১. चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VIll अंक 1, व 2 (1996) सहजयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाधान-कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिए। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आप की आ जाएगी तब समझना कि आप सहज में उतर गए। फिर अनायास, आप कुछ चाहे या न चाहें सहज आपकी देखभाल करेगा। आपको मु सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (शक्ति पूजा, दिल्ली) 5-12-1995 न dodedodode ৬ ४ ककर नक् -৩ चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VIII, अंक 1, व 2 (1996) -: विषय-सूची :- 1. भक्ति सुमन पूजा-दिल्ली-15.10.95 2. गुडी-पडवा 3. दिवाली पूजा-नारगोल-25.10.95 11 4. सार्वजनिक कार्यक्रम-दिल्ली-3.12.95 17 5. शक्ति पूजा-दिल्ली 15.12.95 22 : श्री योगी महाजन सम्पादक श्री विजयनालगिरिकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-1।। (067 : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजन्द्र नगर मार्कट, नई दिल्ली-110 060 फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित चैतन्य लहरी 2. भक्ति-सुमन श्री माता जी मेरे सूक्ष्म शरीर को गतिशील किया आपने, आप हैं मेरे आनन्द का सोल, प्रसन्नता का भण्डार, से उठाई कुण्डलिनी में री, प्रम का लक्ष्य, आशाओं का कारण। जब अबोधिता की शक्ति, पावित्र्य का आधार, दिव्य प्रेम एवं उत्कंठा का निरन्तर प्रवाह, विवेक का उद्गम एवं लक्ष्य आप है। है मु.झमें से त भी बह रहा। आप हैं मेरा धैर्य विवेक, नम्रता की सृष्टा, छू कर मेरे सभी चक्रों को, कुण्डलिनी माँ चलाती उन्हें चक्रों और उनसे जुड़े सभी अवयवों को, यौवन का बसन्त, धर्म-प्रतिरूपिणी-शक्ति। शान्ति-प्रदायनी, प चालिका, साहस पोषित करत उन्हें। निरुग्ण केर मेरी सृजनात्मकता का मूल स्त्रोत आप हैं। अगन्य चक्र के संकोर्ण द्वार को विस्तृत कर, में प्रवेश करती है वो. आप हैं मेरे ज्ञान की मुल-प्रवर्तक, मेरी शान्ति की जनक, रन्ध्र चित्र-संकेन्द्रिता। सहस्रार कमल दल मार्ग से, मेरे शरीर से बाहिर आ, विकासदायिनी शक्ति, स्वास्थ्य स्थापिका ब्रह्म-शक्ति, परम चैतन्य, परमात्मा, साक्षात परब्रह्म से, स्मृद्धि की में री चं तना की सूष्टा वास्तुकार, क्षेम प्रदायिनी हैं। वा। जो ड ती सीधा सम्ब-ध आप हैँ । आप हैं मेरे सम्बन्धों की जननी, निर्लिप्सा की दाता, अर्थ ये इस का हु आ बा सम्मान का प्रयोजन, वाणी का भाजन। कि मेरे अन्तस की दिव्य उत्कठा एवं प्रेम ने, विवेक शक्ति मेरी शीलता की प्रेरणा आप हैं। अन्ततोगत्वा, अपने स्रोत को पा लिया। और परमात्मा स्वयं, अपने अग्भाग, आप हैं मेरे अहँ और प्रतिअहँ की नियन्त्रिका, लहरियों एवं चैतन्य प्र' म को की मजिल आनन्द प्रर क, दात्री, कृतज्ञता का मेरे सहस्रार कमल मार्ग से, सूक्ष्म तन्त्र वर्ध क आशी्ष परमानन्द और नीचे मूलाधार तक प्रवाहित करते हुए, इस मिलन का करते हैं पुष्टि करण। में री हृदयाभिव्यक्ति, संघटन शक्ति है। में रे अस्तित्व आप सार को दिया श्री माँ आपने अनन्त आशीर्षों का दान परमेंश्वरी शक्ति का प्रम हैं आप। परमात्मा की मनोवृत्ति, मेरे अन्तस की प्राणशक्ति, में रा श्री चरणों में करते हम कोटि-शत प्रणाम। में री आत्मा, सत्यस्वरूप है। आत्मा, मेरी पूर्ण वास्तविकता आप चेतन्य लहरी 2. गुडी-पडवा पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का संदेश "सहज-योग के आश्शीवाद समाज तक पहुँचाने की सहजियों की जिम्मेदारी" दिल्ली आश्रम-15.10.95 जाकर देखें क्या चल रहा है और अपनी तादाद बढ़ाने के लिये आस-पास के जो गाँव हैं, और उस पर जो आपने कार्य किया है, उसी प्रकार और भी आप आगे बढ़ सकते हैं। लकिन इस नय साल में आपको यह ख्याल करना चाहिये कि हम लोगों ने जैसे कि बहुत से (projects) परियोजनायें निकाले, जिससे हम लोगों के पास यह फ्लैट आ गये, घर आ गये और आश्रम भी बन रहा है। यह भी अच्छी वात है। लेकिन उस आश्रम में हम लोग क्या करने वाल हैं? क्या-क्या चीजे हम उसमें बढ़ा सकते हैं? उसमें कौन सी-कीन सी चीजें हम छाप सकते हैं जिससे कि हमारे बारे में लोग जाने। एक चीज़ मैं सोचती हूँ कि यह बहुत साल पहले हमने सोचा था, एक समाचार पत्रिका ज़रूर सहजयोग का चलना चाहिए। ता बम्बई में एक सहजयोग का समाचार पत्र चल पड़ा। उन्होंने कुछ ऐसी गलतियाँ कर दी कि वो बन्द करना पड़ा। लेकिन अब इतनी तादाद में लोग हैं, तो हम जैसा कि आपको न्यूज़लैटर (Newslet- ter) आता है वहाँ से, उसको (translate) अनुवाद करते हैं, तो उसमें ज्यादातर वाहर के बारे में आता है। इसी तरह हिन्दुस्तान के बारे में भी आप खबर लोगो को दे सकते हैं और कार्य कर सकते हैं। अब मैं सोचती हूँ कि तीन पैमानों पर ख़ास व्यान दंना है, जिसका कि प्रश्न आज है। उन तीनां चीज़ां पर अगर आप ध्यान दं ता एहली चीज जा मरी समझ में आती है, बो है-'शान्ति'। हम अपने अन्दर शान्ति प्रस्थापित करें और बाहर जो अशान्ति है उसका कारण ढूंढ निकाल। क्यों वो अशान्ति है, किस बजह से सारे देश आज नये साल का शुभ दिवस है। आप सबको शुभ आशीर्वाद। हर साल नया साल आता है और आता ही रहता है, लेकिन नया साल मनाने की जो भावना थी, उसको लोग समझ नहीं पाते सिवाय इसके कि नये साल के दिन नये कपड़े पहनेंगे और खुशी मनायेंगे। कोई ऐसी बात नहीं सोचते कि यह नया साल आ रहा है, इससे हमें कौन सी नई बात करनी है। जैसा ढरां चल रहा है, वही चल रहा है और उसी ढूरें के सहारे हर साल सबको "नया साल मुबारिक" कह दते हैं। सहजयोग में हम लोग जब इतने सामूहिक हैं, यह सोचना चाहिये कि अब कौन सी नई बात सहजयोग में करें। ध्यान में आप लोग काफी गहरे उतर गये हैं; ध्यान आप समझते हैं और आपने एक स्थििति भी अपनी स्थापित कर ली है। पर नये साल में कौन सी नई बात करनी चाहिये, इस ओर हमारा ध्यान जाना जरूरी हैं। असल में पहले तो हमें यह भी सांच लेना चाहिये कि हमारे देश के क्या प्रश्न हैं और सारी दुनिया के कौन से प्रश्न हैं और उन प्रश्नों को हम किस तरह से नतीजे पर ला सकते हैं। उसके लिये मैं यह सांचती हूँ कि जिन सहजयोगियां की जहाँ भी (interest) रुचि हो, उसे वो ध्यानपूर्वक देखें। ऐसे तो बहुत सी चीजें सहजयोग में नई-नई शुरू हो गई। आप जानते हैं कि इस बार हमने सोचा है कि शिया मुसलमानों को बुलवाकर समझाया जाये उसके लिये कोशिश कर रहे हैं और शिवाजी महाराज का जो बड़ा पवित्र जीवन रहा, उसका भी प्रचार करने की कोशिश करें। तो दोनों चीजे बहुत अच्छी हैं, कि शिया लोग समझ जाएं कि धर्म क्या है और शिवाजी के जीवन को देखकर के हम लोग भी समझ जायें कि "धर्म" क्या है और उनके आदर्श क्या थ और उन्होंने उन आदर्शों के लिये क्या-क्या किया। इतने थोडे से समय में उन्होंने कितना कार्य कर के दिखा दिया। ता में गड़बड़ या दूसर दशों में गड़बड़ है। इसकी जड़ पहले पता लगानी चाहिये और उसमें किस तरह से हम कार्यन्वित हो सकते हैं। अब जैसे कि 'चेचन्या' का प्रश्न है; तो हमनं (Russians) रूसियां सं बात करी। तो, वा कहते हैं कि हमारी बात तो कोई छापता हो नहीं सब (one-sided) इकतरफा मामला चल रहा है। तो उन्होंने जो बताया कि चचन्या में जो गड़बड़ू है, वो यह है कि अगर हम सामान्यवादी हैं और हम अगर (Democratic country) अब सामूहिक रूप में हम लोग वहुत ठीक हो गये हैं, खासकर दिल्ली में और दिल्ली के आस-पास और सहजयांग बढ़ भी रहा है। उसके साथ-साथ यह भी सोचना है कि हमारे अन्दर गुरुपन आ रहा है या नहीं? बस अगर सहजयाग बढ़ रहा है, उसकी (quantity) संख्या बहुत बढ़ रही है तो (quality ) गुणवत्ता आई की नहीं, यह बहुत जरूरी है। अब साचना और उसकी तरफ ध्यान देना चाहिए उसकी आर। मैं यह कहुँगी कि ध्यान-धारणा के जो प्रजातन्त्र दश है तो इसमें दोनां में बड़ा फर्क है। प्रजातन्त्र में आप लाकशाही में, जा लोकशाही है उसमें आप किसी भी एक घर्म के ऊपर राज्य नहीं कर सकते और बो धर्म कि जो अपना अकलापन लिये हुए हैं. (Exclusive Religion) है। जैसे ये तीन चर्म जी हैं, बुद्ध का भी बहीं हाल है, वुद्ध भी वी ही और महावोर भी बा ना। भी आपके गुप्स (समूह) चल रहे हैं, उधर आप लाग नजर करें। चतुम्म ला हिन्दुस्तानी हैं, तो वो पहले मुसमलान फिर हिन्दुस्तानी। यह सारं देशों में है। अब यहाँ के मुसलमानों ने ऐसी चपत खाई है, पाकिस्तान में, कि हर रोज 18 से लेकर 20 लोग मारे जा रहे हैं, जो हिन्दुस्तानी ही। और यह जो तीन धर्म हैं जो कि पाँच एन्जल्स (Angles) से आये, जिनको हम कह सकते हैं कि यहूदी (jews) क्रिश्चियन्स और मुसलमान। जो एक-एक किताब को सिर्फ मानते हैं और एक ही (Incarnation ) अवतार को मानते हैं और इसलिये वो (exclusive) अकले हैं। लेकिन वास्तव में वो Exclusive नहीं है। तो यह (point) तथ्य उनको लिखना चाहिये। वह क्या है कि इन सब धर्मों में समझ लीजिये, अगर आप मोज़ज़ (Moses) की बात लिखें तो उन्होंने इब्राहम (Abraham) के बारे में कहा। फिर ईसा मसीह आए, उन्होंने मोज़ज़ (Moses) एत्राहम (Abraham) सबके वारे में लिखा। फिर जब मोहम्मद साहिब आए तो इन्होंने इन तीनों के बारे में, यहाँ तक कि ईसा मसीह की माँ के बारे में भी लिखा। तो ये घर्म जो हैं exclusive नहीं हैं, ये बनाये गये हैं इसीलिये झगड़ा होता है। उनसे अगर कोई कहे कि कोई विश्वधर्म बना है तो वो इस बात को बिल्कुल पसन्द नहीं करते क्योंकि फिर बी लड़ेगे कैसे? लड़ने की जो अभी उनकी इच्छा है, जो प्रवृत्ति है, उसे वो कैसे समाधान दे सकते हैं। इसलिये, वो इस बात को मानने के लिये तैयार नहीं हैं कि धर्म जो उनका है, वो विशिष्ट नहीं है। और यह सारे विशिष्ट धर्मों के ऊपर हम अगर चाहें कि है। इनका इन्टरव्यू आया था शायद आपने टीवी पर देखा हो। वहाँ आया था, तो उन्होंने कहा कि "न खखदा ही मिला न वसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे" ऐसी बुरी हालत हैं। अब यहाँ के मुसलमानों की खोपड़ी में आ रही है वात कि हिन्दुस्तान में जी लोग रुक गये वो समृद्ध हैं, वो सब ठीक हैं, कोई परेशानी नहीं। वहाँ तो यह है कि कौन आदमी कल कट कर खत्म हो जायेगा, पता नहीं। यह दशा है और मारे जा रहे हैं पाकिस्तान में, ब्याोंकि वहाँ सिंधी और पंजाबी जो हैं वो नहीं चाहते कि यह लोग वहाँ रहें। हिन्दुस्तानी होने की वजह से उन्होंने अपना एक ग्रुप बना लिया, सब कराची के आसपास रहते हैं। अव कहते हैं हमें कराची दे दो क्योंकि हम (majority) बहुसंख्या में हैं। अब कराची उनका एक ही किला है। तो सारे जो धर्म हैं, खासकर 'इस्लाम': इस्लाम में सबसे बड़ी वात जो उन्होंने कही है कि जब तक तुम खुद को नहीं जानोगे, तुम रूुदा को नहीं जानोगे, पहले खुद को जानो।" और जो दूसरी बात है जिस पर कि इन्होंने आफत मचाई हुई है, वो यह है कि ये 'निराकार' को मानते हैं साकार को मानत ही नहीं। जो 'निराकार को मानते हैं, वो जमीनों के लिये क्यों लड़ रहे है? वो तो "साकार" 'जड़' चीज़ है। जब आप "निराकार को मानते हैं तो 'निराकार' को प्राप्त करें। और निराकार को प्राप्त किये बगैर आप सिर्फ जमीनों के लिये लड़ रहे हैं, यह भी दूसरी Democracy प्रजातन्त्र में एक यहूदी आ जाये इंधर वो आ जाये, उधर वो आ जाये, तो वो झगड़ा चलता ही रहता है। इसलिये उनको विश्वधर्म में आना चाहिये। विश्वधर्म में आते ही यह सब भावनाएं टूट जायेंगी कि हम अलग हैं और वो अलग हैं। अगर आप देखें ता आज भी इस वक्त भी हर जगह धर्म को लेकर के बड़े-बड़े संग्राम हो रहे हैं। वो सब खत्म हो जाये अगर यह हो जाये कि यह धर्म विशिष्ट है ही नहीं, आप लड़ क्यों रहे हैं? एक यहूदी है वो मानता है, फिर जो ईसा मसीह वाले लोंग हैं, वो मानते हैं, और गलत बात है। पर इन लोगों को समझाना आसान नहीं है और इनके तो खून सवार है। जो भी बात है लेकिन हमलोग कहीं-कहीं लेख देना शुरू कर दं, ऐसी बात कहना शुरु कर दें, तो लोग सोचने लगेंगे-"देखिये ये जो बात कह रहे हैं। उसमें सच्चाई कितनी है झूठ कितना है।" और फिर यह (मुसलमान लोग) भी देखेंगे कि हम आज तक लड़ते रहे, मरते रहे तो उससे हमें क्या फायदा हुआ? एक मुसलमान जाति ऐसी है जो सहजयोग के लिये बड़ी मुश्किल है और आती कम है। हालांकि ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि मुसलमान काफी जगह से आये हैं और सहजयोग में पन्द्रह-बीस सहजयोगी हैं, सारे (world) दुनिया में आप कह सकते हैं। लेकिन इस बार मेरा जब भाषण वहाँ हुआ रेडियो पर तो मैने उनसे साफ-साफ कह दिया सारी बातें। और जब मैंने सारी साफ बातें कहीं तो किसी ने मुझसे वो बात नहीं करी क्योंकि वो लोग सब टेलिफोन से बात कर रहे थे। पर वहाँ कि कुछ महिलाओं ने फोन किया कि हमें तो ठंडा-ठंडा आ रहा है, श्री माताजी की बातें सुनकर और बहुत से लोग पार हो गये। तो यह भी एक सोच रहे हैं कि यह भी एक तरीक़ा, जरिया है जिससे जो लोग बाहर गये हुए हैं, जैसे इरानियन लोग जो अमेरिका में बसे हुए हैं, हम उनको पकड़ सकते हैं। इस प्रकार गल ये सब लोग सब एक ही प्रणाली से निकले हैं। जब यह बात है तो कोई सा भी धर्म विशिष्ट नहीं है। तो यह झगड़ा लेकर के और सारी दुनिया में जो आज क्रन्दन चल रहा है तो उसको बन्द करना चाहिये। तो उन्होंने यही कहा कि समझ लीजिये कि अभी चेचन्या में मुसलमानों को हमने राज दे दिया तो यह मुसलमान कौम अब प्रसिद्ध है कि एक-एक आदमी 28 बच्चे तक पैदा करता है और इन्होंने एंसे बच्चे पैदा कर करके और अपने को मेजोरिटी (majority) बहुसंख्या में बना लिया। (वो कहते हैं कि फैक्ट्री हैं, वहाँ की औरतें) अब अगर कल इनको राज दे देंगे तो फिर ये वही करेंगे और फिर आप इनको कैसे रोक सकते हैं? तो इनके धर्म में जो हैं, जो कुछ भी शक्ति है वो यह है कि हम बहुत बड़ी तादाद में हैं। तो यह बढ़ाना कुछ मुश्किल नहीं है उनके लिये और इस तरह से अगर यह बढ़ गये तो ये सारे (Russia) रूस को खा जायेंगे। ये रूसी क्यों नहीं हो जाते, किसी एक धर्म को लेकर क्यों चलते हैं? तो मुसलमानों का तो यह है ही कि अब जैसे चैतन्य लहरी अशान्त हो जाता है? अब उसकी जड़े अनेक हैं। आप कहेंगे ईपा है, महत्वाकांक्षा है, यह है, वो है और भविष्यवादी आदमी हो तो अशान्त रहेगा। बाईं ओर को (भूत में) भी रह सकता है। क्योंकि वाई ओर का दु:खी वन कर रहेगा और दाई और का जो है अपने को सुखी समझ कर रहेगा। पर है तो दोनों में ही अशान्ति। उसके लिये उनकी अशान्ति को हमें ठीक करना है। आपने मेरी किताब में पढ़ा होगा कि मैने उनसे 'जीन्स' (Genes) के बारे में लिखा है। सहज में आने से जीन्स ठीक हो जाते हैं। और जब जीन्स ठीक हो जायेंगे तो इन्सान अपने ही आप शान्त हो जायेगा| कहने की कोई जरूरत नहीं और उसकी सारी ही तबियत बदल जायेगी। तो उसमें मैने काफी व्याख्या करके बताया है, फासफोरस पर कि फासफोरस जीन्स में होते हैं। जब आदमी (dry) खुश्क हो जाता है तो फासफोरस (explode) विस्फोट करता है, वो तो आप जानते ही हैं। तो अभी वारलीकर कह रहे थे कि "माँ, यह तथ्य तो आज तक किसी ने कहा ही नहीं। एक बार फासफोरस पर तीन लोगों को नोबेल पुरुस्कार मिला पर यह जो वात आपने कही वो तो किसी ने आज तक कही ही नहीं। तो मैने कहा यह नोबेल पुरुस्कार के लिये तो गये हुए हैं, शायद हो ही जायेगा (peace) शान्ति पर। पर बात क्या है कि जब आदमी के अन्दर अशान्ति आ जाती है, तो अशान्ति में ग्ुपवाज़ी हो सकती है। मैं सोचती हूँ कि दो तरह से हो सकती हैं। एक तो अहंकारी लोगों को होती है और दूसरी जो कि (left-sided) तामसी प्रवृत्ति है, (Possessed) है हर जगह जहाँ-जहाँ मुसलमान गये हैं, एक तो उत्पाती बहुत हैं। झगड़े करते हैं और दूसरे ये ऐसी-ऐसी बातें सोचते हैं जैसे कि अफ्रीका में उन्होंने अपना गुट बना लिया है। और अभी एक आदमी जिसने कि बड़ा भारी एक गैन्ग बनाया था और वो चाह रहे थे कि वहाँ के विश्वव्यापक भवन को उड़ा दें। उसमें वो पकड़ा गया, उसको 18 साल की सजा हुई। तो ये लोग जहाँ भी रहते हैं, उत्पाती हैं, समझते नहीं। समझाने की जरूरत है कि जब आप निराकार में विश्वास करते हैं तो आप जमीन के पीछे क्यों लड़ते हैं? दूसरी बेवाकूफी की बात इनकी ऐसी भी है, कहते हैं कि जब आप मर जायेंगे और आप गाड़े जायेंगे तो जब कयामत आयेगा, जब (Resurrection) पुनरुत्थान का समय आयेगा तो उस बक्त आपके शरीर निकल आयंगे और उनका (Resurrection) पुनरुत्थान होगा। तो बताईये 500 साल बाद कौन-सा शरीर का हिस्सा निकलेगा और किसको यह होने वाला है? इस प्रकार आप सोचिये कि काफी अजीब चीज़ है। पर इसको किसी तरह से लिखकर के हमको चाहिये कि कुछ (Newspaper) समाचार पत्रों में यह लिखा जाये और उनको बताया जाये कि बेवकूफी की बातें करते हैं और इस बेवकूफी में फँस जाते हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मोहम्मद साहव ने कुरान नहीं लिखी। 40 साल बाद, मोहम्मद साहब के कुरान लिखी गई। ईसामसीह ने कभी कोई बाइबिल नहीं लिखी और न ही मोज़न ने कुछ लिखा। इस प्रकार यह भी बात है कि उसकी ( authenticity) प्रामाणिकता क्या है, जिसके लिये आप लोग लड़ रहे हैं? अब ये अगर इस तरह चलते रहे तो नरक में जायेंगे और कोई तो इलाज मुझे दिखाई नहीं देता। बेवाकूफी की भी कोई हद होती है। ऐसी बेवाकूफी की बातें करके इनको कोई कल्याण नहीं हो सकता। अब इनमें से मुसलमानों में से कोई ढूंढो वो बहुत मुश्किल हैं। हो सकता है, एक-आध निकल आये और आदमी इतनी हिम्मत कर ले कि यह बातें कहे और समझाये। पर यह लोग सब डरते हैं कि वो मारे जायेंगे और उनको खत्म कर देंगे। पर ऐसा होगा नहीं क्योंकि अगर सहज में आ गये तो कोई किसी को मार नहीं सकता। इतनी हिम्मत अगर कोई करे तो इन लोगों को समझा सकते हैं। यह जो सबसे बड़ी चीज़ कि हमारी शान्ति खत्म हुई है, वह धर्म की वजह से। यह जो अधर्मी धर्म हैं उसकी वजह से हमारे अन्दर शान्ति नहीं। अगर एक चीज़ ये ही खत्म हो जाये तो मैं कहती हैँं कि युद्ध की कम भूत बाधित है। अफ्रीका की जो गड़बड़ वो है (Possessed) बाधित लोगों की, लेकिन बाकी जो है, उनकी है अंहकार की। भूत तो अगर अंहकार और (Possession) भूत वाधा दोतों को हमलोग नष्ट कर दें, तो हम शान्त हो जायेंगे। और उस शान्ति के माध्यम से हम स्वयं ही दूसरों को शान्ति दे सकते हैं तो ज्यादा ध्यान इधर करना चाहिये कि भई देहात में जायें और वहाँ लोगों को (Realization) आत्म साक्षात्कार देकर शान्ति का महात्म्य समझायें। अब जैसे (North) उत्तर के जो गाँव हैं उसमें एक खराबी जो बहुत पाई जाती है कि यहाँ पर मुसलमान (mentality) मनोवृत्ति की वजह से औरतों को बहुत दबाया जाता है और फिर औरतों को जब आप दबाते हैं, पर जब वो खड़ी होती है, तो भी मरदानों से बढ़कर। तो महिलाओं के प्रति सम्मान होना चाहिये। और यहाँ कि औरतें भी कुछ ऐसी पिछड़ी हुई हैं कि वह समझ नहीं पाती कि आपका (Self-Respect) आत्म-सम्मान क्या है अब सहजयोग में में देखती हैँ कि यहाँ औरतें बहुत कमज़ार हैं, हालांकि मैं एक औरत हूँ। ध्यान नहीं करना, मतलब (back- biting) पीठ पीछे निन्दा, झगड़ा करना, यह धन्धे चलते रहते हैं । सबसे बढ़कर तो (Domination) रौव जमाना। अब जब यह चीज़ें जो औरतों में आ गई हैं, उससे अपनी शक्ति होन हो जाती है क्योंकि से कम 75% समस्या का समाधान हो जाये। अब दूसरी बात यह है कि अशान्ति कहाँ से आती है? क्योंकि अगर उस पैमाने पर देखा जाये कि बड़े-बड़े देशों में लडाई हो रही है झगडे हो रहे हैं तो ये दूसरी बात है। और जैसे शिराक साहब ने वहाँ पर एटम बम लगा दिये तो उनके यहाँ भी बहुत से बम पड़ रहे हैं। लेकिन अगर आप व्यक्तिगत रूप से देखें, तो व्यक्ति में जो अशान्ति है, वो कहाँ से आती है? किस वजह से मनुष्य चैतन्य लहरी 15 टाइम देना चाहिये, उसके लिये मेहनत करनी चाहिए पर (companionship) सहचारिता में दोनों मिलकर। बच्चों को भी इसमें लाईये, पत्नी को भी इसमें लाईये, सबको लाकर। अगर आप चाहें कि आप तो सहजयोग का कार्य करते रहें और वाइफ अपनी घर में बैठी रहे तो जाते ही साथ वो विगड़ पड़ेगी। तो कोशिश यह कीजिये कि पूरी सहचारिता हो। पत्नी से विचार विमर्श करें, उसे बतायें कि यह प्लान है, कैसे करें, क्या करें? उनका भी उत्थान होना चाहिये। उनका भी बौद्धिक-स्तर बढ़ना चाहिये, उनकी भी सूझ-बूझ बढ़नी चाहिये। सो ये जो मुसलमानों के असर से ये वहाँ मैने देखा है कि अब उल्टा हो रहा है। पहले तो मैं देखती थी कि औरते बहुत दब्बू थीं अब वो औरते आदमियों को दबोच रही हैं । तो ये जो (action-reaction) क्रिया-प्रतिक्रया है, इसका सहजयोग में एक दम खत्म कर देना चाहिये। और इसका इलाज यह है कि पहले अपने जीवन में, अपने वैवाहिक जीवन में यह औरतों से शक्ति आती है। (Potential ) अन्त: शक्ति तो वो हैं और जब वो इस तरह से आचरण करने लग जाती हैं तो सारे ही समाज की शक्ति खत्म हो जाती हैं। तो सबसे बड़ी बात यह है कि अपनी औरतों में शान्ति प्रस्थापित करनी चाहिये। और उसके लिये (husband) पति में भी शान्ति होनी चाहिये। वो अगर शान्त हो और पत्नी का आदर करे तो मेरे ख्याल से बच्चों में भी शान्ति आ जायेगी, घर में भी शान्ति आ जायेगी। अब यहाँ पर जो एक तरह की (aggression) आक्रामकता है पुरुषों की, वह वहाँ तक कभी सीमित रहेगी ही नहीं। वह लौट कर वापस आयेगी आदमियों पर। तो, जो (Companionship) सहचारिता होती है, आपस में प्यार से बात करना, आपस में अच्छे से बात करना, सबके सामने किस तरह से बर्ताव करना चाहिये और वैसे भी, इस चीज पर हम लोगों को ध्यान देना चाहिये। जैसे बहुत से लोगों को मैने देखा है कि उनकी बीवियाँ किसी काम की नहीं सहज के लिये| लेकिन खोपड़ी पर बैठा देंगे, खोपड़ी पर वबैठ जायंगी। बहुतों के पति ऐसे हैं कि वो अपनी बीबियों की परवाह नहीं करते और उनको मारते पीटते हैं। अब भी सहजयोग में ऐसे लोग हैं। इससे बड़ा दुख होता है मुझे कि अब भी अगर मियाँ बीवी में सहचारिता नहीं आती है, तो कोई गम्भीर बात है। मेरे लिये बहुत गम्भीर बात है। पृूर्ण सहचारिता ब्योंकि अब आप सहजयोंगी हो गये, बीबी भी आपकी सहजयोगी है और जब दोनों आदमी एक ही नाव में बैठे हुए हैं तो उनमें आपस में झगड़ा कैसे हो सकता है? होना ही नहीं चाहिये। यह एक बड़ी भयानक चीज़ है। जब आप सहजयोग में आये हैं और आपस में लड़ रहे हैं तो सबसे बड़े तो सब देवता आपसे नाराज हो जायेंगे और किस आफत में आप फर्सेंगे यह कह नहीं सकते। चाहिये। ठीक करना अब जब आप शान्त हो जायेंगे, तो आपके बच्चे भी शान्त हो जायेंगे। यह सारी जितनी भी बीमारियाँ है, अशान्ति की, जिस आप बड़े-बड़े युद्धो में देखते हैं, यह आती कहाँ से हैं? यह मनुष्य से आती हैं कोई आकाश से नहीं आती, कोई पेडों से नहीं आती। जड़ इसकी मनुष्य है और अगर मनुष्य ही इस चीज़ में, शान्ति में रम जाये और उसमें वो पनप जाए और उसके लिये वो बड़ी गौरवशाली चीज समझे कि मैं अपना सामाजिक ढर्रा ठीक हो जाये। जो सामाजिक ढर्रा है, उसको ठीक करने का कार्य भी सहजयोगियो को करना है। बहुत शान्तचित्त हूँ, कम से कम पर जो आपस में लड़ते रहते हैं, बो क्या जाकर सामाजिक ढरा ठीक करेंगे? बहुत बार ऐसी शिकायत आती रहती है, "कि माँ बो साहब तो बहुत अच्छे हैं पर उनकी बीबी बड़ी जबरदस्त हैं।" फिर कहीं आता है कि बीबी अच्छी तो साहब बड़े जबरदस्त। इस प्रकार बहुत रिपोर्ट आती हैं। तो हम लोगों के पास तो अपनी एक सभ्यता है, अपना एक तौर तरीका है। उस सभ्यता से वचित होकर क हम गलत काम कर रहे हैं। अपने यहाँ कम से कम जैसे हम महाराष्ट्र में देखते हैं, बीबी की बहुत इज्ज़त करते हैं और बीबी भी (husband) पति की बहुत इज्जत करती है। एक सभ्यता है और उसमें ऐसा नहीं चलता कि पति-पत्नी को सोचता है कि वो कोई और चीज है या उसका दर्जा उससे कम है। ये बहुत बार मैने समझाया कि रथ के दो पहिये होते हैं, एक अगर छोटा-बड़ा हो जाये तो ठीक नहीं। दोनों की (similarity) समानता नहीं होती। यह कहना चाहिये कि (height) ऊँचाई एक होती है, बनावट एक होती है, सब होती है पर दोनों, अगर (Right) दायें का (left) बायें में लगाओ और (left) बायें का दायें में, तो लगेगा ही नहीं। तो दोनों में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं। जैसे कि एक औरत है, औरत की अपनी कमजोरियां, कमजोरिया कहना चाहिये, यह बहुत ध्यान देने की बात हैं। समझ लीजिये एक औरत है और एक आदमी ऐसा है कि वो उसको जबरदस्ती परेशान करता है, बेकार में-यह नहीं अच्छा, वो नहीं अच्छा, ऐसा नहीं, वैसा नहीं। तो एक दिन ऐसा आ जायेगा कि उस आदमी के सारे देवता उससे नाराज़ हो जायेंगे। लक्ष्मी की समस्या लक्ष्मी की नहीं हुई तो हृदय की समस्या, सबसे बढ़कर बाई नाभी जब पकड़ जाती हैं तो और तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। अब बाई नाभी पर बहुत ही ज्यादा मैने काम किया है और मैं देखती हैँ कि बाई नाभी जो है बड़ी मुश्किल से ठीक होती है क्योंकि (Introspection) अन्तर्दर्शन नहीं है। सोचते नहीं कि बाईं नाभी हमारी क्यों पकड़ रही है। फिर समझ लो: पत्नी यदि जबदरस्त है, सुनने को तैयार नहीं और अपना ही चलाती है, जो भी हैं, अपमान करती है। उससे बैठ कर बातें करो। आपस में (Rapport) ताल-मेल होना चाहिये, बातचीत होनी चाहिये। अब लोंग सहजयाग में आते हैं तो देखा जाता है कि चले सहजयोग के पीछे कभी मियाँ बीबी की बातचीत नहीं, बच्चों से वातचीत नहीं। यह तो ऐसा ही हुआ जैसे इंगलैण्ड, अमेरीका में लोंग (holiday) छुट्टी मनाने जाते हैं। सहजयोग के लिये चेतन्य लहती 6: थे वगैरह, उसी से वो लोग सब वहाँ इस तरह से पहुँच जाते अब देखिये सहजयोग में आप सबका नाम सबको मालूम हैं, ये कौन है, वो कौन है, रिश्तेदारी कितनी बड़ी है। बहुत बड़ी रिंश्तेदारी है दुनिया भर में और जब आप घूमने लगंगे इस तरह से जैसे कि हम कह रहे हैं कि अब हम दिल्ली कभी नहीं आयंगे हम अब नागपुर जायेंगे। समझ लीजिये तो सारे अब नागपुर आयेंगे है कि नहीं बात? तो इस तरह से यह (detachment) विरक्ति होनी चाहिये। मैं देखती हैं कि, "माँ आप यहाँ आइये, वहाँ आईये" काई सोचता ही नहीं कि इस उम्र में हम इतनी मेहनत कर रहे हैं, कितना हमें चलना-फिरना पड़त है और जरा सा इस तरह से अगर आप हर समय, यह इधर खींच रहा है, वो उधर खींच रहा है, तो कैस हो सकता है। तो इस पर भी कुछ सब लोगों को समझाना चाहिये कि माँ को जितना कार्य करना चाहिये था, उतना माँ ने कर दिया और अब जो, उनकी जो मजी होगी, वो होना चाहिये। हम लांग उनपर कोई दबाव नहीं डालेंगे। वो कहंगी तो पूजा करेंगे। वो खुद कहें, वो मान जाये तो ठोक, उन पर जबरदस्ती किसी तरह की नहीं करनी चाहिये। इससे एक हो जायेगा कि हमारी हैल्थ (स्वास्थ्य) थाड़ी बच जायेगी। अगर और थोड़ा कार्य करने का उसके लिये मैं नहीं चाहती कि मेरी खींचा-तानी हो| अब जो भी आपको प्रायोजित करना है, आप लोग उसे करिये। व्यवस्थित रूप से उसे सोच लें और वो बोझा मेरे सर पर नहीं डालिये। छोटी-छोटी चीजों के लिये.....जैसे कोई विमार है, फोन कर देंगे "माँ फलाना बिमार है।" अरे भई तुम सहजयांगी हो तुम्हं इतनी (power) शक्तियां दे दीं, मुझे क्यों परेशान करने की जरूरत है? आप लोग करिये, अब आपकी जिम्मेदारी है। मैं ता सोचती हूँ कि मेरे बच्चे बहुत बड़े-बड़े हों गये हैं, वहुत (responsible) ज़िम्मेदार हो गये हैं और सब कुछ समझते हैं। और यह दिलासा आपको दंना चाहिये कि '" माँ, आपको परंशान होने की जरूरत नहीं। हम लोग ठीक कर लंगे। हम इस चीज़ को ठीक कर लगे, हम उस चीज को ठीक कर लेंगे। इस तरह से जब शुरू हो जायेगा तब मुझे इत्मिनान हो जायेगा कि ऐसी कोई वान नहीं। अभी तो हाँलाकि एसी हालत है कि यहाँ से चिट्ठियां पर है उसकी अपनी तबीयत होती है। आदमियों की अपनी तबीयत होती है। वो घड़ी लगाये रहते हैं, घड़ी चलती रहती है आदमियों की तो मैं तो बहुत दफे आदमियों से कहती हूँ कि तुम घड़ी उतार दो पहले । अब औरतो को है जरूर थोड़ा टाइम लगता है। कहीं जाना हो, टाइम से नहीं चले तो हो गया, आदमी लोग खत्म हो गये। छोटी चीज़़, ये चीज़ यानि ये बहुत छोटी चीज़ है। छोटी-छोटी चीज़ ही में सारा झगड़ा शुरु हो जाता है। और मुझे लगता है कि आदमी सोचते हैं कि वो (incharge) कार्यभारी हैं सब चीज़ के कि टाइम से पहुँचना है। नहीं हुआ टाइम से तो कोई आफत नहीं आने वाली। धीरे-धीरे अपने मस्तिष्क को ऐसा ट्रेन करें कि जिससे आप (react) प्रतिक्रिया न करें हर समय मस्तिष्क को ऐसी दशा में रखना चाहिये कि प्रतिक्रिया न करे, सिर्फ उसको देखते मात्र रहें। घीरे-धीरे आपको आश्चर्य होगा कि आप भी ठीक हो जायेंगे और आपकी बीबी भी ठीक हो जायेगी और दोनों को यह चीज अध्यास करनी चाहिये कि दोनों जो हैं इसको (witness) साक्षी की तरह से देखें। तो यह जान लेना चाहिए कि औरत चौज अलग है, आदमी अलग चीज़ है और उनके जरिये अलग हैं, उनके तरीके अलग हैं, हालाँकि दोनों की समझ लीजिये (similarity) समानता यही है कि दोनों इन्सान हैं। अब इस बात पर आप लोगों को खोज करना चाहिये कि सहजयोग में इस प्रकार की समस्याएं क्यों आती हैं। जैसे एक लड़की लखनऊ आई थी, यहाँ पर शादी होकर। उसकी प्चीसों समस्याएं खड़ी हो गयी, उस लड़की को। उससे बातचीत करना चाहिये, उससे पूछना चाहिये क्या बात है, क्या नहीं? सहजयोग किसी को तोड़ने के लिये नहीं सबको जोड़ने के लिये है। तो कोई चीज़ अगर टूटती है तो उसके पीछे क्या कारण हैं, कैसा है, इस तरफ आप लोगों को देखना चाहिये और उसकाी जोडना चाहिये । अब जब यह जोड़ना शुरू हो गया तो ये भी साचना चाहिये कि अब दिल्ली वाले है, वो बम्बई बालाों से एकदम जुड़ जायें, वैसा नहीं होता।" दिल्ली में पूजा होनी चाहिये "क्यों साहब?" अगर बम्बई में हुई तो भी दिल्ली में ही हो रही है; जब आप अपने दिल को बड़ा करके देखिये तो आप तो सारा विश्व हैं कहां भी पूजा हो रही है तो भी वो आप ही के लिये हो रही है। बहुत यह कि "हमारे दिल्ली में होना चाहिये। आप यहाँ जरूर आईये। फिर कहंगे कोई " आप और फलाती जगह ज़रूर आइये" इस उम्र में हम कितना सफर करते हैं इसीलिये कि लोग यह न सोचे कि हमने किसी और को फेवर कर दिया, किसी को नहीं किया। तब फिर मैने अब जैसे सोचा कि मैं यूरोपियन टूरो में नहीं जाऊँगी। यूरोप में मैं जाऊँगी नहीं, तो यूरोपियन जहाँ हम जाते हैं, वहाँ आते हैं । रूमानिया गये वहाँ पहुँचे हुए हैं, और हम रूस गये वहाँ आये। सारे वहाँ पहुँच जाते हैं क्योंकि माँ से कहाँ मुलाकात हो, माँ तो आ नहीं रही है हमारे देश में। तो जो वो खर्चा हमारे आने का करते चिट्ठियां। किसी का कुछ, किसी का कुछ। लेकिन उनसे कहना चाहिये कि भई आपको चिट्ठी भेजना है तो सेन्टरों में भेजां, आप क्यों माँ को परेशान कर रहे हैं ? अब यह देखना चाहिये कि कितने लोगां ने सहजयोग के कितने लोगो ने सहजयोग के कितने लांगों की समस्याओं का समाधान किया, हमारे जैसे। हमी समाधान कर सभी समस्याओं का। जब यह बात आ जाती है तो पहले तो आपकी सहजयोग पूरी तरह से मालूम होना चाहिये और आप शुद्ध अन्त: करण से करें। दोनां चीजें बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर आप, बहुत लोगों को मैने देखा है "हाँ, हाँ लाओ तो, मैं तुमको टीक करता हूँ।" तो उसका ऐसा दम निकाल देते हैं कि वो आदमी कहता चैतन्य सहरी है है, "बाबा सहजयोग से छुट्टी।" तो ऐसा करिये कि एक कमेटी बनायें और उस कमेटी के माध्यम से समाधान होने चाहियें। और जैसा कहीं गये, उन्होंने बताया, "इनकी यह समस्या है, उनकी यह समस्या है।" अब मेरे ख्याल से इस दशा से आप लोग पूरी तरह से परिचित हैं। आप जानते हैं कि क्या करना चाहिये हर समस्या के लिये। और अगर बन पड़ा तो मैं एक किताब इस पर भी लिखना चाहती हूँ कि किसी को कोई समस्या है तो उसको कैसे समाधान देना है। पर आप लोग खुद इसको लिख सकते हैं। आप लोग खुद इसको बता सकते हैं। अब उससे क्या हो जायेगा कि अब जो बोझा मेरे ऊपर है, वो आप लोगों पर आ जायेगा और उससे आप पनपेंगे, उससे आप बढ़ेंगे। नये साल के इस दिन आप यह सम्भाल लें। अगले नये साल और कुछ पहले कह रही हूँ, बाद में मैं परदेस में कहूँगी। इसलिये कह रही हूँ कि आपमें जो धर्म है वो (advantage) श्रेष्ठता है। जो सभ्यता आपके अन्दर है, उसके बूते पर आप बहुत ज्यादा कुछ कर सकते है। विदेश में भी लोग आपको, सब लोग बहुत मानते हैं । कहते हैं। कि अगर कोई भारतीय मिल जाये तो उस जैसी बात ही पुरुषों की इतनी ज़रूरत नहीं। पुरुषों का काम कि अपना ध्यान आर्थिक तथा राजनैतिक समस्याओं पर दें, पर औरतों को समाज सम्भालना है। तो वो त्यागमय होती चाहिये, समझदार होनी चाहिये और विवेकशील होनी चाहियें। तब यह समाज अपना ठीक रहेगा। बहुत सी औरते हैं उदार नहीं हैं, कभी सहजयोग के बारे में खास जानती नहीं है और जो जानती है, वो अपने को पता नहीं क्या समझती हैं? उनमें सन्तुलन लाना, उनको बैठाकर समझाना, यह एक बहुत ही ज़रूरी काम है। देखने में लगता है कि ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मैं सोचती हूँ कि यह बड़ी अहम् बात है, बहुत महत्वपूर्ण बाते है कि जो हमारे यहाँ की स्त्री हैं, उसको पता होना चाहिये, वो क्या है, किसलिये इस दुनिया में आई है, उसका क्या कार्य है। वो है समाज बनाने वाली और उसको समाज बनाने में नई चीज हो । इसके लिये मैं आपसे सबसे आप कहाँ तक मदद कर रहे हैं, यह समझना है। इस तरह से औरतों की तरफ ध्यान देना चाहिये, बहुत ज़रूरी है। तीसरी चीज़ जो मैने बताई है वो है बच्चों के बारे में बच्चों के बारे में भी जो हमारे ख्यालात हैं, उन्हें हमें समझना चाहिये। बच्चों से बातचीत करनी चाहिये, पूछताछ करनी चाहिये। इंगलैण्ड में एक किताब उन्होंने छापी, जिससे उन्होंने बच्चे सबके वारे में क्या कहते हैं, वो लिखा। वो सब छपी, वो जिस दिन ( पब्लिश) मुद्रित हुई, दूसरे दिन सारी की सारी बिक गईं। और अब भी यह हाल है कि आपको वह किताब मिलना मुशकिल है क्योंकि इतनी मनेदार है बच्चों की चीज़। और सब लोग पढ़ना चाहते हैं। बच्चे क्या कह रहे हैं, बच्चों का क्या ख्याल है। बहुत सी प्यारी-प्यारी बातें उसमें बच्चों ने बताई। यहाँ तक कि उस जमाने में जो प्रधानमंत्री थे, जो मन्त्री थे, उनके बारे में भी उससे दो चीज हो जायेंगी। एक तो, समाज में बच्चों की कोई अपनी शक्ति हो जायेगी बच्चे जा कह रहे हैं, उनमें क्या (innocence) अबोधिता है, उसके माध्यम से वो क्या कह रहे हैं, यह सारे समाज को मालूम हो जायेगा। तब समाज से आदान-प्रदान होता है। बच्चे देखते हैं कि हमने जो बात कही वो बात मानी गई। फिर बड़े जो हैं वो सोचते हैं, ये बच्चों ने बात कही इसको कैसे हमें ध्यान देना करना चाहिये। सो वो इससे आदान-प्रदान शुरू करना चाहिये इससे बच्चों में कोई (Rudenes) अभद्रता नहीं आनी चाहिये न उनमें कोई अंहकार होना चाहिये, पर अपनी बात कहने की क्षमता उनमें आ जानी चाहिये। इस बात को भी आप ध्यान देकर करें। ऐसी प्यारी-प्यारी बातें बच्चे करते हैं कि मुझे तो बड़ा मजा आता है। मुझे आप सौ बच्चे दे दीजिये फिर मुझे और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। उनकी जो समझ है वो बड़ी गहरी है और बडी संवेदनशील। छोटी-छोटी चीज़ों को वो देखते हैं और छोटी-छोटी चीज़ों को इतने प्यार से बताते हैं कि जैसे कि कोई सारी (Divine Knowledge) दिव्य ज्ञान और दिव्य गतिविधि है उसमें वो बिल्कुल समाये हुए हैं। छोटी-छोटी बाते हैं जैसे कि यहाँ यह रखा हुआ है तो अगर कोई नहीं। अब एक भारतीय महिला को भेजा वहाँ शादी कराकर, उन्होंने ऐसे तमाशे कर दिये कि बाबा उनको भेज दो वापिस, कोई अंग्रेज ही ठीक है। तो यह चीजे हैं जो कि खास तौर पर देखने की और सोचने की हैं। और रही दूसरी, शादी की भी बात, उस पर भी मैं कहना चाहती हूँ आप लोगों से-आप लोग कार्य प्रभारी हैं; कि शादी क्राम बहुत सोच समझ कर सुझाव दें। इससे अपने को कोई फायदा KE तो. होता नहीं। आपने कितनों की शादी करी, उनसे कोई आर्थिक भी फायदा नहीं होता। नाही कोई और फायदा होता है सिवाय इसके कि अगर वो सफल विवाहित हो जाये, तो उनको फायदा होता है. और बड़े-बड़े सन्त-साधु भी जन्म ले सकते हैं। पर वो लोग यह सोचते हैं कि वो लोग हम पर एहसान कर रहे हैं, अगर शादी कर रहे हैं तो। उनका दृष्टिकोण ही यह है कि वो बड़ा हम पर अहसान कर रहे हैं, अगर उन्होंने शादी कर दी। उसका हमें क्या फायदा हैं। तो जब आप लोग सिफारिश करिये तो उनकी बता दें कि माँ का कोई लाभ नहीं, सहजयोग में कोई लाभ नहीं सिवाय इसके कि आपकी शादी करा रहे हैं, यह आपका फायदा है। उसके बाद बहुत छानबीन के बाद ही शादियाँ करानी चाहिये क्योंकि एकदम से कहीं से कहीं शादी हो जाती है तो बहुत समस्या हो जाती है। यह सब देखते हुए कि अब लोग ठीक हो रहे हैं, विवाह ठीक हो रहे हैं मुझे बच्चों की तरफ भी ध्यान देना है। अब जो पहली चीज़ मैने कही कि सबकी शान्ति रहनी चाहिये। दूसरी मैने चीज़ कही कि-सामाजिक, औरतो का मान और औरतों को सम्भालना। समाज की जो धुरी है, समाज का जो आधार है, वो औरतें हैं। औरतो को समाज सम्भालना पड़ता है। उसके लिये और बंतन्य लड़री बच्चा होगा तो वो आकर इसको आयोजित कर देगा| " ऐसा नहीं, माँ के लिये ये चीजें पहले रखनी चाहिये, वो चीज़ बाद में रखनी चाहिये। लाकर रख दी एक साथ में, ऐसे थोडे रखते है। वो लोग चैतन्य लहरियों से सारी बात करते हैं मैने देखा अधिकतर बच्चे चैतन्य पर बात करते हैं। और फिर वो बड़ो को भी बहुत ठीक करते हैं कई कई तो। जैसे एक साहब आये, तो बैठते-बैठते उन्होंने ऐसे हाथ कर दिये। तो दो बच्चों ने उनसे कहा कि आप ऐसे पीछे हाथ टेक करके क्यों बैठे हैं, आप सीधे बैठिये, इस तरह से। तो वो ज़रा नाराज़ हो गये, "तुमसे क्या मतलब।" कहने लगे, " ऐसे मत वैठिये" "तो क्या बात है"" तो आपको माँ की चैतन्य लहरियां कैसे मिलेंगी? यह तो आपको सारे जमीन की लहरियां मिलेंगी। तो वो हैरान हो गये कि यह बच्च्चों ने अच्छे हमकी.....छोटे-छोटे 3-4 साल के बच्चे। ऐसे अनेक चीजें उनकी मुझे मालूम हैं और मुझे बड़ा मज़ा आता है जिस तरह यह बच्चे बहुत सारी बाते जानते हैं, चीजें कह डालते हैं और समझाते हैं और मेरा भी बड़ा ख्याल रखते हैं। तो बच्चों से सीखना है। तो तीसरा यह हैं कि बच्चों से सीखना है, बच्चों से (Rapport) सौहार्द रखना, उनसे बातें करना। जब वह बड़े हो जाते हैं तो फिर वो हमी जैसे ही हो जाते हैं। लेकिन जो संबेदनशीलता है, वो बचपन में होती हैं। उनसे बैठकर बातें करना, उनसे पूछना किसी भी चीज़ के बारे में कुछ-यह आह्वाददायिनी चीज़ हैं और इस अहाद को सबको प्राप्त करना चाहिये । तो मैने आपसे बताया कि (Religion) धर्म के नाम से जो लोग झगड़ा करते हैं, उनके अन्दर शान्ति प्रस्थापित करना, उनसे बातचीत करना, उनको समझाकर और फिर जो दूसरी है. वो है, मैंने आपसे बताया-समाज। समाज अगर अच्छा नहीं होगा तो कभी आपको मिल जायेगा कि ये लोग बहुत परवाह करते हैं कोई परेशान है, किसी के पास में खाने-पीने को नहीं है या और किसी के पास में और कोई चीज़ नहीं है। जिसके लिये वो परेशान है। वो किसी लालच की वजह से नहीं, वो किसी परेशानी की वजह से परेशान है, तो उसकी तरफ ध्यान देना हम लोगों को अब बहुत ज़रूरी हा गया है। अब टाइम आ गया है कि जब हम सामूहिक तरीके से समाज के प्रश्नों का हल निकालें। और इस तरफ ध्यान देना चाहिये जैसे हम पता लगाएं कि जो लोग बृढ़े हो गये हैं और जो चल-फिर नहीं सकते, तो उनको जो है कोई रहने की जगह होनी चाहिये। फिर वहाँ एक (Refugee- Camp) "शरणार्थी कैम्प" लगाओ। फिर एक (Leper-Home) कुष्ठगृह लगा लो। काफी छोटी उम्र थी हमारी, बो तीनों चीजें शुरू करा दी। हम चले आये हैं पर वो अभी चल रहीं हैं। इस तरफ भी ध्यान देना चाहिये कि समाज में इस तरह के लोग हैं जो कहना चाहिये कि एक तरह से बचित है, उनकी स्वास्थ्य नहीं अच्छा या और का कुछा अगर आप इस तरह की समाज को मदद करे तो बड़ा आपक प्रति सबको आदर और प्रेम हो जायेगा। अपने प्रति तो हम लाग कर ही रहे हैं, अपने को तो हमने पा ही लिया है पर हम औरां को क्या दे रहे हैं। और खास कर सहज की शक्ति के कारण आप जितने लोगों की चाहे उनकी बिमारियाँ ठीक कर सकते हैं, उनको मदद कर सकते हैं, उनके साथ अच्छाई कर सकते हैं। उनके आश्रम बना सकते हैं। तो एक तरह से समाज का एक बोझ हमारे ऊपर है कि जब हमारे पास परमात्मा ने इतनी शक्ति दी है, तो हम इस ा न। समाज को सुचारू रूप से किस तरह से परवर्तित करें कि जिससे इनकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक, इसके अलावा इनकी अध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ जाये यह एक कार्य सहजयोगियां को लेना चाहिये और अलग-अलग जगह से ऐसे लोगों को लेकर समाज के जो लोग पिछड़े हैं, जो दुर्बल हैं, उनकी मदद करनी चाहिये। धीरे धोरे आपको आश्चर्य होगा कि आप सारे देश में लोकप्रिय हो जाएंगे। असल में लोग ऐसी संस्थाएं बनाते हैं इस तरह की चीजें बनाते हैं, सिर्फ वोट लेने के लिये या कुछ कमाने के लिये। हमको तो वो सब नहीं चाहिये पर सिर्फ अपनी शक्ति से अमन-चैन, शान्ति उस देश में नहीं आयेगी। उस देश की प्रगति नहीं हो सकती। अब जैसे कि देखिये कि रूस की बात मैने देखी, वहाँ का समाज बहुत अच्छा है। चाईना का समाज बहुत अच्छा है। इसी तरह हिन्दुस्तान का भी समाज अच्छा है और इसका कारण वहाँ की स्त्रियाँ हैं। उन्होंने समाज को बाँध रखा है। अमरीका में बहुत समृद्धि है, सब कुछ है पर समाज बहुत खराब है। तो सहजयोग का बड़ा भारी कार्य है कि समाज की जो नींव है उसको बनाए। हर जगह का जो समाज है, उसमें क्या-क्या गैर-कानूनी चीजे होती हैं, क्या-क्या और बातें होती हैं? अब जैसे अमरीका में एक छोटी लड़की को बहुत मारा-पीटा गया। तो उनका फोन आया कि "माँ, हम चाह रहे हैं कि उस लड़की की सहायता करें। तो मैने कहा, "हाँ बिल्कुल करें। उसको बहुत ज़रूरी है। उसकों क्या चाहिये, क्या नहीं? उसको बहुत जरूरी है उसको क्या चाहिये, क्या नहीं? उसको अपने पास लाकर देखो और उसकी बहुत मदद करो, पुलिस से पूछ कर कि हम इसको सम्भालते हैं।" तो एक तरह से एक नया आयाम, नया (dimension) आप इस तरह के लोगों को ठीक कर सकते हैं। अब वो लोग जो ठीक हो जाए तो वो स्वंय अपनी शक्ति से यह सिद्ध कर सकते हैं कि सहजयोग से लोगों का भला हुआ। और इतना ही नहीं ओर यह भी वो सबसे खुले-आम कह सकते हैं कि सहजयोग क्या है और क्या नहीं। पर आपको अब, मेरा मतलब है कि आज नये साल में यह जो हमारा एक ढर्रा है या यह जो खेल है जिसमें हम लोग रहते हैं, उससे निकल कर और बाहर की ओर (Projection) प्रयोजन करना चाहिये। शुरुआत में समस्याएं होंगी। खुद आप ही के अपने अंहकार, खुद आप ही की समस्या खड़ी हो जायेगी और चैतन्य लहरी हैं यह (downtrodden) दीन-दुःखी लोगों की मदद करते हैं, बीमारों की मदद करते हैं; (missionary zeal ) घर्म प्रचारको की उत्कण्ठा से नहीं पर यह कि अन्दर से, इनको महसूस होता है और यह करते हैं इससे सहजयोग के लिये चार चाँद लग जायेंगे और यह हम लोगों को करना चाहिये, इसकी मेहनत करनी चाहिये, कोई मुशकिल चौज़ नहीं है। तो यह नये साल में जो मैने कहा है, इसको ( translate) अनुवाद करके भी आपको भेजना पड़ेगा क्योंकि वो लोग तो सुनना चाहेगे कि कैसे, क्या करें। एक तरह से हमार (Introspection) अन्तर्दर्शन को बढ़ाना चाहिये। और जब वा बढ़ने लगेगा तो आप उस बिन्दु पर पहुंच जायेगे जहाँ विल्कुल निर्विचारिता आ जायेगी और जैसे ही निर्विचारिता आ जायेगी. आपको चाहिये कि उसको किसी तरह से आगे बढ़ाते रहे। निर्विचारिता में जो आप कार्य कर सकंगें और कभी नहीं कर सकते। इसलिये अपनी तरफ घ्यान देकर, अपनी ओर ध्यान देकर अपने को निर्विचार होने का प्रयत्न करना चाहिये। ध्यान में निर्विचारिता लानी चाहिये। उस निर्विचारिता में आप अपने मस्तिष्क (mind) से ऊपर चले गये और सारी जोकि (cosmic) अन्तरिक्षीय शक्तियाँ हैं, वा आपकी मदद करेंगी और आपकी जो मन में होगा वो सब हो सकता है। यह सब करते वक्त आपको निर्विचार होना चाहिये। यह वहुत ज़रूरी बात है। नहीं तो यह आधा इंधर, आधा उधर, इस तरह से चलेगा। बहरहाल अब तो यह कहना चाहिये कि हम लोग अब अच्छे हो गये, व्यवस्थित रूप से संगठित हो गये हैं पर इसकी उपादेयता? जो हमने किया, जो हम (Realized souls) आत्म साक्षात्कारी हो गये वो क्या और किस लिये किया? कुद्ध के जैसे मरने के लिये किया या महावीर जैसे कपड़े उतारने क लिये किया? किस चीज़ में इसका उपयाग किया हमने? हम कहाँ कर सकते हैं? मैने देखा है लोगों कां वा चैतन्य लहरियां का उपयोग करते हैं। कहीं जाये, कहीं समस्या हो, तो चैतन्य वो आपकी खोपड़ी खराब करेगी। गुस्से आयेंगे, नाराज़गी होगी तरह-तरह की चीजें हैं। पर इस पर काबू पाने के लिये भी तो आपको वाहर निकलना पड़ेगा। तब जानियेगा कैसे कि आप ठीक हैं। यहाँ तो सभी राम-नाम है, ठीक है पर जब वाहर निकलियेंगा तभी तो घता चलेगा कि बाहर वालों के साथ हम कैसे रहते हैं क्यों उनको भी तो (integrate) संघटित करना है हमे, जब हम उनके साथ बर्ताव करना अच्छे से सीख जायेंगे, शान्तिपूर्वक, तो समझना चाहिये कि हमारे अन्दर एक दम से सफाई हो गई। यह सफाई की बात बहुत से लोग हैं, "माँ आपकी बात ठीक है, आप जो करें सो ठीक है पर हम नहीं कर सकते।" "क्यों भई" क्योंकि आप भगवान हैं और हम मनुष्या" में कहती हैँ भगवान तो कुछ भी नहीं करते, वो तो विल्कुल दूर ही रहते हैं। अगर हम भगवान हैं और हम कर रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि आप भी जो अपनी स्थिति है, जो आपने उच्च स्थिति पाई हुई है. उसको आप इस तरह से बनाईये कि उसकी उपादेयता हो। यह नहीं कि बैंकार में आप सहजयोगी बने बैठे हैं। उसके उपयोग में लाने की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। और जा आज आपके पास राशि है और उसकी और अपनी ओर ध्यान देंगे तो देखेंगे कि आपका घर, आपका है। प। समाज, आपका देश सभी जगह एक तरह का उनका नया रूप आ जायेगा। अभी भी सहजयांगी देखिये तो बड़े अच्छे हैं, उनके मुख पर तेज़ है, आँखे चमक रही हैं, चैतन्य आ रहे हैं। यह तो किसी भी (Realized-Soul) आत्मसाक्षात्कारी के हो सकते हैं, पर आपमें एक और चीज़ है, उसकी उपादेयता इसका उपयोग आप दुसरां पर कर सकते हैं सामूहिकता में। जब वो चीज़ शुरू हो जायेगी, सामूहिकता में जब आप अग्रसर होंगे, सामूहिकता में जब movement (गतिविधि) होगी आपकी ती आपको आश्चर्य होगा कि यह जो आपकी (Powers) शक्तियाँ हैं, ये जा हैं उनसे न कंवल आप सबको ठीक कर सकते हैं पर आप उनका दे भी सकते हैं। पर हम लोगों ने यह आज तक जैसे है न, कि सब लोग exclusive (विशिष्ट) बहुत है, इस मामले में। सहजयोग-माने "स्व:"-और सबसे काहे को बात करें? तो किसी भी पैमाने पर यह वात हो रही हो, उसमें ध्यान देना चाहिए और उधर बातचीत करनी चाहिए। इसमें कोई हर्ज नहीं है और न ही इसमें कोई हर्ज हैं कि आप उन लोगों को सहज में खीचें। और जो नहीं है सहजयोग में, कुछ हर्ज नहीं पर उनके लिये तसल्ली और उनके लिये शान्ति देना जरूरी है। तो इन तीन पैमानों पर आप लोगों को काम करना है। यह हम कैसे कर सकते है? अब जैसे कि आप लोगों ने बैठकर मकान के लिये ठीक कर दिया, जमीन ठीक कर दी; बड़ी भारी बात है। उससे भी बड़ी बात में कह रही हैूँ, वो यह कि हम लोगों के लिये जो दुनिया भर में (Reputation) मान-सम्मान है, उसमें आना चाहिये कि यह गरीबों की मदद करते हैं, औरतों की मदद करते प्रवाह करना शुरु करते हैं। पर यह तो हम अपने लिये करते हैं, अपनी उपादेयता के लिये या ज्यादा से ज्यादा सहजयोगी सहजयोग के लिए। पर जो सहजयोगी नहीं है, उनके लिय भी इसका इस्तेमाल करना चाहिये। कोई कठिन बात नहीं। आपके अन्दर यह शक्ति हैं, जिसको देना चाहें वो दे सकते हैं। यह परोपकारी होने की जो प्रवृत्ति है, आपके अन्दर जो जागृत हो गई तो कोई भी प्रश्न नहीं रह जायेगा। अब यही कहना है। मैने जो भी कहा वैठ कर लिख लीजिये और इसका सिलसिला बना लीजिये और सोचिये इस पर क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते। घन्यवाद।। चेतन्य तथी 10 दिवाली पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नारगोल 25-10-1995 ये तो हमने सोचा भी नहीं था कि इस नारंगोल में 25 साल बाद इतने सहजयागी एकत्रित होंगे। जब हम यहां आए थे तो यह विचार नहीं था कि इस वक्त सहसार खोला जाए। सोच रहे थे कि अभी दंेखा जाए कि मनुष्य की क्या स्थिति है? मनुष्य अभी भी उस स्थिति पर नहीं पहुंचा जहां वो आत्मसाक्षात्कार को समझ सकें। हालांकि इस देश में साक्षात्कार की बात अनेक साधु संता ते, सिद्धो ने की है और इसका ज्ञान महाराष्ट्र में तो बहुत ज्यादा था। कारण यहां जो मध्यमार्गी थे, जिन्हें नाथपंथी कहते हैं, उन लोगा ने आत्मकल्याण के लिए एक ही मार्ग बताया था-आत्मबोध का। खुद को जाने बगैर आप कोई भी चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते। ये में भी जानती थी लेकिन उस वक्त जो मनुष्य की मैने, स्थिति देखी वो बहुत विचित्र थी। वा जिन लोगो के पीछे भागते थे उनमें कोई सत्यता न थी। उनके पास सिवाय पैसा कमाने के काई लक्ष्य नहीं था। और जब मनुष्य की स्थिति ऐसी होती है जहां वो सत्य को बिल्कुल हो नहीं पहचानता उसे सत्य की बात कहना बुहुत कठिन होता है। लोग मेरी बात क्यों सुनंगे? बार यार मुझे लगता था कि अभी और भी मानव को बढ़ना चाहिए। किन्तु मैने देखा कि कलियुग की बड़ी घोर यातनाएं लाग भोग रहे हैं। एक तो पूर्वजन्म में जिन्होंने अच्छे कर्म किए थे उन लांगों को भी बो लोग सता रहे थे, जिन्होंने पूर्वजन्म में बुर कर्म किए थे उसमें ऐसे भी लोग थे जो पूर्वजन्म के कमों के कारण बहुत तरस्त था बहुत तकलीफ में धे। और कुछ वही पूर्व जन्म के कर्म लेकर राक्षसां जैसे संसार में आए थे और किसी को छलने में, सताने में कभी भी नहीं हिचकते थे दो तरह के लोग मैने देखें एक जो पीड़ा दंते है और एक जो पीड़ा लेते है। अब यह सोचना था कि किसकी ओर नजर करें। जो पीढ़ा देते थे वा सांचते थे कि मैं एक सम्पूर्ण इन्सान हूँ। उनमें ये कल्पना ही नहीं थी कि व दूसरों को तकलीफ दे रहे हैं जो लोग पीड़ित थे वो बर्दाश्त कर रहे थे, शायद मजबूरी की वजह से, या उन्हें मालुम ही नहीं था कि जो इस तरह की क्रिया करते हैं उसका प्रतिकार करना चाहिए, उसका विरोध करना चाहिए। उस वक्त यही सोच रही थी कि मनुष्य कब यह सांचेंगा कि हमें बदलना है। हमारे अन्दर एक परिवर्तन आना है क्योंकि वो भी अपनी तरह से अपने को समझा बुझा कर चुप थे। कुछ लोग ज्यादा तकलीफ दते थे औ कुछ लोगे कम, कुछ लोग ज्यादा तकलीफ बर्दाश्त करते थे और कुछ लोग कम। एसी समाज की स्थिति थी। चाहे वो भगवान के नाम पर हो, चाहे वो राष्टर के नाम पर हो और चाहे बो राजनैतिक हो या जिसे हम कहते हैं आर्थिक (economical ) हो। किसी की गरीबी तो किसी को बहुत अमेरी। इस प्रकार इस देश रही थी। जिसका कि मैं समझती थी कि जब तक मनुष्य बदलेगा नहीं जय तक बो अपने की पहचानेगा नहीं, जब तक वो अपने गौरव और अपनी महानता के पाएगा नहीं तब तक वो एसे ही काम करती रहेंगा। ये सव मरे दिमाग में बचपत से ही था और में यह सोच रही थी कि इस मनुष्य काो समझता जरूरी है। पहले तो मैने मनुष्य का बहुत अध्ययन किया। तट्थ रहकर, साक्षी रूप रहकर मैन समझता चाहा कि मनुष्य क्या है? इसमें क्या-क्या दोप हैं? कौन सी-कौन सी खराबियां है और किसलिए बा इस तरह सोचता है। तब मैं इस नतीजे पर पहुंची कि मनुष्य में या तो अहकार बहत ज्यादा है या उसके अन्दर प्रतिअंहकार, जिस हम कहते हैं pOnditioning यहत ज्यादा है। और इन दोनां को वजह से उसके अन्दर सन्तुलन नही है balance नहीं है। जब तक सन्तुलन नहीं आएगा तो कुए्डलिनी उठेगी कैसे? यह भी एक बड़ा भारी प्रश्न है। लेकिन जब में यहां नारगोल में आई तो कुछ विचित्र कार्यों के कारण कि एक बहुत दुष्ट राक्षस यहा पर एक अपना एक शिविर लगाए बैठा था। उसने हमारे पति से कह-कहकर कि इनको ज़रूर भजिए। मुझे वो आदमी जरा सी पसन्द नहीं था। सो भी पति के कहने से मैं आई और जिस बंगले में अभी रह रही हूँ उसी में मैं रही। उससे पहले दिन की बात हैं कि मैं जब एक पेड के नीचे बैठे देख रही थी उनका तमाशा तो मै हौरान हो गयी कि यह महाशय सबको मॉत्रित करके (mesmerize) सम्मोहित कर रहे थे। कई लाग चीख रहे थे कई लाग कुत्ते जैसे भांक रहे थे, कोई शेर जैसे दहाड़ रहे थे। मेरी समझ में आ गया कि ये इनकी पूर्व योनियों में ले जा रहा है। और इनके जो भी कुछ सुप्त चेतन है, जिसे हम कहते हैं कि (Sub-concious mind) अवचेतन उसको जगा रहा है। तब में घवरा गई। मैन पहले भी एसे झुठे लागां को देखा था कि ये करते क्या है? य ता पता होना चाहिए न कि ये करते क्या है? किस तरह से क्या धन्धा करते हैं और मैन इनमें सवमें एक चीज़ देखी कि ये वड़ भयभोत लोग हैं। इनके साथ बन्दूके रहती थी इनके साथ गाई रहते थे। मैन सोचा कि यदि ये कोई एरमात्मा का कार्य करते में एक तरह की छलना चल और चतन्म लहरी क्या है। ज्यादा से ज्यादा लोग मारंगे, पीटेंगे, ज्यादा से ज्यादा हसेंगे, मज़ाक करेंगे और उससे आगे हो सकेगा तो मार डालेंगे इसमें डरना क्या है। ये तो करना ही है। इसी कार्य के लिए हम आए हैं इस संसार में। कर्योंकि सामूहिक चेतना करना (collective conciousness) को जगाना, मैने सोचा कि जब तक लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं करते, अपने को नहीं जानते तब तक यह कार्य असभंव है। और सब दुनिया भर की चीजें कर लो, उनसे कोई फायदा नहीं होने वाला इसलिए इस कार्य का मैने शुरू किया। सबसे पहले एक काफी बूढ़ी। स्त्री थी जो कि हमें बहुत मानती थी वो पार हो गयीं। तब मुझे बहुत संतोष हो गया कि चलो एक तो पार हुए इस कलियुग में किसी को पार करना कोई आसान है? जब एक पार हुई तो मुझे लगा कि हो सकता हैं कि और बहुत से पार हो जाएं। पर सामूहिक चेतना के लिए, चैतना को देना तो बहुत आसान था, एक इन्सान को पार कराना तो बहुत आसान था। एक आदमी को ठीक करना बहुत आसान था। पर ( collectively) सामूहिक में यह कार्य करने के लिए फिर जो, मैंने मनुष्यों के बारे में अनुभव किया था उस पर थाड़ा सा काम किया। काम ऐसा कि जब मैं देखें कि किसी आदमी में कोई दुर्गुण है या कोई तकलीफ है या उसके अन्दर कोई (conditioning) बन्धन है, सो उसको निकालने के लिए क्या करना चाहिए? क्योंकि एक आदमी को एक परेशानी, दूसरे को दूसरी, तीसरे को तीसरी। अगर सामूहिक कार्य करना है तो एक ही जागरण से सबको लाभ होना चाहिए। सबको फायदा होना चाहिए। अभी मैं आपको समझा नहीं सकती कि अब समय है कि सामूहिक चेतना का जो कार्य किसी ने भी नहीं किया था, वो मैने बहुत ध्यान-धारणा से प्राप्त किया। अपनी कुण्डलिनी को चारों तरफ घुमाकर, अपनी कुण्डलिनी का बार-बार लोगों पर उसका असर डालकर और बिल्कुल इस मामले में कोई भी नहीं जानता था। मेरे अन्दर क्या शक्तियां हैं, मैं कौन हूँ, मेरे घर में भी कोई नहीं जानता था, और ससुराल में भी कोई नहीं जानता था और मायके में भी कोई नहीं जानता था। और मैने कभी किसी से बताया भी नहीं। क्योंकि बताने से भी खेपड़ी में जाना काई आसान चीज़ नहीं है। इन्सान की खोपड़ी चीज़ ही ऐसी है। इसमें तो कोई भी विचार घुसाना बहुत मुश्कल है। सब अपने घमण्ड में बैठे हुए हैं, सब अपने को कुछ न कुछ समझ रहे हैं। अब इनको कौन बताए। जैसे कबीर ने कहा, "कैसे समझाऊँ सब जग अंधा" मुझे तो लगा अन्धा तो नहीं है पर अज्ञानी बहुत हैं। एकदम हैं तो इन्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत ही नहीं होनी चाहिए और पैसा लूटते थे। करोड़ो में पैसे लूटे इन्होंने, झूठ बोलकर। बेतहाशा तो ये तो दो बातें मेरी नजर में आईं मैने सोचा कि ये तो कलियुग की ही महिमा है कि ऐसे दुष्ट लोग अब भी पनप रहे हैं। तो इसका इलाज यही है कि मनुष्य की जो चेतना है वो जागृत हो, उसके अन्दर सुबुद्धि आ जाए और वो समझ ले कि ये सब गलत चीज़े हैं और ये सब करने से कोई लाभ नहीं। तीसरे मैने यह देखा कि जिस समाज में मैं रहती थी उस समाज में लोग हर क्षण ऐसा काम करते थे जिससे उनका नाश हो जाए-जैसे शराब पीना औरतों के पीछे भागना और तरह-तरह की चीज़ें। बहुत ही ज़्यादा पैसे का लगाव उन लोगों को था और बात कर वक्त लगता नहीं था कि वे (natural ) स्वाभाविक बात कर रहे हैं। कुछ अजीब सा बन-ठन कर, ड्रामा करके बात करते थे। मैं सोचती थी कि मनुष्य को क्या हो गया हैं। ऐसे क्यों गुलामी में फंसा हुआ है और इस तरह के गलत काम कर रहा है। लेकिन मै किससे कहती। मैं तो बिल्कुल अकेली थी । उस वक्त जब हम यहां आए तो यही मेरी एक उलझन थी कि क्या किया जाए। यहाँ आने पर जब मैने देखा कि यह राक्षस लोगों को (Mismerize) सम्मोहित कर रहा था तब मेरी समझ में आया कि अब यदि सहस्त्रार नहीं खोला गया किसी तरह से तो न जाने लोग कहाँ से कहां पहुंच जायेंगे और इससे जो साधक हैं, जो परमात्मा को खोज रहे है, जो सत्य को खोज रहे हैं वो न जाने कहां पहुंच जाएंगे। तब जब देखने के बाद दूसरे दिन सवेरे, मैं रात भर वहीं समुद्र के किनारे रही। अरकेली थी बड़ा अच्छा लगा । कोई कुछ कहने वाला नहीं था। और तब मैने ध्यान में जाकर अपने अन्दर देखा और सोचा कि अब सहस्त्रार खोला जाए। और जैसे ही मैने यह इंच्छा की कि अब सहसरार का ब्रह्मरन्ध खुल जाए तब यह इच्छा करते ही कुण्डलिनी को मैं अपने अन्दर देखती क्या हूं कि जैसे (Telescope) दूरबीन होता है वैसे वो खट-खट करते हुए ऊपर चली आ रही थी। उसका रंग ऐसा था जैसे आपने यहां दिए लगाए हुए है इन सबका रंग मिला दें, इस प्रकार। जैसे लोहा तपता है तो उसका जो रंग होता है। और तब मैने देखा कि उसके अन्दर उस कुए्डलिनी का जो बाहर का यन्त्र था वो खुलता गया, हरेक चक्र पर खट्ट की आवाज आई और कुण्डलिनी ने जाकर के ब्रह्मरन्ध्र को छेद दिया। सो मेरे छेदने की तो कोई बात ही नहीं थी। लेकिन मैने देखा कि विश्व में अब बहुत आसान हो जाएगा। और उस वक्त मुझे ऐसा लगा कि ऊपर से जो कुछ भी शक्ति थी वो मेरे अन्दर पूरी तरह से एक ठन्डी हवा की अज्ञान का भण्डार। तो ये इतना सूक्ष्म ज्ञान इनको कैसे दिया जाए। लेकिन कुण्डलिनी जब उस स्त्री की जब जागृत हुई तो मैंने देखा कि उसके अन्दर एक सूक्ष्म शक्ति आ गई और उस सूक्ष्म शक्ति से वो मुझे समझने लग गई। उसके बाद बारह आदमी पार हुए। तरह से मेरे अन्दर चारों तरफ से आ रही थी। और मैं यह समझ गई कि कार्य को शुरू करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि जो उलझन थी वो खत्म हो गई और निशचिंत हो गई। बिल्कुल निश्चिंत होकर के मैने सोचा कि अब समय आ गया है आखिर होना चेतन्य लहरा 12 हूं, और फिर धड़ से नीचे गिर जाती थी। उठाओ फिर धड़ से नीचे और फिर जब (collectively) सामूहिक में तो बड़ी मुश्किल हुई। और फिर अजीबों गरीब सवाल पूछना, ये और वो। दुनिया भर की बातें। जब मैं उसका जवाब देती थी तो वे हैरान हो जाते थे कि ये इतना जानती कैसे है? इनको ये सब मालूम कैसे हैं? बड़ी मेरी परीक्षा करते थे क्योंंकि अंहकार बहुत ज्यादा था। अब घीरे-धीरे जैसे लन्दन में पहली मर्तबा सात सहजयोगी आए। उनको, सातों हिप्पी थे पहले और नशे (Drugs) लेते थे। उनसे वो सहजयोगी बन गए। इससे ये तो हुआ कि मतलब एक पार होने के बाद एकदम हैरान हुए कि उनकी आँखों में एकदम चमक आ गई और वे देखने लगे सब चीजों को। एक अजीबो-गरीब संवदेना उनके अन्दर आ गई। जिससे वो महसूस करने लगे। शुरुआत के बारह लोगों के हर एक चक्र पर मैंने अलग-अलग काम किया क्योंकि जो नीव में चीज़ पड़ती है वो मजबूत होनी चाहिए। उसकी मजबूती करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। क्योंकि हालांकि उनकी कुण्डलिनी जागृत हो गयी थी आप जानते हैं कि कुण्डलिनी के जागृत करने के बाद भी उसको ठीक दशा में ले जाने के लिए ध्यान घारणा आदि करनी पड़ती है और उसको बिठाना पड़ता है। इन बारह आदमियों पर मैने बहुत मेहनत की और उस मेहनत के फलस्वरूप थे जरूर मैने जान लिया कि ये बारह आदमियों की बारह प्रकृतियाँ हैं और इनको साथ में बिठा के एक साथ किस तरह से कहना चाहिए कि आत्मा की जो प्रकाश शक्ति है उसको किस तरह से संगठित करना च्नाहिए। उसको किस तरह से, जैसे कि हम सुई में फूल पिरोते हैं-तो बिं वसी तरह का सहारा मिल गया। निश्चिंत हो गयी कि सहजयोग से लोग नशे (drugs) छोड़ देंगे। लेकिन अब इन नशेड़ियों को ठिकाने लगाना कोई आसान नहीं था। उसमें एक अच्छाई थी, क्यांकि ऊपर जो हमने मेहनत करी उससे एक अनुभव आ गया कि कठिन से कठिन भी कोई इन्सान हो जब उसकी इच्छा होती हैं कि उसे योग प्राप्त होना चाहिए, उसे आत्मज्ञान होना चाहिए, इच्छामात्र अगर हो तो वो पार हो जाता है। मैं सबसे कहती थी कि आप हृदय से इच्छा करो कि आपको आत्म-साक्षात्कार मिले। उसी पर लोग खट से पार हो जाते थे। उसमें अनेक देशों के अनुभव है मेरे पास। जैसे रूस है या यूक्रेन है या रामानिया है, इन देशां का मेरे ख्याल से हमारे देश से कभी सम्बन्ध रहा होगा जबरदस्त और यहां से नाथपंथी जैसे माच्छिन्दरनाथ, गौरखनाथ, ये लोग गए होंगे जरूर। क्योंकि इनके यहां जो चीज़े मुझे मिली उससे पता हुआ कि ये लोग कुण्डलिनी के बारे में ईसा से 300 वर्ष पूर्व से जानते थे। तब ये समझ में आया कि ये लोग इतनी जल्दी पार कैसे हो जाते हैं। मका वो समग्रता हमें किस तरह से आती है। इन बारह आदमियों की अलग-अलग प्रकृतियों को किस प्रकार एक सूत्र में बाँधा जाए। और जब उनकी जागृति हो गई तब मैने देखा कि उनके अन्दर, सबके अन्दर, एक सूत्रता बनती जा रही है। थोड़ी बहुत मेहनत भी करनी पड़ी मुझे। लेकिन किसी को बताने के लिए, जनता जर्नादन को बताने के लिए मैने सोचा अभी उसके लिए आसान नहीं, लोगों को समझ में यह बात नहीं आएगी। फिर कावरजी जहाँगीर हाल में एक (Programme) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वहां मैने पहले बताया कि कितने राक्षस आए हुए हैं और कितनी राक्षसनियां आई हुई हैं ये लोग क्या करेंगे। तो सब लोग घबरा गए। कहने लगे कि जब माताजी ऐसी बात करेंगी तो इनका तो कोई (murder) कत्ल कर देगा। तो बताया मुझे कि ऐसी बातें आप मत करिए नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। मैने कहा अभी तक तो मुझे मारने वाला कोई पैदा नहीं हुआ है। और आप लोग निश्चिंत रहिए। धीरे-धीरे ये जो छोटी-छोटी सरिताएं थीं, सबके अन्दर, छोटी छोटी नदियां थी कुण्डलिनी की, उनको मैने कहा कि आप लोग सब मेरी कुण्डलिनी पर ध्यान करें। तो ध्यान करते ही वो निर्विचार हो गए। और निर्विचार होने के साथ , उनको ये लगे कि मेरे साथ उनका बड़ा तदातम्य हो गया है। धीरे-धीरे निर्विचारिता बढ़ने लगी। धीरे-धीरे सामूहिकता का नया प्रकाश शुरु हो गया। ये पहलै मैने कावरजी जहांगीर हाल में देखा। हिन्दुस्तानी लोग, भारतीय लोग हैं जो हैं, जो इस भूमि में इसलिए पैदा हैं कि वो बड़े ही धार्मिक लोग हैं। बहुत ही सुन्दर इनका महाराष्ट्र में बहुत काम किया नाथपंथियों ने और मैनं भी बड़ी मेहनत की पर दुःख की बात ये है कि जो चीज़ हम उत्तर भारत में कर पाए वो महाराष्ट्र में मैने अभी भी नहीं देखी है। समझ में नहीं आता कि जहां पर सन्तों ने अपना खून निकाला, हरेक महाराष्ट्रीयन को मालूम है कि नाथ कौन थे और उन्होंने क्या कार्य किया, फिर भी पता नहीं क्यों जो चीज़ मैने उत्तरी भारत में पाई यहां नहीं है। पहले तो मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी, सालों मेहनत करी वहां भी। लेकिन उसके बाद जो सहजयोगी वहां मिले और जिस तरह से सहजयोग फैल रहा है उससे मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। उतना प्रवाह देखकर के यह आश्चर्य होता है कि यहां पर इतना सन्त साधुओं ने काम किया है कितनी मेहनत की है और बचपन से हम लोग यहीं सीखते आए, पढ़ते आए और सब लोग यहीं बाते करते रहे, उस महाराष्ट्रं में सहजयोग उतना गहरा नहीं बैठा जैसा कि उत्तर में बैठा है। इसका क्या हुए जीवन रहा होगा। क्योंकि हिन्दुस्तान में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। बहुत जल्दी लोग पार हो जाते थे। शुरुआत में जरूर थोडा बहुत समय लगा, लेकिन परदेस में तो हाथ टूट जाते थे। किसी की कुण्डलिनी उठाना ऐसे लगता था जैसे कोई पहाड़ उठा रही कारण हो सकता है? एक ही मुझे लगता है कि जब इन्हें पहले से ही सब चीज़ मालूम है तो उसके प्रति उदासीनता (Indif- ference) हो जाती है। संस्कृत में एक श्लोक है-जिसका अर्थ बैतन्य लहरी 13 में जाओ तो 150001 फिर आप फरीदाबाद मे जाओ तो 16000, आप हरियाणा में जाओ तो वहां 25000, ये तो हज़ारों की बात होती है और महाराष्ट्र में ये कि 800 आदमी यहां है, 500 आदमी वहां है, 700 आदमी वहां हैं। इसका कारण क्या है ये में आज तक नहीं समझ पाई! यही अगर सोचना है तो यही सोच सकते हैं कि यहां पर आत्मज्ञान, आत्मबोध, महानुभावपंथ आदि अनेक चीजें इतनी ज्यादा असलियत की हो गई कि अब इधर ध्यान ही नहीं। ऐसे इन लोगों को महाराष्ट्र में पैसे की ललक नहीं है, जैसे आपको गुजरात में, उत्तरप्रदेश में भी उत्तर भारत में भी काफी पैसों की ललक है। महाराष्ट्र में यह बात नहीं। सुबह है कि जब बार-बार आप कहीं जाते हैं, बार-बार आप किसी से मिलते हैं तो आपका अनादर होने लगता है। फिर आपका आदर नहीं रह जाता क्योंकि प्रयाग में रहने वाले लोग, इलाहबाद में रहने वाले लोग गंगा जी में नहाने की बजाए, त्रिवेणी का संगम है, घर के कुओं पर नहाते हैं और लोग दुनिया भर से जाते है वहां आफते उठा करके नहाने के लिए। यही बात शायद हो कि जो इतनी मान्यता सहजयोग को उत्तर में मिली। यहां भी ऐसा नहीं है कि सहजयोगी नहीं है। महाराष्ट्र में भी बहुत सहजयोगी हैं और बहुत कार्याप्वित भी हैं। पर सहजयोग के प्रति जो समर्पण चाहिए वो मैने तो कम ही देखा है, अब पता नहीं शायद बढ़ गया हो! समर्पण का मतलब है कि हमें सहजयोगी पद जो मिला है उस सहजयोगी पद को हम किस तरह से इस्तेमाल करें। वो सिर्फ हम अपने लाभ के लिए, अपनी ही तकलीफों के लिए, अपने ही परिवार के लिए सोचते हैं ये कुछ समझ में नहीं आता कि महाराष्ट्र की जो संस्कृति है और जो महाराष्ट्र में धर्म की इतनी गहन छाप है उस महाराष्ट्र में सहजयोग इतना नहीं पनप पाया। और गुजरात में नारगोल में जहाँ ब्रह्मरन्ध्र खोला वहां तो बहुत ही कम है। गुजरात के लोग तो मेरी समझ में ही नहीं आते। बहुत मेहनत की गुजरात में, लेकिन सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में मेहनत की। क्योंकि आज यहां महाराष्ट्रीयन लोग बहुत हैं, मुझे कहना यह है कि सहजयोग को बढ़ाने के लिए सबसे पहले आप ध्यान-धारणा करें और गहरे उतरें। जब गहरे आप उतर जाते हैं तो आपको लगता है कि मैं ही क्यों इसका मजा उठाऊँ, और लोग भी इसका मजा उठाएं। जब यह भावना अन्दर आती है तो सहजयोग फैलता है और उसके बाद मनुष्य जो है अपने जीवन में यही सोचता है कि दूसरों को सुख देना, दूसरों को आनन्द देना इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं है । भूल जाता है । ये सब होता है तब सहजयोग बढ़ता है। रात दिन यही चिन्तन रात-दिन वही सोचना, इसमें मजा आता है। से शाम-सुबह 4 बजे उठकर भगवान का ध्यान करना ये करना वो करना। पर उसमें एक तरह से मशीनों जैसी बात थी उसे हृदय से करें भक्ति से करें और उस भक्त को बाटने की कोशिश करें। ये महाराष्ट्रीयन को करना चाहिए। माना मैने महाराष्ट्र में ही हमारा गणपतिपुले का कार्यक्रम होता है। महाराष्ट्र में काफी अच्छे सहजयोगी हैं, गहरे, बहुत गहरे। यहां की युवाशक्तियां भी बहुत अच्छी हैं। लेकिन तो भी मैं कहूंगी कि जिस तरह से सहजयोग उत्तर में फैला, अब जहां देखो वहां, अब बाराबंकी में है हमारा जो सुसराल है बहां है। हरेक गांव में हर जगह। जहां एक आदमी पहुंच गया सब सहजयोगी बन गए। जैसे एक सूखी हुई लकड़ी रहती है उसमें जरा सी चिंगारी छेड़ जाए तो आग लग जाती है, उसी तरह से वहां है। ये आखिर किस कारण इतनी जोरों में बह रहा है। समझ में नहीं आता और जो हो जाते हैं वो कोई सवाल नहीं कुछ नहीं। पर महाराष्ट्र में सवाल बहुत पूछेंगे क्योंकि पोथियां सब पढ़ बैठे हैं। आप देखिए किसी महाराष्ट्रीयन के यहां कम से कम दस गुरुओं के फोटों होंगे । उसमें से सच्चे शायद एकाध ही हो और सब तरह की मृर्तियां होगी। गणेश जी का यहां पर है। चार यहां गणेश जी बैठे हुए हैं। जैसे की कहने चाहिए वैसे तो अष्ट विनायक हैं पर चार मैं इसलिए कह रही हूँ कि एक-एक गणेश के दो पक्ष या दा तरह के विशेष अलग-अलग यहां है। उसके बारे में महाराष्ट्रीयन जानते हैं। वहां जाएंगे गणेश पूजा करेंगे, और यहां तीन देवियों का प्रादुर्भाव है। ये सब होते हुए भी मन्दिरों में जाएंगे महालक्ष्मी मन्दिर में जाएंगे। वो सब करेंगे और अब अगर सहजयोग में आए है तो अब छुट्टी हो गई। कुछ भी नहीं करने को ा और सब चीजों को आज यहां देखकर में बहुत खुश हुई कि सारी दुनिया से यहां लोग आए हैं। इसके अलावा और भी लोग जो कहना चाहिए कि परदेश से तो लोग आए ही हैं, यहां के लोग भी आए और दिल्ली वगैरह से भी इतने लोग यहां आए हैं। कम से कम ये बड़ी मुझे आनन्द की बात लगती है कि इस कठिन जगह आप सब लोग पहुँच गए। ये तो प्रेम की महत्ती है और ये सिर्फ प्रेम में आप लोग यहां पहुंचे हैं| ये बहुत बड़ी चीज़ है। अब देखिए कोल्हापुर में कितनी मेहनत की है। कोल्हापुर में बहुत मेहनत करी है। लेकिन कोल्हापुर में सहजयोग बहुत कम है। आश्चर्य की बात है। ऐसा क्यों होता है। उन्होंने कहा पन्धरपुर में आठ सौ सहजयोगी हैं। पर ऐसा बाहर नहीं होता। गाजियाबाद बड़े आश्चर्य की बात है। आज क्योंकि यहां पर बहुत से महाराष्ट्रीयन आए हैं मैं बताना चाहती थी कि दिल्ली से न जाने कितने लोग-इतने लोग महाराष्ट्र से कहीं नहीं जाएंगे। मराठी मं इनको घर कोबड़े कहते हैं। मानो बस वो अपने ही देश में रहेंगे । बम्बई वाले आपको कभी भी दिखाई नहीं दंगे की पूना में जाकर काम करें। और पुना वालो को तो एक तरह का गोंद चिपका चैतन्य लहरी 14 हुआ है। मैं इसलिए कह रही हूँ कि कभी -कभी खुले आम यह बात कहने से ठीक हो जाती है। खुले आम कहना पड़ेगा कि महाराष्ट्र में सहजयोग का जो ठिकाना हुआ है उससे तो बाहर के लोग अच्छे, बकते हैं सिर्फ, लेकिन लाखों लोग आये। गुजरात का तो क्या कहना इनके तो ऐसे-ऐसे गुरुओं को पकड़े हैं, पर महाराष्ट्र को क्या हुआ? जिसमें रामदास स्वामी ने सब गुरुओं की चर्चा की हैं और उसमें बताया है कि ध्यान करें। इतना ही नहीं ज्ञानदेव ने इतना साफ सहजयोग समझाया, रोज वही गाते हैं, नामदेव ने जो लिखा है, जोगवा का गाना, वो रोज देहातों में गाते है कि माँ तुम हमें योग दो। पर योग करने के लिये किसी को फुरसत नहीं। आप किसी गाँव में जाओ तो वहाँ खूब भीड़ हो जाएगी, जब मैं जाऊँगी, उसके बाद दो आदमी भी मिल जायें तो बड़ी हैरानी की बात है। तो मैं ये कहूँगी कि महाराष्ट्रीयन लोगों को चाहिये कि कुछ इन लोगों के लिये प्रार्थना करें, हवन करें, कुछ न कुछ ऐसी सामूहिक चीज़ करें जिससे महाराष्ट्र की जागृति वैसी ही हो जाये जैसे उत्तर भारत में हुई है, जैसे की रूस में हुई है। वैसे समर्पित जो हैं वो बहुत अच्छे है। लेकिन अभी सहजयोग क्यों बढ़ता नहीं? ये मरी समझ में नहीं आता। बहुत घीरे-धीरे बढ़ रहा है। कोल्हापुर जगह में न जाने कितनी बार पूजायें हुई, देवी का मन्दिर बहुत सुन्दर है, सब कुछ है पर वहाँ पर इतनी गहनता नहीं। उसके लिये सामूहिक रूप में सब लोग ध्यान दें, क्योंकि महाराष्ट्र बहुत बड़ा देश है। बहुत ऊँचा देश है और धर्म की दृष्टि से जो है, सो हैं पर आध्यात्मिकता की दृष्टि से बहुत ऊँचा देश है और इसलिये सब को चाहिये कि वो महाराष्ट्रं के लिये थोड़ी सी जागृति की बातचीत करें। ऐसे कोई झगड़ा नहीं है, कोई परेशानी नहीं है लेकिन जो सहजयोग बढ़ना चाहिये वो न जाने आजतक तो इतना बढ़ा नहीं, हो सकता है आगे ठीक हो जाये अब जो आप लोग इतने यहाँ आये इससे ने जाने क्यों मुझे एक अजीब तरह की अनुभूति हुई कि जिस तरह से पच्चीस साल में इस छोटी सी जगह में आप लोग आये, पच्चीस साल तक हमने मेहनत की। ये बात मैं मानती हूँ। मेहनत बहुत की पर पच्चीस साल के बाद इतने लोग इस नारगोल का महत्त्व समझेंगे और यहाँ आयेंगे ये बड़े आश्चर्य की बात है। नारगोल का हमारे सहजयोग में मतलब होता है सहस्रार। जब मैं यहाँ आई तो यहाँ का बनश्री वगैरह देखकर बहुत तबियत खुश हो गई और एकदम अन्दर से ऐसा लगा मानों प्रकृति की किसी बड़ी भारी आशीवादित जगह हम आ गये हैं । बहुत अच्छा। और जब वो तो मई का महीना था लेकिन मुझे बिल्कुल नहीं गर्मी लग रही थी तब। जब सहजयोंगी आते हैं तो ठीक है उनकी गर्मी मैं खींचती रहती हैूँ, लेकिन यहां तो कोई सहजयोगी नहीं थे इन दिनो में कुछ गर्मी नहीं लगी और जब सहस्रार तोड़ा तो मैने देखा कि कोई इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं है। ज्यादातर गुजराती लोग थे उसमें महाराष्ट्रीयन कम थे। और महाराष्ट्र में ही जो चीज़ इतनी खुल करके निकली, ै। इतनी किताबें आप देखियेगा महाराष्ट्र में, असली किताबें, झुठ नहीं जो सत्य हैं वही लिखा हुआ है। चक्रों पर लिखा हुआ है, कुण्डलिनी पर लिखा हुआ है। सब कुछ इतना लिखने पर भी यहाँ उस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद लोग उसका इस्तेमाल अगर करें तो न जाने कितना बढ जायें| कितना यहाँ सहजयोग बढ़ सकता है। अब हमारी जो सहजयोग की प्रणाली है वो इतने लोगों में फैल गई है, इतनी गहरी पहुँची है, जो आपने ड्रामा देखा उससे समझ गये होंगे। इस ड्रामे में उन्होंने दिखा दिया, अपने दिमाग से सोच करके, कि माँ क्यों आई? कि सब लोगों ने कहा हमनं बहुत मेहनत करी, हमने पूरी कोशिश करी कि इन्सान जो है वा आध्यात्मिक में आ जाये और परमात्मा कि ओर उसकी नजर जाये और उसको किसी तरह से योग प्राप्त ही। पर कुछ चीज़ बनी नहीं। इसलिये अब हम देवी से कहते हैं कि तुम्हीं अवतरण ला। आदिशक्ति से कहते हैं कि तुम्हीं अवतरण लेकर के, जो तुमने ये संसार बनाया है उसको ठीक करो। विल्कुल पते की बात है, इसमें कोई शक नहीं। हुआ भी ऐसा ही और बना भी ऐसा ही। सारा जो कार्य है इस तरह से बड़े सुचारु रूप से बदला है और जिस वक्त में ब्रह्मरन्ध्र को तोड़ा था उस वक्त सोचा भी नहीं था मैंने कि मेरी जीवित रहते हुए इतना मैं कार्य देख सकती हूँ। पर ये कुण्डलिनी की महिमा है और परम चैतन्य का कार्य है। परम चैतन्य से तो मैं खुद हार गई कि पता नहीं क्या कर देगा। हालांकि मेरी ही शक्ति हैं लेकिन ये परम चैतन्य आप दंख रहे हैं, तरह-तरह के फोटोग्राफ मेरे बना रहे हैं, तरह-तरह के चमत्कार दिखा रहे हैं, पचासों तरह के चमत्कार। जैसे मेक्सिको में एक स्त्री थी, वो यूएन-ओ० में कार्य करती थी। न्यूयार्क से। वहां मुलाकात हुई तो उसके बाद वो पार भी होई और वो मैक्सिको चली गई। वहाँ नौकरी मिल गई यूएन० में। उसने चिट्ठी लिखी कि मेरे लड़के की तबियत बहुत खराब हो गई है। छोटा लड़का है, उम्र में बहुत छोटा है, और ये बीमारी हमारे खानदान में होता है जब लोग बिल्कुल बृढ़े हो जाते हैं। पर इस बच्चे को इतनी छोटी उम्र में ही हो गई और अब ये बच नहीं सकता। इसके लिये माँ मैं क्या करू? उसको ले आँऊ। तीन चिट्ठियाँ उसने लिखीं। ये परम चैतन्य की बात बता रही हूँ। और चौथी चिट्ठी में उसने लिखा कि लड़का अपने आप से ठीक हो गया है। वो हावर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ता था। एकदम ठीक हो गया। उसकी ये बीमारी एकदम ठीक हो गई। डाक्टरों ने कहा, किया क्या है तुमने? वो केसे ठीक हुआ? तो ये परम चैतन्य जो है उससे बढ़ कर कोई डाक्टर भी नहीं है। जिस तरह से ये काम करते हैं श 15 चैतन्य लहरी जो कार्य हुआ, इतना बड़ा, इतना महान, वो मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसी इतनी जल्दी क्यों हो गया। ये वही परम चैतन्य है। अब कहिए कि मेरी शक्ति है, लेकिन मैं ही मेरी शक्ति का नहीं जानती हूँ। ऐसा हाल हो गया, इतने जोरों में दौड़ रही है कि समझ में नहीं आता कि अब क्या करेगी। आगे क्या करेगी। मतलब ये है कि ये जो शक्ति है, ये इतनी अब आतुर ह है कि संसार में ये जो विश्व का परिवर्तन है (Global ये कमाल है। तो अब किसी ने पूछा कि ये गणेशजी दूध पी रहे है, ये क्या है? मैने कहा कि भाई ये परम चैतन्य कृतियुग में आ गए हैं और कार्याविंत है। अब ये जो करे सो कम। गणेशजी को दूध पिलाएंगे, वो शिवजी को दूध पिलाएंगे, इसको कुछ कह सकते हैं। कौन सी बात ऐसी है जो परम चैतन्य नहीं कर सकते? हर तरह के वो काम करते हैं, एक साहब थे केनेडा में, ये भी काफी पुरानी बात है, सो उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी कि माँ मेरे पास पैसे नहीं हैं और इस कार्य के लिए इतना रुपया चाहिए। मैने कहा अच्छा कोई बात नहीं दूसरे दिन उसने फोन किया कि माँ मुझे रुपया मिल गया। मैंने कहा कैसे? मैने दराज़ खोला तो उसमें रुपया रखा था। मैने कहा हे भगवान, मैने तो रुपया भेजा नहीं इसको रुपया कहाँ से मिल गया। उसने कहा कि जितना मुझे चाहिए था, पूरा उतना मिल गया। ऐसे तो बहुतां को अनेक अनुभव हुआ है, अनेक अनुभव आ रहे हैं, क्योंकि परम चैतन्य जो हैं वो आशीर्वाद स्वरूप हैं। हर जगह आप को आशीर्वाद देंगे, शान्ति देंगे, प्रेम देंगे। हर तरीके से आप को सम्भालंगे। सब कुछ है लेकिन उनकी जो चाल है न उसमें बहुत गति आ गई है। मेरे खुद ही नहीं समझ में आता कि ये इतने कार्य कैसे करते है ? अमेरिका जैसी जगह जहां के लागों को बिलकुल भी, कहना चाहिए, सूझबूझ नहीं है अध्यात्म की, इस समय अमेरिका में इतना बड़ा कार्यक्रम हुआ। इतने बड़े सभागार में लोगों को बैठने की जगह नहीं थी और पाँच मिनट में सब लोग पार हो गए, पाँच मिनट में वही । हैं, ललायित transformation) ब्रह्माण्डीय कारयापलट है उसकी करने में बिल्कुल देर नहीं करनी है। पर जो इसमें आएंगे और जो इसके लिए करेंगे वही प्राप्त कर सकते हैं। अब महाराष्ट्र के लिए ही में आपको बताना चाहती हूँ कि ये शक्ति कार्यान्वित हो रही है, बड़े जबरदस्त। और आप लोगों को सबको चाहिए कि इसमें पूरी तरह से आप जान लें, समझ लें। इस शव्त की जो कार्य की प्रणाली है उसे समझ लें और उसके माध्यम से आप कार्य कर सकते हैं। अगर वो आप इस्तेमाल करना शुरु कर दें इस शक्ति को, तो हर कार्य आप कर सकते हैं। अगर कोई आदमी आप को सता रहा है, तो उसको भी एक तरह से बन्धन दे सकते हैं। कोई कार्य करना हो उसको बन्धन दे सकते हैं, सिर्फ बन्धन और बन्धन में क्या करते है।? आप कि ये जो शक्ति आपके अन्दर से बह रही है उस शक्ति को ही आप लपेटते हैं और उस शक्ति को उससे जो भी आपको प्रश्न है, जो भी आप के लिए एक समस्या है, उसको आप बन्धन दे देते हैं। वो शक्ति उस पर कार्यान्वित होती है। आप के पास ये शक्ति है। आप इतने शक्तिशाली हैं कि अगर आप इसको इस्तेमाल करें तो न जान कहाँ से कहाँ पहुँच जाएं। पर मनुष्य खोया हुआ है और पार होने के बाद भी अभी जब तक हम लोग इसको विशेष न समझे तब तक सहजयोग फैलाना बड़ा मुश्किल है। रोमानियां देश, जिन्होंने कभी सुना ही नहीं कि आदिशक्ति नाम की क्या चीज़ है, ऐसा मैं सोचती हूँ, वहाँ सहजयोग इतने जोर से फैल रहा है। बड़ा आश्चर्य हैं। वहाँ पाँच हज़ार सहजयोगी हैं एक शहर में| अब तो और बढ़ गए हैं। वही चीज़ इस महाराष्ट्र में होना चाहिए। बार-बार मुझे इसकी चिन्ता लगी रहती हैं कि ये चीज़ महाराष्ट्र में क्यों नहीं है, क्यों नहीं सहजयोग इस तरह से फैल रहा, जैसा फैलना चाहिए। बड़े-बड़े शहर हैं, बड़ी-बड़ी जगह, वहाँ ये कार्य होता है। तो आज के दिन एक बहुत बड़ी बात हुई हैं कि पच्चीस साल इस चीज़ से जूझते जूझते इस दशा में हम आ गए कि यहाँ पर, इस जगई आप लोग आए इसका गौरव बढ़ाने, इसकी महत्ता बढ़ाने और इसको पुनीत करने। मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं साचंती हूँ तो जी मेरा भर आता है आप लोगों को देखकर कहाँ-कहाँ से आप लोग यहाँ आए। पिति फिर लास एंजलज़ में हुआ मैं हैरान हूँ। ये लोग इतने मूर्ख हैं इनके साथ ऐसे-कैसे हो गया पाँच मिनट में। फिर कनाडा गए. वहां भी पाँच मिनट में, उससे आगे में गये वहां भी कुछ समझ में आया ही नहीं क्या हो गया। तो परम चैतन्य की कृतियाँ भी इतनी बढ़ गई हैं, इतने तरह-तरह की हो गई हैं कि कोई समझ नहीं सकता कि क्या बात है। और ये किस तरह से घटित होता है अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं कहूं कि भईया नहीं पता। अब किसी ने मेरा फोटो लिया कि मैं चाहती हैँ कि जिस तरह से माँ के बारे में कहा जाता है कि उनके चरणों में चाँद और सिर पर सूरज, वैसा फोटो मुझे मिल जाए और वाकई में ऐसा फोटो आ गया। आप लोग जिस चीज़ की इच्छा करें वो हो जाती हैं, इसको क्या कहना चाहिए? इस परम चैतन्य की अपनी शक्ति जो है, इतनी सुचारु रूप से चलती है और इस कदर जानती है, हरेक की तकलीफ़, परेशानियाँ बड़े प्यार से, दुलार से उसको ठीक करती है। इस परम चैतन्य का जो महत्त्व है, आज तक आपने आदिशक्ति की पूजा की है, उसी वक्त आपने उस परम शक्ति की भी जिसे की परम चैतन्य कहते हैं, रुह कहते है।, उसकी भी पूजा की। यहाँ पर जब मैं आई तो मैने उसी का प्रादुर्भाव सब जगह देखा और सोचा कि यहाँ कुछ न कुछ देवी ने आशीर्वाद दिया हुआ है पहले ही। और वाकई में यहां इतने जल्दी खट से परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 16 या सार्वजनिक कार्यक्रम दिल्ली : 3-12-95 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार। इस भारत वर्ष में अनादिकाल से सत्य की खोज होती रही है, ये हमारे शास्त्रों से ज्ञात होता है। अनेक मार्गों से हमने सत्य की खोज की। अपना देश एक विशेष रूप से अध्यात्मिक है उसका कारण ये कि अपने देश में बहुत सी बातें सुलभ हैं। हम जानते नहीं कि हमारा देश कितना समृद्ध है और कितना पावन है, और यहाँ के लोग कितने सरल और मलरहित हैं। विदेश के लोगों को हम लोग मलेच्छ कहते थे क्योंकि देखते थे कि ये लोग जो यहां आये इनकी सारी इच्छायें ही मल की ओर जाती थी। हमारे जमाने में, क्योंकि अब तो हम बुड्ढे हो गये हैं; तो ये देखा जाता था कि ये जो लोग बाहर से आये हैं, ये कितने उथले हैं, इनकी सारी दृष्टि कितनी उथली है, इनकी जो इच्छायें होती थी वो कितनी उथली हैं। धीरे-धीरे अपने देश पर भी इस पश्चिमात्य संस्कृति की बड़ी जबरदस्त पकड़ आने लगी। उसका कारण यह था कि तीन सौ वर्ष हुए हमारी खोपड़ी पर ये लोग लद गये और हम लोग धीरे-धीरे ये समझने लग गये कि ये बड़़े महान हैं जो हमारे देश में आये हैं और हमारे ऊपर राज कर रहे हैं। वास्तिवकता में इन्होंने सबको वेवकूफ बना-बना कर ही अपना कार्यसाध्य किया। दूसरे कर्मकाण्डों की बजह से अनेक तरह की विचित्र विचित्र रीतियां-कुरीतियां हमारे समाज में आ जाने के कारण हम लोग संस्कृति विहीन बनते गये। हमारी संस्कृति मिटती गई। विशेषकर उत्तर हिन्दुस्तान में मैं कभी भी नहीं सोच सकती थी कि इतने साधक सामने होंगे। इसका कारण हो सकता है कि पूर्वजन्म के आप बहुत बड़े साधक रहे हों और आपने बड़ी साधना की हो जो आप आज सत्य जानने के लिये आतुर हो गये हैं नहीं तो हर तरह के धर्ममार्तण्डयों ने, तथा झुठे लोगों ने इतनी गलत-गलत बातं देश में फैला दी थी और उसके पीछे इतने लोग लग गये थे। आज ऐसा समय आ गया है कि लोग सोचते हैं कि सत्य को ही पाना चाहिये। सत्य की परिभाषा क्या है? जो जानना है वो सत्य क्या है? ये अगर मैं आपको बताऊँ तो आपको विश्वास नहीं कर लेना चाहिये क्योंकि मैं कह रही हूँ। किन्तु इसे परखना चाहिये। सत्य यह है कि आप ये शरीर, बुद्धि, मन, अंहकार और कुसंस्कार आदि नहीं हैं, किन्तु आप स्वयं साक्षात आत्मास्वरूप हैं। आत्मा क्या है? आत्मा उसी परमात्मा का आप में आया हुआ प्रतिविम्ब है, वो आप हैं; वो आपको बनना है और बाकी जो कुछ है वो सब व्यर्थ हैं। क्योंकि जब तक आपने अपने को नहीं पहचाना तब तक आप किसी भी चीज़ की यथार्थिता (Reality) नहीं जान सकते। मोहम्मद साहब ने कहा है" अगर तुमने अपने को नहीं पहचाना तो तुम परमात्मा को नहीं पहचान सकते। इसलिये पहले अपने को पहचानना चाहिये, मायने पहचानना जो है वो एक विशेष स्थिति है। आज आप मानव स्थिति में है और मानव स्थिति से आगे और कोई स्थिति जरूर होनी चाहिये नहीं तो आजकल का जो हम संसार में उपद्रव देख रहे हैं और जो हर तरह की नष्ट-भ्रष्ट व्यवस्थायें देख रहें हैं तब इसका कोई न कोई एसा मार्ग तो होगा ही जिससे मनुष्य का उद्धार हो जाये। उनके उद्धार की बात तो सब साधु-सन्तों ने कही और जितने भी बड़े-बड़े अवतरण हुये उन्होंने कही। फिर वो उद्धार कब होगा और कैसे होगा? सहज प्रणाली की बात मैने कही ऐसी बात नहीं। अनादिकाल से इसे सहज कहा जाता था। जो ये प्राप्त करना सहज। पर पहले जमाने में ऐसे-ऐसे लोग हो गये जो गलत रास्ते पर लोगों को ले जाते थे। ये किताब पढ़ो तो हो जायेगा, गंगाजी में नहओ तो हो जायेगा, नहीं तो और कुछ उपद्रव करो तो हो जायेगा। ऐसी नानाविध उपकरणों से आच्छादित कर दिया पूरी तरह से ढक दिया, उनके दिमाग में भर दिया। अब जैसे छोटी सी चीज़ है, सत्य नारायण की पूजा '। अब लोग उसमें दिमाग भी नहीं लगाते कि नारायण तो स्वयं सत्यस्वरूप हैं, उसमें सत्य लगाने की क्या ज़रूरत है? अन्धे जैसी ये सारी प्रथायें हमारे यहां होती रहीं। ये हिन्दु धर्म में हुआ ऐसा नहीं, ईसाईयों में इससे भी ज्यादा और उससे भी ज्यादा मुसलमानों में। लकीर की फकीरी जो पकड़ ली उससे उनका उद्धार तो नहीं हो सकता, कभी भी नहीं। लेकिन जो कहा गया है कि तुम्हारे ही अन्दर जो है उसे खोजो, उसको प्राप्त करां उस चीज़ को सब भूल जाते हैं। एक तो स्त्रियाचार, ये नहीं खायेंगे, वो नहीं खायेंगे, सर मुंडायंगे और शरीर पर कुछ कपड़ा नहीं रखेंगे। ये सब करने से हमें परमात्मा प्राप्त होने वाली नहीं। एक सादी-सरल बात को सोचना चाहिये कि परमात्मा आपके पिता हैं, कोई भी पिता चाहेगा कि मेरा बेटा भूखा मरे और जो पिता के पिता, सारे पिताओं के पिता हैं, जिनसे की पिता का स्वभाव, हम पितृत्व की प्राप्त करते हैं वो परमात्मा ये चाहेंगे कि आप अपने सर मुंडाओ और भूखे मरो! किन्तु मनुष्य धर्म के मामले में सोचता ही नहीं कि जो हम धर्म पालन कर रहे हैं उससे क्या लाभ? उससे हमने क्या प्राप्त किया? हम तो जानते है कि जितने धर्मावलम्बी हैं जो धर्म के लिये बहुत कठिन से कठिन तपस्या-वरगैरह करते है। वो इस कदर गुस्सैल होते हैं कि उनके पास जाना मुश्किल है और अगर जाइये तो कोई लकड़ी-वकड़ी साथ लेकर जाइये क्योंकि उनको तो बात-बात पर गुस्सा आता है। अभी मैने एक पुस्तक में लिखा है यह है 17 चैतन्य लहरों बड़ी लांच्छना। वा जमाना था उस जमाने में जैसी ज़रूरत थी उन लोगा ने वो-वो बात की। पर उनको अदल-बदल करके, ये वोकरके और टूसरी बाते सामने लाकर के और परमात्मा के नाम पर लड़ना इससे बढ़कर के कोई पाप नहीं। दूसरों को मारना। भगवान के नाम पर पीटना, भगवान के नाम पर। जो परमात्मा क्षमाशील, दयाशील, करुणा के सागर हैं उनका नाम लेकर के एसा दारूण कार्य करना किसी भी धर्म की लाच्छता है। किस चीज़ के लिये लड़ रहे थे, कोई जमीन के लिये लड़ रहा है। ऐसे लाग जो निराकार में विश्वास करते हैं वो जमीन के लिये लड़ रहे हैं अरे जब आपका निराकार में विश्वास है तो ये जमोन के लिये लड़ रहे हो? छोड़ा। लेकिन ये सव कहने से भी कुछ नहीं होन वाला। जिन्हांने एसा कहा वो निष्फल हुआ। किसी ने सुना थोड ही किसी ने माना नहीं। ऐसे भाषा ही रह गई, बातं ही रह गई लक्चर हो रह गया। लेकिन उसका कोई असरनहीं। कारण ये कि मनुष्य अंधकार से अज्ञान में पड़ा हुआ है। तब कीर ने कहा, "कैसे समझाऊँ सच जग अन्धा" वही बात थी ये दिल्ली, मैं आपसे कहती, में पहले साचती थी यहां सर पटकता विल्कुल बेकार है। लेकिन उसी दिल्ली में मंरी जीवित अवस्था में मैं देखती हूँ, न जाने किन शब्दों में, अपन आनन्द कि इसका कारण क्या है इसका वैज्ञानिक (Scientific) कारण क्या । है, वैज्ञानिक कारण ये है कि हमारे अन्दर जो जीन्स हैं उसका (data base) आधार है उसमें तीन चीजं हैं एक तो कार्बाहाइड्रेट, एक नाइट्रोजन, एक फास्फोरस। जिस वक्त हमारे अन्दर तपस्विता घुस जाती हैं तब जल-जल कर हमारा पानी खत्म हो जाता है। य जा पशियां (Cells) हैं इसका पानी खत्म हो गया। अगर फास्फोरस को आप पानी से निकाल लीजिये तो वो तो भड़क जायगा ही, और इसलिये लोग भड़क जाते हैं। तो इस कदर की तपस्विता बहुत ही शान्ति के विरोध में है क्योकि शारीरिक ही ऐसी क्रिया है आपने सुना होगा कि पहले जमाने में दुरवशा ऋषि थे जो शाप देते थे। उनको सिर्फ शाप देना ही आता था। उन्होंने किसी का उद्धार-बुद्धार किया, मैन सुना नहीं। ये आध्यात्म नहीं है, आत्मा का प्रकाश एक तरफा नहीं चलता चारी तरफ फैलता है और ऐसा आदमी अपनी शान्ति में अपने गौरव में शान्त रहता है। ये स्थिति आने के लिये कोई भी चीज छोड़ने की जरूरत नहीं। जो भी कुछ संसार मं है वो वहा अपनी जगह हैं। जैसे ही आप अपनी आत्मा को प्राप्त करेंगे, कण्डलिनी के जागरण से यह जब घटित होगा तब आप देखेंगे कि सब के साथ आपका तदातम्य है। ऐसी-ऐसी कवितार्य सुझेंगी, इतनी सूक्ष्म, ऐसी एसी बातें, दिमाग में आयेगी जो आपने कभी साचा भी नहीं, कभी आपन देखा भी नहीं, कभी आपने गौर भी नहीं किया। आपके व्यान में भी वा बात नहीं आई । इस स्थिति को प्राप्त करने के लिये पहले नानाचिध उपचार लोग करते थे गुरुओं को मानते थे, बहुत कोशिश करते थे पर नहीं बनता था। ये बात विल्कुल सही है कि कुण्डलिनी का जागरण बहुत कठिन है। एक बार किसी न श्री रामदास स्वामी, जो कि शिवाजी के गुरु थे, उनसे पूछा कि कृण्डलिनी का जाररण कितनी देर में होता है तो उनका जवाब था कि 'तत्क्षण । उसी क्षण लेकित लेने वाला भी चाहिये और देने बाला भी चाहिये। तो लने वाले तो मुझे दिखाई दे रहे हैं, सामने बैठे हैं। और य जमाना एसा आगया इस जमान में आदमी एक कशमकश में इतना ज्यादा है। ये जमाना ही कलयुग की घोर कलाओं से त्रस्त मानव का एक बहुत ही जालिम जमाना है। एक-दुसरे से बैर रखना, एक-दूसरे को तकलीप देना एक-दूसरे पर जबरदस्ती करना, वो चाहे घर- गृहस्थी में ही, चाहे बाह्या में हो, वी राजकारण में हो कि और किसी भी प्रांगण में हो, ये कार्य होता है। और बहुत से लोगां को ये एहसास हो नहीं होता कि हम गलत काम कर रहे हैं, कि हम किसी पर जबरदस्ती कर रहे हैं या किसी को हम मार रहे हैं पीट रहे हैं। और ये हर एक धर्म में हो रहा है। एसा कोई धर्म नहीं जहां मार-पीट नहीं, जहां आफत नहीं और लोग इन बातों को मानने को तैयार नहीं है कि उनका चम्म सारे धर्मों से ऊचा नहीं है, कोई विशेप घर्म नहीं है। अगर आपका धर्म एसा विशेष है तो क्यों मर रहे हो? क्यों ऐसी हालत हो रही है? क्यों तकलीफ में पड़े हो? हमारा धर्म सबसे ऊँचा है? आप अगर कल दूसरे घर्म में पैदा होत तो उस घर्म के लिये आप ये सब बातें कहते। यानि धर्म को लेकर लड़ना ये परमात्मा के लिये बड़ी भारी लांच्छना है बहुत का वर्णन कर सकती है। इस जगह जहा कण्डलिनी का नाम किसी ने सुना नहीं था, किसी से कुण्डलिनी की बात करो वो कहते थे कि आप Horoscope कुण्डली देखते हैं? में अपना Horoscope (कुण्डली) लेकर आता हू। सी में कहती थी यहां कैसे होंगा? कुछ मालुमात नहीं। लेकिन बाद में मैंने पाया कि यहां कोई एूर्वजन्म के बहुत बड़े साघु संत रहे हांगे खाजने वाले हॉंगे, ऐसे बड़े ही कोई धार्मिक लोग होंगे जो इस दिल्ली में आ गये और अब उनको ये इन्छा हो रही है कि हम अपनी आत्मा का प्राप्त करें। या जो उनकी पूर्वजन्म की एक आस थी वा आस जागृत हो गई नहीं तो में समझ नहीं पाती। मेरी शादो दिल्ली में हुई, में ता सोचती थी कि ह भगवान क्या शहर है यहाँ तो लोग सिवा कपड़ के और जैवर के और पैसा के और सत्ता के बात ही नहीं करते। कोई बात ही नहीं करते और पछते ही नहीं। उसी दिल्ली में आज आपलोग अपते आत्मासाक्षात्कार के लिये आये हुए हैं। य परम भाग्य है इस देश का। इसका सौभाग्य है क्योंकि भारतवार् एक वहत महान देश है एक योगभूमि है। लेकिन हम इसके बार में कुछ जानते ही नहीं। जय हम इस देश के बारे में कुछ जानते ही नहीं तो इससे हम प्रेम कैसे करें, इसके प्रति हम जागरुक कसे होंगे? में लन्दन जैसा जगह में रहती थी, वहां का इंग्लैंड देश इतना सा है उसमें कुछ कहना चाहिये कि हिन्दुस्तान जैसे बहुत कम लोग हैं। हरेक आदमी चण्पा-चणा जानता है। हरेक बात मानता है। और वडे गौरव से बहां कोई है नहीं गौरवशाली, सच वात तो यह है। मैंते किसी से पूछा कि ये तुम कहां से कांच का बर्तन खरीद लाये तो उसने बताया कि वो फलां जगह है North में, ऐसा है और ये वो फैक्टरी है और उसमें बनता है। मैं हैरान हो गयी बहां पड़ांसी आपस में बात नही करते। पर हर आदमी जानता है कि ये देश है। हर एक चीज को जानता है चाहे वो पढ़ा हो, नहीं चतन्य 18 सत्य और प्रेम दोनों चीज एक हैं। जिसने सत्य को जाना वो प्रेम से ही जान सकते हैं। जैसे आप किसी को प्रेम करते हैं तो उसके बारे हो। एक देवीजी थी देहात में। हम उनके यहां गये वो ये नहीं जानती थी कि रूस (Russia) कहां है, पर लन्दन कें बारे में, हालांकि देहात में रहती थी, सारे देश के बारे में, देश क्या है, वो इतना छोटा सा, सारे देश के वारे में एक-एक चीज, एक-एक बात जानती थी। और अपने यहां तो हम लोग सब साहब हो गये, रहते हैं हिन्दुस्तान में, या क्या हो गया पता नहीं? किसी के बारे में काई बात किसी का मालूम नहीं। अड़ोसी-पड़ासियों की बस बुराई करते थे ये। मैं पहले की बात बता रही हूं और कुछ पूछी तो हमें नहीं मालूम। यहुत गुस्से से मैंने कहा भई फलाने कहां रहते हैं? अरे वो क्या क्लर्क हैं क्या? वो तो पता नहीं, वो तो क्लर्कों की बस्ती है। तो आप कौन हैं? मैं हैड क्लर्क' हूं। मैंने में आप क्या जानते हो कि इनको क्या अच्छा लगता है। क्या बुरा लगता है। क्या कहना चाहिए और क्या नहीं कहना चाहिए, क्या खाते हैं, क्यां पीते हैं, सब चीज आप जानते हैं। उनके बोलने का इशारा क्या है? सब चोज आप जानते हैं। और उसके लिए लगन रहती है। तो जब आप प्रेम से सत्य को जानियेगा तभी वो सत्य है। और अगर आप चाहें कि आप प्रेम को हटा दे तो सत्यचुझ जाएगा, सत्य रह नहीं सकता। क्यांकि सत्य की जो शिखा है उसकी जो दीप्ति है वो प्रेम के ही तेल पर चलती है। और प्रेम का मतलब ये नहीं कि हां भई में तो अपनी लड़की से प्यार करता हूं, मैं लड़क से प्यार करता हैं, में भाई से प्यार करता हूँ। मैं घर से प्यार करता हूं, ये प्यार नहीं है। इसके लिए एक शब्द संस्कृत में "निर्वान्य" निलेप मायने अलिप्त detachedl और आप लोग कहंगे कि माँ प्रम अगर नि्लेप हो जाए तो बहुत सी बातें छूट जाएंगी। ऐसा नहीं है। एक पेड़ की ओर देखिए उसके प्रम की धारा, उसका रस सारे पड़ू में चढ़ता है। हर जगह, उसके मूल में आ जाता है, उसकी शाखाओं में जाता है, पत्तों में जाती है, फुलों में जाता है, फलों में जाता है। लेकिन रुकता नहीं। या तो बो विलीन हो जाता है आकाश की आर कहा ठीक है इस प्रकार इतना घमंड लोगो में था, इतना घमंड और जहां-तहां छोटी-छोटी बातों पर सबको बड़ा अपने बारे में में ये हूं, मैं वो हूँ। मैं फलाना हूं, मैं ढिकाना हूं। पुरानी दिल्ली में, वही हाल नई दिल्ली में! और किस बात का घमंड था सो मुझे मालूम नहीं, लेकिन एक तरह का ऐसा वातावरण था, संभात जिसे कहते हैं, illusion, संभात सबको कोई न कोई lusion में बैठा हुआ था। मैं ये हूं, मैं वो हूं. मैं वैसा हूँ। अगर आप पुरानी दिल्ली में जाईये और पूछिये कि फलानी दुकान कहां है? क्यों साहब हमारी दुकान क्या बुरी है? यहां बैठिये आप। अरे भई आप ऐसी बात कर रहे हैंतो कोन बैठेगा? इस कदर कशमकश, इस कदर आपसी बैर, इस कदर आपसी बुराई! वही दिल्ली आज सुव्यवस्थित होना चाहता है। आपस में प्रम करना चाहता है। उस एकाकारिता को प्राप्त करना चाहिए जो परमात्मा की दन है। इससे आप ही बताइये मुझे क्या लग रहा होगा? बहुत दुनिया देखी है। और इन दिल्ली वालों को मैं हजार वार नमस्कार करती हूँ। अब आप लोग अपनी जिम्मेदारियां भी समझ लें। आप ऐसे शहर में रहते हैं कि जिससे अपने भारतवर्ष की शौहरत सारी दुनियां में जानी जाती है। दिल्ली में जो कुछ भी होता है वी सारी दुनिया में जाना जाता है। क्या हो रहा है यहां पर? यहां के लोग कैसे हैं? एक आदमी अगर दिल्ली में मर जाए तो सारी दुनिया में शौहरत हो जाएगी पर 25 आदमी और कहीं मर जाएं तो उससे कोई मतलब नहीं। तो इसका मतलब ये तो हो गया कि आप महत्वपूर्ण हैं। और आपका महत्व ये है कि इस देश के प्रतिनिधि हैं इस योंगभूमि के, इस भारतवर्ष के आप प्रतिनिधि तार या वापिस पृथ्वी में चला जाता है। वी किसी जगह रुकता नहीं। गर वो रुक जाए तो समझ लीजिए जैसे उसे एक फल पसन्द आ गया या एक फूल बड़ा पसन्द आ गया तो वा पेंड़ ही मर जाएगा और फल फुल सभी मर जाएंगे। इसलिए जिसका जो देना है उसका वो देना चाहिएे। जिसको जो रस देना है वो अपने घर में गृहस्थी में, समाज में 3पने देश में और सारं विश्व में जिसको जा देना है वो दीजिए । लंकिन उसमें लिपट न. जाइये। उसमें लिपटना जो है वो एक तरह से कहता चाहिए जिसे अंग्रेजी obsession कहते हैं चिपकना, अब वो कोई सी भी चीज़ हो उसमें प्रेम की शक्ति क्षीण हो जाती है बढ़ेगी नहीं। कहत हैं "उदार चरितणाम वसुधाऐव कुटुम्बकम्" सारी वसुथा ही, सारी ध रा ही उसका कुटुम्ब है। ये प्रेम की महिमा है। इस प्रेम की महिमा को अगर आपने जान लिया तो आपको आश्चर्य होगा कि आत्मा कं दर्शन से ये घटित होता है, मैंने देखा है कि जब लोग सहजयोग में आते हैं तो सबसे पहले वा देखते हैं कि मेरे अन्दर क्या त्रृटिया है? मुझे आकर बताते हैं कि माँ ये देखिये मैं महामुर्ख हूं, मैंने ऐसी-एसी मुरखता करी। ये की। मैंने कहा अच्छा अपना confession मुझे दे दो, तुम लिख कर रख दो। फिर मैं ऐसा बना, मैंने उसे ठगा, मैंने उससे जबरजस्ती करी। ये सब मुझे बताते हैं। पहले मुझे दिखाई नहीं देता अब तां मानां मेरे सामने मेरा ये आत्मा एक शीशा बन कर खड़ा हो गया है और अब मुझे मेरी गलतियां सामने आ रही हैं। और मैं सोचता हूं कि मैं इतना खराब था। तो मैंने कहा अच्छा जो हो गया सो बीत गया। भूतकाल तो है नहीं, छोड़ो उसे खत्म हो गया अब वर्तमान में तुम खड़े हो। वो हैं। आज आप आत्मसाक्षात्कार के लिए आए हैं या बहुतों को हो भी गया होगा। किन्तु ये समझ लेना चाहिए कि जो-जो आत्मसाक्षात्कारी उनका अपना-अपना एक विशेष स्थान होता है। और दिल्ली वालों का भी एक विशेष स्थान मैं मानती हूँ कि राजधानी में आप बैठे हैं और इस राजधानी में जो आत्मसाक्षातूकारी हों जो आत्मा को प्राप्त करें, उनके अन्दर एक विशेष वैभवशाली शक्ति का प्रदर्शन होना चाहिए। और वो वैभवशाली शक्ति है प्रेम और सत्य। सत्य और प्रम दोनों एक हैं। जब आप सत्य को जानेंगे तो आप अपने आप ही शान्त हो जाएंगे। जब आपने सत्य को जान लिया तब फिर विक्षुब्ध होने या disturb होने की कौन सी बात है? कुछ सब स्वच्छ हो गया और जिस तरह से कमल गंदे पानी से निकल कर सुरभित होकर ऊपर आ जाता हैं और सारे वातावरण को सुरभित्त करता भी नहीं। क्योंकि आप जानते हैं सत्य क्या है। पर की 19 चैतन्य लहरी आया था कि एक शान्ति के दूत को मार डाला। आंखों में आंसू। कहां वो इन्होंने उन्हें कभी देखा भी नहीं, जाना भी नहीं कौन था, कौन नहीं । पर अखबार में पढ़ा होगा। इस प्रकार एक सारे ही विश्व के साथ तदात्मय। विश्व का जो आत्मा है' विश्वात्मा ' उससे एकाकारिता घटित होती है। और जो वो आत्मामुखी है वही मनुष्य अपने अन्दर महसूस हैं उसी प्रकार अब तुम हो गये| भूल जाओ। इसलिए जो गत है जो भूत है उसे भूल जाओ। पर वो भूल ही जाता है बाद में। धीरे-धीरे उसकी प्रगति होती है तो भूल जाता हैं। मैं Russia में थी, तब वहां coup (राज्यविष्लव) हुआ,तो मैंने सहजयोगियों से कहा कि अरे तुमको कोई घबराहट नहीं हो रही, तुम्हारे यहां कू हुआ है पता नहीं कोन राज्य में आये, क्या हो! कहने लगे माँ हम तो परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं, हमको क्या डरना? साफ कह दिया उन्होंने। हम तो परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। ये एक स्थिति है, ये बकवास से नहीं होता। लोग बड़ी-बड़ी में जो करता है। ऐसा वो विशाल हदय हो जाता है। उसको अपनी छोटी-छोटी बातें, छोटी-छोटी यातनायें नहीं समझ आतीं। वो ये नहीं सोचता कि मुझे ये तकलीफ हैं, ये परेशानी है, विल्कुल नहीं सोचता। उसको लगता है कि ये विश्व के प्रश्न कैसे ठीक होंगे? ये विशालकाय हैं। और फिर ऐसे आदमी के अन्दर शाक्ति आ गयी, वो भी परमात्मा की शक्ति। जब वो ये सोचने ही लग गया, वो प्रश्न भी टीक हो जाता है। उसकी इस विशालता से वो प्रश्न भी अपने आप हल हो जाता है। बहुत से लोगों को मैंने देखा है कि माँ देखिये ऐसा हुआ एक बार कि हमें बड़ा प्रश्न पड़ा कि फलांने देश में ऐसी लड़ाई हो गई। तो हम लोगां ने साचा कि प्रार्थना करे, ध्यान (Meditate) करें, कुछ करें, इच्छा करें तो दूसरे दिन अखबर में आया कि सब शान्ति हो गयी| अब कोई विश्वास नहीं करेगा कि ऐसा कोई कर सकता है। लेकिन क्यों नहीं विश्वास करता मनुष्य? क्यांकि मनुष्य अपनी विशालता को अपने बड़प्पन कां, जानता नहीं। जब तक उसमें अपने को पहचाना नहीं, वो अपना वडुप्पन केसे जानेगा? वो कैसे जानेगा कि वो क्या चीज है, उसकी गरिमा क्या है, और उसकी शक्तियां क्या हैं। आत्मदर्शन के बाद ही आपको ये सब बातें करेंगे, ये करेंगे वो करेंगे ऐसे नहीं। सबसे बड़ा गुण मनुष्य आता है कि वो निर्भयता से अपने को देखता है, उसको भय नहीं लगता। वो ये नहीं सोचता कि मैं ये कैसे सोचू कि मैं क्या हूँ। क्योंकि वो अपने से अलग हटकर है। वो जो पुराना था वो उतर गया, और अब नया सामने आ रहा हैं, और ये जो नया जीव सामने आ रहा है ये अंत्यंत सुन्दर है और गौरवशाली है। स्वाभिमानी है। ये नहीं कि ये अपने को सबके चरण-छू महाराज बने, ये बात नहीं। इसमें अपना स्वाभिमान है और उस स्वाभिमान में जो स्व है वही आत्मा है। इसी 'स्व' के तन्त्र को जानना ही सहजयोग है। जिसने इस स्व के तन्त्र को जाना वही स्वतंत्र को हो जाता है। स्व का तन्त्र का मतलब ये कि अपने आत्मा के तन्त्र जानना। अभी तक तो हम इस बुद्धि से या अपने संस्कारों से, पढ़ी हुई बातों से चिपके हुये थे। अब हमारे अन्दर आत्मा का जागरण हो गया है और उस जागरण से हम सब कुछ स्पष्ट देख रहे हैं पहले तो अपने को देखिये, फिर अपने समाज को देखिये। अब हमारे यहां बहुत से लोग हर एक धर्म से आये हैं, मुसलमान है, हिन्दु हैं, इसाई हैं, बौद्ध हैं, महावीर के लोग हैं, सब तरह के लोग इस सहजयोग में आयें हैं। और सबसे पहले मैने ये देखा कि उन्होंने अपने समाज के बारे में मुझे बताया। जैसे कोई जैनी आये तो उन्होंने बताया माताजी ये जैनियों का दिमाग ठीक करो। कोई सिक्ख आये तो उन्होंने बताया भई सिक्खों का दिमाग ठीक करो। कोई ईसाई आये तो उन्होंने कहा कि मां इन ईसाईयों को कब ठीक करोगी आप? हर एक में मैने ये चीज़ देखी कि फौरन वो अपने से हटकर के अपने समाज को देखने लगते हैं, अपने घर को देखने लगता है, फिर देश को देखने लगते हैं और फिर पूरे विश्व को, सारे नोबल प्रश्नों को लेकर के वो उलझ जाते हैं कि मां अब ये प्रश्न है। अब वहां ये हो रहा है। आपको कुछ न कुछ करना होगा। आपको देखना होगा। मैने कहा कि अब तुम पूरे दुनियाभर की परेशानी मुझ पर डाल रहे हैं। आप ही कर सकते हैं इसको आप करिये, आपको ठीक करना है। ये आदमी ठीक नहीं उसको ठीक करिये। इस तरह से उलझ गये, किस चीज़ में कि जो सारे विश्व का प्रश्न है। बताईये एक सर्वसाधारण मनुष्य, एक खेतीहर है वो सिर्फ अपनी खेती की बात करें तो समझ में आता है, पर वो भी देखकर के कहने लगा कि अच्छा ये राबिन को मार डाला इन लोगों ने। क्यों मार डाला? मां आप इनकी शान्ति के लिये कुछ करें। इनकी शान्ति का ठिकाना लगाओ। मैं हैरान हो गई कि इसने कहां से पढ़ा। क्या अखबर में आया था? अखबार में प्राप्त ही सकता है। कुण्डलिनी के बारे में तो आप जानते हैं, चक्रों के बारे में भी आप जानते हैं कि क्या है। चक्रों के जागरण से क्या अभिव्यक्ति होती है। अभी अगर हम ये बात करें कि इसमें ये तंदरुस्ती अच्छी होती है उससे वो तंदरुस्ती अच्छी होती है तो लोग कहेंगे कि आप क्या अस्पताल खोले बैठी हैं? सिर्फ अपनी तंदरुस्ती अच्छी करना ये सब सहजयोग का कार्य नहीं है। ये जमाने अब गये। पहले जो आता था वो अपने दूर-दूर के सम्बन्धियों को रोग मुक्त करने को कहता था। फलाना शराब पी रहा है उसे आप ठीक कर दो। अब वो नहीं रहा। अब मुझे हैरानी होती है कि मनुष्य कितना विशाल हो रहा है इस देश में। इस विशालता को प्राप्त कर रहा है। अब आप ही सोचिये एक जमाने में इस देश में ऐसे लोग थे, ऐसे मनन करने वाले थे, ऐसे द्रष्टा लोग थे जो विश्व के प्रश्न को लेकर चलते थे। छोटे-छाटे ओछे सवालों के पीछे नहीं दौड़ते थे। अब इन लोगों की आप व्याख्यायें सुने, इन लोगों का दर्शन ले तो इसी देश में ऐसे महान लोग हो गये जिन्होंने हमेशा महान बातें सोची, महान कार्य किये। अब हम लोग पता नहीं कैसे, किस गर्त में फंस गये हैं। कि उस महानता को असंभव समझते हैं। हो ही नहीं सकता। हम ऐसे कैसे हो सकते हैं? क्यों नहीं? वो जो एक जमाने में लोग थे जो लोग एक जमाने में इन अंग्रेजों से लड़ सकते थे, जिन्होंने देश के लिये इतना त्याग किया, क्या आज हमारे देश में वापिस नहीं आ सकते? वो और कौन से देश में जायेंगे, जिन्होंने इतना प्यार किया वो क्या इस देश में चैतन्य साहरी 20 स्वरूप हो जायेंगे। उसके लिये ध्यान करना और ध्यान में उतरना होगा। उथलेपन से सहजयोग नहीं किया जा सकता। इसका मज़ा तब आता है जब आप आध्यात्म में डुबकियां लगाते हैं। उसमें पेर गहरे बैठ जायें, तभी आपको सहज का मजा आयेगा और तभी आप समझ जायेंगे कि आप क्या हैं, और आप कितने विशाल हैं। और सब होते हुये भी अन्दर से आप में एक तरह कि ऐसी शान्ति और समाधान विराजमान रहेगा कि उसस शक्ति के द्वारा ही आप अपने चित्त से ही चीज़ ठीक कर सकते हैं। ये मैं आपको बता सकती हैँ कि आपका चित्त ही इतना सुन्दर हो जायेगा कि उस चित्त का जहां भी ध्यान जाये, उस चित्त से आप बहुत सी चीजें ठीक कर सकते हैं। तो थोड़ा सा अपने संकीर्ण वातावरण से निकलकर, अगर आपको और ऊँची दशा में लाना है, ध्यान धारणा ज़रूर करें। घ्यान ही से सब चीज़ व्यवस्थित होती है। अब ये ही बात है कि हसमें लोगों ने कहा कि आदमी लोग तो बहुत ध्यान करते हैं और औरतें कम करती हैं। आश्चर्य की बात है। मैं एक औरत ही हूँ, मैं भी स्त्री हूँ, और मेरा भी घर है, मेरे बच्चे हैं। सब कुछ है। सबको चलाते हुये भी ध्यान से ही मैने ये क्रिया प्रणाली ढूंढ निकाली कि हजारों लोग पार हो सके। तो मैं ये विनती करु कि औरतें अगर घर में ध्यान करें तो बच्चे भी ध्यान करेंगे वच्चों को संभालने के लिये ध्यान करना ज़रूरी हैं। पति तो करें ही क्योंकि पति फिर से जन्म नहीं ले सकते? जिन्होंने इतना त्याग किया, देश के लिये बहुत सारी यातनायें सहीं, देश के लिये, आज वो लोग फिर सहजयोग में से जागृत होंगे। मुझे पूर्ण आशा है कि वो अपने देश को प्यार करेंगे और देश की व्यवस्था ठीक करेंगे, शान्ति, अमन आदि सब चीजें लायेंगे। उसके बाद जब ये देश ठीक हो जायेगा तो और भी देश देखा देखी ठीक हो जायेंगे। हमारे सामने तो विश्व के प्रश्न है हीं, किन्तु ये सोचना है कि इसमें कौन-सा देश अगुआ होता है। कौन सा देश इसका झण्डा उठाता है। कौन से देश के लोग ये कहते हैं कि हम एक ऐसा आर्दश देश बना कर दिखायेंगे, जहां लोग ऊँचे, आध्यात्मिक स्तर पर, हमारे सहजयोग आध्यात्म का ये मतलब नहीं कि बीवी को छोड़, बच्चों को छोड़ और जंगल में भाग बिल्कुल भी नहीं। अपने ही अन्दर अपने दर्शन करके इस उच्च स्थिति को प्राप्त करना, इस विशेष स्थिति, जो हमारे लिये बनी हुई है, जिसे हम प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी कोई कठिन बात नहीं, ऐसा कोई त्याग भी किसी चीज़ का करने की जरूरत नहीं, सिर्फ मूर्खता का त्याग करना है, सिर्फ दुर्ुद्धि का त्याग करना है। और संकीर्णता जो आपको स्वार्थी स्वभाव (Self isntemprament) है। उससे दूर भागना है। उसको समझना चाहिये, कि ये मरे अन्दर एक संकीर्ण बात है। उसके बाद आप देखियेगा कि अपने आप आपके प्रश्न जो हैं खुलते जायेंगे। आप परमात्मा पर विश्वास करते हैं। क्या सोचते हैं कि आप मंदिर में गये नमस्कार कर लिया, गुरुद्वारे गये नमस्कार कर लिया। उससे नहीं होने वाला। अन्दर में ये विश्वास जो हम करते आये हैं वो धर्म हमारे अन्दर नस-नस में बस जाता है। इस धर्म की महिमा ऐसी है कि इस धर्म के कारण अनेक महात्मा इस देश में आये। मैं तो कहती हूं कि इससे ज्यादा तो किसी देश में हुए ही नहीं। इसका मतलब अपना भारत वर्ष एक महान योगदान सारी दुनिया को दे सकता है। मैं अभी चीन गई थी, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि चीन के लोग वैसे तो सार्वजनिक रूप से चाहे हमारे विरोध में हों, कहते हैं हम तो हिन्दुस्तान से बहुत कुछ अपेक्षा रखते हैं बहुत कुछ आशा करते हैं। मैंने कहा क्या? बोलें आध्यात्म हम जानते हैं कि वहां आध्यात्म की खान है। लेकिन अभी तक किसी ने वो बताया नहीं। हमारा जो स्टॉल था उसमें लाइने पे लाइने, कतारें पे कतारें लगी हुई थीं, जहां लोग आकर पूछते थे कि क्या है' सहजयोग'? पेपर तक में आया। अमेरिक भी हैरान हो गये कि इसमें क्या रखा हुआ है। यहां क्यो इतने लोग इकट्ठा हो रहे हैं। और आप देख रहे हैं आपके सामने इतने लाग बैठे हैं; विदेश के भी, जो कि आज सहजयोग को प्राप्त करके भारत की गौरवगाथा गा रहे हैं। आपको भी इस ओर नजर करनी चाहिये । सहज में आपको पार तो होने में कोई मुश्किल नहीं हैं क्योंकि आप तैयार हैं, जैसे कोई बीज होता है। आप उसको पृथ्वी माता में डाल दीजिये, तो वो पनप जाता है, क्योंकि बीज में भी शक्ति है और मां में भी शक्ति है। लेकिन उसके बाद वृक्ष होने में देर लगती है। वो जरूरी है क्योकि आपकी विशालता तभी दिखाई देगी जब आप वृक्ष है तो जो है वो चालना करता घर की। और स्त्री जो है उसको रक्षण करती है। तो अगर पति ने ध्यान-धारणा करी तो पलनी भी करे, बच्चे भी करे। फिर सबसे बड़ी सहजयोग की बात ये है कि ये सामूहिक है, अकेले नहीं कि मैं अपने घर में पूजा करता हूँ मां तो भी मुझे बीमारी हो गई। अकेले में नहीं। जो सामूहिकता में आप आयेंगे, सामूहिक में सहजयोग को मानेंगे तब आज का, वर्तमान का सहजयोग है। वो जमाने गये जब एक आदमी कहीं पार हो जाता था। हजारों को पार करना है, लाखों को करोड़ों को पार करना है तो हमें सामूहिक होना पड़ेगा और सामूहिकता की शक्ति बहुत ज़बरदस्त है। मुझे खुशी है कि दिल्ली ने सहजयोग को अपने सिर-आँखें पर उठा लिया है और समझा है। इतने संवेदनशील इतने Sensitive लोग इस दिल्ली में हैं। बड़ी हैरानी की बात है कि जिस महाराष्ट्र में इतने संत-साधु हो गये वहां के लोगों को इतनी अकल नहीं, मैं यह देखकर हैरान हूँ। वो लोग सोचते हैं कि हमें सब मालूम है। सब हमने जाना है। वहां नवनाथ हुये सब बेकार गये। वहां इतने साधु-संत हुये सब बेकार गये और इस तरह से जो आप लोगों ने इसको समझाया, बनाया, इसको बढ़ाने के लिये अपना व्यक्तिगत Individual ध्यान भी करना चाहिये और सामूहिक ध्यान में समावेश करना चाहिये। मैं मानती हूँ कि हमारे पास जगह की कमी है। और उसके लिये कुछ करना चाहिये। धीरे-धीरे सब कुछ हो जायेगा। लेकिन जहां भी सामूहिक आप हो जायेंगे फिर आप और कोई बात करेंगे ही नहीं, सहज की ही बात करेंगे। अभी तो शुरुआत है और इससे आगे हर जगह हमारा प्रोग्राम होने वाला है। जो लोग आ सकते हैं जरूर आयें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 21 शक्ति पूजा दिल्ली 5 दिसम्बर, 1995 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन तदा करेंगे। क्योंकि सत्य-युग नहीं उठानी चाहिये कयोंकि आप स्वयं शक्ति से संचालित है। आपमें हर तरह की शक्ति वहन हो रही है। तो वो ही शक्ति आपको शक्तिवान, आत हम सत्य युग में शक्ति की की शुरुआत हो गई है और इसी वातावरण के कारण शक्ति का रूप भी प्रखर हो गया है। शक्ति का पहला स्वरूप कि वो प्रकाशमान है, तेजस्वी है, तेज पुण्ज है। यह शक्ति जब प्रगट होगी, पूर्णतया इस सतयुग में, तो हर एक गलत किस्म के लोग सामने उपस्थित हो जायेंगे। उनकी सारी कार्यवाहियां सामने आ जायेंगी। उनकी जो कार्य-प्रणाली आजतक चोरी छुपे चल रही थी और उसमें वो मग्न थे, वो सब खुल जायेंगी। हर तरह की बुराईयां, चाहे वो नैतिक हों चाहे मानसिक हों, आतंक-वादी हों, या किसी तरह की भी हों, सत्य को पसन्द नहीं। ऐसी कोई सी भी संस्था ऐसी कोई सी भी व्यवस्था बच नहीं सकेगी क्योंकि उस पर सत्य का प्रकाश पड़ेगा। इस सत्य के प्रकाश में आप शक्ति की बिशेष प्रकृति देखियेंगा, उसकी एक विशेष आकृति देखियेगा। कारण, मैने आपसे पहले बताया था कि अब कृत-युग शुरू हो गया और इसके बाद सत्य-युग आयेगा और यह भी बता दिया था कि अब सत्ययुग का सूर्य क्षितिज पर आ गया है। इसकी प्रचीति आपको मिलेगी, इसका (Proof) प्रमाण आपको मिलेगा कि सत्य के मार्ग में जो भी असत्य लायेगा वह पकड़ा जायेगा। फिर वो सहजयोगी ही क्यों न हो। वो अपने को सहजयोगी कहलाता है पूजा बलवान हर तरह से समृद्ध और स्वस्थ बना सकती है। आपको और किसी चीज़ का आलम्बन करने की ज़रूरत नहीं। जैसे ही आप किसी दूसरी चीज़ का आलम्बन करंगें, आप गिर जायेंगे। जैसे मैने देखा है कि वडे-बड़े लोग होते हैं जो अपने को बड़ा कहलाते हैं। वो खबर भेंजेंगे कि हमें माँ से मिलना है, हम उनसे (Specially) विशिष्ट रूप से मिलना चाहते हैं कोई विशेष होते नहीं हैं, पर हमको मिलना है। अब अगर मना करो तो लोग कहते हैं कि माँ वो बहुत सतायेंगे, तो मिल ही लीजिये उनसे। अब सब गिड़गिडा कर कहते है तीन वार कहेंगे कि वो आने वाले हैं, वो आनंे वाले हैं उसके इश्तहार लग जायेंगे| और वो आयेंगे, पार हो जायेंगे और ठीक भी हो जायेंगे, उसके बाद वो पूछेंगे भी नहीं। क्योंकि वह समझते नहीं है कि सत्य की शक्ति कितनी जबरदस्त है। एक बार अगर आप सहज में आ गये तो बेहतर है कि आप सहज में उतर जाएं नहीं तो बचत नहीं है। हर बार इन्सान यही सोचता है कि मेरा क्या फायदा सहज में आने से? मेरा लड़का बीमार है, तो मेरी लड़की वीमार है तो मेरा फलाना है तो हिकाना हैं तो मेरे पैसे गायब हो गये, तो आयकर है (Income Tax) आ गया, फलाना हो गया और ढिकाना हो गया। लेकिन यह सब आफते जो हैं एक साथ आपकी टल जायेंगी। सबसे पहले तो मनुष्य में अगर समाधान भी नहीं आया तो सहज बेकार है, उसके लिये। अब समाधान जब आ जाता है, वस वहुत और गलत काम अंगर करता है, तो वो बच नहीं सकेगा। उसको आज तक सत्य ने बचाया, सम्भाला, उसकी रक्षा करी। लेकिन अब इससे आगे उसमें शक्ति नहीं, सहज में वो शक्ति नहीं है कि वो सत्ये के आगे ऐसे लोगों को बचा सके जो सत्य का तमगा लेकर चलते हैं। सत्य में सबसे बड़ी शक्ति आपने मैने परसों ही बताया था कि प्रेम की है। प्रेम की शक्ति सबसे बड़ी है। प्रेम का मतलब अंहकार रहित, किसी अपेक्षा के बगैर किसी भी आशा (expectation) के बगैर प्रेम का सामराज्य फैलाना। यह शक्ति कार्य करेगी किन्तु यह जो शक्ति चैतन्य की है, वो आपके ही माध्यम से कार्य कर सकती है। अगर चैतन्य स्वयं ही इस कार्य को कर सकता, तो आज आप लोग सहजयोगी नहीं बनते और सहजयोगियों की कोई ज़रूरत भी नहीं रहती। लेकिन आज जो सहजयोगियों की जरूरत आप समझ रहे हैं कि कितनी है कि सामूहिकता में सहजयोगी तैयार हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि चैतन्य का वहन उसके (चैनल) माध्यम आप लोग हैं। अब इसे वहन करने वाली जो धाराएँ हैं उनको समझ लेना चाहिये कि आपको किसी भी गलत काम की ओर नज़र तक हो गया अब नहीं चाहिये कुछ भी। कोई गलत काम करने की ज़रूरत नहीं। कोई सा भी एसा काम करने की जरूरत नहीं कि जो हानिकारक हो समाज को, दूसरे को, आप को, किसी को भी हानिकारक कार्य करना सहज के बाद फलित नहीं हो सकता, उसका नुकसान उठाना म पड़ेगा। हमने देखा, बहुत शुरू में बहुत से सहज में ऐसे लोग आयें वा रुपया बनाया, पैसा बनाया, झगड़े किये, लड़ाई करी, यह करा, करा, इसके सिवा कुछ किया नहीं सहजयोग में। फिर खत्म हो गये क्योंकि सहज की शक्ति ऐसी है कि ऐसे लोगों को परे ढकेल देती है। फिर वो ठीक होकर वापस आ जायें, तो दूसरी बात है जैसे समुद्र में दो शक्तियाँ होती हैं, एक शक्ति से तो बाढ़ आती हैं और एक से तो समुद्र पीछे जाता है। इसी प्रकार इस सत्य की शक्ति है जो स्पन्दित होती है, स्पन्द का मतलब होता है जों एक बार संकृचित होता है ाी वतन्य लह 22 भी आप देखते हैं कि सरदर्द हो गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि सहज में आपने यह कार्य अपने ऊपर कैसे ले लिया- क्योंकि और एक बार पूरी तरह से खुल जाता है। उस हृदय में ही स्पन्द होता है। आदि शंकराचार्य ने (Vibration) चैतन्य लहरियों को स्पन्द कहा है। स्पन्द का मतलब है कि जो एक बार आपको उठायेगा वो दूसरी बार आपको गिरा भी सकता है। यह मैं आपको डरा नहीं रही हैूँ, पर सूचना दे रही हूँ कि अब परिवर्तन हमें ऐसा करना चाहिए कि जिससे सहज में हम अग्रसर हो सके। मैनें परसों कहा था कि उत्तरी भारत में सहजयोग बहुत जोरों से फैल रहा है, बहुत जोरों से। हर जगह जैसे आग लग गई हो, लोग सहज में आ रहे हैं क्योंकि सहज से लाभ बहुत है। तन्दरुस्ति अच्छी हो जायेगी, कई लोगों को धन-लाभ हो जाता है, किसी को पुत्र-लाभ हो जाता है, कोई न कोई लाभ हो ही जाता है। किसी का बहुत ज्यादा, किसी का कुछ कम। किन्तु सबसे बड़ा लाभ सहजयोग का यह है कि समाधान- कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिये। मुझे और कुछ नहीं यह तो सहज कार्य है, स्वत: (Spontaneous)। सहज में हरे चीज़ एकदम सहज हो जाती है। यह आपको तो घीरे-धीरे अनुभव आते ही रहेगा। लेनि सहज पर निर्भर हो जाना। यह शक्ति आज सत्य-युग में कार्य कर रही है। जिस दिन आप पूरी तरह से सहज पर निर्भर हो जायेंगे तो सहज से सारा ही आपका कार्य, आपका जीवन ही पूरी तरह से प्लावित हो जायेगा। और आपको किसी भी प्रकार की दखल देने की जरूरत नहीं। एक बार हमारे यहाँ चोरी हो गई। हमारी सब साड़ियां चोरी हो गईं मुश्किल से एक साड़ी सिल्क की बची। वही पहन करके मैं सारी पार्टियों में जाती थी और सब जगह जाती थी। हमारे पति भी सोचने लगे कि इनको क्या हो गया, एक ही साड़ी पहनती हैं। मैंने कहा मेरे पास अब सिर्फ एक ही है। अब आप लोग इतनी साड़ियां मुझे देते हैं कि मैं मना भी करती तो साड़ी पर साड़ी, साड़ी पर साड़ी। तो मैने कहा, अब अगर द्रोपदी वस्त्र हरण का आप इन्ज़ाम करें तो कुछ ठीक हो जाये क्योंकि मैं रक्खू कहाँ? में तो पहनती भी नहीं यह सव साड़ियां लेकिन समाघान मिलना यह ही सबसे बड़ा आशीष है। अब अगर समझ लीजिये कि हमे कोई चीज़ पसन्द आई और हम उसके लिये दौड़ रहे हैं कि हमें वो चीज़ चाहिये, जरूरी चाहिये। उसके लिये मरेंगे कि वही चीज़ लेनी है कि वो देखिये हमें पसन्द वही है। मर-मराकर ली भी, कर्जा लेकर ली, चाहे जैसे भी ली। और उसके बाद उसकी ओर देखते नहीं। फिर दूसरी चीज़ की ओर देखने लगे। जो चीज़ पाई उसी का सुख नहीं, उस को देखना नहीं। आजकल इतने सुन्दर फूल खिले हुए है दिल्ली शहर में, मैं वो ही रास्ते भर देखती आ रही थी। इतने सुन्दर फूल खिल रहे हैं पेड़ों पर। आपमें से न जाने कितनों ने देखे हैं कि नहीं देखे हैं अब ध्यान कहाँ है। ध्यान आपका अगर अपने आत्मा पर है तो आत्मा वही चित्र दिखायेगी जो सुखदायी है, जो आनन्दमयी है। और उसमें फिर स्वार्थ असल में पाया जाता है, क्योंकि इसमें आप स्व का अर्थ जान जाते हैं। कैसे शब्द लगाये हैं देखिये, अपने जो पुरखे हो गये पूर्वज, उन्होंने ढूंढ-ढूंढ़ कर शब्द लगाये कि तुम स्वार्थ ढूंढो। स्वार्थ माने स्वः का अर्थ। पहले लोग सोचते थे स्वार्थ का अर्थ पैसा कमाओ ये करो वो करो, पर उसमें सुख नहीं मिला। जब खोजते-खोजते आप पगले हो जायेंगे तब फिर आप स्व की ओर दौड़ेंगे। इसलिए उन्होंने कहा कि पहले तू स्वार्थ खोज, इसमें तेरा क्या स्वार्थ है वो देख, इसमें चाहिये। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आपकी आ जायेगी तब समझना कि आप सहज में उतर गये। और फिर अनायास आप कुछ चाहें या न चाहें सहज आपकी देखभाल करेगा आपको सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा। आपका समाधान जो है वो सातवीं श्रेणी में पहुँच जायेगा। लोग कहेंगे इनकों क्या हो गया? यह क्यों इस तरह से निरीच्छ हो गये? इनको क्या किसी तरह का सन्यास मिल गया? कोई परवाह ही नहीं। एक बार अमरीका में गये थे। वहाँ एक दुकानदार स्त्री थी। उसको हमने जागृती दी। तो कहने लगी कि माँ कमाल है। जागृती के बाद मुझे कुछ याद ही नहीं रहता। पहले मुझे दुकान की हरेक चीज़, कौन सी चीज़ आई कौन सी चीज़ गई; ल क्या मिला, क्या नहीं मिला, हरेक बात की मुझे पूरी परवाह रहती ॥ हि थी और हरेक चीज़ मैं लिख लेती थी और तो भी मुझे कभी नफा नहीं हुआ। हमेशा देखती थी कि नुकसान ही होता है। जो चीज़़ आये वो बिक ना। सहज के बाद यह हालत हो गई कि अब ना तो मैं गिनना जानती हूँ ना ही मुझे कोई चीज़ याद है, और देखिये कमाल कि मुझे नफा ही नफा हो रहा है! पता नहीं कैसे नफा हो रहा है! कौन मेरा सामान बेच रहा है! कौन खरीद रहा है! कौन पैसा दे रहा है। मुझे किसी भी चीज़ की खबर नहीं। और इस बेखबरी में ही सब कुछ बना जा रहा है। माने, सहज ने अपनी गोद में ले लिया उसे और सारी जो कुछ परेशानियां थी, नाप-तोलने की, बेचने की नफा कमाने की, वो सब खत्म हो कर, वो बस मस्ती में आ गई, कहने लगी, अब क्या मेरी तो दुकान काई चला ही रहा है, पक्की बात है। मै नहीं अपनी दुकान चला रही। और सब चीज़ इस प्रकार हो जाने से मनुष्य समझ जाता है कि अब में समाधन की सातवीं मन्जिल पर पहुँच गया। उसको सोचना भी नहीं पड़ता। विचारों से परे यह दशा हैं। अब इसका कारण यह है कि सहज से पहले हम विचारों पर रहते हैं। हर चीज़ आप गिनते रहते हैं, हर चीज़ आप नापते रहते हैं, घड़ी हर बार आप देखते रहते हैं और हर समय आप देखते हैं कि कुछ न कुछ छूट ही जाता है। बहुत हिसाब-किताब रखने पर तेैरा कौन सा फायदा है वो देख। सहजधारा में जब आप बहते हैं तब इस सत्य-युग में आपको जान लेना चाहिये कि आप को जो सम्भालने वाला है जो देखने वाला है, उसके करोड़ों हाथ हैं और उसके आँचल में आप चले गये। अब क्यों गलत काम करो? क्यों ऐसी वैसी बात करो जिससे कि आप पकड़ में आ जाये और बेकार में परेशान हो चैतन्य लहरी 23 विचार से परे है। सहजयोग से आप बुद्धि से परे, भावनाओं से पर, गुणातीत, एक ऐसी दशा में हैं कि जहाँ कोई विचार नहीं आता। कोई विचार नहीं आता। आप किसी की तरफ देखकर के उस पर कोई विचार नहीं करते सिर्फ देखते रहते हैं यह विचार करने की जिसका प्रतिबिम्बित (Reflection) करते हैं, जो कोई बात हुई, फौरन विचार शुरु। किसी चीज को देखा तो विचार शुरू। लोग पगला जाते हैं विचार कर कर के। एक साहब ने मुझसे Switzerland में कहा कि माँ चाहे आप मेरी गरदन काट दो पर मुझे विचार के तुफान से बचाओ। खुद डाक्टर हैं वो। तो यह जो विचार हमारे अन्दर अंहकार की वजह से या संस्कारों की वजह से, बंधे हैं और उसको बांधने वाले और लोग हैं। किताबें पढो, किसी जायें और अगर आप किसी चीज़ में पकड़ में आ भी गये तो भी मे । ऐसे छूट जायेंगे। उदाहरण के लिये हम बतायें कि हमने पाँच मूर्तियां खरीदी मिट्टी की कैनेडा में, बहुत सुन्दर थी, सोचा ऐसी मूर्तिया हमारे यहां बनें। अब सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां पाँच खरीदीं तो हमारे (Custom) सीमा शुल्क वालों ने उसके दाम ।8.000 लगा दिये। मुझे बड़ी हंसी आई कि मिट्टी की पांच मूर्तियों का दाम अट्ठारह हज़ार हो सकता है क्या? अट्ठारह रुपये भी नहीं होगा। मैं हंसती रही तो वो पुलिस वालों के पास खबर गई, तो वो भी हंसने लग गये। मैने कहा, देखिये क्या तमाशा है कि इसके दाम अट्ठारह हज़ार हो सकते हैं? और वाकाई में वो सब छूट गया। क्योंकि गलत चीज़ में पकड़ा उन्होंने। तो सहज अपने आप ही सब चीज़ को ठीक कर देता है, जिस चीज़ की जरूरत है, जो जरूरी होना है जिसकी आवश्यकता है वो कार्य सहज ही कर देता है। तो सहज पर चीज़ छोड़ूना आना चाहिये। सबसे बड़ी बात है यह चीज़ सहज पर छोड़ दो बहुत सी बातों में हम देखते हैं कि लेग बेकार में परेशान हैं, बेकार में परेशान हैं, और इस परेशानी का मतलब यह है। कि वो सहज नहीं है। भी बहुत गुरू के पास जाओ, किसी से मिलो, बातचीत करों, वाद -विवाद करो। रामदास स्वामी ने कहा हैं, मिटे वाद-सम्वाद ऐसा कराओ। जिससे तुम्हारा वाद-विवाद का स्वभाव ही बदल जाये ऐसी बातचीत करो, माने वाद-विवाद मत करो। यह बात बिल्कुल सही है कि हम लोग सहज में आते हैं तो भी हर एक चीज़ का हम विचार करते हैं। लेनि सहज का चमत्कार हम जानते नहीं कि जब हमने अपने को सहज के हवाले कर दिया, पूरी तरह से हम सहज के हवाले हो गये तो विचार भी सहज ही करेगा और सहज ही उसका हल भी करेगा जो हम नहीं जानते। पर प्रश्न हमारे चारों तरफ है। अब आज मैने कहा था कि तीन बजे पूजा होगी मैं जानती थी कि सब घर गृहस्थी वाले लोग हैं, तीन बजे कैसे पहुँच पायेंगे। देर ही होने वाली है उसमें कोई हर्ज नहीं, आराम से आयेंगे। आराम से चलो। बहुत बार आदमी सोचता है कि मेरा रास्ता भूल गया और वो परेशान रहेगा है कहाँ से रास्ता ढूंढं, किससे पूछ, क्या करू, मेरा रास्ता रह गया। यह रह गया वह ो एक इस सत्य-युग में शक्ति का जो स्वरूप है वो हैं प्रकाश और दूसरा सत्य, तीसरा प्रेम और चौथा मन की शान्ति। आप मन की शान्ति को प्राप्त कर लेते हैं, जो भी होता है उसे आप देखते रहते हैं। कोड् भी आदमी अगर विचलित होता है तो वह सहजी नहीं है। आपने कितनों के नाम सुने होंगे। सुक्रान्त (Socrates) का नाम सुना होगा, ये हज़रत निज़ामुद्दीन साहब का सुना होगा, कि इनको तो कहा गया था कि अगर तुम कल आकर हमारे सामने सर न झुकाओगे तो हम तुम्हारी गरदन काट देंगे। तो उस शहन्शाह की गरदन कट गई रात में। वो किसने काटी? उन्होंने थोड़ी काटी, उनके शिष्यों ने थोडी काटी, किसने काटी? किसी ने तो काटी होगी इस प्रकार हर चीज़ सहज में हर प्रकार मैने कहा, दो तरफा चलती है। जैसे समुद्र में बाढ़ भी आती है और संकुचित भी हो जाती है उसी प्रकार सहज में भी आप दो शक्तियों के द्वारा देखें जाते हैं। पहली शक्ति से बढ़ावा और दूसरी शक्ति से आपको निकाल दिया जाता है। एक बार सहज से आप निकल गये तो फिर हमारा आपका कोई सरोकार नही। हमारे ऊपर आपका कोई अधिकार नहीं। कोई भी आपको अगर हमारे ऊपर अधिकार देता रहा है तो पहले सहज में घुलमिल लेना चाहिये। जैसे स्वर्ण है तप कर के जब वो कुन्दन हो जाता है तो उस कुन्दन में वो शक्ति आ जाती है कि वो हीरे को पकड़ लेता है। कुन्दन में जब आप हीरा बिठाते हैं तो उसके लिये कोई भी ऊपर से टांका लगाने की जरूरत नहीं। कोई चीज़ से पकड़कर लगाने की भी ज़रूरत नहीं। वो कुन्दन, इतनी हौरे से बड़कर और कोई कठोर चीज़ संसार में नहीं। इसी प्रकार आपका भी कुन्दन हो सकता है। और वो कुन्दन में आप देखेंगे कि आपके अन्दर समाधान की शक्ति आ जायेगी। समाधान में विचार नहीं होता तो कत रह गया। अगर आपका रास्ता खों गया है तो सहज के कारण। या तो आपको किसी से मिलना है या आपको किसी चीज़ से गुज़रना है या किसी चीज़ का आपको अनुभव लेना है इसलिये आपका रास्ता खो गया, चिन्ता करने की कौन सी बात है? आखिर आप करने क्या वाले हैं कोई लड़ाई है कोई युद्ध है वहाँ जा रहे हैं? और युद्ध में भी अगर सहजयोगी जायें तो वो युद्ध तो जीत लेंगे, लड़ेंगे-वड़ेंगे कुछ नहीं। सत्य में विचार की शून्यता आने से मनुष्य जान लेता है कि विचार जो है वो शक्तिहीन है और जहाँ-जहाँ जिन देशों में बहुत लोगों ने विचार पर निर्भरता रखी, जैसे अमेरिका का देश है तो फ्रायड जैसे गर्ध आदमी पर, गरधे से भी ज्यादा कहना चाहिये, मुझे इतनी गालियाँ नहीं आती। ऐसे महामूर्ख, दुष्ट, आदमी को उन्होंने भगवान मान लिया। और हर समय वह यह सोचते हैं कि हमको आनन्द उठाना चाहिये और हर आनन्द ऐसा बनाया हुआ है कि उससे वो नष्ट हो जायें । हर एक चीज़ उनकी, कोई चीज़ ऐसी है ही नहीं जिसमें नष्टता की भावना न हो। और जब तक वो नष्ट नूहीं होते तब तक वो सांचते नहीं कि उनके आनन्द की परिसीमा क्या होगी? जैसे उनके खेल देख लीजिये, पहाड़ों पर जायेंगे। वहाँ स्कीइन्ग करेगे, वहाँ टांगे टूटेंगी, किसी मुलायम चीज़ कुन्दन, पकड़ लेता है हीरे को। चैतन्य लहरी 24 शक्ति को प्रज्जवलित करे। और इस देश की औरतों ने ही यहाँ की (Kidney) गुर्दा गायब, किसी का कुछ। अब सामने दिखाई दे रहा है पर वहीं जायेंगे। हमारे नसीब जहाँ भी रहते थे, उसके पास एक चर्च होता था और चर्च के पास एक पब दोनों साथ। अब जो लोग पब में जाते थे, वो देख रहे हैं कि अन्दर से लड़खड़ाते हुए लोग आकर ज़मीन पर गिर रहे हैं। और यह क्यू लगाकर अन्दर जाते थे कि हमें भी ऐसा ही बनाओ, हम भी लड़खड़ाते आयें। यानि विचार से अक्ल मारी जाती है। अक्ल से जो-जो काम किये मनुष्य ने अंहकार में वो सब ग़लत हो गयें। इसी से उनका भोग हम लोग उठा रहे हैं । लेकिन अगर आत्मा के प्रकाश में जो कोई-सा कार्य करता है तो सुचारू रूप से ही होता है, ठीक ढंग से होता है, समझदारी से होता है। लेकिन न सूझ-बूझ, न समझदारी, इस विचार में है क्योंकि इसमें वो चेतना ही नहीं। तो आज जब सत्य-युग का समय आ गया और हम जब सत्य के मार्ग में चल पड़े तो पीछे मुड़कर देखने की कोई भी ज़रूरत नहीं क्योंकि आपके साथ सबसे बड़ी शक्ति, प्रकाशमान है, आप प्रकाश में चल रहे हैं; प्रकाश भी ऐसा कि जिसम आप की छाया नहीं पड़ती, आगे भी प्रकाश दोनों तरफ प्रकाश और पीछे भी प्रकाश। लेंकिन यह प्रकाश की जोत, आपको पूरी तरह से प्रज्जवलित करनी पड़ती है। उसके लिये छोटा मार्ग मैं बतलाती हूँ कि आप सब लोग ध्यान करें। वो भी नहीं होता विशेषकर स्त्रियों के लिये कहा जाता है कि यह इस देश का समाज रोका हुआ है, यह मान लीजिये आप लेकिन जबरदस्ती से नहीं-प्रेम से, प्रेम से और वो भी निवाज्य प्रेम। इस देश में ऐसी ऐसी औरतें हो गई हैं-पन्नादाई। जिसने अपने बच्चं को युवराज को बचाने के लिये कटवा दिया, ऐसी-ऐसी इस देश में औरतें हुई हैं। लेकिन यह इतिहास मात्र हो गया। मैं कभी विदेश में बताती हैँ कि पद्मिनी ने 3000 औरतों के साथ जौहर किया तो वो विश्वास ही नहीं करते, कि ऐसे कैसे हो सकता है? मैने कहा कि हमारे देश में ऐसी औरतें थीं। उन्हीं के बलबूत पर हम आज तक टिके हैं क्योंकि जिस तरह का अन्धकार इस देश में चला हुआ है, यह कब का खत्म हो गया होता। उन्हीं की पुन्यायी पर आज हम लोग चल रहे हैं। वो ही पुन्यायी आज इस सत्य-युग में एक विशेष रूप धारण करके सामने खड़ी है। उसका चमत्कार अब देखिये कि रूमानिया के लड़के कैसा गाना गा रहे थे। इन्होंने कभी अपने सरगम तक सुने नहीं कोई इनको शिक्षा मिली नहीं। कल वो बता रहे थे इतन बड़े वादक कि साहब, इसके लिये सालां तूपस्या करने पर भी ऐसा ज्ञान नहीं आता, यह कहाँ से आ गया। केसे हो गये, चमत्कार ही है न। आपके निजी जीवन में सहज के बाद अनेक चमत्कार आय। पर तो भी आप अपने विचारों पर ही निर्भर रहे। तो उस पर भी एम दास जी ने कहा है"आल्पधारिष्ट पाये" परमात्मा कहता है,"तुझे जो भी करना है करा" लोग ध्यान-व्यान नहीं करती। सारा चित्त-खाना बनाना, बच्चों में इसमें उसमें लिपटाव। आश्चर्य की बात है कि औरतों को तो सबसे पहले ध्यान करना चाहिये। क्योंकि वो समाज की शक्ति हैं, पहली बात। स्त्री का सबसे बड़ा कार्य यह है कि वो समाज को बनाती हैं। यह नहीं कि वो कोई कहने लगा कि रूस में औरतं मोटरे चलाती हैं और ट्रेने चलाती हैं और वो एयरोप्लेन चलाती हैं तो उन्होंने कौन से बड़े भारी कमाल कर दिये। अपने आदमियों को तो नौकरी नहीं, है। तो सहज में घुलने के बाद एक बड़ी मस्ती है। बहुत बड़ी मस्ती हैं, जब मस्त हुए फिर क्या बोले, उस मस्ती में आ जाना चाहिये। फिर इसका मतलब यह नहीं कि आप पागल जैसे घमिये। इस मस्ती में आप कर्त्तव्य-परायण हो जाते हैं। और उसके लिये आपको शक्ति मिलती 1 अगर आप शक्ति चाहते हैं तो उसके लि., पहले, सवसे पहले सहज में आप पूरी तरह उतरिये। सब दुनियाभर की चीज़ छोड़िये। अब किसी को पैसा चाहिये किसी को सत्ता चाहिये, किसी को ये चाहिये किसी को वो चाहिये। जिस ने कहा दिया " मुझे कुछ नहीं चाहिये, अब हो गया। तो आप लोग क्यों चाहते हैं कि मोटरें चलायें और टैक्सी चलायें। आप का कार्य समाज को सुव्यवस्थित करना है। समाज को अपने आपको बनाना है और उसके लिए एक समाधानी वृत्ति होनी चाहिए, एक सूझ-बूझ होनी चाहिए। और इस सूझ-बूझ के साथ एक स्त्री के पास विनम्रता होनी चाहिये। नम्रता स्त्री में नहीं हो तो वो मर्द हो गई। वो अगर हावी हो जाये और हर चीज़ में वों सोचे कि मुझे आदमी से मुकाबला करना है, तो गलत बात है। यह भी कोई मुकाबला करने की चीज़ है? आप स्वयं शक्तिशाली हैं आपको क्या ज़रूरत है कि किसी का मुकाबला करें? मैं बार-बार इसलिये कह रही हूँ कि जिस-जिस देश में औरतों ने सामाजिक स्थिति का भार अपने सिर पर नहीं लिया वो-वो देश आज डूब रहे हैं और खत्म हो जायेंगे। अपने बच्चों को सम्भालना, घर को व्यवस्थित रखना, यह बड़ा भारी कार्य है। हों अगर ज़रूरत पड़े नौकरी कर लीजिये पर जैसे कि आदमियों के लिये मैं कहती हैं कि अच्छा ठीक है आप लोग अगर खाना बनाना चाहते हैं तो बनाईये कोई हर्ज नहीं, सीखना चाहिये पर वह उनका मुख्य कार्य नहीं। इसी प्रकार स्त्री के लिये ज़रूरी है कि वो अपनी १" चाहत जब सब खत्म हो गई तक फिर परम चैतन्य सोचता है कि अच्छा तेरी चाहत मैं पूरी करता हूँ। तब फिर उसकी चाहत आपकी चाहत हो जाती है। वो ऐसे-ऐसे चमत्कार करेगा कि आप हैरान हो जायेंगे। हमने तो सोचा भी नहीं यह कैसे हो गया यह कैसे बन गया। दुनिया भर की आफतें और दुनिया भर की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। फिर आपको माँगने का कुछ नहीं रह जाता फिर आप देने वाले हो जाते हैं सिर्फ देने वाले। मांगने का क्या? मांगने का तो वही करेंगे जिनके पास कमी रह गई और जो समाधान के सागर में डूब गये वो क्या माँगंगे? चारों तरफ देखकर के कि यह क्या करेंगे इसकी क्या जरूरत है। इसको लेकर क्या करेंगे। पर इसका मतलब यह नहीं कि आप सन्यासी हो जायें और जंगल में घूमें इससे हमारे यहाँ राजा जनक का बहुत सुन्दर वर्णन है, उनको विदेही कहते थे। वो राज्य चैतन्य लहरी 25 की बड़ी महत्ता है, कहने लगे आपके गुरू कौन हैं? कहने लगे "वो मैं नहीं बताऊँगा" " तो उनके पीछे चार-पाँच लोग लग गये, उनसे कहा बताइये आप के गुरू कौन हैं, तब तक हम आपको नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने मेरा नाम उनका बताया फिर वो सहजयोग में आये। जब मैं वहाँ गई राहुरी में, तो देखा कि आग लगी हुई थी। बापरे! मैने कहा इतने लोग सहजयोग में कैसे आ गये। एक आदमी की वजह से। एक आदमी के चरित्र की वजह से, उसके बर्ताव की वजह से। देखने में बहुत खूबसूरत नहीं थे वो, पर उनकी जो तेजस्विता थी उस तेजस्विता से उन्होंने चमका दिया वहाँ। एक आदमी अगर अच्छा आ जये, मैंने आज सर्वर ही कहा था कि "दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिये ' फिर आप इतने लोग झुकाने वाले हो जाये तो और क्या चाहिये? लेकिन पहले इसका एहसास होना चाहिये कि आप सत्य-युग में बैठे हुए हैं और सत्य की शक्ति आपके पास चल रही है। कोई किसी चीज़ की गरज ही नहीं हमको। सब चीज़ अपने आप घटित हो जायेगी| किसी को समझ में ही नहीं आता कि कैसे हो जाता है। कल मैने दस मिनट पहले बताया कि मैं खाना यहीं खा लुंगी, घर तो अब जा नहीं सकती क्योंकि कव्वाल लोग बैठे हैं, और दस मिनट में देखती हूं कि चूल्हा भी लगा है, चीजें भी बन रही हैं। वो लोग खुद हैरान हो गये कि माँ पांच मिनट पहले यह लोग यहां आयें हैं। पर यह हो कैसे गया। मुझे तो कुछ समझ में तहीं आ रहा था। करते थे उनके सामने नृत्य होता था, संगीत होता था और उनके बड़े भारी प्रोसेशन (जुलूस) निकलते थे, सब कुछ होता था पर उनको लोग विदेही ही कहते थे। तो एक शिष्य ने, नचिकेता ने, अपने गुरु से कहा कि जब वो आते हैं तो आप क्यों खडे हो जाते हैं? कहने लगे कि वो हम से बहुत ऊँचे हैं आपको पता नहीं। उन्होंने कहा,"कैसे?""" हमने तो सब संसार छोड़कर, सन्यस्थ भाव लेकर फिर कुछ अनुभव लिया छोड़े हुए ही उससे बसे हुए हैं। नहीं, बताना ही पड़ेगा" फिर जब वां घर गये यह तो बगैर ।" तो छोड़ने का है क्या, अगर आपने पकड़ा है तो आप कहेंगे कि मैने इसे छोड़ा, उसे छोड़ा। पर जब पकड़ा ही नहीं तो छोड़ेंगे क्या? वो पकड़ जो हमार अन्दर विचारों से चाहे संस्कारों के कारण और अंहकार के कारण जाती नहीं है तो इसका मतलब कि आप सहज में उतरे नहीं। किसी भी चीज की पकड़ तभी होती है जब हम चीज़ को इतना महत्वपूर्ण समझते है आत्मा की कोई पकड़ नहीं, वो तो देने वाला है, वो तो प्रकाश चारों तरफ फैलाने वाला है। वो शक्ति देने वाला है, ऐसी शक्ति कि उस शक्ति से लोग अभिभूत हो जायें, पूर्णतया उसमें एकाकारिता प्राप्त करें। इतना प्रेम कि सब संघर्ष खत्म हो गया। एक साहब मुसलमान अलजीरिया में थे तो उनके माँ-बाप ने कहा कि हम हज करने जायेंगे| तो कहने लगे कि फिर लन्डन जाओ। पूछने लगे,"लन्डन कैसे?" "कि हज तो लन्डन में आ गया है, अब" " अच्छा" "हाँ वही जाकर तो मैने पाया । वो लन्दन आये दोनों मियाँ-बीवी। कहने लगे, हमारे लड़के ने बताया कि हज लन्डन आ गया है तो हम तो यहाँ चले आये।" अब यह समझ और सूझबूझ की बात उस एक लड़के में आई और उसके माँ-बाप ने कहा कि "हम तो आ गये यहाँ।" तो मैने कहा कि तुमने उसकी बात क्यों मान ली। कहने लगे कि वह बहुत ही समझदार लड़का है, उसमें इतना परिवर्तन हो गया कि हमें विश्वास ही नहीं होता कि यह कैसे-ऐसे हो गया? इतने लोग हज पर जाते हैं और कुछ नहीं होता उनमें। जैसे के वैसे ही। शराब पीते हैं तो शराब पीते हैं, बीवी को मारते हैं तो बीबी को मारते हैं, जो करते थे वो ही करते रहते हैं। पर यह (Spontaneous) स्वत: इनका नाम है। मैंने कहा वही हो गया Spontaneous.I कैसी कौन सी चीज हों जाती है कैसे एकदम कैसे घटित हो जाता है! वो आप बता नहीं सकते इस परम चैतन्य की शक्ति इसका कोई वर्णन नहीं। किसी ने मुझसे पूछा कि क्या गणेश जी ने दूध पिया? क्या शिवजी ने दूध पिया? मैंने कहा कि पिया होगा। मैं तो परम चैतन्य को देख-देखकर खुदी हैरान हूं कि मेरे साथ ही इतनी कमाल कर रहे हैं और मुझे भी पूरी तरह से (expose) प्रकट कर रहे हैं। तो यह कुछ भी कर सकते हैं, इनका क्या ठिकाना। पर मुझे नहीं पता कि गणेश जी इतना दुध पीते हैं? बहरहाल आश्चर्य करने के सिवाय और कुछ रह ही क्या गया है? जैसी-जैसी बातें हो रही हैं आप देख रहे हैं। उस पर भी आप अपने ऊपर ही निर्भर हैं तो ठोक है चलने दीजिए। आप मान लीजिए कि आप सत्य-यूग में उतर आये हैं और यह शक्ति हजार तरह से आपको प्रकाशित करेगी हजार तरह से। एक लड़का हमने देखा कि इसमें बड़ा परिवर्तन आ गया। तो हमने कहा कि ठीक हो सकता है कि हज का भी परिवर्तन अब लन्डन मं हो गया होगा। और इसीलिये हम लन्डन आ गयें। अब यह माँ-बाप के ऊपर असर आया। यह दूसरी शक्ति है सत्य की, कि सत्य इतना प्रकाशवान, बलवान और इतना प्रेममय होता है कि उसका असर बहुत लोगों पर पड़ जाता है और लोग उसे देखकर कहते हैं कि भई यह आदमी कौन है? ये ऐसे कैसे हो गया? हमारा सहजयोग इतना फैला नहीं था महाराष्ट्र में। एक साहब सहज में आये, बड़े जबरदस्त, अब नहीं रहे वो। तो वो कलेक्टर के. कोई काम होगा, दफ्तर में गये। वहाँ आराम से बैठे रहे। कोई कहे हमें जाना है पहले। उन्होंने कहा जाओ, वो आराम से बैठे रहे। उसके बाद उतको अन्दर बुलाया। पूछा कि भई तुम इतने आराम से कैसे बैठे रहे। उन्होंने कहा,"करना क्या है, सबको जल्दी थी, मुझे काई जल्दी नहीं थी, मैं बैठा था आराम से ध्यान लगाकर।" महाराष्ट्र में तो गुरू न जाने कितने आपके अन्दर के गुण खल सकते हैं और आप सि्फ एक शब्द जो शिरडी साईं नाथ ने कहा था कि सबूरी की जरूरत है। पर यह सबूरी भी सोच समझ कर नहीं, अच्छा सबूरी कर सबूरी करो' ऐसा कहने की जरूरत नहीं। यह सबूरी जो है ये एक स्थिति है उसमें सब कुछ आ गया। एक स्थिति है, उस स्थिति में अगर आप उत्तर गये तो किसी काो कहने की जरूरत नहीं किसी को बताने की जरूरत नहीं वो अपने आप ही सब कुछ घटित हो जायेगा। ऐसी-एसी चैतन्य लहरी 26 बातें जो सोच भी नहीं सकते ऐसे ही घटित हो जायेंगी। इसके अलावा एक बात और भी है विशेष कि आप इस भारतवर्ष में पैदा हुए हैं। बहुत बड़ी बात है ये, पूर्व जन्म के अनेक-अनेक पुण्यों के कारण ही इस योग-भूमि में आप पैदा हुए हैं और इसी में सत्य-युग पहले आयेगा और दुनिया देखेगी कि सत्य-युग क्या चीज है, इसका चमत्कार क्या है। लेकिन आप ही मशालं हैं, आप ही ज्योति है आप ही को यह प्रकाश देना है। इसको अहसास करना चाहिये,इसको समझना चाहिए। इसको अपनाना चाहिए क्योंकि कितनी बड़ी जिम्मेदारी आप पर आज है, यह समझ लीजिए। मैं भी कहीं और जन्म लेती तो अच्छा होता, ऐसे बहुत लोग कहते हैं। कि माँ अगर आप अमरीका में जन्म लेते तो पता नहीं अभी तक लोग आपको कहाँ तक पहुंचा देते। मैंने कहा, नहीं, जहां मैंने जन्म लिया वह सबसे ऊँचा प्रदेश है। यह तो बड़े भाग्य से होता है। और यहां भी आप लोग समझ लीजिये कि सहजयोग इतने जोरों से फैल रहा है, बहुत ज्यादा लेकिन जो इसका प्रसार हो रहा है, दूर-दूर इतना फैल रहा है उसका मुख्य कारण क्या है? उसका कारण यह है कि आप इस योग-भूमि में पैदा हुए हैं चारों तरफ इसमें चैतन्य भरा है। यृथ्वी से भी इसी देश में सबसे ज्यादा चैतन्य बह रहा है। लेकिन उससे आगे आपको यह देखना है कि आप ही इसके वाहन हैं। आप ही इसको स्रोत तक पहुँचा सकते हैं। अब भी मैं देखती हूँ कहीं न कहीं कमी है। उसको ठीक करिये। उसके पीछे पड़ कर उसको ठीक करिये। किसी तरह ठीक करिये। मुझे यह चीज़ ऐसी करनी है कि यह शरीर, यह बुद्धि अंहकार आदि जो व्याधियों हैं उनसे मुझे अपने को बिल्कुल खालिस कर देना है, मुझे साफ कर देना है। और तभी इस देश का उद्धार होगा। बहुत बड़ा भविष्य इस देश का लिखा है और जो यह कहते हैं कि यह देश खराब हो गया है, इस देश में यह खराबी है, वो खराबी है, मैं कहती हूैं कि जो सबसे कठिन समुद्र होता है उसमें वहीं जहाज़ चल सकते हैं जो मज़बूत होते हैं। इसलिये आपको और भी मज़बूती ज्यादा करनी चाहिये। एक तरफ आप देखते हैं कि घोर अन्धकार है, तो दूसरी तरफ यह होना चाहिये कि महान प्रकाशमय हो। ऐसे आपके जीवन लोगों के सामने उतरने चाहिये । इस बड़प्पन को पाने के लिये कुछ करना नहीं है। भक्ति से, पूर्ण भक्ति के साथ आपको ध्यान करना है, यह ज़रूरी चीज़ है। प्रेम से भक्ति से आप ध्यान करे और फिर इस स्थिति मे जो आप पायेंगे वो एक ऐसी असाधारण व्यक्तित्व की प्रतिमा होगी कि लोग कहेंगे कि साहब यह है कौन? ये कहाँ से आये, यह स्वर्ग से उतर कर आये हैं या कि ये कौन है? यही आज क्षमता आप रखते हैं, यही आपका (Potential ) अन्तःशक्ति है। आप समझ लीजिये कि आपके अन्दर कितना गौरवशाली जीवन कुम्हला रहा उसको जगाईये। सब दुनियादारी को छोड़िये, उसके मोटर है तो मेरे पास मोटर नहीं, उसके पास फलानी मोटर तो मेरे पास नहीं-क्या करने का है? इसमें क्या रक्खा है? आपको आश्चर्य होगा कि मुझे तो मेरी मोटर का नम्बर नहीं मालूम। वो छोड़िये, मुझे उसका कलर (रंग) भी नहीं मालूम, उसका मेक भी नहीं मालूम। मैं रुपये भी नहीं गिन सकती। अगर आप मुझे दस रुपये दे दीजिये तों शायद गिन लू पर शायद सौ रुपये देंगे तो गिन नहीं सकती, क्या करू? मैं बैन्क का चैक नहीं लिख सकती कुछ नहीं कर सकती, विल्कुल निष-क्रिया कोई भी कार्यनहीं कर सकती और देखिये सारा कार्य हो रहा है आप लोग आये हैं बैठे हैं। इसकी सूझ-बूझ अगर आपके अन्दर जग जाये तो आप अपने को अन्दर से सफाई कर लें। चक्र साफ कर डालें, ध्यान करें। और इससे ही सारी दुनिया का उद्धार, जो मैं कह रही हूँ बार-बार, इसी भारत-वर्ष से होना है। उसकी दारोमदार आप लोगों पर है। तो आज के इस शुभ अवसर पर आप मन में सत्य के रास्त पर खड़े हो जाइये | सब लोग देखिये कितना चमत्कार हो जायेगा। अरे, अगर आप इस रास्ते पर ही नहीं है तो सत्य आपकी मदद केस करेगा? अगर आप गली कूचों में घूम रहे हैं या आप इस ट्रैफिक में फंस रहे हैं तो सत्य आपकी कैसे मदद करेगा ? इसलिये आप आज निश्चय करें कि हम इस देश का भाग्य उज्जवल करेंगे, अपने चरित्र से और अपनी सहज-शक्ति से। इतना अगर आप अपने अन्दर समा लें और सारी गलत बातें छोड़ दीजिये। अब हम जैसे बहुत साररा सामान लाये सबको उपहार देने के लिए, सब सहजयोगियों को भंट देने के लिये, अधिकतर तो कस्टम वालों को दिखा ही नहीं। उनको दिखाई ही दिया नहीं कुछ, सोचते हैं कि इसमें है ही नहीं कुछ। क्योंकि उस पर प्रेम का आवरण था कैसे दिखाई दता? कैसे पकड़ते? दिखाई नहीं दिया। अदृश्य हो गया क्योंकि इतने प्रेम से परदेसी भाई आपके लिये सामान ले के आये थे। तो इसमें कसटम क्या देना? प्रेम का क्या कोई कसटम होता है? कोई व्यापार करने तो आये नहीं यहाँ । और देखिये कि कमाल है और बड़े विश्वास से माँ हमें मालूम है कसटम वाले दंखते ही नहीं, उनको दिखाई नहीं देता। क्या होता है पता नहीं। एक देवी जी ने यहाँ ऐसी एक चाँदी की थाली लीं तब चाँदी के निर्यात की आज्ञा नहीं थी। उसको मालूम नहीं था विदेशियों को क्यांकि यहाँ के तो रोज़ ही कानून बदलते रहते हैं। तो उसने चाँदी की थाली बक्से में रक्खी और ले जा रही थी पूजा के लिये। तो कस्टम वालो ने खोला, ऊपर ही मेरा फोटो था, तो उन्होंने नमस्कार करके बन्द कर दिया। इसी आदान-प्रदान से हमारी सब समस्याएं हल हो जायंगी। अब वा कहते हैं कि वीजा नहीं देंगे तो ये कहते हैं कि हम भी नहीं दंगे । तुम इतना रुपया लोगे तो हम भी इतना रुपया लेंगे। यह सब खत्म हो जायेगा, एक दिन। एक दिन में सव खत्म होना है क्योंकि सब हम एक ही हैं। यह सारा विश्व एक है, लेकिन मनुष्य के दिमागी जमा खर्च से यह अलग-अलग बंट गया है। यही बात धर्म की है, है यही बात हरेक चीज की है। दिमागी जमाखर्च से इन्सान अलग-अलग बंट गया है। सहजयोग सबका एकत्रीकरण ही नहीं है, सिर्फ समन्वय ही नहीं है, पर समग्रता है। सबके तत्व को एक साथ बाँधने वाली यह शक्ति आज चलायमान है, उसका आप सब लोग उपयोग करें क्योंकि यह आप ही के अन्दर से प्रकटित होगी। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 27 चैतन्य सहरी ---------------------- 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt ১. चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति खण्ड VIll अंक 1, व 2 (1996) सहजयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाधान-कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिए। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आप की आ जाएगी तब समझना कि आप सहज में उतर गए। फिर अनायास, आप कुछ चाहे या न चाहें सहज आपकी देखभाल करेगा। आपको मु सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (शक्ति पूजा, दिल्ली) 5-12-1995 न dodedodode ৬ ४ ककर नक् -৩ 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VIII, अंक 1, व 2 (1996) -: विषय-सूची :- 1. भक्ति सुमन पूजा-दिल्ली-15.10.95 2. गुडी-पडवा 3. दिवाली पूजा-नारगोल-25.10.95 11 4. सार्वजनिक कार्यक्रम-दिल्ली-3.12.95 17 5. शक्ति पूजा-दिल्ली 15.12.95 22 : श्री योगी महाजन सम्पादक श्री विजयनालगिरिकर मुद्रक एवं प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-1।। (067 : प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजन्द्र नगर मार्कट, नई दिल्ली-110 060 फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित चैतन्य लहरी 2. 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt भक्ति-सुमन श्री माता जी मेरे सूक्ष्म शरीर को गतिशील किया आपने, आप हैं मेरे आनन्द का सोल, प्रसन्नता का भण्डार, से उठाई कुण्डलिनी में री, प्रम का लक्ष्य, आशाओं का कारण। जब अबोधिता की शक्ति, पावित्र्य का आधार, दिव्य प्रेम एवं उत्कंठा का निरन्तर प्रवाह, विवेक का उद्गम एवं लक्ष्य आप है। है मु.झमें से त भी बह रहा। आप हैं मेरा धैर्य विवेक, नम्रता की सृष्टा, छू कर मेरे सभी चक्रों को, कुण्डलिनी माँ चलाती उन्हें चक्रों और उनसे जुड़े सभी अवयवों को, यौवन का बसन्त, धर्म-प्रतिरूपिणी-शक्ति। शान्ति-प्रदायनी, प चालिका, साहस पोषित करत उन्हें। निरुग्ण केर मेरी सृजनात्मकता का मूल स्त्रोत आप हैं। अगन्य चक्र के संकोर्ण द्वार को विस्तृत कर, में प्रवेश करती है वो. आप हैं मेरे ज्ञान की मुल-प्रवर्तक, मेरी शान्ति की जनक, रन्ध्र चित्र-संकेन्द्रिता। सहस्रार कमल दल मार्ग से, मेरे शरीर से बाहिर आ, विकासदायिनी शक्ति, स्वास्थ्य स्थापिका ब्रह्म-शक्ति, परम चैतन्य, परमात्मा, साक्षात परब्रह्म से, स्मृद्धि की में री चं तना की सूष्टा वास्तुकार, क्षेम प्रदायिनी हैं। वा। जो ड ती सीधा सम्ब-ध आप हैँ । आप हैं मेरे सम्बन्धों की जननी, निर्लिप्सा की दाता, अर्थ ये इस का हु आ बा सम्मान का प्रयोजन, वाणी का भाजन। कि मेरे अन्तस की दिव्य उत्कठा एवं प्रेम ने, विवेक शक्ति मेरी शीलता की प्रेरणा आप हैं। अन्ततोगत्वा, अपने स्रोत को पा लिया। और परमात्मा स्वयं, अपने अग्भाग, आप हैं मेरे अहँ और प्रतिअहँ की नियन्त्रिका, लहरियों एवं चैतन्य प्र' म को की मजिल आनन्द प्रर क, दात्री, कृतज्ञता का मेरे सहस्रार कमल मार्ग से, सूक्ष्म तन्त्र वर्ध क आशी्ष परमानन्द और नीचे मूलाधार तक प्रवाहित करते हुए, इस मिलन का करते हैं पुष्टि करण। में री हृदयाभिव्यक्ति, संघटन शक्ति है। में रे अस्तित्व आप सार को दिया श्री माँ आपने अनन्त आशीर्षों का दान परमेंश्वरी शक्ति का प्रम हैं आप। परमात्मा की मनोवृत्ति, मेरे अन्तस की प्राणशक्ति, में रा श्री चरणों में करते हम कोटि-शत प्रणाम। में री आत्मा, सत्यस्वरूप है। आत्मा, मेरी पूर्ण वास्तविकता आप चेतन्य लहरी 2. 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt गुडी-पडवा पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का संदेश "सहज-योग के आश्शीवाद समाज तक पहुँचाने की सहजियों की जिम्मेदारी" दिल्ली आश्रम-15.10.95 जाकर देखें क्या चल रहा है और अपनी तादाद बढ़ाने के लिये आस-पास के जो गाँव हैं, और उस पर जो आपने कार्य किया है, उसी प्रकार और भी आप आगे बढ़ सकते हैं। लकिन इस नय साल में आपको यह ख्याल करना चाहिये कि हम लोगों ने जैसे कि बहुत से (projects) परियोजनायें निकाले, जिससे हम लोगों के पास यह फ्लैट आ गये, घर आ गये और आश्रम भी बन रहा है। यह भी अच्छी वात है। लेकिन उस आश्रम में हम लोग क्या करने वाल हैं? क्या-क्या चीजे हम उसमें बढ़ा सकते हैं? उसमें कौन सी-कीन सी चीजें हम छाप सकते हैं जिससे कि हमारे बारे में लोग जाने। एक चीज़ मैं सोचती हूँ कि यह बहुत साल पहले हमने सोचा था, एक समाचार पत्रिका ज़रूर सहजयोग का चलना चाहिए। ता बम्बई में एक सहजयोग का समाचार पत्र चल पड़ा। उन्होंने कुछ ऐसी गलतियाँ कर दी कि वो बन्द करना पड़ा। लेकिन अब इतनी तादाद में लोग हैं, तो हम जैसा कि आपको न्यूज़लैटर (Newslet- ter) आता है वहाँ से, उसको (translate) अनुवाद करते हैं, तो उसमें ज्यादातर वाहर के बारे में आता है। इसी तरह हिन्दुस्तान के बारे में भी आप खबर लोगो को दे सकते हैं और कार्य कर सकते हैं। अब मैं सोचती हूँ कि तीन पैमानों पर ख़ास व्यान दंना है, जिसका कि प्रश्न आज है। उन तीनां चीज़ां पर अगर आप ध्यान दं ता एहली चीज जा मरी समझ में आती है, बो है-'शान्ति'। हम अपने अन्दर शान्ति प्रस्थापित करें और बाहर जो अशान्ति है उसका कारण ढूंढ निकाल। क्यों वो अशान्ति है, किस बजह से सारे देश आज नये साल का शुभ दिवस है। आप सबको शुभ आशीर्वाद। हर साल नया साल आता है और आता ही रहता है, लेकिन नया साल मनाने की जो भावना थी, उसको लोग समझ नहीं पाते सिवाय इसके कि नये साल के दिन नये कपड़े पहनेंगे और खुशी मनायेंगे। कोई ऐसी बात नहीं सोचते कि यह नया साल आ रहा है, इससे हमें कौन सी नई बात करनी है। जैसा ढरां चल रहा है, वही चल रहा है और उसी ढूरें के सहारे हर साल सबको "नया साल मुबारिक" कह दते हैं। सहजयोग में हम लोग जब इतने सामूहिक हैं, यह सोचना चाहिये कि अब कौन सी नई बात सहजयोग में करें। ध्यान में आप लोग काफी गहरे उतर गये हैं; ध्यान आप समझते हैं और आपने एक स्थििति भी अपनी स्थापित कर ली है। पर नये साल में कौन सी नई बात करनी चाहिये, इस ओर हमारा ध्यान जाना जरूरी हैं। असल में पहले तो हमें यह भी सांच लेना चाहिये कि हमारे देश के क्या प्रश्न हैं और सारी दुनिया के कौन से प्रश्न हैं और उन प्रश्नों को हम किस तरह से नतीजे पर ला सकते हैं। उसके लिये मैं यह सांचती हूँ कि जिन सहजयोगियां की जहाँ भी (interest) रुचि हो, उसे वो ध्यानपूर्वक देखें। ऐसे तो बहुत सी चीजें सहजयोग में नई-नई शुरू हो गई। आप जानते हैं कि इस बार हमने सोचा है कि शिया मुसलमानों को बुलवाकर समझाया जाये उसके लिये कोशिश कर रहे हैं और शिवाजी महाराज का जो बड़ा पवित्र जीवन रहा, उसका भी प्रचार करने की कोशिश करें। तो दोनों चीजे बहुत अच्छी हैं, कि शिया लोग समझ जाएं कि धर्म क्या है और शिवाजी के जीवन को देखकर के हम लोग भी समझ जायें कि "धर्म" क्या है और उनके आदर्श क्या थ और उन्होंने उन आदर्शों के लिये क्या-क्या किया। इतने थोडे से समय में उन्होंने कितना कार्य कर के दिखा दिया। ता में गड़बड़ या दूसर दशों में गड़बड़ है। इसकी जड़ पहले पता लगानी चाहिये और उसमें किस तरह से हम कार्यन्वित हो सकते हैं। अब जैसे कि 'चेचन्या' का प्रश्न है; तो हमनं (Russians) रूसियां सं बात करी। तो, वा कहते हैं कि हमारी बात तो कोई छापता हो नहीं सब (one-sided) इकतरफा मामला चल रहा है। तो उन्होंने जो बताया कि चचन्या में जो गड़बड़ू है, वो यह है कि अगर हम सामान्यवादी हैं और हम अगर (Democratic country) अब सामूहिक रूप में हम लोग वहुत ठीक हो गये हैं, खासकर दिल्ली में और दिल्ली के आस-पास और सहजयांग बढ़ भी रहा है। उसके साथ-साथ यह भी सोचना है कि हमारे अन्दर गुरुपन आ रहा है या नहीं? बस अगर सहजयाग बढ़ रहा है, उसकी (quantity) संख्या बहुत बढ़ रही है तो (quality ) गुणवत्ता आई की नहीं, यह बहुत जरूरी है। अब साचना और उसकी तरफ ध्यान देना चाहिए उसकी आर। मैं यह कहुँगी कि ध्यान-धारणा के जो प्रजातन्त्र दश है तो इसमें दोनां में बड़ा फर्क है। प्रजातन्त्र में आप लाकशाही में, जा लोकशाही है उसमें आप किसी भी एक घर्म के ऊपर राज्य नहीं कर सकते और बो धर्म कि जो अपना अकलापन लिये हुए हैं. (Exclusive Religion) है। जैसे ये तीन चर्म जी हैं, बुद्ध का भी बहीं हाल है, वुद्ध भी वी ही और महावोर भी बा ना। भी आपके गुप्स (समूह) चल रहे हैं, उधर आप लाग नजर करें। चतुम्म ला 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt हिन्दुस्तानी हैं, तो वो पहले मुसमलान फिर हिन्दुस्तानी। यह सारं देशों में है। अब यहाँ के मुसलमानों ने ऐसी चपत खाई है, पाकिस्तान में, कि हर रोज 18 से लेकर 20 लोग मारे जा रहे हैं, जो हिन्दुस्तानी ही। और यह जो तीन धर्म हैं जो कि पाँच एन्जल्स (Angles) से आये, जिनको हम कह सकते हैं कि यहूदी (jews) क्रिश्चियन्स और मुसलमान। जो एक-एक किताब को सिर्फ मानते हैं और एक ही (Incarnation ) अवतार को मानते हैं और इसलिये वो (exclusive) अकले हैं। लेकिन वास्तव में वो Exclusive नहीं है। तो यह (point) तथ्य उनको लिखना चाहिये। वह क्या है कि इन सब धर्मों में समझ लीजिये, अगर आप मोज़ज़ (Moses) की बात लिखें तो उन्होंने इब्राहम (Abraham) के बारे में कहा। फिर ईसा मसीह आए, उन्होंने मोज़ज़ (Moses) एत्राहम (Abraham) सबके वारे में लिखा। फिर जब मोहम्मद साहिब आए तो इन्होंने इन तीनों के बारे में, यहाँ तक कि ईसा मसीह की माँ के बारे में भी लिखा। तो ये घर्म जो हैं exclusive नहीं हैं, ये बनाये गये हैं इसीलिये झगड़ा होता है। उनसे अगर कोई कहे कि कोई विश्वधर्म बना है तो वो इस बात को बिल्कुल पसन्द नहीं करते क्योंकि फिर बी लड़ेगे कैसे? लड़ने की जो अभी उनकी इच्छा है, जो प्रवृत्ति है, उसे वो कैसे समाधान दे सकते हैं। इसलिये, वो इस बात को मानने के लिये तैयार नहीं हैं कि धर्म जो उनका है, वो विशिष्ट नहीं है। और यह सारे विशिष्ट धर्मों के ऊपर हम अगर चाहें कि है। इनका इन्टरव्यू आया था शायद आपने टीवी पर देखा हो। वहाँ आया था, तो उन्होंने कहा कि "न खखदा ही मिला न वसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे" ऐसी बुरी हालत हैं। अब यहाँ के मुसलमानों की खोपड़ी में आ रही है वात कि हिन्दुस्तान में जी लोग रुक गये वो समृद्ध हैं, वो सब ठीक हैं, कोई परेशानी नहीं। वहाँ तो यह है कि कौन आदमी कल कट कर खत्म हो जायेगा, पता नहीं। यह दशा है और मारे जा रहे हैं पाकिस्तान में, ब्याोंकि वहाँ सिंधी और पंजाबी जो हैं वो नहीं चाहते कि यह लोग वहाँ रहें। हिन्दुस्तानी होने की वजह से उन्होंने अपना एक ग्रुप बना लिया, सब कराची के आसपास रहते हैं। अव कहते हैं हमें कराची दे दो क्योंकि हम (majority) बहुसंख्या में हैं। अब कराची उनका एक ही किला है। तो सारे जो धर्म हैं, खासकर 'इस्लाम': इस्लाम में सबसे बड़ी वात जो उन्होंने कही है कि जब तक तुम खुद को नहीं जानोगे, तुम रूुदा को नहीं जानोगे, पहले खुद को जानो।" और जो दूसरी बात है जिस पर कि इन्होंने आफत मचाई हुई है, वो यह है कि ये 'निराकार' को मानते हैं साकार को मानत ही नहीं। जो 'निराकार को मानते हैं, वो जमीनों के लिये क्यों लड़ रहे है? वो तो "साकार" 'जड़' चीज़ है। जब आप "निराकार को मानते हैं तो 'निराकार' को प्राप्त करें। और निराकार को प्राप्त किये बगैर आप सिर्फ जमीनों के लिये लड़ रहे हैं, यह भी दूसरी Democracy प्रजातन्त्र में एक यहूदी आ जाये इंधर वो आ जाये, उधर वो आ जाये, तो वो झगड़ा चलता ही रहता है। इसलिये उनको विश्वधर्म में आना चाहिये। विश्वधर्म में आते ही यह सब भावनाएं टूट जायेंगी कि हम अलग हैं और वो अलग हैं। अगर आप देखें ता आज भी इस वक्त भी हर जगह धर्म को लेकर के बड़े-बड़े संग्राम हो रहे हैं। वो सब खत्म हो जाये अगर यह हो जाये कि यह धर्म विशिष्ट है ही नहीं, आप लड़ क्यों रहे हैं? एक यहूदी है वो मानता है, फिर जो ईसा मसीह वाले लोंग हैं, वो मानते हैं, और गलत बात है। पर इन लोगों को समझाना आसान नहीं है और इनके तो खून सवार है। जो भी बात है लेकिन हमलोग कहीं-कहीं लेख देना शुरू कर दं, ऐसी बात कहना शुरु कर दें, तो लोग सोचने लगेंगे-"देखिये ये जो बात कह रहे हैं। उसमें सच्चाई कितनी है झूठ कितना है।" और फिर यह (मुसलमान लोग) भी देखेंगे कि हम आज तक लड़ते रहे, मरते रहे तो उससे हमें क्या फायदा हुआ? एक मुसलमान जाति ऐसी है जो सहजयोग के लिये बड़ी मुश्किल है और आती कम है। हालांकि ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि मुसलमान काफी जगह से आये हैं और सहजयोग में पन्द्रह-बीस सहजयोगी हैं, सारे (world) दुनिया में आप कह सकते हैं। लेकिन इस बार मेरा जब भाषण वहाँ हुआ रेडियो पर तो मैने उनसे साफ-साफ कह दिया सारी बातें। और जब मैंने सारी साफ बातें कहीं तो किसी ने मुझसे वो बात नहीं करी क्योंकि वो लोग सब टेलिफोन से बात कर रहे थे। पर वहाँ कि कुछ महिलाओं ने फोन किया कि हमें तो ठंडा-ठंडा आ रहा है, श्री माताजी की बातें सुनकर और बहुत से लोग पार हो गये। तो यह भी एक सोच रहे हैं कि यह भी एक तरीक़ा, जरिया है जिससे जो लोग बाहर गये हुए हैं, जैसे इरानियन लोग जो अमेरिका में बसे हुए हैं, हम उनको पकड़ सकते हैं। इस प्रकार गल ये सब लोग सब एक ही प्रणाली से निकले हैं। जब यह बात है तो कोई सा भी धर्म विशिष्ट नहीं है। तो यह झगड़ा लेकर के और सारी दुनिया में जो आज क्रन्दन चल रहा है तो उसको बन्द करना चाहिये। तो उन्होंने यही कहा कि समझ लीजिये कि अभी चेचन्या में मुसलमानों को हमने राज दे दिया तो यह मुसलमान कौम अब प्रसिद्ध है कि एक-एक आदमी 28 बच्चे तक पैदा करता है और इन्होंने एंसे बच्चे पैदा कर करके और अपने को मेजोरिटी (majority) बहुसंख्या में बना लिया। (वो कहते हैं कि फैक्ट्री हैं, वहाँ की औरतें) अब अगर कल इनको राज दे देंगे तो फिर ये वही करेंगे और फिर आप इनको कैसे रोक सकते हैं? तो इनके धर्म में जो हैं, जो कुछ भी शक्ति है वो यह है कि हम बहुत बड़ी तादाद में हैं। तो यह बढ़ाना कुछ मुश्किल नहीं है उनके लिये और इस तरह से अगर यह बढ़ गये तो ये सारे (Russia) रूस को खा जायेंगे। ये रूसी क्यों नहीं हो जाते, किसी एक धर्म को लेकर क्यों चलते हैं? तो मुसलमानों का तो यह है ही कि अब जैसे चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt अशान्त हो जाता है? अब उसकी जड़े अनेक हैं। आप कहेंगे ईपा है, महत्वाकांक्षा है, यह है, वो है और भविष्यवादी आदमी हो तो अशान्त रहेगा। बाईं ओर को (भूत में) भी रह सकता है। क्योंकि वाई ओर का दु:खी वन कर रहेगा और दाई और का जो है अपने को सुखी समझ कर रहेगा। पर है तो दोनों में ही अशान्ति। उसके लिये उनकी अशान्ति को हमें ठीक करना है। आपने मेरी किताब में पढ़ा होगा कि मैने उनसे 'जीन्स' (Genes) के बारे में लिखा है। सहज में आने से जीन्स ठीक हो जाते हैं। और जब जीन्स ठीक हो जायेंगे तो इन्सान अपने ही आप शान्त हो जायेगा| कहने की कोई जरूरत नहीं और उसकी सारी ही तबियत बदल जायेगी। तो उसमें मैने काफी व्याख्या करके बताया है, फासफोरस पर कि फासफोरस जीन्स में होते हैं। जब आदमी (dry) खुश्क हो जाता है तो फासफोरस (explode) विस्फोट करता है, वो तो आप जानते ही हैं। तो अभी वारलीकर कह रहे थे कि "माँ, यह तथ्य तो आज तक किसी ने कहा ही नहीं। एक बार फासफोरस पर तीन लोगों को नोबेल पुरुस्कार मिला पर यह जो वात आपने कही वो तो किसी ने आज तक कही ही नहीं। तो मैने कहा यह नोबेल पुरुस्कार के लिये तो गये हुए हैं, शायद हो ही जायेगा (peace) शान्ति पर। पर बात क्या है कि जब आदमी के अन्दर अशान्ति आ जाती है, तो अशान्ति में ग्ुपवाज़ी हो सकती है। मैं सोचती हूँ कि दो तरह से हो सकती हैं। एक तो अहंकारी लोगों को होती है और दूसरी जो कि (left-sided) तामसी प्रवृत्ति है, (Possessed) है हर जगह जहाँ-जहाँ मुसलमान गये हैं, एक तो उत्पाती बहुत हैं। झगड़े करते हैं और दूसरे ये ऐसी-ऐसी बातें सोचते हैं जैसे कि अफ्रीका में उन्होंने अपना गुट बना लिया है। और अभी एक आदमी जिसने कि बड़ा भारी एक गैन्ग बनाया था और वो चाह रहे थे कि वहाँ के विश्वव्यापक भवन को उड़ा दें। उसमें वो पकड़ा गया, उसको 18 साल की सजा हुई। तो ये लोग जहाँ भी रहते हैं, उत्पाती हैं, समझते नहीं। समझाने की जरूरत है कि जब आप निराकार में विश्वास करते हैं तो आप जमीन के पीछे क्यों लड़ते हैं? दूसरी बेवाकूफी की बात इनकी ऐसी भी है, कहते हैं कि जब आप मर जायेंगे और आप गाड़े जायेंगे तो जब कयामत आयेगा, जब (Resurrection) पुनरुत्थान का समय आयेगा तो उस बक्त आपके शरीर निकल आयंगे और उनका (Resurrection) पुनरुत्थान होगा। तो बताईये 500 साल बाद कौन-सा शरीर का हिस्सा निकलेगा और किसको यह होने वाला है? इस प्रकार आप सोचिये कि काफी अजीब चीज़ है। पर इसको किसी तरह से लिखकर के हमको चाहिये कि कुछ (Newspaper) समाचार पत्रों में यह लिखा जाये और उनको बताया जाये कि बेवकूफी की बातें करते हैं और इस बेवकूफी में फँस जाते हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मोहम्मद साहव ने कुरान नहीं लिखी। 40 साल बाद, मोहम्मद साहब के कुरान लिखी गई। ईसामसीह ने कभी कोई बाइबिल नहीं लिखी और न ही मोज़न ने कुछ लिखा। इस प्रकार यह भी बात है कि उसकी ( authenticity) प्रामाणिकता क्या है, जिसके लिये आप लोग लड़ रहे हैं? अब ये अगर इस तरह चलते रहे तो नरक में जायेंगे और कोई तो इलाज मुझे दिखाई नहीं देता। बेवाकूफी की भी कोई हद होती है। ऐसी बेवाकूफी की बातें करके इनको कोई कल्याण नहीं हो सकता। अब इनमें से मुसलमानों में से कोई ढूंढो वो बहुत मुश्किल हैं। हो सकता है, एक-आध निकल आये और आदमी इतनी हिम्मत कर ले कि यह बातें कहे और समझाये। पर यह लोग सब डरते हैं कि वो मारे जायेंगे और उनको खत्म कर देंगे। पर ऐसा होगा नहीं क्योंकि अगर सहज में आ गये तो कोई किसी को मार नहीं सकता। इतनी हिम्मत अगर कोई करे तो इन लोगों को समझा सकते हैं। यह जो सबसे बड़ी चीज़ कि हमारी शान्ति खत्म हुई है, वह धर्म की वजह से। यह जो अधर्मी धर्म हैं उसकी वजह से हमारे अन्दर शान्ति नहीं। अगर एक चीज़ ये ही खत्म हो जाये तो मैं कहती हैँं कि युद्ध की कम भूत बाधित है। अफ्रीका की जो गड़बड़ वो है (Possessed) बाधित लोगों की, लेकिन बाकी जो है, उनकी है अंहकार की। भूत तो अगर अंहकार और (Possession) भूत वाधा दोतों को हमलोग नष्ट कर दें, तो हम शान्त हो जायेंगे। और उस शान्ति के माध्यम से हम स्वयं ही दूसरों को शान्ति दे सकते हैं तो ज्यादा ध्यान इधर करना चाहिये कि भई देहात में जायें और वहाँ लोगों को (Realization) आत्म साक्षात्कार देकर शान्ति का महात्म्य समझायें। अब जैसे (North) उत्तर के जो गाँव हैं उसमें एक खराबी जो बहुत पाई जाती है कि यहाँ पर मुसलमान (mentality) मनोवृत्ति की वजह से औरतों को बहुत दबाया जाता है और फिर औरतों को जब आप दबाते हैं, पर जब वो खड़ी होती है, तो भी मरदानों से बढ़कर। तो महिलाओं के प्रति सम्मान होना चाहिये। और यहाँ कि औरतें भी कुछ ऐसी पिछड़ी हुई हैं कि वह समझ नहीं पाती कि आपका (Self-Respect) आत्म-सम्मान क्या है अब सहजयोग में में देखती हैँ कि यहाँ औरतें बहुत कमज़ार हैं, हालांकि मैं एक औरत हूँ। ध्यान नहीं करना, मतलब (back- biting) पीठ पीछे निन्दा, झगड़ा करना, यह धन्धे चलते रहते हैं । सबसे बढ़कर तो (Domination) रौव जमाना। अब जब यह चीज़ें जो औरतों में आ गई हैं, उससे अपनी शक्ति होन हो जाती है क्योंकि से कम 75% समस्या का समाधान हो जाये। अब दूसरी बात यह है कि अशान्ति कहाँ से आती है? क्योंकि अगर उस पैमाने पर देखा जाये कि बड़े-बड़े देशों में लडाई हो रही है झगडे हो रहे हैं तो ये दूसरी बात है। और जैसे शिराक साहब ने वहाँ पर एटम बम लगा दिये तो उनके यहाँ भी बहुत से बम पड़ रहे हैं। लेकिन अगर आप व्यक्तिगत रूप से देखें, तो व्यक्ति में जो अशान्ति है, वो कहाँ से आती है? किस वजह से मनुष्य चैतन्य लहरी 15 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt टाइम देना चाहिये, उसके लिये मेहनत करनी चाहिए पर (companionship) सहचारिता में दोनों मिलकर। बच्चों को भी इसमें लाईये, पत्नी को भी इसमें लाईये, सबको लाकर। अगर आप चाहें कि आप तो सहजयोग का कार्य करते रहें और वाइफ अपनी घर में बैठी रहे तो जाते ही साथ वो विगड़ पड़ेगी। तो कोशिश यह कीजिये कि पूरी सहचारिता हो। पत्नी से विचार विमर्श करें, उसे बतायें कि यह प्लान है, कैसे करें, क्या करें? उनका भी उत्थान होना चाहिये। उनका भी बौद्धिक-स्तर बढ़ना चाहिये, उनकी भी सूझ-बूझ बढ़नी चाहिये। सो ये जो मुसलमानों के असर से ये वहाँ मैने देखा है कि अब उल्टा हो रहा है। पहले तो मैं देखती थी कि औरते बहुत दब्बू थीं अब वो औरते आदमियों को दबोच रही हैं । तो ये जो (action-reaction) क्रिया-प्रतिक्रया है, इसका सहजयोग में एक दम खत्म कर देना चाहिये। और इसका इलाज यह है कि पहले अपने जीवन में, अपने वैवाहिक जीवन में यह औरतों से शक्ति आती है। (Potential ) अन्त: शक्ति तो वो हैं और जब वो इस तरह से आचरण करने लग जाती हैं तो सारे ही समाज की शक्ति खत्म हो जाती हैं। तो सबसे बड़ी बात यह है कि अपनी औरतों में शान्ति प्रस्थापित करनी चाहिये। और उसके लिये (husband) पति में भी शान्ति होनी चाहिये। वो अगर शान्त हो और पत्नी का आदर करे तो मेरे ख्याल से बच्चों में भी शान्ति आ जायेगी, घर में भी शान्ति आ जायेगी। अब यहाँ पर जो एक तरह की (aggression) आक्रामकता है पुरुषों की, वह वहाँ तक कभी सीमित रहेगी ही नहीं। वह लौट कर वापस आयेगी आदमियों पर। तो, जो (Companionship) सहचारिता होती है, आपस में प्यार से बात करना, आपस में अच्छे से बात करना, सबके सामने किस तरह से बर्ताव करना चाहिये और वैसे भी, इस चीज पर हम लोगों को ध्यान देना चाहिये। जैसे बहुत से लोगों को मैने देखा है कि उनकी बीवियाँ किसी काम की नहीं सहज के लिये| लेकिन खोपड़ी पर बैठा देंगे, खोपड़ी पर वबैठ जायंगी। बहुतों के पति ऐसे हैं कि वो अपनी बीबियों की परवाह नहीं करते और उनको मारते पीटते हैं। अब भी सहजयोग में ऐसे लोग हैं। इससे बड़ा दुख होता है मुझे कि अब भी अगर मियाँ बीवी में सहचारिता नहीं आती है, तो कोई गम्भीर बात है। मेरे लिये बहुत गम्भीर बात है। पृूर्ण सहचारिता ब्योंकि अब आप सहजयोंगी हो गये, बीबी भी आपकी सहजयोगी है और जब दोनों आदमी एक ही नाव में बैठे हुए हैं तो उनमें आपस में झगड़ा कैसे हो सकता है? होना ही नहीं चाहिये। यह एक बड़ी भयानक चीज़ है। जब आप सहजयोग में आये हैं और आपस में लड़ रहे हैं तो सबसे बड़े तो सब देवता आपसे नाराज हो जायेंगे और किस आफत में आप फर्सेंगे यह कह नहीं सकते। चाहिये। ठीक करना अब जब आप शान्त हो जायेंगे, तो आपके बच्चे भी शान्त हो जायेंगे। यह सारी जितनी भी बीमारियाँ है, अशान्ति की, जिस आप बड़े-बड़े युद्धो में देखते हैं, यह आती कहाँ से हैं? यह मनुष्य से आती हैं कोई आकाश से नहीं आती, कोई पेडों से नहीं आती। जड़ इसकी मनुष्य है और अगर मनुष्य ही इस चीज़ में, शान्ति में रम जाये और उसमें वो पनप जाए और उसके लिये वो बड़ी गौरवशाली चीज समझे कि मैं अपना सामाजिक ढर्रा ठीक हो जाये। जो सामाजिक ढर्रा है, उसको ठीक करने का कार्य भी सहजयोगियो को करना है। बहुत शान्तचित्त हूँ, कम से कम पर जो आपस में लड़ते रहते हैं, बो क्या जाकर सामाजिक ढरा ठीक करेंगे? बहुत बार ऐसी शिकायत आती रहती है, "कि माँ बो साहब तो बहुत अच्छे हैं पर उनकी बीबी बड़ी जबरदस्त हैं।" फिर कहीं आता है कि बीबी अच्छी तो साहब बड़े जबरदस्त। इस प्रकार बहुत रिपोर्ट आती हैं। तो हम लोगों के पास तो अपनी एक सभ्यता है, अपना एक तौर तरीका है। उस सभ्यता से वचित होकर क हम गलत काम कर रहे हैं। अपने यहाँ कम से कम जैसे हम महाराष्ट्र में देखते हैं, बीबी की बहुत इज्ज़त करते हैं और बीबी भी (husband) पति की बहुत इज्जत करती है। एक सभ्यता है और उसमें ऐसा नहीं चलता कि पति-पत्नी को सोचता है कि वो कोई और चीज है या उसका दर्जा उससे कम है। ये बहुत बार मैने समझाया कि रथ के दो पहिये होते हैं, एक अगर छोटा-बड़ा हो जाये तो ठीक नहीं। दोनों की (similarity) समानता नहीं होती। यह कहना चाहिये कि (height) ऊँचाई एक होती है, बनावट एक होती है, सब होती है पर दोनों, अगर (Right) दायें का (left) बायें में लगाओ और (left) बायें का दायें में, तो लगेगा ही नहीं। तो दोनों में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं। जैसे कि एक औरत है, औरत की अपनी कमजोरियां, कमजोरिया कहना चाहिये, यह बहुत ध्यान देने की बात हैं। समझ लीजिये एक औरत है और एक आदमी ऐसा है कि वो उसको जबरदस्ती परेशान करता है, बेकार में-यह नहीं अच्छा, वो नहीं अच्छा, ऐसा नहीं, वैसा नहीं। तो एक दिन ऐसा आ जायेगा कि उस आदमी के सारे देवता उससे नाराज़ हो जायेंगे। लक्ष्मी की समस्या लक्ष्मी की नहीं हुई तो हृदय की समस्या, सबसे बढ़कर बाई नाभी जब पकड़ जाती हैं तो और तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। अब बाई नाभी पर बहुत ही ज्यादा मैने काम किया है और मैं देखती हैँ कि बाई नाभी जो है बड़ी मुश्किल से ठीक होती है क्योंकि (Introspection) अन्तर्दर्शन नहीं है। सोचते नहीं कि बाईं नाभी हमारी क्यों पकड़ रही है। फिर समझ लो: पत्नी यदि जबदरस्त है, सुनने को तैयार नहीं और अपना ही चलाती है, जो भी हैं, अपमान करती है। उससे बैठ कर बातें करो। आपस में (Rapport) ताल-मेल होना चाहिये, बातचीत होनी चाहिये। अब लोंग सहजयाग में आते हैं तो देखा जाता है कि चले सहजयोग के पीछे कभी मियाँ बीबी की बातचीत नहीं, बच्चों से वातचीत नहीं। यह तो ऐसा ही हुआ जैसे इंगलैण्ड, अमेरीका में लोंग (holiday) छुट्टी मनाने जाते हैं। सहजयोग के लिये चेतन्य लहती 6: 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt थे वगैरह, उसी से वो लोग सब वहाँ इस तरह से पहुँच जाते अब देखिये सहजयोग में आप सबका नाम सबको मालूम हैं, ये कौन है, वो कौन है, रिश्तेदारी कितनी बड़ी है। बहुत बड़ी रिंश्तेदारी है दुनिया भर में और जब आप घूमने लगंगे इस तरह से जैसे कि हम कह रहे हैं कि अब हम दिल्ली कभी नहीं आयंगे हम अब नागपुर जायेंगे। समझ लीजिये तो सारे अब नागपुर आयेंगे है कि नहीं बात? तो इस तरह से यह (detachment) विरक्ति होनी चाहिये। मैं देखती हैं कि, "माँ आप यहाँ आइये, वहाँ आईये" काई सोचता ही नहीं कि इस उम्र में हम इतनी मेहनत कर रहे हैं, कितना हमें चलना-फिरना पड़त है और जरा सा इस तरह से अगर आप हर समय, यह इधर खींच रहा है, वो उधर खींच रहा है, तो कैस हो सकता है। तो इस पर भी कुछ सब लोगों को समझाना चाहिये कि माँ को जितना कार्य करना चाहिये था, उतना माँ ने कर दिया और अब जो, उनकी जो मजी होगी, वो होना चाहिये। हम लांग उनपर कोई दबाव नहीं डालेंगे। वो कहंगी तो पूजा करेंगे। वो खुद कहें, वो मान जाये तो ठोक, उन पर जबरदस्ती किसी तरह की नहीं करनी चाहिये। इससे एक हो जायेगा कि हमारी हैल्थ (स्वास्थ्य) थाड़ी बच जायेगी। अगर और थोड़ा कार्य करने का उसके लिये मैं नहीं चाहती कि मेरी खींचा-तानी हो| अब जो भी आपको प्रायोजित करना है, आप लोग उसे करिये। व्यवस्थित रूप से उसे सोच लें और वो बोझा मेरे सर पर नहीं डालिये। छोटी-छोटी चीजों के लिये.....जैसे कोई विमार है, फोन कर देंगे "माँ फलाना बिमार है।" अरे भई तुम सहजयांगी हो तुम्हं इतनी (power) शक्तियां दे दीं, मुझे क्यों परेशान करने की जरूरत है? आप लोग करिये, अब आपकी जिम्मेदारी है। मैं ता सोचती हूँ कि मेरे बच्चे बहुत बड़े-बड़े हों गये हैं, वहुत (responsible) ज़िम्मेदार हो गये हैं और सब कुछ समझते हैं। और यह दिलासा आपको दंना चाहिये कि '" माँ, आपको परंशान होने की जरूरत नहीं। हम लोग ठीक कर लंगे। हम इस चीज़ को ठीक कर लगे, हम उस चीज को ठीक कर लेंगे। इस तरह से जब शुरू हो जायेगा तब मुझे इत्मिनान हो जायेगा कि ऐसी कोई वान नहीं। अभी तो हाँलाकि एसी हालत है कि यहाँ से चिट्ठियां पर है उसकी अपनी तबीयत होती है। आदमियों की अपनी तबीयत होती है। वो घड़ी लगाये रहते हैं, घड़ी चलती रहती है आदमियों की तो मैं तो बहुत दफे आदमियों से कहती हूँ कि तुम घड़ी उतार दो पहले । अब औरतो को है जरूर थोड़ा टाइम लगता है। कहीं जाना हो, टाइम से नहीं चले तो हो गया, आदमी लोग खत्म हो गये। छोटी चीज़़, ये चीज़ यानि ये बहुत छोटी चीज़ है। छोटी-छोटी चीज़ ही में सारा झगड़ा शुरु हो जाता है। और मुझे लगता है कि आदमी सोचते हैं कि वो (incharge) कार्यभारी हैं सब चीज़ के कि टाइम से पहुँचना है। नहीं हुआ टाइम से तो कोई आफत नहीं आने वाली। धीरे-धीरे अपने मस्तिष्क को ऐसा ट्रेन करें कि जिससे आप (react) प्रतिक्रिया न करें हर समय मस्तिष्क को ऐसी दशा में रखना चाहिये कि प्रतिक्रिया न करे, सिर्फ उसको देखते मात्र रहें। घीरे-धीरे आपको आश्चर्य होगा कि आप भी ठीक हो जायेंगे और आपकी बीबी भी ठीक हो जायेगी और दोनों को यह चीज अध्यास करनी चाहिये कि दोनों जो हैं इसको (witness) साक्षी की तरह से देखें। तो यह जान लेना चाहिए कि औरत चौज अलग है, आदमी अलग चीज़ है और उनके जरिये अलग हैं, उनके तरीके अलग हैं, हालाँकि दोनों की समझ लीजिये (similarity) समानता यही है कि दोनों इन्सान हैं। अब इस बात पर आप लोगों को खोज करना चाहिये कि सहजयोग में इस प्रकार की समस्याएं क्यों आती हैं। जैसे एक लड़की लखनऊ आई थी, यहाँ पर शादी होकर। उसकी प्चीसों समस्याएं खड़ी हो गयी, उस लड़की को। उससे बातचीत करना चाहिये, उससे पूछना चाहिये क्या बात है, क्या नहीं? सहजयोग किसी को तोड़ने के लिये नहीं सबको जोड़ने के लिये है। तो कोई चीज़ अगर टूटती है तो उसके पीछे क्या कारण हैं, कैसा है, इस तरफ आप लोगों को देखना चाहिये और उसकाी जोडना चाहिये । अब जब यह जोड़ना शुरू हो गया तो ये भी साचना चाहिये कि अब दिल्ली वाले है, वो बम्बई बालाों से एकदम जुड़ जायें, वैसा नहीं होता।" दिल्ली में पूजा होनी चाहिये "क्यों साहब?" अगर बम्बई में हुई तो भी दिल्ली में ही हो रही है; जब आप अपने दिल को बड़ा करके देखिये तो आप तो सारा विश्व हैं कहां भी पूजा हो रही है तो भी वो आप ही के लिये हो रही है। बहुत यह कि "हमारे दिल्ली में होना चाहिये। आप यहाँ जरूर आईये। फिर कहंगे कोई " आप और फलाती जगह ज़रूर आइये" इस उम्र में हम कितना सफर करते हैं इसीलिये कि लोग यह न सोचे कि हमने किसी और को फेवर कर दिया, किसी को नहीं किया। तब फिर मैने अब जैसे सोचा कि मैं यूरोपियन टूरो में नहीं जाऊँगी। यूरोप में मैं जाऊँगी नहीं, तो यूरोपियन जहाँ हम जाते हैं, वहाँ आते हैं । रूमानिया गये वहाँ पहुँचे हुए हैं, और हम रूस गये वहाँ आये। सारे वहाँ पहुँच जाते हैं क्योंकि माँ से कहाँ मुलाकात हो, माँ तो आ नहीं रही है हमारे देश में। तो जो वो खर्चा हमारे आने का करते चिट्ठियां। किसी का कुछ, किसी का कुछ। लेकिन उनसे कहना चाहिये कि भई आपको चिट्ठी भेजना है तो सेन्टरों में भेजां, आप क्यों माँ को परेशान कर रहे हैं ? अब यह देखना चाहिये कि कितने लोगां ने सहजयोग के कितने लोगो ने सहजयोग के कितने लांगों की समस्याओं का समाधान किया, हमारे जैसे। हमी समाधान कर सभी समस्याओं का। जब यह बात आ जाती है तो पहले तो आपकी सहजयोग पूरी तरह से मालूम होना चाहिये और आप शुद्ध अन्त: करण से करें। दोनां चीजें बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर आप, बहुत लोगों को मैने देखा है "हाँ, हाँ लाओ तो, मैं तुमको टीक करता हूँ।" तो उसका ऐसा दम निकाल देते हैं कि वो आदमी कहता चैतन्य सहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt है है, "बाबा सहजयोग से छुट्टी।" तो ऐसा करिये कि एक कमेटी बनायें और उस कमेटी के माध्यम से समाधान होने चाहियें। और जैसा कहीं गये, उन्होंने बताया, "इनकी यह समस्या है, उनकी यह समस्या है।" अब मेरे ख्याल से इस दशा से आप लोग पूरी तरह से परिचित हैं। आप जानते हैं कि क्या करना चाहिये हर समस्या के लिये। और अगर बन पड़ा तो मैं एक किताब इस पर भी लिखना चाहती हूँ कि किसी को कोई समस्या है तो उसको कैसे समाधान देना है। पर आप लोग खुद इसको लिख सकते हैं। आप लोग खुद इसको बता सकते हैं। अब उससे क्या हो जायेगा कि अब जो बोझा मेरे ऊपर है, वो आप लोगों पर आ जायेगा और उससे आप पनपेंगे, उससे आप बढ़ेंगे। नये साल के इस दिन आप यह सम्भाल लें। अगले नये साल और कुछ पहले कह रही हूँ, बाद में मैं परदेस में कहूँगी। इसलिये कह रही हूँ कि आपमें जो धर्म है वो (advantage) श्रेष्ठता है। जो सभ्यता आपके अन्दर है, उसके बूते पर आप बहुत ज्यादा कुछ कर सकते है। विदेश में भी लोग आपको, सब लोग बहुत मानते हैं । कहते हैं। कि अगर कोई भारतीय मिल जाये तो उस जैसी बात ही पुरुषों की इतनी ज़रूरत नहीं। पुरुषों का काम कि अपना ध्यान आर्थिक तथा राजनैतिक समस्याओं पर दें, पर औरतों को समाज सम्भालना है। तो वो त्यागमय होती चाहिये, समझदार होनी चाहिये और विवेकशील होनी चाहियें। तब यह समाज अपना ठीक रहेगा। बहुत सी औरते हैं उदार नहीं हैं, कभी सहजयोग के बारे में खास जानती नहीं है और जो जानती है, वो अपने को पता नहीं क्या समझती हैं? उनमें सन्तुलन लाना, उनको बैठाकर समझाना, यह एक बहुत ही ज़रूरी काम है। देखने में लगता है कि ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मैं सोचती हूँ कि यह बड़ी अहम् बात है, बहुत महत्वपूर्ण बाते है कि जो हमारे यहाँ की स्त्री हैं, उसको पता होना चाहिये, वो क्या है, किसलिये इस दुनिया में आई है, उसका क्या कार्य है। वो है समाज बनाने वाली और उसको समाज बनाने में नई चीज हो । इसके लिये मैं आपसे सबसे आप कहाँ तक मदद कर रहे हैं, यह समझना है। इस तरह से औरतों की तरफ ध्यान देना चाहिये, बहुत ज़रूरी है। तीसरी चीज़ जो मैने बताई है वो है बच्चों के बारे में बच्चों के बारे में भी जो हमारे ख्यालात हैं, उन्हें हमें समझना चाहिये। बच्चों से बातचीत करनी चाहिये, पूछताछ करनी चाहिये। इंगलैण्ड में एक किताब उन्होंने छापी, जिससे उन्होंने बच्चे सबके वारे में क्या कहते हैं, वो लिखा। वो सब छपी, वो जिस दिन ( पब्लिश) मुद्रित हुई, दूसरे दिन सारी की सारी बिक गईं। और अब भी यह हाल है कि आपको वह किताब मिलना मुशकिल है क्योंकि इतनी मनेदार है बच्चों की चीज़। और सब लोग पढ़ना चाहते हैं। बच्चे क्या कह रहे हैं, बच्चों का क्या ख्याल है। बहुत सी प्यारी-प्यारी बातें उसमें बच्चों ने बताई। यहाँ तक कि उस जमाने में जो प्रधानमंत्री थे, जो मन्त्री थे, उनके बारे में भी उससे दो चीज हो जायेंगी। एक तो, समाज में बच्चों की कोई अपनी शक्ति हो जायेगी बच्चे जा कह रहे हैं, उनमें क्या (innocence) अबोधिता है, उसके माध्यम से वो क्या कह रहे हैं, यह सारे समाज को मालूम हो जायेगा। तब समाज से आदान-प्रदान होता है। बच्चे देखते हैं कि हमने जो बात कही वो बात मानी गई। फिर बड़े जो हैं वो सोचते हैं, ये बच्चों ने बात कही इसको कैसे हमें ध्यान देना करना चाहिये। सो वो इससे आदान-प्रदान शुरू करना चाहिये इससे बच्चों में कोई (Rudenes) अभद्रता नहीं आनी चाहिये न उनमें कोई अंहकार होना चाहिये, पर अपनी बात कहने की क्षमता उनमें आ जानी चाहिये। इस बात को भी आप ध्यान देकर करें। ऐसी प्यारी-प्यारी बातें बच्चे करते हैं कि मुझे तो बड़ा मजा आता है। मुझे आप सौ बच्चे दे दीजिये फिर मुझे और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। उनकी जो समझ है वो बड़ी गहरी है और बडी संवेदनशील। छोटी-छोटी चीज़ों को वो देखते हैं और छोटी-छोटी चीज़ों को इतने प्यार से बताते हैं कि जैसे कि कोई सारी (Divine Knowledge) दिव्य ज्ञान और दिव्य गतिविधि है उसमें वो बिल्कुल समाये हुए हैं। छोटी-छोटी बाते हैं जैसे कि यहाँ यह रखा हुआ है तो अगर कोई नहीं। अब एक भारतीय महिला को भेजा वहाँ शादी कराकर, उन्होंने ऐसे तमाशे कर दिये कि बाबा उनको भेज दो वापिस, कोई अंग्रेज ही ठीक है। तो यह चीजे हैं जो कि खास तौर पर देखने की और सोचने की हैं। और रही दूसरी, शादी की भी बात, उस पर भी मैं कहना चाहती हूँ आप लोगों से-आप लोग कार्य प्रभारी हैं; कि शादी क्राम बहुत सोच समझ कर सुझाव दें। इससे अपने को कोई फायदा KE तो. होता नहीं। आपने कितनों की शादी करी, उनसे कोई आर्थिक भी फायदा नहीं होता। नाही कोई और फायदा होता है सिवाय इसके कि अगर वो सफल विवाहित हो जाये, तो उनको फायदा होता है. और बड़े-बड़े सन्त-साधु भी जन्म ले सकते हैं। पर वो लोग यह सोचते हैं कि वो लोग हम पर एहसान कर रहे हैं, अगर शादी कर रहे हैं तो। उनका दृष्टिकोण ही यह है कि वो बड़ा हम पर अहसान कर रहे हैं, अगर उन्होंने शादी कर दी। उसका हमें क्या फायदा हैं। तो जब आप लोग सिफारिश करिये तो उनकी बता दें कि माँ का कोई लाभ नहीं, सहजयोग में कोई लाभ नहीं सिवाय इसके कि आपकी शादी करा रहे हैं, यह आपका फायदा है। उसके बाद बहुत छानबीन के बाद ही शादियाँ करानी चाहिये क्योंकि एकदम से कहीं से कहीं शादी हो जाती है तो बहुत समस्या हो जाती है। यह सब देखते हुए कि अब लोग ठीक हो रहे हैं, विवाह ठीक हो रहे हैं मुझे बच्चों की तरफ भी ध्यान देना है। अब जो पहली चीज़ मैने कही कि सबकी शान्ति रहनी चाहिये। दूसरी मैने चीज़ कही कि-सामाजिक, औरतो का मान और औरतों को सम्भालना। समाज की जो धुरी है, समाज का जो आधार है, वो औरतें हैं। औरतो को समाज सम्भालना पड़ता है। उसके लिये और बंतन्य लड़री 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt बच्चा होगा तो वो आकर इसको आयोजित कर देगा| " ऐसा नहीं, माँ के लिये ये चीजें पहले रखनी चाहिये, वो चीज़ बाद में रखनी चाहिये। लाकर रख दी एक साथ में, ऐसे थोडे रखते है। वो लोग चैतन्य लहरियों से सारी बात करते हैं मैने देखा अधिकतर बच्चे चैतन्य पर बात करते हैं। और फिर वो बड़ो को भी बहुत ठीक करते हैं कई कई तो। जैसे एक साहब आये, तो बैठते-बैठते उन्होंने ऐसे हाथ कर दिये। तो दो बच्चों ने उनसे कहा कि आप ऐसे पीछे हाथ टेक करके क्यों बैठे हैं, आप सीधे बैठिये, इस तरह से। तो वो ज़रा नाराज़ हो गये, "तुमसे क्या मतलब।" कहने लगे, " ऐसे मत वैठिये" "तो क्या बात है"" तो आपको माँ की चैतन्य लहरियां कैसे मिलेंगी? यह तो आपको सारे जमीन की लहरियां मिलेंगी। तो वो हैरान हो गये कि यह बच्च्चों ने अच्छे हमकी.....छोटे-छोटे 3-4 साल के बच्चे। ऐसे अनेक चीजें उनकी मुझे मालूम हैं और मुझे बड़ा मज़ा आता है जिस तरह यह बच्चे बहुत सारी बाते जानते हैं, चीजें कह डालते हैं और समझाते हैं और मेरा भी बड़ा ख्याल रखते हैं। तो बच्चों से सीखना है। तो तीसरा यह हैं कि बच्चों से सीखना है, बच्चों से (Rapport) सौहार्द रखना, उनसे बातें करना। जब वह बड़े हो जाते हैं तो फिर वो हमी जैसे ही हो जाते हैं। लेकिन जो संबेदनशीलता है, वो बचपन में होती हैं। उनसे बैठकर बातें करना, उनसे पूछना किसी भी चीज़ के बारे में कुछ-यह आह्वाददायिनी चीज़ हैं और इस अहाद को सबको प्राप्त करना चाहिये । तो मैने आपसे बताया कि (Religion) धर्म के नाम से जो लोग झगड़ा करते हैं, उनके अन्दर शान्ति प्रस्थापित करना, उनसे बातचीत करना, उनको समझाकर और फिर जो दूसरी है. वो है, मैंने आपसे बताया-समाज। समाज अगर अच्छा नहीं होगा तो कभी आपको मिल जायेगा कि ये लोग बहुत परवाह करते हैं कोई परेशान है, किसी के पास में खाने-पीने को नहीं है या और किसी के पास में और कोई चीज़ नहीं है। जिसके लिये वो परेशान है। वो किसी लालच की वजह से नहीं, वो किसी परेशानी की वजह से परेशान है, तो उसकी तरफ ध्यान देना हम लोगों को अब बहुत ज़रूरी हा गया है। अब टाइम आ गया है कि जब हम सामूहिक तरीके से समाज के प्रश्नों का हल निकालें। और इस तरफ ध्यान देना चाहिये जैसे हम पता लगाएं कि जो लोग बृढ़े हो गये हैं और जो चल-फिर नहीं सकते, तो उनको जो है कोई रहने की जगह होनी चाहिये। फिर वहाँ एक (Refugee- Camp) "शरणार्थी कैम्प" लगाओ। फिर एक (Leper-Home) कुष्ठगृह लगा लो। काफी छोटी उम्र थी हमारी, बो तीनों चीजें शुरू करा दी। हम चले आये हैं पर वो अभी चल रहीं हैं। इस तरफ भी ध्यान देना चाहिये कि समाज में इस तरह के लोग हैं जो कहना चाहिये कि एक तरह से बचित है, उनकी स्वास्थ्य नहीं अच्छा या और का कुछा अगर आप इस तरह की समाज को मदद करे तो बड़ा आपक प्रति सबको आदर और प्रेम हो जायेगा। अपने प्रति तो हम लाग कर ही रहे हैं, अपने को तो हमने पा ही लिया है पर हम औरां को क्या दे रहे हैं। और खास कर सहज की शक्ति के कारण आप जितने लोगों की चाहे उनकी बिमारियाँ ठीक कर सकते हैं, उनको मदद कर सकते हैं, उनके साथ अच्छाई कर सकते हैं। उनके आश्रम बना सकते हैं। तो एक तरह से समाज का एक बोझ हमारे ऊपर है कि जब हमारे पास परमात्मा ने इतनी शक्ति दी है, तो हम इस ा न। समाज को सुचारू रूप से किस तरह से परवर्तित करें कि जिससे इनकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक, इसके अलावा इनकी अध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ जाये यह एक कार्य सहजयोगियां को लेना चाहिये और अलग-अलग जगह से ऐसे लोगों को लेकर समाज के जो लोग पिछड़े हैं, जो दुर्बल हैं, उनकी मदद करनी चाहिये। धीरे धोरे आपको आश्चर्य होगा कि आप सारे देश में लोकप्रिय हो जाएंगे। असल में लोग ऐसी संस्थाएं बनाते हैं इस तरह की चीजें बनाते हैं, सिर्फ वोट लेने के लिये या कुछ कमाने के लिये। हमको तो वो सब नहीं चाहिये पर सिर्फ अपनी शक्ति से अमन-चैन, शान्ति उस देश में नहीं आयेगी। उस देश की प्रगति नहीं हो सकती। अब जैसे कि देखिये कि रूस की बात मैने देखी, वहाँ का समाज बहुत अच्छा है। चाईना का समाज बहुत अच्छा है। इसी तरह हिन्दुस्तान का भी समाज अच्छा है और इसका कारण वहाँ की स्त्रियाँ हैं। उन्होंने समाज को बाँध रखा है। अमरीका में बहुत समृद्धि है, सब कुछ है पर समाज बहुत खराब है। तो सहजयोग का बड़ा भारी कार्य है कि समाज की जो नींव है उसको बनाए। हर जगह का जो समाज है, उसमें क्या-क्या गैर-कानूनी चीजे होती हैं, क्या-क्या और बातें होती हैं? अब जैसे अमरीका में एक छोटी लड़की को बहुत मारा-पीटा गया। तो उनका फोन आया कि "माँ, हम चाह रहे हैं कि उस लड़की की सहायता करें। तो मैने कहा, "हाँ बिल्कुल करें। उसको बहुत ज़रूरी है। उसकों क्या चाहिये, क्या नहीं? उसको बहुत जरूरी है उसको क्या चाहिये, क्या नहीं? उसको अपने पास लाकर देखो और उसकी बहुत मदद करो, पुलिस से पूछ कर कि हम इसको सम्भालते हैं।" तो एक तरह से एक नया आयाम, नया (dimension) आप इस तरह के लोगों को ठीक कर सकते हैं। अब वो लोग जो ठीक हो जाए तो वो स्वंय अपनी शक्ति से यह सिद्ध कर सकते हैं कि सहजयोग से लोगों का भला हुआ। और इतना ही नहीं ओर यह भी वो सबसे खुले-आम कह सकते हैं कि सहजयोग क्या है और क्या नहीं। पर आपको अब, मेरा मतलब है कि आज नये साल में यह जो हमारा एक ढर्रा है या यह जो खेल है जिसमें हम लोग रहते हैं, उससे निकल कर और बाहर की ओर (Projection) प्रयोजन करना चाहिये। शुरुआत में समस्याएं होंगी। खुद आप ही के अपने अंहकार, खुद आप ही की समस्या खड़ी हो जायेगी और चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt हैं यह (downtrodden) दीन-दुःखी लोगों की मदद करते हैं, बीमारों की मदद करते हैं; (missionary zeal ) घर्म प्रचारको की उत्कण्ठा से नहीं पर यह कि अन्दर से, इनको महसूस होता है और यह करते हैं इससे सहजयोग के लिये चार चाँद लग जायेंगे और यह हम लोगों को करना चाहिये, इसकी मेहनत करनी चाहिये, कोई मुशकिल चौज़ नहीं है। तो यह नये साल में जो मैने कहा है, इसको ( translate) अनुवाद करके भी आपको भेजना पड़ेगा क्योंकि वो लोग तो सुनना चाहेगे कि कैसे, क्या करें। एक तरह से हमार (Introspection) अन्तर्दर्शन को बढ़ाना चाहिये। और जब वा बढ़ने लगेगा तो आप उस बिन्दु पर पहुंच जायेगे जहाँ विल्कुल निर्विचारिता आ जायेगी और जैसे ही निर्विचारिता आ जायेगी. आपको चाहिये कि उसको किसी तरह से आगे बढ़ाते रहे। निर्विचारिता में जो आप कार्य कर सकंगें और कभी नहीं कर सकते। इसलिये अपनी तरफ घ्यान देकर, अपनी ओर ध्यान देकर अपने को निर्विचार होने का प्रयत्न करना चाहिये। ध्यान में निर्विचारिता लानी चाहिये। उस निर्विचारिता में आप अपने मस्तिष्क (mind) से ऊपर चले गये और सारी जोकि (cosmic) अन्तरिक्षीय शक्तियाँ हैं, वा आपकी मदद करेंगी और आपकी जो मन में होगा वो सब हो सकता है। यह सब करते वक्त आपको निर्विचार होना चाहिये। यह वहुत ज़रूरी बात है। नहीं तो यह आधा इंधर, आधा उधर, इस तरह से चलेगा। बहरहाल अब तो यह कहना चाहिये कि हम लोग अब अच्छे हो गये, व्यवस्थित रूप से संगठित हो गये हैं पर इसकी उपादेयता? जो हमने किया, जो हम (Realized souls) आत्म साक्षात्कारी हो गये वो क्या और किस लिये किया? कुद्ध के जैसे मरने के लिये किया या महावीर जैसे कपड़े उतारने क लिये किया? किस चीज़ में इसका उपयाग किया हमने? हम कहाँ कर सकते हैं? मैने देखा है लोगों कां वा चैतन्य लहरियां का उपयोग करते हैं। कहीं जाये, कहीं समस्या हो, तो चैतन्य वो आपकी खोपड़ी खराब करेगी। गुस्से आयेंगे, नाराज़गी होगी तरह-तरह की चीजें हैं। पर इस पर काबू पाने के लिये भी तो आपको वाहर निकलना पड़ेगा। तब जानियेगा कैसे कि आप ठीक हैं। यहाँ तो सभी राम-नाम है, ठीक है पर जब वाहर निकलियेंगा तभी तो घता चलेगा कि बाहर वालों के साथ हम कैसे रहते हैं क्यों उनको भी तो (integrate) संघटित करना है हमे, जब हम उनके साथ बर्ताव करना अच्छे से सीख जायेंगे, शान्तिपूर्वक, तो समझना चाहिये कि हमारे अन्दर एक दम से सफाई हो गई। यह सफाई की बात बहुत से लोग हैं, "माँ आपकी बात ठीक है, आप जो करें सो ठीक है पर हम नहीं कर सकते।" "क्यों भई" क्योंकि आप भगवान हैं और हम मनुष्या" में कहती हैँ भगवान तो कुछ भी नहीं करते, वो तो विल्कुल दूर ही रहते हैं। अगर हम भगवान हैं और हम कर रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि आप भी जो अपनी स्थिति है, जो आपने उच्च स्थिति पाई हुई है. उसको आप इस तरह से बनाईये कि उसकी उपादेयता हो। यह नहीं कि बैंकार में आप सहजयोगी बने बैठे हैं। उसके उपयोग में लाने की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। और जा आज आपके पास राशि है और उसकी और अपनी ओर ध्यान देंगे तो देखेंगे कि आपका घर, आपका है। प। समाज, आपका देश सभी जगह एक तरह का उनका नया रूप आ जायेगा। अभी भी सहजयांगी देखिये तो बड़े अच्छे हैं, उनके मुख पर तेज़ है, आँखे चमक रही हैं, चैतन्य आ रहे हैं। यह तो किसी भी (Realized-Soul) आत्मसाक्षात्कारी के हो सकते हैं, पर आपमें एक और चीज़ है, उसकी उपादेयता इसका उपयोग आप दुसरां पर कर सकते हैं सामूहिकता में। जब वो चीज़ शुरू हो जायेगी, सामूहिकता में जब आप अग्रसर होंगे, सामूहिकता में जब movement (गतिविधि) होगी आपकी ती आपको आश्चर्य होगा कि यह जो आपकी (Powers) शक्तियाँ हैं, ये जा हैं उनसे न कंवल आप सबको ठीक कर सकते हैं पर आप उनका दे भी सकते हैं। पर हम लोगों ने यह आज तक जैसे है न, कि सब लोग exclusive (विशिष्ट) बहुत है, इस मामले में। सहजयोग-माने "स्व:"-और सबसे काहे को बात करें? तो किसी भी पैमाने पर यह वात हो रही हो, उसमें ध्यान देना चाहिए और उधर बातचीत करनी चाहिए। इसमें कोई हर्ज नहीं है और न ही इसमें कोई हर्ज हैं कि आप उन लोगों को सहज में खीचें। और जो नहीं है सहजयोग में, कुछ हर्ज नहीं पर उनके लिये तसल्ली और उनके लिये शान्ति देना जरूरी है। तो इन तीन पैमानों पर आप लोगों को काम करना है। यह हम कैसे कर सकते है? अब जैसे कि आप लोगों ने बैठकर मकान के लिये ठीक कर दिया, जमीन ठीक कर दी; बड़ी भारी बात है। उससे भी बड़ी बात में कह रही हैूँ, वो यह कि हम लोगों के लिये जो दुनिया भर में (Reputation) मान-सम्मान है, उसमें आना चाहिये कि यह गरीबों की मदद करते हैं, औरतों की मदद करते प्रवाह करना शुरु करते हैं। पर यह तो हम अपने लिये करते हैं, अपनी उपादेयता के लिये या ज्यादा से ज्यादा सहजयोगी सहजयोग के लिए। पर जो सहजयोगी नहीं है, उनके लिय भी इसका इस्तेमाल करना चाहिये। कोई कठिन बात नहीं। आपके अन्दर यह शक्ति हैं, जिसको देना चाहें वो दे सकते हैं। यह परोपकारी होने की जो प्रवृत्ति है, आपके अन्दर जो जागृत हो गई तो कोई भी प्रश्न नहीं रह जायेगा। अब यही कहना है। मैने जो भी कहा वैठ कर लिख लीजिये और इसका सिलसिला बना लीजिये और सोचिये इस पर क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते। घन्यवाद।। चेतन्य तथी 10 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt दिवाली पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नारगोल 25-10-1995 ये तो हमने सोचा भी नहीं था कि इस नारंगोल में 25 साल बाद इतने सहजयागी एकत्रित होंगे। जब हम यहां आए थे तो यह विचार नहीं था कि इस वक्त सहसार खोला जाए। सोच रहे थे कि अभी दंेखा जाए कि मनुष्य की क्या स्थिति है? मनुष्य अभी भी उस स्थिति पर नहीं पहुंचा जहां वो आत्मसाक्षात्कार को समझ सकें। हालांकि इस देश में साक्षात्कार की बात अनेक साधु संता ते, सिद्धो ने की है और इसका ज्ञान महाराष्ट्र में तो बहुत ज्यादा था। कारण यहां जो मध्यमार्गी थे, जिन्हें नाथपंथी कहते हैं, उन लोगा ने आत्मकल्याण के लिए एक ही मार्ग बताया था-आत्मबोध का। खुद को जाने बगैर आप कोई भी चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते। ये में भी जानती थी लेकिन उस वक्त जो मनुष्य की मैने, स्थिति देखी वो बहुत विचित्र थी। वा जिन लोगो के पीछे भागते थे उनमें कोई सत्यता न थी। उनके पास सिवाय पैसा कमाने के काई लक्ष्य नहीं था। और जब मनुष्य की स्थिति ऐसी होती है जहां वो सत्य को बिल्कुल हो नहीं पहचानता उसे सत्य की बात कहना बुहुत कठिन होता है। लोग मेरी बात क्यों सुनंगे? बार यार मुझे लगता था कि अभी और भी मानव को बढ़ना चाहिए। किन्तु मैने देखा कि कलियुग की बड़ी घोर यातनाएं लाग भोग रहे हैं। एक तो पूर्वजन्म में जिन्होंने अच्छे कर्म किए थे उन लांगों को भी बो लोग सता रहे थे, जिन्होंने पूर्वजन्म में बुर कर्म किए थे उसमें ऐसे भी लोग थे जो पूर्वजन्म के कमों के कारण बहुत तरस्त था बहुत तकलीफ में धे। और कुछ वही पूर्व जन्म के कर्म लेकर राक्षसां जैसे संसार में आए थे और किसी को छलने में, सताने में कभी भी नहीं हिचकते थे दो तरह के लोग मैने देखें एक जो पीड़ा दंते है और एक जो पीड़ा लेते है। अब यह सोचना था कि किसकी ओर नजर करें। जो पीढ़ा देते थे वा सांचते थे कि मैं एक सम्पूर्ण इन्सान हूँ। उनमें ये कल्पना ही नहीं थी कि व दूसरों को तकलीफ दे रहे हैं जो लोग पीड़ित थे वो बर्दाश्त कर रहे थे, शायद मजबूरी की वजह से, या उन्हें मालुम ही नहीं था कि जो इस तरह की क्रिया करते हैं उसका प्रतिकार करना चाहिए, उसका विरोध करना चाहिए। उस वक्त यही सोच रही थी कि मनुष्य कब यह सांचेंगा कि हमें बदलना है। हमारे अन्दर एक परिवर्तन आना है क्योंकि वो भी अपनी तरह से अपने को समझा बुझा कर चुप थे। कुछ लोग ज्यादा तकलीफ दते थे औ कुछ लोगे कम, कुछ लोग ज्यादा तकलीफ बर्दाश्त करते थे और कुछ लोग कम। एसी समाज की स्थिति थी। चाहे वो भगवान के नाम पर हो, चाहे वो राष्टर के नाम पर हो और चाहे बो राजनैतिक हो या जिसे हम कहते हैं आर्थिक (economical ) हो। किसी की गरीबी तो किसी को बहुत अमेरी। इस प्रकार इस देश रही थी। जिसका कि मैं समझती थी कि जब तक मनुष्य बदलेगा नहीं जय तक बो अपने की पहचानेगा नहीं, जब तक वो अपने गौरव और अपनी महानता के पाएगा नहीं तब तक वो एसे ही काम करती रहेंगा। ये सव मरे दिमाग में बचपत से ही था और में यह सोच रही थी कि इस मनुष्य काो समझता जरूरी है। पहले तो मैने मनुष्य का बहुत अध्ययन किया। तट्थ रहकर, साक्षी रूप रहकर मैन समझता चाहा कि मनुष्य क्या है? इसमें क्या-क्या दोप हैं? कौन सी-कौन सी खराबियां है और किसलिए बा इस तरह सोचता है। तब मैं इस नतीजे पर पहुंची कि मनुष्य में या तो अहकार बहत ज्यादा है या उसके अन्दर प्रतिअंहकार, जिस हम कहते हैं pOnditioning यहत ज्यादा है। और इन दोनां को वजह से उसके अन्दर सन्तुलन नही है balance नहीं है। जब तक सन्तुलन नहीं आएगा तो कुए्डलिनी उठेगी कैसे? यह भी एक बड़ा भारी प्रश्न है। लेकिन जब में यहां नारगोल में आई तो कुछ विचित्र कार्यों के कारण कि एक बहुत दुष्ट राक्षस यहा पर एक अपना एक शिविर लगाए बैठा था। उसने हमारे पति से कह-कहकर कि इनको ज़रूर भजिए। मुझे वो आदमी जरा सी पसन्द नहीं था। सो भी पति के कहने से मैं आई और जिस बंगले में अभी रह रही हूँ उसी में मैं रही। उससे पहले दिन की बात हैं कि मैं जब एक पेड के नीचे बैठे देख रही थी उनका तमाशा तो मै हौरान हो गयी कि यह महाशय सबको मॉत्रित करके (mesmerize) सम्मोहित कर रहे थे। कई लाग चीख रहे थे कई लाग कुत्ते जैसे भांक रहे थे, कोई शेर जैसे दहाड़ रहे थे। मेरी समझ में आ गया कि ये इनकी पूर्व योनियों में ले जा रहा है। और इनके जो भी कुछ सुप्त चेतन है, जिसे हम कहते हैं कि (Sub-concious mind) अवचेतन उसको जगा रहा है। तब में घवरा गई। मैन पहले भी एसे झुठे लागां को देखा था कि ये करते क्या है? य ता पता होना चाहिए न कि ये करते क्या है? किस तरह से क्या धन्धा करते हैं और मैन इनमें सवमें एक चीज़ देखी कि ये वड़ भयभोत लोग हैं। इनके साथ बन्दूके रहती थी इनके साथ गाई रहते थे। मैन सोचा कि यदि ये कोई एरमात्मा का कार्य करते में एक तरह की छलना चल और चतन्म लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt क्या है। ज्यादा से ज्यादा लोग मारंगे, पीटेंगे, ज्यादा से ज्यादा हसेंगे, मज़ाक करेंगे और उससे आगे हो सकेगा तो मार डालेंगे इसमें डरना क्या है। ये तो करना ही है। इसी कार्य के लिए हम आए हैं इस संसार में। कर्योंकि सामूहिक चेतना करना (collective conciousness) को जगाना, मैने सोचा कि जब तक लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं करते, अपने को नहीं जानते तब तक यह कार्य असभंव है। और सब दुनिया भर की चीजें कर लो, उनसे कोई फायदा नहीं होने वाला इसलिए इस कार्य का मैने शुरू किया। सबसे पहले एक काफी बूढ़ी। स्त्री थी जो कि हमें बहुत मानती थी वो पार हो गयीं। तब मुझे बहुत संतोष हो गया कि चलो एक तो पार हुए इस कलियुग में किसी को पार करना कोई आसान है? जब एक पार हुई तो मुझे लगा कि हो सकता हैं कि और बहुत से पार हो जाएं। पर सामूहिक चेतना के लिए, चैतना को देना तो बहुत आसान था, एक इन्सान को पार कराना तो बहुत आसान था। एक आदमी को ठीक करना बहुत आसान था। पर ( collectively) सामूहिक में यह कार्य करने के लिए फिर जो, मैंने मनुष्यों के बारे में अनुभव किया था उस पर थाड़ा सा काम किया। काम ऐसा कि जब मैं देखें कि किसी आदमी में कोई दुर्गुण है या कोई तकलीफ है या उसके अन्दर कोई (conditioning) बन्धन है, सो उसको निकालने के लिए क्या करना चाहिए? क्योंकि एक आदमी को एक परेशानी, दूसरे को दूसरी, तीसरे को तीसरी। अगर सामूहिक कार्य करना है तो एक ही जागरण से सबको लाभ होना चाहिए। सबको फायदा होना चाहिए। अभी मैं आपको समझा नहीं सकती कि अब समय है कि सामूहिक चेतना का जो कार्य किसी ने भी नहीं किया था, वो मैने बहुत ध्यान-धारणा से प्राप्त किया। अपनी कुण्डलिनी को चारों तरफ घुमाकर, अपनी कुण्डलिनी का बार-बार लोगों पर उसका असर डालकर और बिल्कुल इस मामले में कोई भी नहीं जानता था। मेरे अन्दर क्या शक्तियां हैं, मैं कौन हूँ, मेरे घर में भी कोई नहीं जानता था, और ससुराल में भी कोई नहीं जानता था और मायके में भी कोई नहीं जानता था। और मैने कभी किसी से बताया भी नहीं। क्योंकि बताने से भी खेपड़ी में जाना काई आसान चीज़ नहीं है। इन्सान की खोपड़ी चीज़ ही ऐसी है। इसमें तो कोई भी विचार घुसाना बहुत मुश्कल है। सब अपने घमण्ड में बैठे हुए हैं, सब अपने को कुछ न कुछ समझ रहे हैं। अब इनको कौन बताए। जैसे कबीर ने कहा, "कैसे समझाऊँ सब जग अंधा" मुझे तो लगा अन्धा तो नहीं है पर अज्ञानी बहुत हैं। एकदम हैं तो इन्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत ही नहीं होनी चाहिए और पैसा लूटते थे। करोड़ो में पैसे लूटे इन्होंने, झूठ बोलकर। बेतहाशा तो ये तो दो बातें मेरी नजर में आईं मैने सोचा कि ये तो कलियुग की ही महिमा है कि ऐसे दुष्ट लोग अब भी पनप रहे हैं। तो इसका इलाज यही है कि मनुष्य की जो चेतना है वो जागृत हो, उसके अन्दर सुबुद्धि आ जाए और वो समझ ले कि ये सब गलत चीज़े हैं और ये सब करने से कोई लाभ नहीं। तीसरे मैने यह देखा कि जिस समाज में मैं रहती थी उस समाज में लोग हर क्षण ऐसा काम करते थे जिससे उनका नाश हो जाए-जैसे शराब पीना औरतों के पीछे भागना और तरह-तरह की चीज़ें। बहुत ही ज़्यादा पैसे का लगाव उन लोगों को था और बात कर वक्त लगता नहीं था कि वे (natural ) स्वाभाविक बात कर रहे हैं। कुछ अजीब सा बन-ठन कर, ड्रामा करके बात करते थे। मैं सोचती थी कि मनुष्य को क्या हो गया हैं। ऐसे क्यों गुलामी में फंसा हुआ है और इस तरह के गलत काम कर रहा है। लेकिन मै किससे कहती। मैं तो बिल्कुल अकेली थी । उस वक्त जब हम यहां आए तो यही मेरी एक उलझन थी कि क्या किया जाए। यहाँ आने पर जब मैने देखा कि यह राक्षस लोगों को (Mismerize) सम्मोहित कर रहा था तब मेरी समझ में आया कि अब यदि सहस्त्रार नहीं खोला गया किसी तरह से तो न जाने लोग कहाँ से कहां पहुंच जायेंगे और इससे जो साधक हैं, जो परमात्मा को खोज रहे है, जो सत्य को खोज रहे हैं वो न जाने कहां पहुंच जाएंगे। तब जब देखने के बाद दूसरे दिन सवेरे, मैं रात भर वहीं समुद्र के किनारे रही। अरकेली थी बड़ा अच्छा लगा । कोई कुछ कहने वाला नहीं था। और तब मैने ध्यान में जाकर अपने अन्दर देखा और सोचा कि अब सहस्त्रार खोला जाए। और जैसे ही मैने यह इंच्छा की कि अब सहसरार का ब्रह्मरन्ध खुल जाए तब यह इच्छा करते ही कुण्डलिनी को मैं अपने अन्दर देखती क्या हूं कि जैसे (Telescope) दूरबीन होता है वैसे वो खट-खट करते हुए ऊपर चली आ रही थी। उसका रंग ऐसा था जैसे आपने यहां दिए लगाए हुए है इन सबका रंग मिला दें, इस प्रकार। जैसे लोहा तपता है तो उसका जो रंग होता है। और तब मैने देखा कि उसके अन्दर उस कुए्डलिनी का जो बाहर का यन्त्र था वो खुलता गया, हरेक चक्र पर खट्ट की आवाज आई और कुण्डलिनी ने जाकर के ब्रह्मरन्ध्र को छेद दिया। सो मेरे छेदने की तो कोई बात ही नहीं थी। लेकिन मैने देखा कि विश्व में अब बहुत आसान हो जाएगा। और उस वक्त मुझे ऐसा लगा कि ऊपर से जो कुछ भी शक्ति थी वो मेरे अन्दर पूरी तरह से एक ठन्डी हवा की अज्ञान का भण्डार। तो ये इतना सूक्ष्म ज्ञान इनको कैसे दिया जाए। लेकिन कुण्डलिनी जब उस स्त्री की जब जागृत हुई तो मैंने देखा कि उसके अन्दर एक सूक्ष्म शक्ति आ गई और उस सूक्ष्म शक्ति से वो मुझे समझने लग गई। उसके बाद बारह आदमी पार हुए। तरह से मेरे अन्दर चारों तरफ से आ रही थी। और मैं यह समझ गई कि कार्य को शुरू करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि जो उलझन थी वो खत्म हो गई और निशचिंत हो गई। बिल्कुल निश्चिंत होकर के मैने सोचा कि अब समय आ गया है आखिर होना चेतन्य लहरा 12 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt हूं, और फिर धड़ से नीचे गिर जाती थी। उठाओ फिर धड़ से नीचे और फिर जब (collectively) सामूहिक में तो बड़ी मुश्किल हुई। और फिर अजीबों गरीब सवाल पूछना, ये और वो। दुनिया भर की बातें। जब मैं उसका जवाब देती थी तो वे हैरान हो जाते थे कि ये इतना जानती कैसे है? इनको ये सब मालूम कैसे हैं? बड़ी मेरी परीक्षा करते थे क्योंंकि अंहकार बहुत ज्यादा था। अब घीरे-धीरे जैसे लन्दन में पहली मर्तबा सात सहजयोगी आए। उनको, सातों हिप्पी थे पहले और नशे (Drugs) लेते थे। उनसे वो सहजयोगी बन गए। इससे ये तो हुआ कि मतलब एक पार होने के बाद एकदम हैरान हुए कि उनकी आँखों में एकदम चमक आ गई और वे देखने लगे सब चीजों को। एक अजीबो-गरीब संवदेना उनके अन्दर आ गई। जिससे वो महसूस करने लगे। शुरुआत के बारह लोगों के हर एक चक्र पर मैंने अलग-अलग काम किया क्योंकि जो नीव में चीज़ पड़ती है वो मजबूत होनी चाहिए। उसकी मजबूती करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। क्योंकि हालांकि उनकी कुण्डलिनी जागृत हो गयी थी आप जानते हैं कि कुण्डलिनी के जागृत करने के बाद भी उसको ठीक दशा में ले जाने के लिए ध्यान घारणा आदि करनी पड़ती है और उसको बिठाना पड़ता है। इन बारह आदमियों पर मैने बहुत मेहनत की और उस मेहनत के फलस्वरूप थे जरूर मैने जान लिया कि ये बारह आदमियों की बारह प्रकृतियाँ हैं और इनको साथ में बिठा के एक साथ किस तरह से कहना चाहिए कि आत्मा की जो प्रकाश शक्ति है उसको किस तरह से संगठित करना च्नाहिए। उसको किस तरह से, जैसे कि हम सुई में फूल पिरोते हैं-तो बिं वसी तरह का सहारा मिल गया। निश्चिंत हो गयी कि सहजयोग से लोग नशे (drugs) छोड़ देंगे। लेकिन अब इन नशेड़ियों को ठिकाने लगाना कोई आसान नहीं था। उसमें एक अच्छाई थी, क्यांकि ऊपर जो हमने मेहनत करी उससे एक अनुभव आ गया कि कठिन से कठिन भी कोई इन्सान हो जब उसकी इच्छा होती हैं कि उसे योग प्राप्त होना चाहिए, उसे आत्मज्ञान होना चाहिए, इच्छामात्र अगर हो तो वो पार हो जाता है। मैं सबसे कहती थी कि आप हृदय से इच्छा करो कि आपको आत्म-साक्षात्कार मिले। उसी पर लोग खट से पार हो जाते थे। उसमें अनेक देशों के अनुभव है मेरे पास। जैसे रूस है या यूक्रेन है या रामानिया है, इन देशां का मेरे ख्याल से हमारे देश से कभी सम्बन्ध रहा होगा जबरदस्त और यहां से नाथपंथी जैसे माच्छिन्दरनाथ, गौरखनाथ, ये लोग गए होंगे जरूर। क्योंकि इनके यहां जो चीज़े मुझे मिली उससे पता हुआ कि ये लोग कुण्डलिनी के बारे में ईसा से 300 वर्ष पूर्व से जानते थे। तब ये समझ में आया कि ये लोग इतनी जल्दी पार कैसे हो जाते हैं। मका वो समग्रता हमें किस तरह से आती है। इन बारह आदमियों की अलग-अलग प्रकृतियों को किस प्रकार एक सूत्र में बाँधा जाए। और जब उनकी जागृति हो गई तब मैने देखा कि उनके अन्दर, सबके अन्दर, एक सूत्रता बनती जा रही है। थोड़ी बहुत मेहनत भी करनी पड़ी मुझे। लेकिन किसी को बताने के लिए, जनता जर्नादन को बताने के लिए मैने सोचा अभी उसके लिए आसान नहीं, लोगों को समझ में यह बात नहीं आएगी। फिर कावरजी जहाँगीर हाल में एक (Programme) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वहां मैने पहले बताया कि कितने राक्षस आए हुए हैं और कितनी राक्षसनियां आई हुई हैं ये लोग क्या करेंगे। तो सब लोग घबरा गए। कहने लगे कि जब माताजी ऐसी बात करेंगी तो इनका तो कोई (murder) कत्ल कर देगा। तो बताया मुझे कि ऐसी बातें आप मत करिए नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। मैने कहा अभी तक तो मुझे मारने वाला कोई पैदा नहीं हुआ है। और आप लोग निश्चिंत रहिए। धीरे-धीरे ये जो छोटी-छोटी सरिताएं थीं, सबके अन्दर, छोटी छोटी नदियां थी कुण्डलिनी की, उनको मैने कहा कि आप लोग सब मेरी कुण्डलिनी पर ध्यान करें। तो ध्यान करते ही वो निर्विचार हो गए। और निर्विचार होने के साथ , उनको ये लगे कि मेरे साथ उनका बड़ा तदातम्य हो गया है। धीरे-धीरे निर्विचारिता बढ़ने लगी। धीरे-धीरे सामूहिकता का नया प्रकाश शुरु हो गया। ये पहलै मैने कावरजी जहांगीर हाल में देखा। हिन्दुस्तानी लोग, भारतीय लोग हैं जो हैं, जो इस भूमि में इसलिए पैदा हैं कि वो बड़े ही धार्मिक लोग हैं। बहुत ही सुन्दर इनका महाराष्ट्र में बहुत काम किया नाथपंथियों ने और मैनं भी बड़ी मेहनत की पर दुःख की बात ये है कि जो चीज़ हम उत्तर भारत में कर पाए वो महाराष्ट्र में मैने अभी भी नहीं देखी है। समझ में नहीं आता कि जहां पर सन्तों ने अपना खून निकाला, हरेक महाराष्ट्रीयन को मालूम है कि नाथ कौन थे और उन्होंने क्या कार्य किया, फिर भी पता नहीं क्यों जो चीज़ मैने उत्तरी भारत में पाई यहां नहीं है। पहले तो मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी, सालों मेहनत करी वहां भी। लेकिन उसके बाद जो सहजयोगी वहां मिले और जिस तरह से सहजयोग फैल रहा है उससे मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। उतना प्रवाह देखकर के यह आश्चर्य होता है कि यहां पर इतना सन्त साधुओं ने काम किया है कितनी मेहनत की है और बचपन से हम लोग यहीं सीखते आए, पढ़ते आए और सब लोग यहीं बाते करते रहे, उस महाराष्ट्रं में सहजयोग उतना गहरा नहीं बैठा जैसा कि उत्तर में बैठा है। इसका क्या हुए जीवन रहा होगा। क्योंकि हिन्दुस्तान में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। बहुत जल्दी लोग पार हो जाते थे। शुरुआत में जरूर थोडा बहुत समय लगा, लेकिन परदेस में तो हाथ टूट जाते थे। किसी की कुण्डलिनी उठाना ऐसे लगता था जैसे कोई पहाड़ उठा रही कारण हो सकता है? एक ही मुझे लगता है कि जब इन्हें पहले से ही सब चीज़ मालूम है तो उसके प्रति उदासीनता (Indif- ference) हो जाती है। संस्कृत में एक श्लोक है-जिसका अर्थ बैतन्य लहरी 13 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt में जाओ तो 150001 फिर आप फरीदाबाद मे जाओ तो 16000, आप हरियाणा में जाओ तो वहां 25000, ये तो हज़ारों की बात होती है और महाराष्ट्र में ये कि 800 आदमी यहां है, 500 आदमी वहां है, 700 आदमी वहां हैं। इसका कारण क्या है ये में आज तक नहीं समझ पाई! यही अगर सोचना है तो यही सोच सकते हैं कि यहां पर आत्मज्ञान, आत्मबोध, महानुभावपंथ आदि अनेक चीजें इतनी ज्यादा असलियत की हो गई कि अब इधर ध्यान ही नहीं। ऐसे इन लोगों को महाराष्ट्र में पैसे की ललक नहीं है, जैसे आपको गुजरात में, उत्तरप्रदेश में भी उत्तर भारत में भी काफी पैसों की ललक है। महाराष्ट्र में यह बात नहीं। सुबह है कि जब बार-बार आप कहीं जाते हैं, बार-बार आप किसी से मिलते हैं तो आपका अनादर होने लगता है। फिर आपका आदर नहीं रह जाता क्योंकि प्रयाग में रहने वाले लोग, इलाहबाद में रहने वाले लोग गंगा जी में नहाने की बजाए, त्रिवेणी का संगम है, घर के कुओं पर नहाते हैं और लोग दुनिया भर से जाते है वहां आफते उठा करके नहाने के लिए। यही बात शायद हो कि जो इतनी मान्यता सहजयोग को उत्तर में मिली। यहां भी ऐसा नहीं है कि सहजयोगी नहीं है। महाराष्ट्र में भी बहुत सहजयोगी हैं और बहुत कार्याप्वित भी हैं। पर सहजयोग के प्रति जो समर्पण चाहिए वो मैने तो कम ही देखा है, अब पता नहीं शायद बढ़ गया हो! समर्पण का मतलब है कि हमें सहजयोगी पद जो मिला है उस सहजयोगी पद को हम किस तरह से इस्तेमाल करें। वो सिर्फ हम अपने लाभ के लिए, अपनी ही तकलीफों के लिए, अपने ही परिवार के लिए सोचते हैं ये कुछ समझ में नहीं आता कि महाराष्ट्र की जो संस्कृति है और जो महाराष्ट्र में धर्म की इतनी गहन छाप है उस महाराष्ट्र में सहजयोग इतना नहीं पनप पाया। और गुजरात में नारगोल में जहाँ ब्रह्मरन्ध्र खोला वहां तो बहुत ही कम है। गुजरात के लोग तो मेरी समझ में ही नहीं आते। बहुत मेहनत की गुजरात में, लेकिन सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में मेहनत की। क्योंकि आज यहां महाराष्ट्रीयन लोग बहुत हैं, मुझे कहना यह है कि सहजयोग को बढ़ाने के लिए सबसे पहले आप ध्यान-धारणा करें और गहरे उतरें। जब गहरे आप उतर जाते हैं तो आपको लगता है कि मैं ही क्यों इसका मजा उठाऊँ, और लोग भी इसका मजा उठाएं। जब यह भावना अन्दर आती है तो सहजयोग फैलता है और उसके बाद मनुष्य जो है अपने जीवन में यही सोचता है कि दूसरों को सुख देना, दूसरों को आनन्द देना इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं है । भूल जाता है । ये सब होता है तब सहजयोग बढ़ता है। रात दिन यही चिन्तन रात-दिन वही सोचना, इसमें मजा आता है। से शाम-सुबह 4 बजे उठकर भगवान का ध्यान करना ये करना वो करना। पर उसमें एक तरह से मशीनों जैसी बात थी उसे हृदय से करें भक्ति से करें और उस भक्त को बाटने की कोशिश करें। ये महाराष्ट्रीयन को करना चाहिए। माना मैने महाराष्ट्र में ही हमारा गणपतिपुले का कार्यक्रम होता है। महाराष्ट्र में काफी अच्छे सहजयोगी हैं, गहरे, बहुत गहरे। यहां की युवाशक्तियां भी बहुत अच्छी हैं। लेकिन तो भी मैं कहूंगी कि जिस तरह से सहजयोग उत्तर में फैला, अब जहां देखो वहां, अब बाराबंकी में है हमारा जो सुसराल है बहां है। हरेक गांव में हर जगह। जहां एक आदमी पहुंच गया सब सहजयोगी बन गए। जैसे एक सूखी हुई लकड़ी रहती है उसमें जरा सी चिंगारी छेड़ जाए तो आग लग जाती है, उसी तरह से वहां है। ये आखिर किस कारण इतनी जोरों में बह रहा है। समझ में नहीं आता और जो हो जाते हैं वो कोई सवाल नहीं कुछ नहीं। पर महाराष्ट्र में सवाल बहुत पूछेंगे क्योंकि पोथियां सब पढ़ बैठे हैं। आप देखिए किसी महाराष्ट्रीयन के यहां कम से कम दस गुरुओं के फोटों होंगे । उसमें से सच्चे शायद एकाध ही हो और सब तरह की मृर्तियां होगी। गणेश जी का यहां पर है। चार यहां गणेश जी बैठे हुए हैं। जैसे की कहने चाहिए वैसे तो अष्ट विनायक हैं पर चार मैं इसलिए कह रही हूँ कि एक-एक गणेश के दो पक्ष या दा तरह के विशेष अलग-अलग यहां है। उसके बारे में महाराष्ट्रीयन जानते हैं। वहां जाएंगे गणेश पूजा करेंगे, और यहां तीन देवियों का प्रादुर्भाव है। ये सब होते हुए भी मन्दिरों में जाएंगे महालक्ष्मी मन्दिर में जाएंगे। वो सब करेंगे और अब अगर सहजयोग में आए है तो अब छुट्टी हो गई। कुछ भी नहीं करने को ा और सब चीजों को आज यहां देखकर में बहुत खुश हुई कि सारी दुनिया से यहां लोग आए हैं। इसके अलावा और भी लोग जो कहना चाहिए कि परदेश से तो लोग आए ही हैं, यहां के लोग भी आए और दिल्ली वगैरह से भी इतने लोग यहां आए हैं। कम से कम ये बड़ी मुझे आनन्द की बात लगती है कि इस कठिन जगह आप सब लोग पहुँच गए। ये तो प्रेम की महत्ती है और ये सिर्फ प्रेम में आप लोग यहां पहुंचे हैं| ये बहुत बड़ी चीज़ है। अब देखिए कोल्हापुर में कितनी मेहनत की है। कोल्हापुर में बहुत मेहनत करी है। लेकिन कोल्हापुर में सहजयोग बहुत कम है। आश्चर्य की बात है। ऐसा क्यों होता है। उन्होंने कहा पन्धरपुर में आठ सौ सहजयोगी हैं। पर ऐसा बाहर नहीं होता। गाजियाबाद बड़े आश्चर्य की बात है। आज क्योंकि यहां पर बहुत से महाराष्ट्रीयन आए हैं मैं बताना चाहती थी कि दिल्ली से न जाने कितने लोग-इतने लोग महाराष्ट्र से कहीं नहीं जाएंगे। मराठी मं इनको घर कोबड़े कहते हैं। मानो बस वो अपने ही देश में रहेंगे । बम्बई वाले आपको कभी भी दिखाई नहीं दंगे की पूना में जाकर काम करें। और पुना वालो को तो एक तरह का गोंद चिपका चैतन्य लहरी 14 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt हुआ है। मैं इसलिए कह रही हूँ कि कभी -कभी खुले आम यह बात कहने से ठीक हो जाती है। खुले आम कहना पड़ेगा कि महाराष्ट्र में सहजयोग का जो ठिकाना हुआ है उससे तो बाहर के लोग अच्छे, बकते हैं सिर्फ, लेकिन लाखों लोग आये। गुजरात का तो क्या कहना इनके तो ऐसे-ऐसे गुरुओं को पकड़े हैं, पर महाराष्ट्र को क्या हुआ? जिसमें रामदास स्वामी ने सब गुरुओं की चर्चा की हैं और उसमें बताया है कि ध्यान करें। इतना ही नहीं ज्ञानदेव ने इतना साफ सहजयोग समझाया, रोज वही गाते हैं, नामदेव ने जो लिखा है, जोगवा का गाना, वो रोज देहातों में गाते है कि माँ तुम हमें योग दो। पर योग करने के लिये किसी को फुरसत नहीं। आप किसी गाँव में जाओ तो वहाँ खूब भीड़ हो जाएगी, जब मैं जाऊँगी, उसके बाद दो आदमी भी मिल जायें तो बड़ी हैरानी की बात है। तो मैं ये कहूँगी कि महाराष्ट्रीयन लोगों को चाहिये कि कुछ इन लोगों के लिये प्रार्थना करें, हवन करें, कुछ न कुछ ऐसी सामूहिक चीज़ करें जिससे महाराष्ट्र की जागृति वैसी ही हो जाये जैसे उत्तर भारत में हुई है, जैसे की रूस में हुई है। वैसे समर्पित जो हैं वो बहुत अच्छे है। लेकिन अभी सहजयोग क्यों बढ़ता नहीं? ये मरी समझ में नहीं आता। बहुत घीरे-धीरे बढ़ रहा है। कोल्हापुर जगह में न जाने कितनी बार पूजायें हुई, देवी का मन्दिर बहुत सुन्दर है, सब कुछ है पर वहाँ पर इतनी गहनता नहीं। उसके लिये सामूहिक रूप में सब लोग ध्यान दें, क्योंकि महाराष्ट्र बहुत बड़ा देश है। बहुत ऊँचा देश है और धर्म की दृष्टि से जो है, सो हैं पर आध्यात्मिकता की दृष्टि से बहुत ऊँचा देश है और इसलिये सब को चाहिये कि वो महाराष्ट्रं के लिये थोड़ी सी जागृति की बातचीत करें। ऐसे कोई झगड़ा नहीं है, कोई परेशानी नहीं है लेकिन जो सहजयोग बढ़ना चाहिये वो न जाने आजतक तो इतना बढ़ा नहीं, हो सकता है आगे ठीक हो जाये अब जो आप लोग इतने यहाँ आये इससे ने जाने क्यों मुझे एक अजीब तरह की अनुभूति हुई कि जिस तरह से पच्चीस साल में इस छोटी सी जगह में आप लोग आये, पच्चीस साल तक हमने मेहनत की। ये बात मैं मानती हूँ। मेहनत बहुत की पर पच्चीस साल के बाद इतने लोग इस नारगोल का महत्त्व समझेंगे और यहाँ आयेंगे ये बड़े आश्चर्य की बात है। नारगोल का हमारे सहजयोग में मतलब होता है सहस्रार। जब मैं यहाँ आई तो यहाँ का बनश्री वगैरह देखकर बहुत तबियत खुश हो गई और एकदम अन्दर से ऐसा लगा मानों प्रकृति की किसी बड़ी भारी आशीवादित जगह हम आ गये हैं । बहुत अच्छा। और जब वो तो मई का महीना था लेकिन मुझे बिल्कुल नहीं गर्मी लग रही थी तब। जब सहजयोंगी आते हैं तो ठीक है उनकी गर्मी मैं खींचती रहती हैूँ, लेकिन यहां तो कोई सहजयोगी नहीं थे इन दिनो में कुछ गर्मी नहीं लगी और जब सहस्रार तोड़ा तो मैने देखा कि कोई इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं है। ज्यादातर गुजराती लोग थे उसमें महाराष्ट्रीयन कम थे। और महाराष्ट्र में ही जो चीज़ इतनी खुल करके निकली, ै। इतनी किताबें आप देखियेगा महाराष्ट्र में, असली किताबें, झुठ नहीं जो सत्य हैं वही लिखा हुआ है। चक्रों पर लिखा हुआ है, कुण्डलिनी पर लिखा हुआ है। सब कुछ इतना लिखने पर भी यहाँ उस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद लोग उसका इस्तेमाल अगर करें तो न जाने कितना बढ जायें| कितना यहाँ सहजयोग बढ़ सकता है। अब हमारी जो सहजयोग की प्रणाली है वो इतने लोगों में फैल गई है, इतनी गहरी पहुँची है, जो आपने ड्रामा देखा उससे समझ गये होंगे। इस ड्रामे में उन्होंने दिखा दिया, अपने दिमाग से सोच करके, कि माँ क्यों आई? कि सब लोगों ने कहा हमनं बहुत मेहनत करी, हमने पूरी कोशिश करी कि इन्सान जो है वा आध्यात्मिक में आ जाये और परमात्मा कि ओर उसकी नजर जाये और उसको किसी तरह से योग प्राप्त ही। पर कुछ चीज़ बनी नहीं। इसलिये अब हम देवी से कहते हैं कि तुम्हीं अवतरण ला। आदिशक्ति से कहते हैं कि तुम्हीं अवतरण लेकर के, जो तुमने ये संसार बनाया है उसको ठीक करो। विल्कुल पते की बात है, इसमें कोई शक नहीं। हुआ भी ऐसा ही और बना भी ऐसा ही। सारा जो कार्य है इस तरह से बड़े सुचारु रूप से बदला है और जिस वक्त में ब्रह्मरन्ध्र को तोड़ा था उस वक्त सोचा भी नहीं था मैंने कि मेरी जीवित रहते हुए इतना मैं कार्य देख सकती हूँ। पर ये कुण्डलिनी की महिमा है और परम चैतन्य का कार्य है। परम चैतन्य से तो मैं खुद हार गई कि पता नहीं क्या कर देगा। हालांकि मेरी ही शक्ति हैं लेकिन ये परम चैतन्य आप दंख रहे हैं, तरह-तरह के फोटोग्राफ मेरे बना रहे हैं, तरह-तरह के चमत्कार दिखा रहे हैं, पचासों तरह के चमत्कार। जैसे मेक्सिको में एक स्त्री थी, वो यूएन-ओ० में कार्य करती थी। न्यूयार्क से। वहां मुलाकात हुई तो उसके बाद वो पार भी होई और वो मैक्सिको चली गई। वहाँ नौकरी मिल गई यूएन० में। उसने चिट्ठी लिखी कि मेरे लड़के की तबियत बहुत खराब हो गई है। छोटा लड़का है, उम्र में बहुत छोटा है, और ये बीमारी हमारे खानदान में होता है जब लोग बिल्कुल बृढ़े हो जाते हैं। पर इस बच्चे को इतनी छोटी उम्र में ही हो गई और अब ये बच नहीं सकता। इसके लिये माँ मैं क्या करू? उसको ले आँऊ। तीन चिट्ठियाँ उसने लिखीं। ये परम चैतन्य की बात बता रही हूँ। और चौथी चिट्ठी में उसने लिखा कि लड़का अपने आप से ठीक हो गया है। वो हावर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ता था। एकदम ठीक हो गया। उसकी ये बीमारी एकदम ठीक हो गई। डाक्टरों ने कहा, किया क्या है तुमने? वो केसे ठीक हुआ? तो ये परम चैतन्य जो है उससे बढ़ कर कोई डाक्टर भी नहीं है। जिस तरह से ये काम करते हैं श 15 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt जो कार्य हुआ, इतना बड़ा, इतना महान, वो मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसी इतनी जल्दी क्यों हो गया। ये वही परम चैतन्य है। अब कहिए कि मेरी शक्ति है, लेकिन मैं ही मेरी शक्ति का नहीं जानती हूँ। ऐसा हाल हो गया, इतने जोरों में दौड़ रही है कि समझ में नहीं आता कि अब क्या करेगी। आगे क्या करेगी। मतलब ये है कि ये जो शक्ति है, ये इतनी अब आतुर ह है कि संसार में ये जो विश्व का परिवर्तन है (Global ये कमाल है। तो अब किसी ने पूछा कि ये गणेशजी दूध पी रहे है, ये क्या है? मैने कहा कि भाई ये परम चैतन्य कृतियुग में आ गए हैं और कार्याविंत है। अब ये जो करे सो कम। गणेशजी को दूध पिलाएंगे, वो शिवजी को दूध पिलाएंगे, इसको कुछ कह सकते हैं। कौन सी बात ऐसी है जो परम चैतन्य नहीं कर सकते? हर तरह के वो काम करते हैं, एक साहब थे केनेडा में, ये भी काफी पुरानी बात है, सो उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी कि माँ मेरे पास पैसे नहीं हैं और इस कार्य के लिए इतना रुपया चाहिए। मैने कहा अच्छा कोई बात नहीं दूसरे दिन उसने फोन किया कि माँ मुझे रुपया मिल गया। मैंने कहा कैसे? मैने दराज़ खोला तो उसमें रुपया रखा था। मैने कहा हे भगवान, मैने तो रुपया भेजा नहीं इसको रुपया कहाँ से मिल गया। उसने कहा कि जितना मुझे चाहिए था, पूरा उतना मिल गया। ऐसे तो बहुतां को अनेक अनुभव हुआ है, अनेक अनुभव आ रहे हैं, क्योंकि परम चैतन्य जो हैं वो आशीर्वाद स्वरूप हैं। हर जगह आप को आशीर्वाद देंगे, शान्ति देंगे, प्रेम देंगे। हर तरीके से आप को सम्भालंगे। सब कुछ है लेकिन उनकी जो चाल है न उसमें बहुत गति आ गई है। मेरे खुद ही नहीं समझ में आता कि ये इतने कार्य कैसे करते है ? अमेरिका जैसी जगह जहां के लागों को बिलकुल भी, कहना चाहिए, सूझबूझ नहीं है अध्यात्म की, इस समय अमेरिका में इतना बड़ा कार्यक्रम हुआ। इतने बड़े सभागार में लोगों को बैठने की जगह नहीं थी और पाँच मिनट में सब लोग पार हो गए, पाँच मिनट में वही । हैं, ललायित transformation) ब्रह्माण्डीय कारयापलट है उसकी करने में बिल्कुल देर नहीं करनी है। पर जो इसमें आएंगे और जो इसके लिए करेंगे वही प्राप्त कर सकते हैं। अब महाराष्ट्र के लिए ही में आपको बताना चाहती हूँ कि ये शक्ति कार्यान्वित हो रही है, बड़े जबरदस्त। और आप लोगों को सबको चाहिए कि इसमें पूरी तरह से आप जान लें, समझ लें। इस शव्त की जो कार्य की प्रणाली है उसे समझ लें और उसके माध्यम से आप कार्य कर सकते हैं। अगर वो आप इस्तेमाल करना शुरु कर दें इस शक्ति को, तो हर कार्य आप कर सकते हैं। अगर कोई आदमी आप को सता रहा है, तो उसको भी एक तरह से बन्धन दे सकते हैं। कोई कार्य करना हो उसको बन्धन दे सकते हैं, सिर्फ बन्धन और बन्धन में क्या करते है।? आप कि ये जो शक्ति आपके अन्दर से बह रही है उस शक्ति को ही आप लपेटते हैं और उस शक्ति को उससे जो भी आपको प्रश्न है, जो भी आप के लिए एक समस्या है, उसको आप बन्धन दे देते हैं। वो शक्ति उस पर कार्यान्वित होती है। आप के पास ये शक्ति है। आप इतने शक्तिशाली हैं कि अगर आप इसको इस्तेमाल करें तो न जान कहाँ से कहाँ पहुँच जाएं। पर मनुष्य खोया हुआ है और पार होने के बाद भी अभी जब तक हम लोग इसको विशेष न समझे तब तक सहजयोग फैलाना बड़ा मुश्किल है। रोमानियां देश, जिन्होंने कभी सुना ही नहीं कि आदिशक्ति नाम की क्या चीज़ है, ऐसा मैं सोचती हूँ, वहाँ सहजयोग इतने जोर से फैल रहा है। बड़ा आश्चर्य हैं। वहाँ पाँच हज़ार सहजयोगी हैं एक शहर में| अब तो और बढ़ गए हैं। वही चीज़ इस महाराष्ट्र में होना चाहिए। बार-बार मुझे इसकी चिन्ता लगी रहती हैं कि ये चीज़ महाराष्ट्र में क्यों नहीं है, क्यों नहीं सहजयोग इस तरह से फैल रहा, जैसा फैलना चाहिए। बड़े-बड़े शहर हैं, बड़ी-बड़ी जगह, वहाँ ये कार्य होता है। तो आज के दिन एक बहुत बड़ी बात हुई हैं कि पच्चीस साल इस चीज़ से जूझते जूझते इस दशा में हम आ गए कि यहाँ पर, इस जगई आप लोग आए इसका गौरव बढ़ाने, इसकी महत्ता बढ़ाने और इसको पुनीत करने। मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं साचंती हूँ तो जी मेरा भर आता है आप लोगों को देखकर कहाँ-कहाँ से आप लोग यहाँ आए। पिति फिर लास एंजलज़ में हुआ मैं हैरान हूँ। ये लोग इतने मूर्ख हैं इनके साथ ऐसे-कैसे हो गया पाँच मिनट में। फिर कनाडा गए. वहां भी पाँच मिनट में, उससे आगे में गये वहां भी कुछ समझ में आया ही नहीं क्या हो गया। तो परम चैतन्य की कृतियाँ भी इतनी बढ़ गई हैं, इतने तरह-तरह की हो गई हैं कि कोई समझ नहीं सकता कि क्या बात है। और ये किस तरह से घटित होता है अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं कहूं कि भईया नहीं पता। अब किसी ने मेरा फोटो लिया कि मैं चाहती हैँ कि जिस तरह से माँ के बारे में कहा जाता है कि उनके चरणों में चाँद और सिर पर सूरज, वैसा फोटो मुझे मिल जाए और वाकई में ऐसा फोटो आ गया। आप लोग जिस चीज़ की इच्छा करें वो हो जाती हैं, इसको क्या कहना चाहिए? इस परम चैतन्य की अपनी शक्ति जो है, इतनी सुचारु रूप से चलती है और इस कदर जानती है, हरेक की तकलीफ़, परेशानियाँ बड़े प्यार से, दुलार से उसको ठीक करती है। इस परम चैतन्य का जो महत्त्व है, आज तक आपने आदिशक्ति की पूजा की है, उसी वक्त आपने उस परम शक्ति की भी जिसे की परम चैतन्य कहते हैं, रुह कहते है।, उसकी भी पूजा की। यहाँ पर जब मैं आई तो मैने उसी का प्रादुर्भाव सब जगह देखा और सोचा कि यहाँ कुछ न कुछ देवी ने आशीर्वाद दिया हुआ है पहले ही। और वाकई में यहां इतने जल्दी खट से परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 16 या 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt सार्वजनिक कार्यक्रम दिल्ली : 3-12-95 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार। इस भारत वर्ष में अनादिकाल से सत्य की खोज होती रही है, ये हमारे शास्त्रों से ज्ञात होता है। अनेक मार्गों से हमने सत्य की खोज की। अपना देश एक विशेष रूप से अध्यात्मिक है उसका कारण ये कि अपने देश में बहुत सी बातें सुलभ हैं। हम जानते नहीं कि हमारा देश कितना समृद्ध है और कितना पावन है, और यहाँ के लोग कितने सरल और मलरहित हैं। विदेश के लोगों को हम लोग मलेच्छ कहते थे क्योंकि देखते थे कि ये लोग जो यहां आये इनकी सारी इच्छायें ही मल की ओर जाती थी। हमारे जमाने में, क्योंकि अब तो हम बुड्ढे हो गये हैं; तो ये देखा जाता था कि ये जो लोग बाहर से आये हैं, ये कितने उथले हैं, इनकी सारी दृष्टि कितनी उथली है, इनकी जो इच्छायें होती थी वो कितनी उथली हैं। धीरे-धीरे अपने देश पर भी इस पश्चिमात्य संस्कृति की बड़ी जबरदस्त पकड़ आने लगी। उसका कारण यह था कि तीन सौ वर्ष हुए हमारी खोपड़ी पर ये लोग लद गये और हम लोग धीरे-धीरे ये समझने लग गये कि ये बड़़े महान हैं जो हमारे देश में आये हैं और हमारे ऊपर राज कर रहे हैं। वास्तिवकता में इन्होंने सबको वेवकूफ बना-बना कर ही अपना कार्यसाध्य किया। दूसरे कर्मकाण्डों की बजह से अनेक तरह की विचित्र विचित्र रीतियां-कुरीतियां हमारे समाज में आ जाने के कारण हम लोग संस्कृति विहीन बनते गये। हमारी संस्कृति मिटती गई। विशेषकर उत्तर हिन्दुस्तान में मैं कभी भी नहीं सोच सकती थी कि इतने साधक सामने होंगे। इसका कारण हो सकता है कि पूर्वजन्म के आप बहुत बड़े साधक रहे हों और आपने बड़ी साधना की हो जो आप आज सत्य जानने के लिये आतुर हो गये हैं नहीं तो हर तरह के धर्ममार्तण्डयों ने, तथा झुठे लोगों ने इतनी गलत-गलत बातं देश में फैला दी थी और उसके पीछे इतने लोग लग गये थे। आज ऐसा समय आ गया है कि लोग सोचते हैं कि सत्य को ही पाना चाहिये। सत्य की परिभाषा क्या है? जो जानना है वो सत्य क्या है? ये अगर मैं आपको बताऊँ तो आपको विश्वास नहीं कर लेना चाहिये क्योंकि मैं कह रही हूँ। किन्तु इसे परखना चाहिये। सत्य यह है कि आप ये शरीर, बुद्धि, मन, अंहकार और कुसंस्कार आदि नहीं हैं, किन्तु आप स्वयं साक्षात आत्मास्वरूप हैं। आत्मा क्या है? आत्मा उसी परमात्मा का आप में आया हुआ प्रतिविम्ब है, वो आप हैं; वो आपको बनना है और बाकी जो कुछ है वो सब व्यर्थ हैं। क्योंकि जब तक आपने अपने को नहीं पहचाना तब तक आप किसी भी चीज़ की यथार्थिता (Reality) नहीं जान सकते। मोहम्मद साहब ने कहा है" अगर तुमने अपने को नहीं पहचाना तो तुम परमात्मा को नहीं पहचान सकते। इसलिये पहले अपने को पहचानना चाहिये, मायने पहचानना जो है वो एक विशेष स्थिति है। आज आप मानव स्थिति में है और मानव स्थिति से आगे और कोई स्थिति जरूर होनी चाहिये नहीं तो आजकल का जो हम संसार में उपद्रव देख रहे हैं और जो हर तरह की नष्ट-भ्रष्ट व्यवस्थायें देख रहें हैं तब इसका कोई न कोई एसा मार्ग तो होगा ही जिससे मनुष्य का उद्धार हो जाये। उनके उद्धार की बात तो सब साधु-सन्तों ने कही और जितने भी बड़े-बड़े अवतरण हुये उन्होंने कही। फिर वो उद्धार कब होगा और कैसे होगा? सहज प्रणाली की बात मैने कही ऐसी बात नहीं। अनादिकाल से इसे सहज कहा जाता था। जो ये प्राप्त करना सहज। पर पहले जमाने में ऐसे-ऐसे लोग हो गये जो गलत रास्ते पर लोगों को ले जाते थे। ये किताब पढ़ो तो हो जायेगा, गंगाजी में नहओ तो हो जायेगा, नहीं तो और कुछ उपद्रव करो तो हो जायेगा। ऐसी नानाविध उपकरणों से आच्छादित कर दिया पूरी तरह से ढक दिया, उनके दिमाग में भर दिया। अब जैसे छोटी सी चीज़ है, सत्य नारायण की पूजा '। अब लोग उसमें दिमाग भी नहीं लगाते कि नारायण तो स्वयं सत्यस्वरूप हैं, उसमें सत्य लगाने की क्या ज़रूरत है? अन्धे जैसी ये सारी प्रथायें हमारे यहां होती रहीं। ये हिन्दु धर्म में हुआ ऐसा नहीं, ईसाईयों में इससे भी ज्यादा और उससे भी ज्यादा मुसलमानों में। लकीर की फकीरी जो पकड़ ली उससे उनका उद्धार तो नहीं हो सकता, कभी भी नहीं। लेकिन जो कहा गया है कि तुम्हारे ही अन्दर जो है उसे खोजो, उसको प्राप्त करां उस चीज़ को सब भूल जाते हैं। एक तो स्त्रियाचार, ये नहीं खायेंगे, वो नहीं खायेंगे, सर मुंडायंगे और शरीर पर कुछ कपड़ा नहीं रखेंगे। ये सब करने से हमें परमात्मा प्राप्त होने वाली नहीं। एक सादी-सरल बात को सोचना चाहिये कि परमात्मा आपके पिता हैं, कोई भी पिता चाहेगा कि मेरा बेटा भूखा मरे और जो पिता के पिता, सारे पिताओं के पिता हैं, जिनसे की पिता का स्वभाव, हम पितृत्व की प्राप्त करते हैं वो परमात्मा ये चाहेंगे कि आप अपने सर मुंडाओ और भूखे मरो! किन्तु मनुष्य धर्म के मामले में सोचता ही नहीं कि जो हम धर्म पालन कर रहे हैं उससे क्या लाभ? उससे हमने क्या प्राप्त किया? हम तो जानते है कि जितने धर्मावलम्बी हैं जो धर्म के लिये बहुत कठिन से कठिन तपस्या-वरगैरह करते है। वो इस कदर गुस्सैल होते हैं कि उनके पास जाना मुश्किल है और अगर जाइये तो कोई लकड़ी-वकड़ी साथ लेकर जाइये क्योंकि उनको तो बात-बात पर गुस्सा आता है। अभी मैने एक पुस्तक में लिखा है यह है 17 चैतन्य लहरों 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt बड़ी लांच्छना। वा जमाना था उस जमाने में जैसी ज़रूरत थी उन लोगा ने वो-वो बात की। पर उनको अदल-बदल करके, ये वोकरके और टूसरी बाते सामने लाकर के और परमात्मा के नाम पर लड़ना इससे बढ़कर के कोई पाप नहीं। दूसरों को मारना। भगवान के नाम पर पीटना, भगवान के नाम पर। जो परमात्मा क्षमाशील, दयाशील, करुणा के सागर हैं उनका नाम लेकर के एसा दारूण कार्य करना किसी भी धर्म की लाच्छता है। किस चीज़ के लिये लड़ रहे थे, कोई जमीन के लिये लड़ रहा है। ऐसे लाग जो निराकार में विश्वास करते हैं वो जमीन के लिये लड़ रहे हैं अरे जब आपका निराकार में विश्वास है तो ये जमोन के लिये लड़ रहे हो? छोड़ा। लेकिन ये सव कहने से भी कुछ नहीं होन वाला। जिन्हांने एसा कहा वो निष्फल हुआ। किसी ने सुना थोड ही किसी ने माना नहीं। ऐसे भाषा ही रह गई, बातं ही रह गई लक्चर हो रह गया। लेकिन उसका कोई असरनहीं। कारण ये कि मनुष्य अंधकार से अज्ञान में पड़ा हुआ है। तब कीर ने कहा, "कैसे समझाऊँ सच जग अन्धा" वही बात थी ये दिल्ली, मैं आपसे कहती, में पहले साचती थी यहां सर पटकता विल्कुल बेकार है। लेकिन उसी दिल्ली में मंरी जीवित अवस्था में मैं देखती हूँ, न जाने किन शब्दों में, अपन आनन्द कि इसका कारण क्या है इसका वैज्ञानिक (Scientific) कारण क्या । है, वैज्ञानिक कारण ये है कि हमारे अन्दर जो जीन्स हैं उसका (data base) आधार है उसमें तीन चीजं हैं एक तो कार्बाहाइड्रेट, एक नाइट्रोजन, एक फास्फोरस। जिस वक्त हमारे अन्दर तपस्विता घुस जाती हैं तब जल-जल कर हमारा पानी खत्म हो जाता है। य जा पशियां (Cells) हैं इसका पानी खत्म हो गया। अगर फास्फोरस को आप पानी से निकाल लीजिये तो वो तो भड़क जायगा ही, और इसलिये लोग भड़क जाते हैं। तो इस कदर की तपस्विता बहुत ही शान्ति के विरोध में है क्योकि शारीरिक ही ऐसी क्रिया है आपने सुना होगा कि पहले जमाने में दुरवशा ऋषि थे जो शाप देते थे। उनको सिर्फ शाप देना ही आता था। उन्होंने किसी का उद्धार-बुद्धार किया, मैन सुना नहीं। ये आध्यात्म नहीं है, आत्मा का प्रकाश एक तरफा नहीं चलता चारी तरफ फैलता है और ऐसा आदमी अपनी शान्ति में अपने गौरव में शान्त रहता है। ये स्थिति आने के लिये कोई भी चीज छोड़ने की जरूरत नहीं। जो भी कुछ संसार मं है वो वहा अपनी जगह हैं। जैसे ही आप अपनी आत्मा को प्राप्त करेंगे, कण्डलिनी के जागरण से यह जब घटित होगा तब आप देखेंगे कि सब के साथ आपका तदातम्य है। ऐसी-ऐसी कवितार्य सुझेंगी, इतनी सूक्ष्म, ऐसी एसी बातें, दिमाग में आयेगी जो आपने कभी साचा भी नहीं, कभी आपन देखा भी नहीं, कभी आपने गौर भी नहीं किया। आपके व्यान में भी वा बात नहीं आई । इस स्थिति को प्राप्त करने के लिये पहले नानाचिध उपचार लोग करते थे गुरुओं को मानते थे, बहुत कोशिश करते थे पर नहीं बनता था। ये बात विल्कुल सही है कि कुण्डलिनी का जागरण बहुत कठिन है। एक बार किसी न श्री रामदास स्वामी, जो कि शिवाजी के गुरु थे, उनसे पूछा कि कृण्डलिनी का जाररण कितनी देर में होता है तो उनका जवाब था कि 'तत्क्षण । उसी क्षण लेकित लेने वाला भी चाहिये और देने बाला भी चाहिये। तो लने वाले तो मुझे दिखाई दे रहे हैं, सामने बैठे हैं। और य जमाना एसा आगया इस जमान में आदमी एक कशमकश में इतना ज्यादा है। ये जमाना ही कलयुग की घोर कलाओं से त्रस्त मानव का एक बहुत ही जालिम जमाना है। एक-दुसरे से बैर रखना, एक-दूसरे को तकलीप देना एक-दूसरे पर जबरदस्ती करना, वो चाहे घर- गृहस्थी में ही, चाहे बाह्या में हो, वी राजकारण में हो कि और किसी भी प्रांगण में हो, ये कार्य होता है। और बहुत से लोगां को ये एहसास हो नहीं होता कि हम गलत काम कर रहे हैं, कि हम किसी पर जबरदस्ती कर रहे हैं या किसी को हम मार रहे हैं पीट रहे हैं। और ये हर एक धर्म में हो रहा है। एसा कोई धर्म नहीं जहां मार-पीट नहीं, जहां आफत नहीं और लोग इन बातों को मानने को तैयार नहीं है कि उनका चम्म सारे धर्मों से ऊचा नहीं है, कोई विशेप घर्म नहीं है। अगर आपका धर्म एसा विशेष है तो क्यों मर रहे हो? क्यों ऐसी हालत हो रही है? क्यों तकलीफ में पड़े हो? हमारा धर्म सबसे ऊँचा है? आप अगर कल दूसरे घर्म में पैदा होत तो उस घर्म के लिये आप ये सब बातें कहते। यानि धर्म को लेकर लड़ना ये परमात्मा के लिये बड़ी भारी लांच्छना है बहुत का वर्णन कर सकती है। इस जगह जहा कण्डलिनी का नाम किसी ने सुना नहीं था, किसी से कुण्डलिनी की बात करो वो कहते थे कि आप Horoscope कुण्डली देखते हैं? में अपना Horoscope (कुण्डली) लेकर आता हू। सी में कहती थी यहां कैसे होंगा? कुछ मालुमात नहीं। लेकिन बाद में मैंने पाया कि यहां कोई एूर्वजन्म के बहुत बड़े साघु संत रहे हांगे खाजने वाले हॉंगे, ऐसे बड़े ही कोई धार्मिक लोग होंगे जो इस दिल्ली में आ गये और अब उनको ये इन्छा हो रही है कि हम अपनी आत्मा का प्राप्त करें। या जो उनकी पूर्वजन्म की एक आस थी वा आस जागृत हो गई नहीं तो में समझ नहीं पाती। मेरी शादो दिल्ली में हुई, में ता सोचती थी कि ह भगवान क्या शहर है यहाँ तो लोग सिवा कपड़ के और जैवर के और पैसा के और सत्ता के बात ही नहीं करते। कोई बात ही नहीं करते और पछते ही नहीं। उसी दिल्ली में आज आपलोग अपते आत्मासाक्षात्कार के लिये आये हुए हैं। य परम भाग्य है इस देश का। इसका सौभाग्य है क्योंकि भारतवार् एक वहत महान देश है एक योगभूमि है। लेकिन हम इसके बार में कुछ जानते ही नहीं। जय हम इस देश के बारे में कुछ जानते ही नहीं तो इससे हम प्रेम कैसे करें, इसके प्रति हम जागरुक कसे होंगे? में लन्दन जैसा जगह में रहती थी, वहां का इंग्लैंड देश इतना सा है उसमें कुछ कहना चाहिये कि हिन्दुस्तान जैसे बहुत कम लोग हैं। हरेक आदमी चण्पा-चणा जानता है। हरेक बात मानता है। और वडे गौरव से बहां कोई है नहीं गौरवशाली, सच वात तो यह है। मैंते किसी से पूछा कि ये तुम कहां से कांच का बर्तन खरीद लाये तो उसने बताया कि वो फलां जगह है North में, ऐसा है और ये वो फैक्टरी है और उसमें बनता है। मैं हैरान हो गयी बहां पड़ांसी आपस में बात नही करते। पर हर आदमी जानता है कि ये देश है। हर एक चीज को जानता है चाहे वो पढ़ा हो, नहीं चतन्य 18 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt सत्य और प्रेम दोनों चीज एक हैं। जिसने सत्य को जाना वो प्रेम से ही जान सकते हैं। जैसे आप किसी को प्रेम करते हैं तो उसके बारे हो। एक देवीजी थी देहात में। हम उनके यहां गये वो ये नहीं जानती थी कि रूस (Russia) कहां है, पर लन्दन कें बारे में, हालांकि देहात में रहती थी, सारे देश के बारे में, देश क्या है, वो इतना छोटा सा, सारे देश के वारे में एक-एक चीज, एक-एक बात जानती थी। और अपने यहां तो हम लोग सब साहब हो गये, रहते हैं हिन्दुस्तान में, या क्या हो गया पता नहीं? किसी के बारे में काई बात किसी का मालूम नहीं। अड़ोसी-पड़ासियों की बस बुराई करते थे ये। मैं पहले की बात बता रही हूं और कुछ पूछी तो हमें नहीं मालूम। यहुत गुस्से से मैंने कहा भई फलाने कहां रहते हैं? अरे वो क्या क्लर्क हैं क्या? वो तो पता नहीं, वो तो क्लर्कों की बस्ती है। तो आप कौन हैं? मैं हैड क्लर्क' हूं। मैंने में आप क्या जानते हो कि इनको क्या अच्छा लगता है। क्या बुरा लगता है। क्या कहना चाहिए और क्या नहीं कहना चाहिए, क्या खाते हैं, क्यां पीते हैं, सब चीज आप जानते हैं। उनके बोलने का इशारा क्या है? सब चोज आप जानते हैं। और उसके लिए लगन रहती है। तो जब आप प्रेम से सत्य को जानियेगा तभी वो सत्य है। और अगर आप चाहें कि आप प्रेम को हटा दे तो सत्यचुझ जाएगा, सत्य रह नहीं सकता। क्यांकि सत्य की जो शिखा है उसकी जो दीप्ति है वो प्रेम के ही तेल पर चलती है। और प्रेम का मतलब ये नहीं कि हां भई में तो अपनी लड़की से प्यार करता हूं, मैं लड़क से प्यार करता हैं, में भाई से प्यार करता हूँ। मैं घर से प्यार करता हूं, ये प्यार नहीं है। इसके लिए एक शब्द संस्कृत में "निर्वान्य" निलेप मायने अलिप्त detachedl और आप लोग कहंगे कि माँ प्रम अगर नि्लेप हो जाए तो बहुत सी बातें छूट जाएंगी। ऐसा नहीं है। एक पेड़ की ओर देखिए उसके प्रम की धारा, उसका रस सारे पड़ू में चढ़ता है। हर जगह, उसके मूल में आ जाता है, उसकी शाखाओं में जाता है, पत्तों में जाती है, फुलों में जाता है, फलों में जाता है। लेकिन रुकता नहीं। या तो बो विलीन हो जाता है आकाश की आर कहा ठीक है इस प्रकार इतना घमंड लोगो में था, इतना घमंड और जहां-तहां छोटी-छोटी बातों पर सबको बड़ा अपने बारे में में ये हूं, मैं वो हूँ। मैं फलाना हूं, मैं ढिकाना हूं। पुरानी दिल्ली में, वही हाल नई दिल्ली में! और किस बात का घमंड था सो मुझे मालूम नहीं, लेकिन एक तरह का ऐसा वातावरण था, संभात जिसे कहते हैं, illusion, संभात सबको कोई न कोई lusion में बैठा हुआ था। मैं ये हूं, मैं वो हूं. मैं वैसा हूँ। अगर आप पुरानी दिल्ली में जाईये और पूछिये कि फलानी दुकान कहां है? क्यों साहब हमारी दुकान क्या बुरी है? यहां बैठिये आप। अरे भई आप ऐसी बात कर रहे हैंतो कोन बैठेगा? इस कदर कशमकश, इस कदर आपसी बैर, इस कदर आपसी बुराई! वही दिल्ली आज सुव्यवस्थित होना चाहता है। आपस में प्रम करना चाहता है। उस एकाकारिता को प्राप्त करना चाहिए जो परमात्मा की दन है। इससे आप ही बताइये मुझे क्या लग रहा होगा? बहुत दुनिया देखी है। और इन दिल्ली वालों को मैं हजार वार नमस्कार करती हूँ। अब आप लोग अपनी जिम्मेदारियां भी समझ लें। आप ऐसे शहर में रहते हैं कि जिससे अपने भारतवर्ष की शौहरत सारी दुनियां में जानी जाती है। दिल्ली में जो कुछ भी होता है वी सारी दुनिया में जाना जाता है। क्या हो रहा है यहां पर? यहां के लोग कैसे हैं? एक आदमी अगर दिल्ली में मर जाए तो सारी दुनिया में शौहरत हो जाएगी पर 25 आदमी और कहीं मर जाएं तो उससे कोई मतलब नहीं। तो इसका मतलब ये तो हो गया कि आप महत्वपूर्ण हैं। और आपका महत्व ये है कि इस देश के प्रतिनिधि हैं इस योंगभूमि के, इस भारतवर्ष के आप प्रतिनिधि तार या वापिस पृथ्वी में चला जाता है। वी किसी जगह रुकता नहीं। गर वो रुक जाए तो समझ लीजिए जैसे उसे एक फल पसन्द आ गया या एक फूल बड़ा पसन्द आ गया तो वा पेंड़ ही मर जाएगा और फल फुल सभी मर जाएंगे। इसलिए जिसका जो देना है उसका वो देना चाहिएे। जिसको जो रस देना है वो अपने घर में गृहस्थी में, समाज में 3पने देश में और सारं विश्व में जिसको जा देना है वो दीजिए । लंकिन उसमें लिपट न. जाइये। उसमें लिपटना जो है वो एक तरह से कहता चाहिए जिसे अंग्रेजी obsession कहते हैं चिपकना, अब वो कोई सी भी चीज़ हो उसमें प्रेम की शक्ति क्षीण हो जाती है बढ़ेगी नहीं। कहत हैं "उदार चरितणाम वसुधाऐव कुटुम्बकम्" सारी वसुथा ही, सारी ध रा ही उसका कुटुम्ब है। ये प्रेम की महिमा है। इस प्रेम की महिमा को अगर आपने जान लिया तो आपको आश्चर्य होगा कि आत्मा कं दर्शन से ये घटित होता है, मैंने देखा है कि जब लोग सहजयोग में आते हैं तो सबसे पहले वा देखते हैं कि मेरे अन्दर क्या त्रृटिया है? मुझे आकर बताते हैं कि माँ ये देखिये मैं महामुर्ख हूं, मैंने ऐसी-एसी मुरखता करी। ये की। मैंने कहा अच्छा अपना confession मुझे दे दो, तुम लिख कर रख दो। फिर मैं ऐसा बना, मैंने उसे ठगा, मैंने उससे जबरजस्ती करी। ये सब मुझे बताते हैं। पहले मुझे दिखाई नहीं देता अब तां मानां मेरे सामने मेरा ये आत्मा एक शीशा बन कर खड़ा हो गया है और अब मुझे मेरी गलतियां सामने आ रही हैं। और मैं सोचता हूं कि मैं इतना खराब था। तो मैंने कहा अच्छा जो हो गया सो बीत गया। भूतकाल तो है नहीं, छोड़ो उसे खत्म हो गया अब वर्तमान में तुम खड़े हो। वो हैं। आज आप आत्मसाक्षात्कार के लिए आए हैं या बहुतों को हो भी गया होगा। किन्तु ये समझ लेना चाहिए कि जो-जो आत्मसाक्षात्कारी उनका अपना-अपना एक विशेष स्थान होता है। और दिल्ली वालों का भी एक विशेष स्थान मैं मानती हूँ कि राजधानी में आप बैठे हैं और इस राजधानी में जो आत्मसाक्षातूकारी हों जो आत्मा को प्राप्त करें, उनके अन्दर एक विशेष वैभवशाली शक्ति का प्रदर्शन होना चाहिए। और वो वैभवशाली शक्ति है प्रेम और सत्य। सत्य और प्रम दोनों एक हैं। जब आप सत्य को जानेंगे तो आप अपने आप ही शान्त हो जाएंगे। जब आपने सत्य को जान लिया तब फिर विक्षुब्ध होने या disturb होने की कौन सी बात है? कुछ सब स्वच्छ हो गया और जिस तरह से कमल गंदे पानी से निकल कर सुरभित होकर ऊपर आ जाता हैं और सारे वातावरण को सुरभित्त करता भी नहीं। क्योंकि आप जानते हैं सत्य क्या है। पर की 19 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt आया था कि एक शान्ति के दूत को मार डाला। आंखों में आंसू। कहां वो इन्होंने उन्हें कभी देखा भी नहीं, जाना भी नहीं कौन था, कौन नहीं । पर अखबार में पढ़ा होगा। इस प्रकार एक सारे ही विश्व के साथ तदात्मय। विश्व का जो आत्मा है' विश्वात्मा ' उससे एकाकारिता घटित होती है। और जो वो आत्मामुखी है वही मनुष्य अपने अन्दर महसूस हैं उसी प्रकार अब तुम हो गये| भूल जाओ। इसलिए जो गत है जो भूत है उसे भूल जाओ। पर वो भूल ही जाता है बाद में। धीरे-धीरे उसकी प्रगति होती है तो भूल जाता हैं। मैं Russia में थी, तब वहां coup (राज्यविष्लव) हुआ,तो मैंने सहजयोगियों से कहा कि अरे तुमको कोई घबराहट नहीं हो रही, तुम्हारे यहां कू हुआ है पता नहीं कोन राज्य में आये, क्या हो! कहने लगे माँ हम तो परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं, हमको क्या डरना? साफ कह दिया उन्होंने। हम तो परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। ये एक स्थिति है, ये बकवास से नहीं होता। लोग बड़ी-बड़ी में जो करता है। ऐसा वो विशाल हदय हो जाता है। उसको अपनी छोटी-छोटी बातें, छोटी-छोटी यातनायें नहीं समझ आतीं। वो ये नहीं सोचता कि मुझे ये तकलीफ हैं, ये परेशानी है, विल्कुल नहीं सोचता। उसको लगता है कि ये विश्व के प्रश्न कैसे ठीक होंगे? ये विशालकाय हैं। और फिर ऐसे आदमी के अन्दर शाक्ति आ गयी, वो भी परमात्मा की शक्ति। जब वो ये सोचने ही लग गया, वो प्रश्न भी टीक हो जाता है। उसकी इस विशालता से वो प्रश्न भी अपने आप हल हो जाता है। बहुत से लोगों को मैंने देखा है कि माँ देखिये ऐसा हुआ एक बार कि हमें बड़ा प्रश्न पड़ा कि फलांने देश में ऐसी लड़ाई हो गई। तो हम लोगां ने साचा कि प्रार्थना करे, ध्यान (Meditate) करें, कुछ करें, इच्छा करें तो दूसरे दिन अखबर में आया कि सब शान्ति हो गयी| अब कोई विश्वास नहीं करेगा कि ऐसा कोई कर सकता है। लेकिन क्यों नहीं विश्वास करता मनुष्य? क्यांकि मनुष्य अपनी विशालता को अपने बड़प्पन कां, जानता नहीं। जब तक उसमें अपने को पहचाना नहीं, वो अपना वडुप्पन केसे जानेगा? वो कैसे जानेगा कि वो क्या चीज है, उसकी गरिमा क्या है, और उसकी शक्तियां क्या हैं। आत्मदर्शन के बाद ही आपको ये सब बातें करेंगे, ये करेंगे वो करेंगे ऐसे नहीं। सबसे बड़ा गुण मनुष्य आता है कि वो निर्भयता से अपने को देखता है, उसको भय नहीं लगता। वो ये नहीं सोचता कि मैं ये कैसे सोचू कि मैं क्या हूँ। क्योंकि वो अपने से अलग हटकर है। वो जो पुराना था वो उतर गया, और अब नया सामने आ रहा हैं, और ये जो नया जीव सामने आ रहा है ये अंत्यंत सुन्दर है और गौरवशाली है। स्वाभिमानी है। ये नहीं कि ये अपने को सबके चरण-छू महाराज बने, ये बात नहीं। इसमें अपना स्वाभिमान है और उस स्वाभिमान में जो स्व है वही आत्मा है। इसी 'स्व' के तन्त्र को जानना ही सहजयोग है। जिसने इस स्व के तन्त्र को जाना वही स्वतंत्र को हो जाता है। स्व का तन्त्र का मतलब ये कि अपने आत्मा के तन्त्र जानना। अभी तक तो हम इस बुद्धि से या अपने संस्कारों से, पढ़ी हुई बातों से चिपके हुये थे। अब हमारे अन्दर आत्मा का जागरण हो गया है और उस जागरण से हम सब कुछ स्पष्ट देख रहे हैं पहले तो अपने को देखिये, फिर अपने समाज को देखिये। अब हमारे यहां बहुत से लोग हर एक धर्म से आये हैं, मुसलमान है, हिन्दु हैं, इसाई हैं, बौद्ध हैं, महावीर के लोग हैं, सब तरह के लोग इस सहजयोग में आयें हैं। और सबसे पहले मैने ये देखा कि उन्होंने अपने समाज के बारे में मुझे बताया। जैसे कोई जैनी आये तो उन्होंने बताया माताजी ये जैनियों का दिमाग ठीक करो। कोई सिक्ख आये तो उन्होंने बताया भई सिक्खों का दिमाग ठीक करो। कोई ईसाई आये तो उन्होंने कहा कि मां इन ईसाईयों को कब ठीक करोगी आप? हर एक में मैने ये चीज़ देखी कि फौरन वो अपने से हटकर के अपने समाज को देखने लगते हैं, अपने घर को देखने लगता है, फिर देश को देखने लगते हैं और फिर पूरे विश्व को, सारे नोबल प्रश्नों को लेकर के वो उलझ जाते हैं कि मां अब ये प्रश्न है। अब वहां ये हो रहा है। आपको कुछ न कुछ करना होगा। आपको देखना होगा। मैने कहा कि अब तुम पूरे दुनियाभर की परेशानी मुझ पर डाल रहे हैं। आप ही कर सकते हैं इसको आप करिये, आपको ठीक करना है। ये आदमी ठीक नहीं उसको ठीक करिये। इस तरह से उलझ गये, किस चीज़ में कि जो सारे विश्व का प्रश्न है। बताईये एक सर्वसाधारण मनुष्य, एक खेतीहर है वो सिर्फ अपनी खेती की बात करें तो समझ में आता है, पर वो भी देखकर के कहने लगा कि अच्छा ये राबिन को मार डाला इन लोगों ने। क्यों मार डाला? मां आप इनकी शान्ति के लिये कुछ करें। इनकी शान्ति का ठिकाना लगाओ। मैं हैरान हो गई कि इसने कहां से पढ़ा। क्या अखबर में आया था? अखबार में प्राप्त ही सकता है। कुण्डलिनी के बारे में तो आप जानते हैं, चक्रों के बारे में भी आप जानते हैं कि क्या है। चक्रों के जागरण से क्या अभिव्यक्ति होती है। अभी अगर हम ये बात करें कि इसमें ये तंदरुस्ती अच्छी होती है उससे वो तंदरुस्ती अच्छी होती है तो लोग कहेंगे कि आप क्या अस्पताल खोले बैठी हैं? सिर्फ अपनी तंदरुस्ती अच्छी करना ये सब सहजयोग का कार्य नहीं है। ये जमाने अब गये। पहले जो आता था वो अपने दूर-दूर के सम्बन्धियों को रोग मुक्त करने को कहता था। फलाना शराब पी रहा है उसे आप ठीक कर दो। अब वो नहीं रहा। अब मुझे हैरानी होती है कि मनुष्य कितना विशाल हो रहा है इस देश में। इस विशालता को प्राप्त कर रहा है। अब आप ही सोचिये एक जमाने में इस देश में ऐसे लोग थे, ऐसे मनन करने वाले थे, ऐसे द्रष्टा लोग थे जो विश्व के प्रश्न को लेकर चलते थे। छोटे-छाटे ओछे सवालों के पीछे नहीं दौड़ते थे। अब इन लोगों की आप व्याख्यायें सुने, इन लोगों का दर्शन ले तो इसी देश में ऐसे महान लोग हो गये जिन्होंने हमेशा महान बातें सोची, महान कार्य किये। अब हम लोग पता नहीं कैसे, किस गर्त में फंस गये हैं। कि उस महानता को असंभव समझते हैं। हो ही नहीं सकता। हम ऐसे कैसे हो सकते हैं? क्यों नहीं? वो जो एक जमाने में लोग थे जो लोग एक जमाने में इन अंग्रेजों से लड़ सकते थे, जिन्होंने देश के लिये इतना त्याग किया, क्या आज हमारे देश में वापिस नहीं आ सकते? वो और कौन से देश में जायेंगे, जिन्होंने इतना प्यार किया वो क्या इस देश में चैतन्य साहरी 20 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt स्वरूप हो जायेंगे। उसके लिये ध्यान करना और ध्यान में उतरना होगा। उथलेपन से सहजयोग नहीं किया जा सकता। इसका मज़ा तब आता है जब आप आध्यात्म में डुबकियां लगाते हैं। उसमें पेर गहरे बैठ जायें, तभी आपको सहज का मजा आयेगा और तभी आप समझ जायेंगे कि आप क्या हैं, और आप कितने विशाल हैं। और सब होते हुये भी अन्दर से आप में एक तरह कि ऐसी शान्ति और समाधान विराजमान रहेगा कि उसस शक्ति के द्वारा ही आप अपने चित्त से ही चीज़ ठीक कर सकते हैं। ये मैं आपको बता सकती हैँ कि आपका चित्त ही इतना सुन्दर हो जायेगा कि उस चित्त का जहां भी ध्यान जाये, उस चित्त से आप बहुत सी चीजें ठीक कर सकते हैं। तो थोड़ा सा अपने संकीर्ण वातावरण से निकलकर, अगर आपको और ऊँची दशा में लाना है, ध्यान धारणा ज़रूर करें। घ्यान ही से सब चीज़ व्यवस्थित होती है। अब ये ही बात है कि हसमें लोगों ने कहा कि आदमी लोग तो बहुत ध्यान करते हैं और औरतें कम करती हैं। आश्चर्य की बात है। मैं एक औरत ही हूँ, मैं भी स्त्री हूँ, और मेरा भी घर है, मेरे बच्चे हैं। सब कुछ है। सबको चलाते हुये भी ध्यान से ही मैने ये क्रिया प्रणाली ढूंढ निकाली कि हजारों लोग पार हो सके। तो मैं ये विनती करु कि औरतें अगर घर में ध्यान करें तो बच्चे भी ध्यान करेंगे वच्चों को संभालने के लिये ध्यान करना ज़रूरी हैं। पति तो करें ही क्योंकि पति फिर से जन्म नहीं ले सकते? जिन्होंने इतना त्याग किया, देश के लिये बहुत सारी यातनायें सहीं, देश के लिये, आज वो लोग फिर सहजयोग में से जागृत होंगे। मुझे पूर्ण आशा है कि वो अपने देश को प्यार करेंगे और देश की व्यवस्था ठीक करेंगे, शान्ति, अमन आदि सब चीजें लायेंगे। उसके बाद जब ये देश ठीक हो जायेगा तो और भी देश देखा देखी ठीक हो जायेंगे। हमारे सामने तो विश्व के प्रश्न है हीं, किन्तु ये सोचना है कि इसमें कौन-सा देश अगुआ होता है। कौन सा देश इसका झण्डा उठाता है। कौन से देश के लोग ये कहते हैं कि हम एक ऐसा आर्दश देश बना कर दिखायेंगे, जहां लोग ऊँचे, आध्यात्मिक स्तर पर, हमारे सहजयोग आध्यात्म का ये मतलब नहीं कि बीवी को छोड़, बच्चों को छोड़ और जंगल में भाग बिल्कुल भी नहीं। अपने ही अन्दर अपने दर्शन करके इस उच्च स्थिति को प्राप्त करना, इस विशेष स्थिति, जो हमारे लिये बनी हुई है, जिसे हम प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी कोई कठिन बात नहीं, ऐसा कोई त्याग भी किसी चीज़ का करने की जरूरत नहीं, सिर्फ मूर्खता का त्याग करना है, सिर्फ दुर्ुद्धि का त्याग करना है। और संकीर्णता जो आपको स्वार्थी स्वभाव (Self isntemprament) है। उससे दूर भागना है। उसको समझना चाहिये, कि ये मरे अन्दर एक संकीर्ण बात है। उसके बाद आप देखियेगा कि अपने आप आपके प्रश्न जो हैं खुलते जायेंगे। आप परमात्मा पर विश्वास करते हैं। क्या सोचते हैं कि आप मंदिर में गये नमस्कार कर लिया, गुरुद्वारे गये नमस्कार कर लिया। उससे नहीं होने वाला। अन्दर में ये विश्वास जो हम करते आये हैं वो धर्म हमारे अन्दर नस-नस में बस जाता है। इस धर्म की महिमा ऐसी है कि इस धर्म के कारण अनेक महात्मा इस देश में आये। मैं तो कहती हूं कि इससे ज्यादा तो किसी देश में हुए ही नहीं। इसका मतलब अपना भारत वर्ष एक महान योगदान सारी दुनिया को दे सकता है। मैं अभी चीन गई थी, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि चीन के लोग वैसे तो सार्वजनिक रूप से चाहे हमारे विरोध में हों, कहते हैं हम तो हिन्दुस्तान से बहुत कुछ अपेक्षा रखते हैं बहुत कुछ आशा करते हैं। मैंने कहा क्या? बोलें आध्यात्म हम जानते हैं कि वहां आध्यात्म की खान है। लेकिन अभी तक किसी ने वो बताया नहीं। हमारा जो स्टॉल था उसमें लाइने पे लाइने, कतारें पे कतारें लगी हुई थीं, जहां लोग आकर पूछते थे कि क्या है' सहजयोग'? पेपर तक में आया। अमेरिक भी हैरान हो गये कि इसमें क्या रखा हुआ है। यहां क्यो इतने लोग इकट्ठा हो रहे हैं। और आप देख रहे हैं आपके सामने इतने लाग बैठे हैं; विदेश के भी, जो कि आज सहजयोग को प्राप्त करके भारत की गौरवगाथा गा रहे हैं। आपको भी इस ओर नजर करनी चाहिये । सहज में आपको पार तो होने में कोई मुश्किल नहीं हैं क्योंकि आप तैयार हैं, जैसे कोई बीज होता है। आप उसको पृथ्वी माता में डाल दीजिये, तो वो पनप जाता है, क्योंकि बीज में भी शक्ति है और मां में भी शक्ति है। लेकिन उसके बाद वृक्ष होने में देर लगती है। वो जरूरी है क्योकि आपकी विशालता तभी दिखाई देगी जब आप वृक्ष है तो जो है वो चालना करता घर की। और स्त्री जो है उसको रक्षण करती है। तो अगर पति ने ध्यान-धारणा करी तो पलनी भी करे, बच्चे भी करे। फिर सबसे बड़ी सहजयोग की बात ये है कि ये सामूहिक है, अकेले नहीं कि मैं अपने घर में पूजा करता हूँ मां तो भी मुझे बीमारी हो गई। अकेले में नहीं। जो सामूहिकता में आप आयेंगे, सामूहिक में सहजयोग को मानेंगे तब आज का, वर्तमान का सहजयोग है। वो जमाने गये जब एक आदमी कहीं पार हो जाता था। हजारों को पार करना है, लाखों को करोड़ों को पार करना है तो हमें सामूहिक होना पड़ेगा और सामूहिकता की शक्ति बहुत ज़बरदस्त है। मुझे खुशी है कि दिल्ली ने सहजयोग को अपने सिर-आँखें पर उठा लिया है और समझा है। इतने संवेदनशील इतने Sensitive लोग इस दिल्ली में हैं। बड़ी हैरानी की बात है कि जिस महाराष्ट्र में इतने संत-साधु हो गये वहां के लोगों को इतनी अकल नहीं, मैं यह देखकर हैरान हूँ। वो लोग सोचते हैं कि हमें सब मालूम है। सब हमने जाना है। वहां नवनाथ हुये सब बेकार गये। वहां इतने साधु-संत हुये सब बेकार गये और इस तरह से जो आप लोगों ने इसको समझाया, बनाया, इसको बढ़ाने के लिये अपना व्यक्तिगत Individual ध्यान भी करना चाहिये और सामूहिक ध्यान में समावेश करना चाहिये। मैं मानती हूँ कि हमारे पास जगह की कमी है। और उसके लिये कुछ करना चाहिये। धीरे-धीरे सब कुछ हो जायेगा। लेकिन जहां भी सामूहिक आप हो जायेंगे फिर आप और कोई बात करेंगे ही नहीं, सहज की ही बात करेंगे। अभी तो शुरुआत है और इससे आगे हर जगह हमारा प्रोग्राम होने वाला है। जो लोग आ सकते हैं जरूर आयें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी 21 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt शक्ति पूजा दिल्ली 5 दिसम्बर, 1995 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन तदा करेंगे। क्योंकि सत्य-युग नहीं उठानी चाहिये कयोंकि आप स्वयं शक्ति से संचालित है। आपमें हर तरह की शक्ति वहन हो रही है। तो वो ही शक्ति आपको शक्तिवान, आत हम सत्य युग में शक्ति की की शुरुआत हो गई है और इसी वातावरण के कारण शक्ति का रूप भी प्रखर हो गया है। शक्ति का पहला स्वरूप कि वो प्रकाशमान है, तेजस्वी है, तेज पुण्ज है। यह शक्ति जब प्रगट होगी, पूर्णतया इस सतयुग में, तो हर एक गलत किस्म के लोग सामने उपस्थित हो जायेंगे। उनकी सारी कार्यवाहियां सामने आ जायेंगी। उनकी जो कार्य-प्रणाली आजतक चोरी छुपे चल रही थी और उसमें वो मग्न थे, वो सब खुल जायेंगी। हर तरह की बुराईयां, चाहे वो नैतिक हों चाहे मानसिक हों, आतंक-वादी हों, या किसी तरह की भी हों, सत्य को पसन्द नहीं। ऐसी कोई सी भी संस्था ऐसी कोई सी भी व्यवस्था बच नहीं सकेगी क्योंकि उस पर सत्य का प्रकाश पड़ेगा। इस सत्य के प्रकाश में आप शक्ति की बिशेष प्रकृति देखियेंगा, उसकी एक विशेष आकृति देखियेगा। कारण, मैने आपसे पहले बताया था कि अब कृत-युग शुरू हो गया और इसके बाद सत्य-युग आयेगा और यह भी बता दिया था कि अब सत्ययुग का सूर्य क्षितिज पर आ गया है। इसकी प्रचीति आपको मिलेगी, इसका (Proof) प्रमाण आपको मिलेगा कि सत्य के मार्ग में जो भी असत्य लायेगा वह पकड़ा जायेगा। फिर वो सहजयोगी ही क्यों न हो। वो अपने को सहजयोगी कहलाता है पूजा बलवान हर तरह से समृद्ध और स्वस्थ बना सकती है। आपको और किसी चीज़ का आलम्बन करने की ज़रूरत नहीं। जैसे ही आप किसी दूसरी चीज़ का आलम्बन करंगें, आप गिर जायेंगे। जैसे मैने देखा है कि वडे-बड़े लोग होते हैं जो अपने को बड़ा कहलाते हैं। वो खबर भेंजेंगे कि हमें माँ से मिलना है, हम उनसे (Specially) विशिष्ट रूप से मिलना चाहते हैं कोई विशेष होते नहीं हैं, पर हमको मिलना है। अब अगर मना करो तो लोग कहते हैं कि माँ वो बहुत सतायेंगे, तो मिल ही लीजिये उनसे। अब सब गिड़गिडा कर कहते है तीन वार कहेंगे कि वो आने वाले हैं, वो आनंे वाले हैं उसके इश्तहार लग जायेंगे| और वो आयेंगे, पार हो जायेंगे और ठीक भी हो जायेंगे, उसके बाद वो पूछेंगे भी नहीं। क्योंकि वह समझते नहीं है कि सत्य की शक्ति कितनी जबरदस्त है। एक बार अगर आप सहज में आ गये तो बेहतर है कि आप सहज में उतर जाएं नहीं तो बचत नहीं है। हर बार इन्सान यही सोचता है कि मेरा क्या फायदा सहज में आने से? मेरा लड़का बीमार है, तो मेरी लड़की वीमार है तो मेरा फलाना है तो हिकाना हैं तो मेरे पैसे गायब हो गये, तो आयकर है (Income Tax) आ गया, फलाना हो गया और ढिकाना हो गया। लेकिन यह सब आफते जो हैं एक साथ आपकी टल जायेंगी। सबसे पहले तो मनुष्य में अगर समाधान भी नहीं आया तो सहज बेकार है, उसके लिये। अब समाधान जब आ जाता है, वस वहुत और गलत काम अंगर करता है, तो वो बच नहीं सकेगा। उसको आज तक सत्य ने बचाया, सम्भाला, उसकी रक्षा करी। लेकिन अब इससे आगे उसमें शक्ति नहीं, सहज में वो शक्ति नहीं है कि वो सत्ये के आगे ऐसे लोगों को बचा सके जो सत्य का तमगा लेकर चलते हैं। सत्य में सबसे बड़ी शक्ति आपने मैने परसों ही बताया था कि प्रेम की है। प्रेम की शक्ति सबसे बड़ी है। प्रेम का मतलब अंहकार रहित, किसी अपेक्षा के बगैर किसी भी आशा (expectation) के बगैर प्रेम का सामराज्य फैलाना। यह शक्ति कार्य करेगी किन्तु यह जो शक्ति चैतन्य की है, वो आपके ही माध्यम से कार्य कर सकती है। अगर चैतन्य स्वयं ही इस कार्य को कर सकता, तो आज आप लोग सहजयोगी नहीं बनते और सहजयोगियों की कोई ज़रूरत भी नहीं रहती। लेकिन आज जो सहजयोगियों की जरूरत आप समझ रहे हैं कि कितनी है कि सामूहिकता में सहजयोगी तैयार हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि चैतन्य का वहन उसके (चैनल) माध्यम आप लोग हैं। अब इसे वहन करने वाली जो धाराएँ हैं उनको समझ लेना चाहिये कि आपको किसी भी गलत काम की ओर नज़र तक हो गया अब नहीं चाहिये कुछ भी। कोई गलत काम करने की ज़रूरत नहीं। कोई सा भी एसा काम करने की जरूरत नहीं कि जो हानिकारक हो समाज को, दूसरे को, आप को, किसी को भी हानिकारक कार्य करना सहज के बाद फलित नहीं हो सकता, उसका नुकसान उठाना म पड़ेगा। हमने देखा, बहुत शुरू में बहुत से सहज में ऐसे लोग आयें वा रुपया बनाया, पैसा बनाया, झगड़े किये, लड़ाई करी, यह करा, करा, इसके सिवा कुछ किया नहीं सहजयोग में। फिर खत्म हो गये क्योंकि सहज की शक्ति ऐसी है कि ऐसे लोगों को परे ढकेल देती है। फिर वो ठीक होकर वापस आ जायें, तो दूसरी बात है जैसे समुद्र में दो शक्तियाँ होती हैं, एक शक्ति से तो बाढ़ आती हैं और एक से तो समुद्र पीछे जाता है। इसी प्रकार इस सत्य की शक्ति है जो स्पन्दित होती है, स्पन्द का मतलब होता है जों एक बार संकृचित होता है ाी वतन्य लह 22 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt भी आप देखते हैं कि सरदर्द हो गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि सहज में आपने यह कार्य अपने ऊपर कैसे ले लिया- क्योंकि और एक बार पूरी तरह से खुल जाता है। उस हृदय में ही स्पन्द होता है। आदि शंकराचार्य ने (Vibration) चैतन्य लहरियों को स्पन्द कहा है। स्पन्द का मतलब है कि जो एक बार आपको उठायेगा वो दूसरी बार आपको गिरा भी सकता है। यह मैं आपको डरा नहीं रही हैूँ, पर सूचना दे रही हूँ कि अब परिवर्तन हमें ऐसा करना चाहिए कि जिससे सहज में हम अग्रसर हो सके। मैनें परसों कहा था कि उत्तरी भारत में सहजयोग बहुत जोरों से फैल रहा है, बहुत जोरों से। हर जगह जैसे आग लग गई हो, लोग सहज में आ रहे हैं क्योंकि सहज से लाभ बहुत है। तन्दरुस्ति अच्छी हो जायेगी, कई लोगों को धन-लाभ हो जाता है, किसी को पुत्र-लाभ हो जाता है, कोई न कोई लाभ हो ही जाता है। किसी का बहुत ज्यादा, किसी का कुछ कम। किन्तु सबसे बड़ा लाभ सहजयोग का यह है कि समाधान- कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिये। मुझे और कुछ नहीं यह तो सहज कार्य है, स्वत: (Spontaneous)। सहज में हरे चीज़ एकदम सहज हो जाती है। यह आपको तो घीरे-धीरे अनुभव आते ही रहेगा। लेनि सहज पर निर्भर हो जाना। यह शक्ति आज सत्य-युग में कार्य कर रही है। जिस दिन आप पूरी तरह से सहज पर निर्भर हो जायेंगे तो सहज से सारा ही आपका कार्य, आपका जीवन ही पूरी तरह से प्लावित हो जायेगा। और आपको किसी भी प्रकार की दखल देने की जरूरत नहीं। एक बार हमारे यहाँ चोरी हो गई। हमारी सब साड़ियां चोरी हो गईं मुश्किल से एक साड़ी सिल्क की बची। वही पहन करके मैं सारी पार्टियों में जाती थी और सब जगह जाती थी। हमारे पति भी सोचने लगे कि इनको क्या हो गया, एक ही साड़ी पहनती हैं। मैंने कहा मेरे पास अब सिर्फ एक ही है। अब आप लोग इतनी साड़ियां मुझे देते हैं कि मैं मना भी करती तो साड़ी पर साड़ी, साड़ी पर साड़ी। तो मैने कहा, अब अगर द्रोपदी वस्त्र हरण का आप इन्ज़ाम करें तो कुछ ठीक हो जाये क्योंकि मैं रक्खू कहाँ? में तो पहनती भी नहीं यह सव साड़ियां लेकिन समाघान मिलना यह ही सबसे बड़ा आशीष है। अब अगर समझ लीजिये कि हमे कोई चीज़ पसन्द आई और हम उसके लिये दौड़ रहे हैं कि हमें वो चीज़ चाहिये, जरूरी चाहिये। उसके लिये मरेंगे कि वही चीज़ लेनी है कि वो देखिये हमें पसन्द वही है। मर-मराकर ली भी, कर्जा लेकर ली, चाहे जैसे भी ली। और उसके बाद उसकी ओर देखते नहीं। फिर दूसरी चीज़ की ओर देखने लगे। जो चीज़ पाई उसी का सुख नहीं, उस को देखना नहीं। आजकल इतने सुन्दर फूल खिले हुए है दिल्ली शहर में, मैं वो ही रास्ते भर देखती आ रही थी। इतने सुन्दर फूल खिल रहे हैं पेड़ों पर। आपमें से न जाने कितनों ने देखे हैं कि नहीं देखे हैं अब ध्यान कहाँ है। ध्यान आपका अगर अपने आत्मा पर है तो आत्मा वही चित्र दिखायेगी जो सुखदायी है, जो आनन्दमयी है। और उसमें फिर स्वार्थ असल में पाया जाता है, क्योंकि इसमें आप स्व का अर्थ जान जाते हैं। कैसे शब्द लगाये हैं देखिये, अपने जो पुरखे हो गये पूर्वज, उन्होंने ढूंढ-ढूंढ़ कर शब्द लगाये कि तुम स्वार्थ ढूंढो। स्वार्थ माने स्वः का अर्थ। पहले लोग सोचते थे स्वार्थ का अर्थ पैसा कमाओ ये करो वो करो, पर उसमें सुख नहीं मिला। जब खोजते-खोजते आप पगले हो जायेंगे तब फिर आप स्व की ओर दौड़ेंगे। इसलिए उन्होंने कहा कि पहले तू स्वार्थ खोज, इसमें तेरा क्या स्वार्थ है वो देख, इसमें चाहिये। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आपकी आ जायेगी तब समझना कि आप सहज में उतर गये। और फिर अनायास आप कुछ चाहें या न चाहें सहज आपकी देखभाल करेगा आपको सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा। आपका समाधान जो है वो सातवीं श्रेणी में पहुँच जायेगा। लोग कहेंगे इनकों क्या हो गया? यह क्यों इस तरह से निरीच्छ हो गये? इनको क्या किसी तरह का सन्यास मिल गया? कोई परवाह ही नहीं। एक बार अमरीका में गये थे। वहाँ एक दुकानदार स्त्री थी। उसको हमने जागृती दी। तो कहने लगी कि माँ कमाल है। जागृती के बाद मुझे कुछ याद ही नहीं रहता। पहले मुझे दुकान की हरेक चीज़, कौन सी चीज़ आई कौन सी चीज़ गई; ल क्या मिला, क्या नहीं मिला, हरेक बात की मुझे पूरी परवाह रहती ॥ हि थी और हरेक चीज़ मैं लिख लेती थी और तो भी मुझे कभी नफा नहीं हुआ। हमेशा देखती थी कि नुकसान ही होता है। जो चीज़़ आये वो बिक ना। सहज के बाद यह हालत हो गई कि अब ना तो मैं गिनना जानती हूँ ना ही मुझे कोई चीज़ याद है, और देखिये कमाल कि मुझे नफा ही नफा हो रहा है! पता नहीं कैसे नफा हो रहा है! कौन मेरा सामान बेच रहा है! कौन खरीद रहा है! कौन पैसा दे रहा है। मुझे किसी भी चीज़ की खबर नहीं। और इस बेखबरी में ही सब कुछ बना जा रहा है। माने, सहज ने अपनी गोद में ले लिया उसे और सारी जो कुछ परेशानियां थी, नाप-तोलने की, बेचने की नफा कमाने की, वो सब खत्म हो कर, वो बस मस्ती में आ गई, कहने लगी, अब क्या मेरी तो दुकान काई चला ही रहा है, पक्की बात है। मै नहीं अपनी दुकान चला रही। और सब चीज़ इस प्रकार हो जाने से मनुष्य समझ जाता है कि अब में समाधन की सातवीं मन्जिल पर पहुँच गया। उसको सोचना भी नहीं पड़ता। विचारों से परे यह दशा हैं। अब इसका कारण यह है कि सहज से पहले हम विचारों पर रहते हैं। हर चीज़ आप गिनते रहते हैं, हर चीज़ आप नापते रहते हैं, घड़ी हर बार आप देखते रहते हैं और हर समय आप देखते हैं कि कुछ न कुछ छूट ही जाता है। बहुत हिसाब-किताब रखने पर तेैरा कौन सा फायदा है वो देख। सहजधारा में जब आप बहते हैं तब इस सत्य-युग में आपको जान लेना चाहिये कि आप को जो सम्भालने वाला है जो देखने वाला है, उसके करोड़ों हाथ हैं और उसके आँचल में आप चले गये। अब क्यों गलत काम करो? क्यों ऐसी वैसी बात करो जिससे कि आप पकड़ में आ जाये और बेकार में परेशान हो चैतन्य लहरी 23 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt विचार से परे है। सहजयोग से आप बुद्धि से परे, भावनाओं से पर, गुणातीत, एक ऐसी दशा में हैं कि जहाँ कोई विचार नहीं आता। कोई विचार नहीं आता। आप किसी की तरफ देखकर के उस पर कोई विचार नहीं करते सिर्फ देखते रहते हैं यह विचार करने की जिसका प्रतिबिम्बित (Reflection) करते हैं, जो कोई बात हुई, फौरन विचार शुरु। किसी चीज को देखा तो विचार शुरू। लोग पगला जाते हैं विचार कर कर के। एक साहब ने मुझसे Switzerland में कहा कि माँ चाहे आप मेरी गरदन काट दो पर मुझे विचार के तुफान से बचाओ। खुद डाक्टर हैं वो। तो यह जो विचार हमारे अन्दर अंहकार की वजह से या संस्कारों की वजह से, बंधे हैं और उसको बांधने वाले और लोग हैं। किताबें पढो, किसी जायें और अगर आप किसी चीज़ में पकड़ में आ भी गये तो भी मे । ऐसे छूट जायेंगे। उदाहरण के लिये हम बतायें कि हमने पाँच मूर्तियां खरीदी मिट्टी की कैनेडा में, बहुत सुन्दर थी, सोचा ऐसी मूर्तिया हमारे यहां बनें। अब सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां पाँच खरीदीं तो हमारे (Custom) सीमा शुल्क वालों ने उसके दाम ।8.000 लगा दिये। मुझे बड़ी हंसी आई कि मिट्टी की पांच मूर्तियों का दाम अट्ठारह हज़ार हो सकता है क्या? अट्ठारह रुपये भी नहीं होगा। मैं हंसती रही तो वो पुलिस वालों के पास खबर गई, तो वो भी हंसने लग गये। मैने कहा, देखिये क्या तमाशा है कि इसके दाम अट्ठारह हज़ार हो सकते हैं? और वाकाई में वो सब छूट गया। क्योंकि गलत चीज़ में पकड़ा उन्होंने। तो सहज अपने आप ही सब चीज़ को ठीक कर देता है, जिस चीज़ की जरूरत है, जो जरूरी होना है जिसकी आवश्यकता है वो कार्य सहज ही कर देता है। तो सहज पर चीज़ छोड़ूना आना चाहिये। सबसे बड़ी बात है यह चीज़ सहज पर छोड़ दो बहुत सी बातों में हम देखते हैं कि लेग बेकार में परेशान हैं, बेकार में परेशान हैं, और इस परेशानी का मतलब यह है। कि वो सहज नहीं है। भी बहुत गुरू के पास जाओ, किसी से मिलो, बातचीत करों, वाद -विवाद करो। रामदास स्वामी ने कहा हैं, मिटे वाद-सम्वाद ऐसा कराओ। जिससे तुम्हारा वाद-विवाद का स्वभाव ही बदल जाये ऐसी बातचीत करो, माने वाद-विवाद मत करो। यह बात बिल्कुल सही है कि हम लोग सहज में आते हैं तो भी हर एक चीज़ का हम विचार करते हैं। लेनि सहज का चमत्कार हम जानते नहीं कि जब हमने अपने को सहज के हवाले कर दिया, पूरी तरह से हम सहज के हवाले हो गये तो विचार भी सहज ही करेगा और सहज ही उसका हल भी करेगा जो हम नहीं जानते। पर प्रश्न हमारे चारों तरफ है। अब आज मैने कहा था कि तीन बजे पूजा होगी मैं जानती थी कि सब घर गृहस्थी वाले लोग हैं, तीन बजे कैसे पहुँच पायेंगे। देर ही होने वाली है उसमें कोई हर्ज नहीं, आराम से आयेंगे। आराम से चलो। बहुत बार आदमी सोचता है कि मेरा रास्ता भूल गया और वो परेशान रहेगा है कहाँ से रास्ता ढूंढं, किससे पूछ, क्या करू, मेरा रास्ता रह गया। यह रह गया वह ो एक इस सत्य-युग में शक्ति का जो स्वरूप है वो हैं प्रकाश और दूसरा सत्य, तीसरा प्रेम और चौथा मन की शान्ति। आप मन की शान्ति को प्राप्त कर लेते हैं, जो भी होता है उसे आप देखते रहते हैं। कोड् भी आदमी अगर विचलित होता है तो वह सहजी नहीं है। आपने कितनों के नाम सुने होंगे। सुक्रान्त (Socrates) का नाम सुना होगा, ये हज़रत निज़ामुद्दीन साहब का सुना होगा, कि इनको तो कहा गया था कि अगर तुम कल आकर हमारे सामने सर न झुकाओगे तो हम तुम्हारी गरदन काट देंगे। तो उस शहन्शाह की गरदन कट गई रात में। वो किसने काटी? उन्होंने थोड़ी काटी, उनके शिष्यों ने थोडी काटी, किसने काटी? किसी ने तो काटी होगी इस प्रकार हर चीज़ सहज में हर प्रकार मैने कहा, दो तरफा चलती है। जैसे समुद्र में बाढ़ भी आती है और संकुचित भी हो जाती है उसी प्रकार सहज में भी आप दो शक्तियों के द्वारा देखें जाते हैं। पहली शक्ति से बढ़ावा और दूसरी शक्ति से आपको निकाल दिया जाता है। एक बार सहज से आप निकल गये तो फिर हमारा आपका कोई सरोकार नही। हमारे ऊपर आपका कोई अधिकार नहीं। कोई भी आपको अगर हमारे ऊपर अधिकार देता रहा है तो पहले सहज में घुलमिल लेना चाहिये। जैसे स्वर्ण है तप कर के जब वो कुन्दन हो जाता है तो उस कुन्दन में वो शक्ति आ जाती है कि वो हीरे को पकड़ लेता है। कुन्दन में जब आप हीरा बिठाते हैं तो उसके लिये कोई भी ऊपर से टांका लगाने की जरूरत नहीं। कोई चीज़ से पकड़कर लगाने की भी ज़रूरत नहीं। वो कुन्दन, इतनी हौरे से बड़कर और कोई कठोर चीज़ संसार में नहीं। इसी प्रकार आपका भी कुन्दन हो सकता है। और वो कुन्दन में आप देखेंगे कि आपके अन्दर समाधान की शक्ति आ जायेगी। समाधान में विचार नहीं होता तो कत रह गया। अगर आपका रास्ता खों गया है तो सहज के कारण। या तो आपको किसी से मिलना है या आपको किसी चीज़ से गुज़रना है या किसी चीज़ का आपको अनुभव लेना है इसलिये आपका रास्ता खो गया, चिन्ता करने की कौन सी बात है? आखिर आप करने क्या वाले हैं कोई लड़ाई है कोई युद्ध है वहाँ जा रहे हैं? और युद्ध में भी अगर सहजयोगी जायें तो वो युद्ध तो जीत लेंगे, लड़ेंगे-वड़ेंगे कुछ नहीं। सत्य में विचार की शून्यता आने से मनुष्य जान लेता है कि विचार जो है वो शक्तिहीन है और जहाँ-जहाँ जिन देशों में बहुत लोगों ने विचार पर निर्भरता रखी, जैसे अमेरिका का देश है तो फ्रायड जैसे गर्ध आदमी पर, गरधे से भी ज्यादा कहना चाहिये, मुझे इतनी गालियाँ नहीं आती। ऐसे महामूर्ख, दुष्ट, आदमी को उन्होंने भगवान मान लिया। और हर समय वह यह सोचते हैं कि हमको आनन्द उठाना चाहिये और हर आनन्द ऐसा बनाया हुआ है कि उससे वो नष्ट हो जायें । हर एक चीज़ उनकी, कोई चीज़ ऐसी है ही नहीं जिसमें नष्टता की भावना न हो। और जब तक वो नष्ट नूहीं होते तब तक वो सांचते नहीं कि उनके आनन्द की परिसीमा क्या होगी? जैसे उनके खेल देख लीजिये, पहाड़ों पर जायेंगे। वहाँ स्कीइन्ग करेगे, वहाँ टांगे टूटेंगी, किसी मुलायम चीज़ कुन्दन, पकड़ लेता है हीरे को। चैतन्य लहरी 24 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt शक्ति को प्रज्जवलित करे। और इस देश की औरतों ने ही यहाँ की (Kidney) गुर्दा गायब, किसी का कुछ। अब सामने दिखाई दे रहा है पर वहीं जायेंगे। हमारे नसीब जहाँ भी रहते थे, उसके पास एक चर्च होता था और चर्च के पास एक पब दोनों साथ। अब जो लोग पब में जाते थे, वो देख रहे हैं कि अन्दर से लड़खड़ाते हुए लोग आकर ज़मीन पर गिर रहे हैं। और यह क्यू लगाकर अन्दर जाते थे कि हमें भी ऐसा ही बनाओ, हम भी लड़खड़ाते आयें। यानि विचार से अक्ल मारी जाती है। अक्ल से जो-जो काम किये मनुष्य ने अंहकार में वो सब ग़लत हो गयें। इसी से उनका भोग हम लोग उठा रहे हैं । लेकिन अगर आत्मा के प्रकाश में जो कोई-सा कार्य करता है तो सुचारू रूप से ही होता है, ठीक ढंग से होता है, समझदारी से होता है। लेकिन न सूझ-बूझ, न समझदारी, इस विचार में है क्योंकि इसमें वो चेतना ही नहीं। तो आज जब सत्य-युग का समय आ गया और हम जब सत्य के मार्ग में चल पड़े तो पीछे मुड़कर देखने की कोई भी ज़रूरत नहीं क्योंकि आपके साथ सबसे बड़ी शक्ति, प्रकाशमान है, आप प्रकाश में चल रहे हैं; प्रकाश भी ऐसा कि जिसम आप की छाया नहीं पड़ती, आगे भी प्रकाश दोनों तरफ प्रकाश और पीछे भी प्रकाश। लेंकिन यह प्रकाश की जोत, आपको पूरी तरह से प्रज्जवलित करनी पड़ती है। उसके लिये छोटा मार्ग मैं बतलाती हूँ कि आप सब लोग ध्यान करें। वो भी नहीं होता विशेषकर स्त्रियों के लिये कहा जाता है कि यह इस देश का समाज रोका हुआ है, यह मान लीजिये आप लेकिन जबरदस्ती से नहीं-प्रेम से, प्रेम से और वो भी निवाज्य प्रेम। इस देश में ऐसी ऐसी औरतें हो गई हैं-पन्नादाई। जिसने अपने बच्चं को युवराज को बचाने के लिये कटवा दिया, ऐसी-ऐसी इस देश में औरतें हुई हैं। लेकिन यह इतिहास मात्र हो गया। मैं कभी विदेश में बताती हैँ कि पद्मिनी ने 3000 औरतों के साथ जौहर किया तो वो विश्वास ही नहीं करते, कि ऐसे कैसे हो सकता है? मैने कहा कि हमारे देश में ऐसी औरतें थीं। उन्हीं के बलबूत पर हम आज तक टिके हैं क्योंकि जिस तरह का अन्धकार इस देश में चला हुआ है, यह कब का खत्म हो गया होता। उन्हीं की पुन्यायी पर आज हम लोग चल रहे हैं। वो ही पुन्यायी आज इस सत्य-युग में एक विशेष रूप धारण करके सामने खड़ी है। उसका चमत्कार अब देखिये कि रूमानिया के लड़के कैसा गाना गा रहे थे। इन्होंने कभी अपने सरगम तक सुने नहीं कोई इनको शिक्षा मिली नहीं। कल वो बता रहे थे इतन बड़े वादक कि साहब, इसके लिये सालां तूपस्या करने पर भी ऐसा ज्ञान नहीं आता, यह कहाँ से आ गया। केसे हो गये, चमत्कार ही है न। आपके निजी जीवन में सहज के बाद अनेक चमत्कार आय। पर तो भी आप अपने विचारों पर ही निर्भर रहे। तो उस पर भी एम दास जी ने कहा है"आल्पधारिष्ट पाये" परमात्मा कहता है,"तुझे जो भी करना है करा" लोग ध्यान-व्यान नहीं करती। सारा चित्त-खाना बनाना, बच्चों में इसमें उसमें लिपटाव। आश्चर्य की बात है कि औरतों को तो सबसे पहले ध्यान करना चाहिये। क्योंकि वो समाज की शक्ति हैं, पहली बात। स्त्री का सबसे बड़ा कार्य यह है कि वो समाज को बनाती हैं। यह नहीं कि वो कोई कहने लगा कि रूस में औरतं मोटरे चलाती हैं और ट्रेने चलाती हैं और वो एयरोप्लेन चलाती हैं तो उन्होंने कौन से बड़े भारी कमाल कर दिये। अपने आदमियों को तो नौकरी नहीं, है। तो सहज में घुलने के बाद एक बड़ी मस्ती है। बहुत बड़ी मस्ती हैं, जब मस्त हुए फिर क्या बोले, उस मस्ती में आ जाना चाहिये। फिर इसका मतलब यह नहीं कि आप पागल जैसे घमिये। इस मस्ती में आप कर्त्तव्य-परायण हो जाते हैं। और उसके लिये आपको शक्ति मिलती 1 अगर आप शक्ति चाहते हैं तो उसके लि., पहले, सवसे पहले सहज में आप पूरी तरह उतरिये। सब दुनियाभर की चीज़ छोड़िये। अब किसी को पैसा चाहिये किसी को सत्ता चाहिये, किसी को ये चाहिये किसी को वो चाहिये। जिस ने कहा दिया " मुझे कुछ नहीं चाहिये, अब हो गया। तो आप लोग क्यों चाहते हैं कि मोटरें चलायें और टैक्सी चलायें। आप का कार्य समाज को सुव्यवस्थित करना है। समाज को अपने आपको बनाना है और उसके लिए एक समाधानी वृत्ति होनी चाहिए, एक सूझ-बूझ होनी चाहिए। और इस सूझ-बूझ के साथ एक स्त्री के पास विनम्रता होनी चाहिये। नम्रता स्त्री में नहीं हो तो वो मर्द हो गई। वो अगर हावी हो जाये और हर चीज़ में वों सोचे कि मुझे आदमी से मुकाबला करना है, तो गलत बात है। यह भी कोई मुकाबला करने की चीज़ है? आप स्वयं शक्तिशाली हैं आपको क्या ज़रूरत है कि किसी का मुकाबला करें? मैं बार-बार इसलिये कह रही हूँ कि जिस-जिस देश में औरतों ने सामाजिक स्थिति का भार अपने सिर पर नहीं लिया वो-वो देश आज डूब रहे हैं और खत्म हो जायेंगे। अपने बच्चों को सम्भालना, घर को व्यवस्थित रखना, यह बड़ा भारी कार्य है। हों अगर ज़रूरत पड़े नौकरी कर लीजिये पर जैसे कि आदमियों के लिये मैं कहती हैं कि अच्छा ठीक है आप लोग अगर खाना बनाना चाहते हैं तो बनाईये कोई हर्ज नहीं, सीखना चाहिये पर वह उनका मुख्य कार्य नहीं। इसी प्रकार स्त्री के लिये ज़रूरी है कि वो अपनी १" चाहत जब सब खत्म हो गई तक फिर परम चैतन्य सोचता है कि अच्छा तेरी चाहत मैं पूरी करता हूँ। तब फिर उसकी चाहत आपकी चाहत हो जाती है। वो ऐसे-ऐसे चमत्कार करेगा कि आप हैरान हो जायेंगे। हमने तो सोचा भी नहीं यह कैसे हो गया यह कैसे बन गया। दुनिया भर की आफतें और दुनिया भर की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। फिर आपको माँगने का कुछ नहीं रह जाता फिर आप देने वाले हो जाते हैं सिर्फ देने वाले। मांगने का क्या? मांगने का तो वही करेंगे जिनके पास कमी रह गई और जो समाधान के सागर में डूब गये वो क्या माँगंगे? चारों तरफ देखकर के कि यह क्या करेंगे इसकी क्या जरूरत है। इसको लेकर क्या करेंगे। पर इसका मतलब यह नहीं कि आप सन्यासी हो जायें और जंगल में घूमें इससे हमारे यहाँ राजा जनक का बहुत सुन्दर वर्णन है, उनको विदेही कहते थे। वो राज्य चैतन्य लहरी 25 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt की बड़ी महत्ता है, कहने लगे आपके गुरू कौन हैं? कहने लगे "वो मैं नहीं बताऊँगा" " तो उनके पीछे चार-पाँच लोग लग गये, उनसे कहा बताइये आप के गुरू कौन हैं, तब तक हम आपको नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने मेरा नाम उनका बताया फिर वो सहजयोग में आये। जब मैं वहाँ गई राहुरी में, तो देखा कि आग लगी हुई थी। बापरे! मैने कहा इतने लोग सहजयोग में कैसे आ गये। एक आदमी की वजह से। एक आदमी के चरित्र की वजह से, उसके बर्ताव की वजह से। देखने में बहुत खूबसूरत नहीं थे वो, पर उनकी जो तेजस्विता थी उस तेजस्विता से उन्होंने चमका दिया वहाँ। एक आदमी अगर अच्छा आ जये, मैंने आज सर्वर ही कहा था कि "दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिये ' फिर आप इतने लोग झुकाने वाले हो जाये तो और क्या चाहिये? लेकिन पहले इसका एहसास होना चाहिये कि आप सत्य-युग में बैठे हुए हैं और सत्य की शक्ति आपके पास चल रही है। कोई किसी चीज़ की गरज ही नहीं हमको। सब चीज़ अपने आप घटित हो जायेगी| किसी को समझ में ही नहीं आता कि कैसे हो जाता है। कल मैने दस मिनट पहले बताया कि मैं खाना यहीं खा लुंगी, घर तो अब जा नहीं सकती क्योंकि कव्वाल लोग बैठे हैं, और दस मिनट में देखती हूं कि चूल्हा भी लगा है, चीजें भी बन रही हैं। वो लोग खुद हैरान हो गये कि माँ पांच मिनट पहले यह लोग यहां आयें हैं। पर यह हो कैसे गया। मुझे तो कुछ समझ में तहीं आ रहा था। करते थे उनके सामने नृत्य होता था, संगीत होता था और उनके बड़े भारी प्रोसेशन (जुलूस) निकलते थे, सब कुछ होता था पर उनको लोग विदेही ही कहते थे। तो एक शिष्य ने, नचिकेता ने, अपने गुरु से कहा कि जब वो आते हैं तो आप क्यों खडे हो जाते हैं? कहने लगे कि वो हम से बहुत ऊँचे हैं आपको पता नहीं। उन्होंने कहा,"कैसे?""" हमने तो सब संसार छोड़कर, सन्यस्थ भाव लेकर फिर कुछ अनुभव लिया छोड़े हुए ही उससे बसे हुए हैं। नहीं, बताना ही पड़ेगा" फिर जब वां घर गये यह तो बगैर ।" तो छोड़ने का है क्या, अगर आपने पकड़ा है तो आप कहेंगे कि मैने इसे छोड़ा, उसे छोड़ा। पर जब पकड़ा ही नहीं तो छोड़ेंगे क्या? वो पकड़ जो हमार अन्दर विचारों से चाहे संस्कारों के कारण और अंहकार के कारण जाती नहीं है तो इसका मतलब कि आप सहज में उतरे नहीं। किसी भी चीज की पकड़ तभी होती है जब हम चीज़ को इतना महत्वपूर्ण समझते है आत्मा की कोई पकड़ नहीं, वो तो देने वाला है, वो तो प्रकाश चारों तरफ फैलाने वाला है। वो शक्ति देने वाला है, ऐसी शक्ति कि उस शक्ति से लोग अभिभूत हो जायें, पूर्णतया उसमें एकाकारिता प्राप्त करें। इतना प्रेम कि सब संघर्ष खत्म हो गया। एक साहब मुसलमान अलजीरिया में थे तो उनके माँ-बाप ने कहा कि हम हज करने जायेंगे| तो कहने लगे कि फिर लन्डन जाओ। पूछने लगे,"लन्डन कैसे?" "कि हज तो लन्डन में आ गया है, अब" " अच्छा" "हाँ वही जाकर तो मैने पाया । वो लन्दन आये दोनों मियाँ-बीवी। कहने लगे, हमारे लड़के ने बताया कि हज लन्डन आ गया है तो हम तो यहाँ चले आये।" अब यह समझ और सूझबूझ की बात उस एक लड़के में आई और उसके माँ-बाप ने कहा कि "हम तो आ गये यहाँ।" तो मैने कहा कि तुमने उसकी बात क्यों मान ली। कहने लगे कि वह बहुत ही समझदार लड़का है, उसमें इतना परिवर्तन हो गया कि हमें विश्वास ही नहीं होता कि यह कैसे-ऐसे हो गया? इतने लोग हज पर जाते हैं और कुछ नहीं होता उनमें। जैसे के वैसे ही। शराब पीते हैं तो शराब पीते हैं, बीवी को मारते हैं तो बीबी को मारते हैं, जो करते थे वो ही करते रहते हैं। पर यह (Spontaneous) स्वत: इनका नाम है। मैंने कहा वही हो गया Spontaneous.I कैसी कौन सी चीज हों जाती है कैसे एकदम कैसे घटित हो जाता है! वो आप बता नहीं सकते इस परम चैतन्य की शक्ति इसका कोई वर्णन नहीं। किसी ने मुझसे पूछा कि क्या गणेश जी ने दूध पिया? क्या शिवजी ने दूध पिया? मैंने कहा कि पिया होगा। मैं तो परम चैतन्य को देख-देखकर खुदी हैरान हूं कि मेरे साथ ही इतनी कमाल कर रहे हैं और मुझे भी पूरी तरह से (expose) प्रकट कर रहे हैं। तो यह कुछ भी कर सकते हैं, इनका क्या ठिकाना। पर मुझे नहीं पता कि गणेश जी इतना दुध पीते हैं? बहरहाल आश्चर्य करने के सिवाय और कुछ रह ही क्या गया है? जैसी-जैसी बातें हो रही हैं आप देख रहे हैं। उस पर भी आप अपने ऊपर ही निर्भर हैं तो ठोक है चलने दीजिए। आप मान लीजिए कि आप सत्य-यूग में उतर आये हैं और यह शक्ति हजार तरह से आपको प्रकाशित करेगी हजार तरह से। एक लड़का हमने देखा कि इसमें बड़ा परिवर्तन आ गया। तो हमने कहा कि ठीक हो सकता है कि हज का भी परिवर्तन अब लन्डन मं हो गया होगा। और इसीलिये हम लन्डन आ गयें। अब यह माँ-बाप के ऊपर असर आया। यह दूसरी शक्ति है सत्य की, कि सत्य इतना प्रकाशवान, बलवान और इतना प्रेममय होता है कि उसका असर बहुत लोगों पर पड़ जाता है और लोग उसे देखकर कहते हैं कि भई यह आदमी कौन है? ये ऐसे कैसे हो गया? हमारा सहजयोग इतना फैला नहीं था महाराष्ट्र में। एक साहब सहज में आये, बड़े जबरदस्त, अब नहीं रहे वो। तो वो कलेक्टर के. कोई काम होगा, दफ्तर में गये। वहाँ आराम से बैठे रहे। कोई कहे हमें जाना है पहले। उन्होंने कहा जाओ, वो आराम से बैठे रहे। उसके बाद उतको अन्दर बुलाया। पूछा कि भई तुम इतने आराम से कैसे बैठे रहे। उन्होंने कहा,"करना क्या है, सबको जल्दी थी, मुझे काई जल्दी नहीं थी, मैं बैठा था आराम से ध्यान लगाकर।" महाराष्ट्र में तो गुरू न जाने कितने आपके अन्दर के गुण खल सकते हैं और आप सि्फ एक शब्द जो शिरडी साईं नाथ ने कहा था कि सबूरी की जरूरत है। पर यह सबूरी भी सोच समझ कर नहीं, अच्छा सबूरी कर सबूरी करो' ऐसा कहने की जरूरत नहीं। यह सबूरी जो है ये एक स्थिति है उसमें सब कुछ आ गया। एक स्थिति है, उस स्थिति में अगर आप उत्तर गये तो किसी काो कहने की जरूरत नहीं किसी को बताने की जरूरत नहीं वो अपने आप ही सब कुछ घटित हो जायेगा। ऐसी-एसी चैतन्य लहरी 26 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt बातें जो सोच भी नहीं सकते ऐसे ही घटित हो जायेंगी। इसके अलावा एक बात और भी है विशेष कि आप इस भारतवर्ष में पैदा हुए हैं। बहुत बड़ी बात है ये, पूर्व जन्म के अनेक-अनेक पुण्यों के कारण ही इस योग-भूमि में आप पैदा हुए हैं और इसी में सत्य-युग पहले आयेगा और दुनिया देखेगी कि सत्य-युग क्या चीज है, इसका चमत्कार क्या है। लेकिन आप ही मशालं हैं, आप ही ज्योति है आप ही को यह प्रकाश देना है। इसको अहसास करना चाहिये,इसको समझना चाहिए। इसको अपनाना चाहिए क्योंकि कितनी बड़ी जिम्मेदारी आप पर आज है, यह समझ लीजिए। मैं भी कहीं और जन्म लेती तो अच्छा होता, ऐसे बहुत लोग कहते हैं। कि माँ अगर आप अमरीका में जन्म लेते तो पता नहीं अभी तक लोग आपको कहाँ तक पहुंचा देते। मैंने कहा, नहीं, जहां मैंने जन्म लिया वह सबसे ऊँचा प्रदेश है। यह तो बड़े भाग्य से होता है। और यहां भी आप लोग समझ लीजिये कि सहजयोग इतने जोरों से फैल रहा है, बहुत ज्यादा लेकिन जो इसका प्रसार हो रहा है, दूर-दूर इतना फैल रहा है उसका मुख्य कारण क्या है? उसका कारण यह है कि आप इस योग-भूमि में पैदा हुए हैं चारों तरफ इसमें चैतन्य भरा है। यृथ्वी से भी इसी देश में सबसे ज्यादा चैतन्य बह रहा है। लेकिन उससे आगे आपको यह देखना है कि आप ही इसके वाहन हैं। आप ही इसको स्रोत तक पहुँचा सकते हैं। अब भी मैं देखती हूँ कहीं न कहीं कमी है। उसको ठीक करिये। उसके पीछे पड़ कर उसको ठीक करिये। किसी तरह ठीक करिये। मुझे यह चीज़ ऐसी करनी है कि यह शरीर, यह बुद्धि अंहकार आदि जो व्याधियों हैं उनसे मुझे अपने को बिल्कुल खालिस कर देना है, मुझे साफ कर देना है। और तभी इस देश का उद्धार होगा। बहुत बड़ा भविष्य इस देश का लिखा है और जो यह कहते हैं कि यह देश खराब हो गया है, इस देश में यह खराबी है, वो खराबी है, मैं कहती हूैं कि जो सबसे कठिन समुद्र होता है उसमें वहीं जहाज़ चल सकते हैं जो मज़बूत होते हैं। इसलिये आपको और भी मज़बूती ज्यादा करनी चाहिये। एक तरफ आप देखते हैं कि घोर अन्धकार है, तो दूसरी तरफ यह होना चाहिये कि महान प्रकाशमय हो। ऐसे आपके जीवन लोगों के सामने उतरने चाहिये । इस बड़प्पन को पाने के लिये कुछ करना नहीं है। भक्ति से, पूर्ण भक्ति के साथ आपको ध्यान करना है, यह ज़रूरी चीज़ है। प्रेम से भक्ति से आप ध्यान करे और फिर इस स्थिति मे जो आप पायेंगे वो एक ऐसी असाधारण व्यक्तित्व की प्रतिमा होगी कि लोग कहेंगे कि साहब यह है कौन? ये कहाँ से आये, यह स्वर्ग से उतर कर आये हैं या कि ये कौन है? यही आज क्षमता आप रखते हैं, यही आपका (Potential ) अन्तःशक्ति है। आप समझ लीजिये कि आपके अन्दर कितना गौरवशाली जीवन कुम्हला रहा उसको जगाईये। सब दुनियादारी को छोड़िये, उसके मोटर है तो मेरे पास मोटर नहीं, उसके पास फलानी मोटर तो मेरे पास नहीं-क्या करने का है? इसमें क्या रक्खा है? आपको आश्चर्य होगा कि मुझे तो मेरी मोटर का नम्बर नहीं मालूम। वो छोड़िये, मुझे उसका कलर (रंग) भी नहीं मालूम, उसका मेक भी नहीं मालूम। मैं रुपये भी नहीं गिन सकती। अगर आप मुझे दस रुपये दे दीजिये तों शायद गिन लू पर शायद सौ रुपये देंगे तो गिन नहीं सकती, क्या करू? मैं बैन्क का चैक नहीं लिख सकती कुछ नहीं कर सकती, विल्कुल निष-क्रिया कोई भी कार्यनहीं कर सकती और देखिये सारा कार्य हो रहा है आप लोग आये हैं बैठे हैं। इसकी सूझ-बूझ अगर आपके अन्दर जग जाये तो आप अपने को अन्दर से सफाई कर लें। चक्र साफ कर डालें, ध्यान करें। और इससे ही सारी दुनिया का उद्धार, जो मैं कह रही हूँ बार-बार, इसी भारत-वर्ष से होना है। उसकी दारोमदार आप लोगों पर है। तो आज के इस शुभ अवसर पर आप मन में सत्य के रास्त पर खड़े हो जाइये | सब लोग देखिये कितना चमत्कार हो जायेगा। अरे, अगर आप इस रास्ते पर ही नहीं है तो सत्य आपकी मदद केस करेगा? अगर आप गली कूचों में घूम रहे हैं या आप इस ट्रैफिक में फंस रहे हैं तो सत्य आपकी कैसे मदद करेगा ? इसलिये आप आज निश्चय करें कि हम इस देश का भाग्य उज्जवल करेंगे, अपने चरित्र से और अपनी सहज-शक्ति से। इतना अगर आप अपने अन्दर समा लें और सारी गलत बातें छोड़ दीजिये। अब हम जैसे बहुत साररा सामान लाये सबको उपहार देने के लिए, सब सहजयोगियों को भंट देने के लिये, अधिकतर तो कस्टम वालों को दिखा ही नहीं। उनको दिखाई ही दिया नहीं कुछ, सोचते हैं कि इसमें है ही नहीं कुछ। क्योंकि उस पर प्रेम का आवरण था कैसे दिखाई दता? कैसे पकड़ते? दिखाई नहीं दिया। अदृश्य हो गया क्योंकि इतने प्रेम से परदेसी भाई आपके लिये सामान ले के आये थे। तो इसमें कसटम क्या देना? प्रेम का क्या कोई कसटम होता है? कोई व्यापार करने तो आये नहीं यहाँ । और देखिये कि कमाल है और बड़े विश्वास से माँ हमें मालूम है कसटम वाले दंखते ही नहीं, उनको दिखाई नहीं देता। क्या होता है पता नहीं। एक देवी जी ने यहाँ ऐसी एक चाँदी की थाली लीं तब चाँदी के निर्यात की आज्ञा नहीं थी। उसको मालूम नहीं था विदेशियों को क्यांकि यहाँ के तो रोज़ ही कानून बदलते रहते हैं। तो उसने चाँदी की थाली बक्से में रक्खी और ले जा रही थी पूजा के लिये। तो कस्टम वालो ने खोला, ऊपर ही मेरा फोटो था, तो उन्होंने नमस्कार करके बन्द कर दिया। इसी आदान-प्रदान से हमारी सब समस्याएं हल हो जायंगी। अब वा कहते हैं कि वीजा नहीं देंगे तो ये कहते हैं कि हम भी नहीं दंगे । तुम इतना रुपया लोगे तो हम भी इतना रुपया लेंगे। यह सब खत्म हो जायेगा, एक दिन। एक दिन में सव खत्म होना है क्योंकि सब हम एक ही हैं। यह सारा विश्व एक है, लेकिन मनुष्य के दिमागी जमा खर्च से यह अलग-अलग बंट गया है। यही बात धर्म की है, है यही बात हरेक चीज की है। दिमागी जमाखर्च से इन्सान अलग-अलग बंट गया है। सहजयोग सबका एकत्रीकरण ही नहीं है, सिर्फ समन्वय ही नहीं है, पर समग्रता है। सबके तत्व को एक साथ बाँधने वाली यह शक्ति आज चलायमान है, उसका आप सब लोग उपयोग करें क्योंकि यह आप ही के अन्दर से प्रकटित होगी। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 27 चैतन्य सहरी