चैतन्य लहरी अंक 11 व 12 ( 1992 ) खण्ड IV विषय सूची शरी पृष्ठ 1. श्री माताजी को समर्पित 2. नवरात्रि पूजा 2. 3. श्री माताजी की सहजयोगियों को शिक्षा. ********* 4. गर्म जिगर के लिए श्री माताजी द्वारा बताया गया भोजन ****** ता "जब आप निर्णय कर लेंगे कि सर्वप्रथम हमें सहजयोग करना है शेष सब कुछ बाद की बात है तभी वास्तव में आपके अन्दर सहजयोग स्थापित हो सकता है।" प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी मृदु स्पर्श से भी संकुचित होने वाला बुलबुला सत्य की खोज, प्रेरणा कला की, प्रेम शक्ति, मरू एवं मानव को समृद्ध करने वाली, सरोत सृजनात्मकता का, स्वर्णाभ देवी के शीतल श्वासों से बहुता है | हृदय तंत्री से जब झंकृत होते हैं, उसके प्रदीप्त कुण्डल के उल्लसित गीत, अलंकृत जो करती है आपके अन्तर मन्दिर को । आनन्द, विवेक एवं उल्लासावस्था में प्रदीप्त, ओ आनन्द एवं मुक्ति पथ प्रदर्शिनी, कोटि कोटि प्रणाम तुम्हें। |प् उत्थान प्रक्रिया का पोषण तब वे करती हैं। म श्री मां के चरण कमलों में समर्पित व्यक्त और अव्यक्त, ज्ञात एवं अज्ञात भी, ब्रह्माण्ड सृजक आप ही हैं। नवरात्रि पूजा कबैला, 27.9.1992 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश ) गणित हमें अपने अन्दर से, परमात्मा से, प्राप्त हुआ। हमने इसकी सृष्टि नहीं की। कुछ साक्षात्कारी गणितज्ञों ने इस सत्य की खोज की तथा अल्फा और ओमेगा (आदि और अन्त) का उपयोग किया। यह स्पष्ट रूप से दशाता है कि स्वास्तिक ऑंकार बन जाता है तथा ऑकार अल्फा और ओमेगा बन जाता है। सहजयोग में हर चीज सुनिश्चित है तथा उसका सत्यापन किया जा सकता है। परिणाम से परे हैं। समस्या के आधार तथा हल को जाने विना वे समस्या का हल खोजते हैं। आपकी कुण्डलिनी आपके अन्दर आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब है। भिन्न चक्ों में से गुजरती हुई कुण्डलिनी इन चक्रों को शक्ति देती है क्योंकि वे ही शक्ति हैं। वे ही सदाशिव की देवी शक्ति हैं। वे सदाशिव की पूर्ण शक्ति है। जब वे सभी चक्रों को शक्ति प्रदान करती हैं तो चक्र प्रकाशित होते हैं तथा सभी देवता जागृत होते हैं वे जगदम्बा हैं तथा शुद्ध शक्ति के रूप में वे त्रिकोणाकार अस्थि में रहती हैं । पर जगदम्बा रूप में उनका निवास हृदय में है। हृदय चक्र अति महत्वपूर्ण है। बारह वर्ष की आयु तक यह शिशु में गणों की उत्पत्ति करता है। गण बायीं ओर कार्य करते हैं। सेंट माइकल उनके नेता हैं पर श्री गणेश उनके सम्राट हैं। पहले घट स्थापना अर्थात् त्रिकोणाकार अस्थि का सृजन होता है। देवी का पहला कार्य मूलाधार की स्थापना है। उन्होंने आपकी पवित्रता स्थापित की। पहला कार्य कुण्डलिनी को त्रिकोणाकार अस्थि में स्थापित करना है और फिर श्री गणेश को स्थापित करना। जिस चीज की सृष्टि वे करती हैं वह अबोधिता से परिपूर्ण होनी चाहिए। उदाहरणतया पत्थर अबोध हैं, जब तक आप इन्हें फेंके नहीं ये चोट नहों पहुंचाते। नदियां अबोध हैं। सारे पदार्थ अबोध हैं। न ये चालाक आज आप दुर्गा या देवी के नौ रूपों की पूजा कर रहे हैं। देवी नौ बार पृथ्वी पर आई। देवी ने उन सभी लोगों से युद्ध किया जो साधकों का विनाश कर रहे थे तथा उनका जीवन दूभर कर रहे थे। सताए हुए इन महात्माओं ने देवी से प्रार्थना की। उन्होंने भगवती की पूजा की और आवश्यकतानुसार वे नी बार अवतरित हुई। हर बार उन्हें अहंकारी तथा निरंकुश लोगों की सामना करना पड़ा। भारत में जब हम किसी व्यक्ति की जन्मपत्री देखते हैं तो पता चलता है कि लोगों की तीन श्रेणियाँ होती हैं। पहले-देव, दूसरे मानव और तीसरे राक्षस। मेरे विचार में आप सब लोग मुझे देवगणों से मिले हो क्योंकि इसके बिना आप सहजयोग को इतनी गम्भीरता पूर्वक न लेते। कुण्डलिनी को उठाते हुए यदि आपको सध्य हृदय पर बाधा जान पडती है तो आप जगदम्बा की मन्त्र लेते हैं। मध्य हृदय की बाधा दूर करते मुझे भी कहना पड़ता है कि "मैं ही साक्षात जगदम्बा हूँ", तब आपमें जगदम्बा जागृत होती हैं। आपने वैज्ञानिकों से भी अधिक सत्यापन कर लिया है । वैज्ञानिक बाहर को जा रहे हैं तथा है न आक्रामक। वे परमात्मा के पाश में हैं। अपनी इच्छा से वे हुए कुछ नहीं कर सकते। कुछ पशुओं के अतिरिक्त बाकी सब अबोध होते हैं। वे परमात्मा के पाश में बंधे हैं। एक शेर-शेर सांप की तरह पर की तरह व्यवहार करता है और सांप चैतन्य लहरी मनुष्य सांप की तरह भी आचरण करते हैं और शेर की तरह भी। उनमें स्थिरता नहीं हैं। पशुओं के होने का भी एक प्रयोजन यह प्रयोजन है विकास के प्रतीक मानव को सहायता करना। आदिशक्ति ने इन सब चीजों की सृष्टि आपक लिए की है ताकि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सके, अपने जीवन का अर्थ पा सकें, सर्वव्यापक शक्ति से जुड़कर परमात्मा के पसन्द किया। भारत में पहला कार्य अति प्रभावशालो था। उन्हने भारत को यहाँ छः ऋतुएं हैं और जलबायु बहुत अच्छी है। सारी चुना। ऋतुएं सन्तुलित हैं। परम चैतन्य को ऋतुभरा प्रज्ञा भी कहा जाता है अर्थात् ऋतुएं बनाने वाले का ज्ञान। पश्चिम में ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रभावशाली नहीं है। मनुष्य इतने विचलित मस्तिष्क हैं कि प्रकृति भी बैसी ही हो गई है और नहीं समझ पाती कि ऐसे मनुष्यों से किस प्रकार व्यवहार करें। साम्राज्य में प्रवेश कर सकें। सारा कार्य देवी का है। नौ वार वे अवतरित हुई और दसवीं बार बं आप सब को आत्मसाक्षात्कार देने आई हैं। दसवीं बार तीनों शक्तियां सम्मिलित रूप में हैं इसलिए इन्हें त्रिगुणात्मिक कहते हैं। इसी कारण बुद्ध ने मैत्रया मनुष्यों को समझाया गया कि परमात्मा हैं। बास्तविक सन्तों का सम्मान हुआ तथा उन्होंने भिन्न निचौड निकाले। मैंने जब आदि शंकराचार्य को पढ़ा तो हैरान हुई कि वे किस प्रकार मेरे बारे में इतना कुछ जानते हैं। वे जानते हैं कि मैरे घुटने कैसे लगते हैं, और मेरी पीठ पर कितनी लकीरें हैं। इसका अर्थ कि अपनी ध्यान शक्ति से वे सब देख सके। उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा। उनका वर्णन बिल्कुल स्पष्ट है। देवी के सहस्त्र नाम अर्थात् तीन माताएं। कहा यह शक्ति जब कार्य करने लगती है तो तीनों मार्ग तथा सातों चक्र इनके वश में होते हैं। शक्ति का नाम लिए विना आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। यहाँ पर मानव असफल हा है क्योंकि वह स्वतंत्र है, क्यों किसी का आज्ञा माने, बात सुने या किसी को स्वीकार करें। यही कारण कि साक्षात्कार प्राप्त होने के बावजूद भी कार्य अति कठिन है। आपको किसी ऐसी बात की आदत नहीं जिसमें आप अपनी स्वतंत्रता का बा जाता है इतने संक्षिप्त है। आप उन्हें मुझ में देख सकते हैं और यह वास्तविकता है। इन सन्तों का ज्ञान प्रशंसनीय है ख- उन्होंने कैसे जाना कि देवी ऐसी हैं। भारत में ध्यान-शक्ति महान थी। उपयोग न कर सकें। इसका कारण हमारी ऋतुएं अनुशासित थीं। भारत में लोग प्रात: उठकर स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और अपने काम पर जाते अब परम-चैतन्य में यही शक्ति जागृत हो चुकी हैं और चमत्कारिक कार्य कर रही है। आप इन्हें स्पष्ट देख सकते हैं। हैं। सायंकाल अपने परिवार के साथ रहते हैं, भजन आदि आपने मेरे फोटो देखे हैं। सत्य के विषय में आपको विश्वास दिलाने के लिए परम-चैतन्य निरन्तर कार्य कर रहा है। ईसा के समय यदि यह इतना कार्यशील होता तो अच्छा होता पर यह इसी समय होना था क्योंकि इस समय मनुष्य की संचालन अति कठिन है। उन्हें स्वतंत्रता दे दी गई है। आदम और ईव को भी स्वतंत्रता दे दी गई थी। पर यह स्वतंत्रता किस प्रकार प्राप्त की गई? आदम और ईव पशु सम थे, पूर्णतया परमात्मा के पाश में। ईडन बाग में नंगे रहते थे और पशुओं की तरह रहने तथा खाने के अतिरिक्त कुछ न जानते थे तब शक्ति स्वयं सर्प रूप धारण करके उनके पास गई तथा उन्हें बताया कि ज्ञान रूपों है। मुझे देखने को मिलता है। साद जीवन के लिए आपका धरा फ़ल चख लो। शक्ति उनका विकास चाहती थी। शक्ति जानती मां से सारा वैभव नहीं निकालना पड़ता। पर्यावरण संबंधी थी कि वे बहुत से चमत्कार कर सकती है तथा मनुष्यों को ज्ञान समझो सकती है। अत: उन्होंने कहा कि आप ज्ञान के इस फल को खाओ। तब मानव की एक नई जाति आरम्भ हुई जा ज्ञान को जानना चाहती थी। आदिशकि्ति ने अन्य उच्च सृष्टियाँ भी कीं। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की सृष्टि की और उनके लोक भी बनाए। इसी में योजना बना दी गई कि किस प्रकार इन पशुओं को विकसित कर हम साक्षात्कारी बना सकते हैं। पशुओं से मानव और मानव से साक्षात्कारी। यह बहुत बड़ी समस्या थी। वाद में मानव में तीन मार्गों की सृष्टि की गई। इन तीन मार्गों से तीन शक्तियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उत्पत्ति हुई। उन्होंने मानव में शक्ति को कार्यान्वित करना करके सोते हैं। वे छुट्टियाँ मनाने नहीं जाते और न वे मद्यपान में फसते हैं। मद्यपान करने वाले को घर से बाहर कर दिया जाता है, उसे घृणित समझा जाता है। उसे दारूड़ा (शराबी) कहा जाता है। ऋतुएं अनुशासित होंने के कारण हम जानते हैं कि हमें कव कैसे और क्या करना है। भारत में लोग जंगलों में रहते थे क्योंकि वे आराम को जानते ही न थे। सादी झाँपडी में सूर्य तथा वर्षा से सुरक्षित होकर वे लोग रह सकते शें। उनकी आवश्यकता बहुत कम थी। पर अव तो वहुत अन्तर आ गया समस्याएं नहीं होती। उनके उन्दर कार्यरत यह शक्ति उन्हें साधक बनाने के लिए थी। उनके पास खाने को भोजन तथा सोने के लिए स्थान था। विना अधिक कार्य किए प्रसन्नतापूर्वक रहते थे। समय की कमी न थी। न व तेरने जाते थे न बालरूम डांस करते। समय पर वे ध्यान करते थे। वे महसूस करने लगे कि परमात्मा की शक्ति क्या है, देवत्व क्या है और परमात्मा क्या है। पश्चिम में लोग इंसा के निजी जीवन की बात कर सकते हैं। भारत में काई ऐसा नहीं करता। आप परमात्मा के बारे में कैसे जान सकते हैं। आप उनके माध्यम से आए है। परमात्मा कुछ भी कर सकते हैं। आप परमात्मा को कंसे समझ सकते हैं? आप परमात्मा से जुड़ सकते हैं, उनका सामीप्य पा चैतन्य लहरी 3 मुझे पानी चाहिए, मुझे एक खाली गिलास भी चाहिए। यदि यह गिलास पहले से ही अहं से भरा हुआ है तो इसमें क्या डाला जा सकता है? यदि आप पहले से ही अपने विचारों से परिपूर्ण हैं तो आप अधिक ऊंचे नहीं उठ सकते। आपको पूर्ण समर्पित होना होगा एक बार पूर्ण समर्पण करते ही आपकी सभी समस्याएं सुलझ जाएंगी। अपनी समस्याओं को भी समर्पित कर दीजिए। "परमात्मा आप ही इन समस्याओं को सुलझाइए"। आप ऐसा करें। यह इतनी संक्षिप्त, कार्यकुशल और प्रभावशाली शक्ति है जो आपको प्रेम करती है, आपकी चिन्ता करती है और आपको क्षमा करती है। यह आप सब लोगों को सिंहासन पर बैठ अपनी शक्तियों का आनन्द लेते हुए देखना चाहती है। अत: हर आवश्यक कार्य अति सावधानीपूर्वक किया गया है। सकते हैं, उनसे आशीर्वादित हो सकते हैं तथा उनकी रक्षा में रह सकते हैं। परमात्मा के बारे में आप बहुत सी बातें जान सकते हैं पर आप उन्हें समझ नहीं सकते। आप ये नहीं पूछ सकते कि उन्होंने स्वास्तिक या ओंकार क्यों बनाए। वे तो परमात्मा से पूछते हैं क आप क्यों हैं। इस हेकड़ी तथा अहंकार नं हमें परमात्मा के प्रति अन्धा कर दिया है। हम अपना अन्त नहीं सोचते। हमारी अपनी धारणाएं हैं । यह शक्ति जिसने आपको आत्मसाक्षात्कार दिया है यह आपको मोक्ष भी देगी पर फिर भी आप परमात्मा को समझ न सकेंगे। मान लीजिए कोई व्यक्ति कबैला में पहाड़ी के नीचे हैं खड़ा है तो क्या वह मेरे घर को ठीक से देख पाएगा? मेरे घर को देखने के लिए उसे कबैला से ऊपर जाना पड़ेगा। जिस स्रोत से हम उपजे हैं उस स्रोत को हम नहीं जान सकते। हम नहीं समझ सकते, क्यों? हम परमात्मा की इच्छा है। अतः हमं परमात्मा की इच्छा में प्रसन्न रहना चाहिए। आपके अन्दर की शक्ति अम्बा है, यही इच्छा शक्ति है। से यह अति शक्तिशाली हो गया है। यदि कोई आप से उसकी इच्छा है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करें । दुर्व्यवहार करे या आपको परेशान करे तो भी आपको चिन्ता उसके साम्राज्य में प्रवेश करने के बाद यह शक्ति आपको भिन्न सुन्दर अवस्थाओं में बिठानी हैं। इनमें से कुछ परमात्मा के हृदय में और कुछ परमात्मा के सहस्रार में बैठने की अवस्थाएं हैं। अब आप अपनी शक्तियों को धारण कीजिए क्योंकि आप सीमा पार कर चुके हैं और अब हम दसवीं अवस्था में हैं। विश्वास करें कि आप सहजयोगी हैं। विश्वास करें कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। आप परमात्मा का निर्णय नहीं कर सकते। पर जब आप वहाँ बैठते हैं तो यह कोई मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता, कभी किसी ने हानि नहीं सभा नहीं होती। आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुक जीवन में मैंने आपको अपने शरीर में लिया है और अपने हैं, परमात्मा का आशीर्वाद, सुरक्षा, पोषण पा चुके हैं तथा उन्होंने आपको ज्ञान भी दिया है। यर अभी भी इस हेकड़ी को नीचे जाना है। हमारे लिए नम्रता अति आवश्यक है नहीं तो यह शक्ति आपको आगे नहीं ले जा सकती। अब इसने सहस्रार को पार कर लिया है और इसे ऊंचा जाना है। इसके लिए आपको नम्र होना होगा। अभी बनावटी नम्रता हैं। वह नम्रता तो आपके खखहदय में है। आइए स्वयं को जानें। तब आप हैरान होंगे कि के अंग-प्रत्यंग हैं। वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। बिना किसी परमात्मा ने आपको अपने ही रूप में बनाया है। उसने आपको बनाया है, आप उसे नहीं बना सकते। वह सोत है। अब आप अन्य लोगों को उनके रूप में बनाएं। ये शक्तियाँ आपके अन्दर ह नवरात्रि का दसवां दिन आप सबके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ पर परम चैतन्य गतिशाल हुआ है गतिशीलता करने की आवश्यकता नहीं, यह (परम-चेतन्य) इसे सम्भाल लंगे। आपके दुष्कम्मों का दंड भी आपको सामान्य लोगों के स्तर पर नहीं मिलेगा। सामान्य व्यक्ति पर अपराध का दोप लगाया जा सकता है। परन्तु यदि आप राज्ये के उच्चच पद पर उठ जाएंगे तो कोई आप पर दोष नहीं लगा सकता। आप कानून से ऊपर हैं। इसी प्रकार कोई भी आपको न छू सकता है न आपका नाश कर सकता है। कोई आपकी बढोतरी को रोक नहीं सकता मुझे कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। कोई राक्षस शरीर में ही मैं आपका शुद्धिकरण कर रही हूं। यह कठिन कार्य है । आरम्भ में यह शक्ति आदम और ईव के पास गई और उन्हें बताया कि वे ज्ञान प्राप्त करें। अत: वह वचन पूर्ण करना ही होगा। पश्चिम के लोगों को यह समझाना कठिन है कि वे विराट लक्ष्य के वे कहते हैं कि हम खोज रहे हैं। हमें अधिक से अधिक लोगों को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। जो नहीं आना चाहते उनकी कोई आवश्यकता नहीं। उन्हें नम्रतापूर्वक इसकी याचना करनी होगी। आपके पास ज्ञान है इस ज्ञान से ही आपकी पहचान होनी चाहिए। समझ लीजिए कि आपके पास ज्ञान है और यह ज्ञान दूसरों को दिया जा सकता है तथा आदिशक्ति का स्वप्न साकार करने के लिए हम विश्व को एक सुन्दर विश्व में परिवर्तित कर सकते हैं आदिशक्ति ने आपकी सृष्टि इसी कार्य के लिए की है और इसी के हैं। सर्वप्रथम आप स्वयं को अनुशासित कीजिए जो लोग स्वयं को वश में नहीं कर सकते वे दसरों को क्या वश में करेंगे। आप पहले स्वयं को सम्भालिए क्योंकि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। आप में गरिमा, स्नेह, करुणा, प्रेम तथा समर्पण होना चाहिए। इसके बिना यह शक्ति बेकार है क्योंकि आप उस शक्ति के वाहन हैं। मान लो चैतन्य लहरी उपयोग भी महान कार्य के लिए करेंगे आपको ढालकर इस लिए आपको मानव स्तर से उठाकर महा-मानव स्तर पर लाई। आज यदि आप जगदम्बा के रूप में मरी पूजा कर रहे तो याद रखिए कि जगदम्बा ही आदिशक्ति है। छोटी-छोटी बातों पर अपनी शक्ति बर्बाद मत कीजिए। विचार कीजिए कि आपको ध्यान करना है तथा ऊपर उठना है और अन्य लोगों को जागृति देनी है। यदि आप स्वयं को प्रम करते हैं तो कहें मेरा शरीर और मस्तिष्क परमात्मा ने मुझे दिया है, यह कितना सुन्दर है। परमात्मा इसका अवस्था तक लाया गया है। अपनी स्वतंत्रता में आपको उत्थित होकर समझना होगा कि क्या करना चाहिए और कैसे उस अवस्था को पाया जाए। प्रकृति मानव के प्रति प्रक्रिया करती है। प्रकृति की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है परन्तु जब परमात्मा प्रक्रिया करते हैं तो विपत्ति आती है और इनसे लोगों की मृत्यु होती है। हैं परमात्मा आप पर कृपा करें। श्री माताजी की सहजयोगियों को शिक्षा 19 जनवरी, 1984 स्त्रियों को पुरुषों के कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं। ऐसा करने पर सारी ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी। इस कलियुग में कुण्डलिनी की जागृति की सारी व्यवस्था कर दी गई है जिससे कि सन्तुलित अवस्था में ज्योतिर्मय होकर आप साक्षात्कार पा लें। अब देखिए पृथ्वी मां की रचना किस प्रकार हुई। सर्वप्रथम ऊर्जा का गति प्रवाह आरम्भ हुआ। अब यह मिश्रित ऊर्जा थी। यह ऊर्जा गोलाई में घूमती रही। जब यह संपिंडित मूर्खता है। क्रांति लाने के लिए आवश्यक है कि शेष कार्य को पूर्ण किया जाए। साक्षात्कार तथा कुण्डलिनी की जागृति ही यह शेष कार्य हैं। इसमें स्त्रीत्व (नम्रता) ही आपकी सहायता करेगी। अत: पुरुष भी आक्रामकता त्याग दें। अब वे सहजयोगी हैं उन्हें भी स्त्रियों की नम्रता तथा स्नेह आदि गुण अपनाने पड़ेंगे। हमें अपने जीवन की शैली बदलनी होगी विकास का अर्थ विद्रोह नहीं है । न ही यह घड़ी का पैंडुलम है। यह तो कुण्डलित गति है। जैसे-जैसे आप विकसित होंगे आपका उत्थान होगा। (ठोस) हो गई तो एक जोरदार धमाका हुआ। यह एक पुरुषत्वपूर्ण कार्य था। पर अभी तक धरा मां नहीं बनी थीं अत: ऊर्जा के छोटे छोटे ट्कड़े गोल घूमते रहें। गति के कारण ये गोलाकार हो गए। उनमें से पृथ्वी मां को एक कार्य के लिए चुना गया। थ्वी मां पर जल में से जीवन का आरम्भ हुआ। सबने सहायता की और मानव को सृष्टि हुई। तब पुरुष घूमता रहा और अपने समाज को सुधारने के लिए अपने अहं के अपने पूर्ण अस्तित्व में उच्चावस्था प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें यह समझना आवश्यक है कि इस बिन्दु से उस बिन्दु तक उठने के लिए हमें पैंडुलम की तरह न चलकर कुण्डलित रूप से चलना होगा और कुण्डलित रूप से चलने के लिए आपको दूसरे प्रकार की शक्ति का उपयोग माध्यम से कुछ न कुछ करता रहा पर अब उनका कार्य हो गया है। अब स्त्रियों को सामूहिक रूप से अपना कार्य करना हैं। करना होगा। अभी तक उपयोग की गई शक्तियों में अब आपको स्त्रीत्व के गुण सम्मिलित करने होंगे। पर मातृत्व सम्पूर्ण स्त्रियाँ हैं काफी नहीं उनमें कोमल हृदय आवश्यक है। ईसा ने दर्शाया कि उन्होंने सब क्षमा कर दिया। केवल स्त्री ही क्षमा कर सकती है पुरुष नहीं। कृष्ण ने कभी किसी को क्षमा नहीं किया। अपराधी का वध कर दिया। ईसा ने उस सीमा तक कहाँ? उनका स्त्रियों जैसे वस्त्र पहनना को अब स्त्री, या हम कह सकते हैं कुण्डलिनी, जो अभी तक प्रतीक्षा में थी और आराम कर रही थी, जागृत हो गई है। अत: हम कहते हैं कि बसन्त का समय आ गया है। इस समय कुण्डलिनी को जागृत होकर इस प्रकार प्रकाश फैलाना है कि विश्व पूर्णत्व को प्राप्त कर सके। अत: स्त्री और पुरुष में कोई मुकाबला नहीं। दोनों की कार्य शैली भिन्न है । आप लोग इस बात को समझ लंगे तभी बिना किसी विद्रोह के विकास हो पाएगा। पर स्त्रियाँ तो पुरुषों के विरुद्ध विद्रोह कर रही हैं। यह ना क्षमा किया जहाँ तक पता चला कि वे कुंडल को उत्थान के लिए एक घुमाव दे रहे हैं। और अब मनुष्यों में भी स्त्रीत्व का गुण विकसित करना ही होगा। पर इसका अभिप्राय ये भी नहीं कि आप स्त्रियों की तरह चैतन्य लहरी किसी की झुठी प्रशंसा करना नहीं। चलने लगे या उन जैसी कमर बनाने लग। यह दूसरी मूर्खता है। मातृवत बनना, पितृवत नहीं। एक दूसरे के प्रति आचरण में आपके अन्दर वह करुणा तथा स्नेह होना चाहिए। अप बहुत से शब्द कह सकते हैं जैसे :- तो हैं?" आप सुख से निसन्दह यह शक्ति कभी-कभी सुधारती भी है और नाराज भी हाती है। जो लोग अपना व्यवहार नहीं सुधारते उन किसी को यदि पानी चाहिए तो तुरन्त दे दीजिए। बाजार से किसी के लिए उपहार ले आइए। पर सां को भी नाराज होना पड़ता है। वे चिल्लाती हैं, दांडित करती हैं और कभी-कभी विनाश भी करती हैं ये बात ठीक है पर ऐसा कभी कभी होता है सदा नहीं। अत: आपको समझना होगा कि धरा मां सम बनने के लिए आपको सहनशील होना होगा। हर चीज की धारक वे ही हैं। वे ही सभी कुछ लेती हैं, चैतन्य लहरियों को सोखती हैं। और पहली बार अब सभी सहजयोगियों के लिए आपमें प्रेम होना चाहिए। सोति हुए यदि किसी का कम्बल या सिरहाना हट गया हो तो उसे ठीक कर दीजिए। ऐसा करना मां का कार्य है। ठंड में यदि किसी के बटन खुले हैं तो उन्हें वंद कर दीजिए। साक्षात्कार के पश्चात् आप उन्हें वह लौटा सकते हैं जो आपने उनसे पाया है। आप पेड़ों को चैतन्य लहरियाँ दकर उन्हें सुन्दर हैं। बहुत से छोटे-छोटे कार्यों से स्त्रियाँ पुरुषों को प्रसन्न कर सकती हैं। बना सकते हैं। एक पुष्प को आप अधिक सुन्दर बना सकते अब धुरा मां से जो आपको प्राप्त हुआ है उसे आप दे सकते हैं, क्योंकि आपके अन्दर अन्दर पृथ्वी मां जागृत हो चुकी है। अत: उनसे प्राप्त सभी कुछ दूसरों का देकर आप वह सब लोटा दें। उदारता, हृदय की महानता, श्रेष्ठता, क्षमा, प्रेम, स्नेह एवं सहनशीलता। वच्चे की रक्षा के लिए मां स्वयं भूखी रह बच्चे के लिए उसमें इतना समर्पण है। यही झगडिए नहीं, अहं को वश में कीजिए। मैंने सदा कहा है कि अहं की समस्या के कारण हमारा संघटन समाप्त होता है और परमात्मा से हमारा संबंध ठीक प्रकार स्थापित नहीं हो पाता। जिस यंत्र के माध्यम से में बोल रही हैं वह यदि पांच हिस्सां में बंट जाए और पांचा हिस्स आपस में लड़ रहे हो इसके ऊर्जा सोत से जुड़ रहने पर भी आप इससे कारई कार्य सकती है। नहीं ले सकते। इसी प्रकार यदि अब भी आप लोग संघटित हैं तो आपको वह योग नहीं मिल सकता। कुछ सहजयोगी बहुत ऊंचे स्तर के होंगे। मैं जानती हैँ कि कुछ मध्यम दर्जे कंे होंगे, यह वास्तविक मां है। आजकल की माताओं की तरह नहीं जो न माताएं हैं न स्त्रियाँ। और आपके सामने ता एक आदर्शमृर्ति है अब आपको स्वयं में आप स्त्री हो या पुरुष विकसित करना है सहजयोगियों को स्नेह, प्रेम एवं करुणा की एक नई चेतना विकसित करनी है क्रो्ित होने और लोगों पर चिल्लाना व्यर्थ है। यदि आप पूर्णत्व के विकास में सहायक होना चाहते हैं तो नम्र बनने का प्रयत्न कोजिए। स्वयं पर क्रोधित होइए कि आप क्रोध करते हैं और दूसरों के प्रति कुछ बिल्कुल बकार होंगे तथा कुछ को बारह फंक दिया जाएगा। सभी प्रकार के सहजयागी होंगे। मैं जानती हूं। अपना स्तर आप स्वयं जांच सकते हैं। आप किस सीमा हैं। तक जा रहे हैं? यदि दूसरे सहजयोगियों, महत्वहीन चीजों के बारे में सांचने में आप अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ता आपका क्रूर असंघटन बढ़ जाएगा, आपकी एकाकारिता कम हो जाएगी और आप अधिक दूर हो जाएंगे क्योंकि सभी निर्णय आपके अहं द्वारा लिए गए हैं। उदाहरणार्थ :- मुझे ये पसन्द नहीं है मैं एसा नहीं करता, मैं एंसा नहीं देखता आदि आदि। सारी समस्याएं आक्रामकता के आधिक्य के कारण हैं। यह इतने भयंकर सीमा तक पहुंच गया है कि अब इसका पतन आवश्यक है। आपमें हर मनुष्य, हर सहजयोगी के लिए प्रेम का होना किसी प्रकार यदि आप अपने-अपने अहं को कार्य करते देख सके तो आप इससे छुटकारा पा सकते हैं और यही व्यक्ति को करना है, अहं से झगड़ना नहीं। आवश्यक है। करें साधकों से किस प्रकार व्यवहार :- मैं अहं से लड़ने को कभी नहीं कहती, अहं को समर्पित नम्र, भद्र, सुखद और मधुर होने की सोचें और उपाय खोज निकालें। कर दो। इस प्रकार आपका अहं जा सकता हैं। लोग यहाँ सहजयोग सांयकाल यह लिख देना कि "आज मैंने कितनी मधुर के लिए आते हैं पर उनकी प्राथमिकताएं कुछ अन्य ही होती बातें कही" एक बहुत अच्छा उपाय है। पर इसका अभिप्राय हैं। फिर वे कहते हैं कि "मां हम सहजयोंग में अधिक उन्नत नहीं हो रहे हैं"। कार्य करना हागा। नम्रतापूर्वक इसे अपने में आत्मसात करें। अपने मस्तिष्क पर इसकी वर्षा होने दें। शाश्वत आनन्द को अपने अन्दर आने दे। जब आप निर्णय कर लेंगे कि सर्वप्रथम हमें सहजयोग करना है शेष सबकुछ बाद की बात है तभी वास्तव में आपके अन्दर सहजयोग स्थापित हो सकता है। स्वयं को तुच्छ व्यक्ति मत बनाइए। उच्च विचार रखिए क्योंकि अब आप सर्वोच्च से संबंधित हैं - विराट से संबंधित हैं। अपने महत्व को बदि आप समझेंगे तो आप इसे कार्यान्वित झुठे सन्तों का सम्मान मत कीजिए। उन्हें जूते लगाइए। प्रात:काल उठकर ध्यान कीजिए। यहाँ तो लोगों को प्रातः उठने में भी एतराज है कर सकेंगे। हम जानते हैं कि हमारे साथ कुछ गलत चीजें बटित हुई। ये हमारे अत्यधिक विचार अध्ययन और प्रभुत्व के कारण हुई। आपको बार-बार अपना तथा सहजयोग का मूल्यांकन करना चाहिए और समझना चाहिए कि अहं तथा प्रति-अहं आपकी गति को कम कर रहे हैं । पर इनसे आप छुटकारा पा सकते हैं। नि्लिप्त होकर स्वयं को देखिए और स्वयं से पूछिए "श्रीमान अब आप कैसे हैं"? ऐसा कहते ही आपका चित्त आपके बाहय अस्तित्व को देखने निकलेगा। जितना स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही अच्छा है। स्वयं का सामना कीजिए। परन्तु अहं मुख्य समस्या है। अपना अहं देखने का प्रयत्न कीजिए। किस प्रकार यह आपको भटका रहा है। आप स्वानन्द को खोज रहे हैं छुपा हुआ है और जिसे युगों से आप खोज रहे हैं। - आनन्द जो आपका अपना है जो आपसे धीरे-धौरे आप अपने चक्रों को देखने लगते हैं अपनी समस्याओं को देखने लगते हैं। पर हर व्यक्ति तुरन्त परिणाम अब इसी को मैंने आपके सम्मुख प्रकट करना है। चाहता है। अपने प्रति धैर्यवान बनिए। धेर्य से ही आप उस चीज को प्राप्त करेंगे जिसका वायदा बहुत पहले किया गया जो व्यक्ति आपको सर्वोच्च दे रहा है उससे बहस करने का क्या लाभ। यह तो शक्ति को व्यर्थ खोना है। दोष ढुंढने था। तथा महत्वहीन चीजों पर अपनी शक्ति बर्बाद मत कीजिए। हर समय अपने या दूसरे लोगों के दोष खोजना बुद्धिमत्ता नहीं। दोनों ही बातें अनुचित हैं। अपने विवेक में बढ़ना ही अच्छा है। यर अपने प्रति धैर्यवान बनना सीखिए। अपने पर न तो क्रोध कीजिए और न ही अपना अपमान कीजिए। यह अति साधारण बात है पर अपने जटिल विचारों तथा जीवन के कारण हम फंस गए हैं इसमें से निकलना भी सुगम है। अतः मेरा भाई, मेरी बहन, मेरा पिता आदि को भूल जाइए। ये सारों समस्याएं तुरन्त भस्म हो जाएंगी| सभी साथ बढ़िए क्योंकि सहजयोग सामूहिक है। कितनी मधुर बात है कि पूरे विश्व में आपके भाई बहन प्रेम करना होगा। यह केवल अपने सभी हैं। आपको उन सब से भय त्याग देने से ही संभव होगा। जानिए कि आप सन्त हैं। आप साक्षात्कारी लोग हैं। आप कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं। आपके अतिरिक्त कितने लोग जानते हैं कि लहरियों क्या है? क्या आप सबसे प्रेम करते हैं? जिस प्रकार मैं प्रेम करती हू उसी प्रकार आप भी कीजिए। प्रेम ही सुन्दर कमल के समान खिलेगा. अपनी पंखुड़ियों को खोलेगा तथा मधुर सुगन्ध महक सहजयोग से किस प्रकार आपके चक्र जागृत किए गए हैं। हा ऐसा हुआ। पर आप इसके लिए क्या कर रहे हैं? उठेगी। इसी प्रकार आपका हृदय खुलेगा तथा प्रेम की सुगन्ध पूरे विश्व में फैल जाएगी मैं आपके अन्दर प्रवेश करूंगी। मैं जानती हूँ कि ऐसा हो सकता है। यह महानतम घटना है जो किसी के साथ घटित हो सकती है। इसकी भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व ' अन्तिम निर्णय' के रूप में की गई थी। आइए ईसा के आने की तैयारी करें। स्वयं से भागकर नहीं, व्यर्थ की चीजों में फंसकर नहीं, सुन्दरता पूर्वक शुद्ध करके इसे कार्यान्वित करें। आत्मा को यदि शरीर-मन्दिर में स्थापित करना है तो शुद्धिकरण करना होगा । इसी प्रकार आपका निर्णय होगा। अत: आपको कठिन परिश्रम करना होगा। बिना किसी प्रयत्न के यह आपको दिया गया है। पर इसे बनाए रखने तथा ऊंचा ले जाने के लिए हमें नेक-नीयति से परमात्मा आप पर कृपा करें। चैतन्य लहरी 7. पीलिया/हैपाटाइटिस और अत्यधिक गर्म जिगर के लिए श्री माताजी द्वारा बताया गया भोजन और 1. प्रतिदिन प्रातः और सांय एक गिलास मूली के पत्तों का गन्न का रस अच्छा है। 10), गन्ना रस पियें। ।1. मक्खन बिल्कुल नहीं। 2. प्रातः एक गिलास कोकम शर्बत पियें। |2. उड़द और अरहर की दाल न लं। 3 बर्फ की थैली बायें हाथ से पकड़कर अपने जिगर पर रखें 13. उबले चावल, सभी सब्जियाँ और मूंग की दाल ठीक हैं। और अपना दायाँ हाथ श्री माताजी के फोटो की ओर करें। श्री माताजी 14. खाने में इडली न लें। के फोटो के सामने बिना दीपक या मोमबत्ती 15. अदरक, आलू, प्याज और खीरा ठीक हैं। जलाए ध्यान करें। 16. नियमित रूप से निम्बु-पानी, चैतन्यित पानी के साथ लेना 4. बंगाली मिठाइयाँ खा सकते हैं। अच्छा है। 5. किसी भी स्थिति में तला हुआ भोजन, लाल मांस या चिकनाई न लें। 17, आइस-क्रीम बिल्कुल नहीं। 18. आवंले का मुरब्बा ठीक है। यह दोनों समय के भोजन के मछली या दूध से बने पदार्थ न लें। केवल मक्खन निकली 6 हुई छाछ ले सकते हैं। साथ लिया जा सकता है। 19. खाने पर चांदी के वर्क लगाकर लेना अच्छा है। 7. पनीर बिल्कुल न लें। 20. पृथ्वी के नीचे उगे फल-सब्जियाँ ठीक हैं। 8. दो माह के लिए लिवर-52 की गोलियाँ दिन में 3-4 बार 21. मूंगफली और मूंगफली का तेल न लें। मूंगफली का तेल जिगर के लिए वहुत हानिकारक है। थोड़ी मात्रा में ठीक है। लें। सूरजमुखी का तेल ७. सभी रसीले फल ठीक हैं (आम, सेब, केला, चीकू और पपीता न लें) च न बे चैतन्य लहरी ---------------------- 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 11 व 12 ( 1992 ) खण्ड IV विषय सूची शरी पृष्ठ 1. श्री माताजी को समर्पित 2. नवरात्रि पूजा 2. 3. श्री माताजी की सहजयोगियों को शिक्षा. ********* 4. गर्म जिगर के लिए श्री माताजी द्वारा बताया गया भोजन ****** ता "जब आप निर्णय कर लेंगे कि सर्वप्रथम हमें सहजयोग करना है शेष सब कुछ बाद की बात है तभी वास्तव में आपके अन्दर सहजयोग स्थापित हो सकता है।" प. पू. माताजी श्री निर्मला देवी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt मृदु स्पर्श से भी संकुचित होने वाला बुलबुला सत्य की खोज, प्रेरणा कला की, प्रेम शक्ति, मरू एवं मानव को समृद्ध करने वाली, सरोत सृजनात्मकता का, स्वर्णाभ देवी के शीतल श्वासों से बहुता है | हृदय तंत्री से जब झंकृत होते हैं, उसके प्रदीप्त कुण्डल के उल्लसित गीत, अलंकृत जो करती है आपके अन्तर मन्दिर को । आनन्द, विवेक एवं उल्लासावस्था में प्रदीप्त, ओ आनन्द एवं मुक्ति पथ प्रदर्शिनी, कोटि कोटि प्रणाम तुम्हें। |प् उत्थान प्रक्रिया का पोषण तब वे करती हैं। म श्री मां के चरण कमलों में समर्पित व्यक्त और अव्यक्त, ज्ञात एवं अज्ञात भी, ब्रह्माण्ड सृजक आप ही हैं। नवरात्रि पूजा कबैला, 27.9.1992 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश ) गणित हमें अपने अन्दर से, परमात्मा से, प्राप्त हुआ। हमने इसकी सृष्टि नहीं की। कुछ साक्षात्कारी गणितज्ञों ने इस सत्य की खोज की तथा अल्फा और ओमेगा (आदि और अन्त) का उपयोग किया। यह स्पष्ट रूप से दशाता है कि स्वास्तिक ऑंकार बन जाता है तथा ऑकार अल्फा और ओमेगा बन जाता है। सहजयोग में हर चीज सुनिश्चित है तथा उसका सत्यापन किया जा सकता है। परिणाम से परे हैं। समस्या के आधार तथा हल को जाने विना वे समस्या का हल खोजते हैं। आपकी कुण्डलिनी आपके अन्दर आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब है। भिन्न चक्ों में से गुजरती हुई कुण्डलिनी इन चक्रों को शक्ति देती है क्योंकि वे ही शक्ति हैं। वे ही सदाशिव की देवी शक्ति हैं। वे सदाशिव की पूर्ण शक्ति है। जब वे सभी चक्रों को शक्ति प्रदान करती हैं तो चक्र प्रकाशित होते हैं तथा सभी देवता जागृत होते हैं वे जगदम्बा हैं तथा शुद्ध शक्ति के रूप में वे त्रिकोणाकार अस्थि में रहती हैं । पर जगदम्बा रूप में उनका निवास हृदय में है। हृदय चक्र अति महत्वपूर्ण है। बारह वर्ष की आयु तक यह शिशु में गणों की उत्पत्ति करता है। गण बायीं ओर कार्य करते हैं। सेंट माइकल उनके नेता हैं पर श्री गणेश उनके सम्राट हैं। पहले घट स्थापना अर्थात् त्रिकोणाकार अस्थि का सृजन होता है। देवी का पहला कार्य मूलाधार की स्थापना है। उन्होंने आपकी पवित्रता स्थापित की। पहला कार्य कुण्डलिनी को त्रिकोणाकार अस्थि में स्थापित करना है और फिर श्री गणेश को स्थापित करना। जिस चीज की सृष्टि वे करती हैं वह अबोधिता से परिपूर्ण होनी चाहिए। उदाहरणतया पत्थर अबोध हैं, जब तक आप इन्हें फेंके नहीं ये चोट नहों पहुंचाते। नदियां अबोध हैं। सारे पदार्थ अबोध हैं। न ये चालाक आज आप दुर्गा या देवी के नौ रूपों की पूजा कर रहे हैं। देवी नौ बार पृथ्वी पर आई। देवी ने उन सभी लोगों से युद्ध किया जो साधकों का विनाश कर रहे थे तथा उनका जीवन दूभर कर रहे थे। सताए हुए इन महात्माओं ने देवी से प्रार्थना की। उन्होंने भगवती की पूजा की और आवश्यकतानुसार वे नी बार अवतरित हुई। हर बार उन्हें अहंकारी तथा निरंकुश लोगों की सामना करना पड़ा। भारत में जब हम किसी व्यक्ति की जन्मपत्री देखते हैं तो पता चलता है कि लोगों की तीन श्रेणियाँ होती हैं। पहले-देव, दूसरे मानव और तीसरे राक्षस। मेरे विचार में आप सब लोग मुझे देवगणों से मिले हो क्योंकि इसके बिना आप सहजयोग को इतनी गम्भीरता पूर्वक न लेते। कुण्डलिनी को उठाते हुए यदि आपको सध्य हृदय पर बाधा जान पडती है तो आप जगदम्बा की मन्त्र लेते हैं। मध्य हृदय की बाधा दूर करते मुझे भी कहना पड़ता है कि "मैं ही साक्षात जगदम्बा हूँ", तब आपमें जगदम्बा जागृत होती हैं। आपने वैज्ञानिकों से भी अधिक सत्यापन कर लिया है । वैज्ञानिक बाहर को जा रहे हैं तथा है न आक्रामक। वे परमात्मा के पाश में हैं। अपनी इच्छा से वे हुए कुछ नहीं कर सकते। कुछ पशुओं के अतिरिक्त बाकी सब अबोध होते हैं। वे परमात्मा के पाश में बंधे हैं। एक शेर-शेर सांप की तरह पर की तरह व्यवहार करता है और सांप चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt मनुष्य सांप की तरह भी आचरण करते हैं और शेर की तरह भी। उनमें स्थिरता नहीं हैं। पशुओं के होने का भी एक प्रयोजन यह प्रयोजन है विकास के प्रतीक मानव को सहायता करना। आदिशक्ति ने इन सब चीजों की सृष्टि आपक लिए की है ताकि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सके, अपने जीवन का अर्थ पा सकें, सर्वव्यापक शक्ति से जुड़कर परमात्मा के पसन्द किया। भारत में पहला कार्य अति प्रभावशालो था। उन्हने भारत को यहाँ छः ऋतुएं हैं और जलबायु बहुत अच्छी है। सारी चुना। ऋतुएं सन्तुलित हैं। परम चैतन्य को ऋतुभरा प्रज्ञा भी कहा जाता है अर्थात् ऋतुएं बनाने वाले का ज्ञान। पश्चिम में ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रभावशाली नहीं है। मनुष्य इतने विचलित मस्तिष्क हैं कि प्रकृति भी बैसी ही हो गई है और नहीं समझ पाती कि ऐसे मनुष्यों से किस प्रकार व्यवहार करें। साम्राज्य में प्रवेश कर सकें। सारा कार्य देवी का है। नौ वार वे अवतरित हुई और दसवीं बार बं आप सब को आत्मसाक्षात्कार देने आई हैं। दसवीं बार तीनों शक्तियां सम्मिलित रूप में हैं इसलिए इन्हें त्रिगुणात्मिक कहते हैं। इसी कारण बुद्ध ने मैत्रया मनुष्यों को समझाया गया कि परमात्मा हैं। बास्तविक सन्तों का सम्मान हुआ तथा उन्होंने भिन्न निचौड निकाले। मैंने जब आदि शंकराचार्य को पढ़ा तो हैरान हुई कि वे किस प्रकार मेरे बारे में इतना कुछ जानते हैं। वे जानते हैं कि मैरे घुटने कैसे लगते हैं, और मेरी पीठ पर कितनी लकीरें हैं। इसका अर्थ कि अपनी ध्यान शक्ति से वे सब देख सके। उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा। उनका वर्णन बिल्कुल स्पष्ट है। देवी के सहस्त्र नाम अर्थात् तीन माताएं। कहा यह शक्ति जब कार्य करने लगती है तो तीनों मार्ग तथा सातों चक्र इनके वश में होते हैं। शक्ति का नाम लिए विना आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। यहाँ पर मानव असफल हा है क्योंकि वह स्वतंत्र है, क्यों किसी का आज्ञा माने, बात सुने या किसी को स्वीकार करें। यही कारण कि साक्षात्कार प्राप्त होने के बावजूद भी कार्य अति कठिन है। आपको किसी ऐसी बात की आदत नहीं जिसमें आप अपनी स्वतंत्रता का बा जाता है इतने संक्षिप्त है। आप उन्हें मुझ में देख सकते हैं और यह वास्तविकता है। इन सन्तों का ज्ञान प्रशंसनीय है ख- उन्होंने कैसे जाना कि देवी ऐसी हैं। भारत में ध्यान-शक्ति महान थी। उपयोग न कर सकें। इसका कारण हमारी ऋतुएं अनुशासित थीं। भारत में लोग प्रात: उठकर स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और अपने काम पर जाते अब परम-चैतन्य में यही शक्ति जागृत हो चुकी हैं और चमत्कारिक कार्य कर रही है। आप इन्हें स्पष्ट देख सकते हैं। हैं। सायंकाल अपने परिवार के साथ रहते हैं, भजन आदि आपने मेरे फोटो देखे हैं। सत्य के विषय में आपको विश्वास दिलाने के लिए परम-चैतन्य निरन्तर कार्य कर रहा है। ईसा के समय यदि यह इतना कार्यशील होता तो अच्छा होता पर यह इसी समय होना था क्योंकि इस समय मनुष्य की संचालन अति कठिन है। उन्हें स्वतंत्रता दे दी गई है। आदम और ईव को भी स्वतंत्रता दे दी गई थी। पर यह स्वतंत्रता किस प्रकार प्राप्त की गई? आदम और ईव पशु सम थे, पूर्णतया परमात्मा के पाश में। ईडन बाग में नंगे रहते थे और पशुओं की तरह रहने तथा खाने के अतिरिक्त कुछ न जानते थे तब शक्ति स्वयं सर्प रूप धारण करके उनके पास गई तथा उन्हें बताया कि ज्ञान रूपों है। मुझे देखने को मिलता है। साद जीवन के लिए आपका धरा फ़ल चख लो। शक्ति उनका विकास चाहती थी। शक्ति जानती मां से सारा वैभव नहीं निकालना पड़ता। पर्यावरण संबंधी थी कि वे बहुत से चमत्कार कर सकती है तथा मनुष्यों को ज्ञान समझो सकती है। अत: उन्होंने कहा कि आप ज्ञान के इस फल को खाओ। तब मानव की एक नई जाति आरम्भ हुई जा ज्ञान को जानना चाहती थी। आदिशकि्ति ने अन्य उच्च सृष्टियाँ भी कीं। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की सृष्टि की और उनके लोक भी बनाए। इसी में योजना बना दी गई कि किस प्रकार इन पशुओं को विकसित कर हम साक्षात्कारी बना सकते हैं। पशुओं से मानव और मानव से साक्षात्कारी। यह बहुत बड़ी समस्या थी। वाद में मानव में तीन मार्गों की सृष्टि की गई। इन तीन मार्गों से तीन शक्तियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उत्पत्ति हुई। उन्होंने मानव में शक्ति को कार्यान्वित करना करके सोते हैं। वे छुट्टियाँ मनाने नहीं जाते और न वे मद्यपान में फसते हैं। मद्यपान करने वाले को घर से बाहर कर दिया जाता है, उसे घृणित समझा जाता है। उसे दारूड़ा (शराबी) कहा जाता है। ऋतुएं अनुशासित होंने के कारण हम जानते हैं कि हमें कव कैसे और क्या करना है। भारत में लोग जंगलों में रहते थे क्योंकि वे आराम को जानते ही न थे। सादी झाँपडी में सूर्य तथा वर्षा से सुरक्षित होकर वे लोग रह सकते शें। उनकी आवश्यकता बहुत कम थी। पर अव तो वहुत अन्तर आ गया समस्याएं नहीं होती। उनके उन्दर कार्यरत यह शक्ति उन्हें साधक बनाने के लिए थी। उनके पास खाने को भोजन तथा सोने के लिए स्थान था। विना अधिक कार्य किए प्रसन्नतापूर्वक रहते थे। समय की कमी न थी। न व तेरने जाते थे न बालरूम डांस करते। समय पर वे ध्यान करते थे। वे महसूस करने लगे कि परमात्मा की शक्ति क्या है, देवत्व क्या है और परमात्मा क्या है। पश्चिम में लोग इंसा के निजी जीवन की बात कर सकते हैं। भारत में काई ऐसा नहीं करता। आप परमात्मा के बारे में कैसे जान सकते हैं। आप उनके माध्यम से आए है। परमात्मा कुछ भी कर सकते हैं। आप परमात्मा को कंसे समझ सकते हैं? आप परमात्मा से जुड़ सकते हैं, उनका सामीप्य पा चैतन्य लहरी 3 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt मुझे पानी चाहिए, मुझे एक खाली गिलास भी चाहिए। यदि यह गिलास पहले से ही अहं से भरा हुआ है तो इसमें क्या डाला जा सकता है? यदि आप पहले से ही अपने विचारों से परिपूर्ण हैं तो आप अधिक ऊंचे नहीं उठ सकते। आपको पूर्ण समर्पित होना होगा एक बार पूर्ण समर्पण करते ही आपकी सभी समस्याएं सुलझ जाएंगी। अपनी समस्याओं को भी समर्पित कर दीजिए। "परमात्मा आप ही इन समस्याओं को सुलझाइए"। आप ऐसा करें। यह इतनी संक्षिप्त, कार्यकुशल और प्रभावशाली शक्ति है जो आपको प्रेम करती है, आपकी चिन्ता करती है और आपको क्षमा करती है। यह आप सब लोगों को सिंहासन पर बैठ अपनी शक्तियों का आनन्द लेते हुए देखना चाहती है। अत: हर आवश्यक कार्य अति सावधानीपूर्वक किया गया है। सकते हैं, उनसे आशीर्वादित हो सकते हैं तथा उनकी रक्षा में रह सकते हैं। परमात्मा के बारे में आप बहुत सी बातें जान सकते हैं पर आप उन्हें समझ नहीं सकते। आप ये नहीं पूछ सकते कि उन्होंने स्वास्तिक या ओंकार क्यों बनाए। वे तो परमात्मा से पूछते हैं क आप क्यों हैं। इस हेकड़ी तथा अहंकार नं हमें परमात्मा के प्रति अन्धा कर दिया है। हम अपना अन्त नहीं सोचते। हमारी अपनी धारणाएं हैं । यह शक्ति जिसने आपको आत्मसाक्षात्कार दिया है यह आपको मोक्ष भी देगी पर फिर भी आप परमात्मा को समझ न सकेंगे। मान लीजिए कोई व्यक्ति कबैला में पहाड़ी के नीचे हैं खड़ा है तो क्या वह मेरे घर को ठीक से देख पाएगा? मेरे घर को देखने के लिए उसे कबैला से ऊपर जाना पड़ेगा। जिस स्रोत से हम उपजे हैं उस स्रोत को हम नहीं जान सकते। हम नहीं समझ सकते, क्यों? हम परमात्मा की इच्छा है। अतः हमं परमात्मा की इच्छा में प्रसन्न रहना चाहिए। आपके अन्दर की शक्ति अम्बा है, यही इच्छा शक्ति है। से यह अति शक्तिशाली हो गया है। यदि कोई आप से उसकी इच्छा है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करें । दुर्व्यवहार करे या आपको परेशान करे तो भी आपको चिन्ता उसके साम्राज्य में प्रवेश करने के बाद यह शक्ति आपको भिन्न सुन्दर अवस्थाओं में बिठानी हैं। इनमें से कुछ परमात्मा के हृदय में और कुछ परमात्मा के सहस्रार में बैठने की अवस्थाएं हैं। अब आप अपनी शक्तियों को धारण कीजिए क्योंकि आप सीमा पार कर चुके हैं और अब हम दसवीं अवस्था में हैं। विश्वास करें कि आप सहजयोगी हैं। विश्वास करें कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। आप परमात्मा का निर्णय नहीं कर सकते। पर जब आप वहाँ बैठते हैं तो यह कोई मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता, कभी किसी ने हानि नहीं सभा नहीं होती। आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुक जीवन में मैंने आपको अपने शरीर में लिया है और अपने हैं, परमात्मा का आशीर्वाद, सुरक्षा, पोषण पा चुके हैं तथा उन्होंने आपको ज्ञान भी दिया है। यर अभी भी इस हेकड़ी को नीचे जाना है। हमारे लिए नम्रता अति आवश्यक है नहीं तो यह शक्ति आपको आगे नहीं ले जा सकती। अब इसने सहस्रार को पार कर लिया है और इसे ऊंचा जाना है। इसके लिए आपको नम्र होना होगा। अभी बनावटी नम्रता हैं। वह नम्रता तो आपके खखहदय में है। आइए स्वयं को जानें। तब आप हैरान होंगे कि के अंग-प्रत्यंग हैं। वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। बिना किसी परमात्मा ने आपको अपने ही रूप में बनाया है। उसने आपको बनाया है, आप उसे नहीं बना सकते। वह सोत है। अब आप अन्य लोगों को उनके रूप में बनाएं। ये शक्तियाँ आपके अन्दर ह नवरात्रि का दसवां दिन आप सबके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ पर परम चैतन्य गतिशाल हुआ है गतिशीलता करने की आवश्यकता नहीं, यह (परम-चेतन्य) इसे सम्भाल लंगे। आपके दुष्कम्मों का दंड भी आपको सामान्य लोगों के स्तर पर नहीं मिलेगा। सामान्य व्यक्ति पर अपराध का दोप लगाया जा सकता है। परन्तु यदि आप राज्ये के उच्चच पद पर उठ जाएंगे तो कोई आप पर दोष नहीं लगा सकता। आप कानून से ऊपर हैं। इसी प्रकार कोई भी आपको न छू सकता है न आपका नाश कर सकता है। कोई आपकी बढोतरी को रोक नहीं सकता मुझे कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। कोई राक्षस शरीर में ही मैं आपका शुद्धिकरण कर रही हूं। यह कठिन कार्य है । आरम्भ में यह शक्ति आदम और ईव के पास गई और उन्हें बताया कि वे ज्ञान प्राप्त करें। अत: वह वचन पूर्ण करना ही होगा। पश्चिम के लोगों को यह समझाना कठिन है कि वे विराट लक्ष्य के वे कहते हैं कि हम खोज रहे हैं। हमें अधिक से अधिक लोगों को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। जो नहीं आना चाहते उनकी कोई आवश्यकता नहीं। उन्हें नम्रतापूर्वक इसकी याचना करनी होगी। आपके पास ज्ञान है इस ज्ञान से ही आपकी पहचान होनी चाहिए। समझ लीजिए कि आपके पास ज्ञान है और यह ज्ञान दूसरों को दिया जा सकता है तथा आदिशक्ति का स्वप्न साकार करने के लिए हम विश्व को एक सुन्दर विश्व में परिवर्तित कर सकते हैं आदिशक्ति ने आपकी सृष्टि इसी कार्य के लिए की है और इसी के हैं। सर्वप्रथम आप स्वयं को अनुशासित कीजिए जो लोग स्वयं को वश में नहीं कर सकते वे दसरों को क्या वश में करेंगे। आप पहले स्वयं को सम्भालिए क्योंकि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। आप में गरिमा, स्नेह, करुणा, प्रेम तथा समर्पण होना चाहिए। इसके बिना यह शक्ति बेकार है क्योंकि आप उस शक्ति के वाहन हैं। मान लो चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt उपयोग भी महान कार्य के लिए करेंगे आपको ढालकर इस लिए आपको मानव स्तर से उठाकर महा-मानव स्तर पर लाई। आज यदि आप जगदम्बा के रूप में मरी पूजा कर रहे तो याद रखिए कि जगदम्बा ही आदिशक्ति है। छोटी-छोटी बातों पर अपनी शक्ति बर्बाद मत कीजिए। विचार कीजिए कि आपको ध्यान करना है तथा ऊपर उठना है और अन्य लोगों को जागृति देनी है। यदि आप स्वयं को प्रम करते हैं तो कहें मेरा शरीर और मस्तिष्क परमात्मा ने मुझे दिया है, यह कितना सुन्दर है। परमात्मा इसका अवस्था तक लाया गया है। अपनी स्वतंत्रता में आपको उत्थित होकर समझना होगा कि क्या करना चाहिए और कैसे उस अवस्था को पाया जाए। प्रकृति मानव के प्रति प्रक्रिया करती है। प्रकृति की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है परन्तु जब परमात्मा प्रक्रिया करते हैं तो विपत्ति आती है और इनसे लोगों की मृत्यु होती है। हैं परमात्मा आप पर कृपा करें। श्री माताजी की सहजयोगियों को शिक्षा 19 जनवरी, 1984 स्त्रियों को पुरुषों के कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं। ऐसा करने पर सारी ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी। इस कलियुग में कुण्डलिनी की जागृति की सारी व्यवस्था कर दी गई है जिससे कि सन्तुलित अवस्था में ज्योतिर्मय होकर आप साक्षात्कार पा लें। अब देखिए पृथ्वी मां की रचना किस प्रकार हुई। सर्वप्रथम ऊर्जा का गति प्रवाह आरम्भ हुआ। अब यह मिश्रित ऊर्जा थी। यह ऊर्जा गोलाई में घूमती रही। जब यह संपिंडित मूर्खता है। क्रांति लाने के लिए आवश्यक है कि शेष कार्य को पूर्ण किया जाए। साक्षात्कार तथा कुण्डलिनी की जागृति ही यह शेष कार्य हैं। इसमें स्त्रीत्व (नम्रता) ही आपकी सहायता करेगी। अत: पुरुष भी आक्रामकता त्याग दें। अब वे सहजयोगी हैं उन्हें भी स्त्रियों की नम्रता तथा स्नेह आदि गुण अपनाने पड़ेंगे। हमें अपने जीवन की शैली बदलनी होगी विकास का अर्थ विद्रोह नहीं है । न ही यह घड़ी का पैंडुलम है। यह तो कुण्डलित गति है। जैसे-जैसे आप विकसित होंगे आपका उत्थान होगा। (ठोस) हो गई तो एक जोरदार धमाका हुआ। यह एक पुरुषत्वपूर्ण कार्य था। पर अभी तक धरा मां नहीं बनी थीं अत: ऊर्जा के छोटे छोटे ट्कड़े गोल घूमते रहें। गति के कारण ये गोलाकार हो गए। उनमें से पृथ्वी मां को एक कार्य के लिए चुना गया। थ्वी मां पर जल में से जीवन का आरम्भ हुआ। सबने सहायता की और मानव को सृष्टि हुई। तब पुरुष घूमता रहा और अपने समाज को सुधारने के लिए अपने अहं के अपने पूर्ण अस्तित्व में उच्चावस्था प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें यह समझना आवश्यक है कि इस बिन्दु से उस बिन्दु तक उठने के लिए हमें पैंडुलम की तरह न चलकर कुण्डलित रूप से चलना होगा और कुण्डलित रूप से चलने के लिए आपको दूसरे प्रकार की शक्ति का उपयोग माध्यम से कुछ न कुछ करता रहा पर अब उनका कार्य हो गया है। अब स्त्रियों को सामूहिक रूप से अपना कार्य करना हैं। करना होगा। अभी तक उपयोग की गई शक्तियों में अब आपको स्त्रीत्व के गुण सम्मिलित करने होंगे। पर मातृत्व सम्पूर्ण स्त्रियाँ हैं काफी नहीं उनमें कोमल हृदय आवश्यक है। ईसा ने दर्शाया कि उन्होंने सब क्षमा कर दिया। केवल स्त्री ही क्षमा कर सकती है पुरुष नहीं। कृष्ण ने कभी किसी को क्षमा नहीं किया। अपराधी का वध कर दिया। ईसा ने उस सीमा तक कहाँ? उनका स्त्रियों जैसे वस्त्र पहनना को अब स्त्री, या हम कह सकते हैं कुण्डलिनी, जो अभी तक प्रतीक्षा में थी और आराम कर रही थी, जागृत हो गई है। अत: हम कहते हैं कि बसन्त का समय आ गया है। इस समय कुण्डलिनी को जागृत होकर इस प्रकार प्रकाश फैलाना है कि विश्व पूर्णत्व को प्राप्त कर सके। अत: स्त्री और पुरुष में कोई मुकाबला नहीं। दोनों की कार्य शैली भिन्न है । आप लोग इस बात को समझ लंगे तभी बिना किसी विद्रोह के विकास हो पाएगा। पर स्त्रियाँ तो पुरुषों के विरुद्ध विद्रोह कर रही हैं। यह ना क्षमा किया जहाँ तक पता चला कि वे कुंडल को उत्थान के लिए एक घुमाव दे रहे हैं। और अब मनुष्यों में भी स्त्रीत्व का गुण विकसित करना ही होगा। पर इसका अभिप्राय ये भी नहीं कि आप स्त्रियों की तरह चैतन्य लहरी 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt किसी की झुठी प्रशंसा करना नहीं। चलने लगे या उन जैसी कमर बनाने लग। यह दूसरी मूर्खता है। मातृवत बनना, पितृवत नहीं। एक दूसरे के प्रति आचरण में आपके अन्दर वह करुणा तथा स्नेह होना चाहिए। अप बहुत से शब्द कह सकते हैं जैसे :- तो हैं?" आप सुख से निसन्दह यह शक्ति कभी-कभी सुधारती भी है और नाराज भी हाती है। जो लोग अपना व्यवहार नहीं सुधारते उन किसी को यदि पानी चाहिए तो तुरन्त दे दीजिए। बाजार से किसी के लिए उपहार ले आइए। पर सां को भी नाराज होना पड़ता है। वे चिल्लाती हैं, दांडित करती हैं और कभी-कभी विनाश भी करती हैं ये बात ठीक है पर ऐसा कभी कभी होता है सदा नहीं। अत: आपको समझना होगा कि धरा मां सम बनने के लिए आपको सहनशील होना होगा। हर चीज की धारक वे ही हैं। वे ही सभी कुछ लेती हैं, चैतन्य लहरियों को सोखती हैं। और पहली बार अब सभी सहजयोगियों के लिए आपमें प्रेम होना चाहिए। सोति हुए यदि किसी का कम्बल या सिरहाना हट गया हो तो उसे ठीक कर दीजिए। ऐसा करना मां का कार्य है। ठंड में यदि किसी के बटन खुले हैं तो उन्हें वंद कर दीजिए। साक्षात्कार के पश्चात् आप उन्हें वह लौटा सकते हैं जो आपने उनसे पाया है। आप पेड़ों को चैतन्य लहरियाँ दकर उन्हें सुन्दर हैं। बहुत से छोटे-छोटे कार्यों से स्त्रियाँ पुरुषों को प्रसन्न कर सकती हैं। बना सकते हैं। एक पुष्प को आप अधिक सुन्दर बना सकते अब धुरा मां से जो आपको प्राप्त हुआ है उसे आप दे सकते हैं, क्योंकि आपके अन्दर अन्दर पृथ्वी मां जागृत हो चुकी है। अत: उनसे प्राप्त सभी कुछ दूसरों का देकर आप वह सब लोटा दें। उदारता, हृदय की महानता, श्रेष्ठता, क्षमा, प्रेम, स्नेह एवं सहनशीलता। वच्चे की रक्षा के लिए मां स्वयं भूखी रह बच्चे के लिए उसमें इतना समर्पण है। यही झगडिए नहीं, अहं को वश में कीजिए। मैंने सदा कहा है कि अहं की समस्या के कारण हमारा संघटन समाप्त होता है और परमात्मा से हमारा संबंध ठीक प्रकार स्थापित नहीं हो पाता। जिस यंत्र के माध्यम से में बोल रही हैं वह यदि पांच हिस्सां में बंट जाए और पांचा हिस्स आपस में लड़ रहे हो इसके ऊर्जा सोत से जुड़ रहने पर भी आप इससे कारई कार्य सकती है। नहीं ले सकते। इसी प्रकार यदि अब भी आप लोग संघटित हैं तो आपको वह योग नहीं मिल सकता। कुछ सहजयोगी बहुत ऊंचे स्तर के होंगे। मैं जानती हैँ कि कुछ मध्यम दर्जे कंे होंगे, यह वास्तविक मां है। आजकल की माताओं की तरह नहीं जो न माताएं हैं न स्त्रियाँ। और आपके सामने ता एक आदर्शमृर्ति है अब आपको स्वयं में आप स्त्री हो या पुरुष विकसित करना है सहजयोगियों को स्नेह, प्रेम एवं करुणा की एक नई चेतना विकसित करनी है क्रो्ित होने और लोगों पर चिल्लाना व्यर्थ है। यदि आप पूर्णत्व के विकास में सहायक होना चाहते हैं तो नम्र बनने का प्रयत्न कोजिए। स्वयं पर क्रोधित होइए कि आप क्रोध करते हैं और दूसरों के प्रति कुछ बिल्कुल बकार होंगे तथा कुछ को बारह फंक दिया जाएगा। सभी प्रकार के सहजयागी होंगे। मैं जानती हूं। अपना स्तर आप स्वयं जांच सकते हैं। आप किस सीमा हैं। तक जा रहे हैं? यदि दूसरे सहजयोगियों, महत्वहीन चीजों के बारे में सांचने में आप अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ता आपका क्रूर असंघटन बढ़ जाएगा, आपकी एकाकारिता कम हो जाएगी और आप अधिक दूर हो जाएंगे क्योंकि सभी निर्णय आपके अहं द्वारा लिए गए हैं। उदाहरणार्थ :- मुझे ये पसन्द नहीं है मैं एसा नहीं करता, मैं एंसा नहीं देखता आदि आदि। सारी समस्याएं आक्रामकता के आधिक्य के कारण हैं। यह इतने भयंकर सीमा तक पहुंच गया है कि अब इसका पतन आवश्यक है। आपमें हर मनुष्य, हर सहजयोगी के लिए प्रेम का होना किसी प्रकार यदि आप अपने-अपने अहं को कार्य करते देख सके तो आप इससे छुटकारा पा सकते हैं और यही व्यक्ति को करना है, अहं से झगड़ना नहीं। आवश्यक है। करें साधकों से किस प्रकार व्यवहार :- मैं अहं से लड़ने को कभी नहीं कहती, अहं को समर्पित नम्र, भद्र, सुखद और मधुर होने की सोचें और उपाय खोज निकालें। कर दो। इस प्रकार आपका अहं जा सकता हैं। लोग यहाँ सहजयोग सांयकाल यह लिख देना कि "आज मैंने कितनी मधुर के लिए आते हैं पर उनकी प्राथमिकताएं कुछ अन्य ही होती बातें कही" एक बहुत अच्छा उपाय है। पर इसका अभिप्राय 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt हैं। फिर वे कहते हैं कि "मां हम सहजयोंग में अधिक उन्नत नहीं हो रहे हैं"। कार्य करना हागा। नम्रतापूर्वक इसे अपने में आत्मसात करें। अपने मस्तिष्क पर इसकी वर्षा होने दें। शाश्वत आनन्द को अपने अन्दर आने दे। जब आप निर्णय कर लेंगे कि सर्वप्रथम हमें सहजयोग करना है शेष सबकुछ बाद की बात है तभी वास्तव में आपके अन्दर सहजयोग स्थापित हो सकता है। स्वयं को तुच्छ व्यक्ति मत बनाइए। उच्च विचार रखिए क्योंकि अब आप सर्वोच्च से संबंधित हैं - विराट से संबंधित हैं। अपने महत्व को बदि आप समझेंगे तो आप इसे कार्यान्वित झुठे सन्तों का सम्मान मत कीजिए। उन्हें जूते लगाइए। प्रात:काल उठकर ध्यान कीजिए। यहाँ तो लोगों को प्रातः उठने में भी एतराज है कर सकेंगे। हम जानते हैं कि हमारे साथ कुछ गलत चीजें बटित हुई। ये हमारे अत्यधिक विचार अध्ययन और प्रभुत्व के कारण हुई। आपको बार-बार अपना तथा सहजयोग का मूल्यांकन करना चाहिए और समझना चाहिए कि अहं तथा प्रति-अहं आपकी गति को कम कर रहे हैं । पर इनसे आप छुटकारा पा सकते हैं। नि्लिप्त होकर स्वयं को देखिए और स्वयं से पूछिए "श्रीमान अब आप कैसे हैं"? ऐसा कहते ही आपका चित्त आपके बाहय अस्तित्व को देखने निकलेगा। जितना स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही अच्छा है। स्वयं का सामना कीजिए। परन्तु अहं मुख्य समस्या है। अपना अहं देखने का प्रयत्न कीजिए। किस प्रकार यह आपको भटका रहा है। आप स्वानन्द को खोज रहे हैं छुपा हुआ है और जिसे युगों से आप खोज रहे हैं। - आनन्द जो आपका अपना है जो आपसे धीरे-धौरे आप अपने चक्रों को देखने लगते हैं अपनी समस्याओं को देखने लगते हैं। पर हर व्यक्ति तुरन्त परिणाम अब इसी को मैंने आपके सम्मुख प्रकट करना है। चाहता है। अपने प्रति धैर्यवान बनिए। धेर्य से ही आप उस चीज को प्राप्त करेंगे जिसका वायदा बहुत पहले किया गया जो व्यक्ति आपको सर्वोच्च दे रहा है उससे बहस करने का क्या लाभ। यह तो शक्ति को व्यर्थ खोना है। दोष ढुंढने था। तथा महत्वहीन चीजों पर अपनी शक्ति बर्बाद मत कीजिए। हर समय अपने या दूसरे लोगों के दोष खोजना बुद्धिमत्ता नहीं। दोनों ही बातें अनुचित हैं। अपने विवेक में बढ़ना ही अच्छा है। यर अपने प्रति धैर्यवान बनना सीखिए। अपने पर न तो क्रोध कीजिए और न ही अपना अपमान कीजिए। यह अति साधारण बात है पर अपने जटिल विचारों तथा जीवन के कारण हम फंस गए हैं इसमें से निकलना भी सुगम है। अतः मेरा भाई, मेरी बहन, मेरा पिता आदि को भूल जाइए। ये सारों समस्याएं तुरन्त भस्म हो जाएंगी| सभी साथ बढ़िए क्योंकि सहजयोग सामूहिक है। कितनी मधुर बात है कि पूरे विश्व में आपके भाई बहन प्रेम करना होगा। यह केवल अपने सभी हैं। आपको उन सब से भय त्याग देने से ही संभव होगा। जानिए कि आप सन्त हैं। आप साक्षात्कारी लोग हैं। आप कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं। आपके अतिरिक्त कितने लोग जानते हैं कि लहरियों क्या है? क्या आप सबसे प्रेम करते हैं? जिस प्रकार मैं प्रेम करती हू उसी प्रकार आप भी कीजिए। प्रेम ही सुन्दर कमल के समान खिलेगा. अपनी पंखुड़ियों को खोलेगा तथा मधुर सुगन्ध महक सहजयोग से किस प्रकार आपके चक्र जागृत किए गए हैं। हा ऐसा हुआ। पर आप इसके लिए क्या कर रहे हैं? उठेगी। इसी प्रकार आपका हृदय खुलेगा तथा प्रेम की सुगन्ध पूरे विश्व में फैल जाएगी मैं आपके अन्दर प्रवेश करूंगी। मैं जानती हूँ कि ऐसा हो सकता है। यह महानतम घटना है जो किसी के साथ घटित हो सकती है। इसकी भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व ' अन्तिम निर्णय' के रूप में की गई थी। आइए ईसा के आने की तैयारी करें। स्वयं से भागकर नहीं, व्यर्थ की चीजों में फंसकर नहीं, सुन्दरता पूर्वक शुद्ध करके इसे कार्यान्वित करें। आत्मा को यदि शरीर-मन्दिर में स्थापित करना है तो शुद्धिकरण करना होगा । इसी प्रकार आपका निर्णय होगा। अत: आपको कठिन परिश्रम करना होगा। बिना किसी प्रयत्न के यह आपको दिया गया है। पर इसे बनाए रखने तथा ऊंचा ले जाने के लिए हमें नेक-नीयति से परमात्मा आप पर कृपा करें। चैतन्य लहरी 7. 1992_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt पीलिया/हैपाटाइटिस और अत्यधिक गर्म जिगर के लिए श्री माताजी द्वारा बताया गया भोजन और 1. प्रतिदिन प्रातः और सांय एक गिलास मूली के पत्तों का गन्न का रस अच्छा है। 10), गन्ना रस पियें। ।1. मक्खन बिल्कुल नहीं। 2. प्रातः एक गिलास कोकम शर्बत पियें। |2. उड़द और अरहर की दाल न लं। 3 बर्फ की थैली बायें हाथ से पकड़कर अपने जिगर पर रखें 13. उबले चावल, सभी सब्जियाँ और मूंग की दाल ठीक हैं। और अपना दायाँ हाथ श्री माताजी के फोटो की ओर करें। श्री माताजी 14. खाने में इडली न लें। के फोटो के सामने बिना दीपक या मोमबत्ती 15. अदरक, आलू, प्याज और खीरा ठीक हैं। जलाए ध्यान करें। 16. नियमित रूप से निम्बु-पानी, चैतन्यित पानी के साथ लेना 4. बंगाली मिठाइयाँ खा सकते हैं। अच्छा है। 5. किसी भी स्थिति में तला हुआ भोजन, लाल मांस या चिकनाई न लें। 17, आइस-क्रीम बिल्कुल नहीं। 18. आवंले का मुरब्बा ठीक है। यह दोनों समय के भोजन के मछली या दूध से बने पदार्थ न लें। केवल मक्खन निकली 6 हुई छाछ ले सकते हैं। साथ लिया जा सकता है। 19. खाने पर चांदी के वर्क लगाकर लेना अच्छा है। 7. पनीर बिल्कुल न लें। 20. पृथ्वी के नीचे उगे फल-सब्जियाँ ठीक हैं। 8. दो माह के लिए लिवर-52 की गोलियाँ दिन में 3-4 बार 21. मूंगफली और मूंगफली का तेल न लें। मूंगफली का तेल जिगर के लिए वहुत हानिकारक है। थोड़ी मात्रा में ठीक है। लें। सूरजमुखी का तेल ७. सभी रसीले फल ठीक हैं (आम, सेब, केला, चीकू और पपीता न लें) च न बे चैतन्य लहरी