|০৬ ১১২১১২১ <১:১ चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति अंक 1 व 2 खण्ड VII वें राम जब तक आप साक्षी रूप से स्वयं को नहीं देखते तथ तक आपका अर्थहीन है। स्वयं को स्वयंसे अलग करके स्वयं देखें कि आप में क्या दोध हैं। आत्मसाक्षात्कार परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ২ ১১২১২১১১২, ১ ১ ১১ বে खंड VII, अंक 1I व 2 विषय सूची तस पृष्ठ 1. श्रीमाताजी के 108 पावन नाम 2. श्री आदिशक्ति पूजा 26.06.1994 4 3. श्री विष्णु पूजा 13.7.1994 11 15 4. गुरू पूजा 24.7.1994 5. ईस्टर पूजा प्रवचन 3.4.1994 आस्ट्रेलिया 22 6. मैलबोर्न वन विहार (पिकनिक) 24 श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर 162, मनिरका विहार नई दिल्ली-110 067 मुद्क एवं प्रकाशक : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110 060 मद्रित H 5710529, 5784866 बैतन्म् लहरी 2. आदि शक्ति पजा के अवसर पर लिए गए श्रीमाताजी के 108 पावन नाम 19. महात्मा गांधी आपको नेपाली कहा करते थे, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 20. आप ही मेहदी (अपनी पुर्ण गरिमा में ईसा मसीह) के शासन का शुभारम्भ करती हैं, आपको कोटि-कोटि श्रीमाताजी आप ही साक्षात मैरी, फातिमा, कोआन यिन, अथेना और मात्रेय हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 1. लम्बथ घाटी में आप ही ने नये येरुशलम की नींव रखी, 2. आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अनगिनत विश्व यात्राओं द्वारा बन्धन देकर आप ही इस पृथ्वी की रक्षा करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी मानव जाति की रक्षा करने के लिए अवतरित हुई आप ही साक्षात आदि शव्ति हैं, आपको कोटि-कोटि 3. प्रणाम। 21. परमात्मा के क्रोध से आप ही विश्व की रक्षा करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अपने सभी कार्यकलापों में आप राक्षसी शक्तियों से युद्ध 4. 22. करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 23, आप ही दैवी प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । सृष्टि को अर्थ प्रदान करने के लिए ही आप इस पूथ्वी पर अवतरित हुई, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपके कर एवं चरण कमल ही स्वर्ग की चार नदियों के 5. प्रणाम। 24. साधकों को मक्त करने के लिए आप निरन्तर कार्य करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 25. आप ही आदि कण्डलिनी का अवतरण हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । नागा सन्त आपके चरण कमलों की शीतल लहरियों में आराम करने का आनन्द लेते हैं, आपको कोटि-कोटि 6. सरोत हैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। ईसा मसीह ने जिस परम चैतन्य (Holy Spirit) का बचन दिया था वह आप ही हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 7. आप की कृपा से पृथ्वी पर सत्य युग स्थापित हो गया है, 26. 8. आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आप ही प्राणवाय (Pneuma), परम चैतन्य (HOLY GHOST), शेखीना (रति), ताओ (TAO) और असज़ (ASSAS) हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 10. कण्डलिनी को जागृत करके आप ही मोक्ष प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 11. वास्तव में आप ही एक मात्र ऐसा अवतरण हैं जिसमें सामूहिक आत्म-साक्षात्कार प्रदान करने की शक्ति है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 12. सभी धर्म ग्रन्थों में वर्णित पुनर्जन्म आप ही प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 13. आप ही सुख, परामर्श एवं मुक्तिदाता हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 14. आप ही ने 5 मई 1970 को विराट का आदि सहस्रार खोला, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 15. आप ही विज्ञान एवं आध्यात्मिकता के बीच सेत हैं. आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 16. कलियुग में भी आप साधक खोज निकालती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 9. प्रणाम्। आप ही हमारे शाश्वत्व की देवी हैं, आपको कोटि-कोटि 27, प्रणाम। 28. आप ही समय की स्वर्णिम नदी हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 29, आप मन की पकड़ से बाहर हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 30. केवल सरल एवं पवित्र लोग ही आप तक पहुंच सकते हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 31. सरल तथा पवित्र लोगों को ही आप प्रेम करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 32. आपके बच्चों के माध्यम से आपको जाना जा सकता है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 33. सन्त जन ही आपका परिवार है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 34. आपने पूर्व एवं पश्चिम को जोड़ दिया है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 35. आप एक ऐसा यग लाई हैं जिसमें सन्तों का सम्मान होता है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 36. राक्षसी शक्तियों से आप अपने बच्चों को मुक्त करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 17. परमात्मा के साम्राज्य की चाबी आप प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 18. श्रीमाताजी अन्तिम निर्णय का अवतरण आप ही हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। े चैतन्य लहरी द 37. आप ही हाथों को जबान देती हैं, आपको कोटि-कोटि 59. वृक्ष की जड़ों में आप नया जीवन डालती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 38. आप ही सद्भावमयी माँ हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 39. करूणा आपका स्वभाव है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। 40. आप साधकों को सन्त बना देती हैं, आपको कोटि-कोटि मानव मात्र को आप उत्थान का अवसर प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 61. मानवता को आप एक नई चेतना प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपके चरणकमल हमारे सहस्रार को सशोभित करते हैं । 60. प्रणाम। असीम के हृदय में आपका निवास है, आपको कोटि-कोटि 41. 62. आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणामे। 42. आप ही नये येरूशलम की रचना करती हैं, आपको 63. लौह आवरण को आप समाप्त करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 43. विश्व को ब्रह्मचैतन्य से शराबोर करने के लिए आप बादलों को चैतन्यित करती हैं, आपको कोटि-कोटि कोटि-कोटि प्रणाम| 64. सभी पैगम्बरों ने आपकी उद्घोषणा की। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 65. अपने जीवन काल में पूजी जाने वाली केवल आप ही अवतरण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 66. असत्य की आप निडरता से निन्दा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 67. मानव जाति को मुक्त करने के लिए आपने अपना सर्वस्व लगा दिया। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 68. आप धर्म के तत्व को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 44. आप ही कयामा मोहम्मद साहब वर्णित पर्नजन्म को लाती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 45, आप ही परम तेज से परिपूर्ण हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शक्ति एवम् नम्रता को आप ही प्रसारित करती हैं, आपको 46. ा। कोटि-कोटि प्रणाम। 47. हिमालय में तपस्यारत महान ऋषिषयों ने आपको पहचाना है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 48. आप पाप नाशनी हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 49. आप ही जीवनदायी जल हैं जो प्यासों की प्यास बुझाता है, 70. अपने बच्चों की इच्छाओं को आप पूर्ण करती हैं। आपको आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 50. आपके रहस्योद्घाटन अत्यन्त कोमल हैं, आपको 71. कुगुरूओं के रूप में अवतरित हुए राक्षसों की आप निन्दा कोटि-कोटि प्रणाम। 51. पवित्र हृदयों को आप ज्योतिमर्य करती हैं, आपको 72. आप ही सत्य हैं और सत्य की अभिव्यक्ति करती हैं। कोटि-कोटि प्रणाम। 52. आपने नई मानव जाति को जन्म दिया. आपको कोटि-कोटि प्राणाम। 53. आप जीवन की तुच्छता को एक अत्यन्त सुन्दर बह्मण्ड में 74. खोई हुई अबोधिता को आप पन: स्थापित करती हैं । परिवर्तित करने वाली कलाकार हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 69. पंच द्वीपों में आप निरन्तर विचरण करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम। करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 73. हमारे प्याले को आप अमृत से भर देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 75. आप ही हमारे अन्दर पावन प्लेट (शक्ति) को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम 76. आपकी विनोदप्रियता, मानव हृदय से, अन्धकार को दूर भगा देती है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 77. भृग मुनि ने आपके अवतरण की भविष्यवाणी की थी। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 78. असाध्य रोगों को आप ठीक कर देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 79. प्रायः आप सहजयोगियों के स्वपन में आती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 54. आप जन्म से ही निश्छल एवं निर्मल हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 55. आप ही सर्वोच्च एवं पूर्ण अवतरण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 56. जिनमें शद्ध इच्छा है उनके लिए आप स्वयं को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 57. अपने शिष्यों को आप गुरूपद प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 58. आपने विश्व निर्मला धर्म की स्थापना की। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। भैतन्य तहरी 80. सीमित रूप में आप असीम की अभिव्यक्ति हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 81. आप प्रेम एवं आनन्द प्रसारित करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 82. पत्थरों में आप कमल की सुष्टि करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 83. अपने परम पिता से मिलन के लिए आप हमें तैयार करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 84. आप सुनती हैं और कभी थकती नहीं। आपको कोटि-कोटि 94. आप ही ग्नोसिस (ज्ञान) हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 95. सभी धारणाओं को आपका हृदय द्रवित कर देता है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 96. आप चेतना की पंखड़ियों को प्रकाशित एवं चमत्कृत करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 97. फलों का रंग एवं सुगन्ध आप ही हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 98. आपके चित्र जीवन्त हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 99. उदारतापुर्वक आप अपने बच्चों को असंख्य उपहार देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 100. शाम से सुबह तक आप सुनती हैं और शिक्षा देती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 101. आप हमारी मां भी हैं और गुरू भी। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 85. आपके शब्द मन्त्र हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 86. सहजयोगियों को कोशाणुओं के रूप में आप अपने शरीर में स्थान देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 87. आप महानतम पूंजीवादी और महानतम साम्यवादी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 88. सभी रीति- रिवाजों द्वारा पूजी जाने वाली आदि माँ आप ही हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 89. हमारी जो भी स्थिति हो, आप हम में केवल आत्मा देखती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 90. शालिवाहनों के राजकीय खानदान में आप जन्मी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 91. सन्तों के देश में आपका जन्म हुआ। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 102. अपने शिष्यों को आप आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति देती है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 103. आप दर्पण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 104. हज़ारों साधकों की आप नशे आत्मविनाश और निराशा से रक्षा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 105. साधकों के चक्रों को पवित्र करने के लिए आप नई-नई विधियां निकालती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 106. कृण्डलिनी की भूमि को आपने यद्ध करके स्वतन्त्र किया। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 107. आप अन्तिम प्रकटीकरण को लाती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 92. सर्वोच्च राजनैतिक समाज में आप चुपचाप घुमीं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 93. अपने बच्चों पर आप बहुत से चमत्कारों की कृपा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 108. ब्रह्म सागर, जिसने उत्कृष्ट मेघ का रूप धारण किया आप हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्री आदि शक्ति पुजा परम पूज्य माताजी निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कबेला. इटली 26.6.94 आज हमनें आदि शक्ति की पूजा करने का निश्चय किया शक्ति और दूसरे कण्डलिनी के रूप में इसका मानव में है। कण्डलिनी और आदि शक्ति की पूजा करने में अन्तर है। प्रतिबिम्ब। अन्तर यह है कि आपकी एक ओर आदि कण्डलिनी ही कण्डलिनी को प्रतिबिम्बित करती हैं। और दूसरी ओर आदि की रचना करना। आरम्भ में, जैसा कि आपने देखा, किस प्रकार शक्ति है जो कि परम चैतन्य है। पूर्ण रूप से यदि आप इसे देखें इस पूरे ब्रह्माण्ड और विशेषरूप से पृथ्वी गृह की सुष्टि की तो इसके दो पक्ष होते हैं। एक परम चैतन्य के रूप में इसकी गई आदम और ईव के बारे में मैंने आपको जो बताया वह पहले तीसरा कार्य जो आदि शक्ति ने करना था वह था पूरे ब्रह्माण्ड औतन्य लहरी जॉन ने भी अपनी ग्नोस्तीस (उच्चज्ञान) पुस्तक में लिखा। इसी ने आपको बहुत सी ऐसी बातें बताई होंगी जो कि बाईवल में है। आदि शक्ति सर्पणी के रूप में आई, उनका आदि कुण्डलिनी और ईव को बताया कि वह कहे कि ज्ञान का फल खाना अपना सर्वनाश करना और उसके लिए नए साधन खोज निकालने की लोगों को स्वतन्त्रता है, कोई भविष्यवाणी न की जा सकी। आदि शक्ति या सर्वशक्तिमान परमात्मा भी इस प्रकृति को रोक नहीं सकते क्योंकि अपना सर्वनाश करने की, स्वयं को बिगाड़ने की, और नर्क में जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता आपको दी गई है कोई भी दैवी शक्ति इस पर काबू नहीं पा सकती। दैवी शक्ति आपकी स्वतन्त्रता का सम्मान भी करती है। तो देवताओं ने सामूहिक रूप से सोचा कि मानव आदिशक्ति की सृष्टि को पूरी तरह से नष्ट करने वाला है। क्या हम आदिशक्ति की सृष्टि को पूरी तरह से नष्ट होने दें और फिर कुछ बेहतर रचना करे । यह भाग, चाहिए। इसका कारण मैंने तुम्हें बताया था कि मातृशक्ति नहीं चाहती थी कि उसके बच्चे उच्च श्रेणी के ज्ञान को समझे बिना पशुओं कि तरह से रहे जाएं। और उन्हें अपनी स्वतन्त्रता में ऊँचा उठने का तथा उच्च चेतना में विकसित होने का अवसर भी न मिले। माँ कि यही चिन्ता थी। दी तरह के विश्व की सृष्टि की गई। एक तो दैवी था और दूसरे का विकास आरम्भ हुआ था। इस को देखना बहुत बड़ा कार्य था, इस प्रकार के कार्य को करने के लिए अरबों वर्ष बीत गए हैं। परन्तु यदि आप देखें तो आधनिक समय में हम बहुत थोड़े से प्रयत्न से चांद पर जा रहे हैं, और बिल्कल थोड़े से समय में आप वहां पहुँच जाते हैं। यह सब मानव मस्तिष्क द्वारा हुआ वाद विवाद चल रहा था और उनमें से अधिकार मानव से तंग थे, विशेष तौर पर पश्चिमी स्वतन्त्रता से। कहने लगे कि इन लोगों ा को नर्क चाहिए तो हम इन्हें स्वर्ग क्यों दें? यह अनुचित है। पहला कार्य जो आदिशक्ति ने किया वह था मानव में जिज्ञासा पैदा करना। जिज्ञासा उत्पन्न होने पर इस विध्वंसकारी संस्कृति के लोग खोज करने लगे । जब यह खोज शुरू हुई, तो सदा की तरह से, बहुत से लोग उनके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाजार में आ गए। साधकों को बहुत से धार्मिक सम्प्रदायों और झूठे लोगों के पास जाना पड़ा क्योंकि उनके पास सत्य को जानन का और कोई रास्ता ही न था। यदि उन्होंने कबीर, नानक मानव ने इसका बहुत थोड़ा सा उपयोग किया जिसके द्वारा वे चांद तक उड़ सके। आदि शक्ति ने परी प्रकति की सष्टि की। अपने चहँ और आप जो भी कछ देखते हैं उसकी सष्टि उन्होंने ही की। यह सब उन्हीं का कार्य है। आप हैरान होंगे कि मैं आज एक भारी साड़ी पहनने वाली थी और मैंने कहा कि आज बहुत गर्मी है इसलिए अच्छा होगा कि मैं कोई सादी साड़ी पहन की पुस्तके या गूढ़ ज्ञान के शास्त्रों को पढ़ा होता तो वे जाने कि सत्य क्या है और इसे किस प्रकार खोजा जाए। मैं देखती हैं कि सत्यसाधकों तथा दूसरे प्रकार के लोगों में बहुत बड़ा संघर्ष रहा। प्रकार के लोग कुछ जानना नहीं चाहते अतः कभी भी साधक नहीं बन सकते। मैं आपको विश्वास दिलाती हैं कि उनमें दूसरी लू। तो मैंने साड़ी बदल ली पर जब मैं बाहर आई तो देखा कि 1. से कुछ तो कभी भी साधक नहीं बन सकेंगे। रोग ग्रस्त होने पर प्रकृति को यह सारी सूचना कौन देता है। यह परम चैतन्य है। के भी वे कहेंगे कि हम शहीद हैं और महान कार्य कर रहे हैं। उनके मस्तिष्क में ऐसी मुर्खता भर गई है कि वे सोचते हैं कि इन्हीं गलत कार्यों को करने से ही उनकी रक्षा होगी। विकृत मस्तिष्क परम चैतन्य इतना गतिशील तो कभी भी न था, कलयुग आरम्भ में मेरे जन्म के समय से यह गतिशील हुआ। इस समय दैवी सामूहिकता में आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होना था, हैं के कारण ही यह मुर्खता आती है। लोग जब स्वतन्त्र हो जाते इसका निर्णय किया गया था। सारे देवी-देवताओं ने इस कार्य की जिम्मेवारी किसी समर्थवान को देने का निर्णय किया था तो उन्होंने कहा कि हम सब, हमारी सारी शक्तियां आपके साथ होगी, पर आप इस कलियग में मानव को परिवर्तित करने का तो यह विकृत मस्तिष्क कार्य करता है। अपने चारों ओर देख कर वो क्यों नहीं समझ जाता कि क्या घटित हो रहा है। ये आशा करना कि पूरा विश्व स्वर्ग में चला जाए, असंभव है। लोगों ने सब प्रकार के ऐब किए हैं। मैंने लोगों को नशे और शराब का सेवन करते हुए देखा। एक व्यक्ति ऐसा है जिसे पी. एच.डी. की उपाधि मिली और उसका विषय था मदिरा पान द्वारा आध्यात्मिकता को कैसे प्राप्त करें। तो सत्ता में, विश्व विद्यालयों में, मैं नहीं समझ पाती, इस प्रकार के मुखलोग कहां से आ गए, कौन सी सृष्टि से? यह समझ पाना असम्भव कार्य है। बो कैसे सोचते हैं कि इस प्रकार का विनाश उन्हें मोक्ष तक ले जाएगा। प्रतिदिन वे देखते हैं और जानते हैं कि क्या घटित हो रहा है, फिर भी वो देख नहीं पाते। पर जो साधक हैं वे इतने कार्य भार ले लें। एक प्रकार से मानव को परिवर्तित करना पशुओं को परिवर्तित करने से भी कठिन कार्य है। क्योंकि मानव की अपनी स्वतन्त्रता है और यह स्वतन्त्रता उन्हें अन्तिम स्वतन्त्रता (मोक्ष) पाने के लिए दी गई है। अपनी स्वतन्त्रता में जिस प्रकार वे आचरण करते हैं बह आश्चर्यचकित कर देने वाला है, किस प्रकार आपे से बाहर हो कर वे विनाश कार्य करते हैं। निसंदेह भविष्यवाणी की गई थी कि कलियुग में भारतवर्ष में क्या होगा। मैं सोचती हैं, अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के बारे, जहां परन्तु उत्साह से साधना कर रहे हैं कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना ही परन्तु, बैतन्थ लहरी करती है। आपा यह भी नहीं जान सकते कि वे परमात्मा हैं। जब तक मैंने यह कार्य शुरू नहीं किया तब तक मेरे परिवार के लोग भी न जान पाये। मेरे माता-पिता के अतिरिक्त कोई न जान पाया कि मझमें कोई शक्तियां भी हैं। परमात्मा के प्रति यह असंवेदनशीलता आदि-शक्ति की महामाया शक्ति ही बना सकती है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अन्यथा आप इसे समझ नहीं सकते। इसके बावजद भी मैंने बहुत बार समझने में गलती की क्योंकि कुछ देर के लिए यह लोग छद्यावरण धारण कर लेते ऐसा क्यों है कि कुछ लोग साधक है और कुछ नहीं है। याद है। परन्त मझे पता चल जाता है। केवल गहनता से सत्य की आदि शक्ति ने सबकी सृष्टि की है तो सभी को साधक होना खोज करने वालों को ही सत्य की प्राप्ति होती है। इसके बारे में होगा। यह मेरा कार्य है। इसी कार्य के लिए मैं पृथ्वी पर आई हूँ। मैं भरसक प्रयत्न कर रही हैं। मेरी तरह से इतने वर्षों तक कोई भी अवतरण पूथ्वी पर जीवित नहीं रहा। और मेरी करूणा मुझे कहती है कि अभी बहुत से लोगों को सहजयोगी बनाना है, हमें एक बहुत बड़े स्तर पर मोक्ष को पाना है। इस करूणा और प्रेम के साथ व्यक्ति कोई भी उपाय कर सकता है। मैं नहीं सोचती कि वो लोग भी इसे पा लेंगे जो लोग साधक नहीं है। 1. न। चाहिए था। कारण ये है कि स्वतन्त्रता में वे अपना रास्ता खो बैठे हैं। वे किसी अन्य चीज को खोज रहे हैं और समझते हैं कि वे ठीक है। स्वयं को ठीक समझने का उन्हें अधधिकार है। एक मूर्ख या पागल व्यक्ति भी स्वयं को ठीक समझता है। आप योदि उससे कोई संदेह नहीं है क्योंकि पूरी सृष्टि, पूरा ब्राह्ाण्ड, सारे देवी देवता और सारे देव दत उनके लिए हैं। वे सब उन्हीं की तरफ हेख रहे हैं। इतने अधिक सहजयोगियों का होना बहुत महत्वपूर्ण बात है, अपने जीवन काल में कोई भी इतने अधिक सहजयोगी ने 1 बना सका है क्योंकि इसके लिए माध्यम होना आवश्यक है। मुझे भी माध्यमों की आवश्यकता है और मेरे माध्यम अत्यंत शुद्ध, यद्यपि उनमें डाल दी गई है फिर भी अभी तक वे इसके याग्य नहीं है। उनमें से बहुत से लोग ठीक प्रकार से इसे प्राप्त कर रहे हैं क्योंकि इसके लिए समर्पण आवश्यक है। अपनी स्वतन्त्रता या विवेक का समर्पण नहीं, परन्तु मानव के अन्दर विकसित हुए अहं का सम्पर्ण। सन्दर अबोध एवं हितकारी होने चाहिए। यदि वे इस बात के प्रति समर्पित हो जाएं कि हम यहां परमात्मा के यंत्र हैं और हमें अन्य लोगों का हित करना है तो मैं आपको बताती हैं कि सत्तर प्रतिशत कार्य हो जाएगा| चाहे उन्हें उसी प्रकार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ हो जैसे अण्डे के खोल से एक पक्षी का बाहर आना। कुछ पक्षियों पर खोल का हिस्सा चिपका रह जाता है और कुछ अभी पक्षी की अवस्था तक विकसित भी नहीं होते। हमें स्वयं को तोलना और समझता है। मैंने भूत बाधित लोग भी देखे हैं। वे भी अपने अहं को बनाये रखना चाहते हैं और अहं के माध्यम से बाधा का उपयोग करना चाहते हैं। नकारात्मक शक्तियों की बाधाएं हैं। ये लोग इन्हें बनाए रखना चाहते हैं ताकि अपने स्वार्थ के लिए वे इनका उपयोग कर सकें। न तो वे इन बाधाऑं से घृणा करते हैं और न इनसे छुटकारा पाते हैं, वे इन्हें रखना चाहते हैं क्योंकि इनका उपयोग हो सकता है। अतः वहाँ पर साधक का दर्जा बहुत कम है। परन्तु बहुत से ऐसे भी हैं जो साधना के निकट भी नहीं पहुँचे, उन्हें हम दुष्प्रवृत्ति मानव कह सकते हैं। वे नहीं चाहते कि यह विश्व परिवर्तित हो। यही दृष्ट लोग हमारे समाचार पत्रों पर छाये हुए हैं। वे नहीं चाहते कि विश्व का परिवर्तन हो या यहाँ अच्छाई प्रकट हो। वे उस सत्य को नहीं देखना चाहते जो मानव को सहायक हो या मानव के हित में हो। एक अन्य चीज आपको जाननी है वह यह कि मैं एक अत्यंत नम्र व्यक्ति हैं। लोग समझते हैं कि मैं अत्यन्त क्षमाशील हैं। मैं सभी को जानती हूँ परन्तु मैं कहती हैं"ठीक है जहां तक चल सकते हो चलते जाओ।" मानव केवल अनुभव के आधार पर सीख सकता है, समझने से नहीं सीखता। आत्मसाक्षात्कार के अनुभव द्वारा आप समझ सकें, फिर भी मैं कहँगी कि परे विश्व को हम आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते। लोग पत्थरों जैसे हैं। झूठे लोगों का पर्दा फाश हो रहा है और इस अनावरण को सभी लोग देख रहे हैं। ये अनावरण बहुत से लोगों को इन कुगुरूओं से बचा लेगा। पर मैं नहीं जानती कि वे पूर्णतः भयंकर, चिक्र एक ओर हम ऐसी सामूहिक नकारात्मकता देखते हैं और दूसरी ओर वास्तविक साधक। कुछ अधपके हैं और झूठ-मठ के। साधना के नाम पर यदि उन्होंने उनके लिए कोई बलिदान किया है तो वे महान हैं। दावे करने वाले लोगों से वे जड़ जाते हैं। मैंने अपने वस्त्र भी नहीं बदले। एक घरेल स्त्री की तरह से मैं रहती असंख्य लोग है। उनमें से साधक अपनी साधना के लिए अत्यन्त हैं। तो वे मुझसे प्रभावित नहीं है। अपने बारे में कुछ महान दर्शाने के लिए मुझ में दो सींग नहीं निकले, इस लिए वे मुझसे प्रभावित नहीं है। परन्तु दूसरी ओर यदि आप देखें तो यह महापाप है। जहाँ आदि शक्ति मनुष्यों की तरह से ही सभी कार्य । सहजयोग में आयेंगे और आत्मसाक्षआत्कार ले पायेंगे कि नहीं है यह मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मुझे भी मनुष्यों का अनुभव और इन वर्षों में कार्य करते हुए मैंने भी देखा है। मैंने देखा है कि गर्वित हैं। कुछ अपनी साधना को नहीं छोड़ना चाहते, उनके लिए यह एक प्रकार का शौक है ... . उनके पास साधक होने का प्रमाण पत्र है। वे अरजीबो गरीब कपड़े पहनते हैं, उनके घर तथा बाल अजीबो-गरीब हैं। वे तन्य लरी। म । बन्धन मात्र देने से विश्व में इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं। कि अविश्वसनीय हैं। यह भी परमचैतन्य की उपस्थिति की अभिव्यक्ति है। यह कृत है। यह कार्य कर रहा है। कृत अर्थात क्रिया। तब आप महसूस करने लगते हैं कि कण्डलिनी के माध्यम से आप यह शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। कृण्डलिनी का उठना भी, उसी प्रकार आदिशक्ति का प्रतिबिम्बित होना है। जिस प्रकार हमारा चांद को एक हिस्से को देख पाना और दूसरे हिस्से को न देख पाना। इसी प्रकार जब यह शक्ति आपके अन्दर उठती है और परमचैतन्य को छ लेती है तो इससे आप शक्तिशाली व्यक्ति बन जाते हैं। इसी प्रकार आप सहजयोगी हैं। पर आप अक्रामक और गाली गुफ्तार देने वाले हो सकते हैं। यह साधकों की एक अन्य श्रेणी हैं। उनके लिए यह एक जीवन शैली है। अपनी खोज के लिए वे दस-बीस स्थानों पर जाएंगे। यहां तक कि वे मेरे से भी बहस करते हैं कि साधना के और तरीके भी तो होंगे। मैं कहती हैं"मैं और कोई तरीका नहीं जानती, पर आप जा सकते हैं। आज आदिशक्ति का मुख्य कार्य आत्मसाक्षात्कार देना है। बाकी सारा प्रबन्ध तो कस्प्यूटर की तरह हो ही रहा है। मुझे कोई चिता नहीं करनी पड़ती। यह एक सहजक्रिया है। जो भी कुछ घटित हो रहा है वह एक सहजक्रिया है। जैसे लोग कह सकते हैं, "श्री माता जी मैंने आपको प्रार्थना की और आपने किस प्रकार मेरी इतनी सहायता की।" ये सब सहज क्रिया है। उस समय हो सकता है मुझमें कोई विचार आता हो परन्तु है ये सहजक्रिया ही। मैं वास्तव में कछ नहीं करती। वास्तव में मैं "निष्क्रिय हूँ।" मैं कुछ नहीं कर रही। कोई सर्वाधिक आलसी व्यक्ति अगर है तो वह मैं हैँ क्योंकि जब एक परी संस्था मेरे लिए कार्य कर रही है तो मैं क्यों चिता करू। परन्तु में साक्षीभाव और साक्षीरूप से जब मैं देखती हैं तो यह प्रतिबिम्ब पर कार्य करती हैं। यह पूर्णतया आपके साथ है। मान लो आप नदी की करता है। यह परम चैतन्य को कार्यान्वित करता है। क्योंकि यदि तेज़ धारा में गिर जाते हैं, आप तैर नहीं सकते, अपने हाथ भी परमचैतन्य आदि शक्ति की शक्ति है तो जो भी कुछ मैं साक्षी नहीं चला सकते, तब आप धारा के साथ-साथ बहने लगते हैं। भाव से देखती हूँ उसकी सूचना उस शक्ति तक पहुँच जाती है। इस स्थिति में आप जान पाते हैं कि घारा के साथ बहना इसमें से जैसे विद्युत शक्ति है। यदि यहां पर कुछ खराबी आ जाए तो बाहर आने के प्रयत्नों से कहीं अच्छा है। अपने आस-पास की इसकी सूचना विद्युत शक्ति को नहीं मिलती, यह यहीं समाप्त हो प्रकृति का आनन्द लें। आप इसमें डूबते नहीं। इसके विपरीत जाती है। परन्तु मेरे साथ यह दूसरी तरह से है, यदि मैं साक्षी रूप से किसी गलत चीज को देख रही हूँ तो मुझे कुछ नहीं करना आप समझते हैं कि जिस कार्य को परमचैतन्य कर रहे हैं उसका पड़ता। मैं बस साक्षी होती हैं और देखती भर हैं। इस भयंकर मुझे क्या करना है। इसका सारा श्रेय आपकी कण्डलिनी को दिया शक्ति, जिसे आप नहीं जानते, के माध्यम से परी चीज दिखाई जाना चाहिए जिसने इसे कार्यान्वित किया, आपको किनारे (तट) पड़ती है। आप कृण्डलिनी और चक्रों के बारे में सब कुछ जानते और परमात्मा सुन्दर स्वर्गीय साम्राज्य तक पहुँचाया। हैं। यह परमचैतन्य की शक्ति कण-कण में है और इस प्रकार से कार्य करती है कि यह निर्देश करती है, आपको आगे और हित के पहली यह कि आपकी कण्डलिनी, जो कि आपके अन्दर है, जो पथ पर ले जाती है। कभी-कभी लोग कहते हैं कि "श्रीमाताजी" आपकी माँ है, आपकी अपनी मां है, जो सदा सर्वदा आपके साथ मैं ये दुकान खरीदना चाहता था, पर मैं इसे ले न सका।" आपका रही है, जिसने आपको यह जन्म दिया है और फिर आपको उस इस दकान को न खरीद पाना ही आपके हित में है, दस दिनों के शक्ति तक ले गयी है जिसे आप स्वयं उपयोग कर सकते हैं। अब बाद वे आ कर कहते हैं "परमात्मा का धन्यवाद कि मुझे वह आप शक्तिशाली है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि किस प्रकार दुकान नहीं मिली।" शनै:शनैः अनुभव करके आप समझने यह शक्ति सहायता कर रही है। मान लो आप कालीनों का लगते हैं कि आपको चिता करने की कोई जरूरतनहीं।कभी यदि व्यापार कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इसका कौन सा पैटून आप रास्ता भटक जायें तो प्रायः आप परेशान हो जाते हैं पर और यह कहां से आयी है आदि। उस कार्य में यदि आप हैं तो सहजयोगी परेशान नहीं होते। वे सोचते हैं कि इसमें भी कोई आप उसके विषय में सब कुछ जानते हैं। यह शक्ति यदि सर्वत्र हित होगा तभी तो परमात्मा हमें यहां लाये हैं। यह कार्यशैली है तो व्यक्ति को इसके बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए। सम्बन्ध थोड़ी सी परिवर्तित हो जाती है। अत्यंत गतिशील व्यक्ति ही ऐसे हैं कि यदि आप कुछ जानना चाहें तो उसे जान सकते हैं। सोचता है कि अब मुझे समर्पण कर देना चाहिए, "इस्लाम।" इसी कारण 'बुद्ध' कहा जाता है और भी, वह सारे लोकों को पूरमचैतन्य के सामने समस्या डाल दें और यह कार्य करना है। है। से 3१ परमात्मा नहीं हैं। अवतरण कह सकता है कि मैं परमात्मा हैं, आप अवतरण नहीं हैं। पर किसी भी अवतरण में कभी नहीं कहा कि वे आदिशक्ति हैं। वे कह ही नहीं सकते। आदिशक्ति की यह शक्ति, जिसे हम परमचैतन्य कहते हैं, आपको प्रेम करती है, प्रकृति पर इसका पूर्ण प्रभुत्व है। यह आपको समझती है। यह सोचती है। आपके विषय में यह सब कुछ जानती है। हर कोण पर और जीवन के हर क्षेत्र में यह कार्य हैं आप पाते हैं कि उन्नत होकर आप इसके साथ बह रहे हैं। तब के इस प्रकार आप समझते हैं कि दो घटनाएं घटित हुई हैं। देखता है। वह किस प्रकार देखता है? क्योंकि उसका अहंकार, पैतन्य लहरी से करूंगी। इसके विपरीत मैं पाती हैं कि वे अत्यन्त रोबीली हैं। मैं हैरान होती है। शक्ति को क्यों रौब जमाना चाहिए? यदि वह शक्ति है तो रोब नहीं जमाएगी। जो नहीं है वे रोब जमाएगी। जैसे भारत में यदि आप किसी कलैक्टर के घर जाएं तो वह अति नम्र होगा, परन्तु एक सिपाही बहुत ही रौब झाड़ेगा। इसी प्रकार मैं देखती हूँ कि यह रोब जमाओ शैली बहुत आम है और यह एक प्रकार से नन (मठवासिनी) जैसा स्वभाव है। वे नन की तरह से वेशभुषा धारणा करेंगी, नन की तरह व्यवहार करेंगी। मुस्कराएंगी नहीं। आप कह सकते हैं, परम अहंकार, 'महतु अहंकार', सभी कुछ जानता है, जबकि आपका अहंकार कृछ भी नहीं जानता। क्योंकि यह कछ नहीं जानता इसलिए यह आपको लपेट लेता है। अहं को यदि पता होता कि सत्य क्या है तो आप स्वतन्त्र व्यक्तिः होते, परन्तु आप स्वयं को 'ताओ' की तरह नदी में नहीं देना चाहते। आप आनन्द नहीं लेना चाहते। आप अपनी विशिष्टता चाहते हैं। व्यक्तित्व मैं ऐसा है, मैं वैसा हूँ से बहुत भिन्न हैं । वे आप सहजयोगिनीयां हैं या मठवासिनियां यह अन्तर करण आरम्भ होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आत्मसाक्षात्कार के प्रकाश में आपको इसे देखना शुरू कर देना चाहिए। पहली एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने अहं को बताएं। कि शान्त हों जाओ। चुप रहो तुम कषछ नहीं जानते। आजकल के समय में आप किसी कुछ पूछ तो उत्तर मिलता है, मैं कुछ नहीं जानता। यह बहुत बड़ा फैशन है। आप किसी से पूछे आपका नाम क्या है? वे कहते हैं मैं नहीं जानता। वह अपना नाम तक नहीं जानता और ऐसे मुर्ख लोग सोचते हैं कि वे दिखा रहे हैं कि वे बहत अबोध हैं। मैं हैरान होती हूँ, पता नहीं किस पशु ने हममें यह मुर्खता उत्पनलन कर दी है। पर में एक चीज जानती हैँ कि यह अहम् है। अहम व्यक्ति को पूर्णतया मूर्ख बना देता है। मराठी में कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति अहम् का प्रदर्शन करना शुरू कर दे उस दिन से वह झाड़ पर चढ़ने लगता है। अच्छा हो आप मठवासिनियां बन जाएं। यह सब मैं आपको क्यों बता रही हैं क्योंकि हम आदिशक्ति के विषय में बात कर रहे हैं। इसलिए मैं शक्ति के विषय में बता रही हैं। किस प्रकार शक्ति को अभिव्यक्त होना है। से मैं हैरान थी कि स्त्रियां सहजयोग का प्रचार नहीं कर रही हैं किसी ने मुझे बताया कि अगुआगण नहीं चाहते कि महिलाएं सहजयोग का प्रचार करें। यह गलत है। यदि अगआगण ऐसा कहते हैं तो यह अनुचित है। सर्वप्रथम तो महिलाओं को सहजयोगिनी बनना है क्योंकि मैंने देखा है कि किसी महिला को नेतृत्व मिलते ही पूर्णतया बेकार हो जाती है। सभी नहीं पर कछ। सहजयोगिनी का कर्त्तव्य है कि ध्यान-धारणा, आत्मानुमान और आत्म-सम्मान के माध्यम से अपना विकास करें, कि मैं सहजयोगिनी हैं। मैं ही शक्ति हैं। मैं उसकी अन्तः शक्ति हैं। क्या में अन्तः शक्ति हूँ? सहजयोगिनियों ने यह निर्णाय करता है कक क यह सारा अहम् आपके कथित विचारों और उपलब्धियों के माध्यम से आता है। पर यह कीन सी उपलब्धियां हैं। आप कुछ नहीं जानते। यही बात मैंने आज आपको बतानी है कि यदि कौई्ड चीज कार्य कर रही है तो वह है आपके अहम् का समर्पण। आप यदि अहम् समर्पित करना जानते हैं तो आप इस कार्य को कर लेंगे । लड्डू खाती रहती हैं। यह बहुत कठिन है। मैं बास्तव में चाहती बनते ही वे बेलगामे घोड़े की तरह दौड़ने लगती हैं। अतः हो जाइए। उनके घट में ही जब स्थान नहीं होगा तो उसमें जल कैसे भरेगा? हृदय को विशाल कीजिए किसी का आपके घर आना आपको पसन्द नहीं, दूसरों के लिए आप कुछ करना नहीं चाहती। पश्चिम मे मैं कह रही हूँ कि महिलाओं को शक्ति अपने अन्दर समेटनी है। शक्ति का अभिप्राय यह नहीं कि अपने पति पर रोब जमायें या उसका बेवक्फ बनायें। इसका अर्थ है उसे शक्ति दें। आप ही पूरे परिवार की शक्तिदाता हैं। और यह हमारा परिवार है। यह पूरा ही मेरा परिवार है। मैं सभी के लिए बहुत चिन्तित हैँ। छोटी-छोटी चीज़ो की भी मुझे चिन्ता है। मैं कभी सन्तुष्ट नहीं होती कि अब मैंने अपना कार्य कर लिया है। हर समय मुझे किसी न किसी का ध्यान होता है। यह शक्ति निरन्तर प्रवाहित होती रहती है और कार्य करती है। क्योंकि सबके लिए मेरा प्रेम अति गहन है इसलिए यह कार्य करता है। क्योंकि मेरा प्रेम निष्कपट है, मैं कभी अपनी चिन्ता नहीं करतीं। नमर एक अन्य चीज जो मुझे आश्चर्यचकित करती है, विशेषतया पश्चिम में, कि मैं सोचती हैँ कि स्त्रियां शक्ति हैं। परन्तु पश्चिम में मैं देखती हैं कि महिलाएं आदि शक्ति का उपयोग नहीं कर रही हैं। वे अभी तक अपनी भावनाओं और विचारों आदि में फंसी हुई हैं। पुरुषों में तो अहम् है ही, परन्तु महिलाएं भी अहम्ग्रस्त हैं। यह बहुत कठिन है। उदाहरणतया आप किसी पश्चिमी लड़की का विवाह करें तो वह बहुत प्रसन्न होगी, उछलेगी, सभी उपहार लेंगी, बधाइयां लेगी सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनेगी आदि-आदि। दस दिनों के पश्चात् वह आकर कहेगी, "श्रीमाता जी, मेरी समझ में कुछ नहीं आता तो अप अपने सारे गहने आदि लौटा दें।" तब वह कहेंगी। नहीं-नहीं मुझे सोचने दीजिए।" यह सहजयोगिनी का स्तर नहीं है। सहजयोगिनी एक शक्ति है और उसे चुनौती स्वीकार करनी है। "मैं आपको दिखाऊंगी। मैं और अधिक अच्छी तरह चतन्य लहरी कभी नहीं। अन्य महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए संलग्न करनी चाहिए, उनमें दिलचस्पी लेनी चाहिए। पर मैं देखती हूँ देखकर मुझे हैरानी होती है। दूसरों के लिए चिन्ता की कि वे केवल अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं। हमें हर चीज आवश्यकता हैं। अन्य लोगों के लिए प्रेम एवं करुणामय ध्यान आपस में बांटनी है। अपेक्षित है, उसे विकसित करें। मैंने देखा है कि सहजयोगी एक दूसरे के बच्चों की भी को और पूरे समाज को बिगाड़ देगी भारतीय समाज में बच्चे देखभाल नहीं करते। कभी किसी की सहायता नहीं करते। अच्छे हैं और इसका श्रेय भारतीय स्त्रियों और उनकी परस्पर प्रेम के बिना आपका मस्तिष्क सामूहिक नहीं हो सकता। विवेकशीला को जाता है। भारत के पुरुष मुर्ख है। उन्होंने आप में सामूहिक शक्ति नहीं हो सकती। अतः आवश्यक है कि राजनीति, अर्थशास्त्र आदि को बिगाड़ दिया है। पर समाज अभी आप सब सामूहिक बनने का प्रयत्न करें। एक दसरे के बच्चों की भी कायम है। और वे लोग अभी तक ठीक रास्ते पर हैं। यह देखभाल करें। कबेला की महिलाओं को मैं बताना आवश्यक महिलाओं के विवेक के कारण ही हो पाता है। स्त्रियां यदि घंटो समझती हूँ कि कबेला एक आश्रम है। अन्य आश्रमों से, यहां तक वस्त्रधारण करने पर लगा दें और यही सोचती रहें कि आज हमने कि आस्ट्रेलिया के आश्रमों से आने वाले लोग भी हैरान हैं कि यह क्या पहनना है तो सब समाप्त हो जाएगा। आज कृण्डलिनी पूजा महिलाएं कबेला में ऐसे रह रही हैं जैसे होटल में रह रहीं हों। इसके लिए वे पैसा देती है, हम सभी पैसा देते है, फिर भी बागीचे तरह आपको भी अपने बच्चे की हर बात का ज्ञान होना चाहिए और अन्य चीजों की देखभाल करते हैं। यहां किसी को चिन्ता मेरे पास आकर कोई यदि बताता है कि उसका बच्चा नशे का नहीं है। वे हर चीज का उपयोग कर रहे हैं। हैरानी की बात है आदि हो गया है। ये कैसे संभव हो सकता है। भारत के बच्चे कि मेरे यहां होते हुए भी उनका ये व्यवहार है। आस्ट्रेलिया, नशे के आदि नहीं हो पाते क्योंकि हर समय माताएं बाज की अमेरिका या अन्य जहां भी आश्रम हैं यदि आप जाएं तो देखोगे तरह से उनके सिर पर सवार रहती है। उन्हें पता होता है कि कि सभी लोग इतवार को कार्य करते हैं। पर यहां मैं देखती हैं कि उनके बच्चे कहां जाते है और क्या करते हैं। माँ बच्चे से प्रेम ये सब गायब हो जाते हैं। ये आपका आश्रम है। आप लोग यहां करती है फिर भी उसके बारे में सब जानती है। मेरे विवाह के ठहरे हुए हैं और मुझे लगता है कि आपकी शक्तियों में सहजयोग बाद भी जब मैं घर गई तो मेरी माँ पूछती थी "तू कहां गरई थी ? लुप्त हो रहा है। उनमें से एक तो मुस्कुराना तक नहीं जानती हममें कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती। "छ: बजे तक वापिस और कुछअंत्यन्तरौबीली हैं। मुझे ये बताना पड़ रहा है। क्योंकि आ जाना" और हमें उस समय तक वापिस आना होता था। यह वे सब बहुत महत्वपूर्ण हैं। मेरे अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्तिं ने मा का कार्य था - कि बच्चा कहां जाता है, क्या करता है। बच्चे यह कार्य न किया होता। किसी पुरुष अवतरण ने यह कार्य न इसीलिए आपकी बात नहीं सुनते क्योंकि आप उन्हें अनुशासित किया होता। ईसा छोटी सी आयु में क्रसारोपित हो गए, एक अन्य नहीं करती, यहां पे वातावरण खराब है और निसंदेह बच्चे भी ने जहर ले लिया, दूसरे की किसी ने हत्या कर दी। आदि-आदि। खराब हैं। परन्तु अपने प्रेम में यदि आप शक्तिशाली मां हैं तो सभी छोटी सी आयु में चल बसे। कोई भी यह कार्य न करना तुम्हारे बच्चे खराब नहीं होंगे। अब भी ये महिलाएं मेरे इर्द-गिर्द चाहता था सभी तंग हो गए। हमारे यहां ज्ञानेश्वर जी हुए हैं घुम रही हैं, क्यो? मेरे पास शहद नहीं है पर वे मेरे करीब बैठी उन्होंने 23 वर्ष की आयु में ही समाधि ले ली। तंग आ गए होगें वे हुई हैं। और यह आत्म साक्षात्कार के बाद की स्थिति है। भी इन लोगों से। महिलाओं को अपनी माँ (श्री माताजी) की तरह से धैर्य, स्नेह, प्रेम स्वयं में विकसित करना होगा तभी आप हैं। लोग उनसे कहते हैं कि तुम्हें क्या हो गया है कि हर समय देखेंगे कि किस तरह आपकी शक्ति कार्य करती है। मैंने तुम अपनी आंटी के पास बैठे रहते हो, यह क्या है। प्रेम वे बार-बार इसके बारे में बताया है, और आदि शक्ति के स्तर पर समझते है कि जो भी कुछ उन्हें बताया जा रहा है वे उनके हित मुझे यह कहना है कि अपने परिवार में आप शक्ति की तरह से के लिए है। परन्त इसके लिए स्वयं आपको ठीक होना होगा। मां हैं। आपको विवेकशील बनना होगा, समझदार बनना होगा। के रूप में व्यक्ति को सहनशील होना पड़ता है और समझना आपको अपने पति और बच्चों को समझना होगा, अपने धैर्य को पड़ता है। पर जब समझाने का समय हो तो उन्हें समझाना ही समझना होगा। इसके विपरीत वे अपने बच्चों को बिगाड़ देती होगा आप यदि सोचें कि उन्हें गुस्से से समझा सकती हैं तो ठीक हैं। ये समझना आवश्यक है कि उनके हित में क्या अच्छा है। है पर बच्चे को अच्छी तरह समझ आ जाना चाहिए। बच्चे का आज मैं कहती हैँ कि यदि बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें स्कूल से यह जान लेना आवश्यक है कि आप उसे और अन्य बच्चों को निकाला नहीं जाना चाहिए। यह उनके हित के लिए है। उन्हें प्रेम करती है। यह बहुत सूक्ष्म बात है। एक बार मैं एक स्कूल से हटा कर क्या लाभ होगा। अपने बच्चों के प्रति इतना सहजयोगी के बच्चे को बाहर ले गई वह कह रहा था "मुझे यह मोह होना दर्शाता है कि आप शक्तिविहीन लोग हैं। आपको चाहिए, मुझे वह चाहिए"। वे सभी कुछ खरीदनाचाहरहा था मैं सभी बच्चों से प्रेम करना चाहिए, सभी बच्चों की देखभाल हैरान थी कि इस लड़के में क्या दोष है। यदि मैं अपने नातियों को सामूहिक आचरण के प्रति असंवेदनशीलता आपके बच्चों का दिन है, कण्डलिनी मां है और आप भी माँ हैं। कण्डलिनी की हूँ। परन्तु मेरे सारे भरतीजे, बहुएं सभी आकर मेरे पास बैठ जाते किम चैतन्य तहरी साथ ले जाऊं तो वे कुछ नहीं मांगते। मैं यदि उन्हें दो जोड़ी जूते "मेरा" किसी अन्य व्यक्ति में परिवरतित नहीं हो जाता तब तक दिलवाना चाहूँ तो वे कहेगें कि "नहीं, एक ही काफी है"। वो आप माया जाल में है। आपको यह सीखना है। आप सभी लोग कभी कुछ नहीं मांगते। यह एक प्रकार का आत्म सम्मान है। अपनी डायरी में प्रतिदिन लिखें कि मैंने अन्य लोगों के लिए क्या पत्नियां भी कुछ नहीं मांगती। पति उनसे कुछ लेने को कहते किया, दूसरे लोगों से मैंने क्या कहा। अन्य व्यक्ति को कौन सी रहेगें पर वे न लेगीं। सहजयोगिनी मां, पत्नी और शक्ति को ऐसा ही होना है, उसकी कोई मांग नहीं होती वह कुछ नहीं मांगती। जो बना देती हैं। स्वयं दाता है, वह क्या मांगेगी? सदा देने वाली क्या कुछ मांगगे भी? सहजयोग में बायीं तरफ स्त्री की होती है। यह थोड़ा सा आपके लिए हैं। विशाल आकाश के सम्मुख यदि आप एक पत्ते दुर्बल हो रहा है। इसे दृढ होना होगा। बंच्चों को सबसे पहले ध्यान करना और श्री माता जी का वहां अपनी महान विशालता में खड़े एक व्यक्ति में सहजयोंग का सम्मान करना सिखाइए। उन्हें सिखाइए कि किस प्रकार से पुरा दिव्य स्वप्न निहित हो सकता है। परन्तु कितनी सुन्दर बात सहजयोग को कायान्वित करना है, उनसे सहजयोग के बारे में है कि हमारे इतने अधिक सहजयोगी हैं कि उनका नाम मात्र लेने बातचीत करनी है। केवल खाना, सफाई और दूसरों के साथ से में प्रेम-सागर में शराबोर हो जाती हैं। तो आपकी क्या स्थिति अच्छे व्यवहार की बात करना ही काफी अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाते हुए उन्हें बताना है कि किस प्रकार परस्पर बांटकर वो चीज़ों को लें। धर्म के विषय में उन्हें प्रतिबिम्ब के साथ है और उनकी सारी शक्तियां हमारे साथ हैं। बताना है और यह भी कि किस प्रकार सौहार्द्र स्थापित करना है। मेरे इस दिव्य स्वप्न की विशालता में हम कितना कर सकते हैं। सहजयोग को दुढ़ करने के लिए आपको यह सब समझना है। मुझे अधिक से अधिक लोग ऐसे चाहिए जिनका अपना कोई आप ही सहजयोग की शक्ति हैं और खोटी-छोटी चीजों की चिता स्वप्न हो, अपने बच्चों और भोजन के विधय में सोचने वाले लोग करने के स्थान पर आपको इसे कार्यान्वित करना होगा। कई बार नहीं चाहिए। वे तो सहजयोग से निकल जाएंगे। मुझे महिलाओं के पत्र आते है जिन्हें पढ़कर मैं खिन्न हो जाती है। मेरी समझ में नहीं आता कि वे कैसे सहजयोंगी हैं। हमारी सहजशैली इतनी आर्दश होनी चाहिए कि अन्य लोग बनाई गई कुण्डलिनी आपको सारा ज्ञान देती है। परन्तु बहुत इसे देखें और समझें कि अपने रोज़मरा के जीवन में हमने कितनी ऐसे लोग भी हैं जो यह नहीं जानते कि उनके चक्र क्या हैं। महान चीज पा ली है। आदि शक्ति हमारे दैनिक जीवन में भी अज्ञानता की उस चरम सीमा की कल्पना करें। इन सब चीजों कार्य करती हैं। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों में भी का ज्ञान आपको होना आवश्यक है। आपको यह सब समझाना आपको सदा प्रेम करना है। चाहे आप अगुआ हों या न हो हर होगा क्योंकि यह श्रद्धा है, अन्ध श्रद्धा नहीं - ज्योतिर्मय श्रद्धा समय आपको आवश्यक जानकारी होनी चाहिए। मैंने यह नहीं कि अब आपकी एकाकारिता दैवी शक्ति से हो गई है। मेरे सीखा, मैंने बह नहीं सीखा। 'मझे जो कुछ भी सीखना है बड़ी विचार में यह पूजा अत्यन्त महल्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक गुरु नम्रता पूर्वक सीखना है। जब तक आपका यह दृष्टिकोण नहीं हो पुजाएं हुई हैं। गुरु रूप में बहुत सारे लोगों की पूजा हुई है। मेरी जाती, तब तक अहम आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। जब आप यह जन्मदिन पूजा भी हुई है। पर आदि शक्ति पूजा कभी नहीं हुई। सोचेगे कि मुझे अभी बहुते कुछ सीखना है तब इस अहम से इस अवसर पर मैं सोचती हूँ कि कश्डलिनी की अपनी उन आपका छुटकारा होगा। इस अहम के कारण आप स्वयं से ही शक्तियों को समझना, जो आपको परम चैतन्य की कृपा से प्राप्त संतुष्ट रहते हैं। यह अहम कि निशानी है। आप नहीं जानते कि हो चुकी है, अत्यन्त आवश्यक है। इससे आपको अन्य लोगों को आप कितना कष्ट दे रहे हैं उनकी कितनी हानी आत्म-विश्वास करना एवं एक दिव्य स्वप्न प्राप्त होगा जो कर रहे हैं। बस अपने से ही प्रसन्न रहते हैं। इस प्रकार का मस्त आपके व्यक्तित्व को महान बना देगा। जार्ज वाशिगंटन या व्यक्तित्व व्यक्ति हवा में रहता है। आज मैंने किसी अन्य के लिए अब्राहमलिंकन क्या थे? वे तो केवल महान थे, परन्तु आप क्या किया? मैंने दसरों से किस तरह बात की? क्या आज मैंने सुबको तो आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। आपको पूरे किसी को कुछ दिया? मुझे आपको कोई उपहार देने की ब्राहम, पूरी विशालता के विषय में सोचना होगा। जब तक आप आवश्यकता नहीं है। फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए मैं आपको में ऐसा मस्तिष्क विकसित नहीं हो जाता मुझे पूर्ण विश्वास है, उपहार देती हैं। आप ही की संतुष्टि के लिए मैं आपसे उपहार तब तक सहजयोग की आन्तरिक और बाह्य उन्नति कम होगी। लेती हैँ। अतः सोचे कि कहा और कैसे हमें संतुष्टि प्राप्त हो सकती अतः समझें कि वे सारी शक्तियां आपके साथ है। नम्रता पूर्वक है। किस कार्य से हमें संतुष्टि प्राप्त हो सकती है। मेरा घर, मेरे आपको इनका उपयोग करना है। पति, मेरे बच्चे तो ठीक है। मेरा, मेरा, मेरा। जब तक यह बात प्रसन्न करेगी? छोटी-छोटी चीज़ें जीवन को अति सुन्दर यदि आप स्वयं को बहुत बड़ा न समझें तो बहुत बड़ी चीजें को देखें तो पत्ता अपना अस्तित्व दर्शाता है। इसी प्रकार यहां नहीं है। है? हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते, जबकि आधी शक्ति हमारे मुझे आशा है कि आपको अपनी स्थिति का ज्ञान है। आप जानते हैं कि आप क्या हैं, आपके पास क्या है? आपके अन्दर से परमात्मा आपको धन्य करे। चैतन्य सहरी 10 श्री विष्णु पूजा परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) सेंट डेनिस, पैरिस 13.07.1994 'धर्म का आधार इन धर्मों को स्थापित करना गुरू का कार्य था और इनकी स्थापना से मानव को धार्मिक बनाया गया था। परन्तु इस संसार में जो कुछ भी बताया गया है, शास्त्रों में लिखा गया है, जबानी जिसका वर्णनि किया गया है, यदि यह सब जवानी जमा खर्च बन जाए तो पतन अवश्यंभावी हो जाता है। इसी कारण एक ही चीज के बारे में उपदेश देने वाले धर्म भिन्न दिशाओं में चले जाते हुए हमें दिखाई देते हैं कुछ धर्म संचालित है और कुछ सता कोध के आधार पर जब स्वतन्त्रता प्रप्त होती है तो घूणा कान्ति का और इस स्वतन्त्रता का आधार होती है। परन्त यदि आपके अन्दर ये स्वतन्त्रता जागरूक होती है और आप इन विध्वंसक शक्तियों के गुलाम नहीं रहते तो यह वास्वतविक स्वतन्त्रता है एक अन्य चीज जो फ्रांस में घटित हुई है वो यह है कि युरोप में पहली बार सहजयोग को धर्म के रूप में मान्यता दी गयी है। यह बहुत बड़ी चीज़ है। आज मैं सोच रही थी कि श्री विष्ण पजा करेंगे। वे धर्म के संचालित है, कुष् हिंसक हो गए हैं और कुछ पूर्णतया असत्य हैं । आधार हैं। शिव के सिवाय किसी अन्य आधार की पजा हमने इस पतन को जब आप देखते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि कभी नहीं की। हम केवल अवतरणों की ही पजा करते रहे। श्री किस प्रकार मानव ने इस तत्व का नाश किया है। वे धर्म को गणेश अवतरण के रूप में आए, देवी अवतरण के रूप में आई। स्वीकार क्यों नहीं कर सकते? राम, गुरू, इसा, बुद्ध, सभी पृथ्वी पर अवतरणों के रूप में आए। परन्तु आज जब सहजयोग धर्म के रूप में स्थापित हो गया है हमें अपराध करने से रोकते हैं। जब ये दोनों जीन उत्परिवरतन धर्म के आधार श्री विष्णु को समझना आवश्यक है। श्री विष्णु (Mutation) में लग जाते हैं तो लोग स्वछन्दता से कार्य करने बाद में श्री राम, श्री कुष्ण और अन्ततः श्री कल्की के रूप में लगते हैं उन पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता, भारत के लोग में पृथ्वी पर आए। श्री विष्णु का यह अति सुन्दर विकास है। तो व्यक्ति को समझना है कि धर्म का आधार क्या है? से ही हम धर्म की बात करते आये हैं, हमारे यहां सन्त हुए और भौतिक पदार्थ की आठ सयोजकताए (Valancies) होती है। ये फिर हजारा वर्षों में एक प्रकार की परम्परा बन गई उस समय नकारात्मक, सकरात्मक और तटस्थ होती है। पर मानव में दस मिश्र और युनान देश भी हमारे साथ थे। उनमें कुछ खराबी आ सयोंजकताएं हैं, हमारे अन्दर इसकी सुष्टि ध्री विष्णु ने की हैं। गई। हम यूनान को ही लेते हैं, जब सारे देवताओं को मानव की श्री विष्णु ही इनकी रक्षा, देखभाल और पोषण करते हैं। जब भी तरह से बनाया जाता है। वे देवताओं का स्तर धर्म से अधर्म तक वे देखते हैं कि मानव का धार्मिक पतन हो रहा है, वे जन्म लेते गिरा बैठे। मिश्र के शासकों की दिलचस्पी क्योंकि क्रब में मरने हैं। विराट उनकी अन्तिम अवस्था है। इस अवस्था में विष्ण तत्व की थी इसलिए अपने अन्दर धर्म को बनाने के स्थान पर उन्होंने दो हिस्सो में बंट जाता है। एक विराट को चला जाता है और एक पिरामिड (Pyramid) बनाने शुरू कर दिये। यही कारण है कि विराटांगना को। परन्तु तीसरा तत्व महाविष्णु है जो भगवान मिश्र में धर्म का पतन हो गया और अन्ततः इस्लाम स्थापित हो इसा मसीह के रूप में अवतरित हुए। आज के समय में ये तीनों गया। लोगों के अधार्मिक होने के कारण इस्लाम आया। यनान में तत्व मुख्यतः सहस्रार में गतिशील है। विष्ण तत्व में आप देख भी लोगों ने रुढ़ी वादी चर्च को स्वीकार कर लिया क्योंकि अपने सकते हैं कि आन्तरिक धर्म का सन्देश पूरे विश्व में फैल रहा है। अन्दर वे धर्म को न बैठा सके, तो इन लोगों के अन्दर वे धर्म को मात्र इतना ही नहीं कि आधुनिक समय में यह कहा जाता है कि ऐसा करो, ऐसा न करो, आजकल दस धरमदिश भी नहीं है। इन दस धर्म आदेशों को आपका स्वभाव बनना पड़ा। इस प्रकृति से समीप पेशावर में हुआ। परन्तु ये लोग बिष्णु के विरुद्ध हो गए आपकी पर्ण एकाकारिता होनी आवश्यक है। विकास प्रक्रिया में क्योंकि उन्होंने समझा कि विष्णु ने उनके राजा का वध कर दिया हमारे अन्दर दो जीन हैं, जो हमें अपने माता-पिता के प्रति कहंगी कि परम्परागत धार्मिक हैं। कारण ये है कि प्राचीन काल ह कैसे बैठाते? विष्णु जी का नरसिंह अवतार यूनान और मिश्र के बहुत 11 चैतन्य लहरी है। अतः ये सारे राक्षस अब अफगानिस्तान क्षेत्रों में प्रवेश कर गए और फिर मिश्र और युनान चले गए उन्होंने सारे देवी-देवताओं को यहां लाने का प्रयत्न किया। ये घटना कोई दस हजार वर्ष पूर्व की है। जब प्रहलाद श्री विष्णु के अवतरण को लाये थे। इन राक्षसो को असर या असीरियन के नाम से भी जाना जाता है। यदि आप मिश्र जाएं तो आपको नरसिंही (Sphinx) मिलेंगे, इनका आकार नरसिंह से बिल्कुल विपरीत है। इनमें पुरुष ऊपर के हिस्से में है और शेर नीचे के हिस्से में, जबकि नरसिंह में शेर ऊपर के हिस्से में है और मानव नीचे के हिस्से में। विष्णु के नरसिंह रूप से ठीक उल्टी प्रतिमाएं उन्होंने यह दर्शाने के लिए बनाई कि हमारा एक अन्य प्रकार का अवतरण है जो विष्णु से लड़ सकता है। राक्षसों के इन लोगों के अन्दर प्रवेश कर जाने के कारण उनमें अत्यंत आक्रामक और युद्ध प्रिय स्वभाव विकसित हो गया। युनान में लोगों ने अपना बाहुबल बहुत बढ़ा लिया और यहां का इतिहास तो वास्तव में पागल कर देने वाला है। एक मनुष्य का अनवरत युद्ध करते रहता। सदा वे एक दूसरे का संहार करते रहते थे। जब सिकंदर भारत में आया तो उससे यहां की धार्मिक सभ्यता देखी। वह आश्चर्य चकित था कि किस प्रकार ये लोग रहते हैं। मिश्र में भी लोग धर्म को बिल्कुल न समझ पाये क्योंकि वे मृत आत्माओं और काले जाद में विश्वास करते थे। जब इस्लाम आया तो उन्होॉने इसे स्वीकार कर लिया। पहले ईसाई धर्म आया और फिर इस्लाम। वाली बहुत सी स्त्रयां और बो टाई पहने हुए फैशन वाले पुरुषों को देखा। मैंने एयर होस्टेस से पृछा कि "हम कहा रुके हैं ? उत्तर मिला "कहीं नहीं। मैंने पूछा "ये लोग कहां से आये हैं"? उसने कहा "ये बही लोग हैं" रियाद में इन्होंने अपने चेहरे और शरीर ढंके हुए थे। स्त्री या परुषों को बन्धन लगाने का कोई लाभ नहीं। इससे एक घटिया किस्म के दम्भ की सृष्टि होती है। इसाईयों का भी यहीं हाल है। ईसा को यदि आप पढ़े तो उन्होंने अत्यन्त महान बात कही है कि अन्यगमन (व्यमिचार) नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपकी दृष्टि और मस्तिष्क भी अपवित्र नहीं होने चाहिए। अब ईसाई राष्ट्रों में स्त्रियां नग्न होती जा रही है और पुरुष उन्हें देखते हैं और सभी प्रकार की मुर्खताए हों रही हैं। क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि यही इंसाई हैं? और फिर रविवार को आप अपना हैट पहनकर चर्च जाते हैं । उन्हें किस प्रकार इसाई कहा जा सकता है। धरम तो बिल्कुल है ही नहीं। पश्चिमी देशों में लम्पटता पराकाष्ठा की सीमा तक पहुँच गई है। यह सब वह इस प्रकार करते हैं कि पशु भी नहीं कर सकते । पूरी जीवन शैली ऐसी है मानों अपने विनाश को खोज रहे हों। वे अपना विनाश करना चाहते हैं। भारत में ऐसा क्यों नहीं होता? क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करना पाप है। आप पादरी को एक बच्चे को गाली देता हुआ देख सकते हैं। कुछ शर्म करो। कैथोलिक चर्च के उच्च अधिकारी स्कल तथा महाविद्यालय के स्तर पर ऐसा करते हैं। यह किस प्रकार का कहते है कि रूस का जार कोई धर्म अपनाना चाहता था। कैथोलिक है? कैथोलिक का अर्थ है "सनातन", "प्राचीन काल अतः उसने पहले कैथोलिक लोगों को बुलाया और कहा कि यहां से आया हुआ"। वे कैसे स्वयं को कैथोलिक कह सकते हैं ? वे के सब लोगों को धार्मिक बना दो। विष्णु ही तत्व है परन्तु ये लोगों की हत्या करते हैं, उनसे धन लेते हैं और माफिया से मिले विकृत विष्णु स्वरूप यहां थे। एक-एक करके वे रूस में गए। हुए हैं। माफिया के अगआ को इनाम देते हैं। क्या यही कैथोलिक सर्वप्रथम कैथोलिक गए और कहा कि आप कई पत्नियां नहीं रख चर्च है? क्या ईसा यही चाहते थे? बिल्कुल इसके विपरीत। यहां सकते, आपकी केवल एक ही पत्नि होनी चाहिए। तो उन्होंने धर्म तो नाम मात्र भी नहीं। तो हम कहां जाए कहा कि यह बात हमें अच्छी नहीं लगेगी। विष्णु जी की केवल एक पत्नी थी "एकपत्नीव्रत"। राम के जीवन में भी यही बात थी फिर उन्होंने मुसलमानों को बुलाया जिन्होंने कहा कि आप बड़े भिखारी और धनलोल्प हैं। तो धर्म है कहां? धर्म कई पत्नियां रख सकते हैं। पर शराब नहीं पी सकते तो वे कहने अन्तःनिहित है। इसलिए आप में इस विष्णु तत्व का जागृत होना लगे कि वोदका के बिना हम कैसे जिएंगे इन सारे धरमों में धर्म आवश्यक है, फिर यह तत्व कई ओर फैलता है क्योंकि विष्ण ही जरा भी नहीं है। पहले में एक पत्नीव्रत और दसरे में मंदिरा रोग मुक्त करते हैं। वे ही धनवन्तरी हैं, एक चिकित्सक। क्योंकि निषेध। इस तरह से बन्धन में वे न जी सकते थे। अतः उन्होंने वे ही मानव के रक्षक हैं। यदि हम अपने धर्म की रक्षा करते रहे रूढ़ीवादि ईसाईयों को निर्मान्त्रित किया। उन्होंने कहा जितनी तो हम बीमार नहीं हो सकते, और किसी कारण यदि हम बीमार मर्जी पत्नियां रखो और जितनी मर्जी शराब पियो। रूस के लोगों हो भी जाएं तो विष्णु जी रौग मुक्त करके हमारी रक्षा करते हैं। को यह बहुत अच्छा लगा और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। बिना आत्म साक्षात्कार पाये लोगों पर जो भी बन्धन आप लगाते है। निसन्देह शिव, जीवनतत्व, आत्मा को पहले जाना होता है रहें वे इसके विपरीत ही कार्य करेगें यदि आप सोचते हैं कि बौद्ध बनना ठीक है तो वे तो सबसे वे यम भी है, अर्थात् हमारी मृत्यु के लिए भी वे ही जिम्मेदार और तब यम शरीर को सम्हालने के लिए आता है। श्री विष्णु ही निर्णय करते हैं कि आपको कहां भेजा जाना चाहिए। आपको अधर में ही लटके रहना चाहिए या न्क में जाना चाहिए या स्वर्ग मैंने मुसलमानों को देखा है। एक बार मैं रियाद से लन्दन जा रही थी कि मुझे नींद आ गई। आँख खुलने पर मैंने नग्न शरीरो चैतत्य नहरी 12 में भेजा जाना चाहिए ये सब निर्णय महाविष्णु (ईसा मसीह) की शेष रह जाएगा? पर वे लोगों को दफनाये जा रहे हैं इस कारण सहायता से लिए जाते हैं। मृत शरीर जब पड़ा होता है, केवल से। केवल साक्षात्कारी लोगों को ही दफनाया जाना चाहिए, उसके आत्मा को ले जाकर उचित स्थान पर रखने के समय ये सर्वसाधारण लोगों को नहीं क्योंकि प्राय लोगों में इच्छाएं शेष कार्य किया जाता है। मान लीजिए कोई व्यक्ति अधार्मिक है, तो होती हैं और उनकी आत्मा शरीर के आस-पास लटकी रह वे उसे ले जाकर नर्क में डाल देते है। परन्तु यह कार्य होने से पूर्व सकती है। तो क्यों आप इतने वर्षों के लिए शरीर को कब्र में काली विद्या वाले लोग पहुँच जाते हैं और ऐसे शरीर की खोपड़ी रखें। कुछ समय पश्चात् कब्नों को खोद कर वहां घर बनाये जाते ले जाते है, क्योंकि जलने के बाद भी खोपड़ी बाकी रह जाती है, हैं और सारे भूत उन घरों में आ जाते हैं। या ये लोग हड्िडियां उठा ले जाते हैं और यम के कार्य पूरा करने से पूर्व ही आत्मा को वश में करने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार वे उस व्यक्ति के आत्मा का दुरुपयोग दूसरों को हानि पहुंचाने के संतुलित नहीं होते। वे अत्यन्त क्रोधी होते हैं और यदि क्रोधी नहीं लिए करते हैं। यह सबसे बड़ा पाप है। किसी की आत्मा को ले होते तो एकान्त प्रिय होते हैं और हिमालय में जा बैठते हैं। परन्तु जाना और अन्य लोगों को सम्मोहित करने के लिए उसका जो लोग धार्मिक हैं और एक बार जब उनका उत्थान विराट तक दुरूपयोग करना घोर अर्धम है। ऐसे तान्त्रिक की मृत्यु के समय यम उसे भयंकर कष्ट देते हैं - आसानी से उसके प्राण नहीं चाहिए। धर्म नाभी से मस्तिष्क तक जाता है और मस्तिष्क सारी निकलते, व्यक्ति तड़पता है, मृत्यु के लिए तड़पता है परन्तु उसे नाड़ियों को आत्मा की शक्ति देता है। अतः आत्मसाक्षात्कारी मौत नहीं आती। मृत्यु प्राप्त करना इस प्रकार के व्यक्ति के लिए व्यक्ति का परा शरीर चैतन्य चेतना से परिपूर्ण होता है। ऐसे अग्नि परीक्षा है। भयंकर तान्त्रिक होने का यह दण्ड है। केवल धार्मिक होना ही काफी नहीं है। बहुत से लोग कुछ भी गलत कार्य नहीं करते, अति सनकी होते हैं, फिर भी वे हो जाता है केवल उन्हीं लोगों के शरीर को सुरक्षित रखा जाना शरीर को यदि दफनाया जाए तो उससे आपको सुगन्ध भी आ घर्म और अधर्म के माध्यम से पाप का विचार उत्पन्न हुआ। सकती है और दूर से आप जान जाते हैं कि यहां किसी सन्त को पाप के विषय में हमारे विचार कभी-कभी अत्यन्त उथले दफनाया गया है। स्मरण करें कि मेरे सात चित्रों पर प्रकाश पड़ (सतही) होते हैं उदाहरणार्थ "अर्जुन जब युद्ध कर रहा था तो रहा है। ये चित्र 'मियॉँ की तकली' नामक गाँव में लिये गये मुझे कहने लगा मैं इन लोगों का वध कैसे कर सकता हूँ, ये मेरे भाई बताया गया कि एक सूफी सन्त मिया' की मृत्यु इस स्थान पर है, सम्बन्धी हैं, मेरे चाचे-मामे है"। श्री कृष्ण ने कहा "वे तो हुई थी तुरन्त मैंने चैतन्य लहयिाँ महसूस कीं और जब मैं मंच पर पहले से ही मर चुके हैं"। ये किस प्रकार मृत है? क्योंकि वे अधर्म बैठी थी तो प्रकाश के रूप में मैंने इन्हें देखा, और उसने मुझ पर की तरफ हैं। परन्तु आप धर्म की ओर हैं और यदि आप धर्म के प्रकाश की किरण डालनी शुरू कर दी। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। लिए लड़ते हैं तो मृत्यु होने पर भी आपकी रक्षा की जाएगी। परन्तु जब मैंने इन्हें ऐसा करने से रोका तो ये रुक गए। वे भूत परन्तु बहुत से धर्म ग्रन्थों ने इस बात को मूखता की हद तक नहीं बने, प्रकाश बन गए। जहां भी आवश्यक था वहां इन्होंने खींचा है। वे कहते हैं कि "मुत्यु के बाद आपके शरीर को यदि अपनी उपस्थिति को द्शाया तो हम भी किसी धर्म का दफनाया जाएगा तो पाँच सौ वर्ष के बाद आपका शरीर बाहर आ अनुसरण कर रहे हैं। जाएगा और आप सुरक्षित हो जाएंगे।" पाँच सौ वर्ष के बाद उस शरीर का क्या शेष रह जाएगा? ईसाई, यहूदी और मुस्लिम है। आप यह नहीं कह सकते कि "श्री माता जी हम ऐसा नहीं कर तीनों धर्मों में इस प्रकार के मुर्खता पूर्ण विश्वास हैं और इसी सकते उदाहरणार्थ विष्णु को धूम्रपान या तम्बाकू पसन्द नहीं है। कारण ये लोगों को दफनाते है। दफनानें का अर्थ है कि एक ओर उन्हें मदिरा, नशीले पदार्थ और मानवकृत बहुत सी औषधियाँ तो आप पृथ्वी को घेर रहे हैं और साथ ही साथ वहां भूत भी रख पसन्द नहीं है। कोई सहजयोगी यदि प्रति जीवाणु (Anti रहे है। मैं आश्चर्य चकित थी कि पैरिस के मध्य में एक बहुत Biotics) लेता है तो उसे केद हो जाएगी। जो भी मात्रा या गुण हो बड़ा कवब्रिस्तान बनाया हुआ है। लोग यहां बैठ कर शराब पी रहे हम बहुत सी दवाईयां नहीं ले सकते। स्वतः ही आप एक ब्राह्मण होते हैं। क्योंकि ज्यादातर शराबी आकर कब्नों के बीच बैठ जाते की तरह से हो जाएगें जो इस प्रकार की चीजों से दूर रहता है। हैं और ये लोग इन्हें शराब पीने के लिए उसेजित करते हैं । तब आप किसी भी ऐसे स्थान पर न तो जाएंगे और न खाना हैरानी की बात है कि पश्चिम में मनुष्य को दफनाया जाएगा खाएगे जहां लोग सहजयोग के विरुद्ध हैं या अधार्मिक हैं। मेरा ये तभी वह ईसा की तरह से पुर्नजीवित होगा! ईसा तीन दिनों में बताना अनावश्यक है कि आपको स्त्रियों की ओर नहीं देखता। एर्नजीवित हो गए थे, शुक्रवार को उनकी मृत्यु हुई और रविवार स्वतः ही आप ऐसा नहीं करेंगे। आपके धार्मिक चक्षु खुल की प्रातः वे पुर्नजीवित हो गए परन्तु किसी साधारण मनुष्य के जाएगें न ही मुझे स्त्रियों को ये बताना होगा कि पुरुषों के पीछे शरीर को यदि आप पाँच सौ वर्षों तक कब्न में रखें तो उसका क्या न दौड़ें। 1६. सहजयोग में आपको विष्णु तत्व का अनुसरण करना पड़ता ा 13 चैतन्य नाहरी यहूदी भी एक रक्षक की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जउन्हें ईसामसीह पसन्द नहीं। फिर भी उन्होंने ईसा की हत्या नहीं की। यह पॉल की शरारत थी। मोजूज़ से इतनी अच्छी शहरीयत पाकर भी वे धर्म को पहंचान न सके। अपनी शहरीयत को बन्द करके वे अत्यन्त धन लोलुप और कंजूस बन गए। वे किसी को पैसा उधार दे देंगे और वह व्यक्ति तब तक सूद दिए चला जाएगा जब तक उसकी समर्थ होगी, जब बह सुद न दे पाएगा तो वे उसके घर की जब्त कर लेगे और उसे बेच देंगे। वे अत्यन्त कर एवं कामुक बिन गए। अतः प्रायड नाम के राक्षस का जन्म हआ। जब कण्डलिनि उठती है और आपके मस्तिष्क पर छा जाती है तौ चैतन्य लहरियों के माध्यम से आप समझते हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। आप कोई भी गलत चीज नहीं लेते। चैतन्य लहरियां अगर ठीक नहीं है तो आप उस वस्त का सेवन नहीं करते और नम्रता पूर्वक उसे लेने से इन्कार कर देते हैं। मुझे आपको ये नहीं बताना पड़ता कि ऐसा करो ऐसा न करो। स्वतः ही आप न तो किसी की हल्या करेंगे और न ही कोई पाप करेंगे। यदि आप अभी तक परिपक्व सहजयोगी नहीं है तो शायद आप ऐसा करें, परन्तु परिपक्वता आने पर आप कोई गलत कार्य नहीं करेंगे और अपने गणों का आनन्द लेगें। जिन खबियों को हम गुण कहते हैं वे विष्णु तत्व है। हमारा यह कहना कि यह व्यक्ति सदगुणी है बहुत सीमित है। हो सकता है वह चित्रकला धर्म विवेक खो बैठे हैं। मां के बारे में जब उसने इतनी उल्टी में अच्छा हो। परन्तु आपके सदगुणी कहने का अर्थ है कि यह सहजयोगी है। ईसा मसीह ने इस हद तक कहा कि यदि कोई आपके बायें गाल पर चांटा मार दे तो अपना दाया गाल उसकी ओर कर दो। अब इसके विषय में सोचिये! कितनी सक्ष्मता से ईसाह मसीह धैर्य और सहनशीलता तक पहचे। ईसाइ राष्टरों की ओर देखिए जिन्होंने पूरे विश्व में जाकर लट खसट की। स्पेन के लोगों ने आकर बहुत से लोगों की हत्या की, अंग्रेज भारत आये और बहुत से लोगों को मारा, फ्रांस के लोग अफ्रीकन देशों में गए और उन लोगों की हत्यायें की। क्या ये ईसाई हो सकते हैं? ये किस प्रकार ईंसाई हो सकते हैं? फ्रायडभी यहूदी था। उसने मतुष्य की दुर्बलता को समझ लिया, और अमेरिका में उसे मान्यता मिल गई। यहां तक कि वे लोग सीधी बातें कही हैं, तो धर्म किस प्रकार हो सकता है? अब वे फ्रायड़ साम्राज्य का पंतन लिख रहे हैं। बहुत सी पुस्तकें लिखी जा रही है। क्योंकि आप लोग परम्परागत नहीं थे इसलिए पश्चिम में इन विध्वंसक लोगों के माध्यम से से विवेकहीन धर्म आए। आपके अन्दर विश्वास पूर्णतया समाप्त हो गया। मैं हैरान होती हूं कि किस प्रकार लोग फैशन को अपना लेते हैं। वे कहते हैं कि फरट हुए पहनों तो लोग फटे कपड़े पहनने लगते हैं। एक उद्यमी इस कार्य को शुरू करता है और बाकी सब उसका अनुसरण करने लगते हैं। परम्परागत रूप से यदि आपने समझ बहुत लिया होता कि कौन सी वेशभूषा आप पर फबती है तो आप उसी को पहनते, परन्तु उद्यमी लोग जो आपको कहते हैं आप वही अपना लेते हैं, मानो आप में मस्तिष्क या समझने की साम्थर्य ही न हो। परन्तु एक धार्मिक व्यक्ति न तो परिवर्तित होगा न धन बर्बाद करेगा और न ही ये सारी व्यर्थ की वस्तुएं जमा करेगा। केवल आपका आक्रामक न होना ही काफी नहीं है। कोई यदि आपके एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दसरा गाल उसकी ओर कर दें। ईसा ने यह कहा। उन्होंने (ईसा) सारे धर्मदिश सहजयोगियों के स्तर तक लाने का प्रयास किया। आपसे सहजयोग सौंदर्य किस प्रकार चमक उठेगा? मैथ्य के दसरे अध्याय में लिखा है कि आप अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति कैसे कहा कि च्छा हो कि वे अपने सिर में तेल लगाया करें। अगले करेंगे? स्पष्ट लिखा है कि आपको कितना सहनशील, शान्त, दिन आप इसे धो सकते हैं पर रात्रि के समय सिर में तेल डालें करुणामय और स्नेहमय बनना है। हैरानी की बात है ईसा मसीह नहीं तो क़ुछ समय पश्चात सारे पुरुष गंजे हो जाएगे तथा स्त्रियां सम महान अवतरण को ईसाई लोग इतने निम्न स्तर पर ले विग पहनगी। मैं एक माँ हूँ अतः मैं आपको सत्य वात आये। उन्हें ईसाई कहलवाने का कोई अधिकार नहीं। वे तो बताऊँगी। बहुत कठिनाई से सहजयोगियों ने इस बात को निम्न कोटि के मलेच्छ हैं। किस प्रकार उन्होंने अपनी संस्कृति स्वीकार किया। सिर में तेल डालना आवश्यक है क्योंकि तेल से का विनाश किया है! बाइबल में पॉल ने सारी शरारत की है। ही बालों का पोषण होता है। स्वस्थ्य और होने के लिए इस्लाम में जर्मया ने लिखा है कि जब मोजज दर पहाड़ी से दस सहजयोगियों को थोड़े से काम करने होंगे उन्हें बहुत अधिक धरमदिशों का संदेश लेकर आये तो उन्होंने यहदियों को, आज मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि वे धर्म पर खड़े हैं और दिखाई पड़ने वाले, सडेगले समाज में प्रवेश करते पाया। वे इतने परमात्मा के साम्राज्य में है। वे परमात्मा की सरक्षा में हैं, विराट कुपित हुए कि कहा कि "ये धर्मादिश आपके लिए दण्ड हैं।" उस की सुरक्षा में हैं। फिर भी कुछ कार्य तो उन्हें करने ही होंगे। काल में मोजूज़ ने ही ये आदेश यहदियों को दिये थे। परन्तु मुसलमान लोग इन्हें उल्टे सीधे ढंग से उपयोग कर रहे हैं। वे आपका उत्थान नहीं हो सकता। सहजयोग इतना महान है कि इतने झगड़ालू हो गए हैं कि परस्पर ही युद्ध किए जा रहे हैं। मैंने जब सहजयोग शुरू किया तो हिचकिचाते हुए सबको समृद्ध सन्तुलन एवं विवेक प्रदान करने वाले धर्म को अपनाए बिना अर्धामिक लोगों को भी साक्षात्कार प्राप्त हो गया। उत्थित होने चैतन्य लहरी 14 पर अधर्म शनैः शनैः क्षीण हो जाता है । बहुत से लोग मुझे अचानक मैं पाती हूं कि सहजयोंगी अत्यन्त नस हों गए हैं और अपने भूतकाल के विषय में लिखने का प्रयत्न करते हैं। भूतकाल अपनी प्रशंसा भी वे सुनना नहीं चाहते। आप लोगों को रोग समाप्त हो गया है। इसे भूल जाओ, जिस चीज में सेरी कोई मुक्त कर सकते हैं, आप घनवन्तरि हो गए हैं। आप लोगों को दिलचस्पी नहीं वह मझे आप क्यों बताना चाहते हैं? एक बार आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। विष्णु के सारे तत्व अब आपमें जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया तो पिछला सब जागृत हो गए हैं, आप इनका उपयोग करें। किसी ने कहा कि, "मैं जनता में कार्य नहीं करना चाहता क्योंकि मैं, नहीं चाहता कि मेरा अहम् वापस आ जाए। वे इतने मधुर हैं। अहम् के बढ़ जाने का उन्हें भय है। मैंने कहां कि यह अहम् अब वापस नहीं आएगा क्योंकि अब वहां विष्णु विराट बनकर बैठे हैं। वे आपकी रक्षा करेंगे आपको स्वयं में विष्णु पद प्राप्त हो गया है। आप विष्णु जी के एक हजार नामों को पढ़े तो आप जान जाएगे कि आपमें कितने गण हो सकते हैं। समाप्त। कलयुग में मैंने विश्व में स्थिति को देखा, मुझे लगा कि इस दुर्व्यवस्था में लोगों की कण्डलिनी को जागृत किये बिना धर्म को स्थापित नहीं किया जा सकता। जब तकं सामूहिक रूप से आत्म साक्षात्कार नहीं दिया जाता धर्म स्थापित नहीं हो सकता। लोगों को यह बताना कि ऐसा करो, ऐसा न करो, व्य्ं होगा। यह विचार बहुत सफ़ल हुआ। में आप लोगों में अपने स्वप्न को साकार होते देख रही है। अतः विष्ण तत्व को स्थापित करना हमारे लिए कठिन कार्य नहीं है। हमें मात्र इसे पहचानना है। परमात्मा आपको आशिर्वादित करें। गुरु पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबैला 24.07.1994 (सारांश) और सायं उसे दत्तात्रेय की पूजा करनी पड़ती थी इतना पैसा खर्च करने के बाद भी उसे आत्मसाक्षात्कार नहीं मिला था। कहने लगा कि "आत्मसाक्षात्कार देने के लिए आप केवल दो मिनट लगाती हैं। ये क्या है? आप मेरे प्रति इतनी दयामय कैसे हैं?" मैं नहीं समझ पाई कि उसे क्या उत्तर दें। उसके गुरु के विरूद्ध मैं कषछ बोलना नहीं चाहती थी क्योंकि कि मैं जानती हैं कि वह आत्मसाक्षात्कारी है। वास्तव में ये बहुत से गुरु और अवतरण मानव के सम्मुख असहाय होते हैं। सम्भवतः उनके इतने अच्छे शिष्य न हों जितने मेरे हैं, या शायद परमात्मा को खोजने वाले सभी अच्छे लोगों ने इस समय सहजयोगियों के रूप में जन्म लिया है । उन पर मझे कभी कठिन परिश्रम नहीं करना पड़ा। कभी कहीं कोई एक व्यक्ति हमें भी ऐसा मिल जाता है जो हमें परेशान करने का या समस्याएं खड़ी करने का प्रयत्न करता है। आज आप सभी लोग गुरु रूप से मेरी पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। मेरे अन्दर गुरुके बहुत से गुणों का अभाव है, जैसे मैं आपके साथ अधिक सख्त या आपके प्रति कठोर नहीं हो सकती। मैं वास्तव में नहीं जानती कि किसी गलत कार्य करने पर आपको किस प्रकार दण्ड दें। हो सकता है कि इसका कारण यह हो कि आम गुरुओं के शिष्य आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते। आत्मसाक्षात्कारी न होने के कारण उन शिष्यों से सूक्ष्म समस्याओं के विषय में बातचीत करने में गुरुओं को कठिनाई होती है। मैं आजकूल के कुछ गुरुओं को भी जानती हैँ जो बहुत कठोर हैं। वे कहते हैं किं उन्हें घोर तपस्या और अपने गुरुओं के घोर अनुशासन में रहने के पश्चात आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। कभी-कभी तो मुझे ऐसे शिष्यों पर दया आती थी जिन्हें अभी तक आत्मसमक्षात्कार की प्राप्ति नहीं हुई। उनके गुरु आत्मसाक्षात्कारी थे परन्तु थे बहुत कठोर। ंदि आधुनिक समय इतना विशिष्ट है कि इसमें लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना बहुत सुगम है। मोजूज़ ने पतित समाज के लिए नियम बनाये थे। उस समय यह कार्य बहुत कठिन था। इन नियमों को शहरियत कहते हैं। मुसलमानों ने इसे अपनाया। आज भी शहरीयत के अनुसार इतने कठोर दण्ड दिये जाते हैं कि आप कोल्हापुर में मैं एक व्यक्ति से मिली उसे एक मिनट में आत्मसाक्षात्कार मिल गया। उसने मुझे बताया कि उसके गुरु ने उसे एक महीने में आठद्रिन व्रत रखने को कहा था। फिर उस गुरु ने उसे गांव में दत्तात्रेय का मन्दिर बनाने को कहा और प्रतिदिन पैतन्प लहरी 15 विश्वास नहीं कर सकते और सारे धार्मिक कानूनों का दबाव महिलाओं पर है। बाइबल में भी ईसा मसीह ने लिखा है कि "यह है। परन्त उन्होंने ये नहीं बताया कि क्रोध आता किस प्रकार है। सारे दस धरमदिश कुछ भी नहीं है आपको इन से परे जाना होगा।" इसके बारे में उन्होंने कोई बात नहीं की कि आपका जिगर और वेकहते हैं "यदि आपकी एक आंख शरारत कर रही है या पाप कर आपका पालन पोषण ही आपके क्रोध का स्रोत है, ये दोनों चीजें रही है तो इसे निकाल दीजिए।" इसके द्वारा पूरे शरीर को अपवित्र आपको भयंकर क्रोध देती हैं। जब तक आप साक्षी रूप से स्वयंको करने का क्या लाभ, या यदि आपकी एक बाजू कोई गलत कार्य कर नहीं देखते तब तक आपका आत्मसाक्षात्कार अर्थहीन है। अपने रही है तो अच्छा हो आप इसे काट दें नहीं तो एक बाजू के कारण को स्वयं से अलग करके स्वयं देखें कि आप में क्या दोष है। मान लो पुरे शरीर को कष्ट उठाना होगा उन्होंने कहा कि "व्यक्ति को अपवित्र नहीं होना चाहिए।" पर मैं कहंगी आपकी दृष्टि भी को काब करने के स्थान पर, उसे चाहिए कि स्वयं को वश में करे। अपवित्र नहीं होनी चाहिए। आपकी आंखों में यदि किसी स्त्री के क्रोध सर्वप्रथम है। कोई भी व्यक्ति यदि संत बनना चाहता है तो प्रति कामुकता है तो आपने एक घोर पाप किया है और ऐसा करने उसे पता होना चाहिए कि क्रोध को कोई स्थान नहीं देना हैं। ऐसा वाले लोग नर्क में जाएंगे। अतः व्यक्ति की दृष्टि भी अपवित्र नहीं किस प्रकार करें? सर्वप्रथम आप स्वयं को साक्षी रूप से देखें कि होनी चाहिए। एक अन्य बात जो उन्होंने कही वह यह कि यदि आपका आचरण कैसा है? उदाहरणार्थ बनावटी रूप से क्रोधित हो कोई आपको एक गाल पर चांटा मार दे तो आप उसकी ओर दूसरा कर आप शीशे के सामने खड़े हो जाएं और अपने चेहरे को देखें कि गाल कर दें। मझे जब इन नियमों का पता लगा तो मैंने कहा "ऐसे लोग विश्व में कहां मिल सकते हैं।" ये बहुत सुक्ष्म चीज है। अन्तिम धर्मदेश बहुत ही अच्छा था, "आपको धर्मपरायण होना चाहिए." सभी घर्मशास्त्रियों और पाखंडियों अर्थात् पादरियों से अधिक धर्म परायण। मैं सोचा करती थी कि ऐसे लोग ऊपर क्रोध को निकालना होता है। जैसे हम सहजयोग में करते हैं. कहां मिलेंगे जो ईसा के कथन के थोड़ा सा नजदीक भी हों। उस अपना नाम लिख कर हम इसकी पिटाई करते हैं। स्वयं पर क्रोधित वक्त इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कृष्ण ने स्पष्ट कहा कि क्रोध ही सारी बुराइयों को जन्म देता कोई व्यक्ति अत्यंत क्रोधी है तो इस पर गर्वित होने या इससे दूसरों कैसा लगता है। आप हैरान हॉगे कि आपकी शक्ल बन्दर या चीते जैसी या उस पशु जैसी दिखाई देगी जो आप पिछले जीवन में रहे होंगे। तब आपको हैरानी होगी कि अभी तक भी अपने पूर्व जन्म की पशुता के चिन्ह आप साथ लिए घूमते हैं। दूसरी चीज अपने हो कर आप देखेंगे कि आपने अपने क्रोध को जीत लिया है। क्योंकि क्रोधी लोग दूसरों को दुख देते हैं स्वयं को नहीं। निसंदेह कभी-कभी उन्हें अच्छा नहीं लगता और वे सोचते हैं कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, इस प्रकार उनमें बायीं विश्द्धि की समस्या भारत में लोग संस्कारवश धार्मिक हैं या आप कह सकते हैं कि परम्परावश वे अत्यंत धार्मिक हैं। मेरे समय में दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में हमारा परिवार अत्यन्त ही धारमिक था और वातावरण बहुत ही धार्मिक था। फिर भी ईसा द्वारा बताई बात न थी। दोषभाव) उत्पन्न हो जाती है। परन्त यदि आप अपने पर क्रोधित होने लगेंगे, "मैंने ऐसा क्यों किया, ऐसा करने की मेरी इच्छा क्यों हुई?' तो, आपको हैरानी होगी, कि आपका क्रोध कम हो जाएगा। भी उदाहरणतया क्रोध को बहुत ही मूल्यवान गुण माना जाता था। लोग ऐसी बघारा करते थे कि मैं बहुत नाराज हूँ। निसन्दह भारत ारीरिक रूप से भी आप देखें कि आपको जिगर की समस्या है। में ये कोई नहीं कह सकता कि 'मैं तुमसे घृणा करता हूँ क्योंकि ऐसा कहना वहुत ही पापमय और मुर्खतापुर्ण समझा जाता है। किसी से इस तरह स आप अपना सामना करें और कहें कि मझे जिगर की घृणा करना अधार्मिक है। जब मोहम्मद साहब आये तो उन्होंने देखा, कि कोई भी चीज सफल नहीं है तो उन्होंने शहरीयत को आध्यात्मिकविकास में बाधा डालने की इसकी हिम्मत कैसे हुई? अपनाया, इसे स्वीकार किया। कहने लगे ठीक है शहरीयत को कार्यान्वित किया जा सकता है। केवल महिलाओं को ही कष्ट लिए ऐसा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु प्रायः सहजयोगी उठाने पड़े पुरुषों को नहीं। कोई स्त्री यदि व्यभिचार करती थी तो अन्य लोगों के लिए साक्षी अवस्था विकसित करते हैं। सहजयोग उसे दण्ड दिया जाता था। इस समस्या से छुटकारा पाना है। मेरा शत्रु बन कर मेरे सर्वप्रथम साक्षी अवस्था विकसित करनी है। सहजयोगी के का द्वार सबके लिए खुला हुआ है, अतः कुछ पागल, अटपटे और मैं जानती हूँ कि ये सारी बातें किसी पर थोपी नहीं जा सकती। कुछ दुष्टचरित्र व्यक्ति भी सहजयोग में चले आते हैं। आपको ईसा ने जो भी कुछ कहा वह ध्यान की अवस्था में कहा होगा। इसा ऐसे लोगों से घिरे हुए थे जो उनकी हत्या करना चाहते थे और समस्या गुरत और बेकार किस्म के लोगों की, जिनके विषय में अन्ततः उन्होंने ईसा की हत्या कर दी। उस वक्त वे रोमन लोग आप नहीं कह सकते कि यह सहजयोगी बनेंगे कि नहीं, चिन्ता कर अत्यंत क्रूर थे। तो वे कैसे कह सकते थे कि कोई यदि आपको एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल उसकी ओर कर दो? वे अत्यंत क्रोधी स्वभाव के लोग थे। दखना है कि आप किस चीज की चिन्ता कर रहे हैं? क्या आप रहे हैं या उन लोगों का आनन्द ले रहे हैं जिन्हें सहजयोग प्राप्त हो गया है। क्रोध कभी-कभी लोगों को पागल बना देता है। आपकी चैतन्य लहरी 16 बैतन्य लहरी खोपड़ी में चढ़कर ये आपको पागल कर देता है। सहजयोग में भी भावना ग्रस्त कहलाता है। परन्तु वह तो दूसरों को असुरक्षित कर कुछ पागल लोग हैं। परन्त वे इतने पागल हो गए हैं कि अब देता है तो वह कैसे असुरक्षित हो सकता है? आपको उसे बताना उन्हें न तो क्रोध आता है और न ही वे कष्टदायी हैं वे मात्र होगा कि वह पूर्णतया सुरक्षित है। आप यदि ऐसे व्यक्ति को कहें पागल हैं ऐसे लोगों की चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। कि वह असूरक्षित है तो वह सोचता है, "हाँ मेरी दशा दयनीय है, अन्य लोगों को साक्षी भाव से देखने की जरूरत नहीं है। स्वयं को मैं यदि किसी की हत्या कर दें तो भी ठीक है क्योंकि मेरी अपनी साक्षी भाव से देखें। मुझे लगता है, कभी-कभी अधिक तपश्चर्या दशा दयनीय है।" ऐसे विचार इस प्रकार कार्य करते हैं कि आप के कारण भी क्रोध आता है। और अत्याधिक अतिवाद के कारण अपने विषय में विश्वस्त हो जाते हैं। परन्तु आपको साक्षी भी कुछ सहजयोगी हर चीज के बारे में अत्यन्त कठोर हैं। यह बनकर देखना चाहिए, देखना चाहिए कि मैंने अभी तक क्या पागलपन है सहजयोग में सभी कृुछ सहज है। यह स्वतः है, किया है। क्या मैंने स्वयं पर विजय पा ली है? सहजयोग स्वयं पर आपको कठोर नहीं होना। आपको तुनकमिजाज नहीं होना है। विजय पाने के लिए है, दूसरों को जीतने के लिए नहीं। अगर आप मैंने यदि काली साड़ी आदि न पहनने को कह दिया तो यह ब्रह्म ऐसा नहीं कर पाएं है तो आप स्वप्रमाणित है कि, "मैं एक वाक्य नहीं बन गया। कोई यदि काली साड़ी या काले कपड़े सहजयोगी हैं, मैं अति महान हैं, आदि-आदि।" इससे कोई पहनकर आ जाए तो आप लोग उससे परे दौड़ने लगते हैं, ऐसा अन्तर नहीं पड़ता। क्या आपने स्वयं को परिवर्तित कर लिया है ? नहीं होना चाहिए। आप स्वयं गुरु हैं। हमें किसी भी व्यक्ति से क्या अब भी आपके सम्मुख लोग स्वयं को असुरक्षित मानते हैं? क्यों डरना चाहिए, चाहे वो काला हो या सफेद हो या चाहे कुछ यदि लोग स्वयं को असरक्षित समझते हैं तो उनमें कोई कभी है और हो? आपको भय क्यों होना चाहिए? और यदि आप स्वयं को असूरक्षित पाते हैं तब भी कोई समस्या भय क्रोध का दूसरा पक्ष है। एक क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति है। यदि आप मेरे सामने यह बहाना करते हैं कि श्री माताजी मैं सदा भयभीत होता है क्योंकि वह स्वयं को दूसरे में देखता है। उसे लगता है कि दसरा व्यक्ति भी उसकी तरह से ही क्रोधी होगा और उस पर आक्रमण कर देगा। अतः वह सदा बचाव की आवश्यक है। बद्ध की तरह से भावना से ग्रस्त रहता है। सहज स्वभाव से हम निडर होकर रहते भाषण दे रहे थे अचानक किसी ने आकर उनको गाली देना शुरू हैं। कहा गया है, कि"भय पाप का फल है" परन्तु मैं कहंगी कि यह क्रोध का फल है। उदाहरणारथ, जो लोग अति आक्रामक होते हैं उनमें भय उत्पन्न हो जाता है। जिन देशों ने अन्य देशों हमें अच्छा बनने में सहायता दे रहे हैं और तुम इन्हीं पर ही पर आक्रमण किए उन पर शासन किया और जिन्हें अपने अहम् चिल्ला रहे हो। तब उस व्यक्ति को पछतावा हुआ। वह बुद्ध से और क्रोध का अनुभव प्राप्त है वे अत्यन्त भयशील देश बन मिलने गया पर तब तक बद्ध दूसरे गांव जा चुके थे। अगले दिन गए। विशेषतौर पर जो सिपाही युद्ध में जाकर बहुत से लोगों का जा कर वह व्यक्ति बद्ध के चरणों पर गिर गया। भगवान बुद्ध ने वध करते हैं, वे डरपोक बन जाते हैं। अमेरिका में मैंने एक कहा "क्या बात है, आप मेरे चरणों पर क्यों गिर रहे हैं?" उसने सिपाही से पृछा कि तुम्हें किस चीज का डर है? उसने कहा कि कहा "मैं लज्जित हूँ, मझे नहीं पता था कि आप मुझे लगता है, क्योंकि मैंने बहुत से लोगों की हत्या की है इसलिए आत्मसाक्षात्कारी हैं, मैं आप पर चिल्लाया और उल्टी-सीधी बहुत से लोग मेरी हत्या करेंगे, मैंने कहा "आप ऐसा क्यों सोचते बातें कहीं। कृपा करके मुझे क्षमा कर दीजिए।" बुद्ध ने कहा हैं? आपकी कोई क्यों हत्या करेगा?" वह इतना भयभीत था कि "आपने मझे कब अपशब्द कहे।" उसने कहा "कल"। बुद्ध असुरक्षित हैं, तो आप सहजयोगी नहीं हैं। गुरू बनने के लिए आपमें क्षमा करने का विवेक होना अत्यंत एक बार बुद्ध किसी गांव में कर दिया। किसी अन्य ने उस व्यक्ति से पृछा कि "आप ये अपशब्द क्यों कह रहे हैं? ये तो आत्मसाक्षात्कारी बद्ध हैं। ये तो जब बह मेरे सम्मुख आया तो वह चकांप रहा था। कहने लगे "कल तो समाप्त हो गया है, अब क्षमा करने के लिए हमारी आक्रामकता हम पर ही दनदनाती है और हमें हर क्या शेष है।" बह पछताता हुआ क्षमा मांगने के लिए आया पर चीज़ का भय लगने लगता है। सहजयोग में आप स्वयं को एक बुद्ध ने कहा कि विशिष्ट व्यक्तिल्व के रूप में देखें। आपका भूतकाल समाप्त हो सहजयोगियों में भी होना चाहिए। गया है, इसकी आपको कोई चिन्ता नहीं है। निर्भय अवस्था में अब आप रहे, यह अवस्था सहजयोग द्वारा प्राप्त करनी है। एक आवश्यक है। जैसे डामा देखते हुए लोग बच्चों की तरह बार जब आप जान जाएंगे कि आप सुरक्षित है तो न आपकी भये ही-ही कर रहे थे न कोई परिपक्वता थी और न कोई सम्मान। सताएगा और न ही आप क्रोधित होंगे। कभी-कभी हम इसके निसंदेह आप हंस भी सकते हैं पर केवल तभी जब कोई हंसने की विपरित कर बैठते हैं। कल तो समाप्त हो चुका है। यह महान गुण स्वयं को गुरू कहने के लिए आप में परिपक्वता होनी से बात हो। परन्तु जब वे इतना अच्छा ड्रामा कर रहे थे तब इस यह सर्वसामान्य बात है कि एक आकामक व्यक्ति असुरक्षा तरह की बचकानी हरकतें करना और उनका मजाक उड़ाना! चैतन्य लहरी 17 परिपक्व होते तो उन लोगों को भी परिवर्तित कर देते। परिपक्व व्यक्ति तो अपना और अन्य लोगों का आचरण सुधारते हैं। लोग उन पर हैरान होते हैं। ऐसे लोग गिने चुने होते हैं। इन घटिया स्त्रियों में यह आम देखा गया है। वे ऐसी चीज़ों पर हंसती हैं जिन पर उन्हें हंसना नहीं चाहिए। इससे पूर्व अपरिपक्वता झलकती है। पैसे के मामलों में भी ऐसा ही आचरण है। धन के प्रति इतना मोह गुरु के लिए अच्छा नहीं है। मुझे लोगों के विषय में मैं इसलिए बता रही हैँ ताकि आप इन्हें सनने बिल्कुल कोई मोह नहीं है। अन्दर से मैं पूर्णतः निर्मोह है। बैंकिंग और इनका अनुसरण करने का प्रयत्न न करें। परन्तु इस प्रकार और लेखा-जोखा मैं नहीं जानती। कोई अन्य हिसाब-किताब के लोग अत्यन्त ढीठ किस्म के होते हैं और ऐसे बेकार सहजयोगी रखता है। सहजयोग में यदि आपको धन का मोह है तो आप की अनुसरण सब लोग करने लगते हैं। अधिक ऊंचाई तक नहीं जा सकेंगे आप का ध्यात्मिक उत्थान के लिए आये हैं। मैं आपको हिमालय में जाके ठंड में या सिर के भार निर्विचारिता से हममें ध्यान धारणा आती है। उत्थान पाने के खड़े होने के लिए नहीं कहती। मैं आपको कभी धन देने के लिए लिए आपका निर्विचार समाधि में होना आवश्यक है, इसके बिना नहीं कहती। अपनी इच्छा से और प्रसन्नता से आप जो चाहें आपका उत्थान नहीं हो सकता। क्या आप निर्विचार समाधि में सहजयोग को सहयोग दे सकते हैं। हममें परिपक्वता किस प्रकार आती है? ध्यान-धारणा एवं रहने का अभ्यास करते हैं? मान ले सड़क पर चलते हुए आपने एक सुन्दर वृक्ष देखा, तो आपको निर्विचवार हो जाना चाहिए। यह परमात्मा की रचना है। निर्विचारिता में ही सहज कार्यान्वित आपको आत्म निरीक्षण करके देखना है कि आपने सहजयोग के लिए क्या किया है, कितने लोगों को आपने होता है, इसके बिना नहीं होता। आप जो चाहे योजना बनाएं आत्मसाक्षात्कार दिया है? आत्मसाक्षात्कारी होने के बावजूद और जो चाहे करें, यह कार्यान्वित न होगा। इसे यदि सहज पर इन गुरुओ में शक्ति नहीं थी। आपमें आत्मसाक्षात्कार छोड़ देंगे तो कार्य हो जाएगा। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी शक्ति है। कितने लोगों को आपने आत्मसाक्षात्कार दिया है? नहीं कि आप कार्य के प्रति आलसी या अव्यवस्थित हो जाएं। एक बार यदि आप ऐसा करने लगते हैं और दस बीस लोगों को ढंढ कर आत्मसाक्षात्कार दे देते हैं तो आप महान गुरु बन बैठते पाएंगे कि किस प्रकार सहजयोग आपकी सहायता कर रहा है? हैं, अपने महान गुरुत्व के बारे में बातें करने लगते हैं और समझते हैं कि आप ही आदि शक्ति हैं। यह आज्ञा के स्तर पर कहता वह होता है, निसंदेह बहुत से लोगों ने सहजयोग के लिए बहुत कार्य होना होगा। यदि किसी कारण आपको देर हो जाए तो आपको किया अन्यथा आज का दिन देखना सम्भव न होता। परन्तु सतर्क होना होगा कि आपको देर हो गई। तब आपको बन्धन जिन्होंने कुछ नहीं किया उन्हें मैं बता दूँ कि वे वहीं के वहीं खड़े देना चाहिए और अपनी कण्डलिनी उठानी चाहिए ताकि किसी हैं। आपकी कण्डलिनी उत्थित हो गई लेकिन दूसरे लोगों को देने ी तरह आप उस व्यक्ति से भिल सकें। यदि आप बन्धन देते हैं के लिए आपने कुछ नहीं किया। मैं जानती हूँ कि कुछ लोग ऐसे हैं और कहते हैं कि मझे वहां 11 बजे तक अवश्य पहुँचना है तो जो दूसरों को जागृति नहीं देना चाहते क्योंकि वे सोचते हैं कि वे पकड़े जाएंगे। अहम् बढ़ते के डर से वे अन्य लोगों की देखभाल नहीं करना चाहते। सहजयोग में रहने का ये तरीका नहीं है। जैतन्य लहरियां देना भी भल जाते हैं। परिपक्व होने के लिए आपको कुछ न कछ करना होगा सहजयोग का प्रचार करना सर्वप्रथम आपको समझना है कि आप सहजयोगी हैं और यदि अत्यंत आवश्यक है। हम विश्वशान्ति, विश्व जागृति की बात आप परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े हुए हैं तो आप पूरी करते हैं। पर हमने इसके लिए क्या किया। सर्वप्रथम अपने लक्षण सुधारिये और ये सुधार केवल निष्कपट आत्मनिरीक्षण और हर क्षण स्वयं को तथा अपने आचरण को साक्षी भाव से देखने पर ही सम्भव है। भी देने की आपको अत्यन्त चुस्त होना होगा, चुस्त हुए बिना आप न देख उदाहरणतया, आप किसी व्यक्ति से मिलना चाहते हैं और वह है कि आपसे 11 बजे मिलेगा। तो आपको चौकस प्रायः आपको देर नहीं होती। सहज आपकी सहायता करेगा। परन्तु आप तो बन्धन देना, अपनी कुण्डलिनी उठाना और स्थिति को सम्भाल सकते हैं। यह अति साधारण बात है। बहुत गर्मी थी, सबने कहा बहुत गर्मी है। मैं उठी और कहा मैं इसे ठंडा कर दूंगी। पन्द्रह मिनट में मैंने गर्मी भगा दी। यह मैंने नहीं किया सर्वव्यापक शक्ति से मेरी एकाकारिता ने यह बचपन से ही मैं दादी मां की तरह से थी। कोई मुरखता, कार्य किया। परन्तु आपका यह सम्बन्ध सच्चा, दढ़ और मुर्खता पूर्ण मजाक आदि मैं सहन न कर पाती थी अब मैं दादी निष्कपट होना चाहिए तथा अपने मस्तिष्क में हर समय आपको मां हूँ। आप में भी यह परिपक्वता आनी आवश्यक है। यह ज्ञान होना चाहिए कि आप जुड़े हुए हैं। परमात्मा से अपनी आदतवश घटिया तरीके से बातचीत करना कुछ लोगों के लिए एकाकारिता का आभास यदि हर समय आपको है तो यह अवस्था ठीक है क्योंकि वे सहजयोगी नहीं है परन्तु यदि कोई उनका प्राप्त करना अत्यन्त साधारण है। चौकन्ने न होने के कारण अनुसरण करता है तो वह व्यक्ति परिपक्व नहीं है। यदि वे परमात्मा की जिस महान शक्ति से आप जुड़े हुए हैं उसके चैतन्य लहरी 18 चमत्कार आप देखना नहीं चाहते। अन्य चीज़ों में आप व्यस्त अत्याधिक उदार है। मेरे परिवार के लोग भी है। मुझे हैं। आपका चित्त कहीं और है, दूसरी चीजों को आप देखते हैं आवश्यकता से अधिक उदार समझते हैं। परन्तु आत्म निरिक्षण और अचानक आप कह उठते हैं, "मैं कैसा सहजयोगी हैं? मैं यह द्वारा आप लोग, निसन्देह उदार बन सकते हैं। यह उदारता बहने कार्य नहीं कर सकता"। अपनी ध्यान धारणा के माध्यम से लगेगी। ऐसे लोगों को जानती हूँ जिनके पास बहुत धन है पर निर्विचारिता में परिपक्व हों। निर्विचार समाधि में। बिना वे एक पाई सहजयोग को नहीं देगें उदार विवेक आपमें तभी निर्विचार समाधि की अवस्था को बढ़ाये आप इसमें परिपक्व आयेगा जब आप जीवन के लक्ष्य को जान जाएंगे और यह जान नहीं हो सकते और न ही निर्विचार समाधि में रह सकते है। मैंने देखा है कि लोग सहजयोग से सभी प्रकार के चमत्कार परिपूर्ण करमे के लिए या बिना किसी कत्ता भाव के इसके लिए और सब प्रकार की आशा करते हैं। पर के यह कभी नहीं सोचते कुछ करने की योग्यता पाने के लिए! ईसा ने कहा है"आपके दायें कि हम क्या सहायता कर रहें है। हमारी उपलब्धि क्या है? हम हाथ ने क्या दिया है इसका पता आपके बांयें हाथ को नहीं लगना है कहाँ? आज्ञा पर आपको अत्यन्त सावधान होना पड़ेगा। यह बात पुरुषों के लिए है, कि यदि बिना आज्ञा को पार किये यदि इसा ने जो कहा है उसे प्राप्त करने के लिए आपका आप सहजयोग का प्रचार करने लगते है तो आप वास्तव में एक आत्मसाक्षात्कारी होना आवश्यक है। मैथ्युज का पांचवा व्यर्थ प्रकार के व्यक्ति बन सकते है, सहजयोगी नहीं। नेतापन अध्याय पढ़े। यह इतना सूक्ष्म है कि हैरानी होती है कि ईसा के की बात एक मिथक है। और इस मिथक को इसकी वास्तविकता नाम पर यह धर्म इतनी विपरीत दिशा में कैसे चला गया है? में ही देखा जाना चाहिए। आप अगुआ है या नहीं इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता। परन्तु परिपक्वता आनी आवश्यक हैं। मैं यह सब इस लिए बता रही हैं क्योंकि इस जन्म में मैंने किसी और उन्हें जैसे चाहें सता सकें। पहले गर अपने शिष्यों के प्रति को दण्डित न करने का निर्णय किया है। अतः स्वयं को देखें। अत्यन्त क्रर हुआ करते थे। मैं एक बार अमरनाथ गई, वहा स्वयं को समझें और महसूस करें कि मैं आप सबको अच्छी तरह स्वामी जग्ननाथ मुझे मिलने के लिए आयें। उन्होंने कहा मेरे से जानती हैं। पर मैं चाहती हूँ कि आप अपनी गलती को महसूस रारु ने कहा है कि आदि शक्ति अमरनाथ आ रही है और मैं उस करें और देखें कि हम क्या उचित कार्य कर रहे हैं। सहजयोग का समय वहा आने का प्रयत्न करुंगा। उसका गुरु एक आंकलन इस बात से न करें कि आप इससे कितने लाभ उठा रहे साक्षात्कारी व्यक्ति था जो वहां आया उसने पूछा क्या वे हैं। यदि आपको सहजयोग से लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है, तो आपके पास आयें या आप उनके पास जायेगीं।" मैंने कहा आपमें ही कोई कमी है। इस बात को जब आप समझ जाएगे तो "देखिए मैं एक माँ हूँ, मैं गुरु नहीं हूँ, गुरु अपना स्थान नहीं आप अधिक सक्ष्म हो जाएंगे और आपकी स्थूल लिप्साओ का छोड़ते वे इसे तकिया कहते है। गरु को अपना स्थान नहीं छोड़ना अस्तित्व नहीं के बराबर हो जाएगा। आपमें प्रेम होना चाहिए मोह नहीं। आपके अन्दर पूर्ण निलिप्सा आनी आवश्यक है और पास जाना चाहिए। मैंने कहा मैं माँ हूँ और मैं तुम्हारे साथ मैं जाएंगे कि आप यहां किस लिए है? मात्र स्वयं को सहजयोग से चाहिए "। में "मैं" "में" का बिगुल नहीं बजना चाहिए। लोग गुरु बनना चाहते है क्योंकि उनके विचार में शक्तियां प्राप्त करके आप दूसरों पर हावी हो सकें, जो चाहे उन्हें कह सकें चाहिए उसे वही बैटठे रहना चाहिए और ताकि लोगों को उसके यह क्रोध से मुक्त होने पर ही सम्भव है। चलगीं । मैं वहां जाकर उससे मिली और उस गुरू से पूछा"आप जगन्नाथ की आज्ञा को क्यों नहीं खोलते हैं"? मैंने कहा" आप गुरु हैं मालिक है"। वह कहने लगा "तो क्या हुआ, मेरे गुरु ने से दूसरी आवश्यकता उदारंता द्वारा भौतिक चीजों के मोद से छुटकारा पाना है। किसी को कुछ दे देना बहुत अच्छी बात है। उदारता आनन्द के लिए है। एक बार जब आप उदारता का कभी मेरी आज्ञा को नहीं खोला, हर समय अपने अहुम युद्ध आनन्द लेने लगेगें तो आप जान जाएंगे कि प्रेम और करुणा करके मुझे आज्ञा ठीक करनी पड़ी", मैंने कहा "पर आज्ञा को आपसे दूसरो तक बहने लगे है। छोटी-छोटी बाते हैं। मैं जानती खोलना तो बहुत आसान है", तब मैंने उसकी आज्ञा खोली गुरु हूँ कि आप मुझ से प्रेम करते हैं और मुझे उपहार देना चाहते हैं। ने कहा, "आप माँ है, जो जी चाहे कीजिये, हम ऐसा नहीं करेंगे । परन्तु यह प्रेम अन्य सभी लोगों तक फैलना चाहिए। आपको आत्मसाक्षात्कार एवं आत्मविकास के लिए यदि आप उनसे अन्य लोगों का पता होना चाहिए कि उनकी क्या आवश्यकता है कठोर परिश्रम नहीं करवाती तो वे कभी ठीक नहीं होगें। ये और आपको क्या करना है। किसी को यदि कोई आवश्यकता है मानव ऐसे ही है।" मैंने कहा "मेरे लिए नहीं।" वह कहने लगा, आप मां है, उन्हें क्षमा करती है, जो चाहे करें, उन्हें परिवरतित सकते है? क्या आप अन्य लोगों के बच्चों को कुछ दे सकते हैं? करें या उनकी सहायता करे, पर मैं नहीं कर सकता"। उसने मेरे अच्छा होता कि यह उदारता आपमें होती। मैं उदारता आप पर चरणों पर प्रणाम किया और कहने लगा "ये आदि शक्ति है, तुम " जब हम जाने लगे तो बाबा जगन्नाथ ने तो क्या आप उसको वह दे सकते हैं? क्या आप उसे प्रेम कर "आ 1. थोप नहीं सकती सभी लोग कहते हैं कि श्री माता जी आप इनके गुणगान करो। 19 चैतन्व लहरी बताया,"श्री माता जी परमात्मा की कृपा से आपने मेरी आज्ञा प्रकाश देना है, आप में शक्तियां हैं और आप यह कार्य कर सकते को खोल दिया है।" मैंने कहा, "क्या हुआ था?" उसने कहा, हैं। वास्तव में आप लोगों को परिवर्तित कर सकते हैं, उन्हें रोग जब मैं आया तो मेरे ने मुझे दो थप्पड़ मारे। मैं उसका मुक्त कर सकते हैं, पर आप ऐसा नहीं करते। सभी रोगियों को आश्रम चलाता था। फिर भी उन्होंने मुझे कएं में एक रस्सी से आप मेरे पास ले आते हैं और कहते हैं,"श्री माता जी इन्हें ठीक बांधकर उल्टा लटका दिया। जिसे कभी वे कएं में ज्यादा लटका कर दीजिए"। आत्मसाक्षात्कार देने के लिए भी वे उन्हें मेरे पास देते और कभी वे ऊपर को खींच लेते। सात बार उन्होंने मुझे ले आते हैं। क्या जुरूरत है? आप सब जानते हैं कि किस प्रकार पानी में डाला और फिर बाहर निकाल लिया"। मैंने पृछा, आत्मसाक्षात्कार देना है और किस प्रकार व्यक्ति को ठीक करना "उसने ऐसा क्यो किया" ? वह कहने लगा "मैं आपको बता दूँ है। तो आप लोग यह कार्य क्यों नहीं कर सकते? पहला कारण कि मैं कभी-कभी धूम्रपान करता था"। मैंने कहा,"उसने कभी यह हो सकता है कि हम अपेक्षित रूप से परिपक्व न हों, पर आप आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, तो आप धूम्रपान करते ही तो परिपक्व होते हुए भी अपनी शक्तियों को धारण नहीं कर रहेगें"। कहने लगा "वे चाहते हैं कि बिगडी हुई आज्ञा के रहते रहे। आपको इस पर विश्वास नहीं है। नम्रता ठीक है, पर हुए मैं सारी बरी आदते छोड़ दूं। अब आपने मेरी आज्ञा को खोला आपको जान आवश्यक है है कि यह शक्ति है क्या। मान लो एक है और मैं ठीक हैं। मुझे लगा कि उस गरु का आचरण बड़ा ही राजा को आप सिंहासन पर बिठा देते हैं। इसकी अपेक्षा कि लोग अजीबो-गरीब है। जगन्नाथ ने बताया "वह सदा हमें पीटता है, उसके चरण स्पर्श करें, यदि वह लोगों के चरण छूता है तो यह और कोई भी कार्य करने के लिए हमें कठोर परिश्रम करना पड़ता मुर्खता है। जिस भी पद पर आप हैं आप नम्रता पूर्वक कार्य करें है।" गुरू अर्थात करुणा पूर्वक। परिपक्वता यह है कि आपको अपनी मैं कुछ संगीताचार्य को भी जानती हैं जो ऐसा ही करते हैं। मैं राक्तियों का ज्ञान हो। अपनी शक्तियों को आप सरक्षित रख बहुत से ऐसे लोगों को जानती हैँ जो महान गुरुओं के पास गये सकें। पूर्णशान्ति में आप उत्थित हो सकें और जब लोगों से मिलें पर उनके बारे जो सूचना मिली उससे मझे आघात लगा। वे उन तो अपने अन्दर शक्तियों को धारण कर सकें। मैं एक घरेलू स्त्री शिष्यों को साफ-साफ क्यों नहीं बताते कि तममें क्या कमी है हो सकती हूँ, अपने नातियों के लिए खाना बना सकती हैँ, परन्त और तुम्हें कैसा होना चाहिये। पर गरु कहते हैं कि यदि उन्हें इस जब एक बार मैं कुर्सी पर बैठूंगी तो मैं जानती हूँ कि मैं क्या हूँ? प्रकार बता दिया गया तो वे नहीं सुनेंगे। मार खा कर ही वे सीखते आप जो भी है, क्लर्क, बर्तन धोने वाले या कुछ ओर। इससे कोई हैं। शिष्यों के प्रति पुर्ण दृष्टिकोण ही करुणाविहीन है। कुछ गरु अन्तर नहीं पड़ता। पर एक बार यदि आप सहजयोगी बन गए अपने शिष्यों की भयंकर परीक्षा लेते हैं। राजा जनक ने जो किया तो बन गए। तब आपको अपनी गरिमा दिखानी होगी। उसके सम्मुख श्री रामदास कुछ भी नहीं। कठोर परीक्षा के बाद दुर्बलताओं को लिए नहीं घूमना होगा आप इन सब राजा जनक ने हज़ारों में से केवल एक शिष्य को आत्मसाक्षात्कारी लोगों से कहीं अच्छे हैं जिन्हें साक्षात्कार प्राप्त आत्मसाक्षात्कार दिया। इतने अधिक झठ- मठ के गरु होने का करने में हजारों वर्ष लगे, क्योंकि आपके पास बहुत शक्तियां है। यही कारण है कि इन आत्मसाक्षात्कारी गरुओं ने इन्हें दत्कार फिर भी आपमें आत्मविश्वास और शक्तियों को धारण करने का दिया। इस समय बहुत से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पा लिया है। क्षेभ नहीं है। जबकि वास्तविक गुरु ऐसे है। मैं एक अन्य गुरु से मिली, उसने मझसे पछा" आप इन बेकार के लोगों को आत्म साक्षात्कार क्या विस प्रकार हो सकता है। अब यह समाप्त हो गया है। आप यदि दे रही हैं? कितने लोग श्री माता जी के लिए प्राण दे सकते हैं? कषछ गलतियाँ भी करते है तो भी कोई बात नहीं। आत्मविश्वास मैंने कहा, "मझे उनके प्राणों की क्या आवश्यकता है? मुझे इनके की कमी के कारण सहजयोग में भी आप अपने प्रति कठोर हो प्राण नहीं चाहिए।" यह पहला प्रश्न है। उसने कहा "मेर पास जाते हैं। आप में यदि आत्मविश्वास है तो आपको कठोर होने की ऐसे बहुत से लोग हैं जो मेरे लिए प्राणों की आहति दे सकते हैं. फिर भी मैंने उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया है।" इस स्थिति में, जो साधक वास्तविक गुरुओं के पास जाते हैं उन्हें भी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिलता। कुछ लोग कहते हैं कि हम अहम से डरते हैं। आपको अहम 1. क्या आवशयकता है? यह सब साथ-साथ चलता है। सर्व प्रथम आपका परिपक्व होना आवश्यक है। इसके साथ-साथ आप में आत्मविश्वास होना चाहिए ताकि निर्भय होकर आप सहजयोग का प्रचार कर सकें। कुछ लोग स्वयं से भयभीत है और कुछ दूसरों से। यह आपके बन्धनों और उनके पास बड़े-बड़े आश्रम हैं पर वे आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते, और आप लोग दे सकते हैं। बात इस प्रकार है कि यदि आप दीपक में थोड़ा सा प्रकाश डाले तो यह स्वयं को प्रकाशित करता है, किसी अन्य चीज़ को नहीं। आपको अन्य लोगों को परवरिश की भी देन है। आज की गुरु पूजा अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी ने बैतन्य लहरी 20 है LT कहा, "श्री माताजी आपको सख्त होकर सबको बताना है।" मैंने कहा, "ठीक है मैं उन्हें बता दूंगी।" परन्तु आपको नीचा दिखाने करनी है। जीवन नाटक और भिन्न प्रकार के लोगों को साक्षी के लिए नहीं, आपको यह बताने के लिए कि आप क्या प्राप्त कर भाव से देखते हुए उनका आनन्द लेने के लिए यह आपको शक्ति सकते हैं, आपको यह बताने के लिए कि आप किस सीमा तक जा एवं साक्षी भाव प्रदान करेंगी यह गुण आप अपने अन्दर सकते हैं। आप में से कुछ लोगों की दस ब्रह्ण्डो को परिवर्तित विकसित होने पर ही प्राप्त करेंगे। सहजयोगी के लिए आवश्यक करने की क्षमता है। परन्तु आप अभी तक स्वयं से लिप्त हैं, है कि दूसरों के अवगुण देखने के स्थान पर अपने अवगुण देखे अपने बारे में अपने बच्चों के बारे में, अपने पति आदि के बारे में और दूर करे। मुझे बहुत से पत्र मिलते हैं कि फलां स्त्री या फलां चिन्तित है जितना भी आप उत्थित होना चाहेगें यह शक्ति अगवा मुझे परेशान कर रहा है। मैं हैरान हो जाती हैं। ज्यो ही आपको उतनी सामर्थ्य देगी। परन्तु हमारे साथ समस्या यह है किसी अगुवा में मुझे कोई कमी नजर आती है मैं उसे बदल देती कि न तो हम स्वयं को पहचानते हैं न ही स्वयं को पहचानना हूँ। मैंने सदा ऐसा किया है। परन्तु आप अपना चित्त किस प्रकार चाहते हैं। आज की गुरू पूजा आपको गुरु पद प्रदान करे यदि अगुवा पर देते है। वह ईष्य्यां से होता है। अगुवा यदि आपको आप चाहेंगे तो ऐसा हो सकता है। परमात्मा की स्व्वव्यापी शक्ति बताता कि आप में यह त्रुटि है तो आपको उसके प्रति धन्यवादी इसे पूर्णतया कार्यान्वित कर रही है और आपसे कही अधिक यह होना चाहिए। आपको बताने वाला कौन है? मुझे आप पर बहुत दैवी शक्ति चाहती है कि यह पूरा विश्व, पूरा ब्रह्मण्ड परिवर्तित गर्व है और अत्यन्त प्रसन्नता है कि किसी गुरु के भी इतने अच्छे हो जाए। अब आप लोग माध्यम है और यदि आप ही स्वयं को शिष्य कभी नहीं हुए। परन्तु जब मैं देखती हैं कि आप लोग यह धोखा देना चाहें तो कौन रोके सकता है? संगीत, सहजयोगियों नहीं समझ पाते कि आपको क्या प्राप्त हो गया है और इसे का साथ आदि का आनन्द लेना या अपने परिवार और बच्चों की कार्यान्वित भी नहीं करना चाहते तो मुझे ईसा का दृष्टांत याद आ सुरक्षा की अपेक्षा करना आदि सन्तोषजनक नहीं है। यह कभी जाता है कि कुछ बीच चट्टान पर जा गिरे।" मैं जानती हूँ कि आपको सन्तुष्ट न कर सकेगें। प्रकाश बनकर अन्य लोगों में आपके स्नेह और प्रेम के विषय में जो भी मैं महसस करती हैं प्रकाश बांटना और उनके लिए ही कार्य करना ही आपको उसकी अभिव्यक्ति करना असंभव है। आप नहीं जानते कि सन्तुष्ट कर सकेगा। आपमें यह शक्तियां है। मैं बार-बार यह आपको क्यों आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ? आप यहां क्यों है? आपको बता रही हूं कि आपमें वह शक्तियां है जिनसे आप और आप में क्या गण हैं? आपको क्या प्राप्त करना है? यही आत्म निरिक्षण कर सकते है, साक्षी भाव से आप स्वयं को देखते आपको जानना है। ईसा की तरह मैं नहीं कहती, "एक आंख समर्पण कर सकते हैं, क्योंकि अब आप सहजयोग के विषय निकाल लिजिए, अपना हाथ काट दीजिए।" आपका शरीर सही निर्विचार समाधि वह सुन्दर अवस्था है जो आपको प्राप्त हुए में मानसिक रूप से विश्वस्त हो गये हैं। भावनात्मक रूप से आप सलामत होना चाहिए। कुछ भी काटना नहीं है। हमें इस शरीर विखस्त हो चुके हैं कि सहजयोग ने आपको प्रेम और करुणा का की आवश्यकता है। सुक्ष्म रूप से ईसा ने कहा था कि आपका विवेक प्रदान किया है। शारीरिक रूप से भी आप जान गए हैं कि शरीर जो भी गलती कर रहा है आप सक्ष्म रूप से इसे नकार दें। सहजयोग ने आपको सुन्दर स्वस्थ्य एवं विश्वास प्रदान किया है और अब आध्यात्मिक रूप से भी आपको विश्वास होना कि आप परमात्मा द्वारा चुने हुए आध्यात्मिक लोग हैं। क्योंकि आप इष्यालु क्या है और अगुआ के विरोधी क्यों हैं। अगआ आपके पूर्व जन्म महान साधना मर्य थे इसालए आप यह सब लिखते हैं। यदि उसे कुछ बताना ही नहीं है तो उसके अगुआ होने प्राप्त कर रहे हैं। अतः धारण करें। अपने व्याक्तत्व की धारण का क्या अभिप्राय है। इसके बाद अब आपने उन्नत होना है। इसी प्रकार यदि ईष्या है तो इसका कारण खोज निकालें। किसी को यदि एक शब्द भी कहता है तो वे तुरन्त मुझे पत्र करना आवश्यक हैं। आप अवश्य ध्यानधारणा करें। पु्ण निर्विचार अवस्था में रहते हुए, सदा अपने चित्त को चौकन्ना की शक्ति प्राप्त किए जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला है वे रखे किस वक्त क्या आवश्यकता है इसका ज्ञान हाना भी बहुत कार्य आवश्यक है। हमें किस प्रकार प्रतिक्रिया करनी है? हर समय, हर क्षण जब आप चौकन्ने होते हैं और परमात्मा की स्वव्यापक करने की ্থाक्ति है, आप अत्यन्त विवेकशील हैं, फिर भी शक्ति की चेतना आपको होती है तब यह गुण आपमें होते हैं। मैं बिल्कुल चिन्ता नहीं करती। कभी नही। सभी लोग मुझ पर हैरान है, मेरी चिन्ताए ले ली गयी हैं। लोग कहते हैं कि आप अधिक यात्राएं करती हैं। मैं कभी यात्रा नहीं करती। यहां कार आप सब युगों से सत्य साधक हैं, अब आप आये हैं और सन्तुलित रूप से उन्नत होना है। बिना कण्डलिनी जागृत करने कर रहे हैं, जबकि आपके पास तो कण्डलिनी जागृत करने, लोगों को रोग मुक्त करने और सहजयोग की बात आपका चित्त कहां है? स्वयं गलतियों को देखना अत्यन्त आवश्यक है। आखिर बहुत भी मैं बैठी हैं और वहां भी बैठी रहती हैं। क्या फर्क पड़ता है? सत्य को प्राप्त किया है। अतः सत्य और बास्तविकता से मैंने कहां यात्रा की? तदातम्य करने का प्रयत्न करें। यदि आप सत्य एवं वास्तविकता 21. चैतन्य लहरी से तदातम्य कर लेते हैं तो आपका सहसार पूर्णतया खुल जाता तथा समूह बनाने में लगे हुए हैं। क्या इसी प्रकार हम लक्ष्य प्राप्त है। सत्य आपके सहसार में है। जब सत्य आप में आ जाता है तो करेंगे? आप सब अगुआ को सहयोग दें। अगुआ जो कहे उसे आप हैरान हो जाते हैं कि सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य हैं, करने का पूर्ण प्रयत्न करें। उसमें यदि कोई दोष है तो मैं उसे ठीक शुद्ध सत्य। यह अत्यन्त आनन्ददायी है और आप पुर्ण निरानन्द करुंगी पर आप दोष खोजने का प्रयत्न न करें। को पा सकते हैं यदि आप इस साधारण समीकरण को समझ ले कि "पूर्ण सत्य ही पूर्ण प्रेम है"। सहजयोग सेना नहीं है। यह सीधा सच्चा माँ का प्रेम है। निसन्देह हर माँ चाहती है कि उसका बच्चा महान हो और मुझे कोई आशा नहीं है। मैं पूर्णतया सन्तुष्ट हूँ। मैंने अपना उसकी सारी शक्तियां उसे मिलें इस कार्य को वह कैसे करती हैं कार्य कर दिया है, अब यह सभाल लिया जाना चाहिए। आपको यह उस पर निर्भर है तथा आप इसे किस प्रकार करते हैं, यह जिम्मेवार बनना होगा। इस बार मुझे बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि आप पर निर्भर है। मैं सदा आप सब आत्मसाक्षआत्कारी लोगों के जहां-जहां मैं गई अणुवा-गणों ने कहा कि "श्री माताजी आपको सम्मुख नतमस्तक हैँ क्योंकि मेरे विचार में पृर्वी पर इतने अब यात्रा करने की कोई आवश्यकता नहीं, हम जिम्मेवारी लेंगे अधिक सन्त कभी न थे। पर यह साधुत्व पूर्ण होना चाहिए। और इसे कार्यान्वित करेंगे।" आप सबको चाहिए कि अपने इसके बिना, पूरे देश की बात तो छोड़ दीजिए, आप अपने अग्आ का साथ दें और उनके तथा सहजयोंग के लिए कुछ करें। कई बार अगुआगण यह नहीं समझ पाते कि लोग अपने नहीं होता। अपनी जागृती एवं अध्यात्मिकता को उन्नत करना व्यक्तिगत विचार क्यों लिए हुए हैं। जी जान से कार्य करें। और सहजयोग को इस स्वचालित आन्दोलन के पर्ण सहयोग एवं उदाहरणतया भारत में जब हमने दासत्व उन्मलन करना चाहा समर्पण देना अब आवश्यक है। संक्षिप्त में आप अपनी पूजा तो सभी ने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोग दिया। परन्तु करें। कुछ लोग है जो अगआओं को नीचा दिखाने, उनका मज़ाक करने परिवार को परिवर्तित नहीं कर सकते, परे विश्व का तो प्रश्न ही नी। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ईस्टर पूजा प्रवचन आस्ट्रेलिया 03.04.1994 (सारांश) आस्ट्रेलिया में हुई है। अब सबसे अधिक उन्नति रूस में हुई है जो कि पूर्वी खण्ड के देशों की दायीं आज्ञा है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अधिकतर चीनी जाति के लोग हैं। वे बुद्ध की पूजा करते हैं जिनका स्थान बाई आज्ञा पर है। बुद्ध से प्रभावित थाईलैण्ड, हांगकांग कर रहा है। यह सब एक योजना की तरह कार्यान्वित हो रहा है। ईस्टरपूजा के विषय में बताते हुए श्री माताजी ने कहा कि आस्ट्रेलिया और पूरे विश्व के लिए यह पूजा महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसमें एक महान संदेश है, जिसका वास्तविकरण हम कर चुके हैं। हमें ईसा के संदेश को समझना है। श्रीमाताजी ने बताया कि समाचार-पत्र में वह पढ़ रहीं थी कि किस प्रकार लोग ईसा के संदेशों को अस्वीकार कर देते हैं। ऐसा करने वाले वे कौन हैं? मात्र लेखक होने के कारण उन्हें ऐसी बातें करने का क्या अधिकार है। जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं है उन्हें आध्यात्मिकता के विषय पर लिखने का कोई अधिकार नहीं है। आध्यात्मिकता उनके मस्तिष्क से परे की बात है। तैवान आदि देशों की देखभाल में आस्ट्रेलिया सहायता एक बहुत बड़े सन्त हुए हैं जिन्होंने कोई घोर पाप किया। परिणाम स्वरूप परमात्मा ने अभिशप्त करके उन्हें भारत और अफ्रीका के बीच की पृथ्वी पर भेज दिया। तब इस पृथ्वी का पतन इस स्तर कर दिया गया और उस सन्त को कहा गया कि इसके लिए कुछ करे। उस सन्त का नाम त्रिशंकर था जो कि अब दक्षिणी क्षेत्र के सितारे हैं और जिनका वर्णन पुराणों में है। परमाल्मा ने दण्ड के फलस्वरूप उस संत को पृथ्वी के इस क्षेत्र के ऊपर लटकता हुआ सितारा बना दिया और उससे कहा गया कि जा कर वहां के मानव के लिए स्वर्ग की रचना करे। श्रीमाताजी ने कहा कि यह कितने आश्चर्य की बात है कि वे इस पूजा का आयोजन आस्ट्रेलिया में कर रही हैं। मूलाधार की धरती पर। मूलाधार जहाँ मूलाधार स्थापित किया गया और बाद में बह ईसा के जीवन में आज्ञा चक्र पर प्रकट हुआ। सभी अभारतीय देशों में सहज योग की सबसे अधिक उन्नति चैतन्य सहरी 22 र आस्ट्रेलिया में बहुत सी अच्छी बातें हैं। एक तो यह कि हम दैवी घटनायें हमारे सांसारिक विश्व से अलग हैं। ईसा की मृत्यु बहसंस्कृतिक समाज से सम्बन्धित हैं जहां दूसरी संस्कृति की नहीं हुई। जैसे कहा जाता है, उनका शरीर काश्मीर में हो सकता रक्षा की जाती है और जहाँ न्याय प्रणाली द्वारा लोगों की रक्षा की है, पर वे तो आत्मा हैं और आत्मा-एक महान जीवन्त व्यक्तित्व जाती है। बहसंस्कृतिक समाज का विकास करने के लिए यह होता है। अन्य अवतरणों को मानव की तरह कार्य करने पड़े पर बहुत अच्छी बात है और यह राजनीतिक विचारों के पुनरुत्थान ईसा ने कभी इन दैवी अवतरणों की तरह आचरण नहीं किया। श्री द्वारा आता है। लोगों को अपने आस-पास की संस्कृति के बारे में राम अपनी पत्नी के लिए रोए, श्री कृष्ण ने बार-बार विवाह किए जिज्ञासा और ज्ञान है। इससे प्रकट होता है कि हमारे जीनस में क्योंकि उनकी पत्नियां ही उनकी शक्तियां थी। अवतरण होते सामूहिकता की भावना है, तथा हमारा देश अभी भी हुए भी इन्हें मानव सम कार्य करना पड़ा। पर ईसा ने ऐसा कभी बहुसंस्कृतिक समाज में विश्वास करता है। यह सब चीजें श्री नहीं किया। दैवी व्यक्त के रूप में वे जिये और दैवी व्यक्ति के गणेश के गुणों को अभिव्यक्त करती है। रूप में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। सहजयोगियों का भी अब यदि 10 ऐसे लोगों का समह है जिनमें शरी गणेश की सर्वसाधारण मानव से देवत्व स्तर तक उत्थान हो गया है। ईसा पवित्रता नहीं है तो वे इकटूठे नहीं रह सकते क्योंकि, उनमें के लिए यह स्थिति प्राप्त करना सुगम था। पर हम लोग तो हमेशा झगड़ा होगा, लोग बहुत ही उथले बन जायेंगे। पति-पत्नी मानव जीवन से उच्च जीवन की ओर आ रहे हैं, क्योंकि हम के बीच का सम्बन्ध श्री गणेश द्वारा स्थापित किया जाता है। वे अपने मस्तिष्क के स्तर से परे जा रहे हैं। यह कठिन कार्य नहीं है. हमेशा वैवाहिक जीवन का आनन्द लेने का ज्ञान प्रदान करते हैं। हमें स्वय की बहां महसूस मात्र करना है। हम अपने आन्तरिक अस्तित्व के विषय में जानते हैं। पुनरुत्थान मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य है। जीवन के प्रलोभनों से मानव को ऊपर उठना है। ईसा मानव के रूप में कुण्डोलिनी से हम पवित्र हो गए हैं और यदि हम यह याद रखें कि आये पर वे मानव न थे, क्योंकि उनमें भौतिकता नहीं थी। वे इसा का सन्देश पुनरूत्थान है तो हम विश्व को परिवर्तित कर ओंकार थे, इसीलिये वे पानी पर चल सके। क़ाइस्ट का संदेश सकते हैं। पुनरूत्थान के पश्चात अपने कार्य या बच्चों के पुनररूत्थान था जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर आपको तीन माध्यम,से हमारी चित्त दृष्टि जीवन पर नहीं होनी चाहिए। दैवी दिन का अवकाश मिलता है। पर जो लोगों को करना चाहिए वे व्यक्ति सभी सम्बन्धों के बावजूद भी नितलिप्त होता है। यदि उसके विपरीत करते हैं। ईसा हमारे आदर्श होने चाहिए। पवित्र व्यक्ति लिप्त है तो हमें समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि दृष्टि किस प्रकार सम्भव है? पश्चिमी देशों के लोगों की आँखे तो उसमें अभी तक दैवत्व की पुर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई है। हम कामकता और लालच से परिपर्ण हैं। इसाई राष्ट्रों के साथ मुख्य समस्या यह है कि वे अल्यधिक जांचना चाहिए। परस्पर हमें एक दूसरे की सहायता करनी हैं। भौतिकतावादी बन गये हैं, लोगों की आँखें देखती हैं और प्रतिक्रिया करती हैं, वे साक्षी नहीं हो सकते। विचार और प्रतिक्रिया व्यक्ति को पशुत्व के निम्नतम स्तर तक ले जा सकते हैं। सहजयोग में अग-प्रत्येग मानकर उसकी सहायता करने का प्रयत्न करें। श्री माताजी के जीवन काल में ही, पुृथ्वी पर निश्छल लोगों के सामूहिक चित्त ऐसा होना चाहिए कि हम उससे एकाकारिता एक. नये विश्व की सष्टि कर दी गयी है। हम सभी को यह महसूस करना चाहिए कि हम उच्च प्रकार के लोगों में से हैं और सहजयोगियों के लिए इसमें फंसने का कोई औचित्य नहीं है ज्ञान होना चाहिए। हम शुद्ध आत्मा हैं और हमने मानव जीवन क्योंकि हम इस सब से परे हैं सहजयोगियों ने नई तरह की से दैवत्व को प्राप्त किया है। अत: हमें लोगों के विषय में पूरी सुन्दरता और शुद्धता के विवेक का विकास किया है, जो कि सझबझ होनी चाहिए। क्योंकि ईसा की अपेक्षा मानव जीवन के हमारी विशेषता है और जो हमारी अन्तःशक्ति है। दूसरों के प्रति कितने करूणामय हैं, दसरों की कितनी सहायता करते हैं और हम कितने सामूहिक हैं, इन बातों से स्वयं को किसी दूसरे को यदि हम कठिनाई में देखें तो विराटका महसूस करें। कोई समस्या नहीं है फिर भी हमें अपनी व्स्तविकता का विषय में अधिक जानते हैं। जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें ईसा विश्व के आधार हैं। यह पवित्रता, यह मंगलमयता समझने का हमें प्रयास करना चाहिए, उनके आते ही यह नहीं एक अण्डे के रूप में बनाई गई और फिर इसे दो भागों में तोड़ा कहना चाहिए कि वे भूत हैं। गया। पहला आधा भाग श्री गणेश है और दूसरा आधा भाग विकसित होकर परिपक्व अवस्था में ईसा बना । श्रीमाताजी ने जो अभी तक हमारे अन्दर और हमारे समाज में व्याप्त हैं। अपने कहा कि कुछ लोग कह सकते हैं कि एक अण्डा दो रूप में कैसे हो ही प्रकार की शैली और अपने ही तरह का आचरण हमें अपनाए सकता है। मगर हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि यह सब रखना चाहिए। हम आश्चर्यचकित होंगें कि पूरा विश्व हमारी हमें उन मानवीय दर्बलताओं के सम्मुख नहीं झुकना चाहिए 23 चैतन्य लहरी ने एक विशिष्ट उच्च सि्थिति, एक नया माग प्राप्त किया है उनका हमें अनुसरण करना चाहिए और अपने जीवन के माध्यम से अन्य लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रकाश की सृष्टि करनी चाहिए। पूजा करेगा, हमें फांसी नहीं देगा। परन्तु जीवन काल में ही हमारी पुजा करेगा। यह घटित होगा पर हमें यह समझना है कि एक लक्ष्य के लिए हमारा पुर्नउत्थान हुआ है और बह लक्ष्य है इस विश्व को एक सुन्दर स्थान में परिवर्तित करना और इसके लिए हम सबको अपना पूरा चित्त लगा देना चाहिए। जिन लोगों मेलबोर्न पिकनिक वार्ता ्टेलिया यात्रा परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की आस् बात शुरू करते हुए श्री माताजी ने कहा कि प्रकृति और हैं और उन्हें हम सब का खास ख्याल है। हमारे जीवन को बेहतर आध्यात्मिकता बहुत अंच्छी तरह साथ-साथ चलती हैं और एक बनाने के लिए ही सहजयोग आया है, हमें ईश्वर के साम्राज्य के दूसरे को उत्साहित करती हैं। विषय परिवर्तन करते हुए तब उन्होंने बताया कि किस प्रकार छदमावरण में नकारात्मकता आ यदि हम इस बारे में संवेदनशील नहीं हैं, कि हमारे लिए क्या जाती है और हमारे लिए उसे पहचान पाना भी कठिन होता है। हम इसी नकारात्मकता के साथ तब तक चलते रहते हैं जब तक हमें सुबह तथा रात का ध्यान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बहुत बड़े खतरे में स्वयं को न पाएं। इससे सहजयोग को बहुत शुरू में, वे जानती हैं, कि ध्यान हमें अरुचिकर (boring) हानि हो सकती है। इस स्थिति से हमें निकलना होगा और अपने लगेगा मगर धीरे 2 हम उसमें विकसित होंगे और उसके लाभ अस्तित्व के मुल्य को समझते हुए अपने दमन, अत्याचार की देखेंगे। उन्होंने कहा कि वे हमारे लिए ध्यान नहीं कर सकतीं आज्ञा नहीं देनी होगी और न ही हमें पथ भ्रष्ट होना होगा और हमें स्वयं विकसित होना है। उन्होंने बताया कि कुछ नए लोग, जो सहजयोग में आए हैं, उन्होंनें बताया वे उन पराने लोगों से कहीं अच्छे है जो सत्ता में जन्में हैं और हम कैसे खास व्यक्ति होंगे जो हम सहज योग में लोल्प हो गए हैं और स्वयं को सहजयोग का स्वामी मान बैठे हैं। इस तरह का आचरण लोगों के पतन का कारण बनता है। होगा, नहीं तो हम सहजयोग में नहीं होते। हम यहां भौतिक उन्होंने कहा कि हमें बहुत अच्छी तरह से सहजयोग का अभ्यास वस्तयें प्राप्त करने नहीं आये हैं या किसी और कारण से, हम यहां करना है और उन दम्भी लोगों से सावधान रहना है जो बहुत अधिक बोलते हैं और दसरे की निन्दा करते हैं। हमें उनकी बात यही समय है। को नहीं सुनना चाहिए और न ही उनकी बातों में लिप्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि अगुवा में कोई कमी है तो वे इसे जान जाएंगी। पर हो सकता है कि वे ये देखना चाहे कि कहां तक स्कूल में बच्चे पढ़ना नहीं चाहते। वे पढ़ने की अपेक्षा हर समय हम स्थिति को समझ सकते हैं। हममें उचित, अनचित में अन्तर खेलना चाहते हैं। बच्चों को अपने जीवन का मूल्य मालम होना करने का विवेक होना चाहिए। आनन्द के योग्य बनाने के लिए। हर वस्तु हमारे लिए है, मगर अच्छा है तो हम जाल में फंस सकते हैं। फिर उन्होंने कहा कि उन्होंने हमें यह देखने को कहा कि हम कैसे अद्वितीय समय हैं। हम अवश्य ही खास व्यक्ति होंगे और कुछ महान कार्य किया अपने उत्थान के लिए आये हैं, अतः इसका सद्पयोग करने का फिर उन्होंने पश्चिमी बच्चों के बारे में बोला और कहा कि चाहिए। उनमें से ज्यादातर आत्मसाक्षात्कारी आत्मायें हैं और बद्धमान हैं। कुछ तो बहुत अधिक विवेकशील हैं। उच्च चीजों में उनकी रूचि बढ़ाने तथा शिक्षा देने का प्रयत्न हमें करना चाहिए क्योंकि उन्हें अभी उन्नत होना है। श्री माताजी ने कहा कि सहजयोग 60 देशों में कार्य कर रहा है और उनका ध्यान हर तरफ है क्योंकि हम सब उन्हीं के बच्चे चैतन्य लहरी 24 ---------------------- 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt |০৬ ১১২১১২১ <১:১ चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति अंक 1 व 2 खण्ड VII वें राम जब तक आप साक्षी रूप से स्वयं को नहीं देखते तथ तक आपका अर्थहीन है। स्वयं को स्वयंसे अलग करके स्वयं देखें कि आप में क्या दोध हैं। आत्मसाक्षात्कार परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ২ ১১২১২১১১২, ১ ১ ১১ বে 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt खंड VII, अंक 1I व 2 विषय सूची तस पृष्ठ 1. श्रीमाताजी के 108 पावन नाम 2. श्री आदिशक्ति पूजा 26.06.1994 4 3. श्री विष्णु पूजा 13.7.1994 11 15 4. गुरू पूजा 24.7.1994 5. ईस्टर पूजा प्रवचन 3.4.1994 आस्ट्रेलिया 22 6. मैलबोर्न वन विहार (पिकनिक) 24 श्री योगी महाजन श्री विजय नाल गिरकर 162, मनिरका विहार नई दिल्ली-110 067 मुद्क एवं प्रकाशक : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110 060 मद्रित H 5710529, 5784866 बैतन्म् लहरी 2. 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt आदि शक्ति पजा के अवसर पर लिए गए श्रीमाताजी के 108 पावन नाम 19. महात्मा गांधी आपको नेपाली कहा करते थे, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 20. आप ही मेहदी (अपनी पुर्ण गरिमा में ईसा मसीह) के शासन का शुभारम्भ करती हैं, आपको कोटि-कोटि श्रीमाताजी आप ही साक्षात मैरी, फातिमा, कोआन यिन, अथेना और मात्रेय हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 1. लम्बथ घाटी में आप ही ने नये येरुशलम की नींव रखी, 2. आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अनगिनत विश्व यात्राओं द्वारा बन्धन देकर आप ही इस पृथ्वी की रक्षा करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी मानव जाति की रक्षा करने के लिए अवतरित हुई आप ही साक्षात आदि शव्ति हैं, आपको कोटि-कोटि 3. प्रणाम। 21. परमात्मा के क्रोध से आप ही विश्व की रक्षा करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अपने सभी कार्यकलापों में आप राक्षसी शक्तियों से युद्ध 4. 22. करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 23, आप ही दैवी प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । सृष्टि को अर्थ प्रदान करने के लिए ही आप इस पूथ्वी पर अवतरित हुई, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपके कर एवं चरण कमल ही स्वर्ग की चार नदियों के 5. प्रणाम। 24. साधकों को मक्त करने के लिए आप निरन्तर कार्य करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 25. आप ही आदि कण्डलिनी का अवतरण हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । नागा सन्त आपके चरण कमलों की शीतल लहरियों में आराम करने का आनन्द लेते हैं, आपको कोटि-कोटि 6. सरोत हैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। ईसा मसीह ने जिस परम चैतन्य (Holy Spirit) का बचन दिया था वह आप ही हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 7. आप की कृपा से पृथ्वी पर सत्य युग स्थापित हो गया है, 26. 8. आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आप ही प्राणवाय (Pneuma), परम चैतन्य (HOLY GHOST), शेखीना (रति), ताओ (TAO) और असज़ (ASSAS) हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 10. कण्डलिनी को जागृत करके आप ही मोक्ष प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 11. वास्तव में आप ही एक मात्र ऐसा अवतरण हैं जिसमें सामूहिक आत्म-साक्षात्कार प्रदान करने की शक्ति है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 12. सभी धर्म ग्रन्थों में वर्णित पुनर्जन्म आप ही प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 13. आप ही सुख, परामर्श एवं मुक्तिदाता हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 14. आप ही ने 5 मई 1970 को विराट का आदि सहस्रार खोला, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 15. आप ही विज्ञान एवं आध्यात्मिकता के बीच सेत हैं. आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 16. कलियुग में भी आप साधक खोज निकालती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 9. प्रणाम्। आप ही हमारे शाश्वत्व की देवी हैं, आपको कोटि-कोटि 27, प्रणाम। 28. आप ही समय की स्वर्णिम नदी हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 29, आप मन की पकड़ से बाहर हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 30. केवल सरल एवं पवित्र लोग ही आप तक पहुंच सकते हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 31. सरल तथा पवित्र लोगों को ही आप प्रेम करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 32. आपके बच्चों के माध्यम से आपको जाना जा सकता है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 33. सन्त जन ही आपका परिवार है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 34. आपने पूर्व एवं पश्चिम को जोड़ दिया है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 35. आप एक ऐसा यग लाई हैं जिसमें सन्तों का सम्मान होता है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 36. राक्षसी शक्तियों से आप अपने बच्चों को मुक्त करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 17. परमात्मा के साम्राज्य की चाबी आप प्रदान करती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 18. श्रीमाताजी अन्तिम निर्णय का अवतरण आप ही हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। े चैतन्य लहरी द 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt 37. आप ही हाथों को जबान देती हैं, आपको कोटि-कोटि 59. वृक्ष की जड़ों में आप नया जीवन डालती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 38. आप ही सद्भावमयी माँ हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 39. करूणा आपका स्वभाव है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। 40. आप साधकों को सन्त बना देती हैं, आपको कोटि-कोटि मानव मात्र को आप उत्थान का अवसर प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 61. मानवता को आप एक नई चेतना प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपके चरणकमल हमारे सहस्रार को सशोभित करते हैं । 60. प्रणाम। असीम के हृदय में आपका निवास है, आपको कोटि-कोटि 41. 62. आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणामे। 42. आप ही नये येरूशलम की रचना करती हैं, आपको 63. लौह आवरण को आप समाप्त करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 43. विश्व को ब्रह्मचैतन्य से शराबोर करने के लिए आप बादलों को चैतन्यित करती हैं, आपको कोटि-कोटि कोटि-कोटि प्रणाम| 64. सभी पैगम्बरों ने आपकी उद्घोषणा की। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 65. अपने जीवन काल में पूजी जाने वाली केवल आप ही अवतरण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 66. असत्य की आप निडरता से निन्दा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 67. मानव जाति को मुक्त करने के लिए आपने अपना सर्वस्व लगा दिया। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 68. आप धर्म के तत्व को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 44. आप ही कयामा मोहम्मद साहब वर्णित पर्नजन्म को लाती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 45, आप ही परम तेज से परिपूर्ण हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शक्ति एवम् नम्रता को आप ही प्रसारित करती हैं, आपको 46. ा। कोटि-कोटि प्रणाम। 47. हिमालय में तपस्यारत महान ऋषिषयों ने आपको पहचाना है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 48. आप पाप नाशनी हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 49. आप ही जीवनदायी जल हैं जो प्यासों की प्यास बुझाता है, 70. अपने बच्चों की इच्छाओं को आप पूर्ण करती हैं। आपको आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 50. आपके रहस्योद्घाटन अत्यन्त कोमल हैं, आपको 71. कुगुरूओं के रूप में अवतरित हुए राक्षसों की आप निन्दा कोटि-कोटि प्रणाम। 51. पवित्र हृदयों को आप ज्योतिमर्य करती हैं, आपको 72. आप ही सत्य हैं और सत्य की अभिव्यक्ति करती हैं। कोटि-कोटि प्रणाम। 52. आपने नई मानव जाति को जन्म दिया. आपको कोटि-कोटि प्राणाम। 53. आप जीवन की तुच्छता को एक अत्यन्त सुन्दर बह्मण्ड में 74. खोई हुई अबोधिता को आप पन: स्थापित करती हैं । परिवर्तित करने वाली कलाकार हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 69. पंच द्वीपों में आप निरन्तर विचरण करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम। करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 73. हमारे प्याले को आप अमृत से भर देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 75. आप ही हमारे अन्दर पावन प्लेट (शक्ति) को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम 76. आपकी विनोदप्रियता, मानव हृदय से, अन्धकार को दूर भगा देती है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 77. भृग मुनि ने आपके अवतरण की भविष्यवाणी की थी। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 78. असाध्य रोगों को आप ठीक कर देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 79. प्रायः आप सहजयोगियों के स्वपन में आती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 54. आप जन्म से ही निश्छल एवं निर्मल हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 55. आप ही सर्वोच्च एवं पूर्ण अवतरण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 56. जिनमें शद्ध इच्छा है उनके लिए आप स्वयं को प्रकट करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 57. अपने शिष्यों को आप गुरूपद प्रदान करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 58. आपने विश्व निर्मला धर्म की स्थापना की। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। भैतन्य तहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt 80. सीमित रूप में आप असीम की अभिव्यक्ति हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 81. आप प्रेम एवं आनन्द प्रसारित करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 82. पत्थरों में आप कमल की सुष्टि करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम| 83. अपने परम पिता से मिलन के लिए आप हमें तैयार करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 84. आप सुनती हैं और कभी थकती नहीं। आपको कोटि-कोटि 94. आप ही ग्नोसिस (ज्ञान) हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 95. सभी धारणाओं को आपका हृदय द्रवित कर देता है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 96. आप चेतना की पंखड़ियों को प्रकाशित एवं चमत्कृत करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 97. फलों का रंग एवं सुगन्ध आप ही हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 98. आपके चित्र जीवन्त हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 99. उदारतापुर्वक आप अपने बच्चों को असंख्य उपहार देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 100. शाम से सुबह तक आप सुनती हैं और शिक्षा देती हैं, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 101. आप हमारी मां भी हैं और गुरू भी। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 85. आपके शब्द मन्त्र हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 86. सहजयोगियों को कोशाणुओं के रूप में आप अपने शरीर में स्थान देती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 87. आप महानतम पूंजीवादी और महानतम साम्यवादी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 88. सभी रीति- रिवाजों द्वारा पूजी जाने वाली आदि माँ आप ही हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 89. हमारी जो भी स्थिति हो, आप हम में केवल आत्मा देखती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 90. शालिवाहनों के राजकीय खानदान में आप जन्मी हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 91. सन्तों के देश में आपका जन्म हुआ। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 102. अपने शिष्यों को आप आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति देती है। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 103. आप दर्पण हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 104. हज़ारों साधकों की आप नशे आत्मविनाश और निराशा से रक्षा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 105. साधकों के चक्रों को पवित्र करने के लिए आप नई-नई विधियां निकालती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 106. कृण्डलिनी की भूमि को आपने यद्ध करके स्वतन्त्र किया। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 107. आप अन्तिम प्रकटीकरण को लाती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। 92. सर्वोच्च राजनैतिक समाज में आप चुपचाप घुमीं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 93. अपने बच्चों पर आप बहुत से चमत्कारों की कृपा करती हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 108. ब्रह्म सागर, जिसने उत्कृष्ट मेघ का रूप धारण किया आप हैं। आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्री आदि शक्ति पुजा परम पूज्य माताजी निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कबेला. इटली 26.6.94 आज हमनें आदि शक्ति की पूजा करने का निश्चय किया शक्ति और दूसरे कण्डलिनी के रूप में इसका मानव में है। कण्डलिनी और आदि शक्ति की पूजा करने में अन्तर है। प्रतिबिम्ब। अन्तर यह है कि आपकी एक ओर आदि कण्डलिनी ही कण्डलिनी को प्रतिबिम्बित करती हैं। और दूसरी ओर आदि की रचना करना। आरम्भ में, जैसा कि आपने देखा, किस प्रकार शक्ति है जो कि परम चैतन्य है। पूर्ण रूप से यदि आप इसे देखें इस पूरे ब्रह्माण्ड और विशेषरूप से पृथ्वी गृह की सुष्टि की तो इसके दो पक्ष होते हैं। एक परम चैतन्य के रूप में इसकी गई आदम और ईव के बारे में मैंने आपको जो बताया वह पहले तीसरा कार्य जो आदि शक्ति ने करना था वह था पूरे ब्रह्माण्ड औतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt जॉन ने भी अपनी ग्नोस्तीस (उच्चज्ञान) पुस्तक में लिखा। इसी ने आपको बहुत सी ऐसी बातें बताई होंगी जो कि बाईवल में है। आदि शक्ति सर्पणी के रूप में आई, उनका आदि कुण्डलिनी और ईव को बताया कि वह कहे कि ज्ञान का फल खाना अपना सर्वनाश करना और उसके लिए नए साधन खोज निकालने की लोगों को स्वतन्त्रता है, कोई भविष्यवाणी न की जा सकी। आदि शक्ति या सर्वशक्तिमान परमात्मा भी इस प्रकृति को रोक नहीं सकते क्योंकि अपना सर्वनाश करने की, स्वयं को बिगाड़ने की, और नर्क में जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता आपको दी गई है कोई भी दैवी शक्ति इस पर काबू नहीं पा सकती। दैवी शक्ति आपकी स्वतन्त्रता का सम्मान भी करती है। तो देवताओं ने सामूहिक रूप से सोचा कि मानव आदिशक्ति की सृष्टि को पूरी तरह से नष्ट करने वाला है। क्या हम आदिशक्ति की सृष्टि को पूरी तरह से नष्ट होने दें और फिर कुछ बेहतर रचना करे । यह भाग, चाहिए। इसका कारण मैंने तुम्हें बताया था कि मातृशक्ति नहीं चाहती थी कि उसके बच्चे उच्च श्रेणी के ज्ञान को समझे बिना पशुओं कि तरह से रहे जाएं। और उन्हें अपनी स्वतन्त्रता में ऊँचा उठने का तथा उच्च चेतना में विकसित होने का अवसर भी न मिले। माँ कि यही चिन्ता थी। दी तरह के विश्व की सृष्टि की गई। एक तो दैवी था और दूसरे का विकास आरम्भ हुआ था। इस को देखना बहुत बड़ा कार्य था, इस प्रकार के कार्य को करने के लिए अरबों वर्ष बीत गए हैं। परन्तु यदि आप देखें तो आधनिक समय में हम बहुत थोड़े से प्रयत्न से चांद पर जा रहे हैं, और बिल्कल थोड़े से समय में आप वहां पहुँच जाते हैं। यह सब मानव मस्तिष्क द्वारा हुआ वाद विवाद चल रहा था और उनमें से अधिकार मानव से तंग थे, विशेष तौर पर पश्चिमी स्वतन्त्रता से। कहने लगे कि इन लोगों ा को नर्क चाहिए तो हम इन्हें स्वर्ग क्यों दें? यह अनुचित है। पहला कार्य जो आदिशक्ति ने किया वह था मानव में जिज्ञासा पैदा करना। जिज्ञासा उत्पन्न होने पर इस विध्वंसकारी संस्कृति के लोग खोज करने लगे । जब यह खोज शुरू हुई, तो सदा की तरह से, बहुत से लोग उनके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाजार में आ गए। साधकों को बहुत से धार्मिक सम्प्रदायों और झूठे लोगों के पास जाना पड़ा क्योंकि उनके पास सत्य को जानन का और कोई रास्ता ही न था। यदि उन्होंने कबीर, नानक मानव ने इसका बहुत थोड़ा सा उपयोग किया जिसके द्वारा वे चांद तक उड़ सके। आदि शक्ति ने परी प्रकति की सष्टि की। अपने चहँ और आप जो भी कछ देखते हैं उसकी सष्टि उन्होंने ही की। यह सब उन्हीं का कार्य है। आप हैरान होंगे कि मैं आज एक भारी साड़ी पहनने वाली थी और मैंने कहा कि आज बहुत गर्मी है इसलिए अच्छा होगा कि मैं कोई सादी साड़ी पहन की पुस्तके या गूढ़ ज्ञान के शास्त्रों को पढ़ा होता तो वे जाने कि सत्य क्या है और इसे किस प्रकार खोजा जाए। मैं देखती हैं कि सत्यसाधकों तथा दूसरे प्रकार के लोगों में बहुत बड़ा संघर्ष रहा। प्रकार के लोग कुछ जानना नहीं चाहते अतः कभी भी साधक नहीं बन सकते। मैं आपको विश्वास दिलाती हैं कि उनमें दूसरी लू। तो मैंने साड़ी बदल ली पर जब मैं बाहर आई तो देखा कि 1. से कुछ तो कभी भी साधक नहीं बन सकेंगे। रोग ग्रस्त होने पर प्रकृति को यह सारी सूचना कौन देता है। यह परम चैतन्य है। के भी वे कहेंगे कि हम शहीद हैं और महान कार्य कर रहे हैं। उनके मस्तिष्क में ऐसी मुर्खता भर गई है कि वे सोचते हैं कि इन्हीं गलत कार्यों को करने से ही उनकी रक्षा होगी। विकृत मस्तिष्क परम चैतन्य इतना गतिशील तो कभी भी न था, कलयुग आरम्भ में मेरे जन्म के समय से यह गतिशील हुआ। इस समय दैवी सामूहिकता में आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होना था, हैं के कारण ही यह मुर्खता आती है। लोग जब स्वतन्त्र हो जाते इसका निर्णय किया गया था। सारे देवी-देवताओं ने इस कार्य की जिम्मेवारी किसी समर्थवान को देने का निर्णय किया था तो उन्होंने कहा कि हम सब, हमारी सारी शक्तियां आपके साथ होगी, पर आप इस कलियग में मानव को परिवर्तित करने का तो यह विकृत मस्तिष्क कार्य करता है। अपने चारों ओर देख कर वो क्यों नहीं समझ जाता कि क्या घटित हो रहा है। ये आशा करना कि पूरा विश्व स्वर्ग में चला जाए, असंभव है। लोगों ने सब प्रकार के ऐब किए हैं। मैंने लोगों को नशे और शराब का सेवन करते हुए देखा। एक व्यक्ति ऐसा है जिसे पी. एच.डी. की उपाधि मिली और उसका विषय था मदिरा पान द्वारा आध्यात्मिकता को कैसे प्राप्त करें। तो सत्ता में, विश्व विद्यालयों में, मैं नहीं समझ पाती, इस प्रकार के मुखलोग कहां से आ गए, कौन सी सृष्टि से? यह समझ पाना असम्भव कार्य है। बो कैसे सोचते हैं कि इस प्रकार का विनाश उन्हें मोक्ष तक ले जाएगा। प्रतिदिन वे देखते हैं और जानते हैं कि क्या घटित हो रहा है, फिर भी वो देख नहीं पाते। पर जो साधक हैं वे इतने कार्य भार ले लें। एक प्रकार से मानव को परिवर्तित करना पशुओं को परिवर्तित करने से भी कठिन कार्य है। क्योंकि मानव की अपनी स्वतन्त्रता है और यह स्वतन्त्रता उन्हें अन्तिम स्वतन्त्रता (मोक्ष) पाने के लिए दी गई है। अपनी स्वतन्त्रता में जिस प्रकार वे आचरण करते हैं बह आश्चर्यचकित कर देने वाला है, किस प्रकार आपे से बाहर हो कर वे विनाश कार्य करते हैं। निसंदेह भविष्यवाणी की गई थी कि कलियुग में भारतवर्ष में क्या होगा। मैं सोचती हैं, अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के बारे, जहां परन्तु उत्साह से साधना कर रहे हैं कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना ही परन्तु, बैतन्थ लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt करती है। आपा यह भी नहीं जान सकते कि वे परमात्मा हैं। जब तक मैंने यह कार्य शुरू नहीं किया तब तक मेरे परिवार के लोग भी न जान पाये। मेरे माता-पिता के अतिरिक्त कोई न जान पाया कि मझमें कोई शक्तियां भी हैं। परमात्मा के प्रति यह असंवेदनशीलता आदि-शक्ति की महामाया शक्ति ही बना सकती है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अन्यथा आप इसे समझ नहीं सकते। इसके बावजद भी मैंने बहुत बार समझने में गलती की क्योंकि कुछ देर के लिए यह लोग छद्यावरण धारण कर लेते ऐसा क्यों है कि कुछ लोग साधक है और कुछ नहीं है। याद है। परन्त मझे पता चल जाता है। केवल गहनता से सत्य की आदि शक्ति ने सबकी सृष्टि की है तो सभी को साधक होना खोज करने वालों को ही सत्य की प्राप्ति होती है। इसके बारे में होगा। यह मेरा कार्य है। इसी कार्य के लिए मैं पृथ्वी पर आई हूँ। मैं भरसक प्रयत्न कर रही हैं। मेरी तरह से इतने वर्षों तक कोई भी अवतरण पूथ्वी पर जीवित नहीं रहा। और मेरी करूणा मुझे कहती है कि अभी बहुत से लोगों को सहजयोगी बनाना है, हमें एक बहुत बड़े स्तर पर मोक्ष को पाना है। इस करूणा और प्रेम के साथ व्यक्ति कोई भी उपाय कर सकता है। मैं नहीं सोचती कि वो लोग भी इसे पा लेंगे जो लोग साधक नहीं है। 1. न। चाहिए था। कारण ये है कि स्वतन्त्रता में वे अपना रास्ता खो बैठे हैं। वे किसी अन्य चीज को खोज रहे हैं और समझते हैं कि वे ठीक है। स्वयं को ठीक समझने का उन्हें अधधिकार है। एक मूर्ख या पागल व्यक्ति भी स्वयं को ठीक समझता है। आप योदि उससे कोई संदेह नहीं है क्योंकि पूरी सृष्टि, पूरा ब्राह्ाण्ड, सारे देवी देवता और सारे देव दत उनके लिए हैं। वे सब उन्हीं की तरफ हेख रहे हैं। इतने अधिक सहजयोगियों का होना बहुत महत्वपूर्ण बात है, अपने जीवन काल में कोई भी इतने अधिक सहजयोगी ने 1 बना सका है क्योंकि इसके लिए माध्यम होना आवश्यक है। मुझे भी माध्यमों की आवश्यकता है और मेरे माध्यम अत्यंत शुद्ध, यद्यपि उनमें डाल दी गई है फिर भी अभी तक वे इसके याग्य नहीं है। उनमें से बहुत से लोग ठीक प्रकार से इसे प्राप्त कर रहे हैं क्योंकि इसके लिए समर्पण आवश्यक है। अपनी स्वतन्त्रता या विवेक का समर्पण नहीं, परन्तु मानव के अन्दर विकसित हुए अहं का सम्पर्ण। सन्दर अबोध एवं हितकारी होने चाहिए। यदि वे इस बात के प्रति समर्पित हो जाएं कि हम यहां परमात्मा के यंत्र हैं और हमें अन्य लोगों का हित करना है तो मैं आपको बताती हैं कि सत्तर प्रतिशत कार्य हो जाएगा| चाहे उन्हें उसी प्रकार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ हो जैसे अण्डे के खोल से एक पक्षी का बाहर आना। कुछ पक्षियों पर खोल का हिस्सा चिपका रह जाता है और कुछ अभी पक्षी की अवस्था तक विकसित भी नहीं होते। हमें स्वयं को तोलना और समझता है। मैंने भूत बाधित लोग भी देखे हैं। वे भी अपने अहं को बनाये रखना चाहते हैं और अहं के माध्यम से बाधा का उपयोग करना चाहते हैं। नकारात्मक शक्तियों की बाधाएं हैं। ये लोग इन्हें बनाए रखना चाहते हैं ताकि अपने स्वार्थ के लिए वे इनका उपयोग कर सकें। न तो वे इन बाधाऑं से घृणा करते हैं और न इनसे छुटकारा पाते हैं, वे इन्हें रखना चाहते हैं क्योंकि इनका उपयोग हो सकता है। अतः वहाँ पर साधक का दर्जा बहुत कम है। परन्तु बहुत से ऐसे भी हैं जो साधना के निकट भी नहीं पहुँचे, उन्हें हम दुष्प्रवृत्ति मानव कह सकते हैं। वे नहीं चाहते कि यह विश्व परिवर्तित हो। यही दृष्ट लोग हमारे समाचार पत्रों पर छाये हुए हैं। वे नहीं चाहते कि विश्व का परिवर्तन हो या यहाँ अच्छाई प्रकट हो। वे उस सत्य को नहीं देखना चाहते जो मानव को सहायक हो या मानव के हित में हो। एक अन्य चीज आपको जाननी है वह यह कि मैं एक अत्यंत नम्र व्यक्ति हैं। लोग समझते हैं कि मैं अत्यन्त क्षमाशील हैं। मैं सभी को जानती हूँ परन्तु मैं कहती हैं"ठीक है जहां तक चल सकते हो चलते जाओ।" मानव केवल अनुभव के आधार पर सीख सकता है, समझने से नहीं सीखता। आत्मसाक्षात्कार के अनुभव द्वारा आप समझ सकें, फिर भी मैं कहँगी कि परे विश्व को हम आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते। लोग पत्थरों जैसे हैं। झूठे लोगों का पर्दा फाश हो रहा है और इस अनावरण को सभी लोग देख रहे हैं। ये अनावरण बहुत से लोगों को इन कुगुरूओं से बचा लेगा। पर मैं नहीं जानती कि वे पूर्णतः भयंकर, चिक्र एक ओर हम ऐसी सामूहिक नकारात्मकता देखते हैं और दूसरी ओर वास्तविक साधक। कुछ अधपके हैं और झूठ-मठ के। साधना के नाम पर यदि उन्होंने उनके लिए कोई बलिदान किया है तो वे महान हैं। दावे करने वाले लोगों से वे जड़ जाते हैं। मैंने अपने वस्त्र भी नहीं बदले। एक घरेल स्त्री की तरह से मैं रहती असंख्य लोग है। उनमें से साधक अपनी साधना के लिए अत्यन्त हैं। तो वे मुझसे प्रभावित नहीं है। अपने बारे में कुछ महान दर्शाने के लिए मुझ में दो सींग नहीं निकले, इस लिए वे मुझसे प्रभावित नहीं है। परन्तु दूसरी ओर यदि आप देखें तो यह महापाप है। जहाँ आदि शक्ति मनुष्यों की तरह से ही सभी कार्य । सहजयोग में आयेंगे और आत्मसाक्षआत्कार ले पायेंगे कि नहीं है यह मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मुझे भी मनुष्यों का अनुभव और इन वर्षों में कार्य करते हुए मैंने भी देखा है। मैंने देखा है कि गर्वित हैं। कुछ अपनी साधना को नहीं छोड़ना चाहते, उनके लिए यह एक प्रकार का शौक है ... . उनके पास साधक होने का प्रमाण पत्र है। वे अरजीबो गरीब कपड़े पहनते हैं, उनके घर तथा बाल अजीबो-गरीब हैं। वे तन्य लरी। म । 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt बन्धन मात्र देने से विश्व में इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं। कि अविश्वसनीय हैं। यह भी परमचैतन्य की उपस्थिति की अभिव्यक्ति है। यह कृत है। यह कार्य कर रहा है। कृत अर्थात क्रिया। तब आप महसूस करने लगते हैं कि कण्डलिनी के माध्यम से आप यह शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। कृण्डलिनी का उठना भी, उसी प्रकार आदिशक्ति का प्रतिबिम्बित होना है। जिस प्रकार हमारा चांद को एक हिस्से को देख पाना और दूसरे हिस्से को न देख पाना। इसी प्रकार जब यह शक्ति आपके अन्दर उठती है और परमचैतन्य को छ लेती है तो इससे आप शक्तिशाली व्यक्ति बन जाते हैं। इसी प्रकार आप सहजयोगी हैं। पर आप अक्रामक और गाली गुफ्तार देने वाले हो सकते हैं। यह साधकों की एक अन्य श्रेणी हैं। उनके लिए यह एक जीवन शैली है। अपनी खोज के लिए वे दस-बीस स्थानों पर जाएंगे। यहां तक कि वे मेरे से भी बहस करते हैं कि साधना के और तरीके भी तो होंगे। मैं कहती हैं"मैं और कोई तरीका नहीं जानती, पर आप जा सकते हैं। आज आदिशक्ति का मुख्य कार्य आत्मसाक्षात्कार देना है। बाकी सारा प्रबन्ध तो कस्प्यूटर की तरह हो ही रहा है। मुझे कोई चिता नहीं करनी पड़ती। यह एक सहजक्रिया है। जो भी कुछ घटित हो रहा है वह एक सहजक्रिया है। जैसे लोग कह सकते हैं, "श्री माता जी मैंने आपको प्रार्थना की और आपने किस प्रकार मेरी इतनी सहायता की।" ये सब सहज क्रिया है। उस समय हो सकता है मुझमें कोई विचार आता हो परन्तु है ये सहजक्रिया ही। मैं वास्तव में कछ नहीं करती। वास्तव में मैं "निष्क्रिय हूँ।" मैं कुछ नहीं कर रही। कोई सर्वाधिक आलसी व्यक्ति अगर है तो वह मैं हैँ क्योंकि जब एक परी संस्था मेरे लिए कार्य कर रही है तो मैं क्यों चिता करू। परन्तु में साक्षीभाव और साक्षीरूप से जब मैं देखती हैं तो यह प्रतिबिम्ब पर कार्य करती हैं। यह पूर्णतया आपके साथ है। मान लो आप नदी की करता है। यह परम चैतन्य को कार्यान्वित करता है। क्योंकि यदि तेज़ धारा में गिर जाते हैं, आप तैर नहीं सकते, अपने हाथ भी परमचैतन्य आदि शक्ति की शक्ति है तो जो भी कुछ मैं साक्षी नहीं चला सकते, तब आप धारा के साथ-साथ बहने लगते हैं। भाव से देखती हूँ उसकी सूचना उस शक्ति तक पहुँच जाती है। इस स्थिति में आप जान पाते हैं कि घारा के साथ बहना इसमें से जैसे विद्युत शक्ति है। यदि यहां पर कुछ खराबी आ जाए तो बाहर आने के प्रयत्नों से कहीं अच्छा है। अपने आस-पास की इसकी सूचना विद्युत शक्ति को नहीं मिलती, यह यहीं समाप्त हो प्रकृति का आनन्द लें। आप इसमें डूबते नहीं। इसके विपरीत जाती है। परन्तु मेरे साथ यह दूसरी तरह से है, यदि मैं साक्षी रूप से किसी गलत चीज को देख रही हूँ तो मुझे कुछ नहीं करना आप समझते हैं कि जिस कार्य को परमचैतन्य कर रहे हैं उसका पड़ता। मैं बस साक्षी होती हैं और देखती भर हैं। इस भयंकर मुझे क्या करना है। इसका सारा श्रेय आपकी कण्डलिनी को दिया शक्ति, जिसे आप नहीं जानते, के माध्यम से परी चीज दिखाई जाना चाहिए जिसने इसे कार्यान्वित किया, आपको किनारे (तट) पड़ती है। आप कृण्डलिनी और चक्रों के बारे में सब कुछ जानते और परमात्मा सुन्दर स्वर्गीय साम्राज्य तक पहुँचाया। हैं। यह परमचैतन्य की शक्ति कण-कण में है और इस प्रकार से कार्य करती है कि यह निर्देश करती है, आपको आगे और हित के पहली यह कि आपकी कण्डलिनी, जो कि आपके अन्दर है, जो पथ पर ले जाती है। कभी-कभी लोग कहते हैं कि "श्रीमाताजी" आपकी माँ है, आपकी अपनी मां है, जो सदा सर्वदा आपके साथ मैं ये दुकान खरीदना चाहता था, पर मैं इसे ले न सका।" आपका रही है, जिसने आपको यह जन्म दिया है और फिर आपको उस इस दकान को न खरीद पाना ही आपके हित में है, दस दिनों के शक्ति तक ले गयी है जिसे आप स्वयं उपयोग कर सकते हैं। अब बाद वे आ कर कहते हैं "परमात्मा का धन्यवाद कि मुझे वह आप शक्तिशाली है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि किस प्रकार दुकान नहीं मिली।" शनै:शनैः अनुभव करके आप समझने यह शक्ति सहायता कर रही है। मान लो आप कालीनों का लगते हैं कि आपको चिता करने की कोई जरूरतनहीं।कभी यदि व्यापार कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इसका कौन सा पैटून आप रास्ता भटक जायें तो प्रायः आप परेशान हो जाते हैं पर और यह कहां से आयी है आदि। उस कार्य में यदि आप हैं तो सहजयोगी परेशान नहीं होते। वे सोचते हैं कि इसमें भी कोई आप उसके विषय में सब कुछ जानते हैं। यह शक्ति यदि सर्वत्र हित होगा तभी तो परमात्मा हमें यहां लाये हैं। यह कार्यशैली है तो व्यक्ति को इसके बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए। सम्बन्ध थोड़ी सी परिवर्तित हो जाती है। अत्यंत गतिशील व्यक्ति ही ऐसे हैं कि यदि आप कुछ जानना चाहें तो उसे जान सकते हैं। सोचता है कि अब मुझे समर्पण कर देना चाहिए, "इस्लाम।" इसी कारण 'बुद्ध' कहा जाता है और भी, वह सारे लोकों को पूरमचैतन्य के सामने समस्या डाल दें और यह कार्य करना है। है। से 3१ परमात्मा नहीं हैं। अवतरण कह सकता है कि मैं परमात्मा हैं, आप अवतरण नहीं हैं। पर किसी भी अवतरण में कभी नहीं कहा कि वे आदिशक्ति हैं। वे कह ही नहीं सकते। आदिशक्ति की यह शक्ति, जिसे हम परमचैतन्य कहते हैं, आपको प्रेम करती है, प्रकृति पर इसका पूर्ण प्रभुत्व है। यह आपको समझती है। यह सोचती है। आपके विषय में यह सब कुछ जानती है। हर कोण पर और जीवन के हर क्षेत्र में यह कार्य हैं आप पाते हैं कि उन्नत होकर आप इसके साथ बह रहे हैं। तब के इस प्रकार आप समझते हैं कि दो घटनाएं घटित हुई हैं। देखता है। वह किस प्रकार देखता है? क्योंकि उसका अहंकार, पैतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt से करूंगी। इसके विपरीत मैं पाती हैं कि वे अत्यन्त रोबीली हैं। मैं हैरान होती है। शक्ति को क्यों रौब जमाना चाहिए? यदि वह शक्ति है तो रोब नहीं जमाएगी। जो नहीं है वे रोब जमाएगी। जैसे भारत में यदि आप किसी कलैक्टर के घर जाएं तो वह अति नम्र होगा, परन्तु एक सिपाही बहुत ही रौब झाड़ेगा। इसी प्रकार मैं देखती हूँ कि यह रोब जमाओ शैली बहुत आम है और यह एक प्रकार से नन (मठवासिनी) जैसा स्वभाव है। वे नन की तरह से वेशभुषा धारणा करेंगी, नन की तरह व्यवहार करेंगी। मुस्कराएंगी नहीं। आप कह सकते हैं, परम अहंकार, 'महतु अहंकार', सभी कुछ जानता है, जबकि आपका अहंकार कृछ भी नहीं जानता। क्योंकि यह कछ नहीं जानता इसलिए यह आपको लपेट लेता है। अहं को यदि पता होता कि सत्य क्या है तो आप स्वतन्त्र व्यक्तिः होते, परन्तु आप स्वयं को 'ताओ' की तरह नदी में नहीं देना चाहते। आप आनन्द नहीं लेना चाहते। आप अपनी विशिष्टता चाहते हैं। व्यक्तित्व मैं ऐसा है, मैं वैसा हूँ से बहुत भिन्न हैं । वे आप सहजयोगिनीयां हैं या मठवासिनियां यह अन्तर करण आरम्भ होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आत्मसाक्षात्कार के प्रकाश में आपको इसे देखना शुरू कर देना चाहिए। पहली एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने अहं को बताएं। कि शान्त हों जाओ। चुप रहो तुम कषछ नहीं जानते। आजकल के समय में आप किसी कुछ पूछ तो उत्तर मिलता है, मैं कुछ नहीं जानता। यह बहुत बड़ा फैशन है। आप किसी से पूछे आपका नाम क्या है? वे कहते हैं मैं नहीं जानता। वह अपना नाम तक नहीं जानता और ऐसे मुर्ख लोग सोचते हैं कि वे दिखा रहे हैं कि वे बहत अबोध हैं। मैं हैरान होती हूँ, पता नहीं किस पशु ने हममें यह मुर्खता उत्पनलन कर दी है। पर में एक चीज जानती हैँ कि यह अहम् है। अहम व्यक्ति को पूर्णतया मूर्ख बना देता है। मराठी में कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति अहम् का प्रदर्शन करना शुरू कर दे उस दिन से वह झाड़ पर चढ़ने लगता है। अच्छा हो आप मठवासिनियां बन जाएं। यह सब मैं आपको क्यों बता रही हैं क्योंकि हम आदिशक्ति के विषय में बात कर रहे हैं। इसलिए मैं शक्ति के विषय में बता रही हैं। किस प्रकार शक्ति को अभिव्यक्त होना है। से मैं हैरान थी कि स्त्रियां सहजयोग का प्रचार नहीं कर रही हैं किसी ने मुझे बताया कि अगुआगण नहीं चाहते कि महिलाएं सहजयोग का प्रचार करें। यह गलत है। यदि अगआगण ऐसा कहते हैं तो यह अनुचित है। सर्वप्रथम तो महिलाओं को सहजयोगिनी बनना है क्योंकि मैंने देखा है कि किसी महिला को नेतृत्व मिलते ही पूर्णतया बेकार हो जाती है। सभी नहीं पर कछ। सहजयोगिनी का कर्त्तव्य है कि ध्यान-धारणा, आत्मानुमान और आत्म-सम्मान के माध्यम से अपना विकास करें, कि मैं सहजयोगिनी हैं। मैं ही शक्ति हैं। मैं उसकी अन्तः शक्ति हैं। क्या में अन्तः शक्ति हूँ? सहजयोगिनियों ने यह निर्णाय करता है कक क यह सारा अहम् आपके कथित विचारों और उपलब्धियों के माध्यम से आता है। पर यह कीन सी उपलब्धियां हैं। आप कुछ नहीं जानते। यही बात मैंने आज आपको बतानी है कि यदि कौई्ड चीज कार्य कर रही है तो वह है आपके अहम् का समर्पण। आप यदि अहम् समर्पित करना जानते हैं तो आप इस कार्य को कर लेंगे । लड्डू खाती रहती हैं। यह बहुत कठिन है। मैं बास्तव में चाहती बनते ही वे बेलगामे घोड़े की तरह दौड़ने लगती हैं। अतः हो जाइए। उनके घट में ही जब स्थान नहीं होगा तो उसमें जल कैसे भरेगा? हृदय को विशाल कीजिए किसी का आपके घर आना आपको पसन्द नहीं, दूसरों के लिए आप कुछ करना नहीं चाहती। पश्चिम मे मैं कह रही हूँ कि महिलाओं को शक्ति अपने अन्दर समेटनी है। शक्ति का अभिप्राय यह नहीं कि अपने पति पर रोब जमायें या उसका बेवक्फ बनायें। इसका अर्थ है उसे शक्ति दें। आप ही पूरे परिवार की शक्तिदाता हैं। और यह हमारा परिवार है। यह पूरा ही मेरा परिवार है। मैं सभी के लिए बहुत चिन्तित हैँ। छोटी-छोटी चीज़ो की भी मुझे चिन्ता है। मैं कभी सन्तुष्ट नहीं होती कि अब मैंने अपना कार्य कर लिया है। हर समय मुझे किसी न किसी का ध्यान होता है। यह शक्ति निरन्तर प्रवाहित होती रहती है और कार्य करती है। क्योंकि सबके लिए मेरा प्रेम अति गहन है इसलिए यह कार्य करता है। क्योंकि मेरा प्रेम निष्कपट है, मैं कभी अपनी चिन्ता नहीं करतीं। नमर एक अन्य चीज जो मुझे आश्चर्यचकित करती है, विशेषतया पश्चिम में, कि मैं सोचती हैँ कि स्त्रियां शक्ति हैं। परन्तु पश्चिम में मैं देखती हैं कि महिलाएं आदि शक्ति का उपयोग नहीं कर रही हैं। वे अभी तक अपनी भावनाओं और विचारों आदि में फंसी हुई हैं। पुरुषों में तो अहम् है ही, परन्तु महिलाएं भी अहम्ग्रस्त हैं। यह बहुत कठिन है। उदाहरणतया आप किसी पश्चिमी लड़की का विवाह करें तो वह बहुत प्रसन्न होगी, उछलेगी, सभी उपहार लेंगी, बधाइयां लेगी सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनेगी आदि-आदि। दस दिनों के पश्चात् वह आकर कहेगी, "श्रीमाता जी, मेरी समझ में कुछ नहीं आता तो अप अपने सारे गहने आदि लौटा दें।" तब वह कहेंगी। नहीं-नहीं मुझे सोचने दीजिए।" यह सहजयोगिनी का स्तर नहीं है। सहजयोगिनी एक शक्ति है और उसे चुनौती स्वीकार करनी है। "मैं आपको दिखाऊंगी। मैं और अधिक अच्छी तरह चतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt कभी नहीं। अन्य महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए संलग्न करनी चाहिए, उनमें दिलचस्पी लेनी चाहिए। पर मैं देखती हूँ देखकर मुझे हैरानी होती है। दूसरों के लिए चिन्ता की कि वे केवल अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं। हमें हर चीज आवश्यकता हैं। अन्य लोगों के लिए प्रेम एवं करुणामय ध्यान आपस में बांटनी है। अपेक्षित है, उसे विकसित करें। मैंने देखा है कि सहजयोगी एक दूसरे के बच्चों की भी को और पूरे समाज को बिगाड़ देगी भारतीय समाज में बच्चे देखभाल नहीं करते। कभी किसी की सहायता नहीं करते। अच्छे हैं और इसका श्रेय भारतीय स्त्रियों और उनकी परस्पर प्रेम के बिना आपका मस्तिष्क सामूहिक नहीं हो सकता। विवेकशीला को जाता है। भारत के पुरुष मुर्ख है। उन्होंने आप में सामूहिक शक्ति नहीं हो सकती। अतः आवश्यक है कि राजनीति, अर्थशास्त्र आदि को बिगाड़ दिया है। पर समाज अभी आप सब सामूहिक बनने का प्रयत्न करें। एक दसरे के बच्चों की भी कायम है। और वे लोग अभी तक ठीक रास्ते पर हैं। यह देखभाल करें। कबेला की महिलाओं को मैं बताना आवश्यक महिलाओं के विवेक के कारण ही हो पाता है। स्त्रियां यदि घंटो समझती हूँ कि कबेला एक आश्रम है। अन्य आश्रमों से, यहां तक वस्त्रधारण करने पर लगा दें और यही सोचती रहें कि आज हमने कि आस्ट्रेलिया के आश्रमों से आने वाले लोग भी हैरान हैं कि यह क्या पहनना है तो सब समाप्त हो जाएगा। आज कृण्डलिनी पूजा महिलाएं कबेला में ऐसे रह रही हैं जैसे होटल में रह रहीं हों। इसके लिए वे पैसा देती है, हम सभी पैसा देते है, फिर भी बागीचे तरह आपको भी अपने बच्चे की हर बात का ज्ञान होना चाहिए और अन्य चीजों की देखभाल करते हैं। यहां किसी को चिन्ता मेरे पास आकर कोई यदि बताता है कि उसका बच्चा नशे का नहीं है। वे हर चीज का उपयोग कर रहे हैं। हैरानी की बात है आदि हो गया है। ये कैसे संभव हो सकता है। भारत के बच्चे कि मेरे यहां होते हुए भी उनका ये व्यवहार है। आस्ट्रेलिया, नशे के आदि नहीं हो पाते क्योंकि हर समय माताएं बाज की अमेरिका या अन्य जहां भी आश्रम हैं यदि आप जाएं तो देखोगे तरह से उनके सिर पर सवार रहती है। उन्हें पता होता है कि कि सभी लोग इतवार को कार्य करते हैं। पर यहां मैं देखती हैं कि उनके बच्चे कहां जाते है और क्या करते हैं। माँ बच्चे से प्रेम ये सब गायब हो जाते हैं। ये आपका आश्रम है। आप लोग यहां करती है फिर भी उसके बारे में सब जानती है। मेरे विवाह के ठहरे हुए हैं और मुझे लगता है कि आपकी शक्तियों में सहजयोग बाद भी जब मैं घर गई तो मेरी माँ पूछती थी "तू कहां गरई थी ? लुप्त हो रहा है। उनमें से एक तो मुस्कुराना तक नहीं जानती हममें कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती। "छ: बजे तक वापिस और कुछअंत्यन्तरौबीली हैं। मुझे ये बताना पड़ रहा है। क्योंकि आ जाना" और हमें उस समय तक वापिस आना होता था। यह वे सब बहुत महत्वपूर्ण हैं। मेरे अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्तिं ने मा का कार्य था - कि बच्चा कहां जाता है, क्या करता है। बच्चे यह कार्य न किया होता। किसी पुरुष अवतरण ने यह कार्य न इसीलिए आपकी बात नहीं सुनते क्योंकि आप उन्हें अनुशासित किया होता। ईसा छोटी सी आयु में क्रसारोपित हो गए, एक अन्य नहीं करती, यहां पे वातावरण खराब है और निसंदेह बच्चे भी ने जहर ले लिया, दूसरे की किसी ने हत्या कर दी। आदि-आदि। खराब हैं। परन्तु अपने प्रेम में यदि आप शक्तिशाली मां हैं तो सभी छोटी सी आयु में चल बसे। कोई भी यह कार्य न करना तुम्हारे बच्चे खराब नहीं होंगे। अब भी ये महिलाएं मेरे इर्द-गिर्द चाहता था सभी तंग हो गए। हमारे यहां ज्ञानेश्वर जी हुए हैं घुम रही हैं, क्यो? मेरे पास शहद नहीं है पर वे मेरे करीब बैठी उन्होंने 23 वर्ष की आयु में ही समाधि ले ली। तंग आ गए होगें वे हुई हैं। और यह आत्म साक्षात्कार के बाद की स्थिति है। भी इन लोगों से। महिलाओं को अपनी माँ (श्री माताजी) की तरह से धैर्य, स्नेह, प्रेम स्वयं में विकसित करना होगा तभी आप हैं। लोग उनसे कहते हैं कि तुम्हें क्या हो गया है कि हर समय देखेंगे कि किस तरह आपकी शक्ति कार्य करती है। मैंने तुम अपनी आंटी के पास बैठे रहते हो, यह क्या है। प्रेम वे बार-बार इसके बारे में बताया है, और आदि शक्ति के स्तर पर समझते है कि जो भी कुछ उन्हें बताया जा रहा है वे उनके हित मुझे यह कहना है कि अपने परिवार में आप शक्ति की तरह से के लिए है। परन्त इसके लिए स्वयं आपको ठीक होना होगा। मां हैं। आपको विवेकशील बनना होगा, समझदार बनना होगा। के रूप में व्यक्ति को सहनशील होना पड़ता है और समझना आपको अपने पति और बच्चों को समझना होगा, अपने धैर्य को पड़ता है। पर जब समझाने का समय हो तो उन्हें समझाना ही समझना होगा। इसके विपरीत वे अपने बच्चों को बिगाड़ देती होगा आप यदि सोचें कि उन्हें गुस्से से समझा सकती हैं तो ठीक हैं। ये समझना आवश्यक है कि उनके हित में क्या अच्छा है। है पर बच्चे को अच्छी तरह समझ आ जाना चाहिए। बच्चे का आज मैं कहती हैँ कि यदि बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें स्कूल से यह जान लेना आवश्यक है कि आप उसे और अन्य बच्चों को निकाला नहीं जाना चाहिए। यह उनके हित के लिए है। उन्हें प्रेम करती है। यह बहुत सूक्ष्म बात है। एक बार मैं एक स्कूल से हटा कर क्या लाभ होगा। अपने बच्चों के प्रति इतना सहजयोगी के बच्चे को बाहर ले गई वह कह रहा था "मुझे यह मोह होना दर्शाता है कि आप शक्तिविहीन लोग हैं। आपको चाहिए, मुझे वह चाहिए"। वे सभी कुछ खरीदनाचाहरहा था मैं सभी बच्चों से प्रेम करना चाहिए, सभी बच्चों की देखभाल हैरान थी कि इस लड़के में क्या दोष है। यदि मैं अपने नातियों को सामूहिक आचरण के प्रति असंवेदनशीलता आपके बच्चों का दिन है, कण्डलिनी मां है और आप भी माँ हैं। कण्डलिनी की हूँ। परन्तु मेरे सारे भरतीजे, बहुएं सभी आकर मेरे पास बैठ जाते किम चैतन्य तहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt साथ ले जाऊं तो वे कुछ नहीं मांगते। मैं यदि उन्हें दो जोड़ी जूते "मेरा" किसी अन्य व्यक्ति में परिवरतित नहीं हो जाता तब तक दिलवाना चाहूँ तो वे कहेगें कि "नहीं, एक ही काफी है"। वो आप माया जाल में है। आपको यह सीखना है। आप सभी लोग कभी कुछ नहीं मांगते। यह एक प्रकार का आत्म सम्मान है। अपनी डायरी में प्रतिदिन लिखें कि मैंने अन्य लोगों के लिए क्या पत्नियां भी कुछ नहीं मांगती। पति उनसे कुछ लेने को कहते किया, दूसरे लोगों से मैंने क्या कहा। अन्य व्यक्ति को कौन सी रहेगें पर वे न लेगीं। सहजयोगिनी मां, पत्नी और शक्ति को ऐसा ही होना है, उसकी कोई मांग नहीं होती वह कुछ नहीं मांगती। जो बना देती हैं। स्वयं दाता है, वह क्या मांगेगी? सदा देने वाली क्या कुछ मांगगे भी? सहजयोग में बायीं तरफ स्त्री की होती है। यह थोड़ा सा आपके लिए हैं। विशाल आकाश के सम्मुख यदि आप एक पत्ते दुर्बल हो रहा है। इसे दृढ होना होगा। बंच्चों को सबसे पहले ध्यान करना और श्री माता जी का वहां अपनी महान विशालता में खड़े एक व्यक्ति में सहजयोंग का सम्मान करना सिखाइए। उन्हें सिखाइए कि किस प्रकार से पुरा दिव्य स्वप्न निहित हो सकता है। परन्तु कितनी सुन्दर बात सहजयोग को कायान्वित करना है, उनसे सहजयोग के बारे में है कि हमारे इतने अधिक सहजयोगी हैं कि उनका नाम मात्र लेने बातचीत करनी है। केवल खाना, सफाई और दूसरों के साथ से में प्रेम-सागर में शराबोर हो जाती हैं। तो आपकी क्या स्थिति अच्छे व्यवहार की बात करना ही काफी अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाते हुए उन्हें बताना है कि किस प्रकार परस्पर बांटकर वो चीज़ों को लें। धर्म के विषय में उन्हें प्रतिबिम्ब के साथ है और उनकी सारी शक्तियां हमारे साथ हैं। बताना है और यह भी कि किस प्रकार सौहार्द्र स्थापित करना है। मेरे इस दिव्य स्वप्न की विशालता में हम कितना कर सकते हैं। सहजयोग को दुढ़ करने के लिए आपको यह सब समझना है। मुझे अधिक से अधिक लोग ऐसे चाहिए जिनका अपना कोई आप ही सहजयोग की शक्ति हैं और खोटी-छोटी चीजों की चिता स्वप्न हो, अपने बच्चों और भोजन के विधय में सोचने वाले लोग करने के स्थान पर आपको इसे कार्यान्वित करना होगा। कई बार नहीं चाहिए। वे तो सहजयोग से निकल जाएंगे। मुझे महिलाओं के पत्र आते है जिन्हें पढ़कर मैं खिन्न हो जाती है। मेरी समझ में नहीं आता कि वे कैसे सहजयोंगी हैं। हमारी सहजशैली इतनी आर्दश होनी चाहिए कि अन्य लोग बनाई गई कुण्डलिनी आपको सारा ज्ञान देती है। परन्तु बहुत इसे देखें और समझें कि अपने रोज़मरा के जीवन में हमने कितनी ऐसे लोग भी हैं जो यह नहीं जानते कि उनके चक्र क्या हैं। महान चीज पा ली है। आदि शक्ति हमारे दैनिक जीवन में भी अज्ञानता की उस चरम सीमा की कल्पना करें। इन सब चीजों कार्य करती हैं। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों में भी का ज्ञान आपको होना आवश्यक है। आपको यह सब समझाना आपको सदा प्रेम करना है। चाहे आप अगुआ हों या न हो हर होगा क्योंकि यह श्रद्धा है, अन्ध श्रद्धा नहीं - ज्योतिर्मय श्रद्धा समय आपको आवश्यक जानकारी होनी चाहिए। मैंने यह नहीं कि अब आपकी एकाकारिता दैवी शक्ति से हो गई है। मेरे सीखा, मैंने बह नहीं सीखा। 'मझे जो कुछ भी सीखना है बड़ी विचार में यह पूजा अत्यन्त महल्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक गुरु नम्रता पूर्वक सीखना है। जब तक आपका यह दृष्टिकोण नहीं हो पुजाएं हुई हैं। गुरु रूप में बहुत सारे लोगों की पूजा हुई है। मेरी जाती, तब तक अहम आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। जब आप यह जन्मदिन पूजा भी हुई है। पर आदि शक्ति पूजा कभी नहीं हुई। सोचेगे कि मुझे अभी बहुते कुछ सीखना है तब इस अहम से इस अवसर पर मैं सोचती हूँ कि कश्डलिनी की अपनी उन आपका छुटकारा होगा। इस अहम के कारण आप स्वयं से ही शक्तियों को समझना, जो आपको परम चैतन्य की कृपा से प्राप्त संतुष्ट रहते हैं। यह अहम कि निशानी है। आप नहीं जानते कि हो चुकी है, अत्यन्त आवश्यक है। इससे आपको अन्य लोगों को आप कितना कष्ट दे रहे हैं उनकी कितनी हानी आत्म-विश्वास करना एवं एक दिव्य स्वप्न प्राप्त होगा जो कर रहे हैं। बस अपने से ही प्रसन्न रहते हैं। इस प्रकार का मस्त आपके व्यक्तित्व को महान बना देगा। जार्ज वाशिगंटन या व्यक्तित्व व्यक्ति हवा में रहता है। आज मैंने किसी अन्य के लिए अब्राहमलिंकन क्या थे? वे तो केवल महान थे, परन्तु आप क्या किया? मैंने दसरों से किस तरह बात की? क्या आज मैंने सुबको तो आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। आपको पूरे किसी को कुछ दिया? मुझे आपको कोई उपहार देने की ब्राहम, पूरी विशालता के विषय में सोचना होगा। जब तक आप आवश्यकता नहीं है। फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए मैं आपको में ऐसा मस्तिष्क विकसित नहीं हो जाता मुझे पूर्ण विश्वास है, उपहार देती हैं। आप ही की संतुष्टि के लिए मैं आपसे उपहार तब तक सहजयोग की आन्तरिक और बाह्य उन्नति कम होगी। लेती हैँ। अतः सोचे कि कहा और कैसे हमें संतुष्टि प्राप्त हो सकती अतः समझें कि वे सारी शक्तियां आपके साथ है। नम्रता पूर्वक है। किस कार्य से हमें संतुष्टि प्राप्त हो सकती है। मेरा घर, मेरे आपको इनका उपयोग करना है। पति, मेरे बच्चे तो ठीक है। मेरा, मेरा, मेरा। जब तक यह बात प्रसन्न करेगी? छोटी-छोटी चीज़ें जीवन को अति सुन्दर यदि आप स्वयं को बहुत बड़ा न समझें तो बहुत बड़ी चीजें को देखें तो पत्ता अपना अस्तित्व दर्शाता है। इसी प्रकार यहां नहीं है। है? हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते, जबकि आधी शक्ति हमारे मुझे आशा है कि आपको अपनी स्थिति का ज्ञान है। आप जानते हैं कि आप क्या हैं, आपके पास क्या है? आपके अन्दर से परमात्मा आपको धन्य करे। चैतन्य सहरी 10 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt श्री विष्णु पूजा परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) सेंट डेनिस, पैरिस 13.07.1994 'धर्म का आधार इन धर्मों को स्थापित करना गुरू का कार्य था और इनकी स्थापना से मानव को धार्मिक बनाया गया था। परन्तु इस संसार में जो कुछ भी बताया गया है, शास्त्रों में लिखा गया है, जबानी जिसका वर्णनि किया गया है, यदि यह सब जवानी जमा खर्च बन जाए तो पतन अवश्यंभावी हो जाता है। इसी कारण एक ही चीज के बारे में उपदेश देने वाले धर्म भिन्न दिशाओं में चले जाते हुए हमें दिखाई देते हैं कुछ धर्म संचालित है और कुछ सता कोध के आधार पर जब स्वतन्त्रता प्रप्त होती है तो घूणा कान्ति का और इस स्वतन्त्रता का आधार होती है। परन्त यदि आपके अन्दर ये स्वतन्त्रता जागरूक होती है और आप इन विध्वंसक शक्तियों के गुलाम नहीं रहते तो यह वास्वतविक स्वतन्त्रता है एक अन्य चीज जो फ्रांस में घटित हुई है वो यह है कि युरोप में पहली बार सहजयोग को धर्म के रूप में मान्यता दी गयी है। यह बहुत बड़ी चीज़ है। आज मैं सोच रही थी कि श्री विष्ण पजा करेंगे। वे धर्म के संचालित है, कुष् हिंसक हो गए हैं और कुछ पूर्णतया असत्य हैं । आधार हैं। शिव के सिवाय किसी अन्य आधार की पजा हमने इस पतन को जब आप देखते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि कभी नहीं की। हम केवल अवतरणों की ही पजा करते रहे। श्री किस प्रकार मानव ने इस तत्व का नाश किया है। वे धर्म को गणेश अवतरण के रूप में आए, देवी अवतरण के रूप में आई। स्वीकार क्यों नहीं कर सकते? राम, गुरू, इसा, बुद्ध, सभी पृथ्वी पर अवतरणों के रूप में आए। परन्तु आज जब सहजयोग धर्म के रूप में स्थापित हो गया है हमें अपराध करने से रोकते हैं। जब ये दोनों जीन उत्परिवरतन धर्म के आधार श्री विष्णु को समझना आवश्यक है। श्री विष्णु (Mutation) में लग जाते हैं तो लोग स्वछन्दता से कार्य करने बाद में श्री राम, श्री कुष्ण और अन्ततः श्री कल्की के रूप में लगते हैं उन पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता, भारत के लोग में पृथ्वी पर आए। श्री विष्णु का यह अति सुन्दर विकास है। तो व्यक्ति को समझना है कि धर्म का आधार क्या है? से ही हम धर्म की बात करते आये हैं, हमारे यहां सन्त हुए और भौतिक पदार्थ की आठ सयोजकताए (Valancies) होती है। ये फिर हजारा वर्षों में एक प्रकार की परम्परा बन गई उस समय नकारात्मक, सकरात्मक और तटस्थ होती है। पर मानव में दस मिश्र और युनान देश भी हमारे साथ थे। उनमें कुछ खराबी आ सयोंजकताएं हैं, हमारे अन्दर इसकी सुष्टि ध्री विष्णु ने की हैं। गई। हम यूनान को ही लेते हैं, जब सारे देवताओं को मानव की श्री विष्णु ही इनकी रक्षा, देखभाल और पोषण करते हैं। जब भी तरह से बनाया जाता है। वे देवताओं का स्तर धर्म से अधर्म तक वे देखते हैं कि मानव का धार्मिक पतन हो रहा है, वे जन्म लेते गिरा बैठे। मिश्र के शासकों की दिलचस्पी क्योंकि क्रब में मरने हैं। विराट उनकी अन्तिम अवस्था है। इस अवस्था में विष्ण तत्व की थी इसलिए अपने अन्दर धर्म को बनाने के स्थान पर उन्होंने दो हिस्सो में बंट जाता है। एक विराट को चला जाता है और एक पिरामिड (Pyramid) बनाने शुरू कर दिये। यही कारण है कि विराटांगना को। परन्तु तीसरा तत्व महाविष्णु है जो भगवान मिश्र में धर्म का पतन हो गया और अन्ततः इस्लाम स्थापित हो इसा मसीह के रूप में अवतरित हुए। आज के समय में ये तीनों गया। लोगों के अधार्मिक होने के कारण इस्लाम आया। यनान में तत्व मुख्यतः सहस्रार में गतिशील है। विष्ण तत्व में आप देख भी लोगों ने रुढ़ी वादी चर्च को स्वीकार कर लिया क्योंकि अपने सकते हैं कि आन्तरिक धर्म का सन्देश पूरे विश्व में फैल रहा है। अन्दर वे धर्म को न बैठा सके, तो इन लोगों के अन्दर वे धर्म को मात्र इतना ही नहीं कि आधुनिक समय में यह कहा जाता है कि ऐसा करो, ऐसा न करो, आजकल दस धरमदिश भी नहीं है। इन दस धर्म आदेशों को आपका स्वभाव बनना पड़ा। इस प्रकृति से समीप पेशावर में हुआ। परन्तु ये लोग बिष्णु के विरुद्ध हो गए आपकी पर्ण एकाकारिता होनी आवश्यक है। विकास प्रक्रिया में क्योंकि उन्होंने समझा कि विष्णु ने उनके राजा का वध कर दिया हमारे अन्दर दो जीन हैं, जो हमें अपने माता-पिता के प्रति कहंगी कि परम्परागत धार्मिक हैं। कारण ये है कि प्राचीन काल ह कैसे बैठाते? विष्णु जी का नरसिंह अवतार यूनान और मिश्र के बहुत 11 चैतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt है। अतः ये सारे राक्षस अब अफगानिस्तान क्षेत्रों में प्रवेश कर गए और फिर मिश्र और युनान चले गए उन्होंने सारे देवी-देवताओं को यहां लाने का प्रयत्न किया। ये घटना कोई दस हजार वर्ष पूर्व की है। जब प्रहलाद श्री विष्णु के अवतरण को लाये थे। इन राक्षसो को असर या असीरियन के नाम से भी जाना जाता है। यदि आप मिश्र जाएं तो आपको नरसिंही (Sphinx) मिलेंगे, इनका आकार नरसिंह से बिल्कुल विपरीत है। इनमें पुरुष ऊपर के हिस्से में है और शेर नीचे के हिस्से में, जबकि नरसिंह में शेर ऊपर के हिस्से में है और मानव नीचे के हिस्से में। विष्णु के नरसिंह रूप से ठीक उल्टी प्रतिमाएं उन्होंने यह दर्शाने के लिए बनाई कि हमारा एक अन्य प्रकार का अवतरण है जो विष्णु से लड़ सकता है। राक्षसों के इन लोगों के अन्दर प्रवेश कर जाने के कारण उनमें अत्यंत आक्रामक और युद्ध प्रिय स्वभाव विकसित हो गया। युनान में लोगों ने अपना बाहुबल बहुत बढ़ा लिया और यहां का इतिहास तो वास्तव में पागल कर देने वाला है। एक मनुष्य का अनवरत युद्ध करते रहता। सदा वे एक दूसरे का संहार करते रहते थे। जब सिकंदर भारत में आया तो उससे यहां की धार्मिक सभ्यता देखी। वह आश्चर्य चकित था कि किस प्रकार ये लोग रहते हैं। मिश्र में भी लोग धर्म को बिल्कुल न समझ पाये क्योंकि वे मृत आत्माओं और काले जाद में विश्वास करते थे। जब इस्लाम आया तो उन्होॉने इसे स्वीकार कर लिया। पहले ईसाई धर्म आया और फिर इस्लाम। वाली बहुत सी स्त्रयां और बो टाई पहने हुए फैशन वाले पुरुषों को देखा। मैंने एयर होस्टेस से पृछा कि "हम कहा रुके हैं ? उत्तर मिला "कहीं नहीं। मैंने पूछा "ये लोग कहां से आये हैं"? उसने कहा "ये बही लोग हैं" रियाद में इन्होंने अपने चेहरे और शरीर ढंके हुए थे। स्त्री या परुषों को बन्धन लगाने का कोई लाभ नहीं। इससे एक घटिया किस्म के दम्भ की सृष्टि होती है। इसाईयों का भी यहीं हाल है। ईसा को यदि आप पढ़े तो उन्होंने अत्यन्त महान बात कही है कि अन्यगमन (व्यमिचार) नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपकी दृष्टि और मस्तिष्क भी अपवित्र नहीं होने चाहिए। अब ईसाई राष्ट्रों में स्त्रियां नग्न होती जा रही है और पुरुष उन्हें देखते हैं और सभी प्रकार की मुर्खताए हों रही हैं। क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि यही इंसाई हैं? और फिर रविवार को आप अपना हैट पहनकर चर्च जाते हैं । उन्हें किस प्रकार इसाई कहा जा सकता है। धरम तो बिल्कुल है ही नहीं। पश्चिमी देशों में लम्पटता पराकाष्ठा की सीमा तक पहुँच गई है। यह सब वह इस प्रकार करते हैं कि पशु भी नहीं कर सकते । पूरी जीवन शैली ऐसी है मानों अपने विनाश को खोज रहे हों। वे अपना विनाश करना चाहते हैं। भारत में ऐसा क्यों नहीं होता? क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करना पाप है। आप पादरी को एक बच्चे को गाली देता हुआ देख सकते हैं। कुछ शर्म करो। कैथोलिक चर्च के उच्च अधिकारी स्कल तथा महाविद्यालय के स्तर पर ऐसा करते हैं। यह किस प्रकार का कहते है कि रूस का जार कोई धर्म अपनाना चाहता था। कैथोलिक है? कैथोलिक का अर्थ है "सनातन", "प्राचीन काल अतः उसने पहले कैथोलिक लोगों को बुलाया और कहा कि यहां से आया हुआ"। वे कैसे स्वयं को कैथोलिक कह सकते हैं ? वे के सब लोगों को धार्मिक बना दो। विष्णु ही तत्व है परन्तु ये लोगों की हत्या करते हैं, उनसे धन लेते हैं और माफिया से मिले विकृत विष्णु स्वरूप यहां थे। एक-एक करके वे रूस में गए। हुए हैं। माफिया के अगआ को इनाम देते हैं। क्या यही कैथोलिक सर्वप्रथम कैथोलिक गए और कहा कि आप कई पत्नियां नहीं रख चर्च है? क्या ईसा यही चाहते थे? बिल्कुल इसके विपरीत। यहां सकते, आपकी केवल एक ही पत्नि होनी चाहिए। तो उन्होंने धर्म तो नाम मात्र भी नहीं। तो हम कहां जाए कहा कि यह बात हमें अच्छी नहीं लगेगी। विष्णु जी की केवल एक पत्नी थी "एकपत्नीव्रत"। राम के जीवन में भी यही बात थी फिर उन्होंने मुसलमानों को बुलाया जिन्होंने कहा कि आप बड़े भिखारी और धनलोल्प हैं। तो धर्म है कहां? धर्म कई पत्नियां रख सकते हैं। पर शराब नहीं पी सकते तो वे कहने अन्तःनिहित है। इसलिए आप में इस विष्णु तत्व का जागृत होना लगे कि वोदका के बिना हम कैसे जिएंगे इन सारे धरमों में धर्म आवश्यक है, फिर यह तत्व कई ओर फैलता है क्योंकि विष्ण ही जरा भी नहीं है। पहले में एक पत्नीव्रत और दसरे में मंदिरा रोग मुक्त करते हैं। वे ही धनवन्तरी हैं, एक चिकित्सक। क्योंकि निषेध। इस तरह से बन्धन में वे न जी सकते थे। अतः उन्होंने वे ही मानव के रक्षक हैं। यदि हम अपने धर्म की रक्षा करते रहे रूढ़ीवादि ईसाईयों को निर्मान्त्रित किया। उन्होंने कहा जितनी तो हम बीमार नहीं हो सकते, और किसी कारण यदि हम बीमार मर्जी पत्नियां रखो और जितनी मर्जी शराब पियो। रूस के लोगों हो भी जाएं तो विष्णु जी रौग मुक्त करके हमारी रक्षा करते हैं। को यह बहुत अच्छा लगा और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। बिना आत्म साक्षात्कार पाये लोगों पर जो भी बन्धन आप लगाते है। निसन्देह शिव, जीवनतत्व, आत्मा को पहले जाना होता है रहें वे इसके विपरीत ही कार्य करेगें यदि आप सोचते हैं कि बौद्ध बनना ठीक है तो वे तो सबसे वे यम भी है, अर्थात् हमारी मृत्यु के लिए भी वे ही जिम्मेदार और तब यम शरीर को सम्हालने के लिए आता है। श्री विष्णु ही निर्णय करते हैं कि आपको कहां भेजा जाना चाहिए। आपको अधर में ही लटके रहना चाहिए या न्क में जाना चाहिए या स्वर्ग मैंने मुसलमानों को देखा है। एक बार मैं रियाद से लन्दन जा रही थी कि मुझे नींद आ गई। आँख खुलने पर मैंने नग्न शरीरो चैतत्य नहरी 12 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt में भेजा जाना चाहिए ये सब निर्णय महाविष्णु (ईसा मसीह) की शेष रह जाएगा? पर वे लोगों को दफनाये जा रहे हैं इस कारण सहायता से लिए जाते हैं। मृत शरीर जब पड़ा होता है, केवल से। केवल साक्षात्कारी लोगों को ही दफनाया जाना चाहिए, उसके आत्मा को ले जाकर उचित स्थान पर रखने के समय ये सर्वसाधारण लोगों को नहीं क्योंकि प्राय लोगों में इच्छाएं शेष कार्य किया जाता है। मान लीजिए कोई व्यक्ति अधार्मिक है, तो होती हैं और उनकी आत्मा शरीर के आस-पास लटकी रह वे उसे ले जाकर नर्क में डाल देते है। परन्तु यह कार्य होने से पूर्व सकती है। तो क्यों आप इतने वर्षों के लिए शरीर को कब्र में काली विद्या वाले लोग पहुँच जाते हैं और ऐसे शरीर की खोपड़ी रखें। कुछ समय पश्चात् कब्नों को खोद कर वहां घर बनाये जाते ले जाते है, क्योंकि जलने के बाद भी खोपड़ी बाकी रह जाती है, हैं और सारे भूत उन घरों में आ जाते हैं। या ये लोग हड्िडियां उठा ले जाते हैं और यम के कार्य पूरा करने से पूर्व ही आत्मा को वश में करने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार वे उस व्यक्ति के आत्मा का दुरुपयोग दूसरों को हानि पहुंचाने के संतुलित नहीं होते। वे अत्यन्त क्रोधी होते हैं और यदि क्रोधी नहीं लिए करते हैं। यह सबसे बड़ा पाप है। किसी की आत्मा को ले होते तो एकान्त प्रिय होते हैं और हिमालय में जा बैठते हैं। परन्तु जाना और अन्य लोगों को सम्मोहित करने के लिए उसका जो लोग धार्मिक हैं और एक बार जब उनका उत्थान विराट तक दुरूपयोग करना घोर अर्धम है। ऐसे तान्त्रिक की मृत्यु के समय यम उसे भयंकर कष्ट देते हैं - आसानी से उसके प्राण नहीं चाहिए। धर्म नाभी से मस्तिष्क तक जाता है और मस्तिष्क सारी निकलते, व्यक्ति तड़पता है, मृत्यु के लिए तड़पता है परन्तु उसे नाड़ियों को आत्मा की शक्ति देता है। अतः आत्मसाक्षात्कारी मौत नहीं आती। मृत्यु प्राप्त करना इस प्रकार के व्यक्ति के लिए व्यक्ति का परा शरीर चैतन्य चेतना से परिपूर्ण होता है। ऐसे अग्नि परीक्षा है। भयंकर तान्त्रिक होने का यह दण्ड है। केवल धार्मिक होना ही काफी नहीं है। बहुत से लोग कुछ भी गलत कार्य नहीं करते, अति सनकी होते हैं, फिर भी वे हो जाता है केवल उन्हीं लोगों के शरीर को सुरक्षित रखा जाना शरीर को यदि दफनाया जाए तो उससे आपको सुगन्ध भी आ घर्म और अधर्म के माध्यम से पाप का विचार उत्पन्न हुआ। सकती है और दूर से आप जान जाते हैं कि यहां किसी सन्त को पाप के विषय में हमारे विचार कभी-कभी अत्यन्त उथले दफनाया गया है। स्मरण करें कि मेरे सात चित्रों पर प्रकाश पड़ (सतही) होते हैं उदाहरणार्थ "अर्जुन जब युद्ध कर रहा था तो रहा है। ये चित्र 'मियॉँ की तकली' नामक गाँव में लिये गये मुझे कहने लगा मैं इन लोगों का वध कैसे कर सकता हूँ, ये मेरे भाई बताया गया कि एक सूफी सन्त मिया' की मृत्यु इस स्थान पर है, सम्बन्धी हैं, मेरे चाचे-मामे है"। श्री कृष्ण ने कहा "वे तो हुई थी तुरन्त मैंने चैतन्य लहयिाँ महसूस कीं और जब मैं मंच पर पहले से ही मर चुके हैं"। ये किस प्रकार मृत है? क्योंकि वे अधर्म बैठी थी तो प्रकाश के रूप में मैंने इन्हें देखा, और उसने मुझ पर की तरफ हैं। परन्तु आप धर्म की ओर हैं और यदि आप धर्म के प्रकाश की किरण डालनी शुरू कर दी। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। लिए लड़ते हैं तो मृत्यु होने पर भी आपकी रक्षा की जाएगी। परन्तु जब मैंने इन्हें ऐसा करने से रोका तो ये रुक गए। वे भूत परन्तु बहुत से धर्म ग्रन्थों ने इस बात को मूखता की हद तक नहीं बने, प्रकाश बन गए। जहां भी आवश्यक था वहां इन्होंने खींचा है। वे कहते हैं कि "मुत्यु के बाद आपके शरीर को यदि अपनी उपस्थिति को द्शाया तो हम भी किसी धर्म का दफनाया जाएगा तो पाँच सौ वर्ष के बाद आपका शरीर बाहर आ अनुसरण कर रहे हैं। जाएगा और आप सुरक्षित हो जाएंगे।" पाँच सौ वर्ष के बाद उस शरीर का क्या शेष रह जाएगा? ईसाई, यहूदी और मुस्लिम है। आप यह नहीं कह सकते कि "श्री माता जी हम ऐसा नहीं कर तीनों धर्मों में इस प्रकार के मुर्खता पूर्ण विश्वास हैं और इसी सकते उदाहरणार्थ विष्णु को धूम्रपान या तम्बाकू पसन्द नहीं है। कारण ये लोगों को दफनाते है। दफनानें का अर्थ है कि एक ओर उन्हें मदिरा, नशीले पदार्थ और मानवकृत बहुत सी औषधियाँ तो आप पृथ्वी को घेर रहे हैं और साथ ही साथ वहां भूत भी रख पसन्द नहीं है। कोई सहजयोगी यदि प्रति जीवाणु (Anti रहे है। मैं आश्चर्य चकित थी कि पैरिस के मध्य में एक बहुत Biotics) लेता है तो उसे केद हो जाएगी। जो भी मात्रा या गुण हो बड़ा कवब्रिस्तान बनाया हुआ है। लोग यहां बैठ कर शराब पी रहे हम बहुत सी दवाईयां नहीं ले सकते। स्वतः ही आप एक ब्राह्मण होते हैं। क्योंकि ज्यादातर शराबी आकर कब्नों के बीच बैठ जाते की तरह से हो जाएगें जो इस प्रकार की चीजों से दूर रहता है। हैं और ये लोग इन्हें शराब पीने के लिए उसेजित करते हैं । तब आप किसी भी ऐसे स्थान पर न तो जाएंगे और न खाना हैरानी की बात है कि पश्चिम में मनुष्य को दफनाया जाएगा खाएगे जहां लोग सहजयोग के विरुद्ध हैं या अधार्मिक हैं। मेरा ये तभी वह ईसा की तरह से पुर्नजीवित होगा! ईसा तीन दिनों में बताना अनावश्यक है कि आपको स्त्रियों की ओर नहीं देखता। एर्नजीवित हो गए थे, शुक्रवार को उनकी मृत्यु हुई और रविवार स्वतः ही आप ऐसा नहीं करेंगे। आपके धार्मिक चक्षु खुल की प्रातः वे पुर्नजीवित हो गए परन्तु किसी साधारण मनुष्य के जाएगें न ही मुझे स्त्रियों को ये बताना होगा कि पुरुषों के पीछे शरीर को यदि आप पाँच सौ वर्षों तक कब्न में रखें तो उसका क्या न दौड़ें। 1६. सहजयोग में आपको विष्णु तत्व का अनुसरण करना पड़ता ा 13 चैतन्य नाहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt यहूदी भी एक रक्षक की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जउन्हें ईसामसीह पसन्द नहीं। फिर भी उन्होंने ईसा की हत्या नहीं की। यह पॉल की शरारत थी। मोजूज़ से इतनी अच्छी शहरीयत पाकर भी वे धर्म को पहंचान न सके। अपनी शहरीयत को बन्द करके वे अत्यन्त धन लोलुप और कंजूस बन गए। वे किसी को पैसा उधार दे देंगे और वह व्यक्ति तब तक सूद दिए चला जाएगा जब तक उसकी समर्थ होगी, जब बह सुद न दे पाएगा तो वे उसके घर की जब्त कर लेगे और उसे बेच देंगे। वे अत्यन्त कर एवं कामुक बिन गए। अतः प्रायड नाम के राक्षस का जन्म हआ। जब कण्डलिनि उठती है और आपके मस्तिष्क पर छा जाती है तौ चैतन्य लहरियों के माध्यम से आप समझते हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। आप कोई भी गलत चीज नहीं लेते। चैतन्य लहरियां अगर ठीक नहीं है तो आप उस वस्त का सेवन नहीं करते और नम्रता पूर्वक उसे लेने से इन्कार कर देते हैं। मुझे आपको ये नहीं बताना पड़ता कि ऐसा करो ऐसा न करो। स्वतः ही आप न तो किसी की हल्या करेंगे और न ही कोई पाप करेंगे। यदि आप अभी तक परिपक्व सहजयोगी नहीं है तो शायद आप ऐसा करें, परन्तु परिपक्वता आने पर आप कोई गलत कार्य नहीं करेंगे और अपने गणों का आनन्द लेगें। जिन खबियों को हम गुण कहते हैं वे विष्णु तत्व है। हमारा यह कहना कि यह व्यक्ति सदगुणी है बहुत सीमित है। हो सकता है वह चित्रकला धर्म विवेक खो बैठे हैं। मां के बारे में जब उसने इतनी उल्टी में अच्छा हो। परन्तु आपके सदगुणी कहने का अर्थ है कि यह सहजयोगी है। ईसा मसीह ने इस हद तक कहा कि यदि कोई आपके बायें गाल पर चांटा मार दे तो अपना दाया गाल उसकी ओर कर दो। अब इसके विषय में सोचिये! कितनी सक्ष्मता से ईसाह मसीह धैर्य और सहनशीलता तक पहचे। ईसाइ राष्टरों की ओर देखिए जिन्होंने पूरे विश्व में जाकर लट खसट की। स्पेन के लोगों ने आकर बहुत से लोगों की हत्या की, अंग्रेज भारत आये और बहुत से लोगों को मारा, फ्रांस के लोग अफ्रीकन देशों में गए और उन लोगों की हत्यायें की। क्या ये ईसाई हो सकते हैं? ये किस प्रकार ईंसाई हो सकते हैं? फ्रायडभी यहूदी था। उसने मतुष्य की दुर्बलता को समझ लिया, और अमेरिका में उसे मान्यता मिल गई। यहां तक कि वे लोग सीधी बातें कही हैं, तो धर्म किस प्रकार हो सकता है? अब वे फ्रायड़ साम्राज्य का पंतन लिख रहे हैं। बहुत सी पुस्तकें लिखी जा रही है। क्योंकि आप लोग परम्परागत नहीं थे इसलिए पश्चिम में इन विध्वंसक लोगों के माध्यम से से विवेकहीन धर्म आए। आपके अन्दर विश्वास पूर्णतया समाप्त हो गया। मैं हैरान होती हूं कि किस प्रकार लोग फैशन को अपना लेते हैं। वे कहते हैं कि फरट हुए पहनों तो लोग फटे कपड़े पहनने लगते हैं। एक उद्यमी इस कार्य को शुरू करता है और बाकी सब उसका अनुसरण करने लगते हैं। परम्परागत रूप से यदि आपने समझ बहुत लिया होता कि कौन सी वेशभूषा आप पर फबती है तो आप उसी को पहनते, परन्तु उद्यमी लोग जो आपको कहते हैं आप वही अपना लेते हैं, मानो आप में मस्तिष्क या समझने की साम्थर्य ही न हो। परन्तु एक धार्मिक व्यक्ति न तो परिवर्तित होगा न धन बर्बाद करेगा और न ही ये सारी व्यर्थ की वस्तुएं जमा करेगा। केवल आपका आक्रामक न होना ही काफी नहीं है। कोई यदि आपके एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दसरा गाल उसकी ओर कर दें। ईसा ने यह कहा। उन्होंने (ईसा) सारे धर्मदिश सहजयोगियों के स्तर तक लाने का प्रयास किया। आपसे सहजयोग सौंदर्य किस प्रकार चमक उठेगा? मैथ्य के दसरे अध्याय में लिखा है कि आप अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति कैसे कहा कि च्छा हो कि वे अपने सिर में तेल लगाया करें। अगले करेंगे? स्पष्ट लिखा है कि आपको कितना सहनशील, शान्त, दिन आप इसे धो सकते हैं पर रात्रि के समय सिर में तेल डालें करुणामय और स्नेहमय बनना है। हैरानी की बात है ईसा मसीह नहीं तो क़ुछ समय पश्चात सारे पुरुष गंजे हो जाएगे तथा स्त्रियां सम महान अवतरण को ईसाई लोग इतने निम्न स्तर पर ले विग पहनगी। मैं एक माँ हूँ अतः मैं आपको सत्य वात आये। उन्हें ईसाई कहलवाने का कोई अधिकार नहीं। वे तो बताऊँगी। बहुत कठिनाई से सहजयोगियों ने इस बात को निम्न कोटि के मलेच्छ हैं। किस प्रकार उन्होंने अपनी संस्कृति स्वीकार किया। सिर में तेल डालना आवश्यक है क्योंकि तेल से का विनाश किया है! बाइबल में पॉल ने सारी शरारत की है। ही बालों का पोषण होता है। स्वस्थ्य और होने के लिए इस्लाम में जर्मया ने लिखा है कि जब मोजज दर पहाड़ी से दस सहजयोगियों को थोड़े से काम करने होंगे उन्हें बहुत अधिक धरमदिशों का संदेश लेकर आये तो उन्होंने यहदियों को, आज मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि वे धर्म पर खड़े हैं और दिखाई पड़ने वाले, सडेगले समाज में प्रवेश करते पाया। वे इतने परमात्मा के साम्राज्य में है। वे परमात्मा की सरक्षा में हैं, विराट कुपित हुए कि कहा कि "ये धर्मादिश आपके लिए दण्ड हैं।" उस की सुरक्षा में हैं। फिर भी कुछ कार्य तो उन्हें करने ही होंगे। काल में मोजूज़ ने ही ये आदेश यहदियों को दिये थे। परन्तु मुसलमान लोग इन्हें उल्टे सीधे ढंग से उपयोग कर रहे हैं। वे आपका उत्थान नहीं हो सकता। सहजयोग इतना महान है कि इतने झगड़ालू हो गए हैं कि परस्पर ही युद्ध किए जा रहे हैं। मैंने जब सहजयोग शुरू किया तो हिचकिचाते हुए सबको समृद्ध सन्तुलन एवं विवेक प्रदान करने वाले धर्म को अपनाए बिना अर्धामिक लोगों को भी साक्षात्कार प्राप्त हो गया। उत्थित होने चैतन्य लहरी 14 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt पर अधर्म शनैः शनैः क्षीण हो जाता है । बहुत से लोग मुझे अचानक मैं पाती हूं कि सहजयोंगी अत्यन्त नस हों गए हैं और अपने भूतकाल के विषय में लिखने का प्रयत्न करते हैं। भूतकाल अपनी प्रशंसा भी वे सुनना नहीं चाहते। आप लोगों को रोग समाप्त हो गया है। इसे भूल जाओ, जिस चीज में सेरी कोई मुक्त कर सकते हैं, आप घनवन्तरि हो गए हैं। आप लोगों को दिलचस्पी नहीं वह मझे आप क्यों बताना चाहते हैं? एक बार आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। विष्णु के सारे तत्व अब आपमें जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया तो पिछला सब जागृत हो गए हैं, आप इनका उपयोग करें। किसी ने कहा कि, "मैं जनता में कार्य नहीं करना चाहता क्योंकि मैं, नहीं चाहता कि मेरा अहम् वापस आ जाए। वे इतने मधुर हैं। अहम् के बढ़ जाने का उन्हें भय है। मैंने कहां कि यह अहम् अब वापस नहीं आएगा क्योंकि अब वहां विष्णु विराट बनकर बैठे हैं। वे आपकी रक्षा करेंगे आपको स्वयं में विष्णु पद प्राप्त हो गया है। आप विष्णु जी के एक हजार नामों को पढ़े तो आप जान जाएगे कि आपमें कितने गण हो सकते हैं। समाप्त। कलयुग में मैंने विश्व में स्थिति को देखा, मुझे लगा कि इस दुर्व्यवस्था में लोगों की कण्डलिनी को जागृत किये बिना धर्म को स्थापित नहीं किया जा सकता। जब तकं सामूहिक रूप से आत्म साक्षात्कार नहीं दिया जाता धर्म स्थापित नहीं हो सकता। लोगों को यह बताना कि ऐसा करो, ऐसा न करो, व्य्ं होगा। यह विचार बहुत सफ़ल हुआ। में आप लोगों में अपने स्वप्न को साकार होते देख रही है। अतः विष्ण तत्व को स्थापित करना हमारे लिए कठिन कार्य नहीं है। हमें मात्र इसे पहचानना है। परमात्मा आपको आशिर्वादित करें। गुरु पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबैला 24.07.1994 (सारांश) और सायं उसे दत्तात्रेय की पूजा करनी पड़ती थी इतना पैसा खर्च करने के बाद भी उसे आत्मसाक्षात्कार नहीं मिला था। कहने लगा कि "आत्मसाक्षात्कार देने के लिए आप केवल दो मिनट लगाती हैं। ये क्या है? आप मेरे प्रति इतनी दयामय कैसे हैं?" मैं नहीं समझ पाई कि उसे क्या उत्तर दें। उसके गुरु के विरूद्ध मैं कषछ बोलना नहीं चाहती थी क्योंकि कि मैं जानती हैं कि वह आत्मसाक्षात्कारी है। वास्तव में ये बहुत से गुरु और अवतरण मानव के सम्मुख असहाय होते हैं। सम्भवतः उनके इतने अच्छे शिष्य न हों जितने मेरे हैं, या शायद परमात्मा को खोजने वाले सभी अच्छे लोगों ने इस समय सहजयोगियों के रूप में जन्म लिया है । उन पर मझे कभी कठिन परिश्रम नहीं करना पड़ा। कभी कहीं कोई एक व्यक्ति हमें भी ऐसा मिल जाता है जो हमें परेशान करने का या समस्याएं खड़ी करने का प्रयत्न करता है। आज आप सभी लोग गुरु रूप से मेरी पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। मेरे अन्दर गुरुके बहुत से गुणों का अभाव है, जैसे मैं आपके साथ अधिक सख्त या आपके प्रति कठोर नहीं हो सकती। मैं वास्तव में नहीं जानती कि किसी गलत कार्य करने पर आपको किस प्रकार दण्ड दें। हो सकता है कि इसका कारण यह हो कि आम गुरुओं के शिष्य आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते। आत्मसाक्षात्कारी न होने के कारण उन शिष्यों से सूक्ष्म समस्याओं के विषय में बातचीत करने में गुरुओं को कठिनाई होती है। मैं आजकूल के कुछ गुरुओं को भी जानती हैँ जो बहुत कठोर हैं। वे कहते हैं किं उन्हें घोर तपस्या और अपने गुरुओं के घोर अनुशासन में रहने के पश्चात आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। कभी-कभी तो मुझे ऐसे शिष्यों पर दया आती थी जिन्हें अभी तक आत्मसमक्षात्कार की प्राप्ति नहीं हुई। उनके गुरु आत्मसाक्षात्कारी थे परन्तु थे बहुत कठोर। ंदि आधुनिक समय इतना विशिष्ट है कि इसमें लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना बहुत सुगम है। मोजूज़ ने पतित समाज के लिए नियम बनाये थे। उस समय यह कार्य बहुत कठिन था। इन नियमों को शहरियत कहते हैं। मुसलमानों ने इसे अपनाया। आज भी शहरीयत के अनुसार इतने कठोर दण्ड दिये जाते हैं कि आप कोल्हापुर में मैं एक व्यक्ति से मिली उसे एक मिनट में आत्मसाक्षात्कार मिल गया। उसने मुझे बताया कि उसके गुरु ने उसे एक महीने में आठद्रिन व्रत रखने को कहा था। फिर उस गुरु ने उसे गांव में दत्तात्रेय का मन्दिर बनाने को कहा और प्रतिदिन पैतन्प लहरी 15 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt विश्वास नहीं कर सकते और सारे धार्मिक कानूनों का दबाव महिलाओं पर है। बाइबल में भी ईसा मसीह ने लिखा है कि "यह है। परन्त उन्होंने ये नहीं बताया कि क्रोध आता किस प्रकार है। सारे दस धरमदिश कुछ भी नहीं है आपको इन से परे जाना होगा।" इसके बारे में उन्होंने कोई बात नहीं की कि आपका जिगर और वेकहते हैं "यदि आपकी एक आंख शरारत कर रही है या पाप कर आपका पालन पोषण ही आपके क्रोध का स्रोत है, ये दोनों चीजें रही है तो इसे निकाल दीजिए।" इसके द्वारा पूरे शरीर को अपवित्र आपको भयंकर क्रोध देती हैं। जब तक आप साक्षी रूप से स्वयंको करने का क्या लाभ, या यदि आपकी एक बाजू कोई गलत कार्य कर नहीं देखते तब तक आपका आत्मसाक्षात्कार अर्थहीन है। अपने रही है तो अच्छा हो आप इसे काट दें नहीं तो एक बाजू के कारण को स्वयं से अलग करके स्वयं देखें कि आप में क्या दोष है। मान लो पुरे शरीर को कष्ट उठाना होगा उन्होंने कहा कि "व्यक्ति को अपवित्र नहीं होना चाहिए।" पर मैं कहंगी आपकी दृष्टि भी को काब करने के स्थान पर, उसे चाहिए कि स्वयं को वश में करे। अपवित्र नहीं होनी चाहिए। आपकी आंखों में यदि किसी स्त्री के क्रोध सर्वप्रथम है। कोई भी व्यक्ति यदि संत बनना चाहता है तो प्रति कामुकता है तो आपने एक घोर पाप किया है और ऐसा करने उसे पता होना चाहिए कि क्रोध को कोई स्थान नहीं देना हैं। ऐसा वाले लोग नर्क में जाएंगे। अतः व्यक्ति की दृष्टि भी अपवित्र नहीं किस प्रकार करें? सर्वप्रथम आप स्वयं को साक्षी रूप से देखें कि होनी चाहिए। एक अन्य बात जो उन्होंने कही वह यह कि यदि आपका आचरण कैसा है? उदाहरणार्थ बनावटी रूप से क्रोधित हो कोई आपको एक गाल पर चांटा मार दे तो आप उसकी ओर दूसरा कर आप शीशे के सामने खड़े हो जाएं और अपने चेहरे को देखें कि गाल कर दें। मझे जब इन नियमों का पता लगा तो मैंने कहा "ऐसे लोग विश्व में कहां मिल सकते हैं।" ये बहुत सुक्ष्म चीज है। अन्तिम धर्मदेश बहुत ही अच्छा था, "आपको धर्मपरायण होना चाहिए." सभी घर्मशास्त्रियों और पाखंडियों अर्थात् पादरियों से अधिक धर्म परायण। मैं सोचा करती थी कि ऐसे लोग ऊपर क्रोध को निकालना होता है। जैसे हम सहजयोग में करते हैं. कहां मिलेंगे जो ईसा के कथन के थोड़ा सा नजदीक भी हों। उस अपना नाम लिख कर हम इसकी पिटाई करते हैं। स्वयं पर क्रोधित वक्त इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कृष्ण ने स्पष्ट कहा कि क्रोध ही सारी बुराइयों को जन्म देता कोई व्यक्ति अत्यंत क्रोधी है तो इस पर गर्वित होने या इससे दूसरों कैसा लगता है। आप हैरान हॉगे कि आपकी शक्ल बन्दर या चीते जैसी या उस पशु जैसी दिखाई देगी जो आप पिछले जीवन में रहे होंगे। तब आपको हैरानी होगी कि अभी तक भी अपने पूर्व जन्म की पशुता के चिन्ह आप साथ लिए घूमते हैं। दूसरी चीज अपने हो कर आप देखेंगे कि आपने अपने क्रोध को जीत लिया है। क्योंकि क्रोधी लोग दूसरों को दुख देते हैं स्वयं को नहीं। निसंदेह कभी-कभी उन्हें अच्छा नहीं लगता और वे सोचते हैं कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, इस प्रकार उनमें बायीं विश्द्धि की समस्या भारत में लोग संस्कारवश धार्मिक हैं या आप कह सकते हैं कि परम्परावश वे अत्यंत धार्मिक हैं। मेरे समय में दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में हमारा परिवार अत्यन्त ही धारमिक था और वातावरण बहुत ही धार्मिक था। फिर भी ईसा द्वारा बताई बात न थी। दोषभाव) उत्पन्न हो जाती है। परन्त यदि आप अपने पर क्रोधित होने लगेंगे, "मैंने ऐसा क्यों किया, ऐसा करने की मेरी इच्छा क्यों हुई?' तो, आपको हैरानी होगी, कि आपका क्रोध कम हो जाएगा। भी उदाहरणतया क्रोध को बहुत ही मूल्यवान गुण माना जाता था। लोग ऐसी बघारा करते थे कि मैं बहुत नाराज हूँ। निसन्दह भारत ारीरिक रूप से भी आप देखें कि आपको जिगर की समस्या है। में ये कोई नहीं कह सकता कि 'मैं तुमसे घृणा करता हूँ क्योंकि ऐसा कहना वहुत ही पापमय और मुर्खतापुर्ण समझा जाता है। किसी से इस तरह स आप अपना सामना करें और कहें कि मझे जिगर की घृणा करना अधार्मिक है। जब मोहम्मद साहब आये तो उन्होंने देखा, कि कोई भी चीज सफल नहीं है तो उन्होंने शहरीयत को आध्यात्मिकविकास में बाधा डालने की इसकी हिम्मत कैसे हुई? अपनाया, इसे स्वीकार किया। कहने लगे ठीक है शहरीयत को कार्यान्वित किया जा सकता है। केवल महिलाओं को ही कष्ट लिए ऐसा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु प्रायः सहजयोगी उठाने पड़े पुरुषों को नहीं। कोई स्त्री यदि व्यभिचार करती थी तो अन्य लोगों के लिए साक्षी अवस्था विकसित करते हैं। सहजयोग उसे दण्ड दिया जाता था। इस समस्या से छुटकारा पाना है। मेरा शत्रु बन कर मेरे सर्वप्रथम साक्षी अवस्था विकसित करनी है। सहजयोगी के का द्वार सबके लिए खुला हुआ है, अतः कुछ पागल, अटपटे और मैं जानती हूँ कि ये सारी बातें किसी पर थोपी नहीं जा सकती। कुछ दुष्टचरित्र व्यक्ति भी सहजयोग में चले आते हैं। आपको ईसा ने जो भी कुछ कहा वह ध्यान की अवस्था में कहा होगा। इसा ऐसे लोगों से घिरे हुए थे जो उनकी हत्या करना चाहते थे और समस्या गुरत और बेकार किस्म के लोगों की, जिनके विषय में अन्ततः उन्होंने ईसा की हत्या कर दी। उस वक्त वे रोमन लोग आप नहीं कह सकते कि यह सहजयोगी बनेंगे कि नहीं, चिन्ता कर अत्यंत क्रूर थे। तो वे कैसे कह सकते थे कि कोई यदि आपको एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल उसकी ओर कर दो? वे अत्यंत क्रोधी स्वभाव के लोग थे। दखना है कि आप किस चीज की चिन्ता कर रहे हैं? क्या आप रहे हैं या उन लोगों का आनन्द ले रहे हैं जिन्हें सहजयोग प्राप्त हो गया है। क्रोध कभी-कभी लोगों को पागल बना देता है। आपकी चैतन्य लहरी 16 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt बैतन्य लहरी खोपड़ी में चढ़कर ये आपको पागल कर देता है। सहजयोग में भी भावना ग्रस्त कहलाता है। परन्तु वह तो दूसरों को असुरक्षित कर कुछ पागल लोग हैं। परन्त वे इतने पागल हो गए हैं कि अब देता है तो वह कैसे असुरक्षित हो सकता है? आपको उसे बताना उन्हें न तो क्रोध आता है और न ही वे कष्टदायी हैं वे मात्र होगा कि वह पूर्णतया सुरक्षित है। आप यदि ऐसे व्यक्ति को कहें पागल हैं ऐसे लोगों की चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। कि वह असूरक्षित है तो वह सोचता है, "हाँ मेरी दशा दयनीय है, अन्य लोगों को साक्षी भाव से देखने की जरूरत नहीं है। स्वयं को मैं यदि किसी की हत्या कर दें तो भी ठीक है क्योंकि मेरी अपनी साक्षी भाव से देखें। मुझे लगता है, कभी-कभी अधिक तपश्चर्या दशा दयनीय है।" ऐसे विचार इस प्रकार कार्य करते हैं कि आप के कारण भी क्रोध आता है। और अत्याधिक अतिवाद के कारण अपने विषय में विश्वस्त हो जाते हैं। परन्तु आपको साक्षी भी कुछ सहजयोगी हर चीज के बारे में अत्यन्त कठोर हैं। यह बनकर देखना चाहिए, देखना चाहिए कि मैंने अभी तक क्या पागलपन है सहजयोग में सभी कृुछ सहज है। यह स्वतः है, किया है। क्या मैंने स्वयं पर विजय पा ली है? सहजयोग स्वयं पर आपको कठोर नहीं होना। आपको तुनकमिजाज नहीं होना है। विजय पाने के लिए है, दूसरों को जीतने के लिए नहीं। अगर आप मैंने यदि काली साड़ी आदि न पहनने को कह दिया तो यह ब्रह्म ऐसा नहीं कर पाएं है तो आप स्वप्रमाणित है कि, "मैं एक वाक्य नहीं बन गया। कोई यदि काली साड़ी या काले कपड़े सहजयोगी हैं, मैं अति महान हैं, आदि-आदि।" इससे कोई पहनकर आ जाए तो आप लोग उससे परे दौड़ने लगते हैं, ऐसा अन्तर नहीं पड़ता। क्या आपने स्वयं को परिवर्तित कर लिया है ? नहीं होना चाहिए। आप स्वयं गुरु हैं। हमें किसी भी व्यक्ति से क्या अब भी आपके सम्मुख लोग स्वयं को असुरक्षित मानते हैं? क्यों डरना चाहिए, चाहे वो काला हो या सफेद हो या चाहे कुछ यदि लोग स्वयं को असरक्षित समझते हैं तो उनमें कोई कभी है और हो? आपको भय क्यों होना चाहिए? और यदि आप स्वयं को असूरक्षित पाते हैं तब भी कोई समस्या भय क्रोध का दूसरा पक्ष है। एक क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति है। यदि आप मेरे सामने यह बहाना करते हैं कि श्री माताजी मैं सदा भयभीत होता है क्योंकि वह स्वयं को दूसरे में देखता है। उसे लगता है कि दसरा व्यक्ति भी उसकी तरह से ही क्रोधी होगा और उस पर आक्रमण कर देगा। अतः वह सदा बचाव की आवश्यक है। बद्ध की तरह से भावना से ग्रस्त रहता है। सहज स्वभाव से हम निडर होकर रहते भाषण दे रहे थे अचानक किसी ने आकर उनको गाली देना शुरू हैं। कहा गया है, कि"भय पाप का फल है" परन्तु मैं कहंगी कि यह क्रोध का फल है। उदाहरणारथ, जो लोग अति आक्रामक होते हैं उनमें भय उत्पन्न हो जाता है। जिन देशों ने अन्य देशों हमें अच्छा बनने में सहायता दे रहे हैं और तुम इन्हीं पर ही पर आक्रमण किए उन पर शासन किया और जिन्हें अपने अहम् चिल्ला रहे हो। तब उस व्यक्ति को पछतावा हुआ। वह बुद्ध से और क्रोध का अनुभव प्राप्त है वे अत्यन्त भयशील देश बन मिलने गया पर तब तक बद्ध दूसरे गांव जा चुके थे। अगले दिन गए। विशेषतौर पर जो सिपाही युद्ध में जाकर बहुत से लोगों का जा कर वह व्यक्ति बद्ध के चरणों पर गिर गया। भगवान बुद्ध ने वध करते हैं, वे डरपोक बन जाते हैं। अमेरिका में मैंने एक कहा "क्या बात है, आप मेरे चरणों पर क्यों गिर रहे हैं?" उसने सिपाही से पृछा कि तुम्हें किस चीज का डर है? उसने कहा कि कहा "मैं लज्जित हूँ, मझे नहीं पता था कि आप मुझे लगता है, क्योंकि मैंने बहुत से लोगों की हत्या की है इसलिए आत्मसाक्षात्कारी हैं, मैं आप पर चिल्लाया और उल्टी-सीधी बहुत से लोग मेरी हत्या करेंगे, मैंने कहा "आप ऐसा क्यों सोचते बातें कहीं। कृपा करके मुझे क्षमा कर दीजिए।" बुद्ध ने कहा हैं? आपकी कोई क्यों हत्या करेगा?" वह इतना भयभीत था कि "आपने मझे कब अपशब्द कहे।" उसने कहा "कल"। बुद्ध असुरक्षित हैं, तो आप सहजयोगी नहीं हैं। गुरू बनने के लिए आपमें क्षमा करने का विवेक होना अत्यंत एक बार बुद्ध किसी गांव में कर दिया। किसी अन्य ने उस व्यक्ति से पृछा कि "आप ये अपशब्द क्यों कह रहे हैं? ये तो आत्मसाक्षात्कारी बद्ध हैं। ये तो जब बह मेरे सम्मुख आया तो वह चकांप रहा था। कहने लगे "कल तो समाप्त हो गया है, अब क्षमा करने के लिए हमारी आक्रामकता हम पर ही दनदनाती है और हमें हर क्या शेष है।" बह पछताता हुआ क्षमा मांगने के लिए आया पर चीज़ का भय लगने लगता है। सहजयोग में आप स्वयं को एक बुद्ध ने कहा कि विशिष्ट व्यक्तिल्व के रूप में देखें। आपका भूतकाल समाप्त हो सहजयोगियों में भी होना चाहिए। गया है, इसकी आपको कोई चिन्ता नहीं है। निर्भय अवस्था में अब आप रहे, यह अवस्था सहजयोग द्वारा प्राप्त करनी है। एक आवश्यक है। जैसे डामा देखते हुए लोग बच्चों की तरह बार जब आप जान जाएंगे कि आप सुरक्षित है तो न आपकी भये ही-ही कर रहे थे न कोई परिपक्वता थी और न कोई सम्मान। सताएगा और न ही आप क्रोधित होंगे। कभी-कभी हम इसके निसंदेह आप हंस भी सकते हैं पर केवल तभी जब कोई हंसने की विपरित कर बैठते हैं। कल तो समाप्त हो चुका है। यह महान गुण स्वयं को गुरू कहने के लिए आप में परिपक्वता होनी से बात हो। परन्तु जब वे इतना अच्छा ड्रामा कर रहे थे तब इस यह सर्वसामान्य बात है कि एक आकामक व्यक्ति असुरक्षा तरह की बचकानी हरकतें करना और उनका मजाक उड़ाना! चैतन्य लहरी 17 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt परिपक्व होते तो उन लोगों को भी परिवर्तित कर देते। परिपक्व व्यक्ति तो अपना और अन्य लोगों का आचरण सुधारते हैं। लोग उन पर हैरान होते हैं। ऐसे लोग गिने चुने होते हैं। इन घटिया स्त्रियों में यह आम देखा गया है। वे ऐसी चीज़ों पर हंसती हैं जिन पर उन्हें हंसना नहीं चाहिए। इससे पूर्व अपरिपक्वता झलकती है। पैसे के मामलों में भी ऐसा ही आचरण है। धन के प्रति इतना मोह गुरु के लिए अच्छा नहीं है। मुझे लोगों के विषय में मैं इसलिए बता रही हैँ ताकि आप इन्हें सनने बिल्कुल कोई मोह नहीं है। अन्दर से मैं पूर्णतः निर्मोह है। बैंकिंग और इनका अनुसरण करने का प्रयत्न न करें। परन्तु इस प्रकार और लेखा-जोखा मैं नहीं जानती। कोई अन्य हिसाब-किताब के लोग अत्यन्त ढीठ किस्म के होते हैं और ऐसे बेकार सहजयोगी रखता है। सहजयोग में यदि आपको धन का मोह है तो आप की अनुसरण सब लोग करने लगते हैं। अधिक ऊंचाई तक नहीं जा सकेंगे आप का ध्यात्मिक उत्थान के लिए आये हैं। मैं आपको हिमालय में जाके ठंड में या सिर के भार निर्विचारिता से हममें ध्यान धारणा आती है। उत्थान पाने के खड़े होने के लिए नहीं कहती। मैं आपको कभी धन देने के लिए लिए आपका निर्विचार समाधि में होना आवश्यक है, इसके बिना नहीं कहती। अपनी इच्छा से और प्रसन्नता से आप जो चाहें आपका उत्थान नहीं हो सकता। क्या आप निर्विचार समाधि में सहजयोग को सहयोग दे सकते हैं। हममें परिपक्वता किस प्रकार आती है? ध्यान-धारणा एवं रहने का अभ्यास करते हैं? मान ले सड़क पर चलते हुए आपने एक सुन्दर वृक्ष देखा, तो आपको निर्विचवार हो जाना चाहिए। यह परमात्मा की रचना है। निर्विचारिता में ही सहज कार्यान्वित आपको आत्म निरीक्षण करके देखना है कि आपने सहजयोग के लिए क्या किया है, कितने लोगों को आपने होता है, इसके बिना नहीं होता। आप जो चाहे योजना बनाएं आत्मसाक्षात्कार दिया है? आत्मसाक्षात्कारी होने के बावजूद और जो चाहे करें, यह कार्यान्वित न होगा। इसे यदि सहज पर इन गुरुओ में शक्ति नहीं थी। आपमें आत्मसाक्षात्कार छोड़ देंगे तो कार्य हो जाएगा। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी शक्ति है। कितने लोगों को आपने आत्मसाक्षात्कार दिया है? नहीं कि आप कार्य के प्रति आलसी या अव्यवस्थित हो जाएं। एक बार यदि आप ऐसा करने लगते हैं और दस बीस लोगों को ढंढ कर आत्मसाक्षात्कार दे देते हैं तो आप महान गुरु बन बैठते पाएंगे कि किस प्रकार सहजयोग आपकी सहायता कर रहा है? हैं, अपने महान गुरुत्व के बारे में बातें करने लगते हैं और समझते हैं कि आप ही आदि शक्ति हैं। यह आज्ञा के स्तर पर कहता वह होता है, निसंदेह बहुत से लोगों ने सहजयोग के लिए बहुत कार्य होना होगा। यदि किसी कारण आपको देर हो जाए तो आपको किया अन्यथा आज का दिन देखना सम्भव न होता। परन्तु सतर्क होना होगा कि आपको देर हो गई। तब आपको बन्धन जिन्होंने कुछ नहीं किया उन्हें मैं बता दूँ कि वे वहीं के वहीं खड़े देना चाहिए और अपनी कण्डलिनी उठानी चाहिए ताकि किसी हैं। आपकी कण्डलिनी उत्थित हो गई लेकिन दूसरे लोगों को देने ी तरह आप उस व्यक्ति से भिल सकें। यदि आप बन्धन देते हैं के लिए आपने कुछ नहीं किया। मैं जानती हूँ कि कुछ लोग ऐसे हैं और कहते हैं कि मझे वहां 11 बजे तक अवश्य पहुँचना है तो जो दूसरों को जागृति नहीं देना चाहते क्योंकि वे सोचते हैं कि वे पकड़े जाएंगे। अहम् बढ़ते के डर से वे अन्य लोगों की देखभाल नहीं करना चाहते। सहजयोग में रहने का ये तरीका नहीं है। जैतन्य लहरियां देना भी भल जाते हैं। परिपक्व होने के लिए आपको कुछ न कछ करना होगा सहजयोग का प्रचार करना सर्वप्रथम आपको समझना है कि आप सहजयोगी हैं और यदि अत्यंत आवश्यक है। हम विश्वशान्ति, विश्व जागृति की बात आप परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े हुए हैं तो आप पूरी करते हैं। पर हमने इसके लिए क्या किया। सर्वप्रथम अपने लक्षण सुधारिये और ये सुधार केवल निष्कपट आत्मनिरीक्षण और हर क्षण स्वयं को तथा अपने आचरण को साक्षी भाव से देखने पर ही सम्भव है। भी देने की आपको अत्यन्त चुस्त होना होगा, चुस्त हुए बिना आप न देख उदाहरणतया, आप किसी व्यक्ति से मिलना चाहते हैं और वह है कि आपसे 11 बजे मिलेगा। तो आपको चौकस प्रायः आपको देर नहीं होती। सहज आपकी सहायता करेगा। परन्तु आप तो बन्धन देना, अपनी कुण्डलिनी उठाना और स्थिति को सम्भाल सकते हैं। यह अति साधारण बात है। बहुत गर्मी थी, सबने कहा बहुत गर्मी है। मैं उठी और कहा मैं इसे ठंडा कर दूंगी। पन्द्रह मिनट में मैंने गर्मी भगा दी। यह मैंने नहीं किया सर्वव्यापक शक्ति से मेरी एकाकारिता ने यह बचपन से ही मैं दादी मां की तरह से थी। कोई मुरखता, कार्य किया। परन्तु आपका यह सम्बन्ध सच्चा, दढ़ और मुर्खता पूर्ण मजाक आदि मैं सहन न कर पाती थी अब मैं दादी निष्कपट होना चाहिए तथा अपने मस्तिष्क में हर समय आपको मां हूँ। आप में भी यह परिपक्वता आनी आवश्यक है। यह ज्ञान होना चाहिए कि आप जुड़े हुए हैं। परमात्मा से अपनी आदतवश घटिया तरीके से बातचीत करना कुछ लोगों के लिए एकाकारिता का आभास यदि हर समय आपको है तो यह अवस्था ठीक है क्योंकि वे सहजयोगी नहीं है परन्तु यदि कोई उनका प्राप्त करना अत्यन्त साधारण है। चौकन्ने न होने के कारण अनुसरण करता है तो वह व्यक्ति परिपक्व नहीं है। यदि वे परमात्मा की जिस महान शक्ति से आप जुड़े हुए हैं उसके चैतन्य लहरी 18 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt चमत्कार आप देखना नहीं चाहते। अन्य चीज़ों में आप व्यस्त अत्याधिक उदार है। मेरे परिवार के लोग भी है। मुझे हैं। आपका चित्त कहीं और है, दूसरी चीजों को आप देखते हैं आवश्यकता से अधिक उदार समझते हैं। परन्तु आत्म निरिक्षण और अचानक आप कह उठते हैं, "मैं कैसा सहजयोगी हैं? मैं यह द्वारा आप लोग, निसन्देह उदार बन सकते हैं। यह उदारता बहने कार्य नहीं कर सकता"। अपनी ध्यान धारणा के माध्यम से लगेगी। ऐसे लोगों को जानती हूँ जिनके पास बहुत धन है पर निर्विचारिता में परिपक्व हों। निर्विचार समाधि में। बिना वे एक पाई सहजयोग को नहीं देगें उदार विवेक आपमें तभी निर्विचार समाधि की अवस्था को बढ़ाये आप इसमें परिपक्व आयेगा जब आप जीवन के लक्ष्य को जान जाएंगे और यह जान नहीं हो सकते और न ही निर्विचार समाधि में रह सकते है। मैंने देखा है कि लोग सहजयोग से सभी प्रकार के चमत्कार परिपूर्ण करमे के लिए या बिना किसी कत्ता भाव के इसके लिए और सब प्रकार की आशा करते हैं। पर के यह कभी नहीं सोचते कुछ करने की योग्यता पाने के लिए! ईसा ने कहा है"आपके दायें कि हम क्या सहायता कर रहें है। हमारी उपलब्धि क्या है? हम हाथ ने क्या दिया है इसका पता आपके बांयें हाथ को नहीं लगना है कहाँ? आज्ञा पर आपको अत्यन्त सावधान होना पड़ेगा। यह बात पुरुषों के लिए है, कि यदि बिना आज्ञा को पार किये यदि इसा ने जो कहा है उसे प्राप्त करने के लिए आपका आप सहजयोग का प्रचार करने लगते है तो आप वास्तव में एक आत्मसाक्षात्कारी होना आवश्यक है। मैथ्युज का पांचवा व्यर्थ प्रकार के व्यक्ति बन सकते है, सहजयोगी नहीं। नेतापन अध्याय पढ़े। यह इतना सूक्ष्म है कि हैरानी होती है कि ईसा के की बात एक मिथक है। और इस मिथक को इसकी वास्तविकता नाम पर यह धर्म इतनी विपरीत दिशा में कैसे चला गया है? में ही देखा जाना चाहिए। आप अगुआ है या नहीं इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता। परन्तु परिपक्वता आनी आवश्यक हैं। मैं यह सब इस लिए बता रही हैं क्योंकि इस जन्म में मैंने किसी और उन्हें जैसे चाहें सता सकें। पहले गर अपने शिष्यों के प्रति को दण्डित न करने का निर्णय किया है। अतः स्वयं को देखें। अत्यन्त क्रर हुआ करते थे। मैं एक बार अमरनाथ गई, वहा स्वयं को समझें और महसूस करें कि मैं आप सबको अच्छी तरह स्वामी जग्ननाथ मुझे मिलने के लिए आयें। उन्होंने कहा मेरे से जानती हैं। पर मैं चाहती हूँ कि आप अपनी गलती को महसूस रारु ने कहा है कि आदि शक्ति अमरनाथ आ रही है और मैं उस करें और देखें कि हम क्या उचित कार्य कर रहे हैं। सहजयोग का समय वहा आने का प्रयत्न करुंगा। उसका गुरु एक आंकलन इस बात से न करें कि आप इससे कितने लाभ उठा रहे साक्षात्कारी व्यक्ति था जो वहां आया उसने पूछा क्या वे हैं। यदि आपको सहजयोग से लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है, तो आपके पास आयें या आप उनके पास जायेगीं।" मैंने कहा आपमें ही कोई कमी है। इस बात को जब आप समझ जाएगे तो "देखिए मैं एक माँ हूँ, मैं गुरु नहीं हूँ, गुरु अपना स्थान नहीं आप अधिक सक्ष्म हो जाएंगे और आपकी स्थूल लिप्साओ का छोड़ते वे इसे तकिया कहते है। गरु को अपना स्थान नहीं छोड़ना अस्तित्व नहीं के बराबर हो जाएगा। आपमें प्रेम होना चाहिए मोह नहीं। आपके अन्दर पूर्ण निलिप्सा आनी आवश्यक है और पास जाना चाहिए। मैंने कहा मैं माँ हूँ और मैं तुम्हारे साथ मैं जाएंगे कि आप यहां किस लिए है? मात्र स्वयं को सहजयोग से चाहिए "। में "मैं" "में" का बिगुल नहीं बजना चाहिए। लोग गुरु बनना चाहते है क्योंकि उनके विचार में शक्तियां प्राप्त करके आप दूसरों पर हावी हो सकें, जो चाहे उन्हें कह सकें चाहिए उसे वही बैटठे रहना चाहिए और ताकि लोगों को उसके यह क्रोध से मुक्त होने पर ही सम्भव है। चलगीं । मैं वहां जाकर उससे मिली और उस गुरू से पूछा"आप जगन्नाथ की आज्ञा को क्यों नहीं खोलते हैं"? मैंने कहा" आप गुरु हैं मालिक है"। वह कहने लगा "तो क्या हुआ, मेरे गुरु ने से दूसरी आवश्यकता उदारंता द्वारा भौतिक चीजों के मोद से छुटकारा पाना है। किसी को कुछ दे देना बहुत अच्छी बात है। उदारता आनन्द के लिए है। एक बार जब आप उदारता का कभी मेरी आज्ञा को नहीं खोला, हर समय अपने अहुम युद्ध आनन्द लेने लगेगें तो आप जान जाएंगे कि प्रेम और करुणा करके मुझे आज्ञा ठीक करनी पड़ी", मैंने कहा "पर आज्ञा को आपसे दूसरो तक बहने लगे है। छोटी-छोटी बाते हैं। मैं जानती खोलना तो बहुत आसान है", तब मैंने उसकी आज्ञा खोली गुरु हूँ कि आप मुझ से प्रेम करते हैं और मुझे उपहार देना चाहते हैं। ने कहा, "आप माँ है, जो जी चाहे कीजिये, हम ऐसा नहीं करेंगे । परन्तु यह प्रेम अन्य सभी लोगों तक फैलना चाहिए। आपको आत्मसाक्षात्कार एवं आत्मविकास के लिए यदि आप उनसे अन्य लोगों का पता होना चाहिए कि उनकी क्या आवश्यकता है कठोर परिश्रम नहीं करवाती तो वे कभी ठीक नहीं होगें। ये और आपको क्या करना है। किसी को यदि कोई आवश्यकता है मानव ऐसे ही है।" मैंने कहा "मेरे लिए नहीं।" वह कहने लगा, आप मां है, उन्हें क्षमा करती है, जो चाहे करें, उन्हें परिवरतित सकते है? क्या आप अन्य लोगों के बच्चों को कुछ दे सकते हैं? करें या उनकी सहायता करे, पर मैं नहीं कर सकता"। उसने मेरे अच्छा होता कि यह उदारता आपमें होती। मैं उदारता आप पर चरणों पर प्रणाम किया और कहने लगा "ये आदि शक्ति है, तुम " जब हम जाने लगे तो बाबा जगन्नाथ ने तो क्या आप उसको वह दे सकते हैं? क्या आप उसे प्रेम कर "आ 1. थोप नहीं सकती सभी लोग कहते हैं कि श्री माता जी आप इनके गुणगान करो। 19 चैतन्व लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt बताया,"श्री माता जी परमात्मा की कृपा से आपने मेरी आज्ञा प्रकाश देना है, आप में शक्तियां हैं और आप यह कार्य कर सकते को खोल दिया है।" मैंने कहा, "क्या हुआ था?" उसने कहा, हैं। वास्तव में आप लोगों को परिवर्तित कर सकते हैं, उन्हें रोग जब मैं आया तो मेरे ने मुझे दो थप्पड़ मारे। मैं उसका मुक्त कर सकते हैं, पर आप ऐसा नहीं करते। सभी रोगियों को आश्रम चलाता था। फिर भी उन्होंने मुझे कएं में एक रस्सी से आप मेरे पास ले आते हैं और कहते हैं,"श्री माता जी इन्हें ठीक बांधकर उल्टा लटका दिया। जिसे कभी वे कएं में ज्यादा लटका कर दीजिए"। आत्मसाक्षात्कार देने के लिए भी वे उन्हें मेरे पास देते और कभी वे ऊपर को खींच लेते। सात बार उन्होंने मुझे ले आते हैं। क्या जुरूरत है? आप सब जानते हैं कि किस प्रकार पानी में डाला और फिर बाहर निकाल लिया"। मैंने पृछा, आत्मसाक्षात्कार देना है और किस प्रकार व्यक्ति को ठीक करना "उसने ऐसा क्यो किया" ? वह कहने लगा "मैं आपको बता दूँ है। तो आप लोग यह कार्य क्यों नहीं कर सकते? पहला कारण कि मैं कभी-कभी धूम्रपान करता था"। मैंने कहा,"उसने कभी यह हो सकता है कि हम अपेक्षित रूप से परिपक्व न हों, पर आप आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, तो आप धूम्रपान करते ही तो परिपक्व होते हुए भी अपनी शक्तियों को धारण नहीं कर रहेगें"। कहने लगा "वे चाहते हैं कि बिगडी हुई आज्ञा के रहते रहे। आपको इस पर विश्वास नहीं है। नम्रता ठीक है, पर हुए मैं सारी बरी आदते छोड़ दूं। अब आपने मेरी आज्ञा को खोला आपको जान आवश्यक है है कि यह शक्ति है क्या। मान लो एक है और मैं ठीक हैं। मुझे लगा कि उस गरु का आचरण बड़ा ही राजा को आप सिंहासन पर बिठा देते हैं। इसकी अपेक्षा कि लोग अजीबो-गरीब है। जगन्नाथ ने बताया "वह सदा हमें पीटता है, उसके चरण स्पर्श करें, यदि वह लोगों के चरण छूता है तो यह और कोई भी कार्य करने के लिए हमें कठोर परिश्रम करना पड़ता मुर्खता है। जिस भी पद पर आप हैं आप नम्रता पूर्वक कार्य करें है।" गुरू अर्थात करुणा पूर्वक। परिपक्वता यह है कि आपको अपनी मैं कुछ संगीताचार्य को भी जानती हैं जो ऐसा ही करते हैं। मैं राक्तियों का ज्ञान हो। अपनी शक्तियों को आप सरक्षित रख बहुत से ऐसे लोगों को जानती हैँ जो महान गुरुओं के पास गये सकें। पूर्णशान्ति में आप उत्थित हो सकें और जब लोगों से मिलें पर उनके बारे जो सूचना मिली उससे मझे आघात लगा। वे उन तो अपने अन्दर शक्तियों को धारण कर सकें। मैं एक घरेलू स्त्री शिष्यों को साफ-साफ क्यों नहीं बताते कि तममें क्या कमी है हो सकती हूँ, अपने नातियों के लिए खाना बना सकती हैँ, परन्त और तुम्हें कैसा होना चाहिये। पर गरु कहते हैं कि यदि उन्हें इस जब एक बार मैं कुर्सी पर बैठूंगी तो मैं जानती हूँ कि मैं क्या हूँ? प्रकार बता दिया गया तो वे नहीं सुनेंगे। मार खा कर ही वे सीखते आप जो भी है, क्लर्क, बर्तन धोने वाले या कुछ ओर। इससे कोई हैं। शिष्यों के प्रति पुर्ण दृष्टिकोण ही करुणाविहीन है। कुछ गरु अन्तर नहीं पड़ता। पर एक बार यदि आप सहजयोगी बन गए अपने शिष्यों की भयंकर परीक्षा लेते हैं। राजा जनक ने जो किया तो बन गए। तब आपको अपनी गरिमा दिखानी होगी। उसके सम्मुख श्री रामदास कुछ भी नहीं। कठोर परीक्षा के बाद दुर्बलताओं को लिए नहीं घूमना होगा आप इन सब राजा जनक ने हज़ारों में से केवल एक शिष्य को आत्मसाक्षात्कारी लोगों से कहीं अच्छे हैं जिन्हें साक्षात्कार प्राप्त आत्मसाक्षात्कार दिया। इतने अधिक झठ- मठ के गरु होने का करने में हजारों वर्ष लगे, क्योंकि आपके पास बहुत शक्तियां है। यही कारण है कि इन आत्मसाक्षात्कारी गरुओं ने इन्हें दत्कार फिर भी आपमें आत्मविश्वास और शक्तियों को धारण करने का दिया। इस समय बहुत से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पा लिया है। क्षेभ नहीं है। जबकि वास्तविक गुरु ऐसे है। मैं एक अन्य गुरु से मिली, उसने मझसे पछा" आप इन बेकार के लोगों को आत्म साक्षात्कार क्या विस प्रकार हो सकता है। अब यह समाप्त हो गया है। आप यदि दे रही हैं? कितने लोग श्री माता जी के लिए प्राण दे सकते हैं? कषछ गलतियाँ भी करते है तो भी कोई बात नहीं। आत्मविश्वास मैंने कहा, "मझे उनके प्राणों की क्या आवश्यकता है? मुझे इनके की कमी के कारण सहजयोग में भी आप अपने प्रति कठोर हो प्राण नहीं चाहिए।" यह पहला प्रश्न है। उसने कहा "मेर पास जाते हैं। आप में यदि आत्मविश्वास है तो आपको कठोर होने की ऐसे बहुत से लोग हैं जो मेरे लिए प्राणों की आहति दे सकते हैं. फिर भी मैंने उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया है।" इस स्थिति में, जो साधक वास्तविक गुरुओं के पास जाते हैं उन्हें भी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिलता। कुछ लोग कहते हैं कि हम अहम से डरते हैं। आपको अहम 1. क्या आवशयकता है? यह सब साथ-साथ चलता है। सर्व प्रथम आपका परिपक्व होना आवश्यक है। इसके साथ-साथ आप में आत्मविश्वास होना चाहिए ताकि निर्भय होकर आप सहजयोग का प्रचार कर सकें। कुछ लोग स्वयं से भयभीत है और कुछ दूसरों से। यह आपके बन्धनों और उनके पास बड़े-बड़े आश्रम हैं पर वे आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते, और आप लोग दे सकते हैं। बात इस प्रकार है कि यदि आप दीपक में थोड़ा सा प्रकाश डाले तो यह स्वयं को प्रकाशित करता है, किसी अन्य चीज़ को नहीं। आपको अन्य लोगों को परवरिश की भी देन है। आज की गुरु पूजा अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी ने बैतन्य लहरी 20 है LT 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt कहा, "श्री माताजी आपको सख्त होकर सबको बताना है।" मैंने कहा, "ठीक है मैं उन्हें बता दूंगी।" परन्तु आपको नीचा दिखाने करनी है। जीवन नाटक और भिन्न प्रकार के लोगों को साक्षी के लिए नहीं, आपको यह बताने के लिए कि आप क्या प्राप्त कर भाव से देखते हुए उनका आनन्द लेने के लिए यह आपको शक्ति सकते हैं, आपको यह बताने के लिए कि आप किस सीमा तक जा एवं साक्षी भाव प्रदान करेंगी यह गुण आप अपने अन्दर सकते हैं। आप में से कुछ लोगों की दस ब्रह्ण्डो को परिवर्तित विकसित होने पर ही प्राप्त करेंगे। सहजयोगी के लिए आवश्यक करने की क्षमता है। परन्तु आप अभी तक स्वयं से लिप्त हैं, है कि दूसरों के अवगुण देखने के स्थान पर अपने अवगुण देखे अपने बारे में अपने बच्चों के बारे में, अपने पति आदि के बारे में और दूर करे। मुझे बहुत से पत्र मिलते हैं कि फलां स्त्री या फलां चिन्तित है जितना भी आप उत्थित होना चाहेगें यह शक्ति अगवा मुझे परेशान कर रहा है। मैं हैरान हो जाती हैं। ज्यो ही आपको उतनी सामर्थ्य देगी। परन्तु हमारे साथ समस्या यह है किसी अगुवा में मुझे कोई कमी नजर आती है मैं उसे बदल देती कि न तो हम स्वयं को पहचानते हैं न ही स्वयं को पहचानना हूँ। मैंने सदा ऐसा किया है। परन्तु आप अपना चित्त किस प्रकार चाहते हैं। आज की गुरू पूजा आपको गुरु पद प्रदान करे यदि अगुवा पर देते है। वह ईष्य्यां से होता है। अगुवा यदि आपको आप चाहेंगे तो ऐसा हो सकता है। परमात्मा की स्व्वव्यापी शक्ति बताता कि आप में यह त्रुटि है तो आपको उसके प्रति धन्यवादी इसे पूर्णतया कार्यान्वित कर रही है और आपसे कही अधिक यह होना चाहिए। आपको बताने वाला कौन है? मुझे आप पर बहुत दैवी शक्ति चाहती है कि यह पूरा विश्व, पूरा ब्रह्मण्ड परिवर्तित गर्व है और अत्यन्त प्रसन्नता है कि किसी गुरु के भी इतने अच्छे हो जाए। अब आप लोग माध्यम है और यदि आप ही स्वयं को शिष्य कभी नहीं हुए। परन्तु जब मैं देखती हैं कि आप लोग यह धोखा देना चाहें तो कौन रोके सकता है? संगीत, सहजयोगियों नहीं समझ पाते कि आपको क्या प्राप्त हो गया है और इसे का साथ आदि का आनन्द लेना या अपने परिवार और बच्चों की कार्यान्वित भी नहीं करना चाहते तो मुझे ईसा का दृष्टांत याद आ सुरक्षा की अपेक्षा करना आदि सन्तोषजनक नहीं है। यह कभी जाता है कि कुछ बीच चट्टान पर जा गिरे।" मैं जानती हूँ कि आपको सन्तुष्ट न कर सकेगें। प्रकाश बनकर अन्य लोगों में आपके स्नेह और प्रेम के विषय में जो भी मैं महसस करती हैं प्रकाश बांटना और उनके लिए ही कार्य करना ही आपको उसकी अभिव्यक्ति करना असंभव है। आप नहीं जानते कि सन्तुष्ट कर सकेगा। आपमें यह शक्तियां है। मैं बार-बार यह आपको क्यों आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ? आप यहां क्यों है? आपको बता रही हूं कि आपमें वह शक्तियां है जिनसे आप और आप में क्या गण हैं? आपको क्या प्राप्त करना है? यही आत्म निरिक्षण कर सकते है, साक्षी भाव से आप स्वयं को देखते आपको जानना है। ईसा की तरह मैं नहीं कहती, "एक आंख समर्पण कर सकते हैं, क्योंकि अब आप सहजयोग के विषय निकाल लिजिए, अपना हाथ काट दीजिए।" आपका शरीर सही निर्विचार समाधि वह सुन्दर अवस्था है जो आपको प्राप्त हुए में मानसिक रूप से विश्वस्त हो गये हैं। भावनात्मक रूप से आप सलामत होना चाहिए। कुछ भी काटना नहीं है। हमें इस शरीर विखस्त हो चुके हैं कि सहजयोग ने आपको प्रेम और करुणा का की आवश्यकता है। सुक्ष्म रूप से ईसा ने कहा था कि आपका विवेक प्रदान किया है। शारीरिक रूप से भी आप जान गए हैं कि शरीर जो भी गलती कर रहा है आप सक्ष्म रूप से इसे नकार दें। सहजयोग ने आपको सुन्दर स्वस्थ्य एवं विश्वास प्रदान किया है और अब आध्यात्मिक रूप से भी आपको विश्वास होना कि आप परमात्मा द्वारा चुने हुए आध्यात्मिक लोग हैं। क्योंकि आप इष्यालु क्या है और अगुआ के विरोधी क्यों हैं। अगआ आपके पूर्व जन्म महान साधना मर्य थे इसालए आप यह सब लिखते हैं। यदि उसे कुछ बताना ही नहीं है तो उसके अगुआ होने प्राप्त कर रहे हैं। अतः धारण करें। अपने व्याक्तत्व की धारण का क्या अभिप्राय है। इसके बाद अब आपने उन्नत होना है। इसी प्रकार यदि ईष्या है तो इसका कारण खोज निकालें। किसी को यदि एक शब्द भी कहता है तो वे तुरन्त मुझे पत्र करना आवश्यक हैं। आप अवश्य ध्यानधारणा करें। पु्ण निर्विचार अवस्था में रहते हुए, सदा अपने चित्त को चौकन्ना की शक्ति प्राप्त किए जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला है वे रखे किस वक्त क्या आवश्यकता है इसका ज्ञान हाना भी बहुत कार्य आवश्यक है। हमें किस प्रकार प्रतिक्रिया करनी है? हर समय, हर क्षण जब आप चौकन्ने होते हैं और परमात्मा की स्वव्यापक करने की ্থाक्ति है, आप अत्यन्त विवेकशील हैं, फिर भी शक्ति की चेतना आपको होती है तब यह गुण आपमें होते हैं। मैं बिल्कुल चिन्ता नहीं करती। कभी नही। सभी लोग मुझ पर हैरान है, मेरी चिन्ताए ले ली गयी हैं। लोग कहते हैं कि आप अधिक यात्राएं करती हैं। मैं कभी यात्रा नहीं करती। यहां कार आप सब युगों से सत्य साधक हैं, अब आप आये हैं और सन्तुलित रूप से उन्नत होना है। बिना कण्डलिनी जागृत करने कर रहे हैं, जबकि आपके पास तो कण्डलिनी जागृत करने, लोगों को रोग मुक्त करने और सहजयोग की बात आपका चित्त कहां है? स्वयं गलतियों को देखना अत्यन्त आवश्यक है। आखिर बहुत भी मैं बैठी हैं और वहां भी बैठी रहती हैं। क्या फर्क पड़ता है? सत्य को प्राप्त किया है। अतः सत्य और बास्तविकता से मैंने कहां यात्रा की? तदातम्य करने का प्रयत्न करें। यदि आप सत्य एवं वास्तविकता 21. चैतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt से तदातम्य कर लेते हैं तो आपका सहसार पूर्णतया खुल जाता तथा समूह बनाने में लगे हुए हैं। क्या इसी प्रकार हम लक्ष्य प्राप्त है। सत्य आपके सहसार में है। जब सत्य आप में आ जाता है तो करेंगे? आप सब अगुआ को सहयोग दें। अगुआ जो कहे उसे आप हैरान हो जाते हैं कि सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य हैं, करने का पूर्ण प्रयत्न करें। उसमें यदि कोई दोष है तो मैं उसे ठीक शुद्ध सत्य। यह अत्यन्त आनन्ददायी है और आप पुर्ण निरानन्द करुंगी पर आप दोष खोजने का प्रयत्न न करें। को पा सकते हैं यदि आप इस साधारण समीकरण को समझ ले कि "पूर्ण सत्य ही पूर्ण प्रेम है"। सहजयोग सेना नहीं है। यह सीधा सच्चा माँ का प्रेम है। निसन्देह हर माँ चाहती है कि उसका बच्चा महान हो और मुझे कोई आशा नहीं है। मैं पूर्णतया सन्तुष्ट हूँ। मैंने अपना उसकी सारी शक्तियां उसे मिलें इस कार्य को वह कैसे करती हैं कार्य कर दिया है, अब यह सभाल लिया जाना चाहिए। आपको यह उस पर निर्भर है तथा आप इसे किस प्रकार करते हैं, यह जिम्मेवार बनना होगा। इस बार मुझे बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि आप पर निर्भर है। मैं सदा आप सब आत्मसाक्षआत्कारी लोगों के जहां-जहां मैं गई अणुवा-गणों ने कहा कि "श्री माताजी आपको सम्मुख नतमस्तक हैँ क्योंकि मेरे विचार में पृर्वी पर इतने अब यात्रा करने की कोई आवश्यकता नहीं, हम जिम्मेवारी लेंगे अधिक सन्त कभी न थे। पर यह साधुत्व पूर्ण होना चाहिए। और इसे कार्यान्वित करेंगे।" आप सबको चाहिए कि अपने इसके बिना, पूरे देश की बात तो छोड़ दीजिए, आप अपने अग्आ का साथ दें और उनके तथा सहजयोंग के लिए कुछ करें। कई बार अगुआगण यह नहीं समझ पाते कि लोग अपने नहीं होता। अपनी जागृती एवं अध्यात्मिकता को उन्नत करना व्यक्तिगत विचार क्यों लिए हुए हैं। जी जान से कार्य करें। और सहजयोग को इस स्वचालित आन्दोलन के पर्ण सहयोग एवं उदाहरणतया भारत में जब हमने दासत्व उन्मलन करना चाहा समर्पण देना अब आवश्यक है। संक्षिप्त में आप अपनी पूजा तो सभी ने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोग दिया। परन्तु करें। कुछ लोग है जो अगआओं को नीचा दिखाने, उनका मज़ाक करने परिवार को परिवर्तित नहीं कर सकते, परे विश्व का तो प्रश्न ही नी। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ईस्टर पूजा प्रवचन आस्ट्रेलिया 03.04.1994 (सारांश) आस्ट्रेलिया में हुई है। अब सबसे अधिक उन्नति रूस में हुई है जो कि पूर्वी खण्ड के देशों की दायीं आज्ञा है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अधिकतर चीनी जाति के लोग हैं। वे बुद्ध की पूजा करते हैं जिनका स्थान बाई आज्ञा पर है। बुद्ध से प्रभावित थाईलैण्ड, हांगकांग कर रहा है। यह सब एक योजना की तरह कार्यान्वित हो रहा है। ईस्टरपूजा के विषय में बताते हुए श्री माताजी ने कहा कि आस्ट्रेलिया और पूरे विश्व के लिए यह पूजा महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसमें एक महान संदेश है, जिसका वास्तविकरण हम कर चुके हैं। हमें ईसा के संदेश को समझना है। श्रीमाताजी ने बताया कि समाचार-पत्र में वह पढ़ रहीं थी कि किस प्रकार लोग ईसा के संदेशों को अस्वीकार कर देते हैं। ऐसा करने वाले वे कौन हैं? मात्र लेखक होने के कारण उन्हें ऐसी बातें करने का क्या अधिकार है। जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं है उन्हें आध्यात्मिकता के विषय पर लिखने का कोई अधिकार नहीं है। आध्यात्मिकता उनके मस्तिष्क से परे की बात है। तैवान आदि देशों की देखभाल में आस्ट्रेलिया सहायता एक बहुत बड़े सन्त हुए हैं जिन्होंने कोई घोर पाप किया। परिणाम स्वरूप परमात्मा ने अभिशप्त करके उन्हें भारत और अफ्रीका के बीच की पृथ्वी पर भेज दिया। तब इस पृथ्वी का पतन इस स्तर कर दिया गया और उस सन्त को कहा गया कि इसके लिए कुछ करे। उस सन्त का नाम त्रिशंकर था जो कि अब दक्षिणी क्षेत्र के सितारे हैं और जिनका वर्णन पुराणों में है। परमाल्मा ने दण्ड के फलस्वरूप उस संत को पृथ्वी के इस क्षेत्र के ऊपर लटकता हुआ सितारा बना दिया और उससे कहा गया कि जा कर वहां के मानव के लिए स्वर्ग की रचना करे। श्रीमाताजी ने कहा कि यह कितने आश्चर्य की बात है कि वे इस पूजा का आयोजन आस्ट्रेलिया में कर रही हैं। मूलाधार की धरती पर। मूलाधार जहाँ मूलाधार स्थापित किया गया और बाद में बह ईसा के जीवन में आज्ञा चक्र पर प्रकट हुआ। सभी अभारतीय देशों में सहज योग की सबसे अधिक उन्नति चैतन्य सहरी 22 र 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt आस्ट्रेलिया में बहुत सी अच्छी बातें हैं। एक तो यह कि हम दैवी घटनायें हमारे सांसारिक विश्व से अलग हैं। ईसा की मृत्यु बहसंस्कृतिक समाज से सम्बन्धित हैं जहां दूसरी संस्कृति की नहीं हुई। जैसे कहा जाता है, उनका शरीर काश्मीर में हो सकता रक्षा की जाती है और जहाँ न्याय प्रणाली द्वारा लोगों की रक्षा की है, पर वे तो आत्मा हैं और आत्मा-एक महान जीवन्त व्यक्तित्व जाती है। बहसंस्कृतिक समाज का विकास करने के लिए यह होता है। अन्य अवतरणों को मानव की तरह कार्य करने पड़े पर बहुत अच्छी बात है और यह राजनीतिक विचारों के पुनरुत्थान ईसा ने कभी इन दैवी अवतरणों की तरह आचरण नहीं किया। श्री द्वारा आता है। लोगों को अपने आस-पास की संस्कृति के बारे में राम अपनी पत्नी के लिए रोए, श्री कृष्ण ने बार-बार विवाह किए जिज्ञासा और ज्ञान है। इससे प्रकट होता है कि हमारे जीनस में क्योंकि उनकी पत्नियां ही उनकी शक्तियां थी। अवतरण होते सामूहिकता की भावना है, तथा हमारा देश अभी भी हुए भी इन्हें मानव सम कार्य करना पड़ा। पर ईसा ने ऐसा कभी बहुसंस्कृतिक समाज में विश्वास करता है। यह सब चीजें श्री नहीं किया। दैवी व्यक्त के रूप में वे जिये और दैवी व्यक्ति के गणेश के गुणों को अभिव्यक्त करती है। रूप में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। सहजयोगियों का भी अब यदि 10 ऐसे लोगों का समह है जिनमें शरी गणेश की सर्वसाधारण मानव से देवत्व स्तर तक उत्थान हो गया है। ईसा पवित्रता नहीं है तो वे इकटूठे नहीं रह सकते क्योंकि, उनमें के लिए यह स्थिति प्राप्त करना सुगम था। पर हम लोग तो हमेशा झगड़ा होगा, लोग बहुत ही उथले बन जायेंगे। पति-पत्नी मानव जीवन से उच्च जीवन की ओर आ रहे हैं, क्योंकि हम के बीच का सम्बन्ध श्री गणेश द्वारा स्थापित किया जाता है। वे अपने मस्तिष्क के स्तर से परे जा रहे हैं। यह कठिन कार्य नहीं है. हमेशा वैवाहिक जीवन का आनन्द लेने का ज्ञान प्रदान करते हैं। हमें स्वय की बहां महसूस मात्र करना है। हम अपने आन्तरिक अस्तित्व के विषय में जानते हैं। पुनरुत्थान मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य है। जीवन के प्रलोभनों से मानव को ऊपर उठना है। ईसा मानव के रूप में कुण्डोलिनी से हम पवित्र हो गए हैं और यदि हम यह याद रखें कि आये पर वे मानव न थे, क्योंकि उनमें भौतिकता नहीं थी। वे इसा का सन्देश पुनरूत्थान है तो हम विश्व को परिवर्तित कर ओंकार थे, इसीलिये वे पानी पर चल सके। क़ाइस्ट का संदेश सकते हैं। पुनरूत्थान के पश्चात अपने कार्य या बच्चों के पुनररूत्थान था जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर आपको तीन माध्यम,से हमारी चित्त दृष्टि जीवन पर नहीं होनी चाहिए। दैवी दिन का अवकाश मिलता है। पर जो लोगों को करना चाहिए वे व्यक्ति सभी सम्बन्धों के बावजूद भी नितलिप्त होता है। यदि उसके विपरीत करते हैं। ईसा हमारे आदर्श होने चाहिए। पवित्र व्यक्ति लिप्त है तो हमें समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि दृष्टि किस प्रकार सम्भव है? पश्चिमी देशों के लोगों की आँखे तो उसमें अभी तक दैवत्व की पुर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई है। हम कामकता और लालच से परिपर्ण हैं। इसाई राष्ट्रों के साथ मुख्य समस्या यह है कि वे अल्यधिक जांचना चाहिए। परस्पर हमें एक दूसरे की सहायता करनी हैं। भौतिकतावादी बन गये हैं, लोगों की आँखें देखती हैं और प्रतिक्रिया करती हैं, वे साक्षी नहीं हो सकते। विचार और प्रतिक्रिया व्यक्ति को पशुत्व के निम्नतम स्तर तक ले जा सकते हैं। सहजयोग में अग-प्रत्येग मानकर उसकी सहायता करने का प्रयत्न करें। श्री माताजी के जीवन काल में ही, पुृथ्वी पर निश्छल लोगों के सामूहिक चित्त ऐसा होना चाहिए कि हम उससे एकाकारिता एक. नये विश्व की सष्टि कर दी गयी है। हम सभी को यह महसूस करना चाहिए कि हम उच्च प्रकार के लोगों में से हैं और सहजयोगियों के लिए इसमें फंसने का कोई औचित्य नहीं है ज्ञान होना चाहिए। हम शुद्ध आत्मा हैं और हमने मानव जीवन क्योंकि हम इस सब से परे हैं सहजयोगियों ने नई तरह की से दैवत्व को प्राप्त किया है। अत: हमें लोगों के विषय में पूरी सुन्दरता और शुद्धता के विवेक का विकास किया है, जो कि सझबझ होनी चाहिए। क्योंकि ईसा की अपेक्षा मानव जीवन के हमारी विशेषता है और जो हमारी अन्तःशक्ति है। दूसरों के प्रति कितने करूणामय हैं, दसरों की कितनी सहायता करते हैं और हम कितने सामूहिक हैं, इन बातों से स्वयं को किसी दूसरे को यदि हम कठिनाई में देखें तो विराटका महसूस करें। कोई समस्या नहीं है फिर भी हमें अपनी व्स्तविकता का विषय में अधिक जानते हैं। जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें ईसा विश्व के आधार हैं। यह पवित्रता, यह मंगलमयता समझने का हमें प्रयास करना चाहिए, उनके आते ही यह नहीं एक अण्डे के रूप में बनाई गई और फिर इसे दो भागों में तोड़ा कहना चाहिए कि वे भूत हैं। गया। पहला आधा भाग श्री गणेश है और दूसरा आधा भाग विकसित होकर परिपक्व अवस्था में ईसा बना । श्रीमाताजी ने जो अभी तक हमारे अन्दर और हमारे समाज में व्याप्त हैं। अपने कहा कि कुछ लोग कह सकते हैं कि एक अण्डा दो रूप में कैसे हो ही प्रकार की शैली और अपने ही तरह का आचरण हमें अपनाए सकता है। मगर हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि यह सब रखना चाहिए। हम आश्चर्यचकित होंगें कि पूरा विश्व हमारी हमें उन मानवीय दर्बलताओं के सम्मुख नहीं झुकना चाहिए 23 चैतन्य लहरी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt ने एक विशिष्ट उच्च सि्थिति, एक नया माग प्राप्त किया है उनका हमें अनुसरण करना चाहिए और अपने जीवन के माध्यम से अन्य लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रकाश की सृष्टि करनी चाहिए। पूजा करेगा, हमें फांसी नहीं देगा। परन्तु जीवन काल में ही हमारी पुजा करेगा। यह घटित होगा पर हमें यह समझना है कि एक लक्ष्य के लिए हमारा पुर्नउत्थान हुआ है और बह लक्ष्य है इस विश्व को एक सुन्दर स्थान में परिवर्तित करना और इसके लिए हम सबको अपना पूरा चित्त लगा देना चाहिए। जिन लोगों मेलबोर्न पिकनिक वार्ता ्टेलिया यात्रा परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की आस् बात शुरू करते हुए श्री माताजी ने कहा कि प्रकृति और हैं और उन्हें हम सब का खास ख्याल है। हमारे जीवन को बेहतर आध्यात्मिकता बहुत अंच्छी तरह साथ-साथ चलती हैं और एक बनाने के लिए ही सहजयोग आया है, हमें ईश्वर के साम्राज्य के दूसरे को उत्साहित करती हैं। विषय परिवर्तन करते हुए तब उन्होंने बताया कि किस प्रकार छदमावरण में नकारात्मकता आ यदि हम इस बारे में संवेदनशील नहीं हैं, कि हमारे लिए क्या जाती है और हमारे लिए उसे पहचान पाना भी कठिन होता है। हम इसी नकारात्मकता के साथ तब तक चलते रहते हैं जब तक हमें सुबह तथा रात का ध्यान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बहुत बड़े खतरे में स्वयं को न पाएं। इससे सहजयोग को बहुत शुरू में, वे जानती हैं, कि ध्यान हमें अरुचिकर (boring) हानि हो सकती है। इस स्थिति से हमें निकलना होगा और अपने लगेगा मगर धीरे 2 हम उसमें विकसित होंगे और उसके लाभ अस्तित्व के मुल्य को समझते हुए अपने दमन, अत्याचार की देखेंगे। उन्होंने कहा कि वे हमारे लिए ध्यान नहीं कर सकतीं आज्ञा नहीं देनी होगी और न ही हमें पथ भ्रष्ट होना होगा और हमें स्वयं विकसित होना है। उन्होंने बताया कि कुछ नए लोग, जो सहजयोग में आए हैं, उन्होंनें बताया वे उन पराने लोगों से कहीं अच्छे है जो सत्ता में जन्में हैं और हम कैसे खास व्यक्ति होंगे जो हम सहज योग में लोल्प हो गए हैं और स्वयं को सहजयोग का स्वामी मान बैठे हैं। इस तरह का आचरण लोगों के पतन का कारण बनता है। होगा, नहीं तो हम सहजयोग में नहीं होते। हम यहां भौतिक उन्होंने कहा कि हमें बहुत अच्छी तरह से सहजयोग का अभ्यास वस्तयें प्राप्त करने नहीं आये हैं या किसी और कारण से, हम यहां करना है और उन दम्भी लोगों से सावधान रहना है जो बहुत अधिक बोलते हैं और दसरे की निन्दा करते हैं। हमें उनकी बात यही समय है। को नहीं सुनना चाहिए और न ही उनकी बातों में लिप्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि अगुवा में कोई कमी है तो वे इसे जान जाएंगी। पर हो सकता है कि वे ये देखना चाहे कि कहां तक स्कूल में बच्चे पढ़ना नहीं चाहते। वे पढ़ने की अपेक्षा हर समय हम स्थिति को समझ सकते हैं। हममें उचित, अनचित में अन्तर खेलना चाहते हैं। बच्चों को अपने जीवन का मूल्य मालम होना करने का विवेक होना चाहिए। आनन्द के योग्य बनाने के लिए। हर वस्तु हमारे लिए है, मगर अच्छा है तो हम जाल में फंस सकते हैं। फिर उन्होंने कहा कि उन्होंने हमें यह देखने को कहा कि हम कैसे अद्वितीय समय हैं। हम अवश्य ही खास व्यक्ति होंगे और कुछ महान कार्य किया अपने उत्थान के लिए आये हैं, अतः इसका सद्पयोग करने का फिर उन्होंने पश्चिमी बच्चों के बारे में बोला और कहा कि चाहिए। उनमें से ज्यादातर आत्मसाक्षात्कारी आत्मायें हैं और बद्धमान हैं। कुछ तो बहुत अधिक विवेकशील हैं। उच्च चीजों में उनकी रूचि बढ़ाने तथा शिक्षा देने का प्रयत्न हमें करना चाहिए क्योंकि उन्हें अभी उन्नत होना है। श्री माताजी ने कहा कि सहजयोग 60 देशों में कार्य कर रहा है और उनका ध्यान हर तरफ है क्योंकि हम सब उन्हीं के बच्चे चैतन्य लहरी 24