CCCCCCCCCCCCCCCCCOCCCCCCCCCO चैतन्य लहरी RUST हिन्दी आवृत्ति श्िना 1996 अंक 5, व 6 ाण खण्ड VIII ा हे परमात्मा हमारे अपराधों को भी वैसे ही क्षमा कीजिए जिस प्रकार हम अपने प्रति किए गए अपराधों के लिए अन्य लोगों को क्षमा करते हैं। (इसा मसीह) (अर्थात परमात्मा से क्षमा मांगने का अधिकारी केवल वही व्यक्ति है जो दूसरों को क्षमा करता है) RUST CCCCC.CC CC CCC ह० ন CCCCCC.CCCCCCC.CCCCCC.C.CCCCCCCCCCCCCCCCC. शभी CCCCCCC चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VII, अंक 5, व 6 (1996) -: विषय-सूची :- 1. निर्मला 2. लक्ष्य 3. अहँ 9. 4. ईसा मसीह पूजा-गणपति पुले 25.12.95 5. ईस्टर पूजा कलकत्ता- 14.4.96 18 6. महाशिवरात्रि पूजा - मुम्बई-19.2.93 23 श्री योगी महाजन सम्मादक श्री विजयनालगिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 मुद्रक एवं प्रकाशक प्रिन्टेक फोटोयईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली- 110 060 फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित चैतन्य लहरी 10 c০ *निर्मला ' 18 जनवरी 1980 को राहुरी में मराठी प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर जिसमें परमपूज्य श्री माताजी ने स्वतः पूर्ण मन्त्र स्वनाम 'निर्मला' (निः+र्म+ ला) में निहित गूढ़ भाव की विशद व्याख्या की नहीं" है। केवल ब्रह्म ही सत्य है, अन्य सब मिथ्या है। जीवन के हर क्षेत्र में आपको यह दृष्टिकोण अपनाना है। तब आप सहजयोग को समझेंगे। साक्षात्कार के पश्चात् अनेक सहजयोगी यह सोचते हैं कि हमें सिद्धि (साक्षात्कार) प्राप्त है, हमें पूज्य माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है तो हम समृद्ध क्यों नहीं है? उन के विचार में परमात्मा का अर्थ है समृद्धि। यदि आप विचार करें कि क्या कारण है कि साक्षात्कार के पश्चात् भी आपका स्वभाव' नहीं बदला, तब आप देखेंगे कि आपकी आत्मा का स्वरूप नहीं बदला। देखिये, 'स्व' अर्थात् आत्मा और 'भाव' अर्थात् स्वरूप के योग से बना 'स्वभाव' शब्द कितना सुन्दर है। बताइये, क्या आपने अपनी आत्मा का स्वरूप प्राप्त कर लिया है? यदि आप 'आत्मा' में स्थित हो गये तो आप देखेंगे कि भीतर इतना सोंदर्य है कि आपको बाह्य सब कुछ नाटक सा प्रतीत होगा। जब तक आपमें यह साक्षी स्थिति जागृत नहीं होती, आपने 'नि:' शब्द का अनुसरण नहीं किया, उसके अनुसार आचरण नहीं किया, जब तक कि 'नि:' आपके भीतर प्रतिष्ठित नहीं हुआ है, आप भावुक, अहङ्कारी, हठी अथवा विनम्र व निराश होते रहते हैं तो इन पराकाष्ठाओं (अति की अवस्थाओं) में फंसे रहने का कारण 'नि:' से सम्बन्धित है। आप न इधर न उघर, न इस स्थिति में हैं और न उस स्थिति में, अर्थात डावॉँडोल स्थिति में हैं। 'नि:' स्थिति ध्यानयोग में सर्वश्रेष्ठ रूप में प्राप्त की जा सकती है। अपने जीवन में 'नि:' विचार का अनुसरण करने से आप 'निर्विचार' स्थिति प्राप्त कर लेंगे। सर्वप्रथम आपको निर्विचार होना चाहिये। जब आपके मन में कोई विचार आता है, चाहे वह अच्छा हो अधवा बुरा, तब विचारों का ताँता-सा लग जाता है। एक के बाद दूसरा विचार आता रहता है। कुछ लोग कहते हैं कि बुरे विचार का अच्छे विचार से प्रतिकार करना चाहिये, अर्थात् एक दिशा से आने वाली गाड़ी को जब विपरीत दिशा से आने वाली गाड़ी से धकेला जाये तो दोनों एक मध्य स्थान पर रुक जायेंगी| कहीं तक यह ठीक है किन्तु कभी-कभी यह हानिकारक भी हो सकता है। एक कुविचार जब एक सुविचार द्वारा दबाया जाता है तो यह भीतर ही भीतर दबा रहता है। किन्तु यह एकाएक उभर सकता है। अनेक व्यक्तियों के साथ ऐसा ही होता है। वे अपने सामान्य विचारों को दबा रखते हैं और अपने से कहते है हमें परोपकारी होना चाहिये, अपने आचरण अच्छे रखने चाहियें, इत्यादि। कभी-कभी ऐसे लोग बड़े उपद्रव-ग्रस्त हो सकते हैं। अचानक एकदम यह क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं और लोग यह हर्ष की बात है कि सब सहजयोगी एक साथ एकत्रित हुए हैं। जब हम इस भांति एकत्रित होते हैं तब परस्पर हित की अनेक बातों पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और उन विषयों पर अनेक सूक्ष्म बातें एक दूसरे को बता सकते हैं। दो-एक दिन पहले मैंने स्वयं को स्वच्छ, दोष-मुक्त करने की विधि बताई थी। स्वयं आपकी माँ का नाम ही निर्मला है और इसमें अनेक शक्तियाँ हैं। इस नाम में पहला शब्द 'नि:' है जिसका अर्थ है 'नहीं। कोई वस्तु जिसका वास्तव में अस्तित्व नहीं है किन्तु जिसका अस्तित्व प्रतीत होता है, उसे महामाया (भ्रम) कहते हैं। सम्पूर्ण विश्व इसी प्रकार है। यह दिखता है किन्तु वास्तव में नहीं है। यदि हम इसमें लिप्त हो जाते हैं तो प्रतीत होता है यही सब कुछ तब हमें लगता है हमारी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं है। सामाजिक व पारिवारिक स्थितियाँ असन्तोषजनक हैं। हमारे चारों ओर जो कुछ भी है सब खराब है। हम किसी चीज़ से सन्तुष्ट नहीं है। समुद्र सतह पर जल अत्यन्त गदला होता है। उसके ऊपर अनेक वस्तुएं तैरती रहती हैं। किन्तु यदि हम उसकी गहराई में जायें तो देखेंगे कि उसके भीतर कितना सौंदर्य, कितनी घन सम्पदा और कितनी शक्ति है। तब हम भूल जायेंगे कि सतह का जल मैला है। कहने का अभिप्राय है कि हम चारों ओर जो देखते हैं वह सब माया (भ्रम) है। सर्वप्रथम आप को याद रखना चाहिए कि यह सब जो दिखता है यह कुछ नहीं है। यदि आपको 'नि:' भावना अपने अन्दर प्रतिष्ठित करना है तो जब भी आपके मन में विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है यह सब भ्रम है, मिथ्या है। दूसरा विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है। आपको बारम्बार यह भाव लाना है। तब आप 'नि:' शब्द का अर्थ समझ पायेंगे। आपको जो कुछ माया-रूप दिखता है यह सम्पर्णूत: भ्रम मात्र नहीं है, इस दृश्यमान के परे भी कुछ है। किन्तु अपने जन्मों के इतने बहुमूल्य वर्ष हमने वृथा गंवा दिये है कि हम वे वस्तुएँ जिनका वास्तव में अस्तित्व नहीं है उनको महत्त्व देते हैं और इस भांति हमने पापों के ढेर इकट्ठे कर लिये हैं। इन सब वस्तुओं में हमने आनन्द-लाभ करने का प्रयास किया है, किन्तु वास्तव में इनमें से हमें कुछ भी आनन्द प्राप्त नहीं हुआ। तत्व रूप से ये सब कुछ नहीं है। अत: दृष्टिकोण यह होना चाहिये कि यह सब " कुछ चैतन्य लहरी चकित हो जाते हैं कि ये सज्जन व्यक्ति कैसे इतने क्रोध-ग्रस्त क्रियाशील होता है। उसे (विचार को) उस संयन्त्र (निर्विचारिता) हो गये वे अपनी निजी मानसिक शान्ति भी खो बैठते हैं। उनका में डालिये और माल तैयार होकर आपके सम्मुख आ जाता सम्पूर्ण आन्तरिक सौंदर्य समाप्त हो जाता है। अत: वाञ्छनीय है। आप उस संयन्त्र यों कहें नीरव अथवा शान्त संयन्त्र- को यही है कि हम सदैव निर्विचार रहें। अपने मस्तिक से छोटे काम तो करने दीजिये। अपनी सारी समस्याएं उसको सौंपिये। विचारों पर काबू पायें। तब आप स्वत: ही मध्य में रहेंगे। किन्तु बुद्धि-जीवियों के लिये यह अत्यन्त कठिन है क्योंकि आपको समस्त प्रयत्न करने चाहिये। अब आप पूछेंगे, "माँ, उनको प्रत्येक बात के बारे में सोचने की आदत होती है। बिना विचार किये हम काम कैसे कर सकते हैं?" अब आपके किसी विषय को समझने की कोशिश करते समय आप निर्विचारिता में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त कीजिये आप देखेंगे विचार क्या है? वह वास्तव में खोखले हैं। निर्विचार अवस्था में आप परमात्मा की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं अर्थात् सब कुछ स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है। आप जो अनुसन्धान बूँद (अर्थात् आप स्वयं) समुद्र (अर्थात् परमात्मा) में आकर करते हैं वह भी निर्विचार अवस्था में करना चाहिये। निर्विचार मिल जाती है। तब परमात्मा की शक्ति भी आपके भीतर आ जाती है। क्या आप की अंगुली सोचती है? क्या यह फिर भी अति उत्तम ढंग से अपना अनुसंघान कार्य कर सकते हैं। मैं चल नहीं रही? अपने विचारों को परमात्मा को समर्पित कर दें और अपने विषय में सोचने का भार उस पर छोड़ दें। किन्तु का अध्ययन नहीं किया और उस विषय में कुछ नहीं जानती। यह कठिन-सा है क्योंकि आप निर्विचार स्थिति में नहीं है। फिर यह सब ज्ञान कहाँ से आता है? निर्विचारिता से। मैं बोलती अनेक लोग कहते हैं हमने सब परमात्मा को समर्पण कर जाती हूँ और जो कुछ होता है उसे देखती रहती हैँ। मेरे वाणीरूपी दिया है। किन्तु यह केवल मौखिक होता है, वास्तव में नहीं। कम्प्यूटर में मानो यह सब कुछ पहले से तैयार करा कराया समर्पण मौखिक क्रिया नहीं है। निर्विचारिता प्राप्त करने के लिये, रखा था यदि आप निर्विचार अवस्था में नहीं हैं तो आप उस जिसका अर्थ है आपका विचार करना बन्द कर देना, आपको कम्प्यूटर (अर्थात् निर्विचारिता) का उपयोग नहीं कर रह हैं समर्पण करना पड़ता है। जब आपकी विचार क्रिया बन्द हो और अपने मस्तिष्क को उसके ऊपर प्रतिष्ठित करते हैं (अर्थात् जाती है तब आप मध्य में आ जाते हैं। मध्य में आते ही तुरन्त आप निर्विचार चेतना में पहुँच जाते हैं अर्थात् आप परमात्मा की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं और जब ऐसा होता पर होते हैं) निर्विचारिता एक प्राचीन कम्प्यूटर है और इसकी है तब वह (परमात्मा) आपकी देख-रेख करता है। वह आपकी शक्ति से विपुल परिमाण में सही कार्य किया गया है। यदि छोटी-छोटी बातों के विषय में सोचता है। यह आश्चर्यजनक है। किन्तु आप करके तो देखें और आप देखेंगे कि आपका अवस्था में कार्य-रत रहने का अभ्यास कीजिये। इस भाँति आप अनेक विषयों पर बोलती हूँ। अपने जीवन में मैंने कभी विज्ञान आपका निर्विचारितारूपी कम्प्यूटर निष्क्रिय रहता है और आपके सब कार्य मानव मस्तिष्क शक्ति, जो सीमित है, उसके बल आप अपने मस्तिष्क का उपयोग करते हैं और इस कम्प्यूटर का आश्रय नहीं लेते तो आप निश्चित् रूप से गलतियाँ करेंगे। निर्विचार अवस्था में जो कुछ भी घटित होता है वह पहला रास्ता गलत था। अत: एक बार जब आप निर्विचारिता का स्वाद लेते हैं तो आप देखते है कि आपको समस्त प्रेरणायें प्रबुद्ध और प्रकाशमान होता है। हिन्दी, मराठी तथा संस्कृत समस्त शक्तियाँ और अन्य सर्वस्व प्राप्त होने लगता है। निर्विचारिता भाषाओं में किसी शब्द से पहले 'प्र' युक्त करने से उसका में आपके मन में जो विचार आता है वह एक अन्तः स्फुरण अर्थ होता है प्रकाशित, प्रकाशमान। प्रकाश कभी बोलता नहीं। (inspiration) होता है। आप चकित होंगे। प्रत्येक वस्तु यदि आप कमरे की बत्ती जला दें, तो वह बत्ती (दीप) बोलेगी आपके सामने ऐसे आयेगी मानो थाली में परोसकर आपके सम्मुख नहीं अथवा कोई विचार आपको नहीं देगी। वह केवल सब प्रस्तुत कर दी गई। आप भाषण देने खड़े होते हैं, केवल कुछ दृष्यमान ( प्रकट) कर देगी। यही बात निर्विचारिता रूप निर्विचारिता में प्रेवश कीजिये और श्रीगणेश कर दीजिये। यद्यपि आपने पहले कभी भाषण नहीं दिया, भाषण की कला का आपको रहित) इत्यादि सब शब्दों के पहले 'नि:' जुड़ा है। आप इसे कुछ ज्ञान नहीं अथवा प्रस्तुत विषय का आपको कुछ विशेष (अर्थात् 'नि:' को) अपने भीतर स्थापित कीजिये और तब ज्ञान नहीं किन्तु चमत्कार! आप इतना कमाल का बोलेंगे कि लोग आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि यह ज्ञान भण्डार आप में निर्विकल्प। तब आपके समस्त सन्देह व शङ्कायें समाप्त हो कहाँ से उमड़ पड़ा। एक बार आप निर्विचारिता में गहरे उतरे जाती हैं और आपको प्रतीत होता है कि कार्य करने वाली तो सब कुछ वहीं से (निर्विचारिता से) आता है, न कि आपके शक्ति अत्यन्त द्रुत गति से काम करती है और अत्यन्त सूक्ष्म मस्तिष्क से। अब में आपको अपना रहस्य बताती हूँ। आप प्रार्थना कीजिये, "माँ, मेरे लिये कृपया ऐसा कर दीजिये"। आप आश्चर्य तरफ नहीं देखती। यह कभी-कभी रुक जाती हैं, कभी ग़लत करेंगे। मैं आपकी विनती पर विचार नहीं करती। केवल उसे समय बताती है। किन्तु मेरी असली घड़ी निर्विचारिता में है। अपनी निर्विचारिता को समर्पित कर देती हूँ। सम्पूर्ण संयन्त्र वहाँ यह हमेशा स्थिर (शान्त) रहती है। यदि कोई कार्य करना प्रकाश के बारे में है। निर्विचार निरहड्कार (अर्थात् अहङ्कार आप निर्विकल्प अवस्था में आ जायेंगे। पहले निर्विचार, तत्पश्चात् है। आप आश्चर्य करेंगे यह सब कैसे घटित होता है! यही बात समय के विषय में है। मैं कभी घडी की चैतन्य लहरी 'तू ही-तू ही' आवाज़ आती है। आपको भी 'तू ही-तू ही' भावना में मग्न रहना चाहि। जब आप 'में नहीं हूँ मेरा कोई अस्तित्व नहीं है' इस भावना में दूढ स्थित हो जाते हैं तभी हो तो वह उचित् समय पर हो जाता है। फिर मन में कुछ पश्चाताप नहीं होता कि यह समय पर हुआ अथवा देरी से। जब भी हो, मुझे कोई चिन्ता नहीं। कल मेरी गाड़ी (कार) खराब हो गई। किन्तु में आनन्दमग्न थी क्योंकि मैं तारागणों को देखना चाहती थी। वह सौंदर्य लन्दन म आप 'नि:' शब्द को समझ सकेंगे। अब "निर्मला' नाम के अन्तिम अक्षर 'ला' के विषय : मैं वह देखना चाहती थी इसका में विचार करें। मेरा दूसरा नाम है 'ललिता'। यह देवी का आशीर्वाद है। यह उसका आयुध (शस्त्र) है जब 'ला' अर्थात् थी माँ उसकी इस छटा को देखें। कभी-कभी मुझे उस ओर 'देवी' ललिता रूप धारण करती है अथवा जब शक्ति ललित भी देखना आवश्यक होता है। मैं उसका आनन्द लाभ कर रही अर्थात् क्रियाशील रूप में परिणत होती है अर्थात् जब उस में थी। संक्षेप में, आपको किसी वस्तु का दास नहीं होना चाहिये। चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं, जो आप अपनी हथेलियों पर यदि आप निर्विचार अवस्था में हैं तो परमात्मा आपको अनुभव कर रहे हैं, वह शक्ति 'ललिता शक्ति' है। यह सौंदर्य सर्वत्र ले जाते हैं मानो अपने हाथों पर उठा कर ऐसी एवं प्रेम से परिपूर्ण है। जब प्रेम की शक्ति जागृत होती है संरलतापूर्वक। वह सब प्रबन्ध कर देते हैं। वह सब कुछ जानते तब वह 'ला' शक्ति बन जाती है। यह आपको चारों ओर से हैं और उन्हें कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं। किन्तु आपको घेर लेती है। जब वह क्रियाशील होती है तब चिन्ता कैसी? देखना है कि आप मुख्य धारा (निर्विचारिता) में हैं अथवा नहीं। तब आपकी कितनी शक्ति होती है? क्या आप वृक्ष से एक यदि आप इसमें नहीं हैं और आप कहीं किनारे पर अटके हैं फल भी बना सकते हैं । फल की तो बात क्या, आप एक पत्ता अथवा जड़ भी नहीं बना सकते। केवल मात्र 'ला' शक्ति तीन बार। किन्तु यदि आप फिर भी यह सब कार्य करती है। आपको जो आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ है वह भी इसी शक्ति का काम है। इसी शक्ति, से 'नि:" जी, मेरा कोई कार्य सुचारु रूप से नहीं होता। वास्तव में तथा 'म' (निर्मला नाम के प्रथम व द्वितीय अंश) शक्तियों का जन्म हुआ है 'नि:' शक्ति श्री ब्रह्मदेव की श्री सरस्वती श्री गणेश की जो आप स्तुति गान करते हैं वह अत्यन्त शक्ति है। सरस्वती शक्ति में आपको 'नि:' के गुण अर्जन (प्राप्त) करने चाहिये। 'नि:' शक्ति प्राप्त करने का अर्थ है पूर्णत: निरासक्त में उपलब्ध नहीं होता। अत: सौंदर्य सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त था। आकाश की अभिलाषा तो प्रवाह, तरङ्ग आती है और आपको मुख्य धारा में ले जाती हैं, एक बार, दो बार, किनारे पर आकर अटक जाते हैं, तब आप कहते हैं, "माता होगा भी नहीं। कारण, आप किनारे पर अटके हैं। सुन्दर है। इसमें कहते हैं "मुख्य धारा (प्रवाह) में प्रवाहित, " जिसका अर्थ है प्रकाशमान मुख्य घारा (प्र+वाह)। आप इसमें अपनी पृथक् लहर, तरङ्ग न मिलायें। श्री गणेश की आरती बनना। आपको पूरी तरह निरासक्त बनना चाहिये। 'ला' शक्ति में प्रेम का समावेश (सम्मिलित) है वह हमारा में यह भी आता है "निर्वाणी रक्षावे" अर्थात् मृत्यु के समय दूसरों से नाता जोड़ती है। 'ल' शब्द 'ललाम', 'लावन्य' में आता हैं। 'ला' शब्द में उसका अपना ही विशेष माधुर्य है हे परमात्मा, आप मेरी रक्षा करें। किन्तु आप स्वयं ही अपनी और आपको उससे (माधुर्य से) अन्य लोगों को प्रभावित करना रक्षा करना चाहते हैं। फिर परमात्मा आपकी रक्षा क्यों करें? चाहिये। दूसरों से बातचीत करते समय आपको इस शक्ति का वह (परमात्मा) कहते हैं "उसे अपनी रक्षा अपने आप ही प्रयोग करना चाहिये। चराचर में यह प्रेम की शक्ति व्याप्त है। करने दो।" मैं इस बात पर बल देना चाहती हूँ कि आपको ऐसी स्थिति में आपका क्या कर्त्तव्य है? आपको अपने सारे गइराई में जाना सीखना चाहिये और निर्विचारिता में ही सब विचार प्रथम (निः) शक्ति पर छोड़ देना चाहियें क्योंकि विचारों का जन्म उस प्रथम शक्ति से ही होता है। अन्तिम (ला) शक्ति जो प्रेम और सौंदर्य की शक्ति है, उससे आप को प्रेम के आपको निरासक्त रहना चाहिये। यहाँ भारत में लोग कहते आनन्द का रसास्वादन करना चाहिये। यह कैसे करें? अपने हैं आपको दूसरों के प्रति प्रेम भाव में भूल जायें, उस भाव में वहाँ बेटा, बेटी किसी से कोई लगाव (आसक्ति) नहीं होती। खो जायें। क्या किसी ने अनुमान लगाया है कि वह दूसरों वे केवल अपने स्वयं के बारे में सोचते हैं। यहाँ हर चीज़ में से कितना प्रेम करता है? यह बढ़ता ही रहना चाहिये। आप 'मेरा, मेरा' मेरा लड़का, मेरी लड़की, मेरा मकान और अन्त दूसरों को कितना प्यार करते हैं और इस भाव में कितना आनन्द में विचारों में केवल 'मैं' और 'मेरा' ही बाकी रह जाता है, लेते हैं? क्या इस बारे में आपने सोचा है? मानवों के विषय में मैं मेरी रक्षा करें। आप यह भी कहते हैं "रक्षः रक्ष: परमेश्वरी " कुछ प्राप्त करना चाहिये। तभी आप निर्विकल्प स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। "मेरा बेटा, मेरी बेटी।" इङ्गलैंड में इसके विपरीत होता है। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। आपको कहना चाहिये मेरा में मैं कह नहीं सकती, किन्तु अपने स्वयं के विषय कुछ भी नहीं है, सब कुछ आपका ही है। सन्त कबीर कहते कह सकती हूँ कि मैं दूसरों से प्रेम करने में अत्यन्त आनन्द हैं, "जब तक बकरी जीवित रहती है तब तक वह 'मैं', 'मैं' अनुभव करती हूँ। अनुभव करें, कैसे चारों ओर प्रेम की गङ्गा करती है। किन्तु उसको मारने के बाद उसकी आँतों के तारों बह रही है, वह अनुभूति कितनी आनन्ददायक है। एक गायक से जो ताँत (जिसे धुनिया रूई धुनता है) बनती है। उसमें से को देखिये, वह कैसे अपने स्वयं के राग में अपने आपको चतन्य लहरी भूल जाता है, उसमें खो जाता है और सर्वत्र उस संगीत को प्रवाहित होते अनुभव करता है। इसी भांति प्रेम भी अबाधित यदि आप मुझसे किसी व्यक्ति के विषय में पूछे तो मैं केवल रूप से प्रवाहित होना चाहिये। अत: आप 'ललाम' शक्ति, जो उसकी कुण्डलिनी की अवस्था के विषय में बता सकती हूं चैतन्य लहरियों के रूप में विशुद्ध दिव्य प्रेम की शक्ति है उसे पहले अपने भीतर जागृत करें। आप देखें कि आप दूसरों की ओर किस दृष्टि से देखते सकती कि वह कैसा है, उसका स्वभाव कैसा है, इत्यादि। आप दूसरों की टीका-टिप्पणी (Criticism) न करें। अथवा उसका कौन सा चक्र इस समय पकड़ा हुआ' है अथवा बहुघा पकड़ा रहता है। इसके अतिरिक्त मैं कुछ नहीं समझ निम्न स्तर के लोग दूसरों से कुछ चुराने अथवा उनसे यदि इस विषय में मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूँगी, स्वभाव हैं। कुछ कुछ लाभ उठाने के भाव से देखते हैं, कुछ दूसरों के दोषों होता क्या है? यह परिवर्तनशील होतां है। नदी इस समय यहाँ को देखते हैं। पता नहीं इसमें उन्हें क्या आनन्द आता है। इस बह रही है। बाद में उसका बहाव कहाँ होगा, कौन बता सकता भाँति वे अकेले, अलग-थलग हो जाते हैं और फिर कप्ट भोगते है? इस समय आप कहाँ हैं? यही विचार करने की बात है। हैं। यह स्वयं कष्टों को निमन्त्रण देना है। मुझे तो सबसे मिलने, भेंट करने में आनन्द आता है। आपको 'ललाम' शक्ति को-जो चैतन्य लहरी रूप में दिव्य हूँ। इस कारण में जानती हैूँ इसका उद्गम-स्थल कोन सा प्रेम की शक्ति है-उपयोग करना चाहिये दूसरे व्यक्ति को देखने अत: आप किसी को भी व्यर्थ, निकम्मा न कहें। प्रत्येक मात्र से आप निर्विचारिता में पहुँच जायें। इससे दूसरा व्यक्ति व्यक्ति बदलता रहता है, यह अवश्य होता है। भी निर्विचार हो जायेगा। अत: आप अपने को एवं दूसरों को भी विशुद्ध दिव्य प्रेम का बन्धन दें। 'नि:' शक्ति और 'ला' शक्ति को बँधने दें। 'ला' शक्ति अर्थात् चैतन्य लहरियों के रूप हो गया है । प्रत्येक को स्वतन्त्रता होनी चाहिये। आप सब जानते में प्रेम की शक्ति को 'नि:' शक्ति अर्थात् निर्विचारिता में पहुँचाना, हैं हमारी वर्तमान स्थिति क्या है| यदि आप इस भाँति सोचेंगे परिणत करना है। दोनों को बन्धन देना लाभप्रद है। बहुत से तो आप न केवल अपने स्वयं का आत्म-सम्मान करते हैं, लोगों से, जो बड़े अभिमानी हैं अथवा जो सोचते हैं कि वे बल्कि दूसरों का भी सम्मान करते ह वड़े काम करने वाले, कर्मवीर हैं, उनसे मैं अपनी बायें पार्श्व नहीं है, वह दूसरों का कभी आदर नहीं कर सकता। (side) को उठाने को बताती हूैँ। इस भाँति हम अपने स्वयं के पञ्च तत्वों (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश) में अपने लिखकर भी मैं इसका आनन्द पर्याप्त रूप से वर्णन नहीं कर स्वयं के विशुद्ध दिव्य प्रेम को भरते हैं, संचारित करते हैं अपने सकती क्योंकि सौंदर्य को प्रकट करने के लिये शब्द असमर्थ हृदय के प्रेम की शक्ति (हमारा बायाँ पार्श्व) को अपनी क्रिया हैं। अर्थात्, यदि आपको 'मुस्कान' का वर्णन करना हो तो आप शक्ति ( हमारा दायाँ पार्श्व) में पहुँचाना चाहिये, जैसे आप कपड़े केवल कह सकते हैं कि स्नायु कैसे आन्दोलन ( हरकत) करते पर रंगों से चित्रण करते है। जब इस भाँति क्रिया शक्ति में हैं। आप उसके प्रभाव को नहीं बता सकते यह तो केवल प्रेम शक्ति का सम्मिश्रण किया जाता है तब वह व्यक्ति अत्यन्त आप नदी के इस किनारे पर खड़े हैं तो आपको विचित्र लगता है कि नदी यहाँ बह रही है। मैं समुद्र की दिशा में खड़ी सहजयोग का कार्य परिवर्तन लाना है। सहजयोग में विश्वास करने वाले व्यक्तियों को किसी को नहीं कहना चाहिये कि वह बेकार =ा हैं। जिसमें आत्म-सम्मान हमें ललाम शक्ति का विकास करना चाहिये। एक पुस्तक अनुभव की वस्तु है। आप केवल इस शक्ति को जागृत और मधुर बन जाता है और क्रमश: वह माघुर्य, प्रेम उसके व्यक्तित्व विकसित होने का अवसर दें। और उसके आचरणों में प्रकाशमान होता है। वह प्रेम प्रवाहित होकर दूसरों को प्रभावित करता है और उसकी प्रत्येक क्रिया अत्यन्त रसमय हो जाती हैं। वह व्यक्ति इतना आकर्षणयुक्त बन अपने वचन, कर्म तथा अन्य क्रिया-कलापों में विकसित करने जाता है कि आप घण्टों उसकी संगति में आनन्द और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। आपका प्रेम दूसरों को आनन्ददायक और मधुर, मनोहारी शक्ति को 'ललित' शक्ति कहते हैं। लोगों ने दूसरों के मन को जीतने वाला बनना चाहिये। इसके फलस्वरूप सब आपके मित्र बन जाते हैं और परस्पर प्रेम बढ़़ता है। प्रत्येक यह संहार की शक्ति अनुभव करता है कि एक स्थान है जहाँ उसे प्रेम और वात्सल्य मिल सकता है। अत: आपको प्रेम की ईश्वरीय शक्ति को अपने आपने एक बीज बोया। उसके कुछ अंश नष्ट हो जाते हैं, भीतर विकसित करना चाहिये। हमें सदैव निर्विचारिता ('नि:' शक्ति) में रहना चाहिये। और सरल होता है। तब बीज़ उगकर एक वृक्ष बनता है जिसमें जब भी कोई विचार आये तो सोचिये ईश्वर की प्रेमरूपी पवित्र पत्ते होते हैं। फिर पत्ते झड़ते हैं। यह क्रिया भी अत्यन्त सुकोमल गङ्गा में यह गन्द कहाँ से आ गई? ऐसी चित्त-वृत्ति से हमारी व सरल होती है। तब फूल आते हैं। जब फूल-फल बनते 'ला' शक्ति अर्थात् दिव्य प्रेम की शक्ति सदैव स्वच्छ, निर्मल हैं, तब उनके अंश झड़ कर गिर जाते हैं और तब फल आते रहेगी और स्वच्छता के आनन्द में हम विभोर रहेंगे। 'ललाम' शक्ति से मनुष्य को एक प्रकार का सौंदर्य, एक भव्यता और स्वाभाव में माधुर्य प्राप्त होता है। इस शक्ति को का प्रयास करें। कुछ लोगों का रोष भी मनोहारी होता है। इस इसके भाव को बिल्कुल विकृत कर दिया है। वे कहते हैं है। किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं है। यह शक्ति अति मनोरम, सृजनात्मक और कलात्मक है। माना जिसे 'ललित' शक्ति कहते हैं किन्तु यह विनाश अत्यन्त कोमल हैं। उन फलों को भी खाने के लिये काटा जाता है। खाने पर चैतन्य लहरी 15 आपको स्वाद प्राप्त होता है। वह भी यही शक्ति है। इस प्रकार विकसित करना होगा। ये दोनों शक्तियाँ काम करती हैं। आप जानते हैं बिना काटे, सँवारे आप कोई मूर्ति नहीं बना सकते। यदि आप समझ लें आप कह सकते हैं कि यदि ईश्वर आपसे प्रेम करते हैं तो कि यह काटना सँवारना भी उसी जाति की क्रिया है तो यदि उन्हें आपके पास आना चाहिये, किन्तु साक्षात्कार-प्राप्ति के आपको कभी ऐसा करना पड़े तो आपको बुरा अनुभव नहीं पश्चात् आप ऐसा न कह सकेंगे। क्योंकि 'म' शक्ति के बल करना चाहिए। वह भी आवश्यक है। किन्तु एक कलाकार इसे पर आपको दूसरी दो शक्तियों का सन्तुलन करना है। संगीत कलापूर्ण ढँग से करता है और कला हीन व्यक्ति इसे बेढगे तरीके से करता है। सो आप में कितनी कला है इस पर यह आपको रङ्गों का सन्तुलन करना पड़ता है। इसी भाँति आपको शक्ति निर्भर करती है। कभी आप एक चित्र को देखते हैं और आपकी इच्छा इस सन्तुलन प्राप्ति के लिये आपको परिश्रम करना पड़ेगा। करती है आप इसकी ओर देखते ही रहें। यदि कोई पूछे इस चित्र में क्या विशेषता है तो आप शब्दों में नहीं बता सकते। इस सन्तुलन को बनाये रखता है वह उच्चतम स्तर पर पहुँचे आप बस उन्हें निहारते हैं। कुछ चित्र ऐसे होते हैं कि आप उनकी ओर देखने मात्र से निर्विचार हो जाते हैं। इस निर्विचार अवस्था में आप उसके आनन्द का रसास्वादन करते हैं। यह कामों में फँसा रहने वाला सहजयोगी भी ठीक नहीं। आपको अवस्था सर्वोत्कृष्ट है। इसकी किसी अन्य वस्तु से तुलना अथवा अपने प्रेम की शक्ति को सक्रिय करना चाहिये और देखना मुस्करा कर व्यक्त करने के स्थान पर आपको इस स्थिति के चाहिये कि अब तक वह कैसी क्रियाशील रही है। उदाहरणार्थ, आनन्द का मन भरकर रसास्वादन करना ही उचित् है। इसका मैं किसी एक ढँंग से काम करती है किन्तु उसमें भी मैं वर्णन करने के लिये न कोई शब्द है और न कोई भाव-भंगी प्रत्येक बार कुछ परिवर्तन कर देती हूँ। आपने देखा होगा कि (मुखाकृति) पर्याप्त है। आपको इसका अपने अन्दर अनुभव हर बार कुछ नवीनता, कोई नया तरीका होता है। यदि एक करना है। सबको यह अनुभव लाभ होना चाहिए। 'नि:' और 'ला' के मध्य में 'म' शब्द अत्यन्त रोचक भी असफल रहता है तो और कोई ढूंढिये। किसी भी पद्धति है। 'म' महालक्ष्मी का प्रथम अक्षर है। 'म' की शक्ति है और हमारी उल्क्रान्ति की भी। 'म' शक्ति में आपको हैं, श्री माँ को नमस्कार करते हैं। यह सब यान्त्रिक समझना होता है, फिर उसे आत्मसात करना होता है और पूर्णतः ( (mastery) कुशलता, प्राप्त करनी होती है। उदाहरण के जीवन्त प्रक्रिया में आपको नित्य नई पद्धतियां खोजनी होंगी। लिये, एक कलाकार में 'ल' शक्ति से उसके सृजन का विचार मैं सदैव वृक्ष की जड़ का उदाहरण देती हूँ। बाधाओं से मोड़ अंकुरित होता है 'नि' शक्ति द्वारा वह उसका निर्माण करता लेते हुए, बचते हुए, यह क्रमश: नीचे और नीचे पृथ्वी के है जब तक आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त नहीं है तब तक में में आप को रांगों का सन्तुलन करना पड़ता है, चित्रकला 'नि:' और 'ला' शक्तियों का सन्तुलन करना आवश्यक है। अनेक बार आप वह सन्तुलन खो बैठते हैं। जो सहजयोगी जाता है। बहुत भावुक सहजयोगी ठीक नहीं। इसी तरह बहुत ज्यादा तरीके से काम नहीं चलता, दूसरा तरीक़ा अपनाइये। यदि यह धर्म (पवित्र आचरण) पर अटल नहीं होना चाहिये। आप प्रातः उठते हैं, सिंदूर लगाते शप (mechanical) होता है। यह जीवन्त प्रक्रिया नहीं है। और 'म' शक्ति के द्वारा वह उसे अपने विचार के अनुरूप भीतर उतरती चली जाती है। यह बाधाओं से झगड़ती नहीं। बनाता है। प्रत्येक पग पर वह देखता हैं कि क्या यह उसके बाधाओं के बिना जड़ें वृक्ष को सँभाल भी नहीं सकती थीं। विचार के अनुरूप है और यदि नहीं तो वह उसमें सुघार करने की कोशिश करता है। वह यह बार-बार करता है। यह 'म शक्ति है अर्थात् यदि कोई वस्तु ठीक नहीं है तो एक बार, पाना सिखाती है, वह 'म' शक्ति है। अत: यह 'म' शक्ति दो बार, बार-बार करें। इस सुधार कार्य में परिश्रम लगता है। हमें अपने स्वयं है। का भी सुधार करना चाहिए। यदि यह न होता तो उत्क्रान्ति की क्रिया असम्भव थी। इस के लिये परमात्मा को महान् परिश्रम है 'माँ मैं अत्यन्त मृदु हैं, मैं क्या कर सकता हूँ। मैं उससे करना पड़ता है। हमें 'म' शक्ति अर्जित करनी है और उसे संभाल कर रखना है। यदि यह न किया जाय तो दूसरी दोनों दूसरा व्यक्ति सिंह है, तो मैं उसे बकरी बनने को कहती शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि यह शक्ति सन्तुलन बिन्दु हूँ। अन्यथा काम नहीं चलता। आपको अपने तरीके बदलने (centre of gravity) है। आपको सन्तुलन बिन्दु पर स्थित होंगे। जो व्यक्ति अपने तरीके नहीं बदल सकता, वह सहजयोग रहना चाहिये और हमारी उत्क्रान्ति का सन्तुलन बिन्दु 'म' शक्ति नहीं फैला सकता, क्योंकि वह एक ही तरीके पर जमा रहता है। अन्य दोनों शक्तियाँ तभी आपके भीतर सक्रिय होंगी जब है जिससे लोग ऊब जाते हैं। आपको नये मार्ग खोजने होंगे। आप उल्क्रान्ति शक्ति के अनुरूप उन्नति करें। किन्तु उसके इसी भाँति 'म' शक्ति कार्य करती है। (महिलायें इसमें निपुण लिये आपको 'म' शक्ति को पूर्णतः समझना होगा और उसे होती हैं ये प्रतिदिन नये व्यंजन ( भोज्य पदार्थ, recipes) अत: समस्याएँ, बाधाएँ आवश्यक है। वे न हों तो आप उन्नति भी नहीं कर सकते। वह शक्ति, जो आपको बाधाओं पर विजय अर्थात् माँ की शक्ति है। उसके लिये विवेक प्रथम आवश्यक गुण सोचिये कोई व्यक्ति बड़ा कोमल स्वभाव है और कहता कहती हैं अपने को बदलो और एक सिंह बनो। यदि कोई चैतन्य लहरी बनाती हैं और पति जानने को उत्सुक रहते हैं कि आज क्या की शक्ति होनी चाहिये, किन्तु यह 'नि:' शक्ति के साथ-साथ बना है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा आप अपना सन्तुलन और नहीं होता, तो दूसरा तरीका अपनाइये। पहले लाल और 'पीला एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं। जब आप इस शक्ति को उच्चतम लें, यदि यह उपयुक्त नहीं रहता तो लाल और हरा उपयोग स्तर पर विकसित कर लेते हैं तब आप अपने सन्तुलन तथा करें और यदि यह भी ठीक नहीं रहता तो और अन्य कोई बुद्धि स्तर से चैतन्य लहरियाँ अनुभव करते हैं। यदि आप में उपयोग करें। हठी होना किसी बात पर अड़ना बुद्धिमानी बुद्धिमानी नहीं है तो आप में उक्त लहरियाँ प्रभावित नहीं होंगी। नहीं है। हठघर्मी व्यक्ति सहजयोग में कुछ नहीं कर सकता। अधिकतम चैतन्य लहरियों-सम्पन्न व्यक्ति निश्चित बुद्धिमान आपका उद्देश्य तो केवल सहजयोग का प्रचार करना है तो व्यक्ति होता है। वास्तव में यह बुद्धिमत्ता ही है जो प्रवाहित विभिन्न मार्ग अवलम्बन कर देखिये। आप जो भी आग्रह करते हो रही है। इस माप-दण्ड से यह निश्चित हो सकता है कि है वही मैं स्वीकार कर लेती हूँ क्योंकि मैं जानती हैँ कि साधारण आप किस स्तर के सहजयोगी हैं। जब आप सन्तुलन तथा बुद्धि खो देते हैं तो स्वाभाविक नहीं जा सकता। आप उसे पराकाष्ठा अर्थात् हद पर जाने की रूप से आपके चक्र पकड़े (बाधाग्रस्त) जाते हैं। जब आपके स्थिति न आने दें। 'म' शक्ति से मैं यह सब जानती हूँ। किन्तु चक्र बाधाग्रस्त हों तो समझ लीजिये आपका सन्तुलन बिगड़ आप सहजयोगियों को किसी एक बात पर हठ नहीं करना गया है। असन्तुलन संकेत करता है कि 'म' शक्ति आप में चाहिये। आपकी माँ हठ नहीं करती। जो भी स्थिति हो, स्वीकार दुर्बल है। 'माताजी' अर्थ वाचक किसी भी शुभ नाम का प्रथम कर लें। आप जो भी करें, ध्यान रखें कि आप एक महत्त्पूर्ण अक्षर 'म' होता है और वह कार्य मेरे भीतर 'म' शक्ति द्वारा कार्य कर रहे हैं मुझ में कोई इच्छा नहीं है। मुझ में 'नि:' किया गया है। यदि केवल 'नि' और 'ल' दो शक्तियाँ ही होती, 'ला', 'ग' कोई शक्ति नहीं है। मुझ में कुछ भी नहीं है मैं तो यह कार्य सम्भव नहीं था। मैं तीनों शक्तियों सहित आई यह भी नहीं जानती मैं स्वयं इन शक्तियों की मूर्तस्वरूप हूँ। हूँ, किन्तु 'म' शक्ति सर्वोच्च है। आपने देखा 'म' 'शक्ति' माँ मैं केवल सब खेल देखती हूं। की शक्ति है। यह सिद्ध करना होगा कि वह आपकी माँ है। यदि कोई आकर कहे "मैं आपकी माँ हूँ" तो क्या आप मान में सिद्ध सहजयोगीजन होंगे जिन्हें सहजयोग में पूर्ण सिद्धता, लेंगे? नहीं, आप स्वीकार नहीं करेंगे। मातृत्व को सिद्ध करना निपुणता प्राप्त होगी । अभी तक वे सिद्ध नहीं हुये हैं आपको होगा । माँ क्या है? माँ ने अपने हृदय में हमें स्थान दिया है। हमें माँ पर ले। उसको उसके लिये सर्वस्व अर्पित करना होता है। मैं जा और माँ को हम पर पूर्ण अधिकार है क्योंकि वह हमें अपार रही हूँ। उसके बाद देखेंगे आप अपनी सिद्धता का किस भाँति प्यार करती है। उसका प्रेम नितान्त नि:स्वार्थपूर्ण है। वह सदैव और किस क्षेत्र में उपयोग करते हैं । हमारी मङ्गल कामना करती है और उसके हृदय में हमारे लिये वात्सल्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। माँ में आपको आस्था तभी प्राप्त होगी जब आप यह समझ लेंगे कि आपकी वास्तविक सिद्धान्त अनुसार आपको निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि शोभा, अर्थात् आपकी आत्मा उनमें ही वास करती है। आप दूसरों को यह सिद्ध करके दिखाये। सहजयोगी में ऐसी सामर्थ्य हो जाते हैं। आप घ्यान रखें आपको सिद्ध बनना है। दूसरे होनी चाहिये। अन्य लोगों को पता हो कि वह एक बुद्धिमान स्वीकार करें आप सिद्ध हैं ज्यों ही वे आपको देखें उन्हें स्पष्ट व्यक्ति है। उसके लिये आप में प्रेम और क्रियाशीलता दोनों हो आप सिद्ध हैं। आप इसके लिये यत्न करें। यदि यह होता शक्तियों में सन्तुलन आवश्यक है। वह इतना मनोहारी होना चाहिये है तो सब शुभ होगा। कि बिना जाने अन्य लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों । सहजयोगी को यह गुण अर्जन करना चाहिये। घर जाकर आप विचार करें कि इन तीनों 'नि', 'ला' या किसी अन्य कार्यक्रम के लिये आमन्त्रित करें। साथ ही और 'म' शक्तियों को कैसे सक्रिय कर प्रयोग करें 'नि:' शक्ति कुछ सहजयोगियों को भी आमन्त्रित करें और अपने सब आपके परिवार में पूर्ण सौंदर्य और गम्भीरता, गहराई लायेगी अतिथियों को आत्म-साक्षात्कार प्रदान करें। यदि एक साल तक जन-सम्पर्क के आप नये-नये मार्ग और साधन खोजें। इन शक्तियों आप ऐसा करें तो बड़ा लाभकारी होगा। का आप सहजयोग के प्रचार के लिये उपयोग करें। उनके उचित् उपयोग के लिये आपकी 'नि:' शक्ति, अर्थात् क्रियाशक्ति, अत्यन्तु बलशाली होनी चाहिये। यद्यपि आप में 'ला' शक्ति अर्थात् प्रेम संयुक्त रूप से क्रियान्वित होनी चाहिये। यदि एक तरीक़ा सफल मानव मेरी भाँति नहीं है। हठधर्मी व्यक्ति क्या कर बैठे, कहा जब जीवन में इस प्रकार परिवर्तन आ जायेगा तब मनुष्यों सिद्धता प्राप्त करनी है। सिद्ध सहजयोगी वह है जो पूर्ण रूप से परमात्मा से एकरूप हो जाये और उसे अपने वश में कर कभी-कभी मैं आपको कुछ बातों के लिये मना करती हूँ। आपको उसका बुरा नहीं मानना चाहिये। 'म' शक्ति के आपका मार्ग दर्शन करना मेरा कर्त्तव्य है। कुछ लोग निराश एक दिन मैंने आपसे कहा था कि आप अपने सब मित्र और सम्बन्धियों को मध्याह्न अथवा रात्रि भोज के लिये पूजा सबको अनेक आशीर्वाद। चैतन्य लडरी चैतन्य लहरी लक्ष्य ग्रहों औरसितारों से घिरे सूर्य का आस्तित्व, है केवल 'माँ' के शरीर पर किरणें बिखेरने के लिए, 'माँ' को प्रसन्न करने की खातिर, पाता हूँ जब पवन देव को पुष्प सुगन्ध 'माँ' की ओर ले जाते हुए, मा त। *माँ' के पवित्र्य एवं अबोधिता को दर्शाने की खातिर, देखता हूँ जब श्वेत-निरभर हिमपात को, देखता हूँ जब पर्वतों को साक्षी भाव में, शान्तिपर्वृक 'माँ' के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए, 'माँ' के साक्षात शरीर को सहलाने की खातिर, देखता हूँ जब बादलों को रिमझिम बरसते हुए, माँ के चरण कमलों पर पुष्पांजलि अर्पण करने की खातिर, देखता हूँ जब पुष्पित वृक्षों को पुष्प बरसाते हुए, सुनता हूँ जब पक्षियों को माँ की पूजा की खातिर, पूजा गीत गाते हुए, तब महसूस होता है मुझे कि 'विश्वरूपा हैं वो, समस्त ब्रह्माण्ड उन्हीं का रूप है, प्रसन्न करना परमेश्वरी माँ को, प्रकृति की हर चीज़ का एक मात्र लक्ष्य है। ০ बैतन्य लडरी 8 चैतन्य लहरी अहँ श्री माता जी, यह सोचना प्रवृत्ति है हमारी, कि अन्य लोग कृपित करते हैं हमें. उपद्रवी हैं, और सबब हैं हमारी परेशानी का, पर असलियत तो यह है कि, निर्लिप्सा पूर्वक साक्षी रूप से, अपने औरदूसरों के कार्य कलापों को न देख पाने के कारण सबब हैं हम स्वयं ही अपनी परेशानी का, क्योंकि साक्षी जब भी हम बन पाते नहीं, बढ़ावा देते हैं अपने अहँकार को। याचना इसलिए करते हैं माँ, कम कर दें अहँ हमारा तथा उत्थान पथ पर अग्रसर करें। ० चैतन्य लहरी পাo ईसा मसीह पूजा-गणपति पुले परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (चेतना के सात स्तर) 25.12.1995 ईसा मसीह के जन्मोत्सव पर आप सबको शुभकामनाएँ। है। हम अपने माता-पिता से प्यार क्यों करते हैं ? क्योंकि हमारे अन्दर घर्म है। हम अपने देश में ही क्यों रहना चाहते हैं? आज के महान दिवस ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। आप सभी जानते हैं कि मानवता के उद्धार को कार्यान्वित करने क्योंकि हमारे अन्दर घर्म है। पति-पत्नि का पारस्परिक प्रेम के लिए किस प्रकार विशेष रूप से मानव रूप में उनकी सृष्टि भी अन्तर्निहित घर्म के कारण ही है। धर्म जब आपके अन्दर की गई। ऐसा कहा जाता है कि वे भारत में कश्मीर में आए होता है 'तो आप इसे धर्म (Religion) नहीं कहते क्योंकि इसका अर्थ कुछ अन्य भी हो सकता है। जब हम धर्म को और वहाँ के राजा, शालिवाहन से मिले। यह सब हमारे पास संस्कृत में लिखा हुआ है। और मैंने स्वयं उस संस्कृत संवाद अपने अन्दर धारण कर लेते हैं तो वह 'घार्य' हो जाता है को पढ़ा है, जो ईसा-मसीह और देवी भक्त राजा शालिवाहन और स्वधा' बन जाता है अर्थात हमारा अपना गुण। हम इसे पशुओं में मध्य हुआ। जब राजा ने ईसा-मसीह से उनका नाम-परिचय अन्तर्जात विवेक भी कह सकते हैं। ऐसे कई गुण तो पूछा तो उन्होंने कहा "मैं मलेच्छों के देश से आया हूँ और में भी पाए जाते हैं, जैसे माता-पिता से लगाव मालिक से लगाव, मुझे यह (भारत) अपना देश लगता है।" शालिवाहन ने उन्हें आदि। कहा, इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाले आप एक महान पुरुष इसके बाद उच्च चेतना आती है जहां मन है। मन अंग्रेजी हैं, अत: अधोपतन से रक्षा करने तथा जीवन के पवित्र सिद्धान्त भाषा के Mind शब्द से भिन्न है । मन का अर्थ है हमारे के विषय में उन लोगों को बताने के लिए आपको उन्हीं देशों अन्दर के भाव। मैंने हाल ही में पढ़ा हैं कि वैज्ञानिक अब में लौट जाना चाहिए। संस्कृत में इसे 'निर्मल तत्वम्' कहा गया 'बुद्धि लब्धि' (IQ) के साथ-साथ भावात्मक लब्धि' (EQ) है। इसलिए ईसा मसीह यहाँ से वापिस चले गए। परन्तु जाने के बारे में भी बात करने लगे हैं केवल बुद्धिमान व्यक्ति के 3 12 वर्ष पश्चात ही उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। ही सही नहीं हैं। उनके अन्दर भावनाओं का संतुलन होना भी आवश्यक है। पहले लोग उसी की प्रशंसा करते थे जिसका समय बुद्ध और महावीर ने भी विराट के मस्तक के उसी स्तर बौद्धिक स्तर ऊँचा होता था। परन्तु आजकल वे जान गए हैं कि बुद्धि द्वारा लोगों ने किस प्रकार पृथ्वी पर सभी की हिंसा आप सभी जानते हैं कि वेदों के अनुसार हमारे सात 'चेतना अराजकता तथा विनाश फैलाया है। इसलिए वे आजकल इससे स्तर' हैं, जिन्हें हमें पार करना है या हमारे अन्तर्निहित वे सात ऊंचे, 'भावनात्मक लब्धि' अर्थात् (EQ) के बारे भी बात सूक्ष्म गुण इनमें से प्रथम है 'भु:'-इस तत्व से गणेश जी करने लगे हैं। यह भावनात्मक गुण भी हमारे अन्दर एक की उत्पत्ति हुई। दूसरा है 'भुवः'- जिसका अर्थ है अन्तरिक्ष आन्तरिक प्रेरणा, आन्तरिक क्षेम के रूप में आता है। जिससे अर्थात वह सब जिसकी सृष्टि हमारे चहुँ ओर की गई। तीसरा बचा नहीं जा सकता। जीवन में मनुष्य चाहे जो भी प्राप्त कर 'स्वाहा'--जो नाभि चक्र पर है। स्वाहा-जहाँ सब भस्म हो ले, परन्तु उसमें यदि प्रेम एवं भावनात्मकता का अभाव है जाता है। आजकल आप देखते हैं कि लोग सब चीजों का उपभोग तो वह अधूरा है। ये भावनात्मकता भी सीमित हो सकती है। करते चले जाते हैं। सभी प्रकार की पुस्तकें पढ़ते हैं। सभी बौद्धिकता के प्रभाव से हम किसी व्यक्ति या विचार से आसक्त प्रकार के कृत्य करते हैं। यदि आप उनसे पूछें " आप ऐसा होकर रह जाते हैं, जैसे हिटलर ने अपने विचारों को ही सत्य क्यों करते हैं? तो कहेंगे "इसमें क्या त्रुटि है।" "ऐसा क्यों माना तथा उन्हें क्रियान्वित करने की चेष्टा की। अत: जब आप किसी विचार विशेष से लिप्त हो जाते हैं तो वास्तविता का न तो पोषण कर सकते हैं और न सहायता। युद्ध, विनाश-सभी कुछ घटित हो चुका है। आजकल, लोग दूसरों को नष्ट करने में लगे हुए हैं। विरोध-भाव हैं। यह कोई अन्ध विश्वास नहीं है, यह तो आन्तरिक प्रेरणा के रूप में यह सब आ रहा है जहाँ मन बुद्धि पर हावी हो यह विशेष समय था जिसे मैं तपस्या का समय कहती हैँ। उसी पर जन्म लिया। हैं। े पहनते हैं?" तो कहेंगे, "इसमें क्या दोष है?" यह विवेकहीन उपभोग चल रहा है। पर इसी चक्र पर हमारे अन्दर एक महान गुण भी है जिसे 'स्वधा' कहते हैं। स्वघा अर्थात् सभी प्रकार का धर्म। [दूसरों द्वारा हम अपने अन्दर धर्म को कायम रखते चुपके-चुपके चैतन्य लहरों 10 गया है और बुद्धि भावनाओं पर। अत: हममें एक अन्य अन्तर्जात नहीं है। पश्चिम में तो इससे भी बुरी स्थिति है। वहाँ लोग चेतना, एक अन्य गुण है जन:। जन: अर्थात मनुष्य और उनसे बलबों में जाते हैं और हर क्लंब के अपने विशेष परिघान सम्पर्क। मनुष्य अकेला जीवित नहीं रह सकता। जेल जाने वाले होते हैं जो कि लोगों की पहनने अनिवार्य होते हैं। यदि वे किसी मनुष्य का उदाहरण लें। यदि जेल में उसे अच्छा दर्जा किसी दसरे परिधान में आते हैं तो लोग उनपर हंसते हैं पश्चिमी प्राप्त हो तो उसे बाहर से भी अधिक सुख-सुविधाएं प्राप्त होती देशों में कांटाछरी का प्रयोग भी एक महत्त्वपूर्ण बात हैं। आप हैं, वह केवल अन्य लोगों से मिल नहीं सकता। उनसे सम्पर्क किस प्रकार इन का प्रयोग करते हैं। अंग्रेज लोग तो मूर्खतापूर्ण नहीं बनाए रख सकता। मेल-जोल बनाए रखने के हमारे अन्तर्जात हंग से इस बाघा में फंसे है। यदि कोई कांटा छुरी का प्रयोग गुण से, जो कि मानव अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग है, जब व्यक्ति को वचित कर दिया जाता है तो वह पूर्णतः हतोत्साहित और नहीं है। इस प्रकार की अस्वभाविकता भी युगों के संस्कारों दु:खी हो जाता है। जेल से बारह लोगों से मेल-जोल रखते मे ही आती है। सम्भव है, ये लोग आदिवासी हों। उनके पास हुए, तुच्छ कार्यों पर परिश्रम करने में भी उसे संकोच नहीं पहनने के वस्त्र भी न हों। शुरु-2 में तो मनुष्य के पास पहनने गलत ढंग से करता है तो समझिए कि वह बिल्कुल भी शिष्ट होता। अत: सम्पर्क बनाए रखना भी हमारी आन्तरिक आवश्यकता के वस्त्र नहीं थे। और वे तन पेड़ों के पत्ते व छाल आदि है। परन्तु ऐसा करते हुए भी लोग कभी-कभी दूसरों के घर्म से ढांपते थे। आज वे दूसरी सीमा पर जा पहुँचे हैं उनका की छान-बीन करने लगते हैं। वास्तव में धर्म उनके लिए अधिक होते घ्यान अब अपनी वेशभूषा, छुरीकांटे के बारे में अधिक केन्द्रि है। किसी भी भिन् चीज को वे सहन नहीं कर सकते। ये महत्वपूर्ण नहीं होता वे सम्पर्क बनाए रखने के हैं। इस प्रकार व्यक्ति असन्तुलित हा जाता है। उत्सुक कहना वहां आम बात है कि "मुझे यह पसन्द नहीं है। मुझे इसके उपरान्त छठी चेतना आती है जो कि अत्यन्त रुचिकर वह पसन्द नहीं है।" अब वे भारत में आकर कहते हैं कि है। व्यक्ति बन्धन ग्रस्त हो जाता है। मैं यदि भारतीय हूँ तो हमें भारतीयों के कपड़े पहनने का ढंग अच्छा नहीं लगता। मुझे 'भारतीयता' पर गर्व है। व्यक्ति या तो बुराई को बिल्कुल ठीक है आप वह पहनिए जो आप को अच्छा लगता है, और नहीं देख पाता या उसे केवल बुराई दिखाई देती है। यह दोनों भारतीयों को बह सब पहनने दीजिए जो उन्हें अच्छा लगता ही प्रकार से हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर है कि है। आप यह क्यों सोचते हैं कि इंगलैण्ड की वेशभूषा भारत आप किस प्रकार बन्धन ग्रस्त थे। ये बन्धन हमें अपने छठे जैसे गर्म देश में भी ठीक रहेगी यह सब इसी प्रकार चलता चन्द्र 'आज्ञा' से प्राप्त होते हैं। एक अन्य चीज जो हम में पनपती वह है कि जब भी कोई हमें बन्धनों में जकड़ना चाहता हो जाते हैं कि कोई इनके अन्दर छिपी मूर्खता को नहीं देखता है या हमें वश में करना चाहता है तो हम उसके चुंगल से और प्रचलित कसंस्कारों को यदि हम अस्वीकार करते हैं तो बचने का प्रयत्न करते हैं, या कभी-कभी, प्रभुत्व जमाने की हमें असभ्य कहा जाता है। कुसंस्कारों के इस बन्धन ने मानतवा कोशिश करते हैं । रहता है और मजे की बात यह है कि ये बन्धन इतने गहन का बहुत नुकसान किया है। उदाहरणतया पश्चिम में फ्रायड यह दमनकारी प्रवृत्ति भी हमारे अन्दर अन्तर्जात है। इन को स्वीकार करना पूर्ण घर्म माना गया उसने लगभग ईसा दोनों प्रवृत्तियों के अन्तर्जात होने के कारण हम संस्कारों में फंसते मसीह का स्थान ले लिया। स्वयं यहूदी होते हुए भी यह पागल व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता पर पूर्ण रूप से हावी हो गया। यदि यह भारत में आया होता तो लोग निश्चित ही उस पागल को सब स्व केन्द्रित होने का परिणाम है। लोग कुछ समझना ही समुद्र में फैंक देते। पश्चिम के लोगों ने तो फ्रायड को इतनी चले जाते हैं। कुछ लोग तो इतने बुरी तरीके से बन्धन ग्रस्त हैं कि उन्हें इस स्थिति से बाहर निकालना असम्भव है। यह नहीं चाहते। जैसे, कोई शाकाहारी व्यक्ति आपके घर आकर मान्यता दी कि पश्चिमी सभ्यता आत्मघातक हो गई। सम्मान उहरता है और कहता है, "मैं तो उन बर्तनों में खाना नहीं नैतिकता और आदर्श विहीन उसके विचारों को स्वीकार करन खाऊँगा जिनमें मांसाहारी भोजन बनता है। तो आप जाईए और के कारण सभी माप दण्ड छिन्न-भिन्न हो गए। उसे यह मान्यता नए बर्तन लाईए। या फिर अपने नौकर को ऐसे स्थान पर भेजिए इसलिए मिली कि उसने पुस्तकों में सब लिख दिया और इन कि वह कुएँ का पानी ला सके तथा पुरातन भारतीय शैली मूर्ख लोगों के लिए तो हर लिखित बात एक कानून बन जाती के अनुसार नौकर पूर्ण रूप से पानी से भीगा होना चाहिए ताकि है। यह एक बहुत भयानक संस्कार है । जैसे बाईबल में लिखा वह आपके लिए पीने व खाना बनाने के लिए पानी ला सके। है कि यहूदियों ने ईसा को सूली पर चढ़ाया। लोग जरा सा भले ही नौकर निमोनिया से मर जए। इसकी कोई परवाह नहीं भी नहीं सोचते कि यहूदी तो बाहुल्य में थे। और लोगो के है। इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण संस्कार पूर्व में ही मिलते हों ऐसा आम घारणा पर किसी को कैसे सूली पर चढ़ाया जा सकता चैतन्य लररी 11 निर्धनता की स्थिति। इससे उन्होंने यह सिद्ध किया कि लोगों को प्रभावित करने के लिए घन-धान्य अथवा जमीन जायदाद की आवश्यकता नहीं है। उन दिनों लोग तपस्वियों का सम्मान करते थे। वह काल ही तपस्या का था। इसलिए वे अवतरित है। यह तो रोमन सरकार ही थी जिसने अपना दोष यहूदियों पर डाल दिया और ऐसा कुकृत्य केवल मिस्टर पॉल जैसे लोगों के विचारों के कारण हुआ। परन्तु लोगों ने भी इस बात को बहुत सुगमता से मान लिया क्योंकि यह उनकी यहदियों के प्रति घृणा के अनुरूप थी। यहूदियों ने फिर फ्रायड जैसे लोगों को जन्म दिया। इस प्रकार इन संस्कारों की प्रतिक्रियाएं भी चलती रहती हैं और आपका देश अराजकता, डर विनाश, हिंसा हुए और एक तपस्वी की भांति जीवन व्यतीत किया। इसके विपरीत ईसाई लोग केवल अपनी ही सुख-सुविधाओं की चिन्ता करते हैं । किसी भी ईसाई देश में चले जाएं, आप देखेंगे कि वे लोग धन दौलत व घड़ियों के दास हैं। इनकी जीवन शैली को देख कर आप को आघात लगेगा वे स्वयं को ईसा का अधिकार व स्वामित्त्व के विचार भी अपने में एक कुसंस्कार अनुयायी करते हैं परन्तु चलते उनके विपरीत हैं। किसी है। यह मेरी भूमि है, यह मेरी वस्तु है। यह विचार इतने प्रबल कैथोलिक या प्रोटैस्टेंटे गिरजाघर में जाकर ही आप यह जान हो जाते हैं कि निराकार में विश्वास रखने वाले लोग भी जमीन पाएंगे। मुझे समझ नहीं आता कैथोलिक लोग अभी तक भी जायदाद पर लड़ने लगते हैं। यह मामले कई बार तो इतने बढ़ धनलोलप हैं। मसीह से उन्होंने केवल इतना ही सीखा है कि जाते हैं कि पूरा देश ही इनकी चपेट में आ जाता है। संस्कार ईसा एक विवाह में गए और उन्होंने एक विशेष बर्तन (Vat) चाहे कैसे भी हों हमारी आंखों पर पर्दा डाल देते हैं। उदाहरण से शराब निकाली। हिब्रू भाषा में अंगूरों के रस को भी Wine के तौर पर, मुस्लिम लोग कुरान में विश्वास रखते हैं। परन्तु कहते हैं। मैंने बाईबल का हिब्रू भाषा में भी अध्ययन किया कुरान पढ़ना मोहम्मद साहब ने नहीं लिखी। वो तो लिखना है। इसे द्वाक्ष भी कहते हैं क्योंकि आप अल्कोहल को तत्काल पढना भी नहीं जानते थे। उनके 40 वर्ष बाद तो कुछ भी नहीं बना सकते। उसके लिए आपको इसे सड़ाना पड़ता है। लिखा नहीं गया। उसके बाद एक सज्जन मुबईय्या जिसने हजरत जितनी यह पुरानी होगी उतनी ही महंगी होगी। आप ही बताइए अली, उनके बेटे दूसरे खलीफा, तथा तीसरे और फिर चौथे कि ईसा मसीह किस प्रकार ऐसी शराब (अल्कोहल) बना बेटों को स्वयं खलीफा बनने के लिए मारा और फिर उस चौथे सुकते थे? परन्तु अब तो मैं देखती हूँ कि कोई भी अवसर बेटे के जिगर को इस मुबईय्या की माँ ने खा लिया क्योंकि हो, चाहे किसी के मरने का हो या पैदा होने का, वे शैम्पेन यह व्यक्ति स्त्रियों से घृणा करता था। इसलिए उसने कुरान जरूर पीएँगे। और क्रिसमस के अवसर पर तो विशेष रूप से, में सब कुछ स्त्री जाति के विरोध में लिखा हैं। और लोगों जब वे गिरजाघर से वापिस आते हैं तो आप किसी ईसाई के ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि यह सब कुरान में लिखा घर मत जाईएगा। भारतीय ईसाईयों ने भी पश्चिमी ईसाईयों का है। एक व्यक्ति ने कुरान का मजाक उड़ाते हुए एक पुस्तक अनुसरण करना शुरू कर दिया है। क्योंकि वे मानते हैं कि लिखी तो मैंने पूछा "यह क्यों लिखी'" तो उसने कहा कि ईसा तो इंगलैण्ड में पैदा हुए थे। ये सब विचार कहाँ से आए? उसका कोई विशेष प्रयोजन नहीं है। इस को पढ़कर जो लोग हमारे देश में अंग्रेज, पुर्तगाली और फ्रांसिसी लोग ही ईसाई मुस्लिम नहीं है वे इस्लाम पर हंसेंगे और जो मुस्लिम है वह धूर्म को साथ लेकर आए। क्या ये सब वास्तव में ईसाई हैं। कहेंगे, वाह! यह बहुत सुन्दर पुस्तक है। इसमें जो कुछ भी सभी देशों में ईसाई घर्म को ले जाने का उनका क्या उद्देश्य लिखा है हम उस पर विश्वास करते हैं। मेंने उसे बताया कि था? स्पेन और पूर्तगाली लोगों ने तो पूरे विश्व में जाकर इसाई इस प्रकार तो समस्या का समाधान नहीं होंगा। उसने पूछा,"कैसे धर्म को फैलाया। और यह लोग केवल शराबी बन कर रह करें" मैंने कहा "तुम एक ऐसी पुस्तक लिखो जिसमें इन सभी गुए हैं। कल जब मैं यहाँ से जा रही थी तो देखा कि समद्र मुर्खताओं पर प्रकाश डालो। मैंने कुरान के सम्बन्ध में इसलिए आनन्द और खुशी की लहरों से भरा हुआ था, पानी का स्तर कहा है क्योंकि मैं जानती हूँ कि इसे मोहम्मद साहब ने नहीं भी बढ़ा हुआ था। (ऐसा तो मेरे साथ अक्सर होता है) परन्तु लिखा। और तुम भी मोहम्मद साहब के विरोध में कुछ नहीं तुभी मैंने देखा चार-पांच ईसाई नशे में धुत गाते हुए चले आ लिखना। वे तो दत्तात्रेय के अवतार हैं। यह सत्य है।" इसलिए रहे थे और मैंने सोचा कि ये इसी समुद्र के जल में डूब आप लिब्रिए कि उन्होंने यह सब नहीं लिखा।" यह सब इन्हीं जाएँगे। शराब मानवता को ईसाई धर्म का वरदान है। यह शराब पतलि से भर जाता है। लोगों के कुसंस्कारों का परिणाम है। कहाँ से आई, यह तो परमात्मा ही जानते हैं। परन्तु यह ईसाईयो ईसा मसीह के जीवन के विषय में यदि हम जान जाएं से अवश्य आई। मुसलमान भी शराब तो पीते हैं परन्तु छिपकर। तो यह कुसंस्कार दूर किए जा सकते हैं, सर्वप्रथम वह एक वे खुल कर शराब नहीं पीते और न ही शराब पीने को धार्मिक अस्तबल में पैदा हुए। अस्तबल में जन्म लेने का अर्थ है अत्यन्त कर्त्तव्य मानते हैं। गिरजाघरों में तो ' ईश्वरीय संदेश' देने के चैतन्य लहरी 12 बाद आपको थोड़ी सी, बदबूदार शराब दी जाती है। अब शराब के बाद आप 'ईश्वरीय संदेश' कैसे सम्भालेंगे? एक बार आपके के पश्चात आप लोग तो विश्ष्टि हो चुके हैं, परन्तु आप को शराब पीते ही सारी चेतना लुप्त हा जाती है। परन्तु यह सब भी इस आज्ञा से पार होना है और इसके लिए आप को अपने होता है। इसीलिए हम आज ईसा के बारे में बात कर रहे हैं। से पहले ईसा मसीह को ढंग से मानता हो। आत्मसाक्षात्कार अहंकार पर नियंत्रण करना है। ईसा मसीह ने अपने जीवन ईसा आज्ञा-चक्र पर विराजमान हैं और मस्तिष्क की काल में ही सिद्ध कर दिया कि अहंकार कसे कार्य करता श्लेष्मीय (Pituitary) और शंकुरूप (Pineal) ग्रन्थियों है। उनका क्रूसारोपण यह दर्शाता है कि किस प्रकार पवित्र्य को नियंत्रित करते हैं । और इसी के द्वारा हमारे संस्कारों अथवा बन्धनों को भी नियंत्रित करते हैं। यदि आप उनका अनुसरण करें तो हम संस्कारों के बन्धन में नहीं आ सकते। क्योंकि अंत में सरकार ने उन्हें सूली पर चढ़ाया। आरम्भ में बहुत उन्होंने केवल आत्मा के बारे में बात की है। आत्मा किसी से सहजयोगी थे जो स्वयं को गूढ़ज्ञाता (gnostics) कहते बन्धन में नहीं फंसती जो कुछ ठीक है वह स्वीकार्य है और थे। ज्ञा (gna) का संस्कृत में अर्थ है ज्ञान यानि जो स्वयं आत्मा के अनुकूल होता है जैसे कि आप लोग हैं। को दूर-दूर शामियानों में ठहराया हुआ है जो कि आरामदायक नहीं है। फिर भी ये लोग मजे से हैं। इन्हें बिल्कुल परवाह मसीह ही अहंकार पर नियंत्रण करते हैं इसके लिए वे आप नहीं है कि ये कहाँ सोते हैं, कहाँ रहते हैं, इन्हें क्या मिलता को संतुलन देते हैं पश्चिम् में तो लोग गधे जैसा मूर्खतपूर्ण है? ये सब आध्यात्मिक माहौल का आनन्द ले रहे हैं। ये सब जीवन व्यतीत करते हैं । उनके बोलने, रहन-सहन के ढंग से इसलिए सम्भव हुआ है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश आँखें खुल जाती हैं। किस प्रकार विकसित हुए हैं, परमात्मा कर गए हैं। और जो लोग नहीं आए वे चिन्तित हैं कि यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। सभी प्रकार के भौतिक सुखों और सभ्य मानते हैं। इस प्रकार उनकी आज्ञा पकड़ी जाती को ढूंढते हैं, सब की आलोचना करते हैं, क्योंकि उनके अन्दर है। ईसा मसीह ने अपनी लॉर्ड्स प्रेयर Lords' Prayer) आध्यात्मिक आनन्द की कमी होती है। जब तक वे पूर्ण रूप से आत्मा नहीं बन जाते तब तक वे वास्तविक आनन्द को जिस प्रकार हम अपने प्रति किए गए अपराधों के लिए अन्य प्राप्त कर भी नहीं सकते। के इस महान अवतरण को सूली पर चढ़ाया गया और किस प्रकार मूर्ख लोगों ने उन्हें कष्ट दिए और पीड़ित किया तथा मे।। को जानते थे। ईसा मसीह ने कहा है कि आपको स्वयं को मैं जानती हूँ कि इन लोगों जानना है परन्तु स्वयं को जानने के लिए शुद्ध होनी आवश्यक है अन्यथा कोई भी आप पर जबरदस्ती नहीं कर सकता। ईसा है। आध्यात्मिक व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग ही जानता है। आज वे अपने को सबसे अधिक विकासशील में है "हे परमात्मा, हमारे अपराधों को भी वैसे ही क्षमा करें लोगों को क्षमा करते हैं।" पाश्चात्य देशों में, मैंने देखा है, कि लोग दूसरों को क्षमा करना नहीं जानते, क्योंकि उनके मन घृणा से भरे हुए हैं और ईसा मसीह ने स्पष्ट कहा है कि आपको अपनी आत्मा को जानना है। कुरान में मोहम्मद साहब ने भी कहा है, कि जब तक आप स्वयं को नहीं जानेंगे तब तक परमात्मा को अहंकार के कारण वे क्षमा माँग भी नहीं सकते। भले ही वे नहीं जान सकते। मुबईय्या द्वारा रचित कुरान में भी बहुत से स्वयं को दोषी महसूस करते रहें परन्तु वे क्षमा नहीं माँगेंगे। सत्य मिलते हैं और यहूदियों की बाईबल में भी बहुत से सत्य छिपे हुए हैं। परन्तु यह सब इनके अपने भले के लिए बनाए मुझे क्षमा करें" नाज़ियों ने इतने अधिक लोगों को मारा और गए विचारों, त्कों और समायोजनों में छिपे हुए हैं। हमें यह बात समझनी है कि ईसा मसीह ने अपना कोई विशेष घर्म के लिए लज्जित नहीं हैं। ईसा मसीह से हमारा संबंध न होने नहीं किया। मोहम्मद साहब ने इब्राहिम के बारे में बताया वे कभी नहीं कहेंगे कि "हे परमात्मा मेरे अपराधों के लिए फिर भी यह नाज़ी इटली तक चले आते हैं। वे अपने कुकृत्यों के कारण यह सब होता है। यदि हमारा सम्बंध ईसा मसीह से है, तो सर्वप्रथम हमारा अहंकार पूर्णतया नष्ट हो जाता है। यह अहंकार, जो कई मार्गों से आता है, केवल एक भ्रांति है, एक कल्पना है। और इस अहंकार से लोग दूसरों को बेवकूफ शुरू है। उन्होंने मोसिज ईसा मसीह और उनकी माता के बारे में बात की है और बाईबल से ज्यादा उन्हें सम्मान दिया है। उन्होंने कहा है कि पहले एक लाख से अधघिक वली यानि साक्षात्कारी आत्माएं पैदा हुई। परन्तु मुसलमान अभी भी स्वयं को विशेष बनाते हैं व झूठा दिखावा करते हैं। जैसा कि शेपिस्ट की कहानी लोग समझते हैं और स्वयं को मुसलमान कहते हैं, भले ही से स्पष्ट होता है। वह स्वयं को बहुत बड़ा वास्तुकार समझता वे शराब पिऐँ, लोगों को आतांकित करें, अथवा निषिद्ध वस्तुओं था वह एक राजा के पास जाकर बोला कि "मैं आपके लिए के पीछ भागें, फिर भी वो मुसलमान हैं, यही हाल ईसाईयों बहुत सुन्दर महल तैयार करूँगा।" राजा उसकी बात मान गया का है। एक भी वास्तविक ईसाई नहीं मिलेंगा जा साक्षात्कार और उसे बहुत-सी मोहरें भेजता रहा। छ: महीनें बाद वह शिल्पी 13 चषेतन्य लहरी न कम पुनरुत्थान को इसलिए मनाना चाहिए क्योंकि सभी मनुष्यां दुबारा राजा के पास जाकर बोला कि आप अब चलकर अपना महल देख सकते हैं। जब राजा वहाँ पहुँचा तो वह दंग रह का पुनर्जन्म होना है सहज योग में किसी को सूली पर नहीं गया, क्योंकि वहाँ तो खाली जमीन पड़ी थी। राजा समझ गया चढ़ाया जाता। सब का पुनर्जन्म होना है क्योंकि ईसा मसीह का कि उसे बेवकूफ बनाया गया है। और शिल्पकार कल्पना में ही कहने लगा कि यह वह सड़क है जो महल को जाती है। नहीं उठाना है। ईसा ने हमारे लिए सब कुछ कर दिया था। वह सामने आपका महल एवं राजगद्दी है। कृपया आप इस में यह बात भी सत्य है कि उन्होंने कहा कि वे सभी पापियों पधारिए। राजा ने शिल्पी की चालाकी को समझते हुए कहा के लिए मरे। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो आज अहंकार कि पहले आप बैठिए और 2 घंटे तक उस चालाक शेपिस्ट एवं कुसंस्कारों के कारण आपके आज्ञा चक्र को खोलना कठिन को नुकीले पत्थर पर बैठाए रखा। अंत: में वह शिल्पकार राजा होता उनकी सूली ने मनुष्यों की इन दो भयानक ग्रन्थियों को के चरणों में गिर पड़ा। राजा ने उसे गिरफ्तार करवा दिया, खूब ढीला कर दिया। हमें उनके बीवन को बड़ी गहनता से समझना पिटवाया और कई तरह की यातनाएँ दीं। अहंकार मूर्खता को है। परन्तु यदि आप पत्रकार हैं; तो आप उनके सूली पर चढ़ने शिखर पर ले जाता है। वह संस्कृति जो अहंकार को प्रोत्साहित का कारण पूछेंगे। यदि वे ईश्वर थे, तो वे स्वयं सूली पर क्यों करती है, सबसे बुरी है। अधिकतर विज्ञापन भी हमारे अहंकार चढ़े? एक पत्रकार जिसे कि चक्रों के बारे में कुछ भी नहीं को प्रगट करते हैं । भारतीय संस्कृति के अनुसार, अहंकार को मालूम, उसे यह समझाना बहुत कठिन है कि ईसा मसीह सूली व्यक्त करना मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। लोग उस पर पर क्यों चढ़े। क्योंकि वह तपस्या एवं बलिदान का युग था हँसते हैं और मज़ाक करते हैं। मराठी में तो यदि कोई अपना इसलिए तीनों महापुरुषों -बुद्ध, महावीर और ईसा मसीह -ने पूर्ण घमंड दिखा रहा हो, तो कहा जाता है कि चनों के झाड़ पर वैराग्य प्राप्त किया। और तपस्वियों का जीवन व्यतीत किया। चढ़ रहा है। भारत में पूरी व्यवस्था ही ऐसी है कि कोई अपना उन्होंने यह सब हमारे लिए किया, अपने लिए नहीं। उन्हें इसकी अहंकार विकसित नहीं करता। जो भी ऐसा करता है, शीघ्र ही कोई इच्छा या आवश्यकता नहीं थी। हमें पवित्र करने और उसकी हवा निकाल दी जाती है। परन्तु उत्तरी भारत में अवश्य वांछित मेधा प्रदान करने के लिए उन्हें सूली पर चढ़ना पड़ा। अंहकार को थोड़ा बढ़ावा दिया जाता है। लोग ऊँची-ऊँची बातें लोग इसे एकादश रुद्र भी कहते हैं। इसको शुद्ध करने के लिए करते हैं, स्वयं को बड़े-बड़े नेता मानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के सुखों का त्याग किया। उनके लिए यह हम यह करेंगे, वह करेंगे आदि। यह लोग बड़े-बड़े राजनेता बलिदान नहीं था, लोगों के चक्रों को खोलने के लिए उन्होंने होते हैं और बड़े-बड़े अनुसंघानों को करने की घोषणाऐं करते ऐसा किया। उनके विना भविष्य में सहजयोग को कार्यान्वित रहते हैं। परन्तु ईसा मसीह ने इस प्रकार की कोई भी बात करना बहुत कठिन होता इन तीनों महापुरुषों ने हमारे इस चक्र नहीं कही। उनके धर्मोपदेश मि पॉल के नकारात्मक प्रयासों को शुद्ध करने का कार्य किया और परिणामस्वरूप सहजयोग सूली पर चढ़ना ही पर्याप्त धा। हमें अपने कंधों पर क्रॉस को इतने सुन्दर ढंग से निर्मित हुआ है और इतने सुन्दर ढंग से के बावजूद इतने गहरे और ज्ञानमय हैं। ईसा मसीह ने लोगों से बातचीत की उन्हें कई प्रकार के फैल रहा है तथा कार्यान्वित हो रहा है। इन तीनों के प्रति हमें तरीके सुझाए। और बताया कि आत्म-ज्ञान के बाद क्या होता कृतज्ञ होना चाहिए। हालाँकि दूसरे अवतरणों ने भी योगदान दिया है? कैसे बीज प्रसफुटित होता है? और कैसे यह दूषित हो जाता है? इन सब का उन्होंने बड़े सुन्दर ढंग से विवरण दिया देखते हैं। ये सभी देवदूत, जैसा कि इन्हें बाईबल में कहा जाता है। उनका जीवन बहुत सौम्य और आर्कषक था। वे धरती पर है, हमें पार होने में सहायता करते है । सभी अवतरणों ने हमारे एक पुच्छल तारे की भांति आए और लोगों के दिलों पर गहन आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया में सीढ़ियाँ तैयार की है; और प्रभाव छोड़ गए। उनका सूली पर चढ़ना भी इस लीला का एक अंश था क्योंकि उन्होंने आज्ञा में अपना स्थान बनाना था। सत्य की अवस्था में पहुंचते हैं। यह सत्य हमारे मस्तिष्क के आज्ञा चक्र को पार करने के लिए ही उन्हें सुली पर चढ़ाया तालू भाग में सहजयोग द्वारा आता है। जब कुण्डलिनी सहस्रार गया। परन्तु उनका सन्देश सूली में नहीं है। इसलिए जब लोग में प्रवेश करती है तो वहाँ चारों ओर प्रकाश देती है और एक क्रॉस (Cross) पहनते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। उनका प्रकाशमय व्यक्तित्व का निर्माण करती है। तब यह परमात्मा सूली पर चढ़ना तो कोई उत्सव मनाने की बात नहीं है, परन्तु के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति में मिल जाती है। इसी दिव्य कई लोग इसे भी मनाते हैं। हमें तो उनके पुनरुत्थान को मनाना प्रेम से आप पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाते हैं। इसलिए इनका चाहिए। हैं जैसा कि हम विशुद्धि पर, हृदय पर, दायें-बायें हृदय पर अन्त में तप की अवस्था में छठे चक्र को पार करते हुए हम मनुष्य के उत्थान में बहुत बड़ा योगदान है। ईसा मसीह का चैतन्य लडरी 14 तक योगदान सबसे बड़ा है। जब हम कहते हैं कि हमें ईसा मसीह की जा रही है ये अवतरण तो हमें तर्कवाद, सीमाओं तथा का अनुसरण करना है तो हमें देखना चाहिए कि हम कितने बन्धनों से ऊपर उठाने के लिए प्रयत्नशील हैं हमें इनसे ऊपर निरासक्त बन चुके हैं। लोग कहते हैं कि ईसा मसीह के भाई-बहन उठना है क्योंकि सोच विचार से तो हम एक रेखीय दिशा में भी थे और वे उन्हें मिलने भी आए। परन्तु ईसा मसीह ने चल पड़ते हैं जहां सत्य नहीं है। इन सभी चीज़ों का दुष्प्रभाव कहा "कौन मेरे भाई हैं? ये ज्ञानी-जन मेरे भाई हैं, शिष्य हैं, आप पर पड़ता है और आपको कहीं का नहीं छोड़ता। आप और यही मेरे रिश्तेदार हैं ।" ज्ञानेश्वर ने भी यही बात कही समझ लें कि आपको मस्तिष्क से ऊपर उठना है ऐसा कि साक्षात्कारी लोग ही तुम्हारे भाई बहन एवं रिश्तेदार बनेंगे। करना यदि आप नहीं जानते तो बेहतर होगा कि बैठकर वे रिश्तेदार जो हमें समझ नहीं सकते और जिन्होंने परमात्मा घ्यान-धारणा करें और यह स्थिति प्राप्त करें। मस्तिष्क तो के साम्राज्य में प्रवेश नहीं किया, हमारे रिश्तेदार नहीं हो सकते। घृणा, क्रोध और ईष्ष्या का दाता है। तर्क एवं विचार हमारं अपने जीवन काल में ईसा मसीह ने बहुत ही साधारण जीवन षड-रिपुओं के स्रोत हैं। मन हर गलत कार्य को करके उसका व्यतीत किया। कभी कपड़ों, सांसारिक बन्धनों या वस्तुओं की तर्क भी देता हैं, मन के ही कारण हम सब गलत कार्यों एवं चिन्ता नहीं की। पर इसका यह अर्थ नहीं कि उन्होंने किसी पापों को करना आरम्भ कर देता है। फिर उसका तर्क भी देते प्रकार की नग्नता स्वीकार की। लोगों को महावीर के बारे में हैं। आज्ञा के विरुद्ध जाने का अर्थ है सत्य के विरुद्ध जाना भी गलत धारणा है एक बार महावीर एक उद्यान में प्रार्थना और उसे तर्क संगत ठहराने के लिए अपने अंहकार व कुसंस्कारों कर रहे थे। उस बगीचे में बहुत सी कंटीली झाड़ियां थीं। एक का उपयोग करना। ऐसा करते हुए हम कभी भी मन से ऊपर झाड़ी में उनका कपड़ा उलझ गया। उन्होंने उस कपड़े को आधा नहीं उठ सकते। हम इतने आत्म- सन्तुष्ट हैं कि स्वयं को शाश्वत फाड़ दिया। इतने में श्री कृष्ण उनकी परीक्षा के लेने के लिए मान बैठते हैं। केवल अन्तर्दर्शन से ही हम इससे मुक्ति पा प्रकट हो कर बोले। "मैं बिल्कुल वस्त्रहीन हूँ, मुझे अपना कोई सकते है, परन्तु अन्तर्दर्शन अत्यन्त आवश्यक है। ऐसा करने वस्त्र दे दीजिए। आप तो एक राजा हैं'" महावीर जी ने अपना से ही आज्ञा चक्र की यह दोनों बाधाएं दूर हो सकती हैं। मैंने वस्त्र उतारकर श्री कृष्ण को दे दिया और स्वयं को पत्तों से आपको कई बार बताया है कि किसी भी अहँग्रस्त व्यक्ति से ढककर अपने महल में चले गए। परन्तु आजकल जैन घर्म बहस न करें। अहँ से क्रिया-प्रतिक्रिया आरम्भ हो जाती है और के लोगों ने यह सब बहुत भयंकर रूप में पेश किया है और हम प्रतिक्रिया करने लगते हैं। पश्चिम के लोगों में प्रतिक्रिया हर समय महावीर जी का निरादर करते हैं। वे इस महान अवतरण करने की बहुत आदत है। जिस भी चीज को वे देखते हैं उसकी का अनुसरण न करके इनका अपमान करते हैं। अभी हाल आलोचन। करने से नहीं चूकते। आप अपनी आलोचना क्यों ही में मैं एक ऐसे व्यक्ति से शिकागो में मिली जो " हरे रामा, नहीं करते? आलोचना के स्थान पर हम उसके सुघार के लिए हरे कृष्णा" समुदाय का मुखिया था और अत्यन्त ठंड में एक क्यों नहीं कुछ करते? परन्तु हममें तो प्रतिक्रिया करने की बहुत पतली धोती पहनकर काँप रहा था। जब मैंने उससे इस मूर्खता बुरी आदत पड़ गई है का कारण पूछा तो वह बोला कि "मेरे गुरु ने कहा है कि मान बैठे हैं। आपका यह अधिकार आत्म घातक है। प्रतिक्रिया यदि तुम भारत में 80% लोग धोती पहनते हैं, क्या वे सभी स्वर्ग को बार साक्षी रूप से जब आप देखने लगेंगे तो आप हैरान होंगे जा रहे हैं?" मैंने उससे उसके बाल मुंडवाने का कारण पूछा कि आप माया का खेल देखने लगे और इसमें अपना स्थान और पूछा कि यह शैंडी या भेंडी जो भी इसे कहते हो, यह भी आप देख पाएंगे। क्यों रखी हुई है? तो वह बोला ऐसा करने को मैरे गुरु ने कहा है। तब मैंने सोचा कि उसका गुरु उसे चोटी से बांधकर देखें। क्या मैं साक्षी हूँ? कुछ लोग कहते हैं कि सदा साक्षी स्वर्ग में ऊपर खींच लेगा। और ऐसा करना हम अपना अधघकार पतली धोती पहनोगे तो स्वर्ग को जाओगे"। मैंने कहा करना गलत है। साक्षी रूप से आप सभी कुछ देखिए। एक ा हमें साक्षी भाव विकसित करना है। हर साक्षी भाव से 1. रूप से देखने के कारण मेरी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है। कबीर उन सन्तों में से एक है जिन्होंने आपके कुसंस्कारों तस्वीर की तरह इसमें सभी कुछ छपा है। जब भी मुझे कुछ पर चोट की है। उन्होंने कहा है कि यदि सिर मुंडवाने से स्वर्ग कहना या किसी को सुधारना होता है तो मेरी समरण शक्ति मिलता तो साल में दो बार मूंडा जाने वाला मेमना आप से सहायक होती है। सर्वप्रथम तो हमें किसी भी चीज़ के प्रति पहले स्वर्ग पहुँचता। यह सत्य है। परन्तु जैन साधु बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी। कुछ लोग धनासक्त होते हैं, वे कुछ नंगे रहते है। और स्वयं अपने बाल उखाड़ते हैं कानून भी भी नहीं देते, सारा पैसा वे अपने पास रखते हैं। सहजयोग में और सबका अपमान करने की आज्ञा भी इस प्रकार के लोग देखे गए हैं, और कुछ ऐसे हैं जो देता है। बुद्ध, महावीर तथा ईसा के नाम पर यह सब मूर्खताएं दूसरों को खुश करने के लिए बेकार ही खुले रूप से घन उन्हें गलियों में नंगे घूमने चैतन्य लहरी 15 खर्च डालते हैं। इस प्रकार पैसा बरबाद करना भी ठीक नहीं। हैं। बच्चों से बात करने में आनन्द जाता है क्योंकि वे भोल प्रतिक्रिया तो किसी भी रूप में हो सकती है कभी-कभी तो हैं। एक बार मेरी नातिन ने मुझ से पूछा-"माँ, आप शेर के यह विदित ही नहीं होता कि हम अपनी मानसिक शक्ति बेकार निरीह बच्चों के बारे में क्या सोचती हैं?" मैंने जब इसका खर्च कर रहे हैं। वास्तव में हम प्रतिक्रिया तब करते हैं, जब हमारी निर्णय शक्ति पूर्णतया नष्ट हो जाती है और हमें मालूम नहीं होता कि इस प्रकार की प्रतिक्रिया करने से क्या खो रहे वे इतने अबोध होते है।" तब मैंने उसे समझाया कि वे परमात्मा हैं और क्या पा रहे हैं व इस प्रकार की प्रतिक्रिया हमें आंतरिक के पाश में बंधे होते हैं अत: जो भी कुछ वे करते हैं उसके रूप से पूर्णतया नष्ट कर डालेगी। यदि आप में दूसरों की लिए वे जिम्मेवार नहीं होते। केवल मनुष्यों को ही परमात्मा आलोचना की आदत है तो इसे पूर्ण रूप से त्याग दीजिए। अपनी इस शक्ति को अन्तरमुखी बना लीजिए और स्वयं की आलोचना सकते हैं। सभी पशु ईश्वर के पाश में होने के कारण अपन कीजिए। अपने को प्रतिक्रिया करने के लिए चेतावनी दीजिए। तभी आप देखेंगे कि आप का अहंकार धरे-घीरे खत्म होता है और शेर-शेर की तरह। परन्तु मानव एक ही समय में साॉँप जा रहा है। एक बार एक व्यक्ति मेरे पास आकर कहने लगा, बिच्छ या शेर कुछ भी हो सकता है। और यह खटमल जैसा माँ मुझे इतना गुस्सा आता है कि दिल करता है सबकी पिटाई है। मनुष्य कर दं। तब मैंने उससे कहा कि "चप्पल उठाकर अपने सिर प्रतिक्रिया तभी करता है जब उसका परमात्मा से संबंध-विच्छेद को पीट लो", इसी से वह सुधर गया है। कारण भूछा तो कहने लगी कि "उनके पिता तो उन्हें मनुष्यां को खाने के लिए कहते हैं और उन्हें ऐसा करना पड़ता है। े ने स्वतंत्रता दी है। केवल मानव ही इस प्रकार प्रतिक्रिया कर स्वभाव अनुसार ही व्यापार करते हैं, सॉप-सॉप की तरह करता , तुच्छ मानव अप्रत्याशित रूप से प्रतिक्रिया करता क हो जाता है। परमात्मा से जुड़े हुए व्यक्ति को सांसारिक आप ने अपने बन्धनों को भी देखना है और स्वयं से कार्या-कलाप नाटक सम लगते हैं और सभी कुछ परमात्मा पर पूछना है कि क्या मैं बन्धनों में फंसा हुआ हूँ? मेरे संस्कार छोड़ देता है। मात्र एक बन्धन से वह अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है परन्तु इसके लिए उसका पूर्ण रूपेण तथा दूसरों के लिए समस्या उत्पन्न कर देंगें। सब रीति रिवाज़ परमात्मा से जुड़ा होना आवश्यक है। यह निश्चित रूप से कार्य आदि एक अच्छे संस्कार के रूप में शुरू होते हैं। पर धीरे-धीर करेंगा। यह वह समय है जब परम चैतन्य पूर्ण रूप से कार्यशील लोग उन में जकड़ जाते हैं। ये हमारा एक अभिन्न अंग बन है। लोगों ने मुझसे श्री गणेश के बारे में पूछा कि क्या उन्होंने जाते हैं। तब हमें क्या करना चाहिए? ऐसी स्थिति में हमें कोई दूध पिया। तो मैंने कहा-"कि इस समय परम चैतन्य कुछ भी चमत्कार कर सकता है। सब कुछ संभव है, परन्तु मैंन देखना है। तब, आप आश्चर्य चकित होंगे कि, बिना कुछ खर्च श्री गणेश का इतना दूध पीते पहले नहीं देखा। हो सकता है. कि छोट चूहे के लिए ऐसा किया हो। तब उन्होंने पूछा कि का आनन्द ले रहे हैं, भले ही वह बेतुका अर्थहीन अथवा हास्यापद शिव जीः ने दूध क्यों पिया? तो मैंने कहा कि यह उनकी हो। फिल्म के दृष्य की तरह आप इसे देखते हैं, बिना प्रतिक्रिया इच्छा पर निर्भर है। यदि वे दूध पीना चाहते हैं तो उन्हें पीन दीजिए। वास्तव में हमारे देश में दूध पर्याप्त मात्रा में होता है, अत: उन्हें पीने दीजिए सब कार्य परम चैतन्य द्वारा हो रहाः है वह आप के दृक-तन्त्रिका के मध्य भाग में स्थित आज्ञा है, मैं उन्हें कुछ करने को नहीं कहती और वे इतने सुंदर चमत्कारिक कार्य कर रहे हैं। मैं दब्रिसबेन में आश्रम में सोईं बहुत सूक्ष्म रूप से प्रभावित करता है और किस प्रकार आप हुई थी। अकस्मात आकाश में इन्द्र धनुष प्रकट हुआ और साथ के अंदर दूषित चित्र निर्मित करता है । जिन लोगों में बन्धन ही माँ और बच्चे की एक आकृति दिखाई दी। निसन्देह मुझे ज्यादा होते है वे लोग मानसिक तौर पर परेशान व भ्रष्ट होते माँ और बच्चे की आकृति के चित्र बहुत अच्छे लगते हैं। मैं तो सोई हुई थी अत: मैंने यह सब देखने की इच्छा नहीं की ईसा मसीह का शुद्ध स्वभाव पावित्र्य है। वे साक्षात् श्री थी। मेरी के सिर के चारो ओर प्रभा मण्डल का बनना भी गणेश है और श्री गणेश एक सनातन, अनन्त बालक है। ईसा परम चैतन्य का चमत्कार था। परम चैतन्य यह सब कार्य आप मसीह पूर्णतया अबोध है क्योंकि बन्धन मुक्त होने के कारण को सहजयोग की प्रतीति करवाने के लिए करते हैं। क्योंकि अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो कि बुद्धिजीवी हैं, पढ़े लिखें बन्धनों में फंसते हैं। बच्चे हमारी अपेक्षा कम प्रतिबंधित होते हैं, तर्क करते हैं और कुछ भी स्वीकार करना नहीं चाहते। अच्छे हैं या बुरे? संस्कार यदि सीमा से आगे बढेंगे तो अपने प्रतिक्रिया न करते हुए सब चीजों को एक नाटक के रूप में किए बिना मंच पर गए आप प्रतिपल अपने सामने वाले नाटक किए। किसी भी चरित्रहीन, भद्दी चीज़़ को देखने की कोई जरूरत नहीं। अपने मन को उलझने मत दीजिए। जिसे आप मन कहते चक्र है। आप देखते है कि यही चक्र आपके मस्तिष्क को हैं। वे बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करते और न ही वे किसी प्रकार चैतन्य लहरी 16 जब यह दिव्य-शक्ति है और पूर्ण रूप से कार्यशील है तो आप इसे किस प्रकार चुनौती दे सकते हैं? यह शक्ति असीमित है नहीं चाहते। आप को इसके लिए न तो सूली पर चढ़ना, न तथा हर अणु-रेणु में समा चुकी है। यह परम चैतन्य वस्तुओं कोई त्याग करना है और न ही ईसा मसीह की तरह निर्धनता को इधर से उधर करने का कार्य तो नहीं करता पर यह सर्वथा असम्भव कार्य करता है ताकि हम इस पर विश्वास कर सकें। लिए कर दिया। इसलिए अब तो केवल आ जाईए। यदि आप कार्यान्वित परम चैतन्य ही एकमात्र समाधान है। आप सब कुछ परमात्मा के दरबार में आ रहे हैं तो इस के योग्य बन जाइए। इस शक्ति-सागर पर छोड़ दीजिए। यह सभी स्थितियों को सम्भाल इसके योग्य बन जाइए और देखिए कि आप की समस्त लेगा। आप को प्रतिक्रिया करने की कोई आवश्यकता नहीं। समस्याओं का निदान हो जाएगा। आपका आत्मा-सम्मान बना परम चैतन्य बहुत कार्यकुशल तीक्ष्या तथा सर्वव्यापक है, सभी कुछ समझता है। यह आपके पास आता है, आप का मान करता है क्योंकि आप सहजयोगी हैं। कर रहे हैं तथा आप उसे लेना नहीं चाहते। आप इसमें डूबना का का जीवन यापन करना है। यह सब तो उन्होंने स्वयं आपके म। रहेगा। विना आत्म-सम्मान के आप अपने आत्मज्ञान का भी मान नहीं कर पाएँगे। जब तक आप स्वयं के उत्थान में गइराई से नहीं डूबेंगे और दूसरों की सहायता नहीं करेंगे तो यह कार्यान्वित नहीं होगा मैं आपको वे सभी बातें बताने और पूर्ण क्रिसमस पर्व मानते हुए आज हमें ध्यान रखना है कि हम वास्तव में अपने उत्थान, उपलब्धियों, उन परम उंचाइयों करने के लिए आई हूँ जो ईसा मसीह नहीं बता पाए। इसलिए को मना रहे हैं। जिन्हें हम पा चुके हैं और जिन्हें हमने पाना मैं तुम्हें बता रही हैूँ कि अब आपको आत्म साक्षात्कार मिल गया है । सहजयोगी के रूप में अपना सम्मान विकसित कीजिए। है। हमारी इच्छाएं केवल अध्यात्मिक होनी चाहिए जो कि परम चैतन्य को समर्पित हों। जितना अधिक हमारा समर्पण होगा। अपने बारे में कुछ भी मिथ्या नहीं सोचिए। केवल इतना जान लीजिए कि आप एक सहजयोगी अथवा सहजयोगिनी हैं ईसा ' मसीह का जन्म दिवस मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को यही जान लेना आवश्यक है। वे इस घरती पर अबोधिता के प्रतीक व श्री गणेश के समरूप बन कर इस घरती पर आए। मैंने आपकों इस का प्रमाण भी दिखा दिया है कि किस प्रकार कार्बन के उतने ही हम विकसित होंगे । यह प्रतिक्रिया विहीन दृष्टिकोण आपकी सन्तुलित 'आज्ञा से आना चाहिए, क्रोध या मौन से नहीं। अत्यन्त शान्त स्वभाव से आना चाहिए। लोग समझते हैं कि मैंने आपको मौन रहने के लिए कहा है। नहीं, आपको सब से हँसना-बोलना है, आनन्द लेना है। आनन्द से परिपूर्ण भाव से यह सब करना है। कहा . अणु दिखाई देते हैं। इस के द्वारा मैंने यह सिद्ध कर दिया जाता है कि क्रिसमस आनन्दमय वातावरण में मनाया जाना चाहिए। है कि ईसा मसीह ही अल्फा और ओमेगा (Alfa & Omega) हैं तथा वे ओंकार तथा स्वास्तिक से बने हैं। यह सब हमने वैज्ञानिक विधि से प्रमाणित करके दिखा दिया है। इसलिए अपनी अबोधिता व पवित्रता का मान ही आपकी सब से बड़ी उपलब्धि है। आज मुझे आपसे इतना ही कहना भी ध्यान नहीं करते और न ही वे आगे बढ़ना चाहते है कि भोले बन जाईए, परमात्मा भोले व अबोध लोगों की हैं। यह बहुत आश्चर्य जनक है। मैं सब जान जाती हूँ कि देखभाल करते हैं। आप कोई भी प्रतिक्रिया नहीं कीजिए, कोई आनन्द किसी अन्य प्रकार से न पा सकने के कारण लोग शराब पीते हैं। वे समझते हैं कि शराब उन्हें आनन्द प्रदान करेगा। क हमें स्वयं को स्पष्ट रूप से समझना है। कुछ लोग बिल्कुल कौन ध्यान करता है और कौन नहीं। ऐसे लोग जो ध्यान करता है और कौन नहीं। ऐसे लोग जो ध्यान नहीं करते वे सहजयोग मैंने बच्चों को सात मंजिल से गिरते भी चिन्ता नहीं कीजिए । देखा है और उन्हे बिल्कुल भी चोट नहीं लगी। उन्हें कौन देखता है? उनका ध्यान स्वयं देवता लोग करते हैं। आपने मेरे चारों ओर देवताओं के चित्र देखें हैं। इसलिए आप भी सीधे अबोध बालक बन जाईए, प्रतिक्रिया विहीन, शान्त रहिए, क्योंकि हम पूरे विश्व के उस परिवर्तन की बात कर रहे हैं से हुए तो आपकी आज्ञा विचारों से आच्छादित रहेगी और आप खो जाएँगे। आपके ध्यान न करने के कारण मुझे भी कष्ट उठाना है। यदि सहजयोग में आपकी कोई आकांक्षाएँ नहीं हैं सभी लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। यदि आप घ्यान नहीं करेंगे पड़ता तो आप सहजयोग छोड़ दीजिए। आपकी स्थिति उस बीज की भांति हैं जो अंकुरित तो हो चुका है परन्तु व्यर्थ जा रहा है। आध्यात्मिकता के एक नए विश्व की स्थापना करेंगे। कुछ लोग सहजयोग में केवल इसलिए है क्योंकि वे लोकप्रियता व प्रचार के लिए एक मंच चाहते हैं, कुछ लोग सहजयोग से घन कमाना चाहते हैं और कुछ एक भी पैसा खर्च किए बिना सम्पर्क बनाने के लिए विश्वभ्रमण करना चाहते हैं। ऐसे सभी लोग बेकार है। और परमात्मा तुम्हें सम्पूर्ण दिव्य निधि प्रदान जहाँ लोगों के हृदय शान्त होंगे और हम शान्ति आनन्द व परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें। यर 17 चैतन्य सहरी ईस्टरपूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कलकत्ता-14.4.96 आज हम लोग ईस्टर की पूजा कर रहे हैं। सहजयोगियों बाईबल को ठीक किया उन्हें स्त्री जाति से बहुत नफरत के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि ईसा मसीह थी और वे विश्वास ही नहीं कर सकते थे कि एक स्त्री ने दिखा दिया कि मानव का उत्थान हो सकता है और भी ऐसा ऊँचा कार्य कर सकती है। उस नफरत के कारण उस उत्थान के लिए हमें प्रयत्नशील रहना चाहिए। जो उनको उन्होंने उस का रूप अजीब सा बना दिया Holy Ghost क्रूस पर चढ़ाया गया उसमें भी एक बहुत बड़ा अर्थ है। यानि कि एक कबूतर। कबूतर का अर्थ है कि वह एक क्रूस पर टांग कर उन की हत्या की गई और क्रूस आज्ञा ' चक्र पर एक स्वास्तिक का ही स्वरूप है। उसी पर टांग शास्त्रों में कहा गया है " कर के और ईसा मसीह वहीं पे गत -प्राण हुए। उस वक्त स्वरूप होंगी । लोग उन्हें पहचान नहीं पाएँगे। पहचानने के उन्होंने जो बातें कहीं, उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी लिए भी आपको आत्म साक्षात्कार लेना पड़ेगा। यदि आप कि उन्होंन कहा कि माँ का इन्तजार करो। माँ की ओर ने आत्म-साक्षात्कार नहीं लिया तो आप पहचान ही नहीं सकते। नजर करो। इस का अर्थ कोई कुछ भी लगाए पर दिखाई अपने जीवन ही में उन्होंने जितना खुलकर कह सकते थे, देता है कि उन्होंने ये बात कही कि मैं तुम्हारे लिए एक कहा। पर न जाने इन्होंने कितनी बातें बताई और कितनी ऐसी शक्ति भेजूंगा जिसके तीन अंग होंगे, जो त्रिगुणात्मिका नहीं बताई और छिपाई। होगी। और उस का वर्णन बहुत सुन्दरता से किया है कि एक शक्ति होगी जो आप को आराम देगी। आराम देने वाली शक्ति जो हमारे अन्दर है, वह है महाकाली की शक्ति, गया है कि वे गणेश का अवतरण हैं। गणेश का अवतरण शान्ति का दूत' होता है। स्त्री की बात ही नहीं की। अपने सहस्रारे महामाया"। तो वो महामाया सहयोग के लिए ईसा मसीह का आना बहुत ज़रूरी था। वो स्वयं एक चिर बालक है। यह तो अब सिद्ध हो जिससे हमें आराम मिलता है, जिससे हमारी बिमारियाँ ठीक होती हैं, जिससे हमारे अनेक प्रश्न जो भूतकाल के हैं, ठीक हो जाते हैं। दूसरी शक्ति जो उन्होंने भेजी, वह थी, महासरस्वती महावीर और ईसा मसीह-जिस स्तर पर हुआ वह स्तर तपस्या की शक्ति। महासरस्वती की शक्ति को उन्होंने काऊसलर का है। इसलिए विराट पर इन्होंने कार्य किया। तीनों के (Counsellor) कहा। यह आप को समझाएगी, आपको उपदेश कार्य में तपस्या का महत्त्व है, कि मनुष्य को तपस्या करनी देगी. योग निरुपण करेगी। इस दूसरी शक्ति से हमें ज्ञान-सूक्ष्म चाहिए। तपस्या करके ही वह आज्ञा चक्र को भेद सकता संसार में एक ही बार हुआ और वह है ईसा मसीह के रूप में। इन तीनों का कार्य-जिसे हम कह सकते हैं बुद्ध, ज्ञान-को प्राप्त करेंगे। और तीसरी शक्ति महालक्ष्मी की। जिससे कि हम अपने उत्थान को प्राप्त होंगे। इस प्रकार तीन शक्तियों की उन्होंने बात की थी। और बाहर जा सकता है। आज्ञा चक्र का भेदन होना अति आवश्यक था क्योंकि उस के बिना आपकी कुण्डलिनी ऊपर उठ ही नहीं सकती थी आज्ञा चक्र का भेदन ईसा मसीह बुद्ध ने भी कहा था कि मैं तुम्हें "मात्रेया" दूंगा यानि के पुनर्जन्म (Resurection ) से हुआ उनकी मृत्यु हुई तीन तरह की माता या माताएँ। लोगों कों समझ ही नहीं और फिर उनका पुनर्जन्म हुआ। अत: हम लोगों के लिए आया कि "मात्रेया" क्या होता है, इसलिए उन्होंने "मैत्रया" एक बड़ा भारी संदेश है ईस्टर में, कि ईसा मसीह के उत्थान कर दिया। यह जो "मात्रेया" थी, यह एक साथ आदिशक्ति से ही हम लोगों ने इस उत्थान को प्राप्त किया। सबसे कठिन में ही हो सकती थी और आदिशक्ति को उन्होंने कहा तो चक्र है इन्सान में मनुष्य में-आज्ञा चक्र क्योंकि मनुष्य हर ज़रूर होगा "Premordial Mother" पर जिन्होंने बाईबल को समय सोचता ही रहता है और सोच सोच कर उसके सिर ठीक किया, उन्होंने उसे "होली घोस्ट" (Holy Ghost) बना की एक मन के बुलबुले की सी स्थिति बन जाती है। वह दिया और उसकी जगह कबूतर बना दिया। क्योंकि जिन्होंने विचारों से परे नहीं जा सकता। जब आज्ञा का भेदन होता क 18 चैतन्य लहरी कहा कि तुम्हे फिर से जन्म लेना होगा। उनका उत्थान फिर है तभी आप विचारों से दूर जा पाते हैं। इसलिए यह कहना चाहिए कि यदि ईसा मसीह ने अपने प्राण देकर के आज्ञा से जन्म लेना ही है। और अपने यहाँ भी कहते हैं कि से उत्थान नहीं किया होता तो सहजयोग मुश्किल हो जाता। कार्य तो सभी अवतरणों ने किया अपनी-अपनी जगह, दूसरा जन्म होता है तो उसे द्विज कहना चाहिए, जिसका अपने-अपने समय, अपने-अपने स्थान पर। परन्तु जो कार्य अर्थ दूसरी बार है। और जब उसका परिवर्तन हो जाता है ईसा मसीह के उत्थान से हुआ वह बहुत ही कमाल की पूरी तरह से तो उसमें पूर्णतया शक्ति आ जाती है। उस चीज़ थी। इसलिए आज्ञा का भेदन बहुत मुश्किल कार्य था। के पास सारी संचार शक्ति आ जाती है। आपको तो मालूम आज्ञा से ऊपर उठाना कोई मुश्किल कार्य नहीं। जितने भी है कि साईबेरिया से उड़कर के कैसे पक्षी हिन्दुस्तान में गुरु हो गए बड़े-बड़े, उन्होंने बहुत कार्य किए उन्होंने बहुत आ जाते हैं जाड़े में यहाँ आते हैं और गर्मियों में वहाँ सी ऐसी बातें करीं कि जिसके कारण लोगों में जागृति हुई, चले जाते हैं। न उनके पास कोई राडार है न एयरोप्लेन धर्म के प्रति रूुचि हुई व आत्मसाक्षात्कार की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। ईसा इस देश में आए क्योकि वहाँ के लोगों, थ जहाँ से वो आए थे, की दृष्टि में सूक्ष्मता नहीं थी। आध्यात्म छिपा दिया, तो उन्होंने खोज निकाला अपने बच्चों को। कुछ नहीं था। इसलिए वे हिन्दुस्तान में आए और काश्मीर में बच्चों का जिन्हें खोज नहीं निकाला था खुद ही उड़ कर वे शालीवाहन राजा से मिले। शालीवाहन ने उनसे पूछा, "तुम्हारा चले अए। उनका कोई अगुआ नहीं था, उन्हें कोई बताने क्या नाम है?" उन्होंने कहा, "मेरा नाम ईसा मसीह है।' मसीह यानि जो सन्देश लेकर आता है। और में उस देश कहते हैं कि परमात्मा ने संसार में सारी व्यवस्था सुन्दरता से आ रहा हूँ जहाँ सभी मलेच्छ रहते हैं। मलेच्छ यानि से की है ताकि हम अपने उत्थान को प्राप्त करे। मैं तो जिन्हें मल की इच्छा होती है। आप देखते है कि जितने इसे (Blossom time) बसन्त ऋतु कहती हूँ। आप इतने भी ये विदेशी होते हैं उन्हें मल की ही इच्छा रहती है, लोग आज यहाँ बैठे हैं, ऐसे ईसा मसीह के सामने कहाँ सिर्फ पागलपन ही अच्छा लगता है। आप उनकी फिल्में देखिए थे? और इस से हजारों गुणा संसार मे फैले हैं। देख करके तो सोचेंगे, क्या ये लोग पागल हैं? हमारे देश में इन लोगों बड़ा आश्चर्य होता है कि ईसा मसीह के सामने ये सब को पहले मलेच्छ कहते थे यानि मल की इच्छा करने वाले लोग नहीं थे, और न ही कोई जानता था कि आत्म साक्षात्कार मलेच्छ। ईसा ने कहा उन को तो मल की इच्छा है और क्या है? मैं वहाँ कहाँ जाऊँ, मुझे तो आध्यात्म को जानना है। तो शालीवाहन ने कहा, आप तो पहुंचे हुए हैं। आप अपने ही देश में लोगों को 'निर्मल तत्वम्' यानि Principle of Purity नहीं समझते। पर हमारे यहाँ जो महान गुरु हो गए हैं उन लोगों को सिखाएँ। बहुत ज़रूरी है, यदि आपने लोगों की के कारण एक बहुत बड़ी समस्या दूर हो गई है कि लोगों निर्मल तत्वम् सिखा दिया तो लोग मलेच्छपन से छुटकारा में इसके बारे में ज्ञान हो गया है। सब जानते हैं कि हमें जिस प्रकार अंडे से पक्षी जन्म लेता है, उसी प्रकार जब है। वे हर साल उसी तालाब पर आते हैं जहाँ पहले आते थे। एक बार एक प्रयोग किया। पक्षियों के कुछ बच्चों को " वाला नहीं था फिर भी वे उड़कर ठीक से आ गए। इसे आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना क्यों आवश्यक है? आज भी हमारे देश मे भी हैं ऐसे अन्धे लोग जो इस बात को पा जाएँगे। ईसा वापिस गए और किसी तरह 3% वर्ष तक रहे और फिर उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया जिस शान से उन्होंने प्राण त्यागे, उससे जाहिर होता है कि उनका अद्भुत लिखी है। आज का दिन इसलिए भी मुबारक है कि आज व्यक्तित्व था और मात्र 3½ साल के थोड़े से समय में बंगाल का नया साल का दिन है और इसीलिए इस के उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य किए हैं वह बहुत महान थे। हालांकि उन्होंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, दूसरा जन्म लेना है, अपने को पहचानना है। जो कुछ भी शस्त्र लिखे गए हैं किसी भी धर्म में उनमें भी यही बात पुनरुत्थान की भी बात हो सकती है। यह पुनरुत्थान जो आज हएने मनाया है इस का लाभ अवश्य बंगाल को होगा। यहाँ की संस्कृति और यहाँ की कला, बंगाल देश के महान क्योंकि उस समय सत्य को खोजने वाले लोग नहीं थे जैसे आज हैं, मेरे नसीब अच्छे हैं। इसलिए जो कार्य हुआ वह देशाप्रेमी लोग, जिन्होंने सारे देश में सब को एक बड़े ऊँचे स्तर पर पहुंचाया था आज वही कहाँ से कहाँ चले जा रहे हैं। विदेशी, व्यवस्था को छोडकर चले गए, पर अब आत्मसाक्षात्कार से पहले का कार्य था। यानि लोगों ने जाना कि इस मनुष्य जीवन से परे भी कोई और जीवन है। उन्होंने ा बैतन्य लहरी 19 कहीं अधिक हम लोगों ने विदेशी संस्कृति को स्वीकार्य किया है। उस को लेकर हम लोग यह भी नहीं सोचते कि वे अन्दर यह चलते हैं कि इसने हमें सताया, उसने हमें सताया। लोग कहाँ च यह सब यदि हम परम चैतन्य पर छोड़ दें तो सब समाधान की क्या दशा है? वे कहाँ पहुँच गए। इन लोगों ने क्या हो जाता है। कई बार तो मैं आपको बताते हुए बहुत डरती आप लोग सब को माफ कर दो। आधे विचार तो हमारे वले गए। हम लोग यह जानते हैं कि इन लोगों हूँ कि यदि कोई सहजयोगीं गलत कार्य करता है तो मुझे पाया हुआ है। बहुत से ईसाई लोग तो यह सोचते हैं कि ईसा मसीह बहुत घवराहट होती है कि देखो अब आई शामत। यहाँ ईसा मसीह बैठे हैं इधर गणेश जी बैठे हैं, हनुमान इंगलैण्ड में पैदा हुए थे और उनके लिए धोती पहनने का और अर्थ हिन्दु बनना है। इस प्रकार की विचित्र कल्पनाएँ हमारे भैरवनाथ बैठे हैं। इन चारों के चक्कर से छूट नहीं पाएँगे। सिर में बैठ गई हैं और हम सोचते हैं कि अंग्रेजीयत लेने काई जरा सी गड़बड़ करे, पैसे में गड़बड़ करे, काम में से हम लोग ईसा मसीह को बहुत नज़दीक से देख सकेंगे। गड़बड़ करे में बस सोचती रहती हूँ कि कैसे सब संवर जैसे जाए क्योंकि जब आप पवित्र चीज़ में आ गए, एक जिनको उन्होंने मलेच्छ कहा, उन्हीं को हम आदर से देखते हैं वो लोग अब जान गए हैं कि हमारी संस्कृति, म। हमारी सफेद चादर में कोई भी धब्बा पड़ जाए, तो ये दिखाई विचार धाराएँ, हमारी घर्म की ओर दष्टि अत्यन्त सक्ष्म है देता है, इसी प्रकार आपके अन्दर कोई दाग है तो वे फौरन पकड़ लेंगे। न जाने क्या सजा दें। यह बड़ी कठिनाई है। और यहाँ के लोग बहुत जल्दी सहजयोग प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन सहजयोगियों को चाहिए कि आपस में पूर्ण रूप हालांकि अपने समय तो उन्होंने प्राण दे दिए। परन्तु हमारे से मेल मिलाप से रहें। और यह जो उत्थान का संदेश है बारे में उन्होंने ये कहा कि हमारे बारे में तो आप ने जो भी कहं दिया, सो कह दिया। परन्तु यदि आदि-शक्ति के हर जगह पहुँचाएं। क्योकि आज आप का देश जिस दशा में है, उस की दशा परिवर्तन के अलावा ठीक हो ही नहीं बारे में कुछ भी कहा तो बहुत बुरा होगा। और मैं देख सकती, आध्यात्म् के सिवा ठीक हो नहीं सकती है। आप भी करिये किसी प्रकार कोशिश यह कीजिए कि एक-एक रही हूँ कि वे बिल्कुल भी सहन नहीं करते। यदि आपने मुझे माँ माना है, तो मैं उस का मान करती हूँ और जब वो सताते भी हैं तो मैं कहती कुछ आदमी को सूचना दें, कि हम कितने आदमियों को सहजयोग के बारे में बताते हैं और कितने लोगों को सहजयोग सिखाते इसलिए इन्हें क्षमा कर दीजिए। पर ये लोग भी इस को हैं। ईसा मसीह अकेले थे। उनके साथ कोई भी नहीं था। उनके साथ सिर्फ उनके 12 शिष्य थे। उस में से भी कुछ अधूरे और कुछ ऐसे वैसे। उन्होंने बहुत मेहनत की उत्थान हुआ है वह आपकी पूर्व जन्म की मेहनत, श्रद्धा और एक बड़ा भारी संदेश अपने उत्थान से, अपने जीवन से दिया। और वह जो संदेश हमें दिखाई देता है वह वास्तव बड़ा आशीर्वाद मिला हुआ है लोग तो समझते थे कि यह हूँ इन्होंने मुझे माँ कहा, समझते हैं। आपको यह समझना चाहिए कि आप लोगों का जो आधे के फलस्वरूप हुआ है। इस जन्म में आपको यह बहुत हो ही नहीं सकता। यह आशीर्वाद जो आपने प्राप्त किया में हमारी आज्ञा पर काम करता है। और आज्ञा पर काम करके ही हमने स्थिति प्राप्त की है कि हम ब्रह्मरंघ्र तक है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि आप कोई भी गलत पहुंच पाते हैं। उन्होंने हमेशा क्षमा की बात की। उन्होंने हमेशा काम न करें। क्योंकि गलत कार्य करने से आपकी जो निर्मलता करुणा की बात की। उन्होंने कहा कि आप सबको क्षमा है, पकड़ में आ जाएगी। मैं आपको डरा नहीं रही हूँ बल्कि कर दें। क्रूस पर चढ़ कर भी उन्होंने कहा कि "हे प्रभु यह वास्तविकता बता रही हूँ। आप जो भी करें, अत्यन्त इन सब को क्षमा कर दीजिए। ये जानते नहीं कि ये क्या प्रेम से, उसका आनन्द उठाते हुए। हो सकता है आपको कर रहे हैं। इन सब को माफ कर दो, ये सब अन्धे हैं।" कोई परेशान करे। कोई बात नहीं। कितनी देर परेशान करेगा, जिस समय उन्हें क्रूस पर चढ़ाया और कीलों से ठोका और जो परेशान करेगा, उसका ठिकाना हो जाता है। किसी भी कांटों का ताज पहनाया उस समय भी उन्होंने बड़े प्रेम से स्तर पर भूलना नहीं कि आप एक सहजयोगी हैं। पहले कहा "प्रभु इन सब को क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये जानते जमाने में कितने सहजयोगी थे। एक थे सूफी निजामुद्दीन, नहीं कि ये लोग क्या कर रहे तो उनकी गर्दन काटने को शाह निकल आए। उन्होंने कहा कैरामात है। इसलिए आज्ञा चक्र पर हमेशा कहते हैं कि कि अगर तुम मेर आगे सिर नहीं झुकाओगे तो तुम्हारी गर्दन हैं। यह आज्ञा चक्र की चैतन्य लहरी 20 बात मुसलमानों में भी है। कि जब आप मर जाएँगे तो आप अपने को गाड़ू लीजिए। अपना शरीर गाड़ लीजिए। काट लेंगे। और दूसरे दिन उसकी गर्दन काट ली। सो अगर कभी ऐसा हो भी तो डरना नहीं क्योंकि आप लोग अब परमात्मा के साम्राज्य में हैं। और इस बात को मद्देनजर रखते जलाईए मत, और जब आपका पुर्नउत्थान होगा तो आपका हुए आप को समझना चाहिए कि अब आप लोग अकैले यही शरीर पुनः बाहर आ जाएगा, यदि आप परमात्मा के नहीं हैं। आप पूर्णतया सुरक्षित हैं और इस सुरक्षा में आप क्यों परेशान होते हैं नाम पर मरे हैं और आपने अपना जीवन उसके लिए त्यागा है। अब सोचो 500 साल बाद क्या चीज़ बाहर आएगी, बहुत से लोग आते हैं, माँ मुझे ये प्राब्लम है, मुझे यदि आप को गाढ़ दिया जाए? उनसे पूछना चाहिए, कि वो प्राब्लम है। इसका अर्थ यह है कि आप सहजयोगी जो हड्डयां बच कर आएँगी उनकी क्या स्थिती होगी। यह नहीं हैं। जो सहजयोगी होगा उसको कोई समस्या (प्राब्लम) होगी नहीं। क्योंकि आप एक ऊँची जगह पर बैठे हैं। और प्राब्लम नीचे खींचते रहते हैं । यदि आप है विश्वास बहुत लोग करते हैं यह विश्वास इतना गहरा कि मेरे पास कुछ लोग आए थे। मैंने कहा "क्यों मरे जा रहे हो। तुम्हारा तो निराकार में विश्वास है, तुम क्यों हर समय प्राब्लम प्राब्लम करते रहें तो सोच लेना चाहिए जमीन के लिए लड़ रहे हो?" तो उन्होंन मुझे कहा कि कि कुछ कमी है आप में इसके लिए ध्यान करें, घारणा करें। अपने अन्दर धारणा करें कि आप सहजयोगी हैं। के नाम के लिए मरे तो ऐसा-ऐसा होगा। मैंने कहा पहले आपके अन्दर एक आत्मविश्वास पूर्णतया प्रतीत होता है, लोग तो मुझे बताओ कि इसमें भगवान का नाम कहाँ लिखा भी समझते हैं। आप केवल शांत हो जाऐं। लगा ली तो परम चैतन्य पूर्णतया संभाल लेगा। एक से तुम्हारा पुनेडत्थान 500 वर्ष बाद हुआ, तो अन्दर से क्या एक घुरंघर बैठे हैं। परन्तु यदि आपमें ही दोष होगा तो कहेंगे। निकलेगा? तुम तो कब्रों में जाकर के सारी जमीन ले लेते इसको डुबकियाँ लगाओ दो-चार। हमारे तो शास्त्र में यह लिखा है कि यदि तुम भगवान इससे है। दूसरी बात यह बताओ कि तुम यदि मर गए और आपने चुप्पी हो और भूत बनते रहते हो। इस सम्बन्ध में में यह कहती हूँ कि अपने शास्त्र इस प्रकार ईसा मसीह का एक छोटा सा जीवन था केवल 35 वर्ष का। उसमें भी वे भटकते रहे। और भटकते ठीक है, कि मरने के बाद आत्मा जो है वा निकल जाता हुए भारत भी आए। जितना जीवन में उन्होंने कार्य किया है। और जो जीवात्मा है वह फिर से जन्म लेता है। क्योंकि उनका नाम लेकर के न जाने लोगों ने कितनी तरह-तरह की संस्थाएँ बनाई। ये करना है, वो करना है। झूठ सब, जीवात्मा मरता नहीं। शरीर का 500 वर्ष बाद पुर्नउत्थान होगा ऐसी बात का विश्वास करना महामूर्खता है। कभी-कभी है गड़बड़ है। पर कितना उन्होंने काम किया। उनके मैँह में में सोचती हूँ कि ऐसी महामूर्खता को लेकर ये लोग जगह-जगह भी न जाने कैसी-कैसी गलत वस्तुएँ डाली गई। एक झूठी आपस में लड़ रहे हैं। आज इज़राईल में मारा-मारी हो रही संस्था भी बना ली। जिस हीरे को इन्होंने ढक लिया वो है तो कल दूसरे स्थान पर होगी। यह मारा-मारी हो रही आपके अन्दर में है। आपकी आज्ञा में कार्यान्वित है। आपकी है मात्र घर्म को लेकर। मैंने कल भी बताया था कि सभी धर्म आपस में गुंथे हुए हैं। कोई भी घर्म अलग नहीं है। का क्षमा शक्ति जितनी बढ़ जाएगी आप उतने ही सहस्रार पर रहेंगे। ईसाई लोगों का तो यह है कि वे पैदा ही हुए ईसाई। सभी ने यह वर्णन किया है, फिर यह लड़ाई क्यों, झगड़ा उन्हें बस इतना ही मालूम है इसलिए हम उन्हें ईसाई स्वीकार क्यो? यह संब कुछ उन लोगों का किया हुआ है जो अपने को धर्म मार्तण्ड कहते हैं। अब सोचिए कि ईसा समीह ने एक बहुत बड़ी बात कही कि "तुम्हारी दृष्टि स्वच्छ aa (Thon shalt not have adultrous eyes) करते हैं। हिन्दुओं को बस कृष्ण ही मालूम है, शिव मालूम है। इसी में खुश रहते हैं। और भाई, आप इससे परे उठ गए, पार हो गए, अब आप स्वयं सूफी हो गए। इन सब चीज़ों में जो सार है उसको आप ग्रहण कीजिए और प्रत्येक यानि चित्त में भी (adultery) अस्वच्छता नहीं होनी चाहिए। चाज़ में सत्य को खोजिए। बहुत सी चीजों में असत्य है। पर हमने तो विदेश में देखा कि हरेक की आंखे इधर इन सब धर्मों में बहुत सी बातें असत्य भी हैं। जैसे ईसाई से उघर चलती रहती है। किसी को देखा ही नहीं कि धर्म में आप देखिए, वही बात ईसाईयों में भी है और वही जिसकी आंखें न चल रही हों। केवल सहजयोगियों को छोड़कर। इस प्रकार उन की (ईसा की) जो विशेष वाणी चैतन्य लहरी 21 थे उसको कौन पालन कर रहा है , कौन मान रहा है? कोई चाहिए। अंहकार जब चढ़ जाता है तो आप कुछ भी हो नहीं। क्यों? क्योंकि उन्हें आत्मबोध नहीं है। यदि उनको सकते हैं, हिटलर भी हो सकते हैं न जाने आप अपने आत्मबोध हो जाता तो उनकी आँखे स्थिर हो जाती। उनसे प्यार झलकता है। शांति और आनन्द झरता । यह कैसे हुआ? से ऊपर उठाया है, उस ईसा मसीह के जीवन को यदि कि उतनी आँख शुद्ध हो गई। जैसे कि ईसा मसीह ने कहा वैसी आँख हो गई। उन्होंने जो कहा था, वह मात्र कहने जीवन भी पूर्णतया निर्मल होना चाहिए। से थोड़े ही हो सकता है। विदेश में तो यह बिमारी आवश्यकता से अधिक है। तो हमें समझ में आता है कि जो कुछ ईसा ईसा मसीह ने विवाह नहीं किया था। उनको कोई ज़रूरत मसीह ने कहा हम कर नहीं पाते। कोई सा भी ऐसा घ्म ही नहीं थी। परन्तु आपके लिए सभी प्रकार की व्यवस्थ नहीं है जिसमें लोग जो कहते हैं वही करते हैं। कारण वे है। इस व्यवस्था से आप पूर्ण रूप से सर्व सामान्य लोगों समर्थ हैं यानि जो हैं उस का अर्थ नहीं है। कोई कहेगा की तरह रह सकते हैं और अपनी विशेषता को समझते मैं ईसाई हैँ परन्तु उसकी आँखों में गन्दगी भरी रहेगी। कोई रहें। ईसा मसीह और सुफी लोग अपनी विशेषता समझते कहेगा मैं जैन हूँ और वह कपड़े की दुकान करेंगा। अर्थात जो नहीं करना वही करेंगे। इसका कारण है कि हमारे अन्दर तो सारे विश्व में इतने सारे भाई बहन हैं। कितना आपमें वह घर्म जागृत नहीं हुआ। और सहजयोग में यह जागृत हो आत्मविश्वास होना चाहिए। आप अकेले नहीं हैं। सभी लोग जाता है। आत्मसाक्षात्कार होने के बाद, जागृत होने के बाद यदि आप उसका मान नहीं करेंगे और ठसमें आप अपनी प्रगति नहीं करेंगे तो न जाने आपको क्या-क्या चाहिए। इससे अमूल्य और कुछ भी नहीं है। ें आप को क्या समझ रहे हैं। जिसने हमें इस आज्ञा चक्र आप देखेंगे कि वे बिल्कुल निर्मल है। इसी प्रकार हमारा सहजयोग में विवाह की पूर्ण रूप से व्यवसथा है। हालांकि हुए थे। अदेले ही उन्होंने सारे विश्व में कार्य किया। आपके क एक ही बात कहते हैं सब को एक ही चीज़ प्राप्त है। और जब आप इस चीज़ को पाते हैं तो इसका महत्त्व समझना कष्ट झेलने पड़ू सकते हैं। इससे पहले आप को जो कष्ट थे, तकलीफैं थीं वह महसूस नहीं होंगी परन्तु अब आप संवेदनशील हो गए हैं इसलिए समझ लेना जो इतनी बड़ी चीज़ पाई हे उससे हम अलकृंत हो गएं, कोई फूट नहीं, कोई झगड़ा नहीं। यह बहुत बड़ी बात है। उससे हम सज गए। अब हमें अपने वैभव में और गौरव में सोचती हूँ कि यह देवी की कृपा है कि लोग सहज में होना चाहिए जैसे ईसा-मसीह का पुनर्नउत्थान हुआ था। वे कब्र से उठे थे, उनका चेहरा बहुत ही खिल गया था, उन की बातें और भी सुन्दर हो गईं थीं; इसी प्रकार ईसा बगाल देश बहुत सुन्दर स्वरूप में उतरेगा। मसीह सहजयोगी थे। लेकिन उन्होंने उसे प्राप्त किया था और यद्यपि मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि कलकत्ते में इतना कार्य चाहिए कि हमने हो गया। इतने सहजयोगी हो गए, आपस में बहुत प्रेम है, में उतरते हैं। जैसे पुरुष कार्य कर रहे हैं वैसे स्त्रियों को भी करना चाहिए। जब सब ओर सहजयोग फैल जाएगा तो आप सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद। आप के लिए उन्होंने प्राण त्यागे कि आप का आज्ञा चक्र खुले। सो अहंकार आदि जो व्याधियाँ हैं उनसे दूर रहना चैतन्य लहरी 22 महाशिव रात्रि पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन बम्बई 19-2-93 आज यहां पर हम लोग शिवजी की पूजा करने के लिये है कि जिसपे भी दृष्टिट पड़ जाए वो ही तर जाता है। जिसके एकत्रित हुए हैं। ये पूजा एक बहुत विशेष पूजा है क्योकि मानव का अन्तिम लक्ष्य यही है कि वो शिव तत्व को प्राप्त करें। करने की ज़रूरत ही नहीं है। ये सब खेल है। जैसे बच्चों शिव तत्व बुद्धि से परे है। उसको बुद्धि से नहीं जाना जा सकता। के लिए खेल होता है परमात्मा के लिए भी वो सारा एक जब तक आप आत्म-साक्षात्कारी नहीं होते, जब तक आपने खेल है। वो देख रहे हैं। उस भोलेपन में एक और चीज नीहित अपने आत्मा को पहचाना नहीं, अपने को जाना नहीं, आप शिव है। जो भोला आदमी होता है, सत्यवादी होता है अच्छाई से तत्व को जान नहीं सकते। शिवजी के नाम पर बहुत ज्यादा आडम्ब, अन्धता और अन्धश्रद्धा फैली हुई है। किन्तु जो मनुष्य ले रहा है तब उसको बड़े जोर से क्रोध आता है। उसका आत्म-साक्षात्कारी नहीं वो शिवजी को समझ ही नहीं सकता क्रोध बहुत जबरदस्त होता है। चालाक आदमी होगा वो क्रोध क्योंकि उनकी प्रकृति को समझने के लिये सबसे पहले मनुष्य को घुमा देगा, ऐसा बना देगा कि उसकी जो प्रमुख किरणें को उस स्थिति में पहुंचना चाहिए जहां पर सारे ही महान तत्व हैं वो कुछ शान्त हो जाएं। लेकिन भोला आदमी जो होता है अपने आप विराजें। उनके लिए कहा जाता है कि वे भोले शंकर वो हंसते ही रहता है। ये क्या मेरे ऊपर वार कर सकता है। हैं। आजकल बुद्धिवादी बहुत से निकल आए हैं संसार में, और ये शिवजी का जो गुण है वो हम सहजयोगियों में आना जरूरी अपनी बुद्धि की उड़ान से जो चाहे वो ऊट पटांग लिखा करते हैं। इस वक्त हम छोटी-छोटी बातों को सोचते रहते हैं इनके हैं और फिर कहते हैं कि ये शिवजी तो भोले हैं किसी का लिए क्या करना चाहिए। इसकी योजना कैसी करनी चाहिए। भोला होना बुद्धिवादियों के हिसाब से तो एकदम ही बेकार जैसे शिवजी ने शक्ति पर सब छोड़ दिया है आप लोग भी चीज है। आजकल आदमी जितना चालाक और धूर्त होगा वो सब कुछ शक्ति पर छोड़ सकते हैं लेकिन वो भी फिर एक यश्स्वी हो जाता है। तो इनका भोलापन कैसे समझा जाए? स्थिति आनी चाहिए। वो भोलापन आपके अन्दर आना चाहिए। आजकल के लोग सोचते हैं कि जो आदमी भोला होता है वो इस भोलापन का मतलब ये है कि किसी तरह की नगन्य है, बेवकुफ है लेकिन शिवजी का भोलापन ऐसा है नकारात्मकता आपके अन्दर आ ही नहीं सकती। इसलिए आप कि जहां वो सब कुछ हैं। समझ लीजिए कि ज़रूरत से ज्यादा भोले हैं: सांप लोटे रहे हैं तो सांप को लौटने दो। आप बेकार कोई श्रीमन्त रईस आदमी हो जाए और उसको विरक्ति आ में परेशान क्यों हैं। जहर पीना है तो जहर पी लेंगे होना क्या जाए और उसका लोग धन उठा के ले जाएं तो लोग कहेंगे है। जो बिल्कुल विशुद्ध है, जिसमें किसी भी चीज का असर अजीब भोला आदमी है जिसका लोग घन चुरा रहे हैं, उसपे ही नहीं आ सकता, जो समर्थ है, जिसकी शक्तियां स्वयं ही कोई असर ही नहीं। लेकिन जब उसको विरक्ति आ गई और उसकी रक्षा कर रही हैं उसको यह बात है कि क्या करे उस घन का उसके लिए महात्म्य ही नहीं रहा तो वो अपने क्या न करें। ये शक्ति हमारे अंदर शिव तत्व से आती हैं शिव भोलेपन में बैठा है और भोलेपन का मजा उठा रहा है। जब सब चीज अपने आप हो ही रही है, सब कुछ कार्यान्वित ही कुण्डलिनी जो है वो शक्ति है चक्र जो हैं ये सीढ़ियां इन है। तो शिवजी का उसमें कार्य भाग क्या रहता है। वे भोलेपन सब सीढ़ियों से चढ़ के आफ्को प्राप्त एक ही करना है। वो से सब चीज देखते रहते हैं वो साक्षी स्वरूप हो करके और है शिव तत्व। सारे देवी देवताओं को एक विचार है कि आप शक्ति का कार्य देखते रहते हैं। शक्ति ने सारी सुृष्टि रचाई और सबको शिव तत्व पे पहुंचा दें। ये उनका कार्य है और वो शक्ति ने ही सारे देवी-देवता बनाए और उनके सारे कार्य बना दिए। उनकी नियुक्ति हो गई और अब शिवजी को क्या काम इसमें हमारा क्या होगा? हमारी स्थिति क्या है? कहां बैठे? है। शिवजी को बस देखना मात्र है। और फिर देखने में ही मनुष्य के जैसे नहीं सोचते। वो अंग प्रत्यंग उस शिव के ही सब कुछ आ जाता है। उनके भोलेपन का असर है तो यह हैं और शिव तत्व पर मनुष्य को पहुंचाने के लिए कार्य तत्पर तरफ उनका चित्त चला जाए वो ही तर जाए। कुछ उनको रहता है, वो जब देखता है कि कोई बहुत ही दुष्ट उनसे मुठभेड़ The म इजि तत्व को प्राप्त करनके लिए आत्म साक्षात्कार होना चाहिए। उस कार्य मे पूरी तरह से लगे हुए हैं। वो ये नहीं पूछते कि चंतन्य सहरी 23 रहना उनका स्वभाव है। उनको कुछ भाषण देने की ज़रूरत है? किन्तु ये विश्वास हमारे अन्दर बैठना बड़ा मुश्किल है। नहीं, उनको कुछ बताने की ज़रूरत नहीं। उनका जो काम है आत्म-साक्षात्कार के बाद आप सहजयोगी हो गये लेकिन वो भी एक अकर्म सा है। वो बंधे हुए हैं वो अपना काम शिव योगी होने के लिये परम विश्वास की जरूरत हैं जैसे पूरी तरह से करते हैं। वो सोचते ही नहीं कि कुछ काम कर कोई साहब जा रहे है तो कहेंगे कि मां कफ्फ्यू है हम कैसे रहे हैं। ये सारा प्रकाश बिजली से आ रहा है और जड़े होने जाएं। आज तक ये बंबई शहर में कोई भी सहजयोगी को के कारण उसमें कोई शक्ति नहीं कि वो सोचे। और क्योंकि नुकसान नहीं हुआ। आप भूल गये आप सहजयोगी हैं। आपके ये सब देवता लोग निर्विचारिता में बैठे हुए हैं वे भी कुछ सोचते आगे पीछे देव-दूत गण सब लगे हुए हैं लेकिन जैसे आपका नहीं और जानते भी नहीं कि उनमें क्या शक्तियां हैं। जैसे खाने विश्वास उठा वो भागे वहां से। कोई कहेगा कि मुझे ठगा की चीनी सबको मिठास देती है, पर वो नहीं जानती कि उसके जा रहा है, तो ठगता रहे। वो तुम्हें मारने आ रहा है, तो अन्दर मिठास है। इसी प्रकार सहजयोगी जब कार्यरत होते हैं आने दो। वो तुम्हारा कुछ बिगाड़ रहा है तो बिगाड़ने दो। तो वो ये नहीं जानते कि हमारे अन्दर ये शक्ति है इसलिए आगे होगा क्या? जाओ मरो। जब विश्वास बना रहा तो आप हम कार्यरत हैं। जिस वक्त आप लोगों के दिमाग में ये बात आई कि हमने ये कार्य किया, वो कार्य किया, हम लीडर हो दिखाई देंगे तो भी पार हो जायेंगे ऐसे नाना विध प्रश्न हमारे गए, हम वो हो गए तो आप सहजयोगी नहीं। सहजयोग में मनुष्य अकर्म में आ जाता है। वो करते रहता है। दिखने को लगता की असुरक्षा की भावना हमारे अन्दर बनती है। और उसकी है कर्म कर रहे हैं पर उसको ज्ञात नहीं होता कि वो कुछ वजह से हमारे विश्वास टूटते जाते हैं। कर्म कर रहा है। उसको मालूम नहीं होता कि वो प्यार कर रहा है, पर लोग जानते हैं कि वो बहुत प्यार करता है। चले जा रहे हैं । किसी को आप दिखाई ही नहीं देंगे और अन्दर आते हैं क्योंकि हम मानव हैं अभी और सभी तरह दूसरी बात कि हमसे कोई गलतियां नहीं होती, ऐसी भी बात नहीं है। कुछ गलतियां होती हैं। उन गलतियों के इस प्रकार हमें समझ लेना चाहिए कि आत्म-साक्षात्कार होने के फलस्वरूप एक तरह का हमारे अन्दर भय आ गया लेविन शिवजी की विशेषता ये है कि वो क्षमाशील है। क्षमा के सागर हैं आपने गलतियां की तो कुछ नहीं। आप को देखने की जो क्रिया है, देखना मात्र जो है एक तीसरी उनके दरवाजे में बैठे हैं तो पूरी तरह से क्षमा कर देते हैं आपको। तब आपको भय क्यों होगा। दूसरा वरदान उनको देखने वाले, एक जो आपको दिखाई दे रहा है और एक जो है निर्भयता। बिल्कुल निर्भय होना चाहिए। उनकी कोई सेना देखने की चीज है। ये तीनों ही चीज खत्म हो सकती है। नहीं है। आपने तो जाना ही है कि जिस वक्त अपनी बारात कैसे? कि अगर आप ही अपना आईना बन गए फिर आप लेकर वो पहुंचे थे तो पार्वती जी को तो शर्म आ रही थी। अपने को देखते रहते हैं, आप अपने को जानने लगे। यही कोई लंगड़े कोई पागल दिखने वाले हिप्पियों जैसे लोग अजीब तुकाराम ने कहा कि आपने अपने को जान लिया फिर और से अजीब लोगों को लेकर पहुंचे बारात में मतलब ये शारीरिक जानने की जरूरत ही क्या है? तब ये तीन दायरे कूद कर कुछ भी अवस्था हो और जन साधारण के लिए ऐसे लोग आप स्वयं में स्थिर हों गए। यही स्थिरता जब पूरी तरह से कुछ विक्षिप्त से लगें, विचित्र से लगे लेकिन उनके अन्दर बन जाती है तब कहना चाहिए कि शिव तत्व स्थिर हैं क्योंकि शिवतत्व है। इसलिए शिव के लिए कोई भी पैसा धन की जरूरत नहीं। उनके मंदिररों में सोने चांदी के चढ़ावे की जरूरत जाते हैं तो आपको ऐसा नहीं लगता कि आप कुछ कर रहे नहीं। मुक्त बैठे हैं। किसी भी चीज में ऐसी शक्ति नहीं कि हैं। आप अपने में ही समाये रहते हैं फिर आप ये भी नहीं उनकी शोभा बढ़ाये। ऐसी कोई संसारिक दृष्टि से मूल्यवान जैसे आजकल वस्तु शिवजी के लायक नहीं। इस तत्व को हमारे अन्दरआना बहुत से लोग कहते हैं कि हम बोर हो गए। क्योंकि आप बहुत-बहुत जरूरी है। आज समाज में आप अगर देखें तो अपने को देख नहीं सकते। आप अपने साथ रह नहीं सकते। पैसे का मूल्य जरूरत से ज्यादा है। हर आदमी पैसे का ही आप अपने साथ पांच मिनट बैठ जाएं तो आपको ऐसा लगता मूल्य देखता है। किस चीज में पैसा मिलेगा। क्या करने से है कि भाग खड़े हो। मेरे लिये तो अपने साथ बैठना सबसे पैसा मिलेगा? और पैसे के मूल्य में सभी चीज वो बेचने को तैयार हैं। पैसे नष्ट भी हो सकते हैं। दुष्ट कमों में भी भोलापन आपके अंदर आ जाता है। अगर आत्मा है और जिसे डाल सकते हैं, लेकिन शिव तत्व में बैठा हुआ मनुष्य उसको किसी चीज की इच्छा नहीं होती। इच्छारहित होता है क्योंकि क्या है। एक है जो आप स्वयं हैं सो हैं और आप अपने है। को शीशे में देख रहे हैं । वो आपका प्रतिबिम्ब हैं। और प्रतिबिम्ब ि चीज है। इस प्रकार आप तीन दायरों में घूम रहे हैं। एक यो अटूट और अटल है। इस शिव तत्व में जब आप बैठ का ा सोचते हैं कि मुझे कुछ और करना चाहिए। बड़ी बात है। इस रस को जब आप प्राप्त करते हैं तब एक कोई भी नष्ट नहीं कर सकता तब ये कौन नष्ट कर सकता चैतन्य लहरी 24 अपने आत्मा से ही उसकी आत्मा संतुष्ट है । शरीर की कोई हमारे ऊपर आक्रमण करती है। ऐसे ही हम जड़ से पैदा उसको चिंता नहीं होती। शरीर के आराम की उसको चिंता हुए। पहले तो ये आत्मा का झगड़ा इस जड़ से ही प्राप्त नहीं होती। कहीं भी सुला दीजिए उसको। कुछ भी खाने को हुआ और अब भी ये जड़ बीच-बीच में खींचता रहता है। दे दीजिए, नहीं तो मत दीजिए। और फिर जब ये दशा आ इसीलिए पहले जमाने में लोगों ने बताया था कि उपवास जाती है तो वो सभी चीजों पर अधिकार करती है। जैसे आपने करो, सन्यास लो, घर बार छोड़ के भाग खड़े हो जाओ और ऐसे आदमी को खाने को नहीं दिया। लेकिन वो एक नजर फिरा दे तो हजारों आदमियों को खाना दे सकता है। उनके के तपस्या करने से आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त होंगे। लेकिन शरीर को कोई आराम नहीं है। लेकिन उनकी नजर दाता है। आज का सहजयोग ऐसा है जहां पहले आप अपने जिसपे पड़ जाए वो नजर दान में से भरपूर हो जाए। अब आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करो। कि पहले मंदिर का कलश ये कौन सी शक्ति है जिससे वो सबका कल्याण करते हैं? बनाओ और फिर उसके नीवं को बनायेंगे क्योंकि अगर बहुत ये है परम चैतन्य। और उसका जो स्पन्दन है उसे शंकराचार्य लोगों की पार कराना है और जिसकी ज़रूरत है तो यहीं ने स्पन्द कहा है। इस स्पन्द की शक्ति उनके शरीर से बहती तरीका हमने ठीक समझा। और हिमालय में जाए बगैर, अपने रहती है और जिस आदमी को वो छू जाती है उसी का कल्याण परिवार को छोड़े बगैर और आफत उठाए बगैर ही आप लोगों हो जाता है। जिस भूमि पे वो पड़ जाती है वो भूमि बहुत ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त किया। ये तो बात सही है ज्यादा फल फूल देने वाली हो जाती है। जिस स्त्री में पड़ और आपमें स्पन्द की शक्ति भी आ गई। यहां तक तो कुण्डलिनी जाएगी वो बड़ी सुबुद्धि वाली हो सकती है। जिस पर पड़ ने काम कर लिया। अब आगे आपको काम करना है। और मर जाओ। लोग सोचते थे कि अनेक जन्मों में इस तरह ि है जाए उसका भला हो सकता है। स्पन्द ऐसी चीज जिससे वो काम ये कि पहले तो अपनी ओर देखना है। जब आप अच्छाई ही आ सकती है। कोई आदमी आपको मारने को शीशा हो गए तो आप अपने को देखिए। पहले तो अपनी आए, उसका परिवर्तन हो सकता है। कोई आपको सताने आए ओर नजर होनी चाहिए कि मैं अब भी एक सर्व साधारण उसको सुबुद्धि आ सकती है। एक तरह कि जो परिवर्तन की मानव के जैसे रह रहा हूँ। शराब छूट गई। सिगरेट छूट गई। शक्ति इस स्पन्द में है ये हमारे लिए बड़ी समझने की बात गाली मुंह से निकलना बंद हो गया और स्वभाव भी बहुत है। इसलिए हर आदमी को आपको क्षमा कर देना चाहिए। शांत हो गया। चेहरे पे भी मासूमियत आ गई। लेकिन अब आप क्यों उससे बदला ले रहे हैं, कोई जरूरत नहीं। आप सहजयोगी हैं ये स्पन्द पे छोड़ दीजिए। इसे लहरियों पे छोड़ अपने मजे में रख सकता हूँ या मैं बोर हो जाता हूँ? क्या दीजिए। सब समझते हैं सोचते हैं, सब पूरी तरह से व्यवस्था मैं अपने मे मजा पाता हूँ? मैं अपने में ही आनन्द को प्राप्त करते हैं। इस शक्ति को आपने प्राप्त किया है ये आपमें कर सकता हूँ? और क्यों नहीं कर सकता? इस पर आप से अव्याघ बह रही है। इस शक्ति को आपने आजमाया है बुद्धि से विचार कर सकते हैं। क्या अब भी मैं इस या कि इससे कितना फायदा होता है। अब जो लोग बुद्धि से उस चीज में अटका हूँ? और जिन चीजों में आप अटके इसको जानना चाहें वो नहीं जान सकते। लेकिन आपने तो हैं उसमें अटकते ही जा रहे हैं अगर आप भोले हैं तो कोई अनेक चमत्कार देखे हैं, और ये कितनी ऊंची, कितनी प्रचण्ड, चीज आपको अटकाएगी ही नहीं। और जिन चीज़ों में आप कितनी बड़ी शक्ति है, जो कार्यान्वित है और आपको मदद अटके हुए थे वो आपको मिल नहीं रही और फिर से वो कर रही है। और आप इसके अधिकार को प्राप्त हो रहे हैं। ही मानवीय जीवन शुरू हो जाएगा लेकिन गर आप इन चीजों उस वक्त हमें ये सोचना चाहिए कि शिव तत्व हर चीज को देख लें आज हमें ये चीज अटका रही है, ये चीज हमारे पर, पूरे पर्यावरण पर चल सकता है। आजकल पर्यावरण का बड़ा भारी संकट संसार पर छाया हुआ है। जितने सहजयोगी दृष्टि करने से ही ये चीज चली जाएगी। अगर हमें एक होंगे उतना पर्यावरण शुद्ध हो जाएगा। अपने आप ही शुद्ध हो नया संसार बनाना है, एक बहुत सुंदर संसार ऐसी माँ की भी क्या मै अपने को देख सकता हूँ? क्या मैं अपने को अंदर है तो देखने से ही ये चीज गिर जाएगी। इसकी ओर इच्छा है कि एक विशेष तरह की पीढ़ी तैयार करें जो खालिस जाएगी। इसके अधिकार पथ पें आने के लिए सबसे पहले हमें हों। इसके बारे में अनेक साधु संतों ने इच्छा की थी। वो ये जान लेना चाहिए कि अब हम मानव स्थिति में नहीं। हम अब दैवी स्थिति में आ गए हैं। तो मानव स्थिति की जो तत्व को ठीक करें। हमारे अन्दर गलतियां हैं जो खींच है, उससे हमें छुट्टी मिलनी चाहिए। ये मानव स्थिति हमें नीचे खींचती है। और बार-बार घुसी हुई है। जैसे आजकल हिन्दू, मुसलमानों का झगड़ा चल अगर आपने करना है तो ये जरूरी है कि आप अपने शिव शिव तत्व में आप जान लेंगे कि अभी क्या-क्या चीज चैतन्य लहरी 25 रहा है। कोई हिन्दु हो जाने से शिव तत्व नहीं पाता। न मुसलमान और जैसे ही वो इस तत्व में आ गए उनके सब प्रश्न अपने होने से पाता है न ईसाई होने से, न कुछ होने से पाता है आप ही हल हो गये शिव तत्व में शक्ति ही ऐसी है, वो ये सब बाह्य के आडम्बर हैं। लेकिन जब आपमें शिव तत्व सारे प्रश्नों को हल कर देती है। उनके प्रश्न अपने आप ही प्राप्त होता है तो आप श्री राम को भी मानते हैं और आप हल हो गये जो लोग शराब पीते थे, दुनिया भर की चीजें मुहम्मद साहेब की भी पूजा करते हैं। जब तक आप शिव तत्व बेचारे करते थे, दल-दल से निकल कर वो आकर किनारे पर को प्राप्त नहीं होते इन धर्म के आडम्बर से आप निकल नहीं बैठ गये। पर हम लोग अभी भी किसी न किसी चक्कर में सकते। अन्दर से उनकी भी पूजा उतनी ही होनी चाहिए जितनी घूमते ही रहते हैं। इस चक्कर को खत्म करना चाहिए। आज श्री राम की। जो रहीम है वो ही शिव है। जो रहमान है, जो शिव रात्रि के दिन विशेषकर अपने शिव तत्व पे उतरिये ताकि अकबर है वो ही विष्णु है। तब फिर ये अन्दर की जो भावनाएं वो आपको सारे गुणों से अलंकृत कर दे। शिव तत्व में ऐसे हैं ये ऐसे विकसित हो जाएंगी कि आपके अन्दर से धर्म की गुण हैं कि सहज में ही आपके अन्दर घर्म आ जाएगा, सहज सुगंध बहेगी न कि वैमनस्य। पर ये चीज घटित होने के लिए में ही आपके अन्दर सुबुद्धि आ जाएगी, सहज में ही सारा ज्ञान मुझे तो सहजयोग के सिवा ओर कोई मार्ग नहीं दिखाई देता। आपके अन्दर आ जाएगा। सहज में ही आपमें माधुर्य आ जाएगा| जब तक सहजयोग नहीं होगा। तब तक लोग ऐसी पूजा करेंगे? सहज मे ही परिपक्वता आ जायेगी न जाने कितने ही गुण क्या मुसलमान राम की पूजा करेंगे? या हिन्दु मुहम्मद साहिब सहज में आपके अन्दर आ सकते हैं। लेकिन पहले ये जान की पूजा करेंगे। हम लोग तो करते हैं मुहम्मद साहेब की भी, लेना चाहिए नम्रतापूर्वक, कि अभी हम उस तत्व पे उतरे के अली की भी फातिमा बी की, बुद्ध की, महावीर की पूजा नहीं? हमें उतरना है। और दूसरी ये कि सारी ही शक्तियां सहज करते हैं, क्योंकि ये सब पूजनीय है। हम कौन होते हैं किसी में हमारे से प्रस्फुटित हो रही हैं। कुछ करना नहीं पड़ेगा । इस को बड़ा छोटा कहने वाले पर जब शिव तत्व के सागर में तरह से हमें अपनी ओर देखना चाहिए कि मेरे पति, मेरे बच्चें आप घुल जाते हैं तब आप को पता होता है कि ये सब शिव सहजयोग नहीं करते, नहीं करने दो, ये तो आन्तरिक चीज है के ही अंग-प्रत्यंग हैं। ये सब अपने ही हैं। ये सब हमारे ही जिसको पाना है वो ही पा सकता है। जबरदस्ती तो नहीं कर अन्दर है। जब तक इस तरह की घारणा हमारे अन्दर नहीं सकते सहजयोग की। आप अपने को देखो। अपने को जानना, होती तो हो सकता है कि सहजयोग का कार्य कुछ कम तेजी अपने को देखना, से चले। लेकिन सहजयोग ठोस चीज है। असली चीज है। और देखकर लोग सहजयोग में उतरेंगे। और इस परम तत्व को पाने ये जो बाह्य की चीजें हैं ये थोड़ी देर के लिए आई, गई। मारा के बाद आप लोग इतने शक्तिशाली हो जाएँगे कि न जाने कितने पीटी हुई सब कुछ हुआ। आश्चर्य की बात ये है कि विदेश लोगों को आप परिवर्तितत कर दें, ये संसार बदल दें। ये संसार में सहजयोग इतने जोर से फैल रहा है। वे लोग बहुत ही गहन है। रोज ध्यान करना, रोज अपनी ओर नज़र करना । इन लोगों कि ये खराबियाँ हैं। खराबियाँ प्रजातंत्र की नहीं, खराबी इन्सान से हमें सीखना चाहिए। इन्होंने तो कभी शिवजी का नाम भी की है जो शिव तत्व को प्राप्त नहीं करता। नहीं सुना था। ईसा मसीह के सिवाय इन लोगों ने कभी शिवजी का नाम भी नहीं सुना था। फिर ये इतनी गहनता में कैसे उतरे? है। उसमें बिगाड आना ही हुआ क्योंकि उसमें बिगड़ने के हम लोग रोज ही सुनते रहते हैं। मंदिरों में जाके घंटियाँ बजाते तत्व हैं लोग आचार बनाते हैं घर में, उसे बहुत सफाई करके, हैं, चर्च में जाके प्रार्थना करते है । और ये लोग जिन्होंने कभी भगवान को भी नहीं याद किया ये जैसे आचार खराब हो जाए वैसे ही हमारा हाल है। ऐसे होगा। इन लोगों में ये गहनता कैसे आ गई? रूस के एक गाँव ये लोग हैं कहां? कोई सा भी आप सवाल बनाओ, कोई में 22,000 सहजयोगी बैठे हैं। तो ऐसे हम लोगों में कौन सी सी भी आप चीज बनाओं, यही होने वाला है क्योंकि उसके खराबी आ गई है कि जिसके कारण हम उस गहनता में नहीं अंदर की डे हैं। उसके अन्दर दोष है। जब तक मनुष्य के उतर पाते। उसकी वजह ये है कि रोज हम अपने को देखते अन्दर दांष रहेगा ये जो भी चीज बनाता रहेगा उसमें दोष नहीं। पहले अपने को देखना चाहिए। अपनी ओर नज़र करनी आना ही है थोड़े दिन चलता है जैसे गांधी जी ने सत्याग्रह चाहिए। ये नज़र इन लोगों में कहां से आई ये मैं नहीं बता सकती। लेकिन परिणाम देखिए वो बड़े गहन लोग हैं। कभी दोघ हुए। मैं तो जानती हूं उनको। पर तो भी जोश था देश मुझसे ये नहीं कहेंगे कि हमारे पैसे का क्या होगा, बच्चे, मां को स्वतंत्र कराने का, ये करने का वो करने का लड़ पड़े। बाप, रिश्तेदारों का क्या होगा। बस पूछेंगे कि माँ मेरा क्या होगा। अब तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता मिल के ये हो क्या ट यही आत्म-साक्षात्कार है। फिर आपको बदलने के लिए है। कोई कहेगा यहाँ प्रजातंत्र है और प्रजातंत्र कोई सी भी चीज आप ले आओ वो खराब होनी ही और सब ठनठन गोपाल। वगैरह कछ नहीं रह जाए। घोकर, सुखाकर ताके उसमें कीड़ा मो चलाया था तो थोड़े दिन चला। पर उनमें भी बड़े अजीब-अजीब चैंतन्य लहरी 26 रहा है। खासकर तो मुझे ये वन्देमारतम पर बहुत दुख हुआ। मर गए। वो बहुत बीमार थे तो उनके क्रियाक्रम में कोई रिश्तेदार आखिर आपकी मां की स्तुति किसी भी भाषा में हो आखिर वगैरह नहीं आए। सब सहजयोगियों ने अपने तरफ से किया। मेरी स्तुति आप नहीं जानते कितनी भाषाओं में होगी आपको एक चीज कहीं हो जाती है वहां तो दुनिया भर से लोग दौड़ने क्या बुरा लगना चाहिए? ये 'वन्दे मातरम' तो एक मंत्र है लगते हैं। कोई ये नहीं सोचता कि मेरा रिश्तेदार हैं। ये तो जिसको लेकर के ये देश स्वतंत्र हुआ। मेरे पिताजी झंडा लेकर सब निर्वान्य प्रेम है कि ये सहजयोगी है और हम भी सहजयोगी के चले थे, उच्च न्यायालय में तो उनको गोली मार दी गई। है। एक दूसरे को मदद करने के लिए, एक दूसरों को सँवारने खून बहता रहा पर फिर भी वो चल के ऊपर गए और के लिए आपको झडा फहराया। नारा लगाया 'वंदे मातरम' । हम सबके दिल चिंता लगी रहती है कि दो सहजयोगी ठीक रहें। ये जो चिंता दहल गए। इस तरह की चीज इस देश में हो रही है कि है इसमें कोई लेन-देन की बात नहीं, इसमें कोई लाभ सोचा वंदे मातरम बंद कर दो। अरे ये देश क्या है तुम कुछ जानते नहीं जाता पर एक ही तकलीफ है। ये जो नितांत, आपस ही नहीं। स्व का तंत्र जानते नहीं स्वतंत्र हो गए। इस तरह की जो खींच है जो आत्मीयता है ये आप शिव तत्व से से हमारे अन्दर की जो गहन उदात भावना है उसे पाने वाले प्राप्त कर सकते है। ओर किसी भी तत्व से आप प्राप्त नहीं शिव हैं। जो हृदय में प्रेम है और जो सबके प्रति एक आत्मीयता कर सकते। इसीलिए मनुष्य को शिव तत्व में उतरना चाहिए। वो देने वाले शिव हैं। जो हमें ऐसी शक्ति देते हैं हमारा प्रेम और हमारी आत्मीयता बड़ी आह्वाद दायिनी चीज़ है। जैसे भूखे मर रहे हैं, मुसलमान हैं। और बड़ी तकलीफ की बात वंदे मारतम कहते ही एक आह्वाद भर जाता है। वो शिव है कि खाने पीने को नहीं। बर्फ पिघला कर वो पानी पी तृत्व की देन है। आज शिव जी की स्तुति गाते हुए आहाद आपमें आया। हैं इतनी दुर्दशा में लोग हैं और किसी को उनके प्रति आत्मीयता ये शक्ति शिव ने हमें दी है। इसलिए उन्हें आनन्ददायक कहते नहीं। कोई लोग सोचते नहीं कि वो मर रहे हैं । मुसलमान हैं। आनन्द में जो निरानंद है, सिर्फ आनन्द, उसमें अनेक देशों में इतना पैसा है, लेकिन कोई नहीं जाता उनको बचाने। तरह के आनन्द हैं। ये आहवाद जो है ये हमारे भावनाओं से जिस दिन संसार में शिव तत्व प्रस्थापित होगा ये सब ठीक जुड़ा है। भावनाओं में उभरता है जैसे एक फूल से उसकी हो जाएगा ये झगड़े ही सब खत्म हो जाएंगे| कहते है कि सुगन्ध मुखरित होती है उसी प्रकार हमारे हृदय में जो भावनाएँ 8-9 साल में ही ये सब घटित होना है। देखिए कितने लोगों है किसी चीज के प्रति अच्छी, उदार, प्रेममय सुन्दर, ऐसी की समझ सहज तक पहुंचती है? इतनी समझदारी लोगों में भावनाएँ हैं। शुद्ध भावनाएँ हैं। उस भावना की जो सुगन्ध है है कहाँ? आप लोगों पे निर्भर हैं कि आपके शिव तत्व के वो ही आह्वाद है। हम उसी आहवाद में आन्नदमय होते हैं। प्रकाश से दुनिया प्रभावित हो जाये और ये जो हमें आफतें और फिर किसी चीज की जरूरत नहीं रहती। इसको उभारने दिखाई हे रही हैं, जो मनुष्य की ही मूर्खता से पैदा हुई हैं, वाले, इसको जतन से रखने वाले और उचित समय पर इसका पूरी तरह से नष्ट हो जाएं। अनुभव लेने वाले ये शिवजी ही हैं क्योंकि वे स्पन्द के माध्यम से हमें देते हैं। अभी भी किसी बड़े साधु संत का नाम लो अंदर फिर स्थापित हो जाए। ये ही एक प्रार्थना शिवजी से तो सारे बदन पे रोम खड़े हो जाते हैं। एकदम से ये स्पन्द, करनी है कि शिव तत्व को आप हमारे अन्दर स्थातिप कर ये लहरियाँ दोनों बहना शुरू हो जाती हैं। अब ये बुद्धि वादियों दें। बहुत लोग पैसे कमा लेते हैं बड़े-बड़े पदों पर चले जाते को क्या समझाएं? ये तो आधे गधे हैं, और जो कुछ बचा हैं बड़े-बड़े खिताब उन्हें मिलते हैं, सब कुछ होता है ये वो घोड़े। इनके अन्दर तो आप कुछ घुसा ही नहीं सकते तो मिलते ही रहते हैं लेकिन आज की जो क्रान्ति है, आन्दोलन और घुसाओ भी मत। आप को चाहिए कि आप अपना ही है, वो क्रान्ति मनुष्य के परिवर्तन की और सारे संसार को जीवन इतना सुन्दर बनाओ कि ये पीछे रह जाएं और ये देखें ठीक करने वाली है। उसके लिए कोई त्याग नहीं करने का कि ये समाज क्या है। अपने बुद्धि चातुर्य से इन्होंने कुछ कि मैंने ये त्याग किया मैंने वो त्याग किया। अपने आप छुट लोगों को अपने अन्दर फँसा लिया। कितने लोगों को फँसाया, गए। जब सब कुछ छूट गया तब फिर परेशानी किसी चीज कितने झगडे चलते रहते हैं। लेकिन आपका अगर समाज ऐसा की? इस शिव तत्व में आप सब लोग उतरें ऐसा ही हमारा बने जो आज बना हुआ है, आपस में हमारे कोई झगड़े नहीं आशीर्वाद है । ऊँच-नीच नहीं। किसी ने बताया कि दिल्ली में कोई सहयोगी जो मोडते हैं, खींचते हैं वो शिव तत्व हैं। आपने सुना होगा कि बोस्निया में दो सौ हजार लोग रहे हैं। जब लोग मर जाते हैं तो उन्हीं का गोश्त खा रहे आज शिवजी से यही मांगना है कि ये शिव तत्व हमारे जत। परमात्मा आप पर कृपा करें। चैतन्य लहरी 27 Mother, please come in my heart Let me clear my heart so that You are there Put Your Feet into my heart Let Your Feet be worshipped in my heart Let me not be in delusion Take me away from illusions Keep me in reality Take away the sheer of superficiality Let me enjoy Your Feet in my heart Let me see Your Feet in my heart ---------------------- 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt CCCCCCCCCCCCCCCCCOCCCCCCCCCO चैतन्य लहरी RUST हिन्दी आवृत्ति श्िना 1996 अंक 5, व 6 ाण खण्ड VIII ा हे परमात्मा हमारे अपराधों को भी वैसे ही क्षमा कीजिए जिस प्रकार हम अपने प्रति किए गए अपराधों के लिए अन्य लोगों को क्षमा करते हैं। (इसा मसीह) (अर्थात परमात्मा से क्षमा मांगने का अधिकारी केवल वही व्यक्ति है जो दूसरों को क्षमा करता है) RUST CCCCC.CC CC CCC ह० ন CCCCCC.CCCCCCC.CCCCCC.C.CCCCCCCCCCCCCCCCC. शभी CCCCCCC 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt चैतन्य लहरी चैतन्य लहरी खण्ड VII, अंक 5, व 6 (1996) -: विषय-सूची :- 1. निर्मला 2. लक्ष्य 3. अहँ 9. 4. ईसा मसीह पूजा-गणपति पुले 25.12.95 5. ईस्टर पूजा कलकत्ता- 14.4.96 18 6. महाशिवरात्रि पूजा - मुम्बई-19.2.93 23 श्री योगी महाजन सम्मादक श्री विजयनालगिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 मुद्रक एवं प्रकाशक प्रिन्टेक फोटोयईपसैटर्स, 35, ओल्ड राजेन्द्र नगर मार्केट, नई दिल्ली- 110 060 फोन : 5710529, 5784866 मुद्रित चैतन्य लहरी 10 c০ 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt *निर्मला ' 18 जनवरी 1980 को राहुरी में मराठी प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर जिसमें परमपूज्य श्री माताजी ने स्वतः पूर्ण मन्त्र स्वनाम 'निर्मला' (निः+र्म+ ला) में निहित गूढ़ भाव की विशद व्याख्या की नहीं" है। केवल ब्रह्म ही सत्य है, अन्य सब मिथ्या है। जीवन के हर क्षेत्र में आपको यह दृष्टिकोण अपनाना है। तब आप सहजयोग को समझेंगे। साक्षात्कार के पश्चात् अनेक सहजयोगी यह सोचते हैं कि हमें सिद्धि (साक्षात्कार) प्राप्त है, हमें पूज्य माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है तो हम समृद्ध क्यों नहीं है? उन के विचार में परमात्मा का अर्थ है समृद्धि। यदि आप विचार करें कि क्या कारण है कि साक्षात्कार के पश्चात् भी आपका स्वभाव' नहीं बदला, तब आप देखेंगे कि आपकी आत्मा का स्वरूप नहीं बदला। देखिये, 'स्व' अर्थात् आत्मा और 'भाव' अर्थात् स्वरूप के योग से बना 'स्वभाव' शब्द कितना सुन्दर है। बताइये, क्या आपने अपनी आत्मा का स्वरूप प्राप्त कर लिया है? यदि आप 'आत्मा' में स्थित हो गये तो आप देखेंगे कि भीतर इतना सोंदर्य है कि आपको बाह्य सब कुछ नाटक सा प्रतीत होगा। जब तक आपमें यह साक्षी स्थिति जागृत नहीं होती, आपने 'नि:' शब्द का अनुसरण नहीं किया, उसके अनुसार आचरण नहीं किया, जब तक कि 'नि:' आपके भीतर प्रतिष्ठित नहीं हुआ है, आप भावुक, अहङ्कारी, हठी अथवा विनम्र व निराश होते रहते हैं तो इन पराकाष्ठाओं (अति की अवस्थाओं) में फंसे रहने का कारण 'नि:' से सम्बन्धित है। आप न इधर न उघर, न इस स्थिति में हैं और न उस स्थिति में, अर्थात डावॉँडोल स्थिति में हैं। 'नि:' स्थिति ध्यानयोग में सर्वश्रेष्ठ रूप में प्राप्त की जा सकती है। अपने जीवन में 'नि:' विचार का अनुसरण करने से आप 'निर्विचार' स्थिति प्राप्त कर लेंगे। सर्वप्रथम आपको निर्विचार होना चाहिये। जब आपके मन में कोई विचार आता है, चाहे वह अच्छा हो अधवा बुरा, तब विचारों का ताँता-सा लग जाता है। एक के बाद दूसरा विचार आता रहता है। कुछ लोग कहते हैं कि बुरे विचार का अच्छे विचार से प्रतिकार करना चाहिये, अर्थात् एक दिशा से आने वाली गाड़ी को जब विपरीत दिशा से आने वाली गाड़ी से धकेला जाये तो दोनों एक मध्य स्थान पर रुक जायेंगी| कहीं तक यह ठीक है किन्तु कभी-कभी यह हानिकारक भी हो सकता है। एक कुविचार जब एक सुविचार द्वारा दबाया जाता है तो यह भीतर ही भीतर दबा रहता है। किन्तु यह एकाएक उभर सकता है। अनेक व्यक्तियों के साथ ऐसा ही होता है। वे अपने सामान्य विचारों को दबा रखते हैं और अपने से कहते है हमें परोपकारी होना चाहिये, अपने आचरण अच्छे रखने चाहियें, इत्यादि। कभी-कभी ऐसे लोग बड़े उपद्रव-ग्रस्त हो सकते हैं। अचानक एकदम यह क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं और लोग यह हर्ष की बात है कि सब सहजयोगी एक साथ एकत्रित हुए हैं। जब हम इस भांति एकत्रित होते हैं तब परस्पर हित की अनेक बातों पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और उन विषयों पर अनेक सूक्ष्म बातें एक दूसरे को बता सकते हैं। दो-एक दिन पहले मैंने स्वयं को स्वच्छ, दोष-मुक्त करने की विधि बताई थी। स्वयं आपकी माँ का नाम ही निर्मला है और इसमें अनेक शक्तियाँ हैं। इस नाम में पहला शब्द 'नि:' है जिसका अर्थ है 'नहीं। कोई वस्तु जिसका वास्तव में अस्तित्व नहीं है किन्तु जिसका अस्तित्व प्रतीत होता है, उसे महामाया (भ्रम) कहते हैं। सम्पूर्ण विश्व इसी प्रकार है। यह दिखता है किन्तु वास्तव में नहीं है। यदि हम इसमें लिप्त हो जाते हैं तो प्रतीत होता है यही सब कुछ तब हमें लगता है हमारी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं है। सामाजिक व पारिवारिक स्थितियाँ असन्तोषजनक हैं। हमारे चारों ओर जो कुछ भी है सब खराब है। हम किसी चीज़ से सन्तुष्ट नहीं है। समुद्र सतह पर जल अत्यन्त गदला होता है। उसके ऊपर अनेक वस्तुएं तैरती रहती हैं। किन्तु यदि हम उसकी गहराई में जायें तो देखेंगे कि उसके भीतर कितना सौंदर्य, कितनी घन सम्पदा और कितनी शक्ति है। तब हम भूल जायेंगे कि सतह का जल मैला है। कहने का अभिप्राय है कि हम चारों ओर जो देखते हैं वह सब माया (भ्रम) है। सर्वप्रथम आप को याद रखना चाहिए कि यह सब जो दिखता है यह कुछ नहीं है। यदि आपको 'नि:' भावना अपने अन्दर प्रतिष्ठित करना है तो जब भी आपके मन में विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है यह सब भ्रम है, मिथ्या है। दूसरा विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है। आपको बारम्बार यह भाव लाना है। तब आप 'नि:' शब्द का अर्थ समझ पायेंगे। आपको जो कुछ माया-रूप दिखता है यह सम्पर्णूत: भ्रम मात्र नहीं है, इस दृश्यमान के परे भी कुछ है। किन्तु अपने जन्मों के इतने बहुमूल्य वर्ष हमने वृथा गंवा दिये है कि हम वे वस्तुएँ जिनका वास्तव में अस्तित्व नहीं है उनको महत्त्व देते हैं और इस भांति हमने पापों के ढेर इकट्ठे कर लिये हैं। इन सब वस्तुओं में हमने आनन्द-लाभ करने का प्रयास किया है, किन्तु वास्तव में इनमें से हमें कुछ भी आनन्द प्राप्त नहीं हुआ। तत्व रूप से ये सब कुछ नहीं है। अत: दृष्टिकोण यह होना चाहिये कि यह सब " कुछ चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt चकित हो जाते हैं कि ये सज्जन व्यक्ति कैसे इतने क्रोध-ग्रस्त क्रियाशील होता है। उसे (विचार को) उस संयन्त्र (निर्विचारिता) हो गये वे अपनी निजी मानसिक शान्ति भी खो बैठते हैं। उनका में डालिये और माल तैयार होकर आपके सम्मुख आ जाता सम्पूर्ण आन्तरिक सौंदर्य समाप्त हो जाता है। अत: वाञ्छनीय है। आप उस संयन्त्र यों कहें नीरव अथवा शान्त संयन्त्र- को यही है कि हम सदैव निर्विचार रहें। अपने मस्तिक से छोटे काम तो करने दीजिये। अपनी सारी समस्याएं उसको सौंपिये। विचारों पर काबू पायें। तब आप स्वत: ही मध्य में रहेंगे। किन्तु बुद्धि-जीवियों के लिये यह अत्यन्त कठिन है क्योंकि आपको समस्त प्रयत्न करने चाहिये। अब आप पूछेंगे, "माँ, उनको प्रत्येक बात के बारे में सोचने की आदत होती है। बिना विचार किये हम काम कैसे कर सकते हैं?" अब आपके किसी विषय को समझने की कोशिश करते समय आप निर्विचारिता में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त कीजिये आप देखेंगे विचार क्या है? वह वास्तव में खोखले हैं। निर्विचार अवस्था में आप परमात्मा की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं अर्थात् सब कुछ स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है। आप जो अनुसन्धान बूँद (अर्थात् आप स्वयं) समुद्र (अर्थात् परमात्मा) में आकर करते हैं वह भी निर्विचार अवस्था में करना चाहिये। निर्विचार मिल जाती है। तब परमात्मा की शक्ति भी आपके भीतर आ जाती है। क्या आप की अंगुली सोचती है? क्या यह फिर भी अति उत्तम ढंग से अपना अनुसंघान कार्य कर सकते हैं। मैं चल नहीं रही? अपने विचारों को परमात्मा को समर्पित कर दें और अपने विषय में सोचने का भार उस पर छोड़ दें। किन्तु का अध्ययन नहीं किया और उस विषय में कुछ नहीं जानती। यह कठिन-सा है क्योंकि आप निर्विचार स्थिति में नहीं है। फिर यह सब ज्ञान कहाँ से आता है? निर्विचारिता से। मैं बोलती अनेक लोग कहते हैं हमने सब परमात्मा को समर्पण कर जाती हूँ और जो कुछ होता है उसे देखती रहती हैँ। मेरे वाणीरूपी दिया है। किन्तु यह केवल मौखिक होता है, वास्तव में नहीं। कम्प्यूटर में मानो यह सब कुछ पहले से तैयार करा कराया समर्पण मौखिक क्रिया नहीं है। निर्विचारिता प्राप्त करने के लिये, रखा था यदि आप निर्विचार अवस्था में नहीं हैं तो आप उस जिसका अर्थ है आपका विचार करना बन्द कर देना, आपको कम्प्यूटर (अर्थात् निर्विचारिता) का उपयोग नहीं कर रह हैं समर्पण करना पड़ता है। जब आपकी विचार क्रिया बन्द हो और अपने मस्तिष्क को उसके ऊपर प्रतिष्ठित करते हैं (अर्थात् जाती है तब आप मध्य में आ जाते हैं। मध्य में आते ही तुरन्त आप निर्विचार चेतना में पहुँच जाते हैं अर्थात् आप परमात्मा की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं और जब ऐसा होता पर होते हैं) निर्विचारिता एक प्राचीन कम्प्यूटर है और इसकी है तब वह (परमात्मा) आपकी देख-रेख करता है। वह आपकी शक्ति से विपुल परिमाण में सही कार्य किया गया है। यदि छोटी-छोटी बातों के विषय में सोचता है। यह आश्चर्यजनक है। किन्तु आप करके तो देखें और आप देखेंगे कि आपका अवस्था में कार्य-रत रहने का अभ्यास कीजिये। इस भाँति आप अनेक विषयों पर बोलती हूँ। अपने जीवन में मैंने कभी विज्ञान आपका निर्विचारितारूपी कम्प्यूटर निष्क्रिय रहता है और आपके सब कार्य मानव मस्तिष्क शक्ति, जो सीमित है, उसके बल आप अपने मस्तिष्क का उपयोग करते हैं और इस कम्प्यूटर का आश्रय नहीं लेते तो आप निश्चित् रूप से गलतियाँ करेंगे। निर्विचार अवस्था में जो कुछ भी घटित होता है वह पहला रास्ता गलत था। अत: एक बार जब आप निर्विचारिता का स्वाद लेते हैं तो आप देखते है कि आपको समस्त प्रेरणायें प्रबुद्ध और प्रकाशमान होता है। हिन्दी, मराठी तथा संस्कृत समस्त शक्तियाँ और अन्य सर्वस्व प्राप्त होने लगता है। निर्विचारिता भाषाओं में किसी शब्द से पहले 'प्र' युक्त करने से उसका में आपके मन में जो विचार आता है वह एक अन्तः स्फुरण अर्थ होता है प्रकाशित, प्रकाशमान। प्रकाश कभी बोलता नहीं। (inspiration) होता है। आप चकित होंगे। प्रत्येक वस्तु यदि आप कमरे की बत्ती जला दें, तो वह बत्ती (दीप) बोलेगी आपके सामने ऐसे आयेगी मानो थाली में परोसकर आपके सम्मुख नहीं अथवा कोई विचार आपको नहीं देगी। वह केवल सब प्रस्तुत कर दी गई। आप भाषण देने खड़े होते हैं, केवल कुछ दृष्यमान ( प्रकट) कर देगी। यही बात निर्विचारिता रूप निर्विचारिता में प्रेवश कीजिये और श्रीगणेश कर दीजिये। यद्यपि आपने पहले कभी भाषण नहीं दिया, भाषण की कला का आपको रहित) इत्यादि सब शब्दों के पहले 'नि:' जुड़ा है। आप इसे कुछ ज्ञान नहीं अथवा प्रस्तुत विषय का आपको कुछ विशेष (अर्थात् 'नि:' को) अपने भीतर स्थापित कीजिये और तब ज्ञान नहीं किन्तु चमत्कार! आप इतना कमाल का बोलेंगे कि लोग आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि यह ज्ञान भण्डार आप में निर्विकल्प। तब आपके समस्त सन्देह व शङ्कायें समाप्त हो कहाँ से उमड़ पड़ा। एक बार आप निर्विचारिता में गहरे उतरे जाती हैं और आपको प्रतीत होता है कि कार्य करने वाली तो सब कुछ वहीं से (निर्विचारिता से) आता है, न कि आपके शक्ति अत्यन्त द्रुत गति से काम करती है और अत्यन्त सूक्ष्म मस्तिष्क से। अब में आपको अपना रहस्य बताती हूँ। आप प्रार्थना कीजिये, "माँ, मेरे लिये कृपया ऐसा कर दीजिये"। आप आश्चर्य तरफ नहीं देखती। यह कभी-कभी रुक जाती हैं, कभी ग़लत करेंगे। मैं आपकी विनती पर विचार नहीं करती। केवल उसे समय बताती है। किन्तु मेरी असली घड़ी निर्विचारिता में है। अपनी निर्विचारिता को समर्पित कर देती हूँ। सम्पूर्ण संयन्त्र वहाँ यह हमेशा स्थिर (शान्त) रहती है। यदि कोई कार्य करना प्रकाश के बारे में है। निर्विचार निरहड्कार (अर्थात् अहङ्कार आप निर्विकल्प अवस्था में आ जायेंगे। पहले निर्विचार, तत्पश्चात् है। आप आश्चर्य करेंगे यह सब कैसे घटित होता है! यही बात समय के विषय में है। मैं कभी घडी की चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt 'तू ही-तू ही' आवाज़ आती है। आपको भी 'तू ही-तू ही' भावना में मग्न रहना चाहि। जब आप 'में नहीं हूँ मेरा कोई अस्तित्व नहीं है' इस भावना में दूढ स्थित हो जाते हैं तभी हो तो वह उचित् समय पर हो जाता है। फिर मन में कुछ पश्चाताप नहीं होता कि यह समय पर हुआ अथवा देरी से। जब भी हो, मुझे कोई चिन्ता नहीं। कल मेरी गाड़ी (कार) खराब हो गई। किन्तु में आनन्दमग्न थी क्योंकि मैं तारागणों को देखना चाहती थी। वह सौंदर्य लन्दन म आप 'नि:' शब्द को समझ सकेंगे। अब "निर्मला' नाम के अन्तिम अक्षर 'ला' के विषय : मैं वह देखना चाहती थी इसका में विचार करें। मेरा दूसरा नाम है 'ललिता'। यह देवी का आशीर्वाद है। यह उसका आयुध (शस्त्र) है जब 'ला' अर्थात् थी माँ उसकी इस छटा को देखें। कभी-कभी मुझे उस ओर 'देवी' ललिता रूप धारण करती है अथवा जब शक्ति ललित भी देखना आवश्यक होता है। मैं उसका आनन्द लाभ कर रही अर्थात् क्रियाशील रूप में परिणत होती है अर्थात् जब उस में थी। संक्षेप में, आपको किसी वस्तु का दास नहीं होना चाहिये। चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं, जो आप अपनी हथेलियों पर यदि आप निर्विचार अवस्था में हैं तो परमात्मा आपको अनुभव कर रहे हैं, वह शक्ति 'ललिता शक्ति' है। यह सौंदर्य सर्वत्र ले जाते हैं मानो अपने हाथों पर उठा कर ऐसी एवं प्रेम से परिपूर्ण है। जब प्रेम की शक्ति जागृत होती है संरलतापूर्वक। वह सब प्रबन्ध कर देते हैं। वह सब कुछ जानते तब वह 'ला' शक्ति बन जाती है। यह आपको चारों ओर से हैं और उन्हें कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं। किन्तु आपको घेर लेती है। जब वह क्रियाशील होती है तब चिन्ता कैसी? देखना है कि आप मुख्य धारा (निर्विचारिता) में हैं अथवा नहीं। तब आपकी कितनी शक्ति होती है? क्या आप वृक्ष से एक यदि आप इसमें नहीं हैं और आप कहीं किनारे पर अटके हैं फल भी बना सकते हैं । फल की तो बात क्या, आप एक पत्ता अथवा जड़ भी नहीं बना सकते। केवल मात्र 'ला' शक्ति तीन बार। किन्तु यदि आप फिर भी यह सब कार्य करती है। आपको जो आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ है वह भी इसी शक्ति का काम है। इसी शक्ति, से 'नि:" जी, मेरा कोई कार्य सुचारु रूप से नहीं होता। वास्तव में तथा 'म' (निर्मला नाम के प्रथम व द्वितीय अंश) शक्तियों का जन्म हुआ है 'नि:' शक्ति श्री ब्रह्मदेव की श्री सरस्वती श्री गणेश की जो आप स्तुति गान करते हैं वह अत्यन्त शक्ति है। सरस्वती शक्ति में आपको 'नि:' के गुण अर्जन (प्राप्त) करने चाहिये। 'नि:' शक्ति प्राप्त करने का अर्थ है पूर्णत: निरासक्त में उपलब्ध नहीं होता। अत: सौंदर्य सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त था। आकाश की अभिलाषा तो प्रवाह, तरङ्ग आती है और आपको मुख्य धारा में ले जाती हैं, एक बार, दो बार, किनारे पर आकर अटक जाते हैं, तब आप कहते हैं, "माता होगा भी नहीं। कारण, आप किनारे पर अटके हैं। सुन्दर है। इसमें कहते हैं "मुख्य धारा (प्रवाह) में प्रवाहित, " जिसका अर्थ है प्रकाशमान मुख्य घारा (प्र+वाह)। आप इसमें अपनी पृथक् लहर, तरङ्ग न मिलायें। श्री गणेश की आरती बनना। आपको पूरी तरह निरासक्त बनना चाहिये। 'ला' शक्ति में प्रेम का समावेश (सम्मिलित) है वह हमारा में यह भी आता है "निर्वाणी रक्षावे" अर्थात् मृत्यु के समय दूसरों से नाता जोड़ती है। 'ल' शब्द 'ललाम', 'लावन्य' में आता हैं। 'ला' शब्द में उसका अपना ही विशेष माधुर्य है हे परमात्मा, आप मेरी रक्षा करें। किन्तु आप स्वयं ही अपनी और आपको उससे (माधुर्य से) अन्य लोगों को प्रभावित करना रक्षा करना चाहते हैं। फिर परमात्मा आपकी रक्षा क्यों करें? चाहिये। दूसरों से बातचीत करते समय आपको इस शक्ति का वह (परमात्मा) कहते हैं "उसे अपनी रक्षा अपने आप ही प्रयोग करना चाहिये। चराचर में यह प्रेम की शक्ति व्याप्त है। करने दो।" मैं इस बात पर बल देना चाहती हूँ कि आपको ऐसी स्थिति में आपका क्या कर्त्तव्य है? आपको अपने सारे गइराई में जाना सीखना चाहिये और निर्विचारिता में ही सब विचार प्रथम (निः) शक्ति पर छोड़ देना चाहियें क्योंकि विचारों का जन्म उस प्रथम शक्ति से ही होता है। अन्तिम (ला) शक्ति जो प्रेम और सौंदर्य की शक्ति है, उससे आप को प्रेम के आपको निरासक्त रहना चाहिये। यहाँ भारत में लोग कहते आनन्द का रसास्वादन करना चाहिये। यह कैसे करें? अपने हैं आपको दूसरों के प्रति प्रेम भाव में भूल जायें, उस भाव में वहाँ बेटा, बेटी किसी से कोई लगाव (आसक्ति) नहीं होती। खो जायें। क्या किसी ने अनुमान लगाया है कि वह दूसरों वे केवल अपने स्वयं के बारे में सोचते हैं। यहाँ हर चीज़ में से कितना प्रेम करता है? यह बढ़ता ही रहना चाहिये। आप 'मेरा, मेरा' मेरा लड़का, मेरी लड़की, मेरा मकान और अन्त दूसरों को कितना प्यार करते हैं और इस भाव में कितना आनन्द में विचारों में केवल 'मैं' और 'मेरा' ही बाकी रह जाता है, लेते हैं? क्या इस बारे में आपने सोचा है? मानवों के विषय में मैं मेरी रक्षा करें। आप यह भी कहते हैं "रक्षः रक्ष: परमेश्वरी " कुछ प्राप्त करना चाहिये। तभी आप निर्विकल्प स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। "मेरा बेटा, मेरी बेटी।" इङ्गलैंड में इसके विपरीत होता है। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। आपको कहना चाहिये मेरा में मैं कह नहीं सकती, किन्तु अपने स्वयं के विषय कुछ भी नहीं है, सब कुछ आपका ही है। सन्त कबीर कहते कह सकती हूँ कि मैं दूसरों से प्रेम करने में अत्यन्त आनन्द हैं, "जब तक बकरी जीवित रहती है तब तक वह 'मैं', 'मैं' अनुभव करती हूँ। अनुभव करें, कैसे चारों ओर प्रेम की गङ्गा करती है। किन्तु उसको मारने के बाद उसकी आँतों के तारों बह रही है, वह अनुभूति कितनी आनन्ददायक है। एक गायक से जो ताँत (जिसे धुनिया रूई धुनता है) बनती है। उसमें से को देखिये, वह कैसे अपने स्वयं के राग में अपने आपको चतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt भूल जाता है, उसमें खो जाता है और सर्वत्र उस संगीत को प्रवाहित होते अनुभव करता है। इसी भांति प्रेम भी अबाधित यदि आप मुझसे किसी व्यक्ति के विषय में पूछे तो मैं केवल रूप से प्रवाहित होना चाहिये। अत: आप 'ललाम' शक्ति, जो उसकी कुण्डलिनी की अवस्था के विषय में बता सकती हूं चैतन्य लहरियों के रूप में विशुद्ध दिव्य प्रेम की शक्ति है उसे पहले अपने भीतर जागृत करें। आप देखें कि आप दूसरों की ओर किस दृष्टि से देखते सकती कि वह कैसा है, उसका स्वभाव कैसा है, इत्यादि। आप दूसरों की टीका-टिप्पणी (Criticism) न करें। अथवा उसका कौन सा चक्र इस समय पकड़ा हुआ' है अथवा बहुघा पकड़ा रहता है। इसके अतिरिक्त मैं कुछ नहीं समझ निम्न स्तर के लोग दूसरों से कुछ चुराने अथवा उनसे यदि इस विषय में मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूँगी, स्वभाव हैं। कुछ कुछ लाभ उठाने के भाव से देखते हैं, कुछ दूसरों के दोषों होता क्या है? यह परिवर्तनशील होतां है। नदी इस समय यहाँ को देखते हैं। पता नहीं इसमें उन्हें क्या आनन्द आता है। इस बह रही है। बाद में उसका बहाव कहाँ होगा, कौन बता सकता भाँति वे अकेले, अलग-थलग हो जाते हैं और फिर कप्ट भोगते है? इस समय आप कहाँ हैं? यही विचार करने की बात है। हैं। यह स्वयं कष्टों को निमन्त्रण देना है। मुझे तो सबसे मिलने, भेंट करने में आनन्द आता है। आपको 'ललाम' शक्ति को-जो चैतन्य लहरी रूप में दिव्य हूँ। इस कारण में जानती हैूँ इसका उद्गम-स्थल कोन सा प्रेम की शक्ति है-उपयोग करना चाहिये दूसरे व्यक्ति को देखने अत: आप किसी को भी व्यर्थ, निकम्मा न कहें। प्रत्येक मात्र से आप निर्विचारिता में पहुँच जायें। इससे दूसरा व्यक्ति व्यक्ति बदलता रहता है, यह अवश्य होता है। भी निर्विचार हो जायेगा। अत: आप अपने को एवं दूसरों को भी विशुद्ध दिव्य प्रेम का बन्धन दें। 'नि:' शक्ति और 'ला' शक्ति को बँधने दें। 'ला' शक्ति अर्थात् चैतन्य लहरियों के रूप हो गया है । प्रत्येक को स्वतन्त्रता होनी चाहिये। आप सब जानते में प्रेम की शक्ति को 'नि:' शक्ति अर्थात् निर्विचारिता में पहुँचाना, हैं हमारी वर्तमान स्थिति क्या है| यदि आप इस भाँति सोचेंगे परिणत करना है। दोनों को बन्धन देना लाभप्रद है। बहुत से तो आप न केवल अपने स्वयं का आत्म-सम्मान करते हैं, लोगों से, जो बड़े अभिमानी हैं अथवा जो सोचते हैं कि वे बल्कि दूसरों का भी सम्मान करते ह वड़े काम करने वाले, कर्मवीर हैं, उनसे मैं अपनी बायें पार्श्व नहीं है, वह दूसरों का कभी आदर नहीं कर सकता। (side) को उठाने को बताती हूैँ। इस भाँति हम अपने स्वयं के पञ्च तत्वों (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश) में अपने लिखकर भी मैं इसका आनन्द पर्याप्त रूप से वर्णन नहीं कर स्वयं के विशुद्ध दिव्य प्रेम को भरते हैं, संचारित करते हैं अपने सकती क्योंकि सौंदर्य को प्रकट करने के लिये शब्द असमर्थ हृदय के प्रेम की शक्ति (हमारा बायाँ पार्श्व) को अपनी क्रिया हैं। अर्थात्, यदि आपको 'मुस्कान' का वर्णन करना हो तो आप शक्ति ( हमारा दायाँ पार्श्व) में पहुँचाना चाहिये, जैसे आप कपड़े केवल कह सकते हैं कि स्नायु कैसे आन्दोलन ( हरकत) करते पर रंगों से चित्रण करते है। जब इस भाँति क्रिया शक्ति में हैं। आप उसके प्रभाव को नहीं बता सकते यह तो केवल प्रेम शक्ति का सम्मिश्रण किया जाता है तब वह व्यक्ति अत्यन्त आप नदी के इस किनारे पर खड़े हैं तो आपको विचित्र लगता है कि नदी यहाँ बह रही है। मैं समुद्र की दिशा में खड़ी सहजयोग का कार्य परिवर्तन लाना है। सहजयोग में विश्वास करने वाले व्यक्तियों को किसी को नहीं कहना चाहिये कि वह बेकार =ा हैं। जिसमें आत्म-सम्मान हमें ललाम शक्ति का विकास करना चाहिये। एक पुस्तक अनुभव की वस्तु है। आप केवल इस शक्ति को जागृत और मधुर बन जाता है और क्रमश: वह माघुर्य, प्रेम उसके व्यक्तित्व विकसित होने का अवसर दें। और उसके आचरणों में प्रकाशमान होता है। वह प्रेम प्रवाहित होकर दूसरों को प्रभावित करता है और उसकी प्रत्येक क्रिया अत्यन्त रसमय हो जाती हैं। वह व्यक्ति इतना आकर्षणयुक्त बन अपने वचन, कर्म तथा अन्य क्रिया-कलापों में विकसित करने जाता है कि आप घण्टों उसकी संगति में आनन्द और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। आपका प्रेम दूसरों को आनन्ददायक और मधुर, मनोहारी शक्ति को 'ललित' शक्ति कहते हैं। लोगों ने दूसरों के मन को जीतने वाला बनना चाहिये। इसके फलस्वरूप सब आपके मित्र बन जाते हैं और परस्पर प्रेम बढ़़ता है। प्रत्येक यह संहार की शक्ति अनुभव करता है कि एक स्थान है जहाँ उसे प्रेम और वात्सल्य मिल सकता है। अत: आपको प्रेम की ईश्वरीय शक्ति को अपने आपने एक बीज बोया। उसके कुछ अंश नष्ट हो जाते हैं, भीतर विकसित करना चाहिये। हमें सदैव निर्विचारिता ('नि:' शक्ति) में रहना चाहिये। और सरल होता है। तब बीज़ उगकर एक वृक्ष बनता है जिसमें जब भी कोई विचार आये तो सोचिये ईश्वर की प्रेमरूपी पवित्र पत्ते होते हैं। फिर पत्ते झड़ते हैं। यह क्रिया भी अत्यन्त सुकोमल गङ्गा में यह गन्द कहाँ से आ गई? ऐसी चित्त-वृत्ति से हमारी व सरल होती है। तब फूल आते हैं। जब फूल-फल बनते 'ला' शक्ति अर्थात् दिव्य प्रेम की शक्ति सदैव स्वच्छ, निर्मल हैं, तब उनके अंश झड़ कर गिर जाते हैं और तब फल आते रहेगी और स्वच्छता के आनन्द में हम विभोर रहेंगे। 'ललाम' शक्ति से मनुष्य को एक प्रकार का सौंदर्य, एक भव्यता और स्वाभाव में माधुर्य प्राप्त होता है। इस शक्ति को का प्रयास करें। कुछ लोगों का रोष भी मनोहारी होता है। इस इसके भाव को बिल्कुल विकृत कर दिया है। वे कहते हैं है। किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं है। यह शक्ति अति मनोरम, सृजनात्मक और कलात्मक है। माना जिसे 'ललित' शक्ति कहते हैं किन्तु यह विनाश अत्यन्त कोमल हैं। उन फलों को भी खाने के लिये काटा जाता है। खाने पर चैतन्य लहरी 15 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt आपको स्वाद प्राप्त होता है। वह भी यही शक्ति है। इस प्रकार विकसित करना होगा। ये दोनों शक्तियाँ काम करती हैं। आप जानते हैं बिना काटे, सँवारे आप कोई मूर्ति नहीं बना सकते। यदि आप समझ लें आप कह सकते हैं कि यदि ईश्वर आपसे प्रेम करते हैं तो कि यह काटना सँवारना भी उसी जाति की क्रिया है तो यदि उन्हें आपके पास आना चाहिये, किन्तु साक्षात्कार-प्राप्ति के आपको कभी ऐसा करना पड़े तो आपको बुरा अनुभव नहीं पश्चात् आप ऐसा न कह सकेंगे। क्योंकि 'म' शक्ति के बल करना चाहिए। वह भी आवश्यक है। किन्तु एक कलाकार इसे पर आपको दूसरी दो शक्तियों का सन्तुलन करना है। संगीत कलापूर्ण ढँग से करता है और कला हीन व्यक्ति इसे बेढगे तरीके से करता है। सो आप में कितनी कला है इस पर यह आपको रङ्गों का सन्तुलन करना पड़ता है। इसी भाँति आपको शक्ति निर्भर करती है। कभी आप एक चित्र को देखते हैं और आपकी इच्छा इस सन्तुलन प्राप्ति के लिये आपको परिश्रम करना पड़ेगा। करती है आप इसकी ओर देखते ही रहें। यदि कोई पूछे इस चित्र में क्या विशेषता है तो आप शब्दों में नहीं बता सकते। इस सन्तुलन को बनाये रखता है वह उच्चतम स्तर पर पहुँचे आप बस उन्हें निहारते हैं। कुछ चित्र ऐसे होते हैं कि आप उनकी ओर देखने मात्र से निर्विचार हो जाते हैं। इस निर्विचार अवस्था में आप उसके आनन्द का रसास्वादन करते हैं। यह कामों में फँसा रहने वाला सहजयोगी भी ठीक नहीं। आपको अवस्था सर्वोत्कृष्ट है। इसकी किसी अन्य वस्तु से तुलना अथवा अपने प्रेम की शक्ति को सक्रिय करना चाहिये और देखना मुस्करा कर व्यक्त करने के स्थान पर आपको इस स्थिति के चाहिये कि अब तक वह कैसी क्रियाशील रही है। उदाहरणार्थ, आनन्द का मन भरकर रसास्वादन करना ही उचित् है। इसका मैं किसी एक ढँंग से काम करती है किन्तु उसमें भी मैं वर्णन करने के लिये न कोई शब्द है और न कोई भाव-भंगी प्रत्येक बार कुछ परिवर्तन कर देती हूँ। आपने देखा होगा कि (मुखाकृति) पर्याप्त है। आपको इसका अपने अन्दर अनुभव हर बार कुछ नवीनता, कोई नया तरीका होता है। यदि एक करना है। सबको यह अनुभव लाभ होना चाहिए। 'नि:' और 'ला' के मध्य में 'म' शब्द अत्यन्त रोचक भी असफल रहता है तो और कोई ढूंढिये। किसी भी पद्धति है। 'म' महालक्ष्मी का प्रथम अक्षर है। 'म' की शक्ति है और हमारी उल्क्रान्ति की भी। 'म' शक्ति में आपको हैं, श्री माँ को नमस्कार करते हैं। यह सब यान्त्रिक समझना होता है, फिर उसे आत्मसात करना होता है और पूर्णतः ( (mastery) कुशलता, प्राप्त करनी होती है। उदाहरण के जीवन्त प्रक्रिया में आपको नित्य नई पद्धतियां खोजनी होंगी। लिये, एक कलाकार में 'ल' शक्ति से उसके सृजन का विचार मैं सदैव वृक्ष की जड़ का उदाहरण देती हूँ। बाधाओं से मोड़ अंकुरित होता है 'नि' शक्ति द्वारा वह उसका निर्माण करता लेते हुए, बचते हुए, यह क्रमश: नीचे और नीचे पृथ्वी के है जब तक आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त नहीं है तब तक में में आप को रांगों का सन्तुलन करना पड़ता है, चित्रकला 'नि:' और 'ला' शक्तियों का सन्तुलन करना आवश्यक है। अनेक बार आप वह सन्तुलन खो बैठते हैं। जो सहजयोगी जाता है। बहुत भावुक सहजयोगी ठीक नहीं। इसी तरह बहुत ज्यादा तरीके से काम नहीं चलता, दूसरा तरीक़ा अपनाइये। यदि यह धर्म (पवित्र आचरण) पर अटल नहीं होना चाहिये। आप प्रातः उठते हैं, सिंदूर लगाते शप (mechanical) होता है। यह जीवन्त प्रक्रिया नहीं है। और 'म' शक्ति के द्वारा वह उसे अपने विचार के अनुरूप भीतर उतरती चली जाती है। यह बाधाओं से झगड़ती नहीं। बनाता है। प्रत्येक पग पर वह देखता हैं कि क्या यह उसके बाधाओं के बिना जड़ें वृक्ष को सँभाल भी नहीं सकती थीं। विचार के अनुरूप है और यदि नहीं तो वह उसमें सुघार करने की कोशिश करता है। वह यह बार-बार करता है। यह 'म शक्ति है अर्थात् यदि कोई वस्तु ठीक नहीं है तो एक बार, पाना सिखाती है, वह 'म' शक्ति है। अत: यह 'म' शक्ति दो बार, बार-बार करें। इस सुधार कार्य में परिश्रम लगता है। हमें अपने स्वयं है। का भी सुधार करना चाहिए। यदि यह न होता तो उत्क्रान्ति की क्रिया असम्भव थी। इस के लिये परमात्मा को महान् परिश्रम है 'माँ मैं अत्यन्त मृदु हैं, मैं क्या कर सकता हूँ। मैं उससे करना पड़ता है। हमें 'म' शक्ति अर्जित करनी है और उसे संभाल कर रखना है। यदि यह न किया जाय तो दूसरी दोनों दूसरा व्यक्ति सिंह है, तो मैं उसे बकरी बनने को कहती शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि यह शक्ति सन्तुलन बिन्दु हूँ। अन्यथा काम नहीं चलता। आपको अपने तरीके बदलने (centre of gravity) है। आपको सन्तुलन बिन्दु पर स्थित होंगे। जो व्यक्ति अपने तरीके नहीं बदल सकता, वह सहजयोग रहना चाहिये और हमारी उत्क्रान्ति का सन्तुलन बिन्दु 'म' शक्ति नहीं फैला सकता, क्योंकि वह एक ही तरीके पर जमा रहता है। अन्य दोनों शक्तियाँ तभी आपके भीतर सक्रिय होंगी जब है जिससे लोग ऊब जाते हैं। आपको नये मार्ग खोजने होंगे। आप उल्क्रान्ति शक्ति के अनुरूप उन्नति करें। किन्तु उसके इसी भाँति 'म' शक्ति कार्य करती है। (महिलायें इसमें निपुण लिये आपको 'म' शक्ति को पूर्णतः समझना होगा और उसे होती हैं ये प्रतिदिन नये व्यंजन ( भोज्य पदार्थ, recipes) अत: समस्याएँ, बाधाएँ आवश्यक है। वे न हों तो आप उन्नति भी नहीं कर सकते। वह शक्ति, जो आपको बाधाओं पर विजय अर्थात् माँ की शक्ति है। उसके लिये विवेक प्रथम आवश्यक गुण सोचिये कोई व्यक्ति बड़ा कोमल स्वभाव है और कहता कहती हैं अपने को बदलो और एक सिंह बनो। यदि कोई चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt बनाती हैं और पति जानने को उत्सुक रहते हैं कि आज क्या की शक्ति होनी चाहिये, किन्तु यह 'नि:' शक्ति के साथ-साथ बना है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा आप अपना सन्तुलन और नहीं होता, तो दूसरा तरीका अपनाइये। पहले लाल और 'पीला एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं। जब आप इस शक्ति को उच्चतम लें, यदि यह उपयुक्त नहीं रहता तो लाल और हरा उपयोग स्तर पर विकसित कर लेते हैं तब आप अपने सन्तुलन तथा करें और यदि यह भी ठीक नहीं रहता तो और अन्य कोई बुद्धि स्तर से चैतन्य लहरियाँ अनुभव करते हैं। यदि आप में उपयोग करें। हठी होना किसी बात पर अड़ना बुद्धिमानी बुद्धिमानी नहीं है तो आप में उक्त लहरियाँ प्रभावित नहीं होंगी। नहीं है। हठघर्मी व्यक्ति सहजयोग में कुछ नहीं कर सकता। अधिकतम चैतन्य लहरियों-सम्पन्न व्यक्ति निश्चित बुद्धिमान आपका उद्देश्य तो केवल सहजयोग का प्रचार करना है तो व्यक्ति होता है। वास्तव में यह बुद्धिमत्ता ही है जो प्रवाहित विभिन्न मार्ग अवलम्बन कर देखिये। आप जो भी आग्रह करते हो रही है। इस माप-दण्ड से यह निश्चित हो सकता है कि है वही मैं स्वीकार कर लेती हूँ क्योंकि मैं जानती हैँ कि साधारण आप किस स्तर के सहजयोगी हैं। जब आप सन्तुलन तथा बुद्धि खो देते हैं तो स्वाभाविक नहीं जा सकता। आप उसे पराकाष्ठा अर्थात् हद पर जाने की रूप से आपके चक्र पकड़े (बाधाग्रस्त) जाते हैं। जब आपके स्थिति न आने दें। 'म' शक्ति से मैं यह सब जानती हूँ। किन्तु चक्र बाधाग्रस्त हों तो समझ लीजिये आपका सन्तुलन बिगड़ आप सहजयोगियों को किसी एक बात पर हठ नहीं करना गया है। असन्तुलन संकेत करता है कि 'म' शक्ति आप में चाहिये। आपकी माँ हठ नहीं करती। जो भी स्थिति हो, स्वीकार दुर्बल है। 'माताजी' अर्थ वाचक किसी भी शुभ नाम का प्रथम कर लें। आप जो भी करें, ध्यान रखें कि आप एक महत्त्पूर्ण अक्षर 'म' होता है और वह कार्य मेरे भीतर 'म' शक्ति द्वारा कार्य कर रहे हैं मुझ में कोई इच्छा नहीं है। मुझ में 'नि:' किया गया है। यदि केवल 'नि' और 'ल' दो शक्तियाँ ही होती, 'ला', 'ग' कोई शक्ति नहीं है। मुझ में कुछ भी नहीं है मैं तो यह कार्य सम्भव नहीं था। मैं तीनों शक्तियों सहित आई यह भी नहीं जानती मैं स्वयं इन शक्तियों की मूर्तस्वरूप हूँ। हूँ, किन्तु 'म' शक्ति सर्वोच्च है। आपने देखा 'म' 'शक्ति' माँ मैं केवल सब खेल देखती हूं। की शक्ति है। यह सिद्ध करना होगा कि वह आपकी माँ है। यदि कोई आकर कहे "मैं आपकी माँ हूँ" तो क्या आप मान में सिद्ध सहजयोगीजन होंगे जिन्हें सहजयोग में पूर्ण सिद्धता, लेंगे? नहीं, आप स्वीकार नहीं करेंगे। मातृत्व को सिद्ध करना निपुणता प्राप्त होगी । अभी तक वे सिद्ध नहीं हुये हैं आपको होगा । माँ क्या है? माँ ने अपने हृदय में हमें स्थान दिया है। हमें माँ पर ले। उसको उसके लिये सर्वस्व अर्पित करना होता है। मैं जा और माँ को हम पर पूर्ण अधिकार है क्योंकि वह हमें अपार रही हूँ। उसके बाद देखेंगे आप अपनी सिद्धता का किस भाँति प्यार करती है। उसका प्रेम नितान्त नि:स्वार्थपूर्ण है। वह सदैव और किस क्षेत्र में उपयोग करते हैं । हमारी मङ्गल कामना करती है और उसके हृदय में हमारे लिये वात्सल्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। माँ में आपको आस्था तभी प्राप्त होगी जब आप यह समझ लेंगे कि आपकी वास्तविक सिद्धान्त अनुसार आपको निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि शोभा, अर्थात् आपकी आत्मा उनमें ही वास करती है। आप दूसरों को यह सिद्ध करके दिखाये। सहजयोगी में ऐसी सामर्थ्य हो जाते हैं। आप घ्यान रखें आपको सिद्ध बनना है। दूसरे होनी चाहिये। अन्य लोगों को पता हो कि वह एक बुद्धिमान स्वीकार करें आप सिद्ध हैं ज्यों ही वे आपको देखें उन्हें स्पष्ट व्यक्ति है। उसके लिये आप में प्रेम और क्रियाशीलता दोनों हो आप सिद्ध हैं। आप इसके लिये यत्न करें। यदि यह होता शक्तियों में सन्तुलन आवश्यक है। वह इतना मनोहारी होना चाहिये है तो सब शुभ होगा। कि बिना जाने अन्य लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों । सहजयोगी को यह गुण अर्जन करना चाहिये। घर जाकर आप विचार करें कि इन तीनों 'नि', 'ला' या किसी अन्य कार्यक्रम के लिये आमन्त्रित करें। साथ ही और 'म' शक्तियों को कैसे सक्रिय कर प्रयोग करें 'नि:' शक्ति कुछ सहजयोगियों को भी आमन्त्रित करें और अपने सब आपके परिवार में पूर्ण सौंदर्य और गम्भीरता, गहराई लायेगी अतिथियों को आत्म-साक्षात्कार प्रदान करें। यदि एक साल तक जन-सम्पर्क के आप नये-नये मार्ग और साधन खोजें। इन शक्तियों आप ऐसा करें तो बड़ा लाभकारी होगा। का आप सहजयोग के प्रचार के लिये उपयोग करें। उनके उचित् उपयोग के लिये आपकी 'नि:' शक्ति, अर्थात् क्रियाशक्ति, अत्यन्तु बलशाली होनी चाहिये। यद्यपि आप में 'ला' शक्ति अर्थात् प्रेम संयुक्त रूप से क्रियान्वित होनी चाहिये। यदि एक तरीक़ा सफल मानव मेरी भाँति नहीं है। हठधर्मी व्यक्ति क्या कर बैठे, कहा जब जीवन में इस प्रकार परिवर्तन आ जायेगा तब मनुष्यों सिद्धता प्राप्त करनी है। सिद्ध सहजयोगी वह है जो पूर्ण रूप से परमात्मा से एकरूप हो जाये और उसे अपने वश में कर कभी-कभी मैं आपको कुछ बातों के लिये मना करती हूँ। आपको उसका बुरा नहीं मानना चाहिये। 'म' शक्ति के आपका मार्ग दर्शन करना मेरा कर्त्तव्य है। कुछ लोग निराश एक दिन मैंने आपसे कहा था कि आप अपने सब मित्र और सम्बन्धियों को मध्याह्न अथवा रात्रि भोज के लिये पूजा सबको अनेक आशीर्वाद। चैतन्य लडरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी लक्ष्य ग्रहों औरसितारों से घिरे सूर्य का आस्तित्व, है केवल 'माँ' के शरीर पर किरणें बिखेरने के लिए, 'माँ' को प्रसन्न करने की खातिर, पाता हूँ जब पवन देव को पुष्प सुगन्ध 'माँ' की ओर ले जाते हुए, मा त। *माँ' के पवित्र्य एवं अबोधिता को दर्शाने की खातिर, देखता हूँ जब श्वेत-निरभर हिमपात को, देखता हूँ जब पर्वतों को साक्षी भाव में, शान्तिपर्वृक 'माँ' के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए, 'माँ' के साक्षात शरीर को सहलाने की खातिर, देखता हूँ जब बादलों को रिमझिम बरसते हुए, माँ के चरण कमलों पर पुष्पांजलि अर्पण करने की खातिर, देखता हूँ जब पुष्पित वृक्षों को पुष्प बरसाते हुए, सुनता हूँ जब पक्षियों को माँ की पूजा की खातिर, पूजा गीत गाते हुए, तब महसूस होता है मुझे कि 'विश्वरूपा हैं वो, समस्त ब्रह्माण्ड उन्हीं का रूप है, प्रसन्न करना परमेश्वरी माँ को, प्रकृति की हर चीज़ का एक मात्र लक्ष्य है। ০ बैतन्य लडरी 8 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी अहँ श्री माता जी, यह सोचना प्रवृत्ति है हमारी, कि अन्य लोग कृपित करते हैं हमें. उपद्रवी हैं, और सबब हैं हमारी परेशानी का, पर असलियत तो यह है कि, निर्लिप्सा पूर्वक साक्षी रूप से, अपने औरदूसरों के कार्य कलापों को न देख पाने के कारण सबब हैं हम स्वयं ही अपनी परेशानी का, क्योंकि साक्षी जब भी हम बन पाते नहीं, बढ़ावा देते हैं अपने अहँकार को। याचना इसलिए करते हैं माँ, कम कर दें अहँ हमारा तथा उत्थान पथ पर अग्रसर करें। ० चैतन्य लहरी পাo 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt ईसा मसीह पूजा-गणपति पुले परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (चेतना के सात स्तर) 25.12.1995 ईसा मसीह के जन्मोत्सव पर आप सबको शुभकामनाएँ। है। हम अपने माता-पिता से प्यार क्यों करते हैं ? क्योंकि हमारे अन्दर घर्म है। हम अपने देश में ही क्यों रहना चाहते हैं? आज के महान दिवस ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। आप सभी जानते हैं कि मानवता के उद्धार को कार्यान्वित करने क्योंकि हमारे अन्दर घर्म है। पति-पत्नि का पारस्परिक प्रेम के लिए किस प्रकार विशेष रूप से मानव रूप में उनकी सृष्टि भी अन्तर्निहित घर्म के कारण ही है। धर्म जब आपके अन्दर की गई। ऐसा कहा जाता है कि वे भारत में कश्मीर में आए होता है 'तो आप इसे धर्म (Religion) नहीं कहते क्योंकि इसका अर्थ कुछ अन्य भी हो सकता है। जब हम धर्म को और वहाँ के राजा, शालिवाहन से मिले। यह सब हमारे पास संस्कृत में लिखा हुआ है। और मैंने स्वयं उस संस्कृत संवाद अपने अन्दर धारण कर लेते हैं तो वह 'घार्य' हो जाता है को पढ़ा है, जो ईसा-मसीह और देवी भक्त राजा शालिवाहन और स्वधा' बन जाता है अर्थात हमारा अपना गुण। हम इसे पशुओं में मध्य हुआ। जब राजा ने ईसा-मसीह से उनका नाम-परिचय अन्तर्जात विवेक भी कह सकते हैं। ऐसे कई गुण तो पूछा तो उन्होंने कहा "मैं मलेच्छों के देश से आया हूँ और में भी पाए जाते हैं, जैसे माता-पिता से लगाव मालिक से लगाव, मुझे यह (भारत) अपना देश लगता है।" शालिवाहन ने उन्हें आदि। कहा, इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाले आप एक महान पुरुष इसके बाद उच्च चेतना आती है जहां मन है। मन अंग्रेजी हैं, अत: अधोपतन से रक्षा करने तथा जीवन के पवित्र सिद्धान्त भाषा के Mind शब्द से भिन्न है । मन का अर्थ है हमारे के विषय में उन लोगों को बताने के लिए आपको उन्हीं देशों अन्दर के भाव। मैंने हाल ही में पढ़ा हैं कि वैज्ञानिक अब में लौट जाना चाहिए। संस्कृत में इसे 'निर्मल तत्वम्' कहा गया 'बुद्धि लब्धि' (IQ) के साथ-साथ भावात्मक लब्धि' (EQ) है। इसलिए ईसा मसीह यहाँ से वापिस चले गए। परन्तु जाने के बारे में भी बात करने लगे हैं केवल बुद्धिमान व्यक्ति के 3 12 वर्ष पश्चात ही उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। ही सही नहीं हैं। उनके अन्दर भावनाओं का संतुलन होना भी आवश्यक है। पहले लोग उसी की प्रशंसा करते थे जिसका समय बुद्ध और महावीर ने भी विराट के मस्तक के उसी स्तर बौद्धिक स्तर ऊँचा होता था। परन्तु आजकल वे जान गए हैं कि बुद्धि द्वारा लोगों ने किस प्रकार पृथ्वी पर सभी की हिंसा आप सभी जानते हैं कि वेदों के अनुसार हमारे सात 'चेतना अराजकता तथा विनाश फैलाया है। इसलिए वे आजकल इससे स्तर' हैं, जिन्हें हमें पार करना है या हमारे अन्तर्निहित वे सात ऊंचे, 'भावनात्मक लब्धि' अर्थात् (EQ) के बारे भी बात सूक्ष्म गुण इनमें से प्रथम है 'भु:'-इस तत्व से गणेश जी करने लगे हैं। यह भावनात्मक गुण भी हमारे अन्दर एक की उत्पत्ति हुई। दूसरा है 'भुवः'- जिसका अर्थ है अन्तरिक्ष आन्तरिक प्रेरणा, आन्तरिक क्षेम के रूप में आता है। जिससे अर्थात वह सब जिसकी सृष्टि हमारे चहुँ ओर की गई। तीसरा बचा नहीं जा सकता। जीवन में मनुष्य चाहे जो भी प्राप्त कर 'स्वाहा'--जो नाभि चक्र पर है। स्वाहा-जहाँ सब भस्म हो ले, परन्तु उसमें यदि प्रेम एवं भावनात्मकता का अभाव है जाता है। आजकल आप देखते हैं कि लोग सब चीजों का उपभोग तो वह अधूरा है। ये भावनात्मकता भी सीमित हो सकती है। करते चले जाते हैं। सभी प्रकार की पुस्तकें पढ़ते हैं। सभी बौद्धिकता के प्रभाव से हम किसी व्यक्ति या विचार से आसक्त प्रकार के कृत्य करते हैं। यदि आप उनसे पूछें " आप ऐसा होकर रह जाते हैं, जैसे हिटलर ने अपने विचारों को ही सत्य क्यों करते हैं? तो कहेंगे "इसमें क्या त्रुटि है।" "ऐसा क्यों माना तथा उन्हें क्रियान्वित करने की चेष्टा की। अत: जब आप किसी विचार विशेष से लिप्त हो जाते हैं तो वास्तविता का न तो पोषण कर सकते हैं और न सहायता। युद्ध, विनाश-सभी कुछ घटित हो चुका है। आजकल, लोग दूसरों को नष्ट करने में लगे हुए हैं। विरोध-भाव हैं। यह कोई अन्ध विश्वास नहीं है, यह तो आन्तरिक प्रेरणा के रूप में यह सब आ रहा है जहाँ मन बुद्धि पर हावी हो यह विशेष समय था जिसे मैं तपस्या का समय कहती हैँ। उसी पर जन्म लिया। हैं। े पहनते हैं?" तो कहेंगे, "इसमें क्या दोष है?" यह विवेकहीन उपभोग चल रहा है। पर इसी चक्र पर हमारे अन्दर एक महान गुण भी है जिसे 'स्वधा' कहते हैं। स्वघा अर्थात् सभी प्रकार का धर्म। [दूसरों द्वारा हम अपने अन्दर धर्म को कायम रखते चुपके-चुपके चैतन्य लहरों 10 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt गया है और बुद्धि भावनाओं पर। अत: हममें एक अन्य अन्तर्जात नहीं है। पश्चिम में तो इससे भी बुरी स्थिति है। वहाँ लोग चेतना, एक अन्य गुण है जन:। जन: अर्थात मनुष्य और उनसे बलबों में जाते हैं और हर क्लंब के अपने विशेष परिघान सम्पर्क। मनुष्य अकेला जीवित नहीं रह सकता। जेल जाने वाले होते हैं जो कि लोगों की पहनने अनिवार्य होते हैं। यदि वे किसी मनुष्य का उदाहरण लें। यदि जेल में उसे अच्छा दर्जा किसी दसरे परिधान में आते हैं तो लोग उनपर हंसते हैं पश्चिमी प्राप्त हो तो उसे बाहर से भी अधिक सुख-सुविधाएं प्राप्त होती देशों में कांटाछरी का प्रयोग भी एक महत्त्वपूर्ण बात हैं। आप हैं, वह केवल अन्य लोगों से मिल नहीं सकता। उनसे सम्पर्क किस प्रकार इन का प्रयोग करते हैं। अंग्रेज लोग तो मूर्खतापूर्ण नहीं बनाए रख सकता। मेल-जोल बनाए रखने के हमारे अन्तर्जात हंग से इस बाघा में फंसे है। यदि कोई कांटा छुरी का प्रयोग गुण से, जो कि मानव अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग है, जब व्यक्ति को वचित कर दिया जाता है तो वह पूर्णतः हतोत्साहित और नहीं है। इस प्रकार की अस्वभाविकता भी युगों के संस्कारों दु:खी हो जाता है। जेल से बारह लोगों से मेल-जोल रखते मे ही आती है। सम्भव है, ये लोग आदिवासी हों। उनके पास हुए, तुच्छ कार्यों पर परिश्रम करने में भी उसे संकोच नहीं पहनने के वस्त्र भी न हों। शुरु-2 में तो मनुष्य के पास पहनने गलत ढंग से करता है तो समझिए कि वह बिल्कुल भी शिष्ट होता। अत: सम्पर्क बनाए रखना भी हमारी आन्तरिक आवश्यकता के वस्त्र नहीं थे। और वे तन पेड़ों के पत्ते व छाल आदि है। परन्तु ऐसा करते हुए भी लोग कभी-कभी दूसरों के घर्म से ढांपते थे। आज वे दूसरी सीमा पर जा पहुँचे हैं उनका की छान-बीन करने लगते हैं। वास्तव में धर्म उनके लिए अधिक होते घ्यान अब अपनी वेशभूषा, छुरीकांटे के बारे में अधिक केन्द्रि है। किसी भी भिन् चीज को वे सहन नहीं कर सकते। ये महत्वपूर्ण नहीं होता वे सम्पर्क बनाए रखने के हैं। इस प्रकार व्यक्ति असन्तुलित हा जाता है। उत्सुक कहना वहां आम बात है कि "मुझे यह पसन्द नहीं है। मुझे इसके उपरान्त छठी चेतना आती है जो कि अत्यन्त रुचिकर वह पसन्द नहीं है।" अब वे भारत में आकर कहते हैं कि है। व्यक्ति बन्धन ग्रस्त हो जाता है। मैं यदि भारतीय हूँ तो हमें भारतीयों के कपड़े पहनने का ढंग अच्छा नहीं लगता। मुझे 'भारतीयता' पर गर्व है। व्यक्ति या तो बुराई को बिल्कुल ठीक है आप वह पहनिए जो आप को अच्छा लगता है, और नहीं देख पाता या उसे केवल बुराई दिखाई देती है। यह दोनों भारतीयों को बह सब पहनने दीजिए जो उन्हें अच्छा लगता ही प्रकार से हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर है कि है। आप यह क्यों सोचते हैं कि इंगलैण्ड की वेशभूषा भारत आप किस प्रकार बन्धन ग्रस्त थे। ये बन्धन हमें अपने छठे जैसे गर्म देश में भी ठीक रहेगी यह सब इसी प्रकार चलता चन्द्र 'आज्ञा' से प्राप्त होते हैं। एक अन्य चीज जो हम में पनपती वह है कि जब भी कोई हमें बन्धनों में जकड़ना चाहता हो जाते हैं कि कोई इनके अन्दर छिपी मूर्खता को नहीं देखता है या हमें वश में करना चाहता है तो हम उसके चुंगल से और प्रचलित कसंस्कारों को यदि हम अस्वीकार करते हैं तो बचने का प्रयत्न करते हैं, या कभी-कभी, प्रभुत्व जमाने की हमें असभ्य कहा जाता है। कुसंस्कारों के इस बन्धन ने मानतवा कोशिश करते हैं । रहता है और मजे की बात यह है कि ये बन्धन इतने गहन का बहुत नुकसान किया है। उदाहरणतया पश्चिम में फ्रायड यह दमनकारी प्रवृत्ति भी हमारे अन्दर अन्तर्जात है। इन को स्वीकार करना पूर्ण घर्म माना गया उसने लगभग ईसा दोनों प्रवृत्तियों के अन्तर्जात होने के कारण हम संस्कारों में फंसते मसीह का स्थान ले लिया। स्वयं यहूदी होते हुए भी यह पागल व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता पर पूर्ण रूप से हावी हो गया। यदि यह भारत में आया होता तो लोग निश्चित ही उस पागल को सब स्व केन्द्रित होने का परिणाम है। लोग कुछ समझना ही समुद्र में फैंक देते। पश्चिम के लोगों ने तो फ्रायड को इतनी चले जाते हैं। कुछ लोग तो इतने बुरी तरीके से बन्धन ग्रस्त हैं कि उन्हें इस स्थिति से बाहर निकालना असम्भव है। यह नहीं चाहते। जैसे, कोई शाकाहारी व्यक्ति आपके घर आकर मान्यता दी कि पश्चिमी सभ्यता आत्मघातक हो गई। सम्मान उहरता है और कहता है, "मैं तो उन बर्तनों में खाना नहीं नैतिकता और आदर्श विहीन उसके विचारों को स्वीकार करन खाऊँगा जिनमें मांसाहारी भोजन बनता है। तो आप जाईए और के कारण सभी माप दण्ड छिन्न-भिन्न हो गए। उसे यह मान्यता नए बर्तन लाईए। या फिर अपने नौकर को ऐसे स्थान पर भेजिए इसलिए मिली कि उसने पुस्तकों में सब लिख दिया और इन कि वह कुएँ का पानी ला सके तथा पुरातन भारतीय शैली मूर्ख लोगों के लिए तो हर लिखित बात एक कानून बन जाती के अनुसार नौकर पूर्ण रूप से पानी से भीगा होना चाहिए ताकि है। यह एक बहुत भयानक संस्कार है । जैसे बाईबल में लिखा वह आपके लिए पीने व खाना बनाने के लिए पानी ला सके। है कि यहूदियों ने ईसा को सूली पर चढ़ाया। लोग जरा सा भले ही नौकर निमोनिया से मर जए। इसकी कोई परवाह नहीं भी नहीं सोचते कि यहूदी तो बाहुल्य में थे। और लोगो के है। इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण संस्कार पूर्व में ही मिलते हों ऐसा आम घारणा पर किसी को कैसे सूली पर चढ़ाया जा सकता चैतन्य लररी 11 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt निर्धनता की स्थिति। इससे उन्होंने यह सिद्ध किया कि लोगों को प्रभावित करने के लिए घन-धान्य अथवा जमीन जायदाद की आवश्यकता नहीं है। उन दिनों लोग तपस्वियों का सम्मान करते थे। वह काल ही तपस्या का था। इसलिए वे अवतरित है। यह तो रोमन सरकार ही थी जिसने अपना दोष यहूदियों पर डाल दिया और ऐसा कुकृत्य केवल मिस्टर पॉल जैसे लोगों के विचारों के कारण हुआ। परन्तु लोगों ने भी इस बात को बहुत सुगमता से मान लिया क्योंकि यह उनकी यहदियों के प्रति घृणा के अनुरूप थी। यहूदियों ने फिर फ्रायड जैसे लोगों को जन्म दिया। इस प्रकार इन संस्कारों की प्रतिक्रियाएं भी चलती रहती हैं और आपका देश अराजकता, डर विनाश, हिंसा हुए और एक तपस्वी की भांति जीवन व्यतीत किया। इसके विपरीत ईसाई लोग केवल अपनी ही सुख-सुविधाओं की चिन्ता करते हैं । किसी भी ईसाई देश में चले जाएं, आप देखेंगे कि वे लोग धन दौलत व घड़ियों के दास हैं। इनकी जीवन शैली को देख कर आप को आघात लगेगा वे स्वयं को ईसा का अधिकार व स्वामित्त्व के विचार भी अपने में एक कुसंस्कार अनुयायी करते हैं परन्तु चलते उनके विपरीत हैं। किसी है। यह मेरी भूमि है, यह मेरी वस्तु है। यह विचार इतने प्रबल कैथोलिक या प्रोटैस्टेंटे गिरजाघर में जाकर ही आप यह जान हो जाते हैं कि निराकार में विश्वास रखने वाले लोग भी जमीन पाएंगे। मुझे समझ नहीं आता कैथोलिक लोग अभी तक भी जायदाद पर लड़ने लगते हैं। यह मामले कई बार तो इतने बढ़ धनलोलप हैं। मसीह से उन्होंने केवल इतना ही सीखा है कि जाते हैं कि पूरा देश ही इनकी चपेट में आ जाता है। संस्कार ईसा एक विवाह में गए और उन्होंने एक विशेष बर्तन (Vat) चाहे कैसे भी हों हमारी आंखों पर पर्दा डाल देते हैं। उदाहरण से शराब निकाली। हिब्रू भाषा में अंगूरों के रस को भी Wine के तौर पर, मुस्लिम लोग कुरान में विश्वास रखते हैं। परन्तु कहते हैं। मैंने बाईबल का हिब्रू भाषा में भी अध्ययन किया कुरान पढ़ना मोहम्मद साहब ने नहीं लिखी। वो तो लिखना है। इसे द्वाक्ष भी कहते हैं क्योंकि आप अल्कोहल को तत्काल पढना भी नहीं जानते थे। उनके 40 वर्ष बाद तो कुछ भी नहीं बना सकते। उसके लिए आपको इसे सड़ाना पड़ता है। लिखा नहीं गया। उसके बाद एक सज्जन मुबईय्या जिसने हजरत जितनी यह पुरानी होगी उतनी ही महंगी होगी। आप ही बताइए अली, उनके बेटे दूसरे खलीफा, तथा तीसरे और फिर चौथे कि ईसा मसीह किस प्रकार ऐसी शराब (अल्कोहल) बना बेटों को स्वयं खलीफा बनने के लिए मारा और फिर उस चौथे सुकते थे? परन्तु अब तो मैं देखती हूँ कि कोई भी अवसर बेटे के जिगर को इस मुबईय्या की माँ ने खा लिया क्योंकि हो, चाहे किसी के मरने का हो या पैदा होने का, वे शैम्पेन यह व्यक्ति स्त्रियों से घृणा करता था। इसलिए उसने कुरान जरूर पीएँगे। और क्रिसमस के अवसर पर तो विशेष रूप से, में सब कुछ स्त्री जाति के विरोध में लिखा हैं। और लोगों जब वे गिरजाघर से वापिस आते हैं तो आप किसी ईसाई के ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि यह सब कुरान में लिखा घर मत जाईएगा। भारतीय ईसाईयों ने भी पश्चिमी ईसाईयों का है। एक व्यक्ति ने कुरान का मजाक उड़ाते हुए एक पुस्तक अनुसरण करना शुरू कर दिया है। क्योंकि वे मानते हैं कि लिखी तो मैंने पूछा "यह क्यों लिखी'" तो उसने कहा कि ईसा तो इंगलैण्ड में पैदा हुए थे। ये सब विचार कहाँ से आए? उसका कोई विशेष प्रयोजन नहीं है। इस को पढ़कर जो लोग हमारे देश में अंग्रेज, पुर्तगाली और फ्रांसिसी लोग ही ईसाई मुस्लिम नहीं है वे इस्लाम पर हंसेंगे और जो मुस्लिम है वह धूर्म को साथ लेकर आए। क्या ये सब वास्तव में ईसाई हैं। कहेंगे, वाह! यह बहुत सुन्दर पुस्तक है। इसमें जो कुछ भी सभी देशों में ईसाई घर्म को ले जाने का उनका क्या उद्देश्य लिखा है हम उस पर विश्वास करते हैं। मेंने उसे बताया कि था? स्पेन और पूर्तगाली लोगों ने तो पूरे विश्व में जाकर इसाई इस प्रकार तो समस्या का समाधान नहीं होंगा। उसने पूछा,"कैसे धर्म को फैलाया। और यह लोग केवल शराबी बन कर रह करें" मैंने कहा "तुम एक ऐसी पुस्तक लिखो जिसमें इन सभी गुए हैं। कल जब मैं यहाँ से जा रही थी तो देखा कि समद्र मुर्खताओं पर प्रकाश डालो। मैंने कुरान के सम्बन्ध में इसलिए आनन्द और खुशी की लहरों से भरा हुआ था, पानी का स्तर कहा है क्योंकि मैं जानती हूँ कि इसे मोहम्मद साहब ने नहीं भी बढ़ा हुआ था। (ऐसा तो मेरे साथ अक्सर होता है) परन्तु लिखा। और तुम भी मोहम्मद साहब के विरोध में कुछ नहीं तुभी मैंने देखा चार-पांच ईसाई नशे में धुत गाते हुए चले आ लिखना। वे तो दत्तात्रेय के अवतार हैं। यह सत्य है।" इसलिए रहे थे और मैंने सोचा कि ये इसी समुद्र के जल में डूब आप लिब्रिए कि उन्होंने यह सब नहीं लिखा।" यह सब इन्हीं जाएँगे। शराब मानवता को ईसाई धर्म का वरदान है। यह शराब पतलि से भर जाता है। लोगों के कुसंस्कारों का परिणाम है। कहाँ से आई, यह तो परमात्मा ही जानते हैं। परन्तु यह ईसाईयो ईसा मसीह के जीवन के विषय में यदि हम जान जाएं से अवश्य आई। मुसलमान भी शराब तो पीते हैं परन्तु छिपकर। तो यह कुसंस्कार दूर किए जा सकते हैं, सर्वप्रथम वह एक वे खुल कर शराब नहीं पीते और न ही शराब पीने को धार्मिक अस्तबल में पैदा हुए। अस्तबल में जन्म लेने का अर्थ है अत्यन्त कर्त्तव्य मानते हैं। गिरजाघरों में तो ' ईश्वरीय संदेश' देने के चैतन्य लहरी 12 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt बाद आपको थोड़ी सी, बदबूदार शराब दी जाती है। अब शराब के बाद आप 'ईश्वरीय संदेश' कैसे सम्भालेंगे? एक बार आपके के पश्चात आप लोग तो विश्ष्टि हो चुके हैं, परन्तु आप को शराब पीते ही सारी चेतना लुप्त हा जाती है। परन्तु यह सब भी इस आज्ञा से पार होना है और इसके लिए आप को अपने होता है। इसीलिए हम आज ईसा के बारे में बात कर रहे हैं। से पहले ईसा मसीह को ढंग से मानता हो। आत्मसाक्षात्कार अहंकार पर नियंत्रण करना है। ईसा मसीह ने अपने जीवन ईसा आज्ञा-चक्र पर विराजमान हैं और मस्तिष्क की काल में ही सिद्ध कर दिया कि अहंकार कसे कार्य करता श्लेष्मीय (Pituitary) और शंकुरूप (Pineal) ग्रन्थियों है। उनका क्रूसारोपण यह दर्शाता है कि किस प्रकार पवित्र्य को नियंत्रित करते हैं । और इसी के द्वारा हमारे संस्कारों अथवा बन्धनों को भी नियंत्रित करते हैं। यदि आप उनका अनुसरण करें तो हम संस्कारों के बन्धन में नहीं आ सकते। क्योंकि अंत में सरकार ने उन्हें सूली पर चढ़ाया। आरम्भ में बहुत उन्होंने केवल आत्मा के बारे में बात की है। आत्मा किसी से सहजयोगी थे जो स्वयं को गूढ़ज्ञाता (gnostics) कहते बन्धन में नहीं फंसती जो कुछ ठीक है वह स्वीकार्य है और थे। ज्ञा (gna) का संस्कृत में अर्थ है ज्ञान यानि जो स्वयं आत्मा के अनुकूल होता है जैसे कि आप लोग हैं। को दूर-दूर शामियानों में ठहराया हुआ है जो कि आरामदायक नहीं है। फिर भी ये लोग मजे से हैं। इन्हें बिल्कुल परवाह मसीह ही अहंकार पर नियंत्रण करते हैं इसके लिए वे आप नहीं है कि ये कहाँ सोते हैं, कहाँ रहते हैं, इन्हें क्या मिलता को संतुलन देते हैं पश्चिम् में तो लोग गधे जैसा मूर्खतपूर्ण है? ये सब आध्यात्मिक माहौल का आनन्द ले रहे हैं। ये सब जीवन व्यतीत करते हैं । उनके बोलने, रहन-सहन के ढंग से इसलिए सम्भव हुआ है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश आँखें खुल जाती हैं। किस प्रकार विकसित हुए हैं, परमात्मा कर गए हैं। और जो लोग नहीं आए वे चिन्तित हैं कि यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। सभी प्रकार के भौतिक सुखों और सभ्य मानते हैं। इस प्रकार उनकी आज्ञा पकड़ी जाती को ढूंढते हैं, सब की आलोचना करते हैं, क्योंकि उनके अन्दर है। ईसा मसीह ने अपनी लॉर्ड्स प्रेयर Lords' Prayer) आध्यात्मिक आनन्द की कमी होती है। जब तक वे पूर्ण रूप से आत्मा नहीं बन जाते तब तक वे वास्तविक आनन्द को जिस प्रकार हम अपने प्रति किए गए अपराधों के लिए अन्य प्राप्त कर भी नहीं सकते। के इस महान अवतरण को सूली पर चढ़ाया गया और किस प्रकार मूर्ख लोगों ने उन्हें कष्ट दिए और पीड़ित किया तथा मे।। को जानते थे। ईसा मसीह ने कहा है कि आपको स्वयं को मैं जानती हूँ कि इन लोगों जानना है परन्तु स्वयं को जानने के लिए शुद्ध होनी आवश्यक है अन्यथा कोई भी आप पर जबरदस्ती नहीं कर सकता। ईसा है। आध्यात्मिक व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग ही जानता है। आज वे अपने को सबसे अधिक विकासशील में है "हे परमात्मा, हमारे अपराधों को भी वैसे ही क्षमा करें लोगों को क्षमा करते हैं।" पाश्चात्य देशों में, मैंने देखा है, कि लोग दूसरों को क्षमा करना नहीं जानते, क्योंकि उनके मन घृणा से भरे हुए हैं और ईसा मसीह ने स्पष्ट कहा है कि आपको अपनी आत्मा को जानना है। कुरान में मोहम्मद साहब ने भी कहा है, कि जब तक आप स्वयं को नहीं जानेंगे तब तक परमात्मा को अहंकार के कारण वे क्षमा माँग भी नहीं सकते। भले ही वे नहीं जान सकते। मुबईय्या द्वारा रचित कुरान में भी बहुत से स्वयं को दोषी महसूस करते रहें परन्तु वे क्षमा नहीं माँगेंगे। सत्य मिलते हैं और यहूदियों की बाईबल में भी बहुत से सत्य छिपे हुए हैं। परन्तु यह सब इनके अपने भले के लिए बनाए मुझे क्षमा करें" नाज़ियों ने इतने अधिक लोगों को मारा और गए विचारों, त्कों और समायोजनों में छिपे हुए हैं। हमें यह बात समझनी है कि ईसा मसीह ने अपना कोई विशेष घर्म के लिए लज्जित नहीं हैं। ईसा मसीह से हमारा संबंध न होने नहीं किया। मोहम्मद साहब ने इब्राहिम के बारे में बताया वे कभी नहीं कहेंगे कि "हे परमात्मा मेरे अपराधों के लिए फिर भी यह नाज़ी इटली तक चले आते हैं। वे अपने कुकृत्यों के कारण यह सब होता है। यदि हमारा सम्बंध ईसा मसीह से है, तो सर्वप्रथम हमारा अहंकार पूर्णतया नष्ट हो जाता है। यह अहंकार, जो कई मार्गों से आता है, केवल एक भ्रांति है, एक कल्पना है। और इस अहंकार से लोग दूसरों को बेवकूफ शुरू है। उन्होंने मोसिज ईसा मसीह और उनकी माता के बारे में बात की है और बाईबल से ज्यादा उन्हें सम्मान दिया है। उन्होंने कहा है कि पहले एक लाख से अधघिक वली यानि साक्षात्कारी आत्माएं पैदा हुई। परन्तु मुसलमान अभी भी स्वयं को विशेष बनाते हैं व झूठा दिखावा करते हैं। जैसा कि शेपिस्ट की कहानी लोग समझते हैं और स्वयं को मुसलमान कहते हैं, भले ही से स्पष्ट होता है। वह स्वयं को बहुत बड़ा वास्तुकार समझता वे शराब पिऐँ, लोगों को आतांकित करें, अथवा निषिद्ध वस्तुओं था वह एक राजा के पास जाकर बोला कि "मैं आपके लिए के पीछ भागें, फिर भी वो मुसलमान हैं, यही हाल ईसाईयों बहुत सुन्दर महल तैयार करूँगा।" राजा उसकी बात मान गया का है। एक भी वास्तविक ईसाई नहीं मिलेंगा जा साक्षात्कार और उसे बहुत-सी मोहरें भेजता रहा। छ: महीनें बाद वह शिल्पी 13 चषेतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt न कम पुनरुत्थान को इसलिए मनाना चाहिए क्योंकि सभी मनुष्यां दुबारा राजा के पास जाकर बोला कि आप अब चलकर अपना महल देख सकते हैं। जब राजा वहाँ पहुँचा तो वह दंग रह का पुनर्जन्म होना है सहज योग में किसी को सूली पर नहीं गया, क्योंकि वहाँ तो खाली जमीन पड़ी थी। राजा समझ गया चढ़ाया जाता। सब का पुनर्जन्म होना है क्योंकि ईसा मसीह का कि उसे बेवकूफ बनाया गया है। और शिल्पकार कल्पना में ही कहने लगा कि यह वह सड़क है जो महल को जाती है। नहीं उठाना है। ईसा ने हमारे लिए सब कुछ कर दिया था। वह सामने आपका महल एवं राजगद्दी है। कृपया आप इस में यह बात भी सत्य है कि उन्होंने कहा कि वे सभी पापियों पधारिए। राजा ने शिल्पी की चालाकी को समझते हुए कहा के लिए मरे। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो आज अहंकार कि पहले आप बैठिए और 2 घंटे तक उस चालाक शेपिस्ट एवं कुसंस्कारों के कारण आपके आज्ञा चक्र को खोलना कठिन को नुकीले पत्थर पर बैठाए रखा। अंत: में वह शिल्पकार राजा होता उनकी सूली ने मनुष्यों की इन दो भयानक ग्रन्थियों को के चरणों में गिर पड़ा। राजा ने उसे गिरफ्तार करवा दिया, खूब ढीला कर दिया। हमें उनके बीवन को बड़ी गहनता से समझना पिटवाया और कई तरह की यातनाएँ दीं। अहंकार मूर्खता को है। परन्तु यदि आप पत्रकार हैं; तो आप उनके सूली पर चढ़ने शिखर पर ले जाता है। वह संस्कृति जो अहंकार को प्रोत्साहित का कारण पूछेंगे। यदि वे ईश्वर थे, तो वे स्वयं सूली पर क्यों करती है, सबसे बुरी है। अधिकतर विज्ञापन भी हमारे अहंकार चढ़े? एक पत्रकार जिसे कि चक्रों के बारे में कुछ भी नहीं को प्रगट करते हैं । भारतीय संस्कृति के अनुसार, अहंकार को मालूम, उसे यह समझाना बहुत कठिन है कि ईसा मसीह सूली व्यक्त करना मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। लोग उस पर पर क्यों चढ़े। क्योंकि वह तपस्या एवं बलिदान का युग था हँसते हैं और मज़ाक करते हैं। मराठी में तो यदि कोई अपना इसलिए तीनों महापुरुषों -बुद्ध, महावीर और ईसा मसीह -ने पूर्ण घमंड दिखा रहा हो, तो कहा जाता है कि चनों के झाड़ पर वैराग्य प्राप्त किया। और तपस्वियों का जीवन व्यतीत किया। चढ़ रहा है। भारत में पूरी व्यवस्था ही ऐसी है कि कोई अपना उन्होंने यह सब हमारे लिए किया, अपने लिए नहीं। उन्हें इसकी अहंकार विकसित नहीं करता। जो भी ऐसा करता है, शीघ्र ही कोई इच्छा या आवश्यकता नहीं थी। हमें पवित्र करने और उसकी हवा निकाल दी जाती है। परन्तु उत्तरी भारत में अवश्य वांछित मेधा प्रदान करने के लिए उन्हें सूली पर चढ़ना पड़ा। अंहकार को थोड़ा बढ़ावा दिया जाता है। लोग ऊँची-ऊँची बातें लोग इसे एकादश रुद्र भी कहते हैं। इसको शुद्ध करने के लिए करते हैं, स्वयं को बड़े-बड़े नेता मानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के सुखों का त्याग किया। उनके लिए यह हम यह करेंगे, वह करेंगे आदि। यह लोग बड़े-बड़े राजनेता बलिदान नहीं था, लोगों के चक्रों को खोलने के लिए उन्होंने होते हैं और बड़े-बड़े अनुसंघानों को करने की घोषणाऐं करते ऐसा किया। उनके विना भविष्य में सहजयोग को कार्यान्वित रहते हैं। परन्तु ईसा मसीह ने इस प्रकार की कोई भी बात करना बहुत कठिन होता इन तीनों महापुरुषों ने हमारे इस चक्र नहीं कही। उनके धर्मोपदेश मि पॉल के नकारात्मक प्रयासों को शुद्ध करने का कार्य किया और परिणामस्वरूप सहजयोग सूली पर चढ़ना ही पर्याप्त धा। हमें अपने कंधों पर क्रॉस को इतने सुन्दर ढंग से निर्मित हुआ है और इतने सुन्दर ढंग से के बावजूद इतने गहरे और ज्ञानमय हैं। ईसा मसीह ने लोगों से बातचीत की उन्हें कई प्रकार के फैल रहा है तथा कार्यान्वित हो रहा है। इन तीनों के प्रति हमें तरीके सुझाए। और बताया कि आत्म-ज्ञान के बाद क्या होता कृतज्ञ होना चाहिए। हालाँकि दूसरे अवतरणों ने भी योगदान दिया है? कैसे बीज प्रसफुटित होता है? और कैसे यह दूषित हो जाता है? इन सब का उन्होंने बड़े सुन्दर ढंग से विवरण दिया देखते हैं। ये सभी देवदूत, जैसा कि इन्हें बाईबल में कहा जाता है। उनका जीवन बहुत सौम्य और आर्कषक था। वे धरती पर है, हमें पार होने में सहायता करते है । सभी अवतरणों ने हमारे एक पुच्छल तारे की भांति आए और लोगों के दिलों पर गहन आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया में सीढ़ियाँ तैयार की है; और प्रभाव छोड़ गए। उनका सूली पर चढ़ना भी इस लीला का एक अंश था क्योंकि उन्होंने आज्ञा में अपना स्थान बनाना था। सत्य की अवस्था में पहुंचते हैं। यह सत्य हमारे मस्तिष्क के आज्ञा चक्र को पार करने के लिए ही उन्हें सुली पर चढ़ाया तालू भाग में सहजयोग द्वारा आता है। जब कुण्डलिनी सहस्रार गया। परन्तु उनका सन्देश सूली में नहीं है। इसलिए जब लोग में प्रवेश करती है तो वहाँ चारों ओर प्रकाश देती है और एक क्रॉस (Cross) पहनते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। उनका प्रकाशमय व्यक्तित्व का निर्माण करती है। तब यह परमात्मा सूली पर चढ़ना तो कोई उत्सव मनाने की बात नहीं है, परन्तु के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति में मिल जाती है। इसी दिव्य कई लोग इसे भी मनाते हैं। हमें तो उनके पुनरुत्थान को मनाना प्रेम से आप पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाते हैं। इसलिए इनका चाहिए। हैं जैसा कि हम विशुद्धि पर, हृदय पर, दायें-बायें हृदय पर अन्त में तप की अवस्था में छठे चक्र को पार करते हुए हम मनुष्य के उत्थान में बहुत बड़ा योगदान है। ईसा मसीह का चैतन्य लडरी 14 तक 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt योगदान सबसे बड़ा है। जब हम कहते हैं कि हमें ईसा मसीह की जा रही है ये अवतरण तो हमें तर्कवाद, सीमाओं तथा का अनुसरण करना है तो हमें देखना चाहिए कि हम कितने बन्धनों से ऊपर उठाने के लिए प्रयत्नशील हैं हमें इनसे ऊपर निरासक्त बन चुके हैं। लोग कहते हैं कि ईसा मसीह के भाई-बहन उठना है क्योंकि सोच विचार से तो हम एक रेखीय दिशा में भी थे और वे उन्हें मिलने भी आए। परन्तु ईसा मसीह ने चल पड़ते हैं जहां सत्य नहीं है। इन सभी चीज़ों का दुष्प्रभाव कहा "कौन मेरे भाई हैं? ये ज्ञानी-जन मेरे भाई हैं, शिष्य हैं, आप पर पड़ता है और आपको कहीं का नहीं छोड़ता। आप और यही मेरे रिश्तेदार हैं ।" ज्ञानेश्वर ने भी यही बात कही समझ लें कि आपको मस्तिष्क से ऊपर उठना है ऐसा कि साक्षात्कारी लोग ही तुम्हारे भाई बहन एवं रिश्तेदार बनेंगे। करना यदि आप नहीं जानते तो बेहतर होगा कि बैठकर वे रिश्तेदार जो हमें समझ नहीं सकते और जिन्होंने परमात्मा घ्यान-धारणा करें और यह स्थिति प्राप्त करें। मस्तिष्क तो के साम्राज्य में प्रवेश नहीं किया, हमारे रिश्तेदार नहीं हो सकते। घृणा, क्रोध और ईष्ष्या का दाता है। तर्क एवं विचार हमारं अपने जीवन काल में ईसा मसीह ने बहुत ही साधारण जीवन षड-रिपुओं के स्रोत हैं। मन हर गलत कार्य को करके उसका व्यतीत किया। कभी कपड़ों, सांसारिक बन्धनों या वस्तुओं की तर्क भी देता हैं, मन के ही कारण हम सब गलत कार्यों एवं चिन्ता नहीं की। पर इसका यह अर्थ नहीं कि उन्होंने किसी पापों को करना आरम्भ कर देता है। फिर उसका तर्क भी देते प्रकार की नग्नता स्वीकार की। लोगों को महावीर के बारे में हैं। आज्ञा के विरुद्ध जाने का अर्थ है सत्य के विरुद्ध जाना भी गलत धारणा है एक बार महावीर एक उद्यान में प्रार्थना और उसे तर्क संगत ठहराने के लिए अपने अंहकार व कुसंस्कारों कर रहे थे। उस बगीचे में बहुत सी कंटीली झाड़ियां थीं। एक का उपयोग करना। ऐसा करते हुए हम कभी भी मन से ऊपर झाड़ी में उनका कपड़ा उलझ गया। उन्होंने उस कपड़े को आधा नहीं उठ सकते। हम इतने आत्म- सन्तुष्ट हैं कि स्वयं को शाश्वत फाड़ दिया। इतने में श्री कृष्ण उनकी परीक्षा के लेने के लिए मान बैठते हैं। केवल अन्तर्दर्शन से ही हम इससे मुक्ति पा प्रकट हो कर बोले। "मैं बिल्कुल वस्त्रहीन हूँ, मुझे अपना कोई सकते है, परन्तु अन्तर्दर्शन अत्यन्त आवश्यक है। ऐसा करने वस्त्र दे दीजिए। आप तो एक राजा हैं'" महावीर जी ने अपना से ही आज्ञा चक्र की यह दोनों बाधाएं दूर हो सकती हैं। मैंने वस्त्र उतारकर श्री कृष्ण को दे दिया और स्वयं को पत्तों से आपको कई बार बताया है कि किसी भी अहँग्रस्त व्यक्ति से ढककर अपने महल में चले गए। परन्तु आजकल जैन घर्म बहस न करें। अहँ से क्रिया-प्रतिक्रिया आरम्भ हो जाती है और के लोगों ने यह सब बहुत भयंकर रूप में पेश किया है और हम प्रतिक्रिया करने लगते हैं। पश्चिम के लोगों में प्रतिक्रिया हर समय महावीर जी का निरादर करते हैं। वे इस महान अवतरण करने की बहुत आदत है। जिस भी चीज को वे देखते हैं उसकी का अनुसरण न करके इनका अपमान करते हैं। अभी हाल आलोचन। करने से नहीं चूकते। आप अपनी आलोचना क्यों ही में मैं एक ऐसे व्यक्ति से शिकागो में मिली जो " हरे रामा, नहीं करते? आलोचना के स्थान पर हम उसके सुघार के लिए हरे कृष्णा" समुदाय का मुखिया था और अत्यन्त ठंड में एक क्यों नहीं कुछ करते? परन्तु हममें तो प्रतिक्रिया करने की बहुत पतली धोती पहनकर काँप रहा था। जब मैंने उससे इस मूर्खता बुरी आदत पड़ गई है का कारण पूछा तो वह बोला कि "मेरे गुरु ने कहा है कि मान बैठे हैं। आपका यह अधिकार आत्म घातक है। प्रतिक्रिया यदि तुम भारत में 80% लोग धोती पहनते हैं, क्या वे सभी स्वर्ग को बार साक्षी रूप से जब आप देखने लगेंगे तो आप हैरान होंगे जा रहे हैं?" मैंने उससे उसके बाल मुंडवाने का कारण पूछा कि आप माया का खेल देखने लगे और इसमें अपना स्थान और पूछा कि यह शैंडी या भेंडी जो भी इसे कहते हो, यह भी आप देख पाएंगे। क्यों रखी हुई है? तो वह बोला ऐसा करने को मैरे गुरु ने कहा है। तब मैंने सोचा कि उसका गुरु उसे चोटी से बांधकर देखें। क्या मैं साक्षी हूँ? कुछ लोग कहते हैं कि सदा साक्षी स्वर्ग में ऊपर खींच लेगा। और ऐसा करना हम अपना अधघकार पतली धोती पहनोगे तो स्वर्ग को जाओगे"। मैंने कहा करना गलत है। साक्षी रूप से आप सभी कुछ देखिए। एक ा हमें साक्षी भाव विकसित करना है। हर साक्षी भाव से 1. रूप से देखने के कारण मेरी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है। कबीर उन सन्तों में से एक है जिन्होंने आपके कुसंस्कारों तस्वीर की तरह इसमें सभी कुछ छपा है। जब भी मुझे कुछ पर चोट की है। उन्होंने कहा है कि यदि सिर मुंडवाने से स्वर्ग कहना या किसी को सुधारना होता है तो मेरी समरण शक्ति मिलता तो साल में दो बार मूंडा जाने वाला मेमना आप से सहायक होती है। सर्वप्रथम तो हमें किसी भी चीज़ के प्रति पहले स्वर्ग पहुँचता। यह सत्य है। परन्तु जैन साधु बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी। कुछ लोग धनासक्त होते हैं, वे कुछ नंगे रहते है। और स्वयं अपने बाल उखाड़ते हैं कानून भी भी नहीं देते, सारा पैसा वे अपने पास रखते हैं। सहजयोग में और सबका अपमान करने की आज्ञा भी इस प्रकार के लोग देखे गए हैं, और कुछ ऐसे हैं जो देता है। बुद्ध, महावीर तथा ईसा के नाम पर यह सब मूर्खताएं दूसरों को खुश करने के लिए बेकार ही खुले रूप से घन उन्हें गलियों में नंगे घूमने चैतन्य लहरी 15 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt खर्च डालते हैं। इस प्रकार पैसा बरबाद करना भी ठीक नहीं। हैं। बच्चों से बात करने में आनन्द जाता है क्योंकि वे भोल प्रतिक्रिया तो किसी भी रूप में हो सकती है कभी-कभी तो हैं। एक बार मेरी नातिन ने मुझ से पूछा-"माँ, आप शेर के यह विदित ही नहीं होता कि हम अपनी मानसिक शक्ति बेकार निरीह बच्चों के बारे में क्या सोचती हैं?" मैंने जब इसका खर्च कर रहे हैं। वास्तव में हम प्रतिक्रिया तब करते हैं, जब हमारी निर्णय शक्ति पूर्णतया नष्ट हो जाती है और हमें मालूम नहीं होता कि इस प्रकार की प्रतिक्रिया करने से क्या खो रहे वे इतने अबोध होते है।" तब मैंने उसे समझाया कि वे परमात्मा हैं और क्या पा रहे हैं व इस प्रकार की प्रतिक्रिया हमें आंतरिक के पाश में बंधे होते हैं अत: जो भी कुछ वे करते हैं उसके रूप से पूर्णतया नष्ट कर डालेगी। यदि आप में दूसरों की लिए वे जिम्मेवार नहीं होते। केवल मनुष्यों को ही परमात्मा आलोचना की आदत है तो इसे पूर्ण रूप से त्याग दीजिए। अपनी इस शक्ति को अन्तरमुखी बना लीजिए और स्वयं की आलोचना सकते हैं। सभी पशु ईश्वर के पाश में होने के कारण अपन कीजिए। अपने को प्रतिक्रिया करने के लिए चेतावनी दीजिए। तभी आप देखेंगे कि आप का अहंकार धरे-घीरे खत्म होता है और शेर-शेर की तरह। परन्तु मानव एक ही समय में साॉँप जा रहा है। एक बार एक व्यक्ति मेरे पास आकर कहने लगा, बिच्छ या शेर कुछ भी हो सकता है। और यह खटमल जैसा माँ मुझे इतना गुस्सा आता है कि दिल करता है सबकी पिटाई है। मनुष्य कर दं। तब मैंने उससे कहा कि "चप्पल उठाकर अपने सिर प्रतिक्रिया तभी करता है जब उसका परमात्मा से संबंध-विच्छेद को पीट लो", इसी से वह सुधर गया है। कारण भूछा तो कहने लगी कि "उनके पिता तो उन्हें मनुष्यां को खाने के लिए कहते हैं और उन्हें ऐसा करना पड़ता है। े ने स्वतंत्रता दी है। केवल मानव ही इस प्रकार प्रतिक्रिया कर स्वभाव अनुसार ही व्यापार करते हैं, सॉप-सॉप की तरह करता , तुच्छ मानव अप्रत्याशित रूप से प्रतिक्रिया करता क हो जाता है। परमात्मा से जुड़े हुए व्यक्ति को सांसारिक आप ने अपने बन्धनों को भी देखना है और स्वयं से कार्या-कलाप नाटक सम लगते हैं और सभी कुछ परमात्मा पर पूछना है कि क्या मैं बन्धनों में फंसा हुआ हूँ? मेरे संस्कार छोड़ देता है। मात्र एक बन्धन से वह अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है परन्तु इसके लिए उसका पूर्ण रूपेण तथा दूसरों के लिए समस्या उत्पन्न कर देंगें। सब रीति रिवाज़ परमात्मा से जुड़ा होना आवश्यक है। यह निश्चित रूप से कार्य आदि एक अच्छे संस्कार के रूप में शुरू होते हैं। पर धीरे-धीर करेंगा। यह वह समय है जब परम चैतन्य पूर्ण रूप से कार्यशील लोग उन में जकड़ जाते हैं। ये हमारा एक अभिन्न अंग बन है। लोगों ने मुझसे श्री गणेश के बारे में पूछा कि क्या उन्होंने जाते हैं। तब हमें क्या करना चाहिए? ऐसी स्थिति में हमें कोई दूध पिया। तो मैंने कहा-"कि इस समय परम चैतन्य कुछ भी चमत्कार कर सकता है। सब कुछ संभव है, परन्तु मैंन देखना है। तब, आप आश्चर्य चकित होंगे कि, बिना कुछ खर्च श्री गणेश का इतना दूध पीते पहले नहीं देखा। हो सकता है. कि छोट चूहे के लिए ऐसा किया हो। तब उन्होंने पूछा कि का आनन्द ले रहे हैं, भले ही वह बेतुका अर्थहीन अथवा हास्यापद शिव जीः ने दूध क्यों पिया? तो मैंने कहा कि यह उनकी हो। फिल्म के दृष्य की तरह आप इसे देखते हैं, बिना प्रतिक्रिया इच्छा पर निर्भर है। यदि वे दूध पीना चाहते हैं तो उन्हें पीन दीजिए। वास्तव में हमारे देश में दूध पर्याप्त मात्रा में होता है, अत: उन्हें पीने दीजिए सब कार्य परम चैतन्य द्वारा हो रहाः है वह आप के दृक-तन्त्रिका के मध्य भाग में स्थित आज्ञा है, मैं उन्हें कुछ करने को नहीं कहती और वे इतने सुंदर चमत्कारिक कार्य कर रहे हैं। मैं दब्रिसबेन में आश्रम में सोईं बहुत सूक्ष्म रूप से प्रभावित करता है और किस प्रकार आप हुई थी। अकस्मात आकाश में इन्द्र धनुष प्रकट हुआ और साथ के अंदर दूषित चित्र निर्मित करता है । जिन लोगों में बन्धन ही माँ और बच्चे की एक आकृति दिखाई दी। निसन्देह मुझे ज्यादा होते है वे लोग मानसिक तौर पर परेशान व भ्रष्ट होते माँ और बच्चे की आकृति के चित्र बहुत अच्छे लगते हैं। मैं तो सोई हुई थी अत: मैंने यह सब देखने की इच्छा नहीं की ईसा मसीह का शुद्ध स्वभाव पावित्र्य है। वे साक्षात् श्री थी। मेरी के सिर के चारो ओर प्रभा मण्डल का बनना भी गणेश है और श्री गणेश एक सनातन, अनन्त बालक है। ईसा परम चैतन्य का चमत्कार था। परम चैतन्य यह सब कार्य आप मसीह पूर्णतया अबोध है क्योंकि बन्धन मुक्त होने के कारण को सहजयोग की प्रतीति करवाने के लिए करते हैं। क्योंकि अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो कि बुद्धिजीवी हैं, पढ़े लिखें बन्धनों में फंसते हैं। बच्चे हमारी अपेक्षा कम प्रतिबंधित होते हैं, तर्क करते हैं और कुछ भी स्वीकार करना नहीं चाहते। अच्छे हैं या बुरे? संस्कार यदि सीमा से आगे बढेंगे तो अपने प्रतिक्रिया न करते हुए सब चीजों को एक नाटक के रूप में किए बिना मंच पर गए आप प्रतिपल अपने सामने वाले नाटक किए। किसी भी चरित्रहीन, भद्दी चीज़़ को देखने की कोई जरूरत नहीं। अपने मन को उलझने मत दीजिए। जिसे आप मन कहते चक्र है। आप देखते है कि यही चक्र आपके मस्तिष्क को हैं। वे बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करते और न ही वे किसी प्रकार चैतन्य लहरी 16 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt जब यह दिव्य-शक्ति है और पूर्ण रूप से कार्यशील है तो आप इसे किस प्रकार चुनौती दे सकते हैं? यह शक्ति असीमित है नहीं चाहते। आप को इसके लिए न तो सूली पर चढ़ना, न तथा हर अणु-रेणु में समा चुकी है। यह परम चैतन्य वस्तुओं कोई त्याग करना है और न ही ईसा मसीह की तरह निर्धनता को इधर से उधर करने का कार्य तो नहीं करता पर यह सर्वथा असम्भव कार्य करता है ताकि हम इस पर विश्वास कर सकें। लिए कर दिया। इसलिए अब तो केवल आ जाईए। यदि आप कार्यान्वित परम चैतन्य ही एकमात्र समाधान है। आप सब कुछ परमात्मा के दरबार में आ रहे हैं तो इस के योग्य बन जाइए। इस शक्ति-सागर पर छोड़ दीजिए। यह सभी स्थितियों को सम्भाल इसके योग्य बन जाइए और देखिए कि आप की समस्त लेगा। आप को प्रतिक्रिया करने की कोई आवश्यकता नहीं। समस्याओं का निदान हो जाएगा। आपका आत्मा-सम्मान बना परम चैतन्य बहुत कार्यकुशल तीक्ष्या तथा सर्वव्यापक है, सभी कुछ समझता है। यह आपके पास आता है, आप का मान करता है क्योंकि आप सहजयोगी हैं। कर रहे हैं तथा आप उसे लेना नहीं चाहते। आप इसमें डूबना का का जीवन यापन करना है। यह सब तो उन्होंने स्वयं आपके म। रहेगा। विना आत्म-सम्मान के आप अपने आत्मज्ञान का भी मान नहीं कर पाएँगे। जब तक आप स्वयं के उत्थान में गइराई से नहीं डूबेंगे और दूसरों की सहायता नहीं करेंगे तो यह कार्यान्वित नहीं होगा मैं आपको वे सभी बातें बताने और पूर्ण क्रिसमस पर्व मानते हुए आज हमें ध्यान रखना है कि हम वास्तव में अपने उत्थान, उपलब्धियों, उन परम उंचाइयों करने के लिए आई हूँ जो ईसा मसीह नहीं बता पाए। इसलिए को मना रहे हैं। जिन्हें हम पा चुके हैं और जिन्हें हमने पाना मैं तुम्हें बता रही हैूँ कि अब आपको आत्म साक्षात्कार मिल गया है । सहजयोगी के रूप में अपना सम्मान विकसित कीजिए। है। हमारी इच्छाएं केवल अध्यात्मिक होनी चाहिए जो कि परम चैतन्य को समर्पित हों। जितना अधिक हमारा समर्पण होगा। अपने बारे में कुछ भी मिथ्या नहीं सोचिए। केवल इतना जान लीजिए कि आप एक सहजयोगी अथवा सहजयोगिनी हैं ईसा ' मसीह का जन्म दिवस मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को यही जान लेना आवश्यक है। वे इस घरती पर अबोधिता के प्रतीक व श्री गणेश के समरूप बन कर इस घरती पर आए। मैंने आपकों इस का प्रमाण भी दिखा दिया है कि किस प्रकार कार्बन के उतने ही हम विकसित होंगे । यह प्रतिक्रिया विहीन दृष्टिकोण आपकी सन्तुलित 'आज्ञा से आना चाहिए, क्रोध या मौन से नहीं। अत्यन्त शान्त स्वभाव से आना चाहिए। लोग समझते हैं कि मैंने आपको मौन रहने के लिए कहा है। नहीं, आपको सब से हँसना-बोलना है, आनन्द लेना है। आनन्द से परिपूर्ण भाव से यह सब करना है। कहा . अणु दिखाई देते हैं। इस के द्वारा मैंने यह सिद्ध कर दिया जाता है कि क्रिसमस आनन्दमय वातावरण में मनाया जाना चाहिए। है कि ईसा मसीह ही अल्फा और ओमेगा (Alfa & Omega) हैं तथा वे ओंकार तथा स्वास्तिक से बने हैं। यह सब हमने वैज्ञानिक विधि से प्रमाणित करके दिखा दिया है। इसलिए अपनी अबोधिता व पवित्रता का मान ही आपकी सब से बड़ी उपलब्धि है। आज मुझे आपसे इतना ही कहना भी ध्यान नहीं करते और न ही वे आगे बढ़ना चाहते है कि भोले बन जाईए, परमात्मा भोले व अबोध लोगों की हैं। यह बहुत आश्चर्य जनक है। मैं सब जान जाती हूँ कि देखभाल करते हैं। आप कोई भी प्रतिक्रिया नहीं कीजिए, कोई आनन्द किसी अन्य प्रकार से न पा सकने के कारण लोग शराब पीते हैं। वे समझते हैं कि शराब उन्हें आनन्द प्रदान करेगा। क हमें स्वयं को स्पष्ट रूप से समझना है। कुछ लोग बिल्कुल कौन ध्यान करता है और कौन नहीं। ऐसे लोग जो ध्यान करता है और कौन नहीं। ऐसे लोग जो ध्यान नहीं करते वे सहजयोग मैंने बच्चों को सात मंजिल से गिरते भी चिन्ता नहीं कीजिए । देखा है और उन्हे बिल्कुल भी चोट नहीं लगी। उन्हें कौन देखता है? उनका ध्यान स्वयं देवता लोग करते हैं। आपने मेरे चारों ओर देवताओं के चित्र देखें हैं। इसलिए आप भी सीधे अबोध बालक बन जाईए, प्रतिक्रिया विहीन, शान्त रहिए, क्योंकि हम पूरे विश्व के उस परिवर्तन की बात कर रहे हैं से हुए तो आपकी आज्ञा विचारों से आच्छादित रहेगी और आप खो जाएँगे। आपके ध्यान न करने के कारण मुझे भी कष्ट उठाना है। यदि सहजयोग में आपकी कोई आकांक्षाएँ नहीं हैं सभी लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। यदि आप घ्यान नहीं करेंगे पड़ता तो आप सहजयोग छोड़ दीजिए। आपकी स्थिति उस बीज की भांति हैं जो अंकुरित तो हो चुका है परन्तु व्यर्थ जा रहा है। आध्यात्मिकता के एक नए विश्व की स्थापना करेंगे। कुछ लोग सहजयोग में केवल इसलिए है क्योंकि वे लोकप्रियता व प्रचार के लिए एक मंच चाहते हैं, कुछ लोग सहजयोग से घन कमाना चाहते हैं और कुछ एक भी पैसा खर्च किए बिना सम्पर्क बनाने के लिए विश्वभ्रमण करना चाहते हैं। ऐसे सभी लोग बेकार है। और परमात्मा तुम्हें सम्पूर्ण दिव्य निधि प्रदान जहाँ लोगों के हृदय शान्त होंगे और हम शान्ति आनन्द व परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें। यर 17 चैतन्य सहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt ईस्टरपूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कलकत्ता-14.4.96 आज हम लोग ईस्टर की पूजा कर रहे हैं। सहजयोगियों बाईबल को ठीक किया उन्हें स्त्री जाति से बहुत नफरत के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि ईसा मसीह थी और वे विश्वास ही नहीं कर सकते थे कि एक स्त्री ने दिखा दिया कि मानव का उत्थान हो सकता है और भी ऐसा ऊँचा कार्य कर सकती है। उस नफरत के कारण उस उत्थान के लिए हमें प्रयत्नशील रहना चाहिए। जो उनको उन्होंने उस का रूप अजीब सा बना दिया Holy Ghost क्रूस पर चढ़ाया गया उसमें भी एक बहुत बड़ा अर्थ है। यानि कि एक कबूतर। कबूतर का अर्थ है कि वह एक क्रूस पर टांग कर उन की हत्या की गई और क्रूस आज्ञा ' चक्र पर एक स्वास्तिक का ही स्वरूप है। उसी पर टांग शास्त्रों में कहा गया है " कर के और ईसा मसीह वहीं पे गत -प्राण हुए। उस वक्त स्वरूप होंगी । लोग उन्हें पहचान नहीं पाएँगे। पहचानने के उन्होंने जो बातें कहीं, उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी लिए भी आपको आत्म साक्षात्कार लेना पड़ेगा। यदि आप कि उन्होंन कहा कि माँ का इन्तजार करो। माँ की ओर ने आत्म-साक्षात्कार नहीं लिया तो आप पहचान ही नहीं सकते। नजर करो। इस का अर्थ कोई कुछ भी लगाए पर दिखाई अपने जीवन ही में उन्होंने जितना खुलकर कह सकते थे, देता है कि उन्होंने ये बात कही कि मैं तुम्हारे लिए एक कहा। पर न जाने इन्होंने कितनी बातें बताई और कितनी ऐसी शक्ति भेजूंगा जिसके तीन अंग होंगे, जो त्रिगुणात्मिका नहीं बताई और छिपाई। होगी। और उस का वर्णन बहुत सुन्दरता से किया है कि एक शक्ति होगी जो आप को आराम देगी। आराम देने वाली शक्ति जो हमारे अन्दर है, वह है महाकाली की शक्ति, गया है कि वे गणेश का अवतरण हैं। गणेश का अवतरण शान्ति का दूत' होता है। स्त्री की बात ही नहीं की। अपने सहस्रारे महामाया"। तो वो महामाया सहयोग के लिए ईसा मसीह का आना बहुत ज़रूरी था। वो स्वयं एक चिर बालक है। यह तो अब सिद्ध हो जिससे हमें आराम मिलता है, जिससे हमारी बिमारियाँ ठीक होती हैं, जिससे हमारे अनेक प्रश्न जो भूतकाल के हैं, ठीक हो जाते हैं। दूसरी शक्ति जो उन्होंने भेजी, वह थी, महासरस्वती महावीर और ईसा मसीह-जिस स्तर पर हुआ वह स्तर तपस्या की शक्ति। महासरस्वती की शक्ति को उन्होंने काऊसलर का है। इसलिए विराट पर इन्होंने कार्य किया। तीनों के (Counsellor) कहा। यह आप को समझाएगी, आपको उपदेश कार्य में तपस्या का महत्त्व है, कि मनुष्य को तपस्या करनी देगी. योग निरुपण करेगी। इस दूसरी शक्ति से हमें ज्ञान-सूक्ष्म चाहिए। तपस्या करके ही वह आज्ञा चक्र को भेद सकता संसार में एक ही बार हुआ और वह है ईसा मसीह के रूप में। इन तीनों का कार्य-जिसे हम कह सकते हैं बुद्ध, ज्ञान-को प्राप्त करेंगे। और तीसरी शक्ति महालक्ष्मी की। जिससे कि हम अपने उत्थान को प्राप्त होंगे। इस प्रकार तीन शक्तियों की उन्होंने बात की थी। और बाहर जा सकता है। आज्ञा चक्र का भेदन होना अति आवश्यक था क्योंकि उस के बिना आपकी कुण्डलिनी ऊपर उठ ही नहीं सकती थी आज्ञा चक्र का भेदन ईसा मसीह बुद्ध ने भी कहा था कि मैं तुम्हें "मात्रेया" दूंगा यानि के पुनर्जन्म (Resurection ) से हुआ उनकी मृत्यु हुई तीन तरह की माता या माताएँ। लोगों कों समझ ही नहीं और फिर उनका पुनर्जन्म हुआ। अत: हम लोगों के लिए आया कि "मात्रेया" क्या होता है, इसलिए उन्होंने "मैत्रया" एक बड़ा भारी संदेश है ईस्टर में, कि ईसा मसीह के उत्थान कर दिया। यह जो "मात्रेया" थी, यह एक साथ आदिशक्ति से ही हम लोगों ने इस उत्थान को प्राप्त किया। सबसे कठिन में ही हो सकती थी और आदिशक्ति को उन्होंने कहा तो चक्र है इन्सान में मनुष्य में-आज्ञा चक्र क्योंकि मनुष्य हर ज़रूर होगा "Premordial Mother" पर जिन्होंने बाईबल को समय सोचता ही रहता है और सोच सोच कर उसके सिर ठीक किया, उन्होंने उसे "होली घोस्ट" (Holy Ghost) बना की एक मन के बुलबुले की सी स्थिति बन जाती है। वह दिया और उसकी जगह कबूतर बना दिया। क्योंकि जिन्होंने विचारों से परे नहीं जा सकता। जब आज्ञा का भेदन होता क 18 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt कहा कि तुम्हे फिर से जन्म लेना होगा। उनका उत्थान फिर है तभी आप विचारों से दूर जा पाते हैं। इसलिए यह कहना चाहिए कि यदि ईसा मसीह ने अपने प्राण देकर के आज्ञा से जन्म लेना ही है। और अपने यहाँ भी कहते हैं कि से उत्थान नहीं किया होता तो सहजयोग मुश्किल हो जाता। कार्य तो सभी अवतरणों ने किया अपनी-अपनी जगह, दूसरा जन्म होता है तो उसे द्विज कहना चाहिए, जिसका अपने-अपने समय, अपने-अपने स्थान पर। परन्तु जो कार्य अर्थ दूसरी बार है। और जब उसका परिवर्तन हो जाता है ईसा मसीह के उत्थान से हुआ वह बहुत ही कमाल की पूरी तरह से तो उसमें पूर्णतया शक्ति आ जाती है। उस चीज़ थी। इसलिए आज्ञा का भेदन बहुत मुश्किल कार्य था। के पास सारी संचार शक्ति आ जाती है। आपको तो मालूम आज्ञा से ऊपर उठाना कोई मुश्किल कार्य नहीं। जितने भी है कि साईबेरिया से उड़कर के कैसे पक्षी हिन्दुस्तान में गुरु हो गए बड़े-बड़े, उन्होंने बहुत कार्य किए उन्होंने बहुत आ जाते हैं जाड़े में यहाँ आते हैं और गर्मियों में वहाँ सी ऐसी बातें करीं कि जिसके कारण लोगों में जागृति हुई, चले जाते हैं। न उनके पास कोई राडार है न एयरोप्लेन धर्म के प्रति रूुचि हुई व आत्मसाक्षात्कार की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। ईसा इस देश में आए क्योकि वहाँ के लोगों, थ जहाँ से वो आए थे, की दृष्टि में सूक्ष्मता नहीं थी। आध्यात्म छिपा दिया, तो उन्होंने खोज निकाला अपने बच्चों को। कुछ नहीं था। इसलिए वे हिन्दुस्तान में आए और काश्मीर में बच्चों का जिन्हें खोज नहीं निकाला था खुद ही उड़ कर वे शालीवाहन राजा से मिले। शालीवाहन ने उनसे पूछा, "तुम्हारा चले अए। उनका कोई अगुआ नहीं था, उन्हें कोई बताने क्या नाम है?" उन्होंने कहा, "मेरा नाम ईसा मसीह है।' मसीह यानि जो सन्देश लेकर आता है। और में उस देश कहते हैं कि परमात्मा ने संसार में सारी व्यवस्था सुन्दरता से आ रहा हूँ जहाँ सभी मलेच्छ रहते हैं। मलेच्छ यानि से की है ताकि हम अपने उत्थान को प्राप्त करे। मैं तो जिन्हें मल की इच्छा होती है। आप देखते है कि जितने इसे (Blossom time) बसन्त ऋतु कहती हूँ। आप इतने भी ये विदेशी होते हैं उन्हें मल की ही इच्छा रहती है, लोग आज यहाँ बैठे हैं, ऐसे ईसा मसीह के सामने कहाँ सिर्फ पागलपन ही अच्छा लगता है। आप उनकी फिल्में देखिए थे? और इस से हजारों गुणा संसार मे फैले हैं। देख करके तो सोचेंगे, क्या ये लोग पागल हैं? हमारे देश में इन लोगों बड़ा आश्चर्य होता है कि ईसा मसीह के सामने ये सब को पहले मलेच्छ कहते थे यानि मल की इच्छा करने वाले लोग नहीं थे, और न ही कोई जानता था कि आत्म साक्षात्कार मलेच्छ। ईसा ने कहा उन को तो मल की इच्छा है और क्या है? मैं वहाँ कहाँ जाऊँ, मुझे तो आध्यात्म को जानना है। तो शालीवाहन ने कहा, आप तो पहुंचे हुए हैं। आप अपने ही देश में लोगों को 'निर्मल तत्वम्' यानि Principle of Purity नहीं समझते। पर हमारे यहाँ जो महान गुरु हो गए हैं उन लोगों को सिखाएँ। बहुत ज़रूरी है, यदि आपने लोगों की के कारण एक बहुत बड़ी समस्या दूर हो गई है कि लोगों निर्मल तत्वम् सिखा दिया तो लोग मलेच्छपन से छुटकारा में इसके बारे में ज्ञान हो गया है। सब जानते हैं कि हमें जिस प्रकार अंडे से पक्षी जन्म लेता है, उसी प्रकार जब है। वे हर साल उसी तालाब पर आते हैं जहाँ पहले आते थे। एक बार एक प्रयोग किया। पक्षियों के कुछ बच्चों को " वाला नहीं था फिर भी वे उड़कर ठीक से आ गए। इसे आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना क्यों आवश्यक है? आज भी हमारे देश मे भी हैं ऐसे अन्धे लोग जो इस बात को पा जाएँगे। ईसा वापिस गए और किसी तरह 3% वर्ष तक रहे और फिर उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया जिस शान से उन्होंने प्राण त्यागे, उससे जाहिर होता है कि उनका अद्भुत लिखी है। आज का दिन इसलिए भी मुबारक है कि आज व्यक्तित्व था और मात्र 3½ साल के थोड़े से समय में बंगाल का नया साल का दिन है और इसीलिए इस के उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य किए हैं वह बहुत महान थे। हालांकि उन्होंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, दूसरा जन्म लेना है, अपने को पहचानना है। जो कुछ भी शस्त्र लिखे गए हैं किसी भी धर्म में उनमें भी यही बात पुनरुत्थान की भी बात हो सकती है। यह पुनरुत्थान जो आज हएने मनाया है इस का लाभ अवश्य बंगाल को होगा। यहाँ की संस्कृति और यहाँ की कला, बंगाल देश के महान क्योंकि उस समय सत्य को खोजने वाले लोग नहीं थे जैसे आज हैं, मेरे नसीब अच्छे हैं। इसलिए जो कार्य हुआ वह देशाप्रेमी लोग, जिन्होंने सारे देश में सब को एक बड़े ऊँचे स्तर पर पहुंचाया था आज वही कहाँ से कहाँ चले जा रहे हैं। विदेशी, व्यवस्था को छोडकर चले गए, पर अब आत्मसाक्षात्कार से पहले का कार्य था। यानि लोगों ने जाना कि इस मनुष्य जीवन से परे भी कोई और जीवन है। उन्होंने ा बैतन्य लहरी 19 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt कहीं अधिक हम लोगों ने विदेशी संस्कृति को स्वीकार्य किया है। उस को लेकर हम लोग यह भी नहीं सोचते कि वे अन्दर यह चलते हैं कि इसने हमें सताया, उसने हमें सताया। लोग कहाँ च यह सब यदि हम परम चैतन्य पर छोड़ दें तो सब समाधान की क्या दशा है? वे कहाँ पहुँच गए। इन लोगों ने क्या हो जाता है। कई बार तो मैं आपको बताते हुए बहुत डरती आप लोग सब को माफ कर दो। आधे विचार तो हमारे वले गए। हम लोग यह जानते हैं कि इन लोगों हूँ कि यदि कोई सहजयोगीं गलत कार्य करता है तो मुझे पाया हुआ है। बहुत से ईसाई लोग तो यह सोचते हैं कि ईसा मसीह बहुत घवराहट होती है कि देखो अब आई शामत। यहाँ ईसा मसीह बैठे हैं इधर गणेश जी बैठे हैं, हनुमान इंगलैण्ड में पैदा हुए थे और उनके लिए धोती पहनने का और अर्थ हिन्दु बनना है। इस प्रकार की विचित्र कल्पनाएँ हमारे भैरवनाथ बैठे हैं। इन चारों के चक्कर से छूट नहीं पाएँगे। सिर में बैठ गई हैं और हम सोचते हैं कि अंग्रेजीयत लेने काई जरा सी गड़बड़ करे, पैसे में गड़बड़ करे, काम में से हम लोग ईसा मसीह को बहुत नज़दीक से देख सकेंगे। गड़बड़ करे में बस सोचती रहती हूँ कि कैसे सब संवर जैसे जाए क्योंकि जब आप पवित्र चीज़ में आ गए, एक जिनको उन्होंने मलेच्छ कहा, उन्हीं को हम आदर से देखते हैं वो लोग अब जान गए हैं कि हमारी संस्कृति, म। हमारी सफेद चादर में कोई भी धब्बा पड़ जाए, तो ये दिखाई विचार धाराएँ, हमारी घर्म की ओर दष्टि अत्यन्त सक्ष्म है देता है, इसी प्रकार आपके अन्दर कोई दाग है तो वे फौरन पकड़ लेंगे। न जाने क्या सजा दें। यह बड़ी कठिनाई है। और यहाँ के लोग बहुत जल्दी सहजयोग प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन सहजयोगियों को चाहिए कि आपस में पूर्ण रूप हालांकि अपने समय तो उन्होंने प्राण दे दिए। परन्तु हमारे से मेल मिलाप से रहें। और यह जो उत्थान का संदेश है बारे में उन्होंने ये कहा कि हमारे बारे में तो आप ने जो भी कहं दिया, सो कह दिया। परन्तु यदि आदि-शक्ति के हर जगह पहुँचाएं। क्योकि आज आप का देश जिस दशा में है, उस की दशा परिवर्तन के अलावा ठीक हो ही नहीं बारे में कुछ भी कहा तो बहुत बुरा होगा। और मैं देख सकती, आध्यात्म् के सिवा ठीक हो नहीं सकती है। आप भी करिये किसी प्रकार कोशिश यह कीजिए कि एक-एक रही हूँ कि वे बिल्कुल भी सहन नहीं करते। यदि आपने मुझे माँ माना है, तो मैं उस का मान करती हूँ और जब वो सताते भी हैं तो मैं कहती कुछ आदमी को सूचना दें, कि हम कितने आदमियों को सहजयोग के बारे में बताते हैं और कितने लोगों को सहजयोग सिखाते इसलिए इन्हें क्षमा कर दीजिए। पर ये लोग भी इस को हैं। ईसा मसीह अकेले थे। उनके साथ कोई भी नहीं था। उनके साथ सिर्फ उनके 12 शिष्य थे। उस में से भी कुछ अधूरे और कुछ ऐसे वैसे। उन्होंने बहुत मेहनत की उत्थान हुआ है वह आपकी पूर्व जन्म की मेहनत, श्रद्धा और एक बड़ा भारी संदेश अपने उत्थान से, अपने जीवन से दिया। और वह जो संदेश हमें दिखाई देता है वह वास्तव बड़ा आशीर्वाद मिला हुआ है लोग तो समझते थे कि यह हूँ इन्होंने मुझे माँ कहा, समझते हैं। आपको यह समझना चाहिए कि आप लोगों का जो आधे के फलस्वरूप हुआ है। इस जन्म में आपको यह बहुत हो ही नहीं सकता। यह आशीर्वाद जो आपने प्राप्त किया में हमारी आज्ञा पर काम करता है। और आज्ञा पर काम करके ही हमने स्थिति प्राप्त की है कि हम ब्रह्मरंघ्र तक है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि आप कोई भी गलत पहुंच पाते हैं। उन्होंने हमेशा क्षमा की बात की। उन्होंने हमेशा काम न करें। क्योंकि गलत कार्य करने से आपकी जो निर्मलता करुणा की बात की। उन्होंने कहा कि आप सबको क्षमा है, पकड़ में आ जाएगी। मैं आपको डरा नहीं रही हूँ बल्कि कर दें। क्रूस पर चढ़ कर भी उन्होंने कहा कि "हे प्रभु यह वास्तविकता बता रही हूँ। आप जो भी करें, अत्यन्त इन सब को क्षमा कर दीजिए। ये जानते नहीं कि ये क्या प्रेम से, उसका आनन्द उठाते हुए। हो सकता है आपको कर रहे हैं। इन सब को माफ कर दो, ये सब अन्धे हैं।" कोई परेशान करे। कोई बात नहीं। कितनी देर परेशान करेगा, जिस समय उन्हें क्रूस पर चढ़ाया और कीलों से ठोका और जो परेशान करेगा, उसका ठिकाना हो जाता है। किसी भी कांटों का ताज पहनाया उस समय भी उन्होंने बड़े प्रेम से स्तर पर भूलना नहीं कि आप एक सहजयोगी हैं। पहले कहा "प्रभु इन सब को क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये जानते जमाने में कितने सहजयोगी थे। एक थे सूफी निजामुद्दीन, नहीं कि ये लोग क्या कर रहे तो उनकी गर्दन काटने को शाह निकल आए। उन्होंने कहा कैरामात है। इसलिए आज्ञा चक्र पर हमेशा कहते हैं कि कि अगर तुम मेर आगे सिर नहीं झुकाओगे तो तुम्हारी गर्दन हैं। यह आज्ञा चक्र की चैतन्य लहरी 20 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt बात मुसलमानों में भी है। कि जब आप मर जाएँगे तो आप अपने को गाड़ू लीजिए। अपना शरीर गाड़ लीजिए। काट लेंगे। और दूसरे दिन उसकी गर्दन काट ली। सो अगर कभी ऐसा हो भी तो डरना नहीं क्योंकि आप लोग अब परमात्मा के साम्राज्य में हैं। और इस बात को मद्देनजर रखते जलाईए मत, और जब आपका पुर्नउत्थान होगा तो आपका हुए आप को समझना चाहिए कि अब आप लोग अकैले यही शरीर पुनः बाहर आ जाएगा, यदि आप परमात्मा के नहीं हैं। आप पूर्णतया सुरक्षित हैं और इस सुरक्षा में आप क्यों परेशान होते हैं नाम पर मरे हैं और आपने अपना जीवन उसके लिए त्यागा है। अब सोचो 500 साल बाद क्या चीज़ बाहर आएगी, बहुत से लोग आते हैं, माँ मुझे ये प्राब्लम है, मुझे यदि आप को गाढ़ दिया जाए? उनसे पूछना चाहिए, कि वो प्राब्लम है। इसका अर्थ यह है कि आप सहजयोगी जो हड्डयां बच कर आएँगी उनकी क्या स्थिती होगी। यह नहीं हैं। जो सहजयोगी होगा उसको कोई समस्या (प्राब्लम) होगी नहीं। क्योंकि आप एक ऊँची जगह पर बैठे हैं। और प्राब्लम नीचे खींचते रहते हैं । यदि आप है विश्वास बहुत लोग करते हैं यह विश्वास इतना गहरा कि मेरे पास कुछ लोग आए थे। मैंने कहा "क्यों मरे जा रहे हो। तुम्हारा तो निराकार में विश्वास है, तुम क्यों हर समय प्राब्लम प्राब्लम करते रहें तो सोच लेना चाहिए जमीन के लिए लड़ रहे हो?" तो उन्होंन मुझे कहा कि कि कुछ कमी है आप में इसके लिए ध्यान करें, घारणा करें। अपने अन्दर धारणा करें कि आप सहजयोगी हैं। के नाम के लिए मरे तो ऐसा-ऐसा होगा। मैंने कहा पहले आपके अन्दर एक आत्मविश्वास पूर्णतया प्रतीत होता है, लोग तो मुझे बताओ कि इसमें भगवान का नाम कहाँ लिखा भी समझते हैं। आप केवल शांत हो जाऐं। लगा ली तो परम चैतन्य पूर्णतया संभाल लेगा। एक से तुम्हारा पुनेडत्थान 500 वर्ष बाद हुआ, तो अन्दर से क्या एक घुरंघर बैठे हैं। परन्तु यदि आपमें ही दोष होगा तो कहेंगे। निकलेगा? तुम तो कब्रों में जाकर के सारी जमीन ले लेते इसको डुबकियाँ लगाओ दो-चार। हमारे तो शास्त्र में यह लिखा है कि यदि तुम भगवान इससे है। दूसरी बात यह बताओ कि तुम यदि मर गए और आपने चुप्पी हो और भूत बनते रहते हो। इस सम्बन्ध में में यह कहती हूँ कि अपने शास्त्र इस प्रकार ईसा मसीह का एक छोटा सा जीवन था केवल 35 वर्ष का। उसमें भी वे भटकते रहे। और भटकते ठीक है, कि मरने के बाद आत्मा जो है वा निकल जाता हुए भारत भी आए। जितना जीवन में उन्होंने कार्य किया है। और जो जीवात्मा है वह फिर से जन्म लेता है। क्योंकि उनका नाम लेकर के न जाने लोगों ने कितनी तरह-तरह की संस्थाएँ बनाई। ये करना है, वो करना है। झूठ सब, जीवात्मा मरता नहीं। शरीर का 500 वर्ष बाद पुर्नउत्थान होगा ऐसी बात का विश्वास करना महामूर्खता है। कभी-कभी है गड़बड़ है। पर कितना उन्होंने काम किया। उनके मैँह में में सोचती हूँ कि ऐसी महामूर्खता को लेकर ये लोग जगह-जगह भी न जाने कैसी-कैसी गलत वस्तुएँ डाली गई। एक झूठी आपस में लड़ रहे हैं। आज इज़राईल में मारा-मारी हो रही संस्था भी बना ली। जिस हीरे को इन्होंने ढक लिया वो है तो कल दूसरे स्थान पर होगी। यह मारा-मारी हो रही आपके अन्दर में है। आपकी आज्ञा में कार्यान्वित है। आपकी है मात्र घर्म को लेकर। मैंने कल भी बताया था कि सभी धर्म आपस में गुंथे हुए हैं। कोई भी घर्म अलग नहीं है। का क्षमा शक्ति जितनी बढ़ जाएगी आप उतने ही सहस्रार पर रहेंगे। ईसाई लोगों का तो यह है कि वे पैदा ही हुए ईसाई। सभी ने यह वर्णन किया है, फिर यह लड़ाई क्यों, झगड़ा उन्हें बस इतना ही मालूम है इसलिए हम उन्हें ईसाई स्वीकार क्यो? यह संब कुछ उन लोगों का किया हुआ है जो अपने को धर्म मार्तण्ड कहते हैं। अब सोचिए कि ईसा समीह ने एक बहुत बड़ी बात कही कि "तुम्हारी दृष्टि स्वच्छ aa (Thon shalt not have adultrous eyes) करते हैं। हिन्दुओं को बस कृष्ण ही मालूम है, शिव मालूम है। इसी में खुश रहते हैं। और भाई, आप इससे परे उठ गए, पार हो गए, अब आप स्वयं सूफी हो गए। इन सब चीज़ों में जो सार है उसको आप ग्रहण कीजिए और प्रत्येक यानि चित्त में भी (adultery) अस्वच्छता नहीं होनी चाहिए। चाज़ में सत्य को खोजिए। बहुत सी चीजों में असत्य है। पर हमने तो विदेश में देखा कि हरेक की आंखे इधर इन सब धर्मों में बहुत सी बातें असत्य भी हैं। जैसे ईसाई से उघर चलती रहती है। किसी को देखा ही नहीं कि धर्म में आप देखिए, वही बात ईसाईयों में भी है और वही जिसकी आंखें न चल रही हों। केवल सहजयोगियों को छोड़कर। इस प्रकार उन की (ईसा की) जो विशेष वाणी चैतन्य लहरी 21 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt थे उसको कौन पालन कर रहा है , कौन मान रहा है? कोई चाहिए। अंहकार जब चढ़ जाता है तो आप कुछ भी हो नहीं। क्यों? क्योंकि उन्हें आत्मबोध नहीं है। यदि उनको सकते हैं, हिटलर भी हो सकते हैं न जाने आप अपने आत्मबोध हो जाता तो उनकी आँखे स्थिर हो जाती। उनसे प्यार झलकता है। शांति और आनन्द झरता । यह कैसे हुआ? से ऊपर उठाया है, उस ईसा मसीह के जीवन को यदि कि उतनी आँख शुद्ध हो गई। जैसे कि ईसा मसीह ने कहा वैसी आँख हो गई। उन्होंने जो कहा था, वह मात्र कहने जीवन भी पूर्णतया निर्मल होना चाहिए। से थोड़े ही हो सकता है। विदेश में तो यह बिमारी आवश्यकता से अधिक है। तो हमें समझ में आता है कि जो कुछ ईसा ईसा मसीह ने विवाह नहीं किया था। उनको कोई ज़रूरत मसीह ने कहा हम कर नहीं पाते। कोई सा भी ऐसा घ्म ही नहीं थी। परन्तु आपके लिए सभी प्रकार की व्यवस्थ नहीं है जिसमें लोग जो कहते हैं वही करते हैं। कारण वे है। इस व्यवस्था से आप पूर्ण रूप से सर्व सामान्य लोगों समर्थ हैं यानि जो हैं उस का अर्थ नहीं है। कोई कहेगा की तरह रह सकते हैं और अपनी विशेषता को समझते मैं ईसाई हैँ परन्तु उसकी आँखों में गन्दगी भरी रहेगी। कोई रहें। ईसा मसीह और सुफी लोग अपनी विशेषता समझते कहेगा मैं जैन हूँ और वह कपड़े की दुकान करेंगा। अर्थात जो नहीं करना वही करेंगे। इसका कारण है कि हमारे अन्दर तो सारे विश्व में इतने सारे भाई बहन हैं। कितना आपमें वह घर्म जागृत नहीं हुआ। और सहजयोग में यह जागृत हो आत्मविश्वास होना चाहिए। आप अकेले नहीं हैं। सभी लोग जाता है। आत्मसाक्षात्कार होने के बाद, जागृत होने के बाद यदि आप उसका मान नहीं करेंगे और ठसमें आप अपनी प्रगति नहीं करेंगे तो न जाने आपको क्या-क्या चाहिए। इससे अमूल्य और कुछ भी नहीं है। ें आप को क्या समझ रहे हैं। जिसने हमें इस आज्ञा चक्र आप देखेंगे कि वे बिल्कुल निर्मल है। इसी प्रकार हमारा सहजयोग में विवाह की पूर्ण रूप से व्यवसथा है। हालांकि हुए थे। अदेले ही उन्होंने सारे विश्व में कार्य किया। आपके क एक ही बात कहते हैं सब को एक ही चीज़ प्राप्त है। और जब आप इस चीज़ को पाते हैं तो इसका महत्त्व समझना कष्ट झेलने पड़ू सकते हैं। इससे पहले आप को जो कष्ट थे, तकलीफैं थीं वह महसूस नहीं होंगी परन्तु अब आप संवेदनशील हो गए हैं इसलिए समझ लेना जो इतनी बड़ी चीज़ पाई हे उससे हम अलकृंत हो गएं, कोई फूट नहीं, कोई झगड़ा नहीं। यह बहुत बड़ी बात है। उससे हम सज गए। अब हमें अपने वैभव में और गौरव में सोचती हूँ कि यह देवी की कृपा है कि लोग सहज में होना चाहिए जैसे ईसा-मसीह का पुनर्नउत्थान हुआ था। वे कब्र से उठे थे, उनका चेहरा बहुत ही खिल गया था, उन की बातें और भी सुन्दर हो गईं थीं; इसी प्रकार ईसा बगाल देश बहुत सुन्दर स्वरूप में उतरेगा। मसीह सहजयोगी थे। लेकिन उन्होंने उसे प्राप्त किया था और यद्यपि मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि कलकत्ते में इतना कार्य चाहिए कि हमने हो गया। इतने सहजयोगी हो गए, आपस में बहुत प्रेम है, में उतरते हैं। जैसे पुरुष कार्य कर रहे हैं वैसे स्त्रियों को भी करना चाहिए। जब सब ओर सहजयोग फैल जाएगा तो आप सब को मेरा अनन्त आशीर्वाद। आप के लिए उन्होंने प्राण त्यागे कि आप का आज्ञा चक्र खुले। सो अहंकार आदि जो व्याधियाँ हैं उनसे दूर रहना चैतन्य लहरी 22 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt महाशिव रात्रि पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन बम्बई 19-2-93 आज यहां पर हम लोग शिवजी की पूजा करने के लिये है कि जिसपे भी दृष्टिट पड़ जाए वो ही तर जाता है। जिसके एकत्रित हुए हैं। ये पूजा एक बहुत विशेष पूजा है क्योकि मानव का अन्तिम लक्ष्य यही है कि वो शिव तत्व को प्राप्त करें। करने की ज़रूरत ही नहीं है। ये सब खेल है। जैसे बच्चों शिव तत्व बुद्धि से परे है। उसको बुद्धि से नहीं जाना जा सकता। के लिए खेल होता है परमात्मा के लिए भी वो सारा एक जब तक आप आत्म-साक्षात्कारी नहीं होते, जब तक आपने खेल है। वो देख रहे हैं। उस भोलेपन में एक और चीज नीहित अपने आत्मा को पहचाना नहीं, अपने को जाना नहीं, आप शिव है। जो भोला आदमी होता है, सत्यवादी होता है अच्छाई से तत्व को जान नहीं सकते। शिवजी के नाम पर बहुत ज्यादा आडम्ब, अन्धता और अन्धश्रद्धा फैली हुई है। किन्तु जो मनुष्य ले रहा है तब उसको बड़े जोर से क्रोध आता है। उसका आत्म-साक्षात्कारी नहीं वो शिवजी को समझ ही नहीं सकता क्रोध बहुत जबरदस्त होता है। चालाक आदमी होगा वो क्रोध क्योंकि उनकी प्रकृति को समझने के लिये सबसे पहले मनुष्य को घुमा देगा, ऐसा बना देगा कि उसकी जो प्रमुख किरणें को उस स्थिति में पहुंचना चाहिए जहां पर सारे ही महान तत्व हैं वो कुछ शान्त हो जाएं। लेकिन भोला आदमी जो होता है अपने आप विराजें। उनके लिए कहा जाता है कि वे भोले शंकर वो हंसते ही रहता है। ये क्या मेरे ऊपर वार कर सकता है। हैं। आजकल बुद्धिवादी बहुत से निकल आए हैं संसार में, और ये शिवजी का जो गुण है वो हम सहजयोगियों में आना जरूरी अपनी बुद्धि की उड़ान से जो चाहे वो ऊट पटांग लिखा करते हैं। इस वक्त हम छोटी-छोटी बातों को सोचते रहते हैं इनके हैं और फिर कहते हैं कि ये शिवजी तो भोले हैं किसी का लिए क्या करना चाहिए। इसकी योजना कैसी करनी चाहिए। भोला होना बुद्धिवादियों के हिसाब से तो एकदम ही बेकार जैसे शिवजी ने शक्ति पर सब छोड़ दिया है आप लोग भी चीज है। आजकल आदमी जितना चालाक और धूर्त होगा वो सब कुछ शक्ति पर छोड़ सकते हैं लेकिन वो भी फिर एक यश्स्वी हो जाता है। तो इनका भोलापन कैसे समझा जाए? स्थिति आनी चाहिए। वो भोलापन आपके अन्दर आना चाहिए। आजकल के लोग सोचते हैं कि जो आदमी भोला होता है वो इस भोलापन का मतलब ये है कि किसी तरह की नगन्य है, बेवकुफ है लेकिन शिवजी का भोलापन ऐसा है नकारात्मकता आपके अन्दर आ ही नहीं सकती। इसलिए आप कि जहां वो सब कुछ हैं। समझ लीजिए कि ज़रूरत से ज्यादा भोले हैं: सांप लोटे रहे हैं तो सांप को लौटने दो। आप बेकार कोई श्रीमन्त रईस आदमी हो जाए और उसको विरक्ति आ में परेशान क्यों हैं। जहर पीना है तो जहर पी लेंगे होना क्या जाए और उसका लोग धन उठा के ले जाएं तो लोग कहेंगे है। जो बिल्कुल विशुद्ध है, जिसमें किसी भी चीज का असर अजीब भोला आदमी है जिसका लोग घन चुरा रहे हैं, उसपे ही नहीं आ सकता, जो समर्थ है, जिसकी शक्तियां स्वयं ही कोई असर ही नहीं। लेकिन जब उसको विरक्ति आ गई और उसकी रक्षा कर रही हैं उसको यह बात है कि क्या करे उस घन का उसके लिए महात्म्य ही नहीं रहा तो वो अपने क्या न करें। ये शक्ति हमारे अंदर शिव तत्व से आती हैं शिव भोलेपन में बैठा है और भोलेपन का मजा उठा रहा है। जब सब चीज अपने आप हो ही रही है, सब कुछ कार्यान्वित ही कुण्डलिनी जो है वो शक्ति है चक्र जो हैं ये सीढ़ियां इन है। तो शिवजी का उसमें कार्य भाग क्या रहता है। वे भोलेपन सब सीढ़ियों से चढ़ के आफ्को प्राप्त एक ही करना है। वो से सब चीज देखते रहते हैं वो साक्षी स्वरूप हो करके और है शिव तत्व। सारे देवी देवताओं को एक विचार है कि आप शक्ति का कार्य देखते रहते हैं। शक्ति ने सारी सुृष्टि रचाई और सबको शिव तत्व पे पहुंचा दें। ये उनका कार्य है और वो शक्ति ने ही सारे देवी-देवता बनाए और उनके सारे कार्य बना दिए। उनकी नियुक्ति हो गई और अब शिवजी को क्या काम इसमें हमारा क्या होगा? हमारी स्थिति क्या है? कहां बैठे? है। शिवजी को बस देखना मात्र है। और फिर देखने में ही मनुष्य के जैसे नहीं सोचते। वो अंग प्रत्यंग उस शिव के ही सब कुछ आ जाता है। उनके भोलेपन का असर है तो यह हैं और शिव तत्व पर मनुष्य को पहुंचाने के लिए कार्य तत्पर तरफ उनका चित्त चला जाए वो ही तर जाए। कुछ उनको रहता है, वो जब देखता है कि कोई बहुत ही दुष्ट उनसे मुठभेड़ The म इजि तत्व को प्राप्त करनके लिए आत्म साक्षात्कार होना चाहिए। उस कार्य मे पूरी तरह से लगे हुए हैं। वो ये नहीं पूछते कि चंतन्य सहरी 23 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt रहना उनका स्वभाव है। उनको कुछ भाषण देने की ज़रूरत है? किन्तु ये विश्वास हमारे अन्दर बैठना बड़ा मुश्किल है। नहीं, उनको कुछ बताने की ज़रूरत नहीं। उनका जो काम है आत्म-साक्षात्कार के बाद आप सहजयोगी हो गये लेकिन वो भी एक अकर्म सा है। वो बंधे हुए हैं वो अपना काम शिव योगी होने के लिये परम विश्वास की जरूरत हैं जैसे पूरी तरह से करते हैं। वो सोचते ही नहीं कि कुछ काम कर कोई साहब जा रहे है तो कहेंगे कि मां कफ्फ्यू है हम कैसे रहे हैं। ये सारा प्रकाश बिजली से आ रहा है और जड़े होने जाएं। आज तक ये बंबई शहर में कोई भी सहजयोगी को के कारण उसमें कोई शक्ति नहीं कि वो सोचे। और क्योंकि नुकसान नहीं हुआ। आप भूल गये आप सहजयोगी हैं। आपके ये सब देवता लोग निर्विचारिता में बैठे हुए हैं वे भी कुछ सोचते आगे पीछे देव-दूत गण सब लगे हुए हैं लेकिन जैसे आपका नहीं और जानते भी नहीं कि उनमें क्या शक्तियां हैं। जैसे खाने विश्वास उठा वो भागे वहां से। कोई कहेगा कि मुझे ठगा की चीनी सबको मिठास देती है, पर वो नहीं जानती कि उसके जा रहा है, तो ठगता रहे। वो तुम्हें मारने आ रहा है, तो अन्दर मिठास है। इसी प्रकार सहजयोगी जब कार्यरत होते हैं आने दो। वो तुम्हारा कुछ बिगाड़ रहा है तो बिगाड़ने दो। तो वो ये नहीं जानते कि हमारे अन्दर ये शक्ति है इसलिए आगे होगा क्या? जाओ मरो। जब विश्वास बना रहा तो आप हम कार्यरत हैं। जिस वक्त आप लोगों के दिमाग में ये बात आई कि हमने ये कार्य किया, वो कार्य किया, हम लीडर हो दिखाई देंगे तो भी पार हो जायेंगे ऐसे नाना विध प्रश्न हमारे गए, हम वो हो गए तो आप सहजयोगी नहीं। सहजयोग में मनुष्य अकर्म में आ जाता है। वो करते रहता है। दिखने को लगता की असुरक्षा की भावना हमारे अन्दर बनती है। और उसकी है कर्म कर रहे हैं पर उसको ज्ञात नहीं होता कि वो कुछ वजह से हमारे विश्वास टूटते जाते हैं। कर्म कर रहा है। उसको मालूम नहीं होता कि वो प्यार कर रहा है, पर लोग जानते हैं कि वो बहुत प्यार करता है। चले जा रहे हैं । किसी को आप दिखाई ही नहीं देंगे और अन्दर आते हैं क्योंकि हम मानव हैं अभी और सभी तरह दूसरी बात कि हमसे कोई गलतियां नहीं होती, ऐसी भी बात नहीं है। कुछ गलतियां होती हैं। उन गलतियों के इस प्रकार हमें समझ लेना चाहिए कि आत्म-साक्षात्कार होने के फलस्वरूप एक तरह का हमारे अन्दर भय आ गया लेविन शिवजी की विशेषता ये है कि वो क्षमाशील है। क्षमा के सागर हैं आपने गलतियां की तो कुछ नहीं। आप को देखने की जो क्रिया है, देखना मात्र जो है एक तीसरी उनके दरवाजे में बैठे हैं तो पूरी तरह से क्षमा कर देते हैं आपको। तब आपको भय क्यों होगा। दूसरा वरदान उनको देखने वाले, एक जो आपको दिखाई दे रहा है और एक जो है निर्भयता। बिल्कुल निर्भय होना चाहिए। उनकी कोई सेना देखने की चीज है। ये तीनों ही चीज खत्म हो सकती है। नहीं है। आपने तो जाना ही है कि जिस वक्त अपनी बारात कैसे? कि अगर आप ही अपना आईना बन गए फिर आप लेकर वो पहुंचे थे तो पार्वती जी को तो शर्म आ रही थी। अपने को देखते रहते हैं, आप अपने को जानने लगे। यही कोई लंगड़े कोई पागल दिखने वाले हिप्पियों जैसे लोग अजीब तुकाराम ने कहा कि आपने अपने को जान लिया फिर और से अजीब लोगों को लेकर पहुंचे बारात में मतलब ये शारीरिक जानने की जरूरत ही क्या है? तब ये तीन दायरे कूद कर कुछ भी अवस्था हो और जन साधारण के लिए ऐसे लोग आप स्वयं में स्थिर हों गए। यही स्थिरता जब पूरी तरह से कुछ विक्षिप्त से लगें, विचित्र से लगे लेकिन उनके अन्दर बन जाती है तब कहना चाहिए कि शिव तत्व स्थिर हैं क्योंकि शिवतत्व है। इसलिए शिव के लिए कोई भी पैसा धन की जरूरत नहीं। उनके मंदिररों में सोने चांदी के चढ़ावे की जरूरत जाते हैं तो आपको ऐसा नहीं लगता कि आप कुछ कर रहे नहीं। मुक्त बैठे हैं। किसी भी चीज में ऐसी शक्ति नहीं कि हैं। आप अपने में ही समाये रहते हैं फिर आप ये भी नहीं उनकी शोभा बढ़ाये। ऐसी कोई संसारिक दृष्टि से मूल्यवान जैसे आजकल वस्तु शिवजी के लायक नहीं। इस तत्व को हमारे अन्दरआना बहुत से लोग कहते हैं कि हम बोर हो गए। क्योंकि आप बहुत-बहुत जरूरी है। आज समाज में आप अगर देखें तो अपने को देख नहीं सकते। आप अपने साथ रह नहीं सकते। पैसे का मूल्य जरूरत से ज्यादा है। हर आदमी पैसे का ही आप अपने साथ पांच मिनट बैठ जाएं तो आपको ऐसा लगता मूल्य देखता है। किस चीज में पैसा मिलेगा। क्या करने से है कि भाग खड़े हो। मेरे लिये तो अपने साथ बैठना सबसे पैसा मिलेगा? और पैसे के मूल्य में सभी चीज वो बेचने को तैयार हैं। पैसे नष्ट भी हो सकते हैं। दुष्ट कमों में भी भोलापन आपके अंदर आ जाता है। अगर आत्मा है और जिसे डाल सकते हैं, लेकिन शिव तत्व में बैठा हुआ मनुष्य उसको किसी चीज की इच्छा नहीं होती। इच्छारहित होता है क्योंकि क्या है। एक है जो आप स्वयं हैं सो हैं और आप अपने है। को शीशे में देख रहे हैं । वो आपका प्रतिबिम्ब हैं। और प्रतिबिम्ब ि चीज है। इस प्रकार आप तीन दायरों में घूम रहे हैं। एक यो अटूट और अटल है। इस शिव तत्व में जब आप बैठ का ा सोचते हैं कि मुझे कुछ और करना चाहिए। बड़ी बात है। इस रस को जब आप प्राप्त करते हैं तब एक कोई भी नष्ट नहीं कर सकता तब ये कौन नष्ट कर सकता चैतन्य लहरी 24 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt अपने आत्मा से ही उसकी आत्मा संतुष्ट है । शरीर की कोई हमारे ऊपर आक्रमण करती है। ऐसे ही हम जड़ से पैदा उसको चिंता नहीं होती। शरीर के आराम की उसको चिंता हुए। पहले तो ये आत्मा का झगड़ा इस जड़ से ही प्राप्त नहीं होती। कहीं भी सुला दीजिए उसको। कुछ भी खाने को हुआ और अब भी ये जड़ बीच-बीच में खींचता रहता है। दे दीजिए, नहीं तो मत दीजिए। और फिर जब ये दशा आ इसीलिए पहले जमाने में लोगों ने बताया था कि उपवास जाती है तो वो सभी चीजों पर अधिकार करती है। जैसे आपने करो, सन्यास लो, घर बार छोड़ के भाग खड़े हो जाओ और ऐसे आदमी को खाने को नहीं दिया। लेकिन वो एक नजर फिरा दे तो हजारों आदमियों को खाना दे सकता है। उनके के तपस्या करने से आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त होंगे। लेकिन शरीर को कोई आराम नहीं है। लेकिन उनकी नजर दाता है। आज का सहजयोग ऐसा है जहां पहले आप अपने जिसपे पड़ जाए वो नजर दान में से भरपूर हो जाए। अब आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करो। कि पहले मंदिर का कलश ये कौन सी शक्ति है जिससे वो सबका कल्याण करते हैं? बनाओ और फिर उसके नीवं को बनायेंगे क्योंकि अगर बहुत ये है परम चैतन्य। और उसका जो स्पन्दन है उसे शंकराचार्य लोगों की पार कराना है और जिसकी ज़रूरत है तो यहीं ने स्पन्द कहा है। इस स्पन्द की शक्ति उनके शरीर से बहती तरीका हमने ठीक समझा। और हिमालय में जाए बगैर, अपने रहती है और जिस आदमी को वो छू जाती है उसी का कल्याण परिवार को छोड़े बगैर और आफत उठाए बगैर ही आप लोगों हो जाता है। जिस भूमि पे वो पड़ जाती है वो भूमि बहुत ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त किया। ये तो बात सही है ज्यादा फल फूल देने वाली हो जाती है। जिस स्त्री में पड़ और आपमें स्पन्द की शक्ति भी आ गई। यहां तक तो कुण्डलिनी जाएगी वो बड़ी सुबुद्धि वाली हो सकती है। जिस पर पड़ ने काम कर लिया। अब आगे आपको काम करना है। और मर जाओ। लोग सोचते थे कि अनेक जन्मों में इस तरह ि है जाए उसका भला हो सकता है। स्पन्द ऐसी चीज जिससे वो काम ये कि पहले तो अपनी ओर देखना है। जब आप अच्छाई ही आ सकती है। कोई आदमी आपको मारने को शीशा हो गए तो आप अपने को देखिए। पहले तो अपनी आए, उसका परिवर्तन हो सकता है। कोई आपको सताने आए ओर नजर होनी चाहिए कि मैं अब भी एक सर्व साधारण उसको सुबुद्धि आ सकती है। एक तरह कि जो परिवर्तन की मानव के जैसे रह रहा हूँ। शराब छूट गई। सिगरेट छूट गई। शक्ति इस स्पन्द में है ये हमारे लिए बड़ी समझने की बात गाली मुंह से निकलना बंद हो गया और स्वभाव भी बहुत है। इसलिए हर आदमी को आपको क्षमा कर देना चाहिए। शांत हो गया। चेहरे पे भी मासूमियत आ गई। लेकिन अब आप क्यों उससे बदला ले रहे हैं, कोई जरूरत नहीं। आप सहजयोगी हैं ये स्पन्द पे छोड़ दीजिए। इसे लहरियों पे छोड़ अपने मजे में रख सकता हूँ या मैं बोर हो जाता हूँ? क्या दीजिए। सब समझते हैं सोचते हैं, सब पूरी तरह से व्यवस्था मैं अपने मे मजा पाता हूँ? मैं अपने में ही आनन्द को प्राप्त करते हैं। इस शक्ति को आपने प्राप्त किया है ये आपमें कर सकता हूँ? और क्यों नहीं कर सकता? इस पर आप से अव्याघ बह रही है। इस शक्ति को आपने आजमाया है बुद्धि से विचार कर सकते हैं। क्या अब भी मैं इस या कि इससे कितना फायदा होता है। अब जो लोग बुद्धि से उस चीज में अटका हूँ? और जिन चीजों में आप अटके इसको जानना चाहें वो नहीं जान सकते। लेकिन आपने तो हैं उसमें अटकते ही जा रहे हैं अगर आप भोले हैं तो कोई अनेक चमत्कार देखे हैं, और ये कितनी ऊंची, कितनी प्रचण्ड, चीज आपको अटकाएगी ही नहीं। और जिन चीज़ों में आप कितनी बड़ी शक्ति है, जो कार्यान्वित है और आपको मदद अटके हुए थे वो आपको मिल नहीं रही और फिर से वो कर रही है। और आप इसके अधिकार को प्राप्त हो रहे हैं। ही मानवीय जीवन शुरू हो जाएगा लेकिन गर आप इन चीजों उस वक्त हमें ये सोचना चाहिए कि शिव तत्व हर चीज को देख लें आज हमें ये चीज अटका रही है, ये चीज हमारे पर, पूरे पर्यावरण पर चल सकता है। आजकल पर्यावरण का बड़ा भारी संकट संसार पर छाया हुआ है। जितने सहजयोगी दृष्टि करने से ही ये चीज चली जाएगी। अगर हमें एक होंगे उतना पर्यावरण शुद्ध हो जाएगा। अपने आप ही शुद्ध हो नया संसार बनाना है, एक बहुत सुंदर संसार ऐसी माँ की भी क्या मै अपने को देख सकता हूँ? क्या मैं अपने को अंदर है तो देखने से ही ये चीज गिर जाएगी। इसकी ओर इच्छा है कि एक विशेष तरह की पीढ़ी तैयार करें जो खालिस जाएगी। इसके अधिकार पथ पें आने के लिए सबसे पहले हमें हों। इसके बारे में अनेक साधु संतों ने इच्छा की थी। वो ये जान लेना चाहिए कि अब हम मानव स्थिति में नहीं। हम अब दैवी स्थिति में आ गए हैं। तो मानव स्थिति की जो तत्व को ठीक करें। हमारे अन्दर गलतियां हैं जो खींच है, उससे हमें छुट्टी मिलनी चाहिए। ये मानव स्थिति हमें नीचे खींचती है। और बार-बार घुसी हुई है। जैसे आजकल हिन्दू, मुसलमानों का झगड़ा चल अगर आपने करना है तो ये जरूरी है कि आप अपने शिव शिव तत्व में आप जान लेंगे कि अभी क्या-क्या चीज चैतन्य लहरी 25 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt रहा है। कोई हिन्दु हो जाने से शिव तत्व नहीं पाता। न मुसलमान और जैसे ही वो इस तत्व में आ गए उनके सब प्रश्न अपने होने से पाता है न ईसाई होने से, न कुछ होने से पाता है आप ही हल हो गये शिव तत्व में शक्ति ही ऐसी है, वो ये सब बाह्य के आडम्बर हैं। लेकिन जब आपमें शिव तत्व सारे प्रश्नों को हल कर देती है। उनके प्रश्न अपने आप ही प्राप्त होता है तो आप श्री राम को भी मानते हैं और आप हल हो गये जो लोग शराब पीते थे, दुनिया भर की चीजें मुहम्मद साहेब की भी पूजा करते हैं। जब तक आप शिव तत्व बेचारे करते थे, दल-दल से निकल कर वो आकर किनारे पर को प्राप्त नहीं होते इन धर्म के आडम्बर से आप निकल नहीं बैठ गये। पर हम लोग अभी भी किसी न किसी चक्कर में सकते। अन्दर से उनकी भी पूजा उतनी ही होनी चाहिए जितनी घूमते ही रहते हैं। इस चक्कर को खत्म करना चाहिए। आज श्री राम की। जो रहीम है वो ही शिव है। जो रहमान है, जो शिव रात्रि के दिन विशेषकर अपने शिव तत्व पे उतरिये ताकि अकबर है वो ही विष्णु है। तब फिर ये अन्दर की जो भावनाएं वो आपको सारे गुणों से अलंकृत कर दे। शिव तत्व में ऐसे हैं ये ऐसे विकसित हो जाएंगी कि आपके अन्दर से धर्म की गुण हैं कि सहज में ही आपके अन्दर घर्म आ जाएगा, सहज सुगंध बहेगी न कि वैमनस्य। पर ये चीज घटित होने के लिए में ही आपके अन्दर सुबुद्धि आ जाएगी, सहज में ही सारा ज्ञान मुझे तो सहजयोग के सिवा ओर कोई मार्ग नहीं दिखाई देता। आपके अन्दर आ जाएगा। सहज में ही आपमें माधुर्य आ जाएगा| जब तक सहजयोग नहीं होगा। तब तक लोग ऐसी पूजा करेंगे? सहज मे ही परिपक्वता आ जायेगी न जाने कितने ही गुण क्या मुसलमान राम की पूजा करेंगे? या हिन्दु मुहम्मद साहिब सहज में आपके अन्दर आ सकते हैं। लेकिन पहले ये जान की पूजा करेंगे। हम लोग तो करते हैं मुहम्मद साहेब की भी, लेना चाहिए नम्रतापूर्वक, कि अभी हम उस तत्व पे उतरे के अली की भी फातिमा बी की, बुद्ध की, महावीर की पूजा नहीं? हमें उतरना है। और दूसरी ये कि सारी ही शक्तियां सहज करते हैं, क्योंकि ये सब पूजनीय है। हम कौन होते हैं किसी में हमारे से प्रस्फुटित हो रही हैं। कुछ करना नहीं पड़ेगा । इस को बड़ा छोटा कहने वाले पर जब शिव तत्व के सागर में तरह से हमें अपनी ओर देखना चाहिए कि मेरे पति, मेरे बच्चें आप घुल जाते हैं तब आप को पता होता है कि ये सब शिव सहजयोग नहीं करते, नहीं करने दो, ये तो आन्तरिक चीज है के ही अंग-प्रत्यंग हैं। ये सब अपने ही हैं। ये सब हमारे ही जिसको पाना है वो ही पा सकता है। जबरदस्ती तो नहीं कर अन्दर है। जब तक इस तरह की घारणा हमारे अन्दर नहीं सकते सहजयोग की। आप अपने को देखो। अपने को जानना, होती तो हो सकता है कि सहजयोग का कार्य कुछ कम तेजी अपने को देखना, से चले। लेकिन सहजयोग ठोस चीज है। असली चीज है। और देखकर लोग सहजयोग में उतरेंगे। और इस परम तत्व को पाने ये जो बाह्य की चीजें हैं ये थोड़ी देर के लिए आई, गई। मारा के बाद आप लोग इतने शक्तिशाली हो जाएँगे कि न जाने कितने पीटी हुई सब कुछ हुआ। आश्चर्य की बात ये है कि विदेश लोगों को आप परिवर्तितत कर दें, ये संसार बदल दें। ये संसार में सहजयोग इतने जोर से फैल रहा है। वे लोग बहुत ही गहन है। रोज ध्यान करना, रोज अपनी ओर नज़र करना । इन लोगों कि ये खराबियाँ हैं। खराबियाँ प्रजातंत्र की नहीं, खराबी इन्सान से हमें सीखना चाहिए। इन्होंने तो कभी शिवजी का नाम भी की है जो शिव तत्व को प्राप्त नहीं करता। नहीं सुना था। ईसा मसीह के सिवाय इन लोगों ने कभी शिवजी का नाम भी नहीं सुना था। फिर ये इतनी गहनता में कैसे उतरे? है। उसमें बिगाड आना ही हुआ क्योंकि उसमें बिगड़ने के हम लोग रोज ही सुनते रहते हैं। मंदिरों में जाके घंटियाँ बजाते तत्व हैं लोग आचार बनाते हैं घर में, उसे बहुत सफाई करके, हैं, चर्च में जाके प्रार्थना करते है । और ये लोग जिन्होंने कभी भगवान को भी नहीं याद किया ये जैसे आचार खराब हो जाए वैसे ही हमारा हाल है। ऐसे होगा। इन लोगों में ये गहनता कैसे आ गई? रूस के एक गाँव ये लोग हैं कहां? कोई सा भी आप सवाल बनाओ, कोई में 22,000 सहजयोगी बैठे हैं। तो ऐसे हम लोगों में कौन सी सी भी आप चीज बनाओं, यही होने वाला है क्योंकि उसके खराबी आ गई है कि जिसके कारण हम उस गहनता में नहीं अंदर की डे हैं। उसके अन्दर दोष है। जब तक मनुष्य के उतर पाते। उसकी वजह ये है कि रोज हम अपने को देखते अन्दर दांष रहेगा ये जो भी चीज बनाता रहेगा उसमें दोष नहीं। पहले अपने को देखना चाहिए। अपनी ओर नज़र करनी आना ही है थोड़े दिन चलता है जैसे गांधी जी ने सत्याग्रह चाहिए। ये नज़र इन लोगों में कहां से आई ये मैं नहीं बता सकती। लेकिन परिणाम देखिए वो बड़े गहन लोग हैं। कभी दोघ हुए। मैं तो जानती हूं उनको। पर तो भी जोश था देश मुझसे ये नहीं कहेंगे कि हमारे पैसे का क्या होगा, बच्चे, मां को स्वतंत्र कराने का, ये करने का वो करने का लड़ पड़े। बाप, रिश्तेदारों का क्या होगा। बस पूछेंगे कि माँ मेरा क्या होगा। अब तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता मिल के ये हो क्या ट यही आत्म-साक्षात्कार है। फिर आपको बदलने के लिए है। कोई कहेगा यहाँ प्रजातंत्र है और प्रजातंत्र कोई सी भी चीज आप ले आओ वो खराब होनी ही और सब ठनठन गोपाल। वगैरह कछ नहीं रह जाए। घोकर, सुखाकर ताके उसमें कीड़ा मो चलाया था तो थोड़े दिन चला। पर उनमें भी बड़े अजीब-अजीब चैंतन्य लहरी 26 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt रहा है। खासकर तो मुझे ये वन्देमारतम पर बहुत दुख हुआ। मर गए। वो बहुत बीमार थे तो उनके क्रियाक्रम में कोई रिश्तेदार आखिर आपकी मां की स्तुति किसी भी भाषा में हो आखिर वगैरह नहीं आए। सब सहजयोगियों ने अपने तरफ से किया। मेरी स्तुति आप नहीं जानते कितनी भाषाओं में होगी आपको एक चीज कहीं हो जाती है वहां तो दुनिया भर से लोग दौड़ने क्या बुरा लगना चाहिए? ये 'वन्दे मातरम' तो एक मंत्र है लगते हैं। कोई ये नहीं सोचता कि मेरा रिश्तेदार हैं। ये तो जिसको लेकर के ये देश स्वतंत्र हुआ। मेरे पिताजी झंडा लेकर सब निर्वान्य प्रेम है कि ये सहजयोगी है और हम भी सहजयोगी के चले थे, उच्च न्यायालय में तो उनको गोली मार दी गई। है। एक दूसरे को मदद करने के लिए, एक दूसरों को सँवारने खून बहता रहा पर फिर भी वो चल के ऊपर गए और के लिए आपको झडा फहराया। नारा लगाया 'वंदे मातरम' । हम सबके दिल चिंता लगी रहती है कि दो सहजयोगी ठीक रहें। ये जो चिंता दहल गए। इस तरह की चीज इस देश में हो रही है कि है इसमें कोई लेन-देन की बात नहीं, इसमें कोई लाभ सोचा वंदे मातरम बंद कर दो। अरे ये देश क्या है तुम कुछ जानते नहीं जाता पर एक ही तकलीफ है। ये जो नितांत, आपस ही नहीं। स्व का तंत्र जानते नहीं स्वतंत्र हो गए। इस तरह की जो खींच है जो आत्मीयता है ये आप शिव तत्व से से हमारे अन्दर की जो गहन उदात भावना है उसे पाने वाले प्राप्त कर सकते है। ओर किसी भी तत्व से आप प्राप्त नहीं शिव हैं। जो हृदय में प्रेम है और जो सबके प्रति एक आत्मीयता कर सकते। इसीलिए मनुष्य को शिव तत्व में उतरना चाहिए। वो देने वाले शिव हैं। जो हमें ऐसी शक्ति देते हैं हमारा प्रेम और हमारी आत्मीयता बड़ी आह्वाद दायिनी चीज़ है। जैसे भूखे मर रहे हैं, मुसलमान हैं। और बड़ी तकलीफ की बात वंदे मारतम कहते ही एक आह्वाद भर जाता है। वो शिव है कि खाने पीने को नहीं। बर्फ पिघला कर वो पानी पी तृत्व की देन है। आज शिव जी की स्तुति गाते हुए आहाद आपमें आया। हैं इतनी दुर्दशा में लोग हैं और किसी को उनके प्रति आत्मीयता ये शक्ति शिव ने हमें दी है। इसलिए उन्हें आनन्ददायक कहते नहीं। कोई लोग सोचते नहीं कि वो मर रहे हैं । मुसलमान हैं। आनन्द में जो निरानंद है, सिर्फ आनन्द, उसमें अनेक देशों में इतना पैसा है, लेकिन कोई नहीं जाता उनको बचाने। तरह के आनन्द हैं। ये आहवाद जो है ये हमारे भावनाओं से जिस दिन संसार में शिव तत्व प्रस्थापित होगा ये सब ठीक जुड़ा है। भावनाओं में उभरता है जैसे एक फूल से उसकी हो जाएगा ये झगड़े ही सब खत्म हो जाएंगे| कहते है कि सुगन्ध मुखरित होती है उसी प्रकार हमारे हृदय में जो भावनाएँ 8-9 साल में ही ये सब घटित होना है। देखिए कितने लोगों है किसी चीज के प्रति अच्छी, उदार, प्रेममय सुन्दर, ऐसी की समझ सहज तक पहुंचती है? इतनी समझदारी लोगों में भावनाएँ हैं। शुद्ध भावनाएँ हैं। उस भावना की जो सुगन्ध है है कहाँ? आप लोगों पे निर्भर हैं कि आपके शिव तत्व के वो ही आह्वाद है। हम उसी आहवाद में आन्नदमय होते हैं। प्रकाश से दुनिया प्रभावित हो जाये और ये जो हमें आफतें और फिर किसी चीज की जरूरत नहीं रहती। इसको उभारने दिखाई हे रही हैं, जो मनुष्य की ही मूर्खता से पैदा हुई हैं, वाले, इसको जतन से रखने वाले और उचित समय पर इसका पूरी तरह से नष्ट हो जाएं। अनुभव लेने वाले ये शिवजी ही हैं क्योंकि वे स्पन्द के माध्यम से हमें देते हैं। अभी भी किसी बड़े साधु संत का नाम लो अंदर फिर स्थापित हो जाए। ये ही एक प्रार्थना शिवजी से तो सारे बदन पे रोम खड़े हो जाते हैं। एकदम से ये स्पन्द, करनी है कि शिव तत्व को आप हमारे अन्दर स्थातिप कर ये लहरियाँ दोनों बहना शुरू हो जाती हैं। अब ये बुद्धि वादियों दें। बहुत लोग पैसे कमा लेते हैं बड़े-बड़े पदों पर चले जाते को क्या समझाएं? ये तो आधे गधे हैं, और जो कुछ बचा हैं बड़े-बड़े खिताब उन्हें मिलते हैं, सब कुछ होता है ये वो घोड़े। इनके अन्दर तो आप कुछ घुसा ही नहीं सकते तो मिलते ही रहते हैं लेकिन आज की जो क्रान्ति है, आन्दोलन और घुसाओ भी मत। आप को चाहिए कि आप अपना ही है, वो क्रान्ति मनुष्य के परिवर्तन की और सारे संसार को जीवन इतना सुन्दर बनाओ कि ये पीछे रह जाएं और ये देखें ठीक करने वाली है। उसके लिए कोई त्याग नहीं करने का कि ये समाज क्या है। अपने बुद्धि चातुर्य से इन्होंने कुछ कि मैंने ये त्याग किया मैंने वो त्याग किया। अपने आप छुट लोगों को अपने अन्दर फँसा लिया। कितने लोगों को फँसाया, गए। जब सब कुछ छूट गया तब फिर परेशानी किसी चीज कितने झगडे चलते रहते हैं। लेकिन आपका अगर समाज ऐसा की? इस शिव तत्व में आप सब लोग उतरें ऐसा ही हमारा बने जो आज बना हुआ है, आपस में हमारे कोई झगड़े नहीं आशीर्वाद है । ऊँच-नीच नहीं। किसी ने बताया कि दिल्ली में कोई सहयोगी जो मोडते हैं, खींचते हैं वो शिव तत्व हैं। आपने सुना होगा कि बोस्निया में दो सौ हजार लोग रहे हैं। जब लोग मर जाते हैं तो उन्हीं का गोश्त खा रहे आज शिवजी से यही मांगना है कि ये शिव तत्व हमारे जत। परमात्मा आप पर कृपा करें। चैतन्य लहरी 27 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt Mother, please come in my heart Let me clear my heart so that You are there Put Your Feet into my heart Let Your Feet be worshipped in my heart Let me not be in delusion Take me away from illusions Keep me in reality Take away the sheer of superficiality Let me enjoy Your Feet in my heart Let me see Your Feet in my heart