चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड : V, अंक : 8 "गहराई को छूने के लिये तपस्विता आवश्यक है।. तप का मतलब ये नहीं कि बैठ कर आप उपवास करें। चित्त निरोध, चित्त-अवलोकन और चित्त का विचार ही तपस्या है। चित्त निरोध का अर्थ चित्त के साथ जबरदस्ती नहीं। आत्मा के प्रकाश में अपने चित्त को देखने से आपका चित्त आलोकित हो जाता है।" माता जी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खण्ड : V, अंक : 8 विषय सूची पृष्ठ (1) अन्तर्दर्शन 3. (2) पल्लाज अथेना पूजा (3) ईस्टर पूजा 9. 12 (4) मृत सागर से प्रलेख (5) जन कार्यक्रम, दिल्ली-22.3.93 16 18 (6) श्री माता जी द्वारा नियुक्त की गई समितियां 23 चैतन्य लहरी श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110067 सम्पादक मुद्रक एवं प्रकाशक भारती प्रिन्टर्स, WZ-113, शकूरपुर गाँव, दिल्ली 110034 फोन : 5413126, 5437741 मुद्रित चैतन्य लहरो 2. परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन शुडी कैम्प-इंग्लैण्ड (6-8-1988) अन्तर्दर्शन इस वर्ष, मैं सोचती हूं, हम इंग्लैण्ड में कोई सार्वजनिक स्पष्ट देख सकते हैं। आत्मा के प्रकाश में हम स्पष्ट देख सकते हैं कि हममें क्या दोष आ गए हैं। मैने एक अत्यन्त रोचक चीज जब भी कभी हालात हमारे कार्यक्रम में परिवर्तन लायें तो हमें देखो है कि एक प्रकार की माया के साथ सहजयोग हर समय तुरन्त समझ जाना चाहिए कि इस परिवर्तन का कोई लक्ष्य है। कार्यरत है। और 'अज्ञान' ही यह माया है, कभी आंशिक अज्ञान और कभी पूर्ण अज्ञान। सहजयोग में आकर आप आशोर्वादित चाहता है कि हम परिवर्तित हों। मान लो मैं सड़क पर जा रही हो जाते हैं। आप पर कृपा हो जाती है । आपके परिवार पर भी हं और लोग कहें कि मां आप रास्ता भूल गई हैं तो यह ठीक कृपा हो सकती है। आपके बच्चों पर कृपा हो सकती है। आपका नहीं है मैं कभी भटकती नहीं क्योंकि मैं सदा स्वयं के साथ होती शरीर स्वस्थ हो जाता है। आर्थिक रुप में भी, आपको नौकरी हूं। परन्तु मेरे उधर से जाने का कारण यह है कि मैने उधर से मिल जाती है, धन मिल जाता है। आपको विशेष उपलब्धियां हो जाती हैं जो चमत्कारिक होती हैं। अब हमें ये वरदान प्राप्त थी। यदि आप में ऐसी सूझबूझ है और आपके हृदय में ऐसा संतोष हो गए हैं, अब हमें कुछ और करने की आवश्यकता नहीं, जो भी हमने अब तक किया था उसका पर्याप्ति फल हमें मिल गया है, ये सब सोचते हुए लाग उन्हों उपलब्धियों में खो जाते अब हमने इस वर्ष सार्वजनिक कार्यक्रम करने का निर्णय हैं तथा भटकने लगते हैं परन्तु वास्तविकता यह नहीं है। यह किया था फिर भी हम कर न सके। तो मैने सोचा कि इसका तो आपको मात्र एक आश्रय प्रदान किया गया है जिससे सहजयोग में आपकी श्रद्धा पूर्णतया स्थापित हो सके। विशेषतया आप मुझे पहचान सकें कि मैं हूं कौन। परन्तु अब भी यदि आप भटकत हो चले गए तो आपको मिले वरदान अभिशाप भी बन होता है जहां पर उसे दिशा परिवर्तन करना पड़ता है। हो सकता सकते हैं और हो सकता है कि आपको लगे कि यह कैसा प्रकोप हम पर पड़ गया है तथा यह कि ये वरदान क्यों अभिशाप बन कार्यक्रम नहीं करेंगे, क्योंकि वहां के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। और खुले-दिल से हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिये। परमात्मा जाना था। मैने ऐसा करना था। इसी कारण मैं रास्ता भूल गई है तब आपको लगेगा कि जोवन को जितना आप सोचते थे उससे कहीं अधिक है। कुछ कारण क्या है। इसका कारण यह है कि हमें अपने आत्म साक्षात्कार को दृढ़ करना है। एक वृक्ष को जो कि जोवन्त वृक्ष है विकसित होते हुए किसी दिशा विशेष में एक सीमा तक जाना है उधर सूर्य न आता हो या पानी का स्तर नीचा हो जिसके कारण उसे दिशा परिवर्तन करना पड़े। इसी प्रकार हमें समझना चाहिए कि हम परमात्मा के हाथों में हैं। यदि कोई योजना परिवर्तित होती है तो यह हमारी ओर प्रतिबिम्बित करती है। अतः हमें इसका गये हैं । लोगों को यह आशीर्वाद पहचानने में समय लगता है। उदाहरणर्थ, आधुनिक विचारों के अनुसार हम सोचते हैं कि बहत सा धन पा लेना ही सबसे बड़ा वरदान है। बहुत से लोगां की धन भी मिल जाता है। परन्तु वास्तव में एसा नहीं है। आंतरिक शांति, साक्षो-अवस्था प्राप्त करने के लिये, अपनी चैतन्य लहरियों को भलनी-भांति महसूस करने के लिये तथा हर समय मध्य में बने रहने के लिये उत्थान हो वास्तविक वरदान है। क्योंकि इसी के अन्दर आप शेष सब पा लेते हैं। पूर्णत्व तभी सम्भव जब आपके अन्दर पूर्ण आनन्द हिलौरें ले रहा है। आखिरकार सभी कुछ आनन्दप्रिय तथा आनन्त को महसूस करने के लिये ही तो है। यह अन्त नहीं है। यदि ऐसा होता तो धनवान, स्वस्थ तथा सफल व्यक्ति ही प्रसन्न तथा शांत होते। परन्तु ऐसा नहों है। वे बहुत दुःख उठा रहे हैं। एक प्रकार से, दिन प्रतिदिन अपना नाश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन से है। जीवन को वे सहन नहों कर सकते। सदा उदास रहने का कारण उन्हें कुछ उ कारण देखना है और इसका कारण यह है कि हमं स्वयं को दृढ़ करना है। सहजयाग को दूढ़ करना आवश्यक है। अपने को दुढ़ करने के लिये पहला कार्य है अन्तर्दर्शन। अन्तर्दंर्शन आपके लिये है। प्रकाश का अन्तस में प्रतिबिम्बित करके स्वयं देखना ही अन्तर्दर्शन है। सहजयोग में आपने अभी तक क्या किया? आप कहां हैं? किस सीमा तक आप गये हैं ? और आपको कहां तक जाना है? आपमें क्या कमी है ? स्वयं को उचित सिद्ध करने का प्रयत्न किए बिना, भूतों, बाधाओं या किसो अन्य व्यक्ति को दोष दिए बिना जब आप स्वयं को देखने लगेंगे तो आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। जब आप यह देखने लगगे कि किस दोष के कारण मैं स्वयं को दुृढ नहीं कर पाया तो, आपको हैरानी होगी, कि अभी तक बहत सी समस्याएं शेष हैं जिनका ठीक होना आवश्यक है। इन समस्याओं को हम बहुत अत्यन्त आवश्यक घृणा समझ नहीं आता। अन्तर्दर्शन अतः ये सब वरदान, ये परिवर्तन जो आपको प्राप्त होते हैं, अकर्मण्य है। आप जानते हैं। और अकर्मण्य हृदय को सभी नये क्षेत्र जो आपके लिये खुलते हैं ये आपके हित के लिये हैं प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं पर इन सारे वर्षों में मैं कार्य और केवल उत्थान में ही आपका हित है। शेष सभी कुछ व्यर्थ करती रही हूं। हर वर्ष जो समय मैं दे सकी वह मैने सहजयोगियों, है। एक बार जब आप समझ जायेंगे कि जीवन में आपने यही उनको समस्याओं तथा सहजयोग के लिये दिया। उनकी पाना है और इसी का आनन्द लेना है तो कार्य हो जाएगा। परन्तु सहजयोग में करुणा तथा प्रेम ही महत्पूर्ण है। इसमें या अप्रत्यक्ष रुप में आप सब आशीर्वादित हुए। आप लोग, जो अधिक बन्धन नहीं हैं। अपने विकास के लिये आप स्वतंत्र हैं। योगी हैं, अब भी आपकी क्या अवस्था है? आप सन्त हैं। मेरे आपकी आत्मा ही आपका मार्गदर्शन करती है। हर समय कोई पास एक फोटो है जिसे आप सब देखें-इसमें आप सब प्रमाणित न तो आपको विवश करेगा और न आपकी गलतियां निकालेगा। सन्त हैं। (योगी हंसते हैं) क्या आपने वह फोटो देखा है? अभी आपको ही स्वयं को देखना है, समझना है तथा इसे पाना है। एक मापदंड यह होना चाहिए कि मैंने सहजयोग के लिये पादरी या पोप द्वारा प्रमाणित नहीं। पोप द्वारा प्रमाणित किया क्या किया है? मैने श्री माता जी के लिये क्या किया है ? ये दोनों जाना नकली होता है। परन्तु यह तो बहुत बड़ी बात है। आप बाते समझना अत्यन्त आवश्यक हैं। सहजयोग के लिये किया गया लोगों को तो सर्वशक्तिमान परमात्मा ने प्रमाण दिया है। पर अभी छोटे से छोटा कार्य भी महत्वपूर्ण है। यदि आप में विवेक है तो तक आप अपने कार्यों में व्यस्त हैं, अपनी छोटी-छोटी चीजों आप समझ सकते हैं कि परमात्मा के लिये कार्य करना ही में व्यस्त हैं। आप अभी तक अपने तूच्छ जोवन तथा परिवारों महानतम कार्य है। यही सबसे महत्वपूर्ण तथा सर्वोच्च उद्यम है में व्यस्त हैं। उदार चरित्राणां वसुधाएव कुटुम्बकम् उदार चरित्र जिसके करने का अवसर मानव को प्राप्त हआ है। कितना महान व्यक्तियों के लिये पूरा विश्व ही उनका परिवार होता है। क्या अभी अवसर है। आप कह सकते हैं कि श्री माता जी हम मध्यम दर्जे तक आप अपने ही परिवार के बारे में चिंतित हैं? तो अभी तक के हैं, किसी काम के नहीं- आपको चुना गया है। अतः आपमें कुछ विशेषता तो होगी ही। आपने अपना वह गुण नहीं अपने बच्चे, अपने घर के विषय में चिंतित नहीं होता, वह पूरे देखा होगा जो परमात्मा के इस महान कार्य को करेगा। अतः विश्व की चिंता करता है। आपको पता लगाना है कि "मुझे सहजयोग के लिये क्यों चुना गया है?" में सहजयोग में क्या कर सकता हूं? आपको सदा याद रखना है कि मुझे सहजयोग के लिये चुना गया है। मैं सहजयोग अच्छी तरह जानते हैं। आपका बुद्धिवादी या राजनीतिज्ञ होना का पूरा लाभ उठाना चाहता हू। किसी के पास यदि धन नहीं आवश्यक नहीं। परन्तु विश्व को परेशान करने वाली समस्याओं है तो वह आशा करता है कि सहजयोग उसे धन दे, नौकरी बच्चे, का ज्ञान आपको होना आवश्यक है। संत होने की अपनी मस्ती स्वास्थ्य आदि सभी कुछ दे। आशाएं तो ठीक हैं। पर आपने में आपको नहीं खो जाना है। ऐसा नहीं होना चाहिए। आपको सहजयोग के लिये क्या किया ? अन्तर्दर्शन का यह दूसरा विषय समझना है कि आपने इसी विश्व में रहना है। विश्व की सारी है। यह देखना कि हमें सहजयोग के लिये कुछ कार्य करना है, ही नहीं, पूरे विश्व की समस्याओं की चिंता आपने करनी है। अति महत्वपूर्ण है। धन, कार्य, विचार तथा किसी प्रकार की आपको विचारना है कि विश्व में क्या हो रहा है और विश्व की सहायता महत्वपूर्ण नहीं। हमने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? यह महत्वपूर्ण बात है। आपको हिसाब रखना है कि कितने लोगों को आपने आत्म साक्षात्कार दिया तथा कितने लोगों जी इस समस्या का समाधान कोजिए। व्यक्तिगत तथा सामूहिक से सहजयोग के विषय में बातचीत की। आप सोच सकते हैं कि रुप से आपको अपना चित्त स्वयं से और अपने क्षुद्र जीवन से आपने कुछ लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया। वे आते हैं और हटा कर इस विशाल लक्ष्य की ओर लाना है। तब आप संत हैं। फिर गायब हो जाते हैं। कोई बात नहीं। आखिरकार वे आपके आपका कर्तव्य है कि इन समस्याओं के समाधान के लिये पास आएंगे। आज आप कुछ लोगों पर आजमाइए। वे गायब हो परमात्मा की सहायता मांगें। इसी कार्य के लिये आपको चुना गया जायेंगे। पर कल फिर लौट आएंगे । निरन्तर आपको इसके लिये है। आपकी इच्छा पूर्ण होगी । आप जानते हैं कि मैं तो इच्छा विहीन कार्य करना होगा। आप जानते हैं कि मैं इंग्लैंड में बहुत परिश्रम करती हूं। मेरा वह पूर्ण होगी। माँ की सुरक्षा, प्रेम तथा करुणा आपके साथ है। इंग्लैण्ड आना पूर्व निश्चित था। हृदय को और अच्छी तरह कार्य परन्तु आपको इस विश्व की चिंता करनी होगी। सीमित क्षेत्र में, योग्य बनाने के लिये मेरा यहां आना आवश्यक था। परन्तु हृदय सीमित ढंग से नहीं जीना होगा। अब जैसे इंग्लैण्ड के लोग सोचते छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न किया प्रत्यक्ष तक नहीं? आप सब परमात्मा द्वारा प्रमाणित सन्त हैं, किसी आप अपने साधुत्व को नहीं समझ सके। संत कभी अपनी पत्नी, परन्तु सहजयोगी होने के नाते अब आप शक्तिशाली हस्तियां हैं। आप बहुत शक्तिशाली लोग हैं। पूरे विश्व में समस्याएं हैं आप समस्याओं को आपने जानना है। केवल अपनी समस्याओं की क्या समस्याएं हैं? यह आपकी जिम्मेदारी है। मात्र इतना ही नहीं, आपको प्रार्थना करनी है कि श्री माता क्षु्र हूं। आप ही को यह इच्छा करनी है। जो भी इच्छा आप करेंगे चेतन्य लहरी 4. हैं कि उनकी समस्याएं बरतानिया तक ही सीमित हैं। नहीं, जहां प्रकार सहजयोग ने आपको योग्य तथा भला बनाया है। क्या आप तक सहजयोग है वहां तक आपकी समस्याएं हैं। और आपको पूर्णतया धर्मपरायण हैं? क्या आपका आचरण उचित है? क्या उन सब की चिंता करनी होगी आस्ट्रेलिया में भी वैसी ही समस्याएं हैं। कोई व्यक्ति कष्टदायो है। आपको चाहिये कि लोग यह सब कर सकते हैं। आप में विशेष शक्तियां हैं तथा जूता-पिटाई करके उस व्यक्ति को ठीक कर दें । अगुआ ने आध्यात्मिक जोवन से आपके विशेष सम्बन्ध हैं यदि आप अन्य बताना है कि किस की जूता -पिटाई करनी है। आस्ट्रेलिया में सांसारिक मूर्ख लोगों की तरह स्वयं को परिवार, बच्चों, हो, अमेरिका में या भारत में, मैं सब ठीक करुंगी। जहां कहों भी आप सहजयोग पर कोई समस्या या आक्रमण देखें तो सामूहिक रुप से इस पर चित्त डाल कर इसे ठीक करें। समस्याएं उससे कहीं अधिक हैं। आपको समझ लेना है कि श्री फिर कुछ सामान्य समस्याएं हैं। जैसे हम देख रहे हैं कि अमेरिका मूर्खता कर रहा है। आपको अमेरिका पर चित्त डालना है। मार्गदर्शन करना है। उन्होंने हमें बताया है कि हम प्रकाश हैं और आपको अपने चित्त का विस्तार बाहर की ओर करना होगा, हमें लोगों का पथ-प्रदर्शन करना है और बताना है कि वे किस अन्दर की ओर नहीं। केवल अपनी, अपने परिवार, घर तथा बच्चों की ही चिंता नहीं करनी। बाहर की ओर चित्त विस्तृत करते एक छोटे से भंवर में फंस कर गोल घूमता हुआ। यह कैसे हो ही आपकी व्यक्तिगत समस्याएं सुलझ जाती हैं। आपको बाहर चित्त डालना हैं। आजकल दूरदर्शन है। पहले हमने कहा कि दूरदर्शन मत बारे में कुछ नहीं जानते। फिर भी वे इतना कुछ कर रहे हैं। और देखिए-क्योंकि सहजयोगियों को इसका कोई लाभ न था। दूरदर्शन देखने से वे पकड़े जाते थे। परन्तु अब महत्वपूर्ण से, अपने विचारों, अपनी तुच्छ बुद्धि तथा संकीर्ण-हृदयता घटनाएं घटित हो रही हैं जिन्हें आप स्वयं देख सकते हैं। विश्व संघर्ष कर रहे हैं । की समस्याओं का आप अंदाजा लगा सकते हैं और निर्णय कर सकते हैं कि कहां आपने चित्त डालना है। एक बार आप अपने व्यक्तित्व को समझ लें। व्यक्तित्व एक देना है। आपने स्वयं देखना है कि आप किस योग्य हैं और क्या सीमित क्षेत्र में लिप्त नहीं हो सकता। आपका व्यक्तित्व पूरे ब्रह्मांड की समस्याओं में लिप्त हो जाना चाहिए। आप आश्चर्यचकित होंगे दुष्कर है। मैं कुछ नहीं कर सकता। कुछ लोग कह सकते हैं कि कि सामूहिक रुप से सभी कुछ हो सकता है। इस स्थिति में आप कहां हैं, आप स्वयं यह देख सकते हैं। इसीलिये सहजयोग में आए हैं? क्या यही कहने के लिये आपको सभी सहजयोगियों के सहस्रार पर चैतन्य लहरियां हैं। क्या आप ये सब वरदान मिले हैं? सब देखना चाहेँगे ? आओ देखें। इस फोटो में मेरे सामने बैंठे आप सभी लोगों के सिर पर लहरियां हैं। अत: अपनी लहरियों को फैलायें। अपने चित्त को फैलाएं। आप हैरान होंगे कि आपकी सभी तुच्छ समस्याएं समाप्त हो जायेंगी| आप सब यह फोटो देखें। स्थिर होना आवश्यक है। यद्यपि मैं इंग्लैण्ड में बहुत वर्ष रही हूं अतः हमें अपनी गरिमा, अपनी पदवी के प्रति चेतन होना मैं है। जानना है कि हम संत हैं और एक सर्वाच्च अवस्था पर पहुंच यहां रहती है। वे सोचते हैं कि हम हवाई-अड्डे पर चले जाएं। गए हैं। अब हम प्रकाश बन गए हैं और दूसरे लोगों को भी यह प्रकाश देना है। बाइबल में ईसा ने कहा है कि प्रकाश को मेज है। क्या आप हवाई-अड्डे गये थे? क्या आप श्री माता जो से के नीचे न रखें। दीपक को थड़े पर रखें। अन्य लोगों तक प्रकाश मिले? बस हो गया। मुझे मिलने का लाभ क्या है ? मैने आपको पहुंचाने के लिये अपने प्रकाश को सर्वोच् स्थान पर रखें। यह दोतरफा कार्य कर रहा है बशर्ते कि आप यह समझना आरंभ ने आपसे साक्षात्कार पाया है? पता लगाइए कि कितने लोगों कर देकि आप क्या हैं, आप को किस बात का ज्ञान होना चाहिए, ने आपके जीवन, विवेकशीलता तथा आपके आचरण से आपकी अवस्था क्या है, आपकी शक्तियां क्या हैं, आपने सहजयोग सौखा है ? यह तरोका है। यह मापदंड है। यह नहीं सहजयोग में क्या प्राप्त किया है, आप पर सहजयोग का क्या कि ठीक है मैने श्री माता जी को यात्रा खर्च भेजा है? भारत में ऋण है, और आपने सहजयोग के लिये क्या देना है तथा किस मेरी आयु की स्त्रियां छड़ी के सहारे चलती हैं। एक सीोढ़ो वे नहीं आप सभी आवश्यक अच्छे कार्य कर रहे हैं? केवल आप ही मूर्खतापूर्ण पूर्व-जीवन तक ही सीमित कर देंगे तो आप अपने तथा दूसरों के प्रति भटक जायेंगे। जितना आप जानते हैं. माता जी ने हमें योगो बनाया है। हम संत हैं और हमें विश्व का १ । प्रकार आगे बढ़े। हर व्यक्ति समस्याओं में फंसा हुआ लगता है, सकता है। मैने आपको बहुत बार कहा है कि इन झूठे गुरूओं को देखें। इनमें चैतन्य नहीं है। वे कुण्डलिनी तथा सहजयोग के हम क्या कर रहे हैं? हम अभी तक स्वयं से, अपनो समस्याओं यह समझना आप पर निर्भर है। अपने बारे में आपने स्वयं निर्णय करना है। अपनी इच्छा, बड़घ्पन और उदारता को बढ़ावा कर सकते हैं। यह कहना बहुत सरल है कि मां यह कार्य बहुत श्री माता जी, में अपने परिवार तथा बच्चों में व्यस्त हूं। क्या आप अतः दृढ़ीकरण करना आपके लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप इसे स्पष्ट देख सकते हैं। और इसी कारण इंग्लैण्ड में कोई जन-कार्यक्रम न कर सके क्योंकि वास्तव में हमें सहजयोग में फिर भी यहां लोग मेरी अधिक परवाह नहीं करते। क्योंकि बस। हमने सभी कठिनाइयां झेल ली हैं, हमने हज कर लिया क्या दिया है? क्या आपका मरकाश फैल रहा है? कितने लोगों न 11155 अन्तर्दर्शन वह तूफान बन जाता है। वह इतना आक्रामक तथा अशिष्ट हो जाता है कि मैं विश्वास ही नहीं कर पाती। धन किस प्रकार आपको इन बुराइयों की गर्त में धकेल सकता है? आप साधारण व्यक्ति नहों, आप ही वे सन्त हैं जिनके चरण गंगा नदी ने धोये थे अपनी गरिमा को समझने का प्रयत्न कीजिए। अपनी शक्तियों, अपने संत पद को समझने का प्रयत्न कीजिए। आप सहजयोगी सब संतां से उच्च हैं क्योंकि आप ही आत्म साक्षात्कार देना जानते हैं। कुण्डलिनी के विषय में आप सब कुछ जानते हैं। आत्म साक्षात्कार के बारे में आप सब कुछ जानते हैं। कितने लोगों को इसका ज्ञान था? नहीं तो मुझे ऐसा लगता है मानो मैने यह ज्ञान मूर्ख समूह को दे दिया है जो इसका मूल्य नहीं जानते। ईसा ने कहा है 'सूअरों के सामने मोती मत डालिए।' मेरे विचार में मैने यह गलती नहीं की। निश्चय हो मैने ऐसा नहीों किया। पर यह निर्णय चढ पातों। भारत की गर्म जलवायु के कारण। परन्तु में यात्रा कर रही हूं। आप जानते हैं कि कितनी यात्रा करती हूं और कितना काम करती हैं। अपने परिवार को मैं अपनी संगति से वंचित करती हैं। परिवार का हर सदस्य इस कमी को महसूस करता है। पर मैं यात्रा करती रहती हैं, करती रहती हूं। आप सब अच्छी तरह जानते हैं कि मैं कितना घोर परिश्रम करती हूं। कभी मैं प्रातः दो बजे सोती हूं और कभी तीन बजे। इस बार हर्ष मेरे साथ था। मैने उसे देखा। वह निढाल हो गया। आप एक छोटी दौड़ दौड़ते हैं पर मैं (मैराथन) लम्बी-दौड़ दौड़ रही हूं। जिस देश में मैं होती हं केवल वहीं के सहजयोगी कार्य करते हैं और मेरे जाते ही आराम से बैठ जाते हैं। पर मैं तो ऐसा नहीं करती। आपको भी मेरी तरह सोचना चाहिए। मैं जो कुछ भी करती हूं उससे मुझे क्या लाभ है? मैं आपके लिये कार्य करती हूं। मैं करना आप पर निर्भर करता है कि आप कहां खड़े हैं और किस अपने बच्चों को सामान्य अवस्था में ले आई हं। उन्हें परमात्मा श्रेणी में । के साम्राज्य में पहुंचा दिया है। आपको भी ऐसा ही करना है। आपको अन्य लोगों को परमात्मा के साम्राज्य में ले जाना है। मुकाबला करना आवश्यक है। अब तक लड़े गए युद्धों से यह परन्तु यदि आप अपनी ही दलदल में फंसे रहे तो दिनों-दिन कार्य कहीं कठिन है। मानव द्वारा किए गए सभी संघर्षों से यह आपका पतन होगा। यदि आपने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया कहीं कठिन है। एक भयानक विश्व की सृष्टि हो चुको है और तो आप जहां हैं वहीं भटक जाएंगे इंग्लैंड के लोग अत्यन्त हमने इसे परिवर्तित करना है यह अति कठिन कार्य है। इसके बुद्धिमान हैं। अमेरिका के लोगों की तरह आप मूर्ख नहीं हैं। एक लिये आपको अत्यन्त सच्चाई से कार्य करना होगा। मुझे विश्वास समय था जब आपकी बुद्धिमत्ता चालाकी बन गई थी। पर अब है कि एक दिन विश्व के इतिहास में सहजयोगियों का नाम सुनहरे आप इस चालाकी से परेशान हो चुके हैं। भारतीयों ने आपसे अक्षरों में लिखा जाएगा। मुझे विश्वास है कि यह घटित होगा । चालाकी सीख ली है। परन्तु चालाकी से थककर आप लोग इसे घटित होना होगा। एक मस्तिष्क तथा हृदय से, सामुहिक रूप आलसी हो गए हैं। फिर भी अपनी बुद्धि से आप समझ सकते में आपने यह प्राप्त करना है। मैं क्या बलिदान करुं? मुझे क्या हैं कि श्री माता जो कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। आपका कहा हुआ हरे शब्द और आपका हर आचरण इतिहास बन जायेगा। जो भी कुछ आप सहजयोग के लिये करेंगे पाती। अतः आज हमें अन्तर्दर्शन करना है। वह इतिहास में लिखा जायेगा। आपका हर कार्य, सहजयोग में आपको हर उपलब्धि। दिखावा या डींग मारना नहों मात्र आपकी उपलब्धियों को ही लिखा जाएगा। परमात्मा पाखण्ड को समझते करेंगे। अपना बायां हाथ मेरी ओर करके शरीर के बायें भाग हैं। वे जानते हैं कि आपकी स्थिति क्या है और आपका लक्ष्य में आप सब कार्य करेंगे। सर्वप्रथम अपने हृदय पर दायां हाथ क्या है। आप परमात्मा को बेवकूफ नहीं बना सकते। परमात्मा को बेवकूफ बनाते समय याद रखें कि आप स्वयं को, अपनी आपने अपनी आत्मा का धन्यवाद करना है कि इसने आपके आत्मा को, अपने आत्म साक्षात्कार को और अपने उत्थान को चित्त को प्रकाशमय किया है। क्योंकि आप संत हैं अतः जो बेवकृफ बना रहे हैं। अतः हमें सावधान रहना है। मां होने के नाते मैं कहूंगी कि बड़ी सावधानी पूर्वक अन्तर्दर्शन ज्योतिर्मय करना है। अत: कृपया अपने हृदय में प्रार्थना कीजिए कौजिए। आपने सहजयोग के लिये क्या किया ? अन्य सहजयोगियां के लिये क्या किया? भटकते लिये क्या किया? अन्य सहजयोगियों के साथ हमारा आचरण कैसा है? कितनी शांति, प्रेम एवं करुणा, हमने अन्य लोगों को दी है? हमने दूसरों को कितनो सूझबूझ तथा सहनशीलता दिखाई है? किसो के पास यदि थोड़ा सा अधिक धन आ जाता है तो स्पष्ट है कि कितने भयानक समय से हम गुजर रहे हैं। इससे करना चाहिए? किस प्रकार मुझे सहायता करनी चाहिए? मेरा क्या योगदान है ? काश कि मैं अपने जीवनकाल में वे दिन देख तो क्या हम ध्यान करें? कृपया आप सब अपनी आंखें बंद कर लोजिये जैसे हम जन कार्य-क्रम में करते हैं वैसे ही ध्यान रखना है। हृदय में शिव का निवास है, आत्मा का स्थान है। अतः प्रकाश आपके हृदय में हुआ है उससे आपने पूरे विश्व को कि : हुए अन्य लोगों के श्री माता जी परमात्मा के प्रति मेरे प्रेम का यह प्रकाश पूरे विश्व में फैले। अपने प्रति पूर्ण सच्चाई तथा समझदारी रखते हुए कि आप चैतन्य लहरी परमात्मा से जुड़े हुए हैं और पूर्ण आत्मविश्वास से आप जो इच्छा चरित्र में गरिमा और आचरण में उदारता हो। करेंगे वह पूरी होंगी। अब अपना दायां हाथ अपने पेट के ऊपरी हिस्से पर, ओर रखें। यह आपके धर्म का केन्द्र है। यहां आपको प्रार्थना प्रम हो। श्री माता जी मुझ में बनावटीपन न हो। करनी है कि :- श्री माता जी विश्व निर्मला धर्म पूरे विश्व में फैले। हमारे धार्मिक जीवन तथा धर्मपरायणता लागा को प्रकाश दिखाएं। अपनी धर्मपरायणता लोगों को देखने दें ताकि वे विश्व निर्मला धर्म स्वीकार करें जिसके द्वारा उन्हें ज्ञान, हितैषिता, उच्च जीवन तथा उत्थान की इच्छा प्राप्त होती है। अब अपना बायां हाथ अपने पेट के निचले हिस्से पर, बाई ओर रखें। इसे थोड़ा सा दवायें। यह आपकी शुद्ध विद्या का केन्द्र हमें प्रदान किया। अपनी ही तरह अथाह है। सहजयोगी होने के नाते यहां पर आप कहें कि :- परमात्मा की कार्यप्रणाली का पूर्ण ज्ञान हमें कोटि-कोटि प्रणाम। कृपा करके मेरे हृदय को हमारी श्री माता जी ने प्रदान किया है। हमारी इतना विशाल कीजिए कि पूरा ब्रह्माण्ड इसमें अन्य सहजयोगियों के लिये मुझमें करुणा तथा बाई परमात्मा के प्रेम तथा उसके कार्यों का गहन ज्ञान मुझे हो ताकि जब लेग मेरे पास आयें तो मैं उन्हें प्रेम तथा नम्रतापूर्वक सहजयोग के विषय में बता सकूं और यह महान ज्ञान उन्हें दे सकूं। अब अपना दायां हाथ अपने हृदय पर रखें। यहां पूर्ण हृदय से कहें श्री माता जी कि :- ा आनन्द तथा क्षमा के सागर का अनुभव आपने क्षमाशीलता आप ने हमें दी। श्री माता जी आपको समा जाये। मेरा प्रेम आपके नाम का गुंजन करे। मेरा हर श्वांस आपके प्रेम की सुन्दरता की अभिव्यक्ति करे। सूझबूझ तथा सहनशक्ति के अनुसार श्री माता जी ने हमें सारे मंत्र तथा शुद्ध विद्या दी है। हम सब को इसका पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। मैने देखा है कि यदि पति अगुआ है तो पत्नी को सहजयोग का एक शब्द भी नहीं आता। यदि पत्नी को सहजयोग का ज्ञान है तो पति इसके बारे में कुछ नहीं जानता प्रार्थना कीजिए कि- श्री माता जी मझे इस ज्ञान में निपुण कीजिए ताकि मैं लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकूं, तथा उन्हें दैवी- कानून कुण्डलिनी तथा चक्रों के विषय में समझा श्री माता जी कृपा कीजिये कि मेरा चित्त अब आप अपना दायां हाथ बाई विशुद्धि की ओर से ले जाकर गर्दन के मध्य में पीछे की ओर मध्य विशुद्धि चक्र पर रखें। पूर्ण विश्वास के साथ कहें मैं कपट तथा दोष से लिप्त नहीं हंगा। अपने दोषों को मैं छिपाऊंगा नहीं, उनका सामना करके उनसे मक्त हंगा। मैं दूसरों के दोष नहीं ढूंढूंगा। अपने सहजयोग के ज्ञान द्वारा उनहें दोषमुक्त करुंगा। (हमारे पास चुपके-चुपके दूसरों के दोष दूर करने सकूं। सांसारिक वस्तुओं की अपेक्षा सहजयोग में अधिक हो। से तरीके हैं) श्री माता जी मेरी सामुहिकता के बहुत को इतना महान बनाइये कि पूर्ण सहजयोग जाति मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरा घर तथा मेरा अब दायां हाथ पेट के ऊपरी हिस्से में, बाई ओर रखें। आंखें बंद रखें। पेट को हाथ से थोड़ा सा दबा कर रखें। यहां पर कहें कि श्री माता जी ने मुझे आत्मा प्रदान की है जो कि मेरी है। पूर्ण हृदय से कहें श्री माता जी सवस्व बन जाए। क्योंकि हम सबकी एक ही मां है अत मुझमें पूरी तरह तथा अन्त्तजात रुप से यह गुरू भाव जागृत हो जाए कि मैं पूर्ण का ही अंग प्रत्यंग हूं, मुझे पूरे विश्व की समस्याओं को जानने की तथा अपनी शुद्ध इच्छा तथा शक्ति से उनका উ मैं स्वयं का गुरू हूँ। मुझमें असंयम न हो, मेरे अन्तर्दर्शन 7. समाधान करने की चिंता हो। श्री माता जी कृपा है, जो भी तुच्छता आपको दिखाई है, किसी भी करके अपने हृदय में, अन्तर्जात रुप से पूरे विश्व प्रकार से आपको दुःख पहुंचाया है या आपको की समस्याओं को जानने तथा उनके कारणों को चुनौती दी है तो कृपा करके हमें क्षमा कर जड़ से समाप्त करने की भावना मुझे प्रदान दीजिए। कीजिए। मुझे इन समस्याओं के मूल तक पहुंचाइये ताकि मैं अपनी सहजयोग तथा सन्त चाहिए कि मैं क्या हूं। मुझे बार-बार यह बताने की आवश्यकता सुलभ शक्तियों द्वारा इन्हें दूर करने का प्रयास करुं। अब अपने बायें हाथ से आप अपने कपाल को पकड़िये। में इस प्रकार घुमाएं कि सिर की चमड़ी भी हल्की-हल्की घूमे। यहां आपको यह कहना होगा कि श्री माता जी मैं उन सब लोगों को क्षमा करता हुं जो सहजयोग में नहीं आये हैं, जो अभी परिधि-रेखा पर हैं, जो आते हैं और जाते हैं, जो कभी सहज सागर के अन्दर कूदते हैं और कभी इससे बाहर। परन्तु सर्वप्रथम मैं सारे सहजयोगियों को क्षमा 3. श्री माता जी परमात्मा के सभी आशीर्वाद हम करता हूं क्योंकि वे सब मुझसे कहीं अच्छे हैं। मैं उनके दोष खोजने की चेष्टा करता हूं पर वास्तव में आपको क्षमा मांगनी पड़ेगी। अपने विवेक से आपको जानना नहीं होनी चाहिए। अब सहस्रार पर आपको मेरा धन्यवाद करना होगा। अपना दायां हाथ सहस्रार पर रखकर सात बार घड़ीकी सुई की दिशा सात बार मरा धन्यवाद करें। कहें कि :- 1. श्री माता जी आत्म साक्षात्कार प्रदान करने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 2. श्री माता जी हमारी महानता हमें समझाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| तक लाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 4. श्री माता जी तुच्छता से उठा कर उच्च स्थिति पर लाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 5. श्री माता जी जो आश्रय आपने हमें प्रदान किया तथा आत्मोन्नति के लिये जो सहायता आपने कृपा करके हमें दी उसके लिये हम हृदय से आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि मैं उन सबसे तुच्छ हूं। मुझे सबको क्षमा करना है क्योंकि मुझे अभी बहुत दूर जाना है। में अभी बहुत तुच्छ हूं। मुझे स्वयं को सुधारना है। यह नम्रता हममें आनी चाहिए अत: आपको यहां कहना होगा कि :- श्री माता जी मेरे हृदय की सच्ची नम्रता मेरे अन्दर क्षमा- भाव उत्पन्न करे ताकि मैं वास्तविकता, परमात्मा तथा सहजयोग के प्रति नतमस्तक हो जाऊं। प्रणाम। 6. श्री माता जी हम हृदय से आभारी हैं कि आप पृथ्वी पर अवतरित हुए, मानव जन्म लिया और हम सब के उत्थान के लिये घोर परिश्रम कर रहे हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 7. श्री माता जी हमारा रोम-रोम आपका ऋणी है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| अब आप अपना दायां हाथ सिर के पीछे के भाग पर रखें। सिर को अपने हाथ पर पीछे की ओर झुका लें। यहां पर आप कहें कि श्री माता जी अभी तक आपके प्रति हमने जो भी अपराध किये हैं, हमारे मस्तिष्क में जो भी बुराई आती चैतन्य लाहरो पल्लाज अथेना पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) यूनान-1993 पहली बार जब मैं यूनान आई तो मैने अपने पति को बताया नाभि चक्र के अन्दर का टापू जहां देवी का निवास है। जब मैं कि यह देश चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण है तथा यहां बहुत सी उनके (अथेना) मंदिर गई तो मैने पाया कि वहां शिशु-देव महान आत्माएं हुई हैं। सम्भवतः लोगों ने अपनी परम्परा खो दी श्रीगणेश के लिये भी एक छोटा मंदिर था। डेल्फी में उन्होंने कहा है। फिर भी वातावरण मैं चैतन्य लहरियां हैं। एक दिन यहां कि यह पूरे ब्रह्माण्ड की नाभि है। वहां मैने श्रीगणेश की प्रतिमा सहजयोग फलना-फूलना चाहिए। पन्द्रह वर्ष पूर्व मैं डैल्फी गई और सभी देखने योग्य स्थानों को तथा समुद्र को अत्यन्त सुन्दर पाया। अब मुझे लगता है कि जाता है। नाभि के दाई ओर जिगर है तथा बहत से दार्शनिक भी। आप लोगों को चैतन्य लहिरयां आ रही हैं तथा यह स्थान बहुत विचारक होने के कारण उन्होंने बहुत सी त्रासदियों का चैतन्यित हो गया है। आप लोगों पर बहुत बड़ा दायित्व है क्योॉकि सामरिक दृष्टि गई। इनमें दो स्त्रियां और एक पुरुष या एक पुरुष और दो स्त्रयां से आपका स्थान यूनान तथा तुर्की में है। पूर्वी एवं पश्चिमी भागों हैं। विवाह से वे कभी प्रसन्न न थे। बाई नाभि पर सदा आक्रमण के मध्य आप पुल हैं। हर व्यक्ति इन दोनों क्षेत्रों को सम्भालना होता रहा। लोग बाई ओर को झुक गए तथा सोचने लगे-"ये चाहता है ताकि वे पूर्वी एवं पश्चिमो क्षेत्रों पर शासन कर सके। जीवन दयनीय है, त्रासदो है। हम क्यों स्वयं को प्रसन्न दिखाने का सबसे बड़ा भय यह है कि कहीं पाश्चात्य संस्कृति आपको हड़प न ले। ऐसा होना अत्यन्त भयानक है। आपको पता होना चाहिये स्त्रियों को अपवित्र मानता है तथा उनसे अच्छा व्यवहार नहीं देखो। आप नाभि हैं। आप पूरे विश्व को नाभि में बैठे हुए हैं। नाभि चक्र यदि खराब हो जाए तो पुरा जीवन दयनीय हो सृजन किया जिनमें कुछ सीमा तक विवाह प्रथा को चुनौती दी प्रयत्न करें?" फिर प्राच्य (आर्थोडाक्स) चर्च आया। यह भी कि भारतीयां की तरह आप भी एक महान परम्परा से आयें हैं करता। कई बार तो उन्हें चर्च जाने तथा किसी को छुने की भी जो कि युगों पुरानी है। अपने आचरण से आप यूरोप की संस्कृति आज्ञा नहीं होती। इसने स्त्रियों को अति संवेदनशील बना दिया। को सुधारने के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं। पर्यटक जब यहां आ कर यूनानियों का व्यवहार देखते हैं तो उन्हें लगता है कि वे इस प्रकार यहां बाई ओर (भावुकता) प्रधान हो गई। बहुत से गुरु यूरोप के लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। पूर्णतया पारम्परिक आये जिन्होंने आपकी दुर्दशा कर दी। यूनानी चर्च ने सबसे बुरा होने के कारण आपने जीवन में बहुत सी अच्छी चीजों को समझा किया और आपको दोष भावना ग्रस्त कर दिया। बाद में अति है। अपने देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना आपके लिये कर्मी, गहन विचारक तथा घोर परिश्रमी लोगों ने इस भावुकता अत्यन्त आवश्यक है। सहजयोगियों के लिये इस प्रकार की शिक्षा को प्रति संतुलित कर दिया। परन्तु अभी भी लोग आलसी अधिक प्राप्त करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्यींकि कल आपको अन्य हैं। लोगों को अथेना, अपनी पृष्ठभूमि और इसका सहजयोग से सम्बन्ध, मां मैरी तथा ईसा के विषय में बताना होगा। जैसे कि आप जानते हैं अथेना के हाथों में कुण्डलिनी है और ठोक करने का ज्ञान दूसरी आवश्यकता है। इस ज्ञान के बिना आप वे स्वयं आदिशक्ति हैं । संस्कृत भाषा में अथ का अर्थ है आदि लोगों का सामना नहीं कर सकते । केवल पुरुष ही नहीं, स्त्रियों (मूल)। यूनानियों तथा भारतीयों के बीच कोई सम्बन्ध न होने के को भी यह ज्ञान होना आवश्यक है। चक्र क्या हैं, वे किस प्रकार अचानक आर्थिक समस्याएं आ गई और लोग परेशान हो गए। यूनान में सहजयोग फैलाने के लिये आवश्यक है कि हम अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें। चक्रों, केन्द्रों तथा उन्हें कार्यकरते हैं और उसका परिणाम क्या है? चक्रों को यदि खतरा हैं तो हमें किस प्रकार दुःख उठाना पड़ता है। यह सारा ज्ञान आपके लिये नि:शुल्क है। आपको इस ज्ञान के लिये कुछ खर्चना कारण यह अनुवाद न हो पाया तथा लोग अर्थना का अर्थन समझ सके। भारतीय जानते हैं कि यह स्थान आदिशक्ति की अभिव्यक्ति का है। देवी महात्म्य में यूनान को मनीपुर द्वीप कहा गया है अर्थात पल्लाज अंथेना पूजा नहीं पड़ता। रोजमर्रा के जीवन में जब आप सहजयोग को करने पर आप पायेंगे कि चीजें ठोक होने लगी हैं। स्वयं में सच्चाई कार्यान्वित करने लगेंगे तो पायेंगे कि मेरी बात में कितनी तथा श्रद्धा अति आवश्यक है। आपको स्वयं पर विश्वास होना वास्तविकता है। आप इसका सत्यापन कर सकते हैं। जिस चौज चाहिए कि आप योग्य व्यक्ति हैं तथा आप अति उच्च दर्जे की में हम विश्वास करते हैं उसे प्रमाणित कर सकते हैं। हम लोगों चेतना प्राप्त कर सकते हैं जिससे बहुत से कार्य आप कर सकते को दिखा सकते हैं कि यह सत्य है। पूर्ण सत्य। हम यहां धर्मान्धता हैं। आपको देश, जाति तथा पृष्ठभूमि से कोई अंतर नहीं पड़ता। या जातिवाद आदि फैलाने के लिये नहीं हैं। हम यहां विश्व को एक सूत्र में बांधने आये हैं क्योंकि हम सब एक ही ब्रह्माण्ड से कोई आशा न थी, बहुत अच्छा कार्य हो रहा है। वे सहजयोग संम्बन्धित हैं। यदि लोग आपसे पूछे कि क्या हमें हमारा धर्म त्यागना पड़ेगा तो आपको उनके प्रति कठोर नहीं होना। धीरे - धोरे सब ठीक हो जाएगा। आप सब जब सहज में आये थे तो है यद्यपि इसी के कारण हम सहजयोग कर सकें। यहां लोग अति ऐसे ही थे। शनै-शनै आप परिपक्व हुए हैं आपने सहजयोग मूढ़ हैं। अमेरिका में मैने पाया कि लोग गुसल का सामान, पर्दे, को समझा है । इसी प्रकार सूझबूझ, करुणा और प्रेम से आप लोगों साबुन आदि खरीदने में व्यस्त हैं। रूस में लोग बहुत समझदार, को सहजयोग सिखाइए। नहीं तो प्रायः लोग सोचते हैं कि उन्हें गहन तथा अन्तदर्शी हैं, वहां के कलाकार तथा वैज्ञानिक भी। हर समय प्रताडित किया जाता है। कुछ लोग खराब भी होते हैं। ऐसे प्रजातन्त्र का क्या लाभ जो हमें परमात्मा तक न ले जाए, उनके साथ आपका चल पाना कठिन है। फिर भी आपको परमात्मा को देखने तथा उनके प्रति नम्र होने का विवेक न दे। अधिक से अधिक लोगों को अपनी करुणा, सूझबूझ तथा दूसरों लोग अत्यन्त धनाभिमुख है। प्रजातन्त्र धन चालित है। यूनानी तथा की भावनाओं के प्रति सम्मान से सहजयोग में लाना है मैने देखा इटली के लोग अत्यन्त धनाभिमुख हैं। इटली में भयंकर भ्रष्टाचार है कि अचानक ही कोई व्यक्ति आकर परेशान करने लगता है, है। अब इटली का पद्दाफाश हो रहा है। परन्तु सर्वप्रथम दुर्व्यवहार करने लगता है। यदि हमें सूचित किया जाये तो हम सहजयोगियों को दृढ़ होना होगा। उन्हें समझना चाहिए कि उसे सहजयोग से निकाल सकते हैं या ठोक कर सकते हैं। परन्तु ज्योतिर्मय आत्मा ही सहजयोग है। और आपकी आत्मा ने ही सारा आप सब इस बात को अच्छी. तरह से जान लें कि आप सबमें कार्य करना है तथा यह भी जानना है कि आप यह शरीर, धन, वे शक्तियां हैं जिनसे आप स्वयं को रोग मुक्त कर सकें और पदवी, सत्ता नहीं है। आप आत्मा हैं। आप सभी बहुत अच्छा कार्य कर सकते हैं। रूस जैसे देश में जहां को तुरन्त समझते हैं तथा स्वीकार करते हैं। उनकी सच्चाई को चुनौती नहीं दी जा सकती। इस प्रजातन्त्र ने हमें बहुत हानि पहुंचाई सुधार सकें तथा दूसरों की भी सहायता कर सकें। आप स्वयं सभी कुछ कर सकते हैं केवल आपको सच्चा तथा ईमानदार होना पड़ेगा। बिना सच्चाई और ईमानदारी के कार्य न होगा। इतना ही नहीं इसका आप पर विपरीत असर होगा। सहजयोग में सच्चाई अति महत्वपूर्ण है। आप यहां मोक्ष प्राप्ति तथा दूसरों की सहायता के लिये हैं। पूरे विश्व के लोगों को आपकी सहायता की आवश्यकता है। इतनी समस्याएं तथा आपत्तियां हैं। अब हमें दृढ़, सन्तुलित, शांत और उचित-अनुचित को समझने वाले लोगों की आपको अवश्य सामुहिकता में आना चाहिए और अपना चित्त किसी और पर न रख कर मुझ पर रखना चाहिए। अपने चित्त को आप ठीक रखें। आपका चित्त कहां है ? क्या आप अपना सिर बार-बार घुमाते हैं या अपने सिर को सीधा रखते हैं? अपने चित्त को पूर्णतया ठीक रखना अत्यन्त आवश्यक है। ध्यान रखें कि आप सामुहिकता के लिये आए हैं। इस प्रकार यदि आपका चित्त ठीक है तो आप निर्विचार समाधि को अवस्था तक उठ जायेंगे जहां आपका आध्यात्मिक उत्थान होता है। आपको निर्विचार समाधि की अवस्था तक उठना होगा। इसके बिना आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त आप समझें कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। बहुत से लोग कहेंगे कि हम इतने धार्मिक हैं, देवताओं की इतनी प्रार्थना करते हैं फिर भी हमें क्या मिला ? बिना जुड़े आप कुछ नहीं पा सकते। आपको परमात्मा से सम्बन्ध बनाना होगा एक बार ऐसा आपका आध्यात्मिक उत्थान न होगा। अतः अपने चित्त को देखना आवश्यक है। चित्त को यदि कावू कर लिया जाये तो सब ठीक हो जायेगा। सामुहिकता में होना पहली आवश्यकता है। सदा सामुहिकता को तोड़ना, समस्याएं खड़ी करना और नेताओं की अवहेलना चैतन्य लहरी 10 करना कुछ लोगों का दुर्भाग्यपूर्ण विचार है। परिणामतः परेशान सकता है। इसके लिये आपको स्वयं को देखना होगा तथा हो कर नेता भी त्याग देते हैं। ऐसे लोग सदा नेता के लिये समस्याएं अन्तर्दर्शन करना होगा। शीशे के सामने खड़े होकर पूछे कि खड़ी करते हैं और हर जगह अपना महत्व दिखाने का प्रयत्न आपमें कितना अहं है और उस पर हंसें। एक बार व्यर्थ मान करते हैं जैसे वे सब कुछ जानते हों। ऐसे लोग गुट बनाते हैं अतः कर जब आप अपने अहं पर हंसने लगंगे तो आपका अहं छूट उनसे सावधान रहना चाहिए। सदा सामुहिकता के साथ रहें। गुट जाएगा। अपने बारे में जानने के वहुत से तरीके हैं बंधन लेकर बनाने तथा कठिनाइयां उत्पन्न करने वाले लोगों का साथ न दें। समझ लें कि सामूहिकता में रहने वालों का ही उत्थान होगा। यह से चक्र पकड़ रहे हैं। इन्हें ठीक करना भी आप जानते हैं। कई नाखून की तरह है। एक बार यदि ऊंगली से अलग हो जाये तो बार आपके चक्र यदि पकड रहे हों तो अपने अंदर आपको बढ़ नहीं सकता। नेता से आपको यदि कठिनाई है तो आप मुझे इनका पता चलता है। दूसरों के विषय में केवल चक्रों पर ही लिख सकते हैं या बता सकते हैं। मैं इसे ठीक कर दूंगी। सदा बात करें। ये न कहें कि वह भूत - बाधा ग्रस्त है या उसमें अहं नकारात्मक लोगों से सावधान रहिए। सदा सामुहिकता का साथ है। आप कह सकते हैं कि उसकी आज्ञा पकड़ रही है। अर्थात दोजिए, सहायता कीजिए और इसका पोषण कीजिए। आप यहां उसमें अहं है। अब आपको भाषा बदलनी चाहिए। हमें सहजयोग अपने आध्यात्मिक विकास के लिये हैं, मुर्ख लोगों को सुनने के की भाषा में बात करनी है। समझना आवश्यक है कि हम लिये नहीं। अपने विकास तथा पोषण में लगे राहना ही ठीक है। सहजयोगी हैं। हमारे पास शक्तियां हैं-चैतन्य लहरियों की सामुहिक होने के साथ-साथ सहजयोग व्यक्तिगत भी है। स्वयं देखिये कि सामुहिकता से आपको क्या लाभ हो रहा है। घर पर प्रतिदिन सोने से पूर्व अवश्य ध्यान करें। पानी में बैठने हों तो आपके बंधन देने से बन जाते हैं। यह समझना अत्यन्त के बाद दस मिनट ध्यान के लिये बैठें। स्वयं को पंद्रह मिनट देने आवश्यक है कि आप सहजयोगी हैं और बहुत कार्य कर सकते के बाद सोयें। किसी रात यदि ध्यान न हो पाए तो कोई बात नहीं, हैं। अब आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं। आप संत हैं और बहुत पर रोज रात को ध्यान करने का प्रयत्न करें। यह अत्यन्त कुछ कर सकते हैं। यह सब जब कार्यान्वित होगा तो आप स्वयं आवश्यक है। मैं सुगमता से समझ लेती हूं कि कौन व्यक्ति ध्यान करता है और कौन नहीं करता। प्रतिदिन ध्यान करने वाले व्यक्ति के स्वस्थ, शक्ल तथा आचरण से मुझे पता चल जाता है। ध्यान हैं। बच्चों से भी आप कहें कि आप सहजयोगी हैं ताकि वे भी न करने वाले स्वयं तो हास्यजनक होते हैं हीं, उनके बच्चे तथा सहजयोगी की तरह गरिमामय व्यवहार करें। नये युग (सत्य युग) सम्बन्धी भी वैसे ही होते हैं। ध्यान आपका आवश्यक अंश है। का आरंभ हो गया है। अब असत्य का पर्दाफाश होने लगेगा। सभी जो गर्भवती स्त्रियां ध्यान नहीं करतीं उनके बच्चे अत्यन्त झूठे लोग अनावृत हो जायेंगे और आपको ही यह सब करना दुःखदायी निकलते हैं। इसका प्रभाव हर चीज पर पड़ता है। है। ऐसे महान समय पर आपने जन्म लिया है । आपका सहजयोग आपका ध्यानमय तथा सहजयोग चरित्र सबका सहायक होता में आना तथा साक्षात्कार पा लेना बहुत बड़ी बात है। अब आप है। आपके बच्चे, परिवार, समाज तथा हर व्यक्ति समझ जाता ही लोगों ने पूरे ब्रह्माण्ड को एक उच्च चेतना के स्तर तक ले है आप कैसा परिवार हैं, कैसे लोग हैं तथा कैसे व्यक्तित्व हैं। जाना है। हम नहीं कह सकते कि कितने लोग बच पाएंगे। विकास आप ही को देखकर वे सहजयोग अपनाते हैं। व्यक्तिगत जीवन प्रक्रिया में भी हम वनमानुषों से विकसित हुए हैं। बहुत से बीच में भी समर्पण आवश्यक है। आपको निर्विचार समाधि की ही में रह गए और कुछ अभी तक भी वनमानुष हैं। इसी प्रकार अवस्था तक आना होगा। इसका मंत्र है 'निर्विचारिता', उपयोग अपनी मूर्खतापूर्ण तथा आत्मघाती आदतों के कारण बहुत से करें। निर्विचार समाधि का समय बढ़ाते चले जाएं। ज्यों-ज्यों आपको अधिक शक्तियां मिलती जाएंगी और दायित्व है। कभी न सोचें कि मैं मध्यम दर्जे का हूं या बेकार हूं। आप द्वारा साक्षात्कार पायें तथा रोगमुक्त हुए लोगों की संख्या इस प्रकार कभी न सोचें। आप सब संत हैं तथा आप में महान बढ़ती चली जाएगी तो इसका प्रभाव आपके अहं पर भी पड़ कार्य करने की क्षमता है। अपने हाथ फोटो की ओर करें।तुरन्त आप जान जाएंगे कि कौन शक्तियां यदि आप इनका उपयोग नहीं करते तो क्या होगा। हमें इनका उपयोग करना है। छोटे-छोटे काम भी यदि न बन रहे पर आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि कैसे आपने यह सब पा लिया। हर समय याद रखें कि आप क्या हैं। आप एक सहजयोगी मनुष्य भी इस विकास प्रक्रिया में खो जाएंगे । आप पर महान पल्लाज अधेना पूजा 11 ईस्टर पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) मैगलानो, इटली, 11 अप्रैल, 1993 आज हम सब लोग इस सुन्दर पर्वत की चोटी पर ईसा का पुनर्जीवन मनाने के लिये एकत्र हुए हैं। पुनर्जीवन को इस घटना को समझना सहजयेगियों के लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इस घटना के द्वारा ईसा ने दर्शाया कि आत्मा अमर है। वे ओंकार थे। वे मिलता सुक्ष्मता से यदि आप देखें तो यह अति पीड़ाकारक है कि लोग इन महान अवतरणों के नाम पर इतने जघन्य कर्म कर रहे हैं। उन्हें परमात्मा का भय ही नहीं। परमात्मा के नाम पर पूरे विश्व में पाप किए जा रहे हैं। यहां कैथोलिक चर्च का पंर्दाफाश हुआ है। लोग देख रहे हैं कि जगह -जगह झूठ का अनावरण हो रहा है। पर इस झूट का उपयोग परमात्मा, अध्यात्मिकता और सौंदर्य के नाम पर हुआ है। झूठ छिपाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है। अत्याचार, हिंसा, भद्दापन इस प्रकार छा गया है कि इन लोगों में धार्मिकता का नामोनिशान भी आप नहीं पा सकते। सभी चोरों, बदमाशों तथा कुचक्रियों ने सत्ता सम्भाल ली है। ही लोगोस थे तथा आत्मा भी थे। इसी कारण वे जल पर चल सके। अभी एक फिल्म बनाई गई है जिसमें मूलाधार को दिखाया है। मूलाधार में कार्बन के कण दिखाई पड़ते हैं। इसे जब आप दायें से बायें देखते हैं तो पूरा स्वास्तिक दिखाई पड़ता है तथा बायें से देखने पर ऑकार। इसको नीचे से ऊपर देखने पर आपको अल्फा और ओमेगा दिखाई देते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि जब ईसा ने कहा कि मैं ही अल्फा हूं और मैं ही ओमेगा हूं तो इसका कारण, जैसे कि सभी धर्म-ग्रन्थों में लिखा है, आत्मा की खोज न करना है बार बार ईसा ने कहा है कि "स्वयं को पहचानो।" उन्होंने यह भी कहा कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा। इसका अर्थ यह था कि वे ही श्रीगणेश के अवतरण थे। अब हमारे पास वैज्ञानिक प्रमाण हैं और अब हम लोगों को बता सकते हैं कि यह सच्चाई है। हमारे उत्थान के लिये वे अत्यन्त महत्वपूर्ण अवतरण थे। यदि ये लोग एक दम प्रमाणपत्र ले लेते हैं कि मेरा पुनर्जन्म हो गया वे स्वयं पुनर्जीवित न हुए होते तो हमें उत्थान प्राप्ति न हो पाती। है तथा इस प्रमाणपत्र का दुरुपयोग करने लगते हैं। वे नहीं जानते ईसा का पुनर्जीवन आपके जीवन से प्रत्यक्ष है। पहले आप क्या कि इसका उन्हें क्या लाभ हुआ। ज्यादा से ज्यादा वे कुछ धन थे और आज क्या हैं? कितना परिवर्तन है, कितना अन्तर है कमा लेते हैं या कुछ सतही शक्तियां पा लेते हैं। पर इससे कुछ नहीं हुआ। ध्यान से यदि उन्हें देखें तो उनके पागलपन पर दया आती है। ईसा तथा अन्य महान अवतरणों के नाम पर वे घिनौने तथा कितनी कायापलट है। उनके बलिदान (क्रूस रोपण) और सुन्दर पुनर्जीवन ने हम सबके लिये यह परिवर्तित अवस्था प्राप्त करने का मार्ग बनाया है। पर यह अवस्था मानव के लिये भिन्न है तथा ईसा के लिये भिन्न। ईसा स्वयं पवित्रता तथा विशुद्धता थे। कार्य कर रहे हैं। सहजयोग में आपने अपना कायाकल्प कर लिया है। मैं कहुंगी कि आपकी कुण्डलिनी ने कार्य कर दिया है। पर अभी भी आपमें तथा ईसा में अन्तर है। आप एक ऐसे वातावरण, जीवन उनका पुनर्जीवन मात्र शारीरिक घटना थी क्योंकि उन्हें कायापलट की कोई आवश्यकता न थी। उन्हें शुद्धिकरण नहीं करना पड़ा। मृत्यु से उनका पुनर्जीवित होना इस बात का प्रतीक शैली तथा विचारों से आये हैं जो घातक हैं। आप देखें कि सभी है कि मानव का अध्यात्मिक विहीन जीवन मृत्यु सम है क्योंकि कुछ आपके विनाश के लिये था। अब जब आप इससे मुक्त हो मानव पूर्णत्व, वास्तविकता तथा पूर्ण सत्य को समझे बिना ही रहे हैं फिर भी इनकी पकड़न है। अब भी आप इनसे प्रभावित सभी कुछ करता रहता है। उसका हर कर्म अनन्तोगत्वा उसे हो जाते हैं। ऊंचाई की ओर बढ़ते हुए भी अचानक आप पाते विनाश की ओर ले जाता है। यहां तक कि इन अवतरणों द्वारा हैं कि आपको किसी हास्यास्पद अवस्था किसी लज्जाजनक चलाये गये धर्म भी पतनोन्मुख हैं। इन अवतरणों के प्रतिनिधि स्थिति में घसीट लिया गया है। निसन्देह आपको कई बार स्वयं कहलवाने वाले लोगों में भी हमें धार्मिकता का नामोनिशान नहीं पर हैरानी होती है। कभी आप यह सब स्वीकर कर लेते हैं। चैतन्य लहरों 12 न करके आप अपना जावन ब्बाद कर रहे हैं। आपको चाहिए कि उस व्यक्ति को धन्यवाद दें। शीशे में देखकर यदि आपको लगे कि आपके चेहरे पर कुछ गड़बड़ है तो आप तुरन्त उसे ठीक करते हैं। इसी प्रकार यदि कोई आपके चक्र के बारे में बता साक्षात्कार प्राप्त एक सहजयोगी के लिये आवश्यक है कि वह अत्यन्त अन्तर्दर्शी हो। टूरसरों के दौष देखने के स्थान पर वह अपने दोष देखे। आपको पता होना चाहिए कि आध्यात्मिकता में आप कहां तक जा रहे हैं। ईसा को तो यह सब करने की आवश्यकता न थो। उन्हें तो अन्तर्दर्शन की भी आवश्यकता न थो। वे तो भ्रष्टाचार से परे थे। मृत्यु और फिर पुनर्जीवन तो उनके लिये शारीरिक परिवर्तन मात्र था। वे मरे और पुनरर्जावित हो गए। पर हमारे लिये यह बिल्कुल भिन्न है। अब हम सहजयोगी हैं परन्तु पहले हम साधारण मानव थे और हमारे अन्दर प्रकाश न था। अब हममें प्रकाश आ गया है। तो हमें क्या बनना है ? हमें प्रकाश बनना है। ईसा को ऐसा नहीं बनना पड़ा। हमें प्रकाश बनना होगा। अब आपने सावधान रहना होगा कि कहीं उस प्रकाश में बाधा न आ जाए। कभी ये कम न होजाए या कहीं ये दोप बुझ दे तो आपको होना चाहिए। कृतज्ञ दो नेताओं को परस्पर कभी झगड़ूना नहीं चाहिए। दो आंखें, दो हाथ, दा टांगे की लड़ती नहीं। पर दो नेताओं के बीच सदा ो नता आप में बहस कर रहे थे। मैने देखा कि उनमें से एक पृर्णतया पकड़ा हुआ था। मैने कहा "अपने हाथ मेरी ओर कोजिए।" उसे पालन होने लगी। उसने महसूस किया कि सह अति क्रोधो तथा अहंकारी है और उसे इस प्रकार व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मेर कहने का बह बुरां भी मान कि एक सहजयोगी आया हित में क्या है। उसकी अच्छाई किस भर प था कि "श्री माता जी, आपके ेइसे अपने अंदर छिपाए समस्या होती है। क नामा सकता था पर ने है और जान बात में है। व कारण मेरा दोष पक हुए था।" हमारी समस्या बह ै कि हमने अपने अंदर काफी विकास कार लिया है और उका दुढोकरण भी कर लिया है। हमारे पास महान सामूहिका शक्ति भी है जिसे मैं हर देश में देख सकती हूं। अपने जीवनकाल में ही हम यह सारे महान सत्य संस्थापित (प्रमाणित) कर सकते हैं। पर एक बात पर व्यक्ति को अत्यधिक विश्वरत नहीं होता चाहिए कि आप पूर्णतया अंतिम सत्य तक पहुंच गए हैं। इस मामले में आपको बहुत सावधान रहना है) मैने देखा है कि सहजयोग में लोग बहुत ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं पर अचानक उनका पतन हो जाता है। इससे मैं बहुत खिन्न हो जाती हूं। कारण यह है कि उनमें विश्वास नहीं है, अपने पर तथा सहजयोग पर। आपको अपने पर तथा सहजयोग पर विश्वास करना होगा। सहज का अर्थ है कि दैवी-शक्ति है और यह सर्वव्यापक दैवी शक्ति हम सबकी देखभाल कर रही है। अब न जाए। इस प्रकाश के साथ चलना पहलो आवश्यकता है। यदि प्रकाश में गड़बड़ है तो आप अभी प्रकाश नहीं है। आपको प्रकाश बनना है। जब आप प्रकाश बन जायेंगे तो देख सकेंगे कि आपका मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है। कौन से विचार ीं त यह देता है तथा उत्थान के समय आपके मस्तिष्क को क्या प्रभावित करता है। क्या ये चिंता है या आपको जिम्मेदारियां? या ये आपकी बुरी आदतें हैं? अध्यात्मिक व्यक्तित्व के आपके विकास में एक बाधा है। अतः हर क्षण आपने अपनी रक्षा करनी है और देखना है कि किस प्रकार आप उन्नति कर रहे हैं। यह अति सुन्दर यात्रा है। निसंदेह यह सत्य है कि आप साक्षात्कारी आत्माएं हैं। मूलतः आप आत्म साक्षात्कारी न थे। अब आप एक विकसित अवस्था में हैं। अब कमी हमारा यह विचार है हम पूर्णतया ठीक हैं और हमें कुछ भी हानि नहीं पहुंचा सकता। ऐसा अहंकार पूर्ण विचार यदि आपमें आ गया तो इससे आपको कोई लाभ न होगा। आपको हर समय अन्तर्दर्शन करना है, 'ध्यान' इसी के लिये है। स्वयं देखिये कि किस प्रकार आप अपने आध्यात्मिक उत्थान को आगे इसका अनुभव हो गया है। पर सब जान कर भी आपके अंदर । बढ़ा रहे हैं। काई अन्य यह कार्य नहीं कर सकता। यह आपका व्यक्तिगत कार्य है। पर ज्योंही आप सामूहिकता में जाएंगे तो सहजयोगी जान लेंगे कि आपके कौन से चक्र पकड़रहे हैं। चाहे वे कुछ न कहें फिर भी वे जान अवश्य जायेंगे। परन्तु वे अपनी पकड़ को न जान पाएंगे। यदि कोई आपसे कह दे कि आपका यह चक्र पकड़ रहा है तो बुरा न मानें क्योंकि उस चक्र को ठीक दृढ़ श्रद्धा नहीं है। अन्ध श्रद्धा से आप गलतियां कर सकते हैं परन्तु प्रकाशित मस्तिष्क से यदि आपमें श्रद्धा आ जाए तो आप अत्यन्त शक्तिशाली बन जाते हैं। आपका विश्वास यदि प्रकाशित हो तो कोई समस्या नहीं रहतो। आपने देखा होगा कि सहजयोग में जो लोग नियमित तथा ईमानदार हैं वे बहुत अमूल्य हैं। वे चट्टान ईस्टर पूजा 13. की तरह दृढ़ हैं, किन्तु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी तक होना चाहिए। विश्वास आपको अत्यन्त दृढ़ तथा हजारों लोगों को सांसारिक बातों में उलझे जो यह जानते हैं कि उन्हें कुछ भी परेशान नहीं कर सकता। जहां तक ईसा का प्रश्न है उन्हें हर चीज का ज्ञान था और इसके अन्तस में तथा सहजयोग में स्थापित हो सकते है। यह हुआ है बारे में वे विश्वस्त थे। कभी क्षीण नहीं होते थे। कभी सन्देह नहीं और आप सबके साथ भी घटित होना चाहिए। आप सबको स्वयं करते थे। वे जानते थे कि वे परमात्मा के बेटे हैं। इसको उन्होंने को तथा अपनी आत्मा को जानने का अवसर मिलना चाहिए। कभी चुनौती नहीं दी । श्रृद्धा के मामले में सहजयोगियों तथा अन्य व्यक्ति का स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। मैने देखा है कि बहत लोगों को ईसा की तरह बनना होगा। श्रद्धा को समझा जाना से सहजयोगी आ कर कहते हैं कि "श्री माताजी मुझमें कोई गुण चाहिए। यह ज्योत्तिमय श्रद्धा है। ईसा ने इसलिये दुःख उठाये तथा नहीं, मैं बैकार हूं। मैं कोई काम नहीं करता।" यह ठोक है पर क्रूसा रोपित हुए क्योंकि वे जानते थे कि यह सब एक नाटक है क्रूसारोपण में कोई गंभोर बात नहीं क्योंकि वे स्वयं. को हो जाएगा। केवल आपके सोचने तथा चित्त देने से भी कार्य हो पुनर्जीवित करने वाले थे लोगों को उन्होंने मजाक उड़ाते हुए जाएगा क्योंकि यह सर्वव्यापक शक्ति ही वास्तविक शक्ति है। देखा। अपने हृदय में वे जानते थे कि उनका मजाक करने वाले बाकी सारी शक्तियां व्यर्थ हैं। यह इतनी कार्यकुशल तथा लोग कुछ भी नहीं जानते। अपने पर तथा सर्वव्यापक शक्ति पर करुणामय है कि एक क्षण से भी कम समय में यह कार्य कर श्रद्धा तथा विश्वास के तो वह अवतरण थे। परन्तु ऐसा बनने के सकती है। उस दिन एक आस्ट्रेलियन को किसी ने धोखे से कुछ लिये पूर्ण विश्वास आवश्यक है। जिस व्यक्ति पर मुझे विश्वास जमीन तथा घर बहुत महंगे दामों पर लेने को मजबूर कर दिया। होगा उसी को तो मैं सारा काम दूंगी तथा उसी पर भरोसा करुंगी उसके पास धन न था। उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं जितने ऐसे हो व्यक्ति को चाबियां तथा धन दूंगी और उस पर कभी संदेह पैसे आपके पास हैं दे दो, बाको बाद में दे देना। विश्वास करके भी नहों करुंगी। इसी प्रकार यदि आपको स्वयं पर तथा उसने अपना सारा धन बयाने के रुप में दे दिया। अब बेचारा बहुत सहजयोग, जिसमें आप स्थापित हैं, पर विश्वास है तो आप हैरान परेशान हुआ कि यदि उसने बाकी का ॠण न चुकाया तो उसे हॉंगे कि किस प्रकार कार्य हॉंगे, किस प्रकार आपके जीवन में जेल जाना पड़ेगा। समझ न पा रहा था कि किस प्रकार झंझट सुधार होंगे और आपका आधार चट्टान की तरह दृढ़ हो जाएगा। से छुटकारा पाये उसके पास कोई सहजयोगी गया और कहा आप ऐसा ही महसूस करेंगे। आपको संदेह, समस्याएं तथा रोग कि स्वयं पर विश्वास रखो। किसी अन्य व्यक्ति ने कहीं बड़ी रकम हुए हैं। दृढ़ - विश्वास वाले लोग भी हैं पुनर्जीवन देने योग्य बनाता है। हमें समझ लेना चाहिये कि हमारी अपनी स्थिरता, सूझबूझ तथा अवलोकन द्वारा ही हम अपने जो भी आप चाहते हैं वो मांगिए। आप न भी मांगे तो भी यह में वह जमीन उससे मांग ली। इस प्रकार जेल जाने के स्थान पर ने होंगे। यह ऐसी अवस्था है। किस प्रकार आप यह श्रद्धा पाते हैं ? इसके लिये न कोई धनवान बन गया। इस प्रकार बहुत से चमत्कार हो जाते हैं। आत्म पाठ्यक्रम है और न कोई साहित्य। परन्तु आपके अन्दर जागृति साक्षात्कार के बाद भी विश्वास का न होना दर्शाता है कि आपका होती है जो प्रश्न करेगी कि मैं क्या हूं। मैने क्या प्राप्त किया है? व्यक्तित्व कितना दुर्बल है। हैरानी की बात है कि आत्म साक्षात्कार ये पूछेगी कि मैने क्या पाया है? सहजयोग से मुझे क्या मिला? के बाद भी लोगों में आत्म विश्वास नहीं होता। जिनमे है उन्होंने ये सभी प्रश्न आपसे पूछे जाएंगे| परन्तु यदि आपका विश्वास बहुत कुछ प्राप्त कर लिया है। हममें और ईसा मेंयह अंतर है कि प्रकाशित है तथा जिसे जोवन के बहुत से चमत्कारों ने प्रकाशमय बनाया है तो छोटी-छोटी चीजों में आपको चमत्कार दिखाई विश्वास करना पड़ता है। हमें स्वयं पर भरोसा करना पड़ता पड़ेंगे| तब आप जानेंगे कि अब आप सहजयोग में जम गए हैं। है। रोमानिया में व्हील चेयर पर एक स्त्री को मेरे पास ले आये। उदाहरणतया यदि वर्षा होने लगे तो आपमें से आधे लोग चिंतित वह चल न पाती थी। कहने लगी "मां, मैं जानती हूं कि आप हो जायँगे, परन्तु वे जान जाएंगे कि सुन्दर छत है और कुछ नहीं मुझे ठीक हो सकता। वर्षा होने दो। तब आपको विश्वास होगा कि वर्षा हमें खड़ी हो जाओ। वह खड़ी हो गई और चलने लगी। गोला नहीं कर सकतो। इस तरह हमारे अंदर यह विश्वास दृढ़ विश्वास ईसा का अंग-प्रत्यंग था। वे ही विश्वास थे पर हमें कर सकती हैं।" मैने कहा "यदि तुम्हें विश्वास है तो विश्वास हो तो सारे देवता सहायक होते हैं। उन्हें ऐसा करना चैतन्य लहरी 14 पड़ता है। आपने उस व्यक्ति में विश्वास दर्शाया है। मैने आपसे विश्वास नहीं करता क्योंकि यदि परमात्मा होता तो संसार में इतने बताया है कि सहजयोग में हम लोगों पर विश्वास करते हैं । सैकड़ों दुःख न होते। जन्मान्ध बच्चे न होते। मैने कहा"अभी आप कांग्रेस में से कोई एक धोखा देता है। कोई बात नहीं। हम विश्वास करते सरकार के राज्य में बैठे हैं। पहले परमात्मा के साम्राज्य में जाकर हैं। किसी पर जब आप विश्वास करते हैं तो यह उसके मस्तिष्क स्थापित हो जाओ और फिर बताओ कि आपको कोई समस्या में कार्य करता है। परन्तु देवताओं में आपका विश्वास तुरन्त कार्य है? आप इसका अंधेरा पक्ष क्यों देखते हैं? यदि हम कहें कि करता है। अपने विश्वास पर यदि आपका वश है तो आप किसी एक रास्ता है और समय आ सकता है जब सहजयोगियों की भी चीज को वश में कर सकते हैं। विश्वास की बात करना जाति में कोई रोग, दुख और समस्या न होगी तो क्यों न इसे देखा आयोजन करने वाली, विवेकशील, कार्यकुशल तथा प्रेममय जाए? आप एक अंधे बच्चे को होी क्यों देखते हैं ? आप यह क्यों सर्वव्यापक शक्ति को चुनौती है। तब आप विश्वास दिखाते हैं। नहीं देखते कि अंधे ठीक भी हो जाते हैं। इस प्रकार का सहजयोग में पुनर्जीवन यही है कि आपका विश्वास दृढ़ हो । तो नकारात्मक विचार सहजयोगियों में भी हो सकता है। मैने देखा आपको दृढ़ विश्वास प्राप्त करना है। तब कोई बुरा नहीं मानता है कि यदि कोई बीमार है तो उसे मेरे पास लाना चाहते हैं। किसी चाहे मैं उनसे नहीं मिलती। किसी वक्त चाहे मैं उन्हें बुला कर व्यक्ति की पत्नी ने अपने सहजयोगो भर्तीजे से कहा कि श्री माता भी वहां न मिलूं। किसी बात से वे बुरा नहीं मानते। श्री माता जी जी से प्रार्थना करो कि मेरे पति को ठीक कर दें। मूत्यु शैय्या हमसे मिलें या न मिलें कुछ हो या न हो, सभी कुछ हमारे हित पर पड़ा वह कैन्सर रोगी था। वह लड़का झुक गया और प्रार्थना के लिए है। आप रास्ता भी भूल जाएं तो आप जानते हैं कि यह की कि श्री माता जी कृपा करके मेरे चाचा को ठीक कर दीजिए। ऐसे ही होना था। ईसा के जीवन को यदि आप देखें तो उनका चाहे वह रोगी सहजयोगी नहीं है फिर भी तीसरे दिन वह हस्पताल क्रूसारोपण होना था, उन्हें क्रॉस उठाना था। ठीक है कि उन्हें यह से बाहर था। सहजयोगी की प्रार्थना पर देवताओं को कार्य करना सब करना था। उन्हें विश्वास था कि मैं यह सब कर लूंगा। कभी पड़ा। इसके लिये व्यक्ति को स्वयं पर पूर्ण विश्वास करना पड़ता उन्होंने शिकायत नहीं को। उन्होंने कभी किसी से सहायता के लिये है कि ये शक्तियां हमारे साथ हैं। क्यों न इसका उपयोग कियाजाए नहीं कहा। पर परमात्मा के विश्वास ने उन्हें अद्भूत शक्तियां दी। क्यों न पूर्ण विश्वास विकसित किया जाये कि अब हम सहजयोगी वे कुछ भी कर सकते थे। क्रूसारोपित करने वाले सभी लोगों हैं और परमात्मा के साम्राज्य में हैं तथा वह शक्ति हमारी देखभाल को वे आसानी से समाप्त कर सकते थे। पर वे जानते थे कि उन्हें करेगी। तब हममें कोई संकोच न रह जायेगा। विश्व में जहां मर्जी यह सब सहना है। वही विजेता हैं। इसी प्रकार सहजयोगी को आप चले जाएं पर आप होंगे परमात्मा के साम्राज्य में। किसी अपने जीवन की देखभाल करनी चाहिए। जीवन बहुत अमूल्य प्रकार की कोई चिंता न होगी। हम समय तथा बंधनों के दास है। कितने लोग सहजयोगी हैं? विकास प्रक्रिया में कितने लोग हैं। सब बंधन छूट जायेंगे। जब तक आप स्वयं में रहेंगे सब ठीक सहजयोगी बन पायेंगे? संसार को यदि आप देखें तो आपको रहेगा। बहुत से लोग पूछते हैं कि जहां हमने जाना है वहां गुसलखाना तथा सोने का स्थान होगा या नहीं। आप तो आत्मा का सुख खोज रहे हैं। यदि आप ठीक तरह चलते रहे तो आप कहीं भी सो सकते हैं । कुछ भी आपको बांध नहीं सकता, गिरा नहीं सकता। कोई आदत आपको परेशान नहीं कर सकती क्योंकि विश्वास आपको पूर्णतः पवित्र कर देगा। यह आपको ज्योति देगा, आपका पोषण करेगा। यह विश्वास ऐसी चीज नहीं जिसे आपके दिल या दिमाग में भर दिया जाये। यह एक अवस्था है जिसे आपने प्राप्त करना है और यह सहजयोग से प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार हमारा पुनर्जीवन पूर्ण होगा, स्थापित तथा प्रभावशाली होगा और पूरे विश्व के लिये नमूना बन जायेगा| लगता है कि इसका नाश हो जायेगा। अधिकतर लोगों के भाग्य में सहजयोग नहीं है। वे सहजयोग में आने के लिये नहीं बने हैं । आप अत्यंत भाग्यशाली हैं कि आपको साक्षात्कार और पुनर्जीवन मिला। अब इस पुनर्जीवन में विश्वास करें, आपका अस्तित्व बन गया है। इससे आपको पता लगेगा कि आप कितने मूल्यवान हैं। आफको भौतिक, शारीरिक तथा भावनात्मक लाभ को न सोचकर आध्यात्मिक लाभ को सोचना है । हमने अपनी तथा अन्य लोगों की आध्यात्मिकता के लिये क्या किया ? केवल यही बात हमने सोचनी है। और आप हैरान रह जायेंगे कि हर चीज आयोजित है, कार्यान्वित है तथा समय आने पर परिणाम दिखाती है। परमात्मा आपको धन्य करे। ॐ उस दिन एक सम्वाददाता कहने लगा कि मैं परमात्मा में ईस्टर पूजा 15 से प्रलेख मत सागर वैंकूवर-कैनेडा 24.6.93 वर्ष 1992 के अंत में रोबर्ट आइनमैन तथा माइकल वाइज किया है।" प्रलंख के कुछ अंश परमात्मा की प्रशंसा करते हैं और मर्यादाओं "हमारे लिये बनी सीमाओं" के बारे में कहते हैं। जो इन सीमाओं का उल्लंघन करते हैं वे वह लोग हैं जिनकी आत्मा ने धर्मपरायणता की नौंव को अस्वीकार कर दिया है। पॉल ऐसा ही आदमी था। कहीं और उसे "मिथ्याभाषी शत्रु" असत्य प्रसारक" जो "जन समूह के बीच में कायदे-कानून अस्वोकार कर देता है,""दुर्भाषी" और निन्दक" और "इस्राइल पर झूठ का जल दछिड़कने वाला विदूषक" कहा गया है। पुस्तक के लेखकों का विचार है कि " मान्य धर्म नेता" जिसने यह बहिष्करण निर्णय सुनाया वह जेम्ज था। प्रायः "न्यायकारी जेम्ज़" के नाम से पुकारा गया यह धर्म प्रचारक, येरुशलम का मुख्य पादरी (बिशॅप) और ईसा का भाई लिखित पुस्तक "द डैड़ सी स्क्रॉलज़ अनकवर्ड" नामक पुस्तक छपी इस पुस्तक में चिरकाल से दबे हुए ऐतिहासिक प्रलेखों (दुस्तावेजों) के कुछ हिस्सों के पचास उद्धरण प्रस्तुत किये गए हैं। ये प्रलेख लगभग दो हजार वर्ष पूर्व गुफाओं में रख दिये गये थे तथा वर्ष 1947 और 1952 तक ये खोजे न जा सके। वर्ष 1952 में विद्वानों की एक टोम इन प्रलेखों को एकत्र करके इस भौतिक वैभव का अर्थ लगाने के लिये नियुक्त की गई। पर विश्व में इसका प्रसार करने के स्थान पर इन्होंने इसे दबा लिया, केवल चुने हुए भाग ही छापे। कैलिफोर्निया में हन्टिंगटन पुस्तकालय ने 1991 के अंत में यह एकाधिपत्य तोड़ा। पुस्तकालय ने घोषणा की कि यह इन प्रलेखों के फोटो प्रकाशित करेगा। ये फोटो पुस्तकालय को अधिकारियों से वर्ष 1967 के छह दिन के युद्ध के समय प्राप्त का बहुत से लोगों द्वारा था। आशीर्वाद तथा अभिशाप लिप्त उल्टे सीधे तको द्वारा पॉल गलैशियन को लिखे अपने 3.11.1913 के पत्र में अपना बचाव करता है। पॉल तर्क देता है कि ईसा की शिक्षाओं के विरुद्ध प्रचार के अपराधसे वह मुक्त हो गया है क्योंकि कानून ने ईसा को अपराधी ठहराया था। पॉल मोजेज दन्त नियमों को रोमन कानूनों तथा अपने नियमों से उलझा रहा है। घर्म शास्त्र के सिद्धान्तों में पॉल लिखता है कि प्रलेखों में वर्णित वार्षिक पेन्टाकोस्टल सभा में येरुशलम पहुंचने की जल्दी हुए थे। उन्होंने दलील दो कि इस अस्थिरता के समय इन प्रलेखों को प्रकाशित करना जोखिमका कार्य है। अतःवह फोटो सुरक्षित रखने के लिये अमेरिका में ही रखे जाएं। कैथोलिक तथा यहूदी विद्वान, जिन्होंने इन प्रलेखा पर एकाधिपत्य जमा लिया था, बहुत समय तक कहते रहे कि अप्रकाशित लेखों में दिलचस्पी का कुछ भी न था। उन्होंने कहा कि इनसे ईसाई धर्म के प्रारंभिक दिनों पर कोई प्रकाश न. पड़ेगा। उन्होंने गलत कहा। एक हिस्सा जिसकी संख्या 40266 है उसे आइनमैन तथा वाइज़ ने "धर्म परायणता की नींव" शीर्षक दिया। ऐसा लगता है कि यह पॉल का ईसाई जाति से बहिष्कार था। करो। आइनमैन और वाइज कहते हैं कि " एक्ट की पैन्टाकोस्टल यह प्रलेख ईसा के अनुयाइयों को ताजपोशी के लिये तथा की तस्वीर को आश्रय व्ययवाद की उल्टी तस्वीर के रुप में देखा पेन्टाकोस्ट के समय टोरा (मोजज के कानून) से बायें या दायें जा सकता है।" अपने अंशदान को येरुशलम ले जाने के स्थान ओर चले जाने वाले लोगों को अभिशाप्त करने के लिये बनाया पर पाल का बहिष्कार उसी जाति से किया जाने वाला था जिस गया था। पर वह शासन करना चाहता था। लेखक यह लिखते हुए समाप्त करते हैं कि "आशय अंत्यन्त चौंका देने वाला और गहन है। एक बात निश्चित है : व्यक्ति को इन प्रलेखों में "पश्चिमात्य सभ्यता के लिये महत्वपूर्ण इस समय प्रलेख के कुछ हिस्से परमात्मा की प्रशंसा करते हैं।"आप हो सब कुछ हैं, आप ही के हाथ में सब कुछ है। आप हो ने लोगों को उनके परिवारों तथा राष्ट्रीय भाषाओं के अनुसार स्थापित चैतन्य लहरो 16 में, चुपके-चुपके (ऊसर में) घटित होने वाली सभी बातों की जानकारी समयकालीन किसी भी अन्य प्रलेख से कहीं अधिक उद्धारक समझा उस व्यक्ति से पॉल का कोई व्यक्तिगत परिचय न था। उसे रेगिस्तान में अर्ध-रहस्यात्मक अनुभव प्राप्त हुआ तथा देहमुक्त आवाज सुनाई दो। इस आधार पर अधिकार का झूठा प्राप्त होती है। माइकल बॉजेंट और रिचर्ड लेह द्वारा लिखित पुस्तक "दि डैड सी स्क्रोल्ड डीसैप्सशन" (कोर्गी पुस्तकों, लंदन-1991) दावा करना उसको धृष्टता है। अपने व्यक्तिगत तथा स्वभावगत धर्म विज्ञान का प्रतिपादन तथा उसे जायज ठहराने के लिये और अप्रमाणिक रुप से इसे ईसा पर थोपने के लिये उसे ईसा की शिक्षाओं को बिगाड़ कर जनता की दृष्टि में अमान्य बनाना पड़ा।" रहस्य के प्रकट होने के बावजूद भी आने वाली तीन शताब्दियों में नये आंदोलन की मुख्यधारा शनैः शनैः पॉल और उसकी शिक्षाओं में सम्मिलित हो गई। इस प्रकार जेम्ज और उसके साथियों के मरणोपरान्त भय के कारण एक पूर्णतया नये धर्म का जन्म हुआ-एक ऐसे धर्म का जिसका अपने कथित संस्थापक से कोई लेना-देना (सम्बन्ध) न था।" से दो उद्धरण नीचे दिए गये हैं। "प्रभावशाली रुप से पॉल प्रथम इसाई विधर्मी है और.. उसकी शिक्षाएं-जो कि उत्तरकालीन इसाई धर्म की नींव बन गई-मूलभूत तथा पवित्र शिक्षाओं, जिनकी प्रशंसा सारे धर्माधिकारियों ने की थी, से लज्जाजनक विचलन (दूर हटना) है। 'ईसा का भाई जेम्ज वास्तव में ईसा का सम्बन्धी था या नहीं (हालांकि हर बात से पता चलता है कि वह था), यह स्पष्ट है कि वह ईसा को व्यक्तिगत रुप से जानता था । येरुशलम के प्राचीन चर्च, पीटर सहित जाति के सारे सदस्य भी ईसा को जानते थे। ***** जब भी वे बोले तो पूर्ण अधिकार के साथ बोले। जिसे अपना (पृष्ठ 275) 17 मृत सांगर से प्रलेख जन कार्यक्रम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन स्काउट एवं गाइड मैदान, दिल्ली-22.3.93 कास्प पे दोड़ते रहते हैं। आज ये विचार आया। कल ये विचार आया तो परसों ये विचार आया। लेकिन जब कुण्डलिनी आपकी चढ़ती है तो क्या होता है कि विचार कुछ लम्बा हो जाता है। इन दोनों विचारों के बीच में जो स्थान है उसे विलम्ब कहते हैं। इस विलम्ब स्थिति में आप आ जाते हैं और विलम्ब की स्थिति जो बहत संकीर्ण होती है वो बढ जातो है। ये ही वतंमान है। इसलिये आप निर्विचार हो जाते हैं लेकिन समाधि माने पूरी तरह से सतर्क है, बेसुध अवस्था में नहीं जाते। आप सुप्ता अवस्था में नहीं जाते। जरुरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं। लेकिन कोई विचार आपके अंदर नहीं आता। बस सब चीज देखना मात्र बनता है। इसे साक्षी स्वरुप कहा गया है तो आप देखते मात्र है। उसका कोई भी असर आप पे नहीं आता। उसकी क्रिया, प्रतिक्रिया कुछ नहीं आता। आप पूरी तरह से उस चीज को देखते हैं। ये निर्विचार समाधि की पहली स्थिति है इस स्थिति को पहले बनाना होगा। अब जैसे यहां पर एक बड़ा सुन्दर सा गलीचा बिछा हुआ है। अगर मैं विचार में हूं तो मैं ये सोचती रहूंगी कि ये कितना सुन्दर है। ये कहां मिलता है। ये कितने पैसे का है कौन सी दुकान से खरीदा। ये सब विचार सर को खाएंगे। दूसरे अगर ये मेरा है तो और भी सिरदर्द, ये खराब न हो जाए। इसका बीमा कराया नहीं। अब कैसे होगा, क्या होगा। ये मानवोय दिमाग है। लेकिन दैविक शक्ति में आदमी ये सब सोचता नहीं, देखता मात्र है और देखता क्या है कि इसका सौन्दर्य क्या है। जिस कलाकार ने इसे बनाया उसने इसमें जो कुछ भी सौन्दर्य डाला, जो उसने अपने हृदय का आनन्द इस सौन्दर्य से प्रगटित किया है, उसको दिखाया है, दर्शाया है तो सारा आनन्द निर्गुण में ही आपके अन्दर उतरने लग जायेगा और ऊपर से नीचे तक आपको ठंडा करता हुआ चला जाएगा। तो इसका जो बनाना है जिसने बनाया है, इसका जिसने सृजन किया उसका भी कार्य पूर्ण हुआ और हमारे लिये भी इतनी बड़ी बात हो गई कि बगैर सोंचे-समझे हमने इसका आनन्द पूरे रुप में उठा लिया। इस प्रकार आप निर्विचार समाधि में उतर गए। ये आपको शांति प्रदान करती है। निर्विचार समाधि आपको शांति प्रदान करती है और आपको आध्यात्मिक शक्ति बढ़तो जात है। जब आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है तो आपकी सृजन शक्ति भी बढ़ जाती है। ये हमारा हुआ या नहीं हुआ इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। और बढ़ी हुई सृजन शक्ति से आप अनेक विधि सहजयोग का ज्ञान सूक्ष्मज्ञान है और सूक्ष्मज्ञान को प्राप्त करने के लिये, हमें भी सूक्ष्म होना है। ये सूक्ष्मता क्या है कि हमें आत्मा स्वरुप होना चाहिये। आत्मा से ही हम इस सूक्ष्म ज्ञान को समझ सकते हैं। क्योंकि आत्मा का अपना प्रकाश है और वो प्रकाश जब हमारे ऊपर प्रगटित होता है तो उस आत्मा के प्रकाश में ही हम इस सूक्ष्मज्ञान को जानते हैं। ये हमारे ही अन्दर की आत्मा है। ये परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे ही अन्दर आत्मा स्वरुप है और कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा शक्ति आदि शक्ति का प्रतिबिम्ब है। कुण्डलिनी साढ़े तीन वलयों में है जिन्हें कुण्डल कहते हैं इसलिये उसका नाम कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी जब उठती है तो ये साढ़े तीन कुण्डल पूरे के पूरे नहीं उठते। जैसे कि रस्सी में बहुत से धागे बंधे रहते हैं उसी प्रकार इस कुण्डलिनी में भी बहुत से धागे हैं। उनमें से कुछ धागे ऊपर उठते हैं और आपके तालू, संस्कृत में तालव्यय, का छेदन करती हुई ये कुण्डलिनी सूक्ष्म शक्ति में पहंच जाती हैं जो चराचर में फैली हुई है। जब इस सूक्ष्म शक्ति में इसका योग हो जाता है। तो आत्मा का जो पीठ है वो यहां सिर है सारे चक्रों के पीठ सब सिर में है। सारे चक्र हमारे अन्दर हैं। तो ये जो कुण्डलिनी शक्ति आपके अन्दर जो जागृत हो गई इसके ज्यादा से ज्यादा धागे ऊपर उठने चाहिएं। तो सबसे पहला अनुभव जो आपको प्राप्त होता है वह है निर्विचारिता। निर्विचार समाधि। समाधि को अंग्रेजी में केतर Awareness (बोध) भी कहते हैं। समाधि अर्थात समा-गयी बुद्धि। तो इस योग में इस नये आयाम में, इस नई धारणा में इस ब्रह्म चैतन्य में जब बुद्धि समाती है तो इसे समाधि कहते हैं लेकिन समाधि सर्वप्रथम आपको निर्विचार समाधि के रुप में प्राप्त होगी। हठात आप देखेंगे आप निर्विचार हो गए। अब जब हम विचार करते हैं तो हम या तो आगे का विचार करते हैं भविष्य का या तो पीछे का यानि भूत का। लेकिन आज अभी इस वक्त वर्तमान वर्तमान में हम खड़े नहीं हो सकते और जब तक हम वर्तमान है। में नहीं रहेंगे तब तक हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो नहीं सकती। क्योंकि जो पीछा (गत) था वो तो खत्म हो गया और आगे का तो अभी है हो नहीं। पता नहीं क्या है। तो वर्तमान ही असलियत है। पर इसमें बुद्धि ठहर नहीं सकती। इसमें मन ठहर नहीं सकता। तो ये विचार लहरों जैसे उठते हैं। फिर गिरते हैं। पूरे समय हम इसी आंदोलन में कूदते रहते हैं कभी इसके शिखर पे, इसके चैतन्य लहरी 18 कार्य कर सकते हैं । हठात उसमें कोई मेहनत नहीं। खुूब काम कर रहा है। इस्तेमाल करते-करते इसमें संकोर्णता Spontaneous सहज । जैसे एक साहब हैं, जो बड़े गणितज्ञ थे और उनको भाषा में कोई खास दखल नहीं था। भाषा कोई जाएगी या फिर ये टूट जाएंगे। टूटते ही आपका सम्बन्ध जो जानते नहीं थे। वो सहज में आए और कविताएं बनाने लग गए। आपके सम्पूर्णता से है, आपके मस्तिष्क से वो टूट गया। फिर हिन्दी में भी और उर्दू में भी, मराठी में भी, अंग्रेजी में भी कविता हो गये आप अलग।एकाकी हो गए। इसे कहते हैं Melignant करने लगे। तो ये कोई चेष्टा नहीं है। ये आप ही के अन्दर छिपी हुई एक शक्ति है। उसने जब आपको छुलिया तो अनायास, सहज जैसे कोई धागा हम मोती में पिरोते हैं उसी तरह से धीरे-धीरे ही में आप सृजन करने लगे। ऐसे अनेक तरह के कवि हमारे वो हर एक चक्र में बायां, दायां दोनों में और सीधे यहां हो गए। अनेक तरह के कलाकार हो गए। अपने हिन्दुस्तान यहां से निकल जाती है। उससे वो चक्र जो हैं वो फिर से प्लावित के बहुत बड़े-बड़े लोग, माने हुए कलाकार सहज के ही माध्यम हो जाते हैं। पुष्ट हो जाते हैं। प्लावित होने पर उनके अंदर शक्ति से हुए हैं। कलाकार अमजद अली साहब हैं, अल्लाहरक्खा के लड़के हैं। देबू चौधरी साहब हैं, और न जाने कितने ही लोग से भी हो जाता है और परम चैतन्य से भी हो जाता है। एक बार हैं जिनको कि सहजयोग से फायदा हुआ। और वो कहते हैं कि ये संबंध पूरी तरह से हो जाए उसके बाद कोई बीमार नहीं पड़ आपके सामने बैठने से ही हमारा हाथ एकदम से चलने लग जाता है। समझ में नहीं आता। जो राग कभी बजाया नहीं वो भी हम ऐसे बहुत से हैं। सब बीमार नहीं आते हैं सहजयोग में ऐसे भी बजात हैं। इस तरह से बहुत से लोगों को इसका एक अजोब तरह का फायदा हुआ जो बहुत साल गुरुओं के पास मेहनत करने से जैसे ही वो पार हो जाते हैं जैसे ही उनको कुण्डलिनी का भी नहीं हुआ उनकी जो शक्ति थी वो जागृत हो गई। सृजन शक्ति आशीर्वाद मिल जाता है ऐसे ही उनकी प्रगति ज्यादा जोरों से होती उस सृजन शक्ति के भरोसे, न जाने वो कहां से कहां पहुंच गए। है और उसके बाद उनको कोई भी बीमारी नहीं होती। हमारे यहां" तो आपके अन्दर की सृजन शक्ति बहुत बढ़ जाती है। अब कल बहत से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि पहले हमें जुकाम भी होता चक्रों पे जब हम बात करेंगे तब आपको बताएंगे कि हर एक चक्र में, कौन-कौन सी शक्तियां हैं और जो आपको प्राप्त होती हो जाए वो हमारे पास आते हैं। सो आप ही डाक्टर बन जाते हैं। आप जानते हैं कि यहां पर डाक्टरों का एक सम्मेलन हुआ था जिसमें आप लोग भी काफी आए थे और कुछ लोग नहीं हैं। क्योंकि जब कुण्डलिनी सहस्रार को भेदती है तो अपने आप भी आए थे। ये बात सच है कि कुण्डलिनी के जागरण से आपकी तन्दरुस्ती बिल्कुल ठीक हो जातो है। अधिकतर लोगों को ठीक हो जाती है। अब बिल्कुल ही मरने को आप हुए तो भगवान कहता है कि इस बार मरने दो, फिर जन्म ले लेंगे कोई बात नहीं। और से इस चक्र को ठीक करना है आप अपने भी चक्र ठीक करिये कुछ-कुछ लोग इतने बेकार होते हैं कि भगवान सोचते हैं कि और दूसरों के भी ठीक करिये। इससे पहले तो आपको अपने ऐसे बेकार लोगों को क्या फायदा है ठोक करने से क्योंकि ये तो वो दीप हैं जो कभी जलेंगे ही नहीं तो उनको ठीक करने से होंगे और इसो को हम कहते हैं अपना ज्ञान। स्वयं का ज्ञान। जब फायदा क्या ? लेकिन अधिकतर लोग हर तरह को बीमारी से अपने चक्रों के बारे में आपने सब कुछ जान लिया तब फिर आप ठीक हो जाते हैं । बड़े आश्चर्य की बात है। यानि कैंसर, बहुत अपनी तन्दरुस्ती अच्छी रख सकते हैं। दूसरे किसी के चक्रों को लोगों का ठीक डाक्टरों ने घोषित कर दिया कि आठ दिन में मर जायँगे। अब वो जिंदा बैठे हैं आठ-आठ, नौ-नौ साल बाद। ये कैसे हुआ। भाषा चक्रों को होती है। आप यह नहीं कहते कि ये मुसलमान आप कहेंगे ये सब कैसे हुआ। ये समझने की बात है कि ये कैसे है, ये हिन्दू है, ये ईसाई है। यह नहीं कहते। आप यह नहीं कहते हुआ। हमारा शारीरिक, मानसिक, भौतिक सारा अस्तित्व हो कि ये अग्रेज हैं कि ये हिन्दुस्तानी हैं या कोई और । आप यह चक्रों पर है। वो ही हमारे मूलतः शक्ति दायक स्रोत है मान लो नहीं कहते कि इसके बाल सफेद हैं कि काले हैं कि इसने सूट आपके चक्र खूब काम कर रहे हैं, आपका अनुकम्पी नाड़ी तंत्र पहना है कि कुर्ता-पाजामा पहना है यह नहों कहते। ये सब बाह्य आ गई। चक्रों में संकोर्णता आते ही या तो इनकी शक्ति खत्म हो कैंसर आपके अन्दर हो गया। अब कुण्डलिनी क्या करती है गुजरते हुए आ जातो है। एक साथ जुड़ जाने के साथ उनका संबंध मस्तिष्क सकता। अगर कोई सहजयोगी है, तो उसको कोई बीमारी नहीं। लोग हैं जो बिल्कुल स्वस्थ हैं। ये तो बढ़िया लोग होते हैं। क्योंकि था तो डाक्टर के पास जाते थे और अब किसी को अगर कैंसर हैं। आप डाक्टर बन जाते हैं खुद आप अपनी बीमारी समझते महसूस होतो है ठंड़ी-ठंडी हवा। और ये सात चक्र हैं इन चक्रों पर आप जानते हैं कि आपका कौन सा चक्र खराब है और दूसरों का कौन सा चक्र खराब है। अगर आप समझ लें कि किस तरह चक्र हो महसूस हो नहीं होते थे। अब आपको अपने चक्र महसूस गर आपने जान लिया तो आप दूसरों की भी तन्दरुस्ती अच्छी रख सकते हैं। और अब आप बात चक्रों की करते हैं। आपकी हुआ है। और ऐसी हालत में ठोक हुआ है कि जन कार्यक्रम, दिल्ली 19 के आर्डंबर हैं। आप सिर्फ यह कहते हैं कि मां इसके ये चक्र गडबड़ हैं। आप सिर्फ चक्रों की बात करते हैं। कौन सा चक्र खराब है उसकी आप बात करते हैं। उसी तरफ आप का चित्त जाता है। उस चक्र को कैसे ठीक करना है वो आप सीख लीजिये। हो गया काम खत्म। अब परमात्मा को पैसा-वैसा समझ में नहीं आता। ये बैंक और पैसा। सिरदर्द। ये मनुष्य ने बनाया है। इसका सम्बन्ध भगवान से है ही नहीं। कैसे हो सकता है। बताइये। अजीब सी ये संस्थाएं हैं। कुछ समझ में नहीं आती मेरे भी तो इसके लिये आप पैसा-वैसा नहीं दे सकते। यह तो जीवन्त क्रिया है । आप अपने पेट को कितना पैसा देते हैं कि वो पचन करते हैं आपके खाने को! या इस हाथ को कितना आप रुपया देते हैं जो आपका सारा सहजयोग में राजकारण नहीं चलता। ऐसे शुद्ध वनो। जब तक मन शुद्ध नहीं हुआ तब तक क्या फायदा है। धर्म कर्म करने से कोई फायदा नहीं। एक दम शुद्ध मन हो गया। शुद्ध मन से सिवाय अनुकंपा के कुछ और नहीं बहता। सबके लिये दिल बहने लगता है। दिल इतना बड़ा हो जाता है किसके लिये क्या करें? उसके लिया क्या करें? अब यह सोचे कि यहां इतने अंग्रेज बैठे हैं। एक जमाने में इनके बाप-दादा, ये तो नहीं, यहां पर राज करते थे। काफी दुष्टता को उन्होंने। आज जब ये अंग्रेज आते हैं आपके बंबई में या दिल्ली के एयरपोर्ट पर तो आपकी जमीन को चूमते हैं, नमस्कार करते हैं । कहते हैं कि योग-भूमि है। ये इन्होंने जाना क्योंकि इनके पास वो सूक्ष्म ज्ञान है। अब पूछिये कि ये निजामुद्दोन साहब वास्तव में औलिया थे कि नहीं? एक सवाल पूछियेगा। फौरन हाथ मैं लहरियां शुरू हो जायँगी। नानक साहब आदि गुरू काम करते हैं । इसी प्रकार इसके लिये पैसा मांगने वाले को समझ ू थे या नहीं? पूछिये देखिये ऐसे हाथ करके पूछिये कोई सा भी सवाल। परमात्मा है कि नहीं, पूछिये। जो सच्ची बात होगी वो आपको लहरियां देगी, अगर झूठ बात होगो तो गर्मी देगी, कुछ- कुछ में तो थोड़े फफोले भी हो जायेंगे। आपमें सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है। उसके कारण आपके अंदर जो अनुकंपा है पैसा दो। ठीक है आप हवाई जहाज से आये हैं इसका वो बहने लग जाती है। तीसरी चीज जो होती है उसमें आपको ये सब भौतिक चीजों का पैसा दे सकते हैं। लेकिन परमात्मा के केवल सत्य पता होता है। पूर्ण सत्य। ये क्या होता है। जैसे मैने कार्य का आप पैसा नहीं दे सकते। तो ये जो आपके अंदर कहा कि पता करिये। जेल से छूटने के बाद कोई अपराधी गेरुए आंतरिकता से एक चीज आ जाती है इसे कहते हैं सामूहिक कपड़े पहन कर यदि आपके सामने खड़े हो गये तो हो गये साधू चेतना। माने दूसरों के प्रति चेतित होते हैं। आपको महसूस होता बाबा। कुछ जादू मंतर किया कुछ ये वो किया। लोग हो गये पागल उनके पीछे हाथ ऐसे करके पूछिये फलाने ये गुरू हमारे हैं ये सच्चे हैं कि झूठे। फौरन आपको पता हो जायेगा। अगर 10 फोन करके, सब लग जायेंगे उसके पीछे। अरे भई कुछ तुमने साक्षात्कारी बच्चों को आंखों पर पट्टी बांध कर उनसे पूछिये कि अपना रक्षण किया है। कुछ अपनी ओर नजर की या लग गये। बेटे इस आदमी को क्या तकलोफ है सब एक ही ऊंगलो दिखायेंगे। इतनी अनुकंपा बहती है लोगों की कि कुछ पूछो मत। मझे फोन सब चीज आपको हाथ पर ही पता चलेगी। रोग निदान करने पर फोन करेंगे कि मां फलांना बड़ा बीमार है । अरे भई वो की जरुरत नहों। एक साहब बोस्टन गये थे कहने लगे निदान सहजयोगी है क्या।नहीं-नहीं मां वा है तो नहीं पर अच्छा आदमी करते-करते मैं मर गया। पैसे के पैसे लग गये। इन्होंने तो मेरी है, शरीफ है बेचारा, अच्छा आदमी है, आप जरा चित्त दीजिये । अंतडियां निकाल करके निदान किया यहां बाहर ही से आप उसको ठीक करना है। ऐसो अनुकंपा बहती है। अनुकंपा में निदान कर लेंगे कि किसको क्या तकलीफ है। क्या शिकायत लड़ाई-झगड़े का क्या सवाल उठता है। अभी मैं मजार पर गई है। और घवडाने की कोई बात नहीं क्योंकि ये ठीक सब ठीक थी निजामुद्दोन साहब के। वो भी बहत बड़े औलिया थे। हम मानते हो सकता है। शारीरिक ही नहीं, मानसिक, बौद्धिक और सबसे भी बहत हैं उनको। हम सबको मानते हैं। हम गुरू नानक साहब बड़ी बात है आध्यात्मिक। गलत-गलत गुरूओं के यहां गये। को भी पूजा करते हैं। मोहम्मद साहब को भी हम पूजा करते हमारे तलवार साहब से पूछिये वो बतायेंगे किस्से गुरुओं के कैसे चक्करों में डालते हैं। और इन्सान बहकता हो रहता है। अब तो लड़ाई-झगड़ा कर रहे हो असल में सब एक ही हैं। बहरहाल हमने उनको मान लिया। अरे भई क्यों माना? उन्होंने तुमको क्या वहां भी मुझे आश्चर्य हआ वहां भी राजकारण चल रहा है। अरे दिया ? हम तो मा हैं हम तो पूछेंगे कि बेटे तुमको तुम्हारे गुरु ने भई जिसके दरवाजे बैठे हो वहां राजकारण क्या कर रहे हो। दिया क्या ? क्यों माना तुमने उनको? कुछ तुमको दिया है। और लीजिए इससे बढ़कर पाखंडी कोई नहीं। एक तो भगवान का काम करते हैं और ऊपर से पैसा लेते हैं। ये भगवान का काम नहीं कर सकते क्योंकि भगवान को तो पैसा समझ में नहीं आता। अपने दिमाग से यह बात निकाल दीजिए कि आप भगवान के नाम पर पैसा दे सकते हैं। हां ठीक है यह मंडप बनाया इसका पैसा दो । है इनका ये चक्र पकड़ा है। अब एकदम अंदर से ऐसी अनुकंपा आयेगी कि चल भई इसको ठीक कर। दो चार सहयोगियों को हैं। दोनों एक हो चीज हैं। आप समझें या न समझें। बेकार में चैतन्य लहरी 20 तुमने जाना कैसे कि वो असलो हैं या नकली। रुपया पे रुपया देखती हूं शराब के खिलाफ इतना लिखा हुआ। इससे कोई फर्क चढ़ा रहे हैं। कितना बताया कितना समझाया बहत नाराज होते नहीं पड़ने वाला। लोग शराब पीते-पीते भी वही इश्तिहार बोलते थे लोग मेरे से। ठिकाने पर आये। तो उस वक्त आपको केवल रहते हैं। फिर हमारे यहां जो आजकल आधुनिक तरह की सत्य पता होता है। आप आदमी को देखकर बता सकते हैं कि संस्कृति आ रही है इससे बहुत बचकर रहना चाहिए। इन लोगों कौन से गुरू से चला आ रहा है। क्योंकि हरेक गुरू ने कोई न कोई एक चक्र पर काम किया होता है। आप फौरन बता सकते दिया। इनके घर-द्वार छूट गये। एक-एक औरत आठ बार शादी हैं कि ये कौन से गुरू से चला आ रहा है। और ऐसे ये गुरू भागते करती है तो एक-एक आदमी नौ बार शादी करता है। ना घर हैं और इनके शिष्य भी क्योंकि सत्य को झेलना बहत कठिन बात है इन लोगों के लिए। अब इसमें आप अपने ही गुरू हो जाते हैं। कुछ बच भी गये हैं वो एडस से मर रहे हैं। उससे बच गये तो जो बड़े-बड़े महान गुरूओं ने कार्य किया है वो सबसे बड़ा यह वहां और पचासों बीमारियां आ गई। अब एक नई बीमारी आई है कि हमारे अन्दर ऐसी शक्ति बसा दी है कि हम अपने गुरू है। हो सकते हैं। आप खुद ही अपने को बताते हैं कि भाई देख ये नहीं काम करता और वो हकबल हैं जैसे कि कोई बड़ी भारी रास्ता ठीक नहीं इधर मत चल, इधर चल। वो सत्य विवेक बुद्धि मछली या सांप हो इस तरह से उनको कंधे पर लादकर घुमाते जो कहती है वो सत्य विवेक बुद्धि हो जाती है। असत्य रह ही हैं दिमाग चलता है । बाकी कुछ नहीं हाथ नहीं चल सकते, पैर नहीं जाता। अपने आप ही आप छोड़ देते हैं। मैं किसी से कुछ नहीं चल सकते, शरीर नहीं चला सकते ये भी मैनें बताया था नहीं कहती। ये नहीं कहती कि शराब मत पियो। कुछ नहीं कहती कि होने वाला है। एडस भी बताया था। पर सब बड़े गुस्से होगये क्योंकि दिल्ली में अगर ऐसा कहो तो आधे लोग उठ कर चले थे। अब जब हो गया है तो बैठे हुए हैं। और गंदी-गंदो जगह जायंगे सब जाति के लोग शराब पीते हैं। हालांकि मना है सब पीते हैं। लेकिन सहजयेग में आने के बाद मैं कहती हूं कि जाओ नहीं सोचते कि बच्चों का क्या होगा। अब सिनेमा में भी यही है। शराब की दुकान पर। कोई शराबी दिखाई दिया तो दूसरा रास्ता उसमें भी यह कुछ अच्छी बातें सिखाते नहीं। कम से कम काट लेंगे। और शराब की दुकान देखी तो अपना घर हटाकर हिन्दुस्तानी फिल्मों में यह नहीं दिखाते कि कोई बुरा आदमी हीरो दूसरी जगह चले जायँगे। क्योंकि अंदर प्रकाश आ गया ना हो गया है। वहां तो बुरा आदमी ही हीरो होता है। पर तो भी अपनी बाहर कुछ नहीं। सब ड्रग्स छूट गये, शराबें छूट गई वो सारा जो फिल्मों में भी ये कितनी गंदो-गंदी बातें सिखाते हैं बच्चों को। क्लब जीवन था ये वो था जिससे कि मनुष्य का सर्वनाश होता मार-पीट ये वो। अरे जब बच्चों को मार-पीट सिखाओगे तो है सब छूट गया। ये सारे कार्य सर्वनाश की ओर ले जाते हैं। लेकिन शांति कहां से रहेगी देश में । इस प्रकार एक तरह से हमारे ऊपर न जाने मनुष्य ऐसा क्यों करता है। लंदन में हम रहते थे कि देखा आक्रमण आ रहा है। एक नये तरह का इन विदेशियों का। इधर एक इंसान बड़़े जोरों से चला जा रहा है मोटर लिये। पता नहीं आप जरुर ध्यान दीजिये। अपने बच्चे भी वैसे कपड़े पहनने लग इसको काहे की जल्दी हो रही है? रुककर देखा कि कहां जा गये उसी तरह से जवाब देने लग गये। इसी तरह से उनका रहा है तो एक पब के सामने खड़े हैं। दो चार अंदर से आकर नीचे गिरे हुए थे रास्ते पर बेहोश और ये उसी के लिये दौडे चले गये चोरी-छिपे। और वहां बदमाशी कर रहे हैं। इस तरफ सतर्क आ रहे हैं कि मैं क्यौं नहीं बेहोश हुआ। अक्ल मारी जाती है ना, होना पड़ेगा। जो बच्चे एक बार सहजयोग में आ गये उधर जिसको मत (बुद्धि) मारना कहते हैं बिल्कुल अक्ल मारी जातो मुड़कर भी नहीं देखते। उनको अच्छा ही नहीं लगता। उसका शौक है। और चाहे वो सिख हो चाहे वो मुसलमान हो, चाहे वो ईसाई हो नहीं चढ़ता। आपके सामने ऐसे बहुत से बच्चे आयेंगे आप हो बड़ी शान से अपनी बार दिखाते हैं, बार, घर के अंदर और देखियेगा। सहजयोग में आप खुश हो जायेंगे। इन सब चौजों से वहीं सबके फोटो लगे हुए हैं। ये धर्म नहीं है। अंदर बाहर एक ही जानो ये अपने आप ही हो जाता है। मुझे हमीं अपने गुरू हो जायें। उस गुरूतत्व से आप समझ जायेंगे कि कहने की जरुरत हो नहीं है। आप अपने ही गुरु हो जाते हैं। आप आपके लिये भलाई क्या है, अच्छाई क्या । आपकी फैमिली के अपने ही आप ठीक हो जाते हैं मुझे कहने की कोई जरुरत ही लिये क्या अच्छा है। आपके घर वालों के लिये क्या अच्छा है। नहीं। आज मैने कह दिया इसका मतलब नहीं कि आप छोड़छाड आपके रिश्तेदारों के लिये क्या अच्छा है। इस देश के लिये क्या के भागिए। यह सब गंदी आदतें छूट जायेंगी। अब मैं इश्तिहार अच्छा है। उसी ओर आप बढें। इस प्रकार सहजयोग में आने से को तो वहां बेचारों की खापड़ी खराब कर दो है। सत्यानाश कर ना द्वार, ना बाल ना बच्चे। सब अनाथाश्रम में रहते हैं। दूसरे जो क जो लोग बहुत काम करते हैं इनका जो चेतन मस्तिष्क है वहीं दिमाग जाना और गंदी -गंदो बात सोचना। अपने बच्चों की भलाई रहन-सहन भी हो रहा है और डिस्को-विस्को में जाने लग अपने को बचाना है। अब बचाने के लिये एक ही मार्ग है कि जन कार्यक्रम, दिल्ली 21 के मरुस्थल में जाकर वहां काम किया। साइबेरिया में भी सहजयोग चलाया बड़े आश्चर्य की बात है कि ये लोग कैसे साइबेरिया गये। पिछली मर्तबा जब में रूस गई तो एयरपोर्ट पर हजारों लोग थे तो जब सामने आये तो मैने कहा कि ये कहां से आये। साइबेरिया से। कहने लगे कि माँ 50 आदमी आये हैं साइबेरिया से। साइबेरिया में लोगों को सजा देने के लिये भेजते थे। जैसे अन्डेमान-निकोबार। हां अन्डेमान-निकोबार में भी सहजयोग चल पडा है। आपको आश्चर्य होगा कि जहां यह बीज चला जाता है उस आदमी को चैन ही नहीं पड़ता सहजयोग दिए बिना। अकेले कैसे रहें। माँ हम तो अकेले हो गये यहां कैसे सहजयोग करें। सहजयोगी बनाओ सहजयोगी। और हिम्मत को बात है। इस पर बस अहंकार नहीं आना चाहिए। हिम्मत होनी चाहिए। हर आदमी हजारों आदमियों को पार कर सकता है। अब हमारी उम्र हो गई आप जानते हैं लेकिन कोई हर्ज नहीं। आप लोग तो हैं। आप लोग तो हमारा कार्य करेंगे हो। और हमें पूर्ण आशा है कि सहजयोग दुनिया की रंगत ही बदल देगा। आज न जाने क्यों मुझे दुनिया ही अलग नजर आ रही है। कुछ फरके ही नजर आ रहा है। न जाने क्यां? क्या हो गया है सब कुछ अलग ही अलग दिखाई दे रहा है। और बड़ी शांति सी लग रही है अंदर में हो सकता है कि वाकई में सतयुग का ऊषा काल आ गया है उसको प्रभात आ गई है। सार हो धर्म, उसके संस्थापक एक हो पेड़ पर पैदा हुए फूल थे मैंने कहा। लेकिन हमने ये फूल तोड़ लिये हैं और लड़ रहे हैं कि ये हमारा है हमारा है। सहज के सागर में सारे ही समा जाते हैं और सबको की हम पूजते हैं। समोभाव नहीं है समश्रद्धा भी नहीं कहना चाहिए पर पूजा सबकी होती है। ये हुए बगैर हम लोग वो नहीं जान सकत कि हम सब एक हैं। कोई फर्क नहीं, हमारे में आशा है कि जो नये लोग आये हैं सहजयोग को प्रणालियां सीख लंग। कल भी मैं चक्रों पर बात करुंगी। एक-एक विषय पर बातचोत होगी। परमात्मा आपको आश्शोवादित करें। आपमें वो सूक्ष्मता आ जायेगी। और वह सुक्ष्म शक्ति जो कि सारे ही जीवन्त कार्य करती है। हम सोचते भी नहीं कि दिल क्यों धड़कता है। अनहद कह दिया अनहद है। पर कौन अनहद है। कौन अनहद है ये दिल को चलाने वाला ? कौन है जिसने इन्सान को बना दिया? और किसलिये बनाया है ? यह सारा कुछ मतलब आपको सहजयोग में मिल जाता है। और अब आप जानते हैं कि आपके जीवन का अर्थ क्या है। क्यों आप इस संसार में आये। क्यों आपने मनुष्य रुप धारण किया इस वक्त आप समझते हैं कि आप कितने गौरवशाली हैं और कितने विशेष हैं। अब समझ लीजिये कि अगर कोई आप देहात में टेलीविजन ले जाइये और कहिये कि इसमें हर तरह का ड्रामा, हर तरह की चीज आयेगी। वो कहंगे कि क्या बकवास कर रहे ही ये तो डिब्बा पड़ा हुआ है। डब्बा। ऐसे हम भी अपने को एक डब्बा समझते हैं। ये बात नहीं। बहुत बढ़िया तरीके से बनाया गया है ये डब्बा। इसमें सूक्ष्म तार ऐसे गिने हुए हैं और वे सूक्ष्म तार जैसे के तैसे रक्खे हुए हैं। उन्हें कोई छू नहीं सका अभी तक। वही सूक्ष्म तार छेड़ने को बात है। पर जैसे ही आप इस टेलीविजन का कनैक्शन लगा दीजिये वो हैरान कि अरे वाह ये क्या चीज है। ऐसे हो आप लोग भी हैं और आप अपने को जानिये और जानने के बाद आप समझ जायँगे कि आप क्या हैं। बगैर अपने को जाने चाहे आप हुए सांचे कि आप लाट साहब हैं तो वा भी गलत है। और चाहे आप सोचे कि आप कुछ नहीं तो वो भी गलत है। पहले अपने को जान लोजिए। और जब जाना जाता है ता दिया भी जाता है। जब तक दीपक में प्रकाश नहों होता, उसकी जलाया जाता है और जब वो जल जाता है तो वो सबको प्रकाश देता है क्योंकि ये इसका कार्य है। इसी प्रकार एक दीप से अनेक दोप जलाने की जो बात है, उसका साक्षात सहजयोग है। इसमें से से लोग बहुत एसे हैं जिन्होंने पहले मुझे देखा भो नहीं और जागृत हो गये। कैसे? एक सहजयोगी गये उन्हांने किया। और प्रदेश में यह काम बड़े जोरों से हो रहा है। रूस में लोग आप आश्चर्य करेंगे कि साइबेरिया ॐ चंतन्य लहरी ॐम 22 श्री माता जी द्वारा नियुक्त की गई समितियां सभी केन्द्र इन समितियों को बढ़ावा दें रोग मुक्त हुए लोगों के रोग के पूर्ण इतिहास समेत उनका विवरण रखना। ठीक होने के पश्चात रोगी का वक्तव्य लिख लिया जाये कि वह सहजयोग द्वारा ठीक हुआ है। 2. (1) राष्ट्रीय मुख्य समिति उद्देश्य : सारी समितियों के कार्य तथा उनके नियन्त्रकों का 3. निरोक्षण करना (6) (2) विवाह समिति (राष्ट्रीय) प्रदूषण समिति उद्देश्ये उद्देश्य : विवाह के प्रार्थनापत्रों की छानबीन करना। 2. प्रा्थियां के कथन का सत्यापन करना। उन्हें सहजयोग में आए कम से कम दो वर्ष हो चुके हों। 3. सहजयाग में विवाहित दम्पतियों से जन्मे बच्चों की सूचना तथा उन्नति का विवरण रखना। हर विवाह से कितने बच्चे हुए। 1. प्रदूषण को समाप्त करना तथा पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखना बाग, पेड तथा जंगल लगाना 3. सफाई (अ) आसपास की 1. 2. (ब) निजी (स) सामुहिक 4 प्राकृतिक तथा हस्तकला को वरतुआं का उपयोग। प्लास्टिक की वस्तुओं से बचना। (7) व्यक्तित्व विकास समिति उद्देश्य : सहजयोगियों के आचरण, व्यवहार-वैचित्र्य, वेषभूषा का ध्यान रखना। वस्त्र हास्यास्प्रद नहीं होने चाहिएं। भारतीय वेषभूषा की सिफारिश को जाती है। दफ्तरों में चूड़ीदार पायजामे तथा जोधपुरी कोट पहन सकते हैं। जीन पहनना वर्जित है। महिलाएं पाश्चात्य फैशन में बाल न बनवाएं तथा अत्यधिक श्रृंगार न करें। योगी गरिमामय तथा सम्मानीय लगने चहिए। यह देखना कि हर व्यक्ति सहज संस्कृति के नियम तथा सामाजिक आचरणों का पालन करे। हर व्यक्ति को सहज भाषा का ज्ञान हो। अंग्रेजी तथा हिन्दी भाषा का ज्ञान होना चाहिए। महाराष्ट्र में रहने वाले लोग मराठी सीख सकते हैं। 1. (3) कृषि समिति 2. उद्देश्य : (1) चैतन्य लहरियों के उपयोग से उपज को बढ़ाना। (2) शोध कार्य। (3) कृषि उद्याग आरम्भ करना। (4) कृषि प्रयाग करना तथा उन्हें लिखना। 3. (4) औषधालय समिति 4. उद्देश्य : (1) वाशो हस्पताल की देखभाल। (2 ) शोध कार्य। 5. (5) (৪) रोग-मुक्ति समिति (स्थानीय) उद्देश्य : साहित्य समिति (राष्ट्रीय) उद्देश्य : व्यक्तिगत रुप से कोई व्यक्ति रोगियों को ठोक करने का प्रयास न करे। श्री माता जी के फोटो के सामने निर्धारित सहजयोग इलाज द्वारा रोगी स्वयं अपना इलाज 1. श्रेष्ठ प्रेरणा प्रदान करने वाले, मानवता का पोषण करने वाले अन्तस की सूक्ष्म वास्तविकताओं को बाहर लाने वाले, चारित्रिक मूल्यों और देवी विचारों तथा आत्मोत्थान की अभिव्यक्ति करने 1. करें। श्री माता जो द्वारा नियुक्त को गई समितियां 23 वाले उदारता पूर्ण साहित्य को प्रोत्साहन देना। इस प्रकार की पुस्तकों का पुस्तकालय वाशी में अर्थव्यवस्था कृषि उपज भौगोलिक तथ्य पर्यावरण सम्बन्धी तथ्य नये अन्वेषण तथा शोध सूचना आवश्यक अन्तरराष्ट्रीय स्थिति सनसनीखेज पत्रकारिता की निन्दा करना । सकारात्मक तथा ईमानदार पत्रकारों की पहचान 2. बनाना। सहजयोगी ऐसी पुस्तकें पढ़ें तथा साहित्यिक सुरुचि स्वयं में स्थापित करें। पुस्तकों को लिखने तथा प्रकाशन की स्वीकृति देना। कोई भी पुस्तक या पत्रिका इस समिति की आज्ञा के बिना प्रकाशित नहीं होनी चाहिए। (9) सिनेमा समिति 3. 4. 3. 4. करना। 5. ईमानदार पत्रकारों को विशेष पारितोषिक देना। स्मरणीय वार्षिक ईनाम दिया जाना चाहिए। हर मुख्य केन्द्र-अर्थात बम्बई, दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास इन प्रत्याशियों को राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं में पत्रकारिता के लिये ईनाम के लिये पहचानें। इस वार्षिक इनाम के लिये क्षेत्रीय मुख्य केन्द्र योगदान करें। दिल्ली राष्ट्रीय भाषा-हिन्दी या अंग्रेजी में इनाम के लिये धन दे। इनाम श्री माता जो के जन्म दिवस पर दिए जाने चाहिए। वर्ष 1994 का इनाम श्री माता जी ने अरुण शौरी के लिये : उद्देश्य : मूल्यांकन करके उच्च चारित्रिक मूल्यों, समृद्ध 1. परम्परा तथा प्रतिष्ठित ऐतिहासिक कहानियाँ वाले सिनेमा की सिफारिश करना। सस्ते, निम्न और गंदे सिनेमा का वर्जन करना। रचनात्मक जन संदेश देने वालो फिल्मों के वीडियो टेप रखना। 2. 3. (10) सुझाया है। ड्रामा समिति (स्थानीय) (12) आडियो तथा वीडियो समिति (राष्ट्रीय) उद्देश्य : प्रतिष्ठित ड्रामा, विशेषकर नाट्य-संगीत को प्रोत्साहित करना। उत्तर भारत के लिये बाद में इनका हिन्दी में अनुवाद किया जा सकता है। बम्बई से शुरू हो कर यह पुणे, श्रीरामपुर, महाराष्ट्र के गांवों में सम्बन्धित सहजयोग केन्द्रों के माध्यम से जाना चाहिए। योगियों की उपस्थिति इन नाटकों में आवश्यक होनी चाहिए। श्रेष्ठ ड्रामा का मूल्यांकन, उसकी सिफारिश तथा 1. उद्देश्य श्री माता जी के सभी आडियो तथा वीडियो बनाये तथा बेचे जाने चाहिएं। सहज संगीत के भी आडियो तथा वीडियो बनाये तथा बेचे जाने चाहिएं। (13) 1. 2. वित्तीय समिति 2. कलाकारों को प्रोत्साहन देना। उद्देश्य : सहज कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के लिये एकत्रित की गई धन राशि को निम्न प्रकार से देखभाल करें अ) व्यक्तिगत ब) सामूहिक स) श्रो माता जी द्वारा दो गई 1. (11) समाचार-पत्र समिति उद्देश्य : समाचार-पत्र, पाक्षिक पत्रिकाएं, पत्रिकाएं जो 1. अच्छी तथा ठीक खबरें, धार्मिक लेख और मानवीय संयोजकताओं को छापती हों उनकी सिफारिश करना। निम्नलिखित को लाभदायक सूचनाएं तथा आंकड़े इक्टठे करना :- हर केन्द्र ऐसी समिति मनोनीत करे जो सामुहिक रुप से सारे वित्तीये लेखे-जोखे का निरीक्षण करे और उन्हें स्वीकृति दे। 2. मुद्राएं ॐ * * चैतन्य लहरी 24 Phone: 5413126, 5437741 Printed at Bharati Printers, WZ-113, Shakurpur Village, Delhi-110034 ---------------------- 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड : V, अंक : 8 "गहराई को छूने के लिये तपस्विता आवश्यक है।. तप का मतलब ये नहीं कि बैठ कर आप उपवास करें। चित्त निरोध, चित्त-अवलोकन और चित्त का विचार ही तपस्या है। चित्त निरोध का अर्थ चित्त के साथ जबरदस्ती नहीं। आत्मा के प्रकाश में अपने चित्त को देखने से आपका चित्त आलोकित हो जाता है।" माता जी श्री निर्मला देवी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी खण्ड : V, अंक : 8 विषय सूची पृष्ठ (1) अन्तर्दर्शन 3. (2) पल्लाज अथेना पूजा (3) ईस्टर पूजा 9. 12 (4) मृत सागर से प्रलेख (5) जन कार्यक्रम, दिल्ली-22.3.93 16 18 (6) श्री माता जी द्वारा नियुक्त की गई समितियां 23 चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-2.txt श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110067 सम्पादक मुद्रक एवं प्रकाशक भारती प्रिन्टर्स, WZ-113, शकूरपुर गाँव, दिल्ली 110034 फोन : 5413126, 5437741 मुद्रित चैतन्य लहरो 2. 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-3.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन शुडी कैम्प-इंग्लैण्ड (6-8-1988) अन्तर्दर्शन इस वर्ष, मैं सोचती हूं, हम इंग्लैण्ड में कोई सार्वजनिक स्पष्ट देख सकते हैं। आत्मा के प्रकाश में हम स्पष्ट देख सकते हैं कि हममें क्या दोष आ गए हैं। मैने एक अत्यन्त रोचक चीज जब भी कभी हालात हमारे कार्यक्रम में परिवर्तन लायें तो हमें देखो है कि एक प्रकार की माया के साथ सहजयोग हर समय तुरन्त समझ जाना चाहिए कि इस परिवर्तन का कोई लक्ष्य है। कार्यरत है। और 'अज्ञान' ही यह माया है, कभी आंशिक अज्ञान और कभी पूर्ण अज्ञान। सहजयोग में आकर आप आशोर्वादित चाहता है कि हम परिवर्तित हों। मान लो मैं सड़क पर जा रही हो जाते हैं। आप पर कृपा हो जाती है । आपके परिवार पर भी हं और लोग कहें कि मां आप रास्ता भूल गई हैं तो यह ठीक कृपा हो सकती है। आपके बच्चों पर कृपा हो सकती है। आपका नहीं है मैं कभी भटकती नहीं क्योंकि मैं सदा स्वयं के साथ होती शरीर स्वस्थ हो जाता है। आर्थिक रुप में भी, आपको नौकरी हूं। परन्तु मेरे उधर से जाने का कारण यह है कि मैने उधर से मिल जाती है, धन मिल जाता है। आपको विशेष उपलब्धियां हो जाती हैं जो चमत्कारिक होती हैं। अब हमें ये वरदान प्राप्त थी। यदि आप में ऐसी सूझबूझ है और आपके हृदय में ऐसा संतोष हो गए हैं, अब हमें कुछ और करने की आवश्यकता नहीं, जो भी हमने अब तक किया था उसका पर्याप्ति फल हमें मिल गया है, ये सब सोचते हुए लाग उन्हों उपलब्धियों में खो जाते अब हमने इस वर्ष सार्वजनिक कार्यक्रम करने का निर्णय हैं तथा भटकने लगते हैं परन्तु वास्तविकता यह नहीं है। यह किया था फिर भी हम कर न सके। तो मैने सोचा कि इसका तो आपको मात्र एक आश्रय प्रदान किया गया है जिससे सहजयोग में आपकी श्रद्धा पूर्णतया स्थापित हो सके। विशेषतया आप मुझे पहचान सकें कि मैं हूं कौन। परन्तु अब भी यदि आप भटकत हो चले गए तो आपको मिले वरदान अभिशाप भी बन होता है जहां पर उसे दिशा परिवर्तन करना पड़ता है। हो सकता सकते हैं और हो सकता है कि आपको लगे कि यह कैसा प्रकोप हम पर पड़ गया है तथा यह कि ये वरदान क्यों अभिशाप बन कार्यक्रम नहीं करेंगे, क्योंकि वहां के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। और खुले-दिल से हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिये। परमात्मा जाना था। मैने ऐसा करना था। इसी कारण मैं रास्ता भूल गई है तब आपको लगेगा कि जोवन को जितना आप सोचते थे उससे कहीं अधिक है। कुछ कारण क्या है। इसका कारण यह है कि हमें अपने आत्म साक्षात्कार को दृढ़ करना है। एक वृक्ष को जो कि जोवन्त वृक्ष है विकसित होते हुए किसी दिशा विशेष में एक सीमा तक जाना है उधर सूर्य न आता हो या पानी का स्तर नीचा हो जिसके कारण उसे दिशा परिवर्तन करना पड़े। इसी प्रकार हमें समझना चाहिए कि हम परमात्मा के हाथों में हैं। यदि कोई योजना परिवर्तित होती है तो यह हमारी ओर प्रतिबिम्बित करती है। अतः हमें इसका गये हैं । लोगों को यह आशीर्वाद पहचानने में समय लगता है। उदाहरणर्थ, आधुनिक विचारों के अनुसार हम सोचते हैं कि बहत सा धन पा लेना ही सबसे बड़ा वरदान है। बहुत से लोगां की धन भी मिल जाता है। परन्तु वास्तव में एसा नहीं है। आंतरिक शांति, साक्षो-अवस्था प्राप्त करने के लिये, अपनी चैतन्य लहरियों को भलनी-भांति महसूस करने के लिये तथा हर समय मध्य में बने रहने के लिये उत्थान हो वास्तविक वरदान है। क्योंकि इसी के अन्दर आप शेष सब पा लेते हैं। पूर्णत्व तभी सम्भव जब आपके अन्दर पूर्ण आनन्द हिलौरें ले रहा है। आखिरकार सभी कुछ आनन्दप्रिय तथा आनन्त को महसूस करने के लिये ही तो है। यह अन्त नहीं है। यदि ऐसा होता तो धनवान, स्वस्थ तथा सफल व्यक्ति ही प्रसन्न तथा शांत होते। परन्तु ऐसा नहों है। वे बहुत दुःख उठा रहे हैं। एक प्रकार से, दिन प्रतिदिन अपना नाश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन से है। जीवन को वे सहन नहों कर सकते। सदा उदास रहने का कारण उन्हें कुछ उ कारण देखना है और इसका कारण यह है कि हमं स्वयं को दृढ़ करना है। सहजयाग को दूढ़ करना आवश्यक है। अपने को दुढ़ करने के लिये पहला कार्य है अन्तर्दर्शन। अन्तर्दंर्शन आपके लिये है। प्रकाश का अन्तस में प्रतिबिम्बित करके स्वयं देखना ही अन्तर्दर्शन है। सहजयोग में आपने अभी तक क्या किया? आप कहां हैं? किस सीमा तक आप गये हैं ? और आपको कहां तक जाना है? आपमें क्या कमी है ? स्वयं को उचित सिद्ध करने का प्रयत्न किए बिना, भूतों, बाधाओं या किसो अन्य व्यक्ति को दोष दिए बिना जब आप स्वयं को देखने लगेंगे तो आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। जब आप यह देखने लगगे कि किस दोष के कारण मैं स्वयं को दुृढ नहीं कर पाया तो, आपको हैरानी होगी, कि अभी तक बहत सी समस्याएं शेष हैं जिनका ठीक होना आवश्यक है। इन समस्याओं को हम बहुत अत्यन्त आवश्यक घृणा समझ नहीं आता। अन्तर्दर्शन 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-4.txt अतः ये सब वरदान, ये परिवर्तन जो आपको प्राप्त होते हैं, अकर्मण्य है। आप जानते हैं। और अकर्मण्य हृदय को सभी नये क्षेत्र जो आपके लिये खुलते हैं ये आपके हित के लिये हैं प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं पर इन सारे वर्षों में मैं कार्य और केवल उत्थान में ही आपका हित है। शेष सभी कुछ व्यर्थ करती रही हूं। हर वर्ष जो समय मैं दे सकी वह मैने सहजयोगियों, है। एक बार जब आप समझ जायेंगे कि जीवन में आपने यही उनको समस्याओं तथा सहजयोग के लिये दिया। उनकी पाना है और इसी का आनन्द लेना है तो कार्य हो जाएगा। परन्तु सहजयोग में करुणा तथा प्रेम ही महत्पूर्ण है। इसमें या अप्रत्यक्ष रुप में आप सब आशीर्वादित हुए। आप लोग, जो अधिक बन्धन नहीं हैं। अपने विकास के लिये आप स्वतंत्र हैं। योगी हैं, अब भी आपकी क्या अवस्था है? आप सन्त हैं। मेरे आपकी आत्मा ही आपका मार्गदर्शन करती है। हर समय कोई पास एक फोटो है जिसे आप सब देखें-इसमें आप सब प्रमाणित न तो आपको विवश करेगा और न आपकी गलतियां निकालेगा। सन्त हैं। (योगी हंसते हैं) क्या आपने वह फोटो देखा है? अभी आपको ही स्वयं को देखना है, समझना है तथा इसे पाना है। एक मापदंड यह होना चाहिए कि मैंने सहजयोग के लिये पादरी या पोप द्वारा प्रमाणित नहीं। पोप द्वारा प्रमाणित किया क्या किया है? मैने श्री माता जी के लिये क्या किया है ? ये दोनों जाना नकली होता है। परन्तु यह तो बहुत बड़ी बात है। आप बाते समझना अत्यन्त आवश्यक हैं। सहजयोग के लिये किया गया लोगों को तो सर्वशक्तिमान परमात्मा ने प्रमाण दिया है। पर अभी छोटे से छोटा कार्य भी महत्वपूर्ण है। यदि आप में विवेक है तो तक आप अपने कार्यों में व्यस्त हैं, अपनी छोटी-छोटी चीजों आप समझ सकते हैं कि परमात्मा के लिये कार्य करना ही में व्यस्त हैं। आप अभी तक अपने तूच्छ जोवन तथा परिवारों महानतम कार्य है। यही सबसे महत्वपूर्ण तथा सर्वोच्च उद्यम है में व्यस्त हैं। उदार चरित्राणां वसुधाएव कुटुम्बकम् उदार चरित्र जिसके करने का अवसर मानव को प्राप्त हआ है। कितना महान व्यक्तियों के लिये पूरा विश्व ही उनका परिवार होता है। क्या अभी अवसर है। आप कह सकते हैं कि श्री माता जी हम मध्यम दर्जे तक आप अपने ही परिवार के बारे में चिंतित हैं? तो अभी तक के हैं, किसी काम के नहीं- आपको चुना गया है। अतः आपमें कुछ विशेषता तो होगी ही। आपने अपना वह गुण नहीं अपने बच्चे, अपने घर के विषय में चिंतित नहीं होता, वह पूरे देखा होगा जो परमात्मा के इस महान कार्य को करेगा। अतः विश्व की चिंता करता है। आपको पता लगाना है कि "मुझे सहजयोग के लिये क्यों चुना गया है?" में सहजयोग में क्या कर सकता हूं? आपको सदा याद रखना है कि मुझे सहजयोग के लिये चुना गया है। मैं सहजयोग अच्छी तरह जानते हैं। आपका बुद्धिवादी या राजनीतिज्ञ होना का पूरा लाभ उठाना चाहता हू। किसी के पास यदि धन नहीं आवश्यक नहीं। परन्तु विश्व को परेशान करने वाली समस्याओं है तो वह आशा करता है कि सहजयोग उसे धन दे, नौकरी बच्चे, का ज्ञान आपको होना आवश्यक है। संत होने की अपनी मस्ती स्वास्थ्य आदि सभी कुछ दे। आशाएं तो ठीक हैं। पर आपने में आपको नहीं खो जाना है। ऐसा नहीं होना चाहिए। आपको सहजयोग के लिये क्या किया ? अन्तर्दर्शन का यह दूसरा विषय समझना है कि आपने इसी विश्व में रहना है। विश्व की सारी है। यह देखना कि हमें सहजयोग के लिये कुछ कार्य करना है, ही नहीं, पूरे विश्व की समस्याओं की चिंता आपने करनी है। अति महत्वपूर्ण है। धन, कार्य, विचार तथा किसी प्रकार की आपको विचारना है कि विश्व में क्या हो रहा है और विश्व की सहायता महत्वपूर्ण नहीं। हमने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? यह महत्वपूर्ण बात है। आपको हिसाब रखना है कि कितने लोगों को आपने आत्म साक्षात्कार दिया तथा कितने लोगों जी इस समस्या का समाधान कोजिए। व्यक्तिगत तथा सामूहिक से सहजयोग के विषय में बातचीत की। आप सोच सकते हैं कि रुप से आपको अपना चित्त स्वयं से और अपने क्षुद्र जीवन से आपने कुछ लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया। वे आते हैं और हटा कर इस विशाल लक्ष्य की ओर लाना है। तब आप संत हैं। फिर गायब हो जाते हैं। कोई बात नहीं। आखिरकार वे आपके आपका कर्तव्य है कि इन समस्याओं के समाधान के लिये पास आएंगे। आज आप कुछ लोगों पर आजमाइए। वे गायब हो परमात्मा की सहायता मांगें। इसी कार्य के लिये आपको चुना गया जायेंगे। पर कल फिर लौट आएंगे । निरन्तर आपको इसके लिये है। आपकी इच्छा पूर्ण होगी । आप जानते हैं कि मैं तो इच्छा विहीन कार्य करना होगा। आप जानते हैं कि मैं इंग्लैंड में बहुत परिश्रम करती हूं। मेरा वह पूर्ण होगी। माँ की सुरक्षा, प्रेम तथा करुणा आपके साथ है। इंग्लैण्ड आना पूर्व निश्चित था। हृदय को और अच्छी तरह कार्य परन्तु आपको इस विश्व की चिंता करनी होगी। सीमित क्षेत्र में, योग्य बनाने के लिये मेरा यहां आना आवश्यक था। परन्तु हृदय सीमित ढंग से नहीं जीना होगा। अब जैसे इंग्लैण्ड के लोग सोचते छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न किया प्रत्यक्ष तक नहीं? आप सब परमात्मा द्वारा प्रमाणित सन्त हैं, किसी आप अपने साधुत्व को नहीं समझ सके। संत कभी अपनी पत्नी, परन्तु सहजयोगी होने के नाते अब आप शक्तिशाली हस्तियां हैं। आप बहुत शक्तिशाली लोग हैं। पूरे विश्व में समस्याएं हैं आप समस्याओं को आपने जानना है। केवल अपनी समस्याओं की क्या समस्याएं हैं? यह आपकी जिम्मेदारी है। मात्र इतना ही नहीं, आपको प्रार्थना करनी है कि श्री माता क्षु्र हूं। आप ही को यह इच्छा करनी है। जो भी इच्छा आप करेंगे चेतन्य लहरी 4. 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-5.txt हैं कि उनकी समस्याएं बरतानिया तक ही सीमित हैं। नहीं, जहां प्रकार सहजयोग ने आपको योग्य तथा भला बनाया है। क्या आप तक सहजयोग है वहां तक आपकी समस्याएं हैं। और आपको पूर्णतया धर्मपरायण हैं? क्या आपका आचरण उचित है? क्या उन सब की चिंता करनी होगी आस्ट्रेलिया में भी वैसी ही समस्याएं हैं। कोई व्यक्ति कष्टदायो है। आपको चाहिये कि लोग यह सब कर सकते हैं। आप में विशेष शक्तियां हैं तथा जूता-पिटाई करके उस व्यक्ति को ठीक कर दें । अगुआ ने आध्यात्मिक जोवन से आपके विशेष सम्बन्ध हैं यदि आप अन्य बताना है कि किस की जूता -पिटाई करनी है। आस्ट्रेलिया में सांसारिक मूर्ख लोगों की तरह स्वयं को परिवार, बच्चों, हो, अमेरिका में या भारत में, मैं सब ठीक करुंगी। जहां कहों भी आप सहजयोग पर कोई समस्या या आक्रमण देखें तो सामूहिक रुप से इस पर चित्त डाल कर इसे ठीक करें। समस्याएं उससे कहीं अधिक हैं। आपको समझ लेना है कि श्री फिर कुछ सामान्य समस्याएं हैं। जैसे हम देख रहे हैं कि अमेरिका मूर्खता कर रहा है। आपको अमेरिका पर चित्त डालना है। मार्गदर्शन करना है। उन्होंने हमें बताया है कि हम प्रकाश हैं और आपको अपने चित्त का विस्तार बाहर की ओर करना होगा, हमें लोगों का पथ-प्रदर्शन करना है और बताना है कि वे किस अन्दर की ओर नहीं। केवल अपनी, अपने परिवार, घर तथा बच्चों की ही चिंता नहीं करनी। बाहर की ओर चित्त विस्तृत करते एक छोटे से भंवर में फंस कर गोल घूमता हुआ। यह कैसे हो ही आपकी व्यक्तिगत समस्याएं सुलझ जाती हैं। आपको बाहर चित्त डालना हैं। आजकल दूरदर्शन है। पहले हमने कहा कि दूरदर्शन मत बारे में कुछ नहीं जानते। फिर भी वे इतना कुछ कर रहे हैं। और देखिए-क्योंकि सहजयोगियों को इसका कोई लाभ न था। दूरदर्शन देखने से वे पकड़े जाते थे। परन्तु अब महत्वपूर्ण से, अपने विचारों, अपनी तुच्छ बुद्धि तथा संकीर्ण-हृदयता घटनाएं घटित हो रही हैं जिन्हें आप स्वयं देख सकते हैं। विश्व संघर्ष कर रहे हैं । की समस्याओं का आप अंदाजा लगा सकते हैं और निर्णय कर सकते हैं कि कहां आपने चित्त डालना है। एक बार आप अपने व्यक्तित्व को समझ लें। व्यक्तित्व एक देना है। आपने स्वयं देखना है कि आप किस योग्य हैं और क्या सीमित क्षेत्र में लिप्त नहीं हो सकता। आपका व्यक्तित्व पूरे ब्रह्मांड की समस्याओं में लिप्त हो जाना चाहिए। आप आश्चर्यचकित होंगे दुष्कर है। मैं कुछ नहीं कर सकता। कुछ लोग कह सकते हैं कि कि सामूहिक रुप से सभी कुछ हो सकता है। इस स्थिति में आप कहां हैं, आप स्वयं यह देख सकते हैं। इसीलिये सहजयोग में आए हैं? क्या यही कहने के लिये आपको सभी सहजयोगियों के सहस्रार पर चैतन्य लहरियां हैं। क्या आप ये सब वरदान मिले हैं? सब देखना चाहेँगे ? आओ देखें। इस फोटो में मेरे सामने बैंठे आप सभी लोगों के सिर पर लहरियां हैं। अत: अपनी लहरियों को फैलायें। अपने चित्त को फैलाएं। आप हैरान होंगे कि आपकी सभी तुच्छ समस्याएं समाप्त हो जायेंगी| आप सब यह फोटो देखें। स्थिर होना आवश्यक है। यद्यपि मैं इंग्लैण्ड में बहुत वर्ष रही हूं अतः हमें अपनी गरिमा, अपनी पदवी के प्रति चेतन होना मैं है। जानना है कि हम संत हैं और एक सर्वाच्च अवस्था पर पहुंच यहां रहती है। वे सोचते हैं कि हम हवाई-अड्डे पर चले जाएं। गए हैं। अब हम प्रकाश बन गए हैं और दूसरे लोगों को भी यह प्रकाश देना है। बाइबल में ईसा ने कहा है कि प्रकाश को मेज है। क्या आप हवाई-अड्डे गये थे? क्या आप श्री माता जो से के नीचे न रखें। दीपक को थड़े पर रखें। अन्य लोगों तक प्रकाश मिले? बस हो गया। मुझे मिलने का लाभ क्या है ? मैने आपको पहुंचाने के लिये अपने प्रकाश को सर्वोच् स्थान पर रखें। यह दोतरफा कार्य कर रहा है बशर्ते कि आप यह समझना आरंभ ने आपसे साक्षात्कार पाया है? पता लगाइए कि कितने लोगों कर देकि आप क्या हैं, आप को किस बात का ज्ञान होना चाहिए, ने आपके जीवन, विवेकशीलता तथा आपके आचरण से आपकी अवस्था क्या है, आपकी शक्तियां क्या हैं, आपने सहजयोग सौखा है ? यह तरोका है। यह मापदंड है। यह नहीं सहजयोग में क्या प्राप्त किया है, आप पर सहजयोग का क्या कि ठीक है मैने श्री माता जी को यात्रा खर्च भेजा है? भारत में ऋण है, और आपने सहजयोग के लिये क्या देना है तथा किस मेरी आयु की स्त्रियां छड़ी के सहारे चलती हैं। एक सीोढ़ो वे नहीं आप सभी आवश्यक अच्छे कार्य कर रहे हैं? केवल आप ही मूर्खतापूर्ण पूर्व-जीवन तक ही सीमित कर देंगे तो आप अपने तथा दूसरों के प्रति भटक जायेंगे। जितना आप जानते हैं. माता जी ने हमें योगो बनाया है। हम संत हैं और हमें विश्व का १ । प्रकार आगे बढ़े। हर व्यक्ति समस्याओं में फंसा हुआ लगता है, सकता है। मैने आपको बहुत बार कहा है कि इन झूठे गुरूओं को देखें। इनमें चैतन्य नहीं है। वे कुण्डलिनी तथा सहजयोग के हम क्या कर रहे हैं? हम अभी तक स्वयं से, अपनो समस्याओं यह समझना आप पर निर्भर है। अपने बारे में आपने स्वयं निर्णय करना है। अपनी इच्छा, बड़घ्पन और उदारता को बढ़ावा कर सकते हैं। यह कहना बहुत सरल है कि मां यह कार्य बहुत श्री माता जी, में अपने परिवार तथा बच्चों में व्यस्त हूं। क्या आप अतः दृढ़ीकरण करना आपके लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप इसे स्पष्ट देख सकते हैं। और इसी कारण इंग्लैण्ड में कोई जन-कार्यक्रम न कर सके क्योंकि वास्तव में हमें सहजयोग में फिर भी यहां लोग मेरी अधिक परवाह नहीं करते। क्योंकि बस। हमने सभी कठिनाइयां झेल ली हैं, हमने हज कर लिया क्या दिया है? क्या आपका मरकाश फैल रहा है? कितने लोगों न 11155 अन्तर्दर्शन 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-6.txt वह तूफान बन जाता है। वह इतना आक्रामक तथा अशिष्ट हो जाता है कि मैं विश्वास ही नहीं कर पाती। धन किस प्रकार आपको इन बुराइयों की गर्त में धकेल सकता है? आप साधारण व्यक्ति नहों, आप ही वे सन्त हैं जिनके चरण गंगा नदी ने धोये थे अपनी गरिमा को समझने का प्रयत्न कीजिए। अपनी शक्तियों, अपने संत पद को समझने का प्रयत्न कीजिए। आप सहजयोगी सब संतां से उच्च हैं क्योंकि आप ही आत्म साक्षात्कार देना जानते हैं। कुण्डलिनी के विषय में आप सब कुछ जानते हैं। आत्म साक्षात्कार के बारे में आप सब कुछ जानते हैं। कितने लोगों को इसका ज्ञान था? नहीं तो मुझे ऐसा लगता है मानो मैने यह ज्ञान मूर्ख समूह को दे दिया है जो इसका मूल्य नहीं जानते। ईसा ने कहा है 'सूअरों के सामने मोती मत डालिए।' मेरे विचार में मैने यह गलती नहीं की। निश्चय हो मैने ऐसा नहीों किया। पर यह निर्णय चढ पातों। भारत की गर्म जलवायु के कारण। परन्तु में यात्रा कर रही हूं। आप जानते हैं कि कितनी यात्रा करती हूं और कितना काम करती हैं। अपने परिवार को मैं अपनी संगति से वंचित करती हैं। परिवार का हर सदस्य इस कमी को महसूस करता है। पर मैं यात्रा करती रहती हैं, करती रहती हूं। आप सब अच्छी तरह जानते हैं कि मैं कितना घोर परिश्रम करती हूं। कभी मैं प्रातः दो बजे सोती हूं और कभी तीन बजे। इस बार हर्ष मेरे साथ था। मैने उसे देखा। वह निढाल हो गया। आप एक छोटी दौड़ दौड़ते हैं पर मैं (मैराथन) लम्बी-दौड़ दौड़ रही हूं। जिस देश में मैं होती हं केवल वहीं के सहजयोगी कार्य करते हैं और मेरे जाते ही आराम से बैठ जाते हैं। पर मैं तो ऐसा नहीं करती। आपको भी मेरी तरह सोचना चाहिए। मैं जो कुछ भी करती हूं उससे मुझे क्या लाभ है? मैं आपके लिये कार्य करती हूं। मैं करना आप पर निर्भर करता है कि आप कहां खड़े हैं और किस अपने बच्चों को सामान्य अवस्था में ले आई हं। उन्हें परमात्मा श्रेणी में । के साम्राज्य में पहुंचा दिया है। आपको भी ऐसा ही करना है। आपको अन्य लोगों को परमात्मा के साम्राज्य में ले जाना है। मुकाबला करना आवश्यक है। अब तक लड़े गए युद्धों से यह परन्तु यदि आप अपनी ही दलदल में फंसे रहे तो दिनों-दिन कार्य कहीं कठिन है। मानव द्वारा किए गए सभी संघर्षों से यह आपका पतन होगा। यदि आपने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया कहीं कठिन है। एक भयानक विश्व की सृष्टि हो चुको है और तो आप जहां हैं वहीं भटक जाएंगे इंग्लैंड के लोग अत्यन्त हमने इसे परिवर्तित करना है यह अति कठिन कार्य है। इसके बुद्धिमान हैं। अमेरिका के लोगों की तरह आप मूर्ख नहीं हैं। एक लिये आपको अत्यन्त सच्चाई से कार्य करना होगा। मुझे विश्वास समय था जब आपकी बुद्धिमत्ता चालाकी बन गई थी। पर अब है कि एक दिन विश्व के इतिहास में सहजयोगियों का नाम सुनहरे आप इस चालाकी से परेशान हो चुके हैं। भारतीयों ने आपसे अक्षरों में लिखा जाएगा। मुझे विश्वास है कि यह घटित होगा । चालाकी सीख ली है। परन्तु चालाकी से थककर आप लोग इसे घटित होना होगा। एक मस्तिष्क तथा हृदय से, सामुहिक रूप आलसी हो गए हैं। फिर भी अपनी बुद्धि से आप समझ सकते में आपने यह प्राप्त करना है। मैं क्या बलिदान करुं? मुझे क्या हैं कि श्री माता जो कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। आपका कहा हुआ हरे शब्द और आपका हर आचरण इतिहास बन जायेगा। जो भी कुछ आप सहजयोग के लिये करेंगे पाती। अतः आज हमें अन्तर्दर्शन करना है। वह इतिहास में लिखा जायेगा। आपका हर कार्य, सहजयोग में आपको हर उपलब्धि। दिखावा या डींग मारना नहों मात्र आपकी उपलब्धियों को ही लिखा जाएगा। परमात्मा पाखण्ड को समझते करेंगे। अपना बायां हाथ मेरी ओर करके शरीर के बायें भाग हैं। वे जानते हैं कि आपकी स्थिति क्या है और आपका लक्ष्य में आप सब कार्य करेंगे। सर्वप्रथम अपने हृदय पर दायां हाथ क्या है। आप परमात्मा को बेवकूफ नहीं बना सकते। परमात्मा को बेवकूफ बनाते समय याद रखें कि आप स्वयं को, अपनी आपने अपनी आत्मा का धन्यवाद करना है कि इसने आपके आत्मा को, अपने आत्म साक्षात्कार को और अपने उत्थान को चित्त को प्रकाशमय किया है। क्योंकि आप संत हैं अतः जो बेवकृफ बना रहे हैं। अतः हमें सावधान रहना है। मां होने के नाते मैं कहूंगी कि बड़ी सावधानी पूर्वक अन्तर्दर्शन ज्योतिर्मय करना है। अत: कृपया अपने हृदय में प्रार्थना कीजिए कौजिए। आपने सहजयोग के लिये क्या किया ? अन्य सहजयोगियां के लिये क्या किया? भटकते लिये क्या किया? अन्य सहजयोगियों के साथ हमारा आचरण कैसा है? कितनी शांति, प्रेम एवं करुणा, हमने अन्य लोगों को दी है? हमने दूसरों को कितनो सूझबूझ तथा सहनशीलता दिखाई है? किसो के पास यदि थोड़ा सा अधिक धन आ जाता है तो स्पष्ट है कि कितने भयानक समय से हम गुजर रहे हैं। इससे करना चाहिए? किस प्रकार मुझे सहायता करनी चाहिए? मेरा क्या योगदान है ? काश कि मैं अपने जीवनकाल में वे दिन देख तो क्या हम ध्यान करें? कृपया आप सब अपनी आंखें बंद कर लोजिये जैसे हम जन कार्य-क्रम में करते हैं वैसे ही ध्यान रखना है। हृदय में शिव का निवास है, आत्मा का स्थान है। अतः प्रकाश आपके हृदय में हुआ है उससे आपने पूरे विश्व को कि : हुए अन्य लोगों के श्री माता जी परमात्मा के प्रति मेरे प्रेम का यह प्रकाश पूरे विश्व में फैले। अपने प्रति पूर्ण सच्चाई तथा समझदारी रखते हुए कि आप चैतन्य लहरी 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-7.txt परमात्मा से जुड़े हुए हैं और पूर्ण आत्मविश्वास से आप जो इच्छा चरित्र में गरिमा और आचरण में उदारता हो। करेंगे वह पूरी होंगी। अब अपना दायां हाथ अपने पेट के ऊपरी हिस्से पर, ओर रखें। यह आपके धर्म का केन्द्र है। यहां आपको प्रार्थना प्रम हो। श्री माता जी मुझ में बनावटीपन न हो। करनी है कि :- श्री माता जी विश्व निर्मला धर्म पूरे विश्व में फैले। हमारे धार्मिक जीवन तथा धर्मपरायणता लागा को प्रकाश दिखाएं। अपनी धर्मपरायणता लोगों को देखने दें ताकि वे विश्व निर्मला धर्म स्वीकार करें जिसके द्वारा उन्हें ज्ञान, हितैषिता, उच्च जीवन तथा उत्थान की इच्छा प्राप्त होती है। अब अपना बायां हाथ अपने पेट के निचले हिस्से पर, बाई ओर रखें। इसे थोड़ा सा दवायें। यह आपकी शुद्ध विद्या का केन्द्र हमें प्रदान किया। अपनी ही तरह अथाह है। सहजयोगी होने के नाते यहां पर आप कहें कि :- परमात्मा की कार्यप्रणाली का पूर्ण ज्ञान हमें कोटि-कोटि प्रणाम। कृपा करके मेरे हृदय को हमारी श्री माता जी ने प्रदान किया है। हमारी इतना विशाल कीजिए कि पूरा ब्रह्माण्ड इसमें अन्य सहजयोगियों के लिये मुझमें करुणा तथा बाई परमात्मा के प्रेम तथा उसके कार्यों का गहन ज्ञान मुझे हो ताकि जब लेग मेरे पास आयें तो मैं उन्हें प्रेम तथा नम्रतापूर्वक सहजयोग के विषय में बता सकूं और यह महान ज्ञान उन्हें दे सकूं। अब अपना दायां हाथ अपने हृदय पर रखें। यहां पूर्ण हृदय से कहें श्री माता जी कि :- ा आनन्द तथा क्षमा के सागर का अनुभव आपने क्षमाशीलता आप ने हमें दी। श्री माता जी आपको समा जाये। मेरा प्रेम आपके नाम का गुंजन करे। मेरा हर श्वांस आपके प्रेम की सुन्दरता की अभिव्यक्ति करे। सूझबूझ तथा सहनशक्ति के अनुसार श्री माता जी ने हमें सारे मंत्र तथा शुद्ध विद्या दी है। हम सब को इसका पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। मैने देखा है कि यदि पति अगुआ है तो पत्नी को सहजयोग का एक शब्द भी नहीं आता। यदि पत्नी को सहजयोग का ज्ञान है तो पति इसके बारे में कुछ नहीं जानता प्रार्थना कीजिए कि- श्री माता जी मझे इस ज्ञान में निपुण कीजिए ताकि मैं लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकूं, तथा उन्हें दैवी- कानून कुण्डलिनी तथा चक्रों के विषय में समझा श्री माता जी कृपा कीजिये कि मेरा चित्त अब आप अपना दायां हाथ बाई विशुद्धि की ओर से ले जाकर गर्दन के मध्य में पीछे की ओर मध्य विशुद्धि चक्र पर रखें। पूर्ण विश्वास के साथ कहें मैं कपट तथा दोष से लिप्त नहीं हंगा। अपने दोषों को मैं छिपाऊंगा नहीं, उनका सामना करके उनसे मक्त हंगा। मैं दूसरों के दोष नहीं ढूंढूंगा। अपने सहजयोग के ज्ञान द्वारा उनहें दोषमुक्त करुंगा। (हमारे पास चुपके-चुपके दूसरों के दोष दूर करने सकूं। सांसारिक वस्तुओं की अपेक्षा सहजयोग में अधिक हो। से तरीके हैं) श्री माता जी मेरी सामुहिकता के बहुत को इतना महान बनाइये कि पूर्ण सहजयोग जाति मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरा घर तथा मेरा अब दायां हाथ पेट के ऊपरी हिस्से में, बाई ओर रखें। आंखें बंद रखें। पेट को हाथ से थोड़ा सा दबा कर रखें। यहां पर कहें कि श्री माता जी ने मुझे आत्मा प्रदान की है जो कि मेरी है। पूर्ण हृदय से कहें श्री माता जी सवस्व बन जाए। क्योंकि हम सबकी एक ही मां है अत मुझमें पूरी तरह तथा अन्त्तजात रुप से यह गुरू भाव जागृत हो जाए कि मैं पूर्ण का ही अंग प्रत्यंग हूं, मुझे पूरे विश्व की समस्याओं को जानने की तथा अपनी शुद्ध इच्छा तथा शक्ति से उनका উ मैं स्वयं का गुरू हूँ। मुझमें असंयम न हो, मेरे अन्तर्दर्शन 7. 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-8.txt समाधान करने की चिंता हो। श्री माता जी कृपा है, जो भी तुच्छता आपको दिखाई है, किसी भी करके अपने हृदय में, अन्तर्जात रुप से पूरे विश्व प्रकार से आपको दुःख पहुंचाया है या आपको की समस्याओं को जानने तथा उनके कारणों को चुनौती दी है तो कृपा करके हमें क्षमा कर जड़ से समाप्त करने की भावना मुझे प्रदान दीजिए। कीजिए। मुझे इन समस्याओं के मूल तक पहुंचाइये ताकि मैं अपनी सहजयोग तथा सन्त चाहिए कि मैं क्या हूं। मुझे बार-बार यह बताने की आवश्यकता सुलभ शक्तियों द्वारा इन्हें दूर करने का प्रयास करुं। अब अपने बायें हाथ से आप अपने कपाल को पकड़िये। में इस प्रकार घुमाएं कि सिर की चमड़ी भी हल्की-हल्की घूमे। यहां आपको यह कहना होगा कि श्री माता जी मैं उन सब लोगों को क्षमा करता हुं जो सहजयोग में नहीं आये हैं, जो अभी परिधि-रेखा पर हैं, जो आते हैं और जाते हैं, जो कभी सहज सागर के अन्दर कूदते हैं और कभी इससे बाहर। परन्तु सर्वप्रथम मैं सारे सहजयोगियों को क्षमा 3. श्री माता जी परमात्मा के सभी आशीर्वाद हम करता हूं क्योंकि वे सब मुझसे कहीं अच्छे हैं। मैं उनके दोष खोजने की चेष्टा करता हूं पर वास्तव में आपको क्षमा मांगनी पड़ेगी। अपने विवेक से आपको जानना नहीं होनी चाहिए। अब सहस्रार पर आपको मेरा धन्यवाद करना होगा। अपना दायां हाथ सहस्रार पर रखकर सात बार घड़ीकी सुई की दिशा सात बार मरा धन्यवाद करें। कहें कि :- 1. श्री माता जी आत्म साक्षात्कार प्रदान करने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 2. श्री माता जी हमारी महानता हमें समझाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| तक लाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 4. श्री माता जी तुच्छता से उठा कर उच्च स्थिति पर लाने के लिये हम आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 5. श्री माता जी जो आश्रय आपने हमें प्रदान किया तथा आत्मोन्नति के लिये जो सहायता आपने कृपा करके हमें दी उसके लिये हम हृदय से आपके आभारी हैं। आपको कोटि-कोटि मैं उन सबसे तुच्छ हूं। मुझे सबको क्षमा करना है क्योंकि मुझे अभी बहुत दूर जाना है। में अभी बहुत तुच्छ हूं। मुझे स्वयं को सुधारना है। यह नम्रता हममें आनी चाहिए अत: आपको यहां कहना होगा कि :- श्री माता जी मेरे हृदय की सच्ची नम्रता मेरे अन्दर क्षमा- भाव उत्पन्न करे ताकि मैं वास्तविकता, परमात्मा तथा सहजयोग के प्रति नतमस्तक हो जाऊं। प्रणाम। 6. श्री माता जी हम हृदय से आभारी हैं कि आप पृथ्वी पर अवतरित हुए, मानव जन्म लिया और हम सब के उत्थान के लिये घोर परिश्रम कर रहे हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 7. श्री माता जी हमारा रोम-रोम आपका ऋणी है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| अब आप अपना दायां हाथ सिर के पीछे के भाग पर रखें। सिर को अपने हाथ पर पीछे की ओर झुका लें। यहां पर आप कहें कि श्री माता जी अभी तक आपके प्रति हमने जो भी अपराध किये हैं, हमारे मस्तिष्क में जो भी बुराई आती चैतन्य लाहरो 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-9.txt पल्लाज अथेना पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) यूनान-1993 पहली बार जब मैं यूनान आई तो मैने अपने पति को बताया नाभि चक्र के अन्दर का टापू जहां देवी का निवास है। जब मैं कि यह देश चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण है तथा यहां बहुत सी उनके (अथेना) मंदिर गई तो मैने पाया कि वहां शिशु-देव महान आत्माएं हुई हैं। सम्भवतः लोगों ने अपनी परम्परा खो दी श्रीगणेश के लिये भी एक छोटा मंदिर था। डेल्फी में उन्होंने कहा है। फिर भी वातावरण मैं चैतन्य लहरियां हैं। एक दिन यहां कि यह पूरे ब्रह्माण्ड की नाभि है। वहां मैने श्रीगणेश की प्रतिमा सहजयोग फलना-फूलना चाहिए। पन्द्रह वर्ष पूर्व मैं डैल्फी गई और सभी देखने योग्य स्थानों को तथा समुद्र को अत्यन्त सुन्दर पाया। अब मुझे लगता है कि जाता है। नाभि के दाई ओर जिगर है तथा बहत से दार्शनिक भी। आप लोगों को चैतन्य लहिरयां आ रही हैं तथा यह स्थान बहुत विचारक होने के कारण उन्होंने बहुत सी त्रासदियों का चैतन्यित हो गया है। आप लोगों पर बहुत बड़ा दायित्व है क्योॉकि सामरिक दृष्टि गई। इनमें दो स्त्रियां और एक पुरुष या एक पुरुष और दो स्त्रयां से आपका स्थान यूनान तथा तुर्की में है। पूर्वी एवं पश्चिमी भागों हैं। विवाह से वे कभी प्रसन्न न थे। बाई नाभि पर सदा आक्रमण के मध्य आप पुल हैं। हर व्यक्ति इन दोनों क्षेत्रों को सम्भालना होता रहा। लोग बाई ओर को झुक गए तथा सोचने लगे-"ये चाहता है ताकि वे पूर्वी एवं पश्चिमो क्षेत्रों पर शासन कर सके। जीवन दयनीय है, त्रासदो है। हम क्यों स्वयं को प्रसन्न दिखाने का सबसे बड़ा भय यह है कि कहीं पाश्चात्य संस्कृति आपको हड़प न ले। ऐसा होना अत्यन्त भयानक है। आपको पता होना चाहिये स्त्रियों को अपवित्र मानता है तथा उनसे अच्छा व्यवहार नहीं देखो। आप नाभि हैं। आप पूरे विश्व को नाभि में बैठे हुए हैं। नाभि चक्र यदि खराब हो जाए तो पुरा जीवन दयनीय हो सृजन किया जिनमें कुछ सीमा तक विवाह प्रथा को चुनौती दी प्रयत्न करें?" फिर प्राच्य (आर्थोडाक्स) चर्च आया। यह भी कि भारतीयां की तरह आप भी एक महान परम्परा से आयें हैं करता। कई बार तो उन्हें चर्च जाने तथा किसी को छुने की भी जो कि युगों पुरानी है। अपने आचरण से आप यूरोप की संस्कृति आज्ञा नहीं होती। इसने स्त्रियों को अति संवेदनशील बना दिया। को सुधारने के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं। पर्यटक जब यहां आ कर यूनानियों का व्यवहार देखते हैं तो उन्हें लगता है कि वे इस प्रकार यहां बाई ओर (भावुकता) प्रधान हो गई। बहुत से गुरु यूरोप के लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। पूर्णतया पारम्परिक आये जिन्होंने आपकी दुर्दशा कर दी। यूनानी चर्च ने सबसे बुरा होने के कारण आपने जीवन में बहुत सी अच्छी चीजों को समझा किया और आपको दोष भावना ग्रस्त कर दिया। बाद में अति है। अपने देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना आपके लिये कर्मी, गहन विचारक तथा घोर परिश्रमी लोगों ने इस भावुकता अत्यन्त आवश्यक है। सहजयोगियों के लिये इस प्रकार की शिक्षा को प्रति संतुलित कर दिया। परन्तु अभी भी लोग आलसी अधिक प्राप्त करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्यींकि कल आपको अन्य हैं। लोगों को अथेना, अपनी पृष्ठभूमि और इसका सहजयोग से सम्बन्ध, मां मैरी तथा ईसा के विषय में बताना होगा। जैसे कि आप जानते हैं अथेना के हाथों में कुण्डलिनी है और ठोक करने का ज्ञान दूसरी आवश्यकता है। इस ज्ञान के बिना आप वे स्वयं आदिशक्ति हैं । संस्कृत भाषा में अथ का अर्थ है आदि लोगों का सामना नहीं कर सकते । केवल पुरुष ही नहीं, स्त्रियों (मूल)। यूनानियों तथा भारतीयों के बीच कोई सम्बन्ध न होने के को भी यह ज्ञान होना आवश्यक है। चक्र क्या हैं, वे किस प्रकार अचानक आर्थिक समस्याएं आ गई और लोग परेशान हो गए। यूनान में सहजयोग फैलाने के लिये आवश्यक है कि हम अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें। चक्रों, केन्द्रों तथा उन्हें कार्यकरते हैं और उसका परिणाम क्या है? चक्रों को यदि खतरा हैं तो हमें किस प्रकार दुःख उठाना पड़ता है। यह सारा ज्ञान आपके लिये नि:शुल्क है। आपको इस ज्ञान के लिये कुछ खर्चना कारण यह अनुवाद न हो पाया तथा लोग अर्थना का अर्थन समझ सके। भारतीय जानते हैं कि यह स्थान आदिशक्ति की अभिव्यक्ति का है। देवी महात्म्य में यूनान को मनीपुर द्वीप कहा गया है अर्थात पल्लाज अंथेना पूजा 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-10.txt नहीं पड़ता। रोजमर्रा के जीवन में जब आप सहजयोग को करने पर आप पायेंगे कि चीजें ठोक होने लगी हैं। स्वयं में सच्चाई कार्यान्वित करने लगेंगे तो पायेंगे कि मेरी बात में कितनी तथा श्रद्धा अति आवश्यक है। आपको स्वयं पर विश्वास होना वास्तविकता है। आप इसका सत्यापन कर सकते हैं। जिस चौज चाहिए कि आप योग्य व्यक्ति हैं तथा आप अति उच्च दर्जे की में हम विश्वास करते हैं उसे प्रमाणित कर सकते हैं। हम लोगों चेतना प्राप्त कर सकते हैं जिससे बहुत से कार्य आप कर सकते को दिखा सकते हैं कि यह सत्य है। पूर्ण सत्य। हम यहां धर्मान्धता हैं। आपको देश, जाति तथा पृष्ठभूमि से कोई अंतर नहीं पड़ता। या जातिवाद आदि फैलाने के लिये नहीं हैं। हम यहां विश्व को एक सूत्र में बांधने आये हैं क्योंकि हम सब एक ही ब्रह्माण्ड से कोई आशा न थी, बहुत अच्छा कार्य हो रहा है। वे सहजयोग संम्बन्धित हैं। यदि लोग आपसे पूछे कि क्या हमें हमारा धर्म त्यागना पड़ेगा तो आपको उनके प्रति कठोर नहीं होना। धीरे - धोरे सब ठीक हो जाएगा। आप सब जब सहज में आये थे तो है यद्यपि इसी के कारण हम सहजयोग कर सकें। यहां लोग अति ऐसे ही थे। शनै-शनै आप परिपक्व हुए हैं आपने सहजयोग मूढ़ हैं। अमेरिका में मैने पाया कि लोग गुसल का सामान, पर्दे, को समझा है । इसी प्रकार सूझबूझ, करुणा और प्रेम से आप लोगों साबुन आदि खरीदने में व्यस्त हैं। रूस में लोग बहुत समझदार, को सहजयोग सिखाइए। नहीं तो प्रायः लोग सोचते हैं कि उन्हें गहन तथा अन्तदर्शी हैं, वहां के कलाकार तथा वैज्ञानिक भी। हर समय प्रताडित किया जाता है। कुछ लोग खराब भी होते हैं। ऐसे प्रजातन्त्र का क्या लाभ जो हमें परमात्मा तक न ले जाए, उनके साथ आपका चल पाना कठिन है। फिर भी आपको परमात्मा को देखने तथा उनके प्रति नम्र होने का विवेक न दे। अधिक से अधिक लोगों को अपनी करुणा, सूझबूझ तथा दूसरों लोग अत्यन्त धनाभिमुख है। प्रजातन्त्र धन चालित है। यूनानी तथा की भावनाओं के प्रति सम्मान से सहजयोग में लाना है मैने देखा इटली के लोग अत्यन्त धनाभिमुख हैं। इटली में भयंकर भ्रष्टाचार है कि अचानक ही कोई व्यक्ति आकर परेशान करने लगता है, है। अब इटली का पद्दाफाश हो रहा है। परन्तु सर्वप्रथम दुर्व्यवहार करने लगता है। यदि हमें सूचित किया जाये तो हम सहजयोगियों को दृढ़ होना होगा। उन्हें समझना चाहिए कि उसे सहजयोग से निकाल सकते हैं या ठोक कर सकते हैं। परन्तु ज्योतिर्मय आत्मा ही सहजयोग है। और आपकी आत्मा ने ही सारा आप सब इस बात को अच्छी. तरह से जान लें कि आप सबमें कार्य करना है तथा यह भी जानना है कि आप यह शरीर, धन, वे शक्तियां हैं जिनसे आप स्वयं को रोग मुक्त कर सकें और पदवी, सत्ता नहीं है। आप आत्मा हैं। आप सभी बहुत अच्छा कार्य कर सकते हैं। रूस जैसे देश में जहां को तुरन्त समझते हैं तथा स्वीकार करते हैं। उनकी सच्चाई को चुनौती नहीं दी जा सकती। इस प्रजातन्त्र ने हमें बहुत हानि पहुंचाई सुधार सकें तथा दूसरों की भी सहायता कर सकें। आप स्वयं सभी कुछ कर सकते हैं केवल आपको सच्चा तथा ईमानदार होना पड़ेगा। बिना सच्चाई और ईमानदारी के कार्य न होगा। इतना ही नहीं इसका आप पर विपरीत असर होगा। सहजयोग में सच्चाई अति महत्वपूर्ण है। आप यहां मोक्ष प्राप्ति तथा दूसरों की सहायता के लिये हैं। पूरे विश्व के लोगों को आपकी सहायता की आवश्यकता है। इतनी समस्याएं तथा आपत्तियां हैं। अब हमें दृढ़, सन्तुलित, शांत और उचित-अनुचित को समझने वाले लोगों की आपको अवश्य सामुहिकता में आना चाहिए और अपना चित्त किसी और पर न रख कर मुझ पर रखना चाहिए। अपने चित्त को आप ठीक रखें। आपका चित्त कहां है ? क्या आप अपना सिर बार-बार घुमाते हैं या अपने सिर को सीधा रखते हैं? अपने चित्त को पूर्णतया ठीक रखना अत्यन्त आवश्यक है। ध्यान रखें कि आप सामुहिकता के लिये आए हैं। इस प्रकार यदि आपका चित्त ठीक है तो आप निर्विचार समाधि को अवस्था तक उठ जायेंगे जहां आपका आध्यात्मिक उत्थान होता है। आपको निर्विचार समाधि की अवस्था तक उठना होगा। इसके बिना आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त आप समझें कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। बहुत से लोग कहेंगे कि हम इतने धार्मिक हैं, देवताओं की इतनी प्रार्थना करते हैं फिर भी हमें क्या मिला ? बिना जुड़े आप कुछ नहीं पा सकते। आपको परमात्मा से सम्बन्ध बनाना होगा एक बार ऐसा आपका आध्यात्मिक उत्थान न होगा। अतः अपने चित्त को देखना आवश्यक है। चित्त को यदि कावू कर लिया जाये तो सब ठीक हो जायेगा। सामुहिकता में होना पहली आवश्यकता है। सदा सामुहिकता को तोड़ना, समस्याएं खड़ी करना और नेताओं की अवहेलना चैतन्य लहरी 10 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-11.txt करना कुछ लोगों का दुर्भाग्यपूर्ण विचार है। परिणामतः परेशान सकता है। इसके लिये आपको स्वयं को देखना होगा तथा हो कर नेता भी त्याग देते हैं। ऐसे लोग सदा नेता के लिये समस्याएं अन्तर्दर्शन करना होगा। शीशे के सामने खड़े होकर पूछे कि खड़ी करते हैं और हर जगह अपना महत्व दिखाने का प्रयत्न आपमें कितना अहं है और उस पर हंसें। एक बार व्यर्थ मान करते हैं जैसे वे सब कुछ जानते हों। ऐसे लोग गुट बनाते हैं अतः कर जब आप अपने अहं पर हंसने लगंगे तो आपका अहं छूट उनसे सावधान रहना चाहिए। सदा सामुहिकता के साथ रहें। गुट जाएगा। अपने बारे में जानने के वहुत से तरीके हैं बंधन लेकर बनाने तथा कठिनाइयां उत्पन्न करने वाले लोगों का साथ न दें। समझ लें कि सामूहिकता में रहने वालों का ही उत्थान होगा। यह से चक्र पकड़ रहे हैं। इन्हें ठीक करना भी आप जानते हैं। कई नाखून की तरह है। एक बार यदि ऊंगली से अलग हो जाये तो बार आपके चक्र यदि पकड रहे हों तो अपने अंदर आपको बढ़ नहीं सकता। नेता से आपको यदि कठिनाई है तो आप मुझे इनका पता चलता है। दूसरों के विषय में केवल चक्रों पर ही लिख सकते हैं या बता सकते हैं। मैं इसे ठीक कर दूंगी। सदा बात करें। ये न कहें कि वह भूत - बाधा ग्रस्त है या उसमें अहं नकारात्मक लोगों से सावधान रहिए। सदा सामुहिकता का साथ है। आप कह सकते हैं कि उसकी आज्ञा पकड़ रही है। अर्थात दोजिए, सहायता कीजिए और इसका पोषण कीजिए। आप यहां उसमें अहं है। अब आपको भाषा बदलनी चाहिए। हमें सहजयोग अपने आध्यात्मिक विकास के लिये हैं, मुर्ख लोगों को सुनने के की भाषा में बात करनी है। समझना आवश्यक है कि हम लिये नहीं। अपने विकास तथा पोषण में लगे राहना ही ठीक है। सहजयोगी हैं। हमारे पास शक्तियां हैं-चैतन्य लहरियों की सामुहिक होने के साथ-साथ सहजयोग व्यक्तिगत भी है। स्वयं देखिये कि सामुहिकता से आपको क्या लाभ हो रहा है। घर पर प्रतिदिन सोने से पूर्व अवश्य ध्यान करें। पानी में बैठने हों तो आपके बंधन देने से बन जाते हैं। यह समझना अत्यन्त के बाद दस मिनट ध्यान के लिये बैठें। स्वयं को पंद्रह मिनट देने आवश्यक है कि आप सहजयोगी हैं और बहुत कार्य कर सकते के बाद सोयें। किसी रात यदि ध्यान न हो पाए तो कोई बात नहीं, हैं। अब आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं। आप संत हैं और बहुत पर रोज रात को ध्यान करने का प्रयत्न करें। यह अत्यन्त कुछ कर सकते हैं। यह सब जब कार्यान्वित होगा तो आप स्वयं आवश्यक है। मैं सुगमता से समझ लेती हूं कि कौन व्यक्ति ध्यान करता है और कौन नहीं करता। प्रतिदिन ध्यान करने वाले व्यक्ति के स्वस्थ, शक्ल तथा आचरण से मुझे पता चल जाता है। ध्यान हैं। बच्चों से भी आप कहें कि आप सहजयोगी हैं ताकि वे भी न करने वाले स्वयं तो हास्यजनक होते हैं हीं, उनके बच्चे तथा सहजयोगी की तरह गरिमामय व्यवहार करें। नये युग (सत्य युग) सम्बन्धी भी वैसे ही होते हैं। ध्यान आपका आवश्यक अंश है। का आरंभ हो गया है। अब असत्य का पर्दाफाश होने लगेगा। सभी जो गर्भवती स्त्रियां ध्यान नहीं करतीं उनके बच्चे अत्यन्त झूठे लोग अनावृत हो जायेंगे और आपको ही यह सब करना दुःखदायी निकलते हैं। इसका प्रभाव हर चीज पर पड़ता है। है। ऐसे महान समय पर आपने जन्म लिया है । आपका सहजयोग आपका ध्यानमय तथा सहजयोग चरित्र सबका सहायक होता में आना तथा साक्षात्कार पा लेना बहुत बड़ी बात है। अब आप है। आपके बच्चे, परिवार, समाज तथा हर व्यक्ति समझ जाता ही लोगों ने पूरे ब्रह्माण्ड को एक उच्च चेतना के स्तर तक ले है आप कैसा परिवार हैं, कैसे लोग हैं तथा कैसे व्यक्तित्व हैं। जाना है। हम नहीं कह सकते कि कितने लोग बच पाएंगे। विकास आप ही को देखकर वे सहजयोग अपनाते हैं। व्यक्तिगत जीवन प्रक्रिया में भी हम वनमानुषों से विकसित हुए हैं। बहुत से बीच में भी समर्पण आवश्यक है। आपको निर्विचार समाधि की ही में रह गए और कुछ अभी तक भी वनमानुष हैं। इसी प्रकार अवस्था तक आना होगा। इसका मंत्र है 'निर्विचारिता', उपयोग अपनी मूर्खतापूर्ण तथा आत्मघाती आदतों के कारण बहुत से करें। निर्विचार समाधि का समय बढ़ाते चले जाएं। ज्यों-ज्यों आपको अधिक शक्तियां मिलती जाएंगी और दायित्व है। कभी न सोचें कि मैं मध्यम दर्जे का हूं या बेकार हूं। आप द्वारा साक्षात्कार पायें तथा रोगमुक्त हुए लोगों की संख्या इस प्रकार कभी न सोचें। आप सब संत हैं तथा आप में महान बढ़ती चली जाएगी तो इसका प्रभाव आपके अहं पर भी पड़ कार्य करने की क्षमता है। अपने हाथ फोटो की ओर करें।तुरन्त आप जान जाएंगे कि कौन शक्तियां यदि आप इनका उपयोग नहीं करते तो क्या होगा। हमें इनका उपयोग करना है। छोटे-छोटे काम भी यदि न बन रहे पर आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि कैसे आपने यह सब पा लिया। हर समय याद रखें कि आप क्या हैं। आप एक सहजयोगी मनुष्य भी इस विकास प्रक्रिया में खो जाएंगे । आप पर महान पल्लाज अधेना पूजा 11 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-12.txt ईस्टर पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) मैगलानो, इटली, 11 अप्रैल, 1993 आज हम सब लोग इस सुन्दर पर्वत की चोटी पर ईसा का पुनर्जीवन मनाने के लिये एकत्र हुए हैं। पुनर्जीवन को इस घटना को समझना सहजयेगियों के लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इस घटना के द्वारा ईसा ने दर्शाया कि आत्मा अमर है। वे ओंकार थे। वे मिलता सुक्ष्मता से यदि आप देखें तो यह अति पीड़ाकारक है कि लोग इन महान अवतरणों के नाम पर इतने जघन्य कर्म कर रहे हैं। उन्हें परमात्मा का भय ही नहीं। परमात्मा के नाम पर पूरे विश्व में पाप किए जा रहे हैं। यहां कैथोलिक चर्च का पंर्दाफाश हुआ है। लोग देख रहे हैं कि जगह -जगह झूठ का अनावरण हो रहा है। पर इस झूट का उपयोग परमात्मा, अध्यात्मिकता और सौंदर्य के नाम पर हुआ है। झूठ छिपाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है। अत्याचार, हिंसा, भद्दापन इस प्रकार छा गया है कि इन लोगों में धार्मिकता का नामोनिशान भी आप नहीं पा सकते। सभी चोरों, बदमाशों तथा कुचक्रियों ने सत्ता सम्भाल ली है। ही लोगोस थे तथा आत्मा भी थे। इसी कारण वे जल पर चल सके। अभी एक फिल्म बनाई गई है जिसमें मूलाधार को दिखाया है। मूलाधार में कार्बन के कण दिखाई पड़ते हैं। इसे जब आप दायें से बायें देखते हैं तो पूरा स्वास्तिक दिखाई पड़ता है तथा बायें से देखने पर ऑकार। इसको नीचे से ऊपर देखने पर आपको अल्फा और ओमेगा दिखाई देते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि जब ईसा ने कहा कि मैं ही अल्फा हूं और मैं ही ओमेगा हूं तो इसका कारण, जैसे कि सभी धर्म-ग्रन्थों में लिखा है, आत्मा की खोज न करना है बार बार ईसा ने कहा है कि "स्वयं को पहचानो।" उन्होंने यह भी कहा कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा। इसका अर्थ यह था कि वे ही श्रीगणेश के अवतरण थे। अब हमारे पास वैज्ञानिक प्रमाण हैं और अब हम लोगों को बता सकते हैं कि यह सच्चाई है। हमारे उत्थान के लिये वे अत्यन्त महत्वपूर्ण अवतरण थे। यदि ये लोग एक दम प्रमाणपत्र ले लेते हैं कि मेरा पुनर्जन्म हो गया वे स्वयं पुनर्जीवित न हुए होते तो हमें उत्थान प्राप्ति न हो पाती। है तथा इस प्रमाणपत्र का दुरुपयोग करने लगते हैं। वे नहीं जानते ईसा का पुनर्जीवन आपके जीवन से प्रत्यक्ष है। पहले आप क्या कि इसका उन्हें क्या लाभ हुआ। ज्यादा से ज्यादा वे कुछ धन थे और आज क्या हैं? कितना परिवर्तन है, कितना अन्तर है कमा लेते हैं या कुछ सतही शक्तियां पा लेते हैं। पर इससे कुछ नहीं हुआ। ध्यान से यदि उन्हें देखें तो उनके पागलपन पर दया आती है। ईसा तथा अन्य महान अवतरणों के नाम पर वे घिनौने तथा कितनी कायापलट है। उनके बलिदान (क्रूस रोपण) और सुन्दर पुनर्जीवन ने हम सबके लिये यह परिवर्तित अवस्था प्राप्त करने का मार्ग बनाया है। पर यह अवस्था मानव के लिये भिन्न है तथा ईसा के लिये भिन्न। ईसा स्वयं पवित्रता तथा विशुद्धता थे। कार्य कर रहे हैं। सहजयोग में आपने अपना कायाकल्प कर लिया है। मैं कहुंगी कि आपकी कुण्डलिनी ने कार्य कर दिया है। पर अभी भी आपमें तथा ईसा में अन्तर है। आप एक ऐसे वातावरण, जीवन उनका पुनर्जीवन मात्र शारीरिक घटना थी क्योंकि उन्हें कायापलट की कोई आवश्यकता न थी। उन्हें शुद्धिकरण नहीं करना पड़ा। मृत्यु से उनका पुनर्जीवित होना इस बात का प्रतीक शैली तथा विचारों से आये हैं जो घातक हैं। आप देखें कि सभी है कि मानव का अध्यात्मिक विहीन जीवन मृत्यु सम है क्योंकि कुछ आपके विनाश के लिये था। अब जब आप इससे मुक्त हो मानव पूर्णत्व, वास्तविकता तथा पूर्ण सत्य को समझे बिना ही रहे हैं फिर भी इनकी पकड़न है। अब भी आप इनसे प्रभावित सभी कुछ करता रहता है। उसका हर कर्म अनन्तोगत्वा उसे हो जाते हैं। ऊंचाई की ओर बढ़ते हुए भी अचानक आप पाते विनाश की ओर ले जाता है। यहां तक कि इन अवतरणों द्वारा हैं कि आपको किसी हास्यास्पद अवस्था किसी लज्जाजनक चलाये गये धर्म भी पतनोन्मुख हैं। इन अवतरणों के प्रतिनिधि स्थिति में घसीट लिया गया है। निसन्देह आपको कई बार स्वयं कहलवाने वाले लोगों में भी हमें धार्मिकता का नामोनिशान नहीं पर हैरानी होती है। कभी आप यह सब स्वीकर कर लेते हैं। चैतन्य लहरों 12 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-13.txt न करके आप अपना जावन ब्बाद कर रहे हैं। आपको चाहिए कि उस व्यक्ति को धन्यवाद दें। शीशे में देखकर यदि आपको लगे कि आपके चेहरे पर कुछ गड़बड़ है तो आप तुरन्त उसे ठीक करते हैं। इसी प्रकार यदि कोई आपके चक्र के बारे में बता साक्षात्कार प्राप्त एक सहजयोगी के लिये आवश्यक है कि वह अत्यन्त अन्तर्दर्शी हो। टूरसरों के दौष देखने के स्थान पर वह अपने दोष देखे। आपको पता होना चाहिए कि आध्यात्मिकता में आप कहां तक जा रहे हैं। ईसा को तो यह सब करने की आवश्यकता न थो। उन्हें तो अन्तर्दर्शन की भी आवश्यकता न थो। वे तो भ्रष्टाचार से परे थे। मृत्यु और फिर पुनर्जीवन तो उनके लिये शारीरिक परिवर्तन मात्र था। वे मरे और पुनरर्जावित हो गए। पर हमारे लिये यह बिल्कुल भिन्न है। अब हम सहजयोगी हैं परन्तु पहले हम साधारण मानव थे और हमारे अन्दर प्रकाश न था। अब हममें प्रकाश आ गया है। तो हमें क्या बनना है ? हमें प्रकाश बनना है। ईसा को ऐसा नहीं बनना पड़ा। हमें प्रकाश बनना होगा। अब आपने सावधान रहना होगा कि कहीं उस प्रकाश में बाधा न आ जाए। कभी ये कम न होजाए या कहीं ये दोप बुझ दे तो आपको होना चाहिए। कृतज्ञ दो नेताओं को परस्पर कभी झगड़ूना नहीं चाहिए। दो आंखें, दो हाथ, दा टांगे की लड़ती नहीं। पर दो नेताओं के बीच सदा ो नता आप में बहस कर रहे थे। मैने देखा कि उनमें से एक पृर्णतया पकड़ा हुआ था। मैने कहा "अपने हाथ मेरी ओर कोजिए।" उसे पालन होने लगी। उसने महसूस किया कि सह अति क्रोधो तथा अहंकारी है और उसे इस प्रकार व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मेर कहने का बह बुरां भी मान कि एक सहजयोगी आया हित में क्या है। उसकी अच्छाई किस भर प था कि "श्री माता जी, आपके ेइसे अपने अंदर छिपाए समस्या होती है। क नामा सकता था पर ने है और जान बात में है। व कारण मेरा दोष पक हुए था।" हमारी समस्या बह ै कि हमने अपने अंदर काफी विकास कार लिया है और उका दुढोकरण भी कर लिया है। हमारे पास महान सामूहिका शक्ति भी है जिसे मैं हर देश में देख सकती हूं। अपने जीवनकाल में ही हम यह सारे महान सत्य संस्थापित (प्रमाणित) कर सकते हैं। पर एक बात पर व्यक्ति को अत्यधिक विश्वरत नहीं होता चाहिए कि आप पूर्णतया अंतिम सत्य तक पहुंच गए हैं। इस मामले में आपको बहुत सावधान रहना है) मैने देखा है कि सहजयोग में लोग बहुत ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं पर अचानक उनका पतन हो जाता है। इससे मैं बहुत खिन्न हो जाती हूं। कारण यह है कि उनमें विश्वास नहीं है, अपने पर तथा सहजयोग पर। आपको अपने पर तथा सहजयोग पर विश्वास करना होगा। सहज का अर्थ है कि दैवी-शक्ति है और यह सर्वव्यापक दैवी शक्ति हम सबकी देखभाल कर रही है। अब न जाए। इस प्रकाश के साथ चलना पहलो आवश्यकता है। यदि प्रकाश में गड़बड़ है तो आप अभी प्रकाश नहीं है। आपको प्रकाश बनना है। जब आप प्रकाश बन जायेंगे तो देख सकेंगे कि आपका मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है। कौन से विचार ीं त यह देता है तथा उत्थान के समय आपके मस्तिष्क को क्या प्रभावित करता है। क्या ये चिंता है या आपको जिम्मेदारियां? या ये आपकी बुरी आदतें हैं? अध्यात्मिक व्यक्तित्व के आपके विकास में एक बाधा है। अतः हर क्षण आपने अपनी रक्षा करनी है और देखना है कि किस प्रकार आप उन्नति कर रहे हैं। यह अति सुन्दर यात्रा है। निसंदेह यह सत्य है कि आप साक्षात्कारी आत्माएं हैं। मूलतः आप आत्म साक्षात्कारी न थे। अब आप एक विकसित अवस्था में हैं। अब कमी हमारा यह विचार है हम पूर्णतया ठीक हैं और हमें कुछ भी हानि नहीं पहुंचा सकता। ऐसा अहंकार पूर्ण विचार यदि आपमें आ गया तो इससे आपको कोई लाभ न होगा। आपको हर समय अन्तर्दर्शन करना है, 'ध्यान' इसी के लिये है। स्वयं देखिये कि किस प्रकार आप अपने आध्यात्मिक उत्थान को आगे इसका अनुभव हो गया है। पर सब जान कर भी आपके अंदर । बढ़ा रहे हैं। काई अन्य यह कार्य नहीं कर सकता। यह आपका व्यक्तिगत कार्य है। पर ज्योंही आप सामूहिकता में जाएंगे तो सहजयोगी जान लेंगे कि आपके कौन से चक्र पकड़रहे हैं। चाहे वे कुछ न कहें फिर भी वे जान अवश्य जायेंगे। परन्तु वे अपनी पकड़ को न जान पाएंगे। यदि कोई आपसे कह दे कि आपका यह चक्र पकड़ रहा है तो बुरा न मानें क्योंकि उस चक्र को ठीक दृढ़ श्रद्धा नहीं है। अन्ध श्रद्धा से आप गलतियां कर सकते हैं परन्तु प्रकाशित मस्तिष्क से यदि आपमें श्रद्धा आ जाए तो आप अत्यन्त शक्तिशाली बन जाते हैं। आपका विश्वास यदि प्रकाशित हो तो कोई समस्या नहीं रहतो। आपने देखा होगा कि सहजयोग में जो लोग नियमित तथा ईमानदार हैं वे बहुत अमूल्य हैं। वे चट्टान ईस्टर पूजा 13. 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-14.txt की तरह दृढ़ हैं, किन्तु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी तक होना चाहिए। विश्वास आपको अत्यन्त दृढ़ तथा हजारों लोगों को सांसारिक बातों में उलझे जो यह जानते हैं कि उन्हें कुछ भी परेशान नहीं कर सकता। जहां तक ईसा का प्रश्न है उन्हें हर चीज का ज्ञान था और इसके अन्तस में तथा सहजयोग में स्थापित हो सकते है। यह हुआ है बारे में वे विश्वस्त थे। कभी क्षीण नहीं होते थे। कभी सन्देह नहीं और आप सबके साथ भी घटित होना चाहिए। आप सबको स्वयं करते थे। वे जानते थे कि वे परमात्मा के बेटे हैं। इसको उन्होंने को तथा अपनी आत्मा को जानने का अवसर मिलना चाहिए। कभी चुनौती नहीं दी । श्रृद्धा के मामले में सहजयोगियों तथा अन्य व्यक्ति का स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। मैने देखा है कि बहत लोगों को ईसा की तरह बनना होगा। श्रद्धा को समझा जाना से सहजयोगी आ कर कहते हैं कि "श्री माताजी मुझमें कोई गुण चाहिए। यह ज्योत्तिमय श्रद्धा है। ईसा ने इसलिये दुःख उठाये तथा नहीं, मैं बैकार हूं। मैं कोई काम नहीं करता।" यह ठोक है पर क्रूसा रोपित हुए क्योंकि वे जानते थे कि यह सब एक नाटक है क्रूसारोपण में कोई गंभोर बात नहीं क्योंकि वे स्वयं. को हो जाएगा। केवल आपके सोचने तथा चित्त देने से भी कार्य हो पुनर्जीवित करने वाले थे लोगों को उन्होंने मजाक उड़ाते हुए जाएगा क्योंकि यह सर्वव्यापक शक्ति ही वास्तविक शक्ति है। देखा। अपने हृदय में वे जानते थे कि उनका मजाक करने वाले बाकी सारी शक्तियां व्यर्थ हैं। यह इतनी कार्यकुशल तथा लोग कुछ भी नहीं जानते। अपने पर तथा सर्वव्यापक शक्ति पर करुणामय है कि एक क्षण से भी कम समय में यह कार्य कर श्रद्धा तथा विश्वास के तो वह अवतरण थे। परन्तु ऐसा बनने के सकती है। उस दिन एक आस्ट्रेलियन को किसी ने धोखे से कुछ लिये पूर्ण विश्वास आवश्यक है। जिस व्यक्ति पर मुझे विश्वास जमीन तथा घर बहुत महंगे दामों पर लेने को मजबूर कर दिया। होगा उसी को तो मैं सारा काम दूंगी तथा उसी पर भरोसा करुंगी उसके पास धन न था। उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं जितने ऐसे हो व्यक्ति को चाबियां तथा धन दूंगी और उस पर कभी संदेह पैसे आपके पास हैं दे दो, बाको बाद में दे देना। विश्वास करके भी नहों करुंगी। इसी प्रकार यदि आपको स्वयं पर तथा उसने अपना सारा धन बयाने के रुप में दे दिया। अब बेचारा बहुत सहजयोग, जिसमें आप स्थापित हैं, पर विश्वास है तो आप हैरान परेशान हुआ कि यदि उसने बाकी का ॠण न चुकाया तो उसे हॉंगे कि किस प्रकार कार्य हॉंगे, किस प्रकार आपके जीवन में जेल जाना पड़ेगा। समझ न पा रहा था कि किस प्रकार झंझट सुधार होंगे और आपका आधार चट्टान की तरह दृढ़ हो जाएगा। से छुटकारा पाये उसके पास कोई सहजयोगी गया और कहा आप ऐसा ही महसूस करेंगे। आपको संदेह, समस्याएं तथा रोग कि स्वयं पर विश्वास रखो। किसी अन्य व्यक्ति ने कहीं बड़ी रकम हुए हैं। दृढ़ - विश्वास वाले लोग भी हैं पुनर्जीवन देने योग्य बनाता है। हमें समझ लेना चाहिये कि हमारी अपनी स्थिरता, सूझबूझ तथा अवलोकन द्वारा ही हम अपने जो भी आप चाहते हैं वो मांगिए। आप न भी मांगे तो भी यह में वह जमीन उससे मांग ली। इस प्रकार जेल जाने के स्थान पर ने होंगे। यह ऐसी अवस्था है। किस प्रकार आप यह श्रद्धा पाते हैं ? इसके लिये न कोई धनवान बन गया। इस प्रकार बहुत से चमत्कार हो जाते हैं। आत्म पाठ्यक्रम है और न कोई साहित्य। परन्तु आपके अन्दर जागृति साक्षात्कार के बाद भी विश्वास का न होना दर्शाता है कि आपका होती है जो प्रश्न करेगी कि मैं क्या हूं। मैने क्या प्राप्त किया है? व्यक्तित्व कितना दुर्बल है। हैरानी की बात है कि आत्म साक्षात्कार ये पूछेगी कि मैने क्या पाया है? सहजयोग से मुझे क्या मिला? के बाद भी लोगों में आत्म विश्वास नहीं होता। जिनमे है उन्होंने ये सभी प्रश्न आपसे पूछे जाएंगे| परन्तु यदि आपका विश्वास बहुत कुछ प्राप्त कर लिया है। हममें और ईसा मेंयह अंतर है कि प्रकाशित है तथा जिसे जोवन के बहुत से चमत्कारों ने प्रकाशमय बनाया है तो छोटी-छोटी चीजों में आपको चमत्कार दिखाई विश्वास करना पड़ता है। हमें स्वयं पर भरोसा करना पड़ता पड़ेंगे| तब आप जानेंगे कि अब आप सहजयोग में जम गए हैं। है। रोमानिया में व्हील चेयर पर एक स्त्री को मेरे पास ले आये। उदाहरणतया यदि वर्षा होने लगे तो आपमें से आधे लोग चिंतित वह चल न पाती थी। कहने लगी "मां, मैं जानती हूं कि आप हो जायँगे, परन्तु वे जान जाएंगे कि सुन्दर छत है और कुछ नहीं मुझे ठीक हो सकता। वर्षा होने दो। तब आपको विश्वास होगा कि वर्षा हमें खड़ी हो जाओ। वह खड़ी हो गई और चलने लगी। गोला नहीं कर सकतो। इस तरह हमारे अंदर यह विश्वास दृढ़ विश्वास ईसा का अंग-प्रत्यंग था। वे ही विश्वास थे पर हमें कर सकती हैं।" मैने कहा "यदि तुम्हें विश्वास है तो विश्वास हो तो सारे देवता सहायक होते हैं। उन्हें ऐसा करना चैतन्य लहरी 14 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-15.txt पड़ता है। आपने उस व्यक्ति में विश्वास दर्शाया है। मैने आपसे विश्वास नहीं करता क्योंकि यदि परमात्मा होता तो संसार में इतने बताया है कि सहजयोग में हम लोगों पर विश्वास करते हैं । सैकड़ों दुःख न होते। जन्मान्ध बच्चे न होते। मैने कहा"अभी आप कांग्रेस में से कोई एक धोखा देता है। कोई बात नहीं। हम विश्वास करते सरकार के राज्य में बैठे हैं। पहले परमात्मा के साम्राज्य में जाकर हैं। किसी पर जब आप विश्वास करते हैं तो यह उसके मस्तिष्क स्थापित हो जाओ और फिर बताओ कि आपको कोई समस्या में कार्य करता है। परन्तु देवताओं में आपका विश्वास तुरन्त कार्य है? आप इसका अंधेरा पक्ष क्यों देखते हैं? यदि हम कहें कि करता है। अपने विश्वास पर यदि आपका वश है तो आप किसी एक रास्ता है और समय आ सकता है जब सहजयोगियों की भी चीज को वश में कर सकते हैं। विश्वास की बात करना जाति में कोई रोग, दुख और समस्या न होगी तो क्यों न इसे देखा आयोजन करने वाली, विवेकशील, कार्यकुशल तथा प्रेममय जाए? आप एक अंधे बच्चे को होी क्यों देखते हैं ? आप यह क्यों सर्वव्यापक शक्ति को चुनौती है। तब आप विश्वास दिखाते हैं। नहीं देखते कि अंधे ठीक भी हो जाते हैं। इस प्रकार का सहजयोग में पुनर्जीवन यही है कि आपका विश्वास दृढ़ हो । तो नकारात्मक विचार सहजयोगियों में भी हो सकता है। मैने देखा आपको दृढ़ विश्वास प्राप्त करना है। तब कोई बुरा नहीं मानता है कि यदि कोई बीमार है तो उसे मेरे पास लाना चाहते हैं। किसी चाहे मैं उनसे नहीं मिलती। किसी वक्त चाहे मैं उन्हें बुला कर व्यक्ति की पत्नी ने अपने सहजयोगो भर्तीजे से कहा कि श्री माता भी वहां न मिलूं। किसी बात से वे बुरा नहीं मानते। श्री माता जी जी से प्रार्थना करो कि मेरे पति को ठीक कर दें। मूत्यु शैय्या हमसे मिलें या न मिलें कुछ हो या न हो, सभी कुछ हमारे हित पर पड़ा वह कैन्सर रोगी था। वह लड़का झुक गया और प्रार्थना के लिए है। आप रास्ता भी भूल जाएं तो आप जानते हैं कि यह की कि श्री माता जी कृपा करके मेरे चाचा को ठीक कर दीजिए। ऐसे ही होना था। ईसा के जीवन को यदि आप देखें तो उनका चाहे वह रोगी सहजयोगी नहीं है फिर भी तीसरे दिन वह हस्पताल क्रूसारोपण होना था, उन्हें क्रॉस उठाना था। ठीक है कि उन्हें यह से बाहर था। सहजयोगी की प्रार्थना पर देवताओं को कार्य करना सब करना था। उन्हें विश्वास था कि मैं यह सब कर लूंगा। कभी पड़ा। इसके लिये व्यक्ति को स्वयं पर पूर्ण विश्वास करना पड़ता उन्होंने शिकायत नहीं को। उन्होंने कभी किसी से सहायता के लिये है कि ये शक्तियां हमारे साथ हैं। क्यों न इसका उपयोग कियाजाए नहीं कहा। पर परमात्मा के विश्वास ने उन्हें अद्भूत शक्तियां दी। क्यों न पूर्ण विश्वास विकसित किया जाये कि अब हम सहजयोगी वे कुछ भी कर सकते थे। क्रूसारोपित करने वाले सभी लोगों हैं और परमात्मा के साम्राज्य में हैं तथा वह शक्ति हमारी देखभाल को वे आसानी से समाप्त कर सकते थे। पर वे जानते थे कि उन्हें करेगी। तब हममें कोई संकोच न रह जायेगा। विश्व में जहां मर्जी यह सब सहना है। वही विजेता हैं। इसी प्रकार सहजयोगी को आप चले जाएं पर आप होंगे परमात्मा के साम्राज्य में। किसी अपने जीवन की देखभाल करनी चाहिए। जीवन बहुत अमूल्य प्रकार की कोई चिंता न होगी। हम समय तथा बंधनों के दास है। कितने लोग सहजयोगी हैं? विकास प्रक्रिया में कितने लोग हैं। सब बंधन छूट जायेंगे। जब तक आप स्वयं में रहेंगे सब ठीक सहजयोगी बन पायेंगे? संसार को यदि आप देखें तो आपको रहेगा। बहुत से लोग पूछते हैं कि जहां हमने जाना है वहां गुसलखाना तथा सोने का स्थान होगा या नहीं। आप तो आत्मा का सुख खोज रहे हैं। यदि आप ठीक तरह चलते रहे तो आप कहीं भी सो सकते हैं । कुछ भी आपको बांध नहीं सकता, गिरा नहीं सकता। कोई आदत आपको परेशान नहीं कर सकती क्योंकि विश्वास आपको पूर्णतः पवित्र कर देगा। यह आपको ज्योति देगा, आपका पोषण करेगा। यह विश्वास ऐसी चीज नहीं जिसे आपके दिल या दिमाग में भर दिया जाये। यह एक अवस्था है जिसे आपने प्राप्त करना है और यह सहजयोग से प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार हमारा पुनर्जीवन पूर्ण होगा, स्थापित तथा प्रभावशाली होगा और पूरे विश्व के लिये नमूना बन जायेगा| लगता है कि इसका नाश हो जायेगा। अधिकतर लोगों के भाग्य में सहजयोग नहीं है। वे सहजयोग में आने के लिये नहीं बने हैं । आप अत्यंत भाग्यशाली हैं कि आपको साक्षात्कार और पुनर्जीवन मिला। अब इस पुनर्जीवन में विश्वास करें, आपका अस्तित्व बन गया है। इससे आपको पता लगेगा कि आप कितने मूल्यवान हैं। आफको भौतिक, शारीरिक तथा भावनात्मक लाभ को न सोचकर आध्यात्मिक लाभ को सोचना है । हमने अपनी तथा अन्य लोगों की आध्यात्मिकता के लिये क्या किया ? केवल यही बात हमने सोचनी है। और आप हैरान रह जायेंगे कि हर चीज आयोजित है, कार्यान्वित है तथा समय आने पर परिणाम दिखाती है। परमात्मा आपको धन्य करे। ॐ उस दिन एक सम्वाददाता कहने लगा कि मैं परमात्मा में ईस्टर पूजा 15 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-16.txt से प्रलेख मत सागर वैंकूवर-कैनेडा 24.6.93 वर्ष 1992 के अंत में रोबर्ट आइनमैन तथा माइकल वाइज किया है।" प्रलंख के कुछ अंश परमात्मा की प्रशंसा करते हैं और मर्यादाओं "हमारे लिये बनी सीमाओं" के बारे में कहते हैं। जो इन सीमाओं का उल्लंघन करते हैं वे वह लोग हैं जिनकी आत्मा ने धर्मपरायणता की नौंव को अस्वीकार कर दिया है। पॉल ऐसा ही आदमी था। कहीं और उसे "मिथ्याभाषी शत्रु" असत्य प्रसारक" जो "जन समूह के बीच में कायदे-कानून अस्वोकार कर देता है,""दुर्भाषी" और निन्दक" और "इस्राइल पर झूठ का जल दछिड़कने वाला विदूषक" कहा गया है। पुस्तक के लेखकों का विचार है कि " मान्य धर्म नेता" जिसने यह बहिष्करण निर्णय सुनाया वह जेम्ज था। प्रायः "न्यायकारी जेम्ज़" के नाम से पुकारा गया यह धर्म प्रचारक, येरुशलम का मुख्य पादरी (बिशॅप) और ईसा का भाई लिखित पुस्तक "द डैड़ सी स्क्रॉलज़ अनकवर्ड" नामक पुस्तक छपी इस पुस्तक में चिरकाल से दबे हुए ऐतिहासिक प्रलेखों (दुस्तावेजों) के कुछ हिस्सों के पचास उद्धरण प्रस्तुत किये गए हैं। ये प्रलेख लगभग दो हजार वर्ष पूर्व गुफाओं में रख दिये गये थे तथा वर्ष 1947 और 1952 तक ये खोजे न जा सके। वर्ष 1952 में विद्वानों की एक टोम इन प्रलेखों को एकत्र करके इस भौतिक वैभव का अर्थ लगाने के लिये नियुक्त की गई। पर विश्व में इसका प्रसार करने के स्थान पर इन्होंने इसे दबा लिया, केवल चुने हुए भाग ही छापे। कैलिफोर्निया में हन्टिंगटन पुस्तकालय ने 1991 के अंत में यह एकाधिपत्य तोड़ा। पुस्तकालय ने घोषणा की कि यह इन प्रलेखों के फोटो प्रकाशित करेगा। ये फोटो पुस्तकालय को अधिकारियों से वर्ष 1967 के छह दिन के युद्ध के समय प्राप्त का बहुत से लोगों द्वारा था। आशीर्वाद तथा अभिशाप लिप्त उल्टे सीधे तको द्वारा पॉल गलैशियन को लिखे अपने 3.11.1913 के पत्र में अपना बचाव करता है। पॉल तर्क देता है कि ईसा की शिक्षाओं के विरुद्ध प्रचार के अपराधसे वह मुक्त हो गया है क्योंकि कानून ने ईसा को अपराधी ठहराया था। पॉल मोजेज दन्त नियमों को रोमन कानूनों तथा अपने नियमों से उलझा रहा है। घर्म शास्त्र के सिद्धान्तों में पॉल लिखता है कि प्रलेखों में वर्णित वार्षिक पेन्टाकोस्टल सभा में येरुशलम पहुंचने की जल्दी हुए थे। उन्होंने दलील दो कि इस अस्थिरता के समय इन प्रलेखों को प्रकाशित करना जोखिमका कार्य है। अतःवह फोटो सुरक्षित रखने के लिये अमेरिका में ही रखे जाएं। कैथोलिक तथा यहूदी विद्वान, जिन्होंने इन प्रलेखा पर एकाधिपत्य जमा लिया था, बहुत समय तक कहते रहे कि अप्रकाशित लेखों में दिलचस्पी का कुछ भी न था। उन्होंने कहा कि इनसे ईसाई धर्म के प्रारंभिक दिनों पर कोई प्रकाश न. पड़ेगा। उन्होंने गलत कहा। एक हिस्सा जिसकी संख्या 40266 है उसे आइनमैन तथा वाइज़ ने "धर्म परायणता की नींव" शीर्षक दिया। ऐसा लगता है कि यह पॉल का ईसाई जाति से बहिष्कार था। करो। आइनमैन और वाइज कहते हैं कि " एक्ट की पैन्टाकोस्टल यह प्रलेख ईसा के अनुयाइयों को ताजपोशी के लिये तथा की तस्वीर को आश्रय व्ययवाद की उल्टी तस्वीर के रुप में देखा पेन्टाकोस्ट के समय टोरा (मोजज के कानून) से बायें या दायें जा सकता है।" अपने अंशदान को येरुशलम ले जाने के स्थान ओर चले जाने वाले लोगों को अभिशाप्त करने के लिये बनाया पर पाल का बहिष्कार उसी जाति से किया जाने वाला था जिस गया था। पर वह शासन करना चाहता था। लेखक यह लिखते हुए समाप्त करते हैं कि "आशय अंत्यन्त चौंका देने वाला और गहन है। एक बात निश्चित है : व्यक्ति को इन प्रलेखों में "पश्चिमात्य सभ्यता के लिये महत्वपूर्ण इस समय प्रलेख के कुछ हिस्से परमात्मा की प्रशंसा करते हैं।"आप हो सब कुछ हैं, आप ही के हाथ में सब कुछ है। आप हो ने लोगों को उनके परिवारों तथा राष्ट्रीय भाषाओं के अनुसार स्थापित चैतन्य लहरो 16 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-17.txt में, चुपके-चुपके (ऊसर में) घटित होने वाली सभी बातों की जानकारी समयकालीन किसी भी अन्य प्रलेख से कहीं अधिक उद्धारक समझा उस व्यक्ति से पॉल का कोई व्यक्तिगत परिचय न था। उसे रेगिस्तान में अर्ध-रहस्यात्मक अनुभव प्राप्त हुआ तथा देहमुक्त आवाज सुनाई दो। इस आधार पर अधिकार का झूठा प्राप्त होती है। माइकल बॉजेंट और रिचर्ड लेह द्वारा लिखित पुस्तक "दि डैड सी स्क्रोल्ड डीसैप्सशन" (कोर्गी पुस्तकों, लंदन-1991) दावा करना उसको धृष्टता है। अपने व्यक्तिगत तथा स्वभावगत धर्म विज्ञान का प्रतिपादन तथा उसे जायज ठहराने के लिये और अप्रमाणिक रुप से इसे ईसा पर थोपने के लिये उसे ईसा की शिक्षाओं को बिगाड़ कर जनता की दृष्टि में अमान्य बनाना पड़ा।" रहस्य के प्रकट होने के बावजूद भी आने वाली तीन शताब्दियों में नये आंदोलन की मुख्यधारा शनैः शनैः पॉल और उसकी शिक्षाओं में सम्मिलित हो गई। इस प्रकार जेम्ज और उसके साथियों के मरणोपरान्त भय के कारण एक पूर्णतया नये धर्म का जन्म हुआ-एक ऐसे धर्म का जिसका अपने कथित संस्थापक से कोई लेना-देना (सम्बन्ध) न था।" से दो उद्धरण नीचे दिए गये हैं। "प्रभावशाली रुप से पॉल प्रथम इसाई विधर्मी है और.. उसकी शिक्षाएं-जो कि उत्तरकालीन इसाई धर्म की नींव बन गई-मूलभूत तथा पवित्र शिक्षाओं, जिनकी प्रशंसा सारे धर्माधिकारियों ने की थी, से लज्जाजनक विचलन (दूर हटना) है। 'ईसा का भाई जेम्ज वास्तव में ईसा का सम्बन्धी था या नहीं (हालांकि हर बात से पता चलता है कि वह था), यह स्पष्ट है कि वह ईसा को व्यक्तिगत रुप से जानता था । येरुशलम के प्राचीन चर्च, पीटर सहित जाति के सारे सदस्य भी ईसा को जानते थे। ***** जब भी वे बोले तो पूर्ण अधिकार के साथ बोले। जिसे अपना (पृष्ठ 275) 17 मृत सांगर से प्रलेख 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-18.txt जन कार्यक्रम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन स्काउट एवं गाइड मैदान, दिल्ली-22.3.93 कास्प पे दोड़ते रहते हैं। आज ये विचार आया। कल ये विचार आया तो परसों ये विचार आया। लेकिन जब कुण्डलिनी आपकी चढ़ती है तो क्या होता है कि विचार कुछ लम्बा हो जाता है। इन दोनों विचारों के बीच में जो स्थान है उसे विलम्ब कहते हैं। इस विलम्ब स्थिति में आप आ जाते हैं और विलम्ब की स्थिति जो बहत संकीर्ण होती है वो बढ जातो है। ये ही वतंमान है। इसलिये आप निर्विचार हो जाते हैं लेकिन समाधि माने पूरी तरह से सतर्क है, बेसुध अवस्था में नहीं जाते। आप सुप्ता अवस्था में नहीं जाते। जरुरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं। लेकिन कोई विचार आपके अंदर नहीं आता। बस सब चीज देखना मात्र बनता है। इसे साक्षी स्वरुप कहा गया है तो आप देखते मात्र है। उसका कोई भी असर आप पे नहीं आता। उसकी क्रिया, प्रतिक्रिया कुछ नहीं आता। आप पूरी तरह से उस चीज को देखते हैं। ये निर्विचार समाधि की पहली स्थिति है इस स्थिति को पहले बनाना होगा। अब जैसे यहां पर एक बड़ा सुन्दर सा गलीचा बिछा हुआ है। अगर मैं विचार में हूं तो मैं ये सोचती रहूंगी कि ये कितना सुन्दर है। ये कहां मिलता है। ये कितने पैसे का है कौन सी दुकान से खरीदा। ये सब विचार सर को खाएंगे। दूसरे अगर ये मेरा है तो और भी सिरदर्द, ये खराब न हो जाए। इसका बीमा कराया नहीं। अब कैसे होगा, क्या होगा। ये मानवोय दिमाग है। लेकिन दैविक शक्ति में आदमी ये सब सोचता नहीं, देखता मात्र है और देखता क्या है कि इसका सौन्दर्य क्या है। जिस कलाकार ने इसे बनाया उसने इसमें जो कुछ भी सौन्दर्य डाला, जो उसने अपने हृदय का आनन्द इस सौन्दर्य से प्रगटित किया है, उसको दिखाया है, दर्शाया है तो सारा आनन्द निर्गुण में ही आपके अन्दर उतरने लग जायेगा और ऊपर से नीचे तक आपको ठंडा करता हुआ चला जाएगा। तो इसका जो बनाना है जिसने बनाया है, इसका जिसने सृजन किया उसका भी कार्य पूर्ण हुआ और हमारे लिये भी इतनी बड़ी बात हो गई कि बगैर सोंचे-समझे हमने इसका आनन्द पूरे रुप में उठा लिया। इस प्रकार आप निर्विचार समाधि में उतर गए। ये आपको शांति प्रदान करती है। निर्विचार समाधि आपको शांति प्रदान करती है और आपको आध्यात्मिक शक्ति बढ़तो जात है। जब आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है तो आपकी सृजन शक्ति भी बढ़ जाती है। ये हमारा हुआ या नहीं हुआ इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। और बढ़ी हुई सृजन शक्ति से आप अनेक विधि सहजयोग का ज्ञान सूक्ष्मज्ञान है और सूक्ष्मज्ञान को प्राप्त करने के लिये, हमें भी सूक्ष्म होना है। ये सूक्ष्मता क्या है कि हमें आत्मा स्वरुप होना चाहिये। आत्मा से ही हम इस सूक्ष्म ज्ञान को समझ सकते हैं। क्योंकि आत्मा का अपना प्रकाश है और वो प्रकाश जब हमारे ऊपर प्रगटित होता है तो उस आत्मा के प्रकाश में ही हम इस सूक्ष्मज्ञान को जानते हैं। ये हमारे ही अन्दर की आत्मा है। ये परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे ही अन्दर आत्मा स्वरुप है और कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा शक्ति आदि शक्ति का प्रतिबिम्ब है। कुण्डलिनी साढ़े तीन वलयों में है जिन्हें कुण्डल कहते हैं इसलिये उसका नाम कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी जब उठती है तो ये साढ़े तीन कुण्डल पूरे के पूरे नहीं उठते। जैसे कि रस्सी में बहुत से धागे बंधे रहते हैं उसी प्रकार इस कुण्डलिनी में भी बहुत से धागे हैं। उनमें से कुछ धागे ऊपर उठते हैं और आपके तालू, संस्कृत में तालव्यय, का छेदन करती हुई ये कुण्डलिनी सूक्ष्म शक्ति में पहंच जाती हैं जो चराचर में फैली हुई है। जब इस सूक्ष्म शक्ति में इसका योग हो जाता है। तो आत्मा का जो पीठ है वो यहां सिर है सारे चक्रों के पीठ सब सिर में है। सारे चक्र हमारे अन्दर हैं। तो ये जो कुण्डलिनी शक्ति आपके अन्दर जो जागृत हो गई इसके ज्यादा से ज्यादा धागे ऊपर उठने चाहिएं। तो सबसे पहला अनुभव जो आपको प्राप्त होता है वह है निर्विचारिता। निर्विचार समाधि। समाधि को अंग्रेजी में केतर Awareness (बोध) भी कहते हैं। समाधि अर्थात समा-गयी बुद्धि। तो इस योग में इस नये आयाम में, इस नई धारणा में इस ब्रह्म चैतन्य में जब बुद्धि समाती है तो इसे समाधि कहते हैं लेकिन समाधि सर्वप्रथम आपको निर्विचार समाधि के रुप में प्राप्त होगी। हठात आप देखेंगे आप निर्विचार हो गए। अब जब हम विचार करते हैं तो हम या तो आगे का विचार करते हैं भविष्य का या तो पीछे का यानि भूत का। लेकिन आज अभी इस वक्त वर्तमान वर्तमान में हम खड़े नहीं हो सकते और जब तक हम वर्तमान है। में नहीं रहेंगे तब तक हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो नहीं सकती। क्योंकि जो पीछा (गत) था वो तो खत्म हो गया और आगे का तो अभी है हो नहीं। पता नहीं क्या है। तो वर्तमान ही असलियत है। पर इसमें बुद्धि ठहर नहीं सकती। इसमें मन ठहर नहीं सकता। तो ये विचार लहरों जैसे उठते हैं। फिर गिरते हैं। पूरे समय हम इसी आंदोलन में कूदते रहते हैं कभी इसके शिखर पे, इसके चैतन्य लहरी 18 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-19.txt कार्य कर सकते हैं । हठात उसमें कोई मेहनत नहीं। खुूब काम कर रहा है। इस्तेमाल करते-करते इसमें संकोर्णता Spontaneous सहज । जैसे एक साहब हैं, जो बड़े गणितज्ञ थे और उनको भाषा में कोई खास दखल नहीं था। भाषा कोई जाएगी या फिर ये टूट जाएंगे। टूटते ही आपका सम्बन्ध जो जानते नहीं थे। वो सहज में आए और कविताएं बनाने लग गए। आपके सम्पूर्णता से है, आपके मस्तिष्क से वो टूट गया। फिर हिन्दी में भी और उर्दू में भी, मराठी में भी, अंग्रेजी में भी कविता हो गये आप अलग।एकाकी हो गए। इसे कहते हैं Melignant करने लगे। तो ये कोई चेष्टा नहीं है। ये आप ही के अन्दर छिपी हुई एक शक्ति है। उसने जब आपको छुलिया तो अनायास, सहज जैसे कोई धागा हम मोती में पिरोते हैं उसी तरह से धीरे-धीरे ही में आप सृजन करने लगे। ऐसे अनेक तरह के कवि हमारे वो हर एक चक्र में बायां, दायां दोनों में और सीधे यहां हो गए। अनेक तरह के कलाकार हो गए। अपने हिन्दुस्तान यहां से निकल जाती है। उससे वो चक्र जो हैं वो फिर से प्लावित के बहुत बड़े-बड़े लोग, माने हुए कलाकार सहज के ही माध्यम हो जाते हैं। पुष्ट हो जाते हैं। प्लावित होने पर उनके अंदर शक्ति से हुए हैं। कलाकार अमजद अली साहब हैं, अल्लाहरक्खा के लड़के हैं। देबू चौधरी साहब हैं, और न जाने कितने ही लोग से भी हो जाता है और परम चैतन्य से भी हो जाता है। एक बार हैं जिनको कि सहजयोग से फायदा हुआ। और वो कहते हैं कि ये संबंध पूरी तरह से हो जाए उसके बाद कोई बीमार नहीं पड़ आपके सामने बैठने से ही हमारा हाथ एकदम से चलने लग जाता है। समझ में नहीं आता। जो राग कभी बजाया नहीं वो भी हम ऐसे बहुत से हैं। सब बीमार नहीं आते हैं सहजयोग में ऐसे भी बजात हैं। इस तरह से बहुत से लोगों को इसका एक अजोब तरह का फायदा हुआ जो बहुत साल गुरुओं के पास मेहनत करने से जैसे ही वो पार हो जाते हैं जैसे ही उनको कुण्डलिनी का भी नहीं हुआ उनकी जो शक्ति थी वो जागृत हो गई। सृजन शक्ति आशीर्वाद मिल जाता है ऐसे ही उनकी प्रगति ज्यादा जोरों से होती उस सृजन शक्ति के भरोसे, न जाने वो कहां से कहां पहुंच गए। है और उसके बाद उनको कोई भी बीमारी नहीं होती। हमारे यहां" तो आपके अन्दर की सृजन शक्ति बहुत बढ़ जाती है। अब कल बहत से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि पहले हमें जुकाम भी होता चक्रों पे जब हम बात करेंगे तब आपको बताएंगे कि हर एक चक्र में, कौन-कौन सी शक्तियां हैं और जो आपको प्राप्त होती हो जाए वो हमारे पास आते हैं। सो आप ही डाक्टर बन जाते हैं। आप जानते हैं कि यहां पर डाक्टरों का एक सम्मेलन हुआ था जिसमें आप लोग भी काफी आए थे और कुछ लोग नहीं हैं। क्योंकि जब कुण्डलिनी सहस्रार को भेदती है तो अपने आप भी आए थे। ये बात सच है कि कुण्डलिनी के जागरण से आपकी तन्दरुस्ती बिल्कुल ठीक हो जातो है। अधिकतर लोगों को ठीक हो जाती है। अब बिल्कुल ही मरने को आप हुए तो भगवान कहता है कि इस बार मरने दो, फिर जन्म ले लेंगे कोई बात नहीं। और से इस चक्र को ठीक करना है आप अपने भी चक्र ठीक करिये कुछ-कुछ लोग इतने बेकार होते हैं कि भगवान सोचते हैं कि और दूसरों के भी ठीक करिये। इससे पहले तो आपको अपने ऐसे बेकार लोगों को क्या फायदा है ठोक करने से क्योंकि ये तो वो दीप हैं जो कभी जलेंगे ही नहीं तो उनको ठीक करने से होंगे और इसो को हम कहते हैं अपना ज्ञान। स्वयं का ज्ञान। जब फायदा क्या ? लेकिन अधिकतर लोग हर तरह को बीमारी से अपने चक्रों के बारे में आपने सब कुछ जान लिया तब फिर आप ठीक हो जाते हैं । बड़े आश्चर्य की बात है। यानि कैंसर, बहुत अपनी तन्दरुस्ती अच्छी रख सकते हैं। दूसरे किसी के चक्रों को लोगों का ठीक डाक्टरों ने घोषित कर दिया कि आठ दिन में मर जायँगे। अब वो जिंदा बैठे हैं आठ-आठ, नौ-नौ साल बाद। ये कैसे हुआ। भाषा चक्रों को होती है। आप यह नहीं कहते कि ये मुसलमान आप कहेंगे ये सब कैसे हुआ। ये समझने की बात है कि ये कैसे है, ये हिन्दू है, ये ईसाई है। यह नहीं कहते। आप यह नहीं कहते हुआ। हमारा शारीरिक, मानसिक, भौतिक सारा अस्तित्व हो कि ये अग्रेज हैं कि ये हिन्दुस्तानी हैं या कोई और । आप यह चक्रों पर है। वो ही हमारे मूलतः शक्ति दायक स्रोत है मान लो नहीं कहते कि इसके बाल सफेद हैं कि काले हैं कि इसने सूट आपके चक्र खूब काम कर रहे हैं, आपका अनुकम्पी नाड़ी तंत्र पहना है कि कुर्ता-पाजामा पहना है यह नहों कहते। ये सब बाह्य आ गई। चक्रों में संकोर्णता आते ही या तो इनकी शक्ति खत्म हो कैंसर आपके अन्दर हो गया। अब कुण्डलिनी क्या करती है गुजरते हुए आ जातो है। एक साथ जुड़ जाने के साथ उनका संबंध मस्तिष्क सकता। अगर कोई सहजयोगी है, तो उसको कोई बीमारी नहीं। लोग हैं जो बिल्कुल स्वस्थ हैं। ये तो बढ़िया लोग होते हैं। क्योंकि था तो डाक्टर के पास जाते थे और अब किसी को अगर कैंसर हैं। आप डाक्टर बन जाते हैं खुद आप अपनी बीमारी समझते महसूस होतो है ठंड़ी-ठंडी हवा। और ये सात चक्र हैं इन चक्रों पर आप जानते हैं कि आपका कौन सा चक्र खराब है और दूसरों का कौन सा चक्र खराब है। अगर आप समझ लें कि किस तरह चक्र हो महसूस हो नहीं होते थे। अब आपको अपने चक्र महसूस गर आपने जान लिया तो आप दूसरों की भी तन्दरुस्ती अच्छी रख सकते हैं। और अब आप बात चक्रों की करते हैं। आपकी हुआ है। और ऐसी हालत में ठोक हुआ है कि जन कार्यक्रम, दिल्ली 19 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-20.txt के आर्डंबर हैं। आप सिर्फ यह कहते हैं कि मां इसके ये चक्र गडबड़ हैं। आप सिर्फ चक्रों की बात करते हैं। कौन सा चक्र खराब है उसकी आप बात करते हैं। उसी तरफ आप का चित्त जाता है। उस चक्र को कैसे ठीक करना है वो आप सीख लीजिये। हो गया काम खत्म। अब परमात्मा को पैसा-वैसा समझ में नहीं आता। ये बैंक और पैसा। सिरदर्द। ये मनुष्य ने बनाया है। इसका सम्बन्ध भगवान से है ही नहीं। कैसे हो सकता है। बताइये। अजीब सी ये संस्थाएं हैं। कुछ समझ में नहीं आती मेरे भी तो इसके लिये आप पैसा-वैसा नहीं दे सकते। यह तो जीवन्त क्रिया है । आप अपने पेट को कितना पैसा देते हैं कि वो पचन करते हैं आपके खाने को! या इस हाथ को कितना आप रुपया देते हैं जो आपका सारा सहजयोग में राजकारण नहीं चलता। ऐसे शुद्ध वनो। जब तक मन शुद्ध नहीं हुआ तब तक क्या फायदा है। धर्म कर्म करने से कोई फायदा नहीं। एक दम शुद्ध मन हो गया। शुद्ध मन से सिवाय अनुकंपा के कुछ और नहीं बहता। सबके लिये दिल बहने लगता है। दिल इतना बड़ा हो जाता है किसके लिये क्या करें? उसके लिया क्या करें? अब यह सोचे कि यहां इतने अंग्रेज बैठे हैं। एक जमाने में इनके बाप-दादा, ये तो नहीं, यहां पर राज करते थे। काफी दुष्टता को उन्होंने। आज जब ये अंग्रेज आते हैं आपके बंबई में या दिल्ली के एयरपोर्ट पर तो आपकी जमीन को चूमते हैं, नमस्कार करते हैं । कहते हैं कि योग-भूमि है। ये इन्होंने जाना क्योंकि इनके पास वो सूक्ष्म ज्ञान है। अब पूछिये कि ये निजामुद्दोन साहब वास्तव में औलिया थे कि नहीं? एक सवाल पूछियेगा। फौरन हाथ मैं लहरियां शुरू हो जायँगी। नानक साहब आदि गुरू काम करते हैं । इसी प्रकार इसके लिये पैसा मांगने वाले को समझ ू थे या नहीं? पूछिये देखिये ऐसे हाथ करके पूछिये कोई सा भी सवाल। परमात्मा है कि नहीं, पूछिये। जो सच्ची बात होगी वो आपको लहरियां देगी, अगर झूठ बात होगो तो गर्मी देगी, कुछ- कुछ में तो थोड़े फफोले भी हो जायेंगे। आपमें सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है। उसके कारण आपके अंदर जो अनुकंपा है पैसा दो। ठीक है आप हवाई जहाज से आये हैं इसका वो बहने लग जाती है। तीसरी चीज जो होती है उसमें आपको ये सब भौतिक चीजों का पैसा दे सकते हैं। लेकिन परमात्मा के केवल सत्य पता होता है। पूर्ण सत्य। ये क्या होता है। जैसे मैने कार्य का आप पैसा नहीं दे सकते। तो ये जो आपके अंदर कहा कि पता करिये। जेल से छूटने के बाद कोई अपराधी गेरुए आंतरिकता से एक चीज आ जाती है इसे कहते हैं सामूहिक कपड़े पहन कर यदि आपके सामने खड़े हो गये तो हो गये साधू चेतना। माने दूसरों के प्रति चेतित होते हैं। आपको महसूस होता बाबा। कुछ जादू मंतर किया कुछ ये वो किया। लोग हो गये पागल उनके पीछे हाथ ऐसे करके पूछिये फलाने ये गुरू हमारे हैं ये सच्चे हैं कि झूठे। फौरन आपको पता हो जायेगा। अगर 10 फोन करके, सब लग जायेंगे उसके पीछे। अरे भई कुछ तुमने साक्षात्कारी बच्चों को आंखों पर पट्टी बांध कर उनसे पूछिये कि अपना रक्षण किया है। कुछ अपनी ओर नजर की या लग गये। बेटे इस आदमी को क्या तकलोफ है सब एक ही ऊंगलो दिखायेंगे। इतनी अनुकंपा बहती है लोगों की कि कुछ पूछो मत। मझे फोन सब चीज आपको हाथ पर ही पता चलेगी। रोग निदान करने पर फोन करेंगे कि मां फलांना बड़ा बीमार है । अरे भई वो की जरुरत नहों। एक साहब बोस्टन गये थे कहने लगे निदान सहजयोगी है क्या।नहीं-नहीं मां वा है तो नहीं पर अच्छा आदमी करते-करते मैं मर गया। पैसे के पैसे लग गये। इन्होंने तो मेरी है, शरीफ है बेचारा, अच्छा आदमी है, आप जरा चित्त दीजिये । अंतडियां निकाल करके निदान किया यहां बाहर ही से आप उसको ठीक करना है। ऐसो अनुकंपा बहती है। अनुकंपा में निदान कर लेंगे कि किसको क्या तकलीफ है। क्या शिकायत लड़ाई-झगड़े का क्या सवाल उठता है। अभी मैं मजार पर गई है। और घवडाने की कोई बात नहीं क्योंकि ये ठीक सब ठीक थी निजामुद्दोन साहब के। वो भी बहत बड़े औलिया थे। हम मानते हो सकता है। शारीरिक ही नहीं, मानसिक, बौद्धिक और सबसे भी बहत हैं उनको। हम सबको मानते हैं। हम गुरू नानक साहब बड़ी बात है आध्यात्मिक। गलत-गलत गुरूओं के यहां गये। को भी पूजा करते हैं। मोहम्मद साहब को भी हम पूजा करते हमारे तलवार साहब से पूछिये वो बतायेंगे किस्से गुरुओं के कैसे चक्करों में डालते हैं। और इन्सान बहकता हो रहता है। अब तो लड़ाई-झगड़ा कर रहे हो असल में सब एक ही हैं। बहरहाल हमने उनको मान लिया। अरे भई क्यों माना? उन्होंने तुमको क्या वहां भी मुझे आश्चर्य हआ वहां भी राजकारण चल रहा है। अरे दिया ? हम तो मा हैं हम तो पूछेंगे कि बेटे तुमको तुम्हारे गुरु ने भई जिसके दरवाजे बैठे हो वहां राजकारण क्या कर रहे हो। दिया क्या ? क्यों माना तुमने उनको? कुछ तुमको दिया है। और लीजिए इससे बढ़कर पाखंडी कोई नहीं। एक तो भगवान का काम करते हैं और ऊपर से पैसा लेते हैं। ये भगवान का काम नहीं कर सकते क्योंकि भगवान को तो पैसा समझ में नहीं आता। अपने दिमाग से यह बात निकाल दीजिए कि आप भगवान के नाम पर पैसा दे सकते हैं। हां ठीक है यह मंडप बनाया इसका पैसा दो । है इनका ये चक्र पकड़ा है। अब एकदम अंदर से ऐसी अनुकंपा आयेगी कि चल भई इसको ठीक कर। दो चार सहयोगियों को हैं। दोनों एक हो चीज हैं। आप समझें या न समझें। बेकार में चैतन्य लहरी 20 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-21.txt तुमने जाना कैसे कि वो असलो हैं या नकली। रुपया पे रुपया देखती हूं शराब के खिलाफ इतना लिखा हुआ। इससे कोई फर्क चढ़ा रहे हैं। कितना बताया कितना समझाया बहत नाराज होते नहीं पड़ने वाला। लोग शराब पीते-पीते भी वही इश्तिहार बोलते थे लोग मेरे से। ठिकाने पर आये। तो उस वक्त आपको केवल रहते हैं। फिर हमारे यहां जो आजकल आधुनिक तरह की सत्य पता होता है। आप आदमी को देखकर बता सकते हैं कि संस्कृति आ रही है इससे बहुत बचकर रहना चाहिए। इन लोगों कौन से गुरू से चला आ रहा है। क्योंकि हरेक गुरू ने कोई न कोई एक चक्र पर काम किया होता है। आप फौरन बता सकते दिया। इनके घर-द्वार छूट गये। एक-एक औरत आठ बार शादी हैं कि ये कौन से गुरू से चला आ रहा है। और ऐसे ये गुरू भागते करती है तो एक-एक आदमी नौ बार शादी करता है। ना घर हैं और इनके शिष्य भी क्योंकि सत्य को झेलना बहत कठिन बात है इन लोगों के लिए। अब इसमें आप अपने ही गुरू हो जाते हैं। कुछ बच भी गये हैं वो एडस से मर रहे हैं। उससे बच गये तो जो बड़े-बड़े महान गुरूओं ने कार्य किया है वो सबसे बड़ा यह वहां और पचासों बीमारियां आ गई। अब एक नई बीमारी आई है कि हमारे अन्दर ऐसी शक्ति बसा दी है कि हम अपने गुरू है। हो सकते हैं। आप खुद ही अपने को बताते हैं कि भाई देख ये नहीं काम करता और वो हकबल हैं जैसे कि कोई बड़ी भारी रास्ता ठीक नहीं इधर मत चल, इधर चल। वो सत्य विवेक बुद्धि मछली या सांप हो इस तरह से उनको कंधे पर लादकर घुमाते जो कहती है वो सत्य विवेक बुद्धि हो जाती है। असत्य रह ही हैं दिमाग चलता है । बाकी कुछ नहीं हाथ नहीं चल सकते, पैर नहीं जाता। अपने आप ही आप छोड़ देते हैं। मैं किसी से कुछ नहीं चल सकते, शरीर नहीं चला सकते ये भी मैनें बताया था नहीं कहती। ये नहीं कहती कि शराब मत पियो। कुछ नहीं कहती कि होने वाला है। एडस भी बताया था। पर सब बड़े गुस्से होगये क्योंकि दिल्ली में अगर ऐसा कहो तो आधे लोग उठ कर चले थे। अब जब हो गया है तो बैठे हुए हैं। और गंदी-गंदो जगह जायंगे सब जाति के लोग शराब पीते हैं। हालांकि मना है सब पीते हैं। लेकिन सहजयेग में आने के बाद मैं कहती हूं कि जाओ नहीं सोचते कि बच्चों का क्या होगा। अब सिनेमा में भी यही है। शराब की दुकान पर। कोई शराबी दिखाई दिया तो दूसरा रास्ता उसमें भी यह कुछ अच्छी बातें सिखाते नहीं। कम से कम काट लेंगे। और शराब की दुकान देखी तो अपना घर हटाकर हिन्दुस्तानी फिल्मों में यह नहीं दिखाते कि कोई बुरा आदमी हीरो दूसरी जगह चले जायँगे। क्योंकि अंदर प्रकाश आ गया ना हो गया है। वहां तो बुरा आदमी ही हीरो होता है। पर तो भी अपनी बाहर कुछ नहीं। सब ड्रग्स छूट गये, शराबें छूट गई वो सारा जो फिल्मों में भी ये कितनी गंदो-गंदी बातें सिखाते हैं बच्चों को। क्लब जीवन था ये वो था जिससे कि मनुष्य का सर्वनाश होता मार-पीट ये वो। अरे जब बच्चों को मार-पीट सिखाओगे तो है सब छूट गया। ये सारे कार्य सर्वनाश की ओर ले जाते हैं। लेकिन शांति कहां से रहेगी देश में । इस प्रकार एक तरह से हमारे ऊपर न जाने मनुष्य ऐसा क्यों करता है। लंदन में हम रहते थे कि देखा आक्रमण आ रहा है। एक नये तरह का इन विदेशियों का। इधर एक इंसान बड़़े जोरों से चला जा रहा है मोटर लिये। पता नहीं आप जरुर ध्यान दीजिये। अपने बच्चे भी वैसे कपड़े पहनने लग इसको काहे की जल्दी हो रही है? रुककर देखा कि कहां जा गये उसी तरह से जवाब देने लग गये। इसी तरह से उनका रहा है तो एक पब के सामने खड़े हैं। दो चार अंदर से आकर नीचे गिरे हुए थे रास्ते पर बेहोश और ये उसी के लिये दौडे चले गये चोरी-छिपे। और वहां बदमाशी कर रहे हैं। इस तरफ सतर्क आ रहे हैं कि मैं क्यौं नहीं बेहोश हुआ। अक्ल मारी जाती है ना, होना पड़ेगा। जो बच्चे एक बार सहजयोग में आ गये उधर जिसको मत (बुद्धि) मारना कहते हैं बिल्कुल अक्ल मारी जातो मुड़कर भी नहीं देखते। उनको अच्छा ही नहीं लगता। उसका शौक है। और चाहे वो सिख हो चाहे वो मुसलमान हो, चाहे वो ईसाई हो नहीं चढ़ता। आपके सामने ऐसे बहुत से बच्चे आयेंगे आप हो बड़ी शान से अपनी बार दिखाते हैं, बार, घर के अंदर और देखियेगा। सहजयोग में आप खुश हो जायेंगे। इन सब चौजों से वहीं सबके फोटो लगे हुए हैं। ये धर्म नहीं है। अंदर बाहर एक ही जानो ये अपने आप ही हो जाता है। मुझे हमीं अपने गुरू हो जायें। उस गुरूतत्व से आप समझ जायेंगे कि कहने की जरुरत हो नहीं है। आप अपने ही गुरु हो जाते हैं। आप आपके लिये भलाई क्या है, अच्छाई क्या । आपकी फैमिली के अपने ही आप ठीक हो जाते हैं मुझे कहने की कोई जरुरत ही लिये क्या अच्छा है। आपके घर वालों के लिये क्या अच्छा है। नहीं। आज मैने कह दिया इसका मतलब नहीं कि आप छोड़छाड आपके रिश्तेदारों के लिये क्या अच्छा है। इस देश के लिये क्या के भागिए। यह सब गंदी आदतें छूट जायेंगी। अब मैं इश्तिहार अच्छा है। उसी ओर आप बढें। इस प्रकार सहजयोग में आने से को तो वहां बेचारों की खापड़ी खराब कर दो है। सत्यानाश कर ना द्वार, ना बाल ना बच्चे। सब अनाथाश्रम में रहते हैं। दूसरे जो क जो लोग बहुत काम करते हैं इनका जो चेतन मस्तिष्क है वहीं दिमाग जाना और गंदी -गंदो बात सोचना। अपने बच्चों की भलाई रहन-सहन भी हो रहा है और डिस्को-विस्को में जाने लग अपने को बचाना है। अब बचाने के लिये एक ही मार्ग है कि जन कार्यक्रम, दिल्ली 21 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-22.txt के मरुस्थल में जाकर वहां काम किया। साइबेरिया में भी सहजयोग चलाया बड़े आश्चर्य की बात है कि ये लोग कैसे साइबेरिया गये। पिछली मर्तबा जब में रूस गई तो एयरपोर्ट पर हजारों लोग थे तो जब सामने आये तो मैने कहा कि ये कहां से आये। साइबेरिया से। कहने लगे कि माँ 50 आदमी आये हैं साइबेरिया से। साइबेरिया में लोगों को सजा देने के लिये भेजते थे। जैसे अन्डेमान-निकोबार। हां अन्डेमान-निकोबार में भी सहजयोग चल पडा है। आपको आश्चर्य होगा कि जहां यह बीज चला जाता है उस आदमी को चैन ही नहीं पड़ता सहजयोग दिए बिना। अकेले कैसे रहें। माँ हम तो अकेले हो गये यहां कैसे सहजयोग करें। सहजयोगी बनाओ सहजयोगी। और हिम्मत को बात है। इस पर बस अहंकार नहीं आना चाहिए। हिम्मत होनी चाहिए। हर आदमी हजारों आदमियों को पार कर सकता है। अब हमारी उम्र हो गई आप जानते हैं लेकिन कोई हर्ज नहीं। आप लोग तो हैं। आप लोग तो हमारा कार्य करेंगे हो। और हमें पूर्ण आशा है कि सहजयोग दुनिया की रंगत ही बदल देगा। आज न जाने क्यों मुझे दुनिया ही अलग नजर आ रही है। कुछ फरके ही नजर आ रहा है। न जाने क्यां? क्या हो गया है सब कुछ अलग ही अलग दिखाई दे रहा है। और बड़ी शांति सी लग रही है अंदर में हो सकता है कि वाकई में सतयुग का ऊषा काल आ गया है उसको प्रभात आ गई है। सार हो धर्म, उसके संस्थापक एक हो पेड़ पर पैदा हुए फूल थे मैंने कहा। लेकिन हमने ये फूल तोड़ लिये हैं और लड़ रहे हैं कि ये हमारा है हमारा है। सहज के सागर में सारे ही समा जाते हैं और सबको की हम पूजते हैं। समोभाव नहीं है समश्रद्धा भी नहीं कहना चाहिए पर पूजा सबकी होती है। ये हुए बगैर हम लोग वो नहीं जान सकत कि हम सब एक हैं। कोई फर्क नहीं, हमारे में आशा है कि जो नये लोग आये हैं सहजयोग को प्रणालियां सीख लंग। कल भी मैं चक्रों पर बात करुंगी। एक-एक विषय पर बातचोत होगी। परमात्मा आपको आश्शोवादित करें। आपमें वो सूक्ष्मता आ जायेगी। और वह सुक्ष्म शक्ति जो कि सारे ही जीवन्त कार्य करती है। हम सोचते भी नहीं कि दिल क्यों धड़कता है। अनहद कह दिया अनहद है। पर कौन अनहद है। कौन अनहद है ये दिल को चलाने वाला ? कौन है जिसने इन्सान को बना दिया? और किसलिये बनाया है ? यह सारा कुछ मतलब आपको सहजयोग में मिल जाता है। और अब आप जानते हैं कि आपके जीवन का अर्थ क्या है। क्यों आप इस संसार में आये। क्यों आपने मनुष्य रुप धारण किया इस वक्त आप समझते हैं कि आप कितने गौरवशाली हैं और कितने विशेष हैं। अब समझ लीजिये कि अगर कोई आप देहात में टेलीविजन ले जाइये और कहिये कि इसमें हर तरह का ड्रामा, हर तरह की चीज आयेगी। वो कहंगे कि क्या बकवास कर रहे ही ये तो डिब्बा पड़ा हुआ है। डब्बा। ऐसे हम भी अपने को एक डब्बा समझते हैं। ये बात नहीं। बहुत बढ़िया तरीके से बनाया गया है ये डब्बा। इसमें सूक्ष्म तार ऐसे गिने हुए हैं और वे सूक्ष्म तार जैसे के तैसे रक्खे हुए हैं। उन्हें कोई छू नहीं सका अभी तक। वही सूक्ष्म तार छेड़ने को बात है। पर जैसे ही आप इस टेलीविजन का कनैक्शन लगा दीजिये वो हैरान कि अरे वाह ये क्या चीज है। ऐसे हो आप लोग भी हैं और आप अपने को जानिये और जानने के बाद आप समझ जायँगे कि आप क्या हैं। बगैर अपने को जाने चाहे आप हुए सांचे कि आप लाट साहब हैं तो वा भी गलत है। और चाहे आप सोचे कि आप कुछ नहीं तो वो भी गलत है। पहले अपने को जान लोजिए। और जब जाना जाता है ता दिया भी जाता है। जब तक दीपक में प्रकाश नहों होता, उसकी जलाया जाता है और जब वो जल जाता है तो वो सबको प्रकाश देता है क्योंकि ये इसका कार्य है। इसी प्रकार एक दीप से अनेक दोप जलाने की जो बात है, उसका साक्षात सहजयोग है। इसमें से से लोग बहुत एसे हैं जिन्होंने पहले मुझे देखा भो नहीं और जागृत हो गये। कैसे? एक सहजयोगी गये उन्हांने किया। और प्रदेश में यह काम बड़े जोरों से हो रहा है। रूस में लोग आप आश्चर्य करेंगे कि साइबेरिया ॐ चंतन्य लहरी ॐम 22 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-23.txt श्री माता जी द्वारा नियुक्त की गई समितियां सभी केन्द्र इन समितियों को बढ़ावा दें रोग मुक्त हुए लोगों के रोग के पूर्ण इतिहास समेत उनका विवरण रखना। ठीक होने के पश्चात रोगी का वक्तव्य लिख लिया जाये कि वह सहजयोग द्वारा ठीक हुआ है। 2. (1) राष्ट्रीय मुख्य समिति उद्देश्य : सारी समितियों के कार्य तथा उनके नियन्त्रकों का 3. निरोक्षण करना (6) (2) विवाह समिति (राष्ट्रीय) प्रदूषण समिति उद्देश्ये उद्देश्य : विवाह के प्रार्थनापत्रों की छानबीन करना। 2. प्रा्थियां के कथन का सत्यापन करना। उन्हें सहजयोग में आए कम से कम दो वर्ष हो चुके हों। 3. सहजयाग में विवाहित दम्पतियों से जन्मे बच्चों की सूचना तथा उन्नति का विवरण रखना। हर विवाह से कितने बच्चे हुए। 1. प्रदूषण को समाप्त करना तथा पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखना बाग, पेड तथा जंगल लगाना 3. सफाई (अ) आसपास की 1. 2. (ब) निजी (स) सामुहिक 4 प्राकृतिक तथा हस्तकला को वरतुआं का उपयोग। प्लास्टिक की वस्तुओं से बचना। (7) व्यक्तित्व विकास समिति उद्देश्य : सहजयोगियों के आचरण, व्यवहार-वैचित्र्य, वेषभूषा का ध्यान रखना। वस्त्र हास्यास्प्रद नहीं होने चाहिएं। भारतीय वेषभूषा की सिफारिश को जाती है। दफ्तरों में चूड़ीदार पायजामे तथा जोधपुरी कोट पहन सकते हैं। जीन पहनना वर्जित है। महिलाएं पाश्चात्य फैशन में बाल न बनवाएं तथा अत्यधिक श्रृंगार न करें। योगी गरिमामय तथा सम्मानीय लगने चहिए। यह देखना कि हर व्यक्ति सहज संस्कृति के नियम तथा सामाजिक आचरणों का पालन करे। हर व्यक्ति को सहज भाषा का ज्ञान हो। अंग्रेजी तथा हिन्दी भाषा का ज्ञान होना चाहिए। महाराष्ट्र में रहने वाले लोग मराठी सीख सकते हैं। 1. (3) कृषि समिति 2. उद्देश्य : (1) चैतन्य लहरियों के उपयोग से उपज को बढ़ाना। (2) शोध कार्य। (3) कृषि उद्याग आरम्भ करना। (4) कृषि प्रयाग करना तथा उन्हें लिखना। 3. (4) औषधालय समिति 4. उद्देश्य : (1) वाशो हस्पताल की देखभाल। (2 ) शोध कार्य। 5. (5) (৪) रोग-मुक्ति समिति (स्थानीय) उद्देश्य : साहित्य समिति (राष्ट्रीय) उद्देश्य : व्यक्तिगत रुप से कोई व्यक्ति रोगियों को ठोक करने का प्रयास न करे। श्री माता जी के फोटो के सामने निर्धारित सहजयोग इलाज द्वारा रोगी स्वयं अपना इलाज 1. श्रेष्ठ प्रेरणा प्रदान करने वाले, मानवता का पोषण करने वाले अन्तस की सूक्ष्म वास्तविकताओं को बाहर लाने वाले, चारित्रिक मूल्यों और देवी विचारों तथा आत्मोत्थान की अभिव्यक्ति करने 1. करें। श्री माता जो द्वारा नियुक्त को गई समितियां 23 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-24.txt वाले उदारता पूर्ण साहित्य को प्रोत्साहन देना। इस प्रकार की पुस्तकों का पुस्तकालय वाशी में अर्थव्यवस्था कृषि उपज भौगोलिक तथ्य पर्यावरण सम्बन्धी तथ्य नये अन्वेषण तथा शोध सूचना आवश्यक अन्तरराष्ट्रीय स्थिति सनसनीखेज पत्रकारिता की निन्दा करना । सकारात्मक तथा ईमानदार पत्रकारों की पहचान 2. बनाना। सहजयोगी ऐसी पुस्तकें पढ़ें तथा साहित्यिक सुरुचि स्वयं में स्थापित करें। पुस्तकों को लिखने तथा प्रकाशन की स्वीकृति देना। कोई भी पुस्तक या पत्रिका इस समिति की आज्ञा के बिना प्रकाशित नहीं होनी चाहिए। (9) सिनेमा समिति 3. 4. 3. 4. करना। 5. ईमानदार पत्रकारों को विशेष पारितोषिक देना। स्मरणीय वार्षिक ईनाम दिया जाना चाहिए। हर मुख्य केन्द्र-अर्थात बम्बई, दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास इन प्रत्याशियों को राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं में पत्रकारिता के लिये ईनाम के लिये पहचानें। इस वार्षिक इनाम के लिये क्षेत्रीय मुख्य केन्द्र योगदान करें। दिल्ली राष्ट्रीय भाषा-हिन्दी या अंग्रेजी में इनाम के लिये धन दे। इनाम श्री माता जो के जन्म दिवस पर दिए जाने चाहिए। वर्ष 1994 का इनाम श्री माता जी ने अरुण शौरी के लिये : उद्देश्य : मूल्यांकन करके उच्च चारित्रिक मूल्यों, समृद्ध 1. परम्परा तथा प्रतिष्ठित ऐतिहासिक कहानियाँ वाले सिनेमा की सिफारिश करना। सस्ते, निम्न और गंदे सिनेमा का वर्जन करना। रचनात्मक जन संदेश देने वालो फिल्मों के वीडियो टेप रखना। 2. 3. (10) सुझाया है। ड्रामा समिति (स्थानीय) (12) आडियो तथा वीडियो समिति (राष्ट्रीय) उद्देश्य : प्रतिष्ठित ड्रामा, विशेषकर नाट्य-संगीत को प्रोत्साहित करना। उत्तर भारत के लिये बाद में इनका हिन्दी में अनुवाद किया जा सकता है। बम्बई से शुरू हो कर यह पुणे, श्रीरामपुर, महाराष्ट्र के गांवों में सम्बन्धित सहजयोग केन्द्रों के माध्यम से जाना चाहिए। योगियों की उपस्थिति इन नाटकों में आवश्यक होनी चाहिए। श्रेष्ठ ड्रामा का मूल्यांकन, उसकी सिफारिश तथा 1. उद्देश्य श्री माता जी के सभी आडियो तथा वीडियो बनाये तथा बेचे जाने चाहिएं। सहज संगीत के भी आडियो तथा वीडियो बनाये तथा बेचे जाने चाहिएं। (13) 1. 2. वित्तीय समिति 2. कलाकारों को प्रोत्साहन देना। उद्देश्य : सहज कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के लिये एकत्रित की गई धन राशि को निम्न प्रकार से देखभाल करें अ) व्यक्तिगत ब) सामूहिक स) श्रो माता जी द्वारा दो गई 1. (11) समाचार-पत्र समिति उद्देश्य : समाचार-पत्र, पाक्षिक पत्रिकाएं, पत्रिकाएं जो 1. अच्छी तथा ठीक खबरें, धार्मिक लेख और मानवीय संयोजकताओं को छापती हों उनकी सिफारिश करना। निम्नलिखित को लाभदायक सूचनाएं तथा आंकड़े इक्टठे करना :- हर केन्द्र ऐसी समिति मनोनीत करे जो सामुहिक रुप से सारे वित्तीये लेखे-जोखे का निरीक्षण करे और उन्हें स्वीकृति दे। 2. मुद्राएं ॐ * * चैतन्य लहरी 24 1993_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_8.pdf-page-25.txt Phone: 5413126, 5437741 Printed at Bharati Printers, WZ-113, Shakurpur Village, Delhi-110034