ा चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति अंक 3 व 4 रवण्ड VII |११5 हार था "इदय में पूजा करना स्वोत्तम है। मेरी जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं उसे यदि य-गम्य कर सके या पूजा के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराइया में उत्तार सके ता वह आनन्द जो आप उस समय प्राप्त करते हैं, शाश्वत तथा अनन्त चन सकता है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र |स चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VII, अंक 3 व 4 विषय-सूचा : -: श्री गणेश जी के 12 पावन नाम 1 1. श्री माता जी का गुडी पडवा सन्देश 2. 2. श्री माता जी का राम नवमी सन्देश 3. 3. श्री कृष्ण पूजा प्रवचन 28-8-1994 4. श्री गणेश पूजा (मास्को) 11-9-1994 10 5. होली तत्व 13 6. नवरात्रि पूजा कबैला 9-10-1994 मास्को सार्वजनिक कार्यक्रम 12-10-1994 16 7. 22 8. दिवाली पूजा (इस्ताम्बूल) 24 9. श्री यागी महाजन सम्पादक श्री विजय नलगिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 67 प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्कट, नई दिल्ली 110 (060 फोन : 5710s29, 5784866 मुद्रित : लं ल ं४ श्री गणेश पूजा, मास्को (रूस) में, 11 सितम्बर 1994 को श्री माता जी को समर्पित किए गए श्री गणेश जी के 12 पावन नाम कर्णकः। कपिलो सुमुखश्चैकदन्तश्च लम्बो-दरश्च विकटो, विघ्ननाशो गणाधिप:॥ धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो, द्वादशैतानि विद्यारभे संग्रामे गज पात चन्द्रो पठेच्छुणुयादपि।। प्रवेशे भाल गजानन:। नमानि यः ति निर्गमे विवाहे संकटे-चैव, विघ्नस्तस्य तथा। च, जायते।। न सुमुखः 1. एक दन्त: 2. ा ल कपिल : 3. गजकर्णक: 4. लम्बोदरः 5. पत म विकटः 6. विघ्न-नाशक: 7. गणाधिपति 8. धूम्रकेतु 9. गणाध्यक्ष: 10. भाल चन्द्र: 1. 12. गजानन: श्री गणेश आपकी माँ के शक्तिशाली अवलंब (सहायक) हैं। आप सब भी मेरे आश्रय हैं। परन्तु मुझे आश्रय देने के लिए आपको श्री गणेश की तरह ही बनाया है" आपको अत्यन्त दूढ़ एवं निश्छल होना होगा क्योंकि मैने प. पू. माता जी श्री निर्मला देवी. रुन श्री मणेश बी के 12. पावन नाम परमपूज्य श्री माता जी का ता मात गुडी पडवा संदेश पात ( महाराष्ट्र में नव वर्ष - 31 मार्च 1995 सहजयोग में अब छँटनी आरम्भ हो गयी हैं। सहजयोगी केवल मेरे दर्शन एवं पूजा हैं। अपनी आत्मा के दर्शन किए बिना मेरे दर्शन घड़ी नहीं देखनी चाहिए। चक्रों को साफ करें तथा ध्यान करं नहीं तो चाहते मुझे कष्ट होता है। पूजा के मध्य लोगों को का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में मैने सबसे अधिक कार्य किया, मैं देखती हूँ कि सहजयोगी ध्यान नहीं परन्तु ध्यान-धारणा न करने के कारण वहाँ सहजयोगियों का स्तर नहीं हैं। वे आक्रामक करते। ध्यान-धारणा के बिना सम्पर्क नहीं बन सकता। ध्यान धारणा के बिना आप विकसित हो गए हैं। जब ऐसे हो जाते हैं तो दायाँ नहीं हो सकते। ध्यान-धारणा ही एकमात्र मार्ग है। मैने आपको आप ध्यान नहीं करते। कलियुग में आपने किसी चैतन्य लहरियों को आत्मसात ही न कर पाएंगे । लक्ष्य के लिए जन्म लिया है, परन्तु यदि आप ध्यान नहीं करेंगे तो डूब जाएंगे। ध्यान धारणा के अभाव में अच्छे-अच्छे सहजयोगियों का पतन हृदय पकड़ने लगता है। बिना ध्यान-धारणा किए है फिर भी दर्शन और पूजा सहायक नहीं हो सकते, आप मार्ग दिखा दिया मैं आश्चर्य चकित हूँ कि महाराष्ट्र में इतने अधिक सन्तों के होने के बावजूद भी लोगों का चित आत्मा पर नहीं है। हो जाता है। समर्पित होने पर आपकी हर इच्छा पूर्ण हो जाती है। हाल ही में मैक्सिको की एक सहजयोगिनी ने मुझे अपने पुत्र की भयंकर बीमारी के विषय श्रीमाता जी मैं जानती हूं कि आप ही मेरे पुत्र को रोग मुक्त करेंगी।" उसने ऐसे दो पत्र लिखे और तीसरे पत्र में उसने लिखा कि "श्री माता जी, आपकी कृपा से मेरा पुत्र कं लिए विद्यार्थियों को प्रतिदिन ध्यान करना रोगमक्त हो गया है।" समर्पण की शक्ति इस ध्यान-धारणा आपको उन्नत करती है। आरम्भ में एक वर्ष तक नियमित रूप से ध्यान-ध रिणा करने का संकल्प लेना होगा। तब आप में लिखा कि इसका आनन्द लेन लगंगे । अपनी परीक्षा में सफलता का आशीर्वाद लेने चाहिए। पहले पूजा करने का अधिकार प्राप्त करना आवश्यक है। यदि आप नियमित रूप से ध्यान नहीं करते हैं तो आप पूजा में सम्मिलित नहीं हो सकते। पूजा में आने से पहले अपने प्रकार कार्य करती है। ध्यान- धारणा द्वारा अब आपने अपने सम्बन्ध को स्थापित करना है।" परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ० 2. परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का राम नवमी सन्देश काठमण्डु 9-4-95 संचार बनाये रखने के लक्ष्य से मैं लीडर बनाती हूँ, अन्यथा अगुआगणों में कोई विशेष है।" बात नहीं है। परन्तु कोई भी मुझसे उनके विषय में शिकायत नहीं करे। उनके बारे में मैं सब आत्म निरीक्षण करें कि, "मुझमें क्या कमी मड अपने देश का यदि आप हित चाहते हैं तो देश, जाति आदि से लिप्त न हों। लोगों के संवेदनशील हुए बिना सहजयोग बढ़ नहीं सकता। कुछ जानती हूँ और उन्हें सुधारना भी मुझे आता है। नये लोगों के प्रति करुणामय बनें। उन्हें ये न बतायें कि वे पकड़े हुए हैं। अपनी करुणा अगुआओं को चाहिए कि केन्द्रों में भाषण न दें। वे केवल मेरे टेप चला दें और इस बात का ध्यान रखें कि लोगो को चैतन्य लहरियां को द्शाय। उन्हें बतायें कि "मैं भी इन्हीं समस्याओं मिल रही हैं कि नहीं। में से निकला हूँ, "मैं भी आप ही जैसा था ।" तभी वे आपके साथ तादात्म्य स्थापित कर सकगें। यदि उन्होंने गहनता प्राप्त कर ली है तो 6 लोगों महौनों के बाद वे अपना प्रभाव जमाने का वे प्रयत्न न करें, अत्यन्त नम्रता से पीछे रहते हुए अन्य पूजा में सम्मलित हो सकते की शान्ति पूर्वक सहायता करते रहें। आपको हैं। उन्हें पूजा के निमयाचरणों के विषय में बताएं। देख कर ही लोग सहजयोग में आयेंगे। सहजयोगियों केन्द्र में शान्ति और को मेरे साथ तादात्म्य स्थापित करना चाहिए, अगुआओं के साथ नहीं। व्यवस्था करने वालों में मेल-मिलाप का वातावरण होना चाहिए। लोग आपसे शान्ति प्राप्त करें। धन सम्बन्धी मामलों की बातचीत न करें। आपकी सारी समस्याएं चक्र-विकारों के कारण आती हैं । चक्रों के ठीक होते ही समस्याएं सदा याद रखें कि प्रेम की दिव्य शक्ति आसुरी के सम्पुख सारा असत्य लड़खड़ा जाता है। शक्ति कुछ समय के लिए रह सकती है परन्तु समाप्त हो जाती हैं। नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियों में सदा युद्ध चलता रहता है। अन्तत: उनका पतन हो जाएगा। यह सब मेरा कार्य है, मुझ पर छोड़ दें। कि इसके आन्तरिक नम्रता का होना आवश्यक है, बिना आप सहजयोग समुद्र में खो जाएगें। परन्तु यह नम्रता अन्दर से आनी चाहिए। ाम काम परमपून्य माता जी श्री निर्मला दंवो का यम नवमी सन्देश परिन [श्री कृष्ण पूजा प्रवचन ( सारांश ) कबैला इटली 28 अगस्त 1994 हैं। अत: वह सम्पूर्ण हैं। वह पूर्णिमा है " पूर्ण चन्द्रमा "। श्री कृष्ण ब्रह्माण्ड के रक्षक श्री विष्णु का अवतरण थे। संसार की सुष्टि करते समय यह जरुरी था कि विष्णु के अवतरण की पूर्णता के साथ, वह पूर्ण थे और एक रक्षक की भी सृष्टि की जाए नहीं तो ये संसार नष्ट हो जाता। यदि मानव को आरक्षित छोड़ दिया जाता तो स्वभाव वश उसने इस संसार का कुछ भी कर दिया में 12 पंखुड़िया हैं। जिन बातों की ओर लोगों का ध्यान होता। विकास की प्रक्रिया के दौरान श्री विष्णु ने ही नहीं जाता इन्होंने वह सब दर्शायीं जब गीता लिखी भिन्न-भिन्न रूप लिये। उन्होने अपने आस- पास कई गई तो लोगों ने उसका अनुकरण करना शुरु कर दिया। पैगम्बरों का वातावरण उत्पन्न किया ताकि वे इस संसार मे धर्म की रक्षा कर सके अतः संरक्षण का आधार धर्म था। इस धर्म में जो कुछ भी स्थापित करना था वह संतुलन से स्थापित करना था। अति में जाना मानव की आदत हैं। यह पूर्णता अभिव्यक्ति हुई। राम के अवतरण में जो कुछ कमी रह गयी थी इन्होंने उसे दूर किया। दायें हृदय श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "इस समय तुम्हें धर्म और सत्य के लिये लड़ना है।" अर्जुन ने कहा, मैं अपने रिश्तेदारों और सम्बन्धियों को नहीं मार सकता" "तुम कौन हो मारने वाले, वे तो पहले ही मरे हुए हैं, क्योंकि वे अधर्मी हैं। यदि उन्होंने कहा, सन्तुलन स्थापित करना धर्म का पहला सिद्धान्त तुम में धर्म नहीं है तो तुम पहले ही मरे हुए हो| उसमें है। बिना सन्तुलन के व्यक्ति उत्थान नहीं प्राप्त कर सकता। जहाज बिना सन्तुलन के चल नहीं सकता। इसी प्रकार पहले मनुष्य को संतुलन प्राप्त करना होगा, परन्तु सभी मनुष्य अलग-अलग योग्यता तथा क्षमता के साथ जन्मे हैं। यह कहा गया है "या देवी सर्वभूतेषू जाति ह। भगर इससे परे क्या है। तो श्री कृष्ण ने सहजयोग रूपेण संस्थिता" अर्थात् क्षमता अलग-अलग हैं। हम भिन्न-भिन्न क्षमताओं, चेहरों तथा रंगो में पैदा हुए हैं क्योंकि विविधता लाना आवश्यक था। यदि सब एक जैसे दिखते तो वे 'रोबोट' जैसे लगते। सभी मानव अलग तरीके से देश और माता-पिता के अनुरूप उत्पन्न किये गये हैं। यह सब व्यवस्था श्री विष्णु के सिद्धान्त द्वारा की गई है। उन्होंने इस विश्व को विविधता पूर्ण बनाया है। मारना कहा ?" मारना या न अर्जुन को यह संदेश कुरुक्षेत्र में दिया गया। फिर वह बोला, "आपने मुझे इन लोगों को मारने के लिए. कहा है, मैं धर्म पर स्थित हू अत: मैं इन्हें मार रहा का वर्णन किया। उन्होंने दूसरे अध्याय में बताया है कि स्थितप्रज्ञ क्या है?" यह वह व्यक्ति है जो सन्तुलन में है। फिर उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्ति कभी क्रोधित नहीं होता। अन्दर से वह पूर्णत: शान्त होता है। उन्होंने बताया व्यक्ति को कैसे बनना चाहिए। उस समय कौरव पाण्डवों से लड़ रहे थे। युद्ध के दौरान उन्होंने उसे बताया कि स्थित प्रज्ञ बन कर ही तुम इन सब समस्याओं तथा बन्धनों भा! इस कार्य में श्री कृष्ण दक्ष है। जिस समय शरी कृष्ण अवतरित हुए लोग बहुत ही गम्भीर प्रकृति के थे और अत्यन्त कर्मकाण्डी बन गये थे। इसका कारण यह था कि इससे पहले श्री राम आये और उन्होने मर्यादाओं की बात की। इन मर्यादाओं ने लोगों को बेहद पांच पाण्डवों को कौरवों से लड़ना पड़ा। ये पांच पाण्डव कठोर बना दिया। इस कठोरता के कारण लोगों ने आनन्द, सुन्दरता और विविधता की भावना को खो दिया। श्री कृष्ण का अवतरण सम्पूर्ण रूप में हुआ तत्वों से लड़ना पड़ता है। लोग कहेंगे क्रोध स्वाभाविक चन्द्रमा की सोलह कलायें हैं उनकी भी सोलह पंखुड़िया है। आक्रामक होना स्वाभाविक था। अब हमें जान लेना में ऊपर उठ सकते हो। और तभी आप आन्तरिक शान्ति प्राप्त कर सकते हो। आधुनिक समय में हमें कौरवों से नहीं लड़ना है। कौन हैं? ये हमारी इन्द्रियाँ हैं या भिन्न तत्वों में विभाजित ब्रह्माण्ड हैं हमारे अन्त:स्थित कौरवों से इन्हें लड़ना पड़ता है। यहाँ पर 100 कौरव हैं। प्रकृति को अपने विरोधी जैसे है कि हममें उत्थान की प्राकृतिक क्षमता हैं। ऊँचे उठना स्वाभाविक है। सहजयोगी बनना स्वाभाविक है। इसकी रचना भी हमारे अन्दर की गयी है। उदाहरणतया एक बीज है। फिर वह अंकुरित होता है, वृक्ष बनता है। अत: यह सब बीज में निहित है कि सारा भविष्य, हजारों ऐसा चुस्त बन जाता है जैसे सब कुछ जानता हो। वह वृक्ष जो कि वहाँ होंगे वे भी इस बीज मं हैं। आजकल यह प्रयोग कर रहे हैं। एक बीज से वे हजारों छोटे अंकुर प्राप्त कर सकते हैं जो कि पेड़ या पौधे बन सकें। की संस्कृति सब जगह है और बुद्धि के कारण स्वीकार की जाती है। वे बहुत ही बुद्धिमान हैं। जो व्यक्ति हमेशा पैसे के बारे में सोचता है बहुत बुद्धिमान बन जाता है। बुद्धिमान बनने का अभिप्राय वह तेज बन जाता है। वह सोचता है वह सब कुछ जानता है और जो कुछ भी वह करता है वह ठीक है। अपने आचरण को वह सदा ठीक मानती है। मे के जब उन्होंने कहा कि तुम्हें "स्थित प्रज्ञ" बनना है तो उनका अभिप्राय था कि आपको संतुलन प्राप्त करना होगा । यह उन्होंने तब कहा जब लड़ाई चल रही थी। जब तक तुम्हें लोगों से युद्ध करना पड़े, या उनका वध करना पड़े, तब तो ठीक है, एक बार जब यह कार्य पूरा हो जाये तो आपको अपनी आध्यात्मिक चेतना की रचना करनी होगी। ये पाण्डव जो उसके अन्दर, उसके साथ हैं, ये तत्व जो उसे प्राप्त हैं, इनका उफ्योग वह पूर्णत: विनाशकारी और ईश्वर विरोधी उद्देश्यों के लिए करता है। उसे ज्ञान नहीं है क्योंकि उसकी बुद्धि हमेशा उनके धर्म विरोधी कार्यों को भी उचित ठहराती है। उदाहरण के लिए श्री कृष्ण की जीवनी में वे चित्रण करने का प्रयत्न करते हैं कि उनकी पाँच पतलियां थीं और बाद में 16 पलियां बास्तव में ये उनकी शक्तिया थीं। बिना समझे कि श्री कृष्ण क्या थे! क्योंकि यह बुद्धि ऐसी महामुर्ख है, कि यह आपको सही विचारों तक नहीं ले जाती है क्योंकि आप हर चीज़ को उचित ठहराते हैं। यह समर्थन आपको अपने जीवन तक सीमित कर देता आध्यात्मिक चेतना की रचना करना हमारा कार्य है और हमें वही करना है। न केवल धर्म। कई सहजयोगी सोचते हैं कि वे धर्म कर रह रहे हैं और धर्म में रहे हैं। मगर यही इसका अन्त नहीं है। यह सन्तुलन का हिस्सा है। आपको आगे जाना है और अपने आध्यात्म की रचना करनी है और इसे फैलाना है। यह श्री कृष्ण का कार्य है क्योंकि वे ही प्रसार करते हैं। आप जानते हैं कि अमेरिका गलत तरीके से हर तरफ प्रसार कर रहा है। हां वह ऐसा कर रहा है। उसके पास कम्पयूटर आदि हैं। प्रसार का हर यंत्र उसने बना लिया है क्योंकि प्रसार करना उनका अन्तर्जात गुण है। परन्तु क्योंकि वे न तो श्री कृष्ण में विश्वास करते हैं, और न ही ध र्म में, अंत: उनका आधार ही गलत हैं। इस गलत आध र से उन्होंने गलत विचार और गन्दगी को फैलाना शुरु कर दिया जो कि हमारे उत्थान और परमात्मा के विरुद्ध पर वे यह सब कर रहे हैं। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं जो कि उन्हे करना ही नहीं चाहिए? मैं सोचती हूँ कि यह सब बुद्धि के कारण है। यह बुद्धि मस्तिष्क भी है और विराट की पीठ भी है। इस बुद्धि से वे कहते हैं कि अधार्मिक होना स्वाभाविक हैं। धन लोलुप और आक्रामक होना भी स्वाभाविक हैं। जो कुछ भी उनके पास है सब स्वाभाविक है, क्योंकि, उनके अनुसार अपनी बुद्धि से या किसी और तरह से वह आपको तर्क बुद्धि द्वारा यह समझाने में सफल हो गये हैं कि ऐसा करना उचित है, इसके बिना आप जीवित नहीं रह सकते। यह सम्भवत: उनकी संस्कृति है। इस प्रकार है। सामान्यत: आप अधार्मिक, आक्रामक, युद्ध-प्रेरक जीवन नहीं जी सकते। यह सभी कुछ इन सभी विरोधी तत्वों की मनुष्य से आशा की जाती है। पाश्चात्य संस्कृति में इन सब की पास-पास रखा जा रहा है। आप इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि किस प्रकार वो अनैतिकता का समर्थन करते हैं। ईसा मसीह मोहम्मद साहिब से भी कठोर थे उन्होंने कहा कि यदि कोई आखों से अपराध करें तो आप उसकी एक आख निकाल लो। यदि किसी का हाथ अपराध करता है तो हाथ काट दो। ईसा के अनुसार तो अधि कतर यूरोपियन और अमरीकन एक हाथ के होने चाहिएं। मोहम्मद साहिब ने सोचा ईसा ने आदमियों के लिए इतना सब किया। क्यों न औरतों के लिए कुछ किया जाये। औरतों की तरफ देखने का तर्क स्वाभाविक है। क्या आपने किसी पशु को ऐसा करते देखा है यदि पशु प्राकृतिक प्राणी है? वे लोग जानवरों से भी बदतर हैं और इस प्रकार की समझ से हमने कैसी गन्दगी उत्पन्न कर ली है? ये बुद्धिवादी जो भी हमे समझाने का प्रयत्न करते हैं हम उसे स्वीकार करते हैं । एक समस्या यह है कि यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है तो वह प्रभुत्व जमाता है। उदाहरणार्थ जो भी कोई श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सरांश) फैशन शुरु होता है हम सब उसे स्वीकार कर लेते हैं के लिए थी और उसका उपयोग दैवी उद्देश्य के लिए। उद्दमी की बुद्धि आपको वास्तव में पूरी तरह से मूर्ख हर समय उनके अन्दर का देवत्व बुद्धि प्रयोग में उनकी बना सकती है। मगर उन लोगों को नहीं जो विवेकशील हैं। वे कहेंगे दफा हो जाओ। यह नैतिक भाग के बारे बन्धनों, भावनाओं तथा शरीर के दास हैं। स्वामी बनकर में है। पश्चिम में इसका घोर पतन है। यह पशुओं से भी बदतर है। और इसी कारण वो आज इतनी सारी बिमारियां, परेशानियां आदि भुगत रहे हैं। सहायता करता था। अन्तर यह है कि हम अपनी बुद्धि, आप अपनी बुद्धि को स्पष्ट देखते हैं यह बुद्धि आपको यह विचार दे सकती है कि आप पूरे विश्व के स्वामी हैं और वही बुद्धि आपको यह विचार भी दे सकती दूसरी चीज़ जिसका हम हमेशा समर्थन करते हैं है कि आप कुछ नहीं हैं। बुद्धि आपके सिर चढ़ कर "हिंसा" है। अब कुरुक्षेत्र में कोई भी लड़ाई नहीं चल रही है, मगर आप हर तरफ हिंसा देख सकते हैं। अमेरिका से नहीं विवेक से संचालित होना है। आपके पास बहत में इसका भयानक रूप है। यह केवल अमेरिका में ही नहीं, हर जगह है, क्योंकि सबका गुरु अमेरिका है । यह अमेरिका से शुरु होता है और लोग आंखे बन्द करके है और गलत क्या है? आप देख सकते है कि मानवः उसका अनुकरण करने लगते हैं। हिंसा हमारी फिल्मों होने के कारण कुछ बुद्धि प्रभाव भी आ रहा है। मगर में आ गई है, किसी को मारने की अनुमति नही हैं। सहजयोग से आप यह जांच सकते है कि यह बुद्धि आप हत्या नहीं करेंगे। मुसलमान लोग हत्या कर रहे हैं। सभी हत्या कर रहे हैं। आक्रामकता अन्ततः आप को हत्यारा बना देती है। चींटी तक तो आप बना नहीं सकते, इस तरह मानव की आप कैसे हत्या कर सकते बहुत जल्दी सक्रिय हो जाता है। मैंने कुछ अत्याधिक हैं? हत्या का यह व्यवसाय आकाश को छ रहा है। बुद्धिमान बच्चों को देखा है पर उनमें विवेक नहीं है. जैसे हिटलर मानता था कि वो विश्व में सबसे ऊँचा हैं। यह उन्माद है। आप एकदम भूल जाते है कि आप कौन है और अपने अंहकारवश स्वय को अत्यन्त महान मान बैठते हैं। सहजयोग में भी कुछ लोग हैं जो यह कहते कि वो भगवान हैं, वो देवता हैं। यह अंहकारवाद वास्तव में आपकी बुद्धि से ऊर्जा लेता है। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसकी बुद्धि है क्योंकि यह अत्यन्त सीमित, प्रतिबन्धित, अंहग्रस्त तथा चक्षुविहीन है। बोलती है। सहजयोगी होने के नाते आपको अपनी बुद्धि अच्छा उपकरण है, अपनी चैतन्य लहरियों को अनुभव करके, आप यह पता लगा सकते हैं कि ठीक क्या आपको क्या बता रही है। मुख्य बात है कि आपको सूक्ष्म बिन्दु पर अवश्य जाना चाहिए, कि यह बुद्धि हम तक केसे आई। यह हम तक आई क्यांकि हमारा मस्तिष्क मस्तिष्क का कुछ अधिक विकसित होना, माता-पिता के अंधिक बुद्धिमान होने के कारण हो सकता है। उत्तराधि कार में बच्चों को तीक्ष्ण बुद्धि मिल सकती है। परिस्थितियों के कारण भी ऐसा हो सकता है। जैसे हो सकता है कि आप एक विशेष देश में पैदा हुए हो, जहाँ अचानक आप बहुत बुद्धिमान बन जाते हैं। मेरे पास कुछ अमेरिकन और अंग्रेज हैं जो हर समय पढ़ते रहते हैं। मगर इस सब पढ़ाई का फल क्या है? वे हर किताब पढ़ेंगे। वे कम्पयूटर के बारे में सब कुछ जानते हैं यह सब अविद्या है। यह ज्ञान नहीं है। यह अज्ञान है। तो वे सोचते हैं कि वे बहुत बुद्धिमान है विवेक अलग चीज़ है। विवेक आप अपनी आत्मा के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह आपको उचित अनुचित का पूर्ण ज्ञान देता है। बुद्धि तो गलत बात को भी स्वीकार क्योंकि वे हर वस्तु के बारे में, हर चीज़़ जानते हैं। कर लेगी। बुद्धि विवेक नहीं है। ये दो अलग चीजे हैं। कूटनीतिज्ञ के रूप में कृष्ण प्रसिद्ध हैं । उनकी कुटनीति दिव्य थी। इसका अर्थ यह है कि वो बहुत ही बुद्धिमान में। उनके पास हर प्रकार की अजीबो-गरीब चीजे हैं। थे। मैं उच्चपदाधिकारियों से मिली हूँ परन्तु उनमें केवल पैसा खींचने के लिए। उदाहरण के लिए उनके इस बुद्धि से जैसे चेतना आने लगती हैं वे बहुत ही बौद्धिक विचार बनाने लगते हैं। विशेषतया अमरीका कुछ अधिक बुद्धिमत्ता नहीं है। अब मैने देख लिया कि यह बुद्धिमत्ता भयानक वस्तु है। श्री कृष्ण ने अपनी बुद्धि है। कई बार लोग उनके लिए बड़े समारोह भी करते का प्रयोग किया। वे शक्तिशाली हैं। उन पर कुछ भी पास एक हौआ (Goliwog) है जिसका जन्मदिन होता हैं फिर वे कुत्तों का जन्मदिन मनाने लगे । कोई भी जो विचार उनमें डाल देता है उसे वे करने लगते हैं। बुद्धि का प्रयोग करना आना चाहिए, इसके वश में नहीं फिर वहां पर संगठन है जो कहते हैं कि जब आप आना चाहिए। उनकी सारी युक्ति उनकी बुद्धि के प्रयोग मरने वाले हों तो हमें बता दें कि आप कौन सा सूट प्रभुत्व नहीं जमा सकते अन्तर देखिए। आपको अपनी माई 6. पहनना पसन्द करेंगे आपको कैसा ताबूत चाहिए। यूरोप बुरी बात तो यह है कि महागन्दी फिल्मों के लिए उन्हें में सबसे बेकार चीज़ यह है कि उन्होने अवकाश मनाने के विचार को बहुत अच्छे से विज्ञापित और व्यापारित खाते है और उसे देखकर दर्शक आनन्दित होते हैं। इस किया है। अत: इटली में यदि व्यक्ति अवकाश पर नहीं फिल्म को सर्वोत्म फिल्म तथा इसके नायक को सर्वोत्तम जाता तो कहेगा कि मेरे जीवन में संकट आ गया है अभिनेता का इनाम दिया गया । क्योंकि मैं अवकाश (छुट्टी) पर नहीं जा सका। फिर रहे हैं जिनमें वे लटके हुए मृत शरीर दिखाते हैं। ये उन्होने कहा तुम वहाँ जाओ, शरीर को धूप में जलाओ, लोग इतनी भयानक चीजें क्यों देखना चाहते हैं? उनका होटल में रहो। हर किसी को बाहर जाना है। वे सभी समुद्रतटों को गन्दा कर रहे हैं। समुद्र जो उनके पिता हैं, के लिए उनमें कोई आदर नहीं है। उनमें एक दूसरे के लिए कोई आदर नहीं है। औरते पतला होना चाहती हैं और बहुत अच्छा दिखना चाहती हैं ताकि वे वहा जाकर नरन हो सकें। सारा तन्त्र ही खराब है। यदि आप बुद्धिमान हैं तो मूर्खतापूर्ण विचार किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं। इनाम दिए जाते हैं। एक फिल्म में एक नरभक्षी मांस वे कुछ ऐसी फिल्में बना चरित्र क्या है? वे कहां तक पतित हो चुके हैं? मानव को आनन्द न दे सकने योग्य चीज़ों का भी वे क्यों आनन्द लेते हैं? हृदयाभिव्यक्ति प्रथम सिद्धांत है। किस प्रकार आप अपनी बात दूसरों से कहते हैं? अपने बच्चों, पति, पत्नी से इसका आरम्भ करें। खोजने का प्रयत्न करें कि कहीं आप रोबीले तथा आक्रामक तो नहीं। स्त्रियों या पुरुषों की आक्रामकता किसी भी सीमा तक जा सकती है। परन्तु यहां पर स्त्रियां बहुत आगे हैं। भारत के पुरुष अत्यन्त रोबीले हैं। मूलभूत बात यह है कि अच्छे वस्त्र धारण करने के अतिरिक्त मनुष्य में अच्छे तौर तरीके भी होने चाहिए। उनके तौर तरीके वेषभूषा तक ही सीमित वस्तुएं बेचना आदि है। आर्थिक आक्रामकता के अतिरिक्त हैं। परन्तु जब भी वे परस्पर मिलते हैं लोक निन्दा ही करते हैं। व्यक्ति को समझना चाहिए कि श्रीकृष्ण ने कभी निन्दा नहीं की। यह यूरोप के देश पूरे विश्व के घोटालो से क्यों सुसज्जित हैं। इन घोटालों में लोगों की, और सर्वोपरि, समाचार पत्रों की क्या दिलचस्पी है? इनसे धनार्जन ही इसका कारण है। यह सारा साठ-गाठ पूर्ण व्यापार है। लोग यह सारी मूर्खतापूर्ण बातें सुनना चाहते हैं अत: समाचार पत्रों में यह छपती हैं। तीस वर्ष पूर्व आपको ऐसा कुछ सुनने को न मिलता था| इस प्रकार साथ कुछ अमेरीकी मित्र थे उन्होने बहुत खाया और की सभी पुस्तकों पर पूर्णतयाः रोक थी। परन्तु अचानक सहज अर्थशास्त्र (economics) बहुत अलग है। अर्थशास्त्र के रूप में प्रचलित मूर्खतापूर्ण विचारों से हम बन्धे हुए नहीं है। शोषण के अतिरिक्त यह कुछ भी नहीं यह व्यापारीकरण है। यह लोगों को प्रभावित करना, यह कुछ भी नहीं। श्री कृष्ण राजा थे। वे राजा की तरह रहे मगर गोकुल में वे बहुत ही साधारण घर में भी रहे। वे लिप्साविहीन थे। पर पश्चिमी देशों के लोगों में धन-लिप्सा सर्वप्रथम है। धन प्राप्ति के लिए कोई भी तरीका अपनाना वे उचित मानते हैं। एक बार भारत में हम एक होटल में गये हमारे खा रहे थे मगर हम उनका मुकाबला नहीं कर पाये। उन्होंने बैरा को बुलाया और बचा हुआ खाना बांधने को ही यह सारी चीजे कुसुमित हो चुकी हैं। और कोई भी पत्रिका या पुस्तक जब आप पढते हैं तो हतबुद्ध रह कहा क्योंकि उन्होंने उसकी कीमत दी है। और उन्हें जाते हैं। कि इनमें क्या सिखाया ज़ा रहा है। विनाश संस्कृति सिखा रहे हैं। लोग इसे स्वीकार करते है, पसन्द करते ऐसा नहीं करते, क्योंकि यह अशिष्टता है। वे कहने हैं और कार्यान्वित करते हैं। महिलाओं का उपयोग स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है और मूर्खतावश महिलाएं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं। निसन्देह एक ओर तो उनका प्राबल्य है और इसके कारण उन्हें बहुत प्रसन्नता होती है। एक पत्रिका में एक महिला डींग हांक रही थी कि जीवन में उसके सम्बन्ध चार सौ पुरुषों से रहे। ऐसा करने में शर्म नहीं आई। मैने कहा हम भारत में लगे कि हमने इसके लिए पैसा खर्चा है। सहज योग में आप कंजूस नहीं हो सकते। दूसरों के लिए आपको सोचना पड़ेगा। केवल यही तरीका है जिससे हम अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह सब उदारता आपको बहुत बड़ा नायक बनाने के लिए नहीं है। परन्तु सबसे बुरा हालीवुड है। यह फिल्म उद्योग नर्क में भी ऐसी स्त्रियों के लिए स्थान नहीं है। ऐसी है। उद्योग के नाम पर आप कुछ भी कर सकते हैं। महिलाओं को आप कौन सा स्थान देंगे? यह गतिविधि यह हालीवुड अत्यन्त गन्दी फिल्में बना रहा है। सबसे धर्म तथा संचारण सिद्धान्त के बिल्कुल विपरीत है। श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सायंश) बातचीत करने का आपका क्या तरीका होना यदि वे लिप्त होते तो वे ऐसा न कर पाते। इस प्रवृत्ति चाहिए? अन्य सहजयोगियों तथा अन्य लोगों से अत्यन्त से छुटकारा पाने के लिए आपको कृष्ण विरोधी इस सभ्य, मृदु तथा सुन्दर तरीके से आपको बातचीत करनी संस्कृति से छुटकारा पाना होग है। आपको दूसरे व्यक्ति से बहुत ही मधुरतापूर्वक बात करनी चाहिए। फ्रेंच लोगो की तरह बनावटी तरीके से नहीं। आपको शिष्ट भाषा में नम्रता पूर्वक बोलना चाहिए हर समय बड़बड़ाने और बहुत अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं है। माधुर्य श्री कृष्या की शक्ति थी। यह शहद की तरह मधुरता देती है। आपको इस तरह बोलना चाहिए जो दूसरे व्यक्ति को अच्छा लगे। किसी से भी बात करते समय आप बहुत मधुरता तथा अच्छे तरीके से बात कर सकते हैं जो दूसरे व्यक्ति को अच्छा लगे। उकसाने के लिए कठोर बाते न करें। कुछ लोग आदतवश हर समय उकासने की बात कहते हैं। ऐसा यह फैशन है, वह फैशन है।" यह सब फैशन बेहद विनाशकारी है। सिर में तेल नहीं डालना, जिसका अंत गंजापन होना है। उन्होने जो भी किया वो दुष्टता और नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए और आनन्द सामने लाने के लिए, यही रास है। रास आपके अन्दर की शक्ति है। जिससे आप कीड़ा करते है और आनन्द उठाते हैं। श्री राम के जीवन में जिस चीज़ का अभाव था उस आनन्द की लीलामय ढंग से अभिव्यक्ति करने के लिए उन्होंने विवेकशील होली प्रचलित की उन्होंने कहा," स्वयं को आनन्द लेने दो।" मगर यह बात केवल सहजयोगियों के लिए थी अन्य लोगो क लिए नहीं। अन्य लोग तो मधुशालाओं में चले जाते है। श्री कृष्ण ने कहा व्यापार के लिए कुछ लोग तो मधुर बन जाते हैं। और किया कि हम हर चीज़ का आन्नद ले सकते हैं। हमे अधार्मिक नहीं होना है। धर्म आपको आनन्द प्रदान करता है। धर्म यदि आनन्द प्रदान नहीं करता तो आप पूरी तरह से तपस्वीं तथा नीरस व्यक्ति बन जाते हैं। और यह नीरसता कभी-कभी मूर्खता की सीमा तक चली जाती है। यह आनन्द आप अन्य लोगों में बांटते हैं। आनन्दमय स्वभाव के बिना आप संचरण नहीं कर सकते। करना अच्छा नहीं है। अन्यथा अत्यन्त कठोर हैं। भारत में हमारे यहाँ जन है। व्यापार के लिए वे अत्यन्त मधुर है, मगर समुदाय दान आदि करने में वे अत्यन्त कठोर हैं। श्री कृष्ण इसके बिल्कुल विपरीत थे। अपने जीवन में वे सदा दासीपुत्र विदुर के अतिथि रहे, क्योंकि वह आत्मसाक्षात्कारी था। कृष्ण विदुर के साधारण निवास में रहा करते थे और बहुत ही साधारण भोजन खाते, मगर वे दुर्योधन के महल में नहीं जाते थे श्री कृष्य हैं इस प्रकाश में आप देखते हैं कि क्या बेकार और ने कभी धन की परवाह नहीं की और न ही उसके मूर्खतापूर्ण है। यह श्री कृष्ण का आर्शीवाद है। वे आपको बारे में सोचा। उन्होने अपनी गद्दी, राज्य या उसके वैभव निरानन्द देते हैं क्योंकि यदि आपके पास प्रकाश नहीं के प्रति पूरी निर्लिप्तता दिखाई। लिप्त होते ही धन ग्रस्त है तो आप अपने मस्तिष्क का आन्नद नहीं ले सकते । सभी कष्ट आपको सहने पड़ते हैं। यदि आप नि्लिप्त उनके प्रकाश में हम स्वयं को आनन्द से परिपूर्ण देखते हैं तो वही धन आप उपयोग कर सकते हें। एक बार आप उस पैसे के दास बन जाते हैं तो वह आपके सिर चढ़ जाता है। आजकल पैसा होना भी खतरनाक है। सारी प्रतिक्रिया हो रही है और इसी कारण सारे तत्व आपके खिलाफ प्रतिक्रिया कर रहे हैं। सिएरा निवेदा के लोगो है। एक बुद्धिमान व्यक्ति, जैसे श्री कृष्ण विवेक का ने सच कह है, जब हम धन संचय करने लगते हैं स्त्रोत हैं, को "स्थित-प्रज्ञ" होना चाहिए, अर्थात् उसे तो करते ही चले जाते हैं, पर लुटेरे भी साथ साथ आ जाते हैं। वह विराट है जो आपके दिमाग में प्रकाश डालते हैं। एक और फैशन यह कहता है, "यह बहुत अधि के है।" दिमाग मूर्खता से भरा होने के कारण आप उनको जो कुछ भी बतायें उनके दिमाग में कुछ भी नहीं जाता संतुलन में, धर्म में और सर्वोपरि आनन्द में होना चाहिए। आप केवल आनन्द में नहीं है मगर आप सत्य को जानते हैं पूर्ण सत्य को। यह पूर्ण सत्य वह है जो आपको यह समझ देता है कि क्या सही है और गलत है और आप अपना विवेक, विकसित कर लेते हैं, अपनी बुद्धि नहीं। आप अपनी बुद्धि को दुराचरण करते हुए आपको नकारात्मक एवं आक्रामक विचार देते हुए देख सकते उद्योगपति कहलाने वाले लोग सबसे निकृष्ट है। | ল उदाहरण के लिए वे पूछेगे कि आपक पास डिजाइनर घड़ी है? तो सभी लोग उस डिजाइनर घड़ी को मांगेंगे। श्री कृष्ण को देखें, कितने बुद्धिमान तथा साक्षी भाव हैं। कैसे प्रकाश लीला करते हुए वे विजयी होते हैं 8. पहुंच जाते हैं। तलाक की सहजयोग में अनुमति है मगर व यह अमेरीकी तरीके की बेवकूफी नहीं। पति या पत्नि कोई भी रौब जमा रहा होता है। और तलाक हो जाता है। उपलब्धि क्या है? हमें स्वयं में हर चीज़ को कार्यान्वित करता है क्योंकि हम बन्धन ग्रस्त हैं और हम एक व्यर्थ प्रकार के वातावरण में हैं। मैं आप सबको विनती करती हूँ कि आप श्री कृष्ण के व्यक्तित्व की सुक्ष्मता को समझने का प्रयत्न करें। बहुत ही शांतिप्रय, करुण मृदु तथा सहायक बनने का प्रयत्न करें। उनमें धन की चेतना न थी। किसी कारण विशेष से उनका मेघ वर्ण था। देखने का प्रयत्न करें कि वर्णित गुणों में से कितने गुण हममें हैं। इस प्रकार से अन्त्तदर्शन शुरु होगा। एक बार जब आपने अन्न्तदर्शन और स्वयं को समझना शुरु किया तो विवेक बढ़ेगा। दूसरों की गलतियां देखने या उन पर आखे उठाने से नहीं, अपितु स्वयं को देखने से। इस प्रकार से कार्य होंगे। कृष्ण को यह नहीं करना पड़ा क्योंकि वे सम्पूर्ण थे। सम्पूर्णता प्राप्त करने के लिए हमें यह सबै करना पड़ेगा। हैं। आप साक्षी बन सकते हैं। श्री कृष्ण ने कहा था "मै पूरे विश्व का साक्षी हूं। ब्म हमें यह देखना है कि हम कहां गलती कर रहे हैं और श्री कृष्ण कैसे हमें बचा सकते हैं। यह दिन-प्रतिदिन विवेकशील बनने से होगा। विवेक आपको निश्चित विचार देता है कि आपको कैसा बनना है। आपके पास वैसी ही मुस्कराहट होगी जैसी श्री कृष्ण के पास थी। हमें यह समझना है कि हमारी विशुद्धि ठीक रहे। अमेरिका को ठीक करने के लिए मेरी विशुद्धि पकड़ जाती है। इसके बिना मेरी विशुद्धि कभी ठीक नहीं हो सकती। विशुद्धि ठीक करने के लिए हमारे पास सहजयोग में बहुत सी विधियां हैं जिन्हें बहुत कम लोग करते हैं। यदि कुछ थोडे से सहजयोगी ही अपनी विशुद्धि को ठीक रख सकें तो मैं बहुत बेहतर हो जाऊगीं। परमात्मा द्वारा आशीर्वादित आप एक नई जाति हैं, आपके अन्दर अपने गौरव और प्रकाश में जागृत श्री कृष्ण है। मगर में क्या दखती हूँ कि लोग ध्यान भी नहीं करते हैं । यदि वे ध्यान करते हैं तो वे बातचीत नहीं करना चाहते। कई बार जब वो बातचीत करते हैं तो वे सोचते हैं कि वो भगवान बन गये हैं। सम्भाल की दृष्टि से मानव बहुत ही कठिन वस्तु है। श्री कृष्ण की तरह आपको पूरी नम्रता से बातचीत करनी चाहिए। रास में उन्होने राधा की शक्ति सब लोगो में हाथ पकड़ कर फैलाई। उनका बचपन, जहाँ उन्होने बहुत से दुष्टों को मारा, पूरा हो गया है। व्यस्क होने पर भी उन्हें अपने मामा को मारना पड़ा, वह भी हो गया। एक अन्य बात में सहजयोगियों के बारे में बताना चाहती हूं, हमने भारतीय शास्त्रीय संगीत आप लोगों में इसलिए चलाया है क्योंकि इससे चैतन्य लहरियां बढ़ जाती हैं। मगर पश्चिमी लोग स्वभाव वश जो भी कार्य करने लगते हैं वे उसकी तह में तब तक जाते हैं जब तक पूरी तरह से खो न जायें मै हैरान हूं कि कैसे लोग संगीत में खो जाते हैं। कोई उत्सव अवश्य होना चाहिए। संगीत के साथ वे सब पहले ही दूसरी दुनिया में हैं। यह सब मत करो। आप हर चीज की अति में चले जाते हैं । यह ठीक नहीं है। पूजा में भी, आप अति में चले जाते हैं। अति में जाने पर आप मध्य में नहीं रहेंगे, आप श्री कृष्ण के स्थान में नहीं रहेंगे। राजा बनकर वे क्या कार्य करें? यह समय संचार के लिए था। राजा बनने के बाद ही उनके अधिकतर गुण प्रकट हुए। इससे पहले तो वे एक के बाद दूसरे राक्षस को मारने में व्यस्त थे। उसंके बाद उन्होने द्वारका बनाई और लोगों से बातचीत का प्रयत्न किया। आपका कर्तव्य स्वयं को बनाना है और दूसरों के साथ श्री कृष्ण सम मधुरता से बातचीत करना है। पूरी समझ के साथ की क्या बेकार चीजें आस-पास हो रही हैं। एक बार जब आप यह समझ लेंगे तो उसे नहीं करेंगे। आप बहुत ही बुद्धिमान बन जायेंगे उन चीजों को जो चल रही हैं आप नहीं लेंगे। अगर आप साक्षी बन जायें तो आप देखेंगे क्या हो रहा है। हमें लोगों को नर्क में जाने से रोकना होगा। हमें एक वास्तविक सहज योगी का व्यक्तित्व विकसित करना है। की सृष्टि करते हैं। किसी के पास संगीत का संसार किसी के पास नृत्य का, अन्य के पास ऐसा संसार है जहां वे स्वयं का कोई अन्त नहीं देखते हैं। "हमारा श्री माता जी से विशेष सम्बन्ध है। यह बहुत सामान्य बात है मेरा कोई विशेष सम्बन्ध नहीं हो सकता। किसी का भी मेरे साथ कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। यह मैं आपको बहुत साफ तरीके से बताना चाहूंगी आपको इसका दावा नहीं करना चाहिए। परमात्मा आपको आशीर्वाद दें। का बहुत से विवाह होते हैं जो अचानक तलाक तक श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सारांश) श्री गणेश पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश ) मास्को 11-9-1994 प्रेम से मुस्कराता हुआ आप देखते है तो उसके लिए आपके हृदय से प्रेम धारा बह निकलती है। पावित्र्य का सम्मान किये विना आप कभी प्रेममय नहीं हो सकते। प्रेम के बिना आप सत्य को नहीं जान सकते अबोध लोगों को प्रेम करने में कभी हम हिचकिचातें है और कभी हम घबराते हैं। अबोध व्यक्ति किसी प्रकार की हानि नहीं पहुचाते। माता पिता का बच्चों को पीटना मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं बच्चे अपनी अबोधिता में सभी कुछ करते हैं अतः आपको चाहिए कि करुणा भाव से उन्हें समझं | आज रूस में बहुत से जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी बच्चे है, आप सब क्योंकि आत्मसाक्षात्कारी है इस लिए बहुत से सन्त आपके यहां जन्म लेना चाहते हैं। परन्तु आपको स्वंयः भी अबोध होना होगा। जिन देशों में बच्चों का सम्मान नहीं होता वहां बच्चे जन्म नहीं लेना चाहते। उन देशो में ऋणात्मक (पतनोन्मुख) विकास है। परन्तु भारत जैसे देश में जहां बच्चों को बहुत प्यार किया जाता है, गरीबी होते हुए भी वहां बच्चे जन्म लेना चाहते है। बच्चे धन या भौतिक वस्तुओं को नहीं जानते वे प्यार को समझते हैं, यदि आपमे प्रेम नहीं है तो आप में श्री गणेश का प्रकाश नहीं हो सकता। जो मा अपने बच्चे को प्रेम करती है, वह बच्चे के लिए किये जाने वाले हर कार्य का आनन्द लेती हैं। परन्तु बच्चे को प्रेम न करने वाली मा को लगता है कि उस पर बहुत बोझ पड़ गया है। उससे यदि आप कारण पूछे तो वह कहेगी कि मुझे यह धौना है, यह साफ करना हैं, इस बच्चे की देखभाल करनी है आदि कहानियां परन्तु आत्म साक्षात्कारी माँ यह सब करने का आनन्द लेगी। वह बच्चों का सम्मान करेगी और उन्हें भी अपना सम्मान करना सिखाएगी। अपने बच्चों के प्रति कठोर होने की कोई आवश्यकता नहीं। बच्चे अत्यन्त संवेदनशील और विवेकशील होते हैं। सैकडों में से हो सकता है कि कोई एक बच्चा आपको खराब मिले। परन्तु बाद में अपने बड़ो से, विशेषकर माता-पिता और वातावरण से, सीखकर वे कष्टप्रद हो जाते हैं इसका अभिप्राय यह नहीं है कि आप अपने बच्चों को अनुशासित न करें, रोकें नहीं या उन्हें सिखाएँ नहीं। स्वंय पवित्र और धार्मिक बनना सर्वोत्तम है। गणेश नैतिकता का आधार हैं। जिस समाज में नैतिकता समाप्त हो जाए वह नष्ट हो जाता है चाहे उसमें जितना भी आर्थिक, धन सम्बन्धी या राजनैतिक बहुतायत हो। वे अन्दर श्री गणेश का निवास मूलाधार चक्र में है, मूलाधार पर नहीं। मूलाधार पर कुण्डलिनी का स्थान हैं। वे श्री गणेश की मां है जिन्हें हम गौरी कहते है। अब हम मानव चेतना के उस पड़ाव पर है जिसे चौथा आयाम कहतें है। श्री गणेश के बिना यह असम्भव है क्योंकि वे हमारे अन्दर अबोधिता (पावित्र्य) के प्रतीक हैं। शाश्वत होने के कारण यह अबोधिता कभी नष्ट नहीं होती. परन्तु हमारी गलतियों के कारण यह अच्छादित हो सकती हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् आपकी अबोधिता पुनः स्थापित हो कर प्रकट होने लगती है। आप पवित्र हो जाते है, आपका चित्त पवित्र हो जाता बिना आत्मसाक्षात्कार का प्रकाश प्राप्त किये आप किसी भी कर्म को नहीं अपना सकते चाह वह धर्म ईसा, मोहम्मद साहिब का हो या यहूदियों का। उच्च स्तर का होने के कारण ये पैगम्बर इस बात को महसूस न कर सकें कि मानव की स्थिति क्या है? बाइबल में लिखा है कि यदि आपकी आख अपराध करती है, अर्थात श्री गणेश के विरुद्ध जाती है तो आप इसे निकाल दें या यदि आपका दायां हाथ श्री गणेश विरोधी कोई कार्य करता है तो आप इसे काट डालें। मोजूज़ जब दस ध परन्तु का है। लेके आये तो उन्हें यह लगा कि यहूदी समाज, मंदिश आजकल की तरह अत्यन्त पतित है। चरित्र का पूर्ण अभाव है सहज ही एक मात्र मार्ग है जिसके द्वारा मानव पवित्र हो सकता है। श्री गणेश ही हमारे अन्दर आत्मा रूप है और वे पृथ्वी पर भगवान ईसा-मसीह के रूप में अवतरित हुए। परन्तु इतने महान अवतरणों के विरुद्ध बहुत सी उल्टी सीधी बातें हुई और लोगों ने अपने- अपने सम्प्रदाय बना लिये। कोई भी धर्म-ग्रंथ अन्य धर्म ग्रंथो से भिन्न नहीं है। उदाहरणतया मोहम्मद साहिब ने मोजूजू, ईसा की माँ का वर्णन किया है। अत: उन्होंने किसी भिन्न धर्म की स्थापना नही की। उन्होंने बताया कि सारे धर्म परस्पर गुंथे हुए हैं। परन्तु आज लोग ये नहीं मानते कि सभी धर्मों की उत्पत्ति आध्यात्मिकता के एक ही वृक्ष से हुई। वे केवल दूसरों से ही नहीं लड़ रहे परस्पर भी लड़ रहें हैं। परमात्मा के नाम पर बे निरीह लोगो की हत्यायें कर रहे है। अबोधिता प्रेम का स्त्रोत है। जब आप नन्हें बच्चों को मधुरतापूर्वक नाचते हुए देखते है तो आपके हृदय में उनके प्रति अगाढ़ प्रेम उमड़ता है। किसी बच्चे को यदि अपनी तरफ प। 10 से नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के रूप में आप अमेरिका को लें जो कि अत्यन्त वैभवशाली देश हैं, वहां क्या हो रहा है? 12 वर्ष के छोटे-छोटे बच्चे हत्याएं करते हैं और नशीली दवाएं बेचते हैं। पश्चिम के किसी अन्य देश में माता-पिता ही बहुत से बच्चों की हत्या कर देते हैं। जितने भी समृद्ध देश है उन सब में कुछ विशेष प्रकार की अनैतिकता है, वे अत्यन्त हिंसक एवं अहम् ग्रस्त हैं। अवोधिता अहम् का समाधान कर देती है। बच्चे से जब आप बात करते हैं तो उनकी मधुर तथा विवेकशील बातों को सुनकर आप आश्चर्यचकित रह जाते हैं । वे अत्यन्त स्नेह एवं करुणामय हैं। श्री गणेश एवं कार्तिकेय को एक बार उनके पिता ने कहा आप दोनों में से जो भी पहले पृथ्वी मां की परिक्रमा कर लेगा उसे इनाम मिलेगा। श्री गणेश ने सोचा कि कार्तिकेय तो अपने मोर पर बैठकर तेजी से जा सकते हैं। पर मुझे तो चूहे पर जाना है, मेरा क्या होगा? परन्तु वे क्योंकि विवेक के स्त्रोत है अत: विवेकपूर्वक उन्होंने सोचा कि "मेरी मां पृथ्वी मा से भी महान है।" अंत: उन्होंने अपनी मां की तीन बार परिक्रमा कर ली और वह इनाम उन्हें मिल गया। अबोध व्यक्ति अत्यन्त नम्र होता है, वह दिखावा नहीं करता। उदाहरण के रूप में श्री गणेश का वाहन चूहा है। परन्तु दिखावा करने वाले लोग बड़े-बड़े ऋण लेकर अपनी सामध्य से परे महगी कारें खरीदते हैं। यह अपवित्र लौगों की बीमारी है और लोग इसका अनुचित लाभ उठाते हैं पश्चिमी देशों में रूप रेखा बनाने वाले लोग हैं। वे हर चीज़ पर अपनी मोहर लगा देते है और इसके लिए सभी को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है। यहाँ तक कि लोग अपने कोट पर भी रूप रेखाकार के नाम का प्रदर्शन करते हैं । अत: दिखावा करने वाले इन लोगो का उद्यमी पूरा पूरा लाभ उठाते है। अबोध व्यक्ति अपने शरीर की, नये फैशन की या शरीर प्रसाधनों की अधिक चिंता नहीं करता। एक बार मेरी नात्नि ने तैराकी वेशभूषा पहने हुए एक स्त्री का फोटों देखा। वह उस फोटो से कहने लगी," जा कर अच्छी तरह से कपड़े पहनो नहीं तो मेरी नानी तुम पर बिगड़ेगीं।" अत: जब आप इन छोटे बच्चों को बातें करते हुए, बर्ताव करते देखते हैं कि वे कितने अबोध हैं, तो आप वास्तव में हुए आनन्द लेते हैं क्योंकि अबोधिता ही प्रेम एवं आनन्द का स्त्रीत है। प्रेम विहीन जब आप किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते तब आप उसकी आलोचना करने लगते हैं, उसके विषय में निर्णय देने लगते है और व्यर्थ की बातों में समय नष्ट करने लगते हैं। जैसे उस दिन जब मैं अति सुन्दर संगीत की सुन रही थी तो मैनें अपनी आखं बन्द कर लीं। संगीत वास्तव में अच्छा था और मैं इसमें खो गई। परन्तु कुछ महिलाएं संगीतकार की वेषभूषा पर और उनके हाथ चलाने की शैली पर टिप्पणियां कर रहीं थी, वे इन सब छिछली चीज़ों को देख रहीं थी परन्तु तत्च पर उनका ध्यान न था। अवोधिता तत्व को ग्रहण करती है और तत्व ही प्रेम है। अत: हमें गणेश जी की इस विशेषता को समझना है और इसे अपने अन्दर उतारना है। उनका पावित्र्य 'जो हमारे अन्दर विद्यमान है' का प्रकटीकरण होना चाहिए, मैं किसी सहजयोंगी के घर पर थी जहां लगभग 2.3 लोगो की एक सभा समाप्त हुई, मैं सबके जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। वह सहजयोगी रसोई में था जब वे सब लोग चले गए तो वे भागता हुआ आया और कहने लगा,"मां ये आपने क्या किया? सब लाग कहा चले गए मैने सबके लिए खाना बनाया है।" उसकी आखों में ऑसू आ गए। उसकी उदारता और करुणा को देखकर मैं अभिभूत हो उठी। अबोधिता में जब उदारता की जाए तो आपको पता भी नहीं होता कि आप क्या कर रहे हैं। आप कवल अपनी उदारता का अनन्द लेते हैं और दूसरे व्यक्ति कि प्रतिक्रिया को देखने की चिंता भी नहीं करते। हमारे शास्त्रो में ऐसे बहुत से लोगों का वर्णन मिलता है, जैसे श्री राम। वे जंगलों में गए जहा एक वृद्ध दन्तविहीन शबरी नामक महिला उन्हें मिली उसने श्रीराम को भेंट किए और निश्चलतापूर्वक कहा कि मैंने यह सब बेर चखे हैं और केवल मीठे बेर आपके लिए रखे हैं। भारत में प्राय: लोग दूसरे की मुह लगाई चीज नहीं खाते पर श्री राम ने ये बेर खाये। परन्तु लक्ष्मण जी बहुत विगड़े। शबरी जब श्री राम के मुंह में बेर दे रही थी तो लक्ष्मण का क्रोध और बढ़ गया। श्री राम ने कहा"इतने अच्छे फल मैने अपने जीवन में कभी नहीं खाए।" उनकी पत्नी सीता ने भी बेरों का आनन्द लिया। तब लक्ष्मण ने भी वे फल मांगे। शबरी से फल लेकर उनका आनन्द लिया। कभी-कभी हम अवोध बच्चों से बहुत अधिक लिप्त होने की गलती करते हैं। हम उन्हें बहुत अधिक महत्व है। श्री गणेश ही धर्म की नींव है। आप बच्चो को देखे. वे नहीं जानते कि झूठ किस प्रकार बोलना है। कभी-कभी तो वे ऐसी बातें कह देते हैं जो बहुत ही परेशान करने वाली होती हैं। माँ ने पिताजी से कहा कि आज जो व्यक्ति शाम को आ रहा है वह सूअर की तरह से खाता है। इस बच्चे ने ये बात सुनी थी और जब वह व्यक्ति आया तो उसे खाना खाते हुए दखकर वह बच्चा कह उठा, से नहीं खाता, आप क्यों कहती हैं कि वह सूअर की तरह खाता है। आपको झूठ नही बोलना चाहिए।" और मा को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। अपनी अंबोधिता द्वारा एक अबोध व्यक्ति अन्य लोगों की आलोचना और उन पर टिप्पणियों को कम कर देता है. क्योंकि एक पवित्र व्यक्ति वह चीजे नहीं देख सकता जो एक चरित्रहीन देख सकता है। बेर कुछ " मां, वह तो सूअर की तरह दे 11 श्री गणेश पूजा देते हैं। अबोधिता बहती हुई नदी की तरह से है। एक ही जगह पर रोकने से जैसे पानी सड़ जाता है इसी प्रकार बहुत अधि कामुकता और लालच निकल जाते हैं क्योंकि आपका चित्त क लाडू प्यार से बच्चे बिगड़ जाते है। बच्चों का सम्मान अवश्य होना चाहिए परन्तु अवाछित महत्व उन्हें नहीं दिया है और न ही अपने हाथ काटने पड़ते हैं। आप वास्तव में पवित्र जाना चाहिए। सभी बच्चे एक से हैं। उनके भिन्न पक्ष हो सकते हो जाते हैं। श्री गणेश की तरह आपकी भी अबोध सन्तो की हैं। सर्वप्रथम वे कभी ऊबते नहीं। आप यदि अवोध है तो आप कभी महीं ऊबेगें। सदा आप सौन्दरर्य को देखेंगे। अकेले होने की स्थिति में भी आप आनन्द मग्न होंगे केवल बड़े व्यक्ति ही ऊब जाते है। मान लो आप हवाई अड्डे पर हैं कि महाराष्ट्र के लोग अत्यन्त अबोध हैं यह बहुत ही प्राचीन और आपका वायुयान देर से जाना है तो सभी बड़े व्यक्ति देश है और इस क्षेत्र के लाग श्री गणेश की पूजा करते हैं तथा परेशान हो जाएगे परन्तु बच्चे खेलने की कोई सीढ़ी आदि निश्छल हों गए हैं। आजकल दस दिनों के लिए वे गणेश की ढूंढ कर आनन्द लेने लगेंगे। हर चीज़ को एक विशिष्ट परिभाषा में बाध कर बच्चे स्वयं को दु:खी नहीं करना चाहते। में वे इसे समुद्र या नदी में प्रवाहित कर देते हैं। परन्तु यह मैने बड़े लोगो को हवाई अड्डे पर अत्यन्त ऊबे हुए देखा कोका कोला सभ्यता अब भारत में भी आ गई है, इसके प्रभाव है परन्तु बच्चे इधर-उधर दौड़ते हुए तथा अन्य बच्चों से मित्रता करते हुए दिखाई देते हैं। केवल अवोधिता द्वारा ही मदिरा पान करते हैं। ये सब जनता के गणेश हैं। अत: अपने आप अपने सीमित विचारों से ऊपर उठ सकते हैं। मैने पिछले दो प्रवचनों में मैंने उन्हें ऐसा न करने की चेतावनी दी अत्यन्त जाति बन्धनों में बंधे माता-पिता देखे हैं पर उनके है और बताया है कि यदि श्री गणेश नाराज हो गए तो भूचाल बच्चे पलक झपकते ही अन्य लोगों से मिन्नता कर लेते हैं | केवल अबोध व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। बिना रंग, चेहरे गणेश को जल में प्रवाहित करके नशे में धुत रात के समय और बालो कि चिंता किये अबोध व्यक्ति किसी का भी मित्र हो सकता है। ये सारी बातें उसके लिए अर्थहीन है, सतही और सहजयोगियों के अतिरिक्त सभी लोगों का दफन हो गया। हैं। इन व्यर्थ की चीजों की बच्चे चिंता नहीं करते, वे केवल व्यक्ति का हृदय देखते हैं। उसका हृदय यदि प्रेममय है तो के चारों ओर बहुत बड़ी खाई बन गई। लोग बचाव के लिए जाति, धर्म आदि की चिन्ता किये बिना बच्चे उसकी ओर केंद्र की ओर दौड़े, पर खाई में गिर कर उनकी मृत्यु हो गई। दौड़ते हैं। अबोधिता अहम् को समाप्त कर देती है। अबोध व्यक्ति किसी का पावित्र्य भंग करने का प्रयत्न करे तो अंततः श्री गणेश हैं उनका प्रभाव आखों पर पड़ने लगता है। आखो से पवित्र हो जाता है। आपको न तो अपनी आखे फोड़नी पड़ती तरह सृष्टि की गई है। अपनी पवित्रता का सम्मान करने का प्रयत्न करें। यह आपको युवा और प्रफुल्लित बनाये रखेगी। महाराष्ट्र में आठ स्वयंभुः गणेश हैं और मैने देखा है स्थापना कर रहें है। मिट्टी से वे गणेश बनाते हैं तथा बाद में लोग श्री गणेश के सम्मुख भद्दे -भद्दे गीत गाते हैं और आ जाएगें। परन्तु उन्हें विश्वास ही न होता था। तीसरे वर्ष जब वे लोग नाच रहे थे तो अचानक भयकर भूचाल आया वहाँ के सहजयोग केन्द्र को भूचाल ने छुआ तक नहीं। केन्द्र अबोधिता अत्यन्त शक्तिशाली है। कोई भी व्यक्ति यदि गणेश उसे कठोर दंड देते हैं जो लोग हृदय से श्री गणेश की पूजा नहीं करते वे असंतुलन के शिकार हो सकते हैं। दायीं और जा कर उन्हें प्राय: शारीरिक रोग हो सकते हैं और यदि उनकी झुकाव बायें को हो जाए तो वे मनोदैहिक रोगों के आक्रमक नहीं हो सकता। आक्रामकता यदि है तो यह अत्यन्त स्नेहमयी आक्रामकता होगी। जैसे एक बच्चा कहेगा," आप मेरे कपड़े इस बच्चे को क्यों नहीं परमात्मा! मैने इन पर इतने सारे पैसे खर्च किये हैं और सब वस्त्र दे डालना चाहते हो?" वह कहेंगा" ठीक है आप मेरे लिए एक बार फिर खरीद लेना परन्तु अभी इस बच्चे को मेरे वस्त्र दे दो।" अबोध बच्चों में स्वामित्व की भावना नहीं होती। अपनी वस्तुओं को दूसरे के साथ बाट लेने में वे आनाकानी नहीं करते। परन्तु यदि उन्हें ये सिखाया गया कि यह वस्तु तुम्हारी है और तुम्हारे पास रहनी चाहिए" तो बच्चों में स्वामित्व भाव आ जाता है। जीवन का आनन्द लेने के लिए बच्चों के साथ रहना, उन जैसा बनना और उनका आनन्द लेना बहुत अच्छा है। इससे हमारी अबोधिता का पोषण होता है। मैने देखा है कि सहजयोग में लोग अबोध बन जाते हैं। श्री गणेश जो कि आपके सिर के पिछले भाग में हैं और जो महा दे देते ?" आप कहेंगे " हे तुम शिकार हो सकते हैं। ये रोग असाध्य हैं। हमारे देश में कुछ नीच किस्म के लोग हुए हैं जिन्होने सिखाया कि योन द्वारा कुण्डलिनी को जागृत किया जा सकता है। वे तान्त्रिक बन बैठे। इन तान्त्रिकों ने मन्दिरों में सभी प्रकार के कुकृत्य किये। इन्हांने श्री गणेश का कामुकता द्वारा अपमान किया। उन सबका अब नाश हो रहा है। अत: श्री गणेश द्वारा आशिर्वादित किसी अबोध व्यक्ति को चुनौती देने का कभी दुस्साहस नहीं करना चाहिए। केवल आत्मसाक्षात्कार द्वारा ही आप अपने अन्दर श्री गणेश को जाग्रत कर सकते हैं। परमात्मा आप को आशिर्वादित करें। ০০ 12 होली तत्त्व 17-3-1995 आज होली है। आज की होली पहले से नौएडा के, फिर कोई और अपने को कहीं और बहुत भिन्न है। होली का, तत्त्व जानना चाहिए होली में अपने अंदर की गंदगी और दोष जलाकर हृदय शुद्ध करते ही जो प्रेम उमड़ आता है,उसके होना चाहिए। हम सब एक चैतन्य से सब तरफ चैतन्य के रंगों की बौछार हैं। समुद्र की बात करो, बूंद की नहीं। कोई होने से सब लोग मस्त हो जाते हैं। इसीलिए आपको कुछ बोल के परेशान करता है कोई बात सर्वप्रथम होली में अपने अंदर की बाधाएँ जलानी नहीं, उन्हें कहने दीजिए। वह सब सामने आता चाहिएं। । का सहजयोगी कहता है। हम सब एक हैं। हम में, कोई दिल्ली का, बम्बई का ऐसा फर्क नहीं हैं। हम सहजयोगी है, धीरे धीरे। हमारी शादी हुई थी तब हमारे यहाँ सौ से भी ज्यादा आदमी थे। हमनें कभी किसी चीज सहजयोग में राजनीति नहीं होनी चाहिए। पूरे समाज के लोगों में राजनीति की जो जबरदस्त पकड़ है उसके कारण सहजयोगी भी इसकी लपेट की परवाह नहीं की। कोई कुछ कहे कोई बात में आ जाते है। एक व्यक्ति जो पूरी तरह सहजयोग नहीं। साधु संत जैसे रहें, सब न जनाता हो, दूसरों को अपने इस दोषी स्वभाव से कुछ कह देता है और फिर दूसरों में इसका असर आ जाता है और वो भी इसे किसी और तक पहुंचा देता है। हैं, फ्लू की तरह। यह एक बीमारी है। यह फैलती जाती है। पहले जुमाने में औरते राजनीति करती थीं और आदमी लोग लड़ते थे, लेकिन अब उल्टा हो रहा है। कोई भी आदमी जो ऊचा उठना चाहता है उसे ऐसी हरकतों में नहीं उलझना चाहिए। की सेवा की। अब भी हमारे दोस्त हैं लेकिन हमारे पति के नहीं हैं। जब भी हम सब को खुश रखा। लखनऊ जाते हैं तो सब के सब सिर्फ हमें मिलने आते हैं। हमसे उन लोगों को बहुत लगाव है। हमारे पति को मिलने कोई भी नहीं आता, सब हमें मिलने आते हैं। निर्वाज्य प्रेम होना चाहिए। जैसे कुछ हवा सी चलती कोई कुछ कहे, बके, हमें उससे कोई मतलब नहीं। अगला जन्म तो हम सहजयोगियों को है नहीं, और अगर हो भी तो संत का जन्म रहेगा। इस जन्म का इसी जन्म में धोइये, स्वच्छ हो यह एक बड़ा भारी प्रेम है। में देखती हूं, जाइए। अगले जन्म में धोने का अवसर नहीं मिलेगा। मैं बोलती नहीं लेकिन सब जानती हू। सहजयोगियों जो भी कुछ धोना है अभी धोना. है, इसी जन्म में आपस में बैर नहीं होना चाहिए। यह मोह के कारण होता है। नारद मुनि की तरह सहजयोगी हो। संत का एक दूसरे को उलट पुलट चीजं बताकर आपसी बैर बढ़ाते जाते हैं। इस आपसी बैर के बढ़ने से प्यार का जाल टूट जाता है। हमें सहजयोग से ध्यार होना चाहिए और चाहिए। फिर भी यह चीज़ पहले से अभी कम है। में ताकि अगला जन्म हो भी तो वो दोषरहित जन्म रहेगा। | न आक्रामकता हममें हैं आक्रामक स्वभाव है। दूसरा, लोगों में बाधा भी है। इन दोनों को हम निकाल सकते हैं। सहजयोग में हमारे पास इसके मां से प्यार होना लिए उपाय हैं। यहाँ सब निकाल देना चाहिए। तीसरा, (हिपोक्रसी) पाखण्ड। अपने आप को बढ़ावा देकर लोगों के सामने पेश होना। अंदर है कुछ लेकिन अब लोग दूसरी तरफ जा रहे हैं। और, लोगों को बढ़ा चढ़ाकर बताना कुछ और। कोई कहते हैं हम दिल्ली के सहजयोगी हैं, कोई इससे हमें क्या फायदा? हम अपने अपको ध 13 होती तत्व खा दे रहें हैं। अंदर से काट रहे हैं। अंदर और बाहर एक चीज़ होनी चाहिए। बगैर इन दोषों को होली में जलाए कोई फायदा नहीं। फिर वह कृष्ण की होली नहीं रहेगी। बदला, दोष, बाधा सब होली में जलाइए। ग्रुपबाज़ी, राजनीति सब जला दीजिए। एक ग्रुप एक जाति नहीं होना चाहिए। लकड़ी जलाकर स्वयं को सोना बनाओ। अपनी यह हमारे लिए ठीक नहीं है। एक ग्रुप बनाकर रहना ठीक नहीं। एक जाति के लोग अपना बना लेते हैं, यह ठीक नहीं है। अब हम सहजयोगी के दो मंत्र हैं। जो भूत बाधाओं से पीड़ित हैं बन गए हैं। हम किसी ग्रुप या किसी जाति के नहीं रहे। अपने ही लोगों को महत्त्व देना लेते हैं। इससे कोई फायदा नहीं। इसे हम खुद बेकार बात है। अपने ही जाति के लोगों को, की सहायता की जरुरत अपने ही इलाके के लोगों को आगे करना ठीक नहीं। जो अगुआ हैं उन्हें इस तरफ ध्यान देना चाहिए, इस ओर दृष्टि करनी चाहिए। उन्हें देखकर बाकी लोग भी वैसा ही बर्ताव करते हैं। यह सब होली में जलाएं। आप मुझ पर छोड़ दीजिए। होली में जलाने के. लिए सब लोग अपने अपने घर की लकड़ी देते हैं ताकि उस लकड़ी के जलने से उनका घर बाधारहित हो जाए। सहजयोग में यह लकड़ी हमारा शरीर है। अपने शरीर की क्षमा की शक्ति का बढ़ाओ। राइट साईड (आक्रामक ग्रुप स्वभाव) को कम करें। "हम्" और '"क्षम्" आज्ञा वह बाधा निकालने के लिए औरों का सहारा निकालें। हमें अब औरों नहीं। यह कहना चाहिए कि में सहजयोगी ह या मैं सहजयोगिनी हूं, बाधा दूर हो जाएगी। दूसरों को मत ढूंढो। बाधित लोगों को मत ढूढो। इससे बाधा बढ़ जाती है। वह शारीरिक हो या मानसिक हो उनका एक गुप बन जाता है। इसके लिए एक मंत्र है; बहुत बड़ा मंत्र "सबको माफ करो"। इसके बगैर उन्नति नहीं। हमें मां से मतलब हैं, सहजयोग से मतलब है। कोई अगर कुछ गुलत कहे से जानो, उनको बकवास करने दो। हमारा ख्याल इस तरफ होना चाहिए की इस गुलत बात को सुनकर हमारे अंदर कोई गुलत बात तो नहीं जा रही है? देखी है कि लोग मुझपर एक और बात मेंने अपना अधिकार जताते हैं। चर्चा, विवाद शुरु कर देते हैं। मैं देखती हं। तरंत स्वाधिष्ठान. पूरी तरह तो उसे सुबु्धि जकड़ जाता है। और वाद-विवाद का कोई अंत ही नज़र नहीं आता। तीन-तीन बजे तक बैठे रहते हैं। अरे भाई. हमने आपको समझाया आप बाधा ग्रसित हो, आपका घर शमशान के पास है उसे छोड़ दो। किराये का घर है उसे छोड़ने में क्या हर्ज है? लेकिन नहीं। उस तरफ उनका ध्यान नहीं, और अधिकार जताते जा रहे हैं हमने देखा है वाधा वाले सबसे आगे रहते हैं। बाधा चिपकती है। हम बुद्ध को जानते हैं और सबको मानते हैं, यह छोड़ दो। वैमनस्य से कोई लाभ नहीं। अपने अंदर के घटरिपुओं को जलाओ। हमें व्यक्तिगत तौर पर उन्नति हासिल करनी चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर। इसी से सम्पूर्ण समष्टी में बदलाव आएगा। एक सेब यदि खुराब हो तो पचास सेबों को होनी चाहिए। सहजयोग में नितांत खराब कर देता है। लेकिन सहजयोग में एक व्यक्ति, बाकियों की ठीक करता है-पचासों को। खुराब स्वभाव का औरों पर असर पड़ता है। परिवार में भी यह चीज हम देखते हैं। यदि परिवार होती है तो प्रोटोकॉल की तरफ ध्यान देना चाहिए। पत प्रोटोकॉल (नियम-आचरण) होना चाहिए। मां के प्रति श्रद्धी श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्वा के बिना चर्चा करने से दाहिनी विशुद्धि तुरन्त पकड़ी जाती है। प्रोटोकॉल का ख्याल करना चाहिए। जब भी गुलत बात में एक व्यक्ति भी खुराब स्वभाव का हो तो सब पर असर आता है। लेकिन सहजयोग में ऐसा नहीं है एक भी अच्छा सहजयोगी हो तो है मां जैसा अवतरण आज तक नहीं हुआ है। वह सबको ठीक करता है। यदि कोई गुलत व्यक्ति हो तो वह अपने आप निकल जाएगा। हम उसमें अपना चित्त डालने की जुरुरत नहीं। वह चीज़़ सबसे ज्यादा श्रीकृष्ण ने राक्षसों को मारा। श्री राम ने राक्षसों को मारा। लेकिन लोग मुझे कहते आपका कार्य महान है। आप में लोगों के अंदर स्थित राक्षसी प्रवृत्तियों को नष्ट करने की शक्ति 14 प्रतीकात्मकता से होली जलाओ। स्वच्छ हो ही नहीं उसकी प्रशंसा भी करते हैं। वैसे जाओ। मुक्ति में जो आनंद आ रहा है इसमें लोग तो हमें भगवान ही समझते हैं क्योंकि वे नाचो गाओ और सबको आनंदित करो। सहजयोग जानते हैं की शरीर का आराम, आराम नहीं है, की होली कृष्ण की होली है। आजकल तो लोग होली में भंग पीते हैं, श्रीकृष्ण क्या भंग पीते की आपसे से बहुत अपेक्षाएँ हैं। हमें उन अपेक्षाओं थे? भंग तो सिर्फ शिव शंकर पीते हैं। जिनको की तरफ ध्यान देना चाहिए। भी सहजयोग में रहना है उन्हें व्यभिचार त्यागना होगा। यही होली का महत्त्व है। वो ध्यान आत्मा की तरफ रहना चाहिए। उन लोगों और भी कई चीजे हैं जैसे कोई भी काम बगैर पूछे करने लगते हैं। मुझे पूछे बगैर काफी खाने-पीने को हम बहुत महत्त्व देते हैं। किसी चीजे की जाती हैं। इससे अंत में नुक्सान हो को जाता है। पूछना चाहिए। इसी में सबकी भलाई चीजों है। ऐसा क्यों होता है, इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए। असल में होली का तत्त्व यही है कि चाट कहा अच्छी मिलती है, मिठाई यहाँ अच्छी मिलती है, यहा ये, सारा चित्त इन्हीं में लगा रहता है। अस्वाद होना चाहिए। ये या वो। कहते हैं -श्री कृष्ण को लङ्ड् ज्यादा पसंद अपने आपको अंदर से साफ करना चाहिए। हैं और देवी को पूरणपोली। अब आप लोग भी मेरे लिए कुछ कुछ बनाकर लाते हो लोकिन मुझे मुलाका्त हमारे पूर्वज राजा शालीवाहन से हुई थी। इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं। अस्वाद होना चाहिए। अस्वाद में उतरना चाहिए। अब आप लोग इतने प्यार से मेरे लिए चीजें बनाकर लाते है वहाँ के लोगों को म्लेच्छ कहते हैं (जो मल हो इसीलिए मैं वो खा लेती हूँ। वो बात अग है। हा दूसरों को बनवाकर खिलाओ। ज्यादातर उत्तरी में आया है। तब राजा शालीवाहन भारत में लोगों का खाने में ध्यान ज्यादा है, फिर महाराष्ट्र में भी है और दक्षिण भारत में भी है। वैसे सभी जगह है। हमें लोग पूछते हैं, आपको क्या पसंद है? हमें तो याद भी नहीं आता कि हमें क्या अच्छा लगता है। येशु बहुत पहले कश्मीर आए थे तब उनकी तब उनको पूछने पर येशु क्रिस्त ने बताया "मुझे ईसा मसीह कहते हैं और जिस देश से मैं आया की इच्छा रखते हैं ) इसीलिए मैं आपके देश ने उनसे कहा कि वे अपने ही देश में वापस जाकर उन लोगों से कहें की वे "निर्मलम् तत्वम" अपनाए। सहजयोग का जो काम है यदि मेरे अकेले से हो सकता तो आप लोगों की जरुरत ही नहीं रहती। लेकिन यह कार्य आपके माध्यम से होना हैं। आप सब लोग सहजयोग के माध्यम हैं। आप सब जितने स्वच्छ रहेंगे उतना आप ईसा मसीह ने कहा था- "Hate sin and (बुराई से घृणा और बुरे love the sinner", सहजयोग के से प्यार करो) गुण देखिए, अवगुण देखिए। सहजयोग प्यार से ही बढ़नेवाला है आप अपने प्यार को बढ़ाइए। इस मामले में विदेशी गहराई श्रद्धा से प्राप्त होगी समर्पण से। अगर कहीं अच्छे हैं। वो कभी आपस में झगड़ते नहीं। हमें मोती हासिल करना है तो समुद्र की गहराई जो उन्हें मिले उसी में खुश रहते हैं। लेकिन में उतरना होगा। इसीलिए गहराई में उतरना चाहिए। हम हिन्दुस्तानियों का ऐसा नहीं है। यहाँ पर तो चार लोग एक बाथरूम इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब गणपति पुले जाते हैं तब Attached Bath. (संलग्न गुसलखाना) चाहिए। विदेशियों का ऐसा नहीं है। वो लोग अपने देश में खुद की मोटर रखते हैं, हवाई जहाजू से सफर करते हैं। हमारे जैसा खाना वे लोग खाते नहीं। उनका खाना अलग होता है। लेकिन जब वो यहाँ आते है हमारा खाना तक वो बड़े प्यार से खाते हैं और इतना लिए उपयुक्त साबित होंगे। यह आपकी गहराई पर निर्भर करता है। और गहराई आएगी कैसे? हिन्दुस्तानियों से अब देखिए जो आधे पैसे में टिकट प्राप्त हुआ और उन्होंने श्रद्धा से बैंकाक जाने की इच्छा करते ही उन्हें उसी टिकट पर बैंकाक जाने की स्वीकृति मिली। गहराई में उतरने से सब चीज अनायास प्राप्त हो जाती है। इसीलिए गहराई में उतरना चाहिए उसके बिना विदेशी यहां आ रहे थे उन्हें ा कोई फायदा नहीं। ा ০ होली तत् 15 ho नव रात्रि पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( सारांश) कबैला-9-10-1994 सभी गणों के स्वामी हैं और अपने बेटें गणपति के माध्यम से माँ सारे गणों का संचालन करती हैं। प्रतिबिम्ब है और जगदम्बा भी आदिशक्ति का ही ये सब इतना सम्बद्ध है । जब हम मा के विरुद्ध अपराध करते हैं अर्थात चरित्रहीन हो जाते हैं और धर्महीन कार्य करने लगते हैं, तो क्योंकि वो माँ हं, आपको दण्डित करने में वे समय लगाती हैं। आप सहज धर्म को हृदय से समझते हैं, अन्दर से, यह सब मुझे आपको बताना नहीं पड़ता। आप जानते गणों में मध्य हृदय के माध्यम से उसकी सारी शक्तियों हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। यदि आप अपने पिता विरोधी अपराध, जैसे डींग मारना, अत्याचार कुण्डलिनी ने आपको आत्म साक्षात्कार प्रदान किया है। नि:सन्देह कुण्डलिनी आदि शक्ति का अंश हैं। दो महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर उनका स्थान है। इस चक्र में ये सारी शक्तियां रखी गई हैं। अत: कल्पना कीजिए इनमें से कितनी शक्तिया अन्दर होनी चाहिएं। आप के शरीर के आस पास मौजूद सभी हृदयों (बायां, दायां) के मध्य के की अभिव्यक्ति होती है। यही गण आपको सुरक्षा, निद्रा, ऊर्जा एवं आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सभी निरन्तर कार्यरत रहते है। मा जगदम्बा के प्रति ये अत्यन्त समर्पित हैं तथा सदा उनके सम्पर्क में हैं। वे ब्रह्माण्ड की मां है; आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड की देख-भाल करने में उन्हें कितना व्यस्त रहना होता होगा। यह केन्द्र यदि दुर्बल हो गया है तो गण भी दुर्बल हो जाते हैं और इस दुर्बलता के कारण वे अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाते। मां का चक्र होने के कारण यह केन्द्र अति सूक्ष्म है। मां के प्रेम को समझ पाना असम्भव है। लड़किया विवाह के पश्चात जब मा बन जाती हैं तो उन्हें समझ आता करना, कटु शब्द बोलना आदि, करते हैं तो आपको तुरन्त दण्ड मिल जाता है। परन्तु वे क्योंकि मां है और करुणा की सागर हैं अत: दण्ड देने में वे देर लगाती हैं और व्यक्ति को सुधारने के लिए तथा अपना मार्ग दर्शन करने के लिए समय देती हैं। परन्तु दण्ड जब शुरू होता है तो आपको बहुत ही भयंकर किस्म की बीमारियां होने लगती है। यह सब भय के कारण होता है, जब कोई व्यक्ति आपको डराता हैं या आपके प्रति आक्रामक होता है। सताये हुए, त्रस्त एवम भयभीत व्यक्ति का विश्वास माँ से उठना शुरू हो जाता है। ऐसे में मध्य हृदय चक्र है कि उनके पालन पोषण के लिए उनकी माताओं की देखभाल होनी चाहिए। भयभीत व्यक्ति मा से दूर बायीं ओर को जा सकता है क्योंकि वे ही आत्म-विश्वास, साहस एवम् बहादुरी प्रदान करने वाली हैं तब वे समझ पाते हैं कि उनकी नकारात्मकता हैं। परन्तु आप भयभीत हैं या डर के साये में हैं तो आपको बायीं ओर फेंका जा सकता है और आप भयंकर तथा असाध्य रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं। धर्मविहीन, यदि आप वासनाओं में फंस जाते के लिए कार्य करती हैं। अत: विश्व की, आपकी हैं, तो भी यह मध्य मार्ग आपको बायीं ओर को फेंक देता है क्योंकि आप श्री माता जी के चरण कमलों में होने के योग्य नहीं होते। जब हम भयभीत उनकी विध्वंस शक्ति बहुत प्रकार से कार्य करती होते हैं तो हुृदय चक्र में हृदय-अस्थि दूरस्थ नियन्त्रण (Remote Control) की तरह सभी गणों को सूचना हम देवी के प्रति अपराध करते हैं तो हममें कैंसर, दे देती है कि आक्रमण होने वाला है। परन्तु यदि एडस आदि मनोदैहिक, शारीरिक रोग होने लगते हैं। स्वेच्छा से वासनाओं में फंस कर आप बायीं ओर परन्तु कुछ रोगो का सम्बन्ध गणपति से भी है। गणपति को जाना चाहेंगे तो ये केन्द्र चिन्ता नहीं करता। तब मत को कितना कष्ट उठाना पड़ा होगा? इसी प्रकार सहजयोगी जब गणों सम अच्छे सहजयोगी बन जाते से लड़ने के लिए गणों को कितना धैर्य, प्रेम तथा विवेक अपनाना पड़ा होगा! अत: जगदम्बा की सभी शक्तियां सभी प्रकार की नकारात्मकता को नष्ट करने तथा सहज विरोधी सारी नकारात्मकता को नष्ट करना जगदम्बा का संर्वापरि स्वभाव है। है। सर्वप्रथम हमें समझना आवश्यक है कि यदि 16 गण कहते हैं कि जो चाहे करो और जैसे चाहे आचरण करो। भिन्न प्रकार की बार्यीं ओर को जाने वाली ये गतिविधियां हैं। अमेरिका में एक बहुत पुराने सहजयोगी अपनी दुकान से बाहर आये। अपनी कार से ज्योही वे बाहर निकले वहां एक आदमी कटार लिए हुए बैठा था| उसने उसके मध्य हृदय में कटार घोप दी। इस व्यक्ति का खून बहने लगा। उसने बताया, " मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हुआ, मेरे अन्दर एसी ही मुझे आपको यह भी बताना है कि व्यक्ति को शक्ति आ गई कि मैंने उस व्यक्ति को पकड़ा और व्यर्थ की बातें करते हुए जिन्दा लाश की तरह से उससे लड़ने लगा तथा उससे कटार छीन ली। कटार का मुट्ठा उसके हाथ में था और कटार मेरे हाथ में आ गई और वह व्यक्ति भाग खड़ा हुआ। परन्तु इसे करें। देवी की सभी शक्तियां आप में अभिव्यक्त मुझे रक्त बहने की कोई चिन्ता न थी। मैंने अपने होने लगेंगी। निडर व्यक्ति को या साथी को बुलाया और हम आधा घंटा तक उस व्यक्ति की तलाश करते रहे।" वे पुलिस में नहीं गए। जब वे थाने गए तो पुलिस वाले हैरान थे क्योंकि उसकी पूरी कमीज़ रक्त में डूबी हुई थी। पुलिस को ध कका लगा कि आधा घंटा तक वे उस व्यक्ति की तलाश करते रहे। साहस देखिए। तब उन्हें हस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें टाके लगाये गए और वे ठीक हो गए यह उस व्यक्ति के चिन्ह हैं जिसे इस प्रकार की कोई भयंकर बीमारी नहीं हों सकती क्योंकि उसके मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का कोई मस्तिष्क और शरीर को इन शक्तियों का प्रक्षेपण करने भय नहीं हॉता। वह कहने लगा कि मैं कभी किसी देना चाहिए, वैसे हम यहां पूजा आदि सभी कुछ करने नहीं लड़ा और न ही कभी अपने बच्चे को चांटा के लिए हैं। शक्ति के होते हुए भी आपका मस्तिष्क मारा, मैं पहलवान नहीं हूं फिर भी मेरी समझ में कहता है कि यह ठीक नहीं है। इसके विषय नहीं आया कि कहां से ये शक्ति मुझ में आ गई लोगों ने बहुत सी कहानियों और चमत्कारों का वर्णन और मैं यह सब कर सका। इस प्रकार की बहुत सी कहानियां सहजयोगियों यदि आपने कोई गलती नहीं की है, यदि आप ठीक तथा सन्तों के विषय में हैं। उन पर जब किसी ने मार्ग पर हैं तो सदा आपकी रक्षा की जाएगी। अब आक्रमण किया तो इस प्रकार की भयानक व्याधियों से साहसपूर्वक अपनी रक्षा करने के लिए उन्होंने इस बात को याद रखें और इसमें विश्वास करें कि, आक्रमणकारी पर निडरतापूर्वक आक्रमण कर दिया। इस"मैं सदा सुरक्षित हूँ।" यह कार्य अत्यन्त कठिन बात पर विश्वास नहीं होता परन्तु प्रति दिन ऐसी घटनाएं क्योंकि हमारा मस्तिष्क हमें कहता है, "हे परमात्मा, होती रहती हैं। मुझे लोगों के पत्र आते रहते हैं कि उन्होंने किस प्रकार से साहसिक कार्य किये। यदि आपको देवी स्वयं की अभिव्यक्ति कर सकें। इसे इस प्रकार देवी में विश्वास है तो आप जान लें कि वे बहुत समझें। अब गण आपका पीछा कर रहे हैं, यदि किसी शक्तिशाली हैं। वे अत्यन्त विवेकशील हैं, यदि उन्होंने सेना का अगुआ ही डरपोक व्यक्ति हो तो अन्य लोग आपकी रक्षा करनी है तो वे इस प्रकार से आपकी रक्षा करेंगी कि आप समझ भी न पायेंगे। अनुभव से इस विश्वास का विकसित होना भी आवश्यक है। यह विश्वास विकसित किया जाना चाहिए कि किस प्रकार सदा आपकी रक्षा की गई, सहायता की गई और किस प्रकार आप कठिनाइयों से बच पायें। परन्तु यदि जीवन के आकाश में बादल छाये देखकर चिन्तित या परेशान हो जाएं तो इसका अर्थ है कि आप अभी तक दुर्बल हैं। यदि वास्तव में देवी की पूजा करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार की चिन्ता या भय नहीं होना चाहिए। आपको मा से दूर ले जाती श्री माता जी जो भी आप कर रहे हैं उसे निडरतापूर्वक करें। साथ नहीं घूमते रहना चाहिए। परन्तु यदि आपको कोई कार्य करना है तो स्पष्ट विचारों और बिना किसी भय के अपनी नौंद सुख सुविधा की कोई चिन्ता नहीं होती। निडर से यह अभिप्राय नहीं कि आप सभी को आघात पहुचाएं या उल्टी सीधी बातें करते फिरें। इसका अर्थ यह है कि आप निडर हैं और यदि कोई आप पर आक्रमण करता है तो आप अपनी रक्षा कर सकते हैं। मैंने यह कहानी आपको इसलिए सुनाई क्योंकि यह सुरक्षा आन्तरिक नहीं थी जैसे कि देवी रक्षा करती है परन्तु वास्तव में उसने अपनी रक्षा स्वयं की। अत: शक्ति उसके माध्यम से कार्य करने लगी आपको अपने किया है। आपको किसी चीज़ से नहीं डरना चाहिए। यह बात याद रखें कि, "आपकी सदा रक्षा की जाएगी। क्या होगा!" निडर होना प्रथम तथा सर्वोपरि है ताकि क्या करेंगे। इस प्रकार आप आत्म-निर्भर हो जाते हैं । 17 नव रात्रि पूजा मैंने देखा है कि कुछ बीमार व्यक्ति हर हाल में प्रेम करें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कुछ लोग अपने मुझे मिलना चाहते हैं क्योंकि वै स्वयं पर निर्भर नहीं बच्चे से बहुत लिप्त हैं। सहज में आने से पूर्व ये होते। वे अपना इलाज कर सकते हैं मेरे पास आने व्यक्ति अपनी स्वार्थपरता ओर बच्चों और अपनी पत्नी की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं होती। ऐसे बहुत से के प्रति निर्लिस्सा के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु अब वो उदाहरण हैं जहां लोगों ने प्रार्थना मात्र से स्वयं को रोग मुक्त किया तथा दूसरों का भी इलाज किया। परन्तु विश्वास जब परिपक्व नहीं होता तब वे सोचते हैं कि मैं उनका इलाज करूं, उन्हें छुऊं आदि-आदि। कि निर्लिप्सा आपकी शक्ति है, साक्षी भाव से हर अब आप आत्म-निर्भर हो जाएं, आप न केवल अपनी चीज को देखें। सहायता कर सकते हैं, परन्तु अन्य लोगों की भी सहायता कर सकते हैं। परन्तु यदि आपको स्वयं में थोड़े ही दिन हुए हैं।" ये भी न सोचे कि फलां विश्वास नहीं है कि आप अपनी रक्षा कर सकते व्यक्ति मुझसे बहुत ऊचा है और मैं बेकार हूं। स्वयं हैं, अपना ईलाज कर सकते हैं तब हर समय माँ आत्मदर्शन करें और देखें कि आपको कितनी शक्तियां को यह कार्य करने पडते हैं। बच्चा जब छोटा होता है तो आप उसका पोषण होगा उतना ही अधिक आप नम्र हो जाएंगे। किसी करते हैं, देखभाल तथा सभी कार्य उसके लिए करते भी तरह का कोई भय नहीं होना चाहिए, आपके पास अपनी पत्नी और बच्चों से गोंद की तरह चिपक गए हैं। मैं यह नहीं कह रही कि आप अपने परिवार या बच्चों का त्याग करें परन्तु मैं फिर कहती हूं अब ये मत सोचें, "मुझे सहजयोग में आये अभी प्राप्त हो गई हैं। जितना अधिक ज्ञान आपको प्राप्त हैं परन्तु जब वह बड़ा हो जाता है तो वो यह नहीं यदि बहुत सा धन हो तो आपको डर हो सकता चाहता कि उसकी मा उसे दूध पिलाए। इसी प्रकार हैं। यदि आप बहुत अच्छे पढ़े-लिखे हैं तो भी आपको सहजयोगियों को देखना चाहिए कि मैं कितने सालों ईष्ष्या का डर हो सकता है, गहने इत्यादि आपके पास से कार्य कर रही हूं। आपको गरिमापूर्वक उन्नत होना हों तो चोरों के आने का डर हो सकता है। आप है और परिपक्व होना है ताकि आप स्वयं कार्यों को यदि राजनैतिज्ञ हों तो आपको डर हो सकता है कि ठीक प्रकार से कर सकें। मां ने आपको आशीर्वादित आपकी अनुपस्थिति में कोई आपका स्थान न ले ले, किया है। उन्होंने सारी शक्तियां आपको दे दी है। परन्तु धैर्य रूपी शक्ति प्राप्त करना अत्यन्त कठिन हो जाती है। है, आपको अपनी माँ की तरह से धैर्यवान होना होगा। आप इसे कठिन समझते रहें परन्तु इसके लिए प्रयत्न है? आपकी शक्तियों को कौन चुरा सकता है? आपकी करते रहें। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूं जो चैतन्य लहरियों को कौन चुरा सकता है? यह बात सांचते हैं कि वे आध्यात्मिक रूप से कुछ भी नहीं सोचिये, और आपके प्रेम को कौन चुरा सकता है? तथा उन्हें कोई भी उपलब्धि नहीं हुई। यह पूर्णतया क्योंकि प्रेम तो आत्मा से आ रहा है। यह शाश्वत् पलायन है। आप अपने व्यक्तित्व से ही पलायन करना है और इसका बहाव निरन्तर है। आत्मा से जब चाहते हैं। केवल देखें, यदि आप अन्न्तदर्शन करते हैं। ता आप समझ जाएंगे कि आप एक वास्तविक शक्तिशाली आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में विकसित जो अन्धकार में महसूस होनी चाहिए। हो चुके हैं। आपको कोई छू नहीं सकता। आप सभी कुछ कर सकते हैं। आप अपनी देखभाल कर सकते साक्षी स्थिति प्रदान कर देती है। आप सभी कुछ हैं और अन्य लोगों को भी आश्रय दे सकते हैं। इन सारी शक्तियों का प्रकटीकरण आप में हुआ अभी तक आप इसे समय और अन्य लोगें पर छोड़ देते हैं, स्वयं पर नहीं। आज तक किसी ने भी अपने सभी शिष्यों का योग दिव्य शक्ति से नहीं कराया, क्योंकि यह दिव्य शक्ति से नहीं कराया, क्योंकि यह दिव्य शक्ति यह है कि किस प्रकार अन्य लोगों से परन्तु सहजयोग में आने के बाद बात बिल्कुल भिन्न आपके आत्म-साक्षात्कार को कौन चुरा सकता आप दूर चले जाते है तब आपको वे सब बातें महसूस होती हैं जो अन्धकार में महसूस हौती हैं मां की एक अन्य शक्ति यह है कि वे आपको साक्षी भाव से देखते हैं, आप में अथाह धेर्य आ जाता है, जो भी होता रहे, ठीक है, क्रोध नामक एक भयानक अवगुण से आपको छुटकारा प्राप्त हो जाता है और इससे आपको अत्यन्त शान्तिमय साक्षी अवस्था प्राप्त हो जाती है कि आप दिनों-दिन युवा होने लगते हैं। कुछ सहजयोगियों को मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया था। इस वर्ष जब मैं उनसे है। परन्तु 18 मिली तो उन्हें पहचान नहीं पाई। अचानक उनकी आयु दस वर्ष कम लगने लगी। आपका व्यक्तित्व अत्यन्त शान्तिमय हो जाता है क्योंकि आपकी माँ लहरिया है, आप इन्हें महसूस कर सकते हैं। परन्तु आपके साथ होती है, दृढ़ विश्वास कि वे सदा हमारे इस नई चेतना का उपयोग यदि आप नहीं करते साथ है, हमारी रक्षा करता है। परन्तु अब क्योंकि तो सहजयोग में आने का क्या लाभ है? वह सब हम बड़े हो गए हैं, इसलिए उन्होंने हमें सारी शक्तियां छोड़ने के लिए जब मैने उससे कहा तो वह बहुत दे दी हैं। तो डरने की क्या बात है? पर ये विश्वास परेशान हुआ था। मैने पूछा कि तुम्हें धन कि क्यों अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए, ज्योतिर्मय विश्वास होना चाहिए, अन्धविश्वास में आपका विश्वास तो होता परन्तु शक्तियां नहीं होतीं। ज्योक्तित प्रकाश में आप में विश्वास भी होता है और शक्तियां भी ऐसा होने पर आप अपने धर्म में तेजी से बढ़ने लगते हैं और चित्त आप पर है इसके कितने अनुभव आप कर अपने गुणों से आप भयभीत नहीं होते। सभी जगह, चुके हैं। सभी लोगों से आप सहजयोग की बात करते हैं और यह कार्य होता है। एक बार जब आप में भय समाप्त हो जाएगा तो पूरी तस्वीर आपको स्पष्ट दिखाई देने लगेगी क्योंकि आप दृष्टा बन जाएंगे। किस प्रकार सी०एस. लुइस अपने मानसपटल पर हमारा जलूस देख सके। किस है। एक दिन नाव पर बैठ कर सहजयोग के कार्य प्रकार विलियम ब्लेक हमारे विषय में भविष्यवाणी के लिए वह दूसरे टापू पर जा रहा था। अपनी कर पाये। किस प्रकार सन्त ज्ञानेश्वर पस्यादान' के विषय में लिख पाये जो कि सहजयोगियों का वर्णन हर समय वे लोगों को विश्वस्त करने का प्रयत्न करते रहे। किस प्रकार रविन्द्र नाथ टैगौर गणपतिपुले जाना देख सके। जब लोगों का विश्वास ज्योतिर्मय में रहें। मैं माँ के कार्य के लिए जा रहा हूँ और हो जाता है तब इस प्रकार की घटनाएं घट सकती वे रास्ते पर मुझे कष्ट देने की हिम्मत न करें। है।। ज्ञानमय विश्वास में आपकी माँ आपको एक अन्य महान शक्ति प्रदान करती है, यह है विवेक बुद्धि। कोई मेरे पास आया और कहने लगा "यह व्यक्ति बहुत अच्छा है परन्तु किसी ने भी इसकी में हो जाते हैं, इसके लिए आपको कुछ कहना नहीं देखभाल नहीं की। ये बहुत विद्वान और महान व्यक्ति है।" मैने कहा ये फोटों मुझे दिखाइए। फोटो देख कर मैने कहा, नहीं, इसे सहजयोग से पूरी तरह दूर मौसम सुहावना हो गया। मैने नहीं कहा और भयंकर रखिए।" उसके फोटो ग्राफ से मैं चैतन्य लहरियों ठंड भी हो सकती थ स को अनुभव कर सकी। एक अन्य व्यक्ति ने आ कर मुझे बताया कि कुछ नाइजिरियन लोगों ने उसे हुई थी और लोगों को यह खंभे नीचे की ओर पत्र लिखा है कि वह 35 हजार डालर बैंक में खींचने पड़े थे ज्यों ही लोगों ने मेरी जय-जयकार जमा करें और हम भी लाखों डालर बैंक में जमा करंगें। तब वह इसका एक तिहाई हिस्सा ले सकता है। "मैंने उसे बताया कि इससे परे रहे। यह सब लिए आते हैं। यह कष्ट यदि न आएं और आप घोटाला है।" जब वह अमेरिका वापस गया तो उसने इन्हें वश में न करें तो आप समझ ही न सकेगें पाया कि यह वास्तव में घोटाला था। मैंने उसे बताया था कि चैतन्य लहरियां बहुत गर्म है। आप में चैतन्य आवश्यकता है। इस अ्रकार शनै: शनै: आप अनुभव कर सकते हैं, उस अनुभव को हृदय में बिठा सकते हैं। और उस पर विश्वास कर सकते हैं। आप क्या थे? अब आप क्या बन गए हैं? श्री माता जी का यदि है तो आप शक्तिशाली बन जाते हैं। अन्ध विश्वास के कारण आप शक्तिविहीन है। यदि आप विकसित, परिपक्व, आत्मसाक्षात्कारी बन जायें तो ये सारी शक्तियां कार्य करंगी। भारत में एक मछुआरा है जो कि स्नातव्य आपमें ज्योतमय विश्वास झापड़ी से जब वह बाहर आया तो उसने देखा कि काले बादल छाये हुए है और विष्णुमाया क्रीड़ा कर रही हैं। तट पर खड़े हो कर उसने विष्णुमाया से कहा "कृपा करके इन बादलों से कह दो कि सीमा कल्पना करें, वे नाव में बैठे जा कर सहज का कार्यक्रम किया और वापिस घर आ गए। जब उसने अपनी झोपड़ी में प्रवेश किया तब वर्षा आरम्भ हुई। अपने ज्योत्तिमय विश्वास द्वारा पांचों तत्व आपके वश %3D पड़ता। शक्तियां इतनी महान हैं कि वे स्वतः ही कार्य करती हैं। आज जब पूजा होनी थी तो अचानक थी। यह वास्तविकता विश्वास बन जानी चाहिए। पिछली बार यहां भयंकर वारिश करनी शुरु की बारिश रुक गई। यह अनुभव आपको परिपक्व करेगा। यह कष्ट भी परिपक्व बनने के 19 नव ग्रत्रि पूजा कि विश्वास क्या चीज़ है। तट पर खड़ा हुआ व्यक्ति आपमें एक वास्तविक महायोगी के गुण विकसित हो कहता है कि मुझे तैरना नहीं आता। परन्तु यदि आप उसे पानी में डाल दें तो वह तैरने लगता है और जान जाता है कि उसे तैरना आता है। इसी तरह से आप भी नहीं जानते कि आप क्या बन गए हैं? आप नहीं जानते कि आप तैराक बन गए हैं। आप यह भी नहीं जानते कि आप अन्य लोगों की रक्षा कर सकते हैं। अभी तक आप यहां-वहां की छोटी-छोटी चीज़ों ने भी कष्ट उठाए। आप लौगों को कष्ट नहीं उठाने में व्यस्त हैं। जब आप यह जान जाएंगे कि आप क्या बने हैं तो आप अत्यन्त तुच्छ नज़र आने वाली सगीत एवं आनन्दमय जीवन में प्रवेश कर जाते हैं। अपनी तुच्छता को पूर्णतया परिवर्तित कर देंगे और पूरे आकाश पर छा जाएगें। यह शक्ति जो आपमें व्यक्ति को समझाना होगा कि जिन मिथ्यावादों में है, आपके अहम् को बढ़ावा नहीं देगी। यह आपको विनम्र, अत्यन्त प्रेममय और करुणामय बनाएगी। आप अपनी शक्तियों से अन्य लोगों को चोट नहीं पहुचाएगें। यह पहचान है। यह मा का प्रेम है और मा के सुखी आदि-आदि। यह सब मिथ्या भ्रम हैं। इन सब प्रेम की शक्ति है। जिस व्यक्ति की मा अत्यन्त स्नेहमय और भली हो वह अत्यन्त अच्छा बन जाता 1 यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। नवरात्रि पूजा अत्यन्त शक्तिशाली पूजा है, क्योंकि यह आपकी शक्ति के स्रोतों को खोलती है और उनका प्रकटीकरण करती है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है और आज प्रात: काल से ही मैं चैतन्य लहरियों के साथ बह रही हूँ। यह चैतन्य लहरियों के झरनेसम था। पूरा समय मैं रिक्त होगें तो भूत या भविष्य, अभिलाषाएं आकांक्षाएँ प्रकाश देख रही थी। इसी कारण मैने अपनी आँखे बन्द कर लीं। अन्यथा मै आप लोगों को न देखकर तो प्रेम के अतिरिक्त, शाश्वत स्वभाव के प्रेम के कुछ और देखती रहती। परन्तु अब आप स्वयं प्रकाश हैं, प्रकाश अन्धकार से डरता नहीं। यह अन्धकार को दूर कर सकता है। आप यह प्रकाश हैं। पर आप अपने विषय में अति रूप धारण किया और किस प्रकार प्रेम से अपने तुच्छ विचार लिए हुए हैं। मैं नहीं कहती कि आप गुरुओं जैसे बन जाएं और दो सींग लगा कर बड़ी-बड़ी बातें करते घूमे। आपकी नम्रता, करुणा, मधुरता तथा हृदयों में प्रवेश कर गए हैं। यह झूठ-मूठ के गुरु सदव्यवहार ही आपका श्रृगार है। गलती करते हुए जहाँ भी मैं लोगों को देखती हैं उन्हें समझाती हूं, परन्तु में उन्हें इतनी अच्छी तरह से बताती हूँ कि वे जान जाते हैं कि वह उनके हित के लिए हैं। पूरा व्यक्तित्व और स्वभाव परिवर्तित हो जाता है पूरी पर छाए रहते हैं वे आपके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित मुखाकृति एवं गतिविधि परिवर्तित हो जाती है। बातचीत हैं। जब यह बात समाप्त हो जाएगी तभी वास्तव में करने की शैली स्वत: ही ऐसे परिवर्तित हो जाती है जैसे अन्दर की पूरी मशीनरी परिवर्तित हो गई हो। होगा अन्यथा वे स्वयं तो चले जाएंगे पर आपके मस्तिष्क कि जाते हैं। महायोगी की यह अवस्था पहले भी कई लोगों ने प्राप्त की। परन्तु इसके लिए उन्हें बहुत चक्करदार रास्तों से गुजरना पड़ा। हृदय से उन्हें सब कुछ त्यागना पड़ा। पूर्ण नि्लिप्सा के साथ कहीं दूर जाकर साधारण भोजन पर उन्हें जीवन यापन करना पड़ा। बुद्ध और ईसा ने भी कष्ट उठाए। अवतरण होते हुए भी उन्हें कष्ट उठाने पड़े। राम और कृष्ण पडते, इसके विपरीत कष्टों से छुटकारा पाकर आप सहजयोग में निरानन्द का आनन्द लेने के लिए वह रह रहा है उन्हें त्यागना आवश्यक है। कुछ लोगों में मिथ्या विचार होते हैं कि हम अति गरीब हैं या अति धनवान, हम अत्यन्त दुखी हैं या अत्यन्त भ्रमों से पूर्ण रिक्तता ही पूर्ण रिक्तता ही पूर्ण आनन्द है। रिक्तता आनन्द से परिपूर्ण हो उठती है। तब आप किसी से कोई आशा नहीं करते और आपकी यह आन्तरिक रिक्तता आपको करुणा एवं प्रेम में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करती है। किसी हांडी में यदि पहले ही कृुछ भरा हुआ हो तो आप इसमें क्या डाल सकते हैं? आन्तरिक रूप से यदि आप और असत्य आपमें न आएगें। यदि आप रिक्त हैं अतिरिक्त आप किसी चीज़ से नहीं भरते। आप जानते हैं। कि देवी की सभी बारतं अत्यन्त गहन एवं सूक्ष्म होती हैं। किस प्रकार उन्होंने माँ का भक्तों की देखभाल की। किस प्रकार राक्षसों तथा नकारात्मकता से युद्ध किया। परन्तु अब राक्षस आपके आपके मस्तिष्क में घुस गए हैं भंयकर पुस्तकों के माध्यम से बहुत सारी बुरी चीजें आ रही हैं जो सदा आप पर आक्रमण करती रहती हैं उन राक्षसों का वध भी कर दिया जाए फिर भी वे आपके मस्तिष्क उनकी वध हो सकेगा। उनसे छुटकारा पाना तभी सम्भव 20 में अपने भूत छोड़ जाएंगे। गलत लोगों के अनुसरण हैं पर इसलिए कि हम प्रेम को बाट नहीं पाते। करने तथा गलत पुस्तकों को पढ़ने से यह सारी नकारात्मकता आई है। सहजयोग में आने के पश्चात् भी कुछ लोग आपको पथ-भ्रष्ट कर सकते हैं। ऐसे कोई पैसा या इनाम नहीं दिया। किस कारण से आप व्यक्ति को क्षमा कर देना चाहिए। वह व्यक्ति तो हो सकता है कि सुधर जाए पर अकस्मात् उभरे उन मिथ्या विचारों में आप फंसे रह सकते हैं। करुणा, प्रेम, भयहीनता, साहस और पूर्ण रिक्तता सहजयोग में आप इसलिए बांटते हैं क्योंकि आप ही गुण हैं। इस रिक्तता में आपको यह चिन्ता नहीं सामूहिक हैं। आप सामूहिक बन जाते हैं, अत्यन्त होती कि आपने क्या प्राप्त करना है, कितने लोगों श्रेष्ठ व्यक्ति बन जाते हैं। आप सोचते हैं, "मै यदि को इकट्ठा करना है, कितने लोगों को सहजयोगी बनना है? स्वत: ही यह सब कार्यान्वित होता है। परन्तु आपने न तो इसकी इच्छा करनी है और न ही उसके लिए उत्कठित होना है। नकारात्मक और लोगों को कार्य करते देखती हूँ तो मुझे अवर्णनीय बेकार के लोगों के पीछे हमें नहीं दौड़ना। परन्तु वास्तविक रूप में अच्छे लोगों को हमें सहज में ही मराठी संगीत कबैला में आ पाया और कार्यान्वित उस समय एक नए व्यक्तित्व का जन्म होता है। यह नवा व्यक्तित्व कार्य करता है। हमने आपको सहजयोग में इतना परिश्रम करते हैं। आप सहजयोग क्यों फैलाते हैं? क्योंकि आप अपने आनन्द को बांटना चाहते हैं। इसके बिना आप रह नहीं सकते । परन्तु इतना आनन्द प्राप्त कर रहा हू तो अन्य लोग क्यों ने करें, क्यों न लोग भी उस आशीर्वाद को प्राप्त करें जिसे मैं कर रहा हूँ।" स्वत: ही जब मैं आप आनन्द प्राप्त होता है। सामूहिक चेतना के कारण अवश्य लाना चाहिए। अपने आप नकारात्मक लोग हो रहा है। सहजयोग से चले जाएंगे। एक ही झटके में बह चले जाएंगे। वे सहजयोग में इसलिए नहीं रह सकते क्योंकि उनमें इसकी योग्यता ही नहीं है। मा की सामूहिकता कार्य करती शक्तियां प्राप्त करने की योग्यता उनमें नहीं है। अत: यह सब अत्यन्त सूक्ष्म और सुन्दर ढंग से घटित से अधिक भाई-बहन बनाना चाहते हैं उनकी सहायता हो जाता है। किसी भी कार्यक्रम में मैं देर से जाती ताकि बेकार लोग वहाँ से चले जाए और उनमें से कुछ थोड़े ही दिनों में गायब हो जाते हैं। उनके दर्शाती है कि आपके हृदय में सामूहिकता पनप रही हृदय में कुछ नही उतरता। वे कुछ नहीं समझ पाते है और इसी कारण आप अकेले हिमालय में बैठकर अत: गायब हो जाते हैं। जो बच जाते हैं, वे वास्तव में सत्य साधक होते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार की सहायता करना चाहते हैं। यह पहचान है कि किस प्राप्त हो जाता है। यह प्राकृतिक चयन घटित होता है। और जिस प्रकार लोग सहजयोग में आते हैं और हैं। और किस प्रकार आप सहजयोग का प्रचार करना चले जाते हैं यह अत्यन्त दिलचस्प बात है। सहजयोग में यह आम बात है। आपको परेशान नहीं होना चाहिए। अब यदि रूस से बहुत से लोग सहजयोग में वे सारी शक्तियां बह रही हैं। आपमें प्रज्जवलित ज्योति आएं पर स्विटजरलैण्ड से उतने न आएं तो आपको है जिसे आप अधिक से अधिक फैलाएं और आप चिन्ता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब हम न तो आश्चर्यचकित रह जाएगे और सन्त तुकाराम की तरह रूसी हैं और न स्विस। हम सहजयोगी हैं हम चाहे से कहेंगे कि, "मैं धूल के अणु की तरह से छोटा रूसी हों, भारतीय हों या अफ्रीकन हों जब तक हूँ फिर भी गगन की तरह से विशाल हूँ" आपका हम सहजयोगी हैं हमें प्रसन्न रहना चाहिए। प्रेम को व्यक्तित्व ऐसा ही है| जब हम परस्पर बांटना चाहते हैं तब हमें सहजयोगी का अभाव खलता है, इसलिए नहीं कि हम स्विस नए लोगों की बातचीत और नई चेतना यहाँ है। यह नया है क्या? ये नई सामूहिकता है जब यह है तब आप इसे फैलाना चाहते हैं। यह एक अन्य प्रकार की भूख है कि आप अधिक करना चाहते हैं ताकि वे पूजाओं पर आ सकें और सहजयोग का आनन्द नहीं ले सकते। आप अन्य लोगों प्रकार मा के प्रेम की जड़ें आपके हृदय में लग गई चाहते हैं। आप अपनी मा की महान ज्योति बनें। आपमें परमात्मा आपको आशीर्वादित करे। ० 21 नव रातरि पूजा मास्को सार्वजनिक कार्यक्रम परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) 12 सितम्बर 1994 माध्यम से आप आत्मसाक्षात्कारी बन जाएंगे। जैसे है वो है। हम इसे बदल नहीं सकते। यह किसी ईसा ने कहा है कि आपको पुर्नजन्म लेना होगा, सर्वप्रथम हमें यह जानना है कि सत्य जो परन्तु लोगों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। पर लादा नहीं जा सकता। आपको यह मांगना हैं धर्म को मानने वाले लोग अतः हम देखते भी परस्पर लड़ते रहते हैं। वे एक दूसरे का सम्मान नहीं करते। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं पड़ता है। बिना आपकी इच्छा के यह आप पर लादा नहीं जा सकता। परन्तु यह अब अन्तिम निर्णय का समय है। आप यदि नर्क में जाना चाहें तो जा सकते हैं और यदि स्वर्ग में जाना चाहें तो भी जा सकते हैं। यह मात्र आपकी है कि धन व सत्ता में लिप्त होना परमात्मा विरोध गतिविधि है। सत्य की खोज करने वाले को इच्छा है। यही शुद्ध इच्छा है। त्रिकोणाकार पवित्र समझ लेना चाहिए कि धन अस्थि में आपके उत्थान की शक्ति है। यह आप की प्राप्त नहीं कर सकते परमात्मा धन को नहीं सबमें है और आप सबकी अपनी है। परन्तु यह आपकी शुद्ध इच्छा की शक्ति है। मैं ऐसे बहुत से लोग देखती हूँ जो यह सोचते हैं कि वे देने से आप सत्य समझते, धन की उन्हें कोई परवाह नहीं। उत्थान आपका अधिकार है। इस सर्वव्यापक शक्ति का साक्षात्कार करना आपका अधिकार है। इसे प्राप्त आ गया है। ऐसा आपको अपने अस्तित्व की वह स्थिति प्राप्त हो करने पर बहुत अच्छे जा रहे हैं, वे अत्यन्त सन्तुष्ट और करने का समय प्रसन्न लोग हैं। जिन्हें अन्य लोगों की कोई चिन्ता नहीं। अत: हमें सूझ-बूझ अपनानी पड़ती है। हमें जाएगी जो अत्यन्त शक्तिशाली होगी प्रगल्भ होने यह समझने का विवेक धर्मों से, ऊपर उठ कर सन्तुलन तक हमें पहुंचना है। परन्तु वे धन और सत्ता लोलुप हो जाते हैं । यही समस्या है कि जब हम धर्म की ओर जाते हैं, तो इसे न पा सकेंगे। यह मूर्खो के लिए हैं तो निराश हो जाते हैं। लोगों को आत्माभिमुख भी नहीं है। अब हम चौराहे पर खड़े हैं। हर होना चाहिए कि सभी के साथ-साथ यह अत्यन्त करुणामय है। यदि आप वास्तव में सत्य साधक हैं तो आप इसे प्राप्त कर लेंगे, परन्तु यदि आप पाखण्डी या अहंकारी होना होगा। उन्हें अपना आत्मसाक्षात्कार खोजना होगा। देश में अनगिनत समस्यायें हैं। रूस में भी हैं: इन समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको मानव का परिवर्तन करना होगा जब तक मानव समस्याएं उसके साथ लगी रहेंगी। यह परिवर्तन घटित होना ही होगा। यह पूरे विश्व को परिवर्तित कर देगा और व्यक्तिगत स्तर पर भी, शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का समाधान कर देगा, तथा यह आपके, परन्तु, ऐसा न होने पर लोगों का विश्वास समाप्त हो जाता है। परिवर्तित नहीं होता यह अपैज्ञानिक है। अपने मस्तिष्क को खुला रखकर आपने स्वयं देखना है कि परमात्मा है या नहीं। केवन आत्मसाक्षात्कार द्वारा ही आप जान पाएंगे कि परपात्मा है। सर्वव्यापि दिव्य शक्ति है जिसे आपने अपने मध्य नाड़ी त्त्र पर अनुभव करना है। आपके लिए आत्मसाक्षात्कार पा लेने आपके देश के, एवम् पूरे विश्व के हित में होगा। समय आ गया है व्यक्ति को यह समझ का समय आ गया है। अपनी ही शक्ति के 22 ए नाध जाए तो होता है उसे आप त्याग देते हैं। कुण्डलिनी जागृत शक्ति करने की शक्ति आपमें होने के कारण आप अन्य लेना चहिए यदि यह कार्यान्वित हो आप स्वयं दिव्य प्रेम की इस सर्वव्यापक को अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर सकेंगे। पहली बार आप इसे महसूस करेंगे और ी भी सहायता कर सकते हैं। आप अपने प एवं अन्य लोगों के विषय में जान सकते पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप आनन्द के सागर में कूद जाते हैं, तब आपको विश्वास करना होगा कि इस प्रकार कि शक्ति है। यदि आप ईमानदार हैं तो आपको अर्धात् आप समाधि विश्वास करना होगा । की अवस्था में होते हैं। आनन्द, प्रसन्नता और अप्रसननता से भिन्न है। हमारे अहं की जब सन्तुष्टि होती है तो हम प्रसन्न होते हैं। परन्तु अहम् को चोट लगने पर हमें दुख पहुंचता है। सिक्के के ये दो पहलू हैं। परन्तु आनन्द एकमात्र है। सबसे बड़ी बात जो होती है वह यह है कि पूर्ण सत्य को आप अपनी अंगुलियों के सिरों आका जो अनुभूति होती है वह अत्यन्त दिलचस्प है। सर्वप्रथम आप अपने अन्दर से शान्त हो जाते हैं। जो भी कुछ आप देखते हैं वह आपको साक्षी रूप में नाटक की तरह से प्रतीत होता है। अपनी समस्याओं से बाहर निकल कर आप अपनी समस्याओं को देख सकते हैं और पुर जान जाते हैं। आप यदि सत्य को जान जाते तब इनका समाधान कर सकते हैं। विश्व की अधिकतर समस्याएं चक्रों की खराबी के कारण हैं। ये सब समस्याएं मानव से आती हैं। यदि हैं, और आप सभी एक ही तरह से सत्य को समझते है, तो किस प्रकार का वाद-विवाद हो सकता है? कोई झगड़ा, युद्ध आदि नहीं रहता किसी तरह से आप चक्रों को ठीक करना सीख परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने का समय लें तो आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं आ गया है, और परमात्मा आपकी देखभाल करते का समाधान कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त आपका चित्त ज्योतिर्मय हो जाता है है। आपको उनसे जुड़े रहना होगा। यह जुड़े रहना ही योग है, जो कि अत्यंत स्वचालित है और आपमें बना हुआ है। आपको अपना हृदय खोलना होगा और आप इसे करने ।र और आपका मस्तिष्क लालच और कामुकता विहान, इसका पूरा त्र और आप स्वत: ही वास्तविक रूप से धर्म परायण हो जाते हैं। किसी को आपसे कुछ कहना नहीं मात्र प्राप्त कर लेगें। पड़ता। आत्मा के प्रकाश में आप जान जाते हैं कि क्या गलत है और जो भी कुछ विध्वंसकारी शत यि थ ता कुड र रट ि] की ति ट 23 का मास्को सार्वदनिक कार्यक्रम টি क दिवाली पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ईस्ताम्बूल (तुर्की) 6-11-1994 दिवाली का अर्थ है दीपों की पंक्तियां भारतवर्ष ही बात कहते हैं कि आपको सभी कुछ समर्पित म प्राचीन उत्सव है। नक्कासुर का वध. करने के पश्चात् वर्ष की सबसे अंधेरी रात्रि कर देना है। का यह अत्यन्त दिवाली के अन्तिम दिन बहन-भाई मिलकर में दिवाली मनाई गई थी। आधुनिक समय में पवित्र एवम् संरक्षक सम्बन्धों के लिए प्रार्थना करते यह अत्यन्त प्रतीकात्मक है, क्योंकि जहां तक चरित्रहीनता का सम्बन्ध है, यह आधुनिक समय सबसे बुरा है। हम इसे घोर कलियुग कहते हैं, सच्चरित्र समाज की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। पूर्णतया अन्धकार। यही कारण है कि इतने सारे संकट है। इसी के कारण से बहुत से लोग प्रकाश को खोज रहे हैं। अज्ञानवश लोग समझ नहीं पाते कि वे क्या करें? इस समय हज़ारों वास्तीविक में नियमाचरण बनाये। उन्होंने कहा कि कई भी साधक जन्म ले चुके हैं इसी कारण यह कार्य स्त्री यदि कामुक दृष्टि से पुरुष की ओर देखे हुए उत्सव को मनाते हैं। ऐसा मात्र ये दर्शाने के लिए होता है कि दीपक जलाने के पश्चात् चरित्रहीनता आजकल का महानतम अन्धकार है, लोग यह भी नहीं समझते कि उनके पारस्परिक सम्बन्ध क्या हैं? मोहम्मद साहिब ने स्त्री के विषय मुझे सौंपा गया था कि अज्ञानान्धकार को हटा तो उसे आधा गाड़ कर पत्थरों से मार दिया जाना चाहिए। ऐसा यदि होता, तो मै नहीं समझ यह कार्य सुगम नहीं है क्योंकि सत्य विरोधी पाती, कि अमेरिकन स्त्रियों का क्या होता। आधुनिक कर दिवाली की सृष्टि करूं। सारी आसूरी शक्तियां एक ओर हैं और दूसरी मानव सर्वसाधारण मानव से भी कहीं अधिक पतित ओर आपकी साधना का लाभ उठाने वाले झूठे है क्योंकि हर समय उसे कुछ न, कुछ विध्वंसक लोग हैं। सर्वप्रथम तो लोगों को पता ही नहीं चाहिए। कि वे क्या खोजें। यह सब झूठे गुरु धन संचालित हैं तथा अपने झूठ को बेचने का प्रयत्न कर रहें हैं। बगौटा दूरदर्शन पर किसी ने मुझसे पूछा कि साम्प्रदायों और इस प्रकार की अन्य वस्तुओं नहीं देते उनके मस्तिष्क में कुछ नहीं घुस सकता, मुझे लगा कि आत्मसाक्षात्कार दिये बिना मानव से किसी भी अच्छी चीज के बारे में बात करना सुगम नहीं है। जब तक आप उन्हें आत्मसाक्षात्कार के विषय में आपका क्या विचार है? यह सत्य भाषण उपदेश तो केवल मानसिक स्तर तक ही है कि बहुत से कुटिल, भयानक ्तथा अपराधी लोग स्वयं को आध्यात्मिक कहते हैं। गलती तो उनका अनुसरण करने वालों की है। एक दुष्चरित्र रात्रि में हमें बहुत से दीपकों की आवश्यकता और बेईमान व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता। गुरु को कुछ मांगना नहीं चाहिए, उसे लालची नहीं होना चाहिए। ये सारी बातें शास्त्रों में लिखी हुई की हांडी होती है। यह शरीर, मस्तिष्क और दिखाई रहेंगे। आत्मसाक्षात्कार ही विश्व को बचाने का एकमात्र मार्ग है। विश्व के इतिहास की अन्धकारमय धी। मझे मानव तथा उसकी समस्याओं के विषय में अध्ययन करना पड़ा। भारत में हमारे यहां मिट्टी हैं। परन्तु कोई भी पढ़ने का कष्ट नहीं करता कि गुरु में क्या गुण होने चाहिए? वे बस एक देने वाला सभी कुछ अन्दर से हांडी की तरह से है। प्रेम और करुणा इसका तेल है। कुण्डलिनी, ना 24 शुद्ध, इच्छा, बाती है और आत्मा चिंगारी है। सर्वप्रथम हांडी को ठीक होना होगा। हांडी में तेल को संभालने की शक्ति होनी चाहिए, वह इसे रिसने यह प्रकाश क्षतविक्षत हो सकता है। अन्य छिद्र है। बन्धन जिन्हें अहम् एक उत्तरदायित्व विवेक द्वारा दूर किया जा सकता है, न दे। अहम् तथा बन्धन दो अत्यन्त समस्याप्रद छिद्र है। धर्म, वंश या जाति आदि के बन्धन जिनसे हम अपनी रचना करते हैं, ये सब व्यर्थ हैं, गन्दे बन्धन हैं। इनमें कोई वास्तविक्ता नहीं, ये सब बेकार हो जाते हैं। भूत बाधाओं के रूप में यह कार्य करते हैं और व्यक्ति पूर्णतया अन्धा हो जाता। सहजयोग में आने के पश्चात् भी हैं। यह जिम्मेवारी की भावना कहीं आपको सहजयोग ईसा से, मुसलमान मोहम्मद साहिब से तथा अन्य लोग अपने पुराने बन्धनों से चिपके रहते हैं । एक ही व्यक्ति में वे इन सबका संगठन नहीं देख सकते। व्यक्ति को समझना चाहिए कि अब उसे उन्हें यदि अहम् का आश्रय मिल जाये तो अत्यन्त भयानक हो सकते हैं। यह प्रकाश अग्नि बन है और सहजयोग के घर को जला सकता सकता है घर जलाने हैं। प्रकाश ज्योति देने के लिए होता के लिए नहीं। सहजयोग में यदि अहम् है तो आप स्वयं को इसके लिए जिम्मेवार समझ सकते ईसाई शनै: शनै: का संचालक होने का विचार न देदे। आप इतने आक्रामक हो जाते हैं कि लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि वह व्यक्ति कितना सामान्य था और कितना उद्दण्ड हो गया है आप सहजयोग के कार्यभारी नहीं है। सरकारी कर्मचारी होने चाहिएं परन्तु वे मालिक बन बैठते हैं। अत: सहजयोग में पूर्ण विवेकशील सूझबूझ होनी चाहिए। प्रकाश प्राप्त हो गया है। आप आत्मसाक्षात्कारी हैं, द्विज बन गए हैं। सभी असत्य आपको त्याग देने हैं। यदि आप पूर्णतया साक्षात्कारी हैं तो आप स्वत: ही इन्हें दूसरा भाग तेल है जो कि स्वभाविक अन्तर्जात तथा आनन्ददायी है। करुणा को पवित्र होना होगा देगें, आपको बताने की कोई आवश्यकता आत्मा स्वतः ही अपने उत्तरदायित्व मैने बहुत से ऐसे सहजयोगी देखे हैं जो अगुआओं नहीं रहेगी। को महसूस करती है कि उसे प्रकाश देना है। को कष्ट देने का प्रयत्न करते हैं। अगुआ का विरोध करके वे सहजयोग में बाधा-डालने का प्रयत्न करते हैं। उनसे सहजयोगी होने की अपेक्षा की जाती है पर वे यह नहीं समझते कि यदि उनकी करुणा पवित्र होगी तो वो अगुआ के कार्य इसे मात्र बताना होगा कि कृपा करके प्रकाश प्रदान करो, यह शाश्वत प्रकाश है इसे कोई समाप्त नहीं कर सकता। गीता का एक श्लोक है, "इसे कोई मार नहीं सकता, इसका नाश नहीं कर सकता इसे यदि आप अन्दर उड़ेल लेना चाहें तो भी आप ऐसा नहीं कर सकते, यह इतना शक्तिशाली की सराहना करेंगे क्योंकि अगुआ इतना करुणामय कार्य कर रहा है। पवित्र करुणा का लालच प्रलोभनों प्रकाश हैं। यह शाश्वत है या नहीं इसका सत्यापन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। व्यक्ति को अगुआ से प्रेम करना चाहिए तथा उसके कार्य की सराहना आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ करनी चाहिए। करुणा कभी अपवित्र नहीं हो सकती आप कर सकते हैं। अध्यात्मिकता के इतिहास में बहुत लोगों को वे इतनी सुन्दर ज्योति है। जब आप इस शाश्वत प्रकाश के वाहक हैं तो किस प्रकार यह मूर्खतापूर्ण, से होनी चाहिए कि कोई आपकी करुणा पर संशय परन्तु इस करुणा की अभिव्यक्ति इतने अच्छे ढंग गन्दे और व्यर्थ के बन्धन आप पर स्वामित्व ने कर सके। बहुत समय पहले मुझे बताया गया था कि भारतीय हवाई पत्तनों पर लिखा हुआ था सीमा शुल्क अधिकारियों को न चूमे।" आधुनिक युग में व्यक्ति किसी स्त्री को तो चूम सकता है परन्तु स्त्री किसी पुरुष को नहीं। फुटबाल के आत्म दर्शन करने लगेंगे कि यह शाश्वत प्रकाश है तो सारे बन्धन जमा सकते हैं? जब आप भगा देंगें। आपको स्वतन्त्रता है। आपको यदि यह शाश्वत प्रकाश चाहिए तो आप इसे ले लें अन्यथा दिवाली पूजा 25 खेल में भी वे परस्पर गले नहीं मिल सकते, सहजयोग में आने की कोई आवश्यकता नहीं। आपको एक दूसरे का वे केवल हाथ छू लेते हैं। अब मैने देखा है, कि गोल करके व्यक्ति इतने उ्तेजित हो जाते हैं कि वे मैदान से बाहर दौड़ पड़ते पवित्र होना होगा। जो भी कुछ उपलब्ध्ियां आपने प्राप्त की हैं वे आपके साथ जुड़ी हुई हैं। एक अन्य चीज़ जिसका वचन आपको दिया गया है, वह है आनन्द के अनुभव का आशीर्वाद। हो सकता है कि आप किसी दुर्घटना से बचा हैं, उनकी समझ में नहीं आता कि क्या करें? सहजयोग में पुरुष दूसर पुरुष है उसे गले लगा सकता है, इसमें कोई बुराई लिए जाने पर आश्चर्यचकित हों। सभी आशीर्वाद नहीं। पुरुष स्त्रियों को तथा स्त्रियां पुरुषों को न छुएं| यह क्या मूर्खता है? आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं कर सकते। एक महिला अपने से बहुत कम आयु के पुरुष को छू सकती है और एक पुरुष अपने से बहुत अधिक आयु कि महिला को करुणा में शालीनता का होना को चूम सकता का अनुभव करते हैं। आप भी करें। सर्वप्रथम यह निराकार रूप में स्तर पर कोई भी जान सकता है कि विचार क्या है? बाद में होती है इस न यह भाषा वन- जाती है। निराकार को यदि में आप पकड़ सकते हैं तब इसे जानते है। परन्तु आपको बहुत सा चित्त लगाना होगा। आपकी कुण्डलिनी यदि आपके चक्रों की खराबी के कारण उतना ही आवश्यक है जैसे शरीर में सुगंन्ध का। अपनी करुणा की अभिव्यक्ति हम किस प्रकार कार्यान्वित नहीं हो रही तो आपको कहना है कि करते हैं? अब सहजयोग में राखी बहने। और राखी भाई हैं। हमें समझना चाहिए कि हम करुणा के लिए राखी भाई और बहने हैं धन के लिए आप हैं, आप हैं," "त्वमेव साक्षात, आप ये न कहें "आप ही परमपूज्य हैं," आप कहें "आप अपवित्रता गणेश हैं" इससे आपके चक्रों की सारी नहीं। राखी सम्बन्धों की अभिव्यक्ति परस्पर सुरक्षा धुल जाती है। आपके बन्धन और भी ठीक हो की भावना से करनी चाहिए। जाते हैं। तब आप किसी कार्य का श्रेय नहीं करुणा इतनी आनन्ददायी होती है कि इसमें लेते, आपको नहीं लगता कि आप कुछ कर रहे धन या किसी अन्य प्रकार के बन्धन नहीं होने हैं और आपका पूर्ण व्यक्तित्व एक पूर्ण यंत्र में परिवर्तित हो जाता है। तब आप अपने कार्य को है। अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए और अन्य सभी कार्यो को परमात्मा के कार्य के रूप में देखते हैं। इस प्रकार आप ज्योतिर्मय इस प्रकार आप शान्ति और आनन्द के दीप बन जाते हैं। आज हम सहजयोग के चाहिए क्योंकि इनसे आनन्द का अन्तु हो जाता क आप कोई चीज़ उपहार के रूप में दे सकते हैं यह आनन्द प्रदान करती हैं। परन्तु कभी ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप यह उपहार अपनी भी हो जाते हैं । बहन को तो दे दें परन्तु अपनी पत्नी कां न दें। करुणा की बूंद को पेड़ के अन्दर प्रसारित होकर भिन्न हिस्सों को भिन्न प्रकार से, आपेक्षित रूप से प्रेम देना होगा। महत्वाकांक्षा है तो यह केवल सहजयोग के विषय शब्दों में नहीं हो सकता। यह दीपक ध्यान धारणा में होनी चाहिए, ताकि आप विनम्र हो जाएं सहजयोग प्रकाश की दिवाली का उत्सव मना रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या कह, कितने आनन्द की स्थिति में मैं हू। आनन्द की सभी राखी आपमें यदि तरंगे मुझे अभिभूत कर रही हैं। इसका वर्णन से प्रज्जवलित है, और इस प्रकाश में आप अत्यन्त का एक वचन हैं कि आपका जीवन आनन्द सुदृढ़ बन सकते हैं। से परिपूर्ण हो जाएगा। आपको अपने आंखें निकालने और हाथ काटने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि आपमें परमात्मा आपको धन्य करें। बहुत अधिक छिद्र (कमियां) हैं तो आपको 26 শc ---------------------- 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt ा चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति अंक 3 व 4 रवण्ड VII |११5 हार था "इदय में पूजा करना स्वोत्तम है। मेरी जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं उसे यदि य-गम्य कर सके या पूजा के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराइया में उत्तार सके ता वह आनन्द जो आप उस समय प्राप्त करते हैं, शाश्वत तथा अनन्त चन सकता है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र |स 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VII, अंक 3 व 4 विषय-सूचा : -: श्री गणेश जी के 12 पावन नाम 1 1. श्री माता जी का गुडी पडवा सन्देश 2. 2. श्री माता जी का राम नवमी सन्देश 3. 3. श्री कृष्ण पूजा प्रवचन 28-8-1994 4. श्री गणेश पूजा (मास्को) 11-9-1994 10 5. होली तत्व 13 6. नवरात्रि पूजा कबैला 9-10-1994 मास्को सार्वजनिक कार्यक्रम 12-10-1994 16 7. 22 8. दिवाली पूजा (इस्ताम्बूल) 24 9. श्री यागी महाजन सम्पादक श्री विजय नलगिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 67 प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्कट, नई दिल्ली 110 (060 फोन : 5710s29, 5784866 मुद्रित : लं ल ं४ 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt श्री गणेश पूजा, मास्को (रूस) में, 11 सितम्बर 1994 को श्री माता जी को समर्पित किए गए श्री गणेश जी के 12 पावन नाम कर्णकः। कपिलो सुमुखश्चैकदन्तश्च लम्बो-दरश्च विकटो, विघ्ननाशो गणाधिप:॥ धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो, द्वादशैतानि विद्यारभे संग्रामे गज पात चन्द्रो पठेच्छुणुयादपि।। प्रवेशे भाल गजानन:। नमानि यः ति निर्गमे विवाहे संकटे-चैव, विघ्नस्तस्य तथा। च, जायते।। न सुमुखः 1. एक दन्त: 2. ा ल कपिल : 3. गजकर्णक: 4. लम्बोदरः 5. पत म विकटः 6. विघ्न-नाशक: 7. गणाधिपति 8. धूम्रकेतु 9. गणाध्यक्ष: 10. भाल चन्द्र: 1. 12. गजानन: श्री गणेश आपकी माँ के शक्तिशाली अवलंब (सहायक) हैं। आप सब भी मेरे आश्रय हैं। परन्तु मुझे आश्रय देने के लिए आपको श्री गणेश की तरह ही बनाया है" आपको अत्यन्त दूढ़ एवं निश्छल होना होगा क्योंकि मैने प. पू. माता जी श्री निर्मला देवी. रुन श्री मणेश बी के 12. पावन नाम 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt परमपूज्य श्री माता जी का ता मात गुडी पडवा संदेश पात ( महाराष्ट्र में नव वर्ष - 31 मार्च 1995 सहजयोग में अब छँटनी आरम्भ हो गयी हैं। सहजयोगी केवल मेरे दर्शन एवं पूजा हैं। अपनी आत्मा के दर्शन किए बिना मेरे दर्शन घड़ी नहीं देखनी चाहिए। चक्रों को साफ करें तथा ध्यान करं नहीं तो चाहते मुझे कष्ट होता है। पूजा के मध्य लोगों को का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में मैने सबसे अधिक कार्य किया, मैं देखती हूँ कि सहजयोगी ध्यान नहीं परन्तु ध्यान-धारणा न करने के कारण वहाँ सहजयोगियों का स्तर नहीं हैं। वे आक्रामक करते। ध्यान-धारणा के बिना सम्पर्क नहीं बन सकता। ध्यान धारणा के बिना आप विकसित हो गए हैं। जब ऐसे हो जाते हैं तो दायाँ नहीं हो सकते। ध्यान-धारणा ही एकमात्र मार्ग है। मैने आपको आप ध्यान नहीं करते। कलियुग में आपने किसी चैतन्य लहरियों को आत्मसात ही न कर पाएंगे । लक्ष्य के लिए जन्म लिया है, परन्तु यदि आप ध्यान नहीं करेंगे तो डूब जाएंगे। ध्यान धारणा के अभाव में अच्छे-अच्छे सहजयोगियों का पतन हृदय पकड़ने लगता है। बिना ध्यान-धारणा किए है फिर भी दर्शन और पूजा सहायक नहीं हो सकते, आप मार्ग दिखा दिया मैं आश्चर्य चकित हूँ कि महाराष्ट्र में इतने अधिक सन्तों के होने के बावजूद भी लोगों का चित आत्मा पर नहीं है। हो जाता है। समर्पित होने पर आपकी हर इच्छा पूर्ण हो जाती है। हाल ही में मैक्सिको की एक सहजयोगिनी ने मुझे अपने पुत्र की भयंकर बीमारी के विषय श्रीमाता जी मैं जानती हूं कि आप ही मेरे पुत्र को रोग मुक्त करेंगी।" उसने ऐसे दो पत्र लिखे और तीसरे पत्र में उसने लिखा कि "श्री माता जी, आपकी कृपा से मेरा पुत्र कं लिए विद्यार्थियों को प्रतिदिन ध्यान करना रोगमक्त हो गया है।" समर्पण की शक्ति इस ध्यान-धारणा आपको उन्नत करती है। आरम्भ में एक वर्ष तक नियमित रूप से ध्यान-ध रिणा करने का संकल्प लेना होगा। तब आप में लिखा कि इसका आनन्द लेन लगंगे । अपनी परीक्षा में सफलता का आशीर्वाद लेने चाहिए। पहले पूजा करने का अधिकार प्राप्त करना आवश्यक है। यदि आप नियमित रूप से ध्यान नहीं करते हैं तो आप पूजा में सम्मिलित नहीं हो सकते। पूजा में आने से पहले अपने प्रकार कार्य करती है। ध्यान- धारणा द्वारा अब आपने अपने सम्बन्ध को स्थापित करना है।" परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ० 2. 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का राम नवमी सन्देश काठमण्डु 9-4-95 संचार बनाये रखने के लक्ष्य से मैं लीडर बनाती हूँ, अन्यथा अगुआगणों में कोई विशेष है।" बात नहीं है। परन्तु कोई भी मुझसे उनके विषय में शिकायत नहीं करे। उनके बारे में मैं सब आत्म निरीक्षण करें कि, "मुझमें क्या कमी मड अपने देश का यदि आप हित चाहते हैं तो देश, जाति आदि से लिप्त न हों। लोगों के संवेदनशील हुए बिना सहजयोग बढ़ नहीं सकता। कुछ जानती हूँ और उन्हें सुधारना भी मुझे आता है। नये लोगों के प्रति करुणामय बनें। उन्हें ये न बतायें कि वे पकड़े हुए हैं। अपनी करुणा अगुआओं को चाहिए कि केन्द्रों में भाषण न दें। वे केवल मेरे टेप चला दें और इस बात का ध्यान रखें कि लोगो को चैतन्य लहरियां को द्शाय। उन्हें बतायें कि "मैं भी इन्हीं समस्याओं मिल रही हैं कि नहीं। में से निकला हूँ, "मैं भी आप ही जैसा था ।" तभी वे आपके साथ तादात्म्य स्थापित कर सकगें। यदि उन्होंने गहनता प्राप्त कर ली है तो 6 लोगों महौनों के बाद वे अपना प्रभाव जमाने का वे प्रयत्न न करें, अत्यन्त नम्रता से पीछे रहते हुए अन्य पूजा में सम्मलित हो सकते की शान्ति पूर्वक सहायता करते रहें। आपको हैं। उन्हें पूजा के निमयाचरणों के विषय में बताएं। देख कर ही लोग सहजयोग में आयेंगे। सहजयोगियों केन्द्र में शान्ति और को मेरे साथ तादात्म्य स्थापित करना चाहिए, अगुआओं के साथ नहीं। व्यवस्था करने वालों में मेल-मिलाप का वातावरण होना चाहिए। लोग आपसे शान्ति प्राप्त करें। धन सम्बन्धी मामलों की बातचीत न करें। आपकी सारी समस्याएं चक्र-विकारों के कारण आती हैं । चक्रों के ठीक होते ही समस्याएं सदा याद रखें कि प्रेम की दिव्य शक्ति आसुरी के सम्पुख सारा असत्य लड़खड़ा जाता है। शक्ति कुछ समय के लिए रह सकती है परन्तु समाप्त हो जाती हैं। नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियों में सदा युद्ध चलता रहता है। अन्तत: उनका पतन हो जाएगा। यह सब मेरा कार्य है, मुझ पर छोड़ दें। कि इसके आन्तरिक नम्रता का होना आवश्यक है, बिना आप सहजयोग समुद्र में खो जाएगें। परन्तु यह नम्रता अन्दर से आनी चाहिए। ाम काम परमपून्य माता जी श्री निर्मला दंवो का यम नवमी सन्देश 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt परिन [श्री कृष्ण पूजा प्रवचन ( सारांश ) कबैला इटली 28 अगस्त 1994 हैं। अत: वह सम्पूर्ण हैं। वह पूर्णिमा है " पूर्ण चन्द्रमा "। श्री कृष्ण ब्रह्माण्ड के रक्षक श्री विष्णु का अवतरण थे। संसार की सुष्टि करते समय यह जरुरी था कि विष्णु के अवतरण की पूर्णता के साथ, वह पूर्ण थे और एक रक्षक की भी सृष्टि की जाए नहीं तो ये संसार नष्ट हो जाता। यदि मानव को आरक्षित छोड़ दिया जाता तो स्वभाव वश उसने इस संसार का कुछ भी कर दिया में 12 पंखुड़िया हैं। जिन बातों की ओर लोगों का ध्यान होता। विकास की प्रक्रिया के दौरान श्री विष्णु ने ही नहीं जाता इन्होंने वह सब दर्शायीं जब गीता लिखी भिन्न-भिन्न रूप लिये। उन्होने अपने आस- पास कई गई तो लोगों ने उसका अनुकरण करना शुरु कर दिया। पैगम्बरों का वातावरण उत्पन्न किया ताकि वे इस संसार मे धर्म की रक्षा कर सके अतः संरक्षण का आधार धर्म था। इस धर्म में जो कुछ भी स्थापित करना था वह संतुलन से स्थापित करना था। अति में जाना मानव की आदत हैं। यह पूर्णता अभिव्यक्ति हुई। राम के अवतरण में जो कुछ कमी रह गयी थी इन्होंने उसे दूर किया। दायें हृदय श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "इस समय तुम्हें धर्म और सत्य के लिये लड़ना है।" अर्जुन ने कहा, मैं अपने रिश्तेदारों और सम्बन्धियों को नहीं मार सकता" "तुम कौन हो मारने वाले, वे तो पहले ही मरे हुए हैं, क्योंकि वे अधर्मी हैं। यदि उन्होंने कहा, सन्तुलन स्थापित करना धर्म का पहला सिद्धान्त तुम में धर्म नहीं है तो तुम पहले ही मरे हुए हो| उसमें है। बिना सन्तुलन के व्यक्ति उत्थान नहीं प्राप्त कर सकता। जहाज बिना सन्तुलन के चल नहीं सकता। इसी प्रकार पहले मनुष्य को संतुलन प्राप्त करना होगा, परन्तु सभी मनुष्य अलग-अलग योग्यता तथा क्षमता के साथ जन्मे हैं। यह कहा गया है "या देवी सर्वभूतेषू जाति ह। भगर इससे परे क्या है। तो श्री कृष्ण ने सहजयोग रूपेण संस्थिता" अर्थात् क्षमता अलग-अलग हैं। हम भिन्न-भिन्न क्षमताओं, चेहरों तथा रंगो में पैदा हुए हैं क्योंकि विविधता लाना आवश्यक था। यदि सब एक जैसे दिखते तो वे 'रोबोट' जैसे लगते। सभी मानव अलग तरीके से देश और माता-पिता के अनुरूप उत्पन्न किये गये हैं। यह सब व्यवस्था श्री विष्णु के सिद्धान्त द्वारा की गई है। उन्होंने इस विश्व को विविधता पूर्ण बनाया है। मारना कहा ?" मारना या न अर्जुन को यह संदेश कुरुक्षेत्र में दिया गया। फिर वह बोला, "आपने मुझे इन लोगों को मारने के लिए. कहा है, मैं धर्म पर स्थित हू अत: मैं इन्हें मार रहा का वर्णन किया। उन्होंने दूसरे अध्याय में बताया है कि स्थितप्रज्ञ क्या है?" यह वह व्यक्ति है जो सन्तुलन में है। फिर उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्ति कभी क्रोधित नहीं होता। अन्दर से वह पूर्णत: शान्त होता है। उन्होंने बताया व्यक्ति को कैसे बनना चाहिए। उस समय कौरव पाण्डवों से लड़ रहे थे। युद्ध के दौरान उन्होंने उसे बताया कि स्थित प्रज्ञ बन कर ही तुम इन सब समस्याओं तथा बन्धनों भा! इस कार्य में श्री कृष्ण दक्ष है। जिस समय शरी कृष्ण अवतरित हुए लोग बहुत ही गम्भीर प्रकृति के थे और अत्यन्त कर्मकाण्डी बन गये थे। इसका कारण यह था कि इससे पहले श्री राम आये और उन्होने मर्यादाओं की बात की। इन मर्यादाओं ने लोगों को बेहद पांच पाण्डवों को कौरवों से लड़ना पड़ा। ये पांच पाण्डव कठोर बना दिया। इस कठोरता के कारण लोगों ने आनन्द, सुन्दरता और विविधता की भावना को खो दिया। श्री कृष्ण का अवतरण सम्पूर्ण रूप में हुआ तत्वों से लड़ना पड़ता है। लोग कहेंगे क्रोध स्वाभाविक चन्द्रमा की सोलह कलायें हैं उनकी भी सोलह पंखुड़िया है। आक्रामक होना स्वाभाविक था। अब हमें जान लेना में ऊपर उठ सकते हो। और तभी आप आन्तरिक शान्ति प्राप्त कर सकते हो। आधुनिक समय में हमें कौरवों से नहीं लड़ना है। कौन हैं? ये हमारी इन्द्रियाँ हैं या भिन्न तत्वों में विभाजित ब्रह्माण्ड हैं हमारे अन्त:स्थित कौरवों से इन्हें लड़ना पड़ता है। यहाँ पर 100 कौरव हैं। प्रकृति को अपने विरोधी जैसे 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt है कि हममें उत्थान की प्राकृतिक क्षमता हैं। ऊँचे उठना स्वाभाविक है। सहजयोगी बनना स्वाभाविक है। इसकी रचना भी हमारे अन्दर की गयी है। उदाहरणतया एक बीज है। फिर वह अंकुरित होता है, वृक्ष बनता है। अत: यह सब बीज में निहित है कि सारा भविष्य, हजारों ऐसा चुस्त बन जाता है जैसे सब कुछ जानता हो। वह वृक्ष जो कि वहाँ होंगे वे भी इस बीज मं हैं। आजकल यह प्रयोग कर रहे हैं। एक बीज से वे हजारों छोटे अंकुर प्राप्त कर सकते हैं जो कि पेड़ या पौधे बन सकें। की संस्कृति सब जगह है और बुद्धि के कारण स्वीकार की जाती है। वे बहुत ही बुद्धिमान हैं। जो व्यक्ति हमेशा पैसे के बारे में सोचता है बहुत बुद्धिमान बन जाता है। बुद्धिमान बनने का अभिप्राय वह तेज बन जाता है। वह सोचता है वह सब कुछ जानता है और जो कुछ भी वह करता है वह ठीक है। अपने आचरण को वह सदा ठीक मानती है। मे के जब उन्होंने कहा कि तुम्हें "स्थित प्रज्ञ" बनना है तो उनका अभिप्राय था कि आपको संतुलन प्राप्त करना होगा । यह उन्होंने तब कहा जब लड़ाई चल रही थी। जब तक तुम्हें लोगों से युद्ध करना पड़े, या उनका वध करना पड़े, तब तो ठीक है, एक बार जब यह कार्य पूरा हो जाये तो आपको अपनी आध्यात्मिक चेतना की रचना करनी होगी। ये पाण्डव जो उसके अन्दर, उसके साथ हैं, ये तत्व जो उसे प्राप्त हैं, इनका उफ्योग वह पूर्णत: विनाशकारी और ईश्वर विरोधी उद्देश्यों के लिए करता है। उसे ज्ञान नहीं है क्योंकि उसकी बुद्धि हमेशा उनके धर्म विरोधी कार्यों को भी उचित ठहराती है। उदाहरण के लिए श्री कृष्ण की जीवनी में वे चित्रण करने का प्रयत्न करते हैं कि उनकी पाँच पतलियां थीं और बाद में 16 पलियां बास्तव में ये उनकी शक्तिया थीं। बिना समझे कि श्री कृष्ण क्या थे! क्योंकि यह बुद्धि ऐसी महामुर्ख है, कि यह आपको सही विचारों तक नहीं ले जाती है क्योंकि आप हर चीज़ को उचित ठहराते हैं। यह समर्थन आपको अपने जीवन तक सीमित कर देता आध्यात्मिक चेतना की रचना करना हमारा कार्य है और हमें वही करना है। न केवल धर्म। कई सहजयोगी सोचते हैं कि वे धर्म कर रह रहे हैं और धर्म में रहे हैं। मगर यही इसका अन्त नहीं है। यह सन्तुलन का हिस्सा है। आपको आगे जाना है और अपने आध्यात्म की रचना करनी है और इसे फैलाना है। यह श्री कृष्ण का कार्य है क्योंकि वे ही प्रसार करते हैं। आप जानते हैं कि अमेरिका गलत तरीके से हर तरफ प्रसार कर रहा है। हां वह ऐसा कर रहा है। उसके पास कम्पयूटर आदि हैं। प्रसार का हर यंत्र उसने बना लिया है क्योंकि प्रसार करना उनका अन्तर्जात गुण है। परन्तु क्योंकि वे न तो श्री कृष्ण में विश्वास करते हैं, और न ही ध र्म में, अंत: उनका आधार ही गलत हैं। इस गलत आध र से उन्होंने गलत विचार और गन्दगी को फैलाना शुरु कर दिया जो कि हमारे उत्थान और परमात्मा के विरुद्ध पर वे यह सब कर रहे हैं। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं जो कि उन्हे करना ही नहीं चाहिए? मैं सोचती हूँ कि यह सब बुद्धि के कारण है। यह बुद्धि मस्तिष्क भी है और विराट की पीठ भी है। इस बुद्धि से वे कहते हैं कि अधार्मिक होना स्वाभाविक हैं। धन लोलुप और आक्रामक होना भी स्वाभाविक हैं। जो कुछ भी उनके पास है सब स्वाभाविक है, क्योंकि, उनके अनुसार अपनी बुद्धि से या किसी और तरह से वह आपको तर्क बुद्धि द्वारा यह समझाने में सफल हो गये हैं कि ऐसा करना उचित है, इसके बिना आप जीवित नहीं रह सकते। यह सम्भवत: उनकी संस्कृति है। इस प्रकार है। सामान्यत: आप अधार्मिक, आक्रामक, युद्ध-प्रेरक जीवन नहीं जी सकते। यह सभी कुछ इन सभी विरोधी तत्वों की मनुष्य से आशा की जाती है। पाश्चात्य संस्कृति में इन सब की पास-पास रखा जा रहा है। आप इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि किस प्रकार वो अनैतिकता का समर्थन करते हैं। ईसा मसीह मोहम्मद साहिब से भी कठोर थे उन्होंने कहा कि यदि कोई आखों से अपराध करें तो आप उसकी एक आख निकाल लो। यदि किसी का हाथ अपराध करता है तो हाथ काट दो। ईसा के अनुसार तो अधि कतर यूरोपियन और अमरीकन एक हाथ के होने चाहिएं। मोहम्मद साहिब ने सोचा ईसा ने आदमियों के लिए इतना सब किया। क्यों न औरतों के लिए कुछ किया जाये। औरतों की तरफ देखने का तर्क स्वाभाविक है। क्या आपने किसी पशु को ऐसा करते देखा है यदि पशु प्राकृतिक प्राणी है? वे लोग जानवरों से भी बदतर हैं और इस प्रकार की समझ से हमने कैसी गन्दगी उत्पन्न कर ली है? ये बुद्धिवादी जो भी हमे समझाने का प्रयत्न करते हैं हम उसे स्वीकार करते हैं । एक समस्या यह है कि यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है तो वह प्रभुत्व जमाता है। उदाहरणार्थ जो भी कोई श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सरांश) 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt फैशन शुरु होता है हम सब उसे स्वीकार कर लेते हैं के लिए थी और उसका उपयोग दैवी उद्देश्य के लिए। उद्दमी की बुद्धि आपको वास्तव में पूरी तरह से मूर्ख हर समय उनके अन्दर का देवत्व बुद्धि प्रयोग में उनकी बना सकती है। मगर उन लोगों को नहीं जो विवेकशील हैं। वे कहेंगे दफा हो जाओ। यह नैतिक भाग के बारे बन्धनों, भावनाओं तथा शरीर के दास हैं। स्वामी बनकर में है। पश्चिम में इसका घोर पतन है। यह पशुओं से भी बदतर है। और इसी कारण वो आज इतनी सारी बिमारियां, परेशानियां आदि भुगत रहे हैं। सहायता करता था। अन्तर यह है कि हम अपनी बुद्धि, आप अपनी बुद्धि को स्पष्ट देखते हैं यह बुद्धि आपको यह विचार दे सकती है कि आप पूरे विश्व के स्वामी हैं और वही बुद्धि आपको यह विचार भी दे सकती दूसरी चीज़ जिसका हम हमेशा समर्थन करते हैं है कि आप कुछ नहीं हैं। बुद्धि आपके सिर चढ़ कर "हिंसा" है। अब कुरुक्षेत्र में कोई भी लड़ाई नहीं चल रही है, मगर आप हर तरफ हिंसा देख सकते हैं। अमेरिका से नहीं विवेक से संचालित होना है। आपके पास बहत में इसका भयानक रूप है। यह केवल अमेरिका में ही नहीं, हर जगह है, क्योंकि सबका गुरु अमेरिका है । यह अमेरिका से शुरु होता है और लोग आंखे बन्द करके है और गलत क्या है? आप देख सकते है कि मानवः उसका अनुकरण करने लगते हैं। हिंसा हमारी फिल्मों होने के कारण कुछ बुद्धि प्रभाव भी आ रहा है। मगर में आ गई है, किसी को मारने की अनुमति नही हैं। सहजयोग से आप यह जांच सकते है कि यह बुद्धि आप हत्या नहीं करेंगे। मुसलमान लोग हत्या कर रहे हैं। सभी हत्या कर रहे हैं। आक्रामकता अन्ततः आप को हत्यारा बना देती है। चींटी तक तो आप बना नहीं सकते, इस तरह मानव की आप कैसे हत्या कर सकते बहुत जल्दी सक्रिय हो जाता है। मैंने कुछ अत्याधिक हैं? हत्या का यह व्यवसाय आकाश को छ रहा है। बुद्धिमान बच्चों को देखा है पर उनमें विवेक नहीं है. जैसे हिटलर मानता था कि वो विश्व में सबसे ऊँचा हैं। यह उन्माद है। आप एकदम भूल जाते है कि आप कौन है और अपने अंहकारवश स्वय को अत्यन्त महान मान बैठते हैं। सहजयोग में भी कुछ लोग हैं जो यह कहते कि वो भगवान हैं, वो देवता हैं। यह अंहकारवाद वास्तव में आपकी बुद्धि से ऊर्जा लेता है। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसकी बुद्धि है क्योंकि यह अत्यन्त सीमित, प्रतिबन्धित, अंहग्रस्त तथा चक्षुविहीन है। बोलती है। सहजयोगी होने के नाते आपको अपनी बुद्धि अच्छा उपकरण है, अपनी चैतन्य लहरियों को अनुभव करके, आप यह पता लगा सकते हैं कि ठीक क्या आपको क्या बता रही है। मुख्य बात है कि आपको सूक्ष्म बिन्दु पर अवश्य जाना चाहिए, कि यह बुद्धि हम तक केसे आई। यह हम तक आई क्यांकि हमारा मस्तिष्क मस्तिष्क का कुछ अधिक विकसित होना, माता-पिता के अंधिक बुद्धिमान होने के कारण हो सकता है। उत्तराधि कार में बच्चों को तीक्ष्ण बुद्धि मिल सकती है। परिस्थितियों के कारण भी ऐसा हो सकता है। जैसे हो सकता है कि आप एक विशेष देश में पैदा हुए हो, जहाँ अचानक आप बहुत बुद्धिमान बन जाते हैं। मेरे पास कुछ अमेरिकन और अंग्रेज हैं जो हर समय पढ़ते रहते हैं। मगर इस सब पढ़ाई का फल क्या है? वे हर किताब पढ़ेंगे। वे कम्पयूटर के बारे में सब कुछ जानते हैं यह सब अविद्या है। यह ज्ञान नहीं है। यह अज्ञान है। तो वे सोचते हैं कि वे बहुत बुद्धिमान है विवेक अलग चीज़ है। विवेक आप अपनी आत्मा के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह आपको उचित अनुचित का पूर्ण ज्ञान देता है। बुद्धि तो गलत बात को भी स्वीकार क्योंकि वे हर वस्तु के बारे में, हर चीज़़ जानते हैं। कर लेगी। बुद्धि विवेक नहीं है। ये दो अलग चीजे हैं। कूटनीतिज्ञ के रूप में कृष्ण प्रसिद्ध हैं । उनकी कुटनीति दिव्य थी। इसका अर्थ यह है कि वो बहुत ही बुद्धिमान में। उनके पास हर प्रकार की अजीबो-गरीब चीजे हैं। थे। मैं उच्चपदाधिकारियों से मिली हूँ परन्तु उनमें केवल पैसा खींचने के लिए। उदाहरण के लिए उनके इस बुद्धि से जैसे चेतना आने लगती हैं वे बहुत ही बौद्धिक विचार बनाने लगते हैं। विशेषतया अमरीका कुछ अधिक बुद्धिमत्ता नहीं है। अब मैने देख लिया कि यह बुद्धिमत्ता भयानक वस्तु है। श्री कृष्ण ने अपनी बुद्धि है। कई बार लोग उनके लिए बड़े समारोह भी करते का प्रयोग किया। वे शक्तिशाली हैं। उन पर कुछ भी पास एक हौआ (Goliwog) है जिसका जन्मदिन होता हैं फिर वे कुत्तों का जन्मदिन मनाने लगे । कोई भी जो विचार उनमें डाल देता है उसे वे करने लगते हैं। बुद्धि का प्रयोग करना आना चाहिए, इसके वश में नहीं फिर वहां पर संगठन है जो कहते हैं कि जब आप आना चाहिए। उनकी सारी युक्ति उनकी बुद्धि के प्रयोग मरने वाले हों तो हमें बता दें कि आप कौन सा सूट प्रभुत्व नहीं जमा सकते अन्तर देखिए। आपको अपनी माई 6. 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt पहनना पसन्द करेंगे आपको कैसा ताबूत चाहिए। यूरोप बुरी बात तो यह है कि महागन्दी फिल्मों के लिए उन्हें में सबसे बेकार चीज़ यह है कि उन्होने अवकाश मनाने के विचार को बहुत अच्छे से विज्ञापित और व्यापारित खाते है और उसे देखकर दर्शक आनन्दित होते हैं। इस किया है। अत: इटली में यदि व्यक्ति अवकाश पर नहीं फिल्म को सर्वोत्म फिल्म तथा इसके नायक को सर्वोत्तम जाता तो कहेगा कि मेरे जीवन में संकट आ गया है अभिनेता का इनाम दिया गया । क्योंकि मैं अवकाश (छुट्टी) पर नहीं जा सका। फिर रहे हैं जिनमें वे लटके हुए मृत शरीर दिखाते हैं। ये उन्होने कहा तुम वहाँ जाओ, शरीर को धूप में जलाओ, लोग इतनी भयानक चीजें क्यों देखना चाहते हैं? उनका होटल में रहो। हर किसी को बाहर जाना है। वे सभी समुद्रतटों को गन्दा कर रहे हैं। समुद्र जो उनके पिता हैं, के लिए उनमें कोई आदर नहीं है। उनमें एक दूसरे के लिए कोई आदर नहीं है। औरते पतला होना चाहती हैं और बहुत अच्छा दिखना चाहती हैं ताकि वे वहा जाकर नरन हो सकें। सारा तन्त्र ही खराब है। यदि आप बुद्धिमान हैं तो मूर्खतापूर्ण विचार किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं। इनाम दिए जाते हैं। एक फिल्म में एक नरभक्षी मांस वे कुछ ऐसी फिल्में बना चरित्र क्या है? वे कहां तक पतित हो चुके हैं? मानव को आनन्द न दे सकने योग्य चीज़ों का भी वे क्यों आनन्द लेते हैं? हृदयाभिव्यक्ति प्रथम सिद्धांत है। किस प्रकार आप अपनी बात दूसरों से कहते हैं? अपने बच्चों, पति, पत्नी से इसका आरम्भ करें। खोजने का प्रयत्न करें कि कहीं आप रोबीले तथा आक्रामक तो नहीं। स्त्रियों या पुरुषों की आक्रामकता किसी भी सीमा तक जा सकती है। परन्तु यहां पर स्त्रियां बहुत आगे हैं। भारत के पुरुष अत्यन्त रोबीले हैं। मूलभूत बात यह है कि अच्छे वस्त्र धारण करने के अतिरिक्त मनुष्य में अच्छे तौर तरीके भी होने चाहिए। उनके तौर तरीके वेषभूषा तक ही सीमित वस्तुएं बेचना आदि है। आर्थिक आक्रामकता के अतिरिक्त हैं। परन्तु जब भी वे परस्पर मिलते हैं लोक निन्दा ही करते हैं। व्यक्ति को समझना चाहिए कि श्रीकृष्ण ने कभी निन्दा नहीं की। यह यूरोप के देश पूरे विश्व के घोटालो से क्यों सुसज्जित हैं। इन घोटालों में लोगों की, और सर्वोपरि, समाचार पत्रों की क्या दिलचस्पी है? इनसे धनार्जन ही इसका कारण है। यह सारा साठ-गाठ पूर्ण व्यापार है। लोग यह सारी मूर्खतापूर्ण बातें सुनना चाहते हैं अत: समाचार पत्रों में यह छपती हैं। तीस वर्ष पूर्व आपको ऐसा कुछ सुनने को न मिलता था| इस प्रकार साथ कुछ अमेरीकी मित्र थे उन्होने बहुत खाया और की सभी पुस्तकों पर पूर्णतयाः रोक थी। परन्तु अचानक सहज अर्थशास्त्र (economics) बहुत अलग है। अर्थशास्त्र के रूप में प्रचलित मूर्खतापूर्ण विचारों से हम बन्धे हुए नहीं है। शोषण के अतिरिक्त यह कुछ भी नहीं यह व्यापारीकरण है। यह लोगों को प्रभावित करना, यह कुछ भी नहीं। श्री कृष्ण राजा थे। वे राजा की तरह रहे मगर गोकुल में वे बहुत ही साधारण घर में भी रहे। वे लिप्साविहीन थे। पर पश्चिमी देशों के लोगों में धन-लिप्सा सर्वप्रथम है। धन प्राप्ति के लिए कोई भी तरीका अपनाना वे उचित मानते हैं। एक बार भारत में हम एक होटल में गये हमारे खा रहे थे मगर हम उनका मुकाबला नहीं कर पाये। उन्होंने बैरा को बुलाया और बचा हुआ खाना बांधने को ही यह सारी चीजे कुसुमित हो चुकी हैं। और कोई भी पत्रिका या पुस्तक जब आप पढते हैं तो हतबुद्ध रह कहा क्योंकि उन्होंने उसकी कीमत दी है। और उन्हें जाते हैं। कि इनमें क्या सिखाया ज़ा रहा है। विनाश संस्कृति सिखा रहे हैं। लोग इसे स्वीकार करते है, पसन्द करते ऐसा नहीं करते, क्योंकि यह अशिष्टता है। वे कहने हैं और कार्यान्वित करते हैं। महिलाओं का उपयोग स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है और मूर्खतावश महिलाएं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं। निसन्देह एक ओर तो उनका प्राबल्य है और इसके कारण उन्हें बहुत प्रसन्नता होती है। एक पत्रिका में एक महिला डींग हांक रही थी कि जीवन में उसके सम्बन्ध चार सौ पुरुषों से रहे। ऐसा करने में शर्म नहीं आई। मैने कहा हम भारत में लगे कि हमने इसके लिए पैसा खर्चा है। सहज योग में आप कंजूस नहीं हो सकते। दूसरों के लिए आपको सोचना पड़ेगा। केवल यही तरीका है जिससे हम अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह सब उदारता आपको बहुत बड़ा नायक बनाने के लिए नहीं है। परन्तु सबसे बुरा हालीवुड है। यह फिल्म उद्योग नर्क में भी ऐसी स्त्रियों के लिए स्थान नहीं है। ऐसी है। उद्योग के नाम पर आप कुछ भी कर सकते हैं। महिलाओं को आप कौन सा स्थान देंगे? यह गतिविधि यह हालीवुड अत्यन्त गन्दी फिल्में बना रहा है। सबसे धर्म तथा संचारण सिद्धान्त के बिल्कुल विपरीत है। श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सायंश) 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt बातचीत करने का आपका क्या तरीका होना यदि वे लिप्त होते तो वे ऐसा न कर पाते। इस प्रवृत्ति चाहिए? अन्य सहजयोगियों तथा अन्य लोगों से अत्यन्त से छुटकारा पाने के लिए आपको कृष्ण विरोधी इस सभ्य, मृदु तथा सुन्दर तरीके से आपको बातचीत करनी संस्कृति से छुटकारा पाना होग है। आपको दूसरे व्यक्ति से बहुत ही मधुरतापूर्वक बात करनी चाहिए। फ्रेंच लोगो की तरह बनावटी तरीके से नहीं। आपको शिष्ट भाषा में नम्रता पूर्वक बोलना चाहिए हर समय बड़बड़ाने और बहुत अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं है। माधुर्य श्री कृष्या की शक्ति थी। यह शहद की तरह मधुरता देती है। आपको इस तरह बोलना चाहिए जो दूसरे व्यक्ति को अच्छा लगे। किसी से भी बात करते समय आप बहुत मधुरता तथा अच्छे तरीके से बात कर सकते हैं जो दूसरे व्यक्ति को अच्छा लगे। उकसाने के लिए कठोर बाते न करें। कुछ लोग आदतवश हर समय उकासने की बात कहते हैं। ऐसा यह फैशन है, वह फैशन है।" यह सब फैशन बेहद विनाशकारी है। सिर में तेल नहीं डालना, जिसका अंत गंजापन होना है। उन्होने जो भी किया वो दुष्टता और नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए और आनन्द सामने लाने के लिए, यही रास है। रास आपके अन्दर की शक्ति है। जिससे आप कीड़ा करते है और आनन्द उठाते हैं। श्री राम के जीवन में जिस चीज़ का अभाव था उस आनन्द की लीलामय ढंग से अभिव्यक्ति करने के लिए उन्होंने विवेकशील होली प्रचलित की उन्होंने कहा," स्वयं को आनन्द लेने दो।" मगर यह बात केवल सहजयोगियों के लिए थी अन्य लोगो क लिए नहीं। अन्य लोग तो मधुशालाओं में चले जाते है। श्री कृष्ण ने कहा व्यापार के लिए कुछ लोग तो मधुर बन जाते हैं। और किया कि हम हर चीज़ का आन्नद ले सकते हैं। हमे अधार्मिक नहीं होना है। धर्म आपको आनन्द प्रदान करता है। धर्म यदि आनन्द प्रदान नहीं करता तो आप पूरी तरह से तपस्वीं तथा नीरस व्यक्ति बन जाते हैं। और यह नीरसता कभी-कभी मूर्खता की सीमा तक चली जाती है। यह आनन्द आप अन्य लोगों में बांटते हैं। आनन्दमय स्वभाव के बिना आप संचरण नहीं कर सकते। करना अच्छा नहीं है। अन्यथा अत्यन्त कठोर हैं। भारत में हमारे यहाँ जन है। व्यापार के लिए वे अत्यन्त मधुर है, मगर समुदाय दान आदि करने में वे अत्यन्त कठोर हैं। श्री कृष्ण इसके बिल्कुल विपरीत थे। अपने जीवन में वे सदा दासीपुत्र विदुर के अतिथि रहे, क्योंकि वह आत्मसाक्षात्कारी था। कृष्ण विदुर के साधारण निवास में रहा करते थे और बहुत ही साधारण भोजन खाते, मगर वे दुर्योधन के महल में नहीं जाते थे श्री कृष्य हैं इस प्रकाश में आप देखते हैं कि क्या बेकार और ने कभी धन की परवाह नहीं की और न ही उसके मूर्खतापूर्ण है। यह श्री कृष्ण का आर्शीवाद है। वे आपको बारे में सोचा। उन्होने अपनी गद्दी, राज्य या उसके वैभव निरानन्द देते हैं क्योंकि यदि आपके पास प्रकाश नहीं के प्रति पूरी निर्लिप्तता दिखाई। लिप्त होते ही धन ग्रस्त है तो आप अपने मस्तिष्क का आन्नद नहीं ले सकते । सभी कष्ट आपको सहने पड़ते हैं। यदि आप नि्लिप्त उनके प्रकाश में हम स्वयं को आनन्द से परिपूर्ण देखते हैं तो वही धन आप उपयोग कर सकते हें। एक बार आप उस पैसे के दास बन जाते हैं तो वह आपके सिर चढ़ जाता है। आजकल पैसा होना भी खतरनाक है। सारी प्रतिक्रिया हो रही है और इसी कारण सारे तत्व आपके खिलाफ प्रतिक्रिया कर रहे हैं। सिएरा निवेदा के लोगो है। एक बुद्धिमान व्यक्ति, जैसे श्री कृष्ण विवेक का ने सच कह है, जब हम धन संचय करने लगते हैं स्त्रोत हैं, को "स्थित-प्रज्ञ" होना चाहिए, अर्थात् उसे तो करते ही चले जाते हैं, पर लुटेरे भी साथ साथ आ जाते हैं। वह विराट है जो आपके दिमाग में प्रकाश डालते हैं। एक और फैशन यह कहता है, "यह बहुत अधि के है।" दिमाग मूर्खता से भरा होने के कारण आप उनको जो कुछ भी बतायें उनके दिमाग में कुछ भी नहीं जाता संतुलन में, धर्म में और सर्वोपरि आनन्द में होना चाहिए। आप केवल आनन्द में नहीं है मगर आप सत्य को जानते हैं पूर्ण सत्य को। यह पूर्ण सत्य वह है जो आपको यह समझ देता है कि क्या सही है और गलत है और आप अपना विवेक, विकसित कर लेते हैं, अपनी बुद्धि नहीं। आप अपनी बुद्धि को दुराचरण करते हुए आपको नकारात्मक एवं आक्रामक विचार देते हुए देख सकते उद्योगपति कहलाने वाले लोग सबसे निकृष्ट है। | ল उदाहरण के लिए वे पूछेगे कि आपक पास डिजाइनर घड़ी है? तो सभी लोग उस डिजाइनर घड़ी को मांगेंगे। श्री कृष्ण को देखें, कितने बुद्धिमान तथा साक्षी भाव हैं। कैसे प्रकाश लीला करते हुए वे विजयी होते हैं 8. 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt पहुंच जाते हैं। तलाक की सहजयोग में अनुमति है मगर व यह अमेरीकी तरीके की बेवकूफी नहीं। पति या पत्नि कोई भी रौब जमा रहा होता है। और तलाक हो जाता है। उपलब्धि क्या है? हमें स्वयं में हर चीज़ को कार्यान्वित करता है क्योंकि हम बन्धन ग्रस्त हैं और हम एक व्यर्थ प्रकार के वातावरण में हैं। मैं आप सबको विनती करती हूँ कि आप श्री कृष्ण के व्यक्तित्व की सुक्ष्मता को समझने का प्रयत्न करें। बहुत ही शांतिप्रय, करुण मृदु तथा सहायक बनने का प्रयत्न करें। उनमें धन की चेतना न थी। किसी कारण विशेष से उनका मेघ वर्ण था। देखने का प्रयत्न करें कि वर्णित गुणों में से कितने गुण हममें हैं। इस प्रकार से अन्त्तदर्शन शुरु होगा। एक बार जब आपने अन्न्तदर्शन और स्वयं को समझना शुरु किया तो विवेक बढ़ेगा। दूसरों की गलतियां देखने या उन पर आखे उठाने से नहीं, अपितु स्वयं को देखने से। इस प्रकार से कार्य होंगे। कृष्ण को यह नहीं करना पड़ा क्योंकि वे सम्पूर्ण थे। सम्पूर्णता प्राप्त करने के लिए हमें यह सबै करना पड़ेगा। हैं। आप साक्षी बन सकते हैं। श्री कृष्ण ने कहा था "मै पूरे विश्व का साक्षी हूं। ब्म हमें यह देखना है कि हम कहां गलती कर रहे हैं और श्री कृष्ण कैसे हमें बचा सकते हैं। यह दिन-प्रतिदिन विवेकशील बनने से होगा। विवेक आपको निश्चित विचार देता है कि आपको कैसा बनना है। आपके पास वैसी ही मुस्कराहट होगी जैसी श्री कृष्ण के पास थी। हमें यह समझना है कि हमारी विशुद्धि ठीक रहे। अमेरिका को ठीक करने के लिए मेरी विशुद्धि पकड़ जाती है। इसके बिना मेरी विशुद्धि कभी ठीक नहीं हो सकती। विशुद्धि ठीक करने के लिए हमारे पास सहजयोग में बहुत सी विधियां हैं जिन्हें बहुत कम लोग करते हैं। यदि कुछ थोडे से सहजयोगी ही अपनी विशुद्धि को ठीक रख सकें तो मैं बहुत बेहतर हो जाऊगीं। परमात्मा द्वारा आशीर्वादित आप एक नई जाति हैं, आपके अन्दर अपने गौरव और प्रकाश में जागृत श्री कृष्ण है। मगर में क्या दखती हूँ कि लोग ध्यान भी नहीं करते हैं । यदि वे ध्यान करते हैं तो वे बातचीत नहीं करना चाहते। कई बार जब वो बातचीत करते हैं तो वे सोचते हैं कि वो भगवान बन गये हैं। सम्भाल की दृष्टि से मानव बहुत ही कठिन वस्तु है। श्री कृष्ण की तरह आपको पूरी नम्रता से बातचीत करनी चाहिए। रास में उन्होने राधा की शक्ति सब लोगो में हाथ पकड़ कर फैलाई। उनका बचपन, जहाँ उन्होने बहुत से दुष्टों को मारा, पूरा हो गया है। व्यस्क होने पर भी उन्हें अपने मामा को मारना पड़ा, वह भी हो गया। एक अन्य बात में सहजयोगियों के बारे में बताना चाहती हूं, हमने भारतीय शास्त्रीय संगीत आप लोगों में इसलिए चलाया है क्योंकि इससे चैतन्य लहरियां बढ़ जाती हैं। मगर पश्चिमी लोग स्वभाव वश जो भी कार्य करने लगते हैं वे उसकी तह में तब तक जाते हैं जब तक पूरी तरह से खो न जायें मै हैरान हूं कि कैसे लोग संगीत में खो जाते हैं। कोई उत्सव अवश्य होना चाहिए। संगीत के साथ वे सब पहले ही दूसरी दुनिया में हैं। यह सब मत करो। आप हर चीज की अति में चले जाते हैं । यह ठीक नहीं है। पूजा में भी, आप अति में चले जाते हैं। अति में जाने पर आप मध्य में नहीं रहेंगे, आप श्री कृष्ण के स्थान में नहीं रहेंगे। राजा बनकर वे क्या कार्य करें? यह समय संचार के लिए था। राजा बनने के बाद ही उनके अधिकतर गुण प्रकट हुए। इससे पहले तो वे एक के बाद दूसरे राक्षस को मारने में व्यस्त थे। उसंके बाद उन्होने द्वारका बनाई और लोगों से बातचीत का प्रयत्न किया। आपका कर्तव्य स्वयं को बनाना है और दूसरों के साथ श्री कृष्ण सम मधुरता से बातचीत करना है। पूरी समझ के साथ की क्या बेकार चीजें आस-पास हो रही हैं। एक बार जब आप यह समझ लेंगे तो उसे नहीं करेंगे। आप बहुत ही बुद्धिमान बन जायेंगे उन चीजों को जो चल रही हैं आप नहीं लेंगे। अगर आप साक्षी बन जायें तो आप देखेंगे क्या हो रहा है। हमें लोगों को नर्क में जाने से रोकना होगा। हमें एक वास्तविक सहज योगी का व्यक्तित्व विकसित करना है। की सृष्टि करते हैं। किसी के पास संगीत का संसार किसी के पास नृत्य का, अन्य के पास ऐसा संसार है जहां वे स्वयं का कोई अन्त नहीं देखते हैं। "हमारा श्री माता जी से विशेष सम्बन्ध है। यह बहुत सामान्य बात है मेरा कोई विशेष सम्बन्ध नहीं हो सकता। किसी का भी मेरे साथ कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। यह मैं आपको बहुत साफ तरीके से बताना चाहूंगी आपको इसका दावा नहीं करना चाहिए। परमात्मा आपको आशीर्वाद दें। का बहुत से विवाह होते हैं जो अचानक तलाक तक श्री कृष्ण पूजा प्रवचन (सारांश) 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt श्री गणेश पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश ) मास्को 11-9-1994 प्रेम से मुस्कराता हुआ आप देखते है तो उसके लिए आपके हृदय से प्रेम धारा बह निकलती है। पावित्र्य का सम्मान किये विना आप कभी प्रेममय नहीं हो सकते। प्रेम के बिना आप सत्य को नहीं जान सकते अबोध लोगों को प्रेम करने में कभी हम हिचकिचातें है और कभी हम घबराते हैं। अबोध व्यक्ति किसी प्रकार की हानि नहीं पहुचाते। माता पिता का बच्चों को पीटना मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं बच्चे अपनी अबोधिता में सभी कुछ करते हैं अतः आपको चाहिए कि करुणा भाव से उन्हें समझं | आज रूस में बहुत से जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी बच्चे है, आप सब क्योंकि आत्मसाक्षात्कारी है इस लिए बहुत से सन्त आपके यहां जन्म लेना चाहते हैं। परन्तु आपको स्वंयः भी अबोध होना होगा। जिन देशों में बच्चों का सम्मान नहीं होता वहां बच्चे जन्म नहीं लेना चाहते। उन देशो में ऋणात्मक (पतनोन्मुख) विकास है। परन्तु भारत जैसे देश में जहां बच्चों को बहुत प्यार किया जाता है, गरीबी होते हुए भी वहां बच्चे जन्म लेना चाहते है। बच्चे धन या भौतिक वस्तुओं को नहीं जानते वे प्यार को समझते हैं, यदि आपमे प्रेम नहीं है तो आप में श्री गणेश का प्रकाश नहीं हो सकता। जो मा अपने बच्चे को प्रेम करती है, वह बच्चे के लिए किये जाने वाले हर कार्य का आनन्द लेती हैं। परन्तु बच्चे को प्रेम न करने वाली मा को लगता है कि उस पर बहुत बोझ पड़ गया है। उससे यदि आप कारण पूछे तो वह कहेगी कि मुझे यह धौना है, यह साफ करना हैं, इस बच्चे की देखभाल करनी है आदि कहानियां परन्तु आत्म साक्षात्कारी माँ यह सब करने का आनन्द लेगी। वह बच्चों का सम्मान करेगी और उन्हें भी अपना सम्मान करना सिखाएगी। अपने बच्चों के प्रति कठोर होने की कोई आवश्यकता नहीं। बच्चे अत्यन्त संवेदनशील और विवेकशील होते हैं। सैकडों में से हो सकता है कि कोई एक बच्चा आपको खराब मिले। परन्तु बाद में अपने बड़ो से, विशेषकर माता-पिता और वातावरण से, सीखकर वे कष्टप्रद हो जाते हैं इसका अभिप्राय यह नहीं है कि आप अपने बच्चों को अनुशासित न करें, रोकें नहीं या उन्हें सिखाएँ नहीं। स्वंय पवित्र और धार्मिक बनना सर्वोत्तम है। गणेश नैतिकता का आधार हैं। जिस समाज में नैतिकता समाप्त हो जाए वह नष्ट हो जाता है चाहे उसमें जितना भी आर्थिक, धन सम्बन्धी या राजनैतिक बहुतायत हो। वे अन्दर श्री गणेश का निवास मूलाधार चक्र में है, मूलाधार पर नहीं। मूलाधार पर कुण्डलिनी का स्थान हैं। वे श्री गणेश की मां है जिन्हें हम गौरी कहते है। अब हम मानव चेतना के उस पड़ाव पर है जिसे चौथा आयाम कहतें है। श्री गणेश के बिना यह असम्भव है क्योंकि वे हमारे अन्दर अबोधिता (पावित्र्य) के प्रतीक हैं। शाश्वत होने के कारण यह अबोधिता कभी नष्ट नहीं होती. परन्तु हमारी गलतियों के कारण यह अच्छादित हो सकती हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् आपकी अबोधिता पुनः स्थापित हो कर प्रकट होने लगती है। आप पवित्र हो जाते है, आपका चित्त पवित्र हो जाता बिना आत्मसाक्षात्कार का प्रकाश प्राप्त किये आप किसी भी कर्म को नहीं अपना सकते चाह वह धर्म ईसा, मोहम्मद साहिब का हो या यहूदियों का। उच्च स्तर का होने के कारण ये पैगम्बर इस बात को महसूस न कर सकें कि मानव की स्थिति क्या है? बाइबल में लिखा है कि यदि आपकी आख अपराध करती है, अर्थात श्री गणेश के विरुद्ध जाती है तो आप इसे निकाल दें या यदि आपका दायां हाथ श्री गणेश विरोधी कोई कार्य करता है तो आप इसे काट डालें। मोजूज़ जब दस ध परन्तु का है। लेके आये तो उन्हें यह लगा कि यहूदी समाज, मंदिश आजकल की तरह अत्यन्त पतित है। चरित्र का पूर्ण अभाव है सहज ही एक मात्र मार्ग है जिसके द्वारा मानव पवित्र हो सकता है। श्री गणेश ही हमारे अन्दर आत्मा रूप है और वे पृथ्वी पर भगवान ईसा-मसीह के रूप में अवतरित हुए। परन्तु इतने महान अवतरणों के विरुद्ध बहुत सी उल्टी सीधी बातें हुई और लोगों ने अपने- अपने सम्प्रदाय बना लिये। कोई भी धर्म-ग्रंथ अन्य धर्म ग्रंथो से भिन्न नहीं है। उदाहरणतया मोहम्मद साहिब ने मोजूजू, ईसा की माँ का वर्णन किया है। अत: उन्होंने किसी भिन्न धर्म की स्थापना नही की। उन्होंने बताया कि सारे धर्म परस्पर गुंथे हुए हैं। परन्तु आज लोग ये नहीं मानते कि सभी धर्मों की उत्पत्ति आध्यात्मिकता के एक ही वृक्ष से हुई। वे केवल दूसरों से ही नहीं लड़ रहे परस्पर भी लड़ रहें हैं। परमात्मा के नाम पर बे निरीह लोगो की हत्यायें कर रहे है। अबोधिता प्रेम का स्त्रोत है। जब आप नन्हें बच्चों को मधुरतापूर्वक नाचते हुए देखते है तो आपके हृदय में उनके प्रति अगाढ़ प्रेम उमड़ता है। किसी बच्चे को यदि अपनी तरफ प। 10 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt से नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के रूप में आप अमेरिका को लें जो कि अत्यन्त वैभवशाली देश हैं, वहां क्या हो रहा है? 12 वर्ष के छोटे-छोटे बच्चे हत्याएं करते हैं और नशीली दवाएं बेचते हैं। पश्चिम के किसी अन्य देश में माता-पिता ही बहुत से बच्चों की हत्या कर देते हैं। जितने भी समृद्ध देश है उन सब में कुछ विशेष प्रकार की अनैतिकता है, वे अत्यन्त हिंसक एवं अहम् ग्रस्त हैं। अवोधिता अहम् का समाधान कर देती है। बच्चे से जब आप बात करते हैं तो उनकी मधुर तथा विवेकशील बातों को सुनकर आप आश्चर्यचकित रह जाते हैं । वे अत्यन्त स्नेह एवं करुणामय हैं। श्री गणेश एवं कार्तिकेय को एक बार उनके पिता ने कहा आप दोनों में से जो भी पहले पृथ्वी मां की परिक्रमा कर लेगा उसे इनाम मिलेगा। श्री गणेश ने सोचा कि कार्तिकेय तो अपने मोर पर बैठकर तेजी से जा सकते हैं। पर मुझे तो चूहे पर जाना है, मेरा क्या होगा? परन्तु वे क्योंकि विवेक के स्त्रोत है अत: विवेकपूर्वक उन्होंने सोचा कि "मेरी मां पृथ्वी मा से भी महान है।" अंत: उन्होंने अपनी मां की तीन बार परिक्रमा कर ली और वह इनाम उन्हें मिल गया। अबोध व्यक्ति अत्यन्त नम्र होता है, वह दिखावा नहीं करता। उदाहरण के रूप में श्री गणेश का वाहन चूहा है। परन्तु दिखावा करने वाले लोग बड़े-बड़े ऋण लेकर अपनी सामध्य से परे महगी कारें खरीदते हैं। यह अपवित्र लौगों की बीमारी है और लोग इसका अनुचित लाभ उठाते हैं पश्चिमी देशों में रूप रेखा बनाने वाले लोग हैं। वे हर चीज़ पर अपनी मोहर लगा देते है और इसके लिए सभी को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है। यहाँ तक कि लोग अपने कोट पर भी रूप रेखाकार के नाम का प्रदर्शन करते हैं । अत: दिखावा करने वाले इन लोगो का उद्यमी पूरा पूरा लाभ उठाते है। अबोध व्यक्ति अपने शरीर की, नये फैशन की या शरीर प्रसाधनों की अधिक चिंता नहीं करता। एक बार मेरी नात्नि ने तैराकी वेशभूषा पहने हुए एक स्त्री का फोटों देखा। वह उस फोटो से कहने लगी," जा कर अच्छी तरह से कपड़े पहनो नहीं तो मेरी नानी तुम पर बिगड़ेगीं।" अत: जब आप इन छोटे बच्चों को बातें करते हुए, बर्ताव करते देखते हैं कि वे कितने अबोध हैं, तो आप वास्तव में हुए आनन्द लेते हैं क्योंकि अबोधिता ही प्रेम एवं आनन्द का स्त्रीत है। प्रेम विहीन जब आप किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते तब आप उसकी आलोचना करने लगते हैं, उसके विषय में निर्णय देने लगते है और व्यर्थ की बातों में समय नष्ट करने लगते हैं। जैसे उस दिन जब मैं अति सुन्दर संगीत की सुन रही थी तो मैनें अपनी आखं बन्द कर लीं। संगीत वास्तव में अच्छा था और मैं इसमें खो गई। परन्तु कुछ महिलाएं संगीतकार की वेषभूषा पर और उनके हाथ चलाने की शैली पर टिप्पणियां कर रहीं थी, वे इन सब छिछली चीज़ों को देख रहीं थी परन्तु तत्च पर उनका ध्यान न था। अवोधिता तत्व को ग्रहण करती है और तत्व ही प्रेम है। अत: हमें गणेश जी की इस विशेषता को समझना है और इसे अपने अन्दर उतारना है। उनका पावित्र्य 'जो हमारे अन्दर विद्यमान है' का प्रकटीकरण होना चाहिए, मैं किसी सहजयोंगी के घर पर थी जहां लगभग 2.3 लोगो की एक सभा समाप्त हुई, मैं सबके जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। वह सहजयोगी रसोई में था जब वे सब लोग चले गए तो वे भागता हुआ आया और कहने लगा,"मां ये आपने क्या किया? सब लाग कहा चले गए मैने सबके लिए खाना बनाया है।" उसकी आखों में ऑसू आ गए। उसकी उदारता और करुणा को देखकर मैं अभिभूत हो उठी। अबोधिता में जब उदारता की जाए तो आपको पता भी नहीं होता कि आप क्या कर रहे हैं। आप कवल अपनी उदारता का अनन्द लेते हैं और दूसरे व्यक्ति कि प्रतिक्रिया को देखने की चिंता भी नहीं करते। हमारे शास्त्रो में ऐसे बहुत से लोगों का वर्णन मिलता है, जैसे श्री राम। वे जंगलों में गए जहा एक वृद्ध दन्तविहीन शबरी नामक महिला उन्हें मिली उसने श्रीराम को भेंट किए और निश्चलतापूर्वक कहा कि मैंने यह सब बेर चखे हैं और केवल मीठे बेर आपके लिए रखे हैं। भारत में प्राय: लोग दूसरे की मुह लगाई चीज नहीं खाते पर श्री राम ने ये बेर खाये। परन्तु लक्ष्मण जी बहुत विगड़े। शबरी जब श्री राम के मुंह में बेर दे रही थी तो लक्ष्मण का क्रोध और बढ़ गया। श्री राम ने कहा"इतने अच्छे फल मैने अपने जीवन में कभी नहीं खाए।" उनकी पत्नी सीता ने भी बेरों का आनन्द लिया। तब लक्ष्मण ने भी वे फल मांगे। शबरी से फल लेकर उनका आनन्द लिया। कभी-कभी हम अवोध बच्चों से बहुत अधिक लिप्त होने की गलती करते हैं। हम उन्हें बहुत अधिक महत्व है। श्री गणेश ही धर्म की नींव है। आप बच्चो को देखे. वे नहीं जानते कि झूठ किस प्रकार बोलना है। कभी-कभी तो वे ऐसी बातें कह देते हैं जो बहुत ही परेशान करने वाली होती हैं। माँ ने पिताजी से कहा कि आज जो व्यक्ति शाम को आ रहा है वह सूअर की तरह से खाता है। इस बच्चे ने ये बात सुनी थी और जब वह व्यक्ति आया तो उसे खाना खाते हुए दखकर वह बच्चा कह उठा, से नहीं खाता, आप क्यों कहती हैं कि वह सूअर की तरह खाता है। आपको झूठ नही बोलना चाहिए।" और मा को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। अपनी अंबोधिता द्वारा एक अबोध व्यक्ति अन्य लोगों की आलोचना और उन पर टिप्पणियों को कम कर देता है. क्योंकि एक पवित्र व्यक्ति वह चीजे नहीं देख सकता जो एक चरित्रहीन देख सकता है। बेर कुछ " मां, वह तो सूअर की तरह दे 11 श्री गणेश पूजा 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt देते हैं। अबोधिता बहती हुई नदी की तरह से है। एक ही जगह पर रोकने से जैसे पानी सड़ जाता है इसी प्रकार बहुत अधि कामुकता और लालच निकल जाते हैं क्योंकि आपका चित्त क लाडू प्यार से बच्चे बिगड़ जाते है। बच्चों का सम्मान अवश्य होना चाहिए परन्तु अवाछित महत्व उन्हें नहीं दिया है और न ही अपने हाथ काटने पड़ते हैं। आप वास्तव में पवित्र जाना चाहिए। सभी बच्चे एक से हैं। उनके भिन्न पक्ष हो सकते हो जाते हैं। श्री गणेश की तरह आपकी भी अबोध सन्तो की हैं। सर्वप्रथम वे कभी ऊबते नहीं। आप यदि अवोध है तो आप कभी महीं ऊबेगें। सदा आप सौन्दरर्य को देखेंगे। अकेले होने की स्थिति में भी आप आनन्द मग्न होंगे केवल बड़े व्यक्ति ही ऊब जाते है। मान लो आप हवाई अड्डे पर हैं कि महाराष्ट्र के लोग अत्यन्त अबोध हैं यह बहुत ही प्राचीन और आपका वायुयान देर से जाना है तो सभी बड़े व्यक्ति देश है और इस क्षेत्र के लाग श्री गणेश की पूजा करते हैं तथा परेशान हो जाएगे परन्तु बच्चे खेलने की कोई सीढ़ी आदि निश्छल हों गए हैं। आजकल दस दिनों के लिए वे गणेश की ढूंढ कर आनन्द लेने लगेंगे। हर चीज़ को एक विशिष्ट परिभाषा में बाध कर बच्चे स्वयं को दु:खी नहीं करना चाहते। में वे इसे समुद्र या नदी में प्रवाहित कर देते हैं। परन्तु यह मैने बड़े लोगो को हवाई अड्डे पर अत्यन्त ऊबे हुए देखा कोका कोला सभ्यता अब भारत में भी आ गई है, इसके प्रभाव है परन्तु बच्चे इधर-उधर दौड़ते हुए तथा अन्य बच्चों से मित्रता करते हुए दिखाई देते हैं। केवल अवोधिता द्वारा ही मदिरा पान करते हैं। ये सब जनता के गणेश हैं। अत: अपने आप अपने सीमित विचारों से ऊपर उठ सकते हैं। मैने पिछले दो प्रवचनों में मैंने उन्हें ऐसा न करने की चेतावनी दी अत्यन्त जाति बन्धनों में बंधे माता-पिता देखे हैं पर उनके है और बताया है कि यदि श्री गणेश नाराज हो गए तो भूचाल बच्चे पलक झपकते ही अन्य लोगों से मिन्नता कर लेते हैं | केवल अबोध व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। बिना रंग, चेहरे गणेश को जल में प्रवाहित करके नशे में धुत रात के समय और बालो कि चिंता किये अबोध व्यक्ति किसी का भी मित्र हो सकता है। ये सारी बातें उसके लिए अर्थहीन है, सतही और सहजयोगियों के अतिरिक्त सभी लोगों का दफन हो गया। हैं। इन व्यर्थ की चीजों की बच्चे चिंता नहीं करते, वे केवल व्यक्ति का हृदय देखते हैं। उसका हृदय यदि प्रेममय है तो के चारों ओर बहुत बड़ी खाई बन गई। लोग बचाव के लिए जाति, धर्म आदि की चिन्ता किये बिना बच्चे उसकी ओर केंद्र की ओर दौड़े, पर खाई में गिर कर उनकी मृत्यु हो गई। दौड़ते हैं। अबोधिता अहम् को समाप्त कर देती है। अबोध व्यक्ति किसी का पावित्र्य भंग करने का प्रयत्न करे तो अंततः श्री गणेश हैं उनका प्रभाव आखों पर पड़ने लगता है। आखो से पवित्र हो जाता है। आपको न तो अपनी आखे फोड़नी पड़ती तरह सृष्टि की गई है। अपनी पवित्रता का सम्मान करने का प्रयत्न करें। यह आपको युवा और प्रफुल्लित बनाये रखेगी। महाराष्ट्र में आठ स्वयंभुः गणेश हैं और मैने देखा है स्थापना कर रहें है। मिट्टी से वे गणेश बनाते हैं तथा बाद में लोग श्री गणेश के सम्मुख भद्दे -भद्दे गीत गाते हैं और आ जाएगें। परन्तु उन्हें विश्वास ही न होता था। तीसरे वर्ष जब वे लोग नाच रहे थे तो अचानक भयकर भूचाल आया वहाँ के सहजयोग केन्द्र को भूचाल ने छुआ तक नहीं। केन्द्र अबोधिता अत्यन्त शक्तिशाली है। कोई भी व्यक्ति यदि गणेश उसे कठोर दंड देते हैं जो लोग हृदय से श्री गणेश की पूजा नहीं करते वे असंतुलन के शिकार हो सकते हैं। दायीं और जा कर उन्हें प्राय: शारीरिक रोग हो सकते हैं और यदि उनकी झुकाव बायें को हो जाए तो वे मनोदैहिक रोगों के आक्रमक नहीं हो सकता। आक्रामकता यदि है तो यह अत्यन्त स्नेहमयी आक्रामकता होगी। जैसे एक बच्चा कहेगा," आप मेरे कपड़े इस बच्चे को क्यों नहीं परमात्मा! मैने इन पर इतने सारे पैसे खर्च किये हैं और सब वस्त्र दे डालना चाहते हो?" वह कहेंगा" ठीक है आप मेरे लिए एक बार फिर खरीद लेना परन्तु अभी इस बच्चे को मेरे वस्त्र दे दो।" अबोध बच्चों में स्वामित्व की भावना नहीं होती। अपनी वस्तुओं को दूसरे के साथ बाट लेने में वे आनाकानी नहीं करते। परन्तु यदि उन्हें ये सिखाया गया कि यह वस्तु तुम्हारी है और तुम्हारे पास रहनी चाहिए" तो बच्चों में स्वामित्व भाव आ जाता है। जीवन का आनन्द लेने के लिए बच्चों के साथ रहना, उन जैसा बनना और उनका आनन्द लेना बहुत अच्छा है। इससे हमारी अबोधिता का पोषण होता है। मैने देखा है कि सहजयोग में लोग अबोध बन जाते हैं। श्री गणेश जो कि आपके सिर के पिछले भाग में हैं और जो महा दे देते ?" आप कहेंगे " हे तुम शिकार हो सकते हैं। ये रोग असाध्य हैं। हमारे देश में कुछ नीच किस्म के लोग हुए हैं जिन्होने सिखाया कि योन द्वारा कुण्डलिनी को जागृत किया जा सकता है। वे तान्त्रिक बन बैठे। इन तान्त्रिकों ने मन्दिरों में सभी प्रकार के कुकृत्य किये। इन्हांने श्री गणेश का कामुकता द्वारा अपमान किया। उन सबका अब नाश हो रहा है। अत: श्री गणेश द्वारा आशिर्वादित किसी अबोध व्यक्ति को चुनौती देने का कभी दुस्साहस नहीं करना चाहिए। केवल आत्मसाक्षात्कार द्वारा ही आप अपने अन्दर श्री गणेश को जाग्रत कर सकते हैं। परमात्मा आप को आशिर्वादित करें। ০০ 12 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt होली तत्त्व 17-3-1995 आज होली है। आज की होली पहले से नौएडा के, फिर कोई और अपने को कहीं और बहुत भिन्न है। होली का, तत्त्व जानना चाहिए होली में अपने अंदर की गंदगी और दोष जलाकर हृदय शुद्ध करते ही जो प्रेम उमड़ आता है,उसके होना चाहिए। हम सब एक चैतन्य से सब तरफ चैतन्य के रंगों की बौछार हैं। समुद्र की बात करो, बूंद की नहीं। कोई होने से सब लोग मस्त हो जाते हैं। इसीलिए आपको कुछ बोल के परेशान करता है कोई बात सर्वप्रथम होली में अपने अंदर की बाधाएँ जलानी नहीं, उन्हें कहने दीजिए। वह सब सामने आता चाहिएं। । का सहजयोगी कहता है। हम सब एक हैं। हम में, कोई दिल्ली का, बम्बई का ऐसा फर्क नहीं हैं। हम सहजयोगी है, धीरे धीरे। हमारी शादी हुई थी तब हमारे यहाँ सौ से भी ज्यादा आदमी थे। हमनें कभी किसी चीज सहजयोग में राजनीति नहीं होनी चाहिए। पूरे समाज के लोगों में राजनीति की जो जबरदस्त पकड़ है उसके कारण सहजयोगी भी इसकी लपेट की परवाह नहीं की। कोई कुछ कहे कोई बात में आ जाते है। एक व्यक्ति जो पूरी तरह सहजयोग नहीं। साधु संत जैसे रहें, सब न जनाता हो, दूसरों को अपने इस दोषी स्वभाव से कुछ कह देता है और फिर दूसरों में इसका असर आ जाता है और वो भी इसे किसी और तक पहुंचा देता है। हैं, फ्लू की तरह। यह एक बीमारी है। यह फैलती जाती है। पहले जुमाने में औरते राजनीति करती थीं और आदमी लोग लड़ते थे, लेकिन अब उल्टा हो रहा है। कोई भी आदमी जो ऊचा उठना चाहता है उसे ऐसी हरकतों में नहीं उलझना चाहिए। की सेवा की। अब भी हमारे दोस्त हैं लेकिन हमारे पति के नहीं हैं। जब भी हम सब को खुश रखा। लखनऊ जाते हैं तो सब के सब सिर्फ हमें मिलने आते हैं। हमसे उन लोगों को बहुत लगाव है। हमारे पति को मिलने कोई भी नहीं आता, सब हमें मिलने आते हैं। निर्वाज्य प्रेम होना चाहिए। जैसे कुछ हवा सी चलती कोई कुछ कहे, बके, हमें उससे कोई मतलब नहीं। अगला जन्म तो हम सहजयोगियों को है नहीं, और अगर हो भी तो संत का जन्म रहेगा। इस जन्म का इसी जन्म में धोइये, स्वच्छ हो यह एक बड़ा भारी प्रेम है। में देखती हूं, जाइए। अगले जन्म में धोने का अवसर नहीं मिलेगा। मैं बोलती नहीं लेकिन सब जानती हू। सहजयोगियों जो भी कुछ धोना है अभी धोना. है, इसी जन्म में आपस में बैर नहीं होना चाहिए। यह मोह के कारण होता है। नारद मुनि की तरह सहजयोगी हो। संत का एक दूसरे को उलट पुलट चीजं बताकर आपसी बैर बढ़ाते जाते हैं। इस आपसी बैर के बढ़ने से प्यार का जाल टूट जाता है। हमें सहजयोग से ध्यार होना चाहिए और चाहिए। फिर भी यह चीज़ पहले से अभी कम है। में ताकि अगला जन्म हो भी तो वो दोषरहित जन्म रहेगा। | न आक्रामकता हममें हैं आक्रामक स्वभाव है। दूसरा, लोगों में बाधा भी है। इन दोनों को हम निकाल सकते हैं। सहजयोग में हमारे पास इसके मां से प्यार होना लिए उपाय हैं। यहाँ सब निकाल देना चाहिए। तीसरा, (हिपोक्रसी) पाखण्ड। अपने आप को बढ़ावा देकर लोगों के सामने पेश होना। अंदर है कुछ लेकिन अब लोग दूसरी तरफ जा रहे हैं। और, लोगों को बढ़ा चढ़ाकर बताना कुछ और। कोई कहते हैं हम दिल्ली के सहजयोगी हैं, कोई इससे हमें क्या फायदा? हम अपने अपको ध 13 होती तत्व 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt खा दे रहें हैं। अंदर से काट रहे हैं। अंदर और बाहर एक चीज़ होनी चाहिए। बगैर इन दोषों को होली में जलाए कोई फायदा नहीं। फिर वह कृष्ण की होली नहीं रहेगी। बदला, दोष, बाधा सब होली में जलाइए। ग्रुपबाज़ी, राजनीति सब जला दीजिए। एक ग्रुप एक जाति नहीं होना चाहिए। लकड़ी जलाकर स्वयं को सोना बनाओ। अपनी यह हमारे लिए ठीक नहीं है। एक ग्रुप बनाकर रहना ठीक नहीं। एक जाति के लोग अपना बना लेते हैं, यह ठीक नहीं है। अब हम सहजयोगी के दो मंत्र हैं। जो भूत बाधाओं से पीड़ित हैं बन गए हैं। हम किसी ग्रुप या किसी जाति के नहीं रहे। अपने ही लोगों को महत्त्व देना लेते हैं। इससे कोई फायदा नहीं। इसे हम खुद बेकार बात है। अपने ही जाति के लोगों को, की सहायता की जरुरत अपने ही इलाके के लोगों को आगे करना ठीक नहीं। जो अगुआ हैं उन्हें इस तरफ ध्यान देना चाहिए, इस ओर दृष्टि करनी चाहिए। उन्हें देखकर बाकी लोग भी वैसा ही बर्ताव करते हैं। यह सब होली में जलाएं। आप मुझ पर छोड़ दीजिए। होली में जलाने के. लिए सब लोग अपने अपने घर की लकड़ी देते हैं ताकि उस लकड़ी के जलने से उनका घर बाधारहित हो जाए। सहजयोग में यह लकड़ी हमारा शरीर है। अपने शरीर की क्षमा की शक्ति का बढ़ाओ। राइट साईड (आक्रामक ग्रुप स्वभाव) को कम करें। "हम्" और '"क्षम्" आज्ञा वह बाधा निकालने के लिए औरों का सहारा निकालें। हमें अब औरों नहीं। यह कहना चाहिए कि में सहजयोगी ह या मैं सहजयोगिनी हूं, बाधा दूर हो जाएगी। दूसरों को मत ढूंढो। बाधित लोगों को मत ढूढो। इससे बाधा बढ़ जाती है। वह शारीरिक हो या मानसिक हो उनका एक गुप बन जाता है। इसके लिए एक मंत्र है; बहुत बड़ा मंत्र "सबको माफ करो"। इसके बगैर उन्नति नहीं। हमें मां से मतलब हैं, सहजयोग से मतलब है। कोई अगर कुछ गुलत कहे से जानो, उनको बकवास करने दो। हमारा ख्याल इस तरफ होना चाहिए की इस गुलत बात को सुनकर हमारे अंदर कोई गुलत बात तो नहीं जा रही है? देखी है कि लोग मुझपर एक और बात मेंने अपना अधिकार जताते हैं। चर्चा, विवाद शुरु कर देते हैं। मैं देखती हं। तरंत स्वाधिष्ठान. पूरी तरह तो उसे सुबु्धि जकड़ जाता है। और वाद-विवाद का कोई अंत ही नज़र नहीं आता। तीन-तीन बजे तक बैठे रहते हैं। अरे भाई. हमने आपको समझाया आप बाधा ग्रसित हो, आपका घर शमशान के पास है उसे छोड़ दो। किराये का घर है उसे छोड़ने में क्या हर्ज है? लेकिन नहीं। उस तरफ उनका ध्यान नहीं, और अधिकार जताते जा रहे हैं हमने देखा है वाधा वाले सबसे आगे रहते हैं। बाधा चिपकती है। हम बुद्ध को जानते हैं और सबको मानते हैं, यह छोड़ दो। वैमनस्य से कोई लाभ नहीं। अपने अंदर के घटरिपुओं को जलाओ। हमें व्यक्तिगत तौर पर उन्नति हासिल करनी चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर। इसी से सम्पूर्ण समष्टी में बदलाव आएगा। एक सेब यदि खुराब हो तो पचास सेबों को होनी चाहिए। सहजयोग में नितांत खराब कर देता है। लेकिन सहजयोग में एक व्यक्ति, बाकियों की ठीक करता है-पचासों को। खुराब स्वभाव का औरों पर असर पड़ता है। परिवार में भी यह चीज हम देखते हैं। यदि परिवार होती है तो प्रोटोकॉल की तरफ ध्यान देना चाहिए। पत प्रोटोकॉल (नियम-आचरण) होना चाहिए। मां के प्रति श्रद्धी श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्वा के बिना चर्चा करने से दाहिनी विशुद्धि तुरन्त पकड़ी जाती है। प्रोटोकॉल का ख्याल करना चाहिए। जब भी गुलत बात में एक व्यक्ति भी खुराब स्वभाव का हो तो सब पर असर आता है। लेकिन सहजयोग में ऐसा नहीं है एक भी अच्छा सहजयोगी हो तो है मां जैसा अवतरण आज तक नहीं हुआ है। वह सबको ठीक करता है। यदि कोई गुलत व्यक्ति हो तो वह अपने आप निकल जाएगा। हम उसमें अपना चित्त डालने की जुरुरत नहीं। वह चीज़़ सबसे ज्यादा श्रीकृष्ण ने राक्षसों को मारा। श्री राम ने राक्षसों को मारा। लेकिन लोग मुझे कहते आपका कार्य महान है। आप में लोगों के अंदर स्थित राक्षसी प्रवृत्तियों को नष्ट करने की शक्ति 14 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt प्रतीकात्मकता से होली जलाओ। स्वच्छ हो ही नहीं उसकी प्रशंसा भी करते हैं। वैसे जाओ। मुक्ति में जो आनंद आ रहा है इसमें लोग तो हमें भगवान ही समझते हैं क्योंकि वे नाचो गाओ और सबको आनंदित करो। सहजयोग जानते हैं की शरीर का आराम, आराम नहीं है, की होली कृष्ण की होली है। आजकल तो लोग होली में भंग पीते हैं, श्रीकृष्ण क्या भंग पीते की आपसे से बहुत अपेक्षाएँ हैं। हमें उन अपेक्षाओं थे? भंग तो सिर्फ शिव शंकर पीते हैं। जिनको की तरफ ध्यान देना चाहिए। भी सहजयोग में रहना है उन्हें व्यभिचार त्यागना होगा। यही होली का महत्त्व है। वो ध्यान आत्मा की तरफ रहना चाहिए। उन लोगों और भी कई चीजे हैं जैसे कोई भी काम बगैर पूछे करने लगते हैं। मुझे पूछे बगैर काफी खाने-पीने को हम बहुत महत्त्व देते हैं। किसी चीजे की जाती हैं। इससे अंत में नुक्सान हो को जाता है। पूछना चाहिए। इसी में सबकी भलाई चीजों है। ऐसा क्यों होता है, इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए। असल में होली का तत्त्व यही है कि चाट कहा अच्छी मिलती है, मिठाई यहाँ अच्छी मिलती है, यहा ये, सारा चित्त इन्हीं में लगा रहता है। अस्वाद होना चाहिए। ये या वो। कहते हैं -श्री कृष्ण को लङ्ड् ज्यादा पसंद अपने आपको अंदर से साफ करना चाहिए। हैं और देवी को पूरणपोली। अब आप लोग भी मेरे लिए कुछ कुछ बनाकर लाते हो लोकिन मुझे मुलाका्त हमारे पूर्वज राजा शालीवाहन से हुई थी। इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं। अस्वाद होना चाहिए। अस्वाद में उतरना चाहिए। अब आप लोग इतने प्यार से मेरे लिए चीजें बनाकर लाते है वहाँ के लोगों को म्लेच्छ कहते हैं (जो मल हो इसीलिए मैं वो खा लेती हूँ। वो बात अग है। हा दूसरों को बनवाकर खिलाओ। ज्यादातर उत्तरी में आया है। तब राजा शालीवाहन भारत में लोगों का खाने में ध्यान ज्यादा है, फिर महाराष्ट्र में भी है और दक्षिण भारत में भी है। वैसे सभी जगह है। हमें लोग पूछते हैं, आपको क्या पसंद है? हमें तो याद भी नहीं आता कि हमें क्या अच्छा लगता है। येशु बहुत पहले कश्मीर आए थे तब उनकी तब उनको पूछने पर येशु क्रिस्त ने बताया "मुझे ईसा मसीह कहते हैं और जिस देश से मैं आया की इच्छा रखते हैं ) इसीलिए मैं आपके देश ने उनसे कहा कि वे अपने ही देश में वापस जाकर उन लोगों से कहें की वे "निर्मलम् तत्वम" अपनाए। सहजयोग का जो काम है यदि मेरे अकेले से हो सकता तो आप लोगों की जरुरत ही नहीं रहती। लेकिन यह कार्य आपके माध्यम से होना हैं। आप सब लोग सहजयोग के माध्यम हैं। आप सब जितने स्वच्छ रहेंगे उतना आप ईसा मसीह ने कहा था- "Hate sin and (बुराई से घृणा और बुरे love the sinner", सहजयोग के से प्यार करो) गुण देखिए, अवगुण देखिए। सहजयोग प्यार से ही बढ़नेवाला है आप अपने प्यार को बढ़ाइए। इस मामले में विदेशी गहराई श्रद्धा से प्राप्त होगी समर्पण से। अगर कहीं अच्छे हैं। वो कभी आपस में झगड़ते नहीं। हमें मोती हासिल करना है तो समुद्र की गहराई जो उन्हें मिले उसी में खुश रहते हैं। लेकिन में उतरना होगा। इसीलिए गहराई में उतरना चाहिए। हम हिन्दुस्तानियों का ऐसा नहीं है। यहाँ पर तो चार लोग एक बाथरूम इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब गणपति पुले जाते हैं तब Attached Bath. (संलग्न गुसलखाना) चाहिए। विदेशियों का ऐसा नहीं है। वो लोग अपने देश में खुद की मोटर रखते हैं, हवाई जहाजू से सफर करते हैं। हमारे जैसा खाना वे लोग खाते नहीं। उनका खाना अलग होता है। लेकिन जब वो यहाँ आते है हमारा खाना तक वो बड़े प्यार से खाते हैं और इतना लिए उपयुक्त साबित होंगे। यह आपकी गहराई पर निर्भर करता है। और गहराई आएगी कैसे? हिन्दुस्तानियों से अब देखिए जो आधे पैसे में टिकट प्राप्त हुआ और उन्होंने श्रद्धा से बैंकाक जाने की इच्छा करते ही उन्हें उसी टिकट पर बैंकाक जाने की स्वीकृति मिली। गहराई में उतरने से सब चीज अनायास प्राप्त हो जाती है। इसीलिए गहराई में उतरना चाहिए उसके बिना विदेशी यहां आ रहे थे उन्हें ा कोई फायदा नहीं। ा ০ होली तत् 15 ho 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt नव रात्रि पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( सारांश) कबैला-9-10-1994 सभी गणों के स्वामी हैं और अपने बेटें गणपति के माध्यम से माँ सारे गणों का संचालन करती हैं। प्रतिबिम्ब है और जगदम्बा भी आदिशक्ति का ही ये सब इतना सम्बद्ध है । जब हम मा के विरुद्ध अपराध करते हैं अर्थात चरित्रहीन हो जाते हैं और धर्महीन कार्य करने लगते हैं, तो क्योंकि वो माँ हं, आपको दण्डित करने में वे समय लगाती हैं। आप सहज धर्म को हृदय से समझते हैं, अन्दर से, यह सब मुझे आपको बताना नहीं पड़ता। आप जानते गणों में मध्य हृदय के माध्यम से उसकी सारी शक्तियों हैं कि ठीक क्या है और गलत क्या है। यदि आप अपने पिता विरोधी अपराध, जैसे डींग मारना, अत्याचार कुण्डलिनी ने आपको आत्म साक्षात्कार प्रदान किया है। नि:सन्देह कुण्डलिनी आदि शक्ति का अंश हैं। दो महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर उनका स्थान है। इस चक्र में ये सारी शक्तियां रखी गई हैं। अत: कल्पना कीजिए इनमें से कितनी शक्तिया अन्दर होनी चाहिएं। आप के शरीर के आस पास मौजूद सभी हृदयों (बायां, दायां) के मध्य के की अभिव्यक्ति होती है। यही गण आपको सुरक्षा, निद्रा, ऊर्जा एवं आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सभी निरन्तर कार्यरत रहते है। मा जगदम्बा के प्रति ये अत्यन्त समर्पित हैं तथा सदा उनके सम्पर्क में हैं। वे ब्रह्माण्ड की मां है; आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड की देख-भाल करने में उन्हें कितना व्यस्त रहना होता होगा। यह केन्द्र यदि दुर्बल हो गया है तो गण भी दुर्बल हो जाते हैं और इस दुर्बलता के कारण वे अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाते। मां का चक्र होने के कारण यह केन्द्र अति सूक्ष्म है। मां के प्रेम को समझ पाना असम्भव है। लड़किया विवाह के पश्चात जब मा बन जाती हैं तो उन्हें समझ आता करना, कटु शब्द बोलना आदि, करते हैं तो आपको तुरन्त दण्ड मिल जाता है। परन्तु वे क्योंकि मां है और करुणा की सागर हैं अत: दण्ड देने में वे देर लगाती हैं और व्यक्ति को सुधारने के लिए तथा अपना मार्ग दर्शन करने के लिए समय देती हैं। परन्तु दण्ड जब शुरू होता है तो आपको बहुत ही भयंकर किस्म की बीमारियां होने लगती है। यह सब भय के कारण होता है, जब कोई व्यक्ति आपको डराता हैं या आपके प्रति आक्रामक होता है। सताये हुए, त्रस्त एवम भयभीत व्यक्ति का विश्वास माँ से उठना शुरू हो जाता है। ऐसे में मध्य हृदय चक्र है कि उनके पालन पोषण के लिए उनकी माताओं की देखभाल होनी चाहिए। भयभीत व्यक्ति मा से दूर बायीं ओर को जा सकता है क्योंकि वे ही आत्म-विश्वास, साहस एवम् बहादुरी प्रदान करने वाली हैं तब वे समझ पाते हैं कि उनकी नकारात्मकता हैं। परन्तु आप भयभीत हैं या डर के साये में हैं तो आपको बायीं ओर फेंका जा सकता है और आप भयंकर तथा असाध्य रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं। धर्मविहीन, यदि आप वासनाओं में फंस जाते के लिए कार्य करती हैं। अत: विश्व की, आपकी हैं, तो भी यह मध्य मार्ग आपको बायीं ओर को फेंक देता है क्योंकि आप श्री माता जी के चरण कमलों में होने के योग्य नहीं होते। जब हम भयभीत उनकी विध्वंस शक्ति बहुत प्रकार से कार्य करती होते हैं तो हुृदय चक्र में हृदय-अस्थि दूरस्थ नियन्त्रण (Remote Control) की तरह सभी गणों को सूचना हम देवी के प्रति अपराध करते हैं तो हममें कैंसर, दे देती है कि आक्रमण होने वाला है। परन्तु यदि एडस आदि मनोदैहिक, शारीरिक रोग होने लगते हैं। स्वेच्छा से वासनाओं में फंस कर आप बायीं ओर परन्तु कुछ रोगो का सम्बन्ध गणपति से भी है। गणपति को जाना चाहेंगे तो ये केन्द्र चिन्ता नहीं करता। तब मत को कितना कष्ट उठाना पड़ा होगा? इसी प्रकार सहजयोगी जब गणों सम अच्छे सहजयोगी बन जाते से लड़ने के लिए गणों को कितना धैर्य, प्रेम तथा विवेक अपनाना पड़ा होगा! अत: जगदम्बा की सभी शक्तियां सभी प्रकार की नकारात्मकता को नष्ट करने तथा सहज विरोधी सारी नकारात्मकता को नष्ट करना जगदम्बा का संर्वापरि स्वभाव है। है। सर्वप्रथम हमें समझना आवश्यक है कि यदि 16 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt गण कहते हैं कि जो चाहे करो और जैसे चाहे आचरण करो। भिन्न प्रकार की बार्यीं ओर को जाने वाली ये गतिविधियां हैं। अमेरिका में एक बहुत पुराने सहजयोगी अपनी दुकान से बाहर आये। अपनी कार से ज्योही वे बाहर निकले वहां एक आदमी कटार लिए हुए बैठा था| उसने उसके मध्य हृदय में कटार घोप दी। इस व्यक्ति का खून बहने लगा। उसने बताया, " मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हुआ, मेरे अन्दर एसी ही मुझे आपको यह भी बताना है कि व्यक्ति को शक्ति आ गई कि मैंने उस व्यक्ति को पकड़ा और व्यर्थ की बातें करते हुए जिन्दा लाश की तरह से उससे लड़ने लगा तथा उससे कटार छीन ली। कटार का मुट्ठा उसके हाथ में था और कटार मेरे हाथ में आ गई और वह व्यक्ति भाग खड़ा हुआ। परन्तु इसे करें। देवी की सभी शक्तियां आप में अभिव्यक्त मुझे रक्त बहने की कोई चिन्ता न थी। मैंने अपने होने लगेंगी। निडर व्यक्ति को या साथी को बुलाया और हम आधा घंटा तक उस व्यक्ति की तलाश करते रहे।" वे पुलिस में नहीं गए। जब वे थाने गए तो पुलिस वाले हैरान थे क्योंकि उसकी पूरी कमीज़ रक्त में डूबी हुई थी। पुलिस को ध कका लगा कि आधा घंटा तक वे उस व्यक्ति की तलाश करते रहे। साहस देखिए। तब उन्हें हस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें टाके लगाये गए और वे ठीक हो गए यह उस व्यक्ति के चिन्ह हैं जिसे इस प्रकार की कोई भयंकर बीमारी नहीं हों सकती क्योंकि उसके मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का कोई मस्तिष्क और शरीर को इन शक्तियों का प्रक्षेपण करने भय नहीं हॉता। वह कहने लगा कि मैं कभी किसी देना चाहिए, वैसे हम यहां पूजा आदि सभी कुछ करने नहीं लड़ा और न ही कभी अपने बच्चे को चांटा के लिए हैं। शक्ति के होते हुए भी आपका मस्तिष्क मारा, मैं पहलवान नहीं हूं फिर भी मेरी समझ में कहता है कि यह ठीक नहीं है। इसके विषय नहीं आया कि कहां से ये शक्ति मुझ में आ गई लोगों ने बहुत सी कहानियों और चमत्कारों का वर्णन और मैं यह सब कर सका। इस प्रकार की बहुत सी कहानियां सहजयोगियों यदि आपने कोई गलती नहीं की है, यदि आप ठीक तथा सन्तों के विषय में हैं। उन पर जब किसी ने मार्ग पर हैं तो सदा आपकी रक्षा की जाएगी। अब आक्रमण किया तो इस प्रकार की भयानक व्याधियों से साहसपूर्वक अपनी रक्षा करने के लिए उन्होंने इस बात को याद रखें और इसमें विश्वास करें कि, आक्रमणकारी पर निडरतापूर्वक आक्रमण कर दिया। इस"मैं सदा सुरक्षित हूँ।" यह कार्य अत्यन्त कठिन बात पर विश्वास नहीं होता परन्तु प्रति दिन ऐसी घटनाएं क्योंकि हमारा मस्तिष्क हमें कहता है, "हे परमात्मा, होती रहती हैं। मुझे लोगों के पत्र आते रहते हैं कि उन्होंने किस प्रकार से साहसिक कार्य किये। यदि आपको देवी स्वयं की अभिव्यक्ति कर सकें। इसे इस प्रकार देवी में विश्वास है तो आप जान लें कि वे बहुत समझें। अब गण आपका पीछा कर रहे हैं, यदि किसी शक्तिशाली हैं। वे अत्यन्त विवेकशील हैं, यदि उन्होंने सेना का अगुआ ही डरपोक व्यक्ति हो तो अन्य लोग आपकी रक्षा करनी है तो वे इस प्रकार से आपकी रक्षा करेंगी कि आप समझ भी न पायेंगे। अनुभव से इस विश्वास का विकसित होना भी आवश्यक है। यह विश्वास विकसित किया जाना चाहिए कि किस प्रकार सदा आपकी रक्षा की गई, सहायता की गई और किस प्रकार आप कठिनाइयों से बच पायें। परन्तु यदि जीवन के आकाश में बादल छाये देखकर चिन्तित या परेशान हो जाएं तो इसका अर्थ है कि आप अभी तक दुर्बल हैं। यदि वास्तव में देवी की पूजा करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार की चिन्ता या भय नहीं होना चाहिए। आपको मा से दूर ले जाती श्री माता जी जो भी आप कर रहे हैं उसे निडरतापूर्वक करें। साथ नहीं घूमते रहना चाहिए। परन्तु यदि आपको कोई कार्य करना है तो स्पष्ट विचारों और बिना किसी भय के अपनी नौंद सुख सुविधा की कोई चिन्ता नहीं होती। निडर से यह अभिप्राय नहीं कि आप सभी को आघात पहुचाएं या उल्टी सीधी बातें करते फिरें। इसका अर्थ यह है कि आप निडर हैं और यदि कोई आप पर आक्रमण करता है तो आप अपनी रक्षा कर सकते हैं। मैंने यह कहानी आपको इसलिए सुनाई क्योंकि यह सुरक्षा आन्तरिक नहीं थी जैसे कि देवी रक्षा करती है परन्तु वास्तव में उसने अपनी रक्षा स्वयं की। अत: शक्ति उसके माध्यम से कार्य करने लगी आपको अपने किया है। आपको किसी चीज़ से नहीं डरना चाहिए। यह बात याद रखें कि, "आपकी सदा रक्षा की जाएगी। क्या होगा!" निडर होना प्रथम तथा सर्वोपरि है ताकि क्या करेंगे। इस प्रकार आप आत्म-निर्भर हो जाते हैं । 17 नव रात्रि पूजा 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt मैंने देखा है कि कुछ बीमार व्यक्ति हर हाल में प्रेम करें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कुछ लोग अपने मुझे मिलना चाहते हैं क्योंकि वै स्वयं पर निर्भर नहीं बच्चे से बहुत लिप्त हैं। सहज में आने से पूर्व ये होते। वे अपना इलाज कर सकते हैं मेरे पास आने व्यक्ति अपनी स्वार्थपरता ओर बच्चों और अपनी पत्नी की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं होती। ऐसे बहुत से के प्रति निर्लिस्सा के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु अब वो उदाहरण हैं जहां लोगों ने प्रार्थना मात्र से स्वयं को रोग मुक्त किया तथा दूसरों का भी इलाज किया। परन्तु विश्वास जब परिपक्व नहीं होता तब वे सोचते हैं कि मैं उनका इलाज करूं, उन्हें छुऊं आदि-आदि। कि निर्लिप्सा आपकी शक्ति है, साक्षी भाव से हर अब आप आत्म-निर्भर हो जाएं, आप न केवल अपनी चीज को देखें। सहायता कर सकते हैं, परन्तु अन्य लोगों की भी सहायता कर सकते हैं। परन्तु यदि आपको स्वयं में थोड़े ही दिन हुए हैं।" ये भी न सोचे कि फलां विश्वास नहीं है कि आप अपनी रक्षा कर सकते व्यक्ति मुझसे बहुत ऊचा है और मैं बेकार हूं। स्वयं हैं, अपना ईलाज कर सकते हैं तब हर समय माँ आत्मदर्शन करें और देखें कि आपको कितनी शक्तियां को यह कार्य करने पडते हैं। बच्चा जब छोटा होता है तो आप उसका पोषण होगा उतना ही अधिक आप नम्र हो जाएंगे। किसी करते हैं, देखभाल तथा सभी कार्य उसके लिए करते भी तरह का कोई भय नहीं होना चाहिए, आपके पास अपनी पत्नी और बच्चों से गोंद की तरह चिपक गए हैं। मैं यह नहीं कह रही कि आप अपने परिवार या बच्चों का त्याग करें परन्तु मैं फिर कहती हूं अब ये मत सोचें, "मुझे सहजयोग में आये अभी प्राप्त हो गई हैं। जितना अधिक ज्ञान आपको प्राप्त हैं परन्तु जब वह बड़ा हो जाता है तो वो यह नहीं यदि बहुत सा धन हो तो आपको डर हो सकता चाहता कि उसकी मा उसे दूध पिलाए। इसी प्रकार हैं। यदि आप बहुत अच्छे पढ़े-लिखे हैं तो भी आपको सहजयोगियों को देखना चाहिए कि मैं कितने सालों ईष्ष्या का डर हो सकता है, गहने इत्यादि आपके पास से कार्य कर रही हूं। आपको गरिमापूर्वक उन्नत होना हों तो चोरों के आने का डर हो सकता है। आप है और परिपक्व होना है ताकि आप स्वयं कार्यों को यदि राजनैतिज्ञ हों तो आपको डर हो सकता है कि ठीक प्रकार से कर सकें। मां ने आपको आशीर्वादित आपकी अनुपस्थिति में कोई आपका स्थान न ले ले, किया है। उन्होंने सारी शक्तियां आपको दे दी है। परन्तु धैर्य रूपी शक्ति प्राप्त करना अत्यन्त कठिन हो जाती है। है, आपको अपनी माँ की तरह से धैर्यवान होना होगा। आप इसे कठिन समझते रहें परन्तु इसके लिए प्रयत्न है? आपकी शक्तियों को कौन चुरा सकता है? आपकी करते रहें। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूं जो चैतन्य लहरियों को कौन चुरा सकता है? यह बात सांचते हैं कि वे आध्यात्मिक रूप से कुछ भी नहीं सोचिये, और आपके प्रेम को कौन चुरा सकता है? तथा उन्हें कोई भी उपलब्धि नहीं हुई। यह पूर्णतया क्योंकि प्रेम तो आत्मा से आ रहा है। यह शाश्वत् पलायन है। आप अपने व्यक्तित्व से ही पलायन करना है और इसका बहाव निरन्तर है। आत्मा से जब चाहते हैं। केवल देखें, यदि आप अन्न्तदर्शन करते हैं। ता आप समझ जाएंगे कि आप एक वास्तविक शक्तिशाली आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में विकसित जो अन्धकार में महसूस होनी चाहिए। हो चुके हैं। आपको कोई छू नहीं सकता। आप सभी कुछ कर सकते हैं। आप अपनी देखभाल कर सकते साक्षी स्थिति प्रदान कर देती है। आप सभी कुछ हैं और अन्य लोगों को भी आश्रय दे सकते हैं। इन सारी शक्तियों का प्रकटीकरण आप में हुआ अभी तक आप इसे समय और अन्य लोगें पर छोड़ देते हैं, स्वयं पर नहीं। आज तक किसी ने भी अपने सभी शिष्यों का योग दिव्य शक्ति से नहीं कराया, क्योंकि यह दिव्य शक्ति से नहीं कराया, क्योंकि यह दिव्य शक्ति यह है कि किस प्रकार अन्य लोगों से परन्तु सहजयोग में आने के बाद बात बिल्कुल भिन्न आपके आत्म-साक्षात्कार को कौन चुरा सकता आप दूर चले जाते है तब आपको वे सब बातें महसूस होती हैं जो अन्धकार में महसूस हौती हैं मां की एक अन्य शक्ति यह है कि वे आपको साक्षी भाव से देखते हैं, आप में अथाह धेर्य आ जाता है, जो भी होता रहे, ठीक है, क्रोध नामक एक भयानक अवगुण से आपको छुटकारा प्राप्त हो जाता है और इससे आपको अत्यन्त शान्तिमय साक्षी अवस्था प्राप्त हो जाती है कि आप दिनों-दिन युवा होने लगते हैं। कुछ सहजयोगियों को मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया था। इस वर्ष जब मैं उनसे है। परन्तु 18 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt मिली तो उन्हें पहचान नहीं पाई। अचानक उनकी आयु दस वर्ष कम लगने लगी। आपका व्यक्तित्व अत्यन्त शान्तिमय हो जाता है क्योंकि आपकी माँ लहरिया है, आप इन्हें महसूस कर सकते हैं। परन्तु आपके साथ होती है, दृढ़ विश्वास कि वे सदा हमारे इस नई चेतना का उपयोग यदि आप नहीं करते साथ है, हमारी रक्षा करता है। परन्तु अब क्योंकि तो सहजयोग में आने का क्या लाभ है? वह सब हम बड़े हो गए हैं, इसलिए उन्होंने हमें सारी शक्तियां छोड़ने के लिए जब मैने उससे कहा तो वह बहुत दे दी हैं। तो डरने की क्या बात है? पर ये विश्वास परेशान हुआ था। मैने पूछा कि तुम्हें धन कि क्यों अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए, ज्योतिर्मय विश्वास होना चाहिए, अन्धविश्वास में आपका विश्वास तो होता परन्तु शक्तियां नहीं होतीं। ज्योक्तित प्रकाश में आप में विश्वास भी होता है और शक्तियां भी ऐसा होने पर आप अपने धर्म में तेजी से बढ़ने लगते हैं और चित्त आप पर है इसके कितने अनुभव आप कर अपने गुणों से आप भयभीत नहीं होते। सभी जगह, चुके हैं। सभी लोगों से आप सहजयोग की बात करते हैं और यह कार्य होता है। एक बार जब आप में भय समाप्त हो जाएगा तो पूरी तस्वीर आपको स्पष्ट दिखाई देने लगेगी क्योंकि आप दृष्टा बन जाएंगे। किस प्रकार सी०एस. लुइस अपने मानसपटल पर हमारा जलूस देख सके। किस है। एक दिन नाव पर बैठ कर सहजयोग के कार्य प्रकार विलियम ब्लेक हमारे विषय में भविष्यवाणी के लिए वह दूसरे टापू पर जा रहा था। अपनी कर पाये। किस प्रकार सन्त ज्ञानेश्वर पस्यादान' के विषय में लिख पाये जो कि सहजयोगियों का वर्णन हर समय वे लोगों को विश्वस्त करने का प्रयत्न करते रहे। किस प्रकार रविन्द्र नाथ टैगौर गणपतिपुले जाना देख सके। जब लोगों का विश्वास ज्योतिर्मय में रहें। मैं माँ के कार्य के लिए जा रहा हूँ और हो जाता है तब इस प्रकार की घटनाएं घट सकती वे रास्ते पर मुझे कष्ट देने की हिम्मत न करें। है।। ज्ञानमय विश्वास में आपकी माँ आपको एक अन्य महान शक्ति प्रदान करती है, यह है विवेक बुद्धि। कोई मेरे पास आया और कहने लगा "यह व्यक्ति बहुत अच्छा है परन्तु किसी ने भी इसकी में हो जाते हैं, इसके लिए आपको कुछ कहना नहीं देखभाल नहीं की। ये बहुत विद्वान और महान व्यक्ति है।" मैने कहा ये फोटों मुझे दिखाइए। फोटो देख कर मैने कहा, नहीं, इसे सहजयोग से पूरी तरह दूर मौसम सुहावना हो गया। मैने नहीं कहा और भयंकर रखिए।" उसके फोटो ग्राफ से मैं चैतन्य लहरियों ठंड भी हो सकती थ स को अनुभव कर सकी। एक अन्य व्यक्ति ने आ कर मुझे बताया कि कुछ नाइजिरियन लोगों ने उसे हुई थी और लोगों को यह खंभे नीचे की ओर पत्र लिखा है कि वह 35 हजार डालर बैंक में खींचने पड़े थे ज्यों ही लोगों ने मेरी जय-जयकार जमा करें और हम भी लाखों डालर बैंक में जमा करंगें। तब वह इसका एक तिहाई हिस्सा ले सकता है। "मैंने उसे बताया कि इससे परे रहे। यह सब लिए आते हैं। यह कष्ट यदि न आएं और आप घोटाला है।" जब वह अमेरिका वापस गया तो उसने इन्हें वश में न करें तो आप समझ ही न सकेगें पाया कि यह वास्तव में घोटाला था। मैंने उसे बताया था कि चैतन्य लहरियां बहुत गर्म है। आप में चैतन्य आवश्यकता है। इस अ्रकार शनै: शनै: आप अनुभव कर सकते हैं, उस अनुभव को हृदय में बिठा सकते हैं। और उस पर विश्वास कर सकते हैं। आप क्या थे? अब आप क्या बन गए हैं? श्री माता जी का यदि है तो आप शक्तिशाली बन जाते हैं। अन्ध विश्वास के कारण आप शक्तिविहीन है। यदि आप विकसित, परिपक्व, आत्मसाक्षात्कारी बन जायें तो ये सारी शक्तियां कार्य करंगी। भारत में एक मछुआरा है जो कि स्नातव्य आपमें ज्योतमय विश्वास झापड़ी से जब वह बाहर आया तो उसने देखा कि काले बादल छाये हुए है और विष्णुमाया क्रीड़ा कर रही हैं। तट पर खड़े हो कर उसने विष्णुमाया से कहा "कृपा करके इन बादलों से कह दो कि सीमा कल्पना करें, वे नाव में बैठे जा कर सहज का कार्यक्रम किया और वापिस घर आ गए। जब उसने अपनी झोपड़ी में प्रवेश किया तब वर्षा आरम्भ हुई। अपने ज्योत्तिमय विश्वास द्वारा पांचों तत्व आपके वश %3D पड़ता। शक्तियां इतनी महान हैं कि वे स्वतः ही कार्य करती हैं। आज जब पूजा होनी थी तो अचानक थी। यह वास्तविकता विश्वास बन जानी चाहिए। पिछली बार यहां भयंकर वारिश करनी शुरु की बारिश रुक गई। यह अनुभव आपको परिपक्व करेगा। यह कष्ट भी परिपक्व बनने के 19 नव ग्रत्रि पूजा 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt कि विश्वास क्या चीज़ है। तट पर खड़ा हुआ व्यक्ति आपमें एक वास्तविक महायोगी के गुण विकसित हो कहता है कि मुझे तैरना नहीं आता। परन्तु यदि आप उसे पानी में डाल दें तो वह तैरने लगता है और जान जाता है कि उसे तैरना आता है। इसी तरह से आप भी नहीं जानते कि आप क्या बन गए हैं? आप नहीं जानते कि आप तैराक बन गए हैं। आप यह भी नहीं जानते कि आप अन्य लोगों की रक्षा कर सकते हैं। अभी तक आप यहां-वहां की छोटी-छोटी चीज़ों ने भी कष्ट उठाए। आप लौगों को कष्ट नहीं उठाने में व्यस्त हैं। जब आप यह जान जाएंगे कि आप क्या बने हैं तो आप अत्यन्त तुच्छ नज़र आने वाली सगीत एवं आनन्दमय जीवन में प्रवेश कर जाते हैं। अपनी तुच्छता को पूर्णतया परिवर्तित कर देंगे और पूरे आकाश पर छा जाएगें। यह शक्ति जो आपमें व्यक्ति को समझाना होगा कि जिन मिथ्यावादों में है, आपके अहम् को बढ़ावा नहीं देगी। यह आपको विनम्र, अत्यन्त प्रेममय और करुणामय बनाएगी। आप अपनी शक्तियों से अन्य लोगों को चोट नहीं पहुचाएगें। यह पहचान है। यह मा का प्रेम है और मा के सुखी आदि-आदि। यह सब मिथ्या भ्रम हैं। इन सब प्रेम की शक्ति है। जिस व्यक्ति की मा अत्यन्त स्नेहमय और भली हो वह अत्यन्त अच्छा बन जाता 1 यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। नवरात्रि पूजा अत्यन्त शक्तिशाली पूजा है, क्योंकि यह आपकी शक्ति के स्रोतों को खोलती है और उनका प्रकटीकरण करती है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है और आज प्रात: काल से ही मैं चैतन्य लहरियों के साथ बह रही हूँ। यह चैतन्य लहरियों के झरनेसम था। पूरा समय मैं रिक्त होगें तो भूत या भविष्य, अभिलाषाएं आकांक्षाएँ प्रकाश देख रही थी। इसी कारण मैने अपनी आँखे बन्द कर लीं। अन्यथा मै आप लोगों को न देखकर तो प्रेम के अतिरिक्त, शाश्वत स्वभाव के प्रेम के कुछ और देखती रहती। परन्तु अब आप स्वयं प्रकाश हैं, प्रकाश अन्धकार से डरता नहीं। यह अन्धकार को दूर कर सकता है। आप यह प्रकाश हैं। पर आप अपने विषय में अति रूप धारण किया और किस प्रकार प्रेम से अपने तुच्छ विचार लिए हुए हैं। मैं नहीं कहती कि आप गुरुओं जैसे बन जाएं और दो सींग लगा कर बड़ी-बड़ी बातें करते घूमे। आपकी नम्रता, करुणा, मधुरता तथा हृदयों में प्रवेश कर गए हैं। यह झूठ-मूठ के गुरु सदव्यवहार ही आपका श्रृगार है। गलती करते हुए जहाँ भी मैं लोगों को देखती हैं उन्हें समझाती हूं, परन्तु में उन्हें इतनी अच्छी तरह से बताती हूँ कि वे जान जाते हैं कि वह उनके हित के लिए हैं। पूरा व्यक्तित्व और स्वभाव परिवर्तित हो जाता है पूरी पर छाए रहते हैं वे आपके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित मुखाकृति एवं गतिविधि परिवर्तित हो जाती है। बातचीत हैं। जब यह बात समाप्त हो जाएगी तभी वास्तव में करने की शैली स्वत: ही ऐसे परिवर्तित हो जाती है जैसे अन्दर की पूरी मशीनरी परिवर्तित हो गई हो। होगा अन्यथा वे स्वयं तो चले जाएंगे पर आपके मस्तिष्क कि जाते हैं। महायोगी की यह अवस्था पहले भी कई लोगों ने प्राप्त की। परन्तु इसके लिए उन्हें बहुत चक्करदार रास्तों से गुजरना पड़ा। हृदय से उन्हें सब कुछ त्यागना पड़ा। पूर्ण नि्लिप्सा के साथ कहीं दूर जाकर साधारण भोजन पर उन्हें जीवन यापन करना पड़ा। बुद्ध और ईसा ने भी कष्ट उठाए। अवतरण होते हुए भी उन्हें कष्ट उठाने पड़े। राम और कृष्ण पडते, इसके विपरीत कष्टों से छुटकारा पाकर आप सहजयोग में निरानन्द का आनन्द लेने के लिए वह रह रहा है उन्हें त्यागना आवश्यक है। कुछ लोगों में मिथ्या विचार होते हैं कि हम अति गरीब हैं या अति धनवान, हम अत्यन्त दुखी हैं या अत्यन्त भ्रमों से पूर्ण रिक्तता ही पूर्ण रिक्तता ही पूर्ण आनन्द है। रिक्तता आनन्द से परिपूर्ण हो उठती है। तब आप किसी से कोई आशा नहीं करते और आपकी यह आन्तरिक रिक्तता आपको करुणा एवं प्रेम में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करती है। किसी हांडी में यदि पहले ही कृुछ भरा हुआ हो तो आप इसमें क्या डाल सकते हैं? आन्तरिक रूप से यदि आप और असत्य आपमें न आएगें। यदि आप रिक्त हैं अतिरिक्त आप किसी चीज़ से नहीं भरते। आप जानते हैं। कि देवी की सभी बारतं अत्यन्त गहन एवं सूक्ष्म होती हैं। किस प्रकार उन्होंने माँ का भक्तों की देखभाल की। किस प्रकार राक्षसों तथा नकारात्मकता से युद्ध किया। परन्तु अब राक्षस आपके आपके मस्तिष्क में घुस गए हैं भंयकर पुस्तकों के माध्यम से बहुत सारी बुरी चीजें आ रही हैं जो सदा आप पर आक्रमण करती रहती हैं उन राक्षसों का वध भी कर दिया जाए फिर भी वे आपके मस्तिष्क उनकी वध हो सकेगा। उनसे छुटकारा पाना तभी सम्भव 20 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt में अपने भूत छोड़ जाएंगे। गलत लोगों के अनुसरण हैं पर इसलिए कि हम प्रेम को बाट नहीं पाते। करने तथा गलत पुस्तकों को पढ़ने से यह सारी नकारात्मकता आई है। सहजयोग में आने के पश्चात् भी कुछ लोग आपको पथ-भ्रष्ट कर सकते हैं। ऐसे कोई पैसा या इनाम नहीं दिया। किस कारण से आप व्यक्ति को क्षमा कर देना चाहिए। वह व्यक्ति तो हो सकता है कि सुधर जाए पर अकस्मात् उभरे उन मिथ्या विचारों में आप फंसे रह सकते हैं। करुणा, प्रेम, भयहीनता, साहस और पूर्ण रिक्तता सहजयोग में आप इसलिए बांटते हैं क्योंकि आप ही गुण हैं। इस रिक्तता में आपको यह चिन्ता नहीं सामूहिक हैं। आप सामूहिक बन जाते हैं, अत्यन्त होती कि आपने क्या प्राप्त करना है, कितने लोगों श्रेष्ठ व्यक्ति बन जाते हैं। आप सोचते हैं, "मै यदि को इकट्ठा करना है, कितने लोगों को सहजयोगी बनना है? स्वत: ही यह सब कार्यान्वित होता है। परन्तु आपने न तो इसकी इच्छा करनी है और न ही उसके लिए उत्कठित होना है। नकारात्मक और लोगों को कार्य करते देखती हूँ तो मुझे अवर्णनीय बेकार के लोगों के पीछे हमें नहीं दौड़ना। परन्तु वास्तविक रूप में अच्छे लोगों को हमें सहज में ही मराठी संगीत कबैला में आ पाया और कार्यान्वित उस समय एक नए व्यक्तित्व का जन्म होता है। यह नवा व्यक्तित्व कार्य करता है। हमने आपको सहजयोग में इतना परिश्रम करते हैं। आप सहजयोग क्यों फैलाते हैं? क्योंकि आप अपने आनन्द को बांटना चाहते हैं। इसके बिना आप रह नहीं सकते । परन्तु इतना आनन्द प्राप्त कर रहा हू तो अन्य लोग क्यों ने करें, क्यों न लोग भी उस आशीर्वाद को प्राप्त करें जिसे मैं कर रहा हूँ।" स्वत: ही जब मैं आप आनन्द प्राप्त होता है। सामूहिक चेतना के कारण अवश्य लाना चाहिए। अपने आप नकारात्मक लोग हो रहा है। सहजयोग से चले जाएंगे। एक ही झटके में बह चले जाएंगे। वे सहजयोग में इसलिए नहीं रह सकते क्योंकि उनमें इसकी योग्यता ही नहीं है। मा की सामूहिकता कार्य करती शक्तियां प्राप्त करने की योग्यता उनमें नहीं है। अत: यह सब अत्यन्त सूक्ष्म और सुन्दर ढंग से घटित से अधिक भाई-बहन बनाना चाहते हैं उनकी सहायता हो जाता है। किसी भी कार्यक्रम में मैं देर से जाती ताकि बेकार लोग वहाँ से चले जाए और उनमें से कुछ थोड़े ही दिनों में गायब हो जाते हैं। उनके दर्शाती है कि आपके हृदय में सामूहिकता पनप रही हृदय में कुछ नही उतरता। वे कुछ नहीं समझ पाते है और इसी कारण आप अकेले हिमालय में बैठकर अत: गायब हो जाते हैं। जो बच जाते हैं, वे वास्तव में सत्य साधक होते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार की सहायता करना चाहते हैं। यह पहचान है कि किस प्राप्त हो जाता है। यह प्राकृतिक चयन घटित होता है। और जिस प्रकार लोग सहजयोग में आते हैं और हैं। और किस प्रकार आप सहजयोग का प्रचार करना चले जाते हैं यह अत्यन्त दिलचस्प बात है। सहजयोग में यह आम बात है। आपको परेशान नहीं होना चाहिए। अब यदि रूस से बहुत से लोग सहजयोग में वे सारी शक्तियां बह रही हैं। आपमें प्रज्जवलित ज्योति आएं पर स्विटजरलैण्ड से उतने न आएं तो आपको है जिसे आप अधिक से अधिक फैलाएं और आप चिन्ता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब हम न तो आश्चर्यचकित रह जाएगे और सन्त तुकाराम की तरह रूसी हैं और न स्विस। हम सहजयोगी हैं हम चाहे से कहेंगे कि, "मैं धूल के अणु की तरह से छोटा रूसी हों, भारतीय हों या अफ्रीकन हों जब तक हूँ फिर भी गगन की तरह से विशाल हूँ" आपका हम सहजयोगी हैं हमें प्रसन्न रहना चाहिए। प्रेम को व्यक्तित्व ऐसा ही है| जब हम परस्पर बांटना चाहते हैं तब हमें सहजयोगी का अभाव खलता है, इसलिए नहीं कि हम स्विस नए लोगों की बातचीत और नई चेतना यहाँ है। यह नया है क्या? ये नई सामूहिकता है जब यह है तब आप इसे फैलाना चाहते हैं। यह एक अन्य प्रकार की भूख है कि आप अधिक करना चाहते हैं ताकि वे पूजाओं पर आ सकें और सहजयोग का आनन्द नहीं ले सकते। आप अन्य लोगों प्रकार मा के प्रेम की जड़ें आपके हृदय में लग गई चाहते हैं। आप अपनी मा की महान ज्योति बनें। आपमें परमात्मा आपको आशीर्वादित करे। ० 21 नव रातरि पूजा 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt मास्को सार्वजनिक कार्यक्रम परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) 12 सितम्बर 1994 माध्यम से आप आत्मसाक्षात्कारी बन जाएंगे। जैसे है वो है। हम इसे बदल नहीं सकते। यह किसी ईसा ने कहा है कि आपको पुर्नजन्म लेना होगा, सर्वप्रथम हमें यह जानना है कि सत्य जो परन्तु लोगों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। पर लादा नहीं जा सकता। आपको यह मांगना हैं धर्म को मानने वाले लोग अतः हम देखते भी परस्पर लड़ते रहते हैं। वे एक दूसरे का सम्मान नहीं करते। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं पड़ता है। बिना आपकी इच्छा के यह आप पर लादा नहीं जा सकता। परन्तु यह अब अन्तिम निर्णय का समय है। आप यदि नर्क में जाना चाहें तो जा सकते हैं और यदि स्वर्ग में जाना चाहें तो भी जा सकते हैं। यह मात्र आपकी है कि धन व सत्ता में लिप्त होना परमात्मा विरोध गतिविधि है। सत्य की खोज करने वाले को इच्छा है। यही शुद्ध इच्छा है। त्रिकोणाकार पवित्र समझ लेना चाहिए कि धन अस्थि में आपके उत्थान की शक्ति है। यह आप की प्राप्त नहीं कर सकते परमात्मा धन को नहीं सबमें है और आप सबकी अपनी है। परन्तु यह आपकी शुद्ध इच्छा की शक्ति है। मैं ऐसे बहुत से लोग देखती हूँ जो यह सोचते हैं कि वे देने से आप सत्य समझते, धन की उन्हें कोई परवाह नहीं। उत्थान आपका अधिकार है। इस सर्वव्यापक शक्ति का साक्षात्कार करना आपका अधिकार है। इसे प्राप्त आ गया है। ऐसा आपको अपने अस्तित्व की वह स्थिति प्राप्त हो करने पर बहुत अच्छे जा रहे हैं, वे अत्यन्त सन्तुष्ट और करने का समय प्रसन्न लोग हैं। जिन्हें अन्य लोगों की कोई चिन्ता नहीं। अत: हमें सूझ-बूझ अपनानी पड़ती है। हमें जाएगी जो अत्यन्त शक्तिशाली होगी प्रगल्भ होने यह समझने का विवेक धर्मों से, ऊपर उठ कर सन्तुलन तक हमें पहुंचना है। परन्तु वे धन और सत्ता लोलुप हो जाते हैं । यही समस्या है कि जब हम धर्म की ओर जाते हैं, तो इसे न पा सकेंगे। यह मूर्खो के लिए हैं तो निराश हो जाते हैं। लोगों को आत्माभिमुख भी नहीं है। अब हम चौराहे पर खड़े हैं। हर होना चाहिए कि सभी के साथ-साथ यह अत्यन्त करुणामय है। यदि आप वास्तव में सत्य साधक हैं तो आप इसे प्राप्त कर लेंगे, परन्तु यदि आप पाखण्डी या अहंकारी होना होगा। उन्हें अपना आत्मसाक्षात्कार खोजना होगा। देश में अनगिनत समस्यायें हैं। रूस में भी हैं: इन समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको मानव का परिवर्तन करना होगा जब तक मानव समस्याएं उसके साथ लगी रहेंगी। यह परिवर्तन घटित होना ही होगा। यह पूरे विश्व को परिवर्तित कर देगा और व्यक्तिगत स्तर पर भी, शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का समाधान कर देगा, तथा यह आपके, परन्तु, ऐसा न होने पर लोगों का विश्वास समाप्त हो जाता है। परिवर्तित नहीं होता यह अपैज्ञानिक है। अपने मस्तिष्क को खुला रखकर आपने स्वयं देखना है कि परमात्मा है या नहीं। केवन आत्मसाक्षात्कार द्वारा ही आप जान पाएंगे कि परपात्मा है। सर्वव्यापि दिव्य शक्ति है जिसे आपने अपने मध्य नाड़ी त्त्र पर अनुभव करना है। आपके लिए आत्मसाक्षात्कार पा लेने आपके देश के, एवम् पूरे विश्व के हित में होगा। समय आ गया है व्यक्ति को यह समझ का समय आ गया है। अपनी ही शक्ति के 22 ए नाध 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt जाए तो होता है उसे आप त्याग देते हैं। कुण्डलिनी जागृत शक्ति करने की शक्ति आपमें होने के कारण आप अन्य लेना चहिए यदि यह कार्यान्वित हो आप स्वयं दिव्य प्रेम की इस सर्वव्यापक को अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर सकेंगे। पहली बार आप इसे महसूस करेंगे और ी भी सहायता कर सकते हैं। आप अपने प एवं अन्य लोगों के विषय में जान सकते पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप आनन्द के सागर में कूद जाते हैं, तब आपको विश्वास करना होगा कि इस प्रकार कि शक्ति है। यदि आप ईमानदार हैं तो आपको अर्धात् आप समाधि विश्वास करना होगा । की अवस्था में होते हैं। आनन्द, प्रसन्नता और अप्रसननता से भिन्न है। हमारे अहं की जब सन्तुष्टि होती है तो हम प्रसन्न होते हैं। परन्तु अहम् को चोट लगने पर हमें दुख पहुंचता है। सिक्के के ये दो पहलू हैं। परन्तु आनन्द एकमात्र है। सबसे बड़ी बात जो होती है वह यह है कि पूर्ण सत्य को आप अपनी अंगुलियों के सिरों आका जो अनुभूति होती है वह अत्यन्त दिलचस्प है। सर्वप्रथम आप अपने अन्दर से शान्त हो जाते हैं। जो भी कुछ आप देखते हैं वह आपको साक्षी रूप में नाटक की तरह से प्रतीत होता है। अपनी समस्याओं से बाहर निकल कर आप अपनी समस्याओं को देख सकते हैं और पुर जान जाते हैं। आप यदि सत्य को जान जाते तब इनका समाधान कर सकते हैं। विश्व की अधिकतर समस्याएं चक्रों की खराबी के कारण हैं। ये सब समस्याएं मानव से आती हैं। यदि हैं, और आप सभी एक ही तरह से सत्य को समझते है, तो किस प्रकार का वाद-विवाद हो सकता है? कोई झगड़ा, युद्ध आदि नहीं रहता किसी तरह से आप चक्रों को ठीक करना सीख परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने का समय लें तो आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं आ गया है, और परमात्मा आपकी देखभाल करते का समाधान कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त आपका चित्त ज्योतिर्मय हो जाता है है। आपको उनसे जुड़े रहना होगा। यह जुड़े रहना ही योग है, जो कि अत्यंत स्वचालित है और आपमें बना हुआ है। आपको अपना हृदय खोलना होगा और आप इसे करने ।र और आपका मस्तिष्क लालच और कामुकता विहान, इसका पूरा त्र और आप स्वत: ही वास्तविक रूप से धर्म परायण हो जाते हैं। किसी को आपसे कुछ कहना नहीं मात्र प्राप्त कर लेगें। पड़ता। आत्मा के प्रकाश में आप जान जाते हैं कि क्या गलत है और जो भी कुछ विध्वंसकारी शत यि थ ता कुड र रट ि] की ति ट 23 का मास्को सार्वदनिक कार्यक्रम টি क 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt दिवाली पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ईस्ताम्बूल (तुर्की) 6-11-1994 दिवाली का अर्थ है दीपों की पंक्तियां भारतवर्ष ही बात कहते हैं कि आपको सभी कुछ समर्पित म प्राचीन उत्सव है। नक्कासुर का वध. करने के पश्चात् वर्ष की सबसे अंधेरी रात्रि कर देना है। का यह अत्यन्त दिवाली के अन्तिम दिन बहन-भाई मिलकर में दिवाली मनाई गई थी। आधुनिक समय में पवित्र एवम् संरक्षक सम्बन्धों के लिए प्रार्थना करते यह अत्यन्त प्रतीकात्मक है, क्योंकि जहां तक चरित्रहीनता का सम्बन्ध है, यह आधुनिक समय सबसे बुरा है। हम इसे घोर कलियुग कहते हैं, सच्चरित्र समाज की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। पूर्णतया अन्धकार। यही कारण है कि इतने सारे संकट है। इसी के कारण से बहुत से लोग प्रकाश को खोज रहे हैं। अज्ञानवश लोग समझ नहीं पाते कि वे क्या करें? इस समय हज़ारों वास्तीविक में नियमाचरण बनाये। उन्होंने कहा कि कई भी साधक जन्म ले चुके हैं इसी कारण यह कार्य स्त्री यदि कामुक दृष्टि से पुरुष की ओर देखे हुए उत्सव को मनाते हैं। ऐसा मात्र ये दर्शाने के लिए होता है कि दीपक जलाने के पश्चात् चरित्रहीनता आजकल का महानतम अन्धकार है, लोग यह भी नहीं समझते कि उनके पारस्परिक सम्बन्ध क्या हैं? मोहम्मद साहिब ने स्त्री के विषय मुझे सौंपा गया था कि अज्ञानान्धकार को हटा तो उसे आधा गाड़ कर पत्थरों से मार दिया जाना चाहिए। ऐसा यदि होता, तो मै नहीं समझ यह कार्य सुगम नहीं है क्योंकि सत्य विरोधी पाती, कि अमेरिकन स्त्रियों का क्या होता। आधुनिक कर दिवाली की सृष्टि करूं। सारी आसूरी शक्तियां एक ओर हैं और दूसरी मानव सर्वसाधारण मानव से भी कहीं अधिक पतित ओर आपकी साधना का लाभ उठाने वाले झूठे है क्योंकि हर समय उसे कुछ न, कुछ विध्वंसक लोग हैं। सर्वप्रथम तो लोगों को पता ही नहीं चाहिए। कि वे क्या खोजें। यह सब झूठे गुरु धन संचालित हैं तथा अपने झूठ को बेचने का प्रयत्न कर रहें हैं। बगौटा दूरदर्शन पर किसी ने मुझसे पूछा कि साम्प्रदायों और इस प्रकार की अन्य वस्तुओं नहीं देते उनके मस्तिष्क में कुछ नहीं घुस सकता, मुझे लगा कि आत्मसाक्षात्कार दिये बिना मानव से किसी भी अच्छी चीज के बारे में बात करना सुगम नहीं है। जब तक आप उन्हें आत्मसाक्षात्कार के विषय में आपका क्या विचार है? यह सत्य भाषण उपदेश तो केवल मानसिक स्तर तक ही है कि बहुत से कुटिल, भयानक ्तथा अपराधी लोग स्वयं को आध्यात्मिक कहते हैं। गलती तो उनका अनुसरण करने वालों की है। एक दुष्चरित्र रात्रि में हमें बहुत से दीपकों की आवश्यकता और बेईमान व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता। गुरु को कुछ मांगना नहीं चाहिए, उसे लालची नहीं होना चाहिए। ये सारी बातें शास्त्रों में लिखी हुई की हांडी होती है। यह शरीर, मस्तिष्क और दिखाई रहेंगे। आत्मसाक्षात्कार ही विश्व को बचाने का एकमात्र मार्ग है। विश्व के इतिहास की अन्धकारमय धी। मझे मानव तथा उसकी समस्याओं के विषय में अध्ययन करना पड़ा। भारत में हमारे यहां मिट्टी हैं। परन्तु कोई भी पढ़ने का कष्ट नहीं करता कि गुरु में क्या गुण होने चाहिए? वे बस एक देने वाला सभी कुछ अन्दर से हांडी की तरह से है। प्रेम और करुणा इसका तेल है। कुण्डलिनी, ना 24 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt शुद्ध, इच्छा, बाती है और आत्मा चिंगारी है। सर्वप्रथम हांडी को ठीक होना होगा। हांडी में तेल को संभालने की शक्ति होनी चाहिए, वह इसे रिसने यह प्रकाश क्षतविक्षत हो सकता है। अन्य छिद्र है। बन्धन जिन्हें अहम् एक उत्तरदायित्व विवेक द्वारा दूर किया जा सकता है, न दे। अहम् तथा बन्धन दो अत्यन्त समस्याप्रद छिद्र है। धर्म, वंश या जाति आदि के बन्धन जिनसे हम अपनी रचना करते हैं, ये सब व्यर्थ हैं, गन्दे बन्धन हैं। इनमें कोई वास्तविक्ता नहीं, ये सब बेकार हो जाते हैं। भूत बाधाओं के रूप में यह कार्य करते हैं और व्यक्ति पूर्णतया अन्धा हो जाता। सहजयोग में आने के पश्चात् भी हैं। यह जिम्मेवारी की भावना कहीं आपको सहजयोग ईसा से, मुसलमान मोहम्मद साहिब से तथा अन्य लोग अपने पुराने बन्धनों से चिपके रहते हैं । एक ही व्यक्ति में वे इन सबका संगठन नहीं देख सकते। व्यक्ति को समझना चाहिए कि अब उसे उन्हें यदि अहम् का आश्रय मिल जाये तो अत्यन्त भयानक हो सकते हैं। यह प्रकाश अग्नि बन है और सहजयोग के घर को जला सकता सकता है घर जलाने हैं। प्रकाश ज्योति देने के लिए होता के लिए नहीं। सहजयोग में यदि अहम् है तो आप स्वयं को इसके लिए जिम्मेवार समझ सकते ईसाई शनै: शनै: का संचालक होने का विचार न देदे। आप इतने आक्रामक हो जाते हैं कि लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि वह व्यक्ति कितना सामान्य था और कितना उद्दण्ड हो गया है आप सहजयोग के कार्यभारी नहीं है। सरकारी कर्मचारी होने चाहिएं परन्तु वे मालिक बन बैठते हैं। अत: सहजयोग में पूर्ण विवेकशील सूझबूझ होनी चाहिए। प्रकाश प्राप्त हो गया है। आप आत्मसाक्षात्कारी हैं, द्विज बन गए हैं। सभी असत्य आपको त्याग देने हैं। यदि आप पूर्णतया साक्षात्कारी हैं तो आप स्वत: ही इन्हें दूसरा भाग तेल है जो कि स्वभाविक अन्तर्जात तथा आनन्ददायी है। करुणा को पवित्र होना होगा देगें, आपको बताने की कोई आवश्यकता आत्मा स्वतः ही अपने उत्तरदायित्व मैने बहुत से ऐसे सहजयोगी देखे हैं जो अगुआओं नहीं रहेगी। को महसूस करती है कि उसे प्रकाश देना है। को कष्ट देने का प्रयत्न करते हैं। अगुआ का विरोध करके वे सहजयोग में बाधा-डालने का प्रयत्न करते हैं। उनसे सहजयोगी होने की अपेक्षा की जाती है पर वे यह नहीं समझते कि यदि उनकी करुणा पवित्र होगी तो वो अगुआ के कार्य इसे मात्र बताना होगा कि कृपा करके प्रकाश प्रदान करो, यह शाश्वत प्रकाश है इसे कोई समाप्त नहीं कर सकता। गीता का एक श्लोक है, "इसे कोई मार नहीं सकता, इसका नाश नहीं कर सकता इसे यदि आप अन्दर उड़ेल लेना चाहें तो भी आप ऐसा नहीं कर सकते, यह इतना शक्तिशाली की सराहना करेंगे क्योंकि अगुआ इतना करुणामय कार्य कर रहा है। पवित्र करुणा का लालच प्रलोभनों प्रकाश हैं। यह शाश्वत है या नहीं इसका सत्यापन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। व्यक्ति को अगुआ से प्रेम करना चाहिए तथा उसके कार्य की सराहना आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ करनी चाहिए। करुणा कभी अपवित्र नहीं हो सकती आप कर सकते हैं। अध्यात्मिकता के इतिहास में बहुत लोगों को वे इतनी सुन्दर ज्योति है। जब आप इस शाश्वत प्रकाश के वाहक हैं तो किस प्रकार यह मूर्खतापूर्ण, से होनी चाहिए कि कोई आपकी करुणा पर संशय परन्तु इस करुणा की अभिव्यक्ति इतने अच्छे ढंग गन्दे और व्यर्थ के बन्धन आप पर स्वामित्व ने कर सके। बहुत समय पहले मुझे बताया गया था कि भारतीय हवाई पत्तनों पर लिखा हुआ था सीमा शुल्क अधिकारियों को न चूमे।" आधुनिक युग में व्यक्ति किसी स्त्री को तो चूम सकता है परन्तु स्त्री किसी पुरुष को नहीं। फुटबाल के आत्म दर्शन करने लगेंगे कि यह शाश्वत प्रकाश है तो सारे बन्धन जमा सकते हैं? जब आप भगा देंगें। आपको स्वतन्त्रता है। आपको यदि यह शाश्वत प्रकाश चाहिए तो आप इसे ले लें अन्यथा दिवाली पूजा 25 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt खेल में भी वे परस्पर गले नहीं मिल सकते, सहजयोग में आने की कोई आवश्यकता नहीं। आपको एक दूसरे का वे केवल हाथ छू लेते हैं। अब मैने देखा है, कि गोल करके व्यक्ति इतने उ्तेजित हो जाते हैं कि वे मैदान से बाहर दौड़ पड़ते पवित्र होना होगा। जो भी कुछ उपलब्ध्ियां आपने प्राप्त की हैं वे आपके साथ जुड़ी हुई हैं। एक अन्य चीज़ जिसका वचन आपको दिया गया है, वह है आनन्द के अनुभव का आशीर्वाद। हो सकता है कि आप किसी दुर्घटना से बचा हैं, उनकी समझ में नहीं आता कि क्या करें? सहजयोग में पुरुष दूसर पुरुष है उसे गले लगा सकता है, इसमें कोई बुराई लिए जाने पर आश्चर्यचकित हों। सभी आशीर्वाद नहीं। पुरुष स्त्रियों को तथा स्त्रियां पुरुषों को न छुएं| यह क्या मूर्खता है? आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं कर सकते। एक महिला अपने से बहुत कम आयु के पुरुष को छू सकती है और एक पुरुष अपने से बहुत अधिक आयु कि महिला को करुणा में शालीनता का होना को चूम सकता का अनुभव करते हैं। आप भी करें। सर्वप्रथम यह निराकार रूप में स्तर पर कोई भी जान सकता है कि विचार क्या है? बाद में होती है इस न यह भाषा वन- जाती है। निराकार को यदि में आप पकड़ सकते हैं तब इसे जानते है। परन्तु आपको बहुत सा चित्त लगाना होगा। आपकी कुण्डलिनी यदि आपके चक्रों की खराबी के कारण उतना ही आवश्यक है जैसे शरीर में सुगंन्ध का। अपनी करुणा की अभिव्यक्ति हम किस प्रकार कार्यान्वित नहीं हो रही तो आपको कहना है कि करते हैं? अब सहजयोग में राखी बहने। और राखी भाई हैं। हमें समझना चाहिए कि हम करुणा के लिए राखी भाई और बहने हैं धन के लिए आप हैं, आप हैं," "त्वमेव साक्षात, आप ये न कहें "आप ही परमपूज्य हैं," आप कहें "आप अपवित्रता गणेश हैं" इससे आपके चक्रों की सारी नहीं। राखी सम्बन्धों की अभिव्यक्ति परस्पर सुरक्षा धुल जाती है। आपके बन्धन और भी ठीक हो की भावना से करनी चाहिए। जाते हैं। तब आप किसी कार्य का श्रेय नहीं करुणा इतनी आनन्ददायी होती है कि इसमें लेते, आपको नहीं लगता कि आप कुछ कर रहे धन या किसी अन्य प्रकार के बन्धन नहीं होने हैं और आपका पूर्ण व्यक्तित्व एक पूर्ण यंत्र में परिवर्तित हो जाता है। तब आप अपने कार्य को है। अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए और अन्य सभी कार्यो को परमात्मा के कार्य के रूप में देखते हैं। इस प्रकार आप ज्योतिर्मय इस प्रकार आप शान्ति और आनन्द के दीप बन जाते हैं। आज हम सहजयोग के चाहिए क्योंकि इनसे आनन्द का अन्तु हो जाता क आप कोई चीज़ उपहार के रूप में दे सकते हैं यह आनन्द प्रदान करती हैं। परन्तु कभी ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप यह उपहार अपनी भी हो जाते हैं । बहन को तो दे दें परन्तु अपनी पत्नी कां न दें। करुणा की बूंद को पेड़ के अन्दर प्रसारित होकर भिन्न हिस्सों को भिन्न प्रकार से, आपेक्षित रूप से प्रेम देना होगा। महत्वाकांक्षा है तो यह केवल सहजयोग के विषय शब्दों में नहीं हो सकता। यह दीपक ध्यान धारणा में होनी चाहिए, ताकि आप विनम्र हो जाएं सहजयोग प्रकाश की दिवाली का उत्सव मना रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या कह, कितने आनन्द की स्थिति में मैं हू। आनन्द की सभी राखी आपमें यदि तरंगे मुझे अभिभूत कर रही हैं। इसका वर्णन से प्रज्जवलित है, और इस प्रकाश में आप अत्यन्त का एक वचन हैं कि आपका जीवन आनन्द सुदृढ़ बन सकते हैं। से परिपूर्ण हो जाएगा। आपको अपने आंखें निकालने और हाथ काटने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि आपमें परमात्मा आपको धन्य करें। बहुत अधिक छिद्र (कमियां) हैं तो आपको 26 শc