১১২১২,১২১২১১ खंड VI अंक 3 व 4 चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति भ्रा का "शेष सभी इच्छाएं महत्वहीन हैं। उत्थान की इच्छा ही सर्यवोपरि है। यह आपके हित के लिए है और आप ही के हित में पूरे विश्व का हित निहित है । " परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১ ১১২১২, ১১২১২১১২১১২১১২১১২ १3১১২১ ১২১২১২১ &৯২১ चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खंड VI अंक 3 व 4 विषय सूची 1 1. प्रार्थना 2. सहस्रार आत्मा - दिल्ली 16.2.1985 3. श्री राज राजेश्वरी पूजा - हैदराबाद 21.1.1994 4. श्री गणेश पूजा - दिल्ली 05.12.1993 13 19 5. जन्म दिवस पूजा - दिल्ली 30.3.1990 6. हमारे जीवन का लक्ष्य 25 (नवरात्रि पूजा - पुणे 16.10.1988 31 ल श्री योगी महाजन सम्पादक : 162, मुनिरका विहार, नई दिल्ली-110067 श्री विजय नाल गिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110060. फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित प्रार्थना श्री माता जी के चरण कमलो में प्रेम अपना दो हमें, करूणा परस्पर जाग जाए। नम्रता का दान दो. कट्ता न हममें स्थान पाए।। सम्मान भाव से पूर्ण हों, न दूसरों को तुच्छ करें कार्य हृदय पूर्वक, माने । विश्वास हममें डालें।। आत्म पर्ण सन्तोष प्रदान कर दें आकांक्षा रहे मात्र उत्थान की। मकान माँ क्षमा दान दे, समर्थ आपको समझने की हम में नहीं।। दें सूक्ष्म को समझने की संवेदनशीलता, हृदय में सदा आप महसूस हो पावन हृदय रखें हम सदा, में श्री चरण सदा साथ हों। हृदय 1 प्रायना 11 १t "सहस्रार आत्मा" दिल्ली - 16.2.1985 जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम। आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहुत सम्बन्धित है जिसके लिए मैं देबू चौधरी को बहुत-बहुत धन्यवाद देती लिए अगर हमें बाह्य से कोई उपचार करना पड़ता तो है। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही सुन्दरं संगीत निर्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चेक्र, मुलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार) इसके अलावा हमारे अन्दर सर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दु और वुलय कहते हैं। यह सारे हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे "स" से शुरू करें तो "सा र गा मा पा धा नी सहस्रार पर"नी जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले है। लीकिन उसकी शक्ल-सुरत से आप जानते हैं कि यह ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मुलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि पर गुरू, हृदय पर शुक्र, विशह्धि पर शनि कितने गहन और कितने गणित से बने हैं, इसका अन्दाजा आज्ञा पर सूर्य और सहस्रार पर सोमवार जो कि शिवजी या देवी का स्थान माना जाता है, आदि शंक्ति का। इसी प्रकार हमारे नव ग्रह भी इन चक्रों पर वास करते हैं। इसका मतलब यह है कि जो कुछ भी ओंकार श्री गणेश से प्रगट है, वह सारा ही एक ही सुर एक ही ताल में पूर्णत: बद्ध हो कर के एक सुन्दर संगीत का साज परमात्मा ने हमारे अन्दर तैयार रखा है। इसको छेदने के लिए ही कण्डलिनी कार्यान्वित होती है। जब कर्णडलिनी इन चक्रों को छेदती में, मूलाधार से लेकर सहस्रार तक सातों के सातों, जिन्हें हम हुई बहमरन्ध तक पहुँचती है, उसके उत्थान से हर चक्र न जाने कितनी ही गतिविधियाँ हो जाती हैं। बहुत-से लोग सोचते हैं और कहते भी हैं कि माँ यह इतना सरल कैसे? सरल तो ऐसे है कि जितनी भी जीवन्त क्रियायें हैं, सब बिल्कुल ही सहज हैं। एक बीज में अंकुर भी सहज ही आता है लेकिन जो हम रोज देखते हैं, उसके प्रति कोई भी प्रश्न खड़ा नहीं होता। उसे हम मान लेते हैं। जैसे कि आपके श्वास की किया जो है, यह कितनी सहज है। उसके लिए अगर आपको किसी गुरू के पास जाना पड़े या कुछ ग्रन्थ पढ़ना पड़े या किसी लाइब्रेरी में जाना पडे तो कितने लोग है। यह एक कमाल की चीज है जिसे देखते ही बनता है चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फाल खिलते हैं अपने आप और इनके फूल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा प्रज्ञा है जिसने इस पूरी सृष्टि को आशिर्वादित किया है, वह यह सारे जीवन्त कार्य हर क्षण, हर पल करती रहती है। इतना ही नहीं, इसका चवन इतना अद्वितीय है कि उसका अनमान हम अपनी मानवीय बृद्धि से नहीं लगा सकते हैं। माने एक आम के पेड़ में सिर्फ आम ही लग सकता है। एक हिन्दुस्तानी के घर एक हिन्दुस्तानी ही पैदा होता है। मेरा मतलब यह नहीं है कि हिन्दस्तानी काई ब्राण्ड लेकर आता हिन्दुस्तानी है। यह जो चयन है, यह जो चुनाव है, यह हमारे दिमाग में आ ही नहीं सकता। जैसे कि मैंने पहले कहा था कि यह सिर्फ एक ही हो सकता है कि जो सृष्टि में प्रेम है उसे हम सागर में ढाल सकते हैं। सांगर से एकाकार होने पर सारी की सारी शक्तियों को देख सकते हैं, जान सकते हैं और उसका आनन्द भी लूट सकते हैं। यही कार्य यह कुण्डलिनी करती है। लेकिन इसकी साज की व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि सारे स्वर जा कर अन्त में अपने मस्तिष्क कहते हैं कि चक्रों के पीठ, पूरी तरह से अपने कार्य में संलग्न हैं। यह सात चक्र जो हम नीचे देखते हैं, इनके पीठ हमारे मस्तिष्क में हैं। यह सारा कुछ तो आप किताबों से जान सकते हैं। लेकिन जिसने आपको बताया उसका आप कमाल देखिये। सात स्वर बनाने के बाद उसके जो पीठ हैं, उसके हर एक स्वर का निनाद, इन सात पीठों से बने हुए इस मस्तिष्क में इस तरह से घुमाया जाता है। इसकी जो शक्ति है उसको किस तरह से एक सुन्दर-सुगठित ताल बद्ध स्वर में अलापा जाता । 2. सहार आत्मा इस कमाल को हम इसलिए नहीं देख पाते कि हमारी दृष्टि ही बाहर की ओर है। अगर कहा जाए कि आप अन्दर की ओर दुष्टि ले जायें तो आप कहेंगे कि यह कैसे करें माँ? यह तो मुश्किल काम है। आप इस वक्त मेरी बात सुन रहे हैं। आपका सारा चित्त मेरी ओर है। लेकिन अगर कोई घटना घटित हो जाती है, तो आपका चित्त वहां आकर्षित हो जाता है। इसी प्रकार कण्डलिनी का जागरण जब होता है, तो जो आपका चित्त बाहू्य में फैला हुआ है, वह एकदम अन्दर की तरफ दौड़ता है और जैसे एक कपड़ा बाहर से एक कपड़ा चारों तरफ फैला हुआ है और उसके अन्दर से कोई चीज उसे ढकेलती हुई उसे इस तरफ से उस तरफ ले जाती है, इस प्रकार कण्डलिनी सहस्रार पर आने पर उसे चाक करती है। लेकिन उसका चाक करना भी इतना सुन्दर है कि जब वह भेदन होता है तो उस कण्डलिनी का प्रकाश चारों तरफ फैल जाता है। जो कहा है "राम नाम रस भीनी"। वह चदरिया जो कि हमारे चित्त की है, उसमें सत्य का प्रकाश फैल जाता है। अब यह उसकी सुन्दर रचना है कि हृदय चक्र बराबर यहाँ बीचोंबीच हैं, जहाँ पर कि हमारा बहमरन्ध्र छेदन होता है। बरहुमरन्ध का छेदन उस जगह है, जहाँ हमारा हृदय है। इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में जब तक परमात्मा को पाने की इच्छा नहीं होगी, तब तक यह भेदन ठीक नहीं होगा। सारा काम हृदय का है। यह समझने की बात है। आप लोगों ने बुद्धि से मेरी बात को समझ लिया। बुद्धि से समझने की बात ठीक है। लेकिन जब तक यह हृदय से संचालित नहीं होगी, तब तक यह हृदय से प्लावित नहीं होगी, तब तक हमारे अंग-अंग में यह बसने वाली चीज नहीं है। लेकिन हृदय में है हमारी आत्मा का स्थान। इसीलिए यह समझ लेना चाहिए कि हृदय को छेदने के लिए पहले हम अपने हृदय को खोल लें इस हृदय में आत्मा का वास है जिसके ऊपर सात रंगों में इन सात पीठों का प्रकाश फैला हुआ है। इतना निकट का सम्बन्ध हमारे इस मस्तिष्क का, हमारे इस ब्रेन का और इस हृदय का है। तरह की दविधा, परेशानियाँ, चिन्ता, बीमारियाँ आ जाती हैं। यह सारे चक्र भी पंच महाभूतों से, एलिमैन्ट से बने हैं। यह सारे के सारे चक्र जिन पीठों से संचालित होते हैं, गवर्न होते हैं, वह पीठ हमारे मस्तिष्क में हैं और हमारे मंस्तिष्क के ही सैन्ट्रल नव््स के साथ इन सारे चक्रों का चलन-वलन हो सकता था लेकिन होता नहीं है। पैरासिथैटिक नव्स्स सिस्टम से ही हम इन चक्रों को संचालित करते हैं। जब तक हम पैरासिम्पैथेटिक पर प्रभुत्व न जमा लें, जब तक हमारा सम्बन्ध आटोनॉमस सिस्टम (स्वचालित प्रणाली) जिसको हम नहीं चला सकते, ऐसी स्वयं चालित के स्वयं पर अपना जोर न जमा लें तव तक न हम बदल सकते हैं न दुनिया बदल सकती है। बाहुय से आप किसी चीज को ठीक कर लें। किसी पेड़ में अगर कोई खराबी हो जाये और आप अगर किसी पत्ते को ट्रीटमैन्ट दे दें तो शायद वह थोड़ी देर के लिए ठीक भी हो जाये। लेकिन असली बीमारी उसके जड़ में हैं और उसके अन्दर जो रस, रिसता है,जब तक उसको आप दवा नहीं देंगे, तब तक वह पेड़ आप बचा नहीं सकते। इतना ही नहीं इन सातों पीठों का यहाँ सम्मेलन है यहाँ तीन जो शक्तियां हमारे अन्दर प्रवाहित हैं- हमारी इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और धर्मशक्ति जिनसे हमारा क्रान्ति का पथ बनता है, जिससे हम रिवोल्यशनरी प्रोसेस में जाते हैं, यह तीनों ही शक्तियां एकत्रित हो जाती हैं। इस प्रकार इस मस्तिष्क में सात चक्रों और तीन शक्तियों का समन्वय होता है। लेकिन उनमें रिलेशनशिप उनकी दोस्ती मात्र होती है, एकीकरण (इन्टीग्रेशन) नहीं होता, समग्रता नहीं होती। जैसे कि एक ही स्वर में, एक ही ताल पर सातों स्वर नाचें, ऐसी स्थिति तब आती है जब एक ही छिद्र से कण्डलिनी, डोर की तरह पिरोई जाती है। इस तरह से पूरी तरह से भेदन करती हुई सहस्रार को भेद देती है। सहस्रार के बारे में जितना भी कहा जाए कम है। सहस्रार जो हमारा आखिरी चक्र है, उसमें एक हजार पंखुड़ियां हैं जो कि वास्तव में हमारे अंदर एक हजार नाड़ियां हैं- डॉक्टर लोग जिस पर कभी-कभी बड़ा झगड़ा उठाते हैं कि नहीं ९८२ हैं या कुछ हैं। वह तो बिल्कुल हृदयहीन बातें हैं जिनमें कोई सुर नहीं, माध्र्य नहीं। एक हेजार इसमें पंखुड़ियां हैं जो कि इन नाड़ियों को तेजोमय करती हैं। यह ऐसे दिखाई देती हैं जैसे कि किसी कमल पुष्प में एक हजार पंखुड़ियां हैं और वे पंखुड़ियां सजीव हो कर के और बड़ी सुन्दरता से उनका प्रकाश आपस में झिलमिल होता है। अत्यन्त शान्त ऐसी यह तेजोवलय से भरी हैं, लेकिन आज हमारा हृदय एक तरफ काम करता है, शरीर दूसरी तरफ काम करता है और बुद्धि तीसरी तरफ। इसमें कोई समग्रता नहीं है। समग्र माने सब अग्रों में से एक ही सूत्र जाना चाहिए। इसमें कोई संघटन नहीं है। इसलिए हम अपने से ही रोज लड़ते हैं। अपने से ही रोज़ झगड़ा रहता है। किसी का एक चक्र अच्छा है तो दूसरा खराब, दूसरा अच्छा है तो तीसरा बिल्कुल कमजोर हो चुका है और चौथा बेकार हो चुका है। इन चक्रों की लड़ाई में ही सब सहार आत्मा बाह्य से जरूर हम उनके गुण गाते हैं, उनके गाने गाते हैं, उनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन हम अभी भी उससे अनभिज्ञ हैं। अभी तक हमने यह जाना ही नहीं कि वे हमारे अन्दर बसे हुए इस कार्य के लिए तत्पर हैं। कण्डलिनी का जागरण होने के पश्चात ही यह ज्ञान हमें होता है। तेजपन्ज ज्योतियां जैसे कि पंखड़ियां हों। इस तरह से प्रकाशित हो कर आन्दोलन करती रहती हैं। इस आन्दोलन से जो हमारे अन्दर आनन्द निर्माण होता है, उसे निरानन्द कहते हैं। निरानन्द माने केवल आनन्द। एब्सोल्यूट ज्वायँ। उसमें कोई दसरी चीज नहीं होती है। आनन्द में दो चीज सुख और दुख नहीं होते, केवल आनन्द मात्र होता है और वह मौन ही में जाना जा सकता है जैसे कबीरदास जी ने कहा था "जब मस्त हुए फिर क्या बोले। वह जो एक श्रेष्ठों की, योगियों की स्थिति है। लहस्रार की सुन्दर व्यवस्था ऐसी है कि अगर आप अपने ब्रेन को काट दें और ट्रान्स सैक्शन में उसे देखें तो ऐसे दिखाई देगा जैसे कि कमल की पंखड़ियां इस तरह से चारों तरफ लगी हुई हैं। सहस्रार का दूसरा कमाल। आप देखिये इस निरानन्द स्थिति में उतारने के लिए जब कडलिनी कि श्रीफल माना जाता है देवी का फल जिसे हम लोग नारियल कहते हैं। इसकी तुलना हर बार ब्रेन से होती है। ओर पहचा सकती है जहाँ उस निरानन्द का सागर आपके आपको आश्चर्य होगा कि ऋतम्भरा प्रज्ञा ऐसी है कि आप सम्मुख लहलहाता है। इतनी काव्यमय कण्डलिनी की नारियल के पेड़ के नीचे या हजारों पेड़ों के नीचे सो जाइये । आज तक कहीं भी ऐसी वारदात नहीं हुई कि नारियल का बनता है। हालांकि कुछ-कुछ लोगों में मैं देखती हूँ कि पेड़ किसी पशु पर या किसी मनुष्य पर गिरा हो। क्या आप इस कमाल से परिचित हैं? जब तक आप समद्र के किनारे कहीं-कहीं देखती हैँ कि जैसे कोई कमजोर माँ छटपटाती नहीं जाते तब तक आप इस कमाल को नहीं जान सकते हुई किसी तरह से अपने बच्चे को पुनर्जन्म देने के लिए और समुद्र में भी एक कमाल देखिये कि नारियल के पेड़ समुद्र किनारे होते हैं। इतनी जोर की हवा, बरसात और मानसून का थपेड़ा होते हुए भी सारे नारियल के पेड़ समद्र की ओर झुक जाते हैं क्योंकि वह हमारा गुरू तत्व है। करती है कि किसी तरह मेरे बच्चे को उसका जन्म मिल क्योंकि वह हमारा गुरू है, इसलिए उसके आगे झुके रहते जाय। यह करूणामयी माँ प्रेममयी है। यह आपको किसी हैं, नतमस्तक हैं। उनकी समझ सहज और नैसर्गिक है और तरह से तकलीफ कैसे दे सकती है। जिसने हजारों वर्षों से हमारी समझ अभी बहुत ऊँची होने के कारण इतनी यही प्रतीक्षा की कि मेरा बेटा किसी न किसी दिन इस शुद्ध नैसर्गिक नहीं हैं। हम जरूरत से ज्यादा कुछ लम्बे हो गये इच्छा को पूरी करेगा और इस योग को प्राप्त करेगा। वह हैं। अगर आप जरूरत से ज्यादा लम्बे हो जाइयेगा तो आपको किसी प्रकार से भी दुख नहीं देती। लेकिन जैसे मैंने बहुत-सी चीजें जो पाने की हैं, कभी-कभी खो जाती हैं। या आपको बताया कि दनिया में इतने कट् लोग हैं कि शुद्ध और अगर जरूरत से ज्यादा नाटे हो जाइयेगा तो भी वह चीज खो उच्च चीजों के प्रति भी उनमें कोई आदर नहीं है। उनको ही जाती है। इसका मतलब यह है कि जब तक आप मध्य किसी भी चीज के प्रति आदर नहीं है। वास्तव में यह लोग मार्ग में नहीं होते तब तक आपकी कृण्डलिनी का जागरण स्वयं का भी आदर नहीं करते। इसलिए यह समझ ही नहीं बड़ा कठिन कार्य है। लेकिन फिर भी आजकल परमात्मा सकते कि संसार में कोई चीज उच्च हो सकती है या ऐसी की कुपा इतनी जबरदस्त है, इतनी अनुकम्पा इस बक्त कोई विशाल या महान चीज हो सकती है जो पूर्णतः पवित्र उनकी बह रही है, मैं स्वयं आश्चर्य करती हूँ कि हजारों लोग एक साथ पार हो जाते हैं। हालांकि इसके बारे में भूग् मनि ने अपने नाड़ी ग्रन्थ में लिखा था कि ऐसा होगा और सब की बीमारियाँ अपने आप ठीक हो जायेंगी। सब की तकलीफें दूर हो जायेंगी और कण्डलिनी सहज में ही जागृत । आप सोचिये कि भृग मनि का देश के इतिहास में कौन सा स्थान है? कहते हैं कि हजारो वर्ष पूर्ण भुग मनि हो गये और उन्होंने भी कण्डलिनी के बारे में बताया था कि तत्पर है जो सिर्फ थोड़ी-सी सहायता करने से आपको उस शक्ति है, इतना सुन्दर उसका चलन-चालन है कि देखते ही कुण्डलिनी आहत है, आहत स्थिति में कण्डलिनी है। के धीरे-धीरे उठती है, गिरती है, उठती है, गिरती है। इस प्रकार यह कण्डलिनी बेचारी जो हजारों जन्म से आपके साथ थी और आज फिर आपके साथ है, पुर्णतः प्रयत्न हो। हमारे सामने इतने सन्तों का उदाहरण होते हुए भी हम लोग भूल जाते हैं कि जब वे इस संसार में आये तो वे अपने लिये नहीं आये क्योंकि उनको क्या करना था ? वह सब कुछ हो जायेगी पाये वे कुछ देने के लिए हमारे पास आये और जो थे हुए कुछ उन्होंने देना था, वह हमारे अन्दर, हमारे शरीर के अन्तर्गत कर दिया। सिर्फ उसकी जानकारी हमें नहीं है। सहयार आत्मा सहज में ही कुण्डलिनी जागृत होगी। लेकिन हम, हमारे ने मेरे साथ इतना जर्म किया। आप उस पर बह पड़े। हो देश के जो लेखक हैं, प्रवक्ता हैं, दृष्टा हैं, बड़े-बड़े ऊँचे सकता है कि वह किसी जेल से छुटा हुआ चोर हो। हो सन्त साधु हैं और यहाँ के जो अवतरण हो गये, उनके बारे सकता है कि वह आपको लुटने के लिए आया हो या आपको में कितना जानते हैं? आज ही किसी ने पछा कि माँ मर्डर करने के लिए आया हो। आप जान नहीं सकते कि वह शिवरात्रि का क्या महत्व है? क्या शिवजी का जन्म हुआ आदमी कौन है। क्योंंकि आप सत्य तो जानते नहीं है। सत्य था? शिवजी का जन्म तो होता नहीं। क्योंकि जो सदाशिव को जानने का मतलब यह होता है कि आप उस चीज को हैं, उनका जन्म होने का कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन जानें जो सब चीजों का सार और तत्व है। जैसे कि मनुष्य शिवरात्रि का मतलब यह है कि यह महारात्रि, जिस वक्त सारा संसार परबरह्म स्थिति में सो रहा था. यह महारात्रि है परब्रहम। जैसे हम सो जाते हैं तो हमारी सृष्टि सारी हमारे वह अज्ञान-सा लगता है और ज्ञान को आप अपनी नसों, साथ सो जाती है। उसी प्रकार यह सारी सुष्टि सो गई थी। वह महारात्रि थी और तब जब सदाशिव जागृत हुए, सदाशिव माने जो कभी भी नहीं बदलते, जो सिर्फ एक की बीमारी है, मुझे ठीक कर दीजिए। मैंने कहा कि अच्छा साक्षी स्वरूप होकर सारे संसार को देखते हैं, वह सदाशिव ठीक है, आप बैठिए। मैंने उनकी कुण्डलिनी जागृत की| जब जागृत हुए तब उन्होंने जो अपनी शक्ति जो उनको दर्द उठा थोड़ा सा। मैंने कहा अच्छा अब आप ठीक आदिशक्ति जिसे कि होलीघोस्ट कहते हैं, जिसे वेदों में ई हो गये, अब हम जा रहे हैं। उसने कहा, "माँ, आप क्या कर कहा गया, जिसे अचीन्हा कहते हैं। इस शक्ति को अपने से रही हैं, मेरा तो अभी हार्ट अटैक आ गया। अलग करके और कहा कि तुम सृष्ट की रचना करो। इसलिए शिवरात्रि आज मनाई जाती है कि आज महारात्रि गये मैं मोटर में बैठ गई थी। मैं उतर कर आई और मैंने के बाद शिवजी आज जागृत हुए, सदाशिव जागृत हुए। वही सदाशिव जब हमारे हृदय में आत्मास्वरूप प्रकाशित एन्जाइनॉग्राफी लीजिए और इस प्रकार आप विश्वास कर होते हैं तो इसे शिव कहा जाता है। इस वक्त बहुत से लोग लीजिएगा कि मैंने जो कहा है, वही सही कहा है। वह डाक्टर के अज्ञान में उपवास करते हैं। शिवरात्रि के दिन उपवास करने का कोई तुक समझ में नहीं आता। क्योंकि जिनको यह लीजिएगा कि मैंने जो कहा कि अरे भई तुमको तो एन्जाइना ही मालूम नहीं कि शिवरात्रि के दिन क्या हुआ। यहां तक लोगों ने पूछा कि क्या उस दिन शिवजी की मृत्यु हुई? शिव अनन्त हैं उनकी मृत्यु कैसे हो सकती है? इतने लोग अज्ञानी हैं कि उस दिन हम उपवास करते हैं, जिस दिन वे जागृत इसलिए है कि आपकी जो वायक्रेशन्स हैं, आपका जो चैतन्य हुए थे। आज हमारे अन्दर बह आत्मा जागृत होने का समय है। हम लोग भी एक महारात्रि में डूबे हुए हैं। एक है तब यह चैतन्य चलता है और यह आपको बता देता है। महारात्रि जिसमें यह घोर कलयुग छाया हुआ है। एक महारात्रि और इस महारात्रि में जागृत होने के लिए आज आप सम्मख बैठे हैं। आपके अन्दर बसी हुई आत्मा आज जागृत होगी। यह आत्मा सचिदानन्द है। सत् चित्त और पर आप बता सकते हैं कि इस आदमी को क्या बीमारी है। आनन्द। सत् माने यह कि आप सत्य को जानते हैं। अभी तक आपने सल्य को नहीं जाना है। अभी तक जो जाना है,वह सब भ्रम है। जैसे कि एक आदमी आपके सामने आकर खड़ा होता है और आप उसे देखते ही सोचते हैं कि कितना अच्छा आदमी है। जब उसने आपके सामने दीजिए। कुण्डलिनी जो है यह काज और इफैक्ट से परे है। गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया कि साहब देखिये मैं इतना अच्छा आदमी हूँ। मैंने इतनी अच्छाई की और इस आदमी का सार और तत्व क्या है? उसका सार और तत्व उसकी आत्मा है। उस आत्मा को जानते ही आपका जो ज्ञान है, पर अपने सैन्ट्रल न्वस सिस्टम पर जानते हैं। जैसे कि एक साहब मेरे पास आये और कहने लगे कि माँ मुझे एन्जाइना मैंने कहा, बेटे बह उदास हो कर बैठ तुम ठीक हो गये, हम जा रहे हैं। कहा कि मेरी बात आप सुनिये। आप अभी जाकर अपना पास गए और डाक्टरने कहा कि अरे भई तमको तो एन्जाइना था, तुमको तो हो क्या गया? तम ठीक कैसे हो गये? तो आपको जो जानना है, वह जानना क्योंकि डॉक्टर ने आपको बताया है, इसलिए जानना हुआ और हमारा जानना है, उसको हमारी आत्मा ने बता दिया। जब आत्मा बोलती कोई-सी भी बात जिसके बारे में आपको जानना हो कि इस आदमी की तकलीफ क्या है, जब आप योगी हो जाते हैं, आप उसकी ओर हाथ कीजिए। आपकी ऊंगलियों के इशारे और जब बीमारी आपको पता है और आप जानते हैं बीमारी के कारण जिसे कॉज एण्ड इफेक्ट कहते हैं, उससे परे उठना आपको आ गया तो आपने बीमारी ठीक कर दी और उससे परे उठना बहुत ही आसान है। उसे कुण्डलिनी पर डाल आपने उसको कण्डलिनी पर डाल कर उसकी कृण्डलिनी उठा दी तो काम खत्म। तबीयत ठीक हो गई उसकी। महार आन्मा कण्डलिनी का जागरण और उसका बिठाना बहुत मुश्किल मछली पानी से बाहर निकली थी, उसके बाद दस-बारह काम है। किन्तु जब यह हो गया तो आगे फिर काम खत्म। आपको आगे फिर कुछ करने की जरूरत नहीं है। जो इतनी बड़ी-कठिन समस्यायें हैं, वह सोचते हैं कि इसका कारण यह है कि इस वजह से परिणाम यह है और इस कारण परिणाम को ठीक करने से सब ठीक हो जाएगा। तो और आज सर्व साधारण मनुष्य बनकर संसार में आये हैं। कभी-भी वह चीज नहीं ठीक होने वाली। मैंने आपको पहले और आज उसको प्राप्त करने का जो आपका हक, आपकी बताया कि एक चीज ठीक करिएगा तो दूसरी खराब हो इच्छा है पूरी होगी। जो साधु-सन्तों ने कहा है, जो इन जाएगी। उससे परे जो परमात्मा का साम्राज्य है, जो अवतरणों ने कहा है, सब सच करके दिखाना है। उसके सहस्रार में विराजता है, उस साम्राज्य में आप आइये, लिए एक ही बस शर्त है कि कण्डलिनी का जागरण हो कर आपका आगमन हो, आपका स्वागत है। नमस्कार करके के आपके अन्दर वह प्रकाश जागृत हो जो कि आपकी आप अन्दर आइये और जब आप वहाँ बैठे हैं तो किसकी नस-नस में बहे और आप जाने कि आप योगी जन हो गये मजाल है जो आपकी ओर आँख टेढ़ी करके देख सके। योगी जन हुए बगैर कोई-सी भी बात समझाई नहीं जा मराठी में रामदास स्वामी ने कहा है, "समर्थाचिया वक्र पाहे सकती। असा सर्व भूमण्डली को नाहि । " जिसने समर्थ की ओर आँख तिरछी करके देखी, ऐसा सारे भू -मण्डल में कोई नहीं, यह जानने के लिए भी आपको योगी जन होना नहीं। लेकिन पहली चीज यह है कि आप परमात्मा के चाहिए। क्योंकि हम जो कह रहे हैं, हो सकता है कि झूठ साम्राज्य में आये हैं या नहीं। फिर आने के बाद वहाँ जमे हैं कह रहे हों। लेकन अगर आप योगी जन हैं तो आप हाथ या नहीं। जमने की बात बहुत बड़ी सोचने की है। तत्सत् फैलाकर के जान सकते हैं कि आपके अन्दर चैतन्य की जो है जिसे हम सतु कहते हैं वह अपने सैन्ट्रल नव्स सिस्टम लहरियाँ बह रही हैं और आप समझ सकते हैं कि यह सच से जाना जाता है। कोई कहेगा कि माँ यहाँ पर यह फल बिषछे हुए हैं। यह हम अपनी आँख से देख रहे हैं न? यह आँख नहीं। परमात्मा है, इसलिए आपके अन्दर चैतन्यकी हमारी जो है, यह हमारी सैण्ट्रल नव््स सिस्टम बता रहा है लहरियाँ बहनी शुरू हो जायेंगी। पर गलती से दुष्ट आदमी कि यहाँ यह फूल रखे हैं। फिर जब हम महसूस भी करें तो के लिए आप पषछें कि यह आदमी अच्छा है या बुरा तो हो हम कह सकते हैं कि यहाँ फूल हैं क्योंकि हम इसे महसूस करते हैं। इसको जानना है। यही ज्ञान, यही वेद जिससे विद गर्मी आ जाय. शायद एक-आध छाला भी आ जाय। लेकिन होता है, जिससे बोध होता है। जो हमारे सैण्ट्रल नव्स राक्षस को और सन्तों को पहचानने के और भी बहुत से सिस्टम में जाना जाता है, यही हमारी उत्क्रान्ति का लक्षण है और बाकी सब कुछ दिमागी जमा खर्च है या तो भावना की दष्टि आपके पैसे पर है, आपकी सत्ता पर है। आपके की फिक्र। निकली होंगी। फिर एक-आध हजार निकली हों। उसके बाद न जाने कितनी मछलियां ऊपर निकलकर आज मानव स्थिति में बैठी हुई हैं। इसी प्रकार अनेक वर्षों से हम लोगों ने तपस्या की है। परमात्मा से योग मांगा है, मेहनत की है। तो आप सब जो हमारे मँह से सुन रहे हैं, वह सत्य है या बात है। आप यह सवाल पछें कि संसार में परमात्मा है या सकता है कि या तो पूरे चैतन्य बन्द हो जायें, शायद आपको तरीके हैं। बुद्धि से भी लोग समझ सकते हैं कि जिस आदमी घर के बच्चे-बीबियों पर है, वह आदमी कभी-भी सन्त नहीं जब कण्डलिनी जा कर सहस्रार को प्रकाशित करती है तो हम सब ज्ञान के अधिकारी हो जाते हैं। आप सोचिये कि जब हमारे यहाँ से सन्त साधु हुए थे, तब न यहाँ यूनिवर्सिटी थी, न कॉलेज था, लेकिन ज्ञान के भण्डार थे, दृष्टा थे। एक से एक योगी इस संसार में हो गये इंग्लैण्ड में एक विलियम ब्लेक नाम के कवि हुए हैं। अगर आप उनका भविष्य पढ़ें तो आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि एक एक चीज, सहजयोग के बारे में उन्होंने इतने साफ तरीके से लिखा है कि बड़ा आश्चर्य होता है। ऐसे दुष्टा मार्कण्डेय जैसे लोग हो गये तो आप लोग क्यों नहीं हो सकते। आरम्भ में जरूर एक ही ह सकता। सन्तों के लक्षण बार-बार कहें गये तो भी हम गलती कर जाते हैं। इसलिए सत्य को जानने के लिए कृण्डलिनी को पहले हमारे सहस्त्रार में प्रवेश करके उसको प्रकाशित करना चाहिए। जहाँ यह हजार पंखुड़ियाँ जागृत हो कर के सून्दर कलियों के जैसे, पंखुड़ियों के जैसे सुन्दर नित्य रहे। जिसे आप अभी नहीं देख सकते बाद में आप देख सकते हैं। जब आप स्वयं ही प्रकाशित होते हैं तो आप प्रकाश कैसे देखेंगे। जब आप प्रकाश हो गये तब लोग पूछते हैं कि माँ अब क्या करें? जब दीप जला दिया तो अब प्रकाश दीजिए। जब तक आपकी बद्धि में यह प्रकाश नहीं मही सहल्ार आतमा र दूसरे की है। जो मैंने उसका कच्चा चिट्ठा खोलना शुरू किया तो वह आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगा कि माँ ने तो इस आदमी को तो एक ही बार देखा और इतना कैसे बता गई। पर यह बताना कोई बड़ी भारी बात नहीं है। इसकी कोई जरूरत भी नहीं है आपको। लेकिन आप यह बता सकते हैं कि आपमें कौन सा दोष है। तो जब आप सत्य हो जाते हैं तो असत्य से आप अलग हो जाते हैं। जैसे कि इस कपड़े पर अगर कोई दाग लगा है और इस वक्त कोई प्रकाश आ जाये तो मैं इससे अलग सोचती हैं कि इसको कैसे साफ किया जाये इसी प्रकार आप अपने से अलग हटकर जानते हैं कि यह असत्य हैं, यह हम नहीं ले सकते। जैसे एक साहब आये और कहने लगे कि माँ मेरा आज्ञा चक्र ठीक कर दीजिए मतलब क्या? कि मुझे अहंकार हो गया है, इसे आप निकाल दीजिए। अगर किसी आदमी को कह दीजिए कि आपको अहंकार हो गया है तो बह मार बैठेगा आपको। लेकिन जिस वक्त आज्ञा में दर्द होने लग जाता है तो वह खुद ही कहता है कि माँ मेरा आज्ञा जरा आप ठीक कर दीजिए। इस आज्ञा से मैं परेशान हूँ। यदि एक चीज आपकी दषित है। तो वह इशारा ही नहीं करती, कभी-कभी दखती भी है, कभी-कभी बताती भी है, जताती भी है और ऊँगलियों पर आप जानते हैं कि आपको क्या शिकायत है और आप उस शिकायत से एकाकार नहीं है। हम लोग यह प्राप्त करने से पहले एकाकार हों। आप बहुत सीरियस हैं। इतना सीरियस आता तब तक आपकी शक्ति एक हजार गुना कम है। मैं तो कहूँ कि इसका कोई अन्त ही नहीं, अनन्त है यह शक्ति। उससे पहले जो इतनी सी शक्ति है। जैसे कि एक बरगद का पेड़ एक छोटा-सा बीज जो अंकुरित हो कर इतना बड़ा पेड़ हो जाता है। उसी प्रकार मनुष्य की बुद्धि जो इतनी छोटी और सीमित लगती है, वह इतनी बढ़ जाती है कि उसकी शाखायें भी चारों तरफ उतर-उतर कर के उसे और भी स्थापित करती जाती है। यह परमात्मा का सत्य स्वरूप है। आत्मा का सत्य स्वरूप है। आत्मा सत्य के लिए भटकती है। लेकिन सहजयोग में जरूरी है कि आपकी बैठक होनी चाहिए । अब आपने म्यूजिक सुना। हिन्दुस्तानियों को तो यह बात समझनी चाहिए कि म्युजिक जो है बैठक के बगैर नहीं है। बैठक चाहिए। पार तो हो जायेंगे आप। ठीक है, पर उसके बाद जब बैठक नहीं होगी तो आप समर्थ नहीं हो सकते, आप पूरी तरह से इसमें प्रभुत्व नहीं पा सकते। इसके लिए बैठक चाहिए, अभ्यास चाहिए और जब तक वह अभ्यास नहीं होगा, आपके अन्दर उसकी संवेदना, इस कदर नाजक संवेदना, गहन संवेदना जागृत नहीं हो सकती। क्योंकि यह नसों से जाना जाएगा। ये नसे आज तक जड़ रही हैं। और जब तक ये नसें जागृति के नये आयाम में, डॉयमेन्शन में जब तक नहीं जागृत होती तब तक आप नहीं जान सकते। बहुत से लोग कई बार यह सोचते हैं कि इनको क्या पता होगा? यह तो बहुत सीधी लगती है। एक बार एक होने की कोई जरूरत नहीं है। हल्के तरह से रहिए। साहब आये और कहने लगे कि माँ, देखिये, यह आपका फोटो कैसे है? मैंने कहा कि बिल्कुल गलत। मैं बता दं कि गंभीर जरूर है। आप प्रसन्नचित रहिए। यह किसने निकाला। उन्होंने कहा, "अच्छा, बताइये।" मैंने उस आदमी का नाम बता दिया जिसने वह फोटो साहब बैठे हुए थे वह खुब कूद रहे थे। उनकी समझ में निकाला था। मैंने कभी देखा भी नहीं था, किसी ने भी नहीं नहीं आया तो उन्होंने कहा, "साहब, मतलब क्या है? देखा था। वह चक्कर में आ गये कि माँ तमने कैसे जाना। मैंने कहा,"हम चक्र में जान गये कि उसी के जरिये यह काम हो रहा है, कि आप पिए हुए हैं। माफ करना। यह जो हम अपने ऊपर. इसका मतलब उसी आदमी ने यह फोटो खींचा है। एक साहब हमें समझाने आये कि माँ आप जानती नहीं हैं। आप बड़ी सीधी हैं। यह बड़ा राजकामी आदमी है, इससे संभल अभिमान नहीं, दूराभिमान- यह जो हमारी खोपड़ी में लग कर रहिए। यह कुछ गड़बड़ कर सकता है। मैंने कहा कि अच्छा इतना ही बताना है आपको? कहने लगे, "हाँ। अच्छा अब सुनिये आप इसके बारे में मैं क्या जानती हैं कि इसकी बीबी अपनी नहीं है, किसी ब्राह्मण की बीबी भगाकर लाया है। इसका बच्चा तो इसका है लेकिन बीबी घोड़े पर बैठ जाता है। घोड़ा है नहीं घोड़े पर बैठा है। यह प्रसन्नचित रहिए। परमात्मा का विषय सीरियस नहीं है, एक साहब गये मिनिस्टर साहब से मिले। तो वहाँ एक आपको हो क्या गया?" तो कहने लगे कि आपको पता नहीं है कि मैं पिए हूँ। उन्होंने कहा कि अच्छा मुझे नहीं पता था सबके चक्रों को जानते हैं। उस चक्र को इस चढ़ा लेते हैं कि किसी नौकरी में हो गये, किसी पोजीशन में हो गये, दो-चार पैसे इकट्ठे हो गये। उसका जो अभिमान, जाता है जिससे हम अजीब से हो कर पिए हुए घूमते हैं, यह छूट कर मनुष्य देखता है कि यह जो है, यह बाह्य है। जैसे अपनी बुद्धि का गुमान, अपने पढ़ने लिखने का गुमान, हर तरह के गुमान मनुष्य में चढ़ जाते हैं। वह तो बात-बात पर हूँ ा 7. सहार आत्मा सब इस तरह से छट जाता है जैसे कि प्रकाश में अगर आपने हाथ में साँप पकड़ा है, उसे आप छोड़ देते हैं, उसी खेल रहा है और सबसे बातचीत कर रहा है, हँस रहा है तरह से सब कुछ छूट जाता है। कहना नहीं पड़ता। लेकिन उसने किया क्या? किया यह कि आज्ञा चक्र को, जब कुण्डलिनी चढ़ती है और बहाँ का देवता जब जागृत होता है तो यह देवता हमारे दोनों ही इगो और सपर इगो जिसे कि मनस और अहंकार कहते हैं, दोनों को ही आपस में खींच लेता है, शोषित कर देता है और ब्रह्मरन्ध्र में ऐसी जगह बन जाती है कि कृण्डलिनी खट से बाहर चली जाती है। है, बातचीत भी हो रही है। लेकिन सारा चिल्त उनका उस वक्त हमारे हाथ बोलते हैं। हाथ बोलते हैं कि हाँ गगरी पर है और उदाहरण तीसरा उन्होंने कहा है कि एक कुण्डलिनी पार हो गई है। जो लोग पार हो जाते हैं, वही महसूस कर सकते हैं यहाँ की ठण्डी हवा और जो नहीं होते हैं, उनको मुश्किल होता है ठण्डी हवा महसूस करना। उसके बाद जब आपके किसी चक्र में दोष हो, अगर आपके विश्द्धि चक्र में दोष हो या अगर आपके नाभि चक्र में दोष हो तो इन ऊँगलियों पर आप जान सकते हैं कि कहाँ रही है कि कब मेरा बेटा इस ओर आयेगा जहाँ वह अपने पर दोष है, उसके बारे में आप सब कुछ जान सकते हैं। आप संसार की सारी बातों को जान सकते हैं। यहाँ बैठे-बैठे, नहीं चाहिए। उसका यह कार्य जब तक पूरा नहीं होता तब आपके कोई रिश्तेदार हों, कोई और हों, उनके बारे में आप जान सकते हैं। देश के बारे में जान सकते हैं। देश के नेताओं के बारे में जान सकते हैं। इलैक्शन के बारे में जान सकते हैं। चाहे जो भी जानना चाहें, आप सब कुछ जान सकते हैं। लेकिन योग होने के बाद मनुष्य का मन इन सब चीजों से हट कर परमात्मा की ओर लग जाता है। इन चीजों सुबुद्धि से मेरा बच्चा इस योग को प्राप्त करेगा। तो आप में उनको मजा नहीं आता है। जब आपने सबसे ऊँचा अमृत पी लिया फिर किसी गन्दगी का पानी पीना आप पसन्द नहीं करते। जो चीज अच्छी नहीं, उसमें कोई मजा नहीं आता। सारी चीजें, जिसे कहते हैं कि प्राथमिकताएं आपकी बदल कर आप दूसरे ही आदमी हो जाते हैं। क्योंकि जिस चीज में राजसिक जो झूठ और सच का फर्क ही नहीं जानते। उनको मजा आता है, वही होता है। एक शराबी को लें। मैं तो कोई चीज में गलती ही नजर नहीं आती और तीसरे ज्यादा नहीं जानती शराबियों के बारे में। लेकिन मैंने देखा है सात्विक होते हैं जो सत्य को पहचान कर चलते हैं। लेकिन कि जब वह शराब पीता है तो शाम होते ही उसको याद आ जाता है और फिर दुनिया में कुछ भी हो रहा हो, सब छोड़-छोड़ कर बैठ जाते हैं अपना मसनद लगाकर। यही लोग होते हैं। हीरे को बराबर पहचान लेते हैं। ऐसे ही जो हाल एक योगीजन का होता है। मस्ती में आ गये तो उसी मस्ती में डबे रहते हैं, उसी शान्ति में समाये रहते हैं जो मसीह को देखिये कि जब एक वैश्या को लोगों ने पत्थर आत्मा की देन है। महाराष्ट्र के एक बड़े भारी कवि नाम्रदेव हैं, उनकी कविता है ग्रन्थ साहिब में। उसमें एक कविता खड़े हो गये और कहा कि भाई तुम में से जिसने कोई पाप बहुत सुन्दर है जिसमें लिखा है कि एक छोटा बच्चा पतंग नहीं किया हो बह पत्थर मारे, वह भी मुझे और सबके हाथ उड़ा रहा है। पतंग आकाश में उड़ रही है, लड़का जो है, लेकिन उसका चित्त पूरा उस पतंग पर है। यही योगीजन का किस्सा होता है कि सबसे बोलते रहे किन्तु चित्त उसका आत्मा की ओर है। दूसरी जो कविता की पक्ति है, उसमें लिखा है कि कुछ औरतें हैं, पानी घड़े में लेकर जा रही हैं। चार-चार गगरियाँ सर पर रखी हुई हैं। जल्दी-जल्दी जा रही हैं और आपस में मजाक भी हो रहा है, हँसी भी हो रही माँ है जो अपने बच्चे को लेकर सारा काम कर रही है। घर का सारा काम वह कर रही है लेकिन उसका चित्त पुरी तरह अपने बच्चे पर है। यही कण्डलिनी जिसका सारा चित्त आप पर लगा हुआ है, सारा विचार इसका आपके ऊपर है और इतनी इच्छुक और उत्कण्ठा से इन्तजार कर पुनर्जन्म को प्राप्त करे। उसको दुनिया की कोई और चीज तक शुद्ध इच्छा जो आपके अन्दर सुप्तावस्था में है, उसको चैन नहीं है। वह ढ़ंढती फिरेगी। इधर जा, उधर जा, जंगल में जा, पैसे में खोज, इसमें खोज, उसमें खोज। आप जो-जो गलतियाँ करेंगे, बेचारी उससे आहत होती जाएगी पर अन्त में बह बैठी रहेगी कि एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जिस दिन आत्मा का जो स्वरूप है, उस सत्य को जानें। जैसा मैंने आपको बताया कि संसार में तीन तरह के लोग होते हैं- एक तो तामसिक लोग जो कि झूठ को ही सत्य मानकर उसके पीछे अपनी जिन्दगी बर्बाद कर देते हैं। दूसरे जब आप योगीजन होते हैं तो सिवाय सत्य के आप कोई चीज को पकड़ ही नहीं सकते। अचूक जैसे रत्न पारखी सत्य को एकदम पकड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए ईसा मारना शुरू किया तब ईसा मसीह वहां जा कर उसके सामने ৪। सहस्रार आत्मा रूक गये। क्योंकि वह इस चीज को जानते थे कि इस औरत शक्ति है। वह आहलाददायिनी शक्ति विचार से एकदम ने जो भी गलती की है और जो भी इसने अपने जीवन का बुरा किया है, वह सब परमात्मा क्षमा करने वाले हैं वही शिक्षा देने वाले हैं और हम मनुष्य उसको क्यों दोष लगायें। जिसने सत्य को जाना, बह असत्य के पास कैसे खड़ा रह हुआ आनन्द, उसमें बसा हुआ सत्य जो निराकारस्वरूप है, सकता है? आप ही बताइये। अगर आपने प्रकाश में कोई वह आपके अंदर ऐसा बहेगा कि जैसे पूरी की पूरी शक्ति चीज देख ली, तब भी क्या आय खाई में कुदेंगे? जिस में आपने देख लिया कि इससे मेरा पुरा नुकसान हो रहा है, मुझे पूरी तरह से तकलीफ होने वाली है तो फिर गयी जैसे आपका संगीत था निर्विचार में अगर आप आप क्या ऐसा कहेंगे कि आ बैल मुझे मार? क्योंकि यह प्रकाश हमारे पास नहीं है, इसीलिए रात-दिन हम अपनी जिन्दगी बरबाद किये जा रहे हैं। कोई कहता है कि आपके देश की हालत ठीक हो जायेगी आप पैसा दे दीजिए। सौ रु० आप किसी को दे दीजिए, वह शराब के ठेके पर सीधे चला जाएग्रा। आप कसी को पोजीशन दीजिए । था। आप किसी भी विद्वान को बड़ी नौकरी दे दीजिए या किसी सत्ता में भेज दीजिए, उसकी खोपड़ी एकदम उल्टी बैठ जाएगी। सत्ता कोई झेल नहीं सकता. सम्पत्ति कोई उसका मजा देखें। अगर हम चाहें तो उसका मजा उठायें तो झेल नहीं सकता और स्वतंत्रता को भी नहीं झेल सकता। यह तो मनुष्य की दशा है तो फिर सोचना चाहिए कि इससे कोई न कोई ऊँची दशा होगी जहाँ से सब चीज का भोग ले खत्म हो जाती है। जैसे ही सामने विचार आ जाय। आप समझ लीजिए विचार से एकदम अन्धियारा आ जाता है। लेकिन निर्विचार में आप किसी चीज को देखें तो उसमें बसा प्रेम की आपके अन्दर प्लावित होकर, आपको महसूस होगा जिससे ऐसा लगेगा कि सारी दश्चिन्ता पता नहीं कहा चली प्रकाश उसको सन सकते तो इसका क्या असली असर है, उसे आप पा सकते थे लेकिन जब तब आप विचार करते गये- अब टाइम हो रहा है, अब ऐसा है, वैसा है... घर जाना है। क्योंकि जब आप योगीजन हो जाते हैं जब आप सहस्रार में स्थित होकर जब आप वर्तमान में विराजते हैं। न तो आप भविष्य में और तो आप भूत काल में। न ही आप फ्यूचर में और न ही आप पास्ट में। आप वर्तमान में होते हैं और हर वर्त्तमान का क्षण अपना एक आयाम, एक डायमेन्शन एक अपना दर्पण रखता है और उसमें इतनी छटायें हैं फिर जैसे मैंने कल धोबी का किस्सा बताया ऐसा लगता है कि हजारों जिह्वा होने पर भी जो मजा नहीं आ सकता है वह यह वर्तमान में आते ही पता नहीं कहां से इतना आ रहा है। जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो जाती है तब आनन्द उसका स्वभाव हमारे अन्दर स्फरित होता है. इन्सपॉयर होता है। यह नहीं कहना पड़ता कि हाँ अब मैं आनन्दित हूँ। आप शक्ल -सूरत से जान सकते हैं कि हाँ यह इन्सान बहुत मजे में है। जब मैं पहली मर्तबा पेरिस गई थी तो लोगों ने कहा कि माँ आप तो बहुत खुश नजर आती हैं। मैंने कहा कि फिर। तो कहने लगे कि यह पेरिस में नहीं चल सकता। कहने लगे मनुष्य सकता है और भोग तभी ले सकता है, जब वह सत्य में खड़ा हो। जिस बक्त इन फलों की सजावट देखेंगे तो आप कहेंगे कि इतने फल थे, पता नहीं किसने लगाये. कितना रूपया लगाया, यह किया बह किया. भर की बातें करेंगे लेकिन अगर कोई योगी होगा तो उसके सामने बस हठात् खड़ा हो जाएगा। निर्विचार स्थिति में । बनाने वाले ने इसमें जो आनन्द डाला है जिस हृदय से यह बनाया है, उसका सारा आनन्द उसके माथे से ऐसा बहेगा जैसे गंगा की धारा। वह यह नहीं जानता कि किसने बनाया, क्या किया। उसका जो आनन्द उसमें स्थित है, निराकार स्थिति में, वह पूरा का पूरा उसके ऊपर से बहता रहेगा। उसमें विचार नहीं है। वह निर्विचार स्थिति में उसे देखेगा। इस प्रकार हर चीज को जो आनन्द है, वह आप सत्य में ही पा सकते हैं और कहीं नहीं पा सकते। कभी भी आप किसी चीज की ओर दृष्टि करते हैं जब उसके बीच में विचार खड़ा हो जाये तो आप सोचिये कि उसकी आनन्ददायी शक्ति खत्म हो गई। उसमें कोई आहलाद नहीं रहता । राधा जी को कहा जाता है कि वह परमात्मा की आहुलाददायिनी सब दुनिया कि यहाँ तो लोग यह सोचते हैं कि जो आदमी मजे में है. वह अज्ञानी है। उसको मालूम नहीं है कि दनिया में क्या आफत आ रही है मजे में बैठा है तो आप कुछ लम्बा मुँह करके बात करें। अब मेरे लिये बहुत मुश्किल। तब मैंने उनको कहा कि हर तीसरे घर में शराब की बोतलें खुल रही हैं, चौथे घर में औरतों की गन्दगी चल रही है और पाँचवे घर में यह मसर्रतें हो रही हैं कि किसको मर्डर किया जाय और किस के पैसे खाये जायें तो ऐसी दशा में क्या वहाँ आनन्द का राज होगा? जब कभी हम लम्बा मुँह बनाकर। मैंने कहा कि भई इनको क्या आफत पैदल चलते तो लोग बैठे रहते थे वहुत सहार आतमा এ आ गई? कहने लगे कि ये लोग फ्रेन्च में आपस में बातें कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ऐसा करते हैं कि अष्ट ग्रह आने वाले हैं और हो सकता है कि तब हम खत्म हो जायें तो बड़ा अच्छा होगा। उसका इन्तजार हो रहा है कि वह कब आयेंगे और कब हम खत्म हों। मैंने कहा कि उसके लिए अष्ट ग्रह का इन्तजार करने की क्या जरूरत है, ऐसे ही जाकर डूब जायें वहाँ नदी है। इतने अगर यह दुखी जीव हैं, तो तब तक इन्तजार करने की इनको क्या जरूरत है? शायद अष्ट ग्रह के चक्कर से बच ही जायें तो यह जाकर हमने वहाँ देखा। इस तरह की उन्होंने अपनी दशा बना ली है कि हम तो बड़े दुखी जीव हैं और हमारे जैसे दुखी जीव के लिए यही अच्छा है कि हम मर जायें। आपको आश्चर्य होगा कि स्विटजरलैण्ड नार्वे में एक स्पर्धा है, कम्पटीशन है कि कितने लोग वहाँ इस साल आत्महत्या करने से मरे। जवान लड़के १७ साल से २५ साल के वहाँ आपस में स्पर्धा लगाते हैं कि इस साल स्विटजरलैण्ड को अधिक नम्बर मिले। कारण यह है कि आपने पैसा इकट्ठा कर लिया किन्तु आनन्द आपको मिला नहीं, यह बात सही है। सब कुछ मिल गया । मोटरें मिल गई और कया-क्या हम लोग जो ढूँढते रहते हैं हिन्दुस्तान में, वह सब उनके पास होने के बाद अब वह ढुँढ रहे हैं कि अब हम मरेंगे कैसे। उसके इन्तजामात सोचते हैं कि किस तरह से मरना ठीक रहेगा। वे नहीं जानते कि कोई मरता तो है नहीं। वे फिर वापस आ जायेंगे रोने के लिए। कोई परमानैन्टली मरता नहीं है, यह परेशानी और है। ये जो रोनी सुरते हैं, इनको बदलो, इसके लिए वे तैयार नहीं हैं। आप धीरे-धीरे इस चीज को समझने का प्रयत्न करें कि यह चीज है क्या? लेकिन न भी समझें तो कोई हर्ज नहीं पर मौज में रहिये और इस मौज को, आनन्द को सब को बाँटिये। क्योंकि आपका चित्त जो है वह प्रकाशित हो जाता है। अब चित्त हमारा अटेन्शन है और इस अटेन्शन में हमारे अन्दर जो नई जागृति उत्पन्न होती है, वह है कॅलैक्टिव कॉन्शियस- सामूहिक चेतना। लेकिन मैं कहूँगी "सामूहिक शुभ चेतना"। शुभ-अशुभ विचार तो हमें रहे नहीं। शुभ वह जिससे कि चैतन्य हमारे अन्दर से बहता रहे- वह सारा शुभ है। जिस कार्य से चैतन्य बहुता है, जिस गाने से चैतन्य बहुता है। जिस भक्ति या संगीत से चैतन्य की लहरियाँ बहें वही शुभ है और वही सौन्दर्य की लहरियाँ भी हैं। तो यह शुभ चेतना हमारे अन्दर जागृत हो जाती है। इसके. माने यह नहीं कि हमारी बुद्धि में कोई चीज आ जाती है पर हम जान सकते हैं कि हमारे अन्दर कौन सा दोष है क्यों कि हम आत्म-साक्षात्कार भी पाते हैं और हम जैसे वस्तु में उसे पाते हैं वैसे समिष्टि में हम एक व्यक्ति में पाते हैं, वैसे हम सामूहिकता में भी पाते हैं। भी पाते हैं। माने जैसे अब कॅलैक्टिव का चमत्कार देखिये। आज तक आप लोगों ने जो सिद्धान्त बनाए वे सब खोखले हैं। जैसे कोई कहता है कि हमारा विश्वास पूँजीवाद में है, कोई कहता है कि हमारा साम्यवाद में है। किसी का इसमें है उसमें है, सब खोखला है। हमें समझ लीजिए कि हम बड़े भारी पूँजीपति हैं क्योंकि अगर सब शक्तियाँ हमारे अन्दर जमा हो गई तो हम तो पूँजीपति हो गये लेकिन हम हैं बड़े भारी साम्यवादी भी जब तक इसे बाँटेंगे नहीं, हमें चैन नहीं आयेगा। अभी एक साहब ने पूछा कि आप क्यों सहजयोग करते हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सुखी हैं। आपके पति इतने अच्छे हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सुखी हैं। आपके पति इतने अच्छे हैं। आपके बाल बच्चे इतने अच्छे हैं। घर में बैठिये जा कर। कहाँ बैठें? चैन नहीं। जेब तक इसे बाँटेंगे नहीं मजा नहीं आयेगा। एक शराबी को देखा आपने कि अकेला वह शराब नहीं पी सकता। इसी प्रकार यह भी शराब आप अकेले नहीं पी सकते। इसका मजा नहीं आयेगा। बाँटेंगे तो सामूहिकता में आप जागृत हो जाते हैं। लेकिन इसमें एक अहम् बात कि आपका चित्त वह जो आदि तत्व है, जो विराट है, अकबर है, उसमें जागृत हो जाता है। जैसे इस शरीर के अंग-प्रत्यंग जागृत हो जायें तो उस समय आप उस विराट के अंग प्रत्यंग बनकर उसमें आपका सत्य आपही के अन्दर बसा हुआ है। वह एक क्षण भर में आपको मिल सकता है, आसानी से आपको मिल सकता है। बस थोड़ा सा उन्मुख होने की जरूरत हैं, उस तरफ नजर करने की जरूरत है। ये चीजें सब आपको मिल सकती हैं। तब आप यह सोच लीजिए कि सिर्फ सहस्रार पर ही कुण्डलिनी को रूकना नहीं चाहिए, उसका भेदन भी होना चाहिए और इसका भेदन भी बहुत सुक्ष्म तरीके से होता है। अब इसकी कितनी नाड़ियाँ हैं? कौन सी नाड़ी कहाँ खुलती है? कौन से चक्र कहाँ होते हैं और कैसे बन्द करते हैं- यह सब बातें बताने की जरूरत नहीं है। अगर आपको कोई बढ़िया मोटर लाकर दे दे तो आप पहले उसके अन्दर घुसकर थोड़ी देखते हैं कि इसका कौन-सा पूर्जा ठीक है या नहीं है। आप तो गाड़ी उठाकर चल दिये मजा उठाने के लिए। इसी प्रकार सहज योग को प्राप्त करने के बाद सहयर आत्मा 10 काम नहीं है। जो बीर हों वह सामने आयें। बेकार लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। ऐसे तो हम बड़े वीर बनते हैं । एक तम्बाकू तो छोड़ी नहीं जाती। तम्बाकू के पत्ते से आप डरते हैं । आय क्या वीरता दिखायेंगे? शराब की बातलें दिखी नहीं कि आप ढह गये यह क्या वीरता दिखलायेंगे आप? वीर हों तो सामने आयें और वीरों के गले में ही कुण्डलिनी की माला पड़ सकती है। ऐसे हमारे देश में ऐसे कुछ वीर निकल आयें तो बाकी जो दूसरे हैं, वे भी ठीक हो जायें। उनको भी खींचना है। लेकिन पहले हिम्मत की जरूरत है कि हम उस पर दृढ़ रहें क्योंंकि सहजयोग के बाद जागृत होते हैं। उसके बाद दूसरा कौन है? आप किसके ऊपर उपकार कर रहे हैं? आप किसको दे रहे हैं। अरे भई अगर इस ऊँगली में शिकायत हुई तो दूसरी ऊँगली उसको अपने आप ही रगड़ देती है। उसको कछ कहना पड़ता है? सारे शरीर को पता है कि इस ऊँगली को शिकायत है और सारा शरीर उसकी मदद करता है। कल एक साहब ने बड़े पते की बात कही थी" कि किसी भी जगह की गरीबी पुरी खुशहाली के लिए खतरा है। इसी प्रकार जिस वक्त आपकी जागृति हो जाती है आप कॅलैक्टिव में आ जाते हैं तो कहीं भी कोई तकलीफ हो जाये, कहीं भी कोई परेशानी हो जाये आप तुरन्त समझ जाते हैं कि तकलीफ है। उसके लिए आप प्रार्थना मात्र करें तो कार्य हो जाता है। क्योंकि अब आपको परमात्मा का एकाकार हो गया है। आपको कोई सिफारिश नहीं चाहिए कि कोई बाबा जी आपको देंगे या कोई साधु जी आपको देंगे। परमात्मा से कहिए और परमात्मा आपका कार्य कर देंगे और करते हैं। हजारों के ऐसे कार्य हुए हैं। इतने सहजयोगी यहाँ बैठे हैं। एक-एक से पूछिए तो एक-एक इतनी बड़ी किताब आपको लिख देंगे। दो-दो, तीन-तीन साल में उनके ये अनुभव हैं। 1. मनुष्य एक तरह से इतना अछूता हो जाता है और गन्दगी से इतना भागता है कि लोग कहते हैं कि भई इसको क्या हो रया। पहले अच्छा आता था, शराब पीता था और मजाक करता था। इसके काफी सीक्रेटस भी पता चलते थे। शराब की बोतल के पीछे आप चाहें तो डान्स भी इससे करा लो अब इसको क्या हुआ। बेकार गया। क्योंकि आप सारे गणों की खान बन जाते हैं। ऐसा आदमी एक तेजस्वी पुरूष होता है और उस तेजस्विता के पीछे भी अत्यन्त करूणामय, अत्यन्त प्रेममय, अत्यन्त सुखदाई और एक शानदार व्यक्ति आपका चित्त स्वयं ही सामूहिक चेतना से प्लावित एक नये आयाम में आपको डाल देता है और आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि यह कैसे हो गया। माँ, हमने तो कुछ किया भी नहीं फिर यह अब आप जानते हैं। कुछ लोग बीमार मेरे पास आते हैं। मेरे हाथ टूट जाते हैं। मेरा सिर दुख जाता है, अनेक परेशानियाँ हैं। अभी कुछ देहात के लोग आये थे। बहुत दूर से... शिलाँग से। उस आदमी को बताया गया था कि तुम्हें कैंसर की बीमारी है। यहाँ एक प्रोग्राम उन्होंने अटैण्ड किया। वापस गये तो डॉक्टर हैरान हो गये कहने लगे कि आपका कैंसर कैंसे ठीक हो गया? एक बम्बई के महाशय.. बस वह अल्लाह को बहुत मानते थे मुसलमान। मोहम्मद नाम उनका। प्रोग्राम में आये। उनको दस साल से डायबिटीज था। बस एक बार प्रोग्राम में आये। मैंने उनसे बात भी नहीं की, जाना भी नहीं और उनसे मिली भी नहीं, वह ठीक हो गये। कुछ-कुछ लोगों के पीछे तो मेरे हाथ टूट जाते हैं। उनकी कृण्डलिनी उठना तो दूर रहा, मेरे हाथ टूट जाते हैं। तकलीफ हो जाती है कि क्या करूं। क्योंकि इनके दिमाग ज्यादा हैं। सिर पर अहंकार के पहाड़ के पहाड़ बाँधे हये हैं। अपने को बहुत समझते हैं। तो कण्डलिनी भी कहती है कि जरा ठोकरें खाने दो, तब ठीक होयेंगे। कण्डलिनी उठती नहीं है, मैं क्या करूँ? इसलिए नम्रता के साथ. दढ निश्चय के साथ सहजयोग में उतरना है। ऐसे-वैसे लोगों का यह कैसे हो गया? "योगक्षेम वहम्यहम" योग के बाद क्षेम परमात्मा देखते हैं। यह कृष्ण ने कहा भी है - वही घटित होता है। संहस्रार का जो चमत्कार है। सहस्त्रार की जागृति आपको इतने नये-नये आयाम, इतने नये-नये विचार और इतने स्फूर्त कलायें दिखाता है कि आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि क्या यह मेरा ही ब्रेन है। ऐसे ऐसे लोग जो अपने बच्चों को लाते थे कि माँ यह क्लास में नहीं पढ़ता, बहुत पीछे हैं। ऐसे ऐसे लोग जो कुछ भी गाना-बजाना नहीं जानते, कुछ भी कला नहीं सीख सकते, वे कलामय हो गये। ऐसे लोग जो कि नौकरी में नहीं थे, जो कुछ करना ही नहीं जानते थे वे लाखोंपति हो गये। यह कैसे हो गया? ये सारी पहाड़ जैसी कण्डलिनी उठाते-उठाते ऐसी ही शक्तियाँ हमारे अन्दर हैं। लक्ष्मी जी की भी शक्ति हमारे अन्दर है। जिस वक्त मनुष्य किसी भी सृजन को करता है, कार्य को करता है तब उसके अन्दर जो ब्रहमदेव हैं जो कि रचयिता हैं, जो कि स्वाधिष्ठान चक्र पर अधिष्ठित हैं, वे जब जागरूक हो जाते हैं तो ऐसा आदमी ऐसे-ऐसे सहस्ार आत्मा 11 सष्टि उनकी बंधी हुई है। हम क्या सोचते हैं कि सिर्फ हमीं लोग इस दनिया में हैं और इसके अलावा कोई है ही नहीं। आप तो अभी इस स्टेज पर नहीं आये नहीं तो आप जानते कि कितने लोग आपके आगे-पीछे चलते हैं। किस तरह आपकी रक्षा होती है। अभी तो परमात्मा को जाना ही नहीं, उसका सिर्फ नाम ही लेते रहे, उसकी गलतियाँ ही निकालते रहे। उसको दोष ही देते रहे और अगर काम नहीं बना तो कह दिया कि भगवान नहीं है। इससे ज्यादा तो आपने कुछ किया नहीं है आज तक भगवान के लिए। आप चाहे कुछ करें या न करें, वह पिता परमात्मा अत्यन्त प्रेममय, आपके लिए जो कुछ करना है, करता है और करेगा और आपको चाहता है कि आप उसके साम्राज्य में आयें और अपने सिंहासन पर विराजमान हों। यही उसका सिंहासन आपके सहस्रार में है। यहाँ आपको प्रवेश करना है और फिर ब्रहमरन्ध छेदने के बाद उसकी जो कृपा का, आशीर्वाद का अनुभव हैं, वह आप अपनी नसों पर जान सकेंगे. अपने चरित्र में जान सकेंगे अपने व्यवहार में जान सकेंगे, अपने दोस्तों में जान सकेंगे अपने समाज में जान सकेंगे अपने देश में और विश्व में उसे जान सकेंगे। रचना करता है जैसा कि मैंने आपको बताया जितने भी संसार के महान कलाकार हुए हैं, सब के सब आत्म साक्षात्कारी हुए हैं। अगर वे साक्षात्कारी नहीं होते तो वे महान नहीं होते। आजकल हम देखते हैं कि ट्टप्ंजिए कलाकार लोग हैं, ऐसे टूटपंजिए लेखक हैं कि एक मिनिस्टर के यहाँ नौकरी छोड़ी, उसके खिलाफ लिख दिया। अभी यहाँ भाषण में कुछ कहा और बहाँ जा कर कुछ लिख दिया ऐसे ट्ुटपुंजिए लोग तब जब उसके अंदर जागृति हो जाती है तो वे पूर्णता पर आते हैं। तब वे समझते हैं कि यह क्या मैं कौड़ी पर कहा खड़ा था। असल रत्न मेरे अन्दर होते हुए मैं कौड़ी में कहां फंसा था। यह जागूत जब हमारे अन्दर हो जाती है, जब उसके आन्दोलन शरू हो जाते हैं तो ऐसा संगीत अंदर चलता है कि आप कभी अकेले ही नहीं होते। जो लोग कहते हैं कि मैं बोर हो रहा हूँ। यह शब्द ही मिट जाता है। कभी आदमी बोर ही नहीं होता। जो अपने में | व मगन हो गया, वह बॉर कैसे हो सकता है। आजकल बड़ी बीमारी है। लोग कहते हैं कि मैं बोर होता हूँ। मझे यह शब्द ही समझ नहीं आता कि यह क्या होती है बला? ऐसे मगन हो जाते हैं, ऐसे मस्त हो जाते हैं चाहें जंगल में बैठे हों, चाहे किसी के साथ बैठे हों, अपनी मस्ती में आप जमे रहिएगा और आपका व्यक्तित्व, आपकी पसनैलिटी ऐसे निखर जाएगी कि आप जहाँ कहीं भी खड़े रहें आपके अन्दर से इसकी धारायें बहेंगी। वहीं पर जहाँ पर आप खड़े है वहीं पर जों अनेक लोग हैं, उनको भी फायदा होगा। एक बेचारे हमारे सहजयोगी हैं। वह बस से रोहरी से आ रहे थे। बस उनकी ऊपर से नीचे गिर गई। बस इतने नीचे गिर गई कि तीन-चार बार घूम कर बस फिर चारों पहियों यही उसका आशीर्वाद है और आज वह दिन आ गया है कि उसको फिर से प्रस्थापित किया जाए, उसको फिर जाना जाए, उसको भूला.न जाये। घबराने की कोई ऐसी बात नहीं है। समय की बात है, यह समय आ गया है समय-समय की बात होती है। आज बहार आ गई है और हजारों लोग, करोड़ों लोग उस पष्प की स्थिति से अब फल होने जा रहे हैं। परमात्मा आप सब को सूखी रखे। आशा है, सहजयोग में प्राप्त करने के बाद आप लोग अपनी इज्जत करें आप योगीजन हों, उसके प्रति अग्रसर हों। पूरा चित्त लगायें। बैठक करें। बैठक किये बगैर यह कार्य आगे नहीं हो सकता। जागृति आसान है लेकिन इसका पेड़ बनाना आपके हाथ में है। जो कुछ मैंने कहा उसको आज तक नहीं रखना। इसके आगे अगले साल मैं चाहती हूँ कि सब लोग एक बड़े-बड़े वक्ष की तरह इस देहली के शहर में खड़े हो जायें तो देखिये दनिया बदलने में कुछ टाइम नहीं लगेगा। परमात्मा आप सब को सुबद्धि दे। शाम पर खड़ी हो गई। जो ड्राइवर था, वह घबड़ाकर भाग गया। एक साहब ने कहा कि कमाल है, हमें किसी को चोट ही नहीं आई हम लोग सब गोल-गोल घूमते रहे और यहाँ फिर जमीन पर अच्छे से आ गये, गाड़ी ठीक से बैठ गई, यह कैसे हो गया? यहाँ कोई न कोई भगत बैठा है। वे हमारे सहज की अंगठी पहनते हैं। उनको पकड़ लिया। वे माता जी के शिष्य हैं। चलो अब कोई बात नहीं। एक साहब उठे और कहने लगे कि मझे आता है गाड़ी चलाना । गाड़ी में चाबी लगी हुई थी उन्होंने शुरू किया और गाड़ी चल दी। ऐसे अनेकोनेक उदाहरण मैं बता सकतीं हूँ जो घटित हुई हैं। क्योंकि आपको संभालने वाले हैं देवदत, सब साथ हैं सारी महंग्रा 12 राज पूजा हैदराबाद - 21.1.94 राजश्वरा आज हम श्री राज राजेश्वरी की पूजा करने वाले हैं। और आपके चक्र ठीक से बैठने लग जाते हैं। जब चक्र खासकर दक्षिण में देवी का स्वरूप अनेक तरह से माना आपके ठीक हो जाते हैं तभी कण्डलिनी जागृत होती है। जाता है। उसका कारण यहां पर आदिशंकराचार्य जैसे इसलिए पहले आप वैष्णव बनते हैं, उसके बाद आप शक्ति अनेक देवीभक्त हो गए हैं। और उन्होंने शाक्त धर्म की बनते हैं। इस प्रकार से दोनों चीजें एक ही हैं। स्थापना की अर्थात शक्ति का धर्म दो तरह के धर्म एक साथ चल पड़े। रामानुजाचार्य ने वैष्णव धर्म की स्थापना की उसमें से राज राजेश्वरी को बहुत ज्यादा माना जाता है। और दो तरह के धर्मों पर लोग बढ़ते-बढ़ते अलग हो गये। असल में जो वैष्णव है उसका कार्य महालक्ष्मी का है और पृथ पर। विष्ण की पत्नी है और इसलिए ये लक्ष्मी का एक महालक्ष्मी के जो अनेक स्वरूप हैं उनको आत्मसात करना हैं। जैसे की धर्म की स्थापना करना और राजेश्वरी का मतलब है कि जब कण्डलिनी नाभि में आ मध्यमार्ग में रहना। न तो बाएं में जाना न दायें में जाना जाती है जहां पर उसे लक्ष्मी का स्वरूप प्राप्त होता है। ऐसा मध्य मार्ग में रहना। इन्हीं को वैष्णव कहते हैं। फिर आगे कहें या लक्ष्मी का परिणाम उस पर आता है। या जब े चलकर वैष्णव धर्म गुजरात आदि सब देशों में सहस्रार। कण्डलिनी नाभि चक्र में आती है। सो लक्ष्मी स्वरूप ये किस वैष्णव मार्ग से जब आप गुजरते हैं, कृण्डलिनी के द्वार तो प्रकार की होती है? इस पर अनेक तरह की लक्षिमियों का आप अन्त में सहस्रार में पहुँच गये। लेकिन सहस्त्रार आरोपण है। गह लक्ष्मी है, राज लक्ष्मी है। इस तरह से किन्तु दक्षिण में देवी के अनेक स्वरूप माने गये हैं और अब देखा जाए तो लक्ष्मी जो है वो वैष्णव पथ पर है विष्णु के अपने में स्वरूप बताया गया है जो कि शक्ति का ही स्वरूप है। राज में पर सदाशिव का स्थान है। सो वैष्णव धर्म अनेक लक्ष्मियों हैं। पर ये लक्ष्मी तभी उन स्वरूपों को ब्रह्मरन्ध करने से आप अन्त में पहुंच जाते हैं सदाशिव के पास जो कि प्राप्त करती है जब इसमें कण्डलिनी की शक्ति आ जाती शक्ति धर्म का ही अंग है। लेकिन ये समझना चाहिए कि है। कण्डलिनी के शक्ति के मिलन से ही ये स्वरूप आता है। कण्डलिनी शक्ति है और कृण्डली शक्ति मध्य मार्ग से ही इसलिए राज राजेश्वरी, कण्डलिनी की शक्ति नाभि पर गुजरती है। तो दोनों को अलग कैसे किया जा सकता है। शक्ति का जो मार्ग है वो भी मध्य मार्ग है। दोनों एक साथ राजेश्वरी मानते हैं। या कहा जाए आदि शक्ति का स्वरूप बंधी हुई चीजों को अलग-अलग कर दिया गया। उसकी नाभि चक्र में जो होता है उसे राज राजेश्वरी कहते हैं। अब वजह ये कि कण्डलिनी का उत्थान उन दिनों में होता नहीं जिस इन्सान के नाभि चक्र में राज राजेश्वरी की स्थापना हो था। महाराष्ट्र में कोल्हापुर में महालक्ष्मी का मन्दिर है जहां गयी. माने गहलक्ष्मी हो गयी बाईं ओर में तो दायी ओर में वो जागृत अवस्था में है। वहां बैंठकर के लोग गाते हैं- राज राजेश्वरी हो गई। राज्यलक्ष्मी की जो अन्तिम स्थिति है उदय-उदय अम्बे। अम्बा तो शक्ति है। कण्डलिनी को अम्बा वो राज राजेश्वरी की है। अब ये राज राजेश्वरी की स्थिति कहते हैं। तो उस महालक्ष्मी मन्दिर में बैठकर के वो गाते हैं में एक सहजयेगी को कैसे होना चाहिए। इसमें लक्ष्मी का तो कि शक्ति तू जागृत हो। उनको यह नहीं पता कि बो क्यों गाते हैं। तो वैष्णव व अपना मार्ग बनाते हैं। रास्ता बनाते हैं, पथ बनाते हैं। और जब वो पथ बन जाता है तब उससे ही है, जितने भी सहजयोगी हैं उन पर लक्ष्मी का आश्शीवाद कुण्डलिनी का जागरण होता है। सहजयोग में हम लोग भी यही करते हैं। जब आप लोग मेरी ओर ऐसे हाथ करके बैठते हैं तो आपके सातों चक्र धीरें-धीरे ठीक होते हैं मानो आप वैष्णव बनते जा रहे हैं। आप चरम से मध्य में आ जाते हैं। आने पर जो स्वरूप धारण करती है उसी को लोग राज 1 आर्शीवाद आना ही है। जब ऐसे मनुष्य पर कुण्डलिनी जागरण के बाद लक्ष्मी का आश्शीवाद आ गया, और आना आ गया है। और कभी-कभी लक्ष्मी काफी बढ़ सकती है। अन अपेक्षित और नहीं भी बढ़ने पर ऐसे इन्सान की तबीयत एक राजाओं जैसी हो जाती है। जब तक आपकी तबीयत श्री राजेश्वरी पूजा- 13 वैसी होती नहीं तब तक समझना चाहिए कि कुण्डलिनी अभी नाभि में ही घुम रही है। तबीयत बदल जाती है। सहज योग में आने के बाद जो सबसे,बड़ा चमत्कार होता है कि मनष्य की तबीयत बदल जाती है। उसका स्वभाव बदल जाता है। जो आदमी अलक्ष्मी से भरा है, जिसके अन्दर लक्ष्मी दिखाई नहीं देती, माने ये के बहुत से रईस लोग भी होते हैं लेकिन वो कंजूस होते हैं तो उनको कोई लक्ष्मी पति नहीं कह सकता। उनमें लक्ष्मी का कोई स्वरूप भी दिखाई नहीं देता, भिखारी जैसे रहते हैं हर समय पैसे के लिए रोते हैं किसी के लिए दो पैसा निकालना उनके लिए मुश्किल है। ऐसे जो कंजूस लोग होते हैं उनको कहना चाहिए कि उनके अन्दर अभी कृण्डलिनी का जागरण ही नहीं हुआ। कंजूसी के मारे मरे जाते हैं। इतने कंजूस होते हैं इतना पैसे के बारे में सोचते हैं कि उनका जिगर भी खराब हा सकता है। उनकी शक्ल बिल्कुल भिखारियों जैसी लगेगी। लक्ष्मी को प्राप्त करना ही कार्य नहीं है कुण्डलिनी का। जो लक्ष्मी का स्वरूप है उसको अपने अन्दर उतारना ही कण्डलिनी का कार्य है। तो राज राजेश्वरी जिसको मानते हैं, जो ये कण्डलिनी की शक्ति है जो आपके अन्दर लक्ष्मी पति का स्वरूप उतारती है, वो राजेश्वरी है। इसका मतलब ये नहीं कि आपके पास खुब रुपया पैसा आ जाएगा, पर दानत्व, जैसे कि आप कोई राजा हैं। राज राजेश्वरी का मतलब है कि आप राजा तबियत हो गये। अपने तो राजा लोग भी महाभिखारी होते हैं। और कंजूस. होते हैं झूठे होते हैं पैसा खाते हैं सब काम करते हैं। लेकिन यहां तो शुद्ध स्वरूप कि बात हो रही है। जो राज राजेश्वरी का पूजारी है, जिसने उसे प्राप्त कर लिया उसके इतने गुण होते हैं कि शायद मैं तो राजा तबियत सहजयोगी हो जाते हैं उसके रहन-सहन में भी एक राजा तबियत होती है। बो फटे कपड़े पहन कर के नहीं घूमते जैसे कि हरे रामा वाले लोग हैं। श्री राम का नाम लेते हैं श्री कृष्ण का नाम लेते हैं और कृष्ण स्वयं कुबेर हैं और उनकी प्रजा बनकर भिखारी बनकर घूमते हैं। किसी भी तरह से उनको तो कृष्ण का तत्व ही पता नहीं है। लेकिन सहजयोगियों को पता होना चाहिए कि आपकी तबियत के अनुसार परम चैतन्य आपकी स्थिति बनाएगा। जो आदमी हमेशा पैसे के लिए रोता रहेगा उसकी हालत हमेशा वैसी ही रहेगी। जो इन्सान हर समय पैसे को तोलता रहेगा और देखता रहेगा कि मैं किस तरह से पैसा बनाऊं, यहां तक सहजयोग में आकर लोग चाहते हैं कि सहजयोग में पैसा बनाएं ये तो बिल्कुल ही गये गुजरे लोग हैं। इनसे गए बीते तो कोई भी नहीं है। एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पृछा कि सबसे गए बीते लोग कौन हैं तो उन्होंने कहा कि जो भगवान के मन्दिर में आकर लोगों से भीख मांगते हैं। जब भगवान बैठे हैं तो लोगो से भीख काहे को मांगते हैं। इसी प्रकार सहजयोग में भी ऐसे लोग हैं, बहुत ही कम हैं पर हैं,जो सोचते हैं कि सहजयोग में आकर हम किसी बात से पैसा बनाएं। हमें कुछ लोगों ने बताया कि गणपति पुणे में कुछ लोग सामान लेकर आए थे उसे बेच रहे थे। एक साहब जरूर हैं जो हमसे पूछ कर लाए और उन्होंने बेचा। और जो कुछ भी उनको मुनाफा हुआ वो उन्होंने सहजयोग को दे दिया। मैं ये कहती हैं कि ये भी नहीं करना चाहिए। पर वो कहते हैं कि हमारी वजह से लोगों को सहूलियत होती है। उन्हें साड़ियां मिल जाती हैं। पर जो आदमी सहजयोग में आकर सिर्फ पैसा कमाना चाहता है वो तो ऐसा है कि उसको तो सहजयोगी कहना ही नहीं चाहिए। आप समझ ही नहीं सकते कि राज राजेश्वरी की शक्ति क्या है। उसकी शक्ति से मनुष्य पैसा हो या नहीं हो कोई आपके अन्दर डर, अभाव की भावना ही नहीं रहती कि मुझे कोई अभाव है। पूर्ण लोग होते हैं। मुझे क्या जरूरत है। मैं क्यों डरूं? मैं जहाँ रहूंगा मेरे लिए वहीं समृद्धि है। वही मैं सब कुछ चीज प्राप्त कर सकता हूँ। और वो एक बहुत ही आलीशान तरीके से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उसकी तबियत एक बहुत ही भव्य, महान इन्सान के जैसे होती है। उसको देने में ही मजा आता है लेने में नहीं। कोई आदमी रईस होगा तो अपने घर में कोई गरीब होगा तो अपने लिए। पर अगर वो सहजयोगी है चाहे वो अमीर है या गरीब उसके लिए वो सर आँखों पर। पूरी तरह से उसकी मदद करने को तैयार रहता इस भाषण में न बता सकें। लेकिन सबसे बड़ी वो चीज है कि ये होती है कि उसके अन्दर दानत्व, उदारता आ जाती है। उदार हो जाता है क्योंकि वो जानता है की मैं राज राजेश्वरी कि शक्ति से प्लावित है। मुझे पैसे कि या किसी चीज की दरकार ही नहीं रहने वाली तो क्यों न मजा उठा लं। क्यों न लोगों को चीज देने से मजा उठा लू। पहले जब कोई राजा लोग खुश होते थे तो अपने पास की सबसे कीमती चीज उठा कर दे देते थे। जिस आदमी में उदारता नहीं है, दानत्व नहीं है, उसका अर्थ अभी अधूरा ही पड़ा हुआ है। सबसे पहली चीज तो ये कि कोई राजा किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो गरीब हो जाए और उसकी सारी सम्पति लुट जाए तो भी वो किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो मर जाएगा पर भीख नहीं मांगेगा। आज इ श्री राजेश्वरी पूजा बारे में ये वो। तो जाकर देखा बड़ा भारी आलीशान मकान, बहुत शान से रह रहे हैं। पता हुआ कि वो अपने यहा वायसराय थे। लेकिन उन्होंने कहा नहीं अपनी जवान से और पता भी नहीं हुआ कि वह वायसराय थे। और कोई वायसराय से मिल भी नहीं सकता था पहले जमाने में और इतनी नम्रता से उन्होंने बात की, किसी चीज की जरूरत हो तो बताइए। मुझे इतना क्यों महत्व दे रहे हैं। कोई परेशानी तो नहीं हो रही? यहां के लोग अक्खड़ हैं ये बो सब बातें कहीं हिन्दुस्तान के जैसे नहीं है, धार्मिक नहीं है। इतनी सारी बातें करने के बाद भी उन्होंने ये नहीं बताया कि वो यहां वायसराय रह चुके हैं और इतनी उनको श्रद्धा है। हिन्दुस्तान के बारे में है। और इतने प्रेम से हिन्दुस्तानियों की बातें बता रहे थे। अपने यहां तो अगर कोई मन्त्री का सचिव हो जाए तो उसकी खोपड़ी खराब हो जाती है। इस तरह लोगों के दिमागों में थोड़ा सा भी कुछ मिलने पर खोपड़ी खराब हो जाती है और ये लक्षअण राजाओं का नहीं है। राजाओं कि पहली चीज है कि अत्यन्त नम्रता होनी चाहिए। अक्खड़पना आता है किसलिए? अक्खड़पना आता है कि वो सोचता है कि इतना पैसे वाला हूं मैं सब को है। सहजयोग में ऐसे भी लोग हैं जो असहज लोगों के लिए बहुत करते हैं। पर अग्र सहजयोगी कोई गरीब आ जाए तो उसको बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं देते। वो बाह्य के आडम्बरों को देखकर के बहुत से लोग महत्व करते हैं। ये बड़े महान हैं। इनके पास इतनी मोटरें हैं। ये बड़े भारी यहां के मशहूर एक्टर हैं, डाक्टर हैं या आकटिक्ट हैं। बहुत बड़े आदमी हैं। ये जो बाह्य कि उपाधियां हैं, उसका महत्व करते हैं। पर कोई अगर ये सोचता है कि ये जो शक्ति का संचय इसके अन्दर है। इतनी चैतन्य कि लहरें इसमें से बह रही हैं। ये कौन औलिया है? उसको राज तबियत कहते हैं। अपने देश में भी ऐसे बहुत से लोग हो गए हैं शिवाजी महाराज का उदाहरण खासकर सोचने में आता हैं। स्वयं तो वो थे ही आत्मक्षात्कारी और आदर्श परुष पर उनका सन्तों के प्रति जो व्यवहार था वो अत्यन्त सुन्दर और नम्र थे। उनके पास उनके गुरू रामदास एक दिन आए और उन्हें बाहर से ललकारा। शिवाजी महाराज ने एक चिट्टी लिखकर उनकी झोली में डाल दी। उस चिट्टी में लिखा था कि गुरू जी मैंने अपना सारा साम्राज्य और जो मझे महत्व दिया मैंने सोचा कि गुरू रामदास हंसे, हंसकर उन्होंने कहा बेटे हैंम तो सन्यासी हैं, हम क्या तुम्हारे साम्रज्य लेकर करेंगे? तुम तो राजा हो और Sट सकता है झाड़ सकता है। और अगर वो कुछ पढ़ा लिखा है या कोई बड़ी नौकरी में हो, कुछ हो, बड़े बाप का लुम्हारा कर्तव्य है लेकिन हां अगर तम सोचते हो कि इस साम्राज्य को भक्ति से चलाएं तो इसका झंडा जो है, जो हम छाती पहनते हैं, उस रंग का त्रिकोणी झंडा बना लो। उस झंडे से लोग जान जाएंगे कि तुम भी एक सन्यासा भीव बटा है तो बहुत ही अक्खड़ता चढ़ जाती है। उससे तो आप बात ही तहीं कर सकते। अधजल गगरी छलकत जाए जो परिपर्ण है इन्सान वो अत्यन्त नम्र होता है। सादगी होती नहीं है। तुम हो राजा लेकिन उसको तुम जानते नहीं हो कि तुम राजा हो। जो लोग अपने ही मैं राजा हूं. पागल जैसे कहते फिरते हैं फलाना हूं वो होते नहीं हैं और जो होते से लोग आपको दिखाई देंगे। एक बार हम लन्दन में सफर कर रहे थे। हमारे साथ एक साहब बुजर्ग बैठे हुए थे बातें करने लग पारिपूर्ण नहीं है आप झूठा घमंड झूठा गुस्सा और एक अजीब तरह का व्यक्तित्व आप प्राप्त करते हैं कि सब आपका नाम हैं वो कभी कहते भी नहीं। ऐसे बहुत मेरे को ऐसा हो गया मेरे बाप को ऐसा हो गया, उनको ऐसा हो गया मेरे को ऐसा हो गया। मेरे पास पैसे नहीं है मेरे पास ये नहीं है। मुझे ये चाहिए। एक भिखारी जैसे और दूसरे आते हैं वो चिल्लाते हुए तो पहले वैष्णव बनना होगा, मध्य े गये। वहां ज्यादातर औरतों से कोई बात नहीं करते। आपस में ऐसे ही बात करते हैं। लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान में आना होगा। मध्य में आए बगैर आप राज राजेश्वरी की के बारे में बहुत कुछ पूछा, ये कैसे हैं, बो कैसे हैं, तो मैंने में कहा आप हिन्दस्तान में आओ। मैं य भारत में इतने साल था। ऐसी बात नहीं हैं और कुछ नहीं बताया अपने बारे में ही नहीं सकती। जैसे कि प्लास्टिक के पेड़ को पानी डालने से कौन थे क्या थे। उसके बाद वो उतर कर चले गये हम भी फायदी क्या होगा। इसी तरह इन लोगों में एक तरह का उतर कर चले गये। उसके बाद एक दिन हम और हमारे पति जा रहे थे तो उनसे मूलाकात हुई ट्रेन में। तो उन्होंने कहा हमारे घर आइये हम लोग बातें करेंगे हिन्दस्तान के है। दूसरों की चीजों का लालच करने वाले बहुत ही आडम्बर एक तरह का झूठा तमाशा। मनुष्य में लालच एक बहुत गंदी चीज है, अनहोनी चीज 15 श्री राजेश्वरी पूा ग गए-गुज़रे लोग होते हैं। और सहजयोगियों के लिए तो बड़ी परेशानी की बात है। एक तरफ तो वो सहजयोगी हैं और बन्धुत्व में आ जाते हैं अब कितनी बड़ा काम है ये राज दूसरी तरफ लालच ।मगर के मँह में उनका पैर है तो वे नाव राजेश्वरी का कि वो सबके बारे में विचार करती है जैसे एक में कैसे आएंगे? मजा उठाना जब आ जाए और उसका आनन्द लेना, उसका समाधान लेना, जैसे शवरी के बेर उनकी परेशानियों को दर करेगी। वो बैठ कर ये तो नहीं खाकर श्रीराम इतने सन्तुष्ट हो गये। उस चीज को जब गिनेगी की जेवरात कितने हैं, हीरे कितने हैं। वो ये देखेगी आप समझने लग जाएंगे तब कहना है कि आप राज कि मेरी प्रजा में कितने लोग परेशान हैं। छोटी से छोटी राजेश्वरी की शक्ति से प्लवित हैं। पोषित है। प्रेम से अगर चीज उनको क्या चाहिए। इसी तरह आपकी भी तबीयत हो कोई छोटी सी चीज, अब कोई छोटी सी चीज ही दे दे कोई जानी चाहिए। जब तक हम अपने से उठकर विश्व में सुपारी ही दे दे। और मैं सुपारी खाती नहीं हूं तो भी जरूर खाऊंगी। और खाना चाहिए। क्योंकि उससे दूसरा आदमी पूजारी कैसे हो सकते हैं और विश्व निर्मल धर्म कोई बाहर खुश हो जाएगा। उसे क्या पता कि मैं सुपारी नहीं खाती। माने ऐसा है कि कोई सी भी चीज बस्तु संसार की जो भी ऐसे तो हैं नहीं। ये तो अन्दर का प्रकाश है और इस प्रकाश इसमें जैसे शीशे में आप पारा लगा दें, साधारण, सर्व में मनुष्य भव्य व्यक्ति बन कर निकल आता है। वो ये साधारण शीशा, जो पारदर्शी है, उसमें अगर पारा लगा दें नहीं सोचता कि मझे क्या चाहिए क्या करना है। वो ये तो शीशा बन जाता है। इससे आप अपनी शक्ल देख सकते सोचता है मैं औरों के लिए क्या कर सकता हूँ। अभी तो मैं हैं। कोई सी भी वस्तु में आप प्रेम जड़ दे वो वस्तु इतनी कम ही हूं। मां मैंने सौ आदमियों को आत्मसाक्षात्कार सुन्दर हो जाती है फिर ये मन करता है ये किसे दें? जैसे दिया और तो मैं कर ही नहीं पाया। ऐसा जब वो सोचने लग बाजार जाएंगे तो मन करेगा हां ये उन के लिए ठीक है जाता है तब सोचना चाहिए कि उसके अन्दर राज राजेश्वरी अपने लिए क्या ठीक है ये विचार ही नहीं आना चाहिए। इसका अगर विचार छूट जाए कि मैं क्या पसंद करती हूं मुझे क्यों चाहिए तो खो गये। इसका मतलब ये है कि वो नहीं इसको? पैसे से कोई तोल नहीं सकता। किसी भी चीज सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आयी नहीं है अगर से नहीं। अब आज देखिये कि फोन आया रशिया से तो मुझे सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आ गयी तो आप बहुत सौम्य हो जाएंगे और जान लेंगे कि किसे किस चीज की तो कहने लगे खुले में तो मैंने कहा अरे, भई कोई छत वत जरूरत है। जैसे आप कहीं गये और देखा कि सुन्दर सा दीप है उनके घर मैं गयी थी उनके पास दीप नहीं था । उनके लिए माँ ये ठंडी-ठंडी हवा तो बह रही है। तो मैंने कहा होना तो ये दीप ले लेना चाहिए। सबकी जरूरतें समझ में आने लग चाहिए। मुझे अपने सिर पर छत औरों पर नहीं तो मुझे अच्छा जाती हैं जब अपनी जरूरतें कुछ नहीं रहती सबकी नहीं लगेगा तो कहने लगे ऐसा ही है आपके ऊपर छत तकलीफें याद की जरूरत है, किसी के पास एक टेपरिकार्डर नहीं है वो मेरा सबके सर पर छत है तो मुझे बड़ा अच्छा लगा। इसी प्रकार भाषण सुनना चाहते हैं। सब पता हो जाता है और उसको छिंदवाड़े में बड़ी गर्मी हो गयी थी और सब लोग खुले में बैठे वो चीज दे दें तो कहेगा मां ये आप को पता कैसे। पता नहीं थे। परे समय मुझे यही फिकर लगी रही कि ये क्या हो रहा कैसे लग जाता है। इसलिए प्यार को ज्ञान कहते हैं ज्ञान ही है। सब लोग बता रहे थे मां हमको तो ठंड लग रही थी शुद्ध प्रेम है। क्योंकि आप किसी के साथ भी शुद्ध प्रेम करते हैं आपको उसके प्रति सारा ज्ञान आ जाता है। वो चाहे फिर वही राज राजेश्वरी की शक्ति सब जगह सबका हित करती महामाया हो आप जान सकते हैं।पर शुद्ध प्रेम होना चाहिए। शुद्ध प्रेम से सारा ज्ञान आपको मिल जाएगा। कोई सा ज्ञान है। सुख, आनन्द प्रदान करती है। और वो शक्ति आपके हो किसी भी प्रकार का अगर आप शुद्ध प्रेम की दृष्टि से देखते हैं। तो जब आपकी जागृति हो जाती है तो आप विश्व राजा की रानी है तो वो प्रजा की तकलीफें है उन्हें देखेगी. व्यापक नहीं होते हैं तब तक आप विश्व निर्मल धर्म के का तो है नहीं कि जैसे हम हिन्दू हैं, मसलमान हैं, ईसाई हैं। की शक्ति कद रही है। वो कौंध रही है, परेशान कर रही है कि तू करता क्या है? तेरे पास इतनी शक्ति है, त देता क्यों देर हो गयी। रास्ते में मैंने पृछा कि भई कहां बैठे हैं सब लोग नहीं लगाया तमने। तो उनकको मालम नहीं था कहने लगा औरों पर नहीं तो मैंने कहा ये गलत बात है। जब देखा मैंने आ जाती हैं। कोई बीमार है, किसी चीज अन्दर से। इतने धूप में बैठे-बैठे लोगों को ठंड लग रही थी। है। हित से भी ज्यादा कहना चाहिए कि सबको आराम देती अन्दर भी है । उसको आप चाहें तो कहां से कहां पहुंचा सकते हैं। एक पैसे से भी जो काम हो सकता है वो हजारों 16 रूपयो से नहीं हो सकता। लेकिन देने की शक्ति महान होनी चाहिए। फिर से कहूंगी कि विदुर के घर जाकर श्रीकृष्ण ने साग खाया लेकिन द्य्योधन का मेवा नहीं खाया। इन सब चीजों में बड़ा भारी संकेत है। वो ये कि प्रेम से भरी चीज उसका दाम किसी भी चीज से तोल नहीं सकते। सो वैष्णवों को चाहिए कि अपने लक्ष्मी तत्व को साफ करें और उसके लिए मेरी जरूरतें कुछ नहीं है सारी जरूरतें दूसरों कि हैं, इसलिए मैं सहजयोग में आया हं, ऐसे विचार लाइये। कंल आपको आश्चर्य होगाकि कार्यक्रम के बाद इतने लोग मान नहीं होगा। कोई कार्य वहां ठीक से हो ही नही सकता। कारण स्त्री जब शक्ति है। अगर समझ लीजिए इसमें माइक) अगर बिजली नहीं होगी तो मेरा बोलना बेकार है। इतनी बड़ी भारी चीज यहां लाकर रख दी और ये किसी काम की नहीं इसमें अगर बिजली नहीं है तो। अगर घर की स्त्री को आप इस तरह से दबाएंगे और उसका मान नहीं रखेंगे तो शक्ति आपके अन्दर दौड़ नहीं सकती। सबसे बड़ा दोष है। कल क्या कभी भी नहीं हुआ मुझे ऐसे कार्यक्रम के बाद कि दायां हृदय इतने जोर से पकड़ गया। मैं तो सोचती थी ये चीजे उत्तरी भारत में ज्यादा हैं पर दक्षिण भारत में और भी ज्यादा हैं। हिन्दुस्तानियों में दोष है कि नारी की शक्ति का मान नहीं रखते। सबसे बड़ा दोष है। इधर देखें तो देवी की पूजा करेंगे। कन्या रूप में मानेंगे। सब रूप में मानेंगे पर गृहलक्ष्मी के रूप में नहीं मानेंगे। इसलिए आज साफ-साफ बता रहे हैं कि अगर आप सहजयोगी हैं तो अपनी स्त्री के प्रति आदर युक्त रहें। खुले आम मैंने सुना कि आप झाड़ते रहते हैं। पुरुष को कोई अधिकार नहीं है कि नारी का अपमान करे। किसी भी वजह से मेरे विचार से एक ये चीज ठीक हो जाए तो राज राजेश्वरी की शक्तियां जागृत हो जाएंगी। पूरी तरह से समझ लेना चाहिए कि पति पत्नियां एक ही रथ के दो चक्के हैं। एक बायां और एक दायां। बायों दायें में नहीं जा सकता दायां बायें में नहीं जा सकता। पर दोनों का स्थान जरूरी है। दोनों एक जैसे ही हैं पर स्थान अलग-अलग हैं। इनका मतलब कोई ऊंचा नीचा नहीं हो। सकता। अगर रथ ऊंचा नीचा हो जाए तो आगे जाएगा ही नहीं। गोल-गोल घूमता रहेगा। बच्चे भी आपसे यही सीखेंगे । जो बच्चे मां का आदर नहीं करते वो क्या सीखेंगे? दुनिया में वो मेरा क्या आदर करेंगे? इसलिए आप सबसे विनती है कि आप घर की नारी का अपमान नहीं करें। उसे किसी तरह से नीचा नहीं दिखाएं। उसकी शक्ति आपके लिए बहुत जरूरी है। उसी तरह स्त्री को भी सहज में उतर कर अपनी शक्ति को सम्हाल लेना चाहिए। और शक्ति में उतर जाना चाहिए। आए। मुझे बड़ा आनन्दआया। पर एकदम मेरा दायां हृदय पकड़ गया, बुरी तरह से। मेरी समझ में नहीं आया कि यहां दायां हृदय इतनी बुरी तरह से क्यों पकड़ रहा है। ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ। ये वही शक्ति है जिसने संकेत दिया। फिर मैंने पूछा कि यहां गृहलक्ष्मियों का क्या हाल है। हैदराबाद में लोग गृहलक्ष्मी से किस तरह से व्यवहार करते हैं। तो पता हुआ कि बहुत ही बुरी तरह से व्यवहार करते हैं। उनकी कोई इज्जत ही नहीं करते। और हर समय झाड़ते रहते हैं। माँ की इज्जत करते हैं पर बीबी की नहीं करते, कहते हैं मुस्लिम प्रभाव आया हुआ है। पता नहीं है औरत की इज्जत करने के लिए कितना बताया गया है करान में, वो नहीं करते। बेवकफी है। उसमें जितनी इज्जत औरत की है और कहीं है ही नहीं। तब मुझे समझ में आया कि जहां स्त्री की पूजा होती है, यत्र नार्या पूजयन्ते तन्त्र रमन्ते देवताः। जहां स्त्री की इज्जत नहीं होगी वहा पर कभी देवताओं का वास हो तहीं सकता। निःसन्देह कहना चाहिए कि अगर आपने अपनी पत्नी की पूर्णतः इज्जत की तो बच्चे भी आपकी इज्जत करेंगे और वो एक दूसरे-की इज्जत करेंगे। ये निश्चित बात है। पर अगर स्त्री स्वयं ही पूजनीय न हो और वो इस तरह के कार्य करती है जो पूजनीय नहीं है तो फिर उसको ठीक करना चाहिए। लेकिन अगर वो अच्छी औरत है और वो बच्चों को संभालती है, घर को प्रेम से रखती है ऐसी औरत की इज्जत घर में ही नहीं समाज में भी होनी चाहिए। आप सोचिए कि मेरा दायां हृदय पकड़ गया और मैं आधे घंटे तक तड़पती रही। वो तड़पन जो आप अपनी पत्नियों को देते हो वो मेरे अन्दर आ गयी। अब हो सकता है कि स्त्री इतना ज्यादा सहजयोग नहीं समझती हो बुद्धि से, पर हृदय से समझती हैं। स्त्रियां हृदय से चीज को समझती हैं, और पुरूष मस्तिष्क से समझता है। लेकिन हृदय से समझना भी बहुत बड़ी चीज है। और स्त्री को हमेशा शक्ति स्वरूपा माना गया है। जिस घर में स्त्री का आप इतने लोग पूजा में आए हैं और सारे भारतवर्ष से लोग आए हैं मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। अब सहज वास्तव में ही समग्र हो रहा है और इतने प्यार से ये सब चीजें हो रही हैं, हर जगह जब भी देखती हूँ लगता है सहज जोरों में फैल रहा है। पर एक ही बात को जान लेना चाहिए कि हम कितने गहरे उतरें। ये जरूरी है। तादाद बहुत हो जाए गिनती बढ़ जाने से कुछ फायदा नहीं होगा। जब तक को श्री राजेश्वरी पूजा 17 आपके अन्दर सहजयोग के मूल्य नहीं उतरेंगे, श्रेष्ठता नहीं आएगी । आप अगर राज राजेश्वरी को मानते हैं तो उसकी शक्ति का होनी चाहिए। गहनता के बिना तो ऐसा हुआ जैसे एक चोला बदलकर आपने दसरा पहन लिया। अन्दर कछ भी नहीं। ये अन्दरूनी शक्ति हैं, येशक्ति आपके व्यवहार में, बातचीत.में दिखनी चाहिए। प्राद्भाव, अभिव्यक्ति आपके अन्दर हमारा अनन्त आशीर्वाद 18 प श्री गणेश पूजा दिल्ली 05.12.1993 अपना मल निकाल कर, उनके मल में तो चैतन्य भरी हुई है, उससे श्री गणेश बनाए और उनको बाहर बिठा दिया। उस वक्त एक बात समझनी चाहिए कि गणेश जो बनाया वो सिर्फ आदि शक्तित ने बनाया। उसमें सदाशिव का बड़ा भारी हाथ नहीं था। परमात्मा का इसमें हाथ नहीं था। सिर्फ आदिशक्ति ने श्री गणेश को बनाया। इसी तरह से आप समझ सकते हैं ईसा मसीह को ये जो कहते हैं कि गैबरील ने आकर जब मेरी को बताया कि तुम्हारे पेट से जग का उद्घारक पैदा होने वाला है तो वो कुंवारी थी। तो कुंवारेपन में किसी के यहां बच्चा हो. तो अपने यहां उसे बड़ी शुभ बात नहीं समझते पर अति शुभ कैसे श्री गणेश हैं? उनको ये इस यात्रा की शुरूआत हो रही है और इस मौके पर जरूरी है कि हम गणेश पूजा करें खासकर दिल्ली में गणेश पूजा की बहुत ज्यादा जरूरत है। हालांकि सभी लोग गणेश के बारे में बहुत कम जानते हैं। और क्योंकि महाराष्ट्र में अष्ट विनायक हैं और महा गणपति देव तो गणपति पले में हैं। इसलिए लोग गणेश जी को बहुत ज्यादा मानते हैं। लेकिन उनकी वास्तविकता क्या है? गणेशश जी हैं क्या? इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। अब जो भी बात हम आपको बता रहे हैं यह सहजयोगी होने के नाते आप लोग समझ सकते हैं। आम दुनिया इसे नहीं समझ सकती। एक लोग हद तक आम दुनिया, विशेषकर बद्धि परस्त सहजयोग को देख सकते हैं। किन्तु इस योग को घटित होने पार्वती जी ने सदाशिव की गैरहाजिरी में बनाया। में जो देवी देवता मदद करते हैं वो इसे नहीं मानते। और हिन्दुस्तानी बहुत आसानी से समझ सकते हैं । पर विदेशी परमचैतन्य को भी अनेक तरह के नाम दे कर के वो लोग इसको नहीं समझ सकते क्योंकि वो ईसामसीह को समझाते हैं। कि ये अंतरिक्षीय (Cosmic) है पता नहीं वो मनुष्य ही समझते हैं, इससे ऊंचा नहीं उठ सकते। इसलिए भी समझते हैं कि नहीं। तो सबसे पहले इस पृथ्वी की रचना उनको जो बौद्धिक परत है वो इतनी आमादा हैं कि किसी होने से पहले परमात्मा ने ही सोचा आदिशक्ति ने यहीं भी तरह से नहीं मान सकता कि कौमार्य अवस्था में इस सोचा कि इस पृथ्वी पर सबसे पहले पावित्र्य आना चाहिए, तरह ईसा मसीह का जन्म हो सकता है। अब इसी बात की पवित्रता आनी चाहिए। और पवित्रता जब वहां लाई ओर गौर करें। अब आप लोग सहजयोगी हैं और आप लोगों जाएगी उसके बाद सृष्टि में चैतन्य चारों ओर कार्यान्वित ने चमत्कार देखे हैं। चैतन्य ने अनेक चमत्कार किए हैं। होगा लेकिन ये समझ लिजिए कि परम-चैतन्य चारों ओर जिसका असर आप पर भी आ गया है और दुनिया कि तरफ फैला हुआ है। लेकिन उसका असर तभी आता है जब आपकी नजर बदले गयी ये जिन्होंने पाया है वो सोचने लगे आपके अन्दर पवित्रता होगी अगर आप पवित्र नहीं है, हैं कि जो दुनिया में हम लोग देखते हैं वो माया उससे परे आपके विचार शुद्ध नहीं हैं या आप किसी और ही सतह पर एक और दुनिया है ये सत्य है। ये सहजयोगी देखते हैं वो रह रहे हैं, तो आप सहज कि गहराई में नहीं उतर सकते। ये अपनी उंगलियों पर जान सकते हैं कि श्री गणेश की सूक्ष्मता जो आपने सहज में प्राप्त की है। इसमें सबसे बड़ा अभिव्यक्ति जो हुई वह सत्य है। जहां तक कि मैंने ग्रीस में काम श्रीगणेश ने किया है। तो श्री गणेश परम चैतन्य के देखा कि ग्रीस में अथेना (आदिरशक्ति) का अवतरण हुआ। और जब वहां गयी और उनको देखने गयी और पड़ोस आलोकित हुआ है। और हर एक चक्र पर ये कार्य करते हैं। में जो उनका मन्दिर बना हुआ है तो बाहर उन्होंने बताया हर चक्र में जब तक निर्मलता, पवित्रता न आ जाए तब तक कि यहां एक शिशु देव हैं। आश्चर्य की बात है। उनको कर्णडलिनी का चढ़ना असम्भव है। और चढ़ती भी है तो वो मालूम नहीं है कि यह कौन शिशु देव हैं क्योंकि दूसरे लोगों बार-बार गिर जाती है। कृण्डलिनी और गणेश जी का ने आकर उनकी सारी परम्पराएं नष्ट कर दी हैं। हालांकि सम्बन्ध माँ और बेटा का है। इसकी बात को हम हिन्दुस्तान में अभी भी हमारी परम्पराएं जारी हैं। इसलिए जानते हैं कि जब पार्वती जी नहा रही थी - तब उन्होंने उनको अविश्वास है। जब बातें मानते ही नहीं है। उसी चेतक है। यों कहना चाहिए कि श्री गणेश से ही ये परमचैतन्य धी गणेश पजा 19 मूलाधार चक्र में, मूलाधार में श्री गणेश विराजे हैं। और उसके कार्य क्या हैं, ये तो आप लोग सब जानते हैं। आपने हमारे फोटो देखे हैं कि हमारे पीछे श्री गणेश खड़े हैं हमारे ऊपर भी श्री गणेश हैं। इसी प्रकार आपके साथ भी होता है कि नहीं होता। लेकिन श्रीगणेश की शक्ति जो पवित्रता की है मैं जरूर कहंगी कि हिन्दुस्तान में इसके मामले में सब लोग जानते हैं कि हमको पवित्र रहना है। परदेस में नहीं । परदेसियों को तो पहले से मलेच्छ कहते हैं माने इनको मल की ही इच्छा है और श्री गणेश निर्मल हैं। हिन्दुस्तानियों में निर्मलता की इच्छा है, बहुत है और अगर नहीं भी है तो कम से कम इसका ढोंग तो करते ही हैं। इसी ढोंगीपन से कम से कम ये फायदा है कि एक मनुष्य में जो भी खराबियों हैं। वो समाज में नहीं फैलती। लेकिन विदेशों में तो वो सोचते हैं कि ये जो खराबियां है इनको कोई बड़ा भारी हम आह्वान दिए हुए हैं, बड़ा भारी कोई कार्य कर रहे हैं। तो खराबियों को अच्छा मान लेना क्या उसमें कोई हम बड़ा भारी साहसकर है ऐसे समझ करके। उसमें रत रहना हम लोगों के हिसाब से तो बेवकूफी है। लेकिन अगर आप अमेरिका जाए तो आपको पता हो जाएगा कि वहां गणेश जी हैं ही नहीं। माने ये कि वो विचार ही नहीं रहे हैं। अब जब उसके कुछ परिणाम दिखाने लग गए जब नुकसान दिखाने लग गए. तब वो सोचते हैं कि हमें तो विश्वास होना चाहिए और हमें सफाई रखनी चाहिए। आधी बातें कट गई और उसका असर अब हमारे यहां है। सहजयोग के सिवा वो लोग नहीं बच सकते। लेकिन आप लोगों के पास तो ये सम्पति है। अगर वहां के लोगों को देखा जाए तो उनके मुकाबले में यहां भी बहुत से लोग हैं गंदे रास्ते पर चलते हैं, गंदे काम करते हैं, पर छुपा कर करते हैं। खुले आम नहीं। मतलब वो जानते हैं कि इस चीज से समाज में प्रशंसा नहीं होगी। विशेषकर जो लोग बाहर हो कर आए हैं उनमें ये दोष पाया जाता है। बड़े चरित्रहीन होते हैं और चरित्रहीनता को वो बड़़ा भारी कमाल समझते हैं और सोचते हैं इसमें तो खास बात है। हम कोई बिशेष सन्दर हैं, हमारे अन्दर यह विशेषता है। इस प्रकार का आरोप करते अपने पर बहुत गर्व करने लग जाते हैं। अबोधिता की जो शक्ति है वो ये कि येअबोध हैं। माने ये कि उसके अन्दर किसी तरह की खराबी नहीं है। कोई खराबी दिमाग के अन्दर नहीं है। वो बिल्कुल साफ सुथरा इन्सान है। ईसा मसीह ने कहा था कि जब तुम्हारे उत्थान का समय आए तब तम बच्चों जैसे हो प्रकार अन्य एक जगह है, जहां हम गये थे, वहां पर उन्होंने कहा कि ये नाभि है और एक ऐसा गोल सा चट्टान जैसा पत्थर का टीला था। बहुत चैतन्य उसमें बह रहा था। पीछे से ऐसी लहरियां आने लग गई मैंने मुड़कर देखा तो वहां साक्षात गणेश खड़े हैं। उनको क्या मालम कि गणेश क्या होते हैं? मैं देख कर हैरान हो गयी। स्वयम्भ और इतने चैतन्यपर्ण। लेकिन बिना सहजयोग के गणेश के पास जाना बहुत मुश्किल है और उसके बाद भी जो धर्म के लोग आए, जिन्होंने वाकई धर्म जाना उनका चित्त धर्म पर था कि लोग स्वच्छ हो जाए, पवित्र हो जाए और लोग ऐसी दशा में चले जाएं कि संब उनका उद्धार होने का समय आएगा उस वक्त वो साफ हों इसलिए उन्होंने धर्म की ओर ज्यादा ध्यान दिया कि लोगों का धर्म कैसे ठीक किया जाए। जिससे कि लोगों में वो स्थिति आ जाए कि वो अपना आत्म साक्षात्कार आसानी से प्राप्त करें। हमारे यहां भी नानक आदि बड़े बड़े गरू हो गए हैं उन्होंने यह मेहनत की कि मनुष्य कम से कम धर्म पर चलना सीखे। यानि कि वो सन्तलित रहे माने उसके अन्दर के जो विचार हैं और वो पाप पुण्य में पुण्य ही देखता रहे। श्री गणेश का कार्य और तरह का है। श्री गणेश अपनी शक्ति से ही दक्ष बन गए। उनकी शक्ति सबसे बड़ी है अबोधिता। उनके सिर पर हाथी का जो सिर है उसका मतलब यह है कि उनमें मनुष्य जैसे अहँ और प्रति अहँ नहीं है। और वो बच्चे हैं तो कहना चाहिये शाश्वत शिशु हैं। और उनका अवतरण इस संसार में ईसा मसीह के नाम पर हुआ। अब उसका हम लोग विज्ञान से हर प्रकार का अनुमान लगा लेते हैं। तो ऐसे कि मैंने कहा था कि श्री गणेश एक शक्ति है निराकार में और साकार में श्री गणेश जैसे हैं। ईसका मतलब ये कि हमारे यहां अगर भोलापन, सादगी, विश्वास हो, ऐसे निर्मल अन्तकरण से श्री गणेश सरलता, कि जागृति हो सकती है। श्री गणेश के बगैर तो कृण्डलिनी चढ़ नहीं सकती क्योंकि कण्डलिनी गौरी है और उस गौरी को उत्थान करने में श्री गणेश उसके साथ हर समय उसे संरक्षित करते हैं। इतना ही नहीं हर चक्र पर जब कण्डलिनी कृण्डलिनी को गिरने से रोकते हैं। अब ये श्री गणेश हमारे अन्दर मूलाधार पर बैठे हैं इसी में बहुत लोगों ने गलती कर दी मुलाधार चक्र जो है वो तिकोनाकार अस्थि में है। यह बहुत बड़ी गलती है। मूलाधार में सिर्फ कृण्डलिनी है और मूलाधार से नीचे हुए चढ़ जाती है तो उसके मुंह को बंद करके श्री गणेश पूजा 20 जाओगे। उस वक्त और भी शक्तियां जो गणेश जी की हैं। स्वास्तिक को इस्तेमाल कैसे किया जाय। कोई भी इस्तेमाल वो छोड़ के वो आपमें सिर्फ अबोधिता भर देते हैं। जिसके कर सकता है। वो तो अबोध हैं न। लेकिन वो अपना असर सहारे आप अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करते हैं । अब दिखाते हैं। जैसे हमने कहा था कि श्री गणेश को किसी तरह किसी बुद्धिमान से बात करें जो बुद्धि पुरस्तर है, वो यह नहीं की अभद्रता पसंद नहीं है, गलत काम उन्हें पसंद नहीं है। समझ पाता कि गणेश जी ही कैसे हमारे देवता हैं? बो और महाराष्ट्र में श्री गणेश के उत्सव होते हैं। पूना में मुझे समझाने कि बात ऐसी है कि जब तक आप सक्ष्म नहीं होते देखते-देखते इतनी हैरानी हुई कि वहां के लोग गणेश के सामने हैं आप समझ नहीं पाएंगे कि आपके अन्दर ये सब देवता हैं। जो अराधना करते हैं बाद में और पहले बहुत गंदे गीत गाते श्री गणेश के चार हाथ हैं। मैंने बताया था कि कार्बन कण हैं। डिस्को डांस करते हैं और इतने गंदे कपड़े पहनते हैं। की चार संयोजकताएं (बैंलेन्सीज) होती हैं। निराकार में सब आप उनको बाईं ओर से देखते हैं तो बो स्वास्तिक रूप में गणेश से डरना चाहिए और अपने भाषण में मैंने कहा था दिखाई देते हैं। फिर आप दाईं ओर से उनको देखते हैं तो वो ओंकार दिखाई देते हैं बहुत से ओंकार। जितने कार्बन एटम हैं वो ओंकार से दिखाई देते हैं। और नीचे से ऊपर को अगर आप देखें तो बीच में अल्फा और ओमेगा दिखाई देते हैं। ईसा रहे थे। तभी भूकम्प ने सब नाश कर दिया। हम लोग मसीह ने कहा था मैं अल्फा और ओमेगा हूँ। अल्फा माने सोचते हैं, ऐसा परदेश में ये सब हो रहा है। तो यहाँ पर शुरूआत और ओमेगा माने अन्त। और उसके जो प्रतीक बने हुए हैं वही प्रतीक बिल्कुल आपको दिखाई देंगे। इन्होंने गए और दनिया भर की गंदगी आ गयी हजारों लोग इनसे उन पर काम किया। मैं जो भी कहती हैं ये विदेशी लोग खत्म हुए चले जा रहे हैं। वहां कि जो नाश शक्ति है, एकदम से बड़े जोर से उसका पता लगाते हैं। तो उन्होंनें विनाश शक्ति है वो अन्दर से चालित है। हम लोग यहां देखा कि जब इन्होंने कार्बन एटम का फोटो लिया तीन दिशाओं बैठे-बैठे समझ ही नहीं पा रहे हैं। 65% लोग अमेरिका में से तो बराबर तीनों प्रतीक नजर आए। सिद्ध हो गया कि एकदम जर्जर हो जाएंगे। अनेक तरह की बीमारियां है जो ईसा मसीह जो थे अल्फा और ओमेगा बन गाए वहीं उसकी हम लोग यहां सुनते भी नहीं है वहां हो रही हैं। यहांँ जड़ें थी। वहीं ओंकार थे और वही स्वास्तिक। स्वास्तिक कीड़े-मकोड़े, मच्छर आदि इतने हैं, सब तरह की गरीबी है अगर ठीक से बनाया हो, उसकी गति दायीं ओर को होती है पर मनुष्य साफ हैं। अब ये कह नहीं सकती वो स्वास्तिक प्रगतिशील होता है। और उसकी गति यदि मनुष्य की क्या स्थिति होने वाली है। पावित्र्य के विरोध बायीं ओर हो गयी, चक्र उल्टे हो गए तो मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है। उसे हर तरह कि बिमारियां हो जाती हैं। और के खिलाफ जाना है। फ्रायड जैसे कुछ गंदे लोग आए और फिर ऐसी बिमारियां हो सकती हैं जो आप विल्कल भी किसी उन्होंने ये सब कहा कि यह सब गलत है इससे कोई फायदा भी तरह से ठीक नहीं कर सकते। जैसे कि आप जानते हैं कि नहीं होगा और मां के साथ यह पवित्रता बनाई ही नहीं जा हमारे जो स्नाय है वो एक बार शिथिल होने लग जाते हैं। सकती। बो मरे हैं कैंसर की बीमारी से, बहुत परेशानी उसे आर्श्वराइटिस की बीमारी हो जाती है। उसमें आदमी भृगत कर। हिलने लग जाता है और उसकी बिमारी ठीक नहीं होती। धीरे-धीरे उसके स्नायु जो हैं कमजोर होने लग जाते हैं। ये श्री गणेश की उल्टी दशां में घूमने की वजह से होता है। वही वो डाक्टर सिर्फ दैहिक रोगों को ठीक करते हैं, श्री गणेश हाल हिटलर का हुआ था। हिटलर ने श्री गणेश की शक्ति उन को भी ठीक करते है। अब ये बात जो सहजयोगी नहीं हैं इस्तेमाल करने के लिए स्वास्तिक बनाया। जब तक वह उसको बताने कि नहीं है। वो कहेंगे कि ये क्या है कि हाथी सीधी तरह से बना था। तब तक बो काफी बचे रहे । फिर ये को पूज रहे हैं। और ये गलत काम कर रहे हैं। पर वो एक स्टेसिल उन्होंने दसरी तरफ से इस्तेमाल करना शुरू किया तो उल्ट गया उसके उल्टे हो जाने से ही हिटलर हारा। स्वास्तिक का इलम बहुत से लोग समझते नहीं कि है। इसलिए प्रतीक बनाए जाते हैं । और ये प्रतीक हम लोग औरतें भी कम नहीं। तो मैंने उनको बताया था कि श्री कि ये भूः तत्व के बने हैं। और ज्यादा हुआ तो भुकंप आ जाएगा और वही बात हुई। जिस दिन गणेश जी का विसर्जन हुआ उसके बाद घर पर आकर सब लोग शराब पीकर नाच भी क्यों न हो? अब वहां पर बीमारियां आ गयी। एड़्स आ कि आगे जाना माँ के खिलाफ़ अपराध करना है। एक पण्य शक्ति की श्री गणेश जी को ठीक करने से मनो दैहिक बीमारियां जो हैं जिन का इलाज डाक्टर लोग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि प्रतीक है। और ये जो प्रतीक होते हैं ये सब बनाए जाते हैं जव शब्दों में बताया नहीं जा सकता न समाया जा सकता जानते थे। आज लोग कहते हैं कि ये कल्पनाए हैं और इस श्री गणेशा पूजा 21 तरह से आप कल्पना में गहरे उतर गए। लेकिन सहजयोग में आज यही प्रतीक सिद्ध हो गए हैं। ये बास्तविक है ये प्रतीक रूप से जो आपके सामने सत्य में आ गया कि ये सच्चाई है। लेकिन मनुष्य कि बद्धि कहां तक जा सकती है? उसके सिवाए बो ऐसी चीजों को मान ही नहीं सकता जो दिखती नहीं है उसके लिए आँखें मुंद कर वो कभी सोचे कि ये जो प्रान्त है, क्षेत्र है जिसे मैंने जाना नहीं है, इसको अगर जानना है तो मेरी अन्दरूनी दशा समझनी होगी। क्योंकि इस तरह से अपना चित जो गणेश की तरह बड़ा सुन्दर है वो श्री गणेश की ही शक्ति है क्योंकि वो सत्य असत्य विवेक बुद्धि हैं। नीर क्षीर विवेक बुद्धि। संस्कृत में एक श्लोक है कि हँस भी सफेद हैं और बग्ला भी। तो दोतों में क्या अन्तर है? अन्तर ये है कि हँस दध में से पानी अलग कर देता है पर बगुला ऐसा नहीं कर सकता। इस प्रकार ये जो देवी विवेक बद्धि जो है, देखा जाए तो श्री गणेश की शक्ति है। सहज योग में आपको इतनी शक्ति आ जाती है, क्योंकि आत्मा स्वरूप श्री गणेश का प्रकाश जब हमारे अन्दर आ जाता है और फिर हम इस प्रकार से सोचते हैं कि अरे ये तो बेकार है। अब श्री गणेश की पूजा हो रही है, ये हैं मानव स्थिति में मैं इसे नहीं जान सकता। मैं दिल्ली के लिए इसलिए कह रही थी कि श्री गणेश कि पूजा आवश्यक है कयोंकि श्री गणेश और गौरी का सम्बन्ध नितान्त है, शाश्वत और जब तक यहां थरी गणेश की तो है, घटे बज रहे हैं। पर उनसे कुछ फायदा नहीं है। स्थापना नहीं होगी, तब तक यहां जो समस्याएं है, खासकर राजनैतिक समस्याएं वो ठीक नहीं होंगी। उसके लिए ऐसे करनी चाहिए, मतलब कि अपने अन्दर वो पवित्रता जो श्री लोग चाहिए जो पवित्र हैं और जो बच्चों जैसे भोले हैं। तो गणेश का आशीर्वाद है वो आना चाहिए अब लोग कहेंगे कि लोग कहेंगे कि बच्चे जैसे लोग शासन नहीं कर सकते मां वो कैसे आएगा आपको सिर्फ इस पर ध्यान करना है। लेकिन ऐसे लोग हैं कहां ऐसे लोग जब प्रशासन में आएंगे तो आपको पता होगा। श्री गणेश जो हैं वो बृद्धिमान हैं ही लेकिन बुद्धि है, ये उनको पता है और उसके कारण मनुष्य जो सत्य हैं उसी को प्राप्त करता है। और परी उसमें अपनी खा रहे हैं। वो हर समय ये सोचते हैं कि पैसा बहुत बड़ी जान लगा देता है। ये जो पाप कर्म हैं इसी के लिए तो चज है। सोचते हैं इसका पैसा खाओ, उसका पैसा खाओ। लोग पैसा इकट्ठा करते हैं । जैसे आप लोग किसी को पैसा दे दीजिए तो फौरन वो किसी गलत चीज के हैं। आपको क्या जरूरत है किसी से पैसे लेने की और उन्हें पीछे दौड़ेगा या शराब पीना शुरू कर देगा। लेकिन अगर आप गणेश के पूजारी हैं तो आप ये सब कभी नहीं करेंगे। क्योंकि ईसा मसीह ने जब उनका अंवतरण लिया तो हमारे उधर चित्त ही नहीं जाता। ये जो मां के विरोध में पाप हो सर में, आप जानते हैं, कि आज्ञा चक्रकी दो खिड़किया हैं. एक आगे एक पीछे। आगे वाली जो हैं उससे हम देखते हैं, पाप जो हैं ये अत्दर ही अन्दर आपको खाते हैं। सारी बाई उससे आँखों की चालना होती है। इसलिए जिस आदमी के गणेश गड़बड़ हो जाते हैं उनकी आँख स्थिर नहीं हो वीमारियाँ भी हैं। ऐसे अनेक तरह की बीमारियाँ जो आज सकती, घूमती रहती है। और ईसा मसीह ने तो अधिक सूक्ष्म बात कहीं। Though shall not have adultrous eyes, आपकी दूष्टि अपवित्र नहीं होनी चाहिए' माने आंख में किसी भी तरह का लोभ या मोह या फिर दोनों तरफ से। और बाईं तरफ की बिमारीयां हैं तो अपवित्रता नहीं होना चाहिए। ऐसी शद्ध आँखें होनी चाहिए प्रकाश या दीप जलाने से निकल सकती है। लेकिन दीप जो बताईये कि ईसाई लोगों में, अगर आप लोग परदेस में जाएं, है श्री गणेश का दीप है। अन्धकार को दूर करना बो जानते तो आपको बहुत कम लोग मिलेंगे, जो आंखें नहीं घुमाएंगे। नहीं तो सारे आंखे घुमाते हैं। उसका असर चित्त पर आता उसका विसर्जन भी ठीक से होता है ये काम भी उनका है। है। उसका कारण ये है कि अपने अन्दर बसे श्री गणेश की पूजा ध्यान धारणा से अन्दर से सारी सफाई हो जाएगी। बाई ओर की सफाई श्री गणेश को पाने से होती है। आपको चाहिए कि एक बार आप माँ की ओर नज़र करें और एक बार पिता की ओर नजर करें इसमें हिन्दस्तानी बहुत मार में जो विवेक है, सत्य, असत्य क्या ये नहीं सोचते कि आपके पिता परमात्मा से धनवान कौन ठगने की? ये इसलिए होता है जब आप अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। पर गणेश जी के आशीर्वाद से वो ज्यादा गहन हैं। अब ये बात समझ लीजिए कि ये गए ओर की बिमारियां आप लगा लेते हैं। फिर मनो दैहिक कल हैं वे अधिकतर आपका गणेश तत्व खराब होने के कारण है। अगर आप सहजयोगी हैं तो आपको रोज ध्यान करना होगा। बाईं ओर से ध्यान कीजिए फिर दायीं ओर से एक कहीं हैं। जिससे कि हमारा खान पान ठीक तरह से पचता है और इस प्रकार हम अपने में शरीर का इतना विचार करते हैं कि 22 श्री गणेश पूजा াt रोज शरीर को धोएंगे ये करेंगे बो करेंगे, उससे ज्यादा हमें अन्दर की नवीनता की ओर नजर करनी चाहिए। शीशे में अपनी तरफ देखकर कि मैं ये क्या कर रहा हूँ? और श्री गणेश का आह्वान करना चाहिये। उनसे कहना चाहिए कि आप आइए विराजिए। और सिर्फ मूलाधार पर ही नहीं पूरे सारे चक्रों में आप आइये। आज्ञाचक्र पर ईसा मसीह ने कहा है कि "मैं ही मार्ग हूँ, मैं ही द्वार हूँ। अलग-अलग तरीकों से उसका अनुवाद हुआ है पर उन्होंने ये नहीं कहा है कि मैं लक्ष्य हूँ। ये उन्होंने कभी नहीं कहा है। ठीक है अगर वो आत्मा हैं तो आत्मास्वरूप भी हैं। पर फिर उन्होंने आदि शक्ति पर छोड़ दिया। पर लाँछन लग सकते हैं। किसी भी उम्र में लग सकते हैं । पर हम तो माँ हैं न। हमारे ऊपर कोई लांछन नहीं लग सकता और वो तो पुरूष थे। और वो अगर अपनी सोलह हजार शक्तियों को अपने साथ रखते तो लांछित हो जाते । उनकी 16,000 शक्तियाँ और पाँच-पंच महाभूत थे। ये इन सब शक्तियों से उन्होंने सोचा शादी कर लेते हैं। तो ये उनकी शक्तियां थी जिनसे उन्होंने शादी की, इस प्रकार हमारे यहां भी समझने की जरूरत है। कि ये जो परमात्मा के अवतरण हैं इन्होंने ऐसे काम क्यों किये जो कि समाज रीतियों से अलग हैं। देखने में ये सब गलत हैं। क्योंकि ये अवतरण परमात्मा का अंश है, यानी परमात्मा का स्वरूप ही है। वो जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे उनके अन्दर श्री अब अगर आप किसी भी धर्म को पढ़ें तो आपको आश्चर्य होगा कि हर ग्रन्थ में पवित्रता पर ही जोर दिया है। गणेश पूरी तरह जागरूक हैं। इस प्रकार हमने सोचा की ये पवित्रता जो की श्री गणेश की शक्ति है और जब मनुष्य उस पवित्रता का और अपना मान नहीं रखता उसकी भाषण देने से भी नहीं होगा। उनको अपने अन्दर जागरूक मर्यादाएं नहीं रखता तब उसको ये तकलीफ देने लग जाते हैं करना होगा। ये जागृति, आप सब को मिल गई। लेकिन श्री गणेश मतलब ये कि श्री गणेश हट जाते हैं। और वो कभी-कभी मैं देखती हूँ कि यह डावां डोल है। जैसे ही ये डावां अगर हट गए तो उनकी शक्तियां भी हट गयी। और वो डोल होती है चित्त भी डावां डोल हो जाता है। फिर ऐसे जो फिर कोई भी बीमारियां हो सकती है। सहजयोगियों को चाहिए कि वो श्री गणेश को नमन करें जब भी कोई गलत अभी अन्दर उतरे नहीं है। अपने चरित्र का मान रखना, या विचार दिमाग में आए तो उनकी शद्धता से वो सफाई करें। अपनी आत्मिक जो चीजें हैं उनका ध्यान रखना, उनको उनकी सफाई और मेहनत से मनष्य शद्ध हो जाता है। कुछ खुले आम रास्ते पर देखना या उनका प्रदर्शन करना या लोगों ने श्री गणेश को सिम्पैथेटिक पर घमते देखा और उनको नष्ट करना ये सब बातें सब बहुत गलत हैं। और समझ नहीं पाये। वे उसी को कण्डलिनी समझबैठे। इसी से कोई समझ नहीं सकता कि चित्त कितना बावला हो जाता बहुत गड़बड़ बात हो गयी। अपने अन्दर की धरोहर जो है। और इसी वजह से जब चित्त बावला हो जाता है तो हमारी विरासत है ये पवित्रता को समझना चाहिए। विवाह चित्त आपका कहीं भी जा सकता है और फिर आपको कोई भी उसी पवित्रता का बन्धन है। तो जिन लोगों ने धर्म को भी बीमारी लग सकती है। कोई सी भी पीड़ा लग सकती है. संभालने की कोशिश की, हम दस गुरूओं को मानते हैं, कुछ भी हो सकता है। एक सहजयोगी को श्री गणेश को उन्होंने विवाह के प्रति बहुत जागरूकता प्रकट की। जैसे पूरी तरह हृदय से मानना पड़ेगा। उनकी स्तति सबने की है, नानक साहब ने कहा। मोहम्मद साहब ने इतनी शादियां अलग-अलग तरह से। मोहम्मद साहब ने भी ईसा क्यों की? उस समय इतने लोग मारे गये थे, इतने पुरूष लोग मारे गये थे कि आदमी ही नहीं बचे थे। और औरतों के स्वरूप है। पूरी तरह से ये निष्कलंक है। और यही बात अपने पास कोई व्यवस्था ही नहीं थी कि वो कछ न कुछ ऐसे बारे में सोचना है कि हम अपने को निष्कलंक करें। ये कार्य कामों में लग जाएं जिससे कि वो अपना धन उपार्जन कर बुद्धि परस्तर होने से नहीं होगा। आप अपने चित्त को ही सकें। उस बक्त तो कोई व्यवस्था ही नहीं थी। लोग करते क्या? और विवाह एक बन्धन है। जिससे कि मनुष्य पवित्र रहें। इसलिए मोहम्मद साहब ने इतनी शादियां करके और करने हैं । ये सब गंदगी है तो कोई दुनिया की कोई शक्ति आपको उन लोगों को बचाने की कोशश की, उन औरतों को, जो उसमें फंसा नहीं सकती। इसलिए मैं कहती हूं कि वच्चों कि गलत रास्ते पर जा सकती थी इसको समझने के लिए जैसे बनें। उनका सहज-स्वभाव, उनका भोलापन। पर आप श्री कृष्ण को भी देखिये। उनकी सोलह हजार पत्नियां थी और पाँच और पत्नियां थीं। अब वो परूष थे और पुरूषों अभाव आ रहा है। न जाने कैसे गंदे काम करके बच्चों को सिर्फ श्री गणेश पूजा करने से ठीक ही होगा और उनके सहजयोगी हैं हम उनको कहते हैं कि ये आधे अधूरे हैं। मसीह की स्तुति की क्योंकि वे जानते थे कि ये कृष्ण का ही समझाएं की भई गलत काम मत कर। अगर आप इस बात पर पूरी तरह से जम जाएं कि हमें ये सब गंदे काम नहीं आज मैं देखती हूं कि परदेश में इसका बड़ा जबरदस्त श्री गणेश पूजा 2৭ नष्ट कर देते हैं। शायद कोई बड़ी भारी नकारात्मक शक्ति चल रही इनका सर्वनाश करने के लिए। हिन्दुस्तान में यह बात बिल्कुल भी नहीं है। बच्चों को बताया जाए कि तुम ये काम मत करो, वो काम मत करो। पर परदेश में तो बच्चों को जैसा चाहो वैसा कर लो। बच्चों को कहना होगा कि ये गलत काम है और हम ये नहीं चाहते। उसके लिए हम आपको पैसा नहीं देंगे। आप समझ जाइये। नहीं तो हमारा समाज भी उसी तरह से हो जाएगा। उसकी अच्छाई तो आई नहीं उसकी बराई आ गयी आशा है आप लोग समझगए हैं कि गणेश जी का कार्य महत्वपूर्ण है क्योंकि वही आपकी जागृति करते हैं। आपके चक्रों को शुद्ध करते हैं। उनमें प्रकाश डाल देते हैं और आपको हमेशा प्रकाश की ओर अग्रसर करते हैं। आपकी नजर हमेशा प्रकाश की ओर रहती है। ये चीज आपको आत्मसात करनी होगी कि हम श्री गणेश को कभी भी अपमानित नहीं करेंगे, कभी भी। आप लोगों में, जो दिल्ली के हैं, आशा है आज की पूजा के बाद एक नया धर्म प्रस्थापित होगा। दो तरह के लोग होते हैं। शुभ और अशुभ। ऐसे जो शुभ लोग हो जाते हैं उनकी एक नजर काफी है दूसरे आदमी को ठीक करने के लिए । एक नजर काफी है। वो नज़र जिसे कहते हैं कटाक्ष कटाक्ष निरीक्षण। बाईं ओर की सारी समस्यायें ठीक. हो सकती हैं। अगर आप अपने गणेश को जागृत कें। बाह्य में नहीं। बाहय में बिल्कुल नहीं। अन्दर की चीज है। जिसे आप लोग प्राप्त करें। उसके प्रकाश से आप प्रकाशित हों और सारे ब्रह्मांड परउनकी शक्ति का प्रादर्भाव हो, चेतना आ जाए और लोग उसको मानें। यही हमारा आशीवांद है। थी सणेश पजा जन्म दिवस पूजा दिल्ली 30.03.90 आज नवरात्रि की चतुर्थी है और नवरात्रि को आप जानते हैं रात्रि को पूजा होनी चाहिए। अन्धकार को दूर करने के लिए अत्यावश्यक है कि प्रकाश को हम रात्रि में ही ले आए। आज के दिन का एक और संयोग है। कि आप लोग हमारा जन्म दिन मना रहे हैं। आज के दिन गौरी जी ने अपने विवाह के उपरान्त श्री गणेश की स्थापना की। श्री गणेश पवित्रता का स्रोत है। सबसे पहले इस संसार में पवित्रता फैलाई गई जिससे कि संसार में आए मनष्य पावित्र्य से सरक्षित रहें। और अपवित्र चीज़ों से दूर रहे। इसलिए सारी सुष्टि को गौरी जी ने पवित्रता से नहला दिया। और उसके बाद ही सारी सूष्टि की रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि हम अपने अन्दर पावित्र्य को सबसे ऊँची चीज समझें। लेकिन पावित्र्य का मतलब यह नहीं कि हम नहाएँ, धोएं, सफाई करें, अपने शरीर को ठीक करें किन्तु अपने हृदय को स्वच्छ न कर सकें। और पाप कर्म न करे। लेकिन ये मनुष्य का कार्य नहीं। ये तो देवी का कार्य है जो इन्होंने नवरात्रि में किया। सो हृदय को विशाल करके हृदय में ये सोचें कि हम किससे ऐसा प्रेम करते हैं जो निर्वाज्य, निर्मम है जिसके प्रति हमें ये नहीं कि ये मेरा बेटा है ये मेरी बहन है मेरा घर है। ऐसा प्रेम हम किससे करते हैं? किसके प्रति हमें ऐसा प्रेम है। मनुष्य की जो स्थिति है उससे बहुत ऊंची स्थिति में आप आ गये हैं क्योंकि आप सहजयोगी हैं। आपका योग परमेश्वर की इस सुक्ष्म शक्ति से हो गया है। वो शक्ति आपके अन्दर बह रही है। आपको प्लावित कर रही है, आपको संभाल रही है, आपको उठा रही है। बार-२ आपको प्रेरित करती है आपका संरक्षण करती है और आपको अहूलाद, मधुमय प्रेम से भर देती है। ऐसी सुन्दर शक्ति से आपका योग हो गया किन्तु अभी भी हमारे हृदय में उसके लिए, कितना स्थान है? ये देखना होगा। हमारे हृदय में माँ के प्रति तो प्रेम है ये तो बात सही है। माँ से तो सबको प्यार है और उस प्यार के कारण आप लोग आनन्दित हैं, बहुत आनन्द में हैं। किन्तु दो प्रकार का प्रेम और होना चाहिए। तभी माँ का प्रेम हो सकता है। एक तो प्यार कि अपने से हो कि हम सहजयोगी हैं, हमने सहज में शक्ति प्राप्त की लेकिन अब हमें किस तरह से बढ़ना चाहिए। बहुत से लोग सहज योग के प्रसार के लिए बहुत कार्य करते हैं जिसे हम कहें क्षितिजीय प्रसार। पृथ्वी से समानान्तर चारों तरफ फैलता हुआ। वो लोग अपनी तरफ नजर नहीं करते तो उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होते। बाह्य में बहुत कुछ कर सकते हैं। बाह्य में दौड़ेंगे, बाह्य में काम करेंगे कार्यीन्वित होंगे। सबसे मिलेंगे, जलेंगे। लेकिन अन्दर की शक्ति को नहीं बढ़ाते। बहुत से लोग हैं अन्दर की शक्ति की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं और बाह्य हृदय का सबसे बड़ा विकार है क्रोध। क्रोध आ जाता है तो जो पावित्र्य है वो नष्ट हो जाता है क्योंकि पावित्र्य का दूसरा नाम निर्वाज्य प्रेम है। वो प्रेम जो सतत बहुता है और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्ति उसी में है कि वो बह रहा है और जब नहीं बह पाता तो वह परेशान होता है। सो पावित्रय का मतलब यह है कि आप अपने हृदय में प्रेम को भरें, क्रोध को नहीं। क्रोध हमारा तो शत्र है ही लेकिन वो सारे संसार का शत्रुहै। दनिया में जितने युद्ध हुए, जो भी हानियां हुई हैं ये सामूहिक क्रोध के कारण हुई। क्रोध के लिए बहाने बहुत होते हैं। मैं इसलिए नाराज हो गया क्योंकि ऐसा था मैं उस लिए नाराज हो गया क्योंकि वैसा था। हर क्रोध का कोई न कोई बहाना मनुष्य ढंढ सकता है लेकिन युद्ध जैसी भयंकर चीजें भी इसी क्रोध से ही आती हैं। उसके मूल में क्रोध ही होता है। अगर हृदय में प्रेम हो तो क्रोध नहीं आ सकता और अगर क्रोध का दिखावा भी होगा तो भी वो प्रेम के लिए| किसी दृष्ट राक्षस को जब संहार किया जाता है तो वो भी उस पर प्रेम करने से ही होता है क्योंकि वो इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाए जिससे वो की शक्ति की तरफ नहीं। तो उनमें सन्तुलन नहीं आ पाता और जब लोग सिर्फ बाह्य की ओर बढ़ने लग जाते हैं तो उनकी अन्दर की शक्ति क्षीण होने लग जाती है, और क्षीण होते-होते ऐसे कगार पर पहुंच जाते हैं कि फौरन अहंकार में ही डूबने लगते हैं। सोचते हैं कि देखिये हमने कितना सहज 25 जन्म दिवन पूजा कि तुझे जो कुछ करना है वो कर, जहां जाना है जा। जाना है तूने नर्क में नर्क में जा। तुझे अपने को मिटा लेना है मिटा ले। अपना सर्वनाश करना है वो भी कर ले। जो तुझे करना योग का कार्य किया। हम सहजयोग के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं और फिर ऐसे लोगों का नया जीवन शुरू हो जाता है जो कि सहजयोग के लिए बिल्कुल उपयक्त नहीं। और बो अपने को सोचने लगते हैं कि हम बहुत भारी एक अगुआ हैं और हमारा बहुत महत्व होना चाहिए। जैसे कि जिसे स्व-महत्व कहते हैं। सो हर जगह देखते हैं कि हमारा महत्व होना चाहिए हर चीज़ में वो कोशिश करेंगे कि अपना महत्व दिखाएं, अपनी विशेषता दिखाएं अपने को बहुत बड़ा दोष है कि हम एक सामूहिक, विराट शक्ति हैं। सामने करें लेकिन अन्दर से खोखलापन आता है। उसके बाद हठात देखते हैं कि उनको कोई बिमारी हो गयी, पगला गये वो। कुछ बड़ी भारी आफत आ गयी तो फिर कहते हैं जाए जो अपना-अपना समूह बना लें तो जैसे कैंसर के जहर कि माँ हमने तो आपको पूरी तरह समर्पित किया हुआ है तो फिर ये कैसे हो गया, ये हमने कैसे पाया, ये गड़बड़े कैसे हो गयी। इसकी जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है कि आप बहकते चले गये। फिर ऐसे आदमी एक तरफा ही जाते हैं को सब नदियों को अपने अन्दर समाता है और बगैर समुद्र वो दूसरों से सम्बन्ध नहीं कर पाते। उनका सम्बन्ध इतना ही होता है कि हम किस तरह से रौब झाड़ें लोगों पर और किस तरह से दिखाएं कि हम कितने ऊँचे इन्सान हैं। और वो दिखाने में ही उनको महत्व लगता है। सबसे आगे उनको आना चाहिए। सबमें उनका महत्व होना चाहिए। अगर किसी ने उनका थोड़ा महत्व नहीं किया तो गलती हो गयी। यहां तक हो जाएगा कि उसमें ये भूल ही जाएंगे कि माँ का भी कुछ करने का है। माँ के लिए भी कुछ दान देना है। इसी प्रकार मैं देखती हूँ कि राहोरी जैसी जगह, बम्बई में हर जगह इस तरह के कुछ लोग एक दम से उभर कर ऊपर आ गये और वो अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे फिर वहां न तो आरती होती थी और नसीब हमारा, वहाँ फोटो तो रहता था लेकिन फोटो पोछने की भी किसी का मंड़ते नहीं क्योंकि वो जानते हैं कि ये समुद्र है। इस समुद्र क इच्छा नहीं थी। नसीब अपने कि फोटो अपना नहीं लगाया। अपना ही महत्व, अपनी ही डींग मारना और वो डींग मार-मार के अपने को बहुत ऊँचा समझने लगे दसरों से। अलग किसी से कुछ पछना नहीं। कुछ नहीं हम ही करेंगे। फिर झगड़े शुरू हो गयें। झगड़े शुरू होने पर ग्रुप बन गये। क्योंकि जिस सूत्र और उसी सूत्र में अगर आप बंधे रहे और पूरे समय ये जानते रहे कि हम एक ही माँ के बच्चे हैं, न हममें कोई ऊँचा है न कोई नीचा, न ही हम कोई कार्य को करते हैं। ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है हम कुछ करते ही नहीं है। ये भावना ही जब छूट गयी और ये कि हम इतने बड़े हैं हम ने ये किया हम ये करेंगे वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है लैं है वो त कर। वो फिर आपको रोकेगा नहीं क्योंकि आपकी स्वतन्त्रता बो मानता है। आप न्क में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है और स्वर्ग में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है। पर सहजयोग में एक और बड़ा दोष है। एक हम अकेले अकेले नहीं है। सब एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग है। उसमें अगर एक इन्सान ऐसा हो जाए या दो चार ऐसे हो का एक कीटाण ही बढ़ने लग जाता है वैसे ही एक आदमी बढ़कर के और सारे सहज योग को ग्रस्त कर सकता है। और हमारी सारी मेहनत व्यर्थ जा सकती है। हमको तो चाहिए कि समुद्र से सीखें कि जो सबसे नीचे रहकर के ही सब चीज के तो ये सृष्टि चल नहीं सकती। अपने को तपा कर के बाष्प बेना कर के दुनियां में बरसात की सौगात भेजता है। उसकी जो नम्रता है, वही उसकी गहराई का लक्षण है और उस नम्रता में कोई ऊपरी नम्रता नहीं की नमस्ते भाई साहब। नमस्ते कुछ नहीं सबसे नीचे, सबको ग्रहण करके सबको अपने अन्दर लेकर सबको शुद्ध करके और फिर भाप बना कर बरेसात करना। और फिर बही बरसात नदियों में पड़कर दौड़ती हुई समुद्र की ओर दौड़ेगी और इस समुद्र की पहचान, अगर आप किसी समद्र के किनारे गए हों, तो देखिए कि वहां जितने भी नारियल के पेड़ हैं वो सब समुद्र की ओर ही झुके हुए हैं। इतनी जोर की आंधी चलती हैं. भी हो जाए लेकिन वो कभी भी समुद्र से दूसरी ओर कुछ समान ही अपना हृदय विशाल तब होगा जब हमारे अन्दर अत्यन्त नम्रता और प्रेम आ जाएएगा। लेकिन अपना ही महत्व करना, अपने को ही विशेष समझना। ये जो चीज है इसमें सबसे बड़ी खराबी यह है कि परम चैतन्य आपको काट देगा। तुमको तुम्हारा महत्व है तुम जाओ। और फिर में आप बंधे हुए हैं वो आपके माँ का सूत्र है जैसे कोई नाखन काट कर फैंक देता है इस तरह से आप एक तरफ फिक जाएंगे। जो मेरे लिए तो बड़ी दुख दायी बात होगी। और दो चार लोग और ऐसे निकल आए जो सोचे कि हम बहुत काम करते हैं, हमने ये कार्य किया हमने वो कार्य किया, उनको फौरन ठंडा हो जाना चाहिए। पीछे हटकर देखना चाहिए कि हम ध्यान करते हैं? हमारा ध्यान लगता है? हम कितने गहरे हैं? और फिर हम किसको प्यार करते 26 जन्म दिवस पुजा काम ही नहीं करेगी। किसी काम की नहीं रह जाएगी। फिर आप कहेंगे कि माँ मैं तो इतनी पूजा करता हूँ इतने मन्त्र हैं? किस-२ को प्यार करते हैं? कितनो को प्यार करते हैं? कितनों से दश्मनी लेते हैं। सहज योग में कुछ लोग बड़े गहरे बैठ गये हैं, बहुत गहरे आ गये हैं इसमें कोई शंका बोलता हूँ। मैं तो इतना कार्य करता हूँ। फिर मेरा हाल ऐसा नहीं। और बहुत से अभी भी किनारे पर डोल रहे हैं। और क्यों है। क्योंकि आप विचलित हैं। फिर वो कब फिंक जाएंगे कह नहीं सकते क्योंकि मैंने आपसे पहले ही बताया है कि १९९० साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। और एक छलांग आपको मारनी होगी जो आप इस स्थिति से निकल कर उस नयी चीज को शक्ति से। सो दोनों ही चीज की तरफ आपको ध्यान देना पकड़ लेंगे। जैसे कि चक्का है जब घूमता है तो एक बिन्दु है। कि हम अपनी शक्ति को भी संभालें और सामूहिकता में पर आकर आगे सरक जाता है इसी प्रकार सहज योग की प्रगति भी सामूहिक होने वाली है और इसमें टिकने के लिएलेकिन बाह्य में आप बहुत पहली चीज हमारे अन्दर पावित्र्य होना चाहिए जो नम्रता से देखे हैं जो सहज योग के लिए बहुत कार्य करते हैं और काफी भरा हो। वैसे तो आपने दुनिया में बहुत से लोग देखे हैं जो अपने को बड़ा पवित्र समझते हैं। सुबह शाम सन्धया करते हैं और किसी को छुने नहीं देते। ये खाना नहीं खाएंगे, वो तो लोग हमारे टेप छोड़कर उन्हीं की टेप सुनते थे। और आएगा तो कहेंगे कि तुम दूर बैठो, उनको छ लिया तो उनकी हालत खराब। ये पागलपन है अगर आप एकदम स्वच्छ हैं, पवित्र हैं तो आपको किसी को छने में बात करने में,अपवित्रता आनी ही नहीं चाहिए क्योंकि आपका स्वभाव ही शुद्ध करने का हैं आप हर चीज को ही शुद्ध करते हैं तो आप जिससे मिलेंगे आप उसी को शुद्ध करते जाएंगे। उसमें इरने की कौन सी बात है? उसमें किसी को ताड़ने की कौन सी बात है? उसमें काना फंसी करने की कौन सी बात है? तो ये तो लक्षण एक ही है कि आपकी स्वयं की पवित्रता कम है। अगर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है तो उस पवित्रता में भी है। लोग मुझे कहते हैं कि माँ बो तो बड़े अगुआ थे। ये थे। शक्ति और तप है और वो इतना शक्तिशाली है कि वो कोई हाँ थे तो सही लेकिन वे गये कहां सहज योग से। क्या करें। सी अपवित्रता को भी खींच सकता है। जैसे मैंने कहा कि हर तरह की चीज समुद्र में एकाकार हो जाती है। अब दूसरे क्यों निकल गए। क्योंकि सन्तुलन नहीं और जब सन्तुलन लोग है जो सिर्फ अपनी ही प्रगति को सोचते वो ये सोचते नहीं रहता है तो आदमी या तो बायें में चला जाएगा या दायें हैं कि हमें दूसरे से क्या मतलब? हम अपने कमरे में बैठ कर माँ की पूजा करते हैं, उनकी आरती करते हैं, उनको मानते हैं और चाहते हैं कि हमारी उन्नति हो जाए। हमें दुनिया से कोई मतलब नहीं और दूसरों से कटे रहते हैं। ऐसे लोग भी बढ़ नहीं सकते क्योंकि आप एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए कि एक अंग्ली ने अपने को बांध लिया और कहेगी कि मझे किसी और से कोई मतलब नहीं अलग से रहूँगी। ये तो अंगुली मर जाएगी। क्योंकि इसमें रक्त कहाँ से में बहुत से लोग कम हो गए हैं। मैं क्या करू? और अगर आएगा? इसमें नस कैसे चलेगी? इसमें चेतना का संचार कैसे होगा? ये तो कटी हुई रहेगी। आप एक बार इसे बाँध कर देखिए और पाँच दिन बाँधे रखिये। आप पाएंगे कि अंगुली आप हट गए हैं, उस सामूहिक शक्ति से आप हट गए हैं। सहज योग सामूहिक शक्ति है। इस सामूहिकता से जहाँ आप हट गए वहीं पर आप अलग हो गए उस सामूहिक रचते जाएं। तभी आपके अन्दर पुरा सन्तुलन आ जाएगा। कार्य करते हैं । मैंने ऐसे लोग अच्छे भाषण देते थे। उनके भाषणों की उन्होंने फिर टेप बना ली। फिर लोगों से कहने लगे कि आप हमारे टेप सुनो। उनका यह हाल था कि जैसे दिन हम यहाँ बैठे हैं हमारे फोटों को तो नमस्कार करते थे हमें नहीं करेंगे। क्योंकि उनको फोटो की आदत पड़ी हुई है। हमसे उन्हें कोई मतलब नहीं। उन्हें फोटो से मतलब है। ऐसे-२ विक्षिप्त लोग हमने देखे हैं। फिर उन्होंने अपने फोटो छपवाए और फोटो सबको दिखा रहे हैं कि हम वैसे हैं, कैसे हैं। इस तरह वे अनेक तरीकों से अपने ही महत्व को बढ़ाते हैं। करते-२ ऐसे खड़्ड में गिर गए। अनायास उनके समझ में नहीं आया और एकदम पता हुआ कि सहज योग से छूट गये कहीं भी नहीं एकदम काफूर हो गए। कहाँ? पता ही नहीं। तो ऐसे लोग हैं। में चला जाएगा। और जैसा मैंने कहा कि दो तरह की शक्तियां हमारे अन्दर हैं जिससे हम सहज योग की ओर खिचते भी हैं और फैंक भी दिए जाते हैं। एक रस्सी में अगर आप पत्थर बांध कर घुमाएं तो पत्थर घुमता रहेगा। जब तक रस्सी से बंधा है। जैसे ही रस्सी से छुट जाएगा, दूर फैंका जाएगा। इसी प्रकार बहुत से लोग सहज योग से निकल गए। और फिर लोग कहते हैं देखिए माँ सहज योग कम हो गए हैं तो उसमें सहज योग का कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसमें उनका ही नुकसान हुआ है। सहज योग का बिल्कुल भी नुकसान नहीं हुआ है। क्योंकि जिसको नुकसान 27 जन्म दिवस पूजा हमें सहज होना चाहिए। उसके बारे में सोचते भी नहीं। थक गए या आराम भी नहीं किया, कुछ भी नहीं यही मुहर्त है जैसे एक योद्धा अगर लड़ाई में गया है और देखा कि दश्मन खड़ा है, यही समय उसको मारने का है, उसी वक्त उसे मारना चाहिए। उसी प्रकार यही समय है जब हमें यह पूजा करनी चाहिए। तो हम बैठे हैं और आपको भी यही सोचना चाहिए कि यही समय माँ ने बांधा है। यही समय या फायदे से कोई मतलब ही नहीं, ऐसी जो चीज है उसका क्या नुकसान हो सकता है? हाँ अगर आपको अपना फायदा करा लेना है तो आप इस चीज को जान लीजिए की सहज योग को आपकी जरूरत नहीं है आपको सहजयोग की जरूरत है। सो ये योग का दूसरा अर्थ होता है युक्ति एक तो है कि सम्बन्ध जुड़ जाना, दूसरा है युक्ति। ये यक्ति समझ लेनी चाहिए। ये युक्ति क्या है? इसमें तीन तरह से समझाया जा हमारे लिए उचित है, दूसरा नहीं। इसी वक्त पुजा करनी सकता है। पहली तो ये है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना चाहिए, ज्ञान का मतलब बुद्धि से नहीं । किन्तु हमें अंग्लियों में हाथ में अन्दर कण्डिलिनी का पूरी तरह जागरण होना ये ज्ञान है और जब ये ज्ञान हो जाता है तब और भी ज्ञान होने नहीं हुई क्योंकि मेरा जो सोच विचार है आपके सोच विचार लग जाता है। बहुत सी बातें जो आप नही समझ पाते थे वह आप समझ पा रहे हैं। और आप समझने लग जाते हैं कि के लिए भी मैं सोचती हूँ। कभी-२ माँ ये आदमी इतना कौन सत्य है कौन असत्य। इस ज्ञान के द्वारा आप लोगों की कुडिलिनी भी जागृत कर सकते हैं और उनको समझा सकते हैं। उनसे आप पूरी तरह से एकाग्र हो सकते हैं। उनके साथ आप वार्तालाप कर सकते हैं इस ज्ञान के कारण। तो आपको ही देखना चाहिए जो मैं देखती हैं। वैसी तो बात नहीं, ये तो बौद्धिक ज्ञान भी आ जाता है। आप सहज योग समझते हैं। कोई समझता था पहले एक ही डोर उडाऊ रे पहले नानक की कोई बात समझता था? या ज्ञानेश्वर की कोई बात समझता था पहले? कोई रहस्यमय चीज या गोपनीय बात कह रहे हैं ऐसे समझ कर लोग रख देते थे। लेकिन सहज योग के बाद आप सब समझने लगे। तो आपका बुद्धिध चातुर्य भी बढ़ गया। उसकी भी चतुरता आ गयी। आप उसको समझने लग गए। ये तोबात ठीक है कि आप उसे समझने लग गए। और ऐसी बातें जो अगम्य थी गम्य हो गईं और सब बातों को आप जानने लग गए। सो तो एक यक्ति हो गयी कि नहीं हुई ये अन्य हुई। तो आपका सोच विचार और कार्य आपने अपना ज्ञान बढ़ा लिया। अब दूसरी युक्ति क्या हैं वो है जो कि आप हमारे प्रति भक्ति करे। उस भक्ति को भी जब आप करते हैं तब आपको अनन्य भक्ति करनी चाहिए आप हमसे तदाकारिता कोई दूसरी चीज आती है तब मैं सोचती हूं कि इन्होंने किसी प्राप्त करें। जैसे हम सोचते हैं वैसा ही आप सोचने लग जाएं। आज देर हो गयी समझ लीजिए तो हम कह सकते थे कि आज बहुत देर हो गयी थी हम थक गए हैं। लेकिन हमने आपको बताई कि आप अपने अन्दर एक अनन्य भक्ति ये सोचा कि नवरात्रि है रात में ही करना है और यही मूहर्त रखें। माँ हम आपकी शरणागत हैं और जब शरणागत है तो हमें मिलना था यही मुहूर्त है इसी वक्त ये पूजा होनी चाहिए। और ये होना ही चाहिए, होना ही है और बड़े आनन्द से हम कर रहे हैं। क्योंकि शुभ महर्त यही है। और चाहिए। लेकिन जो आधे अधूरे लोग हैं वो सोचते हैं कि हम सवेरे से आकर बैठे हैं, हमने ये किया, हमें भूख लग गयी खाना नहीं खाया, बच्चे रो रहे होंगे। तो बो अनन्य भक्ति में नहीं आया। मैं जैसे सोचती हैँ वैसा वो नहीं सोचते। किसी खराब है मैं कहती हूँ कि नहीं बिल्कुल अच्छा है, बढ़िया आदमी है। कैसे कहा आपने? सोचती हैं कि जो मैं देख रही हूँ ये क्यों नहीं देखते? अगर ये वैसे ही हो जाते हैं तो इन्हें वो कुछ और ही देख रहे हैं। तो अनन्य नहीं हुए, अन्य हो गए। उसी प्रकार हमारा प्यार आपके प्रति है। और एक ही चीज से हम तूप्त होते हैं कि आप सबके प्रति एक जैसा प्यार रखें। अगर वो बात आपके अन्दर नहीं है तो फिर लगता है अन्य है अनन्य नहीं। अगर हमारे ही शरीर के ये अंग प्रत्यंग हैं तो जो हम हैं वैसे ही इनको होना चाहिए, जैसे हम सोचते हैं वैसा ही उनको सोचना चाहिए, जैसा हम करते हैं वैसा ही उनको करना चाहिए। तो ये दूसरा क्यों करते हैं? ये उल्टी बात क्यों सोचते हैं? इनके दिमाग में ये सब अजीब-अजीब बातें कहां से आती हैं? सो अनन्य भक्ति ईड़ा, पिगला, सुखमन नाड़ी रे, - और आपका प्रेम वैसा ही होना चाहिए जैसा आप मुझसे प्रेम करते हैं। यही अगर प्रेम का स्रोत है तो जो कएं में है वही घट में आना चाहिए। दूसरे चीज कैसे आ सकती है और जब दूसरे घट कुएं से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं है। अब तीसरी बात जो युक्ति है कि जब मैंने दूसरी बात जब हम कोई बात कह भी दें, या हम आपको कोई चीज समझा दें या कोई आपके सामने प्रस्ताब रखें, कुछ रखें तो उसका मना करने का सवाल ही कैसे उठेगा? अगर आप 28 आपके अन्दर अहम् भाव था आप अकेले एक व्यक्ति थे, एक व्यष्टि में थे, अब आप समष्टि में, सामूहिकता में आ और हम एक हो गए तो उसका सवाल ही कैसे उठना चाहिए माँ ने कह दिया तो ठीक है। हम तो माँ ही हो गए हैं। तो हम नहीं कैसे कर दें। जैसे कि मेरी आँख आपको देख रही है तो मेरी आँख जाने की आप लोग बैठे हैं सामने क्योंकि मेरी आँख मेरी अपनी है। तो मैं जो जान रही हूं उसमें और मेरी आंख के जानने में कोई भी अन्तर नहीं। एक ही चीज है। जो मैं बुद्धि से जान रही हैं वही मैं अपनी आँख से भी जान रही हूैँ। तब फिर आपमें तदाकारिता नहीं आती सो ये दूसरी युक्ति है कि माँ मेरे हृदय में आप आओ मेरे दिमाग, विचार जीवन के हर कण में आप आओ। आप जहाँ भी कहोगे हम हाजिर हैं, हाथ जोड़कर। पर आपको कहना तो पड़ेगा न, और पुर्ण हृदय से कहना होगा। किसी मतलब से अगर आप मुझसे सम्बन्ध जोड़ें तो भी वो ठीक नहीं। लेकिन अगर सम्बन्ध जड़ गया तो सारे मतलब अपने आप ही पूरे हो जाएंगे। आपको कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। अपने आप ही जब आपके सारे मतलब पूरे हो गए तो आपका चित्त उसी में लग जाएगा। अब तीसरी जो बात है कि हम ये काम कर रहे हैं। हमने सहज योग का ये काम किया, हमने ये सजावट की, ये ठीक ठाक किया मैंने किया तो सहज योगी आप नहीं है। सहजयोग में आपके सारे कर्म अकर्म हो जाने चाहिए। मैं कुछ कर रहा हूँ मैंने ये कविता लिखी. मैंने ये किया। ये जहाँ तक बारीक, सूक्ष्म में देखते जाए कि मैं सच में ऐसा सोचता हूँ क्या मैं ऐसा सोचती हूँ गए है। तब आप कुछ भी नहीं कर रहे आप अंग प्रत्यंग है और वह कार्य हो रहा है। ये तीसरी युक्ति है इसे समझें। मैं इसलिए यह युक्तियां बता रही हूँ कि अब छलांगे जो लगानी है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करते रहें । और अपनी ओर नजर रखें। इस बक्त सबसे भलाई इसमें है कि हम अपनी ओर नजर करें और अपनी ओर देखें कि क्या मैं ये सोचता हूँ कि वो मुझसे काफी श्रेष्ठ है और मुझे उनसे कुछ सीखना चाहिए। उसके कुछ अच्छे गण मुझे दिखाई देते हैं कि बुरे गुण ही मुझे दिखाई देते हैं? दूसरों के अगर अच्छे गण दिखाई दें और अपने बुरे गुण तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि दसरों के तो दुर्गण आप हटा नहीं सकते। तो दसरों ने क्या किया? दूसरे ऐसे हैं ऐसे सोचने वाले पुरी तरह योग में उतरे नहीं है। मेरे में क्या ऋटि है? यह देखने से ही आप ठीक हो सकते हैं। दूसरों को कहें कि तुम्हें अपना दोष ऐसा ठीक करना चाहिए और वहां के प्रधान मंत्री को जाकर कुछ अक्ल सिखाएं तो वो हमें बन्दी कर लेंगे क्योंकि हमारे देश में तो हम कह सकते हैं क्योंकि ये हमारा देश है। इसी प्रकार हमें जानना चाहिए। इस युक्ति को समझ लेना चाहिए कि इसमें जो हम डावां डोल हैं वो हम अपनी ही वजह से हैं। सहज योग तो एक ब्रहुत बड़ी चीज़ है, बड़ी अभिन्न चीज है। लेकिन इसका जो हम पूरी तरह मजा नहीं ले पा रहे इसका मतलब हममें कोई खराबी है। और इस सबको इस यक्ति को अगर आपमें सीख लिया तो मिलेगा क्या? सिर्फ आनन्द, निरानन्द। और कुछ नहीं। और फिर चाहिए क्या आपकी शक्ल ही बदल जाएगी। आप आनन्द में ही बहने लग जाएंगे। हमारे जन्म दिवस पर मैें चाहूँगी कि आज आपका भी जन्म दिवस मनाया जाए। कि आज से हम इस यक्ति को समझें और अपने को इस पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश| और पवित्रता से ही मनुष्य में सुबुद्धि आती है। क्योंकि पवित्रता प्रेम ही का नाम है। उसी से, सुबद्धि का मतलब भी प्रेम ही है। सब चीज का मतलब प्रेम है। और अगर आप सुबद्धि को प्राप्त नहीं कर सकते, अगर आप प्रेम को अपना नहीं सकते तो सहज योग में आने से आपका समय बर्बाद हो रहा है। इस बक्त ऐसा कुछ समां बंध रहा है कि सबको इसमें एकदम से एकाकार हो जाना चाहिए। अपने को परिवर्तन में डालना है, परिंबर्तित हमे होना ही है। हममें खराबियां हैं, हमें अपने को पवित्र बना देना है ये आप अपने साथ कितना प्रेम कर रहे हैं। आपका बच्चा जरा 1 क्या इसका मतलब कि मेरा योग परा नहीं पुरा हो जाता है तो फिर आप ऐसा नहीं सोचते। सोच ही नहीं सकते। अर्कमय हो जाते हैं आप। ये हो रहा है वो हो रहा है, ये घटित हो रहा है। वो सब हो रहा है ऐसा बोलने लग जाते हैं और तब कहना चाहिए कि पूरी तरह से तदाकारिता आ गयी। अब मेरा हाथ है वो कछ कार्य कर रहा है, वो थोड़े ही कहता है कि मैं कर रहा हूँ उसको तो पता भी नहीं वो कर रहा है। वो तो हो ही रहा है। उसकी जितनी भी गति है। सो हम ही तो कर रहे हैं तो समझ लें कि ये हाथ कट गया, इससे जुड़ा नहीं। अगर जुड़ा है तो उसे कभी लगेगा नहीं कि मैं कर रहा हूँ, पकड़ रहा हूं कभी भी नहीं लगता। और जब आप ऐसा सोचते हैं मैं कर रहा हूं तभी चैतन्य कहता है 'तु कर और तब सबसे ज्यादा गड़बड़ी शुरू होती है। ये तीसरी युक्ति है उस युक्ति को सीखना चाहिए कि क्या मैं कुछ कर रहा हूँ? एक क्षण विचार करें कि मैं कर रहा हूँ? मैं क्या कर रहा हूँ? जब तक आप प्रकाश ढूंढ रहे थे तब तक आप कुछ कर रहे थे क्योंकि हुआ। जब योग 1. 29 जन्म दिवम पजा heahe सा गन्दा हो जाता है तो आप दौड़ कर उसे साफ कर देते हैं। क्योंकि आपको उससे प्रेम हैं। उसी प्रकार जब आपको अपने से प्रेम हो जाएगा तो आप भी अपने को परिवर्तन की ओर लगाएंगे कि मेरा परिवर्तन कहां तक है। मेरे अन्दर अब भी यही खराबी रह गयी अब भी मैं ऐसा हूँ। और इस परिवर्तन के फलस्वरूप जो आशीवाद हैं. उस जीवन का वर्णन नहीं किया जा सकता। जो कबीर ने कहा कि अब मस्त हुए फिर क्या बोलें। तो आप सब उस मस्ती में आ जाइये उस मस्ती को प्राप्त करें और उस आनन्द में आप आनन्दित हो जाएं। ये हमारा आश्शिवाद है। 30 हमारे जीवन का लक्ष्य नवरात्रि पूजा- पुणे 16.10.88 आज हम लोग यहाँ शक्ति की पूजा करने के लिए भविष्य है वो उसे प्राप्त हो सकता है। उस को मिल सकता एकत्रित हुए हैं। अभी तक अनेक संत साधुओं ने ऋषि है पर उसकी पहली सीढ़ी है आत्मसाक्षात्कार। जैसे कि कोई दीप जलाना होतो सबसे पहले है कि उस के अन्दर और जो शक्ति का वर्णन वह अपने गद्य में नहीं कर पाये ज्योती आनी पड़ती है। उसी प्रकार एक बार आपके अन्दर उसे उन्होंने पद्य में किया। और उस पर भी इसके बहुत से ज्योति जागृत हो गई तो आप उस को फिर से प्रज्जवलित अर्थ भी जाने। लेकिन एक बात शायद हम लोग नहीं जानते कर सकते हैं या उस को आप बढ़ा सकते हैं। पर प्रथम कार्य कि हर मनुष्य के अन्दर ये सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में हैं। है कि ज्योति प्रज्जवलित हो। और उस के लिए आत्मसाक्षात्कार नितांत आवश्यक है। किन्तु आत्म- सकता है। ये सुप्तावस्था की जो शक्तियाँ हैं उनका कोई साक्षात्कार पाते ही सारी ही शक्तियाँ जागृत नहीं हो मुनियों ने शक्ति के बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया। और ये सारी शक्तियाँ मनुष्य अपने अन्दर जागृत कर सकती। इसी लिए ये साधु संतों ने और ऋषि मनियों ने अन्त नहीं, न ही उन का कोई अनुमान कोई दे सकता है क्योंकि ऐसे ही पैंतीस कोटी तो देवता आपके अन्दर विराजमान हैं। उस के अलावा न जाने कितनी शक्तियाँ उनको चला रही हैं। लेकिन इतना हम लोग समझ सकते है। कि जो हमने आज आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया है तो उसमें जरूर कोई न कोई शक्तियों का कार्य हुआ। उस कार्य के बगैर आप आत्मसाक्षात्कार को नहीं प्राप्त कर सकते। ये आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करते वक्त हम लोग सोचते हैं सहज में हो गया। व्यवस्था की है कि आप देवी की उपासना करे। लेकिन जो आदमी आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं है, उस को अधिकार नहीं है कि वो देवी की पूजा करे। बहुत से लोगों ने मुझे बताया कि वो सप्तशति का कभी गर पाठ करे और उनका हवन करते हैं तो उनपे बड़ी आफते आ जाती हैं और उन को बड़ी तकलीफ हो जाती है और वो बहुत कष्ट उठाते हैं। तो उनसे ये पछना चाहिए कि आपने किस से करवाया ? तो कहेंगे कि हमने सात ब्राह्मणों को बुलाया था । पर वो ब्राह्मण नहीं। जिन्होंने ब्रह्मा को जाना नहीं वो नहीं और ऐसे ब्राह्मणों से कराने से ही देवी रूष्ट हो गई सदम] बाह्मण सहज के दो अर्थ हैं। एक तो सहज का अर्थ ये भी है कि आसानी से हो गया, सरलता से हो गया और दसरा अर्थ ये होता है कि जिस तरह से एक जीवन्त क्रिया अपने आप हो जाती है उसी प्रकार आपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया। लेकिन ये जीवन्त क्रिया जो है इसके बारे में अगर आप सोचने लग जाए तो आप की बुद्धि कण्ठित हो जाएगी। समझ लीजिए ये आपने एक पेड़ देखा। इस पेड की ओर आप नजर करिए तो आप ये सोचेंगे कि भई ये फलाना पेड़ है। लेकिन इस पेड़ को इसी रूप में, ऐसा ही, इतना ही ऊंचाई पर लाने वाली कौन सी शक्तियाँ हैं? किस शक्ति ने इस को यहाँ पर इस तरह से बनाया है कि जो वो अपनी सीमा में रहकर के और अपने स्वरूप, रूप, उसी के साथ चढ़ता है। फिर सबसे जो कमाल की चीज है वो मानव, मनुष्य जो बनाया गया है वो भी एक विशेष रूप से, एक विशेष विचार, से बनाया गया है। और वो और आपको तकलीफ हुई। तो आपके अन्दर एक बड़ा अधिकार है कि आप देवी की पूजा कर सकते हैं और साक्षात में भी पूजा कर सकते हैं। ये अधिकार सबको नहीं है। अगर कोई कोशिश करे तो उसका उल्टा परिणाम हो सकता है। सबसे बड़ी चीज है कि शक्ति जो है वो जितनी ही आपको आरामदेही है, जितनी वो आपके सूजन की व्यवस्था करती है, जितनी वो आपके प्रति उदार और प्रेममयी है, उतनी ही वो क्रूर और क्रोधमयी है। कोई बीच का मामला नहीं है या तो अति उदार है और या तो अति क्रोधित है। बीच में कोई मामला चलता नहीं। वजह यह है कि जो लोग महा दष्ट हैं, राक्षस है और जो संसार को नष्ट करने पे आमादा है, जो लोगों को भुलभुलैया में लगाये हुए हैं और कलियुग में अपने को अलग-अलग बता कर के कोई साधु बना है तो कोई मनुष्य का जो हमारे जीवन का लक्ष्य 31 किस तरह से खत्म कर दं, इसमें मैं क्या इलाज कर लं? और इस तरह से आप षड़यन्त्र बनाते रहेंगे तब तक, आप सच्ची मानिए कि उसका असर आप पे होगा उस पर नहीं। पंडित बना हुआ है, कोई मन्दिरों में बैठा है तो कोई मस्जिदों में बैठा है, कोई मूल्ला बना हुआ है, कोई पोप बना हुआ है तो कहीं कोई पोलिटिशियन बना हुआ है, ऐसे अनेक-अनेक कपड़े परिधान कर के जो अपने को छिपा रहा है। जो कि राक्षसी वृत्ति का मनुष्य है उसका नाश होना आवश्यक है। लेकिन ये जो नाश की शक्तियाँ हैं इसकी तरफ आपको नहीं जाना चाहिए। आप सिर्फ इच्छा मात्र करे और ये शक्तियाँ अपने ही आप कार्य कर लेगी। तो सारे संसार में जो ये चैतन्य बह रहा है ये उसी महा माया की शक्ति है। और इस भहामाया की शक्ति से ही सारे कार्य होते हैं और ये शक्ति रामदास स्वामी ने कहा है कि 'अल्प धारिष्ट पाये' माने आप का थोड़ा सा जो धीरज है उसको परमात्मा देखता हैलेकिन आप के अन्दर इतनी ज्यादा शक्तियाँ हैं, इतनी ज्यादा शक्तियाँ हैं कि उनको पहले आप परी तरह से प्रफुल्लित करना चाहिए। अपने प्रति एक तरह का बड़ा आदर रखना चाहिए उनको जानना चाहिए। अपने प्रति एक तरह को बड़ा आदर रखना चाहिए। अब ये शक्तियाँ नष्ट होती हैं)सहजयोगियों में भी जागती है फिर नष्ट हो जाती हैं जागती हैं फिर नष्ट हो जाती है। उस की क्या बजह है? एक बार जगी हुई शक्ति क्यों नष्ट होती है? जैसे कि एक मनुष्य में आज शक्ति है कि वो बड़ी भारी कला में निपूण हो गया। सहजयोग में अपने से बहुत लोग कला में निपुण हो गये, कला के बारे में जान गये, उनमें एक तरह की बड़ी चेतना आ गई, उनका सृजन बहुत बढ़ गया। लोग देख के कहते हैं कि वह एक कलाकार ऐसा है कि समझ में ही नहीं आता। पर फिर वो उसी कला में उलझ जाता है। फिर उस की शोहरत हो गई, नाम हो गया, उसी में उलझता जाता है। व्यवस्थित रूप से लाती है जिसे कहते हैं आयोजित कर लेती है। और सबसे बड़ी चीज है कि ये आप पर प्रेम करती है। और इस का प्रेम निर्वाज्य है। इस प्रेम में कोई भी मांग नहीं सिर्फ देने की इच्छा है। आपको पनपाने की इच्छा है, आपको बढ़ाने की इच्छा है। आपकी भलाई की इच्छा है लेकिन इसी के साथ साथ जो चीजें कांटे बन कर के आपके मार्ग में रूकावट डालेंगे, आपके घर्म में खलल डालेंगे, या किसी भी तरह से आप को तंग करेंगे ऐसे लोगों का नाश करना अत्यावश्यक है। लेकिन उस के लिए आप अपनी शक्ति न लगाएं। आप को सिर्फ चाहिए कि आप उस शक्ति के लिए सिर्फ आहवान करे देवी का और उनसे जब वो उलझ जाता है इस चीज में तब फिर उस की शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। क्योंकि उस की शक्तियाँ भी उस में उलझ जाती हैं। जैसे कि मैंने पहले भी बताया था कि किसी पेड़ के अन्दर बहता हुआ उसका जो प्राण रस है वो हर चीज में, हर पत्ते में, हर डाली पर, हर फूल में, हर शै में घम घाम कर के वापस लौट जाता है। उसी प्रकार जो भी आप के अन्दर शक्तियाँ आज प्रवाहित हैं और जिन शक्तियों के कारण आप आज कार्यान्वित हैं वो सारी ही चीजें, आप को जानना चाहिए, कि इस शक्ति का ही प्रादर्भाव है और उस में आप को नहीं। आप उस में एक निमित्त मात्र, बीच में हैं। जब आप यह समझ जाएंगे कि हम निमित्तु मात्र हैं तो यह आपकी शक्तियाँ कभी भी दर्बल.नहीं होंगी और कभी भी नष्ट नहीं होंगी। उसी प्रकार अनेक बार मैंने देखा है कि सहजयोगियों का चितु जो है बो ऐसी चीजों में उलझते जाता है। किसी चीज से भी बो बड़प्पन में आ गए किसी भी चीज से उन्होंने बहुत प्रगति पा ली। आप जानते हैं कि बहुत से विद्यार्थी जो कि कक्षा में कुछ नहीं कर पाते थे प्रथम दर्जे में आने लग कहिए कि ये जो अमानुष लोग हैं इनका आप नाश कर दीजिए। ये तो पहली चीज हो गई। सो आप को छुट्टी मिल गई कि आप कोई भी आप पर अगर अत्याचार करें, कोई भी आप से बुराई से बोले, कोई आप को सताये तो आप में एक और निर्विचार हो जायें। तो सारी चीज को देखना शुरू कर दें। एक नाटक के रूप में। जैसे अजीब पागल आदमी है मेरे पीछे पड़ा हुआ है इसको क्या करने का है। उसका पागलपन देखिए उसका मनस्ताप देखिए उसकी तकलीफें देखिए और आप उस पर हँसिए कि अजीब बेवकफ है। उस के लिए आप को कोई तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं उस के लिए सिर्फ आप को आपका जो किला है वो निर्विचारिता उसमें जाना चाहिए। और निर्विचारिता में जाते ही आपकी जो कुछ भी संजोने वाली शक्तियाँ हैं, आनंद देने वाली शक्तियाँ हैं, प्रेम देने वाली शक्तियाँ हैं, वो सब की सब समेट कर के आपके अन्दर आ जाएगी। लोकन जब तक आप इन चीजों में उलझे रहेंगे और जब तक आप ये सोचते रहेंगे कि मैं कैसे इसका सर्वनाश कर दूं, इसको में विशेष रूप से एक स्थिति है जिसमें आप आप साक्षी रूप से उलझने की कोई जरूरत गए। सब कुछ बहुत अच्छा हो गया। तो फिर वो कभी सोचने लग जाए वाह हम तो कितने बड़े हो गए। जैसे ही ये हमारे जीवन का लक्ष्य कु 32 सोचना शुरू हो गया बैसे ही ये शक्तियाँ आपकी खत्म हो लोग ऐसे भी होते हैं जो छोटी छोटी बातों पर ही अपने को जाएंगी और गिरती जाएंगी। अब सोचना यह है कि हमें दुखी मानते हैं, बहुत छोटी बातों पर, जैसे आप सब को बैग क्या करना है? जैसा समझ लिजिए किसी आदमी का मिला मुझ एकदम बिजनैस बढ़ गया या उस को खूब रूपया मिलने बड़े अजीब अजीब अनुभव आये कि लोग आये कहने लग गया या उस के पास कोई विशेष चीज आ गई तो उसे लगे कि माता जी हमको इस चीज का डिब्बा दै दो। मैंने क्या करना चाहिए? उसे हर समय सतर्क रहना चाहिए और कहा भई ये भी कोई तरीका हुआ? दूसरे ने कहा कि आपने यही कहना चाहिए कि माँ ये आप ही कर रहे हैं। हम कुछ मुझे इतना दिया लेकिन उस को नहीं दिया। ये कोई बात नहीं कर रहे हैं। ये आप ही की शक्ति कार्यान्वित है। हम हुई? उस मौज में और आनन्द में ये सब सोचने की बात ही कुछ नहीं कर रहे हैं। बहुत जरूरी है कि आप सतर्क रहें नहीं है। छोटी छोटी बात में वो दुखी हो जाते हैं। फिर ऐसी क्योंकि उस के बाद जब आपकी शक्तियाँ खत्म हो जाएगी जिस को बहुत बड़ी बात समझते हैं कि किसी की समझ तो आप खुद ही कहेंगे कि माँ सब चीज डूब गई, सब खत्म लीजिए पति ने विद्रोह कर दिया या किसी पति का रास्ता हो गया। ये कैसे? जो भी शक्ति कार्य कर रही है उस को ठीक नहीं रहा तो उसकी पत्नी रोते बैठेगी। या किसी की कार्यान्वित होने दें। जैसे एक पेड़ है समझ लीजिए उस पेड़ के पत्ते कैसे गिरते हैं। आपने सोचा है? उस में बीच में एक कितनी बार शादियाँ हो चुकी पहले जन्म में और अब इस बुच के जैसी जिसे कोर्क कहते हैं, बीच में आ जाती है। पते और पेड़ के बीच में एक कोर्क आ जाती है। उस के बाद करो। उसी के पीछे में आय लोग रात दिन परेशान रहो कि फिर शक्ति आती ही नहीं। तो वो गिर जाता है पत्ता। इसी मुझ को ये दुख आ गया, मेरे बच्चे का ऐसा हो गया, मेरी प्रकार मनुष्य का भी होता है। आज इस की शक्ति एक बच्ची का ऐसा हो गया उस का ऐसा हो गया, उस का ऐसा महान शक्ति से जुड़ी है और बहाँ से वो उसे प्राप्त कर रहा हो गया। इस का कोई अन्त है? इस को कोई पार कर है। लेकिन जैसे ही वो अपने को कुछ समझने लग जाए या उसके अहंकार में बैठ जाए या उसकी जो अनेक तरह की में ही नहीं आती। इतनी क्षुद्र बात है कि वो मेरी पकड़ ही में गतिविधियां हैं, जिस तरह की स्पर्धा आदि में उलझता जाए नहीं आती। कोई भी आयेगा तो ऐसी छोटी छोटी बातें मुझे तो उसके बीच में एक दरार पड़ जाएगी और उस दरार के कारण बो मनुष्य फिर उसे प्राप्त नहीं कर सकता। जो उसने रहती हूँ। देखिए मैं कहती हूँ कि आप सहजयोगी हैं? सागर प्राप्त किया हुआ है। क्योंकि वो तो एक निमित्त मात्र था। लेकिन जो शक्ति अन्दर उसके अन्दर बह रही थी वो जैसा आपका मैंने मस्तिष्क बना दिया और आप ये क्या शक्ति ही बीच में से कट गई। जैसे के अभी इसकी (माइक) छुटर-पुटर बातें कर रहे हो कि जिसका कोई मतलब ही शक्ति कट जाए, तो शायद मेरा लेक्चर न बंद हो, पर ऐसें नहीं रहता । इसकी बात, उसकी बात, दुनिया भर की हो सकता है। हमको एक बात को खूब अच्छे से जान लेना फालतू की बातें करना और जो सहज की बात है वो बहुत चाहिए कि हमारे अन्दर जो शक्तियाँ जागृत हुई हैं और जो कुछ भी हमारे अन्दर की विशेष स्वरूप के व्यक्तित्व को हमने ध्यान ही नहीं दिया। सहज में तो मौन हो जाता है। प्रकट करने वाली जो नई आभा हमें दिखाई दे रही है इस शक्ति को हमें रोकना नहीं चाहिए। इस के ऊपर हमें यह ह नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ बहुत बड़े हो गए, या हमने अभी तक देखा ही नहीं है महाभारत। जो एक देखा है वो ही कुछ बहुत बड़ा पा लिया। दूसरी तरफ से ऐसा भी होता है काफी है। अब देखने की क्या जरूरत है? अब अपने को कि जब यह शक्ति आपके अन्दर जागृत हो जाती है उस वक्त आप में एक तरह का उदासीपन भी आ सकता है। इस बैठे हुए हैं। अब ऐसा हो आपको महाभारत देखने का शौक तरह का कि अभी दूसरे साहब तो इतने पहुँच गए, हम तो ह वहाँ पहुँचे नहीं। उन्होंने ये कर लिया, हमने ये किया नहीं। छोड़ कर के और आपका सेन्टर छोड़ कर के आप और हर तरह से आदमी उलझते जाता है। और उस में कुछ को बैंग नहीं मिला। गणपति पूणे में हमें 1. पत्नी ठीक नहीं तो पति रोते बैठेगा अरे भई आपकी जन्म में एक शादी हुई चलो इस को किसी तरह से खत्म सकता है? क्योंकि इतनी छोटी सी चीज है कि वो तो पकड़ बताते हैं, मझे बड़ी हंसी आती है। पर मैं चुपचाप सूनती के जैसे तो आपका हृदय मैंने बना दिया और हिमालय के कम होती है। उस में मौन लगता है। क्यों सहज में तो कुछ अभी मैंने सुना कि पुना में लोग जरा कम आने लग गए हैं, ध्यान में, क्योंकि महाभारत शुरू हो गया है। वैसे मैंने तो दूसरा महाभारत करने का है? और वो महाभारत देख के है तो उसकी बीडियो फिल्म मंगा लेना देख लेना लेकिन पूजा महाभारत देखते हैं तो आपकी बो शक्ति कहां दिखेगी? वो हमारे जीवन का सक्ष्य 33 लेकिन वो खुद जब आप करने लगते हैं तो पता चलता है कि ये टीका-टिप्पणी हम जो कर रहे हैं ये बिल्कुल बेवकूफी है। क्योंकि हमें कोई अधिकार ही नहीं। तो इस कदर की छोटी छोटी चीजों में भी लोग मुझे आ कर बताते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। आप अब साधु हो गए हैं। आप के अन्दर महाभारत में चली गई। महाभारत हुए तो हजारों वर्ष हो गए उसी के साथ वो भी खत्म हो गई। तो ये जो मनोरंजन पर भी लोगों का बड़ा ध्यान रहता है। किसी चीज से हमारा मनोरंजन हो। ऐसा ही हर एक चीज में मनुष्य उलझते जाता है। तो कोई भी चीज में अति में जाना ही सहज के विरोध में पड़ती है। जैसे अब संगीत का शौक है तो संगीत सबसे बड़ी जो शक्ति आई है वो ये, आप कोशिश करके ही संगीत है। फिर ध्यान भी नहीं करने का। बस संगीत में देखिए, और मैं बात कहती हैं उसकी प्रचीति आएगी । पड़े हैं। मनोरंजन है। फिर कविता में पड़ गए तो कविता में कोशिश कर के देखिए आप जमीन पे सो सकते हैं आप ही उलझ गए। कोई भी चीज में अतिशयता में जाना ही रास्त पर सा सकते हैं। आप दस दस दिन भी भखे रह जाए सहज के विरोध में जाता है। ये इस बात को आप गाँठ बांध कर रख लें। और दूसरी चीज जो हमारी शक्तियाँ उन को लेंगे आप कुछ नहीं कहेंगे। इस में आप हमारे परदेस के सम्यक होना चाहिए तभी हमें सम्यक ज्ञान मिलेगा. माने सहजयोगियों को देखिए, किस हालत में रहते हैं. किस संघटित ज्ञान। गर एक ही चीज के पीछे में आप पड़े रहे परेशानी में रहते हैं। हॉलाकि वहाँ पर हिन्दुस्तानी और एक ही चीज को आप देखते रहे तो आपको सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता है। आपको एक चीज का ज्ञान होगा। अब जैसे मैंने देखा है कि बहुत सी स्त्रियां होती हैं, बड़ी पढ़ी लिखी होती हैं पर कभी अखबार नहीं पढ़ती उनको दुनिया में पता ही नहीं क्या हो रहा है। रहे आदमी लोग तो उनका ऐसा है कि उनको सिर्फ ये मालूम है कि कौन सा खाना अच्छा बनता है किस के घर में अच्छा खाना बनता है। किसके घर जाना चाहिए अच्छा खाने के लिए। एक खाने के मामले में तो हिन्दुस्तानी बहुत ही ज्यादा उलझे हुए लोग हैं। बहुत ज्यादा। और औरतें भी ऐसी हैं कि बेवकफ बनाने के लिए अच्छे अच्छे खाने खिलाकर के उनको ठिकाने लगाती हैं। इसमें दोनों की शक्तियाँ उलझ जाती हैं, दोनों की। रात-दिन ये खाने के बारे में, मुझे आज ये खाने को चाहिए, मुझे आज ये खाने को चाहिए, मैं ये टाइम को खाऊंगा, मैं वो टाइम से खाऊंगा। ये करूंगा। उधर औरतें आदमियों को खुश करने के लिए वोही धन्धे करती रहती हैं। उसमें औरतों की शक्ति भी नष्ट होती है। और आदमियों की भी शक्ति नष्ट होती है। इसलिए, मैंने यह तरीका निकाला है कि सहजयोगियों को सबको खुद खाना बनाना आना चाहिए। अगर किसी ने कहा मुझे ये खाने को चाहिए तो आप ही बनाये। हालांकि उस के बाद सबको भूखा ही रहना पड़ेगा। पर कोई हर्ज नहीं। आप को कहना चाहिए अच्छा आपको ये चीज खानी है तो आप ही इसको बना दीजिए। तो आप को भूख नहीं लगेगी। आप कैसा भी खाना है, उसे खा सहजयोगियों ने बताया कि ब्रह्मपूरी में इन्तजाम सब ठीक नहीं रहा। लोगों का दिमाग ही खराब हो गया था क्योंकि आप नहीं गए। तो बहुत तकलीफ हुई उनको खाने पीने की और कुछ अच्छा नहीं लगा। ऐसा बताया। तो मैंने उन लोगों से जा कर पुछा कि भई सबसे ज्यादा तुम को कहा मजा आया तो उन्होंने कहा ब्रह्मपरी में सबसे ज्यादा आया तो मेरी कुछ समझ में नहीं आया कि इतनी शिकायतें हुई, क्यों ब्रह्मपुरी में क्या बात? तो कहने लगे कि वहाँ कृष्णा बहती है उसके किनारे में बैठो तो लगता है कि माँ जैसे आप की धारा बह रही हो। वो सब यही बातें करते रहे। यहाँ ये लोग खाने पीने की सोचते हैं। इसी लिए जब कभी कभी लोग कहते हैं कि हम लोगों का समर्पण कम है तो उस की वजह यह है कि हम लोग काफी उलझे हुए लोग हैं। हमारे अन्दर बहुत पुरानी परंपरा है। यहाँ अनेक साधु संत हो गए, बड़े बड़े लोग हो गए, बड़े बड़े आदर्श हो गए और उन आदर्शों की बजह से हमें मालूम है कि अच्छाई क्या है। लेकिन उस के साथ ही साथ हमारे अन्दर एक तरह की ढांगी वृत्ति आ गई। हम ढोंग भी कर सकते हैं। कोई भी आदमी अपने को राम कह सकता है। कोई भी आदमी अपने को भगवान कह सकता है, कोई भी आदमी अपने को सीता जी कह सकता है। ये ढोंगीपनें की हमारे यहाँ बड़ी भारी शक्ति है। एक साहब ने मुझे कहा कि देखिए वो तो भगवान हैं। मैंने कहा कैसे? वो कहते हैं वो भगवान है। मैंने कहा उस को कहने में क्यां लगता है? ऐसे कैसे कहेगा कोई कि मैं भगवान हैँ? मैंने कहा कह रहे हैं वो भगवान है लेकिन उस के कुछ तरीके होते हैं। जो आदमी फल को नहीं सूंघ सकता वो भगवान कैसे हो सकता है? हाँ ये तो बात है पर वो ऐसा क्यों कह रहे थे? वो ोम बड़ा अच्छा रहेगा। जब आप बनाना शुरू करेंगे तब आप समझेंगे कि ये चीज क्या है। क्योंकि विसी भी चीज को टीका टिप्पणी करनी तो बहुत आसान चीज है। किसी चीज की अच्छा कहना, बुरा कहना बहुत ही आसान चीज है। 34 हमारे जावन का सक्ष्य ऐसा क्यों कह रहे हैं? मैंने कहा क्योंकि बो आप नहीं। वो ये क्योंकि हमारे अन्दर जो भाव हैं वो इस शक्ति से बहुता ही नहीं समझ सकते कि लोग इतना सफेद झूठ इतने जोर से हुआ बाहर चला आ रहा है और उस को हम प्रकटित कर कह सकते हैं या किसी के लिए कहते हैं। पर वो उस को रहे हैं और जो लोग इस तरह से एक बात समझ लें कि हमें रूपया ही चाहिए न, ठीक है वो रूपया लेता है लेकिन हम पूरी तरह से ईमानदारी से सहजयोग करना है तो धीरें-धीरे को तो वो आध्यात्मिकता देगा। तो क्या हर्ज है। हमें तो इसमें खिसकते जाएंगे। अध्यात्म लेना है, लेने दो रूपया, रुपये में क्या रखा है? रुपया दे दो उस को। रूपयों में क्या रखा हुआ है। अध्यात्म है उनमें। मैं यह जरूर कहँगी कि उस आत्मसमर्पण के पीछे के पाने की बात है। अध्यात्म अगर वो हम को दे रहा है तो में एक बड़ी भारी कमाल है। और वो कमाल ये है कि वो हम उस को रूपया दे रहे हैं रुपये में तो कोई खास चीज सोचते हैं कि हमारा कल्याण सिर्फ आत्मिक ही होना होती नहीं। ये जो उन की तैयारी आज हो गई है । वो हमारे चाहिए। हमारा आत्मिक कल्याण होना चाहिए। और कोई अन्दर तैयारी अभी तक हो नहीं पाई। इस के लिए क्योंकि भी बात वो नहीं सोचते। सहजयोग के लाभ अनेक हैं। आप हमारे सामने आदर्श बहुत अच्छे हैं। महाभारत है, राम हैं, जानते हैं इस से तन्दरूस्ती अच्छी हो जाएगी, आप को पैसे ये है, वो हैं। और हम उसी कीचड़ में बैठे हुए हैं। अगर कोई अच्छे मिल जाएंगे, आप की नौकरी अच्छी हो जाएगी, आप कीड़ा कहे कि मैं कमल हो गया तो हो नहीं सकता और का दिमाग ठीक हो जाएगा, और दनिया भर की चीजें जिन्हें अगर उस को कमल बना भी दिया तो भी ढंग बही चलेगा । कि आप संसारी कहते हैं, हो जाएंगी। और उसपे भी आप इस लिए समझ लेना चाहिए कि हमारे अन्दर ये जो इतनी का नाम हो जाएगा, शोहरत हो जाएगी। जिनको कोई भी ऊंची ऊंची बातें हो गई और जिस से हम सारी तरफ से पुरी नहीं जानता है उनका भी नाम हो जाएगा। उन्हें लोग तरह से हम ढके हुए हैं और जिस के कारण हम लोग बहुत जानेंगे, सब कुछ होगा लेकिन हमें क्या चाहिए? हमें तो ऊंचे भी हैं, समझे कि हमें वो ही होना है जो हम देख रहे हैं. अपनी आत्मिक उन्नति के सिवाए और कुछ नहीं चाहिए। इस मामले में हमारे अन्दर आन्तरिक इच्छा हो, ऊपरी नहीं। अन्दर से लगना चाहिए। क्या हमने इसे प्राप्त किया? मनुष्य में हो जाती है तब मनुष्य सोचता ही नहीं इन सब क्या हमने अपने ध्येय को प्राप्त किया? क्या हमने इसे पाया चीजों को उस के लिए सब व्यर्थ पदार्थ है। सारी लक्ष्मी है? उसे हमें पाना है इस मामले में ईमानदारी अपने साथ उसके पैर धोए, उस के लिए वो व्यर्थ पदार्थ है। कोई भी रखनी है। और जब तक ईमानदारी नहीं होगी तब तक उसके लिए चीज ऐसी नहीं है कि जिसके लिए वो शक्ति आपके साथ ईमानदारी नहीं कर सकती। ये आप लालायित हो या परेशान हो। इस कदरं वो समर्थ हो जाता का और अपना निजी सम्बन्ध है। अनेक तरह से आप अपने है। अगर है तो है नहीं है तो नहीं है। मिले तो मिले नहीं है को पड़तालिये और देखिए हमारे अन्दर ये शक्तियाँ क्यों तो नहीं। ये जब अपने अन्दर ये स्थिति आ जाए, मनुष्य इस नहीं जागत हो रहीं। क्यों नहीं हम इसे पा सकते। कारण स्थिति पे आ जाए, तब सोचना चाहिए कि सहजयोगियों ने हम अपने को, खद ही अपने को एक तरह से काटे चले जा अपने जीवन में कुछ प्राप्त किया। जब तक ये स्थिति प्राप्त रहे हैं। जिस तरह से वहाँ पर मैं लोगों में देखती हूँ आत्म समर्पण य हम सिर्फ आत्मिक उन्नति पा लें। जब वो आत्मिक उन्नति नहीं होती तो आपकी नाव डांवाडोल चलती रहेगी। और आप हमेशा ही कभी इधर तो कभी उधर घुमते रहेंगे। पहली अपने को स्थापित करने की जो महान शक्ति तो किसी भी तरह की ढोंगी वृत्ति का सहजयोग में स्थान ही नहीं है। हृदय से आपको महसूस होना चाहिए। हर एक चीज को हृदय से पाना चाहिए। अपने अंतर आत्मा से उसे आपके अन्दर है वो है श्रद्धा। उस श्रद्धा को हृदय से जानना को जानना चाहिए। उस के लिए कोई भी ऊपरी चीज चाहिए और उसकी मस्ती में रहना चाहिए उस के मजे में आवश्यक नहीं। कोई हैं कि मुस्करा कर बैठे रहेंगे, कोई आना चाहिए, उसके आनंद में आना चाहिए तो जो ये श्रअद्धा जरूरत है मुस्कराने की? कोई है कि बड़े गम्भीर हो के बैठे की आहुलाद दायिनी शक्ति है उस आहलाद को लेते रहना रहेंगे, ये सब नाटक करने की कोई जरूरत नहीं। जो आप के चाहिए,उस खुमारी में रहना चाहिए। उस सुख में रहना अन्दर भाव है वो बाहर आ रहा है उस में कौन सा नाटक चाहिए। और जब तक मनुष्य उस आहुलाद में परी तरह से करने की जरूरत है? उस में कौन सी आफत करने की हैं? जो हमारे अन्दर भाव है वही हम प्रकटित कर रहे हैं। हैं वो बने ही रहेंगे, बने ही रहेंगे। क्योंकि समस्याएं वगैरा घुल नहीं जाएगा उसके सारे जो कुछ भी प्रश्न हैं समस्याएं 35 मारे नीवन का तक्षय सब माया है। ये सब चक्कर है। अगर किसी से पूछो कि भई चाहिए कि हमारी कितनी शक्तियाँ हैं और हमारे अन्दर तुम्हें क्या समस्या है? तो मुझे सौ रुपया मिलना चाहिए, कितनी शक्तियाँ हमने देखी और बो कैसे कार्यान्वित हो रही मुझे पचास रूपये मिलते हैं। जब सौ रूपय मिले तो फिर क्या समस्या है? मुझे दो सौ रुपये मिलने चाहिए तो मुझे सौ ही रुपये मिले। वो तो खत्म ही नहीं हो रहा। फिर दूसरी मिलेगा लेकिन आप की इच्छा ही बदल जाएगी। आप के क्या समस्या है कि मेरी बीबी ऐसी है। फिर तुम दसरी बीबी कर लो, वो भी ऐसी है, तीसरी आई वो भी ऐसी है तो आपकी समस्या नहीं खत्म हो रही क्योंकि आप स्वयं इनको खत्म नहीं कर रहे । ये यब को खत्म करने का तरीका यही है कि अपनी श्रद्धा से आप अपने आत्मा में जो आनंद है उस का रस लें और उसी रस के आनन्द में रहे आखिर सारी चीज है ही हमारे आनन्द के लिए, लेकिन जब तक हम उस रस को लेने की शक्ति ही को नहीं प्राप्त करते हैं तो क्या फायदा से भी लोगों को आने में मश्किल हो जाती है। कलकत्ते से होगा? ये तो ऐसा ही हुआ कि एक मक्खी जा कर के बैठ गई फूल पर और कहेगी कि साहब मुझे तो कुछ मध नहीं भी। और साक्षात् हम बैठे हुए हैं। ऐसे ऐसे लोग हैं कि जो मिला। उस के लिए तो मधुकर होना चाहिए। जब तक बिल्कुल आसानी से आ सकते हैं। अपने काम के लिए दस आप मधुकर नहीं होंगे तो आपको मधु कैसे मिलेगा? गर मर्तबा दौड़ेंगे। लेकिन इस को नहीं समझते कि कितनी आप मक्खी ही बने रहे तो आप इधर उधर ही भिनकते महत्वपूर्ण चीज है? उस का महत्व नहीं समझ पाते क्योंकि रहेंगे। लेकिन जब आप स्वयं मधुकर बन जाएंगे तो आप कायदे की जगह जा करके जो आप को रस लेना है रस ले आएंगे। सुविधा के साथ। रविवार के दिन करिए पर एक दिन कर के मजे में पेट भर कर के और आराम से आनंद से रहेंगे। यही सबसे बड़ी चीज सहजयोग में सीखने की है। कि चाहिए। अब ऐसे रोनी सूरत लोगों के लिए क्या सहजयोग हमारा चित् पूरी तरह से एक चीज में डूबा रहना चाहिए। और वो है आत्मिक हमारी उन्नति होनी चाहिए। पर उस का मतलब यह नहीं कि पूरा समय अपने को बन्धन देते रहो या पूरा समय आँखें बंद कर के और जिसे मराठी में शनिवार, इतवार होना चाहिए और उस में से भी हम जैसे ही कहते हैं शिरडी बाँध उस की कोई जरूरत नहीं। सर्वसाधारण तरीके से रोजमर्रा के जीवन को कुछ भी न बदलते हुए जैसे आप हैं वैसे ही उसी दशा में आप को चाहिए कि आप अपने अन्दर जो हृदय में आत्मा है उस के हैं। आप जो चाहे सो करें। जो आप इच्छा करेंगे वो आप को तौर तरीके ही बदल जाएंगे जैसे आज अब कोई महाभारत नहीं देखने को रूकेगा। क्या सोचेगा? अरे बाप रे, आज माँ का इतना अच्छा समय बंधा हुआ है, माँ स्वयं आ रही है, पूजा का मौका है, सारी दुनिया से लोग दौड़े आएंगे। अब बाहर अमेरिका से, अभी मैं जा रही हूँ उन्होंने कहा एक दिवाली पूजा जरूर करना। उस के लिए मेरे ख्याल से सारे ब्रह्माण्ड से लोग वहाँ पहुँच जाएंगे। लेकिन यहाँ कलकत्ते श्रद्धा कम है। वो कहते हैं जब हम रिटायर हो जाएंगे तब उससे पहले छट्टी होनी चाहिए नहीं तो बाद में छट्टी होनी है? ये घोड़े कहाँ तक जाएंगे? ये तो खच्चर भी नहीं । जो लोग इस तरह की बातें सोचते हैं वो सहजयोग में कहाँ तक पहुँचेंगे ये मेरी समझ में नहीं आता। सब सुविधा होनी चाहिए, प्रोग्राम खत्म होगा भाग जाएंगे क्योंकि हम को कल दफ्तर में जाना है। तुम जाओगे कल भी सब ठीक हो जाएंगा। लेकिन । गर आप ऐसी जल्दबाजी करोगे तो खंडाला के घाट में आप को रोक लेंगे हम। लेकिन ये सब चहल, ये सब शैतानियाँ हम ॐके कितनी भी करें लेकिन आप के अक्ल में जब तक ये चीज घसेगी नहीं क्या फायदा? तो चाह रहे हैं कि किसी तरह से आपको रास्ते पर ले आएं। अब रास्ते पे लाने पर गर बार बार आप लोग फिसल पड़े तो कितनी हमें मेहनत करनी पड़ेगी। और आप की जो शक्तियाँ जागृत हो सकती हैं, जो अपने आप पनप सकती हैं, बढ़ सकती हैं वो सारी शक्तियाँ कहाँ से कहाँ नष्ट हो जाएँगी? तो अपने को पहले आप को संवारना है। अपनी शक्तियों के गौरव में उतरना है और ये जानना है कि हमारे अन्दर कितनी शक्तियाँ हैं और हम कितनी शक्तियों को प्राप्त कर सकते रस को प्राप्त करें। जब उस का रस झरना शुरू हो जाता है तो आप ही में कबीर बैठे हैं और आप ही में नानक बैठे हैं, और आप ही में सारे बड़े-बड़े संत साधु हो गए तुकाराम, नामदेव, एकनाथ, सब आप ही लोगों में बैठे हैं। और उनको बिचारों को, कोई बताने वाला भी नहीं था, उनके संरक्षण के लिए कोई नहीं था। ये सब आप को प्राप्त है आप तो अच्छी छत्रछाया में बैठे हुए हैं। तो भी आप उस छत्रछाया में बैठ कर के एक अपनी भी छतरी खोल लेते हैं और उसके बारे में फिर चर्चा करते हैं। तो इस से तो आपकी शक्तियां कम हो ही जाएंगी। इस बार हमें गौर करना 36 ुम हमारे जीवन का लक्ष्य के नाना भी आ जाए सो नहीं हो सकता। जो आप हैं उस लायक वो लोग नहीं। बो नालायक हैं। जो नालायक हैं उन हैं? हम कितने ऊंचे उठ सकते हैं। हम कया-क्या लाभ दूसरों को दे सकते हैं। इतना भंडारा हमारे अन्दर पड़ा हुआ है। सारा कुछ खुल गया चाबी मिल गई अब खुल जाने पर सिर्फ को छोड़ देना चाहिए। उसे क्यों झगड़ा करना? नालायक उसमें से निकाल के लोगों को बांटना है और उस का मजा उठाना है। आज ये जो शक्ति की पूजा हो रही है वो असल में, फुटे जो नालायक से शादी कर ली। ऐसा सोचना चाहिए। मैं चाहती हूं कि आप जानिए कि आप की ही शक्ति की पूजा और नसीब आप के फटे जो नालायक आप के माँ बाप हैं। जो होनी चाहिए। जिस से आप एक बड़े ईमानदार और एक सच्चे तरीके से श्रद्धामय हो जाए। साधु संतों को कुछ कहना नहीं पड़ता था। वो मार खाएंगे, पीटे जाएंगे, उन को जहर देंगे, चाहे कुछ करिए उन की लगन नहीं छटती। अब आप लोगों को तो कनेक्शन लगा दिया लेकिन वो इतना ढीला सहजयोग में नहीं हैं। तो उनको आप नालायकों को बाहर ही कनेक्शन है कि बार-बार, लगाना पड़ता है। फिर से किसी रखिए। जो लायक लोग हैं उन से रोज दोस्ती करिए उन के बात से छूट जाता है। फिर से किसी बात से लगाना पड़ता है सो अब सोचना यह है आप को के अपने अन्दर की सारी ही लोग नहीं समझ पाते कि दनियादारी ये रिश्ते ऐसे चलते रहते शक्तियाँ हमें जागृत करनी है तो फिर कोई कमी नहीं रह जाएगी। कोई आप के सामने प्रश्न ही नहीं रह जाएँगे। इन शक्तियों का जागृत करना बहुत आसान है। एक ही बात है सकते हैं, आप के साथ बन सके तो ठीक है। और नहीं तो ऐसे कि आप की लगन होनी चाहिए। जिसको लगन हो जाएगी, जो पूरी तरह से लगन से सहज योग में उतरेगा और जिसका मैं देखती हूँ कि बहुत ही नालायक लोग सहजयोग में कभी हमेशा जी सहजयोग में ही खिचा रहेगा, उधर ही ध्यान रहेगा उसका तो क्षेम हो ही जाएगा। पर पहले योग घटित है आप की लियाकत थी इस लिए आप आए और आप होना चाहिए और आधा अधूरा योग किसी काम का नहीं। न इधर के रहे न उधर के रहे। ऐसी हालत हो जाएगी। एक छोटे से बीज में हजारों वृक्ष निर्माण करने की शक्ति है। तो भिखारी भी हैं और उस की झोली में छेद भी है उन को और आप तो ऐसे हजारों वृक्षों के मालिक मनुष्य हैं। और उन में से देने से कया फायदा? लो करेला नीम चढ़ा। ऐसे लोगों से हजारों लोगों को शक्तिशाली बनाने की शक्ति आप के रिश्ता रखने की आप को कोई जरूरत नहीं है। उन से कोई अन्दर है लेकिन गर इस बीज का अंकर निकालने के बाद गर आप रास्ते पे फेंक दीजिए और इसकी परवाह न करें, और है। उनको बकने दीजिए। गर उनका दिमाग ठीक हुआ तो वो इसका गर पेड नहीं हुआ तो इसकी शक्ति कठित हो जाएगी। तो अपने लिए पूरी तरह से आप इसका अंदाज करे कि हम क्या हैं और हम क्या कर रहे हैं? और कहाँ तक हम पहुँच है। ऐसे लोगों के पत्थर के जैसे सर होते हैं। उस से कोई सकते हैं? इससे आपस के झगड़े छोटी छोटी क्षुद्र बातें ऐसी चीजे जो कि रास्ते पर के भी लोग न करे, असभ्यता ये तो अपने आप से ही ढह जाएगी। वो तो बचने ही नहीं वाली। लेकिन आप का जो स्वयं सुन्दर स्वरूप है वो निखर आएगा। और लोग कहेंगे कि ये एक शक्तिशाली मनुष्य खड़ा हुआ है। एक विशेष स्वरूप का आदमी खड़ा हुआ है। एक महान कोई व्यक्ति है। ऐसा अनुठा उसका सारा व्यवहार है। वो किसी से डरता नहीं, निर्भय है। जहाँ कहना है कहता है, जहाँ नहीं कहना नहीं कहता। ये आ जाए बाबा भी आ जाए फिर बाबा लोगों से झगड़ा करने की कोई जरूरत नहीं। नसीब आप के नालायक हैं उनको काहे को जबरदस्ती सहजयोग में लाना और मेरी खोपड़ी पर लादना। कि माँ इसको ठीक करो। क्योंकि वो मेरी बीबी है, क्योंकि वो मेरा बाप है, क्योंकि मेरा बाबा मेरा दादा। मेरा उनसे कोई रिश्ता नहीं बनता। गर वो मजे में रहिए। आप को जरूरत क्या है। पर यही बात हम हैं। इसमें कुछ रखा नहीं, हाँ गर आपकी जिनके साथ में संगति है वो आप के साथ उठ सकते हैं, आप के साथ चल नालायक लोगों को कोई जरूरत नहीं सहजयोग में लाने की। कभी इस रिश्ते से आ जाते हैं और मेरा बड़ा सिर दर्द हो जाता सहजयोग को प्राप्त हुए। आप को आर्शोवाद मिला। आप ने बहुत कुछ पा लिया और आगे आप पा सकते हैं। और जो बात करने की जरूरत नहीं। मतलब रखने की जरूरत नहीं आयेंगे और सहजयोग में उतरेंगे। और नहीं तो आप अपना दिमाग क्यों खराब करते हैं? उस से कोई फायदा नहीं हुए फायदा नहीं होता, वो देख ही नहीं सकते। तो आज से हम लोगों को सोचना है कि हम एक व्यक्ति हैं, स्वयं। और इसे हमने प्राप्त किया है अपने अपने पूर्वजन्म के कर्मों से। क्योंकि हमने बहुत पुण्य किये थे। इस लिए हम आज इस स्थान पर बैठे हुए हैं, और इससे भी ऊँचे स्थान पर हम बैठा सकते हैं और जा सकते हैं। तो अपने पीछे में बड़े बड़े इस तरह के पत्थर लगा कर के आप समुद्र आप को गर तैरना आता है तो मुक्त हो कर के तैरिए। उसका आनंद उठाईए। और अपनी सारी शक्तियों से आप प्लावित में मत कूदिए। 37 हमारे जीवन का तय होईए। आज मेरा अनन्त आशीर्वाद है कि आप के अन्दर की सुप्त सारी ही शक्तियाँ जागृत हों और धीरे धीरे आप इस को महसूस करें। और उस की जो अन्दर से प्रवाह की विशेष धाराऐं बहें उस के अन्दर आप आनन्द लूटें। यही मेरा आप को सब को अनन्त आशीर्वाद है। हमारे जीवन क्ा लक्ष्य 38 ---------------------- 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt ১১২১২,১২১২১১ खंड VI अंक 3 व 4 चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति भ्रा का "शेष सभी इच्छाएं महत्वहीन हैं। उत्थान की इच्छा ही सर्यवोपरि है। यह आपके हित के लिए है और आप ही के हित में पूरे विश्व का हित निहित है । " परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১ ১১২১২, ১১২১২১১২১১২১১২১১২ १3১১২১ ১২১২১২১ &৯২১ 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खंड VI अंक 3 व 4 विषय सूची 1 1. प्रार्थना 2. सहस्रार आत्मा - दिल्ली 16.2.1985 3. श्री राज राजेश्वरी पूजा - हैदराबाद 21.1.1994 4. श्री गणेश पूजा - दिल्ली 05.12.1993 13 19 5. जन्म दिवस पूजा - दिल्ली 30.3.1990 6. हमारे जीवन का लक्ष्य 25 (नवरात्रि पूजा - पुणे 16.10.1988 31 ल 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt श्री योगी महाजन सम्पादक : 162, मुनिरका विहार, नई दिल्ली-110067 श्री विजय नाल गिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110060. फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt प्रार्थना श्री माता जी के चरण कमलो में प्रेम अपना दो हमें, करूणा परस्पर जाग जाए। नम्रता का दान दो. कट्ता न हममें स्थान पाए।। सम्मान भाव से पूर्ण हों, न दूसरों को तुच्छ करें कार्य हृदय पूर्वक, माने । विश्वास हममें डालें।। आत्म पर्ण सन्तोष प्रदान कर दें आकांक्षा रहे मात्र उत्थान की। मकान माँ क्षमा दान दे, समर्थ आपको समझने की हम में नहीं।। दें सूक्ष्म को समझने की संवेदनशीलता, हृदय में सदा आप महसूस हो पावन हृदय रखें हम सदा, में श्री चरण सदा साथ हों। हृदय 1 प्रायना 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt 11 १t "सहस्रार आत्मा" दिल्ली - 16.2.1985 जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम। आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहुत सम्बन्धित है जिसके लिए मैं देबू चौधरी को बहुत-बहुत धन्यवाद देती लिए अगर हमें बाह्य से कोई उपचार करना पड़ता तो है। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही सुन्दरं संगीत निर्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चेक्र, मुलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार) इसके अलावा हमारे अन्दर सर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दु और वुलय कहते हैं। यह सारे हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे "स" से शुरू करें तो "सा र गा मा पा धा नी सहस्रार पर"नी जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले है। लीकिन उसकी शक्ल-सुरत से आप जानते हैं कि यह ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मुलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि पर गुरू, हृदय पर शुक्र, विशह्धि पर शनि कितने गहन और कितने गणित से बने हैं, इसका अन्दाजा आज्ञा पर सूर्य और सहस्रार पर सोमवार जो कि शिवजी या देवी का स्थान माना जाता है, आदि शंक्ति का। इसी प्रकार हमारे नव ग्रह भी इन चक्रों पर वास करते हैं। इसका मतलब यह है कि जो कुछ भी ओंकार श्री गणेश से प्रगट है, वह सारा ही एक ही सुर एक ही ताल में पूर्णत: बद्ध हो कर के एक सुन्दर संगीत का साज परमात्मा ने हमारे अन्दर तैयार रखा है। इसको छेदने के लिए ही कण्डलिनी कार्यान्वित होती है। जब कर्णडलिनी इन चक्रों को छेदती में, मूलाधार से लेकर सहस्रार तक सातों के सातों, जिन्हें हम हुई बहमरन्ध तक पहुँचती है, उसके उत्थान से हर चक्र न जाने कितनी ही गतिविधियाँ हो जाती हैं। बहुत-से लोग सोचते हैं और कहते भी हैं कि माँ यह इतना सरल कैसे? सरल तो ऐसे है कि जितनी भी जीवन्त क्रियायें हैं, सब बिल्कुल ही सहज हैं। एक बीज में अंकुर भी सहज ही आता है लेकिन जो हम रोज देखते हैं, उसके प्रति कोई भी प्रश्न खड़ा नहीं होता। उसे हम मान लेते हैं। जैसे कि आपके श्वास की किया जो है, यह कितनी सहज है। उसके लिए अगर आपको किसी गुरू के पास जाना पड़े या कुछ ग्रन्थ पढ़ना पड़े या किसी लाइब्रेरी में जाना पडे तो कितने लोग है। यह एक कमाल की चीज है जिसे देखते ही बनता है चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फाल खिलते हैं अपने आप और इनके फूल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा प्रज्ञा है जिसने इस पूरी सृष्टि को आशिर्वादित किया है, वह यह सारे जीवन्त कार्य हर क्षण, हर पल करती रहती है। इतना ही नहीं, इसका चवन इतना अद्वितीय है कि उसका अनमान हम अपनी मानवीय बृद्धि से नहीं लगा सकते हैं। माने एक आम के पेड़ में सिर्फ आम ही लग सकता है। एक हिन्दुस्तानी के घर एक हिन्दुस्तानी ही पैदा होता है। मेरा मतलब यह नहीं है कि हिन्दस्तानी काई ब्राण्ड लेकर आता हिन्दुस्तानी है। यह जो चयन है, यह जो चुनाव है, यह हमारे दिमाग में आ ही नहीं सकता। जैसे कि मैंने पहले कहा था कि यह सिर्फ एक ही हो सकता है कि जो सृष्टि में प्रेम है उसे हम सागर में ढाल सकते हैं। सांगर से एकाकार होने पर सारी की सारी शक्तियों को देख सकते हैं, जान सकते हैं और उसका आनन्द भी लूट सकते हैं। यही कार्य यह कुण्डलिनी करती है। लेकिन इसकी साज की व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि सारे स्वर जा कर अन्त में अपने मस्तिष्क कहते हैं कि चक्रों के पीठ, पूरी तरह से अपने कार्य में संलग्न हैं। यह सात चक्र जो हम नीचे देखते हैं, इनके पीठ हमारे मस्तिष्क में हैं। यह सारा कुछ तो आप किताबों से जान सकते हैं। लेकिन जिसने आपको बताया उसका आप कमाल देखिये। सात स्वर बनाने के बाद उसके जो पीठ हैं, उसके हर एक स्वर का निनाद, इन सात पीठों से बने हुए इस मस्तिष्क में इस तरह से घुमाया जाता है। इसकी जो शक्ति है उसको किस तरह से एक सुन्दर-सुगठित ताल बद्ध स्वर में अलापा जाता । 2. सहार आत्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt इस कमाल को हम इसलिए नहीं देख पाते कि हमारी दृष्टि ही बाहर की ओर है। अगर कहा जाए कि आप अन्दर की ओर दुष्टि ले जायें तो आप कहेंगे कि यह कैसे करें माँ? यह तो मुश्किल काम है। आप इस वक्त मेरी बात सुन रहे हैं। आपका सारा चित्त मेरी ओर है। लेकिन अगर कोई घटना घटित हो जाती है, तो आपका चित्त वहां आकर्षित हो जाता है। इसी प्रकार कण्डलिनी का जागरण जब होता है, तो जो आपका चित्त बाहू्य में फैला हुआ है, वह एकदम अन्दर की तरफ दौड़ता है और जैसे एक कपड़ा बाहर से एक कपड़ा चारों तरफ फैला हुआ है और उसके अन्दर से कोई चीज उसे ढकेलती हुई उसे इस तरफ से उस तरफ ले जाती है, इस प्रकार कण्डलिनी सहस्रार पर आने पर उसे चाक करती है। लेकिन उसका चाक करना भी इतना सुन्दर है कि जब वह भेदन होता है तो उस कण्डलिनी का प्रकाश चारों तरफ फैल जाता है। जो कहा है "राम नाम रस भीनी"। वह चदरिया जो कि हमारे चित्त की है, उसमें सत्य का प्रकाश फैल जाता है। अब यह उसकी सुन्दर रचना है कि हृदय चक्र बराबर यहाँ बीचोंबीच हैं, जहाँ पर कि हमारा बहमरन्ध्र छेदन होता है। बरहुमरन्ध का छेदन उस जगह है, जहाँ हमारा हृदय है। इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में जब तक परमात्मा को पाने की इच्छा नहीं होगी, तब तक यह भेदन ठीक नहीं होगा। सारा काम हृदय का है। यह समझने की बात है। आप लोगों ने बुद्धि से मेरी बात को समझ लिया। बुद्धि से समझने की बात ठीक है। लेकिन जब तक यह हृदय से संचालित नहीं होगी, तब तक यह हृदय से प्लावित नहीं होगी, तब तक हमारे अंग-अंग में यह बसने वाली चीज नहीं है। लेकिन हृदय में है हमारी आत्मा का स्थान। इसीलिए यह समझ लेना चाहिए कि हृदय को छेदने के लिए पहले हम अपने हृदय को खोल लें इस हृदय में आत्मा का वास है जिसके ऊपर सात रंगों में इन सात पीठों का प्रकाश फैला हुआ है। इतना निकट का सम्बन्ध हमारे इस मस्तिष्क का, हमारे इस ब्रेन का और इस हृदय का है। तरह की दविधा, परेशानियाँ, चिन्ता, बीमारियाँ आ जाती हैं। यह सारे चक्र भी पंच महाभूतों से, एलिमैन्ट से बने हैं। यह सारे के सारे चक्र जिन पीठों से संचालित होते हैं, गवर्न होते हैं, वह पीठ हमारे मस्तिष्क में हैं और हमारे मंस्तिष्क के ही सैन्ट्रल नव््स के साथ इन सारे चक्रों का चलन-वलन हो सकता था लेकिन होता नहीं है। पैरासिथैटिक नव्स्स सिस्टम से ही हम इन चक्रों को संचालित करते हैं। जब तक हम पैरासिम्पैथेटिक पर प्रभुत्व न जमा लें, जब तक हमारा सम्बन्ध आटोनॉमस सिस्टम (स्वचालित प्रणाली) जिसको हम नहीं चला सकते, ऐसी स्वयं चालित के स्वयं पर अपना जोर न जमा लें तव तक न हम बदल सकते हैं न दुनिया बदल सकती है। बाहुय से आप किसी चीज को ठीक कर लें। किसी पेड़ में अगर कोई खराबी हो जाये और आप अगर किसी पत्ते को ट्रीटमैन्ट दे दें तो शायद वह थोड़ी देर के लिए ठीक भी हो जाये। लेकिन असली बीमारी उसके जड़ में हैं और उसके अन्दर जो रस, रिसता है,जब तक उसको आप दवा नहीं देंगे, तब तक वह पेड़ आप बचा नहीं सकते। इतना ही नहीं इन सातों पीठों का यहाँ सम्मेलन है यहाँ तीन जो शक्तियां हमारे अन्दर प्रवाहित हैं- हमारी इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और धर्मशक्ति जिनसे हमारा क्रान्ति का पथ बनता है, जिससे हम रिवोल्यशनरी प्रोसेस में जाते हैं, यह तीनों ही शक्तियां एकत्रित हो जाती हैं। इस प्रकार इस मस्तिष्क में सात चक्रों और तीन शक्तियों का समन्वय होता है। लेकिन उनमें रिलेशनशिप उनकी दोस्ती मात्र होती है, एकीकरण (इन्टीग्रेशन) नहीं होता, समग्रता नहीं होती। जैसे कि एक ही स्वर में, एक ही ताल पर सातों स्वर नाचें, ऐसी स्थिति तब आती है जब एक ही छिद्र से कण्डलिनी, डोर की तरह पिरोई जाती है। इस तरह से पूरी तरह से भेदन करती हुई सहस्रार को भेद देती है। सहस्रार के बारे में जितना भी कहा जाए कम है। सहस्रार जो हमारा आखिरी चक्र है, उसमें एक हजार पंखुड़ियां हैं जो कि वास्तव में हमारे अंदर एक हजार नाड़ियां हैं- डॉक्टर लोग जिस पर कभी-कभी बड़ा झगड़ा उठाते हैं कि नहीं ९८२ हैं या कुछ हैं। वह तो बिल्कुल हृदयहीन बातें हैं जिनमें कोई सुर नहीं, माध्र्य नहीं। एक हेजार इसमें पंखुड़ियां हैं जो कि इन नाड़ियों को तेजोमय करती हैं। यह ऐसे दिखाई देती हैं जैसे कि किसी कमल पुष्प में एक हजार पंखुड़ियां हैं और वे पंखुड़ियां सजीव हो कर के और बड़ी सुन्दरता से उनका प्रकाश आपस में झिलमिल होता है। अत्यन्त शान्त ऐसी यह तेजोवलय से भरी हैं, लेकिन आज हमारा हृदय एक तरफ काम करता है, शरीर दूसरी तरफ काम करता है और बुद्धि तीसरी तरफ। इसमें कोई समग्रता नहीं है। समग्र माने सब अग्रों में से एक ही सूत्र जाना चाहिए। इसमें कोई संघटन नहीं है। इसलिए हम अपने से ही रोज लड़ते हैं। अपने से ही रोज़ झगड़ा रहता है। किसी का एक चक्र अच्छा है तो दूसरा खराब, दूसरा अच्छा है तो तीसरा बिल्कुल कमजोर हो चुका है और चौथा बेकार हो चुका है। इन चक्रों की लड़ाई में ही सब सहार आत्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt बाह्य से जरूर हम उनके गुण गाते हैं, उनके गाने गाते हैं, उनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन हम अभी भी उससे अनभिज्ञ हैं। अभी तक हमने यह जाना ही नहीं कि वे हमारे अन्दर बसे हुए इस कार्य के लिए तत्पर हैं। कण्डलिनी का जागरण होने के पश्चात ही यह ज्ञान हमें होता है। तेजपन्ज ज्योतियां जैसे कि पंखड़ियां हों। इस तरह से प्रकाशित हो कर आन्दोलन करती रहती हैं। इस आन्दोलन से जो हमारे अन्दर आनन्द निर्माण होता है, उसे निरानन्द कहते हैं। निरानन्द माने केवल आनन्द। एब्सोल्यूट ज्वायँ। उसमें कोई दसरी चीज नहीं होती है। आनन्द में दो चीज सुख और दुख नहीं होते, केवल आनन्द मात्र होता है और वह मौन ही में जाना जा सकता है जैसे कबीरदास जी ने कहा था "जब मस्त हुए फिर क्या बोले। वह जो एक श्रेष्ठों की, योगियों की स्थिति है। लहस्रार की सुन्दर व्यवस्था ऐसी है कि अगर आप अपने ब्रेन को काट दें और ट्रान्स सैक्शन में उसे देखें तो ऐसे दिखाई देगा जैसे कि कमल की पंखड़ियां इस तरह से चारों तरफ लगी हुई हैं। सहस्रार का दूसरा कमाल। आप देखिये इस निरानन्द स्थिति में उतारने के लिए जब कडलिनी कि श्रीफल माना जाता है देवी का फल जिसे हम लोग नारियल कहते हैं। इसकी तुलना हर बार ब्रेन से होती है। ओर पहचा सकती है जहाँ उस निरानन्द का सागर आपके आपको आश्चर्य होगा कि ऋतम्भरा प्रज्ञा ऐसी है कि आप सम्मुख लहलहाता है। इतनी काव्यमय कण्डलिनी की नारियल के पेड़ के नीचे या हजारों पेड़ों के नीचे सो जाइये । आज तक कहीं भी ऐसी वारदात नहीं हुई कि नारियल का बनता है। हालांकि कुछ-कुछ लोगों में मैं देखती हूँ कि पेड़ किसी पशु पर या किसी मनुष्य पर गिरा हो। क्या आप इस कमाल से परिचित हैं? जब तक आप समद्र के किनारे कहीं-कहीं देखती हैँ कि जैसे कोई कमजोर माँ छटपटाती नहीं जाते तब तक आप इस कमाल को नहीं जान सकते हुई किसी तरह से अपने बच्चे को पुनर्जन्म देने के लिए और समुद्र में भी एक कमाल देखिये कि नारियल के पेड़ समुद्र किनारे होते हैं। इतनी जोर की हवा, बरसात और मानसून का थपेड़ा होते हुए भी सारे नारियल के पेड़ समद्र की ओर झुक जाते हैं क्योंकि वह हमारा गुरू तत्व है। करती है कि किसी तरह मेरे बच्चे को उसका जन्म मिल क्योंकि वह हमारा गुरू है, इसलिए उसके आगे झुके रहते जाय। यह करूणामयी माँ प्रेममयी है। यह आपको किसी हैं, नतमस्तक हैं। उनकी समझ सहज और नैसर्गिक है और तरह से तकलीफ कैसे दे सकती है। जिसने हजारों वर्षों से हमारी समझ अभी बहुत ऊँची होने के कारण इतनी यही प्रतीक्षा की कि मेरा बेटा किसी न किसी दिन इस शुद्ध नैसर्गिक नहीं हैं। हम जरूरत से ज्यादा कुछ लम्बे हो गये इच्छा को पूरी करेगा और इस योग को प्राप्त करेगा। वह हैं। अगर आप जरूरत से ज्यादा लम्बे हो जाइयेगा तो आपको किसी प्रकार से भी दुख नहीं देती। लेकिन जैसे मैंने बहुत-सी चीजें जो पाने की हैं, कभी-कभी खो जाती हैं। या आपको बताया कि दनिया में इतने कट् लोग हैं कि शुद्ध और अगर जरूरत से ज्यादा नाटे हो जाइयेगा तो भी वह चीज खो उच्च चीजों के प्रति भी उनमें कोई आदर नहीं है। उनको ही जाती है। इसका मतलब यह है कि जब तक आप मध्य किसी भी चीज के प्रति आदर नहीं है। वास्तव में यह लोग मार्ग में नहीं होते तब तक आपकी कृण्डलिनी का जागरण स्वयं का भी आदर नहीं करते। इसलिए यह समझ ही नहीं बड़ा कठिन कार्य है। लेकिन फिर भी आजकल परमात्मा सकते कि संसार में कोई चीज उच्च हो सकती है या ऐसी की कुपा इतनी जबरदस्त है, इतनी अनुकम्पा इस बक्त कोई विशाल या महान चीज हो सकती है जो पूर्णतः पवित्र उनकी बह रही है, मैं स्वयं आश्चर्य करती हूँ कि हजारों लोग एक साथ पार हो जाते हैं। हालांकि इसके बारे में भूग् मनि ने अपने नाड़ी ग्रन्थ में लिखा था कि ऐसा होगा और सब की बीमारियाँ अपने आप ठीक हो जायेंगी। सब की तकलीफें दूर हो जायेंगी और कण्डलिनी सहज में ही जागृत । आप सोचिये कि भृग मनि का देश के इतिहास में कौन सा स्थान है? कहते हैं कि हजारो वर्ष पूर्ण भुग मनि हो गये और उन्होंने भी कण्डलिनी के बारे में बताया था कि तत्पर है जो सिर्फ थोड़ी-सी सहायता करने से आपको उस शक्ति है, इतना सुन्दर उसका चलन-चालन है कि देखते ही कुण्डलिनी आहत है, आहत स्थिति में कण्डलिनी है। के धीरे-धीरे उठती है, गिरती है, उठती है, गिरती है। इस प्रकार यह कण्डलिनी बेचारी जो हजारों जन्म से आपके साथ थी और आज फिर आपके साथ है, पुर्णतः प्रयत्न हो। हमारे सामने इतने सन्तों का उदाहरण होते हुए भी हम लोग भूल जाते हैं कि जब वे इस संसार में आये तो वे अपने लिये नहीं आये क्योंकि उनको क्या करना था ? वह सब कुछ हो जायेगी पाये वे कुछ देने के लिए हमारे पास आये और जो थे हुए कुछ उन्होंने देना था, वह हमारे अन्दर, हमारे शरीर के अन्तर्गत कर दिया। सिर्फ उसकी जानकारी हमें नहीं है। सहयार आत्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt सहज में ही कुण्डलिनी जागृत होगी। लेकिन हम, हमारे ने मेरे साथ इतना जर्म किया। आप उस पर बह पड़े। हो देश के जो लेखक हैं, प्रवक्ता हैं, दृष्टा हैं, बड़े-बड़े ऊँचे सकता है कि वह किसी जेल से छुटा हुआ चोर हो। हो सन्त साधु हैं और यहाँ के जो अवतरण हो गये, उनके बारे सकता है कि वह आपको लुटने के लिए आया हो या आपको में कितना जानते हैं? आज ही किसी ने पछा कि माँ मर्डर करने के लिए आया हो। आप जान नहीं सकते कि वह शिवरात्रि का क्या महत्व है? क्या शिवजी का जन्म हुआ आदमी कौन है। क्योंंकि आप सत्य तो जानते नहीं है। सत्य था? शिवजी का जन्म तो होता नहीं। क्योंकि जो सदाशिव को जानने का मतलब यह होता है कि आप उस चीज को हैं, उनका जन्म होने का कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन जानें जो सब चीजों का सार और तत्व है। जैसे कि मनुष्य शिवरात्रि का मतलब यह है कि यह महारात्रि, जिस वक्त सारा संसार परबरह्म स्थिति में सो रहा था. यह महारात्रि है परब्रहम। जैसे हम सो जाते हैं तो हमारी सृष्टि सारी हमारे वह अज्ञान-सा लगता है और ज्ञान को आप अपनी नसों, साथ सो जाती है। उसी प्रकार यह सारी सुष्टि सो गई थी। वह महारात्रि थी और तब जब सदाशिव जागृत हुए, सदाशिव माने जो कभी भी नहीं बदलते, जो सिर्फ एक की बीमारी है, मुझे ठीक कर दीजिए। मैंने कहा कि अच्छा साक्षी स्वरूप होकर सारे संसार को देखते हैं, वह सदाशिव ठीक है, आप बैठिए। मैंने उनकी कुण्डलिनी जागृत की| जब जागृत हुए तब उन्होंने जो अपनी शक्ति जो उनको दर्द उठा थोड़ा सा। मैंने कहा अच्छा अब आप ठीक आदिशक्ति जिसे कि होलीघोस्ट कहते हैं, जिसे वेदों में ई हो गये, अब हम जा रहे हैं। उसने कहा, "माँ, आप क्या कर कहा गया, जिसे अचीन्हा कहते हैं। इस शक्ति को अपने से रही हैं, मेरा तो अभी हार्ट अटैक आ गया। अलग करके और कहा कि तुम सृष्ट की रचना करो। इसलिए शिवरात्रि आज मनाई जाती है कि आज महारात्रि गये मैं मोटर में बैठ गई थी। मैं उतर कर आई और मैंने के बाद शिवजी आज जागृत हुए, सदाशिव जागृत हुए। वही सदाशिव जब हमारे हृदय में आत्मास्वरूप प्रकाशित एन्जाइनॉग्राफी लीजिए और इस प्रकार आप विश्वास कर होते हैं तो इसे शिव कहा जाता है। इस वक्त बहुत से लोग लीजिएगा कि मैंने जो कहा है, वही सही कहा है। वह डाक्टर के अज्ञान में उपवास करते हैं। शिवरात्रि के दिन उपवास करने का कोई तुक समझ में नहीं आता। क्योंकि जिनको यह लीजिएगा कि मैंने जो कहा कि अरे भई तुमको तो एन्जाइना ही मालूम नहीं कि शिवरात्रि के दिन क्या हुआ। यहां तक लोगों ने पूछा कि क्या उस दिन शिवजी की मृत्यु हुई? शिव अनन्त हैं उनकी मृत्यु कैसे हो सकती है? इतने लोग अज्ञानी हैं कि उस दिन हम उपवास करते हैं, जिस दिन वे जागृत इसलिए है कि आपकी जो वायक्रेशन्स हैं, आपका जो चैतन्य हुए थे। आज हमारे अन्दर बह आत्मा जागृत होने का समय है। हम लोग भी एक महारात्रि में डूबे हुए हैं। एक है तब यह चैतन्य चलता है और यह आपको बता देता है। महारात्रि जिसमें यह घोर कलयुग छाया हुआ है। एक महारात्रि और इस महारात्रि में जागृत होने के लिए आज आप सम्मख बैठे हैं। आपके अन्दर बसी हुई आत्मा आज जागृत होगी। यह आत्मा सचिदानन्द है। सत् चित्त और पर आप बता सकते हैं कि इस आदमी को क्या बीमारी है। आनन्द। सत् माने यह कि आप सत्य को जानते हैं। अभी तक आपने सल्य को नहीं जाना है। अभी तक जो जाना है,वह सब भ्रम है। जैसे कि एक आदमी आपके सामने आकर खड़ा होता है और आप उसे देखते ही सोचते हैं कि कितना अच्छा आदमी है। जब उसने आपके सामने दीजिए। कुण्डलिनी जो है यह काज और इफैक्ट से परे है। गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया कि साहब देखिये मैं इतना अच्छा आदमी हूँ। मैंने इतनी अच्छाई की और इस आदमी का सार और तत्व क्या है? उसका सार और तत्व उसकी आत्मा है। उस आत्मा को जानते ही आपका जो ज्ञान है, पर अपने सैन्ट्रल न्वस सिस्टम पर जानते हैं। जैसे कि एक साहब मेरे पास आये और कहने लगे कि माँ मुझे एन्जाइना मैंने कहा, बेटे बह उदास हो कर बैठ तुम ठीक हो गये, हम जा रहे हैं। कहा कि मेरी बात आप सुनिये। आप अभी जाकर अपना पास गए और डाक्टरने कहा कि अरे भई तमको तो एन्जाइना था, तुमको तो हो क्या गया? तम ठीक कैसे हो गये? तो आपको जो जानना है, वह जानना क्योंकि डॉक्टर ने आपको बताया है, इसलिए जानना हुआ और हमारा जानना है, उसको हमारी आत्मा ने बता दिया। जब आत्मा बोलती कोई-सी भी बात जिसके बारे में आपको जानना हो कि इस आदमी की तकलीफ क्या है, जब आप योगी हो जाते हैं, आप उसकी ओर हाथ कीजिए। आपकी ऊंगलियों के इशारे और जब बीमारी आपको पता है और आप जानते हैं बीमारी के कारण जिसे कॉज एण्ड इफेक्ट कहते हैं, उससे परे उठना आपको आ गया तो आपने बीमारी ठीक कर दी और उससे परे उठना बहुत ही आसान है। उसे कुण्डलिनी पर डाल आपने उसको कण्डलिनी पर डाल कर उसकी कृण्डलिनी उठा दी तो काम खत्म। तबीयत ठीक हो गई उसकी। महार आन्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt कण्डलिनी का जागरण और उसका बिठाना बहुत मुश्किल मछली पानी से बाहर निकली थी, उसके बाद दस-बारह काम है। किन्तु जब यह हो गया तो आगे फिर काम खत्म। आपको आगे फिर कुछ करने की जरूरत नहीं है। जो इतनी बड़ी-कठिन समस्यायें हैं, वह सोचते हैं कि इसका कारण यह है कि इस वजह से परिणाम यह है और इस कारण परिणाम को ठीक करने से सब ठीक हो जाएगा। तो और आज सर्व साधारण मनुष्य बनकर संसार में आये हैं। कभी-भी वह चीज नहीं ठीक होने वाली। मैंने आपको पहले और आज उसको प्राप्त करने का जो आपका हक, आपकी बताया कि एक चीज ठीक करिएगा तो दूसरी खराब हो इच्छा है पूरी होगी। जो साधु-सन्तों ने कहा है, जो इन जाएगी। उससे परे जो परमात्मा का साम्राज्य है, जो अवतरणों ने कहा है, सब सच करके दिखाना है। उसके सहस्रार में विराजता है, उस साम्राज्य में आप आइये, लिए एक ही बस शर्त है कि कण्डलिनी का जागरण हो कर आपका आगमन हो, आपका स्वागत है। नमस्कार करके के आपके अन्दर वह प्रकाश जागृत हो जो कि आपकी आप अन्दर आइये और जब आप वहाँ बैठे हैं तो किसकी नस-नस में बहे और आप जाने कि आप योगी जन हो गये मजाल है जो आपकी ओर आँख टेढ़ी करके देख सके। योगी जन हुए बगैर कोई-सी भी बात समझाई नहीं जा मराठी में रामदास स्वामी ने कहा है, "समर्थाचिया वक्र पाहे सकती। असा सर्व भूमण्डली को नाहि । " जिसने समर्थ की ओर आँख तिरछी करके देखी, ऐसा सारे भू -मण्डल में कोई नहीं, यह जानने के लिए भी आपको योगी जन होना नहीं। लेकिन पहली चीज यह है कि आप परमात्मा के चाहिए। क्योंकि हम जो कह रहे हैं, हो सकता है कि झूठ साम्राज्य में आये हैं या नहीं। फिर आने के बाद वहाँ जमे हैं कह रहे हों। लेकन अगर आप योगी जन हैं तो आप हाथ या नहीं। जमने की बात बहुत बड़ी सोचने की है। तत्सत् फैलाकर के जान सकते हैं कि आपके अन्दर चैतन्य की जो है जिसे हम सतु कहते हैं वह अपने सैन्ट्रल नव्स सिस्टम लहरियाँ बह रही हैं और आप समझ सकते हैं कि यह सच से जाना जाता है। कोई कहेगा कि माँ यहाँ पर यह फल बिषछे हुए हैं। यह हम अपनी आँख से देख रहे हैं न? यह आँख नहीं। परमात्मा है, इसलिए आपके अन्दर चैतन्यकी हमारी जो है, यह हमारी सैण्ट्रल नव््स सिस्टम बता रहा है लहरियाँ बहनी शुरू हो जायेंगी। पर गलती से दुष्ट आदमी कि यहाँ यह फूल रखे हैं। फिर जब हम महसूस भी करें तो के लिए आप पषछें कि यह आदमी अच्छा है या बुरा तो हो हम कह सकते हैं कि यहाँ फूल हैं क्योंकि हम इसे महसूस करते हैं। इसको जानना है। यही ज्ञान, यही वेद जिससे विद गर्मी आ जाय. शायद एक-आध छाला भी आ जाय। लेकिन होता है, जिससे बोध होता है। जो हमारे सैण्ट्रल नव्स राक्षस को और सन्तों को पहचानने के और भी बहुत से सिस्टम में जाना जाता है, यही हमारी उत्क्रान्ति का लक्षण है और बाकी सब कुछ दिमागी जमा खर्च है या तो भावना की दष्टि आपके पैसे पर है, आपकी सत्ता पर है। आपके की फिक्र। निकली होंगी। फिर एक-आध हजार निकली हों। उसके बाद न जाने कितनी मछलियां ऊपर निकलकर आज मानव स्थिति में बैठी हुई हैं। इसी प्रकार अनेक वर्षों से हम लोगों ने तपस्या की है। परमात्मा से योग मांगा है, मेहनत की है। तो आप सब जो हमारे मँह से सुन रहे हैं, वह सत्य है या बात है। आप यह सवाल पछें कि संसार में परमात्मा है या सकता है कि या तो पूरे चैतन्य बन्द हो जायें, शायद आपको तरीके हैं। बुद्धि से भी लोग समझ सकते हैं कि जिस आदमी घर के बच्चे-बीबियों पर है, वह आदमी कभी-भी सन्त नहीं जब कण्डलिनी जा कर सहस्रार को प्रकाशित करती है तो हम सब ज्ञान के अधिकारी हो जाते हैं। आप सोचिये कि जब हमारे यहाँ से सन्त साधु हुए थे, तब न यहाँ यूनिवर्सिटी थी, न कॉलेज था, लेकिन ज्ञान के भण्डार थे, दृष्टा थे। एक से एक योगी इस संसार में हो गये इंग्लैण्ड में एक विलियम ब्लेक नाम के कवि हुए हैं। अगर आप उनका भविष्य पढ़ें तो आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि एक एक चीज, सहजयोग के बारे में उन्होंने इतने साफ तरीके से लिखा है कि बड़ा आश्चर्य होता है। ऐसे दुष्टा मार्कण्डेय जैसे लोग हो गये तो आप लोग क्यों नहीं हो सकते। आरम्भ में जरूर एक ही ह सकता। सन्तों के लक्षण बार-बार कहें गये तो भी हम गलती कर जाते हैं। इसलिए सत्य को जानने के लिए कृण्डलिनी को पहले हमारे सहस्त्रार में प्रवेश करके उसको प्रकाशित करना चाहिए। जहाँ यह हजार पंखुड़ियाँ जागृत हो कर के सून्दर कलियों के जैसे, पंखुड़ियों के जैसे सुन्दर नित्य रहे। जिसे आप अभी नहीं देख सकते बाद में आप देख सकते हैं। जब आप स्वयं ही प्रकाशित होते हैं तो आप प्रकाश कैसे देखेंगे। जब आप प्रकाश हो गये तब लोग पूछते हैं कि माँ अब क्या करें? जब दीप जला दिया तो अब प्रकाश दीजिए। जब तक आपकी बद्धि में यह प्रकाश नहीं मही सहल्ार आतमा र 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt दूसरे की है। जो मैंने उसका कच्चा चिट्ठा खोलना शुरू किया तो वह आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगा कि माँ ने तो इस आदमी को तो एक ही बार देखा और इतना कैसे बता गई। पर यह बताना कोई बड़ी भारी बात नहीं है। इसकी कोई जरूरत भी नहीं है आपको। लेकिन आप यह बता सकते हैं कि आपमें कौन सा दोष है। तो जब आप सत्य हो जाते हैं तो असत्य से आप अलग हो जाते हैं। जैसे कि इस कपड़े पर अगर कोई दाग लगा है और इस वक्त कोई प्रकाश आ जाये तो मैं इससे अलग सोचती हैं कि इसको कैसे साफ किया जाये इसी प्रकार आप अपने से अलग हटकर जानते हैं कि यह असत्य हैं, यह हम नहीं ले सकते। जैसे एक साहब आये और कहने लगे कि माँ मेरा आज्ञा चक्र ठीक कर दीजिए मतलब क्या? कि मुझे अहंकार हो गया है, इसे आप निकाल दीजिए। अगर किसी आदमी को कह दीजिए कि आपको अहंकार हो गया है तो बह मार बैठेगा आपको। लेकिन जिस वक्त आज्ञा में दर्द होने लग जाता है तो वह खुद ही कहता है कि माँ मेरा आज्ञा जरा आप ठीक कर दीजिए। इस आज्ञा से मैं परेशान हूँ। यदि एक चीज आपकी दषित है। तो वह इशारा ही नहीं करती, कभी-कभी दखती भी है, कभी-कभी बताती भी है, जताती भी है और ऊँगलियों पर आप जानते हैं कि आपको क्या शिकायत है और आप उस शिकायत से एकाकार नहीं है। हम लोग यह प्राप्त करने से पहले एकाकार हों। आप बहुत सीरियस हैं। इतना सीरियस आता तब तक आपकी शक्ति एक हजार गुना कम है। मैं तो कहूँ कि इसका कोई अन्त ही नहीं, अनन्त है यह शक्ति। उससे पहले जो इतनी सी शक्ति है। जैसे कि एक बरगद का पेड़ एक छोटा-सा बीज जो अंकुरित हो कर इतना बड़ा पेड़ हो जाता है। उसी प्रकार मनुष्य की बुद्धि जो इतनी छोटी और सीमित लगती है, वह इतनी बढ़ जाती है कि उसकी शाखायें भी चारों तरफ उतर-उतर कर के उसे और भी स्थापित करती जाती है। यह परमात्मा का सत्य स्वरूप है। आत्मा का सत्य स्वरूप है। आत्मा सत्य के लिए भटकती है। लेकिन सहजयोग में जरूरी है कि आपकी बैठक होनी चाहिए । अब आपने म्यूजिक सुना। हिन्दुस्तानियों को तो यह बात समझनी चाहिए कि म्युजिक जो है बैठक के बगैर नहीं है। बैठक चाहिए। पार तो हो जायेंगे आप। ठीक है, पर उसके बाद जब बैठक नहीं होगी तो आप समर्थ नहीं हो सकते, आप पूरी तरह से इसमें प्रभुत्व नहीं पा सकते। इसके लिए बैठक चाहिए, अभ्यास चाहिए और जब तक वह अभ्यास नहीं होगा, आपके अन्दर उसकी संवेदना, इस कदर नाजक संवेदना, गहन संवेदना जागृत नहीं हो सकती। क्योंकि यह नसों से जाना जाएगा। ये नसे आज तक जड़ रही हैं। और जब तक ये नसें जागृति के नये आयाम में, डॉयमेन्शन में जब तक नहीं जागृत होती तब तक आप नहीं जान सकते। बहुत से लोग कई बार यह सोचते हैं कि इनको क्या पता होगा? यह तो बहुत सीधी लगती है। एक बार एक होने की कोई जरूरत नहीं है। हल्के तरह से रहिए। साहब आये और कहने लगे कि माँ, देखिये, यह आपका फोटो कैसे है? मैंने कहा कि बिल्कुल गलत। मैं बता दं कि गंभीर जरूर है। आप प्रसन्नचित रहिए। यह किसने निकाला। उन्होंने कहा, "अच्छा, बताइये।" मैंने उस आदमी का नाम बता दिया जिसने वह फोटो साहब बैठे हुए थे वह खुब कूद रहे थे। उनकी समझ में निकाला था। मैंने कभी देखा भी नहीं था, किसी ने भी नहीं नहीं आया तो उन्होंने कहा, "साहब, मतलब क्या है? देखा था। वह चक्कर में आ गये कि माँ तमने कैसे जाना। मैंने कहा,"हम चक्र में जान गये कि उसी के जरिये यह काम हो रहा है, कि आप पिए हुए हैं। माफ करना। यह जो हम अपने ऊपर. इसका मतलब उसी आदमी ने यह फोटो खींचा है। एक साहब हमें समझाने आये कि माँ आप जानती नहीं हैं। आप बड़ी सीधी हैं। यह बड़ा राजकामी आदमी है, इससे संभल अभिमान नहीं, दूराभिमान- यह जो हमारी खोपड़ी में लग कर रहिए। यह कुछ गड़बड़ कर सकता है। मैंने कहा कि अच्छा इतना ही बताना है आपको? कहने लगे, "हाँ। अच्छा अब सुनिये आप इसके बारे में मैं क्या जानती हैं कि इसकी बीबी अपनी नहीं है, किसी ब्राह्मण की बीबी भगाकर लाया है। इसका बच्चा तो इसका है लेकिन बीबी घोड़े पर बैठ जाता है। घोड़ा है नहीं घोड़े पर बैठा है। यह प्रसन्नचित रहिए। परमात्मा का विषय सीरियस नहीं है, एक साहब गये मिनिस्टर साहब से मिले। तो वहाँ एक आपको हो क्या गया?" तो कहने लगे कि आपको पता नहीं है कि मैं पिए हूँ। उन्होंने कहा कि अच्छा मुझे नहीं पता था सबके चक्रों को जानते हैं। उस चक्र को इस चढ़ा लेते हैं कि किसी नौकरी में हो गये, किसी पोजीशन में हो गये, दो-चार पैसे इकट्ठे हो गये। उसका जो अभिमान, जाता है जिससे हम अजीब से हो कर पिए हुए घूमते हैं, यह छूट कर मनुष्य देखता है कि यह जो है, यह बाह्य है। जैसे अपनी बुद्धि का गुमान, अपने पढ़ने लिखने का गुमान, हर तरह के गुमान मनुष्य में चढ़ जाते हैं। वह तो बात-बात पर हूँ ा 7. सहार आत्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt सब इस तरह से छट जाता है जैसे कि प्रकाश में अगर आपने हाथ में साँप पकड़ा है, उसे आप छोड़ देते हैं, उसी खेल रहा है और सबसे बातचीत कर रहा है, हँस रहा है तरह से सब कुछ छूट जाता है। कहना नहीं पड़ता। लेकिन उसने किया क्या? किया यह कि आज्ञा चक्र को, जब कुण्डलिनी चढ़ती है और बहाँ का देवता जब जागृत होता है तो यह देवता हमारे दोनों ही इगो और सपर इगो जिसे कि मनस और अहंकार कहते हैं, दोनों को ही आपस में खींच लेता है, शोषित कर देता है और ब्रह्मरन्ध्र में ऐसी जगह बन जाती है कि कृण्डलिनी खट से बाहर चली जाती है। है, बातचीत भी हो रही है। लेकिन सारा चिल्त उनका उस वक्त हमारे हाथ बोलते हैं। हाथ बोलते हैं कि हाँ गगरी पर है और उदाहरण तीसरा उन्होंने कहा है कि एक कुण्डलिनी पार हो गई है। जो लोग पार हो जाते हैं, वही महसूस कर सकते हैं यहाँ की ठण्डी हवा और जो नहीं होते हैं, उनको मुश्किल होता है ठण्डी हवा महसूस करना। उसके बाद जब आपके किसी चक्र में दोष हो, अगर आपके विश्द्धि चक्र में दोष हो या अगर आपके नाभि चक्र में दोष हो तो इन ऊँगलियों पर आप जान सकते हैं कि कहाँ रही है कि कब मेरा बेटा इस ओर आयेगा जहाँ वह अपने पर दोष है, उसके बारे में आप सब कुछ जान सकते हैं। आप संसार की सारी बातों को जान सकते हैं। यहाँ बैठे-बैठे, नहीं चाहिए। उसका यह कार्य जब तक पूरा नहीं होता तब आपके कोई रिश्तेदार हों, कोई और हों, उनके बारे में आप जान सकते हैं। देश के बारे में जान सकते हैं। देश के नेताओं के बारे में जान सकते हैं। इलैक्शन के बारे में जान सकते हैं। चाहे जो भी जानना चाहें, आप सब कुछ जान सकते हैं। लेकिन योग होने के बाद मनुष्य का मन इन सब चीजों से हट कर परमात्मा की ओर लग जाता है। इन चीजों सुबुद्धि से मेरा बच्चा इस योग को प्राप्त करेगा। तो आप में उनको मजा नहीं आता है। जब आपने सबसे ऊँचा अमृत पी लिया फिर किसी गन्दगी का पानी पीना आप पसन्द नहीं करते। जो चीज अच्छी नहीं, उसमें कोई मजा नहीं आता। सारी चीजें, जिसे कहते हैं कि प्राथमिकताएं आपकी बदल कर आप दूसरे ही आदमी हो जाते हैं। क्योंकि जिस चीज में राजसिक जो झूठ और सच का फर्क ही नहीं जानते। उनको मजा आता है, वही होता है। एक शराबी को लें। मैं तो कोई चीज में गलती ही नजर नहीं आती और तीसरे ज्यादा नहीं जानती शराबियों के बारे में। लेकिन मैंने देखा है सात्विक होते हैं जो सत्य को पहचान कर चलते हैं। लेकिन कि जब वह शराब पीता है तो शाम होते ही उसको याद आ जाता है और फिर दुनिया में कुछ भी हो रहा हो, सब छोड़-छोड़ कर बैठ जाते हैं अपना मसनद लगाकर। यही लोग होते हैं। हीरे को बराबर पहचान लेते हैं। ऐसे ही जो हाल एक योगीजन का होता है। मस्ती में आ गये तो उसी मस्ती में डबे रहते हैं, उसी शान्ति में समाये रहते हैं जो मसीह को देखिये कि जब एक वैश्या को लोगों ने पत्थर आत्मा की देन है। महाराष्ट्र के एक बड़े भारी कवि नाम्रदेव हैं, उनकी कविता है ग्रन्थ साहिब में। उसमें एक कविता खड़े हो गये और कहा कि भाई तुम में से जिसने कोई पाप बहुत सुन्दर है जिसमें लिखा है कि एक छोटा बच्चा पतंग नहीं किया हो बह पत्थर मारे, वह भी मुझे और सबके हाथ उड़ा रहा है। पतंग आकाश में उड़ रही है, लड़का जो है, लेकिन उसका चित्त पूरा उस पतंग पर है। यही योगीजन का किस्सा होता है कि सबसे बोलते रहे किन्तु चित्त उसका आत्मा की ओर है। दूसरी जो कविता की पक्ति है, उसमें लिखा है कि कुछ औरतें हैं, पानी घड़े में लेकर जा रही हैं। चार-चार गगरियाँ सर पर रखी हुई हैं। जल्दी-जल्दी जा रही हैं और आपस में मजाक भी हो रहा है, हँसी भी हो रही माँ है जो अपने बच्चे को लेकर सारा काम कर रही है। घर का सारा काम वह कर रही है लेकिन उसका चित्त पुरी तरह अपने बच्चे पर है। यही कण्डलिनी जिसका सारा चित्त आप पर लगा हुआ है, सारा विचार इसका आपके ऊपर है और इतनी इच्छुक और उत्कण्ठा से इन्तजार कर पुनर्जन्म को प्राप्त करे। उसको दुनिया की कोई और चीज तक शुद्ध इच्छा जो आपके अन्दर सुप्तावस्था में है, उसको चैन नहीं है। वह ढ़ंढती फिरेगी। इधर जा, उधर जा, जंगल में जा, पैसे में खोज, इसमें खोज, उसमें खोज। आप जो-जो गलतियाँ करेंगे, बेचारी उससे आहत होती जाएगी पर अन्त में बह बैठी रहेगी कि एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जिस दिन आत्मा का जो स्वरूप है, उस सत्य को जानें। जैसा मैंने आपको बताया कि संसार में तीन तरह के लोग होते हैं- एक तो तामसिक लोग जो कि झूठ को ही सत्य मानकर उसके पीछे अपनी जिन्दगी बर्बाद कर देते हैं। दूसरे जब आप योगीजन होते हैं तो सिवाय सत्य के आप कोई चीज को पकड़ ही नहीं सकते। अचूक जैसे रत्न पारखी सत्य को एकदम पकड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए ईसा मारना शुरू किया तब ईसा मसीह वहां जा कर उसके सामने ৪। सहस्रार आत्मा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt रूक गये। क्योंकि वह इस चीज को जानते थे कि इस औरत शक्ति है। वह आहलाददायिनी शक्ति विचार से एकदम ने जो भी गलती की है और जो भी इसने अपने जीवन का बुरा किया है, वह सब परमात्मा क्षमा करने वाले हैं वही शिक्षा देने वाले हैं और हम मनुष्य उसको क्यों दोष लगायें। जिसने सत्य को जाना, बह असत्य के पास कैसे खड़ा रह हुआ आनन्द, उसमें बसा हुआ सत्य जो निराकारस्वरूप है, सकता है? आप ही बताइये। अगर आपने प्रकाश में कोई वह आपके अंदर ऐसा बहेगा कि जैसे पूरी की पूरी शक्ति चीज देख ली, तब भी क्या आय खाई में कुदेंगे? जिस में आपने देख लिया कि इससे मेरा पुरा नुकसान हो रहा है, मुझे पूरी तरह से तकलीफ होने वाली है तो फिर गयी जैसे आपका संगीत था निर्विचार में अगर आप आप क्या ऐसा कहेंगे कि आ बैल मुझे मार? क्योंकि यह प्रकाश हमारे पास नहीं है, इसीलिए रात-दिन हम अपनी जिन्दगी बरबाद किये जा रहे हैं। कोई कहता है कि आपके देश की हालत ठीक हो जायेगी आप पैसा दे दीजिए। सौ रु० आप किसी को दे दीजिए, वह शराब के ठेके पर सीधे चला जाएग्रा। आप कसी को पोजीशन दीजिए । था। आप किसी भी विद्वान को बड़ी नौकरी दे दीजिए या किसी सत्ता में भेज दीजिए, उसकी खोपड़ी एकदम उल्टी बैठ जाएगी। सत्ता कोई झेल नहीं सकता. सम्पत्ति कोई उसका मजा देखें। अगर हम चाहें तो उसका मजा उठायें तो झेल नहीं सकता और स्वतंत्रता को भी नहीं झेल सकता। यह तो मनुष्य की दशा है तो फिर सोचना चाहिए कि इससे कोई न कोई ऊँची दशा होगी जहाँ से सब चीज का भोग ले खत्म हो जाती है। जैसे ही सामने विचार आ जाय। आप समझ लीजिए विचार से एकदम अन्धियारा आ जाता है। लेकिन निर्विचार में आप किसी चीज को देखें तो उसमें बसा प्रेम की आपके अन्दर प्लावित होकर, आपको महसूस होगा जिससे ऐसा लगेगा कि सारी दश्चिन्ता पता नहीं कहा चली प्रकाश उसको सन सकते तो इसका क्या असली असर है, उसे आप पा सकते थे लेकिन जब तब आप विचार करते गये- अब टाइम हो रहा है, अब ऐसा है, वैसा है... घर जाना है। क्योंकि जब आप योगीजन हो जाते हैं जब आप सहस्रार में स्थित होकर जब आप वर्तमान में विराजते हैं। न तो आप भविष्य में और तो आप भूत काल में। न ही आप फ्यूचर में और न ही आप पास्ट में। आप वर्तमान में होते हैं और हर वर्त्तमान का क्षण अपना एक आयाम, एक डायमेन्शन एक अपना दर्पण रखता है और उसमें इतनी छटायें हैं फिर जैसे मैंने कल धोबी का किस्सा बताया ऐसा लगता है कि हजारों जिह्वा होने पर भी जो मजा नहीं आ सकता है वह यह वर्तमान में आते ही पता नहीं कहां से इतना आ रहा है। जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो जाती है तब आनन्द उसका स्वभाव हमारे अन्दर स्फरित होता है. इन्सपॉयर होता है। यह नहीं कहना पड़ता कि हाँ अब मैं आनन्दित हूँ। आप शक्ल -सूरत से जान सकते हैं कि हाँ यह इन्सान बहुत मजे में है। जब मैं पहली मर्तबा पेरिस गई थी तो लोगों ने कहा कि माँ आप तो बहुत खुश नजर आती हैं। मैंने कहा कि फिर। तो कहने लगे कि यह पेरिस में नहीं चल सकता। कहने लगे मनुष्य सकता है और भोग तभी ले सकता है, जब वह सत्य में खड़ा हो। जिस बक्त इन फलों की सजावट देखेंगे तो आप कहेंगे कि इतने फल थे, पता नहीं किसने लगाये. कितना रूपया लगाया, यह किया बह किया. भर की बातें करेंगे लेकिन अगर कोई योगी होगा तो उसके सामने बस हठात् खड़ा हो जाएगा। निर्विचार स्थिति में । बनाने वाले ने इसमें जो आनन्द डाला है जिस हृदय से यह बनाया है, उसका सारा आनन्द उसके माथे से ऐसा बहेगा जैसे गंगा की धारा। वह यह नहीं जानता कि किसने बनाया, क्या किया। उसका जो आनन्द उसमें स्थित है, निराकार स्थिति में, वह पूरा का पूरा उसके ऊपर से बहता रहेगा। उसमें विचार नहीं है। वह निर्विचार स्थिति में उसे देखेगा। इस प्रकार हर चीज को जो आनन्द है, वह आप सत्य में ही पा सकते हैं और कहीं नहीं पा सकते। कभी भी आप किसी चीज की ओर दृष्टि करते हैं जब उसके बीच में विचार खड़ा हो जाये तो आप सोचिये कि उसकी आनन्ददायी शक्ति खत्म हो गई। उसमें कोई आहलाद नहीं रहता । राधा जी को कहा जाता है कि वह परमात्मा की आहुलाददायिनी सब दुनिया कि यहाँ तो लोग यह सोचते हैं कि जो आदमी मजे में है. वह अज्ञानी है। उसको मालूम नहीं है कि दनिया में क्या आफत आ रही है मजे में बैठा है तो आप कुछ लम्बा मुँह करके बात करें। अब मेरे लिये बहुत मुश्किल। तब मैंने उनको कहा कि हर तीसरे घर में शराब की बोतलें खुल रही हैं, चौथे घर में औरतों की गन्दगी चल रही है और पाँचवे घर में यह मसर्रतें हो रही हैं कि किसको मर्डर किया जाय और किस के पैसे खाये जायें तो ऐसी दशा में क्या वहाँ आनन्द का राज होगा? जब कभी हम लम्बा मुँह बनाकर। मैंने कहा कि भई इनको क्या आफत पैदल चलते तो लोग बैठे रहते थे वहुत सहार आतमा এ 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt आ गई? कहने लगे कि ये लोग फ्रेन्च में आपस में बातें कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ऐसा करते हैं कि अष्ट ग्रह आने वाले हैं और हो सकता है कि तब हम खत्म हो जायें तो बड़ा अच्छा होगा। उसका इन्तजार हो रहा है कि वह कब आयेंगे और कब हम खत्म हों। मैंने कहा कि उसके लिए अष्ट ग्रह का इन्तजार करने की क्या जरूरत है, ऐसे ही जाकर डूब जायें वहाँ नदी है। इतने अगर यह दुखी जीव हैं, तो तब तक इन्तजार करने की इनको क्या जरूरत है? शायद अष्ट ग्रह के चक्कर से बच ही जायें तो यह जाकर हमने वहाँ देखा। इस तरह की उन्होंने अपनी दशा बना ली है कि हम तो बड़े दुखी जीव हैं और हमारे जैसे दुखी जीव के लिए यही अच्छा है कि हम मर जायें। आपको आश्चर्य होगा कि स्विटजरलैण्ड नार्वे में एक स्पर्धा है, कम्पटीशन है कि कितने लोग वहाँ इस साल आत्महत्या करने से मरे। जवान लड़के १७ साल से २५ साल के वहाँ आपस में स्पर्धा लगाते हैं कि इस साल स्विटजरलैण्ड को अधिक नम्बर मिले। कारण यह है कि आपने पैसा इकट्ठा कर लिया किन्तु आनन्द आपको मिला नहीं, यह बात सही है। सब कुछ मिल गया । मोटरें मिल गई और कया-क्या हम लोग जो ढूँढते रहते हैं हिन्दुस्तान में, वह सब उनके पास होने के बाद अब वह ढुँढ रहे हैं कि अब हम मरेंगे कैसे। उसके इन्तजामात सोचते हैं कि किस तरह से मरना ठीक रहेगा। वे नहीं जानते कि कोई मरता तो है नहीं। वे फिर वापस आ जायेंगे रोने के लिए। कोई परमानैन्टली मरता नहीं है, यह परेशानी और है। ये जो रोनी सुरते हैं, इनको बदलो, इसके लिए वे तैयार नहीं हैं। आप धीरे-धीरे इस चीज को समझने का प्रयत्न करें कि यह चीज है क्या? लेकिन न भी समझें तो कोई हर्ज नहीं पर मौज में रहिये और इस मौज को, आनन्द को सब को बाँटिये। क्योंकि आपका चित्त जो है वह प्रकाशित हो जाता है। अब चित्त हमारा अटेन्शन है और इस अटेन्शन में हमारे अन्दर जो नई जागृति उत्पन्न होती है, वह है कॅलैक्टिव कॉन्शियस- सामूहिक चेतना। लेकिन मैं कहूँगी "सामूहिक शुभ चेतना"। शुभ-अशुभ विचार तो हमें रहे नहीं। शुभ वह जिससे कि चैतन्य हमारे अन्दर से बहता रहे- वह सारा शुभ है। जिस कार्य से चैतन्य बहुता है, जिस गाने से चैतन्य बहुता है। जिस भक्ति या संगीत से चैतन्य की लहरियाँ बहें वही शुभ है और वही सौन्दर्य की लहरियाँ भी हैं। तो यह शुभ चेतना हमारे अन्दर जागृत हो जाती है। इसके. माने यह नहीं कि हमारी बुद्धि में कोई चीज आ जाती है पर हम जान सकते हैं कि हमारे अन्दर कौन सा दोष है क्यों कि हम आत्म-साक्षात्कार भी पाते हैं और हम जैसे वस्तु में उसे पाते हैं वैसे समिष्टि में हम एक व्यक्ति में पाते हैं, वैसे हम सामूहिकता में भी पाते हैं। भी पाते हैं। माने जैसे अब कॅलैक्टिव का चमत्कार देखिये। आज तक आप लोगों ने जो सिद्धान्त बनाए वे सब खोखले हैं। जैसे कोई कहता है कि हमारा विश्वास पूँजीवाद में है, कोई कहता है कि हमारा साम्यवाद में है। किसी का इसमें है उसमें है, सब खोखला है। हमें समझ लीजिए कि हम बड़े भारी पूँजीपति हैं क्योंकि अगर सब शक्तियाँ हमारे अन्दर जमा हो गई तो हम तो पूँजीपति हो गये लेकिन हम हैं बड़े भारी साम्यवादी भी जब तक इसे बाँटेंगे नहीं, हमें चैन नहीं आयेगा। अभी एक साहब ने पूछा कि आप क्यों सहजयोग करते हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सुखी हैं। आपके पति इतने अच्छे हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सुखी हैं। आपके पति इतने अच्छे हैं। आपके बाल बच्चे इतने अच्छे हैं। घर में बैठिये जा कर। कहाँ बैठें? चैन नहीं। जेब तक इसे बाँटेंगे नहीं मजा नहीं आयेगा। एक शराबी को देखा आपने कि अकेला वह शराब नहीं पी सकता। इसी प्रकार यह भी शराब आप अकेले नहीं पी सकते। इसका मजा नहीं आयेगा। बाँटेंगे तो सामूहिकता में आप जागृत हो जाते हैं। लेकिन इसमें एक अहम् बात कि आपका चित्त वह जो आदि तत्व है, जो विराट है, अकबर है, उसमें जागृत हो जाता है। जैसे इस शरीर के अंग-प्रत्यंग जागृत हो जायें तो उस समय आप उस विराट के अंग प्रत्यंग बनकर उसमें आपका सत्य आपही के अन्दर बसा हुआ है। वह एक क्षण भर में आपको मिल सकता है, आसानी से आपको मिल सकता है। बस थोड़ा सा उन्मुख होने की जरूरत हैं, उस तरफ नजर करने की जरूरत है। ये चीजें सब आपको मिल सकती हैं। तब आप यह सोच लीजिए कि सिर्फ सहस्रार पर ही कुण्डलिनी को रूकना नहीं चाहिए, उसका भेदन भी होना चाहिए और इसका भेदन भी बहुत सुक्ष्म तरीके से होता है। अब इसकी कितनी नाड़ियाँ हैं? कौन सी नाड़ी कहाँ खुलती है? कौन से चक्र कहाँ होते हैं और कैसे बन्द करते हैं- यह सब बातें बताने की जरूरत नहीं है। अगर आपको कोई बढ़िया मोटर लाकर दे दे तो आप पहले उसके अन्दर घुसकर थोड़ी देखते हैं कि इसका कौन-सा पूर्जा ठीक है या नहीं है। आप तो गाड़ी उठाकर चल दिये मजा उठाने के लिए। इसी प्रकार सहज योग को प्राप्त करने के बाद सहयर आत्मा 10 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt काम नहीं है। जो बीर हों वह सामने आयें। बेकार लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। ऐसे तो हम बड़े वीर बनते हैं । एक तम्बाकू तो छोड़ी नहीं जाती। तम्बाकू के पत्ते से आप डरते हैं । आय क्या वीरता दिखायेंगे? शराब की बातलें दिखी नहीं कि आप ढह गये यह क्या वीरता दिखलायेंगे आप? वीर हों तो सामने आयें और वीरों के गले में ही कुण्डलिनी की माला पड़ सकती है। ऐसे हमारे देश में ऐसे कुछ वीर निकल आयें तो बाकी जो दूसरे हैं, वे भी ठीक हो जायें। उनको भी खींचना है। लेकिन पहले हिम्मत की जरूरत है कि हम उस पर दृढ़ रहें क्योंंकि सहजयोग के बाद जागृत होते हैं। उसके बाद दूसरा कौन है? आप किसके ऊपर उपकार कर रहे हैं? आप किसको दे रहे हैं। अरे भई अगर इस ऊँगली में शिकायत हुई तो दूसरी ऊँगली उसको अपने आप ही रगड़ देती है। उसको कछ कहना पड़ता है? सारे शरीर को पता है कि इस ऊँगली को शिकायत है और सारा शरीर उसकी मदद करता है। कल एक साहब ने बड़े पते की बात कही थी" कि किसी भी जगह की गरीबी पुरी खुशहाली के लिए खतरा है। इसी प्रकार जिस वक्त आपकी जागृति हो जाती है आप कॅलैक्टिव में आ जाते हैं तो कहीं भी कोई तकलीफ हो जाये, कहीं भी कोई परेशानी हो जाये आप तुरन्त समझ जाते हैं कि तकलीफ है। उसके लिए आप प्रार्थना मात्र करें तो कार्य हो जाता है। क्योंकि अब आपको परमात्मा का एकाकार हो गया है। आपको कोई सिफारिश नहीं चाहिए कि कोई बाबा जी आपको देंगे या कोई साधु जी आपको देंगे। परमात्मा से कहिए और परमात्मा आपका कार्य कर देंगे और करते हैं। हजारों के ऐसे कार्य हुए हैं। इतने सहजयोगी यहाँ बैठे हैं। एक-एक से पूछिए तो एक-एक इतनी बड़ी किताब आपको लिख देंगे। दो-दो, तीन-तीन साल में उनके ये अनुभव हैं। 1. मनुष्य एक तरह से इतना अछूता हो जाता है और गन्दगी से इतना भागता है कि लोग कहते हैं कि भई इसको क्या हो रया। पहले अच्छा आता था, शराब पीता था और मजाक करता था। इसके काफी सीक्रेटस भी पता चलते थे। शराब की बोतल के पीछे आप चाहें तो डान्स भी इससे करा लो अब इसको क्या हुआ। बेकार गया। क्योंकि आप सारे गणों की खान बन जाते हैं। ऐसा आदमी एक तेजस्वी पुरूष होता है और उस तेजस्विता के पीछे भी अत्यन्त करूणामय, अत्यन्त प्रेममय, अत्यन्त सुखदाई और एक शानदार व्यक्ति आपका चित्त स्वयं ही सामूहिक चेतना से प्लावित एक नये आयाम में आपको डाल देता है और आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि यह कैसे हो गया। माँ, हमने तो कुछ किया भी नहीं फिर यह अब आप जानते हैं। कुछ लोग बीमार मेरे पास आते हैं। मेरे हाथ टूट जाते हैं। मेरा सिर दुख जाता है, अनेक परेशानियाँ हैं। अभी कुछ देहात के लोग आये थे। बहुत दूर से... शिलाँग से। उस आदमी को बताया गया था कि तुम्हें कैंसर की बीमारी है। यहाँ एक प्रोग्राम उन्होंने अटैण्ड किया। वापस गये तो डॉक्टर हैरान हो गये कहने लगे कि आपका कैंसर कैंसे ठीक हो गया? एक बम्बई के महाशय.. बस वह अल्लाह को बहुत मानते थे मुसलमान। मोहम्मद नाम उनका। प्रोग्राम में आये। उनको दस साल से डायबिटीज था। बस एक बार प्रोग्राम में आये। मैंने उनसे बात भी नहीं की, जाना भी नहीं और उनसे मिली भी नहीं, वह ठीक हो गये। कुछ-कुछ लोगों के पीछे तो मेरे हाथ टूट जाते हैं। उनकी कृण्डलिनी उठना तो दूर रहा, मेरे हाथ टूट जाते हैं। तकलीफ हो जाती है कि क्या करूं। क्योंकि इनके दिमाग ज्यादा हैं। सिर पर अहंकार के पहाड़ के पहाड़ बाँधे हये हैं। अपने को बहुत समझते हैं। तो कण्डलिनी भी कहती है कि जरा ठोकरें खाने दो, तब ठीक होयेंगे। कण्डलिनी उठती नहीं है, मैं क्या करूँ? इसलिए नम्रता के साथ. दढ निश्चय के साथ सहजयोग में उतरना है। ऐसे-वैसे लोगों का यह कैसे हो गया? "योगक्षेम वहम्यहम" योग के बाद क्षेम परमात्मा देखते हैं। यह कृष्ण ने कहा भी है - वही घटित होता है। संहस्रार का जो चमत्कार है। सहस्त्रार की जागृति आपको इतने नये-नये आयाम, इतने नये-नये विचार और इतने स्फूर्त कलायें दिखाता है कि आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि क्या यह मेरा ही ब्रेन है। ऐसे ऐसे लोग जो अपने बच्चों को लाते थे कि माँ यह क्लास में नहीं पढ़ता, बहुत पीछे हैं। ऐसे ऐसे लोग जो कुछ भी गाना-बजाना नहीं जानते, कुछ भी कला नहीं सीख सकते, वे कलामय हो गये। ऐसे लोग जो कि नौकरी में नहीं थे, जो कुछ करना ही नहीं जानते थे वे लाखोंपति हो गये। यह कैसे हो गया? ये सारी पहाड़ जैसी कण्डलिनी उठाते-उठाते ऐसी ही शक्तियाँ हमारे अन्दर हैं। लक्ष्मी जी की भी शक्ति हमारे अन्दर है। जिस वक्त मनुष्य किसी भी सृजन को करता है, कार्य को करता है तब उसके अन्दर जो ब्रहमदेव हैं जो कि रचयिता हैं, जो कि स्वाधिष्ठान चक्र पर अधिष्ठित हैं, वे जब जागरूक हो जाते हैं तो ऐसा आदमी ऐसे-ऐसे सहस्ार आत्मा 11 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt सष्टि उनकी बंधी हुई है। हम क्या सोचते हैं कि सिर्फ हमीं लोग इस दनिया में हैं और इसके अलावा कोई है ही नहीं। आप तो अभी इस स्टेज पर नहीं आये नहीं तो आप जानते कि कितने लोग आपके आगे-पीछे चलते हैं। किस तरह आपकी रक्षा होती है। अभी तो परमात्मा को जाना ही नहीं, उसका सिर्फ नाम ही लेते रहे, उसकी गलतियाँ ही निकालते रहे। उसको दोष ही देते रहे और अगर काम नहीं बना तो कह दिया कि भगवान नहीं है। इससे ज्यादा तो आपने कुछ किया नहीं है आज तक भगवान के लिए। आप चाहे कुछ करें या न करें, वह पिता परमात्मा अत्यन्त प्रेममय, आपके लिए जो कुछ करना है, करता है और करेगा और आपको चाहता है कि आप उसके साम्राज्य में आयें और अपने सिंहासन पर विराजमान हों। यही उसका सिंहासन आपके सहस्रार में है। यहाँ आपको प्रवेश करना है और फिर ब्रहमरन्ध छेदने के बाद उसकी जो कृपा का, आशीर्वाद का अनुभव हैं, वह आप अपनी नसों पर जान सकेंगे. अपने चरित्र में जान सकेंगे अपने व्यवहार में जान सकेंगे, अपने दोस्तों में जान सकेंगे अपने समाज में जान सकेंगे अपने देश में और विश्व में उसे जान सकेंगे। रचना करता है जैसा कि मैंने आपको बताया जितने भी संसार के महान कलाकार हुए हैं, सब के सब आत्म साक्षात्कारी हुए हैं। अगर वे साक्षात्कारी नहीं होते तो वे महान नहीं होते। आजकल हम देखते हैं कि ट्टप्ंजिए कलाकार लोग हैं, ऐसे टूटपंजिए लेखक हैं कि एक मिनिस्टर के यहाँ नौकरी छोड़ी, उसके खिलाफ लिख दिया। अभी यहाँ भाषण में कुछ कहा और बहाँ जा कर कुछ लिख दिया ऐसे ट्ुटपुंजिए लोग तब जब उसके अंदर जागृति हो जाती है तो वे पूर्णता पर आते हैं। तब वे समझते हैं कि यह क्या मैं कौड़ी पर कहा खड़ा था। असल रत्न मेरे अन्दर होते हुए मैं कौड़ी में कहां फंसा था। यह जागूत जब हमारे अन्दर हो जाती है, जब उसके आन्दोलन शरू हो जाते हैं तो ऐसा संगीत अंदर चलता है कि आप कभी अकेले ही नहीं होते। जो लोग कहते हैं कि मैं बोर हो रहा हूँ। यह शब्द ही मिट जाता है। कभी आदमी बोर ही नहीं होता। जो अपने में | व मगन हो गया, वह बॉर कैसे हो सकता है। आजकल बड़ी बीमारी है। लोग कहते हैं कि मैं बोर होता हूँ। मझे यह शब्द ही समझ नहीं आता कि यह क्या होती है बला? ऐसे मगन हो जाते हैं, ऐसे मस्त हो जाते हैं चाहें जंगल में बैठे हों, चाहे किसी के साथ बैठे हों, अपनी मस्ती में आप जमे रहिएगा और आपका व्यक्तित्व, आपकी पसनैलिटी ऐसे निखर जाएगी कि आप जहाँ कहीं भी खड़े रहें आपके अन्दर से इसकी धारायें बहेंगी। वहीं पर जहाँ पर आप खड़े है वहीं पर जों अनेक लोग हैं, उनको भी फायदा होगा। एक बेचारे हमारे सहजयोगी हैं। वह बस से रोहरी से आ रहे थे। बस उनकी ऊपर से नीचे गिर गई। बस इतने नीचे गिर गई कि तीन-चार बार घूम कर बस फिर चारों पहियों यही उसका आशीर्वाद है और आज वह दिन आ गया है कि उसको फिर से प्रस्थापित किया जाए, उसको फिर जाना जाए, उसको भूला.न जाये। घबराने की कोई ऐसी बात नहीं है। समय की बात है, यह समय आ गया है समय-समय की बात होती है। आज बहार आ गई है और हजारों लोग, करोड़ों लोग उस पष्प की स्थिति से अब फल होने जा रहे हैं। परमात्मा आप सब को सूखी रखे। आशा है, सहजयोग में प्राप्त करने के बाद आप लोग अपनी इज्जत करें आप योगीजन हों, उसके प्रति अग्रसर हों। पूरा चित्त लगायें। बैठक करें। बैठक किये बगैर यह कार्य आगे नहीं हो सकता। जागृति आसान है लेकिन इसका पेड़ बनाना आपके हाथ में है। जो कुछ मैंने कहा उसको आज तक नहीं रखना। इसके आगे अगले साल मैं चाहती हूँ कि सब लोग एक बड़े-बड़े वक्ष की तरह इस देहली के शहर में खड़े हो जायें तो देखिये दनिया बदलने में कुछ टाइम नहीं लगेगा। परमात्मा आप सब को सुबद्धि दे। शाम पर खड़ी हो गई। जो ड्राइवर था, वह घबड़ाकर भाग गया। एक साहब ने कहा कि कमाल है, हमें किसी को चोट ही नहीं आई हम लोग सब गोल-गोल घूमते रहे और यहाँ फिर जमीन पर अच्छे से आ गये, गाड़ी ठीक से बैठ गई, यह कैसे हो गया? यहाँ कोई न कोई भगत बैठा है। वे हमारे सहज की अंगठी पहनते हैं। उनको पकड़ लिया। वे माता जी के शिष्य हैं। चलो अब कोई बात नहीं। एक साहब उठे और कहने लगे कि मझे आता है गाड़ी चलाना । गाड़ी में चाबी लगी हुई थी उन्होंने शुरू किया और गाड़ी चल दी। ऐसे अनेकोनेक उदाहरण मैं बता सकतीं हूँ जो घटित हुई हैं। क्योंकि आपको संभालने वाले हैं देवदत, सब साथ हैं सारी महंग्रा 12 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt राज पूजा हैदराबाद - 21.1.94 राजश्वरा आज हम श्री राज राजेश्वरी की पूजा करने वाले हैं। और आपके चक्र ठीक से बैठने लग जाते हैं। जब चक्र खासकर दक्षिण में देवी का स्वरूप अनेक तरह से माना आपके ठीक हो जाते हैं तभी कण्डलिनी जागृत होती है। जाता है। उसका कारण यहां पर आदिशंकराचार्य जैसे इसलिए पहले आप वैष्णव बनते हैं, उसके बाद आप शक्ति अनेक देवीभक्त हो गए हैं। और उन्होंने शाक्त धर्म की बनते हैं। इस प्रकार से दोनों चीजें एक ही हैं। स्थापना की अर्थात शक्ति का धर्म दो तरह के धर्म एक साथ चल पड़े। रामानुजाचार्य ने वैष्णव धर्म की स्थापना की उसमें से राज राजेश्वरी को बहुत ज्यादा माना जाता है। और दो तरह के धर्मों पर लोग बढ़ते-बढ़ते अलग हो गये। असल में जो वैष्णव है उसका कार्य महालक्ष्मी का है और पृथ पर। विष्ण की पत्नी है और इसलिए ये लक्ष्मी का एक महालक्ष्मी के जो अनेक स्वरूप हैं उनको आत्मसात करना हैं। जैसे की धर्म की स्थापना करना और राजेश्वरी का मतलब है कि जब कण्डलिनी नाभि में आ मध्यमार्ग में रहना। न तो बाएं में जाना न दायें में जाना जाती है जहां पर उसे लक्ष्मी का स्वरूप प्राप्त होता है। ऐसा मध्य मार्ग में रहना। इन्हीं को वैष्णव कहते हैं। फिर आगे कहें या लक्ष्मी का परिणाम उस पर आता है। या जब े चलकर वैष्णव धर्म गुजरात आदि सब देशों में सहस्रार। कण्डलिनी नाभि चक्र में आती है। सो लक्ष्मी स्वरूप ये किस वैष्णव मार्ग से जब आप गुजरते हैं, कृण्डलिनी के द्वार तो प्रकार की होती है? इस पर अनेक तरह की लक्षिमियों का आप अन्त में सहस्रार में पहुँच गये। लेकिन सहस्त्रार आरोपण है। गह लक्ष्मी है, राज लक्ष्मी है। इस तरह से किन्तु दक्षिण में देवी के अनेक स्वरूप माने गये हैं और अब देखा जाए तो लक्ष्मी जो है वो वैष्णव पथ पर है विष्णु के अपने में स्वरूप बताया गया है जो कि शक्ति का ही स्वरूप है। राज में पर सदाशिव का स्थान है। सो वैष्णव धर्म अनेक लक्ष्मियों हैं। पर ये लक्ष्मी तभी उन स्वरूपों को ब्रह्मरन्ध करने से आप अन्त में पहुंच जाते हैं सदाशिव के पास जो कि प्राप्त करती है जब इसमें कण्डलिनी की शक्ति आ जाती शक्ति धर्म का ही अंग है। लेकिन ये समझना चाहिए कि है। कण्डलिनी के शक्ति के मिलन से ही ये स्वरूप आता है। कण्डलिनी शक्ति है और कृण्डली शक्ति मध्य मार्ग से ही इसलिए राज राजेश्वरी, कण्डलिनी की शक्ति नाभि पर गुजरती है। तो दोनों को अलग कैसे किया जा सकता है। शक्ति का जो मार्ग है वो भी मध्य मार्ग है। दोनों एक साथ राजेश्वरी मानते हैं। या कहा जाए आदि शक्ति का स्वरूप बंधी हुई चीजों को अलग-अलग कर दिया गया। उसकी नाभि चक्र में जो होता है उसे राज राजेश्वरी कहते हैं। अब वजह ये कि कण्डलिनी का उत्थान उन दिनों में होता नहीं जिस इन्सान के नाभि चक्र में राज राजेश्वरी की स्थापना हो था। महाराष्ट्र में कोल्हापुर में महालक्ष्मी का मन्दिर है जहां गयी. माने गहलक्ष्मी हो गयी बाईं ओर में तो दायी ओर में वो जागृत अवस्था में है। वहां बैंठकर के लोग गाते हैं- राज राजेश्वरी हो गई। राज्यलक्ष्मी की जो अन्तिम स्थिति है उदय-उदय अम्बे। अम्बा तो शक्ति है। कण्डलिनी को अम्बा वो राज राजेश्वरी की है। अब ये राज राजेश्वरी की स्थिति कहते हैं। तो उस महालक्ष्मी मन्दिर में बैठकर के वो गाते हैं में एक सहजयेगी को कैसे होना चाहिए। इसमें लक्ष्मी का तो कि शक्ति तू जागृत हो। उनको यह नहीं पता कि बो क्यों गाते हैं। तो वैष्णव व अपना मार्ग बनाते हैं। रास्ता बनाते हैं, पथ बनाते हैं। और जब वो पथ बन जाता है तब उससे ही है, जितने भी सहजयोगी हैं उन पर लक्ष्मी का आश्शीवाद कुण्डलिनी का जागरण होता है। सहजयोग में हम लोग भी यही करते हैं। जब आप लोग मेरी ओर ऐसे हाथ करके बैठते हैं तो आपके सातों चक्र धीरें-धीरे ठीक होते हैं मानो आप वैष्णव बनते जा रहे हैं। आप चरम से मध्य में आ जाते हैं। आने पर जो स्वरूप धारण करती है उसी को लोग राज 1 आर्शीवाद आना ही है। जब ऐसे मनुष्य पर कुण्डलिनी जागरण के बाद लक्ष्मी का आश्शीवाद आ गया, और आना आ गया है। और कभी-कभी लक्ष्मी काफी बढ़ सकती है। अन अपेक्षित और नहीं भी बढ़ने पर ऐसे इन्सान की तबीयत एक राजाओं जैसी हो जाती है। जब तक आपकी तबीयत श्री राजेश्वरी पूजा- 13 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt वैसी होती नहीं तब तक समझना चाहिए कि कुण्डलिनी अभी नाभि में ही घुम रही है। तबीयत बदल जाती है। सहज योग में आने के बाद जो सबसे,बड़ा चमत्कार होता है कि मनष्य की तबीयत बदल जाती है। उसका स्वभाव बदल जाता है। जो आदमी अलक्ष्मी से भरा है, जिसके अन्दर लक्ष्मी दिखाई नहीं देती, माने ये के बहुत से रईस लोग भी होते हैं लेकिन वो कंजूस होते हैं तो उनको कोई लक्ष्मी पति नहीं कह सकता। उनमें लक्ष्मी का कोई स्वरूप भी दिखाई नहीं देता, भिखारी जैसे रहते हैं हर समय पैसे के लिए रोते हैं किसी के लिए दो पैसा निकालना उनके लिए मुश्किल है। ऐसे जो कंजूस लोग होते हैं उनको कहना चाहिए कि उनके अन्दर अभी कृण्डलिनी का जागरण ही नहीं हुआ। कंजूसी के मारे मरे जाते हैं। इतने कंजूस होते हैं इतना पैसे के बारे में सोचते हैं कि उनका जिगर भी खराब हा सकता है। उनकी शक्ल बिल्कुल भिखारियों जैसी लगेगी। लक्ष्मी को प्राप्त करना ही कार्य नहीं है कुण्डलिनी का। जो लक्ष्मी का स्वरूप है उसको अपने अन्दर उतारना ही कण्डलिनी का कार्य है। तो राज राजेश्वरी जिसको मानते हैं, जो ये कण्डलिनी की शक्ति है जो आपके अन्दर लक्ष्मी पति का स्वरूप उतारती है, वो राजेश्वरी है। इसका मतलब ये नहीं कि आपके पास खुब रुपया पैसा आ जाएगा, पर दानत्व, जैसे कि आप कोई राजा हैं। राज राजेश्वरी का मतलब है कि आप राजा तबियत हो गये। अपने तो राजा लोग भी महाभिखारी होते हैं। और कंजूस. होते हैं झूठे होते हैं पैसा खाते हैं सब काम करते हैं। लेकिन यहां तो शुद्ध स्वरूप कि बात हो रही है। जो राज राजेश्वरी का पूजारी है, जिसने उसे प्राप्त कर लिया उसके इतने गुण होते हैं कि शायद मैं तो राजा तबियत सहजयोगी हो जाते हैं उसके रहन-सहन में भी एक राजा तबियत होती है। बो फटे कपड़े पहन कर के नहीं घूमते जैसे कि हरे रामा वाले लोग हैं। श्री राम का नाम लेते हैं श्री कृष्ण का नाम लेते हैं और कृष्ण स्वयं कुबेर हैं और उनकी प्रजा बनकर भिखारी बनकर घूमते हैं। किसी भी तरह से उनको तो कृष्ण का तत्व ही पता नहीं है। लेकिन सहजयोगियों को पता होना चाहिए कि आपकी तबियत के अनुसार परम चैतन्य आपकी स्थिति बनाएगा। जो आदमी हमेशा पैसे के लिए रोता रहेगा उसकी हालत हमेशा वैसी ही रहेगी। जो इन्सान हर समय पैसे को तोलता रहेगा और देखता रहेगा कि मैं किस तरह से पैसा बनाऊं, यहां तक सहजयोग में आकर लोग चाहते हैं कि सहजयोग में पैसा बनाएं ये तो बिल्कुल ही गये गुजरे लोग हैं। इनसे गए बीते तो कोई भी नहीं है। एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पृछा कि सबसे गए बीते लोग कौन हैं तो उन्होंने कहा कि जो भगवान के मन्दिर में आकर लोगों से भीख मांगते हैं। जब भगवान बैठे हैं तो लोगो से भीख काहे को मांगते हैं। इसी प्रकार सहजयोग में भी ऐसे लोग हैं, बहुत ही कम हैं पर हैं,जो सोचते हैं कि सहजयोग में आकर हम किसी बात से पैसा बनाएं। हमें कुछ लोगों ने बताया कि गणपति पुणे में कुछ लोग सामान लेकर आए थे उसे बेच रहे थे। एक साहब जरूर हैं जो हमसे पूछ कर लाए और उन्होंने बेचा। और जो कुछ भी उनको मुनाफा हुआ वो उन्होंने सहजयोग को दे दिया। मैं ये कहती हैं कि ये भी नहीं करना चाहिए। पर वो कहते हैं कि हमारी वजह से लोगों को सहूलियत होती है। उन्हें साड़ियां मिल जाती हैं। पर जो आदमी सहजयोग में आकर सिर्फ पैसा कमाना चाहता है वो तो ऐसा है कि उसको तो सहजयोगी कहना ही नहीं चाहिए। आप समझ ही नहीं सकते कि राज राजेश्वरी की शक्ति क्या है। उसकी शक्ति से मनुष्य पैसा हो या नहीं हो कोई आपके अन्दर डर, अभाव की भावना ही नहीं रहती कि मुझे कोई अभाव है। पूर्ण लोग होते हैं। मुझे क्या जरूरत है। मैं क्यों डरूं? मैं जहाँ रहूंगा मेरे लिए वहीं समृद्धि है। वही मैं सब कुछ चीज प्राप्त कर सकता हूँ। और वो एक बहुत ही आलीशान तरीके से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उसकी तबियत एक बहुत ही भव्य, महान इन्सान के जैसे होती है। उसको देने में ही मजा आता है लेने में नहीं। कोई आदमी रईस होगा तो अपने घर में कोई गरीब होगा तो अपने लिए। पर अगर वो सहजयोगी है चाहे वो अमीर है या गरीब उसके लिए वो सर आँखों पर। पूरी तरह से उसकी मदद करने को तैयार रहता इस भाषण में न बता सकें। लेकिन सबसे बड़ी वो चीज है कि ये होती है कि उसके अन्दर दानत्व, उदारता आ जाती है। उदार हो जाता है क्योंकि वो जानता है की मैं राज राजेश्वरी कि शक्ति से प्लावित है। मुझे पैसे कि या किसी चीज की दरकार ही नहीं रहने वाली तो क्यों न मजा उठा लं। क्यों न लोगों को चीज देने से मजा उठा लू। पहले जब कोई राजा लोग खुश होते थे तो अपने पास की सबसे कीमती चीज उठा कर दे देते थे। जिस आदमी में उदारता नहीं है, दानत्व नहीं है, उसका अर्थ अभी अधूरा ही पड़ा हुआ है। सबसे पहली चीज तो ये कि कोई राजा किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो गरीब हो जाए और उसकी सारी सम्पति लुट जाए तो भी वो किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो मर जाएगा पर भीख नहीं मांगेगा। आज इ श्री राजेश्वरी पूजा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt बारे में ये वो। तो जाकर देखा बड़ा भारी आलीशान मकान, बहुत शान से रह रहे हैं। पता हुआ कि वो अपने यहा वायसराय थे। लेकिन उन्होंने कहा नहीं अपनी जवान से और पता भी नहीं हुआ कि वह वायसराय थे। और कोई वायसराय से मिल भी नहीं सकता था पहले जमाने में और इतनी नम्रता से उन्होंने बात की, किसी चीज की जरूरत हो तो बताइए। मुझे इतना क्यों महत्व दे रहे हैं। कोई परेशानी तो नहीं हो रही? यहां के लोग अक्खड़ हैं ये बो सब बातें कहीं हिन्दुस्तान के जैसे नहीं है, धार्मिक नहीं है। इतनी सारी बातें करने के बाद भी उन्होंने ये नहीं बताया कि वो यहां वायसराय रह चुके हैं और इतनी उनको श्रद्धा है। हिन्दुस्तान के बारे में है। और इतने प्रेम से हिन्दुस्तानियों की बातें बता रहे थे। अपने यहां तो अगर कोई मन्त्री का सचिव हो जाए तो उसकी खोपड़ी खराब हो जाती है। इस तरह लोगों के दिमागों में थोड़ा सा भी कुछ मिलने पर खोपड़ी खराब हो जाती है और ये लक्षअण राजाओं का नहीं है। राजाओं कि पहली चीज है कि अत्यन्त नम्रता होनी चाहिए। अक्खड़पना आता है किसलिए? अक्खड़पना आता है कि वो सोचता है कि इतना पैसे वाला हूं मैं सब को है। सहजयोग में ऐसे भी लोग हैं जो असहज लोगों के लिए बहुत करते हैं। पर अग्र सहजयोगी कोई गरीब आ जाए तो उसको बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं देते। वो बाह्य के आडम्बरों को देखकर के बहुत से लोग महत्व करते हैं। ये बड़े महान हैं। इनके पास इतनी मोटरें हैं। ये बड़े भारी यहां के मशहूर एक्टर हैं, डाक्टर हैं या आकटिक्ट हैं। बहुत बड़े आदमी हैं। ये जो बाह्य कि उपाधियां हैं, उसका महत्व करते हैं। पर कोई अगर ये सोचता है कि ये जो शक्ति का संचय इसके अन्दर है। इतनी चैतन्य कि लहरें इसमें से बह रही हैं। ये कौन औलिया है? उसको राज तबियत कहते हैं। अपने देश में भी ऐसे बहुत से लोग हो गए हैं शिवाजी महाराज का उदाहरण खासकर सोचने में आता हैं। स्वयं तो वो थे ही आत्मक्षात्कारी और आदर्श परुष पर उनका सन्तों के प्रति जो व्यवहार था वो अत्यन्त सुन्दर और नम्र थे। उनके पास उनके गुरू रामदास एक दिन आए और उन्हें बाहर से ललकारा। शिवाजी महाराज ने एक चिट्टी लिखकर उनकी झोली में डाल दी। उस चिट्टी में लिखा था कि गुरू जी मैंने अपना सारा साम्राज्य और जो मझे महत्व दिया मैंने सोचा कि गुरू रामदास हंसे, हंसकर उन्होंने कहा बेटे हैंम तो सन्यासी हैं, हम क्या तुम्हारे साम्रज्य लेकर करेंगे? तुम तो राजा हो और Sट सकता है झाड़ सकता है। और अगर वो कुछ पढ़ा लिखा है या कोई बड़ी नौकरी में हो, कुछ हो, बड़े बाप का लुम्हारा कर्तव्य है लेकिन हां अगर तम सोचते हो कि इस साम्राज्य को भक्ति से चलाएं तो इसका झंडा जो है, जो हम छाती पहनते हैं, उस रंग का त्रिकोणी झंडा बना लो। उस झंडे से लोग जान जाएंगे कि तुम भी एक सन्यासा भीव बटा है तो बहुत ही अक्खड़ता चढ़ जाती है। उससे तो आप बात ही तहीं कर सकते। अधजल गगरी छलकत जाए जो परिपर्ण है इन्सान वो अत्यन्त नम्र होता है। सादगी होती नहीं है। तुम हो राजा लेकिन उसको तुम जानते नहीं हो कि तुम राजा हो। जो लोग अपने ही मैं राजा हूं. पागल जैसे कहते फिरते हैं फलाना हूं वो होते नहीं हैं और जो होते से लोग आपको दिखाई देंगे। एक बार हम लन्दन में सफर कर रहे थे। हमारे साथ एक साहब बुजर्ग बैठे हुए थे बातें करने लग पारिपूर्ण नहीं है आप झूठा घमंड झूठा गुस्सा और एक अजीब तरह का व्यक्तित्व आप प्राप्त करते हैं कि सब आपका नाम हैं वो कभी कहते भी नहीं। ऐसे बहुत मेरे को ऐसा हो गया मेरे बाप को ऐसा हो गया, उनको ऐसा हो गया मेरे को ऐसा हो गया। मेरे पास पैसे नहीं है मेरे पास ये नहीं है। मुझे ये चाहिए। एक भिखारी जैसे और दूसरे आते हैं वो चिल्लाते हुए तो पहले वैष्णव बनना होगा, मध्य े गये। वहां ज्यादातर औरतों से कोई बात नहीं करते। आपस में ऐसे ही बात करते हैं। लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान में आना होगा। मध्य में आए बगैर आप राज राजेश्वरी की के बारे में बहुत कुछ पूछा, ये कैसे हैं, बो कैसे हैं, तो मैंने में कहा आप हिन्दस्तान में आओ। मैं य भारत में इतने साल था। ऐसी बात नहीं हैं और कुछ नहीं बताया अपने बारे में ही नहीं सकती। जैसे कि प्लास्टिक के पेड़ को पानी डालने से कौन थे क्या थे। उसके बाद वो उतर कर चले गये हम भी फायदी क्या होगा। इसी तरह इन लोगों में एक तरह का उतर कर चले गये। उसके बाद एक दिन हम और हमारे पति जा रहे थे तो उनसे मूलाकात हुई ट्रेन में। तो उन्होंने कहा हमारे घर आइये हम लोग बातें करेंगे हिन्दस्तान के है। दूसरों की चीजों का लालच करने वाले बहुत ही आडम्बर एक तरह का झूठा तमाशा। मनुष्य में लालच एक बहुत गंदी चीज है, अनहोनी चीज 15 श्री राजेश्वरी पूा ग 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt गए-गुज़रे लोग होते हैं। और सहजयोगियों के लिए तो बड़ी परेशानी की बात है। एक तरफ तो वो सहजयोगी हैं और बन्धुत्व में आ जाते हैं अब कितनी बड़ा काम है ये राज दूसरी तरफ लालच ।मगर के मँह में उनका पैर है तो वे नाव राजेश्वरी का कि वो सबके बारे में विचार करती है जैसे एक में कैसे आएंगे? मजा उठाना जब आ जाए और उसका आनन्द लेना, उसका समाधान लेना, जैसे शवरी के बेर उनकी परेशानियों को दर करेगी। वो बैठ कर ये तो नहीं खाकर श्रीराम इतने सन्तुष्ट हो गये। उस चीज को जब गिनेगी की जेवरात कितने हैं, हीरे कितने हैं। वो ये देखेगी आप समझने लग जाएंगे तब कहना है कि आप राज कि मेरी प्रजा में कितने लोग परेशान हैं। छोटी से छोटी राजेश्वरी की शक्ति से प्लवित हैं। पोषित है। प्रेम से अगर चीज उनको क्या चाहिए। इसी तरह आपकी भी तबीयत हो कोई छोटी सी चीज, अब कोई छोटी सी चीज ही दे दे कोई जानी चाहिए। जब तक हम अपने से उठकर विश्व में सुपारी ही दे दे। और मैं सुपारी खाती नहीं हूं तो भी जरूर खाऊंगी। और खाना चाहिए। क्योंकि उससे दूसरा आदमी पूजारी कैसे हो सकते हैं और विश्व निर्मल धर्म कोई बाहर खुश हो जाएगा। उसे क्या पता कि मैं सुपारी नहीं खाती। माने ऐसा है कि कोई सी भी चीज बस्तु संसार की जो भी ऐसे तो हैं नहीं। ये तो अन्दर का प्रकाश है और इस प्रकाश इसमें जैसे शीशे में आप पारा लगा दें, साधारण, सर्व में मनुष्य भव्य व्यक्ति बन कर निकल आता है। वो ये साधारण शीशा, जो पारदर्शी है, उसमें अगर पारा लगा दें नहीं सोचता कि मझे क्या चाहिए क्या करना है। वो ये तो शीशा बन जाता है। इससे आप अपनी शक्ल देख सकते सोचता है मैं औरों के लिए क्या कर सकता हूँ। अभी तो मैं हैं। कोई सी भी वस्तु में आप प्रेम जड़ दे वो वस्तु इतनी कम ही हूं। मां मैंने सौ आदमियों को आत्मसाक्षात्कार सुन्दर हो जाती है फिर ये मन करता है ये किसे दें? जैसे दिया और तो मैं कर ही नहीं पाया। ऐसा जब वो सोचने लग बाजार जाएंगे तो मन करेगा हां ये उन के लिए ठीक है जाता है तब सोचना चाहिए कि उसके अन्दर राज राजेश्वरी अपने लिए क्या ठीक है ये विचार ही नहीं आना चाहिए। इसका अगर विचार छूट जाए कि मैं क्या पसंद करती हूं मुझे क्यों चाहिए तो खो गये। इसका मतलब ये है कि वो नहीं इसको? पैसे से कोई तोल नहीं सकता। किसी भी चीज सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आयी नहीं है अगर से नहीं। अब आज देखिये कि फोन आया रशिया से तो मुझे सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आ गयी तो आप बहुत सौम्य हो जाएंगे और जान लेंगे कि किसे किस चीज की तो कहने लगे खुले में तो मैंने कहा अरे, भई कोई छत वत जरूरत है। जैसे आप कहीं गये और देखा कि सुन्दर सा दीप है उनके घर मैं गयी थी उनके पास दीप नहीं था । उनके लिए माँ ये ठंडी-ठंडी हवा तो बह रही है। तो मैंने कहा होना तो ये दीप ले लेना चाहिए। सबकी जरूरतें समझ में आने लग चाहिए। मुझे अपने सिर पर छत औरों पर नहीं तो मुझे अच्छा जाती हैं जब अपनी जरूरतें कुछ नहीं रहती सबकी नहीं लगेगा तो कहने लगे ऐसा ही है आपके ऊपर छत तकलीफें याद की जरूरत है, किसी के पास एक टेपरिकार्डर नहीं है वो मेरा सबके सर पर छत है तो मुझे बड़ा अच्छा लगा। इसी प्रकार भाषण सुनना चाहते हैं। सब पता हो जाता है और उसको छिंदवाड़े में बड़ी गर्मी हो गयी थी और सब लोग खुले में बैठे वो चीज दे दें तो कहेगा मां ये आप को पता कैसे। पता नहीं थे। परे समय मुझे यही फिकर लगी रही कि ये क्या हो रहा कैसे लग जाता है। इसलिए प्यार को ज्ञान कहते हैं ज्ञान ही है। सब लोग बता रहे थे मां हमको तो ठंड लग रही थी शुद्ध प्रेम है। क्योंकि आप किसी के साथ भी शुद्ध प्रेम करते हैं आपको उसके प्रति सारा ज्ञान आ जाता है। वो चाहे फिर वही राज राजेश्वरी की शक्ति सब जगह सबका हित करती महामाया हो आप जान सकते हैं।पर शुद्ध प्रेम होना चाहिए। शुद्ध प्रेम से सारा ज्ञान आपको मिल जाएगा। कोई सा ज्ञान है। सुख, आनन्द प्रदान करती है। और वो शक्ति आपके हो किसी भी प्रकार का अगर आप शुद्ध प्रेम की दृष्टि से देखते हैं। तो जब आपकी जागृति हो जाती है तो आप विश्व राजा की रानी है तो वो प्रजा की तकलीफें है उन्हें देखेगी. व्यापक नहीं होते हैं तब तक आप विश्व निर्मल धर्म के का तो है नहीं कि जैसे हम हिन्दू हैं, मसलमान हैं, ईसाई हैं। की शक्ति कद रही है। वो कौंध रही है, परेशान कर रही है कि तू करता क्या है? तेरे पास इतनी शक्ति है, त देता क्यों देर हो गयी। रास्ते में मैंने पृछा कि भई कहां बैठे हैं सब लोग नहीं लगाया तमने। तो उनकको मालम नहीं था कहने लगा औरों पर नहीं तो मैंने कहा ये गलत बात है। जब देखा मैंने आ जाती हैं। कोई बीमार है, किसी चीज अन्दर से। इतने धूप में बैठे-बैठे लोगों को ठंड लग रही थी। है। हित से भी ज्यादा कहना चाहिए कि सबको आराम देती अन्दर भी है । उसको आप चाहें तो कहां से कहां पहुंचा सकते हैं। एक पैसे से भी जो काम हो सकता है वो हजारों 16 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt रूपयो से नहीं हो सकता। लेकिन देने की शक्ति महान होनी चाहिए। फिर से कहूंगी कि विदुर के घर जाकर श्रीकृष्ण ने साग खाया लेकिन द्य्योधन का मेवा नहीं खाया। इन सब चीजों में बड़ा भारी संकेत है। वो ये कि प्रेम से भरी चीज उसका दाम किसी भी चीज से तोल नहीं सकते। सो वैष्णवों को चाहिए कि अपने लक्ष्मी तत्व को साफ करें और उसके लिए मेरी जरूरतें कुछ नहीं है सारी जरूरतें दूसरों कि हैं, इसलिए मैं सहजयोग में आया हं, ऐसे विचार लाइये। कंल आपको आश्चर्य होगाकि कार्यक्रम के बाद इतने लोग मान नहीं होगा। कोई कार्य वहां ठीक से हो ही नही सकता। कारण स्त्री जब शक्ति है। अगर समझ लीजिए इसमें माइक) अगर बिजली नहीं होगी तो मेरा बोलना बेकार है। इतनी बड़ी भारी चीज यहां लाकर रख दी और ये किसी काम की नहीं इसमें अगर बिजली नहीं है तो। अगर घर की स्त्री को आप इस तरह से दबाएंगे और उसका मान नहीं रखेंगे तो शक्ति आपके अन्दर दौड़ नहीं सकती। सबसे बड़ा दोष है। कल क्या कभी भी नहीं हुआ मुझे ऐसे कार्यक्रम के बाद कि दायां हृदय इतने जोर से पकड़ गया। मैं तो सोचती थी ये चीजे उत्तरी भारत में ज्यादा हैं पर दक्षिण भारत में और भी ज्यादा हैं। हिन्दुस्तानियों में दोष है कि नारी की शक्ति का मान नहीं रखते। सबसे बड़ा दोष है। इधर देखें तो देवी की पूजा करेंगे। कन्या रूप में मानेंगे। सब रूप में मानेंगे पर गृहलक्ष्मी के रूप में नहीं मानेंगे। इसलिए आज साफ-साफ बता रहे हैं कि अगर आप सहजयोगी हैं तो अपनी स्त्री के प्रति आदर युक्त रहें। खुले आम मैंने सुना कि आप झाड़ते रहते हैं। पुरुष को कोई अधिकार नहीं है कि नारी का अपमान करे। किसी भी वजह से मेरे विचार से एक ये चीज ठीक हो जाए तो राज राजेश्वरी की शक्तियां जागृत हो जाएंगी। पूरी तरह से समझ लेना चाहिए कि पति पत्नियां एक ही रथ के दो चक्के हैं। एक बायां और एक दायां। बायों दायें में नहीं जा सकता दायां बायें में नहीं जा सकता। पर दोनों का स्थान जरूरी है। दोनों एक जैसे ही हैं पर स्थान अलग-अलग हैं। इनका मतलब कोई ऊंचा नीचा नहीं हो। सकता। अगर रथ ऊंचा नीचा हो जाए तो आगे जाएगा ही नहीं। गोल-गोल घूमता रहेगा। बच्चे भी आपसे यही सीखेंगे । जो बच्चे मां का आदर नहीं करते वो क्या सीखेंगे? दुनिया में वो मेरा क्या आदर करेंगे? इसलिए आप सबसे विनती है कि आप घर की नारी का अपमान नहीं करें। उसे किसी तरह से नीचा नहीं दिखाएं। उसकी शक्ति आपके लिए बहुत जरूरी है। उसी तरह स्त्री को भी सहज में उतर कर अपनी शक्ति को सम्हाल लेना चाहिए। और शक्ति में उतर जाना चाहिए। आए। मुझे बड़ा आनन्दआया। पर एकदम मेरा दायां हृदय पकड़ गया, बुरी तरह से। मेरी समझ में नहीं आया कि यहां दायां हृदय इतनी बुरी तरह से क्यों पकड़ रहा है। ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ। ये वही शक्ति है जिसने संकेत दिया। फिर मैंने पूछा कि यहां गृहलक्ष्मियों का क्या हाल है। हैदराबाद में लोग गृहलक्ष्मी से किस तरह से व्यवहार करते हैं। तो पता हुआ कि बहुत ही बुरी तरह से व्यवहार करते हैं। उनकी कोई इज्जत ही नहीं करते। और हर समय झाड़ते रहते हैं। माँ की इज्जत करते हैं पर बीबी की नहीं करते, कहते हैं मुस्लिम प्रभाव आया हुआ है। पता नहीं है औरत की इज्जत करने के लिए कितना बताया गया है करान में, वो नहीं करते। बेवकफी है। उसमें जितनी इज्जत औरत की है और कहीं है ही नहीं। तब मुझे समझ में आया कि जहां स्त्री की पूजा होती है, यत्र नार्या पूजयन्ते तन्त्र रमन्ते देवताः। जहां स्त्री की इज्जत नहीं होगी वहा पर कभी देवताओं का वास हो तहीं सकता। निःसन्देह कहना चाहिए कि अगर आपने अपनी पत्नी की पूर्णतः इज्जत की तो बच्चे भी आपकी इज्जत करेंगे और वो एक दूसरे-की इज्जत करेंगे। ये निश्चित बात है। पर अगर स्त्री स्वयं ही पूजनीय न हो और वो इस तरह के कार्य करती है जो पूजनीय नहीं है तो फिर उसको ठीक करना चाहिए। लेकिन अगर वो अच्छी औरत है और वो बच्चों को संभालती है, घर को प्रेम से रखती है ऐसी औरत की इज्जत घर में ही नहीं समाज में भी होनी चाहिए। आप सोचिए कि मेरा दायां हृदय पकड़ गया और मैं आधे घंटे तक तड़पती रही। वो तड़पन जो आप अपनी पत्नियों को देते हो वो मेरे अन्दर आ गयी। अब हो सकता है कि स्त्री इतना ज्यादा सहजयोग नहीं समझती हो बुद्धि से, पर हृदय से समझती हैं। स्त्रियां हृदय से चीज को समझती हैं, और पुरूष मस्तिष्क से समझता है। लेकिन हृदय से समझना भी बहुत बड़ी चीज है। और स्त्री को हमेशा शक्ति स्वरूपा माना गया है। जिस घर में स्त्री का आप इतने लोग पूजा में आए हैं और सारे भारतवर्ष से लोग आए हैं मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। अब सहज वास्तव में ही समग्र हो रहा है और इतने प्यार से ये सब चीजें हो रही हैं, हर जगह जब भी देखती हूँ लगता है सहज जोरों में फैल रहा है। पर एक ही बात को जान लेना चाहिए कि हम कितने गहरे उतरें। ये जरूरी है। तादाद बहुत हो जाए गिनती बढ़ जाने से कुछ फायदा नहीं होगा। जब तक को श्री राजेश्वरी पूजा 17 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt आपके अन्दर सहजयोग के मूल्य नहीं उतरेंगे, श्रेष्ठता नहीं आएगी । आप अगर राज राजेश्वरी को मानते हैं तो उसकी शक्ति का होनी चाहिए। गहनता के बिना तो ऐसा हुआ जैसे एक चोला बदलकर आपने दसरा पहन लिया। अन्दर कछ भी नहीं। ये अन्दरूनी शक्ति हैं, येशक्ति आपके व्यवहार में, बातचीत.में दिखनी चाहिए। प्राद्भाव, अभिव्यक्ति आपके अन्दर हमारा अनन्त आशीर्वाद 18 प 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt श्री गणेश पूजा दिल्ली 05.12.1993 अपना मल निकाल कर, उनके मल में तो चैतन्य भरी हुई है, उससे श्री गणेश बनाए और उनको बाहर बिठा दिया। उस वक्त एक बात समझनी चाहिए कि गणेश जो बनाया वो सिर्फ आदि शक्तित ने बनाया। उसमें सदाशिव का बड़ा भारी हाथ नहीं था। परमात्मा का इसमें हाथ नहीं था। सिर्फ आदिशक्ति ने श्री गणेश को बनाया। इसी तरह से आप समझ सकते हैं ईसा मसीह को ये जो कहते हैं कि गैबरील ने आकर जब मेरी को बताया कि तुम्हारे पेट से जग का उद्घारक पैदा होने वाला है तो वो कुंवारी थी। तो कुंवारेपन में किसी के यहां बच्चा हो. तो अपने यहां उसे बड़ी शुभ बात नहीं समझते पर अति शुभ कैसे श्री गणेश हैं? उनको ये इस यात्रा की शुरूआत हो रही है और इस मौके पर जरूरी है कि हम गणेश पूजा करें खासकर दिल्ली में गणेश पूजा की बहुत ज्यादा जरूरत है। हालांकि सभी लोग गणेश के बारे में बहुत कम जानते हैं। और क्योंकि महाराष्ट्र में अष्ट विनायक हैं और महा गणपति देव तो गणपति पले में हैं। इसलिए लोग गणेश जी को बहुत ज्यादा मानते हैं। लेकिन उनकी वास्तविकता क्या है? गणेशश जी हैं क्या? इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। अब जो भी बात हम आपको बता रहे हैं यह सहजयोगी होने के नाते आप लोग समझ सकते हैं। आम दुनिया इसे नहीं समझ सकती। एक लोग हद तक आम दुनिया, विशेषकर बद्धि परस्त सहजयोग को देख सकते हैं। किन्तु इस योग को घटित होने पार्वती जी ने सदाशिव की गैरहाजिरी में बनाया। में जो देवी देवता मदद करते हैं वो इसे नहीं मानते। और हिन्दुस्तानी बहुत आसानी से समझ सकते हैं । पर विदेशी परमचैतन्य को भी अनेक तरह के नाम दे कर के वो लोग इसको नहीं समझ सकते क्योंकि वो ईसामसीह को समझाते हैं। कि ये अंतरिक्षीय (Cosmic) है पता नहीं वो मनुष्य ही समझते हैं, इससे ऊंचा नहीं उठ सकते। इसलिए भी समझते हैं कि नहीं। तो सबसे पहले इस पृथ्वी की रचना उनको जो बौद्धिक परत है वो इतनी आमादा हैं कि किसी होने से पहले परमात्मा ने ही सोचा आदिशक्ति ने यहीं भी तरह से नहीं मान सकता कि कौमार्य अवस्था में इस सोचा कि इस पृथ्वी पर सबसे पहले पावित्र्य आना चाहिए, तरह ईसा मसीह का जन्म हो सकता है। अब इसी बात की पवित्रता आनी चाहिए। और पवित्रता जब वहां लाई ओर गौर करें। अब आप लोग सहजयोगी हैं और आप लोगों जाएगी उसके बाद सृष्टि में चैतन्य चारों ओर कार्यान्वित ने चमत्कार देखे हैं। चैतन्य ने अनेक चमत्कार किए हैं। होगा लेकिन ये समझ लिजिए कि परम-चैतन्य चारों ओर जिसका असर आप पर भी आ गया है और दुनिया कि तरफ फैला हुआ है। लेकिन उसका असर तभी आता है जब आपकी नजर बदले गयी ये जिन्होंने पाया है वो सोचने लगे आपके अन्दर पवित्रता होगी अगर आप पवित्र नहीं है, हैं कि जो दुनिया में हम लोग देखते हैं वो माया उससे परे आपके विचार शुद्ध नहीं हैं या आप किसी और ही सतह पर एक और दुनिया है ये सत्य है। ये सहजयोगी देखते हैं वो रह रहे हैं, तो आप सहज कि गहराई में नहीं उतर सकते। ये अपनी उंगलियों पर जान सकते हैं कि श्री गणेश की सूक्ष्मता जो आपने सहज में प्राप्त की है। इसमें सबसे बड़ा अभिव्यक्ति जो हुई वह सत्य है। जहां तक कि मैंने ग्रीस में काम श्रीगणेश ने किया है। तो श्री गणेश परम चैतन्य के देखा कि ग्रीस में अथेना (आदिरशक्ति) का अवतरण हुआ। और जब वहां गयी और उनको देखने गयी और पड़ोस आलोकित हुआ है। और हर एक चक्र पर ये कार्य करते हैं। में जो उनका मन्दिर बना हुआ है तो बाहर उन्होंने बताया हर चक्र में जब तक निर्मलता, पवित्रता न आ जाए तब तक कि यहां एक शिशु देव हैं। आश्चर्य की बात है। उनको कर्णडलिनी का चढ़ना असम्भव है। और चढ़ती भी है तो वो मालूम नहीं है कि यह कौन शिशु देव हैं क्योंकि दूसरे लोगों बार-बार गिर जाती है। कृण्डलिनी और गणेश जी का ने आकर उनकी सारी परम्पराएं नष्ट कर दी हैं। हालांकि सम्बन्ध माँ और बेटा का है। इसकी बात को हम हिन्दुस्तान में अभी भी हमारी परम्पराएं जारी हैं। इसलिए जानते हैं कि जब पार्वती जी नहा रही थी - तब उन्होंने उनको अविश्वास है। जब बातें मानते ही नहीं है। उसी चेतक है। यों कहना चाहिए कि श्री गणेश से ही ये परमचैतन्य धी गणेश पजा 19 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मूलाधार चक्र में, मूलाधार में श्री गणेश विराजे हैं। और उसके कार्य क्या हैं, ये तो आप लोग सब जानते हैं। आपने हमारे फोटो देखे हैं कि हमारे पीछे श्री गणेश खड़े हैं हमारे ऊपर भी श्री गणेश हैं। इसी प्रकार आपके साथ भी होता है कि नहीं होता। लेकिन श्रीगणेश की शक्ति जो पवित्रता की है मैं जरूर कहंगी कि हिन्दुस्तान में इसके मामले में सब लोग जानते हैं कि हमको पवित्र रहना है। परदेस में नहीं । परदेसियों को तो पहले से मलेच्छ कहते हैं माने इनको मल की ही इच्छा है और श्री गणेश निर्मल हैं। हिन्दुस्तानियों में निर्मलता की इच्छा है, बहुत है और अगर नहीं भी है तो कम से कम इसका ढोंग तो करते ही हैं। इसी ढोंगीपन से कम से कम ये फायदा है कि एक मनुष्य में जो भी खराबियों हैं। वो समाज में नहीं फैलती। लेकिन विदेशों में तो वो सोचते हैं कि ये जो खराबियां है इनको कोई बड़ा भारी हम आह्वान दिए हुए हैं, बड़ा भारी कोई कार्य कर रहे हैं। तो खराबियों को अच्छा मान लेना क्या उसमें कोई हम बड़ा भारी साहसकर है ऐसे समझ करके। उसमें रत रहना हम लोगों के हिसाब से तो बेवकूफी है। लेकिन अगर आप अमेरिका जाए तो आपको पता हो जाएगा कि वहां गणेश जी हैं ही नहीं। माने ये कि वो विचार ही नहीं रहे हैं। अब जब उसके कुछ परिणाम दिखाने लग गए जब नुकसान दिखाने लग गए. तब वो सोचते हैं कि हमें तो विश्वास होना चाहिए और हमें सफाई रखनी चाहिए। आधी बातें कट गई और उसका असर अब हमारे यहां है। सहजयोग के सिवा वो लोग नहीं बच सकते। लेकिन आप लोगों के पास तो ये सम्पति है। अगर वहां के लोगों को देखा जाए तो उनके मुकाबले में यहां भी बहुत से लोग हैं गंदे रास्ते पर चलते हैं, गंदे काम करते हैं, पर छुपा कर करते हैं। खुले आम नहीं। मतलब वो जानते हैं कि इस चीज से समाज में प्रशंसा नहीं होगी। विशेषकर जो लोग बाहर हो कर आए हैं उनमें ये दोष पाया जाता है। बड़े चरित्रहीन होते हैं और चरित्रहीनता को वो बड़़ा भारी कमाल समझते हैं और सोचते हैं इसमें तो खास बात है। हम कोई बिशेष सन्दर हैं, हमारे अन्दर यह विशेषता है। इस प्रकार का आरोप करते अपने पर बहुत गर्व करने लग जाते हैं। अबोधिता की जो शक्ति है वो ये कि येअबोध हैं। माने ये कि उसके अन्दर किसी तरह की खराबी नहीं है। कोई खराबी दिमाग के अन्दर नहीं है। वो बिल्कुल साफ सुथरा इन्सान है। ईसा मसीह ने कहा था कि जब तुम्हारे उत्थान का समय आए तब तम बच्चों जैसे हो प्रकार अन्य एक जगह है, जहां हम गये थे, वहां पर उन्होंने कहा कि ये नाभि है और एक ऐसा गोल सा चट्टान जैसा पत्थर का टीला था। बहुत चैतन्य उसमें बह रहा था। पीछे से ऐसी लहरियां आने लग गई मैंने मुड़कर देखा तो वहां साक्षात गणेश खड़े हैं। उनको क्या मालम कि गणेश क्या होते हैं? मैं देख कर हैरान हो गयी। स्वयम्भ और इतने चैतन्यपर्ण। लेकिन बिना सहजयोग के गणेश के पास जाना बहुत मुश्किल है और उसके बाद भी जो धर्म के लोग आए, जिन्होंने वाकई धर्म जाना उनका चित्त धर्म पर था कि लोग स्वच्छ हो जाए, पवित्र हो जाए और लोग ऐसी दशा में चले जाएं कि संब उनका उद्धार होने का समय आएगा उस वक्त वो साफ हों इसलिए उन्होंने धर्म की ओर ज्यादा ध्यान दिया कि लोगों का धर्म कैसे ठीक किया जाए। जिससे कि लोगों में वो स्थिति आ जाए कि वो अपना आत्म साक्षात्कार आसानी से प्राप्त करें। हमारे यहां भी नानक आदि बड़े बड़े गरू हो गए हैं उन्होंने यह मेहनत की कि मनुष्य कम से कम धर्म पर चलना सीखे। यानि कि वो सन्तलित रहे माने उसके अन्दर के जो विचार हैं और वो पाप पुण्य में पुण्य ही देखता रहे। श्री गणेश का कार्य और तरह का है। श्री गणेश अपनी शक्ति से ही दक्ष बन गए। उनकी शक्ति सबसे बड़ी है अबोधिता। उनके सिर पर हाथी का जो सिर है उसका मतलब यह है कि उनमें मनुष्य जैसे अहँ और प्रति अहँ नहीं है। और वो बच्चे हैं तो कहना चाहिये शाश्वत शिशु हैं। और उनका अवतरण इस संसार में ईसा मसीह के नाम पर हुआ। अब उसका हम लोग विज्ञान से हर प्रकार का अनुमान लगा लेते हैं। तो ऐसे कि मैंने कहा था कि श्री गणेश एक शक्ति है निराकार में और साकार में श्री गणेश जैसे हैं। ईसका मतलब ये कि हमारे यहां अगर भोलापन, सादगी, विश्वास हो, ऐसे निर्मल अन्तकरण से श्री गणेश सरलता, कि जागृति हो सकती है। श्री गणेश के बगैर तो कृण्डलिनी चढ़ नहीं सकती क्योंकि कण्डलिनी गौरी है और उस गौरी को उत्थान करने में श्री गणेश उसके साथ हर समय उसे संरक्षित करते हैं। इतना ही नहीं हर चक्र पर जब कण्डलिनी कृण्डलिनी को गिरने से रोकते हैं। अब ये श्री गणेश हमारे अन्दर मूलाधार पर बैठे हैं इसी में बहुत लोगों ने गलती कर दी मुलाधार चक्र जो है वो तिकोनाकार अस्थि में है। यह बहुत बड़ी गलती है। मूलाधार में सिर्फ कृण्डलिनी है और मूलाधार से नीचे हुए चढ़ जाती है तो उसके मुंह को बंद करके श्री गणेश पूजा 20 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt जाओगे। उस वक्त और भी शक्तियां जो गणेश जी की हैं। स्वास्तिक को इस्तेमाल कैसे किया जाय। कोई भी इस्तेमाल वो छोड़ के वो आपमें सिर्फ अबोधिता भर देते हैं। जिसके कर सकता है। वो तो अबोध हैं न। लेकिन वो अपना असर सहारे आप अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करते हैं । अब दिखाते हैं। जैसे हमने कहा था कि श्री गणेश को किसी तरह किसी बुद्धिमान से बात करें जो बुद्धि पुरस्तर है, वो यह नहीं की अभद्रता पसंद नहीं है, गलत काम उन्हें पसंद नहीं है। समझ पाता कि गणेश जी ही कैसे हमारे देवता हैं? बो और महाराष्ट्र में श्री गणेश के उत्सव होते हैं। पूना में मुझे समझाने कि बात ऐसी है कि जब तक आप सक्ष्म नहीं होते देखते-देखते इतनी हैरानी हुई कि वहां के लोग गणेश के सामने हैं आप समझ नहीं पाएंगे कि आपके अन्दर ये सब देवता हैं। जो अराधना करते हैं बाद में और पहले बहुत गंदे गीत गाते श्री गणेश के चार हाथ हैं। मैंने बताया था कि कार्बन कण हैं। डिस्को डांस करते हैं और इतने गंदे कपड़े पहनते हैं। की चार संयोजकताएं (बैंलेन्सीज) होती हैं। निराकार में सब आप उनको बाईं ओर से देखते हैं तो बो स्वास्तिक रूप में गणेश से डरना चाहिए और अपने भाषण में मैंने कहा था दिखाई देते हैं। फिर आप दाईं ओर से उनको देखते हैं तो वो ओंकार दिखाई देते हैं बहुत से ओंकार। जितने कार्बन एटम हैं वो ओंकार से दिखाई देते हैं। और नीचे से ऊपर को अगर आप देखें तो बीच में अल्फा और ओमेगा दिखाई देते हैं। ईसा रहे थे। तभी भूकम्प ने सब नाश कर दिया। हम लोग मसीह ने कहा था मैं अल्फा और ओमेगा हूँ। अल्फा माने सोचते हैं, ऐसा परदेश में ये सब हो रहा है। तो यहाँ पर शुरूआत और ओमेगा माने अन्त। और उसके जो प्रतीक बने हुए हैं वही प्रतीक बिल्कुल आपको दिखाई देंगे। इन्होंने गए और दनिया भर की गंदगी आ गयी हजारों लोग इनसे उन पर काम किया। मैं जो भी कहती हैं ये विदेशी लोग खत्म हुए चले जा रहे हैं। वहां कि जो नाश शक्ति है, एकदम से बड़े जोर से उसका पता लगाते हैं। तो उन्होंनें विनाश शक्ति है वो अन्दर से चालित है। हम लोग यहां देखा कि जब इन्होंने कार्बन एटम का फोटो लिया तीन दिशाओं बैठे-बैठे समझ ही नहीं पा रहे हैं। 65% लोग अमेरिका में से तो बराबर तीनों प्रतीक नजर आए। सिद्ध हो गया कि एकदम जर्जर हो जाएंगे। अनेक तरह की बीमारियां है जो ईसा मसीह जो थे अल्फा और ओमेगा बन गाए वहीं उसकी हम लोग यहां सुनते भी नहीं है वहां हो रही हैं। यहांँ जड़ें थी। वहीं ओंकार थे और वही स्वास्तिक। स्वास्तिक कीड़े-मकोड़े, मच्छर आदि इतने हैं, सब तरह की गरीबी है अगर ठीक से बनाया हो, उसकी गति दायीं ओर को होती है पर मनुष्य साफ हैं। अब ये कह नहीं सकती वो स्वास्तिक प्रगतिशील होता है। और उसकी गति यदि मनुष्य की क्या स्थिति होने वाली है। पावित्र्य के विरोध बायीं ओर हो गयी, चक्र उल्टे हो गए तो मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है। उसे हर तरह कि बिमारियां हो जाती हैं। और के खिलाफ जाना है। फ्रायड जैसे कुछ गंदे लोग आए और फिर ऐसी बिमारियां हो सकती हैं जो आप विल्कल भी किसी उन्होंने ये सब कहा कि यह सब गलत है इससे कोई फायदा भी तरह से ठीक नहीं कर सकते। जैसे कि आप जानते हैं कि नहीं होगा और मां के साथ यह पवित्रता बनाई ही नहीं जा हमारे जो स्नाय है वो एक बार शिथिल होने लग जाते हैं। सकती। बो मरे हैं कैंसर की बीमारी से, बहुत परेशानी उसे आर्श्वराइटिस की बीमारी हो जाती है। उसमें आदमी भृगत कर। हिलने लग जाता है और उसकी बिमारी ठीक नहीं होती। धीरे-धीरे उसके स्नायु जो हैं कमजोर होने लग जाते हैं। ये श्री गणेश की उल्टी दशां में घूमने की वजह से होता है। वही वो डाक्टर सिर्फ दैहिक रोगों को ठीक करते हैं, श्री गणेश हाल हिटलर का हुआ था। हिटलर ने श्री गणेश की शक्ति उन को भी ठीक करते है। अब ये बात जो सहजयोगी नहीं हैं इस्तेमाल करने के लिए स्वास्तिक बनाया। जब तक वह उसको बताने कि नहीं है। वो कहेंगे कि ये क्या है कि हाथी सीधी तरह से बना था। तब तक बो काफी बचे रहे । फिर ये को पूज रहे हैं। और ये गलत काम कर रहे हैं। पर वो एक स्टेसिल उन्होंने दसरी तरफ से इस्तेमाल करना शुरू किया तो उल्ट गया उसके उल्टे हो जाने से ही हिटलर हारा। स्वास्तिक का इलम बहुत से लोग समझते नहीं कि है। इसलिए प्रतीक बनाए जाते हैं । और ये प्रतीक हम लोग औरतें भी कम नहीं। तो मैंने उनको बताया था कि श्री कि ये भूः तत्व के बने हैं। और ज्यादा हुआ तो भुकंप आ जाएगा और वही बात हुई। जिस दिन गणेश जी का विसर्जन हुआ उसके बाद घर पर आकर सब लोग शराब पीकर नाच भी क्यों न हो? अब वहां पर बीमारियां आ गयी। एड़्स आ कि आगे जाना माँ के खिलाफ़ अपराध करना है। एक पण्य शक्ति की श्री गणेश जी को ठीक करने से मनो दैहिक बीमारियां जो हैं जिन का इलाज डाक्टर लोग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि प्रतीक है। और ये जो प्रतीक होते हैं ये सब बनाए जाते हैं जव शब्दों में बताया नहीं जा सकता न समाया जा सकता जानते थे। आज लोग कहते हैं कि ये कल्पनाए हैं और इस श्री गणेशा पूजा 21 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt तरह से आप कल्पना में गहरे उतर गए। लेकिन सहजयोग में आज यही प्रतीक सिद्ध हो गए हैं। ये बास्तविक है ये प्रतीक रूप से जो आपके सामने सत्य में आ गया कि ये सच्चाई है। लेकिन मनुष्य कि बद्धि कहां तक जा सकती है? उसके सिवाए बो ऐसी चीजों को मान ही नहीं सकता जो दिखती नहीं है उसके लिए आँखें मुंद कर वो कभी सोचे कि ये जो प्रान्त है, क्षेत्र है जिसे मैंने जाना नहीं है, इसको अगर जानना है तो मेरी अन्दरूनी दशा समझनी होगी। क्योंकि इस तरह से अपना चित जो गणेश की तरह बड़ा सुन्दर है वो श्री गणेश की ही शक्ति है क्योंकि वो सत्य असत्य विवेक बुद्धि हैं। नीर क्षीर विवेक बुद्धि। संस्कृत में एक श्लोक है कि हँस भी सफेद हैं और बग्ला भी। तो दोतों में क्या अन्तर है? अन्तर ये है कि हँस दध में से पानी अलग कर देता है पर बगुला ऐसा नहीं कर सकता। इस प्रकार ये जो देवी विवेक बद्धि जो है, देखा जाए तो श्री गणेश की शक्ति है। सहज योग में आपको इतनी शक्ति आ जाती है, क्योंकि आत्मा स्वरूप श्री गणेश का प्रकाश जब हमारे अन्दर आ जाता है और फिर हम इस प्रकार से सोचते हैं कि अरे ये तो बेकार है। अब श्री गणेश की पूजा हो रही है, ये हैं मानव स्थिति में मैं इसे नहीं जान सकता। मैं दिल्ली के लिए इसलिए कह रही थी कि श्री गणेश कि पूजा आवश्यक है कयोंकि श्री गणेश और गौरी का सम्बन्ध नितान्त है, शाश्वत और जब तक यहां थरी गणेश की तो है, घटे बज रहे हैं। पर उनसे कुछ फायदा नहीं है। स्थापना नहीं होगी, तब तक यहां जो समस्याएं है, खासकर राजनैतिक समस्याएं वो ठीक नहीं होंगी। उसके लिए ऐसे करनी चाहिए, मतलब कि अपने अन्दर वो पवित्रता जो श्री लोग चाहिए जो पवित्र हैं और जो बच्चों जैसे भोले हैं। तो गणेश का आशीर्वाद है वो आना चाहिए अब लोग कहेंगे कि लोग कहेंगे कि बच्चे जैसे लोग शासन नहीं कर सकते मां वो कैसे आएगा आपको सिर्फ इस पर ध्यान करना है। लेकिन ऐसे लोग हैं कहां ऐसे लोग जब प्रशासन में आएंगे तो आपको पता होगा। श्री गणेश जो हैं वो बृद्धिमान हैं ही लेकिन बुद्धि है, ये उनको पता है और उसके कारण मनुष्य जो सत्य हैं उसी को प्राप्त करता है। और परी उसमें अपनी खा रहे हैं। वो हर समय ये सोचते हैं कि पैसा बहुत बड़ी जान लगा देता है। ये जो पाप कर्म हैं इसी के लिए तो चज है। सोचते हैं इसका पैसा खाओ, उसका पैसा खाओ। लोग पैसा इकट्ठा करते हैं । जैसे आप लोग किसी को पैसा दे दीजिए तो फौरन वो किसी गलत चीज के हैं। आपको क्या जरूरत है किसी से पैसे लेने की और उन्हें पीछे दौड़ेगा या शराब पीना शुरू कर देगा। लेकिन अगर आप गणेश के पूजारी हैं तो आप ये सब कभी नहीं करेंगे। क्योंकि ईसा मसीह ने जब उनका अंवतरण लिया तो हमारे उधर चित्त ही नहीं जाता। ये जो मां के विरोध में पाप हो सर में, आप जानते हैं, कि आज्ञा चक्रकी दो खिड़किया हैं. एक आगे एक पीछे। आगे वाली जो हैं उससे हम देखते हैं, पाप जो हैं ये अत्दर ही अन्दर आपको खाते हैं। सारी बाई उससे आँखों की चालना होती है। इसलिए जिस आदमी के गणेश गड़बड़ हो जाते हैं उनकी आँख स्थिर नहीं हो वीमारियाँ भी हैं। ऐसे अनेक तरह की बीमारियाँ जो आज सकती, घूमती रहती है। और ईसा मसीह ने तो अधिक सूक्ष्म बात कहीं। Though shall not have adultrous eyes, आपकी दूष्टि अपवित्र नहीं होनी चाहिए' माने आंख में किसी भी तरह का लोभ या मोह या फिर दोनों तरफ से। और बाईं तरफ की बिमारीयां हैं तो अपवित्रता नहीं होना चाहिए। ऐसी शद्ध आँखें होनी चाहिए प्रकाश या दीप जलाने से निकल सकती है। लेकिन दीप जो बताईये कि ईसाई लोगों में, अगर आप लोग परदेस में जाएं, है श्री गणेश का दीप है। अन्धकार को दूर करना बो जानते तो आपको बहुत कम लोग मिलेंगे, जो आंखें नहीं घुमाएंगे। नहीं तो सारे आंखे घुमाते हैं। उसका असर चित्त पर आता उसका विसर्जन भी ठीक से होता है ये काम भी उनका है। है। उसका कारण ये है कि अपने अन्दर बसे श्री गणेश की पूजा ध्यान धारणा से अन्दर से सारी सफाई हो जाएगी। बाई ओर की सफाई श्री गणेश को पाने से होती है। आपको चाहिए कि एक बार आप माँ की ओर नज़र करें और एक बार पिता की ओर नजर करें इसमें हिन्दस्तानी बहुत मार में जो विवेक है, सत्य, असत्य क्या ये नहीं सोचते कि आपके पिता परमात्मा से धनवान कौन ठगने की? ये इसलिए होता है जब आप अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। पर गणेश जी के आशीर्वाद से वो ज्यादा गहन हैं। अब ये बात समझ लीजिए कि ये गए ओर की बिमारियां आप लगा लेते हैं। फिर मनो दैहिक कल हैं वे अधिकतर आपका गणेश तत्व खराब होने के कारण है। अगर आप सहजयोगी हैं तो आपको रोज ध्यान करना होगा। बाईं ओर से ध्यान कीजिए फिर दायीं ओर से एक कहीं हैं। जिससे कि हमारा खान पान ठीक तरह से पचता है और इस प्रकार हम अपने में शरीर का इतना विचार करते हैं कि 22 श्री गणेश पूजा াt 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt रोज शरीर को धोएंगे ये करेंगे बो करेंगे, उससे ज्यादा हमें अन्दर की नवीनता की ओर नजर करनी चाहिए। शीशे में अपनी तरफ देखकर कि मैं ये क्या कर रहा हूँ? और श्री गणेश का आह्वान करना चाहिये। उनसे कहना चाहिए कि आप आइए विराजिए। और सिर्फ मूलाधार पर ही नहीं पूरे सारे चक्रों में आप आइये। आज्ञाचक्र पर ईसा मसीह ने कहा है कि "मैं ही मार्ग हूँ, मैं ही द्वार हूँ। अलग-अलग तरीकों से उसका अनुवाद हुआ है पर उन्होंने ये नहीं कहा है कि मैं लक्ष्य हूँ। ये उन्होंने कभी नहीं कहा है। ठीक है अगर वो आत्मा हैं तो आत्मास्वरूप भी हैं। पर फिर उन्होंने आदि शक्ति पर छोड़ दिया। पर लाँछन लग सकते हैं। किसी भी उम्र में लग सकते हैं । पर हम तो माँ हैं न। हमारे ऊपर कोई लांछन नहीं लग सकता और वो तो पुरूष थे। और वो अगर अपनी सोलह हजार शक्तियों को अपने साथ रखते तो लांछित हो जाते । उनकी 16,000 शक्तियाँ और पाँच-पंच महाभूत थे। ये इन सब शक्तियों से उन्होंने सोचा शादी कर लेते हैं। तो ये उनकी शक्तियां थी जिनसे उन्होंने शादी की, इस प्रकार हमारे यहां भी समझने की जरूरत है। कि ये जो परमात्मा के अवतरण हैं इन्होंने ऐसे काम क्यों किये जो कि समाज रीतियों से अलग हैं। देखने में ये सब गलत हैं। क्योंकि ये अवतरण परमात्मा का अंश है, यानी परमात्मा का स्वरूप ही है। वो जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे उनके अन्दर श्री अब अगर आप किसी भी धर्म को पढ़ें तो आपको आश्चर्य होगा कि हर ग्रन्थ में पवित्रता पर ही जोर दिया है। गणेश पूरी तरह जागरूक हैं। इस प्रकार हमने सोचा की ये पवित्रता जो की श्री गणेश की शक्ति है और जब मनुष्य उस पवित्रता का और अपना मान नहीं रखता उसकी भाषण देने से भी नहीं होगा। उनको अपने अन्दर जागरूक मर्यादाएं नहीं रखता तब उसको ये तकलीफ देने लग जाते हैं करना होगा। ये जागृति, आप सब को मिल गई। लेकिन श्री गणेश मतलब ये कि श्री गणेश हट जाते हैं। और वो कभी-कभी मैं देखती हूँ कि यह डावां डोल है। जैसे ही ये डावां अगर हट गए तो उनकी शक्तियां भी हट गयी। और वो डोल होती है चित्त भी डावां डोल हो जाता है। फिर ऐसे जो फिर कोई भी बीमारियां हो सकती है। सहजयोगियों को चाहिए कि वो श्री गणेश को नमन करें जब भी कोई गलत अभी अन्दर उतरे नहीं है। अपने चरित्र का मान रखना, या विचार दिमाग में आए तो उनकी शद्धता से वो सफाई करें। अपनी आत्मिक जो चीजें हैं उनका ध्यान रखना, उनको उनकी सफाई और मेहनत से मनष्य शद्ध हो जाता है। कुछ खुले आम रास्ते पर देखना या उनका प्रदर्शन करना या लोगों ने श्री गणेश को सिम्पैथेटिक पर घमते देखा और उनको नष्ट करना ये सब बातें सब बहुत गलत हैं। और समझ नहीं पाये। वे उसी को कण्डलिनी समझबैठे। इसी से कोई समझ नहीं सकता कि चित्त कितना बावला हो जाता बहुत गड़बड़ बात हो गयी। अपने अन्दर की धरोहर जो है। और इसी वजह से जब चित्त बावला हो जाता है तो हमारी विरासत है ये पवित्रता को समझना चाहिए। विवाह चित्त आपका कहीं भी जा सकता है और फिर आपको कोई भी उसी पवित्रता का बन्धन है। तो जिन लोगों ने धर्म को भी बीमारी लग सकती है। कोई सी भी पीड़ा लग सकती है. संभालने की कोशिश की, हम दस गुरूओं को मानते हैं, कुछ भी हो सकता है। एक सहजयोगी को श्री गणेश को उन्होंने विवाह के प्रति बहुत जागरूकता प्रकट की। जैसे पूरी तरह हृदय से मानना पड़ेगा। उनकी स्तति सबने की है, नानक साहब ने कहा। मोहम्मद साहब ने इतनी शादियां अलग-अलग तरह से। मोहम्मद साहब ने भी ईसा क्यों की? उस समय इतने लोग मारे गये थे, इतने पुरूष लोग मारे गये थे कि आदमी ही नहीं बचे थे। और औरतों के स्वरूप है। पूरी तरह से ये निष्कलंक है। और यही बात अपने पास कोई व्यवस्था ही नहीं थी कि वो कछ न कुछ ऐसे बारे में सोचना है कि हम अपने को निष्कलंक करें। ये कार्य कामों में लग जाएं जिससे कि वो अपना धन उपार्जन कर बुद्धि परस्तर होने से नहीं होगा। आप अपने चित्त को ही सकें। उस बक्त तो कोई व्यवस्था ही नहीं थी। लोग करते क्या? और विवाह एक बन्धन है। जिससे कि मनुष्य पवित्र रहें। इसलिए मोहम्मद साहब ने इतनी शादियां करके और करने हैं । ये सब गंदगी है तो कोई दुनिया की कोई शक्ति आपको उन लोगों को बचाने की कोशश की, उन औरतों को, जो उसमें फंसा नहीं सकती। इसलिए मैं कहती हूं कि वच्चों कि गलत रास्ते पर जा सकती थी इसको समझने के लिए जैसे बनें। उनका सहज-स्वभाव, उनका भोलापन। पर आप श्री कृष्ण को भी देखिये। उनकी सोलह हजार पत्नियां थी और पाँच और पत्नियां थीं। अब वो परूष थे और पुरूषों अभाव आ रहा है। न जाने कैसे गंदे काम करके बच्चों को सिर्फ श्री गणेश पूजा करने से ठीक ही होगा और उनके सहजयोगी हैं हम उनको कहते हैं कि ये आधे अधूरे हैं। मसीह की स्तुति की क्योंकि वे जानते थे कि ये कृष्ण का ही समझाएं की भई गलत काम मत कर। अगर आप इस बात पर पूरी तरह से जम जाएं कि हमें ये सब गंदे काम नहीं आज मैं देखती हूं कि परदेश में इसका बड़ा जबरदस्त श्री गणेश पूजा 2৭ 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt नष्ट कर देते हैं। शायद कोई बड़ी भारी नकारात्मक शक्ति चल रही इनका सर्वनाश करने के लिए। हिन्दुस्तान में यह बात बिल्कुल भी नहीं है। बच्चों को बताया जाए कि तुम ये काम मत करो, वो काम मत करो। पर परदेश में तो बच्चों को जैसा चाहो वैसा कर लो। बच्चों को कहना होगा कि ये गलत काम है और हम ये नहीं चाहते। उसके लिए हम आपको पैसा नहीं देंगे। आप समझ जाइये। नहीं तो हमारा समाज भी उसी तरह से हो जाएगा। उसकी अच्छाई तो आई नहीं उसकी बराई आ गयी आशा है आप लोग समझगए हैं कि गणेश जी का कार्य महत्वपूर्ण है क्योंकि वही आपकी जागृति करते हैं। आपके चक्रों को शुद्ध करते हैं। उनमें प्रकाश डाल देते हैं और आपको हमेशा प्रकाश की ओर अग्रसर करते हैं। आपकी नजर हमेशा प्रकाश की ओर रहती है। ये चीज आपको आत्मसात करनी होगी कि हम श्री गणेश को कभी भी अपमानित नहीं करेंगे, कभी भी। आप लोगों में, जो दिल्ली के हैं, आशा है आज की पूजा के बाद एक नया धर्म प्रस्थापित होगा। दो तरह के लोग होते हैं। शुभ और अशुभ। ऐसे जो शुभ लोग हो जाते हैं उनकी एक नजर काफी है दूसरे आदमी को ठीक करने के लिए । एक नजर काफी है। वो नज़र जिसे कहते हैं कटाक्ष कटाक्ष निरीक्षण। बाईं ओर की सारी समस्यायें ठीक. हो सकती हैं। अगर आप अपने गणेश को जागृत कें। बाह्य में नहीं। बाहय में बिल्कुल नहीं। अन्दर की चीज है। जिसे आप लोग प्राप्त करें। उसके प्रकाश से आप प्रकाशित हों और सारे ब्रह्मांड परउनकी शक्ति का प्रादर्भाव हो, चेतना आ जाए और लोग उसको मानें। यही हमारा आशीवांद है। थी सणेश पजा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt जन्म दिवस पूजा दिल्ली 30.03.90 आज नवरात्रि की चतुर्थी है और नवरात्रि को आप जानते हैं रात्रि को पूजा होनी चाहिए। अन्धकार को दूर करने के लिए अत्यावश्यक है कि प्रकाश को हम रात्रि में ही ले आए। आज के दिन का एक और संयोग है। कि आप लोग हमारा जन्म दिन मना रहे हैं। आज के दिन गौरी जी ने अपने विवाह के उपरान्त श्री गणेश की स्थापना की। श्री गणेश पवित्रता का स्रोत है। सबसे पहले इस संसार में पवित्रता फैलाई गई जिससे कि संसार में आए मनष्य पावित्र्य से सरक्षित रहें। और अपवित्र चीज़ों से दूर रहे। इसलिए सारी सुष्टि को गौरी जी ने पवित्रता से नहला दिया। और उसके बाद ही सारी सूष्टि की रचना हुई। सो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि हम अपने अन्दर पावित्र्य को सबसे ऊँची चीज समझें। लेकिन पावित्र्य का मतलब यह नहीं कि हम नहाएँ, धोएं, सफाई करें, अपने शरीर को ठीक करें किन्तु अपने हृदय को स्वच्छ न कर सकें। और पाप कर्म न करे। लेकिन ये मनुष्य का कार्य नहीं। ये तो देवी का कार्य है जो इन्होंने नवरात्रि में किया। सो हृदय को विशाल करके हृदय में ये सोचें कि हम किससे ऐसा प्रेम करते हैं जो निर्वाज्य, निर्मम है जिसके प्रति हमें ये नहीं कि ये मेरा बेटा है ये मेरी बहन है मेरा घर है। ऐसा प्रेम हम किससे करते हैं? किसके प्रति हमें ऐसा प्रेम है। मनुष्य की जो स्थिति है उससे बहुत ऊंची स्थिति में आप आ गये हैं क्योंकि आप सहजयोगी हैं। आपका योग परमेश्वर की इस सुक्ष्म शक्ति से हो गया है। वो शक्ति आपके अन्दर बह रही है। आपको प्लावित कर रही है, आपको संभाल रही है, आपको उठा रही है। बार-२ आपको प्रेरित करती है आपका संरक्षण करती है और आपको अहूलाद, मधुमय प्रेम से भर देती है। ऐसी सुन्दर शक्ति से आपका योग हो गया किन्तु अभी भी हमारे हृदय में उसके लिए, कितना स्थान है? ये देखना होगा। हमारे हृदय में माँ के प्रति तो प्रेम है ये तो बात सही है। माँ से तो सबको प्यार है और उस प्यार के कारण आप लोग आनन्दित हैं, बहुत आनन्द में हैं। किन्तु दो प्रकार का प्रेम और होना चाहिए। तभी माँ का प्रेम हो सकता है। एक तो प्यार कि अपने से हो कि हम सहजयोगी हैं, हमने सहज में शक्ति प्राप्त की लेकिन अब हमें किस तरह से बढ़ना चाहिए। बहुत से लोग सहज योग के प्रसार के लिए बहुत कार्य करते हैं जिसे हम कहें क्षितिजीय प्रसार। पृथ्वी से समानान्तर चारों तरफ फैलता हुआ। वो लोग अपनी तरफ नजर नहीं करते तो उत्थान की गति को नहीं प्राप्त होते। बाह्य में बहुत कुछ कर सकते हैं। बाह्य में दौड़ेंगे, बाह्य में काम करेंगे कार्यीन्वित होंगे। सबसे मिलेंगे, जलेंगे। लेकिन अन्दर की शक्ति को नहीं बढ़ाते। बहुत से लोग हैं अन्दर की शक्ति की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं और बाह्य हृदय का सबसे बड़ा विकार है क्रोध। क्रोध आ जाता है तो जो पावित्र्य है वो नष्ट हो जाता है क्योंकि पावित्र्य का दूसरा नाम निर्वाज्य प्रेम है। वो प्रेम जो सतत बहुता है और कुछ भी नहीं चाहता। उसकी तृप्ति उसी में है कि वो बह रहा है और जब नहीं बह पाता तो वह परेशान होता है। सो पावित्रय का मतलब यह है कि आप अपने हृदय में प्रेम को भरें, क्रोध को नहीं। क्रोध हमारा तो शत्र है ही लेकिन वो सारे संसार का शत्रुहै। दनिया में जितने युद्ध हुए, जो भी हानियां हुई हैं ये सामूहिक क्रोध के कारण हुई। क्रोध के लिए बहाने बहुत होते हैं। मैं इसलिए नाराज हो गया क्योंकि ऐसा था मैं उस लिए नाराज हो गया क्योंकि वैसा था। हर क्रोध का कोई न कोई बहाना मनुष्य ढंढ सकता है लेकिन युद्ध जैसी भयंकर चीजें भी इसी क्रोध से ही आती हैं। उसके मूल में क्रोध ही होता है। अगर हृदय में प्रेम हो तो क्रोध नहीं आ सकता और अगर क्रोध का दिखावा भी होगा तो भी वो प्रेम के लिए| किसी दृष्ट राक्षस को जब संहार किया जाता है तो वो भी उस पर प्रेम करने से ही होता है क्योंकि वो इसी योग्य है कि उसका संहार हो जाए जिससे वो की शक्ति की तरफ नहीं। तो उनमें सन्तुलन नहीं आ पाता और जब लोग सिर्फ बाह्य की ओर बढ़ने लग जाते हैं तो उनकी अन्दर की शक्ति क्षीण होने लग जाती है, और क्षीण होते-होते ऐसे कगार पर पहुंच जाते हैं कि फौरन अहंकार में ही डूबने लगते हैं। सोचते हैं कि देखिये हमने कितना सहज 25 जन्म दिवन पूजा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt कि तुझे जो कुछ करना है वो कर, जहां जाना है जा। जाना है तूने नर्क में नर्क में जा। तुझे अपने को मिटा लेना है मिटा ले। अपना सर्वनाश करना है वो भी कर ले। जो तुझे करना योग का कार्य किया। हम सहजयोग के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं और फिर ऐसे लोगों का नया जीवन शुरू हो जाता है जो कि सहजयोग के लिए बिल्कुल उपयक्त नहीं। और बो अपने को सोचने लगते हैं कि हम बहुत भारी एक अगुआ हैं और हमारा बहुत महत्व होना चाहिए। जैसे कि जिसे स्व-महत्व कहते हैं। सो हर जगह देखते हैं कि हमारा महत्व होना चाहिए हर चीज़ में वो कोशिश करेंगे कि अपना महत्व दिखाएं, अपनी विशेषता दिखाएं अपने को बहुत बड़ा दोष है कि हम एक सामूहिक, विराट शक्ति हैं। सामने करें लेकिन अन्दर से खोखलापन आता है। उसके बाद हठात देखते हैं कि उनको कोई बिमारी हो गयी, पगला गये वो। कुछ बड़ी भारी आफत आ गयी तो फिर कहते हैं जाए जो अपना-अपना समूह बना लें तो जैसे कैंसर के जहर कि माँ हमने तो आपको पूरी तरह समर्पित किया हुआ है तो फिर ये कैसे हो गया, ये हमने कैसे पाया, ये गड़बड़े कैसे हो गयी। इसकी जिम्मेदारी आप ही के ऊपर है कि आप बहकते चले गये। फिर ऐसे आदमी एक तरफा ही जाते हैं को सब नदियों को अपने अन्दर समाता है और बगैर समुद्र वो दूसरों से सम्बन्ध नहीं कर पाते। उनका सम्बन्ध इतना ही होता है कि हम किस तरह से रौब झाड़ें लोगों पर और किस तरह से दिखाएं कि हम कितने ऊँचे इन्सान हैं। और वो दिखाने में ही उनको महत्व लगता है। सबसे आगे उनको आना चाहिए। सबमें उनका महत्व होना चाहिए। अगर किसी ने उनका थोड़ा महत्व नहीं किया तो गलती हो गयी। यहां तक हो जाएगा कि उसमें ये भूल ही जाएंगे कि माँ का भी कुछ करने का है। माँ के लिए भी कुछ दान देना है। इसी प्रकार मैं देखती हूँ कि राहोरी जैसी जगह, बम्बई में हर जगह इस तरह के कुछ लोग एक दम से उभर कर ऊपर आ गये और वो अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझने लगे फिर वहां न तो आरती होती थी और नसीब हमारा, वहाँ फोटो तो रहता था लेकिन फोटो पोछने की भी किसी का मंड़ते नहीं क्योंकि वो जानते हैं कि ये समुद्र है। इस समुद्र क इच्छा नहीं थी। नसीब अपने कि फोटो अपना नहीं लगाया। अपना ही महत्व, अपनी ही डींग मारना और वो डींग मार-मार के अपने को बहुत ऊँचा समझने लगे दसरों से। अलग किसी से कुछ पछना नहीं। कुछ नहीं हम ही करेंगे। फिर झगड़े शुरू हो गयें। झगड़े शुरू होने पर ग्रुप बन गये। क्योंकि जिस सूत्र और उसी सूत्र में अगर आप बंधे रहे और पूरे समय ये जानते रहे कि हम एक ही माँ के बच्चे हैं, न हममें कोई ऊँचा है न कोई नीचा, न ही हम कोई कार्य को करते हैं। ये चैतन्य ही सारा कार्य करता है हम कुछ करते ही नहीं है। ये भावना ही जब छूट गयी और ये कि हम इतने बड़े हैं हम ने ये किया हम ये करेंगे वो करेंगे। तब फिर चैतन्य कहता है लैं है वो त कर। वो फिर आपको रोकेगा नहीं क्योंकि आपकी स्वतन्त्रता बो मानता है। आप न्क में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है और स्वर्ग में जाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है। पर सहजयोग में एक और बड़ा दोष है। एक हम अकेले अकेले नहीं है। सब एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग है। उसमें अगर एक इन्सान ऐसा हो जाए या दो चार ऐसे हो का एक कीटाण ही बढ़ने लग जाता है वैसे ही एक आदमी बढ़कर के और सारे सहज योग को ग्रस्त कर सकता है। और हमारी सारी मेहनत व्यर्थ जा सकती है। हमको तो चाहिए कि समुद्र से सीखें कि जो सबसे नीचे रहकर के ही सब चीज के तो ये सृष्टि चल नहीं सकती। अपने को तपा कर के बाष्प बेना कर के दुनियां में बरसात की सौगात भेजता है। उसकी जो नम्रता है, वही उसकी गहराई का लक्षण है और उस नम्रता में कोई ऊपरी नम्रता नहीं की नमस्ते भाई साहब। नमस्ते कुछ नहीं सबसे नीचे, सबको ग्रहण करके सबको अपने अन्दर लेकर सबको शुद्ध करके और फिर भाप बना कर बरेसात करना। और फिर बही बरसात नदियों में पड़कर दौड़ती हुई समुद्र की ओर दौड़ेगी और इस समुद्र की पहचान, अगर आप किसी समद्र के किनारे गए हों, तो देखिए कि वहां जितने भी नारियल के पेड़ हैं वो सब समुद्र की ओर ही झुके हुए हैं। इतनी जोर की आंधी चलती हैं. भी हो जाए लेकिन वो कभी भी समुद्र से दूसरी ओर कुछ समान ही अपना हृदय विशाल तब होगा जब हमारे अन्दर अत्यन्त नम्रता और प्रेम आ जाएएगा। लेकिन अपना ही महत्व करना, अपने को ही विशेष समझना। ये जो चीज है इसमें सबसे बड़ी खराबी यह है कि परम चैतन्य आपको काट देगा। तुमको तुम्हारा महत्व है तुम जाओ। और फिर में आप बंधे हुए हैं वो आपके माँ का सूत्र है जैसे कोई नाखन काट कर फैंक देता है इस तरह से आप एक तरफ फिक जाएंगे। जो मेरे लिए तो बड़ी दुख दायी बात होगी। और दो चार लोग और ऐसे निकल आए जो सोचे कि हम बहुत काम करते हैं, हमने ये कार्य किया हमने वो कार्य किया, उनको फौरन ठंडा हो जाना चाहिए। पीछे हटकर देखना चाहिए कि हम ध्यान करते हैं? हमारा ध्यान लगता है? हम कितने गहरे हैं? और फिर हम किसको प्यार करते 26 जन्म दिवस पुजा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt काम ही नहीं करेगी। किसी काम की नहीं रह जाएगी। फिर आप कहेंगे कि माँ मैं तो इतनी पूजा करता हूँ इतने मन्त्र हैं? किस-२ को प्यार करते हैं? कितनो को प्यार करते हैं? कितनों से दश्मनी लेते हैं। सहज योग में कुछ लोग बड़े गहरे बैठ गये हैं, बहुत गहरे आ गये हैं इसमें कोई शंका बोलता हूँ। मैं तो इतना कार्य करता हूँ। फिर मेरा हाल ऐसा नहीं। और बहुत से अभी भी किनारे पर डोल रहे हैं। और क्यों है। क्योंकि आप विचलित हैं। फिर वो कब फिंक जाएंगे कह नहीं सकते क्योंकि मैंने आपसे पहले ही बताया है कि १९९० साल के बाद एक नया आयाम खुलने वाला है। और एक छलांग आपको मारनी होगी जो आप इस स्थिति से निकल कर उस नयी चीज को शक्ति से। सो दोनों ही चीज की तरफ आपको ध्यान देना पकड़ लेंगे। जैसे कि चक्का है जब घूमता है तो एक बिन्दु है। कि हम अपनी शक्ति को भी संभालें और सामूहिकता में पर आकर आगे सरक जाता है इसी प्रकार सहज योग की प्रगति भी सामूहिक होने वाली है और इसमें टिकने के लिएलेकिन बाह्य में आप बहुत पहली चीज हमारे अन्दर पावित्र्य होना चाहिए जो नम्रता से देखे हैं जो सहज योग के लिए बहुत कार्य करते हैं और काफी भरा हो। वैसे तो आपने दुनिया में बहुत से लोग देखे हैं जो अपने को बड़ा पवित्र समझते हैं। सुबह शाम सन्धया करते हैं और किसी को छुने नहीं देते। ये खाना नहीं खाएंगे, वो तो लोग हमारे टेप छोड़कर उन्हीं की टेप सुनते थे। और आएगा तो कहेंगे कि तुम दूर बैठो, उनको छ लिया तो उनकी हालत खराब। ये पागलपन है अगर आप एकदम स्वच्छ हैं, पवित्र हैं तो आपको किसी को छने में बात करने में,अपवित्रता आनी ही नहीं चाहिए क्योंकि आपका स्वभाव ही शुद्ध करने का हैं आप हर चीज को ही शुद्ध करते हैं तो आप जिससे मिलेंगे आप उसी को शुद्ध करते जाएंगे। उसमें इरने की कौन सी बात है? उसमें किसी को ताड़ने की कौन सी बात है? उसमें काना फंसी करने की कौन सी बात है? तो ये तो लक्षण एक ही है कि आपकी स्वयं की पवित्रता कम है। अगर आपकी पवित्रता सम्पूर्ण है तो उस पवित्रता में भी है। लोग मुझे कहते हैं कि माँ बो तो बड़े अगुआ थे। ये थे। शक्ति और तप है और वो इतना शक्तिशाली है कि वो कोई हाँ थे तो सही लेकिन वे गये कहां सहज योग से। क्या करें। सी अपवित्रता को भी खींच सकता है। जैसे मैंने कहा कि हर तरह की चीज समुद्र में एकाकार हो जाती है। अब दूसरे क्यों निकल गए। क्योंकि सन्तुलन नहीं और जब सन्तुलन लोग है जो सिर्फ अपनी ही प्रगति को सोचते वो ये सोचते नहीं रहता है तो आदमी या तो बायें में चला जाएगा या दायें हैं कि हमें दूसरे से क्या मतलब? हम अपने कमरे में बैठ कर माँ की पूजा करते हैं, उनकी आरती करते हैं, उनको मानते हैं और चाहते हैं कि हमारी उन्नति हो जाए। हमें दुनिया से कोई मतलब नहीं और दूसरों से कटे रहते हैं। ऐसे लोग भी बढ़ नहीं सकते क्योंकि आप एक ही शरीर के अंग प्रत्यंग हैं। समझ लीजिए कि एक अंग्ली ने अपने को बांध लिया और कहेगी कि मझे किसी और से कोई मतलब नहीं अलग से रहूँगी। ये तो अंगुली मर जाएगी। क्योंकि इसमें रक्त कहाँ से में बहुत से लोग कम हो गए हैं। मैं क्या करू? और अगर आएगा? इसमें नस कैसे चलेगी? इसमें चेतना का संचार कैसे होगा? ये तो कटी हुई रहेगी। आप एक बार इसे बाँध कर देखिए और पाँच दिन बाँधे रखिये। आप पाएंगे कि अंगुली आप हट गए हैं, उस सामूहिक शक्ति से आप हट गए हैं। सहज योग सामूहिक शक्ति है। इस सामूहिकता से जहाँ आप हट गए वहीं पर आप अलग हो गए उस सामूहिक रचते जाएं। तभी आपके अन्दर पुरा सन्तुलन आ जाएगा। कार्य करते हैं । मैंने ऐसे लोग अच्छे भाषण देते थे। उनके भाषणों की उन्होंने फिर टेप बना ली। फिर लोगों से कहने लगे कि आप हमारे टेप सुनो। उनका यह हाल था कि जैसे दिन हम यहाँ बैठे हैं हमारे फोटों को तो नमस्कार करते थे हमें नहीं करेंगे। क्योंकि उनको फोटो की आदत पड़ी हुई है। हमसे उन्हें कोई मतलब नहीं। उन्हें फोटो से मतलब है। ऐसे-२ विक्षिप्त लोग हमने देखे हैं। फिर उन्होंने अपने फोटो छपवाए और फोटो सबको दिखा रहे हैं कि हम वैसे हैं, कैसे हैं। इस तरह वे अनेक तरीकों से अपने ही महत्व को बढ़ाते हैं। करते-२ ऐसे खड़्ड में गिर गए। अनायास उनके समझ में नहीं आया और एकदम पता हुआ कि सहज योग से छूट गये कहीं भी नहीं एकदम काफूर हो गए। कहाँ? पता ही नहीं। तो ऐसे लोग हैं। में चला जाएगा। और जैसा मैंने कहा कि दो तरह की शक्तियां हमारे अन्दर हैं जिससे हम सहज योग की ओर खिचते भी हैं और फैंक भी दिए जाते हैं। एक रस्सी में अगर आप पत्थर बांध कर घुमाएं तो पत्थर घुमता रहेगा। जब तक रस्सी से बंधा है। जैसे ही रस्सी से छुट जाएगा, दूर फैंका जाएगा। इसी प्रकार बहुत से लोग सहज योग से निकल गए। और फिर लोग कहते हैं देखिए माँ सहज योग कम हो गए हैं तो उसमें सहज योग का कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसमें उनका ही नुकसान हुआ है। सहज योग का बिल्कुल भी नुकसान नहीं हुआ है। क्योंकि जिसको नुकसान 27 जन्म दिवस पूजा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt हमें सहज होना चाहिए। उसके बारे में सोचते भी नहीं। थक गए या आराम भी नहीं किया, कुछ भी नहीं यही मुहर्त है जैसे एक योद्धा अगर लड़ाई में गया है और देखा कि दश्मन खड़ा है, यही समय उसको मारने का है, उसी वक्त उसे मारना चाहिए। उसी प्रकार यही समय है जब हमें यह पूजा करनी चाहिए। तो हम बैठे हैं और आपको भी यही सोचना चाहिए कि यही समय माँ ने बांधा है। यही समय या फायदे से कोई मतलब ही नहीं, ऐसी जो चीज है उसका क्या नुकसान हो सकता है? हाँ अगर आपको अपना फायदा करा लेना है तो आप इस चीज को जान लीजिए की सहज योग को आपकी जरूरत नहीं है आपको सहजयोग की जरूरत है। सो ये योग का दूसरा अर्थ होता है युक्ति एक तो है कि सम्बन्ध जुड़ जाना, दूसरा है युक्ति। ये यक्ति समझ लेनी चाहिए। ये युक्ति क्या है? इसमें तीन तरह से समझाया जा हमारे लिए उचित है, दूसरा नहीं। इसी वक्त पुजा करनी सकता है। पहली तो ये है कि हमें इसका ज्ञान आ जाना चाहिए, ज्ञान का मतलब बुद्धि से नहीं । किन्तु हमें अंग्लियों में हाथ में अन्दर कण्डिलिनी का पूरी तरह जागरण होना ये ज्ञान है और जब ये ज्ञान हो जाता है तब और भी ज्ञान होने नहीं हुई क्योंकि मेरा जो सोच विचार है आपके सोच विचार लग जाता है। बहुत सी बातें जो आप नही समझ पाते थे वह आप समझ पा रहे हैं। और आप समझने लग जाते हैं कि के लिए भी मैं सोचती हूँ। कभी-२ माँ ये आदमी इतना कौन सत्य है कौन असत्य। इस ज्ञान के द्वारा आप लोगों की कुडिलिनी भी जागृत कर सकते हैं और उनको समझा सकते हैं। उनसे आप पूरी तरह से एकाग्र हो सकते हैं। उनके साथ आप वार्तालाप कर सकते हैं इस ज्ञान के कारण। तो आपको ही देखना चाहिए जो मैं देखती हैं। वैसी तो बात नहीं, ये तो बौद्धिक ज्ञान भी आ जाता है। आप सहज योग समझते हैं। कोई समझता था पहले एक ही डोर उडाऊ रे पहले नानक की कोई बात समझता था? या ज्ञानेश्वर की कोई बात समझता था पहले? कोई रहस्यमय चीज या गोपनीय बात कह रहे हैं ऐसे समझ कर लोग रख देते थे। लेकिन सहज योग के बाद आप सब समझने लगे। तो आपका बुद्धिध चातुर्य भी बढ़ गया। उसकी भी चतुरता आ गयी। आप उसको समझने लग गए। ये तोबात ठीक है कि आप उसे समझने लग गए। और ऐसी बातें जो अगम्य थी गम्य हो गईं और सब बातों को आप जानने लग गए। सो तो एक यक्ति हो गयी कि नहीं हुई ये अन्य हुई। तो आपका सोच विचार और कार्य आपने अपना ज्ञान बढ़ा लिया। अब दूसरी युक्ति क्या हैं वो है जो कि आप हमारे प्रति भक्ति करे। उस भक्ति को भी जब आप करते हैं तब आपको अनन्य भक्ति करनी चाहिए आप हमसे तदाकारिता कोई दूसरी चीज आती है तब मैं सोचती हूं कि इन्होंने किसी प्राप्त करें। जैसे हम सोचते हैं वैसा ही आप सोचने लग जाएं। आज देर हो गयी समझ लीजिए तो हम कह सकते थे कि आज बहुत देर हो गयी थी हम थक गए हैं। लेकिन हमने आपको बताई कि आप अपने अन्दर एक अनन्य भक्ति ये सोचा कि नवरात्रि है रात में ही करना है और यही मूहर्त रखें। माँ हम आपकी शरणागत हैं और जब शरणागत है तो हमें मिलना था यही मुहूर्त है इसी वक्त ये पूजा होनी चाहिए। और ये होना ही चाहिए, होना ही है और बड़े आनन्द से हम कर रहे हैं। क्योंकि शुभ महर्त यही है। और चाहिए। लेकिन जो आधे अधूरे लोग हैं वो सोचते हैं कि हम सवेरे से आकर बैठे हैं, हमने ये किया, हमें भूख लग गयी खाना नहीं खाया, बच्चे रो रहे होंगे। तो बो अनन्य भक्ति में नहीं आया। मैं जैसे सोचती हैँ वैसा वो नहीं सोचते। किसी खराब है मैं कहती हूँ कि नहीं बिल्कुल अच्छा है, बढ़िया आदमी है। कैसे कहा आपने? सोचती हैं कि जो मैं देख रही हूँ ये क्यों नहीं देखते? अगर ये वैसे ही हो जाते हैं तो इन्हें वो कुछ और ही देख रहे हैं। तो अनन्य नहीं हुए, अन्य हो गए। उसी प्रकार हमारा प्यार आपके प्रति है। और एक ही चीज से हम तूप्त होते हैं कि आप सबके प्रति एक जैसा प्यार रखें। अगर वो बात आपके अन्दर नहीं है तो फिर लगता है अन्य है अनन्य नहीं। अगर हमारे ही शरीर के ये अंग प्रत्यंग हैं तो जो हम हैं वैसे ही इनको होना चाहिए, जैसे हम सोचते हैं वैसा ही उनको सोचना चाहिए, जैसा हम करते हैं वैसा ही उनको करना चाहिए। तो ये दूसरा क्यों करते हैं? ये उल्टी बात क्यों सोचते हैं? इनके दिमाग में ये सब अजीब-अजीब बातें कहां से आती हैं? सो अनन्य भक्ति ईड़ा, पिगला, सुखमन नाड़ी रे, - और आपका प्रेम वैसा ही होना चाहिए जैसा आप मुझसे प्रेम करते हैं। यही अगर प्रेम का स्रोत है तो जो कएं में है वही घट में आना चाहिए। दूसरे चीज कैसे आ सकती है और जब दूसरे घट कुएं से पानी भरा है। ये घट मेरा नहीं है। अब तीसरी बात जो युक्ति है कि जब मैंने दूसरी बात जब हम कोई बात कह भी दें, या हम आपको कोई चीज समझा दें या कोई आपके सामने प्रस्ताब रखें, कुछ रखें तो उसका मना करने का सवाल ही कैसे उठेगा? अगर आप 28 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt आपके अन्दर अहम् भाव था आप अकेले एक व्यक्ति थे, एक व्यष्टि में थे, अब आप समष्टि में, सामूहिकता में आ और हम एक हो गए तो उसका सवाल ही कैसे उठना चाहिए माँ ने कह दिया तो ठीक है। हम तो माँ ही हो गए हैं। तो हम नहीं कैसे कर दें। जैसे कि मेरी आँख आपको देख रही है तो मेरी आँख जाने की आप लोग बैठे हैं सामने क्योंकि मेरी आँख मेरी अपनी है। तो मैं जो जान रही हूं उसमें और मेरी आंख के जानने में कोई भी अन्तर नहीं। एक ही चीज है। जो मैं बुद्धि से जान रही हैं वही मैं अपनी आँख से भी जान रही हूैँ। तब फिर आपमें तदाकारिता नहीं आती सो ये दूसरी युक्ति है कि माँ मेरे हृदय में आप आओ मेरे दिमाग, विचार जीवन के हर कण में आप आओ। आप जहाँ भी कहोगे हम हाजिर हैं, हाथ जोड़कर। पर आपको कहना तो पड़ेगा न, और पुर्ण हृदय से कहना होगा। किसी मतलब से अगर आप मुझसे सम्बन्ध जोड़ें तो भी वो ठीक नहीं। लेकिन अगर सम्बन्ध जड़ गया तो सारे मतलब अपने आप ही पूरे हो जाएंगे। आपको कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। अपने आप ही जब आपके सारे मतलब पूरे हो गए तो आपका चित्त उसी में लग जाएगा। अब तीसरी जो बात है कि हम ये काम कर रहे हैं। हमने सहज योग का ये काम किया, हमने ये सजावट की, ये ठीक ठाक किया मैंने किया तो सहज योगी आप नहीं है। सहजयोग में आपके सारे कर्म अकर्म हो जाने चाहिए। मैं कुछ कर रहा हूँ मैंने ये कविता लिखी. मैंने ये किया। ये जहाँ तक बारीक, सूक्ष्म में देखते जाए कि मैं सच में ऐसा सोचता हूँ क्या मैं ऐसा सोचती हूँ गए है। तब आप कुछ भी नहीं कर रहे आप अंग प्रत्यंग है और वह कार्य हो रहा है। ये तीसरी युक्ति है इसे समझें। मैं इसलिए यह युक्तियां बता रही हूँ कि अब छलांगे जो लगानी है। इस तरह से आप अपना विवेचन हमेशा करते रहें । और अपनी ओर नजर रखें। इस बक्त सबसे भलाई इसमें है कि हम अपनी ओर नजर करें और अपनी ओर देखें कि क्या मैं ये सोचता हूँ कि वो मुझसे काफी श्रेष्ठ है और मुझे उनसे कुछ सीखना चाहिए। उसके कुछ अच्छे गण मुझे दिखाई देते हैं कि बुरे गुण ही मुझे दिखाई देते हैं? दूसरों के अगर अच्छे गण दिखाई दें और अपने बुरे गुण तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि दसरों के तो दुर्गण आप हटा नहीं सकते। तो दसरों ने क्या किया? दूसरे ऐसे हैं ऐसे सोचने वाले पुरी तरह योग में उतरे नहीं है। मेरे में क्या ऋटि है? यह देखने से ही आप ठीक हो सकते हैं। दूसरों को कहें कि तुम्हें अपना दोष ऐसा ठीक करना चाहिए और वहां के प्रधान मंत्री को जाकर कुछ अक्ल सिखाएं तो वो हमें बन्दी कर लेंगे क्योंकि हमारे देश में तो हम कह सकते हैं क्योंकि ये हमारा देश है। इसी प्रकार हमें जानना चाहिए। इस युक्ति को समझ लेना चाहिए कि इसमें जो हम डावां डोल हैं वो हम अपनी ही वजह से हैं। सहज योग तो एक ब्रहुत बड़ी चीज़ है, बड़ी अभिन्न चीज है। लेकिन इसका जो हम पूरी तरह मजा नहीं ले पा रहे इसका मतलब हममें कोई खराबी है। और इस सबको इस यक्ति को अगर आपमें सीख लिया तो मिलेगा क्या? सिर्फ आनन्द, निरानन्द। और कुछ नहीं। और फिर चाहिए क्या आपकी शक्ल ही बदल जाएगी। आप आनन्द में ही बहने लग जाएंगे। हमारे जन्म दिवस पर मैें चाहूँगी कि आज आपका भी जन्म दिवस मनाया जाए। कि आज से हम इस यक्ति को समझें और अपने को इस पवित्रता से भर दें जैसे श्री गणेश| और पवित्रता से ही मनुष्य में सुबुद्धि आती है। क्योंकि पवित्रता प्रेम ही का नाम है। उसी से, सुबद्धि का मतलब भी प्रेम ही है। सब चीज का मतलब प्रेम है। और अगर आप सुबद्धि को प्राप्त नहीं कर सकते, अगर आप प्रेम को अपना नहीं सकते तो सहज योग में आने से आपका समय बर्बाद हो रहा है। इस बक्त ऐसा कुछ समां बंध रहा है कि सबको इसमें एकदम से एकाकार हो जाना चाहिए। अपने को परिवर्तन में डालना है, परिंबर्तित हमे होना ही है। हममें खराबियां हैं, हमें अपने को पवित्र बना देना है ये आप अपने साथ कितना प्रेम कर रहे हैं। आपका बच्चा जरा 1 क्या इसका मतलब कि मेरा योग परा नहीं पुरा हो जाता है तो फिर आप ऐसा नहीं सोचते। सोच ही नहीं सकते। अर्कमय हो जाते हैं आप। ये हो रहा है वो हो रहा है, ये घटित हो रहा है। वो सब हो रहा है ऐसा बोलने लग जाते हैं और तब कहना चाहिए कि पूरी तरह से तदाकारिता आ गयी। अब मेरा हाथ है वो कछ कार्य कर रहा है, वो थोड़े ही कहता है कि मैं कर रहा हूँ उसको तो पता भी नहीं वो कर रहा है। वो तो हो ही रहा है। उसकी जितनी भी गति है। सो हम ही तो कर रहे हैं तो समझ लें कि ये हाथ कट गया, इससे जुड़ा नहीं। अगर जुड़ा है तो उसे कभी लगेगा नहीं कि मैं कर रहा हूँ, पकड़ रहा हूं कभी भी नहीं लगता। और जब आप ऐसा सोचते हैं मैं कर रहा हूं तभी चैतन्य कहता है 'तु कर और तब सबसे ज्यादा गड़बड़ी शुरू होती है। ये तीसरी युक्ति है उस युक्ति को सीखना चाहिए कि क्या मैं कुछ कर रहा हूँ? एक क्षण विचार करें कि मैं कर रहा हूँ? मैं क्या कर रहा हूँ? जब तक आप प्रकाश ढूंढ रहे थे तब तक आप कुछ कर रहे थे क्योंकि हुआ। जब योग 1. 29 जन्म दिवम पजा heahe 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt सा गन्दा हो जाता है तो आप दौड़ कर उसे साफ कर देते हैं। क्योंकि आपको उससे प्रेम हैं। उसी प्रकार जब आपको अपने से प्रेम हो जाएगा तो आप भी अपने को परिवर्तन की ओर लगाएंगे कि मेरा परिवर्तन कहां तक है। मेरे अन्दर अब भी यही खराबी रह गयी अब भी मैं ऐसा हूँ। और इस परिवर्तन के फलस्वरूप जो आशीवाद हैं. उस जीवन का वर्णन नहीं किया जा सकता। जो कबीर ने कहा कि अब मस्त हुए फिर क्या बोलें। तो आप सब उस मस्ती में आ जाइये उस मस्ती को प्राप्त करें और उस आनन्द में आप आनन्दित हो जाएं। ये हमारा आश्शिवाद है। 30 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt हमारे जीवन का लक्ष्य नवरात्रि पूजा- पुणे 16.10.88 आज हम लोग यहाँ शक्ति की पूजा करने के लिए भविष्य है वो उसे प्राप्त हो सकता है। उस को मिल सकता एकत्रित हुए हैं। अभी तक अनेक संत साधुओं ने ऋषि है पर उसकी पहली सीढ़ी है आत्मसाक्षात्कार। जैसे कि कोई दीप जलाना होतो सबसे पहले है कि उस के अन्दर और जो शक्ति का वर्णन वह अपने गद्य में नहीं कर पाये ज्योती आनी पड़ती है। उसी प्रकार एक बार आपके अन्दर उसे उन्होंने पद्य में किया। और उस पर भी इसके बहुत से ज्योति जागृत हो गई तो आप उस को फिर से प्रज्जवलित अर्थ भी जाने। लेकिन एक बात शायद हम लोग नहीं जानते कर सकते हैं या उस को आप बढ़ा सकते हैं। पर प्रथम कार्य कि हर मनुष्य के अन्दर ये सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में हैं। है कि ज्योति प्रज्जवलित हो। और उस के लिए आत्मसाक्षात्कार नितांत आवश्यक है। किन्तु आत्म- सकता है। ये सुप्तावस्था की जो शक्तियाँ हैं उनका कोई साक्षात्कार पाते ही सारी ही शक्तियाँ जागृत नहीं हो मुनियों ने शक्ति के बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया। और ये सारी शक्तियाँ मनुष्य अपने अन्दर जागृत कर सकती। इसी लिए ये साधु संतों ने और ऋषि मनियों ने अन्त नहीं, न ही उन का कोई अनुमान कोई दे सकता है क्योंकि ऐसे ही पैंतीस कोटी तो देवता आपके अन्दर विराजमान हैं। उस के अलावा न जाने कितनी शक्तियाँ उनको चला रही हैं। लेकिन इतना हम लोग समझ सकते है। कि जो हमने आज आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया है तो उसमें जरूर कोई न कोई शक्तियों का कार्य हुआ। उस कार्य के बगैर आप आत्मसाक्षात्कार को नहीं प्राप्त कर सकते। ये आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करते वक्त हम लोग सोचते हैं सहज में हो गया। व्यवस्था की है कि आप देवी की उपासना करे। लेकिन जो आदमी आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं है, उस को अधिकार नहीं है कि वो देवी की पूजा करे। बहुत से लोगों ने मुझे बताया कि वो सप्तशति का कभी गर पाठ करे और उनका हवन करते हैं तो उनपे बड़ी आफते आ जाती हैं और उन को बड़ी तकलीफ हो जाती है और वो बहुत कष्ट उठाते हैं। तो उनसे ये पछना चाहिए कि आपने किस से करवाया ? तो कहेंगे कि हमने सात ब्राह्मणों को बुलाया था । पर वो ब्राह्मण नहीं। जिन्होंने ब्रह्मा को जाना नहीं वो नहीं और ऐसे ब्राह्मणों से कराने से ही देवी रूष्ट हो गई सदम] बाह्मण सहज के दो अर्थ हैं। एक तो सहज का अर्थ ये भी है कि आसानी से हो गया, सरलता से हो गया और दसरा अर्थ ये होता है कि जिस तरह से एक जीवन्त क्रिया अपने आप हो जाती है उसी प्रकार आपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया। लेकिन ये जीवन्त क्रिया जो है इसके बारे में अगर आप सोचने लग जाए तो आप की बुद्धि कण्ठित हो जाएगी। समझ लीजिए ये आपने एक पेड़ देखा। इस पेड की ओर आप नजर करिए तो आप ये सोचेंगे कि भई ये फलाना पेड़ है। लेकिन इस पेड़ को इसी रूप में, ऐसा ही, इतना ही ऊंचाई पर लाने वाली कौन सी शक्तियाँ हैं? किस शक्ति ने इस को यहाँ पर इस तरह से बनाया है कि जो वो अपनी सीमा में रहकर के और अपने स्वरूप, रूप, उसी के साथ चढ़ता है। फिर सबसे जो कमाल की चीज है वो मानव, मनुष्य जो बनाया गया है वो भी एक विशेष रूप से, एक विशेष विचार, से बनाया गया है। और वो और आपको तकलीफ हुई। तो आपके अन्दर एक बड़ा अधिकार है कि आप देवी की पूजा कर सकते हैं और साक्षात में भी पूजा कर सकते हैं। ये अधिकार सबको नहीं है। अगर कोई कोशिश करे तो उसका उल्टा परिणाम हो सकता है। सबसे बड़ी चीज है कि शक्ति जो है वो जितनी ही आपको आरामदेही है, जितनी वो आपके सूजन की व्यवस्था करती है, जितनी वो आपके प्रति उदार और प्रेममयी है, उतनी ही वो क्रूर और क्रोधमयी है। कोई बीच का मामला नहीं है या तो अति उदार है और या तो अति क्रोधित है। बीच में कोई मामला चलता नहीं। वजह यह है कि जो लोग महा दष्ट हैं, राक्षस है और जो संसार को नष्ट करने पे आमादा है, जो लोगों को भुलभुलैया में लगाये हुए हैं और कलियुग में अपने को अलग-अलग बता कर के कोई साधु बना है तो कोई मनुष्य का जो हमारे जीवन का लक्ष्य 31 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt किस तरह से खत्म कर दं, इसमें मैं क्या इलाज कर लं? और इस तरह से आप षड़यन्त्र बनाते रहेंगे तब तक, आप सच्ची मानिए कि उसका असर आप पे होगा उस पर नहीं। पंडित बना हुआ है, कोई मन्दिरों में बैठा है तो कोई मस्जिदों में बैठा है, कोई मूल्ला बना हुआ है, कोई पोप बना हुआ है तो कहीं कोई पोलिटिशियन बना हुआ है, ऐसे अनेक-अनेक कपड़े परिधान कर के जो अपने को छिपा रहा है। जो कि राक्षसी वृत्ति का मनुष्य है उसका नाश होना आवश्यक है। लेकिन ये जो नाश की शक्तियाँ हैं इसकी तरफ आपको नहीं जाना चाहिए। आप सिर्फ इच्छा मात्र करे और ये शक्तियाँ अपने ही आप कार्य कर लेगी। तो सारे संसार में जो ये चैतन्य बह रहा है ये उसी महा माया की शक्ति है। और इस भहामाया की शक्ति से ही सारे कार्य होते हैं और ये शक्ति रामदास स्वामी ने कहा है कि 'अल्प धारिष्ट पाये' माने आप का थोड़ा सा जो धीरज है उसको परमात्मा देखता हैलेकिन आप के अन्दर इतनी ज्यादा शक्तियाँ हैं, इतनी ज्यादा शक्तियाँ हैं कि उनको पहले आप परी तरह से प्रफुल्लित करना चाहिए। अपने प्रति एक तरह का बड़ा आदर रखना चाहिए उनको जानना चाहिए। अपने प्रति एक तरह को बड़ा आदर रखना चाहिए। अब ये शक्तियाँ नष्ट होती हैं)सहजयोगियों में भी जागती है फिर नष्ट हो जाती हैं जागती हैं फिर नष्ट हो जाती है। उस की क्या बजह है? एक बार जगी हुई शक्ति क्यों नष्ट होती है? जैसे कि एक मनुष्य में आज शक्ति है कि वो बड़ी भारी कला में निपूण हो गया। सहजयोग में अपने से बहुत लोग कला में निपुण हो गये, कला के बारे में जान गये, उनमें एक तरह की बड़ी चेतना आ गई, उनका सृजन बहुत बढ़ गया। लोग देख के कहते हैं कि वह एक कलाकार ऐसा है कि समझ में ही नहीं आता। पर फिर वो उसी कला में उलझ जाता है। फिर उस की शोहरत हो गई, नाम हो गया, उसी में उलझता जाता है। व्यवस्थित रूप से लाती है जिसे कहते हैं आयोजित कर लेती है। और सबसे बड़ी चीज है कि ये आप पर प्रेम करती है। और इस का प्रेम निर्वाज्य है। इस प्रेम में कोई भी मांग नहीं सिर्फ देने की इच्छा है। आपको पनपाने की इच्छा है, आपको बढ़ाने की इच्छा है। आपकी भलाई की इच्छा है लेकिन इसी के साथ साथ जो चीजें कांटे बन कर के आपके मार्ग में रूकावट डालेंगे, आपके घर्म में खलल डालेंगे, या किसी भी तरह से आप को तंग करेंगे ऐसे लोगों का नाश करना अत्यावश्यक है। लेकिन उस के लिए आप अपनी शक्ति न लगाएं। आप को सिर्फ चाहिए कि आप उस शक्ति के लिए सिर्फ आहवान करे देवी का और उनसे जब वो उलझ जाता है इस चीज में तब फिर उस की शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। क्योंकि उस की शक्तियाँ भी उस में उलझ जाती हैं। जैसे कि मैंने पहले भी बताया था कि किसी पेड़ के अन्दर बहता हुआ उसका जो प्राण रस है वो हर चीज में, हर पत्ते में, हर डाली पर, हर फूल में, हर शै में घम घाम कर के वापस लौट जाता है। उसी प्रकार जो भी आप के अन्दर शक्तियाँ आज प्रवाहित हैं और जिन शक्तियों के कारण आप आज कार्यान्वित हैं वो सारी ही चीजें, आप को जानना चाहिए, कि इस शक्ति का ही प्रादर्भाव है और उस में आप को नहीं। आप उस में एक निमित्त मात्र, बीच में हैं। जब आप यह समझ जाएंगे कि हम निमित्तु मात्र हैं तो यह आपकी शक्तियाँ कभी भी दर्बल.नहीं होंगी और कभी भी नष्ट नहीं होंगी। उसी प्रकार अनेक बार मैंने देखा है कि सहजयोगियों का चितु जो है बो ऐसी चीजों में उलझते जाता है। किसी चीज से भी बो बड़प्पन में आ गए किसी भी चीज से उन्होंने बहुत प्रगति पा ली। आप जानते हैं कि बहुत से विद्यार्थी जो कि कक्षा में कुछ नहीं कर पाते थे प्रथम दर्जे में आने लग कहिए कि ये जो अमानुष लोग हैं इनका आप नाश कर दीजिए। ये तो पहली चीज हो गई। सो आप को छुट्टी मिल गई कि आप कोई भी आप पर अगर अत्याचार करें, कोई भी आप से बुराई से बोले, कोई आप को सताये तो आप में एक और निर्विचार हो जायें। तो सारी चीज को देखना शुरू कर दें। एक नाटक के रूप में। जैसे अजीब पागल आदमी है मेरे पीछे पड़ा हुआ है इसको क्या करने का है। उसका पागलपन देखिए उसका मनस्ताप देखिए उसकी तकलीफें देखिए और आप उस पर हँसिए कि अजीब बेवकफ है। उस के लिए आप को कोई तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं उस के लिए सिर्फ आप को आपका जो किला है वो निर्विचारिता उसमें जाना चाहिए। और निर्विचारिता में जाते ही आपकी जो कुछ भी संजोने वाली शक्तियाँ हैं, आनंद देने वाली शक्तियाँ हैं, प्रेम देने वाली शक्तियाँ हैं, वो सब की सब समेट कर के आपके अन्दर आ जाएगी। लोकन जब तक आप इन चीजों में उलझे रहेंगे और जब तक आप ये सोचते रहेंगे कि मैं कैसे इसका सर्वनाश कर दूं, इसको में विशेष रूप से एक स्थिति है जिसमें आप आप साक्षी रूप से उलझने की कोई जरूरत गए। सब कुछ बहुत अच्छा हो गया। तो फिर वो कभी सोचने लग जाए वाह हम तो कितने बड़े हो गए। जैसे ही ये हमारे जीवन का लक्ष्य कु 32 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt सोचना शुरू हो गया बैसे ही ये शक्तियाँ आपकी खत्म हो लोग ऐसे भी होते हैं जो छोटी छोटी बातों पर ही अपने को जाएंगी और गिरती जाएंगी। अब सोचना यह है कि हमें दुखी मानते हैं, बहुत छोटी बातों पर, जैसे आप सब को बैग क्या करना है? जैसा समझ लिजिए किसी आदमी का मिला मुझ एकदम बिजनैस बढ़ गया या उस को खूब रूपया मिलने बड़े अजीब अजीब अनुभव आये कि लोग आये कहने लग गया या उस के पास कोई विशेष चीज आ गई तो उसे लगे कि माता जी हमको इस चीज का डिब्बा दै दो। मैंने क्या करना चाहिए? उसे हर समय सतर्क रहना चाहिए और कहा भई ये भी कोई तरीका हुआ? दूसरे ने कहा कि आपने यही कहना चाहिए कि माँ ये आप ही कर रहे हैं। हम कुछ मुझे इतना दिया लेकिन उस को नहीं दिया। ये कोई बात नहीं कर रहे हैं। ये आप ही की शक्ति कार्यान्वित है। हम हुई? उस मौज में और आनन्द में ये सब सोचने की बात ही कुछ नहीं कर रहे हैं। बहुत जरूरी है कि आप सतर्क रहें नहीं है। छोटी छोटी बात में वो दुखी हो जाते हैं। फिर ऐसी क्योंकि उस के बाद जब आपकी शक्तियाँ खत्म हो जाएगी जिस को बहुत बड़ी बात समझते हैं कि किसी की समझ तो आप खुद ही कहेंगे कि माँ सब चीज डूब गई, सब खत्म लीजिए पति ने विद्रोह कर दिया या किसी पति का रास्ता हो गया। ये कैसे? जो भी शक्ति कार्य कर रही है उस को ठीक नहीं रहा तो उसकी पत्नी रोते बैठेगी। या किसी की कार्यान्वित होने दें। जैसे एक पेड़ है समझ लीजिए उस पेड़ के पत्ते कैसे गिरते हैं। आपने सोचा है? उस में बीच में एक कितनी बार शादियाँ हो चुकी पहले जन्म में और अब इस बुच के जैसी जिसे कोर्क कहते हैं, बीच में आ जाती है। पते और पेड़ के बीच में एक कोर्क आ जाती है। उस के बाद करो। उसी के पीछे में आय लोग रात दिन परेशान रहो कि फिर शक्ति आती ही नहीं। तो वो गिर जाता है पत्ता। इसी मुझ को ये दुख आ गया, मेरे बच्चे का ऐसा हो गया, मेरी प्रकार मनुष्य का भी होता है। आज इस की शक्ति एक बच्ची का ऐसा हो गया उस का ऐसा हो गया, उस का ऐसा महान शक्ति से जुड़ी है और बहाँ से वो उसे प्राप्त कर रहा हो गया। इस का कोई अन्त है? इस को कोई पार कर है। लेकिन जैसे ही वो अपने को कुछ समझने लग जाए या उसके अहंकार में बैठ जाए या उसकी जो अनेक तरह की में ही नहीं आती। इतनी क्षुद्र बात है कि वो मेरी पकड़ ही में गतिविधियां हैं, जिस तरह की स्पर्धा आदि में उलझता जाए नहीं आती। कोई भी आयेगा तो ऐसी छोटी छोटी बातें मुझे तो उसके बीच में एक दरार पड़ जाएगी और उस दरार के कारण बो मनुष्य फिर उसे प्राप्त नहीं कर सकता। जो उसने रहती हूँ। देखिए मैं कहती हूँ कि आप सहजयोगी हैं? सागर प्राप्त किया हुआ है। क्योंकि वो तो एक निमित्त मात्र था। लेकिन जो शक्ति अन्दर उसके अन्दर बह रही थी वो जैसा आपका मैंने मस्तिष्क बना दिया और आप ये क्या शक्ति ही बीच में से कट गई। जैसे के अभी इसकी (माइक) छुटर-पुटर बातें कर रहे हो कि जिसका कोई मतलब ही शक्ति कट जाए, तो शायद मेरा लेक्चर न बंद हो, पर ऐसें नहीं रहता । इसकी बात, उसकी बात, दुनिया भर की हो सकता है। हमको एक बात को खूब अच्छे से जान लेना फालतू की बातें करना और जो सहज की बात है वो बहुत चाहिए कि हमारे अन्दर जो शक्तियाँ जागृत हुई हैं और जो कुछ भी हमारे अन्दर की विशेष स्वरूप के व्यक्तित्व को हमने ध्यान ही नहीं दिया। सहज में तो मौन हो जाता है। प्रकट करने वाली जो नई आभा हमें दिखाई दे रही है इस शक्ति को हमें रोकना नहीं चाहिए। इस के ऊपर हमें यह ह नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ बहुत बड़े हो गए, या हमने अभी तक देखा ही नहीं है महाभारत। जो एक देखा है वो ही कुछ बहुत बड़ा पा लिया। दूसरी तरफ से ऐसा भी होता है काफी है। अब देखने की क्या जरूरत है? अब अपने को कि जब यह शक्ति आपके अन्दर जागृत हो जाती है उस वक्त आप में एक तरह का उदासीपन भी आ सकता है। इस बैठे हुए हैं। अब ऐसा हो आपको महाभारत देखने का शौक तरह का कि अभी दूसरे साहब तो इतने पहुँच गए, हम तो ह वहाँ पहुँचे नहीं। उन्होंने ये कर लिया, हमने ये किया नहीं। छोड़ कर के और आपका सेन्टर छोड़ कर के आप और हर तरह से आदमी उलझते जाता है। और उस में कुछ को बैंग नहीं मिला। गणपति पूणे में हमें 1. पत्नी ठीक नहीं तो पति रोते बैठेगा अरे भई आपकी जन्म में एक शादी हुई चलो इस को किसी तरह से खत्म सकता है? क्योंकि इतनी छोटी सी चीज है कि वो तो पकड़ बताते हैं, मझे बड़ी हंसी आती है। पर मैं चुपचाप सूनती के जैसे तो आपका हृदय मैंने बना दिया और हिमालय के कम होती है। उस में मौन लगता है। क्यों सहज में तो कुछ अभी मैंने सुना कि पुना में लोग जरा कम आने लग गए हैं, ध्यान में, क्योंकि महाभारत शुरू हो गया है। वैसे मैंने तो दूसरा महाभारत करने का है? और वो महाभारत देख के है तो उसकी बीडियो फिल्म मंगा लेना देख लेना लेकिन पूजा महाभारत देखते हैं तो आपकी बो शक्ति कहां दिखेगी? वो हमारे जीवन का सक्ष्य 33 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt लेकिन वो खुद जब आप करने लगते हैं तो पता चलता है कि ये टीका-टिप्पणी हम जो कर रहे हैं ये बिल्कुल बेवकूफी है। क्योंकि हमें कोई अधिकार ही नहीं। तो इस कदर की छोटी छोटी चीजों में भी लोग मुझे आ कर बताते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। आप अब साधु हो गए हैं। आप के अन्दर महाभारत में चली गई। महाभारत हुए तो हजारों वर्ष हो गए उसी के साथ वो भी खत्म हो गई। तो ये जो मनोरंजन पर भी लोगों का बड़ा ध्यान रहता है। किसी चीज से हमारा मनोरंजन हो। ऐसा ही हर एक चीज में मनुष्य उलझते जाता है। तो कोई भी चीज में अति में जाना ही सहज के विरोध में पड़ती है। जैसे अब संगीत का शौक है तो संगीत सबसे बड़ी जो शक्ति आई है वो ये, आप कोशिश करके ही संगीत है। फिर ध्यान भी नहीं करने का। बस संगीत में देखिए, और मैं बात कहती हैं उसकी प्रचीति आएगी । पड़े हैं। मनोरंजन है। फिर कविता में पड़ गए तो कविता में कोशिश कर के देखिए आप जमीन पे सो सकते हैं आप ही उलझ गए। कोई भी चीज में अतिशयता में जाना ही रास्त पर सा सकते हैं। आप दस दस दिन भी भखे रह जाए सहज के विरोध में जाता है। ये इस बात को आप गाँठ बांध कर रख लें। और दूसरी चीज जो हमारी शक्तियाँ उन को लेंगे आप कुछ नहीं कहेंगे। इस में आप हमारे परदेस के सम्यक होना चाहिए तभी हमें सम्यक ज्ञान मिलेगा. माने सहजयोगियों को देखिए, किस हालत में रहते हैं. किस संघटित ज्ञान। गर एक ही चीज के पीछे में आप पड़े रहे परेशानी में रहते हैं। हॉलाकि वहाँ पर हिन्दुस्तानी और एक ही चीज को आप देखते रहे तो आपको सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता है। आपको एक चीज का ज्ञान होगा। अब जैसे मैंने देखा है कि बहुत सी स्त्रियां होती हैं, बड़ी पढ़ी लिखी होती हैं पर कभी अखबार नहीं पढ़ती उनको दुनिया में पता ही नहीं क्या हो रहा है। रहे आदमी लोग तो उनका ऐसा है कि उनको सिर्फ ये मालूम है कि कौन सा खाना अच्छा बनता है किस के घर में अच्छा खाना बनता है। किसके घर जाना चाहिए अच्छा खाने के लिए। एक खाने के मामले में तो हिन्दुस्तानी बहुत ही ज्यादा उलझे हुए लोग हैं। बहुत ज्यादा। और औरतें भी ऐसी हैं कि बेवकफ बनाने के लिए अच्छे अच्छे खाने खिलाकर के उनको ठिकाने लगाती हैं। इसमें दोनों की शक्तियाँ उलझ जाती हैं, दोनों की। रात-दिन ये खाने के बारे में, मुझे आज ये खाने को चाहिए, मुझे आज ये खाने को चाहिए, मैं ये टाइम को खाऊंगा, मैं वो टाइम से खाऊंगा। ये करूंगा। उधर औरतें आदमियों को खुश करने के लिए वोही धन्धे करती रहती हैं। उसमें औरतों की शक्ति भी नष्ट होती है। और आदमियों की भी शक्ति नष्ट होती है। इसलिए, मैंने यह तरीका निकाला है कि सहजयोगियों को सबको खुद खाना बनाना आना चाहिए। अगर किसी ने कहा मुझे ये खाने को चाहिए तो आप ही बनाये। हालांकि उस के बाद सबको भूखा ही रहना पड़ेगा। पर कोई हर्ज नहीं। आप को कहना चाहिए अच्छा आपको ये चीज खानी है तो आप ही इसको बना दीजिए। तो आप को भूख नहीं लगेगी। आप कैसा भी खाना है, उसे खा सहजयोगियों ने बताया कि ब्रह्मपूरी में इन्तजाम सब ठीक नहीं रहा। लोगों का दिमाग ही खराब हो गया था क्योंकि आप नहीं गए। तो बहुत तकलीफ हुई उनको खाने पीने की और कुछ अच्छा नहीं लगा। ऐसा बताया। तो मैंने उन लोगों से जा कर पुछा कि भई सबसे ज्यादा तुम को कहा मजा आया तो उन्होंने कहा ब्रह्मपरी में सबसे ज्यादा आया तो मेरी कुछ समझ में नहीं आया कि इतनी शिकायतें हुई, क्यों ब्रह्मपुरी में क्या बात? तो कहने लगे कि वहाँ कृष्णा बहती है उसके किनारे में बैठो तो लगता है कि माँ जैसे आप की धारा बह रही हो। वो सब यही बातें करते रहे। यहाँ ये लोग खाने पीने की सोचते हैं। इसी लिए जब कभी कभी लोग कहते हैं कि हम लोगों का समर्पण कम है तो उस की वजह यह है कि हम लोग काफी उलझे हुए लोग हैं। हमारे अन्दर बहुत पुरानी परंपरा है। यहाँ अनेक साधु संत हो गए, बड़े बड़े लोग हो गए, बड़े बड़े आदर्श हो गए और उन आदर्शों की बजह से हमें मालूम है कि अच्छाई क्या है। लेकिन उस के साथ ही साथ हमारे अन्दर एक तरह की ढांगी वृत्ति आ गई। हम ढोंग भी कर सकते हैं। कोई भी आदमी अपने को राम कह सकता है। कोई भी आदमी अपने को भगवान कह सकता है, कोई भी आदमी अपने को सीता जी कह सकता है। ये ढोंगीपनें की हमारे यहाँ बड़ी भारी शक्ति है। एक साहब ने मुझे कहा कि देखिए वो तो भगवान हैं। मैंने कहा कैसे? वो कहते हैं वो भगवान है। मैंने कहा उस को कहने में क्यां लगता है? ऐसे कैसे कहेगा कोई कि मैं भगवान हैँ? मैंने कहा कह रहे हैं वो भगवान है लेकिन उस के कुछ तरीके होते हैं। जो आदमी फल को नहीं सूंघ सकता वो भगवान कैसे हो सकता है? हाँ ये तो बात है पर वो ऐसा क्यों कह रहे थे? वो ोम बड़ा अच्छा रहेगा। जब आप बनाना शुरू करेंगे तब आप समझेंगे कि ये चीज क्या है। क्योंकि विसी भी चीज को टीका टिप्पणी करनी तो बहुत आसान चीज है। किसी चीज की अच्छा कहना, बुरा कहना बहुत ही आसान चीज है। 34 हमारे जावन का सक्ष्य 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt ऐसा क्यों कह रहे हैं? मैंने कहा क्योंकि बो आप नहीं। वो ये क्योंकि हमारे अन्दर जो भाव हैं वो इस शक्ति से बहुता ही नहीं समझ सकते कि लोग इतना सफेद झूठ इतने जोर से हुआ बाहर चला आ रहा है और उस को हम प्रकटित कर कह सकते हैं या किसी के लिए कहते हैं। पर वो उस को रहे हैं और जो लोग इस तरह से एक बात समझ लें कि हमें रूपया ही चाहिए न, ठीक है वो रूपया लेता है लेकिन हम पूरी तरह से ईमानदारी से सहजयोग करना है तो धीरें-धीरे को तो वो आध्यात्मिकता देगा। तो क्या हर्ज है। हमें तो इसमें खिसकते जाएंगे। अध्यात्म लेना है, लेने दो रूपया, रुपये में क्या रखा है? रुपया दे दो उस को। रूपयों में क्या रखा हुआ है। अध्यात्म है उनमें। मैं यह जरूर कहँगी कि उस आत्मसमर्पण के पीछे के पाने की बात है। अध्यात्म अगर वो हम को दे रहा है तो में एक बड़ी भारी कमाल है। और वो कमाल ये है कि वो हम उस को रूपया दे रहे हैं रुपये में तो कोई खास चीज सोचते हैं कि हमारा कल्याण सिर्फ आत्मिक ही होना होती नहीं। ये जो उन की तैयारी आज हो गई है । वो हमारे चाहिए। हमारा आत्मिक कल्याण होना चाहिए। और कोई अन्दर तैयारी अभी तक हो नहीं पाई। इस के लिए क्योंकि भी बात वो नहीं सोचते। सहजयोग के लाभ अनेक हैं। आप हमारे सामने आदर्श बहुत अच्छे हैं। महाभारत है, राम हैं, जानते हैं इस से तन्दरूस्ती अच्छी हो जाएगी, आप को पैसे ये है, वो हैं। और हम उसी कीचड़ में बैठे हुए हैं। अगर कोई अच्छे मिल जाएंगे, आप की नौकरी अच्छी हो जाएगी, आप कीड़ा कहे कि मैं कमल हो गया तो हो नहीं सकता और का दिमाग ठीक हो जाएगा, और दनिया भर की चीजें जिन्हें अगर उस को कमल बना भी दिया तो भी ढंग बही चलेगा । कि आप संसारी कहते हैं, हो जाएंगी। और उसपे भी आप इस लिए समझ लेना चाहिए कि हमारे अन्दर ये जो इतनी का नाम हो जाएगा, शोहरत हो जाएगी। जिनको कोई भी ऊंची ऊंची बातें हो गई और जिस से हम सारी तरफ से पुरी नहीं जानता है उनका भी नाम हो जाएगा। उन्हें लोग तरह से हम ढके हुए हैं और जिस के कारण हम लोग बहुत जानेंगे, सब कुछ होगा लेकिन हमें क्या चाहिए? हमें तो ऊंचे भी हैं, समझे कि हमें वो ही होना है जो हम देख रहे हैं. अपनी आत्मिक उन्नति के सिवाए और कुछ नहीं चाहिए। इस मामले में हमारे अन्दर आन्तरिक इच्छा हो, ऊपरी नहीं। अन्दर से लगना चाहिए। क्या हमने इसे प्राप्त किया? मनुष्य में हो जाती है तब मनुष्य सोचता ही नहीं इन सब क्या हमने अपने ध्येय को प्राप्त किया? क्या हमने इसे पाया चीजों को उस के लिए सब व्यर्थ पदार्थ है। सारी लक्ष्मी है? उसे हमें पाना है इस मामले में ईमानदारी अपने साथ उसके पैर धोए, उस के लिए वो व्यर्थ पदार्थ है। कोई भी रखनी है। और जब तक ईमानदारी नहीं होगी तब तक उसके लिए चीज ऐसी नहीं है कि जिसके लिए वो शक्ति आपके साथ ईमानदारी नहीं कर सकती। ये आप लालायित हो या परेशान हो। इस कदरं वो समर्थ हो जाता का और अपना निजी सम्बन्ध है। अनेक तरह से आप अपने है। अगर है तो है नहीं है तो नहीं है। मिले तो मिले नहीं है को पड़तालिये और देखिए हमारे अन्दर ये शक्तियाँ क्यों तो नहीं। ये जब अपने अन्दर ये स्थिति आ जाए, मनुष्य इस नहीं जागत हो रहीं। क्यों नहीं हम इसे पा सकते। कारण स्थिति पे आ जाए, तब सोचना चाहिए कि सहजयोगियों ने हम अपने को, खद ही अपने को एक तरह से काटे चले जा अपने जीवन में कुछ प्राप्त किया। जब तक ये स्थिति प्राप्त रहे हैं। जिस तरह से वहाँ पर मैं लोगों में देखती हूँ आत्म समर्पण य हम सिर्फ आत्मिक उन्नति पा लें। जब वो आत्मिक उन्नति नहीं होती तो आपकी नाव डांवाडोल चलती रहेगी। और आप हमेशा ही कभी इधर तो कभी उधर घुमते रहेंगे। पहली अपने को स्थापित करने की जो महान शक्ति तो किसी भी तरह की ढोंगी वृत्ति का सहजयोग में स्थान ही नहीं है। हृदय से आपको महसूस होना चाहिए। हर एक चीज को हृदय से पाना चाहिए। अपने अंतर आत्मा से उसे आपके अन्दर है वो है श्रद्धा। उस श्रद्धा को हृदय से जानना को जानना चाहिए। उस के लिए कोई भी ऊपरी चीज चाहिए और उसकी मस्ती में रहना चाहिए उस के मजे में आवश्यक नहीं। कोई हैं कि मुस्करा कर बैठे रहेंगे, कोई आना चाहिए, उसके आनंद में आना चाहिए तो जो ये श्रअद्धा जरूरत है मुस्कराने की? कोई है कि बड़े गम्भीर हो के बैठे की आहुलाद दायिनी शक्ति है उस आहलाद को लेते रहना रहेंगे, ये सब नाटक करने की कोई जरूरत नहीं। जो आप के चाहिए,उस खुमारी में रहना चाहिए। उस सुख में रहना अन्दर भाव है वो बाहर आ रहा है उस में कौन सा नाटक चाहिए। और जब तक मनुष्य उस आहुलाद में परी तरह से करने की जरूरत है? उस में कौन सी आफत करने की हैं? जो हमारे अन्दर भाव है वही हम प्रकटित कर रहे हैं। हैं वो बने ही रहेंगे, बने ही रहेंगे। क्योंकि समस्याएं वगैरा घुल नहीं जाएगा उसके सारे जो कुछ भी प्रश्न हैं समस्याएं 35 मारे नीवन का तक्षय 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt सब माया है। ये सब चक्कर है। अगर किसी से पूछो कि भई चाहिए कि हमारी कितनी शक्तियाँ हैं और हमारे अन्दर तुम्हें क्या समस्या है? तो मुझे सौ रुपया मिलना चाहिए, कितनी शक्तियाँ हमने देखी और बो कैसे कार्यान्वित हो रही मुझे पचास रूपये मिलते हैं। जब सौ रूपय मिले तो फिर क्या समस्या है? मुझे दो सौ रुपये मिलने चाहिए तो मुझे सौ ही रुपये मिले। वो तो खत्म ही नहीं हो रहा। फिर दूसरी मिलेगा लेकिन आप की इच्छा ही बदल जाएगी। आप के क्या समस्या है कि मेरी बीबी ऐसी है। फिर तुम दसरी बीबी कर लो, वो भी ऐसी है, तीसरी आई वो भी ऐसी है तो आपकी समस्या नहीं खत्म हो रही क्योंकि आप स्वयं इनको खत्म नहीं कर रहे । ये यब को खत्म करने का तरीका यही है कि अपनी श्रद्धा से आप अपने आत्मा में जो आनंद है उस का रस लें और उसी रस के आनन्द में रहे आखिर सारी चीज है ही हमारे आनन्द के लिए, लेकिन जब तक हम उस रस को लेने की शक्ति ही को नहीं प्राप्त करते हैं तो क्या फायदा से भी लोगों को आने में मश्किल हो जाती है। कलकत्ते से होगा? ये तो ऐसा ही हुआ कि एक मक्खी जा कर के बैठ गई फूल पर और कहेगी कि साहब मुझे तो कुछ मध नहीं भी। और साक्षात् हम बैठे हुए हैं। ऐसे ऐसे लोग हैं कि जो मिला। उस के लिए तो मधुकर होना चाहिए। जब तक बिल्कुल आसानी से आ सकते हैं। अपने काम के लिए दस आप मधुकर नहीं होंगे तो आपको मधु कैसे मिलेगा? गर मर्तबा दौड़ेंगे। लेकिन इस को नहीं समझते कि कितनी आप मक्खी ही बने रहे तो आप इधर उधर ही भिनकते महत्वपूर्ण चीज है? उस का महत्व नहीं समझ पाते क्योंकि रहेंगे। लेकिन जब आप स्वयं मधुकर बन जाएंगे तो आप कायदे की जगह जा करके जो आप को रस लेना है रस ले आएंगे। सुविधा के साथ। रविवार के दिन करिए पर एक दिन कर के मजे में पेट भर कर के और आराम से आनंद से रहेंगे। यही सबसे बड़ी चीज सहजयोग में सीखने की है। कि चाहिए। अब ऐसे रोनी सूरत लोगों के लिए क्या सहजयोग हमारा चित् पूरी तरह से एक चीज में डूबा रहना चाहिए। और वो है आत्मिक हमारी उन्नति होनी चाहिए। पर उस का मतलब यह नहीं कि पूरा समय अपने को बन्धन देते रहो या पूरा समय आँखें बंद कर के और जिसे मराठी में शनिवार, इतवार होना चाहिए और उस में से भी हम जैसे ही कहते हैं शिरडी बाँध उस की कोई जरूरत नहीं। सर्वसाधारण तरीके से रोजमर्रा के जीवन को कुछ भी न बदलते हुए जैसे आप हैं वैसे ही उसी दशा में आप को चाहिए कि आप अपने अन्दर जो हृदय में आत्मा है उस के हैं। आप जो चाहे सो करें। जो आप इच्छा करेंगे वो आप को तौर तरीके ही बदल जाएंगे जैसे आज अब कोई महाभारत नहीं देखने को रूकेगा। क्या सोचेगा? अरे बाप रे, आज माँ का इतना अच्छा समय बंधा हुआ है, माँ स्वयं आ रही है, पूजा का मौका है, सारी दुनिया से लोग दौड़े आएंगे। अब बाहर अमेरिका से, अभी मैं जा रही हूँ उन्होंने कहा एक दिवाली पूजा जरूर करना। उस के लिए मेरे ख्याल से सारे ब्रह्माण्ड से लोग वहाँ पहुँच जाएंगे। लेकिन यहाँ कलकत्ते श्रद्धा कम है। वो कहते हैं जब हम रिटायर हो जाएंगे तब उससे पहले छट्टी होनी चाहिए नहीं तो बाद में छट्टी होनी है? ये घोड़े कहाँ तक जाएंगे? ये तो खच्चर भी नहीं । जो लोग इस तरह की बातें सोचते हैं वो सहजयोग में कहाँ तक पहुँचेंगे ये मेरी समझ में नहीं आता। सब सुविधा होनी चाहिए, प्रोग्राम खत्म होगा भाग जाएंगे क्योंकि हम को कल दफ्तर में जाना है। तुम जाओगे कल भी सब ठीक हो जाएंगा। लेकिन । गर आप ऐसी जल्दबाजी करोगे तो खंडाला के घाट में आप को रोक लेंगे हम। लेकिन ये सब चहल, ये सब शैतानियाँ हम ॐके कितनी भी करें लेकिन आप के अक्ल में जब तक ये चीज घसेगी नहीं क्या फायदा? तो चाह रहे हैं कि किसी तरह से आपको रास्ते पर ले आएं। अब रास्ते पे लाने पर गर बार बार आप लोग फिसल पड़े तो कितनी हमें मेहनत करनी पड़ेगी। और आप की जो शक्तियाँ जागृत हो सकती हैं, जो अपने आप पनप सकती हैं, बढ़ सकती हैं वो सारी शक्तियाँ कहाँ से कहाँ नष्ट हो जाएँगी? तो अपने को पहले आप को संवारना है। अपनी शक्तियों के गौरव में उतरना है और ये जानना है कि हमारे अन्दर कितनी शक्तियाँ हैं और हम कितनी शक्तियों को प्राप्त कर सकते रस को प्राप्त करें। जब उस का रस झरना शुरू हो जाता है तो आप ही में कबीर बैठे हैं और आप ही में नानक बैठे हैं, और आप ही में सारे बड़े-बड़े संत साधु हो गए तुकाराम, नामदेव, एकनाथ, सब आप ही लोगों में बैठे हैं। और उनको बिचारों को, कोई बताने वाला भी नहीं था, उनके संरक्षण के लिए कोई नहीं था। ये सब आप को प्राप्त है आप तो अच्छी छत्रछाया में बैठे हुए हैं। तो भी आप उस छत्रछाया में बैठ कर के एक अपनी भी छतरी खोल लेते हैं और उसके बारे में फिर चर्चा करते हैं। तो इस से तो आपकी शक्तियां कम हो ही जाएंगी। इस बार हमें गौर करना 36 ुम हमारे जीवन का लक्ष्य 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt के नाना भी आ जाए सो नहीं हो सकता। जो आप हैं उस लायक वो लोग नहीं। बो नालायक हैं। जो नालायक हैं उन हैं? हम कितने ऊंचे उठ सकते हैं। हम कया-क्या लाभ दूसरों को दे सकते हैं। इतना भंडारा हमारे अन्दर पड़ा हुआ है। सारा कुछ खुल गया चाबी मिल गई अब खुल जाने पर सिर्फ को छोड़ देना चाहिए। उसे क्यों झगड़ा करना? नालायक उसमें से निकाल के लोगों को बांटना है और उस का मजा उठाना है। आज ये जो शक्ति की पूजा हो रही है वो असल में, फुटे जो नालायक से शादी कर ली। ऐसा सोचना चाहिए। मैं चाहती हूं कि आप जानिए कि आप की ही शक्ति की पूजा और नसीब आप के फटे जो नालायक आप के माँ बाप हैं। जो होनी चाहिए। जिस से आप एक बड़े ईमानदार और एक सच्चे तरीके से श्रद्धामय हो जाए। साधु संतों को कुछ कहना नहीं पड़ता था। वो मार खाएंगे, पीटे जाएंगे, उन को जहर देंगे, चाहे कुछ करिए उन की लगन नहीं छटती। अब आप लोगों को तो कनेक्शन लगा दिया लेकिन वो इतना ढीला सहजयोग में नहीं हैं। तो उनको आप नालायकों को बाहर ही कनेक्शन है कि बार-बार, लगाना पड़ता है। फिर से किसी रखिए। जो लायक लोग हैं उन से रोज दोस्ती करिए उन के बात से छूट जाता है। फिर से किसी बात से लगाना पड़ता है सो अब सोचना यह है आप को के अपने अन्दर की सारी ही लोग नहीं समझ पाते कि दनियादारी ये रिश्ते ऐसे चलते रहते शक्तियाँ हमें जागृत करनी है तो फिर कोई कमी नहीं रह जाएगी। कोई आप के सामने प्रश्न ही नहीं रह जाएँगे। इन शक्तियों का जागृत करना बहुत आसान है। एक ही बात है सकते हैं, आप के साथ बन सके तो ठीक है। और नहीं तो ऐसे कि आप की लगन होनी चाहिए। जिसको लगन हो जाएगी, जो पूरी तरह से लगन से सहज योग में उतरेगा और जिसका मैं देखती हूँ कि बहुत ही नालायक लोग सहजयोग में कभी हमेशा जी सहजयोग में ही खिचा रहेगा, उधर ही ध्यान रहेगा उसका तो क्षेम हो ही जाएगा। पर पहले योग घटित है आप की लियाकत थी इस लिए आप आए और आप होना चाहिए और आधा अधूरा योग किसी काम का नहीं। न इधर के रहे न उधर के रहे। ऐसी हालत हो जाएगी। एक छोटे से बीज में हजारों वृक्ष निर्माण करने की शक्ति है। तो भिखारी भी हैं और उस की झोली में छेद भी है उन को और आप तो ऐसे हजारों वृक्षों के मालिक मनुष्य हैं। और उन में से देने से कया फायदा? लो करेला नीम चढ़ा। ऐसे लोगों से हजारों लोगों को शक्तिशाली बनाने की शक्ति आप के रिश्ता रखने की आप को कोई जरूरत नहीं है। उन से कोई अन्दर है लेकिन गर इस बीज का अंकर निकालने के बाद गर आप रास्ते पे फेंक दीजिए और इसकी परवाह न करें, और है। उनको बकने दीजिए। गर उनका दिमाग ठीक हुआ तो वो इसका गर पेड नहीं हुआ तो इसकी शक्ति कठित हो जाएगी। तो अपने लिए पूरी तरह से आप इसका अंदाज करे कि हम क्या हैं और हम क्या कर रहे हैं? और कहाँ तक हम पहुँच है। ऐसे लोगों के पत्थर के जैसे सर होते हैं। उस से कोई सकते हैं? इससे आपस के झगड़े छोटी छोटी क्षुद्र बातें ऐसी चीजे जो कि रास्ते पर के भी लोग न करे, असभ्यता ये तो अपने आप से ही ढह जाएगी। वो तो बचने ही नहीं वाली। लेकिन आप का जो स्वयं सुन्दर स्वरूप है वो निखर आएगा। और लोग कहेंगे कि ये एक शक्तिशाली मनुष्य खड़ा हुआ है। एक विशेष स्वरूप का आदमी खड़ा हुआ है। एक महान कोई व्यक्ति है। ऐसा अनुठा उसका सारा व्यवहार है। वो किसी से डरता नहीं, निर्भय है। जहाँ कहना है कहता है, जहाँ नहीं कहना नहीं कहता। ये आ जाए बाबा भी आ जाए फिर बाबा लोगों से झगड़ा करने की कोई जरूरत नहीं। नसीब आप के नालायक हैं उनको काहे को जबरदस्ती सहजयोग में लाना और मेरी खोपड़ी पर लादना। कि माँ इसको ठीक करो। क्योंकि वो मेरी बीबी है, क्योंकि वो मेरा बाप है, क्योंकि मेरा बाबा मेरा दादा। मेरा उनसे कोई रिश्ता नहीं बनता। गर वो मजे में रहिए। आप को जरूरत क्या है। पर यही बात हम हैं। इसमें कुछ रखा नहीं, हाँ गर आपकी जिनके साथ में संगति है वो आप के साथ उठ सकते हैं, आप के साथ चल नालायक लोगों को कोई जरूरत नहीं सहजयोग में लाने की। कभी इस रिश्ते से आ जाते हैं और मेरा बड़ा सिर दर्द हो जाता सहजयोग को प्राप्त हुए। आप को आर्शोवाद मिला। आप ने बहुत कुछ पा लिया और आगे आप पा सकते हैं। और जो बात करने की जरूरत नहीं। मतलब रखने की जरूरत नहीं आयेंगे और सहजयोग में उतरेंगे। और नहीं तो आप अपना दिमाग क्यों खराब करते हैं? उस से कोई फायदा नहीं हुए फायदा नहीं होता, वो देख ही नहीं सकते। तो आज से हम लोगों को सोचना है कि हम एक व्यक्ति हैं, स्वयं। और इसे हमने प्राप्त किया है अपने अपने पूर्वजन्म के कर्मों से। क्योंकि हमने बहुत पुण्य किये थे। इस लिए हम आज इस स्थान पर बैठे हुए हैं, और इससे भी ऊँचे स्थान पर हम बैठा सकते हैं और जा सकते हैं। तो अपने पीछे में बड़े बड़े इस तरह के पत्थर लगा कर के आप समुद्र आप को गर तैरना आता है तो मुक्त हो कर के तैरिए। उसका आनंद उठाईए। और अपनी सारी शक्तियों से आप प्लावित में मत कूदिए। 37 हमारे जीवन का तय 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt होईए। आज मेरा अनन्त आशीर्वाद है कि आप के अन्दर की सुप्त सारी ही शक्तियाँ जागृत हों और धीरे धीरे आप इस को महसूस करें। और उस की जो अन्दर से प्रवाह की विशेष धाराऐं बहें उस के अन्दर आप आनन्द लूटें। यही मेरा आप को सब को अनन्त आशीर्वाद है। हमारे जीवन क्ा लक्ष्य 38