থে১২১২১১২ ১১ ১১ ১: ১২ ১২১২ जन्म दिन विशेषांक चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VI अंक 7 व 8 अब आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर गए हैं। बिश्वास रखें कि आपमें पुरे विश्व को परिवर्तित करने की सामध्थ्य है" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১ ১১১২ ১ ১১১২ ,৯:২, 4,১৫ ব১২১০ श्री कैगी महाजन सम्पादक श्री विजय नाल गिरकर 162, मुनिरका विहार, नई दिल्ली-110067 मुद्रक एवं प्रकाशक : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110060. फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित खण्ड VI अंक 7 व 8 विषय सूचि 1 1. सम्पादकीय 2. प्रार्थना , 3. फिलिप जेस की हृदयाभिव्यक्ति 3. 3. 4. पूजा प्रवचन-21.3.1994 5. श्रीमाता जी का प्रवचन-21.3.1994 6. 6. ईसामसीह पूजा 8. 7. श्रीमाता जी की मद्रास के सहजयोगियों से बातचीत...... 12 8. शिव रात्री पूजा वार्ता-14.3.1994 (दिल्ली) 14 18 9. सहज नियम जन्म दिन विशेषांक श्री माता जी का इक्हतरवां जन्मोत्सव कलकत्ता के कला मन्दिर हॉल में 21 मार्च 1994 की प्रातः मनाया गया। हमारे युग की इस महत्वपूर्ण घटना को मनाने के लिए पुरे विश्व से उनके सभी बच्चे एकत्रित हुए। देवी माँ को मुबारक बाद देने के लिए भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल जोशी वायुयान द्वारा वहां पहुंचे। यह अत्यंत हृदय स्पर्शी उत्सव था। हमारे हृदय श्री माता जी के प्रति प्रेम से शराबोर थे और हम वास्तव में प्रेम के सागर बन गए थे। हर सहजयोगी प्रेमानन्द में गोते लगा रहा था। कलकत्ता के सहजयोगियों की मेहमान-नवाजी तथा प्रेमाभिव्यक्ति को देखकर श्रीमाताजी अत्यंत प्रसन्न हुईं। हर इंतजाम जो उन्होंने किया उसमें अपने हृदय का प्रेम उड़ेल कर रख दिया, प्रेम इतना अधिक स्पष्ट था। गणपती पुले विषय में सूचना रहने तथा खाने का खर्च प्रति व्यक्त 2000/- बच्चे 10 साल से छोटे 1000/- युवाशविति 21 साल से कम आयु और सहजकार्य में तल्लीन 1250/- चैतन्य अहरी प्रार्थना ज्ञान दे माँ ज्ञान दे, हमें ज्ञान दे माँ निर्मले, भक्ति सुमन महके हृदय में, यही हमें वरदान दे, ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। निर्मल ज्ञान की सागर ही हो तुम, हे श्वेत सुन्दर शारदे, दूर कर अवगुण मेरे, निर्मल विद्या का दान दे, आत्म ज्ञान की ज्योति जलाकर सुप्त हृदय को प्राण दे, ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। है बहुत से स्वपन मन में सर्वजन कल्याण हो, हम हैं तेरी सन्तान माते, हममे जगत सहज निर्माण हो, विश्व निर्मल धर्म फैले यही हमें वरदान दे, श्री आदि माँ तु आदि भवानी तू प्रतिपालक सबकी जननी, ब्रह्मा विष्णु शिव शंकर में है तेरा ही तेज समाया जननी, करूं समर्पित हृदय श्री चरणों में, पूर्ण कृपा कर हम पर जननी, रहे चित्त में तेरा ध्यान सदा वरदे यही माँ निर्मले ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। ' श्री चरणों में समर्पित' चैतत्य लहरी परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी के 71वें जन्मोत्सव के शुभावसर पर फिलिप जेस की श्रीमाता जी के सम्मुख हृदयाभिव्यक्ति आवश्यक मर्यादाएं प्रदान कीं और पूर्ण मानव बनने के लिए हमें आध्यात्मिक पथ प्रदर्शन प्रदान किया ताकि हम सारे देशों, सारे राष्ट्रों के समाज में दैवी प्रेम को स्थापित करने के पूर्ण यन्त्र बन पाएं। इस अवसर पर मैं हम सभी को याद करवाना. चाहता हूँ कि इस क्षण युरोप के अधिकतर सहजयोगी श्रीमाता जी का जन्म दिन मनाने के लिए यूगोस्लाविया में एक बड़े सेमिनार में एकत्रित हुए होंगे और आपकी आज्ञा से जन्मोत्सव के इस अवसर पर मैं उनकी तीव्र इच्छा को आपके सम्मुख रखना चाहूँगा, कि कृपा करके यूगोस्लाविया में युद्ध, सारी राक्षसी प्रवृत्तियों, सारी नकारात्मकता तथा विश्वभर के सारे युद्धों को समाप्त कर दें। श्रीमाताजी आपका बालक होने के नाते और आपके सभी बच्चों की ओर से मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। श्रीमाताजी आपका अथाह प्रेम, धैर्य,सहनशक्ति हमें वह आन्तरिक्ष प्रदान कर रहा है जिसमें हम छोटे-छोटे शिशुओं से बचपन किशोरावस्था और वयस्कता की ओर विकसित हो सकते हैं। श्रीमाता जी जो सुरक्षा आप हमें प्रदान कर रही हैं और जिस प्रेम के बन्धन में आप हमें हर समय रखती हैं उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। परन्तु श्रीमाता जी, मैं कभी नहीं चाहूँगा कि चचताव श्रीमाताजी आप का स्वभाव तिहरा स्वभाव है और आपसे हमारे सम्बन्ध भी तिहरे सम्बन्ध हैं, अर्थात हम देवी रूप में आपकी पूजा करते हैं, गुरू रुप में आपके प्रति समर्पित होते हैं और माँ रूप में आपको प्रेम करते हैं। आपके इस तिहरे स्वभाव और आपसे हमारे तिहरे सम्बन्धों के कारण मैं तीन प्रकार से बड़ा होकर मैं वयस्क बनूं। मैं सदा शिशु ही बना रहना चाहूँगा आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना चाहूँगा। श्रीमाता जी ताकि आपकी साड़ी के पल्लू को पकड़कर आपके मातृत्व का सम्मानमय संकोच तथा एक ओर अत्यंत भय की तथा दूसरी आनन्द जीवन के हर क्षण में ले सकं। आज के पवित्र दिन, ओर अत्यंत श्रद्धा की भावना के साथ हम आपसे प्रार्थना करते हैं श्रीमाता जी, हम सभी सहजयोगी अपने आपको, अपने हदय, कि हमारी कृतज्ञता को स्वीकार करें कि हे देवी, आदिशक्ति आप अवतरित हुईं,कलयुग के अन्त में आपका अवतरण पृथ्वी तथा प्रतिभा आपके श्री चरणों में अर्पण करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं मानव जाति के उद्धार के लिए है। निःसंदेह सहस्रार भेदन को कि विश्व निर्मलाधर्म को इस पृथ्वी पर स्थापित करने के लिए मानव विकास की महानतम घटना के रूप में स्मरण किया जाता यथाशक्त कार्य करेंगें। श्रीमाता जी आपकी आज्ञापालन करने रहेगा। हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने हमारे अन्दर के के लिए हम सदा उद्यत रहेगें। हम सब इस शुभावसर पर प्रार्थना देवत्व को किया। आपने हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं कि भविष्य में, कलान्तर में, आने वाले युगों में यह दिन किया, सृष्टि को अर्थ प्रदान किया और हमारे लिए आपने अपने सबसे पवित्र दिन बन जाए और ईसाइयों के लिए यह ईसा साम्राज्य, (परमात्मा के साम्राज्य) के द्वार खोल दिए। जयन्ती की तरह से हो जाए। परन्तु सारे राष्ट्र और विश्व की धर्मपरायणता और मुल्यविहीन पश्चिमी समाज का एक सदस्य होते हुए भी, गुरूमयी श्रीमाताजी,मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि सभी गुरुओं की मां के रूप में आपने हममें विवेक जागृत किया, गुण और अपनी अपना समर्पण अपनी बचन बढधता, अपने जागृत सभी मानक जातियीा इसे उत्सव के रूप में मनाएं। जय श्रीमाता जी। 7वीं जन्म दिन पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कलकत्ता 21 मार्च 1994 धीरे-धीरे परिवर्तित होता है। इस अपरिवतनशीलता पर कभी-कभी तो आपको शोक भी होता है। परन्तु सुक्ष्म रूप से हमारे अन्दर और बाहर एक महान परिर्वतन घटित हो रहा है। आज मानव पूरे वातावरण पर शासन कर रहा है। मैं नहीं जानती कि कहां तक परम चैतन्य इसे चला रहा है, परन्तु स्वयं को जीवन के नये आयामों के प्रति खोलना हमारा कार्य है। उदाहरणार्थ अपने अन्तर्दशन से हमें पता चल जाता है कि पुरानी छोटी-छोटी मुर्खताएं अभी भी हमें चिपकी हुई हैं। इनको हर वर्ष बहुत से लोगों के जन्म दिवस होते हैं और हम शपथ लेते हैं कि हम अब अमुक बुरा कार्य छोड़ देगें। जीवन में अपने विकास को देखने का यह बहुत अच्छा तरीका है। बहुत से लोगों ने, जिन्होंने आध्यात्मिक जीवन में महान ऊंचाईयाँ प्राप्त कीं, उन्हें जन्मोत्सव की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वे जानते थे कि विकास, सूझबूझ और सीखने की शुरूआत करने के लिए हर दिन जन्म दिन है। उनके लिए हर दिन नव वर्ष का दिन है। अपने जीवन में हम देखते हैं कि हमारा बातावरण बहुत ही चैतम्म लहरी छोड़ने की कसमें हमें नहीं लेनी चाहिएं साक्षी भाव से यदि आप इन्हें देखें कि किस विनाश पथ पर ये आपको ले जा रही हैं तो तरन्त ही आप इन्हें त्याग देंगे। आपको शपथ लेने की चिन्ता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब आप समर्थ है अर्थात् पूणत शक्तिशाली हैं जो भी कुछ आप सोचते हैं वह गलत है, इस पर जब आप अपना चित्त डालेंगे तो धीरे-धीरे यह सारे सन्देह दूर कर देगा। हो गए हैं क्योंकि इस आनन्द विभोर स्थिति में समय, तिथियों और वर्षों का कोई निशान नहीं रह जाता। जैसे बिना पूर्व कल्पना के यदि आप ताजमहल को देखने गये हों और वहां इतना सुन्दर भवन सामने पाकर आप मन्त्रमुग्ध से हो जाते हैं। ऐसे क्षणों में ः आपको समय का ज्ञान नहीं रहता। आपकी यह भी याद नहीं रहता कि किस प्रकार आप वहां पहुँचे। उस स्वपन की वास्तविकता को देखते ही उसके पीछे की सारी कहानी समाप्त हो वे सारी समस्याएं सम्बन्ध, बन्धन और अहम् जो 'अभी भी जाती है। स्वपन की यह वास्तविकता मेरे विचारों और कल्पना आपको चिपके हुए हैं आप उन्हें त्याग देंगे। आपके चित्त से ही से पर की बात है। वे दौड़ जाएंगे। तब आपको लगेगा कि दिन प्रतिदिन आपका चित्त पवित्र, शक्तिशाली एवं करूणामय बन रहा है। सहजयोगी हैं जिन्होंने इस सुक्ष्म ज्ञान को प्राप्त किया है। मैं नहीं सामान्यतः जो भी प्रक्रिया आपके चित्त में होती है वह समाप्त हो जानती थी कि इतने अधिक साधक हैं। मैं यह भी नहीं जानती जाएगी और आप साक्षी रूप से सारी चीज को देखने लगेगें और थी कि पृथ्वी पर इतने सुक्ष्म लोग हैं। विश्व भर में, जहाँ भी मैं उस साक्ष्य शक्ति के माध्यम से आपकी चित्त शक्ति कार्यान्वित जाती हैं, अनगिनत गहन जिज्ञास मेरे सम्मुख होते हैं। उस क्षण हो जाती है और कार्य करती है। यह शक्ति न केवल आप पर समय रुक जाता है। अनुभव के अतिरिक्त किसी अन्य चीज का कार्य करेगी परन्त आपसे सम्बन्धित हर चीज पर कार्य करेगी। लेखा जोखा नहीं रहता। यह अनुभव निराकार रूप में होता है। सर्वप्रथम आपके ध्यान धारणां के माध्यम से, ध्यान की उस इसका वरर्णन नहीं हो सकता, यह शब्दों एवं वर्णन से परे है। इस अवस्था में आप अपने अन्दर विस्तृत हो जाते हैं। आप व्तमान समय आप वास्तव में निर्विचार हो जाते हैं और यही वह समय है में रहते हैं। उस दिन किसी ने मुझ से पूछा कि आपका पिछला जिसका आनन्द उठाना चाहिए। जन्मदिन कहां मनाया गया था? मुझे याद ही न था। वैसे मेरी स्मरण शक्ति अच्छी है। सम्भवतः हर समय, हर दिन, वर्तमान अभिशाप है। हम बस समय ही देखते रहते हैं। हमने समय की में रह कर आप विकसित होते हैं और आप यह भूल जात है कि मीमा प्रर कर ली है, 'कालातीत, समझने का प्रयत्न करें कि क्यों कब और कहा यह विकास घटित हुआ। अब भी कभी-कभी मुझे विश्वास नहीं होता कि इतने सारे घड़ी या समय का बन्धन आज के युग का सबसे बड़ा हमने इसे पार किया, क्योंकि समय हमारे अनुसार चलता है। आप इसका अनुभव कर सकते हैं। एक दिन में दिल्ली से आ रही थी। हमारे घर के लोग समय के बहुत पाबन्द हैं। उन्होंने मुझे परेशान कर दिया कि देर हो रही है। जब मैं हवाई अड्डे पर पहुँची तो पता चला कि वाययान प्रतीक्षा कर रहा है। जल्दी की कोई बात न थी। जाने में 15-20 मिनट और लगने थे पर हवाई अड्डे का नाम ही लोगों को बेचैन कर देता है। वायुयान पर जाना उन्हें ऐसा प्रतीत होता है जैसे यद्ध लग गया हो। मैं इतना सफर करती हूैँ फिर भी, सौभाग्य से, कभी मेरा वायुयान या रेल नहीं छुटे। हर बार मुझे लगा कि वाययान मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। एक बार हमें प्रेग से वियेना होते हुए पोलैंड जाना था। एक महान सहजयोगी हमारे साथ थे। उन्होंने बताया कि वायुयान ग्यारह बजे चलेगा हवाई अडडे से उन्होंने मुझे फोन किया कि यान सोढ़े नौ बजे छुटेगा। मैं तैयार थी, कार में बैठी तथा अड्डे पहुँच गयी। पहुँचने में 15 मिनट की देर हुई तो भू-अधिकारी-महिला मुझ पर चिल्लाने लगी। वह सहजयोगी इस बात को सहन न कर पाया। उसे लगा कि उसकी गलती के कारण ही यह महिला मेरी श्रीमाता जी पर चिल्ला रही है। उसे यह सहन नहीं हुआ। वह बहुत खिन्न था। चिल्लाती हुई इस महिला के साथ हम वायुयान गए। वहां हमने देखा कि चालक एवं इन्जनीयर मशीन को ठीक करने में लगे हुए थे। सहजयोगी इतना खिन्न था कि उसकी मेरा अपना विकास भी इसी प्रकार हुआ। हर बार जब में किसी नये स्थान पर जाती हैँ तो मुझे-पता चलता है कि वहाँ कुछ बहुत ही अच्छे नये लोग सहजयोग में आये हैं और पुराने लोगों में से कुछ व्यर्थ के लोग सहजयोग छोड़ गए हैं। यह वैसे ही है जैसे पेड़ के विकास में नये पत्तों का निकलना तथा पुराने पत्तों का गिर जाना। परन्तु सहजयोग में यह कुछ भिन्न है। सहजयोग में बहुत ही थोड़े से पत्ते झड़ते हैं, प्रायः आपको अत्यन्त अच्छे लोगों का हरा भरा उपवन देखने को मिलता है। मेरे लिए यह चमत्कारिक आतिशबाजी की तरह है। एक छोटी रेखा की तरह शुरू हो कर यह बहुत से सुन्दर रूप धारण कर लेता है। हमारे, सहजयाग के तथा मानव के साथ क्या घटित होने बाला है, इसको स्पष्ट देख पाना कठिन कार्य है। मैंने कल्पना करना कभी नहीं सीखा। परन्तु जो दृष्य आप देख रहे हैं वह अद्वितीय है। मैं सभी सहजयोगियों को दैवी प्रेम से शराबोर अवस्था में अत्यन्त सुन्दर एवं गहन ढंग से अपनी अभिव्यक्ति करते हुए देख रही हूँ। यह अवस्था जब आती है तो आपके चित्त को इस प्रकार परमात्मा की से आनन्द विभोर कर देती है कि आप उस क्षण तक को भूल कृपा जाते हैं। जब आप मेरा जन्म दिन मनाते है तो वह भी ऐसा ही एक क्षण होता है। मैं तो यह भी भूल जाती हैं कि कितने वर्ष मुझे इस पृथ्वी पर चैतत्व लहरी समय यदि वास्तव में आवश्यक है, यदि हम सब लोग हर वर्ष इस समय को अपने जन्म दिन के रूप में देखें और यदि आप आँखों से आँसू झड़ने लगे। वो मेरे पीछे बैठे थे। मैंने मुड़कर उनकी ओर देखा और कहा कि 'सब ठीक है, चिन्ता मत करो'। नहीं श्रीमाता जी, मेरे कारण उसने आपसे इतना कुछ कहा। मैं सोचते हैं कि समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है तो आज के युग में इसे सहन नहीं कर सकता"। उसके आँसु थम नहीं रहे थे एक वास्तव में हमें बह समय अपने ध्यान और सहजयोग की मिनट के अन्दर साफ आकाश को विशालकाय हाथी के आकार सामूहिक सभाओं को करने के लिए चाहिए। मुझे याद है कि के बादलों ने घेर लिया। हवाई पतन की छत पर खड़े सभी हमारे देश के स्वतन्त्रता संग्राम के समय जिसमें मेरे मातापिता सहजयोगियों ने यह घटित होते देखा। पुरा आकाश एकदम तन-मन और धन से लड़े उस समय वे समय की बिल्कुल चिन्ता काला हो गया मैंने कितनी शक्ति है"। तब अधिकारियों ने घोषणा की कि यान में को साम्राज्यवाद के शिंकजों से स्वतन्त्र करना था। जेल से भागे खराबी है और आपको यान से उतरना होगा। उतरकर हम हुए किसी स्वतन्त्रता सेनानी को अगर उन्होंने मिलना होता था विमान कक्ष में आए। तब वह सहजयोगी उस महिला अधिकारी के पास गया और उससे कहा कि अब हम किस पर चिल्लाएं? की चिन्ता न किया करते थे। कोई अन्य बताता न था और न वायुयान अब नहीं जा रहा है। "क्या हम तुम पर बिगड़ें? मेरी मां पर बिगड़ने कि तुम्हारी आज भी वही स्थिति है। यह भी संकटकाल है एक अत्यन्त सूक्ष्म हिम्मत कैसे हुई?" हवाई अड्डे पर अन्य जो भी अधिकारी थे वे संकट की स्थिति कि सहजयोग प्रसार से अधिक कुछ भी घबरा गये। मैनेजर ने कहा कि यान चलने में अभी पांच घंटे हैं महत्वपूर्ण नहीं है। सभी लोगों को यदि इसका संदेश न मिला तो और हम आपको हवाई अड्डे से बाहर जाने की आज्ञा देते है। तब इसके लिए हम उत्तरदायी होंगे। ईसा और बुद्ध के समय यात्रा के वह मुझे एक विशेष रेल से बाहर ले गया। इस प्रतिक्रिया को मैं लिए वायुयान नहीं होते थे ध्वनिवर्धक यन्त्र और दूरदर्शन न समझ न सकी। बाहर जाकर मैंने कछ खरीददारी की और जब था। ये सारी चीजें अभी आयीं है। यह परम चैतन्य का कार्य है हम वापस आए तो हवाई अड्डे के अधिकारियों को आश्चर्य की कि वैज्ञानिकों के माध्यम से तथा दूसरे ज्ञान से यह सारी स्थिति में पाया क्योंकि केवल हमारा ही वायुयान जाने वाला था। बाकी सारा यातायात रुक गया था। वाययान पर चढ़ने के लिए करना होता था और न ही इतने बड़े स्तर पर लोगों को आत्म जब हम चले तो उस भद्र पुरुष ने कहा कि "माँ मेरी कमर में साक्षात्कार देना होता था। आज जो ये सारे अविष्कार आप देखते भयंकर दर्द है क्या आप मेरी सहायता कर सकती है"। एक अन्य है ये सब सहजयोग के लिए हैं। महिला ने मुझे उसके दुखते हुए कंधे पर हाथ रखने कि प्रार्थना की। मैंने अपना हाथ उसके कधे पर रखा और उसे आराम मिलने लगा। तब मैंने वाययान में चढ़ना चाहा पर उसी व्यक्ति विश्व का क्या होगा। सर्वप्रथम और सर्वोपरि बात यह है कि ने आकर मुझ से प्रार्थना की कि मैं अपना हाथ उसकी पीठ पर रख दें मैंने कहा कि मुझे वायुयान पर चढ़ना है। वह कहने लगा कि. "मैं आपके साथ चलूगा चला और कहने लगा कि मैं अब ठीक हैं। सारा वातावरण परिवर्तित हो गया। इसका प्रभाव वहां पर उपस्थित लोगों पर सकती। हम ही लोग युद्ध की सृष्टि करते है। हम ही भिअन्न प्रकार पड़ा। मैं हैरान थी कि इस सहजयोगी के आंसओं ने किस प्रकार की हिसा करते हैं। हम ही लोंगों की परमात्मा के साम्राज्य में यह करिश्मा किया? उस क्षण कि कल्पना कीजिए कि जब प्रवेश करने की सम्भावना है। अतः लोगों के हृदयों में शान्ति उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे थे। उस क्षण में उसकी आंखों ने एक बहुत बड़े नाटक कि अभिव्यक्ति की और अन्ततः हमने पाया कि हवाई अड्डे पर खड़े सभी लोग अत्यन्त नम्र एवं सम्मान भय हो गये थे। समय के बारे में जब हम सोचने लगते है तो हमे से खड़े हैं क्योंकि तब वास्तविकता आपके हाथ में होगी। जिस सोचना चाहिए कि समय हमारा दास है.हम समय के दास नहीं हैं। मैं आपको एक हजार एक कहानियां बता सकती है जब देर हो जाने पर, या समय की चिन्ता न करने पर मैंने इस प्रकार की सुन्दर अभिव्यक्तियां एवं नाटक देखें दैवी शक्ति की इस कला को देखकर मैं हैरान थी कि किस प्रकार लोग समय की इतनी विश्वास। तभी हम वह उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं कि विश्व चिन्ता कर पाते हैं। नहीं करते थे। वे जीज़ान से इस कार्य पर लग गये क्योंकि देश कहा, "देखो इस व्यक्ति के आँसओं में तो वही उनके लिए महत्त्वपूर्ण होता था और इसके लिए। वे समय कोई उन्हें भाषण देता था उनके लिए ये सब आत्तरिक था। अभिव्यक्ति हुई है। पराने लोगों को न तो जनता का सामना आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि बिना सहजयोग के इस हमारे हृदय में अब शान्ति बिल्कल नहीं है। हम शान्ति की बात करते हैं और उन लोगों को भी जानते है जिन्हें शान्ति पुरस्कार प्राप्त हुए । पर उनके हृदय में भी शान्तित नहीं है। मानव के हृदय में जब तक शान्ति नहीं होगी तब तक विश्व में शान्ति नहीं हो । मेरे साथ-साथ वह दो मिनट तक स्थापित करके ही शान्ति प्राप्त की जा सकती है और यह तभी संभव है जब आप निर्विचार समाधि को प्राप्त कर लें। आप वर्तमान में रहें तो आप हैरान हो जाएगें कि आप चट्टान की दृढ़ता तरह से भी आप चाहें कार्य कर सकते हैं। वास्तव में मैं कुछ भी कार्य नहीं कर सकती, परम चैतन्य ही सब कुछ करता है। आपके लिए भी यह इसी प्रकार कार्य करेगा परन्तु आपको स्वयं पर तथा सहजयोग पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। पूर्ण के अधिक से अधिक लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चैतन्य सहरी ৮ सकें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। सांसारिक या मूर्खतापूर्ण की उस अवस्था को प्राप्त करने के लिए थोड़ी सी ध्यान धारणा सारे कार्यों से अधिक महंत्वपूर्ण चित्त इस बात पर होना चाहिए करनी है। आज मेरे भाव अत्यन्त आनन्दमय है क्योंकि अब मैं कि कितने लोगों को हम सहजयोग में ला रहे हैं। कितने लोगों को देख सकती हैँ कि किस प्रकार चीजें घटित हो रही हैं और किस हम बचा रहे हैं? इसके विषय में आप क्या कर रहे हैं? हर सुबह प्रकार एक व्यक्ति हजारों सहजयोगी बना सकता है। मैंने जब आपको इसके बारे में सोचना होगा तो किस प्रकार समय चमत्कार देखा। एक बार मैंने और तिथि याद रख सकते हैं। अब जब कि आप संकट कालीन हजारों पेड़ हैं जिन्हें इसने उगाना है। टीशू कल्चर की एक नई स्थिति में हैं और जानते हैं कि इसका मुकाबला करना है तो कैसे तकनीक को देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गयी कि एक बीज के आप अपने चित्त को सांसारिक वस्तुओं और सांसारिक अन्दर जन्म देने वाले छोटे-छोटे तत्व थे जो बाहर आ गये थे। उपलब्धियों पर रख सकते हैं? आप चिन्ता न करें सांसारिक कार्य इसी प्रकार आप सब में सार्मथ्य है। और आप सब इस कार्य को अपने आप होगें। वास्तव में जो मोड़ आपने लेना है वह है, कर सकते है। परन्तु इसके लिए आपका स्वयं पर दृढ़ विश्वास सहजयोग की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित करना, आन्तरिक एवं होना और सहजयोग के प्रति पूर्ण निष्कपटता का होना आवश्यक बाध्यु रूप से। पृथ्वी पर वास्तव में यदि हम शान्ति चाहते हैं, है ऐसा हो जाए तो वास्तव में आज आपने मेरा जन्मदिन मनाया अपने लिए यदि हम उन्नति चाहते हैं और सभी प्रकार के है। यदि आप सोचते है कि मेरा जन्मदिन महत्वपूर्ण है तो मेरे शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक समस्याओं का समाधान लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर व्यक्ति अपने चाहते हैं तो क्यों नहीं हम सहजयोग में आ जाते जहां हमें कुछ आध्यात्मिक जन्मदिन को प्राप्त कर ले। नहीं करना? केवल अपनी कण्डलिनी को उठाना है, और आनन्द एक कहा कि एक बीज के अन्दर परमात्मा आपको धन्य करें। 71वां जन्मोत्सव परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का सारांश कलकत्ता 21 मार्च 1994 यह काली विद्या चली जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि वे आपको केवल शारीरिक एवं मानसिक रूप से ही हानि नहीं पहचाते, आपकी कृण्डलिनी को भी हानि पहचाते हैं। आर्थिक रूप से भी वे आपको हानि पहुचाते हैं। उनको धन दे देकर लोग अल्यन्त दरिद्र हो गए है, परन्तु बंगाल के लोगों को 'माँ' से अत्यन्त प्रेम है। यहाँ पर एक छोटी सी लड़की को भी 'माँ कहा जाता है। एक बार एककम्युनिष्ट मंत्री मुझे मिलने को आये। उसने कहा "माँ मुझे खेद है कि आने में देर हुई क्योंकि मैं पूजा के लिए काली मंन्दिर चला गया था क्यों काली मन्दिर पर पूजा करते हैं? उसने कहा, कम्युनिस्ट होने के कारण क्या मैं माँ को जाऊँ? अच्छा होगा कि मैं साम्यवाद को छोड़ दें क्योंकि माँ ही मेरी सब कुछ है"। मैं आश्चर्य चकित थी कि साम्यवादी होते हुए भी उसे माँ पर विश्वास था। अतः बंगाल में मातृत्व की बहुत पुजा होती है और मैं बिल्कल नहीं समझ पाई कि किस प्रकार कार्य हो रहे हैं, किस प्रकार पूरे विश्व में सहजयोग फैल गया है और किस प्रकार आप लोग सहजयोग में आयें हैं, यह अत्यंत विशिष्ट समय है, बसन्त का समय। इस बसन्त के समय यह सब आयोजन किया गया है ताकि यह घटित हो सके। मेरे विचार में मैं मात्र एक माध्यम हैँ और यह नहीं जानती कि किस प्रकार सब कुछ कार्यान्वित हो रहा है बस मेरा हृदय आपके प्रति कृतज्ञता भावना से परिपूर्ण हो गया है कि आपने सहजयोग को अपना लिया। अत्यंत सुक्ष्म ज्ञान होने के कारण भौतिकता से परिपूर्ण इस कलयग में यह कार्य अति कठिन है। मैंने तो यह भी न सोचा था कि मैं एक दर्जन सहजयोगी बना पाऊँगी। अतः मुझे समझ आया है कि यह उपयुक्त समय है और इस समय पूरा विश्व सत्य को अपना लेगा। सत्य विजयी होगा। द ा"। मैंने कहा, "आप तोकम्यूनिस्टहैं आप भूल चहूँ ओर, जीवन के हर मोड़ पर, इतना असत्य है कि अपने व्यक्तित्व के हर आयाम पर हम सभी प्रकार के भ्रमों को स्वीकार उनके प्रेममय स्वभाव का यही आधार है। वे अत्यन्त सहनशील लोग हैं, आप नहीं जानते कि एक माँ को किस प्रकार अपने बच्चो पर गर्व होता है। बच्चों का इतना विकसित होना व्यक्ति को कर लेते हैं। भ्रममय आशावाद की इस स्थिति में हमारा यह चाहना कि बहुत असाधारण बात है। मेरे लिये तो यह आश्चर्य है। से लोग सत्य के ज्ञान को प्राप्त करें, अत्यन्त उसके अपने उत्थान एवं उपलब्धियों का आनन्द प्रदान करता है। बहुत से कवि वक्ता, संगीतज्ञ, व्यापारी एवं सरकारी अफसर, सब ने सहजयोग अपनाया है। मैं हैरान होती हूँ कि किस प्रकार बह सहजयोग अपना सके! पर्णतया समर्पित हो सके और जहाँ-जहाँ भी काली विद्या है वहाँ गरीबी होगी, जैसे केरल और बंगाल में काली विद्या के कारण दरिद्रता है। जितने शीघ्र चैतत्प लहरी हों। धैर्य होना अति आवश्यक है। लोगो के प्रति करुणामय हों, इस करुणा से इतने लोग सहजयोग में आयेंगे कि आप इतने अच्छे परिणाम दिखा सके? ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनमें यह ज्यौति प्रज्वलित कर दी हो! कुण्डलिनी की यह शक्ति आपके अन्दर विद्यमान है। हमने आश्चयचकित रह जाएगें। बस इसका उपयोग करना है। आपके अहम् एवं बन्धनों ने इसे आच्छादित किया हुआ है, अपनी कण्डलिनी को बढ़ने दें, यह लोग अत्यन्त अबोध बन गए हैं, उनमें इतना माध्र्य, नम्रता, आपको प्रमाणित कर दिखाएगी कि आप कितने महान एवं सुन्दरता, प्रगल्भता एवं स्नेह है, और करुणा तथा सझबुझ से भी गरिमामय हैं। मैं कुछ नहीं कर रही। सारा कार्य आपकी कण्डलिनी ही कर रही है। बस एक चीज़ है, कि वह मुझे जानती हैरान होती हूँ कि यह कैसे हो गया। यह शक्ति उनके अन्दर है, बस। यह परिवर्तन जो आप लोगों में घटित हुआ है यह भी विद्यमान थी, उन्होंने बस इसे प्राप्त कर लिया है, बजाय इसके आपके पूर्व जन्म के सकत्यो एवं आपके विवेक को दर्शाता है कि कि आप मुझे मुबारकबाद दें मैं आपको मबारिक देती हूँ, आपने इसे स्वीकार किया। कबीर भी खो गए थे उन्होंने कहा, क्योंकि मैं जो हूँ, मैं तो वही थी। मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा। सभी संत तंग आ गए कि ये है। आप लोगों ने इसे प्राप्त किया है और इसके लिए मैं आपको लोग, तो सुक्ष्म ज्ञान को नहीं लेगें और सोचा कि समाधि ले लेना बधाई देती है। ही अच्छा है। परन्तु आज आप देखते हैं कि सब कछ तैयार है। आज बसन्त का समय है और इस विश्व को परिवर्तित होते हुए हृदय की एक बार शल्यक्रिया हो चुकी थी उसे बताया गया कि एक अन्य हैरान करने वाली बात यह है कि पश्चिमी देशों के वे परिपूर्ण है । वे सब इतने विशिष्ट और देवदतसम है कि मैं बहुत से रोग सहजयोग से ठीक हो गए। एक व्यक्ति जिसकी दोबारा उसके हदय का आपरेशन होगा उसने प्रार्थना की कि श्रीमाता जी मैं दोबारा से यह आपरेशन नहीं करवाना बढ़, महावीर, इसा, श्री कृष्ण, श्री राम, लाओत्से सभी ने सोचा चाहता"। जब वह दोबारा परिक्षण के लिए गया तो चिकित्सकों कि ऐसे विश्व को बनाए कि हम परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश ने पाया कि उसकी महाधमनी जो कि बांधित थी, बह खुल गई है कर सके। मैं आश्चर्य चकित पर सन्तष्ट भी हूँ कि आप लोगों ने और वह एक सामान्य व्यक्ति बन गया है। सामान्य बन कर वह इस बात को बहुत गम्भीरता पर्वक लिया और हर देश में इसे टेनिस खेलता है। वो चिकित्सक जो कि सहजयोगी भी नहीं थे का्यान्वित कर रहे हैं । मैं यदि अकेली यह कार्य कर सकती तो उन्होंने सहजयोग पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त की है। आपको सहजयोगी क्यों बनाती? आपकी तरह पवित्र माध्यम जगह-जगह यह घटित हो रहा है। लोग रोग मक्त हो रहें हैं, होना आवश्यक था। इसके बिना यह कार्य न हो पाता। इस उनके मस्तिष्क विकसित हो रहे हैं, परिवारिक जीवन नौकरियाँ एवं व्यापार बेहतर हो रहे हैं। सम्बन्ध सुधर रहे हैं। परन्त इसके लिए हममें शद्ध इच्छा का होना अत्यन्त आवश्यक है देख कर मां आनन्द से भर गई हैं। बहुत सारे लोगों ने विश्व को ऐसा बनाने के बारे में सोचा। प्रकार सहजयोग का प्रचार हो रहा है। आप में सभी शक्तियाँ है। इन शक्तियो को धारण करने का प्रयत्न करें। किसी भिखारी को राजा बना कर यदि सिंहांसन पर है। अरथात् ध्यान करना अत्यन्त आवश्यक हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण प= बिठा दिया गया हो और फिर भी बह भीख मांगे तो उसे राजा बनाने का क्या लाभ? अब आप लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चके हैं। विश्वास रखें कि आप सब में विश्व को परिवर्तित करने की शक्ति है। आप ही वो लोग हैं जिन्हें वास्तविकता में चना गया है। अतः उतरदायित्व को समझें। सहजयोग में आपको कछ नहीं करना पड़ता, न धन देना पड़ता है और तत ही सिर के बल खड़ होना होता है, न ब्रत करने होते है और न परिवार को त्यागना होता है। आपको मात्र शुद्ध इच्छा करनी होती है, जो कि कण्डलिनी की शक्ति है, एवं अपने योग आपने जो कुछ भी मेरे लिए कहा उसके लिए आपका धन्यवाद करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। मझे रविन्द्रनाथ टैगोर की याद आती है जिन्होंने एक बार एक कविता लिखी जिसकी सभी लोगों ने प्रशंसा की। इन टिप्पणियों को पढ़ कर उन्होंने कहा मैं नहीं जानता था कि मैंने यह सब लिखा। मैं जो करती हैँ वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना आपका इसे स्वीकार करना और इसका आदान-प्रदान करना । यही महत्वपूर्ण है और यह कलयुग में घटित हुआ है बारम्बार मुझे आपका धन्यवाद करना है। आप एक अत्यन्त सन्दर एवं समुद्ध जीवन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। को बनाए रखना होता है। सामूहिक बने और सदा उनके विषय में सोचे जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त हुआ। उनसे नाराज न चैतन्य तहरी श्री ईसा मसीह पूजा गणपति पुले 25-12-1993 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) आज हम ईसा का जन्म दिन मना रहे हैं। यह अल्यन्त परन्त वास्तव में नहीं है। बहुत से लोग कहते हैं कि ईसा ने पुर्न महत्वपूर्ण समय है क्योंकि ईसा विरोधी इसाई धर्म के कुछ जन्म नहीं लिया। परन्तु वास्तव में वे बाद में काश्मीर में मृत्यु अधिकारी ईसा के जन्म के विरुद्ध बाते कर रहे हैं। उन्हें ऐसा को प्राप्त हुए। इसके प्रमाण है। फिर भी लोग इसका विश्वास करने का कोई अधिकार नहीं है। वे आत्म साक्षात्कारी नहीं और नहीं करते क्योंकि े जानते हैं कि बहसंख्यक होने के कारण वे न ही उन्हें परमाल्मा की कोई समझ है। वे कह रहे हैं कि मेरी मां कुषछ भी कर सकते है। परन्त अब बहसंख्या भी कोई सहायता न कमारी नहीं थी तथा ईसा का जन्म इस प्रकार नहीं हुआ। आप में कर पाएगी। मोहम्मद साहब ने करान में कहा है कि आपको ईसा से कुछ लोग पत्र लिखकर उनसे पूछ सकते हैं कि किस अधिकार की माँ की पवित्रता की पूजा करनी चाहिए। उन्होंने माँ का से वे इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। सत्य यज्ञ में उनका भंडा सम्मान किया। परन्त बाईबल में मेरी माँ को कोई सम्मान नहीं फोड़ हो जाएगा क्योंकि बिना सर्वव्यापक शक्तिको अनुभव किए दिया गया। ईसा विरोधी पाॉल के कारण वे उन्हें एक 'स्त्री कहते उन्हें इस प्रकार से बाते करने का कोई अधिकार नहीं है। वे नहीं हैं। पाल ने इसाई धर्म की बागडोर अपने हाथ में ले ली और जानते कि किस प्रकार चमत्कार घटित होते हैं। परमात्मा के इसका प्रसार किया। बाइबल में अपना महत्व दर्शाने के लिए आर्शीवाद से ही चमत्कार होते हैं। आप सब ने परमात्मा की इस पाल ने पीटर का उपयोग किया जो कि ईसा का अधमतम शिष्य कृपा का अनुभव किया है। मैं एक सर्वसाधारण उदाहरण था। उनके बारे में ईसा ने कहा कि, "शैतान तुम पर काब सुनाउंगी। इस वर्ष नवरात्रि पूजा के अवसर पर एक फोटो लिया पाएगा।" ऐसे भी लोग है जो ये कहते है, "कुंवारी लड़की से ईसा गया जिसमें पूष्ठभूमि में एक प्दा दिखाई दिया और उस पर्दे के का जन्म कैसे हो सकता है।" भारतीय श्री गणेश की पूजा करते पीछे से सूर्य झांक रहा था। सूर्य की आंखे थी, नाक था और वह है। श्री गणेश भी ईसा सम हैं। हमें विश्वास है कि गौरी मां ने मुस्करा रहा था। बाद में जब हम मास्को गये तो मंच (स्टेज) पर कौमा्यावस्था में ही उनकी सुष्टि की। यह हमारा विश्वास है वही दृश्य देखा। परम चैतन्यने उसे प्रकट होने और बनने से डेढ़ लेकिन पश्चिमी देशों में तर्कवाद ही विश्वास है। बहुत से लोग महीना पूर्व चित्रित कर दिया था। इसी प्रकार आप हजारो केवल मिथ्या बातों को ही लिखते हैं। समाचार पत्रों में यह सारी चमत्कारों की बात कर सकते हैं। जब मैं मास्को जा रही थी तो मुर्खता पूर्ण बाते छापने का क्या लक्ष्य है? आपको समझना होगा बाहर का तापमान -20° था। जब हम मास्को हवाई अड्डे पर कि तर्क बाद से आप सत्य को नहीं जान सकते। बुद्धिवाद बहुत उतरे तो यह -15° हो गया और दोपहर पश्चात तापमान -4° ही सीमित, बंधनयुक्त एवं अहंकार पूर्ण है। बुद्धिवाद किस प्रकार था। अगले दिन यह +10° था। ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता है आपको ईसा के बारे में सच्चाई बता सकता है? अब तो हमारे ठंड बढ़ती है पर इस बार यहां पर गर्मी बढ़ी। इससे प्रकट होता है पास वैज्ञानिक प्रमाण भी है। कार्बन को यदि आप दाएं से बाएं कि सभी तत्त्व हमारी सहायता कर रहे हैं। छोटी बड़ी सभी को देखें तो इसके कणों में आपको स्वास्तिक दिखाई देगा। समस्याएं हल होती चली जाती है। कार्यों के होने के ढंग से लोगो ने इसके माडल बनाए हैं। इसे यदि आप बाएं से दाएं को आपको हैरानी होती होगी लोग पूछते हैं कि ईसा को क्यों क्रसारोपित होना पड़ा? उन्हें और ओमेगा दिखाई पड़ेगें। ईसा ने कहा था "मैं ही अल्फा बचाया क्यों न जा सका? इसका कारण यह था कि ईसा को आज्ञा (आदि) हूँ और मैं ही ओमेगा (अन्त) हूँ।" प्रतीकात्मक रूप में चक्र के सकीर्ण मार्ग से गुजरना था। सूली (क्रास) से गुजरकर उन्हें स्वंय को स्थापित करना था। उनके जीवन का संदेश सली एक ओर ऑकार दूसरी ओर अवतरित एक-दूसरे से जड़े हुए। नहीं है। यह पुर्नजन्म का संदेश है। वे पूर्न जीवित हुए ताकि अब आप भी पुर्नजन्म ले सकें। सभी अवतरणों में कषछ न कषछ अद्वितीय है। परन्तु पर्नजन्म इसकी पराकाष्ठा हैं। मृत्यु प्राप्त करके ही ईंसा ने यह कर दिखाया। बिना मृत्यु के पुर्नजन्म नहीं समझ सकते कि दैवी शक्ति यह सब कर सकती है। आप कैसे लिया जा सकता? बहुत सी चीजे देखने में बहुत कठिन हैं लोगों को आत्मसाक्षात्कार, आपका पुनंजन्म मिल चुका है। नीचे से ऊपर को देखने पर अल्फा देखेगे तो ओंकार दिखाई देगें यदि आप नीचे से ऊपर को देखें तो आप इसे रूपष्ट देख सकते हैं। जब वे उत्थित और अवतरित होते हैं तब वे अल्फा और ओमेगा बन जाते हैं। ईसा विरोधी लोगों के मस्तिष्क में यह बात नहीं बैठती। वे यह को चैतन्य लहरी किस प्रकार आपने यह पुर्न जन्म प्राप्त किया? आप जानते हैं कि बालक अपने पिता के लिए रोने लगा। श्रीकृष्ण पिता था और श्री गणेश अत्यन्त शक्तिशाली हैं और ईसा ने कहा था कि होली हाथ की पहली अंगुली विशुद्धि की उंगली है। ईसा मसीह सदा घोस्ट (आदि शक्ति) के विरुद्ध कोई कुछ कहेगा तो मैं उसे सहन अपने हाथ परम पिता परमात्मा की तरफ 'V' चिन्ह की तरह से नहीं करूगां। ईसा के विरुद्ध भी कोई गलत बात कहेगा तो मैं इसे रखते थे। पहली अंगली श्रीकृष्ण की है और मध्यम श्रीविण्णु सहन नहीं करूंगी। इस मामले में मुझे यह देखना होगा कि इस की। राधा माँ थी - 'रा' अथाथात् शक्ति और 'धा' अर्थात् धारण प्रकार के शैतान लोगों का पुर्ण विनाश हो जाए। ईसा के जन्म करने वाला। माँ मैरी ने ही उन्हें येशु कह कर बुलाया। येशु दिन के इस शुभ अवसर पर मैं कहती हूँ कि ईसा और श्री गणेश यशोदा भाषा का शब्द है। बाईबल के मराठी अनुवाद में भी एक ही तत्व से बने थे। ईसा विवेक थे और विवेक के स्रोत थे। तीन यिश ही लिखा है कि मां यशोदा से येश या जीजस बना। जीसस साढ़े तीन वर्ष कार्य करने के पश्चात् उन्हें जीवित नहीं रहने दिया या येश और क़ाइस्ट या क्रिष्ट नामों से बलाकर मां मैरी ने हमारे गया। परन्त उन्होंने जो भी कुछ इस समय में बताया वह लिए यह समझना अत्यन्त सुगम कर दिया है कि जीसस के कृष्ण पुर्णतया ठीक एवं विवेक पूर्ण था। चाहे लोगों ने इसे भ्रष्ट करने से कितने समीपी ही समबन्ध थे श्रीकृष्ण भारत में अवरतरित की कोशिश की है, फिर भी बाइबल में बहुत सा सत्य बाकी है। हुए क्योंकि वे इतने नम्र व्यक्ति थे कि मर्यादा और धर्म विहीन उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों को सत्य के बारे में बताने में अमेरिका के लोगों के बीच अवतरित होना उनके लिए संभव नहीं लगा दिया। परमात्मा के बारे में इतना स्पष्ट रूप से बताने वाले था। अमेरिका के लोग अत्यन्त अधर्मी है। अतः ईसासम पुर्णतः वे पहले अवतरण थे। इसके बारे में आपको स्पष्ट रूप से जान पवित्र विवेकशील व्यक्ति जिसे लीला पर कोई विश्वास न था लेना है। तप के क्षेत्र में दो लोग है - एक बुद्ध है और दूसरे महावीर। बुद्ध और महावीर का अवतरण उस वक्त हुआ था जब ऐसा नहीं कहा। इसके बावजूद भी सभी ईसाई लोग कहते हैं कि कर्मकाण्ड वास्तविकता का स्थान लेने लगा था। तो उन्होंने कहा कि हम परमात्मा की बात नहीं करेगें। हम केवल चैतन्य की कहते है कि हम अबोध है। यह तर्क कितना मुर्खतापूर्ण है । बात करेंगें। सभी ने ऐसा किया। यहां तक कि राजा जनक के आत्मघाती एवं विवेकहीन तर्क। गुरू अष्टवक्र ने भी चैतन्य लहरियों की बात की। गुरू नानक ने भी यही किया। नामदेव जय औरिया गये तो उन्होंने कहा कि हम हरि की बात नहीं करते। अच्छा होगा कि हम सबसे पहले चैतन्य सहजयोगियों को मैं अधिक श्रेय दंगी जिन्हें कण्डलिनी के बारे की बात करें। परमात्मा तक पहुंचने के लिए व्यक्ति परम चैतन्य कोई ज्ञान न था। फिर भी उन्होंने कठोर परिश्रम किया और तक पहुँच सकता है। केवल ईसा मसीह ने ही सर्वशक्तिमान महान सहजयोगी बने। यह परमात्मा का आश्शीवाद है। क्योंकि परमात्मा की बात की ईसा मसीह अत्यन्त बहादुर और निर्भीक बवे निष्कपट एवं सच्चे थे। ईसा मसीह उन्हें सहजयोग में लाए। थे। जैसे श्रीकृष्ण और श्रीराम के बचपन के बर्णन हमें मिलते हैं उनके बिना यह सम्भव न होता। भारत में श्रीगणेश एक प्रतीक उस प्रकार इंसा मसीह के बचपन का वर्णन कही नहीं किया गया। यह खेद जनक बात है। केवल एक वर्णन मिलता है जब कि धर्म क्या है और उन्हें किसका अनुसरण करना चाहिए। फिर वह पारसी के साथ बहस कर रहे थे तो े लोग उनकी चतुराई और विवेक बद्धि को देखकर आश्चर्यचकित थे। लोगों ने यद्यपि माँ 'मैरी का सम्मान नहीं किया फिर भी वे एक नाद में वे जन्में, जिसमें बहुत सारा घास इकटूठा पड़ा था। उनके प्रति नतमस्तक थे। उन्होंने कहा कि यदि वे देवी नहीं होती पशु वहां पर थे। एक गरीब व्यक्ति की तरह, एक ऐसे स्थान पर तो कैसे उनकी कोख से ईसा का जन्म होता। तो लोगों ने उन्हें जो कि मानवीय स्तर से बहुत नीचा था, उन्होंने जन्म लिया। यह गौरी (वर्जिन) कह कर पूकारा। तब यह कमारी चर्चो में तथा केवल हमें बताने के लिए था कि अवतरित होने के लिए महल या अन्यत्र स्थान ग्रहण करने लगी। लोग उन्हें देवी मानने लगे। बड़े स्थानों की आवश्यकता नहीं। यदि आप पवित्र हैं तो कहीं उन्हें माँ की पदवी देने लगे। लोगों ने यह मान्यता उन्हें दी। चर्चों तथा ईसाई धर्म के तहीं। हम जानते है कि व महालक्ष्मी थी और उत्पन्न हुआ। परन्तु अब वहां पर सभी कुछ इसके विपरीत हो महालक्ष्मी के रूप मे ही उनकी पूजा करते है। वे राधा थी। राधा का भी अण्डाकार का एक पुत्र था। अडें का आधा भाग ईसा और कमाये हुए धन से अपना विनाश कर रहे हैं। पश्चिमी देशों मसीह थे और आधा श्रीगणेश परन्तु उत्पन्न होते ही यह में लोगों में संतुलन विवेक नहीं है। और हम भी उनका अनुसरण ही वहां अवतरण ले सकता था। श्रीराम की अनुशासनबद्धता को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने लीला पर बल दिया। परन्त ईंसा ने 1. यह सब लीला है। सारे अधर्म, बुराइयों को लीला कहते हुए वे हम भारतीय लोगों को धर्म का पूरा विचार है हम जानते हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। परन्त उन देशों के इंसाई मात्र है, परन्तु वहाँ वे अवरतरित हुए। ईसा ने लोगों को बताया भी वे धन लोल्प लोग हैं। परमात्मा के नाम में उन्होंने कैसे-कैसे कार्य किए हैं। जहां वे जन्मे वह एक अतिप्रतीकात्मक बात थी। भी जन्म ले सकते हैं। इतना महान व्यक्तित्व ऐसे स्थान पर रहा है। वहां के लोग अत्यंत भौतिकता वादी हैं, धन संचालित है चैतन्य लहरी कर रहे हैं। उनकी विधर्वैस्क गतिविधियों का अनुसरण करके हम समझते है कि हम काफी उन्नत है। विनाश की ओर उन्नत। भौतिकता भिन्न-भिन्न तरीको से कार्य करती है। पश्चिमी देशों में लोग कहते हैं" मेरा घर, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे"। पर्व में अपने बच्चे तथा सम्बंधियों के प्रति हमें बहुत सावधान होना यह मैं किस प्रकार का खाना खाता हैँ, मेरा घर और परिवार है ताकि परमात्मा के नाम पर बताई गई गंदी बातों को हम कैसा होना चाहिए"? अपना न लें/इसके बावजूद भी सहजयोगियों का एक बहुत बड़ा समूह यहां है। वे आश्शिर्वादित लोग हैं और जानते हैं कि देवत्व सक्ष्म होता जा रहा है। वैसे-वैसे यह चीजें भी सुक्ष्म हो रही हैं। क्या है। ईसा क्या है? चाहे आपका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ हो और आपको पकड़े हुए है। मैं ऐसे सहजयोगियों को भी जानती हैँ या कहीं और, ईसा हम सबसे सम्बन्धित हैं। ईसा शाश्वत है। वे जो सहजयोग को व्यापार बनाना चाहते है। क्या आप स्वयं को पुरे ब्रह्माण्ड। ऐसा देवीमहात्मय में वर्णन किया गया है। ईसा के काब नहीं कर सकते? ऐसा करना अति सगम है। ईसा मसीह ने अनुयायियों का हमें मजाक नहीं करना चाहिए, ईसा मसीह की ऐसा किया। आप यहां उनकी पजा करने के लिए आये हैं। इन भी हमें उतने ही स्नेह, श्रदा एवं समर्पण से पूजा करनी चाहिए चीजों को काब करने का प्रयत्न करें। यह बहत आवश्यक है। जैसे हम श्री गणेश की करते हैं। मैं नहीं समझती कि इसाई लोगों आप कहीं भी रह सकते हैं। जैसे मेरी कोई आवश्यकता नहीं है, को ईसा मसीह में विश्वास है। परन्तु आत्म साक्षात्कारी होने के मेरा शरीर कुछ नहीं मांगता। इसी कारण मझे कभी थकान नहीं कारण सहजयोगियों का विश्वास कार्य करता है। आपको स्वयं होती। यहां मैं आपके साथ रहती हैं। कहीं भी मैं सो सकती हैं। में, सहज योग में तथा जीवन-यापन में अपने ढंग में विश्वास एक बार मैंने पणे से लेकर हैदराबाद तक रेलगाड़ी में यात्रा की। होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक आप स्वयं बहुत धक्के लग रहे थे परन्तु मझे ऐसे लगा जैसे मैं एक ग्रह से को सहजयोगी नहीं कह सकते। अब भी बहुत से लोग है जो दूसरे ग्रह पर जा रही हूं। कोई दसरा व्यक्ति होता तो इन धक्कों परिधि रेखा पर हैं, जो सहज योग को पूर्णतः नहीं समझते हैं। केवल बद्धि से समझते है फिर भी परमात्मा के गहन प्रेम में गोते लगा रहे है। आपको चाहिए कि वह प्रेम दूसरे लोगो को भी दें। कोई समस्या होती है तो मैं निर्विचार हो जाती हैं और एक गहन अभी भी कुछ लोगों के लिए भौतिकता का बहुत महत्व है। मेरा शक्ति प्रवाहित होने लगती है। निलिप्त हो कर आप भी इसे कहने से अभिप्राय है कि वे अब भी गलत ढंग से धनाजन करना प्राप्त कर सकते हैं। चाहते हैं। कुछ अन्य अपने बच्चों से लिप्त हो जाते हैं। यह लिप्सा गलत है। ईसा मसीह ने कभी ऐसा नहीं चाहा। हमें यह करती। वे मुझे फोन करते हैं। मैं अपने पति को भी कभी फान समझना है और ईसा मसीह का सम्मान करना है। ये सारी चीजें अब भी वनी हुई हैं। आपका उत्थान ज्याँ-ज्यों के कारण नाराज हो जाता। परन्त, इसके विपरीत मझे बहुत अच्छा लग रहा था। अतः मेरी प्रक्रिया बहुत भिन्न थी। जब भी मेरे भी बच्चे हैं, नाती नातिने हैं। मैं उन्हें कभी फोन नहीं 1. नहीं करती। टेलीफोन करना समय खराब करना मात्र है। मेर भौतिकतावादी विचारों से हमें छुटकारा पाना होगा। मैं नहीं अन्दर एक टेलीफोन है और मैं जानती हैं कि आप सब ठीक हैं। कहती कि आप हिमालय में चले जाएं, सन्यास ले लें, या बुद्ध की परन्त जब तक आप निर्लिप्ता की उस अवस्था को प्राप्त नहीं तरह से अपने बच्चों को त्याग दें। परन्तु आप में निर्लिप्सा तो कर लेते यह कार्य कठिन है। मैं जानती हूँ कि कछ सहजयोगी होनी ही चाहिए। आप सब इस पृथ्वी पर है फिर भी आपको एक दम हिंसक हो जाते हैं और दसरों को चोट पहुंचाने लगत हैं। निर्लिप्सा विकसित करनी होगीं। आरम्भ में आप जब सहज योग आप जानते हैं मैं अपने बच्चों पर कभी हाथ नहीं उठाती। ऐसा शुरु-शरु करने की आज्ञा नहीं है। किसी भी व्यक्ति को हाथ नहीं उटाना में यह ठीक है, परन्तु अब नहीं। सहजयोग की गति अब बहुत चाहिए और न ही किसी को छना चाहिए। आपको न तो नाराज तेज है। और बहुत से लोग पीछे रह जाएंगे अतः सावधान रहें । होना है और न ही चिल्लाना है। अन्यथा आपको पता भी नहीं इन भौतिकतावादी विचारों में न फसे। विशेषकर भारतीय लगेगा और आपका पतन हो जायेगा। पुरणंतः शान्त एवं सहजयोगी, वे आश्रमों में रहना पसंद नहीं करते। भारतीय करुणामय बनें। परन्तु यदि आप अभी तक भी लिप्त हैं तो आप चाहते हैं कि उनके अपने घर हों जहां वे अपनी पत्नियों पर रोब यह सब उल्टे सी धे कार्य करते है। अतः सावधान रहें। क्रोधित न झाड़ सकें और स्वादिष्ट प्रकार के खाने खा सके। मेरे विचार में हों। ऐसा कोई व्यक्ति यदि हो तो मुझे बताएं। ईसा की ओर देखें चर्च के समीप चीजे बेचने वालो पर वे नाराज थे। एक बड़ा हटर ताकि वे जिव्हा के स्वाद से छूटकारा पा सकें। ब्रत रख कर भी वे लेकर उन्होंने उन्हें पीटा। पर वे तो ईसा मसीह थे। जिस समय मेरे में आते हैं कि "मेरे पिता बीमार है, मेरी मा बीमार ।" इसी कारण भारतीय लोगों को बरत रखने के लिए कहा गया। ा खाने के विषय में सोचते हैं। ऐसे बरत का क्या लाभ है? ईसा मसीह ने चालीस दिन तक ब्रत रखा और जब शैतान ने उनका दिल ललचाने का प्रयत्न किया तो उन्होंने उसकी अवज्ञा कर दी। उन्हें क्रसारोपित किया गया उन्होंने कहा "हे परमात्मा, पिता कृपा करके इन्हें क्षमा कर दो क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। चैतन्य लहरी 10 दो दिनों तक ब्रत रखें और स्वयं को दंडित करें। क्रोध बहत ही बुरा है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि क्रोध से ही सारी बुराइयां शुरू होती हैं। अतः अपने क्रोध को हमें काबू करना है और याद रखना है क इंसा मसीह क्षमा का अवतार थे। यही सब कुछ हमें ईसा मसीह के और उनके चरित्र के बारे में जानना है। वे कितने क्षमाशील तथा प्रेममय थे? किस प्रकार से उन्होंने लोगों की देखभाल की? और मोक्ष प्राप्ति के लिए उनकी सहायता की। आराजकता तथा अव्यवस्था के उन दिनों में उन्होंने "सत्य, आत्मा एवं उत्थान की बातें कीं। जिन लोगों से उन्होंने बातचीत की वे सब अन्ध (ना समझ थे) फिर भी उन्होंने उन्हें सब कुछ बताया। बाईबल में बहुत सी कथाएं हैं जिनमें से एक यह है कि पुनं जन्म के समय आपके शरीर कब से बाहर आएंगे। यह बात केवल इसाईयों के लिए ही नहीं है बल्कि मसलमानों और यहदियों के लिए भी है। इसके विषय में सोचें इतने वर्षों के बाद कब्र में क्या बचता है? थोड़ी सी होडिया और यदि यह हड्डियाँ बाहर आ भी जाएं तो किस प्रकार आप इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं? इसके बारे में सोचें। ये मात्र कथा में आज हम उनकी पूजा कर रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें कसारोपित किया उन रोमन लोगों को भी उन्होंने क्षमा कर दिया। रोमन अधिकारियों ने उन्हें क्रसारोपित किया था इस प्रकार के दृष्टिकोण के कारण लोगों ने उनसे घृणा की, उन्हें दूुख दिया और सताया। जब यहदियों में प्रक्रिया हुई तो उन्होंने भी ऐसा ही किया। जिस न्यायाधिकारी ने उन्हें क्रसारोपित किया उसने भी स्वयं निर्णय न दे कर लोगों से यह बात कहलवायी। यह सब यहदियों को अभिशापित करने के लिए था। परमात्मा का शुक्र है कि, आज बहुत से यहदी सहजयोग में हैं दम्पति आर इज़ाइल में बहुत से सहजयोग केन्द्र हैं। ईरान से अमेरिका आये हुए बहुत से लोग हैं जो यहूदी और मुस्लिम हैं जो अब स्पष्ट कहा गया है कि ये सभी साधक जो परमात्मा को पर्वतों में खोज रहे हैं ये सब कलयग में पर्नजन्म लेगे और उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया जाएगा। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिल गया है उन्हें स्वयं को इसमें स्थापित करना होगा। उनकी कण्डलिनी जागृत हो जाएंगी और यह बात तर्क संगत है। आज हम लोग यही कार्य कर रहें हैं। सहजयोगी बन गए हैं। मुझे बताया गया है कि तर्की और भारत के सुफी लोग भी सहजयोग में आ रहे हैं। इस प्रकार सब का कल्याण होगा। हमें समझना होगा कि ईसा मसीह कैसे थे। उनका जीवन कैसा था और किस प्रकार उन्होंने लोगों को प्रेम किया। वे विश्व में क्रसारोपित होने के लिए आए। इस बात को वे जानते थे और उन्होंने ऐसा किया। परन्तु लोगों ने उनका जो चित्र प्रस्तुत किया है वह गलत है। वे अत्यन्त स्वस्थ, बजनदार एवं लम्बे कद के थे। उन्होंने क्रस को उठाना था। जिन लोगों ने उन्हें तपेदिक के मरीज की तरह दर्बल चित्रित किया है उन्हें समझना चाहिए कि यदि स्वयं उन्हें क्रस उठाना पड़े तो क्या वे उठा सकेंगे? इस प्रकार ईसा मसीह के व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने के लिए और उनका चरित्र हनन करने के लिए लोगों ने यह सभी कुछ किया। परन्तु सहजयोगी होने के नाते आपको चाहिए कि सारे सत्य को जानें उनके प्रति पूर्ण सम्मान और उनमें पुर्ण श्रद्धा बनाए रखें। वे, श्री गणेश की तरह, आपके बड़े सहजयोगी देते हुए भी यदि आप दुर्वयवहार करते हैं ता हो भाई हैं। बड़े भाई के रूप में ही वे अवतरित होते हैं। हर दुख एवं सकता है कि ईसा मसीह कुछ सीमा तक आपको क्षमा कर दें पर परेशानी में वे आपकी देखभाल करते हैं। हर तरह से वे हमारी हमें लोगों को बताना है कि सहजयोग मार्ग को अपनाएं। हिसक मदद करते रहेंगे। लेकिन इसका एकमात्र रास्ता यह है कि उनके तथा अभद्र न बनें। मैं जब यह सुनती हूँ कि सहजयोग में भी गुणों के सम्मूख हम समर्पण करें और क्षमाशील बन जाएं लोग उग्र हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। आपको चाहिए कि उनके यही गण हमें आत्मसात करने हैं। परमात्मा आपको जनसंख्या विरुफोट भी इसी कारण से है। परन्त मैं नहीं जानती कि इनमें से कितने लोग आत्मसाक्षात्कार को पा सकेंगे। जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है उन्हें चाहिए कि स्वयं को स्थापित करें। परन्त उनमें भी सक्षम प्रकार की लिप्सा दिखाई पड़ती है। अतः आप लोगों को चाहिए कि ईसा मसीह के गणों के सम्मख स्वयं को समर्पित कर दें। उनके गुण अत्यंत गहन हैं। और उनका महानतम गण यह है कि वे (आदि शक्ति) परम-चैतन्य के विरुद्ध कोई भी बात सहन नहीं कर सकते । आशीर्वाद करें। जिगर का इलाज करें। उग्र स्वभाव के लोगों को चाहिए कि वो 11 चैतन्य लहरी श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत मद्रास 17.1.94 (सारांश) चस आज हम शब्द जाले में खो गए हैं। हम मन्त्रो का उच्चारण जुड़ा हो तो यह अर्थहीन है। अपनी भक्ति को जब तक हम करते हैं, पुस्तकें पढ़ते हैं, कोई शैव है, और कोई विष्णवी। ये सारी बातें हमारे लिए इसलिए महंत्वपूर्ण थीं क्योंकि हमने सोचा तक भक्ति अर्थहीन है। अतः सर्वसाधारण बात यह है कि योग था कि इन विधियों से हम अपने अन्तिम लक्ष्य, मोक्ष को प्राप्त घटित होना आवश्यक है। चाहे आपको शास्त्रों और वेदों का ज्ञान कर सकेंगे। इस प्रकार मेरे विचार से भारतीय अत्यंत चुस्त एवं हो, बिना योग के सब अर्थहीन है। मूलभूत रूप से आध्यात्मिक हैं। वे जानते हैं कि अच्छा क्या है, और बुरा क्या है। धर्म अधर्म को भी वे जानते हैं। आध्यात्मिक जीवन के वे कार्य करते हैं। परन्त अपने हदय में वे जानते हैं कि ऐसा आपको लिख कर दे.तो उसे खाने की अपेक्षा आप उसका नाम करना अनचित है। पर वे लाचार हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पूर्वज महान दृष्टा, संत एवं अवतरण थे जिन्होंने हमारे आध्यात्मिक उत्थान के लिए बहुत समय लगाया। हमें उनका का किसी भी तरह से प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि मिथ्या विचारों आशीर्वाद प्राप्त हैं। हमारे पर्वजों के लिए भौतिक जीवन का बहुत महत्व नहीं था। दक्षिण में मझे लगता है कि लोग धर्म में गहन खाइ है। जिससे निकलना अत्यंत दश्कर है। मैं ऐसे लोगों बहुत ही गहन उतरे हुए हैं। मैं शालीवाहन के बारे में पढ़ती हैं की जानती हैँ जिन्होंने ढेरों पुस्तकें पढ़ी हैं। कुछ लोग एक लाख जिनकी भेंट कश्मीर में एक बार ईसा मसीह से हुई ईसा मसीह ने मन्त्रोच्चारण करते हैं, ब्रत करते हैं। परन्त उन्हें कोई लाभ नहीं उन्हें बताया कि"मैं मलेच्छों (मल + इच्छा) के देशों से आया है ताता। उनका स्वभाव बहुत ही उग्र है, और उनके हृदय में अर्थात जहां के लोग मल की इच्छा करते हैं" उनकी इच्छा मल की है पवित्रता की नहीं। और मैं यहां इसलिए आया हूँ क्योंकि आर साचत है कि उन्होंने, महान त्याग किया है। परामात्मा इस आप लोग पर्णतया निर्मल हैं। तो शालीवाहन ने उनसे कहा आप यहां क्यों आना चाहते हैं, आप को तो जा कर मलेच्छ पिता है, अति करूणा एवं प्रेम मय हैं, क्यों आपको दखी देखना लोगों के हित के लिए कार्य करना चाहिए।" आज भी हम भिन्न प्रकार के लोग हैं। इस घोर कलयग में भी कम से कम 70 प्रतिशत लोग परमात्मा में विश्वास करते है। परमात्मा के प्राति किस प्रकार आप मोक्ष को प्राप्त कर पाएंगे? जैस कबीरदास जी परमात्मा के दैवी प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति से नहीं जोड़ लेते तब जैसे आपको यदि सिर दर्द हो और डाक्टर कोई औषधी उच्चारण करते रहे। कब आप इस औषधी को लेंगे? बिना आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किये आप अपने जन्म सिद्ध अधिकार के गहने अज्ञानान्धकार में हम धंस चुके हैं। यह अज्ञान एक आनन्द विल्कुल नहीं है। परिवार को त्याग कर वे चले जाते हैं। प्रकार की मुंखतापूर्ण बातें नहीं चाहते। परमात्मा जो कि आपके १। चाहेंगे? आप देख क्यों उठाएं? में नहीं समझ सकती कि दख उठाने से उनकी श्रद्धा है तथा उसका उन्हें भय है। ने कहा है कि व्रत करने से यदि मोक्ष प्राप्त होता ता भारत के केंवल दरिद्र लोग ही माक्ष को प्राप्त कर पाते। सिर मृडाने से यदि मोक्ष प्राप्त होता तो भेड़े, जिनकी ऊन हर साल उतार ली जाती है, को ही मोक्ष प्राप्त होता। इन लोगों ने इन सब कर्म काण्डों का उपहास करके आपको यह बताने की चेष्टा की है कि इन बाह्य परमात्मा को जानते महीं है। हम स्वयं को भी नहीं जानते। पहले कार्यों से आपको कोई लाभ न होगा। निसंदेह, आप ये सब हमें स्वयं को जानना होगा इसके उपरान्त ही हम परमात्मा को कमकाण्ड बड़ी तत्परता से करते हैं क्यो कि आत्मसाक्षात्कार एवं मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। माँ होने के आया है। मैं आश्चर्यचकित थी कि कितने हृदय पूर्वक लोग सभी नाते मैं आपको बताती हैँ कि आपको यह सब कर्म काण्ड नहीं कुछ कर रहे हैं। पर वै ऐसा करने का कारण नहीं जानते। उनकी करने हैं। कृपया ऐसा न करें। माँ को यदि आपने सताना हो तो यह अन्ध श्रद्धा है, अन्ध श्रद्धा उन्हें कहीं भी नहीं ले जाएगी। मैं आप कहते हैं कि मैं खाना नहीं खाऊंगा। ऐसा आप क्यों करना सोचा करती थी कि कब मैं उन्हें यह बता पाऊंगी कि आपको इस चाहते हैं? इसकी कोई आवश्यकता नहीं। भाजन को इतना महत्व देना अनावश्यक है। प्रातः चार बजे उठ कर मन्त्रोच्चारण द्वारा आपका परे घर को सिर पर उठा लेना कहा ये जो भावना हमारे अन्दर है यह मात्र एक भय हैं। किसी अनेजानी शक्ति का भय। हम नहीं जानते कि सर्वशक्तिमान परमात्मा करूणा एवं प्रेम के सागर हैं। हम मानवां को चाहिए 1. कि परमात्मा को जानने की अवस्था को प्राप्त करें। हम आप जान जाएंगे। दक्षिण भारत में मझे अत्याधिक कर्मकांड नजर अन्ध श्रद्धा से ऊपर उठना है। श्रद्धा आप में हानी चाहिाए पर श्रद्धा तो ज्ञान सम्पन्न भक्ति होती है। बिना ज्ञान सम्पन्नता (बाध) के भक्ति अर्थ-हीन है। जैसे यह माइक्रोफोन यदि अपने ग्रोत से न तक उचित है? चैतन्य लहरी वललि 12 आवश्यक नहीं। अफसर, मंत्री आदि लोग सर्वसाधारण विवेक को खो देते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना बहुत कठिन हो जाता है। स्वयं को बहुत सफल मानने वाले लोगों को कभी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होगा। शद्ध इच्छा के बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हो सकता। यह इतनी विशेष चीज है कि इसमें सभी कछ वास्तविक है। छोटे-छोटे बच्चे आपको बता सकते हैं कि आपको क्या समस्या है और आपका कौन सा चक्र खराब है। यह इतनी महान खोज है, इसका हम अन्दाज नहीं लगा सकते, सम्भवतः अपने अध्यात्म विवेक के अभाव के इसके अतिरिक्त झूठे गुरुओं का भी प्रभाव है। मद्रास इनसे भरा पड़ा है। हर व्यक्ति किसी गुरु का दास है। कलकत्ता का तो और भी बरा हाल है । हर व्यक्ति ने किसी न किसी गुरू से दीक्षा ले रखी है। कुगुरुओं या तान्त्रिकों के चक्कर में आप आ जाते हैं। तो आप समूद्ध नहीं हो सकते। लक्ष्मी तत्व बाहर चला जाता है। और ऐसा होने पर निर्धनता पीछा नहीं छोड़ती। अतः इन कुंग्रुओं से पीछा छुड़ाएं। पूर्ण भारत वर्ष इन से भरा पड़ है। परन्तु यहां के लोग इतने सीधे हैं कि इनकी पुजा किये चले जा रहे हैं। कारण। रूस में जब में गई तो लैनिन ग्राड के प्राचीनतम विश्वविद्यालय, सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में मुझे एक बहुत जिस प्रकार मुसलमान लोग जहाद करते हैं उसी प्रकार हम भी अपने विरूद्ध जहाद कर रहे हैं। खाना मत खाइए, यह मत कीजिए, वह मत कीजिये, इस प्रकार अपने जीवन के पीछे पड़े हैं. और अपनी हत्या कर रहे हैं परमात्ना ने इस विश्व की सष्टि आपके सुख एवं आनन्द के लिए की है। इस प्रकार के नर्क में ही यदि आपने रहना है तो परमात्मा ने संसार को क्यों बनाया? बड़ा इनाम दिया। विश्वविद्यालय के दस सदस्यों में उन्होंने मुझे भी स्थान दिया। इनाम को देख कर मैंने कहा कि "मैं तो मात्र घरल स्त्ी हैँ। मैं कोई वैज्ञानिक नहीं।" इस इनाम को पाने वालों में से एनस्टाइन भी थे। यही इनाम एनस्टाइन को भी दिया गया था। वे कहने लगे कि "एनस्टाइन ने क्या किया है? उसने केवल भौतिक पक्ष को ही सम्भाला है। एनस्टाइन ने तो केवल भौतिक पदार्थ पर ही कार्य किया है, परन्त आपने तो जीवित मानव पर कार्य किया है सहजयोग में आप अपने व्यक्तित्व को पहचानते हैं। आप समझ जाते हैं कि आप कितने गरिमामय है अपने स्रोत से जड़ने के बाद आप अपनी शक्तियों को जान जाते हैं। आपको समझ आ जाता है कि आपके अन्दर कितना सौन्दर्य है और आप अपना सम्मान करने लगते हैं। आपमें अहम् नहीं आता परन्तु अपने विषय में आप उचित आकलन करने लगते हैं। । सारे कार्य फली भूत होंगे इस प्रकार के अन्धेरे से निकलकर आप सब प्रकाश में आएं र्वयं चीजा को देखें। आप क्या हैं। इस देश में जन्म लेना ही एक विशेष बात है। यह इतना बड़ा वरदान बहुत प्रसन्न हैं कि यहां पर बहुत से लोग सहजयोग में हैं और सहजयोग को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निसंदेव है जिसका आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इस देश जैसी भूमि सहजयोग रोग दर करता है इससे बहुत से लाग रोग-मुक्त हुए। इसके अतिरिक्त यह आपको मानसिक शान्ति प्रदान करता है । भावनात्मक रूप में भी आप अत्यंत संरतलित व्यक्ति बन जाते हैं. पर सर्वोपरि, आपमें दसरों को आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति नासताबिकता है. अपनी अंगलियों के छोरों पर आप किसी को, आ जाती हैं। पहले आप नि्विचार समाधि को प्राप्त करते हैं और अपने और अन्य लोगों के चकों के विषय में जान सकते हैं। फिर निविकल्प समाधि प्राप्त करते हैं। ग्रोत से जड़ते ही आप को यह सब वरदान प्राप्त हो जाते हैं। बंगलौर का एक सहजयोगी मुझ बता रहा था कि वह ऊतक जीवाण समूह (टिश कल्चर कर रहा है जो कि केवल पचास प्रतिशत ही सफल होता है। परन्त मैं महानतम कार्य है जो आपने करना है। और तब आप एक सहजयागी हैं। मैं यहां खड़ा हो कर चैतन्य लहरियाँ देता हैं और चैतन्य मेरी बोतलों में बहने लगता है और मझे शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त होती है। वह एक किसान है जो अंग्रेजी भाषा तक नहीं जानता। वह कहता है कि श्री माता जी "मर अन्दर एसा ज्ञान है, जिसे में अनभव कर सकता है। इस चीज को हमें जानना है। यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि कहंगा। परन्त चित्त प्रकाशित होने के कारण आप स्वयं के गरू हम माधारण मानव नहीं है। मरवप्रथम आपको इस कार्यक्रम में उपस्थित होना होगा क्योंकि आप जिज्ञास हैं। आप विशिष्ट प्र. मानव अस्तित्व का क्या कारण है? मानव हैं। नब आपका आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है और परमात्मा के उपकरण बनने और परमात्मा के आशीर्वादे का अपनी मभी शक्तियां प्राप्त हो जानी हैं। इसके लिए पी.एच होना आवश्यक नहीं, तरहत अधिक सफल व्यक्ति होना भी मैं आपको परे विश्व में नहीं मिल सकती परन्तु आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किये बिना आप इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। इसी लिए मैं चाहती हूैं कि आप यह समझे कि आत्मसाक्षात्कार के रूप में आपने जीवन में बहुत बड़ा वरदान पा लिया है। यह यह ऐसा वरदान है। और मैं प्रार्थना करूंगी कि दसरों को आत्म साक्षात्कार देने के लिए इसका उपयोग करें। यही विश्वद्यापक समूह, सहजयोग जीबन संस्था का एक हिस्सा बन जाएगे। पुरे विश्व में आपके मित्र होंगे, परे विश्व में लोग आपको जान जाएगे। एक सहजयोगी होने के नाते आपको यह जानना है कि आपने सहजरीती रिवाज और सम्बन्धों का सम्मान करना है। कुछ करने या न करने के लिए कोई आपसे न बन जागंगे परमात्मा आपको धन्य करे। डी. आनन्द उठाने के लिए। त चैतन्य लहरी 13 श्री शिवरात्री पूजा परम पूंज्यमाता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) (दिल्ली) 14-3-1994 आज हम सदाशिव की पूजा करने वाले हैं सदा शिव और शिव में यह अन्तर है कि सदाशिव सर्वशक्तिमान परमात्मा है और वे आदि शक्ति की लीला के लेखक हैं। सदाशिव और आदिशक्ति का सम्मिश्रण ऐसा है जैसे चांद और चांदनी का या सर्य और उसकी धूप का। मानबीय सम्बन्धों या मानवीय विवाहों में हमें ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। श्री सदाशिव की इच्छा से आदि शक्ति जो भी कुछ सृष्टि कर रही है श्री सदाशिव इसे देख रहे हैं और इसके साक्षी हैं। पूरे ब्रह्माण्ड एवं पृथ्वी मां को वे साक्षी रूप में देखते हैं। साक्षी भाव उनकी शक्ति है। 'आदि शक्ति' की शक्ति, अतः सर्वव्यापक शक्ति है। चलने लगते हैं। आत्मा के प्रकाश में हर विनाशकारी चीज को आप देख लेते हैं और कर्तव्य परायणता के प्रकाश में चलने लगते हैं। विध्वंसकता को आप त्यागने लगते हैं, किसी को आपको कुछ बताना नहीं पड़ता। आप स्वयं महसूस करते हैं कि यह कार्य गलत है और मुझे यह नहीं करना चाहिए। आजकल क्योंकि मानव भ्रम में फंस गया है अतः उसके बारे में यह मेरी अपनी सुझबूझ थी। मानव हर समय संघर्ष की स्थिति में है यहाँ तक कि अपने अस्तित्व के लिए भी संघर्षरत है। ऐसी स्थिति में यदि सन्यास लेकर आप हिमालय पर चले जाते तो सभी कुछ असफल हो जाता। जनसाधारण के कल्याण के लिए यदि कुछ करना है तो मूलभूत रूप से कोई कार्य होना आवश्यक था और सोभार्यवश वह मार्ग खोज सकी जिसके द्वारा आपका अकरण हो सके और आपको आत्मसाक्षात्कार मिल सके। सर्वशक्तिमान परमात्मा, 'आदि पिता इच्छा शक्ति में अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति आदि मां के रूप में करते हैं। आदि माँ अपनी शक्ति की अभिव्यक्ति प्रेम के रूप में करती हैं। दोनों (आदि पिता और आदि माँ) के सम्बन्ध बहुत ही सूझ-बुझ से परिपूर्ण एवं गहन हैं। जब भी आदि पिता को यह लगता है कि कुछ बातें समझ लेनी चाहिए। उनमें समर्पण की कमी है। आदि माँ की सृष्टि में कोई समस्या है या कुछ लोग उनके कार्य में आधुनिक सहजयोग की केवल एक शर्त है कि वास्तविकता में विघ्न डाल रहे हैं तो वे उनका विनाश कर देते हैं। विध्वंस शक्ति आपको समर्पण करना होगा। अपने मस्तिष्क या अन्य तरीकों के के लिए वे जिम्मेदार हैं। मानव हदयों में वे प्रतिबिम्बित हैं। सारी उपयोग से यदि आप सहजयोग को समझना चाहेंगे तो समझ सृष्टि में उन्हीं की धड़कन है पर यह धड़कन आदि-मां की नहीं पाएंगे। समर्फण करना ही होगा। इस्लाम समर्पण के शक्ति है। और जो भी चीज आदि-शक्ति की योजना ओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। इस्लाम का अर्थ हैसमर्पण। समर्पण के विरूद्ध जाए उसका वे विध्वंस करते हैं । आदि शक्ति प्रेम है। अभाव में परमात्मा के साम्राज्य में स्थापित होना असंभव है। अपनी सुष्टि के अपराधों को वे क्षमा करती हैं तथा उसे प्रेम करती समर्पण का अर्थ यह नहीं कि आप अपने परिवार बच्चों और घर हैं। वे चाहती हैं कि उनकी सृष्टि समृद्ध हो तथा अपने लक्ष्य को का त्याग कर दें। इसका अर्थ है कि आप अपने अह एवं प्राप्त करें वे चाहती हैं कि मानव उस अवस्था तक उन्नत हों बंधनों का त्याग करें। उदाहरणार्थ में एक व्यक्ति से मिली जो जहाँ वह परमात्मा, सदाशिव के साम्राज्य में प्रवेश कर सकें, बहुत कष्ट में था। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा गुरु कौन हैं? जहाँ पर आनन्द है जहाँ पर आनन्द, क्षमा एवं सुख शान्ति है। उसने गुरु का नाम बताया। मैंने कहा, "उसने तुम्हारा कोई हित ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब व्यक्ति में जिज्ञासा हो और नहीं किया। क्या तम उसे छोड़ दोगे? क्या तुम उसे त्याग दोगे? उस स्थिति को प्राप्त करने की अन्तर्जात इच्छा हो। हमारे अन्दर उसने कहा "कल"। मैंने पृछा "आज क्यों नहीं।" उसने कहा यह इच्छा आदि माँ के प्रतिबिम्ब के रूप में प्रतिबिम्बित है। इस इच्छा के साथ-साथ मानव में सांसारिक इच्छाएं भी होती हैं जो सुबह करूगा। उसने पुछा कि वह कौन-कौन सी वस्तुएं फैंके, उत्थान के विकास में बाधा डालती हैं। सहजयोग में सन्यास ले मैंने उसे बताया कि जिन वस्तुओं से वह उस गुरू की पूजा करता कर या घर का त्याग करके हमने कभी भी इन इच्छा ओं को वश में करने का प्रयत्न नहीं किया। मैं आज बहुत से लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। उन्हें आज"। लेकिन मैंने फोटो आदि फेंकने हैं और यह कार्य मैं कल था वे सारी फेंक दें। उसने वे सारी वस्तुएं समुद्र में फेंक दी और समुद्र से कहा।"मुझे खेद है। इस व्यक्ति के हाथों मैंने बहुत कष्ट उठाएं हैं कृपया आप कष्ट न उठाएं।" उसके अन्दर इस प्रकार का सूक्ष्म विवेक था। इस प्रकार से आप नहीं त्याग सकते. इनसे चिपके रहते हैं। सर्वप्रथम आपको आत्मा का प्रकाश प्राप्त हो जाता है। आत्मा सदाशिव का प्रतिविम्ब है, यह जलती हुई उस मशाल की तरह है जो मार्ग दर्शन करती है। इस मार्ग पर आप स्वयं इतने वृद्धिमान हो जाते हैं कि आप स्वयं विवेक के प्रकाश में मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हैं जिन्हें अपने बन्धनों से बैतन्म] नहरी 14 छटकारा पाना बहुत कठिन लगता है। यह कार्य अहम् से मुक्ति किसी भी चीज से यह आ सकता है। मानव को सभी प्रकार की पाने से भी अधिक कठिन है। हमारा पहला बन्धन यह है कि हम मर्खता पूर्ण बातों का अहम् है। एक दिन मैं एक स्त्री से मिली जो भारत में जन्में हैं। सहजयोग में आते ही लोग अपने देश, इतनी घमंडी थी कि मस्कराती तक न थी। मैंने पुछा कि इस स्त्री देशवासियों धर्म एवं ग्रन्थों की कमियों को देखना शुरू कर देते हैं की क्या समस्या है? उन्होंने मुझे बताया कि यह गुड़ियाँ (डोल्स) और जान लेते हैं कि गलती क्या थी। कोई भी यह नहीं कहता कि बनाना जानती है जिसके कारण इसे इतना घमंड है। गडियां तो क्योंकि हम अंग्रेज, रूसी या भारतीय हैं अतः हम ही सर्वश्रेष्ठ कोई भी बना सकता है। व्यक्ति मुर्ख हो जाता है। घमंडी व्यक्ति हैं। वे तरन्त जान लेते हैं कि रूकावट क्या है और यह लोग की पहली पहचान है कि वह "मैं" ग्रस्त हो जाता है। "मैंने यह आत्मसाक्षात्कार को क्यों नहीं पा रहे। दूसरी ओर उन्हें उन लोगों कार्य किया। "मैं ऐसा हूँ"। ऐसी बाते कहते हुए उसे लज्जा भी पर बहुत दया आती हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। नहीं आती। यहां तक कि वह पापमय जीवन व्यतीत करता है। क्यों न हम उन्हें आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न करें।" प्रकाश ऐसे लोग पर स्त्री गमन और मदिरापान आदि के शौकीन होते के यह दो कार्य हैं। सर्वप्रथम आप जान लेते हैं कि प्रकाश है औरहै। इन बातों की वे शेखी बधारते हैं। घमंडी व्यक्ति के लिए लज्जा आप प्रकाश बन गये हैं। अतः जहाँ भी आपका चित्त जाता है आप नाम की कोई चीज नहीं रह जाती। अपने मुर्खता पूर्ण कार्यों की वह डींगें मारता रहता है। और अपने किये को बह सदा उचित देश और समाज के कौन-कौन से बन्धन हैं। सारी त्रटियों से वे ठहराता है। मैंने एक व्यक्ति से पूछा आपको इतना भयंकर हृदय घात हुआ है फिर भी आप शराब क्यों पीते हो? शराब पीना छोड़ दो" उसने यह कह कर अपने किये को उचित ठहराया कि फलां चोटी का उद्योगपति १५ वर्ष की आयु में भी शराब पीता वह पीता है इसीलिए सफल है"। तो क्या वह शराब पीने वास्तविकता देखने लगते हैं और तब आप समझ लेते हैं कि हमारे घृणा करने लगते हैं। पर इसके लिए समर्पण प्रथम आवश्यकता है। समर्पण से आपके अन्दर एक ऐसी स्थिति विकसित हो जाती है जो है। आन्तरिक रूप से सन्यासी बना देती है। इसका अर्थ यह है कि है कोई भी चीज आप पर प्रबल नहीं हो संकती। सन्यासी व्यावत के कारण ही कामयाब है? तनिक सी भी समझ नहीं है। आप हेश के किसी ऐसे मफल व्यक्ति को देखते हैं जो शराब पीता है। सभी चीज़ों से ऊपर होता है। उसे कोई चीज पकड़ नहीं सकती। वस्तओं को देखने मात्र से वह उन्हें जान जाता है। गलत काम 1. पर शराब पीकर मरने वाले व्यक्ति कि स्थिति को नहीं देखते। कडीं भी ऐसे व्यक्ति की सराहाना नहीं होती जिसकी दस पत्निया वह नहीं करता। कहे या न कहे वह हर चीज को समझता है। वह कहा भी एस व्यक्ति की सराहाना नहीं होती जिसकी दस पत्नियां इतना निलपि होता है कि अपनी निलिपता में ही बह जान जाता है कि गलत क्या है। अपने परिवार को वह देखने लगता है। दसरे हनोगों को वह देखने लगता है, गलतियों को वह देखने लगता है है,"मुझे यह पसन्द हैं यह पसन्द नहीं। यह पर्ण विनाश के परन्तु किसी भी चीज़ से वह लिप्त नहीं होता। मैं ट्की में एक चिन्ह हैं क्योंकि अहम् महा मुर्ख हैं। जिस प्रकार के वेशभषा भद्र पुरुष से मिली। उसने मुझ से आत्मसाक्षात्कार मांगा। मुझे हैरानी हुई क्योंकि स्विटजरलैंड में मुझे यह चीज दिखाई न दी हैं। कहते हैं" मझे यह पसन्द है, इसमें क्या खराबी है"। किसी थी। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करते ही बह कहने लगा कि "मैं अब भी प्रकार से जब व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है स्विटजरलैंड वापस नहीं जाऊँगा"। यह इतना स्पष्ट है और यह प्रकाश वास्तव में आपको महान विवेक एवं संतुलन प्रदान करता है। मान लो कि आप चल रहे है परन्त यदि आप सडक को नहीं लगते है। सहयोग में भी कुछ लोग हैं। कुछ लोगों से जब मैं देख सकते तो आप गिर सकते है। परन्तु थोड़ा सा प्रकाश भी पूछती हूँ कि वे जाकर कार्यक्रमों का आयोजन क्यों नहीं करते तो यदि हो तो आप देख सकते हैं। सहजयोग ने यही किया हैं। इसने वे कहते हैं,"श्री माता जी इससे मेरा अहम् बढ़ जाएगा"। यदि आपको थोड़ा सा प्रकाश दे दिया है। इस थोडे से प्रकाश के सहारे आप अपने अहम् को देखते है तो वह कैसे बढ़ सकता है? मान लो आप बहुत सी बुराइयों को त्याग सके है। अहम इसका दसरा भाग है। मानवे के लिए अहम् आत सूक्म मेरा अहम बढ जाएगा इस कार्य में छटकार पान का अत्यन्त है कुछ लोगों में इतना सूक्ष्म अहम् होता है कि जरा सी बात से यह आसमान छने लगता है। छोटी-छोटी चीजों के लिए बे नाराज हो जाते है या कोई ऐसा व्यक्ति वह खोज लेते है जिस पर वे शासन कर सकें। जब आप अहम को देखने लगे हैं तो इस पर हंसे और सोचे कि मुझे में क्या कमी है। अहम बन्धन जैसा नहीं कि यह विवाह मुझे नहीं करना चाहिए था।" उस समय आपको है क्योंकि बन्धन बाहर से आते हैं और अहम् आन्तरिक है। क्या हुआ था? मझे यह सारी बाते आपको बतानी पड़ रही है ही या जो शराब पीकर मर गया हों। आधुनिक समय में यह अहम् फैल गया है। लोग कहने लगते लोग धारण करते है उसी से ही पता लगता है कि वे कितने मुर्ख तो वह इस मुर्खता को देख सकता। यह मेरा अहम् बोल रहा है। तब वह स्वयं पर हंसने लगते है और इसका मजाक बनाने रयाद आप किसी जलती हुई चीज को देख रहे है तो कैसे आप इससे स्वयं को जलने देगे? यह कहना कि 'सहजयोग के कार्य करने से सुक्ष्म तरीका है। विवाहों में भी यह आम बात है। लोग कहते हैं श्री माता जी उस समय मैन इस लड़की से शादी कर ली पर अब मझे लगना है पैतन्म तहरी 15 हमें बहुत सी बातें सीखनी है। जब हम शिव की पूजा करते क्योंकि इस मुर्खता पूर्ण अहम् की समस्याओं का मैं सामना करती रही हैं। व्यक्ति को रूपष्ट देखना है कि किस प्रकार उसमें यह है तो उनका गणगान करते हैं। देवी, शिव और विष्णजी के सहस्त्र नाम अहम् कार्यरत है और उसके पतन का कारण है। उत्थान की ले कर हम उनकी पूजा करते हैं। लेकिन लोगों के कितने नाम हो बात करते हुए हम उच्च जीवन की बात करते है। हमें सन्यासी सकते हैं। वास्तव में पूजा में जब आप नाम लेते हैं तो वे जागृत सम बनना होगा, तालाब में से जन्में एक कमल की तरह से जिस हो जाते हैं। पूजा के बाद आपको ऐसा महसूस होता है। परन्तु पर पानी नहीं ठहर सकता। कमल के पत्तों पर भी पानी नहीं ठहर सकता। बिना गेरुए वस्त्र पहने या दिखावा किये हमें ऐसा बनना शक्ति को प्राप्त करते हैं। परन्तु ज्यों ही वे पूजा से निकलते हैं होगा परन्तु अन्दर से एक निर्लिप्त चित होना चाहिए जो तुरन्त सब कुछ समाप्त हो जाता है। आपके अन्दर की समस्याओं को देख सकें। सहजयोग के जरिये आप जानते हैं कि अत्यन्त प्रभावशाली तरीके से किस प्रकार इस पर काबू पाया जा सकता है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए आपको शिव सा। साक्षी बनना होगा, शिव पर्णतः निर्लिप्त हैं। कर सकता हूँ एक पहलू समर्पण का है। समर्पण किस लिए करें? यह निर्लिप्सा आपको शिव जैसा विवेक प्रदान करेगी। सदा-शिव चुपचाप आदि शक्ति के कार्य को देखते हैं। उनमें पश्चात आपको चाहिए कि उन शक्तियों को अपने अन्दर बनाए अहम विकसित नहीं होता है जो यह कहे कि"देखो अब मेरी रखें ग्रहण करे और विश्वस्त हों कि आपके अन्दर यह शक्तियाँ इच्छा शक्ति क्या कर रही है।" वह मात्र दृष्टा है। परन्तु जब वे है। यहां आ कर सहजयोगी असफल हो जाते हैं। सहजयोग की विनाश करन पर आते हैं तो देखते हैं कि यह भाग पूरी सृष्टि का विनाश कर देगा, तो वह तुरन्त ही उस भाग को समाप्त कर देते तैयार था और न ही किसीकी कण्डलिनी उठाने के लिए तैयार हैं। हमें भी इसी प्रकार करना है। में आते हैं वे आप उनका लाभ नहीं उठाते। जो भी लोग पूजा समर्पण का एक अन्य पहल भी है। यह मान लेना कि मैं एक सहजयोगी हूं और सारी शक्तियों को मैं अपने अन्दर आत्मसात आत्मसात करने के लिए स्वतः ही जब आप समर्पित हो जाते हैं तो आप आत्मसात करते हैं। एक बार आत्मसात करने के शुरूआत में तो कोई सहजयोगी न किसी और को छने के लिए भी था। मैंने सोचा कि ये माध्यम मैंने तैयार किये हैं। पर इनमें से तो हमारा अपना जीवन बहुत बड़ा क्षेत्र है तो हमें सोचना चाहिए कोई अपना हाथ उठाने के लिए भी तैयार नहीं। किस प्रकार मैं कि हम कैसे हों। मैंने लोगों को यह कहते सुना है "क्या हुआ, मैं यह कार्य करूंगी? नासिक क्षेत्र में हमने एक कार्यक्रम किया। मैं एक सहजयोगी हूँ।" यदि आप सहजयोगी हैं तो हमें इस तरह से नासिक में थी और उनका कार्यक्रम यहां से तीस मील दूर था। बात नहीं करनी चाहिए। हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक आपको यह आधे रास्ते पर जब हम पहुंचे तो हमारी कार खराब हो गयी। कहना है कि मैं एक सहजयोगी हूँ। अपनी बातचीत में और सारे सहजयोगी कार्यक्रम में पहुंच चुके थे और वहां आई हुई व्यवहार में आपको अत्यंत नम्र व्यक्ति होना है। यदि ऐसा नहीं है जनता बहुत परेशान हो रही थी। तब सहजयोगियों ने कहा कि तो इसका अर्थ ये है कि सहजयोग ने आपको दगना अहँ दिया है। "हम आपको आत्मसाक्षात्कार देंगे।" उन्होंने आत्मसाक्षात्कार आप जानते हैं कि शिव अपनी अबोधिता, सहजता और दिया और यह पहला समय था जब सहजयोगियों ने जाना कि वे क्षमाशीलता के कारण प्रसिद्ध हैं। वे राक्षसों को भी क्षमा करते हैं। आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। इसके बाद सबने आत्मसाक्षआत्कार ये उनका गण है परन्त जो भी व्यक्ति आदिशक्ति के विरूद्ध देना शुरू कर दिया। मान लें कि आपमें ये शक्तियां हैं। मैं इन जाता है उसे वे क्षमा नहीं करते। यह गुण व्यक्ति को समझना शक्तियों को व्यर्थ नहीं करूंगा। मैं इनका उपयोग करूगा। एक बार मैं समुद्री जहाज में यात्रा कर रही थी। वहां बर्फ जमाने वाले चाहिए। समपण का अर्थ यह नहीं कि बाह्य वस्तओं का समर्पण कर कमरे में एक व्यक्ति पकड़ गया और उसे निर्मोनिया हो गया। दें। समर्पण का अर्थ है कि स्वयं को पर्णतः शद्ध करें। पूर्णतया कप्तान मेरे पास आया और कहने लगा कि इस लड़के को निमोनियां हो गया है और हमें हैलिकोॉप्टर से डाक्टर लाना निर्लिप्त हो जाएं। नि्लिप्सा उत्थान का एक मात्र भाग है। कुछ लोग बीमार हो जाते हैं और इस बीमारी को बहुत ही बढ़ा चढ़ा कर कहते हैं। यदि आप सहजयोगी हैं तो मात्र अपने चित्त से देखें कि आप बीमार हैं। यह अत्यंत लीलामय एवं प्रमोदमय चित्त है। होगा। मैंने उसे कहा कि मैंने तम्हें आत्मसाक्षात्कार दिया है, अब होगा। मैंने उसे कहा कि मैंने तुम्हें आत्मसाक्षात्कार दिया है, अब तुम भी एक डाक्टर हो। आप जाकर अपना हाथ उसके हृदय पर रख दो। उसने ऐसा ही किया और वह निमोनिया ग्रस्त व्यकि्ति जब में यहाँ आई तो मुझे बुखार था परन्त कोई विश्वास नहीं ठाक ही गया। कैप्टन स्वयं पर हैरान था। यदि आप अपनी करता। विवाह में मैं बहुत थक गई थी लेकिन सब कहते थे. शक्तियों को ग्रहण नहीं करते, बस बैठकर ध्यान ही करते हैं तो आप थके नहीं लगते। इसी प्रकार जीवन की लीला करनी उसका क्या लाभ हैं? है। जीवन मात्र एक लीला है और ये लीला विवेक के प्रकाश में देखी जानी चाहिए कुछ भी इतना गंभीर नहीं है। सहजयोगियों कार्य करना होगा। आपके अन्दर इच्छा जागृत होनी चाहिए कि के लिए कुछ भी इतना गंभीर नहीं है। हुए ाण शिव की अवस्था प्राप्त करने के बाद आपको आदि शक्ति का हम सहजयोग को फैलाएं, इसे कार्यान्वित करें। परन्तु सावधान पंतन्य लहरी 16 रहें कि कुछ समय तक आप बन्धन एवं अहम्ग्रस्त हो सकते हैं। स्वयं को सावधानी पूर्वक देखें। सावधानी पूर्वक देखने से आप बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं, कुछ लोगों ने, देश-देश में, इस कार्य की जिम्मेदारी ली है। "समष्टि' (सामूहिक) बन जाती है अर्थात आपने इसे सामूहिकता पर कार्यन्वित करना है। जिन लोगों को कभी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ वे भी बहुत आयोजन करते रहे हैं। पर आपको तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। अब ये आवश्यक है कि यह प्रकाश आप दूसरे लोगों को भी दें। समर्पण में पहला कार्य शिव और सदा शिव रूपी अपनी आत्मा की अवस्था को पहुँचना. है। दुूसरी अवस्था अन्य लोगों के बारे में सोचना है। प्रथम यह व्यष्टि (व्यक्तिगत लाभ) है जो बाद में परमात्मा आपको धन्य करें। ास म चैतन्य लहरी ि 17 ा श्री माता े सम्मख श्रीमाता जी के सम्मुख जाने से पूर्व सोचें कि आप किस के सम्मुख जा रहे हैं । इससे हमें अपना दृष्टि कोण एवं आचार-व्यवहार ठीक रखने में सहायता मिलती है। श्रीमाता जी यदि मंच पर बैठी हों तो उनके पीछे की ओर से उनके सम्मख आना चाहिए। सामने से भी श्रीमाता जी के सम्मुख न आए। श्रीमाता जी के प्रस्थान से पूर्व हमें कभी भी वह स्थान नहीं छोड़ना चाहिए जहां कार्यक्रम हो रहा है। महिलाओं को मंच पर यदि श्रीमाता जी की पूजा का सौभाग्य प्राप्त हो तो उन्हें श्रीमाता जी के आदेशानुसार कार्य करना चाहिए, विशेषकर श्रीमाता जी के चरण कमलों की साज-सज्जा करते हुए अपनी मर्जी से कुछ नहीं किया जाना चाहिएं । अब एक ऐसा समय आ गया है कि श्रीमाता जी के बहुमल्य समय को हमें खराब नहीं करना चाहिए। जब तक श्रीमाता जी स्वयं समय न प्रदान करें तब तक उनके पास कोई भी बीमारी ठीक करवाने के लिए न जाएं। इस सम्बन्ध में केन्द्र के अगआ से सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक है। श्रीमाता जी जब मंच की ओर आ रही हों तो कोई उनके सम्मख न तो लेटे और न ही उनके चरण कमल स्पर्श करें। अन्य धर्मों की तरह हमें आचार संहिता को धर्म नहीं बना लेना। हम सभी सहजयोगी जब भी परस्पर मिलें या बात-चीत करें या मिलकर कोई कार्य करें तब भी हमें इन नियमों का पूर्ण सम्मान करना चाहिए। चैतन्म लहरी 18 ---------------------- 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt থে১২১২১১২ ১১ ১১ ১: ১২ ১২১২ जन्म दिन विशेषांक चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VI अंक 7 व 8 अब आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर गए हैं। बिश्वास रखें कि आपमें पुरे विश्व को परिवर्तित करने की सामध्थ्य है" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১ ১১১২ ১ ১১১২ ,৯:২, 4,১৫ ব১২১০ 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt श्री कैगी महाजन सम्पादक श्री विजय नाल गिरकर 162, मुनिरका विहार, नई दिल्ली-110067 मुद्रक एवं प्रकाशक : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110060. फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt खण्ड VI अंक 7 व 8 विषय सूचि 1 1. सम्पादकीय 2. प्रार्थना , 3. फिलिप जेस की हृदयाभिव्यक्ति 3. 3. 4. पूजा प्रवचन-21.3.1994 5. श्रीमाता जी का प्रवचन-21.3.1994 6. 6. ईसामसीह पूजा 8. 7. श्रीमाता जी की मद्रास के सहजयोगियों से बातचीत...... 12 8. शिव रात्री पूजा वार्ता-14.3.1994 (दिल्ली) 14 18 9. सहज नियम 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt जन्म दिन विशेषांक श्री माता जी का इक्हतरवां जन्मोत्सव कलकत्ता के कला मन्दिर हॉल में 21 मार्च 1994 की प्रातः मनाया गया। हमारे युग की इस महत्वपूर्ण घटना को मनाने के लिए पुरे विश्व से उनके सभी बच्चे एकत्रित हुए। देवी माँ को मुबारक बाद देने के लिए भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल जोशी वायुयान द्वारा वहां पहुंचे। यह अत्यंत हृदय स्पर्शी उत्सव था। हमारे हृदय श्री माता जी के प्रति प्रेम से शराबोर थे और हम वास्तव में प्रेम के सागर बन गए थे। हर सहजयोगी प्रेमानन्द में गोते लगा रहा था। कलकत्ता के सहजयोगियों की मेहमान-नवाजी तथा प्रेमाभिव्यक्ति को देखकर श्रीमाताजी अत्यंत प्रसन्न हुईं। हर इंतजाम जो उन्होंने किया उसमें अपने हृदय का प्रेम उड़ेल कर रख दिया, प्रेम इतना अधिक स्पष्ट था। गणपती पुले विषय में सूचना रहने तथा खाने का खर्च प्रति व्यक्त 2000/- बच्चे 10 साल से छोटे 1000/- युवाशविति 21 साल से कम आयु और सहजकार्य में तल्लीन 1250/- चैतन्य अहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt प्रार्थना ज्ञान दे माँ ज्ञान दे, हमें ज्ञान दे माँ निर्मले, भक्ति सुमन महके हृदय में, यही हमें वरदान दे, ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। निर्मल ज्ञान की सागर ही हो तुम, हे श्वेत सुन्दर शारदे, दूर कर अवगुण मेरे, निर्मल विद्या का दान दे, आत्म ज्ञान की ज्योति जलाकर सुप्त हृदय को प्राण दे, ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। है बहुत से स्वपन मन में सर्वजन कल्याण हो, हम हैं तेरी सन्तान माते, हममे जगत सहज निर्माण हो, विश्व निर्मल धर्म फैले यही हमें वरदान दे, श्री आदि माँ तु आदि भवानी तू प्रतिपालक सबकी जननी, ब्रह्मा विष्णु शिव शंकर में है तेरा ही तेज समाया जननी, करूं समर्पित हृदय श्री चरणों में, पूर्ण कृपा कर हम पर जननी, रहे चित्त में तेरा ध्यान सदा वरदे यही माँ निर्मले ज्ञान दे माँ ज्ञान दे। ' श्री चरणों में समर्पित' चैतत्य लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी के 71वें जन्मोत्सव के शुभावसर पर फिलिप जेस की श्रीमाता जी के सम्मुख हृदयाभिव्यक्ति आवश्यक मर्यादाएं प्रदान कीं और पूर्ण मानव बनने के लिए हमें आध्यात्मिक पथ प्रदर्शन प्रदान किया ताकि हम सारे देशों, सारे राष्ट्रों के समाज में दैवी प्रेम को स्थापित करने के पूर्ण यन्त्र बन पाएं। इस अवसर पर मैं हम सभी को याद करवाना. चाहता हूँ कि इस क्षण युरोप के अधिकतर सहजयोगी श्रीमाता जी का जन्म दिन मनाने के लिए यूगोस्लाविया में एक बड़े सेमिनार में एकत्रित हुए होंगे और आपकी आज्ञा से जन्मोत्सव के इस अवसर पर मैं उनकी तीव्र इच्छा को आपके सम्मुख रखना चाहूँगा, कि कृपा करके यूगोस्लाविया में युद्ध, सारी राक्षसी प्रवृत्तियों, सारी नकारात्मकता तथा विश्वभर के सारे युद्धों को समाप्त कर दें। श्रीमाताजी आपका बालक होने के नाते और आपके सभी बच्चों की ओर से मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। श्रीमाताजी आपका अथाह प्रेम, धैर्य,सहनशक्ति हमें वह आन्तरिक्ष प्रदान कर रहा है जिसमें हम छोटे-छोटे शिशुओं से बचपन किशोरावस्था और वयस्कता की ओर विकसित हो सकते हैं। श्रीमाता जी जो सुरक्षा आप हमें प्रदान कर रही हैं और जिस प्रेम के बन्धन में आप हमें हर समय रखती हैं उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। परन्तु श्रीमाता जी, मैं कभी नहीं चाहूँगा कि चचताव श्रीमाताजी आप का स्वभाव तिहरा स्वभाव है और आपसे हमारे सम्बन्ध भी तिहरे सम्बन्ध हैं, अर्थात हम देवी रूप में आपकी पूजा करते हैं, गुरू रुप में आपके प्रति समर्पित होते हैं और माँ रूप में आपको प्रेम करते हैं। आपके इस तिहरे स्वभाव और आपसे हमारे तिहरे सम्बन्धों के कारण मैं तीन प्रकार से बड़ा होकर मैं वयस्क बनूं। मैं सदा शिशु ही बना रहना चाहूँगा आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना चाहूँगा। श्रीमाता जी ताकि आपकी साड़ी के पल्लू को पकड़कर आपके मातृत्व का सम्मानमय संकोच तथा एक ओर अत्यंत भय की तथा दूसरी आनन्द जीवन के हर क्षण में ले सकं। आज के पवित्र दिन, ओर अत्यंत श्रद्धा की भावना के साथ हम आपसे प्रार्थना करते हैं श्रीमाता जी, हम सभी सहजयोगी अपने आपको, अपने हदय, कि हमारी कृतज्ञता को स्वीकार करें कि हे देवी, आदिशक्ति आप अवतरित हुईं,कलयुग के अन्त में आपका अवतरण पृथ्वी तथा प्रतिभा आपके श्री चरणों में अर्पण करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं मानव जाति के उद्धार के लिए है। निःसंदेह सहस्रार भेदन को कि विश्व निर्मलाधर्म को इस पृथ्वी पर स्थापित करने के लिए मानव विकास की महानतम घटना के रूप में स्मरण किया जाता यथाशक्त कार्य करेंगें। श्रीमाता जी आपकी आज्ञापालन करने रहेगा। हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने हमारे अन्दर के के लिए हम सदा उद्यत रहेगें। हम सब इस शुभावसर पर प्रार्थना देवत्व को किया। आपने हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं कि भविष्य में, कलान्तर में, आने वाले युगों में यह दिन किया, सृष्टि को अर्थ प्रदान किया और हमारे लिए आपने अपने सबसे पवित्र दिन बन जाए और ईसाइयों के लिए यह ईसा साम्राज्य, (परमात्मा के साम्राज्य) के द्वार खोल दिए। जयन्ती की तरह से हो जाए। परन्तु सारे राष्ट्र और विश्व की धर्मपरायणता और मुल्यविहीन पश्चिमी समाज का एक सदस्य होते हुए भी, गुरूमयी श्रीमाताजी,मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि सभी गुरुओं की मां के रूप में आपने हममें विवेक जागृत किया, गुण और अपनी अपना समर्पण अपनी बचन बढधता, अपने जागृत सभी मानक जातियीा इसे उत्सव के रूप में मनाएं। जय श्रीमाता जी। 7वीं जन्म दिन पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कलकत्ता 21 मार्च 1994 धीरे-धीरे परिवर्तित होता है। इस अपरिवतनशीलता पर कभी-कभी तो आपको शोक भी होता है। परन्तु सुक्ष्म रूप से हमारे अन्दर और बाहर एक महान परिर्वतन घटित हो रहा है। आज मानव पूरे वातावरण पर शासन कर रहा है। मैं नहीं जानती कि कहां तक परम चैतन्य इसे चला रहा है, परन्तु स्वयं को जीवन के नये आयामों के प्रति खोलना हमारा कार्य है। उदाहरणार्थ अपने अन्तर्दशन से हमें पता चल जाता है कि पुरानी छोटी-छोटी मुर्खताएं अभी भी हमें चिपकी हुई हैं। इनको हर वर्ष बहुत से लोगों के जन्म दिवस होते हैं और हम शपथ लेते हैं कि हम अब अमुक बुरा कार्य छोड़ देगें। जीवन में अपने विकास को देखने का यह बहुत अच्छा तरीका है। बहुत से लोगों ने, जिन्होंने आध्यात्मिक जीवन में महान ऊंचाईयाँ प्राप्त कीं, उन्हें जन्मोत्सव की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वे जानते थे कि विकास, सूझबूझ और सीखने की शुरूआत करने के लिए हर दिन जन्म दिन है। उनके लिए हर दिन नव वर्ष का दिन है। अपने जीवन में हम देखते हैं कि हमारा बातावरण बहुत ही चैतम्म लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt छोड़ने की कसमें हमें नहीं लेनी चाहिएं साक्षी भाव से यदि आप इन्हें देखें कि किस विनाश पथ पर ये आपको ले जा रही हैं तो तरन्त ही आप इन्हें त्याग देंगे। आपको शपथ लेने की चिन्ता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब आप समर्थ है अर्थात् पूणत शक्तिशाली हैं जो भी कुछ आप सोचते हैं वह गलत है, इस पर जब आप अपना चित्त डालेंगे तो धीरे-धीरे यह सारे सन्देह दूर कर देगा। हो गए हैं क्योंकि इस आनन्द विभोर स्थिति में समय, तिथियों और वर्षों का कोई निशान नहीं रह जाता। जैसे बिना पूर्व कल्पना के यदि आप ताजमहल को देखने गये हों और वहां इतना सुन्दर भवन सामने पाकर आप मन्त्रमुग्ध से हो जाते हैं। ऐसे क्षणों में ः आपको समय का ज्ञान नहीं रहता। आपकी यह भी याद नहीं रहता कि किस प्रकार आप वहां पहुँचे। उस स्वपन की वास्तविकता को देखते ही उसके पीछे की सारी कहानी समाप्त हो वे सारी समस्याएं सम्बन्ध, बन्धन और अहम् जो 'अभी भी जाती है। स्वपन की यह वास्तविकता मेरे विचारों और कल्पना आपको चिपके हुए हैं आप उन्हें त्याग देंगे। आपके चित्त से ही से पर की बात है। वे दौड़ जाएंगे। तब आपको लगेगा कि दिन प्रतिदिन आपका चित्त पवित्र, शक्तिशाली एवं करूणामय बन रहा है। सहजयोगी हैं जिन्होंने इस सुक्ष्म ज्ञान को प्राप्त किया है। मैं नहीं सामान्यतः जो भी प्रक्रिया आपके चित्त में होती है वह समाप्त हो जानती थी कि इतने अधिक साधक हैं। मैं यह भी नहीं जानती जाएगी और आप साक्षी रूप से सारी चीज को देखने लगेगें और थी कि पृथ्वी पर इतने सुक्ष्म लोग हैं। विश्व भर में, जहाँ भी मैं उस साक्ष्य शक्ति के माध्यम से आपकी चित्त शक्ति कार्यान्वित जाती हैं, अनगिनत गहन जिज्ञास मेरे सम्मुख होते हैं। उस क्षण हो जाती है और कार्य करती है। यह शक्ति न केवल आप पर समय रुक जाता है। अनुभव के अतिरिक्त किसी अन्य चीज का कार्य करेगी परन्त आपसे सम्बन्धित हर चीज पर कार्य करेगी। लेखा जोखा नहीं रहता। यह अनुभव निराकार रूप में होता है। सर्वप्रथम आपके ध्यान धारणां के माध्यम से, ध्यान की उस इसका वरर्णन नहीं हो सकता, यह शब्दों एवं वर्णन से परे है। इस अवस्था में आप अपने अन्दर विस्तृत हो जाते हैं। आप व्तमान समय आप वास्तव में निर्विचार हो जाते हैं और यही वह समय है में रहते हैं। उस दिन किसी ने मुझ से पूछा कि आपका पिछला जिसका आनन्द उठाना चाहिए। जन्मदिन कहां मनाया गया था? मुझे याद ही न था। वैसे मेरी स्मरण शक्ति अच्छी है। सम्भवतः हर समय, हर दिन, वर्तमान अभिशाप है। हम बस समय ही देखते रहते हैं। हमने समय की में रह कर आप विकसित होते हैं और आप यह भूल जात है कि मीमा प्रर कर ली है, 'कालातीत, समझने का प्रयत्न करें कि क्यों कब और कहा यह विकास घटित हुआ। अब भी कभी-कभी मुझे विश्वास नहीं होता कि इतने सारे घड़ी या समय का बन्धन आज के युग का सबसे बड़ा हमने इसे पार किया, क्योंकि समय हमारे अनुसार चलता है। आप इसका अनुभव कर सकते हैं। एक दिन में दिल्ली से आ रही थी। हमारे घर के लोग समय के बहुत पाबन्द हैं। उन्होंने मुझे परेशान कर दिया कि देर हो रही है। जब मैं हवाई अड्डे पर पहुँची तो पता चला कि वाययान प्रतीक्षा कर रहा है। जल्दी की कोई बात न थी। जाने में 15-20 मिनट और लगने थे पर हवाई अड्डे का नाम ही लोगों को बेचैन कर देता है। वायुयान पर जाना उन्हें ऐसा प्रतीत होता है जैसे यद्ध लग गया हो। मैं इतना सफर करती हूैँ फिर भी, सौभाग्य से, कभी मेरा वायुयान या रेल नहीं छुटे। हर बार मुझे लगा कि वाययान मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। एक बार हमें प्रेग से वियेना होते हुए पोलैंड जाना था। एक महान सहजयोगी हमारे साथ थे। उन्होंने बताया कि वायुयान ग्यारह बजे चलेगा हवाई अडडे से उन्होंने मुझे फोन किया कि यान सोढ़े नौ बजे छुटेगा। मैं तैयार थी, कार में बैठी तथा अड्डे पहुँच गयी। पहुँचने में 15 मिनट की देर हुई तो भू-अधिकारी-महिला मुझ पर चिल्लाने लगी। वह सहजयोगी इस बात को सहन न कर पाया। उसे लगा कि उसकी गलती के कारण ही यह महिला मेरी श्रीमाता जी पर चिल्ला रही है। उसे यह सहन नहीं हुआ। वह बहुत खिन्न था। चिल्लाती हुई इस महिला के साथ हम वायुयान गए। वहां हमने देखा कि चालक एवं इन्जनीयर मशीन को ठीक करने में लगे हुए थे। सहजयोगी इतना खिन्न था कि उसकी मेरा अपना विकास भी इसी प्रकार हुआ। हर बार जब में किसी नये स्थान पर जाती हैँ तो मुझे-पता चलता है कि वहाँ कुछ बहुत ही अच्छे नये लोग सहजयोग में आये हैं और पुराने लोगों में से कुछ व्यर्थ के लोग सहजयोग छोड़ गए हैं। यह वैसे ही है जैसे पेड़ के विकास में नये पत्तों का निकलना तथा पुराने पत्तों का गिर जाना। परन्तु सहजयोग में यह कुछ भिन्न है। सहजयोग में बहुत ही थोड़े से पत्ते झड़ते हैं, प्रायः आपको अत्यन्त अच्छे लोगों का हरा भरा उपवन देखने को मिलता है। मेरे लिए यह चमत्कारिक आतिशबाजी की तरह है। एक छोटी रेखा की तरह शुरू हो कर यह बहुत से सुन्दर रूप धारण कर लेता है। हमारे, सहजयाग के तथा मानव के साथ क्या घटित होने बाला है, इसको स्पष्ट देख पाना कठिन कार्य है। मैंने कल्पना करना कभी नहीं सीखा। परन्तु जो दृष्य आप देख रहे हैं वह अद्वितीय है। मैं सभी सहजयोगियों को दैवी प्रेम से शराबोर अवस्था में अत्यन्त सुन्दर एवं गहन ढंग से अपनी अभिव्यक्ति करते हुए देख रही हूँ। यह अवस्था जब आती है तो आपके चित्त को इस प्रकार परमात्मा की से आनन्द विभोर कर देती है कि आप उस क्षण तक को भूल कृपा जाते हैं। जब आप मेरा जन्म दिन मनाते है तो वह भी ऐसा ही एक क्षण होता है। मैं तो यह भी भूल जाती हैं कि कितने वर्ष मुझे इस पृथ्वी पर चैतत्व लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt समय यदि वास्तव में आवश्यक है, यदि हम सब लोग हर वर्ष इस समय को अपने जन्म दिन के रूप में देखें और यदि आप आँखों से आँसू झड़ने लगे। वो मेरे पीछे बैठे थे। मैंने मुड़कर उनकी ओर देखा और कहा कि 'सब ठीक है, चिन्ता मत करो'। नहीं श्रीमाता जी, मेरे कारण उसने आपसे इतना कुछ कहा। मैं सोचते हैं कि समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है तो आज के युग में इसे सहन नहीं कर सकता"। उसके आँसु थम नहीं रहे थे एक वास्तव में हमें बह समय अपने ध्यान और सहजयोग की मिनट के अन्दर साफ आकाश को विशालकाय हाथी के आकार सामूहिक सभाओं को करने के लिए चाहिए। मुझे याद है कि के बादलों ने घेर लिया। हवाई पतन की छत पर खड़े सभी हमारे देश के स्वतन्त्रता संग्राम के समय जिसमें मेरे मातापिता सहजयोगियों ने यह घटित होते देखा। पुरा आकाश एकदम तन-मन और धन से लड़े उस समय वे समय की बिल्कुल चिन्ता काला हो गया मैंने कितनी शक्ति है"। तब अधिकारियों ने घोषणा की कि यान में को साम्राज्यवाद के शिंकजों से स्वतन्त्र करना था। जेल से भागे खराबी है और आपको यान से उतरना होगा। उतरकर हम हुए किसी स्वतन्त्रता सेनानी को अगर उन्होंने मिलना होता था विमान कक्ष में आए। तब वह सहजयोगी उस महिला अधिकारी के पास गया और उससे कहा कि अब हम किस पर चिल्लाएं? की चिन्ता न किया करते थे। कोई अन्य बताता न था और न वायुयान अब नहीं जा रहा है। "क्या हम तुम पर बिगड़ें? मेरी मां पर बिगड़ने कि तुम्हारी आज भी वही स्थिति है। यह भी संकटकाल है एक अत्यन्त सूक्ष्म हिम्मत कैसे हुई?" हवाई अड्डे पर अन्य जो भी अधिकारी थे वे संकट की स्थिति कि सहजयोग प्रसार से अधिक कुछ भी घबरा गये। मैनेजर ने कहा कि यान चलने में अभी पांच घंटे हैं महत्वपूर्ण नहीं है। सभी लोगों को यदि इसका संदेश न मिला तो और हम आपको हवाई अड्डे से बाहर जाने की आज्ञा देते है। तब इसके लिए हम उत्तरदायी होंगे। ईसा और बुद्ध के समय यात्रा के वह मुझे एक विशेष रेल से बाहर ले गया। इस प्रतिक्रिया को मैं लिए वायुयान नहीं होते थे ध्वनिवर्धक यन्त्र और दूरदर्शन न समझ न सकी। बाहर जाकर मैंने कछ खरीददारी की और जब था। ये सारी चीजें अभी आयीं है। यह परम चैतन्य का कार्य है हम वापस आए तो हवाई अड्डे के अधिकारियों को आश्चर्य की कि वैज्ञानिकों के माध्यम से तथा दूसरे ज्ञान से यह सारी स्थिति में पाया क्योंकि केवल हमारा ही वायुयान जाने वाला था। बाकी सारा यातायात रुक गया था। वाययान पर चढ़ने के लिए करना होता था और न ही इतने बड़े स्तर पर लोगों को आत्म जब हम चले तो उस भद्र पुरुष ने कहा कि "माँ मेरी कमर में साक्षात्कार देना होता था। आज जो ये सारे अविष्कार आप देखते भयंकर दर्द है क्या आप मेरी सहायता कर सकती है"। एक अन्य है ये सब सहजयोग के लिए हैं। महिला ने मुझे उसके दुखते हुए कंधे पर हाथ रखने कि प्रार्थना की। मैंने अपना हाथ उसके कधे पर रखा और उसे आराम मिलने लगा। तब मैंने वाययान में चढ़ना चाहा पर उसी व्यक्ति विश्व का क्या होगा। सर्वप्रथम और सर्वोपरि बात यह है कि ने आकर मुझ से प्रार्थना की कि मैं अपना हाथ उसकी पीठ पर रख दें मैंने कहा कि मुझे वायुयान पर चढ़ना है। वह कहने लगा कि. "मैं आपके साथ चलूगा चला और कहने लगा कि मैं अब ठीक हैं। सारा वातावरण परिवर्तित हो गया। इसका प्रभाव वहां पर उपस्थित लोगों पर सकती। हम ही लोग युद्ध की सृष्टि करते है। हम ही भिअन्न प्रकार पड़ा। मैं हैरान थी कि इस सहजयोगी के आंसओं ने किस प्रकार की हिसा करते हैं। हम ही लोंगों की परमात्मा के साम्राज्य में यह करिश्मा किया? उस क्षण कि कल्पना कीजिए कि जब प्रवेश करने की सम्भावना है। अतः लोगों के हृदयों में शान्ति उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे थे। उस क्षण में उसकी आंखों ने एक बहुत बड़े नाटक कि अभिव्यक्ति की और अन्ततः हमने पाया कि हवाई अड्डे पर खड़े सभी लोग अत्यन्त नम्र एवं सम्मान भय हो गये थे। समय के बारे में जब हम सोचने लगते है तो हमे से खड़े हैं क्योंकि तब वास्तविकता आपके हाथ में होगी। जिस सोचना चाहिए कि समय हमारा दास है.हम समय के दास नहीं हैं। मैं आपको एक हजार एक कहानियां बता सकती है जब देर हो जाने पर, या समय की चिन्ता न करने पर मैंने इस प्रकार की सुन्दर अभिव्यक्तियां एवं नाटक देखें दैवी शक्ति की इस कला को देखकर मैं हैरान थी कि किस प्रकार लोग समय की इतनी विश्वास। तभी हम वह उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं कि विश्व चिन्ता कर पाते हैं। नहीं करते थे। वे जीज़ान से इस कार्य पर लग गये क्योंकि देश कहा, "देखो इस व्यक्ति के आँसओं में तो वही उनके लिए महत्त्वपूर्ण होता था और इसके लिए। वे समय कोई उन्हें भाषण देता था उनके लिए ये सब आत्तरिक था। अभिव्यक्ति हुई है। पराने लोगों को न तो जनता का सामना आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि बिना सहजयोग के इस हमारे हृदय में अब शान्ति बिल्कल नहीं है। हम शान्ति की बात करते हैं और उन लोगों को भी जानते है जिन्हें शान्ति पुरस्कार प्राप्त हुए । पर उनके हृदय में भी शान्तित नहीं है। मानव के हृदय में जब तक शान्ति नहीं होगी तब तक विश्व में शान्ति नहीं हो । मेरे साथ-साथ वह दो मिनट तक स्थापित करके ही शान्ति प्राप्त की जा सकती है और यह तभी संभव है जब आप निर्विचार समाधि को प्राप्त कर लें। आप वर्तमान में रहें तो आप हैरान हो जाएगें कि आप चट्टान की दृढ़ता तरह से भी आप चाहें कार्य कर सकते हैं। वास्तव में मैं कुछ भी कार्य नहीं कर सकती, परम चैतन्य ही सब कुछ करता है। आपके लिए भी यह इसी प्रकार कार्य करेगा परन्तु आपको स्वयं पर तथा सहजयोग पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। पूर्ण के अधिक से अधिक लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चैतन्य सहरी ৮ 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt सकें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। सांसारिक या मूर्खतापूर्ण की उस अवस्था को प्राप्त करने के लिए थोड़ी सी ध्यान धारणा सारे कार्यों से अधिक महंत्वपूर्ण चित्त इस बात पर होना चाहिए करनी है। आज मेरे भाव अत्यन्त आनन्दमय है क्योंकि अब मैं कि कितने लोगों को हम सहजयोग में ला रहे हैं। कितने लोगों को देख सकती हैँ कि किस प्रकार चीजें घटित हो रही हैं और किस हम बचा रहे हैं? इसके विषय में आप क्या कर रहे हैं? हर सुबह प्रकार एक व्यक्ति हजारों सहजयोगी बना सकता है। मैंने जब आपको इसके बारे में सोचना होगा तो किस प्रकार समय चमत्कार देखा। एक बार मैंने और तिथि याद रख सकते हैं। अब जब कि आप संकट कालीन हजारों पेड़ हैं जिन्हें इसने उगाना है। टीशू कल्चर की एक नई स्थिति में हैं और जानते हैं कि इसका मुकाबला करना है तो कैसे तकनीक को देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गयी कि एक बीज के आप अपने चित्त को सांसारिक वस्तुओं और सांसारिक अन्दर जन्म देने वाले छोटे-छोटे तत्व थे जो बाहर आ गये थे। उपलब्धियों पर रख सकते हैं? आप चिन्ता न करें सांसारिक कार्य इसी प्रकार आप सब में सार्मथ्य है। और आप सब इस कार्य को अपने आप होगें। वास्तव में जो मोड़ आपने लेना है वह है, कर सकते है। परन्तु इसके लिए आपका स्वयं पर दृढ़ विश्वास सहजयोग की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित करना, आन्तरिक एवं होना और सहजयोग के प्रति पूर्ण निष्कपटता का होना आवश्यक बाध्यु रूप से। पृथ्वी पर वास्तव में यदि हम शान्ति चाहते हैं, है ऐसा हो जाए तो वास्तव में आज आपने मेरा जन्मदिन मनाया अपने लिए यदि हम उन्नति चाहते हैं और सभी प्रकार के है। यदि आप सोचते है कि मेरा जन्मदिन महत्वपूर्ण है तो मेरे शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक समस्याओं का समाधान लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर व्यक्ति अपने चाहते हैं तो क्यों नहीं हम सहजयोग में आ जाते जहां हमें कुछ आध्यात्मिक जन्मदिन को प्राप्त कर ले। नहीं करना? केवल अपनी कण्डलिनी को उठाना है, और आनन्द एक कहा कि एक बीज के अन्दर परमात्मा आपको धन्य करें। 71वां जन्मोत्सव परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का सारांश कलकत्ता 21 मार्च 1994 यह काली विद्या चली जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि वे आपको केवल शारीरिक एवं मानसिक रूप से ही हानि नहीं पहचाते, आपकी कृण्डलिनी को भी हानि पहचाते हैं। आर्थिक रूप से भी वे आपको हानि पहुचाते हैं। उनको धन दे देकर लोग अल्यन्त दरिद्र हो गए है, परन्तु बंगाल के लोगों को 'माँ' से अत्यन्त प्रेम है। यहाँ पर एक छोटी सी लड़की को भी 'माँ कहा जाता है। एक बार एककम्युनिष्ट मंत्री मुझे मिलने को आये। उसने कहा "माँ मुझे खेद है कि आने में देर हुई क्योंकि मैं पूजा के लिए काली मंन्दिर चला गया था क्यों काली मन्दिर पर पूजा करते हैं? उसने कहा, कम्युनिस्ट होने के कारण क्या मैं माँ को जाऊँ? अच्छा होगा कि मैं साम्यवाद को छोड़ दें क्योंकि माँ ही मेरी सब कुछ है"। मैं आश्चर्य चकित थी कि साम्यवादी होते हुए भी उसे माँ पर विश्वास था। अतः बंगाल में मातृत्व की बहुत पुजा होती है और मैं बिल्कल नहीं समझ पाई कि किस प्रकार कार्य हो रहे हैं, किस प्रकार पूरे विश्व में सहजयोग फैल गया है और किस प्रकार आप लोग सहजयोग में आयें हैं, यह अत्यंत विशिष्ट समय है, बसन्त का समय। इस बसन्त के समय यह सब आयोजन किया गया है ताकि यह घटित हो सके। मेरे विचार में मैं मात्र एक माध्यम हैँ और यह नहीं जानती कि किस प्रकार सब कुछ कार्यान्वित हो रहा है बस मेरा हृदय आपके प्रति कृतज्ञता भावना से परिपूर्ण हो गया है कि आपने सहजयोग को अपना लिया। अत्यंत सुक्ष्म ज्ञान होने के कारण भौतिकता से परिपूर्ण इस कलयग में यह कार्य अति कठिन है। मैंने तो यह भी न सोचा था कि मैं एक दर्जन सहजयोगी बना पाऊँगी। अतः मुझे समझ आया है कि यह उपयुक्त समय है और इस समय पूरा विश्व सत्य को अपना लेगा। सत्य विजयी होगा। द ा"। मैंने कहा, "आप तोकम्यूनिस्टहैं आप भूल चहूँ ओर, जीवन के हर मोड़ पर, इतना असत्य है कि अपने व्यक्तित्व के हर आयाम पर हम सभी प्रकार के भ्रमों को स्वीकार उनके प्रेममय स्वभाव का यही आधार है। वे अत्यन्त सहनशील लोग हैं, आप नहीं जानते कि एक माँ को किस प्रकार अपने बच्चो पर गर्व होता है। बच्चों का इतना विकसित होना व्यक्ति को कर लेते हैं। भ्रममय आशावाद की इस स्थिति में हमारा यह चाहना कि बहुत असाधारण बात है। मेरे लिये तो यह आश्चर्य है। से लोग सत्य के ज्ञान को प्राप्त करें, अत्यन्त उसके अपने उत्थान एवं उपलब्धियों का आनन्द प्रदान करता है। बहुत से कवि वक्ता, संगीतज्ञ, व्यापारी एवं सरकारी अफसर, सब ने सहजयोग अपनाया है। मैं हैरान होती हूँ कि किस प्रकार बह सहजयोग अपना सके! पर्णतया समर्पित हो सके और जहाँ-जहाँ भी काली विद्या है वहाँ गरीबी होगी, जैसे केरल और बंगाल में काली विद्या के कारण दरिद्रता है। जितने शीघ्र चैतत्प लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt हों। धैर्य होना अति आवश्यक है। लोगो के प्रति करुणामय हों, इस करुणा से इतने लोग सहजयोग में आयेंगे कि आप इतने अच्छे परिणाम दिखा सके? ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनमें यह ज्यौति प्रज्वलित कर दी हो! कुण्डलिनी की यह शक्ति आपके अन्दर विद्यमान है। हमने आश्चयचकित रह जाएगें। बस इसका उपयोग करना है। आपके अहम् एवं बन्धनों ने इसे आच्छादित किया हुआ है, अपनी कण्डलिनी को बढ़ने दें, यह लोग अत्यन्त अबोध बन गए हैं, उनमें इतना माध्र्य, नम्रता, आपको प्रमाणित कर दिखाएगी कि आप कितने महान एवं सुन्दरता, प्रगल्भता एवं स्नेह है, और करुणा तथा सझबुझ से भी गरिमामय हैं। मैं कुछ नहीं कर रही। सारा कार्य आपकी कण्डलिनी ही कर रही है। बस एक चीज़ है, कि वह मुझे जानती हैरान होती हूँ कि यह कैसे हो गया। यह शक्ति उनके अन्दर है, बस। यह परिवर्तन जो आप लोगों में घटित हुआ है यह भी विद्यमान थी, उन्होंने बस इसे प्राप्त कर लिया है, बजाय इसके आपके पूर्व जन्म के सकत्यो एवं आपके विवेक को दर्शाता है कि कि आप मुझे मुबारकबाद दें मैं आपको मबारिक देती हूँ, आपने इसे स्वीकार किया। कबीर भी खो गए थे उन्होंने कहा, क्योंकि मैं जो हूँ, मैं तो वही थी। मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा। सभी संत तंग आ गए कि ये है। आप लोगों ने इसे प्राप्त किया है और इसके लिए मैं आपको लोग, तो सुक्ष्म ज्ञान को नहीं लेगें और सोचा कि समाधि ले लेना बधाई देती है। ही अच्छा है। परन्तु आज आप देखते हैं कि सब कछ तैयार है। आज बसन्त का समय है और इस विश्व को परिवर्तित होते हुए हृदय की एक बार शल्यक्रिया हो चुकी थी उसे बताया गया कि एक अन्य हैरान करने वाली बात यह है कि पश्चिमी देशों के वे परिपूर्ण है । वे सब इतने विशिष्ट और देवदतसम है कि मैं बहुत से रोग सहजयोग से ठीक हो गए। एक व्यक्ति जिसकी दोबारा उसके हदय का आपरेशन होगा उसने प्रार्थना की कि श्रीमाता जी मैं दोबारा से यह आपरेशन नहीं करवाना बढ़, महावीर, इसा, श्री कृष्ण, श्री राम, लाओत्से सभी ने सोचा चाहता"। जब वह दोबारा परिक्षण के लिए गया तो चिकित्सकों कि ऐसे विश्व को बनाए कि हम परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश ने पाया कि उसकी महाधमनी जो कि बांधित थी, बह खुल गई है कर सके। मैं आश्चर्य चकित पर सन्तष्ट भी हूँ कि आप लोगों ने और वह एक सामान्य व्यक्ति बन गया है। सामान्य बन कर वह इस बात को बहुत गम्भीरता पर्वक लिया और हर देश में इसे टेनिस खेलता है। वो चिकित्सक जो कि सहजयोगी भी नहीं थे का्यान्वित कर रहे हैं । मैं यदि अकेली यह कार्य कर सकती तो उन्होंने सहजयोग पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त की है। आपको सहजयोगी क्यों बनाती? आपकी तरह पवित्र माध्यम जगह-जगह यह घटित हो रहा है। लोग रोग मक्त हो रहें हैं, होना आवश्यक था। इसके बिना यह कार्य न हो पाता। इस उनके मस्तिष्क विकसित हो रहे हैं, परिवारिक जीवन नौकरियाँ एवं व्यापार बेहतर हो रहे हैं। सम्बन्ध सुधर रहे हैं। परन्त इसके लिए हममें शद्ध इच्छा का होना अत्यन्त आवश्यक है देख कर मां आनन्द से भर गई हैं। बहुत सारे लोगों ने विश्व को ऐसा बनाने के बारे में सोचा। प्रकार सहजयोग का प्रचार हो रहा है। आप में सभी शक्तियाँ है। इन शक्तियो को धारण करने का प्रयत्न करें। किसी भिखारी को राजा बना कर यदि सिंहांसन पर है। अरथात् ध्यान करना अत्यन्त आवश्यक हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण प= बिठा दिया गया हो और फिर भी बह भीख मांगे तो उसे राजा बनाने का क्या लाभ? अब आप लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चके हैं। विश्वास रखें कि आप सब में विश्व को परिवर्तित करने की शक्ति है। आप ही वो लोग हैं जिन्हें वास्तविकता में चना गया है। अतः उतरदायित्व को समझें। सहजयोग में आपको कछ नहीं करना पड़ता, न धन देना पड़ता है और तत ही सिर के बल खड़ होना होता है, न ब्रत करने होते है और न परिवार को त्यागना होता है। आपको मात्र शुद्ध इच्छा करनी होती है, जो कि कण्डलिनी की शक्ति है, एवं अपने योग आपने जो कुछ भी मेरे लिए कहा उसके लिए आपका धन्यवाद करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। मझे रविन्द्रनाथ टैगोर की याद आती है जिन्होंने एक बार एक कविता लिखी जिसकी सभी लोगों ने प्रशंसा की। इन टिप्पणियों को पढ़ कर उन्होंने कहा मैं नहीं जानता था कि मैंने यह सब लिखा। मैं जो करती हैँ वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना आपका इसे स्वीकार करना और इसका आदान-प्रदान करना । यही महत्वपूर्ण है और यह कलयुग में घटित हुआ है बारम्बार मुझे आपका धन्यवाद करना है। आप एक अत्यन्त सन्दर एवं समुद्ध जीवन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। को बनाए रखना होता है। सामूहिक बने और सदा उनके विषय में सोचे जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त हुआ। उनसे नाराज न चैतन्य तहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt श्री ईसा मसीह पूजा गणपति पुले 25-12-1993 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) आज हम ईसा का जन्म दिन मना रहे हैं। यह अल्यन्त परन्त वास्तव में नहीं है। बहुत से लोग कहते हैं कि ईसा ने पुर्न महत्वपूर्ण समय है क्योंकि ईसा विरोधी इसाई धर्म के कुछ जन्म नहीं लिया। परन्तु वास्तव में वे बाद में काश्मीर में मृत्यु अधिकारी ईसा के जन्म के विरुद्ध बाते कर रहे हैं। उन्हें ऐसा को प्राप्त हुए। इसके प्रमाण है। फिर भी लोग इसका विश्वास करने का कोई अधिकार नहीं है। वे आत्म साक्षात्कारी नहीं और नहीं करते क्योंकि े जानते हैं कि बहसंख्यक होने के कारण वे न ही उन्हें परमाल्मा की कोई समझ है। वे कह रहे हैं कि मेरी मां कुषछ भी कर सकते है। परन्त अब बहसंख्या भी कोई सहायता न कमारी नहीं थी तथा ईसा का जन्म इस प्रकार नहीं हुआ। आप में कर पाएगी। मोहम्मद साहब ने करान में कहा है कि आपको ईसा से कुछ लोग पत्र लिखकर उनसे पूछ सकते हैं कि किस अधिकार की माँ की पवित्रता की पूजा करनी चाहिए। उन्होंने माँ का से वे इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। सत्य यज्ञ में उनका भंडा सम्मान किया। परन्त बाईबल में मेरी माँ को कोई सम्मान नहीं फोड़ हो जाएगा क्योंकि बिना सर्वव्यापक शक्तिको अनुभव किए दिया गया। ईसा विरोधी पाॉल के कारण वे उन्हें एक 'स्त्री कहते उन्हें इस प्रकार से बाते करने का कोई अधिकार नहीं है। वे नहीं हैं। पाल ने इसाई धर्म की बागडोर अपने हाथ में ले ली और जानते कि किस प्रकार चमत्कार घटित होते हैं। परमात्मा के इसका प्रसार किया। बाइबल में अपना महत्व दर्शाने के लिए आर्शीवाद से ही चमत्कार होते हैं। आप सब ने परमात्मा की इस पाल ने पीटर का उपयोग किया जो कि ईसा का अधमतम शिष्य कृपा का अनुभव किया है। मैं एक सर्वसाधारण उदाहरण था। उनके बारे में ईसा ने कहा कि, "शैतान तुम पर काब सुनाउंगी। इस वर्ष नवरात्रि पूजा के अवसर पर एक फोटो लिया पाएगा।" ऐसे भी लोग है जो ये कहते है, "कुंवारी लड़की से ईसा गया जिसमें पूष्ठभूमि में एक प्दा दिखाई दिया और उस पर्दे के का जन्म कैसे हो सकता है।" भारतीय श्री गणेश की पूजा करते पीछे से सूर्य झांक रहा था। सूर्य की आंखे थी, नाक था और वह है। श्री गणेश भी ईसा सम हैं। हमें विश्वास है कि गौरी मां ने मुस्करा रहा था। बाद में जब हम मास्को गये तो मंच (स्टेज) पर कौमा्यावस्था में ही उनकी सुष्टि की। यह हमारा विश्वास है वही दृश्य देखा। परम चैतन्यने उसे प्रकट होने और बनने से डेढ़ लेकिन पश्चिमी देशों में तर्कवाद ही विश्वास है। बहुत से लोग महीना पूर्व चित्रित कर दिया था। इसी प्रकार आप हजारो केवल मिथ्या बातों को ही लिखते हैं। समाचार पत्रों में यह सारी चमत्कारों की बात कर सकते हैं। जब मैं मास्को जा रही थी तो मुर्खता पूर्ण बाते छापने का क्या लक्ष्य है? आपको समझना होगा बाहर का तापमान -20° था। जब हम मास्को हवाई अड्डे पर कि तर्क बाद से आप सत्य को नहीं जान सकते। बुद्धिवाद बहुत उतरे तो यह -15° हो गया और दोपहर पश्चात तापमान -4° ही सीमित, बंधनयुक्त एवं अहंकार पूर्ण है। बुद्धिवाद किस प्रकार था। अगले दिन यह +10° था। ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता है आपको ईसा के बारे में सच्चाई बता सकता है? अब तो हमारे ठंड बढ़ती है पर इस बार यहां पर गर्मी बढ़ी। इससे प्रकट होता है पास वैज्ञानिक प्रमाण भी है। कार्बन को यदि आप दाएं से बाएं कि सभी तत्त्व हमारी सहायता कर रहे हैं। छोटी बड़ी सभी को देखें तो इसके कणों में आपको स्वास्तिक दिखाई देगा। समस्याएं हल होती चली जाती है। कार्यों के होने के ढंग से लोगो ने इसके माडल बनाए हैं। इसे यदि आप बाएं से दाएं को आपको हैरानी होती होगी लोग पूछते हैं कि ईसा को क्यों क्रसारोपित होना पड़ा? उन्हें और ओमेगा दिखाई पड़ेगें। ईसा ने कहा था "मैं ही अल्फा बचाया क्यों न जा सका? इसका कारण यह था कि ईसा को आज्ञा (आदि) हूँ और मैं ही ओमेगा (अन्त) हूँ।" प्रतीकात्मक रूप में चक्र के सकीर्ण मार्ग से गुजरना था। सूली (क्रास) से गुजरकर उन्हें स्वंय को स्थापित करना था। उनके जीवन का संदेश सली एक ओर ऑकार दूसरी ओर अवतरित एक-दूसरे से जड़े हुए। नहीं है। यह पुर्नजन्म का संदेश है। वे पूर्न जीवित हुए ताकि अब आप भी पुर्नजन्म ले सकें। सभी अवतरणों में कषछ न कषछ अद्वितीय है। परन्तु पर्नजन्म इसकी पराकाष्ठा हैं। मृत्यु प्राप्त करके ही ईंसा ने यह कर दिखाया। बिना मृत्यु के पुर्नजन्म नहीं समझ सकते कि दैवी शक्ति यह सब कर सकती है। आप कैसे लिया जा सकता? बहुत सी चीजे देखने में बहुत कठिन हैं लोगों को आत्मसाक्षात्कार, आपका पुनंजन्म मिल चुका है। नीचे से ऊपर को देखने पर अल्फा देखेगे तो ओंकार दिखाई देगें यदि आप नीचे से ऊपर को देखें तो आप इसे रूपष्ट देख सकते हैं। जब वे उत्थित और अवतरित होते हैं तब वे अल्फा और ओमेगा बन जाते हैं। ईसा विरोधी लोगों के मस्तिष्क में यह बात नहीं बैठती। वे यह को चैतन्य लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt किस प्रकार आपने यह पुर्न जन्म प्राप्त किया? आप जानते हैं कि बालक अपने पिता के लिए रोने लगा। श्रीकृष्ण पिता था और श्री गणेश अत्यन्त शक्तिशाली हैं और ईसा ने कहा था कि होली हाथ की पहली अंगुली विशुद्धि की उंगली है। ईसा मसीह सदा घोस्ट (आदि शक्ति) के विरुद्ध कोई कुछ कहेगा तो मैं उसे सहन अपने हाथ परम पिता परमात्मा की तरफ 'V' चिन्ह की तरह से नहीं करूगां। ईसा के विरुद्ध भी कोई गलत बात कहेगा तो मैं इसे रखते थे। पहली अंगली श्रीकृष्ण की है और मध्यम श्रीविण्णु सहन नहीं करूंगी। इस मामले में मुझे यह देखना होगा कि इस की। राधा माँ थी - 'रा' अथाथात् शक्ति और 'धा' अर्थात् धारण प्रकार के शैतान लोगों का पुर्ण विनाश हो जाए। ईसा के जन्म करने वाला। माँ मैरी ने ही उन्हें येशु कह कर बुलाया। येशु दिन के इस शुभ अवसर पर मैं कहती हूँ कि ईसा और श्री गणेश यशोदा भाषा का शब्द है। बाईबल के मराठी अनुवाद में भी एक ही तत्व से बने थे। ईसा विवेक थे और विवेक के स्रोत थे। तीन यिश ही लिखा है कि मां यशोदा से येश या जीजस बना। जीसस साढ़े तीन वर्ष कार्य करने के पश्चात् उन्हें जीवित नहीं रहने दिया या येश और क़ाइस्ट या क्रिष्ट नामों से बलाकर मां मैरी ने हमारे गया। परन्त उन्होंने जो भी कुछ इस समय में बताया वह लिए यह समझना अत्यन्त सुगम कर दिया है कि जीसस के कृष्ण पुर्णतया ठीक एवं विवेक पूर्ण था। चाहे लोगों ने इसे भ्रष्ट करने से कितने समीपी ही समबन्ध थे श्रीकृष्ण भारत में अवरतरित की कोशिश की है, फिर भी बाइबल में बहुत सा सत्य बाकी है। हुए क्योंकि वे इतने नम्र व्यक्ति थे कि मर्यादा और धर्म विहीन उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों को सत्य के बारे में बताने में अमेरिका के लोगों के बीच अवतरित होना उनके लिए संभव नहीं लगा दिया। परमात्मा के बारे में इतना स्पष्ट रूप से बताने वाले था। अमेरिका के लोग अत्यन्त अधर्मी है। अतः ईसासम पुर्णतः वे पहले अवतरण थे। इसके बारे में आपको स्पष्ट रूप से जान पवित्र विवेकशील व्यक्ति जिसे लीला पर कोई विश्वास न था लेना है। तप के क्षेत्र में दो लोग है - एक बुद्ध है और दूसरे महावीर। बुद्ध और महावीर का अवतरण उस वक्त हुआ था जब ऐसा नहीं कहा। इसके बावजूद भी सभी ईसाई लोग कहते हैं कि कर्मकाण्ड वास्तविकता का स्थान लेने लगा था। तो उन्होंने कहा कि हम परमात्मा की बात नहीं करेगें। हम केवल चैतन्य की कहते है कि हम अबोध है। यह तर्क कितना मुर्खतापूर्ण है । बात करेंगें। सभी ने ऐसा किया। यहां तक कि राजा जनक के आत्मघाती एवं विवेकहीन तर्क। गुरू अष्टवक्र ने भी चैतन्य लहरियों की बात की। गुरू नानक ने भी यही किया। नामदेव जय औरिया गये तो उन्होंने कहा कि हम हरि की बात नहीं करते। अच्छा होगा कि हम सबसे पहले चैतन्य सहजयोगियों को मैं अधिक श्रेय दंगी जिन्हें कण्डलिनी के बारे की बात करें। परमात्मा तक पहुंचने के लिए व्यक्ति परम चैतन्य कोई ज्ञान न था। फिर भी उन्होंने कठोर परिश्रम किया और तक पहुँच सकता है। केवल ईसा मसीह ने ही सर्वशक्तिमान महान सहजयोगी बने। यह परमात्मा का आश्शीवाद है। क्योंकि परमात्मा की बात की ईसा मसीह अत्यन्त बहादुर और निर्भीक बवे निष्कपट एवं सच्चे थे। ईसा मसीह उन्हें सहजयोग में लाए। थे। जैसे श्रीकृष्ण और श्रीराम के बचपन के बर्णन हमें मिलते हैं उनके बिना यह सम्भव न होता। भारत में श्रीगणेश एक प्रतीक उस प्रकार इंसा मसीह के बचपन का वर्णन कही नहीं किया गया। यह खेद जनक बात है। केवल एक वर्णन मिलता है जब कि धर्म क्या है और उन्हें किसका अनुसरण करना चाहिए। फिर वह पारसी के साथ बहस कर रहे थे तो े लोग उनकी चतुराई और विवेक बद्धि को देखकर आश्चर्यचकित थे। लोगों ने यद्यपि माँ 'मैरी का सम्मान नहीं किया फिर भी वे एक नाद में वे जन्में, जिसमें बहुत सारा घास इकटूठा पड़ा था। उनके प्रति नतमस्तक थे। उन्होंने कहा कि यदि वे देवी नहीं होती पशु वहां पर थे। एक गरीब व्यक्ति की तरह, एक ऐसे स्थान पर तो कैसे उनकी कोख से ईसा का जन्म होता। तो लोगों ने उन्हें जो कि मानवीय स्तर से बहुत नीचा था, उन्होंने जन्म लिया। यह गौरी (वर्जिन) कह कर पूकारा। तब यह कमारी चर्चो में तथा केवल हमें बताने के लिए था कि अवतरित होने के लिए महल या अन्यत्र स्थान ग्रहण करने लगी। लोग उन्हें देवी मानने लगे। बड़े स्थानों की आवश्यकता नहीं। यदि आप पवित्र हैं तो कहीं उन्हें माँ की पदवी देने लगे। लोगों ने यह मान्यता उन्हें दी। चर्चों तथा ईसाई धर्म के तहीं। हम जानते है कि व महालक्ष्मी थी और उत्पन्न हुआ। परन्तु अब वहां पर सभी कुछ इसके विपरीत हो महालक्ष्मी के रूप मे ही उनकी पूजा करते है। वे राधा थी। राधा का भी अण्डाकार का एक पुत्र था। अडें का आधा भाग ईसा और कमाये हुए धन से अपना विनाश कर रहे हैं। पश्चिमी देशों मसीह थे और आधा श्रीगणेश परन्तु उत्पन्न होते ही यह में लोगों में संतुलन विवेक नहीं है। और हम भी उनका अनुसरण ही वहां अवतरण ले सकता था। श्रीराम की अनुशासनबद्धता को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने लीला पर बल दिया। परन्त ईंसा ने 1. यह सब लीला है। सारे अधर्म, बुराइयों को लीला कहते हुए वे हम भारतीय लोगों को धर्म का पूरा विचार है हम जानते हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। परन्त उन देशों के इंसाई मात्र है, परन्तु वहाँ वे अवरतरित हुए। ईसा ने लोगों को बताया भी वे धन लोल्प लोग हैं। परमात्मा के नाम में उन्होंने कैसे-कैसे कार्य किए हैं। जहां वे जन्मे वह एक अतिप्रतीकात्मक बात थी। भी जन्म ले सकते हैं। इतना महान व्यक्तित्व ऐसे स्थान पर रहा है। वहां के लोग अत्यंत भौतिकता वादी हैं, धन संचालित है चैतन्य लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt कर रहे हैं। उनकी विधर्वैस्क गतिविधियों का अनुसरण करके हम समझते है कि हम काफी उन्नत है। विनाश की ओर उन्नत। भौतिकता भिन्न-भिन्न तरीको से कार्य करती है। पश्चिमी देशों में लोग कहते हैं" मेरा घर, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे"। पर्व में अपने बच्चे तथा सम्बंधियों के प्रति हमें बहुत सावधान होना यह मैं किस प्रकार का खाना खाता हैँ, मेरा घर और परिवार है ताकि परमात्मा के नाम पर बताई गई गंदी बातों को हम कैसा होना चाहिए"? अपना न लें/इसके बावजूद भी सहजयोगियों का एक बहुत बड़ा समूह यहां है। वे आश्शिर्वादित लोग हैं और जानते हैं कि देवत्व सक्ष्म होता जा रहा है। वैसे-वैसे यह चीजें भी सुक्ष्म हो रही हैं। क्या है। ईसा क्या है? चाहे आपका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ हो और आपको पकड़े हुए है। मैं ऐसे सहजयोगियों को भी जानती हैँ या कहीं और, ईसा हम सबसे सम्बन्धित हैं। ईसा शाश्वत है। वे जो सहजयोग को व्यापार बनाना चाहते है। क्या आप स्वयं को पुरे ब्रह्माण्ड। ऐसा देवीमहात्मय में वर्णन किया गया है। ईसा के काब नहीं कर सकते? ऐसा करना अति सगम है। ईसा मसीह ने अनुयायियों का हमें मजाक नहीं करना चाहिए, ईसा मसीह की ऐसा किया। आप यहां उनकी पजा करने के लिए आये हैं। इन भी हमें उतने ही स्नेह, श्रदा एवं समर्पण से पूजा करनी चाहिए चीजों को काब करने का प्रयत्न करें। यह बहत आवश्यक है। जैसे हम श्री गणेश की करते हैं। मैं नहीं समझती कि इसाई लोगों आप कहीं भी रह सकते हैं। जैसे मेरी कोई आवश्यकता नहीं है, को ईसा मसीह में विश्वास है। परन्तु आत्म साक्षात्कारी होने के मेरा शरीर कुछ नहीं मांगता। इसी कारण मझे कभी थकान नहीं कारण सहजयोगियों का विश्वास कार्य करता है। आपको स्वयं होती। यहां मैं आपके साथ रहती हैं। कहीं भी मैं सो सकती हैं। में, सहज योग में तथा जीवन-यापन में अपने ढंग में विश्वास एक बार मैंने पणे से लेकर हैदराबाद तक रेलगाड़ी में यात्रा की। होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक आप स्वयं बहुत धक्के लग रहे थे परन्तु मझे ऐसे लगा जैसे मैं एक ग्रह से को सहजयोगी नहीं कह सकते। अब भी बहुत से लोग है जो दूसरे ग्रह पर जा रही हूं। कोई दसरा व्यक्ति होता तो इन धक्कों परिधि रेखा पर हैं, जो सहज योग को पूर्णतः नहीं समझते हैं। केवल बद्धि से समझते है फिर भी परमात्मा के गहन प्रेम में गोते लगा रहे है। आपको चाहिए कि वह प्रेम दूसरे लोगो को भी दें। कोई समस्या होती है तो मैं निर्विचार हो जाती हैं और एक गहन अभी भी कुछ लोगों के लिए भौतिकता का बहुत महत्व है। मेरा शक्ति प्रवाहित होने लगती है। निलिप्त हो कर आप भी इसे कहने से अभिप्राय है कि वे अब भी गलत ढंग से धनाजन करना प्राप्त कर सकते हैं। चाहते हैं। कुछ अन्य अपने बच्चों से लिप्त हो जाते हैं। यह लिप्सा गलत है। ईसा मसीह ने कभी ऐसा नहीं चाहा। हमें यह करती। वे मुझे फोन करते हैं। मैं अपने पति को भी कभी फान समझना है और ईसा मसीह का सम्मान करना है। ये सारी चीजें अब भी वनी हुई हैं। आपका उत्थान ज्याँ-ज्यों के कारण नाराज हो जाता। परन्त, इसके विपरीत मझे बहुत अच्छा लग रहा था। अतः मेरी प्रक्रिया बहुत भिन्न थी। जब भी मेरे भी बच्चे हैं, नाती नातिने हैं। मैं उन्हें कभी फोन नहीं 1. नहीं करती। टेलीफोन करना समय खराब करना मात्र है। मेर भौतिकतावादी विचारों से हमें छुटकारा पाना होगा। मैं नहीं अन्दर एक टेलीफोन है और मैं जानती हैं कि आप सब ठीक हैं। कहती कि आप हिमालय में चले जाएं, सन्यास ले लें, या बुद्ध की परन्त जब तक आप निर्लिप्ता की उस अवस्था को प्राप्त नहीं तरह से अपने बच्चों को त्याग दें। परन्तु आप में निर्लिप्सा तो कर लेते यह कार्य कठिन है। मैं जानती हूँ कि कछ सहजयोगी होनी ही चाहिए। आप सब इस पृथ्वी पर है फिर भी आपको एक दम हिंसक हो जाते हैं और दसरों को चोट पहुंचाने लगत हैं। निर्लिप्सा विकसित करनी होगीं। आरम्भ में आप जब सहज योग आप जानते हैं मैं अपने बच्चों पर कभी हाथ नहीं उठाती। ऐसा शुरु-शरु करने की आज्ञा नहीं है। किसी भी व्यक्ति को हाथ नहीं उटाना में यह ठीक है, परन्तु अब नहीं। सहजयोग की गति अब बहुत चाहिए और न ही किसी को छना चाहिए। आपको न तो नाराज तेज है। और बहुत से लोग पीछे रह जाएंगे अतः सावधान रहें । होना है और न ही चिल्लाना है। अन्यथा आपको पता भी नहीं इन भौतिकतावादी विचारों में न फसे। विशेषकर भारतीय लगेगा और आपका पतन हो जायेगा। पुरणंतः शान्त एवं सहजयोगी, वे आश्रमों में रहना पसंद नहीं करते। भारतीय करुणामय बनें। परन्तु यदि आप अभी तक भी लिप्त हैं तो आप चाहते हैं कि उनके अपने घर हों जहां वे अपनी पत्नियों पर रोब यह सब उल्टे सी धे कार्य करते है। अतः सावधान रहें। क्रोधित न झाड़ सकें और स्वादिष्ट प्रकार के खाने खा सके। मेरे विचार में हों। ऐसा कोई व्यक्ति यदि हो तो मुझे बताएं। ईसा की ओर देखें चर्च के समीप चीजे बेचने वालो पर वे नाराज थे। एक बड़ा हटर ताकि वे जिव्हा के स्वाद से छूटकारा पा सकें। ब्रत रख कर भी वे लेकर उन्होंने उन्हें पीटा। पर वे तो ईसा मसीह थे। जिस समय मेरे में आते हैं कि "मेरे पिता बीमार है, मेरी मा बीमार ।" इसी कारण भारतीय लोगों को बरत रखने के लिए कहा गया। ा खाने के विषय में सोचते हैं। ऐसे बरत का क्या लाभ है? ईसा मसीह ने चालीस दिन तक ब्रत रखा और जब शैतान ने उनका दिल ललचाने का प्रयत्न किया तो उन्होंने उसकी अवज्ञा कर दी। उन्हें क्रसारोपित किया गया उन्होंने कहा "हे परमात्मा, पिता कृपा करके इन्हें क्षमा कर दो क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। चैतन्य लहरी 10 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt दो दिनों तक ब्रत रखें और स्वयं को दंडित करें। क्रोध बहत ही बुरा है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि क्रोध से ही सारी बुराइयां शुरू होती हैं। अतः अपने क्रोध को हमें काबू करना है और याद रखना है क इंसा मसीह क्षमा का अवतार थे। यही सब कुछ हमें ईसा मसीह के और उनके चरित्र के बारे में जानना है। वे कितने क्षमाशील तथा प्रेममय थे? किस प्रकार से उन्होंने लोगों की देखभाल की? और मोक्ष प्राप्ति के लिए उनकी सहायता की। आराजकता तथा अव्यवस्था के उन दिनों में उन्होंने "सत्य, आत्मा एवं उत्थान की बातें कीं। जिन लोगों से उन्होंने बातचीत की वे सब अन्ध (ना समझ थे) फिर भी उन्होंने उन्हें सब कुछ बताया। बाईबल में बहुत सी कथाएं हैं जिनमें से एक यह है कि पुनं जन्म के समय आपके शरीर कब से बाहर आएंगे। यह बात केवल इसाईयों के लिए ही नहीं है बल्कि मसलमानों और यहदियों के लिए भी है। इसके विषय में सोचें इतने वर्षों के बाद कब्र में क्या बचता है? थोड़ी सी होडिया और यदि यह हड्डियाँ बाहर आ भी जाएं तो किस प्रकार आप इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं? इसके बारे में सोचें। ये मात्र कथा में आज हम उनकी पूजा कर रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें कसारोपित किया उन रोमन लोगों को भी उन्होंने क्षमा कर दिया। रोमन अधिकारियों ने उन्हें क्रसारोपित किया था इस प्रकार के दृष्टिकोण के कारण लोगों ने उनसे घृणा की, उन्हें दूुख दिया और सताया। जब यहदियों में प्रक्रिया हुई तो उन्होंने भी ऐसा ही किया। जिस न्यायाधिकारी ने उन्हें क्रसारोपित किया उसने भी स्वयं निर्णय न दे कर लोगों से यह बात कहलवायी। यह सब यहदियों को अभिशापित करने के लिए था। परमात्मा का शुक्र है कि, आज बहुत से यहदी सहजयोग में हैं दम्पति आर इज़ाइल में बहुत से सहजयोग केन्द्र हैं। ईरान से अमेरिका आये हुए बहुत से लोग हैं जो यहूदी और मुस्लिम हैं जो अब स्पष्ट कहा गया है कि ये सभी साधक जो परमात्मा को पर्वतों में खोज रहे हैं ये सब कलयग में पर्नजन्म लेगे और उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया जाएगा। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिल गया है उन्हें स्वयं को इसमें स्थापित करना होगा। उनकी कण्डलिनी जागृत हो जाएंगी और यह बात तर्क संगत है। आज हम लोग यही कार्य कर रहें हैं। सहजयोगी बन गए हैं। मुझे बताया गया है कि तर्की और भारत के सुफी लोग भी सहजयोग में आ रहे हैं। इस प्रकार सब का कल्याण होगा। हमें समझना होगा कि ईसा मसीह कैसे थे। उनका जीवन कैसा था और किस प्रकार उन्होंने लोगों को प्रेम किया। वे विश्व में क्रसारोपित होने के लिए आए। इस बात को वे जानते थे और उन्होंने ऐसा किया। परन्तु लोगों ने उनका जो चित्र प्रस्तुत किया है वह गलत है। वे अत्यन्त स्वस्थ, बजनदार एवं लम्बे कद के थे। उन्होंने क्रस को उठाना था। जिन लोगों ने उन्हें तपेदिक के मरीज की तरह दर्बल चित्रित किया है उन्हें समझना चाहिए कि यदि स्वयं उन्हें क्रस उठाना पड़े तो क्या वे उठा सकेंगे? इस प्रकार ईसा मसीह के व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने के लिए और उनका चरित्र हनन करने के लिए लोगों ने यह सभी कुछ किया। परन्तु सहजयोगी होने के नाते आपको चाहिए कि सारे सत्य को जानें उनके प्रति पूर्ण सम्मान और उनमें पुर्ण श्रद्धा बनाए रखें। वे, श्री गणेश की तरह, आपके बड़े सहजयोगी देते हुए भी यदि आप दुर्वयवहार करते हैं ता हो भाई हैं। बड़े भाई के रूप में ही वे अवतरित होते हैं। हर दुख एवं सकता है कि ईसा मसीह कुछ सीमा तक आपको क्षमा कर दें पर परेशानी में वे आपकी देखभाल करते हैं। हर तरह से वे हमारी हमें लोगों को बताना है कि सहजयोग मार्ग को अपनाएं। हिसक मदद करते रहेंगे। लेकिन इसका एकमात्र रास्ता यह है कि उनके तथा अभद्र न बनें। मैं जब यह सुनती हूँ कि सहजयोग में भी गुणों के सम्मूख हम समर्पण करें और क्षमाशील बन जाएं लोग उग्र हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। आपको चाहिए कि उनके यही गण हमें आत्मसात करने हैं। परमात्मा आपको जनसंख्या विरुफोट भी इसी कारण से है। परन्त मैं नहीं जानती कि इनमें से कितने लोग आत्मसाक्षात्कार को पा सकेंगे। जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है उन्हें चाहिए कि स्वयं को स्थापित करें। परन्त उनमें भी सक्षम प्रकार की लिप्सा दिखाई पड़ती है। अतः आप लोगों को चाहिए कि ईसा मसीह के गणों के सम्मख स्वयं को समर्पित कर दें। उनके गुण अत्यंत गहन हैं। और उनका महानतम गण यह है कि वे (आदि शक्ति) परम-चैतन्य के विरुद्ध कोई भी बात सहन नहीं कर सकते । आशीर्वाद करें। जिगर का इलाज करें। उग्र स्वभाव के लोगों को चाहिए कि वो 11 चैतन्य लहरी 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत मद्रास 17.1.94 (सारांश) चस आज हम शब्द जाले में खो गए हैं। हम मन्त्रो का उच्चारण जुड़ा हो तो यह अर्थहीन है। अपनी भक्ति को जब तक हम करते हैं, पुस्तकें पढ़ते हैं, कोई शैव है, और कोई विष्णवी। ये सारी बातें हमारे लिए इसलिए महंत्वपूर्ण थीं क्योंकि हमने सोचा तक भक्ति अर्थहीन है। अतः सर्वसाधारण बात यह है कि योग था कि इन विधियों से हम अपने अन्तिम लक्ष्य, मोक्ष को प्राप्त घटित होना आवश्यक है। चाहे आपको शास्त्रों और वेदों का ज्ञान कर सकेंगे। इस प्रकार मेरे विचार से भारतीय अत्यंत चुस्त एवं हो, बिना योग के सब अर्थहीन है। मूलभूत रूप से आध्यात्मिक हैं। वे जानते हैं कि अच्छा क्या है, और बुरा क्या है। धर्म अधर्म को भी वे जानते हैं। आध्यात्मिक जीवन के वे कार्य करते हैं। परन्त अपने हदय में वे जानते हैं कि ऐसा आपको लिख कर दे.तो उसे खाने की अपेक्षा आप उसका नाम करना अनचित है। पर वे लाचार हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पूर्वज महान दृष्टा, संत एवं अवतरण थे जिन्होंने हमारे आध्यात्मिक उत्थान के लिए बहुत समय लगाया। हमें उनका का किसी भी तरह से प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि मिथ्या विचारों आशीर्वाद प्राप्त हैं। हमारे पर्वजों के लिए भौतिक जीवन का बहुत महत्व नहीं था। दक्षिण में मझे लगता है कि लोग धर्म में गहन खाइ है। जिससे निकलना अत्यंत दश्कर है। मैं ऐसे लोगों बहुत ही गहन उतरे हुए हैं। मैं शालीवाहन के बारे में पढ़ती हैं की जानती हैँ जिन्होंने ढेरों पुस्तकें पढ़ी हैं। कुछ लोग एक लाख जिनकी भेंट कश्मीर में एक बार ईसा मसीह से हुई ईसा मसीह ने मन्त्रोच्चारण करते हैं, ब्रत करते हैं। परन्त उन्हें कोई लाभ नहीं उन्हें बताया कि"मैं मलेच्छों (मल + इच्छा) के देशों से आया है ताता। उनका स्वभाव बहुत ही उग्र है, और उनके हृदय में अर्थात जहां के लोग मल की इच्छा करते हैं" उनकी इच्छा मल की है पवित्रता की नहीं। और मैं यहां इसलिए आया हूँ क्योंकि आर साचत है कि उन्होंने, महान त्याग किया है। परामात्मा इस आप लोग पर्णतया निर्मल हैं। तो शालीवाहन ने उनसे कहा आप यहां क्यों आना चाहते हैं, आप को तो जा कर मलेच्छ पिता है, अति करूणा एवं प्रेम मय हैं, क्यों आपको दखी देखना लोगों के हित के लिए कार्य करना चाहिए।" आज भी हम भिन्न प्रकार के लोग हैं। इस घोर कलयग में भी कम से कम 70 प्रतिशत लोग परमात्मा में विश्वास करते है। परमात्मा के प्राति किस प्रकार आप मोक्ष को प्राप्त कर पाएंगे? जैस कबीरदास जी परमात्मा के दैवी प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति से नहीं जोड़ लेते तब जैसे आपको यदि सिर दर्द हो और डाक्टर कोई औषधी उच्चारण करते रहे। कब आप इस औषधी को लेंगे? बिना आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किये आप अपने जन्म सिद्ध अधिकार के गहने अज्ञानान्धकार में हम धंस चुके हैं। यह अज्ञान एक आनन्द विल्कुल नहीं है। परिवार को त्याग कर वे चले जाते हैं। प्रकार की मुंखतापूर्ण बातें नहीं चाहते। परमात्मा जो कि आपके १। चाहेंगे? आप देख क्यों उठाएं? में नहीं समझ सकती कि दख उठाने से उनकी श्रद्धा है तथा उसका उन्हें भय है। ने कहा है कि व्रत करने से यदि मोक्ष प्राप्त होता ता भारत के केंवल दरिद्र लोग ही माक्ष को प्राप्त कर पाते। सिर मृडाने से यदि मोक्ष प्राप्त होता तो भेड़े, जिनकी ऊन हर साल उतार ली जाती है, को ही मोक्ष प्राप्त होता। इन लोगों ने इन सब कर्म काण्डों का उपहास करके आपको यह बताने की चेष्टा की है कि इन बाह्य परमात्मा को जानते महीं है। हम स्वयं को भी नहीं जानते। पहले कार्यों से आपको कोई लाभ न होगा। निसंदेह, आप ये सब हमें स्वयं को जानना होगा इसके उपरान्त ही हम परमात्मा को कमकाण्ड बड़ी तत्परता से करते हैं क्यो कि आत्मसाक्षात्कार एवं मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। माँ होने के आया है। मैं आश्चर्यचकित थी कि कितने हृदय पूर्वक लोग सभी नाते मैं आपको बताती हैँ कि आपको यह सब कर्म काण्ड नहीं कुछ कर रहे हैं। पर वै ऐसा करने का कारण नहीं जानते। उनकी करने हैं। कृपया ऐसा न करें। माँ को यदि आपने सताना हो तो यह अन्ध श्रद्धा है, अन्ध श्रद्धा उन्हें कहीं भी नहीं ले जाएगी। मैं आप कहते हैं कि मैं खाना नहीं खाऊंगा। ऐसा आप क्यों करना सोचा करती थी कि कब मैं उन्हें यह बता पाऊंगी कि आपको इस चाहते हैं? इसकी कोई आवश्यकता नहीं। भाजन को इतना महत्व देना अनावश्यक है। प्रातः चार बजे उठ कर मन्त्रोच्चारण द्वारा आपका परे घर को सिर पर उठा लेना कहा ये जो भावना हमारे अन्दर है यह मात्र एक भय हैं। किसी अनेजानी शक्ति का भय। हम नहीं जानते कि सर्वशक्तिमान परमात्मा करूणा एवं प्रेम के सागर हैं। हम मानवां को चाहिए 1. कि परमात्मा को जानने की अवस्था को प्राप्त करें। हम आप जान जाएंगे। दक्षिण भारत में मझे अत्याधिक कर्मकांड नजर अन्ध श्रद्धा से ऊपर उठना है। श्रद्धा आप में हानी चाहिाए पर श्रद्धा तो ज्ञान सम्पन्न भक्ति होती है। बिना ज्ञान सम्पन्नता (बाध) के भक्ति अर्थ-हीन है। जैसे यह माइक्रोफोन यदि अपने ग्रोत से न तक उचित है? चैतन्य लहरी वललि 12 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt आवश्यक नहीं। अफसर, मंत्री आदि लोग सर्वसाधारण विवेक को खो देते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना बहुत कठिन हो जाता है। स्वयं को बहुत सफल मानने वाले लोगों को कभी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होगा। शद्ध इच्छा के बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हो सकता। यह इतनी विशेष चीज है कि इसमें सभी कछ वास्तविक है। छोटे-छोटे बच्चे आपको बता सकते हैं कि आपको क्या समस्या है और आपका कौन सा चक्र खराब है। यह इतनी महान खोज है, इसका हम अन्दाज नहीं लगा सकते, सम्भवतः अपने अध्यात्म विवेक के अभाव के इसके अतिरिक्त झूठे गुरुओं का भी प्रभाव है। मद्रास इनसे भरा पड़ा है। हर व्यक्ति किसी गुरु का दास है। कलकत्ता का तो और भी बरा हाल है । हर व्यक्ति ने किसी न किसी गुरू से दीक्षा ले रखी है। कुगुरुओं या तान्त्रिकों के चक्कर में आप आ जाते हैं। तो आप समूद्ध नहीं हो सकते। लक्ष्मी तत्व बाहर चला जाता है। और ऐसा होने पर निर्धनता पीछा नहीं छोड़ती। अतः इन कुंग्रुओं से पीछा छुड़ाएं। पूर्ण भारत वर्ष इन से भरा पड़ है। परन्तु यहां के लोग इतने सीधे हैं कि इनकी पुजा किये चले जा रहे हैं। कारण। रूस में जब में गई तो लैनिन ग्राड के प्राचीनतम विश्वविद्यालय, सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में मुझे एक बहुत जिस प्रकार मुसलमान लोग जहाद करते हैं उसी प्रकार हम भी अपने विरूद्ध जहाद कर रहे हैं। खाना मत खाइए, यह मत कीजिए, वह मत कीजिये, इस प्रकार अपने जीवन के पीछे पड़े हैं. और अपनी हत्या कर रहे हैं परमात्ना ने इस विश्व की सष्टि आपके सुख एवं आनन्द के लिए की है। इस प्रकार के नर्क में ही यदि आपने रहना है तो परमात्मा ने संसार को क्यों बनाया? बड़ा इनाम दिया। विश्वविद्यालय के दस सदस्यों में उन्होंने मुझे भी स्थान दिया। इनाम को देख कर मैंने कहा कि "मैं तो मात्र घरल स्त्ी हैँ। मैं कोई वैज्ञानिक नहीं।" इस इनाम को पाने वालों में से एनस्टाइन भी थे। यही इनाम एनस्टाइन को भी दिया गया था। वे कहने लगे कि "एनस्टाइन ने क्या किया है? उसने केवल भौतिक पक्ष को ही सम्भाला है। एनस्टाइन ने तो केवल भौतिक पदार्थ पर ही कार्य किया है, परन्त आपने तो जीवित मानव पर कार्य किया है सहजयोग में आप अपने व्यक्तित्व को पहचानते हैं। आप समझ जाते हैं कि आप कितने गरिमामय है अपने स्रोत से जड़ने के बाद आप अपनी शक्तियों को जान जाते हैं। आपको समझ आ जाता है कि आपके अन्दर कितना सौन्दर्य है और आप अपना सम्मान करने लगते हैं। आपमें अहम् नहीं आता परन्तु अपने विषय में आप उचित आकलन करने लगते हैं। । सारे कार्य फली भूत होंगे इस प्रकार के अन्धेरे से निकलकर आप सब प्रकाश में आएं र्वयं चीजा को देखें। आप क्या हैं। इस देश में जन्म लेना ही एक विशेष बात है। यह इतना बड़ा वरदान बहुत प्रसन्न हैं कि यहां पर बहुत से लोग सहजयोग में हैं और सहजयोग को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निसंदेव है जिसका आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इस देश जैसी भूमि सहजयोग रोग दर करता है इससे बहुत से लाग रोग-मुक्त हुए। इसके अतिरिक्त यह आपको मानसिक शान्ति प्रदान करता है । भावनात्मक रूप में भी आप अत्यंत संरतलित व्यक्ति बन जाते हैं. पर सर्वोपरि, आपमें दसरों को आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति नासताबिकता है. अपनी अंगलियों के छोरों पर आप किसी को, आ जाती हैं। पहले आप नि्विचार समाधि को प्राप्त करते हैं और अपने और अन्य लोगों के चकों के विषय में जान सकते हैं। फिर निविकल्प समाधि प्राप्त करते हैं। ग्रोत से जड़ते ही आप को यह सब वरदान प्राप्त हो जाते हैं। बंगलौर का एक सहजयोगी मुझ बता रहा था कि वह ऊतक जीवाण समूह (टिश कल्चर कर रहा है जो कि केवल पचास प्रतिशत ही सफल होता है। परन्त मैं महानतम कार्य है जो आपने करना है। और तब आप एक सहजयागी हैं। मैं यहां खड़ा हो कर चैतन्य लहरियाँ देता हैं और चैतन्य मेरी बोतलों में बहने लगता है और मझे शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त होती है। वह एक किसान है जो अंग्रेजी भाषा तक नहीं जानता। वह कहता है कि श्री माता जी "मर अन्दर एसा ज्ञान है, जिसे में अनभव कर सकता है। इस चीज को हमें जानना है। यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि कहंगा। परन्त चित्त प्रकाशित होने के कारण आप स्वयं के गरू हम माधारण मानव नहीं है। मरवप्रथम आपको इस कार्यक्रम में उपस्थित होना होगा क्योंकि आप जिज्ञास हैं। आप विशिष्ट प्र. मानव अस्तित्व का क्या कारण है? मानव हैं। नब आपका आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है और परमात्मा के उपकरण बनने और परमात्मा के आशीर्वादे का अपनी मभी शक्तियां प्राप्त हो जानी हैं। इसके लिए पी.एच होना आवश्यक नहीं, तरहत अधिक सफल व्यक्ति होना भी मैं आपको परे विश्व में नहीं मिल सकती परन्तु आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किये बिना आप इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। इसी लिए मैं चाहती हूैं कि आप यह समझे कि आत्मसाक्षात्कार के रूप में आपने जीवन में बहुत बड़ा वरदान पा लिया है। यह यह ऐसा वरदान है। और मैं प्रार्थना करूंगी कि दसरों को आत्म साक्षात्कार देने के लिए इसका उपयोग करें। यही विश्वद्यापक समूह, सहजयोग जीबन संस्था का एक हिस्सा बन जाएगे। पुरे विश्व में आपके मित्र होंगे, परे विश्व में लोग आपको जान जाएगे। एक सहजयोगी होने के नाते आपको यह जानना है कि आपने सहजरीती रिवाज और सम्बन्धों का सम्मान करना है। कुछ करने या न करने के लिए कोई आपसे न बन जागंगे परमात्मा आपको धन्य करे। डी. आनन्द उठाने के लिए। त चैतन्य लहरी 13 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt श्री शिवरात्री पूजा परम पूंज्यमाता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) (दिल्ली) 14-3-1994 आज हम सदाशिव की पूजा करने वाले हैं सदा शिव और शिव में यह अन्तर है कि सदाशिव सर्वशक्तिमान परमात्मा है और वे आदि शक्ति की लीला के लेखक हैं। सदाशिव और आदिशक्ति का सम्मिश्रण ऐसा है जैसे चांद और चांदनी का या सर्य और उसकी धूप का। मानबीय सम्बन्धों या मानवीय विवाहों में हमें ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। श्री सदाशिव की इच्छा से आदि शक्ति जो भी कुछ सृष्टि कर रही है श्री सदाशिव इसे देख रहे हैं और इसके साक्षी हैं। पूरे ब्रह्माण्ड एवं पृथ्वी मां को वे साक्षी रूप में देखते हैं। साक्षी भाव उनकी शक्ति है। 'आदि शक्ति' की शक्ति, अतः सर्वव्यापक शक्ति है। चलने लगते हैं। आत्मा के प्रकाश में हर विनाशकारी चीज को आप देख लेते हैं और कर्तव्य परायणता के प्रकाश में चलने लगते हैं। विध्वंसकता को आप त्यागने लगते हैं, किसी को आपको कुछ बताना नहीं पड़ता। आप स्वयं महसूस करते हैं कि यह कार्य गलत है और मुझे यह नहीं करना चाहिए। आजकल क्योंकि मानव भ्रम में फंस गया है अतः उसके बारे में यह मेरी अपनी सुझबूझ थी। मानव हर समय संघर्ष की स्थिति में है यहाँ तक कि अपने अस्तित्व के लिए भी संघर्षरत है। ऐसी स्थिति में यदि सन्यास लेकर आप हिमालय पर चले जाते तो सभी कुछ असफल हो जाता। जनसाधारण के कल्याण के लिए यदि कुछ करना है तो मूलभूत रूप से कोई कार्य होना आवश्यक था और सोभार्यवश वह मार्ग खोज सकी जिसके द्वारा आपका अकरण हो सके और आपको आत्मसाक्षात्कार मिल सके। सर्वशक्तिमान परमात्मा, 'आदि पिता इच्छा शक्ति में अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति आदि मां के रूप में करते हैं। आदि माँ अपनी शक्ति की अभिव्यक्ति प्रेम के रूप में करती हैं। दोनों (आदि पिता और आदि माँ) के सम्बन्ध बहुत ही सूझ-बुझ से परिपूर्ण एवं गहन हैं। जब भी आदि पिता को यह लगता है कि कुछ बातें समझ लेनी चाहिए। उनमें समर्पण की कमी है। आदि माँ की सृष्टि में कोई समस्या है या कुछ लोग उनके कार्य में आधुनिक सहजयोग की केवल एक शर्त है कि वास्तविकता में विघ्न डाल रहे हैं तो वे उनका विनाश कर देते हैं। विध्वंस शक्ति आपको समर्पण करना होगा। अपने मस्तिष्क या अन्य तरीकों के के लिए वे जिम्मेदार हैं। मानव हदयों में वे प्रतिबिम्बित हैं। सारी उपयोग से यदि आप सहजयोग को समझना चाहेंगे तो समझ सृष्टि में उन्हीं की धड़कन है पर यह धड़कन आदि-मां की नहीं पाएंगे। समर्फण करना ही होगा। इस्लाम समर्पण के शक्ति है। और जो भी चीज आदि-शक्ति की योजना ओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। इस्लाम का अर्थ हैसमर्पण। समर्पण के विरूद्ध जाए उसका वे विध्वंस करते हैं । आदि शक्ति प्रेम है। अभाव में परमात्मा के साम्राज्य में स्थापित होना असंभव है। अपनी सुष्टि के अपराधों को वे क्षमा करती हैं तथा उसे प्रेम करती समर्पण का अर्थ यह नहीं कि आप अपने परिवार बच्चों और घर हैं। वे चाहती हैं कि उनकी सृष्टि समृद्ध हो तथा अपने लक्ष्य को का त्याग कर दें। इसका अर्थ है कि आप अपने अह एवं प्राप्त करें वे चाहती हैं कि मानव उस अवस्था तक उन्नत हों बंधनों का त्याग करें। उदाहरणार्थ में एक व्यक्ति से मिली जो जहाँ वह परमात्मा, सदाशिव के साम्राज्य में प्रवेश कर सकें, बहुत कष्ट में था। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा गुरु कौन हैं? जहाँ पर आनन्द है जहाँ पर आनन्द, क्षमा एवं सुख शान्ति है। उसने गुरु का नाम बताया। मैंने कहा, "उसने तुम्हारा कोई हित ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब व्यक्ति में जिज्ञासा हो और नहीं किया। क्या तम उसे छोड़ दोगे? क्या तुम उसे त्याग दोगे? उस स्थिति को प्राप्त करने की अन्तर्जात इच्छा हो। हमारे अन्दर उसने कहा "कल"। मैंने पृछा "आज क्यों नहीं।" उसने कहा यह इच्छा आदि माँ के प्रतिबिम्ब के रूप में प्रतिबिम्बित है। इस इच्छा के साथ-साथ मानव में सांसारिक इच्छाएं भी होती हैं जो सुबह करूगा। उसने पुछा कि वह कौन-कौन सी वस्तुएं फैंके, उत्थान के विकास में बाधा डालती हैं। सहजयोग में सन्यास ले मैंने उसे बताया कि जिन वस्तुओं से वह उस गुरू की पूजा करता कर या घर का त्याग करके हमने कभी भी इन इच्छा ओं को वश में करने का प्रयत्न नहीं किया। मैं आज बहुत से लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। उन्हें आज"। लेकिन मैंने फोटो आदि फेंकने हैं और यह कार्य मैं कल था वे सारी फेंक दें। उसने वे सारी वस्तुएं समुद्र में फेंक दी और समुद्र से कहा।"मुझे खेद है। इस व्यक्ति के हाथों मैंने बहुत कष्ट उठाएं हैं कृपया आप कष्ट न उठाएं।" उसके अन्दर इस प्रकार का सूक्ष्म विवेक था। इस प्रकार से आप नहीं त्याग सकते. इनसे चिपके रहते हैं। सर्वप्रथम आपको आत्मा का प्रकाश प्राप्त हो जाता है। आत्मा सदाशिव का प्रतिविम्ब है, यह जलती हुई उस मशाल की तरह है जो मार्ग दर्शन करती है। इस मार्ग पर आप स्वयं इतने वृद्धिमान हो जाते हैं कि आप स्वयं विवेक के प्रकाश में मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हैं जिन्हें अपने बन्धनों से बैतन्म] नहरी 14 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt छटकारा पाना बहुत कठिन लगता है। यह कार्य अहम् से मुक्ति किसी भी चीज से यह आ सकता है। मानव को सभी प्रकार की पाने से भी अधिक कठिन है। हमारा पहला बन्धन यह है कि हम मर्खता पूर्ण बातों का अहम् है। एक दिन मैं एक स्त्री से मिली जो भारत में जन्में हैं। सहजयोग में आते ही लोग अपने देश, इतनी घमंडी थी कि मस्कराती तक न थी। मैंने पुछा कि इस स्त्री देशवासियों धर्म एवं ग्रन्थों की कमियों को देखना शुरू कर देते हैं की क्या समस्या है? उन्होंने मुझे बताया कि यह गुड़ियाँ (डोल्स) और जान लेते हैं कि गलती क्या थी। कोई भी यह नहीं कहता कि बनाना जानती है जिसके कारण इसे इतना घमंड है। गडियां तो क्योंकि हम अंग्रेज, रूसी या भारतीय हैं अतः हम ही सर्वश्रेष्ठ कोई भी बना सकता है। व्यक्ति मुर्ख हो जाता है। घमंडी व्यक्ति हैं। वे तरन्त जान लेते हैं कि रूकावट क्या है और यह लोग की पहली पहचान है कि वह "मैं" ग्रस्त हो जाता है। "मैंने यह आत्मसाक्षात्कार को क्यों नहीं पा रहे। दूसरी ओर उन्हें उन लोगों कार्य किया। "मैं ऐसा हूँ"। ऐसी बाते कहते हुए उसे लज्जा भी पर बहुत दया आती हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। नहीं आती। यहां तक कि वह पापमय जीवन व्यतीत करता है। क्यों न हम उन्हें आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न करें।" प्रकाश ऐसे लोग पर स्त्री गमन और मदिरापान आदि के शौकीन होते के यह दो कार्य हैं। सर्वप्रथम आप जान लेते हैं कि प्रकाश है औरहै। इन बातों की वे शेखी बधारते हैं। घमंडी व्यक्ति के लिए लज्जा आप प्रकाश बन गये हैं। अतः जहाँ भी आपका चित्त जाता है आप नाम की कोई चीज नहीं रह जाती। अपने मुर्खता पूर्ण कार्यों की वह डींगें मारता रहता है। और अपने किये को बह सदा उचित देश और समाज के कौन-कौन से बन्धन हैं। सारी त्रटियों से वे ठहराता है। मैंने एक व्यक्ति से पूछा आपको इतना भयंकर हृदय घात हुआ है फिर भी आप शराब क्यों पीते हो? शराब पीना छोड़ दो" उसने यह कह कर अपने किये को उचित ठहराया कि फलां चोटी का उद्योगपति १५ वर्ष की आयु में भी शराब पीता वह पीता है इसीलिए सफल है"। तो क्या वह शराब पीने वास्तविकता देखने लगते हैं और तब आप समझ लेते हैं कि हमारे घृणा करने लगते हैं। पर इसके लिए समर्पण प्रथम आवश्यकता है। समर्पण से आपके अन्दर एक ऐसी स्थिति विकसित हो जाती है जो है। आन्तरिक रूप से सन्यासी बना देती है। इसका अर्थ यह है कि है कोई भी चीज आप पर प्रबल नहीं हो संकती। सन्यासी व्यावत के कारण ही कामयाब है? तनिक सी भी समझ नहीं है। आप हेश के किसी ऐसे मफल व्यक्ति को देखते हैं जो शराब पीता है। सभी चीज़ों से ऊपर होता है। उसे कोई चीज पकड़ नहीं सकती। वस्तओं को देखने मात्र से वह उन्हें जान जाता है। गलत काम 1. पर शराब पीकर मरने वाले व्यक्ति कि स्थिति को नहीं देखते। कडीं भी ऐसे व्यक्ति की सराहाना नहीं होती जिसकी दस पत्निया वह नहीं करता। कहे या न कहे वह हर चीज को समझता है। वह कहा भी एस व्यक्ति की सराहाना नहीं होती जिसकी दस पत्नियां इतना निलपि होता है कि अपनी निलिपता में ही बह जान जाता है कि गलत क्या है। अपने परिवार को वह देखने लगता है। दसरे हनोगों को वह देखने लगता है, गलतियों को वह देखने लगता है है,"मुझे यह पसन्द हैं यह पसन्द नहीं। यह पर्ण विनाश के परन्तु किसी भी चीज़ से वह लिप्त नहीं होता। मैं ट्की में एक चिन्ह हैं क्योंकि अहम् महा मुर्ख हैं। जिस प्रकार के वेशभषा भद्र पुरुष से मिली। उसने मुझ से आत्मसाक्षात्कार मांगा। मुझे हैरानी हुई क्योंकि स्विटजरलैंड में मुझे यह चीज दिखाई न दी हैं। कहते हैं" मझे यह पसन्द है, इसमें क्या खराबी है"। किसी थी। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करते ही बह कहने लगा कि "मैं अब भी प्रकार से जब व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है स्विटजरलैंड वापस नहीं जाऊँगा"। यह इतना स्पष्ट है और यह प्रकाश वास्तव में आपको महान विवेक एवं संतुलन प्रदान करता है। मान लो कि आप चल रहे है परन्त यदि आप सडक को नहीं लगते है। सहयोग में भी कुछ लोग हैं। कुछ लोगों से जब मैं देख सकते तो आप गिर सकते है। परन्तु थोड़ा सा प्रकाश भी पूछती हूँ कि वे जाकर कार्यक्रमों का आयोजन क्यों नहीं करते तो यदि हो तो आप देख सकते हैं। सहजयोग ने यही किया हैं। इसने वे कहते हैं,"श्री माता जी इससे मेरा अहम् बढ़ जाएगा"। यदि आपको थोड़ा सा प्रकाश दे दिया है। इस थोडे से प्रकाश के सहारे आप अपने अहम् को देखते है तो वह कैसे बढ़ सकता है? मान लो आप बहुत सी बुराइयों को त्याग सके है। अहम इसका दसरा भाग है। मानवे के लिए अहम् आत सूक्म मेरा अहम बढ जाएगा इस कार्य में छटकार पान का अत्यन्त है कुछ लोगों में इतना सूक्ष्म अहम् होता है कि जरा सी बात से यह आसमान छने लगता है। छोटी-छोटी चीजों के लिए बे नाराज हो जाते है या कोई ऐसा व्यक्ति वह खोज लेते है जिस पर वे शासन कर सकें। जब आप अहम को देखने लगे हैं तो इस पर हंसे और सोचे कि मुझे में क्या कमी है। अहम बन्धन जैसा नहीं कि यह विवाह मुझे नहीं करना चाहिए था।" उस समय आपको है क्योंकि बन्धन बाहर से आते हैं और अहम् आन्तरिक है। क्या हुआ था? मझे यह सारी बाते आपको बतानी पड़ रही है ही या जो शराब पीकर मर गया हों। आधुनिक समय में यह अहम् फैल गया है। लोग कहने लगते लोग धारण करते है उसी से ही पता लगता है कि वे कितने मुर्ख तो वह इस मुर्खता को देख सकता। यह मेरा अहम् बोल रहा है। तब वह स्वयं पर हंसने लगते है और इसका मजाक बनाने रयाद आप किसी जलती हुई चीज को देख रहे है तो कैसे आप इससे स्वयं को जलने देगे? यह कहना कि 'सहजयोग के कार्य करने से सुक्ष्म तरीका है। विवाहों में भी यह आम बात है। लोग कहते हैं श्री माता जी उस समय मैन इस लड़की से शादी कर ली पर अब मझे लगना है पैतन्म तहरी 15 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt हमें बहुत सी बातें सीखनी है। जब हम शिव की पूजा करते क्योंकि इस मुर्खता पूर्ण अहम् की समस्याओं का मैं सामना करती रही हैं। व्यक्ति को रूपष्ट देखना है कि किस प्रकार उसमें यह है तो उनका गणगान करते हैं। देवी, शिव और विष्णजी के सहस्त्र नाम अहम् कार्यरत है और उसके पतन का कारण है। उत्थान की ले कर हम उनकी पूजा करते हैं। लेकिन लोगों के कितने नाम हो बात करते हुए हम उच्च जीवन की बात करते है। हमें सन्यासी सकते हैं। वास्तव में पूजा में जब आप नाम लेते हैं तो वे जागृत सम बनना होगा, तालाब में से जन्में एक कमल की तरह से जिस हो जाते हैं। पूजा के बाद आपको ऐसा महसूस होता है। परन्तु पर पानी नहीं ठहर सकता। कमल के पत्तों पर भी पानी नहीं ठहर सकता। बिना गेरुए वस्त्र पहने या दिखावा किये हमें ऐसा बनना शक्ति को प्राप्त करते हैं। परन्तु ज्यों ही वे पूजा से निकलते हैं होगा परन्तु अन्दर से एक निर्लिप्त चित होना चाहिए जो तुरन्त सब कुछ समाप्त हो जाता है। आपके अन्दर की समस्याओं को देख सकें। सहजयोग के जरिये आप जानते हैं कि अत्यन्त प्रभावशाली तरीके से किस प्रकार इस पर काबू पाया जा सकता है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए आपको शिव सा। साक्षी बनना होगा, शिव पर्णतः निर्लिप्त हैं। कर सकता हूँ एक पहलू समर्पण का है। समर्पण किस लिए करें? यह निर्लिप्सा आपको शिव जैसा विवेक प्रदान करेगी। सदा-शिव चुपचाप आदि शक्ति के कार्य को देखते हैं। उनमें पश्चात आपको चाहिए कि उन शक्तियों को अपने अन्दर बनाए अहम विकसित नहीं होता है जो यह कहे कि"देखो अब मेरी रखें ग्रहण करे और विश्वस्त हों कि आपके अन्दर यह शक्तियाँ इच्छा शक्ति क्या कर रही है।" वह मात्र दृष्टा है। परन्तु जब वे है। यहां आ कर सहजयोगी असफल हो जाते हैं। सहजयोग की विनाश करन पर आते हैं तो देखते हैं कि यह भाग पूरी सृष्टि का विनाश कर देगा, तो वह तुरन्त ही उस भाग को समाप्त कर देते तैयार था और न ही किसीकी कण्डलिनी उठाने के लिए तैयार हैं। हमें भी इसी प्रकार करना है। में आते हैं वे आप उनका लाभ नहीं उठाते। जो भी लोग पूजा समर्पण का एक अन्य पहल भी है। यह मान लेना कि मैं एक सहजयोगी हूं और सारी शक्तियों को मैं अपने अन्दर आत्मसात आत्मसात करने के लिए स्वतः ही जब आप समर्पित हो जाते हैं तो आप आत्मसात करते हैं। एक बार आत्मसात करने के शुरूआत में तो कोई सहजयोगी न किसी और को छने के लिए भी था। मैंने सोचा कि ये माध्यम मैंने तैयार किये हैं। पर इनमें से तो हमारा अपना जीवन बहुत बड़ा क्षेत्र है तो हमें सोचना चाहिए कोई अपना हाथ उठाने के लिए भी तैयार नहीं। किस प्रकार मैं कि हम कैसे हों। मैंने लोगों को यह कहते सुना है "क्या हुआ, मैं यह कार्य करूंगी? नासिक क्षेत्र में हमने एक कार्यक्रम किया। मैं एक सहजयोगी हूँ।" यदि आप सहजयोगी हैं तो हमें इस तरह से नासिक में थी और उनका कार्यक्रम यहां से तीस मील दूर था। बात नहीं करनी चाहिए। हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक आपको यह आधे रास्ते पर जब हम पहुंचे तो हमारी कार खराब हो गयी। कहना है कि मैं एक सहजयोगी हूँ। अपनी बातचीत में और सारे सहजयोगी कार्यक्रम में पहुंच चुके थे और वहां आई हुई व्यवहार में आपको अत्यंत नम्र व्यक्ति होना है। यदि ऐसा नहीं है जनता बहुत परेशान हो रही थी। तब सहजयोगियों ने कहा कि तो इसका अर्थ ये है कि सहजयोग ने आपको दगना अहँ दिया है। "हम आपको आत्मसाक्षात्कार देंगे।" उन्होंने आत्मसाक्षात्कार आप जानते हैं कि शिव अपनी अबोधिता, सहजता और दिया और यह पहला समय था जब सहजयोगियों ने जाना कि वे क्षमाशीलता के कारण प्रसिद्ध हैं। वे राक्षसों को भी क्षमा करते हैं। आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। इसके बाद सबने आत्मसाक्षआत्कार ये उनका गण है परन्त जो भी व्यक्ति आदिशक्ति के विरूद्ध देना शुरू कर दिया। मान लें कि आपमें ये शक्तियां हैं। मैं इन जाता है उसे वे क्षमा नहीं करते। यह गुण व्यक्ति को समझना शक्तियों को व्यर्थ नहीं करूंगा। मैं इनका उपयोग करूगा। एक बार मैं समुद्री जहाज में यात्रा कर रही थी। वहां बर्फ जमाने वाले चाहिए। समपण का अर्थ यह नहीं कि बाह्य वस्तओं का समर्पण कर कमरे में एक व्यक्ति पकड़ गया और उसे निर्मोनिया हो गया। दें। समर्पण का अर्थ है कि स्वयं को पर्णतः शद्ध करें। पूर्णतया कप्तान मेरे पास आया और कहने लगा कि इस लड़के को निमोनियां हो गया है और हमें हैलिकोॉप्टर से डाक्टर लाना निर्लिप्त हो जाएं। नि्लिप्सा उत्थान का एक मात्र भाग है। कुछ लोग बीमार हो जाते हैं और इस बीमारी को बहुत ही बढ़ा चढ़ा कर कहते हैं। यदि आप सहजयोगी हैं तो मात्र अपने चित्त से देखें कि आप बीमार हैं। यह अत्यंत लीलामय एवं प्रमोदमय चित्त है। होगा। मैंने उसे कहा कि मैंने तम्हें आत्मसाक्षात्कार दिया है, अब होगा। मैंने उसे कहा कि मैंने तुम्हें आत्मसाक्षात्कार दिया है, अब तुम भी एक डाक्टर हो। आप जाकर अपना हाथ उसके हृदय पर रख दो। उसने ऐसा ही किया और वह निमोनिया ग्रस्त व्यकि्ति जब में यहाँ आई तो मुझे बुखार था परन्त कोई विश्वास नहीं ठाक ही गया। कैप्टन स्वयं पर हैरान था। यदि आप अपनी करता। विवाह में मैं बहुत थक गई थी लेकिन सब कहते थे. शक्तियों को ग्रहण नहीं करते, बस बैठकर ध्यान ही करते हैं तो आप थके नहीं लगते। इसी प्रकार जीवन की लीला करनी उसका क्या लाभ हैं? है। जीवन मात्र एक लीला है और ये लीला विवेक के प्रकाश में देखी जानी चाहिए कुछ भी इतना गंभीर नहीं है। सहजयोगियों कार्य करना होगा। आपके अन्दर इच्छा जागृत होनी चाहिए कि के लिए कुछ भी इतना गंभीर नहीं है। हुए ाण शिव की अवस्था प्राप्त करने के बाद आपको आदि शक्ति का हम सहजयोग को फैलाएं, इसे कार्यान्वित करें। परन्तु सावधान पंतन्य लहरी 16 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt रहें कि कुछ समय तक आप बन्धन एवं अहम्ग्रस्त हो सकते हैं। स्वयं को सावधानी पूर्वक देखें। सावधानी पूर्वक देखने से आप बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं, कुछ लोगों ने, देश-देश में, इस कार्य की जिम्मेदारी ली है। "समष्टि' (सामूहिक) बन जाती है अर्थात आपने इसे सामूहिकता पर कार्यन्वित करना है। जिन लोगों को कभी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ वे भी बहुत आयोजन करते रहे हैं। पर आपको तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। अब ये आवश्यक है कि यह प्रकाश आप दूसरे लोगों को भी दें। समर्पण में पहला कार्य शिव और सदा शिव रूपी अपनी आत्मा की अवस्था को पहुँचना. है। दुूसरी अवस्था अन्य लोगों के बारे में सोचना है। प्रथम यह व्यष्टि (व्यक्तिगत लाभ) है जो बाद में परमात्मा आपको धन्य करें। ास म चैतन्य लहरी ि 17 ा 1994_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt श्री माता े सम्मख श्रीमाता जी के सम्मुख जाने से पूर्व सोचें कि आप किस के सम्मुख जा रहे हैं । इससे हमें अपना दृष्टि कोण एवं आचार-व्यवहार ठीक रखने में सहायता मिलती है। श्रीमाता जी यदि मंच पर बैठी हों तो उनके पीछे की ओर से उनके सम्मख आना चाहिए। सामने से भी श्रीमाता जी के सम्मुख न आए। श्रीमाता जी के प्रस्थान से पूर्व हमें कभी भी वह स्थान नहीं छोड़ना चाहिए जहां कार्यक्रम हो रहा है। महिलाओं को मंच पर यदि श्रीमाता जी की पूजा का सौभाग्य प्राप्त हो तो उन्हें श्रीमाता जी के आदेशानुसार कार्य करना चाहिए, विशेषकर श्रीमाता जी के चरण कमलों की साज-सज्जा करते हुए अपनी मर्जी से कुछ नहीं किया जाना चाहिएं । अब एक ऐसा समय आ गया है कि श्रीमाता जी के बहुमल्य समय को हमें खराब नहीं करना चाहिए। जब तक श्रीमाता जी स्वयं समय न प्रदान करें तब तक उनके पास कोई भी बीमारी ठीक करवाने के लिए न जाएं। इस सम्बन्ध में केन्द्र के अगआ से सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक है। श्रीमाता जी जब मंच की ओर आ रही हों तो कोई उनके सम्मख न तो लेटे और न ही उनके चरण कमल स्पर्श करें। अन्य धर्मों की तरह हमें आचार संहिता को धर्म नहीं बना लेना। हम सभी सहजयोगी जब भी परस्पर मिलें या बात-चीत करें या मिलकर कोई कार्य करें तब भी हमें इन नियमों का पूर्ण सम्मान करना चाहिए। चैतन्म लहरी 18