चैतन्य लहरी खण्ड V, अंक 1 व 2 शु सहज योग में विवाह विवाह का लक्ष्य आनन्द प्रदान करना है प. पू. श्री माताजी निर्मला देवी चैतन्य लहरी खण्ड V, अंक 1 व 2 विषय सूची पृष्ठ (1) विवाह का महत्व 3 (2) शोभनीय स्थिति की तैयारी (3) भावी वधुओं को शिक्षा 9. (4) हृदय से सहस्रार तक 11 (5) समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका 12 (6) विवाह की कसमें 14 (7) प्रस्थान वार्ता 15 चैतन्य लहरी विवाह का महत्व डोलिस हिल, लन्दन, 85.1980 न होकर एक साधारण विवाह है जिसमें विशेष कुछ भी नहीं। सहज-विवाह द्वारा महान आत्माओं को पृथ्वी पर अवतरित होने का अवसर मिलना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब आप अपना प्रेम पूर सहज-समाज में बांट रहे ही अतः सहज विवाह की पहली परीक्षा यह है कि आप अन्य सहज-योगियों में कितना आनन्द बांट रहे हैं। उदाहरणतया एक सामान्य विवाह में पुरुष को परिवार का शीर्ष (मुखिया) बनना होता है। पर शीर्ष के साथ-साथ आप हृदय भी बनिए। हृदय तो सिर से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क रुक जाने पर भी हृदय कार्य करती रहता है। पर हृदय के रुकते ही मस्तिष्क भी रुक जाता है। अतः स्त्री हृदय है तथा पुरुष मस्तिष्क पुरुष में यह धारणा बनी रहने दो कि वह मुखिया है (सिर है), यह केंवल धारणा ही तो है। मस्तिष्क को जैसा अच्छा लगता है वह निर्णय लेता है, पर मस्तिष्क यह भी जानता है कि उसे हृदय के लिए कार्य करना है। हृदय ही सर्वव्यापी है तथा हर चोज का सोत है। अतः स्त्री को यदि यह ज्ञान है कि वह हृदय की स्थिति में है तो यह स्वयंको न तो अपमानित मानेगी और न दबी हुई। मेरे विचार में स्त्रियां इस सत्य को बैठी है। इस सत्य को यदि उन्होंने पहचाना होता तो समस्याएं बहुत कम होती। अतः लोगों का यह साचना गलत है कि वह मस्तिष्क सेदुसरों पर शासन करते हैं या उन्हें दवाते हैं। बात ऐसी नहीं है। वास्तव में हृदय ही शासक है। हृदय मस्तिष्क को आवृत कर सकता है, इसे शांत कर सकता है। मस्तिष्क तो पागलो की तरह चलता ही रहता है। पर हृदय अपने प्रेम से शांत कर के इसे आनन्द तथा प्रसन्नता प्रदान कर सकता है। हृदय में ही आत्मा का निवास है। अतः हृदय ही शरीर की शक्ति है क्योंकि आपका लक्ष्य आत्मा बनना है और आत्मा का निवास हदय में है। यदि मस्तिष्क हर समय हृदय पर प्रभुत्व जमाना शुरु कर दे तो क्या होगा? सभी कुछ नीरस हो जाएगा जैसे अत्यधिक सतर्क और सावध्यन पुरुष अपने तथा टूसरों के लिए सिरदर्द बने जाते हैं। इस प्रकार के लोग अन्यन्त नीरस हो जाते हैं और अवांछित सतर्कता के कारण अपने बच्चों तक का भी आनन्द नहीं ले पाते। पत्नो यटि जरा देर से आ जाए तो चिल्लान लगत हैं। पत्नी के आने का, उससे मिलन का आनन्द, अपने हृदय से सहज योग सर्वप्रथम आपका अंकुरण करता है और फिर विकसित होता है। इस विकास अवस्था में आपको एक विशाल व्यक्तित्व बनना होता है। विवाह करके आप पहले से अच्छेव्यक्ति बन जाते हैं आपका व्यक्तित्व पहले से अच्छा हो जाता है। सहजयोगियों के लिए विवाह आवश्यक क्यों हैं? क्योंकि विवाह एक सहज बात है। परमात्मा ने आपको विवाह की इच्छा किसी उद्देश्य से दी है। पर इस उद्देश्य के लिए उपयोग न होने पर यह इच्छा विकृति तथा घिनौनापन बन सकती है। आपके विकास में यह बाधक हो सकती है। अतः अपने अन्तःस्थित इस इच्छा को हमें समझना चाहिए। विवाह अर्थात एक पत्नी जो आपके अस्तित्व का अंग प्रत्यंग हो, जिस पर आप निर्भर कर सकें, जो आपकी मां, बहन, बालक तथा सभी कुछ है। आप अपनी सारी भावनाएं अपनी पत्नी से बांटते हैं अतः पत्नी को विवाह के महत्व का ज्ञान होना आवश्यक है। आपने देखा होगा कि सहजयोग में सभी को दायें या बायें की समस्या होती है। सहज विवाह में आयको जो साथी मिलेगी वह स्वतः ही आपके व्यक्तित्व का सम्पूरक होगा। मान लीजिए आपको बाई ओर कमजोर है तो आपके साथी की बाई ओर इतनी शक्तिशाली होगी की आपकी कमी को पूरा कर देगी और (विशेषकर पश्चिमी) मूल इस प्रकार आपका विवाह सफल विवाह बन जाएगा। पर इसके लिए आवश्यक है कि आप जीवन के हर क्षण को बाटें। यदि आप जीवन बांटना नहीं जानते तो कठिनाई होगी। जब प्रेम की बात आती है तो हम किस प्रकार अपने अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं? अपने आनन्द, कष्ट तथा समस्याओं को बांट कर। किन्तु सहज योग में यह अभिव्यक्ति इससे कहीं अधिक है। यहां आपको सामूहिकता में बांटना होता है। सहजयोग में विवाह केवल दो व्यक्तियों के लिए नहीं होता। इस प्रकार की धारणा गलत है। सहज-विवाह दो समुदायों दो राष्ट्रों या दो ब्रहामंडो के मध्य होता है। इसके आनन्द को केवल अपने तक ही सीमित नहीं करना। सहजयोग में परस्पर अच्छे पति-पत्नी होना मात्र ही काफी नहीं है। उस प्रेम का आनन्द पूरे समाज को भी मिलना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपका विवाह सहज विवाह विवाह का महत्व अपने कार्यों में दक्ष होना चाहिए। परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना दूर होते ही सहजयोग अधिक अच्छा कार्य करने लगेगा । प्रेम मिलन के आनन्द का सौभाग्य भी वे खो देते हैं। मस्तिष्क सारे नियमों को ताक पर रख कर भयंकर समस्याएं खड़ी कर सकता है। अतः हृदय का सम्मान तथा इसकी आज्ञा के अभाव में ही किसी का रोब अखरता है। प्रेम में यदि किसी का पालन होना ही चाहिए। पर इसका अर्थ यह भी नहीं कि स्त्रियां को रोब पूवर्क खाना खाने को कहें तो अच्छा लगेगा। क्योंकि पुरुषों पर प्रभुत्व जमाएं। आज्ञा पालन का अर्थ है प्रेम के अर्थ को समझना और प्रेम से कार्य करना। प्रेम में कार्य करना अच्छा है। उदाहरणार्थ में आपको सुबह से शाम तक भाषण देती हूं पर के बारे में समझते ही आप भी उसकी भावनाओं का सम्मान करने आप तंग नहीं होते। सामान्यतः लोगों को मेरे भाषण से तंग आ लगते हैं। दोष भावना से भी आपको ग्रस्त नहीं होना। आपको जाना चाहिए। पर आप तंग नहीं होते क्योंकि आप जानते हैं सदा अति हल्के मूड में रहना है। कि मैं आपको बहुत प्रेम करती हूं। इसी प्रकार स्त्री को भी अपनी भूमिका के विषय में आश्वस्त होना होगा कि वह प्रेम करती के समय में। राधा शक्ति थी तथा कृष्ण उसके अभिव्यक्ति कर्ता। है। पुरुष थोड़ा सा टेढ़ा हो सकता है, थोड़ा भटक भी सकता इसे आप ऊर्जा और गतिज्य (काईनेटिक) कहते हैं। लोग केवल है पर वह ठीक हो जाएगा। बाहरी रोब को देखकर उसका मूल्यांकन मत कीजिए। वह अपनी भूल को स्वीकार कर लेगा । के लिए कृष्ण को राधा से कहना पड़ा। राधा ने ही सभी कुछ अंतः एक दम उसकी बात का विरोध मत कीजिए। मैने अपने किया। राधा ने नृत्य किया और कृष्ण ने उसके थके हुए पैर जीवन में यह अनुभव किया है। पति को अपना पिछलग्यू बनाने में कौन सी महानता है। ऐसा करना गलत है। "आप इधर चलिए" यह कहने की क्या जितना प्रकाश के लिए दीपक और बाती एक दूसरे पर। इतनी आवश्यकता है। हम एक ही मार्ग पर चल रहे हैं । बस उतना समझना है कि कोई बांई तरफ है और कोई दाई ओर। बाई ओर है। यह संतुलन परमात्मा तथा उसकी शक्ति के मध्य होता है। वाले को बाई ओर रहना है तथा दायीं ओर वाले को दाई ओर। आपइसकी कल्पना नहीं कर सकते कि यह किस प्रकार केवल मान लिजिए बायां पहिया दाई ओर को आने लगे तो केवल एक एक है। उसकी शक्ति, उसकी इच्छा ऐसे ही हैं जैसे परमात्मा। ही पहिया बाकी रह जाएगा। तब हम क्या करेंगे? हम सभी बिल्कुल कोई अन्तर नहीं। एक ही मार्ग पर चल रहे हैं। इसके बारे कोई दो मार्ग नहीं है। रथ को संतुलन में रखने के विचार भिन्न हैं हर चीज़ असंघटित (डिसइन्टैग्रेटिड) है। यही लिए दो पहिए आवश्यक हैं। पर हम एक ही मार्ग पर चलं कारण है कि विवाह भी असंघटित हैं। परस्पर मिश्रण ही पूर्ण रहे हैं। वे सोचते हैं कि एक पहिए को दाएं जाना है तथा दूसरे एकीकरण (संघटन) है। जब तक आप में संतुलन एवं को बाएं। इस प्रकार के परिवार की अवस्था की कल्पना एकीकरण की पूर्ण समझ है तो चाहे पुरुष को कार्य करना हो कौजिए। हम एक ही मार्ग पर चल रहे हैं। केवल समझना आवश्यक है कि एक को हृदय की शक्ति से जीवित रहना है जिम्मेदार हैं, वे परिवार की शोभा हैं। स्त्री को दयामय होना तथा दूसरे को तर्क एवं सूझबूझ की शक्ति से। पर तर्क को एक चाहिए। पुरुषों की तरह आचरण करना स्त्री के लिए अशोभनीय बिंदु पर आकर हृदय की ओर झुकाना पड़ता है। आपको अपने है। पुरुष को स्त्री जितना दयामय होना आवश्यक नहीं पर उसे हृदय की शक्ति का पोषण करना होगा। पर आप लोग हर कार्य क्रूर भी नहीं होना। पुरुषों को अन्य स्त्रियों में दिलचस्पी नहीं में पुरुषों का मुकाबला करती हैं। मैं ऐसा नहीं करती। जो भी लेनी चाहिए। ऐसा करना अनुचित है। पुरुषों का चूहों की तरह कार्य मैं स्वयं नहीं करती वे संभी लोग मेरे लिए करते हैं । मैं ऐसे कार्य करती हूं जो दूसरे लोग इतना अच्छी तरह नहीं के आचरण का अर्थ है कि वे स्त्रियों के दास हैं। वे केंचुओं कर सकते जितना मैं। जैसे मैं खाना अच्छा बनाती हूं अतः इसके से भी बदतर हैं। लिए उन्हें मेरे पास आना पड़ता है। पर पुरुषों को स्त्रियों के तथा स्त्रियों को पुरुषों के कार्य नहीं करने चाहिए। दोनों को अपने जीवन के विषय में जानते हैं। उन्होंने किस प्रकार अपनी पत्नी आप जानते हैं कि किसी को आपकी चिंता है, कोई आपको प्रेम करता है। ऐसा व्यक्ति आपको अच्छा लगता है आप ये नहीं चाहते कि किसी को आपकी चिंता न हो। किसी व्यक्ति के प्रेम बहुत समय पूर्व इस संतुलन की रचना की गई। राधा-कृष्ण कृष्ण के विषय में ही जानते हैं परन्तु राधा हो शक्ति थीं। कंसवध दबाए। राधा क्यों नाची है ? क्योंकि उसके नाचे बिना कार्य न हो पाता। अतः यह एक दूसरे पर निर्भर हैं। उतना ही निर्भर है बात समझ जाने पर यह संतुलन पूर्णतया सुव्यवस्थित हो जाता पर आप मानव असं घटित हैं- आपकी इच्छा भिन्न है, या स्त्री को- कोई भी चिंता की बात नहीं। निः सन्देह स्त्रियां ःर आचरण करना भयानक है और पौरुष -विहीन। इस प्रकार अतः पुरुष को पुरुष होना है राम की तरह। आप उसके चैतन्य लहरी से प्रेम किया और अपने ब्रह्मचर्य का सम्मान किया । जिस पुरुष कि ऐसा प्रेम में किया है या नहीं। मान लो पति अपने मित्रों का को अपने ब्रह्मचर्य का सम्मान नहीं वह पुरुष ही नहीं, वह तो लेकर आ जाता है और पत्नी खर्च के कारण उनका आना पसन्द केचुंआ है। अतः पुरुष में चरित्र होना चाहिए, उसमें साहस, शौर्य नहीं करती। ऐसा करना गलत है। आपको अपने प्रेम की वर्षा तथा रक्षा-भाव होना चाहिए। घर में यदि चोर आ जाए और दूसरे लोगों पर करनी चाहिए। आवश्यक नहीं आप बहुत पैसा पुरुष स्त्री से कहे कि " तुम दरवाजा खोल दो और मैं छुप रहां खर्चे। आप उनसे करुणामय व्यवहार करें। उन पर थोड़ा सा पैसा हं " और चोरों के चले जाने पर रौब दिखाए तो यह तो अनुचित है। पुरुष को रक्षा करनी चाहिए देखभाल करनी चाहिए। अतः प्रेम खर्चने के मामले में बहुत सतर्क हैं। हममें इतना भय है। कभी-कभी यदि पुरुष थोड़ा सा अशिष्ट भी हो जाए तो कोई बात नहीं क्योंकि उसे ही स्थिति का सामना करना है। आप कह चाहिए। उदाहरणार्थ जब में आपको कुछ बता रही हूं तो बाहर सहते हैं कि कांटे सम है तथा स्त्री फूल सम। अब कांटे और फूल में से आप फूल बनना चाहेंगे। परन्तु क्योंकि मैं आपकी कमियों के बारे में बता रही हूं। उसके पीछे पति-पत्नी के मध्य आप काटी बनना पसंद करंगे। यह गलत है। पुरुष को रक्षा करनी है तथा पारिवारिक जीवन पर होने कि कोई व्यक्ति आप पर प्रभुत्व जमाता है। वाले आक्रमणों को देखभाल करनी है। पर लोग परिवार में गलत लोगों की आने की आज्ञा दे देते हैं। रोब से गलत स्त्रियों को हैं। आपके अहं को चोट पहुंच सकती है पर आप तो आत्मा परिवार में ले आते हैं। इस प्रकार की गतिविधियों का विरोध हैं| आत्मा पर प्रभुत्व नहीं जमाया जा सकता। आप आत्मा हैं। होना चाहिए। अतः आप स्पष्ट देखते हैं कि हर चीज के दो पहलू है, यदि कर रहे हैं तो कोई आप पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता। परन्तु प्रेम में कार्य किया गया है तो यह पूर्णोचित है, पर यदि यह रोब यदि आप सदा यही सोचते हैं कि आप पर रोब जमाया जा रहा जमाने के लिए किया गया है तो यह मूर्खता- पूर्ण है। रोब क्यों है तो आपकी दुर्दशा हो जाएगी। अतः अभी से आप महसूस करें खर्चने में भी कोई हानि नहीं। सहज में आकर भी हम धन तथा सहजयोग में दूसरों पर रोब बिल्कुल नहीं जमाया जाना का व्यक्ति सोच सकताहै कि मैं आप पर प्रभुत्व जमा रही हूं पुरुष छिपे प्रेम तथा करुणा को वह नहीं देखता। अतः कभी मत सोचिए आप पर कैसे प्रभुत्व जमाया जा सकता है? आप तो आत्मा क्या आप अपनी अत्मा को अनुभव कर रहे हैं? यदि आप एसा कि आप आत्मा हैं तथा आपका पति या पत्नी भी आत्मा है। आप दोनों में परस्पर सम्मान भावना उदय होनी चाहिए क्योंकि आप दोनों ही सन्त हैं, सहजयोगी हैं। आप एक दूसरे का सम्मान करें क्योंकि आप सहजयोगी हैं. साक्षात्कारी होने के कारण लोग आपका सम्मान करते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति से पूर्व आप साक्षात्कारी लोगों के विषय में क्या सोचते थे? शायद आपको याद नहीं? बिना अहंग्रस्त हुए आपको सभी आत्म साक्षात्कारी लोगों का सम्मान करना चाहिए. क्योंकि वे आपकी मां के बच्चे हैं। परस्पर बातचीत करते हुए आपको यह बात याद रखनी है । पति -पत्नी के विषय में अपने पुराने विचार आपको त्याग देने हैं। सह ज से पूर्व के विवाह सम्बन्धों में तो आप बिना परस्पर विश्वास के एक दूसरे के अधिकारों के बारे ही सोचते थे । अब अधिकाधिक विश्वास कीजिए। प्रेम, तथा विश्वास करने में, ईमानदार, करुणामय होने में तथा सेवा भाव में परस्पर मुकावला होना चाहिए। एक दूसरे पर प्रभुत्व जमाने, परस्परभय तथा व्यर्थ की बातों के स्थान पर अच्छो बातों में मुकाबला कीजिए तो आपको अच्छा फल मिलेगा। एक और बात जो मैं करना चाहती हूं वह यह है कि विवाह है: जमराना है? रोब शब्द मुझे समझ ही नहीं आता। क्या गाड़ी के दो पहिए एक दूसरे पर रोब जमाते हैं ? क्या वे ऐसा कर सकते हैं ? यदि एक प्रभुत्व जमाता है या कहिए कि एक पहिए का आकार बड़ा हो जाता है तो यह गोलाई में ही घूमता रहेगा। इसमें जमाने का तो प्रश्न ही नहीं है। प्रश्न तो परस्पर प्रभुत्व एकाकारिता, सूझ-बूझ और पूर्ण सहयोग का है। यह गुण समाज तथा परिवार में फैल जाना चाहिए। वे विवाह जो समाज के लिए लाभप्रद नहीं वे व्यर्थ है। हमारे यहां भी इस प्रकार के बहुत से विवाह होते हैं, विवाह करवा कर लोग परस्पर प्रसन्नता पूर्वक रहते हैं। बस समाप्त। सहज-विवाह पूरे समाज को परिवर्तित कर देंगे, अपने आनन्द तथा प्रसन्नता से ऐसा घर बनाएंगे जहां हर सहजयोगी आ सकेगा और उसकी देखभाल होगी। कुछ लोग कहते हैं कि किसी ने मेरे लिए कुछ नहीं किया। आपने किसी के लिए क्या किया ? इस बात को जब आप समझने लगेंगे तो अच्छा होगा। सामान्यतः यदि किसी स्त्री की परवरिश ठीक प्रकार नहीं हुई होगी तो वह अतिमिथ्याभिमानी, स्वार्थी तथा आत्मकेन्द्रित होगी। पुरुष भी ऐसा हो सकता है। पर ऐसी स्त्री अपना धन किसी और पर नहीं खर्चना चाहेगी। वह नहीं चाहेगी कि कोई उसके घर पर आए और उसको साथ हिस्सा बांटे। पर हमें देखना ा के बाद आप स्वयं को दुखी न बनाएं और न ही निराशावादी विवाह का महत्व चैतन्य लहरियों का ज्ञान है। आप यह क्यों कहते हैं कि मैं नहीं जानता? आत्मा को पहचानने से ही आप रह सकते हैं तथा कवियों की कविताएं पढ़े। सहजयोगी होने के नाते आपने एक दूसरे के बीते दुखों का आनन्द नहीों लेना। अब आपको कोई नहीं है। सभी दुखः समाप्त हो गए हैं । नई चेतना सम्पन्न आप अब नए लोग हैं। अत: पुरानी बातों को भूलकर एक दूसरे के साथ का आनन्द लें। सहज योगियों को लोड्ड बायरन या शैली नहीं बनना। अत: याद रखिए कि बैठकर अपने दुखों की बात मत कोजिए, आपको किसी प्रकार का कोई दुख नहीं। आप आत्मा हैं, आप अपने तंथा दूसरे लोगों के लिए आनन्द का साधन हैं। अतः बैठकर रोइए धोइये मत। मै नहीं समझ पाती कि आप अपनी आत्मा को क्यों नहीं जानते। क्या आप अपनो आत्मा को नहीं पहचानते ? अब तो आप जानते हैं। आपके पास दुख दूसरों को भी आनन्द प्रदान कर सकते हैं। आपमें यह गुण होना चाहिए नहीं तो सभी कुछ बनाने का प्रयत्न करती हूं, पर अन्त में एक उत्साह विहोन जोड़े को बैठकर चिड़चिड़ाते हुए पाती हूं। तब उनसे उत्पन्न होने वाले बच्चों की भी कल्पना कीजिए। वे भी सोचेंगे कि कैसे चिड़चिड़े माता पिता हैं। हे परमात्मा हमें इन बिलखते हुए बच्चों से बचाओ। अतः इस प्रकार के दृष्टिकोण से मरी आशाओं पर पानी मत फेरिए। व्यर्थ है। हर विवाह को मैं अति सुन्दर चैतन्य लहरी शोभनीय स्थिति की तैयारी विन्चैस्टर - 17.5.1980 आपका दृष्टिकोण परस्पर मेल-मिलाप तथा प्रेम को बढ़ाने पूर्वक परवरिश कीजिए, उन्हें बिगाड़िए नहीं, सहजयोग के प्रेम वाला होना चाहिए, रुमानी भावनाओं को प्रोत्साहित करने वाला में उन्हें विकसित कीजिए। नहीं। और उससे भी बुरा है दायीं ओर को झुककर नीरस (शुष्क) हो जाना। शुष्क गले से आप बोल तक नहीं सकते। दायें और बायें दोनों ओर हैं। बायां स्त्री तथा दायां पुरुष हैं । कुछ लोग अपने पति/पत्नी से मनोवैज्ञानिक चाल चलते हैं और ये हंसा चक्र पर मिलते हैं। इनमें असंतुलन होने पर समस्या होती उससे बातचीत करना बंद कर देते हैं। मैं आपको बताती हूं कि है। उन्हें समान होना होगा। परन्तु वे एक से नहीं है। बायां--बायां यह जीवन का भावनात्मक पक्ष है।" मैं उससे बात नहीं करुंगा, है और दायां-दायां। अतः दायें को दायीं ओर तथा बायें को उससे बोलूंगा नहीं"। वे इस प्रकार नौरस आचरण करेंगे। इससे बायीं ओर होना चाहिए। हंसा पर आकर वे विवाहित होते हैं भी आनन्द का वधहोता है। व्यक्ति या तो कोई कार्य बहुत अधिक करता है या बिल्कुल नहीं करता। या तो आप बहुत अधिक चीनी पहले अपने। तब जोवन के गौण कार्य सूझ-बूझ से मिल कर खाते हैं या बिल्कुल नहीं खाते। जिस प्रकार चाय का पूरा मजा करने चाहिए। यह नहीं हो सकता कि पत्नी काम पर जाए और लने के लिए एक विशेष मात्रा मं चीनी आवश्यक है उसी प्रकार पति बच्चे उत्पन्न करे। वह एसा नहीं कर सकता। अतः दोनों का जीवन में भी न तो बाहुल्य होना चाहिए और न ही अभाव। नव-विवाहिता स्त्रियों (भारतीय) के लिए पति ही सभी कुछ हो जाता है। बाकी सभी कुछ शून्य हो जाता है। ऐसी स्त्रियां मां न होतो तो कौन से पिता ने यह (आत्म साक्षात्कार का) कार्य निरर्थक हैं। पत्नियों के पीछे दोवाने पतियों का जीवन भी व्यर्थ किया होता? कौन से पिता ने ? क्या आप किसी के बारे में सोच है। अतः हर चीज का एक संतुलित दृष्टिकोण लोजिए। आपकी सकते हैं ? हो सकता है स्वर्ग में बैठे परमात्मा ने किया होता। पत्नी को प्रेम करने वाला व्यक्ति आप ही में है। आपकी पत्नी परन्तु पृथ्वी पर अवतरित किसी पिता का सहजयोगियों पर भी आप ही में है। आप ही अपनी पत्नी है और आपही अपने कार्य करना? ऐसा कोई पिता मुझे दिखाइये। ऐसे किसी भी पिता पति। अतः यदि आपकी सांसारिक पत्नी आपकी मानसिक पत्नी के शांति पूर्वक बैठकर सारा तमाशा देखने को तो आप कह इसका आरंभ हमने हंसा चक्र से किया। हंसा चक्र आपके अतः पत्नी को पहले अपने कर्तव्य करने चाहिएं और पति को है ी अपना-अपना कार्य महत्वपूर्ण है। मेरे विचार में मां बनना अति महत्वपूर्ण हैं। आज यदि आपकी सकते हैं परन्तु कार्य कौन करेगा? मां ही गंदे कपड़े तथा रुमाल स्तर की नहीं है तो आपको परेशान होने की आवश्यकता के नहीं क्योंकि आपके अन्दर की पत्नी तो सदा आपके साथ है। घो सकती है। वह इस कार्य को प्रेम तथा ध्यान से करती है। मां एक बार यह समझ विकसित होने पर पति-पत्नी सम्बन्ध ही जानती है कि किस प्रकार बच्चों को पालना है, यह मां का आदर्श हो सकते हैं। जबन तक आप अपने आदर्शों को अपनी पत्नी पर नहीं आराम से स्वर्ग में बैठ सकते हैं। सारा श्रेय परमात्मा को जाता थॉपते, या पत्नी इन्हें अपने पति पर नहीं थॉपती तब तक विवाह है जबकि मां बिना किसी श्रेय के सारा कार्य कर रहो हैं। कोई कोई गंभीर समस्या नहीं बनता। पत्नी-पत्नी तथा पति-पति बने बात नहीं। जैसा भी है सब स्वीकार किया जाना चाहिए। रहें। पत्नी पति न बने और पति पत्नी न बने। ऐसा यदि हो जाए तो इसे सुधारना कठिन है। अब मुख्य बात यह है कि आपका विवाह बच्चे उत्पन्न करने के लिए हुआ है। अब आपको रोमियाँ-जूलिएट बन कर नहीं पुरुष पर स्वामित्व-जताने लगे तो संतुलन बिगड़ जाता है। स्त्री रहना। आपको बच्चे होने चाहिए। सहजयोगियों के यहां जन्मे अतिमहत्वपूर्ण है। स्त्री के बिना आप उत्पन्न ही न हो पाते। ठीक बच्चे जन्म-जात आत्मसाक्षात्कारी आत्मारं होंगी। महान आत्माएं या शक्ति। इसी कारण आपका विवाह हुआ है और अति महत्वपूर्ण है। पुरुष के बिना स्त्री का कोई अर्थ नहीं। इसी कारण आपने बच्चे उत्पन्न करने हैं। अपने बच्चे को सम्मान परमात्मा के बिना शक्ति अर्थ विहीन है। शक्ति किसके लिए ही कार्य है। यह मां का कार्य है, मां ही इसे कर सकती है। पिता हसा चक्र पर यह विवेक आना आवश्यक है कि हम दायों तथा बांयी दोनों नाड़ियों को संतुलन में लाएं। पुरुष - पुरुष तथा स्त्री-स्त्री। जब पुरुष स्त्री पर या स्त्री ताि है बात है। स्त्री के बिना आप साक्षात्कार न पा सकते। पुरुष भी शोभनौय स्थिति की तैयारी जैसा कि मैने कहा, पहले पिता, फिर पुत्र और अब मी। स्वर्ग कार्य-रत है ? किसके लिए यह सभी कुछ कर रही है? परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए। अपने अन्दर निहित दोनों अस्तित्वों (स्त्री एवं पुरुष) के संतुलन, सूझबूझ, परस्पर सम्मान तथा सहयोग से आपका हंसा चक्र ठीक हो जाएगा। आपको अधिक अच्छा लगेगा। में में कोई नारी-आदोलन नहीं है। हर व्यक्ति पूर्ण सामान्जस्य है। फिर एसन की पुस्तक (अध्याय) में कहा गया है कि होली घोस्ट (चैतन्य लहरी) मां थी। कुण्डलिनी आपके अन्दर मातृ-तत्व है, होली घोस्ट है। अत्यधिक भावनात्मक बात होने के कारण आपको विवाह, नए धार्मिक विचारों का विकास शुरु करते हुए हमने पिता' स्त्रियों पुरुषों तथा अपने बारे अपने विचारों को सुधारना होगा। की बात की फिर पुत्र की । और होली घोस्ट अचेतन बना रहा। जिनके वाम पक्ष कमजोर हैं उन लोगों को जुकाम तथा पित्त आज की स्थिति में, आप देखते हैं, कि एक नारी वादी चेतना संबंधी समस्याएं रहती हैं। भावनात्मक पक्ष की उचित रुप से : आ रही है। परन्तु इसे अति गलत रास्ते पर ले जाया जा रहा देखभाल तथा पोषण होना चाहिए। व्यक्ति को याद रखना है कि है। उसका सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है। सम्मान-विहीन कोई भी स्त्री या मातृ-तत्व गर्भ तत्व है। धरा मां का तत्व है जो हमारा चीज प्रेम नहीं हो सकती। प्रेम गरिमामय है और यदि आप गरिमा पोषण करता हैं, विकास करता है तथा अपनी चुम्बकीय शक्ति में रहते हैं, तो आप हैरान होंगे, कि, आप बहुत सी समस्याओं सेहमारा मार्ग-दर्शन करता है। परन्तु यदि चेतना को दायीं ओर को होना है या पुरुषत्व-पूर्ण होना है तो पहले भी बहुत से पुरुष हो चुके हैं। यदि स्त्रियां पुरुष बनने का प्रयत्न कर रही हैं तो यह पैंडुलम (लोलक) का एक छोर से दूसरे छोर तक आना है। परन्तु चेतना तो मां की है जिसकी अभिव्यक्ति उसे का समाधान कर लेंगे। प्रश्न-- आप स्त्रियों का क्या भविष्य देखती हैं? श्री माता जी: महान। स्त्रियों को पुरुष बनने का प्रयत्न बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करना भयानक है। अपनी गरिमा में स्त्री तो स्त्री है। वह पृथ्वी मां की तरह है। अपनी शक्यों को वह नहीं जानती, यही समस्या है। पुरुषों से झगड़ने वाली कोई बात नहीं। स्त्री-पुरुष एक हो रथ के दो पहियों सम हैं। दोनों समान हैं पर एक से नहीं है। स्त्री को यदि अपनी मातृत्व की शक्ति का ज्ञान हो तो वह पुरुष से कहीं अधिक गतिशील है। असुरक्षा की भावना के कारण भी स्त्री तथा पुरुष अंति अशोभनीय ढंग से एक दूसरे के प्रति आकर्षित रहते हैं आपको अपनी अबोधिता तथा गरिमा में उठना है। इस प्रकार का घटिया प्रदर्शन आपने नहीं करना। आप जानते हैं कि इस प्रकार का जीवन अतिभयानक होता है। अब करनी है। वह चेतना व्यक्ति को करुणामय, स्नेहमय, पोषक तथा सुखदायी बनाती है। पर हम इस साधारण सी बात को नहीं समझते किं जब तक यह कार्य पूर्ण नहीं हो जाता अपनी चेतना में अभी हम पूर्ण नहीं हुए। पचास वर्ष पूर्व तक आक्रमण कारी को अभिनेता समझा जाता था पर आज यह सम्मान करुणामय तथा स्नेहमय व्यक्ति को प्रात है। इन दोनों तत्वों के कार्यान्वित होने पर ही कुण्डलिनी जागृत होती है। चैतन्य लहरी भावी वधुओं को शिक्षा अभी तक आप कुमारी थो। अब आप एक भिन्न प्रकार के तथा समर्पित व्यक्तित्व की बनना है। जोवन, विवाहित जीवन में प्रवेश कर रही हैं। विवाह को सफल बनाने का महान उत्तरदायित्व आप पर है। आपका आचरण में स्त्रियों की शक्तियों का वर्णन है। स्त्री को शक्ति का अवतरण ऐसा होना चाहिए जिससे कि आप में मातृत्व को रचना हो तथा जो आपके पति तथा बच्चों को अनुशासित कर सके। आपने अपनी मां को तो देखा है, आपकी मां कभी कभी एक ही स्थान पर नौ-दस घंटे लगातार बैठी रहती है। इस स्थान से होना है। चालाक नहीं। बाहर तक नहीं निकलती। पर मैने देखा है कि ध्यान करते हुए भी लोग एक स्थान पर दो घण्टे भी नहीं बैठ सकते।वे खड़े होकर अनावृत हो जाएंगे और मैं कठिनाई में फंस जाऊंगी। अत: अपने अन्य सब लोगों को परेशान करते हुए बाहर आ जाते हैं। यह चक्रों को सुरक्षित रखने के लिए मुझे पर्याप्त जल तथा चर्बी दर्शाता है कि हममें अनुशासन की कमी है, तथा यह कि न की आवश्यकता है। यह कार्य पर निर्भर है। मां के लिए मांसल तो हमारे माता पिता ने हमें अनुशासन सिखाया और न हमने होना आवश्यक है। मां यदि मांसल न हो तो बच्चे भी हड्डियां स्वयं को अनुशासित किया। सर्वप्रथम आपको अपने स्वभाव को पूर्णतः अनुशासित करना है। अनुशासित स्वभाव ही इस बात का प्रतीक है कि आप हुई एक अंग्रेजी कविता पढ़ी थी, "मेरी मां एशिया सम विशाल"। लोग ही पृथ्वी मां के प्रतिनिधि हैं जिसमें अपने विवेक को मां के विषय में एक सुन्दर कविता। अतः मां का अभिनेत्री सम अभिव्यक्त करने की विशेष शक्ति तथा बुद्धि है। आप सब को होने का विचार मूर्खतापूर्ण है। परन्तु सम्मान योग्य कार्य करने अत्यंत सावधान रहना है क्योंकि आपके हर कार्य का प्रभाव वाली स्त्रियों के असम्मानित होने के कारण स्त्रियां इस प्रकार पूरे परिवार तथा पूरे सहजयोग पर पड़ता है। विवाह हो जाने की मूर्खता करने लगती हैं। इस देश में स्त्री का दर्जा वैश्या का पर, आपने समझना है कि आप धरा मां हैं, और आपका कार्य है। इसका परिणाम क्या होगा? वे भी वैश्या की तरह आकर्षक देना है, आपमें देने की शक्ति है। अन्तरनिहित अपनी बहुत सी बनना पसंद करेंगी। शक्तियों के कारण आप दे सकती हैं। क्योंकि आप में देने की शक्ति है इसलिए आप पुरुषों से श्रेष्ठ हैं। अतः आप का अहं हर सुन्दरता है व्यक्ति को प्रकृति के विरुद्ध नहीं चलना चाहिए। समय आपके आड़े नहीं आना चाहिए। तभी आप स्त्रीत्व का आनन्द ले सकेंगी। अच्छी माताएं, अच्छी पत्नियां तथा अच्छी सहजयोगिनियां स्त्री का हर देश में सम्मान होता है। उदाहरणार्थ मैं यदि किसी बनने का प्रयत्न कीजिए। विवाह के पश्चात अपने पतियों को पार्टी में जाऊं तो वहां श्रीमती श्रीवारतव के रूप में मेरा सम्मान सहजयोग से हटाने वाली स्त्रियां अति अभिशप्त होती हैं। दूसरो होगा। और मेरे पति की सचिव भी यदि वहां हो तो भी वह मेरे से मुधर वाणी से बात कीजिए, सावधानी पूर्वक कोई भी बात कहें। आपको जिम्मेवार बनना है। आप विशेष व्यक्ति हैं कि समाज में पति के पास कौन बैठेगा? यह मेरा प्रश्न है। सहजयोग में आपका विवाह हुआ। मैं आशा करती हूं कि आप सदा इस बात का ध्यान रखेगें। सुन्दर तथा आधुनिक वेशभूषा पहनने वाली थी। हम सब को एक गृहलक्ष्मी अति शक्तिशाली संस्था है। भारत में गृहलक्ष्मी को रात्री भोज पर बुलाया गया। किसी कारण वह अपने पति के महानतम माना जाता है। प्रधानमंत्री या उससे ऊंचे पद से भी साथ न आकर अलग से आयी। अब सभी स्त्रियां अपने पतियों महान। अध्यात्म में गृहलक्ष्मी का स्थान सर्वोच्च है, पर स्त्रियों के साथ बैंठी। पर उसका स्थान खाली था। उसके पति ने अपनी को भी पूर्ण गृहलक्ष्मी होना है। अर्थात उन्हें विशाल हृदय, प्रेममय पत्नी के विषय में पूछा तो उसे बताया गया कि वे तो नहीं आयों। गृहलक्ष्मी की बहुत सी कथाएं हैं। भारत में हजारों कथाओं माना जाता है। पर गृह लक्ष्मी उनमें सबसे अधिक शक्तिशाली है। वह प्रेम, करुणा तथा क्षमा की महान शक्ति है। स्त्रियों को अत्यंत धार्मिक तथा पवित्र होना है। उन्हें स्वभाव से हो निश्छल मान लीजिए कि यदि मैं पतली हो जाऊं तो मेरे सारे चक्र महसूस करते हैं । स्त्रियां यंत्रवत तथा नीरस हो जाती हैं। मैने मां का वर्णन करती मेरा अभिप्राय है मातृत्व ही स्त्री का सौदंर्य है। मातृत्व ही इस देश में गृहस्वामिनी को सम्मान नहीं दिया जाता। इसी कारण लोग इस प्रकार से व्यवहार करते हैं। पर सूक्ष्म रूप से पति के साथ नहीं बैठेगी चाहे वह मुझ से भी सुन्दर क्यों न हो। हैम्बर्ग की एक घटना है। कैबिनेट सचिव की पत्नी अत्यधिक भावी वधुओं को शिक्षा सचिव ने कहा नहीं वह तो यहां आ चुकी हैं।नहीं श्रीमान, आपकी सचिव तो आई हुई हैं, हम उनसे पूछते हैं। यह सचिव लगने वाली पुनर्विवाह की चिंता नहीं करते । वे पुनः विवाह करते ही नहीं। स्त्री कोई और न होकर उनकी पत्नी ही थी जिन्हें अपनी वेशभूषा पर यहां तो चालीस-पचास साठ वर्ष की आयु में भी उन्हें पत्नी के कारण सचिव समझ लिया गया था। वह उन्हें समझा न पाई चाहिए। अर्थात साठ वर्ष आयु की मां पांच-छः बार विवाहित थी कि वही उनकी पत्नी है। कितनी शर्मनाक बात थी राजनैतिक होती है। यह मु्खता पूर्ण है। स्तर के लोग भी ऐसी स्त्रियों को पसंद नहीं करते। मैं एक बार श्रीवास्तव साहब के कार्यालय में गई तो मुझे यदि पूर्ण हों तो यह बहुत ही गहन होंगे। यह इतना आन्तरिक देखकर लोग अपने कोटों के बटन बंद करने लगे। मैने अपने रिश्ता है कि आप किसी अन्य स्त्री या पुरुष की ओर दौड़ने पति से इसका कारण पूछा तो क़हने लगे कि अचानक आपको की बात तक नहीं सोचते। विवाह के बाद सारी दौड़ समाप्त हो अपने सामने पाकर वे एसा करने लगे क्योंकि वे आपका सम्मान करते हैं। आपके चेहरे पर सम्माननीयता को वे देख सकते हैं। अपने घर में आराम से हैं। जब आप किसी अन्य के घर में होते आप सी स्त्री को देखना उनके लिए अतिसुखद है। बाह्म दिखावा अधिक महत्वपूर्ण नहीं। आन्तरिक भाव तथा है। विवाह ऐसा ही है। अब आप अपनी मंजिल पर पहुंच गए पूर्ण व्यक्तित्व महत्वपूर्ण हैं। अभिनेता या अभिनेत्री सम लगने हैं। अत: स्थिर हो जाइए। मंजिल पाकर भी आप दौड़ रहे हैं। वाला सहजयोगी कभी भी अन्य लोगों को प्रभावित नहीं करेगा। झूठ्-मूठ के गुरु भी अपने शिष्यों को सिखाते रहते हैं कि किस प्रकार शान्त प्रतीत होना है। पोप भी ऐसा ही था. लामा भी पेसे परिणाम देख कर आपको हैरानी होगी। आजमाकर तो देखिए। हो होते हैं। वे अपने को शांत दर्शाने का प्रयत्न करते रहते है। की मत्य हो गई पर स्त्रयां बच गई। पुरुषों को संख्या इतनी कम एक बार पत्नी को मृत्यु हो जाने पर बहुत से भारतीय पुरुष सम्बन्धों का (पूर्ण) गहन न होना हो समस्या है। सम्बन्ध जाती है। विवाहित जीवन को समझते हो आपको लगेगा कि आप हैं तो आपको लगता है कि 'मुझे जाना है। मुझे घर वापिस जाना यह तो पागलपन है। आप मेरी बात को आजमाइए। इसके जैसे इस्लाम में कबीले की लड़ाई के कारण बहुत से पुरुषों थी कि वैश्यावृत्ति आरंभ हो सकती थी। अतः मोहम्मद साहब ने कहा कि चार स्त्रियों से विवाह कीजिए। युवकों को कमी होने गरिमा-मय होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति स्वतः ही, स्वभाविक रुप से अपने चरित्र द्वारा दूसरे लोगों को प्रभावित करता है। वह पाखण्डो नहीं वास्तविक सहजयोगी है। इसका अर्थ यह भी के कारण बड़ी आयु के पुरुषों को युवतियों से विवाह करने की है कि आप अपने अस्तित्व का सम्मान करें। जैसे आपका आचरण ऐसा होना चाहिए जिससे यह न लगे कि आप अपनी सब किया गया। इसे समयाचार कहते हैं। पर समयाचार भी समय पवित्रता और अपने धर्म का सम्मान नहीं करते। इन सबका सम्मान होना चाहिए। परिणामस्वरूप आप में अद्वितीय भाव आ विवेक आवश्यक है। जाएंगे। पश्चिमी देशों की यही अवस्था है हमें यह बात समझनी कारणों वश चार विवाह करने पड़े। पाण्डवों के अपनी मां के चाहिए। अन्दर के स्थान पर बाह्य का वहुत ध्यान किया जाता है। इसके प्रति हमें बहुत सावधान रहना है। कल्पना कीजिए करना पड़ा। कृष्ण को सोलह-हजार शक्रियों (स्त्रियों) से कि आज तो स्त्रियां वैश्याओं सम है और कल आप उन्हें विवाह करना पड़ा। उनके पास सहजयोगिनियां तो थी नहीं। जिस अध्यापिकाओं के रुप में पाएं। भारत में हम ऐसी बात की कल्पना भी नहीं कर सकते - असंभव। मैं एक अन्य बात से भी हैरान थी। मेरे विचार से एक महिला से मुक्त करके शक्ति संचार के लिये धारण किया। पंच-तत्व पचास-चालीस वर्ष को रही होगी। अपने पहले पति को उसने भी उनकी पत्नियों के रूप में आए। तलाक दे दिया तथा अब वह नया पति चाहती है। भारत में यदि कोई लड़को इक्कीस वर्ष को आयु में विधवा हो जाए तो भी वह इसकी आलोचना भी कर सकते हैं परन्तु लोगों को इतने बच्चे टूसरे विवाह की चिंता नहीं करती। इतनी ऊंचाई है उनमें। विना प्राप्त करने की इच्छा हास्यास्प्रद होगी। यह समयाचार है। जैसे विवाह के ही वह प्रसन्न रहतो हैं। पर यहां तो आप स्त्रियों को कल्पना ही नहीं कर सकते क्योंकि आपकी महिलाएं भी पुरुषों अर्थ ये नहीं कि आत्म साक्षात्कार पाने के लिये आप भी कोका सम हैं। आज्ञा भी दी गई। समाज को व्याभिचार मुक्त रखने के लिये यह की आवश्यकताओं के हिसाब से बदलना चाहिए। इसके लिये अपने ब्रह्मचर्य (पवित्रता) के लिये प्रसिद्ध शिवाजी को कुछ प्रति वचनबद्धता के कारण द्रोपदी को पांच पतियों से विवाह प्रकार मैं अपनी शक्ति आप लोगों के माध्यम से प्रवाहित करना चाहती हूं उसी प्रकार कृष्ण ने अपनी सारी शक्तियों को राक्षस आज जनसंख्या के बाहुल्य में भी मेरे इतने सारे बच्चे हैं। लोग सामान्य लगने के लिये मैं कोका कोला पी लेती हूं। पर इसका कोला पीने लगें। चैतन्य लहरीं 70 से सहस्रार तक हृदय दिल्ली-9-2-89 स्त्री को शालीन तथा गरिमामय होना चाहिये। उसे पुरुषों से सम्बन्ध समझ आएंगे, माता-पिता से सम्बन्ध उनके वृद्ध हो जाने प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए। पुरुषों से मुकाबलना करना पर समझ आएंगे। मुर्खतापूर्ण है। भारतीय महिलाएं इस बात को समझती हैं। पर अब पुरुषों के लिए भी समझना आवश्यक है कि स्त्रियों का सम्मान हुआ पाएंगे पर अपनी पत्नी से आपके संबंध अति निजी तथा करें। यदि वे स्त्रियों का सम्मान नहीं करेंगे तो उनकी बेटियों का आचरण भी निराशाजनक होगा। पिता के मुँह पर एक दिन वे गाए हैं। भारतीय भाषा में किसी भी अहितकर बात को स्वीकार तमाचा मार सकती हैं। यह बिल्कुल संभव है। इस देश में भी यह नहीं किया जाता क्योंकि भाषा साहित्य कलहाती है। साहित्य का सब कुछ हो सकता है। श्री राम दायं हृदय के स्वामी हैं। वे मयादा तथा सोमाओं के रखसके। जो साहित्य ऐसानहीं कर सकता वह व्यर्थ है। अश्लील देवता हैं उन्होंने मनुष्यों को जीना सिखाया। उनके जीवन का है। मुख्य संदेश उनका प्रेममय एवं समर्पित पति होना है। वे इतने श्रेष्ट व्यक्ति थे जिन्होंने अच्छा राजा बनने के लिये अपनी पत्नी का आनन्द लेना जान सकें तो वे स्वयं पवित्र हो जायेंगे और तक को त्याग दिया। इस देश में, जहां हम सोचते हैं कि "प्रेम महान है, स्थिति चाहते हैं, शुद्ध हीरा चाहते हैं, शुद्ध सोना चाहते हैं। पर जब प्रेम बिल्कुल विपरीत है। मैं बहुत से मंत्रियों को जानती हूं जिनकी की बारी आती है तो हम नाना प्रकार की अपवित्रता तथा पत्रियां परिवार पर शासन करती हैं। उनमें बलिदान की भावना विकृतियां अपनाना चाहते हैं। फिर हम कहते हैं कि "ओह मैं नहीं है। पत्रियां इतनी महत्वपूर्ण हैं कि पतियों की भी कोई गिनती तो परेशान हो गया हूं। मैं इसका आनन्द नहीं ले सकता।" कारण नहीं रह जाती। उनके लिये अपने बेटे-बेटियां हो अत्यधिक अपवित्रता है। महत्वपूर्ण हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिये कि श्रीराम ने अपनी प्रिय -पत्नी को गर्भावस्था में त्याग दिया और उनकी याद में हम सन्यास में विश्वास नहीं करते क्योंकि बहुत सी महान आत्माएं सन्यासी का जीवन बिताया। श्री राम का यह महान त्याग था। पृथ्वी पर अवरतरित होना चाहती हैं तथा हमं उनके आने का प्रबंध सोता जी ने भी अपनी गरिमा तथा सोमा में उन्हें त्याग दिया। करना है। हमारे यहां अति प्रसन्न विवाहत लोग होने चाहिएं जो उन्होंने राम को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया। स्त्री सुलभ ढंग से वे आलोप हो गई। आधुनिक युग में ऐसा नहीं है। पति यदि पत्नी को नुकसान ओर पूरा ध्यान नहीं देते तथा उनकी सहायता नहीं करते, इस पहुंचा दे तो वह न्यायालय में जाएगी तथा पति को दंडित देश का अनुशासन न सुधरेगा। पत्नी ही बच्चों को अनुशासित करवाएगी। माना आप अपने पति से प्रेम करती हैं तथा चाहती करती है। अतः उसमें सुरक्षा की भावना होनी हो चाहिए। पुरुष हैं कि वह दूसरी स्त्रियों की ओर न दौड़े। पर इसके लिये उसे का मिथ्याभिमान समाप्त होना चाहिए। पुरुष का स्वयं को जेल भिजवाना तथा दुःख देना तो ठीक नहीं। हमें महसूस करना है कि सहजयोगियों के लिए पति-पत्नी आंखों में से एक आंख यदि अपने को अधिक महत्वपूर्ण समझे सम्बन्ध अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। आप एक दूसरे पूरक है। तो कहां तक ठीक है ? सम्बन्ध ठीक न होने पर सहजयोग कार्य नहीं करेगा। परस्पर सम्पूरकता, आपसी प्रेम, प्रेम सौन्दर्य तथा सूझबूझ महत्वपूर्ण है, तो आपको बाई विशुद्धि की समस्या हो सकती है। और आपको स्त्री को रोबदार नहीं होना। मैने देखा है कि प्रेम दर्शाने के लिये लोग एक दूसरे को चूमते हैं। यह अनावश्यक है। आपका अपने पति से तदात्मय भाव आवश्यक है। पति भी उस प्रेम को महसूस करे। यही प्रेम सम्बन्ध सुन्दरतम हैं। अपने बच्चों से आपके सम्बन्ध आप तब जब वे कमाने लगेंगे, बेटियों के विवाहित हो जाने पर उनसे आप बड़े हो चुके हैं, आपकी पत्नी है। आप उनका दंभ बढ़ता हैं। इसी कारण लोगों ने इसको प्रशंसा के गीत अत्यन्त बहुमूल्य अर्थ है सह + हित - अथात जो आपको आपकी आत्मा के साथ पति-पत्नी सम्बन्ध अत्यंत पवित्र हैं। लोग यदि इस पवित्रता इसका सारतत्व पा लेंगे। कुछ भी खरीदते हुए-हम शुद्ध रेशम सम्बन्ध की पवित्रता का आनन्द लेना चाहिए। सहजयोग में परस्पर प्रेम तथा सम्मान करें ताकि महान संत यहां जन्म ले सकें। जब तक हम अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते, उनकी महत्वपूर्ण समझना गलत है। दोनों की एकता महत्वपूर्ण है। दो ले के दूसरों से सम्बन्ध में यदि आप में पवित्रता का भाव नहीं है। बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं। विकृत आचरण मत कीजिए। यदि आप पुरुष हैं तो पुरुष को तरह आचरण कोजिए और यदि स्त्री हैं तो स्त्री की तरह। यदि आप अपनी प्रकृति के विपरीत आचरण करेंगे तो अहितकर होगा। समझेंगे 11 हुदय से सहसार तक समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका जया (4) पत्नी.का पति से सम्बन्ध प्रेममय तथा आज्ञाकारी पत्नी सोता जो के श्रीराम से सम्बन्धों के आधार पर होना चाहिए। पत्रियों को चाहिये कि पतियों का ध्यान रखें, उनका "व्यक्ति को समझना है मातृत्व अति महत्वपूर्ण है।" मां ने ही ब्रह्माण्ड की सृष्टि की, "पिता" तो केवल साक्षी थे। श्री माता जी गिर्मला देवी माताएं समाज की जड़ों को स्थायित्व प्रदान करती हैं यदि पोषण करें तथा उन्हें व्यवस्थित गृहस्थी दें। पसंद का भोजन माताएं ही असंतुलित हॉंगो तो पूरा समाज ही अस्थिर होगा और पतियों को दें और उनके प्रति न तो आक्रामक हों और न हो आज के पश्चिमी देशों की तरह उन्नत न हो पाएगा। माताएं किस प्रकार यह स्थिरता तथा संतुलन प्राप्त करती हैं? पत्नी घर चलाए। (1) सर्व प्रथम उनकी पवित्रता की रक्षा तथा सम्मान किया जाना चाहिए। ऐसा केवल स्थूल स्तर पर ही नहीं होना चाहिए करे, पत्नी को आर्थिक तथा भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करे तथा ताकि वे अपनी दुष्टि तथा मस्तिष्क से पतियों के प्रति वफादार उसके प्रति पूर्णतया वफादार रहे। रहें। इसी प्रकार पतियों को भी चाहिए कि अपवित्र दृष्टि से अन्य स्त्रियों को न देखें और न ही उनके साथ चांचलेबाजी करें। समाज की दृष्टि को वासना से परे रखने के लिये स्त्रियों को प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। वेषभूषा भी महत्वपूर्ण है। वस्त्र सुशिष्ट तथा स्त्री सुलभ होने चाहिएं, वाहयात किस्म के नहीं। विवाह से पहले अपना सतोत्व खो देने वाली युवती का विवेक हुए विकसित हो सकें। इस प्रकार का आचरण बच्चों में आत्म खो जायेगा। इसके बाद उसका जीवन अहं वृद्धि करने वाला सम्मान विकसित करने के लिये वातावरण प्रदान करेगा। रोमान्स मात्र रह जाता है जिसका प्रेम से कोई संबंध नहीं होता तथा जो अध्यात्मिक उन्नति के लिये कोई स्थान नहीं छोड़ता। (2-3) मोज़ज़ प्रदत्त दस धर्मों तथा आदि गुरु दत्तात्रेय के सकें। स्त्री को चाहिए कि पति को अपनी सम्पदा बनाने के स्थान अवतरणों द्वारा दी गई शिक्षाओं के आधार पर पारिवारिक-जीवन-धर्म स्थापित होना चाहिए। अध्यात्मिक विकास की ओर ले जाने वाली विद्या ही ईष्ष्या नहीं होनी चाहिए। इन शिक्षओं को सीमावद्ध करती है। दूसरे शब्दों में उचित-अनुचित आचरण का निर्णय करके अपमान नहीं होना चाहिए। उचित-अनुचित का ही अनुसरण करना चाहिए। इस प्रकार परिवार में बढ़ते हुए बच्चे माता-पिता के उदाहरण तथा उन्हें साक्षात्कारी होने के कारण उनके बच्चों में अहं बहुत अधिक बढ़ दी गई शिक्षा द्वारा उचित आचरण सीखेंगे । क्षमा-भाव तथा दुलारपूर्वक बच्चे को लगातार सुधारना मां. उन्हें सुधारा जाना चाहिए। का कार्य है। प्रेम पूर्वक बच्चे के सम्मुख उचित-आचरण-विधि का प्रदर्शन करना सर्वोपरि है। बच्चे का केवल शारोरिक पोषण ही आवश्क नहीं, उसे की तरह प्रेम तथा करुणा का आचरण करना चाहिए। भावनात्मक सुरक्षा भी दी जानी चाहिए। जिससे पारिवारिक जीवन की धार्मिक पृष्ठभूमि में उसका अध्यात्मिक विकास हो अथाह कृपा हम पर हुई है। मां के रूप में आदि शक्ति का सके। उन पर रोब डालें। जहां तक संभव हो पति धर्नाजन करे तथा पति को चाहिए कि बच्चों के विकास में पत्नी की सहायता उनके सम्बन्ध प्रेममय होने चाहिएं, वासना मय नहीं। परस्पर प्रेम प्रदर्शन पवित्र तथा निजी होना चाहिए। सबके सम्मुख प्रेम पति पत्नी को एक-दूसरे से सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए ताकि इसे देखकर बच्चे भी माता-पिता का सम्मान करते (5) अपने संबंधों में हर महिला को पूर्ण पवित्रता बनाए रखनी चाहिए जिससे कि सच्चे बहन -भाई सम्बन्ध विकसित हो पर दुसरों से उसके पिता तथा भाई के सम्बन्ध का आनन्द भी लें। पति के दूसरों से सम्बन्ध भी पवित्र होने चाहिएं, उनमें कोई शुद्ध परिवार के बुजुर्गों का सम्मान होना चाहिए तथा बच्चों का माताएं अपने बच्चों को अनुशासित करें क्योंकि आत्म सकता है। ये बच्चे देवी-देवता नहीं हैं। जब भी आवश्यक हो (6) मां को अपने अंदर क्षमा तथा करुणा के गुणों को विकसित करना चाहिए और सभी बच्चों के साथ अपने बच्चों (7) अंत में, आदि-शक्ति के हमारे साथ पृथ्वी पर होने की अवतरण महानतम है। चैतन्य लहरी 12 स्त्री रूप में जन्मी हम सब भाग्याशाली महिलाओं को अपने रोजमर्रा के जीवन में न केवल उनके उदाहरण पर चलना है बल्कि अपनी कुण्डलिनी पर ध्यान लगाते हुए अपनी जड़ों को गहरा करना है और श्री माताजी के गुणों को अपने रोम-रोम में गहन-आत्मसात करना है। दैवी मातृत्व के गुणों की जीवन में अभिव्यक्ति और मां के प्रेम की चैतन्य लहरियों का प्रसार अपने घर, परिवार तथा मानव मात्र में करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। "यदि आप आदर्श बन जाएं तो आदर्श को शक्ति आपको बिना किसी वासना या लालच के जब हमें किसी के प्रति प्रेम आता है तो वह हमारे अंदर परमात्मा का प्रेम है। परमात्मा ही उस पवित्र प्रेम की साकार मूर्ति है जो मात्र प्रेम करते हैं, जिसने हमें यह सुन्दर मानव जीवन प्रदान किया है और हमें अधिक सुन्दर बनाना चाहता है। परमात्मा ने आपके लिए इस विश्व की रचना की तथा वह चाहता है कि विश्व के सभी देशों का आनन्द आप उठाएं। वह चाहता है कि उसके साम्राज्य के नागरिक होने के नाते उसकी करूणा का आनन्द आप उठाएं। रामायण से उद्धुत :- इतना प्रगल्भ कर देगी कि बिना किसी के मार्गदर्शन के आप आदर्श हो जाएंगे। आपके आदर्श मशालों की तरह हैं। आपके महाराजा जनक ने स्वयं सीता का विवाह श्री राम से किया। उन्होने कहा, "रामचन्द्र, चन्द्र सम राम, सीता को अपनी जीवन संगिनी बना लो। उसकी ओर देखो, उसे बहुत अधिक कभी मत देखना, स्नेहिल दृष्टि से उसकी कामना करो। सीता सदा राम को प्रेम करो, पत्नी बन कर उनके साथ चलो तथा परछाई की तरह आदर्श भी प्रकाशरंजित हो उठेंगे।" जिस व्यक्ति में गौरी की शक्ति है, ऐसा व्यक्ति जब किसी सहज सभा में प्रवेश करता है तो सबकी कुण्डलिनी उसका सम्मान करने के लिए ऊपर उठ जाती हैं। जब आप में गौरी की शक्ति (पवित्रता) होती है तो आप निराले लगते हैं क्योंकि आपकी चमकती हुई अबोध आंखें होती हैं। जब भी आप अपनी आंखे घुमाते हैं तो आपकी एक दृष्टि से कुण्डलिनी ऊपर चली जाती है। सदा उनका पौछा करो। मैं तुम्हारा विवाह करता हूँ।" जनक ने सोता से कहा, "पिता कुमारी बेटो की रक्षा करता है पर विवाहित होने पर उसे सदा स्वामी को रक्षा लेनी है।"तुम अब मझे छोड़ रही हो। पर अपनी मां (पृथ्वी) को कभी न छोड़ना। ॐ** 13 समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका सहज विवाह की कस्में दुल्हन : मैं तुम्हारा मूलाधार चक्र ठोक रखने में सहायक हँगी। अपनी सारी सम्पत्ति मुझे दे दो मैं उसकी देखभाल करुंगो। आपको मेरा बनाया खाना खाना होगा या अपने भाई-बहनां द्वारा बनाया गया। यदि बाहर खाना खाना भी पड़े तो आप उसे चैतन्यित करके खाएंगे। तुम मेरी आज्ञा के बिना बाहर नहीं जाओगी और मैं भी बाहर जाते हुए तुम्हें बताऊंगा। न मैं भूतकाल की बात करूगा और और न ही इस विषय में सोचूंगा, तुम्हें भी ऐसा हो करना होगा। दूल्हा :- सहजयोग करते हुए यदि मुझ से कोई भूल हो तो तुम्हें क्षमा करनी होगी और मैं भी ऐसा हो करुंगा। दोनों कहते हैं :- श्री आदिशक्ति माता जी निर्मला देवी ने इस विवाह द्वारा हमें पवित्र बंधन में डाल दिया है। श्री माता जी के महायज्ञ का महान सौभाग्य हमें मिला है। अपना स्वास्थ्य, वैभव, मस्तिष्क एवं हृदय-सभी कुछ हम उनके चरण कमलों में समर्पित कर देंगे । हम एक दूसरे के प्रति वफादार रहने की शपथ लँगे। हम सहजयोग को बढ़ाने के लिये कार्य करेंगे। अपने बच्चों की परवरिश सहजयाग में करना हमारा कर्तव्य होगा। :- अपनी शारीरिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों दुल्हन से मैं सारा गृहकार्य करुंगी। प्रेम तथा र्ेह पूर्वक रहते हुए मैं आपकी आज्ञा पालन करुंगी। आप मेरे कार्य में मेरी सहायता करें तथा मैं आपकी सहजयोग के कार्य में सहायता करूंगी। दुल्हन :- मैं अपना लक्ष्मी चक्र ठीक रखूंगी और आप मेरे लक्ष्मी तत्व का सम्मान करेंगे। इससे आपका लक्ष्मी तत्व ठीक रहेगा। जो भी कुछ आप घर लाते हैं उसका हिताव आप मुझे देंगे, कुछ भी छिपाया नहीं जायेगा। मैं तुम्हें प्रेम तथा स्तनेह द्वारा प्रसन्नता तथा शांति दूल्हा : दंगा पर तुम्हें भी मेरी प्रसन्नता तथा शांति का विचार करना होगा। जय श्री माता जी ** ॐ चैतन्य लहरों ा प्रस्थान वार्ता रौहरी -1987 प्रस्थान करते हुए वे आपके चेहरे पर आंसू न देख पाएं। स्मरण रखें कि आपके चेहरे पर विश्वास तथा उत्साह के भाव होने चाहिए कि हम शोघ्र ही पुनः परस्पर मिलने वाले हैं। उदासी की कोई बात नहीं। आपको सूर्य की भांति उदार होना चाहिए। आप सूर्य को अपने साथ लेकर चलते हैं। आपको प्रेम तथा स्नेह फैलाना चाहिए ताकि लोग जान सकें कि यह सूर्य आप भारत से लाए हैं। आप लोग योगो हैं कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। आप उस श्रेणी के लोगों के प्रतिनिधि हैं जो अपनी धर्मपरायणता, करुणा तथा प्रेम के लिए प्रसिद्ध यह आनन्द जो आयने यहां प्राप्त किया है इसे दूसरे सहजयोगियों तथा सर्वसाधारण लोगों तक भी पहुंचाइए। मैं आप सबके लिए उत्कृष्ट प्रेम की कामना करती हूं। आपकी यात्रा आनन्द दायों हो। परमात्मा आपकों धन्य करें। अत्यंत प्रसन्न चित्त रहने का प्रयत्न कीजिए कि आप इतने सारे लोगों से मिले, कि आपके विवाह हुए, कि आपने बहत से विवाह देखें, कि हमने इतना अच्छा समय बिताया जिसका हर क्षण आनन्ददायी लहरियों से परिपूर्ण था। निः सन्देह आज आप में से कुछ लोग थोड़े से खिन्न होंगे। में इसका कारण समझ सकती हूं कि आपके पति/पत्नी दूर जा रह हैं। इस कारण मैं कुछ लोगों को दुखी पाती हूं। पर उनका यह दुखः परस्पर प्रेम, आकर्षण तथा एक दूसरे की संगति के आनन्द के कारण है। इससे मुझे अच्छाई की झलक मिलती है। फिर भी मैं कहंगी कि आपको पुनः परस्पर मिलना है तथा पूर्व प्राप्त आनन्द को पुनः पाना है, अतः प्रसन्न रहने का प्रयत्न कीजिए क्यॉंकि जुदाई के ये दिन बहुत जल्दी बीत जाएंगे। समय इतना जल्दी बीतता है कि पलक झपकते ही आपका अपने पति/ पत्नी से पुनर्मिलन हो जाएगा। उदास होने की कोई बात नहीं। हंसते-मुस्कराते रहिए। ताकि हैं । हर चीज का आनन्द लोजिए तथा 15 प्रस्थान वातां ---------------------- 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी खण्ड V, अंक 1 व 2 शु सहज योग में विवाह विवाह का लक्ष्य आनन्द प्रदान करना है प. पू. श्री माताजी निर्मला देवी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी खण्ड V, अंक 1 व 2 विषय सूची पृष्ठ (1) विवाह का महत्व 3 (2) शोभनीय स्थिति की तैयारी (3) भावी वधुओं को शिक्षा 9. (4) हृदय से सहस्रार तक 11 (5) समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका 12 (6) विवाह की कसमें 14 (7) प्रस्थान वार्ता 15 चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-2.txt विवाह का महत्व डोलिस हिल, लन्दन, 85.1980 न होकर एक साधारण विवाह है जिसमें विशेष कुछ भी नहीं। सहज-विवाह द्वारा महान आत्माओं को पृथ्वी पर अवतरित होने का अवसर मिलना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब आप अपना प्रेम पूर सहज-समाज में बांट रहे ही अतः सहज विवाह की पहली परीक्षा यह है कि आप अन्य सहज-योगियों में कितना आनन्द बांट रहे हैं। उदाहरणतया एक सामान्य विवाह में पुरुष को परिवार का शीर्ष (मुखिया) बनना होता है। पर शीर्ष के साथ-साथ आप हृदय भी बनिए। हृदय तो सिर से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क रुक जाने पर भी हृदय कार्य करती रहता है। पर हृदय के रुकते ही मस्तिष्क भी रुक जाता है। अतः स्त्री हृदय है तथा पुरुष मस्तिष्क पुरुष में यह धारणा बनी रहने दो कि वह मुखिया है (सिर है), यह केंवल धारणा ही तो है। मस्तिष्क को जैसा अच्छा लगता है वह निर्णय लेता है, पर मस्तिष्क यह भी जानता है कि उसे हृदय के लिए कार्य करना है। हृदय ही सर्वव्यापी है तथा हर चोज का सोत है। अतः स्त्री को यदि यह ज्ञान है कि वह हृदय की स्थिति में है तो यह स्वयंको न तो अपमानित मानेगी और न दबी हुई। मेरे विचार में स्त्रियां इस सत्य को बैठी है। इस सत्य को यदि उन्होंने पहचाना होता तो समस्याएं बहुत कम होती। अतः लोगों का यह साचना गलत है कि वह मस्तिष्क सेदुसरों पर शासन करते हैं या उन्हें दवाते हैं। बात ऐसी नहीं है। वास्तव में हृदय ही शासक है। हृदय मस्तिष्क को आवृत कर सकता है, इसे शांत कर सकता है। मस्तिष्क तो पागलो की तरह चलता ही रहता है। पर हृदय अपने प्रेम से शांत कर के इसे आनन्द तथा प्रसन्नता प्रदान कर सकता है। हृदय में ही आत्मा का निवास है। अतः हृदय ही शरीर की शक्ति है क्योंकि आपका लक्ष्य आत्मा बनना है और आत्मा का निवास हदय में है। यदि मस्तिष्क हर समय हृदय पर प्रभुत्व जमाना शुरु कर दे तो क्या होगा? सभी कुछ नीरस हो जाएगा जैसे अत्यधिक सतर्क और सावध्यन पुरुष अपने तथा टूसरों के लिए सिरदर्द बने जाते हैं। इस प्रकार के लोग अन्यन्त नीरस हो जाते हैं और अवांछित सतर्कता के कारण अपने बच्चों तक का भी आनन्द नहीं ले पाते। पत्नो यटि जरा देर से आ जाए तो चिल्लान लगत हैं। पत्नी के आने का, उससे मिलन का आनन्द, अपने हृदय से सहज योग सर्वप्रथम आपका अंकुरण करता है और फिर विकसित होता है। इस विकास अवस्था में आपको एक विशाल व्यक्तित्व बनना होता है। विवाह करके आप पहले से अच्छेव्यक्ति बन जाते हैं आपका व्यक्तित्व पहले से अच्छा हो जाता है। सहजयोगियों के लिए विवाह आवश्यक क्यों हैं? क्योंकि विवाह एक सहज बात है। परमात्मा ने आपको विवाह की इच्छा किसी उद्देश्य से दी है। पर इस उद्देश्य के लिए उपयोग न होने पर यह इच्छा विकृति तथा घिनौनापन बन सकती है। आपके विकास में यह बाधक हो सकती है। अतः अपने अन्तःस्थित इस इच्छा को हमें समझना चाहिए। विवाह अर्थात एक पत्नी जो आपके अस्तित्व का अंग प्रत्यंग हो, जिस पर आप निर्भर कर सकें, जो आपकी मां, बहन, बालक तथा सभी कुछ है। आप अपनी सारी भावनाएं अपनी पत्नी से बांटते हैं अतः पत्नी को विवाह के महत्व का ज्ञान होना आवश्यक है। आपने देखा होगा कि सहजयोग में सभी को दायें या बायें की समस्या होती है। सहज विवाह में आयको जो साथी मिलेगी वह स्वतः ही आपके व्यक्तित्व का सम्पूरक होगा। मान लीजिए आपको बाई ओर कमजोर है तो आपके साथी की बाई ओर इतनी शक्तिशाली होगी की आपकी कमी को पूरा कर देगी और (विशेषकर पश्चिमी) मूल इस प्रकार आपका विवाह सफल विवाह बन जाएगा। पर इसके लिए आवश्यक है कि आप जीवन के हर क्षण को बाटें। यदि आप जीवन बांटना नहीं जानते तो कठिनाई होगी। जब प्रेम की बात आती है तो हम किस प्रकार अपने अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं? अपने आनन्द, कष्ट तथा समस्याओं को बांट कर। किन्तु सहज योग में यह अभिव्यक्ति इससे कहीं अधिक है। यहां आपको सामूहिकता में बांटना होता है। सहजयोग में विवाह केवल दो व्यक्तियों के लिए नहीं होता। इस प्रकार की धारणा गलत है। सहज-विवाह दो समुदायों दो राष्ट्रों या दो ब्रहामंडो के मध्य होता है। इसके आनन्द को केवल अपने तक ही सीमित नहीं करना। सहजयोग में परस्पर अच्छे पति-पत्नी होना मात्र ही काफी नहीं है। उस प्रेम का आनन्द पूरे समाज को भी मिलना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपका विवाह सहज विवाह विवाह का महत्व 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-3.txt अपने कार्यों में दक्ष होना चाहिए। परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना दूर होते ही सहजयोग अधिक अच्छा कार्य करने लगेगा । प्रेम मिलन के आनन्द का सौभाग्य भी वे खो देते हैं। मस्तिष्क सारे नियमों को ताक पर रख कर भयंकर समस्याएं खड़ी कर सकता है। अतः हृदय का सम्मान तथा इसकी आज्ञा के अभाव में ही किसी का रोब अखरता है। प्रेम में यदि किसी का पालन होना ही चाहिए। पर इसका अर्थ यह भी नहीं कि स्त्रियां को रोब पूवर्क खाना खाने को कहें तो अच्छा लगेगा। क्योंकि पुरुषों पर प्रभुत्व जमाएं। आज्ञा पालन का अर्थ है प्रेम के अर्थ को समझना और प्रेम से कार्य करना। प्रेम में कार्य करना अच्छा है। उदाहरणार्थ में आपको सुबह से शाम तक भाषण देती हूं पर के बारे में समझते ही आप भी उसकी भावनाओं का सम्मान करने आप तंग नहीं होते। सामान्यतः लोगों को मेरे भाषण से तंग आ लगते हैं। दोष भावना से भी आपको ग्रस्त नहीं होना। आपको जाना चाहिए। पर आप तंग नहीं होते क्योंकि आप जानते हैं सदा अति हल्के मूड में रहना है। कि मैं आपको बहुत प्रेम करती हूं। इसी प्रकार स्त्री को भी अपनी भूमिका के विषय में आश्वस्त होना होगा कि वह प्रेम करती के समय में। राधा शक्ति थी तथा कृष्ण उसके अभिव्यक्ति कर्ता। है। पुरुष थोड़ा सा टेढ़ा हो सकता है, थोड़ा भटक भी सकता इसे आप ऊर्जा और गतिज्य (काईनेटिक) कहते हैं। लोग केवल है पर वह ठीक हो जाएगा। बाहरी रोब को देखकर उसका मूल्यांकन मत कीजिए। वह अपनी भूल को स्वीकार कर लेगा । के लिए कृष्ण को राधा से कहना पड़ा। राधा ने ही सभी कुछ अंतः एक दम उसकी बात का विरोध मत कीजिए। मैने अपने किया। राधा ने नृत्य किया और कृष्ण ने उसके थके हुए पैर जीवन में यह अनुभव किया है। पति को अपना पिछलग्यू बनाने में कौन सी महानता है। ऐसा करना गलत है। "आप इधर चलिए" यह कहने की क्या जितना प्रकाश के लिए दीपक और बाती एक दूसरे पर। इतनी आवश्यकता है। हम एक ही मार्ग पर चल रहे हैं । बस उतना समझना है कि कोई बांई तरफ है और कोई दाई ओर। बाई ओर है। यह संतुलन परमात्मा तथा उसकी शक्ति के मध्य होता है। वाले को बाई ओर रहना है तथा दायीं ओर वाले को दाई ओर। आपइसकी कल्पना नहीं कर सकते कि यह किस प्रकार केवल मान लिजिए बायां पहिया दाई ओर को आने लगे तो केवल एक एक है। उसकी शक्ति, उसकी इच्छा ऐसे ही हैं जैसे परमात्मा। ही पहिया बाकी रह जाएगा। तब हम क्या करेंगे? हम सभी बिल्कुल कोई अन्तर नहीं। एक ही मार्ग पर चल रहे हैं। इसके बारे कोई दो मार्ग नहीं है। रथ को संतुलन में रखने के विचार भिन्न हैं हर चीज़ असंघटित (डिसइन्टैग्रेटिड) है। यही लिए दो पहिए आवश्यक हैं। पर हम एक ही मार्ग पर चलं कारण है कि विवाह भी असंघटित हैं। परस्पर मिश्रण ही पूर्ण रहे हैं। वे सोचते हैं कि एक पहिए को दाएं जाना है तथा दूसरे एकीकरण (संघटन) है। जब तक आप में संतुलन एवं को बाएं। इस प्रकार के परिवार की अवस्था की कल्पना एकीकरण की पूर्ण समझ है तो चाहे पुरुष को कार्य करना हो कौजिए। हम एक ही मार्ग पर चल रहे हैं। केवल समझना आवश्यक है कि एक को हृदय की शक्ति से जीवित रहना है जिम्मेदार हैं, वे परिवार की शोभा हैं। स्त्री को दयामय होना तथा दूसरे को तर्क एवं सूझबूझ की शक्ति से। पर तर्क को एक चाहिए। पुरुषों की तरह आचरण करना स्त्री के लिए अशोभनीय बिंदु पर आकर हृदय की ओर झुकाना पड़ता है। आपको अपने है। पुरुष को स्त्री जितना दयामय होना आवश्यक नहीं पर उसे हृदय की शक्ति का पोषण करना होगा। पर आप लोग हर कार्य क्रूर भी नहीं होना। पुरुषों को अन्य स्त्रियों में दिलचस्पी नहीं में पुरुषों का मुकाबला करती हैं। मैं ऐसा नहीं करती। जो भी लेनी चाहिए। ऐसा करना अनुचित है। पुरुषों का चूहों की तरह कार्य मैं स्वयं नहीं करती वे संभी लोग मेरे लिए करते हैं । मैं ऐसे कार्य करती हूं जो दूसरे लोग इतना अच्छी तरह नहीं के आचरण का अर्थ है कि वे स्त्रियों के दास हैं। वे केंचुओं कर सकते जितना मैं। जैसे मैं खाना अच्छा बनाती हूं अतः इसके से भी बदतर हैं। लिए उन्हें मेरे पास आना पड़ता है। पर पुरुषों को स्त्रियों के तथा स्त्रियों को पुरुषों के कार्य नहीं करने चाहिए। दोनों को अपने जीवन के विषय में जानते हैं। उन्होंने किस प्रकार अपनी पत्नी आप जानते हैं कि किसी को आपकी चिंता है, कोई आपको प्रेम करता है। ऐसा व्यक्ति आपको अच्छा लगता है आप ये नहीं चाहते कि किसी को आपकी चिंता न हो। किसी व्यक्ति के प्रेम बहुत समय पूर्व इस संतुलन की रचना की गई। राधा-कृष्ण कृष्ण के विषय में ही जानते हैं परन्तु राधा हो शक्ति थीं। कंसवध दबाए। राधा क्यों नाची है ? क्योंकि उसके नाचे बिना कार्य न हो पाता। अतः यह एक दूसरे पर निर्भर हैं। उतना ही निर्भर है बात समझ जाने पर यह संतुलन पूर्णतया सुव्यवस्थित हो जाता पर आप मानव असं घटित हैं- आपकी इच्छा भिन्न है, या स्त्री को- कोई भी चिंता की बात नहीं। निः सन्देह स्त्रियां ःर आचरण करना भयानक है और पौरुष -विहीन। इस प्रकार अतः पुरुष को पुरुष होना है राम की तरह। आप उसके चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-4.txt से प्रेम किया और अपने ब्रह्मचर्य का सम्मान किया । जिस पुरुष कि ऐसा प्रेम में किया है या नहीं। मान लो पति अपने मित्रों का को अपने ब्रह्मचर्य का सम्मान नहीं वह पुरुष ही नहीं, वह तो लेकर आ जाता है और पत्नी खर्च के कारण उनका आना पसन्द केचुंआ है। अतः पुरुष में चरित्र होना चाहिए, उसमें साहस, शौर्य नहीं करती। ऐसा करना गलत है। आपको अपने प्रेम की वर्षा तथा रक्षा-भाव होना चाहिए। घर में यदि चोर आ जाए और दूसरे लोगों पर करनी चाहिए। आवश्यक नहीं आप बहुत पैसा पुरुष स्त्री से कहे कि " तुम दरवाजा खोल दो और मैं छुप रहां खर्चे। आप उनसे करुणामय व्यवहार करें। उन पर थोड़ा सा पैसा हं " और चोरों के चले जाने पर रौब दिखाए तो यह तो अनुचित है। पुरुष को रक्षा करनी चाहिए देखभाल करनी चाहिए। अतः प्रेम खर्चने के मामले में बहुत सतर्क हैं। हममें इतना भय है। कभी-कभी यदि पुरुष थोड़ा सा अशिष्ट भी हो जाए तो कोई बात नहीं क्योंकि उसे ही स्थिति का सामना करना है। आप कह चाहिए। उदाहरणार्थ जब में आपको कुछ बता रही हूं तो बाहर सहते हैं कि कांटे सम है तथा स्त्री फूल सम। अब कांटे और फूल में से आप फूल बनना चाहेंगे। परन्तु क्योंकि मैं आपकी कमियों के बारे में बता रही हूं। उसके पीछे पति-पत्नी के मध्य आप काटी बनना पसंद करंगे। यह गलत है। पुरुष को रक्षा करनी है तथा पारिवारिक जीवन पर होने कि कोई व्यक्ति आप पर प्रभुत्व जमाता है। वाले आक्रमणों को देखभाल करनी है। पर लोग परिवार में गलत लोगों की आने की आज्ञा दे देते हैं। रोब से गलत स्त्रियों को हैं। आपके अहं को चोट पहुंच सकती है पर आप तो आत्मा परिवार में ले आते हैं। इस प्रकार की गतिविधियों का विरोध हैं| आत्मा पर प्रभुत्व नहीं जमाया जा सकता। आप आत्मा हैं। होना चाहिए। अतः आप स्पष्ट देखते हैं कि हर चीज के दो पहलू है, यदि कर रहे हैं तो कोई आप पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता। परन्तु प्रेम में कार्य किया गया है तो यह पूर्णोचित है, पर यदि यह रोब यदि आप सदा यही सोचते हैं कि आप पर रोब जमाया जा रहा जमाने के लिए किया गया है तो यह मूर्खता- पूर्ण है। रोब क्यों है तो आपकी दुर्दशा हो जाएगी। अतः अभी से आप महसूस करें खर्चने में भी कोई हानि नहीं। सहज में आकर भी हम धन तथा सहजयोग में दूसरों पर रोब बिल्कुल नहीं जमाया जाना का व्यक्ति सोच सकताहै कि मैं आप पर प्रभुत्व जमा रही हूं पुरुष छिपे प्रेम तथा करुणा को वह नहीं देखता। अतः कभी मत सोचिए आप पर कैसे प्रभुत्व जमाया जा सकता है? आप तो आत्मा क्या आप अपनी अत्मा को अनुभव कर रहे हैं? यदि आप एसा कि आप आत्मा हैं तथा आपका पति या पत्नी भी आत्मा है। आप दोनों में परस्पर सम्मान भावना उदय होनी चाहिए क्योंकि आप दोनों ही सन्त हैं, सहजयोगी हैं। आप एक दूसरे का सम्मान करें क्योंकि आप सहजयोगी हैं. साक्षात्कारी होने के कारण लोग आपका सम्मान करते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति से पूर्व आप साक्षात्कारी लोगों के विषय में क्या सोचते थे? शायद आपको याद नहीं? बिना अहंग्रस्त हुए आपको सभी आत्म साक्षात्कारी लोगों का सम्मान करना चाहिए. क्योंकि वे आपकी मां के बच्चे हैं। परस्पर बातचीत करते हुए आपको यह बात याद रखनी है । पति -पत्नी के विषय में अपने पुराने विचार आपको त्याग देने हैं। सह ज से पूर्व के विवाह सम्बन्धों में तो आप बिना परस्पर विश्वास के एक दूसरे के अधिकारों के बारे ही सोचते थे । अब अधिकाधिक विश्वास कीजिए। प्रेम, तथा विश्वास करने में, ईमानदार, करुणामय होने में तथा सेवा भाव में परस्पर मुकावला होना चाहिए। एक दूसरे पर प्रभुत्व जमाने, परस्परभय तथा व्यर्थ की बातों के स्थान पर अच्छो बातों में मुकाबला कीजिए तो आपको अच्छा फल मिलेगा। एक और बात जो मैं करना चाहती हूं वह यह है कि विवाह है: जमराना है? रोब शब्द मुझे समझ ही नहीं आता। क्या गाड़ी के दो पहिए एक दूसरे पर रोब जमाते हैं ? क्या वे ऐसा कर सकते हैं ? यदि एक प्रभुत्व जमाता है या कहिए कि एक पहिए का आकार बड़ा हो जाता है तो यह गोलाई में ही घूमता रहेगा। इसमें जमाने का तो प्रश्न ही नहीं है। प्रश्न तो परस्पर प्रभुत्व एकाकारिता, सूझ-बूझ और पूर्ण सहयोग का है। यह गुण समाज तथा परिवार में फैल जाना चाहिए। वे विवाह जो समाज के लिए लाभप्रद नहीं वे व्यर्थ है। हमारे यहां भी इस प्रकार के बहुत से विवाह होते हैं, विवाह करवा कर लोग परस्पर प्रसन्नता पूर्वक रहते हैं। बस समाप्त। सहज-विवाह पूरे समाज को परिवर्तित कर देंगे, अपने आनन्द तथा प्रसन्नता से ऐसा घर बनाएंगे जहां हर सहजयोगी आ सकेगा और उसकी देखभाल होगी। कुछ लोग कहते हैं कि किसी ने मेरे लिए कुछ नहीं किया। आपने किसी के लिए क्या किया ? इस बात को जब आप समझने लगेंगे तो अच्छा होगा। सामान्यतः यदि किसी स्त्री की परवरिश ठीक प्रकार नहीं हुई होगी तो वह अतिमिथ्याभिमानी, स्वार्थी तथा आत्मकेन्द्रित होगी। पुरुष भी ऐसा हो सकता है। पर ऐसी स्त्री अपना धन किसी और पर नहीं खर्चना चाहेगी। वह नहीं चाहेगी कि कोई उसके घर पर आए और उसको साथ हिस्सा बांटे। पर हमें देखना ा के बाद आप स्वयं को दुखी न बनाएं और न ही निराशावादी विवाह का महत्व 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरियों का ज्ञान है। आप यह क्यों कहते हैं कि मैं नहीं जानता? आत्मा को पहचानने से ही आप रह सकते हैं तथा कवियों की कविताएं पढ़े। सहजयोगी होने के नाते आपने एक दूसरे के बीते दुखों का आनन्द नहीों लेना। अब आपको कोई नहीं है। सभी दुखः समाप्त हो गए हैं । नई चेतना सम्पन्न आप अब नए लोग हैं। अत: पुरानी बातों को भूलकर एक दूसरे के साथ का आनन्द लें। सहज योगियों को लोड्ड बायरन या शैली नहीं बनना। अत: याद रखिए कि बैठकर अपने दुखों की बात मत कोजिए, आपको किसी प्रकार का कोई दुख नहीं। आप आत्मा हैं, आप अपने तंथा दूसरे लोगों के लिए आनन्द का साधन हैं। अतः बैठकर रोइए धोइये मत। मै नहीं समझ पाती कि आप अपनी आत्मा को क्यों नहीं जानते। क्या आप अपनो आत्मा को नहीं पहचानते ? अब तो आप जानते हैं। आपके पास दुख दूसरों को भी आनन्द प्रदान कर सकते हैं। आपमें यह गुण होना चाहिए नहीं तो सभी कुछ बनाने का प्रयत्न करती हूं, पर अन्त में एक उत्साह विहोन जोड़े को बैठकर चिड़चिड़ाते हुए पाती हूं। तब उनसे उत्पन्न होने वाले बच्चों की भी कल्पना कीजिए। वे भी सोचेंगे कि कैसे चिड़चिड़े माता पिता हैं। हे परमात्मा हमें इन बिलखते हुए बच्चों से बचाओ। अतः इस प्रकार के दृष्टिकोण से मरी आशाओं पर पानी मत फेरिए। व्यर्थ है। हर विवाह को मैं अति सुन्दर चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-6.txt शोभनीय स्थिति की तैयारी विन्चैस्टर - 17.5.1980 आपका दृष्टिकोण परस्पर मेल-मिलाप तथा प्रेम को बढ़ाने पूर्वक परवरिश कीजिए, उन्हें बिगाड़िए नहीं, सहजयोग के प्रेम वाला होना चाहिए, रुमानी भावनाओं को प्रोत्साहित करने वाला में उन्हें विकसित कीजिए। नहीं। और उससे भी बुरा है दायीं ओर को झुककर नीरस (शुष्क) हो जाना। शुष्क गले से आप बोल तक नहीं सकते। दायें और बायें दोनों ओर हैं। बायां स्त्री तथा दायां पुरुष हैं । कुछ लोग अपने पति/पत्नी से मनोवैज्ञानिक चाल चलते हैं और ये हंसा चक्र पर मिलते हैं। इनमें असंतुलन होने पर समस्या होती उससे बातचीत करना बंद कर देते हैं। मैं आपको बताती हूं कि है। उन्हें समान होना होगा। परन्तु वे एक से नहीं है। बायां--बायां यह जीवन का भावनात्मक पक्ष है।" मैं उससे बात नहीं करुंगा, है और दायां-दायां। अतः दायें को दायीं ओर तथा बायें को उससे बोलूंगा नहीं"। वे इस प्रकार नौरस आचरण करेंगे। इससे बायीं ओर होना चाहिए। हंसा पर आकर वे विवाहित होते हैं भी आनन्द का वधहोता है। व्यक्ति या तो कोई कार्य बहुत अधिक करता है या बिल्कुल नहीं करता। या तो आप बहुत अधिक चीनी पहले अपने। तब जोवन के गौण कार्य सूझ-बूझ से मिल कर खाते हैं या बिल्कुल नहीं खाते। जिस प्रकार चाय का पूरा मजा करने चाहिए। यह नहीं हो सकता कि पत्नी काम पर जाए और लने के लिए एक विशेष मात्रा मं चीनी आवश्यक है उसी प्रकार पति बच्चे उत्पन्न करे। वह एसा नहीं कर सकता। अतः दोनों का जीवन में भी न तो बाहुल्य होना चाहिए और न ही अभाव। नव-विवाहिता स्त्रियों (भारतीय) के लिए पति ही सभी कुछ हो जाता है। बाकी सभी कुछ शून्य हो जाता है। ऐसी स्त्रियां मां न होतो तो कौन से पिता ने यह (आत्म साक्षात्कार का) कार्य निरर्थक हैं। पत्नियों के पीछे दोवाने पतियों का जीवन भी व्यर्थ किया होता? कौन से पिता ने ? क्या आप किसी के बारे में सोच है। अतः हर चीज का एक संतुलित दृष्टिकोण लोजिए। आपकी सकते हैं ? हो सकता है स्वर्ग में बैठे परमात्मा ने किया होता। पत्नी को प्रेम करने वाला व्यक्ति आप ही में है। आपकी पत्नी परन्तु पृथ्वी पर अवतरित किसी पिता का सहजयोगियों पर भी आप ही में है। आप ही अपनी पत्नी है और आपही अपने कार्य करना? ऐसा कोई पिता मुझे दिखाइये। ऐसे किसी भी पिता पति। अतः यदि आपकी सांसारिक पत्नी आपकी मानसिक पत्नी के शांति पूर्वक बैठकर सारा तमाशा देखने को तो आप कह इसका आरंभ हमने हंसा चक्र से किया। हंसा चक्र आपके अतः पत्नी को पहले अपने कर्तव्य करने चाहिएं और पति को है ी अपना-अपना कार्य महत्वपूर्ण है। मेरे विचार में मां बनना अति महत्वपूर्ण हैं। आज यदि आपकी सकते हैं परन्तु कार्य कौन करेगा? मां ही गंदे कपड़े तथा रुमाल स्तर की नहीं है तो आपको परेशान होने की आवश्यकता के नहीं क्योंकि आपके अन्दर की पत्नी तो सदा आपके साथ है। घो सकती है। वह इस कार्य को प्रेम तथा ध्यान से करती है। मां एक बार यह समझ विकसित होने पर पति-पत्नी सम्बन्ध ही जानती है कि किस प्रकार बच्चों को पालना है, यह मां का आदर्श हो सकते हैं। जबन तक आप अपने आदर्शों को अपनी पत्नी पर नहीं आराम से स्वर्ग में बैठ सकते हैं। सारा श्रेय परमात्मा को जाता थॉपते, या पत्नी इन्हें अपने पति पर नहीं थॉपती तब तक विवाह है जबकि मां बिना किसी श्रेय के सारा कार्य कर रहो हैं। कोई कोई गंभीर समस्या नहीं बनता। पत्नी-पत्नी तथा पति-पति बने बात नहीं। जैसा भी है सब स्वीकार किया जाना चाहिए। रहें। पत्नी पति न बने और पति पत्नी न बने। ऐसा यदि हो जाए तो इसे सुधारना कठिन है। अब मुख्य बात यह है कि आपका विवाह बच्चे उत्पन्न करने के लिए हुआ है। अब आपको रोमियाँ-जूलिएट बन कर नहीं पुरुष पर स्वामित्व-जताने लगे तो संतुलन बिगड़ जाता है। स्त्री रहना। आपको बच्चे होने चाहिए। सहजयोगियों के यहां जन्मे अतिमहत्वपूर्ण है। स्त्री के बिना आप उत्पन्न ही न हो पाते। ठीक बच्चे जन्म-जात आत्मसाक्षात्कारी आत्मारं होंगी। महान आत्माएं या शक्ति। इसी कारण आपका विवाह हुआ है और अति महत्वपूर्ण है। पुरुष के बिना स्त्री का कोई अर्थ नहीं। इसी कारण आपने बच्चे उत्पन्न करने हैं। अपने बच्चे को सम्मान परमात्मा के बिना शक्ति अर्थ विहीन है। शक्ति किसके लिए ही कार्य है। यह मां का कार्य है, मां ही इसे कर सकती है। पिता हसा चक्र पर यह विवेक आना आवश्यक है कि हम दायों तथा बांयी दोनों नाड़ियों को संतुलन में लाएं। पुरुष - पुरुष तथा स्त्री-स्त्री। जब पुरुष स्त्री पर या स्त्री ताि है बात है। स्त्री के बिना आप साक्षात्कार न पा सकते। पुरुष भी शोभनौय स्थिति की तैयारी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-7.txt जैसा कि मैने कहा, पहले पिता, फिर पुत्र और अब मी। स्वर्ग कार्य-रत है ? किसके लिए यह सभी कुछ कर रही है? परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए। अपने अन्दर निहित दोनों अस्तित्वों (स्त्री एवं पुरुष) के संतुलन, सूझबूझ, परस्पर सम्मान तथा सहयोग से आपका हंसा चक्र ठीक हो जाएगा। आपको अधिक अच्छा लगेगा। में में कोई नारी-आदोलन नहीं है। हर व्यक्ति पूर्ण सामान्जस्य है। फिर एसन की पुस्तक (अध्याय) में कहा गया है कि होली घोस्ट (चैतन्य लहरी) मां थी। कुण्डलिनी आपके अन्दर मातृ-तत्व है, होली घोस्ट है। अत्यधिक भावनात्मक बात होने के कारण आपको विवाह, नए धार्मिक विचारों का विकास शुरु करते हुए हमने पिता' स्त्रियों पुरुषों तथा अपने बारे अपने विचारों को सुधारना होगा। की बात की फिर पुत्र की । और होली घोस्ट अचेतन बना रहा। जिनके वाम पक्ष कमजोर हैं उन लोगों को जुकाम तथा पित्त आज की स्थिति में, आप देखते हैं, कि एक नारी वादी चेतना संबंधी समस्याएं रहती हैं। भावनात्मक पक्ष की उचित रुप से : आ रही है। परन्तु इसे अति गलत रास्ते पर ले जाया जा रहा देखभाल तथा पोषण होना चाहिए। व्यक्ति को याद रखना है कि है। उसका सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है। सम्मान-विहीन कोई भी स्त्री या मातृ-तत्व गर्भ तत्व है। धरा मां का तत्व है जो हमारा चीज प्रेम नहीं हो सकती। प्रेम गरिमामय है और यदि आप गरिमा पोषण करता हैं, विकास करता है तथा अपनी चुम्बकीय शक्ति में रहते हैं, तो आप हैरान होंगे, कि, आप बहुत सी समस्याओं सेहमारा मार्ग-दर्शन करता है। परन्तु यदि चेतना को दायीं ओर को होना है या पुरुषत्व-पूर्ण होना है तो पहले भी बहुत से पुरुष हो चुके हैं। यदि स्त्रियां पुरुष बनने का प्रयत्न कर रही हैं तो यह पैंडुलम (लोलक) का एक छोर से दूसरे छोर तक आना है। परन्तु चेतना तो मां की है जिसकी अभिव्यक्ति उसे का समाधान कर लेंगे। प्रश्न-- आप स्त्रियों का क्या भविष्य देखती हैं? श्री माता जी: महान। स्त्रियों को पुरुष बनने का प्रयत्न बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करना भयानक है। अपनी गरिमा में स्त्री तो स्त्री है। वह पृथ्वी मां की तरह है। अपनी शक्यों को वह नहीं जानती, यही समस्या है। पुरुषों से झगड़ने वाली कोई बात नहीं। स्त्री-पुरुष एक हो रथ के दो पहियों सम हैं। दोनों समान हैं पर एक से नहीं है। स्त्री को यदि अपनी मातृत्व की शक्ति का ज्ञान हो तो वह पुरुष से कहीं अधिक गतिशील है। असुरक्षा की भावना के कारण भी स्त्री तथा पुरुष अंति अशोभनीय ढंग से एक दूसरे के प्रति आकर्षित रहते हैं आपको अपनी अबोधिता तथा गरिमा में उठना है। इस प्रकार का घटिया प्रदर्शन आपने नहीं करना। आप जानते हैं कि इस प्रकार का जीवन अतिभयानक होता है। अब करनी है। वह चेतना व्यक्ति को करुणामय, स्नेहमय, पोषक तथा सुखदायी बनाती है। पर हम इस साधारण सी बात को नहीं समझते किं जब तक यह कार्य पूर्ण नहीं हो जाता अपनी चेतना में अभी हम पूर्ण नहीं हुए। पचास वर्ष पूर्व तक आक्रमण कारी को अभिनेता समझा जाता था पर आज यह सम्मान करुणामय तथा स्नेहमय व्यक्ति को प्रात है। इन दोनों तत्वों के कार्यान्वित होने पर ही कुण्डलिनी जागृत होती है। चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-8.txt भावी वधुओं को शिक्षा अभी तक आप कुमारी थो। अब आप एक भिन्न प्रकार के तथा समर्पित व्यक्तित्व की बनना है। जोवन, विवाहित जीवन में प्रवेश कर रही हैं। विवाह को सफल बनाने का महान उत्तरदायित्व आप पर है। आपका आचरण में स्त्रियों की शक्तियों का वर्णन है। स्त्री को शक्ति का अवतरण ऐसा होना चाहिए जिससे कि आप में मातृत्व को रचना हो तथा जो आपके पति तथा बच्चों को अनुशासित कर सके। आपने अपनी मां को तो देखा है, आपकी मां कभी कभी एक ही स्थान पर नौ-दस घंटे लगातार बैठी रहती है। इस स्थान से होना है। चालाक नहीं। बाहर तक नहीं निकलती। पर मैने देखा है कि ध्यान करते हुए भी लोग एक स्थान पर दो घण्टे भी नहीं बैठ सकते।वे खड़े होकर अनावृत हो जाएंगे और मैं कठिनाई में फंस जाऊंगी। अत: अपने अन्य सब लोगों को परेशान करते हुए बाहर आ जाते हैं। यह चक्रों को सुरक्षित रखने के लिए मुझे पर्याप्त जल तथा चर्बी दर्शाता है कि हममें अनुशासन की कमी है, तथा यह कि न की आवश्यकता है। यह कार्य पर निर्भर है। मां के लिए मांसल तो हमारे माता पिता ने हमें अनुशासन सिखाया और न हमने होना आवश्यक है। मां यदि मांसल न हो तो बच्चे भी हड्डियां स्वयं को अनुशासित किया। सर्वप्रथम आपको अपने स्वभाव को पूर्णतः अनुशासित करना है। अनुशासित स्वभाव ही इस बात का प्रतीक है कि आप हुई एक अंग्रेजी कविता पढ़ी थी, "मेरी मां एशिया सम विशाल"। लोग ही पृथ्वी मां के प्रतिनिधि हैं जिसमें अपने विवेक को मां के विषय में एक सुन्दर कविता। अतः मां का अभिनेत्री सम अभिव्यक्त करने की विशेष शक्ति तथा बुद्धि है। आप सब को होने का विचार मूर्खतापूर्ण है। परन्तु सम्मान योग्य कार्य करने अत्यंत सावधान रहना है क्योंकि आपके हर कार्य का प्रभाव वाली स्त्रियों के असम्मानित होने के कारण स्त्रियां इस प्रकार पूरे परिवार तथा पूरे सहजयोग पर पड़ता है। विवाह हो जाने की मूर्खता करने लगती हैं। इस देश में स्त्री का दर्जा वैश्या का पर, आपने समझना है कि आप धरा मां हैं, और आपका कार्य है। इसका परिणाम क्या होगा? वे भी वैश्या की तरह आकर्षक देना है, आपमें देने की शक्ति है। अन्तरनिहित अपनी बहुत सी बनना पसंद करेंगी। शक्तियों के कारण आप दे सकती हैं। क्योंकि आप में देने की शक्ति है इसलिए आप पुरुषों से श्रेष्ठ हैं। अतः आप का अहं हर सुन्दरता है व्यक्ति को प्रकृति के विरुद्ध नहीं चलना चाहिए। समय आपके आड़े नहीं आना चाहिए। तभी आप स्त्रीत्व का आनन्द ले सकेंगी। अच्छी माताएं, अच्छी पत्नियां तथा अच्छी सहजयोगिनियां स्त्री का हर देश में सम्मान होता है। उदाहरणार्थ मैं यदि किसी बनने का प्रयत्न कीजिए। विवाह के पश्चात अपने पतियों को पार्टी में जाऊं तो वहां श्रीमती श्रीवारतव के रूप में मेरा सम्मान सहजयोग से हटाने वाली स्त्रियां अति अभिशप्त होती हैं। दूसरो होगा। और मेरे पति की सचिव भी यदि वहां हो तो भी वह मेरे से मुधर वाणी से बात कीजिए, सावधानी पूर्वक कोई भी बात कहें। आपको जिम्मेवार बनना है। आप विशेष व्यक्ति हैं कि समाज में पति के पास कौन बैठेगा? यह मेरा प्रश्न है। सहजयोग में आपका विवाह हुआ। मैं आशा करती हूं कि आप सदा इस बात का ध्यान रखेगें। सुन्दर तथा आधुनिक वेशभूषा पहनने वाली थी। हम सब को एक गृहलक्ष्मी अति शक्तिशाली संस्था है। भारत में गृहलक्ष्मी को रात्री भोज पर बुलाया गया। किसी कारण वह अपने पति के महानतम माना जाता है। प्रधानमंत्री या उससे ऊंचे पद से भी साथ न आकर अलग से आयी। अब सभी स्त्रियां अपने पतियों महान। अध्यात्म में गृहलक्ष्मी का स्थान सर्वोच्च है, पर स्त्रियों के साथ बैंठी। पर उसका स्थान खाली था। उसके पति ने अपनी को भी पूर्ण गृहलक्ष्मी होना है। अर्थात उन्हें विशाल हृदय, प्रेममय पत्नी के विषय में पूछा तो उसे बताया गया कि वे तो नहीं आयों। गृहलक्ष्मी की बहुत सी कथाएं हैं। भारत में हजारों कथाओं माना जाता है। पर गृह लक्ष्मी उनमें सबसे अधिक शक्तिशाली है। वह प्रेम, करुणा तथा क्षमा की महान शक्ति है। स्त्रियों को अत्यंत धार्मिक तथा पवित्र होना है। उन्हें स्वभाव से हो निश्छल मान लीजिए कि यदि मैं पतली हो जाऊं तो मेरे सारे चक्र महसूस करते हैं । स्त्रियां यंत्रवत तथा नीरस हो जाती हैं। मैने मां का वर्णन करती मेरा अभिप्राय है मातृत्व ही स्त्री का सौदंर्य है। मातृत्व ही इस देश में गृहस्वामिनी को सम्मान नहीं दिया जाता। इसी कारण लोग इस प्रकार से व्यवहार करते हैं। पर सूक्ष्म रूप से पति के साथ नहीं बैठेगी चाहे वह मुझ से भी सुन्दर क्यों न हो। हैम्बर्ग की एक घटना है। कैबिनेट सचिव की पत्नी अत्यधिक भावी वधुओं को शिक्षा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-9.txt सचिव ने कहा नहीं वह तो यहां आ चुकी हैं।नहीं श्रीमान, आपकी सचिव तो आई हुई हैं, हम उनसे पूछते हैं। यह सचिव लगने वाली पुनर्विवाह की चिंता नहीं करते । वे पुनः विवाह करते ही नहीं। स्त्री कोई और न होकर उनकी पत्नी ही थी जिन्हें अपनी वेशभूषा पर यहां तो चालीस-पचास साठ वर्ष की आयु में भी उन्हें पत्नी के कारण सचिव समझ लिया गया था। वह उन्हें समझा न पाई चाहिए। अर्थात साठ वर्ष आयु की मां पांच-छः बार विवाहित थी कि वही उनकी पत्नी है। कितनी शर्मनाक बात थी राजनैतिक होती है। यह मु्खता पूर्ण है। स्तर के लोग भी ऐसी स्त्रियों को पसंद नहीं करते। मैं एक बार श्रीवास्तव साहब के कार्यालय में गई तो मुझे यदि पूर्ण हों तो यह बहुत ही गहन होंगे। यह इतना आन्तरिक देखकर लोग अपने कोटों के बटन बंद करने लगे। मैने अपने रिश्ता है कि आप किसी अन्य स्त्री या पुरुष की ओर दौड़ने पति से इसका कारण पूछा तो क़हने लगे कि अचानक आपको की बात तक नहीं सोचते। विवाह के बाद सारी दौड़ समाप्त हो अपने सामने पाकर वे एसा करने लगे क्योंकि वे आपका सम्मान करते हैं। आपके चेहरे पर सम्माननीयता को वे देख सकते हैं। अपने घर में आराम से हैं। जब आप किसी अन्य के घर में होते आप सी स्त्री को देखना उनके लिए अतिसुखद है। बाह्म दिखावा अधिक महत्वपूर्ण नहीं। आन्तरिक भाव तथा है। विवाह ऐसा ही है। अब आप अपनी मंजिल पर पहुंच गए पूर्ण व्यक्तित्व महत्वपूर्ण हैं। अभिनेता या अभिनेत्री सम लगने हैं। अत: स्थिर हो जाइए। मंजिल पाकर भी आप दौड़ रहे हैं। वाला सहजयोगी कभी भी अन्य लोगों को प्रभावित नहीं करेगा। झूठ्-मूठ के गुरु भी अपने शिष्यों को सिखाते रहते हैं कि किस प्रकार शान्त प्रतीत होना है। पोप भी ऐसा ही था. लामा भी पेसे परिणाम देख कर आपको हैरानी होगी। आजमाकर तो देखिए। हो होते हैं। वे अपने को शांत दर्शाने का प्रयत्न करते रहते है। की मत्य हो गई पर स्त्रयां बच गई। पुरुषों को संख्या इतनी कम एक बार पत्नी को मृत्यु हो जाने पर बहुत से भारतीय पुरुष सम्बन्धों का (पूर्ण) गहन न होना हो समस्या है। सम्बन्ध जाती है। विवाहित जीवन को समझते हो आपको लगेगा कि आप हैं तो आपको लगता है कि 'मुझे जाना है। मुझे घर वापिस जाना यह तो पागलपन है। आप मेरी बात को आजमाइए। इसके जैसे इस्लाम में कबीले की लड़ाई के कारण बहुत से पुरुषों थी कि वैश्यावृत्ति आरंभ हो सकती थी। अतः मोहम्मद साहब ने कहा कि चार स्त्रियों से विवाह कीजिए। युवकों को कमी होने गरिमा-मय होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति स्वतः ही, स्वभाविक रुप से अपने चरित्र द्वारा दूसरे लोगों को प्रभावित करता है। वह पाखण्डो नहीं वास्तविक सहजयोगी है। इसका अर्थ यह भी के कारण बड़ी आयु के पुरुषों को युवतियों से विवाह करने की है कि आप अपने अस्तित्व का सम्मान करें। जैसे आपका आचरण ऐसा होना चाहिए जिससे यह न लगे कि आप अपनी सब किया गया। इसे समयाचार कहते हैं। पर समयाचार भी समय पवित्रता और अपने धर्म का सम्मान नहीं करते। इन सबका सम्मान होना चाहिए। परिणामस्वरूप आप में अद्वितीय भाव आ विवेक आवश्यक है। जाएंगे। पश्चिमी देशों की यही अवस्था है हमें यह बात समझनी कारणों वश चार विवाह करने पड़े। पाण्डवों के अपनी मां के चाहिए। अन्दर के स्थान पर बाह्य का वहुत ध्यान किया जाता है। इसके प्रति हमें बहुत सावधान रहना है। कल्पना कीजिए करना पड़ा। कृष्ण को सोलह-हजार शक्रियों (स्त्रियों) से कि आज तो स्त्रियां वैश्याओं सम है और कल आप उन्हें विवाह करना पड़ा। उनके पास सहजयोगिनियां तो थी नहीं। जिस अध्यापिकाओं के रुप में पाएं। भारत में हम ऐसी बात की कल्पना भी नहीं कर सकते - असंभव। मैं एक अन्य बात से भी हैरान थी। मेरे विचार से एक महिला से मुक्त करके शक्ति संचार के लिये धारण किया। पंच-तत्व पचास-चालीस वर्ष को रही होगी। अपने पहले पति को उसने भी उनकी पत्नियों के रूप में आए। तलाक दे दिया तथा अब वह नया पति चाहती है। भारत में यदि कोई लड़को इक्कीस वर्ष को आयु में विधवा हो जाए तो भी वह इसकी आलोचना भी कर सकते हैं परन्तु लोगों को इतने बच्चे टूसरे विवाह की चिंता नहीं करती। इतनी ऊंचाई है उनमें। विना प्राप्त करने की इच्छा हास्यास्प्रद होगी। यह समयाचार है। जैसे विवाह के ही वह प्रसन्न रहतो हैं। पर यहां तो आप स्त्रियों को कल्पना ही नहीं कर सकते क्योंकि आपकी महिलाएं भी पुरुषों अर्थ ये नहीं कि आत्म साक्षात्कार पाने के लिये आप भी कोका सम हैं। आज्ञा भी दी गई। समाज को व्याभिचार मुक्त रखने के लिये यह की आवश्यकताओं के हिसाब से बदलना चाहिए। इसके लिये अपने ब्रह्मचर्य (पवित्रता) के लिये प्रसिद्ध शिवाजी को कुछ प्रति वचनबद्धता के कारण द्रोपदी को पांच पतियों से विवाह प्रकार मैं अपनी शक्ति आप लोगों के माध्यम से प्रवाहित करना चाहती हूं उसी प्रकार कृष्ण ने अपनी सारी शक्तियों को राक्षस आज जनसंख्या के बाहुल्य में भी मेरे इतने सारे बच्चे हैं। लोग सामान्य लगने के लिये मैं कोका कोला पी लेती हूं। पर इसका कोला पीने लगें। चैतन्य लहरीं 70 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-10.txt से सहस्रार तक हृदय दिल्ली-9-2-89 स्त्री को शालीन तथा गरिमामय होना चाहिये। उसे पुरुषों से सम्बन्ध समझ आएंगे, माता-पिता से सम्बन्ध उनके वृद्ध हो जाने प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए। पुरुषों से मुकाबलना करना पर समझ आएंगे। मुर्खतापूर्ण है। भारतीय महिलाएं इस बात को समझती हैं। पर अब पुरुषों के लिए भी समझना आवश्यक है कि स्त्रियों का सम्मान हुआ पाएंगे पर अपनी पत्नी से आपके संबंध अति निजी तथा करें। यदि वे स्त्रियों का सम्मान नहीं करेंगे तो उनकी बेटियों का आचरण भी निराशाजनक होगा। पिता के मुँह पर एक दिन वे गाए हैं। भारतीय भाषा में किसी भी अहितकर बात को स्वीकार तमाचा मार सकती हैं। यह बिल्कुल संभव है। इस देश में भी यह नहीं किया जाता क्योंकि भाषा साहित्य कलहाती है। साहित्य का सब कुछ हो सकता है। श्री राम दायं हृदय के स्वामी हैं। वे मयादा तथा सोमाओं के रखसके। जो साहित्य ऐसानहीं कर सकता वह व्यर्थ है। अश्लील देवता हैं उन्होंने मनुष्यों को जीना सिखाया। उनके जीवन का है। मुख्य संदेश उनका प्रेममय एवं समर्पित पति होना है। वे इतने श्रेष्ट व्यक्ति थे जिन्होंने अच्छा राजा बनने के लिये अपनी पत्नी का आनन्द लेना जान सकें तो वे स्वयं पवित्र हो जायेंगे और तक को त्याग दिया। इस देश में, जहां हम सोचते हैं कि "प्रेम महान है, स्थिति चाहते हैं, शुद्ध हीरा चाहते हैं, शुद्ध सोना चाहते हैं। पर जब प्रेम बिल्कुल विपरीत है। मैं बहुत से मंत्रियों को जानती हूं जिनकी की बारी आती है तो हम नाना प्रकार की अपवित्रता तथा पत्रियां परिवार पर शासन करती हैं। उनमें बलिदान की भावना विकृतियां अपनाना चाहते हैं। फिर हम कहते हैं कि "ओह मैं नहीं है। पत्रियां इतनी महत्वपूर्ण हैं कि पतियों की भी कोई गिनती तो परेशान हो गया हूं। मैं इसका आनन्द नहीं ले सकता।" कारण नहीं रह जाती। उनके लिये अपने बेटे-बेटियां हो अत्यधिक अपवित्रता है। महत्वपूर्ण हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिये कि श्रीराम ने अपनी प्रिय -पत्नी को गर्भावस्था में त्याग दिया और उनकी याद में हम सन्यास में विश्वास नहीं करते क्योंकि बहुत सी महान आत्माएं सन्यासी का जीवन बिताया। श्री राम का यह महान त्याग था। पृथ्वी पर अवरतरित होना चाहती हैं तथा हमं उनके आने का प्रबंध सोता जी ने भी अपनी गरिमा तथा सोमा में उन्हें त्याग दिया। करना है। हमारे यहां अति प्रसन्न विवाहत लोग होने चाहिएं जो उन्होंने राम को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया। स्त्री सुलभ ढंग से वे आलोप हो गई। आधुनिक युग में ऐसा नहीं है। पति यदि पत्नी को नुकसान ओर पूरा ध्यान नहीं देते तथा उनकी सहायता नहीं करते, इस पहुंचा दे तो वह न्यायालय में जाएगी तथा पति को दंडित देश का अनुशासन न सुधरेगा। पत्नी ही बच्चों को अनुशासित करवाएगी। माना आप अपने पति से प्रेम करती हैं तथा चाहती करती है। अतः उसमें सुरक्षा की भावना होनी हो चाहिए। पुरुष हैं कि वह दूसरी स्त्रियों की ओर न दौड़े। पर इसके लिये उसे का मिथ्याभिमान समाप्त होना चाहिए। पुरुष का स्वयं को जेल भिजवाना तथा दुःख देना तो ठीक नहीं। हमें महसूस करना है कि सहजयोगियों के लिए पति-पत्नी आंखों में से एक आंख यदि अपने को अधिक महत्वपूर्ण समझे सम्बन्ध अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। आप एक दूसरे पूरक है। तो कहां तक ठीक है ? सम्बन्ध ठीक न होने पर सहजयोग कार्य नहीं करेगा। परस्पर सम्पूरकता, आपसी प्रेम, प्रेम सौन्दर्य तथा सूझबूझ महत्वपूर्ण है, तो आपको बाई विशुद्धि की समस्या हो सकती है। और आपको स्त्री को रोबदार नहीं होना। मैने देखा है कि प्रेम दर्शाने के लिये लोग एक दूसरे को चूमते हैं। यह अनावश्यक है। आपका अपने पति से तदात्मय भाव आवश्यक है। पति भी उस प्रेम को महसूस करे। यही प्रेम सम्बन्ध सुन्दरतम हैं। अपने बच्चों से आपके सम्बन्ध आप तब जब वे कमाने लगेंगे, बेटियों के विवाहित हो जाने पर उनसे आप बड़े हो चुके हैं, आपकी पत्नी है। आप उनका दंभ बढ़ता हैं। इसी कारण लोगों ने इसको प्रशंसा के गीत अत्यन्त बहुमूल्य अर्थ है सह + हित - अथात जो आपको आपकी आत्मा के साथ पति-पत्नी सम्बन्ध अत्यंत पवित्र हैं। लोग यदि इस पवित्रता इसका सारतत्व पा लेंगे। कुछ भी खरीदते हुए-हम शुद्ध रेशम सम्बन्ध की पवित्रता का आनन्द लेना चाहिए। सहजयोग में परस्पर प्रेम तथा सम्मान करें ताकि महान संत यहां जन्म ले सकें। जब तक हम अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते, उनकी महत्वपूर्ण समझना गलत है। दोनों की एकता महत्वपूर्ण है। दो ले के दूसरों से सम्बन्ध में यदि आप में पवित्रता का भाव नहीं है। बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं। विकृत आचरण मत कीजिए। यदि आप पुरुष हैं तो पुरुष को तरह आचरण कोजिए और यदि स्त्री हैं तो स्त्री की तरह। यदि आप अपनी प्रकृति के विपरीत आचरण करेंगे तो अहितकर होगा। समझेंगे 11 हुदय से सहसार तक 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-11.txt समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका जया (4) पत्नी.का पति से सम्बन्ध प्रेममय तथा आज्ञाकारी पत्नी सोता जो के श्रीराम से सम्बन्धों के आधार पर होना चाहिए। पत्रियों को चाहिये कि पतियों का ध्यान रखें, उनका "व्यक्ति को समझना है मातृत्व अति महत्वपूर्ण है।" मां ने ही ब्रह्माण्ड की सृष्टि की, "पिता" तो केवल साक्षी थे। श्री माता जी गिर्मला देवी माताएं समाज की जड़ों को स्थायित्व प्रदान करती हैं यदि पोषण करें तथा उन्हें व्यवस्थित गृहस्थी दें। पसंद का भोजन माताएं ही असंतुलित हॉंगो तो पूरा समाज ही अस्थिर होगा और पतियों को दें और उनके प्रति न तो आक्रामक हों और न हो आज के पश्चिमी देशों की तरह उन्नत न हो पाएगा। माताएं किस प्रकार यह स्थिरता तथा संतुलन प्राप्त करती हैं? पत्नी घर चलाए। (1) सर्व प्रथम उनकी पवित्रता की रक्षा तथा सम्मान किया जाना चाहिए। ऐसा केवल स्थूल स्तर पर ही नहीं होना चाहिए करे, पत्नी को आर्थिक तथा भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करे तथा ताकि वे अपनी दुष्टि तथा मस्तिष्क से पतियों के प्रति वफादार उसके प्रति पूर्णतया वफादार रहे। रहें। इसी प्रकार पतियों को भी चाहिए कि अपवित्र दृष्टि से अन्य स्त्रियों को न देखें और न ही उनके साथ चांचलेबाजी करें। समाज की दृष्टि को वासना से परे रखने के लिये स्त्रियों को प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। वेषभूषा भी महत्वपूर्ण है। वस्त्र सुशिष्ट तथा स्त्री सुलभ होने चाहिएं, वाहयात किस्म के नहीं। विवाह से पहले अपना सतोत्व खो देने वाली युवती का विवेक हुए विकसित हो सकें। इस प्रकार का आचरण बच्चों में आत्म खो जायेगा। इसके बाद उसका जीवन अहं वृद्धि करने वाला सम्मान विकसित करने के लिये वातावरण प्रदान करेगा। रोमान्स मात्र रह जाता है जिसका प्रेम से कोई संबंध नहीं होता तथा जो अध्यात्मिक उन्नति के लिये कोई स्थान नहीं छोड़ता। (2-3) मोज़ज़ प्रदत्त दस धर्मों तथा आदि गुरु दत्तात्रेय के सकें। स्त्री को चाहिए कि पति को अपनी सम्पदा बनाने के स्थान अवतरणों द्वारा दी गई शिक्षाओं के आधार पर पारिवारिक-जीवन-धर्म स्थापित होना चाहिए। अध्यात्मिक विकास की ओर ले जाने वाली विद्या ही ईष्ष्या नहीं होनी चाहिए। इन शिक्षओं को सीमावद्ध करती है। दूसरे शब्दों में उचित-अनुचित आचरण का निर्णय करके अपमान नहीं होना चाहिए। उचित-अनुचित का ही अनुसरण करना चाहिए। इस प्रकार परिवार में बढ़ते हुए बच्चे माता-पिता के उदाहरण तथा उन्हें साक्षात्कारी होने के कारण उनके बच्चों में अहं बहुत अधिक बढ़ दी गई शिक्षा द्वारा उचित आचरण सीखेंगे । क्षमा-भाव तथा दुलारपूर्वक बच्चे को लगातार सुधारना मां. उन्हें सुधारा जाना चाहिए। का कार्य है। प्रेम पूर्वक बच्चे के सम्मुख उचित-आचरण-विधि का प्रदर्शन करना सर्वोपरि है। बच्चे का केवल शारोरिक पोषण ही आवश्क नहीं, उसे की तरह प्रेम तथा करुणा का आचरण करना चाहिए। भावनात्मक सुरक्षा भी दी जानी चाहिए। जिससे पारिवारिक जीवन की धार्मिक पृष्ठभूमि में उसका अध्यात्मिक विकास हो अथाह कृपा हम पर हुई है। मां के रूप में आदि शक्ति का सके। उन पर रोब डालें। जहां तक संभव हो पति धर्नाजन करे तथा पति को चाहिए कि बच्चों के विकास में पत्नी की सहायता उनके सम्बन्ध प्रेममय होने चाहिएं, वासना मय नहीं। परस्पर प्रेम प्रदर्शन पवित्र तथा निजी होना चाहिए। सबके सम्मुख प्रेम पति पत्नी को एक-दूसरे से सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए ताकि इसे देखकर बच्चे भी माता-पिता का सम्मान करते (5) अपने संबंधों में हर महिला को पूर्ण पवित्रता बनाए रखनी चाहिए जिससे कि सच्चे बहन -भाई सम्बन्ध विकसित हो पर दुसरों से उसके पिता तथा भाई के सम्बन्ध का आनन्द भी लें। पति के दूसरों से सम्बन्ध भी पवित्र होने चाहिएं, उनमें कोई शुद्ध परिवार के बुजुर्गों का सम्मान होना चाहिए तथा बच्चों का माताएं अपने बच्चों को अनुशासित करें क्योंकि आत्म सकता है। ये बच्चे देवी-देवता नहीं हैं। जब भी आवश्यक हो (6) मां को अपने अंदर क्षमा तथा करुणा के गुणों को विकसित करना चाहिए और सभी बच्चों के साथ अपने बच्चों (7) अंत में, आदि-शक्ति के हमारे साथ पृथ्वी पर होने की अवतरण महानतम है। चैतन्य लहरी 12 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-12.txt स्त्री रूप में जन्मी हम सब भाग्याशाली महिलाओं को अपने रोजमर्रा के जीवन में न केवल उनके उदाहरण पर चलना है बल्कि अपनी कुण्डलिनी पर ध्यान लगाते हुए अपनी जड़ों को गहरा करना है और श्री माताजी के गुणों को अपने रोम-रोम में गहन-आत्मसात करना है। दैवी मातृत्व के गुणों की जीवन में अभिव्यक्ति और मां के प्रेम की चैतन्य लहरियों का प्रसार अपने घर, परिवार तथा मानव मात्र में करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। "यदि आप आदर्श बन जाएं तो आदर्श को शक्ति आपको बिना किसी वासना या लालच के जब हमें किसी के प्रति प्रेम आता है तो वह हमारे अंदर परमात्मा का प्रेम है। परमात्मा ही उस पवित्र प्रेम की साकार मूर्ति है जो मात्र प्रेम करते हैं, जिसने हमें यह सुन्दर मानव जीवन प्रदान किया है और हमें अधिक सुन्दर बनाना चाहता है। परमात्मा ने आपके लिए इस विश्व की रचना की तथा वह चाहता है कि विश्व के सभी देशों का आनन्द आप उठाएं। वह चाहता है कि उसके साम्राज्य के नागरिक होने के नाते उसकी करूणा का आनन्द आप उठाएं। रामायण से उद्धुत :- इतना प्रगल्भ कर देगी कि बिना किसी के मार्गदर्शन के आप आदर्श हो जाएंगे। आपके आदर्श मशालों की तरह हैं। आपके महाराजा जनक ने स्वयं सीता का विवाह श्री राम से किया। उन्होने कहा, "रामचन्द्र, चन्द्र सम राम, सीता को अपनी जीवन संगिनी बना लो। उसकी ओर देखो, उसे बहुत अधिक कभी मत देखना, स्नेहिल दृष्टि से उसकी कामना करो। सीता सदा राम को प्रेम करो, पत्नी बन कर उनके साथ चलो तथा परछाई की तरह आदर्श भी प्रकाशरंजित हो उठेंगे।" जिस व्यक्ति में गौरी की शक्ति है, ऐसा व्यक्ति जब किसी सहज सभा में प्रवेश करता है तो सबकी कुण्डलिनी उसका सम्मान करने के लिए ऊपर उठ जाती हैं। जब आप में गौरी की शक्ति (पवित्रता) होती है तो आप निराले लगते हैं क्योंकि आपकी चमकती हुई अबोध आंखें होती हैं। जब भी आप अपनी आंखे घुमाते हैं तो आपकी एक दृष्टि से कुण्डलिनी ऊपर चली जाती है। सदा उनका पौछा करो। मैं तुम्हारा विवाह करता हूँ।" जनक ने सोता से कहा, "पिता कुमारी बेटो की रक्षा करता है पर विवाहित होने पर उसे सदा स्वामी को रक्षा लेनी है।"तुम अब मझे छोड़ रही हो। पर अपनी मां (पृथ्वी) को कभी न छोड़ना। ॐ** 13 समाज तथा सहजयोग में माताओं की भूमिका 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-13.txt सहज विवाह की कस्में दुल्हन : मैं तुम्हारा मूलाधार चक्र ठोक रखने में सहायक हँगी। अपनी सारी सम्पत्ति मुझे दे दो मैं उसकी देखभाल करुंगो। आपको मेरा बनाया खाना खाना होगा या अपने भाई-बहनां द्वारा बनाया गया। यदि बाहर खाना खाना भी पड़े तो आप उसे चैतन्यित करके खाएंगे। तुम मेरी आज्ञा के बिना बाहर नहीं जाओगी और मैं भी बाहर जाते हुए तुम्हें बताऊंगा। न मैं भूतकाल की बात करूगा और और न ही इस विषय में सोचूंगा, तुम्हें भी ऐसा हो करना होगा। दूल्हा :- सहजयोग करते हुए यदि मुझ से कोई भूल हो तो तुम्हें क्षमा करनी होगी और मैं भी ऐसा हो करुंगा। दोनों कहते हैं :- श्री आदिशक्ति माता जी निर्मला देवी ने इस विवाह द्वारा हमें पवित्र बंधन में डाल दिया है। श्री माता जी के महायज्ञ का महान सौभाग्य हमें मिला है। अपना स्वास्थ्य, वैभव, मस्तिष्क एवं हृदय-सभी कुछ हम उनके चरण कमलों में समर्पित कर देंगे । हम एक दूसरे के प्रति वफादार रहने की शपथ लँगे। हम सहजयोग को बढ़ाने के लिये कार्य करेंगे। अपने बच्चों की परवरिश सहजयाग में करना हमारा कर्तव्य होगा। :- अपनी शारीरिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों दुल्हन से मैं सारा गृहकार्य करुंगी। प्रेम तथा र्ेह पूर्वक रहते हुए मैं आपकी आज्ञा पालन करुंगी। आप मेरे कार्य में मेरी सहायता करें तथा मैं आपकी सहजयोग के कार्य में सहायता करूंगी। दुल्हन :- मैं अपना लक्ष्मी चक्र ठीक रखूंगी और आप मेरे लक्ष्मी तत्व का सम्मान करेंगे। इससे आपका लक्ष्मी तत्व ठीक रहेगा। जो भी कुछ आप घर लाते हैं उसका हिताव आप मुझे देंगे, कुछ भी छिपाया नहीं जायेगा। मैं तुम्हें प्रेम तथा स्तनेह द्वारा प्रसन्नता तथा शांति दूल्हा : दंगा पर तुम्हें भी मेरी प्रसन्नता तथा शांति का विचार करना होगा। जय श्री माता जी ** ॐ चैतन्य लहरों ा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2.pdf-page-14.txt प्रस्थान वार्ता रौहरी -1987 प्रस्थान करते हुए वे आपके चेहरे पर आंसू न देख पाएं। स्मरण रखें कि आपके चेहरे पर विश्वास तथा उत्साह के भाव होने चाहिए कि हम शोघ्र ही पुनः परस्पर मिलने वाले हैं। उदासी की कोई बात नहीं। आपको सूर्य की भांति उदार होना चाहिए। आप सूर्य को अपने साथ लेकर चलते हैं। आपको प्रेम तथा स्नेह फैलाना चाहिए ताकि लोग जान सकें कि यह सूर्य आप भारत से लाए हैं। आप लोग योगो हैं कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। आप उस श्रेणी के लोगों के प्रतिनिधि हैं जो अपनी धर्मपरायणता, करुणा तथा प्रेम के लिए प्रसिद्ध यह आनन्द जो आयने यहां प्राप्त किया है इसे दूसरे सहजयोगियों तथा सर्वसाधारण लोगों तक भी पहुंचाइए। मैं आप सबके लिए उत्कृष्ट प्रेम की कामना करती हूं। आपकी यात्रा आनन्द दायों हो। परमात्मा आपकों धन्य करें। अत्यंत प्रसन्न चित्त रहने का प्रयत्न कीजिए कि आप इतने सारे लोगों से मिले, कि आपके विवाह हुए, कि आपने बहत से विवाह देखें, कि हमने इतना अच्छा समय बिताया जिसका हर क्षण आनन्ददायी लहरियों से परिपूर्ण था। निः सन्देह आज आप में से कुछ लोग थोड़े से खिन्न होंगे। में इसका कारण समझ सकती हूं कि आपके पति/पत्नी दूर जा रह हैं। इस कारण मैं कुछ लोगों को दुखी पाती हूं। पर उनका यह दुखः परस्पर प्रेम, आकर्षण तथा एक दूसरे की संगति के आनन्द के कारण है। इससे मुझे अच्छाई की झलक मिलती है। फिर भी मैं कहंगी कि आपको पुनः परस्पर मिलना है तथा पूर्व प्राप्त आनन्द को पुनः पाना है, अतः प्रसन्न रहने का प्रयत्न कीजिए क्यॉंकि जुदाई के ये दिन बहुत जल्दी बीत जाएंगे। समय इतना जल्दी बीतता है कि पलक झपकते ही आपका अपने पति/ पत्नी से पुनर्मिलन हो जाएगा। उदास होने की कोई बात नहीं। हंसते-मुस्कराते रहिए। ताकि हैं । हर चीज का आनन्द लोजिए तथा 15 प्रस्थान वातां