ॐ ১ चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VII अंक 7-1995 आिवेश सरहभ ्छ ्र आ FECSE रार क रा Sरि 'सारा बीवन्त कार्य सर्व- शक्तिमान परमात्मा द्वारा किया जाता है। आप तो एक बीज भी अंकुरित नहीं कर सकते। अंकुरित होने के लिए बीज को पृथ्वी माँ में डालना आवश्यक है।" परम फूज्य माताजी श्री निर्मला देवी *ं छ] R ी चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी (1995) खण्ड VII, अंक 7 -: विषय-सूची :- सत्-चित्त-आनन्द (नई दिल्ली) 15-2-1977 1. 1 आदि शक्ति पूजा (जयपुर) 10-12-1994 2. 9. निर्मल विद्या (राहुरी) 31-12-1980 3. 18 श्री यांगी महाजन : सम्पादक श्री विजयनालगिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स 35. ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110 060 फोन : 5710529, 5284866 मुद्रित "सत्-चित-आनन्द'" परम पूज्य माता श्री निर्मला देवी का प्रवचन नई दिल्ली, 15 फरवरी 1977 क्या आप सब लोग मेरी हिन्दी समझते हैं? यदि मैं अंग्रेज़ी बोलू तो क्या आप समझ सकेंगे? मैं अंग्रेज़ी भाषा के विरुद्ध नहीं हूँ। परन्तु आत्मा की भाषा तो संस्कृत ही है। अंग्रेजों ने कभी आत्मा की चिन्ता नहीं की। अत: हमें वही भाषा उपयोग करनी है जो आत्मा के विषय में बोलती है, अंग्रेज़ी भाषा पर्याप्त नहीं है। अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के पास अनुभव नहीं है क्योंकिक अभी तक वे गहनता में नहीं उतरे। हम अत्यन्त पुरातन मानव हैं। परमात्मा के भी न कर पाएंगे। अपनी महत्वपूर्ण मान्यताओं की उपेक्षा करके हम उन विदेशी मान्यताओं को स्वीकार करते हैं जो कि उतनी व्यापक नहीं है। यह समग्र नहीं हैं। सभी कुछ अपने में समेटे हुए नहीं हैं। अत: मैं आपसे प्रार्थना करुंगी कि हिन्दी भाषा भी सीखें। अंग्रेज़ी में दिये गए मेरे एक प्रवचन का मराठी अनुवाद किया गया। कितनी गरिमा थी इसमें और अंग्रेज़ी में यही प्रवचन कितना निर्जीव था! हो सकता है कि वह मेरे अंग्रेजी भाषा के अल्पज्ञान के कारण ज्ञान की खोज़ हमारी संस्कृति रही है। संस्कृत के माध्यम से ही हमें ज्ञान प्राप्ति हुई, क्योंकि संस्कृत वस्तुत: देववाणी है। इसके अतिरिक्त जब कुण्डलिनी उठती है तो यह चैतन्य लहरियाँ छोड़ती हैं। जिनसे एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है जो कि भिन्न चक्रों पर देवनागरी के रूप में प्रतिष्ठित होती है। यदि समय मिला तो इस विषय पर विस्तृत रूप से समझाऊंगी। संस्कृत भाषा या देवनागरी में उच्चारण किये गए मन्त्र चक्रों को अधिक प्रभावति करते हो। के विषय मं वात करेंगे। ' अब हम 'सत्-चित्त्-आनन्द यहां फिर मुझे संस्कृत शब्द उपयोग करने पड़ रहे हैं । 'सत्-चित्त-आनन्द', 'पराचेतना', स्वंव्यापक शक्ति हैं। चित्त ही चतना है। इस समय चेतन अवस्था में आप मुझे सुन रहे हैं। हर क्षण आप चेतन हैं, परन्तु हर क्षण समाप्त हो कर भूतकाल में परिवर्तित ही रहा है। हर क्षण भविष्य से वर्तमान में आता है। परन्तु इस क्षण आप चेतन अवस्था में है और मुझे सुन रहे हैं। एक विचार उठता हैं और इसका पतन होता है। विचार को उठते हुए तो आप देख सकते हैं परन्तु इसके पतन की आप नहीं देख सकते। एक विचार के पतन और दूसरे विचार के उठने के मध्य कुछ अन्तराल होता है जो 'विलम्ब' कहलाता है। यदि कुछ क्षणों के लिए आप के विचार रुक सर्के तो आप चेतनमन तक पहुँच जाते हैं और यहीं सत्-चित्त-आनन्द का अस्तित्व है। आप कह सकते हैं कि 'सतु-चित्त -आनन्द' मनोदशा या मनस्थिति है जहां कोई विचार नहीं होता, परन्तु आप चेतन होते हैं, 'निर्विचार'। यह प्रथम अवस्था है। जिसमें आप पराचेतना में प्रवेश करते हैं। कुछ लोग सोचेंगे कि आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके वे भी आदि शंकराचार्य की तरह कुछ सिद्धियाँ पा , परन्तु यह सम्भव नहीं। कुछ लोग इन्हें पा भी सकते हैं। सभी के लिए यह सम्भव हैं। अत: यदि आप संस्कृत नहीं सीख सकते तो भी हिन्दी भाषा तो अवश्य सीखें। ध्वनि युक्त भाषा होने के कारण हिन्दी चैतन्य स्पंदन करती है। आप यह भाषा सीखने का प्रयत्न करें। हिन्दी मेरी मातृ भाषा नहीं है, मेरी मातृ भाषा मराठी है। पर मैं हिन्दी बोलती हूँ क्योंकि में इसका महत्व जानती हूँ। थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी का ज्ञान भी मुझे हैं। अत: हिन्दी का ज्ञान होना अच्छा होगा मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मराठी में बोलना मंरे लिए सुविधाजनक है। थोड़ी बंगाली भी मैं जानती हूँ। आत्मा की बात तमिल, साद बहुत तेलेगू या इस योग भूमि की किसी अन्य भाषा में भी की जा सकती है। भारत योग का एक महान देश है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि भारत भूमि का कण-कण चैतन्यित है। वैज्ञानिक यह सब नहीं समझ सकतें। पश्चिमी मान्यताओं का अन्धानुकरण जब हम करने लगेंगे तो अपनी लगे परन्तु नहीं। निर्विचारिता आपकी प्रथम अवस्था है। आप निर्विचार सारी महानता से हाथ धो बैठेगें। निसन्देह: यह नष्ट तो न होगा। परन्तु लक्ष्य प्राप्ति के लिए हम इसका उपयोग 1 हैं कि वर्तमान से समाधि को प्राप्त कर लेते हैं। यह तभी घटित होता है जब आपकी कुण्डलिनी आपके आज्ञाचक्र को पार कर लेती है अर्थात जब कुण्डलिनी आपके तालू क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है और आपका चित्त छू लेता है। वास्तविकता (सत्) 'मिथ्या' से अलग हो जाती है। आप द्वि-व्यक्तित्व वन जाते हैं। इस स्थिति में आप सत्य को कौन थी। ऐसे लॉग सदा यही सोचते भूतकाल कहीं महान था मैंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया फिर भी मेरा और यद्यपि अपने पूर्वजन्समों में भूतकाल वास्तव में आज से कहीं अधिक महान था सामूहिक अवचेतन में गया हुआ व्यक्ति जब वास्तविकता को इस प्रकार दखता हैं तो मेरी ओर अत्यन्त आकर्षित होता है। पराचेतन स्तर पर गए हुए व्यक्ति भी यदि बाई ओर को अर्थात भूतकाल में चले जाएं तो उनके साथ भी यही घटित होता है। व्यक्ति यदि दाई और को, भवष्यि में चला जाए सत् विन्दु को असत्य से अलग करने लगते. हैं। जैसे कर दही और पानी को अलग करते हैं इसी प्रकार वास्तविकता का आरंभ होता है। कवल इस स्थिति में आप दूध में चूना डाल सकते है कि कुण्डलिनी जागृत हो गई है। जैसे-जैसे कह तो वह मुझे प्रकाश के रूप में देखता है। ऐसे व्यक्ति मुझे पंच तत्वों में, झरनों के रूप में या हिम शैलों (lce ये घटित होता है हमें इसकी भिन्न अवस्थाओं को समझना मैं आपको इसकी विस्तृत जानकारी दे रही हूं। परन्तु Berg) के रूप में देखते हैं। वं 'तन्मात्रा' अर्थात तत्वों के आकस्तिमक सार ( Casual Essence of the Elements) को भी देखने लगते हैं। इससे उन्हें मेर विषय में विश्वस्त होने में सहायता मिलती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति का विश्वास मुझ पर आप लोगों से कहीं अधिक हो जाता है। बहुत से तान्त्रिक जानते हैं कि मैं कौन थी। वे मुझसे हैं और मेरे विषय में बातचीत करते हैं। एक साधारण नौकरानी एक बार मेरे कार्यक्रम में आई और मूर्छा (Trance) की स्थिति में चली गई और लगी संस्कृत बोलने। पन्द्रह श्लोकों में उसने मेरा पूर्ण वर्णन किया। उसने पहली बार मेरे विषय में यह सब कहा था इससे पूर्व मैंने स्वय भी अपने विषय में कभी कुछ नहीं बताया था। इस प्रकार चाहिए । प्रायः अधिकतर लोगों में कुण्डलिनी एकदम सहस्रार पार कर जाती है। कुछ लोगों की कुण्डलिनी एकदम सहस्रार पार नहीं करती, इसे समय लगता है। स्वाधिष्ठान या नाभि में जाकर यह लुप्त हो जाती है। इससे ऊपर नहीं जाती। कभी अनहद् चक्र इसे पकड़ लेता है और कभी यह बिल्कुल डरते नहीं उठती। परन्तु यदि यह तो व्यक्ति निर्विचार समाधि में चला जाता है। इस निर्विचार आज्ञा -चक्र द्वार पार कर ले समाधि द्वारा कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ यदि आप गवर्नर बन जाएं तो आपको गवर्नर की कुछ शक्तियां भी प्राप्त हो जाती हैं। इसी प्रकार आपको कुछ विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं। परन्तु इस स्थित में कुण्डलिनी को छोड़ देना उचित नहीं क्योंकि इस स्थिति में वह इघर-उधर भटक सकती है और पराचेतन या सामूहिक अवेचतन में जा सकती है। 'सिद्धियाँ' प्राय: इसी अवस्था में प्राप्त होती हैं। छोटी-मोटी सिद्धियाँ नहीं, बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ; उदाहरणार्थ कुण्डलिनी यदि पराचेतन में चली जाए तो व्यक्ति भविष्य के गर्भ में देखने लगता है और भविष्यवक्ता बन जाता है। कुण्डलिनी यदि सामूहिक अवचेतन में चली जाए तो व्यक्ति भूतकाल को देखने लगता है। इस प्रकार का व्यक्ति यदि मेरे पास आए तो वह देख सकता है कि पूर्व जन्मों में मैं कौन थी। मुझे उसे कायल यह सब आरंभ हुआ। अत: इस स्थिति में मैं आपकी कुण्डलिनी नहीं छोड़ना चाहूंगी क्योंकि आप लोगों को रोग-मुक्त कर सकते है। और ये कार्य आप तभी कर सकते हैं जब कुण्डलिनी तालू क्षेत्र (सहस्रार) में हो। मैं सदा उत्सुक रहती हूँ कि कुण्डलिनी ब्रह्मरन्त्र को पार कर ले । उस स्थिति में आपकी चैतन्य लहरियां आने लगती हैं। परन्तु इस स्थिति में आप चित्त' मात्र होते हैं और सत्य बिन्दु को केवल छ भर लेते हैं। आत्मा केवल आपके चित्त को आर्कषित करती है। जैसा मैंने आपको बताया चित्त एक टिम-टिमाहट या गैस लैम्प नहीं करना पड़ता। यह भूतबाधित होने जैसा ही है नशे का आदि या मदिरा में डूबा हुआ व्यक्ति भी यदि आन्तरिक रूप से जिज्ञासु है तो वह भी मुझे भिन्न रूप में देख सकता है। वह मेरे भूतकाल को देख सकता है और मुझसे अत्यन्त प्रभावित हो सकता है। वह जान लेता है कि मैं के प्रकाश की तरह है और कुण्डलिनी गैस की तरह से हैं जो आत्मा को स्पंश करती है और आत्मा का प्रकाश -न मध्य नाड़ी तन्त्र पर फैल जाता है। 'चित्त' का बाह्य भाग चैतन्य लहरी 2. ध्यान है। उस स्थिति में कुण्डलिनी बह्मरन्ध्र को खोलती है, तब आप अपने हाथों में चैतन्य लहरियों को भी महसूस करते हैं और अन्य लोगों की चैतन्य लहरियां को भी महसूस करते हैं। तब आप 'सामूहिक चैतन' हो जाते हैं । सच्चिदानन्द से सामूहिक चेतन द्वारा आप चित्त स्पर्श करते हैं । इस प्रकार आप अपने चित्त के चित्त को सामूहिक चेतना का चित्र आनन्द की अवस्था तक आप अब भी नहीं पहुचे। आरम्भ में आप अपने हाथों में केवल शीतल लहरियों का अनुभवर सा हैं। शान्ति की अवस्था का अनुभव भी आप करते । और निर्विचारिता का भी 'निर्विचार चेतना' को आप अनुभव करते हैं परन्तु अभी तक आनन्द का अनुभव नहीं होता। मैं हजारों लोगों की समस्याओं का अध्ययन कर चुकी हूँ, मैं जानती ह अन्तिम अवस्था तक पहुँच चुके हैं यद्यपि इनकी संख्या हूँ कि यही सच्चाई है। परन्तु कुछ लोग बनते हुए महसूस करने लगते हैं अरथित् आप सत्-चित्त-आनन्द के सागर में उतर जाते हैं जहां आप केवल सामूहिक चेतना का अनुभव करते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को अनुभव करने लगते हैं। बहुत कम है। इस प्रकार पहली अवस्था जो आप प्राप्त करते हैं कल एक सज़्जन, आपने देखा होगा. मुझसे बहस कर रहे थे कि हमारी निलम्बित बुद्धि है । परन्तु मैंने उससे मात्र इतना कहा कि "निलम्बित बुद्धि क्या होती है? मुझे इसका कोई ज्ञान नहीं।" मैंने उसे ये बताया। वह कहने लगा कि "मैं तुर्या-स्थिति में हूं। मैंने कहा, "यदि आप त्र्या में हैं तो आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं। इसके बिना आप अपनी बात को प्रमाणित नहीं कर सकते। परन्तु आप क्या अन्य लोगों की कुण्डलिनी को महसूस करते हैं? वह कहने लगा नहीं। तब मैंने उससे आप तुर्या अवस्था में कैसे हो सकते हैं? यदि बह है 'चित्त' अवस्था, चेतनावस्था। आप 'सत्' को स्पर्श कर लेते हैं अर्थात् वास्तविकता का देखने लगते हैं। आप अपने अन्दर एक बहाव को महसूस करने लगते हैं। इस स्थिति में आप कहने लगते हैं कि यह आ रहा है, ये जा रहा है। अभी-अभी आपने कहा था कि यह आ रहा है। आपने यह नहीं कहा कि 'मैं इसे प्राप्त कर रहा हूँ, 'मैं' दे रहा हूँ। आपकी भाषा में 'मैं' शब्द लुप्त हो जाता है। परन्तु अभी तक अहं और प्रतिअहं पूर्णतया लुप्त नहीं हुए। वे अब भी वहीं है परन्तु अपने ध्यान से आप 'चित्त' को अनुभव करने लगे हैं। इस 'सामूहिक चेतना' से आप लोगों का रोगमुक्त कर सकते हैं, उन्हें पूछा, आप तुर्या अवस्था में जाते हैं अर्थात इस अवस्था को पार करते है। तो आपमें दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव करने की सामर्थ्य होनी चाहिए। अब आपने देखा होगा कि उन्हं आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं और जैसा मैने आपको बताया विश्व के किसी भी व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं और उस व्यक्ति के चक्रों के विषय में यहां पर बहुत से लोग कुण्डलिनी का अनुभव कर सकते हैं और सभी एक ही वात कहते हैं। वे चाहे अंग्रेज़ी, भारतीय या किसी अन्य भाषा में बात करें, वे सभी एक जान सकते हैं। अपने स्थान पर बैठे हुए आप दूर स्थान पर रहने वाले व्यक्ति की दशा बता सकते हैं। जहां भी आपका चित्त जाता है वहीं पर कार्य करता है, यह सर्वव्यापक ' ही भाषा बोलते हैं। एक ही बात वे सब कहते हैं कि बन जाता है। बूंद रूपी आपका चित्त 'सतु-चित्त-आनन्द ध्यानपुर्वक सुनें से लोग छोड़ जाते हैं। केवल चित्त ही प्रभावशाली बन जाता है। इंग्लैण्ड से फलां चक्र पकड़ रहा है। ऐसा इस लिए होता है क्योंकि आप अपनी कुण्डलिनी को देखने लगते हैं और उससे लोगों की कुण्डलिनी को भी देखने लगते हैं। अपनी अंगुलियों सागर में लीन हो जाता है। मेरी बात को क्योंकि इस अवस्था पर पहुँचकर बहुत के माध्यम से आप जान सकते हैं कि स्थिति क्या है। आए अपने एक शिष्य के विपय में मैं आपको बताऊँगी। एक दिन वह बैठा हुआ अपने पिता के विपय में सोच रहा था। अचानक उसकी तर्जिनी अगुली पर जलन होने लगी। उसने अपने पिता को फोन किया। उसकी माँ ने उसे बताया कि उसके पिता की दशा ठीक नहीं हैं। गले की खराबी से वह बहुत परेशान है। इस लड़के ने अपनी आप केवल चित्त को महसूस कर सकते हैं। इसके आनन्द भाग को नहीं। पहली अवस्था में चित्त के माध्यम से आप दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं और उसके द्वारा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को जागृत भी कर सकते हैं। कुछ देर बाद मेरे फोटोग्राफ की सहायता से आप अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार भी दे सकते हैं। परन्तु तो उसकी चैतन्य लहरियां समाप्त हो जाएंगी और वह एक अंगुली पर कुछ किया और उसका पिता ठीक हो गया। अब वह सोच सकता है कि वह बहुत शक्तिशाली हो गया है, आदि-आदि, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। वह इस प्रकार नहीं सोच सकता क्योंकि उसका सहस्रार खुल चुका है। उसने मात्र इतना कहा, महसूस किया और इस प्रकार किया और मेरे पिता जी ठीक हो गए।" वह कभी नहीं कहता कि मैंने उन्हें ठीक कर दिया। 'मैं' निकल जाता है। आप कभी नहीं कहते कि 'मैंने' यह कार्य किया, आप कहते हैं, "श्री माता जी आज मेरी आज्ञा पकड़ रही हैं" "श्री माता जी मेरा हृदय पकड़ रहा है।" वे आते हैं और अपने विषय में इसी प्रकार कहते हैं। आज्ञा पकड़ रहा है अर्थात आप साधारण व्यक्ति के सामान हो जाएगा। आरम्भ में आत्म-साक्षात्कार की स्थिति अत्यन्त अस्थाई होती है। फिर भी मैं यह कहाँगी कि इसके प्रति अरुचि इतनी अधिक नहीं होती कि व्यक्ति इसे स्वीकार ही न करें। यदि आप इसे स्वीकार कर लते है तो पूर्णत: "श्रीमाता जी मैंने ऐसा आत्मसाक्षात्कारी बन जाते हैं। परन्तु यदि इसे स्वीकार नहीं करते तो आपको कुछ शरीरिक समस्या हो सकती हैं आपकी अंगुलियों में खराबी आ सकती हैं या शरीर के कुछ हिस्सों पर आपको जलन भी हो सकती है। इन शरीरिक समस्याओं की चिन्ता यदि आप नहीं करते तो आपका उत्थान होने लगता है और, जैसे मैंने बताया, ये सभी 'चिंरजीव' आपका पथ प्रदर्शन और देखभाल करने लगते हैं। रेलगाडी में यदि एक भी आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं तो वह दुरघंटनाग्रस्त नहीं हो सकती और यदि किसी कारण से दुर्घटना हो जाती है तो भी उसमें किसी की मृत्यु नहीं हो सकती। और पागल हो रहे हैं। परन्तु आप इसका बुरा नहीं मानते क्योंकि आप इससे लिप्त नहीं हैं। व्यक्ति अपनी आत्मा से लिप्त हो जाता है। अत: आत्मा रूप में वह कहता है कि यह चक्र पकड़ रहा है, वह चक्र पकड़ रहा है। कैसर रोगी को अपने रोग का ज्ञान नहीं होता। परन्तु आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति यदि सड़क पर चल रहा हो किसी सम्भावति दुर्घटना की ओर उसका चित्त चला जाए तो वह दुर्घटना टल जाएगी क्योंकि उसके चित्त को आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है । वैज्ञानिक इस बात को नहीं समझ सकते। अभी अभी किसी ने मुझसे पूछा, "यदि वह अन्दर के देवता उसके अन्दर का पथ प्रदर्शन करते हैं तो बह स्वयं व्यक्ति का चित्त उसे बता देगा कि फला-फला चक्र खराब हैं- और इतने सारे चक्रों के खराब होनें का अर्थ है कैंसर रोग। डाक्टर के पास जाने की उसे कोई आवश्यकता नहीं, %3D वह स्वंय इसका निदान कर सकता है। डाक्टर की तरह से वह अपना निदान नहीं करेगा कि यह हृदय का कैंसर है या गले का, परन्तु वह कहेगा कि बांई ओर के या दांई ओर के चक़ पकड़े हुए हैं। कुछ भी नहीं कर सकता।" यह सत्य नहीं है। अन्दर के देवता उसके अंग-प्रत्यंग हैं। आप कह सकते हैं कि मेरा पथ प्रदर्शन मेरे मस्तिष्क द्वारा होता हैं अत: मैं और अब यह चैतन्य लहरियां कहां से आ रही हैं और कुछ नहीं कर सकता। आप स्वंय देख सकते हैं कि यह देवता आपके भिन्न चक्रों पर विराजमान हैं। तो अपना कहने कहां तक जा रहीं हैं तथा कहां तक इन चक्रों की गहनता को बता सकते हैं? बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हो रही हैं। अमृर्त (Abstract) के लिए आपके पास क्या बचा? आपका व्यक्तित्व आत्मा से जुड़ जाने पर आप नि्लिप्त हो जाते हैं और तब स्वामित्व जब आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो 'चिंरजीव' भाव आप में समाप्त हो जाता है। हर समय आप यही 1. आपके सम्मुख समर्पण कर देते हैं। वे आपको देखते रहते कहते हैं कि "यह जा रहा है, यह घटित हो रहा है, हैं। क्योंकि आपका उत्तरदायित्व अब उन पर हैं। आपके यह प्रवाहित हो रहा है।" तृतीय पुरुष के रूप में आप स्वयं को देखने लगते हैं। अपनी आत्मा का तदात्मय आप अपने शरीर से नहीं करते, ऐसा होता है। आप इन लोगों को देखें कि ये किस प्रकार कार्यरत है। अन्दर सभी देवता जागृत हो चुके हैं। यदि आप देवताओं के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो तुरन्त वे आपको दण्डित करते हैं। आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति यदि किसी अवांछित या गंद स्थान पर जाता है, या किसी कुगुरु के पास जाता है तो तुरन्त उसको गर्मी आने लगती है। फिर भी यदि वह वहां से दौड नहीं जाता, इसी प्रकार चलता रहता है सहजयोग में आनन्द का भी एक स्थान है। प्राय: आप देख सकते है कि सहजस्वभाव के आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति चैतन्य लहरी 4 के इर्दं-गिर्द बहुत से सहजयोगी इकट्ठे हो जाते हैं । किसी महान आत्मा के मेरे चरणों में आने पर सहजयोगी अत्यन्त जम नहीं पाये। परन्तु दिल्ली में अत्यन्त महान सहजयोगी भी मिले। अब आप पूछेंगे कि निंविकल्प कैसे बनें? मान लो आप पानी में हैं तो आप डुबने से भयभीत हैं । यदि कोई आपको नाव में बिठा दे तो आपका डूबने का भय समाप्त हो जाता है। अब आप दृढ़ता पूर्वक जम सकते हैं। आनन्दित होते हैं। एक बार हम कलकत्ता के एक होटल में ठहरे हुए थे। एक सज्जन मुझे मिलने आये, वह MA आत्मसाक्षात्कारी तो न थे परन्तु अत्यन्त सन्त स्वभाव और महान पूर्व-सम्पदा सम्पन्न व्यक्त थे। उसने मेरे चरण स्पर्श किये। सहजयोगी दूसरे कमरों में थे। व दौड़े हुए आए। मैंने कहा, ा दृढ़तापूर्वक जमने पर आपको कुछ विशिष्ट शक्त्यां प्राप्त हो जाती हैं- आपकी कुण्डलिनी चलने लगती है। बम्बई में कुछ लोगों की कुण्डलिनी एक फुट तक ऊँची उठती है। वे अत्यन्त विकसित लोंग हैं। निविकल्प अवस्था आप क्यों आयें हैं?" वे कहने लगे "हमारे अन्दर आनन्द का प्रवाह एक दम बढ़ गया। अंत: हम यहां आ गए हैं।" पूरा समय वह व्यक्ति मेरे चरणों में था और सहजयोगी वहां खड़े हुए थे। मैंने कहा "न यह मुझे छोड़ के जा रहा है और न ही आप लोग।" पर में सामूहिक चेतना सुक्ष्म से सुक्ष्तर होती चली जाती है। जब वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है तो आप चीजों की पन्द्रह मिनट तक वह व्यक्ति मेरे चरणामृत का आनन्द लेता रहा और वे सब उसके अमृत और सुगन्ध का आनन्द लेते रहे। अत: दूसरे व्यक्ति का आनन्द लेने से भी आनन्द प्रवाहित होने लगता है। यही भावनाएं हैं जिन से आप निरविचारिता गहन महत्ता को समझ सकते हैं । उदाहरणार्थ आप कुण्डलिनी की कार्यशैली को समझने लगते हैं। आप समझने लगते है। कि किस प्रकार कुण्डलिनी भेदन करती है और किस प्रकार कार्यान्वन करती है। अपने हाथों से प्रयोग करनें के लिए आप इसका उपयोग कर सकते हैं और इसे इच्छानुसार ला सकते हैं। आप लोगों को रोगमुक्त कर सकते हैं और भिन्न तरीकों से कुण्डलिनी की कार्यशैली दिखा सकते है।। कुण्डलिनी के प्रस्तार एवं संयोजन ( Permutations & Combinations) में आप सम्मिलित हो सकते हैं। आप कह सकते हैं कि संगीत की शिक्षा के प्रथम वर्ष में '' या 'समाधि' का आनन्द लेते हैं। 'समाधि' का अर्थ अचेतन में चले जाना नहीं है। सर्वव्यापी अचेतन चेतन बन जाता है अत: यह प्रथम अवस्था है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं और भिन्न घटनाएं घटित होती हैं। अपने पूर्व जन्मों में यदि आप बहुत अधिक ज्योति पूजा करते रहें हों तो आप मेरी चैतन्य लहरियों को आते जाते देख सकते हैं। यदि आप देवी पूजा करते रहें हैं तो आप 'देवी प्रमाण' का कोई कार्य कर सकते हैं और उसे देख भी सकते हैं परन्तु यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व ही ऐसा कुछ देखते है कोई आपको विचार दे रहा है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप केवल सात स्वर तथा दो अन्य स्वर और साधारण राग सीखते हैं परन्तु जब आप ऊँचे उठ कर सुक्ष्म हो जाते हैं तो आपको सारी बारीकियों का ज्ञान हो जाता है कि किस प्रकार संगीत की सृष्टि की जाए। तो आप भूतवाधित हैं, निविकल्प अवस्था में आपको किसी की आर अपने यदि आप कुछ देखने लगते हैं तो उसका कोई अर्थ होता हाथ करने की आवश्यकता नहीं करनी पड़ती। बैठते ही आप उसकी स्थिति को जान जाते हैं कि कौन सा चक्र है। इस प्रकार पुष्प का क्रमिक विकास प्रकट होने लगता है| पकड़ रहा है और समस्या क्या है। 'सामूहिक समस्या क्या है। आपको सहजयोग कुण्डलिनी और किसी भी अन्य चीज़ के बारे में कोई सन्देह नहीं रह जाता सन्देह पूर्णत: समाप्त हो जाते है और तब आप इस पर प्रयोग करके इसका उपयोग करते हैं । कुण्डलिनी पर अधिकार होने लगता है। तब 'चित्त', चेतना सूक्ष्म हो जाती है। मेरे पास कोई दूसरी कोई विकल्प न हो। अभी तक दिल्ली में ऐसे बहुत कम सहजयोंगी हैं। सर्वप्रथम तो स्वभाव से ही वे विकल्पी हैं। अवस्था में आप 'निर्विकल्प' हो जाते हैं- जहां इसका कारण ये है कि पूरा वातावरण ही विकल्प का है। आप यदि कुछ कहें तो दूसरा व्यक्ति कोई और बात कह कर आपको पीछे को खींचेगा। इस प्रकार पूरा वातावरण र व्यक्ति बैठा हुआ था और बाहर बैठे सहजयोगी जान गए कि उस व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार मिलने वाला है, वे ही इतना विकल्पी है कि आप अभी तक सहजयोग में shce किस प्रकार उचित ठहराते हैं? ये कहना कि चाहे काई यह भी जान गए कि श्री माता जी उसे आत्म साक्षात्कार दे रही हैं। सहजयोगी ऐसे समय पर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और छोटी-छोटी बातों का गिला शिकवा नहीं करते, वे निश्चिन्त होते हैं और शान से रहते हैं। व तुनक-मिज़ाज नहीं होते। उनका चित्त सूक्ष्म में होता है। बाहर के स्थूल पदार्थों के लिए उनके पास समय नहीं होता। अत: उनका उनकी हत्या भी करने का प्रयल कर रहा हो तो भी सहजयोगियों को क्रोध नहीं आना चाहिए, अत्यन्त मुर्खता है। ईसा मसीह को भी अपने हाथ में हंटर उठा कर लोगों को भगाना पड़ा। यदि आप निविकल्प आपको क्रूद्ध होने और ऊँची आवाज़ में बालने का अधिकार दिया गया है। यदि आपने कभी मरे हाथों की ओर ध्यान अवस्था में हैं तो चित्त सदा सुक्ष्म भाग की गहनता में होता है। वे चिन्ता नहीं करते। इस प्रकार के लोग अत्यन्त सन्तुष्ट होते हैं और ये ही सहजयांग के स्तम्भ बनाएंगे। जब भी कोई ऐसे परिवर्तित व्यक्ति को देखता है ता आश्चय चकित दिया हो तो आप जानते होंगे कि मैं चक्र, फर्सा आदि आयुधों का उपयोग करती हूैं। मुझे इनका उपयोग करना पड़ता है और ऐसा करने से आप मुझे रांक नहीं सकतें। इसीलिए मैं कहती हूँ कि अध्ययन से लोग चीजों का नहीं समझते। एक व्यक्ति शान्तिपूर्वक बैठा हुआ है और सभी लोग उसे परेशान कर रहे हैं। क्या ऐसा ही व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी कहलाएगा! कितनी मूखंता है? ऐसे व्यक्ति के प्रति दूर्भाव रखने की आपकी हिम्मत कैसे हुई। क्या आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति को देवी का क्रोध सहना है? तो वह कितना महान इस व्यक्ति को देखों रह जाता है, "इ है। पहले तो वह अत्यन्त भयानक किस्म का होता था अब इस प्रकार परिवर्तित हो गया है। देखों यह कितना बदल गया है!" निंविकल्प अवस्था में चैतन्य लहरियां निकलती हैं और सभी प्रश्न शान्त हो जाते हैं। परन्तु ऐसा व्यक्ति यदि कभी किसी को मुझसे अभद्र व्यवहार करता ये कहना अनुचित है कि आत्मसाक्षात्कारी को क्रीध नहीं हुआ देख ले तो वह सहन नहीं कर सकता और उसे भयानक क्रोध आ जाता है ईसा मसीह नें कहा है "उन सबको क्षमा कर दो क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" परन्तु यदि उन्होंने उसकी माँ विरोधी काई कार्य किया होता तो उसने उन्हें कभी क्षमा न किया होता। बाईबल में लिखा है- "आदि शक्ति की शान में किया आना चाहिए। सभी ऋषि जिनकं विषय में मैंन बताया और वे सभी लोग जिनके नाम मैंने आपको बताएं हैं और जिन्होंने मेरे विपय में बात-चीत की हैं वे निविकल्प अवस्था से भी ऊपर है, परन्तु अत्यन्त उग्र स्वभाव के हैं। ये सन्त पाखण्ड गया कोई अपराध सहन नहीं किया जाएगा और आदि शक्ति (Holy Ghost) उनकी मां थी। अत: आप अपनी मां (श्री माता जी) या सहजयोग के विरुद्ध कुछ भी सहन नहीं कर सकते और व्यक्ति को भयंकर क्रोध आ जाता है. या अन्तर्विकसित 'सहांर शक्ति' का भी उपयोग वह कर को सहन नहीं कर सकते, परन्तु मैं कर सकती हैं, मुझे करना पड़ता है। कोई 'राक्षस' उनके समीप नहीं जा सकता और यदि कोई जाने का दुःस्साहस करे तो फंदा डालकर उन्हें पेड़ से लटका दिया जाता है। इसीलिए मैं कहती हैं कि 'वाबा जी के समीप कभी मत जाओ। वे नि:सन्देह आप लोगों से ऊँचे हैं, आप सबसे अच्छे हैं, मुझे भली हैं और मेरे चरण कमलों में गिरतें हैं । सकता है। कहा जाता हैं कि ऐसे व्यक्ति को यदि कोंई हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगा तो अपनी मां के प्रति भक्ति के माध्यम से वह उसे पछाड़ देगा। हममें एक धारणा है कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति का कभी क्रोध नहीं आना भांति पहचानते मेरे लिए वे अत्यन्त अबोध और बच्चों की तरह से सहज हैं। श्री गणेश अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं। यदि व कुषित हो जाएं तो उन्हें संभालना अत्यन्त कठिन है । श्री शिव के क्रोध को शान्त करना तो सुगम है परन्तु श्री गणेश के क्रोध को शान्त करना अत्यन्त दुर्गम है। उनसे सावधान रहें। यही कारण है कि कुण्डलिनी जलन होने लगती है और नाचने और कूदने लगते हैं। चाहिए। यह अत्यन्त गलत विचार है। तब तो आप यह भी कह सकते हैं, "कृष्ण ने जरासंघ और कंस का वध क्यों किया?" कृष्ण की हिंसा को आप किस प्रकार उचित ठहरा सकते हैं? देवी अवतरित हुई और राक्षसों पर कृपित हो कर उनका संहार किया। उनके इस कार्य को किस प्रकार न्याय संगत ठहराते हैं? भयंकर क्रोध में आने पर वे संहार करती थी। और शिव का क्रोध! इसको आप की जागृति के समय आपका यह सब श्री गणेश का क्रोध है। किसी कारण वश यदि आपने उनका या उनकी मां का अपमान किया है तो उन्हें चैतन्य लहरी পাত के एक सज्जन को निविकल्प अवस्था प्राप्त हो गई। बेरीजगारी की स्थिति में वह मेरे पास आया। मैंन उससे कहा, "आप भयंकर क्रोध आ जाता है। यह सत्य है कि निविकल्प के पश्चात श्री गणेश आन्तरिक साज सज्जा का कार्य क्यों नहीं करते?" उसने वास्तव में जागृत हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति किसी स्त्री के प्रति मोहित नहीं होता अपनी पतली के अतिरिक्त उसे कोई स्त्री नहीं लुभा सकती और वह एक ब्रह्मचारी पति कहा उसे भिन्न प्रकार की लकड़ियां का ज्ञान नहीं है, वह क्या करे। मैंने कहा, अब आप निविकल्प अवस्था में हैं अत: आरम्भ कर दें।" आज वह अत्यन्त वैभवशाली व्यक्ति है। आपमें प्रगल्भता आ जाती है क्योंकि आप प्रकृति के सौन्दर्य को दखने लगते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति सौन्दर्य बोध उत्पन्त हो देखने लगता है। बातचीत का सौन्दर्र्य भी बढ़ता है। हाथ हिलाने की शैली में सुधार होता है और आपकी सारी शैली सुधर जाती है। सौन्दर्य बोध आ जाता है और आप की तरह से रहे चले जाता है क्योंकि पति-पत्नी तो विवाह के सूत्र में बंधे होते हैं। अन्यथा वह एक पवित्र गृहस्थ होता है। उसे मदिरा या धूम्रपान आदि का कोई आर्कषण नहीं होता। वह सम्मोहन से परे होता हैं। निंविकल्प व्यक्ति जाता है। हर चीज़ में वह सोन्दर्य को कोई प्रलोभन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि वह आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं मैंने कहा, यह किस प्रकार हो सकता है? यदि आप सुन्दर व्यक्ति बन जाते हैं। अचानक आप एक महा-कवि भी बन सकते हैं। हमारे यहां एसे दो व्यक्ति हैं जिन्हांन अति सुन्दर कविताएं लिखी हैं। यदि आप चित्रकारी करते हैं आत्मसाक्षात्कारी हो तो इन चीज़ों की ओर तुम किस प्रकर आर्कषित हो रहे हो? आप इन की ओर आर्कषित नहीं हो सकते।" अब मैं आपको अपनी बात वताती हूं कि ऐसा कर पाना असम्भव है। मैंने ऐसी कभी कोई चीज़ तो आप महान चित्रकार बन सकते हैं। चित्रकारी के विषय में आपको नये विचार और नया सौन्दर्य-वांध हा नहीं ली। एक बार मेरे डाक्टर ने दवाई के रूप में बिना बताए थोड़ी सी ब्रांडी दी, इसके कारण मुझे रक्त की बहुत सी उल्टियां हुई क्योंकि मेरा, पेट ही धार्मिक एवं पवित्र हैं। किसी महिला को उत्तेजित करने वाली वेशभूषा पहने देख लूं या अपने पति के साथ मुझे किसी पार्टी में जाना पड़े, जहां कैब्रे आदि शुरू हो जाए. तो मुझे उल्टी सी आने लगती है, विशेष तौर पर उस स्थिति में जब हम वहां पर मुख्य अतिथि हों। मैं उनकी दुर्दशा कर देतीं हूँ क्योंकि इन अधनंगी स्त्रियों को देखकर मेरे पेट में कुछ अपने पेट का में क्या करूँ क्योंकि पेट जाता है संगीत आपको शास्त्रीय संगीत का ज्ञान न हो फिर भी आप सूक्ष्म को आप पूर्णत: समझने लगते हैं। चाहे संगीत को समझने लगते हैं। शास्त्रीय संगीत से आप जान पायेंगे कि आपकी आत्मा क लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है। इस स्तर पर आत्मा हर चीज़ का निर्णय करने लगती हैं। एस व्यक्ति को यदि आप नाटक या चित्रकारी के निर्णायक के रूप में पदारूढ़ कर दे तो वह इसका ठीक से जांचेगा। उसके निर्णय को विश्वभर के आलोचको के सम्मुख रखेंगे कि यह सर्वश्रेष्ठ निर्णय है। अब आप मुझे पूछेगे कि होने लगता है। में ही धर्म उत्पन्न होता है। अत: पेट स्वयं धर्म बन जाता वह यह सब "किस प्रकार जानता है?" क्योंकि उसमें चैतन्य लहरियों और अन्य सभी चीजों के सीन्दर्य का अनुभव करने का क्षेम है। । इस अवस्था में चीजों की सूक्ष्म शैली आरम्भ हो जाती । आपका मूलाधार साक्षात पवित्र बन जाता है। उल्टी सीधी चीज़ों को यह सहन नहीं कर सकता। उन्हें ये सब समझाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। एंसी स्त्रियों में उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे प्रेम खिलवाड़ नहीं करते और न ही ऐसी चीज़ों में उनकी दिलचस्पी होती है अन्य स्त्ी या पुरुषों को लुभाने के लिए वस्त्र आदि धारण करने की वे चिन्ता नहीं करते और अत्यन्त साधारण व्यक्तियों की तरह से आचरण करते हैं। गरिमामय सादगी का वह अपना आप उसे किसी देवता की मूर्ति दे कर पूछिये कि यह ठीक है या नहीं हैं ता वह कह सकता है कि ये ठीक नहीं है। आप चैतन्य लहरियों सं महसूस कर सकते है। कि ये धर्म है या अधम। अब क्या हम कह सकते ा हैं कि अष्ट विनायक जीवन्त हैं या नहीं? किस प्रकार जानते हैं कि ज्योंतिलिंग जीवन्त हैं? यह आप कैसे जानंग? क। सभी महान आत्माओं का एकीकरण किये बिना आप उन्हें किस प्रकार समझ सकते हैं? अत: आप आत्मसाक्षात्कार लेते हैं। अचानक वे अत्यन्त रचनात्मक बन जाते हैं। बम्बई अवश्य लें। मेरे पिता जी ने मुझे यही समझाया। वे हमें प्रेम करता है। इस ज्ञान को जब आप जान जाते हैं तब हृदय आनन्द को प्रवाहित करने लगता है। बाद आत्मसाक्षात्कारी पुरुष थे और में कहुंगी कि वे मेरे प्रथम गुरु थे। उन्होंने मुझे बताया कि वास्तविकताओं आदि की बात करना व्यर्थ है क्योंकि इससे तुम एक अन्य बाईबल या गीता की सृष्टि कर दोगी। इसके स्थान पर तुम व्यवहारिक कार्य करो। एक सामूहिक विधि खोज निकालो, और मैं समझ गई कि यही मेरा लक्ष्य था। अत: मैंने लोगों की कुण्डलिनी पर कार्य किया और उनकी गलतियों के प्रस्तार एवं संयोजन (Permutations & Combinations) को खोज़ में आप इस आनन्द में विलय प्राप्त कर लेते हैं। उस स्थिति में पूर्ण आत्मसाक्षात्कार घटित होता है। उस अवस्था को प्राप्त कर लेने पर आप सूर्य, चन्द्र तथा अन्य सभी तत्वों का संचालन कर सकते हैं । इस अवस्था से भी परे परमात्म-साक्षात्कार है। इसकी तीन अवस्थाएं हैं। अभी अभी मैंने इसके विषय में बताया था कि 'सत्-चित्त-आनन्द' अवस्था परमात्म-साक्षात्कार की वह अवस्था है जिसे प्राप्त करके गौतम बुद्ध और महावीर हमारे मस्तष्क में स्थापित हो निकालने का प्रयत्न किया। यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि लोग एसे क्यों हैं। आप आश्चर्यचकित होंगे कि बहुत लगा था कि वेनिर्विचार अवस्था में भी हैं। वे न जानते थे कि वे इतने उच्च कोटि की आत्माएं हैं। यदि उन्हें इस बात का ज्ञान होता तो आपको बन्धन में डालने वाली बहुत सी बातें उन्होंने न बताई होतीं। उन्होंने कहा, 'सच बोलो!' कौन 'सच' बोलेगा? उन्हें यह गए। ईसा मसीह भी यहीं हैं। ये दोनों अवतरण नहीं मानव की तरह से उत्पन्न हुए हैं। सीता की कोख से लव-कुश के रूप में वे जन्में, फिर वे बुद्ध और महावीर रूप में जन्म और एक बार फिर आदि शक्ति उनकी मां थी। तत्पश्चात हसन-हुसैन के रूप में वे फातिमा बी से जन्में। आपके लिए ये दोनों मील के पत्थर हैं जिनके द्वारा आप जान सकते हैं कि मानव किस ऊँचाई तक उठ सकता है। आज वे अवतरणों सम हैं। चिरंजीव, भैरव, गणेश सारे लोगों को पता ही न के समझे न थी कि मानव क्या हैं। वे अंत्यन्त महाने अवतरण और वे न जानते थे कि मनुष्य कितना चालाक और कितना परस्पर-विरोधी। सूक्ष्म मानव स्तर पर वे न ऐसा करने के लिए उन्हें मानव की तरह थे कुछ अन्य प्रकार के व्यक्तित्व हैं। ये सब अवतरण हैं। हनुमान जी, बाद में, 'देवदूत गैब्रील' के रूप में अवतरित हुए और भैरव नाथ 'संत माइकल' के रूप में आये। नाम भिन्न हैं पर वे सब एक ही जैसे व्यक्तित्व हैं। देवी भी अवतरित हुई। इसके विषय में कोई सन्देह नहीं । वैज्ञानिक आ सके क्योंकि आत्मसाक्षात्कार लेना पड़ता, जैसा मैंने लिया है। अत: मैं मनुष्य को जानती हूँ, परन्तु कुछ बातें मैं भी नहीं समझती। जब आप निविकल्प अवस्था में चले जाते हैं तो इस बात को नहीं समझ सकेगा परन्तु सहजयोगी इस सत्य 'आनन्द' आपमें स्थापित होने लगता है। किसी शहर, सुन्दर को समझ सकता है। क्योंकि वह तुरन्त अपनी चैतन्य लहरियों चित्र या दृश्य को देखते ही आनन्द का एक तीव्र बहाव को महसूस कर सकता है और प्रश्न पुछ सकता है। मेर आप में होने लगता है। यही कृपा हैं कि आप इसमें खो जाते हैं, मानों गंगा आपके ऊपर बह रही हो और आप गोते लगा रहें हो। आपकी चेतना ही आनन्द बन विषय में भी आप प्रश्न पूछ सकते हैं। ऐसा करने पर आपको चैतन्य देवताओं को जागृत हो कर 'हाँ' कहनी होगी आपको लहरियां प्राप्त होगी इसके लिए आपके जाती है। आत्मसाक्षात्कार हो या न हो परन्तु उत्तर आपको अवश्य मिल जाएगा। आपको समझ आ जाती है कि अभी तक हम 'सर्वव्यापी शक्ति' को न समझ पाये थे परन्तु अब हम उसे जान गए हैं। अपनी अंगुलियों में आते हुए हम इसे महसूस कर सकते हैं। यही वास्तविकता है। हमारे चहुं ओर चैतन्य है जो सोचता है, समझता है, व्यवस्था करता है, और परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लारी 8. প आदि शक्ति पूजा का आज हम लोग आदि शक्ति का पूजन करना चाहते हैं जिसमें सब कुछ आ गया। बहुत से लोगों ने आदि शक्ति का नाम भी नहीं सुना है। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं। धर्मी और विशेषकर राजे-महाराजे सभी शक्ति कोई शक्ति नहीं है जो उनमें न थी, लेकिन उन शक्तियों को छुपा कर रखना पड़ता है। उसके दो कारण है। एक योम तो यह गर लोग जान जायें कि यह आदि शक्ति है तो हर प्रकार के लोग उन पर प्रहार कर सकते हैं क्योंकि ये लोग सब बिल्कुल दुष्ट हैं, जाहिल हैं, के विरोध में खड़े हैं। परमात्मा के नाम पर पैसा कमाते की पूजा करते हैं। सब की अपनी-अपनी देवियाँ हैं और उन सब देवियों के नाम अलग-अलग हैं और यहाँ कि देवी का नाम भी अलग है-गणगौर। लेकिन आदि शक्ति और परमात्मा हैं और उसका दुरुपयोग करते हैं। ये सारे ही लोग गर जान जायें कि आदि शक्ति इस संसार में हैं तो या तो भाग खड़े होंगे या एकजुट होकर ये कोशिश करेंगे कि किसी तरह आदि शक्ति का कार्य इस कलियुग में न हो पाये। इसलिए जरूरी है कि महामाया का रूप ले लिया जाये। दूसरा इस स्वरूप में एक बड़ा गहरा सूक्ष्म काम करना है जो कभी भी किसी ने आज तक नहीं किया। का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ था जो वो सती देवी के रूप में प्रकट हुई। उनका बड़ा उपकार जो राजस्थान में अब भी अपनी संस्कृति, स्त्रीधर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, राजधर्म हर एक तरह के घर्म को उनकी शक्ति ने प्लावित किया, उसका पोषण किया। सती देवी की गाथा आप सब जानते हैं मुझे नये तरीके से बताने की ज़रूरत नहीं क्योंकि वो स्वयं गणगौर थी। उनका विवाह कर दिया गया । विवाह करके जब वो जा वो है सामूहिक चेतना। सामूहिक तो छोड़िये एक ही आदमी को पार कराने में लोगों को सालों साल लग जाते हैं । रही थी तब कुछ गुण्डों ने घेर लिया और उनके पति को भी मार दिया। तब पालकी से बाहर आकर उन्होंने इस कार्य को करना है और वो भी बखूबी इस तरीके से कि किसी को कोई भी हानि न पहुँचे। ऐसे हो जैसे नाव में बैठा करके आराम से दूसरे किनारे पहुँचाया जाये। अपना रूप प्रकट किया और सबका सर्वनाश कर दिया और खुद भी अपना देह त्याग दिया। इसमें जो विशेष चीज जानने की है कि बचपन से लेकर शादी तक किसी भी हालत में उन्होंने अपना स्वरूप किसी को बताया नहीं क्योंकि वो महामाया स्वरूप थी। आदि शक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का इसमें समन्वय हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो सभी शक्तियों की अधिकारिणी हों उसे महामाया का ही स्वरूप लेना पड़ता मैंने कल अपने भाषण में बताया था कि धर्म कितना पन विपरीत हो गया है धर्म को समझे बिना लोगों ने भ्रान्ति की सृष्टि कर दी। गर कोई आदमी सोचने लग जाये अपने धर्म के बारे में तो वो भाग खडा हो जाये क्योंकि धर्म के नाम के पीछे जो जो तौर तरीके हैं वो बड़े भयंकर है क्योंकि कहीं स्त्रियों की अवहेलना, कहीं बच्चों का दमन े तो कहीं लूटमार। हर तरह के गलत काम लोग धर्म के नाम पर करते हैं। एक बार बम्बई में बहुत सी गीता छपकर के बाहर से आईं तो लोग बड़े खुश हुए कि हमारी गीता अब लंदन में भी छप गई, हिन्दुस्तानी तो वैसे ही अंग्रेज़ के पैर पर लोटता रहा। अब गीता वहाँ छप गई तो हिन्दुस्तानियों ने सोचा कि वाह-वाह कमाल हो गया। पर एक कोई थे कस्टम आफिसर। उनके दिमाग में आया कि आज तक कोई अंग्रेज सीधी-साधी हमारी हिन्दी भाषा है। उसका कारण यह है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती हैं। वो पहले सुरभी के रूप में इस संसार में आई थी, वो एक गाय थी उसमें सारे ही देवी देवता बसे थे। उसके बाद एक बार सिर्फ एक रानी सती के रूप में इस राजस्थान में आईं और मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्योंकि हमारे पूर्वज राजस्थान के चितौड़ गढ़ के सिसोदिया वंश के थे। आदिशक्ति की अनन्त शक्तियाँ हैं। और ऐसी ा 9. পা ये थे, ये बात कि मेरे बाप ये थे मेरे बाप के बाप नहीं बोल सकता तो यह कौन माई का लाल निकला है जिसने गीता को लिखा है संस्कृत में तो उन्होंने एक किताब को खोलकर देखा तो उसमें शराब। समझ गया सारी किताबां सोचते रहते हैं। नसीब हैं उनका, उनका पूर्व जन्म याद नहीं आता। पर पूछेंगे ज़रूर, " में कौन था?" एक साहब ने मुझे बहुत तंग किया में पूर्व जन्म में कौन था, कौन था। मैंने कहा देखां बेटे में तुमको नहीं माँ मै पुर्वजन्म में शराब और ऊपर से गीता। तो मतलब ये कि गीता बहुत ऊँची चीज़ है। हिन्दुस्तानी गीता का नाम लेते ही, चाहे वो कुछ जाने या न जाने, माथे लगा लेते हैं। लेकिन उसमें शराब! मतलब इस तरह से छुपाने की शक्ति वो कमाल की कि गीता को इस्तेमाल करों। सो ऐव छुपाने की भी हमारे महामाया शक्ति में भी एक बहुत बड़ी खूबी है। ये लोग कहाँ से तो सीख के आये होंगे चाहे हमने नहीं सिखाया हो किसी ने तो इनको सिखाया है कि ये ऐब अपने कैसे छिपाये जायें और छिपाकर उसको किसी तरह पचा लिया जाये जो हमारे ऐब हैं उनको हटाने के लिये हम प्रयत्नशील नहीं होते हैं। अब दूसरों के ऐब देखने में हम बड़े होशियार होते हैं। अब ये बिल्कुल विपरीत बात है। महामाया की शक्ति इसलिए बनी और अवतरित हुई कि आपके शरीर में जो दोष हैं उनको निकाला जाये और अपने शरीर की सफ़ाई करें। ये कार्य बड़ा कठिन है, ऐसा शुरु शुरु में बता रही हूँ इसका मतलब कुछ गड़बड़ी हैं। क्यां मुझसे पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा है कि तुम मर साथ हो। क्यों मुझसे बार-बार पूछ रहे हो कि मैं पूर्व-जन्म में कौन था? उससे तुम्हारा क्या लाभ होने वाला है? "नहीं माँ मुझे अच्छा लगेगा । अच्छा मैंने कहा कि तुम पूर्वजन्म 131 में जयपुर के महाराजा थे समझ लो। तो तुमको गद्दी मिल जायेगी वहाँ? जाओ तो भगा देंगे सब। तो पूर्वजन्म की बात क्यों करते हो। क्योंकि मुझे एक ज्योतिषी ने बताया था कि मैं पूर्वजन्म में कहीं का राजा था। मैंने कहा वो लक्षण तो दिखते नहीं तुम्हारे अंदर राजा वाले। अब तुमका उस ज्योतिषी ने बताया तो उसने तुमको गले का कुछ पैसे ऐंठने के लिये। कहने लगे होगें, उसको छिपाने में प्रयत्नशील कण्ठा वरण्टा दिया होगा माता जी आप मज़ाक कर रहे हैं मैंने कहा बवकूफी की बात कर रहे हो। यहाँ तुम अपना पूर्वजन्म पूछने के लिये आये हो, मैं क्या ज्योतिषशास्त्र जानती हूँ? मुझे इसमें कोई भी, किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं। ऐसे लोंगों को ठीक करने के लिए महाकाली स्वरूप आवश्यक है। महाकाली मुझे लगता था। पर ऐसे कोई खास लोग मेरे पास आये नहीं कि मुझे बड़ा दुख उठाना पड़ता। सही बात तो यह है कि वो लोग मुझे देखते ही भाग जाते होंगे शायद । इसलिए ये मेरे सामने कभी प्रशन खड़ा नहीं हुआ। पर आश्चर्य की बात है कि जो लोग भूत से ग्रसित हैं या जो लोग हमेशा बुरे काम करते हैं और जो लोग गुरुघंटाल हैं वो लोग मुझे अच्छी तरह जानते हैं। न जाने कैसे? सहजयोगी मुझे नहीं पहचान पाते, हो सकता है कि उनकी आँखे चकाचौंध हो जाती हैं । पर आप किसी भी भूत ग्रस्त आदमी को ले आइये तो वो थर-थर काँपने लगेगा और ऐसा भागेगा कि आप सोचेंगे इसे किसी ने हंटर मारा है। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है। लेकिन उनको पहचान भी उतनी नहीं है। अच्छी बात है। लेकिन आदि शक्ति रास बा के स्वरूप के सिवाए ऐसे पागल छुट नहीं सकते। झूठे गुरुओं की पकड़ से लागों को महाकाली की ज़रूरत है। ऐसे झूठे गुरु एक तरह से अपना और अपने शिष्यों का भी नाश करते रहते हैं। लेकिन यहाँ देखते है कि नाश हो रहा है तब भी वहीं चले जा रहे हैं। उन्हों के चरणों में ही चले जा रहे हैं । हमारे मुक्त करने के लिए भी मी यहाँ एक साहव पुलिस के साथ आये (मैं शायद अशाका है, होटल में थी) तो मेरे पति ने कहा ये क्या झगड़ा पुलिस क्यों आई है? मैंने कहा पता नहीं देखें तो सही | तो उन्होंने कहा कि ये महाशय (नाम नहीं बताऊँगी) जो और ये भागे हुये हैं आनन्द मार्ग से। कहने लगे माँ आपको आश्चर्य होगा कि ये आनंद मार्ग के बड़े भारी प्रचारक थे। दुनिया भर में घूम, खुब पैसा कमाया। फिर इनके गुरु जो थे वो इनको अपना अहं शिष्य मानते थे। ये कलकत्ते में देवी के मंदिर में गये का एक स्वरूप जो महाकाली है उसे आप देख लें तो वो बड़ा भयंकर है। ये देख सकते हैं बाकी किसी को दिखाना बड़ी कठिन बात है। लेकिन महाकाली का स्वरूप होना बहुत ज़रूरी है। जब तक महाकाली प्रकट नहीं होती आपके अंदर बसी हुई बाईं ओर की पकड़ जा नहीं सकती। हैं ये डाक्टर साहब हैं जहाँ बकरा काटा जाता है। बकरा इसलिए काटते हैं कि देवी के सामने उसके अंदर भूत डाला जाता है, और जो बाईं ओर की पकड़ का क्या मतलब है? सबसे पहले तो आप अपने भूतकाल के बारे में सोचते रहते हैं। दूसरी यतन्य लहगने 10 ० बहुत। मैंने कहा मेरे रोकने अब कैंसर चल पड़ा है। पर भी आपने फिर से चालू कर दी अपनी दुकान। माँ मैं पेट कैसे भरूँगा? मैंने इतनी मंहगी मशीन मंगवाई है। घवराये भूत ग्रस्त हैं उनको भूत से छुटकारा दिलाया जाता है। हम लोग तो नींबू पर ही उतार देते हैं, शाकाहारी है अपना सब काम क्योंकि बहुत से बनिये आ गये हैं ना सहजयोग में। सो नींबू को काटकर के निकल जाता है भाग जाता है। तो ये जो भूतग्रस्त लोग हैं इनके भूतों को महाकाली दिखाई देती है। वही रूप दिखाई देते हैं। और थर-थर कॉँपते हैं ऐसे। और आश्चर्य मुझे लगता है कि अगर अहे का भूत लग जाये उनको तो महाकाली का रूप दिखाई देता है। एक बार एक पूजा हो रही थी। वहाँ कुछ लोगों ने कहा कि माता जी तो ब्राह्मण नहीं हैं तो हमारे यहाँ तो प्रोग्राम नहीं हो सकता, जो ब्राह्मण होगा वही आयेगा। तो वहां के जो कार्यकर्ता थे कहने लगे अच्छा ठीक है ये कर रहा हूँ वो कर रहा हूँ। मैंने कहा बच डालो किसी की। खत्म करो। सुना हैं वो चल बसे हैं महाराज! तो सारी जितनी बाई ओर की बीमारियाँ हैं मनोंदैहिक जिसे कहते हैं, जिसका कोई इलाज़ नहीं है वो महालक्ष्मी की कृपा से ही ठीक हो सकती है। इसलिए महालक्ष्मी का ही मंत्र लेना होगा और महालक्ष्मी को जब तक आप प्रकटित नहीं करियेगा ये बीमारियाँ ठीक नहीं हो सकती। और इतनी गर्मी इन लोगों से निकलती है कि समझ में नहीं आता। इधर गर्मी निकलती है उधर बो रोते रहते हैं हर वक्त। प क्योंकि इसके साथ रोना चलता है। महालक्ष्मी के दर्शन हों तो रोना रुकें। उनको महासरस्वती के दर्शन दूर रहे ये तो महाकाली के दर्शन करते हैं, उनको देखकर रोना ही आता है। उनको कहें क्या? सूक्ष्म रूप से आप देखिये महालक्ष्मी का रूप, अति रौद्रा। अतिरौद्रा, अति सौम्या। पर महालक्ष्मी अति रौद्रा। रुद्र स्वरूप और वो रुद्र स्वरूप बहुत ज़रुरी है नहीं तो ये बाधाएं भागने वाली नहीं। ये सिर्फ रुद्र स्वरूप से ही भागती हैं। एकादश रुद्र में जो ग्यारह रुद्र हैं वो ग्यारह ही रुद्र में महाकाली की हो शक्ति विराजमान हैं और वो हमारे मेघा में यहाँ ग्यारह चक्रों हम पेपर में दे देते हैं, माता जी बाह्मण नहीं हैं प्रोग्राम नहीं होगा। मुझे पता लगा तो मैंने कहा कि आप में जो कोई ब्राह्मण हैं मेरी तरफ हाथ करें। अब लगे उनके हाथ हिलने। अरे माँ बन्द करो! आप शक्ति हैं, हम मान गये। उनको बड़ा घमंड था कि वो बहुत बड़े ब्राह्मण हैं तो कहने लगे माँ देखो उधर भी कुछ ब्राह्मण बैठे हैं, उनके भी हाथ हिल रहे हैं मैंने कहा जरा उनसे पूछिये कि वो लोग ब्राह्मण हैं? अरे नहीं बावा हम लोग कोई ब्राह्मण नहीं हैं। हम लोग प्रमाणित पागल हैं, ठाणे से आये हैं। अब इनकी आँखे खुली। मैंने कहा समझ गये आप, वो भी पागल और आप भी पागल। दोनों ही पागल। शुरुआत में समाई हुई हैं। गर किसी का एकादश पकड़ गया तो समझ लीजिये उसको तो कैंसर या कोई न कोई बाई ओर में तो बहुत ज्यादा महाकाली का प्रताप। कुछ समझ में ही नहीं आता था कि ये महाकाली जी अब प्रताप कुछ कम करें तो मैं दूसरे भी काम करूँ। का भयंकर ला-इलाज रोग हो गया। कार सहजयोग का विज्ञान जो हैं वो पूरी तरह से उत्तम है। उसमें आप कोई दोष नहीं निकाल सकते। अब लोग आये कैंसर, ऐडस, साइरोसिस और पचासों बीमारियां लेकर। अब कहने लगे माँ हम तो कभी किसी गुरु के पास गये नहीं। अरे भई तुम गुरु के पास नहीं गये तुम्हारी माँ गई होगी तुम्हारे बाप गये होंगें नहीं वो भी नहीं। रजनीश की किताबें पढ़ी थी और सत्य साईं बाबा का फांटो हमारे घर में है। और एक दो जोड़ लो मैंने कहा, और अब मनोदैहिक (Psychosomatic) कैंसर, मांसपेशियों के रोगी आ गए हैं। ये वो दुनिया भर की बीमारियाँ हैं. जो डाक्टर लोग ठीक नहीं कर सकते। पर मानेंगे नहीं डाक्टर, मानते नहीं। जब तक रोगी मर नहीं जायेगा खींचो पैसा। एक साहब गुर्दा विशेषज्ञ थे उनको गुद्दा रोग हो गया। मैंने कहा मैं आपका गुर्दा ठीक कर दूँगी, एक शर्त पे कि आप अपना धंधा बंद कर दीजिए। डायालिसिस देना बंद आप करो तो मैं तैयार हूँ। हाँ-हाँ माँ आप मेरा गुर्दा ठीक करो। ठीक कर दिया। पर दो महीने बाद फिर चालू उनकी दुकान। फिर उनको गुर्दा रोग हो गया, तो मेरे पास दो चार बिमारी आ जायेंगी फिर आना। वहां जायेंगे बिमारियां पकड़ेंगे और यहां आयेंगे। तो उन पर देवी का रुद्र स्वरूप दिखना चाहिए ना। क्या भूतों से कहा जाये आ भई बैठ, अच्छा तू खाना खा पानी पी। मेरे से बहुत लोग पूछत हैं। माँ देवी का रुद्र स्वरूप कैसे हो सकता है? गर वा आये। बड़ा बुरा उनका हाल। मैंने कहा इस बार क्या बात है कहने लगे फिर से गुर्दा रोग है। मैंने कहा वो नहीं 11 जब गांधी जी ने ललकारा तब औरतों ने अपनी चूड़ियाँ, सब जेवर उनको दे दिये। राणा प्रताप का ही किस्सा है माँ है तो माँ का स्वरूल्प रुद्र कैसे हो सकता है। बच्चों को ठीक करने के लिये रुद्रस्वरूप भी धारण करना पड़ता है। उसके बिना वो ठीक ही नहीं हो सकते । किंतु रुद्र स्वरूप ने किसी को हानि नहीं पहुँचाई, ये विशेष बात है। जैसे कि पहले महाकाली ने इसको मारा, उसको मारा, इसकी जीभ खींची, ऐसा कुछ नहीं। यह सब करने की कि राणा प्रताप ने देखा कि उसकी लड़की की घास की बनाई रोटी तक को एक बिलाव उठाकर ले गया। उनके मन में एक शंका हुई कि मैं क्यों ऐसा कर रहा हूँ अपने अंहकार के लिए। मैं अकबर की शरण क्यों नहीं जाता? जब वो चिट्ठी लिखने बैठे अकबर को तो उस वक्त क्षत्राणी उनकी पत्नी की शक्ति जागृत हुई। हाथ में भाला लेकर उसने अपनी लड़की पर ताना और कहा मैं तुम्हीं को ही मार डालूंगी। जिससे ये जो कमजोरी इनके अंदर आई है, कोई ज़रूरत नहीं। मनुष्य ऐसे ही घबराकर ठीक हो जाता उस स्वरूप को देखते ही वो ठीक हो जाता है। और जब वो उस स्वरूप को देखता है अपने आप उसकी बिमारियाँ ठीक हो जाती हैं । क्योंकि उसके अंदर जो बाधाएं है वो भाग जाती हैं। तो किसी की गर्दन काटने की, जीभ काटने की या आँख निकालने की कोई जरूरत नहीं है। महाकाली का स्वरूप अगर कलियुग में न इस्तेमाल किया जाये तो सहजयोग का कार्य न हो सकेगा क्योंकि इन असुरी शक्तियों न आये। तब राणा प्रताप की आँख खुली। हमारे यहाँ औरतों ने रणांगन में अपने पतियों को टीका लगाकर लड़ने भेजा है । इन अंग्रेजों से कौन लड़े? आदमी लड़ने को कहने मात्र को है, पर वास्तविक शक्ति औरतों की थी। पर आजकल औरतें भी अशक्त हो गई हैं और आदमी निशक्त हो गये हैं। ये शक्ति जो है यह स्त्री की शालीनता से होती है। के कारण सारे चक्र पकड़ में आ जाते हैं और चक्र ठीक किये बगैर कुण्डलिनी चढ़ेगी नहीं। इसलिए महाकाली का स्वरूप बहुत वंदनीय है, सराहनीय है। यह किसी को शरीरिक मानसिक, बौद्धिक, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाती। उसके स्वरूप से सभी बुराइयां भाग जाती हैं। और जब तक यह शालीनता स्त्री में कार्यान्वित नहीं होती तब तक गृहलक्ष्मी की शक्ति उसके अन्दर प्रकटित नहीं होती। लेकिन चतुर होना चाहिए। गृहलक्ष्मी को चतुर होना चाहिए। दूसरे उसमें सूझबूझ होनी चाहिए। सां ये कहें कि जब महाकाली शक्ति अत्यंत शांत हो जाती है तो वो गृहलक्ष्मी हो जाती है। तो हम फातिमां बी को मानते हैं कि वो गृहलक्ष्मी के सिंहासन को सुशोभित करती हैं। महाकाली की इस शक्ति से स्त्री अपने बच्चे को ठीक रास्ते पर रखती है, अपने चरित्र को उज्जवल रखती है। और हम लोग इस चीज़ के साक्षी हैं कि एक पतिव्रता स्त्री के पतिव्रत को कोई नष्ट नहीं कर सकता। उसकी अपनी शक्ति है। ये महाकाली की शक्ति है जो लोग डरते हैं एक पतिव्रता स्त्री से। और पतियों को भी जान लेना चाहिए कि उनके अंदर जो भी कार्यशक्ति है वो भी स्त्री से ही आती है। शालीन स्त्री में हास्य रस बहुत प्रस्फुटित होना चाहिए। किस चीज़ को वो हँसी में टाल दें, और हँसकर के हजारों प्रश्न वो ठीक कर सकती है। ये जो बारीकी होती है उसको समझने के लिए मैंने अभी किसी को कहा था कि आप शरत्चन्द्र पढिये। पोलिटिक्स में जाने की ज़रूरत नहीं और गंदे अर्थशास्त्र में तो जाने की बिल्कुल जरूरत नहीं। लेकिन समाज की सारी धुरी, समाज का सारा कार्य स्त्री परनिर्भर है। जो न अब मियाँ-बीवी के झगड़े सबसे बड़ी समस्या हैं आजकल। क्योंकि बीबियाँ पढ़ गई और मियाँ चाहते हैं कि बीबी बिल्कुल देहाती हो। वो देहाती तो है नहीं, उसको देहाती कैसे बनायेंगे? एक बार शहरी हो गई तो शहरी हो गई। चाहे आप लंहगा पहन लीजिए चाहे आप पेंट पहन लीजिए। दिमाग तो शहरी हो गया। अब जो शहरी दिमाग हो गये तो उसके बाद जो स्त्रीत्व है वो तो कम है। स्त्रीत्व कम हो ही जाता है, पुरुषत्व ज्यादा आ जाता हो जाता है। और स्त्री का जो सबसे बड़ा गुण है, शालीनता वो ही खत्म हो जाता है। शालीनता स्त्री का स्वरूप है, उसे रणांगन में जाने की जरूरत नहीं। पदमिनी ने तीन हज़ार औरतों के साथ चितौड़ गढ़ के किले में ही स्वयं को जला दिया था। वो कहीं तलवार लेकर बाहर नहीं मो गईं। पर जब ज़रूरत पड़ी तो झांसी की रानी हाथ में तलवार लेकर खड़ी हुई। तब, मुझे याद है, अंग्रेज़ों ने कहा था हमारी विजय तो हुई है पर गौरव झांसी की रानी का है। अपने देश में अनेक तरह की उज्जवल चरित्र वाली हम लोगों को औरतें हुई। पति परायण स्त्री धर्म में अत्यंत उच्च। ऐसी औरतें हो गई जिन्होंने अपनी सूझबूझ से अपना घर संभाला। चैतन्य लहरी 12 वे सब तो चले गये अब ये गदै फिल्मी गाने बजते रहते हैं गणेश जी के सामने। क्योंकि सुबुद्धि ही नहीं है मनुष्य में। सुबुद्धि नहीं है तो बेकार के काम करते रहते हैं। बुद्धि से कुछ भी निकाल लेते हैं। इसमें सबसे बड़े हैं ये फ्रायड। इन जैसा तो कोई मैंने देखा नहीं। निसंकोच उन्होंने अपने विचार सबके सामने रख दिये और सबने उनको मान लिया। और मैं यहाँ नहीं बताऊँगी वो क्या है उसके गंद-गंदे विचार वो तो अच्छा है वो हिन्दुस्तान नहीं आया, वरना उसको काटकर लोग फेंक देते। और उस आदमी का लिखना आप उसकी एक लाइन पढ़िये तो आप जान जायेंगे कि बड़ा हो बेशर्म आदमी है, या भूत है, या राक्षस है। जो भी है। ये उसने अपनी लेखनी का और बुद्धि का उपयोग किया। शारदा के विरोध में सब स्त्री अपने बच्चों को अच्छा बनाती है, अपने घर को अच्छा बनाती है, अपने पति को अच्छा स्वास्थ्य देती है वो स्त्री एक बहुत बलिष्ठ समाज बनाती है। यह शक्ति उसकी शालीनता में है उद्दामता में नहीं। उसकी चाल-ढाल उसका ढंग एक देवी स्वरूप होना चाहिए। सो महाकाली शक्ति तो अनेक चीजों पर बैठती है। उसके अपने-अपने बाहन हैं। लेकिन बो जब हाथी पर बैठती है तो उसे ललिता गौरी कहते हैं। कला हाव-भाव उसके सब बहुत इज्जतदार, सुन्दर होते हैं। जरूरी नहीं कि घुंधट करें, जरूरी नहीं कि शालीनता होनी चाहिए। शालीन बहुत बड़ा शब्द हैं इसमें बहुत सी चीज़े समाई हैं क्योंकि जो रुद्र स्वरूपा है उस रुद्र स्वरूपा को सौम्य स्वरूपा होना है। इसलिए कहा है कि आप घूंघट ले लो, सिर ढक लो, बुरका ले लो क्योंकि आप महाकाली हैं। जो आप को बुरी निगाह से देख ले वहीं भस्म हो जाये। आप के संरक्षण के लिये नहीं, आप की सुरक्षा के लिए नहीं, लेकिन वो दूसरे के लिए। जो आप पर बुरी निगाह डाले वो भस्म हो जायें। ऐसी ही ये महाकाली की महान शक्ति है। दिखने में तो बहुत ही उज्जवल बहुत ही शालीन, अंदर से उसकी शक्ति जो है वो अंदर से कार्यान्वित होती है। तो महाकाली को तो लोग कहते हैं कि ये बड़ी रुद्र शक्ति हैं माँ किन्तु इसकी शालीनता देखने पर आश्चर्य होता है कि क्या ये महामाया हैं। हैं तो महाकाली और इतनी शालीन जैसे नववधू। वाह-वाह क्या कहने इसके। ऐसी शरमायेगी, ऐसे मीठे बोल बोलेगी जैसे फूल झड़ रहे हों, ऐसे प्यार करेगी कि विश्वास ही नहीं होगा। ये महाकाली की शक्ति है। इसको जिसने पा लिया उसको कोई भूत नहीं छू सकता। उसको क्या छुएगा, वो ही भूत को पकड़ेगा। अपने यहाँ हैं दो चार ऐसे। और जो स्त्री ऐसी हो वह अपनी एक नज़र से लोगों को भस्म कर सकती है। सिर ढके, लेकिन आंखों में लिखा। अब सब जगह शुरु हो गई कि साहब हमें तो छूट है, हम जो चाहे लिखें। आजकल के अखबार वाले भी वैसे ही हैं। उनके भी जो उऊटपटांग समझ में आती है वो लिख देते हैं। कोई अच्छी बात तो लिखना ही नहीं चाहते। कौन मर गया, कितने मर गये, अभी कोई मर रहा है। भई मर जाने दो काहे को रोज-रोज सबको सताते हो। वो मरता ही नहीं। रोज-रोजे इतना सारा लिखते हो। एक बार मरने के बाद इत्मीनान से लिखो, मरने वाला तो है ही अब क्यों रोज-रोज ये सब बातें लिखो। महा झुठ जो होते हैं वो लिखेंगे। डर नहीं उनको शारदा देवी हो जाये। वो नष्ट का। शारदा देवी जो हैं सत्य को देने वाली और सत्य की अधिशासी। जो अपने मस्तिष्क में सत्य का प्रकाश आता है वो भी शारदा देवी की कृपा से। तो आप जब लिखते हैं तो आप सोचते नहीं कि आप के अंदर ये लेखन शक्ति कहाँ से आई। ये किसने आपको लेखन शक्ति दी? शारदा देवी ने या किसी भूतनी ने आपको दी? इसी प्रकार मैंने देखा कि बहुतों ने इतनी ऊंटपटांग कुण्डलिनी के बारे में बातें लिखीं। एक अरविन्दो साहब हैं, उसमें अर्थ ही नहीं, पता नहीं वो क्या लिखते हैं? बड़ा उनका नाम है। अरबिन्दो मार्ग, मैं कभी उस मार्ग से नहीं जाती क्योंकि पता नहीं ये कहाँ चला जाये। जहाँ उसकी खोपड़ी गई वहीं लिखता गया, लिखता गया। और कुछ भी उसमें बात सत्य नहीं। और उनकी जो वो थी उनसे भी क्या उनका रिश्ता रहा मुझे नहीं पता। वो जो माता जी थी, वो पचासो तो उनके मुँह पर सिकुड़न पड़ी हुई, और कहें ये जवान होने वाली अब दूसरी शक्ति महासरस्वती की। जिससे कि हमारी बुद्धि में अनेक तरह के कलात्मक और विचारक प्रकाश आते हैं। अंदर अनेक विचार बड़े सुंदर, बड़े शांत बहुत शीतल, बहुत कविताएं आती हैं। पर रोने गाने वाली नहीं। ऐसी आती हैं जिसमें आप जागरूक हों। बड़े-बड़े राष्ट्रीय गीत लिखे गये देश के लिये। लोगों ने न जाने क्या-क्या लिखा। अब सरस्वती की कृपा से, शारदा की कृपा से, हमारे 13 कविताएं इतनी सुन्दर हैं कि मैं आपको बता नहीं सकती। शारदा देवी की अत्यंत कृपा अपने देश पर है। सब से बढ़िया लेखक अपने देश में हुए ये पाश्चात्य नहीं असली हिन्दुस्तानी भारतीय लोग। उनके पास पैसा नहीं है पर सरस्वती की बड़ी कृपा है। अब राजस्थान पर बड़ी कृपा रही यहाँ बड़े-बड़े कवि हो गये सिंकंदर भी यहाँ कि संस्कृति देखकर अचम्भे में पड़ गये तो नमस्कार करके वापस चले गये। फिर सूफियों में खुसरो आये। क्या कविताएँ लिखी? कबीर हैं। अभी देखियेगा जवान होंगी। वो मर गई गाड़ दिया पर जवान तो वो हुई नहीं। और उनकी किताबों पर किताब। ऊँटपटांग ऐसी किताब। ऐसे धर्म पर न जाने कितने लोग लिखते हैं। अभी एक साहब लिखते हैं कि कृष्ण शूद्र धर्मी थे। ये शूद्र थे, काले थे और राम ब्राह्मण धर्म के थे। इसलिए इनको शुद्र मानते हैं और उनको ब्राह्मण मानते हैं। मैंने कहा अच्छा ये कौन से शास्त्र में लिखा है? सच बात बताऊँ कि जवाहर लाल नेहरु जी ने जो किताब लिखी है वो खोज (Discovery) किसी और चीज़़ की होगी भारत ( India) की खोज (Discovery) नहीं है। इतनी ओछी किताब। ये हिन्दुस्तान की बात लिख रहे हैं कोई गहराई नहीं उंनमें। दुष्ट लोगों ने बाइबल और कुरान को भी बिगाड़ने में कसर न छोड़ी। शारदा देवी की कृपा से बहुतों ने बहुत कुछ लिखा। ज्ञानेश्वर जी ने ज्ञानेश्वरी लिखी और उसके बाद एक और किताब इतनी सुन्दर कि ऐसा लगता कि आप अमृत पी रहे हैं। संतों ने लिखा जिन पर शारदा की कृपा हुई। ज्ञानेश्वरी की शुरुआत में शारदा देवी की कृपा से वो लिखते कि मेरे वचन, जो भी मैं कह रहा हूँ, ये बात में शारदा देवी को प्रसन्न करने के लिये कह रहा हूँ। लेकिन ये शब्द किसी भी तरह से आपको दुख नहीं पहुँचायेंगे। जिस तरह से पखुंड़ियाँ धीरे से ज़मीन पर आकर बिछ जाती है उसी तरह से मेरे भी शब्द आपके हृदय पर गिरें और आपको सुगाँधत कर दं। इतनी सुन्दर कविता और इतना सौम्य, उसका स्वरूप ऐसा लगता है कि जैसे आप अमृत का रसपान कर रहे हैं। अब इसलिए नहीं कि मैं मराठी भाषा जानती हूँ। अंग्रेज़ी में एक बड़े कवि हो गये और उनकी कंविताएँ हम लोगों ने Vision नाम की किताब में दी हैं आप पढ़िये। उनका नाम था विलियम ब्लेक और इतनी जोशीली कविताएँ लिखते हैं कि आपके अंदर जोश आ जायेगा। शारदा जी से उनकी कविताओं में से निकलकर आपके अंदर घुस गई। वैसे ही शरतचद्ं आप पढ़िये तो आप कहानी लिखना शुरु कर देगें। ऐसे-ऐसे लेखक अपने यहाँ हो गये इस भारत-वर्ष में कि ऐसे कहीं भी नहीं। टालस्टाय हो गये मैं मानती हूँ पर उनसे भी आट] दास, नानक साहब का तो कहना ही क्या? वो तो गुरु ही थे। रामदास स्वामी। बंगाल में भी क्या एक से एक कवि हो गये और ये सब शारदा देवी की कृपा से। सारे शब्दों से मानो धर्म बहता हो, प्रकाश बहता हो और सारे ही इनके शब्द व्यवस्थित हैं। ऐसा लगता है कि निर्विचारिता में लिखे हैं इन्होंने। इतने शुद्ध वर्णन हैं ये! हम ज़रूर कहेंगे कि सबसे ज्यादा संस्कृत में फिर उसके वाद मराठी में ही आध्यत्मिक किताबें लिखी गई हैं। बड़ी गहराई से अध्यात्म पर काम किया गया है। अब कोई कहे कि अंग्रेजी भाषा में भी इतना लिखा जाता है माँ तो वहाँ क्या शारदा का आशीवाद नहीं। अब यही सोचिये कि अंग्रेज़ी भाषा में आत्मा के लिये Spirit शब्द, शराब को भी Spirit शब्द और भूत को भी Spirit शब्द। ये कोई भाषा हुई। ये शारदा देवी की कृपा से ऐसी भाषा लिखी और फ्रैंच भाषा तो उँससे भी गई बीती एकदम। उसमें चेतना के लिये कोई शब्द नहीं। अंग्रेजी में कम से कम awareness तो है। उसमें awareness के लिये कोई शब्द नहीं आत्मा के लिए जितने दारू पर शब्द हैं लगा दीजिए । ये क्या उन पर आशीर्वाद हुआ। ये बड़े-बड़े लेखक हो गए। सब जो भी लेखक वहाँ हुए हैं राजकारणी लोग राजकारण पर लिख गए हैं, हाँ विलियम ब्लेक की बात हम कहेंगे, सी.एस. लुइस भी वहां के महान हैं। रोनी-धोनी कविताएं क्या शारदा देवी के आशीर्वाद में से होती हैं ? या फिर शराब के गुणगान करते रहेंगे। ये सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाने के लिए हैं। मैं तो शीघ्र कवि हूँ मैंने कहा। अपने देश में बहुत सस्ते टाइप के कवि भी पैदा हुए और विशेषकर वो कवि जो कि भगवान् को सब चीज़ में घसीटते हैं और परमात्मा को मनुष्य के जैसा दिखाते हैं ये तो महापाप हैं और उन पर शारदा देवी की जी भी कृपा है वो महाकाली के दरवाजे में जाने वाली है। बढ़कर शरत्चन्द्र। महाराष्ट्र में तो बहुत ही ज्यादा हैं, एक से एक। उनके नाम बताने से कोई लाभ नहीं। लेकिन उनको अनुवाद ही नहीं किया किसी ने क्योंकि ये सब मामला राजनीतिक है। ये राजनीतिक क्या है? शारदा देवी क्या राजनीतिज्ञ हैं? दक्षिण में कुरु करके एक कवि हैं, उनकी चैतन्य लहरी 14 तो बहुत ही कला का प्रादुर्भाव है। फिर भी यहां गरीबी है। टर्की के लोग बड़े कलात्मक है। मेरी अक्ल में नहीं आया कि इतने कलात्मक लोग हैं फिर भी इनमें इतनी गरीबी क्यों आ गई? आखिर पता हुआ कि वे जर्मन लोगों से बड़े प्रभावित हैं। भी वे जर्मन खाना खाएंगे। इतना अच्छा वहाँ खाना मिलता है कि परदेश से लोग वहाँ आकर खाना खाते हैं पर आपको हैरानी होगी कि ये टर्किश लोग जर्मनी से, खाना मंगाकर खाते हैं और कपड़े सिलते हैं, उन्हें जमंनी भेजते हैं, वही कपड़े फिर वहाँ से आयात होते हैं। अपने यहाँ भी काफी है ये बीमारी विदेशी चीजों की। अपने देश में जो चीजें बनती हैं उसके क्या कहने। टकी में जो (Pottery) चीनी के बर्तन बनते हैं आपको दुनिया में ऐसे चीनी के बर्तन कहीं नहीं मिलेंगे। चीन से भी बढ़िया। लेकिन वे जर्मन डिनर सैट में खाना खाते हैं, तो आप गरीब नहीं होंगे तो क्या होंगे। कहने लगे हम तो बड़े गरीब हो गये| माने विद्यापति साहब देख लीजिए। अब राधा और कृष्ण का पता नहीं क्या श्रृंगार करें? सारे विश्व की जिसको चिन्ता है और राधा, 'रा' माने शक्त, 'धा' माने धारण करने वाली। उसको क्या ये सब दुनिया भर का रोमांस करने की फुरसत है? अब डाल दिया उनको रोमांस में। यहाँ तब कि वाजिद अली साहब जिनकी एक सौ पैंसठ बीवियाँ थीं तो भी वो साड़ी पहन कर राधा बनते थे और कृष्ण के साथ नाचते थे। अब जो ये रोमाटिक पना जो है इसमें कोई अर्थ नहीं। बेकार की बातें है। साधु टकी का खाना बहुत अच्छा है फिर संतो को इससे क्या मतलब। तो शारदा जी जो हैं वो भी कभी-कभी महामाया स्वरूप हो जाती हैं जैंसे जैन, के जो कवि लिखते हैं उन्हें कोई नहीं समझ सकता। वो एक सहजयोगी समझ सकता है। उनकी संवदेना सिर्फ योगीजन ही जान सकते हैं। और कोई नहीं। अब कव्वाली में लोग मुजरा गाते हैं और मुजरे में कव्वाली। ये कोई शारदा देवी का आशीर्वाद है किसी भी तरह से? संगीत में भी शुद्धता होनी चाहिए। वर्तमान काल में कुछ ऐसा लगता है कि के मैंने कहा जाओ अब जर्मनी में जाकर भीख माँगो। तो शारदा देवी की जिस देश पर इतनी कृपा है उनको क्या ज़रूरत है परदेशी चीज़ों को इस्तेमाल करने की। इस कदर हम अंग्रेज़ होने की कोशिश कर रहे हैं कि गणपति पुले में बड़े मुश्किल से भारतीयों के लिए व विदेशियों के लिये अलग-अलग गुसल बनाये। भारतीयों के लिए भारतीय ढंग के और विदेशियों के लिये विदेशी ढंग के। तो भारतीयों ने कहा कि हमें तो वैसे ही अंग्रेज़ी ढंग के चाहिए माँ। मैंने कहा अच्छा। विदेशी बहुत खुश हुए हिन्दुस्तानी ढंग शारदा देवी ने अपना हाथ कुछ रोक लिया है। इस राजस्थान में जो कला का प्रार्दुभाव हुआ है मैं देखती हूं कि दो तीन साल में ही एक दम कला फूट पड़ी है ये बिल्कुल शारदा देवी का ही आशीर्वाद है इसमें कोई शक नहीं। ऐसी-ऐसी नक्काशियाँ, ऐसी-ऐसी चीजें बनाने लग गये हैं लोग हाथ से। पहले भी यहाँ बड़ी अच्छी नक्काशियाँ होती थी, लोग तराशते थे। पर अब सारे मिट्टी के बर्तनों में देख लीजिए, कहीं देख लीजिये क्या सुन्दर-सुन्दर रंग, बढ़िया, ऐसी रंग-बिरंगी, ऐसी चीजें पश्चिमी लोगों में ऐसी कला कहाँ उनके हृदय और दिमाग में ताल-मेल ही नहीं है। * , Mother very clean, Mother very clean al बहुत खुश हुये। लेकिन हिन्दुस्तानियों को तो अटैच (attached) चाहिए। पहले जाते थे जंगलो में, अब जुड़े हुए (attached) चाहिएं। इतनी अंग्रेजियत हमारे अंदर आ गई। बहरहाल इसमें भी हर्ज नहीं। बेचारे वहाँ के नेता साहब आये बोले, माँ मै क्या करूँ? लिए बनाया उनको वो पसंद नहीं, जो हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया उनको वो पसंद नहीं। मैंने कहा अंग्रेजों की जगह हिन्दुस्तानियों को रख दो और हिन्दुस्तानियों की जगह अंग्रेजों परन्तु राजस्थान में सफाई का बहुत कम ख्याल है। औरतें बहुत साफ हैं, घर वर्गैरह बहुत साफ रखती हैं, पर बाहर बहुत गंदगी है आदमी लोगों को कोई मतलब ही नहीं है यहाँ। सब कूड़ा बाहर फिंकता है, पर परदेश में बाहर साफ हैं क्योंकि आदमी लोग खुद साफ करते हैं। यहाँ आदमी लोग हाथ में झाडू लेकर साफ करेंगे? तो सफाई और व्यवस्थिता भी शारदा देवी का ही आशीर्वाद है। बाहर की सफाई रखना हमें अंग्रेजों से सीखना चाहिए। ये गंदगी जो है ये शारदा देवी को पास में नहीं आने देगी। वो हट ही जायेंगी। बहुत ज़रूरी है, सफाई करनी चाहिए और सफाई भी सुचारू रूप से कलात्मक होनी चाहिए। यहाँ मैंने जो अंग्रेनों के को रख दो। खत्म काम। समाधान तो निकल आया पर मेरे दिमाग में ये बात आयी कि जो जंगलों में जाते थे वे बड़े अच्छे थे। ये अहदीपने का लक्षण है। हाँ बुड्ढे लोग मेरी समझ में आते हैं लेकिन जवान लोगों को अहदीपने 15 कतरप প बह जाकर नाटक देखते हैं। जिसमें नाट्य कला हो। यहले सिनेमा बहुत अच्छे होते थे, लेकिन अब सिनेमा तो गड़बड़ा की कहां से बात चलती है? वो तो विदेशी चीज कम से कम औरतों में थोड़ी अक्ल आ गई। कम से कम हिन्दुस्तान की औरतों ने तो अपना तरीका नहीं छोड़ा, बहुत सी औरतों ने। जिस दिन औरत ने अपनी शालीनता छोड़ दी उसी दिन उसके अन्दर से जितना कुछ शुद्ध कला जाने क्यो-क्या गये। अब नाटक भी गड़बड़ा जाये तो न ा चीजें हो जायें। कुछ-कुछ ऐसी अजीव- अजीब चीजें देखने में आई हैं कि लगता है कि शारदा देवी यहाँ से भाग खड़ी हो जाये। उनका मान तो छोड़ो उनका बिल्कुल अपमान लोग करते हैं। इतनी विचित्र चीज़ें में देखी फिर मुझे आश्चर्य लगता है कि अभी तक चल कैसे रहा है। अब उन्होंने कहा है कि फिल्मों में से निकाल देंगे (हमें) ये और वो। हमारे जीते-जी कभी हम देख लें ये सब गन्दगी निकल जाये तो बड़ा आनन्द आयेगा। तो भारत की जो कला हैं वो सुघर जायेगी। जैसे आप चीनी कला देखिये तो सींग जैसे भूत के जैसे। और मिश्र की कला देखिये तो सब dead मृत जैसे उनके mummies बनायेंगे। कहीं कुछ बनायेंगे। आदमी एसे बनायेँगे जैसे कोई लाश खड़ी कर दी। पहले इंगलैंड, अमेरिका में भी कला ठीक थी जब तक वास्तवकि बनाते रहे। फिर impressionistic बनाते रहे तब तक भी ठीक थी पर अब जो वहाँ आघुनिक कला बन गई है। ये आपके, मेरे और किसी भी इंसान के बस की नहीं है। ऐसी विकृति आ गई है कि लगता है कि शारदा देवी वहाँ से भाग गई है। इन देशों से। और जितनी गन्दी, और जितनी अधर्मी और जितनी उल्टी-सीधी का स्वरूप है, या स्त्री का स्वरूप, पत्नी का स्वरूप, माता का स्वरूप, सब खत्म हो जायेगा। ये शारदा देवी की कृपा में रहने वाले सब लोगों को पता होना चाहिए। आप जो मैंने मंच पर भारत ने। उसमें दिखावे की कोई ज़रूरत नहीं। भी कुछ करते हैं आप जो कुछ भी करते हैं, पहनते हैं ओढ़ते हैं अगर आपको शारदा देवी की पूर्ण मेहरबानी चाहिए तो दूसरों के लिए करिये अपने लिए नहीं। सारी चीज़ में शारदा देवी का एक आवरण होना चाहिए। संगीत आपका मालूम होना चाहिए चाहे देहात का हो। आपको शारदा देवी की शरण में रहना है तो अपने गाँव में, अपने देश में जो कुछ होता है और जो कुछ आज तक उन्होंने बनाया है, कलाकारों ने, उनकी इज्जत करिये। अजन्ता नहीं देखी पर स्विटजरलैण्ड ज़रूर जायेंगे। अजन्ता जैसी चीज़ स्विटजरलैंड के नाना के बाबा के दादा के कोई नहीं बना सकता। स्विटजरलैण्ड में देखने का क्या है? पत्थर! हम तो स्विटजरलैण्ड गये थे। अजन्ता नहीं देखी आबू नहीं देखे। जो अपने देश के बारे में जानेंगा ही नहीं वो इस देश को प्यार कैसे पिक्चर बनेगी उतना ही उसका दाम लगगा। सिनेमा में शारदा करेगा। और जब कला चारों तरफ से इस देश में बह का बड़ा अपमान किया है। आप सब सहजयोगियों को कला की समझ होनी चाहिए और कलात्मक चीज़ें इस्तेमाल करें, खासकर हाथ से बनी हुई, तो यह पर्यावरण समस्या ही खत्म हो जाये। अपने घर में दो सुन्दर चीजें होना अच्छा है बनिस्बत पच्चीस प्लास्टिक की चीजें होने से और चालीस पेपर प्लेट। ये अपने भारत की संस्कृति के रोम-रोम में शारदा का प्रकाश है। औरतां ने इसे बचाये रखा अब आदमियों को भी चाहिए। इसे समझें। लेकिन हिन्दुस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चार रंग से ज्यादा पाँचवां रंग नहीं जानते। सो वो सूक्ष्म दृष्टि भी अपने अंदर आनी चाहिए। नाट्य रही हो! सो कला की तरफ रुचि रखना और अपने देश की कला को पहले अपनाना चाहिए। शारदा देवी की कृपा आपके इस भारतवर्ष पर बहुत है। और क्योंकि पाकिस्तान और बांगलादेश भी इसी देश का भाग हैं। वहाँ पर भी है पर धीरे-धीरे हट जायेगी। आजकल तो वहाँ सब लोग एक दूसरे को पत्थर ही मार रहे हैं। कुछ लोग औरतों को जमीन में गाड़ कर मार रहे हैं। कुछ लोग करांची में कल देखा मैने पत्थरों पर पत्थर मार रहे हैं । वहाँ कला क्या चीज़ है? सो इस भारतवर्ष पर जो देवी की कृपा है, उसे आप अपनी नज़रों से देखिये। उसको समझिए, चीज़ में, नृत्य में हर चीज़़ में। अब कला में हर नहीं कि आदमी औरतों जैसे नाचें, ये नहीं। लेकिन आदमी-आदमी जैसे औरतें औरतों जैसी। उसके शुद्ध स्वरूप उसका आनन्द उठाइये। फिर नाट्य कला बँगाल में और महाराष्ट्र में नाट्य कला बहुत ऊँची है लोग सिनेमा नहीं जाते नाटक में जाते हैं। महाराष्ट्र के लोग आप जितने अमीर नहीं है पर पाँच रुपये का टिकट हो या सात रुपये का टिकट हो में उतरें। शारदा जी की कृपा तो है ही संगीत में, नृत्य में, सब जगह। हमने बहुत बार देखा है कि लोग जब चैतन्य लही 16 आप प्रवेश करने लगते हैं और मध्य मार्ग में आ जाते हमारे सामने बजाते हैं तो बड़ी जल्दी उनका नाम चढ़ जाता है बहुत नाम होता है बहुत अच्छा बजाते हैं। शारदा जी की कृपा हो गई उन पर। लेकिन आप को सुनकर आश्चर्य होगा कि जैसा हमारे देश का संगीत और नृत्य है ऐसा कहीं भी दुनिया में नहीं है, कहीं भी हैं तब आप एक साघक हो गये, साधक के ऊपर महालक्ष्मी उमड़ पड़ती हैं। महालक्ष्मी की कृपा उस पर आ गई, महालक्ष्मी की शक्ति चढ़ना बहुत मुश्किल है क्योंकि कभी मन बायें को जाता है कभी मन दायें को जाता है। एक मात्र कुण्डलिनी के जागरण से ही मध्य मार्ग आप नाप सकते हैं। पहले तो एक सोपान ब्रिज बनाते हैं भवसागर Void पर। और अब तीसरी जो शक्ति है त्रिगुणात्मिक वो महालक्ष्मी की शक्ति है अब लक्ष्मी जी की पूजा तो अभी करके आये हैं टर्की में वहाँ गरीबी आ गई इसलिए। पर जब उससे गुजर करके ये कुण्डलिनी शक्त मध्य मार्ग से ब्रह्मरंध्र को छेदती हुई ब्रह्माण्ड में एकाकारिता प्राप्त करती है। और जब ये घटना हो जाती है उसके बाद त्रिगुणत्मिका मिलकर के आपकी मदद करती है। आज्ञाचक्र को छेद कर जब आप तक वो जर्मनी से सामान मंगवाना बंद नहीं करेंगे। तब तक उनकी गरीबी जाने वाले नहीं। कहने लगे हमें उसी का स्वाद लग गया है। मैंने काहा वाह-भाई अब भूखे मरोगे तो क्या होगा? तो वहाँ मैंने सोचा लक्ष्मी जी की पूजा हो जाये तो अच्छा। दीवाली वहीं हुई। अब महालक्ष्मी की जो पूजा है यह सिर्फ साधकों के लिऐ है। जब लक्ष्मी जी का पूरी तरह से उपभोग ले लिया और बहुत हो गई लक्ष्मी, जैसे बुद्ध को हुआ था, महावीर को हुआ था, तो विरक्ती आ गई और विरक्ती आने के बाद में वो परमात्मा को खोजने निकले। ये जो खोजने की शक्ति है सहस्रार में आते हैं तो यहाँ आदिशक्ति का स्वरूप (महामाया स्वरूप) 'सहस्रारे महामाया'। जब सहस्रार को तोड़ने का काम हैं वो महामाया स्वरूप है। और वो स्वरूप बड़ा छिपा हुआ और जैसे-जैसे उसे जानने का प्रयल करते हैं तां वैसे बात वैसे आप सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम हो जाते हैं और ये सूक्ष्मता अत्यंत आवश्यक है। हमारे अंदर जो कुछ भी गौरवशाली, विशेष घर्म है उसको जानने के लिए सूक्ष्मता चाहिए। उसमें सिर्फ एक बाधा आती है, वो हैं बायें और दायें की खींच। इसलिए हम आपसे हमेशा कहते हैं अपने ये महालक्ष्मी शक्ति है। अब महालक्ष्मी का मन्दिर है अपने पक कोल्हापुर में। तो वहाँ जोगवा गाते हैं। हे अम्बे तू जाग, हे अम्बे तू जाग। नामदेव जी ने लिखा सोलहवीं शताब्दी में। वहाँ के ब्राह्मणों से मैंने कहा ये क्यों अम्बे गाते हो महालक्ष्मी के मन्दिर में अम्बा जी का? कहने लगे पता नहीं, अनादि काल से चला आ रहा है ये गाना। जब को आप प्रत्यक्ष कर के आत्म निरीक्षण करो। अपने को दूसरों को नहीं । धीरे-धीरे ये होने से आप सहज में स्थापित हो जाते हैं। आप चक्रों के बारे में जान सकते हैं, आप महाकाली शक्ति के बारे में जान जाते हैं। मैंने आप को बता दिया महासरस्वती के बारे में और महालक्ष्मी के बारे में मैंने बहुत बार बताया। ये सब बताना रह जाता है। जब से नामदेव हुए हैं। तो अम्बा कौन है? कहने लगे देवी है ना अम्बा भी? मैंने कहा आपको इतना ही मालूम है। मैंने कहा आपको तो मैं नहीं समझा पाऊँगी ये बड़ा मुश्किल है। फिर महालक्ष्मी के मंदिर में ही अम्बा जाग गई वो कैसे? मध्य मार्ग जो अपना है वो हैं महालक्ष्मी का। उस मार्ग में आप की सारी तक साधक उस स्थिति को प्राप्त नहीं कर लेता उसे चैन नहीं। लेकिन स्थिति को प्राप्त होने पर भी उसका इस्तेमाल नहीं करता तो यह विश्वास पक्का नहीं बनता और निर्विकल्प में उतरना मुश्किल हो जाता है। आज का प्रवचन कुछ ज्यादा हो गया क्योंकि विषय ही कुछ ऐसा है। लेकिन इनसे परं आदि शक्ति। और उनका वर्णन करना कोई आसान नहीं। बड़ी विचित्र चीज़ है। उनका वर्णन करना तो कठिन काम है। आप ही लोग उनका वर्णन कर सकते हैं मैं तो नहीं। ये आप पर छोड़ देते हैं। खोज बाएं की दाएं की, बुद्धि की सब खत्म हो जाती है और आप मध्य मार्ग में आ गये। जब आपने खोजना शुरु कर दिया फिर आप पर महालक्ष्मी की कृपा होती है। और इस बाइबल में Redeemer कहा है। तीन शक्तियां बताई उन्होंने भा (1) Comfortor, Left Side (2) Councillor Right Side और बीच वाली को (Redeemer)। ये Holyghost आदिशक्ति की तीन शक्तियाँ है। सो जो मध्य मार्ग में जब "सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद। " THE 17 পc **निर्मल विद्या"" 4 ६ परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन राहुरी 31-12-1980 यह कौतुक, यह पवित्र श्रद्धा बहने लगती है। उनके विषय में सोच, आपको बहुत प्रसन्नता होगी। बाई विशुद्ध्ध को पकड़ के कारण अबाधिता कठोर हो जाती है। अत: बांई विशुद्धि की पकड़ से छुटकारा पाने के लिए आप सबको मधुर शब्द बोलने होंगे सभी के प्रति आपकी भाषा अत्यन्त मघुर होनी चाहिए। पुरुष विशेषत: अपनी पत्नियों से मधुरता पूर्वक बात-चीत करें और यह मधुरता आपकी बाई विशुद्धि को ठीक करेगी। सदा मधुर वाणी बोलें, मधुर-मधुर शब्दों को खोजते रहें। मधुर सम्बोधन दोष भाव को ठीक करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है, क्योंकि यदि आप किसी से कठोर शब्द कहते हैं, चाहे आप आदतवश ऐसा करते हों या ऐसा करने से आपको प्रसन्नता प्राप्त होती हो, "यह एक विशिष्ट शक्ति है जिसके द्वारा हम सभी दिव्य कार्य करते हैं, यहां तक कि क्षमा भी इसी का वरदान है।" जब आप कहते " श्री माता जी हमें क्षमा कर दें।" तो जिस तकनीक से मैं क्षमा है।, प्रदान करती हूँ वह निर्मल विद्या है। किस तकनीक से मैं आपकों प्रेम करती हैँ वह भी निर्मल विद्या है। जिस तकनीक द्वारा सभी मन्त्र स्वयं सिद्ध एवं प्रभावशाली हो रहे हैं, वह निर्मल विद्या है। निर्मल अर्थात पवित्र, विद्या अर्थात ज्ञान। तो निर्मल विद्या पवित्र ज्ञान है या इस तकनीक का ज्ञान है। यह छल्लों की सुष्टि करती है, उर्जा छल्ले तथा भिन्न प्रकार की आकृतियां बनाती हैं। जिसके द्वारा यह कार्य करती है और सभी अवांछित और अपवित्र तत्वों को अपनी ओर खींचती है तथा इनमें अपनी शक्ति संचारित करती है। इस दिव्य तकनीक का वर्णन मैं पूरी तरह से आपके सम्मुख न कर सकंगी क्योंकि आपका शरीर तन्त्र यह कार्य नहीं करता-अभी तक आपके तो तुरन्त ही आप कह उठते हैं, हे परमात्मा, यह मैंने क्या कहा! यह बहुत बड़ी दोष है। व्यक्ति को सदा मधुर शब्द खोज़ निकालने चाहिए। अब पक्षी चहचहा रहे हैं। इसी प्रकार आपको सभी स्वर सीखने चाहिए जिनके द्वारा आप अपनी मधुरता से सभी को प्रसन्न कर सकें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। अन्यथा यदि आपकी बांई विशुद्धि की पकड़ बहुत अधिक बढ़ गई तो आप में बातचीत करने की एक ऐसी शैली विकसित हो जाएगी कि आपके होंठ बाईं ओर को खिंच कर विकृत हो जाएंगे। तत्पश्चात चैतन्य का बहाव ऊपर की ओर आज्ञा चक्र में चलता है। जहां गणेश शक्ति महानतम क्षमा-शक्ति बन जाती है। तब यह ऊपर तालू क्षेत्र में पहुँचती है जहां गणेश शक्ति सूर्य से ऊँची उठ जाती है जब प्रति-अहम् उभरता है तो यह चन्द्र शक्ति होती है और यह चन्द्र आत्मा है, तब यह शक्ति आत्मा बन कर सदा शिव के सिर पर विराजमान होती है। गणेश शक्ति के पूरे विकास को आप देखें, यह कितना सुन्दर है। अत: पास वाछित रूप से परिपक्व यन्त्र नहीं है। परन्तु अब आप इसे देखें कि यह कितनी सूक्ष्म है। "निर्मल विद्या", उच्चारण मात्र से (निर्मल विद्या को मंत्र लेने से) आप उस शक्ति को आमंन्त्रित करते हैं, पूरी तकनीक को आप अपनी देखभाल करने के लिए आमन्त्रित करते हैं और यह वास्तव में आपकी देखभाल करती है। आपको कोई चिन्ता नहीं करनी पड़ती विश्व में कहीं भी, किसी भी सरकार में कभी एसा नहीं होता कि आह्वान मात्र से पूरा तंन्त्र, पूरा ब्रह्माण्ड, सारी सृष्टि गतिशील हो उठे। यही तकनीक निर्मल विद्या के नाम से जानी जाती है। इसके प्रति समर्पित हो कर यदि हम इसमें निपुणता प्राप्त कर लें तो यह पूर्णत: हमारी आज्ञा पालन करती है। परन्तु यह गणेश-शक्ति है, अबोधिता की शक्त-यही शक्ति अबोधिता कहलाती है, सम्पूर्ण शक्ति, क्योंकि यह अबोधिता है अत: अबोधिता बागडोर सम्भाल लेती है और सभी कार्य करती है। तो इस प्रकार यह कार्यान्वित होती है। यह उन्नत होती चली जाती है और पराशक्ति कहलाती है, अर्थात शक्ति से परे। तत्पश्चात् यह 'मध्यमा' बन जाती हैं, आदि आदि। बाई ओर यह विशुद्धि तक पहुंचती हैं जहां आप दोषभाव ग्रस्त होते हैं। दोषी स्वभाव के कारण आप कठोर बातें कहते हैं। बाई विशुद्धि की पकड़ गणेश शक्ति की पकड़ है। गणेश, सोंची जा सकने वाली, मधुरतम चीज हैं। गणेश जी की ओर देखते ही इस प्रकार हमारी इच्छा आत्मा बन जाती हैं, आपकी इच्छा और आत्मा में एकाकारिता हो जाती है। परन्तु बांई विशुद्धि की पकड़ की बाधा कभी-कभी अत्यन्त कष्टदायी हो जाती है। आप में से जिन लोगों को भी बाई विशुद्धि की पकड़ हो वे जब भी कठोर शब्द बोलें तो समझ लें कि वे नहीं बोल रहे हैं। नहीं, क्योंकि आप तो आत्मा हैं और आत्मा कभी कठोर या विनाशकारी शब्द नहीं बाल सकती। बहुत आवश्यकता पडूने पर ही, सुधार करने के लिए, यह कभी थोड़े से कठोर शब्द कहेगी। परन्तु यह कार्य आपने नहीं करना कोई अन्य शक्ति इस कार्य को करेगी। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 18 ---------------------- 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt ॐ ১ चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VII अंक 7-1995 आिवेश सरहभ ्छ ्र आ FECSE रार क रा Sरि 'सारा बीवन्त कार्य सर्व- शक्तिमान परमात्मा द्वारा किया जाता है। आप तो एक बीज भी अंकुरित नहीं कर सकते। अंकुरित होने के लिए बीज को पृथ्वी माँ में डालना आवश्यक है।" परम फूज्य माताजी श्री निर्मला देवी *ं छ] R ी 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी (1995) खण्ड VII, अंक 7 -: विषय-सूची :- सत्-चित्त-आनन्द (नई दिल्ली) 15-2-1977 1. 1 आदि शक्ति पूजा (जयपुर) 10-12-1994 2. 9. निर्मल विद्या (राहुरी) 31-12-1980 3. 18 श्री यांगी महाजन : सम्पादक श्री विजयनालगिरकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स 35. ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली-110 060 फोन : 5710529, 5284866 मुद्रित 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt "सत्-चित-आनन्द'" परम पूज्य माता श्री निर्मला देवी का प्रवचन नई दिल्ली, 15 फरवरी 1977 क्या आप सब लोग मेरी हिन्दी समझते हैं? यदि मैं अंग्रेज़ी बोलू तो क्या आप समझ सकेंगे? मैं अंग्रेज़ी भाषा के विरुद्ध नहीं हूँ। परन्तु आत्मा की भाषा तो संस्कृत ही है। अंग्रेजों ने कभी आत्मा की चिन्ता नहीं की। अत: हमें वही भाषा उपयोग करनी है जो आत्मा के विषय में बोलती है, अंग्रेज़ी भाषा पर्याप्त नहीं है। अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के पास अनुभव नहीं है क्योंकिक अभी तक वे गहनता में नहीं उतरे। हम अत्यन्त पुरातन मानव हैं। परमात्मा के भी न कर पाएंगे। अपनी महत्वपूर्ण मान्यताओं की उपेक्षा करके हम उन विदेशी मान्यताओं को स्वीकार करते हैं जो कि उतनी व्यापक नहीं है। यह समग्र नहीं हैं। सभी कुछ अपने में समेटे हुए नहीं हैं। अत: मैं आपसे प्रार्थना करुंगी कि हिन्दी भाषा भी सीखें। अंग्रेज़ी में दिये गए मेरे एक प्रवचन का मराठी अनुवाद किया गया। कितनी गरिमा थी इसमें और अंग्रेज़ी में यही प्रवचन कितना निर्जीव था! हो सकता है कि वह मेरे अंग्रेजी भाषा के अल्पज्ञान के कारण ज्ञान की खोज़ हमारी संस्कृति रही है। संस्कृत के माध्यम से ही हमें ज्ञान प्राप्ति हुई, क्योंकि संस्कृत वस्तुत: देववाणी है। इसके अतिरिक्त जब कुण्डलिनी उठती है तो यह चैतन्य लहरियाँ छोड़ती हैं। जिनसे एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है जो कि भिन्न चक्रों पर देवनागरी के रूप में प्रतिष्ठित होती है। यदि समय मिला तो इस विषय पर विस्तृत रूप से समझाऊंगी। संस्कृत भाषा या देवनागरी में उच्चारण किये गए मन्त्र चक्रों को अधिक प्रभावति करते हो। के विषय मं वात करेंगे। ' अब हम 'सत्-चित्त्-आनन्द यहां फिर मुझे संस्कृत शब्द उपयोग करने पड़ रहे हैं । 'सत्-चित्त-आनन्द', 'पराचेतना', स्वंव्यापक शक्ति हैं। चित्त ही चतना है। इस समय चेतन अवस्था में आप मुझे सुन रहे हैं। हर क्षण आप चेतन हैं, परन्तु हर क्षण समाप्त हो कर भूतकाल में परिवर्तित ही रहा है। हर क्षण भविष्य से वर्तमान में आता है। परन्तु इस क्षण आप चेतन अवस्था में है और मुझे सुन रहे हैं। एक विचार उठता हैं और इसका पतन होता है। विचार को उठते हुए तो आप देख सकते हैं परन्तु इसके पतन की आप नहीं देख सकते। एक विचार के पतन और दूसरे विचार के उठने के मध्य कुछ अन्तराल होता है जो 'विलम्ब' कहलाता है। यदि कुछ क्षणों के लिए आप के विचार रुक सर्के तो आप चेतनमन तक पहुँच जाते हैं और यहीं सत्-चित्त-आनन्द का अस्तित्व है। आप कह सकते हैं कि 'सतु-चित्त -आनन्द' मनोदशा या मनस्थिति है जहां कोई विचार नहीं होता, परन्तु आप चेतन होते हैं, 'निर्विचार'। यह प्रथम अवस्था है। जिसमें आप पराचेतना में प्रवेश करते हैं। कुछ लोग सोचेंगे कि आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके वे भी आदि शंकराचार्य की तरह कुछ सिद्धियाँ पा , परन्तु यह सम्भव नहीं। कुछ लोग इन्हें पा भी सकते हैं। सभी के लिए यह सम्भव हैं। अत: यदि आप संस्कृत नहीं सीख सकते तो भी हिन्दी भाषा तो अवश्य सीखें। ध्वनि युक्त भाषा होने के कारण हिन्दी चैतन्य स्पंदन करती है। आप यह भाषा सीखने का प्रयत्न करें। हिन्दी मेरी मातृ भाषा नहीं है, मेरी मातृ भाषा मराठी है। पर मैं हिन्दी बोलती हूँ क्योंकि में इसका महत्व जानती हूँ। थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी का ज्ञान भी मुझे हैं। अत: हिन्दी का ज्ञान होना अच्छा होगा मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मराठी में बोलना मंरे लिए सुविधाजनक है। थोड़ी बंगाली भी मैं जानती हूँ। आत्मा की बात तमिल, साद बहुत तेलेगू या इस योग भूमि की किसी अन्य भाषा में भी की जा सकती है। भारत योग का एक महान देश है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि भारत भूमि का कण-कण चैतन्यित है। वैज्ञानिक यह सब नहीं समझ सकतें। पश्चिमी मान्यताओं का अन्धानुकरण जब हम करने लगेंगे तो अपनी लगे परन्तु नहीं। निर्विचारिता आपकी प्रथम अवस्था है। आप निर्विचार सारी महानता से हाथ धो बैठेगें। निसन्देह: यह नष्ट तो न होगा। परन्तु लक्ष्य प्राप्ति के लिए हम इसका उपयोग 1 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt हैं कि वर्तमान से समाधि को प्राप्त कर लेते हैं। यह तभी घटित होता है जब आपकी कुण्डलिनी आपके आज्ञाचक्र को पार कर लेती है अर्थात जब कुण्डलिनी आपके तालू क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है और आपका चित्त छू लेता है। वास्तविकता (सत्) 'मिथ्या' से अलग हो जाती है। आप द्वि-व्यक्तित्व वन जाते हैं। इस स्थिति में आप सत्य को कौन थी। ऐसे लॉग सदा यही सोचते भूतकाल कहीं महान था मैंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया फिर भी मेरा और यद्यपि अपने पूर्वजन्समों में भूतकाल वास्तव में आज से कहीं अधिक महान था सामूहिक अवचेतन में गया हुआ व्यक्ति जब वास्तविकता को इस प्रकार दखता हैं तो मेरी ओर अत्यन्त आकर्षित होता है। पराचेतन स्तर पर गए हुए व्यक्ति भी यदि बाई ओर को अर्थात भूतकाल में चले जाएं तो उनके साथ भी यही घटित होता है। व्यक्ति यदि दाई और को, भवष्यि में चला जाए सत् विन्दु को असत्य से अलग करने लगते. हैं। जैसे कर दही और पानी को अलग करते हैं इसी प्रकार वास्तविकता का आरंभ होता है। कवल इस स्थिति में आप दूध में चूना डाल सकते है कि कुण्डलिनी जागृत हो गई है। जैसे-जैसे कह तो वह मुझे प्रकाश के रूप में देखता है। ऐसे व्यक्ति मुझे पंच तत्वों में, झरनों के रूप में या हिम शैलों (lce ये घटित होता है हमें इसकी भिन्न अवस्थाओं को समझना मैं आपको इसकी विस्तृत जानकारी दे रही हूं। परन्तु Berg) के रूप में देखते हैं। वं 'तन्मात्रा' अर्थात तत्वों के आकस्तिमक सार ( Casual Essence of the Elements) को भी देखने लगते हैं। इससे उन्हें मेर विषय में विश्वस्त होने में सहायता मिलती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति का विश्वास मुझ पर आप लोगों से कहीं अधिक हो जाता है। बहुत से तान्त्रिक जानते हैं कि मैं कौन थी। वे मुझसे हैं और मेरे विषय में बातचीत करते हैं। एक साधारण नौकरानी एक बार मेरे कार्यक्रम में आई और मूर्छा (Trance) की स्थिति में चली गई और लगी संस्कृत बोलने। पन्द्रह श्लोकों में उसने मेरा पूर्ण वर्णन किया। उसने पहली बार मेरे विषय में यह सब कहा था इससे पूर्व मैंने स्वय भी अपने विषय में कभी कुछ नहीं बताया था। इस प्रकार चाहिए । प्रायः अधिकतर लोगों में कुण्डलिनी एकदम सहस्रार पार कर जाती है। कुछ लोगों की कुण्डलिनी एकदम सहस्रार पार नहीं करती, इसे समय लगता है। स्वाधिष्ठान या नाभि में जाकर यह लुप्त हो जाती है। इससे ऊपर नहीं जाती। कभी अनहद् चक्र इसे पकड़ लेता है और कभी यह बिल्कुल डरते नहीं उठती। परन्तु यदि यह तो व्यक्ति निर्विचार समाधि में चला जाता है। इस निर्विचार आज्ञा -चक्र द्वार पार कर ले समाधि द्वारा कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ यदि आप गवर्नर बन जाएं तो आपको गवर्नर की कुछ शक्तियां भी प्राप्त हो जाती हैं। इसी प्रकार आपको कुछ विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं। परन्तु इस स्थित में कुण्डलिनी को छोड़ देना उचित नहीं क्योंकि इस स्थिति में वह इघर-उधर भटक सकती है और पराचेतन या सामूहिक अवेचतन में जा सकती है। 'सिद्धियाँ' प्राय: इसी अवस्था में प्राप्त होती हैं। छोटी-मोटी सिद्धियाँ नहीं, बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ; उदाहरणार्थ कुण्डलिनी यदि पराचेतन में चली जाए तो व्यक्ति भविष्य के गर्भ में देखने लगता है और भविष्यवक्ता बन जाता है। कुण्डलिनी यदि सामूहिक अवचेतन में चली जाए तो व्यक्ति भूतकाल को देखने लगता है। इस प्रकार का व्यक्ति यदि मेरे पास आए तो वह देख सकता है कि पूर्व जन्मों में मैं कौन थी। मुझे उसे कायल यह सब आरंभ हुआ। अत: इस स्थिति में मैं आपकी कुण्डलिनी नहीं छोड़ना चाहूंगी क्योंकि आप लोगों को रोग-मुक्त कर सकते है। और ये कार्य आप तभी कर सकते हैं जब कुण्डलिनी तालू क्षेत्र (सहस्रार) में हो। मैं सदा उत्सुक रहती हूँ कि कुण्डलिनी ब्रह्मरन्त्र को पार कर ले । उस स्थिति में आपकी चैतन्य लहरियां आने लगती हैं। परन्तु इस स्थिति में आप चित्त' मात्र होते हैं और सत्य बिन्दु को केवल छ भर लेते हैं। आत्मा केवल आपके चित्त को आर्कषित करती है। जैसा मैंने आपको बताया चित्त एक टिम-टिमाहट या गैस लैम्प नहीं करना पड़ता। यह भूतबाधित होने जैसा ही है नशे का आदि या मदिरा में डूबा हुआ व्यक्ति भी यदि आन्तरिक रूप से जिज्ञासु है तो वह भी मुझे भिन्न रूप में देख सकता है। वह मेरे भूतकाल को देख सकता है और मुझसे अत्यन्त प्रभावित हो सकता है। वह जान लेता है कि मैं के प्रकाश की तरह है और कुण्डलिनी गैस की तरह से हैं जो आत्मा को स्पंश करती है और आत्मा का प्रकाश -न मध्य नाड़ी तन्त्र पर फैल जाता है। 'चित्त' का बाह्य भाग चैतन्य लहरी 2. 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt ध्यान है। उस स्थिति में कुण्डलिनी बह्मरन्ध्र को खोलती है, तब आप अपने हाथों में चैतन्य लहरियों को भी महसूस करते हैं और अन्य लोगों की चैतन्य लहरियां को भी महसूस करते हैं। तब आप 'सामूहिक चैतन' हो जाते हैं । सच्चिदानन्द से सामूहिक चेतन द्वारा आप चित्त स्पर्श करते हैं । इस प्रकार आप अपने चित्त के चित्त को सामूहिक चेतना का चित्र आनन्द की अवस्था तक आप अब भी नहीं पहुचे। आरम्भ में आप अपने हाथों में केवल शीतल लहरियों का अनुभवर सा हैं। शान्ति की अवस्था का अनुभव भी आप करते । और निर्विचारिता का भी 'निर्विचार चेतना' को आप अनुभव करते हैं परन्तु अभी तक आनन्द का अनुभव नहीं होता। मैं हजारों लोगों की समस्याओं का अध्ययन कर चुकी हूँ, मैं जानती ह अन्तिम अवस्था तक पहुँच चुके हैं यद्यपि इनकी संख्या हूँ कि यही सच्चाई है। परन्तु कुछ लोग बनते हुए महसूस करने लगते हैं अरथित् आप सत्-चित्त-आनन्द के सागर में उतर जाते हैं जहां आप केवल सामूहिक चेतना का अनुभव करते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को अनुभव करने लगते हैं। बहुत कम है। इस प्रकार पहली अवस्था जो आप प्राप्त करते हैं कल एक सज़्जन, आपने देखा होगा. मुझसे बहस कर रहे थे कि हमारी निलम्बित बुद्धि है । परन्तु मैंने उससे मात्र इतना कहा कि "निलम्बित बुद्धि क्या होती है? मुझे इसका कोई ज्ञान नहीं।" मैंने उसे ये बताया। वह कहने लगा कि "मैं तुर्या-स्थिति में हूं। मैंने कहा, "यदि आप त्र्या में हैं तो आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं। इसके बिना आप अपनी बात को प्रमाणित नहीं कर सकते। परन्तु आप क्या अन्य लोगों की कुण्डलिनी को महसूस करते हैं? वह कहने लगा नहीं। तब मैंने उससे आप तुर्या अवस्था में कैसे हो सकते हैं? यदि बह है 'चित्त' अवस्था, चेतनावस्था। आप 'सत्' को स्पर्श कर लेते हैं अर्थात् वास्तविकता का देखने लगते हैं। आप अपने अन्दर एक बहाव को महसूस करने लगते हैं। इस स्थिति में आप कहने लगते हैं कि यह आ रहा है, ये जा रहा है। अभी-अभी आपने कहा था कि यह आ रहा है। आपने यह नहीं कहा कि 'मैं इसे प्राप्त कर रहा हूँ, 'मैं' दे रहा हूँ। आपकी भाषा में 'मैं' शब्द लुप्त हो जाता है। परन्तु अभी तक अहं और प्रतिअहं पूर्णतया लुप्त नहीं हुए। वे अब भी वहीं है परन्तु अपने ध्यान से आप 'चित्त' को अनुभव करने लगे हैं। इस 'सामूहिक चेतना' से आप लोगों का रोगमुक्त कर सकते हैं, उन्हें पूछा, आप तुर्या अवस्था में जाते हैं अर्थात इस अवस्था को पार करते है। तो आपमें दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव करने की सामर्थ्य होनी चाहिए। अब आपने देखा होगा कि उन्हं आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं और जैसा मैने आपको बताया विश्व के किसी भी व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं और उस व्यक्ति के चक्रों के विषय में यहां पर बहुत से लोग कुण्डलिनी का अनुभव कर सकते हैं और सभी एक ही वात कहते हैं। वे चाहे अंग्रेज़ी, भारतीय या किसी अन्य भाषा में बात करें, वे सभी एक जान सकते हैं। अपने स्थान पर बैठे हुए आप दूर स्थान पर रहने वाले व्यक्ति की दशा बता सकते हैं। जहां भी आपका चित्त जाता है वहीं पर कार्य करता है, यह सर्वव्यापक ' ही भाषा बोलते हैं। एक ही बात वे सब कहते हैं कि बन जाता है। बूंद रूपी आपका चित्त 'सतु-चित्त-आनन्द ध्यानपुर्वक सुनें से लोग छोड़ जाते हैं। केवल चित्त ही प्रभावशाली बन जाता है। इंग्लैण्ड से फलां चक्र पकड़ रहा है। ऐसा इस लिए होता है क्योंकि आप अपनी कुण्डलिनी को देखने लगते हैं और उससे लोगों की कुण्डलिनी को भी देखने लगते हैं। अपनी अंगुलियों सागर में लीन हो जाता है। मेरी बात को क्योंकि इस अवस्था पर पहुँचकर बहुत के माध्यम से आप जान सकते हैं कि स्थिति क्या है। आए अपने एक शिष्य के विपय में मैं आपको बताऊँगी। एक दिन वह बैठा हुआ अपने पिता के विपय में सोच रहा था। अचानक उसकी तर्जिनी अगुली पर जलन होने लगी। उसने अपने पिता को फोन किया। उसकी माँ ने उसे बताया कि उसके पिता की दशा ठीक नहीं हैं। गले की खराबी से वह बहुत परेशान है। इस लड़के ने अपनी आप केवल चित्त को महसूस कर सकते हैं। इसके आनन्द भाग को नहीं। पहली अवस्था में चित्त के माध्यम से आप दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को अनुभव कर सकते हैं और उसके द्वारा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी को जागृत भी कर सकते हैं। कुछ देर बाद मेरे फोटोग्राफ की सहायता से आप अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार भी दे सकते हैं। परन्तु 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt तो उसकी चैतन्य लहरियां समाप्त हो जाएंगी और वह एक अंगुली पर कुछ किया और उसका पिता ठीक हो गया। अब वह सोच सकता है कि वह बहुत शक्तिशाली हो गया है, आदि-आदि, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। वह इस प्रकार नहीं सोच सकता क्योंकि उसका सहस्रार खुल चुका है। उसने मात्र इतना कहा, महसूस किया और इस प्रकार किया और मेरे पिता जी ठीक हो गए।" वह कभी नहीं कहता कि मैंने उन्हें ठीक कर दिया। 'मैं' निकल जाता है। आप कभी नहीं कहते कि 'मैंने' यह कार्य किया, आप कहते हैं, "श्री माता जी आज मेरी आज्ञा पकड़ रही हैं" "श्री माता जी मेरा हृदय पकड़ रहा है।" वे आते हैं और अपने विषय में इसी प्रकार कहते हैं। आज्ञा पकड़ रहा है अर्थात आप साधारण व्यक्ति के सामान हो जाएगा। आरम्भ में आत्म-साक्षात्कार की स्थिति अत्यन्त अस्थाई होती है। फिर भी मैं यह कहाँगी कि इसके प्रति अरुचि इतनी अधिक नहीं होती कि व्यक्ति इसे स्वीकार ही न करें। यदि आप इसे स्वीकार कर लते है तो पूर्णत: "श्रीमाता जी मैंने ऐसा आत्मसाक्षात्कारी बन जाते हैं। परन्तु यदि इसे स्वीकार नहीं करते तो आपको कुछ शरीरिक समस्या हो सकती हैं आपकी अंगुलियों में खराबी आ सकती हैं या शरीर के कुछ हिस्सों पर आपको जलन भी हो सकती है। इन शरीरिक समस्याओं की चिन्ता यदि आप नहीं करते तो आपका उत्थान होने लगता है और, जैसे मैंने बताया, ये सभी 'चिंरजीव' आपका पथ प्रदर्शन और देखभाल करने लगते हैं। रेलगाडी में यदि एक भी आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं तो वह दुरघंटनाग्रस्त नहीं हो सकती और यदि किसी कारण से दुर्घटना हो जाती है तो भी उसमें किसी की मृत्यु नहीं हो सकती। और पागल हो रहे हैं। परन्तु आप इसका बुरा नहीं मानते क्योंकि आप इससे लिप्त नहीं हैं। व्यक्ति अपनी आत्मा से लिप्त हो जाता है। अत: आत्मा रूप में वह कहता है कि यह चक्र पकड़ रहा है, वह चक्र पकड़ रहा है। कैसर रोगी को अपने रोग का ज्ञान नहीं होता। परन्तु आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति यदि सड़क पर चल रहा हो किसी सम्भावति दुर्घटना की ओर उसका चित्त चला जाए तो वह दुर्घटना टल जाएगी क्योंकि उसके चित्त को आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है । वैज्ञानिक इस बात को नहीं समझ सकते। अभी अभी किसी ने मुझसे पूछा, "यदि वह अन्दर के देवता उसके अन्दर का पथ प्रदर्शन करते हैं तो बह स्वयं व्यक्ति का चित्त उसे बता देगा कि फला-फला चक्र खराब हैं- और इतने सारे चक्रों के खराब होनें का अर्थ है कैंसर रोग। डाक्टर के पास जाने की उसे कोई आवश्यकता नहीं, %3D वह स्वंय इसका निदान कर सकता है। डाक्टर की तरह से वह अपना निदान नहीं करेगा कि यह हृदय का कैंसर है या गले का, परन्तु वह कहेगा कि बांई ओर के या दांई ओर के चक़ पकड़े हुए हैं। कुछ भी नहीं कर सकता।" यह सत्य नहीं है। अन्दर के देवता उसके अंग-प्रत्यंग हैं। आप कह सकते हैं कि मेरा पथ प्रदर्शन मेरे मस्तिष्क द्वारा होता हैं अत: मैं और अब यह चैतन्य लहरियां कहां से आ रही हैं और कुछ नहीं कर सकता। आप स्वंय देख सकते हैं कि यह देवता आपके भिन्न चक्रों पर विराजमान हैं। तो अपना कहने कहां तक जा रहीं हैं तथा कहां तक इन चक्रों की गहनता को बता सकते हैं? बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हो रही हैं। अमृर्त (Abstract) के लिए आपके पास क्या बचा? आपका व्यक्तित्व आत्मा से जुड़ जाने पर आप नि्लिप्त हो जाते हैं और तब स्वामित्व जब आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो 'चिंरजीव' भाव आप में समाप्त हो जाता है। हर समय आप यही 1. आपके सम्मुख समर्पण कर देते हैं। वे आपको देखते रहते कहते हैं कि "यह जा रहा है, यह घटित हो रहा है, हैं। क्योंकि आपका उत्तरदायित्व अब उन पर हैं। आपके यह प्रवाहित हो रहा है।" तृतीय पुरुष के रूप में आप स्वयं को देखने लगते हैं। अपनी आत्मा का तदात्मय आप अपने शरीर से नहीं करते, ऐसा होता है। आप इन लोगों को देखें कि ये किस प्रकार कार्यरत है। अन्दर सभी देवता जागृत हो चुके हैं। यदि आप देवताओं के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो तुरन्त वे आपको दण्डित करते हैं। आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति यदि किसी अवांछित या गंद स्थान पर जाता है, या किसी कुगुरु के पास जाता है तो तुरन्त उसको गर्मी आने लगती है। फिर भी यदि वह वहां से दौड नहीं जाता, इसी प्रकार चलता रहता है सहजयोग में आनन्द का भी एक स्थान है। प्राय: आप देख सकते है कि सहजस्वभाव के आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति चैतन्य लहरी 4 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt के इर्दं-गिर्द बहुत से सहजयोगी इकट्ठे हो जाते हैं । किसी महान आत्मा के मेरे चरणों में आने पर सहजयोगी अत्यन्त जम नहीं पाये। परन्तु दिल्ली में अत्यन्त महान सहजयोगी भी मिले। अब आप पूछेंगे कि निंविकल्प कैसे बनें? मान लो आप पानी में हैं तो आप डुबने से भयभीत हैं । यदि कोई आपको नाव में बिठा दे तो आपका डूबने का भय समाप्त हो जाता है। अब आप दृढ़ता पूर्वक जम सकते हैं। आनन्दित होते हैं। एक बार हम कलकत्ता के एक होटल में ठहरे हुए थे। एक सज्जन मुझे मिलने आये, वह MA आत्मसाक्षात्कारी तो न थे परन्तु अत्यन्त सन्त स्वभाव और महान पूर्व-सम्पदा सम्पन्न व्यक्त थे। उसने मेरे चरण स्पर्श किये। सहजयोगी दूसरे कमरों में थे। व दौड़े हुए आए। मैंने कहा, ा दृढ़तापूर्वक जमने पर आपको कुछ विशिष्ट शक्त्यां प्राप्त हो जाती हैं- आपकी कुण्डलिनी चलने लगती है। बम्बई में कुछ लोगों की कुण्डलिनी एक फुट तक ऊँची उठती है। वे अत्यन्त विकसित लोंग हैं। निविकल्प अवस्था आप क्यों आयें हैं?" वे कहने लगे "हमारे अन्दर आनन्द का प्रवाह एक दम बढ़ गया। अंत: हम यहां आ गए हैं।" पूरा समय वह व्यक्ति मेरे चरणों में था और सहजयोगी वहां खड़े हुए थे। मैंने कहा "न यह मुझे छोड़ के जा रहा है और न ही आप लोग।" पर में सामूहिक चेतना सुक्ष्म से सुक्ष्तर होती चली जाती है। जब वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है तो आप चीजों की पन्द्रह मिनट तक वह व्यक्ति मेरे चरणामृत का आनन्द लेता रहा और वे सब उसके अमृत और सुगन्ध का आनन्द लेते रहे। अत: दूसरे व्यक्ति का आनन्द लेने से भी आनन्द प्रवाहित होने लगता है। यही भावनाएं हैं जिन से आप निरविचारिता गहन महत्ता को समझ सकते हैं । उदाहरणार्थ आप कुण्डलिनी की कार्यशैली को समझने लगते हैं। आप समझने लगते है। कि किस प्रकार कुण्डलिनी भेदन करती है और किस प्रकार कार्यान्वन करती है। अपने हाथों से प्रयोग करनें के लिए आप इसका उपयोग कर सकते हैं और इसे इच्छानुसार ला सकते हैं। आप लोगों को रोगमुक्त कर सकते हैं और भिन्न तरीकों से कुण्डलिनी की कार्यशैली दिखा सकते है।। कुण्डलिनी के प्रस्तार एवं संयोजन ( Permutations & Combinations) में आप सम्मिलित हो सकते हैं। आप कह सकते हैं कि संगीत की शिक्षा के प्रथम वर्ष में '' या 'समाधि' का आनन्द लेते हैं। 'समाधि' का अर्थ अचेतन में चले जाना नहीं है। सर्वव्यापी अचेतन चेतन बन जाता है अत: यह प्रथम अवस्था है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं और भिन्न घटनाएं घटित होती हैं। अपने पूर्व जन्मों में यदि आप बहुत अधिक ज्योति पूजा करते रहें हों तो आप मेरी चैतन्य लहरियों को आते जाते देख सकते हैं। यदि आप देवी पूजा करते रहें हैं तो आप 'देवी प्रमाण' का कोई कार्य कर सकते हैं और उसे देख भी सकते हैं परन्तु यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व ही ऐसा कुछ देखते है कोई आपको विचार दे रहा है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप केवल सात स्वर तथा दो अन्य स्वर और साधारण राग सीखते हैं परन्तु जब आप ऊँचे उठ कर सुक्ष्म हो जाते हैं तो आपको सारी बारीकियों का ज्ञान हो जाता है कि किस प्रकार संगीत की सृष्टि की जाए। तो आप भूतवाधित हैं, निविकल्प अवस्था में आपको किसी की आर अपने यदि आप कुछ देखने लगते हैं तो उसका कोई अर्थ होता हाथ करने की आवश्यकता नहीं करनी पड़ती। बैठते ही आप उसकी स्थिति को जान जाते हैं कि कौन सा चक्र है। इस प्रकार पुष्प का क्रमिक विकास प्रकट होने लगता है| पकड़ रहा है और समस्या क्या है। 'सामूहिक समस्या क्या है। आपको सहजयोग कुण्डलिनी और किसी भी अन्य चीज़ के बारे में कोई सन्देह नहीं रह जाता सन्देह पूर्णत: समाप्त हो जाते है और तब आप इस पर प्रयोग करके इसका उपयोग करते हैं । कुण्डलिनी पर अधिकार होने लगता है। तब 'चित्त', चेतना सूक्ष्म हो जाती है। मेरे पास कोई दूसरी कोई विकल्प न हो। अभी तक दिल्ली में ऐसे बहुत कम सहजयोंगी हैं। सर्वप्रथम तो स्वभाव से ही वे विकल्पी हैं। अवस्था में आप 'निर्विकल्प' हो जाते हैं- जहां इसका कारण ये है कि पूरा वातावरण ही विकल्प का है। आप यदि कुछ कहें तो दूसरा व्यक्ति कोई और बात कह कर आपको पीछे को खींचेगा। इस प्रकार पूरा वातावरण र व्यक्ति बैठा हुआ था और बाहर बैठे सहजयोगी जान गए कि उस व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार मिलने वाला है, वे ही इतना विकल्पी है कि आप अभी तक सहजयोग में shce 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt किस प्रकार उचित ठहराते हैं? ये कहना कि चाहे काई यह भी जान गए कि श्री माता जी उसे आत्म साक्षात्कार दे रही हैं। सहजयोगी ऐसे समय पर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और छोटी-छोटी बातों का गिला शिकवा नहीं करते, वे निश्चिन्त होते हैं और शान से रहते हैं। व तुनक-मिज़ाज नहीं होते। उनका चित्त सूक्ष्म में होता है। बाहर के स्थूल पदार्थों के लिए उनके पास समय नहीं होता। अत: उनका उनकी हत्या भी करने का प्रयल कर रहा हो तो भी सहजयोगियों को क्रोध नहीं आना चाहिए, अत्यन्त मुर्खता है। ईसा मसीह को भी अपने हाथ में हंटर उठा कर लोगों को भगाना पड़ा। यदि आप निविकल्प आपको क्रूद्ध होने और ऊँची आवाज़ में बालने का अधिकार दिया गया है। यदि आपने कभी मरे हाथों की ओर ध्यान अवस्था में हैं तो चित्त सदा सुक्ष्म भाग की गहनता में होता है। वे चिन्ता नहीं करते। इस प्रकार के लोग अत्यन्त सन्तुष्ट होते हैं और ये ही सहजयांग के स्तम्भ बनाएंगे। जब भी कोई ऐसे परिवर्तित व्यक्ति को देखता है ता आश्चय चकित दिया हो तो आप जानते होंगे कि मैं चक्र, फर्सा आदि आयुधों का उपयोग करती हूैं। मुझे इनका उपयोग करना पड़ता है और ऐसा करने से आप मुझे रांक नहीं सकतें। इसीलिए मैं कहती हूँ कि अध्ययन से लोग चीजों का नहीं समझते। एक व्यक्ति शान्तिपूर्वक बैठा हुआ है और सभी लोग उसे परेशान कर रहे हैं। क्या ऐसा ही व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी कहलाएगा! कितनी मूखंता है? ऐसे व्यक्ति के प्रति दूर्भाव रखने की आपकी हिम्मत कैसे हुई। क्या आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति को देवी का क्रोध सहना है? तो वह कितना महान इस व्यक्ति को देखों रह जाता है, "इ है। पहले तो वह अत्यन्त भयानक किस्म का होता था अब इस प्रकार परिवर्तित हो गया है। देखों यह कितना बदल गया है!" निंविकल्प अवस्था में चैतन्य लहरियां निकलती हैं और सभी प्रश्न शान्त हो जाते हैं। परन्तु ऐसा व्यक्ति यदि कभी किसी को मुझसे अभद्र व्यवहार करता ये कहना अनुचित है कि आत्मसाक्षात्कारी को क्रीध नहीं हुआ देख ले तो वह सहन नहीं कर सकता और उसे भयानक क्रोध आ जाता है ईसा मसीह नें कहा है "उन सबको क्षमा कर दो क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" परन्तु यदि उन्होंने उसकी माँ विरोधी काई कार्य किया होता तो उसने उन्हें कभी क्षमा न किया होता। बाईबल में लिखा है- "आदि शक्ति की शान में किया आना चाहिए। सभी ऋषि जिनकं विषय में मैंन बताया और वे सभी लोग जिनके नाम मैंने आपको बताएं हैं और जिन्होंने मेरे विपय में बात-चीत की हैं वे निविकल्प अवस्था से भी ऊपर है, परन्तु अत्यन्त उग्र स्वभाव के हैं। ये सन्त पाखण्ड गया कोई अपराध सहन नहीं किया जाएगा और आदि शक्ति (Holy Ghost) उनकी मां थी। अत: आप अपनी मां (श्री माता जी) या सहजयोग के विरुद्ध कुछ भी सहन नहीं कर सकते और व्यक्ति को भयंकर क्रोध आ जाता है. या अन्तर्विकसित 'सहांर शक्ति' का भी उपयोग वह कर को सहन नहीं कर सकते, परन्तु मैं कर सकती हैं, मुझे करना पड़ता है। कोई 'राक्षस' उनके समीप नहीं जा सकता और यदि कोई जाने का दुःस्साहस करे तो फंदा डालकर उन्हें पेड़ से लटका दिया जाता है। इसीलिए मैं कहती हैं कि 'वाबा जी के समीप कभी मत जाओ। वे नि:सन्देह आप लोगों से ऊँचे हैं, आप सबसे अच्छे हैं, मुझे भली हैं और मेरे चरण कमलों में गिरतें हैं । सकता है। कहा जाता हैं कि ऐसे व्यक्ति को यदि कोंई हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगा तो अपनी मां के प्रति भक्ति के माध्यम से वह उसे पछाड़ देगा। हममें एक धारणा है कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति का कभी क्रोध नहीं आना भांति पहचानते मेरे लिए वे अत्यन्त अबोध और बच्चों की तरह से सहज हैं। श्री गणेश अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं। यदि व कुषित हो जाएं तो उन्हें संभालना अत्यन्त कठिन है । श्री शिव के क्रोध को शान्त करना तो सुगम है परन्तु श्री गणेश के क्रोध को शान्त करना अत्यन्त दुर्गम है। उनसे सावधान रहें। यही कारण है कि कुण्डलिनी जलन होने लगती है और नाचने और कूदने लगते हैं। चाहिए। यह अत्यन्त गलत विचार है। तब तो आप यह भी कह सकते हैं, "कृष्ण ने जरासंघ और कंस का वध क्यों किया?" कृष्ण की हिंसा को आप किस प्रकार उचित ठहरा सकते हैं? देवी अवतरित हुई और राक्षसों पर कृपित हो कर उनका संहार किया। उनके इस कार्य को किस प्रकार न्याय संगत ठहराते हैं? भयंकर क्रोध में आने पर वे संहार करती थी। और शिव का क्रोध! इसको आप की जागृति के समय आपका यह सब श्री गणेश का क्रोध है। किसी कारण वश यदि आपने उनका या उनकी मां का अपमान किया है तो उन्हें चैतन्य लहरी পাত 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt के एक सज्जन को निविकल्प अवस्था प्राप्त हो गई। बेरीजगारी की स्थिति में वह मेरे पास आया। मैंन उससे कहा, "आप भयंकर क्रोध आ जाता है। यह सत्य है कि निविकल्प के पश्चात श्री गणेश आन्तरिक साज सज्जा का कार्य क्यों नहीं करते?" उसने वास्तव में जागृत हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति किसी स्त्री के प्रति मोहित नहीं होता अपनी पतली के अतिरिक्त उसे कोई स्त्री नहीं लुभा सकती और वह एक ब्रह्मचारी पति कहा उसे भिन्न प्रकार की लकड़ियां का ज्ञान नहीं है, वह क्या करे। मैंने कहा, अब आप निविकल्प अवस्था में हैं अत: आरम्भ कर दें।" आज वह अत्यन्त वैभवशाली व्यक्ति है। आपमें प्रगल्भता आ जाती है क्योंकि आप प्रकृति के सौन्दर्य को दखने लगते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति सौन्दर्य बोध उत्पन्त हो देखने लगता है। बातचीत का सौन्दर्र्य भी बढ़ता है। हाथ हिलाने की शैली में सुधार होता है और आपकी सारी शैली सुधर जाती है। सौन्दर्य बोध आ जाता है और आप की तरह से रहे चले जाता है क्योंकि पति-पत्नी तो विवाह के सूत्र में बंधे होते हैं। अन्यथा वह एक पवित्र गृहस्थ होता है। उसे मदिरा या धूम्रपान आदि का कोई आर्कषण नहीं होता। वह सम्मोहन से परे होता हैं। निंविकल्प व्यक्ति जाता है। हर चीज़ में वह सोन्दर्य को कोई प्रलोभन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि वह आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं मैंने कहा, यह किस प्रकार हो सकता है? यदि आप सुन्दर व्यक्ति बन जाते हैं। अचानक आप एक महा-कवि भी बन सकते हैं। हमारे यहां एसे दो व्यक्ति हैं जिन्हांन अति सुन्दर कविताएं लिखी हैं। यदि आप चित्रकारी करते हैं आत्मसाक्षात्कारी हो तो इन चीज़ों की ओर तुम किस प्रकर आर्कषित हो रहे हो? आप इन की ओर आर्कषित नहीं हो सकते।" अब मैं आपको अपनी बात वताती हूं कि ऐसा कर पाना असम्भव है। मैंने ऐसी कभी कोई चीज़ तो आप महान चित्रकार बन सकते हैं। चित्रकारी के विषय में आपको नये विचार और नया सौन्दर्य-वांध हा नहीं ली। एक बार मेरे डाक्टर ने दवाई के रूप में बिना बताए थोड़ी सी ब्रांडी दी, इसके कारण मुझे रक्त की बहुत सी उल्टियां हुई क्योंकि मेरा, पेट ही धार्मिक एवं पवित्र हैं। किसी महिला को उत्तेजित करने वाली वेशभूषा पहने देख लूं या अपने पति के साथ मुझे किसी पार्टी में जाना पड़े, जहां कैब्रे आदि शुरू हो जाए. तो मुझे उल्टी सी आने लगती है, विशेष तौर पर उस स्थिति में जब हम वहां पर मुख्य अतिथि हों। मैं उनकी दुर्दशा कर देतीं हूँ क्योंकि इन अधनंगी स्त्रियों को देखकर मेरे पेट में कुछ अपने पेट का में क्या करूँ क्योंकि पेट जाता है संगीत आपको शास्त्रीय संगीत का ज्ञान न हो फिर भी आप सूक्ष्म को आप पूर्णत: समझने लगते हैं। चाहे संगीत को समझने लगते हैं। शास्त्रीय संगीत से आप जान पायेंगे कि आपकी आत्मा क लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है। इस स्तर पर आत्मा हर चीज़ का निर्णय करने लगती हैं। एस व्यक्ति को यदि आप नाटक या चित्रकारी के निर्णायक के रूप में पदारूढ़ कर दे तो वह इसका ठीक से जांचेगा। उसके निर्णय को विश्वभर के आलोचको के सम्मुख रखेंगे कि यह सर्वश्रेष्ठ निर्णय है। अब आप मुझे पूछेगे कि होने लगता है। में ही धर्म उत्पन्न होता है। अत: पेट स्वयं धर्म बन जाता वह यह सब "किस प्रकार जानता है?" क्योंकि उसमें चैतन्य लहरियों और अन्य सभी चीजों के सीन्दर्य का अनुभव करने का क्षेम है। । इस अवस्था में चीजों की सूक्ष्म शैली आरम्भ हो जाती । आपका मूलाधार साक्षात पवित्र बन जाता है। उल्टी सीधी चीज़ों को यह सहन नहीं कर सकता। उन्हें ये सब समझाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। एंसी स्त्रियों में उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे प्रेम खिलवाड़ नहीं करते और न ही ऐसी चीज़ों में उनकी दिलचस्पी होती है अन्य स्त्ी या पुरुषों को लुभाने के लिए वस्त्र आदि धारण करने की वे चिन्ता नहीं करते और अत्यन्त साधारण व्यक्तियों की तरह से आचरण करते हैं। गरिमामय सादगी का वह अपना आप उसे किसी देवता की मूर्ति दे कर पूछिये कि यह ठीक है या नहीं हैं ता वह कह सकता है कि ये ठीक नहीं है। आप चैतन्य लहरियों सं महसूस कर सकते है। कि ये धर्म है या अधम। अब क्या हम कह सकते ा हैं कि अष्ट विनायक जीवन्त हैं या नहीं? किस प्रकार जानते हैं कि ज्योंतिलिंग जीवन्त हैं? यह आप कैसे जानंग? क। सभी महान आत्माओं का एकीकरण किये बिना आप उन्हें किस प्रकार समझ सकते हैं? अत: आप आत्मसाक्षात्कार लेते हैं। अचानक वे अत्यन्त रचनात्मक बन जाते हैं। बम्बई 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt अवश्य लें। मेरे पिता जी ने मुझे यही समझाया। वे हमें प्रेम करता है। इस ज्ञान को जब आप जान जाते हैं तब हृदय आनन्द को प्रवाहित करने लगता है। बाद आत्मसाक्षात्कारी पुरुष थे और में कहुंगी कि वे मेरे प्रथम गुरु थे। उन्होंने मुझे बताया कि वास्तविकताओं आदि की बात करना व्यर्थ है क्योंकि इससे तुम एक अन्य बाईबल या गीता की सृष्टि कर दोगी। इसके स्थान पर तुम व्यवहारिक कार्य करो। एक सामूहिक विधि खोज निकालो, और मैं समझ गई कि यही मेरा लक्ष्य था। अत: मैंने लोगों की कुण्डलिनी पर कार्य किया और उनकी गलतियों के प्रस्तार एवं संयोजन (Permutations & Combinations) को खोज़ में आप इस आनन्द में विलय प्राप्त कर लेते हैं। उस स्थिति में पूर्ण आत्मसाक्षात्कार घटित होता है। उस अवस्था को प्राप्त कर लेने पर आप सूर्य, चन्द्र तथा अन्य सभी तत्वों का संचालन कर सकते हैं । इस अवस्था से भी परे परमात्म-साक्षात्कार है। इसकी तीन अवस्थाएं हैं। अभी अभी मैंने इसके विषय में बताया था कि 'सत्-चित्त-आनन्द' अवस्था परमात्म-साक्षात्कार की वह अवस्था है जिसे प्राप्त करके गौतम बुद्ध और महावीर हमारे मस्तष्क में स्थापित हो निकालने का प्रयत्न किया। यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि लोग एसे क्यों हैं। आप आश्चर्यचकित होंगे कि बहुत लगा था कि वेनिर्विचार अवस्था में भी हैं। वे न जानते थे कि वे इतने उच्च कोटि की आत्माएं हैं। यदि उन्हें इस बात का ज्ञान होता तो आपको बन्धन में डालने वाली बहुत सी बातें उन्होंने न बताई होतीं। उन्होंने कहा, 'सच बोलो!' कौन 'सच' बोलेगा? उन्हें यह गए। ईसा मसीह भी यहीं हैं। ये दोनों अवतरण नहीं मानव की तरह से उत्पन्न हुए हैं। सीता की कोख से लव-कुश के रूप में वे जन्में, फिर वे बुद्ध और महावीर रूप में जन्म और एक बार फिर आदि शक्ति उनकी मां थी। तत्पश्चात हसन-हुसैन के रूप में वे फातिमा बी से जन्में। आपके लिए ये दोनों मील के पत्थर हैं जिनके द्वारा आप जान सकते हैं कि मानव किस ऊँचाई तक उठ सकता है। आज वे अवतरणों सम हैं। चिरंजीव, भैरव, गणेश सारे लोगों को पता ही न के समझे न थी कि मानव क्या हैं। वे अंत्यन्त महाने अवतरण और वे न जानते थे कि मनुष्य कितना चालाक और कितना परस्पर-विरोधी। सूक्ष्म मानव स्तर पर वे न ऐसा करने के लिए उन्हें मानव की तरह थे कुछ अन्य प्रकार के व्यक्तित्व हैं। ये सब अवतरण हैं। हनुमान जी, बाद में, 'देवदूत गैब्रील' के रूप में अवतरित हुए और भैरव नाथ 'संत माइकल' के रूप में आये। नाम भिन्न हैं पर वे सब एक ही जैसे व्यक्तित्व हैं। देवी भी अवतरित हुई। इसके विषय में कोई सन्देह नहीं । वैज्ञानिक आ सके क्योंकि आत्मसाक्षात्कार लेना पड़ता, जैसा मैंने लिया है। अत: मैं मनुष्य को जानती हूँ, परन्तु कुछ बातें मैं भी नहीं समझती। जब आप निविकल्प अवस्था में चले जाते हैं तो इस बात को नहीं समझ सकेगा परन्तु सहजयोगी इस सत्य 'आनन्द' आपमें स्थापित होने लगता है। किसी शहर, सुन्दर को समझ सकता है। क्योंकि वह तुरन्त अपनी चैतन्य लहरियों चित्र या दृश्य को देखते ही आनन्द का एक तीव्र बहाव को महसूस कर सकता है और प्रश्न पुछ सकता है। मेर आप में होने लगता है। यही कृपा हैं कि आप इसमें खो जाते हैं, मानों गंगा आपके ऊपर बह रही हो और आप गोते लगा रहें हो। आपकी चेतना ही आनन्द बन विषय में भी आप प्रश्न पूछ सकते हैं। ऐसा करने पर आपको चैतन्य देवताओं को जागृत हो कर 'हाँ' कहनी होगी आपको लहरियां प्राप्त होगी इसके लिए आपके जाती है। आत्मसाक्षात्कार हो या न हो परन्तु उत्तर आपको अवश्य मिल जाएगा। आपको समझ आ जाती है कि अभी तक हम 'सर्वव्यापी शक्ति' को न समझ पाये थे परन्तु अब हम उसे जान गए हैं। अपनी अंगुलियों में आते हुए हम इसे महसूस कर सकते हैं। यही वास्तविकता है। हमारे चहुं ओर चैतन्य है जो सोचता है, समझता है, व्यवस्था करता है, और परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लारी 8. প 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt आदि शक्ति पूजा का आज हम लोग आदि शक्ति का पूजन करना चाहते हैं जिसमें सब कुछ आ गया। बहुत से लोगों ने आदि शक्ति का नाम भी नहीं सुना है। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं। धर्मी और विशेषकर राजे-महाराजे सभी शक्ति कोई शक्ति नहीं है जो उनमें न थी, लेकिन उन शक्तियों को छुपा कर रखना पड़ता है। उसके दो कारण है। एक योम तो यह गर लोग जान जायें कि यह आदि शक्ति है तो हर प्रकार के लोग उन पर प्रहार कर सकते हैं क्योंकि ये लोग सब बिल्कुल दुष्ट हैं, जाहिल हैं, के विरोध में खड़े हैं। परमात्मा के नाम पर पैसा कमाते की पूजा करते हैं। सब की अपनी-अपनी देवियाँ हैं और उन सब देवियों के नाम अलग-अलग हैं और यहाँ कि देवी का नाम भी अलग है-गणगौर। लेकिन आदि शक्ति और परमात्मा हैं और उसका दुरुपयोग करते हैं। ये सारे ही लोग गर जान जायें कि आदि शक्ति इस संसार में हैं तो या तो भाग खड़े होंगे या एकजुट होकर ये कोशिश करेंगे कि किसी तरह आदि शक्ति का कार्य इस कलियुग में न हो पाये। इसलिए जरूरी है कि महामाया का रूप ले लिया जाये। दूसरा इस स्वरूप में एक बड़ा गहरा सूक्ष्म काम करना है जो कभी भी किसी ने आज तक नहीं किया। का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ था जो वो सती देवी के रूप में प्रकट हुई। उनका बड़ा उपकार जो राजस्थान में अब भी अपनी संस्कृति, स्त्रीधर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, राजधर्म हर एक तरह के घर्म को उनकी शक्ति ने प्लावित किया, उसका पोषण किया। सती देवी की गाथा आप सब जानते हैं मुझे नये तरीके से बताने की ज़रूरत नहीं क्योंकि वो स्वयं गणगौर थी। उनका विवाह कर दिया गया । विवाह करके जब वो जा वो है सामूहिक चेतना। सामूहिक तो छोड़िये एक ही आदमी को पार कराने में लोगों को सालों साल लग जाते हैं । रही थी तब कुछ गुण्डों ने घेर लिया और उनके पति को भी मार दिया। तब पालकी से बाहर आकर उन्होंने इस कार्य को करना है और वो भी बखूबी इस तरीके से कि किसी को कोई भी हानि न पहुँचे। ऐसे हो जैसे नाव में बैठा करके आराम से दूसरे किनारे पहुँचाया जाये। अपना रूप प्रकट किया और सबका सर्वनाश कर दिया और खुद भी अपना देह त्याग दिया। इसमें जो विशेष चीज जानने की है कि बचपन से लेकर शादी तक किसी भी हालत में उन्होंने अपना स्वरूप किसी को बताया नहीं क्योंकि वो महामाया स्वरूप थी। आदि शक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का इसमें समन्वय हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो सभी शक्तियों की अधिकारिणी हों उसे महामाया का ही स्वरूप लेना पड़ता मैंने कल अपने भाषण में बताया था कि धर्म कितना पन विपरीत हो गया है धर्म को समझे बिना लोगों ने भ्रान्ति की सृष्टि कर दी। गर कोई आदमी सोचने लग जाये अपने धर्म के बारे में तो वो भाग खडा हो जाये क्योंकि धर्म के नाम के पीछे जो जो तौर तरीके हैं वो बड़े भयंकर है क्योंकि कहीं स्त्रियों की अवहेलना, कहीं बच्चों का दमन े तो कहीं लूटमार। हर तरह के गलत काम लोग धर्म के नाम पर करते हैं। एक बार बम्बई में बहुत सी गीता छपकर के बाहर से आईं तो लोग बड़े खुश हुए कि हमारी गीता अब लंदन में भी छप गई, हिन्दुस्तानी तो वैसे ही अंग्रेज़ के पैर पर लोटता रहा। अब गीता वहाँ छप गई तो हिन्दुस्तानियों ने सोचा कि वाह-वाह कमाल हो गया। पर एक कोई थे कस्टम आफिसर। उनके दिमाग में आया कि आज तक कोई अंग्रेज सीधी-साधी हमारी हिन्दी भाषा है। उसका कारण यह है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती हैं। वो पहले सुरभी के रूप में इस संसार में आई थी, वो एक गाय थी उसमें सारे ही देवी देवता बसे थे। उसके बाद एक बार सिर्फ एक रानी सती के रूप में इस राजस्थान में आईं और मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्योंकि हमारे पूर्वज राजस्थान के चितौड़ गढ़ के सिसोदिया वंश के थे। आदिशक्ति की अनन्त शक्तियाँ हैं। और ऐसी ा 9. পা 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt ये थे, ये बात कि मेरे बाप ये थे मेरे बाप के बाप नहीं बोल सकता तो यह कौन माई का लाल निकला है जिसने गीता को लिखा है संस्कृत में तो उन्होंने एक किताब को खोलकर देखा तो उसमें शराब। समझ गया सारी किताबां सोचते रहते हैं। नसीब हैं उनका, उनका पूर्व जन्म याद नहीं आता। पर पूछेंगे ज़रूर, " में कौन था?" एक साहब ने मुझे बहुत तंग किया में पूर्व जन्म में कौन था, कौन था। मैंने कहा देखां बेटे में तुमको नहीं माँ मै पुर्वजन्म में शराब और ऊपर से गीता। तो मतलब ये कि गीता बहुत ऊँची चीज़ है। हिन्दुस्तानी गीता का नाम लेते ही, चाहे वो कुछ जाने या न जाने, माथे लगा लेते हैं। लेकिन उसमें शराब! मतलब इस तरह से छुपाने की शक्ति वो कमाल की कि गीता को इस्तेमाल करों। सो ऐव छुपाने की भी हमारे महामाया शक्ति में भी एक बहुत बड़ी खूबी है। ये लोग कहाँ से तो सीख के आये होंगे चाहे हमने नहीं सिखाया हो किसी ने तो इनको सिखाया है कि ये ऐब अपने कैसे छिपाये जायें और छिपाकर उसको किसी तरह पचा लिया जाये जो हमारे ऐब हैं उनको हटाने के लिये हम प्रयत्नशील नहीं होते हैं। अब दूसरों के ऐब देखने में हम बड़े होशियार होते हैं। अब ये बिल्कुल विपरीत बात है। महामाया की शक्ति इसलिए बनी और अवतरित हुई कि आपके शरीर में जो दोष हैं उनको निकाला जाये और अपने शरीर की सफ़ाई करें। ये कार्य बड़ा कठिन है, ऐसा शुरु शुरु में बता रही हूँ इसका मतलब कुछ गड़बड़ी हैं। क्यां मुझसे पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा है कि तुम मर साथ हो। क्यों मुझसे बार-बार पूछ रहे हो कि मैं पूर्व-जन्म में कौन था? उससे तुम्हारा क्या लाभ होने वाला है? "नहीं माँ मुझे अच्छा लगेगा । अच्छा मैंने कहा कि तुम पूर्वजन्म 131 में जयपुर के महाराजा थे समझ लो। तो तुमको गद्दी मिल जायेगी वहाँ? जाओ तो भगा देंगे सब। तो पूर्वजन्म की बात क्यों करते हो। क्योंकि मुझे एक ज्योतिषी ने बताया था कि मैं पूर्वजन्म में कहीं का राजा था। मैंने कहा वो लक्षण तो दिखते नहीं तुम्हारे अंदर राजा वाले। अब तुमका उस ज्योतिषी ने बताया तो उसने तुमको गले का कुछ पैसे ऐंठने के लिये। कहने लगे होगें, उसको छिपाने में प्रयत्नशील कण्ठा वरण्टा दिया होगा माता जी आप मज़ाक कर रहे हैं मैंने कहा बवकूफी की बात कर रहे हो। यहाँ तुम अपना पूर्वजन्म पूछने के लिये आये हो, मैं क्या ज्योतिषशास्त्र जानती हूँ? मुझे इसमें कोई भी, किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं। ऐसे लोंगों को ठीक करने के लिए महाकाली स्वरूप आवश्यक है। महाकाली मुझे लगता था। पर ऐसे कोई खास लोग मेरे पास आये नहीं कि मुझे बड़ा दुख उठाना पड़ता। सही बात तो यह है कि वो लोग मुझे देखते ही भाग जाते होंगे शायद । इसलिए ये मेरे सामने कभी प्रशन खड़ा नहीं हुआ। पर आश्चर्य की बात है कि जो लोग भूत से ग्रसित हैं या जो लोग हमेशा बुरे काम करते हैं और जो लोग गुरुघंटाल हैं वो लोग मुझे अच्छी तरह जानते हैं। न जाने कैसे? सहजयोगी मुझे नहीं पहचान पाते, हो सकता है कि उनकी आँखे चकाचौंध हो जाती हैं । पर आप किसी भी भूत ग्रस्त आदमी को ले आइये तो वो थर-थर काँपने लगेगा और ऐसा भागेगा कि आप सोचेंगे इसे किसी ने हंटर मारा है। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है। लेकिन उनको पहचान भी उतनी नहीं है। अच्छी बात है। लेकिन आदि शक्ति रास बा के स्वरूप के सिवाए ऐसे पागल छुट नहीं सकते। झूठे गुरुओं की पकड़ से लागों को महाकाली की ज़रूरत है। ऐसे झूठे गुरु एक तरह से अपना और अपने शिष्यों का भी नाश करते रहते हैं। लेकिन यहाँ देखते है कि नाश हो रहा है तब भी वहीं चले जा रहे हैं। उन्हों के चरणों में ही चले जा रहे हैं । हमारे मुक्त करने के लिए भी मी यहाँ एक साहव पुलिस के साथ आये (मैं शायद अशाका है, होटल में थी) तो मेरे पति ने कहा ये क्या झगड़ा पुलिस क्यों आई है? मैंने कहा पता नहीं देखें तो सही | तो उन्होंने कहा कि ये महाशय (नाम नहीं बताऊँगी) जो और ये भागे हुये हैं आनन्द मार्ग से। कहने लगे माँ आपको आश्चर्य होगा कि ये आनंद मार्ग के बड़े भारी प्रचारक थे। दुनिया भर में घूम, खुब पैसा कमाया। फिर इनके गुरु जो थे वो इनको अपना अहं शिष्य मानते थे। ये कलकत्ते में देवी के मंदिर में गये का एक स्वरूप जो महाकाली है उसे आप देख लें तो वो बड़ा भयंकर है। ये देख सकते हैं बाकी किसी को दिखाना बड़ी कठिन बात है। लेकिन महाकाली का स्वरूप होना बहुत ज़रूरी है। जब तक महाकाली प्रकट नहीं होती आपके अंदर बसी हुई बाईं ओर की पकड़ जा नहीं सकती। हैं ये डाक्टर साहब हैं जहाँ बकरा काटा जाता है। बकरा इसलिए काटते हैं कि देवी के सामने उसके अंदर भूत डाला जाता है, और जो बाईं ओर की पकड़ का क्या मतलब है? सबसे पहले तो आप अपने भूतकाल के बारे में सोचते रहते हैं। दूसरी यतन्य लहगने 10 ० 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt बहुत। मैंने कहा मेरे रोकने अब कैंसर चल पड़ा है। पर भी आपने फिर से चालू कर दी अपनी दुकान। माँ मैं पेट कैसे भरूँगा? मैंने इतनी मंहगी मशीन मंगवाई है। घवराये भूत ग्रस्त हैं उनको भूत से छुटकारा दिलाया जाता है। हम लोग तो नींबू पर ही उतार देते हैं, शाकाहारी है अपना सब काम क्योंकि बहुत से बनिये आ गये हैं ना सहजयोग में। सो नींबू को काटकर के निकल जाता है भाग जाता है। तो ये जो भूतग्रस्त लोग हैं इनके भूतों को महाकाली दिखाई देती है। वही रूप दिखाई देते हैं। और थर-थर कॉँपते हैं ऐसे। और आश्चर्य मुझे लगता है कि अगर अहे का भूत लग जाये उनको तो महाकाली का रूप दिखाई देता है। एक बार एक पूजा हो रही थी। वहाँ कुछ लोगों ने कहा कि माता जी तो ब्राह्मण नहीं हैं तो हमारे यहाँ तो प्रोग्राम नहीं हो सकता, जो ब्राह्मण होगा वही आयेगा। तो वहां के जो कार्यकर्ता थे कहने लगे अच्छा ठीक है ये कर रहा हूँ वो कर रहा हूँ। मैंने कहा बच डालो किसी की। खत्म करो। सुना हैं वो चल बसे हैं महाराज! तो सारी जितनी बाई ओर की बीमारियाँ हैं मनोंदैहिक जिसे कहते हैं, जिसका कोई इलाज़ नहीं है वो महालक्ष्मी की कृपा से ही ठीक हो सकती है। इसलिए महालक्ष्मी का ही मंत्र लेना होगा और महालक्ष्मी को जब तक आप प्रकटित नहीं करियेगा ये बीमारियाँ ठीक नहीं हो सकती। और इतनी गर्मी इन लोगों से निकलती है कि समझ में नहीं आता। इधर गर्मी निकलती है उधर बो रोते रहते हैं हर वक्त। प क्योंकि इसके साथ रोना चलता है। महालक्ष्मी के दर्शन हों तो रोना रुकें। उनको महासरस्वती के दर्शन दूर रहे ये तो महाकाली के दर्शन करते हैं, उनको देखकर रोना ही आता है। उनको कहें क्या? सूक्ष्म रूप से आप देखिये महालक्ष्मी का रूप, अति रौद्रा। अतिरौद्रा, अति सौम्या। पर महालक्ष्मी अति रौद्रा। रुद्र स्वरूप और वो रुद्र स्वरूप बहुत ज़रुरी है नहीं तो ये बाधाएं भागने वाली नहीं। ये सिर्फ रुद्र स्वरूप से ही भागती हैं। एकादश रुद्र में जो ग्यारह रुद्र हैं वो ग्यारह ही रुद्र में महाकाली की हो शक्ति विराजमान हैं और वो हमारे मेघा में यहाँ ग्यारह चक्रों हम पेपर में दे देते हैं, माता जी बाह्मण नहीं हैं प्रोग्राम नहीं होगा। मुझे पता लगा तो मैंने कहा कि आप में जो कोई ब्राह्मण हैं मेरी तरफ हाथ करें। अब लगे उनके हाथ हिलने। अरे माँ बन्द करो! आप शक्ति हैं, हम मान गये। उनको बड़ा घमंड था कि वो बहुत बड़े ब्राह्मण हैं तो कहने लगे माँ देखो उधर भी कुछ ब्राह्मण बैठे हैं, उनके भी हाथ हिल रहे हैं मैंने कहा जरा उनसे पूछिये कि वो लोग ब्राह्मण हैं? अरे नहीं बावा हम लोग कोई ब्राह्मण नहीं हैं। हम लोग प्रमाणित पागल हैं, ठाणे से आये हैं। अब इनकी आँखे खुली। मैंने कहा समझ गये आप, वो भी पागल और आप भी पागल। दोनों ही पागल। शुरुआत में समाई हुई हैं। गर किसी का एकादश पकड़ गया तो समझ लीजिये उसको तो कैंसर या कोई न कोई बाई ओर में तो बहुत ज्यादा महाकाली का प्रताप। कुछ समझ में ही नहीं आता था कि ये महाकाली जी अब प्रताप कुछ कम करें तो मैं दूसरे भी काम करूँ। का भयंकर ला-इलाज रोग हो गया। कार सहजयोग का विज्ञान जो हैं वो पूरी तरह से उत्तम है। उसमें आप कोई दोष नहीं निकाल सकते। अब लोग आये कैंसर, ऐडस, साइरोसिस और पचासों बीमारियां लेकर। अब कहने लगे माँ हम तो कभी किसी गुरु के पास गये नहीं। अरे भई तुम गुरु के पास नहीं गये तुम्हारी माँ गई होगी तुम्हारे बाप गये होंगें नहीं वो भी नहीं। रजनीश की किताबें पढ़ी थी और सत्य साईं बाबा का फांटो हमारे घर में है। और एक दो जोड़ लो मैंने कहा, और अब मनोदैहिक (Psychosomatic) कैंसर, मांसपेशियों के रोगी आ गए हैं। ये वो दुनिया भर की बीमारियाँ हैं. जो डाक्टर लोग ठीक नहीं कर सकते। पर मानेंगे नहीं डाक्टर, मानते नहीं। जब तक रोगी मर नहीं जायेगा खींचो पैसा। एक साहब गुर्दा विशेषज्ञ थे उनको गुद्दा रोग हो गया। मैंने कहा मैं आपका गुर्दा ठीक कर दूँगी, एक शर्त पे कि आप अपना धंधा बंद कर दीजिए। डायालिसिस देना बंद आप करो तो मैं तैयार हूँ। हाँ-हाँ माँ आप मेरा गुर्दा ठीक करो। ठीक कर दिया। पर दो महीने बाद फिर चालू उनकी दुकान। फिर उनको गुर्दा रोग हो गया, तो मेरे पास दो चार बिमारी आ जायेंगी फिर आना। वहां जायेंगे बिमारियां पकड़ेंगे और यहां आयेंगे। तो उन पर देवी का रुद्र स्वरूप दिखना चाहिए ना। क्या भूतों से कहा जाये आ भई बैठ, अच्छा तू खाना खा पानी पी। मेरे से बहुत लोग पूछत हैं। माँ देवी का रुद्र स्वरूप कैसे हो सकता है? गर वा आये। बड़ा बुरा उनका हाल। मैंने कहा इस बार क्या बात है कहने लगे फिर से गुर्दा रोग है। मैंने कहा वो नहीं 11 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt जब गांधी जी ने ललकारा तब औरतों ने अपनी चूड़ियाँ, सब जेवर उनको दे दिये। राणा प्रताप का ही किस्सा है माँ है तो माँ का स्वरूल्प रुद्र कैसे हो सकता है। बच्चों को ठीक करने के लिये रुद्रस्वरूप भी धारण करना पड़ता है। उसके बिना वो ठीक ही नहीं हो सकते । किंतु रुद्र स्वरूप ने किसी को हानि नहीं पहुँचाई, ये विशेष बात है। जैसे कि पहले महाकाली ने इसको मारा, उसको मारा, इसकी जीभ खींची, ऐसा कुछ नहीं। यह सब करने की कि राणा प्रताप ने देखा कि उसकी लड़की की घास की बनाई रोटी तक को एक बिलाव उठाकर ले गया। उनके मन में एक शंका हुई कि मैं क्यों ऐसा कर रहा हूँ अपने अंहकार के लिए। मैं अकबर की शरण क्यों नहीं जाता? जब वो चिट्ठी लिखने बैठे अकबर को तो उस वक्त क्षत्राणी उनकी पत्नी की शक्ति जागृत हुई। हाथ में भाला लेकर उसने अपनी लड़की पर ताना और कहा मैं तुम्हीं को ही मार डालूंगी। जिससे ये जो कमजोरी इनके अंदर आई है, कोई ज़रूरत नहीं। मनुष्य ऐसे ही घबराकर ठीक हो जाता उस स्वरूप को देखते ही वो ठीक हो जाता है। और जब वो उस स्वरूप को देखता है अपने आप उसकी बिमारियाँ ठीक हो जाती हैं । क्योंकि उसके अंदर जो बाधाएं है वो भाग जाती हैं। तो किसी की गर्दन काटने की, जीभ काटने की या आँख निकालने की कोई जरूरत नहीं है। महाकाली का स्वरूप अगर कलियुग में न इस्तेमाल किया जाये तो सहजयोग का कार्य न हो सकेगा क्योंकि इन असुरी शक्तियों न आये। तब राणा प्रताप की आँख खुली। हमारे यहाँ औरतों ने रणांगन में अपने पतियों को टीका लगाकर लड़ने भेजा है । इन अंग्रेजों से कौन लड़े? आदमी लड़ने को कहने मात्र को है, पर वास्तविक शक्ति औरतों की थी। पर आजकल औरतें भी अशक्त हो गई हैं और आदमी निशक्त हो गये हैं। ये शक्ति जो है यह स्त्री की शालीनता से होती है। के कारण सारे चक्र पकड़ में आ जाते हैं और चक्र ठीक किये बगैर कुण्डलिनी चढ़ेगी नहीं। इसलिए महाकाली का स्वरूप बहुत वंदनीय है, सराहनीय है। यह किसी को शरीरिक मानसिक, बौद्धिक, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाती। उसके स्वरूप से सभी बुराइयां भाग जाती हैं। और जब तक यह शालीनता स्त्री में कार्यान्वित नहीं होती तब तक गृहलक्ष्मी की शक्ति उसके अन्दर प्रकटित नहीं होती। लेकिन चतुर होना चाहिए। गृहलक्ष्मी को चतुर होना चाहिए। दूसरे उसमें सूझबूझ होनी चाहिए। सां ये कहें कि जब महाकाली शक्ति अत्यंत शांत हो जाती है तो वो गृहलक्ष्मी हो जाती है। तो हम फातिमां बी को मानते हैं कि वो गृहलक्ष्मी के सिंहासन को सुशोभित करती हैं। महाकाली की इस शक्ति से स्त्री अपने बच्चे को ठीक रास्ते पर रखती है, अपने चरित्र को उज्जवल रखती है। और हम लोग इस चीज़ के साक्षी हैं कि एक पतिव्रता स्त्री के पतिव्रत को कोई नष्ट नहीं कर सकता। उसकी अपनी शक्ति है। ये महाकाली की शक्ति है जो लोग डरते हैं एक पतिव्रता स्त्री से। और पतियों को भी जान लेना चाहिए कि उनके अंदर जो भी कार्यशक्ति है वो भी स्त्री से ही आती है। शालीन स्त्री में हास्य रस बहुत प्रस्फुटित होना चाहिए। किस चीज़ को वो हँसी में टाल दें, और हँसकर के हजारों प्रश्न वो ठीक कर सकती है। ये जो बारीकी होती है उसको समझने के लिए मैंने अभी किसी को कहा था कि आप शरत्चन्द्र पढिये। पोलिटिक्स में जाने की ज़रूरत नहीं और गंदे अर्थशास्त्र में तो जाने की बिल्कुल जरूरत नहीं। लेकिन समाज की सारी धुरी, समाज का सारा कार्य स्त्री परनिर्भर है। जो न अब मियाँ-बीवी के झगड़े सबसे बड़ी समस्या हैं आजकल। क्योंकि बीबियाँ पढ़ गई और मियाँ चाहते हैं कि बीबी बिल्कुल देहाती हो। वो देहाती तो है नहीं, उसको देहाती कैसे बनायेंगे? एक बार शहरी हो गई तो शहरी हो गई। चाहे आप लंहगा पहन लीजिए चाहे आप पेंट पहन लीजिए। दिमाग तो शहरी हो गया। अब जो शहरी दिमाग हो गये तो उसके बाद जो स्त्रीत्व है वो तो कम है। स्त्रीत्व कम हो ही जाता है, पुरुषत्व ज्यादा आ जाता हो जाता है। और स्त्री का जो सबसे बड़ा गुण है, शालीनता वो ही खत्म हो जाता है। शालीनता स्त्री का स्वरूप है, उसे रणांगन में जाने की जरूरत नहीं। पदमिनी ने तीन हज़ार औरतों के साथ चितौड़ गढ़ के किले में ही स्वयं को जला दिया था। वो कहीं तलवार लेकर बाहर नहीं मो गईं। पर जब ज़रूरत पड़ी तो झांसी की रानी हाथ में तलवार लेकर खड़ी हुई। तब, मुझे याद है, अंग्रेज़ों ने कहा था हमारी विजय तो हुई है पर गौरव झांसी की रानी का है। अपने देश में अनेक तरह की उज्जवल चरित्र वाली हम लोगों को औरतें हुई। पति परायण स्त्री धर्म में अत्यंत उच्च। ऐसी औरतें हो गई जिन्होंने अपनी सूझबूझ से अपना घर संभाला। चैतन्य लहरी 12 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt वे सब तो चले गये अब ये गदै फिल्मी गाने बजते रहते हैं गणेश जी के सामने। क्योंकि सुबुद्धि ही नहीं है मनुष्य में। सुबुद्धि नहीं है तो बेकार के काम करते रहते हैं। बुद्धि से कुछ भी निकाल लेते हैं। इसमें सबसे बड़े हैं ये फ्रायड। इन जैसा तो कोई मैंने देखा नहीं। निसंकोच उन्होंने अपने विचार सबके सामने रख दिये और सबने उनको मान लिया। और मैं यहाँ नहीं बताऊँगी वो क्या है उसके गंद-गंदे विचार वो तो अच्छा है वो हिन्दुस्तान नहीं आया, वरना उसको काटकर लोग फेंक देते। और उस आदमी का लिखना आप उसकी एक लाइन पढ़िये तो आप जान जायेंगे कि बड़ा हो बेशर्म आदमी है, या भूत है, या राक्षस है। जो भी है। ये उसने अपनी लेखनी का और बुद्धि का उपयोग किया। शारदा के विरोध में सब स्त्री अपने बच्चों को अच्छा बनाती है, अपने घर को अच्छा बनाती है, अपने पति को अच्छा स्वास्थ्य देती है वो स्त्री एक बहुत बलिष्ठ समाज बनाती है। यह शक्ति उसकी शालीनता में है उद्दामता में नहीं। उसकी चाल-ढाल उसका ढंग एक देवी स्वरूप होना चाहिए। सो महाकाली शक्ति तो अनेक चीजों पर बैठती है। उसके अपने-अपने बाहन हैं। लेकिन बो जब हाथी पर बैठती है तो उसे ललिता गौरी कहते हैं। कला हाव-भाव उसके सब बहुत इज्जतदार, सुन्दर होते हैं। जरूरी नहीं कि घुंधट करें, जरूरी नहीं कि शालीनता होनी चाहिए। शालीन बहुत बड़ा शब्द हैं इसमें बहुत सी चीज़े समाई हैं क्योंकि जो रुद्र स्वरूपा है उस रुद्र स्वरूपा को सौम्य स्वरूपा होना है। इसलिए कहा है कि आप घूंघट ले लो, सिर ढक लो, बुरका ले लो क्योंकि आप महाकाली हैं। जो आप को बुरी निगाह से देख ले वहीं भस्म हो जाये। आप के संरक्षण के लिये नहीं, आप की सुरक्षा के लिए नहीं, लेकिन वो दूसरे के लिए। जो आप पर बुरी निगाह डाले वो भस्म हो जायें। ऐसी ही ये महाकाली की महान शक्ति है। दिखने में तो बहुत ही उज्जवल बहुत ही शालीन, अंदर से उसकी शक्ति जो है वो अंदर से कार्यान्वित होती है। तो महाकाली को तो लोग कहते हैं कि ये बड़ी रुद्र शक्ति हैं माँ किन्तु इसकी शालीनता देखने पर आश्चर्य होता है कि क्या ये महामाया हैं। हैं तो महाकाली और इतनी शालीन जैसे नववधू। वाह-वाह क्या कहने इसके। ऐसी शरमायेगी, ऐसे मीठे बोल बोलेगी जैसे फूल झड़ रहे हों, ऐसे प्यार करेगी कि विश्वास ही नहीं होगा। ये महाकाली की शक्ति है। इसको जिसने पा लिया उसको कोई भूत नहीं छू सकता। उसको क्या छुएगा, वो ही भूत को पकड़ेगा। अपने यहाँ हैं दो चार ऐसे। और जो स्त्री ऐसी हो वह अपनी एक नज़र से लोगों को भस्म कर सकती है। सिर ढके, लेकिन आंखों में लिखा। अब सब जगह शुरु हो गई कि साहब हमें तो छूट है, हम जो चाहे लिखें। आजकल के अखबार वाले भी वैसे ही हैं। उनके भी जो उऊटपटांग समझ में आती है वो लिख देते हैं। कोई अच्छी बात तो लिखना ही नहीं चाहते। कौन मर गया, कितने मर गये, अभी कोई मर रहा है। भई मर जाने दो काहे को रोज-रोज सबको सताते हो। वो मरता ही नहीं। रोज-रोजे इतना सारा लिखते हो। एक बार मरने के बाद इत्मीनान से लिखो, मरने वाला तो है ही अब क्यों रोज-रोज ये सब बातें लिखो। महा झुठ जो होते हैं वो लिखेंगे। डर नहीं उनको शारदा देवी हो जाये। वो नष्ट का। शारदा देवी जो हैं सत्य को देने वाली और सत्य की अधिशासी। जो अपने मस्तिष्क में सत्य का प्रकाश आता है वो भी शारदा देवी की कृपा से। तो आप जब लिखते हैं तो आप सोचते नहीं कि आप के अंदर ये लेखन शक्ति कहाँ से आई। ये किसने आपको लेखन शक्ति दी? शारदा देवी ने या किसी भूतनी ने आपको दी? इसी प्रकार मैंने देखा कि बहुतों ने इतनी ऊंटपटांग कुण्डलिनी के बारे में बातें लिखीं। एक अरविन्दो साहब हैं, उसमें अर्थ ही नहीं, पता नहीं वो क्या लिखते हैं? बड़ा उनका नाम है। अरबिन्दो मार्ग, मैं कभी उस मार्ग से नहीं जाती क्योंकि पता नहीं ये कहाँ चला जाये। जहाँ उसकी खोपड़ी गई वहीं लिखता गया, लिखता गया। और कुछ भी उसमें बात सत्य नहीं। और उनकी जो वो थी उनसे भी क्या उनका रिश्ता रहा मुझे नहीं पता। वो जो माता जी थी, वो पचासो तो उनके मुँह पर सिकुड़न पड़ी हुई, और कहें ये जवान होने वाली अब दूसरी शक्ति महासरस्वती की। जिससे कि हमारी बुद्धि में अनेक तरह के कलात्मक और विचारक प्रकाश आते हैं। अंदर अनेक विचार बड़े सुंदर, बड़े शांत बहुत शीतल, बहुत कविताएं आती हैं। पर रोने गाने वाली नहीं। ऐसी आती हैं जिसमें आप जागरूक हों। बड़े-बड़े राष्ट्रीय गीत लिखे गये देश के लिये। लोगों ने न जाने क्या-क्या लिखा। अब सरस्वती की कृपा से, शारदा की कृपा से, हमारे 13 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt कविताएं इतनी सुन्दर हैं कि मैं आपको बता नहीं सकती। शारदा देवी की अत्यंत कृपा अपने देश पर है। सब से बढ़िया लेखक अपने देश में हुए ये पाश्चात्य नहीं असली हिन्दुस्तानी भारतीय लोग। उनके पास पैसा नहीं है पर सरस्वती की बड़ी कृपा है। अब राजस्थान पर बड़ी कृपा रही यहाँ बड़े-बड़े कवि हो गये सिंकंदर भी यहाँ कि संस्कृति देखकर अचम्भे में पड़ गये तो नमस्कार करके वापस चले गये। फिर सूफियों में खुसरो आये। क्या कविताएँ लिखी? कबीर हैं। अभी देखियेगा जवान होंगी। वो मर गई गाड़ दिया पर जवान तो वो हुई नहीं। और उनकी किताबों पर किताब। ऊँटपटांग ऐसी किताब। ऐसे धर्म पर न जाने कितने लोग लिखते हैं। अभी एक साहब लिखते हैं कि कृष्ण शूद्र धर्मी थे। ये शूद्र थे, काले थे और राम ब्राह्मण धर्म के थे। इसलिए इनको शुद्र मानते हैं और उनको ब्राह्मण मानते हैं। मैंने कहा अच्छा ये कौन से शास्त्र में लिखा है? सच बात बताऊँ कि जवाहर लाल नेहरु जी ने जो किताब लिखी है वो खोज (Discovery) किसी और चीज़़ की होगी भारत ( India) की खोज (Discovery) नहीं है। इतनी ओछी किताब। ये हिन्दुस्तान की बात लिख रहे हैं कोई गहराई नहीं उंनमें। दुष्ट लोगों ने बाइबल और कुरान को भी बिगाड़ने में कसर न छोड़ी। शारदा देवी की कृपा से बहुतों ने बहुत कुछ लिखा। ज्ञानेश्वर जी ने ज्ञानेश्वरी लिखी और उसके बाद एक और किताब इतनी सुन्दर कि ऐसा लगता कि आप अमृत पी रहे हैं। संतों ने लिखा जिन पर शारदा की कृपा हुई। ज्ञानेश्वरी की शुरुआत में शारदा देवी की कृपा से वो लिखते कि मेरे वचन, जो भी मैं कह रहा हूँ, ये बात में शारदा देवी को प्रसन्न करने के लिये कह रहा हूँ। लेकिन ये शब्द किसी भी तरह से आपको दुख नहीं पहुँचायेंगे। जिस तरह से पखुंड़ियाँ धीरे से ज़मीन पर आकर बिछ जाती है उसी तरह से मेरे भी शब्द आपके हृदय पर गिरें और आपको सुगाँधत कर दं। इतनी सुन्दर कविता और इतना सौम्य, उसका स्वरूप ऐसा लगता है कि जैसे आप अमृत का रसपान कर रहे हैं। अब इसलिए नहीं कि मैं मराठी भाषा जानती हूँ। अंग्रेज़ी में एक बड़े कवि हो गये और उनकी कंविताएँ हम लोगों ने Vision नाम की किताब में दी हैं आप पढ़िये। उनका नाम था विलियम ब्लेक और इतनी जोशीली कविताएँ लिखते हैं कि आपके अंदर जोश आ जायेगा। शारदा जी से उनकी कविताओं में से निकलकर आपके अंदर घुस गई। वैसे ही शरतचद्ं आप पढ़िये तो आप कहानी लिखना शुरु कर देगें। ऐसे-ऐसे लेखक अपने यहाँ हो गये इस भारत-वर्ष में कि ऐसे कहीं भी नहीं। टालस्टाय हो गये मैं मानती हूँ पर उनसे भी आट] दास, नानक साहब का तो कहना ही क्या? वो तो गुरु ही थे। रामदास स्वामी। बंगाल में भी क्या एक से एक कवि हो गये और ये सब शारदा देवी की कृपा से। सारे शब्दों से मानो धर्म बहता हो, प्रकाश बहता हो और सारे ही इनके शब्द व्यवस्थित हैं। ऐसा लगता है कि निर्विचारिता में लिखे हैं इन्होंने। इतने शुद्ध वर्णन हैं ये! हम ज़रूर कहेंगे कि सबसे ज्यादा संस्कृत में फिर उसके वाद मराठी में ही आध्यत्मिक किताबें लिखी गई हैं। बड़ी गहराई से अध्यात्म पर काम किया गया है। अब कोई कहे कि अंग्रेजी भाषा में भी इतना लिखा जाता है माँ तो वहाँ क्या शारदा का आशीवाद नहीं। अब यही सोचिये कि अंग्रेज़ी भाषा में आत्मा के लिये Spirit शब्द, शराब को भी Spirit शब्द और भूत को भी Spirit शब्द। ये कोई भाषा हुई। ये शारदा देवी की कृपा से ऐसी भाषा लिखी और फ्रैंच भाषा तो उँससे भी गई बीती एकदम। उसमें चेतना के लिये कोई शब्द नहीं। अंग्रेजी में कम से कम awareness तो है। उसमें awareness के लिये कोई शब्द नहीं आत्मा के लिए जितने दारू पर शब्द हैं लगा दीजिए । ये क्या उन पर आशीर्वाद हुआ। ये बड़े-बड़े लेखक हो गए। सब जो भी लेखक वहाँ हुए हैं राजकारणी लोग राजकारण पर लिख गए हैं, हाँ विलियम ब्लेक की बात हम कहेंगे, सी.एस. लुइस भी वहां के महान हैं। रोनी-धोनी कविताएं क्या शारदा देवी के आशीर्वाद में से होती हैं ? या फिर शराब के गुणगान करते रहेंगे। ये सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाने के लिए हैं। मैं तो शीघ्र कवि हूँ मैंने कहा। अपने देश में बहुत सस्ते टाइप के कवि भी पैदा हुए और विशेषकर वो कवि जो कि भगवान् को सब चीज़ में घसीटते हैं और परमात्मा को मनुष्य के जैसा दिखाते हैं ये तो महापाप हैं और उन पर शारदा देवी की जी भी कृपा है वो महाकाली के दरवाजे में जाने वाली है। बढ़कर शरत्चन्द्र। महाराष्ट्र में तो बहुत ही ज्यादा हैं, एक से एक। उनके नाम बताने से कोई लाभ नहीं। लेकिन उनको अनुवाद ही नहीं किया किसी ने क्योंकि ये सब मामला राजनीतिक है। ये राजनीतिक क्या है? शारदा देवी क्या राजनीतिज्ञ हैं? दक्षिण में कुरु करके एक कवि हैं, उनकी चैतन्य लहरी 14 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt तो बहुत ही कला का प्रादुर्भाव है। फिर भी यहां गरीबी है। टर्की के लोग बड़े कलात्मक है। मेरी अक्ल में नहीं आया कि इतने कलात्मक लोग हैं फिर भी इनमें इतनी गरीबी क्यों आ गई? आखिर पता हुआ कि वे जर्मन लोगों से बड़े प्रभावित हैं। भी वे जर्मन खाना खाएंगे। इतना अच्छा वहाँ खाना मिलता है कि परदेश से लोग वहाँ आकर खाना खाते हैं पर आपको हैरानी होगी कि ये टर्किश लोग जर्मनी से, खाना मंगाकर खाते हैं और कपड़े सिलते हैं, उन्हें जमंनी भेजते हैं, वही कपड़े फिर वहाँ से आयात होते हैं। अपने यहाँ भी काफी है ये बीमारी विदेशी चीजों की। अपने देश में जो चीजें बनती हैं उसके क्या कहने। टकी में जो (Pottery) चीनी के बर्तन बनते हैं आपको दुनिया में ऐसे चीनी के बर्तन कहीं नहीं मिलेंगे। चीन से भी बढ़िया। लेकिन वे जर्मन डिनर सैट में खाना खाते हैं, तो आप गरीब नहीं होंगे तो क्या होंगे। कहने लगे हम तो बड़े गरीब हो गये| माने विद्यापति साहब देख लीजिए। अब राधा और कृष्ण का पता नहीं क्या श्रृंगार करें? सारे विश्व की जिसको चिन्ता है और राधा, 'रा' माने शक्त, 'धा' माने धारण करने वाली। उसको क्या ये सब दुनिया भर का रोमांस करने की फुरसत है? अब डाल दिया उनको रोमांस में। यहाँ तब कि वाजिद अली साहब जिनकी एक सौ पैंसठ बीवियाँ थीं तो भी वो साड़ी पहन कर राधा बनते थे और कृष्ण के साथ नाचते थे। अब जो ये रोमाटिक पना जो है इसमें कोई अर्थ नहीं। बेकार की बातें है। साधु टकी का खाना बहुत अच्छा है फिर संतो को इससे क्या मतलब। तो शारदा जी जो हैं वो भी कभी-कभी महामाया स्वरूप हो जाती हैं जैंसे जैन, के जो कवि लिखते हैं उन्हें कोई नहीं समझ सकता। वो एक सहजयोगी समझ सकता है। उनकी संवदेना सिर्फ योगीजन ही जान सकते हैं। और कोई नहीं। अब कव्वाली में लोग मुजरा गाते हैं और मुजरे में कव्वाली। ये कोई शारदा देवी का आशीर्वाद है किसी भी तरह से? संगीत में भी शुद्धता होनी चाहिए। वर्तमान काल में कुछ ऐसा लगता है कि के मैंने कहा जाओ अब जर्मनी में जाकर भीख माँगो। तो शारदा देवी की जिस देश पर इतनी कृपा है उनको क्या ज़रूरत है परदेशी चीज़ों को इस्तेमाल करने की। इस कदर हम अंग्रेज़ होने की कोशिश कर रहे हैं कि गणपति पुले में बड़े मुश्किल से भारतीयों के लिए व विदेशियों के लिये अलग-अलग गुसल बनाये। भारतीयों के लिए भारतीय ढंग के और विदेशियों के लिये विदेशी ढंग के। तो भारतीयों ने कहा कि हमें तो वैसे ही अंग्रेज़ी ढंग के चाहिए माँ। मैंने कहा अच्छा। विदेशी बहुत खुश हुए हिन्दुस्तानी ढंग शारदा देवी ने अपना हाथ कुछ रोक लिया है। इस राजस्थान में जो कला का प्रार्दुभाव हुआ है मैं देखती हूं कि दो तीन साल में ही एक दम कला फूट पड़ी है ये बिल्कुल शारदा देवी का ही आशीर्वाद है इसमें कोई शक नहीं। ऐसी-ऐसी नक्काशियाँ, ऐसी-ऐसी चीजें बनाने लग गये हैं लोग हाथ से। पहले भी यहाँ बड़ी अच्छी नक्काशियाँ होती थी, लोग तराशते थे। पर अब सारे मिट्टी के बर्तनों में देख लीजिए, कहीं देख लीजिये क्या सुन्दर-सुन्दर रंग, बढ़िया, ऐसी रंग-बिरंगी, ऐसी चीजें पश्चिमी लोगों में ऐसी कला कहाँ उनके हृदय और दिमाग में ताल-मेल ही नहीं है। * , Mother very clean, Mother very clean al बहुत खुश हुये। लेकिन हिन्दुस्तानियों को तो अटैच (attached) चाहिए। पहले जाते थे जंगलो में, अब जुड़े हुए (attached) चाहिएं। इतनी अंग्रेजियत हमारे अंदर आ गई। बहरहाल इसमें भी हर्ज नहीं। बेचारे वहाँ के नेता साहब आये बोले, माँ मै क्या करूँ? लिए बनाया उनको वो पसंद नहीं, जो हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया उनको वो पसंद नहीं। मैंने कहा अंग्रेजों की जगह हिन्दुस्तानियों को रख दो और हिन्दुस्तानियों की जगह अंग्रेजों परन्तु राजस्थान में सफाई का बहुत कम ख्याल है। औरतें बहुत साफ हैं, घर वर्गैरह बहुत साफ रखती हैं, पर बाहर बहुत गंदगी है आदमी लोगों को कोई मतलब ही नहीं है यहाँ। सब कूड़ा बाहर फिंकता है, पर परदेश में बाहर साफ हैं क्योंकि आदमी लोग खुद साफ करते हैं। यहाँ आदमी लोग हाथ में झाडू लेकर साफ करेंगे? तो सफाई और व्यवस्थिता भी शारदा देवी का ही आशीर्वाद है। बाहर की सफाई रखना हमें अंग्रेजों से सीखना चाहिए। ये गंदगी जो है ये शारदा देवी को पास में नहीं आने देगी। वो हट ही जायेंगी। बहुत ज़रूरी है, सफाई करनी चाहिए और सफाई भी सुचारू रूप से कलात्मक होनी चाहिए। यहाँ मैंने जो अंग्रेनों के को रख दो। खत्म काम। समाधान तो निकल आया पर मेरे दिमाग में ये बात आयी कि जो जंगलों में जाते थे वे बड़े अच्छे थे। ये अहदीपने का लक्षण है। हाँ बुड्ढे लोग मेरी समझ में आते हैं लेकिन जवान लोगों को अहदीपने 15 कतरप প 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt बह जाकर नाटक देखते हैं। जिसमें नाट्य कला हो। यहले सिनेमा बहुत अच्छे होते थे, लेकिन अब सिनेमा तो गड़बड़ा की कहां से बात चलती है? वो तो विदेशी चीज कम से कम औरतों में थोड़ी अक्ल आ गई। कम से कम हिन्दुस्तान की औरतों ने तो अपना तरीका नहीं छोड़ा, बहुत सी औरतों ने। जिस दिन औरत ने अपनी शालीनता छोड़ दी उसी दिन उसके अन्दर से जितना कुछ शुद्ध कला जाने क्यो-क्या गये। अब नाटक भी गड़बड़ा जाये तो न ा चीजें हो जायें। कुछ-कुछ ऐसी अजीव- अजीब चीजें देखने में आई हैं कि लगता है कि शारदा देवी यहाँ से भाग खड़ी हो जाये। उनका मान तो छोड़ो उनका बिल्कुल अपमान लोग करते हैं। इतनी विचित्र चीज़ें में देखी फिर मुझे आश्चर्य लगता है कि अभी तक चल कैसे रहा है। अब उन्होंने कहा है कि फिल्मों में से निकाल देंगे (हमें) ये और वो। हमारे जीते-जी कभी हम देख लें ये सब गन्दगी निकल जाये तो बड़ा आनन्द आयेगा। तो भारत की जो कला हैं वो सुघर जायेगी। जैसे आप चीनी कला देखिये तो सींग जैसे भूत के जैसे। और मिश्र की कला देखिये तो सब dead मृत जैसे उनके mummies बनायेंगे। कहीं कुछ बनायेंगे। आदमी एसे बनायेँगे जैसे कोई लाश खड़ी कर दी। पहले इंगलैंड, अमेरिका में भी कला ठीक थी जब तक वास्तवकि बनाते रहे। फिर impressionistic बनाते रहे तब तक भी ठीक थी पर अब जो वहाँ आघुनिक कला बन गई है। ये आपके, मेरे और किसी भी इंसान के बस की नहीं है। ऐसी विकृति आ गई है कि लगता है कि शारदा देवी वहाँ से भाग गई है। इन देशों से। और जितनी गन्दी, और जितनी अधर्मी और जितनी उल्टी-सीधी का स्वरूप है, या स्त्री का स्वरूप, पत्नी का स्वरूप, माता का स्वरूप, सब खत्म हो जायेगा। ये शारदा देवी की कृपा में रहने वाले सब लोगों को पता होना चाहिए। आप जो मैंने मंच पर भारत ने। उसमें दिखावे की कोई ज़रूरत नहीं। भी कुछ करते हैं आप जो कुछ भी करते हैं, पहनते हैं ओढ़ते हैं अगर आपको शारदा देवी की पूर्ण मेहरबानी चाहिए तो दूसरों के लिए करिये अपने लिए नहीं। सारी चीज़ में शारदा देवी का एक आवरण होना चाहिए। संगीत आपका मालूम होना चाहिए चाहे देहात का हो। आपको शारदा देवी की शरण में रहना है तो अपने गाँव में, अपने देश में जो कुछ होता है और जो कुछ आज तक उन्होंने बनाया है, कलाकारों ने, उनकी इज्जत करिये। अजन्ता नहीं देखी पर स्विटजरलैण्ड ज़रूर जायेंगे। अजन्ता जैसी चीज़ स्विटजरलैंड के नाना के बाबा के दादा के कोई नहीं बना सकता। स्विटजरलैण्ड में देखने का क्या है? पत्थर! हम तो स्विटजरलैण्ड गये थे। अजन्ता नहीं देखी आबू नहीं देखे। जो अपने देश के बारे में जानेंगा ही नहीं वो इस देश को प्यार कैसे पिक्चर बनेगी उतना ही उसका दाम लगगा। सिनेमा में शारदा करेगा। और जब कला चारों तरफ से इस देश में बह का बड़ा अपमान किया है। आप सब सहजयोगियों को कला की समझ होनी चाहिए और कलात्मक चीज़ें इस्तेमाल करें, खासकर हाथ से बनी हुई, तो यह पर्यावरण समस्या ही खत्म हो जाये। अपने घर में दो सुन्दर चीजें होना अच्छा है बनिस्बत पच्चीस प्लास्टिक की चीजें होने से और चालीस पेपर प्लेट। ये अपने भारत की संस्कृति के रोम-रोम में शारदा का प्रकाश है। औरतां ने इसे बचाये रखा अब आदमियों को भी चाहिए। इसे समझें। लेकिन हिन्दुस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चार रंग से ज्यादा पाँचवां रंग नहीं जानते। सो वो सूक्ष्म दृष्टि भी अपने अंदर आनी चाहिए। नाट्य रही हो! सो कला की तरफ रुचि रखना और अपने देश की कला को पहले अपनाना चाहिए। शारदा देवी की कृपा आपके इस भारतवर्ष पर बहुत है। और क्योंकि पाकिस्तान और बांगलादेश भी इसी देश का भाग हैं। वहाँ पर भी है पर धीरे-धीरे हट जायेगी। आजकल तो वहाँ सब लोग एक दूसरे को पत्थर ही मार रहे हैं। कुछ लोग औरतों को जमीन में गाड़ कर मार रहे हैं। कुछ लोग करांची में कल देखा मैने पत्थरों पर पत्थर मार रहे हैं । वहाँ कला क्या चीज़ है? सो इस भारतवर्ष पर जो देवी की कृपा है, उसे आप अपनी नज़रों से देखिये। उसको समझिए, चीज़ में, नृत्य में हर चीज़़ में। अब कला में हर नहीं कि आदमी औरतों जैसे नाचें, ये नहीं। लेकिन आदमी-आदमी जैसे औरतें औरतों जैसी। उसके शुद्ध स्वरूप उसका आनन्द उठाइये। फिर नाट्य कला बँगाल में और महाराष्ट्र में नाट्य कला बहुत ऊँची है लोग सिनेमा नहीं जाते नाटक में जाते हैं। महाराष्ट्र के लोग आप जितने अमीर नहीं है पर पाँच रुपये का टिकट हो या सात रुपये का टिकट हो में उतरें। शारदा जी की कृपा तो है ही संगीत में, नृत्य में, सब जगह। हमने बहुत बार देखा है कि लोग जब चैतन्य लही 16 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt आप प्रवेश करने लगते हैं और मध्य मार्ग में आ जाते हमारे सामने बजाते हैं तो बड़ी जल्दी उनका नाम चढ़ जाता है बहुत नाम होता है बहुत अच्छा बजाते हैं। शारदा जी की कृपा हो गई उन पर। लेकिन आप को सुनकर आश्चर्य होगा कि जैसा हमारे देश का संगीत और नृत्य है ऐसा कहीं भी दुनिया में नहीं है, कहीं भी हैं तब आप एक साघक हो गये, साधक के ऊपर महालक्ष्मी उमड़ पड़ती हैं। महालक्ष्मी की कृपा उस पर आ गई, महालक्ष्मी की शक्ति चढ़ना बहुत मुश्किल है क्योंकि कभी मन बायें को जाता है कभी मन दायें को जाता है। एक मात्र कुण्डलिनी के जागरण से ही मध्य मार्ग आप नाप सकते हैं। पहले तो एक सोपान ब्रिज बनाते हैं भवसागर Void पर। और अब तीसरी जो शक्ति है त्रिगुणात्मिक वो महालक्ष्मी की शक्ति है अब लक्ष्मी जी की पूजा तो अभी करके आये हैं टर्की में वहाँ गरीबी आ गई इसलिए। पर जब उससे गुजर करके ये कुण्डलिनी शक्त मध्य मार्ग से ब्रह्मरंध्र को छेदती हुई ब्रह्माण्ड में एकाकारिता प्राप्त करती है। और जब ये घटना हो जाती है उसके बाद त्रिगुणत्मिका मिलकर के आपकी मदद करती है। आज्ञाचक्र को छेद कर जब आप तक वो जर्मनी से सामान मंगवाना बंद नहीं करेंगे। तब तक उनकी गरीबी जाने वाले नहीं। कहने लगे हमें उसी का स्वाद लग गया है। मैंने काहा वाह-भाई अब भूखे मरोगे तो क्या होगा? तो वहाँ मैंने सोचा लक्ष्मी जी की पूजा हो जाये तो अच्छा। दीवाली वहीं हुई। अब महालक्ष्मी की जो पूजा है यह सिर्फ साधकों के लिऐ है। जब लक्ष्मी जी का पूरी तरह से उपभोग ले लिया और बहुत हो गई लक्ष्मी, जैसे बुद्ध को हुआ था, महावीर को हुआ था, तो विरक्ती आ गई और विरक्ती आने के बाद में वो परमात्मा को खोजने निकले। ये जो खोजने की शक्ति है सहस्रार में आते हैं तो यहाँ आदिशक्ति का स्वरूप (महामाया स्वरूप) 'सहस्रारे महामाया'। जब सहस्रार को तोड़ने का काम हैं वो महामाया स्वरूप है। और वो स्वरूप बड़ा छिपा हुआ और जैसे-जैसे उसे जानने का प्रयल करते हैं तां वैसे बात वैसे आप सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम हो जाते हैं और ये सूक्ष्मता अत्यंत आवश्यक है। हमारे अंदर जो कुछ भी गौरवशाली, विशेष घर्म है उसको जानने के लिए सूक्ष्मता चाहिए। उसमें सिर्फ एक बाधा आती है, वो हैं बायें और दायें की खींच। इसलिए हम आपसे हमेशा कहते हैं अपने ये महालक्ष्मी शक्ति है। अब महालक्ष्मी का मन्दिर है अपने पक कोल्हापुर में। तो वहाँ जोगवा गाते हैं। हे अम्बे तू जाग, हे अम्बे तू जाग। नामदेव जी ने लिखा सोलहवीं शताब्दी में। वहाँ के ब्राह्मणों से मैंने कहा ये क्यों अम्बे गाते हो महालक्ष्मी के मन्दिर में अम्बा जी का? कहने लगे पता नहीं, अनादि काल से चला आ रहा है ये गाना। जब को आप प्रत्यक्ष कर के आत्म निरीक्षण करो। अपने को दूसरों को नहीं । धीरे-धीरे ये होने से आप सहज में स्थापित हो जाते हैं। आप चक्रों के बारे में जान सकते हैं, आप महाकाली शक्ति के बारे में जान जाते हैं। मैंने आप को बता दिया महासरस्वती के बारे में और महालक्ष्मी के बारे में मैंने बहुत बार बताया। ये सब बताना रह जाता है। जब से नामदेव हुए हैं। तो अम्बा कौन है? कहने लगे देवी है ना अम्बा भी? मैंने कहा आपको इतना ही मालूम है। मैंने कहा आपको तो मैं नहीं समझा पाऊँगी ये बड़ा मुश्किल है। फिर महालक्ष्मी के मंदिर में ही अम्बा जाग गई वो कैसे? मध्य मार्ग जो अपना है वो हैं महालक्ष्मी का। उस मार्ग में आप की सारी तक साधक उस स्थिति को प्राप्त नहीं कर लेता उसे चैन नहीं। लेकिन स्थिति को प्राप्त होने पर भी उसका इस्तेमाल नहीं करता तो यह विश्वास पक्का नहीं बनता और निर्विकल्प में उतरना मुश्किल हो जाता है। आज का प्रवचन कुछ ज्यादा हो गया क्योंकि विषय ही कुछ ऐसा है। लेकिन इनसे परं आदि शक्ति। और उनका वर्णन करना कोई आसान नहीं। बड़ी विचित्र चीज़ है। उनका वर्णन करना तो कठिन काम है। आप ही लोग उनका वर्णन कर सकते हैं मैं तो नहीं। ये आप पर छोड़ देते हैं। खोज बाएं की दाएं की, बुद्धि की सब खत्म हो जाती है और आप मध्य मार्ग में आ गये। जब आपने खोजना शुरु कर दिया फिर आप पर महालक्ष्मी की कृपा होती है। और इस बाइबल में Redeemer कहा है। तीन शक्तियां बताई उन्होंने भा (1) Comfortor, Left Side (2) Councillor Right Side और बीच वाली को (Redeemer)। ये Holyghost आदिशक्ति की तीन शक्तियाँ है। सो जो मध्य मार्ग में जब "सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद। " THE 17 পc 1995_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt **निर्मल विद्या"" 4 ६ परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन राहुरी 31-12-1980 यह कौतुक, यह पवित्र श्रद्धा बहने लगती है। उनके विषय में सोच, आपको बहुत प्रसन्नता होगी। बाई विशुद्ध्ध को पकड़ के कारण अबाधिता कठोर हो जाती है। अत: बांई विशुद्धि की पकड़ से छुटकारा पाने के लिए आप सबको मधुर शब्द बोलने होंगे सभी के प्रति आपकी भाषा अत्यन्त मघुर होनी चाहिए। पुरुष विशेषत: अपनी पत्नियों से मधुरता पूर्वक बात-चीत करें और यह मधुरता आपकी बाई विशुद्धि को ठीक करेगी। सदा मधुर वाणी बोलें, मधुर-मधुर शब्दों को खोजते रहें। मधुर सम्बोधन दोष भाव को ठीक करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है, क्योंकि यदि आप किसी से कठोर शब्द कहते हैं, चाहे आप आदतवश ऐसा करते हों या ऐसा करने से आपको प्रसन्नता प्राप्त होती हो, "यह एक विशिष्ट शक्ति है जिसके द्वारा हम सभी दिव्य कार्य करते हैं, यहां तक कि क्षमा भी इसी का वरदान है।" जब आप कहते " श्री माता जी हमें क्षमा कर दें।" तो जिस तकनीक से मैं क्षमा है।, प्रदान करती हूँ वह निर्मल विद्या है। किस तकनीक से मैं आपकों प्रेम करती हैँ वह भी निर्मल विद्या है। जिस तकनीक द्वारा सभी मन्त्र स्वयं सिद्ध एवं प्रभावशाली हो रहे हैं, वह निर्मल विद्या है। निर्मल अर्थात पवित्र, विद्या अर्थात ज्ञान। तो निर्मल विद्या पवित्र ज्ञान है या इस तकनीक का ज्ञान है। यह छल्लों की सुष्टि करती है, उर्जा छल्ले तथा भिन्न प्रकार की आकृतियां बनाती हैं। जिसके द्वारा यह कार्य करती है और सभी अवांछित और अपवित्र तत्वों को अपनी ओर खींचती है तथा इनमें अपनी शक्ति संचारित करती है। इस दिव्य तकनीक का वर्णन मैं पूरी तरह से आपके सम्मुख न कर सकंगी क्योंकि आपका शरीर तन्त्र यह कार्य नहीं करता-अभी तक आपके तो तुरन्त ही आप कह उठते हैं, हे परमात्मा, यह मैंने क्या कहा! यह बहुत बड़ी दोष है। व्यक्ति को सदा मधुर शब्द खोज़ निकालने चाहिए। अब पक्षी चहचहा रहे हैं। इसी प्रकार आपको सभी स्वर सीखने चाहिए जिनके द्वारा आप अपनी मधुरता से सभी को प्रसन्न कर सकें। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। अन्यथा यदि आपकी बांई विशुद्धि की पकड़ बहुत अधिक बढ़ गई तो आप में बातचीत करने की एक ऐसी शैली विकसित हो जाएगी कि आपके होंठ बाईं ओर को खिंच कर विकृत हो जाएंगे। तत्पश्चात चैतन्य का बहाव ऊपर की ओर आज्ञा चक्र में चलता है। जहां गणेश शक्ति महानतम क्षमा-शक्ति बन जाती है। तब यह ऊपर तालू क्षेत्र में पहुँचती है जहां गणेश शक्ति सूर्य से ऊँची उठ जाती है जब प्रति-अहम् उभरता है तो यह चन्द्र शक्ति होती है और यह चन्द्र आत्मा है, तब यह शक्ति आत्मा बन कर सदा शिव के सिर पर विराजमान होती है। गणेश शक्ति के पूरे विकास को आप देखें, यह कितना सुन्दर है। अत: पास वाछित रूप से परिपक्व यन्त्र नहीं है। परन्तु अब आप इसे देखें कि यह कितनी सूक्ष्म है। "निर्मल विद्या", उच्चारण मात्र से (निर्मल विद्या को मंत्र लेने से) आप उस शक्ति को आमंन्त्रित करते हैं, पूरी तकनीक को आप अपनी देखभाल करने के लिए आमन्त्रित करते हैं और यह वास्तव में आपकी देखभाल करती है। आपको कोई चिन्ता नहीं करनी पड़ती विश्व में कहीं भी, किसी भी सरकार में कभी एसा नहीं होता कि आह्वान मात्र से पूरा तंन्त्र, पूरा ब्रह्माण्ड, सारी सृष्टि गतिशील हो उठे। यही तकनीक निर्मल विद्या के नाम से जानी जाती है। इसके प्रति समर्पित हो कर यदि हम इसमें निपुणता प्राप्त कर लें तो यह पूर्णत: हमारी आज्ञा पालन करती है। परन्तु यह गणेश-शक्ति है, अबोधिता की शक्त-यही शक्ति अबोधिता कहलाती है, सम्पूर्ण शक्ति, क्योंकि यह अबोधिता है अत: अबोधिता बागडोर सम्भाल लेती है और सभी कार्य करती है। तो इस प्रकार यह कार्यान्वित होती है। यह उन्नत होती चली जाती है और पराशक्ति कहलाती है, अर्थात शक्ति से परे। तत्पश्चात् यह 'मध्यमा' बन जाती हैं, आदि आदि। बाई ओर यह विशुद्धि तक पहुंचती हैं जहां आप दोषभाव ग्रस्त होते हैं। दोषी स्वभाव के कारण आप कठोर बातें कहते हैं। बाई विशुद्धि की पकड़ गणेश शक्ति की पकड़ है। गणेश, सोंची जा सकने वाली, मधुरतम चीज हैं। गणेश जी की ओर देखते ही इस प्रकार हमारी इच्छा आत्मा बन जाती हैं, आपकी इच्छा और आत्मा में एकाकारिता हो जाती है। परन्तु बांई विशुद्धि की पकड़ की बाधा कभी-कभी अत्यन्त कष्टदायी हो जाती है। आप में से जिन लोगों को भी बाई विशुद्धि की पकड़ हो वे जब भी कठोर शब्द बोलें तो समझ लें कि वे नहीं बोल रहे हैं। नहीं, क्योंकि आप तो आत्मा हैं और आत्मा कभी कठोर या विनाशकारी शब्द नहीं बाल सकती। बहुत आवश्यकता पडूने पर ही, सुधार करने के लिए, यह कभी थोड़े से कठोर शब्द कहेगी। परन्तु यह कार्य आपने नहीं करना कोई अन्य शक्ति इस कार्य को करेगी। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 18