चैतन्य लहरी अंक 9 व 10 ( 1992) खण्ड IV विषय सूची पृष्ठ 1. श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत 2. श्री बुद्ध पूजा. 3. श्री कृष्ण पूजा. 10 4. दुर्गा काली पूजा. 15 5. रूस यात्रा "सामूहिक हुए बिना आप सामूहिकता के महत्व को कभी नहीं समझ सकते। सामूहिकता आपको इतनी शक्तियाँ इतनी सन्तुष्टि और आनन्द प्रदान करती है कि व्यक्ति को सहजयोग में सामूहिकता पर सर्वप्रथम ध्यान देना चाहिए। किसी चीज की कमी हो, तो भी आप बस, सामूहिक हो जाइए । प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत ग्लैनरॉक, आस्ट्रेलिया, 1 मार्च 1992 आज मैं आपसे जहाँ लोग उलझ जाते हैं। सहजयोग में कुछ बातें समझ लेना ऐसे मामलों पर बात करना चाहती हैँ सम्पर्क परमात्मा से न था। पर अब आपका है। तो क्यां न आप मेरा उपयोग करें? और यदि नेता हैं तो आपको उनसे पूछना होगा। कोई भी अपने हिसाब से लोगों को उपदेश देना शुरू न कर दे। हमें उपदेश पसन्द नहीं है । काफी उपदेश दे चुके। अन्य लोगों को उपदेश देने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि आपको उपदेश देने ही हैं तो स्वयं को दीजिए, दूसरे लोगों को नहीं। व्यक्ति को समझ लेना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। किसी जड़ के छोर पर स्थित अणु द्वारा हम यह समझ सकते हैं। इसमें विवेक होता है और अपने पर इसका पूर्ण अधिकार होता है। इसका सीधा संबंध देवी शक्ति से होता है। अत: कुछ आवश्यक है। पहली बात - सहजयोग में धर्मान्धता का कोई स्थान नहीं है। कोई भी मेरे शब्दों का प्रयोग न करे, न ही ये कहे कि श्री माताजी ने ऐसा कहा था। इसी प्रकार चरचं में और अन्य स्थानों पर धर्माधिकारी वर्ग की रचना हुई। हर व्यक्ति पढ सकता है तथा पता लगा सकता है। यह कहना, कि श्री माताजी ने ऐसा कहा था, आप लोगों को वश में करने का तरीका है। यह दर्शाता है कि आप लोगों को अलग हटने के लिए कह रहे हैं। आप कार्य-भारी नहीं हैं। यदि मैं सहजयोगियों के कार्यक्रम में कोई बात कहती तो इसलिए कि यह मेरे तथा मेरे बच्चों की बीच दिल की बात होतो है। बिना अगुआ से सम्पर्क किए, अनियन्त्रित रूप से, आपके कम्प्यूटरों द्वारा इसे चहूं ओर फैलाया नहीं जाना चाहिए। सहजयोग में कोई उतावली नहीं है। अत: उतावलापन नहीं होना चाहिए। यह बात में स्पष्ट रूप से कह रही हूँ। स्वत: हो यह चलता है, पर वृक्ष की जड़ की तरह इसका हैं चित्त सामूहिकता पर होता है। यह ऐसी दिशा में चलता है कि न कोई वाद-विवाद होता है न झगड़ा, अर्थात् कोई बाधा ही नहीं होती। मान लीजिए कि यदि चट्टान सी कोई बड़ी बाधा आ जाए तो यह इसके गिर्द से निकल जाता है। वृक्ष के हित में यह चट्टान के कई चक्कर लगाता है। अत: भूतकाल से आप यह जान सकते हैं कि आप कहाँ तक पहुंचे हैं। तथा भविष्य से आप जान पाते हैं कि लक्ष्य कितनी दूर है। यह समझना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्चात्य बुद्धि में ये बातें बड़ी सुगमता से घुसती हैं। वे मुझ से सीधा सबंध नहीं रखना चाहते। एसा न करके आप समूह (ग्रुप) बनाने लगेंगे, एक व्यक्ति उठकर कहेगा "श्री माताजी ऐसा कहती हैं"। कोई अन्य मेरे टेप आदि का उपयोग करेगा। ऐसा करने की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। यदि वे किसी चोज को रचना करना चाहते हैं तो सीधं मुझसे बात करें अपनी मनमानी न करें क्योंकि यह तो सहजयोग के प्रति अति अनुचित दृष्टिकोण है। अंत: सर्वप्रथम हमें समझना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। केवल आप ही इसका सारा श्रेय नहीं ले सकते। इस पर आप बनावटी बातें नहीं थोप सकते जो सहजयोग की बढ़ोतरी में बाधक हों। आप इसे किसी विशेष मैंने जो भी कहा उसे कोई याद नहीं रखता। वे केवल मेरा नाम प्रयोग करते हैं । मां ने 1970 में ऐसा कहा था। 1970 में मैं कभी अंग्रेजी नहीं बोली। अत: ये सब ऐतिहासिक कथन प्रयोग नहीं किए जाने चाहिए। हम वर्तमान में रहते हैं । हो सकता है उस समय स्थिति कुछ भिन्न रही हो। हो सकता है तब सहजयोगी नए-नए सहजयोंग में आ रहे थे, हो सकता है उन्हें किसी प्रकार के पथ-प्रदर्शन की आवश्यकता रही हो। येह एक यात्रा है। उतराई या चढ़ाई पर चलते समय आपको भिन्न विधियाँ अपनानी पड़ती हैं। अब आप समतल पृथ्वी पर चल रहे हैं। आपका व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे ये लगे कि आप पर्वत पर चढ़ रहे हैं। अतः यह सहजयोग की पर्वत पर यात्रा है। सहजयोग की हमारे लक्ष्य तक यात्रा है और सहजयोग में अधिकाधिक लोगों को मुक्ति देना ही हमारा लक्ष्य है। नमूने में नहीं परिवर्तित कर सकते। यह स्वयं ही परिवर्तित होता है तथा कार्य करता है। पर इस पर कब्जा नहीं किया जाना चाहिए। मैं पन: आपको बताती हूँ कि किसी को भी नेता (अगुआ) से इसे नहीं छीनना चाहिए। मैंने आप लोगों से मिलकर कार्य करने के लिए नेताओं की नियुक्ति की है। पर सदा आपका सीधा संबंध मुझसे हैं। अभी तक परमात्मा को मानने वाले लोगों का सीधा अतः सहजयोग में पुरोहित तन्त्र के लिए कोई स्थान नहीं है, कभी नहीं। ये धर्माधिकारी अन्ततः आपमें और मुझमें दीबार बन जाते हैं। सभी नेताओं को बता दिया गया है कि कोई भी चैतन्य लहरी पत्र या वस्तु आपको मिले तो वह मुझे भेज दें। मैं स्वयं उसे हों। तो आपको व्यवहार की युक्तियाँ नहीं पता। विवाह के बाद देखना चाहूंगी। कभी-कभी बे ऐसा करते हैं, पर आस्ट्रेलिया में हमें कहना चाहिए 'हम'। 'मैं' नहीं कहना चाहिए। और समझना चाहिए कि पुरुष स्त्रियों से भिन होते हैं। आप (स्त्रियाँ) समाज की सुरक्षा करती हैं और पुरुष उसका सृजन। आपमें कहीं अधिक धैर्य एवं करुणा होनी चाहिए। नि:सन्देह यह गुण आपमें हैं। अपने स्त्री-सुलभ गुणों को अपनाइए, आप आश्चर्यचकित होंगी कि आप पुरुषों के लिए शक्ति बन गई हैं। आप ही पुरुषों की शक्ति हैं। इसी कारण पुरुषों को आपका सम्मान करना चाहिए। यदि पुरुष स्त्रियों का सम्मान नहीं करते तो उन्हें हर प्रकार के कष्ट होते हैं - विशेष तौर पर भौतिक, वैभव तथा मान संबंधी कष्ट। कुछ स्त्रियाँ अत्यन्त अधिक अपेक्षा तथा आशा करती हैं। शायद रॉमियो-जूलियट सम रोमांचकारी फिल्में देखने का प्रभाव हो। पर उन्हें समझना चाहिए कि शेक्सपीयर तो अवधूत थे। वे इस तरह के जीवन की सारहीनता पर प्रकाश डालना चाहते थे। रोमियो-जुलियट, दोनों की मृत्यु हो गई। एक-दूसरे की सहचारिता का आनन्द के नेताओं का मुझे बहुत बुरा अनुभव है। पर अब यहाँ पर कुछ आपको नेता एक अत्यन्त बुद्धिमान एवं विवेकशील व्यक्ति है। मेरे विचार में उसमें कोई कमी नहीं। केवल एक बात है कि कभी-कभी वह लोगों से कुछ अधिक ही कोमल होता है। दो स्त्रियों के कारण कल मुझे परेशान होना पड़ा। इसका कारण केवल एक था कि उसने उन्हें यह नहीं बताया कि वे कितनी भयानक थीं। अत: मुझे उनकी बकवास झेलनी पड़ी। एक नेता यदि अधिक नरम है तो लोग उसके सिर चढ़ जाएंगे तथा यदि वह सख्त है तो उसके पीछे पड़ जाएंगे। महसूस करने की बात केवल यह है कि सारी ही जीवन्त प्रक्रिया है और किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाकर माँ इस कार्य को अधिक सहज ढंग से कर रही है। मान लीजिए कि हर व्यक्ति छोटी-छोटी चीज के लिए मुझे लिखे तो बड़ा कठिन होगा। व्यर्थ की चीजों के लिए मुझे लिखने का कोई लाभ नहीं। न ले सके। कति इंग्लैंड में भी हमारे सामने बहुत सी समस्याएं थीं। मुझे पता चला कि विवाह से विवाह से पूर्व रोमांस और विवाह के बाद झगड़ा। तो विवाह दूसरी बात पतियों या पत्नियों की है। आप ऐसी फिल्में या दूरदर्शन न देखें जिनमें पति-पत्नि को झगड़ते दिखाया हो । ऐसा करने पर तांते की तरह, आप कुछ कठोर शब्द सीख लेंगे तथा पति-पत्नि से वैसा ही व्यवहार करेंगे। पूर्व ही रोमांस की पुस्तकें वे पढ़ते हैं। की आवश्यकता ही क्या है? मैं जब कहती हैँ पुरुष ही परिवार का मुखिया है तो इसका अभिप्राय यह नहीं कि पुरुष, स्त्रियों पर रोब जमाने लगे। मान लीजिए कि मैं कहूं कि अमुक बव्यक्ति आपका नेता है तो मेरा मतलब यह नहीं होता कि वह आप पर प्रभुत्व जमाएं। यदि मस्तिष्क शरीर पर प्रभुत्व जमाने लगे तो शरीर का क्या होगा? इस तरह के परिणाम निकालना मुर्खता है। पर आप परिवार के हृदय हैं। मस्तिष्क की मृत्यु पहले हो सकती है पर हृदय तो अन्त में ही मृत होता है। बहुत से प्रश्न सुगमता से सुलझाए जा सकते थे। मेरे विचार में विवाह का निर्वाह करना जितना स्त्रियों का कार्य है उतना पुरुषों का नहीं। प्राय: पुरुष विवाह नहीं करना चाहते। चाहे उनकी कोई जिम्मेवारी नहीं की। फिर भी वे विवाह नहीं करना चाहते। वे थोड़ा सा डरते विशेषकर पश्चिमी देशों में - भारत में नहीं। भारत में वच्चे पैदा करने इत्यादि हैं लोग विवाह करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें प्रेम करने वाला, सामने न बोलने वाला, नम्र तथा उनकी बात को सुनने वाला कोई साथी मिलेगा। पर पश्चिम में मैंने देखा है कि पुरुष विवाह ही नहीं करना चाहते। एक व्यक्ति से मैंने विवाह करने को कहा तो वह तीन दिन तक ओझल ही हो गया। अत: समझने का प्रयत्न कीजिए कि दिल और दिमाग में पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए। बच्चे सहजयोग समाज का चित्त हैं तो यहाँ पर जब मैं किसी को सिर कहती हूँ तो सिर किस प्रकार हृदय पर रोब जमा सकता है? यह नहीं हो सकता। तो लोग यहाँ कहाँ से मेरे कुछ शब्द ले लेते हैं तथा सहजयोगः में अपनी दुर्बलताओं को न्याय संगत ठहराने के लिए इनका प्रयोग करते हैं। पर इस तरह का पलायन आपकी उन्नति में सहायक न होगा। आप अपने ही विरुद्ध चल रहे हैं। यह आपके हित में नहीं। आपको विवाह करने होंगे। पर मैं आपको बता दें कि इन विवाह संबंधी समस्याओं का कारण स्त्रियां का समझौता न कर पाना है। पहली बात यह है कि आपको अपने पतियों को बहुत प्रेम करना होगा। वास्तव में हर चीज के लिए वे आप के आश्रित हो जाएं। फिर वे क्या करेंगे? ऐसा आपको प्रेमपूर्वक करना है, कष्टदायी ढंग से नहीं। किसी चीज की मांग मत कौजिए, कुछ आशा मत कीजिए। मात्र स्नेहमय और करुण बनकर आपना प्रेम प्रकट, कीजिए। तब उन्हें आदत पड़ जाती ह मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आप इन घिसं पिटे विचारों को सहजयोग में स्वीकार करेंग तो आपका पतन होगा, आप सड़ जाएंगे। हम नए और ताजा हैं। हम जीवित हैं । स्त्री-पुरुषों के बारे इस प्रकार के विचार हम स्वीकार नहीं है। इसके विना वे रह नहीं पाते। ये सब युक्तियाँ तो आपके माता-पिता को बतानी चाहिएं थी। शायद वे भी आपसे ही रहे म चैंतन्य लहरी है। छपने वाली तथा वितरित होने वाली चीजें तो अगुआ द्वारा देखी जानी चाहिएं। इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है। लिखी हुई कोई पुस्तक, टेप आदि सब अगुआ की आज्ञा तथा सूझ-बूझ ही निकलने चाहिएं। में कहूंगी कि अगुआ अवश्य उन कागजात पर हस्ताक्षर करे। तब करते। पुरुष को परिवार का मुखिया कहने से मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि आप अपनी पत्नी पर रोब जमाएं या उसे तंग करें। न ही इसका अर्थ यह है कि नेता रोब जमाए। उन्हें अपना विवेक, प्रेम, करुणा के उपयोग से लोगों का उचित प्रकार मार्ग-दर्शन करना चाहिए। से मैं उसे उत्तरदायी उहराऊँगी। परन्तु निरंकुशता पूर्वक यदि आप कार्य करेंगे तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। छोटी-छोटी चोजें भी मैं आपको बताऊँगी में विश्व निर्मल धर्म शुरू करने को पूछा गया। मैंने कहा ठीक है। मैं नहीं जानती थी यह एक एसोसिएशन होगी जिसके चुनाव होंगे विश्व निर्मल धर्म तो हर जगह है। पर काई एसोसिएशन आदि नहीं। एक प्रकार का समाज विश्व निर्मल धर्म का प्रचार कर रहा है । इसकी कोई संस्था नहीं हैं। हमें कोई चुनाव नहीं चाहिए। यदि कुछ गलत लोग घुस गए तो सहजयोंग को पूरी तरह निकाल दंगे। अतः आप केवल न्यास (ट्रस्ट) बना सकते हैं। यदि आप कुछ और करना चाहते हैं तो अलग से करें यह विश्व निर्मला धर्म या सहजयोग के नाम पर नहीं होना चाहिए। मेरे हां कहने का अर्थ यह नहीं कि आप एसोसिएशन आदि कुछ भी बना लें। अब तक जो गलती हुई है उसे ठीक करें। इन्हें कम किया जाए। केवल उन्हीं लोगों को चुना जाए जो सहजयोग में बहुत अच्छे हैं और जो अभी तक विवेक पूर्वक तथा सीधे-सच्चे ढंगे से कार्य करते रहे हैं । मुझे एक हास्यास्प्रद पत्र मिला जिससे पता चला कि किसी नेता की पत्नी ने सहजयोगिनियों को घर तथा कार्यक्रमों पर आने से रोका क्योंकि 'मैं' उनके घर नहीं जा पाई। क्या आप ऐसा सोच सकते हैं? यह मूर्खता है। वह नहीं जानती कि ऐसा करने से सहजयोग में उसका कितना पतन हो रहा है। मैं जहाँ चाहूं जा सकती हूं। पर उसे दोष अपने पर लेना चाहिए था। यह 'मेरा' घर है, ऐसा कहना मूर्खता की पराकाष्ठा है। मां को मेरे घर आना चाहिए। भारतीय विशेषकर ऐसा कहते हैं। श्री माताजी कृपया मेरे घर आइए और मरे साथ खाना खाइए। आप है कौन? आप एक सहजयोगी हैं। तो आपका घर मेरा है, आप मेरे हैं, सभी कुछ मेरा है। आपके घर आने में क्या है? क्या आप अलग हैं? आपके सभी घर मेरे हैं मैं यदि जाती हूँ तो भी इसका अर्थ ये नहीं कि मैं आपको किसी अन्य व्यक्ति से अधिक प्रेम करती हूँ। ? मुझ से मैलबॉन्न किसी ने मुझ से पूछा कि आपने इसाई धर्म में क्यों जन्म लिया? मैंने कहा कि कहीं तो मुझे जन्म लेना ही था। अच्छा हुआ कि इसाईयों के यहाँ जन्म लिया क्योंकि वे मानसिक रूप से पक्के धर्मान्ध होते हैं। यह अधिक भयानक है। मुसलमानों को आप समझ सकते हैं क्योंकि उनमें वह चालाकी नहीं है। वे स्पष्ट रूप से धर्मान्ध हैं। पर इसाई तो बहुत ही अधिक धर्मान्ध हैं। एक और सलाह दी गई थी कि हम अपना प्रक्षेपण बाहर की दुनिया के सम्मुख करें। यदि इसका अर्थ यह है कि हम दूसरी संस्थाओं तक जाएं तो यह गलत है। ये सारी संस्थाएं मृत ये जीवन्त संस्थाएं नहीं हैं। परन्तु यदि ये हमारे पास आना चाहें तो ठीक है। हमें अपना सिर फोड़ने के लिए उनके पास नहीं जाना चाहिए। वहाँ जाकर न केवल विरोधियों में फरसेगे बल्कि उनसे आप नकारात्मकता भी ले लेंगे। समझने का प्रयत्न करें। हमें अति सावधान रहना है। आप केवल ऐसे सहजयोगी ले सकते हैं जो जिज्ञासु हैं, ईमानदार हैं, नम्र हैं और जिन्हें सहजयोग से धन तथा सत्ता की आवश्यकता न हो। किसी के घर जाना अब मेरे लिए समस्या बन रही है। क्योंकि जिसके यहाँ मैं जाती हूँ रस व्यक्ति को अहंकार हो जाता है कि श्री माताजी मेरे घर आई थीं। अत: फिर कभी आप न कहें कि श्री माताजी यह मेरा घर है। श्री माताजी यह आपका घर है। मैं वहाँ जाऊँ तो भी ठीक, न जाऊँ तो भी ठीक। इससे क्या फर्क पड़ता है? आस्ट्रेलिया से दो व्यक्ति आए थे और अब देखिए कितने सारे हैं। नि:सन्देह सहजयोग बढ़ेगा, पर इसे आयोजित मत कीजिए। आयोजन शुरू करते ही बढ़ोतरी रुक जाएगी। जैसे आपने देखा होगा कि काटकर सुव्यवस्थित ( आयोजित) करने से पेड़ छोटा हो जाता है ( बौना ) । मैंने ऐसा कोई वृक्ष नहीं देखा जो आयोजन से बढ़ता हो। ज्यादा से ज्यादा आप इसका पोषण कर सकते हैं, पानी दे सकते हैं । पर आप इसके विकास की गति नहीं बढ़ा सकते। मैं तुम्हें एक बार फिर से बताती हूँ कि बिना नेता से के सम्पर्क किए और बिना उसकी जांच के कम्प्यूटर माध्यम से कोई बात नहीं फैलानी। ऐसा करना मुझे कठिनाई में डाल सकता है और मुझे जेल भी भिजवा सकता है। आप समझते क्यों नहीं? आपकी जो इच्छा करती है लिख देते हैं। इस प्रकार का गैर जिम्मेदारी भरा आचरण मेरी समझ में नहीं आता। मैंने जो कभी नहीं कही वे बातें भी कही जाती हैं। इससे अपरिपक्वता तथा उतावली झलकती है। ऐसी बातों को पूछा जाना चाहिए। अपनी विवेक बुद्धि का उपयोग कीजिए। अपने अगुआ से सम्पर्क करना अत्यन्त आवश्यक सभी सस्थाएं विकास की गति को कम करती हैं । आरम्भ में चाहे यह प्रतीत हो कि आयोजित करने से गति बढ़ गई है। चैतन्य लहरी এ लहरियाँ आप से बह रही हैं, अपने सिर की अच्छी तरह मालिश कीजिए। शनिवार को एक घंटा लगाइए। यह शनि का दिन है, कृष्ण का दिन है। उन्हें मक्खन-तेल बहुत पसन्द है। छोटी-छोटी बातों को समझना चाहिए। इसाई, मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दु आदि धर्म भी आयोजन के बाद बनावटी रूप से बढ़े और खोखले से हो गए। हमें ठोस व्यक्तियों तथा ठोस अन्तर्जात धर्म की आवश्यकता हैं। इन बनावटी चीजों को हमनें नहीं अपनाना। आजकल हम बहुत सी बनावटी खाद उपयोग कर रहे हैं। लोगों को समझ आने लगी है कि यह हमारे लिए हानिकारक है। अत: सहजयोग को स्वाभावि ढंग से, बिना बनावटी संस्थाएं बनाए, परमात्मा की कृपा से कार्य करने दीजिए। बनावट तो पतन ही लाती है। ज। में समझ सकती हूँ कि आपको धूप बहुत पसन्द है। पर आस्ट्रेलिया में तो बहुत धूप है फिर भी न जाने क्यों यह आपको पसन्द है। फैशन के कारण आप बिगड़ते हैं। आपकी चमड़़ी में चमक नहीं आ सकती उपचार के रूप में आप सूर्य स्नान कर सकते हैं भारतीय लोग अंग्रजों के इस तरह के अवांछित सूर्य-स्नान पर हेरान होते थे। अब आपके बच्चों के बारे में। पश्चिमी बच्चों के स्वभाव का अध्ययन करती रही हूं। उनका चित्त कभी ठीक चीजों पर नहीं होता। पढ़ाई पर तो बिल्कुल नहीं होता। खाने पर उनका चित्त होता है। व्यक्तिगत शुद्धि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। वहुत से पानी का उपयोग कर हाथ धोइए। पाखाना जाने पर हर बार पानी इस्तेमाल कीजिए। ऐसा न करने पर आपका मूलाधार कभी ठीक न होगा। आपके बच्चे अपने दांत भी नहीं साफ करना चाहते। दांत साफ करने या स्नान करने को यदि उनसे कहें तो वे रोने लगते हैं। भारत की चिलचिलाती गर्मी में भी वे स्नान नहीं करना चाहते। उनसे दुर्गन्ध आती है। पर यदि आप उनसे कहें तो वे कहते हैं "हमारे माता-पिता से भी ऐसी ही गंध आती है"। उनके मुंह से भी दुर्गन्ध आती है। भारत में तो हमें सुबह-शाम दांत साफ करने चाहिएं। यह अति आवश्यक है। भारतीय संस्कृति ने ये सब बातें हमें बहुत पहले से सिखाई पश्चिमी देशों के लोगों को भारत में दस्त हो जाते हैं। आप न गर्मी सहन कर सकते हैं न सर्दी। आप अन्तर्दर्शन करें। थोड़ा सा काम करने से आप थक जाते हैं। क्या कारण है? कारण यह है कि आप सोचते बहुत अधिक हैं। ऐसा ही आप विवाह होने पर करते हैं। आप सोचने लगते हैं कि मेरी प्राथमिकताएं क्या हैं, में क्या करूं, विश्लेषण करने लगते हैं। जो भी करना है कर डालिए। बहुत अधिक सोचना आपको रोगों के प्रति दुर्बल बनाता है। मूलाधार चक्र, नि:सन्देह, अति महत्वपूर्ण है। यदि मूलाधार दुर्बल है तो आप पकड़ जाते हैं। आपको कोई रोग हो सकता है। पश्चिम में तो गुप्त रोग भी बहुत आम हैं। पर भारत में शक्तिशाली मूलाधार के कारण ऐसा नहीं है। अत: अब पहली समस्या यह है कि अपने मूलाधार को किस प्रकार दृढ़ करें। दूसरे जो खाना आप खाते हैं वह ताजा नहीं होता। ताजा खाना खाने का प्रयत्न कीजिए। आस्ट्रेलिया में तो आपको ताजा खाना उपलब्ध हो सकता है। जहाँ तक हो सके कार्बोहाइड्रेट अधिक लीजिए। पतले होने की अधिक चिन्ता न कीजिएं। थोड़े से मोटे व्यक्ति लहरियों को अच्छी तरह सोखते हैं क्या आप जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ चर्बी पर बैठती हैं इस तरह वे स्नायुतंत्र में जाती हैं। क्योंकि आपके स्नायु चर्बी से बने हैं और आपका मस्तिष्क भी चर्बी से बना है। 1. थी। इन सब कामों के लिए किसी को कहना नहीं पड़ता। खेल-खेल में ही बच्चों को हम यह सब सिखा देते हैं। सफाई, स्नान आदि आपके तथा आपके बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत सफाई आप लोगों की बहुत कम है। घर तो आपके पूरी तरह साफ होंगे। कालीन पर यदि कुछ गिर जाए जो आप इसे तुरन्त साफ करेंगे क्योंकि आपने इसे बेचना है। बेचने योग्य हर चोज की आप देखभाल करते हैं। अन्य चीजों की नहीं। सहजयोग में हमें समझना चाहिए कि हमारी कोई भी वस्तु बिकाऊ नहीं है। हमारे पास जो भी कुछ है इसे हम स्वयं रखेंगे, अपने बच्चों को देंगे या दूसरे लोगों को भेट कर देंगे । कोई चीज बेचेंगे नहीं। आपके बच्चे भी अपने शरीर की सफाई से अधिक ध्यान बिकने योग्य वस्तुओं का रखते हैं। हमें अपने विचार बदलने होंगे और कहना होगा कि हम अपनी किसी भी वस्तु को बेचेंगे नहीं। कभी आपको अपना घर बेचना भी पड़ता है तो हर हाल आपके मस्तिष्क में जो भरा जाता है आप उसे स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि उद्यमियों ने आपको वश में कर लिया है। विवेकहीनता के कारण हम यह समझ नहीं पाते। उन्होंने आपको सिर में तेलं लगाने से रोका और आप रुक गए। परिणामतः आप गंजे हो जाते हैं। वे विग बेच सकते हैं बालों में उसके एक ही दाम मिलेंगे चाहे आप इसे सजाइए या नहीं। को ठीक से बढ़न के लिए पोषण चाहिए। इन्हें भूखा क्यों मारते लोग तो अनसजे घर खरीदना पसन्द करते हैं । हैं? आप अपने शरीर की भी मालिश कीजिए। सिर की मालिश कीजिए। अपनी देखभाल कीजिए। बिना तेल के बिखरे। बाल तो भुतों को बुलावा देना है। आप साक्षात्कारी लोग तो यही भौतिकवाद है कि हम बेचने के लिए चीजें खरीदने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत हमें चाहिए कि हस्तकला की सुन्दर-सुन्दर वस्तुएं खोजें, इनमें से कुछ खरीदें चैतन्य लहरी = he श० तथा ये अपने बच्चों को तथा उनकी सन्तानों को दी जाएं। करने के बारे में सोचना चाहिए! हम सहजयोग के लिए कुछ लिए क्या कर सकते हैं? आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैंने अपने पति का बहुत साधन खर्च कर दिया है। मैं आस्ट्रेलिया में एक बार फिर कुछ करने वाली हूँ जो यहाँ के लोगों के लिए बहुत हितकर होगा। इसके लिए मैं अपना पैसा भी लगा सकती हूँ। इसके बावजूद भी लोग नहीं समझते कि मेरे पति मुझे यह सब करने की आज्ञा क्यों देते हैं। क्योंकि बे जानते हैं कि इस प्रकार उन्हें पूरे आशीर्वाद मिलते हैं उन्होंने सहजयोगियों को बताया है कि सहजयोग के कारण ही मुझे ये सब इनाम मिले हैं। परन्तु वे ( श्री माताजी) तो परमात्मा के लिए कार्य कर रही यह भी कहना चाहती हूँ कि आपने बहुत सा धन दिया। मेरे कार्यक्रम में बच्चे के रोने का कारण जरूर खोजें। अवश्य ही कोई परेशानी या बाधा होगी। यदि वच्चा मेरी उपस्थिति में रोता हैं या डरता है तो कोई बाधा अवश्य हैं। आप इस बाधा की दूर करें। तो अब हमें अपने प्रति दृष्टिकोण बदलना होगा। हम आशीर्वादित लोग हैं। हमें अपने शरीर, अपने बच्चों तथा भौतिकता से अधिक महत्वशील वस्तुओं की देखभाल करनी होगी। यह आत्मा है। क तो आखिरकार हम इस परिणाम तक पहुंचते हैं कि जिस आत्मा ने हमें यह सारा सौन्दर्य, सुन्दर चांदनी, हमारे कार्यों के लिए सुन्दर धूप प्रदान की है तथा हमें इतना मधुर बनाया है, उसकी सन्तुष्टि के लिए और उसका आनन्द लेने के लिए हमने क्या किया। अत: आत्मा ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हमें आत्म-आनन्द खोजना चाहिए। जितना अधिक आप आत्मा के विषय में सोचेंगे उतना ही अधिक गहनता में उतरेंगे। अत्यन्त गहन आनन्द आपको प्राप्त होगा आध्यात्मिकता में स्थापित हो सामूहिकता का आनन्द लेते हुए अति सुन्दर रूप से आप स्थिर हो जाएंगे। हैं। मैं यह उदारता है। पर यदि आप सहजयोग के लिए धन देते हैं तो किसी अन्य रास्ते से आपको धन मिल जाता है। अपने ब्यक्तिगत उपयोग के लिए मुझे पैसा नहीं चाहिए। यह आपकी उदारता का द्योतक है। सभी अगुआओं की यह सामान्य बात है। मैलबॉर्न का अगुआ कहता है कि कोई पैसा नहीं देना चाहता। वे केवल सहजयोग से लाभ उठाना चाहते हैं। लक्ष्मी जी के दृष्टिकोण से यह ठीक बात नहीं है। व्यक्ति को यह भी समझना है कि एक बार सहजयोग में अने के बाद, चाहे आप कुछ सहजयोग कोे लिए खर्चते हैं या नहीं, आप स्वयं को सहजयोग की जिम्मेवारी समझने लगते हैं। यह अति अनुचित है। हर छोटी-छोटी बात में उन्हें सहायता सामान्य बातों में - कोई भी विशेष कार्य करने से पहले अपने अगुआओं से आज्ञा लीजिए। इसके बाद आपकी अपनी समझदारी है। अन्त में - सभी अगुआओं को शिकायत है कि सहजयोग के लिए कोई भी धन नहीं देना चाहता। अब आप देखिए कि जो पैसा आप पूजा के लिए देते हैं उसकी तो मैं चाहिए। नि:सन्देह उनकी सहायता होनी चाहिए। जिनके पास आपके लिए चांदी खरीद लेती हूं। आपको यूरोपियन लोगों के बराबर चांदी दे दी जाती है जबकि आपका पैसा उनसे कम होता है । पहले वे पूजा के लिए एक डॉलर दिया करते थे जो सिक्कों के रूप में होता था और जिसे मैं वापिस ले आती थी। मैं इसका उपयोग अपने लिए नहीं करती, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यद्यपि ये मुझे दिया जाता है और सामान्यतः मुझे इसका उपयोग करना चाहिए। पर मैंने सोचा कि इसे खर्चने के स्थान पर आपको चांदी दे दें क्योंकि चांदी के बर्तन के लिए अति आवश्यक हैं और अति शुभ हैं। पर लोग बड़ी हिचकिचाहट पूर्वक पैसा देते हैं। मैं जानती हूँ कि आपको पैसे की कठिनाई है। पर इस कठिनाई का एक कारण यह भी हो करे। व्यक्ति को समझना चाहिए कि सहजयोग आपकी जिम्मेवारी सकता है कि पूरे विश्व में आप सबसे कम पैसा सहजयोग के है; आप सहजयोग की जिम्मेवारी नहीं हैं। यह सर्वोत्तम लिए देते हैं। इतना कम और कोई भी नहीं देता। भारत में कम से कम 21 रु. और 11 रु. देते हैं। तो जो भी कुछ आप इकट्ठा करेंगे, मैं कुछ नहीं कहूंगी। और चांदी आपको दे दूंगी। आप इतने सारे लोग हैं। मुझे ऐसा करना पड़ता है, आपको तथा यूरोप को अधिकतर पैसा देना पडता है। आप भी यूरोप की देखभाल करनी चाहिए, न कि सहजयोग आपकी देखभाल करे तरह ही एक महाद्वीप हैं। परन्तु व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे सहजयोग के धन नहीं है हम उनकी सहायता करने का प्रयत्न करते हैं। पर वे एक प्रकार के बोझ बन जाते हैं और अन्य सहजयोगियों तथा से भी वे बहुत अधिक आशा करते हैं। किसी का विवाह मुझ कर दो तो बह सिरदर्द बन जाता है, पत्र पर पत्र, टेलीफोन पर टेलीफोन उचित नहीं। यदि कोई बच्चा बीमार है तो बेशक आप मुझे सूचित करें। पर क्रोधी और दुर्व्यवहार करने वाला बच्चा मेरे लिए सिरदर्द है। हो सकता है आप क्रुद्ध स्वभाव हों और पति-पत्नि परस्पर झगड़ते हों। तो इस दोष को आप क्यों नहीं दूर करते? वे चाहते हैं कि उनका हर छोटा-छोटा कार्य भी सहजयोग है। पूजा THR दृष्टिकोण है। नि:सन्देह एक प्रकार आप सहजयोग की जिम्मेवारी हैं। पर दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए? अब आप काफी परिपक्व हैं। बेटा जब बड़ा होकर परिपक्व हो जाता है तो वह माता-पिता की देखभाल करता है इसी प्रकार आपको सहजयोग की और आप सदा सहजयोगियों को परेशान करते रहें । अच्छी तरह समझ लोजिए कि आपके लिए सहजयोग चैतन्य लहरी उत्तरदायी नहीं है। आप सहजयोग के लिए उत्तरदायी हैं। तब इस पर अपनी बुद्धि लगाएंगे। आप हैरान होंगे कि दूसरों के सहजयोग ने आपको इतना कुछ दिया है। आपने परमात्मा के लिए जब आप कुछ करने लगेंगे तो यह सहजयोग के लिए लिए क्या किया है, सदा इस प्रकार सोचें। यदि आप इस प्रकार सोचने लगंगे तो जितना अधिक कार्य आप सहजयोग के लिए है। सहजयोग में जो भी कुछ आप सहजयोग के लिए करते हैं करेंगे, उचित, जीवन्त और सन्तुलित ढंग से जितना अधिक आप सहजयोग के लिए अपनी बुद्धि लगाएंगे, उतना ही एकाकारिता है। इसे हम पूजा भी कह सकते हैं। एक बार जब अधिक आपकी सहायता होगी, उतने ही अधिक आप वढ़ेगे और उतना ही अधिक आनन्द आप लंगे। आज की प्रवचन आप सब के लिए है क्योंकि मैं नहीं जानती की किस पर क्या लागू होता है। दूसरों के लिए हम इस बात को न समझ अपने लिए जाने कि हम सहजयोग पर बोझ न बन कर सहजयोग का सहारा हांगे। हमें सहजयोग की देखभाल करतनी है। यह अति सुन्दर दृष्टिकोण है। मुझे (श्री माताजी को) सहजयोग की आवश्यकता नहीं हैं। आत्मा ने जो हमारे लिए किया उसके लिए हम इसका है। पर मैं सहजयोग तथा सहजयोगियों के लिए चिन्तित हूं। मेरे लिए भी वे सभी मेरी जिम्मेवारी हैं। मुझे उनकी दंखभाल देखा है। एक महान ऊंचाई को अचानक ही आप पा लेते हैं । करनी है, उनकी चिन्ता करनी है मुझे उनकी बात सुननी है। मुझे विश्वास है कि आस्ट्रेलिया के लोगों के साथ भी ऐसा ही मुझे उनके पत्र आदि मिलते हैं। मेरा अभिप्राय है कि इस तरह का कार्य यदि किसी को करना पड़े तो कोई इसे स्वीकार न करेगा। हर हाल में मुझे सहारा देना है। क्योंकि मेरी आत्मा सन्तुष्ट होती है। यह सन्तुष्टि के लिए है, मेरी अपनी सन्तुष्टि उन्हें चाहिए कि स्वयं को साफ करें, ठीक करें तथा अपनी के लिए। यह स्वार्थ है। जब आप उस आत्मत्व तक पहुंच देखभाल करें। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है। जाएंगे तो समझ सकंगे कि आत्मा की आवश्यकता क्या है। अति लाभकारी होगा एक प्रार्थना की तरह। सभी कुछ प्रार्थना यह एक प्रार्थना है, परमात्मा से घनिष्टता है, परमात्मा से आप ऐसा करने लगेंगे तो आप चिन्ता करनी छोड़ देंगे कि कौन आपकी आलोचना करता है, लोग आपको क्या कहते हैं आदि। पर सुन्दर संबंधों तथा सूझ-बुझ की अनुभव आप करेंगे। विश्वास है कि निश्चित ही यह शिव पूजा बहुत ही मुझे ऊंचे स्तर पर आपको स्थापित करेगी। और स्थापित होने पर आप इसे जान सकंगे। यहाँ हमारा सम्पर्क सीधे अपनी आत्मा से है। हम आत्मा के विषय में जानते हैं तथा उसके प्रति कृतज्ञ सम्मान करते हैं। इस तरह से मैंने (श्री माताजी ने) परिवर्तन घटित होगा। अपने क्षुद्र भेदभावों को भूल जाइए। धन एवं सत्ता के लिए लड़ना मूर्खता है। ठीक होने का प्रयत्न कीजिए। मैलबोर्न में इसी मुर्खता के कारण कुछ लोग पकड़ जाते हैं। परमात्मा आप पर कृपा करें। बुद्ध पूजा शुडी कैम्प, इंग्लैंड - 31.5.92 सभी धर्म किसी न किसी प्रकार की धर्मान्धता में विलय हो गए क्योंकि किसी को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त न होने के वालों में से एक थे इसीलिए उन्हें आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति कारण सभी ने अपने ढंग से धर्म की स्थापना कर ली। ताओ हुई। और जेन भी इसी की शाखाएं हैं। श्री बुद्ध को लगा कि व्यक्ति को जीवन से आगे कुछ खोजना चाहिए। वे एक राजकुमार थे, है। वे न जानते थे कि शुद्ध इच्छा क्या है। इसी कारण वे लोगों उनकी अच्छी पत्नी तथा पुत्र थे और उनकी स्थिति में कोई भी को न बना पाए कि कुण्डलिनी की जागृति के द्वारा ही अन्य व्यक्ति अति सन्तुष्ट होता। एक दिन उन्होंने एक रोगी, एक भिखारी तथा एक मृतक को देखा। वे समझ न पाए कि ये सारे कष्ट किस प्रकार आए। आप में से बहुत लोगों को तरह से वे भी आपने परिवार और सुखमय जीवन को त्याग कर सत्य की खोज में चल पड़े। सत्य प्राप्ति के लिए उन्होंने सभी उपनिषद तथा अन्य ग्रन्थ पढ़ डाले पर कुछ प्राप्त न कर सके। उन्होंने भोजन त्याग दिया। सभी कुछ त्याग कर जब वे एक बढ़ के वृक्ष के नीचे रह रहे थे तो आदिशक्ति ने उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया। वे विराट के विशिष्ट अंश वनने उन्होंने खोज निकाला कि आशा ही सभी कष्टों का कारण साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। क्योंकि उन्होंने तपस्वी जीवन बिताया था अत: बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तपस्या एक नियम बन गई। बिना भोजन तथा निवास का प्रबन्ध किए श्री बुद्ध अपने साथ कम से कम नंगे पांव चलने वाले एक हजार शिष्य रखा करते थे। उन्हें अपने सिर के बाल मुंडवाने पड़ते थे सर्दी हो या गर्मी एक ही वस्त्र ओढ़ते थे। उन्हें नाचने गाने या किसी भी प्रकार के मनोरंजन की आज्ञा न थी। जिन गांवो चैतन्य लहरी 16 करते हैं । जैन प्रणाली में कुण्डलिनी जागृति की कठोर विधियाँ खोज निकाली गई। यह कठोरता इस सीमा तक गई कि लोगों की रीढ़ की हड्डी तक टूट जाती है। टूटी रीढ़ में कुण्डलिनी कभी नहीं उठेगी। मैं विदित्म जैन प्रणाली के मुखिया से मिली। वह बहुत वीमार था तथा उसे रोग मुक्त करने के लिए मुझ बुलाया गया। मैंने पाया कि वह तो आत्मसाक्षात्कारी था ही नहीं और न ही उसे कुण्डलिनी के बारे में कुछ पता था। मैंने उससे पूछा कि जैन क्या है इसका अर्थ है ध्यान। जैन के बारे वह इतना भ्रमित था कई शताब्दियों में उनमें कोई साक्षात्कारी न हुआ। आप कल्पना कीजिए कि कितने सहज में, बिना किसी बलिदान, तपस्या या त्याग के आपकों आत्मसाक्षात्कार में वे जाते थे वहाँ से भिक्षा मांगकर भोजन एकत्र किया जाता था । वह भिक्षा भोजन अपने गुरू को खिलाने के बाद वे स्वयं खाते थे चिलचिलाती गर्मी, कीचड़ या वर्षा में वे नंगे पांव चलते थे परिवार का वे त्याग कर देते थे यदि पति-पत्नी भी संघ में सम्मिलित हो जाते तो भी पति-पत्नी की तरह रहने की आज्ञा उन्हें न होती थी। व्यक्ति को सभी शारीरिक, मानसिक, तथा भावनात्मक आवश्यकताए त्यागनी होती थी। बुद्ध धर्मी, चाहे वह सम्राट हो क्यों न हो, यह सबकुछ करता है। सम्राट अशोक भी बुद्ध धर्मी थे उन्होंने पूर्ण त्यागमय जीवन व्यतीत करने का प्रयत्न किया। यह अति कठिन जीवन था पर उन्होंने सांचा कि ऐसा जीवन-यापन करके वे आत्मसाक्षात्कार को पा लेंगे। श्री बुद्ध के दो शिष्यों को साक्षात्कार मिल सका। पर उनका पूरा जीवन कठोर एवं नीरस था। इसमें कोई मनोरंजन न था। सन्तान तथा परिवार की आज्ञा न थी। प्राप्त हुआ! बुद्ध, ईसा और महावीर आज्ञा चक्र पर विराजित हैं। आज्ञा चक्र पर तप हैं। तप का अर्थ है तपस्या। सहजयोग में तपस्या का अर्थ है ध्यान धारणा आपको पता होना चाहिए कि ध्यान धारणा के लिए कब उठना है। सहजयोगी के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। बाकी सभी कार्य स्वतः हो जाते हैं। गहनता में उतरने के लिए आपको ध्यान धारणा करनी होगी। आपको सिर नहीं मुंडवाना, नंगे पांव नहीं चलना, भूखे यह संघ था पर इस सामूहिकता में कोई तारतम्य न था क्योंकि अधिक बोलने की आज्ञा उन्हें न थी वे केवल ध्यान धारणा तथा उच्च जीवन प्राप्ति के बारे बात कर सकते थे। यह प्रथा बहुत से धर्मों में प्रचलित रही। बाद में त्याग के नाम पर गृहस्थां से धन बटोरने लगे। श्री के समय भी साधकों को नहा रहना और न ही गृहस्थ जीवन का त्याग करना है। आप त्याग करना पड़ता था। पर यह उन्हें मोक्ष की ओर ले जाने का श्री बुद्ध का वास्तविक प्रयत्न था। उन्हें पूर्ण सत्य का ज्ञान दिलाने का प्रयत्न था। पर ऐसा न हुआ। यही कारण है कि महात्मा बुद्ध के अनुयायी भिन्न प्रकार के हास्यास्प्रद धर्म हैं क्योंकि उनका त्याग करना तो मूर्खता थी। यह सब मिथ्या बैठ बुद्ध नाच, गा और मनोरंजन कर सकते हैं। बुद्ध का अर्थ है बोध अर्थात् सत्य को अपने मध्य-नाड़ी-तंत्र पर जानना। अब आप सब बिना कोई त्याग किए बुद्ध बन गए था। संगीत से या नृत्य से क्या अन्तर पड़ता है। कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु ये विचार उनमें इतने गहन हो गए कि आपको उन पर दया आती है। घे खाना नहीं खाते थे, भूखे रहकर वे तपेदिक के रोगियों से भी बुरे प्रतीत होते हैं। जबकि आप लोग सुन्दरतापूर्वक जीवन का आनन्द ले रहे हैं तथा गुलाब की तरह खिले हुए हैं। फिर भी श्री बुद्ध का वह तत्व हमारे अन्दर होना चाहिए अर्थात् हमें तप करना चाहिए। इसका अभिप्राय यह नहीं कि आप भूखे रहें। परन्तु यदि आपको अधिक खाना अच्छा लगता हो तो कम खाना खान लगे। मोक्ष, जागृति एवं उत्थान के लिए बने संगीत का आनन्द लें। हम बंधनों में इतना जकड़े हुए हैं कि लोग ये भी नहीं समझ पाते कि आत्मा क्या है। परमात्मा के असीम प्रेम की अभिव्यक्ति ही आत्मा है। अब भी हममें बहुत से बन्धन कार्यरत हैं। आपमें से कुछ को अपनी राष्ट्रीयता पर बहुत गर्व है। दूसरे लोगों के साथ हम घुल-मिल नहीं सकते। दूसरे लोगों के मुकाबले स्वयं को बहुत ऊंचा समझते हैं। अब आप सर्वव्यापक व्यक्ति हैं। अत: आपमें यह मूर्खतापूर्ण मिथ्या सीमाएं कैसे हो सकती हैं। आपके अन्दर ज्योति है और आप जानते हैं कि इस प्रकाश को बाहर फैलाने की आवश्यकता है। यदि अब भी आप इसे फैलाने में असमर्थ हैं तो जान लीजिए कि आपको अभी और शक्ति की आवश्यकता बनाकर गए। उदाहरणार्थ जापान में पशुवध की आज्ञा न थी पर मांस खाना निषेध न था। मनुष्य का वध किया जा सकता था। मनुष्य का वध करने में जापानी विशेषज्ञ बन गए। किस प्रकार से लोग बहाने ढूंढ लेते हैं। जब लाओत्से ने ताओ के विषय में उपदेश दिए तो दूसरे प्रकार के बुद्ध धर्म का उदय हुआ। ताओ कुण्डलिनी हैं लोग न समझ पाए कि वे क्या कह रहे हैं। कठोरता से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने चित्रकला में अपनी अभिव्यक्ति की। इसके बावजूद भी गहनता में न जा सके। यंगत्जे नाम की एक नदी है जहाँ सुन्दर पर्वत तथा झरनों के कारण हर पांच मिनट में दूश्य परिवर्तित हो जाता है। कहा गया है कि इन बाह्य आकर्षणों की ओर अपने चित्त को न भटकने दें। उन्हें देखकर हमें चल देना चाहिए। ताओ के साथ भी ऐसा ही है। वे कला की ओर झुक गए। मूलत: बुद्ध ने कभी भी कला के बारे में नहीं सोचा। उन्होंने कहा कि अन्तर्दर्शन द्वारा अपने अन्तस की गहराइयों में जा कर आपको पूर्ण को खोज निकालना है। अतः सभी कुछ पेथ-भ्रष्ट हो गया। जैन प्रणाली, जो जापान में शुरू हुई, ये भी कुण्डलिनी मिश्रित है। इस प्रणाली में वे पीठ पर रीढ़ की हड्डी तथा चक्रों पर चोट मार कर कुण्डलिनी जागृत करने का प्रयत्न चैतन्य लहरी प्रकाश आप देख पाते हैं हो सकता है आपमें केवल अहं हो, आत्मसम्मान न हो और इसी कारण आप हृदय को न खोल पाते हों। है। यह सीखना आपके लिए आवश्यक है कि किस प्रकार अपनी कुण्डलिनी चढ़ाकर हर समय परमात्मा की शक्ति से जुड़े रहें ताकि निर्विचार समाधि में रहते हुए आप अपने अन्दर गहनता में बढ़ें। श्री बुद्ध अहं का नाश करने वाले हैं। हमारी पिंगला नाड़ी पर विचरण करते हुए वे हमारे बायों ओर बस जाते हैं। हमारे अहं को वे सम्भालते हैं और हमारी दायी ओर की पूर्ति करते पत्नियों तथा बच्चों की चिन्ता न किया करते थे। अब मुझे हैं। दायीं ओर को झुका व्यक्ति न कभी हंसता है न मुस्कुराता परन्तु बुद्ध को मांसल (मोटा) तथा हंसता हुआ दिखाया और घर बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। बच्चे संघ के (सामूहिकता गया है हंसने मात्र से वे दायीं ओर को सम्भालते हैं वे अपना मजाक उड़ाते हैं और सारा ड्रामा देखते हैं। अपनी ज्योत्तिमय आप अपने को सीमित करते हैं और समस्याओं में फंसते हैं। चेतना से सारी मूर्खता को देखिए तथा इसका आनन्द हर देश की समस्याएं कम हो रही हैं हमें जातीयता पसन्द नहीं लीजिए। जैसे एलिजाबैथ टेलर को विवाह करके मधुमास ( हनीमून) पर जाते देखकर, ऐसे अशुभ व्यक्ति पर, मोहित जाए। क्योंकि यह प्रथा आत्म-विनाशक है। अत: हम अपने होने के स्थान पर उसकी मूर्खता को देखें। वस्तुओं के प्रति आपकी प्रक्रिया आपके चित्त की अवस्था पर निर्भर करती है। यदि यह कोई दैवी वस्तु है तो आपका चित्त भाव-विभोर होना रचनात्मक जीवन के ठीक विपरीत इन सब दुःस्साहसिक कार्यों चाहिए। परन्तु यदि यह कोई मूर्खतापूर्ण या हास्यास्प्रद चीज हैं को आप समझने लगते हैं और इन्हें रोक सकते हैं। यह तभी तो आप इसके तत्व को देख सकते हैं। अपने चित्त से आप सत्य से संबंधित हर चीज के तत्व को देखें। सत्य की तुलना और देखें कि क्या आपमें वह गुण हैं? अब कुण्डलिनी ने में यह मूर्खतापूर्ण या मिथ्या या पाखण्ड हो सकती है। पर यदि आप सहजयोगी हैं तो आपमें यह बात देखकरं उसका आनन्द आपमें अक्षत (सही-सलामत) थे। जामृत होते हुए कुण्डलिनी लेने की योग्यता होनी चाहिए। एक आयु तक बच्चे ऐसा करते हैं। आपकी प्रक्रिया आपके प्रकाशित चित्त पर निर्भर करती है। एक प्रकाशित चित्त किसी मुर्ख, भ्रमित तथा नकारात्कम चित्त 'मेरा' शब्द का शक्तिशाली बन्धन मुझे अब भी सहजयोगियों में मिलता है। पहले पश्चिमी देशों के लोग अपने परिवार लगता है कि वे गोंद की तरह इनसे चिपक जाते हैं। पति, बच्चे है। के) हैं आप मत सोचें कि यह आपका बच्चा है। ऐसा सोचकर है। भारतीय सहजयोगी चाहते हैं कि जाति प्रथा समाप्त हो अन्दर ही देखने लगते हैं कि मेरे लिए, मेरे परिवार के लिए देश के लिए तथा पूरे विश्व के लिए घातक क्या है। आपके संभव है जब आप अन्तर्दर्शन तथा समर्पण करने का प्रयत्न करें आपके सभी सुन्दर गुणों को जागृत कर दिया है। ये सारे गुण ने इन सभी गुणों को भी जागृत कर दिया है। सहजयोग इतना बहुमल्य है कि मानव को बहुत पहले से इसका ज्ञान हो जाना चाहिए था। यह केवल परमात्मा के बारे से भिन्ने प्रक्रिया करता है। जो हम हैं उसे स्वीकार करना में बात करना या मात्र यह कहना ही नहीं कि आपके अन्दर देवत्व निहित है। यह तो इनकी प्रभावकारिता है। आपको किसी विज्ञान की आवश्यकता नहीं। जब भी आपको कोई चाहिए। प्रथम - समस्या हो तो एक बन्धन दे दीजिए। यह इतना सुगम है। विज्ञान से होने वाले हर कार्य को आप सहजयोग से कर सकते उन्होंने कहा "धर्मम् शरणम् गच्छामिः " अर्थात् मैं स्वयं को हैं। हम कम्प्यूटर भी हैं। आपको मात्र अपनी गहनता को धर्म के प्रति समर्पित करता हूं। यह कोई मिथ्या धर्म नहीं विकसित करना होगा। आप अब ठीक रास्ते पर हैं। हमें इस विनाशकारी आधुनिक विज्ञान की आवश्यकता नहीं। आपमें अन्तर्जात धर्म ( धर्मपरायणता ) के प्रति समर्पित करता हूँ। आत्मसम्मान का होना आवश्यक है। आपको समझना है कि आप एक सहजयोगी हैं और आपको वह अवस्था प्राप्त करनी मैं स्वयं को सामूहिकता के प्रति समर्पित करता हूं। पिकनिक है जहाँ आपमें वह सबकुछ करने की सामर्थ्य हो जो विज्ञान कर सकता है। आप सब शक्तियों के अवतार बन जाइए। कुछ लोग आकर कहते हैं " श्री माताजी हम अपना हृदय नहीं खोल सकते।" क्या आप करुणा का अनुभव नहीं कर सकते? मैंने आपको होना चाहिए इस प्रकार कार्य होते हैं तथा हम देखा है कि लोगों का हृदय कुत्ते बिल्लियों के लिए तो खुला होता है पर अपने बच्चों के लिए नहीं। यही वह स्थान है जहाँ आत्मा का निवास है और जहाँ से यह अपना प्रकाश फैलाती कहलाने वाले व्यक्तियों को पहचान सकते हैं तथा मिथ्या लोगों है। यही वह प्रथम स्थान है जहाँ प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति का चाहिए, और हम, आत्मा हैं। श्री बुद्ध की चार बातें आप सब को प्रात:काल कहनी "बुद्ध शरणम् गच्छामिः " अर्थात् मैं स्वयं को अपने प्रकाशित चित्त के प्रति समर्पित करता हूं। फिर जो विकृत हो गए। इसका अर्थ है कि मैं स्वयं को अपने तीसरी बात जो उन्होंने कही "सघं शरणम् गच्छामि:"। आदि के बहाने आप कम से कम महीने में एक बार मिलें। आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हैं। लघु-ब्रह्माण्ड विशाल ब्रह्माण्ड बन गया है। आप विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। इस बात का ज्ञान नकारात्मक तथा सकारात्मक, अहंकारी तथा नम्र व्यक्तियों को पहचान सकते हैं। हम वास्तविक सहजयोगियों को तथा सहजयोगी को त्याग देते हैं । सामूहिक हुए बिना आप सामूहिकता के चैतन्य लहरी अपने दोष खोजने पर चित्त लगा दें तो मुझे विश्वास है कि आप कहीं अधिक सामूहिक हो जाएंगे। सहजयोग अति व्यावहारिक है क्योंकि यह पूर्ण सत्य है। अतः अपनी सारी शक्तियाँ सूझ-बूझ और करुणामय प्रेम के साथ आपको अपने विषय में आश्वस्त होना है और जानना कि हर समय परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति उन्नत हाने में आपकी सहायता, रक्षा, मार्गदर्शन, पोषण तथा देखभाल कर रही है। महत्व को कभी नहीं समझ सकते। सामूहिकता आपको इतनी शक्तियाँ इतनी सन्तुष्टि और आनन्द प्रदान करती है कि व्यक्ति को सहजयोग में सामूहिकता पर सर्वप्रथम ध्यान देना चाहिए। किसी चीज की कमी हो, तो भी आप बस, सामूहिक हों जाइए। सामूहिकता में आपको अन्य किसी की भी आलोचना नहीं करनी चाहिए, न उनको गाली देनी चाहिए और न उनके दोष देखने चाहिए। अन्तर्दर्शन कीजिए कि जब सभी लोग आनन्द ले रहे हैं तो मैं ही क्यों बैठकर दूसरों के दोष खोज रहा हूँ। यदि आप दूसरों के स्थान पर है। परमात्मा आप पर कृपा करे। श्री कृष्ण पूजा कबैला, इटली 19.7.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हैं क्योंकि उन्होंने सभी दूसरे देशों को विकल किया हैं। हमने बहुत बार यह पूजा की और पांच हजार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण के अवतरण को समझा। जिस सत्य की उन्होंने अभिव्यक्ति की और जो कार्य वे करना चाहते थे उसे इस कलियुग में करना है। कलियुग अब सत्य-युग के नए क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है। परन्तु इन दोनों युगों के मध्य में कृत-युग है जिसमें कोई भी स्वयं को अंग्रेज नहीं कहलवाना चाहता। वे स्वयं को परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति ने कार्य करना है। श्री अंग्रेज नहीं कहलवाना चाहते। वे स्वयं को वैल्श, स्कॉट या कृष्ण कूटनीति के अवतार थे, अत: काफी लीला करने के पश्चात् वे असत्य का पर्दाफाश कर देते थे, उसे अनावृत कर देते थे। ऐसा करते समय वे लोगों को तोलते थे। इस बार अन्तिम निर्णय का समय होने के कारण श्री कृष्ण की कूटनीतिज्ञ शक्तियों की अभिव्यक्ति होनी ही थी। जो भी गलती पहले आप ने की, जो भी क जान अनजाने, आपने किए, सभी का फल मिलेगा। पूद जन्मों में तथा इस जन्म में की गई पूजाओं का भी फल आपको मिलेगा। यह सब श्री के सामूहिकता के तत्व के माध्यम से होता है जिसमें वे अंग्रेज भारत में साधारण व्यापारी बनकर आए और भारत पर 300 वर्ष राज किया तथा हमें तीन हिस्सां में बांट कर गए। अब उनके अपने देश में सभी प्रकार की समस्याएं हैं। सर्वप्रथम आयरिश कहते हैं। लंदन में सदा बम्ब का भय बना होता है। जिन अंग्रेजों ने हमें विभाजित करने का प्रयत्न किया था वे स्वत: ही विभाजित हो गए हैं और परस्पर लड़ रहे हैं। एडज़ तथा चरित्रहीन जीवन आदि अन्य समस्याएं भी हैं। अपने को अनन्त समझने वाले सभी देश समाप्त हो गए हैं। यह भी श्री कृष्ण का ही कार्य है क्योंकि वे कूबेर भी हैं। वे ही वैभव-शक्ति हैं। उन्होंने इन सब देशों को बहुत सा वैभव दिया। पर वे नहीं जानते कि इसका क्या करें। विशेष तौर पर पिछले बीस वर्ष वास्तविकता में असाधारण थे। पूरे विश्व में किसी न किसी प्रकार का पूर्ण परिवर्तन हुआ या भण्डा-फोड़ कृष्ण सामूहिक रूप सारी स्थिति को देखते हैं। कृतयुग में सभी प्रकार के रोग प्रकट होने लगे हैं। नशीली दवाओं का व्यसन उनमें से एक है। बोलीविया तथा कोलम्बिया में, जहाँ पर आदिवासी लोगों की समाप्त कर दिया गया था, ये नशीली दवाइयाँ बनती हैं। लोग सहायता करने के लिए निकारागुआ गए और ये सब नशीली दवाइयाँ लेकर वाशिंगटन वापिस लौटे। हर विशिष्ट समाज में चर्चा की जाती है कि सबसे अच्छी नशे की दवा कौन सी है। अतः आन्तरिक विनाश का आरम्भ हो गया है। मैंने इन्हें पहले बताया था कि फ्रायड के कहे अनुसार आचरण मत कीजिए, सदचौरित्र पर टिक राहए नहीं तो आपको परेशानी होगी। अब वहाँ एडजू, खंडित मनस्कृता (स्किजोफ़ेनिया) और सब तरह के गुप्त रोग आ गए हुआ। भारतीय लोग भी अपने पूर्व-कृत्यों के कारण कष्ट पा रहे हैं। जाति प्रथा हमारा सबसे बड़ा सिरदर्द है। सभी देशों को जातिवाद के परिणाम भुगतने होंगे। श्री कृष्णा को जातिवाद में विश्वास न था। वे खुद ग्वालों की जाति में जन्में फिर वे सम्राट बन गए। एक साधारण व्यक्ति की तरह वे रहे। वे गायें चराने ले जाते, उनकी देखभाल करते और उन्हें वापिस घर लाते। उनका जीवन अति मानवीय था। उनका अपनी मां तथा अन्य सिजरियों को तंग करना अति मानवीय, बाल-सुलभ तथा मधुर था। पर इन शरारतों के पीछे एक महत्वपूर्ण रहस्य था। श्री चैतन्य लहरी 10 राधा महालक्ष्मी थीं और वे यमुना में अपने पैर डालकर स्तान किया करती थीं। औरतें यमुना के जल से घड़े भरकर सिर पर रखकर ले जाती थीं। उनकी कुण्डलिनी जागृत करने के लिए श्री कृष्ण पीछे से कंकरी मारकर उन घड़ों को तोड़ देते और वह चैतन्यित जल उनकी पीठ पर पड़ता तथा उनकी कुण्डलिनी की मूर्खतापूर्ण कठोरता जो पश्चिम में आ गयी इसने लोगों को व्यग्र कर दिया। यहाँ लोग अति व्यग्र हैं। यदि आप किसी स्त्री से कह दें कि में आकर खाना आपके साथ खाऊंगा तो वह लड़खड़ा जाएगी। यह जन-सम्मति की चिन्ता करना है या अपने बंधनों की। पर किसी भारतीय स्त्री से यदि आप ऐसा कहें तो बह खुशी से फूली नहीं समाएगी। यहाँ लोगों को अपने पर विश्वास नहीं है। ये आजकल के बनाए गए मापदण्डों के कारण है। भारत में ऐसी आध्यात्मिकता है जिसमें आपको अत्यन्त गंभीर होना आवश्यक है। ऐसे भी लोग हैं जो अपने को जागृत करता। रास में राधा होती थी। 'रा' अर्थात् शक्ति तथा 'धा' अर्थात् धारण करने बाली और रास- 'रा' अर्थात् शक्ति और स' अर्थात् संचार। इस प्रकार इस रास नृत्य माध्यम वे शक्ति से खेलते तथा शक्ति संचार करते। इस प्रकार वे गोप-गोपियाँ की सामूहिक जागृति करते। वहाँ से जाकर श्री कृष्ण को कंस से लड़ना पड़ा। अपने शेशव तथा युवा काल में ही उन्हें बहुत से राक्षसों को दण्डित करना पडा। कलियग में भी वे कार्य कर रहे हैं। आपने देखा है कि शनै: शरनैः एक-एक करके बहुत से कुगुरूओं का उन्होंने अन्त किया है। कोई स्वयं को श्री कृष्ण कहता था और कोई परमात्मा उनका भण्डाफोड करके श्री वे हमसे बहुत भयभीत हैं क्योंकि हम सत्य पर खड़े हैं। से हाथ से अपने सारे बाल उखाड़ देते हैं। वे न तो कैंची प्रयोग कर सकते हैं और न ही नाई के पास जा सकते हैं। कुछ जातियों में ये बंधन इतने भयानक रूप से बढ़ा कि वे कहने लगे कि श्वास लेते हुए भी आपके अन्दर कीटाणु जा सकते हैं। अत: उनमें से कुछ ने अपने मुंह पर कपड़ा बांधना शुरू कर दिया। के इस समय श्री कृष्ण अवतरित हुए। उनके अपने चचेरे भाई एक तीर्थांकर हो गए हैं। जिससे श्री कृष्ण को इस प्रकार के मुर्खतापूर्ण कर्मकांडों के विषय में सोचना पड़ा। जैसे लोगों का प्रात:काल उठकर तुलसी में जल डालना, यहाँ बहाँ जल छिड़कना, पर अछूतों को न देखना और न उनके हाथ का जल लेना। आप ये नहीं खा सकते, आप ऐसे नहीं चल सकते। सभी प्रकार के बंधन। इस कार्य को करने के लिए यह समय ठीक नहीं है आदि। इतने बंधन थे कि हमारे देश की सारी गतिविधियाँ इन्हीं कर्मकांडों के इर्द-गिर्द घूमती थीं। बम्बई के कुछ लोग लखनऊ जाते और हर बार अपने सिर के बाल मुंडवाते। उनके परिवार में जब किसी भी वृद्ध की मृत्यु होती तो वे अपने सिर मुंडवाते। इस प्रकार के भयानक कर्मकांड थे। अब भी दक्षिण भारत में ये सब रिवाज हैं। इससे निकलने में उन्हें भय लगता है। वे सोचते हैं कि इन बंधनों को तोड़ना पाप है जो उन्हें नर्क में ले जाएगा। कृष्ण ने उन सबको समाप्त कर दिया। श्री कृष्ण हमारी विशुद्धि पर रहते हैं । बहुत से लोगों को बायीं विशुद्धि की समस्या है। इसका कारण हमारा अत्यधिक सामाजिक होना है। पश्चिमी समाज में सामाजिक प्रणाली इतनी कठोर है कि कोई भी हिम्मत हार सकता है। पर सभ्यता तथा विद्रोह के कारण अब यह पहले से अच्छी है। पहले तो यदि कोई एक चम्मच को गलत ढंग से पकड़ लेता था तो उसकी शामत आ जाती थी। फ्रांस के लोगों ने शराब तथा उसके लिए उपयोग होने वाले गिलासों को एक बड़ा विज्ञान बनाकर समाज की स्थिति को और अधिक बिगाड़ दिया। पूरी सामूहिकता को कठोर बना दिया गया। मैं सोचती थी कि कुछ बंधनों के कारण भारतीय सामूहिकता कठोर है, पर पश्चिमी देशों के मस्तिष्क में तो इतने बन्धन भरे हुए हैं कि उन्हें दूर ही नहीं किया जा पश्चिमी देशों में पूर्ण जीवन शैली ही कर्मकांडी हैं। वहाँ कोई स्वतंत्रता नहीं है। इसी कारण हिप्पियों ने विद्रोह किया और अति की पराकाष्ठा तक गए। एक अति से दूसरी अति तक। श्री कृष्ण ने अवतरित होकर कहा कि यह सब लीला है । जब आप पानी में हैं तो पानी से डरते हैं। पर नाव में बैठकर आप पानी को देख सकते हैं । यदि आप तैरना जानते हैं, तो डुबते लोगों को बचा सकते आप साक्षी भाव विकसित कर लें तो सभी कुछ आपको नाटक प्रतीत होगा। किसी चीज का आप पर प्रभाव ने होगा और आप समस्या को देख सकेंगे। क्योंकि आप समस्या से निल्लिप्त हैं, आप इसका सूमाधान भी कर पाएंगे। यह उनका महान अवतरण था। साक्षी बनना उत्थान की ओर आपका पहला कदम है। आपको बुद्ध बनना है। सकता। ये बन्धन कैथोलिक चर्च एवं फ्रायड की देन हैं। फ्रायड पूर्ण राक्षस था फिर भी लोग सभी कुछ छोड़कर उसे मानते हैं। जिस जिस देश में कैथोलिक चर्च का प्रभाव है वहाँ फ्रायड का अनुसरंण होता है। भारत में श्री राम का संकोचशील होना सामाजिक कठोरता का कारण है। पश्चिम में यह कठोरता मानसिक है। यदि इस प्रकार के बाल आप बनायेंगे या बालों में तेल डालेंगे तो आप पागल हैं। सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण | विचार आए और लोग उनका अनुसरण करने लगे। बालों में तेल न लगाने से आप गंजे हो जाएंगे। यह औद्योगीपन था ताकि उद्यमी अपनी वस्तुएं बेच सकें । इंग्लैंड में महारानी को मिलने के लिए लम्बा कोट किसी से उधार लेना पड़ता था और इसे पहनकर हर व्यक्ति चार्ली चैपलिन सा लगता था। इस प्रकार हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि यदि चैतन्य लहरी आधे घन्टे से ढूंढा जा रहा है। उसके मुझ पर चिल्लाने के कारण वोल्फगेंग के आंसू बह रहे थे। वह अति उदास था कि श्री माताजी का इस प्रकार अपमान हुआ। उसके प्रेम की शक्ति इतनी महान थी कि बालकोनी पर बैठकर हमें देख रहे लगभग पचास व्यक्तियों ने तेज शोतल लहरियों का अनुभव किया। कमियाँ ही ढूंढते रहते हैं। कौन जानना चाहता है कि किसने उन्हें एक तेज धक्का लगा और जब उन्होंने आंखे खोली तो पाया कि आकाश पर बादल छाए हुए हैं। एक भी बादल न था गन्दगी पर किसका ध्यान जाता है? परन्तु पश्चिम में तो उन्हें और क्षण भ में पूरा आकाश बादलों से आच्छादित हो गया था। तब हमें यान से उतरने को कहा क्योंकि वे इसे उड़ा न सकते थे जब हम वापिस आए तो वर्षा होने लगी। लोग उस महिला बनावटी हो गया है कि छोटी-छोटी बात के लिए लोग दोष के पीछे पड़ गए कि चिल्लाने वाली आप कौन होती हैं। तब भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। इस कैथोलिक चर्च ने आपको घोषणा की गई कि सारी उड़ाने रद्द कर दी गई हैं। अपनी श्री माताजी के लिए उसका प्रेम देखिए कि पूरा आकाश इसे सहन न कर सका। सब कहने लगे कि ऐसा चमत्कार हमने कभी सहजयोग में भिन्न क्षेत्रों, भिन्न सभ्यताओं से, भिन्न प्रकार के लोग हैं। सभी के लिए द्वार खुला है। पर यदि कोई भारतीय आ जाएगा तो हर समय दूसरों की चिन्ता करेगा। वह कहेगा कि "श्री माताजी, यह व्यक्ति ऐसा नहीं कर रहा है।" हर समय वह दूसरों में दोष ढूंढता रहता है। पश्चिम में लोग अपनी क्या गलती की है? कमल खिला हुआ हो तो तालाब की दोष स्वीकार करने ही होते हैं। प्रतिक्षण आप परिवर्तित हो रहे हैं। तो अपराध स्वीकार करने की क्या बात है। जीवन इतना इतना बंधनों में बांध दिया है। बायीं विशुद्धि विष्णुमाया है। बायीं विशुद्धि के खराब होते ही आप में विष्णुमाया संबंधी समस्याएं विकसित हो जाती हैं। नहीं देखा कि क्षण भर में पूरा आकाश बादलों से आच्छादित जिन में से एक हृदय है विष्णुमाया बिजली की है। विष्णुमाया हो जाए। आप भी अपनी शक्तियों को पहचानिए। साक्षी रूप की समस्या से आप आलसी हो जाते हैं। मैं इतना दोषी हूं। से स्वयं को देखिए। यही अन्तर्दर्शन है। पर यदि आपकी बायीं आप निराश हो जाते हैं। विष्णुमाया तल्व आपसे लुप्त हो जाता है। वे बहुत चुस्त, तेज हैं। पूरे विश्व के सम्मुख वे घोषणा कूकृत्य किए हैं, मुझमें कैसे शक्तियाँ आ सकती हैं मैं अच्छा करती हैं कि श्री कृष्ण क्या हैं। दोष भाव से ग्रस्त सहजयोगी कहते हैं कि यदि हम कोई कार्य करेंगे तो हमारा अहं बढ़ जाएगा। अत: हम कार्य नहीं करना चाहते। यह मुर्खता है। जला हुआ दीपक यदि ये कहे कि मैं प्रकाश नहीं देता क्योंकि इससे विवेक चला जाता है और आप इसे स्वीकार कर लेते हैं। मेरा अहं विकसित हो जाएगा तो मूर्खता ही होगी। बायीं विशुद्धि से बचने के लिए आपको सहजयोग में गतिशील होना देता था। एक बार मेरी कार खराब हो गई और मैं दो घंटे देर पड़ेगा। बायीं विशुद्धि की खराबी का प्रभाव पूरे शरीर के लिए से पहुंची। एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन था। उनकी समझ निराशाजनक होता है। बायीं विशुद्धि वाला व्यक्ति सहजयोग में नहीं आया कि क्या करें। अन्त में उन्होंने साक्षात्कार देना के हर कार्य में बहुत ढीला होता है। प्रकाश आपको छुपाने के शुरू किया और तब उन्हें पता चला कि वे आत्मसाक्षात्कार दे लिए नहीं दिया गया है। यह प्रकाश आपको कार्यान्वित करने के लिए, गतिशीलतापूर्वक सोचने के लिए और सहजयोग का प्रबंध तथा व्यवस्था करने को दिया गया है। यदि आप दोषी हैं तो आप सदा कहेंगे कि " श्री माताजी, यह कार्य बहुत कठिन ऐसा नहीं करते तो सदा आप अधपके ही रहेंगे। अपनी शक्तियों है" आदि। विशुद्धि खराब है तो आप सदा यही कहेंगे कि मैंने इतने व्यक्ति नहीं हूं। इसका कारण यह है कि खराब बायीं विशुद्धि आपको हर समय कहती रहती है कि आप बेकार के व्यक्ति हैं। यह आपके मस्तिष्क में एक छिद्र बनाती है जिससे सारा आरम्भ में भारत में कोई सहजयोगी आत्मसाक्षात्कार न सकते थे। आप जानते हैं कि आप क्या कर सकते हैं। आप जानते हैं कि आप जो भी कह देते हैं वह घटित हो जाता है। आप जो भी चाहं कर सकते हैं। आजमा कर देखिए। यदि आप का अनुभव लीजिए। देखिए कि आप कितने गतिशील हैं। इसके बारे में संकोच मत कीजिए। इसका पूरी तरह प्रयोग साक्षी भाव से स्वयं को देखना सहजयोगी के लिए महत्वपूर्ण है। यही अन्तर्दर्शन है। मैं कहाँ था, मैं यहाँ आया हूं। भूतकाल से अधिक लिप्त बिना देखें कि इतने कम समय में आपको क्या प्राप्त हुआ है। आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गए हैं उदाहरणार्थ मैं वोल्फगैंग के साथ यात्रा कर रही थी और हमें वायुयान पकड़ना था। जब हम हवाई अड्डे पहुंच तो एयर होस्टैस मुझ पर चिल्लाने लगी कि आपने उड़ान को देर करा दी है। उन्हें मेरी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी। पर उन्होंने प्रतीक्षा की और चिल्लाए भी। सभी यात्री यान में बैठ गए फिर भी वायुयान नहीं उड़ा। हमें पता लगा कि कोई खराबी है जिसे कीजिए और आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपमें बहुत शक्तियाँ हैं। इसी प्रकार जैसे यदि आप चित्र बनाना चाहते हैं तो आगे हुए बढ़िए और बनाइए। आलोचना से मत डरिए। साहसपूर्वक चित्रकारी कीजिए, गाइए या कुछ और कीजिए। हिम्मत से बढिए। आप स्वयं पर हैरान होंगे कि किस प्रकार आपने यह उपलब्धि पाई तथा किस प्रकार आप इसे क़र रहे हैं। अपने पर विश्वास कीजिए। यदि आपकी बायीं विशुद्धि खराब है तो कार्य नहीं करेंगी। विष्णुमाया सम बनिए। कहिए कि विष्णुमाया मैं एक सहजयोगी हूँ, कोई साधारण व्यक्ति नहीं। चैतन्य लहरी 12 बायीं विशुद्धि की रुकावट का एक अन्य पहलू यह है कि बायीं विशुद्धि बहुत कड़ी हो तो आप लहरियाँ नहीं महसूस कर यह बहाना बनाने का प्रयत्न करती है। जैसे आप यदि किसी को कहें कि "फलां व्यक्ति को फोन कर दो"। बह कहेगा नहीं हुआ। बस अपने हाथों को कार्यान्वित कर लीजिए। " श्री माताजी वह व्यक्ति वहाँ नहीं होगा।" स्पष्टीकरण की क्या आवश्यकता है? आप टाल जाते हैं। विष्णुमाया कभी नहीं टालती नहीं। यदि उन्हें चमकना है तो चमकना है, जो भी कुछ वे हों। हमें भी इसी प्रकार का होना है। हमें जानना है कि हम विशिष्ट व्यक्ति हैं। आप को चुना गया है, आपमें देवत्व है और करते हुए अपने हाथ बहुत नचाते हैं। अपने हाथों को हर समय आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं तथा यह कार्य प्रयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं। जब भी आप हाथों करेगा निकम्मे लोंगों के लिए सहजयोग नहीं है। यह चरित्रवान तथा विशेष लोगों के लिए है। अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और बिष्णुमाया तत्व की अभिव्यक्ति होनी नहीं। लोगों को आज्ञा देने के लिए श्री कृष्ण की अंगुली न चाहिए, इसे दर्शाया जाना चाहिए। घवराइए नहीं कि आपको प्रयोग करें। इनका सम्मान करें। हाथों से आप हजारों लोगों को अहंकार हो जाएगा। कोई बात नहीं। आप अपने अहंकार को भी देखेंगे। श्री कृष्ण जी की लीला की दूसरी विशेषता यह है कि आप अपने अहं को भी देखते हैं। सकते। पर इसका अर्थ यह नहीं कि आपको साक्षात्कार प्राप्त अपने हाथों को ठीक करने के लिए आवश्यक है कि आप इनका उपयोग व्यर्थ की चीजों के लिए न करें। यह अति आवश्यक है क्योंकि आपके पास विशेष प्रकार के हाथ हैं। इन्हीं हाथों द्वारा आप सामूहिकता फैलाते हैं। कुछ लोग बातचीत का प्रयोग करें तो यह अति भद्र, नियमित, निर्देशात्मक तथा लाभदायक होना चाहिए। हाथों का दिखावा करते रहना अच्छा नमस्ते कह सकते हैं। हाथ मिलाना मुझे पसन्द नहीं। आप दूसरे व्यक्ति से हर प्रकार के कांटे, सुइयाँ तथा समस्याएं ले सकते हैं। लोगों से बात करते हाथों तथा वाणी द्वारा आप अपनी महाराष्ट्र की एक महिला मानने को तैयार नहीं थी उसे कोमलता तथा मधुरता दर्शा सकते हैं। आपके इशारों द्वारा दायीं ओर की खराबी है। वह रोम में मुझ से मिलने आई और आपकी हार्दिक भावनाएं प्रकट होनी चाहिए। सहजयोग में जब आप एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं तो आपमें लहरियाँ बहने महसूस किया कि उसका दायाँ हिस्सा ठीक न था। अत: अपने लगती हैं। इससे प्रकट होता है कि हाथों द्वारा संचार होता है। दायें या बायें भाग की खराबी को समझने की सर्वोत्तम विधि ये हाथ वास्तव में सामूहिकता का प्रारम्भ हैं। हाथ आपकी सामूहिकता के लिए कार्य करने वाले अत्यन्त महत्वपूर्ण अवयव तीसरी स्थिति अपनी त्रुटियों को स्वीकार कर लेना है। इन्हें हैं। आपके पीछे बहुत से देवदूत तथा गण खड़े हैं। वे भी संचार करने में आपकी इच्छानुसार सहायता देते हैं। आपके कार्य भी अच्छी तरह करते हैं। आपके हाथों में या हाथों द्वारा जो भी हुए पूरी तरह से शरीर के दायें हिस्से पर गिर पड़ी। तब उसने ध्यान-धारणा करना. है। यदि आप स्वीकार नहीं करते तो आप अपने प्रति करुणामय नहीं। दायीं विशुद्धि वाले लोग सदा मेरी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करेंगे। मैं यदि कुछ कहुंगी तो वे कहेंगी " नहीं"। वे या तो मेरे विपरीत बोलेंगे या अपने विचारों को थोपने का प्रयत्न करेंगे तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। किसी भी बात के लिए 'नहीं' कहना एक आदत है। मैं आपकी परीक्षा भी लेती हूं। दिन के समय यदि मैं कहूं कि रात के नौ बजे हैं तो आप तुरन्त ' हां' कह देते हैं देखने का प्रयत्न कीजिए। मैं तुम्हारी परीक्षा लेती हूं। कुछ लोग कहते हैं कि यदि श्री माताजी ने कहा है तो ऐसा ही है। तब उनकी श्रद्धा भली भान्ति दृढ़ होने लगती है और मैं देख पाती हूँ कि किस प्रकार वे वास्तविक श्रद्धा के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। फिर जब भी में कोई हास्यास्प्रद बात कह दूं तो वे मुस्कुरा भर देते हैं । वे समझ जाएंगे कि श्री माताजी हमारी परीक्षा ले रही हैं। आपको अपनी परीक्षा लेनी है। जैसे मोहम्मद साहब ने कहा है "आपके हाथ बोलेंगे और आपके खिलाफ शहादत दंगे।" अपने हाथों पर आप जान जाएंगे। ये हाथ श्री जी का आशीर्वाद है। वे विशुद्धि से ही निकलते हैं। 'श्री' तथा 'ललिता' के दो चक्र हैं । इन्हीं हाथों से हम लहरियाँ महसूस कर सकते हैं यदि आपकी दायीं या अभिव्यक्ति होती है उसे ये तुरन्त समझ जाते हैं। विशुद्धि की सोलह पंखुड़ियाँ होती हैं तथा कान, नाक, गला, आंखें सबका यह मार्ग-दर्शन करती है। हंसा चक्र विशुद्धि का ही उपचक्र है। हमारी आंखें देखने के लिए तथा संदैश-संचार के लिए हैं। पावन आंखें पवित्र प्रेम को संचरित करती हैं। पवित्र आंखों से आप लोगों के दोष दूर कर सकते हैं, सहायता कर सकते हैं और शांति ला सकते हैं। आंखों का पवित्रीकरण आपकी विशुद्धि तथा आज्ञा के माध्यम से होता है। इन दोनों को कार्य करना होता है। नाक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नासिका की पवित्रता महत्वपूर्ण है अर्थात् आपमें दुर्गन्ध का त्याग और सुगन्ध को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिए। नासिका श्री कृष्ण की विशेषता है क्योंकि वे ही कुबेर हैं और कुबेर ने ही देवी को नासिका दी। अस्वीकृति दर्शाने के लिए भी नाक सिकोड़ने की बुरी आदत कुछ लोगों में होती है। यह अपना अपमान करना है। हम अपने दांतों का भी तिरस्कार करते हैं। इस तिरस्कार का कारण आलस्य है। कम से कम दो तीन बार अपने दांत साफ कीजिए। दांत साफ करने वाले ब्रुश को बदलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मसूड़ों की मालिश के लिए कृष्ण चैतन्य लहरी 1३ सबसे अन्त में श्री कृष्ण खिलवाड़ करते हैं पर वे क्षमा नहीं करते। फांसी का फंदा गले में डालने के लिए वे व्यक्ति को लम्बी रस्सी देते हैं, पर कभी क्षमा नहीं करते। वे कहते हैं कि अपने कुकृत्यों का फल तो आपको भुगतना ही होगा केवल ज्ञानातीत (आत्मसाक्षात्कारी) होकर ही आप बच सकते हैं । यदि सहजयोगी बनकर आप उत्थान को प्राप्त कर लें तो वे आपको मक्खन या तेल और नमक का प्रयोग भी आवश्यक है। प्रतिदिन ठीक प्रकार से मसूड़ों की मालिश से आपको कभी दांतां तथा मसूड़ों की समस्या नहीं होगी। शाम को अवश्य दांतों को ब्रुश से साफ करें नहीं तो मुंह से भयंकर दुर्गन्ध आती है। कुछ लोग दांत साफ किए बिना ही नाश्ता कर लेते हैं दांत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। विशुद्धि के सारे गुण आपकी विशुद्धि पर निर्भर करते हैं । दांत भींचने की मृद्रा से बचें। यह आपके दांतों के लिए हानिकारक है। कुछ नहीं कहेंगे। मोहम्मद गजनी ने सोमनाथ तथा महादेव के मन्दिरों को लूटा। श्री कृष्ण गजनी के महमूद के रूप में आए। श्री हनुमान ने देखा कि महादेव मन्दिर छोड़कर भागे जा रहे हैं हनुमान उनके पीछे दौड़े। एक स्थान पर महादेव बैठ गए और हनुमान जी ने उनसे पूछा कि आप तो देवों के देव हैं, फिर आप क्यों दौड़ रहे हैं। आपको किसका भय है? उन्होंने उत्तर दिया "तुम इस मोहम्मद गजनी को नहीं जानते" तब उन्होंने पेड़ के नीचे बैठ मोहम्मद गजनी को श्री कृष्ण में परिवर्तित होते देखा । महादेव ने कहा कि मेरी उपस्थिति में ब्राह्मण लोग पैसा बना रहे थे और लोगों को लूट रहे थे। पर कुछ न कर सका तो श्री कृष्ण आए। अपने अन्दर स्थित श्री कृष्ण की शक्तियों पर पुर्ण विश्वास कीजिए। आपका उत्थान पूर्ण हो जाने पर ये आपको परेशान नहीं करेंगे। यदि आपको बायीं विशुद्धि की समस्या है तो ये आपको कष्ट देंगे। सावधान रहें क्योंकि श्री कृष्ण आपकी परीक्षा लेंगे और आपको इतना दु:खी करेंगे कि आपकी समझ में नहीं आएगा कि क्या हो गया है। श्री कृष्ण को कोई भी वश, में नहीं कर सकता। वे वही करते हैं जो ठीक समझते हैं। आपकी श्री माता जी की अपेक्षा बे कहीं अधिक दण्डित करते हैं । वे ( श्री माताजी) अति रौद्र और अति सौम्य हैं, अति कठोर तथा अति कोमल हैं। पर श्री कृष्ण ऐसे नहीं आध्यात्मिकता सम्पन्न व्यक्ति की भावभंगिमा कभी आक्रामक नहीं हो सकती। वह सुन्दर और आकर्षक चाहे न हो पर उसके चेहरे के भाव अति मधुर होंगे। यह भी श्री कृष्ण का ही आशीर्वाद है। मैंने लोगों को साक्षात्कार के एक वर्ष बाद देखा। में हैरान थी कि उनके चेहरे इतने बदल गए थे कि मैं उन्हें पहचान न पायी। उनका चेहरा नम्र, कोमल, शान्त और आनन्दमय हो गया था। श्री कृष्ण के सारे गुणों की अभिव्यक्ति आपके चेहरे पर हो सकती है। देखने में आप कभी अति शरारती लग सकते हैं। चेहरे पर आने वाले बहुत से भाव आपको मधुरता का अहसास दे सकते हैं। कुछ लोगों को हर समय शीशा देखने की आदत होती है। इससे व्यक्ति में व्यर्थ का अहंकार आ जाता है। अपने चेहरे के स्थान पर श्री कृष्ण के चित्र को देखना अच्छा है ताकि आपकी मुखाकृति श्री कृष्ण की मुखाकृति बन जाए। हर समय शीशे में अपनी शक्ल देखते रहना खतरनाक है। स्वयं को इतना अधिक चित्त तथा महत्व मत दीजिए। पर अपने अन्तःनिहित आत्मा को देखिए । यदि आप आत्मा की ओर चित्त देते हैं तो सभी कुछ सुन्दरतापूर्वक घटित होगा। मैं म=ं बालों की देखभाल भी श्री कृष्ण जी करते हैं । मक्खन जैसी हर चीज उन्हें बहुत पसन्द है। अतः अपने बालों में तेल हैं। वे तुम्हें ठीक कर देंगे। आपके लिए अपनी विशुद्धि को डालिए। ऐसा न करने पर आप गंजे हो जाएंगे। पश्चिम में सभी लोग बालों में तेल नहीं पसन्द करते तो इसे धो डालिए। कम से कम सप्ताह में एक बार तो बालों की मालिश अवश्य कीजिए। श्री कृष्ण का ग्रह शनि है| श्री कृष्ण यदि किसी के पीछे पड़ जायें तो कोई कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार शनि भी यदि किसी के पीछे पड जाए तो वह व्यक्ति बच नहीं हसा चक्र को पार करना है। इसके बिना हम विराट तक नहीं सकता। कभी यह साढ़-साती (7-1/2 वर्ष) कभी ढैया (2-1/2 पहुंच सकते। हंसा देवी विवेक है। हममें इसका होना आवश्यक वर्ष) व्यक्ति के पीछे पड़ा रहता है। श्री कृष्ण का यह शनि है। एक बार यदि यह विवेक आपमें विकसित हो जाए तो आप हमारे अन्दर का एक गुण है। यदि कोई व्यक्ति हमें परेशान करता हो तो हमें कुछ भी नहीं करना पड़ता। श्री कृष्ण ही सभी कुछ कर देते हैं। आप सर्वव्यापक शक्ति को इसके बारे विशुद्धि की समस्या होते हुए भी बहुत से सहजयोगियों में सूचना दे दें और यह शक्ति इस पुरुष या स्त्री या दल को घेर विवेक आया। दैवी विवेक के आते ही सर्वप्रथम तो लोग लेगी। स्वत: ही यह घटित हो जाएगा। परन्तु आपको ज्ञान होना चाहिए कि आपमें श्री कृष्ण की शक्तियाँ हैं जिनके साथ यदि वे किसी के पीछे लग जाएं तो उसे कोई नहीं बचा सकता। ठीक रखकर श्री कृष्ण की अभिव्यक्ति दूसरों पर करना अत्यन्त आवश्यक है। आपको कुछ करना नहीं है। वे आपकी देखभाल करते हुए सभी कुछ करते हैं। बायीं विशुद्धि पश्चिम का रोग है। क्यों आप दोष भाव से ग्रस्त रहें? आपने किसी का कत्ल नहीं किया। अब हम विराट पर आते हैं पर इससे पूर्व हमें गलती नहीं कर सकते। यह विवेक आपको किसी भी कार्य को करने या न करने की सूझ-बूझ प्रदान करता है। बायीं आपसे प्रभावित होने लगते हैं। यह व्यक्ति के समझने के लिए अति महत्वपूर्ण बात है। अन्तर्दर्शन करते हुए आप देखें कि आपमें भी यह दैवी विवेक विकसित हुआ या नहीं। जैसे कुछ चैतन्य लहरी 14. सहजयोगी अन्य लोगों को बताएंगे कि आप में भूत है। हो और पूर्ण-रूपेण स्वतंत्र हो जाएं। कोई भी चीज आपको सकता है उनमें भूत हो, पर दैवी विवेक यह है कि अभी उन्हें प्रभावित नहीं कर सकती, आपको प्रलोभित नहीं कर सकती। इसके विषय में न बताया जाए, इसे भगा दिया जाए। दैवी अपने आत्मसम्मान तथा सूझ-बुझ पर आप खड़े होते हैं, कि विवेक आपको दूसरे व्यक्तियों से सामूहिकता से व्यवहार करने की पूर्ण सूझ-बूझ प्रदान करता है। किस प्रकार अन्य लोगों से बातचीत करनी है, ठीक बात लोगों को किस प्रकार समझानी है। दैवी विवेक के अभाव में जो आपको नहीं बोलना चाहिए आप वही बोलने लगेंगे। आपमें उचित अनुचित में भेद करने को महसूस कर सकते हैं तथा सभी जगह आप प्रभावशाली हो का विवेक न होगा हंसा चक्र को शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से ठीक रखना आवश्यक है। एक बार विराट मैं आप सव से प्रेम करता हूँ। पूरा सहजयोग मेरा परिवार है। में प्रवेश करने के बाद आपमें अलगाव तथा भदभाव के विचार लुप्त हो जाते हैं। आप में अब जातीयता, राष्ट्रीयता, नगर, गांव आदि के विचार नहीं रहते। इस अवस्था में आप किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं रहते। आप का संबंध हर स्थान से होता है और किसी भी स्थान से नहीं होता। आप किसी विशेष प्रकार के भोजन या व्यक्ति के पीछे नहीं दौड़ते रहते। हर प्रकार के परिवार लोगों तथा परिस्थितियों में आप सहर्ष रह सकते हैं। कोई भी चीज आपको परेशान नहीं करती क्योंकि आप तो विराट में हैं। विराट सभी कुछ सोख लता है इसलिए आप पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। विराट दु:ख उठाता है, आप नहीं। मैं चाहती हूँ कि आप सब उस अवस्था को प्राप्त करें आप एक सहजयोगी हैं और इस दैवी शक्ति से जुड़े हुए हैं तथा परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। विराट अवस्था में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता क्योंकि आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हो जाते हैं। हर स्थान पर आप विराट सकते हैं। आप कहते रहते हैं कि आप सब मेरे भाई बहन हैं। आपका पूर्ण चित्त इस प्रकार चलना चाहिए। यह कवल मरा ही नहीं है। यह सभी का हैं। सभी का अधिकार है। झुकाव व्यक्ति विशेष से सामूहिकता की ओर होने लगता है। इस प्रकार का व्यक्तित्व हर प्रकार के सामूहिक कार्य के लिए प्रभावशाली होता है। आपको विशुद्धि से ऊपर उठना है यदि आप नही उठते तो कभी भी आप सहजायोगी नहीं हो सकते। उस अवस्था में (विशुद्धि से ऊपर उठकर) हम कभी भी सहजयोग पर संदेह नहीं कर सकते। इस प्रकार हमें निर्विकल्प समाधि प्राप्त हो सकती है। परमात्मा आपको धन्य करें। दर्गा काली पूजा सेंट डेनिस, पैरिस, 25.7.1992 दुर्गा या काली, बुराई तथा नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए, देवी के विनाशकारी रूप हैं। हमें यह पूजा फ्रांस में करनी थी क्योंकि दिन-प्रतिदिन फ्रांस पतन की ओर बढ़ रहा है जबकि आप लोग उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। बाकी का सारा फ्रांस दयनीय अवस्था में है। हैं। न्यायाधीश के मूड पर निर्भर करता है। यहाँ जितने मूर्खतापूर्ण कानून मैंने कभी नहीं देखे। नि:सन्देह अमेरिका में न्याय नहीं है और उन्हें जो अच्छा लगता है वे करते हैं। पर उनके पास तो कानून विवेक ही नहीं है। हर स्त्री को ऐसे बस्त्र पहनने होते हैं कि वह आकर्षक प्रतीत हो। किसलिए? सभी प्रकार की स्नानागार संस्कृतिः यह मद्यपनि की उपज हैं। रात को यदि आप अधिक पी लें तो प्रातः आप इतने सुस्त होते हैं कि आप कंवल फ्रेंच स्नान करके चल पड़ते हैं। अब कृतयुग है, अत: सामूहिक या व्यक्तिगत स्तर पर किए गए कार्यों, कर्मों का परिणाम आपको ा होगा यदि यह बात ठीक है तो फ्रांस को काफो कुछ झेलना होगा तथा कैथोलिक चर्च को उससे भी अधिका उन्होंने बाकी सभी अवतरणों तथा पैगम्बरों की भत्त्सना की। लोगों से उनके सभी विचार हथिया कर उन्हें सताया। दोष स्वीकृति के लिए विवश कर इन्होंने लोगों को बायीं विशुद्धि की समस्या दी। स्त्रियों को तो इन्होंने महत्वहीन बना दिया। भुगतना अत: फ्रांस के सहजयोगियों को समझना चाहिए कि अन्य देशों की अपेक्षा उनका कार्य कहीं अधिक कठिन है क्योंकि इस देश में विवेक का पूर्ण अभाव है। न यह आपकी संस्थाओं में है न सरकार में और न शिक्षा में अत: यहाँ विवेक की धारणा यह है कि आप अहंकारी हैं। लोग अपना विवेक खो चुके हैं और स्याहीचूस कागज की तरह जो कुछ भी विध्वंसक, भयानक और अवमानवीय ( मानवीयता के स्तर से नौचे) हैं कैथोलिक चर्च से तथा फ्रॉयड से आते को समझने योग्य व्यक्तित्व ही न था। कानून इतने हास्यास्प्रद उचित-अनुचित हुए चैतन्य लहरी देवता मिलकर काली के शरीर की रचना करते हैं। उनके शरीर का हर भाग किसी न किसी देवता ने बनाया तथा उसकी रक्षा भी की। बाद में यह आप सब में प्रतिविम्बित हुआ। ईश्वर ने अपने ही रूप में मानव की रचना की। में कहूंगी कि मैंने अपने रूप में आपको बनाया। सभी देवता आपकी सेवा में हैं। वे सब आपके साथ हैं तथा उन्होंने ही आपकी सारी सुन्दरता तथा गुणों को प्रकट किया। आप ने इतनी सुन्दर सामूहिकता बनायी| आपमें उन्होंने इतना सुन्दर परिवर्तन किया और आपको देव-तुल्य बना दिया। सदा वे इसके लिए कार्यरत हैं। आप में भी उर्जस्विता होनी चाहिए। आपमें उत्थान के लिए शुद्ध इच्छा थी पर किसलिए? आपको प्रकाश पाना है पर किसलिए? आप किसलिए गुरु पद पाना चाहते हैं? मोक्ष प्राप्ति के लिए लोगों आपके माध्यम से ही मैं सहजयोग को उसे सोखने का प्रयत्न करते हैं । पुस्तकों का अध्ययन करके सहजयोगियों को देखना चाहिए कि हम कहाँ खड़े हैं। यह नर्क द्वार से भी बदतर है। यह गंदगी की दलदल हैं। आप यहाँ जन्में और आप कमल रूप सुन्दर तथा सुगन्धमय हो गए। आपको इसे खदेडना होगा। अपनी सभी शक्तियों समेत मैं सदा आपके साथ हूँ परन्तु आपको इस समाज से लड़ना है। बहुत लोगों को आपने बचाना होगा तथा उनकी रक्षा करनी होगी। आज पूजा आपके हृदय में साहस प्रदान करने के लिए है। अपने चारों ओर देखिए। आप सब परमात्मा के साम्राज्य में आनन्द ले रहे हैं। दूसरे लोगों का क्या होगा? मूलाधार के इस बिचारे स्थान का भविष्य क्या होगा? फ्रॉयड तो धूर्त व्यक्ति सिद्ध हो चुका है जिसने बहुत वर्षों तक लोगों को मूर्ख बनाया। इस अराजकता, जो आपके परिवारों को विनाश की ओर ले जा रही है, के विरुद्ध बोलने का दायित्व आप अपने पर लीजिए । यदि स्त्रियाँ दृढ़ निश्चय कर लें तो मुझे विश्वास है कि वे इस कार्य को कर सकती हैं। इस देश के उत्थान के लिए याचना कीजिए। मैंने कठोर परिश्रम किया है और आप सब साक्षी हैं। मुझे प्रसन्नता है कि परमात्मा की इच्छा पूर्ण करने के लिए आप सब यहाँ हैं। अब आप बड़े स्तर पर जान पाएंगे कि असंख्य लोगों का आन्तरिक रूप से, बाह्य रूप से नहीं, विनाश हो जाएगा। अचानक ही आप सुनते हैं कि इस रोग के कारण बहुत से दुर्जन लुप्त हो गए हैं आपको स्वयं की भी रक्षा करनी होगी। सदा अपने को बन्धन में रखें तथा स्वच्छ जीवन मूर्खा के स्वर्ग में रह रहे हैं। वे नहीं जानते कि किस प्रकार व्यतीत करें। सहजयोग में सफाई के कुछ नियम हैं । इनका पालन करने का प्रयत्न कीजिए। इनका अनादर मत कीजिए। यदि किसी को एडज़ रोग हो जाए तो उसे किसी भी हाल में सहजयाग है। काली केवल अपने भक्तों की रक्षा करना चाहती सहजयोग में न लीजिए। आपको बहुत सावधान रहना होगा। मैं थी पर आपने बहुत अधिक लोगों को बचाना है। आपमें सारी तो यह भी कहुंगी कि एडज के रोगी का इलाज भी मत कीजिए। वास्तव में दो प्रकार के लोग हैं। एक तो अहंकारी हैं और दूसरे जो यह सोचते हैं कि उनकी मृत्यु हो जाना ही अच्छा है। उनमें जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं। यों तो वे दायीं ओर को हैं या बायीं को। उनका कभी उत्थान नहीं हो सकता। हो हैं इसीलिए कैथोलिक चर्च की वृद्धि हो रही है। बायीं ओर के सकता है कि अगली पीढ़ी, यदि लौट आई तो उत्थान हो सके । पर जहाँ तक इस पीढ़ी का प्रश्न है, इसका बहुत उत्तरदायित्व की रक्षा हेतु। बढ़ा सकती हूँ। यह एक राक्षस का वध करने का प्रश्न नहीं है। केवल परमात्मा ही जानते हैं कि कितने राक्षस हैं। राक्षस सभी स्थानों पर हैं। वे आपके अन्दर भी थे। अब वे बाहर चले गए हैं। सहजयोग के साथ आपको पूर्ण न्याय करना होगा। म काली पुजा सदा रात्रि 12 बजे के बाद की जाती है। यह सब हो जाता है पर आपको विचार विमर्श करना होगा। आप सोचिए कि परिवर्तन लाने के लिए आपको क्या करना पड़ेगा। क्यों न कुछ पुस्तकें तथा अनुभव लिखें? अपने अनुभव लिखिए। फ्रांस में माता-पिता तथा दादा-दादी किस प्रकार आचरण करते हैं। इस देश में क्या हो रहा है। वे विनाश उनके सिर पर मंडरा रहा है। यह्यपि आपको बचा लिया गया है फिर भी आपने अन्य लोगों को बचाना है यही शक्तियाँ हैं। उनका उपयोग कीजिए। आप यह कर सकते हैं । मेरे विचार में पूरे यूरोप को दो तरह के लोगों में बांटा जा सकता है। एंग्लो सेक्सन तथा लेटिन। लेटिन बायी ओर को है तथा एंग्लो सेक्सन दायीं को। यहाँ (फ्रांस) लोग बायीं ओर को झुकाव के कारण असाध्य रोग हो जाते हैं। आपने गुरु पद से इसका मुकाबला करना है स्त्री पुरुषों के लिए गुरुपद। हर गुरु का कर्तव्य है कि जिस समाज में वह रहता है उसे पवित्र बनाए। ईसा इसके लिए अर्केले लडते रहे। उन्हें दी गई पर वे मार्ग से न. हटे। इसी प्रकार आपको भी सत्य पर खड़े होकर बुराइयों से लड़ना है क्योंकि आप सन्त हैं। आप पर है। बहुत यातनाएं सभी सहजयोगी शपथ लें कि वे इस समाज से लडेंगे तथा अपने देश और देशवासियों की पूर्ण विनाश से रक्षा करेंगे, कोई युद्ध न होगा। लोग परस्पर लड़कर मर जाएंगे। यह अति गंभीर विषय है इसीलिए हमने आज यह पूजा करने का निर्णय किया से परमात्मा आप पर कृपा करें। है ताकि सारी नकारात्मकता का नाश किया जा सके। बहुत चैतन्य लहरी रूस यात्रा 1992 स्वतः ही बहुत से रोगीं बच्चों को रोगमुक्त कर दिया। श्री माता जी के आगमन ने रूसी सहजयोगियों के हृदय में नयी आशा भर दी। श्री माताजी की मधुर मुस्कान की धूप आत्मसात कर वे अपने देश की सारी समस्याएं भूल गए। 120 सहजयोगियों को एक अन्य किराए के यान से नि:शुल्क कीव ले जाया गया। अति हृदय-स्पर्शी ढंग से पारम्परिक वेशभूषा पहने सहजयोगियों ने श्री माताजी का स्वागत किया। एक खुले सभागार में जन कार्यक्रम हुआ जिसमें 15000 लोग थे। अपने हाथ उनकी ओर (श्री माताजी की) फैलाने को कह कर उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया गया। सेंट तीन सौ चिकित्सकों की एक चिकित्सा सभा में श्री माताजी ने घोषण की कि स्हजयोग मेरा विज्ञान है। सहजयोग उपचार विधियों के विषय में चिकित्सक गण विश्वस्त थे और सक क आत्मसाक्षात्कार के इच्छुक थे। हुई महालक्ष्मी पूजा, जिसमें 2000 से अधिक पीटर्जवर्ग में अगले दिन किराए पर लिए वायुयान द्वारा टुग्लीथी के लिए उड़े। यहाँ 15000 से भी अधिक सहजयोगी हैं पर श्री माताजी यहाँ पहले कभी नहीं गयी थीं। जन कार्यक्रम में इतने अधिक लोग आए कि श्री माताजी ने सभी को वोल्गा गोष्ठी में निमन्त्रित यह तो गणपति पुले जैसा है। "नहीं उससे भी बढ़कर है" श्री माताजी ने कहा। उन्होंने कहा "मैंने पूर्णत्व पा लिय है।" सहजयोगी उपस्थित थे, सबसे बड़ा वरदान थी। श्री माताजी ने डेढ घन्टे से भी अधिक समय तक प्रवचन दिया। संस्कृत, हिन्दी और मराठी के सीखे हुए भजनों में रूसी लोगों ने अपना हृदय उड़ेल दिया। श्री माताजी बहुत प्रसन्न हुई तथा रूस पर आशीर्वाद की वर्षा की। बहुत से विवाहों को उन्होंने आशीर्वाद दिया तथा उन्हें उपहार दिए। किया। कई घंटे वे नाचते गाते रहे। मैंने कहा कि अगले दिन 1000 से भी अधिक सहजयोगियों ने अश्रुपूर्ण आंखों से प्रिय मां को हवाई अड्डे पर विदा किया मां ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि "मैं सदा आपके हृदय में हं।" दो पीढ़ियों से भी अधिक समय से आध्यात्मिकता से दूर हुए रूसी सभासदां के नगर के मैयर ने श्री माताजी को नगर सभा में सत्कारपूर्वक आमंत्रित किया तथा उनका सम्मान किया। उन्होंने श्री माताजी से कृपा तथा मार्गदर्शन की प्रार्थना की और आश्रम के लिए स्थान भेंट किया। लोगों ने तुरन्त किस प्रकार श्री माताजी को पहचान लिया? एक दोपहर बाद यान की प्रतीक्षा करते हुए श्री माताजी ने स्पष्ट है कि आत्मा उत्थानशील है। चैतन्य लहरी 17 च काम छ्रर मन्त्र प ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली. त्रिगुणात्मिका, कुण्डलिनी साक्षात् क श्री आदिशक्ति, माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।। ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की साक्षात् श्री आदिशक्ति, माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।। ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्षप्रदायिनी माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।। ---------------------- 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 9 व 10 ( 1992) खण्ड IV विषय सूची पृष्ठ 1. श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत 2. श्री बुद्ध पूजा. 3. श्री कृष्ण पूजा. 10 4. दुर्गा काली पूजा. 15 5. रूस यात्रा "सामूहिक हुए बिना आप सामूहिकता के महत्व को कभी नहीं समझ सकते। सामूहिकता आपको इतनी शक्तियाँ इतनी सन्तुष्टि और आनन्द प्रदान करती है कि व्यक्ति को सहजयोग में सामूहिकता पर सर्वप्रथम ध्यान देना चाहिए। किसी चीज की कमी हो, तो भी आप बस, सामूहिक हो जाइए । प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत ग्लैनरॉक, आस्ट्रेलिया, 1 मार्च 1992 आज मैं आपसे जहाँ लोग उलझ जाते हैं। सहजयोग में कुछ बातें समझ लेना ऐसे मामलों पर बात करना चाहती हैँ सम्पर्क परमात्मा से न था। पर अब आपका है। तो क्यां न आप मेरा उपयोग करें? और यदि नेता हैं तो आपको उनसे पूछना होगा। कोई भी अपने हिसाब से लोगों को उपदेश देना शुरू न कर दे। हमें उपदेश पसन्द नहीं है । काफी उपदेश दे चुके। अन्य लोगों को उपदेश देने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि आपको उपदेश देने ही हैं तो स्वयं को दीजिए, दूसरे लोगों को नहीं। व्यक्ति को समझ लेना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। किसी जड़ के छोर पर स्थित अणु द्वारा हम यह समझ सकते हैं। इसमें विवेक होता है और अपने पर इसका पूर्ण अधिकार होता है। इसका सीधा संबंध देवी शक्ति से होता है। अत: कुछ आवश्यक है। पहली बात - सहजयोग में धर्मान्धता का कोई स्थान नहीं है। कोई भी मेरे शब्दों का प्रयोग न करे, न ही ये कहे कि श्री माताजी ने ऐसा कहा था। इसी प्रकार चरचं में और अन्य स्थानों पर धर्माधिकारी वर्ग की रचना हुई। हर व्यक्ति पढ सकता है तथा पता लगा सकता है। यह कहना, कि श्री माताजी ने ऐसा कहा था, आप लोगों को वश में करने का तरीका है। यह दर्शाता है कि आप लोगों को अलग हटने के लिए कह रहे हैं। आप कार्य-भारी नहीं हैं। यदि मैं सहजयोगियों के कार्यक्रम में कोई बात कहती तो इसलिए कि यह मेरे तथा मेरे बच्चों की बीच दिल की बात होतो है। बिना अगुआ से सम्पर्क किए, अनियन्त्रित रूप से, आपके कम्प्यूटरों द्वारा इसे चहूं ओर फैलाया नहीं जाना चाहिए। सहजयोग में कोई उतावली नहीं है। अत: उतावलापन नहीं होना चाहिए। यह बात में स्पष्ट रूप से कह रही हूँ। स्वत: हो यह चलता है, पर वृक्ष की जड़ की तरह इसका हैं चित्त सामूहिकता पर होता है। यह ऐसी दिशा में चलता है कि न कोई वाद-विवाद होता है न झगड़ा, अर्थात् कोई बाधा ही नहीं होती। मान लीजिए कि यदि चट्टान सी कोई बड़ी बाधा आ जाए तो यह इसके गिर्द से निकल जाता है। वृक्ष के हित में यह चट्टान के कई चक्कर लगाता है। अत: भूतकाल से आप यह जान सकते हैं कि आप कहाँ तक पहुंचे हैं। तथा भविष्य से आप जान पाते हैं कि लक्ष्य कितनी दूर है। यह समझना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्चात्य बुद्धि में ये बातें बड़ी सुगमता से घुसती हैं। वे मुझ से सीधा सबंध नहीं रखना चाहते। एसा न करके आप समूह (ग्रुप) बनाने लगेंगे, एक व्यक्ति उठकर कहेगा "श्री माताजी ऐसा कहती हैं"। कोई अन्य मेरे टेप आदि का उपयोग करेगा। ऐसा करने की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। यदि वे किसी चोज को रचना करना चाहते हैं तो सीधं मुझसे बात करें अपनी मनमानी न करें क्योंकि यह तो सहजयोग के प्रति अति अनुचित दृष्टिकोण है। अंत: सर्वप्रथम हमें समझना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। केवल आप ही इसका सारा श्रेय नहीं ले सकते। इस पर आप बनावटी बातें नहीं थोप सकते जो सहजयोग की बढ़ोतरी में बाधक हों। आप इसे किसी विशेष मैंने जो भी कहा उसे कोई याद नहीं रखता। वे केवल मेरा नाम प्रयोग करते हैं । मां ने 1970 में ऐसा कहा था। 1970 में मैं कभी अंग्रेजी नहीं बोली। अत: ये सब ऐतिहासिक कथन प्रयोग नहीं किए जाने चाहिए। हम वर्तमान में रहते हैं । हो सकता है उस समय स्थिति कुछ भिन्न रही हो। हो सकता है तब सहजयोगी नए-नए सहजयोंग में आ रहे थे, हो सकता है उन्हें किसी प्रकार के पथ-प्रदर्शन की आवश्यकता रही हो। येह एक यात्रा है। उतराई या चढ़ाई पर चलते समय आपको भिन्न विधियाँ अपनानी पड़ती हैं। अब आप समतल पृथ्वी पर चल रहे हैं। आपका व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे ये लगे कि आप पर्वत पर चढ़ रहे हैं। अतः यह सहजयोग की पर्वत पर यात्रा है। सहजयोग की हमारे लक्ष्य तक यात्रा है और सहजयोग में अधिकाधिक लोगों को मुक्ति देना ही हमारा लक्ष्य है। नमूने में नहीं परिवर्तित कर सकते। यह स्वयं ही परिवर्तित होता है तथा कार्य करता है। पर इस पर कब्जा नहीं किया जाना चाहिए। मैं पन: आपको बताती हूँ कि किसी को भी नेता (अगुआ) से इसे नहीं छीनना चाहिए। मैंने आप लोगों से मिलकर कार्य करने के लिए नेताओं की नियुक्ति की है। पर सदा आपका सीधा संबंध मुझसे हैं। अभी तक परमात्मा को मानने वाले लोगों का सीधा अतः सहजयोग में पुरोहित तन्त्र के लिए कोई स्थान नहीं है, कभी नहीं। ये धर्माधिकारी अन्ततः आपमें और मुझमें दीबार बन जाते हैं। सभी नेताओं को बता दिया गया है कि कोई भी चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt पत्र या वस्तु आपको मिले तो वह मुझे भेज दें। मैं स्वयं उसे हों। तो आपको व्यवहार की युक्तियाँ नहीं पता। विवाह के बाद देखना चाहूंगी। कभी-कभी बे ऐसा करते हैं, पर आस्ट्रेलिया में हमें कहना चाहिए 'हम'। 'मैं' नहीं कहना चाहिए। और समझना चाहिए कि पुरुष स्त्रियों से भिन होते हैं। आप (स्त्रियाँ) समाज की सुरक्षा करती हैं और पुरुष उसका सृजन। आपमें कहीं अधिक धैर्य एवं करुणा होनी चाहिए। नि:सन्देह यह गुण आपमें हैं। अपने स्त्री-सुलभ गुणों को अपनाइए, आप आश्चर्यचकित होंगी कि आप पुरुषों के लिए शक्ति बन गई हैं। आप ही पुरुषों की शक्ति हैं। इसी कारण पुरुषों को आपका सम्मान करना चाहिए। यदि पुरुष स्त्रियों का सम्मान नहीं करते तो उन्हें हर प्रकार के कष्ट होते हैं - विशेष तौर पर भौतिक, वैभव तथा मान संबंधी कष्ट। कुछ स्त्रियाँ अत्यन्त अधिक अपेक्षा तथा आशा करती हैं। शायद रॉमियो-जूलियट सम रोमांचकारी फिल्में देखने का प्रभाव हो। पर उन्हें समझना चाहिए कि शेक्सपीयर तो अवधूत थे। वे इस तरह के जीवन की सारहीनता पर प्रकाश डालना चाहते थे। रोमियो-जुलियट, दोनों की मृत्यु हो गई। एक-दूसरे की सहचारिता का आनन्द के नेताओं का मुझे बहुत बुरा अनुभव है। पर अब यहाँ पर कुछ आपको नेता एक अत्यन्त बुद्धिमान एवं विवेकशील व्यक्ति है। मेरे विचार में उसमें कोई कमी नहीं। केवल एक बात है कि कभी-कभी वह लोगों से कुछ अधिक ही कोमल होता है। दो स्त्रियों के कारण कल मुझे परेशान होना पड़ा। इसका कारण केवल एक था कि उसने उन्हें यह नहीं बताया कि वे कितनी भयानक थीं। अत: मुझे उनकी बकवास झेलनी पड़ी। एक नेता यदि अधिक नरम है तो लोग उसके सिर चढ़ जाएंगे तथा यदि वह सख्त है तो उसके पीछे पड़ जाएंगे। महसूस करने की बात केवल यह है कि सारी ही जीवन्त प्रक्रिया है और किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाकर माँ इस कार्य को अधिक सहज ढंग से कर रही है। मान लीजिए कि हर व्यक्ति छोटी-छोटी चीज के लिए मुझे लिखे तो बड़ा कठिन होगा। व्यर्थ की चीजों के लिए मुझे लिखने का कोई लाभ नहीं। न ले सके। कति इंग्लैंड में भी हमारे सामने बहुत सी समस्याएं थीं। मुझे पता चला कि विवाह से विवाह से पूर्व रोमांस और विवाह के बाद झगड़ा। तो विवाह दूसरी बात पतियों या पत्नियों की है। आप ऐसी फिल्में या दूरदर्शन न देखें जिनमें पति-पत्नि को झगड़ते दिखाया हो । ऐसा करने पर तांते की तरह, आप कुछ कठोर शब्द सीख लेंगे तथा पति-पत्नि से वैसा ही व्यवहार करेंगे। पूर्व ही रोमांस की पुस्तकें वे पढ़ते हैं। की आवश्यकता ही क्या है? मैं जब कहती हैँ पुरुष ही परिवार का मुखिया है तो इसका अभिप्राय यह नहीं कि पुरुष, स्त्रियों पर रोब जमाने लगे। मान लीजिए कि मैं कहूं कि अमुक बव्यक्ति आपका नेता है तो मेरा मतलब यह नहीं होता कि वह आप पर प्रभुत्व जमाएं। यदि मस्तिष्क शरीर पर प्रभुत्व जमाने लगे तो शरीर का क्या होगा? इस तरह के परिणाम निकालना मुर्खता है। पर आप परिवार के हृदय हैं। मस्तिष्क की मृत्यु पहले हो सकती है पर हृदय तो अन्त में ही मृत होता है। बहुत से प्रश्न सुगमता से सुलझाए जा सकते थे। मेरे विचार में विवाह का निर्वाह करना जितना स्त्रियों का कार्य है उतना पुरुषों का नहीं। प्राय: पुरुष विवाह नहीं करना चाहते। चाहे उनकी कोई जिम्मेवारी नहीं की। फिर भी वे विवाह नहीं करना चाहते। वे थोड़ा सा डरते विशेषकर पश्चिमी देशों में - भारत में नहीं। भारत में वच्चे पैदा करने इत्यादि हैं लोग विवाह करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें प्रेम करने वाला, सामने न बोलने वाला, नम्र तथा उनकी बात को सुनने वाला कोई साथी मिलेगा। पर पश्चिम में मैंने देखा है कि पुरुष विवाह ही नहीं करना चाहते। एक व्यक्ति से मैंने विवाह करने को कहा तो वह तीन दिन तक ओझल ही हो गया। अत: समझने का प्रयत्न कीजिए कि दिल और दिमाग में पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए। बच्चे सहजयोग समाज का चित्त हैं तो यहाँ पर जब मैं किसी को सिर कहती हूँ तो सिर किस प्रकार हृदय पर रोब जमा सकता है? यह नहीं हो सकता। तो लोग यहाँ कहाँ से मेरे कुछ शब्द ले लेते हैं तथा सहजयोगः में अपनी दुर्बलताओं को न्याय संगत ठहराने के लिए इनका प्रयोग करते हैं। पर इस तरह का पलायन आपकी उन्नति में सहायक न होगा। आप अपने ही विरुद्ध चल रहे हैं। यह आपके हित में नहीं। आपको विवाह करने होंगे। पर मैं आपको बता दें कि इन विवाह संबंधी समस्याओं का कारण स्त्रियां का समझौता न कर पाना है। पहली बात यह है कि आपको अपने पतियों को बहुत प्रेम करना होगा। वास्तव में हर चीज के लिए वे आप के आश्रित हो जाएं। फिर वे क्या करेंगे? ऐसा आपको प्रेमपूर्वक करना है, कष्टदायी ढंग से नहीं। किसी चीज की मांग मत कौजिए, कुछ आशा मत कीजिए। मात्र स्नेहमय और करुण बनकर आपना प्रेम प्रकट, कीजिए। तब उन्हें आदत पड़ जाती ह मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आप इन घिसं पिटे विचारों को सहजयोग में स्वीकार करेंग तो आपका पतन होगा, आप सड़ जाएंगे। हम नए और ताजा हैं। हम जीवित हैं । स्त्री-पुरुषों के बारे इस प्रकार के विचार हम स्वीकार नहीं है। इसके विना वे रह नहीं पाते। ये सब युक्तियाँ तो आपके माता-पिता को बतानी चाहिएं थी। शायद वे भी आपसे ही रहे म चैंतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt है। छपने वाली तथा वितरित होने वाली चीजें तो अगुआ द्वारा देखी जानी चाहिएं। इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है। लिखी हुई कोई पुस्तक, टेप आदि सब अगुआ की आज्ञा तथा सूझ-बूझ ही निकलने चाहिएं। में कहूंगी कि अगुआ अवश्य उन कागजात पर हस्ताक्षर करे। तब करते। पुरुष को परिवार का मुखिया कहने से मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि आप अपनी पत्नी पर रोब जमाएं या उसे तंग करें। न ही इसका अर्थ यह है कि नेता रोब जमाए। उन्हें अपना विवेक, प्रेम, करुणा के उपयोग से लोगों का उचित प्रकार मार्ग-दर्शन करना चाहिए। से मैं उसे उत्तरदायी उहराऊँगी। परन्तु निरंकुशता पूर्वक यदि आप कार्य करेंगे तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। छोटी-छोटी चोजें भी मैं आपको बताऊँगी में विश्व निर्मल धर्म शुरू करने को पूछा गया। मैंने कहा ठीक है। मैं नहीं जानती थी यह एक एसोसिएशन होगी जिसके चुनाव होंगे विश्व निर्मल धर्म तो हर जगह है। पर काई एसोसिएशन आदि नहीं। एक प्रकार का समाज विश्व निर्मल धर्म का प्रचार कर रहा है । इसकी कोई संस्था नहीं हैं। हमें कोई चुनाव नहीं चाहिए। यदि कुछ गलत लोग घुस गए तो सहजयोंग को पूरी तरह निकाल दंगे। अतः आप केवल न्यास (ट्रस्ट) बना सकते हैं। यदि आप कुछ और करना चाहते हैं तो अलग से करें यह विश्व निर्मला धर्म या सहजयोग के नाम पर नहीं होना चाहिए। मेरे हां कहने का अर्थ यह नहीं कि आप एसोसिएशन आदि कुछ भी बना लें। अब तक जो गलती हुई है उसे ठीक करें। इन्हें कम किया जाए। केवल उन्हीं लोगों को चुना जाए जो सहजयोग में बहुत अच्छे हैं और जो अभी तक विवेक पूर्वक तथा सीधे-सच्चे ढंगे से कार्य करते रहे हैं । मुझे एक हास्यास्प्रद पत्र मिला जिससे पता चला कि किसी नेता की पत्नी ने सहजयोगिनियों को घर तथा कार्यक्रमों पर आने से रोका क्योंकि 'मैं' उनके घर नहीं जा पाई। क्या आप ऐसा सोच सकते हैं? यह मूर्खता है। वह नहीं जानती कि ऐसा करने से सहजयोग में उसका कितना पतन हो रहा है। मैं जहाँ चाहूं जा सकती हूं। पर उसे दोष अपने पर लेना चाहिए था। यह 'मेरा' घर है, ऐसा कहना मूर्खता की पराकाष्ठा है। मां को मेरे घर आना चाहिए। भारतीय विशेषकर ऐसा कहते हैं। श्री माताजी कृपया मेरे घर आइए और मरे साथ खाना खाइए। आप है कौन? आप एक सहजयोगी हैं। तो आपका घर मेरा है, आप मेरे हैं, सभी कुछ मेरा है। आपके घर आने में क्या है? क्या आप अलग हैं? आपके सभी घर मेरे हैं मैं यदि जाती हूँ तो भी इसका अर्थ ये नहीं कि मैं आपको किसी अन्य व्यक्ति से अधिक प्रेम करती हूँ। ? मुझ से मैलबॉन्न किसी ने मुझ से पूछा कि आपने इसाई धर्म में क्यों जन्म लिया? मैंने कहा कि कहीं तो मुझे जन्म लेना ही था। अच्छा हुआ कि इसाईयों के यहाँ जन्म लिया क्योंकि वे मानसिक रूप से पक्के धर्मान्ध होते हैं। यह अधिक भयानक है। मुसलमानों को आप समझ सकते हैं क्योंकि उनमें वह चालाकी नहीं है। वे स्पष्ट रूप से धर्मान्ध हैं। पर इसाई तो बहुत ही अधिक धर्मान्ध हैं। एक और सलाह दी गई थी कि हम अपना प्रक्षेपण बाहर की दुनिया के सम्मुख करें। यदि इसका अर्थ यह है कि हम दूसरी संस्थाओं तक जाएं तो यह गलत है। ये सारी संस्थाएं मृत ये जीवन्त संस्थाएं नहीं हैं। परन्तु यदि ये हमारे पास आना चाहें तो ठीक है। हमें अपना सिर फोड़ने के लिए उनके पास नहीं जाना चाहिए। वहाँ जाकर न केवल विरोधियों में फरसेगे बल्कि उनसे आप नकारात्मकता भी ले लेंगे। समझने का प्रयत्न करें। हमें अति सावधान रहना है। आप केवल ऐसे सहजयोगी ले सकते हैं जो जिज्ञासु हैं, ईमानदार हैं, नम्र हैं और जिन्हें सहजयोग से धन तथा सत्ता की आवश्यकता न हो। किसी के घर जाना अब मेरे लिए समस्या बन रही है। क्योंकि जिसके यहाँ मैं जाती हूँ रस व्यक्ति को अहंकार हो जाता है कि श्री माताजी मेरे घर आई थीं। अत: फिर कभी आप न कहें कि श्री माताजी यह मेरा घर है। श्री माताजी यह आपका घर है। मैं वहाँ जाऊँ तो भी ठीक, न जाऊँ तो भी ठीक। इससे क्या फर्क पड़ता है? आस्ट्रेलिया से दो व्यक्ति आए थे और अब देखिए कितने सारे हैं। नि:सन्देह सहजयोग बढ़ेगा, पर इसे आयोजित मत कीजिए। आयोजन शुरू करते ही बढ़ोतरी रुक जाएगी। जैसे आपने देखा होगा कि काटकर सुव्यवस्थित ( आयोजित) करने से पेड़ छोटा हो जाता है ( बौना ) । मैंने ऐसा कोई वृक्ष नहीं देखा जो आयोजन से बढ़ता हो। ज्यादा से ज्यादा आप इसका पोषण कर सकते हैं, पानी दे सकते हैं । पर आप इसके विकास की गति नहीं बढ़ा सकते। मैं तुम्हें एक बार फिर से बताती हूँ कि बिना नेता से के सम्पर्क किए और बिना उसकी जांच के कम्प्यूटर माध्यम से कोई बात नहीं फैलानी। ऐसा करना मुझे कठिनाई में डाल सकता है और मुझे जेल भी भिजवा सकता है। आप समझते क्यों नहीं? आपकी जो इच्छा करती है लिख देते हैं। इस प्रकार का गैर जिम्मेदारी भरा आचरण मेरी समझ में नहीं आता। मैंने जो कभी नहीं कही वे बातें भी कही जाती हैं। इससे अपरिपक्वता तथा उतावली झलकती है। ऐसी बातों को पूछा जाना चाहिए। अपनी विवेक बुद्धि का उपयोग कीजिए। अपने अगुआ से सम्पर्क करना अत्यन्त आवश्यक सभी सस्थाएं विकास की गति को कम करती हैं । आरम्भ में चाहे यह प्रतीत हो कि आयोजित करने से गति बढ़ गई है। चैतन्य लहरी এ 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt लहरियाँ आप से बह रही हैं, अपने सिर की अच्छी तरह मालिश कीजिए। शनिवार को एक घंटा लगाइए। यह शनि का दिन है, कृष्ण का दिन है। उन्हें मक्खन-तेल बहुत पसन्द है। छोटी-छोटी बातों को समझना चाहिए। इसाई, मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दु आदि धर्म भी आयोजन के बाद बनावटी रूप से बढ़े और खोखले से हो गए। हमें ठोस व्यक्तियों तथा ठोस अन्तर्जात धर्म की आवश्यकता हैं। इन बनावटी चीजों को हमनें नहीं अपनाना। आजकल हम बहुत सी बनावटी खाद उपयोग कर रहे हैं। लोगों को समझ आने लगी है कि यह हमारे लिए हानिकारक है। अत: सहजयोग को स्वाभावि ढंग से, बिना बनावटी संस्थाएं बनाए, परमात्मा की कृपा से कार्य करने दीजिए। बनावट तो पतन ही लाती है। ज। में समझ सकती हूँ कि आपको धूप बहुत पसन्द है। पर आस्ट्रेलिया में तो बहुत धूप है फिर भी न जाने क्यों यह आपको पसन्द है। फैशन के कारण आप बिगड़ते हैं। आपकी चमड़़ी में चमक नहीं आ सकती उपचार के रूप में आप सूर्य स्नान कर सकते हैं भारतीय लोग अंग्रजों के इस तरह के अवांछित सूर्य-स्नान पर हेरान होते थे। अब आपके बच्चों के बारे में। पश्चिमी बच्चों के स्वभाव का अध्ययन करती रही हूं। उनका चित्त कभी ठीक चीजों पर नहीं होता। पढ़ाई पर तो बिल्कुल नहीं होता। खाने पर उनका चित्त होता है। व्यक्तिगत शुद्धि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। वहुत से पानी का उपयोग कर हाथ धोइए। पाखाना जाने पर हर बार पानी इस्तेमाल कीजिए। ऐसा न करने पर आपका मूलाधार कभी ठीक न होगा। आपके बच्चे अपने दांत भी नहीं साफ करना चाहते। दांत साफ करने या स्नान करने को यदि उनसे कहें तो वे रोने लगते हैं। भारत की चिलचिलाती गर्मी में भी वे स्नान नहीं करना चाहते। उनसे दुर्गन्ध आती है। पर यदि आप उनसे कहें तो वे कहते हैं "हमारे माता-पिता से भी ऐसी ही गंध आती है"। उनके मुंह से भी दुर्गन्ध आती है। भारत में तो हमें सुबह-शाम दांत साफ करने चाहिएं। यह अति आवश्यक है। भारतीय संस्कृति ने ये सब बातें हमें बहुत पहले से सिखाई पश्चिमी देशों के लोगों को भारत में दस्त हो जाते हैं। आप न गर्मी सहन कर सकते हैं न सर्दी। आप अन्तर्दर्शन करें। थोड़ा सा काम करने से आप थक जाते हैं। क्या कारण है? कारण यह है कि आप सोचते बहुत अधिक हैं। ऐसा ही आप विवाह होने पर करते हैं। आप सोचने लगते हैं कि मेरी प्राथमिकताएं क्या हैं, में क्या करूं, विश्लेषण करने लगते हैं। जो भी करना है कर डालिए। बहुत अधिक सोचना आपको रोगों के प्रति दुर्बल बनाता है। मूलाधार चक्र, नि:सन्देह, अति महत्वपूर्ण है। यदि मूलाधार दुर्बल है तो आप पकड़ जाते हैं। आपको कोई रोग हो सकता है। पश्चिम में तो गुप्त रोग भी बहुत आम हैं। पर भारत में शक्तिशाली मूलाधार के कारण ऐसा नहीं है। अत: अब पहली समस्या यह है कि अपने मूलाधार को किस प्रकार दृढ़ करें। दूसरे जो खाना आप खाते हैं वह ताजा नहीं होता। ताजा खाना खाने का प्रयत्न कीजिए। आस्ट्रेलिया में तो आपको ताजा खाना उपलब्ध हो सकता है। जहाँ तक हो सके कार्बोहाइड्रेट अधिक लीजिए। पतले होने की अधिक चिन्ता न कीजिएं। थोड़े से मोटे व्यक्ति लहरियों को अच्छी तरह सोखते हैं क्या आप जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ चर्बी पर बैठती हैं इस तरह वे स्नायुतंत्र में जाती हैं। क्योंकि आपके स्नायु चर्बी से बने हैं और आपका मस्तिष्क भी चर्बी से बना है। 1. थी। इन सब कामों के लिए किसी को कहना नहीं पड़ता। खेल-खेल में ही बच्चों को हम यह सब सिखा देते हैं। सफाई, स्नान आदि आपके तथा आपके बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत सफाई आप लोगों की बहुत कम है। घर तो आपके पूरी तरह साफ होंगे। कालीन पर यदि कुछ गिर जाए जो आप इसे तुरन्त साफ करेंगे क्योंकि आपने इसे बेचना है। बेचने योग्य हर चोज की आप देखभाल करते हैं। अन्य चीजों की नहीं। सहजयोग में हमें समझना चाहिए कि हमारी कोई भी वस्तु बिकाऊ नहीं है। हमारे पास जो भी कुछ है इसे हम स्वयं रखेंगे, अपने बच्चों को देंगे या दूसरे लोगों को भेट कर देंगे । कोई चीज बेचेंगे नहीं। आपके बच्चे भी अपने शरीर की सफाई से अधिक ध्यान बिकने योग्य वस्तुओं का रखते हैं। हमें अपने विचार बदलने होंगे और कहना होगा कि हम अपनी किसी भी वस्तु को बेचेंगे नहीं। कभी आपको अपना घर बेचना भी पड़ता है तो हर हाल आपके मस्तिष्क में जो भरा जाता है आप उसे स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि उद्यमियों ने आपको वश में कर लिया है। विवेकहीनता के कारण हम यह समझ नहीं पाते। उन्होंने आपको सिर में तेलं लगाने से रोका और आप रुक गए। परिणामतः आप गंजे हो जाते हैं। वे विग बेच सकते हैं बालों में उसके एक ही दाम मिलेंगे चाहे आप इसे सजाइए या नहीं। को ठीक से बढ़न के लिए पोषण चाहिए। इन्हें भूखा क्यों मारते लोग तो अनसजे घर खरीदना पसन्द करते हैं । हैं? आप अपने शरीर की भी मालिश कीजिए। सिर की मालिश कीजिए। अपनी देखभाल कीजिए। बिना तेल के बिखरे। बाल तो भुतों को बुलावा देना है। आप साक्षात्कारी लोग तो यही भौतिकवाद है कि हम बेचने के लिए चीजें खरीदने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत हमें चाहिए कि हस्तकला की सुन्दर-सुन्दर वस्तुएं खोजें, इनमें से कुछ खरीदें चैतन्य लहरी = he श० 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt तथा ये अपने बच्चों को तथा उनकी सन्तानों को दी जाएं। करने के बारे में सोचना चाहिए! हम सहजयोग के लिए कुछ लिए क्या कर सकते हैं? आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैंने अपने पति का बहुत साधन खर्च कर दिया है। मैं आस्ट्रेलिया में एक बार फिर कुछ करने वाली हूँ जो यहाँ के लोगों के लिए बहुत हितकर होगा। इसके लिए मैं अपना पैसा भी लगा सकती हूँ। इसके बावजूद भी लोग नहीं समझते कि मेरे पति मुझे यह सब करने की आज्ञा क्यों देते हैं। क्योंकि बे जानते हैं कि इस प्रकार उन्हें पूरे आशीर्वाद मिलते हैं उन्होंने सहजयोगियों को बताया है कि सहजयोग के कारण ही मुझे ये सब इनाम मिले हैं। परन्तु वे ( श्री माताजी) तो परमात्मा के लिए कार्य कर रही यह भी कहना चाहती हूँ कि आपने बहुत सा धन दिया। मेरे कार्यक्रम में बच्चे के रोने का कारण जरूर खोजें। अवश्य ही कोई परेशानी या बाधा होगी। यदि वच्चा मेरी उपस्थिति में रोता हैं या डरता है तो कोई बाधा अवश्य हैं। आप इस बाधा की दूर करें। तो अब हमें अपने प्रति दृष्टिकोण बदलना होगा। हम आशीर्वादित लोग हैं। हमें अपने शरीर, अपने बच्चों तथा भौतिकता से अधिक महत्वशील वस्तुओं की देखभाल करनी होगी। यह आत्मा है। क तो आखिरकार हम इस परिणाम तक पहुंचते हैं कि जिस आत्मा ने हमें यह सारा सौन्दर्य, सुन्दर चांदनी, हमारे कार्यों के लिए सुन्दर धूप प्रदान की है तथा हमें इतना मधुर बनाया है, उसकी सन्तुष्टि के लिए और उसका आनन्द लेने के लिए हमने क्या किया। अत: आत्मा ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हमें आत्म-आनन्द खोजना चाहिए। जितना अधिक आप आत्मा के विषय में सोचेंगे उतना ही अधिक गहनता में उतरेंगे। अत्यन्त गहन आनन्द आपको प्राप्त होगा आध्यात्मिकता में स्थापित हो सामूहिकता का आनन्द लेते हुए अति सुन्दर रूप से आप स्थिर हो जाएंगे। हैं। मैं यह उदारता है। पर यदि आप सहजयोग के लिए धन देते हैं तो किसी अन्य रास्ते से आपको धन मिल जाता है। अपने ब्यक्तिगत उपयोग के लिए मुझे पैसा नहीं चाहिए। यह आपकी उदारता का द्योतक है। सभी अगुआओं की यह सामान्य बात है। मैलबॉर्न का अगुआ कहता है कि कोई पैसा नहीं देना चाहता। वे केवल सहजयोग से लाभ उठाना चाहते हैं। लक्ष्मी जी के दृष्टिकोण से यह ठीक बात नहीं है। व्यक्ति को यह भी समझना है कि एक बार सहजयोग में अने के बाद, चाहे आप कुछ सहजयोग कोे लिए खर्चते हैं या नहीं, आप स्वयं को सहजयोग की जिम्मेवारी समझने लगते हैं। यह अति अनुचित है। हर छोटी-छोटी बात में उन्हें सहायता सामान्य बातों में - कोई भी विशेष कार्य करने से पहले अपने अगुआओं से आज्ञा लीजिए। इसके बाद आपकी अपनी समझदारी है। अन्त में - सभी अगुआओं को शिकायत है कि सहजयोग के लिए कोई भी धन नहीं देना चाहता। अब आप देखिए कि जो पैसा आप पूजा के लिए देते हैं उसकी तो मैं चाहिए। नि:सन्देह उनकी सहायता होनी चाहिए। जिनके पास आपके लिए चांदी खरीद लेती हूं। आपको यूरोपियन लोगों के बराबर चांदी दे दी जाती है जबकि आपका पैसा उनसे कम होता है । पहले वे पूजा के लिए एक डॉलर दिया करते थे जो सिक्कों के रूप में होता था और जिसे मैं वापिस ले आती थी। मैं इसका उपयोग अपने लिए नहीं करती, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यद्यपि ये मुझे दिया जाता है और सामान्यतः मुझे इसका उपयोग करना चाहिए। पर मैंने सोचा कि इसे खर्चने के स्थान पर आपको चांदी दे दें क्योंकि चांदी के बर्तन के लिए अति आवश्यक हैं और अति शुभ हैं। पर लोग बड़ी हिचकिचाहट पूर्वक पैसा देते हैं। मैं जानती हूँ कि आपको पैसे की कठिनाई है। पर इस कठिनाई का एक कारण यह भी हो करे। व्यक्ति को समझना चाहिए कि सहजयोग आपकी जिम्मेवारी सकता है कि पूरे विश्व में आप सबसे कम पैसा सहजयोग के है; आप सहजयोग की जिम्मेवारी नहीं हैं। यह सर्वोत्तम लिए देते हैं। इतना कम और कोई भी नहीं देता। भारत में कम से कम 21 रु. और 11 रु. देते हैं। तो जो भी कुछ आप इकट्ठा करेंगे, मैं कुछ नहीं कहूंगी। और चांदी आपको दे दूंगी। आप इतने सारे लोग हैं। मुझे ऐसा करना पड़ता है, आपको तथा यूरोप को अधिकतर पैसा देना पडता है। आप भी यूरोप की देखभाल करनी चाहिए, न कि सहजयोग आपकी देखभाल करे तरह ही एक महाद्वीप हैं। परन्तु व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे सहजयोग के धन नहीं है हम उनकी सहायता करने का प्रयत्न करते हैं। पर वे एक प्रकार के बोझ बन जाते हैं और अन्य सहजयोगियों तथा से भी वे बहुत अधिक आशा करते हैं। किसी का विवाह मुझ कर दो तो बह सिरदर्द बन जाता है, पत्र पर पत्र, टेलीफोन पर टेलीफोन उचित नहीं। यदि कोई बच्चा बीमार है तो बेशक आप मुझे सूचित करें। पर क्रोधी और दुर्व्यवहार करने वाला बच्चा मेरे लिए सिरदर्द है। हो सकता है आप क्रुद्ध स्वभाव हों और पति-पत्नि परस्पर झगड़ते हों। तो इस दोष को आप क्यों नहीं दूर करते? वे चाहते हैं कि उनका हर छोटा-छोटा कार्य भी सहजयोग है। पूजा THR दृष्टिकोण है। नि:सन्देह एक प्रकार आप सहजयोग की जिम्मेवारी हैं। पर दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए? अब आप काफी परिपक्व हैं। बेटा जब बड़ा होकर परिपक्व हो जाता है तो वह माता-पिता की देखभाल करता है इसी प्रकार आपको सहजयोग की और आप सदा सहजयोगियों को परेशान करते रहें । अच्छी तरह समझ लोजिए कि आपके लिए सहजयोग चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt उत्तरदायी नहीं है। आप सहजयोग के लिए उत्तरदायी हैं। तब इस पर अपनी बुद्धि लगाएंगे। आप हैरान होंगे कि दूसरों के सहजयोग ने आपको इतना कुछ दिया है। आपने परमात्मा के लिए जब आप कुछ करने लगेंगे तो यह सहजयोग के लिए लिए क्या किया है, सदा इस प्रकार सोचें। यदि आप इस प्रकार सोचने लगंगे तो जितना अधिक कार्य आप सहजयोग के लिए है। सहजयोग में जो भी कुछ आप सहजयोग के लिए करते हैं करेंगे, उचित, जीवन्त और सन्तुलित ढंग से जितना अधिक आप सहजयोग के लिए अपनी बुद्धि लगाएंगे, उतना ही एकाकारिता है। इसे हम पूजा भी कह सकते हैं। एक बार जब अधिक आपकी सहायता होगी, उतने ही अधिक आप वढ़ेगे और उतना ही अधिक आनन्द आप लंगे। आज की प्रवचन आप सब के लिए है क्योंकि मैं नहीं जानती की किस पर क्या लागू होता है। दूसरों के लिए हम इस बात को न समझ अपने लिए जाने कि हम सहजयोग पर बोझ न बन कर सहजयोग का सहारा हांगे। हमें सहजयोग की देखभाल करतनी है। यह अति सुन्दर दृष्टिकोण है। मुझे (श्री माताजी को) सहजयोग की आवश्यकता नहीं हैं। आत्मा ने जो हमारे लिए किया उसके लिए हम इसका है। पर मैं सहजयोग तथा सहजयोगियों के लिए चिन्तित हूं। मेरे लिए भी वे सभी मेरी जिम्मेवारी हैं। मुझे उनकी दंखभाल देखा है। एक महान ऊंचाई को अचानक ही आप पा लेते हैं । करनी है, उनकी चिन्ता करनी है मुझे उनकी बात सुननी है। मुझे विश्वास है कि आस्ट्रेलिया के लोगों के साथ भी ऐसा ही मुझे उनके पत्र आदि मिलते हैं। मेरा अभिप्राय है कि इस तरह का कार्य यदि किसी को करना पड़े तो कोई इसे स्वीकार न करेगा। हर हाल में मुझे सहारा देना है। क्योंकि मेरी आत्मा सन्तुष्ट होती है। यह सन्तुष्टि के लिए है, मेरी अपनी सन्तुष्टि उन्हें चाहिए कि स्वयं को साफ करें, ठीक करें तथा अपनी के लिए। यह स्वार्थ है। जब आप उस आत्मत्व तक पहुंच देखभाल करें। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है। जाएंगे तो समझ सकंगे कि आत्मा की आवश्यकता क्या है। अति लाभकारी होगा एक प्रार्थना की तरह। सभी कुछ प्रार्थना यह एक प्रार्थना है, परमात्मा से घनिष्टता है, परमात्मा से आप ऐसा करने लगेंगे तो आप चिन्ता करनी छोड़ देंगे कि कौन आपकी आलोचना करता है, लोग आपको क्या कहते हैं आदि। पर सुन्दर संबंधों तथा सूझ-बुझ की अनुभव आप करेंगे। विश्वास है कि निश्चित ही यह शिव पूजा बहुत ही मुझे ऊंचे स्तर पर आपको स्थापित करेगी। और स्थापित होने पर आप इसे जान सकंगे। यहाँ हमारा सम्पर्क सीधे अपनी आत्मा से है। हम आत्मा के विषय में जानते हैं तथा उसके प्रति कृतज्ञ सम्मान करते हैं। इस तरह से मैंने (श्री माताजी ने) परिवर्तन घटित होगा। अपने क्षुद्र भेदभावों को भूल जाइए। धन एवं सत्ता के लिए लड़ना मूर्खता है। ठीक होने का प्रयत्न कीजिए। मैलबोर्न में इसी मुर्खता के कारण कुछ लोग पकड़ जाते हैं। परमात्मा आप पर कृपा करें। बुद्ध पूजा शुडी कैम्प, इंग्लैंड - 31.5.92 सभी धर्म किसी न किसी प्रकार की धर्मान्धता में विलय हो गए क्योंकि किसी को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त न होने के वालों में से एक थे इसीलिए उन्हें आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति कारण सभी ने अपने ढंग से धर्म की स्थापना कर ली। ताओ हुई। और जेन भी इसी की शाखाएं हैं। श्री बुद्ध को लगा कि व्यक्ति को जीवन से आगे कुछ खोजना चाहिए। वे एक राजकुमार थे, है। वे न जानते थे कि शुद्ध इच्छा क्या है। इसी कारण वे लोगों उनकी अच्छी पत्नी तथा पुत्र थे और उनकी स्थिति में कोई भी को न बना पाए कि कुण्डलिनी की जागृति के द्वारा ही अन्य व्यक्ति अति सन्तुष्ट होता। एक दिन उन्होंने एक रोगी, एक भिखारी तथा एक मृतक को देखा। वे समझ न पाए कि ये सारे कष्ट किस प्रकार आए। आप में से बहुत लोगों को तरह से वे भी आपने परिवार और सुखमय जीवन को त्याग कर सत्य की खोज में चल पड़े। सत्य प्राप्ति के लिए उन्होंने सभी उपनिषद तथा अन्य ग्रन्थ पढ़ डाले पर कुछ प्राप्त न कर सके। उन्होंने भोजन त्याग दिया। सभी कुछ त्याग कर जब वे एक बढ़ के वृक्ष के नीचे रह रहे थे तो आदिशक्ति ने उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया। वे विराट के विशिष्ट अंश वनने उन्होंने खोज निकाला कि आशा ही सभी कष्टों का कारण साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। क्योंकि उन्होंने तपस्वी जीवन बिताया था अत: बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तपस्या एक नियम बन गई। बिना भोजन तथा निवास का प्रबन्ध किए श्री बुद्ध अपने साथ कम से कम नंगे पांव चलने वाले एक हजार शिष्य रखा करते थे। उन्हें अपने सिर के बाल मुंडवाने पड़ते थे सर्दी हो या गर्मी एक ही वस्त्र ओढ़ते थे। उन्हें नाचने गाने या किसी भी प्रकार के मनोरंजन की आज्ञा न थी। जिन गांवो चैतन्य लहरी 16 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt करते हैं । जैन प्रणाली में कुण्डलिनी जागृति की कठोर विधियाँ खोज निकाली गई। यह कठोरता इस सीमा तक गई कि लोगों की रीढ़ की हड्डी तक टूट जाती है। टूटी रीढ़ में कुण्डलिनी कभी नहीं उठेगी। मैं विदित्म जैन प्रणाली के मुखिया से मिली। वह बहुत वीमार था तथा उसे रोग मुक्त करने के लिए मुझ बुलाया गया। मैंने पाया कि वह तो आत्मसाक्षात्कारी था ही नहीं और न ही उसे कुण्डलिनी के बारे में कुछ पता था। मैंने उससे पूछा कि जैन क्या है इसका अर्थ है ध्यान। जैन के बारे वह इतना भ्रमित था कई शताब्दियों में उनमें कोई साक्षात्कारी न हुआ। आप कल्पना कीजिए कि कितने सहज में, बिना किसी बलिदान, तपस्या या त्याग के आपकों आत्मसाक्षात्कार में वे जाते थे वहाँ से भिक्षा मांगकर भोजन एकत्र किया जाता था । वह भिक्षा भोजन अपने गुरू को खिलाने के बाद वे स्वयं खाते थे चिलचिलाती गर्मी, कीचड़ या वर्षा में वे नंगे पांव चलते थे परिवार का वे त्याग कर देते थे यदि पति-पत्नी भी संघ में सम्मिलित हो जाते तो भी पति-पत्नी की तरह रहने की आज्ञा उन्हें न होती थी। व्यक्ति को सभी शारीरिक, मानसिक, तथा भावनात्मक आवश्यकताए त्यागनी होती थी। बुद्ध धर्मी, चाहे वह सम्राट हो क्यों न हो, यह सबकुछ करता है। सम्राट अशोक भी बुद्ध धर्मी थे उन्होंने पूर्ण त्यागमय जीवन व्यतीत करने का प्रयत्न किया। यह अति कठिन जीवन था पर उन्होंने सांचा कि ऐसा जीवन-यापन करके वे आत्मसाक्षात्कार को पा लेंगे। श्री बुद्ध के दो शिष्यों को साक्षात्कार मिल सका। पर उनका पूरा जीवन कठोर एवं नीरस था। इसमें कोई मनोरंजन न था। सन्तान तथा परिवार की आज्ञा न थी। प्राप्त हुआ! बुद्ध, ईसा और महावीर आज्ञा चक्र पर विराजित हैं। आज्ञा चक्र पर तप हैं। तप का अर्थ है तपस्या। सहजयोग में तपस्या का अर्थ है ध्यान धारणा आपको पता होना चाहिए कि ध्यान धारणा के लिए कब उठना है। सहजयोगी के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। बाकी सभी कार्य स्वतः हो जाते हैं। गहनता में उतरने के लिए आपको ध्यान धारणा करनी होगी। आपको सिर नहीं मुंडवाना, नंगे पांव नहीं चलना, भूखे यह संघ था पर इस सामूहिकता में कोई तारतम्य न था क्योंकि अधिक बोलने की आज्ञा उन्हें न थी वे केवल ध्यान धारणा तथा उच्च जीवन प्राप्ति के बारे बात कर सकते थे। यह प्रथा बहुत से धर्मों में प्रचलित रही। बाद में त्याग के नाम पर गृहस्थां से धन बटोरने लगे। श्री के समय भी साधकों को नहा रहना और न ही गृहस्थ जीवन का त्याग करना है। आप त्याग करना पड़ता था। पर यह उन्हें मोक्ष की ओर ले जाने का श्री बुद्ध का वास्तविक प्रयत्न था। उन्हें पूर्ण सत्य का ज्ञान दिलाने का प्रयत्न था। पर ऐसा न हुआ। यही कारण है कि महात्मा बुद्ध के अनुयायी भिन्न प्रकार के हास्यास्प्रद धर्म हैं क्योंकि उनका त्याग करना तो मूर्खता थी। यह सब मिथ्या बैठ बुद्ध नाच, गा और मनोरंजन कर सकते हैं। बुद्ध का अर्थ है बोध अर्थात् सत्य को अपने मध्य-नाड़ी-तंत्र पर जानना। अब आप सब बिना कोई त्याग किए बुद्ध बन गए था। संगीत से या नृत्य से क्या अन्तर पड़ता है। कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु ये विचार उनमें इतने गहन हो गए कि आपको उन पर दया आती है। घे खाना नहीं खाते थे, भूखे रहकर वे तपेदिक के रोगियों से भी बुरे प्रतीत होते हैं। जबकि आप लोग सुन्दरतापूर्वक जीवन का आनन्द ले रहे हैं तथा गुलाब की तरह खिले हुए हैं। फिर भी श्री बुद्ध का वह तत्व हमारे अन्दर होना चाहिए अर्थात् हमें तप करना चाहिए। इसका अभिप्राय यह नहीं कि आप भूखे रहें। परन्तु यदि आपको अधिक खाना अच्छा लगता हो तो कम खाना खान लगे। मोक्ष, जागृति एवं उत्थान के लिए बने संगीत का आनन्द लें। हम बंधनों में इतना जकड़े हुए हैं कि लोग ये भी नहीं समझ पाते कि आत्मा क्या है। परमात्मा के असीम प्रेम की अभिव्यक्ति ही आत्मा है। अब भी हममें बहुत से बन्धन कार्यरत हैं। आपमें से कुछ को अपनी राष्ट्रीयता पर बहुत गर्व है। दूसरे लोगों के साथ हम घुल-मिल नहीं सकते। दूसरे लोगों के मुकाबले स्वयं को बहुत ऊंचा समझते हैं। अब आप सर्वव्यापक व्यक्ति हैं। अत: आपमें यह मूर्खतापूर्ण मिथ्या सीमाएं कैसे हो सकती हैं। आपके अन्दर ज्योति है और आप जानते हैं कि इस प्रकाश को बाहर फैलाने की आवश्यकता है। यदि अब भी आप इसे फैलाने में असमर्थ हैं तो जान लीजिए कि आपको अभी और शक्ति की आवश्यकता बनाकर गए। उदाहरणार्थ जापान में पशुवध की आज्ञा न थी पर मांस खाना निषेध न था। मनुष्य का वध किया जा सकता था। मनुष्य का वध करने में जापानी विशेषज्ञ बन गए। किस प्रकार से लोग बहाने ढूंढ लेते हैं। जब लाओत्से ने ताओ के विषय में उपदेश दिए तो दूसरे प्रकार के बुद्ध धर्म का उदय हुआ। ताओ कुण्डलिनी हैं लोग न समझ पाए कि वे क्या कह रहे हैं। कठोरता से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने चित्रकला में अपनी अभिव्यक्ति की। इसके बावजूद भी गहनता में न जा सके। यंगत्जे नाम की एक नदी है जहाँ सुन्दर पर्वत तथा झरनों के कारण हर पांच मिनट में दूश्य परिवर्तित हो जाता है। कहा गया है कि इन बाह्य आकर्षणों की ओर अपने चित्त को न भटकने दें। उन्हें देखकर हमें चल देना चाहिए। ताओ के साथ भी ऐसा ही है। वे कला की ओर झुक गए। मूलत: बुद्ध ने कभी भी कला के बारे में नहीं सोचा। उन्होंने कहा कि अन्तर्दर्शन द्वारा अपने अन्तस की गहराइयों में जा कर आपको पूर्ण को खोज निकालना है। अतः सभी कुछ पेथ-भ्रष्ट हो गया। जैन प्रणाली, जो जापान में शुरू हुई, ये भी कुण्डलिनी मिश्रित है। इस प्रणाली में वे पीठ पर रीढ़ की हड्डी तथा चक्रों पर चोट मार कर कुण्डलिनी जागृत करने का प्रयत्न चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt प्रकाश आप देख पाते हैं हो सकता है आपमें केवल अहं हो, आत्मसम्मान न हो और इसी कारण आप हृदय को न खोल पाते हों। है। यह सीखना आपके लिए आवश्यक है कि किस प्रकार अपनी कुण्डलिनी चढ़ाकर हर समय परमात्मा की शक्ति से जुड़े रहें ताकि निर्विचार समाधि में रहते हुए आप अपने अन्दर गहनता में बढ़ें। श्री बुद्ध अहं का नाश करने वाले हैं। हमारी पिंगला नाड़ी पर विचरण करते हुए वे हमारे बायों ओर बस जाते हैं। हमारे अहं को वे सम्भालते हैं और हमारी दायी ओर की पूर्ति करते पत्नियों तथा बच्चों की चिन्ता न किया करते थे। अब मुझे हैं। दायीं ओर को झुका व्यक्ति न कभी हंसता है न मुस्कुराता परन्तु बुद्ध को मांसल (मोटा) तथा हंसता हुआ दिखाया और घर बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। बच्चे संघ के (सामूहिकता गया है हंसने मात्र से वे दायीं ओर को सम्भालते हैं वे अपना मजाक उड़ाते हैं और सारा ड्रामा देखते हैं। अपनी ज्योत्तिमय आप अपने को सीमित करते हैं और समस्याओं में फंसते हैं। चेतना से सारी मूर्खता को देखिए तथा इसका आनन्द हर देश की समस्याएं कम हो रही हैं हमें जातीयता पसन्द नहीं लीजिए। जैसे एलिजाबैथ टेलर को विवाह करके मधुमास ( हनीमून) पर जाते देखकर, ऐसे अशुभ व्यक्ति पर, मोहित जाए। क्योंकि यह प्रथा आत्म-विनाशक है। अत: हम अपने होने के स्थान पर उसकी मूर्खता को देखें। वस्तुओं के प्रति आपकी प्रक्रिया आपके चित्त की अवस्था पर निर्भर करती है। यदि यह कोई दैवी वस्तु है तो आपका चित्त भाव-विभोर होना रचनात्मक जीवन के ठीक विपरीत इन सब दुःस्साहसिक कार्यों चाहिए। परन्तु यदि यह कोई मूर्खतापूर्ण या हास्यास्प्रद चीज हैं को आप समझने लगते हैं और इन्हें रोक सकते हैं। यह तभी तो आप इसके तत्व को देख सकते हैं। अपने चित्त से आप सत्य से संबंधित हर चीज के तत्व को देखें। सत्य की तुलना और देखें कि क्या आपमें वह गुण हैं? अब कुण्डलिनी ने में यह मूर्खतापूर्ण या मिथ्या या पाखण्ड हो सकती है। पर यदि आप सहजयोगी हैं तो आपमें यह बात देखकरं उसका आनन्द आपमें अक्षत (सही-सलामत) थे। जामृत होते हुए कुण्डलिनी लेने की योग्यता होनी चाहिए। एक आयु तक बच्चे ऐसा करते हैं। आपकी प्रक्रिया आपके प्रकाशित चित्त पर निर्भर करती है। एक प्रकाशित चित्त किसी मुर्ख, भ्रमित तथा नकारात्कम चित्त 'मेरा' शब्द का शक्तिशाली बन्धन मुझे अब भी सहजयोगियों में मिलता है। पहले पश्चिमी देशों के लोग अपने परिवार लगता है कि वे गोंद की तरह इनसे चिपक जाते हैं। पति, बच्चे है। के) हैं आप मत सोचें कि यह आपका बच्चा है। ऐसा सोचकर है। भारतीय सहजयोगी चाहते हैं कि जाति प्रथा समाप्त हो अन्दर ही देखने लगते हैं कि मेरे लिए, मेरे परिवार के लिए देश के लिए तथा पूरे विश्व के लिए घातक क्या है। आपके संभव है जब आप अन्तर्दर्शन तथा समर्पण करने का प्रयत्न करें आपके सभी सुन्दर गुणों को जागृत कर दिया है। ये सारे गुण ने इन सभी गुणों को भी जागृत कर दिया है। सहजयोग इतना बहुमल्य है कि मानव को बहुत पहले से इसका ज्ञान हो जाना चाहिए था। यह केवल परमात्मा के बारे से भिन्ने प्रक्रिया करता है। जो हम हैं उसे स्वीकार करना में बात करना या मात्र यह कहना ही नहीं कि आपके अन्दर देवत्व निहित है। यह तो इनकी प्रभावकारिता है। आपको किसी विज्ञान की आवश्यकता नहीं। जब भी आपको कोई चाहिए। प्रथम - समस्या हो तो एक बन्धन दे दीजिए। यह इतना सुगम है। विज्ञान से होने वाले हर कार्य को आप सहजयोग से कर सकते उन्होंने कहा "धर्मम् शरणम् गच्छामिः " अर्थात् मैं स्वयं को हैं। हम कम्प्यूटर भी हैं। आपको मात्र अपनी गहनता को धर्म के प्रति समर्पित करता हूं। यह कोई मिथ्या धर्म नहीं विकसित करना होगा। आप अब ठीक रास्ते पर हैं। हमें इस विनाशकारी आधुनिक विज्ञान की आवश्यकता नहीं। आपमें अन्तर्जात धर्म ( धर्मपरायणता ) के प्रति समर्पित करता हूँ। आत्मसम्मान का होना आवश्यक है। आपको समझना है कि आप एक सहजयोगी हैं और आपको वह अवस्था प्राप्त करनी मैं स्वयं को सामूहिकता के प्रति समर्पित करता हूं। पिकनिक है जहाँ आपमें वह सबकुछ करने की सामर्थ्य हो जो विज्ञान कर सकता है। आप सब शक्तियों के अवतार बन जाइए। कुछ लोग आकर कहते हैं " श्री माताजी हम अपना हृदय नहीं खोल सकते।" क्या आप करुणा का अनुभव नहीं कर सकते? मैंने आपको होना चाहिए इस प्रकार कार्य होते हैं तथा हम देखा है कि लोगों का हृदय कुत्ते बिल्लियों के लिए तो खुला होता है पर अपने बच्चों के लिए नहीं। यही वह स्थान है जहाँ आत्मा का निवास है और जहाँ से यह अपना प्रकाश फैलाती कहलाने वाले व्यक्तियों को पहचान सकते हैं तथा मिथ्या लोगों है। यही वह प्रथम स्थान है जहाँ प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति का चाहिए, और हम, आत्मा हैं। श्री बुद्ध की चार बातें आप सब को प्रात:काल कहनी "बुद्ध शरणम् गच्छामिः " अर्थात् मैं स्वयं को अपने प्रकाशित चित्त के प्रति समर्पित करता हूं। फिर जो विकृत हो गए। इसका अर्थ है कि मैं स्वयं को अपने तीसरी बात जो उन्होंने कही "सघं शरणम् गच्छामि:"। आदि के बहाने आप कम से कम महीने में एक बार मिलें। आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हैं। लघु-ब्रह्माण्ड विशाल ब्रह्माण्ड बन गया है। आप विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। इस बात का ज्ञान नकारात्मक तथा सकारात्मक, अहंकारी तथा नम्र व्यक्तियों को पहचान सकते हैं। हम वास्तविक सहजयोगियों को तथा सहजयोगी को त्याग देते हैं । सामूहिक हुए बिना आप सामूहिकता के चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt अपने दोष खोजने पर चित्त लगा दें तो मुझे विश्वास है कि आप कहीं अधिक सामूहिक हो जाएंगे। सहजयोग अति व्यावहारिक है क्योंकि यह पूर्ण सत्य है। अतः अपनी सारी शक्तियाँ सूझ-बूझ और करुणामय प्रेम के साथ आपको अपने विषय में आश्वस्त होना है और जानना कि हर समय परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति उन्नत हाने में आपकी सहायता, रक्षा, मार्गदर्शन, पोषण तथा देखभाल कर रही है। महत्व को कभी नहीं समझ सकते। सामूहिकता आपको इतनी शक्तियाँ इतनी सन्तुष्टि और आनन्द प्रदान करती है कि व्यक्ति को सहजयोग में सामूहिकता पर सर्वप्रथम ध्यान देना चाहिए। किसी चीज की कमी हो, तो भी आप बस, सामूहिक हों जाइए। सामूहिकता में आपको अन्य किसी की भी आलोचना नहीं करनी चाहिए, न उनको गाली देनी चाहिए और न उनके दोष देखने चाहिए। अन्तर्दर्शन कीजिए कि जब सभी लोग आनन्द ले रहे हैं तो मैं ही क्यों बैठकर दूसरों के दोष खोज रहा हूँ। यदि आप दूसरों के स्थान पर है। परमात्मा आप पर कृपा करे। श्री कृष्ण पूजा कबैला, इटली 19.7.92 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हैं क्योंकि उन्होंने सभी दूसरे देशों को विकल किया हैं। हमने बहुत बार यह पूजा की और पांच हजार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण के अवतरण को समझा। जिस सत्य की उन्होंने अभिव्यक्ति की और जो कार्य वे करना चाहते थे उसे इस कलियुग में करना है। कलियुग अब सत्य-युग के नए क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है। परन्तु इन दोनों युगों के मध्य में कृत-युग है जिसमें कोई भी स्वयं को अंग्रेज नहीं कहलवाना चाहता। वे स्वयं को परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति ने कार्य करना है। श्री अंग्रेज नहीं कहलवाना चाहते। वे स्वयं को वैल्श, स्कॉट या कृष्ण कूटनीति के अवतार थे, अत: काफी लीला करने के पश्चात् वे असत्य का पर्दाफाश कर देते थे, उसे अनावृत कर देते थे। ऐसा करते समय वे लोगों को तोलते थे। इस बार अन्तिम निर्णय का समय होने के कारण श्री कृष्ण की कूटनीतिज्ञ शक्तियों की अभिव्यक्ति होनी ही थी। जो भी गलती पहले आप ने की, जो भी क जान अनजाने, आपने किए, सभी का फल मिलेगा। पूद जन्मों में तथा इस जन्म में की गई पूजाओं का भी फल आपको मिलेगा। यह सब श्री के सामूहिकता के तत्व के माध्यम से होता है जिसमें वे अंग्रेज भारत में साधारण व्यापारी बनकर आए और भारत पर 300 वर्ष राज किया तथा हमें तीन हिस्सां में बांट कर गए। अब उनके अपने देश में सभी प्रकार की समस्याएं हैं। सर्वप्रथम आयरिश कहते हैं। लंदन में सदा बम्ब का भय बना होता है। जिन अंग्रेजों ने हमें विभाजित करने का प्रयत्न किया था वे स्वत: ही विभाजित हो गए हैं और परस्पर लड़ रहे हैं। एडज़ तथा चरित्रहीन जीवन आदि अन्य समस्याएं भी हैं। अपने को अनन्त समझने वाले सभी देश समाप्त हो गए हैं। यह भी श्री कृष्ण का ही कार्य है क्योंकि वे कूबेर भी हैं। वे ही वैभव-शक्ति हैं। उन्होंने इन सब देशों को बहुत सा वैभव दिया। पर वे नहीं जानते कि इसका क्या करें। विशेष तौर पर पिछले बीस वर्ष वास्तविकता में असाधारण थे। पूरे विश्व में किसी न किसी प्रकार का पूर्ण परिवर्तन हुआ या भण्डा-फोड़ कृष्ण सामूहिक रूप सारी स्थिति को देखते हैं। कृतयुग में सभी प्रकार के रोग प्रकट होने लगे हैं। नशीली दवाओं का व्यसन उनमें से एक है। बोलीविया तथा कोलम्बिया में, जहाँ पर आदिवासी लोगों की समाप्त कर दिया गया था, ये नशीली दवाइयाँ बनती हैं। लोग सहायता करने के लिए निकारागुआ गए और ये सब नशीली दवाइयाँ लेकर वाशिंगटन वापिस लौटे। हर विशिष्ट समाज में चर्चा की जाती है कि सबसे अच्छी नशे की दवा कौन सी है। अतः आन्तरिक विनाश का आरम्भ हो गया है। मैंने इन्हें पहले बताया था कि फ्रायड के कहे अनुसार आचरण मत कीजिए, सदचौरित्र पर टिक राहए नहीं तो आपको परेशानी होगी। अब वहाँ एडजू, खंडित मनस्कृता (स्किजोफ़ेनिया) और सब तरह के गुप्त रोग आ गए हुआ। भारतीय लोग भी अपने पूर्व-कृत्यों के कारण कष्ट पा रहे हैं। जाति प्रथा हमारा सबसे बड़ा सिरदर्द है। सभी देशों को जातिवाद के परिणाम भुगतने होंगे। श्री कृष्णा को जातिवाद में विश्वास न था। वे खुद ग्वालों की जाति में जन्में फिर वे सम्राट बन गए। एक साधारण व्यक्ति की तरह वे रहे। वे गायें चराने ले जाते, उनकी देखभाल करते और उन्हें वापिस घर लाते। उनका जीवन अति मानवीय था। उनका अपनी मां तथा अन्य सिजरियों को तंग करना अति मानवीय, बाल-सुलभ तथा मधुर था। पर इन शरारतों के पीछे एक महत्वपूर्ण रहस्य था। श्री चैतन्य लहरी 10 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt राधा महालक्ष्मी थीं और वे यमुना में अपने पैर डालकर स्तान किया करती थीं। औरतें यमुना के जल से घड़े भरकर सिर पर रखकर ले जाती थीं। उनकी कुण्डलिनी जागृत करने के लिए श्री कृष्ण पीछे से कंकरी मारकर उन घड़ों को तोड़ देते और वह चैतन्यित जल उनकी पीठ पर पड़ता तथा उनकी कुण्डलिनी की मूर्खतापूर्ण कठोरता जो पश्चिम में आ गयी इसने लोगों को व्यग्र कर दिया। यहाँ लोग अति व्यग्र हैं। यदि आप किसी स्त्री से कह दें कि में आकर खाना आपके साथ खाऊंगा तो वह लड़खड़ा जाएगी। यह जन-सम्मति की चिन्ता करना है या अपने बंधनों की। पर किसी भारतीय स्त्री से यदि आप ऐसा कहें तो बह खुशी से फूली नहीं समाएगी। यहाँ लोगों को अपने पर विश्वास नहीं है। ये आजकल के बनाए गए मापदण्डों के कारण है। भारत में ऐसी आध्यात्मिकता है जिसमें आपको अत्यन्त गंभीर होना आवश्यक है। ऐसे भी लोग हैं जो अपने को जागृत करता। रास में राधा होती थी। 'रा' अर्थात् शक्ति तथा 'धा' अर्थात् धारण करने बाली और रास- 'रा' अर्थात् शक्ति और स' अर्थात् संचार। इस प्रकार इस रास नृत्य माध्यम वे शक्ति से खेलते तथा शक्ति संचार करते। इस प्रकार वे गोप-गोपियाँ की सामूहिक जागृति करते। वहाँ से जाकर श्री कृष्ण को कंस से लड़ना पड़ा। अपने शेशव तथा युवा काल में ही उन्हें बहुत से राक्षसों को दण्डित करना पडा। कलियग में भी वे कार्य कर रहे हैं। आपने देखा है कि शनै: शरनैः एक-एक करके बहुत से कुगुरूओं का उन्होंने अन्त किया है। कोई स्वयं को श्री कृष्ण कहता था और कोई परमात्मा उनका भण्डाफोड करके श्री वे हमसे बहुत भयभीत हैं क्योंकि हम सत्य पर खड़े हैं। से हाथ से अपने सारे बाल उखाड़ देते हैं। वे न तो कैंची प्रयोग कर सकते हैं और न ही नाई के पास जा सकते हैं। कुछ जातियों में ये बंधन इतने भयानक रूप से बढ़ा कि वे कहने लगे कि श्वास लेते हुए भी आपके अन्दर कीटाणु जा सकते हैं। अत: उनमें से कुछ ने अपने मुंह पर कपड़ा बांधना शुरू कर दिया। के इस समय श्री कृष्ण अवतरित हुए। उनके अपने चचेरे भाई एक तीर्थांकर हो गए हैं। जिससे श्री कृष्ण को इस प्रकार के मुर्खतापूर्ण कर्मकांडों के विषय में सोचना पड़ा। जैसे लोगों का प्रात:काल उठकर तुलसी में जल डालना, यहाँ बहाँ जल छिड़कना, पर अछूतों को न देखना और न उनके हाथ का जल लेना। आप ये नहीं खा सकते, आप ऐसे नहीं चल सकते। सभी प्रकार के बंधन। इस कार्य को करने के लिए यह समय ठीक नहीं है आदि। इतने बंधन थे कि हमारे देश की सारी गतिविधियाँ इन्हीं कर्मकांडों के इर्द-गिर्द घूमती थीं। बम्बई के कुछ लोग लखनऊ जाते और हर बार अपने सिर के बाल मुंडवाते। उनके परिवार में जब किसी भी वृद्ध की मृत्यु होती तो वे अपने सिर मुंडवाते। इस प्रकार के भयानक कर्मकांड थे। अब भी दक्षिण भारत में ये सब रिवाज हैं। इससे निकलने में उन्हें भय लगता है। वे सोचते हैं कि इन बंधनों को तोड़ना पाप है जो उन्हें नर्क में ले जाएगा। कृष्ण ने उन सबको समाप्त कर दिया। श्री कृष्ण हमारी विशुद्धि पर रहते हैं । बहुत से लोगों को बायीं विशुद्धि की समस्या है। इसका कारण हमारा अत्यधिक सामाजिक होना है। पश्चिमी समाज में सामाजिक प्रणाली इतनी कठोर है कि कोई भी हिम्मत हार सकता है। पर सभ्यता तथा विद्रोह के कारण अब यह पहले से अच्छी है। पहले तो यदि कोई एक चम्मच को गलत ढंग से पकड़ लेता था तो उसकी शामत आ जाती थी। फ्रांस के लोगों ने शराब तथा उसके लिए उपयोग होने वाले गिलासों को एक बड़ा विज्ञान बनाकर समाज की स्थिति को और अधिक बिगाड़ दिया। पूरी सामूहिकता को कठोर बना दिया गया। मैं सोचती थी कि कुछ बंधनों के कारण भारतीय सामूहिकता कठोर है, पर पश्चिमी देशों के मस्तिष्क में तो इतने बन्धन भरे हुए हैं कि उन्हें दूर ही नहीं किया जा पश्चिमी देशों में पूर्ण जीवन शैली ही कर्मकांडी हैं। वहाँ कोई स्वतंत्रता नहीं है। इसी कारण हिप्पियों ने विद्रोह किया और अति की पराकाष्ठा तक गए। एक अति से दूसरी अति तक। श्री कृष्ण ने अवतरित होकर कहा कि यह सब लीला है । जब आप पानी में हैं तो पानी से डरते हैं। पर नाव में बैठकर आप पानी को देख सकते हैं । यदि आप तैरना जानते हैं, तो डुबते लोगों को बचा सकते आप साक्षी भाव विकसित कर लें तो सभी कुछ आपको नाटक प्रतीत होगा। किसी चीज का आप पर प्रभाव ने होगा और आप समस्या को देख सकेंगे। क्योंकि आप समस्या से निल्लिप्त हैं, आप इसका सूमाधान भी कर पाएंगे। यह उनका महान अवतरण था। साक्षी बनना उत्थान की ओर आपका पहला कदम है। आपको बुद्ध बनना है। सकता। ये बन्धन कैथोलिक चर्च एवं फ्रायड की देन हैं। फ्रायड पूर्ण राक्षस था फिर भी लोग सभी कुछ छोड़कर उसे मानते हैं। जिस जिस देश में कैथोलिक चर्च का प्रभाव है वहाँ फ्रायड का अनुसरंण होता है। भारत में श्री राम का संकोचशील होना सामाजिक कठोरता का कारण है। पश्चिम में यह कठोरता मानसिक है। यदि इस प्रकार के बाल आप बनायेंगे या बालों में तेल डालेंगे तो आप पागल हैं। सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण | विचार आए और लोग उनका अनुसरण करने लगे। बालों में तेल न लगाने से आप गंजे हो जाएंगे। यह औद्योगीपन था ताकि उद्यमी अपनी वस्तुएं बेच सकें । इंग्लैंड में महारानी को मिलने के लिए लम्बा कोट किसी से उधार लेना पड़ता था और इसे पहनकर हर व्यक्ति चार्ली चैपलिन सा लगता था। इस प्रकार हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि यदि चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt आधे घन्टे से ढूंढा जा रहा है। उसके मुझ पर चिल्लाने के कारण वोल्फगेंग के आंसू बह रहे थे। वह अति उदास था कि श्री माताजी का इस प्रकार अपमान हुआ। उसके प्रेम की शक्ति इतनी महान थी कि बालकोनी पर बैठकर हमें देख रहे लगभग पचास व्यक्तियों ने तेज शोतल लहरियों का अनुभव किया। कमियाँ ही ढूंढते रहते हैं। कौन जानना चाहता है कि किसने उन्हें एक तेज धक्का लगा और जब उन्होंने आंखे खोली तो पाया कि आकाश पर बादल छाए हुए हैं। एक भी बादल न था गन्दगी पर किसका ध्यान जाता है? परन्तु पश्चिम में तो उन्हें और क्षण भ में पूरा आकाश बादलों से आच्छादित हो गया था। तब हमें यान से उतरने को कहा क्योंकि वे इसे उड़ा न सकते थे जब हम वापिस आए तो वर्षा होने लगी। लोग उस महिला बनावटी हो गया है कि छोटी-छोटी बात के लिए लोग दोष के पीछे पड़ गए कि चिल्लाने वाली आप कौन होती हैं। तब भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। इस कैथोलिक चर्च ने आपको घोषणा की गई कि सारी उड़ाने रद्द कर दी गई हैं। अपनी श्री माताजी के लिए उसका प्रेम देखिए कि पूरा आकाश इसे सहन न कर सका। सब कहने लगे कि ऐसा चमत्कार हमने कभी सहजयोग में भिन्न क्षेत्रों, भिन्न सभ्यताओं से, भिन्न प्रकार के लोग हैं। सभी के लिए द्वार खुला है। पर यदि कोई भारतीय आ जाएगा तो हर समय दूसरों की चिन्ता करेगा। वह कहेगा कि "श्री माताजी, यह व्यक्ति ऐसा नहीं कर रहा है।" हर समय वह दूसरों में दोष ढूंढता रहता है। पश्चिम में लोग अपनी क्या गलती की है? कमल खिला हुआ हो तो तालाब की दोष स्वीकार करने ही होते हैं। प्रतिक्षण आप परिवर्तित हो रहे हैं। तो अपराध स्वीकार करने की क्या बात है। जीवन इतना इतना बंधनों में बांध दिया है। बायीं विशुद्धि विष्णुमाया है। बायीं विशुद्धि के खराब होते ही आप में विष्णुमाया संबंधी समस्याएं विकसित हो जाती हैं। नहीं देखा कि क्षण भर में पूरा आकाश बादलों से आच्छादित जिन में से एक हृदय है विष्णुमाया बिजली की है। विष्णुमाया हो जाए। आप भी अपनी शक्तियों को पहचानिए। साक्षी रूप की समस्या से आप आलसी हो जाते हैं। मैं इतना दोषी हूं। से स्वयं को देखिए। यही अन्तर्दर्शन है। पर यदि आपकी बायीं आप निराश हो जाते हैं। विष्णुमाया तल्व आपसे लुप्त हो जाता है। वे बहुत चुस्त, तेज हैं। पूरे विश्व के सम्मुख वे घोषणा कूकृत्य किए हैं, मुझमें कैसे शक्तियाँ आ सकती हैं मैं अच्छा करती हैं कि श्री कृष्ण क्या हैं। दोष भाव से ग्रस्त सहजयोगी कहते हैं कि यदि हम कोई कार्य करेंगे तो हमारा अहं बढ़ जाएगा। अत: हम कार्य नहीं करना चाहते। यह मुर्खता है। जला हुआ दीपक यदि ये कहे कि मैं प्रकाश नहीं देता क्योंकि इससे विवेक चला जाता है और आप इसे स्वीकार कर लेते हैं। मेरा अहं विकसित हो जाएगा तो मूर्खता ही होगी। बायीं विशुद्धि से बचने के लिए आपको सहजयोग में गतिशील होना देता था। एक बार मेरी कार खराब हो गई और मैं दो घंटे देर पड़ेगा। बायीं विशुद्धि की खराबी का प्रभाव पूरे शरीर के लिए से पहुंची। एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन था। उनकी समझ निराशाजनक होता है। बायीं विशुद्धि वाला व्यक्ति सहजयोग में नहीं आया कि क्या करें। अन्त में उन्होंने साक्षात्कार देना के हर कार्य में बहुत ढीला होता है। प्रकाश आपको छुपाने के शुरू किया और तब उन्हें पता चला कि वे आत्मसाक्षात्कार दे लिए नहीं दिया गया है। यह प्रकाश आपको कार्यान्वित करने के लिए, गतिशीलतापूर्वक सोचने के लिए और सहजयोग का प्रबंध तथा व्यवस्था करने को दिया गया है। यदि आप दोषी हैं तो आप सदा कहेंगे कि " श्री माताजी, यह कार्य बहुत कठिन ऐसा नहीं करते तो सदा आप अधपके ही रहेंगे। अपनी शक्तियों है" आदि। विशुद्धि खराब है तो आप सदा यही कहेंगे कि मैंने इतने व्यक्ति नहीं हूं। इसका कारण यह है कि खराब बायीं विशुद्धि आपको हर समय कहती रहती है कि आप बेकार के व्यक्ति हैं। यह आपके मस्तिष्क में एक छिद्र बनाती है जिससे सारा आरम्भ में भारत में कोई सहजयोगी आत्मसाक्षात्कार न सकते थे। आप जानते हैं कि आप क्या कर सकते हैं। आप जानते हैं कि आप जो भी कह देते हैं वह घटित हो जाता है। आप जो भी चाहं कर सकते हैं। आजमा कर देखिए। यदि आप का अनुभव लीजिए। देखिए कि आप कितने गतिशील हैं। इसके बारे में संकोच मत कीजिए। इसका पूरी तरह प्रयोग साक्षी भाव से स्वयं को देखना सहजयोगी के लिए महत्वपूर्ण है। यही अन्तर्दर्शन है। मैं कहाँ था, मैं यहाँ आया हूं। भूतकाल से अधिक लिप्त बिना देखें कि इतने कम समय में आपको क्या प्राप्त हुआ है। आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गए हैं उदाहरणार्थ मैं वोल्फगैंग के साथ यात्रा कर रही थी और हमें वायुयान पकड़ना था। जब हम हवाई अड्डे पहुंच तो एयर होस्टैस मुझ पर चिल्लाने लगी कि आपने उड़ान को देर करा दी है। उन्हें मेरी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी। पर उन्होंने प्रतीक्षा की और चिल्लाए भी। सभी यात्री यान में बैठ गए फिर भी वायुयान नहीं उड़ा। हमें पता लगा कि कोई खराबी है जिसे कीजिए और आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपमें बहुत शक्तियाँ हैं। इसी प्रकार जैसे यदि आप चित्र बनाना चाहते हैं तो आगे हुए बढ़िए और बनाइए। आलोचना से मत डरिए। साहसपूर्वक चित्रकारी कीजिए, गाइए या कुछ और कीजिए। हिम्मत से बढिए। आप स्वयं पर हैरान होंगे कि किस प्रकार आपने यह उपलब्धि पाई तथा किस प्रकार आप इसे क़र रहे हैं। अपने पर विश्वास कीजिए। यदि आपकी बायीं विशुद्धि खराब है तो कार्य नहीं करेंगी। विष्णुमाया सम बनिए। कहिए कि विष्णुमाया मैं एक सहजयोगी हूँ, कोई साधारण व्यक्ति नहीं। चैतन्य लहरी 12 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt बायीं विशुद्धि की रुकावट का एक अन्य पहलू यह है कि बायीं विशुद्धि बहुत कड़ी हो तो आप लहरियाँ नहीं महसूस कर यह बहाना बनाने का प्रयत्न करती है। जैसे आप यदि किसी को कहें कि "फलां व्यक्ति को फोन कर दो"। बह कहेगा नहीं हुआ। बस अपने हाथों को कार्यान्वित कर लीजिए। " श्री माताजी वह व्यक्ति वहाँ नहीं होगा।" स्पष्टीकरण की क्या आवश्यकता है? आप टाल जाते हैं। विष्णुमाया कभी नहीं टालती नहीं। यदि उन्हें चमकना है तो चमकना है, जो भी कुछ वे हों। हमें भी इसी प्रकार का होना है। हमें जानना है कि हम विशिष्ट व्यक्ति हैं। आप को चुना गया है, आपमें देवत्व है और करते हुए अपने हाथ बहुत नचाते हैं। अपने हाथों को हर समय आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं तथा यह कार्य प्रयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं। जब भी आप हाथों करेगा निकम्मे लोंगों के लिए सहजयोग नहीं है। यह चरित्रवान तथा विशेष लोगों के लिए है। अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और बिष्णुमाया तत्व की अभिव्यक्ति होनी नहीं। लोगों को आज्ञा देने के लिए श्री कृष्ण की अंगुली न चाहिए, इसे दर्शाया जाना चाहिए। घवराइए नहीं कि आपको प्रयोग करें। इनका सम्मान करें। हाथों से आप हजारों लोगों को अहंकार हो जाएगा। कोई बात नहीं। आप अपने अहंकार को भी देखेंगे। श्री कृष्ण जी की लीला की दूसरी विशेषता यह है कि आप अपने अहं को भी देखते हैं। सकते। पर इसका अर्थ यह नहीं कि आपको साक्षात्कार प्राप्त अपने हाथों को ठीक करने के लिए आवश्यक है कि आप इनका उपयोग व्यर्थ की चीजों के लिए न करें। यह अति आवश्यक है क्योंकि आपके पास विशेष प्रकार के हाथ हैं। इन्हीं हाथों द्वारा आप सामूहिकता फैलाते हैं। कुछ लोग बातचीत का प्रयोग करें तो यह अति भद्र, नियमित, निर्देशात्मक तथा लाभदायक होना चाहिए। हाथों का दिखावा करते रहना अच्छा नमस्ते कह सकते हैं। हाथ मिलाना मुझे पसन्द नहीं। आप दूसरे व्यक्ति से हर प्रकार के कांटे, सुइयाँ तथा समस्याएं ले सकते हैं। लोगों से बात करते हाथों तथा वाणी द्वारा आप अपनी महाराष्ट्र की एक महिला मानने को तैयार नहीं थी उसे कोमलता तथा मधुरता दर्शा सकते हैं। आपके इशारों द्वारा दायीं ओर की खराबी है। वह रोम में मुझ से मिलने आई और आपकी हार्दिक भावनाएं प्रकट होनी चाहिए। सहजयोग में जब आप एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं तो आपमें लहरियाँ बहने महसूस किया कि उसका दायाँ हिस्सा ठीक न था। अत: अपने लगती हैं। इससे प्रकट होता है कि हाथों द्वारा संचार होता है। दायें या बायें भाग की खराबी को समझने की सर्वोत्तम विधि ये हाथ वास्तव में सामूहिकता का प्रारम्भ हैं। हाथ आपकी सामूहिकता के लिए कार्य करने वाले अत्यन्त महत्वपूर्ण अवयव तीसरी स्थिति अपनी त्रुटियों को स्वीकार कर लेना है। इन्हें हैं। आपके पीछे बहुत से देवदूत तथा गण खड़े हैं। वे भी संचार करने में आपकी इच्छानुसार सहायता देते हैं। आपके कार्य भी अच्छी तरह करते हैं। आपके हाथों में या हाथों द्वारा जो भी हुए पूरी तरह से शरीर के दायें हिस्से पर गिर पड़ी। तब उसने ध्यान-धारणा करना. है। यदि आप स्वीकार नहीं करते तो आप अपने प्रति करुणामय नहीं। दायीं विशुद्धि वाले लोग सदा मेरी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करेंगे। मैं यदि कुछ कहुंगी तो वे कहेंगी " नहीं"। वे या तो मेरे विपरीत बोलेंगे या अपने विचारों को थोपने का प्रयत्न करेंगे तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। किसी भी बात के लिए 'नहीं' कहना एक आदत है। मैं आपकी परीक्षा भी लेती हूं। दिन के समय यदि मैं कहूं कि रात के नौ बजे हैं तो आप तुरन्त ' हां' कह देते हैं देखने का प्रयत्न कीजिए। मैं तुम्हारी परीक्षा लेती हूं। कुछ लोग कहते हैं कि यदि श्री माताजी ने कहा है तो ऐसा ही है। तब उनकी श्रद्धा भली भान्ति दृढ़ होने लगती है और मैं देख पाती हूँ कि किस प्रकार वे वास्तविक श्रद्धा के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। फिर जब भी में कोई हास्यास्प्रद बात कह दूं तो वे मुस्कुरा भर देते हैं । वे समझ जाएंगे कि श्री माताजी हमारी परीक्षा ले रही हैं। आपको अपनी परीक्षा लेनी है। जैसे मोहम्मद साहब ने कहा है "आपके हाथ बोलेंगे और आपके खिलाफ शहादत दंगे।" अपने हाथों पर आप जान जाएंगे। ये हाथ श्री जी का आशीर्वाद है। वे विशुद्धि से ही निकलते हैं। 'श्री' तथा 'ललिता' के दो चक्र हैं । इन्हीं हाथों से हम लहरियाँ महसूस कर सकते हैं यदि आपकी दायीं या अभिव्यक्ति होती है उसे ये तुरन्त समझ जाते हैं। विशुद्धि की सोलह पंखुड़ियाँ होती हैं तथा कान, नाक, गला, आंखें सबका यह मार्ग-दर्शन करती है। हंसा चक्र विशुद्धि का ही उपचक्र है। हमारी आंखें देखने के लिए तथा संदैश-संचार के लिए हैं। पावन आंखें पवित्र प्रेम को संचरित करती हैं। पवित्र आंखों से आप लोगों के दोष दूर कर सकते हैं, सहायता कर सकते हैं और शांति ला सकते हैं। आंखों का पवित्रीकरण आपकी विशुद्धि तथा आज्ञा के माध्यम से होता है। इन दोनों को कार्य करना होता है। नाक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नासिका की पवित्रता महत्वपूर्ण है अर्थात् आपमें दुर्गन्ध का त्याग और सुगन्ध को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिए। नासिका श्री कृष्ण की विशेषता है क्योंकि वे ही कुबेर हैं और कुबेर ने ही देवी को नासिका दी। अस्वीकृति दर्शाने के लिए भी नाक सिकोड़ने की बुरी आदत कुछ लोगों में होती है। यह अपना अपमान करना है। हम अपने दांतों का भी तिरस्कार करते हैं। इस तिरस्कार का कारण आलस्य है। कम से कम दो तीन बार अपने दांत साफ कीजिए। दांत साफ करने वाले ब्रुश को बदलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मसूड़ों की मालिश के लिए कृष्ण चैतन्य लहरी 1३ 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt सबसे अन्त में श्री कृष्ण खिलवाड़ करते हैं पर वे क्षमा नहीं करते। फांसी का फंदा गले में डालने के लिए वे व्यक्ति को लम्बी रस्सी देते हैं, पर कभी क्षमा नहीं करते। वे कहते हैं कि अपने कुकृत्यों का फल तो आपको भुगतना ही होगा केवल ज्ञानातीत (आत्मसाक्षात्कारी) होकर ही आप बच सकते हैं । यदि सहजयोगी बनकर आप उत्थान को प्राप्त कर लें तो वे आपको मक्खन या तेल और नमक का प्रयोग भी आवश्यक है। प्रतिदिन ठीक प्रकार से मसूड़ों की मालिश से आपको कभी दांतां तथा मसूड़ों की समस्या नहीं होगी। शाम को अवश्य दांतों को ब्रुश से साफ करें नहीं तो मुंह से भयंकर दुर्गन्ध आती है। कुछ लोग दांत साफ किए बिना ही नाश्ता कर लेते हैं दांत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। विशुद्धि के सारे गुण आपकी विशुद्धि पर निर्भर करते हैं । दांत भींचने की मृद्रा से बचें। यह आपके दांतों के लिए हानिकारक है। कुछ नहीं कहेंगे। मोहम्मद गजनी ने सोमनाथ तथा महादेव के मन्दिरों को लूटा। श्री कृष्ण गजनी के महमूद के रूप में आए। श्री हनुमान ने देखा कि महादेव मन्दिर छोड़कर भागे जा रहे हैं हनुमान उनके पीछे दौड़े। एक स्थान पर महादेव बैठ गए और हनुमान जी ने उनसे पूछा कि आप तो देवों के देव हैं, फिर आप क्यों दौड़ रहे हैं। आपको किसका भय है? उन्होंने उत्तर दिया "तुम इस मोहम्मद गजनी को नहीं जानते" तब उन्होंने पेड़ के नीचे बैठ मोहम्मद गजनी को श्री कृष्ण में परिवर्तित होते देखा । महादेव ने कहा कि मेरी उपस्थिति में ब्राह्मण लोग पैसा बना रहे थे और लोगों को लूट रहे थे। पर कुछ न कर सका तो श्री कृष्ण आए। अपने अन्दर स्थित श्री कृष्ण की शक्तियों पर पुर्ण विश्वास कीजिए। आपका उत्थान पूर्ण हो जाने पर ये आपको परेशान नहीं करेंगे। यदि आपको बायीं विशुद्धि की समस्या है तो ये आपको कष्ट देंगे। सावधान रहें क्योंकि श्री कृष्ण आपकी परीक्षा लेंगे और आपको इतना दु:खी करेंगे कि आपकी समझ में नहीं आएगा कि क्या हो गया है। श्री कृष्ण को कोई भी वश, में नहीं कर सकता। वे वही करते हैं जो ठीक समझते हैं। आपकी श्री माता जी की अपेक्षा बे कहीं अधिक दण्डित करते हैं । वे ( श्री माताजी) अति रौद्र और अति सौम्य हैं, अति कठोर तथा अति कोमल हैं। पर श्री कृष्ण ऐसे नहीं आध्यात्मिकता सम्पन्न व्यक्ति की भावभंगिमा कभी आक्रामक नहीं हो सकती। वह सुन्दर और आकर्षक चाहे न हो पर उसके चेहरे के भाव अति मधुर होंगे। यह भी श्री कृष्ण का ही आशीर्वाद है। मैंने लोगों को साक्षात्कार के एक वर्ष बाद देखा। में हैरान थी कि उनके चेहरे इतने बदल गए थे कि मैं उन्हें पहचान न पायी। उनका चेहरा नम्र, कोमल, शान्त और आनन्दमय हो गया था। श्री कृष्ण के सारे गुणों की अभिव्यक्ति आपके चेहरे पर हो सकती है। देखने में आप कभी अति शरारती लग सकते हैं। चेहरे पर आने वाले बहुत से भाव आपको मधुरता का अहसास दे सकते हैं। कुछ लोगों को हर समय शीशा देखने की आदत होती है। इससे व्यक्ति में व्यर्थ का अहंकार आ जाता है। अपने चेहरे के स्थान पर श्री कृष्ण के चित्र को देखना अच्छा है ताकि आपकी मुखाकृति श्री कृष्ण की मुखाकृति बन जाए। हर समय शीशे में अपनी शक्ल देखते रहना खतरनाक है। स्वयं को इतना अधिक चित्त तथा महत्व मत दीजिए। पर अपने अन्तःनिहित आत्मा को देखिए । यदि आप आत्मा की ओर चित्त देते हैं तो सभी कुछ सुन्दरतापूर्वक घटित होगा। मैं म=ं बालों की देखभाल भी श्री कृष्ण जी करते हैं । मक्खन जैसी हर चीज उन्हें बहुत पसन्द है। अतः अपने बालों में तेल हैं। वे तुम्हें ठीक कर देंगे। आपके लिए अपनी विशुद्धि को डालिए। ऐसा न करने पर आप गंजे हो जाएंगे। पश्चिम में सभी लोग बालों में तेल नहीं पसन्द करते तो इसे धो डालिए। कम से कम सप्ताह में एक बार तो बालों की मालिश अवश्य कीजिए। श्री कृष्ण का ग्रह शनि है| श्री कृष्ण यदि किसी के पीछे पड़ जायें तो कोई कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार शनि भी यदि किसी के पीछे पड जाए तो वह व्यक्ति बच नहीं हसा चक्र को पार करना है। इसके बिना हम विराट तक नहीं सकता। कभी यह साढ़-साती (7-1/2 वर्ष) कभी ढैया (2-1/2 पहुंच सकते। हंसा देवी विवेक है। हममें इसका होना आवश्यक वर्ष) व्यक्ति के पीछे पड़ा रहता है। श्री कृष्ण का यह शनि है। एक बार यदि यह विवेक आपमें विकसित हो जाए तो आप हमारे अन्दर का एक गुण है। यदि कोई व्यक्ति हमें परेशान करता हो तो हमें कुछ भी नहीं करना पड़ता। श्री कृष्ण ही सभी कुछ कर देते हैं। आप सर्वव्यापक शक्ति को इसके बारे विशुद्धि की समस्या होते हुए भी बहुत से सहजयोगियों में सूचना दे दें और यह शक्ति इस पुरुष या स्त्री या दल को घेर विवेक आया। दैवी विवेक के आते ही सर्वप्रथम तो लोग लेगी। स्वत: ही यह घटित हो जाएगा। परन्तु आपको ज्ञान होना चाहिए कि आपमें श्री कृष्ण की शक्तियाँ हैं जिनके साथ यदि वे किसी के पीछे लग जाएं तो उसे कोई नहीं बचा सकता। ठीक रखकर श्री कृष्ण की अभिव्यक्ति दूसरों पर करना अत्यन्त आवश्यक है। आपको कुछ करना नहीं है। वे आपकी देखभाल करते हुए सभी कुछ करते हैं। बायीं विशुद्धि पश्चिम का रोग है। क्यों आप दोष भाव से ग्रस्त रहें? आपने किसी का कत्ल नहीं किया। अब हम विराट पर आते हैं पर इससे पूर्व हमें गलती नहीं कर सकते। यह विवेक आपको किसी भी कार्य को करने या न करने की सूझ-बूझ प्रदान करता है। बायीं आपसे प्रभावित होने लगते हैं। यह व्यक्ति के समझने के लिए अति महत्वपूर्ण बात है। अन्तर्दर्शन करते हुए आप देखें कि आपमें भी यह दैवी विवेक विकसित हुआ या नहीं। जैसे कुछ चैतन्य लहरी 14. 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt सहजयोगी अन्य लोगों को बताएंगे कि आप में भूत है। हो और पूर्ण-रूपेण स्वतंत्र हो जाएं। कोई भी चीज आपको सकता है उनमें भूत हो, पर दैवी विवेक यह है कि अभी उन्हें प्रभावित नहीं कर सकती, आपको प्रलोभित नहीं कर सकती। इसके विषय में न बताया जाए, इसे भगा दिया जाए। दैवी अपने आत्मसम्मान तथा सूझ-बुझ पर आप खड़े होते हैं, कि विवेक आपको दूसरे व्यक्तियों से सामूहिकता से व्यवहार करने की पूर्ण सूझ-बूझ प्रदान करता है। किस प्रकार अन्य लोगों से बातचीत करनी है, ठीक बात लोगों को किस प्रकार समझानी है। दैवी विवेक के अभाव में जो आपको नहीं बोलना चाहिए आप वही बोलने लगेंगे। आपमें उचित अनुचित में भेद करने को महसूस कर सकते हैं तथा सभी जगह आप प्रभावशाली हो का विवेक न होगा हंसा चक्र को शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से ठीक रखना आवश्यक है। एक बार विराट मैं आप सव से प्रेम करता हूँ। पूरा सहजयोग मेरा परिवार है। में प्रवेश करने के बाद आपमें अलगाव तथा भदभाव के विचार लुप्त हो जाते हैं। आप में अब जातीयता, राष्ट्रीयता, नगर, गांव आदि के विचार नहीं रहते। इस अवस्था में आप किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं रहते। आप का संबंध हर स्थान से होता है और किसी भी स्थान से नहीं होता। आप किसी विशेष प्रकार के भोजन या व्यक्ति के पीछे नहीं दौड़ते रहते। हर प्रकार के परिवार लोगों तथा परिस्थितियों में आप सहर्ष रह सकते हैं। कोई भी चीज आपको परेशान नहीं करती क्योंकि आप तो विराट में हैं। विराट सभी कुछ सोख लता है इसलिए आप पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। विराट दु:ख उठाता है, आप नहीं। मैं चाहती हूँ कि आप सब उस अवस्था को प्राप्त करें आप एक सहजयोगी हैं और इस दैवी शक्ति से जुड़े हुए हैं तथा परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। विराट अवस्था में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता क्योंकि आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हो जाते हैं। हर स्थान पर आप विराट सकते हैं। आप कहते रहते हैं कि आप सब मेरे भाई बहन हैं। आपका पूर्ण चित्त इस प्रकार चलना चाहिए। यह कवल मरा ही नहीं है। यह सभी का हैं। सभी का अधिकार है। झुकाव व्यक्ति विशेष से सामूहिकता की ओर होने लगता है। इस प्रकार का व्यक्तित्व हर प्रकार के सामूहिक कार्य के लिए प्रभावशाली होता है। आपको विशुद्धि से ऊपर उठना है यदि आप नही उठते तो कभी भी आप सहजायोगी नहीं हो सकते। उस अवस्था में (विशुद्धि से ऊपर उठकर) हम कभी भी सहजयोग पर संदेह नहीं कर सकते। इस प्रकार हमें निर्विकल्प समाधि प्राप्त हो सकती है। परमात्मा आपको धन्य करें। दर्गा काली पूजा सेंट डेनिस, पैरिस, 25.7.1992 दुर्गा या काली, बुराई तथा नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए, देवी के विनाशकारी रूप हैं। हमें यह पूजा फ्रांस में करनी थी क्योंकि दिन-प्रतिदिन फ्रांस पतन की ओर बढ़ रहा है जबकि आप लोग उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। बाकी का सारा फ्रांस दयनीय अवस्था में है। हैं। न्यायाधीश के मूड पर निर्भर करता है। यहाँ जितने मूर्खतापूर्ण कानून मैंने कभी नहीं देखे। नि:सन्देह अमेरिका में न्याय नहीं है और उन्हें जो अच्छा लगता है वे करते हैं। पर उनके पास तो कानून विवेक ही नहीं है। हर स्त्री को ऐसे बस्त्र पहनने होते हैं कि वह आकर्षक प्रतीत हो। किसलिए? सभी प्रकार की स्नानागार संस्कृतिः यह मद्यपनि की उपज हैं। रात को यदि आप अधिक पी लें तो प्रातः आप इतने सुस्त होते हैं कि आप कंवल फ्रेंच स्नान करके चल पड़ते हैं। अब कृतयुग है, अत: सामूहिक या व्यक्तिगत स्तर पर किए गए कार्यों, कर्मों का परिणाम आपको ा होगा यदि यह बात ठीक है तो फ्रांस को काफो कुछ झेलना होगा तथा कैथोलिक चर्च को उससे भी अधिका उन्होंने बाकी सभी अवतरणों तथा पैगम्बरों की भत्त्सना की। लोगों से उनके सभी विचार हथिया कर उन्हें सताया। दोष स्वीकृति के लिए विवश कर इन्होंने लोगों को बायीं विशुद्धि की समस्या दी। स्त्रियों को तो इन्होंने महत्वहीन बना दिया। भुगतना अत: फ्रांस के सहजयोगियों को समझना चाहिए कि अन्य देशों की अपेक्षा उनका कार्य कहीं अधिक कठिन है क्योंकि इस देश में विवेक का पूर्ण अभाव है। न यह आपकी संस्थाओं में है न सरकार में और न शिक्षा में अत: यहाँ विवेक की धारणा यह है कि आप अहंकारी हैं। लोग अपना विवेक खो चुके हैं और स्याहीचूस कागज की तरह जो कुछ भी विध्वंसक, भयानक और अवमानवीय ( मानवीयता के स्तर से नौचे) हैं कैथोलिक चर्च से तथा फ्रॉयड से आते को समझने योग्य व्यक्तित्व ही न था। कानून इतने हास्यास्प्रद उचित-अनुचित हुए चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt देवता मिलकर काली के शरीर की रचना करते हैं। उनके शरीर का हर भाग किसी न किसी देवता ने बनाया तथा उसकी रक्षा भी की। बाद में यह आप सब में प्रतिविम्बित हुआ। ईश्वर ने अपने ही रूप में मानव की रचना की। में कहूंगी कि मैंने अपने रूप में आपको बनाया। सभी देवता आपकी सेवा में हैं। वे सब आपके साथ हैं तथा उन्होंने ही आपकी सारी सुन्दरता तथा गुणों को प्रकट किया। आप ने इतनी सुन्दर सामूहिकता बनायी| आपमें उन्होंने इतना सुन्दर परिवर्तन किया और आपको देव-तुल्य बना दिया। सदा वे इसके लिए कार्यरत हैं। आप में भी उर्जस्विता होनी चाहिए। आपमें उत्थान के लिए शुद्ध इच्छा थी पर किसलिए? आपको प्रकाश पाना है पर किसलिए? आप किसलिए गुरु पद पाना चाहते हैं? मोक्ष प्राप्ति के लिए लोगों आपके माध्यम से ही मैं सहजयोग को उसे सोखने का प्रयत्न करते हैं । पुस्तकों का अध्ययन करके सहजयोगियों को देखना चाहिए कि हम कहाँ खड़े हैं। यह नर्क द्वार से भी बदतर है। यह गंदगी की दलदल हैं। आप यहाँ जन्में और आप कमल रूप सुन्दर तथा सुगन्धमय हो गए। आपको इसे खदेडना होगा। अपनी सभी शक्तियों समेत मैं सदा आपके साथ हूँ परन्तु आपको इस समाज से लड़ना है। बहुत लोगों को आपने बचाना होगा तथा उनकी रक्षा करनी होगी। आज पूजा आपके हृदय में साहस प्रदान करने के लिए है। अपने चारों ओर देखिए। आप सब परमात्मा के साम्राज्य में आनन्द ले रहे हैं। दूसरे लोगों का क्या होगा? मूलाधार के इस बिचारे स्थान का भविष्य क्या होगा? फ्रॉयड तो धूर्त व्यक्ति सिद्ध हो चुका है जिसने बहुत वर्षों तक लोगों को मूर्ख बनाया। इस अराजकता, जो आपके परिवारों को विनाश की ओर ले जा रही है, के विरुद्ध बोलने का दायित्व आप अपने पर लीजिए । यदि स्त्रियाँ दृढ़ निश्चय कर लें तो मुझे विश्वास है कि वे इस कार्य को कर सकती हैं। इस देश के उत्थान के लिए याचना कीजिए। मैंने कठोर परिश्रम किया है और आप सब साक्षी हैं। मुझे प्रसन्नता है कि परमात्मा की इच्छा पूर्ण करने के लिए आप सब यहाँ हैं। अब आप बड़े स्तर पर जान पाएंगे कि असंख्य लोगों का आन्तरिक रूप से, बाह्य रूप से नहीं, विनाश हो जाएगा। अचानक ही आप सुनते हैं कि इस रोग के कारण बहुत से दुर्जन लुप्त हो गए हैं आपको स्वयं की भी रक्षा करनी होगी। सदा अपने को बन्धन में रखें तथा स्वच्छ जीवन मूर्खा के स्वर्ग में रह रहे हैं। वे नहीं जानते कि किस प्रकार व्यतीत करें। सहजयोग में सफाई के कुछ नियम हैं । इनका पालन करने का प्रयत्न कीजिए। इनका अनादर मत कीजिए। यदि किसी को एडज़ रोग हो जाए तो उसे किसी भी हाल में सहजयाग है। काली केवल अपने भक्तों की रक्षा करना चाहती सहजयोग में न लीजिए। आपको बहुत सावधान रहना होगा। मैं थी पर आपने बहुत अधिक लोगों को बचाना है। आपमें सारी तो यह भी कहुंगी कि एडज के रोगी का इलाज भी मत कीजिए। वास्तव में दो प्रकार के लोग हैं। एक तो अहंकारी हैं और दूसरे जो यह सोचते हैं कि उनकी मृत्यु हो जाना ही अच्छा है। उनमें जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं। यों तो वे दायीं ओर को हैं या बायीं को। उनका कभी उत्थान नहीं हो सकता। हो हैं इसीलिए कैथोलिक चर्च की वृद्धि हो रही है। बायीं ओर के सकता है कि अगली पीढ़ी, यदि लौट आई तो उत्थान हो सके । पर जहाँ तक इस पीढ़ी का प्रश्न है, इसका बहुत उत्तरदायित्व की रक्षा हेतु। बढ़ा सकती हूँ। यह एक राक्षस का वध करने का प्रश्न नहीं है। केवल परमात्मा ही जानते हैं कि कितने राक्षस हैं। राक्षस सभी स्थानों पर हैं। वे आपके अन्दर भी थे। अब वे बाहर चले गए हैं। सहजयोग के साथ आपको पूर्ण न्याय करना होगा। म काली पुजा सदा रात्रि 12 बजे के बाद की जाती है। यह सब हो जाता है पर आपको विचार विमर्श करना होगा। आप सोचिए कि परिवर्तन लाने के लिए आपको क्या करना पड़ेगा। क्यों न कुछ पुस्तकें तथा अनुभव लिखें? अपने अनुभव लिखिए। फ्रांस में माता-पिता तथा दादा-दादी किस प्रकार आचरण करते हैं। इस देश में क्या हो रहा है। वे विनाश उनके सिर पर मंडरा रहा है। यह्यपि आपको बचा लिया गया है फिर भी आपने अन्य लोगों को बचाना है यही शक्तियाँ हैं। उनका उपयोग कीजिए। आप यह कर सकते हैं । मेरे विचार में पूरे यूरोप को दो तरह के लोगों में बांटा जा सकता है। एंग्लो सेक्सन तथा लेटिन। लेटिन बायी ओर को है तथा एंग्लो सेक्सन दायीं को। यहाँ (फ्रांस) लोग बायीं ओर को झुकाव के कारण असाध्य रोग हो जाते हैं। आपने गुरु पद से इसका मुकाबला करना है स्त्री पुरुषों के लिए गुरुपद। हर गुरु का कर्तव्य है कि जिस समाज में वह रहता है उसे पवित्र बनाए। ईसा इसके लिए अर्केले लडते रहे। उन्हें दी गई पर वे मार्ग से न. हटे। इसी प्रकार आपको भी सत्य पर खड़े होकर बुराइयों से लड़ना है क्योंकि आप सन्त हैं। आप पर है। बहुत यातनाएं सभी सहजयोगी शपथ लें कि वे इस समाज से लडेंगे तथा अपने देश और देशवासियों की पूर्ण विनाश से रक्षा करेंगे, कोई युद्ध न होगा। लोग परस्पर लड़कर मर जाएंगे। यह अति गंभीर विषय है इसीलिए हमने आज यह पूजा करने का निर्णय किया से परमात्मा आप पर कृपा करें। है ताकि सारी नकारात्मकता का नाश किया जा सके। बहुत चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt रूस यात्रा 1992 स्वतः ही बहुत से रोगीं बच्चों को रोगमुक्त कर दिया। श्री माता जी के आगमन ने रूसी सहजयोगियों के हृदय में नयी आशा भर दी। श्री माताजी की मधुर मुस्कान की धूप आत्मसात कर वे अपने देश की सारी समस्याएं भूल गए। 120 सहजयोगियों को एक अन्य किराए के यान से नि:शुल्क कीव ले जाया गया। अति हृदय-स्पर्शी ढंग से पारम्परिक वेशभूषा पहने सहजयोगियों ने श्री माताजी का स्वागत किया। एक खुले सभागार में जन कार्यक्रम हुआ जिसमें 15000 लोग थे। अपने हाथ उनकी ओर (श्री माताजी की) फैलाने को कह कर उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया गया। सेंट तीन सौ चिकित्सकों की एक चिकित्सा सभा में श्री माताजी ने घोषण की कि स्हजयोग मेरा विज्ञान है। सहजयोग उपचार विधियों के विषय में चिकित्सक गण विश्वस्त थे और सक क आत्मसाक्षात्कार के इच्छुक थे। हुई महालक्ष्मी पूजा, जिसमें 2000 से अधिक पीटर्जवर्ग में अगले दिन किराए पर लिए वायुयान द्वारा टुग्लीथी के लिए उड़े। यहाँ 15000 से भी अधिक सहजयोगी हैं पर श्री माताजी यहाँ पहले कभी नहीं गयी थीं। जन कार्यक्रम में इतने अधिक लोग आए कि श्री माताजी ने सभी को वोल्गा गोष्ठी में निमन्त्रित यह तो गणपति पुले जैसा है। "नहीं उससे भी बढ़कर है" श्री माताजी ने कहा। उन्होंने कहा "मैंने पूर्णत्व पा लिय है।" सहजयोगी उपस्थित थे, सबसे बड़ा वरदान थी। श्री माताजी ने डेढ घन्टे से भी अधिक समय तक प्रवचन दिया। संस्कृत, हिन्दी और मराठी के सीखे हुए भजनों में रूसी लोगों ने अपना हृदय उड़ेल दिया। श्री माताजी बहुत प्रसन्न हुई तथा रूस पर आशीर्वाद की वर्षा की। बहुत से विवाहों को उन्होंने आशीर्वाद दिया तथा उन्हें उपहार दिए। किया। कई घंटे वे नाचते गाते रहे। मैंने कहा कि अगले दिन 1000 से भी अधिक सहजयोगियों ने अश्रुपूर्ण आंखों से प्रिय मां को हवाई अड्डे पर विदा किया मां ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि "मैं सदा आपके हृदय में हं।" दो पीढ़ियों से भी अधिक समय से आध्यात्मिकता से दूर हुए रूसी सभासदां के नगर के मैयर ने श्री माताजी को नगर सभा में सत्कारपूर्वक आमंत्रित किया तथा उनका सम्मान किया। उन्होंने श्री माताजी से कृपा तथा मार्गदर्शन की प्रार्थना की और आश्रम के लिए स्थान भेंट किया। लोगों ने तुरन्त किस प्रकार श्री माताजी को पहचान लिया? एक दोपहर बाद यान की प्रतीक्षा करते हुए श्री माताजी ने स्पष्ट है कि आत्मा उत्थानशील है। चैतन्य लहरी 17 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt च काम छ्रर मन्त्र प ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली. त्रिगुणात्मिका, कुण्डलिनी साक्षात् क श्री आदिशक्ति, माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।। ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की साक्षात् श्री आदिशक्ति, माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।। ।। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी, मोक्षप्रदायिनी माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ।।