चैतन्य लहरी र िम ( 1992 ) अंक 5 व 6 खण्ड IV |म विषय सूची ... पृष्ठ 1. महा सरस्वती पूजा, ...2 ****** 2. शिवरात्रि पूजा 3. सहस्रार पूजा ७ पत ड 4. श्री माताजी का जन्मोत्सव ... 13 5. ईस्टर पूजा....... ***. 16 ..*** ************ क ुर जब आपका विश्वास पूर्णतया स्थिर हो जाता है कि सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं और मैं उनका दूत हूँ, और जब आपमें यह विश्वास दृढ़ हो जाता है तब आप गुरुपद पर आरूढ़ हो जाते हैं।' प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी महा सरस्वती पूजा कलकत्ता 3.2.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण इस कलियुग में माँ को पहचानना अति कठिन कार्य है। हम अपनी माँ को भी नहीं पहचान सकते, मुझे पहचानना तो बहुत कठिन है। परन्तु इस योग भूमि का आशीर्वाद आप में कार्य कर रहा है। मैंने देखा है कि इस क्षेत्र के सभी सहजयोगी अति गहन हो जाते हैं। परन्तु मैं हैरान हूँ कि जहाँ मैंने इतने वर्ष लगाए और इतना कार्य किया, वहाँ लोग इतने गहन नहीं हैं। उनकी सामूहिकता यहाँ की तरह सुन्दर नहीं है। इस भूमि की विशेषता यह हैं कि यहाँ सामूहिकता तथा प्रेम पूर्णतया निस्वार्थ है। मैं ये सब देख कर अति प्रसन्न हूँ और कामना करती हूँ कि में हमने उन्नति की है। पर इससे आगे भी एक अवस्था है जिसके विषय में हम सोंचते ही नहीं, और इसी कारण यह असन्तुलन हैं कि कला-साहित्य आदि बहुत है फिर भी लोग कहते हैं कि सरस्वती और लक्ष्मी का संगम नहीं है। गहनता में जाने पर हम है। आप देखते इस असन्तुलन का कारण जानना चाहते हैं। सहजयोग में सरस्वती और लक्ष्मी आज्ञा चक्र पर मिलती हैं। आप कार्य करते रहते हैं पर आपको इच्छा के अनुसार फल नहीं मिलता। आज्ञा पर आकर आप जाने पाते हैं कि आपको वह अवस्था क्यों नहीं प्राप्त हुई जो बहुत से कलाकारों को प्राप्त हुई। हम गरीबौ में क्यों रह रहे हैं? दोनों तत्वों को उचित दृष्टि से देखें बिना हम उन्नति नहीं कर सकते। कला (सरस्वती) को लक्ष्मी से जोडने के लिए हममें शुद्ध दृष्टि होनी चाहिए। जिद्दीपना हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इन्होंने यदि एक हाथी बनाया है तो हाथी ही बनाते चले जायेंगे। किसी एक विशेष तरह से यदि वे गाते हैं तो वैसे ही गाते चले जायेंगे । इसमें परिवर्तन करने के लिए कहें तो वे नाराज़ हो जायेंगे| आज्ञा चक्र पर यदि आप विचार करें तो आपको पता चलेगा कि जिद्दीपना आपको आज्ञा से ऊपर नहीं जाने देता। "हम बंगाली हैं। हम महान कलाकार तथा बुद्धिमान हैं"। हममें जिद्दीपना है कि हम बंगाली महान लोग हैं मैं नहीं कहती कि आप कला को बिगाड़ें। पर आप सन्तुलित ढंग से तो कला को दखिए। मैं आपको व्यवहारिकता की बात बताती हूँ कि हमें एक प्रकार का आलस्य हे जो हमें जिद्दी बनाता है। कोई नई बात सीखने में हमारे मस्तिष्क थोड़े से शिथिल हैं। इसी शिथिलता के कारण हम कुछ भी ऐसा नहीं सीख पाते हैं जिससे हम लक्ष्मी से जुड़ सकें। जैसे मैंने जब कुछ दस्तकारों से पसों की बनावट में कुछ परिवर्तन करने को कहा तो उन्होंने कहा कि ऐसा करना सम्भव नहीं। हम इन्हें ऐसा ही बनायेगे आपकी इच्छा के अनुसार हम नहीं बना सकते। "आप कोई सलाह नहीं दें सकते"। अत: सूझबूझ होनी चाहिए तभी मस्तिष्क खुलेगा जिद्दीपने का कुप्रभाव व्यक्ति के पूरे जीवन पर पड़ता है। सहज में आने पर परिवरतन आता है। तब सहज ही में हम लक्ष्मी से जुड़ जाते हैं। आज्ञा चक्र को ठीक करने आप सब उन्नति करें। यहाँ महा सरस्वती की पूजा होना अति आवश्यक है । देवी के आशीर्वाद से यहाँ सब कुछ हरा भरा है। यहाँ पर गरीबी और दु:ख का कारण यह है कि यहाँ सरस्वती की पूजा बहुत सीमित रूप से हुई। यहाँ सरस्वती की केवल कलात्मकता को पूजा बढ़ाने तथा विद्वान बनने के लिए की जाती है। निःसन्देह विद्वता और कला के क्षेत्र में यहाँ उन्नति हुई। यहाँ कंे लोग अति बुद्धिमान तथा स्वाभिमानी हैं। परन्तु फिर भी यहाँ गरीबी क्यों है? अपने से अधिक वैभवशाली व्यक्ति के प्रति यहाँ ईर्ष्या क्यों हैं? व्यक्ति को समझना है कि हममें कहाँ कमी है हमे सरस्वती का कार्यक्षेत्र शरीर का दायां भाग है। स्वाधिष्ठान पर कार्य करके जब ये बायों ओर को जाती है तो कला-विवेक बढ़ता है कला के क्षेत्र में बंगाल बहुत प्रसिद्ध है। संगोत, ड्रामा, मूर्तिकला और साहित्य क्षेत्र में इन क्षेत्रों में यहाँ बहुत प्रसिद्ध लोग हैं। कला परमात्मा की ज्योति है। आप इसे न देख सकें पर इसमें चैतन्य लहरियां हैं। सुन्दरतापूर्वक रचित तथा विश्व भर में मान्य सभी कुछ सौन्दर्य की दृष्टि से उत्तम है। यदि आप अपने हाथ इसकी ओर फैलायें तो आपको इसमें से लहरियां निकलती हुई महसूस हांगी, विशेषकर यदि इस कला की रचना किसी साक्षात्कारी व्यक्ति ने की हो। यहाँ के लोग अति श्रद्धालु हैं और कलाकृतियां अंति सुगमता से सबकी समझ में आ जाती हैं। बंगाल के लोग अति कुशल हैं परन्तु हमने स्वाधिष्ठान का एक ही भाग विकसित किया है, दूसरे भाग को हमने अनदेखा कर दिया है। स्वाधिष्ठान का उपयोग हेम केवल पढ़ने-लिखने के क्षेत्र में ही करते हैं और इस क्षेत्र नात है चैतन्य लहरी 2 रा के लिए आवश्यक है कि हम अपने अहं को ठीक करें। इसका मुझे क्या लाभ है? में तो जो हूँ वो हूँ। मेरे प्रति श्रद्धा से आप ही को लाभ हीता है। आप सहजयोग में आए और सरस्वती तत्व से महासरस्वती तत्व को प्राप्त किया। मुझ में हिन्दु, मुसलमान, इसाई या ब्रह्म-समाजी होने की भावना आधारहीन है। मानव मात्र के अतिरिक्त आप कुछ भी नहीं। आपने अपने पर लेबल लगा लिए हैं। न आप बंगाली हैं न विश्वास करने मात्र से ही आपको सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। आपको स्वयं में विश्वास करना होगा तथा अपना उत्थान करना होगा। मराठी। आप केवल मनुष्य हैं। लेबल लगाकर आप अपनी समस्याएं बढ़ाते हैं। ये लेबल इतने आवश्यक बन जाते हैं कि इनसे परे आप कुछ देख नहीं पाते। इस बन्धन से छुटकारा पाए बिना आप अन्धकार से नहीं निकल सकते। पश्चिम में भी यह समस्या है । आप यदि उन्हें कह दें कि यह वात अच्छी है वे बिना सोचे समझे इसका अनुसरण करने लगते हैं । आलोचक वहाँ पर हर तरह की कला की आलोचना करते हैं। एक आलोचक दूसरे आलोचक की आलोचना करता है। कला का अब आप सहजयोग विज्ञान को समझ गए हैं। आपका दीप जला दिया गया है। इस दीप से आपने हजारों अन्य दीप जलाने तो है। हैं। मुझे प्रेम करना अच्छा है पर इससे आगे भी बहुत कुछ आनन्द से आगे एक ओर अवस्था है - निरानन्द। निरानन्द की वह अवस्था आपकी माँ को तब मिल पाएगी जब वह देख लेंगी कि उनके बच्चे उनसे भी आगे निकल गए हैं पर इन छोटी-छोटी चीजों का मोह हमें त्यागना होगा। महाराष्ट्र के लोगों में व्यर्थ की चीजों से मोह बहुत अधिक है। हो सकता है कि यह पूर्व जन्म के पापों के कारण हो। सुकृत्यों के फल से तो तुरन्त हृदय खुलता है और एक फूल की तरह सुगन्ध बिखेरने लगता है। हैं। सृजन रुक गया है। लोगों में अहंकार बढ़ रहा है। सत्य-सार यह है कि हम सब एक हैं, एक विराट, एक पूर्णता। इसके विपरीत जाने से आप अकेले पड़ जाते हैं तथा सामूहिकता से अलग हो जाते हैं। यह ठीक है कि पेड़ का एक पत्ता दूसरे पत्ते जैसा नहीं होता फिर भी वे होते तो एक ही पेड पर हैं। वे सभी एक विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। जब हम एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो हमारा सरस्वती तत्व महा सरस्वती तत्व नहीं बन पाता। महासरस्वती तत्व में जब आप महासरस्वती में व्यक्ति समर्थ और चुस्त होता है। महाकाली में आप इच्छा करते हैं तथा आत्मसात करते हैं। इन इच्छाओं को कार्यान्वित करना महासरस्वती का कार्य है। कुछ लोग चाहते हैं कि सहजयोग फैले। पर इस दिशा में आपने क्या कार्य किया? आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने लोगों से सहजयोग की बात की? एक अखबार वाले ने मुझे बताया कि शान्ति और मर्यादापूर्वक पौस्टर लगाते हुए सहजयोगी लड़के-लड़कियों से वह बहुत प्रभावित हुआ। अपनी इच्छाओं को कार्यन्वित कीजिए। कार्य शुरु होते ही इच्छाएं समाप्त हो जायेंगी। जो यूरा हो सके ऐसी इच्छाएं आपको करनी चाहिए क्योंकि असम्भव इच्छाएं करना भयंकर है। का रहने लगते हैं तो आप देख सकते हैं कि आप विराट हैं। ऐसी स्थिति में जब कलाकार कोई सृजन करता है तो लोग इसे हृदय से स्वीकार करते हैं। कला का जो भी कार्य हम करते हैं वह परमात्मा को समर्पित होना चाहिए। इस भाव से की गई सभी रचनाएं शाश्वत होंगी। परमात्मा को समर्पित सभी कविताएं, संगीत और कला कृतियां आज भी जीवित हैं। आज का फिल्म संगीत आता है और समाप्त हो जाता है परन्तु कबीर और ज्ञानेश्वर जी के भजन शाश्वत हैं। अपने आत्मसाक्षात्कार द्वारा उन्होंने महासरस्वती शक्ति से प्राप्त किया और फिर जो भी रचना उन्होंने की वह बेजोड़ थी। इन रचनाओं ने विश्व को एक सूत्र में बांधा। तो व्यक्ति को सरस्वती तत्व से महासरस्वती तत्व की ओर जाना चाहिए क्योंकि सरस्वती तत्व यदि बीज है तो महासरस्वती तत्व पेड़ है। बिना इस बीज को वृक्ष बनाए आप महालक्ष्मी से नहीं जुड़ सकते। आत्मसाक्षात्कार को प्राप्ति भी महालक्ष्मी का वरदान है। महासरस्वती, महाकाली तथा महालक्ष्मी तीनों शक्तियां आज्ञा पर मिलती हैं। वहाँ पर सूक्ष्म रूप में अहं भी है। अत: व्यक्ति को अन्तर्दर्शन कर देखना चाहिए कि सीमित स्तर पर रहते हुए मैं कैसे पूरे विश्व को प्रकाशित कर सकता हूँ। मैंने बहुत बार कहा है कि अपने अन्दर झांकिए। यहाँ पर बहुत से लोग धनी हैं और बहुत से गरीब, धनी लोगों की भी बहुत सी समस्याएं हैं। वे बताते हैं कि मजदूरों के कारण उनकी फैक्ट्रियां बन्द पड़ी हैं। परन्तु धनी लोगों को याद रखना चाहिए कि मजदूर उनके अंग-प्रत्यंग हैं। उनके बिना आप कुछ नहीं कर सकते। आप तो हाथ भी हिलाना नहीं जानते, बस कर्सी पर बैठे रहते हैं। मजदूरों के लिए आपने क्या किया? पैसे से तो सभी कार्य नहीं हो सकते। वे झंडा उठाते हैं और आप उनका वेतन बढा देते हैं। और यह संब चलता रहता है। आपने उनके हित के लिए कुछ किया? सबसे पहले उनकी संस्कृति को सीखिए। मजदूर बहुत बड़े दिल के होते हैं। पर यदि आप घमण्ड से उनसे बात करेंगे तो वे सबसे बड़े शत्रु भी बन सकते हैं। उनके साथ रहिए, उन्हें मिलिए, उन्हें जानिए। मैं बहुत से लोग देवी की तरह मुझे पूजते हैं। पर चैतन्य लहरी इसे प्रकाशित उद्यम कहती हूैँ। उनके घर जाकर उनकी समस्याएं पूछिए। उनके लिए आप इतना सा कीजिए और वे जीवन भर के आपके सेवक होंगे। हर बात पर पैसा देना आवश्यक नहीं। यदि आप पैसे देंगे तो या तो वे दारू की दुकान पर पहुंचंगे या बुरी औरतों के पास। अपना अंग-प्रत्यंग मानकर उनके दिलों को समझिए। तब आपकी मजदूर संबंधी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी। मेरे पास आ जाइए। आप जितना अपनी शक्तियों का उपयोग करेंगे उतनी ही अधिक वे बढ़ेंगी। स्वयं पर विश्वास रखिए। जब माँ ने कहा है तो अवश्य ही हममें वे शक्तियां होंगी। हमें चहिए कि इन शक्तियों को बढ़ायें। अब सहजयोग में गहनता तो आ गई है यर इसे इतना अधिक बांटा नहीं जा रहा। अब आपको सहजयोग देना है। जब आप इस कार्य में लग जायेंगे और महासरस्वती तत्व जागृत हो जाएगा तो इस देश की उन्नति देख आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। परन्तु पूरे भारतवर्ष में यहाँ लोग सरस्वती तक ही सीमित हैं, महासरस्वती तक नहीं। आप सहजयोगी हैं। सभी कुछ स्वत: ही ठीक हो जाएगा। परन्तु आपको सहजयोग की राह पर चलना होगा। अपनी संकीर्णता को छोड़कर आपको विशाल होना होगा। अन्दर से उन्नत हुए बिना आप बाहर से विस्तृत नहीं हो सकते। आलस्य का यह रोग है। सहजयोगी किसी कार्य को न कर पा सकने के लिए बहुत बहाने करते हैं। उदाहरणतया "मुझे लोगों से या परिवार से डर लगता है" आदि। कायरों के लिए सहजयोग नहीं है। यहाँ पर इतनी काली विद्या और तांत्रिकों का प्रकोप है मैं इसे साफ करती रही हूं। काली विद्या को दूर करने के लिए आपको विशेष ध्यान देना होगा और इसके लिए कार्य करना होगा। सहजयोग में ध्यान-धारणा अति आवश्यक है। प्रात: पांच बजे पांच मिनट ध्यान कीजिए और रात को दस मिनट। इतने से ही आप शुद्ध हो जायेंगे और आपको आशीर्वाद मिल जायेंगे। हर समय आपको रास्ता दिखाया जा रहा है। आनन्द यह पूजा पूरे भारत के लिए है क्योंकि आलस्य का रोग पूरे देश में है। हम बिल्कुल भी चुस्त नहीं हैं। हमारी इच्छाएं तो बहुत दृढ़ हैं पर उनकी पूर्ति के लिए हम कुछ भी नहीं करते। एकत्रित होकर सोचिए कि सहजयोग फैलाने के लिए आप क्या कर सकते हैं। हमने बहुत कार्यो के लिए जमीन लेते हुए आप विकसित हो रहे हैं। लोग अब भी सोचते हैं कि माँ से प्रेम करना, उनकी सेवा करना और प्रार्थना करना ही काफी हैं। अच्छी बात है। आपका हित भी होता है। माँ के प्रेम में, हो सकता है, आप बहुत गहरे रखरीदी है पर वह पड़ी सड़ रही है। जब तक में भारत नहीं आती ये लोग एक छोटी सड़क या एक झापड़ी तक भी नहीं बना सकते । मेरी समझ में नहीं आता कि इतने लोगों के होते हुए भी कोई कार्य नहीं होता। मेरे जाते ही आप सब अलग-अलग हो जाते हैं तथा मनमानी करते हैं । केवल दो-तीन लोग ही कार्य करते हैं । सहजयोग सामूहिक कार्र्य है, दो या तीन व्यक्तियों का कार्य नहीं। व्यक्ति को समझना चाहिए कि हर सहजयोगी सहजयोग का एक हिस्सा है। एक अंगुली पर जब चोट लगती है तो पूरे शरीर को दर्द महसूस होता सहज में सभी कुछ स्वचालित है। पर यह संकीर्णता तथा अज्ञानता कि उतर गए हों। पर ऐसे गहरे घड़े का क्या फायदा जिससे कोई पानी न ले सके। आज्ञा पर यदि आप सोचें कि मैं क्या कार्य करू तो कोई लाभ नहीं। निर्विचारिता की अवस्था में आपको अन्दर से प्रेरणा प्राप्त होगी। यहाँ पर बहुत गहन लोग हैं, पर अब हमें वह गहनता दुसरों के साथ बांटनी होगी। तालाब में कमल खिलने पर तालाब के कीड़े उन पर गर्व करते हैं। पर इसका उन्हें क्या लाभ। आप भी यदि उन कीड़ों की तरह हैं तो बेकार हैं। है। वेदों में लिखा है कि यदि आपको ज्ञान नहीं है तो वेदों का क्या लाभ उन्होंने पंचमहाभूतों को जगाने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप हमारे देश में विज्ञान आया। वैज्ञानिक खोज जो"में कुछ विशेष हूँ" आपको कुछ न करने देगी। यहाँ की गई वह आज की खोज से उत्तम है। सहजयोग में भी आप पंचमहाभूतों को वश में कर सकते हैं। पर आप लोग अब भी कहते हैं "श्री माताजी मेरी माँ या भाई या परिवार बीमार बैठ कर मेरा कार्य करना पड़ सकता है। ऐसा होने पर ही है"। आप एक सहजयोगी हैं। आप चाहते हैं कि माँ सब कुछ करें। आप क्यों नहीं कर सकते? दूसरों को देने का प्रयत्न कीजिए। मैं बार-बार कहती हैँ कि आप स्वयं कुछ कीजिए। को फैलाने का कार्य करें। मैं तो ठीक करूंगी ही, पर आप मेरे से ज्यादा अच्छी तरह ठोक कर सकते हैं। अगर आप उन्हें ठीक नहीं कर सकते तो आपने इतनी गहनता प्राप्त की है और बहुत कुछ पा लिया है। अब आप दूसरे लोंगों को दें। कल आपको मेरे स्थान पर सहजयोग उन्नति करेगा। आज आप सबको मेरा आशीर्वाद है कि इस पूजा के बाद बहुत से लोग आगे बढे तथा सहजयोग आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरो शिवरात्रि पूजा नया दुर्ग, आस्ट्रेलिया परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) 1.3,92 सर्वशक्तिमान परमात्मा, सदाशिव, आत्मा के रूप में आपके को देखकर उन्हें बहुत आशा हुई होगी अद्वितीय अद्भुत हृदय में स्थापित हैं। हमें समझना है कि भिन्न-भिन्न समय पर, भिन्न-भिन्न देशों में बहुत से लोग पृथ्वी पर आते हैं। उन्होंने लोगों से धर्म, धर्मपरायणता तथा उत्थान के विषय में बातें की। सभी ने कहा कि आपको परमात्मा में विश्वास करना है। आपको आत्मा बनना है। वे जानते थे कि आत्मा के प्रकाश से चित्त प्रकाशित हुए विना आप आध्यात्मिकता को नहीं समझ पायेंगे। आपके अन्दर आत्मा है जो सदा साक्षी अवस्था में है। सहजयोगी कभी-कभी समझ नहीं पाते कि उनमें आत्मसम्मान सभी धर्म क्यों असफल हो गए हैं? क्योंकि आत्मसाक्षात्कार पाकर वे आत्मा नहीं बनें। अत: आप में और अन्य लोगों में जीवन काल में आपकी क्या भूमिका है। मूर्खता की माया में बहुत बड़ा अन्तर है। वे ढकोसले हैं। वे इसे वौद्धिक बना देते फंसे अन्य लोगों को देखने पर ही यह अवस्था सम्भव है। अब हैं। बड़ी अच्छी तरह वे इसका वर्णन कर सकते हैं पर आप स्पष्ट देख सकते हैं कि उन्होंने आध्यात्मिकता को आत्मसात नहीं किया। बिना आत्मसाक्षात्कार के ऐसा कर पाना असम्भव है। बुद्ध और महावीर ने कभी परमात्मा की बात ही नहीं की। उन्होंने केवल आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने को कहा। अधिकतर धर्म ग्रन्थ आध्यात्मिकता की, लक्ष्य की और धर्म के सर्व सगम है। बेईमान बनने की अपेक्षा ईमानदार होना आसान ध्येय की बात करते हैं। यह सभी कुछ बहुत ही अच्छा लिखा है। जो विशेषता आप में है यह सभी सन्तों, पैगम्बरों और और कहा गया है। बे यह भी बताते हैं कि आपको क्या होना है तथा अच्छा-बुरा क्या है। पहली कदम, जहां धर्म की लोगों ने असंख्य भाषण दिए। उनके विचार में इस प्रकार की स्थापना करनी है, वहाँ परस्पर धोखा नहीं देना। न्याय सामूहिकता, प्रेम और सूझ-बूझ होना आवश्यक है। अन्य जाति और कौम के साथ ईष्या नहीं बताते। वास्तव में एक भिन्न सभ्यता की रचना होनी चाहिए। देवदतों सम लोगों की रचना की गई हैं। अपनी दैवी नींवों पर टिक रहता हो कवल एक समस्या है। कभी-कभी असफल हो जाते हैं या भटक जाते हैं। परन्तु अपनी चेतना में आप उठते हैं और आप उपलब्ध नए आयाम खजते हैं। कुछ चुने हुए लोगों में से आपके होने के कारण यह सम्भव है। आपके लिए यह जानना भी आवश्यक है कि आप अति विशेष व्यक्ति हैं। नहीं है। आपमें यह जानने का विवेक होना चाहिए कि इस आप एक विशेष जाति के हैं। आप सभी धर्मतत्वों को ग्रहण कर सकते हैं। स्वतः हो इसके लिए न तो आपको परिश्रम करना पड़ता है और न तपस्या। बड़े हो सहज में आप इसे कर सकत हैं। बिना कठिनाई के आप ये सारे गुण पा सकते हैं । धर्मपरायण होना अवतरणां का स्वप्न रही है। ऐसा करो, ऐसा मत करो, इस पर शिक्षा से लोग ठीक हो जायेंगे। परन्तु इससे उनके अहंकार को बढ़ावा मिलता है क्योंकि दौ गई शिक्षा सहज न होकर अहंकार के माध्यम से होती है। बाहर से यह आप पर थोपी गई होती है। परन्तु सहजयोगियों के लिए यह अति सुगम है। मैं कुछ लोगों को जानती हूँ जो नशे के आदी थे, लोगों को सतात थे, उन्हें पीटते थे। एक आदमी सद अपने साथ रिवाल्वर रखता था। अब वह अति शांत और सुन्दर व्यक्ति बन गया है। तो अब आप हो वे विशेष व्यक्ति हैं। बिना आत्मसाक्षात्कार लिए लोग धर्म तक नहीं पहुंच सकते। कमाल की बात है कि सहजयोगियों ने आत्मा की वह अवस्था पा ली है। बिना किसी कठिनाई के आप धर्म को आत्मसात कर सकते हैं। हत्या या हिंसा आप नहीं कर सकते। आप सत्य पर अडिग रहेंगे सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आपका तारतम्य परमात्मा से ही गया है और आपको परमात्मा का ज्ञान है आपके अन्दर परमात्मा के प्रति सम्मान है भय नहीं। धन के लिए आप सहजयोग को धोखा नहीं दे सकते, सत्ता और भौतिक उपलब्धियों के लिए आप लड़ नहीं सकते। आत्मा के प्रकाश में अपनी चेतना के विस्तार के लिए ही आपका पूरा चित्त होगा। यह आपकी माँ (श्री माताजी) का स्वप्न क्योंकि शिव केवल साक्षी हैं परन्तु सहजयोग में रचे गए लोगों दूसरी बात जा आप लोगों के लिए दूसरों के प्रति प्रेम करना तथा उनका ध्यान करना। ऐसा करेना आपको अच्छा लगेगा। सहजयोगियों का ध्यान करना आपको रूचिकर होगा। यदि किसी दु:खी व्यक्ति को, जो सहजयोगी भी नहीं है, आप दंखेंगे तो उसकी सहायता करने का तुरन्त प्रयत्न करंगे। एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि बह सहजयोग में अति सुगम है वह है चैंतन्य लहरी टेलीविजन भेजा। अवश्य ही श्री कृष्ण की आत्मा उनकी दायीं आज्ञा की सहायता का प्रयत्न कर रही होगी। कुछ करना चाहेगा पर उसके पास धन नहीं है। मैंने उसे कहा कि कल आ जाओ, धन में दे दूंगी। अगले दिन वह नहीं लौटा। पूछने पर उसने कहा कि एक अन्य व्यक्ति उसके साथ बैठा था उसने पैसा दे दिया। सहजयोग में यदि किसी के पास धन की कमी हो तो तुरन्त हम उसकी सहायता को दौडते हैं। रोमानिया, बल्गेरिया, रूस, पोलैंड, चैकोस्लोवाकिया और हंगरी की किसी न किसी अन्य देश ने सहायता की। पूरी एशिया के देशों की भी आस्ट्रेलिया ने सहायता की। मैंने उन्हें कुछ भी करने को नहीं कहा। उन्होंने उनके टिकट बनवाए और भारत ले आए। उन्होंने रूसी लोगों की देखभाल की बिना किसी कर्त्ता भाव के। वे करुणा तथा प्रेम से परिपूर्ण थे किसी ने नहीं पूछा कि कितना खर्च हुआ और हमें कितना देना था। मैं हंगरी में पहुंची तो 125 रोमानियन लोगों को वहाँ पाया। आनन्द से केवल यूरोप में ही सहजयोगी ऐसा नहीं कर रहे हैं । वे तकी में भी कर रहे हैं। एक भौतिक वैज्ञानिक जापान गया है। वह जापानी नहीं है। वह लोगों को सहजयोग बताने के लिए किसी प्रकार के प्रदर्शन का प्रयोग कर रहा है। अब तो आपकी सामूहिकता भी कमाल की है। यहाँ तक कि भारतीय भी प्रसन्न हैं कि ब्रिसबेन में आश्रम खरीदा जा रहा है। इसका कारण यह है कि आपका हृदय बहुत विशाल हो गया है क्योंकि वहाँ पर शिव चमक रहे हैं। आत्मा चमक रही है। यह हृदय इतना विशाल हो चुका है कि पूरे ब्रह्माण्ड को अपने में समेट सकता है। आप सभी विश्व व्यापक बन गए हैं। विश्व निर्मल धर्म को आप केवल पढते ही नहीं आप इसका अनुसरण करने का, इसे आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। एक समय था जब आस्ट्रेलिया में जातिवाद का बोलबाला था। वे ईसा के बताए मार्ग के बिल्कुल विपरीत चले। अन्य धर्मों ने भी ऐसा ही किया। वे सभी धर्मान्ध हैं। कारण उनका धर्म ग्रन्थों को अन्धाधुन्ध पढ़ना है। धर्मग्रन्थ यदि उनकी समझ में आते तो बे समझ पाते कि भिन्न नामों से ये ग्रन्थ एक ही वात कह रहे हैं । मेरा हृदय भर गया। चुपचाप उन्होंने एक-दूसरे की सहायता की और अपनी सन्तुष्टि के लिए, दूसरीं पर अहसान जताने के लिए नहीं, उपहार लेकर आए। इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन, इटली, स्विटरजरलैंड से लड़ाके देशों की कल्पना कीजिए जो केवल अपने राज्य कायम करने के लिए, लोगों के धर्म परिवर्तन के लिए तो गए पर कभी किसी की सहायता के लिए नहीं गए। धर्म और परमात्मा के नाम पर उन्होंने सब तरह के अत्याचार किए। परन्तु आप लोग जब किसी दूसरे देश में जाते हैं तो केवल सहायता के लिए जाते हैं। आपके हृदय में स्वत: ही भावना उठती है कि आपको सहायता करनी चाहिए। परन्तु आपको अब एक सर्वव्यापक चीज प्राप्त हो गई है। ऐसा आपकी आत्मा के सही सलामत होने के कारण है और जिसने प्रकाश देना शुरु कर दिया है तथा अब हमारी एक नया जाति है, अपने तथा अन्य लोगों के प्रति अत्यन्त ईमानदार लोगों आपके अन्दर आए इस परविर्तन ने आपके हृदय के की एक सभ्यता। ये लोग अत्यन्त प्रेममय, स्नेहमय, अहिंसावादी सौंदर्य, करुणा तथा प्रेम की अभिव्यक्ति की है और बिना किसी से कुछ आशा किए आप दूसरों को सुरक्षा देना चाहते हैं। इस तम्बू जैसे साधारण स्थान पर, बिना किसी सुख-सुविधा विषय को वे समझते हैं। एक वार प्रकाशित होकर आपकी के रहकर मुझे सुनने में आपको आनन्द आता है। आप केवल आत्मानन्द खोजते हैं और पूरे वातावरण और प्रकृति का आनन्द लेते हैं। मैंने देखा है कि शनै:- शनै: सहजयोगी सर्वसाधारण पर्यावरण के प्रति जागरुक हो जाते हैं। विश्वभर में सहजयोगियों आपके देवत्व की अभिव्यक्ति होती है। आप एक दूसरे का ने प्राकृतिक तथा कलात्मक वस्तुओं का उपयोग शुरु कर दिया है। वे उदार भी हो गए हैं। हम इसे ' हैं जो कि एक अवतरण की निशानी है। मेरे अपने बच्चों में ही यह औदार्य है। दूसरों को बस्तुएं बांटने में उनहें आनन्द आता है विश्वास एक ही है, एक ऐसा विश्वास जो कि प्रकाश्मय है, अपने पास रखने में नहीं। पूरे विश्व में उन्होंने ऐसा किया सहजयोग को फैलाने के लिए, दूसरों की सहायता के लिए, दूसरे स्थान पर एक सर्वव्यापक शक्ति है। इसा, मोहम्मद सब तरह के लोगों को अपने साथ लेने के लिए सहजयोगी साहिब या शिव सभी के लिए हमारी एक ही तरह की पूजा अपना समय तथा धन बलिदान कर रहे हैं। उनमें ऐसा सामूहिक है। हम सभी एक ही प्रकार से पूजा करते हैं। हमारे विचारों में विवेक है। दूसरे लोगों के प्रति इतनी करुणा, इतना प्रेम, कोई अन्तर नहीं जैसे एक चर्च से दस चर्च या दस हिन्दु धर्मों एकाकारिता का भाव है मानो वे उन्हीं के ही अंग-प्रत्यंग हों । हैरानी की बात है कि अमेरिका के लोगों ने रूस के लोगों को तथा पूर्णतया कानून को मानने वाले हैं। साथ ही साथ वे अत्यन्त रचनात्मक तथा विवेकशील हैं सहजयोग-सम सुक्ष्म आत्मा बिना किसी कठिनाई के आपको समझ आ जाती है| आप नहीं जानते कि सहजयोग का विषय कितना कठिन है? यह परमात्मा की इच्छा की ऐसी पूर्ति है कि सामूहिकता में तथा सामूहिकता का आनन्द लेते हैं। व्यक्तिवाद विराट की आत्मा के विपरीत हैं पर हमारी अपनी किस्में हैं। बेशक आप भिन्न देशों, वातावरण तथा परम्परा में रहते हों, पर हमारा औदार्य' कहते अन्धविश्वास नहीं। प्रथम तो आप साक्षात्कारी आत्माएं हैं और का बन जाना। हम सभी सहजयोगी हैं तथा सहज ही में हम चैतन्य लहरी सब एक सूत्र में बंधे हैं। अब तो आप आदर्श बन रहे हैं । सहजयोग से बाहर के लोगों के लिए आप आदर्श हो। लोग देखेंगे कि न तो आप शराब पीते हैं, न सिगरेट, न नशा करते हैं फिर भी इसकी कोई शेखी नहीं बघारते। ये लोग किसी से घृणा नहीं करते, अति परिवर्तनशील एवं रचनात्मक हैं। वे अति रचनात्मक तथा आत्मसन्तोषी हैं, ईर्षालु नहीं। न वह प्रकृति को और न अन्य किसी चीज़ के लिए बे समस्याएं खड़ी करते हैं । इतने सुन्दर हो गए हैं वे लोग। कार्य अन्य लोग करते हैं आप (सहजयोगी) उनका आनन्द नहीं ले सकते। जैसे शराबखाने जाना या धूम-धड़ाका संगीत मैं देखती हूँ कि आप सब इतने पवित्र और सुन्दर बन सुनना। गए हैं। आपके चक्र इतने स्वच्छ हैं। कहीं आपके पूर्व पुण्य तो कार्य नहीं कर रहे? फिर भी में कहुंगी आप अपने आत्मसम्मान को पहचानिए कि आप एक सहजयोगी हैं। एक सहजयोगो की गरिमा और विवेक आप में होना ही चाहिए। करुणा, प्रेम और लक्ष्य की एकता होनी ही चाहिए। पूरे विश्व में आपके भाई-बहन हैं। आपकी राखी बहने हैं और अत्यन्त पावन संबंध हैं। हर तरह की अपवित्रता सहज ही आपके अन्दर से बाहर फेंक दी जाती है। जो लोग सहज में जम नहीं सकते उन्हें इससे बाहर फेंक दिया जाता है। हमारे परिवार और बच्चे अति सुन्दर अत: अब आपको समझना है कि आपको सद्व्यवहार, सुभाषा, शानदार जीवन तथा मर्यादाओं का एक नमुना बनना है, पति या पत्नी से झगडूने वाला नमूना नहीं। कवैला के मेयर ने मुझे कहा कि हैरानी की बात है कि ये लोग घंटों बैठ सकते हैं। हैं। ये इतने आकर्षित हैं कि इन्हें थकान नहीं होती। उसने सोचा कि ये लोग विशेष लोग हैं। ये आनन्द लेने के सिवाय कुछ नहीं करते। एक हमारी गुरु पूजा छः घन्टे चली। कबैला के ग्रामीण हैरान थे कि शान्तिपूर्वक ये लोग इतनी देर कैसे बैठ सके। उन्होंने सोचा कि आप लोग देवदूत हैं उन्होंने बताया कि ये लोग हमें सताते नहीं, ये हम पर दया करते हैं तथा हमारा देखभाल करते हैं। वे आनन्द लाने का प्रयत्न करते हैं। पहले- पहले तो वे मुझे राजकुमारी कहा करते थे फिर उन्होंने मुझे देवी कहते हुए मैडोना कहा। जो भी कुछ अच्छा उन्हें सूझा वे कहने लगे। अब वे सहजयोग में आना चाहते हैं। राजकुमार डोरियो की ऊंची कीमतों पर कबैला के पीछे की जो जमीन उन्होंने नहीं दी थी, वही जमीन मुझे बहुत ही कम दामों में दे दी। पूरा गांव परिवर्तित हो रहा है। और आप लोगों का समर्पण भी कमाल का है। जिस प्रकार आप सहजयोग के प्रति समर्पित हैं सहजयोग से बाहर के सभी लोग परिवर्तित हो जायेंगे। मोहम्मद साहब आए और इसकी बात की। उन्होंने कोई कट्टर धर्म नहीं बनाया उनका बनाया गया धर्म तो अति लचीला था। उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्त करों, पर लोगों ने ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ पुस्तक को पढ़ना इसकी व्याख्या करना तथा बुद्धिवादी बनना लगाया। उनके बाद गुरु नानक आए। आप जानते हैं कि सिखों के साथ क्या हुआ और वे किस दिशा में जा रहे हैं। सिख का अर्थ है वह व्यक्ति जिसने दैवी नियम सीख लिए हैं । विना योग को प्राप्त किए आप दैवी नियमों का पालन नहीं कर सकते। परन्तु आप उन नियमों को जानते हैं। ज्योंही आप इनके विपरीत जाते हैं आपको हाथों तथा मध्य नाड़ी तंत्र पर महसूस हो जाता है। हर समय आप अपने को जांचने लगते हैं और क्योंकि कोई कमी आप को अच्छी नहीं लगती आप स्वयं को सुधारने लगते हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन के बहुत से विचार कि आपके पति, पलनि या बच्चे आपको खराब करेंगे, आपमें समाप्त हो जाते हैं। अब आप किसी अच्छे सहजयोगी या यॉगिनी से विवाह करना चाहते हैं। तब विवांह एक आशीर्वाद बन जाता है। इतनी दूर आना या महाराष्ट्र में यात्रा करना एक तपस्या है पर आपको इसमें आनन्द आता है। आप की बसें छूट जाती थी पर आपके लिए साहस मात्र था। यह सारी तपस्या एवं कठिनाई आपके लिए आनन्दमयी बन गई है। जैसे संगीतज्ञों का रूस जाकर खो जाना। इतने प्रेम स्नेह और सेवा की मैंने कभी आशा न की थी जिस प्रकार मेरे प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति आप करते हैं, यह समर्पण और बलिदान, जिस प्रकार अपना समय खर्च कर आप प्रयत्न करतें स्थित इस स्थान पर पूजा के लिए आप लोग आए। इस पूजा से लाभ आपको तभी हो सकता है जब आप आत्मसाक्षात्कारी हों, नहीं तो सब पूजा व्यर्थ हैं। लोग चर्च जाते हैं, कुछ भजन गाकर वापिस आ जाते हैं। उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। चर्च से लौटकर वे शराब खाने में जाते हैं क्योंकि उनके विचार में यही एक स्थान है जहाँ आनन्द की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को कुछ बलिदान करना चाहिए। यद्यपि मैं कहूंगी कि सहजयोग सर्वसुगम है। आपको न तो हिमालय पर जाना पड़ता है और न ही सिर के बल खडा होना पड़ता है। फिर भी आपको अपना समय एवं चित्त तो देना ही होंगा। चित्त इतना पवित्र है कि जो हैं, इसकी मुझे कभी आशा न थी। इतनी दूर इसका पूर्ण वर्णन कमाल का था, एक साहसिक कार्य की तरह। बिना चीजों के बारे सोचे आप अब इन्हें प्राप्त कर रहे हैं। यह आपकी आत्मा तथा शिव का आशीर्वाद है। आत्मा साक्षी है और आपको भी साक्षी अवस्था प्राप्त करनी है। पूरी राजनीति और अर्थशास्त्र आपका हास्यास्प्रद लगता है। आप इसे व्यर्थ की चीज समझते हैं। रूसी सहजयोगियों को राजनीतिक समस्याओं तथा खाने की कमी का कष्ट न = चैतन्य लहरी शक्तियां कार्य करती हैं और किस तरह आप स्वयं ही अपने विश्वास में अधिक गहन होते हैं। सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से भी अत्यन्त शक्तिशाली हैं। आप जो भी चाहें पी सकते हैं। मैं इच्छा विहीन हैँ क्योंकि दैवी-शक्ति मेरे लिए सभी कार्य कर रही है। मुझे इच्छा नहीं करनी पड़ती । पर आपको इच्छा करनी पड़ती है। आप को प्रार्थना करनी पड़ती महसूस हुआ। उन्होंने कहा "हमें आध्यात्मिक भोजन प्राप्त हो गया है। इन लोगों को लड़ लेने दो, हमें इसकी कोई चिन्ता नहीं"। उन्हें विद्रोह की कोई चिन्ता न थी। "हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं, हम क्यों इन सांसारिक साम्राज्यों और पदार्थों की चिन्ता करें"। इतना संतोष। यह अति सुन्दर है। आपके इतने भाई बहन हैं। आप ही लोगों ने समझा है कि परमात्मा क्या है और है। आपको मांगना पड़ता है। ज्यों -ज्यों आप विस्तृत होंगे सदाशिव क्या हैं। अब आपका परमात्मा में विश्वास है जो अन्धविश्वास नहीं। आप यह भी जानते हैं कि परमात्मा की पूरे विश्व के हित के लिए, केवल आपके बच्चों के, परिवार शक्तियां तथा कानून कार्य करते हैं। बाकी सब कानून व्यर्थ हैं। के, शहर के लिए सीमित न रह कर इसका क्षेत्र असीम बन अपने जीवनकाल में ही आपने देख लिया है और अनुभव कर लिया है कि कैसे चमत्कार हो रहे हैं और कैसे कार्य हो रहे वहाँ डालकर देखिए कि इसमें क्या कमी है। हम एक छोटे से हैं। आप इच्छा कीजिए और यह पूर्ण हो जाती है। पर अभी भी हम में मध्य दर्ज के तथा अति सुस्त लोग हैं। वे सहजयोग को नहीं समझ सकते और न ही वे समझ सकते हैं कि सहजयोग से वे किस प्रकार लाभान्वित हो सकते हैं आपको उनकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए आपको पूर्ण सामूहिकता के बारे में सोचना चाहिए जो कि बहुत अच्छी है तथा एक दो बेकार लोगों को भूल जाना चाहिए। यदि वे आ जाएं तो ठीक है और यदि न आएं तो हम उन्हें विवश करने नहीं जायेंगे बहुत लोग हमारे पास आयेंगे। सबसे बड़ी उपलब्धि जो आपने पा ली है वह है अपने अन्तस में, अपने हृदय में, मस्तिष्क में, जीवन में दूसरी ओर अति मानवीय। पैगम्बर कभी मानव को नहीं समझ तथा चित्त के अन्दर महानतम एकाकारिता। आपका मस्तिष्क जो सोचता है आपका हृदय स्वीकार करता है और आपका हृदय जो स्वीकार करता है वही आपका मस्तिष्क सोचता है। चक्षुहीन से रंगों की बात करने जैसा हुआ। बिना भक्ति और आपके चित्त या आपके हृदय तथा मस्तिष्क से एकाकार हो गया है । आपके चित्त, हृदय तथा मस्तिष्क में कोई द्वंद नहीं हैं। पड़ी। मुझे मनुष्य, उनकी समस्याएं और उनका समाधान पढ़ना सभी प्रलोभनों पर हावी हो जाने वाली शक्ति तथा आत्मा आपमें है। आप जो चाहे त्याग सकते हैं। आप परस्पर, भिन्न े राज्यों में तथा भिन्न देशों में तारतम्य बनाते हैं। पूरा ब्रह्माण्ड परमात्मा के कानूनों से एक सूत्र में गुंथा है तथा शासित है। यह एकाकारिता आपको मानसिक भावात्मक तथा आध्यात्मिक आपको आशीर्वाद देते हैं। वे पूर्णतया अबोध व्यक्तित्व हैं। सभी रूप से सहजयोग की पूर्ण समझ देती है। आप में बहुत सी शक्तियां भी हैं पर आपमें से कुछ उनका उपयोग नहीं करना चाहते। आपकी प्रार्थना का एक शब्द बाकी लोगों की एक हजार प्रार्थनाओं से कहीं शक्तिशाली है। आप है कि आप सब अपने अन्दर शिव तत्व का सम्मान करंगे। यह अत्यन्त शक्तिशाली हैं और जो भी इच्छा आप करते हैं पूर्ण अति आवश्यक है। अपनी चैतन्य लहरियों का ध्यान कीजिए होती है। आपमें आत्मसाक्षात्कार देने की शक्तियां भी हैं। इतनी शक्तियां होते हुए भी आप रोगमुक्त करने के लिए वहुत से आपके मध्य नाड़ी तंत्र में आत्मा जागृत हो गई है यह लोगों को मेरे पास ले आते हैं। अपनी शक्तयों का उपयोग कोजिए। घबराइए नहीं। आप हैरान हांगे कि किस प्रकार ये आपकी प्रार्थना भी उतनी ही विस्तृत होगी, पूरे क्षेत्र के हित में, जाएगा। अत: विश्व की घटनाओं से सर्चत रहिए। अपना चित्त आश्रम के लिए चिंतित नहीं हैं, हमें पूरे विश्व की चिन्ता है। पता लगाइए कि कमी कहाँ है और हम इच्छा क्या कर सकते हैं, क्योंकि जब हम दैवी शक्ति का उपयोग कर सकते हैं तो स्वयं ही यह कार्य क्यों न कर लें। आपका चित्त कहीं भी जा सकता है। यह निकारगुआ, इज़राइल या सद्दाम हुसैन या किसी अन्य स्थान पर, जहाँ भी आप कार्य करना चाहं, जा सकता है। में आपका विश्वास सहज है क्योंकि में तो भ्रान्ति रूप मुझ हूँ और मुझे समझना आसान नहीं। एक ओर तो में दिव्य हूँ तथा सके। वे न जान सके कि ये लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं, इनसे इतनी महान बातें करने का कोई लाभ नहीं। यह तो किसी ज्ञान के व्यक्ति खोखला है। ये सब बातें मुझे अपने में भरनी पड़ा। अब इसने कार्य किया है। आपके अन्दर की दिव्यता की अभिव्यक्ति होने लगी है तथा इतनी सुन्दर दैवी ज्योतियाँ मंर सामने बैठी हैं। मैं अपने हृदय से, जहाँ शिव का, सदाशिव का निवास है, आपको आशोर्वाद देती हूँ और े (सदाशिव) भी मोह से परे हैं। वही, स्वयं, आपको इतनी प्रशंसा से देख रहे हैं| वह प्रसन्नता से फूले नहीं समा रहे हैं। शिव पूजा यहाँ मनाने का यह महान दिन है। मुझे आशा जो आपके अस्तित्व में धड़क रही हैं, क्योंकि आपके चित्त में, आवश्यक कार्य है जो आपने करना है। बाकी सब सहज है । आप सब को अनन्त आशीर्वाद। चंतन्य लहरी सहस्रार पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( सारांश ) कबैला, इटली 10 मई 1992 ही सभी कार्य कर रही है। यह सारा चैतन्य और आदिशक्ति परमात्मा की ही इच्छा है। परमात्मा की इच्छा ही वड़े सुव्यस्थित रूप से चला रही है। एक शान्तिमय नाद के साथ पृथ्वी की रचना की गयी हर कार्य परमात्मा की इच्छा से हुआ। अब आप लोग परमात्मा की इच्छा को अपनी अंगुलियों के सिरों पर अनुभव कर रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आपने पूर्ण विज्ञान को खोज निकाला, यह पूर्ण विज्ञान परमात्मा की इच्छा ही है। आप जानते हैं कि सहजयोग द्वारा हमने लोगों को रोगमुक्त किया। आत्मसाक्षात्कार के बाद बहुत सी बातें स्वतः ही बन जाती हैं। पर लोग विश्वास नहीं करना चाहते। प्रारम्भिक वैज्ञानिकों की बताई बातों पर भी वे यकीन नहीं करते थे पर आज हम सहस्रार दिवस मना रहे हैं। शायद आप लोगों ने महसूस नहीं किया है कि यह दिन कैसा था सहस्रार को खोले विना परमात्मा, धर्म और देवत्व की बातें केवल कल्पना मात्र थी लोग परमात्मा में विश्वास करते थे पर यह मात्र विश्वास ही था। और विज्ञान जीवन के मूल्यों तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के प्रमाण को मिटाने हो वाला था। इतिहास में जब जब भी विज्ञान ने स्वयं को स्थापित किया सभी धर्माधिकारियों ने विज्ञान की खोजों का साथ दिया। अगस्टीन ने इसे बाइबल में दर्शाने का प्रयास किया। सभी धर्म ग्रन्थ मूर्खतापूर्ण कल्पना मात्र लगने लगे। कुरान में बहुत सी बातें थी जो आज के शरीर विज्ञान का वर्णन करती थी। वे विश्वास न कर सके कि परमात्मा ने किसी विशेष कारण से मानव की रचना की। आज हर क्षण विज्ञान में परिवर्तन आ रहा है। सिद्धांतों को उन्होंने सोचा कि विकास प्रक्रिया में पशु ही मनुष्य बन गए। चुनौती दी जा रही है। सहजयोग ने मनुष्य के सम्मुख विज्ञान का वह सत्य प्रकट किया है जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती। हम प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा है। सारी सृष्टि की रचना अत्यन्त सुव्यवस्थित रूप से परमात्मा की इच्छा ने की। जब परमात्मा की इच्छा ने ही सभी कुछ किया है त मनुष्यों को परमात्मा द्वारा रचित चीजों को खोज निकालने का श्रेय नहीं लेना चाहिए। उदाहरण के रूप में यह कालीन किसी अन्य बन गया। लोग सोचने लगे कि इन दस धर्मादेशों को मानने से ने बनाया और आपने इसके रंग खोज निकाले तो इसमें कौन या कठोर नियमों को मानने का क्या लाभ है? मनुष्य को पुन्य सी बड़ी बात है क्यांकि ये रंग तो पहले से ही हैं। आप इन्हें नहीं बना सकते। देशाचार भी परमात्मा की इच्छा ने ही बनाया। निरंकुश रूप से संस्थापित धर्म भी धन तथा सत्ता का मार्ग यदि परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण है तो इसे प्रमाणित भी किया जाना चाहिए। सहस्रार खुलने पर अब आपने इसे महसूस सूझा। बाइबल में वर्णित सत्य को बताने की उन्हें कोई चिन्ता किया है। इतनी सहज यह हमें प्राप्त हो गई है कि हम समझते न थी। बाइबल को ही बदल दिया गया। पीटर और पाल ने इसे ही नहीं। हमारे एक बंधन देने से कार्य हो जाता है। यह इससे बिगाड़ने का पूरा प्रयत्न किया। कुरान को अधिक नहीं छेड़ा भी कहीं अधिक है। अब हम उस विशाल कम्प्यूटर के अंग गया परन्तु यह अधिकतर दायीं ओर को हो बताती है और बन गए हैं। परमात्मा की उस इच्छा के हम माध्यम बन गए हैं और पूरे ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली इस शक्ति से जुड़ गए एक नए सूक्ष्म जीवविज्ञान द्वारा हमने खोज निकाला कि हर हैं। अत: हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि पूर्ण विज्ञान कोषाणु का एक टेप होता है। कम्प्यूटर की तरह हर कोषाणु हमारे हाथों में है, यह विज्ञान पूरे विश्व का हित करेगा। हम एक वैज्ञानिक को प्रमाणित करके बता सकते हैं कि परमात्मा होता है। बहुत से कम्प्यूटर की तरह के कोषाणु पहले से की एक शक्ति है जिसने सारी सृष्टि का सृजन किया है। कार्यक्रम में हैं और इस तरह एक अति अनोखी चीज वैज्ञानिकों विकास प्रक्रिया भी परमात्मा की ही इच्छा है। उनकी इच्छा बिना कुछ भी न हो पाता। अब आपने देखा है कि परमात्मा की इस इच्छा को हमने अपनी शक्ति के रूप में पा लिया है। हम इस प्रकार हर समय परमात्मा को चुनंीती दी गयी और बाइबल, कुराने, गीता, उपनिषदों में कही बातों का कोई प्रमाण न था क्योंकि यह केवल विश्वास मात्र ही था। बहुत कम लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ और जब भी उन्होंने इसकी बात की, लोगों को इन पर विश्वास न हुआ लोगों ने सोचा कि वे अपने ही सिद्धांत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तरह यह नि्जीव-विज्ञान क्यों प्राप्त करने चाहिए? मानवीय मूल्यों से लोग भटक गए। अपनाने लगे क्योंकि लोगों को वश में करने का उन्हें यही मार्ग इसमें बहुत सी बातें अस्पष्ट हैं। दो घटनाएं साथ-साथ घटीं। का एक कार्यक्रम होता है। इसी कार्यक्रम के अनुसार विकास के सामने आयी है। वे इसका वर्णन करने में असमर्थ हैं। सहजयोग ने प्रमाणित कर दिया है कि परमात्मा की इच्छा चैतम्य लहरी की इच्छा ने जिसने सब कुछ संचालित किया है. आपके माध्यम से कार्य करना है। अत: आपको अति सशक्त विवेकशील, इसका उपयोग कर सकते हैं। अत: सहजयोग होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है सहजयोग यह कहने मात्र के लिए नहीं कि " श्री माताजी मैं पूर्ण आनन्द मे हूँ, या मैं पवित्र हो गया हूँ, सभी बुद्धिमान और अति प्रभावशाली होना है। जितने अधिक कुछ वढ़िया है"। तो यह किसलिए है? आप को यह सारे आशीर्वाद किसलिए प्राप्त हुए? आपका शुद्धिकरण क्यों किया होगी । अब भी मुझे लगता है कि सहजयोगी यह समझन का गया? ताकि परमात्मा की यह इच्छा शक्ति आप से झलके और दायित्व नहीं ले रहे हैं कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा का आपका अंग-प्रत्यंग बन जाए। हमें अपने स्तर को ऊंचा उठाना होगा। हमें ऊपर उठना हो होगा। साधारण और मध्यमस्तर के लोगों को सहजयोग देने का कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसे लोग किसी काम के नहीं होते। किसी भी प्रकार वे हमारी सहायता नहीं कर सकते, आज उन लोगों की आवश्यकता है जो वास्तव में परमात्मा की इच्छा को प्रकट कर सकें, प्रतिबिम्बित कर सकें। इसके लिए हमें अति सुदृढ़ व्यक्तियों की आवश्यकता है। परमात्मा की इस इच्छा ने पूरे विश्व, पूरे ब्रह्माण्ड की, पृथ्वी माँ की तथा हर चीज की रचना की। अब एक नए आयाम के प्रभावशाली आप होंगे उतनी अधिक शक्ति आपको प्राप्त प्रतिनिधि बनना है, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञ परमात्मा का प्रतिनिधि। आपको समझना है कि सहस्रार खुलने के बाद आपमें वह शक्ति आ गई हैं जिसमें ये तीनों गुण हैं। यह महान शक्ति आपको प्राप्त हो गयी है। इसके लिए हमें बहुत सफल, धनी या विख्यात लोगों की आवश्यकता नहीं। हमें चरित्र, सूझबूझ और दूढ़ता वाले लोगों की आवश्यकता है जो ये कहें कि चाहे कुछ भी हो मैं इसे अपनाऊंगा, इसका साथ दूंगा और इसे सहयोग दुंगा। मैं स्वयं को परिवर्तित करूंगा और सुधारूंगा। मुझे आशा है कि आप सबने भ्रमों से छूटकारा पा लिया है। अपने बारे में भी आपमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। यदि आपमें कोई भ्रम है तो आप सहजयोग छोड़ दें। समझिए कि परमात्मा की इच्छा ने इस कार्य के लिए आपको चुना है, इसी कारण आप यहाँ हैं और आपने इस पूर्ण विज्ञान को समझने का दायित्व लेना है। इसे अपने तथा अन्य लोगों के लिए कार्यान्वित करें। आपने मेरे प्रेम को महसूस किया है आपका प्रेम भी महसूस किया जाना चाहिए क्योंकि प्रेम ही परमात्मा हैं। दूसरे लोगों को अनुभव होना ही चाहिए कि आप करुणामय, प्रेममय तथा सूझबूझ वाले हैं। हर समय यह परमात्मा की इच्छा आपमें से प्रवाहित होती रहती हैं। आपको इसे इस प्रकार से संचालित है सम्मुख हम अनावृत हुए हैं कि परमात्मा की इच्छा के माध्यम हम ही लोग हैं। तो अब हमारा कर्त्तव्य क्या है और इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? सहस्रार खुलने के परिणामतः हमारे भ्रम समाप्त हो गए हैं। सर्व शक्तिमान परमात्मा के अस्तित्व, उसकी इच्छा की शक्ति और सहजयोग के सत्य के विषय में आपको कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। आपको बिल्कुल कोई संदेह नहीं होना चाहिए। परमात्मा की शक्ति का उपयोग करते हुए आपको पता होना चाहिए कि इसे संचालन करने की आपकी योग्यता के कारण ही यह शक्ति आपको दी गई है। सोची जा सकने वाली शक्तियों में यह सर्वाच्च है। किसी गवर्नर या मंत्री को लीजिए, उन्हें कल पद से हटाया जा सकता है। वे भ्रष्ट हो सकते हैं, हो सकता है उन्हें अपनी शक्तियों का कोई ज्ञान न हो। बहुत से लोगों को अपने कार्य का पता तक नहीं होता फिर भी वे लोगों द्वारा चुने जाते हैं। सहजयोग लोगों का धर्म परिवर्तन मात्र नहीं। यह व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन मात्र भी नहीं। यह तो कि लोग समझ जायें कि आप संत हैं और यह शक्ति आपमें से प्रवाहित हो रही है। करना दूसरी बात जो हुई है वह यह है कि आपने एकीकरण को समझ लिया है, कि पूरे विश्व में एकीकरण का ही अस्तित्व है। बच्चों में अपनी अन्तर्जात, स्वाभाविक सूझबूझ है। साधारणतया एक नयी रचना है आगे बढ़ते हुए उस नए मानव की जिसमें परमात्मा की इच्छा को आगे ले जाने की योग्यता है। आत्मसाक्षात्कार के परिणामत: आपके भ्रम समाप्त हो गए। परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापी है और सर्वज्ञ हैं। सर्व्ञ अर्थात् सभी कुछ देखते तथा जानते हैं। उस शक्ति का एक भाग आप में भी है। उनकी सर्वज्ञता को प्रमाणित करने के लिए आपको हर समय याद रखना है कि आप सहजयोगी हैं। अब भी मैं सहजयोगियों को अपनी पत्नियों, बच्चों, घर, परिवार, नौकरियों आदि के विषय में बातें करते हुए पाती हूं। मैं हैरान हो जाती हूँ कि उनका स्तर क्या है? वे हैं कहाँ? उन्हें दिया गया दायित्व वे कब सम्भालेंगे? सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वत्र विद्यमान हैं, जिन्होंने सभी कुछ किया है, और परमात्मा एक अच्छा बच्चा सदा अपनी चीजों को बांटकर लेना चाहता है, दूसरे बच्चे से प्रेम करना तथा छोट बच्चे की रक्षा करना पसन्द करता है। यह स्वाभाविक हैं। बच्चा यह नहीं सोचता कि दूसरे बच्चे के बालों या चमड़ी का रंग काला है या लाल। छोटे बच्चों को ज्ञान होता है कि शरीर का प्रदर्शन नहीं किया जाता। दूसरों के सामने बच्चे निर्वस्त्र नहीं होना चाहते। उनमें यह गुण अन्तर्जात है। यह सभी अन्तजात गुण आप में हैं। बच्चे कुछ भी चुराना नहीं चाहते। मैंने बच्चों को सुन्दर स्थानों तथा घरों में जाते देखा है, वे सदा उस स्थान की सुन्दरता को बनाए से रखने का प्रयत्न करते हैं। अविकसित माने जाने वाले बहुत देशों में यह गुण हैं। अबोधिता की सृष्टि हम में अन्तर्जात है। परमात्मा की इच्छा ने अबोधिता तथा मंगलमयता की रचना उद्यमियों के हाथों में खेल रहे हैं। ये उद्यमी इन दुर्बल व्यक्तियों आदिशक्ति ने ही की क्योंकि वही परमात्मा की इच्छा है। पूरे को मूर्ख बनाकर उनसे पैसा एंठ रहे हैं। एक ओर तो आपके पास इतनी महान शक्तियां हैं, इतने महान कार्य के लिए आपको चुना गया है और दूसरी ओर आप इस प्रकार से दास हैं। आपके अन्तर्जात गुण खो गए थे। सौभाग्यवश कुण्डलिनी की जागृति और सहस्रार के भेदन से आपके अन्तर्जात गुण, जो कि खो से गए थे, जाग उठे हैं। आपकी अबोधिता, सृजनात्मकता, की। सर्वप्रथम उन्होंने श्री गणेश की रचना की। यह रचना विश्व को अति सुन्दर बनाने के लिए यह सब रचा गया। ये सब देवता तथा ये सारे अन्तर्जात गुण आपके अन्दर स्थापित किए गए। इन्हें विशेषत: बनाया गया ताकि मनुष्य सन्त स्वभाव बन सके और सन्त सम अन्तर्जात अपने विवेक को अपना सकें। विकसित देशों में दूरदर्शन तथा अन्य मार्गों से हमारे मस्तिष्क को दूषित किया गया और हम में असुरक्षा की भावना आ गई। हम दूसरों के विचारों से चलने लगे कोई भी प्रबल व्यक्ति हम पर प्रभुत्व जमा सकता था। केवल हिटलर ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया, फेशन भी लोगों पर छा गया। फैशन के कारण किसी भी विवेकपूर्ण बात को अपनाना नहीं बड ी अन्दर का धर्म, करुणा, मानव प्रेम, निर्णयात्मक शक्ति और विवेक आदि गुण आपमें सुप्तावस्था में थे वे सभी जागृत हो गए। मुझे ये नहीं बताना पड़ता कि ये कार्य करो और ये मत करो। आपको स्वयं महसूस होता है कि यह अनुचित है। आप स्वयं जानते हैं कि आपके लिए ठीक क्या है। कुछ अनुचित चाहते। आजकल छोटे स्कर्ट पहनने का फैशन है लम्बा स्कर्ट यदि आप करना चाहें तो आप कर सकते हैं परन्तु आपके अन्दर का प्रकाश आपको बताएगा कि क्या ठीक हैं और क्या गलत। ज्ञान के इस आयाम के प्रति सहस्रार के खुलने के कारण ही यह हो सका है। यह नयी नहीं है, आपके अन्दर रचित है। अब यही अन्तर्जात गुण प्रकट हो रहे हैं और आप आपको कहीं नहीं मिलेगा। सभी को यही वेशभूषा पहननी पड़ती है अन्यथा आप पिछड़ जाते हैं। हर समय इस प्रकार की बातें हमारे मस्तिष्क में भरी जाती हैं परिणामतः सर्वप्रथम हम उद्यमियों के दास बन जाते हैं । मैंने है कि बैल्जियम में आपको कोई भी ताजा चीज नहीं इनका आनन्द ले रहे हैं। सुना मिलती, सभी कुछ डिब्बों में बंद सुपर बाजार से लेना पड़ता है। शनै: शनैः हम पूर्णतया बनावटी होते चले जाते हैं। भोजन, वस्त्र और दृष्टिकोण बनावटी हैं। विज्ञापनों तथा बाह्य प्रभावों में हम खो जाते हैं। इन आधुनिक वस्तुओं के प्रभाव में हम अपने अन्तर्जात विवेक को भूल बैठते हैं। विज्ञान के बाद धन बहुत महत्वपूर्ण हो गया। ऐसा होते ही सभी उद्यमी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि आपको मूर्ख बनाकर धनार्जन की कला वे जानते हैं । परन्तु अन्दर से दृढ़ व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित नहीं होते। फैशन उन्हें प्रभावित नहीं कर पाता। इसके विपरीत अपनी परम्परागत उपलब्धियों से दूर हो पाना उनके लिए कठिन होता है। अपने तुच्छ विचारों तथा आचरणों से आपको बाहर आना है। मैंने सुना है कि सहजयोगी वस्तुओं को इधर-उधर फैला देते हैं। आप इस तरह का बर्ताव कैसे कर सकते हैं? जीवन में विना अपेक्षित अनुशासन के आप परमात्मा की इच्छा को संचालित नहीं कर सकते मैं आपकी स्वतंत्रता का स्वागत करती हूँ और चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी ही आपमें विवेक, महानता तथा गरिमा को जागृत करें। तब आप अपने पद के मूल्य को समझने लगेंगे। अग्नि में तपा कर शुद्ध किए स्वर्ण की तरह कुण्डलिनी भी आपका पूर्ण शुद्धिकरण करेगी। आप अपनी गरिमा, स्वभाव तथा महानता को देखने लगते हैं। अत: सहज ही आपका एकीकरण हो जाता है। सबसें पहले इंग्लैंड, स्पेन, इटली आदि के सहजयोगी होते थे जो सदा अलग-अलग समूह में रहते थे। वे कभी साथ न बैठते। पर अब ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि अब उन सबका एकीकरण हो रहा है। मानव का एकीकरण सहजयोग के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह एकीकरण बुद्धि से नहीं आता। यह अन्तर्जात विवेक - कि सभी मनुष्य परमात्मा ने बनाए हैं और किसी से घृणा करने का हमें कोई अधिकार नहीं - से आता है। दूसरा है कि सभी धर्म एक की अध्यात्म-वृक्ष पर उपजे हैं कि सभी धर्मों की पूजा होनी चाहिए। भी अवतरणों, पैगम्बरों और धर्मग्रन्थों की पूजा होनी चाहिए। उन धमग्रन्थों की त्रुटियों को सुधारा जा सकता सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि वे ध्यान रखें कि कहीं उद्यमियों के दास तो नहीं बन रहे। विचारों पर भी प्रभाव पड़ता है। हम बहुत सी पुस्तकें पढ़ते हैं जिनमें से कुछ फ्रायड जैसे पागलों की लिखी बेसिरपैर की होती है। पश्चिम पर फ्रायड का प्रभाव केसे पड़ा? क्यांकि अपने अन्तर्जात विवेक को छोड़ कर आपने उसे स्वीकार किया। है। इस प्रकार फ्रायड भी लोगों के लिए ईसा सम बन बैठा। यौन संबंध अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गए। थोड़ी सी साधारण बुद्धि से हम समझ सकते हैं कि हर क्षण कुछ प्रबल व्यक्ति, जिनके पास कुछ विचार भी हैं, हमें दासत्व की ओर ढकेलते हैं। उनके विचार महान बन जाते हैं। "उसने ऐसा कहा"। वह है कान, एकीकरण जो आपमें आया है वह है। शनैः शनै: आप दैवत्व की सूक्ष्मता में प्रवेश करते है और समझ लेते हैं कि सहजयोग के लिए वातावरण बनाने को इन लोगों ने बहुत परिश्रम किया है। किसी धर्म की न तो निन्दा उसका जीवन कैसा है? स्वयं देखिए कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। परमात्मा की इच्छा, जिसने पूरे विश्व को तथा आपके कण-कण को बनाया है, के प्रतिनिधि होते हुए आप ुब चैतऱ्य लहरों 11 होनी चाहिए और न ही उस पर आक्रमण होना चाहिए। आगे बढ़ायें। क्षण-क्षण चमत्कार होते देख आप महसूस करते हैं कि परमचैतन्य ही इन्हें कर रहा है। परमचैतन्य आदिशक्ति की इच्छा है और आदिशक्ति परमात्मा की इच्छा है। इसी प्रकार हम सभी धर्मान्धों को समाप्त कर पायेंगे। बहुत सावधान रहिए। कभी-कभी आप सहजयोग को कट्टर बनाने लगते हैं। "माँ ने ऐसा कहा" कहकर आप दूसरों पर प्रभुत्व जमाना चाहते हैं। मुझ कहीं भी उपयोग मत कीजिए । आप स्वयं कहिए क्योंकि अब आपको अधिकार है, सहजयोग में आपका एक व्यक्तित्व है। स्वेच्छा से मेरा उपयोग करने का किसी का कोई मतलब नहीं। जो भी आपने कहना है स्वयं कहिए। मेरी कही बात के बंधन में आप नहीं। अब उठकर आपने स्वयं देखना है कि क्या कहें। अव आपने अपनी इच्छा का उपयोग करना है और इसके लिए आपको स्वयं को विकसित करना होगा अत: अपनी इच्छा पवित्र होनी चाहिए सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा। यह लहरियां डी.एन.ए. की तरह हैं। वे जानती हैं कि किस प्रकार कार्य करना है। जैसे आज बहुत धूप है। सभी हैरान हैं। दो दिन पहले हमने हवन किया और धूप निकल आयी। ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्यरत है। अब आप मंच पर हैं और आपने ही इसका ध्यान रखना है। यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है तो आप कंसे सहायता कर सकते हैं? मनुष्य रचित समस्याओं का समाधान तथा अपना संचालन आप कैसे कर सकते हैं? अतः हम पर पड़े दासत्व को हमें उखाड़ फेंकना है। हिन्दु, मुस्लिम कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट होने के विचारों को हमने पुरा , खदेड देना है। हमें एक नया व्यक्तित्व बनना है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आप कीचड़ में पैदा हुए कमल के समान हो जाते हैं । अब आप कमल बन गए हैं। इस मृत कीचड़ को दूर हटाना एकीकरण केवल बाह्य ही नहीं यह आंतरिक भी है। अब से पहले हम जो करते थे उसमें हमारा मन कुछ कहता था, हृदये कुछ और कहता था और मस्तिष्क कुछ और अब ये होगा अन्यथा इसके अंश रह जायेंगे। आपकी हत्या करने वाले, तीनों चीजें एक हो गई हैं। अब आपके मस्तिष्क की बात आपके हृदय और चित्त को पूर्णतया स्वीकार होती है अब आप स्वयं एकीकृत हो गए हैं बहुत से लोग कहते हैं " मैं ऐसा करना चाहता हूँ पर कर नहीं सकता"। अब ऐसा नहीं है और अनुशासन का होना हमारे लिए सबसे आवश्यक है। क्योंकि अब आपका पूर्ण एकीकरण हो चुका है। अपना निरीक्षण करके देखिए कि आपका एकीकरण हो गया है या नहीं। जो भी कार्य मैं करता हूँ क्या मैं उसे पूरे चित्त और हृदय हूँ। इसका कारण यह है कि मुझे परम इच्छा है कि मुझे इस के साथ करता हूँ? में देखती हूँ कि आप पूरे हृदय से कार्य विश्व को आनन्द, प्रसन्नता और देवत्व की उस अवस्था तक करते हो परन्तु आपका पूरा चित्त वहाँ नहीं होता। सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाले चित्त का पूरा उपयोग नहीं है या फिर उनके पिता ( परमात्मा) की क्या गरिमा है। मैं कभी नहीं एकीकरण अधूरा है। सारे चक्रों का भी एकीकरण हो जाता है। जो भी कुछ आप करते हैं वह शुभ होना चाहिए तथा पूरे चित्त के साथ। यह धार्मिक होना चाहिए। ये पूरे चक्र पूर्णतया एक हैं संघटित में स्वयं सुलझा रही हूं। परन्तु सहजयोगी मुझे पारिवारिक शक्ति जो आप स्वयं हैं। पूरा जीवन ही संघटित होना चाहिए किसी का पति या पल्नि यदि उस स्तर के नहीं तो चिन्ता नहीं हमारे सिर पर सबसे बड़ा बोझ है। परिवार आपकी करनी चाहिए। आप केवल अपनी चिन्ता कीजिए। किसी से जिम्मेवारी नहीं। यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का दायित्व भी कोई आशा न रखिए। आपका अपन कर्त्तव्य ही महत्वपूर्ण है। अपना कर्त्तव्य पूरा कीजिए। आपको स्वयं ही यह करना है. दायित्व लेने लगते हैं तभी समस्याएं शुरु होती हैं। निर्लिप्सा जब तक आप समझ नहीं जाते कि व्यक्तगत रूप से आपने को समझना चाहिए। अपनी चीजों से, बच्चों से आप इसे प्राप्त किया है आपने अपने लाभ देखने हैं। "मुझ आर्थिक, चिप्रके रहते हैं। मोहग्रस्त लोगों को संत कैसे कहा जा शारीरिक, मानसिक लाभ हुआ। मुझे प्रसन्नता और आनन्द प्राप्त हुआ"। केवल इतना नहीं है। केवल यही मापदंड नहीं होना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की समझ आपको होनी चाहिए। बहुत से जीवनोंपरान्त इस जीवन में इस व्यक्तित्व की रचना विशेष रूप से आपके लिए की जा रही है ताकि इस जीवन में पत्नी और बच्चों से लिप्त हो गए हैं। यह भी स्वार्थ है वे आत्मसाक्षात्कार पाकर परमात्मा की इच्छा के कार्य को आप व्यर्थ के बंधनों को तोड़ दीजिए। सारी रचना अत्यन्त सावधानी, प्रेम और कोमलता से कर दी गई है। अतः हमें अपना सम्मान करना चाहिए। हममें दूसरों के प्रति स्नेह एवं प्रेम होना चाहिए मेरे जीवन के विषय में आप सब जानते हैं कि मैं कठिन परिश्रम करती हूँ और आप सबसे कहीं अधिक सफर करती लाना है जहाँ मनुष्य जान सके कि उसका लक्ष्य क्या है और सोचती कि मुझे कोई कष्ट हो जाएगा या मेरा क्या होगा। मैंने आप लोगों को अपने पारिवारिक जीवन अपने बच्चों या किसी अन्य के विषय में कभी क्ट नहीं दिया। अपनी समस्याओं को समस्याओं के विषय में लम्बे पत्र लिखते हैं। पारिवारिक मोह है। क्या आप परमात्मा से अच्छा कर सकते हैं? जब आप सकता है। संत केवल अपनों के लिए ही जिम्मेवार नहीं होते, वे सबके लिए जिम्मेवार होते हैं । सहजयोग में आने से पूर्व आप किसी से लिप्त नहीं। आप स्व-केन्द्री थे। अपने को थोड़ा सा विस्तुत कर अब आप अपनी आपके नहीं परमात्मा के बच्चे हैं एक महत्वपूर्ण बात जो कि आप उन्हें परमात्मा पर नहीं छोड़ना चाहते। कुछ लोग कहते हैं कि उनमें इतनी योग्यता ही नहीं कि वे ऐसा कर सकें। यह मूर्खतापूर्ण वक्तव्य है। स्वयं को परखिए। हम ऐसी बात क्यों कहते हैं? हो सकता है आप धन-लोलुप हों। सहजयोग में कुछ लोग व्यापार की बात करते हैं। हो सकता है भौतिकता से मोह हो। दूसरे यह ममत्व भी हो सकता है - मेरा परिवार, बच्चे आदि। तीसरे हो सकता है कि आप अभी तक अपनी पुरानी आदतों से चिपके हुए हों और सद्गुणों के बिना ही इनका आनन्द ले रहे हों। आप में सभी कुछ करने की क्षमता है। आपके साथ हुई वह है सहस्रार का खुलना। अब आप पूरे विश्व के सम्मुख परमात्मा का अस्तित्व उसकी इच्छा तथा सभी कुछ प्रमाणित कर सकते हैं कोई भी सहजयोग को चुनौती नहीं दे सकता। चुनौती देने वाले को समझाया जा सकता है। आपको चाहिए कि सहजयोग को गंभीरता से लें। लोग ध्यान तक नहीं करते। ध्यान के बिना आप कंसे उन्तत होंगे? निर्विचार समाधि में आए बिना आपकी प्रगति नहीं हो सकती। कम से कम सुबह-शाम तो आपको ध्यान करना ही है। बहुत से लोग स्वभाव से ही सामूहिक नहीं हैं। उन्हें आश्रम का जीवन पसन्द नहीं। ऐसे लोगों को सहजयोग से चले जाना चाहिए। सामूहिकता के बिना आप कैसे बढ़ेंगे और कैसे अपनी शक्तियों को एकत्रित करेंगे? सामूहिकता से ही दृढ़ होंगे एक तिनके को तोड़ा जा सकता है पर बहुत से तिनके इकट्ठे हो तो उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता। एक हजार निकम्मे लोगों की अपेक्षा अच्छी प्रकार के दस व्यक्तियों का होना अधिक अच्छा सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप परमात्मा की इच्छा के उचित, करुणामय ऑर सशक्त वाहन बन जायें। ठीक है कि आप मेरी पूजा करते हैं क्योंकि इससे आपको बहुत लाभ मिलता है। मुख्य बात तो आपका अधिकाधिक गहनता में उतरना है। उच्चावस्था को पाने में एक दूसरे से मुकाबला कीजिए। मुझ विश्वास है कि यह पूर्ण-बिज्ञान एक दिन अन्य सब प्रकार के विज्ञान का आच्छादित कर लेगी और अपनी वास्तविकता प्रकट करेगी। यह आपके हाथ में है। आज के दिन का उत्सव हम इसीलिए मनाते हैं कि हमने इस दिन परमात्मा के प्रमाण का एक नया महान देवी आयाम पूर्णतया खोला। यह इतना महत्वपूर्ण है कि हम सारे भ्रमों का अन्त कर सकते हैं । आज हमें शपथ लेनी है कि "मैं अपना जीवन परमात्मा की इच्छानुसार ढालूंगा। पारिवारिक एवं अन्य बंधन न रखूंगा"। परमात्मा की इच्छा सबकी देखभाल कर सकती है। आपको किसी चीज की चिन्ता करने की जरूरत नहीं। समझने का प्रयत्न कीजिए कि आपकी समस्याओं का कारण यह है आप सबको अनन्त आशीर्वाद। माताजी का जन्मोत्सव श्री सीरीफोर्ट सभागार, दिल्ली, 23.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन वास्तविकता में और हमारे में बहुत कम दूरी होने के कारण हो सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम । सर्वप्रथम हमें यह जानना है कि सत्य जो है - वही है। हम इसे धारणा-बद्ध नहीं वे लोग इतने सुन्दर हो गए हैं यदि हम इस दूरी का तय कर कर सकते इसे जानना पड़ता है। दुर्भाग्यवश मानवीय चेतना के वास्तविकता को आत्मसात कर सकें तो आप आश्चर्यचकित स्तर पर हम सत्य को नहीं जान सकते। हमें आत्मा बनना पड़ता है। आज मैं जो आपको बता रही हँ उसे स्वीकार करना आवश्यक नहीं और क्योंकि इतने सारे लोग सहजयोग की बहुत प्रशंसा कर रहे हैं इस कारण भी आपको इसमें अन्ध श्रद्धा की कोई आवश्यकता नहीं है। अपना मस्तिष्क वैज्ञानिक की तरह खुला रखिए। आपके सम्मुख रखी गयी मेरी परिकल्पना सकती हैं। विश्व के सभी संतों तथा महान दार्शनिकों ने आत्मा यदि कार्य करती है तो ईमानदार व्यक्ति की तरह से इसे के विषय में बताया। सभी शास्त्रों ने आत्मा के विषय में स्वीकार कर लीजिए क्योंकि इसी में आपका और पूरे विश्व का हित है। सहजयोग में सभी जातियों, राष्ट्रों, धर्मों तथा राजनीतिक प्रणालियों के लोग हैं। पर उनमें अत्यन्त सुन्दर थे या सत्ता लोलुप। आत्म खोजी वो नहीं थे। अपना उत्थान भाईचारा है। बिना किसी प्रयत्न के इसकी प्राप्ति हो गई है। रह जायेंगे कि आप कितने अनोखे और शानदा व्यक्ति हैं । विश्व में हमारे सम्मुख पर्यावरण संबंधी, राजनीतिक, आर्थिक तथा पारिवारिक समस्याएं हैं। इन सभी समस्याओं का केन्द्र विन्दु मानव ही है। सार्विकता की नई चेतना तक यदि हम मानव को परिवर्तित कर सके तो ये सब समस्याएं सुलझ बताया। इतने महान, पवित्र तथा पूर्णतया वास्तविक सभी धर्म कठिनाई में फंस गए क्योंकि इन्हें मानने वाले या तो धन लोलुप प्राप्त करने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की। बुद्ध और चैतन्य लहरी 13 महावीर ने परमात्मा की बात नहीं की क्योंकि वे समझते थे कि उनके ऐसा करने पर लोग परमात्मा का आयोजन भी किसी न किसी धर्म में करने लगेंगे। अत: उन्होंने निराकार आत्मा की बात की। उन्होंने जोर देकर कहा कि आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है। गुरु नानक और मोहम्मद साहिब ने भी ऐसा ही कहा। इन सबने निराकार परमात्मा की बात की। संस्कृत भाषा में श्री मार्कन्डेय ने कुण्डलिनी के विषय में लिखा। छठी शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने इसे जनता के सम्मुख रखा पर इसे स्वीकार न किया गया महाराष्ट्र में लोग श्री रामदास का भजन गाते हैं कि "हे माँ मुझे योग प्रदान करो, मेरा संबंध दिव्य शक्ति से जोड़ दो"। बिना कुछ समझे संदियों से लोग गाए चले जा रहे हैं। गुरु नानक, कबीरदास, रामदास स्वामी, तुकाराम ने इसे विकसित किया। ये सभी महान संत इसी देश में अवतरित हुए और कबीर दास तथा नानक साहब न तो स्पष्ट रूप से कुण्डलिनी की बात की। इसे प्राप्त करने के मार्ग के अभाव में लोगों ने गलत समझा। तो इस आधुनिक समय में मैंने सोचा कि जो खोज व्यक्ति विशेष के लिए है वह जनसाधारण के लिए भी होनी चाहिए। क्योंकि अकेले साक्षात्कारी को तो लोग स्वीकार ही नहीं करेंगे। इसी कारण लोगों ने कुछ अवतरणों को सूली पर चढ़ाया, जुहर दिया तथा पत्थरों से मारा। उनकी मृत्यु पश्चात् उनके नाम पर मंदिर भी बनवाए। परन्तु उनके जीवनकाल में किसी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। निराकार की बात करें या साकार की, मानव तो वही है। बातें ही बातें हैं। फूलों की बात करें या शहद की, आपको शहद नहीं मिलने वाली। बातें तो शब्द मात्र हैं। श्री आदिशंकराचार्य ने इन्हें 'शब्द जालम' कहा है शब्दों का जाल। इस शब्द जाल से आगे कैसे जायें? कुण्डलिनी जागृति द्वारा। इस देश के लिए यह कोई नई चीज नहीं है, सहजयोग भी नया नहीं। सभी धर्म ग्रन्थों में कहा गया है कि जब तक आपका पुनर्जन्म नहीं होता, आप आत्मा नहीं बन जाते, तब तक आप धर्म को नहीं समझ सकते। बौद्धिक प्रयत्नों से इसे नहीं जाना जा सकता। हाल ही में आम्मेनिया के लोगों ने मुसलमानों को मारा और उन्हें मारने जाने से पहले वे बाइबल पढ़ा करते थे। ये कैसे हो सकता है? इस प्रकार का कार्य करते हुए एक ईसाई की कल्पना कीजिए। इस्लाम भी सर्वोत्तम धर्मों में से एक है पर लोग नहीं समझ पाए कि मोहम्मद साहब ने क्या जानने के लिए कहा। अंग्रेजी के शब्द 'नो' (Know) का उद्भव संस्कृत शब्द ज्ञान से है। प्राचीन ईसाई लोगों को ग्नोस्टिक कहा जाता था जानना अर्थात् मध्य-नाड़ी-तंत्र पर जानना, बौद्धिक स्तर पर नहीं। अत: किसी तरह मेंने वह विधि खोज निकाली जिसके द्वारा जनसाधारण की कुण्डलिनी उठाई जा सके। जागृत होकर कुण्डलिनी व्यक्ति को परम-चैतन्य से जोड़ देती है। यह परम- चैतन्य ही सारा जीवन्त कार्य करता है। इन फूलों को देखिए, अपनी आंखों को देखिए, इन सब चीजों को हम अपना अधिकार समझते हैं। आंखें अति सूक्ष्म कैमरे की महान कृति हैं। अपने मस्तिष्क का क्या कहें? पूरे कार्यक्रम से लदा हुआ यह महान कम्प्यूटर है। हम इसे स्वीकार कर लेते हैं पर यह नहीं सोचते कि यह किस प्रकार कार्य करता है। आंखों पर पट्टी बांधकर हम सारे जीवन्त कार्यों को स्वीकार कर लेते हैं पर हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि किस प्रकार यह फूल पृथ्वी माँ से उत्पन्न हुए। एक छोटे से बीज़ के माध्यम से किस प्रकार उनके आकार तथा रंगों पर नियंत्रण रखा गया। यह परम-चैतन्य पवित्र प्रेम ही है और यही पवित्र प्रेम, यही शक्ति ही यह सारे सुन्दर तथा सूक्ष्म कार्य करती है। एक बार अपनी आत्मा से योग होने पर यह प्रकाशित हो उठती है। यही कारण है कि पाल के कार्यभार संभालते ही ईसा के अनुयायी भाग खड़े हुए और जब थामस भारत आए तो सत्य के सारे ज्ञान को एक बर्तन में भर कर उन्होंने इसे मिश्र में छिपा दिया। अन्यथा धर्म आयोजन द्वारा धन कमाने के इच्छुक लोगों द्वारा वे मार दिए जाते। इन धूर्त लोगों के कारण उन्होंने सोचा कि धर्म की बात ही न की जाए। यदि आप धर्म की बात करें तो अपने धर्म को लेकर वे आपसे झगड़ा करेंगे। धर्म के नाम वे कत्ल और हत्याएं करते हैं। यह किस प्रकार से धर्म कार्य हो सकता है। मानव हर बात को उलझा सकता है। पर इसका अर्थ ये भी नहीं कि वास्तविकता और देवत्व है ही नहीं। प्राचीन काल में बहुत कम लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता था। राजा जनक ने केवल नचिकेता को ही साक्षात्कार दिया। बहत ही धीरे-धीरे यह कार्य होता था। एक गुरु केवल एक ही शिष्य को आत्मसाक्षात्कार देता था। दसवीं शताब्दी में संत ज्ञानेश्वर ने कुण्डलनी के विषय में सरल भाषा में लिखने की आज्ञा अपने गुरु से मांगी। ज्ञानेश्वरी के छठे अध्याय में उन्होंने कुण्डलिनी के विषय में लिखा स्थानीय भाषा में लिखे होने के बावजूद भी धर्म के ठेकेदारों ने लोगों को इसे पढ़ने की आज्ञा न दी। ।4000 वर्ष पूर्व भी प्रकाशित होकर यह आपके चित्त को प्रकाशित करती है। चित्त प्रकाशित होते ही आप पूर्णतया भिन्न व्यक्तित्व बन जाते हैं। सर्वप्रथम आप सामूहिक चेतना में आ जाते हैं अर्थात् अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप अपने तथा दूसरे लोगों के विषय में, उनके सूक्ष्म केन्द्रों के विषय में जानने लगते हैं। आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं को जान पाते हैं। यही केन्द्र मानव के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक अस्तित्व के आधार हैं। इन केन्द्रों को ठीक करते ही आप ठीक हो जाते हैं। दिल्ली के कुछ चिकित्सकों को सहजयोग तारा उपचार करने पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। सहजयोंन दारा बहुत से असाध्य रोग ठीक किए जा सकते हैं। क्योंकि ण्डलिनी चैतन्य लहरी 14 ी जब इन केन्द्रों में से गुजरती है तो यह उन्हें प्रकाशित करती है, विज्ञान के स्तर पर ले आए हैं। कैनेडा के एक डाक्टर ने खोज पोषित करती है तथा इन्हें सम्पूर्ण करती है। चिकित्सा विज्ञान की तरह यह शरीर के एक अंग का उपचार और दूसरे की ने खोज निकाला कि किस प्रकार मूलाधार चक्र पर कार्बन हैं उपेक्षा नहीं करती, यह मानव को पूर्णतया ठीक कर देती है। और यह कैसे कार्य करता है। कुछ मुसलमान 'प्रकाशित यह आपको सन्तुलन के मध्य मार्ग की ओर ले जाती है। यह प्रकाश आपको बुद्धिमान बना देता है क्योंकि आप अपने है। यह सब कार्य धन के लिए नहीं किया गया। मैं कोई पैसा मस्तिष्क को विचार-विहीन बना लेते हैं। यह निर्विचार समाधि कहलाती है। इस समय आप पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। इसके अच्छी तरह स्थापित होने पर आप निर्विकल्प समाधि में पहुंच नहीं लेते वे कठिन परिश्रम कर रहे हैं और सहायता के लिए जाते हैं अर्थात् आप इतने शक्तिशांली हो जाते हैं कि दूसरों को दूर करने के आत्मसाक्षात्कार दे सकें, उनका उपचार कर सकें और अनुभूत लिए जर्मन सहजयोगी रूस सहायता के लिए गए। इतना प्रेम ज्ञान के रूप में सहजयोग की बात कर सकें। जब जब भी और ध्यान कि आप विश्वास ही नहीं कर सकते। सहजयोगियों ने प्रश्न पूछे मैंने उनका मार्गदर्शन किया परन्तु अधिकतर ज्ञान उन्हें अन्दर से ही प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार ने उन्हें बताया कि जिस प्रकार लोग धर्म -ग्रन्थों का अनुसरण लगती है और इसी प्रकार मानवमात्र का उद्धार होगा। सहजयोगी कर रहे हैं, ग्रन्थों का बताया मार्ग उससे बिल्कुल भिन्न है। इसका श्रेय को ही देते हैं परन्तु मैं कहूंगी कि उन्हें भी श्रेय हमारी सहायता के लिए पृथ्वी पर अवतरित इन महान आत्माओं (सहजयोगियों) का प्रकाश अब वे देख सकते हैं। विकास प्रक्रिया में हम अब अंतिम उपलब्धि लोग केवल विज्ञान और तकनीकी की ही बात करते हैं ऐसे (आत्मसाक्षात्कार) के मुहाने पर खड़े हैं और पूरे विश्व ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है। मैं नहीं जानती कि पूरा विश्व है। परन्तु ईमानदार होने के कारण इसके परिणामों को देखकर इसे प्राप्त करेगा या नहीं पर जिस प्रकार हर स्थान पर हजारों वे इसे स्वीकार करते हैं और समझ पाते हैं कि विश्व की लोग सहजयोग में आ रहे हैं उससे मुझे लगता है कि मेरे समस्याओं का, विशेषकर राजनीतिक समस्याओं का, समाधान जीवनकाल में ही बहुत से लोग आत्मसाक्षात्कार पा लेंगे। मात्र इतना ही नहीं, ये लोग एक ऐसे सुन्दर समाज की रचना करेंगे जिसमें न कोई झगड़ा होगा न हिंसा, लोग न धोखा देंगे और की समस्या है जिसे केवल सहजयोग द्वारा ही हल किया जा न ही महत्वाकांक्षी होंगे, न दूसरों की बुराई करेंगे और न ही एक-दूसरे का गला काटेंगे। ये बुराइयां उनके मस्तिष्क में ही नहीं आती। वे अत्यन्त चरित्रवान हैं। वे न तो दूसरी स्त्रियों की ओर देखते हैं और न ही अपने बच्चों को परेशान करते हैं । वे कानून को मानने वाले लोग हैं और मुझे किसी बात के लिए उन्हें रोकना नहीं पड़ता। उनकी सारी बुराइयां छूट जाती हैं। मेरे पास एक लड़का आया जिसे नशे की लत थी। अर्ध मु्छित अवस्था में होने के कारण वह मुझे देख भी न सका। अगली प्रातः उसने नशा पूर्णतया छोड़ दिया। आजकल नशा छुड़ाने के धन्यवादी हूं। जब-जब भी मैं किसी हवाई अड्डे से जाती हैं लिए सेना की नियुक्ति के अतिरिक्त सभी कुछ किया जा रहा है। यह सब अनावश्यक है। उनकी जागृति मात्र कर दीजिए। हूं। सोचती हूँ कि कब इनसे पुनः भेंट होगी। लेकिन दूसरे हवाई इस जागृति के थोड़े से प्रकाश में आप स्वयं को देख लेंगे। अड्डे पर जाकर जब मैं अन्य लोगों की प्रतीक्षा में गाते हुए आप जान लेंगे कि आपमें क्या कमी है और इसे करने की शक्ति भी आप में है। अंधेरे में रस्सी समझ कर पकड़े हुए सांप को प्रकाश होते ही जैसे आप स्वयं फेंक देते हैं। इस प्रकार सहजयोग कार्य करता है। कुछ वैज्ञानिकों निकाला कि कैसे मृत आत्माएं कार्य करती हैं। कुरान' लिखने में लगे हुए हैं। किसी ने 'प्रकाशित गीता' लिखी नहीं स्वीकार करती क्योंकि जीवन्त क्रिया करने के लिए हम पृथ्वी माँ को कितना धन देते हैं? इसके लिए हम कोई पैसा पूरे विश्व में जाते हैं। अपने पुरखों की त्रुटियों को आपके अन्दर ही इतना सुन्दर गुण है। यह अति उदार, धर्मपरायण और चरित्रवान है। इन गुणों की अभिव्यक्ति होने मुझ मिलना चाहिए क्योंकि वे अति ईमानदार तथा बुद्धिमान लोग हैं वे तथ्य को स्पष्ट रूप से समझ सके। आधुनिक युग में जब समय में दैवी तकनीक को स्वीकार करना अति कठिन कार्य वे किस प्रकार करेंगे। परमात्मा की कृपा से गो्वाचीव के कारण यह समस्याएं काफी कम हुई हैं। हमारे सम्मुख कट्टरवाद सकता है क्योंकि सहजयोग में हम सभी धर्मों पैगम्बरों, साधुओं और अवतरणों का सम्मान करते हैं। सभी धर्मों के सार तत्व में हम विश्वास करते हैं और उनकी पूजा करते हैं । तो हम किस प्रकार झगड़ सकते हैं? कट्टरवाद हममें हो ही नहीं सकता। धर्मान्ध लोंगों के लिए सहजयोग ही एकमात्र समाधान का मार्ग है। अपने प्रेम का स्मरण करवाते हुए जिन लोगों ने मुझे ये सुन्दर पुष्प भेजे हैं मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ तथा उनके प्रति तो वहाँ उपस्थित सहजयोगियों के प्रेम में मैं सराबोर हो जाती पाती हूँ तो लगता है ठीक है, मुझे यहाँ भी होना चाहिए। यह कितना सन्तोषप्रद है। अपनी आयु का अहसास मुझे नहीं होता। इतने सारे लोगों को अपने जीवन, बच्चों, परिवार और समाज दूर * সনन्द लेते । हमें इस नए और सुन्दर विश्व की रचना करनी है। थोडे से दिल्ली में बहुत से डाक्टर हैं जिन्होंने सहजयोग को परमात्मा की वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में लेकर इसे चिकित्सा लोगों की मू्खता के कारण हम इसका विनाश नहीं होने देंगे। चैतन्य लहरी 15 कारण फैल रहा है क्योंकि एक बार प्रकाश प्राप्त करते ही वे इनमें भी विवेक आना चाहिए। अपने जन्म के समय में न जानती थी कि जीवनकाल में मैं कोई उपलब्धि प्राप्त कर अन्य लोगों तक इसे पहुंचाते हैं। इस उत्सव के लिए आप पाऊंगी। मेरे साक्षात्कारी पिता कहा करते थे कि सामूहिक सबका धन्यवाद। आप लोगों के उत्थान का उत्सव में भी अपने विकास मार्ग खोजे बिना वास्तविकता की बात मत करना। एक शब्द भी नहीं कहना, नहीं तो तुम भी एक अन्य कुरान या बाइबल की रचना कर लोगी जिसका कोई लाभ न होगा। अत: पहले मानव मात्र के लिए वह अवस्था प्राप्त करो। मुझे प्रसन्नता है कि सहजयोग मेरे कारण नहीं सहजयोगियों के हृदय में मनाती हूँ। आपने कितनी उपलब्धियां पा ली हैं। मैं आप सब को बधाई देती हूं। आप सबको धन्यवाद। ईस्टर पूजा वसू ला इटली, 19.4.1992 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) दूसरों पर प्रभुत्व जमाने के लिए वे ईसा के नाम का क्यों उपयोग करते हैं ? अंग्रेजों ने भी सत्य को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा कि भारतीयों ने विश्वास कर लिया कि ईंसा इंग्लैंड में ही उत्पन्न हुए। वे अंग्रेजों की तरह वस्त्र पहनते तथा अति अहंकारपूर्ण ढंग से व्यवहार करते। भारतीयों के प्रति वफादारी छोड़ वे अंग्रेज सरकार से मिल गए। मेरे पिता जब बन्दी बने तो उन्होंने हमें इसाई समाज से निकाल फेंका! मेरे पिता के कांग्रेसी ओऔर स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण उन्होंने छः या सात साल की आयु में ही मुझे स्कूल से निकाल दिया। सारे ही इसाई राष्ट्र अत्यन्त क्रूर एवं प्रबल रहे हैं और आज सभी मामलों का नियंत्रण उन्हीं के हाथों में है राजाओं का सुक्ष्म अहं अब प्रजातांत्रिक देशों के साधारण लोगों में भी आ गया है। ये सभी देश विनाश से पूर्ण हैं। अमेरिका के लोग मूर्खता की सीमा तक प्रबल एवं अहंकारी हैं। विवेक के स्रोत ईसा के वे अनुयायी हैं। अत: हमें इसाई इतिहास देखना पडेगा। सी कौमों को पूर्णतया नष्ट कर दिया। इसाई कहलाने वाले पीटर अति अहंकारी था, एक बार तो ईसा ने उन्हें शैतान कहा। उन्होंने यह भी कहा कि तुम मुझे भुला दोगे। फिर पाल आए। का कारण था इसाई जहाँ भी हैं अति आक्रमणशील और उन्होंने पीटर को खोजा। एक बड़े अधिकारी होने के नाते उसने हिंसावादी हैं। वे सोचते हैं कि पूरा विश्व उन्हीं की जागीर है। पीटर को कहा कि वह उसका साथ दे इस दुष्ट व्यक्ति ने बाइबल का सम्पादन किया। इस अहंकारी व्यक्ति ने ईसा की महान बलिदान ने भी उन्हें कुछ नहीं सिखाया। उन्होंने सोचा बताई बातों को तोड़ा-मरोड़ा। उसने मैथ्यु से झगड़ा किया और शुद्ध विचारों को भी स्वीकार न किया। उसे न वास्तविकता का अधिकार है। ईसा के जीवन से यह कितना विपरीत है। अहं कोई ज्ञान था और न दैवी चमत्कारों का। पर मैथ्यू अपने बिचारों पर डटे रहे। जॉन दौड़ गए और अपना ही मत चलाया का विवेक खो दिया है। चरित्र तो नाम को भी नहीं रहा है जो ग्नोस्टिक कहलाता है। इस तरह महान इसाई धर्म में यह राक्षस प्रवेश करता चला गया। अधिकृत रूप से उपयोग होने वाली बाइबल में ऐसा शब्द हैं कि लोग भटक जाते हैं। पहली बात जो ये लोग कहते हैं वह है कि यदि आप चर्च लोग अति कट्टर और अन्य लोगों पर छा जाने वाले होते हैं। के सदस्य बन जायें तो परमात्मा ने आपको चुन लिया है। हमारे आज्ञा चक्र को खोलने के लिए ईसा का पुनर्जन्म हुआ। आज्ञा चक्र अति सूक्ष्म केन्द्र है। अपने बंधनों तथा अहं से प्राप्त विचारों के कारण लोगों की आज्ञा इतनी अवरोधित हो गयी थी कि इसमें से कुण्डलिनी का पार होना असम्भव था। ईसा क्योंकि चैतन्य का ही रूप थे अत: पुनर्जन्म का खेल रचा गया। हमें समझना चाहिए कि ईसा की मृत्यु द्वारा ही हमें हमारा पुनर्जन्म प्राप्त हुआ और भूतकाल की मृत्यु हो गई हमारे ं पश्चाताप और बंधन समाप्त हो गए। परन्तु फिर भी इसाई राष्ट्रं में अहं की अपेक्षित कमी नहीं हुई। हो सकता है कि उचित विधि से ईसा की कभी पूजा की ही न गयी हो। अहं ने पश्चिमी लोगों को देखने ही नहीं दिया कि वे क्या कर रहे हैं और किस सीमा तक। अति की सीमा तक किए गए कार्यों के लिए उन्हें पछताना होगा। अहं को ठीक करने के लिए पश्चाताप था। इसाई राष्ट्रों के अन्य देशों पर आक्रमण किए और बहुत लोगों ने इंसा के नाम पर बहुत कहर ढाये। अहं ही इस सब हिटलर भी कैथोलिक धर्म में विश्वास करता था। ईसा के कि विश्व पर राज़ करना, इसे लूटना और नष्ट करना उनका इस सीमा तक बढ़ा कि आज इसाईयों ने अपनी मर्यादाओं तक इसाईयों में न कानून के प्रति और न ही परमात्मा के प्रति उनमें कोई सम्मान भाव है। इसा के मुख्य गुण - सतीत्व (पवित्रता) का भी उन्हें कोई सम्मान नहीं। भारत में मैंने पाया कि इसाई चैतन्य लहरी 16 सहजयोग में भी बारह तरह के सहजयोगी हैं। अपने अहं के क्योंकि केन्द्र थोड़ी सी दूरी पर है। परन्तु यदि उन्हें अपने पुत्र कारण कुछ अति दुर्बल हैं। वे किसी के साथ नहीं निभा से मिलने जाना हो तो वे मीलों जायेंगे। अपने परिवार या व्यापार के लिए यदि उन्हें कुछ करना हो तो.वे इसके पीछे दौड़ेंगे। अपनी सीमा उन्हें नहीं सूझती। उग्र स्वभाव के वे लोग सहजयोग में किसी को नौकरी छोड़ने के लिए या रहन-सहन का ढंग बदलने के लिए नहीं कहा जाता फिर भी प्राथमिकता तो देखनी ही है। लोग काम और धनार्जन में व्यस्त हैं, यश दिखा रहे हैं। उनमें से कुछ सीख रहे हैं। ईसा के पास कार्य कमाने में लगे हैं पर परमात्मा के लिए उनके पास समय नहीं करने के लिए केवल साढ़े तीन साल थे। उन्हीं का एक शिष्य है। माँ के सम्मुख झुकने मात्र से वे अपने, अपने कार्य के लिए तथा अपनी रचनात्मकता के लिए पूर्ण सुरक्षा की अपेक्षा करते हैं। ऐसे सहजयोगी हैं जो समझते हैं कि धन अति महत्वपूर्ण है सहजयोग में हम जब भी चाहें धन प्राप्त कर सकते हैं। कुछ आएगा। उन्होंने भविष्य की बात की। यदि वे अंतिम थे तो लोग कहते हैं कि मैं व्यापार शुरु कर रहा हैँ क्योंकि लाभ का 0.001 प्रतिशत मैं सहजयोग को देना चाहता हूँ। ये सब तो आपकी माँ का है। इस प्रकार का दूष्टिकोण तो तभी आता है जब आप धन को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझते हों। कुछ परमात्मा को नहीं देख पाते, वे धन के सूक्ष्म लाभ को नहीं जानते। एक-एक पाई का हिसाब वे बडी सावधानी से करते हैं । करते हैं। दूसरी तरह के सहजयोगी अत्यन्त स्वकेन्द्रित हैं। उनमें कठिनाईपूर्वक कमाए गए अपने धन को बे आध्यात्मिकता पर से कुछ तो केवल अपनी पत्नियों, बच्चों तथा घर को ही जानते व्यर्थ नहीं करते। कुछ लोग तो सहजयोग की एक पुस्तक भी नहीं खरीदते। एक टेप वे नहीं खरोदते। इसकी भी वे कापी बनवा लेते हैं। खर्च करना आवश्यक नहीं, बात तो केवल लोग पूजा के लिए बम्बई तो आए पर दिल्ली नहीं आए। स्त्रियां दृष्टिकोण की है। बुद्ध धर्म में बहुत सी बातें वज्जित हैं जिन्हें अपने पतियों को आश्रमों से निकालने का प्रयत्न करती हैं। यदि मैं सहजयोगियों पर लगा दें तो वे सभी दौड़ जायेंगे| सामूहिकता से बाहर होने के लिए वे बहाने खोजती रहती हैं। सर्वप्रथम आप कोई पैगम्बर नहीं बना सकते । आप कोई जमीन हर समय आपको परखा जा रहा है आप भी स्वयं को परखिए। नहीं खरीद सकते। दिन में आप केवलं एक वार खान! खा सकते हैं। आप को शाकाहारी होना होता है। सभी महान अवतरणों के अनुयायियों ने सुन्दर धर्म लाने वाले लोगों पर सकते। वे लोंगों पर चिल्लाते हैं और उन्हें परेशान करते हैं । सामूहिक नहीं हो पाते प्रेम की अभिव्यक्ति वे कभी नहीं करते। इस प्रकार के सहजयोगी एक-एक करके अपना रंग पीटर इतना दुष्ट बन गया कि अपने स्वार्थ और सम्मान के लिए उसने बाइबल में अनुचित शब्द भर दिए। मोहम्मद साहब के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने कहा कि पुनर्जन्म का समया आप पुनर्जन्म की बात कैसे कर सकते हैं? पैगम्बर की 'मोहर का अर्थ ये तो नहीं कि कोई अन्य पैगम्बर आ ही नहीं सकता। वे आदिगुरु थे और इसी कारण उन्होंने स्वयं को 'मोहर' कहा पर यह तो नहीं, कि मैंने अवतरणों पर रोक लगा दी है। पर दुष्प्रवृत्ति लोग अपने स्वार्थ के लिए इन शब्दों का दुरुपयोग हैं। उनके लिए यही अत्यन्त महत्वपूर्ण है, लोगों को सहजयोग और अपनी मुक्ति से अधिक चिन्ता अपने बच्चों की है। कुछ ईसा का क्रूसारोपण यहूदियों ने नहीं किया। यह गलत विचार है। दास सम यहूदी कैसे ईसा को क्रूसारोपित कर सकते थे? रोमन शासकों ने उन्हें मारा। उन्होंने सोचा कि इंसा बहुत शक्तिशाली होते जा रहे हैं। दोष यहूदियों पर लगा दिया। शासक ऐसे कार्य कर सकते हैं। प्रारम्भिक इसाई अधिकतर यहूदी थे। ईसा स्वयं यहृदी थे। पर यहूदियों पर दोष लगाया और यह विचार पॉल का था क्योंकि वह रोमन साम्राज्य को हैं। अन्याय किए। इसी कारण हम सत्य-पथ से भटक गए वास्तविकता में जो ईमानदार हैं और सत्यपथ पर चलना चाहते हैं उन्हें हर क्षण अन्तर्दर्शन करके जानना है कि हम सत्य से कितने हैं। एक अन्य प्रकार के सहजयोगी वे हैं जो उत्सव मनाने वालों जैसे हैं। वे एकत्र होंगे क्योंकि उनमें किसी इसका दोषी न ठहराना चाहता था। फिर सारे इसाई हजारों वर्ष चीज से, समूह से संबंधित होने का भाव होता है। फिर आप सभी प्रकार के बंधनों तथा नियमों में बंधे अपने को धोखा देने प्रकार पूरी श्वेत कौम को न केवल एक व्यक्ति को बल्कि लगते हैं आपको बहुत खुशी होती है। कुछ धर्मों के लोग सिर या दाढ़ी या मूँछ मुंडे होते हैं। वे नहीं जानते कि वास्तविकृता चाहिए। क्या हम उनकी संतानों को इसके लिए दोषी ठहरायेंगे? वैचित्र्य से पूर्ण है वैचित्र्य होना ही चाहिए। वैचित्र्य ही सौन्दर्य का कारण है। बिना वैचित्र्य के आपका व्यक्तित्व कैसे प्रभावशाली हो सकता है? इन मूर्खतापूर्ण विचारों से आप कैसे बंध सकते हैं? वैचित्र्य ही आपको आन्तरिक तथा बाह्य व्यक्तित्व प्रदान करता इस व्यक्तित्व का आनन्द जब आप लेने लगते हैं तभी आप सहजयोगी हैं। आप ऐसे व्यक्तित्व होने चाहिए जो स्वयं को देखता है। यरन्तु इसके विपरीत हम व्यक्तित्व की अपनी धारणाओं के दास बन अपने अहं के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का प्रक्षेपण ( प्रदर्शन) कर स्वयं को अत्यन्त विशेष दूर पूर्व किसी के अपराध के लिए यहूदियों से घृणा करते रहे। इस लाखों लोगों को क्रूसारोपित करने के लिए घृणा का पात्र होना कुछ सहजयोगी भी सदा किसी न किसी पर दोष लगाते रहते हैं। ऐसे लोग कभी नहीं सुधर सकते। उन्हें अन्तर्दर्शन करना चाहिए। रूस के सिवाय पश्चिमी देशों में अन्तर्दर्शन का अभाव है। आप जब अपने अपराध किसी गुंगे-बहरे पादरी के सामने कबूल करते हैं तो आप समझते हैं कि आपको बचा लिया गया है। हमें अपना सामना करना है। हम अन्तर्दर्शन करते हैं या नहीं? एक अन्य प्रकार के सहजयोगी वे हैं जो घर पर माताजी को पूजा करते हैं पर वे सामूहिकता में नहीं आ सकते है। चैतन्य लहरी 17 शक्तियों को अधिकाधिक खोजा जा सकता हैं। उन्हें स्वयं पर विश्वास है। उन्हें सहजयोग पर विश्वास है। मुझ पर और परम-चैतन्य पर विश्वास है। बहुत ही सादे लोग हैं और सहजयोग को कार्यान्वित कर रहे हैं । दरशनि का प्रयत्न करते हैं। ड सहजयोग इसके बिल्कुल विपरीत है। हम सब एक व्यक्तित्व है। हम सब सन्त हैं और सन्तों के रूप में ही हमारा सम्मान होना चाहिए। हम सबका एक ही जैसा व्यक्तित्व होना आवश्यक नहीं। हमारे बातचीत करने का, कार्य करने का ढंग भिन्न-भिन्न होना चाहिए प्रकाश होने के कारण हम पूर्णतया स्वतंत्र हैं। हम जानते हैं कि किस सीमा तक जाना है और ठीक रास्ता कौन सा है। लोग समझ बैठते हैं कि सहजयोग पूर्ण स्वतंत्रता है। आप क्योंकि प्रकाशित हैं इसलिए पूर्णतया स्वतंत्र हैं। सभी अवतरणों द्वारा सिखाए गए धर्म आपके अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं । तभी आप वास्तव में इसाई या मुसलमान बनते हैं और समझ पाते हैं कि सभी धर्म उस सागर का एक अंश मात्र हैं। एक तरह से आप वास्तविक धार्मिक व्यक्तित्व बन जाते हैं। उत्थान ही धर्म का आधार है। एक अन्य प्रकार के भी सहजयोगी हैं जो पूर्णतया शक्तिशाली हैं। वे अपनी शक्ति को खोज निकालते हैं। अन्तर्दर्शन में वे इस शक्ति को देखते हैं तथा इसके विषय में बिश्वस्त हैं। यही निर्विकल्प स्थिति हैं, मुझ में आपका विश्वास है और मुझसे कुछ पाने के लिए आप मेरी पूजा करते हैं। परन्तु समझ लीजिए कि मैंने आपको भी महान बना दिया है । आपको अपनी शक्तियां विकसित करनी हैं। केवल मेंरी शक्तियों पर ही निर्भर नहीं रहना। केवल अपनी माँ की दी हुई शक्तियों का ही उपयोग नहीं करना, स्वयं को भी उसी स्तर तक उठाना हैं। आप प्रयत्न कर सकते हैं। अन्तर्दर्शन द्वारा आप ऐसा कर सकते हैं। ये सभी शक्तियां आपके अन्दर हैं। बिना स्वयं को उत्तरदायी समझे विकसित होकर आपने उत्तरदायित्व लेना है हमं अन्य शिष्यों से आगे बढ़ना है। ऐसा किए विना हम सहजयोग का मूर्खता के अन्य सागर में डुबों भी सकते हैं। अन्तर्दर्शन, तथा वास्तविकता के अन्य प्रमाणीं द्वारा हमें अपने व्यक्तित्व को विकसित करना है। परमात्मा के प्रेम की अभिव्यक्ति। हमारे अन्दर कुछ सहजयोगी अपने प्रकाश के विषय में चिन्तित हैं. वे चाहते हैं कि यह दीप सदा जलता रहे और न केवल उन्हें बल्कि अन्य लोगों को भी प्रकाशित करे। इस लक्ष्य के लिए वे कार्य करते हैं। वे इसका दायित्व लेते हैं। जंगल में बैठे वे ध्यान नहीं करते। आपको कार्य करना है। दूसरों तक सहजयोग पहुंचाना है। परमात्मा के साथ एकाकारित का सुन्दर अनुभव आपने उन्हें देना है। इसका आनन्द भी आपने लेना है अपने प्याले को भर कर बहुत से दूसरे जिज्ञासुओं को देने के लिए ही सहजयोग है। छोटी-छोटी चीजों के लिए वे मेरे पास नहीं आते। पूरे ब्रह्माण्ड को ज्योतिर्मय करने का स्वप्न होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार तथा कुण्डलिनी की जागृति द्वारा यह सर्वव्यापक धर्म लोगों के जीवन में लाया जाना चाहिए। लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए वे जी जान से प्रयत्न करते हैं । सूंझबूझ आज हमारे पुनर्जन्म का दिवस है। उचावस्था प्राप्त करने के लिए हमें इन बारह अवस्थाओं में से गुजरना है। सर्वोच्च अवस्था को चौदहवीं अवस्था कहते हैं जहाँ आप केवल यंत्र मात्र होते हैं और परम-चैतन्य के हाथों खिलौने बन आप यह भी नहीं जानते कि आप क्या है। ईसा ने अपना बलिदान स्वीकार किया क्योंकि उन्हें यह भूमिका निभानी थी सामूहिकता में प्रकट होने वाली घृणा को कम करने का प्रयास कीजिए। ज्योंही यह 'मैं भाव' समाप्त होगा सभी शक्तियाँ आपमें आने लगेंगी। परन्तु थोड़ा सा अहं सूक्ष्म रूप से अभी भी है कि मैं यह कार्य कर रहा हूँ। यह ईसा विरोधी गतिविधि है । अतः मन (मस्तिष्क) की रचना कार्य करने लगती है और लोग परस्पर आलोचना करने लगते हैं। यह खोखली बाँसुरी की तरह है। किसी भी रुकावट की अवस्था में यह बजेगी नहीं। हमारे सभी विचारों और बंधनों में से अहं, कि "मैं यह कार्य कर रहा हूँ", सबसे बुरा है। इसका समाप्त होना आवश्यक है क्योंकि इस तरह कुछ सहजयोगी ऐसे भी हैं जिन्हें अहसास है कि परम-चैतन्य ही उनके माध्यम से सभी कुछ कर रहा है। वे यंत्र मात्र हैं। कभी यदि वे असफल हो जाए तो उनमें संदेह उत्पन्न हो जाता है और परम-चैतन्य के प्रति समर्पित होने पर भी यह संदेह उनमें बना रहता है। कुछ अन्य लोग किसी चीज पर शक नहीं करते। वे जानते हैं कि परम-चेतन्य हा सहायता कर रहा है। वे समझ जाते हैं कि हमें शक्तियां प्राप्त हो गयी हैं और हम परमात्मा से जुड़ गए हैं। हममें शक्तियां हैं। कभी-कभी उन्हें भी संदेह हो जाता है। अहं बढ़ने के डर से कुछ लोग कोई कार्य नहीं करते। अपने अहं से वे भयभीत हैं तब अहं सूक्ष्म रूप से उनका पीछा करता है। पर कुछ जानते हैं कि शक्तियों का वरदान उन्हें प्राप्त हुआ है और अपने अन्दर ही इन सोचते हुए हम कभी आनन्द नहीं ले सकते । जब तक आप स्वयं को कर्ता समझते रहेंगे आप आनन्द के सागर में छलांग नहीं लगा सकते। अत: हमारे अन्त:स्थित इन चौदह अवस्थाओं के माध्यम से अपने पुनर्जन्म के विषय में हम बात कर रहे हैं। इन स्तरों को पार कर अचानक हम सुन्दर कमलों की तरह खिल उठते हैं। ईस्टर पर अंडे भेंट करना इस बात का प्रतीक है कि ये अंडे पक्षी बन सकते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चतन्य लहरी 18 ---------------------- 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी र िम ( 1992 ) अंक 5 व 6 खण्ड IV |म विषय सूची ... पृष्ठ 1. महा सरस्वती पूजा, ...2 ****** 2. शिवरात्रि पूजा 3. सहस्रार पूजा ७ पत ड 4. श्री माताजी का जन्मोत्सव ... 13 5. ईस्टर पूजा....... ***. 16 ..*** ************ क ुर जब आपका विश्वास पूर्णतया स्थिर हो जाता है कि सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं और मैं उनका दूत हूँ, और जब आपमें यह विश्वास दृढ़ हो जाता है तब आप गुरुपद पर आरूढ़ हो जाते हैं।' प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt महा सरस्वती पूजा कलकत्ता 3.2.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण इस कलियुग में माँ को पहचानना अति कठिन कार्य है। हम अपनी माँ को भी नहीं पहचान सकते, मुझे पहचानना तो बहुत कठिन है। परन्तु इस योग भूमि का आशीर्वाद आप में कार्य कर रहा है। मैंने देखा है कि इस क्षेत्र के सभी सहजयोगी अति गहन हो जाते हैं। परन्तु मैं हैरान हूँ कि जहाँ मैंने इतने वर्ष लगाए और इतना कार्य किया, वहाँ लोग इतने गहन नहीं हैं। उनकी सामूहिकता यहाँ की तरह सुन्दर नहीं है। इस भूमि की विशेषता यह हैं कि यहाँ सामूहिकता तथा प्रेम पूर्णतया निस्वार्थ है। मैं ये सब देख कर अति प्रसन्न हूँ और कामना करती हूँ कि में हमने उन्नति की है। पर इससे आगे भी एक अवस्था है जिसके विषय में हम सोंचते ही नहीं, और इसी कारण यह असन्तुलन हैं कि कला-साहित्य आदि बहुत है फिर भी लोग कहते हैं कि सरस्वती और लक्ष्मी का संगम नहीं है। गहनता में जाने पर हम है। आप देखते इस असन्तुलन का कारण जानना चाहते हैं। सहजयोग में सरस्वती और लक्ष्मी आज्ञा चक्र पर मिलती हैं। आप कार्य करते रहते हैं पर आपको इच्छा के अनुसार फल नहीं मिलता। आज्ञा पर आकर आप जाने पाते हैं कि आपको वह अवस्था क्यों नहीं प्राप्त हुई जो बहुत से कलाकारों को प्राप्त हुई। हम गरीबौ में क्यों रह रहे हैं? दोनों तत्वों को उचित दृष्टि से देखें बिना हम उन्नति नहीं कर सकते। कला (सरस्वती) को लक्ष्मी से जोडने के लिए हममें शुद्ध दृष्टि होनी चाहिए। जिद्दीपना हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इन्होंने यदि एक हाथी बनाया है तो हाथी ही बनाते चले जायेंगे। किसी एक विशेष तरह से यदि वे गाते हैं तो वैसे ही गाते चले जायेंगे । इसमें परिवर्तन करने के लिए कहें तो वे नाराज़ हो जायेंगे| आज्ञा चक्र पर यदि आप विचार करें तो आपको पता चलेगा कि जिद्दीपना आपको आज्ञा से ऊपर नहीं जाने देता। "हम बंगाली हैं। हम महान कलाकार तथा बुद्धिमान हैं"। हममें जिद्दीपना है कि हम बंगाली महान लोग हैं मैं नहीं कहती कि आप कला को बिगाड़ें। पर आप सन्तुलित ढंग से तो कला को दखिए। मैं आपको व्यवहारिकता की बात बताती हूँ कि हमें एक प्रकार का आलस्य हे जो हमें जिद्दी बनाता है। कोई नई बात सीखने में हमारे मस्तिष्क थोड़े से शिथिल हैं। इसी शिथिलता के कारण हम कुछ भी ऐसा नहीं सीख पाते हैं जिससे हम लक्ष्मी से जुड़ सकें। जैसे मैंने जब कुछ दस्तकारों से पसों की बनावट में कुछ परिवर्तन करने को कहा तो उन्होंने कहा कि ऐसा करना सम्भव नहीं। हम इन्हें ऐसा ही बनायेगे आपकी इच्छा के अनुसार हम नहीं बना सकते। "आप कोई सलाह नहीं दें सकते"। अत: सूझबूझ होनी चाहिए तभी मस्तिष्क खुलेगा जिद्दीपने का कुप्रभाव व्यक्ति के पूरे जीवन पर पड़ता है। सहज में आने पर परिवरतन आता है। तब सहज ही में हम लक्ष्मी से जुड़ जाते हैं। आज्ञा चक्र को ठीक करने आप सब उन्नति करें। यहाँ महा सरस्वती की पूजा होना अति आवश्यक है । देवी के आशीर्वाद से यहाँ सब कुछ हरा भरा है। यहाँ पर गरीबी और दु:ख का कारण यह है कि यहाँ सरस्वती की पूजा बहुत सीमित रूप से हुई। यहाँ सरस्वती की केवल कलात्मकता को पूजा बढ़ाने तथा विद्वान बनने के लिए की जाती है। निःसन्देह विद्वता और कला के क्षेत्र में यहाँ उन्नति हुई। यहाँ कंे लोग अति बुद्धिमान तथा स्वाभिमानी हैं। परन्तु फिर भी यहाँ गरीबी क्यों है? अपने से अधिक वैभवशाली व्यक्ति के प्रति यहाँ ईर्ष्या क्यों हैं? व्यक्ति को समझना है कि हममें कहाँ कमी है हमे सरस्वती का कार्यक्षेत्र शरीर का दायां भाग है। स्वाधिष्ठान पर कार्य करके जब ये बायों ओर को जाती है तो कला-विवेक बढ़ता है कला के क्षेत्र में बंगाल बहुत प्रसिद्ध है। संगोत, ड्रामा, मूर्तिकला और साहित्य क्षेत्र में इन क्षेत्रों में यहाँ बहुत प्रसिद्ध लोग हैं। कला परमात्मा की ज्योति है। आप इसे न देख सकें पर इसमें चैतन्य लहरियां हैं। सुन्दरतापूर्वक रचित तथा विश्व भर में मान्य सभी कुछ सौन्दर्य की दृष्टि से उत्तम है। यदि आप अपने हाथ इसकी ओर फैलायें तो आपको इसमें से लहरियां निकलती हुई महसूस हांगी, विशेषकर यदि इस कला की रचना किसी साक्षात्कारी व्यक्ति ने की हो। यहाँ के लोग अति श्रद्धालु हैं और कलाकृतियां अंति सुगमता से सबकी समझ में आ जाती हैं। बंगाल के लोग अति कुशल हैं परन्तु हमने स्वाधिष्ठान का एक ही भाग विकसित किया है, दूसरे भाग को हमने अनदेखा कर दिया है। स्वाधिष्ठान का उपयोग हेम केवल पढ़ने-लिखने के क्षेत्र में ही करते हैं और इस क्षेत्र नात है चैतन्य लहरी 2 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt रा के लिए आवश्यक है कि हम अपने अहं को ठीक करें। इसका मुझे क्या लाभ है? में तो जो हूँ वो हूँ। मेरे प्रति श्रद्धा से आप ही को लाभ हीता है। आप सहजयोग में आए और सरस्वती तत्व से महासरस्वती तत्व को प्राप्त किया। मुझ में हिन्दु, मुसलमान, इसाई या ब्रह्म-समाजी होने की भावना आधारहीन है। मानव मात्र के अतिरिक्त आप कुछ भी नहीं। आपने अपने पर लेबल लगा लिए हैं। न आप बंगाली हैं न विश्वास करने मात्र से ही आपको सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। आपको स्वयं में विश्वास करना होगा तथा अपना उत्थान करना होगा। मराठी। आप केवल मनुष्य हैं। लेबल लगाकर आप अपनी समस्याएं बढ़ाते हैं। ये लेबल इतने आवश्यक बन जाते हैं कि इनसे परे आप कुछ देख नहीं पाते। इस बन्धन से छुटकारा पाए बिना आप अन्धकार से नहीं निकल सकते। पश्चिम में भी यह समस्या है । आप यदि उन्हें कह दें कि यह वात अच्छी है वे बिना सोचे समझे इसका अनुसरण करने लगते हैं । आलोचक वहाँ पर हर तरह की कला की आलोचना करते हैं। एक आलोचक दूसरे आलोचक की आलोचना करता है। कला का अब आप सहजयोग विज्ञान को समझ गए हैं। आपका दीप जला दिया गया है। इस दीप से आपने हजारों अन्य दीप जलाने तो है। हैं। मुझे प्रेम करना अच्छा है पर इससे आगे भी बहुत कुछ आनन्द से आगे एक ओर अवस्था है - निरानन्द। निरानन्द की वह अवस्था आपकी माँ को तब मिल पाएगी जब वह देख लेंगी कि उनके बच्चे उनसे भी आगे निकल गए हैं पर इन छोटी-छोटी चीजों का मोह हमें त्यागना होगा। महाराष्ट्र के लोगों में व्यर्थ की चीजों से मोह बहुत अधिक है। हो सकता है कि यह पूर्व जन्म के पापों के कारण हो। सुकृत्यों के फल से तो तुरन्त हृदय खुलता है और एक फूल की तरह सुगन्ध बिखेरने लगता है। हैं। सृजन रुक गया है। लोगों में अहंकार बढ़ रहा है। सत्य-सार यह है कि हम सब एक हैं, एक विराट, एक पूर्णता। इसके विपरीत जाने से आप अकेले पड़ जाते हैं तथा सामूहिकता से अलग हो जाते हैं। यह ठीक है कि पेड़ का एक पत्ता दूसरे पत्ते जैसा नहीं होता फिर भी वे होते तो एक ही पेड पर हैं। वे सभी एक विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। जब हम एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो हमारा सरस्वती तत्व महा सरस्वती तत्व नहीं बन पाता। महासरस्वती तत्व में जब आप महासरस्वती में व्यक्ति समर्थ और चुस्त होता है। महाकाली में आप इच्छा करते हैं तथा आत्मसात करते हैं। इन इच्छाओं को कार्यान्वित करना महासरस्वती का कार्य है। कुछ लोग चाहते हैं कि सहजयोग फैले। पर इस दिशा में आपने क्या कार्य किया? आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने लोगों से सहजयोग की बात की? एक अखबार वाले ने मुझे बताया कि शान्ति और मर्यादापूर्वक पौस्टर लगाते हुए सहजयोगी लड़के-लड़कियों से वह बहुत प्रभावित हुआ। अपनी इच्छाओं को कार्यन्वित कीजिए। कार्य शुरु होते ही इच्छाएं समाप्त हो जायेंगी। जो यूरा हो सके ऐसी इच्छाएं आपको करनी चाहिए क्योंकि असम्भव इच्छाएं करना भयंकर है। का रहने लगते हैं तो आप देख सकते हैं कि आप विराट हैं। ऐसी स्थिति में जब कलाकार कोई सृजन करता है तो लोग इसे हृदय से स्वीकार करते हैं। कला का जो भी कार्य हम करते हैं वह परमात्मा को समर्पित होना चाहिए। इस भाव से की गई सभी रचनाएं शाश्वत होंगी। परमात्मा को समर्पित सभी कविताएं, संगीत और कला कृतियां आज भी जीवित हैं। आज का फिल्म संगीत आता है और समाप्त हो जाता है परन्तु कबीर और ज्ञानेश्वर जी के भजन शाश्वत हैं। अपने आत्मसाक्षात्कार द्वारा उन्होंने महासरस्वती शक्ति से प्राप्त किया और फिर जो भी रचना उन्होंने की वह बेजोड़ थी। इन रचनाओं ने विश्व को एक सूत्र में बांधा। तो व्यक्ति को सरस्वती तत्व से महासरस्वती तत्व की ओर जाना चाहिए क्योंकि सरस्वती तत्व यदि बीज है तो महासरस्वती तत्व पेड़ है। बिना इस बीज को वृक्ष बनाए आप महालक्ष्मी से नहीं जुड़ सकते। आत्मसाक्षात्कार को प्राप्ति भी महालक्ष्मी का वरदान है। महासरस्वती, महाकाली तथा महालक्ष्मी तीनों शक्तियां आज्ञा पर मिलती हैं। वहाँ पर सूक्ष्म रूप में अहं भी है। अत: व्यक्ति को अन्तर्दर्शन कर देखना चाहिए कि सीमित स्तर पर रहते हुए मैं कैसे पूरे विश्व को प्रकाशित कर सकता हूँ। मैंने बहुत बार कहा है कि अपने अन्दर झांकिए। यहाँ पर बहुत से लोग धनी हैं और बहुत से गरीब, धनी लोगों की भी बहुत सी समस्याएं हैं। वे बताते हैं कि मजदूरों के कारण उनकी फैक्ट्रियां बन्द पड़ी हैं। परन्तु धनी लोगों को याद रखना चाहिए कि मजदूर उनके अंग-प्रत्यंग हैं। उनके बिना आप कुछ नहीं कर सकते। आप तो हाथ भी हिलाना नहीं जानते, बस कर्सी पर बैठे रहते हैं। मजदूरों के लिए आपने क्या किया? पैसे से तो सभी कार्य नहीं हो सकते। वे झंडा उठाते हैं और आप उनका वेतन बढा देते हैं। और यह संब चलता रहता है। आपने उनके हित के लिए कुछ किया? सबसे पहले उनकी संस्कृति को सीखिए। मजदूर बहुत बड़े दिल के होते हैं। पर यदि आप घमण्ड से उनसे बात करेंगे तो वे सबसे बड़े शत्रु भी बन सकते हैं। उनके साथ रहिए, उन्हें मिलिए, उन्हें जानिए। मैं बहुत से लोग देवी की तरह मुझे पूजते हैं। पर चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt इसे प्रकाशित उद्यम कहती हूैँ। उनके घर जाकर उनकी समस्याएं पूछिए। उनके लिए आप इतना सा कीजिए और वे जीवन भर के आपके सेवक होंगे। हर बात पर पैसा देना आवश्यक नहीं। यदि आप पैसे देंगे तो या तो वे दारू की दुकान पर पहुंचंगे या बुरी औरतों के पास। अपना अंग-प्रत्यंग मानकर उनके दिलों को समझिए। तब आपकी मजदूर संबंधी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी। मेरे पास आ जाइए। आप जितना अपनी शक्तियों का उपयोग करेंगे उतनी ही अधिक वे बढ़ेंगी। स्वयं पर विश्वास रखिए। जब माँ ने कहा है तो अवश्य ही हममें वे शक्तियां होंगी। हमें चहिए कि इन शक्तियों को बढ़ायें। अब सहजयोग में गहनता तो आ गई है यर इसे इतना अधिक बांटा नहीं जा रहा। अब आपको सहजयोग देना है। जब आप इस कार्य में लग जायेंगे और महासरस्वती तत्व जागृत हो जाएगा तो इस देश की उन्नति देख आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। परन्तु पूरे भारतवर्ष में यहाँ लोग सरस्वती तक ही सीमित हैं, महासरस्वती तक नहीं। आप सहजयोगी हैं। सभी कुछ स्वत: ही ठीक हो जाएगा। परन्तु आपको सहजयोग की राह पर चलना होगा। अपनी संकीर्णता को छोड़कर आपको विशाल होना होगा। अन्दर से उन्नत हुए बिना आप बाहर से विस्तृत नहीं हो सकते। आलस्य का यह रोग है। सहजयोगी किसी कार्य को न कर पा सकने के लिए बहुत बहाने करते हैं। उदाहरणतया "मुझे लोगों से या परिवार से डर लगता है" आदि। कायरों के लिए सहजयोग नहीं है। यहाँ पर इतनी काली विद्या और तांत्रिकों का प्रकोप है मैं इसे साफ करती रही हूं। काली विद्या को दूर करने के लिए आपको विशेष ध्यान देना होगा और इसके लिए कार्य करना होगा। सहजयोग में ध्यान-धारणा अति आवश्यक है। प्रात: पांच बजे पांच मिनट ध्यान कीजिए और रात को दस मिनट। इतने से ही आप शुद्ध हो जायेंगे और आपको आशीर्वाद मिल जायेंगे। हर समय आपको रास्ता दिखाया जा रहा है। आनन्द यह पूजा पूरे भारत के लिए है क्योंकि आलस्य का रोग पूरे देश में है। हम बिल्कुल भी चुस्त नहीं हैं। हमारी इच्छाएं तो बहुत दृढ़ हैं पर उनकी पूर्ति के लिए हम कुछ भी नहीं करते। एकत्रित होकर सोचिए कि सहजयोग फैलाने के लिए आप क्या कर सकते हैं। हमने बहुत कार्यो के लिए जमीन लेते हुए आप विकसित हो रहे हैं। लोग अब भी सोचते हैं कि माँ से प्रेम करना, उनकी सेवा करना और प्रार्थना करना ही काफी हैं। अच्छी बात है। आपका हित भी होता है। माँ के प्रेम में, हो सकता है, आप बहुत गहरे रखरीदी है पर वह पड़ी सड़ रही है। जब तक में भारत नहीं आती ये लोग एक छोटी सड़क या एक झापड़ी तक भी नहीं बना सकते । मेरी समझ में नहीं आता कि इतने लोगों के होते हुए भी कोई कार्य नहीं होता। मेरे जाते ही आप सब अलग-अलग हो जाते हैं तथा मनमानी करते हैं । केवल दो-तीन लोग ही कार्य करते हैं । सहजयोग सामूहिक कार्र्य है, दो या तीन व्यक्तियों का कार्य नहीं। व्यक्ति को समझना चाहिए कि हर सहजयोगी सहजयोग का एक हिस्सा है। एक अंगुली पर जब चोट लगती है तो पूरे शरीर को दर्द महसूस होता सहज में सभी कुछ स्वचालित है। पर यह संकीर्णता तथा अज्ञानता कि उतर गए हों। पर ऐसे गहरे घड़े का क्या फायदा जिससे कोई पानी न ले सके। आज्ञा पर यदि आप सोचें कि मैं क्या कार्य करू तो कोई लाभ नहीं। निर्विचारिता की अवस्था में आपको अन्दर से प्रेरणा प्राप्त होगी। यहाँ पर बहुत गहन लोग हैं, पर अब हमें वह गहनता दुसरों के साथ बांटनी होगी। तालाब में कमल खिलने पर तालाब के कीड़े उन पर गर्व करते हैं। पर इसका उन्हें क्या लाभ। आप भी यदि उन कीड़ों की तरह हैं तो बेकार हैं। है। वेदों में लिखा है कि यदि आपको ज्ञान नहीं है तो वेदों का क्या लाभ उन्होंने पंचमहाभूतों को जगाने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप हमारे देश में विज्ञान आया। वैज्ञानिक खोज जो"में कुछ विशेष हूँ" आपको कुछ न करने देगी। यहाँ की गई वह आज की खोज से उत्तम है। सहजयोग में भी आप पंचमहाभूतों को वश में कर सकते हैं। पर आप लोग अब भी कहते हैं "श्री माताजी मेरी माँ या भाई या परिवार बीमार बैठ कर मेरा कार्य करना पड़ सकता है। ऐसा होने पर ही है"। आप एक सहजयोगी हैं। आप चाहते हैं कि माँ सब कुछ करें। आप क्यों नहीं कर सकते? दूसरों को देने का प्रयत्न कीजिए। मैं बार-बार कहती हैँ कि आप स्वयं कुछ कीजिए। को फैलाने का कार्य करें। मैं तो ठीक करूंगी ही, पर आप मेरे से ज्यादा अच्छी तरह ठोक कर सकते हैं। अगर आप उन्हें ठीक नहीं कर सकते तो आपने इतनी गहनता प्राप्त की है और बहुत कुछ पा लिया है। अब आप दूसरे लोंगों को दें। कल आपको मेरे स्थान पर सहजयोग उन्नति करेगा। आज आप सबको मेरा आशीर्वाद है कि इस पूजा के बाद बहुत से लोग आगे बढे तथा सहजयोग आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरो 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt शिवरात्रि पूजा नया दुर्ग, आस्ट्रेलिया परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) 1.3,92 सर्वशक्तिमान परमात्मा, सदाशिव, आत्मा के रूप में आपके को देखकर उन्हें बहुत आशा हुई होगी अद्वितीय अद्भुत हृदय में स्थापित हैं। हमें समझना है कि भिन्न-भिन्न समय पर, भिन्न-भिन्न देशों में बहुत से लोग पृथ्वी पर आते हैं। उन्होंने लोगों से धर्म, धर्मपरायणता तथा उत्थान के विषय में बातें की। सभी ने कहा कि आपको परमात्मा में विश्वास करना है। आपको आत्मा बनना है। वे जानते थे कि आत्मा के प्रकाश से चित्त प्रकाशित हुए विना आप आध्यात्मिकता को नहीं समझ पायेंगे। आपके अन्दर आत्मा है जो सदा साक्षी अवस्था में है। सहजयोगी कभी-कभी समझ नहीं पाते कि उनमें आत्मसम्मान सभी धर्म क्यों असफल हो गए हैं? क्योंकि आत्मसाक्षात्कार पाकर वे आत्मा नहीं बनें। अत: आप में और अन्य लोगों में जीवन काल में आपकी क्या भूमिका है। मूर्खता की माया में बहुत बड़ा अन्तर है। वे ढकोसले हैं। वे इसे वौद्धिक बना देते फंसे अन्य लोगों को देखने पर ही यह अवस्था सम्भव है। अब हैं। बड़ी अच्छी तरह वे इसका वर्णन कर सकते हैं पर आप स्पष्ट देख सकते हैं कि उन्होंने आध्यात्मिकता को आत्मसात नहीं किया। बिना आत्मसाक्षात्कार के ऐसा कर पाना असम्भव है। बुद्ध और महावीर ने कभी परमात्मा की बात ही नहीं की। उन्होंने केवल आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने को कहा। अधिकतर धर्म ग्रन्थ आध्यात्मिकता की, लक्ष्य की और धर्म के सर्व सगम है। बेईमान बनने की अपेक्षा ईमानदार होना आसान ध्येय की बात करते हैं। यह सभी कुछ बहुत ही अच्छा लिखा है। जो विशेषता आप में है यह सभी सन्तों, पैगम्बरों और और कहा गया है। बे यह भी बताते हैं कि आपको क्या होना है तथा अच्छा-बुरा क्या है। पहली कदम, जहां धर्म की लोगों ने असंख्य भाषण दिए। उनके विचार में इस प्रकार की स्थापना करनी है, वहाँ परस्पर धोखा नहीं देना। न्याय सामूहिकता, प्रेम और सूझ-बूझ होना आवश्यक है। अन्य जाति और कौम के साथ ईष्या नहीं बताते। वास्तव में एक भिन्न सभ्यता की रचना होनी चाहिए। देवदतों सम लोगों की रचना की गई हैं। अपनी दैवी नींवों पर टिक रहता हो कवल एक समस्या है। कभी-कभी असफल हो जाते हैं या भटक जाते हैं। परन्तु अपनी चेतना में आप उठते हैं और आप उपलब्ध नए आयाम खजते हैं। कुछ चुने हुए लोगों में से आपके होने के कारण यह सम्भव है। आपके लिए यह जानना भी आवश्यक है कि आप अति विशेष व्यक्ति हैं। नहीं है। आपमें यह जानने का विवेक होना चाहिए कि इस आप एक विशेष जाति के हैं। आप सभी धर्मतत्वों को ग्रहण कर सकते हैं। स्वतः हो इसके लिए न तो आपको परिश्रम करना पड़ता है और न तपस्या। बड़े हो सहज में आप इसे कर सकत हैं। बिना कठिनाई के आप ये सारे गुण पा सकते हैं । धर्मपरायण होना अवतरणां का स्वप्न रही है। ऐसा करो, ऐसा मत करो, इस पर शिक्षा से लोग ठीक हो जायेंगे। परन्तु इससे उनके अहंकार को बढ़ावा मिलता है क्योंकि दौ गई शिक्षा सहज न होकर अहंकार के माध्यम से होती है। बाहर से यह आप पर थोपी गई होती है। परन्तु सहजयोगियों के लिए यह अति सुगम है। मैं कुछ लोगों को जानती हूँ जो नशे के आदी थे, लोगों को सतात थे, उन्हें पीटते थे। एक आदमी सद अपने साथ रिवाल्वर रखता था। अब वह अति शांत और सुन्दर व्यक्ति बन गया है। तो अब आप हो वे विशेष व्यक्ति हैं। बिना आत्मसाक्षात्कार लिए लोग धर्म तक नहीं पहुंच सकते। कमाल की बात है कि सहजयोगियों ने आत्मा की वह अवस्था पा ली है। बिना किसी कठिनाई के आप धर्म को आत्मसात कर सकते हैं। हत्या या हिंसा आप नहीं कर सकते। आप सत्य पर अडिग रहेंगे सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आपका तारतम्य परमात्मा से ही गया है और आपको परमात्मा का ज्ञान है आपके अन्दर परमात्मा के प्रति सम्मान है भय नहीं। धन के लिए आप सहजयोग को धोखा नहीं दे सकते, सत्ता और भौतिक उपलब्धियों के लिए आप लड़ नहीं सकते। आत्मा के प्रकाश में अपनी चेतना के विस्तार के लिए ही आपका पूरा चित्त होगा। यह आपकी माँ (श्री माताजी) का स्वप्न क्योंकि शिव केवल साक्षी हैं परन्तु सहजयोग में रचे गए लोगों दूसरी बात जा आप लोगों के लिए दूसरों के प्रति प्रेम करना तथा उनका ध्यान करना। ऐसा करेना आपको अच्छा लगेगा। सहजयोगियों का ध्यान करना आपको रूचिकर होगा। यदि किसी दु:खी व्यक्ति को, जो सहजयोगी भी नहीं है, आप दंखेंगे तो उसकी सहायता करने का तुरन्त प्रयत्न करंगे। एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि बह सहजयोग में अति सुगम है वह है चैंतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt टेलीविजन भेजा। अवश्य ही श्री कृष्ण की आत्मा उनकी दायीं आज्ञा की सहायता का प्रयत्न कर रही होगी। कुछ करना चाहेगा पर उसके पास धन नहीं है। मैंने उसे कहा कि कल आ जाओ, धन में दे दूंगी। अगले दिन वह नहीं लौटा। पूछने पर उसने कहा कि एक अन्य व्यक्ति उसके साथ बैठा था उसने पैसा दे दिया। सहजयोग में यदि किसी के पास धन की कमी हो तो तुरन्त हम उसकी सहायता को दौडते हैं। रोमानिया, बल्गेरिया, रूस, पोलैंड, चैकोस्लोवाकिया और हंगरी की किसी न किसी अन्य देश ने सहायता की। पूरी एशिया के देशों की भी आस्ट्रेलिया ने सहायता की। मैंने उन्हें कुछ भी करने को नहीं कहा। उन्होंने उनके टिकट बनवाए और भारत ले आए। उन्होंने रूसी लोगों की देखभाल की बिना किसी कर्त्ता भाव के। वे करुणा तथा प्रेम से परिपूर्ण थे किसी ने नहीं पूछा कि कितना खर्च हुआ और हमें कितना देना था। मैं हंगरी में पहुंची तो 125 रोमानियन लोगों को वहाँ पाया। आनन्द से केवल यूरोप में ही सहजयोगी ऐसा नहीं कर रहे हैं । वे तकी में भी कर रहे हैं। एक भौतिक वैज्ञानिक जापान गया है। वह जापानी नहीं है। वह लोगों को सहजयोग बताने के लिए किसी प्रकार के प्रदर्शन का प्रयोग कर रहा है। अब तो आपकी सामूहिकता भी कमाल की है। यहाँ तक कि भारतीय भी प्रसन्न हैं कि ब्रिसबेन में आश्रम खरीदा जा रहा है। इसका कारण यह है कि आपका हृदय बहुत विशाल हो गया है क्योंकि वहाँ पर शिव चमक रहे हैं। आत्मा चमक रही है। यह हृदय इतना विशाल हो चुका है कि पूरे ब्रह्माण्ड को अपने में समेट सकता है। आप सभी विश्व व्यापक बन गए हैं। विश्व निर्मल धर्म को आप केवल पढते ही नहीं आप इसका अनुसरण करने का, इसे आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। एक समय था जब आस्ट्रेलिया में जातिवाद का बोलबाला था। वे ईसा के बताए मार्ग के बिल्कुल विपरीत चले। अन्य धर्मों ने भी ऐसा ही किया। वे सभी धर्मान्ध हैं। कारण उनका धर्म ग्रन्थों को अन्धाधुन्ध पढ़ना है। धर्मग्रन्थ यदि उनकी समझ में आते तो बे समझ पाते कि भिन्न नामों से ये ग्रन्थ एक ही वात कह रहे हैं । मेरा हृदय भर गया। चुपचाप उन्होंने एक-दूसरे की सहायता की और अपनी सन्तुष्टि के लिए, दूसरीं पर अहसान जताने के लिए नहीं, उपहार लेकर आए। इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन, इटली, स्विटरजरलैंड से लड़ाके देशों की कल्पना कीजिए जो केवल अपने राज्य कायम करने के लिए, लोगों के धर्म परिवर्तन के लिए तो गए पर कभी किसी की सहायता के लिए नहीं गए। धर्म और परमात्मा के नाम पर उन्होंने सब तरह के अत्याचार किए। परन्तु आप लोग जब किसी दूसरे देश में जाते हैं तो केवल सहायता के लिए जाते हैं। आपके हृदय में स्वत: ही भावना उठती है कि आपको सहायता करनी चाहिए। परन्तु आपको अब एक सर्वव्यापक चीज प्राप्त हो गई है। ऐसा आपकी आत्मा के सही सलामत होने के कारण है और जिसने प्रकाश देना शुरु कर दिया है तथा अब हमारी एक नया जाति है, अपने तथा अन्य लोगों के प्रति अत्यन्त ईमानदार लोगों आपके अन्दर आए इस परविर्तन ने आपके हृदय के की एक सभ्यता। ये लोग अत्यन्त प्रेममय, स्नेहमय, अहिंसावादी सौंदर्य, करुणा तथा प्रेम की अभिव्यक्ति की है और बिना किसी से कुछ आशा किए आप दूसरों को सुरक्षा देना चाहते हैं। इस तम्बू जैसे साधारण स्थान पर, बिना किसी सुख-सुविधा विषय को वे समझते हैं। एक वार प्रकाशित होकर आपकी के रहकर मुझे सुनने में आपको आनन्द आता है। आप केवल आत्मानन्द खोजते हैं और पूरे वातावरण और प्रकृति का आनन्द लेते हैं। मैंने देखा है कि शनै:- शनै: सहजयोगी सर्वसाधारण पर्यावरण के प्रति जागरुक हो जाते हैं। विश्वभर में सहजयोगियों आपके देवत्व की अभिव्यक्ति होती है। आप एक दूसरे का ने प्राकृतिक तथा कलात्मक वस्तुओं का उपयोग शुरु कर दिया है। वे उदार भी हो गए हैं। हम इसे ' हैं जो कि एक अवतरण की निशानी है। मेरे अपने बच्चों में ही यह औदार्य है। दूसरों को बस्तुएं बांटने में उनहें आनन्द आता है विश्वास एक ही है, एक ऐसा विश्वास जो कि प्रकाश्मय है, अपने पास रखने में नहीं। पूरे विश्व में उन्होंने ऐसा किया सहजयोग को फैलाने के लिए, दूसरों की सहायता के लिए, दूसरे स्थान पर एक सर्वव्यापक शक्ति है। इसा, मोहम्मद सब तरह के लोगों को अपने साथ लेने के लिए सहजयोगी साहिब या शिव सभी के लिए हमारी एक ही तरह की पूजा अपना समय तथा धन बलिदान कर रहे हैं। उनमें ऐसा सामूहिक है। हम सभी एक ही प्रकार से पूजा करते हैं। हमारे विचारों में विवेक है। दूसरे लोगों के प्रति इतनी करुणा, इतना प्रेम, कोई अन्तर नहीं जैसे एक चर्च से दस चर्च या दस हिन्दु धर्मों एकाकारिता का भाव है मानो वे उन्हीं के ही अंग-प्रत्यंग हों । हैरानी की बात है कि अमेरिका के लोगों ने रूस के लोगों को तथा पूर्णतया कानून को मानने वाले हैं। साथ ही साथ वे अत्यन्त रचनात्मक तथा विवेकशील हैं सहजयोग-सम सुक्ष्म आत्मा बिना किसी कठिनाई के आपको समझ आ जाती है| आप नहीं जानते कि सहजयोग का विषय कितना कठिन है? यह परमात्मा की इच्छा की ऐसी पूर्ति है कि सामूहिकता में तथा सामूहिकता का आनन्द लेते हैं। व्यक्तिवाद विराट की आत्मा के विपरीत हैं पर हमारी अपनी किस्में हैं। बेशक आप भिन्न देशों, वातावरण तथा परम्परा में रहते हों, पर हमारा औदार्य' कहते अन्धविश्वास नहीं। प्रथम तो आप साक्षात्कारी आत्माएं हैं और का बन जाना। हम सभी सहजयोगी हैं तथा सहज ही में हम चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt सब एक सूत्र में बंधे हैं। अब तो आप आदर्श बन रहे हैं । सहजयोग से बाहर के लोगों के लिए आप आदर्श हो। लोग देखेंगे कि न तो आप शराब पीते हैं, न सिगरेट, न नशा करते हैं फिर भी इसकी कोई शेखी नहीं बघारते। ये लोग किसी से घृणा नहीं करते, अति परिवर्तनशील एवं रचनात्मक हैं। वे अति रचनात्मक तथा आत्मसन्तोषी हैं, ईर्षालु नहीं। न वह प्रकृति को और न अन्य किसी चीज़ के लिए बे समस्याएं खड़ी करते हैं । इतने सुन्दर हो गए हैं वे लोग। कार्य अन्य लोग करते हैं आप (सहजयोगी) उनका आनन्द नहीं ले सकते। जैसे शराबखाने जाना या धूम-धड़ाका संगीत मैं देखती हूँ कि आप सब इतने पवित्र और सुन्दर बन सुनना। गए हैं। आपके चक्र इतने स्वच्छ हैं। कहीं आपके पूर्व पुण्य तो कार्य नहीं कर रहे? फिर भी में कहुंगी आप अपने आत्मसम्मान को पहचानिए कि आप एक सहजयोगी हैं। एक सहजयोगो की गरिमा और विवेक आप में होना ही चाहिए। करुणा, प्रेम और लक्ष्य की एकता होनी ही चाहिए। पूरे विश्व में आपके भाई-बहन हैं। आपकी राखी बहने हैं और अत्यन्त पावन संबंध हैं। हर तरह की अपवित्रता सहज ही आपके अन्दर से बाहर फेंक दी जाती है। जो लोग सहज में जम नहीं सकते उन्हें इससे बाहर फेंक दिया जाता है। हमारे परिवार और बच्चे अति सुन्दर अत: अब आपको समझना है कि आपको सद्व्यवहार, सुभाषा, शानदार जीवन तथा मर्यादाओं का एक नमुना बनना है, पति या पत्नी से झगडूने वाला नमूना नहीं। कवैला के मेयर ने मुझे कहा कि हैरानी की बात है कि ये लोग घंटों बैठ सकते हैं। हैं। ये इतने आकर्षित हैं कि इन्हें थकान नहीं होती। उसने सोचा कि ये लोग विशेष लोग हैं। ये आनन्द लेने के सिवाय कुछ नहीं करते। एक हमारी गुरु पूजा छः घन्टे चली। कबैला के ग्रामीण हैरान थे कि शान्तिपूर्वक ये लोग इतनी देर कैसे बैठ सके। उन्होंने सोचा कि आप लोग देवदूत हैं उन्होंने बताया कि ये लोग हमें सताते नहीं, ये हम पर दया करते हैं तथा हमारा देखभाल करते हैं। वे आनन्द लाने का प्रयत्न करते हैं। पहले- पहले तो वे मुझे राजकुमारी कहा करते थे फिर उन्होंने मुझे देवी कहते हुए मैडोना कहा। जो भी कुछ अच्छा उन्हें सूझा वे कहने लगे। अब वे सहजयोग में आना चाहते हैं। राजकुमार डोरियो की ऊंची कीमतों पर कबैला के पीछे की जो जमीन उन्होंने नहीं दी थी, वही जमीन मुझे बहुत ही कम दामों में दे दी। पूरा गांव परिवर्तित हो रहा है। और आप लोगों का समर्पण भी कमाल का है। जिस प्रकार आप सहजयोग के प्रति समर्पित हैं सहजयोग से बाहर के सभी लोग परिवर्तित हो जायेंगे। मोहम्मद साहब आए और इसकी बात की। उन्होंने कोई कट्टर धर्म नहीं बनाया उनका बनाया गया धर्म तो अति लचीला था। उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्त करों, पर लोगों ने ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ पुस्तक को पढ़ना इसकी व्याख्या करना तथा बुद्धिवादी बनना लगाया। उनके बाद गुरु नानक आए। आप जानते हैं कि सिखों के साथ क्या हुआ और वे किस दिशा में जा रहे हैं। सिख का अर्थ है वह व्यक्ति जिसने दैवी नियम सीख लिए हैं । विना योग को प्राप्त किए आप दैवी नियमों का पालन नहीं कर सकते। परन्तु आप उन नियमों को जानते हैं। ज्योंही आप इनके विपरीत जाते हैं आपको हाथों तथा मध्य नाड़ी तंत्र पर महसूस हो जाता है। हर समय आप अपने को जांचने लगते हैं और क्योंकि कोई कमी आप को अच्छी नहीं लगती आप स्वयं को सुधारने लगते हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन के बहुत से विचार कि आपके पति, पलनि या बच्चे आपको खराब करेंगे, आपमें समाप्त हो जाते हैं। अब आप किसी अच्छे सहजयोगी या यॉगिनी से विवाह करना चाहते हैं। तब विवांह एक आशीर्वाद बन जाता है। इतनी दूर आना या महाराष्ट्र में यात्रा करना एक तपस्या है पर आपको इसमें आनन्द आता है। आप की बसें छूट जाती थी पर आपके लिए साहस मात्र था। यह सारी तपस्या एवं कठिनाई आपके लिए आनन्दमयी बन गई है। जैसे संगीतज्ञों का रूस जाकर खो जाना। इतने प्रेम स्नेह और सेवा की मैंने कभी आशा न की थी जिस प्रकार मेरे प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति आप करते हैं, यह समर्पण और बलिदान, जिस प्रकार अपना समय खर्च कर आप प्रयत्न करतें स्थित इस स्थान पर पूजा के लिए आप लोग आए। इस पूजा से लाभ आपको तभी हो सकता है जब आप आत्मसाक्षात्कारी हों, नहीं तो सब पूजा व्यर्थ हैं। लोग चर्च जाते हैं, कुछ भजन गाकर वापिस आ जाते हैं। उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। चर्च से लौटकर वे शराब खाने में जाते हैं क्योंकि उनके विचार में यही एक स्थान है जहाँ आनन्द की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को कुछ बलिदान करना चाहिए। यद्यपि मैं कहूंगी कि सहजयोग सर्वसुगम है। आपको न तो हिमालय पर जाना पड़ता है और न ही सिर के बल खडा होना पड़ता है। फिर भी आपको अपना समय एवं चित्त तो देना ही होंगा। चित्त इतना पवित्र है कि जो हैं, इसकी मुझे कभी आशा न थी। इतनी दूर इसका पूर्ण वर्णन कमाल का था, एक साहसिक कार्य की तरह। बिना चीजों के बारे सोचे आप अब इन्हें प्राप्त कर रहे हैं। यह आपकी आत्मा तथा शिव का आशीर्वाद है। आत्मा साक्षी है और आपको भी साक्षी अवस्था प्राप्त करनी है। पूरी राजनीति और अर्थशास्त्र आपका हास्यास्प्रद लगता है। आप इसे व्यर्थ की चीज समझते हैं। रूसी सहजयोगियों को राजनीतिक समस्याओं तथा खाने की कमी का कष्ट न = चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt शक्तियां कार्य करती हैं और किस तरह आप स्वयं ही अपने विश्वास में अधिक गहन होते हैं। सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से भी अत्यन्त शक्तिशाली हैं। आप जो भी चाहें पी सकते हैं। मैं इच्छा विहीन हैँ क्योंकि दैवी-शक्ति मेरे लिए सभी कार्य कर रही है। मुझे इच्छा नहीं करनी पड़ती । पर आपको इच्छा करनी पड़ती है। आप को प्रार्थना करनी पड़ती महसूस हुआ। उन्होंने कहा "हमें आध्यात्मिक भोजन प्राप्त हो गया है। इन लोगों को लड़ लेने दो, हमें इसकी कोई चिन्ता नहीं"। उन्हें विद्रोह की कोई चिन्ता न थी। "हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं, हम क्यों इन सांसारिक साम्राज्यों और पदार्थों की चिन्ता करें"। इतना संतोष। यह अति सुन्दर है। आपके इतने भाई बहन हैं। आप ही लोगों ने समझा है कि परमात्मा क्या है और है। आपको मांगना पड़ता है। ज्यों -ज्यों आप विस्तृत होंगे सदाशिव क्या हैं। अब आपका परमात्मा में विश्वास है जो अन्धविश्वास नहीं। आप यह भी जानते हैं कि परमात्मा की पूरे विश्व के हित के लिए, केवल आपके बच्चों के, परिवार शक्तियां तथा कानून कार्य करते हैं। बाकी सब कानून व्यर्थ हैं। के, शहर के लिए सीमित न रह कर इसका क्षेत्र असीम बन अपने जीवनकाल में ही आपने देख लिया है और अनुभव कर लिया है कि कैसे चमत्कार हो रहे हैं और कैसे कार्य हो रहे वहाँ डालकर देखिए कि इसमें क्या कमी है। हम एक छोटे से हैं। आप इच्छा कीजिए और यह पूर्ण हो जाती है। पर अभी भी हम में मध्य दर्ज के तथा अति सुस्त लोग हैं। वे सहजयोग को नहीं समझ सकते और न ही वे समझ सकते हैं कि सहजयोग से वे किस प्रकार लाभान्वित हो सकते हैं आपको उनकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए आपको पूर्ण सामूहिकता के बारे में सोचना चाहिए जो कि बहुत अच्छी है तथा एक दो बेकार लोगों को भूल जाना चाहिए। यदि वे आ जाएं तो ठीक है और यदि न आएं तो हम उन्हें विवश करने नहीं जायेंगे बहुत लोग हमारे पास आयेंगे। सबसे बड़ी उपलब्धि जो आपने पा ली है वह है अपने अन्तस में, अपने हृदय में, मस्तिष्क में, जीवन में दूसरी ओर अति मानवीय। पैगम्बर कभी मानव को नहीं समझ तथा चित्त के अन्दर महानतम एकाकारिता। आपका मस्तिष्क जो सोचता है आपका हृदय स्वीकार करता है और आपका हृदय जो स्वीकार करता है वही आपका मस्तिष्क सोचता है। चक्षुहीन से रंगों की बात करने जैसा हुआ। बिना भक्ति और आपके चित्त या आपके हृदय तथा मस्तिष्क से एकाकार हो गया है । आपके चित्त, हृदय तथा मस्तिष्क में कोई द्वंद नहीं हैं। पड़ी। मुझे मनुष्य, उनकी समस्याएं और उनका समाधान पढ़ना सभी प्रलोभनों पर हावी हो जाने वाली शक्ति तथा आत्मा आपमें है। आप जो चाहे त्याग सकते हैं। आप परस्पर, भिन्न े राज्यों में तथा भिन्न देशों में तारतम्य बनाते हैं। पूरा ब्रह्माण्ड परमात्मा के कानूनों से एक सूत्र में गुंथा है तथा शासित है। यह एकाकारिता आपको मानसिक भावात्मक तथा आध्यात्मिक आपको आशीर्वाद देते हैं। वे पूर्णतया अबोध व्यक्तित्व हैं। सभी रूप से सहजयोग की पूर्ण समझ देती है। आप में बहुत सी शक्तियां भी हैं पर आपमें से कुछ उनका उपयोग नहीं करना चाहते। आपकी प्रार्थना का एक शब्द बाकी लोगों की एक हजार प्रार्थनाओं से कहीं शक्तिशाली है। आप है कि आप सब अपने अन्दर शिव तत्व का सम्मान करंगे। यह अत्यन्त शक्तिशाली हैं और जो भी इच्छा आप करते हैं पूर्ण अति आवश्यक है। अपनी चैतन्य लहरियों का ध्यान कीजिए होती है। आपमें आत्मसाक्षात्कार देने की शक्तियां भी हैं। इतनी शक्तियां होते हुए भी आप रोगमुक्त करने के लिए वहुत से आपके मध्य नाड़ी तंत्र में आत्मा जागृत हो गई है यह लोगों को मेरे पास ले आते हैं। अपनी शक्तयों का उपयोग कोजिए। घबराइए नहीं। आप हैरान हांगे कि किस प्रकार ये आपकी प्रार्थना भी उतनी ही विस्तृत होगी, पूरे क्षेत्र के हित में, जाएगा। अत: विश्व की घटनाओं से सर्चत रहिए। अपना चित्त आश्रम के लिए चिंतित नहीं हैं, हमें पूरे विश्व की चिन्ता है। पता लगाइए कि कमी कहाँ है और हम इच्छा क्या कर सकते हैं, क्योंकि जब हम दैवी शक्ति का उपयोग कर सकते हैं तो स्वयं ही यह कार्य क्यों न कर लें। आपका चित्त कहीं भी जा सकता है। यह निकारगुआ, इज़राइल या सद्दाम हुसैन या किसी अन्य स्थान पर, जहाँ भी आप कार्य करना चाहं, जा सकता है। में आपका विश्वास सहज है क्योंकि में तो भ्रान्ति रूप मुझ हूँ और मुझे समझना आसान नहीं। एक ओर तो में दिव्य हूँ तथा सके। वे न जान सके कि ये लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं, इनसे इतनी महान बातें करने का कोई लाभ नहीं। यह तो किसी ज्ञान के व्यक्ति खोखला है। ये सब बातें मुझे अपने में भरनी पड़ा। अब इसने कार्य किया है। आपके अन्दर की दिव्यता की अभिव्यक्ति होने लगी है तथा इतनी सुन्दर दैवी ज्योतियाँ मंर सामने बैठी हैं। मैं अपने हृदय से, जहाँ शिव का, सदाशिव का निवास है, आपको आशोर्वाद देती हूँ और े (सदाशिव) भी मोह से परे हैं। वही, स्वयं, आपको इतनी प्रशंसा से देख रहे हैं| वह प्रसन्नता से फूले नहीं समा रहे हैं। शिव पूजा यहाँ मनाने का यह महान दिन है। मुझे आशा जो आपके अस्तित्व में धड़क रही हैं, क्योंकि आपके चित्त में, आवश्यक कार्य है जो आपने करना है। बाकी सब सहज है । आप सब को अनन्त आशीर्वाद। चंतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt सहस्रार पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( सारांश ) कबैला, इटली 10 मई 1992 ही सभी कार्य कर रही है। यह सारा चैतन्य और आदिशक्ति परमात्मा की ही इच्छा है। परमात्मा की इच्छा ही वड़े सुव्यस्थित रूप से चला रही है। एक शान्तिमय नाद के साथ पृथ्वी की रचना की गयी हर कार्य परमात्मा की इच्छा से हुआ। अब आप लोग परमात्मा की इच्छा को अपनी अंगुलियों के सिरों पर अनुभव कर रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आपने पूर्ण विज्ञान को खोज निकाला, यह पूर्ण विज्ञान परमात्मा की इच्छा ही है। आप जानते हैं कि सहजयोग द्वारा हमने लोगों को रोगमुक्त किया। आत्मसाक्षात्कार के बाद बहुत सी बातें स्वतः ही बन जाती हैं। पर लोग विश्वास नहीं करना चाहते। प्रारम्भिक वैज्ञानिकों की बताई बातों पर भी वे यकीन नहीं करते थे पर आज हम सहस्रार दिवस मना रहे हैं। शायद आप लोगों ने महसूस नहीं किया है कि यह दिन कैसा था सहस्रार को खोले विना परमात्मा, धर्म और देवत्व की बातें केवल कल्पना मात्र थी लोग परमात्मा में विश्वास करते थे पर यह मात्र विश्वास ही था। और विज्ञान जीवन के मूल्यों तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के प्रमाण को मिटाने हो वाला था। इतिहास में जब जब भी विज्ञान ने स्वयं को स्थापित किया सभी धर्माधिकारियों ने विज्ञान की खोजों का साथ दिया। अगस्टीन ने इसे बाइबल में दर्शाने का प्रयास किया। सभी धर्म ग्रन्थ मूर्खतापूर्ण कल्पना मात्र लगने लगे। कुरान में बहुत सी बातें थी जो आज के शरीर विज्ञान का वर्णन करती थी। वे विश्वास न कर सके कि परमात्मा ने किसी विशेष कारण से मानव की रचना की। आज हर क्षण विज्ञान में परिवर्तन आ रहा है। सिद्धांतों को उन्होंने सोचा कि विकास प्रक्रिया में पशु ही मनुष्य बन गए। चुनौती दी जा रही है। सहजयोग ने मनुष्य के सम्मुख विज्ञान का वह सत्य प्रकट किया है जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती। हम प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा है। सारी सृष्टि की रचना अत्यन्त सुव्यवस्थित रूप से परमात्मा की इच्छा ने की। जब परमात्मा की इच्छा ने ही सभी कुछ किया है त मनुष्यों को परमात्मा द्वारा रचित चीजों को खोज निकालने का श्रेय नहीं लेना चाहिए। उदाहरण के रूप में यह कालीन किसी अन्य बन गया। लोग सोचने लगे कि इन दस धर्मादेशों को मानने से ने बनाया और आपने इसके रंग खोज निकाले तो इसमें कौन या कठोर नियमों को मानने का क्या लाभ है? मनुष्य को पुन्य सी बड़ी बात है क्यांकि ये रंग तो पहले से ही हैं। आप इन्हें नहीं बना सकते। देशाचार भी परमात्मा की इच्छा ने ही बनाया। निरंकुश रूप से संस्थापित धर्म भी धन तथा सत्ता का मार्ग यदि परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण है तो इसे प्रमाणित भी किया जाना चाहिए। सहस्रार खुलने पर अब आपने इसे महसूस सूझा। बाइबल में वर्णित सत्य को बताने की उन्हें कोई चिन्ता किया है। इतनी सहज यह हमें प्राप्त हो गई है कि हम समझते न थी। बाइबल को ही बदल दिया गया। पीटर और पाल ने इसे ही नहीं। हमारे एक बंधन देने से कार्य हो जाता है। यह इससे बिगाड़ने का पूरा प्रयत्न किया। कुरान को अधिक नहीं छेड़ा भी कहीं अधिक है। अब हम उस विशाल कम्प्यूटर के अंग गया परन्तु यह अधिकतर दायीं ओर को हो बताती है और बन गए हैं। परमात्मा की उस इच्छा के हम माध्यम बन गए हैं और पूरे ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली इस शक्ति से जुड़ गए एक नए सूक्ष्म जीवविज्ञान द्वारा हमने खोज निकाला कि हर हैं। अत: हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि पूर्ण विज्ञान कोषाणु का एक टेप होता है। कम्प्यूटर की तरह हर कोषाणु हमारे हाथों में है, यह विज्ञान पूरे विश्व का हित करेगा। हम एक वैज्ञानिक को प्रमाणित करके बता सकते हैं कि परमात्मा होता है। बहुत से कम्प्यूटर की तरह के कोषाणु पहले से की एक शक्ति है जिसने सारी सृष्टि का सृजन किया है। कार्यक्रम में हैं और इस तरह एक अति अनोखी चीज वैज्ञानिकों विकास प्रक्रिया भी परमात्मा की ही इच्छा है। उनकी इच्छा बिना कुछ भी न हो पाता। अब आपने देखा है कि परमात्मा की इस इच्छा को हमने अपनी शक्ति के रूप में पा लिया है। हम इस प्रकार हर समय परमात्मा को चुनंीती दी गयी और बाइबल, कुराने, गीता, उपनिषदों में कही बातों का कोई प्रमाण न था क्योंकि यह केवल विश्वास मात्र ही था। बहुत कम लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ और जब भी उन्होंने इसकी बात की, लोगों को इन पर विश्वास न हुआ लोगों ने सोचा कि वे अपने ही सिद्धांत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तरह यह नि्जीव-विज्ञान क्यों प्राप्त करने चाहिए? मानवीय मूल्यों से लोग भटक गए। अपनाने लगे क्योंकि लोगों को वश में करने का उन्हें यही मार्ग इसमें बहुत सी बातें अस्पष्ट हैं। दो घटनाएं साथ-साथ घटीं। का एक कार्यक्रम होता है। इसी कार्यक्रम के अनुसार विकास के सामने आयी है। वे इसका वर्णन करने में असमर्थ हैं। सहजयोग ने प्रमाणित कर दिया है कि परमात्मा की इच्छा चैतम्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt की इच्छा ने जिसने सब कुछ संचालित किया है. आपके माध्यम से कार्य करना है। अत: आपको अति सशक्त विवेकशील, इसका उपयोग कर सकते हैं। अत: सहजयोग होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है सहजयोग यह कहने मात्र के लिए नहीं कि " श्री माताजी मैं पूर्ण आनन्द मे हूँ, या मैं पवित्र हो गया हूँ, सभी बुद्धिमान और अति प्रभावशाली होना है। जितने अधिक कुछ वढ़िया है"। तो यह किसलिए है? आप को यह सारे आशीर्वाद किसलिए प्राप्त हुए? आपका शुद्धिकरण क्यों किया होगी । अब भी मुझे लगता है कि सहजयोगी यह समझन का गया? ताकि परमात्मा की यह इच्छा शक्ति आप से झलके और दायित्व नहीं ले रहे हैं कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा का आपका अंग-प्रत्यंग बन जाए। हमें अपने स्तर को ऊंचा उठाना होगा। हमें ऊपर उठना हो होगा। साधारण और मध्यमस्तर के लोगों को सहजयोग देने का कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसे लोग किसी काम के नहीं होते। किसी भी प्रकार वे हमारी सहायता नहीं कर सकते, आज उन लोगों की आवश्यकता है जो वास्तव में परमात्मा की इच्छा को प्रकट कर सकें, प्रतिबिम्बित कर सकें। इसके लिए हमें अति सुदृढ़ व्यक्तियों की आवश्यकता है। परमात्मा की इस इच्छा ने पूरे विश्व, पूरे ब्रह्माण्ड की, पृथ्वी माँ की तथा हर चीज की रचना की। अब एक नए आयाम के प्रभावशाली आप होंगे उतनी अधिक शक्ति आपको प्राप्त प्रतिनिधि बनना है, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञ परमात्मा का प्रतिनिधि। आपको समझना है कि सहस्रार खुलने के बाद आपमें वह शक्ति आ गई हैं जिसमें ये तीनों गुण हैं। यह महान शक्ति आपको प्राप्त हो गयी है। इसके लिए हमें बहुत सफल, धनी या विख्यात लोगों की आवश्यकता नहीं। हमें चरित्र, सूझबूझ और दूढ़ता वाले लोगों की आवश्यकता है जो ये कहें कि चाहे कुछ भी हो मैं इसे अपनाऊंगा, इसका साथ दूंगा और इसे सहयोग दुंगा। मैं स्वयं को परिवर्तित करूंगा और सुधारूंगा। मुझे आशा है कि आप सबने भ्रमों से छूटकारा पा लिया है। अपने बारे में भी आपमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। यदि आपमें कोई भ्रम है तो आप सहजयोग छोड़ दें। समझिए कि परमात्मा की इच्छा ने इस कार्य के लिए आपको चुना है, इसी कारण आप यहाँ हैं और आपने इस पूर्ण विज्ञान को समझने का दायित्व लेना है। इसे अपने तथा अन्य लोगों के लिए कार्यान्वित करें। आपने मेरे प्रेम को महसूस किया है आपका प्रेम भी महसूस किया जाना चाहिए क्योंकि प्रेम ही परमात्मा हैं। दूसरे लोगों को अनुभव होना ही चाहिए कि आप करुणामय, प्रेममय तथा सूझबूझ वाले हैं। हर समय यह परमात्मा की इच्छा आपमें से प्रवाहित होती रहती हैं। आपको इसे इस प्रकार से संचालित है सम्मुख हम अनावृत हुए हैं कि परमात्मा की इच्छा के माध्यम हम ही लोग हैं। तो अब हमारा कर्त्तव्य क्या है और इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? सहस्रार खुलने के परिणामतः हमारे भ्रम समाप्त हो गए हैं। सर्व शक्तिमान परमात्मा के अस्तित्व, उसकी इच्छा की शक्ति और सहजयोग के सत्य के विषय में आपको कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। आपको बिल्कुल कोई संदेह नहीं होना चाहिए। परमात्मा की शक्ति का उपयोग करते हुए आपको पता होना चाहिए कि इसे संचालन करने की आपकी योग्यता के कारण ही यह शक्ति आपको दी गई है। सोची जा सकने वाली शक्तियों में यह सर्वाच्च है। किसी गवर्नर या मंत्री को लीजिए, उन्हें कल पद से हटाया जा सकता है। वे भ्रष्ट हो सकते हैं, हो सकता है उन्हें अपनी शक्तियों का कोई ज्ञान न हो। बहुत से लोगों को अपने कार्य का पता तक नहीं होता फिर भी वे लोगों द्वारा चुने जाते हैं। सहजयोग लोगों का धर्म परिवर्तन मात्र नहीं। यह व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन मात्र भी नहीं। यह तो कि लोग समझ जायें कि आप संत हैं और यह शक्ति आपमें से प्रवाहित हो रही है। करना दूसरी बात जो हुई है वह यह है कि आपने एकीकरण को समझ लिया है, कि पूरे विश्व में एकीकरण का ही अस्तित्व है। बच्चों में अपनी अन्तर्जात, स्वाभाविक सूझबूझ है। साधारणतया एक नयी रचना है आगे बढ़ते हुए उस नए मानव की जिसमें परमात्मा की इच्छा को आगे ले जाने की योग्यता है। आत्मसाक्षात्कार के परिणामत: आपके भ्रम समाप्त हो गए। परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापी है और सर्वज्ञ हैं। सर्व्ञ अर्थात् सभी कुछ देखते तथा जानते हैं। उस शक्ति का एक भाग आप में भी है। उनकी सर्वज्ञता को प्रमाणित करने के लिए आपको हर समय याद रखना है कि आप सहजयोगी हैं। अब भी मैं सहजयोगियों को अपनी पत्नियों, बच्चों, घर, परिवार, नौकरियों आदि के विषय में बातें करते हुए पाती हूं। मैं हैरान हो जाती हूँ कि उनका स्तर क्या है? वे हैं कहाँ? उन्हें दिया गया दायित्व वे कब सम्भालेंगे? सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वत्र विद्यमान हैं, जिन्होंने सभी कुछ किया है, और परमात्मा एक अच्छा बच्चा सदा अपनी चीजों को बांटकर लेना चाहता है, दूसरे बच्चे से प्रेम करना तथा छोट बच्चे की रक्षा करना पसन्द करता है। यह स्वाभाविक हैं। बच्चा यह नहीं सोचता कि दूसरे बच्चे के बालों या चमड़ी का रंग काला है या लाल। छोटे बच्चों को ज्ञान होता है कि शरीर का प्रदर्शन नहीं किया जाता। दूसरों के सामने बच्चे निर्वस्त्र नहीं होना चाहते। उनमें यह गुण अन्तर्जात है। यह सभी अन्तजात गुण आप में हैं। बच्चे कुछ भी चुराना नहीं चाहते। मैंने बच्चों को सुन्दर स्थानों तथा घरों में जाते देखा है, वे सदा उस स्थान की सुन्दरता को बनाए से रखने का प्रयत्न करते हैं। अविकसित माने जाने वाले बहुत देशों में यह गुण हैं। अबोधिता की सृष्टि हम में अन्तर्जात है। परमात्मा की इच्छा ने अबोधिता तथा मंगलमयता की रचना 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt उद्यमियों के हाथों में खेल रहे हैं। ये उद्यमी इन दुर्बल व्यक्तियों आदिशक्ति ने ही की क्योंकि वही परमात्मा की इच्छा है। पूरे को मूर्ख बनाकर उनसे पैसा एंठ रहे हैं। एक ओर तो आपके पास इतनी महान शक्तियां हैं, इतने महान कार्य के लिए आपको चुना गया है और दूसरी ओर आप इस प्रकार से दास हैं। आपके अन्तर्जात गुण खो गए थे। सौभाग्यवश कुण्डलिनी की जागृति और सहस्रार के भेदन से आपके अन्तर्जात गुण, जो कि खो से गए थे, जाग उठे हैं। आपकी अबोधिता, सृजनात्मकता, की। सर्वप्रथम उन्होंने श्री गणेश की रचना की। यह रचना विश्व को अति सुन्दर बनाने के लिए यह सब रचा गया। ये सब देवता तथा ये सारे अन्तर्जात गुण आपके अन्दर स्थापित किए गए। इन्हें विशेषत: बनाया गया ताकि मनुष्य सन्त स्वभाव बन सके और सन्त सम अन्तर्जात अपने विवेक को अपना सकें। विकसित देशों में दूरदर्शन तथा अन्य मार्गों से हमारे मस्तिष्क को दूषित किया गया और हम में असुरक्षा की भावना आ गई। हम दूसरों के विचारों से चलने लगे कोई भी प्रबल व्यक्ति हम पर प्रभुत्व जमा सकता था। केवल हिटलर ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया, फेशन भी लोगों पर छा गया। फैशन के कारण किसी भी विवेकपूर्ण बात को अपनाना नहीं बड ी अन्दर का धर्म, करुणा, मानव प्रेम, निर्णयात्मक शक्ति और विवेक आदि गुण आपमें सुप्तावस्था में थे वे सभी जागृत हो गए। मुझे ये नहीं बताना पड़ता कि ये कार्य करो और ये मत करो। आपको स्वयं महसूस होता है कि यह अनुचित है। आप स्वयं जानते हैं कि आपके लिए ठीक क्या है। कुछ अनुचित चाहते। आजकल छोटे स्कर्ट पहनने का फैशन है लम्बा स्कर्ट यदि आप करना चाहें तो आप कर सकते हैं परन्तु आपके अन्दर का प्रकाश आपको बताएगा कि क्या ठीक हैं और क्या गलत। ज्ञान के इस आयाम के प्रति सहस्रार के खुलने के कारण ही यह हो सका है। यह नयी नहीं है, आपके अन्दर रचित है। अब यही अन्तर्जात गुण प्रकट हो रहे हैं और आप आपको कहीं नहीं मिलेगा। सभी को यही वेशभूषा पहननी पड़ती है अन्यथा आप पिछड़ जाते हैं। हर समय इस प्रकार की बातें हमारे मस्तिष्क में भरी जाती हैं परिणामतः सर्वप्रथम हम उद्यमियों के दास बन जाते हैं । मैंने है कि बैल्जियम में आपको कोई भी ताजा चीज नहीं इनका आनन्द ले रहे हैं। सुना मिलती, सभी कुछ डिब्बों में बंद सुपर बाजार से लेना पड़ता है। शनै: शनैः हम पूर्णतया बनावटी होते चले जाते हैं। भोजन, वस्त्र और दृष्टिकोण बनावटी हैं। विज्ञापनों तथा बाह्य प्रभावों में हम खो जाते हैं। इन आधुनिक वस्तुओं के प्रभाव में हम अपने अन्तर्जात विवेक को भूल बैठते हैं। विज्ञान के बाद धन बहुत महत्वपूर्ण हो गया। ऐसा होते ही सभी उद्यमी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि आपको मूर्ख बनाकर धनार्जन की कला वे जानते हैं । परन्तु अन्दर से दृढ़ व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित नहीं होते। फैशन उन्हें प्रभावित नहीं कर पाता। इसके विपरीत अपनी परम्परागत उपलब्धियों से दूर हो पाना उनके लिए कठिन होता है। अपने तुच्छ विचारों तथा आचरणों से आपको बाहर आना है। मैंने सुना है कि सहजयोगी वस्तुओं को इधर-उधर फैला देते हैं। आप इस तरह का बर्ताव कैसे कर सकते हैं? जीवन में विना अपेक्षित अनुशासन के आप परमात्मा की इच्छा को संचालित नहीं कर सकते मैं आपकी स्वतंत्रता का स्वागत करती हूँ और चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी ही आपमें विवेक, महानता तथा गरिमा को जागृत करें। तब आप अपने पद के मूल्य को समझने लगेंगे। अग्नि में तपा कर शुद्ध किए स्वर्ण की तरह कुण्डलिनी भी आपका पूर्ण शुद्धिकरण करेगी। आप अपनी गरिमा, स्वभाव तथा महानता को देखने लगते हैं। अत: सहज ही आपका एकीकरण हो जाता है। सबसें पहले इंग्लैंड, स्पेन, इटली आदि के सहजयोगी होते थे जो सदा अलग-अलग समूह में रहते थे। वे कभी साथ न बैठते। पर अब ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि अब उन सबका एकीकरण हो रहा है। मानव का एकीकरण सहजयोग के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह एकीकरण बुद्धि से नहीं आता। यह अन्तर्जात विवेक - कि सभी मनुष्य परमात्मा ने बनाए हैं और किसी से घृणा करने का हमें कोई अधिकार नहीं - से आता है। दूसरा है कि सभी धर्म एक की अध्यात्म-वृक्ष पर उपजे हैं कि सभी धर्मों की पूजा होनी चाहिए। भी अवतरणों, पैगम्बरों और धर्मग्रन्थों की पूजा होनी चाहिए। उन धमग्रन्थों की त्रुटियों को सुधारा जा सकता सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि वे ध्यान रखें कि कहीं उद्यमियों के दास तो नहीं बन रहे। विचारों पर भी प्रभाव पड़ता है। हम बहुत सी पुस्तकें पढ़ते हैं जिनमें से कुछ फ्रायड जैसे पागलों की लिखी बेसिरपैर की होती है। पश्चिम पर फ्रायड का प्रभाव केसे पड़ा? क्यांकि अपने अन्तर्जात विवेक को छोड़ कर आपने उसे स्वीकार किया। है। इस प्रकार फ्रायड भी लोगों के लिए ईसा सम बन बैठा। यौन संबंध अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गए। थोड़ी सी साधारण बुद्धि से हम समझ सकते हैं कि हर क्षण कुछ प्रबल व्यक्ति, जिनके पास कुछ विचार भी हैं, हमें दासत्व की ओर ढकेलते हैं। उनके विचार महान बन जाते हैं। "उसने ऐसा कहा"। वह है कान, एकीकरण जो आपमें आया है वह है। शनैः शनै: आप दैवत्व की सूक्ष्मता में प्रवेश करते है और समझ लेते हैं कि सहजयोग के लिए वातावरण बनाने को इन लोगों ने बहुत परिश्रम किया है। किसी धर्म की न तो निन्दा उसका जीवन कैसा है? स्वयं देखिए कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। परमात्मा की इच्छा, जिसने पूरे विश्व को तथा आपके कण-कण को बनाया है, के प्रतिनिधि होते हुए आप ुब चैतऱ्य लहरों 11 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt होनी चाहिए और न ही उस पर आक्रमण होना चाहिए। आगे बढ़ायें। क्षण-क्षण चमत्कार होते देख आप महसूस करते हैं कि परमचैतन्य ही इन्हें कर रहा है। परमचैतन्य आदिशक्ति की इच्छा है और आदिशक्ति परमात्मा की इच्छा है। इसी प्रकार हम सभी धर्मान्धों को समाप्त कर पायेंगे। बहुत सावधान रहिए। कभी-कभी आप सहजयोग को कट्टर बनाने लगते हैं। "माँ ने ऐसा कहा" कहकर आप दूसरों पर प्रभुत्व जमाना चाहते हैं। मुझ कहीं भी उपयोग मत कीजिए । आप स्वयं कहिए क्योंकि अब आपको अधिकार है, सहजयोग में आपका एक व्यक्तित्व है। स्वेच्छा से मेरा उपयोग करने का किसी का कोई मतलब नहीं। जो भी आपने कहना है स्वयं कहिए। मेरी कही बात के बंधन में आप नहीं। अब उठकर आपने स्वयं देखना है कि क्या कहें। अव आपने अपनी इच्छा का उपयोग करना है और इसके लिए आपको स्वयं को विकसित करना होगा अत: अपनी इच्छा पवित्र होनी चाहिए सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा। यह लहरियां डी.एन.ए. की तरह हैं। वे जानती हैं कि किस प्रकार कार्य करना है। जैसे आज बहुत धूप है। सभी हैरान हैं। दो दिन पहले हमने हवन किया और धूप निकल आयी। ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्यरत है। अब आप मंच पर हैं और आपने ही इसका ध्यान रखना है। यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है तो आप कंसे सहायता कर सकते हैं? मनुष्य रचित समस्याओं का समाधान तथा अपना संचालन आप कैसे कर सकते हैं? अतः हम पर पड़े दासत्व को हमें उखाड़ फेंकना है। हिन्दु, मुस्लिम कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट होने के विचारों को हमने पुरा , खदेड देना है। हमें एक नया व्यक्तित्व बनना है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आप कीचड़ में पैदा हुए कमल के समान हो जाते हैं । अब आप कमल बन गए हैं। इस मृत कीचड़ को दूर हटाना एकीकरण केवल बाह्य ही नहीं यह आंतरिक भी है। अब से पहले हम जो करते थे उसमें हमारा मन कुछ कहता था, हृदये कुछ और कहता था और मस्तिष्क कुछ और अब ये होगा अन्यथा इसके अंश रह जायेंगे। आपकी हत्या करने वाले, तीनों चीजें एक हो गई हैं। अब आपके मस्तिष्क की बात आपके हृदय और चित्त को पूर्णतया स्वीकार होती है अब आप स्वयं एकीकृत हो गए हैं बहुत से लोग कहते हैं " मैं ऐसा करना चाहता हूँ पर कर नहीं सकता"। अब ऐसा नहीं है और अनुशासन का होना हमारे लिए सबसे आवश्यक है। क्योंकि अब आपका पूर्ण एकीकरण हो चुका है। अपना निरीक्षण करके देखिए कि आपका एकीकरण हो गया है या नहीं। जो भी कार्य मैं करता हूँ क्या मैं उसे पूरे चित्त और हृदय हूँ। इसका कारण यह है कि मुझे परम इच्छा है कि मुझे इस के साथ करता हूँ? में देखती हूँ कि आप पूरे हृदय से कार्य विश्व को आनन्द, प्रसन्नता और देवत्व की उस अवस्था तक करते हो परन्तु आपका पूरा चित्त वहाँ नहीं होता। सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाले चित्त का पूरा उपयोग नहीं है या फिर उनके पिता ( परमात्मा) की क्या गरिमा है। मैं कभी नहीं एकीकरण अधूरा है। सारे चक्रों का भी एकीकरण हो जाता है। जो भी कुछ आप करते हैं वह शुभ होना चाहिए तथा पूरे चित्त के साथ। यह धार्मिक होना चाहिए। ये पूरे चक्र पूर्णतया एक हैं संघटित में स्वयं सुलझा रही हूं। परन्तु सहजयोगी मुझे पारिवारिक शक्ति जो आप स्वयं हैं। पूरा जीवन ही संघटित होना चाहिए किसी का पति या पल्नि यदि उस स्तर के नहीं तो चिन्ता नहीं हमारे सिर पर सबसे बड़ा बोझ है। परिवार आपकी करनी चाहिए। आप केवल अपनी चिन्ता कीजिए। किसी से जिम्मेवारी नहीं। यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का दायित्व भी कोई आशा न रखिए। आपका अपन कर्त्तव्य ही महत्वपूर्ण है। अपना कर्त्तव्य पूरा कीजिए। आपको स्वयं ही यह करना है. दायित्व लेने लगते हैं तभी समस्याएं शुरु होती हैं। निर्लिप्सा जब तक आप समझ नहीं जाते कि व्यक्तगत रूप से आपने को समझना चाहिए। अपनी चीजों से, बच्चों से आप इसे प्राप्त किया है आपने अपने लाभ देखने हैं। "मुझ आर्थिक, चिप्रके रहते हैं। मोहग्रस्त लोगों को संत कैसे कहा जा शारीरिक, मानसिक लाभ हुआ। मुझे प्रसन्नता और आनन्द प्राप्त हुआ"। केवल इतना नहीं है। केवल यही मापदंड नहीं होना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की समझ आपको होनी चाहिए। बहुत से जीवनोंपरान्त इस जीवन में इस व्यक्तित्व की रचना विशेष रूप से आपके लिए की जा रही है ताकि इस जीवन में पत्नी और बच्चों से लिप्त हो गए हैं। यह भी स्वार्थ है वे आत्मसाक्षात्कार पाकर परमात्मा की इच्छा के कार्य को आप व्यर्थ के बंधनों को तोड़ दीजिए। सारी रचना अत्यन्त सावधानी, प्रेम और कोमलता से कर दी गई है। अतः हमें अपना सम्मान करना चाहिए। हममें दूसरों के प्रति स्नेह एवं प्रेम होना चाहिए मेरे जीवन के विषय में आप सब जानते हैं कि मैं कठिन परिश्रम करती हूँ और आप सबसे कहीं अधिक सफर करती लाना है जहाँ मनुष्य जान सके कि उसका लक्ष्य क्या है और सोचती कि मुझे कोई कष्ट हो जाएगा या मेरा क्या होगा। मैंने आप लोगों को अपने पारिवारिक जीवन अपने बच्चों या किसी अन्य के विषय में कभी क्ट नहीं दिया। अपनी समस्याओं को समस्याओं के विषय में लम्बे पत्र लिखते हैं। पारिवारिक मोह है। क्या आप परमात्मा से अच्छा कर सकते हैं? जब आप सकता है। संत केवल अपनों के लिए ही जिम्मेवार नहीं होते, वे सबके लिए जिम्मेवार होते हैं । सहजयोग में आने से पूर्व आप किसी से लिप्त नहीं। आप स्व-केन्द्री थे। अपने को थोड़ा सा विस्तुत कर अब आप अपनी आपके नहीं परमात्मा के बच्चे हैं एक महत्वपूर्ण बात जो 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt कि आप उन्हें परमात्मा पर नहीं छोड़ना चाहते। कुछ लोग कहते हैं कि उनमें इतनी योग्यता ही नहीं कि वे ऐसा कर सकें। यह मूर्खतापूर्ण वक्तव्य है। स्वयं को परखिए। हम ऐसी बात क्यों कहते हैं? हो सकता है आप धन-लोलुप हों। सहजयोग में कुछ लोग व्यापार की बात करते हैं। हो सकता है भौतिकता से मोह हो। दूसरे यह ममत्व भी हो सकता है - मेरा परिवार, बच्चे आदि। तीसरे हो सकता है कि आप अभी तक अपनी पुरानी आदतों से चिपके हुए हों और सद्गुणों के बिना ही इनका आनन्द ले रहे हों। आप में सभी कुछ करने की क्षमता है। आपके साथ हुई वह है सहस्रार का खुलना। अब आप पूरे विश्व के सम्मुख परमात्मा का अस्तित्व उसकी इच्छा तथा सभी कुछ प्रमाणित कर सकते हैं कोई भी सहजयोग को चुनौती नहीं दे सकता। चुनौती देने वाले को समझाया जा सकता है। आपको चाहिए कि सहजयोग को गंभीरता से लें। लोग ध्यान तक नहीं करते। ध्यान के बिना आप कंसे उन्तत होंगे? निर्विचार समाधि में आए बिना आपकी प्रगति नहीं हो सकती। कम से कम सुबह-शाम तो आपको ध्यान करना ही है। बहुत से लोग स्वभाव से ही सामूहिक नहीं हैं। उन्हें आश्रम का जीवन पसन्द नहीं। ऐसे लोगों को सहजयोग से चले जाना चाहिए। सामूहिकता के बिना आप कैसे बढ़ेंगे और कैसे अपनी शक्तियों को एकत्रित करेंगे? सामूहिकता से ही दृढ़ होंगे एक तिनके को तोड़ा जा सकता है पर बहुत से तिनके इकट्ठे हो तो उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता। एक हजार निकम्मे लोगों की अपेक्षा अच्छी प्रकार के दस व्यक्तियों का होना अधिक अच्छा सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप परमात्मा की इच्छा के उचित, करुणामय ऑर सशक्त वाहन बन जायें। ठीक है कि आप मेरी पूजा करते हैं क्योंकि इससे आपको बहुत लाभ मिलता है। मुख्य बात तो आपका अधिकाधिक गहनता में उतरना है। उच्चावस्था को पाने में एक दूसरे से मुकाबला कीजिए। मुझ विश्वास है कि यह पूर्ण-बिज्ञान एक दिन अन्य सब प्रकार के विज्ञान का आच्छादित कर लेगी और अपनी वास्तविकता प्रकट करेगी। यह आपके हाथ में है। आज के दिन का उत्सव हम इसीलिए मनाते हैं कि हमने इस दिन परमात्मा के प्रमाण का एक नया महान देवी आयाम पूर्णतया खोला। यह इतना महत्वपूर्ण है कि हम सारे भ्रमों का अन्त कर सकते हैं । आज हमें शपथ लेनी है कि "मैं अपना जीवन परमात्मा की इच्छानुसार ढालूंगा। पारिवारिक एवं अन्य बंधन न रखूंगा"। परमात्मा की इच्छा सबकी देखभाल कर सकती है। आपको किसी चीज की चिन्ता करने की जरूरत नहीं। समझने का प्रयत्न कीजिए कि आपकी समस्याओं का कारण यह है आप सबको अनन्त आशीर्वाद। माताजी का जन्मोत्सव श्री सीरीफोर्ट सभागार, दिल्ली, 23.3.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन वास्तविकता में और हमारे में बहुत कम दूरी होने के कारण हो सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम । सर्वप्रथम हमें यह जानना है कि सत्य जो है - वही है। हम इसे धारणा-बद्ध नहीं वे लोग इतने सुन्दर हो गए हैं यदि हम इस दूरी का तय कर कर सकते इसे जानना पड़ता है। दुर्भाग्यवश मानवीय चेतना के वास्तविकता को आत्मसात कर सकें तो आप आश्चर्यचकित स्तर पर हम सत्य को नहीं जान सकते। हमें आत्मा बनना पड़ता है। आज मैं जो आपको बता रही हँ उसे स्वीकार करना आवश्यक नहीं और क्योंकि इतने सारे लोग सहजयोग की बहुत प्रशंसा कर रहे हैं इस कारण भी आपको इसमें अन्ध श्रद्धा की कोई आवश्यकता नहीं है। अपना मस्तिष्क वैज्ञानिक की तरह खुला रखिए। आपके सम्मुख रखी गयी मेरी परिकल्पना सकती हैं। विश्व के सभी संतों तथा महान दार्शनिकों ने आत्मा यदि कार्य करती है तो ईमानदार व्यक्ति की तरह से इसे के विषय में बताया। सभी शास्त्रों ने आत्मा के विषय में स्वीकार कर लीजिए क्योंकि इसी में आपका और पूरे विश्व का हित है। सहजयोग में सभी जातियों, राष्ट्रों, धर्मों तथा राजनीतिक प्रणालियों के लोग हैं। पर उनमें अत्यन्त सुन्दर थे या सत्ता लोलुप। आत्म खोजी वो नहीं थे। अपना उत्थान भाईचारा है। बिना किसी प्रयत्न के इसकी प्राप्ति हो गई है। रह जायेंगे कि आप कितने अनोखे और शानदा व्यक्ति हैं । विश्व में हमारे सम्मुख पर्यावरण संबंधी, राजनीतिक, आर्थिक तथा पारिवारिक समस्याएं हैं। इन सभी समस्याओं का केन्द्र विन्दु मानव ही है। सार्विकता की नई चेतना तक यदि हम मानव को परिवर्तित कर सके तो ये सब समस्याएं सुलझ बताया। इतने महान, पवित्र तथा पूर्णतया वास्तविक सभी धर्म कठिनाई में फंस गए क्योंकि इन्हें मानने वाले या तो धन लोलुप प्राप्त करने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की। बुद्ध और चैतन्य लहरी 13 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt महावीर ने परमात्मा की बात नहीं की क्योंकि वे समझते थे कि उनके ऐसा करने पर लोग परमात्मा का आयोजन भी किसी न किसी धर्म में करने लगेंगे। अत: उन्होंने निराकार आत्मा की बात की। उन्होंने जोर देकर कहा कि आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है। गुरु नानक और मोहम्मद साहिब ने भी ऐसा ही कहा। इन सबने निराकार परमात्मा की बात की। संस्कृत भाषा में श्री मार्कन्डेय ने कुण्डलिनी के विषय में लिखा। छठी शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने इसे जनता के सम्मुख रखा पर इसे स्वीकार न किया गया महाराष्ट्र में लोग श्री रामदास का भजन गाते हैं कि "हे माँ मुझे योग प्रदान करो, मेरा संबंध दिव्य शक्ति से जोड़ दो"। बिना कुछ समझे संदियों से लोग गाए चले जा रहे हैं। गुरु नानक, कबीरदास, रामदास स्वामी, तुकाराम ने इसे विकसित किया। ये सभी महान संत इसी देश में अवतरित हुए और कबीर दास तथा नानक साहब न तो स्पष्ट रूप से कुण्डलिनी की बात की। इसे प्राप्त करने के मार्ग के अभाव में लोगों ने गलत समझा। तो इस आधुनिक समय में मैंने सोचा कि जो खोज व्यक्ति विशेष के लिए है वह जनसाधारण के लिए भी होनी चाहिए। क्योंकि अकेले साक्षात्कारी को तो लोग स्वीकार ही नहीं करेंगे। इसी कारण लोगों ने कुछ अवतरणों को सूली पर चढ़ाया, जुहर दिया तथा पत्थरों से मारा। उनकी मृत्यु पश्चात् उनके नाम पर मंदिर भी बनवाए। परन्तु उनके जीवनकाल में किसी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। निराकार की बात करें या साकार की, मानव तो वही है। बातें ही बातें हैं। फूलों की बात करें या शहद की, आपको शहद नहीं मिलने वाली। बातें तो शब्द मात्र हैं। श्री आदिशंकराचार्य ने इन्हें 'शब्द जालम' कहा है शब्दों का जाल। इस शब्द जाल से आगे कैसे जायें? कुण्डलिनी जागृति द्वारा। इस देश के लिए यह कोई नई चीज नहीं है, सहजयोग भी नया नहीं। सभी धर्म ग्रन्थों में कहा गया है कि जब तक आपका पुनर्जन्म नहीं होता, आप आत्मा नहीं बन जाते, तब तक आप धर्म को नहीं समझ सकते। बौद्धिक प्रयत्नों से इसे नहीं जाना जा सकता। हाल ही में आम्मेनिया के लोगों ने मुसलमानों को मारा और उन्हें मारने जाने से पहले वे बाइबल पढ़ा करते थे। ये कैसे हो सकता है? इस प्रकार का कार्य करते हुए एक ईसाई की कल्पना कीजिए। इस्लाम भी सर्वोत्तम धर्मों में से एक है पर लोग नहीं समझ पाए कि मोहम्मद साहब ने क्या जानने के लिए कहा। अंग्रेजी के शब्द 'नो' (Know) का उद्भव संस्कृत शब्द ज्ञान से है। प्राचीन ईसाई लोगों को ग्नोस्टिक कहा जाता था जानना अर्थात् मध्य-नाड़ी-तंत्र पर जानना, बौद्धिक स्तर पर नहीं। अत: किसी तरह मेंने वह विधि खोज निकाली जिसके द्वारा जनसाधारण की कुण्डलिनी उठाई जा सके। जागृत होकर कुण्डलिनी व्यक्ति को परम-चैतन्य से जोड़ देती है। यह परम- चैतन्य ही सारा जीवन्त कार्य करता है। इन फूलों को देखिए, अपनी आंखों को देखिए, इन सब चीजों को हम अपना अधिकार समझते हैं। आंखें अति सूक्ष्म कैमरे की महान कृति हैं। अपने मस्तिष्क का क्या कहें? पूरे कार्यक्रम से लदा हुआ यह महान कम्प्यूटर है। हम इसे स्वीकार कर लेते हैं पर यह नहीं सोचते कि यह किस प्रकार कार्य करता है। आंखों पर पट्टी बांधकर हम सारे जीवन्त कार्यों को स्वीकार कर लेते हैं पर हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि किस प्रकार यह फूल पृथ्वी माँ से उत्पन्न हुए। एक छोटे से बीज़ के माध्यम से किस प्रकार उनके आकार तथा रंगों पर नियंत्रण रखा गया। यह परम-चैतन्य पवित्र प्रेम ही है और यही पवित्र प्रेम, यही शक्ति ही यह सारे सुन्दर तथा सूक्ष्म कार्य करती है। एक बार अपनी आत्मा से योग होने पर यह प्रकाशित हो उठती है। यही कारण है कि पाल के कार्यभार संभालते ही ईसा के अनुयायी भाग खड़े हुए और जब थामस भारत आए तो सत्य के सारे ज्ञान को एक बर्तन में भर कर उन्होंने इसे मिश्र में छिपा दिया। अन्यथा धर्म आयोजन द्वारा धन कमाने के इच्छुक लोगों द्वारा वे मार दिए जाते। इन धूर्त लोगों के कारण उन्होंने सोचा कि धर्म की बात ही न की जाए। यदि आप धर्म की बात करें तो अपने धर्म को लेकर वे आपसे झगड़ा करेंगे। धर्म के नाम वे कत्ल और हत्याएं करते हैं। यह किस प्रकार से धर्म कार्य हो सकता है। मानव हर बात को उलझा सकता है। पर इसका अर्थ ये भी नहीं कि वास्तविकता और देवत्व है ही नहीं। प्राचीन काल में बहुत कम लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता था। राजा जनक ने केवल नचिकेता को ही साक्षात्कार दिया। बहत ही धीरे-धीरे यह कार्य होता था। एक गुरु केवल एक ही शिष्य को आत्मसाक्षात्कार देता था। दसवीं शताब्दी में संत ज्ञानेश्वर ने कुण्डलनी के विषय में सरल भाषा में लिखने की आज्ञा अपने गुरु से मांगी। ज्ञानेश्वरी के छठे अध्याय में उन्होंने कुण्डलिनी के विषय में लिखा स्थानीय भाषा में लिखे होने के बावजूद भी धर्म के ठेकेदारों ने लोगों को इसे पढ़ने की आज्ञा न दी। ।4000 वर्ष पूर्व भी प्रकाशित होकर यह आपके चित्त को प्रकाशित करती है। चित्त प्रकाशित होते ही आप पूर्णतया भिन्न व्यक्तित्व बन जाते हैं। सर्वप्रथम आप सामूहिक चेतना में आ जाते हैं अर्थात् अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप अपने तथा दूसरे लोगों के विषय में, उनके सूक्ष्म केन्द्रों के विषय में जानने लगते हैं। आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं को जान पाते हैं। यही केन्द्र मानव के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक अस्तित्व के आधार हैं। इन केन्द्रों को ठीक करते ही आप ठीक हो जाते हैं। दिल्ली के कुछ चिकित्सकों को सहजयोग तारा उपचार करने पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। सहजयोंन दारा बहुत से असाध्य रोग ठीक किए जा सकते हैं। क्योंकि ण्डलिनी चैतन्य लहरी 14 ी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt जब इन केन्द्रों में से गुजरती है तो यह उन्हें प्रकाशित करती है, विज्ञान के स्तर पर ले आए हैं। कैनेडा के एक डाक्टर ने खोज पोषित करती है तथा इन्हें सम्पूर्ण करती है। चिकित्सा विज्ञान की तरह यह शरीर के एक अंग का उपचार और दूसरे की ने खोज निकाला कि किस प्रकार मूलाधार चक्र पर कार्बन हैं उपेक्षा नहीं करती, यह मानव को पूर्णतया ठीक कर देती है। और यह कैसे कार्य करता है। कुछ मुसलमान 'प्रकाशित यह आपको सन्तुलन के मध्य मार्ग की ओर ले जाती है। यह प्रकाश आपको बुद्धिमान बना देता है क्योंकि आप अपने है। यह सब कार्य धन के लिए नहीं किया गया। मैं कोई पैसा मस्तिष्क को विचार-विहीन बना लेते हैं। यह निर्विचार समाधि कहलाती है। इस समय आप पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। इसके अच्छी तरह स्थापित होने पर आप निर्विकल्प समाधि में पहुंच नहीं लेते वे कठिन परिश्रम कर रहे हैं और सहायता के लिए जाते हैं अर्थात् आप इतने शक्तिशांली हो जाते हैं कि दूसरों को दूर करने के आत्मसाक्षात्कार दे सकें, उनका उपचार कर सकें और अनुभूत लिए जर्मन सहजयोगी रूस सहायता के लिए गए। इतना प्रेम ज्ञान के रूप में सहजयोग की बात कर सकें। जब जब भी और ध्यान कि आप विश्वास ही नहीं कर सकते। सहजयोगियों ने प्रश्न पूछे मैंने उनका मार्गदर्शन किया परन्तु अधिकतर ज्ञान उन्हें अन्दर से ही प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार ने उन्हें बताया कि जिस प्रकार लोग धर्म -ग्रन्थों का अनुसरण लगती है और इसी प्रकार मानवमात्र का उद्धार होगा। सहजयोगी कर रहे हैं, ग्रन्थों का बताया मार्ग उससे बिल्कुल भिन्न है। इसका श्रेय को ही देते हैं परन्तु मैं कहूंगी कि उन्हें भी श्रेय हमारी सहायता के लिए पृथ्वी पर अवतरित इन महान आत्माओं (सहजयोगियों) का प्रकाश अब वे देख सकते हैं। विकास प्रक्रिया में हम अब अंतिम उपलब्धि लोग केवल विज्ञान और तकनीकी की ही बात करते हैं ऐसे (आत्मसाक्षात्कार) के मुहाने पर खड़े हैं और पूरे विश्व ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है। मैं नहीं जानती कि पूरा विश्व है। परन्तु ईमानदार होने के कारण इसके परिणामों को देखकर इसे प्राप्त करेगा या नहीं पर जिस प्रकार हर स्थान पर हजारों वे इसे स्वीकार करते हैं और समझ पाते हैं कि विश्व की लोग सहजयोग में आ रहे हैं उससे मुझे लगता है कि मेरे समस्याओं का, विशेषकर राजनीतिक समस्याओं का, समाधान जीवनकाल में ही बहुत से लोग आत्मसाक्षात्कार पा लेंगे। मात्र इतना ही नहीं, ये लोग एक ऐसे सुन्दर समाज की रचना करेंगे जिसमें न कोई झगड़ा होगा न हिंसा, लोग न धोखा देंगे और की समस्या है जिसे केवल सहजयोग द्वारा ही हल किया जा न ही महत्वाकांक्षी होंगे, न दूसरों की बुराई करेंगे और न ही एक-दूसरे का गला काटेंगे। ये बुराइयां उनके मस्तिष्क में ही नहीं आती। वे अत्यन्त चरित्रवान हैं। वे न तो दूसरी स्त्रियों की ओर देखते हैं और न ही अपने बच्चों को परेशान करते हैं । वे कानून को मानने वाले लोग हैं और मुझे किसी बात के लिए उन्हें रोकना नहीं पड़ता। उनकी सारी बुराइयां छूट जाती हैं। मेरे पास एक लड़का आया जिसे नशे की लत थी। अर्ध मु्छित अवस्था में होने के कारण वह मुझे देख भी न सका। अगली प्रातः उसने नशा पूर्णतया छोड़ दिया। आजकल नशा छुड़ाने के धन्यवादी हूं। जब-जब भी मैं किसी हवाई अड्डे से जाती हैं लिए सेना की नियुक्ति के अतिरिक्त सभी कुछ किया जा रहा है। यह सब अनावश्यक है। उनकी जागृति मात्र कर दीजिए। हूं। सोचती हूँ कि कब इनसे पुनः भेंट होगी। लेकिन दूसरे हवाई इस जागृति के थोड़े से प्रकाश में आप स्वयं को देख लेंगे। अड्डे पर जाकर जब मैं अन्य लोगों की प्रतीक्षा में गाते हुए आप जान लेंगे कि आपमें क्या कमी है और इसे करने की शक्ति भी आप में है। अंधेरे में रस्सी समझ कर पकड़े हुए सांप को प्रकाश होते ही जैसे आप स्वयं फेंक देते हैं। इस प्रकार सहजयोग कार्य करता है। कुछ वैज्ञानिकों निकाला कि कैसे मृत आत्माएं कार्य करती हैं। कुरान' लिखने में लगे हुए हैं। किसी ने 'प्रकाशित गीता' लिखी नहीं स्वीकार करती क्योंकि जीवन्त क्रिया करने के लिए हम पृथ्वी माँ को कितना धन देते हैं? इसके लिए हम कोई पैसा पूरे विश्व में जाते हैं। अपने पुरखों की त्रुटियों को आपके अन्दर ही इतना सुन्दर गुण है। यह अति उदार, धर्मपरायण और चरित्रवान है। इन गुणों की अभिव्यक्ति होने मुझ मिलना चाहिए क्योंकि वे अति ईमानदार तथा बुद्धिमान लोग हैं वे तथ्य को स्पष्ट रूप से समझ सके। आधुनिक युग में जब समय में दैवी तकनीक को स्वीकार करना अति कठिन कार्य वे किस प्रकार करेंगे। परमात्मा की कृपा से गो्वाचीव के कारण यह समस्याएं काफी कम हुई हैं। हमारे सम्मुख कट्टरवाद सकता है क्योंकि सहजयोग में हम सभी धर्मों पैगम्बरों, साधुओं और अवतरणों का सम्मान करते हैं। सभी धर्मों के सार तत्व में हम विश्वास करते हैं और उनकी पूजा करते हैं । तो हम किस प्रकार झगड़ सकते हैं? कट्टरवाद हममें हो ही नहीं सकता। धर्मान्ध लोंगों के लिए सहजयोग ही एकमात्र समाधान का मार्ग है। अपने प्रेम का स्मरण करवाते हुए जिन लोगों ने मुझे ये सुन्दर पुष्प भेजे हैं मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ तथा उनके प्रति तो वहाँ उपस्थित सहजयोगियों के प्रेम में मैं सराबोर हो जाती पाती हूँ तो लगता है ठीक है, मुझे यहाँ भी होना चाहिए। यह कितना सन्तोषप्रद है। अपनी आयु का अहसास मुझे नहीं होता। इतने सारे लोगों को अपने जीवन, बच्चों, परिवार और समाज दूर * সনन्द लेते । हमें इस नए और सुन्दर विश्व की रचना करनी है। थोडे से दिल्ली में बहुत से डाक्टर हैं जिन्होंने सहजयोग को परमात्मा की वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में लेकर इसे चिकित्सा लोगों की मू्खता के कारण हम इसका विनाश नहीं होने देंगे। चैतन्य लहरी 15 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt कारण फैल रहा है क्योंकि एक बार प्रकाश प्राप्त करते ही वे इनमें भी विवेक आना चाहिए। अपने जन्म के समय में न जानती थी कि जीवनकाल में मैं कोई उपलब्धि प्राप्त कर अन्य लोगों तक इसे पहुंचाते हैं। इस उत्सव के लिए आप पाऊंगी। मेरे साक्षात्कारी पिता कहा करते थे कि सामूहिक सबका धन्यवाद। आप लोगों के उत्थान का उत्सव में भी अपने विकास मार्ग खोजे बिना वास्तविकता की बात मत करना। एक शब्द भी नहीं कहना, नहीं तो तुम भी एक अन्य कुरान या बाइबल की रचना कर लोगी जिसका कोई लाभ न होगा। अत: पहले मानव मात्र के लिए वह अवस्था प्राप्त करो। मुझे प्रसन्नता है कि सहजयोग मेरे कारण नहीं सहजयोगियों के हृदय में मनाती हूँ। आपने कितनी उपलब्धियां पा ली हैं। मैं आप सब को बधाई देती हूं। आप सबको धन्यवाद। ईस्टर पूजा वसू ला इटली, 19.4.1992 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) दूसरों पर प्रभुत्व जमाने के लिए वे ईसा के नाम का क्यों उपयोग करते हैं ? अंग्रेजों ने भी सत्य को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा कि भारतीयों ने विश्वास कर लिया कि ईंसा इंग्लैंड में ही उत्पन्न हुए। वे अंग्रेजों की तरह वस्त्र पहनते तथा अति अहंकारपूर्ण ढंग से व्यवहार करते। भारतीयों के प्रति वफादारी छोड़ वे अंग्रेज सरकार से मिल गए। मेरे पिता जब बन्दी बने तो उन्होंने हमें इसाई समाज से निकाल फेंका! मेरे पिता के कांग्रेसी ओऔर स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण उन्होंने छः या सात साल की आयु में ही मुझे स्कूल से निकाल दिया। सारे ही इसाई राष्ट्र अत्यन्त क्रूर एवं प्रबल रहे हैं और आज सभी मामलों का नियंत्रण उन्हीं के हाथों में है राजाओं का सुक्ष्म अहं अब प्रजातांत्रिक देशों के साधारण लोगों में भी आ गया है। ये सभी देश विनाश से पूर्ण हैं। अमेरिका के लोग मूर्खता की सीमा तक प्रबल एवं अहंकारी हैं। विवेक के स्रोत ईसा के वे अनुयायी हैं। अत: हमें इसाई इतिहास देखना पडेगा। सी कौमों को पूर्णतया नष्ट कर दिया। इसाई कहलाने वाले पीटर अति अहंकारी था, एक बार तो ईसा ने उन्हें शैतान कहा। उन्होंने यह भी कहा कि तुम मुझे भुला दोगे। फिर पाल आए। का कारण था इसाई जहाँ भी हैं अति आक्रमणशील और उन्होंने पीटर को खोजा। एक बड़े अधिकारी होने के नाते उसने हिंसावादी हैं। वे सोचते हैं कि पूरा विश्व उन्हीं की जागीर है। पीटर को कहा कि वह उसका साथ दे इस दुष्ट व्यक्ति ने बाइबल का सम्पादन किया। इस अहंकारी व्यक्ति ने ईसा की महान बलिदान ने भी उन्हें कुछ नहीं सिखाया। उन्होंने सोचा बताई बातों को तोड़ा-मरोड़ा। उसने मैथ्यु से झगड़ा किया और शुद्ध विचारों को भी स्वीकार न किया। उसे न वास्तविकता का अधिकार है। ईसा के जीवन से यह कितना विपरीत है। अहं कोई ज्ञान था और न दैवी चमत्कारों का। पर मैथ्यू अपने बिचारों पर डटे रहे। जॉन दौड़ गए और अपना ही मत चलाया का विवेक खो दिया है। चरित्र तो नाम को भी नहीं रहा है जो ग्नोस्टिक कहलाता है। इस तरह महान इसाई धर्म में यह राक्षस प्रवेश करता चला गया। अधिकृत रूप से उपयोग होने वाली बाइबल में ऐसा शब्द हैं कि लोग भटक जाते हैं। पहली बात जो ये लोग कहते हैं वह है कि यदि आप चर्च लोग अति कट्टर और अन्य लोगों पर छा जाने वाले होते हैं। के सदस्य बन जायें तो परमात्मा ने आपको चुन लिया है। हमारे आज्ञा चक्र को खोलने के लिए ईसा का पुनर्जन्म हुआ। आज्ञा चक्र अति सूक्ष्म केन्द्र है। अपने बंधनों तथा अहं से प्राप्त विचारों के कारण लोगों की आज्ञा इतनी अवरोधित हो गयी थी कि इसमें से कुण्डलिनी का पार होना असम्भव था। ईसा क्योंकि चैतन्य का ही रूप थे अत: पुनर्जन्म का खेल रचा गया। हमें समझना चाहिए कि ईसा की मृत्यु द्वारा ही हमें हमारा पुनर्जन्म प्राप्त हुआ और भूतकाल की मृत्यु हो गई हमारे ं पश्चाताप और बंधन समाप्त हो गए। परन्तु फिर भी इसाई राष्ट्रं में अहं की अपेक्षित कमी नहीं हुई। हो सकता है कि उचित विधि से ईसा की कभी पूजा की ही न गयी हो। अहं ने पश्चिमी लोगों को देखने ही नहीं दिया कि वे क्या कर रहे हैं और किस सीमा तक। अति की सीमा तक किए गए कार्यों के लिए उन्हें पछताना होगा। अहं को ठीक करने के लिए पश्चाताप था। इसाई राष्ट्रों के अन्य देशों पर आक्रमण किए और बहुत लोगों ने इंसा के नाम पर बहुत कहर ढाये। अहं ही इस सब हिटलर भी कैथोलिक धर्म में विश्वास करता था। ईसा के कि विश्व पर राज़ करना, इसे लूटना और नष्ट करना उनका इस सीमा तक बढ़ा कि आज इसाईयों ने अपनी मर्यादाओं तक इसाईयों में न कानून के प्रति और न ही परमात्मा के प्रति उनमें कोई सम्मान भाव है। इसा के मुख्य गुण - सतीत्व (पवित्रता) का भी उन्हें कोई सम्मान नहीं। भारत में मैंने पाया कि इसाई चैतन्य लहरी 16 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt सहजयोग में भी बारह तरह के सहजयोगी हैं। अपने अहं के क्योंकि केन्द्र थोड़ी सी दूरी पर है। परन्तु यदि उन्हें अपने पुत्र कारण कुछ अति दुर्बल हैं। वे किसी के साथ नहीं निभा से मिलने जाना हो तो वे मीलों जायेंगे। अपने परिवार या व्यापार के लिए यदि उन्हें कुछ करना हो तो.वे इसके पीछे दौड़ेंगे। अपनी सीमा उन्हें नहीं सूझती। उग्र स्वभाव के वे लोग सहजयोग में किसी को नौकरी छोड़ने के लिए या रहन-सहन का ढंग बदलने के लिए नहीं कहा जाता फिर भी प्राथमिकता तो देखनी ही है। लोग काम और धनार्जन में व्यस्त हैं, यश दिखा रहे हैं। उनमें से कुछ सीख रहे हैं। ईसा के पास कार्य कमाने में लगे हैं पर परमात्मा के लिए उनके पास समय नहीं करने के लिए केवल साढ़े तीन साल थे। उन्हीं का एक शिष्य है। माँ के सम्मुख झुकने मात्र से वे अपने, अपने कार्य के लिए तथा अपनी रचनात्मकता के लिए पूर्ण सुरक्षा की अपेक्षा करते हैं। ऐसे सहजयोगी हैं जो समझते हैं कि धन अति महत्वपूर्ण है सहजयोग में हम जब भी चाहें धन प्राप्त कर सकते हैं। कुछ आएगा। उन्होंने भविष्य की बात की। यदि वे अंतिम थे तो लोग कहते हैं कि मैं व्यापार शुरु कर रहा हैँ क्योंकि लाभ का 0.001 प्रतिशत मैं सहजयोग को देना चाहता हूँ। ये सब तो आपकी माँ का है। इस प्रकार का दूष्टिकोण तो तभी आता है जब आप धन को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझते हों। कुछ परमात्मा को नहीं देख पाते, वे धन के सूक्ष्म लाभ को नहीं जानते। एक-एक पाई का हिसाब वे बडी सावधानी से करते हैं । करते हैं। दूसरी तरह के सहजयोगी अत्यन्त स्वकेन्द्रित हैं। उनमें कठिनाईपूर्वक कमाए गए अपने धन को बे आध्यात्मिकता पर से कुछ तो केवल अपनी पत्नियों, बच्चों तथा घर को ही जानते व्यर्थ नहीं करते। कुछ लोग तो सहजयोग की एक पुस्तक भी नहीं खरीदते। एक टेप वे नहीं खरोदते। इसकी भी वे कापी बनवा लेते हैं। खर्च करना आवश्यक नहीं, बात तो केवल लोग पूजा के लिए बम्बई तो आए पर दिल्ली नहीं आए। स्त्रियां दृष्टिकोण की है। बुद्ध धर्म में बहुत सी बातें वज्जित हैं जिन्हें अपने पतियों को आश्रमों से निकालने का प्रयत्न करती हैं। यदि मैं सहजयोगियों पर लगा दें तो वे सभी दौड़ जायेंगे| सामूहिकता से बाहर होने के लिए वे बहाने खोजती रहती हैं। सर्वप्रथम आप कोई पैगम्बर नहीं बना सकते । आप कोई जमीन हर समय आपको परखा जा रहा है आप भी स्वयं को परखिए। नहीं खरीद सकते। दिन में आप केवलं एक वार खान! खा सकते हैं। आप को शाकाहारी होना होता है। सभी महान अवतरणों के अनुयायियों ने सुन्दर धर्म लाने वाले लोगों पर सकते। वे लोंगों पर चिल्लाते हैं और उन्हें परेशान करते हैं । सामूहिक नहीं हो पाते प्रेम की अभिव्यक्ति वे कभी नहीं करते। इस प्रकार के सहजयोगी एक-एक करके अपना रंग पीटर इतना दुष्ट बन गया कि अपने स्वार्थ और सम्मान के लिए उसने बाइबल में अनुचित शब्द भर दिए। मोहम्मद साहब के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने कहा कि पुनर्जन्म का समया आप पुनर्जन्म की बात कैसे कर सकते हैं? पैगम्बर की 'मोहर का अर्थ ये तो नहीं कि कोई अन्य पैगम्बर आ ही नहीं सकता। वे आदिगुरु थे और इसी कारण उन्होंने स्वयं को 'मोहर' कहा पर यह तो नहीं, कि मैंने अवतरणों पर रोक लगा दी है। पर दुष्प्रवृत्ति लोग अपने स्वार्थ के लिए इन शब्दों का दुरुपयोग हैं। उनके लिए यही अत्यन्त महत्वपूर्ण है, लोगों को सहजयोग और अपनी मुक्ति से अधिक चिन्ता अपने बच्चों की है। कुछ ईसा का क्रूसारोपण यहूदियों ने नहीं किया। यह गलत विचार है। दास सम यहूदी कैसे ईसा को क्रूसारोपित कर सकते थे? रोमन शासकों ने उन्हें मारा। उन्होंने सोचा कि इंसा बहुत शक्तिशाली होते जा रहे हैं। दोष यहूदियों पर लगा दिया। शासक ऐसे कार्य कर सकते हैं। प्रारम्भिक इसाई अधिकतर यहूदी थे। ईसा स्वयं यहृदी थे। पर यहूदियों पर दोष लगाया और यह विचार पॉल का था क्योंकि वह रोमन साम्राज्य को हैं। अन्याय किए। इसी कारण हम सत्य-पथ से भटक गए वास्तविकता में जो ईमानदार हैं और सत्यपथ पर चलना चाहते हैं उन्हें हर क्षण अन्तर्दर्शन करके जानना है कि हम सत्य से कितने हैं। एक अन्य प्रकार के सहजयोगी वे हैं जो उत्सव मनाने वालों जैसे हैं। वे एकत्र होंगे क्योंकि उनमें किसी इसका दोषी न ठहराना चाहता था। फिर सारे इसाई हजारों वर्ष चीज से, समूह से संबंधित होने का भाव होता है। फिर आप सभी प्रकार के बंधनों तथा नियमों में बंधे अपने को धोखा देने प्रकार पूरी श्वेत कौम को न केवल एक व्यक्ति को बल्कि लगते हैं आपको बहुत खुशी होती है। कुछ धर्मों के लोग सिर या दाढ़ी या मूँछ मुंडे होते हैं। वे नहीं जानते कि वास्तविकृता चाहिए। क्या हम उनकी संतानों को इसके लिए दोषी ठहरायेंगे? वैचित्र्य से पूर्ण है वैचित्र्य होना ही चाहिए। वैचित्र्य ही सौन्दर्य का कारण है। बिना वैचित्र्य के आपका व्यक्तित्व कैसे प्रभावशाली हो सकता है? इन मूर्खतापूर्ण विचारों से आप कैसे बंध सकते हैं? वैचित्र्य ही आपको आन्तरिक तथा बाह्य व्यक्तित्व प्रदान करता इस व्यक्तित्व का आनन्द जब आप लेने लगते हैं तभी आप सहजयोगी हैं। आप ऐसे व्यक्तित्व होने चाहिए जो स्वयं को देखता है। यरन्तु इसके विपरीत हम व्यक्तित्व की अपनी धारणाओं के दास बन अपने अहं के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का प्रक्षेपण ( प्रदर्शन) कर स्वयं को अत्यन्त विशेष दूर पूर्व किसी के अपराध के लिए यहूदियों से घृणा करते रहे। इस लाखों लोगों को क्रूसारोपित करने के लिए घृणा का पात्र होना कुछ सहजयोगी भी सदा किसी न किसी पर दोष लगाते रहते हैं। ऐसे लोग कभी नहीं सुधर सकते। उन्हें अन्तर्दर्शन करना चाहिए। रूस के सिवाय पश्चिमी देशों में अन्तर्दर्शन का अभाव है। आप जब अपने अपराध किसी गुंगे-बहरे पादरी के सामने कबूल करते हैं तो आप समझते हैं कि आपको बचा लिया गया है। हमें अपना सामना करना है। हम अन्तर्दर्शन करते हैं या नहीं? एक अन्य प्रकार के सहजयोगी वे हैं जो घर पर माताजी को पूजा करते हैं पर वे सामूहिकता में नहीं आ सकते है। चैतन्य लहरी 17 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt शक्तियों को अधिकाधिक खोजा जा सकता हैं। उन्हें स्वयं पर विश्वास है। उन्हें सहजयोग पर विश्वास है। मुझ पर और परम-चैतन्य पर विश्वास है। बहुत ही सादे लोग हैं और सहजयोग को कार्यान्वित कर रहे हैं । दरशनि का प्रयत्न करते हैं। ड सहजयोग इसके बिल्कुल विपरीत है। हम सब एक व्यक्तित्व है। हम सब सन्त हैं और सन्तों के रूप में ही हमारा सम्मान होना चाहिए। हम सबका एक ही जैसा व्यक्तित्व होना आवश्यक नहीं। हमारे बातचीत करने का, कार्य करने का ढंग भिन्न-भिन्न होना चाहिए प्रकाश होने के कारण हम पूर्णतया स्वतंत्र हैं। हम जानते हैं कि किस सीमा तक जाना है और ठीक रास्ता कौन सा है। लोग समझ बैठते हैं कि सहजयोग पूर्ण स्वतंत्रता है। आप क्योंकि प्रकाशित हैं इसलिए पूर्णतया स्वतंत्र हैं। सभी अवतरणों द्वारा सिखाए गए धर्म आपके अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं । तभी आप वास्तव में इसाई या मुसलमान बनते हैं और समझ पाते हैं कि सभी धर्म उस सागर का एक अंश मात्र हैं। एक तरह से आप वास्तविक धार्मिक व्यक्तित्व बन जाते हैं। उत्थान ही धर्म का आधार है। एक अन्य प्रकार के भी सहजयोगी हैं जो पूर्णतया शक्तिशाली हैं। वे अपनी शक्ति को खोज निकालते हैं। अन्तर्दर्शन में वे इस शक्ति को देखते हैं तथा इसके विषय में बिश्वस्त हैं। यही निर्विकल्प स्थिति हैं, मुझ में आपका विश्वास है और मुझसे कुछ पाने के लिए आप मेरी पूजा करते हैं। परन्तु समझ लीजिए कि मैंने आपको भी महान बना दिया है । आपको अपनी शक्तियां विकसित करनी हैं। केवल मेंरी शक्तियों पर ही निर्भर नहीं रहना। केवल अपनी माँ की दी हुई शक्तियों का ही उपयोग नहीं करना, स्वयं को भी उसी स्तर तक उठाना हैं। आप प्रयत्न कर सकते हैं। अन्तर्दर्शन द्वारा आप ऐसा कर सकते हैं। ये सभी शक्तियां आपके अन्दर हैं। बिना स्वयं को उत्तरदायी समझे विकसित होकर आपने उत्तरदायित्व लेना है हमं अन्य शिष्यों से आगे बढ़ना है। ऐसा किए विना हम सहजयोग का मूर्खता के अन्य सागर में डुबों भी सकते हैं। अन्तर्दर्शन, तथा वास्तविकता के अन्य प्रमाणीं द्वारा हमें अपने व्यक्तित्व को विकसित करना है। परमात्मा के प्रेम की अभिव्यक्ति। हमारे अन्दर कुछ सहजयोगी अपने प्रकाश के विषय में चिन्तित हैं. वे चाहते हैं कि यह दीप सदा जलता रहे और न केवल उन्हें बल्कि अन्य लोगों को भी प्रकाशित करे। इस लक्ष्य के लिए वे कार्य करते हैं। वे इसका दायित्व लेते हैं। जंगल में बैठे वे ध्यान नहीं करते। आपको कार्य करना है। दूसरों तक सहजयोग पहुंचाना है। परमात्मा के साथ एकाकारित का सुन्दर अनुभव आपने उन्हें देना है। इसका आनन्द भी आपने लेना है अपने प्याले को भर कर बहुत से दूसरे जिज्ञासुओं को देने के लिए ही सहजयोग है। छोटी-छोटी चीजों के लिए वे मेरे पास नहीं आते। पूरे ब्रह्माण्ड को ज्योतिर्मय करने का स्वप्न होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार तथा कुण्डलिनी की जागृति द्वारा यह सर्वव्यापक धर्म लोगों के जीवन में लाया जाना चाहिए। लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए वे जी जान से प्रयत्न करते हैं । सूंझबूझ आज हमारे पुनर्जन्म का दिवस है। उचावस्था प्राप्त करने के लिए हमें इन बारह अवस्थाओं में से गुजरना है। सर्वोच्च अवस्था को चौदहवीं अवस्था कहते हैं जहाँ आप केवल यंत्र मात्र होते हैं और परम-चैतन्य के हाथों खिलौने बन आप यह भी नहीं जानते कि आप क्या है। ईसा ने अपना बलिदान स्वीकार किया क्योंकि उन्हें यह भूमिका निभानी थी सामूहिकता में प्रकट होने वाली घृणा को कम करने का प्रयास कीजिए। ज्योंही यह 'मैं भाव' समाप्त होगा सभी शक्तियाँ आपमें आने लगेंगी। परन्तु थोड़ा सा अहं सूक्ष्म रूप से अभी भी है कि मैं यह कार्य कर रहा हूँ। यह ईसा विरोधी गतिविधि है । अतः मन (मस्तिष्क) की रचना कार्य करने लगती है और लोग परस्पर आलोचना करने लगते हैं। यह खोखली बाँसुरी की तरह है। किसी भी रुकावट की अवस्था में यह बजेगी नहीं। हमारे सभी विचारों और बंधनों में से अहं, कि "मैं यह कार्य कर रहा हूँ", सबसे बुरा है। इसका समाप्त होना आवश्यक है क्योंकि इस तरह कुछ सहजयोगी ऐसे भी हैं जिन्हें अहसास है कि परम-चैतन्य ही उनके माध्यम से सभी कुछ कर रहा है। वे यंत्र मात्र हैं। कभी यदि वे असफल हो जाए तो उनमें संदेह उत्पन्न हो जाता है और परम-चैतन्य के प्रति समर्पित होने पर भी यह संदेह उनमें बना रहता है। कुछ अन्य लोग किसी चीज पर शक नहीं करते। वे जानते हैं कि परम-चेतन्य हा सहायता कर रहा है। वे समझ जाते हैं कि हमें शक्तियां प्राप्त हो गयी हैं और हम परमात्मा से जुड़ गए हैं। हममें शक्तियां हैं। कभी-कभी उन्हें भी संदेह हो जाता है। अहं बढ़ने के डर से कुछ लोग कोई कार्य नहीं करते। अपने अहं से वे भयभीत हैं तब अहं सूक्ष्म रूप से उनका पीछा करता है। पर कुछ जानते हैं कि शक्तियों का वरदान उन्हें प्राप्त हुआ है और अपने अन्दर ही इन सोचते हुए हम कभी आनन्द नहीं ले सकते । जब तक आप स्वयं को कर्ता समझते रहेंगे आप आनन्द के सागर में छलांग नहीं लगा सकते। अत: हमारे अन्त:स्थित इन चौदह अवस्थाओं के माध्यम से अपने पुनर्जन्म के विषय में हम बात कर रहे हैं। इन स्तरों को पार कर अचानक हम सुन्दर कमलों की तरह खिल उठते हैं। ईस्टर पर अंडे भेंट करना इस बात का प्रतीक है कि ये अंडे पक्षी बन सकते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चतन्य लहरी 18