चैतन्य लहरी अंक 3 व 4 ( 1992) खण्ड IV विषय सूची पृष्ठ 1. जन्म दिवस पूजा ... 2. जन कार्यक्रम 3. सरस्वती पूजा ७ं करे . जन कार्यक्रम 4. 11 5. जन कार्यक्रम 16 INA सहजयोगियों के लिए बहुत जरूरी है कि वह कला में उतरें और कला को समझें। आप पर सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे । आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ और बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है।" प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी पूजा जन्म दवस 21,3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहज" सहज समाधी लागो। सहज में ही आपक अन्दर ये "सहज" भावना आ जाती है। हिन्दुओं में अब जो बताया गया है कि सब में आत्मा है, एक हो आत्मा का वास है। फिर हम जात-पात कैसे कर सकते है? पहली बात तो यह सांचनी चाहिये कि रामायण जिसने लिखा वो कौन था? बाल्मीकी एक डाकू था, डाकू भी था और वह एक मछुआरा था। उससे रामायण राम हमारे देश में बहुत से सन्त हुए। हमने सिर्फ उनको मान लिया क्योंकि वो ऊँचे इंसान थे। किसी भी धर्म में आप जाईये कोई भी धर्म खराब नहीं। मैंने बुद्ध धर्म के बारे में पढ़ा तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि मध्य मार्ग बताया गया था। लेकिन उसके बाद लोग उसको बायें में और दायें में ले गये। जो दायें में ले गये वो पूरी तरह से सन्यासी हो गये त्यागी हो गए। फिर उन्होंने बड़े-बड़े कठिन मार्ग और उपद्रव निकाले। उन्होंने सोचा ने लिखा दिया। भीलनी के झूठे बेर खा के दिखा दिया। और कि बुद्ध सन्यासी हो गए थे तो उन्हांने भी सन्यास ले लिया अपनी सभी इच्छाओं का दमन कर लिया उन्होंने। इस तरह का स्वभाव व्यक्ति को अति उग्र, इतना ही नही आतताई भी बना देता है। उसमें बहुत क्रोध समा जाता है। क्रोध को दबाने से क्रोध और बढ़ता है। एसे लोग कभी-कभी ऊपरी-चेतना (Supra-conscious) में चल पड़ते हैं और उन्हें कुछ-कुछ ऐसी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं जिससे वो दूसरे लोगों पर अपना असर डाल सकते हैं। हिटलर के साथ यही हुआ। हिटलर के गुरु एक लाम्हा साहब थे और उस लाम्हा से उन्होंने खण्डित कर दिखाया। करबीरदास जो के गुरू ब्राहमण थे। सीखा किस तरह से लोगों को हम अभिभूत करें और उनको किस तरह से अपनायें। जो धर्म बुद्ध देव ने इतना ऊँचा बनाया था कि हम लोग निर्वाण का प्राप्त करें वो धर्म दायीं ओर बहक गया। दूसरा जिन लोगों ने सोचा कि नहीं हम लेफ्ट साईड में चलें तो उससे तांत्रिक पैदा हो गये। लद्दाख ने इसको पहचाना क्योंकि वो भी एक पहुँचे हुए पुरूष थे। जा यदि कोई मर जाए तो उसके हाथ की पूजा करेंगे नेपाल में भी मैने देखा हर जगह लेफट साइंड इतनी ज्यादा बढ़ गई कि ये हैं गीता का लेखक व्यास कौन था? वो भी एक भीलनी का नाजायज पुत्र धा। ये सुब उन्होंने यह दिखाने के लिये किया. कि जाति-पाति से जो हम एक दूसर को अलग कर रहे हैं य जाति हमारे अन्दर की रूझान (झुकाव) है। जिसका लगाव परमात्मा से हैं उसी को ब्राहमण कहा जा सकता है। उस हिसाब से वाल्मीकी ब्राहमण थे और व्यास भी ब्राहमण थे। तो कर्म के अनुसार अपने यहाँ जाति बहुत देर बाद मानी गई। जितने भी बड़े-बड़े अवतरण हुए उन्होंने जाति प्रथा की कबीरदास के गुणों के कारण उन्होंने उन्हें बहुत सम्मान दिया। महाराष्ट्र के महान कवि नाम देव जी दर्जी थे उनकी नौकरानी तो कोई नीची जात की स्त्री रही होगी। उसकी भी कविताएं ग्रन्थ साहिब में हैं। नामदेव जी की तो है ही। गुरू नानक जा वगैरा में वहाँ पहुंच जाते हैं वो समझते हैं कि, कौन असल है और कौत नकल। तो जो नकल में धर्म हो रहे हैं जिससे हम लोग घबड़ा जाते हैं उनके लिये हमें सावधान रहना चाहिएँ। उनके प्रति दया रखनी चाहिये क्योंकि वो अन्धे है। जैसे कबीर साहब ने कहा कंसे समझाऊ सब जग अन्धा। जो अन्ध लोग हैं वो ऐसे हो अन्धे-पन में रहते हैं। कोई कहेगा मैं इसाई हूँ, कोई कहेगा मैं मुसलमान हूँ, कोई कहेगा में सिख हूँ। जैसे ही आप कहँगे में ये हूँ आप अपने को अलग हटा लेते हैं। लेकिन सहजयोग में आप समझ गये हैं कि सब धर्मों का तत्व एक है। धर्म को मानने लगते हैं। धर्मान्धता समाप्त हो जाती है। है। सब भूत प्रत, शमशान पिशाच वद्या में पड़ गये। इस प्रकार दो तरह के लोग बुद्ध धर्मी हो गये। बुद्ध का इससे कोई सम्बंध नहीं और बुद्ध धर्म का भी इन लोगों से कोई संबंध नहीं। इसाई लोगों ने भी ईसा के क्षमा के गुण को त्याग कर लोगों पर मनमाने अत्याचार किए। मुसलमान कुरान पढ़ कर तथा इसाई बाईबल पढ़ कर एक दूसरे को मारते हैं और सोचते हैं कि बडा भगवान का कार्य कर रहे हैं। मेरा ही धर्म अच्छा है और दूसरों का खराब। जब तक आत्मा की जागृति नहीं होती तब तक आप किसी भी धर्म को अन्दर शोषित नहीं कर सकते उसको अन्दर बैठा नहीं सकते। वो अन्दर आ ही नहीं सकता। वो वाह्य में ही रह जाता है। बाह्य में रह कर धूर्म सत्ता या धन है आत्मा की ओर नहीं बढ़ता। जब आत्मा का प्रकाश आ जाता है तो अकस्मात् आदमी उस तत्व को अपने हैं। ज्योही हम धर्म-धर्मान्धता ही आज का प्रश्न इसी के कारण विश्व में इतने झगडे फैले हुए हैं। जब आपके अन्दर यह सत्य गया कि सभी धर्मों का तत्व एक है तो सारे झगड़े एक दम खत्म हो जायेंगे और वो तत्व आप लोगों में वैठ गया है। आपको पता है सहजयोग में मुसलमान हैं हिन्दु है इसाई हैं, सिख हैं, बौद्ध हैं. हर तरह के लोग इसमें आये हैं और सब अपने-अपने धर्म बैठ के पीछे दौडता उसको कोई मेहनत नहीं करनी। अन्दर समाया हुआ पाता चैतन्य लहरी या 008 जागृति वाले ऐसा कुछ नहीं। इस पर आपको हंसी भी आती हैं कि ये सब क्या है? इन सब बाह्य चीजों से आप लोग अपने आप ही उठ गये और आप अपने बारे में कुछ को मान भी रहे हैं। पर जब वो अपने को मान रहे हैं तभी वो विश्व धर्म को मान रहे हैं। जब आपने एक विश्व धर्म को मान लिया उस विश्व धर्म में सारे ही धर्म हैं और सब धर्मों का मान करना यह सुझाता है। यही समझ की बात है। सब अवतरणों जानते ही नहीं। मुझे तो यही देख-देख करके बड़ा आश्चर्य का मान करना, जितने भी आज तक बड़े-बड़े सन्त, साधु दृष्टा हो गये सबका मान करना विश्व निर्मल धर्म सिखाता है। ये सिर्फ कहने से नहीं होता समझाने से नहीं हो सकता। ये किये हैं ? मुझे तो समझ में नहीं आता। आपके अन्दर अपनी आत्मा के प्रकाश में अपने आप अन्दर बैठ जाता है। उसको शक्ति है वो जागृत हो गई और आपने अपनी आत्मा को प्राप्त फिर कहने की जरूरत नहीं होती। तब आप सोचिए कि आप सहजयोगी हो गये। सहजयोगी हो गये माने आप बढ़िया लोग कितनी गौरवशाली बात है कि आपने अपने गौरव की प्राप्त हो गये। देखिये आप किसी का कत्ल नहीं कर सकते। आप किसी की कोई चीज छीन नहीं सकते आप चोरी चकारी कुछ लूटेंगे नहीं, किसी औरत को विधवा नहीं करेंगे, किसी के नहीं कर सकते। आप किसी की बुराई नहीं करते, आप किसी को नीचे खींचने का प्रयत्न नहीं करते या आप किसी भी मेरे कहने से नहीं। आप शराब नहीं पियेंगे, आप चरस नहीं प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ते। आपको ये नहीं लगता कि, मैं इसकी खायेंगे। क्या-क्या होता है दुनियाभर की गन्दगी? आप कोई खोपड़ी में जाकर बैठ जाऊं इसकी गर्दन काट लूं। जहाँ है वहाँ समाधान में आप बैठे हैं और अपने ही आप उन्नत हो रहे हैं । नहीं पढ़ेंगे। मुझे कहने की जरूरत नहीं। आप पढ़ेंगे ही नहीं। आप किसी के साथ दुष्टता नहीं करते। देखिये, सास होती है कोई गन्दी बाद करेगा आप सुनेंगे ही नहीं। आपको अच्छा ही बहु होती है कभी बहु सास को सताती है कभी सास बहु को नहीं लगेगा। कितने शुद्ध हो गये हैं आप लोग! और अपनी सताती है पर सहजयोग में ऐसा बहुत कम है। दिखाई नहीं देता। ऐसे ही आपकी गृहस्थी में आदमियों की और औरतों की जो स्थिति है वह विशेष है। पति पल् में आपस में पूरी तरह से ऐसी एक-तारता है कि पति किसी और औरत की ओर हैं बहुत से लोग बताते हैं मैं वहाँ गया था तो देखा वो सब देखता नहीं और स्त्री किसी और पुरुष की ओर देखती नहीं। इतनी होता है कि आप अपने बारे में कुछ जानते ही नहीं। सब मुझ ही को गौरव दिये जा रहे हो। ऐसे कौन से मैंने गौरव के काम किया। उस आत्मा की वजह से सब कुछ हो गया और किया। आप बंदूक लेकर किसी को मारेंगे नहीं, किसी का घर बच्चे का आप अपहरण नहीं करेंगे, कभी कर ही नहीं सकते। गन्दी जगह ही नहीं जांएगे। गन्दे चित्र नहीं देखेंगे, गन्दी किताब शुद्धता को आप यत्न से रखते हैं कोंई ऐसी बैसी चीज होगी आप वहाँ से भाग निकलेंगे, मुझे नहीं चाहिये। और अगर कहीं जाना ही पड़ गया तो उसे एक नाटक की तरह से आप दखते वहुत शराब पी-पी के कैसे घूम रहे थे। किस तरह से औरतों के साथ बातचीत कर रहे थे और मुझे आ करके सब वर्णन बतात हैं। ये दृष्टि जो कि एक साक्षी स्वरूप की है वो आपके अन्दर आकस्मिक रूप से आ गई। शुद्धता है। बाह्य का आकर्षण जो लोगों को होता है वो आप नहीं रहे क्योंकि आप स्वाभिमान में हैं। आपको अपने स्व का अभिमान है। आपकी आंख ठहर गई, अब चंचल नहीं रही । इधर-उधर नहीं घूमती। अब तो आपके बच्चे, आपके माँ-बाप आपको दंखते हैं तो वह भी आश्चर्यचकत हो जाते हैं, अभिभूत हो जाते हैं कि देखो कैसे हो गये ये लोग। ये चोरी नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, मारते नहीं-पीटते नहीं, कोई दंगा नहीं, फसाद नहीं, कुछ नहीं। इतने शांतिमय, इतने आनन्दमय आप सब लोग हो गये। लोग मुझसे कहते हैं कि आप इतनी बीमारी ठीक करते हैं, इतना कुछ करते हैं आप पैसा नहीं लेते। और आप लोग कहाँ लेते हैं? आप लोग भी तो सहज का कॉम में ही कर रहे हैं। मैंने तो किसी को नहीं देखा कि सहज दूसरा आपस का प्रम-भाव इस्लाम में इस पर बहुत कुछ कहा गया कि आपस में प्रेम-भाव बंधुत्व और औरतां के प्रति भगिनीभाव की बात भी कही। इस कदर आपस में प्रेम भाव है। बहुत ही पहले की बात है इटली में एक लड़की इंग्लैण्ड से गई थी। पता नहीं किस काम से गई थी और दूसरी एक फ्रांस से वहाँ पहुंची। दोनों जने एक रेस्तरों में कुछ खा रही थीं। देखते-देखते एक ने दूसरे को देखा और न जाने क्यों उनको लगा इसमें कुछ वाईब्रेशन आ रहीं हैं। तो एक उठके के पास गई और उससे कहती है क्या तुम्हें श्री माताजी मुफ्त के काम के लिए आप लोग पैसा मांगते हैं या कुछ करते हैं। एक से एक कविताएँ आप लिखते हैं, एक से एक गाने आप गाते हैं । कोई भी मैंने देखा नहीं जो कहता हो कि, नहीं इसे काम में मुझे पैसा चाहिये। कितनों को आपने जागृति दी, कितनों को आपने पार कराया है, कितने ही सेंटर्स आपने चलाये हैं लेकिन मैंने कहीं नहीं सुना कि इसके लिये माँ तुमने इतनों को जागृति दी तो आप हमें उसका पैसा दीजिए या उसके लिये कोई आप हमें खिताब दीजिए कि इतने ।108 जागृति वाले दूसरे ने आत्मसाक्षात्कार दिया है? उसने कहा हाँ और तुम्हें भी दिया है न? और बस फिर दोनों एकदम गले मिल गये। कहीं भी जाके आप अमेरिका में जायें कहीं जायें बस सहजयोगी देखकर गदगद हो जाते हैं इन्हें कहाँ रखें, इनकी क्या सेवा करें, कैसे इनको रखें, कहाँ इनके। देखें? मैने कहीं सुना नहीं कि कोई सहजयोगियों को किसी ने कहीं सताया वहाँ आपस में इस कदर प्रेम उमड़ता है लोगों में, यदि किसी के कुछ चक्र खराब हो तो भी उसको अत्यन्त प्रेम से लोग देखते हैं। स्वयं तकलीफ चैतन्य लहरी सह कर भी उसे ठीक करते हैं । और मुझे बड़ा कभी-कभी आश्चर्य होता है कि कुछ-कुछ तो इनते ज्यादा पकड़े हुए लोग होते हैं तो भी कभी मुझसे आके शिकायत नहीं करेंगे कि ये बड़े पकड़े हुए हैं इनको सहजयोग से निकाल बाहर करें । मैने सिर्फ एक ही बात देखी है कि अगर कोई मेरी निन्दा करता है तब आप लोगों से बर्दाश्त नहीं होती। तब फिर आपकी बर्दाश्त सारी खत्म हो जाती है। ये तो मैंने देखा हुआ है और यही एक पहचान है कि आपको मुझसे बहुत प्रेम है। इतना ज्यादा प्यार आपने मुझे दिया है, इतना ज्यादा मुझे भरोसा हो गया हैं। मंरा जो एक स्वपन था कि सारे संसार में जागृति हो जाए। जब तक जागृति नहीं होगी तब तक संसार के प्रश्न नहीं मिट सकते । क्योंकि हमारे वातावरण संबंधी, आर्थिक, परिवारिक जो सभी समस्याएं हैं इनकी जिम्मेदारी किसकी है? इंसान की है। इंसान ने ही ये प्रश्न खड़े किये हैं और यही इंसान अगर बदल जाये और इसके अन्दर वी विश्व बंधुत्व आ जाए तो झगड़ा किस चीज का करेंगे? अगर सभी एक चीज को मानते हैं सबको एक ही चीज मालूम है, तो झगड़ा किस बात का? और फिर ये जो सारे प्रश्न हैं ठोक हो जाते हैं। लेकिन ये जरूर कहूंगी कि इस पूजा के पीछे में आप लोग हो । आप अगर एसे नहीं होते तो कितनी भी पूजाएं हों (क्या मंदिरों में कम पूजाएं होती हैं कितने-कितने स्वयंभ बने हुए हैं क्या कुछ कम होता है बहुत कुछ होता है) लेकिन किसी के अन्दर कुछ घुसता ही नहीं। जैसे के तैसे। जो करना है वो करेंगे ही। जो गलत काम है वे करते ही रहेंगे। कुछ उनमें विशेषता नहीं है। लेकिन सहजयोग एक बड़ी विशेष चीज है और आज देखिए इतने देशों में सहजयोग फैल गया, इतन देशां में फैल गया है मुझे बड़ा आश्चर्य हाता है। इतना तो मैने कभी नहीं सोचा था कि इतना हो जाएगा। सांचा था कुछ हो जाएंगे लोग फिर वो आगे करते रहेंगे। लेंकिन मेरी जिन्दगी में इतने लोग इसे प्राप्त करेंगे ऐसा मैने कभी नहीं सोचा था । और जो मेरे मन में एक स्वपन था वह वाकई आज साकार हो गया है। अब जब कुछ भी आप करें, कुछ भी आप सांचें, किसी भी चीज में आप हाथ डालें, पहले याद रखना चाहिये कि हम योगीजन हैं। हम सर्वसाधारण नहीं हम योगीजन विशेष हैं और इसलिये हमको विशेषरूप से सबकी और नजर करना चाहिये और देखना चाहिये। जितने लोग हो सके उत्तकी यागी बनाना चाहिये। इसी से सारे संसार का भला होने वाला है जैसे हमारा भी भला हुआ। आज मेरे जन्म दिन पर यही कहना है कि आप लोगों का फिर से जन्म हो चुका है। हर जन्म दिन पर आयु बढ़ती ही जाती है, आयु के साथ अगर आपमें प्रगल्भता न आये, परिपक्वता न आये तो ऐसी आयु बढ़ने से कोई लाभ नहीं। आप भी अब सहजयोग में बढ़ रहे हैं लेकिन इसमें जरूरी है कि हमारे अन्दर प्रगलभता आये, परिपक्वता आनी चाहिये। जब आप धीरे-धीरे इसमें पक जाएंगे तब आप स्वयं ही एक बड़े भारी वृक्ष की तरह अनेक लोगों का फायदा कर सकते हैं आप सबमें ये शक्तियाँ आई हैं और मैं चाहती हूँ कि मरी सारी शक्तियाँ आप सब में आ जाएं और आप सब एक से एक बड़े हो जाएँ। माँ तो हमेशा यही सांचती है कि अपने बच्चों को अपने से भी कहीं अधिक ज्यादा सुख मिलना चाहिये। बड़ी खुशी की बात है कि आप लोग बड़े आनन्द में बैठे उस निर्वाण का उपभोग ले रहे हैं जिसके लिये बहुतों ने अनेक प्रयत्न किये थे इतने सहज में सब आपने प्राप्त कर लिया यह भी पूर्व पुण्याई है। मेरा आप सब पर अनन्त आशीर्वाद तो है ही लेकिन हर समय ख्याल बना रहता है और जब आपको छोड़ कर जाते हैं तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरा दिल ही खींच लिया। फिर यही सोचती हूँ कि आगे जहाँ जाना है वहाँ कितने लोग खड़ें होंगे। जब उनको देखते हैं तब फिर ये सारा कुछ ऐसा लगता है ठीक है। मुझे अभी तो लगता नहीं कि मैं कोई सत्तर साल की हो रही हूँ। आप सबको देखकर के बहुत आनन्द से विभोर हूँ मैं। और ये सोचने का तो समय ही नहीं रहता कि उमर क्या हो रही है अपनी। अब देखिये इतना सुन्दर आपका आश्रम वन गया, आप लोगों की इच्छा आप लोगों का मन ये बहुत बड़ी चीज है अब आप जब भी अखबार पढ़े तो सामूहिक तरह से आप इच्छायें करें कि माँ पंजाब की सारी समस्या समाप्त हो जानी चाहिए। समाप्त हो जाएगी। कुछ न कुछ बन जाएगा। आपको और भी कोई प्रश्न हो, दरिद्रता अपने देश में बहुत है। वो सिर्फ दरिद्रता-दरिद्रता करने से नहीं जाएगो। नदी के बीच की धारा की तरह हम लोग बीच की धारा में है। हम लोग बड़े रईस भी नहीं है और बड़े गरीब भी नहीं हैं। जब बीच की धारा बढ़ती जाएगी तो इधर रईस भी इसमें आ जाएंगे और गरीब भी इसमें समाते जाएगें और इसी तरह से हमारे प्रश्न छुटेंगे। बहुत से लोग गरीबी चाहते ही हैं जिससे उनका बोलबाला बना रहे। अब आप लोग खुद अपनी शक्ल देखिये कि सबकी कितनी तेजस्वी शक्लें हो गई। कांई अगर ऐयरपोर्ट पर देखते हैं तो कहते हैं ये किस देश से आये हैं? सबकी शक्लें इतनी तेजस्वी हैं। पर मैने बहुत सारे लोग देखें हैं जो कि गेरुआ वस्त्र पहन के सब बाल-वाल काट-कूट करके और खडे हुए हैं वहाँ देखने में तो ऐसा लगता है जैसे अभी अस्पताल में जाने वाले हैं। और कोई-कोई ऐसे दिखाई देते हैं कि क्रोधी जैसे कि उनसे दूरी से बात करें नहीं तो इतनी गर्मी आपको आएगी कि पता नहीं कुछ बात की तो झापड़ ही न मार दे। तो किसी में भी आप नहीं पाइयेगा इस तरह की शालीनता, इतना प्यार, इस तरह का प्रेम। ये किसी भी समाज में नहीं है, हमारे सहजयोग में है। इसके लिये आपका अभिनंदन होना चाहिये और आपकी विशेषता होनी चाहिये। आप लोग सब मेरी पूजा करते हैं उससे कहते हैं लाभ-वाभ होता है। जो भी होता हो उसके लिये मैं क्या करूं। । हुए हैं और आप सबको अनन्त आर्शीवाद चैतन्य लहरी जन कार्यक्रम कान्सटीच्यूशन क्लब मैदान, देहली -23.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) यह तो मान लेना पड़ेगा कि हमने अभी तक "कंवल सत्य" को प्राप्त नहीं किया, "पूर्ण सत्य" को प्राप्त नहीं किया। नम्रतापूर्वक इस बात को अगर हम मान लें कि हमने अभी तक उस केवल सत्य को प्राप्त नहीं किया जो सबके हैरान हो जाते हैं कि हम लोग इनसे बहुत ज्यादा सुखी हैं। पता नहीं इस भारत वर्ष की, इस योगभूमि की क्या देन है कि अभी तक हमारे यहाँ इस तरह की बीमारियाँ नहीं हैं। कहा जाता है अमेरिका में थोड़े साल वाद (65 फीसदी लोग किसी न किसी गुप्त रोगो से पीड़ित हो जायेंगे। इस भारतवर्षं के परम आशीवाद से ही अभी तक हम लोगों में नैतिकता का भाव बहुत जबरदस्त है। आप विश्वास नहीं कर सकते कि यह जो प्रगल्भता बहाल हुई है और जो प्रगति दिखाई देती है यह केवल सत्य को जानता होता तो यह आज नाना प्रकार के बिल्कुल विनाश की ओर जाने वाली प्रगति है। और इन्सान को प्रगति इस तरह से अगर करनीं हो तो बेहतर है वह प्रगति न धाराएं और प्रणालियाँ न चल पड़तीं। सब लोग एक ही चीज करे इसके बारे में पिछली मर्तबा मैंने आपसे बताया था कि किस प्रकार यह प्रगति बढ़ रही है। लन्दन शहर में हर हफ्ते दो बच्चे माँ-बाप मार डालते हैं। तो ऐसी जगह कैसे लोग रहते होंगे यह आप समझ सकते हैं। और भी बहुत गन्दी बातें बच्चों के साथ हो रही हैं जिसका आप लोग अन्दाजा ही नहीं लगा सकते। अगर आप न्यूयार्क चले जाईये तो आप कोई सोने की चीज पहन कर जा नहीं सकते इतना समृद्ध देश है लोग कहते हैं, उनके पास बहुत स्वर्ण भण्डार हैं आदि आदि। अगर आप है। हमारी व्यक्तिगत, शारीरिक, मानसिक, वौद्धिक, और छोटी सी भी चीज सोने की बहाँ पहन कर गये तो आपकी आध्यात्मिक समस्याएं भी हैं। सबके लिये एक-एक प्रश्न है। गर्दन कट जायेगी। आप घड़ी पहन के नहीं जा सकते, जीवन एक प्रश्न हो गया है। इस प्रश्न का हल जब हम बृद्धि मंगलसूत्र भी पहन कर जाने की वहाँ व्यवस्था नहीं है। इस प्रकार की अराजकता ये बड़े-बड़े प्रगतिशील देशों में हो रही है और इस कदर मूर्ख और मूढ़ लोग हैं कि उनकी मुर्खता का वर्णन ही नहीं कर सकते। जैसे एक सिने-तारिका की आठवीं शादी हुई, आठवीं अपने यहाँ अगर किसी की दूसरी शादी हो कलयुग का एक विशेष आशीर्वाद है । और यह भ्रामकता प्राप्त तो लोग उसका मूंह नहीं देखेंगे, उसको घर में नहीं आने देंे इनकी आठवीं शादी हुई। और उनकी शादी का हनीमून देखने के लिये बहाँ आपसे ज्यादा लोग पहुंचे हुए थे और हैलीकॉप्टर नहीं होती। इसको महसूस कर रहे हैं और सब लोग चाहते हैं से उनका फोटो लेने के लिये लोग पैराशूट कर रहे थे जो इस हैलीकॉप्टर में थे वो लोग आकर धड़ाधड़ इन लोगों पर गिरे जो देख रहे थे, प्रेक्षक थे, वो फोटो लेना चाहते थे परन्तु.वे तो अन्दर एक ही तरह की भावना, विचार ओर संवेदना प्रस्थापित करता है। इसका कारण जो भी हो वह तो बाद में देखा जायेगा। पर हम अपने बारे में सोचे तो मानव जाति में अभी तक वह स्थिति नही आई है कि वह केवल सत्य को जाने। अगर वह झगड़े, नाना प्रकार के विवाद और अनेक तरह की विचार को मानते क्योंकि "एकमेव केवल सत्य" को इस अन्धेपन में हम जानते नहीं हैं। जिस तरह एक हाथी को छः अन्धे ढूंढने गये थे और उन्होंने छ: प्रकार से जाना था, उसी प्रकार हम सत्य की वास्तविकता को जानते हैं। और इसीलिए यह सारी आफत मची हुई है। किस किस तरह के हमारे सामने प्रश्न हैं। जिसका हल सब सोचते हैं। जैसे कि हमारे यहाँ आजकल वातावरण के दूषण की राजनैतिक, आर्थिक, परिवारिक समस्या से करते हैं तो शब्द जाल में फंस जाते हैं। विचारों से जब हम किसी चौज को सुलझाना चाहते हैं तो और उलझ जाते हैं क्योंकि विचार जो है धीरे-धीरे नई-नई इमारतों का सृजन करते हैं और इन इमारतों में हम लोग खो जाते हैं। यह भ्रामकता इस ट স होने से ही आज मुनष्य अंधेरे से उठना चाहता है और प्रकाश को प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इसकी यातनार्यं अब सहन कि किसी तरह से इस दुर्धर जीवन से किसी ऐसे जीवन में हम परिवर्तित हो जायें जहाँ ये सब चीजं हम एक नाटक की तरह देख सकें। हम विज्ञान की ओर बढ़ते हैं और पश्चिमात्य देशों आकर इन पर गिर गये और कुछ जाकर के खजूर में अटक का प्रगल्भ होना, उनकी प्रगति होनी हमारी आँखें चकाचौंध गये इस तरह की मूर्खता की बात अपने देश में कोई भी नहीं कर देती है। लेकिन जब आप वहाँ जाकर देखते हैं तो आप कर सकता। तो मनुष्य की प्रगलभता, परिपक्वता जा आज चैतम् लहरी हिन्दुस्तान में है उसका आपको अन्दाजा नहीं। उन लोगों पर हँसी आती है। बात-बात पर वह कहंगे कि मैं अपनी आत्मा को जानी। सब कहते गये एक के बाद ऐ कितनों ने यह बात कही अपने ही देश में नहीं बाहर भी बहुत से कवियों ने अनेक लोगों ने आत्मा पर चर्चा की। इसाई धर्म में तो बिल्कुल साफ़ लिखा गया है कि जब तक आपका पुनर्जन्म नही होता तब तक आप परमात्मा को जान नहीं सकते। तो उन लोगों ने अपने सिर पर पुनर्जन्मित की पाटी लगा ली। इसाई, मुसलमान की पाटी लगा ली। लेकिन कोई इसाइ हो या मुसलमान हो किसी भी धर्म का आदमी हो वो सब पाप कर ही सकता है। कोई सा भी पाप तो कर सकता है, फिर यह सिर पर पाटो लगाने की क्या जरूरत। उसका तो कोई असर ही नहीं। फिर उसी को ले करके झगड़ा भी कर सकता है। जैसे मेंने अभी सुना कि अजर-बै जान के लोगों को आमेनियन लोगों ने मारा और मारने से पहले वो बाइबल पढ़ते थे। वताईये ईसा मसीह जिसने क्रूस पर सबको माफ कर दिया वो ईसाई लोग बाइबल पढ के मुसलमानों को मारते थे। इस वेअकली का कारण एक ही है कि धर्म की जो नींव है वो सत्य पर नहीं असत्य पर है। बुद्ध के जमाने में भी यह बात हुई ईसा मसीह के बाद भी बही बात हुई है। ईसा मसीह के जो असली शिष्य थे वो भाग खड़े हुए। वहां एक गलत आदमी पॉल नाम के आदमी ने सब ठिकाने लगा दिया। इसी पकार बुद्ध धर्म में मध्य मार्ग की छोड़ करके लोग कोई बायें को गये और कोई दायें को। दायें को जाने वाले भीषण क्रोधी हो गये। दूसरे तांत्रिक बने घूम रहे हैं। इनकी सेवा से बीमारियाँ, कष्ट और गरीबी मिलेगी। बड़े भयंकर परिणाम होंगे। इनके चक्कर से निकलना से घृणा तुझ करता हूँ। आप बताइए अपने यहाँ कोई ऐसे कहे तो लोग सोचेंगे कि इसे पागलखाने छोड़ आओ। किसी से घृणा करना एक पाप है यह अपने देश में सब लोग जानते हैं। कोई आपने सुना हिन्दी में, मराठी में उर्दू में या तामिल में कोई ऐसी बात कहेगा कि मैं तुझ से घृणा करता हूँ। वहाँ उठते बैठते लोग यह बात कहते हैं। इन लोगों में कौन सी संस्कृति है, मैं आज तक समझ नहीं पाई और इस कदर गन्दगी की और बढ़े चले जा रहे हैं। इस तरह की नैतिकता की वहाँ बात नहीं कर सकते न कोई समझ सकता है। इन लोगों की जो दुर्दशा है वो अगर आप वाकई एक साक्षी स्वरूप होकर देखें तों समझ लेंगे कि अपने दश में बहुत बड़ी प्रगल्भता है। बेवकूफी की बातें अपने यहाँ काई नहीं कर सकता और कोई करे तो उसे फौरन लोग ठिकाने लगा देते हैं। थोड़ा बहुत असर आ गया है। वैसे तो बेवकूफों की कमी नहीं गालिब बिन ढूंढे हजार मिलते हैं पर अगर हिन्दुस्तान में हजार मिलते हैं तो बाहर करोड़ों मिलते हैं। और यह प्रगल्भता हाते हुये भी हम लोग भी किसी और चीज में जकड़ गये है और उस जकड़ून क कारण हम लोग भी नहीं उठ पाते उस सत्य की ओर जिससे प्रकाश मिलने वाला है। हमारी जकड़ जो है वो हैं अन्धश्रद्धायें। किसी भी चीज में हमने विश्वास कर लिया तो बो परम विश्वास हो जाता है। किसी पुर विश्वास करो या न करी जब तक आपने किसी चीज को खोज नहीं निकाला तब तक किसी पर विश्वास करने बहुत जरूरी है। कुछ लाभ नहीं और नहीं करने से भी कोई लाभ नहीं। तो जब हम सत्य की खोज में निकले हैं तो पहले जान लेना हमें समझना है कि सत्य में मनुष्य को आत्मा ही क रूप पर, आत्मा ही की ओर उतरना है। कहा है काहेरे वन खोजन जाई, सदा निवासी, सदा अलेंपा सो है संग समाई। कहे नानक बिना आपा चीने मिटे न भ्रम की काई। जब आप आपा चीनेंगे तभी तो आप खालिस होंगे। पाटी लगाने से कोई खालिस नहीं हो सकता। खालिस का मतलब है शुद्ध होना और शुद्ध होने के लिए कुण्डलिनी है यह साक्षात् लिखा हुआ है कुण्डलिनी के सिवाय आप की सफाई हो ही नहीं सकती। यह शुद्धि करने चाहिये कि सत्य क्या है। हर एक धर्म में कहा गया है। किसी भी धर्म में खराबी नहीं है। आप इस्लाम को पढ़िये तो सोचियेगा कितना उत्तम धर्म है। आप हिन्दू धर्म के बारे में पढ़े तो कहंगे कितना उत्तम धर्म है, सिखों का धर्म कितना उत्तम धर्म हैं। बौद्ध धर्म कितना उत्तम है, जैनियों का धम कितना उत्तम है। लेकिन ये सब उत्मोत्तम सारे जो पुष्प एक अध्यात्म के वृक्ष पर आये थे वो आज सबने तोड़ लिये हैं और हर एक मरे 1. इस टूटे हुए, मुरझाए हुए, हुए फूल को मेरा, ये मेरा करके झगड़ा कर रहा है। इसका भी एक कारण है कि ये जीवन्त फूल क्यों टूट रहे हैं। क्योंकि ये धर्म या तो पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं या सत्ता के पीछे। लेकिन कोई भी आत्मा की तरफ ध्यान नहीं दे रहा। जो सब धर्मों में कहा है कि आत्मानुभव लिए बगैर आप जान ही नहीं सकते कि सत्य क्या है यहाँ तक कि महावीर और बुद्ध ने तो परमात्मा की बात ही नहीं की। वो तो निरीश्वर पर आ गये कि छोड़ो परमात्मा को, कि पहले तुम वाली माता आपके अन्दर है और जब इस आत्मा का प्रकाश आपके अन्दर आ जायेगा तब आप सारे धर्मों का तत्व समझ करके सब को मान करेंगे और जितने भी अवतरण हुए, जितने भी दृष्टा हुए सबका आप मान करेंगे और उनकी पूजा करेंगे। ा सहजयोग में सभी धर्मों के लोग हैं पर वे सभी अवतरणों की पूजा करते हैं। धर्म के नाम पर जब आप लड़ना बन्द कर दंगे तो कट्टरवाद समाप्त हो जाऐगा। केवल सहजयोग ही धार्मिक कट्टरता को समाप्त कर सकता है। सव धर्म एक तत्व पर चैतन्य लहरी खड़े एक ही तत्व का आधार इनके अन्दर है और वो है कि संतुलन हमारे जीवन में आ जाये। और उस संतुलन के कारण हम आत्मानुभूति को प्राप्त करें। फिर ये सारे भ्रम यह अन्ध विश्वास जो हम अपनी खोपड़ी पर लाद चल रहे हैं वे सब छूट जायेंगे। यह बहुत ही जरूरी है। जब हमारी प्रगति होती है तब वो सबको दिखाई देती उसका प्रकाश सबको दिखाई देता हैं उसका असर सब पर आता है। आज जो चक्रों के बारे में हैं सत्य है बाकी तो सब असत्य है। क्योंकि जो हो गया सो खत्म हुआ जा हुआ नहीं वो मालूम ही नहीं क्या होन वाला है? तो जब यह कुण्डलिनी इस चक्र में आ जाती है तो आप निर्विचारिता में आ जाते हैं क्योंकि आपके दोनों जो यहाँ पर अहं और प्रतिअंह दिखाये गये हैं, आपके जो बन्धन है और आप का जो अहंकार हैं दोनों के दोनों पूरी तरह से खिंच जाते हैं और फिर आप का जो ब्रह्मरन्ध्र है जिसे कि तालू पर ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं वो खुल जाता है और खुलते ही कुण्डलिनो पार हो जाती है। यह सब कुछ बनाया हूआ यहाँ पर इतनी बत्तियां लगी है, पर इनकी जलाने के लिए एक स्विच है जिसे दबाना भर पड़ता है। इसमें कोई कठिन कार्य नहीं पड़ता। पृथ्वी में बीज डालने की तरह है। इस पृथ्वी में यह शक्ति है, यह माँ है इसमें आपने बीज डाल दिया और वो पनप गये। हम लोग उस पर कोई आश्चर्य नहीं करते, सोचते हैं ठीक ही बात हैं। उसी तरह यह उत्क्रान्ति की, विकास की जीवन्त क्रिया है| आज हम अमोबा से इन्सान बने, ठीक है। कैसे बने किसने बनाया किस तरह से बन गया। कोई हम विचार नहीं करते। इन्सान बन गया बसे हो गया। इसके आगे कुछ है कि नहीं इधर जरूर विचार करना चाहिये कि जरूर होगी कुछ न कुछ आगे, आपको बताया गया है यह वास्तव में आपक अन्दर पूरा बना है। हुआ यंत्र है। यह आपकी उत्पत्ति से लेकर आपका विकास इन्ही चक्रों से हुआ। अब आपको थोड़ा सा उठना है ताकि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो कर ब्रह्मरन्ध्र को छेद सके। उसी के साथ-साथ क्योंकि आपका शारीरिक, मानसिक बौद्धिक और जितना आध्यात्मिक भी कार्य है वो यही चक्र करते हैं । जैसे ही कुण्डलिनी आपके इन चक्रों में जागृत हो जायेगी वो उन्हें प्लावित करेगी, पोषण करेंगी और उनको समग्र करेगी। उन चक्रों को पिरो देगी एक धागे में। आपमें समग्रता आ जायेगी मध्यनाड़ी तंत्र पर आपके मज्जा तत्व पर आपको महसूस होगा, सत्य आपको महसूस होगा। ाव अब सत्य क्या है? एक तो सत्य यह है कि आप शरीर नहीं तो हम लोग इतने भ्रम में क्यों हैं? इतनी आफत में क्यों मन, बुद्धि, अहंकार आदि कुछ नहीं हैं। आप शुद्ध आत्मा हैं बहुत ऊँची चीज हैं। गौर्वशाली हैं, सौन्दर्यशाली हैं यह तो हैं? क्या हम इन्सान इस लिये बने कि इस आफत में पड़ जायें? बहुत से लोग सोचते हैं कि आत्महत्या ही कर डालो, इस जिन्दगी से बाज आये। यह क्या जिन्दगी है? इस जिन्दगी का अज्ञान की वजह से ढक गये हैं। और दूसर सत्य यह है कि चारों तरफ फैला हुआ परमचैतन्य परमात्मा की प्रेम शक्ति जो सारे फूलों को बनाती है, सारा जीवन्त कार्य करती है उसको आप पहली मर्तबा अपनी अंगुलियों पर जान सकते हैं । यानि आपकी जो चेतना है उसमें एक नया आयाम आ जाता है जिसमें आप महसूस करते हैं। इस शक्त को पहले कभी आपने जाना नहीं। कृण्डलिनी के जागरण के बाद ही आप इस शक्ति को जान सकते हैं। तभी आपमें उसी के साथ-साथ आत्मबोध हो जाता है, आत्मज्ञान हो जाता है। मतलव यह है कि आप अपने चक्रों के बारे में जानते हैं पूरी तरह से और अपनी आत्मा के जो तीन महान् गुण हैं प्रकाशित होना", और तीसरा " आनन्दमय जीवन" ये तीनों के तीनों आपको प्राप्त हो जाते हैं। इसक अलावा आप एक साक्षी अगर मजा ही नहीं मिलने वाला, मनुष्य जीवन का अगर आपको आनन्द ही नहीं आने वाला तो ऐसी जिन्दगी से तो बाज आये। तो कुछ न कुछ तो आगे कोई चीज होगी ही और वो क्या चोज है? वह है परमात्मा को साम्राज्य उसको प्राप्त नहीं करना है? वहाँ आपको निरमंत्रण है। आप आईये बाकायदा आपको बुलाया गया है। इसीलिये कि आप साधक है । इसीलिए कि आप खोज रहे हैं और इसीलिये आप प्राप्त भी करेंगे। कुण्डलिनी जागृत होते ही आपके अन्दर एक और नया आयाम प्रगटित होता है। इसे सामूहिक चेतना कहते हैं। सामूहिक चेतना का मतलब यह है कि जैसे आप अपने चक्रों को महसूस कर सकते हैं इसी तरह आप दूसरों के भी चक्रों को महसूस कर सकते हैं। इतना ही नहीं, यह दूसरा कोन हैं? जब आप एक ही महामानव के अंग प्रत्यंग बन गये इस उंगली से यह उंगली कोई दूसरी है। इस हाथ में कोई शिकायत होती है तो दूसरा हाथ आकर के उसे मदद करता है। फौरन उसी प्रकार आप सब जागृत हो जाते हैं उस महामानव में उस विराट में, उस अकबर में और तब आपको आश्चर्य होता है कि अरे ये केवल सत्य", "चित्त का स्वरूप तत्व को प्राप्त होते हैं। क्योंकि जब कुण्डलिनी जागृत हो करके आज्ञा चक्र को लांधती है तब हमारे अन्दर निर्विचार समाधि स्थपित होती है। जैसे बुद्ध ने कहा है कि अपने दिमाग को खाली करो। क्योंकि विचार जो है यह वर्तमान से नहीं आते, भूत या भविष्य से आते हैं। यदि मैं आपसे वर्तमान में आने को कहूं तो आप आ ही नहीं सकते। और वर्तमान ही चैतन्य लहरी 7. पहले जमाने में बो सब आज यहाँ सामने बैठे हैं। और सबको यह पाना है सिर्फ आत्म विश्वास होना चाहिये कि हम सब पार हो जायेंगे, और दूसरा निश्चय होना चाहिये दृढ़ निश्चय होना चाहिये कि पार होने के बाद हम इसमें बढ़ंगे, अग्रसर होंगे और अपनी यूरी वृद्धि कर लेंगे। नहीं तो जैसे अंकुरित हुआ एक बीज है वो कैसा बेकार जाता है। ऐसा ही लोग पार तो हिन्दुस्तान में बहुत जल्दी हो जाते हैं कुछ करना नहीं पड़ता। यह तो आपकी भूमि का ही प्रसाद है। मुझे तो बाहर इतनी मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ मुझे कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। बड़े पूर्व पुण्यों की वहज से आप इस देश में पैदा हुये हैं। और अब आप जानियंगा कि कितनी जल्दी आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है। लेकिन फिर इसको आगे वढाना है । उस परम शक्ति से यह संबंध पहले जब हो जाता है तभी योग घटित होता है। श्रीकृष्ण ने क्या कहा "योगक्षेम वहाम्यम्" उन्होंने क्षेम योग नहीं कहा। अभी कोई कह रहे थे कि मैं कृष्ण का नाम इतना लेती हैँं देखिये मेरा गला बैठ गया। मैंने कहा हम सामूहिकता में कहाँ आ गये, सारी दुनियाँ हमारी हो गई। मैं जब रूस गई थी, रूसी लोगों के लिये क्य कहें? हम सबसे कहीं अच्छे हैं, हम लोग धर्म के बारे में इतना जरूरत से जयादा जानते हैं कि कुण्डलिनी काम नहीं करती। वे धर्म और भगवान के बारे में कुछ नहीं जानते फिर भी सहजयोग उनके लिए सरल हैं। हर प्रोगाम में सोलह-सोलह हजार लोग आते थे सारे के सारे पार हो जाते हैं और जमते हैं। साक्षात्कार की इतनी इज्जत है उनको। हिन्दुस्तान में पार हो जायंगे पर जैसे अपनी स्वतंत्रता की हमें इज्जत नहीं उससे भी कम इज्जत अपने आत्म साक्षात्कार की है, उससे भी कम हमें अपनी आत्मानुभूति की प है। हम चिपके ही रहते हैं व्यर्थ की चीजों से। एक दिन रूस ऐसा देश बन जायेगा कि हम लोग कहीं नहीं टिकंगे उनके सामने। वही मन्दिरों के चक्कर, वही मस्जिदों के चक्कर वहीं गुरूद्वारे के चक्कर। अरे भई अस्पताल में जाने से आप ठीक हो जायेंगे, दवाई को पढ़ने से आप ठीक हो जायेंगे? दवा लीजिए दवा। अब "कह नानक बिन आपा चीनें मिटे न भ्रम की काई", बस पढ़ते जाओ, उससे क्या भ्रम मिट जायेगा पढने से? इधर कोई बाइबल पढ़ रहा है, उधर दंखी कृष्ण तो यहीं बसे हुये हैं और तुम्हारा गला क्यों बैठे भई? क्योंकि आपको अधिकार नहीं है। आपका योग नहीं बना। जब तक आपका योग नहीं बना है क्या फायदा है टेलीफोन करने पढ़ रहा है। कुछ खोपड़ी में तो जाता ही नहीं क्योंकि आपके से। इसीलिए आपका गला खराब हो गया| हो सकता है श्री कृष्ण भी नाराज हों। क्या वो आपके नौकर हैं कि हर समय उनका नाम लें। अरे आप वैसे ही कोई दस बार आपका नाम जो पार हुआ दूसरे दिन उसका नशा छूट गया शराब छूट गई ले तो कहेंगे क्या पागल कुत्ते ने काटा है । काहे मेरा इतना नाम सब छूट गया। मै किसी से कहती नहीं हूँ कि शराव मत पीओ, ले रहा है? नाम लेने से नहीं मिलने वाले। कहा भी है सहज समाधि लगाओ। सहज में ही समाधि लगती है सन्यास की आ जाओ फिर देखती हूँ अपने नाप ही छुट जायेंगी बुरी जरूरत नहीं। वही बोबी बच्चे सुन्दर हो जाते हैं । आदमी के कमल खिल जाते हैं। क्योंकि आपमें सभी चीजें स्थित खड़ा होता है आत्मसाक्षात्कारी आदमी से। इस अपनी शक्ति हैं सिर्फ एक कुण्डलिनी का जागरण मात्र तो करना है और उसके प्रति श्रद्धा रखकर के बाद में इस कुण्डलिनी को पूरी तरह से आपको उस परम चैतन्य से सम्बन्धित रखना चाहिये। इस योग को पूरी तरह से स्थापित करना चाहिये। हमारे दिल्ली आपकी अपनी शक्ति, आपकी माँ है। यह आपका अपना गौरव में जहाँ तहां तो केनद्र बन गये हैं मैं तो कभी नहीं सोच सकती थी कि इस दिल्ली में कभी सहजयोग भी होगा। क्योंकि मैं तो सरकारी नौकरों के साथ रही हूं। ये नौकरी और तरक्की के अलावा कुछ सोचते ही नहीं। पर यहाँ ऐसे कमल के फूल खिल गये। मैं तो हैरान हूँ कि इस दिल्ली शहर में इतने कमाल ठीक करें और ज्ञान का भण्डार आपके अन्दर खुल जाये, शुद्ध के लोग कहाँ से आ गये? यह भी कोई पूर्वजन्म की चीज है कि इस दिल्ली शहर में भी इतने साधक सच्चे मन से आये और चाहते है कि उनको यह कुण्डलिनी का प्रसाद मिले। कोई कुरान पढ़ रहा है, उधर ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं, कोई कुछ अन्दर आत्मा का जागरण ही नहीं हुआ। आत्मा के जागरण के बाद धर्म आत्मसात होता है। लन्दन के लोगों में सहजयोग में क्योंकि आधे लोग उठके चले जायेगे। मैं कहती हैं इस गली में आदतें। मैं नहीं कहती कि आप गुस्सा छोड़ो गुस्सा ही भाग में हृदय को हमें प्राप्त करना है और इस शक्ति को प्राप्त करने के बाद, आप को हैरानी होगी कि सारे संसार में हजारों लोग आज इस शक्ति से प्रकाशित हुये हैं| यह कोई मेरी शक्ति नहीं है यह है जिसे आपको प्राप्त होना है। मैं तो सिर्फ जैसे कोई एक जला हुआ दिया होता है दूसरा दीप जला देता है वैसे मैं आपका दीप जला देती हूं। फिर आप जलाते फिरिये। आप में यह शक्ति आ जायेगी कि आप दूसरों की कुण्डलिनी जागृत करें, लोगों को आप फोरन पहचान ज्ञान का। असल क्या है, नकल क्या है लेंगे। आपकी उंगलियों के इशारों पर कुडलिनी चलेगी। ऐसी आपके अन्दर शक्तियां हैं। अब आप कहेंगे कि माँ पहले जमाने में तो एक आदमी कहीं पार होता था तो जितने खोज रहे थे आप सबको अनन्त आशीवाद। चैतन्य लहरी ৪. बा প सरस्वती पूजा यमुना नगर परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का सारांश 4,4.92 घम हमें सरस्वती की भी आराधना करनी चाहिए। सरस्वती में फंस गए हैं। ये सब चीजों का इलाज एक ही तरीके से हो का कार्य बड़ा महान है। महा सरस्वती ने पहले सारा अंतरिक्ष बनाया। इसमें पृथ्वी तत्व विशेष है। पृथ्वी तत्व को इस तरह से सूर्य और चन्द्रमा के बीच में लाकर खड़ा कर दिया कि बहाँ आपकी बुद्धि में आ जाती है और जो बच्चे पढ़ने लिखने में पर कोई सी भी जीवन्त क्रिया आसानी से हो सकती है। इस जीवन्त क्रिया से धीरे धीरे मनुष्य भी उत्पन्न हुआ। परन्तु हमें इसके बाद कला की उत्पत्ति होती है अगर आप कला को बगैर अपनी बहुत बड़ी शक्ति को जान लेना चाहिए। वो शक्ति है जिसे हम सृजन शक्ति कहते हैं, क्रिएटिविटी (Creativity) जाती है या वो बेमर्यादा कहीं ऐसी जगह टकराती है कि जहाँ कहते हैं। यह सृजन शक्ति सरस्वती का आशीर्वाद है जिसके द्वारा अनेक कलाएं उत्पन्न हुई। कला का प्रादुर्भाव सरस्वती के ही आशीर्वाद से है। मुझे बड़ा आनन्द हुआ कि आज सरस्वती का पूजन एक कॉलेज में हो रही है। इसके आसपास भी कई स्कूज-कॉलेज हैं। मानो जैसे यह जगह विशेषकर सरस्वती की पूजा के लिए ही बनी है। हमारे बच्चे स्कूलों में विद्याजन कर रहे हैं। पर हमें ध्यान रखना चाहिए कि बिना आत्मा को प्राप्त किए हम जो भी विद्या पा रहे हैं वो सारी अविद्या है। बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए आप चाहे साइंस पढ़े या अर्थशास्त्र, उसे न तो आप पूरी तरह समझ सकते हैं और न ही उसको अपनी सृजन शक्ति में ला सकते हैं। बच्चे दो प्रकार के होते प्रकृति की खुबसूरती को देखकर हुबहू उस तरह से न बना हैं एक तो पढ़ने के शौकीन होते हैं और दूसरे जिन्हें पढ़ने का शौक नहीं होता। कुछ बच्चों के पास कम बुद्धि होती है और कुछ के पास अधिका बुद्धि भी सरस्वती की देन है लेकिन आत्मा से मनुष्य में सुबुद्धि आ जाती है। बुद्धि से पाया हुआ देखते ही बनता है। जब आप कला को पाने लग जायेंगे और ज्ञान जब तक आप सुबुद्धि पर नहीं तोलिएगा तो वह ज्ञान हानिकारक हो जाता है। इसलिए बहुत से लोग सोचते हैं कि चीजों की ही और रहेंगे। बहुत सी चीजें लोग बनाते हैं, पर कुछ पढ़ाने लिखाने से बच्चे बेकार हो जायेंगे, सफेदपोश होकर फिर चीजें ऐसी बनती है जिसमें स्वयं चैतन्य बहता है। ऐसे तो पृथ्वी खेती नहीं करेंगे। वस अपने को कुछ विशेष समझकर के और इसी बहकावे में रहेंगे किन्तु आत्मसाक्षात्कार को पाकर जो विद्याजन होता है उसमें बराबर नीर-क्षीर विवेक आ जाता है। सकता है कि इनके अंदर आप आत्मा का साक्षात्कार करें। आत्मा का साक्षात्कार मिलने से ही सरस्वती की भी चमक कमजोर होते हैं वो भी बहुत अच्छा कार्य करने लग जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार के ही अपनाना चाहं तो वह कला अधूरी रह उसकी कला का नामोनिशान नहीं रह जाता। तो पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके ही सरस्वती की पूजन करना एक बड़ी शुभ वात है। आज का दिन, आप जानते हैं, नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन भी जो शाली वाहन का शक है उसका भी आज पहला दिन है। मतलब बहुत ही शुभ दिवस पर ये कार्य हो रहा है। तो हमें सरस्वती के प्रति उदासीन नहीं रहना चाहिए। मैं देखती हूँ कि जहाँ-जहाँ लोग खेती करते हैं वहाँ- वहाँ धीरे-धीरें उनका संबंध प्रकृति से होता है और प्रकृति की जो खबसूरती हैं उसे वो प्रकट करना चाहते हैं। जो कलाकार होता है वो भी क उसमें अपनी भावना डालकर उसे एक नया रूप दे देता है। आपने ये जो सब बनाया हुआ है कितना कलात्मक है। कितनी सुन्दरता से चक्र बनाए फिर श्री गणेश बनाए हैं :- सब कुछ जब आप कला की शुभ संवेदना समझलेंगे तब आप कलात्मक तत्व से ही बहुत से स्वयंभु निकल आए हैं लेकिन अगर आत्म- साक्षात्कारी मनुष्य कोई है या कोई कलात्मक चीज बनाता है तो उसमें से भी चैतन्य आने लग जाता है। सुन्दर होने के साथ-साथ ऐसी कृति में एक तरह की अनन्त शक्ति होती है। किसी साधारण कलाकार की बनाई कला शीघ्र समाप्त हो जाती है। उसके प्रति न तो लोगों की आस्था होती है और न ही कोई श्रद्धा लेकिन अगर कोई कलाकार आत्म- साक्षात्कारी हो तो उसकी कला अनन्त तक चलती है क्योंकि उसके अन्दर अनन्त की शक्ति निहित होती है क्योंकि उसने जो कुछ भी बनाया बो आत्मा की अनुभूति से पुतला वनाता समझ लेते हैं कि कौन सी चीज अच्छी है और कान सी बुरी है। कौन सी चीज सीखनी चाहिए और कौन सी चीज नहीं सीखनी चाहिए उससे पहले कोई मर्यादाएं नहीं होती। मनुष्य किसी भी रास्ते पर जा सकता है और किसी भी ओर मुड़ सकता है और कोई भी बुरे काम केर सकता है। आजकल आप जानते हैं कि छोटे बच्चां में बहुत सारी बुराइयां आने की संभावना है और बड़ों में तो हो ही रहा है कि डूरग्स आ गए और दुनिया भर की गंदी बातें बच्चे सीख रहे हैं और परेशानी वे चैतन्य लडरी बनाया है, जो आत्मा को रुचिकर है जो आत्मा पसंद करे ऐसी ने इसे सौन्दर्य लहरी कहा । चीज वह बनाता है। कलात्मकता इस तरह से मनुष्य में बहुत सुन्दरता से पनपती हैं और ऐसी जित्तनी भी कला की चीजें हो। सबसे पहले सौन्दर्य में हमेशा वैचित्र्य होना चाहिए, बैराइटी बनती हैं वो हमेशा के लिए संसार में मानी जाती हैं। हिन्दुस्तान होनी चाहिए। परमात्मा ने यदि सबकी शक्ल एक सी बनायी से बाहर भी मैंने देखा कि जो कलाकार आत्मसाक्षात्कारी थे उनकी कला आज तक लोग मानते हैं। एक माइकल एन्जेलों नाम के बड़े भारी कलाकार थे। बहुत सुन्दर उन्होंने रचना की बहुत सुन्दर सब कुछ बनाया। आज तक लोग उसे एक बड़े हो मिलता है विकसित देशों की औरतें तो गुलामों की तरह एक गौरव के साथ समझते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति की कला अनन्त की शक्ति से प्लावित होती है। तो आप लोग भी हैं। उनमें कोई फर्क ही नहीं प्रतीत होता। उनके अन्दर जो आत्मासाक्षात्कारी हो गए हैं। हरियाणा में इतने लोग आत्मसाक्षात्कारी हो गए और अब और भी बहुत सारे लोग आयेंगे, वो भी आपके ही जैसे एक दिन सहजयोगी हो जायेंगे और समझ जायेंगे कि सहजयोग क्या है। किन्तु जब लोग सहजयोग में आ गए तो अब आप कला की ओर अपनी दृष्टि बढ़ायें। कला की ओर दृष्टि बढ़ाने से एक तो जीवन में सौन्दर्य बनाओ तो वह क्रिटिक बैठे हुए उनको पहले पड़तालेंगे कि यह आ जाता है और जीवन का रहन-सहन सुन्दर हो जाता है। ठीक है या नहीं। और दूसरी बात यह बताएंगे कि इसका पैसा उसके लिए जरूरी नहीं कि आप बहुत रुपया-पैसा खर्च करें। मिट्टी में भी कला भरी है। आप मिट्टी की भी कोई चीज उसकी आत्मा ही खत्म हो जाती है। कला आनंदमयी होनी बनायें तो भी वह कलात्मक हो सकती है। हमारे उबड़े-खाबड़े जीवन में यदि धोड़ी सी कला की झलक आ जाए सुख और आनंद मिलता है। इसलिए आप लोगों की दृष्टि अब कला की ओर जाए तो बड़ा अच्छा हो जाए सभी लोगों के लिए। यहाँ के लोग भी कुछ कलात्मक चीजें बनाने का प्रयत्न करें। हाथ से बनी हुई चीजों में चैतन्य बहता है। मशीनों का अत्यधिक प्रयोग करने से ही वातावरण दूषित हो गया है इसका इलाज ही यह है कि आप कलात्मक चीजों की ओर बढ़ें। जब लोग कलात्मक चीजों की ओर बढ़ेंगे तो एक तरह की श्रद्धा कला के प्रति हो जायेगी। सबसे बड़ी बात तो है कि हम हजारों चीजें जो बेकार की खरीदते हैं वो बंद हो जायेंगी। हाथ से बनी चीजों के द्वारा अपने हृदय का आनंद हम दूसरों को समर्पित करते हैं । ये फूल आपने इतने कलाल्मक ढंग से लगाए हैं। इनकी ओर देखते ही हठात मैं निर्विचार हो जाती हूं। मुझे अंदर काई विचार नहीं आता निर्वाज्य निर्विचार होकर के सच में इसे देख रही हूं। इसको बनाने में जिसने जो कुछ भी आनंद इसमें सहजयोगिनी बहुत सर्वसाधारण एक कलाकार थी लेकिन आज डाला है वो पूरा का पूरा मेरे सर से ऐसे बह रहा है जैसे गंगा जी बह रही है। उससे एकदम बहुत शान्त और आनन्दमयी भावना ओ जाती है। जब तक कलात्मक चीजें नहीं हंगी तब तक आपका विचार चलता रहेगा। कलात्मक चौज हठात आपको निर्विचारिता में उतारेंगी और उसका सौन्दर्य देखते हो आपको ऐसा लगेगा कि आप निविचार है क्योंकि सौन्दिर्य देखने है उसमें बो शक्ति जिसे मैं अनन्त की शक्ति कहती हूँ, वह से ही चैतन्य एकदम बहने लगता है और उस सौन्दर्य के कारण ही एकदम से आप निर्विचार हो जाते हैं। इसीलिए आदिशंकारचार्य समाहित होती है और ऐसी बनाई हुई चीजें, ऐसी क्रिया से अब यह सोचना है कि किस तरह से यह सौन्दर्य स्थापित होती तो केसे लगते हम लोग? सभी लोग अलग-अलग प्रकार के कपड़े पहनते हैं। हमारे देश की सभी स्त्रियां अलग ढंग, रंगों की साडियां पहनती है। यह वैचित्र्य केंवल हमारे देश में ही ही प्रकार के फैशन करती हैं। एक ही प्रकार के बाल बनवाती आत्मा है वह दरबी हुई है। उनमें न बैचित्र्य है और न ही सृजन शक्ति। अब कला का भी यही हाल हो गया है। विदेशों में अच्छी कला कृतियां अधिक नहीं निकलतीं। कंवल आलोचक हो रह गए हैं आलोचक दूसरे आलोचकों की आलोचना में लगा है अब कलाकार भी डरते हैं क्योंकि कोई सी भी कला कितना मिल सकता है। जब कला पैसे पर उतर आती है तब चाहिए न कि उससे कितना पैसा मिले। तो बड़ा जब आपकी यह धारणा और लक्ष्य हो जाएगा तो स्वयं आत्मा ही आपको ऐसी प्रेरणा देगा कि आप ऐसी-एसी सुन्दर चीजें बनायेंगे जो भूतो न भविष्यति पहले कभी बनी नहीं और न बनेगी। एक से एक कलात्मक चीजं लोग बनायेंगे और शांत प्रकृति गांवों के लोग इस प्रकार की रचना कर सकते हैं । शान्तिमय, ध्यानावस्था में रहे बिना कला सृजन अधूरा रह जाता है या मर्यादा विहीन। आपको कला का तंत्र तथा तकनीक मालूम होनी चाहिए। जब आपको आत्मसाक्षात्का होता है तभी आपकी सृजन कला बढ़ जाती है हमने देखा है सहजयोंग में आने के वाद बहुत सारे संगीतकार जग प्रसिद्ध हो गए। गणित जानने वाले चार्टेड अकाउण्टेंट कवि हो गए। उन्होंने पहले कभी कविता नहीं लिखी। इसी प्रकार जो कभी स्टेज पर नहीं आए वो बड़े-बड़े भाषण दे रहे हैं, जिन्होंने गाना कभी गाया नहीं था वो बहुत सुन्दर गाना गाने लग गए। आस्ट्रेलिया में एक उसका सारी दुनिया में नाम फेल गया है। इस प्रकार जब आप पर सरस्वती जी की कृपा होती है तो आप कलाकार बन जाते हैं लेकिन आप आत्मसाक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं। जब आप आत्म- साक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं तब आपका सारा ही व्यक्तित्व बदल जाता है और जो भी सृजन आप करते जिसने कोई सा भी कार्य सम्पन्न किया हो, उसकी कीमत चैतन्य लहरी 10 आंकी ही नहीं जा सकती और अनन्त तक उसकी सौन्दर्य नहीं था। एकदम सीधे-सीधे चले आए और अब जबसे इनको शक्ति प्रदर्शित होती रहती है। चाहे वह कलाकार को मृत्यु को हजारों वर्ष हो जाए तो भी लोग उस कला को देखकर के सीख गए। एक तो हिन्दी भाषा सीख गए, फिर अब वहुत कहते हैं कितनी सुन्दर चीज है। सहजयोगियों के लिए बहुत जरूरी है कि वह कला में किया। अब उनको लगता हैं अब क्या बनायें। फिर इन्होंने एक उतरें और कला को समझें। आपके साथ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे। विशेषकर के आज जो आप आत्मसाक्षात्कारी चीजें वो बनाने में लगे हुए हैं। ऐसी जो अंदर से प्रेरण आती है हुए हैं ये तो और भी अच्छी बात है कि आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है। जैसे हमारे स्कूलों में परदेश से बच्चे आए इन्होंने कभी कुछ ड्राईंग नहीं किया, इन्हें कुछ पता आत्मसाक्षात्कार मिला है एकदम से ही वो इस कदर बढ़िया सुन्दर चित्रकारी करते हैं, फिर अब मिट्टी के बर्तन बनाना शुरु का घर बनाया फिर उसके ऊपर माडी बनायी और तरह-तरह की बह भी सहजयोग की वजह से और इस प्रेरणा को पूरित करने वाली शक्ति भी सहजयोग से आ जाती है। और आप सबको अनन्त आशीर्वाद। जन कार्यक्रम कवि नगर गाजियाबाद 25.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण लग जाती है धर्म पर कि धर्म क्या चीज है? ये तो सब एक तमाशा है, एक ढकोसला है। कोई भी धर्म गलत नहीं। कोई भी अवतरण गलत नहीं। कोई भी संत, साधु, दृष्टियोगी गलत नहीं। गलत तो वो लोग हैं जो इनको अपने हाथ में ले लेते हैं और धर्म को बेच रहे हैं। चाहे वो सत्ता के लिए लड़ें या पैसों के लिए। इस सत्ता की खोज में न जाने कितने युद्ध हो गए सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम। जैसा मैंने पहले भी कहा है कि सत्य अपनी जगह है और उसे हम बदल नहीं सकते, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, हमें बुद्धि से परे उठना है क्योंकि मानव चेतना से सत्य को नहीं जान सकते। सब धर्मों में यही कहा गया है कि आपका पुनर्जन्म होना जरूरी है। लेकिन किसी न किसी कर्मकाण्ड के आडम्बर में हम लोगों को धर्म मार्तण्डों ने फंसा दिया। ये लोग भगवान के नाम पर पैसा बनाना चाहते हैं या सत्ता हथियाना चाहते हैं। सत्ता और जनसमुदाय के लिए यह समझना मुश्किल था कि ये लोग सही कहते हैं या गलत। उन्होंने जो कह दिया करने लग गए। जैसे आजकल एक आधुनिक उदाहरण मैं बताती हूँ कि बहुत सी औरतें संतोषी माँ का उपवास करती हैं और बीमारी मोल लेते हैं। ये सिनेमा वालों ने संतोषी माँ बनाई। अब ये फिल्म वाले कोई देवी बना सकते हैं। जो स्वयं संतोष का स्रोत है वो कैसे संतोषी हो सकते हैं? सभी धर्मों में इस प्रकार की चीजें घुस गई हैं। असली को छोड़ हम नकली की अपना बैठे हैं। आज ही कोई साहब बता रहे थे कि कुंभ के मेले में हजारों लोग मर गए। हजारों सदियों से कुंभ का मेला होता है और एसा शास्त्र में कहीं कहा गया है कि जिस वक्त ये समय आता है उस समय सरस्वती का पात्र खुल जाता है और उसमें नहाने से पाप धुल जाते हैं। पर हिन्दुस्तान में देखते हुए पाप कुछ घटे तो नहीं कुछ बढ़ ही गए हैं। कुछ शंका होने भगवान के नाम पर न जाने कितने मर गए। लेकिन अब आप लोग नोएडा में मैं देखती हूँ सहजयोंग में उतर आये हैं और जो लोग सहज में उतर आए है वो तो सभी धर्मों को मानने लगे और नहीं मानते हैं तो मानना पड़ेगा। सब अवतरणों को पूजा करनी पड़ेगी नहीं तो आप सहज में परिपक्व नहीं हो क्योंकि हम तो विश्व धर्म में विश्वास करते हैं। उसमें सारे हो धर्म समाहित हैं सबको जोड़ने की बात हैं तोड़ने की नहीं। हममें है अपने ही धर्म को अच्छा समझने की गलतफहमी, आप किसी भी धर्म के हो आप हर तरह का पाप कर्म कर सकते हैं कोई आपको रोकने वाला नहीं। पर सहजयोग में आकर भी यदि आप कुछ गलत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि सहजयोग आपमें घटित ही नहीं हुआ। लेबल लगा लेने से कोई सहजयोगी नहीं बन जाता। सहजयोग में सहजयोगी बनना पड़ता है जैसे एक चीज़ को वृक्ष बनना पड़ता है। जब वो घटित हो जाता है तो बो समर्थ हो जाता है उसक अन्दर इतनी शक्तियां धीरे-धीरे जागृत हो जाती है कि वो सबको ही जागृति दे 11 चैतन्य लहरो बताएंगे कि, आपने इतना दे दिया। ये सब परम-चैतन्य आपको दे रहा है क्योंकि आपका हृदय प्रेम से भरा जा चुका है जिस सकता है, लोगों की बीमारियां ठीक कर सकता है, सारे ज्ञान का वो भण्डार बन जाता है। उसकी सारी त्रुटियां खत्म हो करको वो एक परिपक्व इंसान जिसका मस्तिष्क बहुत प्रगल्भ मनुष्य के हृदय में प्रेम आ जाए शुद्ध प्रेम तो ये तो परम-चैतन्य स्वयं ही आपके अन्दर आ गया क्योंंकि ये भी शुद्ध प्रम है और यही आपके हृदय में भी हैं तो ऐसा हृदय जिसमें ये शुद्ध प्रम विराज रहा है उसका संबंध तो हो ही गया उस परम-चैतन्य से। तो क्या यह परम-चैतन्य उस हृदय का नन्ही बालक समझ करके उसकी पूरी मदद नहीं करेगा? उसको नहीं दखगा? और जब यह परम-चैतन्य आपके हर पल, हर घड़ी रक्षा करेगा, आपकी इच्छाएं पूरी करेगा, आपमें संतुलन और दुनियाभर का प्यार दे देगा, जब ऐसी आपको सुन्दर प्रकृति हो जाएगा आपको देखकर बाग के फूल भी खल उठे ओर वन के पड़ भी आनन्द से भर जाएं ऐसी जब आपकी सुन्दर प्रकृति हाने लगेगी तब आपका विश्वास अपने ऊपर और सहजयोग के बन जाता है जिसे गीता में स्थित प्रज्ञ कहा गया, नानक साहब ने खालिस कहा और बुद्ध ने इसको बुद्ध कहा। धर्म बाह्य नहीं अन्दर होना चाहिए धर्म अन्दर लाने के लिए खालिस होना पड़ेंगा, स्वच्छ होना पड़ेगा। तो सहजयोग में आने के बाद हर बार देखना चाहिए कि हमारा हृदय स्वच्छ हुआ कि नहीं, अब भी उसमें आस-पास की ईष्ष्या, आस-पास का दोष यही सब उमड़ रहा है । इस दिल को आप जब साफ करेंगे तभी तो परमात्मा का प्रेम इसमें भरेगा। सहजयोग में आने के बाद भी कुछ लोग एक-दूसरे की बुराई देखते हैं तथा परस्पर स्पर्धा करते हैं। किन्तु अगर अच्छाई में स्पर्धा शुरु हो जाए तो सबकी अच्छाई बढ़ जाएगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा। अजीब बात ये कि आत्मा का प्रकाश पूरी तरह से हमारे चित्त में आया नहीं हमारे हृदय में पूरी तरह से बसा नहीं तो सहजयोगी होने पर भी डांवाडोल मामले चलते हैं और जब चलते हैं तो आपसी झगड़े हो जाएंगे गुटवाजी हो जाएगी। तो ऊपर दृढ़ हो जाएगा। जब तक ये विश्वास अन्धा था अन्धेपन से आप दुनियाभर के कर्मकाण्ड कर रहे थे तब तक एक अन्धे की लाठी जहाँ चल जाए। इसी प्रकार आपका जीवन था मान लीजिए यहाँ सब अन्धे बैठे जाएं तो वह समझेंगे नहों कि किसके पास बैठे हैं किससे कितनी दूरी पर है क्यो हैं अगर ये डांवाडोल मामले हम अपना नुकसान कर रहे हैं दूसरे का नहीं। जरा गरदन उनको बाहर भी ले जाना है तो उनको हाथ पकड़ कर ले जाना पड़ेगा पर फिर ऐसा लगता है कि यह परम-चैतन्य जो हैं ये मेरा हाथ पकड़ कर मुझे इधर ले जा रहा है। मान लीजिए कि कहीं जा रहे हैं रास्ता भूल गए तो परम चैतन्य जहाँ जाना है उधर ले जा सकता है। मैं क्या करू ये परम-चैतन्य मुझे ले जा रहा है। इसी के साथ में चले जाओ|। सारी जिम्मेदारी इस परम चैतन्य ने ले ली, ये बात आपकी समझ में आ जाएगी। जब ये बात आपकी समझ में आ जाए तब ये जो अन्धश्रद्धा है ये श्रद्धा बन जाएगी और विश्वास श्रद्धामय होगा। क्योंकि आपने सत्य को जाना और सत्य को जानते ही आपने इसको अपनाया है इसलिए सत्य आपके साथ खड़ा रहेगा। और जो इंसान सत्य पर खड़ा रहता है उसको कोई डिगा नहीं सकता। अगर उसको कोई डिगाता है तो वह हैं असत्या क्योंकि वह समर्थ हो जाता है। ईसा मसीह को एक बार एक बैश्या के सामने खड़ा होना पड़ा क्योंकि लोग उसे पत्थर मार रहे थे वो जाकर उस वैश्या के सामने खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि आपमें से जिसने पाप नहीं किया हो वह मुझे पत्थर मारे इस झुकाइए तो आप देखेंगे इस हृदय में आत्मा है, पर गरदन झुकाने की जरूरत है। पर आप कहेंगे कि मैं क्यों झुकू? तो ये आप नहीं आपका अहंकार बोल रहा हैं। इस अहंकार को और आपको झुकाना पड़ेगा। थोड़ी सी सख्ती कीजिए इसके साथ आपको आश्चर्य होगा कि आपके हृदय का कमल खिलने लग गया और उसका सौरभ, उसका सुगंध सारे संसार में फैलने लगा। तब फिर आपकी कुण्डलिनी भी चल पड़ेगी आपकी तन्दुरुस्ती ठीक हो जाएगी आपकी कमजोरियां खत्म हो जायेंगी | किन्तु पहले हृदय खोलने की जरूरत है। ये ठीक है आप पार हो जाइए। आप सहजयोग पर लम्बे लेक्चर दे सकते हैं, सब बुद्धि का करिश्मा हो सकता है। आपके हाथ से थोड़े लोग जागृत भी हो जायेंगे लेकिन न आप आगे जा सकते हैं न ही वो लोग आगे। जिसने इस प्रेम से हृदय को भर लिया वही असली सहजयोगी है। इस शुद्ध प्रेम से भरे हुए हृदय को चारों तरफ फैला हुआ ये चैतन्य जानता है। जब आपका हृदय प्रेम से भर जाता है तो ये सारा चैतन्य जो है वो अपने गण भेज कर आपके आगे-पीछे दौड़ता है। आपकी जरूरतों को पूरा करता है ये हमेशा लोग मुझे बताते है माँ मेरे साथ तो ऐसा चमत्कार हुआ, मुझे तो आप ने ऐसा दे दिया. मैंने वैश्या को नहीं। असल में ईसा मसीह का और वैश्या का क्या संबंध? कुछ भी नहीं। लेकिन सत्य का और उनका संबंध था उस सत्य की बुनियाद पर खड़े होकर उन्होंने कहा तो सबने कुछ दिया भी नहीं, कुछ भी नहीं, लेकिन वो इतना चैतन्य लहरी 12 पत्थर फेंक दिए और सब भाग गए। ऐसी प्रखर सत्य की शक्ति है जो हर तरह की नारकीय या पाशविकर प्रवृत्तियां हैं, जो दुष्टता का हमारे अन्दर भाव है, उसको पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं। सिर्फ खड़े होने की जरूरत है और खड़ा होना है सकते हैं, भयंकर क्रोध आता है, अहंकारी लोगों को और फिर डाक्टरों की जेबें भी भर सकता है। आप इस संसार में किसलिए आए हैं? पीड़ित रहने क लिए और सबको पीड़ा देने के लिए कि इस जीवन का आनन्द उठाने के लिए? वो आनन्द आप अन्धश्रद्धा से नहीं पा सकते। जैस अन्धे क्री कोई सा रंग नहीं दिखाई देता उसी प्रकार इस सत्य की श्रद्धा पर। श्रद्धा का मामला मैंने बड़ा जबरदस्त देखा अभी युगोस्लाविया में एक स्त्री बहुत बीमार थी और पता नहीं उसको कितनी बीमारियां थीं बेचारी को। तो उनको एक कुर्सी पर बिठाकर मेरे सामने लाया गया। टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहने लगी माँ आप मुझे एकदम ठीक करें। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे ठीक कर सकती हैं। मैंन पूछा कि वास्तव में तुम्हें विश्वास कि मैं तुम्हें ठीक करूंगी? हां मुझे पूर्ण विश्वास है। अच्छा तो खड़ी हो जाओं। खड़ी हो गई वो, मैं तो ठीक हो गई सीढ़ियां उतर कर नीचे गई और लगी दौड़ने। सब लोग देखने लगे. हंसने लगे। जिस परम-विश्वास के साथ उसने यें बात कही ऐसा विश्वास सहजयोगियों के हृदय में बैठना चाहिए कि हमारे लिए है अच्छा तो फिर तुम्हें जो करना है कर से को कभी भी परमात्मा के प्यार की छटा अन्धश्रद्धा मनुष्य भी नहीं मिल सकती, जान भी नहीं सकता कि परमात्मा कितना प्रेम से भरा हुआ है। उसकी उसको चाह तक कभी नहीं मिल सकती। एक बूंद भी उसकी बो नहीं पा सकता जो कि साक्षात आनन्द स्वरूप है चारों तरफ फेला हुआ है। तो हम क्यों बेकार में ही इस गतं में पड़े हुए गोते लगा रहे हैं जबकि इतना आसान है उस को पाना। क्यों न उसे हम प्राप्त करें जब कि हमारा अधिकार है इसे प्राप्त करना। हम इंसान है पहुंचे गए माँजल तक, थोड़ा और आगे जाना है। लेकिन मंजिल तक आने तक इतनी गठरियां सर पर आपने लाद ली जो मिला से परम-चेतन्य कहता लाद लाए। अब दो कदम भी चलना नहीं हो सकता। कितने ही लोगों से मैंने कहा कि अब कर्मकाण्ड छोड़ो। एंसे कैसे हा है ल। जब तक हम परम-विश्वास को प्राप्त नहीं करेंगे तब तक हमने जाना हो नहीं कि सत्य क्या है? सत्य यह है कि परमात्मा सकता माताजी, हम तो शुरु से ही करते आ रहे हैं। शुरु से रोज सवरे में एक हजार बार राम का नाम लेती हूँ। अच्छा भई चाहते हैं कि आप उनके साम्राज्य में आएं और उनका साम्राज्य फिर आपकी विशुद्धि तो पकड़ रही है और आपको अस्थमा है। जो राम का स्थान हैं। क्या फायदा हुआ आपको? लेकिन बो मुझसे नहीं छूटने वाला चाहे कुछ कर लीजिए। इसकी लत तो मैं समझती हूँ कि शराब से भी बदतर है, जो एक बार आदत पड़ गई वो लत पड़ती चली गई। शराब छूट जाएगी पर ये लत नहीं छूटती। अरे भई तुम्हारा ये विशुद्धि चक्र खराब होता चला जा रहा है और ये तुम्हारा दायां हृदय पकड़ रहा है, तुम्हें अस्थमा की शिकायत हो गई। श्री राम का स्थान है श्री राम ही तुमसे नाराज हैं। मैं क्या करू माताजी मुझ से छूटता ही नहीं। ऐसी-ऐसी आदतें हम लोगां ने लगा ली। जैसे कि किसी आदमी में गाली-गलौच करने की आदत है और उसका कोई इस कदर कार्यशील है, कार्यदक्ष है, कार्यक्षम हे कि कोई बात यहाँ कहिए जाकर अमेरिका में हो जाती है। न जाने संचार इतना जबरदस्त कैसे हुए एक चीज़ नहीं छुपती । पर उसके लिए आपको योग्य होना चाहिए। आपमें योग्यता नहीं तो ये कार्य नही होने वाला। इसके लिए कुण्डलिनी का जागरण मात्र चाहिए। वो तो अभी हो ही जाएगा आप सबका, इसमें कोई शंका नहीं। किन्तु ये जो संबंध है, योग है चारों तरफ फैली हुई इस परमात्मा की सृष्टि से जो संबंध हे वो जब तक आप कायम नहीं करेंगे तब तक आप ऐसे डोलते ही रहेंगे उसकी विधियां भी सहजयोग में बहुत ही सीधे और सरल हैं कोई आपको हिमालय नहीं जाना, न ही कोई जप, तप, ब्रत करने हैं सिर्फ सुबह पांच मिनट शाम को दस मिनट भी अगर आपने ध्यान किया और आप सामूहिकता में अपना सारा घमंड छोड़ कर चले आए तो कार्य हो जाएगा। पर अहंकार की भावना लेकर जो चलते हैं वो सहजयोग में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। सहजयाग अहंकारियों के लिए नहीं। हां उनके लिए और चीजें हैं जैसे उन्हें अस्थमा, दिल का दौरा, रक्तचाप, इलाज नहीं हुआ। उसको किसी ने कहा कि अच्छा अब आप चलिए किसी राजा के स्थान पर बैठिए तो वो बहाँ से ही गालियां देना शुरु कर देगा। ये भूल जाएगा कि मैं राजा के स्थान पर बैठा हूँ मुझे कायदे से बैठना है। वहाँ से हो गालियां देनी शुरु कर देगा। ऐसे लोग पाल्लियामेन्ट में चले जाइए, काह को लोगों को परेशान करते हो। वहाँ चल जाएगा ये काम, जिस स्थान पर आपको बैठना है उसकी लियाकत भी होनी चाहिए। ये तो जरूरी चीज है। तो पहली चीज ये कि कृण्डलिनी पक्षबात, शक्कर रोग, रक्त कैंसर, कब्ज़, गुर्दारोंग आदि हो सकते हैं पक्षघात, डायबिटीज़ हो सकता है, गुर्दे भी खराब हो चैतन्य लहरी 13 जागरण के बाद अपने को तोलना चाहिए कि मैं कहाँ हूँ? अच्छी गाड़ी या कपड़े लियाकत नहीं लियाकत है आपके चित्त में आपकी श्रद्धा और दूसरा कि सहजयोग की युक्ति हैं। योग का मतलब दो होता है उस परमात्मा के प्रेम की शक्ति से एकाकारिता और दूसरा है युक्ति माने इल्म । उसका इल्म भी आपने सीखा कि नहीं? जैसे एक आपने दीप जला दिया अब को काट, कहीं मुर्दे को काट, सात साल में तो कोई पास नहीं होता है आठ-दस साल में कहीं कोई पास हो गए तो कहीं जाकर आप डाक्टर हो पायेंगे। फिर भी गर किसी अस्पताल में आप गए और कहा कि पता लगाओ इनको क्या बीमारियां हैं ती आपकी पूरी आंतंड़ियां निकाल देंगे, आंख निकाल के धो कर फिर कर देंगे और कहेंगे आपको कोई बीमारी नहीं है। ये दांत निकाल के धो कर फिट कर देंगे। लेकिन सहजयोग में तो आप खड़े हो जाइए फौरन पता चल जाता है एक मिनट में क्या तकलीफें हैं। फौरन पता हो जाता है कि आपको क्या तकलीफें है और दूसरे को क्या तकलीफें हैं तो संवेदना अपने अन्दर लानी पड़ेगी। साथ ही इल्म भी आना चाहिए कि इसमें हमने अभी देखा कि इसको ठीक कैसे किया गया| अभी एक साहब इस दीप का अगर काम है प्रकाश देना और ये प्रकाश नहीं दे सकता तो ऐसे दीप का क्या फायदा? पर जो सहजयोगी सहजयोग के बारे में जानता नहीं है कि ये चक्र क्या है, वो चक्र क्या है, या इसको ठीक करने का तरीका क्या है, मैेरे अन्दर कौन से दोष हैं, उसे में किस तरह से ठीक करूं और जन साधारण में जो दोष हैं जिनके लिए मैंने इस प्रकाश को पाया है उसको मैं किस प्रकार से प्रकाशित करूं? ये अगर विचार हमारे अन्दर है ही नहीं तो सहजयोग में आकर आप क्या कर रहे हैं? आपको पता होना चाहिए कि सहजयोग एक महान आंदोलन है और जैसे कि बुद्ध ने कहा था कि बोधिसत्व ने कहा कि माँ मैं जब दूसरों को ठीक करता हूँ तो मैं कमजोर हो जाता हूं। क्योंकि आप सोच रहे हैं आप कर रहे हैं। आप मेरा फोटो रखो कहना माँ तुम्हीं कर रही हो, हो गया काम खत्म। आप अपने ऊपर ले लेते हो तब यह प्रश्न खड़े हो जाते हैं। का जमाना आएगा। कहा था 'मात्रिया' तीन माँ 'मात्रेया' और बोधिसत्व के जमाने में जो लोग बुद्ध होंगे, एन्लाइटेएण्ड होंगे, प्रकाशित होंगे वो जन साधारण का कल्याण करेंगे और सारे समाज में इसे फैलायेंगे। ये बन्धन हैं। अकेले बैठ के तो शरीबी भी शराब नहीं पीता फिर क्या ये अमृत आप अकेले पियेंगे? मजा आपको तभी आएगा जब आप इसे बांटैंगे और बांटने के लिए इसका इल्म होना चाहिए। जैसे कोई भी मशीन है, ठीक है उसको आपको दे दिया, भई इसमें स्विच लगा दो और काम नोएडा में सहज़योग बड़े जोरों में बढ़ रहा है। इसमें कोई शंका नही पता नही मुझे भी यहीं जमीन मिल गई यहीं पर घर हमारा भी बन रहा है। कुछ बात है ही नोएडा की ऐसी पर यहाँ के सहजयोगियों को सहजयोग का इल्म कितना मालूम है वो मैं जरूर देखूंगी। इल्म जरूर मालूम करना ही पड़ेगा नहीं तो ऐसा हुआ जैसे आप किसी यूनिवर्सिटी में फर्स्ट ईयर में फेल हो कर रह गए। जब तक आपको इसमें पूरा गुरुत्व (मास्टरी) नहीं आ जाएगी तब तक आप सहजयोग में बिल्कुल बेकार आए हैं। आपका कोई उपयोग नहीं। जंगलों में लाईट लगाने से हो जाएगा। पर बाद में तो आपको सीखना ही पड़ेगा कि ये है क्या चीज? ये चल कैसे गई क्योंकि आपको जन साधारण में क्या फायदा? समाज में हमको प्रकाश देना है। अब आपको जाना है सबको बताना है समझाना है। वो कहेंगे अच्छा भई तुमने क्या पाया? मुझे तो ऐसी ठंडी-ठंडी बस हो गया क्या नहीं वैसे हमारा बिजनेस अच्छा समाज में उतरना पड़ेगा, भागना नहीं है समाज से, गन्दगी से भागिए पर समाज से भागने की जरूरत नहीं है आपको। देखते ही आपके प्रकाशित जीवन को, आपके नूर को देखकर ही और पूछेंगे भई है क्या बात? बताइए धीरे-धीरे उनकी खुद समझ में आ जाएगा। इसलिए जबरदस्ती करने की कोई जरूरत नहीं। समाज में आ भी गए तो जैसे एक वैसे दस। उससे फायदा क्या होनेमें जब तक आप कार्यान्वित नहीं होंगे, सिर्फ हां भई मेरी तो वाला है किसी को? इसलिए आपको इल्म सीखना पड़ेगा। तबियत ठीक हो गई, मेरे बच्चे को भी नौकरी मिल गई। मेरा, इसकी तकनीक जिसे कहते हैं हिन्दी में शब्द इन्होंने बनाया है मेरा, जब तक चलेगा तब तक आप सहजयोगी नहीं भले ही आप मेरा बैज लगा के घूमें। हम तो चाहते हैं, एक माँ तो जरूर हैं लेकिन चाहते हैं, कि जो कुछ हमारे अन्दर है सब हमारे बच्चे इसी तरह से पनप जायें, उससे भी आगे चले जायें| हड्डियों के एक-एक पुर्जे को याद करना पड़ता है कहीं बच्चे उसके लिए जो भी आप कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूँ जो चैतन्य की लहरियां आ गई लोग समझ लेंगे कि ये चीज कुछ और ही है हो गया, मेरी बहू को बेटा नहीं होता था उसका बेटा हो गया मेरे घर की समस्या थी वह ठीक हो गयी, आदि-आदि। ऐसी बाते बतायेंगे। चलो इस पर भी कोई विश्वास करके सहजयोग टेकनीक से तकनीक। इसकी तकनीक सीखनी पड़ेगी हर एक सहजयोगी को। बहुत ही आसानी से सीखते हैं। मैं भी मेड़िकल कॉलेज में पढ़ी हूँ बाप रे बाप! हड्डियां लेकर सोना पड़ता था। मा चैतन्य लहरी 14 भी मेहनत कहेंगे वो करने को तैयार हूँ। मैं देखती क्या हूँ माँ मेरी तो बीमारी ठीक ही नहीं हो रही है, माँ मेरा ये नहीं हो रहा वो नहीं हो रहा ये ही रोना गाना करते रहते हैं। ये क्या तुम सहजयोग में आए हो? गर सहजयोग में आने से आपकी बीमारी ठीक नहीं होती तो आपमें कोई न कोई खराबी है। सहजयोग में कोई खराबी नहीं है। अच्छा हो आप फिर से जन्म लें। छोड़ो सहजयोग को ऐसा सहजयोग क्यों करते हो? बेहतर है आप छोड़ कर चले जाओ और सबको बख्शो! रोज मुझे 5-6 बजे तक बैठना पड़ता सब रोना लेके लोग पहुंच जाते हैं। ऐसा कोई जब कहे कि अब कहिएगा सो करेगा तब आपके साथ बेइंसाफी नहीं होगी। इंसाफ पूरी तरह से आपके साथ इस तरह से होगा कि आप भरपूर हो जायें। ऐसे भी बहुत से लोग सहजयोग में मिले हैं, अब मिलते हैं, इस नोएडा में भी हैं, और इस दिल्ली शहर में भी हैं जहाँ मैं तो सोचती थी कि बबूल के झाड़ू के सिवा कोई झाड़ ही नहीं हो सकता। वहाँ आज इतने गुलाब खिल गए हैं, हर जगह इतना कार्य हो गया। लेकिन आपको भी इसी में स्पर्धा करना है कि हम भी ऐसे हो कर दिखायेंगे इसके लिए आपको किसी कॉलेज में भर्ती नहीं होना, कोई आपको पैसा नहीं देना है, कोई खर्चा नहीं करना है। सिर्फ पूर्ण शुद्ध इच्छा अन्दर होनी चाहिए और इस इच्छा को क्रिया में परिवर्तित करना चाहिए। फिर देखिए आप कहाँ से कहाँ चले जाते हैं और कहाँ से कहाँ आप कार्य करते हैं। क्ण्डलिनी के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं और बता भी देंगे चक्र भी बता देंगे। उसके नम्बर भी बता देंगे। लेकिन इल्म हमारे अन्दर कितना है वो देखना चाहिए। इस प्रकाश को संजोने के लिए सबसे पहले हमें अपनी इज्जत करनी चाहिए कि हम अब सहजयोगी हैं । अब हम ये नहीं कर सकंगे और यही कर सकेंगे। इस नतीजे पर पहुंच जाना पड़ेगा। अपने प्रति पहले श्रद्धा, प्रेम और विश्वास होना चाहिए कि हम ये करके दिखायेंगे। हम सब है, सर्वेरे 6 बजे से 6 बजे तक यही नहीं चाहिए माँ, सब मिले गया, अब बस ठीक चल रहा कुछ है। तब फिर तबीयत बनती है और सोचते है कि ये समझ गए हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है। हमारा मार्ग तो ठीक हो गया लेकिन ये मार्ग कहाँ पहुचता है और हमें इसमें अग्रसर होना है, इसमें बढ़ना है। तो हमें क्या करना है उसके लिए? क्या प्राप्त करना है? और सब चीजों में तो हम बहुत स्पर्धा लगाते हैं कि गर हमने एम.बी.बी.एस किया तो एम.डी कर लें। दुनिया भर की धन्धे में भी आज हमने छोटी सी फैक्टरी खोली कल उसकी डबल फैक्टरी खोलें। उसके बाद चार गुणा ज्यादा फैक्टरी खोलें। एक दो साड़ियां हैं तो उसको दस साड़ियां होनी चाहिए, गर जेवर एक है तो दस जेवर होने चाहिए, किसे सब कुछ करना है। अरे वो बड़ा अच्छा जवर पहन के आई थी मैंने पूछा कौन से दुकान से लाई थी उसी दुकान में जाकर जेवर खरीदूंगी। इस मामलें में बड़ी स्पर्धा है फिर हमारे पुरुषों की भी जो स्पर्धा है। उसका भी कोई अन्त नहीं। रात दिन माँ मेरे ऑफिस में डिप्टी सेकेट्री है मुझे उसकी नौकरी चाहिए पर बो कुछ छोड़ दंगे। बाप-दादा हमारे करते रहे, करते रहे होंगे | लेकिन आज हम सहजयोग पर खड़े हुए हैं और हम करके दिखा सकते हैं। सब बेकार चीजें हम छोड़ देंगे और असलियत पर उतर आयेंगे। बस ये गर आपने ठान लिया तो देखिए ये सारे कार्य कितने सहजयोग में हो सकते हैं। शुरु में तो परम-चैतन्य आपको अनन्त चमत्कार दिखायेंगे। आपको एकदम कहीं से पेसा मिल जाएगा, एकदम से कोई बड़ा भारी लाभ हो जाएगा। मन में आपके शांति आ जाएगी, जिससे दुश्मनी थी उससे दोस्ती हो जाएगी सब कुछ हो जाएगा। ये भी एक प्रलोभन है। अब मुझे यहाँ आना था रास्ते में बहुत सी चीजें देखने की थी और गर मैं बीच में ही उतर जाती तो यहाँ कैसे पहुंचती? तो किसी भी प्रलोभन में नहीं पड़ना है। अपनी मंजिल पर जाना है और आपकी मंजिल है पूरी तरह से सहजयोग में प्रबुद्ध, पूरी शक्ति सहजयोग की आपके अन्दर आनी चाहिए और उस सामर्थ्य के साथ सबसे बड़ा गुण है प्रेम। उसका सबसे बड़ा अलंकार है नम्रता, और उसका सबसे बड़ा देना है आशीष। तो हटता ही नहीं। उसको किसी तरह हटाने की व्यवस्था करें। अब यही धंधा मुझे करना है? अच्छा तो फिर ऐसा है उस तांत्रिक के पास मैं गया था उसने पैसे ले लिए पर उसने उस डिप्टी सेकेट्री को हटाया नहीं। मैंने कहा भाई तुम किसी दूसरे के पास जाओ। मेरे पास इसका कोई इल्म नहीं। ऐसे लोगों के लिए सहजयाग नहीं है। स्पर्धा करनी चाहिए इसमें कि मैं कब उस चरम सीमा पर पहुंच जाऊं जहाँ मेरे अन्दर कोई सी भी वुरी बात ही न आए। ऐसा मेरा हृदय का कुंभ प्यार से लबलबा जाए कि उससे सारी गलत चीजें जो हैं एकदम खत्म हो जाएं। इस तरह की भावना गर हमारे अन्दर जागृत हो जाए तो ये परम-चैतन्य बैठा है, आपकी चरण सेवा करने के लिए जो परमात्मा आप सबको सुबुद्धि दें, सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 15 जन कार्यक्रम |ु. नोएडा, 26.3.92 रजनीश ने सब को बताया कि मैं भगवान हूँ तो उन्होंने मान लिया। मैंने पूछा आपने मान क्यों लिया? कहने लगे कोई झूठ क्यों बोलेगा? अरे मैंने कहा हमारे यहाँ ऐसे-ऐसे झूठ बोलने वाले हैं कि आप को बिठा देंगे एक तरफ वहां के लोगों को विश्वास नहीं होता कि भारत के लोग झूठ बोलते हैं लेकिन अपने यहाँ हम लोग सुबह से शाम तक झूठ बोलते हैं। कुछ लोग तो ऐसे हैं सौ झूठ न बोल ले तब तक उनको खाना हो सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम । बहुत ने तो खोज लिया है नोएडा में और बहुत खोजने के लिए आए हुए हैं। वास्तव में इस कलयुग में मनुष्य भान्ति में पड़ गया है। हर तरफ प्रगति हो रही है। विदेशों में तो बहुत ज्यादा प्रगति हो गई। लक्ष्मी भी भरपूर मिल गई उन लोगों को। लेकिन उनकी तहस-नहस हो रहा है। उनके बाल-बच्चे सब बिगड़ गए हैं और बड़े-बृढ़े जो वहाँ है उनकी भी अक्ल ठिकाने लग गई है। लोगों की समझ में नहीं आता कि अब हमारा भविष्य क्या है हम कहाँ जायें। सब तरफ ही समृद्धि है - सभी के पास घर हैं, मोटरें हैं लेकिन इस कदर अशान्ति है, अशान्ति के नहीं पचता। पहले जमाने में जब हमारी देश की नीति बनायी गयी थी तो लिखा था 'सत्यं वद प्रियं बद'। सच बोलो और प्रिय बोलो। साथ ही साथ भयंकर हिसांचार है और सारा समाज अपने अब इन दोनों का तो मेल ही नहीं बैठउता। आप किसी को सच सर्वनाश की ओर लक्ष्य किए है । ऐसी नयो-नयी बातें निकालते हैं कि उससे मनुष्य का सर्वनाश कैसे हो जाए। न जाने उनकी बुद्धि इतनी क्यों फिर गई है? ऐसी जगह में जहाँ बहुत पढ़ लिख करके इतने तकनीक (टैक्नालॉजी) में इतने होशियार हो गए, सब तरह का इन्तजाम और वहीं पर सोचने लग गए कि ये सब मशीन जैसे हम काम कर रहे हैं। लेकिन हम तो इन्सान हैं मशीन तो नहीं। न माँ अपने बच्चों का प्यार करती है न ही बात बताओ तो एक तो वो बिगड़ ही जाएगा। तो उन्होंने कहा ने कि भई सत्य और प्रिय का मेल हो सकता है। श्री कृष्ण इसका मंल बनाया कि सत्य कहो, हित कहो और प्रिय कही। बिना अपमानित किए यदि आप किसी के हित की बात कहें तो उसे वो चीज तो प्रिय लग जाएगी। इसलिए आपका हित की बात, और हित की जो आत्मा के हित में हो, ऐसी बात कहनी चाहिए। लेकिन जो विदेश के लोग हैं इनका पाप साँ के खिलाफ है। माँ के विरोध में। जिसमें वो अनैतिक हो गए। किसी भी प्रकार की नीतिमत्ता को मानना बो बेवकूफी समझते है और उनके यहाँ कुछ ऐसे लोग हो गए बच्चे अपने माता-पिता का आदर करते हैं। 18 साल के बच्चे घर से भाग जाते हैं। इस कदर वहा समाज के प्रश्न जटिल है कि लोग सोचते हैं ये समाज कभा ठीक नहीं हो सकता। वहाँ जैसे है फ्रा की आर्थिक परिस्थिति ठीक है, राजकारण ठीक है और सब जिन्हांने उनकी बुद्धि एकदम भ्रष्ट कर दी। हालांकि अधिकतर ये देश ईसा मसोह को मानते हैं जिन्होंने यहाँ तक कहा था कि तुम्हारी आंखों में भी अनीति नहीं होनी चाहिए"। "दाउ शैल नाट हैव अडल्ट्स आइज़"। उस ईसा को मानने वाले लोगों में आपको लाखों में एक आध आदमी मिलेगा जिस की आंखें नहीं चलती और औरतें भी वैसी वहाँ के आदमियों से बढ़ के। यहाँ पर आदमी औरतों के पीछे भागते हैं वहाँ औरतें आदमियों के पीछे भागती हैं। इतनी वहाँ है कि नरक दिखाई देता है। और खुशहाल होन चाहिएं। सो बिल्कुल ही नहीं। हर आदमी जैसे कोई पगला गया हो, बावला हो गया हो, ऐसी वहाँ हालत है। लोग र संसार में मेरे विचार से दो तरह के पाप होते हैं, एक तो जिसमें आप बाप के खिलाफ जाते हैं, जो अपने देश में है कि हम लोग हमेशा सोचते हैं कि आगे क्या होगा, कहाँ से पैसा आएगा, हमारे बच्चों का क्या होगा? किस तरह से पैसा जाड़ से इस तरह से हम लोग रहते हैं। कोई गहराई नहीं आती जैसे हमारी शादी हुई लखनऊ में। लखनऊ के लोग तमीजदार बहुत ज्यादा हैं लेकिन अगर उनकी बात में आ गए तो सारा दिन के किस तरह से ठीक-ठाक कर ले किसी तरह कुछ व्यवस्था कर ले। इसकी पूरा समय हमें चिन्ता लगी रहती है। उसमें चोरो-चकारी, झूठ बोलना, दुनिया भर के सब काम करते रहते हैं। और झूठ तो साफ बोलते हैं कि दूसरा आदमी परदेश से आया हुआ तो विश्वास ही नहीं कर सकता। जब खत्म हो जाएगा। वैसे सभी लोग बहुत नम्र हैं फिर भी व्यर्थ के बातूनी हैं मनुष्य नहीं सोचता कि मैं क्या करने के लिए चैतन्य लहरी 16 हृद्य खुल जाता है तो जो कुछ आत्मा के हित में है वो बहुत अच्छा लगता है क्योंकि अब मनुष्य आत्मा को ही खोजता है, आत्मा का ही आनन्द खोजता है। विदेशी लोगों के पास सभी दुनिया में आया हूँ? क्या परमात्मा ने इतना अमृल्य जीवन इसीलिए दिया है? आखिर मेरे जोवन का कोई तो लक्ष्य होगा। ही। ये विचार जब मनुष्य में जग जाता है, तब आदमी को एक सुख सुविधा है, मोटरें हैं फिर गणपति पुले, जहाँ न कोई व्यवस्था है न सुख-सुविधा, बहाँ भी पत्थरीं के घरों में बड़े आनन्द से रहते हैं और अब मैंने कहा कि एक आश्रम बनाओ को बुलाया। उनके घर गए तो घर जैसे कुछ गोबर से लीपे हुए तो माँ गणपति पुले जैसा ही बनाओ। सब लोग कह रहे हैं और मैने कहा मैं तो सोचती थी कि तुम बड़े दु:ख में हा। नहीं नहीं रखा है। कहने लगे अमेरिकन लोगों का आजकल भिखारीपन बैसा ही बनाइए। क्योंकि आत्मा का जो आनन्द है वो गणपति का शौक चढ़ा है। तो जानबूझ कर कपड़े फाड़ते हैं। कपड़ा पुले में आता है। आपस में सारे देशों के लोग मिलते हैं । सब नया तत्व मिलता है जिसे हम महालक्ष्मी तत्व कहते हैं। अब जिनके पास अथाह लक्ष्मी आ गई वो भी तंग आएगा। अमेरिका में हम लॉस एंजलिस में गए तो किसी [पुराने मित्र ने हम लोगों क थे गोबर के रंग के। तो मैंने कहा ये गोबर का रंग क्यों लगा यहाँ से फटा होना चाहिए वहाँ से फटा होना चाहिए। इंग्लैंड जैसी ठण्डी जगह पर भी ऐसी पैंटें पहनेंगे जिन में गील-गोल आपस में आदान-प्रदान प्रेम प्यार की बात करते हैं वो इतनी सुखदायी होती है कि उनको कुछ सूझता ही नहीं कि वहाँ छेद वने हों। भूत के जैसे उनके बाल होते हैं इनमें कभी कंघी कहाँ सो रहे हैं। जमीन पर सो रहे हैं कि कोई यहाँ पेरशानी है। तक नहीं करते। कहते हैं हम प्रिमिटव (आदि मानव) होना किसी को भी ख्याल नहीं आता कि रात में कोई बिच्छू काट लेगा या कोई सांप काट लेगा कोई काटते भी नहीं हैं सांप मानव कैसे हो सकते हैं? उन्हें सजी धजी-चीज पसंद नहीं उनको। ना बिच्छू आते हैं। एक अजीब सा माहौल हैं गणपति आती। उनकी सौन्दर्य दृष्टि केवल यहाँ की सादी वस्तुओं पर पुले में। जंगली जैसे रहने वाले वे लोग अच्छी तरह रहते हैं। पृथ्वी की ओर दूष्टि करके चलते हैं। स्त्रियां साड़ियां पहनती गाने हैं, देहाती ढंग के हैं इसमें 'श' को 'स' कहते हैं। हैं उन लोगों को देख के हैरान हो जाइएगा। आप ही की तरह बिल्कुल पक्के देहाती गाने हैं इनको इतने पसंद हैं। यहाँ से वे बिन्दी सिन्दूर लगा कर और इतने आनन्द से रहते हैं इतने चिमटे-उमटे सब उस देश में गए हैं कम से कम, मेरे ख्याल पढ़े-लिखे विद्वान उसमें बहुत सारे वैज्ञानिक हैं, बुद्धिवादी हैं। से, पांच दर्जन चिमटे गए हैं। और सब चिमटे लेकर के और वे कभी झूठ नहीं बोलते। कभी गाली-गलौच नहीं करते किसी को मारते-पीटते नहीं और बड़े सवरे पांच बजे उठे के नहा लेते हुआ तो उनको चैन ही नहीं आता। कहते हैं कितने नैसर्गिक हैं। बड़े कमाल के हैं ये लोग। बड़ी गहराई से सहजयोग में हैं, कितने हृदय से निकले हुए गाने हैं। कितने प्यारे गाने हैं। उतरते हैं। जैसे ही बम्बई में उतरेंगे तो आपके एयरपोर्ट की जमीन को झुककर नमस्कार करते हैं और चूमते हैं उसे कहनें लगे चैतन्य तो एयरपोर्ट पर ही महसूस होने लग जाता है। चाहते हैं। मैंन कहा आपका दिमाग तो आधुनिक है आप आदि हैं। तो जो आज नोएडा के गाने आपने सुने क्योंकि ये देहात के सारे नोएडा के गाने गाते रहते थे और नोएडा का गाना गर नहीं उसका सबका मीनिंग लिख लिया के परदे में बैठकर गाएं तो आप सोचेंगे कि बो नोएडा के लोग ही गा रहे हैं। इस कदर शौक से गाते हैं। कहीं भी जाइए। अमेरिका, स्पेन, स्विटरलैंड कहीं भी। आपके नोएडा का कुछ करिश्मा है। कोई न कोई यहाँ बड़ी भारी चीज है जो कि यहाँ से ये गाने उठे हैं । हमारा भी यहाँं रहना है सब रट लिया है गर आप ये बात सही है। हम अपने भारत भूमि इस याग भूमि की अभी कल्पना भी नहीं करते इतने साधू संत यहीं क्यों हुए? इन संतो की भूमि में इस योग भूमि में चैतऱ्य को पूरी बस्ती है। मैं बार प्लेन से आ रही थी साहब के साथ में, तो मैंने कहा ऐसे न कहीं चैतन्य हैं और न कहीं ऐसा आराम। विदेशों में कायदा एक क हो रहा हैं। यमुना जी की कृपा है यहां। और सहज में सब लांग रंगे हुए हैं। जब आदमी सहज में रंग जाता तो मैंने देखा कि कुछ उसको याद नहीं रहता जिसके बारे में वो हमेशा बहुत सतक रहता है। यहाँ पर देखिए, मैं दंख रही हूँ कि डाक्टर साहब भी बैठे हैं। इंजीनियर लोग भी बैठे हैं। इन्कम टैक्स कमिश्नर साहब भी बैठे हैं और सब लोग नोएडा के गाने गा रहे हैं। सहज से पहले नौकर लोगों के साथ कतई न बैठते। लेकिन अब वही गाने इतने सुहावने लग रहे हैं। इतने अच्छे लग रहे हैं। जब आप का है कानून बहुत जबरदस्त है लकिन परमात्ा का यहाँ बहुत कम है। अनीति से भरा हुआ है। अपने देश में हम लोग बहुत नीतिमान लोग हैं। पर उनके पीछे लगकर अपनी संस्कृति को खो दिया है । तो हमारे यहाँ की जो व्यवस्था है और संस्कृति है उसमें जो कमियां हैं उसे हमें देखना है। और जब हम इस चीज को समझ लंगे तभी संतुलन आ सकता है। समाज की जो हमारी आज दुर्दशा है उसका कारण स्िर्फ यह है कि हम नहीं चैतन्य दनहरी निकल रहा है। तो सब लोग कुद पड़े पीछे जाने लगे अब ये परेशान कि इसमें इतना सामान है, इतने प्यार से आए हैं सब टूट जाएगा। ये ट्रक रास्ते से हटकर मुड़ गयी अपने आप और फिर जाकर खड़ी हो गयी| कोई इसे रोक नहीं सकता था। वहाँ जानते कि हमारा पिता परमेश्वर सर्व समर्थ है। किस चीज की फिक्र करें? जहाँ ठोकर मारेंगे वहीं पर पानी खड़ा हो जाएगा जहाँ हाथ फेरेंगे वहीं लक्ष्मी की वर्षा हो जाएगी। ये सब हो सकता है लेकिन हमें अपने ऊपर विश्वास नहीं। और उस परम पिता परमेश्वर पर भी हमें विश्वास नहीं। यही हम उस पिता एक चबूतरा बना हुआ था उसमें बराबर जाकर लगी। जब में मैं खुद हैरान हो गयी कि ये ट्रक यहाँ आए कैसे? और गांव वाले लोग भी हैरान थे वो तो कहने लगे कि वहाँ से गुजरी के खिलाफ पाप कर रहे हैं कि हमें उन पर विश्वास नहीं। सहजयोग में आकर बिना किसी लड़ाई-झगड़े के बिना तुम लोग कोई देव हो क्या? तुम भगवान हो क्या? इतने में उधर से बस आयी बस पर ये लोग गए। सब कुछ हो गया और कि ईष्ष्यो के इतनी समझ इतनी सूझबूझ इतना प्यार इतना ख्याल से रहते हैं कि मैं स्वयं कभी-कभी सोचती हूँ कि यह आत्मा के कहने लगे वो जो प्लेटफार्म था उसका इतना फायदा हुआ प्रकाश में इस कदर मनुष्य प्रेम में कैसे से भी बढ़कर आत्म-प्रेम का स्रोत है इसमें कोई शक नहीं जैसे कोई प्रेम की गंगा ही बहती है। और उसमें लोग मग्न होकर, इतने पढ़े-लिखे विद्वान लोग भी उसमें बह जाते हैं और इस आनन्द को प्राप्त करते हैं इसे हमं लोग निरानन्द कहते हैं 'केवल आनन्द'। डूब जाता है। तो सत्य हम सब सामान उठा सके। ये पवित्र प्रेम ही चौज नष्ट नहीं हो सकती। इतने प्यार से, दुलार से उठा कर वहाँ से लाए थे अपने सहजयोगी बहन-भाईयों के लिए। वो चीज नष्ट नहीं हो सकती और एक-एक चीज बिल्कुल बच गयी। ये है प्रेम की महिमा। बिना हमारी भाषा के ज्ञान के ये, कभी भारत पर राज्य करने वाले अंग्रेज़, आज यहाँ ही कला, संगीत और नृत्य सम्मान पूर्वक सीख रहे हैं । जिनको गणपति का 'ग' नहीं मालूम था उन्हें आज गणेश अथर्वशीर्ष कण्ठस्थ है। बिना शास्त्रीय संगीत के ज्ञान के घंटों बैठकर गणपति पुले में ये यह संगीत सुनते हैं । कहते हैं इसमें चैतन्य बहता है । ये हृदय खोल देता है अब पूछिए साहब आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? इतने बड़े-बड़े औहदे पर आप हैं। इतने पढ़े-लिखे आप हैं लेकिन ये भेदभाव बिल्कुल ही छूट गया। आपसो प्रेम होना तो एक बात हुई। पर बेमतलब प्रेम। उसमें कुछ हासिल नहीं होने वाला। कुछ मिलने वाला नहीं। पर जैसे कोई एक ही शरीर के बिसामल्ला खा साहब आए थे, शहनाई बजा रहे थे स्वटरलैंड अंग-प्रत्यंग बन गए और जरा किसी को जरूरत पड़ी सब दौड़ पड़े। गणपति पुले में सबके लिए एक ट्रक भर-भरकर तोहफे लायेंगे। लेकिन सोचिए कि परम-चैतन्य किस तरह से सब चीज को कराता है। कहते हैं माँ हमने सोचा था कि ये खरीद में नोएडा वालों के लिए और हम बाजार में गए। पेरिस में बाजार में जहाँ कुछ नहीं मिलता ये मिल गया और देखो, हम में। तो मुझ से कहते है कि माँ ये तो सारे खालिस बैठे हैं यहाँ, तो मैंने कहा, हैं तो खालिस। तो वो क्या बना रहे हैं? मैंने वहाँ जाकर पूछा तुम क्या बना रहे हो। खालिस तो ये बैठे हैं। ये प्रेम की शक्ति इतनी जबरदस्त है। सब मौज में बहे जा रहे हैं । ऐसी दुनिया, नयी दुनिया, इस सहजयोग ने बसाई है । मुझे तो उम्मीद नहीं थी कि मेरे ही जीवन काल में इतना कार्य हो जाएगा ले आए। अब एक चमत्कार आपको बतायें कि इन लोगों का लेकिन कमाल है नोएडा के लोगों का। देखिए वो जो अशोक स्तम्भ में चार सिंह हैं ना उसमें एक सिंह नोएडा का होगा जो सामान सब बम्बई में आया और वहाँ हमारे प्रतिष्ठान में रखा था और उस टूक में डाल के आ रहे थे रात को वो तैयार बैठे थे। मैंने फोन किया आज रात को मत चलना तुम चाहे कुछ दहाड़-दहाड़ कर सारी दुनिया को बता रहा है। बडी हिम्मत की चीज है साफ कहना। सच कहने वाले को लोग सोचेंगे कि ये तो पगला है। जगह-जगह जाकर सहजयोग की बात कर रहे भी हो जाए। मेरी बात सुनते जरूर हैं। उस रात उस रास्ते पर सब ट्रकें लूटी गयीं और बहुत लोगों को मारा गया। दूसरे दिन सर्वेरे ये चले तो वहाँ एक जगह जाकर इनका ट्रक रुक गया और पीछे-पीछे जाने लगा। देखा क्योंकि एक पहिया भी हैं। हर जगह इनकी आवाज गृंज रही है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 18 ---------------------- 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 3 व 4 ( 1992) खण्ड IV विषय सूची पृष्ठ 1. जन्म दिवस पूजा ... 2. जन कार्यक्रम 3. सरस्वती पूजा ७ं करे . जन कार्यक्रम 4. 11 5. जन कार्यक्रम 16 INA सहजयोगियों के लिए बहुत जरूरी है कि वह कला में उतरें और कला को समझें। आप पर सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे । आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ और बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है।" प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt पूजा जन्म दवस 21,3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहज" सहज समाधी लागो। सहज में ही आपक अन्दर ये "सहज" भावना आ जाती है। हिन्दुओं में अब जो बताया गया है कि सब में आत्मा है, एक हो आत्मा का वास है। फिर हम जात-पात कैसे कर सकते है? पहली बात तो यह सांचनी चाहिये कि रामायण जिसने लिखा वो कौन था? बाल्मीकी एक डाकू था, डाकू भी था और वह एक मछुआरा था। उससे रामायण राम हमारे देश में बहुत से सन्त हुए। हमने सिर्फ उनको मान लिया क्योंकि वो ऊँचे इंसान थे। किसी भी धर्म में आप जाईये कोई भी धर्म खराब नहीं। मैंने बुद्ध धर्म के बारे में पढ़ा तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि मध्य मार्ग बताया गया था। लेकिन उसके बाद लोग उसको बायें में और दायें में ले गये। जो दायें में ले गये वो पूरी तरह से सन्यासी हो गये त्यागी हो गए। फिर उन्होंने बड़े-बड़े कठिन मार्ग और उपद्रव निकाले। उन्होंने सोचा ने लिखा दिया। भीलनी के झूठे बेर खा के दिखा दिया। और कि बुद्ध सन्यासी हो गए थे तो उन्हांने भी सन्यास ले लिया अपनी सभी इच्छाओं का दमन कर लिया उन्होंने। इस तरह का स्वभाव व्यक्ति को अति उग्र, इतना ही नही आतताई भी बना देता है। उसमें बहुत क्रोध समा जाता है। क्रोध को दबाने से क्रोध और बढ़ता है। एसे लोग कभी-कभी ऊपरी-चेतना (Supra-conscious) में चल पड़ते हैं और उन्हें कुछ-कुछ ऐसी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं जिससे वो दूसरे लोगों पर अपना असर डाल सकते हैं। हिटलर के साथ यही हुआ। हिटलर के गुरु एक लाम्हा साहब थे और उस लाम्हा से उन्होंने खण्डित कर दिखाया। करबीरदास जो के गुरू ब्राहमण थे। सीखा किस तरह से लोगों को हम अभिभूत करें और उनको किस तरह से अपनायें। जो धर्म बुद्ध देव ने इतना ऊँचा बनाया था कि हम लोग निर्वाण का प्राप्त करें वो धर्म दायीं ओर बहक गया। दूसरा जिन लोगों ने सोचा कि नहीं हम लेफ्ट साईड में चलें तो उससे तांत्रिक पैदा हो गये। लद्दाख ने इसको पहचाना क्योंकि वो भी एक पहुँचे हुए पुरूष थे। जा यदि कोई मर जाए तो उसके हाथ की पूजा करेंगे नेपाल में भी मैने देखा हर जगह लेफट साइंड इतनी ज्यादा बढ़ गई कि ये हैं गीता का लेखक व्यास कौन था? वो भी एक भीलनी का नाजायज पुत्र धा। ये सुब उन्होंने यह दिखाने के लिये किया. कि जाति-पाति से जो हम एक दूसर को अलग कर रहे हैं य जाति हमारे अन्दर की रूझान (झुकाव) है। जिसका लगाव परमात्मा से हैं उसी को ब्राहमण कहा जा सकता है। उस हिसाब से वाल्मीकी ब्राहमण थे और व्यास भी ब्राहमण थे। तो कर्म के अनुसार अपने यहाँ जाति बहुत देर बाद मानी गई। जितने भी बड़े-बड़े अवतरण हुए उन्होंने जाति प्रथा की कबीरदास के गुणों के कारण उन्होंने उन्हें बहुत सम्मान दिया। महाराष्ट्र के महान कवि नाम देव जी दर्जी थे उनकी नौकरानी तो कोई नीची जात की स्त्री रही होगी। उसकी भी कविताएं ग्रन्थ साहिब में हैं। नामदेव जी की तो है ही। गुरू नानक जा वगैरा में वहाँ पहुंच जाते हैं वो समझते हैं कि, कौन असल है और कौत नकल। तो जो नकल में धर्म हो रहे हैं जिससे हम लोग घबड़ा जाते हैं उनके लिये हमें सावधान रहना चाहिएँ। उनके प्रति दया रखनी चाहिये क्योंकि वो अन्धे है। जैसे कबीर साहब ने कहा कंसे समझाऊ सब जग अन्धा। जो अन्ध लोग हैं वो ऐसे हो अन्धे-पन में रहते हैं। कोई कहेगा मैं इसाई हूँ, कोई कहेगा मैं मुसलमान हूँ, कोई कहेगा में सिख हूँ। जैसे ही आप कहँगे में ये हूँ आप अपने को अलग हटा लेते हैं। लेकिन सहजयोग में आप समझ गये हैं कि सब धर्मों का तत्व एक है। धर्म को मानने लगते हैं। धर्मान्धता समाप्त हो जाती है। है। सब भूत प्रत, शमशान पिशाच वद्या में पड़ गये। इस प्रकार दो तरह के लोग बुद्ध धर्मी हो गये। बुद्ध का इससे कोई सम्बंध नहीं और बुद्ध धर्म का भी इन लोगों से कोई संबंध नहीं। इसाई लोगों ने भी ईसा के क्षमा के गुण को त्याग कर लोगों पर मनमाने अत्याचार किए। मुसलमान कुरान पढ़ कर तथा इसाई बाईबल पढ़ कर एक दूसरे को मारते हैं और सोचते हैं कि बडा भगवान का कार्य कर रहे हैं। मेरा ही धर्म अच्छा है और दूसरों का खराब। जब तक आत्मा की जागृति नहीं होती तब तक आप किसी भी धर्म को अन्दर शोषित नहीं कर सकते उसको अन्दर बैठा नहीं सकते। वो अन्दर आ ही नहीं सकता। वो वाह्य में ही रह जाता है। बाह्य में रह कर धूर्म सत्ता या धन है आत्मा की ओर नहीं बढ़ता। जब आत्मा का प्रकाश आ जाता है तो अकस्मात् आदमी उस तत्व को अपने हैं। ज्योही हम धर्म-धर्मान्धता ही आज का प्रश्न इसी के कारण विश्व में इतने झगडे फैले हुए हैं। जब आपके अन्दर यह सत्य गया कि सभी धर्मों का तत्व एक है तो सारे झगड़े एक दम खत्म हो जायेंगे और वो तत्व आप लोगों में वैठ गया है। आपको पता है सहजयोग में मुसलमान हैं हिन्दु है इसाई हैं, सिख हैं, बौद्ध हैं. हर तरह के लोग इसमें आये हैं और सब अपने-अपने धर्म बैठ के पीछे दौडता उसको कोई मेहनत नहीं करनी। अन्दर समाया हुआ पाता चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt या 008 जागृति वाले ऐसा कुछ नहीं। इस पर आपको हंसी भी आती हैं कि ये सब क्या है? इन सब बाह्य चीजों से आप लोग अपने आप ही उठ गये और आप अपने बारे में कुछ को मान भी रहे हैं। पर जब वो अपने को मान रहे हैं तभी वो विश्व धर्म को मान रहे हैं। जब आपने एक विश्व धर्म को मान लिया उस विश्व धर्म में सारे ही धर्म हैं और सब धर्मों का मान करना यह सुझाता है। यही समझ की बात है। सब अवतरणों जानते ही नहीं। मुझे तो यही देख-देख करके बड़ा आश्चर्य का मान करना, जितने भी आज तक बड़े-बड़े सन्त, साधु दृष्टा हो गये सबका मान करना विश्व निर्मल धर्म सिखाता है। ये सिर्फ कहने से नहीं होता समझाने से नहीं हो सकता। ये किये हैं ? मुझे तो समझ में नहीं आता। आपके अन्दर अपनी आत्मा के प्रकाश में अपने आप अन्दर बैठ जाता है। उसको शक्ति है वो जागृत हो गई और आपने अपनी आत्मा को प्राप्त फिर कहने की जरूरत नहीं होती। तब आप सोचिए कि आप सहजयोगी हो गये। सहजयोगी हो गये माने आप बढ़िया लोग कितनी गौरवशाली बात है कि आपने अपने गौरव की प्राप्त हो गये। देखिये आप किसी का कत्ल नहीं कर सकते। आप किसी की कोई चीज छीन नहीं सकते आप चोरी चकारी कुछ लूटेंगे नहीं, किसी औरत को विधवा नहीं करेंगे, किसी के नहीं कर सकते। आप किसी की बुराई नहीं करते, आप किसी को नीचे खींचने का प्रयत्न नहीं करते या आप किसी भी मेरे कहने से नहीं। आप शराब नहीं पियेंगे, आप चरस नहीं प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ते। आपको ये नहीं लगता कि, मैं इसकी खायेंगे। क्या-क्या होता है दुनियाभर की गन्दगी? आप कोई खोपड़ी में जाकर बैठ जाऊं इसकी गर्दन काट लूं। जहाँ है वहाँ समाधान में आप बैठे हैं और अपने ही आप उन्नत हो रहे हैं । नहीं पढ़ेंगे। मुझे कहने की जरूरत नहीं। आप पढ़ेंगे ही नहीं। आप किसी के साथ दुष्टता नहीं करते। देखिये, सास होती है कोई गन्दी बाद करेगा आप सुनेंगे ही नहीं। आपको अच्छा ही बहु होती है कभी बहु सास को सताती है कभी सास बहु को नहीं लगेगा। कितने शुद्ध हो गये हैं आप लोग! और अपनी सताती है पर सहजयोग में ऐसा बहुत कम है। दिखाई नहीं देता। ऐसे ही आपकी गृहस्थी में आदमियों की और औरतों की जो स्थिति है वह विशेष है। पति पल् में आपस में पूरी तरह से ऐसी एक-तारता है कि पति किसी और औरत की ओर हैं बहुत से लोग बताते हैं मैं वहाँ गया था तो देखा वो सब देखता नहीं और स्त्री किसी और पुरुष की ओर देखती नहीं। इतनी होता है कि आप अपने बारे में कुछ जानते ही नहीं। सब मुझ ही को गौरव दिये जा रहे हो। ऐसे कौन से मैंने गौरव के काम किया। उस आत्मा की वजह से सब कुछ हो गया और किया। आप बंदूक लेकर किसी को मारेंगे नहीं, किसी का घर बच्चे का आप अपहरण नहीं करेंगे, कभी कर ही नहीं सकते। गन्दी जगह ही नहीं जांएगे। गन्दे चित्र नहीं देखेंगे, गन्दी किताब शुद्धता को आप यत्न से रखते हैं कोंई ऐसी बैसी चीज होगी आप वहाँ से भाग निकलेंगे, मुझे नहीं चाहिये। और अगर कहीं जाना ही पड़ गया तो उसे एक नाटक की तरह से आप दखते वहुत शराब पी-पी के कैसे घूम रहे थे। किस तरह से औरतों के साथ बातचीत कर रहे थे और मुझे आ करके सब वर्णन बतात हैं। ये दृष्टि जो कि एक साक्षी स्वरूप की है वो आपके अन्दर आकस्मिक रूप से आ गई। शुद्धता है। बाह्य का आकर्षण जो लोगों को होता है वो आप नहीं रहे क्योंकि आप स्वाभिमान में हैं। आपको अपने स्व का अभिमान है। आपकी आंख ठहर गई, अब चंचल नहीं रही । इधर-उधर नहीं घूमती। अब तो आपके बच्चे, आपके माँ-बाप आपको दंखते हैं तो वह भी आश्चर्यचकत हो जाते हैं, अभिभूत हो जाते हैं कि देखो कैसे हो गये ये लोग। ये चोरी नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, मारते नहीं-पीटते नहीं, कोई दंगा नहीं, फसाद नहीं, कुछ नहीं। इतने शांतिमय, इतने आनन्दमय आप सब लोग हो गये। लोग मुझसे कहते हैं कि आप इतनी बीमारी ठीक करते हैं, इतना कुछ करते हैं आप पैसा नहीं लेते। और आप लोग कहाँ लेते हैं? आप लोग भी तो सहज का कॉम में ही कर रहे हैं। मैंने तो किसी को नहीं देखा कि सहज दूसरा आपस का प्रम-भाव इस्लाम में इस पर बहुत कुछ कहा गया कि आपस में प्रेम-भाव बंधुत्व और औरतां के प्रति भगिनीभाव की बात भी कही। इस कदर आपस में प्रेम भाव है। बहुत ही पहले की बात है इटली में एक लड़की इंग्लैण्ड से गई थी। पता नहीं किस काम से गई थी और दूसरी एक फ्रांस से वहाँ पहुंची। दोनों जने एक रेस्तरों में कुछ खा रही थीं। देखते-देखते एक ने दूसरे को देखा और न जाने क्यों उनको लगा इसमें कुछ वाईब्रेशन आ रहीं हैं। तो एक उठके के पास गई और उससे कहती है क्या तुम्हें श्री माताजी मुफ्त के काम के लिए आप लोग पैसा मांगते हैं या कुछ करते हैं। एक से एक कविताएँ आप लिखते हैं, एक से एक गाने आप गाते हैं । कोई भी मैंने देखा नहीं जो कहता हो कि, नहीं इसे काम में मुझे पैसा चाहिये। कितनों को आपने जागृति दी, कितनों को आपने पार कराया है, कितने ही सेंटर्स आपने चलाये हैं लेकिन मैंने कहीं नहीं सुना कि इसके लिये माँ तुमने इतनों को जागृति दी तो आप हमें उसका पैसा दीजिए या उसके लिये कोई आप हमें खिताब दीजिए कि इतने ।108 जागृति वाले दूसरे ने आत्मसाक्षात्कार दिया है? उसने कहा हाँ और तुम्हें भी दिया है न? और बस फिर दोनों एकदम गले मिल गये। कहीं भी जाके आप अमेरिका में जायें कहीं जायें बस सहजयोगी देखकर गदगद हो जाते हैं इन्हें कहाँ रखें, इनकी क्या सेवा करें, कैसे इनको रखें, कहाँ इनके। देखें? मैने कहीं सुना नहीं कि कोई सहजयोगियों को किसी ने कहीं सताया वहाँ आपस में इस कदर प्रेम उमड़ता है लोगों में, यदि किसी के कुछ चक्र खराब हो तो भी उसको अत्यन्त प्रेम से लोग देखते हैं। स्वयं तकलीफ चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt सह कर भी उसे ठीक करते हैं । और मुझे बड़ा कभी-कभी आश्चर्य होता है कि कुछ-कुछ तो इनते ज्यादा पकड़े हुए लोग होते हैं तो भी कभी मुझसे आके शिकायत नहीं करेंगे कि ये बड़े पकड़े हुए हैं इनको सहजयोग से निकाल बाहर करें । मैने सिर्फ एक ही बात देखी है कि अगर कोई मेरी निन्दा करता है तब आप लोगों से बर्दाश्त नहीं होती। तब फिर आपकी बर्दाश्त सारी खत्म हो जाती है। ये तो मैंने देखा हुआ है और यही एक पहचान है कि आपको मुझसे बहुत प्रेम है। इतना ज्यादा प्यार आपने मुझे दिया है, इतना ज्यादा मुझे भरोसा हो गया हैं। मंरा जो एक स्वपन था कि सारे संसार में जागृति हो जाए। जब तक जागृति नहीं होगी तब तक संसार के प्रश्न नहीं मिट सकते । क्योंकि हमारे वातावरण संबंधी, आर्थिक, परिवारिक जो सभी समस्याएं हैं इनकी जिम्मेदारी किसकी है? इंसान की है। इंसान ने ही ये प्रश्न खड़े किये हैं और यही इंसान अगर बदल जाये और इसके अन्दर वी विश्व बंधुत्व आ जाए तो झगड़ा किस चीज का करेंगे? अगर सभी एक चीज को मानते हैं सबको एक ही चीज मालूम है, तो झगड़ा किस बात का? और फिर ये जो सारे प्रश्न हैं ठोक हो जाते हैं। लेकिन ये जरूर कहूंगी कि इस पूजा के पीछे में आप लोग हो । आप अगर एसे नहीं होते तो कितनी भी पूजाएं हों (क्या मंदिरों में कम पूजाएं होती हैं कितने-कितने स्वयंभ बने हुए हैं क्या कुछ कम होता है बहुत कुछ होता है) लेकिन किसी के अन्दर कुछ घुसता ही नहीं। जैसे के तैसे। जो करना है वो करेंगे ही। जो गलत काम है वे करते ही रहेंगे। कुछ उनमें विशेषता नहीं है। लेकिन सहजयोग एक बड़ी विशेष चीज है और आज देखिए इतने देशों में सहजयोग फैल गया, इतन देशां में फैल गया है मुझे बड़ा आश्चर्य हाता है। इतना तो मैने कभी नहीं सोचा था कि इतना हो जाएगा। सांचा था कुछ हो जाएंगे लोग फिर वो आगे करते रहेंगे। लेंकिन मेरी जिन्दगी में इतने लोग इसे प्राप्त करेंगे ऐसा मैने कभी नहीं सोचा था । और जो मेरे मन में एक स्वपन था वह वाकई आज साकार हो गया है। अब जब कुछ भी आप करें, कुछ भी आप सांचें, किसी भी चीज में आप हाथ डालें, पहले याद रखना चाहिये कि हम योगीजन हैं। हम सर्वसाधारण नहीं हम योगीजन विशेष हैं और इसलिये हमको विशेषरूप से सबकी और नजर करना चाहिये और देखना चाहिये। जितने लोग हो सके उत्तकी यागी बनाना चाहिये। इसी से सारे संसार का भला होने वाला है जैसे हमारा भी भला हुआ। आज मेरे जन्म दिन पर यही कहना है कि आप लोगों का फिर से जन्म हो चुका है। हर जन्म दिन पर आयु बढ़ती ही जाती है, आयु के साथ अगर आपमें प्रगल्भता न आये, परिपक्वता न आये तो ऐसी आयु बढ़ने से कोई लाभ नहीं। आप भी अब सहजयोग में बढ़ रहे हैं लेकिन इसमें जरूरी है कि हमारे अन्दर प्रगलभता आये, परिपक्वता आनी चाहिये। जब आप धीरे-धीरे इसमें पक जाएंगे तब आप स्वयं ही एक बड़े भारी वृक्ष की तरह अनेक लोगों का फायदा कर सकते हैं आप सबमें ये शक्तियाँ आई हैं और मैं चाहती हूँ कि मरी सारी शक्तियाँ आप सब में आ जाएं और आप सब एक से एक बड़े हो जाएँ। माँ तो हमेशा यही सांचती है कि अपने बच्चों को अपने से भी कहीं अधिक ज्यादा सुख मिलना चाहिये। बड़ी खुशी की बात है कि आप लोग बड़े आनन्द में बैठे उस निर्वाण का उपभोग ले रहे हैं जिसके लिये बहुतों ने अनेक प्रयत्न किये थे इतने सहज में सब आपने प्राप्त कर लिया यह भी पूर्व पुण्याई है। मेरा आप सब पर अनन्त आशीर्वाद तो है ही लेकिन हर समय ख्याल बना रहता है और जब आपको छोड़ कर जाते हैं तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरा दिल ही खींच लिया। फिर यही सोचती हूँ कि आगे जहाँ जाना है वहाँ कितने लोग खड़ें होंगे। जब उनको देखते हैं तब फिर ये सारा कुछ ऐसा लगता है ठीक है। मुझे अभी तो लगता नहीं कि मैं कोई सत्तर साल की हो रही हूँ। आप सबको देखकर के बहुत आनन्द से विभोर हूँ मैं। और ये सोचने का तो समय ही नहीं रहता कि उमर क्या हो रही है अपनी। अब देखिये इतना सुन्दर आपका आश्रम वन गया, आप लोगों की इच्छा आप लोगों का मन ये बहुत बड़ी चीज है अब आप जब भी अखबार पढ़े तो सामूहिक तरह से आप इच्छायें करें कि माँ पंजाब की सारी समस्या समाप्त हो जानी चाहिए। समाप्त हो जाएगी। कुछ न कुछ बन जाएगा। आपको और भी कोई प्रश्न हो, दरिद्रता अपने देश में बहुत है। वो सिर्फ दरिद्रता-दरिद्रता करने से नहीं जाएगो। नदी के बीच की धारा की तरह हम लोग बीच की धारा में है। हम लोग बड़े रईस भी नहीं है और बड़े गरीब भी नहीं हैं। जब बीच की धारा बढ़ती जाएगी तो इधर रईस भी इसमें आ जाएंगे और गरीब भी इसमें समाते जाएगें और इसी तरह से हमारे प्रश्न छुटेंगे। बहुत से लोग गरीबी चाहते ही हैं जिससे उनका बोलबाला बना रहे। अब आप लोग खुद अपनी शक्ल देखिये कि सबकी कितनी तेजस्वी शक्लें हो गई। कांई अगर ऐयरपोर्ट पर देखते हैं तो कहते हैं ये किस देश से आये हैं? सबकी शक्लें इतनी तेजस्वी हैं। पर मैने बहुत सारे लोग देखें हैं जो कि गेरुआ वस्त्र पहन के सब बाल-वाल काट-कूट करके और खडे हुए हैं वहाँ देखने में तो ऐसा लगता है जैसे अभी अस्पताल में जाने वाले हैं। और कोई-कोई ऐसे दिखाई देते हैं कि क्रोधी जैसे कि उनसे दूरी से बात करें नहीं तो इतनी गर्मी आपको आएगी कि पता नहीं कुछ बात की तो झापड़ ही न मार दे। तो किसी में भी आप नहीं पाइयेगा इस तरह की शालीनता, इतना प्यार, इस तरह का प्रेम। ये किसी भी समाज में नहीं है, हमारे सहजयोग में है। इसके लिये आपका अभिनंदन होना चाहिये और आपकी विशेषता होनी चाहिये। आप लोग सब मेरी पूजा करते हैं उससे कहते हैं लाभ-वाभ होता है। जो भी होता हो उसके लिये मैं क्या करूं। । हुए हैं और आप सबको अनन्त आर्शीवाद चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt जन कार्यक्रम कान्सटीच्यूशन क्लब मैदान, देहली -23.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) यह तो मान लेना पड़ेगा कि हमने अभी तक "कंवल सत्य" को प्राप्त नहीं किया, "पूर्ण सत्य" को प्राप्त नहीं किया। नम्रतापूर्वक इस बात को अगर हम मान लें कि हमने अभी तक उस केवल सत्य को प्राप्त नहीं किया जो सबके हैरान हो जाते हैं कि हम लोग इनसे बहुत ज्यादा सुखी हैं। पता नहीं इस भारत वर्ष की, इस योगभूमि की क्या देन है कि अभी तक हमारे यहाँ इस तरह की बीमारियाँ नहीं हैं। कहा जाता है अमेरिका में थोड़े साल वाद (65 फीसदी लोग किसी न किसी गुप्त रोगो से पीड़ित हो जायेंगे। इस भारतवर्षं के परम आशीवाद से ही अभी तक हम लोगों में नैतिकता का भाव बहुत जबरदस्त है। आप विश्वास नहीं कर सकते कि यह जो प्रगल्भता बहाल हुई है और जो प्रगति दिखाई देती है यह केवल सत्य को जानता होता तो यह आज नाना प्रकार के बिल्कुल विनाश की ओर जाने वाली प्रगति है। और इन्सान को प्रगति इस तरह से अगर करनीं हो तो बेहतर है वह प्रगति न धाराएं और प्रणालियाँ न चल पड़तीं। सब लोग एक ही चीज करे इसके बारे में पिछली मर्तबा मैंने आपसे बताया था कि किस प्रकार यह प्रगति बढ़ रही है। लन्दन शहर में हर हफ्ते दो बच्चे माँ-बाप मार डालते हैं। तो ऐसी जगह कैसे लोग रहते होंगे यह आप समझ सकते हैं। और भी बहुत गन्दी बातें बच्चों के साथ हो रही हैं जिसका आप लोग अन्दाजा ही नहीं लगा सकते। अगर आप न्यूयार्क चले जाईये तो आप कोई सोने की चीज पहन कर जा नहीं सकते इतना समृद्ध देश है लोग कहते हैं, उनके पास बहुत स्वर्ण भण्डार हैं आदि आदि। अगर आप है। हमारी व्यक्तिगत, शारीरिक, मानसिक, वौद्धिक, और छोटी सी भी चीज सोने की बहाँ पहन कर गये तो आपकी आध्यात्मिक समस्याएं भी हैं। सबके लिये एक-एक प्रश्न है। गर्दन कट जायेगी। आप घड़ी पहन के नहीं जा सकते, जीवन एक प्रश्न हो गया है। इस प्रश्न का हल जब हम बृद्धि मंगलसूत्र भी पहन कर जाने की वहाँ व्यवस्था नहीं है। इस प्रकार की अराजकता ये बड़े-बड़े प्रगतिशील देशों में हो रही है और इस कदर मूर्ख और मूढ़ लोग हैं कि उनकी मुर्खता का वर्णन ही नहीं कर सकते। जैसे एक सिने-तारिका की आठवीं शादी हुई, आठवीं अपने यहाँ अगर किसी की दूसरी शादी हो कलयुग का एक विशेष आशीर्वाद है । और यह भ्रामकता प्राप्त तो लोग उसका मूंह नहीं देखेंगे, उसको घर में नहीं आने देंे इनकी आठवीं शादी हुई। और उनकी शादी का हनीमून देखने के लिये बहाँ आपसे ज्यादा लोग पहुंचे हुए थे और हैलीकॉप्टर नहीं होती। इसको महसूस कर रहे हैं और सब लोग चाहते हैं से उनका फोटो लेने के लिये लोग पैराशूट कर रहे थे जो इस हैलीकॉप्टर में थे वो लोग आकर धड़ाधड़ इन लोगों पर गिरे जो देख रहे थे, प्रेक्षक थे, वो फोटो लेना चाहते थे परन्तु.वे तो अन्दर एक ही तरह की भावना, विचार ओर संवेदना प्रस्थापित करता है। इसका कारण जो भी हो वह तो बाद में देखा जायेगा। पर हम अपने बारे में सोचे तो मानव जाति में अभी तक वह स्थिति नही आई है कि वह केवल सत्य को जाने। अगर वह झगड़े, नाना प्रकार के विवाद और अनेक तरह की विचार को मानते क्योंकि "एकमेव केवल सत्य" को इस अन्धेपन में हम जानते नहीं हैं। जिस तरह एक हाथी को छः अन्धे ढूंढने गये थे और उन्होंने छ: प्रकार से जाना था, उसी प्रकार हम सत्य की वास्तविकता को जानते हैं। और इसीलिए यह सारी आफत मची हुई है। किस किस तरह के हमारे सामने प्रश्न हैं। जिसका हल सब सोचते हैं। जैसे कि हमारे यहाँ आजकल वातावरण के दूषण की राजनैतिक, आर्थिक, परिवारिक समस्या से करते हैं तो शब्द जाल में फंस जाते हैं। विचारों से जब हम किसी चौज को सुलझाना चाहते हैं तो और उलझ जाते हैं क्योंकि विचार जो है धीरे-धीरे नई-नई इमारतों का सृजन करते हैं और इन इमारतों में हम लोग खो जाते हैं। यह भ्रामकता इस ट স होने से ही आज मुनष्य अंधेरे से उठना चाहता है और प्रकाश को प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इसकी यातनार्यं अब सहन कि किसी तरह से इस दुर्धर जीवन से किसी ऐसे जीवन में हम परिवर्तित हो जायें जहाँ ये सब चीजं हम एक नाटक की तरह देख सकें। हम विज्ञान की ओर बढ़ते हैं और पश्चिमात्य देशों आकर इन पर गिर गये और कुछ जाकर के खजूर में अटक का प्रगल्भ होना, उनकी प्रगति होनी हमारी आँखें चकाचौंध गये इस तरह की मूर्खता की बात अपने देश में कोई भी नहीं कर देती है। लेकिन जब आप वहाँ जाकर देखते हैं तो आप कर सकता। तो मनुष्य की प्रगलभता, परिपक्वता जा आज चैतम् लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt हिन्दुस्तान में है उसका आपको अन्दाजा नहीं। उन लोगों पर हँसी आती है। बात-बात पर वह कहंगे कि मैं अपनी आत्मा को जानी। सब कहते गये एक के बाद ऐ कितनों ने यह बात कही अपने ही देश में नहीं बाहर भी बहुत से कवियों ने अनेक लोगों ने आत्मा पर चर्चा की। इसाई धर्म में तो बिल्कुल साफ़ लिखा गया है कि जब तक आपका पुनर्जन्म नही होता तब तक आप परमात्मा को जान नहीं सकते। तो उन लोगों ने अपने सिर पर पुनर्जन्मित की पाटी लगा ली। इसाई, मुसलमान की पाटी लगा ली। लेकिन कोई इसाइ हो या मुसलमान हो किसी भी धर्म का आदमी हो वो सब पाप कर ही सकता है। कोई सा भी पाप तो कर सकता है, फिर यह सिर पर पाटो लगाने की क्या जरूरत। उसका तो कोई असर ही नहीं। फिर उसी को ले करके झगड़ा भी कर सकता है। जैसे मेंने अभी सुना कि अजर-बै जान के लोगों को आमेनियन लोगों ने मारा और मारने से पहले वो बाइबल पढ़ते थे। वताईये ईसा मसीह जिसने क्रूस पर सबको माफ कर दिया वो ईसाई लोग बाइबल पढ के मुसलमानों को मारते थे। इस वेअकली का कारण एक ही है कि धर्म की जो नींव है वो सत्य पर नहीं असत्य पर है। बुद्ध के जमाने में भी यह बात हुई ईसा मसीह के बाद भी बही बात हुई है। ईसा मसीह के जो असली शिष्य थे वो भाग खड़े हुए। वहां एक गलत आदमी पॉल नाम के आदमी ने सब ठिकाने लगा दिया। इसी पकार बुद्ध धर्म में मध्य मार्ग की छोड़ करके लोग कोई बायें को गये और कोई दायें को। दायें को जाने वाले भीषण क्रोधी हो गये। दूसरे तांत्रिक बने घूम रहे हैं। इनकी सेवा से बीमारियाँ, कष्ट और गरीबी मिलेगी। बड़े भयंकर परिणाम होंगे। इनके चक्कर से निकलना से घृणा तुझ करता हूँ। आप बताइए अपने यहाँ कोई ऐसे कहे तो लोग सोचेंगे कि इसे पागलखाने छोड़ आओ। किसी से घृणा करना एक पाप है यह अपने देश में सब लोग जानते हैं। कोई आपने सुना हिन्दी में, मराठी में उर्दू में या तामिल में कोई ऐसी बात कहेगा कि मैं तुझ से घृणा करता हूँ। वहाँ उठते बैठते लोग यह बात कहते हैं। इन लोगों में कौन सी संस्कृति है, मैं आज तक समझ नहीं पाई और इस कदर गन्दगी की और बढ़े चले जा रहे हैं। इस तरह की नैतिकता की वहाँ बात नहीं कर सकते न कोई समझ सकता है। इन लोगों की जो दुर्दशा है वो अगर आप वाकई एक साक्षी स्वरूप होकर देखें तों समझ लेंगे कि अपने दश में बहुत बड़ी प्रगल्भता है। बेवकूफी की बातें अपने यहाँ काई नहीं कर सकता और कोई करे तो उसे फौरन लोग ठिकाने लगा देते हैं। थोड़ा बहुत असर आ गया है। वैसे तो बेवकूफों की कमी नहीं गालिब बिन ढूंढे हजार मिलते हैं पर अगर हिन्दुस्तान में हजार मिलते हैं तो बाहर करोड़ों मिलते हैं। और यह प्रगल्भता हाते हुये भी हम लोग भी किसी और चीज में जकड़ गये है और उस जकड़ून क कारण हम लोग भी नहीं उठ पाते उस सत्य की ओर जिससे प्रकाश मिलने वाला है। हमारी जकड़ जो है वो हैं अन्धश्रद्धायें। किसी भी चीज में हमने विश्वास कर लिया तो बो परम विश्वास हो जाता है। किसी पुर विश्वास करो या न करी जब तक आपने किसी चीज को खोज नहीं निकाला तब तक किसी पर विश्वास करने बहुत जरूरी है। कुछ लाभ नहीं और नहीं करने से भी कोई लाभ नहीं। तो जब हम सत्य की खोज में निकले हैं तो पहले जान लेना हमें समझना है कि सत्य में मनुष्य को आत्मा ही क रूप पर, आत्मा ही की ओर उतरना है। कहा है काहेरे वन खोजन जाई, सदा निवासी, सदा अलेंपा सो है संग समाई। कहे नानक बिना आपा चीने मिटे न भ्रम की काई। जब आप आपा चीनेंगे तभी तो आप खालिस होंगे। पाटी लगाने से कोई खालिस नहीं हो सकता। खालिस का मतलब है शुद्ध होना और शुद्ध होने के लिए कुण्डलिनी है यह साक्षात् लिखा हुआ है कुण्डलिनी के सिवाय आप की सफाई हो ही नहीं सकती। यह शुद्धि करने चाहिये कि सत्य क्या है। हर एक धर्म में कहा गया है। किसी भी धर्म में खराबी नहीं है। आप इस्लाम को पढ़िये तो सोचियेगा कितना उत्तम धर्म है। आप हिन्दू धर्म के बारे में पढ़े तो कहंगे कितना उत्तम धर्म है, सिखों का धर्म कितना उत्तम धर्म हैं। बौद्ध धर्म कितना उत्तम है, जैनियों का धम कितना उत्तम है। लेकिन ये सब उत्मोत्तम सारे जो पुष्प एक अध्यात्म के वृक्ष पर आये थे वो आज सबने तोड़ लिये हैं और हर एक मरे 1. इस टूटे हुए, मुरझाए हुए, हुए फूल को मेरा, ये मेरा करके झगड़ा कर रहा है। इसका भी एक कारण है कि ये जीवन्त फूल क्यों टूट रहे हैं। क्योंकि ये धर्म या तो पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं या सत्ता के पीछे। लेकिन कोई भी आत्मा की तरफ ध्यान नहीं दे रहा। जो सब धर्मों में कहा है कि आत्मानुभव लिए बगैर आप जान ही नहीं सकते कि सत्य क्या है यहाँ तक कि महावीर और बुद्ध ने तो परमात्मा की बात ही नहीं की। वो तो निरीश्वर पर आ गये कि छोड़ो परमात्मा को, कि पहले तुम वाली माता आपके अन्दर है और जब इस आत्मा का प्रकाश आपके अन्दर आ जायेगा तब आप सारे धर्मों का तत्व समझ करके सब को मान करेंगे और जितने भी अवतरण हुए, जितने भी दृष्टा हुए सबका आप मान करेंगे और उनकी पूजा करेंगे। ा सहजयोग में सभी धर्मों के लोग हैं पर वे सभी अवतरणों की पूजा करते हैं। धर्म के नाम पर जब आप लड़ना बन्द कर दंगे तो कट्टरवाद समाप्त हो जाऐगा। केवल सहजयोग ही धार्मिक कट्टरता को समाप्त कर सकता है। सव धर्म एक तत्व पर चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt खड़े एक ही तत्व का आधार इनके अन्दर है और वो है कि संतुलन हमारे जीवन में आ जाये। और उस संतुलन के कारण हम आत्मानुभूति को प्राप्त करें। फिर ये सारे भ्रम यह अन्ध विश्वास जो हम अपनी खोपड़ी पर लाद चल रहे हैं वे सब छूट जायेंगे। यह बहुत ही जरूरी है। जब हमारी प्रगति होती है तब वो सबको दिखाई देती उसका प्रकाश सबको दिखाई देता हैं उसका असर सब पर आता है। आज जो चक्रों के बारे में हैं सत्य है बाकी तो सब असत्य है। क्योंकि जो हो गया सो खत्म हुआ जा हुआ नहीं वो मालूम ही नहीं क्या होन वाला है? तो जब यह कुण्डलिनी इस चक्र में आ जाती है तो आप निर्विचारिता में आ जाते हैं क्योंकि आपके दोनों जो यहाँ पर अहं और प्रतिअंह दिखाये गये हैं, आपके जो बन्धन है और आप का जो अहंकार हैं दोनों के दोनों पूरी तरह से खिंच जाते हैं और फिर आप का जो ब्रह्मरन्ध्र है जिसे कि तालू पर ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं वो खुल जाता है और खुलते ही कुण्डलिनो पार हो जाती है। यह सब कुछ बनाया हूआ यहाँ पर इतनी बत्तियां लगी है, पर इनकी जलाने के लिए एक स्विच है जिसे दबाना भर पड़ता है। इसमें कोई कठिन कार्य नहीं पड़ता। पृथ्वी में बीज डालने की तरह है। इस पृथ्वी में यह शक्ति है, यह माँ है इसमें आपने बीज डाल दिया और वो पनप गये। हम लोग उस पर कोई आश्चर्य नहीं करते, सोचते हैं ठीक ही बात हैं। उसी तरह यह उत्क्रान्ति की, विकास की जीवन्त क्रिया है| आज हम अमोबा से इन्सान बने, ठीक है। कैसे बने किसने बनाया किस तरह से बन गया। कोई हम विचार नहीं करते। इन्सान बन गया बसे हो गया। इसके आगे कुछ है कि नहीं इधर जरूर विचार करना चाहिये कि जरूर होगी कुछ न कुछ आगे, आपको बताया गया है यह वास्तव में आपक अन्दर पूरा बना है। हुआ यंत्र है। यह आपकी उत्पत्ति से लेकर आपका विकास इन्ही चक्रों से हुआ। अब आपको थोड़ा सा उठना है ताकि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो कर ब्रह्मरन्ध्र को छेद सके। उसी के साथ-साथ क्योंकि आपका शारीरिक, मानसिक बौद्धिक और जितना आध्यात्मिक भी कार्य है वो यही चक्र करते हैं । जैसे ही कुण्डलिनी आपके इन चक्रों में जागृत हो जायेगी वो उन्हें प्लावित करेगी, पोषण करेंगी और उनको समग्र करेगी। उन चक्रों को पिरो देगी एक धागे में। आपमें समग्रता आ जायेगी मध्यनाड़ी तंत्र पर आपके मज्जा तत्व पर आपको महसूस होगा, सत्य आपको महसूस होगा। ाव अब सत्य क्या है? एक तो सत्य यह है कि आप शरीर नहीं तो हम लोग इतने भ्रम में क्यों हैं? इतनी आफत में क्यों मन, बुद्धि, अहंकार आदि कुछ नहीं हैं। आप शुद्ध आत्मा हैं बहुत ऊँची चीज हैं। गौर्वशाली हैं, सौन्दर्यशाली हैं यह तो हैं? क्या हम इन्सान इस लिये बने कि इस आफत में पड़ जायें? बहुत से लोग सोचते हैं कि आत्महत्या ही कर डालो, इस जिन्दगी से बाज आये। यह क्या जिन्दगी है? इस जिन्दगी का अज्ञान की वजह से ढक गये हैं। और दूसर सत्य यह है कि चारों तरफ फैला हुआ परमचैतन्य परमात्मा की प्रेम शक्ति जो सारे फूलों को बनाती है, सारा जीवन्त कार्य करती है उसको आप पहली मर्तबा अपनी अंगुलियों पर जान सकते हैं । यानि आपकी जो चेतना है उसमें एक नया आयाम आ जाता है जिसमें आप महसूस करते हैं। इस शक्त को पहले कभी आपने जाना नहीं। कृण्डलिनी के जागरण के बाद ही आप इस शक्ति को जान सकते हैं। तभी आपमें उसी के साथ-साथ आत्मबोध हो जाता है, आत्मज्ञान हो जाता है। मतलव यह है कि आप अपने चक्रों के बारे में जानते हैं पूरी तरह से और अपनी आत्मा के जो तीन महान् गुण हैं प्रकाशित होना", और तीसरा " आनन्दमय जीवन" ये तीनों के तीनों आपको प्राप्त हो जाते हैं। इसक अलावा आप एक साक्षी अगर मजा ही नहीं मिलने वाला, मनुष्य जीवन का अगर आपको आनन्द ही नहीं आने वाला तो ऐसी जिन्दगी से तो बाज आये। तो कुछ न कुछ तो आगे कोई चीज होगी ही और वो क्या चोज है? वह है परमात्मा को साम्राज्य उसको प्राप्त नहीं करना है? वहाँ आपको निरमंत्रण है। आप आईये बाकायदा आपको बुलाया गया है। इसीलिये कि आप साधक है । इसीलिए कि आप खोज रहे हैं और इसीलिये आप प्राप्त भी करेंगे। कुण्डलिनी जागृत होते ही आपके अन्दर एक और नया आयाम प्रगटित होता है। इसे सामूहिक चेतना कहते हैं। सामूहिक चेतना का मतलब यह है कि जैसे आप अपने चक्रों को महसूस कर सकते हैं इसी तरह आप दूसरों के भी चक्रों को महसूस कर सकते हैं। इतना ही नहीं, यह दूसरा कोन हैं? जब आप एक ही महामानव के अंग प्रत्यंग बन गये इस उंगली से यह उंगली कोई दूसरी है। इस हाथ में कोई शिकायत होती है तो दूसरा हाथ आकर के उसे मदद करता है। फौरन उसी प्रकार आप सब जागृत हो जाते हैं उस महामानव में उस विराट में, उस अकबर में और तब आपको आश्चर्य होता है कि अरे ये केवल सत्य", "चित्त का स्वरूप तत्व को प्राप्त होते हैं। क्योंकि जब कुण्डलिनी जागृत हो करके आज्ञा चक्र को लांधती है तब हमारे अन्दर निर्विचार समाधि स्थपित होती है। जैसे बुद्ध ने कहा है कि अपने दिमाग को खाली करो। क्योंकि विचार जो है यह वर्तमान से नहीं आते, भूत या भविष्य से आते हैं। यदि मैं आपसे वर्तमान में आने को कहूं तो आप आ ही नहीं सकते। और वर्तमान ही चैतन्य लहरी 7. 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt पहले जमाने में बो सब आज यहाँ सामने बैठे हैं। और सबको यह पाना है सिर्फ आत्म विश्वास होना चाहिये कि हम सब पार हो जायेंगे, और दूसरा निश्चय होना चाहिये दृढ़ निश्चय होना चाहिये कि पार होने के बाद हम इसमें बढ़ंगे, अग्रसर होंगे और अपनी यूरी वृद्धि कर लेंगे। नहीं तो जैसे अंकुरित हुआ एक बीज है वो कैसा बेकार जाता है। ऐसा ही लोग पार तो हिन्दुस्तान में बहुत जल्दी हो जाते हैं कुछ करना नहीं पड़ता। यह तो आपकी भूमि का ही प्रसाद है। मुझे तो बाहर इतनी मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ मुझे कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। बड़े पूर्व पुण्यों की वहज से आप इस देश में पैदा हुये हैं। और अब आप जानियंगा कि कितनी जल्दी आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है। लेकिन फिर इसको आगे वढाना है । उस परम शक्ति से यह संबंध पहले जब हो जाता है तभी योग घटित होता है। श्रीकृष्ण ने क्या कहा "योगक्षेम वहाम्यम्" उन्होंने क्षेम योग नहीं कहा। अभी कोई कह रहे थे कि मैं कृष्ण का नाम इतना लेती हैँं देखिये मेरा गला बैठ गया। मैंने कहा हम सामूहिकता में कहाँ आ गये, सारी दुनियाँ हमारी हो गई। मैं जब रूस गई थी, रूसी लोगों के लिये क्य कहें? हम सबसे कहीं अच्छे हैं, हम लोग धर्म के बारे में इतना जरूरत से जयादा जानते हैं कि कुण्डलिनी काम नहीं करती। वे धर्म और भगवान के बारे में कुछ नहीं जानते फिर भी सहजयोग उनके लिए सरल हैं। हर प्रोगाम में सोलह-सोलह हजार लोग आते थे सारे के सारे पार हो जाते हैं और जमते हैं। साक्षात्कार की इतनी इज्जत है उनको। हिन्दुस्तान में पार हो जायंगे पर जैसे अपनी स्वतंत्रता की हमें इज्जत नहीं उससे भी कम इज्जत अपने आत्म साक्षात्कार की है, उससे भी कम हमें अपनी आत्मानुभूति की प है। हम चिपके ही रहते हैं व्यर्थ की चीजों से। एक दिन रूस ऐसा देश बन जायेगा कि हम लोग कहीं नहीं टिकंगे उनके सामने। वही मन्दिरों के चक्कर, वही मस्जिदों के चक्कर वहीं गुरूद्वारे के चक्कर। अरे भई अस्पताल में जाने से आप ठीक हो जायेंगे, दवाई को पढ़ने से आप ठीक हो जायेंगे? दवा लीजिए दवा। अब "कह नानक बिन आपा चीनें मिटे न भ्रम की काई", बस पढ़ते जाओ, उससे क्या भ्रम मिट जायेगा पढने से? इधर कोई बाइबल पढ़ रहा है, उधर दंखी कृष्ण तो यहीं बसे हुये हैं और तुम्हारा गला क्यों बैठे भई? क्योंकि आपको अधिकार नहीं है। आपका योग नहीं बना। जब तक आपका योग नहीं बना है क्या फायदा है टेलीफोन करने पढ़ रहा है। कुछ खोपड़ी में तो जाता ही नहीं क्योंकि आपके से। इसीलिए आपका गला खराब हो गया| हो सकता है श्री कृष्ण भी नाराज हों। क्या वो आपके नौकर हैं कि हर समय उनका नाम लें। अरे आप वैसे ही कोई दस बार आपका नाम जो पार हुआ दूसरे दिन उसका नशा छूट गया शराब छूट गई ले तो कहेंगे क्या पागल कुत्ते ने काटा है । काहे मेरा इतना नाम सब छूट गया। मै किसी से कहती नहीं हूँ कि शराव मत पीओ, ले रहा है? नाम लेने से नहीं मिलने वाले। कहा भी है सहज समाधि लगाओ। सहज में ही समाधि लगती है सन्यास की आ जाओ फिर देखती हूँ अपने नाप ही छुट जायेंगी बुरी जरूरत नहीं। वही बोबी बच्चे सुन्दर हो जाते हैं । आदमी के कमल खिल जाते हैं। क्योंकि आपमें सभी चीजें स्थित खड़ा होता है आत्मसाक्षात्कारी आदमी से। इस अपनी शक्ति हैं सिर्फ एक कुण्डलिनी का जागरण मात्र तो करना है और उसके प्रति श्रद्धा रखकर के बाद में इस कुण्डलिनी को पूरी तरह से आपको उस परम चैतन्य से सम्बन्धित रखना चाहिये। इस योग को पूरी तरह से स्थापित करना चाहिये। हमारे दिल्ली आपकी अपनी शक्ति, आपकी माँ है। यह आपका अपना गौरव में जहाँ तहां तो केनद्र बन गये हैं मैं तो कभी नहीं सोच सकती थी कि इस दिल्ली में कभी सहजयोग भी होगा। क्योंकि मैं तो सरकारी नौकरों के साथ रही हूं। ये नौकरी और तरक्की के अलावा कुछ सोचते ही नहीं। पर यहाँ ऐसे कमल के फूल खिल गये। मैं तो हैरान हूँ कि इस दिल्ली शहर में इतने कमाल ठीक करें और ज्ञान का भण्डार आपके अन्दर खुल जाये, शुद्ध के लोग कहाँ से आ गये? यह भी कोई पूर्वजन्म की चीज है कि इस दिल्ली शहर में भी इतने साधक सच्चे मन से आये और चाहते है कि उनको यह कुण्डलिनी का प्रसाद मिले। कोई कुरान पढ़ रहा है, उधर ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं, कोई कुछ अन्दर आत्मा का जागरण ही नहीं हुआ। आत्मा के जागरण के बाद धर्म आत्मसात होता है। लन्दन के लोगों में सहजयोग में क्योंकि आधे लोग उठके चले जायेगे। मैं कहती हैं इस गली में आदतें। मैं नहीं कहती कि आप गुस्सा छोड़ो गुस्सा ही भाग में हृदय को हमें प्राप्त करना है और इस शक्ति को प्राप्त करने के बाद, आप को हैरानी होगी कि सारे संसार में हजारों लोग आज इस शक्ति से प्रकाशित हुये हैं| यह कोई मेरी शक्ति नहीं है यह है जिसे आपको प्राप्त होना है। मैं तो सिर्फ जैसे कोई एक जला हुआ दिया होता है दूसरा दीप जला देता है वैसे मैं आपका दीप जला देती हूं। फिर आप जलाते फिरिये। आप में यह शक्ति आ जायेगी कि आप दूसरों की कुण्डलिनी जागृत करें, लोगों को आप फोरन पहचान ज्ञान का। असल क्या है, नकल क्या है लेंगे। आपकी उंगलियों के इशारों पर कुडलिनी चलेगी। ऐसी आपके अन्दर शक्तियां हैं। अब आप कहेंगे कि माँ पहले जमाने में तो एक आदमी कहीं पार होता था तो जितने खोज रहे थे आप सबको अनन्त आशीवाद। चैतन्य लहरी ৪. बा প 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt सरस्वती पूजा यमुना नगर परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का सारांश 4,4.92 घम हमें सरस्वती की भी आराधना करनी चाहिए। सरस्वती में फंस गए हैं। ये सब चीजों का इलाज एक ही तरीके से हो का कार्य बड़ा महान है। महा सरस्वती ने पहले सारा अंतरिक्ष बनाया। इसमें पृथ्वी तत्व विशेष है। पृथ्वी तत्व को इस तरह से सूर्य और चन्द्रमा के बीच में लाकर खड़ा कर दिया कि बहाँ आपकी बुद्धि में आ जाती है और जो बच्चे पढ़ने लिखने में पर कोई सी भी जीवन्त क्रिया आसानी से हो सकती है। इस जीवन्त क्रिया से धीरे धीरे मनुष्य भी उत्पन्न हुआ। परन्तु हमें इसके बाद कला की उत्पत्ति होती है अगर आप कला को बगैर अपनी बहुत बड़ी शक्ति को जान लेना चाहिए। वो शक्ति है जिसे हम सृजन शक्ति कहते हैं, क्रिएटिविटी (Creativity) जाती है या वो बेमर्यादा कहीं ऐसी जगह टकराती है कि जहाँ कहते हैं। यह सृजन शक्ति सरस्वती का आशीर्वाद है जिसके द्वारा अनेक कलाएं उत्पन्न हुई। कला का प्रादुर्भाव सरस्वती के ही आशीर्वाद से है। मुझे बड़ा आनन्द हुआ कि आज सरस्वती का पूजन एक कॉलेज में हो रही है। इसके आसपास भी कई स्कूज-कॉलेज हैं। मानो जैसे यह जगह विशेषकर सरस्वती की पूजा के लिए ही बनी है। हमारे बच्चे स्कूलों में विद्याजन कर रहे हैं। पर हमें ध्यान रखना चाहिए कि बिना आत्मा को प्राप्त किए हम जो भी विद्या पा रहे हैं वो सारी अविद्या है। बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए आप चाहे साइंस पढ़े या अर्थशास्त्र, उसे न तो आप पूरी तरह समझ सकते हैं और न ही उसको अपनी सृजन शक्ति में ला सकते हैं। बच्चे दो प्रकार के होते प्रकृति की खुबसूरती को देखकर हुबहू उस तरह से न बना हैं एक तो पढ़ने के शौकीन होते हैं और दूसरे जिन्हें पढ़ने का शौक नहीं होता। कुछ बच्चों के पास कम बुद्धि होती है और कुछ के पास अधिका बुद्धि भी सरस्वती की देन है लेकिन आत्मा से मनुष्य में सुबुद्धि आ जाती है। बुद्धि से पाया हुआ देखते ही बनता है। जब आप कला को पाने लग जायेंगे और ज्ञान जब तक आप सुबुद्धि पर नहीं तोलिएगा तो वह ज्ञान हानिकारक हो जाता है। इसलिए बहुत से लोग सोचते हैं कि चीजों की ही और रहेंगे। बहुत सी चीजें लोग बनाते हैं, पर कुछ पढ़ाने लिखाने से बच्चे बेकार हो जायेंगे, सफेदपोश होकर फिर चीजें ऐसी बनती है जिसमें स्वयं चैतन्य बहता है। ऐसे तो पृथ्वी खेती नहीं करेंगे। वस अपने को कुछ विशेष समझकर के और इसी बहकावे में रहेंगे किन्तु आत्मसाक्षात्कार को पाकर जो विद्याजन होता है उसमें बराबर नीर-क्षीर विवेक आ जाता है। सकता है कि इनके अंदर आप आत्मा का साक्षात्कार करें। आत्मा का साक्षात्कार मिलने से ही सरस्वती की भी चमक कमजोर होते हैं वो भी बहुत अच्छा कार्य करने लग जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार के ही अपनाना चाहं तो वह कला अधूरी रह उसकी कला का नामोनिशान नहीं रह जाता। तो पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके ही सरस्वती की पूजन करना एक बड़ी शुभ वात है। आज का दिन, आप जानते हैं, नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन भी जो शाली वाहन का शक है उसका भी आज पहला दिन है। मतलब बहुत ही शुभ दिवस पर ये कार्य हो रहा है। तो हमें सरस्वती के प्रति उदासीन नहीं रहना चाहिए। मैं देखती हूँ कि जहाँ-जहाँ लोग खेती करते हैं वहाँ- वहाँ धीरे-धीरें उनका संबंध प्रकृति से होता है और प्रकृति की जो खबसूरती हैं उसे वो प्रकट करना चाहते हैं। जो कलाकार होता है वो भी क उसमें अपनी भावना डालकर उसे एक नया रूप दे देता है। आपने ये जो सब बनाया हुआ है कितना कलात्मक है। कितनी सुन्दरता से चक्र बनाए फिर श्री गणेश बनाए हैं :- सब कुछ जब आप कला की शुभ संवेदना समझलेंगे तब आप कलात्मक तत्व से ही बहुत से स्वयंभु निकल आए हैं लेकिन अगर आत्म- साक्षात्कारी मनुष्य कोई है या कोई कलात्मक चीज बनाता है तो उसमें से भी चैतन्य आने लग जाता है। सुन्दर होने के साथ-साथ ऐसी कृति में एक तरह की अनन्त शक्ति होती है। किसी साधारण कलाकार की बनाई कला शीघ्र समाप्त हो जाती है। उसके प्रति न तो लोगों की आस्था होती है और न ही कोई श्रद्धा लेकिन अगर कोई कलाकार आत्म- साक्षात्कारी हो तो उसकी कला अनन्त तक चलती है क्योंकि उसके अन्दर अनन्त की शक्ति निहित होती है क्योंकि उसने जो कुछ भी बनाया बो आत्मा की अनुभूति से पुतला वनाता समझ लेते हैं कि कौन सी चीज अच्छी है और कान सी बुरी है। कौन सी चीज सीखनी चाहिए और कौन सी चीज नहीं सीखनी चाहिए उससे पहले कोई मर्यादाएं नहीं होती। मनुष्य किसी भी रास्ते पर जा सकता है और किसी भी ओर मुड़ सकता है और कोई भी बुरे काम केर सकता है। आजकल आप जानते हैं कि छोटे बच्चां में बहुत सारी बुराइयां आने की संभावना है और बड़ों में तो हो ही रहा है कि डूरग्स आ गए और दुनिया भर की गंदी बातें बच्चे सीख रहे हैं और परेशानी वे चैतन्य लडरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt बनाया है, जो आत्मा को रुचिकर है जो आत्मा पसंद करे ऐसी ने इसे सौन्दर्य लहरी कहा । चीज वह बनाता है। कलात्मकता इस तरह से मनुष्य में बहुत सुन्दरता से पनपती हैं और ऐसी जित्तनी भी कला की चीजें हो। सबसे पहले सौन्दर्य में हमेशा वैचित्र्य होना चाहिए, बैराइटी बनती हैं वो हमेशा के लिए संसार में मानी जाती हैं। हिन्दुस्तान होनी चाहिए। परमात्मा ने यदि सबकी शक्ल एक सी बनायी से बाहर भी मैंने देखा कि जो कलाकार आत्मसाक्षात्कारी थे उनकी कला आज तक लोग मानते हैं। एक माइकल एन्जेलों नाम के बड़े भारी कलाकार थे। बहुत सुन्दर उन्होंने रचना की बहुत सुन्दर सब कुछ बनाया। आज तक लोग उसे एक बड़े हो मिलता है विकसित देशों की औरतें तो गुलामों की तरह एक गौरव के साथ समझते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति की कला अनन्त की शक्ति से प्लावित होती है। तो आप लोग भी हैं। उनमें कोई फर्क ही नहीं प्रतीत होता। उनके अन्दर जो आत्मासाक्षात्कारी हो गए हैं। हरियाणा में इतने लोग आत्मसाक्षात्कारी हो गए और अब और भी बहुत सारे लोग आयेंगे, वो भी आपके ही जैसे एक दिन सहजयोगी हो जायेंगे और समझ जायेंगे कि सहजयोग क्या है। किन्तु जब लोग सहजयोग में आ गए तो अब आप कला की ओर अपनी दृष्टि बढ़ायें। कला की ओर दृष्टि बढ़ाने से एक तो जीवन में सौन्दर्य बनाओ तो वह क्रिटिक बैठे हुए उनको पहले पड़तालेंगे कि यह आ जाता है और जीवन का रहन-सहन सुन्दर हो जाता है। ठीक है या नहीं। और दूसरी बात यह बताएंगे कि इसका पैसा उसके लिए जरूरी नहीं कि आप बहुत रुपया-पैसा खर्च करें। मिट्टी में भी कला भरी है। आप मिट्टी की भी कोई चीज उसकी आत्मा ही खत्म हो जाती है। कला आनंदमयी होनी बनायें तो भी वह कलात्मक हो सकती है। हमारे उबड़े-खाबड़े जीवन में यदि धोड़ी सी कला की झलक आ जाए सुख और आनंद मिलता है। इसलिए आप लोगों की दृष्टि अब कला की ओर जाए तो बड़ा अच्छा हो जाए सभी लोगों के लिए। यहाँ के लोग भी कुछ कलात्मक चीजें बनाने का प्रयत्न करें। हाथ से बनी हुई चीजों में चैतन्य बहता है। मशीनों का अत्यधिक प्रयोग करने से ही वातावरण दूषित हो गया है इसका इलाज ही यह है कि आप कलात्मक चीजों की ओर बढ़ें। जब लोग कलात्मक चीजों की ओर बढ़ेंगे तो एक तरह की श्रद्धा कला के प्रति हो जायेगी। सबसे बड़ी बात तो है कि हम हजारों चीजें जो बेकार की खरीदते हैं वो बंद हो जायेंगी। हाथ से बनी चीजों के द्वारा अपने हृदय का आनंद हम दूसरों को समर्पित करते हैं । ये फूल आपने इतने कलाल्मक ढंग से लगाए हैं। इनकी ओर देखते ही हठात मैं निर्विचार हो जाती हूं। मुझे अंदर काई विचार नहीं आता निर्वाज्य निर्विचार होकर के सच में इसे देख रही हूं। इसको बनाने में जिसने जो कुछ भी आनंद इसमें सहजयोगिनी बहुत सर्वसाधारण एक कलाकार थी लेकिन आज डाला है वो पूरा का पूरा मेरे सर से ऐसे बह रहा है जैसे गंगा जी बह रही है। उससे एकदम बहुत शान्त और आनन्दमयी भावना ओ जाती है। जब तक कलात्मक चीजें नहीं हंगी तब तक आपका विचार चलता रहेगा। कलात्मक चौज हठात आपको निर्विचारिता में उतारेंगी और उसका सौन्दर्य देखते हो आपको ऐसा लगेगा कि आप निविचार है क्योंकि सौन्दिर्य देखने है उसमें बो शक्ति जिसे मैं अनन्त की शक्ति कहती हूँ, वह से ही चैतन्य एकदम बहने लगता है और उस सौन्दर्य के कारण ही एकदम से आप निर्विचार हो जाते हैं। इसीलिए आदिशंकारचार्य समाहित होती है और ऐसी बनाई हुई चीजें, ऐसी क्रिया से अब यह सोचना है कि किस तरह से यह सौन्दर्य स्थापित होती तो केसे लगते हम लोग? सभी लोग अलग-अलग प्रकार के कपड़े पहनते हैं। हमारे देश की सभी स्त्रियां अलग ढंग, रंगों की साडियां पहनती है। यह वैचित्र्य केंवल हमारे देश में ही ही प्रकार के फैशन करती हैं। एक ही प्रकार के बाल बनवाती आत्मा है वह दरबी हुई है। उनमें न बैचित्र्य है और न ही सृजन शक्ति। अब कला का भी यही हाल हो गया है। विदेशों में अच्छी कला कृतियां अधिक नहीं निकलतीं। कंवल आलोचक हो रह गए हैं आलोचक दूसरे आलोचकों की आलोचना में लगा है अब कलाकार भी डरते हैं क्योंकि कोई सी भी कला कितना मिल सकता है। जब कला पैसे पर उतर आती है तब चाहिए न कि उससे कितना पैसा मिले। तो बड़ा जब आपकी यह धारणा और लक्ष्य हो जाएगा तो स्वयं आत्मा ही आपको ऐसी प्रेरणा देगा कि आप ऐसी-एसी सुन्दर चीजें बनायेंगे जो भूतो न भविष्यति पहले कभी बनी नहीं और न बनेगी। एक से एक कलात्मक चीजं लोग बनायेंगे और शांत प्रकृति गांवों के लोग इस प्रकार की रचना कर सकते हैं । शान्तिमय, ध्यानावस्था में रहे बिना कला सृजन अधूरा रह जाता है या मर्यादा विहीन। आपको कला का तंत्र तथा तकनीक मालूम होनी चाहिए। जब आपको आत्मसाक्षात्का होता है तभी आपकी सृजन कला बढ़ जाती है हमने देखा है सहजयोंग में आने के वाद बहुत सारे संगीतकार जग प्रसिद्ध हो गए। गणित जानने वाले चार्टेड अकाउण्टेंट कवि हो गए। उन्होंने पहले कभी कविता नहीं लिखी। इसी प्रकार जो कभी स्टेज पर नहीं आए वो बड़े-बड़े भाषण दे रहे हैं, जिन्होंने गाना कभी गाया नहीं था वो बहुत सुन्दर गाना गाने लग गए। आस्ट्रेलिया में एक उसका सारी दुनिया में नाम फेल गया है। इस प्रकार जब आप पर सरस्वती जी की कृपा होती है तो आप कलाकार बन जाते हैं लेकिन आप आत्मसाक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं। जब आप आत्म- साक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं तब आपका सारा ही व्यक्तित्व बदल जाता है और जो भी सृजन आप करते जिसने कोई सा भी कार्य सम्पन्न किया हो, उसकी कीमत चैतन्य लहरी 10 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt आंकी ही नहीं जा सकती और अनन्त तक उसकी सौन्दर्य नहीं था। एकदम सीधे-सीधे चले आए और अब जबसे इनको शक्ति प्रदर्शित होती रहती है। चाहे वह कलाकार को मृत्यु को हजारों वर्ष हो जाए तो भी लोग उस कला को देखकर के सीख गए। एक तो हिन्दी भाषा सीख गए, फिर अब वहुत कहते हैं कितनी सुन्दर चीज है। सहजयोगियों के लिए बहुत जरूरी है कि वह कला में किया। अब उनको लगता हैं अब क्या बनायें। फिर इन्होंने एक उतरें और कला को समझें। आपके साथ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे। विशेषकर के आज जो आप आत्मसाक्षात्कारी चीजें वो बनाने में लगे हुए हैं। ऐसी जो अंदर से प्रेरण आती है हुए हैं ये तो और भी अच्छी बात है कि आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है। जैसे हमारे स्कूलों में परदेश से बच्चे आए इन्होंने कभी कुछ ड्राईंग नहीं किया, इन्हें कुछ पता आत्मसाक्षात्कार मिला है एकदम से ही वो इस कदर बढ़िया सुन्दर चित्रकारी करते हैं, फिर अब मिट्टी के बर्तन बनाना शुरु का घर बनाया फिर उसके ऊपर माडी बनायी और तरह-तरह की बह भी सहजयोग की वजह से और इस प्रेरणा को पूरित करने वाली शक्ति भी सहजयोग से आ जाती है। और आप सबको अनन्त आशीर्वाद। जन कार्यक्रम कवि नगर गाजियाबाद 25.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण लग जाती है धर्म पर कि धर्म क्या चीज है? ये तो सब एक तमाशा है, एक ढकोसला है। कोई भी धर्म गलत नहीं। कोई भी अवतरण गलत नहीं। कोई भी संत, साधु, दृष्टियोगी गलत नहीं। गलत तो वो लोग हैं जो इनको अपने हाथ में ले लेते हैं और धर्म को बेच रहे हैं। चाहे वो सत्ता के लिए लड़ें या पैसों के लिए। इस सत्ता की खोज में न जाने कितने युद्ध हो गए सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम। जैसा मैंने पहले भी कहा है कि सत्य अपनी जगह है और उसे हम बदल नहीं सकते, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, हमें बुद्धि से परे उठना है क्योंकि मानव चेतना से सत्य को नहीं जान सकते। सब धर्मों में यही कहा गया है कि आपका पुनर्जन्म होना जरूरी है। लेकिन किसी न किसी कर्मकाण्ड के आडम्बर में हम लोगों को धर्म मार्तण्डों ने फंसा दिया। ये लोग भगवान के नाम पर पैसा बनाना चाहते हैं या सत्ता हथियाना चाहते हैं। सत्ता और जनसमुदाय के लिए यह समझना मुश्किल था कि ये लोग सही कहते हैं या गलत। उन्होंने जो कह दिया करने लग गए। जैसे आजकल एक आधुनिक उदाहरण मैं बताती हूँ कि बहुत सी औरतें संतोषी माँ का उपवास करती हैं और बीमारी मोल लेते हैं। ये सिनेमा वालों ने संतोषी माँ बनाई। अब ये फिल्म वाले कोई देवी बना सकते हैं। जो स्वयं संतोष का स्रोत है वो कैसे संतोषी हो सकते हैं? सभी धर्मों में इस प्रकार की चीजें घुस गई हैं। असली को छोड़ हम नकली की अपना बैठे हैं। आज ही कोई साहब बता रहे थे कि कुंभ के मेले में हजारों लोग मर गए। हजारों सदियों से कुंभ का मेला होता है और एसा शास्त्र में कहीं कहा गया है कि जिस वक्त ये समय आता है उस समय सरस्वती का पात्र खुल जाता है और उसमें नहाने से पाप धुल जाते हैं। पर हिन्दुस्तान में देखते हुए पाप कुछ घटे तो नहीं कुछ बढ़ ही गए हैं। कुछ शंका होने भगवान के नाम पर न जाने कितने मर गए। लेकिन अब आप लोग नोएडा में मैं देखती हूँ सहजयोंग में उतर आये हैं और जो लोग सहज में उतर आए है वो तो सभी धर्मों को मानने लगे और नहीं मानते हैं तो मानना पड़ेगा। सब अवतरणों को पूजा करनी पड़ेगी नहीं तो आप सहज में परिपक्व नहीं हो क्योंकि हम तो विश्व धर्म में विश्वास करते हैं। उसमें सारे हो धर्म समाहित हैं सबको जोड़ने की बात हैं तोड़ने की नहीं। हममें है अपने ही धर्म को अच्छा समझने की गलतफहमी, आप किसी भी धर्म के हो आप हर तरह का पाप कर्म कर सकते हैं कोई आपको रोकने वाला नहीं। पर सहजयोग में आकर भी यदि आप कुछ गलत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि सहजयोग आपमें घटित ही नहीं हुआ। लेबल लगा लेने से कोई सहजयोगी नहीं बन जाता। सहजयोग में सहजयोगी बनना पड़ता है जैसे एक चीज़ को वृक्ष बनना पड़ता है। जब वो घटित हो जाता है तो बो समर्थ हो जाता है उसक अन्दर इतनी शक्तियां धीरे-धीरे जागृत हो जाती है कि वो सबको ही जागृति दे 11 चैतन्य लहरो 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt बताएंगे कि, आपने इतना दे दिया। ये सब परम-चैतन्य आपको दे रहा है क्योंकि आपका हृदय प्रेम से भरा जा चुका है जिस सकता है, लोगों की बीमारियां ठीक कर सकता है, सारे ज्ञान का वो भण्डार बन जाता है। उसकी सारी त्रुटियां खत्म हो करको वो एक परिपक्व इंसान जिसका मस्तिष्क बहुत प्रगल्भ मनुष्य के हृदय में प्रेम आ जाए शुद्ध प्रेम तो ये तो परम-चैतन्य स्वयं ही आपके अन्दर आ गया क्योंंकि ये भी शुद्ध प्रम है और यही आपके हृदय में भी हैं तो ऐसा हृदय जिसमें ये शुद्ध प्रम विराज रहा है उसका संबंध तो हो ही गया उस परम-चैतन्य से। तो क्या यह परम-चैतन्य उस हृदय का नन्ही बालक समझ करके उसकी पूरी मदद नहीं करेगा? उसको नहीं दखगा? और जब यह परम-चैतन्य आपके हर पल, हर घड़ी रक्षा करेगा, आपकी इच्छाएं पूरी करेगा, आपमें संतुलन और दुनियाभर का प्यार दे देगा, जब ऐसी आपको सुन्दर प्रकृति हो जाएगा आपको देखकर बाग के फूल भी खल उठे ओर वन के पड़ भी आनन्द से भर जाएं ऐसी जब आपकी सुन्दर प्रकृति हाने लगेगी तब आपका विश्वास अपने ऊपर और सहजयोग के बन जाता है जिसे गीता में स्थित प्रज्ञ कहा गया, नानक साहब ने खालिस कहा और बुद्ध ने इसको बुद्ध कहा। धर्म बाह्य नहीं अन्दर होना चाहिए धर्म अन्दर लाने के लिए खालिस होना पड़ेंगा, स्वच्छ होना पड़ेगा। तो सहजयोग में आने के बाद हर बार देखना चाहिए कि हमारा हृदय स्वच्छ हुआ कि नहीं, अब भी उसमें आस-पास की ईष्ष्या, आस-पास का दोष यही सब उमड़ रहा है । इस दिल को आप जब साफ करेंगे तभी तो परमात्मा का प्रेम इसमें भरेगा। सहजयोग में आने के बाद भी कुछ लोग एक-दूसरे की बुराई देखते हैं तथा परस्पर स्पर्धा करते हैं। किन्तु अगर अच्छाई में स्पर्धा शुरु हो जाए तो सबकी अच्छाई बढ़ जाएगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा। अजीब बात ये कि आत्मा का प्रकाश पूरी तरह से हमारे चित्त में आया नहीं हमारे हृदय में पूरी तरह से बसा नहीं तो सहजयोगी होने पर भी डांवाडोल मामले चलते हैं और जब चलते हैं तो आपसी झगड़े हो जाएंगे गुटवाजी हो जाएगी। तो ऊपर दृढ़ हो जाएगा। जब तक ये विश्वास अन्धा था अन्धेपन से आप दुनियाभर के कर्मकाण्ड कर रहे थे तब तक एक अन्धे की लाठी जहाँ चल जाए। इसी प्रकार आपका जीवन था मान लीजिए यहाँ सब अन्धे बैठे जाएं तो वह समझेंगे नहों कि किसके पास बैठे हैं किससे कितनी दूरी पर है क्यो हैं अगर ये डांवाडोल मामले हम अपना नुकसान कर रहे हैं दूसरे का नहीं। जरा गरदन उनको बाहर भी ले जाना है तो उनको हाथ पकड़ कर ले जाना पड़ेगा पर फिर ऐसा लगता है कि यह परम-चैतन्य जो हैं ये मेरा हाथ पकड़ कर मुझे इधर ले जा रहा है। मान लीजिए कि कहीं जा रहे हैं रास्ता भूल गए तो परम चैतन्य जहाँ जाना है उधर ले जा सकता है। मैं क्या करू ये परम-चैतन्य मुझे ले जा रहा है। इसी के साथ में चले जाओ|। सारी जिम्मेदारी इस परम चैतन्य ने ले ली, ये बात आपकी समझ में आ जाएगी। जब ये बात आपकी समझ में आ जाए तब ये जो अन्धश्रद्धा है ये श्रद्धा बन जाएगी और विश्वास श्रद्धामय होगा। क्योंकि आपने सत्य को जाना और सत्य को जानते ही आपने इसको अपनाया है इसलिए सत्य आपके साथ खड़ा रहेगा। और जो इंसान सत्य पर खड़ा रहता है उसको कोई डिगा नहीं सकता। अगर उसको कोई डिगाता है तो वह हैं असत्या क्योंकि वह समर्थ हो जाता है। ईसा मसीह को एक बार एक बैश्या के सामने खड़ा होना पड़ा क्योंकि लोग उसे पत्थर मार रहे थे वो जाकर उस वैश्या के सामने खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि आपमें से जिसने पाप नहीं किया हो वह मुझे पत्थर मारे इस झुकाइए तो आप देखेंगे इस हृदय में आत्मा है, पर गरदन झुकाने की जरूरत है। पर आप कहेंगे कि मैं क्यों झुकू? तो ये आप नहीं आपका अहंकार बोल रहा हैं। इस अहंकार को और आपको झुकाना पड़ेगा। थोड़ी सी सख्ती कीजिए इसके साथ आपको आश्चर्य होगा कि आपके हृदय का कमल खिलने लग गया और उसका सौरभ, उसका सुगंध सारे संसार में फैलने लगा। तब फिर आपकी कुण्डलिनी भी चल पड़ेगी आपकी तन्दुरुस्ती ठीक हो जाएगी आपकी कमजोरियां खत्म हो जायेंगी | किन्तु पहले हृदय खोलने की जरूरत है। ये ठीक है आप पार हो जाइए। आप सहजयोग पर लम्बे लेक्चर दे सकते हैं, सब बुद्धि का करिश्मा हो सकता है। आपके हाथ से थोड़े लोग जागृत भी हो जायेंगे लेकिन न आप आगे जा सकते हैं न ही वो लोग आगे। जिसने इस प्रेम से हृदय को भर लिया वही असली सहजयोगी है। इस शुद्ध प्रेम से भरे हुए हृदय को चारों तरफ फैला हुआ ये चैतन्य जानता है। जब आपका हृदय प्रेम से भर जाता है तो ये सारा चैतन्य जो है वो अपने गण भेज कर आपके आगे-पीछे दौड़ता है। आपकी जरूरतों को पूरा करता है ये हमेशा लोग मुझे बताते है माँ मेरे साथ तो ऐसा चमत्कार हुआ, मुझे तो आप ने ऐसा दे दिया. मैंने वैश्या को नहीं। असल में ईसा मसीह का और वैश्या का क्या संबंध? कुछ भी नहीं। लेकिन सत्य का और उनका संबंध था उस सत्य की बुनियाद पर खड़े होकर उन्होंने कहा तो सबने कुछ दिया भी नहीं, कुछ भी नहीं, लेकिन वो इतना चैतन्य लहरी 12 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt पत्थर फेंक दिए और सब भाग गए। ऐसी प्रखर सत्य की शक्ति है जो हर तरह की नारकीय या पाशविकर प्रवृत्तियां हैं, जो दुष्टता का हमारे अन्दर भाव है, उसको पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं। सिर्फ खड़े होने की जरूरत है और खड़ा होना है सकते हैं, भयंकर क्रोध आता है, अहंकारी लोगों को और फिर डाक्टरों की जेबें भी भर सकता है। आप इस संसार में किसलिए आए हैं? पीड़ित रहने क लिए और सबको पीड़ा देने के लिए कि इस जीवन का आनन्द उठाने के लिए? वो आनन्द आप अन्धश्रद्धा से नहीं पा सकते। जैस अन्धे क्री कोई सा रंग नहीं दिखाई देता उसी प्रकार इस सत्य की श्रद्धा पर। श्रद्धा का मामला मैंने बड़ा जबरदस्त देखा अभी युगोस्लाविया में एक स्त्री बहुत बीमार थी और पता नहीं उसको कितनी बीमारियां थीं बेचारी को। तो उनको एक कुर्सी पर बिठाकर मेरे सामने लाया गया। टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहने लगी माँ आप मुझे एकदम ठीक करें। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे ठीक कर सकती हैं। मैंन पूछा कि वास्तव में तुम्हें विश्वास कि मैं तुम्हें ठीक करूंगी? हां मुझे पूर्ण विश्वास है। अच्छा तो खड़ी हो जाओं। खड़ी हो गई वो, मैं तो ठीक हो गई सीढ़ियां उतर कर नीचे गई और लगी दौड़ने। सब लोग देखने लगे. हंसने लगे। जिस परम-विश्वास के साथ उसने यें बात कही ऐसा विश्वास सहजयोगियों के हृदय में बैठना चाहिए कि हमारे लिए है अच्छा तो फिर तुम्हें जो करना है कर से को कभी भी परमात्मा के प्यार की छटा अन्धश्रद्धा मनुष्य भी नहीं मिल सकती, जान भी नहीं सकता कि परमात्मा कितना प्रेम से भरा हुआ है। उसकी उसको चाह तक कभी नहीं मिल सकती। एक बूंद भी उसकी बो नहीं पा सकता जो कि साक्षात आनन्द स्वरूप है चारों तरफ फेला हुआ है। तो हम क्यों बेकार में ही इस गतं में पड़े हुए गोते लगा रहे हैं जबकि इतना आसान है उस को पाना। क्यों न उसे हम प्राप्त करें जब कि हमारा अधिकार है इसे प्राप्त करना। हम इंसान है पहुंचे गए माँजल तक, थोड़ा और आगे जाना है। लेकिन मंजिल तक आने तक इतनी गठरियां सर पर आपने लाद ली जो मिला से परम-चेतन्य कहता लाद लाए। अब दो कदम भी चलना नहीं हो सकता। कितने ही लोगों से मैंने कहा कि अब कर्मकाण्ड छोड़ो। एंसे कैसे हा है ल। जब तक हम परम-विश्वास को प्राप्त नहीं करेंगे तब तक हमने जाना हो नहीं कि सत्य क्या है? सत्य यह है कि परमात्मा सकता माताजी, हम तो शुरु से ही करते आ रहे हैं। शुरु से रोज सवरे में एक हजार बार राम का नाम लेती हूँ। अच्छा भई चाहते हैं कि आप उनके साम्राज्य में आएं और उनका साम्राज्य फिर आपकी विशुद्धि तो पकड़ रही है और आपको अस्थमा है। जो राम का स्थान हैं। क्या फायदा हुआ आपको? लेकिन बो मुझसे नहीं छूटने वाला चाहे कुछ कर लीजिए। इसकी लत तो मैं समझती हूँ कि शराब से भी बदतर है, जो एक बार आदत पड़ गई वो लत पड़ती चली गई। शराब छूट जाएगी पर ये लत नहीं छूटती। अरे भई तुम्हारा ये विशुद्धि चक्र खराब होता चला जा रहा है और ये तुम्हारा दायां हृदय पकड़ रहा है, तुम्हें अस्थमा की शिकायत हो गई। श्री राम का स्थान है श्री राम ही तुमसे नाराज हैं। मैं क्या करू माताजी मुझ से छूटता ही नहीं। ऐसी-ऐसी आदतें हम लोगां ने लगा ली। जैसे कि किसी आदमी में गाली-गलौच करने की आदत है और उसका कोई इस कदर कार्यशील है, कार्यदक्ष है, कार्यक्षम हे कि कोई बात यहाँ कहिए जाकर अमेरिका में हो जाती है। न जाने संचार इतना जबरदस्त कैसे हुए एक चीज़ नहीं छुपती । पर उसके लिए आपको योग्य होना चाहिए। आपमें योग्यता नहीं तो ये कार्य नही होने वाला। इसके लिए कुण्डलिनी का जागरण मात्र चाहिए। वो तो अभी हो ही जाएगा आप सबका, इसमें कोई शंका नहीं। किन्तु ये जो संबंध है, योग है चारों तरफ फैली हुई इस परमात्मा की सृष्टि से जो संबंध हे वो जब तक आप कायम नहीं करेंगे तब तक आप ऐसे डोलते ही रहेंगे उसकी विधियां भी सहजयोग में बहुत ही सीधे और सरल हैं कोई आपको हिमालय नहीं जाना, न ही कोई जप, तप, ब्रत करने हैं सिर्फ सुबह पांच मिनट शाम को दस मिनट भी अगर आपने ध्यान किया और आप सामूहिकता में अपना सारा घमंड छोड़ कर चले आए तो कार्य हो जाएगा। पर अहंकार की भावना लेकर जो चलते हैं वो सहजयोग में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। सहजयाग अहंकारियों के लिए नहीं। हां उनके लिए और चीजें हैं जैसे उन्हें अस्थमा, दिल का दौरा, रक्तचाप, इलाज नहीं हुआ। उसको किसी ने कहा कि अच्छा अब आप चलिए किसी राजा के स्थान पर बैठिए तो वो बहाँ से ही गालियां देना शुरु कर देगा। ये भूल जाएगा कि मैं राजा के स्थान पर बैठा हूँ मुझे कायदे से बैठना है। वहाँ से हो गालियां देनी शुरु कर देगा। ऐसे लोग पाल्लियामेन्ट में चले जाइए, काह को लोगों को परेशान करते हो। वहाँ चल जाएगा ये काम, जिस स्थान पर आपको बैठना है उसकी लियाकत भी होनी चाहिए। ये तो जरूरी चीज है। तो पहली चीज ये कि कृण्डलिनी पक्षबात, शक्कर रोग, रक्त कैंसर, कब्ज़, गुर्दारोंग आदि हो सकते हैं पक्षघात, डायबिटीज़ हो सकता है, गुर्दे भी खराब हो चैतन्य लहरी 13 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt जागरण के बाद अपने को तोलना चाहिए कि मैं कहाँ हूँ? अच्छी गाड़ी या कपड़े लियाकत नहीं लियाकत है आपके चित्त में आपकी श्रद्धा और दूसरा कि सहजयोग की युक्ति हैं। योग का मतलब दो होता है उस परमात्मा के प्रेम की शक्ति से एकाकारिता और दूसरा है युक्ति माने इल्म । उसका इल्म भी आपने सीखा कि नहीं? जैसे एक आपने दीप जला दिया अब को काट, कहीं मुर्दे को काट, सात साल में तो कोई पास नहीं होता है आठ-दस साल में कहीं कोई पास हो गए तो कहीं जाकर आप डाक्टर हो पायेंगे। फिर भी गर किसी अस्पताल में आप गए और कहा कि पता लगाओ इनको क्या बीमारियां हैं ती आपकी पूरी आंतंड़ियां निकाल देंगे, आंख निकाल के धो कर फिर कर देंगे और कहेंगे आपको कोई बीमारी नहीं है। ये दांत निकाल के धो कर फिट कर देंगे। लेकिन सहजयोग में तो आप खड़े हो जाइए फौरन पता चल जाता है एक मिनट में क्या तकलीफें हैं। फौरन पता हो जाता है कि आपको क्या तकलीफें है और दूसरे को क्या तकलीफें हैं तो संवेदना अपने अन्दर लानी पड़ेगी। साथ ही इल्म भी आना चाहिए कि इसमें हमने अभी देखा कि इसको ठीक कैसे किया गया| अभी एक साहब इस दीप का अगर काम है प्रकाश देना और ये प्रकाश नहीं दे सकता तो ऐसे दीप का क्या फायदा? पर जो सहजयोगी सहजयोग के बारे में जानता नहीं है कि ये चक्र क्या है, वो चक्र क्या है, या इसको ठीक करने का तरीका क्या है, मैेरे अन्दर कौन से दोष हैं, उसे में किस तरह से ठीक करूं और जन साधारण में जो दोष हैं जिनके लिए मैंने इस प्रकाश को पाया है उसको मैं किस प्रकार से प्रकाशित करूं? ये अगर विचार हमारे अन्दर है ही नहीं तो सहजयोग में आकर आप क्या कर रहे हैं? आपको पता होना चाहिए कि सहजयोग एक महान आंदोलन है और जैसे कि बुद्ध ने कहा था कि बोधिसत्व ने कहा कि माँ मैं जब दूसरों को ठीक करता हूँ तो मैं कमजोर हो जाता हूं। क्योंकि आप सोच रहे हैं आप कर रहे हैं। आप मेरा फोटो रखो कहना माँ तुम्हीं कर रही हो, हो गया काम खत्म। आप अपने ऊपर ले लेते हो तब यह प्रश्न खड़े हो जाते हैं। का जमाना आएगा। कहा था 'मात्रिया' तीन माँ 'मात्रेया' और बोधिसत्व के जमाने में जो लोग बुद्ध होंगे, एन्लाइटेएण्ड होंगे, प्रकाशित होंगे वो जन साधारण का कल्याण करेंगे और सारे समाज में इसे फैलायेंगे। ये बन्धन हैं। अकेले बैठ के तो शरीबी भी शराब नहीं पीता फिर क्या ये अमृत आप अकेले पियेंगे? मजा आपको तभी आएगा जब आप इसे बांटैंगे और बांटने के लिए इसका इल्म होना चाहिए। जैसे कोई भी मशीन है, ठीक है उसको आपको दे दिया, भई इसमें स्विच लगा दो और काम नोएडा में सहज़योग बड़े जोरों में बढ़ रहा है। इसमें कोई शंका नही पता नही मुझे भी यहीं जमीन मिल गई यहीं पर घर हमारा भी बन रहा है। कुछ बात है ही नोएडा की ऐसी पर यहाँ के सहजयोगियों को सहजयोग का इल्म कितना मालूम है वो मैं जरूर देखूंगी। इल्म जरूर मालूम करना ही पड़ेगा नहीं तो ऐसा हुआ जैसे आप किसी यूनिवर्सिटी में फर्स्ट ईयर में फेल हो कर रह गए। जब तक आपको इसमें पूरा गुरुत्व (मास्टरी) नहीं आ जाएगी तब तक आप सहजयोग में बिल्कुल बेकार आए हैं। आपका कोई उपयोग नहीं। जंगलों में लाईट लगाने से हो जाएगा। पर बाद में तो आपको सीखना ही पड़ेगा कि ये है क्या चीज? ये चल कैसे गई क्योंकि आपको जन साधारण में क्या फायदा? समाज में हमको प्रकाश देना है। अब आपको जाना है सबको बताना है समझाना है। वो कहेंगे अच्छा भई तुमने क्या पाया? मुझे तो ऐसी ठंडी-ठंडी बस हो गया क्या नहीं वैसे हमारा बिजनेस अच्छा समाज में उतरना पड़ेगा, भागना नहीं है समाज से, गन्दगी से भागिए पर समाज से भागने की जरूरत नहीं है आपको। देखते ही आपके प्रकाशित जीवन को, आपके नूर को देखकर ही और पूछेंगे भई है क्या बात? बताइए धीरे-धीरे उनकी खुद समझ में आ जाएगा। इसलिए जबरदस्ती करने की कोई जरूरत नहीं। समाज में आ भी गए तो जैसे एक वैसे दस। उससे फायदा क्या होनेमें जब तक आप कार्यान्वित नहीं होंगे, सिर्फ हां भई मेरी तो वाला है किसी को? इसलिए आपको इल्म सीखना पड़ेगा। तबियत ठीक हो गई, मेरे बच्चे को भी नौकरी मिल गई। मेरा, इसकी तकनीक जिसे कहते हैं हिन्दी में शब्द इन्होंने बनाया है मेरा, जब तक चलेगा तब तक आप सहजयोगी नहीं भले ही आप मेरा बैज लगा के घूमें। हम तो चाहते हैं, एक माँ तो जरूर हैं लेकिन चाहते हैं, कि जो कुछ हमारे अन्दर है सब हमारे बच्चे इसी तरह से पनप जायें, उससे भी आगे चले जायें| हड्डियों के एक-एक पुर्जे को याद करना पड़ता है कहीं बच्चे उसके लिए जो भी आप कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूँ जो चैतन्य की लहरियां आ गई लोग समझ लेंगे कि ये चीज कुछ और ही है हो गया, मेरी बहू को बेटा नहीं होता था उसका बेटा हो गया मेरे घर की समस्या थी वह ठीक हो गयी, आदि-आदि। ऐसी बाते बतायेंगे। चलो इस पर भी कोई विश्वास करके सहजयोग टेकनीक से तकनीक। इसकी तकनीक सीखनी पड़ेगी हर एक सहजयोगी को। बहुत ही आसानी से सीखते हैं। मैं भी मेड़िकल कॉलेज में पढ़ी हूँ बाप रे बाप! हड्डियां लेकर सोना पड़ता था। मा चैतन्य लहरी 14 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt भी मेहनत कहेंगे वो करने को तैयार हूँ। मैं देखती क्या हूँ माँ मेरी तो बीमारी ठीक ही नहीं हो रही है, माँ मेरा ये नहीं हो रहा वो नहीं हो रहा ये ही रोना गाना करते रहते हैं। ये क्या तुम सहजयोग में आए हो? गर सहजयोग में आने से आपकी बीमारी ठीक नहीं होती तो आपमें कोई न कोई खराबी है। सहजयोग में कोई खराबी नहीं है। अच्छा हो आप फिर से जन्म लें। छोड़ो सहजयोग को ऐसा सहजयोग क्यों करते हो? बेहतर है आप छोड़ कर चले जाओ और सबको बख्शो! रोज मुझे 5-6 बजे तक बैठना पड़ता सब रोना लेके लोग पहुंच जाते हैं। ऐसा कोई जब कहे कि अब कहिएगा सो करेगा तब आपके साथ बेइंसाफी नहीं होगी। इंसाफ पूरी तरह से आपके साथ इस तरह से होगा कि आप भरपूर हो जायें। ऐसे भी बहुत से लोग सहजयोग में मिले हैं, अब मिलते हैं, इस नोएडा में भी हैं, और इस दिल्ली शहर में भी हैं जहाँ मैं तो सोचती थी कि बबूल के झाड़ू के सिवा कोई झाड़ ही नहीं हो सकता। वहाँ आज इतने गुलाब खिल गए हैं, हर जगह इतना कार्य हो गया। लेकिन आपको भी इसी में स्पर्धा करना है कि हम भी ऐसे हो कर दिखायेंगे इसके लिए आपको किसी कॉलेज में भर्ती नहीं होना, कोई आपको पैसा नहीं देना है, कोई खर्चा नहीं करना है। सिर्फ पूर्ण शुद्ध इच्छा अन्दर होनी चाहिए और इस इच्छा को क्रिया में परिवर्तित करना चाहिए। फिर देखिए आप कहाँ से कहाँ चले जाते हैं और कहाँ से कहाँ आप कार्य करते हैं। क्ण्डलिनी के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं और बता भी देंगे चक्र भी बता देंगे। उसके नम्बर भी बता देंगे। लेकिन इल्म हमारे अन्दर कितना है वो देखना चाहिए। इस प्रकाश को संजोने के लिए सबसे पहले हमें अपनी इज्जत करनी चाहिए कि हम अब सहजयोगी हैं । अब हम ये नहीं कर सकंगे और यही कर सकेंगे। इस नतीजे पर पहुंच जाना पड़ेगा। अपने प्रति पहले श्रद्धा, प्रेम और विश्वास होना चाहिए कि हम ये करके दिखायेंगे। हम सब है, सर्वेरे 6 बजे से 6 बजे तक यही नहीं चाहिए माँ, सब मिले गया, अब बस ठीक चल रहा कुछ है। तब फिर तबीयत बनती है और सोचते है कि ये समझ गए हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है। हमारा मार्ग तो ठीक हो गया लेकिन ये मार्ग कहाँ पहुचता है और हमें इसमें अग्रसर होना है, इसमें बढ़ना है। तो हमें क्या करना है उसके लिए? क्या प्राप्त करना है? और सब चीजों में तो हम बहुत स्पर्धा लगाते हैं कि गर हमने एम.बी.बी.एस किया तो एम.डी कर लें। दुनिया भर की धन्धे में भी आज हमने छोटी सी फैक्टरी खोली कल उसकी डबल फैक्टरी खोलें। उसके बाद चार गुणा ज्यादा फैक्टरी खोलें। एक दो साड़ियां हैं तो उसको दस साड़ियां होनी चाहिए, गर जेवर एक है तो दस जेवर होने चाहिए, किसे सब कुछ करना है। अरे वो बड़ा अच्छा जवर पहन के आई थी मैंने पूछा कौन से दुकान से लाई थी उसी दुकान में जाकर जेवर खरीदूंगी। इस मामलें में बड़ी स्पर्धा है फिर हमारे पुरुषों की भी जो स्पर्धा है। उसका भी कोई अन्त नहीं। रात दिन माँ मेरे ऑफिस में डिप्टी सेकेट्री है मुझे उसकी नौकरी चाहिए पर बो कुछ छोड़ दंगे। बाप-दादा हमारे करते रहे, करते रहे होंगे | लेकिन आज हम सहजयोग पर खड़े हुए हैं और हम करके दिखा सकते हैं। सब बेकार चीजें हम छोड़ देंगे और असलियत पर उतर आयेंगे। बस ये गर आपने ठान लिया तो देखिए ये सारे कार्य कितने सहजयोग में हो सकते हैं। शुरु में तो परम-चैतन्य आपको अनन्त चमत्कार दिखायेंगे। आपको एकदम कहीं से पेसा मिल जाएगा, एकदम से कोई बड़ा भारी लाभ हो जाएगा। मन में आपके शांति आ जाएगी, जिससे दुश्मनी थी उससे दोस्ती हो जाएगी सब कुछ हो जाएगा। ये भी एक प्रलोभन है। अब मुझे यहाँ आना था रास्ते में बहुत सी चीजें देखने की थी और गर मैं बीच में ही उतर जाती तो यहाँ कैसे पहुंचती? तो किसी भी प्रलोभन में नहीं पड़ना है। अपनी मंजिल पर जाना है और आपकी मंजिल है पूरी तरह से सहजयोग में प्रबुद्ध, पूरी शक्ति सहजयोग की आपके अन्दर आनी चाहिए और उस सामर्थ्य के साथ सबसे बड़ा गुण है प्रेम। उसका सबसे बड़ा अलंकार है नम्रता, और उसका सबसे बड़ा देना है आशीष। तो हटता ही नहीं। उसको किसी तरह हटाने की व्यवस्था करें। अब यही धंधा मुझे करना है? अच्छा तो फिर ऐसा है उस तांत्रिक के पास मैं गया था उसने पैसे ले लिए पर उसने उस डिप्टी सेकेट्री को हटाया नहीं। मैंने कहा भाई तुम किसी दूसरे के पास जाओ। मेरे पास इसका कोई इल्म नहीं। ऐसे लोगों के लिए सहजयाग नहीं है। स्पर्धा करनी चाहिए इसमें कि मैं कब उस चरम सीमा पर पहुंच जाऊं जहाँ मेरे अन्दर कोई सी भी वुरी बात ही न आए। ऐसा मेरा हृदय का कुंभ प्यार से लबलबा जाए कि उससे सारी गलत चीजें जो हैं एकदम खत्म हो जाएं। इस तरह की भावना गर हमारे अन्दर जागृत हो जाए तो ये परम-चैतन्य बैठा है, आपकी चरण सेवा करने के लिए जो परमात्मा आप सबको सुबुद्धि दें, सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 15 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt जन कार्यक्रम |ु. नोएडा, 26.3.92 रजनीश ने सब को बताया कि मैं भगवान हूँ तो उन्होंने मान लिया। मैंने पूछा आपने मान क्यों लिया? कहने लगे कोई झूठ क्यों बोलेगा? अरे मैंने कहा हमारे यहाँ ऐसे-ऐसे झूठ बोलने वाले हैं कि आप को बिठा देंगे एक तरफ वहां के लोगों को विश्वास नहीं होता कि भारत के लोग झूठ बोलते हैं लेकिन अपने यहाँ हम लोग सुबह से शाम तक झूठ बोलते हैं। कुछ लोग तो ऐसे हैं सौ झूठ न बोल ले तब तक उनको खाना हो सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को मेरा प्रणाम । बहुत ने तो खोज लिया है नोएडा में और बहुत खोजने के लिए आए हुए हैं। वास्तव में इस कलयुग में मनुष्य भान्ति में पड़ गया है। हर तरफ प्रगति हो रही है। विदेशों में तो बहुत ज्यादा प्रगति हो गई। लक्ष्मी भी भरपूर मिल गई उन लोगों को। लेकिन उनकी तहस-नहस हो रहा है। उनके बाल-बच्चे सब बिगड़ गए हैं और बड़े-बृढ़े जो वहाँ है उनकी भी अक्ल ठिकाने लग गई है। लोगों की समझ में नहीं आता कि अब हमारा भविष्य क्या है हम कहाँ जायें। सब तरफ ही समृद्धि है - सभी के पास घर हैं, मोटरें हैं लेकिन इस कदर अशान्ति है, अशान्ति के नहीं पचता। पहले जमाने में जब हमारी देश की नीति बनायी गयी थी तो लिखा था 'सत्यं वद प्रियं बद'। सच बोलो और प्रिय बोलो। साथ ही साथ भयंकर हिसांचार है और सारा समाज अपने अब इन दोनों का तो मेल ही नहीं बैठउता। आप किसी को सच सर्वनाश की ओर लक्ष्य किए है । ऐसी नयो-नयी बातें निकालते हैं कि उससे मनुष्य का सर्वनाश कैसे हो जाए। न जाने उनकी बुद्धि इतनी क्यों फिर गई है? ऐसी जगह में जहाँ बहुत पढ़ लिख करके इतने तकनीक (टैक्नालॉजी) में इतने होशियार हो गए, सब तरह का इन्तजाम और वहीं पर सोचने लग गए कि ये सब मशीन जैसे हम काम कर रहे हैं। लेकिन हम तो इन्सान हैं मशीन तो नहीं। न माँ अपने बच्चों का प्यार करती है न ही बात बताओ तो एक तो वो बिगड़ ही जाएगा। तो उन्होंने कहा ने कि भई सत्य और प्रिय का मेल हो सकता है। श्री कृष्ण इसका मंल बनाया कि सत्य कहो, हित कहो और प्रिय कही। बिना अपमानित किए यदि आप किसी के हित की बात कहें तो उसे वो चीज तो प्रिय लग जाएगी। इसलिए आपका हित की बात, और हित की जो आत्मा के हित में हो, ऐसी बात कहनी चाहिए। लेकिन जो विदेश के लोग हैं इनका पाप साँ के खिलाफ है। माँ के विरोध में। जिसमें वो अनैतिक हो गए। किसी भी प्रकार की नीतिमत्ता को मानना बो बेवकूफी समझते है और उनके यहाँ कुछ ऐसे लोग हो गए बच्चे अपने माता-पिता का आदर करते हैं। 18 साल के बच्चे घर से भाग जाते हैं। इस कदर वहा समाज के प्रश्न जटिल है कि लोग सोचते हैं ये समाज कभा ठीक नहीं हो सकता। वहाँ जैसे है फ्रा की आर्थिक परिस्थिति ठीक है, राजकारण ठीक है और सब जिन्हांने उनकी बुद्धि एकदम भ्रष्ट कर दी। हालांकि अधिकतर ये देश ईसा मसोह को मानते हैं जिन्होंने यहाँ तक कहा था कि तुम्हारी आंखों में भी अनीति नहीं होनी चाहिए"। "दाउ शैल नाट हैव अडल्ट्स आइज़"। उस ईसा को मानने वाले लोगों में आपको लाखों में एक आध आदमी मिलेगा जिस की आंखें नहीं चलती और औरतें भी वैसी वहाँ के आदमियों से बढ़ के। यहाँ पर आदमी औरतों के पीछे भागते हैं वहाँ औरतें आदमियों के पीछे भागती हैं। इतनी वहाँ है कि नरक दिखाई देता है। और खुशहाल होन चाहिएं। सो बिल्कुल ही नहीं। हर आदमी जैसे कोई पगला गया हो, बावला हो गया हो, ऐसी वहाँ हालत है। लोग र संसार में मेरे विचार से दो तरह के पाप होते हैं, एक तो जिसमें आप बाप के खिलाफ जाते हैं, जो अपने देश में है कि हम लोग हमेशा सोचते हैं कि आगे क्या होगा, कहाँ से पैसा आएगा, हमारे बच्चों का क्या होगा? किस तरह से पैसा जाड़ से इस तरह से हम लोग रहते हैं। कोई गहराई नहीं आती जैसे हमारी शादी हुई लखनऊ में। लखनऊ के लोग तमीजदार बहुत ज्यादा हैं लेकिन अगर उनकी बात में आ गए तो सारा दिन के किस तरह से ठीक-ठाक कर ले किसी तरह कुछ व्यवस्था कर ले। इसकी पूरा समय हमें चिन्ता लगी रहती है। उसमें चोरो-चकारी, झूठ बोलना, दुनिया भर के सब काम करते रहते हैं। और झूठ तो साफ बोलते हैं कि दूसरा आदमी परदेश से आया हुआ तो विश्वास ही नहीं कर सकता। जब खत्म हो जाएगा। वैसे सभी लोग बहुत नम्र हैं फिर भी व्यर्थ के बातूनी हैं मनुष्य नहीं सोचता कि मैं क्या करने के लिए चैतन्य लहरी 16 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt हृद्य खुल जाता है तो जो कुछ आत्मा के हित में है वो बहुत अच्छा लगता है क्योंकि अब मनुष्य आत्मा को ही खोजता है, आत्मा का ही आनन्द खोजता है। विदेशी लोगों के पास सभी दुनिया में आया हूँ? क्या परमात्मा ने इतना अमृल्य जीवन इसीलिए दिया है? आखिर मेरे जोवन का कोई तो लक्ष्य होगा। ही। ये विचार जब मनुष्य में जग जाता है, तब आदमी को एक सुख सुविधा है, मोटरें हैं फिर गणपति पुले, जहाँ न कोई व्यवस्था है न सुख-सुविधा, बहाँ भी पत्थरीं के घरों में बड़े आनन्द से रहते हैं और अब मैंने कहा कि एक आश्रम बनाओ को बुलाया। उनके घर गए तो घर जैसे कुछ गोबर से लीपे हुए तो माँ गणपति पुले जैसा ही बनाओ। सब लोग कह रहे हैं और मैने कहा मैं तो सोचती थी कि तुम बड़े दु:ख में हा। नहीं नहीं रखा है। कहने लगे अमेरिकन लोगों का आजकल भिखारीपन बैसा ही बनाइए। क्योंकि आत्मा का जो आनन्द है वो गणपति का शौक चढ़ा है। तो जानबूझ कर कपड़े फाड़ते हैं। कपड़ा पुले में आता है। आपस में सारे देशों के लोग मिलते हैं । सब नया तत्व मिलता है जिसे हम महालक्ष्मी तत्व कहते हैं। अब जिनके पास अथाह लक्ष्मी आ गई वो भी तंग आएगा। अमेरिका में हम लॉस एंजलिस में गए तो किसी [पुराने मित्र ने हम लोगों क थे गोबर के रंग के। तो मैंने कहा ये गोबर का रंग क्यों लगा यहाँ से फटा होना चाहिए वहाँ से फटा होना चाहिए। इंग्लैंड जैसी ठण्डी जगह पर भी ऐसी पैंटें पहनेंगे जिन में गील-गोल आपस में आदान-प्रदान प्रेम प्यार की बात करते हैं वो इतनी सुखदायी होती है कि उनको कुछ सूझता ही नहीं कि वहाँ छेद वने हों। भूत के जैसे उनके बाल होते हैं इनमें कभी कंघी कहाँ सो रहे हैं। जमीन पर सो रहे हैं कि कोई यहाँ पेरशानी है। तक नहीं करते। कहते हैं हम प्रिमिटव (आदि मानव) होना किसी को भी ख्याल नहीं आता कि रात में कोई बिच्छू काट लेगा या कोई सांप काट लेगा कोई काटते भी नहीं हैं सांप मानव कैसे हो सकते हैं? उन्हें सजी धजी-चीज पसंद नहीं उनको। ना बिच्छू आते हैं। एक अजीब सा माहौल हैं गणपति आती। उनकी सौन्दर्य दृष्टि केवल यहाँ की सादी वस्तुओं पर पुले में। जंगली जैसे रहने वाले वे लोग अच्छी तरह रहते हैं। पृथ्वी की ओर दूष्टि करके चलते हैं। स्त्रियां साड़ियां पहनती गाने हैं, देहाती ढंग के हैं इसमें 'श' को 'स' कहते हैं। हैं उन लोगों को देख के हैरान हो जाइएगा। आप ही की तरह बिल्कुल पक्के देहाती गाने हैं इनको इतने पसंद हैं। यहाँ से वे बिन्दी सिन्दूर लगा कर और इतने आनन्द से रहते हैं इतने चिमटे-उमटे सब उस देश में गए हैं कम से कम, मेरे ख्याल पढ़े-लिखे विद्वान उसमें बहुत सारे वैज्ञानिक हैं, बुद्धिवादी हैं। से, पांच दर्जन चिमटे गए हैं। और सब चिमटे लेकर के और वे कभी झूठ नहीं बोलते। कभी गाली-गलौच नहीं करते किसी को मारते-पीटते नहीं और बड़े सवरे पांच बजे उठे के नहा लेते हुआ तो उनको चैन ही नहीं आता। कहते हैं कितने नैसर्गिक हैं। बड़े कमाल के हैं ये लोग। बड़ी गहराई से सहजयोग में हैं, कितने हृदय से निकले हुए गाने हैं। कितने प्यारे गाने हैं। उतरते हैं। जैसे ही बम्बई में उतरेंगे तो आपके एयरपोर्ट की जमीन को झुककर नमस्कार करते हैं और चूमते हैं उसे कहनें लगे चैतन्य तो एयरपोर्ट पर ही महसूस होने लग जाता है। चाहते हैं। मैंन कहा आपका दिमाग तो आधुनिक है आप आदि हैं। तो जो आज नोएडा के गाने आपने सुने क्योंकि ये देहात के सारे नोएडा के गाने गाते रहते थे और नोएडा का गाना गर नहीं उसका सबका मीनिंग लिख लिया के परदे में बैठकर गाएं तो आप सोचेंगे कि बो नोएडा के लोग ही गा रहे हैं। इस कदर शौक से गाते हैं। कहीं भी जाइए। अमेरिका, स्पेन, स्विटरलैंड कहीं भी। आपके नोएडा का कुछ करिश्मा है। कोई न कोई यहाँ बड़ी भारी चीज है जो कि यहाँ से ये गाने उठे हैं । हमारा भी यहाँं रहना है सब रट लिया है गर आप ये बात सही है। हम अपने भारत भूमि इस याग भूमि की अभी कल्पना भी नहीं करते इतने साधू संत यहीं क्यों हुए? इन संतो की भूमि में इस योग भूमि में चैतऱ्य को पूरी बस्ती है। मैं बार प्लेन से आ रही थी साहब के साथ में, तो मैंने कहा ऐसे न कहीं चैतन्य हैं और न कहीं ऐसा आराम। विदेशों में कायदा एक क हो रहा हैं। यमुना जी की कृपा है यहां। और सहज में सब लांग रंगे हुए हैं। जब आदमी सहज में रंग जाता तो मैंने देखा कि कुछ उसको याद नहीं रहता जिसके बारे में वो हमेशा बहुत सतक रहता है। यहाँ पर देखिए, मैं दंख रही हूँ कि डाक्टर साहब भी बैठे हैं। इंजीनियर लोग भी बैठे हैं। इन्कम टैक्स कमिश्नर साहब भी बैठे हैं और सब लोग नोएडा के गाने गा रहे हैं। सहज से पहले नौकर लोगों के साथ कतई न बैठते। लेकिन अब वही गाने इतने सुहावने लग रहे हैं। इतने अच्छे लग रहे हैं। जब आप का है कानून बहुत जबरदस्त है लकिन परमात्ा का यहाँ बहुत कम है। अनीति से भरा हुआ है। अपने देश में हम लोग बहुत नीतिमान लोग हैं। पर उनके पीछे लगकर अपनी संस्कृति को खो दिया है । तो हमारे यहाँ की जो व्यवस्था है और संस्कृति है उसमें जो कमियां हैं उसे हमें देखना है। और जब हम इस चीज को समझ लंगे तभी संतुलन आ सकता है। समाज की जो हमारी आज दुर्दशा है उसका कारण स्िर्फ यह है कि हम नहीं चैतन्य दनहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt निकल रहा है। तो सब लोग कुद पड़े पीछे जाने लगे अब ये परेशान कि इसमें इतना सामान है, इतने प्यार से आए हैं सब टूट जाएगा। ये ट्रक रास्ते से हटकर मुड़ गयी अपने आप और फिर जाकर खड़ी हो गयी| कोई इसे रोक नहीं सकता था। वहाँ जानते कि हमारा पिता परमेश्वर सर्व समर्थ है। किस चीज की फिक्र करें? जहाँ ठोकर मारेंगे वहीं पर पानी खड़ा हो जाएगा जहाँ हाथ फेरेंगे वहीं लक्ष्मी की वर्षा हो जाएगी। ये सब हो सकता है लेकिन हमें अपने ऊपर विश्वास नहीं। और उस परम पिता परमेश्वर पर भी हमें विश्वास नहीं। यही हम उस पिता एक चबूतरा बना हुआ था उसमें बराबर जाकर लगी। जब में मैं खुद हैरान हो गयी कि ये ट्रक यहाँ आए कैसे? और गांव वाले लोग भी हैरान थे वो तो कहने लगे कि वहाँ से गुजरी के खिलाफ पाप कर रहे हैं कि हमें उन पर विश्वास नहीं। सहजयोग में आकर बिना किसी लड़ाई-झगड़े के बिना तुम लोग कोई देव हो क्या? तुम भगवान हो क्या? इतने में उधर से बस आयी बस पर ये लोग गए। सब कुछ हो गया और कि ईष्ष्यो के इतनी समझ इतनी सूझबूझ इतना प्यार इतना ख्याल से रहते हैं कि मैं स्वयं कभी-कभी सोचती हूँ कि यह आत्मा के कहने लगे वो जो प्लेटफार्म था उसका इतना फायदा हुआ प्रकाश में इस कदर मनुष्य प्रेम में कैसे से भी बढ़कर आत्म-प्रेम का स्रोत है इसमें कोई शक नहीं जैसे कोई प्रेम की गंगा ही बहती है। और उसमें लोग मग्न होकर, इतने पढ़े-लिखे विद्वान लोग भी उसमें बह जाते हैं और इस आनन्द को प्राप्त करते हैं इसे हमं लोग निरानन्द कहते हैं 'केवल आनन्द'। डूब जाता है। तो सत्य हम सब सामान उठा सके। ये पवित्र प्रेम ही चौज नष्ट नहीं हो सकती। इतने प्यार से, दुलार से उठा कर वहाँ से लाए थे अपने सहजयोगी बहन-भाईयों के लिए। वो चीज नष्ट नहीं हो सकती और एक-एक चीज बिल्कुल बच गयी। ये है प्रेम की महिमा। बिना हमारी भाषा के ज्ञान के ये, कभी भारत पर राज्य करने वाले अंग्रेज़, आज यहाँ ही कला, संगीत और नृत्य सम्मान पूर्वक सीख रहे हैं । जिनको गणपति का 'ग' नहीं मालूम था उन्हें आज गणेश अथर्वशीर्ष कण्ठस्थ है। बिना शास्त्रीय संगीत के ज्ञान के घंटों बैठकर गणपति पुले में ये यह संगीत सुनते हैं । कहते हैं इसमें चैतन्य बहता है । ये हृदय खोल देता है अब पूछिए साहब आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? इतने बड़े-बड़े औहदे पर आप हैं। इतने पढ़े-लिखे आप हैं लेकिन ये भेदभाव बिल्कुल ही छूट गया। आपसो प्रेम होना तो एक बात हुई। पर बेमतलब प्रेम। उसमें कुछ हासिल नहीं होने वाला। कुछ मिलने वाला नहीं। पर जैसे कोई एक ही शरीर के बिसामल्ला खा साहब आए थे, शहनाई बजा रहे थे स्वटरलैंड अंग-प्रत्यंग बन गए और जरा किसी को जरूरत पड़ी सब दौड़ पड़े। गणपति पुले में सबके लिए एक ट्रक भर-भरकर तोहफे लायेंगे। लेकिन सोचिए कि परम-चैतन्य किस तरह से सब चीज को कराता है। कहते हैं माँ हमने सोचा था कि ये खरीद में नोएडा वालों के लिए और हम बाजार में गए। पेरिस में बाजार में जहाँ कुछ नहीं मिलता ये मिल गया और देखो, हम में। तो मुझ से कहते है कि माँ ये तो सारे खालिस बैठे हैं यहाँ, तो मैंने कहा, हैं तो खालिस। तो वो क्या बना रहे हैं? मैंने वहाँ जाकर पूछा तुम क्या बना रहे हो। खालिस तो ये बैठे हैं। ये प्रेम की शक्ति इतनी जबरदस्त है। सब मौज में बहे जा रहे हैं । ऐसी दुनिया, नयी दुनिया, इस सहजयोग ने बसाई है । मुझे तो उम्मीद नहीं थी कि मेरे ही जीवन काल में इतना कार्य हो जाएगा ले आए। अब एक चमत्कार आपको बतायें कि इन लोगों का लेकिन कमाल है नोएडा के लोगों का। देखिए वो जो अशोक स्तम्भ में चार सिंह हैं ना उसमें एक सिंह नोएडा का होगा जो सामान सब बम्बई में आया और वहाँ हमारे प्रतिष्ठान में रखा था और उस टूक में डाल के आ रहे थे रात को वो तैयार बैठे थे। मैंने फोन किया आज रात को मत चलना तुम चाहे कुछ दहाड़-दहाड़ कर सारी दुनिया को बता रहा है। बडी हिम्मत की चीज है साफ कहना। सच कहने वाले को लोग सोचेंगे कि ये तो पगला है। जगह-जगह जाकर सहजयोग की बात कर रहे भी हो जाए। मेरी बात सुनते जरूर हैं। उस रात उस रास्ते पर सब ट्रकें लूटी गयीं और बहुत लोगों को मारा गया। दूसरे दिन सर्वेरे ये चले तो वहाँ एक जगह जाकर इनका ट्रक रुक गया और पीछे-पीछे जाने लगा। देखा क्योंकि एक पहिया भी हैं। हर जगह इनकी आवाज गृंज रही है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 18