा । तो एक तरह की जो प्रगत्भ व्याक्तत्व की जो हमारे अन्दर शक्त न है वही प्रस्फुटित हो जाती है और मनुप्य एक विशेष म्प में सामने आता है । आपस की दोस्ता भाईचारा इस कदर है कि देखते ही बनता है । जब मे रूस गयी तो जर्मनी से 25 आदमी ओर ओरते फोरन दोड़े कहने तगे कि माँ हमने हैी उन्हें तबाह किया था नेपना रूपया-पेसा स्वर्च के रूस के लोगों को । बड़े प्यार से उन्होने पार कराया । ऐसा प्यार कही देखने को नहीं मिलता । हर घर्म के लोग हमारे शिष्य है । सभी अपने अन्दर के दोषो को देखते है दूसरे के दोपो को नही देखते । इस प्रकार हमारे अन्दर जो दोष है, हमारे समाज मे दोप है उन्हे फोरन देखना चाहये । में फैलने सहजयोग जब वाहय क अन्तर दृष्ट आती है और क बाहय दृष्ट भी आती है । । हमारा दे श कृषि प्रधान देश है । जब चेत लगता है तो इसके अनेक वेज्ञनिक फायदे भी होते है न्य लहारयों आप पानी मे डाल देते है और वो पानी लेता को देते है तो खेती इतनी बाटया होनाी है कि ा देखते ही वनता है । मैने अपने घर पर फक प्रयोग किया तो बहुत बड़ा सूरजमुखी का फूल आया । पर इन चीजो को कौन पान्ता ? चावलो का भी आश्चर्यजनक फसल हुई । सबसे वड़ी चीज जो मनुष्य पाता है वा है समाधान । समाधान इस तरह की कि मुझे बहुत कुछ मिल गया । अब मुझे दूसरो को देना है, दूसरो का भलाई करना है । यो अंग्रेज जो हिन्दस्तानियों से बात नही करते थे आज बहा उनकी झोपाहयो में जाते है, कल्हडो मे चाय पीते है हिन्दी साखते है में कितना काश कि आज गधी जी होते, मेरे फ्ता होते देखते कि इस देश एक अनूठा प्रेम है उनमें । बड़ा कार्य हुआ है । पर सबसे बड़ी बात यह है कि सहजयोग मे हमारा वास्ता भारातयो से है । इस भारतीयता को याद आपने समझा नहीं, अपनाया नही जो, में यही कहैगा कि जिम्मेदारी क्षापकी होगा। धर्म 10 - के बारे में इतनी गहनता से किसी ने भी नही विचारा । इसी योग-भाम में सारे कार्य हो रहे है और यदि यहाँ जन्मे है तो किसी बड़े फण्य से ही । ब मे दिखाई दे रही है हुन सी आफ्ने आपसे बताना बाहती हूँ कि जिस फुथर्व पर आप बेठे है यह बहुत पावत्र है। इस घरती पर सन्त साधु पर मे कलयुग चले है । यहाँ रामचन्द्रजी भी जुता उतारकर चले । पुण्य मार्ग से जाने से हर चीज़ की खुश्हानी होगी जो कुछ भी अच् होना हैं वो इन्ही लोगो की इछा से होगा । सारे संसार का हित होगा और भारतवर्ष का विशेष रूप से आध्यात्म हित होगा । इसमे मुझे कोई शक नही । इस देश में लोगो का इतनी आस्था है कि विदेशी सहजयोगी जब भारत आते है तो पहले इस पूथ्वी को चूमने है । लोगो ने कारण पूछ तो कहने लगे कि यह योग भूमि है । । सभी आत्मसाक्षात्कारी इसे देस सकते है । कितने ही लोग यहाँ ऐसे आये और उन बेचारो को यहाँ ठगा गया पर जहाँ कमल होते है चारो तरफ चैतन्य फैला है ब तलि हाँ कीड़े-कीटाणु भी होते है पर अब समय आ गया है, संब बदल जायगा दो साल में आप इसका असर देखेगे । आप जानेगे कि ये सहजयोगी सार ससार में फैले है वो भारतवर्ष का बहुत शुभकामना करते है | हर सुबह प्रार्थना करते है कि भारत हमारा आद ्श मान्दर बन जाये और जब भी हम जाये सहजयोग मे अपने को बढाये पा आशा है हमारे सहजयोगी यहाँ जो है इस चीज को समझें और अपना जिम्मेदारी को समझे । अपनी गहनता बढ़ाये, उसी के साथ उसका प्रसार करें और वृक्ष जैसे बदता है उसी तरह गहनता में । इसके अने क लाभ है आप विजनेस में है तो मैं कहुँगी कि बिजनेस तो [इसके वहुत लाभ है । लक्ष्मी जी की आप पर बहुत कृपा होगी-पैसे की नही । लक्ष्मी जी के अवतार को याद आप देखे तो उनके उतरें कन हाथो मे कमल है । कमल क्योंकि गुलाबी है यह योतक है प्यार का । जो लक्ष्मी पर भी बहुत ही व्ययस्थित भी होता है । कमल के अन्दर अगर हजारो कटा वाला भरा भी चला जाये तो उसे भी वह पोत होता है । लक्ष्मी जी का एक हाथ अपने अन्दर स्थान है । इस तरह उदार ताबयत वाला लहमी है । अभयमुद्रा में तथा एक दान मुद्रा में । एक हाथ से आश्रय तया दूसरे दान देवी का बताया हुआ फिर वह कमल पर सखड़ी हे अर्धात किसी पर जबरद स्ती किसी पर अपना दबाव नही डालती ये लक्ष्मी पांत के के लक्षण है और पसे लक्ष्मी पात तेयार हो जाते है सहजयोग मे आकर के । पेसे की कभी परवाह नही करेंगे । पैसे तो पसे आता है जैसे पाव की धूल कोई उसे चिन्ता की बात नही मेरे पास तो कोई सेकेटरी भी नही और बैक-वैंक तो मे कुछ जानती नही पर सभी कुछ सुचारू ढंग से कैसे चल रहा है ? हम लोगो के जीवन में चमत्कारी रूप से सब होता है । परमात्मा सर्वशक्ति मान है वो जो करना चाहे कर सकता है । पर इसके लिये पहले सहजयोग में आईये फिर दोखये परमात्मा के साम्राज्य का कमाल और उसका चमत्कार । इसमे मेरा कोई विशेष कार्य नही । परमात्मा जो चाहे कर सकते है वो चाहे तो सूई के छेद में से उँट निकाल सकत है पर ये विश्वास आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आ सकता है उससे पहले नही क्योकि तभी आप देखते है कि उनकी परम महमा करूणामय कृपा, इतना ही नहीं उनका कार्य कितना मनुष्य के लिये हितकारी है, कितना प्रेममय है । सहजयोग मे आने के बाद एक तो परमात्मा की प्रचीति हो जाती है और एक अपनी भी प्रचीत हो जाती है । और फूर्णतया आपको केवल सत्य , केवल धर्म और केवल जावन मिल जाता है इसमें सामुहिकेता में आप पूरी तरह जाग्रत होकर के और एक आनन्द के सागर मे हर समय रहते है समाधान के सागर मे और सारे ससार की भलाई आप कर सकते है । ऐसे सुन्दर सहजयोग को याद आप ठुकरा दे तो मुझे यही कहना है कि आपने अभी अपनी औकात नही समझा, अपनी कीमत नही समझी और अपनी कामत करने पर आप समझ जायेगे कि आपने अगर अपने बारे में जानना है तो आपको सहजयोग में उतरना पडगी । जन प गो मे मेरी जन्म वव मे ना व्य चते का शभ नमनां ओर दोता ना तम भा द लाता है य नगो के कना ह कि जब जावन नम ता के ना] मत्य भा दो । कि ब जावन ु নा तना गरण सजयोग गान नो इुआ पर य नत् ग छे व्दत वा जायेगा, वदते जायेगा ज्य तक सार इढत हा जायगा, वढते जायगा नार शु ना हस पर न्यम न बहजयोग इसा नरुह से बढता मे उा का रहेगा । यहा आप सब ॐ ३ याशन मे हो जाये लहजयाग इसी रह स वढता संलार युन्दर न करता हूँ। । NOTE IMPORTANT Please correct the address for SAHAJA AUDIOS as 1. follows : Saha ja Audios A - 16, Mahendru Enclave, 110 009. DELHI (Telephone : 7124730) Rs. 40/- and Rs. 45/-) (Audio by hand by Post Demand Draft or Cheque ( if sent) must indicate else 2. be will the same the correct name, Please note the names once again returned. A) Sahaja Audios 3) Sahaja Vidios C) Chaitanya Lahari -12- राम नौमी पुजा कलकत्ता 25.3.91 आप जानते हैं कि हमारे चक्रों में श्री राम बहुत महत्वपूर्ण स्थान लिए हुए है । यदि आपके कत्त्तव या प्रेम में कुछ कमी रह जाए तो ये चक्र मकड़ते हैं । श्री राम पूरी तरह से मनुष्य रूप घारण किए हुए थे । वे ये भी भूल गए थे कि मैं श्री विष्णु का अवतार हूँ । उन्हें भुला दिया गया था । किन्तु सर्व संसार के लिए वे पुरूषोत्तम राम थे । हम लोगों को सहजयोग में ये समझ लेना चाहिए कि किसी भी देवता को जब हम अपना आराध्य मानते हैं तो क्या हमारे अन्दर उसकी विशेषताएँ आई है ? कोन से गुण हमने प्राप्त किए । श्री राम चन्द्र जी के तो अनेक गुण हैं । उनका एक गुण यह था कि राज कारण में सबसे ऊँचा उन्होंने जन मत को रखा पत्नी और बच्चे उनके लिए गौण थे । हमारे आजकल के राजकीय. लोग इस चीज़ को यदि समझ लें तो वो निस्वार्य हो जाएं गे, धर्म परायग हो जाएँ गे । श्री राम की जो सीमा है उसे आज तक किसी ने अपनाने का । उनके भजन गाने, उनके नाम से संस्थाएं तथा राम मंदिर बना लेने से क्या श्री राम आपके प्रयत्न नही किया अन्दर प्रवेश कर सकते है ? आपके जीवन में उनका प्रकाश आ सकता है या नहीं ? ये सिर्फ सहजयोगी ही कर सकते हैं कि अपने अन्दर जन्मे श्री राम को अपने चित्त के प्रकाश में लाएं । वो अत्यन्त निरषेक्ष थे । ऐसे तो सभी देवता लोग किसी भी पाप पुण्य से रहित हैं । जैसे श्री कृष्ण ने इतने लोगों को मारा, श्री राम ने रावण का वध किया । ये हमारे दुनियावी दृष्टि से हो सकता है कि पाप हो किन्तु परमात्मा की दृाष्टि से । क्योंकि उन्होंने दुष्टों का नाश किया और बुराई को हटाया । और इनको अघिकार है कि । जैसे देवी ने राक्षसों का संहार किया तो कोई नही हो सकता इस कार्य को करने के लिए जो कुछ भी करना चाहे करें केहे गा कि देवी ने पाप किया ? सम्हालें । उनका कार्य ही ये है कि वो राक्षसों का सहार करें और जो साधु है उनको श्री राम चन्द्र के जीवन में एक अहिल्योद्धार बहुत बड़ी चीज़ है । पति से शापित अहिल्या का उन्होंने उद्धार किया । उस जूमाने में कोई स्त्री किसी तरह से वाम मार्ग में चली जाती थी तो उसका पति अगर साधू हो और उसकी स्थिति अगर ऊँची हो, उसे शापित कर देता था । किन्तु अहिल्या पर झूठा ही आरोप लगाया गया था और इस तरह से उसे पत्थर बना दिया था । श्री राम ने उस अहिल्या का भी उद्धार कर दिया । विशेषकर उनका एक पत्नी के प्रति प्रेम व्रत बहुत समझने लायक है । मनुष्य के रूप में उन्होंने अपने पत्नी के सिवाय किसी और स्त्री की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा । जब हम राम की बात करते हैं तो हमारे अन्दर पतित्व भी स्वच्छ होना चाहिए । अगर कोई स्त्री राम के बारे में सोचती है तो उसको भी अपने पति के प्रति वैसी ही श्रद्धा होनी चाहिए जैसे सीता को अपने पति के प्रति थी । और उसी प्रकार पति को भी श्री राम जैसे एक पत्नी व्रत होना चाहिए । सहजयोग में ये बात कठिन नहीं । स्त्री का मान रखना चाहिए । श्री राम ने ये कत्त्तव्य समझा कि सीता जी को वहाँ से छुड़ाकर जब रावण सीता जी को उठा ले गए थे तो लाएँ । पर जनमत को रखने के लिए महालक्ष्मी सीता को जिन्हें इतने वर्ष मेहनत करके वे छुड़ाकर लाए थे, उन्होंने त्याग दिया । सीता जी स्वयं साक्षात् देवी थी उनको त्यागने का कोई विशेष परिणाम नही होने वाला था फिर भी राम ने उन्हें त्याग दिया ताकि लोग ऐसी बातें न करें जो जन हित के ख्लाफ हों और उनका आदर्श किसी तरह से ऐसा न बन जाए कि जिससे लोग अपने यहाँ इस तरह की औरतों को पनपाएँ ? इस पर भी लोग शक करते हैं । हालाँकि सीता जी निष्कलका थी और देवी स्वरूपा, स्वच्छ और निर्मल थी । त्यागे जाने पर सीता जी ने भी श्री राम का एक तरह से त्याग कर दिया । धर्म के लिए श्री राम चन्द्र जी और सीता जी का -13 প एक दूसरे को त्यागना, सीता जी का पृथ्वी में समाना और फिर अन्त में श्री राम जी का सरयु नदी में अपना । सारे जीवन में देखिये तो सीता और राम का देह त्याग करना सभी अत्यन्त क्टनात्मक और चमत्कार पूर्ण है आपस का व्यवहार और उनका एक दूसरे के प्रति श्रद्धामय रहना । हालाकि उन्होंने सीता जी का त्याग किया उनका परम कत्त्तव्य है अतः उन्होंने कभी उनकी बुराई नही की और था पर सीता जी जानती थी कि ये बड़ी साद गी से अपने बच्चों को चलाया, उनको पनपाया, उनको बढ़ावा दिया । श्री राम के बच्चे लव और हमारे अन्दर शिष्य । उनको हम शिष्य के तरह से देखते हैं ये कुश भी भक्त स्वरूप संसार में आए की शक्ति के द्योतक हैं शिष्य स्वरूप इन लोगों ने बहुत छोटी उम में धनुष विद्या सीख ली थी और इस छोटेपन में ही उन्होंने रामायण आदि, और संगीत पर बहुत कुछ प्रावीण्य पाया था । इसका मतलब ये है कि शिष्य को पूरी तरह से अपने गुरू को समर्पित होना चाहिए । शिष्य का यह स्वरूप हमारे अन्दर भी है । माँ, जो कि शक्ति है, उसके प्रति वो पूरी तरह से समर्पित थे । उस वक्त श्री राम से भी लड़ने के लिए वे तैयार हो गए अपनी माँ के लिए। तो माँ को उन्होंने दुनियाँ में सबसे ऊँची चीज समझा और उस माँ ने भी अपने बच्चों का पालन, उनको आश्रय देना, उनको घर्म में खड़ा करना, और उनकी पूरी प्रगति करना एक मेव क्त्तव्य ा समझा । वीरता और साहस सीता जी के जीवन की विशेषता है । श्री राम का जीवन भी अत्यन्त शुद्ध और निर्मल था । पत्नी के बन चले जाने के बाद उन्होंने भी दुनिया के जितने भी आराम थे, छोड़ दिये । वो कुश (घास) पे सोते, जमीन पर सोते, नंगे पैर चलते और साधु पुरूष जैसे कपड़े पहनते थे । ये सब कहानियाँ नही हैं । ये सत्य है । अपने भारत वर्ष में और दुनियां में भी ऐसे अनेक लोग हुए है जिनका जीवन एक बहुत ऊँची किस्म का रहा और उन्होंने कभी छोटी ओछी बातें सोची नहीं । पर ये सारे आदर्श हमारे देश में होने के हमने राम का भजन कर लिया और हों गया । कारण हमारे अन्दर ढोंग आ गया कि हम राम को मानते हैं । तो ये एक तरह का ढोंगीपना हो गया । जिन देशों में ऐसे आदर्श नहीं है वो कोशिश करते हैं कि हम आदर्श कैसे बने हम अपने को ठीक कैसे करें ? हमारे अन्दर अगर श्री राम है तो उनका प्रकाश हमारे चित्त में क्यों नहीं आ सकता । हम क्यों नहीं इसे प्राप्त कर सकते हैं ? हम उस स्थिति को जानने की कोशिश क्यों न करें जिस स्थिति में श्री राम इस संसार में आए । एक सहजयोगी को ये विचार कर लेना चाहिए कि श्री राम कि स्थिति अगर हम प्राप्त केर लें तो अपने यहाँ का राजकारण ही खत्म हो जाए गा । अपने यहाँ की जितनी परेशानियाँ है ये सब खत्म हो जाये गी । अपनी प्रजा का वे बिल्कुल निरपेक्ष भाव से, विदे ह रूप से लालन पालन करते थे । और सब हर स्त्री को इन गुणों की शिक्षा हो जाए, उनकी उन्नात हो जाए, उनके तरह की अच्छाइयाँ लोगों में आएँ । अन्दर महान आदर्शों की स्थापना हो, इसके लिए उन्होंने पूरा समय प्रयत्न किया और इसीलिए अपना जीवन बहुत आदर्शमय बनाया । स्वयं आदेशों पर न चलने वाले व्यक्ति के प्रति कभी श्रद्धा हो ही नहीं सकती, और आप उसके गुण ले ही नही सकते । बहुत से लोग हमेशा क हते हैं कि हम इनको मानते हैं, हम उनको मानते है लेकिन मैं देखती हूं बो उसके किल्कुल उल्टे होते हैं । होती है । तो उन्होंने राम को कैसे माना ? ति राम भक्त कहलाने वाले लोगों की दस दस बीबियोँ इसी प्रकार जीवन में एक सहजयोगी का कत्त्तव्य है कि वह भी इन देवताओं के प्रकाश को अपने चित्त में लाए । हर चीज की ओर उसी तरह से देखना चाहिए जैसे श्री राम । श्री राम क्या करते ? ऐसा 14 अगर प्रश्न आता तो सीता जी क्या करती ? सीता जी का क्या बर्ताव होता गृह लक्ष्मी हो ही जाये गी । आप तो जानते हैं कि सीता जी ने अनेक जन्म लिए । गृह वे विराजती है । फातिमा रूप में वे घर में घूंघट में पर्दे में र४ती थी पर सारा धर्म का कार्य उस शक्ति ने ? इस तरह से अगर वो सोचे तो स्त्री लक्ष्मी स्थान पर माम किया । आप घर में रहकर के भी ये कार्य कर सकते हैं । अपने बाल बच्चे, जान पहचान ईष्ट मित्र सबमें आप सहजयोग फैलाये । ल । उसके बाद ये समाज में भी आ सकती है । पर पहले औरतों का सीता जी जैसे शुद्ध आचरण होना चाहिए । लेकिन पहले आपमे ये चीज आनी चाहिए शुद्ध आचरण में पहली चीज़ है ममता और प्यार । अपने पति के साथ वो जब जंगलों में रहती थी तो कभी उन्होंने ये नहीं कहा कि मेरा पति पैसा नहीं कमाता, बो नहीं करता ( जैसा हमारे यहाँ औरतों की हूं । वो जो खाते हैं वो मैं खाती हूं । उनके खाने से पहले मैं खा लूं ऐसा कभी नही करते यो खा लें, उनको खाना खिला हैं, है कि हमारे पर बहुत आदत होती है) ये नही खरीदता, वो नही खरीदता । बो जंगल में है तो मैं भी जंगल में अपने देवर को खाना खिला दे उसके बाद मैं खा लुंगी । आज औरतें ये सोचती ज्यादा दबाव आ जाता है । स्त्री पृथ्वी तत्व जैसी होती है । इसमें इतनी शक्ति है कि ये बहुत दबाव को खीच सकती है । सारी दु। नयां को देखें । । इसी प्रकार कितने फल फूल आदि उत्पत्तियो पूथ्वी दे रही है इस पथ्वी तत्व के जैसे ही हम स्त्रीयाँ है । हमारे अन्दर इतनी शक्तियाँ अन्दर रामा सकते हैं और अपने अन्दर से हमेशा प्रेम की चर्षा कर र ते है । ये हमारे अन्दर परमात्मा ने शक्ति दी है । स्त्री शक्ति स्वरूपिणी है, शक्ति का सागर है और उसके द्वारा ही पुरुष अपने कार्य को करता है । एक जैसे अन्तः शक्ति (पोर्टेन्धियल) गति मूलक ( काइनैटिक) । अन्तः शक्ति, है कि हम सब तरह की चीज अपने स्त्री है और गति । पुरूष ज्यादा दोड़ सकता है उसे देख यदि औरत भी दोड़ने लग जाए तो ठीक नही । उसको मूलक पुसष तो बैठने की जुरूरत है । दोनों की क्रियाएँ अलग है । और उस त्रिया में दोनों को समाधान होना - अलग म चाहिए । दोनों ही क्रिया में स्त्री बहुत पनप सकती है और जब समय आता है तो स्त्री पुरूषों से भी ज्यादा काम करती है । महाराष्ट्र में तारा बाई नाम की सत्रह साल की एक विधवा थी, शिवाजी की वो छोटी बहू थी । सब हार गए औरंगजेब से और इसने औरंगजेब को हरा दिया । सत्रह साल की उमर मैं और उसकी कब्र बना दी औरंगाबाद में । तो आप समझ सकते है कि जब औरत अपनी शक्ति को पूरी तरह से समोह लेती है तो वो बड़ी प्रचंड हो जाती है । और अगर बो ऐसे इधर कही झगड़े में गई, बुराई मैं गई, ओछेपन में गई, तो उसकी शक्ति सारी नष्ट हो जाती है । स्त्री जो है वो इतनी शक्तिशालिनी है कि वो चाहे तो पुरूषों से कही अधिक कार्य कर सकती है । पर सबसे पहली चीज़ है वो अपनी शक्ति का मान रखे । उधर अपने शक्ति को फेंकती रहे, क ही लड़ने में गई, तो स्त्री का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है, गौरव पूर्ण है । स्त्री बहुत लज्जाशील और बहुत सूझ बूझ वाली होनी चाहिए । जैसे आदमी लोग गाली बकते हैं । बकने दें । औरतें नहीं क्क सकती है । आदमी लोग का बहुत झगड़ा हुआ तो मार पीट कर लेंगे । औरतें नहीं करेंगी । उनका कार्य शान्ति देने का है, इनका कार्य है सुरक्षण का । इनका काम है लोगों को बचाने का । जैसे कि एक ढाल है । ढाल तलवार का काम नहीं कर सकती । पर ढाल बड़ी कि तलवार । ढाल ही बड़ी है । जो तलवार का वार सहन कर ले वो बड़ी कि तलवार बड़ी ? तलवार भी ट्ूट जाए गी पर ढाल नहीं टूटती । इसलिए औरतों को अपनी शक्ति धुरी है नमता । नमता पूर्वक अपनी शाक्त को अपने अन्दर समा लेना चाहिए । सहजयोग में ये कार्य कठिन नही । मै देखती हूं कि बहुत सी सहजयोगिनी मैं स्थित होना चाहिए । इस शक्ति की सबसे बड़ी - 15 - औरतें इतनी बकवास करती है । कही जाएँ गी तो आदाभयों से बक बुक करेंगी । तो दनि्यों से ज्यादा बात करने की कोई जरूरत नहीं । बेकार की बकवास करने की जरूरत ही क्या है ? औरतों में भी बेकार की बकवास करने की कोई जरूरत नही । सहजयोग में मैने देखा है कि जैसे आदमी लोग सीखते हैं ऐसे औरतों को भी सीखना चाहिए । सहजयोग क्या है ? इसके चक्र क्या है ? कोन से चक्र से आदरमी चलता है ? कौन से चक्र से उसकी क्या दशा होती है ? इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए । ये सब आदमी सीखेंगे तो औरतें पीछे रह जाएँगी । औरतों को भी ये सब सीखना चाहिए । पुरूषों की बात कहते हुए श्री राम चन्द्र का भादर्श हमारे सामने आ जाता है । मुझे लगता है कि इस मामले में मुसलमानों ने हमारे ऊपर बड़ा गजब किया हुआ है । मै उनको बुरा नही क हती । उनके देश ें ये बात नही है । जैसे अगर आप रियाद जाएँ तो कोई मुरलमान आपके ऊपर आँखे उठाकर नहीं देखेंगा । कोई औरत होगी, उसकी बड़ी इज्जत करेंगे । रास्ते से अगर कोई औरत जा रही है तो बो मोटर रोक लेंगे । वहाँ औरतों की इतनी इज्जत होती है। । और हमारे यहाँ इनका ऐसा उलटा अरार पड़ा है कि हम लोग सोचते है कि औरत एक उपभोग की बस्तु है । हर औरत की तरफ देखना चाहिए महा पाप है । और सहजयोग में निफक माना जाता है । इससे आपकी आँख खराव हो जाएं गी । सहजयोग में । हर स्त्री की ओर नजर डालना ्ी तो आर भी नुकसान हो जाए गा । अगर वो नहीं हुआ तो अन्धे भी हो सकते हैं । जब अखें इधर उधर घूमती रहे तो इससे सबसे बड़ा नुकसान जो है वो आपका चित्त है आपका चित्त, इधर -उघर विचालत हो रहा है । तो चित्त अगर विचलित हो गया तो आत्म साक्षात्कार का क्या फायदा होगा अगर चित्त एकाग्र मही होगा तो बो कार्यान्वित नही हो सकता । एकाग्र चित्त ही कार्यान्वित होता है । एकाग्रता को साध्य करना चाहिए । विदेश में ये बिमारी आदमिओं को बहुत ज्यादा है । औरतों को भी है । जो विदेशी सहजयोगी हैं वो उसे बहुत अच्छी बात नही समझते । मैने कहा तुम लोग सिर्फ जमीन की तरफ देख के चली और तीन फुट से ऊपर देखने की जरूरत नही तीन फुट तक सब अच््छी चीजें दिखती है । फूल, बच्चे सब तीन फुट तक होते हैं । इस तरह से अपने चित्त को वश में करना चा हए । श्रीं राम का मान यदि आपके मन में है तो आपको उनके जैसे अपने चित्त को वश में करना चाहिए । अपनी पत्नी से भी यही समझाना चाहिये कि तुम शक्ति हो और हम तुम्हारी इज्जत करते हैं । पर तुम्हे उसके योग्य भी होना चाहिए 'यत्र नार्या पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवताः' अर्थात् जहां स्त्री पूजी जाती है वही देवता रहते हैं । पर वो पूजनीय भी होनी चाहिए किसी गन्दी औरत, दुष्ट या राक्षसी स्वभाव की औरत की कोई पूजा करेगा क्या ? ये भी जान लेना चाहिए कि ये हमारी बच्चों की माँ है । गर पति अपनी औरत को बच्चों के सामने डॉटना । जैसे फटकारना शुरू कर दे, उसकी कोई इज्जत न रखे तो कभी भी बच्चे उसका मान नहीं करेंगे । स्त्री को भी पति का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए । आदमी को चलाना अगर औरत को आ जाए तो कभी झगड़ा न हो । लेकिन ये समझ लेना चाहिए कि आदमी औरत चाहती है कि मेरा चले, आदमी चाहता है मैरा चले । को चलाना बहुत ही आसान चीज़ है क्योंकि बिल्कुल बच्चों जैसे होते हैं । उनका स्वभाव बच्चों जैसा होता है उनको बेकार की बातों से परेशान करने से आप उन्हें चला नही सकते भोले भाले होते हैं । । उनको भी बच्चों जैसे माफ कर दिया जाए आदमी बाहर जाते हैं, सबसे लड़ाई झगड़ा करते हैं । घर में आक र बीवी पे नही बिगडें गे ? बाहर बालों पे बिगड़े गे तो मार ही खायें गे । चलो बिगड़ गए तो क्या है । इस तरह स्त्री की री भावना पति की तरफ नहीं होगी तब तक आपस मैं प्यार व आनन्द नहीं आ सकता । लेकिन पति को भी lo - चाहिए अपनी पत्नी को क्या चाहिए क्या नहीं चाहिए इसका विचार रखें । लेकिन ये नही कि पत्नी कृछ गलत बात बता रही है कोई गलत सलाह दे, उसपे जुरूर पति को कहना चाहिए ये गलत है ये नही करना छोटी बातों पर झगड़ा करने की कोई जुरूरत नहीं । और ये सहजयोगियों को क्ल्कुल नही शोभा देता । मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि सहजयोगी भी आपस मैं लड़ते रहते हैं । दो सहजयोगी एक स्थान पर ठीक से नही रह सकते । मैं तो सारे संसार को कह रही हूं प्रेम से रहना है तो हम सब कैसे प्रेम से रहें गे बताओ । क रहना चाहिए और ये जान लेना चाहिए कि सारे संसार की औरतें जो है सबके लिए माँ बहन के बराबर है सहजयोग में आकर भी यदि व्यक्ति की दृष्टि स्वच्छ नही हुई तो बो अभी सहजयोगी नही है । हमारे संस्कृति की जो विशेषता है कि स्त्री लेकिन ऐसा नही होता । मै देखती हूं फौरन कोई औरत है बक -ब । औरतों के साथ नही कैठे गी । आदामरयों के साथ बैठे गी । । उन्हें औरत दिखाई दी लग गए उसके साथ । कोई उनको अपना । लेकिन छोटी तो पहली चीज है कि पति को पूरी तरह पत्नी के प्रति जागलू पुरूष का आपस में मेल जोल बस भाई बहन का होना चाहिए । करना शुरू कर दें गी एसे कुछ आदमी भी होते हैं स्त्रीलम्पट आत्म सम्मान ही नहीं होता है । और इसको वो पुरूषार्व समझते हैं । अरे भई श्री राम तो पुरूषोत्तम हैं, वे पुरूषार्थी है । जो बिल्कुल ही पाताल में है वो भी अपने को पुरूषार्थी समझते हैं । या तो फिर श्री राम को मत मानो । एक शैतान को मानो । । और इसी कारण अगर श्री राम को मानते हो तो उनके आदशों पर चलो अपने यहाँ अपने बच्चे भी खराब हो र है हैं, औरतें भी खराब हो रही है फिर भी भारतीय संस्कृति को औरतों ने बहुत सम्हाल लिया है । अगर अमेरिकन जैसी ओरतें होती तो आपको सब पहुंचा देती ठिकाने । आदमी की दो तीन शादियाँ हो गई तो वो झोली लेके घूमता है । और औरत की दो तीन शादियां हो गई तो अगर वो महल खड़े कर देती है वहां । पर वहां है क्या ? वहाँ के समाज की ही अवस्था क्या है ? बच्चे घर छोड़कर भाग जाते हैं । अपने हिन्दुस्तान की औरतों की ये विशेषता है कि वो अपने घर को सम्हालती है बच्चों और पति को सम्हालती है । पर ये चीज़ बदल रही है । यो भी देख रही है कि अगर हमारा आदमी ऐसा है तो हम क्यूं न करें । वो अगर दस औरतों के साथ दोड़ ता है तो हम पन्द्र ह आदमियों के साथ जाएँ गें । वो गन्दे काम करता है तो मैं उससे पहले नर्क मैं जाऊँ गी संवारना है, स्त्री को ही पति को धर्म के रास्ते पर लाना है समझा बुझाक र के उसको अपने पास रखना है । धर्म की धूरी स्त्रीयों के हाथों में है । स्त्री को । ये स्त्री का बड़ा परम कर्त्तव्य है । उसके अन्दर ये शक्ति है । अगर वो स्वयं धर्म पर बैठी हुई और धर्म में सबसे बड़ा धर्म है क्षमा । क्षमा करना अगर स्त्री में न आए तो वो कोई सा भी धर्म करे उससे फायदा नही । पहली चीज़ उसमें क्षमा होनी चाहिए । बच्चों को क्षमा करना, पति को क्षमा करना घर के नौकरों को आश्रय देना स्त्री का कत्त्तव्य है । तो कुछ ऐसा आ जाता है जो हम कार्य कर रहे हैं ये राम भी नही कर सकते थे कृष्ण भी नही को मार डालते कि तुम बेकार हो । । ईसा आते तो कर सकते थे, इसामसीह भी नहीं कर सकते थे । अगर राम होते वो सब तुम अधर्मी हो, स्त्रीलम्पट हो कृष्ण आते तो वो सुदर्शन चक्र चलाते, बो भी गड़बड़ हो जाती । अपने को सूली पर चढ़ा देते । ये तो माँ ही कर सकती है । उसके अन्दर प्यार की शक्ति इतनी जबरदस्त है कि कोई भी चीज़ हो उसे वो प्यार की शक्ति के सहारे पार कर देती है। । बो सब चीजू उठा लेती है और उसके तरीके ऐसे प्यारे होते है कि फिर बच्चे उसको बुरा नहीं कहते । कोई बात हो गई, गड़बड़ हो गई तो माँ ही जानती है किस तरह से डॉटना । क्योंकि बच्चे जानते हैं कि माँ मैं प्यार है । वो हमारे हित के लिए का - 17 वी उसका बुरा नहीं मानते है कहती है । । गर बाप डांट दे तो हो सकता है बच्चे उनसे मूंह मोड़ लें । माँ का प्यार तो निर्वाज्य वो कुछ नहीं चाहती अपने लिए । वो ये चाहती है मैरे बच्चे ठीक हो जाएँ । मेरी सारी शक्तियों को प्राप्त करें । अपने अन्दर जो भी कुछ अच्छा है सब प्राप्त करें । ऐसे अगर माँ समझें तो बच्चे ठीक हो जाएँ । पर बहुत सी माताएं बहुत चुस्त होती है । सब चीज में घुसते जाएँ गी । सब चीज में बोलने जाएँगी । उसका पति तो बेचारा चुपचाप बैठा रहे गा ये देवी जी सामने खड़ी होंगी । ऐसे अगर होता है तब बच्चे खराब हो जाते है । तब ऐसे औरतों को ऐसे बच्चे पैदा होते हैं जो बहुत जुजूबाती और हानीकारक भी हो सकते है । स्त्री को पीछे रहना चाहिए पति करे पीछे से उसकी मदद कर दे । उसकी शक्ति का स्रोत स्त्री ही है । ये समझ लेना चाहिए कि एक स्त्री को कितना शुद्ध होना चाहिए । । आप कहं गे कि माँ तब स्विया पर छोड़ते हैं, क्योंकि मैं जानती हूं आप शक्तिशाली है। देखिये मेरे ऊपर सबने छोड़ दिया कि आप सब लोगों को पार करो । इतनों की बिमारियाँ ठीक हो गई । ऐसे किसी ने काम किए थे ? एक अहिल्या का उन्द्धार कर दिया सो हो गया उसके बाद किसका उद्घार किया ? ईसामसीह ने कुल । और पति को आगे रखना चाहिए । ठीक है जो कुछ भी हैं कि तनी मेहनत करनी चाहिए । मैं जानती हूं हमारे अन्दर बड़ी शक्तियाँ हैं, क्योंकि मैं माँ हूं । मिलाके इक्कीस लोगों को ठीक किया । दुनियां भर में घूमों फिरों, सबका ये करो, वो करो, सेब चल रहा पर कुछ नहीं लगता क्यूंकि बो शक्ति है मैं बाहर निकलने से पहले सोचती हूं बन्धन ले लूं लेकिन भूल जाती हूं और जैसे किसी की परेशानियां सामने प्यार । वो प्यार की शक्ति मेरे से आगे दौडती है । आती हैं, मै अन्दर खींच लेती हूं । तो प्यार ऐसा है कि वो अपने आप ही कार्यान्वित करता है । तो मैं नही बुरा मानती । जो भी हो रहा है ठीक है । सकती है और इसलिए विशेष मेरा आपके तरफ रूख है कि आप समाधान और स्थिरता के साथ कार्य करें । ओर पुरूषों को भी चाहिए कि अब अपनी औरतों की भी पूरी सहायता करे उनको समझे, उनका आदर करें और जब तक रथ के पहिए एक जैसे नही होते हैं तो रथ घूमता ही रहता है । आगे नही जाए गा । दोनों एक ही जैसे होने चाहिए पर एक बाएं को है, एक दाये को है में नही लगेगा । इस तरह ये दो तरह के चक्के हैं और ये दोनों तरह के चक्के चल रहे हैं इसलिए क्यूंकि ये एक जैसे भी हैं और एक जैसे हैं भी नहीं 1 इसी प्रकार हमारे जीवन में भी होता है । तकलीफ होगी, तो होने दो, कोई हर्ज नही, ये सब माँ ही कर । बाएं वाला दाये में नही लगेगा और दायें वाला बायें श्री राम चन्द्र जी ने सिर्फ पति पत्नी का ही विचार नहीं किया । बच्चों का या अपने कुटुम्ब अपने भाई, बहुन, माँ बाप सबा विचार किया । जैसे एक मनुष्य कोी पता व्यवस्था का ही विचार नहीं किया होना चाहिए । और उसके बाद उन्होंने समाज का भी विचार रखा । जन, देश राज्य का विचार रखा । जैसे कि एक मनुष्य की सारी गतिविधियाँ होती है उन सारी गतिविधियों में उन्होंने दिखाया कि मनुष्य को किस अपनी पत्नी को इतना प्यार करता था और वो जानता था कि बो सम्पूर्णतया तरह से होना चाहिए । जो मनुष्य शुद्ध है उसको उन्होंने त्याग दिया । आजकल पत्नी के लिए ये बनाना है ये देना है और अगर कहा जाए कि गरीब को योड़ा पैसा दो तो नहीं देंगे लोगों की बिमारी है । और इन्होंने अपनी बो पत्नी का जो स्वयं साक्षात् देवी स्वरूपा अत्यन्त शुद्ध थी उसका तक त्याग कर दिया । हमें सोचना चाहिए कि ये हमारा मतत्व है, रिश्तेदारी है । विदेश में पहले पति पत्नी का कुछ ठीक नहीं होता । अब जो ठीक हो गया सहजयोग में तो यो पत्नी सब कुछ हो गई हमारे यहाँ र । नही तो आपने बच्चों को दो । अपने भाँजों को दो । ये राजकीय क्यूंकि पत्नी ठीक नहीं हुई, पति ठीक थे कम से कम चार पाँच लीडर पत्नी के वजह से निकल गए । । 18 पत्नी ने पढ़ा पढ़ा करके बिचारों का सत्यानाश कर दिया । यहाँ भी मैं कहूंगी कि पत्नी को समझना चा हए कि सहजयोग क्या है । और उसमें अपना क्या स्थान है । और पति को भी पत्नी से ऐसे मामले मैं जुरा सा भी नही सहमत होना चाहिए । उससे क हना चाहिए कि तुम बहुत ज्यादा बोलती किसी काम की नहीं हो । तुम्हारे चक्र ठीक नहीं। जब पति इस तरह उसके साथ व्यवहार करेगा तभी तो दोड़ती हो । चुप बैठो । तुम सहजयोग में आने पर भी अपनी कुछ सुक्ष्म खराबियां चिपक जाती वो ठीक होगी अच्छे से ध्यान देना चाहिए । आज के राम के त्योहार पर हमें हुनुमान जी का विशेष विचार करना चाहिए । हेनुमान जी किन में तरह से श्री राम के दास थे और किस तरह से उनकी सेवा चाकरी लगे रहते थे । और हर समय उनके ही उनके जैसे वृत्ति भी सहजयोग में सेवा में रहने से ही बो जानते थे कि उनका पूरा जीवन सार्थक हो जाए गा हमें अपनानी चाहिए । इसका मतलब ये नही कि आप मैरे लिए खाना बना बनाकर भेजे । क्यूकि मैं तो खाना खाती नही हूं और मुझे खाना बना बना करके और परेशानी में डालते हैं। क्या चीज चाहिए ? सेवा करने में तत्परता । हनुमान जी क्या खाना बनाकर भेजते थे । श्री राम चन्द्र जी के लिए ? दिल्ली वालों ने मुझे इतना परेशान किया है खाना बना बना करके । तो मैने शर्त लगा दी कि तुम अगर खाना बनाओगे तो मैं आऊँगी नही । जो चीज़ करनी है वो करो । ये तो बेकार की चीजू है कि जो आदमी खाना नहीं खाता उसे जबरदस्ती हैं । कोई चीज़ की जरूरत नही तुम्हारी माँ को । सारा भरा पड़ा हुआ है । मै तंग आ । बस फूल ही लाओ । और फूल भी जब आप खाना खिला रहे। गई हूं । इतना मेैं कहती हूं मेरे लिए कुछ चीज़ मत लाओ लगाओगे तो हजार रूपये के मत लगाओ । जो कुछ करना है वो संतुलन में । जैसे माँ को परान्द मेरी तो ऐसे कोई खास सेवा नही । पर जो मेरी है नुमान जी से सीखना है कि सेवा सेवा करनी है तो सहजयोग की सेवा करो । कितने लोगों को आपने साक्षात्कार दिया । कितनों को आपने पार में तत्पश्ता क्या होती है कराया ? जैसे कोई आ जाता है प्रोग्राम में 'तेरे अन्दर ये भूत है बस उसके पीछे पड़ गये । वो भाग गए । मने एक साहब से पूछा आप पार हो गए थे आप सहजयोग से क्यूं भाग गए । कहने लगा किसी सहजयोगी ने बताया तुम्हारे अन्दर तीन भूत बेठे हैं । मैने कहा आपने विश्वास क्यों कर लिया । कहने लगे बो तो वहां के बड़े महारथी लग रहे थे । 'राम काज करने को तत्पर । है हमारा ? मेरा काज है सहज काज कोन सा योग । मेरा कार्य है सहजयोग । कुण्डलीनी का जागरण करना । लोगों को पार करना। उनके अन्दर शक्ति लाना, प्रेम लाना, प्रेम की बातें करना । उनसे सहजयोग के बारे सारे चक्र आदि का वर्णन करना । उनको जो दों - दो घन्टे भाषण देते है फिर चा हिए सो समझाना । इसका मतलब ये नहीं कि भाषण देना शुरू कर दें । हम आपका भाषण भी नहीं सुन पाते । लोगों को सहजयोग पर भाषण देना बहुत अच्छा लगता है । उनका माईक ही नही छूटता । एक बार पकड़ लिया तो छूटता नही । ये भी एक नई बिमारी है । तो समझ लेना लें । तो अब जब भी आप लोगों का चाहिए कि काहे को इतना भाषण देना माँ के इतने भाषण है वो ही सुन कोई प्रोग्राम हो उसमे आप चाहें तो एक वीडियो लगा दो या मेरा एक टेप सुना दो । उसके बाद एक कागज । जिसपे तुमको जो कुछ लिखना है लिखो । कोई प्रश्न हो बता दो । और उसके बाद में उनकी पेन्सल दे दो जाग्रती कर दी और उनसे कहना कि अगली बार आपको जो कुछ समस्या हो लेके आईये । किसी को बिमारी है , तकलीफ है । अब ऐसे भी लोग हैं एक आदमी है वो कल्कत्ते भी आए गा किसी को ठीक करने । अब उसे रूस बुला रहे हैं । एक ही आदमी हनुमान जैसे दौड़ता रहता है इधर से उधर । आप सब लोग ठीक कर 19 सकते हैं । सब औरतें ठीक कर स्कती है । । पता नहीं क्या बात है कि अभी तक एक ही आदमी सारे हिन्दुस्तान में है जो लोगों को ठीक कर सकता है । लण्डन से ।5-20 लोग हैं जो लोगों को ठीक करते हैं । ये ठीक करने का तरीका क्या है ये सीख लेना चाहिए । और बन्धन लेकर के ठीक करना चाहिए लोगों को । उसके लिए क्या आप बाहर से बुलाएं गे । सहजयोगियों को । आप बैज लगाकर घूमते हैं, आप ठीक भी नही कर सकते ? फिर बैज उतार दो । अपने को भी नहीं ठीक कर सकते तो दूसरों तो सब को ठीक करने की सब को शक्ति दे दी गई है । उसको आप लोग सीखें उसमें निपुण बने । बजाय की कलकत्ते कोई आए दूसरों को ठीक करने । इसमें हिम्मत की जरा सी बात है, कुछ नही होने वाला तुमको । तुम न तो बिमार हो सकते हो न कुछ हो सकता है । जो लोग जितना सहजयोग में कार्य करेंगे उतने गहरे उतरेंगे। जैसे पेड़ जितना फैलेगा उतना ही गहरा उतरेगा । सहजयोग में और अवतरणों में बड़ा भारी फर्क है कि पहले उन्होंने समाजिकता से आध्यात्म नही किया था । ये शक्तियां किसी को दी नहीं थी । । एक आध आदमी को शक्ति मिली थी । जैसे कि । लेकिन अब तो आप सबको ये शक्तियां प्राप्त है । बस इसको ऐसा बढ़ाईये कि आपको किसी भी चीज़ की जरूरत ही न रह जाए आप अपनी तबीयत ठीक कर लीजिए दूसरों की तबीयत ठीक कर लीजिए । आप सहजयोग समझ लीजिए । सब कुछ आपके पास है । लेकिन अभी भी आपका चित्त पता नही कहाँ घूम रहा है । अभी आपने इस चीज को पकड़ा ही नही । पर कोई हाथ नही लगाता को क्या ठीक करना । । समाज के लिए मिली नही थी राजा जनक ने निचिकेता को आत्म -साक्षात्कार दिया श्री राम के ही माध्यम से हमारे विचार बदल सकते हैं । उन्ही के माध्यम से हमारा स्वभाव बदल सक ता है क्यूंकि हमारे लिए वो एक आदर्श है । उनके आदर्श तक पहुंचने के बाद ही आप दूसरे आदर्शों तक पहुंच सकते हैं क्योंकि वो मनुष्य के आदर्श हैं । कितनी बड़ी चीज है कि परमात्मा मनुष्य बनकर इस संसार मैं आए कि इनके लिए हम आदर्श बन जाएँ कोई सी भी विपत्ती और आफत आती है तो मनुष्य को अपना धर्म नही छोड़ना चाहिए । विश्व घर्म नही छोड़ना चाहिए और जो आपका योग है उसमें बंधे रहना चाहिए । उन्होंने सब विपत्तियां उठाई, आफतें उठाई दिखाने के लिए कि । आप सबको हमारा अनन्त आशीर्वाद । 20 ---------------------- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी 1991 ीय स7 ड, हन्दो आवत्ति है क हे ু ब्रुरा मानना सहज्योगियों का लक्षण नही है । महज्यागियों को तो किसी भी चीज़ का बुरा तहीं मानना चाहिए क्योंकि आप बुरे है ही नहीं तो आप बुरा कैसे नान कते है । 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-1.txt विष्य सूची विष्य क्र. सं. पृष्ठ सं. जन्म दिवस पूजा 1. श्री माता जी निर्मला देवी मुम्बई 2। -3-9। काड जन साधारण कार्यक्रम 6 2. श्री माता जी निर्मला देवी का भाषण मुम्बई मार्च 1991 राम नौमी पूजा 13 कलकत्ता 25-3-91 3. 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-2.txt जन्म दिवस फूजा श्री माता जी निर्मला देवी मुम्बई -21-3-91 सारे विश्व में आज हमार जन्म दिन की सोशयों मनाई जा रही है । यह सत्र देवकर जा भर आता है । आज तक कसी भी बचचों ने जपनी माँ के इतना पयार नही दिया होगा जितना आ्ाप मुझ देते है । ये श्री गणेश की माहमा है जो अपनी मा को सारे दवताओ से भी ऊँचा समझते थे और उनकी सेवा में लगे रहते थे की अपने बचों से प्यार होता है और वह अपने अचों के लिये हवर तरह । इस लये वे सर्व साद प्राप्त कर गये । यह नो नैसा्गक है कि हर मा । और का न्याग करती है उसे उनसे कोई अपेक्षा भी नहीं होती । नोक्न हर माँ चाहती है कि मेरा बेटा चारत्रवान हो, नाम का का कमाये, पेसा भी कमाये । इस तरह की एक सासारिक मा की इचाये होती है । नोकन आध्यात्मिक माँ का । मै सोच रही थी कि मे कौन सी बात कहू स्थान जो आपने मुझे दिया है मुझे तो कोई भी कज नहीं क्योक मुझे कोई इान नहीं । शायद इस दशा मे कोई इछ न रह जाये । तेकन बगेर इन किये ही याद सब कार्य हो जाये, इन के उद्भव होने से पहले ही भप सब कृछ कर रहे हैं तो और किस चीज की इच्दा कर ? जैसा मैने चाहा धा और सोचा था, मेरे बचे अन्यंत चारत्रवान,उज्जवल स्वभावि, दानवीर, शूरवीर, सारे वश्व का कल्याण का करने आले सो तो मैं देख रही हूं कि हो रहा है किसी मै क्म हो रहा है, किसा मे ज्यादा हो रहा है । दानयों ऐसे व्यक्तित्व वाले महान गुम ग । होगे भर घूमकर,दुनियाँ भर में जा जा कर संसार के सब प्राणयों मे उदार देने का कार्य भी मे दख रहा है गुण उनये पस थे उनका प्रयोग सहजयोग के कार्य मे हो रहा है । कृछ कहना नहीं पड़ा काछ बताना नही पड़ा । सब कि हो रहा है । कितने ही लोग कला में उतर गये कोव हो गये और जितने भी को लोगो ने ना जाने कैसे उस बात को ले लया कि हमें सहजयोग को फैलाना है । सहजयोग को फैलाने में कोई काठनाई भी नहीं होना चाहिये क्योंक आप आशायीदन है, ऐसे । आप के लिये कोई आशीर्वाद किसी भी सन्तो को नहीं मिले । सन्तो ने तो बहुत तकलीफे उठाई तकलीफ नहीं । लेकन आप के अन्दर अनन्त शक्तयों है । उन सब शक्तियो को जान लेना चाहये, भाप उन शाक्तियों को पूरी तरह से उपयोग मे लाना चाहिये । जब तक आप उन्हे उपयोग नहीं करेगे तो जैसे एक मशीन याद आग उपयोग मे न ताये तो सड जायेगी । ये जाती है, ये शाक्तयों भी सड़ शोक्तयों आप मे जागृत हुई है और जागृत से ही किसी किसी में तो इनका वहुत ज्यादा प्रादर्भाव है और वो कार्यान्वत भी है । पर इसके लिये हमें क्या करना चाहिये ? ऐसा अगर आप मुझसे पाठे तो वो मैं आपसे बताना चाहती हैं । सबसे पहले हमें अपनी ओर नजर करनी चाहिये कि हम सहजयोग के लिये क्या कर सकते हैं । सुबह से शाम तक हम बस हमारे बचचे हमारा घर-बार, यही कुछ हम करते हैं या कुछ और हम कर रहे हैं । ये भी विचार आना चाहये कि हमारी माँ इस उम्र में भी कितना सफर करती हैं,इधर-उधर जाती हैं । कम से कम हम अपने अडोस पड़ोस मे इ्थर -उधर जाकर के लोगो को ये बात बतायें । कगर आज आप उन्हे नहीं बताते तो कल वो आफको दोपी ठहरायेंगे कि क्यो नही बताया हमें ? याद भापने हमे बताया होता तो हम भी इस अमृत को पा सकते थे । तो एक तरह की जिम्मेदारियों आप पर क्षा गया हैं । ं इसीलये बहुत जम्री है कि इसे आप दूसरो क्योंकि आप लोग उसे पहले ही पा गये हैं । को भी दें । अपने पास ही न रखे । आप लोगो के लये भी वसे देखा जाये तो मैने कोई खास काम नही किया । किन्तु आपके भन्दर ये शाक्तयों जमूर जागृत हो गयी है । बो शाक्तयाँ कार्यात्वत है कि तरह से इस आप साश्चर्यनाकन है कि ये कैसे चमत्कार हो गया-बो कैसे चमत्कार हो गया । क्योंकि आप परमात्मा के सामराज्य मैं आ गये है सब काम कपने आप हो रहे हैं । फिर भी हमें साचना | म 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-3.txt चाहिये कि हम परमात्मा के सामग्राज्य मे क्या करने आये है ? जैसे आप देखते है राजनात में एक निर्वाचन क्षेत्र से एक आदमी निर्वाीचत होकर आता है और जाकर के लोक सभा में बैठ जाता है । उसे लोक सभा के अधिकार और सुवधाये भी मिल जाती है । पर उस पर एक बन्धन ओर भी पड़ जाता है उनको बढावा देना कि जिस निर्वाचन क्षेत्र से वो आया है उसके लोगों को जाकर के देखना, सम्भालना, है । ये और उनकी प्रगात करना । अब आप भी समझ लीजये कि आप एक निर्वाचन क्षेत्र से आये शोक्तियों आपको सारा प्राप्त हो गयी । अब इन शोक्तया को बढ़ावा देना उनकी प्रगात करना बहुत जनरी है । अगर आपने ये नही किया तो शाक्तयां सुप्त हो जायेगी ओर जिन लोगो को ये शक्तियां देनी हैवो भी रह जायेंगे, उन्हे कुछ नही मिलेगा इस लये हमको ये सोचना चाहिये करना है । सहजयोग मे ध्यान धारणा से अपनी गहराई बढ़ा ली । लेकन जब तक आप बीटियेगा नही तब तक ये गहराई एक सामा तक पहुँचकर रूक जायेगी आप गाते तो अछे से है लोकन ये गाना आप बाहर क्यो नही ते जाते आप दूसरो को जाकर क्यो नही आपने कि अब हमे क्या बहुते से लोग बहुत सुन्दर गाना गाते है र सुनाते ? और जगह जाईये ये गाना सुनाईये । लोग इसे सुनकर बहुत ही आनन्द उठायेगे । ऐसे ही अनेक चीजे है जो लोगो के पास है लेकिन वो बस घर ही मैें बैठकर सब करते हे। बहुत से लोग बहुत अच्छा भापण देते है प्रवचन करते है । मैने उनसे कहा कि आप बम्बई और दिल्ली शहर में ही क्यों रहते है आप जाईये बाहर और प्रयत्न कीजिये । बो ज्यादा कान बाहर तोगो को सुनाईये भाषण र । रहेगा बोनश्वत उसके कि जिन लोगो को हम पार चुके है उनको सुनाने से क्या फ्ययदा है. बाहर फेलने में जो सामुाहकता है तो सरल बात ये है कि हमें बाहर फेलना चाहये । उसको अमझना चाहिये । उसमें अनेक प्रश्न भी सड़े हो सकते हैं अनेक झगड़े भी सड़े हो सकते है अनेक तरह के लोग आपको हर तरह से चेलेज भी कर सकते है । ऐसे लोगो से भड़ने की जरूरत नही | उनसे सीधा कहना चाहिये कि याद आपको कुंडालनी का जागरण चाहये तो आप आईये । और अगर यांद वो चिल्लायें तो उनसे कोहये कि आपका विशुद्धि चक झगडा ही करना है वो बेकार की बात है । के और फिर कभी आत्मसाक्षात्कार न मिल सकेगा । इस तरह से बहुत ही सूझ बुझ खरात्र हो जायेगा साथ, समझदारी के साथ उनसे बात चीत करनी चाहिये । अब मे सुन रही हैं कि अलवर मैं सहजयोग चल रहा है । पता नही कैसे लोग वहाँ गये । एक साहब का तबादला वही हुआ और वहाँ सहजयोग चल पडा। पटना मे भी मुझे बताया गया क दो सी सहजयोगी है । बड़े आश्चर्य की बात है । पटना तो में कभी गयी ही नहीं । कानपुर इतने सहजयोगी है । एक शर्माजी बहाँ गये और इतने लोगो को आत्मासाक्षात्कार दे दिया । फर्ण रूप से यही कार्य कर रहे है । किसको साक्षात्कार देना है, किसको ठीक करना है, पूरा उनका यही काम चल रहा है । एक मिनट भी वो ऐसा साचते नही है कि चलो कुछ देर बैठ जायें या मुझे तो करना नही है या ठीक हे मे जतना चाहता हूँ उतना कर लेता हूं । इस तरह की बात बो कभी सोचते ही नही है । इसी प्रकार हमें भी सोचना चाहिये कि रात दिन हमें सहजयोग ही के बारे मे सोचना है और जब तक उसी मै हमे मजा आता है तो हम आगे जायें ओर काम बन सकते है । आपने मेरा जन्म दिन इतने प्यार से मनाया । पता नही आप लोग क्यो मनाते हैं मेरा जन्म दिन ? मै यही समझ पाती हूं कि आप लोग सोचते है कि मेरे संसार मे आने से कोई बहत बड़ा बात । मै तो यह सोचती हूं कि जिस दिन आप लोग पार हो जायेंगे हो गयी है । सो मै नही सोचती बहुत बड़ा दिन होगा । जिस दिन मेने पहले इन्सान को पार किया धा उस दिन मेने सोचा घा कि बहुत वडा दिन हैे । १he* 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-4.txt जब मै पेदा हुई थी तो चारो तरफ अन्धकार था देखती थी कि कस तरह से य बानें नोगो से । और सत साधु तो कोई है नही । आधकनर नोग विल्कुत लोगों की तो बाट कुंठित है कहंगी । अन्धकार में, अज्ञान में कसे है । इनको में किस तरह से बान समझाउँंगी ? इनसे में क्या कह सुगी सुनेगा । तब मेने सोचा कि जब तक मै सामूहिक चेतना को जागृत नही की मेरी बात कोई नहीं शुरू से मैने जान लिया कि कोई भ करनी है । इस पर मैने विचार किया, प्रयोग किये, जितने लोगो को जानती थी उनके चको को मैने देखा और हैे । किस तरह से ये सब के सब लोग एक भोर बात कहने से पहले मुझे सामाहिक चेतना जागृत करने की व्यव स्था सोचा कि उनके चक केसे ठीक हो सकते सामुहिकता में आ जाये और पार हो जाये लेकन अगर कोई कहे कि मैने इसके लिये बहुत तपस्या की- आदि -तो मुझे कभी भी ऐसा नही लगा कि मैने बहुत सारा का र्य किया । सबेरे चार ा बजे उठने की अन्दर डालकर क किस फ्रकार वैसे आदन थी । उठकर मे विचार करती थी अन्दर में । विचार को या कुंडातनी का जागरण हो सकता है घीरे-धीरे आपके अन्दर ये विचार अन्दर डानने की चिल्त मे डालने की जो एक व्यवस्था है उसे आप सीख । अब ये सारे तरीके जो है अभी शायद आपके पार आये नही है पर । फिर जो भी विचार आयेगा उसे आप चित्त में डाल सकते है । जैसे कम्प्यूटर मे प्रोग्रामग करते जायेंगे है उसी प्रकार जो हम सहजयोगी है एक क्म्प्यूटर है और उसी प्रकार हम चित्त में प्रोग्रामिग कर सकते है विचार का प्रोग्रांमंग करके याद हम चित्त में डाल दे तो वो सब कार्यान्यत हो सकता है । परन्तु उसके लिये कमप्यूटर भी प्रगत्भ होना चाहिये और जो कर रहा है उसके अन्दर भी सफाई होनी चाहिये । समझ लीजिये कि कम्प्यूटर में काई खराबा हो गया तो कोई लाभ नहीं । इसलिये आपको अपने को बहुत स्वत्द निर्मल बनाना चाहिये । सबसे तो बड़ी बात जो बहुत सुखदायी बात हे, वो ये कि विश्वं-निर्मलता-धर्म की स्थापना हई पंचि-छह साल हो गये तब से विश्व -निर्मना - धर्म बदता जा रहा है और आज कम से कम मेरे स्व्याल से, लोग इसमे पूरी तरह से आ गये । अब जो सहजयोगी पहले किसी भी तरह से नही मानते थे उसी धर्म पर चलते थे, ओर वही रट लगाये रहते थे , गलत गुम्ओ के पास जात थे, मन्दिरों में मास्जदों में वे कोशिप कर रहे घूमते थे, घर्म को पाले । है कि हम किसी तरह से अपने अन्दर इस अब आकर के जम गये है विश्व-निर्मला-धर्म को । ये नया धर्म ऐसा है कि इसमे सारे नये धर्म समाये है । हर धर्म के बारे मैं इसमें जानकारी होती है और उसके तत्य को समझाया जाता है । इसके कारण मनुष्य यह जान जाता है क ये सारे तत्व एक ही धर्म के हैं और जो शुद्ध धर्म है उसमे ये सारे ही धर्म पुरी तरह से निहित है । उसी में बैठे हुए है उसी मे जमे हुए है । इस प्रकार जब हम देखते है तब जो दुसरे नोग है, जो किसी भी धर्म का अनुसरण करते है,उसके पाछे पागत जैसे भागते है उनके बारे में हम सोचते है कि वो पार नहीं है ।उनका धर्म और है । हम उनके घर्म के नहीं है । इस घर्म मे आने से हमारे अन्दर अर्हकार जो था वो चला गया । हमारे अन्दर जो दुष्ट भावनाऐँ थी वो चली गयी और सबसे बड़ी बात हमारे अन्दर शोक्ति के बगैर कोई क्यों कि ये सब प्रकाश है, धर्म शाक्त है । जो अन्धावश्वास थे वो सत्म हो गये जब ये प्रेम कार्यान्यत होता है तो शोक्ति इस तरह कार्य नही हो सकता और शाक्त में प्रेम पा है । से दोड़ती है जिससे कोई भी ऐसा बात नही हो सकती जो परमात्मा की दृष्ट से गेर कानूनी हो क्योकि उस शक्ति में ज्ञान है, इसमें प्रेम एपा हे और पूर्ण सुझ-बुझ के साथ ये शाक्त कार्यान्वत हे । सहजयोग में आकर जो लोग शाक्त सम्फ्न हो गये उनके अन्दर अहेकार आने के बजाय अंत्यन्त नमता । ये सब चीजे जब होना है तो अत्यन्त सौम्यता आती है और बहुत माधुर्य आ जाता है आली है, 3- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-5.txt मनुष्य कभी-कभी साचता है कि मै ऐसा हो गया ? मुझे ये सब कैसे प्राप्त हो गया ? ये स ब तो नुम्हारे अन्दर ही था पर तब तुम अपने को जानते नही थे और अब तुमने जान लिया है । जन्म दिवस के दिन पर यही स्यान आता है कि एक माँ अपने बच्चे को जन्म देकर किस प्रकार से रसे कि मेरे बचे को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिये मुझे चाहे कोई तकलीफ हो जाये मेरे बचचों को कोई तकलीफ नही होनी चाहिये । कुछ भी हो कैसा भी हो, मेरा बच्चा है उसको कसी भी तरह कोई तकलीफ ना हो । चाहे वो मुझे बो सताता भी हो, परेशान भी करता हो तो मेरे बच्चे को कोई तकलीफ नही होनी चाहिये । इस प्रकार जब आप सोचते है कि मुझसे ये गलती हो गया, वो गतती हो गयी और इस प्रकार जब आप अपने अन्दर ममत्व की भावना लाते है तो मुझे हापको ये कहना है कि इस तरह की कोई बड़ी गलती आप कर ही नहीं सकते जसे में माफ नही कर सकती । किन्तु आपको यद अपना ही गौरब बढाना है और अपना जीवन विशेष बनाना है तो आवश्यक है कि हम अपने को किसी गरिमा से, किसी बडुप्पन से देखे जैसा हम जानना चाहते है । सिर्फ हम माता जी को मानते है, उनके हमने फेटो लगा लिये, उनका हमने बैज लगा लिया और हम माता जी को मानते है। मेने अभी किसी भापण में कहा था कि किसी को मानने से भी,याद आप किसी को मानते है तो अची बात है कमत मान लिया । लेकिन उस । इसकी ये तो पहचान है कि आपने कम से कम किसी अचे आदमी को अचछे आदमी का जो कुछ भी व्याक्तत्व जो कुछ भी है वो आपके अन्दर कितना है? आपने उससे कतना प्राप्त किया या आपने उसके लिये कितना त्याग किया । ये विचार करना है । किसी को मानने ही ? समझ तीजये कि एक गर्वनर हे, आप कोहये कि मै गर्वनर साहब को मानता मानने से क्या फ्ायदा ार हूं तो क्या वे आपको अन्दर आने देंगे ? बो कहेगे ठीक है आप गवर्नर साहब को मानते हे आप यहाँ । मान्यता से, आप बीठये । इसी प्रकार आध्यात्म में भी किसी को मानने से कार्य नहीं होने वाला । लेकिन आप की जो प्रगल्भता है वो तो आप ही के उपर जानते है कि वारेशन हलहारियाँ बढ़ते है। निर्भर है, आप ही की मेहनत है । आपने अगर हमे मान लिया तो आपने ये तो स्वीकार कर लिया ये व्यक्ति काठ विशेष है, कहाँ तक हमने उतारा है ? कहाँ तक हम पहुँचे है ? जैसे सहजयोग में बहुत सी शिकायते होती है । और हमे लगता है कि कुछ तो बहुत अजीव सी बात है । सहजयोग जो है वो आपके हित के लिये है, आपकी शक्ति के लिये है, आपके गौरव के लिये है, मुझे इसमे क्या है ? मेरे पास तो है ही । काछ आदर्श है । पर उस आद र्श को भी अपने जावन मे हमने उतारा है ? पुराने सहजयोगी है जो जिस तरह से चल रहे है बो जरा कुछ मुझे सहजयोग करने की क्या जमरत है ले । बच्चा कहता है कि अब माँ है वो बच्चे को कहती है कि दूध पी सहजयोग आपको करना है । ठीक हो जायेगी । वो हर समय इसी नहीं। माँ उससे कहती है कि दूध पीने से तुम्हारी तन्दुस्स्ती में है ? अगर बच्चा अपने हित को समझ चिन्ता मे लगी रहती है कि इस बच्चे का हित किस चीज लेगा तो माँ का भी कर्तव्य पुरा हो जायगा । हालाँकि मेरे अन्दर कोई इछ नही है फिर भी मेरा कर्तव्य है कि मै आपको बताउँ कि आपको क्या प्राप्त करना चाहिये और आप कौनसी दशा में है । अब बहुत से झगड़े और ओ ी बाते खत्म हो आ गये । में गयी । इसमे कोई शक नही । आप लोग बहुत आनन्द मे आ गये ,प्यार के बन्धन स। फिर भी एक बात जो मुझे तगती है वो ये है कि सहजयोग करने के लिये हमारे पास फुरसत ही नहीं है । आपने जो पाया है उसे देने की उत्कट ाछ होनी चाहिये । किस तरह से इसे दू? किस तरह से मुझे देना है ? इस तरह की भावना जब तक आपमे जागृत नही होती,इसालये नहीं कि में अपने आपको दिखाना चाहती हैं हूँ, हूं, नेसक है इसालये नहीं कि मै बड़ा भारी संगीतज कि मै कोई बड़ा भारी वक्ता 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-6.txt या बडा भारी काव हूं पर इसलये कि मैं इसे देना चाहता हूं । इसालये नहीं कि मैं पैसा या नाम कमाना चाहता हैं पर इसालये क में इसे देना चाहता हूँ । ऐसे अन्दर से शुद्ध झा होना चाहये । तब आप दोखऐेगा कि कुडालनी बढ़नी है मुझे आत्मसाक्षान्कार देना है । कौन इसे ले सकत। है कीन नही ते सकता है ? लोगो को पार कराने की । नब ये शुद्ध इका का ये स्वन्ध भ जायेगा मेरी शुद् इज है कि जबरद स्त भावना अन्दर मे होनी चांहये । ऐसा आदमी विना दूसरों की व्ालोचना किये जपने लक्ष्य का इ ही मेरी सब कुछ है । मेरे अन्दर तो ये जवरद स्ते इान है । ये और अग्रसर होना जाता है । सहजयोग में इसी प्रकार फक जबरद स्त इतन होनी चाहिये कि हम सहजयोग को कायदे से फैलाये । अव लोगो को मैने छेड दिया है । इसका प्रचार करे। हर जगह जाये लोगो को बनाये कि सहजयोग क्षाप क्या है ? सहजयोग से क्या-क्या लाभ होता है । वासकर दोहातो में आप कार्य करे । जो लोग बम्बई है उनसे बिनती है कि स गँव-गाव जाये नोगो को समझाये । कम से दिल्ली शहर में बैठे हुए या कम भारत वर्ष के हर गांँव मे क्या आप नही सोचते कि मेरा सदेश पहुँचना चाहये । सच लोगो को या क्या आप ही इसका मजा उठाते रहे इसका पला होना चाहिये अत: आप सबको मेरा कहना है कि रोज दिन चया में आप लिखे "आन मेने सहजयोग के लिये क्या किया ?" कितने लोगो को हमने पार किया ? कितने लोगो से सहजयोग की बात की इतना ही सब लोग मिनकर इसको बना सकते है कि कितने लोग वहाँ जायेगे-इतने लोग यहाँ जायेगे । इसी प्रकार से आपकी कुडालनी का नया रुप आ जायेगा । आपके अन्दर से चैतन्य बहना जायेगा । आपके अन्दर से चैतन्य की लहौरियाँ ऐसे बहेगी नैसे सूर्य की किरणे । लेकिन उसके लिये सबसे पहली चीज जो मैने बतायी वो ये कि आपके अन्दर देने की इन होना चाहिये । आज भी बहुत हो शुभ से लोग है जो आकर ये बताते है कि उसकी ये तकलीफ ठीक कर दी, उसकी वो तकलीफ ठीक क दी । आपने देखना है कि किसी को क्या दे तो आपने ये नही देखना कि कससे क्या मिल सकता है सकते है । किसकी क्या तकलीफ ठीक कर सकते है । किसी का याद मेर रज्जु खराब हो गया है तो अनेक प्रकार की दुषिधाए । इसी प्रकार बहुत लोगो ने है जिन्के उसके बहुत से चक स्वराव हो गये होगे आप आसानी से मेहनत करके निकाल सकते है । हर एक आदमी को मैं नही देख सकती, हर फक आदमी को मै नहीं ठीक कर सकती लेकिन आपने यद शुस्वात करद तो आप जान लीजिये कि आप । ये जरूरी नही कि मै ही सबको ठीक सर्वशाक्त शाली हो जायेगे और आप सबको ठीक कर सकेंगे ाि क, कोई जरूरी नहीं । आप थोडी सी मेहनत से सबको ठीक कर सकते हे और आपकी मेहनत से ही आपके अन्दर की शोक्त एक नये र्वरूप में आ जायेगी और आप बेठे-बैठे यहाँ से ही लोगो के बारे में बता सकते है । यही एक आज दिन मेरी इ, में री एक ही इान है कि इस चैतन्य से सारे भारतवर्ष में नहीं सारे संसार में अमन चैन होना चाहिये । सारे संसार में शोंति होनी चाहिये, सारा संसार ठोक होना चाहिये। ये मेरा अपना फूरण विश्वास है कि जब आप लोग इसमें उस इठछा को लेकर, उस उत्क ट के साथ गर आप इसमे पड़ जाये तो किसी की मजाल नहीं हकोई कुछ नहीं कर सकता ।ै कि आप अपना ক়া लक्ष न पाये । वो सहजयोग? बढता ही जायेगा, बढता ही जायेगा क्योंक आपके साथ परमात्मा साक्षात चल रहे है, सारे देवदूत चल रहे हैं । इसालये आप प्रयत्न करके दौखये । इसी प्रकार आपको सोचना चाहये कि मै सहजयोग के लये क्या कर रहा हूं ? चलो कही । और जो काठ भी करे एकजान होकर करे । इसी प्रकार हर एक को जाकर सहजयोग के लिये काढ करे म । हर एक को दूसरे के कार्य का खचर होनी चाहये कि सहजयोग के लिये यथाशांक्त कार्य करना चाहिये ३ 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-7.txt । ये सब आप ही कर सकते है । वा क्या कर रहा है सहजयोग की जो भी प्रगत हुई है वो सव आपकी ही वजह से हुई है क्यों कि मै तो अब क्या करुगी प्रगत, मेरी तो प्रगोत हो चुकी । ये सब आपके लिये है और इस प्रगत के माध्यम से ही आप और भी प्रगात कर सकते है । इसके लिये मे यही कहूँगी कि अगलने अन्म दिन से पहले आप भारत वर्ष मे सहजयोग को फेलाये तो आपसे दुगने लोग सहजयोगी हो सकते है और आशा है कि अगले जन्म दिन के वक्त मैं सुनूगी कि आपसे किस कदर आपने सहजयोगी बढ़ाये । सहजयोग के जो नियम है उन्हे जरूर पालना चाहिये । जैसे कल एक साहव आये थे उनकी दो पंनयाँ है । कहने लगे ये सहजयोग मे आने से पहले है । मैने कहा सहजयोग में अगर आफ्को आना है तो आप पक ही फनी के साथ रह सकते है, दो के साथ नही इस प्रकार हर आदमी को सोचना चाहिये कि मै इस नयी दुनियां में आया हूं । मेरा चारत्र कितना उज्जवल है । यह बात चरित्र की है, । मै कितना बदल गया हूँ । ये सब ध्यान में आना चाहिये । लेकन ये सब किस लिये बनाया जाता है । इसका कुछ न कुछ तो कारण होना चाहिये । क्यो आप अपने जीवन को बदले ? बदलना इसांलये आवश्यक है कि आफ्की कुंडोलनी उन्मर आ सके । आज मेरा आपको अनन्त आशीर्वाद है । मेरे बचे जो बहुत प्यारे है वो युग-युग जिये' और संसार की भलाई करें । यह मेरा अनन्त आशीर्वाद आप लोगों के साथ है । .Oeer जनसाधारण कार्यक्रम श्री माताजी निर्मला देवी का भाषण मुम्बई-मार्च 1991 श्री रामकृष्ण जी और श्री चन्द्रशेखर जी तथा यहाँ उपास्थित सब सत्य के साधकों को हमारा नम स्कार । इतने सुन्दर भापण आप लोगो ने दिये और इतनी प्यारी-प्यारी बाते आप लोगों ने कही । एक बहन के लिये ये आनन्द की बात है ही किन्तु न जाने क्यों हृदय मर आता है कि आज मेरे भाई मेरे साथ सडे है । हमने सुना कि धर्म की क्या ग्लानि आपने देवी है और धर्म के नाम पर कितने किन्तु गलत कान होते है जो धर्म समाज के काम नही आ सकता ऐसा धर्म किसी काम का नही बास्तोविक बात ये है कि धर्म जिन्होने बनाया है जो बडे-बडे अवतरण संसार में है और जो पगम्बर आये, इन लोगो ने जो धर्म बनाये वो शूद्र धर्म थे, समयाचार के हिसाब से वो धर्म बनाये ये घर्ममार्तष्य जो भी कुछ और जो बड़े-बडे सन्त हुए आये, दार्शीनक लेकिन बाद में एक नयी पीढी तैयार हुई उसे कहते है घर्म-मार्तडंय इन महानुभावों ने कार्य किया उसके बराबर विरोध मे खडे हो गये महानुभूतियोँ इस संसार में आयों और उन्होने ने भी जो महान कार्य किये उन कार्यो को जब हम देखते है तो आश्चर्य होता है कि वह सब पैसा कमाने का एक धन्धा है । मै स्वय ईसाई घर्म में पैदा हुई थी गये । । । अच्छा ही हुआ क्योंकि ईसाईयो की सारी पोल पट्टी तो मेरी समझ में आ गयी । मेरे पिता स्वयं संस्कृत के बड़े भारी विदान थे । माँ भी बहुत संस्कृत जानती धी । उस ववत जब मेने बाईवल में पढ़ा कि एक पौल साहब आये हुए है और वो घर्म के बारे मे बोल रहे है तो मैने अपने पिताजी से पूछ कि ये पील कौन है ? मेरे पिताजी आत्मसाक्षातकारी थे । उन्होने कहा बेटा तुम समझी नही । ये है "घुसपीठया" । उसने जब देखा कि एक बहुत बड़ा मंच बन गया है, बड़े सारे लोग इसमे आ गये है। ार तो मंच पर चढ गया और अगुआ बन बेठा । बाद में उसी का जन्म अगस्टान की तरह से मनाया जाने त 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-8.txt गये है उन्होने उनके ्विलाफ बहुत काछ लिखा है वड़े सन्त जो । सन्त नगा । कोय जिब्राल बहुत ज्ञानेश्वर को भी इन धर्म मार्तण्डयो ने बहुत सताया । उसके बाद हमारे देश में नुकाराम जैसे महान महान आत्मा हुए उन्हे जताया नहीं गया नो उनकी बदनाम किया गया, सताया गया और उनके मरने के बाद उन्ही के नाम पर मान्दर बनाये गये बडी-बड़ी सस्थाए वनायी गयी और बहुत से कार्य हुए । अभी मैने एक किताव पदी थी जिससे मे हैरान हैं क आत्मा को कितना ल्ता गया । हर देश में वाटकन ने जो कि पाँप की अपनी पूरी राज्य व्यवस्था है ने दो वलयन दो अरब झुठी सिक्योरिी गपा समझ तीजिये कि परमात्मा कार्य करनी बाली संस्थाए इस तरह से भगवान को भी बेचती है पैसा तो कमाती ही है, माफिया बना हुई है । और ये साधे यादे भोले और धर्म को भी बेचती है । ग मन्दरो में चर्च में जाते है और सोचते है कि वहा परमात्मा है जसने हमें बनाया, ओर उसी की ल भाक्ति व श्रदा में हम रहे । पसी एक से क बढकर चीज आप देख सकते है । आपने का ना घदारा नाम सुना होगा । हर एक धर्म मे एक से एक बढ़कर के धर्म मार्तण्डय बेठे हुए है जो कि माफि्या है | अब तो मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान में कितने ही माफिया शुक हो गये हैं । सबसे पहली चीज है ये पैसा । धर्म में पेसा कमाना । जब पैसा कमाना शुरू हो जाता हैता आप समझ लीजये कि ये धर्म हो ही नही सकता क्यो कि परमात्मा पेसा नहीं समझते । मे तो पेये के मामले में बहुत बेवकृफ है । आप तो व्यापार बाले है लेकन मेरा वजनेस पैसे के बगैर चलता है । न जाने कहाँ से मदद आ जाती है, न जाने कहाँ से सब हो जाता है । एक अर्थ-शास्त्र ऐसा विषय है ना आपका कानून है इसान का विल्कुल मेरी खोपड़ी में नहीं घुसता क्योकि इन्सान बनाया है और दूसरे बनाया हुआ कानून मेरी स्वोपडी में नही घुसता, परमात्मा का कानून में समझ सकती हूं । लीकन ये भी कानून जो हम इस्तेमाल कर रहे है ये भी परमात्मा से आया है । हमारे अन्दर ये विवेक का गुण परमात्मा ने दिया हुआ है । हम जो लोग जो कायदा बनाते है उसे हम स्वीकार करे । क्यो कि मनुप्य ने जो कायदे बनाये है उनमे अनेक दोष है लेकन परमात्मा के । जेसे कि कायदे मे कोई दोप नहीं आपने अभी कहा कि आज अपने दे श मे गरीबी है, किनने लोग परेशान हे हर तरह से तंग है । आप नोग बताइये । क्यो हम लोग तेग है ? क्यों परेशान है इसका इनाज क्या हो सकता है। क्यो हम गरीब है ? आपको पता होना चाहिये कि हमारे बहुते से शिष्य स्विस बेंक मे भी है, और विश्व वो बताते है कि विश्व बेक से वो हमारे देश में बहुत सा कर्जा देते हैे । तो हम तो बैक मे भी है । कर्जे में आ गये और बो पेसा वापिस स्विस बैक चला जाता है । स्विस बैक फिर वो पैसा विश्व बेक को देता है और विश्व बेक फिर से कर्जा देता है । इस तरह से पेसा घृमता रहता है और हम है कि हमारे और पैसा बैठा है स्विस बैंक में। पर कर्जा चढता ही जा रहा है । ये जो चक चला हुआ है इसका इलाज क्या है ? आज जो अराजकता फेली हुई है, जिस तरह से भ्रष्टाचार फेला हुआ है, जिस तरह से नातक मुल्य गिर गये है इन सबका इलाज क ही है क्यो कि इसकी जड़ है मनुष्य । मनुष्य गिर गया इस वजह से ये सब चीजे गिर गयीं । परमात्मा ने इसमे कोई विगाड नही किया । फूल उसी तरह से आते है आकाश में चन्द्रमा उसी तरह से विराजमान है । ये जो ऋतम्भरा प्रज्ञा है ये अंपना कार्य अची तरह से कर रही है । । लोग अडोसी पड़ोसी को नहीं जानते । सही बात है । पर इसके मम मे, इसके तत्व मे याद आप पहुँचे जैसे आपने फरमाया कि बम्बई में लेकन इसमे कहीं कोई दोष है वो इनसान में है तो आपको एक बात समझ में आ जायेगी कि मनुष्य ही इसका कारण हे । जानवर तो पशु हे, परमात्मा भर के पास में है । शेर-शेर हा रहता है, गीदड नेही हो सकता मनुष्च शेर, गीदड, सॉँप , वच्छू कुछ भी हो सकता है । कारण परमात्मा ने उसे ये स्वतन्त्रा दी है कि चाहे स्वर्ग मे जाओ चाहे नर्क मे जानो । तब एक बात आती है कि ये मनुष्य कुछ अधूरा सा है । माना कि अमीबा से इन्सान हो गया । इसे 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-9.txt बहुत सी बाते आ गयी जैसे किसी जानवर को आप चाहे तो वो गदै नाले से चला जायेगा पर मनुष्य नही जो सकता क्योंकि उसको दुर्गन्ध आयेगी । उसको सौन्दर्य समझ मे आता है । उसको वहुत सा । अभी केवल सत्य पर नही पहुँचा । जब केवल सल्य में पहुँच । जैसे अधैर में खड़े हुए हाथ में हमने कुछ पकड़ लिया । कोई कह रहा है कि सॉप है तो भी हम कभी न छोड़े । धोड़े से प्रकाश के आते ही हम उसे छोड देगे । । इसी प्रकार मेने ये सोचा धा कि संसार में मनुष्य । मे जानती थी कि मेरा ये काम है, मेरे पिता भी जानते थे । बाते समझ में आती है तो भी अधूरा है जायेगा तो उस प्रकाश में वो बदल तो. जायगा ही किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं का पारिवर्तन होना जरूरी है | इस परिवर्तन को लाना आंत आवश्यक था उसके लिये हमारे अन्दर यह व्यस्था है ये में नहीं जानती धी । हमारे अनेक शास्त्रो में भी लिखा हुआ है कुरान में भी इसे असस कहा गया है । मोहम्मद साहव ने भी हाथ बोलेगे, बाईबल में भी जीवन वृक्षहद ्ी आफ कहा है कि जब तुम्हारा पुनः उत्थधान होगा तो तुम्हारे लाइफ का बहुत सुन्दर वर्णन कया हुआ । जैसे एक बात जो उन्होंने घूमा पफराकर कही वो ये कि यह कार्य कुडोलनी की जाग्रात से होना है हालाँक संस्कृत मे अनेक ग्रन्थो तथा उपांनपदों हे जैसे गीता में है पर इसकी जिया है । रूप से भी बताया गया है । ये सब होते हुए भी ओर अग्रेजी राज्य आने की बजह से हमने सेस्मृत पदना हेड दिया अग्रेजी को हमने बहुत महत्व एर्ण समझ धा कि आप अग्रेजी स्कूल नहीं पट़ेगे आपको हिन्दुस्तानी कही-कही तो बहुत विपद लिया इस मामले मे मेरे पिता का एक कटाकषा स्कुल में पढना है, मराठी भाषा पहले सीखो, फिर हिन्दी सीखो । तुम्हे अगर हिन्दी भाषा नही भाती तो तो तुम हिन्दुस्तानी नही हो । अग्रेजी तो किसी को भी आ सकती है । में देखती हैं कि मैने अंग्रेजी कभी पढ़ी-लिखी नहीं हूं फिर भी अग्रेजी काफी साफ बोल लेती हूँ । ओर सस्कृत से भी मुझे बहुत क्लिचर्पी धी । बहरहाल हमारे पास जो गहन सम्पदा थी उसे कभी देखा ही नही,जाना ही नही तोगों को कुडलिनी का नाम भी न मालुम था । वो तो कुडालनी को कुठली सकझते थे । उत्तरी भारत में तो अपने फिता इससे भी बदतर हालत है । मैं यह साचती थी कि इनसे बात अभी करे कैसे । इसपर मै से चर्चा करती थी । उन्होने मुझसे कहा कि बेटे अभी आप इसके बारे मे कोई बात मत करो । तुम्हे सामुहिक चेतना जाग्रत करनी है । सामुहिक रूप से कुडोलनी निकालो । दूसरी बात अपना देश भी स्वतन्त्र नही धा । पर मनुष्य को समझना मुश्किल बात धी उसपर का जागरण करना है, पहले इसका तरीका जरूर मैने अपनी चित्ती के साथ-एक विशेष चीज होती है चित्ती-चित्त को जो चलाती है वो है चित्ती । उस सूक्ष्म चीज से मैने मनुष्य के बारे में जानने की कोशप की मेरे पिता जी ही बहुत सोशल आदमी थे फिर आपके पिता जी जमना लाल जी मेरे चाचा जैसे थे उनसे । अनेक तोगो से मैं मिली । पहले तो गाँधी जी से भी बहुत बाते होती धी किन्तु जो बात में जानना चाहती थी भी बहुत बाते होती थी । । कि मनुष्य मे ऐसा कौनसा दोष है कि वो आत्मसाझातकार को प्राप्त नही हो सकता । इस चीज को ढूंड- ढूँड कर अन्दर इसपर ध्यान करती । जब मुझे यह पता हो गया कि कुंडलिनी का जागरण अब हो सकता है, सामुहिकता से, सहस्त्रार का खोलना जब बन पड़ा तब मेने सहजयोग शुरू किया-एक रूत्री ने । अगर आप कोई नकली चीज बनाना चाहे तो आपको कोई आपक मेहनत नही करनी पडती पर किसी असली चीज को बनाने पर तो समय लगता है । इसलिये एक स्त्री से शुरूवात हुई, आगे बढ़ते-बढ़ते आज सहजयोग तो भी मुफती साहब हमेशा कहते धे कि माँ बहुत से लोग एक दम बुदू है । में बहुत बढ़ गया है । ये कहूँ कि अज्ञान में है, अन्धकार में है । वो समझ नहीं पाते कि वो है क्या । उनके अन्दर इतनी आप ही का अपना स्वरूप है । जब सब मुझसे कहने बडी शक्त अपनी है, आपकी ही अपनी शाक्त है, 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-10.txt है माँ आपने ये किया, माँ आपने वो किया तो में देखती रहती हैं कि मैने क्या किया । एक जना हुआा ? ये आपकी अपनी शाक्त है और तो उसने कौनसा काम कर दिया दीप अगर दूसरे दीप को जलाता है ये याद जाग्रत हो जाती है तो इसालये कि आपने बहुत पण्य किये है और इसका समय आ गया है इस कर बात को बहुत कम लोग समझते है । कुठ यह समय मेरे जन्म से ही आ गया है और अक्षय पूजा के क दिन भी यह जो बृहम चैतन्य चारो तरफ फेलला हुआ है उसे अनेक तरह से सम्बोधत किया जाता है । हठयोग मे इसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते है और बाईबल मे इसे आाल परवाडग पावर आफ गाइ परम चैतन्य कहते है, परान मे इसे रूह कहते हैं । अनेक तरह से इसका वर्णन किया जाता है । ये अभी तक लेकन एक दम से कृतयुग की शुरूवात हो गयी और वे । ये बहुत बड़ी चीज है । ये समय है तटस्थ रूप से देख रही थी इस कलयुगे को । जो अपने चारो ओर फैली हुई शक्त है ये कार्यान्वत हो गयी सर इसका फरयदा अगर हम उठा रहे है तो कोई विशेष बात नहीं क्योकि समय ही वदल गया है । को नाने इसके कि आप अपने असली स्वरूप और समय इसलये बदल गया है कि परमात्मा चाहते हैं । मिली है परिणोम स्वरूप बहुत सी बाते हो जाती है सहजयोग में और साठ डाक्टर लन्दन में इसपर प्रयोग कर । आप तो जानते ही है कि तीन डाक्टरो को प पदरवी रहे है और वो हेरान है । भी डाक्टर साहव बता रहे थे कि रूस में चार सौ डावटर सहजयोग कर रहे है । उन्होने कहा मा सोध में क्या रखा है हमे सहजयोग का अभ्यास करना है । ये तो सहजयोग मे सर्वप्रथम तन्दुर्स्ती आ जाती है ताबयन आपका अव हो जाता है अपने देश के लिये बहुत अची बात है । अपने गरीब देश में वना पेसा खर्च किये याद लाग ठाक हो जाये तो हमारी आधी विपोत्त समाप्त हो जाये । किसी जमाने में सरकार ने मुझसे कह । था पर मेने वैसे में इसके लिये कार्य कर सकती हूँ । ये बात जध्यान्मक कहा कि मै बन्धन में नही बध सकती । आया गया हो गया ही है इस तरह से बात हम केवल शरीर ही तो नही है कि शरीर को ही ठोक करते रहे । लोग शरीर के पाे बहुत दौड़ते है । हठयोगी बगैरा बहुत ही कोध हो जाते है कभी -व्भी तो उन लोगो से मुझे इत नी गर्मी आती है कि मै कहती हैं कि हठयोगी मेरे पास आने से पहले कुछ दिन पाना मे बेठे । हमें जान लेना चाहिये कि अपने शरीर की इतनी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं । जब आप सहजयोग में आ जाईएगा तो आपका शरीर अपने आप ठीक हो जाएगा और आपको कोई बीमारी नहीं होगी आज तक मं किसी दाँतो के डावटर के पास नही गयी । ये जो रोशनी मेरे आँखो पर डालते है इसके कारण चार सालो से ये चश्मा मुझे कभी-कभी लगाना पटता है । जब ये शाक्त जपके स-्दर दौड रही है तो भफ्को क्यो अपने शरीर की चिन्ता करने की जमूरत है । जिन चको की सखरायी से आपका शरीर पराव होना है वही । फिर यही चक ठीक हो जाने से आपकी मानासक स्थिति ठीक हो जाती है ठीक हो जाते है। टेन्शन बगैरा सब ठीक हो जाते हे गरीब साधे-सादे लोगो को टैन्शन नह हाती बहुत व्यस्त लाग इसके वो भी सहजयोग में आकर विल्कुल शान्त चिन्त हो जाते है जब तक आप इस स्वस्थ माहौल शिकार है । से झझते रहेगे आपकी समस्याओ का कोई हल नही पर आप अगर इससे बाहर आ जाये, पानी से जैसे आप बाहर आ. जाये तो आफ्को तहरो का डर नही रह जाता, आप केवल देखते है पर आप अगर नाब में वेठ आ जाये तो आप दुसरो को भी अपने साथ लाच सकने है और तैराक हो जाये तो नाव की भी जनूरत नहीं । इसी प्रकार मनुष् के न्दर जब ये शाक्त कपना प्रादरभाव प्रदार्शत करती है उस वक्त वह आदमी एक अजीबो-गरीब एक व शेष तरह का मानव हो जाता है । जैसे मैने कल बताया था-अन्हे का 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-11.txt पक्षी होना उसी प्रकार मनुप्य का आत्मसाक्षात्कारी होना । क तो उससे भय आ्षद सब भाग जाते है चिन्ता आदि सब भाग जाती है । वो असनी माने में स्वतन्त्र हो जाता है क्यो क कोई सी भी आदत उसे चफकती नहीं । अमीर देश जहा लोग नशाली दवाऐ लेते है बहाँ भी सहजयोग ने कमान कर दिया है इग्स लेंने वाले एक रात मे इग्स छोडकर खडे हो गये । शराब पाने वानो ने एक त में शराव छेड दी जब आत्मा का प्रकाश आता है तो मनुष्य सब गन्दगी अपने आप छोड देता है । इन आदतों को छोड़ देने से उसकी पेसे की भी बचत हो जाती है और उसकी बादध इतनी प्रगत्भ हो नाती है कि बो अनेक कार्य बगैर परेशानी कर लेता है । लन्दन मे आपने सुना होगा कि बहुत बेकारी है नेकन नाम मात्र के लिये भी कोई सहजयोगी वहाँ वेकार नहीं है । जो एक बार सहजयोग के समूद्र में आाया उसको ग नौकरी मिल गयी उसका आत्मसम्मान भी बढ़ गया । अभी भआपने जाशीष को गाते हुए सुना. उसने इननी जल्दी अपने झतहान पास कर लिये । यहाँ काछ लड़के इजीनयर है वो अक्यत दजे में पास हो गय बहुत सी छात्रवृत्तियों वरजीके सहजयोगियो को ही मिलते है इनको कायदा कानून भी नहीं बताना पडता । उनके अन्दर धर्म जागृत हो जाता है । बो गनत काम । उनकी बाद इतनी सूझ-बृझ बाला है कि ? बहुत गुस्सैल लोग आत नमर होकर प्यारी- करते ही नही । है कभी सन्त-साभ ने गलत काम किये प्यारी बाते करने लगते है ये जो पारवर्तन मनुष्य मे आ नाता है उससे बो एक प्रचन्ड व्यक्त भी हो जाता है डायनामक इसके ओर बहुत से पहलू है मनुष्य शान्त हो जाता है, आनन्द मय हो जाता है सामाहक चेतना जागृत होने से विश्व बन्धुत्व आ जाता है । अब हमारे यहाँ 56 देशो के लोग आते हैं । मैने कभी उनको लड़ते झगडते नही देखा सर्फ आपस में चुहल जनूर रहती है । एक -दूसरे को चिदायेगे, विदेशी लोग संस्कृत मजाक चलते रहते है । परन्तु अपशब्द कहते हुए मेने उन्हे कभी नही सुना । बोलते है और भारतीय विदेशी भापा । तो एक तरह की जो प्रगत्भ व्याक्तत्व की जो हमारे अन्दर शक्त न है वही प्रस्फुटित हो जाती है और मनुप्य एक विशेष म्प में सामने आता है । आपस की दोस्ता भाईचारा इस कदर है कि देखते ही बनता है । जब मे रूस गयी तो जर्मनी से 25 आदमी ओर ओरते फोरन दोड़े कहने तगे कि माँ हमने हैी उन्हें तबाह किया था नेपना रूपया-पेसा स्वर्च के रूस के लोगों को । बड़े प्यार से उन्होने पार कराया । ऐसा प्यार कही देखने को नहीं मिलता । हर घर्म के लोग हमारे शिष्य है । सभी अपने अन्दर के दोषो को देखते है दूसरे के दोपो को नही देखते । इस प्रकार हमारे अन्दर जो दोष है, हमारे समाज मे दोप है उन्हे फोरन देखना चाहये । में फैलने सहजयोग जब वाहय क अन्तर दृष्ट आती है और क बाहय दृष्ट भी आती है । । हमारा दे श कृषि प्रधान देश है । जब चेत लगता है तो इसके अनेक वेज्ञनिक फायदे भी होते है न्य लहारयों आप पानी मे डाल देते है और वो पानी लेता को देते है तो खेती इतनी बाटया होनाी है कि ा देखते ही वनता है । मैने अपने घर पर फक प्रयोग किया तो बहुत बड़ा सूरजमुखी का फूल आया । पर इन चीजो को कौन पान्ता ? चावलो का भी आश्चर्यजनक फसल हुई । सबसे वड़ी चीज जो मनुष्य पाता है वा है समाधान । समाधान इस तरह की कि मुझे बहुत कुछ मिल गया । अब मुझे दूसरो को देना है, दूसरो का भलाई करना है । यो अंग्रेज जो हिन्दस्तानियों से बात नही करते थे आज बहा उनकी झोपाहयो में जाते है, कल्हडो मे चाय पीते है हिन्दी साखते है में कितना काश कि आज गधी जी होते, मेरे फ्ता होते देखते कि इस देश एक अनूठा प्रेम है उनमें । बड़ा कार्य हुआ है । पर सबसे बड़ी बात यह है कि सहजयोग मे हमारा वास्ता भारातयो से है । इस भारतीयता को याद आपने समझा नहीं, अपनाया नही जो, में यही कहैगा कि जिम्मेदारी क्षापकी होगा। धर्म 10 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-12.txt के बारे में इतनी गहनता से किसी ने भी नही विचारा । इसी योग-भाम में सारे कार्य हो रहे है और यदि यहाँ जन्मे है तो किसी बड़े फण्य से ही । ब मे दिखाई दे रही है हुन सी आफ्ने आपसे बताना बाहती हूँ कि जिस फुथर्व पर आप बेठे है यह बहुत पावत्र है। इस घरती पर सन्त साधु पर मे कलयुग चले है । यहाँ रामचन्द्रजी भी जुता उतारकर चले । पुण्य मार्ग से जाने से हर चीज़ की खुश्हानी होगी जो कुछ भी अच् होना हैं वो इन्ही लोगो की इछा से होगा । सारे संसार का हित होगा और भारतवर्ष का विशेष रूप से आध्यात्म हित होगा । इसमे मुझे कोई शक नही । इस देश में लोगो का इतनी आस्था है कि विदेशी सहजयोगी जब भारत आते है तो पहले इस पूथ्वी को चूमने है । लोगो ने कारण पूछ तो कहने लगे कि यह योग भूमि है । । सभी आत्मसाक्षात्कारी इसे देस सकते है । कितने ही लोग यहाँ ऐसे आये और उन बेचारो को यहाँ ठगा गया पर जहाँ कमल होते है चारो तरफ चैतन्य फैला है ब तलि हाँ कीड़े-कीटाणु भी होते है पर अब समय आ गया है, संब बदल जायगा दो साल में आप इसका असर देखेगे । आप जानेगे कि ये सहजयोगी सार ससार में फैले है वो भारतवर्ष का बहुत शुभकामना करते है | हर सुबह प्रार्थना करते है कि भारत हमारा आद ्श मान्दर बन जाये और जब भी हम जाये सहजयोग मे अपने को बढाये पा आशा है हमारे सहजयोगी यहाँ जो है इस चीज को समझें और अपना जिम्मेदारी को समझे । अपनी गहनता बढ़ाये, उसी के साथ उसका प्रसार करें और वृक्ष जैसे बदता है उसी तरह गहनता में । इसके अने क लाभ है आप विजनेस में है तो मैं कहुँगी कि बिजनेस तो [इसके वहुत लाभ है । लक्ष्मी जी की आप पर बहुत कृपा होगी-पैसे की नही । लक्ष्मी जी के अवतार को याद आप देखे तो उनके उतरें कन हाथो मे कमल है । कमल क्योंकि गुलाबी है यह योतक है प्यार का । जो लक्ष्मी पर भी बहुत ही व्ययस्थित भी होता है । कमल के अन्दर अगर हजारो कटा वाला भरा भी चला जाये तो उसे भी वह पोत होता है । लक्ष्मी जी का एक हाथ अपने अन्दर स्थान है । इस तरह उदार ताबयत वाला लहमी है । अभयमुद्रा में तथा एक दान मुद्रा में । एक हाथ से आश्रय तया दूसरे दान देवी का बताया हुआ फिर वह कमल पर सखड़ी हे अर्धात किसी पर जबरद स्ती किसी पर अपना दबाव नही डालती ये लक्ष्मी पांत के के लक्षण है और पसे लक्ष्मी पात तेयार हो जाते है सहजयोग मे आकर के । पेसे की कभी परवाह नही करेंगे । पैसे तो पसे आता है जैसे पाव की धूल कोई उसे चिन्ता की बात नही मेरे पास तो कोई सेकेटरी भी नही और बैक-वैंक तो मे कुछ जानती नही पर सभी कुछ सुचारू ढंग से कैसे चल रहा है ? हम लोगो के जीवन में चमत्कारी रूप से सब होता है । परमात्मा सर्वशक्ति मान है वो जो करना चाहे कर सकता है । पर इसके लिये पहले सहजयोग में आईये फिर दोखये परमात्मा के साम्राज्य का कमाल और उसका चमत्कार । इसमे मेरा कोई विशेष कार्य नही । परमात्मा जो चाहे कर सकते है वो चाहे तो सूई के छेद में से उँट निकाल सकत है पर ये विश्वास आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आ सकता है उससे पहले नही क्योकि तभी आप देखते है कि उनकी परम महमा करूणामय कृपा, इतना ही नहीं उनका कार्य कितना मनुष्य के लिये हितकारी है, कितना प्रेममय है । सहजयोग मे आने के बाद एक तो परमात्मा की प्रचीति हो जाती है और एक अपनी भी प्रचीत हो जाती है । और फूर्णतया आपको केवल सत्य , केवल धर्म और केवल जावन मिल जाता है इसमें सामुहिकेता में आप पूरी तरह जाग्रत होकर के और एक आनन्द के सागर मे हर समय रहते है समाधान के सागर मे और सारे ससार की भलाई आप कर सकते है । ऐसे सुन्दर सहजयोग को याद आप ठुकरा दे तो मुझे यही कहना है कि आपने अभी अपनी औकात नही समझा, अपनी कीमत नही समझी और अपनी कामत करने पर आप समझ जायेगे कि आपने अगर अपने बारे में जानना है तो आपको सहजयोग 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-13.txt में उतरना पडगी । जन प गो मे मेरी जन्म वव मे ना व्य चते का शभ नमनां ओर दोता ना तम भा द लाता है य नगो के कना ह कि जब जावन नम ता के ना] मत्य भा दो । कि ब जावन ु নा तना गरण सजयोग गान नो इुआ पर य नत् ग छे व्दत वा जायेगा, वदते जायेगा ज्य तक सार इढत हा जायगा, वढते जायगा नार शु ना हस पर न्यम न बहजयोग इसा नरुह से बढता मे उा का रहेगा । यहा आप सब ॐ ३ याशन मे हो जाये लहजयाग इसी रह स वढता संलार युन्दर न करता हूँ। । NOTE IMPORTANT Please correct the address for SAHAJA AUDIOS as 1. follows : Saha ja Audios A - 16, Mahendru Enclave, 110 009. DELHI (Telephone : 7124730) Rs. 40/- and Rs. 45/-) (Audio by hand by Post Demand Draft or Cheque ( if sent) must indicate else 2. be will the same the correct name, Please note the names once again returned. A) Sahaja Audios 3) Sahaja Vidios C) Chaitanya Lahari -12- 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-14.txt राम नौमी पुजा कलकत्ता 25.3.91 आप जानते हैं कि हमारे चक्रों में श्री राम बहुत महत्वपूर्ण स्थान लिए हुए है । यदि आपके कत्त्तव या प्रेम में कुछ कमी रह जाए तो ये चक्र मकड़ते हैं । श्री राम पूरी तरह से मनुष्य रूप घारण किए हुए थे । वे ये भी भूल गए थे कि मैं श्री विष्णु का अवतार हूँ । उन्हें भुला दिया गया था । किन्तु सर्व संसार के लिए वे पुरूषोत्तम राम थे । हम लोगों को सहजयोग में ये समझ लेना चाहिए कि किसी भी देवता को जब हम अपना आराध्य मानते हैं तो क्या हमारे अन्दर उसकी विशेषताएँ आई है ? कोन से गुण हमने प्राप्त किए । श्री राम चन्द्र जी के तो अनेक गुण हैं । उनका एक गुण यह था कि राज कारण में सबसे ऊँचा उन्होंने जन मत को रखा पत्नी और बच्चे उनके लिए गौण थे । हमारे आजकल के राजकीय. लोग इस चीज़ को यदि समझ लें तो वो निस्वार्य हो जाएं गे, धर्म परायग हो जाएँ गे । श्री राम की जो सीमा है उसे आज तक किसी ने अपनाने का । उनके भजन गाने, उनके नाम से संस्थाएं तथा राम मंदिर बना लेने से क्या श्री राम आपके प्रयत्न नही किया अन्दर प्रवेश कर सकते है ? आपके जीवन में उनका प्रकाश आ सकता है या नहीं ? ये सिर्फ सहजयोगी ही कर सकते हैं कि अपने अन्दर जन्मे श्री राम को अपने चित्त के प्रकाश में लाएं । वो अत्यन्त निरषेक्ष थे । ऐसे तो सभी देवता लोग किसी भी पाप पुण्य से रहित हैं । जैसे श्री कृष्ण ने इतने लोगों को मारा, श्री राम ने रावण का वध किया । ये हमारे दुनियावी दृष्टि से हो सकता है कि पाप हो किन्तु परमात्मा की दृाष्टि से । क्योंकि उन्होंने दुष्टों का नाश किया और बुराई को हटाया । और इनको अघिकार है कि । जैसे देवी ने राक्षसों का संहार किया तो कोई नही हो सकता इस कार्य को करने के लिए जो कुछ भी करना चाहे करें केहे गा कि देवी ने पाप किया ? सम्हालें । उनका कार्य ही ये है कि वो राक्षसों का सहार करें और जो साधु है उनको श्री राम चन्द्र के जीवन में एक अहिल्योद्धार बहुत बड़ी चीज़ है । पति से शापित अहिल्या का उन्होंने उद्धार किया । उस जूमाने में कोई स्त्री किसी तरह से वाम मार्ग में चली जाती थी तो उसका पति अगर साधू हो और उसकी स्थिति अगर ऊँची हो, उसे शापित कर देता था । किन्तु अहिल्या पर झूठा ही आरोप लगाया गया था और इस तरह से उसे पत्थर बना दिया था । श्री राम ने उस अहिल्या का भी उद्धार कर दिया । विशेषकर उनका एक पत्नी के प्रति प्रेम व्रत बहुत समझने लायक है । मनुष्य के रूप में उन्होंने अपने पत्नी के सिवाय किसी और स्त्री की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा । जब हम राम की बात करते हैं तो हमारे अन्दर पतित्व भी स्वच्छ होना चाहिए । अगर कोई स्त्री राम के बारे में सोचती है तो उसको भी अपने पति के प्रति वैसी ही श्रद्धा होनी चाहिए जैसे सीता को अपने पति के प्रति थी । और उसी प्रकार पति को भी श्री राम जैसे एक पत्नी व्रत होना चाहिए । सहजयोग में ये बात कठिन नहीं । स्त्री का मान रखना चाहिए । श्री राम ने ये कत्त्तव्य समझा कि सीता जी को वहाँ से छुड़ाकर जब रावण सीता जी को उठा ले गए थे तो लाएँ । पर जनमत को रखने के लिए महालक्ष्मी सीता को जिन्हें इतने वर्ष मेहनत करके वे छुड़ाकर लाए थे, उन्होंने त्याग दिया । सीता जी स्वयं साक्षात् देवी थी उनको त्यागने का कोई विशेष परिणाम नही होने वाला था फिर भी राम ने उन्हें त्याग दिया ताकि लोग ऐसी बातें न करें जो जन हित के ख्लाफ हों और उनका आदर्श किसी तरह से ऐसा न बन जाए कि जिससे लोग अपने यहाँ इस तरह की औरतों को पनपाएँ ? इस पर भी लोग शक करते हैं । हालाँकि सीता जी निष्कलका थी और देवी स्वरूपा, स्वच्छ और निर्मल थी । त्यागे जाने पर सीता जी ने भी श्री राम का एक तरह से त्याग कर दिया । धर्म के लिए श्री राम चन्द्र जी और सीता जी का -13 প 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-15.txt एक दूसरे को त्यागना, सीता जी का पृथ्वी में समाना और फिर अन्त में श्री राम जी का सरयु नदी में अपना । सारे जीवन में देखिये तो सीता और राम का देह त्याग करना सभी अत्यन्त क्टनात्मक और चमत्कार पूर्ण है आपस का व्यवहार और उनका एक दूसरे के प्रति श्रद्धामय रहना । हालाकि उन्होंने सीता जी का त्याग किया उनका परम कत्त्तव्य है अतः उन्होंने कभी उनकी बुराई नही की और था पर सीता जी जानती थी कि ये बड़ी साद गी से अपने बच्चों को चलाया, उनको पनपाया, उनको बढ़ावा दिया । श्री राम के बच्चे लव और हमारे अन्दर शिष्य । उनको हम शिष्य के तरह से देखते हैं ये कुश भी भक्त स्वरूप संसार में आए की शक्ति के द्योतक हैं शिष्य स्वरूप इन लोगों ने बहुत छोटी उम में धनुष विद्या सीख ली थी और इस छोटेपन में ही उन्होंने रामायण आदि, और संगीत पर बहुत कुछ प्रावीण्य पाया था । इसका मतलब ये है कि शिष्य को पूरी तरह से अपने गुरू को समर्पित होना चाहिए । शिष्य का यह स्वरूप हमारे अन्दर भी है । माँ, जो कि शक्ति है, उसके प्रति वो पूरी तरह से समर्पित थे । उस वक्त श्री राम से भी लड़ने के लिए वे तैयार हो गए अपनी माँ के लिए। तो माँ को उन्होंने दुनियाँ में सबसे ऊँची चीज समझा और उस माँ ने भी अपने बच्चों का पालन, उनको आश्रय देना, उनको घर्म में खड़ा करना, और उनकी पूरी प्रगति करना एक मेव क्त्तव्य ा समझा । वीरता और साहस सीता जी के जीवन की विशेषता है । श्री राम का जीवन भी अत्यन्त शुद्ध और निर्मल था । पत्नी के बन चले जाने के बाद उन्होंने भी दुनिया के जितने भी आराम थे, छोड़ दिये । वो कुश (घास) पे सोते, जमीन पर सोते, नंगे पैर चलते और साधु पुरूष जैसे कपड़े पहनते थे । ये सब कहानियाँ नही हैं । ये सत्य है । अपने भारत वर्ष में और दुनियां में भी ऐसे अनेक लोग हुए है जिनका जीवन एक बहुत ऊँची किस्म का रहा और उन्होंने कभी छोटी ओछी बातें सोची नहीं । पर ये सारे आदर्श हमारे देश में होने के हमने राम का भजन कर लिया और हों गया । कारण हमारे अन्दर ढोंग आ गया कि हम राम को मानते हैं । तो ये एक तरह का ढोंगीपना हो गया । जिन देशों में ऐसे आदर्श नहीं है वो कोशिश करते हैं कि हम आदर्श कैसे बने हम अपने को ठीक कैसे करें ? हमारे अन्दर अगर श्री राम है तो उनका प्रकाश हमारे चित्त में क्यों नहीं आ सकता । हम क्यों नहीं इसे प्राप्त कर सकते हैं ? हम उस स्थिति को जानने की कोशिश क्यों न करें जिस स्थिति में श्री राम इस संसार में आए । एक सहजयोगी को ये विचार कर लेना चाहिए कि श्री राम कि स्थिति अगर हम प्राप्त केर लें तो अपने यहाँ का राजकारण ही खत्म हो जाए गा । अपने यहाँ की जितनी परेशानियाँ है ये सब खत्म हो जाये गी । अपनी प्रजा का वे बिल्कुल निरपेक्ष भाव से, विदे ह रूप से लालन पालन करते थे । और सब हर स्त्री को इन गुणों की शिक्षा हो जाए, उनकी उन्नात हो जाए, उनके तरह की अच्छाइयाँ लोगों में आएँ । अन्दर महान आदर्शों की स्थापना हो, इसके लिए उन्होंने पूरा समय प्रयत्न किया और इसीलिए अपना जीवन बहुत आदर्शमय बनाया । स्वयं आदेशों पर न चलने वाले व्यक्ति के प्रति कभी श्रद्धा हो ही नहीं सकती, और आप उसके गुण ले ही नही सकते । बहुत से लोग हमेशा क हते हैं कि हम इनको मानते हैं, हम उनको मानते है लेकिन मैं देखती हूं बो उसके किल्कुल उल्टे होते हैं । होती है । तो उन्होंने राम को कैसे माना ? ति राम भक्त कहलाने वाले लोगों की दस दस बीबियोँ इसी प्रकार जीवन में एक सहजयोगी का कत्त्तव्य है कि वह भी इन देवताओं के प्रकाश को अपने चित्त में लाए । हर चीज की ओर उसी तरह से देखना चाहिए जैसे श्री राम । श्री राम क्या करते ? ऐसा 14 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-16.txt अगर प्रश्न आता तो सीता जी क्या करती ? सीता जी का क्या बर्ताव होता गृह लक्ष्मी हो ही जाये गी । आप तो जानते हैं कि सीता जी ने अनेक जन्म लिए । गृह वे विराजती है । फातिमा रूप में वे घर में घूंघट में पर्दे में र४ती थी पर सारा धर्म का कार्य उस शक्ति ने ? इस तरह से अगर वो सोचे तो स्त्री लक्ष्मी स्थान पर माम किया । आप घर में रहकर के भी ये कार्य कर सकते हैं । अपने बाल बच्चे, जान पहचान ईष्ट मित्र सबमें आप सहजयोग फैलाये । ल । उसके बाद ये समाज में भी आ सकती है । पर पहले औरतों का सीता जी जैसे शुद्ध आचरण होना चाहिए । लेकिन पहले आपमे ये चीज आनी चाहिए शुद्ध आचरण में पहली चीज़ है ममता और प्यार । अपने पति के साथ वो जब जंगलों में रहती थी तो कभी उन्होंने ये नहीं कहा कि मेरा पति पैसा नहीं कमाता, बो नहीं करता ( जैसा हमारे यहाँ औरतों की हूं । वो जो खाते हैं वो मैं खाती हूं । उनके खाने से पहले मैं खा लूं ऐसा कभी नही करते यो खा लें, उनको खाना खिला हैं, है कि हमारे पर बहुत आदत होती है) ये नही खरीदता, वो नही खरीदता । बो जंगल में है तो मैं भी जंगल में अपने देवर को खाना खिला दे उसके बाद मैं खा लुंगी । आज औरतें ये सोचती ज्यादा दबाव आ जाता है । स्त्री पृथ्वी तत्व जैसी होती है । इसमें इतनी शक्ति है कि ये बहुत दबाव को खीच सकती है । सारी दु। नयां को देखें । । इसी प्रकार कितने फल फूल आदि उत्पत्तियो पूथ्वी दे रही है इस पथ्वी तत्व के जैसे ही हम स्त्रीयाँ है । हमारे अन्दर इतनी शक्तियाँ अन्दर रामा सकते हैं और अपने अन्दर से हमेशा प्रेम की चर्षा कर र ते है । ये हमारे अन्दर परमात्मा ने शक्ति दी है । स्त्री शक्ति स्वरूपिणी है, शक्ति का सागर है और उसके द्वारा ही पुरुष अपने कार्य को करता है । एक जैसे अन्तः शक्ति (पोर्टेन्धियल) गति मूलक ( काइनैटिक) । अन्तः शक्ति, है कि हम सब तरह की चीज अपने स्त्री है और गति । पुरूष ज्यादा दोड़ सकता है उसे देख यदि औरत भी दोड़ने लग जाए तो ठीक नही । उसको मूलक पुसष तो बैठने की जुरूरत है । दोनों की क्रियाएँ अलग है । और उस त्रिया में दोनों को समाधान होना - अलग म चाहिए । दोनों ही क्रिया में स्त्री बहुत पनप सकती है और जब समय आता है तो स्त्री पुरूषों से भी ज्यादा काम करती है । महाराष्ट्र में तारा बाई नाम की सत्रह साल की एक विधवा थी, शिवाजी की वो छोटी बहू थी । सब हार गए औरंगजेब से और इसने औरंगजेब को हरा दिया । सत्रह साल की उमर मैं और उसकी कब्र बना दी औरंगाबाद में । तो आप समझ सकते है कि जब औरत अपनी शक्ति को पूरी तरह से समोह लेती है तो वो बड़ी प्रचंड हो जाती है । और अगर बो ऐसे इधर कही झगड़े में गई, बुराई मैं गई, ओछेपन में गई, तो उसकी शक्ति सारी नष्ट हो जाती है । स्त्री जो है वो इतनी शक्तिशालिनी है कि वो चाहे तो पुरूषों से कही अधिक कार्य कर सकती है । पर सबसे पहली चीज़ है वो अपनी शक्ति का मान रखे । उधर अपने शक्ति को फेंकती रहे, क ही लड़ने में गई, तो स्त्री का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है, गौरव पूर्ण है । स्त्री बहुत लज्जाशील और बहुत सूझ बूझ वाली होनी चाहिए । जैसे आदमी लोग गाली बकते हैं । बकने दें । औरतें नहीं क्क सकती है । आदमी लोग का बहुत झगड़ा हुआ तो मार पीट कर लेंगे । औरतें नहीं करेंगी । उनका कार्य शान्ति देने का है, इनका कार्य है सुरक्षण का । इनका काम है लोगों को बचाने का । जैसे कि एक ढाल है । ढाल तलवार का काम नहीं कर सकती । पर ढाल बड़ी कि तलवार । ढाल ही बड़ी है । जो तलवार का वार सहन कर ले वो बड़ी कि तलवार बड़ी ? तलवार भी ट्ूट जाए गी पर ढाल नहीं टूटती । इसलिए औरतों को अपनी शक्ति धुरी है नमता । नमता पूर्वक अपनी शाक्त को अपने अन्दर समा लेना चाहिए । सहजयोग में ये कार्य कठिन नही । मै देखती हूं कि बहुत सी सहजयोगिनी मैं स्थित होना चाहिए । इस शक्ति की सबसे बड़ी - 15 - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-17.txt औरतें इतनी बकवास करती है । कही जाएँ गी तो आदाभयों से बक बुक करेंगी । तो दनि्यों से ज्यादा बात करने की कोई जरूरत नहीं । बेकार की बकवास करने की जरूरत ही क्या है ? औरतों में भी बेकार की बकवास करने की कोई जरूरत नही । सहजयोग में मैने देखा है कि जैसे आदमी लोग सीखते हैं ऐसे औरतों को भी सीखना चाहिए । सहजयोग क्या है ? इसके चक्र क्या है ? कोन से चक्र से आदरमी चलता है ? कौन से चक्र से उसकी क्या दशा होती है ? इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए । ये सब आदमी सीखेंगे तो औरतें पीछे रह जाएँगी । औरतों को भी ये सब सीखना चाहिए । पुरूषों की बात कहते हुए श्री राम चन्द्र का भादर्श हमारे सामने आ जाता है । मुझे लगता है कि इस मामले में मुसलमानों ने हमारे ऊपर बड़ा गजब किया हुआ है । मै उनको बुरा नही क हती । उनके देश ें ये बात नही है । जैसे अगर आप रियाद जाएँ तो कोई मुरलमान आपके ऊपर आँखे उठाकर नहीं देखेंगा । कोई औरत होगी, उसकी बड़ी इज्जत करेंगे । रास्ते से अगर कोई औरत जा रही है तो बो मोटर रोक लेंगे । वहाँ औरतों की इतनी इज्जत होती है। । और हमारे यहाँ इनका ऐसा उलटा अरार पड़ा है कि हम लोग सोचते है कि औरत एक उपभोग की बस्तु है । हर औरत की तरफ देखना चाहिए महा पाप है । और सहजयोग में निफक माना जाता है । इससे आपकी आँख खराव हो जाएं गी । सहजयोग में । हर स्त्री की ओर नजर डालना ्ी तो आर भी नुकसान हो जाए गा । अगर वो नहीं हुआ तो अन्धे भी हो सकते हैं । जब अखें इधर उधर घूमती रहे तो इससे सबसे बड़ा नुकसान जो है वो आपका चित्त है आपका चित्त, इधर -उघर विचालत हो रहा है । तो चित्त अगर विचलित हो गया तो आत्म साक्षात्कार का क्या फायदा होगा अगर चित्त एकाग्र मही होगा तो बो कार्यान्वित नही हो सकता । एकाग्र चित्त ही कार्यान्वित होता है । एकाग्रता को साध्य करना चाहिए । विदेश में ये बिमारी आदमिओं को बहुत ज्यादा है । औरतों को भी है । जो विदेशी सहजयोगी हैं वो उसे बहुत अच्छी बात नही समझते । मैने कहा तुम लोग सिर्फ जमीन की तरफ देख के चली और तीन फुट से ऊपर देखने की जरूरत नही तीन फुट तक सब अच््छी चीजें दिखती है । फूल, बच्चे सब तीन फुट तक होते हैं । इस तरह से अपने चित्त को वश में करना चा हए । श्रीं राम का मान यदि आपके मन में है तो आपको उनके जैसे अपने चित्त को वश में करना चाहिए । अपनी पत्नी से भी यही समझाना चाहिये कि तुम शक्ति हो और हम तुम्हारी इज्जत करते हैं । पर तुम्हे उसके योग्य भी होना चाहिए 'यत्र नार्या पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवताः' अर्थात् जहां स्त्री पूजी जाती है वही देवता रहते हैं । पर वो पूजनीय भी होनी चाहिए किसी गन्दी औरत, दुष्ट या राक्षसी स्वभाव की औरत की कोई पूजा करेगा क्या ? ये भी जान लेना चाहिए कि ये हमारी बच्चों की माँ है । गर पति अपनी औरत को बच्चों के सामने डॉटना । जैसे फटकारना शुरू कर दे, उसकी कोई इज्जत न रखे तो कभी भी बच्चे उसका मान नहीं करेंगे । स्त्री को भी पति का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए । आदमी को चलाना अगर औरत को आ जाए तो कभी झगड़ा न हो । लेकिन ये समझ लेना चाहिए कि आदमी औरत चाहती है कि मेरा चले, आदमी चाहता है मैरा चले । को चलाना बहुत ही आसान चीज़ है क्योंकि बिल्कुल बच्चों जैसे होते हैं । उनका स्वभाव बच्चों जैसा होता है उनको बेकार की बातों से परेशान करने से आप उन्हें चला नही सकते भोले भाले होते हैं । । उनको भी बच्चों जैसे माफ कर दिया जाए आदमी बाहर जाते हैं, सबसे लड़ाई झगड़ा करते हैं । घर में आक र बीवी पे नही बिगडें गे ? बाहर बालों पे बिगड़े गे तो मार ही खायें गे । चलो बिगड़ गए तो क्या है । इस तरह स्त्री की री भावना पति की तरफ नहीं होगी तब तक आपस मैं प्यार व आनन्द नहीं आ सकता । लेकिन पति को भी lo - 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-18.txt चाहिए अपनी पत्नी को क्या चाहिए क्या नहीं चाहिए इसका विचार रखें । लेकिन ये नही कि पत्नी कृछ गलत बात बता रही है कोई गलत सलाह दे, उसपे जुरूर पति को कहना चाहिए ये गलत है ये नही करना छोटी बातों पर झगड़ा करने की कोई जुरूरत नहीं । और ये सहजयोगियों को क्ल्कुल नही शोभा देता । मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि सहजयोगी भी आपस मैं लड़ते रहते हैं । दो सहजयोगी एक स्थान पर ठीक से नही रह सकते । मैं तो सारे संसार को कह रही हूं प्रेम से रहना है तो हम सब कैसे प्रेम से रहें गे बताओ । क रहना चाहिए और ये जान लेना चाहिए कि सारे संसार की औरतें जो है सबके लिए माँ बहन के बराबर है सहजयोग में आकर भी यदि व्यक्ति की दृष्टि स्वच्छ नही हुई तो बो अभी सहजयोगी नही है । हमारे संस्कृति की जो विशेषता है कि स्त्री लेकिन ऐसा नही होता । मै देखती हूं फौरन कोई औरत है बक -ब । औरतों के साथ नही कैठे गी । आदामरयों के साथ बैठे गी । । उन्हें औरत दिखाई दी लग गए उसके साथ । कोई उनको अपना । लेकिन छोटी तो पहली चीज है कि पति को पूरी तरह पत्नी के प्रति जागलू पुरूष का आपस में मेल जोल बस भाई बहन का होना चाहिए । करना शुरू कर दें गी एसे कुछ आदमी भी होते हैं स्त्रीलम्पट आत्म सम्मान ही नहीं होता है । और इसको वो पुरूषार्व समझते हैं । अरे भई श्री राम तो पुरूषोत्तम हैं, वे पुरूषार्थी है । जो बिल्कुल ही पाताल में है वो भी अपने को पुरूषार्थी समझते हैं । या तो फिर श्री राम को मत मानो । एक शैतान को मानो । । और इसी कारण अगर श्री राम को मानते हो तो उनके आदशों पर चलो अपने यहाँ अपने बच्चे भी खराब हो र है हैं, औरतें भी खराब हो रही है फिर भी भारतीय संस्कृति को औरतों ने बहुत सम्हाल लिया है । अगर अमेरिकन जैसी ओरतें होती तो आपको सब पहुंचा देती ठिकाने । आदमी की दो तीन शादियाँ हो गई तो वो झोली लेके घूमता है । और औरत की दो तीन शादियां हो गई तो अगर वो महल खड़े कर देती है वहां । पर वहां है क्या ? वहाँ के समाज की ही अवस्था क्या है ? बच्चे घर छोड़कर भाग जाते हैं । अपने हिन्दुस्तान की औरतों की ये विशेषता है कि वो अपने घर को सम्हालती है बच्चों और पति को सम्हालती है । पर ये चीज़ बदल रही है । यो भी देख रही है कि अगर हमारा आदमी ऐसा है तो हम क्यूं न करें । वो अगर दस औरतों के साथ दोड़ ता है तो हम पन्द्र ह आदमियों के साथ जाएँ गें । वो गन्दे काम करता है तो मैं उससे पहले नर्क मैं जाऊँ गी संवारना है, स्त्री को ही पति को धर्म के रास्ते पर लाना है समझा बुझाक र के उसको अपने पास रखना है । धर्म की धूरी स्त्रीयों के हाथों में है । स्त्री को । ये स्त्री का बड़ा परम कर्त्तव्य है । उसके अन्दर ये शक्ति है । अगर वो स्वयं धर्म पर बैठी हुई और धर्म में सबसे बड़ा धर्म है क्षमा । क्षमा करना अगर स्त्री में न आए तो वो कोई सा भी धर्म करे उससे फायदा नही । पहली चीज़ उसमें क्षमा होनी चाहिए । बच्चों को क्षमा करना, पति को क्षमा करना घर के नौकरों को आश्रय देना स्त्री का कत्त्तव्य है । तो कुछ ऐसा आ जाता है जो हम कार्य कर रहे हैं ये राम भी नही कर सकते थे कृष्ण भी नही को मार डालते कि तुम बेकार हो । । ईसा आते तो कर सकते थे, इसामसीह भी नहीं कर सकते थे । अगर राम होते वो सब तुम अधर्मी हो, स्त्रीलम्पट हो कृष्ण आते तो वो सुदर्शन चक्र चलाते, बो भी गड़बड़ हो जाती । अपने को सूली पर चढ़ा देते । ये तो माँ ही कर सकती है । उसके अन्दर प्यार की शक्ति इतनी जबरदस्त है कि कोई भी चीज़ हो उसे वो प्यार की शक्ति के सहारे पार कर देती है। । बो सब चीजू उठा लेती है और उसके तरीके ऐसे प्यारे होते है कि फिर बच्चे उसको बुरा नहीं कहते । कोई बात हो गई, गड़बड़ हो गई तो माँ ही जानती है किस तरह से डॉटना । क्योंकि बच्चे जानते हैं कि माँ मैं प्यार है । वो हमारे हित के लिए का - 17 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-19.txt वी उसका बुरा नहीं मानते है कहती है । । गर बाप डांट दे तो हो सकता है बच्चे उनसे मूंह मोड़ लें । माँ का प्यार तो निर्वाज्य वो कुछ नहीं चाहती अपने लिए । वो ये चाहती है मैरे बच्चे ठीक हो जाएँ । मेरी सारी शक्तियों को प्राप्त करें । अपने अन्दर जो भी कुछ अच्छा है सब प्राप्त करें । ऐसे अगर माँ समझें तो बच्चे ठीक हो जाएँ । पर बहुत सी माताएं बहुत चुस्त होती है । सब चीज में घुसते जाएँ गी । सब चीज में बोलने जाएँगी । उसका पति तो बेचारा चुपचाप बैठा रहे गा ये देवी जी सामने खड़ी होंगी । ऐसे अगर होता है तब बच्चे खराब हो जाते है । तब ऐसे औरतों को ऐसे बच्चे पैदा होते हैं जो बहुत जुजूबाती और हानीकारक भी हो सकते है । स्त्री को पीछे रहना चाहिए पति करे पीछे से उसकी मदद कर दे । उसकी शक्ति का स्रोत स्त्री ही है । ये समझ लेना चाहिए कि एक स्त्री को कितना शुद्ध होना चाहिए । । आप कहं गे कि माँ तब स्विया पर छोड़ते हैं, क्योंकि मैं जानती हूं आप शक्तिशाली है। देखिये मेरे ऊपर सबने छोड़ दिया कि आप सब लोगों को पार करो । इतनों की बिमारियाँ ठीक हो गई । ऐसे किसी ने काम किए थे ? एक अहिल्या का उन्द्धार कर दिया सो हो गया उसके बाद किसका उद्घार किया ? ईसामसीह ने कुल । और पति को आगे रखना चाहिए । ठीक है जो कुछ भी हैं कि तनी मेहनत करनी चाहिए । मैं जानती हूं हमारे अन्दर बड़ी शक्तियाँ हैं, क्योंकि मैं माँ हूं । मिलाके इक्कीस लोगों को ठीक किया । दुनियां भर में घूमों फिरों, सबका ये करो, वो करो, सेब चल रहा पर कुछ नहीं लगता क्यूंकि बो शक्ति है मैं बाहर निकलने से पहले सोचती हूं बन्धन ले लूं लेकिन भूल जाती हूं और जैसे किसी की परेशानियां सामने प्यार । वो प्यार की शक्ति मेरे से आगे दौडती है । आती हैं, मै अन्दर खींच लेती हूं । तो प्यार ऐसा है कि वो अपने आप ही कार्यान्वित करता है । तो मैं नही बुरा मानती । जो भी हो रहा है ठीक है । सकती है और इसलिए विशेष मेरा आपके तरफ रूख है कि आप समाधान और स्थिरता के साथ कार्य करें । ओर पुरूषों को भी चाहिए कि अब अपनी औरतों की भी पूरी सहायता करे उनको समझे, उनका आदर करें और जब तक रथ के पहिए एक जैसे नही होते हैं तो रथ घूमता ही रहता है । आगे नही जाए गा । दोनों एक ही जैसे होने चाहिए पर एक बाएं को है, एक दाये को है में नही लगेगा । इस तरह ये दो तरह के चक्के हैं और ये दोनों तरह के चक्के चल रहे हैं इसलिए क्यूंकि ये एक जैसे भी हैं और एक जैसे हैं भी नहीं 1 इसी प्रकार हमारे जीवन में भी होता है । तकलीफ होगी, तो होने दो, कोई हर्ज नही, ये सब माँ ही कर । बाएं वाला दाये में नही लगेगा और दायें वाला बायें श्री राम चन्द्र जी ने सिर्फ पति पत्नी का ही विचार नहीं किया । बच्चों का या अपने कुटुम्ब अपने भाई, बहुन, माँ बाप सबा विचार किया । जैसे एक मनुष्य कोी पता व्यवस्था का ही विचार नहीं किया होना चाहिए । और उसके बाद उन्होंने समाज का भी विचार रखा । जन, देश राज्य का विचार रखा । जैसे कि एक मनुष्य की सारी गतिविधियाँ होती है उन सारी गतिविधियों में उन्होंने दिखाया कि मनुष्य को किस अपनी पत्नी को इतना प्यार करता था और वो जानता था कि बो सम्पूर्णतया तरह से होना चाहिए । जो मनुष्य शुद्ध है उसको उन्होंने त्याग दिया । आजकल पत्नी के लिए ये बनाना है ये देना है और अगर कहा जाए कि गरीब को योड़ा पैसा दो तो नहीं देंगे लोगों की बिमारी है । और इन्होंने अपनी बो पत्नी का जो स्वयं साक्षात् देवी स्वरूपा अत्यन्त शुद्ध थी उसका तक त्याग कर दिया । हमें सोचना चाहिए कि ये हमारा मतत्व है, रिश्तेदारी है । विदेश में पहले पति पत्नी का कुछ ठीक नहीं होता । अब जो ठीक हो गया सहजयोग में तो यो पत्नी सब कुछ हो गई हमारे यहाँ र । नही तो आपने बच्चों को दो । अपने भाँजों को दो । ये राजकीय क्यूंकि पत्नी ठीक नहीं हुई, पति ठीक थे कम से कम चार पाँच लीडर पत्नी के वजह से निकल गए । । 18 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-20.txt पत्नी ने पढ़ा पढ़ा करके बिचारों का सत्यानाश कर दिया । यहाँ भी मैं कहूंगी कि पत्नी को समझना चा हए कि सहजयोग क्या है । और उसमें अपना क्या स्थान है । और पति को भी पत्नी से ऐसे मामले मैं जुरा सा भी नही सहमत होना चाहिए । उससे क हना चाहिए कि तुम बहुत ज्यादा बोलती किसी काम की नहीं हो । तुम्हारे चक्र ठीक नहीं। जब पति इस तरह उसके साथ व्यवहार करेगा तभी तो दोड़ती हो । चुप बैठो । तुम सहजयोग में आने पर भी अपनी कुछ सुक्ष्म खराबियां चिपक जाती वो ठीक होगी अच्छे से ध्यान देना चाहिए । आज के राम के त्योहार पर हमें हुनुमान जी का विशेष विचार करना चाहिए । हेनुमान जी किन में तरह से श्री राम के दास थे और किस तरह से उनकी सेवा चाकरी लगे रहते थे । और हर समय उनके ही उनके जैसे वृत्ति भी सहजयोग में सेवा में रहने से ही बो जानते थे कि उनका पूरा जीवन सार्थक हो जाए गा हमें अपनानी चाहिए । इसका मतलब ये नही कि आप मैरे लिए खाना बना बनाकर भेजे । क्यूकि मैं तो खाना खाती नही हूं और मुझे खाना बना बना करके और परेशानी में डालते हैं। क्या चीज चाहिए ? सेवा करने में तत्परता । हनुमान जी क्या खाना बनाकर भेजते थे । श्री राम चन्द्र जी के लिए ? दिल्ली वालों ने मुझे इतना परेशान किया है खाना बना बना करके । तो मैने शर्त लगा दी कि तुम अगर खाना बनाओगे तो मैं आऊँगी नही । जो चीज़ करनी है वो करो । ये तो बेकार की चीजू है कि जो आदमी खाना नहीं खाता उसे जबरदस्ती हैं । कोई चीज़ की जरूरत नही तुम्हारी माँ को । सारा भरा पड़ा हुआ है । मै तंग आ । बस फूल ही लाओ । और फूल भी जब आप खाना खिला रहे। गई हूं । इतना मेैं कहती हूं मेरे लिए कुछ चीज़ मत लाओ लगाओगे तो हजार रूपये के मत लगाओ । जो कुछ करना है वो संतुलन में । जैसे माँ को परान्द मेरी तो ऐसे कोई खास सेवा नही । पर जो मेरी है नुमान जी से सीखना है कि सेवा सेवा करनी है तो सहजयोग की सेवा करो । कितने लोगों को आपने साक्षात्कार दिया । कितनों को आपने पार में तत्पश्ता क्या होती है कराया ? जैसे कोई आ जाता है प्रोग्राम में 'तेरे अन्दर ये भूत है बस उसके पीछे पड़ गये । वो भाग गए । मने एक साहब से पूछा आप पार हो गए थे आप सहजयोग से क्यूं भाग गए । कहने लगा किसी सहजयोगी ने बताया तुम्हारे अन्दर तीन भूत बेठे हैं । मैने कहा आपने विश्वास क्यों कर लिया । कहने लगे बो तो वहां के बड़े महारथी लग रहे थे । 'राम काज करने को तत्पर । है हमारा ? मेरा काज है सहज काज कोन सा योग । मेरा कार्य है सहजयोग । कुण्डलीनी का जागरण करना । लोगों को पार करना। उनके अन्दर शक्ति लाना, प्रेम लाना, प्रेम की बातें करना । उनसे सहजयोग के बारे सारे चक्र आदि का वर्णन करना । उनको जो दों - दो घन्टे भाषण देते है फिर चा हिए सो समझाना । इसका मतलब ये नहीं कि भाषण देना शुरू कर दें । हम आपका भाषण भी नहीं सुन पाते । लोगों को सहजयोग पर भाषण देना बहुत अच्छा लगता है । उनका माईक ही नही छूटता । एक बार पकड़ लिया तो छूटता नही । ये भी एक नई बिमारी है । तो समझ लेना लें । तो अब जब भी आप लोगों का चाहिए कि काहे को इतना भाषण देना माँ के इतने भाषण है वो ही सुन कोई प्रोग्राम हो उसमे आप चाहें तो एक वीडियो लगा दो या मेरा एक टेप सुना दो । उसके बाद एक कागज । जिसपे तुमको जो कुछ लिखना है लिखो । कोई प्रश्न हो बता दो । और उसके बाद में उनकी पेन्सल दे दो जाग्रती कर दी और उनसे कहना कि अगली बार आपको जो कुछ समस्या हो लेके आईये । किसी को बिमारी है , तकलीफ है । अब ऐसे भी लोग हैं एक आदमी है वो कल्कत्ते भी आए गा किसी को ठीक करने । अब उसे रूस बुला रहे हैं । एक ही आदमी हनुमान जैसे दौड़ता रहता है इधर से उधर । आप सब लोग ठीक कर 19 1991_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7.pdf-page-21.txt सकते हैं । सब औरतें ठीक कर स्कती है । । पता नहीं क्या बात है कि अभी तक एक ही आदमी सारे हिन्दुस्तान में है जो लोगों को ठीक कर सकता है । लण्डन से ।5-20 लोग हैं जो लोगों को ठीक करते हैं । ये ठीक करने का तरीका क्या है ये सीख लेना चाहिए । और बन्धन लेकर के ठीक करना चाहिए लोगों को । उसके लिए क्या आप बाहर से बुलाएं गे । सहजयोगियों को । आप बैज लगाकर घूमते हैं, आप ठीक भी नही कर सकते ? फिर बैज उतार दो । अपने को भी नहीं ठीक कर सकते तो दूसरों तो सब को ठीक करने की सब को शक्ति दे दी गई है । उसको आप लोग सीखें उसमें निपुण बने । बजाय की कलकत्ते कोई आए दूसरों को ठीक करने । इसमें हिम्मत की जरा सी बात है, कुछ नही होने वाला तुमको । तुम न तो बिमार हो सकते हो न कुछ हो सकता है । जो लोग जितना सहजयोग में कार्य करेंगे उतने गहरे उतरेंगे। जैसे पेड़ जितना फैलेगा उतना ही गहरा उतरेगा । सहजयोग में और अवतरणों में बड़ा भारी फर्क है कि पहले उन्होंने समाजिकता से आध्यात्म नही किया था । ये शक्तियां किसी को दी नहीं थी । । एक आध आदमी को शक्ति मिली थी । जैसे कि । लेकिन अब तो आप सबको ये शक्तियां प्राप्त है । बस इसको ऐसा बढ़ाईये कि आपको किसी भी चीज़ की जरूरत ही न रह जाए आप अपनी तबीयत ठीक कर लीजिए दूसरों की तबीयत ठीक कर लीजिए । आप सहजयोग समझ लीजिए । सब कुछ आपके पास है । लेकिन अभी भी आपका चित्त पता नही कहाँ घूम रहा है । अभी आपने इस चीज को पकड़ा ही नही । पर कोई हाथ नही लगाता को क्या ठीक करना । । समाज के लिए मिली नही थी राजा जनक ने निचिकेता को आत्म -साक्षात्कार दिया श्री राम के ही माध्यम से हमारे विचार बदल सकते हैं । उन्ही के माध्यम से हमारा स्वभाव बदल सक ता है क्यूंकि हमारे लिए वो एक आदर्श है । उनके आदर्श तक पहुंचने के बाद ही आप दूसरे आदर्शों तक पहुंच सकते हैं क्योंकि वो मनुष्य के आदर्श हैं । कितनी बड़ी चीज है कि परमात्मा मनुष्य बनकर इस संसार मैं आए कि इनके लिए हम आदर्श बन जाएँ कोई सी भी विपत्ती और आफत आती है तो मनुष्य को अपना धर्म नही छोड़ना चाहिए । विश्व घर्म नही छोड़ना चाहिए और जो आपका योग है उसमें बंधे रहना चाहिए । उन्होंने सब विपत्तियां उठाई, आफतें उठाई दिखाने के लिए कि । आप सबको हमारा अनन्त आशीर्वाद । 20