चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड : V. अंक : 11-12 "अबोधिता ही धर्म का आधार है, बिना अबोधिता के आप धर्मानुयायी नहीं हो सकते।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खण्ड : V. अॅक : 11-12 विषय सूची पृष्ठ (1) जन्मोत्सव पूजा (2) श्री गणेश पूजा (30-3-90) (27-3-93) 10 (3) श्री माता जी की रूस यात्रा (01-8-93) 13 707-8-93) (4) चिकित्सक सम्मेलन, रूस 16 (5) देवी पूजा, तलियाती (03-8-93) 18 (15-2-81) (6) तत्व की बात 19 चैतन्य लहरी ও कि श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर सम्पाइक मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 भारती प्रिन्टर्स, WZ-113, शकूरपुर गाँव, दिल्ली-110034 फोन : 5413126, 5437741 मुद्रित चैतन्य लहरी जन्मोत्सव पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली-30-3-90 जिससे वो ओर पाप कर्म न करे। लेकिन यह कार्य मनुष्य के आज नवरात्रि को चतुर्थी है। और नवरात्रि को आप जानते हैं कि रात्रि को पूजा होनी चाहिए। अंधकार को दटूर करना लिये नहीं। यह तो देवी का कार्य है जो उन्होंने नवरात्रि में किया। अत्यावश्यक है ताकि प्रकाश को हम रात्रि में ही ले आयें। आज सो हृदय को विशाल करके हृदय से यह सोचें हम किससे ऐसा के दिन का एक और संयोग है कि आप लोग हमारा जन्मदिन प्रेम करते हैं जो निर्वाज्य है, निर्मम है। ये नहीं कि ये मेरा बेटा है, मेरा घर, मेरी चीज... ऐसा प्रेम हम किससे करते हैं । मनुष्य की जो स्थिति है उससे आप बहुत ऊंची स्थिति में आ गये हैं पहले इस संसार में पवित्रता फैलाई गई जिससे कि जो भी प्राणी क्योंकि आप सहजयोगी हैं। आपका योग परमेश्वर की इस सूक्ष्म जो भी मनुष्य मात्र इस संसार में आये वो पावित्र्य से सुरक्षित रहे शक्ति से हो गया है वो शक्ति आपके अंदर अविरल बह रही और अपवित्र चीजों से दूर रहे। इसलिए सारी सूष्टि को गौरी जी है आपको प्लावित कर रही है आपको संभाल रही है, आपको ने पवित्रता से नहला दिया और उसके बाद ही सारी सृष्टि की उठारही है। बार-बार आपको प्रेरित करती है। आपका संरक्षण रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हमारे लिए यह करती है और आपको आह्वाद और सुन्दर मधुमय प्रेम से भर है कि हम पावित्र्य को सबसे ऊंची चीज समझें| लेकिन पावित्र्य देती है। ऐसो सुन्दर शक्ति से आपका योग हो गया है। किन्तु अभी भी हमारे हृदय में उसके लिए कितना स्थान है ? यह देखना होगा। हमारे हृदय में माँ के प्रति प्रेम है। ये जो बात सही है। माँ से तो सबको प्यार है और उस प्यार के कारण आप लोग आरुदढ़ित हैं। बहुत आनन्द में हैं। किन्तु और भी दो प्रकार का प्रेम होना चाहिए तभी माँ का पूरा प्यार हो सकता है। एक तो कि प्रेम अपने सेहो कि हम सहजयोगी हैं। हमने सहज में शक्ति प्राप्त की लेकिन मना रहे हैं। आज के दिन गौरी जी ने अपने विवाह के उपरांत श्री गणेश की स्थापना की श्री गणेश पावित्र् का स्रोत हैं सबसे का मतलब यह नहीं है कि हम नहायें, धोयें, सफाई करें, अपने शरीर को ठीक करें। अपने हृदय को स्वच्छ करना चाहिए। हृदय का विकार है क्रोध। सबसे बड़ा विकार है और जब मनुष्य में क्रोध आ जाता है तो पावित्र्य नष्ट हो जाता है। क्योंकि पावित्र्य का दूसरा ही नाम निर्वाज्य प्रेम है जो सतत बहता है और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्ति इसी में है कि वो बह रहा है। और जब नहीं बह पाता तो वो कुढता है, कुम्हलाता है परेशान होता अब हमें किस तरह से बढ़ना चाहिए। बहुत से लोग सहजयोग है। सो पावित्र्य का मतलब है कि आप अपने हृदय में प्रेम को के प्रभाव के लिए बहुत कार्य करते हैं जिसे हम कहें कि पृथ्वी भरें, क्रोध को नहीं। क्रोध हमारा तो शत्रु है ही लेकिन वो सारे से समानान्तर चारों ओर फैलता हुआ। वो लोग अपनी ओर नजर संसार का भी शत्रु है। दुनिया में जितने युद्ध हुए हैं, जो-जो नहीं करते। वे उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होते हैं। बाह्य में वो हानियां हुई हैं ये सामूहिक क्रोध के कारण। क्रोध के लिए बहाने बहत कुछ कर सकते हैं। बाह्य में दौड़ेंगे। बाह्य में काम करेंगे, बहुत होते हैं। हर क्रोध का कोई न कोई बहाना मनुष्य ढूंढ सकता कार्यान्वित होंगे। सबसे मिलेंगे-जुलेंगे लेकिन अन्दर की शक्ति है। लेकिन युद्ध जैसी भयंकर चोज भी इसी क्रोध से आती है। को नहीं बढ़ाते। बहुत से लोग हैं अन्दर की शक्ति की ओर बहुत उसके मूल में यह क्रोध हो होता है। हृदय में अगर प्रेम हो तो ध्यान देते हैं लेकिन बाह्य की शक्ति की ओर नहों। तो उनमें संतुलन क्रोध नहीं आ सकता और अगर क्रोध का यदि दिखावा भी होगा नहीं आ पाता। जब लोग बाह्य की शक्ति की ओर बढ़ने लग जाते तो वो भी प्रेम के लिये ही है। किसी दुष्ट राक्षस को जब संहार हैं तो उनको अंदर की शक्ति क्षीण हो जाती है। क्षीण होते-होते किया जाता है तो वो इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाये ऐसे कगार पर पहुंच जाती है कि फौरन अहंकार में हो डूबने जन्मोत्सव पूजा ३ लगते हैं। वो ये सोचते हैं कि हमने देखिए कितना सहजयोग का है कर जहां जाना है जा। जाना है तुझे नरक में तो नरक में जा। कार्य किया। हम सहजयोग के लिए कितनी मेहनत करते हैं और तुझे अपने को मिटाना है तो अपने को मिटा ले । अपना सर्वनाश फिर ऐसे लोगों का नया जीवन शुरू हो जाता है जो कि सहजयोग करना है वो भी कर ले। जो तुझे करना है तू कर। वो आपको के लिए बिलकुल उपयुक्त नहीं। वो अपने को सोचने लगते हैं रोकेगा नहीं क्योंकि आपकी स्वतंत्रता को मानता है। आप स्वर्ग कि हम एक बड़े भारी अगुआ हैं। उनका महत्व होना में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है और नरक में जाना चाहें चाहिए। हर चीज में वो कोशिश करेंगे कि हमारा महत्व होना तो उसकी भी व्यवस्था है। पर सहजयोग में एक और बड़ा दोष चाहिए। इसके बाद हठात देखें तो उनको कोई बीमारी हो गई, है कि हमसब एक सामूहिक विराट शक्ति हैं हम अकेले-अकेले पगला गए या कुछ बड़ी भारी आफत आ गई। तो फिर कहते नहीं हैं। सब एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। उसमें अगर एक हैं कि माँ हमने आपको तो पूरी तरह समर्पित किया हुआ था इंसान ऐसा हो जाये या दो-चार ऐसेहो जायें जो अपना- अपना फिर यह कैसे हो गया? इसकी जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है गुप बना लें तो जैसे कैंसर की विषालुता एक कोषाणु की तरफ बढ़ने लग जाती है, तो ऐसे ही एक ही आदमी बढ़ कर के सारे सहजयोग को ग्रस्त कर सकता है। और हमारी सारी मेहनत व्यर्थ जा सकती है। हमको तो चाहिए कि समुद्र से सीखें कि वो सबसे नीचे रहकर ही सब चीज को अपने अंदर, सब नदियों को अपने अंदर समाता है। बगैर समुद्र के तो यह सृष्टि चल नहीं सकती। पस बहुत कि आप बहकते चले गए। फिर ऐसे आदमी एक तरफ हो जाते हैं। वो दूसरे से सम्बन्ध नहीं रख पाते। उनका सम्बन्ध केवल इतना ही होता है कि हम किस तरह से रोब झाड़ें दूसरों पर। और किस तरह से दिखायें कि हम कितने ऊंचे इंसान है। और वो दिखाने में ही उनको महत्व लगता है। सबसे आगे उन्हें आना चाहिए। सबसे उनका महत्व होना चाहिए। गर किसी ने थोड़ा सा महत्व नहीं समुद्र अपने को तपा कर भाप बना करके सारी दुनिया में बरसात किया तो गलती हो गई। यहां तक हो जायेगा कि इसमें वो भूल की सौंगात भेजता है। उसकी जो नम्रता है वही उसी की गहराई ही जायेंगे कि माँ का भी कुछ करने का है माँ के लिए भी कुछ का लक्षण है और उस नम्रता में कोई उपरी नम्रता नहीं कि नमस्ते दान देना है इसी प्रकार मैं देखती हूं कि रोहरी और बंबई में इसी भाई साहब, भाई साहब नमस्ते । कुछ नहीं सबसे नीचे में सबको प्रकार के कुछ लोग एकदम से उभर के ऊपर आये और वो ग्रहण करके, सबको अपने अंदर लेकर उसको शुद्ध करके और अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे। फिर न तो वहां आरती फिर भाप बना करके बरसात करना और फिर वही बरसात होती। हमार। फोटो तो वहां रहता था लेकिन फोटो पौंछने की नदियों में पड़ करके दौड़ती हुई उसी समुद्र की ओर दौड़ती है। भी उनकी इच्छा नहीं होती थी। अच्छा हुआ कि उनका अपना फोटो नहीं लगा। अपना ही महत्व अपनी ही डींग मारना। और जितने भी नारियल के पेड़ हैं वे सब समुद्र की ओर ही झुके हुए वो डोंग मार-मार कर ही और अपने को ही बहुत बड़ा समझ हैं इतनो जोर की हवा चलती है कुछ भी हो जाए, लेकिन वो कर किसी से कुछ नहीं पूछना। हम करेंगे। फिर झगड़े शुरू हो कभी भी समुद्र से दूसरी ओर मुड़ते नहीं क्योंकि वो जानते हैं गये झगड़े शुरू होने पर समूह बन गये क्योंकि जिस सूत्र में आप ये समुद्र है। इस समुद्र के समान ही हमारा हृदय विशाल तब होगा, बंधे हुए हैं वो आपकी माँ का सूत्र है और उसी सूत्र में अगर आप बंधे रहे और पूरे समय यह जानते रहें कि हम एक ही हीमहत्व अपने ही को विशेष समझना, ये जो चीज है इसमें सबसे माँ के बच्चे हैं न हमसे कोई ऊंचा न नीचा। न ही हम कोई कार्य बड़ी खराबी यह है कि परम चैतन्य आपको कहेगा कि जाओ को करते हैं। ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है। हम कुछ करते तुमको तुम्हारा महत्व है। तुम जाओ तुम हट जाओ और फिर ही नहीं है। हम कुछ करते ही नहीं हैं ये भावना ही जब छूट गई जैसे कि कोई नाखून काट कर फेंक देता है। आप एक तरफ और ये कि हम इतने बड़े हैं, हमने ये किया, हम ये करेंगे, हम फिंक जायेँगे। मेरे लिए तो यह बहुत दुखदायी बात होगी। और वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है कि अच्छा तुझे जो करना ऐसे दो-चार लोग जो सोचते हैं कि हम बहुत काम करते हैं आप अगर किसी समुद्र के किनारे पर गये हों तो देखिये कि जब हमारे अंदर अत्यन्त नम्रता और प्रेम आ जाये। लेकिन अपना चैतन्य लहरी हमने यह कार्य किया हमने वो कार्य किया। उनको फौरन ठंडा हममानते हैं, और चाहते हैं कि हमार उन्नति हो जाये। हमें दुनिया हो जाना चाहिए और पीछे हट कर देखना चाहिए कि हम ध्यान से कोई मतलब नहीं। दूसरों से कटे रहते हैं। ऐसे लोग भी बढ़ नहीं सकते क्योंकि आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए एक अंगुली ने अपने आपको बांध लिया और कहेगी कि नहीं और किसी से कोई मतलब नहीं मेरा, मैं अलग से रहूँगो। येतो अंगुली 'मर' जाएगी क्योंकि इसमें नस कैसे चलेगी ? इसमें चेतना का संचार कैसे होगा? ये तो कटी हुई रहेगी। ये तो छूटी हुई रहेगी। आप एक बार अंगुली को बांध कर रखिए और पांच दिन बांध रखें। उसके बाद आप देखेंगे कि वो अंगुली काम ही धारणा करते हैं ? हमारा ध्यान लगता है ? हम कितने गहरे हैं? और फिर हम किसको प्यार करते हैं ? किस-किसको प्यार करते हैं ? कितनों को प्यार करते हैं? और कितनों से दुश्मनी ली। सहजयोग में कई लोग बड़े गहरे पैठ गये बहुत गहरे आ गये। इसमें कोई शंका नहीं। पर बहुत से अभी भी किनारे पर ही डोल रहे हैं। और कब वो फिंक जायेंगे कह नहीं सकते क्योंकि मैने आपसे पहले ही बताया कि 1990 साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। एक छलांग आपको मारनी होगी जो आप नहीं करेगी। किसी काम को नहीं रह जायेगी। फिर आप कहेंगे इस माहौल से उतर करके और उस नई चीज को आप पकड़ माँ मैं तो इतनी पूजा करता है, मैं तो इतने मंत्र बोलता हैं, मैं तो लंगे। जैसे कि चक्का है जब घूमता है तो एक बिन्दु पर आ करके इतना कार्य करता हूं फिर मेरा ऐसा हाल क्यों है? क्योंकि आप फिर आगे सरक जाता है। उसी प्रकार सहजयोग की प्रगति भी विघटित हैं। आप उस सामूहिक शक्ति से हट गये हैं। सहजयोग सामूहिक होने वाली है सहजयोग में टिकने के लिए पहली चीज हमारे अंदर पावित्र्य वहों आप अलग हो गये। सो दोनों ही चीज की तरफ ध्यान देना होना चाहिए जो नम्रता से भरा हो । वैसे तो दुनिया में लोग आपने है कि हम अपनी शक्ति को भी संभालें और सामूहिकता में रचते देखे हैं जो अपने को बड़े पवित्र समझते हैं और सुबह शाम संध्या जायें। तभी आपके अंदर पूरा संतुलन आयेगा लेकिन बाह्य में करते हैं और किसी को छूने नहीं देते। ये खाना नहीं खायेंगे। वो आयेगा तो दूर बैठो। किसी ने छू लिया तो उनकी हालत खराब। के लिए बहुत कार्य किया और काफी अच्छे भाषण देते थे, बोलते सामूहिक शक्ति है। इस सामूहिक शक्ति से जहां आप हट गये आप बहुत कार्य करते हैं। मैने ऐसे लोग देखे हैं जिन्होंने सहजयोग थे, उनके भाषणों की उन्होंने टेप भी बना ली फिर लोगों से कहने लगे अच्छा आप हमारी टेप सुन लें। तो लोग हमारी टेप छोड़ कर उनकी ही टेप सुनने लगे। उनका अपना ये हाल था कि जैसे हम बैठे हैं तो वो हमारी फोटो को तो नमस्कार करेंगे, हमें नहीं करेंगे क्योंकि उनको फोटो की आदत पड़ी हुई है। हमसे उनको कोई मतलब नहीं है। उनको फोटो से मतलब है। ऐसे विक्षिप्त लोग हमने देखे। फिर उन्होंने अपने फोटो छपाये और फोटो सबको दिखा रहे हैं कि हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। इस तरह से अनेक तरीके से वो अपना ही महत्व बढ़ाते हैं। करते-करते ऐसे खड्क में गिर गये अनायास उनके समझ में नहीं आया है। एकदम पता हुआ कि वो छूट गये सहजयोग में कहीं भी नहीं। लोग मुझ से कहते हैं माँ वो तो बड़े लीडर थे, वो तो सही है लेकिन वो गये कहां? गये क्या करें। एकदम काफूर हो गये, कहां? तो ऐसे लोग क्यों निकल गये क्योंकि संतुलन नहीं था और जब संतुलन नहीं तो आदमी या तो बायें में चला जायेगा या दायें में चला जायेगा। और ये पागलपन हैं। गर आप एकदम से स्वच्छहैं एकदम आप पवित्र हैं तो आपको किसी के छूने में, किसी से भी बात करने में कभी अपवित्रता नहीं आ सकती क्योंकि आप हर चीज को शुद्ध करते हैं। आपका स्वभाव ही शुद्ध करने में है तो आप जिससे भी मिलेंगे उसी को आप शुद्ध करते ही जायेंगे उसमें डरने की कौन सी बात है उसमें किसी की ताड़ना करने की कौन सी बात है ? उसके लिए कानाफूसी करने की कौन सी बात है? एक लक्षण यह है कि आपकी स्वयं की पवित्रता कम है। गर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है वो पवित्रता की भी शक्ति और तेज है और वो इतना शक्तिशाली हो कर कोई सी अपवित्रता को वो खींच सकता है। जैसे मेने कहा कि हर तरह की चीज समुद्र में पूरी तरह से एकाकार हो जाती है। अब दूसरे लोग हैं सिर्फ अपनी ही प्रगति की सोचते हैं। वो ये सोचते हैं कि हमें दूसरे से क्या मतलब। हम अपने कमरे में बैठकर माँ की करते हैं, उनकी आरती करते हैं, उनको पूजा जन्मोत्सव पूजा ज्ञान बढ़ा लिया। अब दूसरी युक्ति क्या है? वो है कि आप हमारे प्रति भक्ति जैसा मैंने बहुत बार कहा था कि दो तरह की शक्तियां हमारे अंदर हैं और दूसरी शक्ति से हम बाहर फैंके जाते हैं जैसे एक रस्सी में आप अगर पत्थर बांध कर घूमायें तो पत्थर घूमता रहेगा, कर रहे हैं। इस भक्ति को भी आप करते हैं तब आप को अनन्य जब तक रस्सी में बंधा है, जैसे ही रस्सी से छूट जायेगा एकदम भक्ति करनी चाहिए। तभी आप हमसे तदाकारिता प्राप्त करें। जैसे फैंका जायेगा इसी प्रकार बहुत से लोग सहजयोग से निकल जाते हम सोचते हैं वैसा ही आप सोचने लग जायें। आज देर हो गई हैं। तब फिर लोग कहते हैं देखिए माँ सहजयोग में लोग कम हो समझ लीजिए तो हम भी कह सकते थे कि भई हम बहुत थक गये। मैं क्या करूं? और अगर कम हो गये तो इसमें सहजयोग गए रात भर के जागे हैं अब हमारे बस का कुछ नहीं। लेकिन का नुकसान तो हुआ नहीं इसमें उनका ही नुकसान हुआ है। हमने ये सोचा कि नवरात्रि हैं तो रात हो में करना है और यही सहजयोग का बिलकुल भी नुकसान नहीं क्योंकि जिसको मुहूर्त है। हमको मिलना था यह मुहुर्त है। इसी वक्त यह पूजा नुकसान और फायदे से बिलकुल मतलब नहीं है ऐसी जो चीज होनी चाहिए और ये होना ही चाहिए तो ये हमको करना ही है और यह बड़े आनंद से हम कर रहे हैं क्योंकि शुभ मुहत्त यही है और उस वक्त हमें सजग होना चाहिए। उसके बारे में सोचते भी नहीं कि हम थक गए। कि हमने आराम नहीं किया। कुछ भी नहीं यही मुहूर्त है। उसी प्रकार यही समय है जब हमें ये पूजा करनी चाहिए और हम बैठे हैं और आपको भी यही सोचना है उसका क्या नुकसान हो सकता है? हां अगर आपको अपना फायदा करा लेना है आप इस चीज को जान लोजिए कि सहजयोग को आपकी जरूरत नहीं है आपको सहजयोग की जरूरत है। सो ये योग का दूसरा अर्थ होता है। युक्ति एक तो है कि संबंध जुड़ जाना लेकिन दूसरा है युक्ति। समझ लेना चाहिये कि युक्ति क्या है। इसमें तीन तरह से समझाया जा सकता है। चाहिए कि हमारे लिए यही समय माँ ने बांधा है। यही समझ हमारे पहली तो युक्ति यह है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना। ज्ञान का लिएउचित है इसीलिये हमें इसी वक्त पूजा करनी चाहिए। लेकिन मतलब बुद्धि से नहीं किन्तु हमारी अंगुलियों में हाथों के अंदर जो आधे अधूरे लोग हैं वो उल्टी बात सोचेंगे अब हम सवैरे से कुण्डलिनी का पूर्णतः जागरण होना। जब ये ज्ञान हो जाता है आ कर बैठे हैं, हमने ये किया, अभी हमें भूख लगी है, हमने खाना नहीं खाया, बच्चे सो रहे होंगे। तो वो अनन्य भक्ति नहीं हुई पाते थे वो आप समझने लगते हैं और समझने लगते हैं कौन सत्य क्योंकि मेरा जो सोच विचार है वो आपके सोच-विचार में नहीं आया है। मैं जैसा सोचती हूं वैसा आप नहीं सोचते हैं। किसी के लिए भी मैं सोचती हूं। कभी- कभी माँ ये आदमी इतना खराब है। ऐसा है ? मैं कहती हूं जी नहीं बिलकुल अच्छा बहुत बढ़िया आदमो है फिर आप कैंसे कह रहे हो? कैसे कहा? फिर मैं सोचती हूं मैं जो देख रही हूं ये क्यों नहीं देख रहे हैं ? गर ये मेरी आंख से देखते हैं तो इनको वही दिखाई देना चाहिए जो मैं देख ा तो और भी ज्ञान होने लगता है। बहुत सी बातें जो आप नहीं समझ है कौन असत्य है और इस ज्ञान के द्वारा आप लोगों की कुण्डलिनी भी जागृत कर सकते हैं और उन्हें समझा भी सकते हैं और उनके साथ आप वार्तालाप कर सकते हैं। इस ज्ञान के कारण तो आपको बौद्धिक ज्ञान भी उससे आ जाता है। आप सहजयोग समझ सकते हैं नहीं तो पहले कोई समझ सका था "ईडा पिंगला सुखमन नाडी रे एक ही डोर उडाऊंगा" इस तरह की बातें जो करता था कबीर तो कोई समझता था उसको? नानक की कोई बात समझता था या ज्ञानेश्वर जी की किसी ने कोई बात समझी थी? लाओत्से की किसी ने कोई बात समझी? किसी ने कोई बात समझो? लेकिन सहजयोग के बाद आप सब समझने लगे हैं। तो आपका बुद्धि-चातुर्य भी बढ़ गया। उसकी भी चतुरता आ गई, आप उसको भी समझने लगे। ये तो बात ठोक है कि आपने ज्ञान लिया। सो वो एक युक्ति हो गई कि आपने अपना रही हूं। वैसे तो कोई बात नहीं ये तो कुछ और ही देख रहे तो अनन्य नहीं हुआ अन्य हो गए दूसरे हो गए। गर हमारे ही शरीर के ये अंग-प्रत्यंग हैं तो जो हम हैं ऐसे ही इनको होना चाहिए न, जैसे हम सोचते हैं वैसा ही इनको सोचना चाहिए न, जैसा हम करते हैं वैसा ही इनको करना चाहिए। तो ये दूसरा क्यों सोचते हैं ? ये उल्टी बात क्यों सोचते हैं? इनके दिमाग में ये सब अजीब-अजीब बातें कहां से आती हैं। सो अनन्य भक्ति चैतन्य लहरी 6. दिमाग में बात आती है क्या? इस का मतलब है कि योग पूरा नहीं हुआ। जब योग पूरा हो जाता है तब फिर आप ऐसा नहीं सोचते, सोच ही नहीं सकते, विचार ही नहीं कर सकते । अकर्म में ही आप ये हो रहा है, वो हो रहा है, ये घटित हो रहा है, वो सब हो रहा है, ऐसा आप बोलने लग जाते हैं और तब कहना चाहिए कि आप पूरी तरह से तदाकारिता में आ जाते हैं। अब नहीं हुई। ये भक्ति हो गई अपनी ही तरह की। तो अपना सोच-विचार और अपना कार्य और अपना प्रेम ये सब वैसा ही होना चाहिए जैसा आप मुझसे प्रेम करते हैं । और यही अगर प्रेम का स्रोत है तो जो कुएं में हैं वो ही घट में आना चाहिए। दूसरी चौज कैसे आ सकती है और कोई दूसरी चीज आती है तब मैं सोचती हूं कि किसी दूसरे घट से इन्होंने कोई और कुएं मेरा हाथ वो कार्य कर रहा है तो वो तो नहीं कहता है कि मैं से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं। कर रहा हूं उसको पता भी नहीं कि वो कर रहा है। वो तो हो हो रहा है। उसकी जितनी भी गति है सो हमीं तो कर रहे हैं लेकिन अगर वो ये सोचें कि हम कर रहे हैं तो इसका मतलब मेरा हाथ अब तीसरी बात जो युक्ति है कि जब दूसरी बात मैने आपसे बताई कि आप अपने अंदर एक अनन्य भक्ति रखें। वहां हम तो शरणागत है। तो फिर हम कोई बात कह भी दें या आपको कोई कट गया, इससे जुड़ा नहीं है। गर जुड़ा हुआ है तो उसको कभो लगेगा कि मैं घूम रहा हूं। मैं चल रहा हूं, मैं पकड़ रहा हूँ। कभी नहीं लगता और जब आप ऐसा सोचते हैं कि मैं कर रहा हूं तो चैतन्य कहता है अच्छा तो तू कर और तब सबसे ज्यादा गड़बड़ी शुरू होती है। एक तीसरो युक्ति यह है कि उस युक्ति को सीखना चाहिए कि जहां मैं कुछ कर रहा हूं। एक क्षण विचार करें में कर रहा हूँ। मैं क्या कर रहा हूं ? जब तक आप प्रकाश ढूंढ रहे थे तब आप कुछ कर रहे थे व्योंकि आपके अंदर अहँ भाव चीज समझा दें या कोई आपके सामने प्रस्ताव रखें, कुछ रखें तो उसको मना करने का सवाल ही कैसे उठना चाहिए? माँ ने कह दिया ठीक है। जो भी कह दिया। हम तो माँ ही हो गये हैं तो हम मना कैसे कर सकते हैं। जैसे कि मेरी आंख आपको देख रही है तो मेरी आंख जान रही है कि आप लोग बैठे हैं मेरे सामने तो क्योंकि मेरी आंख मेरी अपनी है तभी मैं जो जान रही हूं उसमें और मेरी आंख के जानने में कोई भी अंतर नहीं। एक ही चीज है। जो मैं बुद्धि से जान रही हूं वह तो मैं मेरी आंख से जान रही हूं। तब फिर आप में तदाकारिता जिसे कहते हैं वो नहीं आता है। सो ये दूसरी युक्ति है कि मां मेरे हृदय में आप आओ, मेरे दिमाग में आप आओ, मेरे विचारों में आप आओ, मेरे जीवन है। थे था। आप अकेले एक व्यक्ति थे। एक व्यष्टि में आप अब आप एक समष्टि में आ गये। जब आप सामूहिकता में आ गये तब आप कुछ भी नहीं कर रहे। आप अंग-प्रत्यंग हैं। वो कार्य हो रहा के हर कण में आप आओ। जहां भी कहोगे हम हाजिर, हाथ जोड़के। वहां हम हारे पर आपको कहना तो पड़ेगा न। और एक तीसरी युक्ति है इसे समझने के लिये मैं इसलिए ये यक्ति बता रही हूं कि अब छलांग जो लगानो है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करते रहे और अपनी ओर नजर करें। इस वक्त सबकी भलाई इसी में है कि हम अपनी ओर नजर करें और देखें कि क्या मैं ये सोचता हूं ? मैं दूसरों के लिए ये सोचता हूं? मैं ये सोचता हूं कि क्या वो मुझसे काफी श्रेष्ठ है और मुझे उससे कुछ सीखना चाहिए। उसके कोई अच्छे गुण मुझको दिखाई देते हैं कि बुरे गुण ही दिखाई देते हैं। दूसरों के गर अच्छे गुण दिखाई दें और अपने बुरे तो बहुत अच्छी बात है। क्योंकि दूसरों के दुर्गुण तो आप हटा नहीं सकते । उसपे तो आप का अधिकार नहीं। जहां अधिकार है अपने ही दुर्गुण आप हटा सकते हैं। तो दूसरों ने क्या किया? दूसरे ऐसे हैं। ऐसे सोचने वाले अभी पूरी तरह से योग पूर्ण जोड़ें तो वो भी ठीक नहीं लेकिन अगर सम्बन्ध जुड़ गया तो सब मतलब अपने आप ही पूरे हो जायेंगे। आपको कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। अपने ही आप जब आपके सारे मतलब पूरे हो गये तो आपका चित्त उसी में लग जायेगा अब तीसरी जो बात है कि हम ये काम कर रहे हैं । हमने ये सजावट करी, ये ठीक-ठाक किया। मैने किया। तो सहजयोगी आप नहीं सहजयोग में आपके सारे कर्म अकर्मय हो जाने चाहिएं ये इसकी युक्ति है। मैं कुछ कर रहा हूं? मैने ये कविता लिखी मैने किया, ये जहां तक आप बाहरी सूक्ष्म में देखते जायें कि क्या मैं सच में ऐसा सोचता हूं ? मैं ऐसा सोचती हूं कि मैने किया, ऐसा मेरे हृदय से कहना होगा। किसी मतलब से गर उससे सम्बन्ध जन्मोत्सव पूजा का मतलब प्रेम है और गर आप सुबुत्द्वि को प्राप्त नहीं कर सकते और प्रेम को आप अपना नहीं सकते तो सहजयोग में आने से अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इस समय ऐसा कुछ समां बंध रहा है कि सबको इसमें एकदम से मग्न हो जाना चाहिए। और परिवर्तन में डालना ही है। परिवर्तित हमको होना ही है। हममें खराबियां भी हैं हमें अपने को पूरी तरह से पवित्र बना देना है। ये आप अपने साथ कितना प्रेम कर रहे हैं । आपका बच्चा जरा में उतरे नहीं। मेरे में क्या त्रुटि है। ये देखने से ही आप ठीक कर सकते हैं। दूसरों से कहें कि अपना देश तुमको ऐसा ठीक करना चाहिए और वहां के प्रधानमंत्री को कुछ अक्ल सिखाएं तो हमें बंधक कर लें । देखिए हमारे देश में तो हम कह सकते हैं क्योंकि ये हमारा देश है इसी प्रकार हमें जानना चाहिए। इस युक्ति को समझ लेना चाहिए कि इसमें जो हम डांवाडोल हैं वो हमारी अपनी ही वजह से है। सहजयोग तो बहुत बड़ी चीज है बड़ी अदभूत चीज है लेकिन जो हममें खराबियां आ रही हैं या जो भी गंदा हो जाता है तो फौरन आप उसकी साफ कर देते हैं क्योंकि हम अभी इसका मजा नहीं उठा पा रहे हैं इसका मतलब हम आपको उससे प्रेम है। इसी प्रकार जब आपको अपने से प्रेम ही में कोई दोष है और इस सबको प्राप्त करने पर इस युक्ति को हो जायेगा आप अपने को परिवर्तन की ओर लगाएंगे कि मेरा परिवर्तन कहां तक हो पाया है? मेरे, अंदर अभी ये खराबी रह कुछ और फिर चाहिए ही क्या? आपकी शक्ल ही बदल जायेगी। गई है। अब भी ये खराबी रह गई ह । अब भी मैं ऐसा हूं। और इस परिवर्तन के फलस्वरूप अ शी्वाद है। उस जीवन का जिसका वर्णन नहीं किया जा स ता जो कबीर ने कहा "अब फिर क्या बोलें।" तो अ t/ सब उस मस्ती में आ जाइये। गर आपने सीख लिया तो मिलेगा क्या? सिर्फ आनंद निरा आनंद। आप आनंद में ही बहने लगेंगे। आज इस हमारे जन्मदिन पर मैं चाहूंगी कि आप लोगों का भी आज जन्मदिवस मनाया जाये कि आज से हम इस युक्ति को मस्त हुए। समझें और अपने को ही पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश । इस मस्ती को प्राप्त करें उस अनंद में आप आनंदित हो जायें। ये हमारा आशीर्वाद है। पवित्रता से ही मनुष्य में सुबुद्धि आती है क्योंकि पवित्रता प्रेम ही का नाम है, उसी से सुबुद्धि का मतलब भी प्रेम हो है सब चीज जय श्री माता जी ति प्रिय पाठक वृन्द चैतन्य लहरी खंड V का यह अंतिम अंक प्रस्तुत है। कृपया निर्मलिखि त पते प र 250/- रुपये सदस्यता शुल्क भेज कर वर्ष 1994 के लिए अपनी सदस्यता का नवीनीकरण करवा लें। श्री एम. डी. वासुदेवा 17-सी, इंस्टीट्यूशनल एरिया कुतुब एन्क्लेव, नई दिल्ली छापने योग्य आपके सहज अनुभवों तथा सहज लेखों का भी, नववर्ष में, चैतन्य लहरी स्वागत करेगी। जय श्री माता जी चैतन्य लहरी श्रीगणेश पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) बर्लिन, जर्मनी 27-7-93 सम्मान प्राप्त हुआ। ज्ञान पाने के लिए वे खतरा मोल ले कर भी एक विजातीय के पास गए क्योंकि वे जानते थे कि सत्य-साधक हैं। सत्य की शक्ति कार्यरत है ताकि आप कोई गलत कार्य न विवेक श्रीगणेश जी का प्रथम तथा सर्वाच्च वरदान है। हम सीखते हैं कि हमारे लिए क्या ठीक है और क्या गलत, रचनात्मक क्या है और विध्वंसात्मक क्या है तथा आत्म -साक्षात्कार प्राप्त करें। करने के लिए हम क्या करें। जिन्हें विवेक प्राप्त हो गया है वे लोग अत्यन्त भाग्याशाली हैं। पर विवेक जीवन की समझ से आता आप पूछ सकते हैं कि "श्री माताजी इस विवेक का स्रोत क्या है। जब व्यक्ति सोचने लगता है कि अमुक कार्य मैं क्यों कर है?" विवेक प्रदायक श्रीगणेश ही इसके स्रोत हैं। अपमानित होने रहा हूं, इसका क्या प्रभाव है, मेरे आचरण का क्या प्रभाव है, पर अज्ञान के बादलों के पीछे जब श्रीगणेश छुप जाते हैं तो लोग मेरे लिए यह अच्छा है या बुरा, तब विवेक आता है। यह जानते अधम कार्य करने लगते हैं। ऐसा बहुत सी बातों में होता है। हए भी कि यह कार्य मेरे लिए अहितकर है, कुछ लोगों में उसे आजकल प्रजातंत्र देशों में चरित्र, आचरण तथा संबंधों की चर्चा त्यागने की शक्ति नहीं होती। विवेक शक्ति का अभाव ही इसका की अपेक्षा नहीं की जाती। समाज की देखभाल करना वे अपना कारण है। वह व्यक्ति विवेकशील है जो न केवल यह जानता कर्तव्य नहीं समझते। इसे व्यक्तिगत कार्य माना जाता है। है कि ठीक और गलत क्या है बल्कि जिसे यह भी ज्ञान है कि परिणामस्वरुप लोग स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने लगते हैं तथा उसकी अपनी शक्तियां कोई गलत कार्य करने के लिए नहीं हैं। श्रीगणेश का अपमान शुरू हो जाता है। श्रीगणेश के अपमानित वह बुराई करता ही नहीं। विवेक हमारे अंदर एकपूर्ण शक्ति है होते ही मानव में पूरी बाधा शुरू हो जाती है। वह दुबुद्द्धि हो जाता जिसके द्वारा हम कोई प्रयास नहीं करते। यह हमारे माध्यम से है विवेकहीनता में वह नहीं जानता कि कैसे आगे बढे। स्वतः ही कार्य करता है और हम केवल उचित कार्य ही करते विवेकहीनता में लिया गया हर कदम विनाशकारी होता है। इन विनाशोन्मुख सभी प्रजातंत्र देशों को श्रीगणेश का सम्मान करना इस विवेक से बहुत से लोग जीवन में बहुत उऊंचे उठे हैं जैसे होगा भयानक जीवन प्रणाली के कारण उनके परिवार समाप्त कबीर। एक मुसलमान जुलाहे के घर कबीर जन्मे। उन्हें लगा हो गए हैं। उनके बच्चे खराब हो गए हैं। हर तरह से वे परेशानी कि जिस प्रकार मुसलमान इस्लाम को मानते हैं, उन्हें कुछ भी मेंहैं। कुंडलिनी जागरण से यह विवेक पुनः प्राप्त किया जा सकता प्राप्त नहीं होने वाला। व्यक्ति को अपना स्व खोजना होगा, स्वयं है। श्रीगणेश सब अपराध भूल कर आपको क्षमा कर देते हैं तथा कुंडलिनी जागृति में सहायक होते हैं। आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति तक वे आपकी सहायतार्थ हर चक्र पर विद्यमान होते हैं। आपके अंदर अबोधिता की सृष्टि करना श्रीगणेश की एक अन्य शक्ति है। अपनी अबोधिता, पवित्रता तथा गरिमामय जीवन प्रणाली का हम सम्मान करते हैं। गरिमामय, सुसभ्य वेशभूषा धारण करने तथा किसी प्रकार से अंग-प्रदर्शन न करने के लिए सारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है। यही कारण है कि सहजयोग में हमें वेशभूषा के प्रति अति सावधान रहना होता है। हमारे वस्र गरिमाशाली होने चाहिएं, किसी भी प्रकार की अभद्रता को दर्शाने वाले नहीं। अबोधिता मनुष्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यही व्यक्ति की साज-सज्जा है। मनुष्य को अपनी पवित्रता तथा कौमार्य की रक्षा करनी चाहिए। कुछ देशों के लोग सोचते हैं कि हैं। को पहचानना होगा। वे बनारस में गंगा तट पर लेट कर महान आत्म -साक्षात्कारी गुरू रामानन्द की प्रतीक्षा करने लगे। ज्यों ही स्त्नान करके गुरू रामानन्द लौटे तो कबीर जी ने उनके चरण पकड़ लिए। र्नान किए किसी ब्राह्मण के चरण यदि आप पकड़ें तो वह नाराज हो जाएगा। पर रामानन्द जो तो संत थे। उन्होंने पूछा-पुत्र क्या चाहिए? कबीर ने कहा मुझे आत्म-साक्षात्कार दीजिए। रामानन्द तुरन्त तैयार हो गये। अन्य लोगों ने कहा कि यह मुसलमान परिवार का अनाथ व्यक्ति है इसे कैसे साक्षात्कार कराया जा सकता है। रामानन्द ने कबीर में एक महान जिज्ञासु को पहचाना तथा कहा कि "आप लोग इसे नहों जानते, मैं जानता हूं।" वेउसे साथ लेगए इस तरह कबीर महान संत बन गए। अपनी विवेक शक्ति के कारण उन्हें हिन्दु तथा मुसलमानों-सबका ार श्री गणेश पूजा she कौमार्य केवल स्त्रियों के लिए हैं, पुरूषों के लिए नहीं। यह दोनों बना रहता है। प्राकृतिक प्रकोप का भी अमेरिका को खतरा है। के लिए है। यदि पुरूष ही पवित्र नहीं होंगे तो स्त्रियां कैसे पवित्र यह सभी गंदे विचार अमेरिका से निकलते हैं और लोग उन्हें हो सकती हैं? भय के कारण शायद वे कौमार्य का ख्याल करें आंखें बंद करके स्वीकार कर लेते हैं। ये विचार फ्रायड से आये पर अवसर पाते हो वे भटक जाएंगी। वे सोचती हैं कि यदि पुरूष हैं। जर्मनी में न पनप पाने पर फ्रायड अमेरिका गया और वहां ऐसा कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकती। अतः पूरे समाज पूर्ण आश्रय पाकर वैभवशाली बना। उसने पवित्र जीवन शैली को अत्यन्त शानदार, सभ्य तथा गरिमामय जीवन-शैली का विरोध किया। परन्तु उसके विचार जब अमेरिका से निकलते अपनानी चाहिए। अन्यथा एक प्रकार की असुरक्षा की भावना हैं स्त्री-पुरूषों में घर करने लगती है तथा एक जटिल है जो कि सामूहिक थे। अमेरिका से आया हुआ विष भी तुरन्त जीवन-शैली का आरंभ हो जाता है। तीसरी विशेषता यह है कि अबोध की रक्षा परमात्मा करते विवेकशील हो कर देखना है कि हमें और हमारे अन्तस को क्या तो सामूहिक बन जाते हैं क्योंकि अमेरिका श्रोकृष्ण का देश फैल जाता है तथा पूरे विश्व को विषाक्त करता है। हमें हैं अतः उसे किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। वे सदा सुरक्षित होते हैं। कोई यदि उन्हें हानि पहुंचाने का प्रयत्न करे तो है । क्योंकि कोई कपड़ा या साड़ी यदि हवा में उड़ने लगे तो उसका भी परमात्मा उनकी रक्षा करते हैं। पर हम यह भी देखते हैं कि एक कोना भी यदि आप पकड़ पायंगे तो उसे बचा सकते हैं। लड़ाके लोग बहुत से बच्चों का वध कर रहे हैं। ऐसा होने से पूरा जब सहजयोगी अपने विवेक तथा सहजयोग में विश्वास के साथ विश्व हिल जाता है। और निर्दोष लोगों की रक्षा में जुट जाता विश्वरुपी साड़ी को पकडड़़ लँगे तो इसकी रक्षा हो सकेगी नहीं है। बच्चों पर अत्याचार किसो को सहा नहीं है। बच्चे की तो सहजयोगी भी उड़ जाएंगे। सहजयोगी यदि स्थिर नहीं हैं और अबोधिता के कारण ऐसा होता है। यही कारण है कि मानव उनकी सहजयोग में दूढ श्रद्धा नहीं है तो विश्व विनाशक यह इतिहास में जब भी कहीं बच्चों तथा निर्दोषों पर अत्याचार हुए हवा उन्हें भी उड़ाकर ले जा सकती है। सहजयोगियों का बहुत तो पूरा समाज उसके विरुद्ध खड़ा हो गया। यह विरोध श्रोगणेश बड़ा उत्तरदायित्व है कि उनका गणेश तत्व ठीक रहे। इसके बिना को शक्ति के कारण आता है क्योंकि यह शक्ति बच्चों के प्रति तो पूरा सहजयोग- आंदोलन लड़खड़ा सकता है। स्त्री एवं पुरूष क्रूरता करने वालों के लिये घृणा भाव उत्पन्न करने में समर्थ है। दोनों को ही अपने जीवन शैली में श्रोगणेश को सम्मानोय स्थान आज की भयानक घटनाओं से हम बच्चों को दूर रखने का प्रयत्न देना है। यही सर्वोपरि होना चाहिए। हर समय हमें याद रखना करते हैं। सहजयोगी बच्चे जन्मजात साक्षात्वकारी हैं तथा हम है कि श्रीगणेश के आशीर्वाद से हो हमें आत्म-साक्षात्मकार प्राप् उनकी अबोधिता को जानते हैं। इस प्रकार हम उनका पोषण कर रहे हैं जिससे वे दूसरे लोगों की भी विनाश से रक्षा कर सकें। सहजयोगियों के बच्चों के माध्यम से यदि अबोधिता का यह सम्मान विकसित हो सके तो पूरे राष्ट्र को बचाया जा सकता है। श्रीगणेश की पूजा करना एक अन्य मार्ग है। पृथ्वी माँ से आता है अबोधिता तत्व। पृथ्वी माँ अबोध है। आप भले-बुरे जैसे भी हों यह आपको फल देती है और आपकी देखभाल करती है। चाहे आप झूठ बोलते हों या लोगों को धोखा देते हों, पृथ्वी एक सीमा तक अपना कार्य करती है। आपके अपराध जब उस सोमा को लांघ जाते हैं तब यह भूकंप आदि प्रकोप ला सकती है। लॉस ऐंजल्स में भी एक भूकंप आने की संभावना है वैसे भी हर वर्ष नाश कर रहा है। सहजयोगियों के लिए यह अत्यन्त आवश्यक हुआ। श्रीगणेश जी के बहुत से गुणों में से एक यह है कि वे अनन्त शिशु हैं तथा अति नम्र हैं वे अति विनोदशील हैं। अपने आकार के बावजूद भी वे बहुत हल्के हैं तथा एक चूहे पर बैठ सकते हैं। वे दिखावा नहीं करते। चूहा उनका वाहन है। चूहे पर सवार वे अपनी शक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं कि उन्हें किसी अन्य वाहन की आवश्यकता नहीं। वाहन उनकी सादगो है अपने मधुर तथा सर्व- साधारण कार्य- कलापों से वे लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। सहजयोग में हमें समझना है कि किस प्रकार लोगों को प्रभावित करें। आपको लम्बी मोटर या वैभवशाली जीवन से सहजयोग में कोई प्रभावित नहीं होगा। आपके आचरण, कार्य- कलाप, उपहार तथा आपके प्रेम की सहज अभिव्यक्ति ही सबका दिल जीत सकती है मैने देखा है कि कुछ लोग अति मधुर होते हैं तथा अबोध बालक की तरह अपनी वहाँ उथल-पुथल होती है। कारण यह है कि वहां का सिनेमा श्रीगणेश को अपमानित करने के लिए नए-नए विचार पैदा कर रहा है। इसीलिए उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों को सदा भय चैतन्व लहरी 10 अभिव्यक्ति करते हैं जिसकी प्रशंसा सभी सहजयोगी मेरे सामने ऊंचा उठना है, आपको श्रीगणेश से सौखना होगा कि वे क्या करते हैं। यह अत्यन्त मधुर, अति प्रेममय तथा कोमल है। करते हैं और उनके संबंध उस माँ से कैसे हैं जो पावनकारणी, बालक्रीडा सम, आपको प्रसन्न करने वाला तथा आपके पोषक तथा परिणामदायक है। परिणाम के तौर पर शनैः- शनैः छोटे-छोटे कार्य करने वाला। परन्तु कुछ लोग अभी भी यह आपका उत्थान होता है। सब समझ नहीं पाते। वे दिखावा करते हैं कि हमने श्रीमाताजी को अच्छी तरह समझ लिया। माँ को समझना आसान नहीं। केवल उत्थान हुआ मैने सब सिखाया। यदि आप भी आरंभ से ही स्वयं को समझने का प्रयत्न कीजिए। मैं आपके लिए शीशे को श्रीगणेश की तरह होते तो मैं आपको पहले ही सब बता देती। तरह हूं। शीशे में देखते हुए आप शोशे को नहीं समझ पाते स्वयं श्रीगणेश को तो सब जानने की भी इच्छा नहीं। वे तो पहले से को ही देख पाते हैं। श्रीगणेश की यही विशेषता है कि वे जानते ही जानते हैं। वे अत्यन्त परिपक्व व्यक्ति हैं। श्रीगणेश सर्वाधिक हैं कि माँ को क्या पसंद है। माँ को प्रसन्न रखने के लिए वे सारे परिपक्व देवता हैं विवेक से आप विकसित हुए, मैने भी आपको अच्छे कार्य करते हैं। वे माँ के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं। देवताओं बहुत कुछ बताया। परन्तु मैंने की उन्हें कोई चिंता नहीं। उन सबसे तो वे लड़ पड़े। श्रीगणेश बताया जैसे उत्पत्ति-ग्रन्थ, हमारे जीवन की शुरूआत।बड़े स्थूल के पास माँ की सूझबूझ हैं और उसी से उनका सम्मान करते हैं। रूप से मैने उसकी बात की क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जिस बात परन्तु कुछ लोग अब भी ऐसा नहीं कर सकते। अभी भी लोग का सत्यापन लहरियों द्वारा आप नहीं कर सकते उसके लिए अपने इष्ट--देवताओं के पोछे लगे हुए हैं। अपने आदर्शों को वे व्यर्थ के वाद-विवाद में आप पड़ें। अपनी लहरियों से आप छोड़ नहीं पाते। मुझसे वे अभी तक अच्छी तरह नहीं जुड़े। जिसका सत्यापन कर सकते हैं वही आपका ज्ञान बन जाता है श्रीगणेश अपनी माँ से जुड़े हुए हैं। उनके लिए माँ हो सब कुछ और उसी को धोरे-धीरे मैने आपको बताया। पृथ्वी आदि की है। माँ ही ज्ञान, आनन्द तथा सत्य का स्रोत है। किसी अन्य की उत्पत्ति बताने वाली पुस्तकों के चक्कर में आपको नहीं पड़ना ओर उन्हें देखना नहीं पड़ता। आज के युग में यह बातें करना चाहिए क्योंकि इनसे आपका मरितष्क भटक जाता है। मिथ्या अति दर्पमय प्रतीत होता है। आरंभ में मैने सूक्ष्म बातें नहीं बताई। ज्यॉं-ज्यों आपका सी चीजों के विषय में नहीं बहुत के में आप पड़ जायेंगे। आपको केवलइतना जानना है कि आप क्या हैं ? आप आत्मा चक्रर श्रीगणेश जी का एक अन्य गुण यह है कि वे सदा अपनी माँ को प्रसन्न करने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। उन्हें नाराज करने है और यह आत्म प्रकाश आपकी सामर्थ्य के अनुसार आपको वाली कोई बात वे नहीं करते। व्यक्ति को श्रीगणेश की माँ के बता देगी। आपके सामर्थ्य से ऊपर की बात यह आपको नहीं प्रति सम्मान सीखना होगा। पर मुझे लगता है कि लोग कुछ बताएगी। हमारा यह कहना कि आप प्रकाश हैं, अच्छी तुल्यरुपता अधिक तेज-तर्रार हैं । मैं यदि कुछ कहती हूं तो वे तुरंत मुझे है। परन्तु जो प्रकाश आप लिए हुए हैं वह इससे साधारण प्रकाश सुधारने लगते हैं। यह लाभदाई नहीं। इससे आप अपनी हानि से, भिन्न है। प्रकाश न समझता है और न सोचता है। पर आपके करते हैं। हर प्रकार आपको परोक्षा होती है। इस परीक्षा में आप अपनी कमियों को जान पाते हैं। लेकिन मेरे समोप रहने वाले प्रकाश देता है जो आप सहन कर सकें। न यह चमकेगा और लोगों को यह जान लेना आवश्यक है कि मेरी कही बात को न मध्यम होगा। यह आपकी के अनुपात में होगा। वे अच्छी तरह समझ ले क्योंकि मैं महामाया हूं। कही बात आपकी परीक्षा के लिये हो। मस्तिष्क ही सब समझा यदि आप इन्हें आत्मसात नहीं कर सकते तो यह मेरे लिए रहा है, परीक्षा को भी। तब आप समझ पाएंगे कि आपको परखा कुष्टदायी है। सभी कुछ जानना महत्वपूर्ण नहीं। आपकी अवस्था जा रहा है और यह परीक्षा यह देखने के लिए है कि कितनो गहनता में आपभुझे जानते हैं। परन्तु कुछ लोग मेरी गलत व्याख्या हैं। करते हैं। ऐसा करना गलत है फिर भी यह होता है। आप जान लें कि यदि आपने लाभ उठाना है, अन्तरज्ञान प्राप्त करना है, अंदर का प्रकाश सब समझता है, सोचता है और आप मात्र उतना सूझबूझ कभी-कभीं पूजा में देवता अत्यधिक लहरियां छोड़ते हैं। पर हो सकता है मेरी अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा सहजयोग में आप कितने परिपक्व परमात्मा आपको धन्य करे। * *ॐ ২ चा ही गणेश पूजा 11 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी की रूस यात्रा रूस आकाशवाणी तथा दूरदर्शन द्वारा प्रसारित संदेश (सारांश) सेंट पीटर्सबर्ग-1 -8-1993 सताया गया है क्योंकि राजाओं पर सदैव तांत्रिकों का नियंत्रण आपका देश महान संतों का देश है तथा संतों के आशीर्वाद रहा है। वर्तमान समय में भी हमारे देश में तथा विदेशों में भी यह जाते हैं। एक धर्मात्मा की रुचि कभी भी तुम्हारे धन, पत्नी या ऐसी ही किसी वस्तु पर कभी भी नहीं होगी। उसकी रुचि केवल मानव समाज के तथा देश के कल्याण पर ही होगी। तथा एक धर्मात्मा (संत) का मुख्य उद्देश्य मानव को धार्मिक बनाना है न कि काल्पनिक। एक धर्मात्मा को बिलकुल तटस्थ रहना चाहिए भले ही वह एक राजा हो या रंक या कुछ भी। परन्तु यहां व्याप्त है। मैने टालस्टाय तथा अन्य लोगों को पढ़ा और अनुभव किया कि यह बहुत ही अन्तर्दर्शी देश है। मैं जब अपने लोग पाए पति के साथ यहां आई तो मैने अनुभव किया कि उच्चकोटि के नाना-प्रकार के मानवीय संसाधन यहां विकसित हैं। टालस्टाय के उपन्यासों से आत्म विश्लेषण की अनुभूति तथा पुनरुत्थान के भाव दर्शित होते हैं जिससे मानव के बदलने या परिवर्तित हो सकने की शक्ति का आभास मिलता है। लोग हमेशा ही उसे स्वभाव से बिलकुल तटस्थ, निलिप्त रहना चाहिए। सहज गतिविधि का मूल उद्देश्य प्यारऔर करुणा है। मैं यहां स्पष्ट करूंगी कि पर्यावरण के शिवकार व्यक्ति का उपचार सहजयोग से कैसे किया जा सकता है। जब हमारे शरीर के सूक्ष्म केन्द्र प्रभावित होते हैं तो हम शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक रूप से बीमार हो जाते हैं। यह ऊर्जा केन्द्र हैं। हमारे शरीर में विभिन्न चक्र हैं। शारीरिक रूप में ये चक्र सह अनुकम्पी या सूक्ष्म नाड़ी तन्त्र द्वारा पोषित होते हैं। पर इन केन्द्रों की ऊर्जा सीमित है। बायां और दायां अनुकम्पी मिलकर सह-अनुकम्पी बनाते हैं। यदि हम चाहें तो इस अनुकम्पन ऊर्जा को प्रयोग में आत्मविश्लेषण करते हैं। जब मैं यहां आई तो सामान्यतः लोगों को का बहुत ही मधुर, सुन्दर तथा श्रद्धालु पाया। मैं हैरान हूं जिस ढंग से सहजयोग को आपके देश में अपनाया गया है। मुझे गोबाचोव का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्र की नीति बदली और मैं यहां आकर इस विषय में वार्ता कर पाई। यह सब अलौकिक सहायता है जिसने इस देश को सहजयोग दिया। अब मैं रूस वासियों को भारतीयों से भी अधिक आध्यात्मिक पाती हूं। वह बहुत गहराई में हैं। सभी तो नहीं पर यह बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं। पश्चिम के लोग आत्म-साक्षात्कार पाते तो हैं, मगर समय लेते हैं। वह तारकिक हैं वगैरह। मगर यहां से के लोग एकदम साक्षात्कार में उतर जाते हैं। एक तरह यह ला सकते हैं। उदाहरणार्थ यदि आपहृदय को धड़कन तेज करना बिलकुल पवित्र आस्था है। वे भौतिकतावादी नहीं थे। उनमें से चाहते हैं तो आप भाग सकते हैं परन्तु इसे शांत करने के लिए अधिकतर तो इसके लिए बिलकुल हो तत्पर थे। भारत में तांत्रिक एक विकृत प्रकार के लोगों का समूह है। क्रिया पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। जब हम अनुकम्पन के वह बात तो कुण्डिलनी की करते हैं परन्तु करते सभी प्रकार उद्देश्य से इसका प्रयोग करते हैं तो हम विश्वास करते हैं और का काला जादू ही हैं। यह छठी शताब्दी से आरंभ हुआ। लोगों जानते हैं कि दाई और बाई अनुकम्पन प्रणाली दो अलग-अलग पर उनके सम्मोहन का प्रभाव पड़ा। हिटलर और दलाई लामा प्रणाली हैं तथा मस्तिष्क की भी दोनों पूृथक-पृथक दशाएं हैं ने भी लोगों के मस्तिष्क खोखले करने में इनका प्रयोग किया। भले ही दोनों परस्पर सम्पूरक हैं। कल्पना करें कि मस्तिष्क में उनकी विशेष दिलचस्पी धन बटोरने में थी। उनका कहना था बाई ओर लकवा हो गया है तो मस्तिष्क की दाई ओर भी लकवे कि यह कुण्डिलनी संभोग द्वारा जागृत की जा सकती है। यह को अनुभव करती है। सभी धर्मों के विरुद्ध था। ईसा मसीह ने कहा है कि तुम्हारी दृष्टि भी व्याभिचारी नहीं होनी चाहिए। भारत में धर्मात्माओं को सदैव चाज्मा) पर पार करती हैं। पीयुष ग्रंथि (पिटिच्यूटरी) सह-अकम्पन क्रिया की ही आवश्यकता है। इस सह-अनुकम्पी म यह दोनों अनुकम्पी एक दूसरे को दूुक तन्त्रिका (आप्टिक चैतन्य लहरी 12 त (Pituitary) शरीर के बाई ओर तथा शंकुरूप (पाइनीयल) कार्य करने से निष्क्रिय हो जाता है। यह गर्मी को फैंक नहीं पाता ग्रंथि दाई तरफ काम करती है। जबकि यह दूसरी तरफ से स्थित जिससे यह गर्मी फेफड़ों की देखभाल करने वाले दायें हृदय के है। पियूष ग्रंथि हमें कार्य करने की शक्ति देती हैं जिसके द्वारा केन्द्र की ओर ऊपर उठने लगती है फेफड़ों को हानि पहुंचाकर हम सोचते हैं और शारीरिक क्रियाएं करते हैं। शंकुरूप बाई ओर यह गर्मी इस केन्द्र को प्रभावित करती है। परिणामतः व्यक्ति को का देखती हैं जो हमारी इच्छा शक्ति की देखभाल करती हैं। बाई अस्थमा रोग हो सकता है सहजयोग में अस्थमा पूर्णतया ठीक ओर वह है जिसने अपने अंदर अनुबंधन इकट्ठे किये हैं तथा हो सकता है। उसके परिणामस्वरुप हमारे अंदर प्रति अहंकार अनुबंधन के रूप में दाई तरफ होता है। हम इसे संस्कृत में मनस कहते हैं बनती है क्योंकि फेफड़ों के कार्यशोल न होने के कारण बलगम तथा दाई ओर की कार्य शक्ति एक ऐसी प्रणाली की रचना करती पिघलने लगता है। तब व्यक्ति को अलर्जी ( प्रत्यूजता) हो सकती है जिसे हम अहं नामक गुब्बारे की तरह का उपफल मानते हैं। है आपको छोंक रोग या परागज ज्वर (हाई फीवर) हो सकता हम या तो दाई तरफ होते हैं या बाई तरफ क्योंकि हम है। परिणामस्वरुप यह मानसिक कियाओं में उलझ जाता है। सह-अनुकम्पी तंत्र या मध्य नाड़ी तंत्र में नहीं जा पाते। बाई तरफ जिगर के अलावा आपके अग्नाशय को भी हानि पहुंचती है और के पीछे वह सब है जो कि हमारे सृजन के साथ बनाया गया आपको मधुमेह रोग हो सकता है। था। मृत पौधों तथा मृत सूक्ष्म अवयवों से आये सारे अंश, सभी कोटाणु तथा जीवाणु विकार प्रक्रिया से बाहर हो गये हैं बहुत है, चीनी खाने से नहीं होता। गांव के लोग बहत अधिक चीनी से मानसिक तथा सैजोफेनिया जैसे रोग हममें तभी आते हैं जब पीते हैं मगर उन्हें मधुमेह नहीं होता क्योंकि वो सिर्फ काम करते हम मृत- आत्माओं की पकड़ में होते हैं। पर चिकित्सा वैज्ञानिक हैं और सोते हैं। वे भविष्य के बारे में नहीं सोचते। जब यह गर्मी इस पर विश्वास नहीं करते। एक बार जब हम इस बाई तरफ से प्रभावित हो जाते हैं तो आधुनिक समय में जीवन बहुत ही उत्तेजित तथा तेज है। प्लीहा हममें ऐसे रोग पनप जाते हैं जिनका मनुष्य के पास कोई उपचार हमारा गतिमापक है। यदि कोई आपात स्थिति है तो यह लाल नहीं। दूसरा केन्द्र, जिसे स्वाधिष्ठान कहते हैं, सूर्य चक्र से उपजता है। बाह्य में इसकी अभिव्यक्ति महाधमनी (एडरोटिक) चक्र के रूप में होती है। यह हमारे जिगर अग्नाशय, गु्दे तथा मुख्य आंत फिर आप परेशान होते हैं व आपकी प्लीहा भी परेशान होती और पेट के ऊपरी तथा निचले भाग को पोषित करता है। यह है। फिर आप दफ्तर की तरफ भागते हैं, आप घवरा जाते हैं ऊपर की तरफ जाने पर यह गर्मी जुकाम रोग का कारण सिर्फ वे व्यक्ति जो बहुत अधिक सोचते हैं, उन्हें मधुमेह होता व प्लीहा (स्पलीन) पर आती है तो प्लीहा उपेक्षित हो जाता है। रक्त कोशिका बनाता है। मगर इस आधुनिक जीवन में आप इतने उत्तेजित हैं। सुबह आप समाचारों में भयानक समाचार पढ़ते हैं। भवसागर के चारों ओर घूमता है। यह एक और आवश्यक कार्य क्योंकि आपको देर हो गई है। आप अपनी घड़ियों के गुलाम करता है । यह गहन चिंतन के समय हमारे मस्तिष्क के श्वेत कणों बन गये हैं। आप पूरी तरह से एक उत्तेजनामय व्यक्तित्व बन जाते की कमी को पूरा करता है। चिकित्सा विज्ञान इस तथ्य को नहीं हैं। इस बेचारी प्लीहा को यह पता नहीं कि कैसे प्रक्रिया करे। जानता कि मस्तिष्क के सफेद कणों की आपूर्ति किस प्रकार होती यह सनकी हो जाती है। है। इस केन्द्र का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। अधिक सोचने से मनुष्य भविष्यवादी हो जाता है। अतः वो दाई ओर चला जाता क्षीण कर देता है। इस स्थिति में किसी भी अनिष्ट, दूर्घटना या है। इस तरह से वो अपनी दाई ओर की शक्ति का अत्यधिक ग्लानि के कारण यदि आपका चित्त बाई ओर को झुक गया तो उपयोग करने लगता है। केन्द्र संकुचित हो जाता है और हमारा जिगर उपेक्षित हो जाता है। जिगर बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हो सकता है। सहजयोग से श्वेत रक्तता (लुकीमिया) के बहुत यह हमारे शरीर के सारे विष को सोखता है। मगर यह अधिक रोगी ठोक हो गए हैं। यह दोष व्यक्ति की कैंसर से मुकाबला करने की शक्ति को आप पकड़े जाते हैं तथा आपको श्वेत रक्तता (लुकौमिया) रोग 13 श्री माता जी की रुस यात्रा स्वाधिष्ठान चक्र गर्दे की भी देखभाल करता है। गुर्दे की टेनिसखेले। सारी गर्मी जो पैदा होगी वह ऊपर जायेगी और हृदय देखभाल न होने पर जिगर की गर्मी इन पर चढ़ जाती है तथा जिससे मूत्र परित्याग बाधित होता है या रुक सकता है तथा व्यक्ति हो जायेगा। एक अन्य मुसीबत यह है कि उसे बाई तरफ का को प्रभावित करेगी। बहुत ही छोटी उम्र में उसे घातक हृदय रोग के डायलिसिज तक पहुंचने की स्थिति आ सकती है। एक बार डायलिसिज तक आने के बाद व्यक्ति रोग मुक्त नहीं हो सकता। पक्षाघात भी हो सकता है। जैसे कार में हमारे पास गति नियंत्रक और ब्रक दोनों ही होते हैं। कुण्डिलनो आपको नियत्रण देने के लिए है। अतः हम सहजयोग से ठीक कर सकते हैं। यह कुण्डिलनी जो कि हमारी अवशिष्ट शक्ति है यह उदित होती है तथा केन्द्रों को पोषित करती उसका दिवाला निकल जाता है। इस चक्र को ठीक कर लेने से जिगर रोग ठीक हो जाता है। गर्मो जब नीचे की ओर आती है तो आंत्र कड़ी हो जाती है। पाचन क्रिया खराब हो जाती है, भूख है। यह उन्हें ठीक रखती है तथा आपको परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जोड़ती है। तथा यह शक्ति हर समय आपके केन्द्रों को पोषित करती है। जब आप इस शक्ति से जुड़ जाते हैं तो यह सबके लिए कार्य करती है। नहीं लगती तथा व्यक्ति को कब्ज रोग हो जाता है। ये सारे रोग आधुनिक मानव के लिए सर्व साधारण हैं। बहुत अधिक सोचने के कारण जब बहुत गर्मी ऊपर को जाती है तो वह स्थिति अत्यन्त भयानक होती है। मान लीजिए कोई शराबी व्यक्ति अपना जिगर खराब कर लेता है और वह ॐ चैतन्य लहरी 14 चिकित्सक सम्मेलन (सारांश) मास्को, 7-8-1993 मैं सहजयोग को मैटा विज्ञान कहती हूं। क्योंकि विज्ञान का जब तक कि आपके सारे अंग वगैरह न निकाल दें। चिकित्सा विज्ञान में इस तरह के अंधेपन ने मुझे इसकी तरफ आकर्षित तरीका इसमें नहीं अपनाया जाता। उदाहरण के तौर पर जब हम चिकित्सा विज्ञान में कुछ खोजना चाहते हैं तो हम परिकल्पना लेते हैं। हम यह सोचते हैं कि शायद यह किसी खास बीमारी का इलाज है। अब तो यह इतना विस्तृत और विशिष्ट हो गया है कि किसी व्यक्ति के लिए शोध शुरू करने में उसे 15 साल पढ़ते किया। मैंने सोचा, मुझे उनकी तकनीकी शब्दावली तथा उनकी समस्याओं को जानना चाहिए। अब हमें जान लेना चाहिए कि यह संसार बीमारियों से भरा है और इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी उपचार नहीं ले सकते। पश्चिम में बहुत से डाक्टर सहजयोग में नहीं आना चाहते क्योंकि वो सोचते हैं कि वो ज्यादा पैसा नहीं पा पायेंगे यदि रोगी बिना दवाइयों के ही ठोक हो जायेगा तो। ही रहना पड़ता है। और तब भी उसे इसका पूर्ण ज्ञान नहीं होता कि सारे संसार में कहां क्या हो रहा है। यदि आप यह कहें कि आपने अभी कुछ खोजना है तो कोई दूसरा आपको यह जानकारी देगा कि उन्होंने पहले ही उसे आस्ट्रेलिया में खोज लिया है। अतः आपके सारे प्रयत्न बेकार गए। चिकित्सा क्षेत्र बहुत बड़ाउद्योगबनगयाहै। इस खरीद-फरोख्त की वजह से लोग इस पर विश्वास करते हैं और इसे लेते हैं। मैं किसी तरह की कोई खरीद-फरोख्त नहीं करती और न ही मैं आपसे कुछ चाहती हूं। मैं सिर्फ चिकित्सा विज्ञान की श्रेष्ठता को जगाना चाहती हूं जहां हम पैसे के लिए नहीं बल्कि करुणा की वजह से कार्य करते हैं । मैं यह देखती हं कि जो लोग हमारे पास आते हैं वो किसी भी सहजयोगी से आसानी से ठीक हो सकते हैं। आप अपनी खोजों से जान जाते हैं तथा उसके क्रियान्वयन से भी। किसी भी अनुसंधान में आप पहले चूहों पर, फिर बंदरों, फिर सुअर और फिर मनुष्य पर प्रयोग करते हैं । आप पाते हैं कि यह असफल है। यह बहुत खतरनाक है, कभी-कभी कुछ लोगों पर कुछ दवाएं जहर का कार्य करती हैं क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग तरह का बना है और उसमें अलग अवयव समस्याएं हैं। यहां पर 7 चक्र व 3 रास्ते हैं। अतः 7 x 3 = 21 समस्याएं तब जब तक हम यह नहीं जान लेते कि हम किस तत्व के मुख्यतः हो सकतो हैं मगर संयोग भी हो सकते हैं। इसका निदान आपकी अंगुलियों के पोरों पर है। कुरान में मोहम्मद साहिब ने कहा है कि आपके हाथ बोलेंगे और आपके खिलाफ शहादत बने हैं तथा हमारी अन्त स्थिति क्या है, तथा यह बोमारियां कैसे होती हैं, हम कुछ भी सही तरीके से नहीं कर पायेंगे। विशेषतः अंग्रेजो दवाईयां बहुत गर्मी उत्पन्न करती हैं। अतः हमें कुछ ओर भी लेना चाहिए जो गर्मी को निष्प्रभावी करे। परन्तु वह भी दूसरा अन्धा रास्ता है। सहजयोग मैटा विज्ञान है। यहां आपको कोई अनुसंधान नहीं करना पड़ता यह पहले से ही अनुसांधित है और हमें अधिक करने की जरूरत नहीं है। सालों तक बंदरों-चूहों पर प्रयोग करने का यहां कोई महत्व भी नहीं है। देंगे। मुख्यतः तीन तरह की परेशानियां होती हैं। वे समस्याएं जो बाई तरफ से हैं, वे जो दाई तरफ से हैं तथा वे जो मध्य से हैं। अगर आप किसी सहजयोगी से पूछे तो वह यह कहेगा कि यह बाई तरफ है या यह दाई तरफ है। सब कुछ यही है सबसे सरल वस्तु है अपनी बाई या दाई तरफ को प्रेषित करना। अगर गुर्दा उदाहरणतया आजकल एक आंख के लिए एक डाक्टर है खराब हो जाता है तो डाक्टर डायलिसिस देते हैं। हर कोई जानता है कि आप मरीज को बचा नहीं सकते। सारी जिंदगी उसे तथा दूसरी आंख के लिए एक डाक्टर है। और कभी-कभी तो आपको अपना पूरा पर्स भी खाली करना पड़ता है। इस बीच चिकित्सक सम्मेलन 15 तुम स्वयं दिवालिया हो जाओ| तो यह है मानसिकता। डायलिसस लेनी पड़ेगी। दुर्भाग्यवश एक डाक्टर जो डायलिसिस विभाग में बहुत मशहूर था उसका गुर्दा खराब हो गया। वह बोला कि मैं डायलिसिस नहीं लेना चाहता क्योंकि मुझे मालूम है कि प्रश्न श्री माताजी, क्या हमचिकित्सक लोगों को ठीक करते हैं या वो अपने आपको स्वयं ठीक करते हैं ? डाक्टर के रुप यह सारी जिन्दगी के लिए है। मैं इसका खर्चा वहन नहीं कर सकता और लोग डायलिसिस से मर जाते हैं। इसका कोई फायदा में सहजयोग मं हमारा क्या फर्ज है? श्री माताजी : जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा का उपकरण नहीं क्योंकि कोई पैसा नहीं बचता। तो मैने इस डाक्टर से कहा बनना है। यदि आपका लक्ष्य रोगियाँ का इलाज करना है तो इस बात को आप अपने कार्य में ही बहुत शीघ्र जान जाएंगे। परन्तु कि डाक्टर मैं तुम्हें बताती हूं कि सहजयोग तुम्हें 100% ठीक कर देगा। मगर तुम मुझसे यह वादा करो कि तुम दुबारा यदि आपका लक्ष्य धन कमाना है तो आप सहजयोगी नहीं हैं। डायलिसिस का प्रयोग नहीं करोगे और तुम लोगों को ठीक करने पैसा कमाना अपनी जगह है। सहजयोग में आकर आप बहुत के लिए सहजयोग का प्रयोग करोगे। उसने वादा किया और वह लोगों को ठीक कर सकते हैं। वहां भी समृद्ध रह सकते हैं। मैंने ठीक हो गया। मगर वो अब भी डायलिसिस प्रयोग कर रहा है। बहुत से सर्जनों को निपुण होते देखा है क्योंकि सहजयोग में उन्हें मैने कहा कि तुम डायलिसिस क्यों प्रयोग कर रहे हो ? उसने पूर्ण शरीर तंत्र का ज्ञान हो जाता है। अतः चिकित्सा कार्य करते कहा कि हमने मशीनों को खरीदने में बहुत पैसे लगाये हैं और हुए आप निपुण हो जाते हैं। निसन्देह आपको जीविकापार्जन करना है। कुछ सहजयोगी चिकित्सक अच्छा कार्य कर रहे हैं। भारत के एक एम. डी. डाक्टर विटेश में वजीफा पा रहे हैं। अगर हमने पैसा नहीं कमाया तो हमारा क्या होगा? हम दिवालिया हो जायेंगे। मैने कहा एक तरह से तुमने भी लोगों को दिवालिया कर दिया है। तो बदलाव के लिए यह अच्छा है कि * ॐ* तु चैतन्य लहरी 16 हि देवी पूजा (सारांश) तलियाती (रूस) 3 -8-1993 हम किसी से घृणा नहीं करते इसलिये कि वह दूसरे धर्म से आप यहां पर अपने भीतर बहुत से ऐसे चमत्कार पायेंगे कि आपके हृदय में स्थित प्रेम की शक्ति ने आपकी रक्षा की है। मैने संबंधित है। इसके विपरीत हम सभी धर्मों में विश्वास करते हैं। बहुत से ऐसे लोग देखे हैं जो कि बहुत गर्म-मिजाज और गुस्सैल यह वो शक्ति है जिससे कि एक बूंद सागर बन जाती है और थे, जो सारा समय दूसरों को कष्ट पहुंचाते रहते थे, वो अब व्यक्ति सामूहिक बन जाता है। आपकी सारी शक्तियां जो यहां अत्यन्त सुन्दर और अच्छे लोगों में परिवर्तित हो गये हैं इस प्रेम हैं वो प्रकाशित हो जाती हैं। इस सर्व - व्यापक शक्ति से। यह के प्रकाश में आप अपने आपको प्रेम करते हैं तथा सब बुरा परिवर्तित होती है और इसके पास ऐसा सुन्दर व कोमल मार्ग व अनैतिक त्याग देते हैं। यह प्रेम शाश्वत है, बहुत शक्तिशाली है हर चीजों को संभालने का । है और आपको सामूहिकता में आत्मविश्वास देता है। क्यॉंकि यह आत्मा है जो सब शक्तियों को प्रकाशमान करती है और यही विश्वास, सिर्फ दूसरों के प्रति प्रेम से। और यह प्रकाशमयी प्रेम आत्मा विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति प्रेम और सामूहिकता का आपको वह सब दे देता है जो आप चाहते हैं और यह स्रोत है। जब आपका ध्यान उन सभी लोगों की तरफ जाता है सर्व-व्यापक शक्ति है। इस बारे में कोई शंका नहीं है। आपको जो कि कष्ट में हैं, तकलीफ में हैं, जिन्हें सहायता चाहिए, इस इसे अपने खुले हृदय से स्वीकार करना है कि यह शक्ति महसूस ध्यान से जो इतना प्रकाशमान है, आप उनके कष्ट यहां बैठकर करती है और हमें महान व्यक्ति बनाती है इसमें कोई प्रतियोगिता दूर कर सकते हैं। इस प्रकार के लोगों के साथ शब्दों, हथियारों नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं, कोई ईष्ष्या नहीं है। सिर्फ यह इच्छा व सीमाओं की आवश्यकता नहीं रहती। जब रूसी भारत आते रह जाती है कि जैसा मैं आनन्दित हूं वैसे ही दूसरे भी आनन्द हैं तो वह अपने देश जैसा ही महसूस करते हैं और जब भारतीय में आयें। रूस जाते हैं तो वे भी अपने देश जैसा ही महसूस करते हैं तो कौन लड़ेगा? यहां कोई नहीं है जो यह कहे कि ये मेरी शक्ति यात्रा करते हैं। वे लोगों को समझाने का प्रयत्न करते हैं। वो सब है क्योंकि प्रत्येक आप ही का एक भाग है। यह समय बहुत खास कार्य बिना किसी भौतिक लाभ के करते हैं पर सबसे बड़ा आनन्द है जिसे मैं बसन्त ऋतु कहती हूं। अब इतने अधिक फूल सत्य तब है जब आप किसी दूसरे व्यक्ति की कुण्डिलनी उठाते हैं और को प्राप्त करना चाहते हैं। उन सबको अब फूल बनना है जिसे की अब घटित होना है। यह समय बहुत-बहुत महत्वपूर्ण है। सब परमात्मा आपको धन्य करे। धर्मों में यह वर्णित है। जिस एकमात्र चीज की आवश्यकता है वह है इस शक्ति में सहजयोगी बहुत अधिक मेहनत करते हैं, बहुत थोड़े धन से उसको आत्म-साक्षात्कार कराते हैं। ॐ * देवी पूजा 17 तत्व की बात परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (15-2-1981) मैंने आपसे कहा था कि आज आप से मैंतत्व की बात करूंगी। हमारे अंदर गणेश जी का तत्व नहीं होता तो इस पृथ्वी पर हम ज्यों हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका होना, उसका बड़ा टिक नहीं सकते थे कितने जोर से पृथ्वी घूम रही है इस पर होना देखें, तो ये चीज समझ में आती है कि उसके अंदर कोई हम चिपके हुए हैं। कोई कहेगा कि पृथ्वी के अंदर ही यह गणेश न कोई ऐसी शक्ति प्रमाणित है या प्रवाहित है जिसके कारण ये पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूर्ण स्थिति को पहुंच रहा है। से ही हम पृथ्वी पर जमे हुए हैं। लेकिन जो तत्व पृथ्वी के अंदर ये शक्ति उसके अंदर है, नहीं तो यह कार्य नहीं करेगा लेकिन है उसे उसकी धुरी कहते हैं माने जिस रेखा में वो तत्व फंसा ये शक्ति उसने कहां से पाई? इसका तत्व, मर्म क्या है? जो चीज हुआ है उसे उसकी धुरी कहते हैं। हालांकि ऐसी कोई धुरी है नहीं। बाह्य में दिखाई देती है जैसे कि पेड़ दिखाई देता है उसके कोई भी सलाख की तरह की चीज नहीं है पर मानते हैं कि जो फल- फूल पत्ते सब दिखाई देते हैं ये तो कोई तत्व नहीं है। इस शक्ति है इसके तत्व की वो इस रेखा से चलती है। टेढी उसी के तत्व पे तो ये चौज आधारित नहीं है। वो चीज कोई न कोई सूक्ष्म ऊपर पृथ्वी घूमती है बीचों-बीच। सो वो तत्व हमारे अंदर क्या है। उस सूक्ष्म को तो हम देख नहीं पा रहे हैं। उसकी गर साकार बनके रहता है ? क्या है जिससे हमें दिशा का ज्ञान होता है। स्थिति होती तो दिख जाता लेकिन वो निराकार स्थिति में है। माने जानवरों में यह तत्व ज्यादा होता है, पक्षियों में यह बहुत ज्यादा ये कि उसके अंदर जो चलता हुआ पानी है वो भी उसका तत्व होता है क्योंकि भोले--भाले जीव हैं। उनमें छलकपट नहीं, नहीं हुआ। हालांकि वहन कर रहा पानी उस शक्ति को अपने वैराग्य कुछ नहीं होता, विचार नहीं कर सकते, विचार करने अंदर से वहन कर रहा है और गर पानी में ही सब शक्ति है तो की शक्ति नहीं है। और न ही वो आगे का सोचते हैं न ही वो पीछे किसी पत्थर के अंदर पानी डालने से वहां से पेड़ क्यों नहीं का सोचते हैं। वो पीछे का बिल्कुल नहीं सोचते। आपको आश्चर्य निकल आते ? तब तत्वों में यह जानना चाहिए कि हरेक चौज होगा गर कोई बंदर आप देखिये मर जाता है, जब तक वो मरता का अपना-अपना तत्व होता है। पानो का अपना एक तत्व है नहीं तब तक वो सब हाय तौबा मचाये हुए हैं जैसे ही वो मर पेड़ का अपना एक तत्व है और पत्थर का भी एक अपना तत्व तत्व है माँ। यह भी बात सही है पृथ्वी के गणेश तत्व की वजह या जायेगा तो वो छोड़ देंगे, भाग जायेंगे। उनका कोई मतलब नहीं। बस खत्म, अब वो मर गया। ये तो वैसे ही हो गया जैसे दूसरे पत्थर हैं। उसे कोई मतलब नहीं। बिलकुल बेकार चीज हैं। लेकिन धीरे-धीरे उसके अंदर ये जरूर है कि अनुभव तत्व जैसे कि एक बार आपने शेर को पकड़ने की कोशिश की और उसको जाल में फंसाया। दो तीन बार अगर उसको उसमें से छुटकारा हो गया तो फिर वो ताड़ जाता है कि इसमें कोई न कोई गड़बड़ है। बहुत कुछ तो भगवान की दो हुई चीजे हैं पर कुछ वो सीख भी जाता है अनुभव से कि क्या चाल लोग चल रहे हैं और उससे कैसे बचना चाहिए। अनुभव से भी बहुत कुछ जानवर सौखते हैं लेकिन तो भी उसके अंदर परमात्मा की दी चीजें बहुत ज्यादा हैं। जिसको वो जानता रहता है। स्फूर्ति है, उसमें स्फूर्ति आती है जैसे जापान के कुछ ऐसे पक्षी हैं जब वो उड़ने लग जाते हैं या भागने लग जाते हैं ज्यादा तब लोग समझ जाते हैं कि अब भूकंप आने वाला है क्योंकि इन पक्षियों को ये घड़घड़ाहट मनुष्य से बहुत पहले सुनाई दे जाती है। जानवरॉं को भी मनुष्य से बहुत ज्यादा जल्दी है। उसी तरह मानव का भी अपना एक तत्व है। जिसके बूते पर वो चल रहा है, बड़ा हो रहा है। जिससे उसकी उद्देश्य प्राप्ति होती है। ये तत्व एक हो नहीं सकते। जैसा कि मैने बताया कि पानी के तत्व पर ही गर णैधा निकल रहा है तो वो एक पत्थर से पौधा क्यों नहीं निकाल सकता? गर बीज के ही तत्व से बीज पनप रहा है तो वो धरती माता की शरण में क्यों जाता है? गर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य हो रहा है तो धरती माता की वजह से ये जो पत्थर हैं ये भी क्यों नहीं पनप रहे हैं? इसका मतलब यह है कि उनके तत्वों में एक तत्व है लेकिन तत्व अनेक हैं। ये सब अनेक तत्व हैं ये एक में समाये हैं और ये जो अनेक तत्व हैं ये हमारे अंदर भी स्थित हैं। अलग-अलग चक्रों पर इनका वास है लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं। और एक ही ओर हुई इनका कार्य चल रहा है और एक ही इनका लक्ष्य है और एक ही चौज पर इनका अधिकार है। जैसे कि मूलाधार चक्र पे गणेश तत्व है। श्री गणेश जी का तत्व वो होता है जिसके कारण हम आज़ पृथ्वी पर बैठे हुए हैं यहां से फेंके नहीं जा रहे । गर चैतन्य लहरी 18 हर रास्ते में जितनी चीज लिखी हुई है हर विज्ञापन पढ़ना चाहिए और गर कोई बच गया तो पीछे मुड कर देखेंगे कि क्यों रह गया। या हर चीज जो बाजार में बिक रही है उनको जरूरी है कि हर चीज देखनी चाहिए। आंख का संबंध हमारे मूलाधार चक्र से बहुते नजदीक का है। पोछे की तरफ यहां पर जो हमारा मूलाधार तत्व है इसका सम्बन्धहमारी आंख से बहुत जबरदस्त होता है। इसलिए जो लोग अपनी आंखें बहुत इधर-उधर चलाते रहते हैं उनको मैं आगाह करदेना चाहती हूं कि उनका मूलाधार चक्र बहुत खराब हैं। और अजीब-अजीब तरह की परेशानियां उनको उठानो पड़ती हैं। सबसे तो बात यह हो जाती है कि ऐसे आदमी का चित्त स्थिर नहीं होता क्योंकि वो अपनी दिशा भूल गया। इधर-उधर फिर -फिर देखता है। यह भी एक दिशा की भूल का ही नमूना है। जिस आदमी को अपनी दिश मालूम है वो सीधे चला जाता है। दिशा का भूल जाना मनुष्य ही कर सकता है, जानवर नहीं कर सकते क्योंकि उसको कोई वजह ही नहीं वो दिशा भूले या कहीं उसका समझ लीजिए एक जानवर ने दूसरे जानवर को मार कर कहीं डाल दिया उसको मालूम है उसने उसको कहां डाला है। उसको उसकी सूंघ आयेगी। उसको समझ आयेगी तो बराबर अपने स्थान पर पहुंच जायेगा। भटक नहीं सकता। आप अगर किसी बिल्ली को घर से निकालना चाहे तो सात मील की सुनाई देती है। बहुत वहां सुनने की शक्ति, देखने की शक्ति। अगर कोई चील ऊंचाई से भी देखे तो वो समझ जाती है कि ये आदमी मरा है कि जिंदा है। ये सारे ही जो पांचों इंद्रियों की शक्तियां हैं ये जानवरों से इंसान में बहुत कम हैं। और उससे जो सबसे बड़ी शक्ति उनके पास होती है जो गणेश तत्व से पाई जाती है वो है दिशा का अंदाजा। बहुत से पक्षी मैने कल आपको बताया था कि पक्षी जब उड़ कर के साइबेरिया से आते हैं तो वो उसी वजह से जानते हैं कि हम उत्तर जा रहे हैं या दक्षिण जा रहे हैं, या पूरब जो रहे हैं या पश्चिम जा रहे हैं। पर जैसे-जैसे गणेश तत्व कम होता जाता है मनुष्य में वैसे-वैसे दिशा का ज्ञान दूसरी तरफ बढ़ता जाता है। जो आदमी बहुत ज्यादा सोच विचार करता है १ कि मैं ये करू या नहीं? इसमें कितना लाभ होगा या कितना नुकसान होगा? इसमें रुपया लगाऊं या उसमें रुपया लगाऊं ? इस तरह कि फालतू की बातों में जो मनुष्य अपना चित्त बर्बाद करता है उसको दिशा का ज्ञान बड़ा कम हो जाता है। उसको आप एक जगह में खड़ा कर दीजिए कि आपको उत्तर की ओर जाना है ये उत्तर है तो थोड़ी देर में देखियेगा कि वो दक्षिण की ओर चले जा रहे हैं। रास्तों का उसे ज्ञान नहीं रहता। अगर आप उसे कहीं खड़ा कर दौजिये और पूछे रात के वक्त कि उत्तर दक्षिण, पूर्व, पश्चिम तो कहेगा कैसे बताया जाये भई सूरज तो है नहीं। जब आपका चित्त इस तरह से बाहर की और बहुत ज्यादा हो जाता है और या तो आप किसी के चालाकी से पस्त होते हैं या आप दूरी पर जाकर उसे छोड़ दीजिए तो भई शायद वो वापस चली या तो भयग्रस्त हैं कि दूसरा आदमी आपको चालाकी से उठा आयेगी। कुत्ते का तो क्या कहना। कुत्ता तो सूंघ के ऐसे ढूंढता न डाले और यातो आप इसके पीछ लगे हैं कि चालाकी से इसको है कि फौरन उसे पता चल जाता है कि चोर कहां चला गया कैसे डुबाया जाये। दोनों हालात में आपकी जो अबोधिता है वो और कहां चीज चली गई। लेकिन मनुष्य के अंदर सुंघने की शक्ति घटता जाता है। और जब आपकी ऐसी स्थिति आ जाती है तब भी बड़ी नष्ट हो गई। उसको गंदगी की तो बदबू आने लगती है लेकिन पाप की गंदगी की नहीं वो उसे नहीं सूंघ पाता है जो हमारे एक छोटी सी बात बतायें आप लोग बुरा मत मानिये। मैं अंदर पाप बनकर जी रहा है और जो दूसरा आदमी महापापी आजकल देखती हूं, पहले लड़कियों में यह बात नहीं थी अब है उसके साथ हम खड़े हैं। उसको इसकी गंदगी तो जरूर आ उनमें भी यह बात दिखती हैं। दिल्ली शहर में ज्यादा कि हर आदमी जायेगी कि यहां गंदा पड़ा है। वहां सफाई नहीं हुई है। ये नहीं की ओर नजर उठा कर वो देखने लगीं। पहले तो मर्द देखा करतें हुआ है। वो नहीं हुआ है। लेकिन कोई महापापी भी उनके साथ थे अब औरतों ने भी शुरू कर दिया। अब इसको आप सोचते खड़ा होगा उसकी बदबू नहीं आयेगी। और गर वो आदमी बड़ा हैं कि ये तो बहुत ही सीधी बात है। इसमें कौन सी ऐसी बात है। आदमी है, मंत्री हो, कुछ हो तो उसके तलवे चाटने हैं तो भी वो हर आदमी की ओर जरूरी ऐसे देखना, इसमें लोग कहेंगे इसमें नहीं हटेंगे। गणेश तत्व के खराब हो जाने से मनुष्य का सारा ही, कि कोई शिष्टाचार को बात माँ कह रही है। नहीं ये बहुत गहरी क्या कहना चाहिए अस्तित्व ही खराब हो जाता है। और गणेश बात है। जितना ही आप देखते हैं उतना ही आपका चित्त बाहर तत्व जो है इस पर चंद्रमा का अभिशाप हैं। चंद्रमा जब बिगड़ की ओर जाता है। जितना ही आपकी दृष्टि बाहर की ओर जायेगी जाते हैं तो आप जानते हैं कि बायें ओर की बीमारी हो जाती है। आदमी पागल हो जाता है और पागल तो क्या होता है असल में बात यह हो जाती है कि जब आदमी इस तरह से बिलकुल आपको दिशा का ज्ञान नहीं रहता। प उतना ही आपका मूलाधार चक्र खराब होगा। विशेष करके इस तरह की चीजों की ओर या बहुत से लोगों की आदत हुई कि 19 तत्व की बात इधर-उधर अपनी आंख घुमाने लगता है तो उसका चित्त जो चाहिए। माताजी तो एक अजीब गुरू है कि पहले ही शुरू कर है अपने काबू में नहीं रहता और कोई भी दुष्ट आत्मा उस पर देती है कि आपको पवित्रता रखनी चाहिए। ये कोई तरीका हुआ आघात कर सकती है। जब विदेश के लोगों को मैने बताया कि अधिकतर गुरू यही कहते हैं कि भई जो करना है करो। पैसा तुम लोग क्या कर रहे हो अपनी आंख के साथ। ईसा मसीह ने जमा कर दो काम खत्म। पैसा तुमने जमा किया कि नहीं ? साफ शब्दों में कहा कि "आप व्याभिचार नहीं करेंगे। आपकी कुंडलिनी जागरण जो है ये असलियत है, वास्तवीकरण है। दृष्टि अपवित्र नहीं होनी चाहिए। हम इस तरह से अपना गणेश इसके लिए मनुष्य को पवित्र होना जरूरी है। गर आप पवित्र तत्व खराब करते रहते हैं। जिसका गणेश तत्व खराब हुआ नहीं तो आपको कुंडलिनी जागरण का कोई अधिकार नहीं उसकी कुण्डलिनो टिक नहीं सकती, फिर खिंच करवापस चली जाती है। जितनी भी ऊपर उसको लीजिए, लेकिन वह वापिस तैयार नहीं होती है कि मेरा बेटा जो है गिर गया। उसके लिये आ जाती है। एक तो ऐसे इंसान की कुंडलिनी उठती नहीं और बड़ा मुश्किल है क्योंकि इसको ही लांछन लगता है। तो सारी उठती भी है तो फिर जा कर दब जाती है। इसलिए गर समझ अपनी पुण्याई लगाकर कहती है अच्छा पार तो करा दो पहले। लीजिए कोई आदमी चोर हो उचक्का हो तो परमात्मा की नजर ये बात जानना चाहिए चाहे आप बुरा माने या भला माने अपने में इतना बड़ा गुनाह नहीं है। लेकिन परमात्मा की नजर में वो जीवन को पार होने के बाद आपको जरूर पवित्र बनना पड़ेगा। आदमी बहुत दृषित है जिसकी नजर स्त्री के ऊपर शुद्ध नहीं है। पवित्रता आपमें बहुत जरूरी आनी चाहिए। इसका ये मतलब नहीं अपनी पत्नी को छोड़ करके और बाकी सब औरतें शुद्ध स्वरूप कि आप सन्यासी बनकर घूमिए। सन्यासियों को भी नहीं से देखना चाहिए। लेकिन आजकल लोग उसको मानते ही नहीं। सहजयोग मिल सकता। ये मतलब मेरा बिल्कुल नहीं कि आप हमारी उम्र में हम तो अधिकतर लोगों को ऐसा ही देखते थे अब कोई अस्वाभाविक तरीके से रहें, अनैसर्गिक तरीके से, उससे इस उम्र में जब देखते हैं तो हमारी उम्र के लोग जो बुड़े लोग आदमी बड़ा ही सूख जाता है एकदम सूखा इंसान हो जाता है। हैंगये हैं वो भी सत्यानाश हो गये हैं। बुढ़ापे में उन्होंने अपने जवानों से यह बात सीखी और बुड्के ज्यादा बलवान जवान हो गये हैं आशीर्वादित होता है। यहां तक कि सहजयोग में विवाह भी होते कुछ समझ में नहीं आता है कि इन लोगों को अक्ल कब आयेगी। हैं जो बहुत ही ज्यादा लाभदायक होते हैं। विवाह एक मंगलमय अरे भई पचास साल पहले यह नहीं था। पचास साल पहले ऐसा कार्य है और उसमें आप जानते हैं हम गणेश की हमेशा स्तुति नहीं था तो आज क्या हो गया है कि हम लोग के सभी आंखों करते हैं। गर आपके अंदर पावित्र्य नहीं है तो आप परमात्मा की शर्मो-हया चली गई ? और फिर कोई बताता थोड़े ही है की बात नहीं कर सकते। सच बात आपसे मैं कहूं इसलिए बहुत कि आप शर्मो-हया करो। वो तो एकदम अंदाज ही हो जाता लोग कहते हैं कि माँ हमारे क्मों के फलों का क्या होगा और है। हमने अपना गणेश तत्व खो दिया बहुत कुछ खो दिया। अब हमारे कर्म अच्छे नहीं हैं । बहरहाल मेरे सामने ये बात नहीं करने तो जब औरतें भी इसी ढंग की हो गई तो आदमी का क्या हाल की क्योंकि माँ के लिए ये सब कुछ मुश्किल काम नहीं। उनका होगा? इस तरह आजकल औरतों का भी यह ढंग चल रहा है आदमी होने के बाद याद रखना चाहिए कि सब गुनाह माफ हैं पार होने तो आदमी औरतें इस तरह की होने लगी हैं। इस तरह के संसार तक। क्योंकि आप पार नहीं थे, अंधेरे में थे, चलो जो भी जैसा में परमात्मा का राज चलाना मुश्किल है। आजकल ऐसे गुरु भी हुआ। लेकिन उसके बादयह बात जाननी चाहिए कि अपने गणेश हो गये हैं जो सिखाते हैं ऐसे धंधे करो जिससे भगवान मिल तत्व को आप बहुत आसानी से जगा सकते हैं। जब ये परदेश जायेगा ऐसे गुरुओं के पास आपके जैसे दस गुना बैठ जायेंगे ये बात किसी को अच्छी थोड़ी ही लगती हैं। कहा भी गया है जैसा सीख लिया है कि पवित्रता क्या है तो क्या आप नहीं जमा सकते ? करना है करो आराम से अपने गणेशतत्व को खूब कुचल डालो। कुंडलिनी तत्व जो है ये कोई साइंस-वाइंस की बात नहीं है को अच्छी समझता हो। करता है लेकिन ये जानता है कि गुनाह ये तो पवित्रता की बात है। लोग मुझे पावन माँ तो कहते हैं लेकिन है गलती है। मैं पवित्रता की बात कहती हूं तो उनको समझ में नहीं आता। आजकल कोई गुरु ऐसा नहीं कहता कि आपको पवित्र होना आपमूलाधार चक्र जो है ये कहां पर है? कुछभी विर्संजन किया मिलना चाहिए। फिर भी माँ का रिश्ता है। माँ मानने को कभी वो भी मना है। मंगलमय विवाहित जीवन सहजयोग में नाम ही बनाया है पापनाशिनी। तो अब क्या करें? लेकिन पार के लोगों में जम गया तो आपमें क्यों न जमे। जब इन लोगों ने कम से कम ऐसा हिन्दुस्तानी मुझे नहीं मिलेगा कि जो अपवित्रता इस गणेश तत्व को आप बनाये रखिये जैसे गणेश है देखिये चैतन्य लहरी 20 है सो कहना चाहिए। मल त्याग जितना होता है उस पर श्री गणेश मैने देखा है कि उनके शरीर पर छाले आ जाते हैं। क्योंकि ऐसे बैठा है। तो सारा कार्य श्रीगणेश करता है क्योंकि श्रीगणेश लेगों के पास वो जाते हैं जो कि अपवित्र हैं और जिनको कीचड़ में कमल होता है। उस प्रकार अपने सुगंध से सारा सौरभ कुंडलिनी के लिए कोई भी मालूमात नहीं होता है। और जब वो इतना लुटाते हैं कि वो कीचड़ भी सुगंधमय हो जाता है। आपको कुंडलिनी की तरफ अग्रसर होते हैं गलत रास्तों से और गलत आश्चर्य होगा कि जैसे ही आपका गणेश तत्व जमना शुरू हो तरीकों से तब उन पर स्वयं साक्षात श्रीगणेश गरजते हैं। श्रीगणेश जायेगा, आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कभी जानते भी नहीं और साधक को बहुत तकलोफ उठानी पड़ती है। सारा तांत्रिक हॉंगे कि कितना आनन्द अंदर से आने लग जाता है क्योंकि तत्व शास्त्र गणेश जी को नाराज करके पाया जाता है। जो वास्तविक निर्मल है। इसका मतलब ही निर्मल रहना है। निर्मलता जिस तत्व निर्मल तंत्र है वो ये है जो सहजयोग है। क्योंकि गर तंत्र माने पे आ गई उसका मूल ही सारा हट गया। और वही निर्मल होता कुंडलिनी है यंत्र माने कुंडलिनी है तो तंत्र शास्त्र सिर्फ सहजयोग है जो किसी मल को अपने अंदर जमने ही न दें। कोई भी चीज में ही जाना जा सकता है। और बाकी जो तांत्रिक हैं ये परमात्मा जो निर्मल करनी है वो तत्व ही हो सकता है। तत्व से कोई चीज के विरोध में हैं, पापी लोग हैं, दुष्ट लोग हैं और ये गणेश जी लिपट नहीं सकती।तत्व हमेशा तत्व बना रहता है। इसलिए सबसे को नाराज करके ये देवी जी को नाराज करके उनके सामने पहले हम लोग श्रीगणेश का ही आह्वान करते हैं और उनकी व्याभिचार करके ऐसी सृष्टि तैयार करते हैं जहां वो दूष्ट कारनामे आराधना करते हैं। उनको हम मानते हैं। लेकिन आजकल लोग कर सकते हैं जहां प्रेत-विद्या, शमशान विद्या आदि करके ऐसे भी निकल गये हैं कि कुंडलिनी के नाम पर गणेश जी का लोगों को भरमा सकते हैं। ये बहुत समझने की बात है कि जिस अपमान करते हैं। सुबह से शाम तक इतना अपमान कर रहे हैं आदमी का गणेश तत्व ठीक होगा उस पर कभी तांत्रिक हाथ कि मैं आपसे बता भी नहीं सकती। कुंडलिनी उनकी माँ है और नहीं मार सकता, कभी नहीं चाहे जितनी भी कोशिश कर लो। वो भी कन्या। कन्या स्थिति में जब गौरी थी। जब पति के विवाह गर उस आदमी का गणेश तत्व ठीक है तो वो तांत्रिक मर जायेगा। से पहले उनका स्वागत करने के लिए नहाने गयी थी। विवाह पर इस आदमी का कोई बाल-बांका नहीं कर सकता । इसलिए हो चुका था लेकिन अपने पति से मुलाकात नहीं हुई थी। जब गणेश तत्व जो हैं ये सुरक्षाकारी हैं। सबसे बड़ी सुरक्षा गणेश नहाने गई थी तब उन्होंने श्री गणेश को अपने मैल से बना कर तत्व से होती है इसलिए अपने गणेश तत्व को आपको बहुत ही स्नानगृह के पास बिठाया, कहते हैं ये बात सही है। एक दूसरे ज्यादा सुचारू रूप से संभालना चाहिए। पहले तो अपनी नजर माने में या एक दूसरे आयाम में कि वो अपनी माँ की रक्षा करें। नीचे रखनी चाहिए लक्ष्मण जैसे। अवतरण को भी अपनी आंख उनकी प्रतिष्ठा की उनके नियमों की रक्षा करें। उनकी पवित्रता सीता जी के चरणों में ही रखनी पड़ी। क्या उसके अंदर कोई की रक्षा करें क्योंकि वो कंवारी हैं। वो कन्या हैं। इसी प्रकार हमारे पाप था। लेकिन उन्हें ज्ञात था कि ऊपर देखना, किसी की ओर अंदर भी जो कुंडलिनी है वो गौरी स्वरूप है। अभी कुंवारी हैं। दौड़ना सिर्फ अपना चित्त ही तो जाता है। गणेश तत्व हमें पृथ्वी उनका अभी अपने पति से मेल नहीं हुआ। पति उनके माँ से मिला। पृथ्वी माँ ने हमें गणेश तत्व दिया और इसलिए इस आत्मास्वरूप शिव जी हैं और गणेश वहां बैठे हुए हैं और जिस पृथ्वी माता का अनेक बार धन्यवाद मानना चाहिए कि आपने दरवाजे पर श्री गणेश बैठे हैं उस दरवाजे से शिवजी भी नहीं हमें ये गणेश तत्व दे करके दिशा का ज्ञान दिया। जब मनुष्य के जा सके। इतना पवित्र दरवाजा है। और ये दुष्ट लोग जिनको की अंदर गणेश तत्व जागृत हो जाये तब उसके अंदर बुद्धि-विवेक तांत्रिक कहना चाहिए उस तरफ से कोशिश करते हैं कुंडलिनी आ जाती है। हम उसके गणेश से हमेशा कहते हैं कि हमें विवेक की ओर जाने की। इसी वजह से उनको हर तरह की तकलीफ दो। हमें सुबुद्धि दोजिए। मनुष्य के अंदर अगर दिशा का ज्ञान न होती है। जिस आदमी में पवित्रता नहीं है उसको कोई अधिकार भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अच्छे बुरे का उसको नहीं है कि वो कुंडलिनी जागृत करे। गर ऐसा आदमी कोशिश ज्ञान होना चाहिए। इसीलिए हम उनसे मांगते हैं कि आप हमें करेगा तो जरूरी है कि श्री गणेश उस पर नाराज हो जायेंगे और विवेक दीजिए और इसीलिये वो विवेक देने वाले माने जाते हैं। फलस्वरुप उनके अंदर अनेक तरह की तकलीफ आ जायेंगी। ये गणेश तत्व है। कोई लोग उसमें मैंने सुना है कि नाचने लग जाते हैं कोई चिल्लाने लग जाते हैं। कोई भ्रमित हो जाते हैं और कोई लोग जानवरों तत्व। विष्णु तत्व से हमारा धर्म धारण होता है। जो कि हमारा जैसी बोलियां निकालने लग जाते हैं। किसी-किसी लोगों को नाभि चक्र से प्रभावित होता है। नाभि में हमारे अंदर धर्म धारणा हमारे अंदर जो दूसरा बहुत महत्वपूर्ण तत्व है वो है विष्णु 21 तत्व की बात उसने गर्दन उठाई फिर वो मनुष्य बना तो वो धीरे-धोरे मनुष्य आप अमीबा से और ऊंचे इंसान की दशा में आ गये तब आप बना तो हमारे अंदर ये जो धर्म है कि हम धर्म की धारणा करते अपनी सत्ता खोजते हैं। उससे आगे जब आप जाते हैं आप हैं तो जैसे कि मछली का धर्म था कि वो पानी में तैरती थी उसके बाद कछुआ का धर्म था कि वो रेंगता था जमीन पर। उसके बाद परमात्मा को खोजें। ये मनुष्य का धर्म है जानवर नहीं खोज जो जानवर थे उसका ये धर्म था कि वो चार पैर से चलता था। सकते। और कोई भी प्राणी परमात्मा को नहीं खोज सकता। ये लेकिन उनकी गर्द नीची। फिर घोड़े-वोड़े जो थे उन्होंने अपनी मनुष्य का धर्म है। इसके दस अंग हैं और ये धर्मं का तत्व हमें गर्दन ऊंची कर ली उसके बाद उन्होंने सारा शरीर ही खड़ा कर विष्णु जी से मिलता है। अब बहुत से लोग सोचते हैं कि विष्णु लिया और दो पैर पर खड़े हो गये ये मनुष्य का धर्म है कि वो जी से हमें पैसा मिलता है और विष्णु जी से हमें और लाभ होते दो पैर पर खड़ा है और उसकी गर्दन सीधी है। ये तो बाह्य में हैं। लेकिन ये बात नहीं है कि सिर्फ उनसे पैसा ही मिलता है क्योंकि हुआ बहुत ही ज्यादा जड़ तरीके से आप समझें। लेकिन तत्व ऐसी-ऐसी भावनाएं हमारे अंदर बसी हुई हैं कि विष्णु जी से में क्या मनुष्य ने पाया क्योंकि हर बार जंब भी आप कोई सा से जैसे कि आप अमीबा थे तो आप खाना-पीना खोजते थे। जब परमात्मा को खोजते हैं। आपके अंदर ये धर्म है कि आप भी काम करते हैं तो तत्व भी अपने कार्य में भी उसी तरह प्रभावित होना चाहिए। समझ लौजिए आज इसमें से आपस में बातचीत कर रहे हैं। तो आप हमें समझ रहे हैं। लेकिन समझ लीजिए कि कल इससे भी बढ़िया चीज कोई आ जाये तो उसकी हमारे लिए जितना भी क्षेम है वो मिलता है और बाकी कोई नहीं। सारे क्षेम से क्या लाभ होता है? आप ये देख लीजिए। समझ लौजिए कि एक मछली है जब उसने पूरी तरह से यह जान लिया कि हम इस समुद्र से पूरी तरह से संतुष्ट हैं, उस संतोष को पा लिया, तब उसे ये विचार आता है कि समुद्र को तो सब देख लिया इसकी तो सब धर्म जान लिया अब हमें जानना है कि जमीन का धर्म क्या है। तो वो अग्रसर होता है कोई भी मछली अवतरण जो हुआ है वो सिर्फ ये हुआ है कि एक मछली उसमें से बाहर आई। अब जब वो मछलो बाहर आई एक ही मचळी वो ही अवतार। जो पहले बाहर आई बहुत सारी मछलियां को अपने साथ खींच लाई यह सीखने के लिए कि धर्म क्या है? कौन सा धर्म? इस जमीन का धर्म क्या है? पहले इस जमीन के धर्म को सुनो। इसलिए रेंगते हुए वो मछलियां बाहर आई । अब दूसरा धर्म सीखने की बात आ गई। पहले पानी का धर्म सीखा अब जमोन का धर्म सौखने लगे। तो रेंगते-रेंगते उन्होंने देखा कि पेड़ भी है इन पेड़ों से भी आप पत्ती खा सकते हैं। क्षुधा पहली चौज होती है जिससे कि आदमी खोजता है खोजने को शक्ति नाभि में है। पहले रखी होती थी पर क्षुधा होती है उसकी आपको इच्छा होती कि आप किसी तरह से अपनी क्षुधा को पेड़ के लिए जरूरी है कि भई जो हमारा शरीर है वो ऐसा ही रेंगता रहे ताकि जो पेड़ की चीजें हैं वो हम भी खा सकें। धौरे-धीरे उसने अपने ओर से चार पांच इकट्टे कर लिए फिर कछुआ हो गया, कछुआ होने के बाद फिर उसने देखा कि ये तो ऊंचे-ऊंचे पेड़ हैं उसको कैसा करें। फिर अपनी क्षुधा शांत करने के लिए उसने सोचा चलिए जरा सा और ऊंचा हो जायें इस तरह से करते-करते वो फिर जानवर भी हो गया और मशीनरी जो काम करेगी वो भी एक नई होंगी। मनुष्य के अंदर का जो तत्व है वो एक नया विकसित तत्व है और वह परमात्मा को खोजता है। उसका जो तत्व है वो परमात्मा को खोजता है। इसलिए मनुष्य का प्रथम तत्व है वो है परमात्मा को खोजना। जो मनुष्य परमात्मा को खाजता नहीं वो पशु से भी बदतर है। और जब वो परमात्मा को खोजने निकला तब उसका नाभि चक्र का तत्व पूर्ण हो गया। अब वो अगले तत्व पर आया। अब जब वो परमात्मा को खोजने लगा तब उसने देखा कि संसार की सारी सृष्टि बनी हुई है। हो सकता है इन तारों में ग्रहों और इन सब चीजों में हो परमात्मा हो। उसकी तरफ उसकी दृष्टि गई। तब उसे हिरण्यगर्भ याद आया। उन्होंने वेद लिखे। अग्नि आदि पांच तत्व हैं उसकी ओर उसका चित्त गया। उसको जानने की उन्होंने कोशिश करी। उनको जानते हुए उन्होंने जो कुछ यज्ञ हवन आदि करने थे वो किये और ब्रह्मदेव और सरस्वती की अर्चना करी। सब कुछ करने के बाद उन्हें लगा कि तो सब कुछ तो हम जान गये। ज्ञान से विज्ञान की ओर मानव गया। और अपने लिए विनाश का सारा सामान बना लिया। पर हाथ लगी निराशा तथा असंतोष। इससे बचने के लिए नशे और बुराइयों का सहारा लिया। कहने का मतलब यह है कि अगर तत्व में परमात्मा को खोजना ही सब बात है तो आप समझ सकते हैं कि विज्ञान के रास्ते आपको परमात्मा नहीं मिलेगा। विज्ञान के रास्ते आपने जो कुछ पा लिया है बड़ा भारी ज्ञान पा लिया है। उससे किसी ने भी आनंद को नहीं पाया है। ये आवश्यक है कि आप पहले से ज्यादा आलसी हो गए पहले से ज्यादा अब तुप्त करें। तो देखा है कि पेड़ है जानवर होने के बाद उसने सोचा कि अब जरा गर्दन उठा कर देखें बहुत झुक-झुक कर रहे हैं अब गर्दन उठा कर देखें। जब चैतन्य लहरी 22 आप चल नहीं सकते। अति सोचने की वजाह से यूरोप के लोगों ब्रह्मदेव का तत्व भी गया। अब जैसे कि अपने देश में कहा कि के हाथ बेकार हो गए। कोई भी कशीदाकारी का काम, खाना निराकार बनना चाहिए। उसको पाना चाहिए, वेद में ऐसा लिखा बनाने का काम, कोई भी काम वो लोग नहीं कर सकते। अब गया है, ये हैं, वो है, जिद करके बैठ गये। लेकिन वेद में भी लिखा जब उनकी खोपड़ी ज्यादा चलने लग गई तो उस खोपड़ी को है कि वेद माने विद, माने जानना। गर सारा वेद पढ़कर भी मनुष्य उन्होंने मशीन में डाल दिया। जब मशीन आ गई तब खोपड़ी भी ने अपने को नहीं जाना तो वेद बेकार हुआ कि नहीं? और गर बेकार हो गई। मशीन के बगैर वो लोग चल नहीं सकते। अब ये बात है तो पहली चीज ये है कि वेद का पठन करने से ओर अगर वहां बिजली चली जाए तो वहों लोग आत्महत्या कर लें। सबहो सकता पर आत्मज्ञान नहीं हो सकता। उसके पठन से और अपने यहां भगवान की कृपा से अच्छा है। अभी भी लोगों को सब हो सकता है पर आत्मज्ञान नहीं हो सकता। गायत्री मंत्र है। आदत है। पर वहां तो इस कदर उन्होंने गुलामी कर ली और अब गायत्री मंत्र बोले जा रहे हैं। अरे भई ऐसे बकवास से क्या अब इनको पता हो रहा है कि प्लास्टिक के इतने बड़े-बड़े गायत्री देवी जागृत हो सकती हैं क्या? किसी की हुई ? दिखाई पहाड़ खड़े कर लिये अब इसका क्या करें। इसको नष्ट कैसे दी आपको? किसलिए आप गायत्री का मंत्र बोलते हैं? ये भी करें? इसके पीछे में लगे हैं। अब सर पकड़ कर बैठे हैं। पहले तो उन्होंने खूब सूत के कपड़े बनाए और अब जैसे कि समझ लीजिए हैं कि गर क्या है? शराब लोग पिये समझ जो है वे परमात्मा की ही एक शक्ति है। जब तक आपने उस लोजिए किसी के घर में हैं तो दस तरह के गिलास होंगे इसके लिये। ये गिलास उसके लिए, वो गिलास उसके लिए। वो खाना खाने बैठेंगे तो एक के लिए एक चमचा, दूसरे के लिये दूसरा से गए। आयने किसी दूसरे को प्रसन्न कर भी लिया तो आप तो चमचा तीसरे के लिये तीसरा चमचा। उसके लिये दूसरी प्लेट काम से गए ही हुए हैं। कोई आपको बचा नहीं सकता। जब तक उसके लिये चौथी प्लेट। अरे भई एक थाली लो और हिसाब से आपने परमात्मा को पाया नहीं तब तक ये सारी शक्तियां व्यर्थ खाओ। पच्चीस तरह के गिलास और पच्चीस तरह के ये और हैं। ये इसका साक्षात है और तत्व सिर्फ आपमें ही है। उसी को पच्चीस तरह की तश्तरीयां। भगवान बचाए। अब ये हालत आ गई कि उनके जितना भी था वो निकल गया पृथ्वी माता से। सब को नहीं पा सकते। पर परमात्मा को पाने से इन शक्तियों के तत्व कुछ तत्व था वो निकाल डाला अब खोखले हो गए। अब काहे पे आप उतर सकते हैं? अब जो हैं कि हमको दूसरी ओर ऐसा में खाते। अब सुबह-शाम हर वक्त कागज में खाते हैं। बनावटी चित्त देना चाहिए कि इससे ऊपर जो शक्ति है जो कि देवी शक्ति चीजों में फंस कर रह गए हैं। क्योंकि हमने तत्व जाना नहीं मानी जाती है। ये आपके हृदय चक्र में होती है। हृदय चक्र से इसलिए जब हम पंच महाभूतों के तत्व पे उतरने को गए तब भी हम जड़ में फंसे रहे। सारे पंचमहाभूतों का तत्व है ब्रह्मतत्व। है तो क्या उससे नुकसान होते हैं। इसको आप समझ लोजिए। ब्रह्मतत्व क्या है ? आत्मा को पाने से ही वो ब्रह्मतत्व हमारे अंदर देवी तत्व से हमारे अंदर सुरक्षा स्थापित होती है जिससे आप से बहना शुरू हो जाता है। उस तत्व को तो हमने खोजा नहीं और खोजते गए खोजते गए और वहां पहुंच गए जहां वो चीज देवी तत्व के अनुसार हमारी जो हृदय-अस्थि है, ये सामने की बिलकुल बाहर आ गई और जड़ हो गई। इसलिए ये हालत है कि उस देश में भी कोई खुश नहीं है। वहां सभी अशांत हैं, कोई एन्टी बाडीज कहते हैं। ये देवी के सैनिक हैं। ये सारे शरीर में शांत नहीं। औरतें आदमी को मारती हैं और आदमी औरतों को चले जाते हैं और वहां जाकर सजग रहते हैं कि आप पर किसी बच्चों को मारते हैं। माँ-बाप को मार डालते हैं। दो बच्चों को भी तरह का आक्रमण आये तो उसे रोकें। जब आपकी सुरक्षा हर हफ्ते में माँ-बाप मार डालते हैं। कहां सुना है आपने मार किसी तरह से खराब हो जाती है उस वक्त ये चक्र पकड़ा जाता ही डालते हैं। तो ये इस तरह की जहांसंस्कृति बन गई है तो जानना है| चाहिए कि उन्होंने तत्व को जाना ही नहीं। अगर जानते होते तो तत्व को ये पाते और आज ये हालत नहीं होती। क्योंकि तत्व में विशेषकर सुरक्षा बड़ी जल्दी खत्म हो जाती है। जैसे कि एक जो है वो आनंद देने वाला है। तो तत्व इन्होंने वहां खो डाला। तो स्त्री है, अच्छी है, सदगुणो है, पुरूष ने या पति ने उसको सुरक्षा आपको पता नहीं। गायत्री को जागृत करने के लिए जरूरी है कि मनुष्य पहले अपनी आत्मा को जागृत करे नहीं तो गायत्री परमात्मा को नहीं जाना आप गायत्री के सहारे कहां चलियेगा? समझ लीजिए गर आपसे प्रधानमंत्री नाराज हैं तो आप तो काम पाना होता है। ये जो शक्तियां हैं इसको पाने से आप परमात्मा मतलब जगदम्बा का चक्र हमारे अदर जब ये खराब हो जाता सुरक्षित होते हैं। जब बच्चा 12 साल का होता है तब तक इस जो हड्डी है, उस हड्डी में सैनिक तैयार होते हैं जिसे अंग्रेजी में अब मैने अभी कुछ दिन पहले आपको बताया था कि स्त्री तत्व की बात 23 नहीं दी, समझ लीजिए एक औरत है, उसको अपने पति परपास आये। या तो दिल का दौरा आ जायेगा दिल का दौरा नहीं शक है। शक ही है समझ लीजिए कि ये एक आवारा किस्म का आदमी है। किसी और औरत के साथ है। उसका ये चक्र पकड़ा मिर्गी दे देंगे। उस पर उनको चैन नहीं आया तो कैंसर दे देंगे। गुरू जायेगा इस वक्त आदमी को बजाय इससे नाराज होने के उसका तत्व जब हमारा खराब हो जाता है तब इतने तरह के कैसर इंसान सुरक्षा चक्र ठीक करना चाहिए। उसके तरीके हैं उसको सोखना में हो सकते हैं जिसकी कोई हद नहीं। मतलब ये कि सिर को चाहिए कि किस तरह औरत को सुरक्षा दें बजाये इसके कि किसी के सामने झुकाने की जरूरत नहीं। हर जगह मत्था टिकाने औरत से बिगड़ें। पर लोग इतना ही नहीं करते वो तो खुले आम की जरूरत नहीं। हां ठीक है अपने माँ-बाप हैं आप टिकाइये। औरत के सामने हां। तुम कौन होती हो? अरे तुम हमें टोकने पर किसी को गुरू मानकर उसके आगे मत्था टिकाने की जरूरत वाली कौन होती हो? तुम बड़ी ये हो। तुम बड़ी शबक्की हो और नहीं। पहले आपको मालूम होना चाहिए कि गुरू वही जो जाओ तुम अपने बाप के घर। और सुरक्षा उसका खत्म। वो सारा जो कुछ भी पवित्रता है वो औरत का ठेका है आदमी को कोई कहती हूं मेरे पैर मत छूओ पर हजारों आदमी मेरे पैर पर सर जरूरत नहीं है पवित्रता की। ऐसा अपने यहां के लोगों का विचार मारते हैं। ऐसे पैर मेरे फूल जाते हैं । लहरियों से मैं कहती हं मत है। फिर उसका इलाज जो है वो कायदे से हो जाता है। जैसे इंग्लैंड छूओ तो नाराज हो जाते हैं। माँ दर्शन नहीं देना चाहती। ये बीमारी में आप जाइये तो सब आदमी सुबह से शाम तक गधों की तरह लोगों को दें। किसी भी गुरूघंटाल के सामने लेट जाएंगे और काम करते हैं । और घर पे आये बीबी ने गर उनको तलाक कर बीमारी तथा पागलपन ले आयंगे। आपके अगर गुरू हैं तो दिया किसी भी वजह से तो उनका घर बिक जाता है। आधी आपकी तन्दरूस्ती तो ठीक कर दें। ये गुरू लोग किसी न किसी जायदाद बीवी की और आधी उसकी। एक आदमी ने गर तीन बहाने लोगों से हजारों पौंड ऐंठते हैं। कभी हवा में उड़ायेंगे और बार ऐसा किया तो वो तो एकदम रास्ते पर पड़ गया। वो शराब कभी-कभी पानी पे चलायेँगे। और वो भी कर नहीं पाते। पी-पी कर मर जायेगा और बीवी जो है उसके पास खूब पैसा तरह-तरह के कष्ट देते हैं अपने चेलों को। क्या आवश्यकता हो जायेगा। उसने तीन बार शादियां कर ली हो गये वहां के है इन चीजों की? आदमी जो हैं बेचारे वो हर समय औरतों के पीछे दौड़ा करते हैं और वो उनके ऊपर हक्म जमाती हैं। इसके विपरीत भारत गुरू तत्व में अपनी अक्ल खो देते हैं और ऐसे बेवकूफों के पास के पुरुष बिलकुल निठल्लू हैं। लड़कियों को ही घर का सारा जाते हैं तो आपका गुरू तत्व खराब हो जाता है। और आप सब कार्यभार संभालने की शिक्षा दी जाती है। जब हम किसी व्यवस्था तत्व को नहीं समझते तो उसमें बड़े दोष आ जाते हैं। स्त्री यदि की शरण में चले गये तो पार हो गए। ऐसे तो मेरी शरण में आने स्वयं को असुरक्षित तथा अपमानित पाती है तो उसे कैंसर, से भी नहीं हो सकता। मैं तो साक्षात बैठी हूं। पार होने के लिए तपेदिक जैसे रोग हो सकते हैं उनकी सुरक्षा ठीक करना ही तुम्हारी भी थोड़ी सी पूंजी लगती है। कुंडलिनी के जागरण के मात्र उनका इलाज है। आपरेशन इसका इलाज नहीं । सहजयोग बिना आप पार नहीं हो सकते। पार हुए बिना सब बातें बेकार तत्व पे उतरता है। चक्रों को ठोक करता है। गुरू तत्व अगर खराब हैं। पार होने का कोई झूठा प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता। हो जाये तो कैंसर की बीमारी आसानी से हो जायेगी अगर आपको कैंसर ग्रस्त होना है तो आप किसी गलत गुरू के पास आपको पार नहीं कर सकते। समझ लेना चाहिए कि तत्व तो चले जाइए। 5 साल के अंदर आपके पास कैंसर आ जायेगा। एक ही है जो आपको गुरू से मिलता है। जो परम में उतराता अब मैं 10 साल पहले से बता रही हूं इन गुरुओं के नाम। ये कैसे है वही गुरू है। गुरू आपको परमात्मा से मिलाता है। बाकी सब गुरू-घंटाल हैं। इनके पास मत जाओ। ये तुमको नुकसान करेंगे। अंधे हैं वो आपको कहां ले जायेंगे| शरणागत भो आप पार होने सब मैं बता रही हूं। तो सब मुझे ही समझाते थे कि माँ ऐसा नहीं के बाद ही हो सकते हैं। पार होने से पूर्व तो आप मुझे पहचान कहो। तुमको लोग बंदूक चला देंगे। तुमको मार डालेंगे। फलाना भी नहीं सकते। डिमकान, मैंने कहा किसी की हिम्मत हो तो चला दे बंदूक। नाम तक बताया, सब कुछ किया और सब गये। मार खाया और मेरे परमात्मा आपको आर्शीवादित करे। दिया उन्होंने इतनी कृपा करके छोड़ दिया, तो पागलपन दे देंगे। परमात्मा से आपको मिलाता है। अब मेरा उलटा है मैं लोगों से मानव को परम होना है। परम दशा आनी चाहिए। जब आप तरह की व्याधियों के शिकार हो जाते हैं लोग सोचते हैं कि गुरू हम जितनी भी मेहनत कर लें आपकी शुद्ध इच्छा के बिना हम सुरक्षा तत्व के बारे मैंने आज बताया। बाकी फिर बताऊंगी। २ चैतन्य लहरी 24 ---------------------- 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड : V. अंक : 11-12 "अबोधिता ही धर्म का आधार है, बिना अबोधिता के आप धर्मानुयायी नहीं हो सकते।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी खण्ड : V. अॅक : 11-12 विषय सूची पृष्ठ (1) जन्मोत्सव पूजा (2) श्री गणेश पूजा (30-3-90) (27-3-93) 10 (3) श्री माता जी की रूस यात्रा (01-8-93) 13 707-8-93) (4) चिकित्सक सम्मेलन, रूस 16 (5) देवी पूजा, तलियाती (03-8-93) 18 (15-2-81) (6) तत्व की बात 19 चैतन्य लहरी ও 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-2.txt कि श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर सम्पाइक मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 भारती प्रिन्टर्स, WZ-113, शकूरपुर गाँव, दिल्ली-110034 फोन : 5413126, 5437741 मुद्रित चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-3.txt जन्मोत्सव पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली-30-3-90 जिससे वो ओर पाप कर्म न करे। लेकिन यह कार्य मनुष्य के आज नवरात्रि को चतुर्थी है। और नवरात्रि को आप जानते हैं कि रात्रि को पूजा होनी चाहिए। अंधकार को दटूर करना लिये नहीं। यह तो देवी का कार्य है जो उन्होंने नवरात्रि में किया। अत्यावश्यक है ताकि प्रकाश को हम रात्रि में ही ले आयें। आज सो हृदय को विशाल करके हृदय से यह सोचें हम किससे ऐसा के दिन का एक और संयोग है कि आप लोग हमारा जन्मदिन प्रेम करते हैं जो निर्वाज्य है, निर्मम है। ये नहीं कि ये मेरा बेटा है, मेरा घर, मेरी चीज... ऐसा प्रेम हम किससे करते हैं । मनुष्य की जो स्थिति है उससे आप बहुत ऊंची स्थिति में आ गये हैं पहले इस संसार में पवित्रता फैलाई गई जिससे कि जो भी प्राणी क्योंकि आप सहजयोगी हैं। आपका योग परमेश्वर की इस सूक्ष्म जो भी मनुष्य मात्र इस संसार में आये वो पावित्र्य से सुरक्षित रहे शक्ति से हो गया है वो शक्ति आपके अंदर अविरल बह रही और अपवित्र चीजों से दूर रहे। इसलिए सारी सूष्टि को गौरी जी है आपको प्लावित कर रही है आपको संभाल रही है, आपको ने पवित्रता से नहला दिया और उसके बाद ही सारी सृष्टि की उठारही है। बार-बार आपको प्रेरित करती है। आपका संरक्षण रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हमारे लिए यह करती है और आपको आह्वाद और सुन्दर मधुमय प्रेम से भर है कि हम पावित्र्य को सबसे ऊंची चीज समझें| लेकिन पावित्र्य देती है। ऐसो सुन्दर शक्ति से आपका योग हो गया है। किन्तु अभी भी हमारे हृदय में उसके लिए कितना स्थान है ? यह देखना होगा। हमारे हृदय में माँ के प्रति प्रेम है। ये जो बात सही है। माँ से तो सबको प्यार है और उस प्यार के कारण आप लोग आरुदढ़ित हैं। बहुत आनन्द में हैं। किन्तु और भी दो प्रकार का प्रेम होना चाहिए तभी माँ का पूरा प्यार हो सकता है। एक तो कि प्रेम अपने सेहो कि हम सहजयोगी हैं। हमने सहज में शक्ति प्राप्त की लेकिन मना रहे हैं। आज के दिन गौरी जी ने अपने विवाह के उपरांत श्री गणेश की स्थापना की श्री गणेश पावित्र् का स्रोत हैं सबसे का मतलब यह नहीं है कि हम नहायें, धोयें, सफाई करें, अपने शरीर को ठीक करें। अपने हृदय को स्वच्छ करना चाहिए। हृदय का विकार है क्रोध। सबसे बड़ा विकार है और जब मनुष्य में क्रोध आ जाता है तो पावित्र्य नष्ट हो जाता है। क्योंकि पावित्र्य का दूसरा ही नाम निर्वाज्य प्रेम है जो सतत बहता है और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्ति इसी में है कि वो बह रहा है। और जब नहीं बह पाता तो वो कुढता है, कुम्हलाता है परेशान होता अब हमें किस तरह से बढ़ना चाहिए। बहुत से लोग सहजयोग है। सो पावित्र्य का मतलब है कि आप अपने हृदय में प्रेम को के प्रभाव के लिए बहुत कार्य करते हैं जिसे हम कहें कि पृथ्वी भरें, क्रोध को नहीं। क्रोध हमारा तो शत्रु है ही लेकिन वो सारे से समानान्तर चारों ओर फैलता हुआ। वो लोग अपनी ओर नजर संसार का भी शत्रु है। दुनिया में जितने युद्ध हुए हैं, जो-जो नहीं करते। वे उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होते हैं। बाह्य में वो हानियां हुई हैं ये सामूहिक क्रोध के कारण। क्रोध के लिए बहाने बहत कुछ कर सकते हैं। बाह्य में दौड़ेंगे। बाह्य में काम करेंगे, बहुत होते हैं। हर क्रोध का कोई न कोई बहाना मनुष्य ढूंढ सकता कार्यान्वित होंगे। सबसे मिलेंगे-जुलेंगे लेकिन अन्दर की शक्ति है। लेकिन युद्ध जैसी भयंकर चोज भी इसी क्रोध से आती है। को नहीं बढ़ाते। बहुत से लोग हैं अन्दर की शक्ति की ओर बहुत उसके मूल में यह क्रोध हो होता है। हृदय में अगर प्रेम हो तो ध्यान देते हैं लेकिन बाह्य की शक्ति की ओर नहों। तो उनमें संतुलन क्रोध नहीं आ सकता और अगर क्रोध का यदि दिखावा भी होगा नहीं आ पाता। जब लोग बाह्य की शक्ति की ओर बढ़ने लग जाते तो वो भी प्रेम के लिये ही है। किसी दुष्ट राक्षस को जब संहार हैं तो उनको अंदर की शक्ति क्षीण हो जाती है। क्षीण होते-होते किया जाता है तो वो इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाये ऐसे कगार पर पहुंच जाती है कि फौरन अहंकार में हो डूबने जन्मोत्सव पूजा ३ 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-4.txt लगते हैं। वो ये सोचते हैं कि हमने देखिए कितना सहजयोग का है कर जहां जाना है जा। जाना है तुझे नरक में तो नरक में जा। कार्य किया। हम सहजयोग के लिए कितनी मेहनत करते हैं और तुझे अपने को मिटाना है तो अपने को मिटा ले । अपना सर्वनाश फिर ऐसे लोगों का नया जीवन शुरू हो जाता है जो कि सहजयोग करना है वो भी कर ले। जो तुझे करना है तू कर। वो आपको के लिए बिलकुल उपयुक्त नहीं। वो अपने को सोचने लगते हैं रोकेगा नहीं क्योंकि आपकी स्वतंत्रता को मानता है। आप स्वर्ग कि हम एक बड़े भारी अगुआ हैं। उनका महत्व होना में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है और नरक में जाना चाहें चाहिए। हर चीज में वो कोशिश करेंगे कि हमारा महत्व होना तो उसकी भी व्यवस्था है। पर सहजयोग में एक और बड़ा दोष चाहिए। इसके बाद हठात देखें तो उनको कोई बीमारी हो गई, है कि हमसब एक सामूहिक विराट शक्ति हैं हम अकेले-अकेले पगला गए या कुछ बड़ी भारी आफत आ गई। तो फिर कहते नहीं हैं। सब एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। उसमें अगर एक हैं कि माँ हमने आपको तो पूरी तरह समर्पित किया हुआ था इंसान ऐसा हो जाये या दो-चार ऐसेहो जायें जो अपना- अपना फिर यह कैसे हो गया? इसकी जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है गुप बना लें तो जैसे कैंसर की विषालुता एक कोषाणु की तरफ बढ़ने लग जाती है, तो ऐसे ही एक ही आदमी बढ़ कर के सारे सहजयोग को ग्रस्त कर सकता है। और हमारी सारी मेहनत व्यर्थ जा सकती है। हमको तो चाहिए कि समुद्र से सीखें कि वो सबसे नीचे रहकर ही सब चीज को अपने अंदर, सब नदियों को अपने अंदर समाता है। बगैर समुद्र के तो यह सृष्टि चल नहीं सकती। पस बहुत कि आप बहकते चले गए। फिर ऐसे आदमी एक तरफ हो जाते हैं। वो दूसरे से सम्बन्ध नहीं रख पाते। उनका सम्बन्ध केवल इतना ही होता है कि हम किस तरह से रोब झाड़ें दूसरों पर। और किस तरह से दिखायें कि हम कितने ऊंचे इंसान है। और वो दिखाने में ही उनको महत्व लगता है। सबसे आगे उन्हें आना चाहिए। सबसे उनका महत्व होना चाहिए। गर किसी ने थोड़ा सा महत्व नहीं समुद्र अपने को तपा कर भाप बना करके सारी दुनिया में बरसात किया तो गलती हो गई। यहां तक हो जायेगा कि इसमें वो भूल की सौंगात भेजता है। उसकी जो नम्रता है वही उसी की गहराई ही जायेंगे कि माँ का भी कुछ करने का है माँ के लिए भी कुछ का लक्षण है और उस नम्रता में कोई उपरी नम्रता नहीं कि नमस्ते दान देना है इसी प्रकार मैं देखती हूं कि रोहरी और बंबई में इसी भाई साहब, भाई साहब नमस्ते । कुछ नहीं सबसे नीचे में सबको प्रकार के कुछ लोग एकदम से उभर के ऊपर आये और वो ग्रहण करके, सबको अपने अंदर लेकर उसको शुद्ध करके और अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे। फिर न तो वहां आरती फिर भाप बना करके बरसात करना और फिर वही बरसात होती। हमार। फोटो तो वहां रहता था लेकिन फोटो पौंछने की नदियों में पड़ करके दौड़ती हुई उसी समुद्र की ओर दौड़ती है। भी उनकी इच्छा नहीं होती थी। अच्छा हुआ कि उनका अपना फोटो नहीं लगा। अपना ही महत्व अपनी ही डींग मारना। और जितने भी नारियल के पेड़ हैं वे सब समुद्र की ओर ही झुके हुए वो डोंग मार-मार कर ही और अपने को ही बहुत बड़ा समझ हैं इतनो जोर की हवा चलती है कुछ भी हो जाए, लेकिन वो कर किसी से कुछ नहीं पूछना। हम करेंगे। फिर झगड़े शुरू हो कभी भी समुद्र से दूसरी ओर मुड़ते नहीं क्योंकि वो जानते हैं गये झगड़े शुरू होने पर समूह बन गये क्योंकि जिस सूत्र में आप ये समुद्र है। इस समुद्र के समान ही हमारा हृदय विशाल तब होगा, बंधे हुए हैं वो आपकी माँ का सूत्र है और उसी सूत्र में अगर आप बंधे रहे और पूरे समय यह जानते रहें कि हम एक ही हीमहत्व अपने ही को विशेष समझना, ये जो चीज है इसमें सबसे माँ के बच्चे हैं न हमसे कोई ऊंचा न नीचा। न ही हम कोई कार्य बड़ी खराबी यह है कि परम चैतन्य आपको कहेगा कि जाओ को करते हैं। ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है। हम कुछ करते तुमको तुम्हारा महत्व है। तुम जाओ तुम हट जाओ और फिर ही नहीं है। हम कुछ करते ही नहीं हैं ये भावना ही जब छूट गई जैसे कि कोई नाखून काट कर फेंक देता है। आप एक तरफ और ये कि हम इतने बड़े हैं, हमने ये किया, हम ये करेंगे, हम फिंक जायेँगे। मेरे लिए तो यह बहुत दुखदायी बात होगी। और वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है कि अच्छा तुझे जो करना ऐसे दो-चार लोग जो सोचते हैं कि हम बहुत काम करते हैं आप अगर किसी समुद्र के किनारे पर गये हों तो देखिये कि जब हमारे अंदर अत्यन्त नम्रता और प्रेम आ जाये। लेकिन अपना चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-5.txt हमने यह कार्य किया हमने वो कार्य किया। उनको फौरन ठंडा हममानते हैं, और चाहते हैं कि हमार उन्नति हो जाये। हमें दुनिया हो जाना चाहिए और पीछे हट कर देखना चाहिए कि हम ध्यान से कोई मतलब नहीं। दूसरों से कटे रहते हैं। ऐसे लोग भी बढ़ नहीं सकते क्योंकि आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए एक अंगुली ने अपने आपको बांध लिया और कहेगी कि नहीं और किसी से कोई मतलब नहीं मेरा, मैं अलग से रहूँगो। येतो अंगुली 'मर' जाएगी क्योंकि इसमें नस कैसे चलेगी ? इसमें चेतना का संचार कैसे होगा? ये तो कटी हुई रहेगी। ये तो छूटी हुई रहेगी। आप एक बार अंगुली को बांध कर रखिए और पांच दिन बांध रखें। उसके बाद आप देखेंगे कि वो अंगुली काम ही धारणा करते हैं ? हमारा ध्यान लगता है ? हम कितने गहरे हैं? और फिर हम किसको प्यार करते हैं ? किस-किसको प्यार करते हैं ? कितनों को प्यार करते हैं? और कितनों से दुश्मनी ली। सहजयोग में कई लोग बड़े गहरे पैठ गये बहुत गहरे आ गये। इसमें कोई शंका नहीं। पर बहुत से अभी भी किनारे पर ही डोल रहे हैं। और कब वो फिंक जायेंगे कह नहीं सकते क्योंकि मैने आपसे पहले ही बताया कि 1990 साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। एक छलांग आपको मारनी होगी जो आप नहीं करेगी। किसी काम को नहीं रह जायेगी। फिर आप कहेंगे इस माहौल से उतर करके और उस नई चीज को आप पकड़ माँ मैं तो इतनी पूजा करता है, मैं तो इतने मंत्र बोलता हैं, मैं तो लंगे। जैसे कि चक्का है जब घूमता है तो एक बिन्दु पर आ करके इतना कार्य करता हूं फिर मेरा ऐसा हाल क्यों है? क्योंकि आप फिर आगे सरक जाता है। उसी प्रकार सहजयोग की प्रगति भी विघटित हैं। आप उस सामूहिक शक्ति से हट गये हैं। सहजयोग सामूहिक होने वाली है सहजयोग में टिकने के लिए पहली चीज हमारे अंदर पावित्र्य वहों आप अलग हो गये। सो दोनों ही चीज की तरफ ध्यान देना होना चाहिए जो नम्रता से भरा हो । वैसे तो दुनिया में लोग आपने है कि हम अपनी शक्ति को भी संभालें और सामूहिकता में रचते देखे हैं जो अपने को बड़े पवित्र समझते हैं और सुबह शाम संध्या जायें। तभी आपके अंदर पूरा संतुलन आयेगा लेकिन बाह्य में करते हैं और किसी को छूने नहीं देते। ये खाना नहीं खायेंगे। वो आयेगा तो दूर बैठो। किसी ने छू लिया तो उनकी हालत खराब। के लिए बहुत कार्य किया और काफी अच्छे भाषण देते थे, बोलते सामूहिक शक्ति है। इस सामूहिक शक्ति से जहां आप हट गये आप बहुत कार्य करते हैं। मैने ऐसे लोग देखे हैं जिन्होंने सहजयोग थे, उनके भाषणों की उन्होंने टेप भी बना ली फिर लोगों से कहने लगे अच्छा आप हमारी टेप सुन लें। तो लोग हमारी टेप छोड़ कर उनकी ही टेप सुनने लगे। उनका अपना ये हाल था कि जैसे हम बैठे हैं तो वो हमारी फोटो को तो नमस्कार करेंगे, हमें नहीं करेंगे क्योंकि उनको फोटो की आदत पड़ी हुई है। हमसे उनको कोई मतलब नहीं है। उनको फोटो से मतलब है। ऐसे विक्षिप्त लोग हमने देखे। फिर उन्होंने अपने फोटो छपाये और फोटो सबको दिखा रहे हैं कि हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। इस तरह से अनेक तरीके से वो अपना ही महत्व बढ़ाते हैं। करते-करते ऐसे खड्क में गिर गये अनायास उनके समझ में नहीं आया है। एकदम पता हुआ कि वो छूट गये सहजयोग में कहीं भी नहीं। लोग मुझ से कहते हैं माँ वो तो बड़े लीडर थे, वो तो सही है लेकिन वो गये कहां? गये क्या करें। एकदम काफूर हो गये, कहां? तो ऐसे लोग क्यों निकल गये क्योंकि संतुलन नहीं था और जब संतुलन नहीं तो आदमी या तो बायें में चला जायेगा या दायें में चला जायेगा। और ये पागलपन हैं। गर आप एकदम से स्वच्छहैं एकदम आप पवित्र हैं तो आपको किसी के छूने में, किसी से भी बात करने में कभी अपवित्रता नहीं आ सकती क्योंकि आप हर चीज को शुद्ध करते हैं। आपका स्वभाव ही शुद्ध करने में है तो आप जिससे भी मिलेंगे उसी को आप शुद्ध करते ही जायेंगे उसमें डरने की कौन सी बात है उसमें किसी की ताड़ना करने की कौन सी बात है ? उसके लिए कानाफूसी करने की कौन सी बात है? एक लक्षण यह है कि आपकी स्वयं की पवित्रता कम है। गर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है वो पवित्रता की भी शक्ति और तेज है और वो इतना शक्तिशाली हो कर कोई सी अपवित्रता को वो खींच सकता है। जैसे मेने कहा कि हर तरह की चीज समुद्र में पूरी तरह से एकाकार हो जाती है। अब दूसरे लोग हैं सिर्फ अपनी ही प्रगति की सोचते हैं। वो ये सोचते हैं कि हमें दूसरे से क्या मतलब। हम अपने कमरे में बैठकर माँ की करते हैं, उनकी आरती करते हैं, उनको पूजा जन्मोत्सव पूजा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-6.txt ज्ञान बढ़ा लिया। अब दूसरी युक्ति क्या है? वो है कि आप हमारे प्रति भक्ति जैसा मैंने बहुत बार कहा था कि दो तरह की शक्तियां हमारे अंदर हैं और दूसरी शक्ति से हम बाहर फैंके जाते हैं जैसे एक रस्सी में आप अगर पत्थर बांध कर घूमायें तो पत्थर घूमता रहेगा, कर रहे हैं। इस भक्ति को भी आप करते हैं तब आप को अनन्य जब तक रस्सी में बंधा है, जैसे ही रस्सी से छूट जायेगा एकदम भक्ति करनी चाहिए। तभी आप हमसे तदाकारिता प्राप्त करें। जैसे फैंका जायेगा इसी प्रकार बहुत से लोग सहजयोग से निकल जाते हम सोचते हैं वैसा ही आप सोचने लग जायें। आज देर हो गई हैं। तब फिर लोग कहते हैं देखिए माँ सहजयोग में लोग कम हो समझ लीजिए तो हम भी कह सकते थे कि भई हम बहुत थक गये। मैं क्या करूं? और अगर कम हो गये तो इसमें सहजयोग गए रात भर के जागे हैं अब हमारे बस का कुछ नहीं। लेकिन का नुकसान तो हुआ नहीं इसमें उनका ही नुकसान हुआ है। हमने ये सोचा कि नवरात्रि हैं तो रात हो में करना है और यही सहजयोग का बिलकुल भी नुकसान नहीं क्योंकि जिसको मुहूर्त है। हमको मिलना था यह मुहुर्त है। इसी वक्त यह पूजा नुकसान और फायदे से बिलकुल मतलब नहीं है ऐसी जो चीज होनी चाहिए और ये होना ही चाहिए तो ये हमको करना ही है और यह बड़े आनंद से हम कर रहे हैं क्योंकि शुभ मुहत्त यही है और उस वक्त हमें सजग होना चाहिए। उसके बारे में सोचते भी नहीं कि हम थक गए। कि हमने आराम नहीं किया। कुछ भी नहीं यही मुहूर्त है। उसी प्रकार यही समय है जब हमें ये पूजा करनी चाहिए और हम बैठे हैं और आपको भी यही सोचना है उसका क्या नुकसान हो सकता है? हां अगर आपको अपना फायदा करा लेना है आप इस चीज को जान लोजिए कि सहजयोग को आपकी जरूरत नहीं है आपको सहजयोग की जरूरत है। सो ये योग का दूसरा अर्थ होता है। युक्ति एक तो है कि संबंध जुड़ जाना लेकिन दूसरा है युक्ति। समझ लेना चाहिये कि युक्ति क्या है। इसमें तीन तरह से समझाया जा सकता है। चाहिए कि हमारे लिए यही समय माँ ने बांधा है। यही समझ हमारे पहली तो युक्ति यह है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना। ज्ञान का लिएउचित है इसीलिये हमें इसी वक्त पूजा करनी चाहिए। लेकिन मतलब बुद्धि से नहीं किन्तु हमारी अंगुलियों में हाथों के अंदर जो आधे अधूरे लोग हैं वो उल्टी बात सोचेंगे अब हम सवैरे से कुण्डलिनी का पूर्णतः जागरण होना। जब ये ज्ञान हो जाता है आ कर बैठे हैं, हमने ये किया, अभी हमें भूख लगी है, हमने खाना नहीं खाया, बच्चे सो रहे होंगे। तो वो अनन्य भक्ति नहीं हुई पाते थे वो आप समझने लगते हैं और समझने लगते हैं कौन सत्य क्योंकि मेरा जो सोच विचार है वो आपके सोच-विचार में नहीं आया है। मैं जैसा सोचती हूं वैसा आप नहीं सोचते हैं। किसी के लिए भी मैं सोचती हूं। कभी- कभी माँ ये आदमी इतना खराब है। ऐसा है ? मैं कहती हूं जी नहीं बिलकुल अच्छा बहुत बढ़िया आदमो है फिर आप कैंसे कह रहे हो? कैसे कहा? फिर मैं सोचती हूं मैं जो देख रही हूं ये क्यों नहीं देख रहे हैं ? गर ये मेरी आंख से देखते हैं तो इनको वही दिखाई देना चाहिए जो मैं देख ा तो और भी ज्ञान होने लगता है। बहुत सी बातें जो आप नहीं समझ है कौन असत्य है और इस ज्ञान के द्वारा आप लोगों की कुण्डलिनी भी जागृत कर सकते हैं और उन्हें समझा भी सकते हैं और उनके साथ आप वार्तालाप कर सकते हैं। इस ज्ञान के कारण तो आपको बौद्धिक ज्ञान भी उससे आ जाता है। आप सहजयोग समझ सकते हैं नहीं तो पहले कोई समझ सका था "ईडा पिंगला सुखमन नाडी रे एक ही डोर उडाऊंगा" इस तरह की बातें जो करता था कबीर तो कोई समझता था उसको? नानक की कोई बात समझता था या ज्ञानेश्वर जी की किसी ने कोई बात समझी थी? लाओत्से की किसी ने कोई बात समझी? किसी ने कोई बात समझो? लेकिन सहजयोग के बाद आप सब समझने लगे हैं। तो आपका बुद्धि-चातुर्य भी बढ़ गया। उसकी भी चतुरता आ गई, आप उसको भी समझने लगे। ये तो बात ठोक है कि आपने ज्ञान लिया। सो वो एक युक्ति हो गई कि आपने अपना रही हूं। वैसे तो कोई बात नहीं ये तो कुछ और ही देख रहे तो अनन्य नहीं हुआ अन्य हो गए दूसरे हो गए। गर हमारे ही शरीर के ये अंग-प्रत्यंग हैं तो जो हम हैं ऐसे ही इनको होना चाहिए न, जैसे हम सोचते हैं वैसा ही इनको सोचना चाहिए न, जैसा हम करते हैं वैसा ही इनको करना चाहिए। तो ये दूसरा क्यों सोचते हैं ? ये उल्टी बात क्यों सोचते हैं? इनके दिमाग में ये सब अजीब-अजीब बातें कहां से आती हैं। सो अनन्य भक्ति चैतन्य लहरी 6. 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-7.txt दिमाग में बात आती है क्या? इस का मतलब है कि योग पूरा नहीं हुआ। जब योग पूरा हो जाता है तब फिर आप ऐसा नहीं सोचते, सोच ही नहीं सकते, विचार ही नहीं कर सकते । अकर्म में ही आप ये हो रहा है, वो हो रहा है, ये घटित हो रहा है, वो सब हो रहा है, ऐसा आप बोलने लग जाते हैं और तब कहना चाहिए कि आप पूरी तरह से तदाकारिता में आ जाते हैं। अब नहीं हुई। ये भक्ति हो गई अपनी ही तरह की। तो अपना सोच-विचार और अपना कार्य और अपना प्रेम ये सब वैसा ही होना चाहिए जैसा आप मुझसे प्रेम करते हैं । और यही अगर प्रेम का स्रोत है तो जो कुएं में हैं वो ही घट में आना चाहिए। दूसरी चौज कैसे आ सकती है और कोई दूसरी चीज आती है तब मैं सोचती हूं कि किसी दूसरे घट से इन्होंने कोई और कुएं मेरा हाथ वो कार्य कर रहा है तो वो तो नहीं कहता है कि मैं से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं। कर रहा हूं उसको पता भी नहीं कि वो कर रहा है। वो तो हो हो रहा है। उसकी जितनी भी गति है सो हमीं तो कर रहे हैं लेकिन अगर वो ये सोचें कि हम कर रहे हैं तो इसका मतलब मेरा हाथ अब तीसरी बात जो युक्ति है कि जब दूसरी बात मैने आपसे बताई कि आप अपने अंदर एक अनन्य भक्ति रखें। वहां हम तो शरणागत है। तो फिर हम कोई बात कह भी दें या आपको कोई कट गया, इससे जुड़ा नहीं है। गर जुड़ा हुआ है तो उसको कभो लगेगा कि मैं घूम रहा हूं। मैं चल रहा हूं, मैं पकड़ रहा हूँ। कभी नहीं लगता और जब आप ऐसा सोचते हैं कि मैं कर रहा हूं तो चैतन्य कहता है अच्छा तो तू कर और तब सबसे ज्यादा गड़बड़ी शुरू होती है। एक तीसरो युक्ति यह है कि उस युक्ति को सीखना चाहिए कि जहां मैं कुछ कर रहा हूं। एक क्षण विचार करें में कर रहा हूँ। मैं क्या कर रहा हूं ? जब तक आप प्रकाश ढूंढ रहे थे तब आप कुछ कर रहे थे व्योंकि आपके अंदर अहँ भाव चीज समझा दें या कोई आपके सामने प्रस्ताव रखें, कुछ रखें तो उसको मना करने का सवाल ही कैसे उठना चाहिए? माँ ने कह दिया ठीक है। जो भी कह दिया। हम तो माँ ही हो गये हैं तो हम मना कैसे कर सकते हैं। जैसे कि मेरी आंख आपको देख रही है तो मेरी आंख जान रही है कि आप लोग बैठे हैं मेरे सामने तो क्योंकि मेरी आंख मेरी अपनी है तभी मैं जो जान रही हूं उसमें और मेरी आंख के जानने में कोई भी अंतर नहीं। एक ही चीज है। जो मैं बुद्धि से जान रही हूं वह तो मैं मेरी आंख से जान रही हूं। तब फिर आप में तदाकारिता जिसे कहते हैं वो नहीं आता है। सो ये दूसरी युक्ति है कि मां मेरे हृदय में आप आओ, मेरे दिमाग में आप आओ, मेरे विचारों में आप आओ, मेरे जीवन है। थे था। आप अकेले एक व्यक्ति थे। एक व्यष्टि में आप अब आप एक समष्टि में आ गये। जब आप सामूहिकता में आ गये तब आप कुछ भी नहीं कर रहे। आप अंग-प्रत्यंग हैं। वो कार्य हो रहा के हर कण में आप आओ। जहां भी कहोगे हम हाजिर, हाथ जोड़के। वहां हम हारे पर आपको कहना तो पड़ेगा न। और एक तीसरी युक्ति है इसे समझने के लिये मैं इसलिए ये यक्ति बता रही हूं कि अब छलांग जो लगानो है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करते रहे और अपनी ओर नजर करें। इस वक्त सबकी भलाई इसी में है कि हम अपनी ओर नजर करें और देखें कि क्या मैं ये सोचता हूं ? मैं दूसरों के लिए ये सोचता हूं? मैं ये सोचता हूं कि क्या वो मुझसे काफी श्रेष्ठ है और मुझे उससे कुछ सीखना चाहिए। उसके कोई अच्छे गुण मुझको दिखाई देते हैं कि बुरे गुण ही दिखाई देते हैं। दूसरों के गर अच्छे गुण दिखाई दें और अपने बुरे तो बहुत अच्छी बात है। क्योंकि दूसरों के दुर्गुण तो आप हटा नहीं सकते । उसपे तो आप का अधिकार नहीं। जहां अधिकार है अपने ही दुर्गुण आप हटा सकते हैं। तो दूसरों ने क्या किया? दूसरे ऐसे हैं। ऐसे सोचने वाले अभी पूरी तरह से योग पूर्ण जोड़ें तो वो भी ठीक नहीं लेकिन अगर सम्बन्ध जुड़ गया तो सब मतलब अपने आप ही पूरे हो जायेंगे। आपको कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। अपने ही आप जब आपके सारे मतलब पूरे हो गये तो आपका चित्त उसी में लग जायेगा अब तीसरी जो बात है कि हम ये काम कर रहे हैं । हमने ये सजावट करी, ये ठीक-ठाक किया। मैने किया। तो सहजयोगी आप नहीं सहजयोग में आपके सारे कर्म अकर्मय हो जाने चाहिएं ये इसकी युक्ति है। मैं कुछ कर रहा हूं? मैने ये कविता लिखी मैने किया, ये जहां तक आप बाहरी सूक्ष्म में देखते जायें कि क्या मैं सच में ऐसा सोचता हूं ? मैं ऐसा सोचती हूं कि मैने किया, ऐसा मेरे हृदय से कहना होगा। किसी मतलब से गर उससे सम्बन्ध जन्मोत्सव पूजा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-8.txt का मतलब प्रेम है और गर आप सुबुत्द्वि को प्राप्त नहीं कर सकते और प्रेम को आप अपना नहीं सकते तो सहजयोग में आने से अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इस समय ऐसा कुछ समां बंध रहा है कि सबको इसमें एकदम से मग्न हो जाना चाहिए। और परिवर्तन में डालना ही है। परिवर्तित हमको होना ही है। हममें खराबियां भी हैं हमें अपने को पूरी तरह से पवित्र बना देना है। ये आप अपने साथ कितना प्रेम कर रहे हैं । आपका बच्चा जरा में उतरे नहीं। मेरे में क्या त्रुटि है। ये देखने से ही आप ठीक कर सकते हैं। दूसरों से कहें कि अपना देश तुमको ऐसा ठीक करना चाहिए और वहां के प्रधानमंत्री को कुछ अक्ल सिखाएं तो हमें बंधक कर लें । देखिए हमारे देश में तो हम कह सकते हैं क्योंकि ये हमारा देश है इसी प्रकार हमें जानना चाहिए। इस युक्ति को समझ लेना चाहिए कि इसमें जो हम डांवाडोल हैं वो हमारी अपनी ही वजह से है। सहजयोग तो बहुत बड़ी चीज है बड़ी अदभूत चीज है लेकिन जो हममें खराबियां आ रही हैं या जो भी गंदा हो जाता है तो फौरन आप उसकी साफ कर देते हैं क्योंकि हम अभी इसका मजा नहीं उठा पा रहे हैं इसका मतलब हम आपको उससे प्रेम है। इसी प्रकार जब आपको अपने से प्रेम ही में कोई दोष है और इस सबको प्राप्त करने पर इस युक्ति को हो जायेगा आप अपने को परिवर्तन की ओर लगाएंगे कि मेरा परिवर्तन कहां तक हो पाया है? मेरे, अंदर अभी ये खराबी रह कुछ और फिर चाहिए ही क्या? आपकी शक्ल ही बदल जायेगी। गई है। अब भी ये खराबी रह गई ह । अब भी मैं ऐसा हूं। और इस परिवर्तन के फलस्वरूप अ शी्वाद है। उस जीवन का जिसका वर्णन नहीं किया जा स ता जो कबीर ने कहा "अब फिर क्या बोलें।" तो अ t/ सब उस मस्ती में आ जाइये। गर आपने सीख लिया तो मिलेगा क्या? सिर्फ आनंद निरा आनंद। आप आनंद में ही बहने लगेंगे। आज इस हमारे जन्मदिन पर मैं चाहूंगी कि आप लोगों का भी आज जन्मदिवस मनाया जाये कि आज से हम इस युक्ति को मस्त हुए। समझें और अपने को ही पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश । इस मस्ती को प्राप्त करें उस अनंद में आप आनंदित हो जायें। ये हमारा आशीर्वाद है। पवित्रता से ही मनुष्य में सुबुद्धि आती है क्योंकि पवित्रता प्रेम ही का नाम है, उसी से सुबुद्धि का मतलब भी प्रेम हो है सब चीज जय श्री माता जी ति प्रिय पाठक वृन्द चैतन्य लहरी खंड V का यह अंतिम अंक प्रस्तुत है। कृपया निर्मलिखि त पते प र 250/- रुपये सदस्यता शुल्क भेज कर वर्ष 1994 के लिए अपनी सदस्यता का नवीनीकरण करवा लें। श्री एम. डी. वासुदेवा 17-सी, इंस्टीट्यूशनल एरिया कुतुब एन्क्लेव, नई दिल्ली छापने योग्य आपके सहज अनुभवों तथा सहज लेखों का भी, नववर्ष में, चैतन्य लहरी स्वागत करेगी। जय श्री माता जी चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-9.txt श्रीगणेश पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) बर्लिन, जर्मनी 27-7-93 सम्मान प्राप्त हुआ। ज्ञान पाने के लिए वे खतरा मोल ले कर भी एक विजातीय के पास गए क्योंकि वे जानते थे कि सत्य-साधक हैं। सत्य की शक्ति कार्यरत है ताकि आप कोई गलत कार्य न विवेक श्रीगणेश जी का प्रथम तथा सर्वाच्च वरदान है। हम सीखते हैं कि हमारे लिए क्या ठीक है और क्या गलत, रचनात्मक क्या है और विध्वंसात्मक क्या है तथा आत्म -साक्षात्कार प्राप्त करें। करने के लिए हम क्या करें। जिन्हें विवेक प्राप्त हो गया है वे लोग अत्यन्त भाग्याशाली हैं। पर विवेक जीवन की समझ से आता आप पूछ सकते हैं कि "श्री माताजी इस विवेक का स्रोत क्या है। जब व्यक्ति सोचने लगता है कि अमुक कार्य मैं क्यों कर है?" विवेक प्रदायक श्रीगणेश ही इसके स्रोत हैं। अपमानित होने रहा हूं, इसका क्या प्रभाव है, मेरे आचरण का क्या प्रभाव है, पर अज्ञान के बादलों के पीछे जब श्रीगणेश छुप जाते हैं तो लोग मेरे लिए यह अच्छा है या बुरा, तब विवेक आता है। यह जानते अधम कार्य करने लगते हैं। ऐसा बहुत सी बातों में होता है। हए भी कि यह कार्य मेरे लिए अहितकर है, कुछ लोगों में उसे आजकल प्रजातंत्र देशों में चरित्र, आचरण तथा संबंधों की चर्चा त्यागने की शक्ति नहीं होती। विवेक शक्ति का अभाव ही इसका की अपेक्षा नहीं की जाती। समाज की देखभाल करना वे अपना कारण है। वह व्यक्ति विवेकशील है जो न केवल यह जानता कर्तव्य नहीं समझते। इसे व्यक्तिगत कार्य माना जाता है। है कि ठीक और गलत क्या है बल्कि जिसे यह भी ज्ञान है कि परिणामस्वरुप लोग स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने लगते हैं तथा उसकी अपनी शक्तियां कोई गलत कार्य करने के लिए नहीं हैं। श्रीगणेश का अपमान शुरू हो जाता है। श्रीगणेश के अपमानित वह बुराई करता ही नहीं। विवेक हमारे अंदर एकपूर्ण शक्ति है होते ही मानव में पूरी बाधा शुरू हो जाती है। वह दुबुद्द्धि हो जाता जिसके द्वारा हम कोई प्रयास नहीं करते। यह हमारे माध्यम से है विवेकहीनता में वह नहीं जानता कि कैसे आगे बढे। स्वतः ही कार्य करता है और हम केवल उचित कार्य ही करते विवेकहीनता में लिया गया हर कदम विनाशकारी होता है। इन विनाशोन्मुख सभी प्रजातंत्र देशों को श्रीगणेश का सम्मान करना इस विवेक से बहुत से लोग जीवन में बहुत उऊंचे उठे हैं जैसे होगा भयानक जीवन प्रणाली के कारण उनके परिवार समाप्त कबीर। एक मुसलमान जुलाहे के घर कबीर जन्मे। उन्हें लगा हो गए हैं। उनके बच्चे खराब हो गए हैं। हर तरह से वे परेशानी कि जिस प्रकार मुसलमान इस्लाम को मानते हैं, उन्हें कुछ भी मेंहैं। कुंडलिनी जागरण से यह विवेक पुनः प्राप्त किया जा सकता प्राप्त नहीं होने वाला। व्यक्ति को अपना स्व खोजना होगा, स्वयं है। श्रीगणेश सब अपराध भूल कर आपको क्षमा कर देते हैं तथा कुंडलिनी जागृति में सहायक होते हैं। आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति तक वे आपकी सहायतार्थ हर चक्र पर विद्यमान होते हैं। आपके अंदर अबोधिता की सृष्टि करना श्रीगणेश की एक अन्य शक्ति है। अपनी अबोधिता, पवित्रता तथा गरिमामय जीवन प्रणाली का हम सम्मान करते हैं। गरिमामय, सुसभ्य वेशभूषा धारण करने तथा किसी प्रकार से अंग-प्रदर्शन न करने के लिए सारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है। यही कारण है कि सहजयोग में हमें वेशभूषा के प्रति अति सावधान रहना होता है। हमारे वस्र गरिमाशाली होने चाहिएं, किसी भी प्रकार की अभद्रता को दर्शाने वाले नहीं। अबोधिता मनुष्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यही व्यक्ति की साज-सज्जा है। मनुष्य को अपनी पवित्रता तथा कौमार्य की रक्षा करनी चाहिए। कुछ देशों के लोग सोचते हैं कि हैं। को पहचानना होगा। वे बनारस में गंगा तट पर लेट कर महान आत्म -साक्षात्कारी गुरू रामानन्द की प्रतीक्षा करने लगे। ज्यों ही स्त्नान करके गुरू रामानन्द लौटे तो कबीर जी ने उनके चरण पकड़ लिए। र्नान किए किसी ब्राह्मण के चरण यदि आप पकड़ें तो वह नाराज हो जाएगा। पर रामानन्द जो तो संत थे। उन्होंने पूछा-पुत्र क्या चाहिए? कबीर ने कहा मुझे आत्म-साक्षात्कार दीजिए। रामानन्द तुरन्त तैयार हो गये। अन्य लोगों ने कहा कि यह मुसलमान परिवार का अनाथ व्यक्ति है इसे कैसे साक्षात्कार कराया जा सकता है। रामानन्द ने कबीर में एक महान जिज्ञासु को पहचाना तथा कहा कि "आप लोग इसे नहों जानते, मैं जानता हूं।" वेउसे साथ लेगए इस तरह कबीर महान संत बन गए। अपनी विवेक शक्ति के कारण उन्हें हिन्दु तथा मुसलमानों-सबका ार श्री गणेश पूजा she 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-10.txt कौमार्य केवल स्त्रियों के लिए हैं, पुरूषों के लिए नहीं। यह दोनों बना रहता है। प्राकृतिक प्रकोप का भी अमेरिका को खतरा है। के लिए है। यदि पुरूष ही पवित्र नहीं होंगे तो स्त्रियां कैसे पवित्र यह सभी गंदे विचार अमेरिका से निकलते हैं और लोग उन्हें हो सकती हैं? भय के कारण शायद वे कौमार्य का ख्याल करें आंखें बंद करके स्वीकार कर लेते हैं। ये विचार फ्रायड से आये पर अवसर पाते हो वे भटक जाएंगी। वे सोचती हैं कि यदि पुरूष हैं। जर्मनी में न पनप पाने पर फ्रायड अमेरिका गया और वहां ऐसा कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकती। अतः पूरे समाज पूर्ण आश्रय पाकर वैभवशाली बना। उसने पवित्र जीवन शैली को अत्यन्त शानदार, सभ्य तथा गरिमामय जीवन-शैली का विरोध किया। परन्तु उसके विचार जब अमेरिका से निकलते अपनानी चाहिए। अन्यथा एक प्रकार की असुरक्षा की भावना हैं स्त्री-पुरूषों में घर करने लगती है तथा एक जटिल है जो कि सामूहिक थे। अमेरिका से आया हुआ विष भी तुरन्त जीवन-शैली का आरंभ हो जाता है। तीसरी विशेषता यह है कि अबोध की रक्षा परमात्मा करते विवेकशील हो कर देखना है कि हमें और हमारे अन्तस को क्या तो सामूहिक बन जाते हैं क्योंकि अमेरिका श्रोकृष्ण का देश फैल जाता है तथा पूरे विश्व को विषाक्त करता है। हमें हैं अतः उसे किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। वे सदा सुरक्षित होते हैं। कोई यदि उन्हें हानि पहुंचाने का प्रयत्न करे तो है । क्योंकि कोई कपड़ा या साड़ी यदि हवा में उड़ने लगे तो उसका भी परमात्मा उनकी रक्षा करते हैं। पर हम यह भी देखते हैं कि एक कोना भी यदि आप पकड़ पायंगे तो उसे बचा सकते हैं। लड़ाके लोग बहुत से बच्चों का वध कर रहे हैं। ऐसा होने से पूरा जब सहजयोगी अपने विवेक तथा सहजयोग में विश्वास के साथ विश्व हिल जाता है। और निर्दोष लोगों की रक्षा में जुट जाता विश्वरुपी साड़ी को पकडड़़ लँगे तो इसकी रक्षा हो सकेगी नहीं है। बच्चों पर अत्याचार किसो को सहा नहीं है। बच्चे की तो सहजयोगी भी उड़ जाएंगे। सहजयोगी यदि स्थिर नहीं हैं और अबोधिता के कारण ऐसा होता है। यही कारण है कि मानव उनकी सहजयोग में दूढ श्रद्धा नहीं है तो विश्व विनाशक यह इतिहास में जब भी कहीं बच्चों तथा निर्दोषों पर अत्याचार हुए हवा उन्हें भी उड़ाकर ले जा सकती है। सहजयोगियों का बहुत तो पूरा समाज उसके विरुद्ध खड़ा हो गया। यह विरोध श्रोगणेश बड़ा उत्तरदायित्व है कि उनका गणेश तत्व ठीक रहे। इसके बिना को शक्ति के कारण आता है क्योंकि यह शक्ति बच्चों के प्रति तो पूरा सहजयोग- आंदोलन लड़खड़ा सकता है। स्त्री एवं पुरूष क्रूरता करने वालों के लिये घृणा भाव उत्पन्न करने में समर्थ है। दोनों को ही अपने जीवन शैली में श्रोगणेश को सम्मानोय स्थान आज की भयानक घटनाओं से हम बच्चों को दूर रखने का प्रयत्न देना है। यही सर्वोपरि होना चाहिए। हर समय हमें याद रखना करते हैं। सहजयोगी बच्चे जन्मजात साक्षात्वकारी हैं तथा हम है कि श्रीगणेश के आशीर्वाद से हो हमें आत्म-साक्षात्मकार प्राप् उनकी अबोधिता को जानते हैं। इस प्रकार हम उनका पोषण कर रहे हैं जिससे वे दूसरे लोगों की भी विनाश से रक्षा कर सकें। सहजयोगियों के बच्चों के माध्यम से यदि अबोधिता का यह सम्मान विकसित हो सके तो पूरे राष्ट्र को बचाया जा सकता है। श्रीगणेश की पूजा करना एक अन्य मार्ग है। पृथ्वी माँ से आता है अबोधिता तत्व। पृथ्वी माँ अबोध है। आप भले-बुरे जैसे भी हों यह आपको फल देती है और आपकी देखभाल करती है। चाहे आप झूठ बोलते हों या लोगों को धोखा देते हों, पृथ्वी एक सीमा तक अपना कार्य करती है। आपके अपराध जब उस सोमा को लांघ जाते हैं तब यह भूकंप आदि प्रकोप ला सकती है। लॉस ऐंजल्स में भी एक भूकंप आने की संभावना है वैसे भी हर वर्ष नाश कर रहा है। सहजयोगियों के लिए यह अत्यन्त आवश्यक हुआ। श्रीगणेश जी के बहुत से गुणों में से एक यह है कि वे अनन्त शिशु हैं तथा अति नम्र हैं वे अति विनोदशील हैं। अपने आकार के बावजूद भी वे बहुत हल्के हैं तथा एक चूहे पर बैठ सकते हैं। वे दिखावा नहीं करते। चूहा उनका वाहन है। चूहे पर सवार वे अपनी शक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं कि उन्हें किसी अन्य वाहन की आवश्यकता नहीं। वाहन उनकी सादगो है अपने मधुर तथा सर्व- साधारण कार्य- कलापों से वे लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। सहजयोग में हमें समझना है कि किस प्रकार लोगों को प्रभावित करें। आपको लम्बी मोटर या वैभवशाली जीवन से सहजयोग में कोई प्रभावित नहीं होगा। आपके आचरण, कार्य- कलाप, उपहार तथा आपके प्रेम की सहज अभिव्यक्ति ही सबका दिल जीत सकती है मैने देखा है कि कुछ लोग अति मधुर होते हैं तथा अबोध बालक की तरह अपनी वहाँ उथल-पुथल होती है। कारण यह है कि वहां का सिनेमा श्रीगणेश को अपमानित करने के लिए नए-नए विचार पैदा कर रहा है। इसीलिए उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों को सदा भय चैतन्व लहरी 10 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-11.txt अभिव्यक्ति करते हैं जिसकी प्रशंसा सभी सहजयोगी मेरे सामने ऊंचा उठना है, आपको श्रीगणेश से सौखना होगा कि वे क्या करते हैं। यह अत्यन्त मधुर, अति प्रेममय तथा कोमल है। करते हैं और उनके संबंध उस माँ से कैसे हैं जो पावनकारणी, बालक्रीडा सम, आपको प्रसन्न करने वाला तथा आपके पोषक तथा परिणामदायक है। परिणाम के तौर पर शनैः- शनैः छोटे-छोटे कार्य करने वाला। परन्तु कुछ लोग अभी भी यह आपका उत्थान होता है। सब समझ नहीं पाते। वे दिखावा करते हैं कि हमने श्रीमाताजी को अच्छी तरह समझ लिया। माँ को समझना आसान नहीं। केवल उत्थान हुआ मैने सब सिखाया। यदि आप भी आरंभ से ही स्वयं को समझने का प्रयत्न कीजिए। मैं आपके लिए शीशे को श्रीगणेश की तरह होते तो मैं आपको पहले ही सब बता देती। तरह हूं। शीशे में देखते हुए आप शोशे को नहीं समझ पाते स्वयं श्रीगणेश को तो सब जानने की भी इच्छा नहीं। वे तो पहले से को ही देख पाते हैं। श्रीगणेश की यही विशेषता है कि वे जानते ही जानते हैं। वे अत्यन्त परिपक्व व्यक्ति हैं। श्रीगणेश सर्वाधिक हैं कि माँ को क्या पसंद है। माँ को प्रसन्न रखने के लिए वे सारे परिपक्व देवता हैं विवेक से आप विकसित हुए, मैने भी आपको अच्छे कार्य करते हैं। वे माँ के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं। देवताओं बहुत कुछ बताया। परन्तु मैंने की उन्हें कोई चिंता नहीं। उन सबसे तो वे लड़ पड़े। श्रीगणेश बताया जैसे उत्पत्ति-ग्रन्थ, हमारे जीवन की शुरूआत।बड़े स्थूल के पास माँ की सूझबूझ हैं और उसी से उनका सम्मान करते हैं। रूप से मैने उसकी बात की क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जिस बात परन्तु कुछ लोग अब भी ऐसा नहीं कर सकते। अभी भी लोग का सत्यापन लहरियों द्वारा आप नहीं कर सकते उसके लिए अपने इष्ट--देवताओं के पोछे लगे हुए हैं। अपने आदर्शों को वे व्यर्थ के वाद-विवाद में आप पड़ें। अपनी लहरियों से आप छोड़ नहीं पाते। मुझसे वे अभी तक अच्छी तरह नहीं जुड़े। जिसका सत्यापन कर सकते हैं वही आपका ज्ञान बन जाता है श्रीगणेश अपनी माँ से जुड़े हुए हैं। उनके लिए माँ हो सब कुछ और उसी को धोरे-धीरे मैने आपको बताया। पृथ्वी आदि की है। माँ ही ज्ञान, आनन्द तथा सत्य का स्रोत है। किसी अन्य की उत्पत्ति बताने वाली पुस्तकों के चक्कर में आपको नहीं पड़ना ओर उन्हें देखना नहीं पड़ता। आज के युग में यह बातें करना चाहिए क्योंकि इनसे आपका मरितष्क भटक जाता है। मिथ्या अति दर्पमय प्रतीत होता है। आरंभ में मैने सूक्ष्म बातें नहीं बताई। ज्यॉं-ज्यों आपका सी चीजों के विषय में नहीं बहुत के में आप पड़ जायेंगे। आपको केवलइतना जानना है कि आप क्या हैं ? आप आत्मा चक्रर श्रीगणेश जी का एक अन्य गुण यह है कि वे सदा अपनी माँ को प्रसन्न करने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। उन्हें नाराज करने है और यह आत्म प्रकाश आपकी सामर्थ्य के अनुसार आपको वाली कोई बात वे नहीं करते। व्यक्ति को श्रीगणेश की माँ के बता देगी। आपके सामर्थ्य से ऊपर की बात यह आपको नहीं प्रति सम्मान सीखना होगा। पर मुझे लगता है कि लोग कुछ बताएगी। हमारा यह कहना कि आप प्रकाश हैं, अच्छी तुल्यरुपता अधिक तेज-तर्रार हैं । मैं यदि कुछ कहती हूं तो वे तुरंत मुझे है। परन्तु जो प्रकाश आप लिए हुए हैं वह इससे साधारण प्रकाश सुधारने लगते हैं। यह लाभदाई नहीं। इससे आप अपनी हानि से, भिन्न है। प्रकाश न समझता है और न सोचता है। पर आपके करते हैं। हर प्रकार आपको परोक्षा होती है। इस परीक्षा में आप अपनी कमियों को जान पाते हैं। लेकिन मेरे समोप रहने वाले प्रकाश देता है जो आप सहन कर सकें। न यह चमकेगा और लोगों को यह जान लेना आवश्यक है कि मेरी कही बात को न मध्यम होगा। यह आपकी के अनुपात में होगा। वे अच्छी तरह समझ ले क्योंकि मैं महामाया हूं। कही बात आपकी परीक्षा के लिये हो। मस्तिष्क ही सब समझा यदि आप इन्हें आत्मसात नहीं कर सकते तो यह मेरे लिए रहा है, परीक्षा को भी। तब आप समझ पाएंगे कि आपको परखा कुष्टदायी है। सभी कुछ जानना महत्वपूर्ण नहीं। आपकी अवस्था जा रहा है और यह परीक्षा यह देखने के लिए है कि कितनो गहनता में आपभुझे जानते हैं। परन्तु कुछ लोग मेरी गलत व्याख्या हैं। करते हैं। ऐसा करना गलत है फिर भी यह होता है। आप जान लें कि यदि आपने लाभ उठाना है, अन्तरज्ञान प्राप्त करना है, अंदर का प्रकाश सब समझता है, सोचता है और आप मात्र उतना सूझबूझ कभी-कभीं पूजा में देवता अत्यधिक लहरियां छोड़ते हैं। पर हो सकता है मेरी अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा सहजयोग में आप कितने परिपक्व परमात्मा आपको धन्य करे। * *ॐ ২ चा ही गणेश पूजा 11 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-12.txt परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी की रूस यात्रा रूस आकाशवाणी तथा दूरदर्शन द्वारा प्रसारित संदेश (सारांश) सेंट पीटर्सबर्ग-1 -8-1993 सताया गया है क्योंकि राजाओं पर सदैव तांत्रिकों का नियंत्रण आपका देश महान संतों का देश है तथा संतों के आशीर्वाद रहा है। वर्तमान समय में भी हमारे देश में तथा विदेशों में भी यह जाते हैं। एक धर्मात्मा की रुचि कभी भी तुम्हारे धन, पत्नी या ऐसी ही किसी वस्तु पर कभी भी नहीं होगी। उसकी रुचि केवल मानव समाज के तथा देश के कल्याण पर ही होगी। तथा एक धर्मात्मा (संत) का मुख्य उद्देश्य मानव को धार्मिक बनाना है न कि काल्पनिक। एक धर्मात्मा को बिलकुल तटस्थ रहना चाहिए भले ही वह एक राजा हो या रंक या कुछ भी। परन्तु यहां व्याप्त है। मैने टालस्टाय तथा अन्य लोगों को पढ़ा और अनुभव किया कि यह बहुत ही अन्तर्दर्शी देश है। मैं जब अपने लोग पाए पति के साथ यहां आई तो मैने अनुभव किया कि उच्चकोटि के नाना-प्रकार के मानवीय संसाधन यहां विकसित हैं। टालस्टाय के उपन्यासों से आत्म विश्लेषण की अनुभूति तथा पुनरुत्थान के भाव दर्शित होते हैं जिससे मानव के बदलने या परिवर्तित हो सकने की शक्ति का आभास मिलता है। लोग हमेशा ही उसे स्वभाव से बिलकुल तटस्थ, निलिप्त रहना चाहिए। सहज गतिविधि का मूल उद्देश्य प्यारऔर करुणा है। मैं यहां स्पष्ट करूंगी कि पर्यावरण के शिवकार व्यक्ति का उपचार सहजयोग से कैसे किया जा सकता है। जब हमारे शरीर के सूक्ष्म केन्द्र प्रभावित होते हैं तो हम शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक रूप से बीमार हो जाते हैं। यह ऊर्जा केन्द्र हैं। हमारे शरीर में विभिन्न चक्र हैं। शारीरिक रूप में ये चक्र सह अनुकम्पी या सूक्ष्म नाड़ी तन्त्र द्वारा पोषित होते हैं। पर इन केन्द्रों की ऊर्जा सीमित है। बायां और दायां अनुकम्पी मिलकर सह-अनुकम्पी बनाते हैं। यदि हम चाहें तो इस अनुकम्पन ऊर्जा को प्रयोग में आत्मविश्लेषण करते हैं। जब मैं यहां आई तो सामान्यतः लोगों को का बहुत ही मधुर, सुन्दर तथा श्रद्धालु पाया। मैं हैरान हूं जिस ढंग से सहजयोग को आपके देश में अपनाया गया है। मुझे गोबाचोव का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्र की नीति बदली और मैं यहां आकर इस विषय में वार्ता कर पाई। यह सब अलौकिक सहायता है जिसने इस देश को सहजयोग दिया। अब मैं रूस वासियों को भारतीयों से भी अधिक आध्यात्मिक पाती हूं। वह बहुत गहराई में हैं। सभी तो नहीं पर यह बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं। पश्चिम के लोग आत्म-साक्षात्कार पाते तो हैं, मगर समय लेते हैं। वह तारकिक हैं वगैरह। मगर यहां से के लोग एकदम साक्षात्कार में उतर जाते हैं। एक तरह यह ला सकते हैं। उदाहरणार्थ यदि आपहृदय को धड़कन तेज करना बिलकुल पवित्र आस्था है। वे भौतिकतावादी नहीं थे। उनमें से चाहते हैं तो आप भाग सकते हैं परन्तु इसे शांत करने के लिए अधिकतर तो इसके लिए बिलकुल हो तत्पर थे। भारत में तांत्रिक एक विकृत प्रकार के लोगों का समूह है। क्रिया पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। जब हम अनुकम्पन के वह बात तो कुण्डिलनी की करते हैं परन्तु करते सभी प्रकार उद्देश्य से इसका प्रयोग करते हैं तो हम विश्वास करते हैं और का काला जादू ही हैं। यह छठी शताब्दी से आरंभ हुआ। लोगों जानते हैं कि दाई और बाई अनुकम्पन प्रणाली दो अलग-अलग पर उनके सम्मोहन का प्रभाव पड़ा। हिटलर और दलाई लामा प्रणाली हैं तथा मस्तिष्क की भी दोनों पूृथक-पृथक दशाएं हैं ने भी लोगों के मस्तिष्क खोखले करने में इनका प्रयोग किया। भले ही दोनों परस्पर सम्पूरक हैं। कल्पना करें कि मस्तिष्क में उनकी विशेष दिलचस्पी धन बटोरने में थी। उनका कहना था बाई ओर लकवा हो गया है तो मस्तिष्क की दाई ओर भी लकवे कि यह कुण्डिलनी संभोग द्वारा जागृत की जा सकती है। यह को अनुभव करती है। सभी धर्मों के विरुद्ध था। ईसा मसीह ने कहा है कि तुम्हारी दृष्टि भी व्याभिचारी नहीं होनी चाहिए। भारत में धर्मात्माओं को सदैव चाज्मा) पर पार करती हैं। पीयुष ग्रंथि (पिटिच्यूटरी) सह-अकम्पन क्रिया की ही आवश्यकता है। इस सह-अनुकम्पी म यह दोनों अनुकम्पी एक दूसरे को दूुक तन्त्रिका (आप्टिक चैतन्य लहरी 12 त 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-13.txt (Pituitary) शरीर के बाई ओर तथा शंकुरूप (पाइनीयल) कार्य करने से निष्क्रिय हो जाता है। यह गर्मी को फैंक नहीं पाता ग्रंथि दाई तरफ काम करती है। जबकि यह दूसरी तरफ से स्थित जिससे यह गर्मी फेफड़ों की देखभाल करने वाले दायें हृदय के है। पियूष ग्रंथि हमें कार्य करने की शक्ति देती हैं जिसके द्वारा केन्द्र की ओर ऊपर उठने लगती है फेफड़ों को हानि पहुंचाकर हम सोचते हैं और शारीरिक क्रियाएं करते हैं। शंकुरूप बाई ओर यह गर्मी इस केन्द्र को प्रभावित करती है। परिणामतः व्यक्ति को का देखती हैं जो हमारी इच्छा शक्ति की देखभाल करती हैं। बाई अस्थमा रोग हो सकता है सहजयोग में अस्थमा पूर्णतया ठीक ओर वह है जिसने अपने अंदर अनुबंधन इकट्ठे किये हैं तथा हो सकता है। उसके परिणामस्वरुप हमारे अंदर प्रति अहंकार अनुबंधन के रूप में दाई तरफ होता है। हम इसे संस्कृत में मनस कहते हैं बनती है क्योंकि फेफड़ों के कार्यशोल न होने के कारण बलगम तथा दाई ओर की कार्य शक्ति एक ऐसी प्रणाली की रचना करती पिघलने लगता है। तब व्यक्ति को अलर्जी ( प्रत्यूजता) हो सकती है जिसे हम अहं नामक गुब्बारे की तरह का उपफल मानते हैं। है आपको छोंक रोग या परागज ज्वर (हाई फीवर) हो सकता हम या तो दाई तरफ होते हैं या बाई तरफ क्योंकि हम है। परिणामस्वरुप यह मानसिक कियाओं में उलझ जाता है। सह-अनुकम्पी तंत्र या मध्य नाड़ी तंत्र में नहीं जा पाते। बाई तरफ जिगर के अलावा आपके अग्नाशय को भी हानि पहुंचती है और के पीछे वह सब है जो कि हमारे सृजन के साथ बनाया गया आपको मधुमेह रोग हो सकता है। था। मृत पौधों तथा मृत सूक्ष्म अवयवों से आये सारे अंश, सभी कोटाणु तथा जीवाणु विकार प्रक्रिया से बाहर हो गये हैं बहुत है, चीनी खाने से नहीं होता। गांव के लोग बहत अधिक चीनी से मानसिक तथा सैजोफेनिया जैसे रोग हममें तभी आते हैं जब पीते हैं मगर उन्हें मधुमेह नहीं होता क्योंकि वो सिर्फ काम करते हम मृत- आत्माओं की पकड़ में होते हैं। पर चिकित्सा वैज्ञानिक हैं और सोते हैं। वे भविष्य के बारे में नहीं सोचते। जब यह गर्मी इस पर विश्वास नहीं करते। एक बार जब हम इस बाई तरफ से प्रभावित हो जाते हैं तो आधुनिक समय में जीवन बहुत ही उत्तेजित तथा तेज है। प्लीहा हममें ऐसे रोग पनप जाते हैं जिनका मनुष्य के पास कोई उपचार हमारा गतिमापक है। यदि कोई आपात स्थिति है तो यह लाल नहीं। दूसरा केन्द्र, जिसे स्वाधिष्ठान कहते हैं, सूर्य चक्र से उपजता है। बाह्य में इसकी अभिव्यक्ति महाधमनी (एडरोटिक) चक्र के रूप में होती है। यह हमारे जिगर अग्नाशय, गु्दे तथा मुख्य आंत फिर आप परेशान होते हैं व आपकी प्लीहा भी परेशान होती और पेट के ऊपरी तथा निचले भाग को पोषित करता है। यह है। फिर आप दफ्तर की तरफ भागते हैं, आप घवरा जाते हैं ऊपर की तरफ जाने पर यह गर्मी जुकाम रोग का कारण सिर्फ वे व्यक्ति जो बहुत अधिक सोचते हैं, उन्हें मधुमेह होता व प्लीहा (स्पलीन) पर आती है तो प्लीहा उपेक्षित हो जाता है। रक्त कोशिका बनाता है। मगर इस आधुनिक जीवन में आप इतने उत्तेजित हैं। सुबह आप समाचारों में भयानक समाचार पढ़ते हैं। भवसागर के चारों ओर घूमता है। यह एक और आवश्यक कार्य क्योंकि आपको देर हो गई है। आप अपनी घड़ियों के गुलाम करता है । यह गहन चिंतन के समय हमारे मस्तिष्क के श्वेत कणों बन गये हैं। आप पूरी तरह से एक उत्तेजनामय व्यक्तित्व बन जाते की कमी को पूरा करता है। चिकित्सा विज्ञान इस तथ्य को नहीं हैं। इस बेचारी प्लीहा को यह पता नहीं कि कैसे प्रक्रिया करे। जानता कि मस्तिष्क के सफेद कणों की आपूर्ति किस प्रकार होती यह सनकी हो जाती है। है। इस केन्द्र का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। अधिक सोचने से मनुष्य भविष्यवादी हो जाता है। अतः वो दाई ओर चला जाता क्षीण कर देता है। इस स्थिति में किसी भी अनिष्ट, दूर्घटना या है। इस तरह से वो अपनी दाई ओर की शक्ति का अत्यधिक ग्लानि के कारण यदि आपका चित्त बाई ओर को झुक गया तो उपयोग करने लगता है। केन्द्र संकुचित हो जाता है और हमारा जिगर उपेक्षित हो जाता है। जिगर बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हो सकता है। सहजयोग से श्वेत रक्तता (लुकीमिया) के बहुत यह हमारे शरीर के सारे विष को सोखता है। मगर यह अधिक रोगी ठोक हो गए हैं। यह दोष व्यक्ति की कैंसर से मुकाबला करने की शक्ति को आप पकड़े जाते हैं तथा आपको श्वेत रक्तता (लुकौमिया) रोग 13 श्री माता जी की रुस यात्रा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-14.txt स्वाधिष्ठान चक्र गर्दे की भी देखभाल करता है। गुर्दे की टेनिसखेले। सारी गर्मी जो पैदा होगी वह ऊपर जायेगी और हृदय देखभाल न होने पर जिगर की गर्मी इन पर चढ़ जाती है तथा जिससे मूत्र परित्याग बाधित होता है या रुक सकता है तथा व्यक्ति हो जायेगा। एक अन्य मुसीबत यह है कि उसे बाई तरफ का को प्रभावित करेगी। बहुत ही छोटी उम्र में उसे घातक हृदय रोग के डायलिसिज तक पहुंचने की स्थिति आ सकती है। एक बार डायलिसिज तक आने के बाद व्यक्ति रोग मुक्त नहीं हो सकता। पक्षाघात भी हो सकता है। जैसे कार में हमारे पास गति नियंत्रक और ब्रक दोनों ही होते हैं। कुण्डिलनो आपको नियत्रण देने के लिए है। अतः हम सहजयोग से ठीक कर सकते हैं। यह कुण्डिलनी जो कि हमारी अवशिष्ट शक्ति है यह उदित होती है तथा केन्द्रों को पोषित करती उसका दिवाला निकल जाता है। इस चक्र को ठीक कर लेने से जिगर रोग ठीक हो जाता है। गर्मो जब नीचे की ओर आती है तो आंत्र कड़ी हो जाती है। पाचन क्रिया खराब हो जाती है, भूख है। यह उन्हें ठीक रखती है तथा आपको परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जोड़ती है। तथा यह शक्ति हर समय आपके केन्द्रों को पोषित करती है। जब आप इस शक्ति से जुड़ जाते हैं तो यह सबके लिए कार्य करती है। नहीं लगती तथा व्यक्ति को कब्ज रोग हो जाता है। ये सारे रोग आधुनिक मानव के लिए सर्व साधारण हैं। बहुत अधिक सोचने के कारण जब बहुत गर्मी ऊपर को जाती है तो वह स्थिति अत्यन्त भयानक होती है। मान लीजिए कोई शराबी व्यक्ति अपना जिगर खराब कर लेता है और वह ॐ चैतन्य लहरी 14 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-15.txt चिकित्सक सम्मेलन (सारांश) मास्को, 7-8-1993 मैं सहजयोग को मैटा विज्ञान कहती हूं। क्योंकि विज्ञान का जब तक कि आपके सारे अंग वगैरह न निकाल दें। चिकित्सा विज्ञान में इस तरह के अंधेपन ने मुझे इसकी तरफ आकर्षित तरीका इसमें नहीं अपनाया जाता। उदाहरण के तौर पर जब हम चिकित्सा विज्ञान में कुछ खोजना चाहते हैं तो हम परिकल्पना लेते हैं। हम यह सोचते हैं कि शायद यह किसी खास बीमारी का इलाज है। अब तो यह इतना विस्तृत और विशिष्ट हो गया है कि किसी व्यक्ति के लिए शोध शुरू करने में उसे 15 साल पढ़ते किया। मैंने सोचा, मुझे उनकी तकनीकी शब्दावली तथा उनकी समस्याओं को जानना चाहिए। अब हमें जान लेना चाहिए कि यह संसार बीमारियों से भरा है और इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी उपचार नहीं ले सकते। पश्चिम में बहुत से डाक्टर सहजयोग में नहीं आना चाहते क्योंकि वो सोचते हैं कि वो ज्यादा पैसा नहीं पा पायेंगे यदि रोगी बिना दवाइयों के ही ठोक हो जायेगा तो। ही रहना पड़ता है। और तब भी उसे इसका पूर्ण ज्ञान नहीं होता कि सारे संसार में कहां क्या हो रहा है। यदि आप यह कहें कि आपने अभी कुछ खोजना है तो कोई दूसरा आपको यह जानकारी देगा कि उन्होंने पहले ही उसे आस्ट्रेलिया में खोज लिया है। अतः आपके सारे प्रयत्न बेकार गए। चिकित्सा क्षेत्र बहुत बड़ाउद्योगबनगयाहै। इस खरीद-फरोख्त की वजह से लोग इस पर विश्वास करते हैं और इसे लेते हैं। मैं किसी तरह की कोई खरीद-फरोख्त नहीं करती और न ही मैं आपसे कुछ चाहती हूं। मैं सिर्फ चिकित्सा विज्ञान की श्रेष्ठता को जगाना चाहती हूं जहां हम पैसे के लिए नहीं बल्कि करुणा की वजह से कार्य करते हैं । मैं यह देखती हं कि जो लोग हमारे पास आते हैं वो किसी भी सहजयोगी से आसानी से ठीक हो सकते हैं। आप अपनी खोजों से जान जाते हैं तथा उसके क्रियान्वयन से भी। किसी भी अनुसंधान में आप पहले चूहों पर, फिर बंदरों, फिर सुअर और फिर मनुष्य पर प्रयोग करते हैं । आप पाते हैं कि यह असफल है। यह बहुत खतरनाक है, कभी-कभी कुछ लोगों पर कुछ दवाएं जहर का कार्य करती हैं क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग तरह का बना है और उसमें अलग अवयव समस्याएं हैं। यहां पर 7 चक्र व 3 रास्ते हैं। अतः 7 x 3 = 21 समस्याएं तब जब तक हम यह नहीं जान लेते कि हम किस तत्व के मुख्यतः हो सकतो हैं मगर संयोग भी हो सकते हैं। इसका निदान आपकी अंगुलियों के पोरों पर है। कुरान में मोहम्मद साहिब ने कहा है कि आपके हाथ बोलेंगे और आपके खिलाफ शहादत बने हैं तथा हमारी अन्त स्थिति क्या है, तथा यह बोमारियां कैसे होती हैं, हम कुछ भी सही तरीके से नहीं कर पायेंगे। विशेषतः अंग्रेजो दवाईयां बहुत गर्मी उत्पन्न करती हैं। अतः हमें कुछ ओर भी लेना चाहिए जो गर्मी को निष्प्रभावी करे। परन्तु वह भी दूसरा अन्धा रास्ता है। सहजयोग मैटा विज्ञान है। यहां आपको कोई अनुसंधान नहीं करना पड़ता यह पहले से ही अनुसांधित है और हमें अधिक करने की जरूरत नहीं है। सालों तक बंदरों-चूहों पर प्रयोग करने का यहां कोई महत्व भी नहीं है। देंगे। मुख्यतः तीन तरह की परेशानियां होती हैं। वे समस्याएं जो बाई तरफ से हैं, वे जो दाई तरफ से हैं तथा वे जो मध्य से हैं। अगर आप किसी सहजयोगी से पूछे तो वह यह कहेगा कि यह बाई तरफ है या यह दाई तरफ है। सब कुछ यही है सबसे सरल वस्तु है अपनी बाई या दाई तरफ को प्रेषित करना। अगर गुर्दा उदाहरणतया आजकल एक आंख के लिए एक डाक्टर है खराब हो जाता है तो डाक्टर डायलिसिस देते हैं। हर कोई जानता है कि आप मरीज को बचा नहीं सकते। सारी जिंदगी उसे तथा दूसरी आंख के लिए एक डाक्टर है। और कभी-कभी तो आपको अपना पूरा पर्स भी खाली करना पड़ता है। इस बीच चिकित्सक सम्मेलन 15 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-16.txt तुम स्वयं दिवालिया हो जाओ| तो यह है मानसिकता। डायलिसस लेनी पड़ेगी। दुर्भाग्यवश एक डाक्टर जो डायलिसिस विभाग में बहुत मशहूर था उसका गुर्दा खराब हो गया। वह बोला कि मैं डायलिसिस नहीं लेना चाहता क्योंकि मुझे मालूम है कि प्रश्न श्री माताजी, क्या हमचिकित्सक लोगों को ठीक करते हैं या वो अपने आपको स्वयं ठीक करते हैं ? डाक्टर के रुप यह सारी जिन्दगी के लिए है। मैं इसका खर्चा वहन नहीं कर सकता और लोग डायलिसिस से मर जाते हैं। इसका कोई फायदा में सहजयोग मं हमारा क्या फर्ज है? श्री माताजी : जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा का उपकरण नहीं क्योंकि कोई पैसा नहीं बचता। तो मैने इस डाक्टर से कहा बनना है। यदि आपका लक्ष्य रोगियाँ का इलाज करना है तो इस बात को आप अपने कार्य में ही बहुत शीघ्र जान जाएंगे। परन्तु कि डाक्टर मैं तुम्हें बताती हूं कि सहजयोग तुम्हें 100% ठीक कर देगा। मगर तुम मुझसे यह वादा करो कि तुम दुबारा यदि आपका लक्ष्य धन कमाना है तो आप सहजयोगी नहीं हैं। डायलिसिस का प्रयोग नहीं करोगे और तुम लोगों को ठीक करने पैसा कमाना अपनी जगह है। सहजयोग में आकर आप बहुत के लिए सहजयोग का प्रयोग करोगे। उसने वादा किया और वह लोगों को ठीक कर सकते हैं। वहां भी समृद्ध रह सकते हैं। मैंने ठीक हो गया। मगर वो अब भी डायलिसिस प्रयोग कर रहा है। बहुत से सर्जनों को निपुण होते देखा है क्योंकि सहजयोग में उन्हें मैने कहा कि तुम डायलिसिस क्यों प्रयोग कर रहे हो ? उसने पूर्ण शरीर तंत्र का ज्ञान हो जाता है। अतः चिकित्सा कार्य करते कहा कि हमने मशीनों को खरीदने में बहुत पैसे लगाये हैं और हुए आप निपुण हो जाते हैं। निसन्देह आपको जीविकापार्जन करना है। कुछ सहजयोगी चिकित्सक अच्छा कार्य कर रहे हैं। भारत के एक एम. डी. डाक्टर विटेश में वजीफा पा रहे हैं। अगर हमने पैसा नहीं कमाया तो हमारा क्या होगा? हम दिवालिया हो जायेंगे। मैने कहा एक तरह से तुमने भी लोगों को दिवालिया कर दिया है। तो बदलाव के लिए यह अच्छा है कि * ॐ* तु चैतन्य लहरी 16 हि 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-17.txt देवी पूजा (सारांश) तलियाती (रूस) 3 -8-1993 हम किसी से घृणा नहीं करते इसलिये कि वह दूसरे धर्म से आप यहां पर अपने भीतर बहुत से ऐसे चमत्कार पायेंगे कि आपके हृदय में स्थित प्रेम की शक्ति ने आपकी रक्षा की है। मैने संबंधित है। इसके विपरीत हम सभी धर्मों में विश्वास करते हैं। बहुत से ऐसे लोग देखे हैं जो कि बहुत गर्म-मिजाज और गुस्सैल यह वो शक्ति है जिससे कि एक बूंद सागर बन जाती है और थे, जो सारा समय दूसरों को कष्ट पहुंचाते रहते थे, वो अब व्यक्ति सामूहिक बन जाता है। आपकी सारी शक्तियां जो यहां अत्यन्त सुन्दर और अच्छे लोगों में परिवर्तित हो गये हैं इस प्रेम हैं वो प्रकाशित हो जाती हैं। इस सर्व - व्यापक शक्ति से। यह के प्रकाश में आप अपने आपको प्रेम करते हैं तथा सब बुरा परिवर्तित होती है और इसके पास ऐसा सुन्दर व कोमल मार्ग व अनैतिक त्याग देते हैं। यह प्रेम शाश्वत है, बहुत शक्तिशाली है हर चीजों को संभालने का । है और आपको सामूहिकता में आत्मविश्वास देता है। क्यॉंकि यह आत्मा है जो सब शक्तियों को प्रकाशमान करती है और यही विश्वास, सिर्फ दूसरों के प्रति प्रेम से। और यह प्रकाशमयी प्रेम आत्मा विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति प्रेम और सामूहिकता का आपको वह सब दे देता है जो आप चाहते हैं और यह स्रोत है। जब आपका ध्यान उन सभी लोगों की तरफ जाता है सर्व-व्यापक शक्ति है। इस बारे में कोई शंका नहीं है। आपको जो कि कष्ट में हैं, तकलीफ में हैं, जिन्हें सहायता चाहिए, इस इसे अपने खुले हृदय से स्वीकार करना है कि यह शक्ति महसूस ध्यान से जो इतना प्रकाशमान है, आप उनके कष्ट यहां बैठकर करती है और हमें महान व्यक्ति बनाती है इसमें कोई प्रतियोगिता दूर कर सकते हैं। इस प्रकार के लोगों के साथ शब्दों, हथियारों नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं, कोई ईष्ष्या नहीं है। सिर्फ यह इच्छा व सीमाओं की आवश्यकता नहीं रहती। जब रूसी भारत आते रह जाती है कि जैसा मैं आनन्दित हूं वैसे ही दूसरे भी आनन्द हैं तो वह अपने देश जैसा ही महसूस करते हैं और जब भारतीय में आयें। रूस जाते हैं तो वे भी अपने देश जैसा ही महसूस करते हैं तो कौन लड़ेगा? यहां कोई नहीं है जो यह कहे कि ये मेरी शक्ति यात्रा करते हैं। वे लोगों को समझाने का प्रयत्न करते हैं। वो सब है क्योंकि प्रत्येक आप ही का एक भाग है। यह समय बहुत खास कार्य बिना किसी भौतिक लाभ के करते हैं पर सबसे बड़ा आनन्द है जिसे मैं बसन्त ऋतु कहती हूं। अब इतने अधिक फूल सत्य तब है जब आप किसी दूसरे व्यक्ति की कुण्डिलनी उठाते हैं और को प्राप्त करना चाहते हैं। उन सबको अब फूल बनना है जिसे की अब घटित होना है। यह समय बहुत-बहुत महत्वपूर्ण है। सब परमात्मा आपको धन्य करे। धर्मों में यह वर्णित है। जिस एकमात्र चीज की आवश्यकता है वह है इस शक्ति में सहजयोगी बहुत अधिक मेहनत करते हैं, बहुत थोड़े धन से उसको आत्म-साक्षात्कार कराते हैं। ॐ * देवी पूजा 17 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-18.txt तत्व की बात परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (15-2-1981) मैंने आपसे कहा था कि आज आप से मैंतत्व की बात करूंगी। हमारे अंदर गणेश जी का तत्व नहीं होता तो इस पृथ्वी पर हम ज्यों हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका होना, उसका बड़ा टिक नहीं सकते थे कितने जोर से पृथ्वी घूम रही है इस पर होना देखें, तो ये चीज समझ में आती है कि उसके अंदर कोई हम चिपके हुए हैं। कोई कहेगा कि पृथ्वी के अंदर ही यह गणेश न कोई ऐसी शक्ति प्रमाणित है या प्रवाहित है जिसके कारण ये पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूर्ण स्थिति को पहुंच रहा है। से ही हम पृथ्वी पर जमे हुए हैं। लेकिन जो तत्व पृथ्वी के अंदर ये शक्ति उसके अंदर है, नहीं तो यह कार्य नहीं करेगा लेकिन है उसे उसकी धुरी कहते हैं माने जिस रेखा में वो तत्व फंसा ये शक्ति उसने कहां से पाई? इसका तत्व, मर्म क्या है? जो चीज हुआ है उसे उसकी धुरी कहते हैं। हालांकि ऐसी कोई धुरी है नहीं। बाह्य में दिखाई देती है जैसे कि पेड़ दिखाई देता है उसके कोई भी सलाख की तरह की चीज नहीं है पर मानते हैं कि जो फल- फूल पत्ते सब दिखाई देते हैं ये तो कोई तत्व नहीं है। इस शक्ति है इसके तत्व की वो इस रेखा से चलती है। टेढी उसी के तत्व पे तो ये चौज आधारित नहीं है। वो चीज कोई न कोई सूक्ष्म ऊपर पृथ्वी घूमती है बीचों-बीच। सो वो तत्व हमारे अंदर क्या है। उस सूक्ष्म को तो हम देख नहीं पा रहे हैं। उसकी गर साकार बनके रहता है ? क्या है जिससे हमें दिशा का ज्ञान होता है। स्थिति होती तो दिख जाता लेकिन वो निराकार स्थिति में है। माने जानवरों में यह तत्व ज्यादा होता है, पक्षियों में यह बहुत ज्यादा ये कि उसके अंदर जो चलता हुआ पानी है वो भी उसका तत्व होता है क्योंकि भोले--भाले जीव हैं। उनमें छलकपट नहीं, नहीं हुआ। हालांकि वहन कर रहा पानी उस शक्ति को अपने वैराग्य कुछ नहीं होता, विचार नहीं कर सकते, विचार करने अंदर से वहन कर रहा है और गर पानी में ही सब शक्ति है तो की शक्ति नहीं है। और न ही वो आगे का सोचते हैं न ही वो पीछे किसी पत्थर के अंदर पानी डालने से वहां से पेड़ क्यों नहीं का सोचते हैं। वो पीछे का बिल्कुल नहीं सोचते। आपको आश्चर्य निकल आते ? तब तत्वों में यह जानना चाहिए कि हरेक चौज होगा गर कोई बंदर आप देखिये मर जाता है, जब तक वो मरता का अपना-अपना तत्व होता है। पानो का अपना एक तत्व है नहीं तब तक वो सब हाय तौबा मचाये हुए हैं जैसे ही वो मर पेड़ का अपना एक तत्व है और पत्थर का भी एक अपना तत्व तत्व है माँ। यह भी बात सही है पृथ्वी के गणेश तत्व की वजह या जायेगा तो वो छोड़ देंगे, भाग जायेंगे। उनका कोई मतलब नहीं। बस खत्म, अब वो मर गया। ये तो वैसे ही हो गया जैसे दूसरे पत्थर हैं। उसे कोई मतलब नहीं। बिलकुल बेकार चीज हैं। लेकिन धीरे-धीरे उसके अंदर ये जरूर है कि अनुभव तत्व जैसे कि एक बार आपने शेर को पकड़ने की कोशिश की और उसको जाल में फंसाया। दो तीन बार अगर उसको उसमें से छुटकारा हो गया तो फिर वो ताड़ जाता है कि इसमें कोई न कोई गड़बड़ है। बहुत कुछ तो भगवान की दो हुई चीजे हैं पर कुछ वो सीख भी जाता है अनुभव से कि क्या चाल लोग चल रहे हैं और उससे कैसे बचना चाहिए। अनुभव से भी बहुत कुछ जानवर सौखते हैं लेकिन तो भी उसके अंदर परमात्मा की दी चीजें बहुत ज्यादा हैं। जिसको वो जानता रहता है। स्फूर्ति है, उसमें स्फूर्ति आती है जैसे जापान के कुछ ऐसे पक्षी हैं जब वो उड़ने लग जाते हैं या भागने लग जाते हैं ज्यादा तब लोग समझ जाते हैं कि अब भूकंप आने वाला है क्योंकि इन पक्षियों को ये घड़घड़ाहट मनुष्य से बहुत पहले सुनाई दे जाती है। जानवरॉं को भी मनुष्य से बहुत ज्यादा जल्दी है। उसी तरह मानव का भी अपना एक तत्व है। जिसके बूते पर वो चल रहा है, बड़ा हो रहा है। जिससे उसकी उद्देश्य प्राप्ति होती है। ये तत्व एक हो नहीं सकते। जैसा कि मैने बताया कि पानी के तत्व पर ही गर णैधा निकल रहा है तो वो एक पत्थर से पौधा क्यों नहीं निकाल सकता? गर बीज के ही तत्व से बीज पनप रहा है तो वो धरती माता की शरण में क्यों जाता है? गर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य हो रहा है तो धरती माता की वजह से ये जो पत्थर हैं ये भी क्यों नहीं पनप रहे हैं? इसका मतलब यह है कि उनके तत्वों में एक तत्व है लेकिन तत्व अनेक हैं। ये सब अनेक तत्व हैं ये एक में समाये हैं और ये जो अनेक तत्व हैं ये हमारे अंदर भी स्थित हैं। अलग-अलग चक्रों पर इनका वास है लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं। और एक ही ओर हुई इनका कार्य चल रहा है और एक ही इनका लक्ष्य है और एक ही चौज पर इनका अधिकार है। जैसे कि मूलाधार चक्र पे गणेश तत्व है। श्री गणेश जी का तत्व वो होता है जिसके कारण हम आज़ पृथ्वी पर बैठे हुए हैं यहां से फेंके नहीं जा रहे । गर चैतन्य लहरी 18 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-19.txt हर रास्ते में जितनी चीज लिखी हुई है हर विज्ञापन पढ़ना चाहिए और गर कोई बच गया तो पीछे मुड कर देखेंगे कि क्यों रह गया। या हर चीज जो बाजार में बिक रही है उनको जरूरी है कि हर चीज देखनी चाहिए। आंख का संबंध हमारे मूलाधार चक्र से बहुते नजदीक का है। पोछे की तरफ यहां पर जो हमारा मूलाधार तत्व है इसका सम्बन्धहमारी आंख से बहुत जबरदस्त होता है। इसलिए जो लोग अपनी आंखें बहुत इधर-उधर चलाते रहते हैं उनको मैं आगाह करदेना चाहती हूं कि उनका मूलाधार चक्र बहुत खराब हैं। और अजीब-अजीब तरह की परेशानियां उनको उठानो पड़ती हैं। सबसे तो बात यह हो जाती है कि ऐसे आदमी का चित्त स्थिर नहीं होता क्योंकि वो अपनी दिशा भूल गया। इधर-उधर फिर -फिर देखता है। यह भी एक दिशा की भूल का ही नमूना है। जिस आदमी को अपनी दिश मालूम है वो सीधे चला जाता है। दिशा का भूल जाना मनुष्य ही कर सकता है, जानवर नहीं कर सकते क्योंकि उसको कोई वजह ही नहीं वो दिशा भूले या कहीं उसका समझ लीजिए एक जानवर ने दूसरे जानवर को मार कर कहीं डाल दिया उसको मालूम है उसने उसको कहां डाला है। उसको उसकी सूंघ आयेगी। उसको समझ आयेगी तो बराबर अपने स्थान पर पहुंच जायेगा। भटक नहीं सकता। आप अगर किसी बिल्ली को घर से निकालना चाहे तो सात मील की सुनाई देती है। बहुत वहां सुनने की शक्ति, देखने की शक्ति। अगर कोई चील ऊंचाई से भी देखे तो वो समझ जाती है कि ये आदमी मरा है कि जिंदा है। ये सारे ही जो पांचों इंद्रियों की शक्तियां हैं ये जानवरों से इंसान में बहुत कम हैं। और उससे जो सबसे बड़ी शक्ति उनके पास होती है जो गणेश तत्व से पाई जाती है वो है दिशा का अंदाजा। बहुत से पक्षी मैने कल आपको बताया था कि पक्षी जब उड़ कर के साइबेरिया से आते हैं तो वो उसी वजह से जानते हैं कि हम उत्तर जा रहे हैं या दक्षिण जा रहे हैं, या पूरब जो रहे हैं या पश्चिम जा रहे हैं। पर जैसे-जैसे गणेश तत्व कम होता जाता है मनुष्य में वैसे-वैसे दिशा का ज्ञान दूसरी तरफ बढ़ता जाता है। जो आदमी बहुत ज्यादा सोच विचार करता है १ कि मैं ये करू या नहीं? इसमें कितना लाभ होगा या कितना नुकसान होगा? इसमें रुपया लगाऊं या उसमें रुपया लगाऊं ? इस तरह कि फालतू की बातों में जो मनुष्य अपना चित्त बर्बाद करता है उसको दिशा का ज्ञान बड़ा कम हो जाता है। उसको आप एक जगह में खड़ा कर दीजिए कि आपको उत्तर की ओर जाना है ये उत्तर है तो थोड़ी देर में देखियेगा कि वो दक्षिण की ओर चले जा रहे हैं। रास्तों का उसे ज्ञान नहीं रहता। अगर आप उसे कहीं खड़ा कर दौजिये और पूछे रात के वक्त कि उत्तर दक्षिण, पूर्व, पश्चिम तो कहेगा कैसे बताया जाये भई सूरज तो है नहीं। जब आपका चित्त इस तरह से बाहर की और बहुत ज्यादा हो जाता है और या तो आप किसी के चालाकी से पस्त होते हैं या आप दूरी पर जाकर उसे छोड़ दीजिए तो भई शायद वो वापस चली या तो भयग्रस्त हैं कि दूसरा आदमी आपको चालाकी से उठा आयेगी। कुत्ते का तो क्या कहना। कुत्ता तो सूंघ के ऐसे ढूंढता न डाले और यातो आप इसके पीछ लगे हैं कि चालाकी से इसको है कि फौरन उसे पता चल जाता है कि चोर कहां चला गया कैसे डुबाया जाये। दोनों हालात में आपकी जो अबोधिता है वो और कहां चीज चली गई। लेकिन मनुष्य के अंदर सुंघने की शक्ति घटता जाता है। और जब आपकी ऐसी स्थिति आ जाती है तब भी बड़ी नष्ट हो गई। उसको गंदगी की तो बदबू आने लगती है लेकिन पाप की गंदगी की नहीं वो उसे नहीं सूंघ पाता है जो हमारे एक छोटी सी बात बतायें आप लोग बुरा मत मानिये। मैं अंदर पाप बनकर जी रहा है और जो दूसरा आदमी महापापी आजकल देखती हूं, पहले लड़कियों में यह बात नहीं थी अब है उसके साथ हम खड़े हैं। उसको इसकी गंदगी तो जरूर आ उनमें भी यह बात दिखती हैं। दिल्ली शहर में ज्यादा कि हर आदमी जायेगी कि यहां गंदा पड़ा है। वहां सफाई नहीं हुई है। ये नहीं की ओर नजर उठा कर वो देखने लगीं। पहले तो मर्द देखा करतें हुआ है। वो नहीं हुआ है। लेकिन कोई महापापी भी उनके साथ थे अब औरतों ने भी शुरू कर दिया। अब इसको आप सोचते खड़ा होगा उसकी बदबू नहीं आयेगी। और गर वो आदमी बड़ा हैं कि ये तो बहुत ही सीधी बात है। इसमें कौन सी ऐसी बात है। आदमी है, मंत्री हो, कुछ हो तो उसके तलवे चाटने हैं तो भी वो हर आदमी की ओर जरूरी ऐसे देखना, इसमें लोग कहेंगे इसमें नहीं हटेंगे। गणेश तत्व के खराब हो जाने से मनुष्य का सारा ही, कि कोई शिष्टाचार को बात माँ कह रही है। नहीं ये बहुत गहरी क्या कहना चाहिए अस्तित्व ही खराब हो जाता है। और गणेश बात है। जितना ही आप देखते हैं उतना ही आपका चित्त बाहर तत्व जो है इस पर चंद्रमा का अभिशाप हैं। चंद्रमा जब बिगड़ की ओर जाता है। जितना ही आपकी दृष्टि बाहर की ओर जायेगी जाते हैं तो आप जानते हैं कि बायें ओर की बीमारी हो जाती है। आदमी पागल हो जाता है और पागल तो क्या होता है असल में बात यह हो जाती है कि जब आदमी इस तरह से बिलकुल आपको दिशा का ज्ञान नहीं रहता। प उतना ही आपका मूलाधार चक्र खराब होगा। विशेष करके इस तरह की चीजों की ओर या बहुत से लोगों की आदत हुई कि 19 तत्व की बात 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-20.txt इधर-उधर अपनी आंख घुमाने लगता है तो उसका चित्त जो चाहिए। माताजी तो एक अजीब गुरू है कि पहले ही शुरू कर है अपने काबू में नहीं रहता और कोई भी दुष्ट आत्मा उस पर देती है कि आपको पवित्रता रखनी चाहिए। ये कोई तरीका हुआ आघात कर सकती है। जब विदेश के लोगों को मैने बताया कि अधिकतर गुरू यही कहते हैं कि भई जो करना है करो। पैसा तुम लोग क्या कर रहे हो अपनी आंख के साथ। ईसा मसीह ने जमा कर दो काम खत्म। पैसा तुमने जमा किया कि नहीं ? साफ शब्दों में कहा कि "आप व्याभिचार नहीं करेंगे। आपकी कुंडलिनी जागरण जो है ये असलियत है, वास्तवीकरण है। दृष्टि अपवित्र नहीं होनी चाहिए। हम इस तरह से अपना गणेश इसके लिए मनुष्य को पवित्र होना जरूरी है। गर आप पवित्र तत्व खराब करते रहते हैं। जिसका गणेश तत्व खराब हुआ नहीं तो आपको कुंडलिनी जागरण का कोई अधिकार नहीं उसकी कुण्डलिनो टिक नहीं सकती, फिर खिंच करवापस चली जाती है। जितनी भी ऊपर उसको लीजिए, लेकिन वह वापिस तैयार नहीं होती है कि मेरा बेटा जो है गिर गया। उसके लिये आ जाती है। एक तो ऐसे इंसान की कुंडलिनी उठती नहीं और बड़ा मुश्किल है क्योंकि इसको ही लांछन लगता है। तो सारी उठती भी है तो फिर जा कर दब जाती है। इसलिए गर समझ अपनी पुण्याई लगाकर कहती है अच्छा पार तो करा दो पहले। लीजिए कोई आदमी चोर हो उचक्का हो तो परमात्मा की नजर ये बात जानना चाहिए चाहे आप बुरा माने या भला माने अपने में इतना बड़ा गुनाह नहीं है। लेकिन परमात्मा की नजर में वो जीवन को पार होने के बाद आपको जरूर पवित्र बनना पड़ेगा। आदमी बहुत दृषित है जिसकी नजर स्त्री के ऊपर शुद्ध नहीं है। पवित्रता आपमें बहुत जरूरी आनी चाहिए। इसका ये मतलब नहीं अपनी पत्नी को छोड़ करके और बाकी सब औरतें शुद्ध स्वरूप कि आप सन्यासी बनकर घूमिए। सन्यासियों को भी नहीं से देखना चाहिए। लेकिन आजकल लोग उसको मानते ही नहीं। सहजयोग मिल सकता। ये मतलब मेरा बिल्कुल नहीं कि आप हमारी उम्र में हम तो अधिकतर लोगों को ऐसा ही देखते थे अब कोई अस्वाभाविक तरीके से रहें, अनैसर्गिक तरीके से, उससे इस उम्र में जब देखते हैं तो हमारी उम्र के लोग जो बुड़े लोग आदमी बड़ा ही सूख जाता है एकदम सूखा इंसान हो जाता है। हैंगये हैं वो भी सत्यानाश हो गये हैं। बुढ़ापे में उन्होंने अपने जवानों से यह बात सीखी और बुड्के ज्यादा बलवान जवान हो गये हैं आशीर्वादित होता है। यहां तक कि सहजयोग में विवाह भी होते कुछ समझ में नहीं आता है कि इन लोगों को अक्ल कब आयेगी। हैं जो बहुत ही ज्यादा लाभदायक होते हैं। विवाह एक मंगलमय अरे भई पचास साल पहले यह नहीं था। पचास साल पहले ऐसा कार्य है और उसमें आप जानते हैं हम गणेश की हमेशा स्तुति नहीं था तो आज क्या हो गया है कि हम लोग के सभी आंखों करते हैं। गर आपके अंदर पावित्र्य नहीं है तो आप परमात्मा की शर्मो-हया चली गई ? और फिर कोई बताता थोड़े ही है की बात नहीं कर सकते। सच बात आपसे मैं कहूं इसलिए बहुत कि आप शर्मो-हया करो। वो तो एकदम अंदाज ही हो जाता लोग कहते हैं कि माँ हमारे क्मों के फलों का क्या होगा और है। हमने अपना गणेश तत्व खो दिया बहुत कुछ खो दिया। अब हमारे कर्म अच्छे नहीं हैं । बहरहाल मेरे सामने ये बात नहीं करने तो जब औरतें भी इसी ढंग की हो गई तो आदमी का क्या हाल की क्योंकि माँ के लिए ये सब कुछ मुश्किल काम नहीं। उनका होगा? इस तरह आजकल औरतों का भी यह ढंग चल रहा है आदमी होने के बाद याद रखना चाहिए कि सब गुनाह माफ हैं पार होने तो आदमी औरतें इस तरह की होने लगी हैं। इस तरह के संसार तक। क्योंकि आप पार नहीं थे, अंधेरे में थे, चलो जो भी जैसा में परमात्मा का राज चलाना मुश्किल है। आजकल ऐसे गुरु भी हुआ। लेकिन उसके बादयह बात जाननी चाहिए कि अपने गणेश हो गये हैं जो सिखाते हैं ऐसे धंधे करो जिससे भगवान मिल तत्व को आप बहुत आसानी से जगा सकते हैं। जब ये परदेश जायेगा ऐसे गुरुओं के पास आपके जैसे दस गुना बैठ जायेंगे ये बात किसी को अच्छी थोड़ी ही लगती हैं। कहा भी गया है जैसा सीख लिया है कि पवित्रता क्या है तो क्या आप नहीं जमा सकते ? करना है करो आराम से अपने गणेशतत्व को खूब कुचल डालो। कुंडलिनी तत्व जो है ये कोई साइंस-वाइंस की बात नहीं है को अच्छी समझता हो। करता है लेकिन ये जानता है कि गुनाह ये तो पवित्रता की बात है। लोग मुझे पावन माँ तो कहते हैं लेकिन है गलती है। मैं पवित्रता की बात कहती हूं तो उनको समझ में नहीं आता। आजकल कोई गुरु ऐसा नहीं कहता कि आपको पवित्र होना आपमूलाधार चक्र जो है ये कहां पर है? कुछभी विर्संजन किया मिलना चाहिए। फिर भी माँ का रिश्ता है। माँ मानने को कभी वो भी मना है। मंगलमय विवाहित जीवन सहजयोग में नाम ही बनाया है पापनाशिनी। तो अब क्या करें? लेकिन पार के लोगों में जम गया तो आपमें क्यों न जमे। जब इन लोगों ने कम से कम ऐसा हिन्दुस्तानी मुझे नहीं मिलेगा कि जो अपवित्रता इस गणेश तत्व को आप बनाये रखिये जैसे गणेश है देखिये चैतन्य लहरी 20 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-21.txt है सो कहना चाहिए। मल त्याग जितना होता है उस पर श्री गणेश मैने देखा है कि उनके शरीर पर छाले आ जाते हैं। क्योंकि ऐसे बैठा है। तो सारा कार्य श्रीगणेश करता है क्योंकि श्रीगणेश लेगों के पास वो जाते हैं जो कि अपवित्र हैं और जिनको कीचड़ में कमल होता है। उस प्रकार अपने सुगंध से सारा सौरभ कुंडलिनी के लिए कोई भी मालूमात नहीं होता है। और जब वो इतना लुटाते हैं कि वो कीचड़ भी सुगंधमय हो जाता है। आपको कुंडलिनी की तरफ अग्रसर होते हैं गलत रास्तों से और गलत आश्चर्य होगा कि जैसे ही आपका गणेश तत्व जमना शुरू हो तरीकों से तब उन पर स्वयं साक्षात श्रीगणेश गरजते हैं। श्रीगणेश जायेगा, आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कभी जानते भी नहीं और साधक को बहुत तकलोफ उठानी पड़ती है। सारा तांत्रिक हॉंगे कि कितना आनन्द अंदर से आने लग जाता है क्योंकि तत्व शास्त्र गणेश जी को नाराज करके पाया जाता है। जो वास्तविक निर्मल है। इसका मतलब ही निर्मल रहना है। निर्मलता जिस तत्व निर्मल तंत्र है वो ये है जो सहजयोग है। क्योंकि गर तंत्र माने पे आ गई उसका मूल ही सारा हट गया। और वही निर्मल होता कुंडलिनी है यंत्र माने कुंडलिनी है तो तंत्र शास्त्र सिर्फ सहजयोग है जो किसी मल को अपने अंदर जमने ही न दें। कोई भी चीज में ही जाना जा सकता है। और बाकी जो तांत्रिक हैं ये परमात्मा जो निर्मल करनी है वो तत्व ही हो सकता है। तत्व से कोई चीज के विरोध में हैं, पापी लोग हैं, दुष्ट लोग हैं और ये गणेश जी लिपट नहीं सकती।तत्व हमेशा तत्व बना रहता है। इसलिए सबसे को नाराज करके ये देवी जी को नाराज करके उनके सामने पहले हम लोग श्रीगणेश का ही आह्वान करते हैं और उनकी व्याभिचार करके ऐसी सृष्टि तैयार करते हैं जहां वो दूष्ट कारनामे आराधना करते हैं। उनको हम मानते हैं। लेकिन आजकल लोग कर सकते हैं जहां प्रेत-विद्या, शमशान विद्या आदि करके ऐसे भी निकल गये हैं कि कुंडलिनी के नाम पर गणेश जी का लोगों को भरमा सकते हैं। ये बहुत समझने की बात है कि जिस अपमान करते हैं। सुबह से शाम तक इतना अपमान कर रहे हैं आदमी का गणेश तत्व ठीक होगा उस पर कभी तांत्रिक हाथ कि मैं आपसे बता भी नहीं सकती। कुंडलिनी उनकी माँ है और नहीं मार सकता, कभी नहीं चाहे जितनी भी कोशिश कर लो। वो भी कन्या। कन्या स्थिति में जब गौरी थी। जब पति के विवाह गर उस आदमी का गणेश तत्व ठीक है तो वो तांत्रिक मर जायेगा। से पहले उनका स्वागत करने के लिए नहाने गयी थी। विवाह पर इस आदमी का कोई बाल-बांका नहीं कर सकता । इसलिए हो चुका था लेकिन अपने पति से मुलाकात नहीं हुई थी। जब गणेश तत्व जो हैं ये सुरक्षाकारी हैं। सबसे बड़ी सुरक्षा गणेश नहाने गई थी तब उन्होंने श्री गणेश को अपने मैल से बना कर तत्व से होती है इसलिए अपने गणेश तत्व को आपको बहुत ही स्नानगृह के पास बिठाया, कहते हैं ये बात सही है। एक दूसरे ज्यादा सुचारू रूप से संभालना चाहिए। पहले तो अपनी नजर माने में या एक दूसरे आयाम में कि वो अपनी माँ की रक्षा करें। नीचे रखनी चाहिए लक्ष्मण जैसे। अवतरण को भी अपनी आंख उनकी प्रतिष्ठा की उनके नियमों की रक्षा करें। उनकी पवित्रता सीता जी के चरणों में ही रखनी पड़ी। क्या उसके अंदर कोई की रक्षा करें क्योंकि वो कंवारी हैं। वो कन्या हैं। इसी प्रकार हमारे पाप था। लेकिन उन्हें ज्ञात था कि ऊपर देखना, किसी की ओर अंदर भी जो कुंडलिनी है वो गौरी स्वरूप है। अभी कुंवारी हैं। दौड़ना सिर्फ अपना चित्त ही तो जाता है। गणेश तत्व हमें पृथ्वी उनका अभी अपने पति से मेल नहीं हुआ। पति उनके माँ से मिला। पृथ्वी माँ ने हमें गणेश तत्व दिया और इसलिए इस आत्मास्वरूप शिव जी हैं और गणेश वहां बैठे हुए हैं और जिस पृथ्वी माता का अनेक बार धन्यवाद मानना चाहिए कि आपने दरवाजे पर श्री गणेश बैठे हैं उस दरवाजे से शिवजी भी नहीं हमें ये गणेश तत्व दे करके दिशा का ज्ञान दिया। जब मनुष्य के जा सके। इतना पवित्र दरवाजा है। और ये दुष्ट लोग जिनको की अंदर गणेश तत्व जागृत हो जाये तब उसके अंदर बुद्धि-विवेक तांत्रिक कहना चाहिए उस तरफ से कोशिश करते हैं कुंडलिनी आ जाती है। हम उसके गणेश से हमेशा कहते हैं कि हमें विवेक की ओर जाने की। इसी वजह से उनको हर तरह की तकलीफ दो। हमें सुबुद्धि दोजिए। मनुष्य के अंदर अगर दिशा का ज्ञान न होती है। जिस आदमी में पवित्रता नहीं है उसको कोई अधिकार भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अच्छे बुरे का उसको नहीं है कि वो कुंडलिनी जागृत करे। गर ऐसा आदमी कोशिश ज्ञान होना चाहिए। इसीलिए हम उनसे मांगते हैं कि आप हमें करेगा तो जरूरी है कि श्री गणेश उस पर नाराज हो जायेंगे और विवेक दीजिए और इसीलिये वो विवेक देने वाले माने जाते हैं। फलस्वरुप उनके अंदर अनेक तरह की तकलीफ आ जायेंगी। ये गणेश तत्व है। कोई लोग उसमें मैंने सुना है कि नाचने लग जाते हैं कोई चिल्लाने लग जाते हैं। कोई भ्रमित हो जाते हैं और कोई लोग जानवरों तत्व। विष्णु तत्व से हमारा धर्म धारण होता है। जो कि हमारा जैसी बोलियां निकालने लग जाते हैं। किसी-किसी लोगों को नाभि चक्र से प्रभावित होता है। नाभि में हमारे अंदर धर्म धारणा हमारे अंदर जो दूसरा बहुत महत्वपूर्ण तत्व है वो है विष्णु 21 तत्व की बात 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-22.txt उसने गर्दन उठाई फिर वो मनुष्य बना तो वो धीरे-धोरे मनुष्य आप अमीबा से और ऊंचे इंसान की दशा में आ गये तब आप बना तो हमारे अंदर ये जो धर्म है कि हम धर्म की धारणा करते अपनी सत्ता खोजते हैं। उससे आगे जब आप जाते हैं आप हैं तो जैसे कि मछली का धर्म था कि वो पानी में तैरती थी उसके बाद कछुआ का धर्म था कि वो रेंगता था जमीन पर। उसके बाद परमात्मा को खोजें। ये मनुष्य का धर्म है जानवर नहीं खोज जो जानवर थे उसका ये धर्म था कि वो चार पैर से चलता था। सकते। और कोई भी प्राणी परमात्मा को नहीं खोज सकता। ये लेकिन उनकी गर्द नीची। फिर घोड़े-वोड़े जो थे उन्होंने अपनी मनुष्य का धर्म है। इसके दस अंग हैं और ये धर्मं का तत्व हमें गर्दन ऊंची कर ली उसके बाद उन्होंने सारा शरीर ही खड़ा कर विष्णु जी से मिलता है। अब बहुत से लोग सोचते हैं कि विष्णु लिया और दो पैर पर खड़े हो गये ये मनुष्य का धर्म है कि वो जी से हमें पैसा मिलता है और विष्णु जी से हमें और लाभ होते दो पैर पर खड़ा है और उसकी गर्दन सीधी है। ये तो बाह्य में हैं। लेकिन ये बात नहीं है कि सिर्फ उनसे पैसा ही मिलता है क्योंकि हुआ बहुत ही ज्यादा जड़ तरीके से आप समझें। लेकिन तत्व ऐसी-ऐसी भावनाएं हमारे अंदर बसी हुई हैं कि विष्णु जी से में क्या मनुष्य ने पाया क्योंकि हर बार जंब भी आप कोई सा से जैसे कि आप अमीबा थे तो आप खाना-पीना खोजते थे। जब परमात्मा को खोजते हैं। आपके अंदर ये धर्म है कि आप भी काम करते हैं तो तत्व भी अपने कार्य में भी उसी तरह प्रभावित होना चाहिए। समझ लौजिए आज इसमें से आपस में बातचीत कर रहे हैं। तो आप हमें समझ रहे हैं। लेकिन समझ लीजिए कि कल इससे भी बढ़िया चीज कोई आ जाये तो उसकी हमारे लिए जितना भी क्षेम है वो मिलता है और बाकी कोई नहीं। सारे क्षेम से क्या लाभ होता है? आप ये देख लीजिए। समझ लौजिए कि एक मछली है जब उसने पूरी तरह से यह जान लिया कि हम इस समुद्र से पूरी तरह से संतुष्ट हैं, उस संतोष को पा लिया, तब उसे ये विचार आता है कि समुद्र को तो सब देख लिया इसकी तो सब धर्म जान लिया अब हमें जानना है कि जमीन का धर्म क्या है। तो वो अग्रसर होता है कोई भी मछली अवतरण जो हुआ है वो सिर्फ ये हुआ है कि एक मछली उसमें से बाहर आई। अब जब वो मछलो बाहर आई एक ही मचळी वो ही अवतार। जो पहले बाहर आई बहुत सारी मछलियां को अपने साथ खींच लाई यह सीखने के लिए कि धर्म क्या है? कौन सा धर्म? इस जमीन का धर्म क्या है? पहले इस जमीन के धर्म को सुनो। इसलिए रेंगते हुए वो मछलियां बाहर आई । अब दूसरा धर्म सीखने की बात आ गई। पहले पानी का धर्म सीखा अब जमोन का धर्म सौखने लगे। तो रेंगते-रेंगते उन्होंने देखा कि पेड़ भी है इन पेड़ों से भी आप पत्ती खा सकते हैं। क्षुधा पहली चौज होती है जिससे कि आदमी खोजता है खोजने को शक्ति नाभि में है। पहले रखी होती थी पर क्षुधा होती है उसकी आपको इच्छा होती कि आप किसी तरह से अपनी क्षुधा को पेड़ के लिए जरूरी है कि भई जो हमारा शरीर है वो ऐसा ही रेंगता रहे ताकि जो पेड़ की चीजें हैं वो हम भी खा सकें। धौरे-धीरे उसने अपने ओर से चार पांच इकट्टे कर लिए फिर कछुआ हो गया, कछुआ होने के बाद फिर उसने देखा कि ये तो ऊंचे-ऊंचे पेड़ हैं उसको कैसा करें। फिर अपनी क्षुधा शांत करने के लिए उसने सोचा चलिए जरा सा और ऊंचा हो जायें इस तरह से करते-करते वो फिर जानवर भी हो गया और मशीनरी जो काम करेगी वो भी एक नई होंगी। मनुष्य के अंदर का जो तत्व है वो एक नया विकसित तत्व है और वह परमात्मा को खोजता है। उसका जो तत्व है वो परमात्मा को खोजता है। इसलिए मनुष्य का प्रथम तत्व है वो है परमात्मा को खोजना। जो मनुष्य परमात्मा को खाजता नहीं वो पशु से भी बदतर है। और जब वो परमात्मा को खोजने निकला तब उसका नाभि चक्र का तत्व पूर्ण हो गया। अब वो अगले तत्व पर आया। अब जब वो परमात्मा को खोजने लगा तब उसने देखा कि संसार की सारी सृष्टि बनी हुई है। हो सकता है इन तारों में ग्रहों और इन सब चीजों में हो परमात्मा हो। उसकी तरफ उसकी दृष्टि गई। तब उसे हिरण्यगर्भ याद आया। उन्होंने वेद लिखे। अग्नि आदि पांच तत्व हैं उसकी ओर उसका चित्त गया। उसको जानने की उन्होंने कोशिश करी। उनको जानते हुए उन्होंने जो कुछ यज्ञ हवन आदि करने थे वो किये और ब्रह्मदेव और सरस्वती की अर्चना करी। सब कुछ करने के बाद उन्हें लगा कि तो सब कुछ तो हम जान गये। ज्ञान से विज्ञान की ओर मानव गया। और अपने लिए विनाश का सारा सामान बना लिया। पर हाथ लगी निराशा तथा असंतोष। इससे बचने के लिए नशे और बुराइयों का सहारा लिया। कहने का मतलब यह है कि अगर तत्व में परमात्मा को खोजना ही सब बात है तो आप समझ सकते हैं कि विज्ञान के रास्ते आपको परमात्मा नहीं मिलेगा। विज्ञान के रास्ते आपने जो कुछ पा लिया है बड़ा भारी ज्ञान पा लिया है। उससे किसी ने भी आनंद को नहीं पाया है। ये आवश्यक है कि आप पहले से ज्यादा आलसी हो गए पहले से ज्यादा अब तुप्त करें। तो देखा है कि पेड़ है जानवर होने के बाद उसने सोचा कि अब जरा गर्दन उठा कर देखें बहुत झुक-झुक कर रहे हैं अब गर्दन उठा कर देखें। जब चैतन्य लहरी 22 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-23.txt आप चल नहीं सकते। अति सोचने की वजाह से यूरोप के लोगों ब्रह्मदेव का तत्व भी गया। अब जैसे कि अपने देश में कहा कि के हाथ बेकार हो गए। कोई भी कशीदाकारी का काम, खाना निराकार बनना चाहिए। उसको पाना चाहिए, वेद में ऐसा लिखा बनाने का काम, कोई भी काम वो लोग नहीं कर सकते। अब गया है, ये हैं, वो है, जिद करके बैठ गये। लेकिन वेद में भी लिखा जब उनकी खोपड़ी ज्यादा चलने लग गई तो उस खोपड़ी को है कि वेद माने विद, माने जानना। गर सारा वेद पढ़कर भी मनुष्य उन्होंने मशीन में डाल दिया। जब मशीन आ गई तब खोपड़ी भी ने अपने को नहीं जाना तो वेद बेकार हुआ कि नहीं? और गर बेकार हो गई। मशीन के बगैर वो लोग चल नहीं सकते। अब ये बात है तो पहली चीज ये है कि वेद का पठन करने से ओर अगर वहां बिजली चली जाए तो वहों लोग आत्महत्या कर लें। सबहो सकता पर आत्मज्ञान नहीं हो सकता। उसके पठन से और अपने यहां भगवान की कृपा से अच्छा है। अभी भी लोगों को सब हो सकता है पर आत्मज्ञान नहीं हो सकता। गायत्री मंत्र है। आदत है। पर वहां तो इस कदर उन्होंने गुलामी कर ली और अब गायत्री मंत्र बोले जा रहे हैं। अरे भई ऐसे बकवास से क्या अब इनको पता हो रहा है कि प्लास्टिक के इतने बड़े-बड़े गायत्री देवी जागृत हो सकती हैं क्या? किसी की हुई ? दिखाई पहाड़ खड़े कर लिये अब इसका क्या करें। इसको नष्ट कैसे दी आपको? किसलिए आप गायत्री का मंत्र बोलते हैं? ये भी करें? इसके पीछे में लगे हैं। अब सर पकड़ कर बैठे हैं। पहले तो उन्होंने खूब सूत के कपड़े बनाए और अब जैसे कि समझ लीजिए हैं कि गर क्या है? शराब लोग पिये समझ जो है वे परमात्मा की ही एक शक्ति है। जब तक आपने उस लोजिए किसी के घर में हैं तो दस तरह के गिलास होंगे इसके लिये। ये गिलास उसके लिए, वो गिलास उसके लिए। वो खाना खाने बैठेंगे तो एक के लिए एक चमचा, दूसरे के लिये दूसरा से गए। आयने किसी दूसरे को प्रसन्न कर भी लिया तो आप तो चमचा तीसरे के लिये तीसरा चमचा। उसके लिये दूसरी प्लेट काम से गए ही हुए हैं। कोई आपको बचा नहीं सकता। जब तक उसके लिये चौथी प्लेट। अरे भई एक थाली लो और हिसाब से आपने परमात्मा को पाया नहीं तब तक ये सारी शक्तियां व्यर्थ खाओ। पच्चीस तरह के गिलास और पच्चीस तरह के ये और हैं। ये इसका साक्षात है और तत्व सिर्फ आपमें ही है। उसी को पच्चीस तरह की तश्तरीयां। भगवान बचाए। अब ये हालत आ गई कि उनके जितना भी था वो निकल गया पृथ्वी माता से। सब को नहीं पा सकते। पर परमात्मा को पाने से इन शक्तियों के तत्व कुछ तत्व था वो निकाल डाला अब खोखले हो गए। अब काहे पे आप उतर सकते हैं? अब जो हैं कि हमको दूसरी ओर ऐसा में खाते। अब सुबह-शाम हर वक्त कागज में खाते हैं। बनावटी चित्त देना चाहिए कि इससे ऊपर जो शक्ति है जो कि देवी शक्ति चीजों में फंस कर रह गए हैं। क्योंकि हमने तत्व जाना नहीं मानी जाती है। ये आपके हृदय चक्र में होती है। हृदय चक्र से इसलिए जब हम पंच महाभूतों के तत्व पे उतरने को गए तब भी हम जड़ में फंसे रहे। सारे पंचमहाभूतों का तत्व है ब्रह्मतत्व। है तो क्या उससे नुकसान होते हैं। इसको आप समझ लोजिए। ब्रह्मतत्व क्या है ? आत्मा को पाने से ही वो ब्रह्मतत्व हमारे अंदर देवी तत्व से हमारे अंदर सुरक्षा स्थापित होती है जिससे आप से बहना शुरू हो जाता है। उस तत्व को तो हमने खोजा नहीं और खोजते गए खोजते गए और वहां पहुंच गए जहां वो चीज देवी तत्व के अनुसार हमारी जो हृदय-अस्थि है, ये सामने की बिलकुल बाहर आ गई और जड़ हो गई। इसलिए ये हालत है कि उस देश में भी कोई खुश नहीं है। वहां सभी अशांत हैं, कोई एन्टी बाडीज कहते हैं। ये देवी के सैनिक हैं। ये सारे शरीर में शांत नहीं। औरतें आदमी को मारती हैं और आदमी औरतों को चले जाते हैं और वहां जाकर सजग रहते हैं कि आप पर किसी बच्चों को मारते हैं। माँ-बाप को मार डालते हैं। दो बच्चों को भी तरह का आक्रमण आये तो उसे रोकें। जब आपकी सुरक्षा हर हफ्ते में माँ-बाप मार डालते हैं। कहां सुना है आपने मार किसी तरह से खराब हो जाती है उस वक्त ये चक्र पकड़ा जाता ही डालते हैं। तो ये इस तरह की जहांसंस्कृति बन गई है तो जानना है| चाहिए कि उन्होंने तत्व को जाना ही नहीं। अगर जानते होते तो तत्व को ये पाते और आज ये हालत नहीं होती। क्योंकि तत्व में विशेषकर सुरक्षा बड़ी जल्दी खत्म हो जाती है। जैसे कि एक जो है वो आनंद देने वाला है। तो तत्व इन्होंने वहां खो डाला। तो स्त्री है, अच्छी है, सदगुणो है, पुरूष ने या पति ने उसको सुरक्षा आपको पता नहीं। गायत्री को जागृत करने के लिए जरूरी है कि मनुष्य पहले अपनी आत्मा को जागृत करे नहीं तो गायत्री परमात्मा को नहीं जाना आप गायत्री के सहारे कहां चलियेगा? समझ लीजिए गर आपसे प्रधानमंत्री नाराज हैं तो आप तो काम पाना होता है। ये जो शक्तियां हैं इसको पाने से आप परमात्मा मतलब जगदम्बा का चक्र हमारे अदर जब ये खराब हो जाता सुरक्षित होते हैं। जब बच्चा 12 साल का होता है तब तक इस जो हड्डी है, उस हड्डी में सैनिक तैयार होते हैं जिसे अंग्रेजी में अब मैने अभी कुछ दिन पहले आपको बताया था कि स्त्री तत्व की बात 23 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_11,12.pdf-page-24.txt नहीं दी, समझ लीजिए एक औरत है, उसको अपने पति परपास आये। या तो दिल का दौरा आ जायेगा दिल का दौरा नहीं शक है। शक ही है समझ लीजिए कि ये एक आवारा किस्म का आदमी है। किसी और औरत के साथ है। उसका ये चक्र पकड़ा मिर्गी दे देंगे। उस पर उनको चैन नहीं आया तो कैंसर दे देंगे। गुरू जायेगा इस वक्त आदमी को बजाय इससे नाराज होने के उसका तत्व जब हमारा खराब हो जाता है तब इतने तरह के कैसर इंसान सुरक्षा चक्र ठीक करना चाहिए। उसके तरीके हैं उसको सोखना में हो सकते हैं जिसकी कोई हद नहीं। मतलब ये कि सिर को चाहिए कि किस तरह औरत को सुरक्षा दें बजाये इसके कि किसी के सामने झुकाने की जरूरत नहीं। हर जगह मत्था टिकाने औरत से बिगड़ें। पर लोग इतना ही नहीं करते वो तो खुले आम की जरूरत नहीं। हां ठीक है अपने माँ-बाप हैं आप टिकाइये। औरत के सामने हां। तुम कौन होती हो? अरे तुम हमें टोकने पर किसी को गुरू मानकर उसके आगे मत्था टिकाने की जरूरत वाली कौन होती हो? तुम बड़ी ये हो। तुम बड़ी शबक्की हो और नहीं। पहले आपको मालूम होना चाहिए कि गुरू वही जो जाओ तुम अपने बाप के घर। और सुरक्षा उसका खत्म। वो सारा जो कुछ भी पवित्रता है वो औरत का ठेका है आदमी को कोई कहती हूं मेरे पैर मत छूओ पर हजारों आदमी मेरे पैर पर सर जरूरत नहीं है पवित्रता की। ऐसा अपने यहां के लोगों का विचार मारते हैं। ऐसे पैर मेरे फूल जाते हैं । लहरियों से मैं कहती हं मत है। फिर उसका इलाज जो है वो कायदे से हो जाता है। जैसे इंग्लैंड छूओ तो नाराज हो जाते हैं। माँ दर्शन नहीं देना चाहती। ये बीमारी में आप जाइये तो सब आदमी सुबह से शाम तक गधों की तरह लोगों को दें। किसी भी गुरूघंटाल के सामने लेट जाएंगे और काम करते हैं । और घर पे आये बीबी ने गर उनको तलाक कर बीमारी तथा पागलपन ले आयंगे। आपके अगर गुरू हैं तो दिया किसी भी वजह से तो उनका घर बिक जाता है। आधी आपकी तन्दरूस्ती तो ठीक कर दें। ये गुरू लोग किसी न किसी जायदाद बीवी की और आधी उसकी। एक आदमी ने गर तीन बहाने लोगों से हजारों पौंड ऐंठते हैं। कभी हवा में उड़ायेंगे और बार ऐसा किया तो वो तो एकदम रास्ते पर पड़ गया। वो शराब कभी-कभी पानी पे चलायेँगे। और वो भी कर नहीं पाते। पी-पी कर मर जायेगा और बीवी जो है उसके पास खूब पैसा तरह-तरह के कष्ट देते हैं अपने चेलों को। क्या आवश्यकता हो जायेगा। उसने तीन बार शादियां कर ली हो गये वहां के है इन चीजों की? आदमी जो हैं बेचारे वो हर समय औरतों के पीछे दौड़ा करते हैं और वो उनके ऊपर हक्म जमाती हैं। इसके विपरीत भारत गुरू तत्व में अपनी अक्ल खो देते हैं और ऐसे बेवकूफों के पास के पुरुष बिलकुल निठल्लू हैं। लड़कियों को ही घर का सारा जाते हैं तो आपका गुरू तत्व खराब हो जाता है। और आप सब कार्यभार संभालने की शिक्षा दी जाती है। जब हम किसी व्यवस्था तत्व को नहीं समझते तो उसमें बड़े दोष आ जाते हैं। स्त्री यदि की शरण में चले गये तो पार हो गए। ऐसे तो मेरी शरण में आने स्वयं को असुरक्षित तथा अपमानित पाती है तो उसे कैंसर, से भी नहीं हो सकता। मैं तो साक्षात बैठी हूं। पार होने के लिए तपेदिक जैसे रोग हो सकते हैं उनकी सुरक्षा ठीक करना ही तुम्हारी भी थोड़ी सी पूंजी लगती है। कुंडलिनी के जागरण के मात्र उनका इलाज है। आपरेशन इसका इलाज नहीं । सहजयोग बिना आप पार नहीं हो सकते। पार हुए बिना सब बातें बेकार तत्व पे उतरता है। चक्रों को ठोक करता है। गुरू तत्व अगर खराब हैं। पार होने का कोई झूठा प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता। हो जाये तो कैंसर की बीमारी आसानी से हो जायेगी अगर आपको कैंसर ग्रस्त होना है तो आप किसी गलत गुरू के पास आपको पार नहीं कर सकते। समझ लेना चाहिए कि तत्व तो चले जाइए। 5 साल के अंदर आपके पास कैंसर आ जायेगा। एक ही है जो आपको गुरू से मिलता है। जो परम में उतराता अब मैं 10 साल पहले से बता रही हूं इन गुरुओं के नाम। ये कैसे है वही गुरू है। गुरू आपको परमात्मा से मिलाता है। बाकी सब गुरू-घंटाल हैं। इनके पास मत जाओ। ये तुमको नुकसान करेंगे। अंधे हैं वो आपको कहां ले जायेंगे| शरणागत भो आप पार होने सब मैं बता रही हूं। तो सब मुझे ही समझाते थे कि माँ ऐसा नहीं के बाद ही हो सकते हैं। पार होने से पूर्व तो आप मुझे पहचान कहो। तुमको लोग बंदूक चला देंगे। तुमको मार डालेंगे। फलाना भी नहीं सकते। डिमकान, मैंने कहा किसी की हिम्मत हो तो चला दे बंदूक। नाम तक बताया, सब कुछ किया और सब गये। मार खाया और मेरे परमात्मा आपको आर्शीवादित करे। दिया उन्होंने इतनी कृपा करके छोड़ दिया, तो पागलपन दे देंगे। परमात्मा से आपको मिलाता है। अब मेरा उलटा है मैं लोगों से मानव को परम होना है। परम दशा आनी चाहिए। जब आप तरह की व्याधियों के शिकार हो जाते हैं लोग सोचते हैं कि गुरू हम जितनी भी मेहनत कर लें आपकी शुद्ध इच्छा के बिना हम सुरक्षा तत्व के बारे मैंने आज बताया। बाकी फिर बताऊंगी। २ चैतन्य लहरी 24