000000000000000000000000000000000000000000000000000000o00000000000 चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति (1996) अंक 7 व 8 खण्ड VII मस्तिष्क से ऊपर उठने पर ही आनन्द सम्भव है, मस्तिष्क से आप कभी आनन्द नहीं ले सकते। तरंग विहीन झील की तरह जब आप पूर्णतः शान्त होते है तभी आनन्द आता है" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी नवरात्रि पूजा कवेला Q00000G000000000000心G0 0や0000心位0心 心00000000 00000 100000000000000心 中 带中的中中夺中帝守杂中夺 心口章000000000000000000000000000000 DO0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 心000:0章 चन ु विषय सूची अंक : 7 व 8 खण्ड : VII पृष्ठ अन्तरक्षेत्रीय चतुर्थ गोलमेज विश्व महिला सम्मेलन 13.9.1995 1. अन्तररीष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन 2. 8. मन मिथ्या है 3. 13. 21.3.1996 श्री माता जी की अमूल्य शिक्षा 4. 13 बैंकाक - मार्च 1995 श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत 5. 14 नवरात्री पूजा कबेला 15 6. 1.10.1995 श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण - अस्ट्रेलिया 7. 21 कन्फ्यूशिसं का कथन 8. 24 -सम्पादक-- व त श्री योगी महाजन -मुद्रक एवं प्रकाशक :- श्री विजय नालगिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली Im 110 067 -गुद्धित :- प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 4A/1 ओल्ड राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली फोन : 5710529, 5764866 110 060 चैतन्य लहरी 1 ४ ह dं अन्तरक्षेत्रीय गोलमेज चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन न ना स बीजिंग, 13 सितम्बर 1995 सहजयोग संस्थापिका डा. श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव का भाषण विश्व भर के भाइयो और बहनो, लगता है कि जब तक आप एक ऐसी नई संस्कृति नहीं ले आते जिसके द्वारा पूर्वी और पश्चिमी देशों की महिलाएं अपने गौरव में खड़ी होकर स्वयं को इस प्रकार अभिव्यक्त नहीं कर - सकतीं जिससे वे अपने समाज के लिए उच्च चारित्रिक मानदण्डों की सृष्टि कर सकें, वे न तो पूर्वी देशों में और न ही पश्चिमी देशों में अपनी नारी सुलभ महत्ता को प्राप्त कर सकेंगी। विशिष्टता यह है कि यदि महिलाओं के क्षेम और उनके लिए आवश्यक शिक्षा को समझते हुए प्रदान की जाए तो वे समाज को सुरक्षा प्रदान करेंगी। धर्म की बातें करने वाले सभी रूढ़िवादी लोग स्त्रियों से पूर्णतः चरित्रवान होने की आशा करते हैं और पुरुष जो चाहे करें। मेरे विचार में हमें महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अधिक शिक्षित करना होगा क्योंकि युद्ध के विचार पुरुषों से ही आरम्भ होते हैं में स्वीकार करती हूं कि विकासशील देशों में निर्धन महिलाओं की सहायता करने के लिए धन एकत्रित करना कठिन नहीं है। परन्तु दुर्भाग्यवश में जानती हैँ क्रि निर्धन महिलाओं तक पहुंचाने के लिए जो धन हम एकत्रित कर रहे हैं यह अन्ततः भ्रष्ट मन्त्रियों, अधिकारियों तथा कार्यभारी लोगों की जेबों और फिर स्विस बैंकों में जाकर समाप्त हो जाएगा। इस विशिष्ट सभा के सम्मुख महिलाओं की सार्वभौमिक समस्याओं के विषय में बोलना मेरे लिए महान सम्मान की बात हैं। सर्वप्रथम में अपने मेजबान देश, चीन गणतन्त्र के लोगों और सरकार के प्रति अपनी गहन कृतज्ञता प्रकट करना चाहूंगी इससे पूर्व भी दो बार मुझे चीन आने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है और मैं इस महान राष्ट्र की संस्कृति और विवेक की गहन प्रशंसक हूँ। उन्हें पूर्ण सुरक्षा विश्व के इतिहास में यह समय अत्यन्त गौरवशाली है कि इस समय हमें महिलाओं की समस्याओं का इतना ज्ञान हैं इसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। निसन्देह युग युगान्तरों से महिलाएं कष्ट उठाती रहीं, क्योंकि हम लोग मानव समाज में उनके महत्व और यथोचित भूमिका को नहीं समझ पाएं। उसका अपना रचित समाज ही नारीत्व का दमन कर उसे वश में करने का प्रयत्न करता है। पूर्व के विषय में हम कह सकते है कि रूढ़िवादी प्रभावों के कारण महिलाएं बहुत दबाव में रहीं और उनका चरित्र स्वतन्त्रता की अपेक्षा भय पर आधारित था। पश्चिम में हम उनकी स्वतन्त्रता के लिए लड़े परन्तु उन्होंने मिथ्या स्वतन्त्रता के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं किया। पश्चिम की स्त्रियों को सारे सामाजिक एवं चारित्रिक मूल्यों को त्यागने की स्वतन्त्रता है। अत: हम कह सकते है कि पूर्वी देशों की अधिकतर महिलाएं कायर और उत्पीड़ित हैं जो अपनी अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है, जबकि पश्चिमी देशों में अधिकतर महिलाएं यौन चिन्ह बनकर रह गयी हैं। वे अपने शरीर का प्रदर्शन करना चाहती हैं और फैशन के विज्ञापनों में दिखाई देने तथा घटिया लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए वे उत्सुक हैं। केतर महिलाओं ने यह स्थिति स्वीकार कर ली क्योंकि इसके बिना वे अव्यवस्थित पश्चिमी संसार में अपने महत्व को न बनाए रख पातीं। पूर्व की अधिकतर महिलाएं जिन चीजों को अत्यन्त अपमानजनक तथा प्रतिष्ठा विहीन मानती है पश्चिम में उन सब चीजों को अत्यन्त गरिंमामय माना जा रहा है। चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार, हिसां रूपीं भयानक राक्षस हमारे समाज को खा रहे हैं। मैं इन भ्रष्ट एवं दुष्टचरित्र लोगों की माताओं को इसके लिए दोषी ठहराऊंगीं क्योंकि उन्होंने इनके शैशवकाल में माताओं के अपने कर्त्तव्य को पूर्ण नहीं किया। बच्चों को सुन्दर नागरिक बनाने में माँ का जीवन्त प्रशिक्षण ही प्रथम तथा असरदार प्रभाव होता है। माताएं, जिन्होंने गहन चिन्ता और प्रेम से पथ प्रदर्शन नहीं किया, पत्नियां या बेटियां जो पुरुषों या विनाशकारी संस्कृति से भयभीत है, ने पुरुषों के चारित्रिक ताने बाने को दृढ़ करने के लिए परिवार के समग्र सदस्य के रूप में अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया। यह देखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों में बच्चों से किस प्रकार व्यवहार किया. जाता है। पूर्व में हम देखते हैं कि यदि बच्चे रूढिवादी संस्कृति से प्रभावित नहीं हैं तो वे अपनी माताओं को सुनते अधि मैंने दोनों ही संसारों को गहनता पूर्वक देखा है और मुझे चैतन्य लहरी 2. हैं। यह संस्कृति स्त्रियों को एक घटिया मानव की स्थिति में धकेल देती है, पुरुष तथा बच्चे जिन पर हावी रह सकें। पश्चिम मे भी ऐसा होता है बच्चे न तो माताओं का मान करते हैं और न उनकी बात सुनते हैं। में यह इसलिए महसूस करती हूं क्योंकि प्रायः पश्चिमी महिलाएं अपने बच्चों की देखभाल करने की अपेक्षा अपना अधिकतर समय, अपना शरीर और रूप रंग की देखभाल करने में लगातीं हैं। मां और बच्चों के अन्तर्बन्धन दुर्बल होकर टूट बहुत से बच्चे आवारा बन जाते हैं। सोंभाग्यवश आज भी पूर्व के बहुत से और पश्चिम के कुछ परिवार भ्रष्ट करने वाली प्रवृत्तियों को गहन चुनौती देते हुए अपने बच्चों की देखभाल करते हैं और यथोचित रूप से उनका लालन पालन करते हैं । फिर भी मैं कहूँगी कि पश्चिमी देशों की अपेक्षा पूर्वी देशों के बच्चे कम भ्रष्ट हुए हैं इसका कारण भी यही है कि पूर्व के बहुत से लोगों ने रूढ़िवादी संस्कृति या पश्चिमात्य संस्कृति को नहीं अपनाया है, उनका समाज बहुत अच्छा है और वे बहुत अच्छे बच्चे उत्पन्न करते हैं चाहे उनकी सख्या रमन्ते देवता, अर्थात "जहां महिलाओं का सम्मान होता है और वे सम्माननीय हैं वहां क्षेम प्रदायक देवता निवास करते हैं।" अतः हमारे सृष्टा द्वारा प्रदान की गई इस महान शक्ति के को इस क्षण समझना हम पर निर्भर करता है। मूल्य परन्तु हम क्या पाते हैं? पूर्व हो या पश्चिम महिलाएं अभी तक अपनी महानता की पूर्णाभिव्यक्ति नहीं कर पाई हैं। मैं यह परामर्श बिल्कुल नहीं दे रही हूं कि मानव समाज में महिलाओं की एकमात्र भूमिका बच्चों की माँ, जन्मदाता या रक्षक की है या पत्नी और बहन की है। आर्थिक जीवन के हर क्षेत्र समाजिक, सांस्कृतिक या राजनैतिक, प्रशासनिक तथा अन्य में समान साथी के रूप में भाग लेने का महिलाओं को पूर्णधिकार है। इस सर्वव्यापक भूमिका के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए उन्हें ज्ञान की सभी शाखाओं में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। परन्तु यदि वे माताएं है तो अपने बच्चों तथा समाज के प्रति उनकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पुरुष देश की रणनीति और अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेदार होते हैं और स्त्रियां समाज के लिए। स्त्रियां पुरुषों को जाते हैं इसी कारण बहुत अधिक न हो। परन्तु प्राचीन काल से परम्परागत जो संस्कृति उन्हें उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है वइ उनके अन्दर पूर्णतः स्थापित है और उनके लिए चारित्रिक मूल्य प्रणाली सर्वोच्च है, धन और सत्ता से कहीं अधिक। पश्चिम अब समस्याओं से परिपूर्ण है। यद्यपि उनके सहायता भी प्रदान कर सकती हैं और निसन्देह किसी भी स्थिति में मार्ग दर्शक भूमिका निभा सकती हैं। परन्तु यह बहुत आवश्यक है कि वे भी नहीं भूलें कि वे स्त्रियां हैं जिन्हें हैं। मां के गहन प्रेम और उत्कण्ठा को अभिव्यक्त करना यदि वे पुरुषवत और आक्रामक हो जाएगीं तो समाज का सन्तुलन नहीं बनाए रखा जा सकता। पास बहुत धन है फिर भी उनके अन्तस में या बाहर शान्ति का पूर्ण अभाव है। सत्य यह है कि महिलांए ही सभ्यताओं और देशों की अन्तर्निहित शक्ति हैं। यह प्रत्यक्ष है कि स्त्रियां ही पूर्ण मानव साथ ही साथ में यह भी अनुरोध करूंगी कि जब हम महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं तो हमें उनके समाज के प्रति मौलिक कर्त्तव्यों पर भी बल देना चाहिए। पश्चिम में महिलाएं या शिक्षित महिलांए दूसरी पराकाष्ठा तक पहुंच गई है। वे राजनीतिक आर्थिक तथा प्रशासनिक भूमिकाएं ले रहीं है पुरुषों से मुकाबला करने के लिए वे अत्यन्त हठध मी, स्वकेन्द्रित एवं महत्वाकांक्षी हो गई हैं। अब उनमें शान्ति एवं प्रसन्नता प्रदायी गुण नहीं रह गए जो सन्तुलन बनाए रखते हैं इसके विपरीत अब रौबीली तथा सुखाकांक्षी व्यक्ति बन गई हैं। मधुर, गरिमामय एवं सुखद व्यक्तित्व की अपेक्षा वे अपने शारीरिक आकर्षण के लिए अधिक चिन्तित हैं । के जाति की सृष्टा एवं रक्षक हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा ने उन्हें यह भूमिका सौंपी है। बीज अपने आप किसी चीज की सृष्टि नहीं कर सकते। पृथ्वी माँ ही फूल, फल तथा अन्य वैभव प्रदान करती हैं। इसी प्रकार स्त्री ही शिशु को जन्म देती है उसका पोषण करती है और अन्ततः भविष्य के नागरिक बनाती है। अतः स्त्री की तुलना सम्पूर्ण मानवता के प्रासाद के रूप में पृथ्वी मां से की जानी चाहिए । दुर्भाग्यवश महिलाओं पर प्रभुत्व जमाने के लिए पुरुष ने शरीरिक बल का उपयोग किया है। उन्होंने इस बात को मान्यता नहीं दी है कि महिलाएं समान तथा सम्पूरक तो हैं परन्तु मानवीय प्रयत्नों में समरूप साझेदार नहीं। जो भी समाज इस मूल सत्य को नहीं पहचानता और महिलाओं को उनकी अधिकारपूर्ण भूमिका प्रदान नहीं करता वह सभ्य समाज नहीं है। मेरे अपने देश में संस्कृत भाषा की यह कहावत है, "यत्र नार्या पूज्यन्ते, तत्र जाने अनजाने वे अपने व्यक्तित्व की तुच्छता सम्मुख हथियार डाल देती हैं। यह सब अव्यवस्थिति समाज को जन्म देता है और जिस प्रकार हम प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ते हैं बच्चे आवारा, चोर और हत्यारे बन जाते हैं। दोनों चरम सीमाओं में सन्तुलन स्थापित होना हमारी आवश्यकता है। हमें 3. चैतन्य लहरी ऐसी महिलाओं की आवश्यकता है जो समान तो हो परन्तु पुरुषों के सम न हों। पुरुषों के स्वभाव की सूक्ष्म सुझबूझ तथा उनमे अपने आन्तरिक सन्तुलन द्वारा वे पुरुषों को सन्तुलन मध्य) में ला सकें। सन्तुलित मानव जाति जिसमें आन्तरिक शान्ति हो, के लिए हमें सन्तुलित महिलाओं की आवश्यकता है। आप कह सकते हैं कि सोचने में तो यह सब बहुत अच्छा अन्दर स्थित छः सूक्ष्म शक्ति केन्द्रों का पोषण करते हुए सामण्जस्य बनाते हुए इनमें से गुजरती है। अन्ततः और यह शक्ति तालू अस्थि, जो कि तालू या ब्रहमरन्ध् कहलाती है, का भेदन करके व्यक्ति का समबन्ध परमात्मा की सर्वव्यापक दिव्य प्रेम की शक्ति से जोडती है। दिव्य प्रेम की इस शक्ति को बाईबल में आदिशक्ति की शीतल लहरियां (COOl Breeze of The Holy Ghost) कुरान में रुह, और भारतीय धर्म ग्रन्थों में 'परम चैतन्य' कहा गया है । पतंजलि ऋषि ने इसे 'ऋतुम्भरा प्रज्ञा' कहा है। इसे जो भी नाम दिया गया हो यह शक्ति सर्वव्यापक है और उत्थान प्रक्रिया का सभी सुक्ष्म जीवन्त कार्य करती है। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व इस सर्वव्यापक शक्ति के अस्तित्व को महसूस नहीं किया जा लगता है पर यह सन्तुलन की स्थिति किस प्रकार प्राप्त की जाए? किस प्रकार हम रोग, भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता और अपरिपक्वता के ज्वारभाटे का सामना करें? संघर्ष एवं भ्रन्ति की बर्तमान स्थिति को हम किस प्रकार समाप्त करें ? प्रत्येक हृदय तथा मस्तिष्क में हम किस प्रकार शान्ति लाए? मेरा विनम्र निवेदन है कि इन प्रश्नों का उत्तर है। सकता, परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप इसे अपनी अँगुलियों के पोरों, अपनी हथेलियों के मध्य मे या अपने तालू अस्थि के ऊपर महसूस कर सकते हैं। एक नया मार्ग हैं । अब मैं जो तुम्हें बताने जा रही हूं उसे स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए। निसन्देह आपको अपने मस्तिष्क वैज्ञानिकों की तरह खुले रखने चाहिए और जो भी मैं कह रही हूं उसे परिकल्पना के रूप में लेना चाहिए। यह परिकल्पना यदि प्रमाणित हो जाए तो सत्यनिष्ठ व्यक्तियों की तरह से आपको इस पूर्ण सत्य को स्वीकार करना होगा क्योंकि यह आपके हित के लिए है। आपके परिवार के हित के लिए है। देश के हित के लिए है और पुरे विश्व के हित के लिए है। मैं यहां आपको हमारे विकास की अन्तिम उपलब्धि के विषय में बताने आई हूँ। हमारी चेतना में विकास का यह भेदन आधुनिक काल में ही घटित होना था, यह बात बहुत से पैगम्बरों की पुस्तकों में भी वर्णित है । आज का समय, जैसा की गीता में महान ऋषि व्यास देव जी ने लिखा है '"पत्नोमुख काल कहलाता है और जीवन के चहू ओर हमें मानवता का पतन दिखाई पड़ता है। यह प्रक्रिया स्वत: 'सहज' होनी चाहिए। 'स' अर्थात 'साथ' और 'ज' अर्थात 'जन्मी'। इसका अर्थ यह है कि परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति से योग प्राप्त करने का अधिकार मानव मात्र का जन्म सिद्ध अधिकार है। हमारी मानसिक शक्तियाँ सीमित हैं हमारी सीमित मानसिक शाक्ति, जो कि रेखीय गतिविधि है और जिसमे वास्तविकता के तत्व का पूर्ण अभाव है। एक सीमा तक पहुंचने के पश्चात रुक जाती है। वहां यह प्रतिक्षेपित होती है (BOomrangs) और सारा मानसिक रेखीय आन्दोलन कभी- कभी तो दण्ड के रूप में हमारे पास लौट आता है। अब हमें अधिक शक्ति, उच्चतर शक्ति, गहनतर शक्ति की आवश्यकता होती है जिसके लिए इस घटना (आत्मसाक्षआत्कार) का घटित होना कां आवश्यक है। पश्चिमी देशों में मैं बहुत से ऐसे लोगों से मिली जो सत्य साधक हैं और पश्चिमी जीवन शैली की कृतिमयता से तंग आ चुके है कभी कभी तो यह भी न जानते थे कि वे क्या खाज रहें हैं। उन्होंने बहुत सी गलतियां की हैं। वे कुगुरूओं के पास गए जिन्होंने उनसे बेशुमार धन ऐंठा जिसके कारण वे लोग दिवालिया तथा शरीरिक रूप से रोगी हो गए । एक बात अब समझ लें कि कुण्डलिनी की जागृति और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना हमारे विकास की जीवन्त प्रक्रिया है, जिसके लिए हम कोई पैसे नहीं ले सकते। यह पृथ्वी मां में बीज डालने जैसा है। बीज इसलिए अकुरित होता है क्योंकि पृथ्वी मां में इसे अकुरित करने की शक्ति है तथा बीज़ में भी अकुरित होने के गुण अन्त्तजात है। इसी प्रकार अब मैं। आपको हमारे अन्तस के उस गुप्त ज्ञान के बारे मे बताना चाहूगीं जिसका ज्ञान हजारों वर्ष पूर्व भारत में था। हमारे विकास तथा अध्यात्मिक उत्थान के लिए हमारे अन्दर एक अवश्ष्टि शक्ति है जो हमारी रीढ की जड में एक त्रिकोणाकार अस्थि मे स्थित है। यह अवशिष्ट शक्ति कुण्डलिनी कहलाती है। यद्यपि इस शक्ति का ज्ञान भारत में हजारों वर्ष पूर्व उपलब्ध था फिर भी परम्परागत कुण्डलिनी जागृति केवल व्यक्तिगत आधार पर ही की गई। एक गुरु केवल एक शिष्य जागृति प्रदान करता था। उस जागृति के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार, आत्मतत्व प्राप्त हो जाता था। पर उर्ध्व गति प्राप्त कर यह शक्ति शरीर के को दूसरे जागृत होने चैतन्य लहरी हममें भी त्रिकोणाकार अस्थि में अकुरित होने की शक्ति हैं जिसे यूनानी लोगों ने पवित्र अस्थि (SaCIunm) कहा है। यह साढे तीन कुण्डलों की शक्ति हं। इससे प्रकट होता है कि यूनानी लोगों को इस बात का ज्ञान था कि यह अस्थि पवित्र है और इसीलिए इसे पवित्र अस्थि का नाम दिया गया। कुछ लोगों मे आप इस त्रिकोणाकार अस्थि को धड़कते हुए और कुण्डलिनी को बहुत धीमी गति से उठते हुए देख सकते है। परन्तु जहां कोई बाधा नहीं होती और व्यक्ति यदि सन्तुलित मानव है तो कुण्डलिनी पवित्र अस्थि से जेट की तेजी से उठती है और परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एक रूप होने के लिये तालू क्षेत्र को पार कर जाती है। यह कुण्डलिनी हर व्यक्ति की अध्यात्मिक मां हैं अपने बच्चे की सभी पूर्वाकांक्षाओ को जानती है और उन्हें अपने में अंकित किया हुआ है। वह अपने बालक को दूसरा जन्म देना चाहती है इसलिए अपने उत्थान के समय उसके छहः शक्ति केन्द्रों का पोषण करती है। परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े बिना व्यक्ति उस यन्त्र के समान होता है जो न तो अपने स्त्रोत से हुआ है। और न ही जिसका कोई व्यक्तित्व, अर्थ या लक्ष्य है। स्त्रोत से सम्बन्ध जुडते ही यन्त्र के अन्दर बना सारा तन्त्र कार्य करने लगता है तथा अपनी अभिव्यक्ति करता है। आइये अब देखें कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति के साथ क्या क्या घटित होता है। सर्वप्रथम आप अपने सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्रों के प्रति अपनी अगुलियों के पोरों पर परमचैतन्य की शीतल लहरियां अनुभव करने लगते हैं। इस प्रकार अपनी अगुलियों के पोरो पर सत्य को जान जाते हैं। जाति, धर्म तथा अन्य मानसिक विचारों से ऊपर उठकर आप वास्तविकता को देखते है, समझते हैं और महसूस करते है। एक अन्य चीज जो घटित होती है वह है आपका निर्विचार चेतना में चले जाना। अपने विचारों के माध्यम से हम या तो भूतकाल मे जीते हैं या भविष्य काल में समय के इन दो क्षेत्रों से विचार हममें आते हैं परन्तु हम वर्तमान में नही रह सकते। ये विचार जब हममे चढ उतर रहे होते हैं तो हम इनकी नोक पर कूद रहे होते है। परन्तु कुण्डलिनी जब उठती है तो इन विचारों को लम्बा कर देती है और इस प्रकार दो विचारों के मध्य में कुछ रिक्त स्थान की वृद्धि कर देती है जो कि वर्तमान है और वास्तविक है। अत: भूतकाल समाप्त हो गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं। इस समय आप में विचार नही होते ज्यों ही आप निर्विचार चेतना में चले जाते है आप एक नई स्थिति प्राप्त कर लेते हे जिसके विषय में हयूग ने स्पृष्ट लिखा है। इस क्षण में जो भी घटित होता है वह आपकी समृति में भली भाति इकटठा हो जाता है और आप इस वास्तविकता के प्रत्येक क्षण का आनन्द उठाते है। जब आप निर्विचार चेतना की स्थिति में होते है तो अपने अन्त में आप पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। जिस व्यक्ति ने यह शान्ति प्राप्त कर ली वह शान्ति प्रसारित भी करता है और अपने चंह ओर एक शान्त वातावरण की सृष्टि करता है। यह शान्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसे प्राप्त किए बिना हम वास्तविकता में अपने विचारों को कभी भी न समझ पाएगे चाहे वे शाश्वत हो या केवल सीमित। अपने सातों केन्द्रों को अपनी अँगुलियों के पोरो पर महससू कर सकते हैं। सामूहिक चेतना नामक, चेतना के इस नये आयाम को स्वयं में विकसित कर लेने के कारण आप अन्य लोगों के ऊर्जा केन्द्रों जुड़ा कुण्डलिनी जब उठती है तो व्यक्ति को उस सर्वयापक शक्ति से जोड़ देती है जो कि शक्तिशाली है तथा ज्ञान और कृपा का सागर है। कुण्डलिनी की जागृति के उपरान्त व्यक्ति को बहुत से संयोगों का अनुभव होता है जो चमत्कारिक एवं अत्यन्त आर्शीवादपूर्ण होते है। सर्वोपरि कुण्डलिनी क्षमा का सागर है, अत: भूतकाल में की गई आपकी सारी गलतियां क्षमा हो जाती हैं और आशीरवाद के रूप में आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। कुण्डलिनी जागृति और आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के लाभ असंख्य हैं। प्रथम तथा सर्वोपरि, ऐसा व्यक्ति निरन्तर सर्वव्यापक दिव्य शक्ति से जुड जाता है, वास्तव में उस शक्ति का एक अंग बन जाता है। अपनी नई चेतना का उपयोग करके वह सत्य साधना करता है। क्योंकि सत्य केवल एक हैं सभी आत्म साक्षात्कारी एक ही सत्य को देखते हैं। इस प्रकार विरोध टाले जा सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार विहीन मानसिक गतिविधि विरोधी विचारों और यहां तक युद्ध तक पहुंचा देती है। आत्मसाक्षात्कार के उपरान्त इन्हें टाला को भी महसूस कर सकते हैं। जब यह नई चेतना आपमे स्थापित हो जाती है तब आप दूसरों के केन्द्रों को भी महसूस करने लगते है। मेरा यह बता देना आवश्यक होगा कि ये केन्द्र हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक ओर आध्यात्मिक कल्याण के लिए जिम्मेदार हैं और जब जब भी इनमे कोई खराबी होती है या इनकी स्थिति बिगडी हुई होती है तब लोगों को कोई न कोई रोग हो जाता है। कुण्डलिनी जागृति और हैं इन केन्द्रों के पोषण के परिणामवश जो महत्वपूर्ण विकास है। जा सकता चैतन्य लहरी है। यह स्थिति तब प्राप्त होती है जब कुण्डलिनी स्थापित हो जाती है और आप नि:सन्देह जान जाते हैं कि आपने होता है वह यह है कि आप आन्तरिक सन्तुलन अनुभव करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य का आनन्द लेने लगते हैं। कृण्डलिनी की जागृति से बहुत से रोगों, कुछ लाईलाज बीमारियों का भी लाभ हुआ है यहां तक कि कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से आत्मसाक्षात्त्कार प्राप्त करने के पश्चात वशांनुगत जीन्स ) के आकडों का आधार भी पुन्निेमित होता है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है तथा आपने सभी वो शक्तियां प्राप्त कर ली है जिन्हें उपयोग किया जा सकता है। आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते हैं। क्योंकि अब आप दूसरे लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं। आप अत्यन्त चुस्त हो जाते है और आसानी से थकते नहीं उदाहरणार्थ मेरी आयु 73 वर्ष हो गई है और में हर तीसरे दिन यात्रा करती हूँ। फिर भी में बिल्कुल ठीक हूँ। यह शक्ति आपके अन्दर बहती है और आपकी शक्ति से परिपूर्ण कर देती हैं आप अत्यन्त प्रगल्भ हो (पोषाणु परिमणामतः जिस व्यक्ति में अपराधी प्रवृति के जीन्स वंशानुगत आए हों वह भी अच्छा मनुष्य बन सकता है। हमारा चित्त भी अति पवित्र हो जाता है आत्मा के प्रकाश में हम अपनी अधोवस्था की स्थिति की अपेक्षा चीजों को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उदाहरणार्थ एक अन्धा व्यक्ति हाथी को छूकर देखता है फिर दूसरा अन्धा उसे छूकर देखता है और फिर तीसरा हाथी के जिस भी हिस्से को वे छूकर देखते हैं उसी के अनुसार हाथी के विषय में उनके विचार बनते हैं। परन्तु यदि उन्हें दृष्टि प्राप्त हो जाए तो वे एक ही चीज को देखेंगे, एक ही वास्तविकता को और उनमें कोई झगडा शेष न रह जाएगा।? आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति परम सत्य को अपनी अगुलियों जाते हैं और अत्यन्त सहृद करुणामय तथा दयामय और विनम्र भी। आपको लगता है कि आप सुरक्षित है और इस प्रकार आप आत्मविश्वस्त हो जाते हैं परन्तु अहंकार आपको नहीं छूता। आपका पूर्ण व्यक्तित्व परिवर्तित हो जाता है। यह एक प्रकार का सार्वभोतिक परिवर्तन सर्वत्र घटित हो रहा है इसे देखकर मैं आश्चर्यचकित हूँ कि किस प्रकार इतनी दूरुत गति से यह कार्यान्वित हो रहा है। त वास्तव में यह ज्ञान प्राचीन काल से था। मेरा योगदान मात्र इतना है कि अब हम सामूहिक साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। हजारों लोगों को सामूहिक साक्षात्कार मिल सकता है। जैसी कि भविष्यवाणी की गई थी कि इस प्रकार का सार्वभौतिक परिवर्तन घटित होगा, यह आधुनिक समय का उपहार है। कम से कम 65 देशों में हजारों लोगों ने सहजयोग के पोरों पर महसूस कर सकता है। मान लो कोई व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करता, कोई भी आत्मसाक्षात्कारी उस अविश्वासी व्यक्ति से कह सकता है कि वह प्रश्न पूछे को "क्या परमात्मा हे?' तो आप देखेंगे कि प्रश्नकर्ता अपने अन्दर अति सुन्दर शीतल लहरियां आती हुई महसूस होने लगेंगी। वह चाहे परमात्मा में विश्वास न करे परन्तु परमात्मा है दुर्भाग्यवश परमात्मा मे विश्वास करने वाले बहुत से लोग भी इतने बेतुके, पाखंडी, अत्याचारी, सनकी ओर होते हैं कि उन्हें देखकर लोगों ने परमात्मा में विश्वास रखो दिया है। परमात्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग गलत हो सकते है। परमात्मा स्वयं है और उनकी शक्ति भी है। इसे हम दिव्य प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति कहते हैं। यह प्रेम ओर करुणा की शक्ति है, आक्रामकरता ओर विनाश की नही। प्रेम और करुणा की इस शक्ति को जब योगी या आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति आत्मसात कर लेता है तो यह देवदूत सम अत्यन्त भिन्न रूप से कार्य करती है। ऐसे लोग स्वयं को तथा अन्य लोगों को रोग मुक्त कर सकते है। यहां तक कि मानसिक रोगी भी रोगमुक्त हो गए है। इतना ही नहीं जो लोग सत्य की खोज में कुगुरूओं के चक्कर में फंस गए थे। कुगुरूओं को छोड़ने के पश्चात् आत्मसाक्षात्कार के पथ पर आकर उन्हें भी आध्यात्मिक स्थिरता प्राप्त हो गई है। अगली उपलब्धि निर्विचार चेतना को प्राप्त कर लेना के माध्यम से आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है। आत्म तत्व प्राप्त करने की आपकी शुद्ध इच्छा ही कुण्डलिनी की शाक्ति है। बिना इच्छा के आप इसे किसी पर थोप नहीं सकते। क्योंकि परमात्मा मानव की स्वतन्त्रता का सम्मान करते हैं। मनुष्य यदि स्वर्ग में जाना चाहे तो स्वर्ग में जा सकता है और यदि नरक में जाना चाहे तो नरक में जा दुष्चरित्र सकता है। लोगों में यदि आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा हो तो वे सुगमता पूर्वक आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु यदि वे अपने पूर्व विचारों और संस्कारें पर अटके रहे, तो कुण्डलिनी नहीं उठेगी। यह मूर्ख व अपरिपक्व लोगों के लिए भी कार्य नहीं करती। कुण्डलिनी उन्हीं लोगों के लिए कार्य करती है जो िवेकशील है और मध्य में है। उनके लिए यह अत्यन्त तेजी से कार्य करती है। मैं हैरान हूं कि इसने नशेडियों, शराबियों और दुष्चरत्र लोगों पर भी कार्य किया। परन्तु उन लौगों में आत्म सुधार करने और आत्मसाक्षात्कार पाने की शुद्ध इच्छा अतिगहन थी। इस प्रकार के बहुत से लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के अपने लक्ष्य dreto 6. चैंतन्य लहरी को प्राप्त कर लिया है । रातों रात उन्होंने नशे और शराब को त्याग दिया। इस प्रकार आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते है और समझ जाते हैं कि अब आप गरिमामय हों गए हैं तथा अत्यन्त सम्मानीय और विवेकशील ढंग से आचरण करने लगते हैं। इस प्रकार एक नई संस्कृति जन्म लेती है और ये नई संस्कृति आपको एक प्रकार की नई जीवन शैली मे ले जाती है जहां आप स्वाभाविक रूप से, धर्म परायण हो जाते हैं। किसी को आपको यह नहीं बताना पड़ता "ऐसा करो और "ऐसा मत करो" यह सारी उपलब्धि आपको चित्त के माध्यम से होती है यह ज्योति चित्त शक्ति से परिरपूण भी है । जहां भी आप चित्त डालते है यह कार्य करता है और शान्ति व मैत्रीभाव की सृष्टि करने के साथ- साथ सामूहिक चेतना के एक नए आयाम की सृष्टि भी करता है। अतः अपनी गलतियों के लिए अब अपनी वंशानुगत कमियों को दोष देने से अब काम नहीं चलेगा क्योंकि इन अनुवांशिक कोशाणुओं के आकड़ों के आधार को ही परिवर्तित किया जा सकता है और इन्हें अत्यन्त धर्म परायण व देवतुल्य व्यक्तित्व के स्तर पर लाया जा सकता है। व्यक्ति के अहम बढ़ते है, क्योंकि वे जानते हैं कि समस्या बंधित ये व्यक्ति सुगमता पूर्वक विकसित हो सकता है और आत्मसाक्षात्कारी जीवन बन सकता है। यह एक दीपक से दीपक जलाना सम है। विश्व भर में कार्य हो रहा है। और पूर्ण आशा है कि चीन में भी आरम्भ हो जाएगा। इससे पूर्व में यहां यह कार्य आरम्भ नहीं कर सकी परन्तु इस सम्मेलन के माध्यम से इसे देवी संयोग ने मुझे चीन के लोगों से बातचीत करने का अवसर प्रदान किया। मेरे विचार में चीन के लोग आध्यात्मिकता के इस महान वैभव के प्रति अत्यन्त विवेक तथा संवेदनशील हैं। यह मात्र संयोग नहीं है। यह अवश्यंभावी था और यह सर्वव्यापक शक्ति उसे लाई है। अपने जीवन में भी आपको बहुत से संयोग देखने को मिलेंगे परन्तु दिव्य शक्ति से योग प्राप्त किये बिना आप नहीं जान सकते कि किस प्रकार इन्हें देवी संयोग माना जाए। दूसरा कन्फ्यूशिस ने मानवता को सिवाया है कि किस चीन प्रकार हम अन्य मनुष्यों से अपने सम्बन्ध सुधारें। परन्तु में लाओत्से ने 'ताओ' अर्थात कुण्डलिनी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। मैंने येंग्तज नदी में यात्रा की है जिसमें लाओत्से ने बहुत बार यात्रा की थी। मैं जानती हूं कि लाओत्से यह दर्शाने का प्रयत्न कर रहे थे कि यह नदी जो कि और बन्धन कुण्डलिनी के उत्थान से समाप्त हो सकते है और वह वास्तव में पक्षी बन जाता है। वास्तव में पूर्ण स्व्तन्त्रता प्राप्त हो जाती है और व्यक्ति का आचरण अविश्वसनीय ढंग से परिवर्तित होता है उसे स्वयं में महान विश्वास हो जाता उन्मुक्त कुण्डलिनी है समुद्र की ओर बह रही है और व्यक्ति को इसके आसपास के प्रकृति के लालच में नहीं फंस जाना चाहिए। निःसन्देंह येंग्तज नदी के आसपास प्रकृति अत्यन्त सुन्दर है। परन्तु व्यक्ति को नदी में से गुजरगा होता है। इसमें बहुत से प्रवाह भी हैं जो अति भयानक हो सकते हैं और ज़िन्हें पार हैं। वह जीवन के सारे नाटक का दृष्टा बन जाता है। जब आप पानी में होते है तो आपको डूबने का भय होता है परन्तु यदि आप नाव में सवार हो जाएं तो आप उसी पानी को आनन्द पूर्वक देख सकते है। और यदि आप पानी में कूदकर अन्य लोगों को बचाना सीख लें तो यह उससे भी उच्च स्थिति होगी। अब हमारे पास एक उच्च चेतना है जिसे हम निर्विकल्प चेतना कहते हैं सर्वोपरि हम आनन्द सागर में कूद पड़ते है। आनन्द असीम है। इसमें दोहरा पन नहीं है। यह प्रसन्नता और अप्रसन्नता की तरह नहीं है। यह अद्वितीय है। एक बार जब आप इसमें कूद पडते हैं तो सहज ही सीख जाते हैं कि किस प्रकार किस जीवन का आनन्द उठाना है करने के लिए अत्यन्त कुशल नौका चालक चाहिए जो इसे समुद्र के समीप ले जा सके। वहां पहुंचकर इसका प्रवाह अत्यन्त शान्त और सहज हो जाता है। यह देश बहुत से महान दार्शनिकों द्वारा आर्शीवादित है और मैं कहंगी कि लाओत्से महानतम थे क्योंकि मानवतावाद का लक्ष्य मानव को उत्थान हेतु तैयार करने के लिए था और लाओत्से ने उत्थान की बात की। परन्तु सूक्ष्म विषय होने के कारण इसका वर्णन इतने स्पष्ट रूप से नहीं किया गया जैसे मैं तथा यह सुन्दर या असुन्दर। प्रशंसनीय तो है कि सहजयोगी महान संगीतज्ञ, महान लेखक, महान वक्ता तथा महान प्रशासक बन गए हे। सभी प्रकार से वे बहुत ऊंचे उठ गए हैं, विशेषकर दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण में। वे सभी का है आपसे इसकी बात कर रही हूँ। इस महान सामूहिंकता के सम्मुख बोलते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। विश्व भ्रमण करने के पश्चात मुझे महससू होता है कि जहां तक आध्यातमिक का प्रश्न है चीन स्वोकृष्ट देशों में से एक है। परमात्मा आप सबको आशीरवादित करे । पूरा सम्मान करते हैं। उन्हें इस बात का ज्ञान है कि अन्य व्यक्ति में क्या त्रूटि है। उनकी ओर वे अत्यन्त सावधानी और प्रेम से 7. चैतन्य लहरी अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन 'नैतिकता, स्वास्थ्य और विश्व" ,, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण आध्यात्मिकता के एक ही वृक्ष के पुष्पों के रूप में सभी धर्म पृथ्वी पर एकत्रित हुए। लोगों ने उन पुष्पों को तोड़ा और उन्हीं मृत पुष्पों से परस्पर लड़ रहे हैं। यह मेरा है, यह मेरा हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् परमात्मा के नाम पर एक नई शैली का युद्ध आरम्भ हो गया है। यदि आप एक परमात्मा में विश्वास करते है तो परस्पर कैसे लड़ सकते हैं? अत: उनमें यह मानसिक विचार मात्र है, हृदय के अन्दर की वास्तविकता यह नहीं है। कोई भी धर्म आपको घृणा नहीं सिखाता। कि वे क्या कर रहें हैं। क्या ईसा ने अनैतिकता सिखाई थी? क्या उन्होंने वेश्या वृति की बात की थी? पश्चिम में लोगों को पवित्र्य (कौमार्य) का कोई सम्मान नहीं है। तो आप किस प्रकार से ईसाई है? मुसलमानों की भी यही बात है। वे इस्लाम की बात करते हैं जोकि इतना महान धर्म था जिसने नैतिकता का दावा किया। मोहम्मद साहब ने तो ईसा और मां की पवित्रता के विषय मे भी बताया। परन्तु यदि आप मुसलमानों को देखें, तो वे कभी-कभी तो वे ईसाईयों से भी बदतर होते है। एक बार रियाद से दिल्ली के लिए यात्रा करते हुए वायुयान में में सो गई जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा अरबी वेशभूषा के स्थान पर अत्यन्त आधुनिक वस्त्र पहने हुए लोग बैठे थे। महिलांए तो अजीब किस्म के वस्त्र पहने हुए परन्तु स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। आरम्भ में यह सभी धर्म पावनतम रूप में आए और विश्व में प्रेम, शान्ति और एकता लाने का प्रयत्न किया। परन्तु कुछ लोग धर्म के कार्यभारी बन गए। वे भी भले लोग थे परन्तु शनै: शनै: वे एक दूसरे से अलग होने लगे। जो कुछ भी उन्होंने किया हो कम से कम धर्म परायणता की भावना की सृष्टि तो उन्होंने की। उन्होंने नैतिकता की बात की, प्रेम ओर करुणा की बात की। इस भावना को अभिव्यक्त करने वाली संस्थाएं थी परन्तु यह सभी कुछ अत्यन्त उथला था। स्वयं को ईसाई, मुसलमान या हिन्दू कहने वाले किसी व्यक्ति को आप देखें। क्या वास्तव में वह ईसाई है? ईसा ने कहा था "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए। किसी ऐसे ईसाई से मिले हैं जिसकी दृष्टि अपवित्र नहीं है ? या जिसकी दृष्टि कभी अपवित्र नहीं थी? मोहम्मद साहब ने कहा है कि स्वयं को जाने बिना आप ठीक मार्ग पर नहीं चल सकते। 'स्व' अर्थात आत्मा कितने लोगों ने इस बात को थी। अंत्यन्त लज्जाजनक। वे शराब और सिगरेट पी रहे थे। मैंने यान परिचालिका से पूछा कि यात्रा के मध्य क्या हम कहीं और भी गए है? उसने कहा, "नहीं मैने पूछा "ये लोग कौन हैं?" उसने कहा,"ये वही हैं।"ये परिवर्तित कैसे हो गए? उसने बताया, " आप इन्हें लंदन जाकर देखिए तो आपको पता चलेगा कि ये स्काटलैंड के लोगों से भी ज्यादा शराब पीते हैं। ईसाई मत असफल हो गया है, इस्लाम असफल हो गया है। किसी को विवश करके आप नैतिकता नहीं ला सकते। मैं कुछ अग्रेंजों से मिली और उनसे पूछा " आप हर समय स्त्रियों की ओर क्यो ताकते रहते हैं?" वे कहने लगे, "हमें मजा आता है। मैंने पूछा "क्या ईसा ने ऐसा ही कहा था?" वे कहने लगे, "हम तो चर्च मे भी ऐसा ही करते है। क्या हम अपनी दृष्टि किसी चीज पर टिका लें?' आप ।र परखा है। क्या यह सभी मुसलमान आत्मा- चलित हैं? वे तो बस लड़ ही रहे हैं मुझे उनके लिए दुख होता है क्योंकि वे हजारों की संख्या में मारे जाते हैं और उन्हें युद्ध करने के लिए भड़काया जाता है। ऐसा करने से उनके सारे सुकृत्य निष्प्रभावित हो जाते हैं। उनके अनुसार उनके धर्म को न मानने वाले काफिर हैं। मुसलमानों के विषय में यदि आप जानना चाहते हैं तो यहूदियों से पूछे। यहूदियों के विषय में यदि जानना चाहते है तो ईसाइयों से पूछे। और यदि ईसाईयों के विषय में जानना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि अमेरिका जाकर देखें मैने कहा, आप सब बहुत बेकार लोग है।" उन्होंने कि वे क्या करें? मैंने उनसे पूछा, क्या आप सत्य साध पूछा के हैं या अपने पूर्व कुसंस्कारों के साथ जीना चाहते है या आप समझते है कि मात्र ईसाई, यहूदी, मुसलमान होने से हम परमात्मा के दंड से बचे हुए है। स्पष्ट रूप से मैं आपको बताऊंगी कि आप में से अधिकतर नरक में जाएंगे " वे कहने लगे, "क्यो" मैंने कहा, "क्योंकि आप पाखंडी है।" वास्तविकता यह है कि आप अपने धर्म का अनुसरण नहीं करते और आपने केवल इसका लेबल चिपका रखा है। चैतन्य लहरी ৪ के लिए जा रहे हैं। आपमें देश भक्ति या बलिदान का विवेक बिल्कुल नहीं है। मैं गर्व पूर्वक कह सकती हूँ कि मेरे देश में आपको एक आयात्तित टाई भी नहीं मिल सकेगी। यह गांधी जी की कृपा है। उन्होंने कहा कि कोई भी विदेशी चीज न खरीदें। आप हाथ कते, हस्त बुने वस्त्र खरीद सकते हैं। देश भक्त होने के कारण मेरे माता पिता ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। मैं भी देश भक्त हूं और चाहती हूँ कि आप सब भी देश भक्त बने। यह सहजयोग द्वारा ही संभव हो सकता है, यह कहने से नहीं कि " मुसलमान हूँ या ईसाई हूँ। सर्वप्रथम आपको कहना होगा कि मैं रूसी हूँ। आप जो मार्ग चाहे उसका अनुसरण करें परन्तु पहले जान ले कि आप चाहते क्या है? सर्वप्रथम अब्राहम आए फिर मोजेज़ और फिर उसके पश्चात् ईसा मसीह एक- एक कदम करके यह उत्थान हुआ। मुसलमानों को शहरीयत कुरान ने नहीं दी। बाईबल मे मोजेज ने यह यहूदियों को दी। परन्तु यहूदियों ने कहा कि हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। इसमें बहुत अति है। ईसाईयों ने भी यही बात कही, परन्तु मुसलमानों ने इसे अपना लिया। उस समय शहरीयत यहूदियों के लिए थी.क्योंकि मोजेज ने उन्हें पूर्णतया पतनोंमुख पाया। परन्तु इससे क्या किसी को कुछ लाभ हुआ? यदि वे निराकार परमात्मा में विश्वास करते हैं तो उन्हें किसी देश या भूमि के लिए युद्ध करने की क्या आवश्यकता | परमात्मा तो सवत्त्र विद्यमान है। जो लोग यह समझेंगें कि वे पहले मुसलमान हैं, पहले ईसाई हैं वे ही लड़ेंगे। क्योंकि वे राजनीतिक विचारों वाले हैं। आध्यातमिक विचारों वाले नहीं। आपको आध्यात्मिक विचारों वाला बनना होगा, अन्यथा आपको मैं एक अन्य अपराधमय, गैर कानूनी चीज जिसे स्वीकार कर लिया हैं, वह है स्विस बैंक। इनके विषय में कोई आवाज नहीं उठाता। इसे स्वीकार कर लिया गया है। मेरे देश का तीन चौथाई वैभव स्विस बैंकों में बन्द है और मैं नहीं जानती कि कितना रूसी माफिया ( गैर कानूनी धन) बहां बन्द है। अपनी वैधानिक शक्तियों द्वारा उन पर आक्रमण करें क्योंकि वे कहना चाहिए कि हम परमात्मा में विश्वास नहीं करते। अब पाश्चात्य संस्कृति और रूढ़िवादी संस्कृति के बीच झगड़ा है। रूढ़िवादी कहते है कि आप कट्टर संस्कृति अपनाए इसे वे थोप रहें हैं। अल्जेरिया में हजारों लोगों को इसलिए कत्ल कर दिया क्योंकि वे पश्चिमी वेशभूषा पहनते थे। वे पेरिस में बम डाल रहे हैं। ये रुढिवादी लोग सभी प्रकार की हिंसा पर उतारू हो गए हैं। मोहम्मद साहब ने रहीम, रहमत (करुणा) की बात की। परन्तु इस्लाम धर्म में समानता नाम की चीज नहीं है। महिलाओं से वे दुर्व्यवहार करते है। जो स्त्ी आठ-दस बच्चे पैदा नहीं करती, उसे तलाक करके फेंक दिया जाता है। भारत में हमारे यहाँ हजारों स्त्रियाँ और बच्चे हैं जो देश में दरिद्रतम हैं । मोहम्मद साहब पूर्णतया गैर कानूनी हैं। जो धन निर्धनों रोगियों, ओर कोढियों पर खर्च होना था उसे वे स्विस बैंकों मे ले गए है। मेरे देश का ही उदाहरण लें इसमें वैभव के महा स्त्रोत थे तीन परन्तु सौ वर्षों तक बर्तानवी लोग बिना वीसे के यहां रहे । उन्होंने हमे लूटा और अब स्थिति यह हे कि एक भारतीय भी यदि इंग्लैंड जाना चाहता है तो उसकी भली-भाँति जांच होती है। वे हमारा सारा सोना, हीरे- चांदी और अन्य सभी बहूमूल्य चीजें ले गए मानों दिन- दहाडे डकैती डाली हो और अब वे स्वंय को ईसाई कहते हैं। उन्हें इसके लिए लज्जा भी नहीं आती। भारत छोडने से पूर्व उन्हेोने मुसलमानों, हिन्दुओं, बौदों, जैनियों, ईसाइयों और अन्य सभी धर्मावलम्बियों मे भेदभाव उत्पन्न कर दिए तो मुसलमानों ने कहा कि हम तो अपनी मुसलमान बहुत लिप्त है अत: उन्होंने पाकिस्तान और बंग्लादेश ले लिए। दुनिया में बंग्लादेश निर्धनतम देश है। वहां के लोग घुसपैठ करके भारत वापस आने का प्रयत्न कर रहे हैं। परन्तु पाकिस्तान की दशा तो इससे भी खराब है क्योंकि भारत के जिन लोगों ने यह वैभवशाली हो जाएगें तथा उच्च पदों को प्राप्त कर लेंगे, जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया था उनके साथ वहां गुलामों की तरह व्यवहार किया गया। भारतीय बहुत ही चतुर हैं। वे सब कराची के आस पास जा बसे जो कि ने कहा कि आप चार स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं ताकि स्त्रियां वेश्याएं न बन जाए। वह समय ही ऐसा था। तो अब मुस्लिम वेश्याएं किस प्रकार जीवन यापन करें। इस्लाम के नाम पर भूखी मरे और अपने बच्चों की भी हत्या कर दें? ईसाई, मुस्लिम या यहूदी धर्मो ने क्या हित किया है ? धर्माधिकारी अपने स्तर पर बहुत परिश्रम कर रहें हैं। परन्तु उन्हें वास्तविकता का सामना करना होगा। ईसा मोहम्मद साहब और बुद्ध कथित कोई भी उपलब्धि उन्होंने प्राप्त नहीं की है। इसके विपरीत अपनी धर्मान्धता के कारण उन्होंने इन ही पृथ्वी लेंगे पृथ्वी से सोचकर किया कि पाकिस्तान में रहने से वे बहुत महान धर्मों के संस्थापकों को बदनाम जरूर किया है। आपके दूरदर्शन में मैंने आयातित वस्तुओं के विज्ञापन देखे। क्या आप पागल हैं? आप अपना सारा धन इस कचरे पर व्यय कर रहे हैं जो पश्चिम या अमेरिका में नहीं बिका। आप सब पढे लिखे लोग अमेरिका में बर्तन धोने वाले बनने और चालाके 1. बि चैतन्य लहरी गलती ही हमारा बन्धन है। जैसे सभी अवतरणों ने कहा है और मैं भी कहती हैं कि एक शक्ति है जो सर्वव्यापक है। क्यों न हम इसे पाने की चेष्टा करें? हम क्यों सोचे कि हम ईसाई हैं या मुसलमान हैं या कुछ और। क्यों न हम मोहम्मद साहिब, ईसा. मोजेज वर्णित शक्ति को प्राप्त कर लें ? हानि क्या है? किसी चीज को यदि आप प्राप्त कर सकते हैं तो क्यों न कर लें? यह तो है भी नि:शुल्क इसके लिए आपको कुछ व्यय नहीं करना पड़ता। वास्तव मे मुझे आपसे कुछ लेने की आवश्यकता नहीं है। में स्वयं में परिपूर्ण हू। मुझे तो सहजयोग की भी आवश्यकता नहीं है। मैं क्यों सर्वत्र दौड़ी फिर रही हूँ? प्रेम के कारण, मेरे अन्त्स की करूणा मुझसे यह कार्य करवा रही है, क्योंकि अन्धे है, वे देख नहीं सकते। मुझे अब और गिर्जे या यहूदी- सभागार और ये भवन नहीं चाहिए। आत्मा का निवास तो हृदय में है। कुण्डलिनी की इस यन्त्रावली में ही यह सब बना हुआ है। परमात्मा ने इसी की रचना की है। अन्तिम भेदन को परमात्मा ने इसे क्यों बनाया? यह आपकी अपनी मां है। ये आपको यह प्रदान करने वाली हैं। ये विद्यमान है। आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी माँ है। इसे प्राप्त करने का आप को अधिकार है। परमात्मा की शक्ति से एकरूप होने का आपको पूर्णाधिकार है। हमारे पास यह यन्त्र है। परमात्मा ने इस यन्त्र को बनाया है। परन्तु यदि आप इसे इसके स्रोत से नहीं जोड़ना चाहते तो आप क्या है? आपकी पहचान क्या है? आपका जन्म क्यों हुआ है? वह वहां की महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह है। इन लोगों के नेता ने कहा है कि हिटलर की तरह पाकिस्तान की प्रधानमंत्री भी हमारी संख्या को कम करने के लिए 14-16 लोगों को मरवा देती है। तो अब मुसलमान, मुसलमानों से लड़ रहें हैं सद्वाम हुसैन धनवान मुसलमानों से लड रहे है खुर्द तुर्को से लड़ रहे है। क्या यहीं इस्लाम है? क्या यही मोहम्मद साहब को प्रतिष्ठापित करने का मार्ग है ? क्योंकि वे स्वयं को नहीं रखोज पाए। इसलिए वे परमात्मा को नही जानते। आत्मसाक्षात्कार और आत्मज्ञान प्राप्त करने का सहजयोग ही एकमात्र मार्ग है। हमारे यहां सभी धर्मो, सभी जातियों और सभी देशों के लोग है। सभी ने मुझे बताया है कि केवल सहजयोग द्वारा ही हम शान्ति प्राप्त कर सके। आपके अन्तस में यदि शान्ति नहीं तो किस प्रकार आप अन्य लोगों को शान्ति प्रदान कर सकतें है। जिन्हें शान्ति पुरस्कार दिए गए हैं उनके स्वभाव अत्यन्त भयानक और क्रोधी हैं। वे तो कभी मुस्कराते तक नहीं। वे इतने तनाव ग्रस्त हैं। किस प्रकार वे किसी अन्य को शान्ति प्रदान कर सकते है। अत: सर्वप्रथम हमें अपने अन्तस में शान्ति प्राप्त करनी होगी। पिछले 25 वर्षों से मेरा यही कार्य रहा है। आप केवल आन्तरिक शान्ति ही प्राप्त नहीं करते। आप परमात्मा के साम्राज्य की नागरिकता भी पा लेते है। पिछली बार जब स्वंय आई थी तो यहां सैनिक विद्रोह हो गया था। मैंने देखा कि सहजयोगी पूर्वातय शान्त हैं। मैंने उनसे पूछा क्या आप चहूं ओर की घटनाओं से चिन्तित नहीं हैं? उन्होंने उत्तर दिया, " श्री माता जी हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम क्यों चिन्ता करें?' ये सरकारें तो आती जाती रहेगी। परन्तु हम शाश्वत जीवन में प्रवेश कर चुकें हैं उनकी मुखाकृतियों पर देखा जा सकता था कि उनमें कोई पाखंड न था। ? सहजयोग मनुष्य को पूर्ण ज्ञान प्रदान करता है, प्रासंगिक ज्ञान नही। प्रासंगिक ज्ञान यह है कि क्योंकि में इसाई हूँ अत: मैं मुसलमानों से उच्च हूँ। मैं मुसलमान हूँ अत: ईसाईयों से उच्च हूँ। कुछ निर्धारित विचारों के साथ मनुष्य मुसलमान या ईसाई का जन्म लेता है। हिटलर इन विचारों की पराकाष्ठा थी। उसने कहा कि वह उच्च जाति का है। बच्चों की गैस कक्ष में हत्या करके उसे मजा आता था। किस प्रकार वे उच्च जाति के हो सकते हैं? हम किसे उच्च मानते हैं? प्रेम एवं करुणा से परिपूर्ण सन्त ही उच्च होते हैं ये विचार हमारे मस्तिष्क में भर दिए जाते हैं और सीमित करने वाले इन तुच्छ विचारों से होने की न तो हमें स्वतन्त्रता है अब विज्ञान की बात करें। विज्ञान असीम है। विवेचन किया जाने वाला सभी कुछ विज्ञान है। परन्तु क्या वे बता सकते हैं कि मानव पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुआ? क्या वे बता सकते है कि क्रम विकास क्यों हुआ? क्या वे बता सकते हें कि मानव का लक्ष्य क्या है? बहुत से प्रश्नों का उनके पास कोई उत्तर नहीं। डाक्टर से यदि आप पूछे कि हृदय को कोन चलाता है, ता वे उत्तर देंगे 'स्वचालित नाड़ी तन्त्र'। परन्तु यह 'स्व' है क्या? उनके पास इसका कोई उत्तर नहीं। परन्तु शरीर में एक्टीलीन (Actylene) और एड्रीलीन (Adrelin) नामक दो रसायन है। एक गति वृद्धि करता है तथा दूसरा शान्त करता है। परन्तु शरीर में यह निरंकुश रूप से कार्य करते हैं। कोई नहीं जानता कि बढ़ावा देने वाला सिकुड़ता क्यों है? कोई बाह्य तत्व यदि शरीर में चला जाय तो उसे शरीर अविलम्ब बाहर फेंक देता है। पर माँ के गर्भ में जब भ्रूण की सृष्टि हो जाती है तो शरीर उसे बाहर नहीं फेंकता। उचित समय तक इसका पोषण एवं विकास मुक्त और न ही ऐसा करने की हममें हिम्मत होती है यह मानवीय 4ना. 10 चैतन्य लहरी आपका मस्तिष्क चितंनशील नही होता, अपने आप मे पूर्णतया शान्त होता है। सभी कुछ जानते हुए भी आप निर्विचार होते हैं। जब आप इस सर्वव्यापी शक्ति, जो कि शान्ति है, से जुड जाते है तो आपके अन्तस में शान्ति होने लगती है और शान्ति फैलती है। आप दूसरों को भी शान्त होता है तब यह बाहर आता है। यह विवेकशील अन्तर कौन करता है? एक भयंकर युद्ध चल रहा है। और उन्होंने क्या सृष्टि की है? एटम बम, हाइड्रोजन बम। विज्ञान क्योंकि नैतिकता निर्पेक्ष है, विज्ञान के लिए कोई नैतिकता नहीं। वे जासूस, हत्यारे या वैज्ञानिक हो सकते हैं वे ज्ञराबी हो सकते है। किसी भी पादरी की तरह वे व्यभिचारी हो सकते हैं। उनमें कमी क्या है? वे इतने उच्च पदारूढ है; उनके पास बहुत पुरस्कार हैं। और आप पाते हैं कि नैतिकता के मामले में वे करते हैं। अत: एक बात आप समझ लें कि परमात्मा शान्ति का स्रोत है। इस प्रकार आप शान्ति फैला सकते हैं। सहजयोग मे आप देखते हैं कि हजारों-हजारों लोगों में शान्ति" हैं। किसी भी देश या जाति से वो सम्बन्धित हों परन्तु जब वे एकत्रित होते हैं तो एक समुद्र की तरह होते हैं। यह कल्पना मात्र नहीं है, क्योंकि इससे आप विराट के अगं-प्रत्यंग बन जाते हैं। क्याकि बूंद सागर बन जाती है। वे एक-दूसरे का आनन्द लेते है, परस्पर लड़ते नहीं। क्योंकि वे पावन बहुत पतित हैं क्योंकि वे अपना सम्मान नहीं करते। स्वयं से आशा नहीं करते क्योंकि वे स्वयं को पहचानते नहीं। वे नहीं जानते कि वे कितने महान है हमें ज्ञान नहीं है कि हम क्या है। हम यह शरीर, मन, बुद्धि या भावनाएं नहीं हैं। हम अहं या धार्मिक बन्धन भी नहीं हैं हम पवित्र आत्मा हैं। आत्मा है। अब मैं आपको बताऊंगी कि कब आप आत्मा बन जाते हैं। मैं नहीं सोचती कि इस पर किसी को एतराज होना चाहिए, क्योंकि ये आप और आपका हित है। यह आपके परिवार और पूरे विश्व के हित में हैं कुण्डलिनी की शक्ति हमारे अन्दर है। भारतीयों के लिए यह अति प्राचीन विज्ञान है। कुरान में भी लिखा गया है 'असास'। बाइबल में कहा गया है, "शोलों की जुबान मे मैं आपके सम्मुख प्रकट हूँगा।" | वास्तविकता यह है कि मुझ पर अन्धविश्वास किए बिना आप स्वय उसका अनुभव विश्वास की समस्या है, आप इसका अनुभव करें कि यह कुण्डलिनी उर्धव गति को पाकर हमारे तालू अस्थि क्षेत्र को बेंधती है। परिणाम स्वरूप आप परमात्मा की स्वव्यापी शक्ति से जुड जाते हैं। यह न कोई भाषण है और न आदेश। आपके बपतिस्म का वास्तविकरण हैं। आप यदि विवेकशील हैं तो समझ जाएंगें कि हम शान्तिमय विश्व मे नही रह रहे। पहली चीज जो घटित होती है वह है कि आप निर्विचार चेतना मे चले जाते हैं। हम क्या सोचते रहते हैं या तो भविष्य के बारे में सोचते हैं या भूतकाल के विषय मे, वर्तमान के विषय में नही सोचते। वर्तमान ही वास्तविकता है। भूतकाल समाप्त हो एक अन्य अच्छी चीज जो आपके साथ घटित होती है कि आपका चित्त ज्योत्तिमय हो जाता है। बहुत से लोग अपने सत्तरवें में जराजीर्ण हो जाते हैं। क्योंंकि उनका चित्त ही ऐसा बन जाता है। उन्हें परिवर्तित करना भी कठिन होता है परन्तु आपका चित्त ज्योतिमय हो जाएगा ज्योर्तिमय चित्त की इस स्थिति में सर्वप्रथम आप पूर्णअत्व को देखेंगे। प्रेम एवं करुणा से यह प्रकाशित है। दूसरों को अच्छाइयों को आप देखते हैं और जरुरत मंद लोगों की सहायता करते हैं। में आपको अपना एक अनुभव सुनाती हूँ पहली बार जब में रूस आई तो मैं कोई रूसी भाषा नही जानती थी और मेरी सहायता के लिए पच्चीस जर्मन सहजयोगी आए। मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैंने पूछा कि आप यहां कैसे आए हैं? कहने लगे, 'जर्मनी के लोगों ने बहुत से रूसियों को मारा था। अत: हम यहां आने के लिए कर्त्तव्य बद्ध हैं। इस प्रकार का प्रेम इतना सच्चा है। यह तभी संभव है जब आप आत्मा बन जाएँ। दूसरी चीज जो आपके चित्त के साथ घटित होती है वह यह है कि यह ज्योतित चित्त आपको धर्मपरायणता का मार्ग देता है। रातों-रात लोगों ने नशे-शराब और अन्य विनाशकारी चीजें त्याग दीं पश्चिम मे एक आम विचार धारा है कि हमें अपने करें। हमारे चहुं ओर पहले ही बहुत अन्ध চ गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नही है। परन्तु यह बात सत्य है कि हम वर्तमान में नहीं रह पाते। एक विचार उठता है और उसका पतन हो जाता दूसरा विचार उठता है और गिर जाता है और इस प्रकार भूत और भविष्य के विचारों की नोंक पर हम कूदते रहते हैं परन्तु जब कुण्डलिनी उठती है तो इन विचारों को लंबा कर देती है और इनके मध्य में दूरी की सृष्टि करती है। यह वर्तमान है जिसमे जीवन के हर क्षण का आराम उठाাना है। परन्तु सभी आनन्द आत्मघाती हैं। सहजयोग में आप विनष्ट हुऐ बिना आनन्दित होते हैं। आप पूर्ण प्रकृति, सभी मानवों का आनन्द लेते हैं। आप अन्न्तजात का मजा लेते हैं । दिखावों की चीजों का नहीं। आपके चित्त में आपको यह सब उपलब्ध है। यह चित्त भी कार्य करता है। कल इन्होंने मुझे बताया कि "श्री माता जी बहुत ठंड हो जाएगी।" मैंने सहजयोगियों से कहा है फिर चैतन्य लहरी 11 थे। स्वयं जान जाएगें कि मैं क्या हूँ। ईसा परमात्मा के कि आप बस अपना चित्त डालें। एकदम प्रकृति आपकी सेवा मे उपस्थित हो जाएगी कल धूप निकल आई थी। पूरी प्रकृति को अपने चरण कमलों में होने की आप आज्ञा दे सकते हैं क्योंकि आप परमात्मा की शक्ति से एक रूप हो गए हैं। परमात्मा की यही शक्ति ऋतुओं की सृष्टि करती है और अन्य सभी कुछ बनाती है। इसी ने आपकी सृष्टि की है ओर जो भी आपके हित मे होगा यह करेगी। परन्तु यदि आप किसी की के विषय मे सोचेगें तो वह घटित न होगा। पुत्र आप इसे माने या न माने पर वे परमात्मा के पुत्र थे। परन्तु जब ईसा ने यह बात कही, तो उन्होंने उसे क़सारोपित्त कर दिया। मैं जो हूँ, यह बात मै आपको नही बताऊँगी। आध्यात्मिकता में उत्थान पाकर, सूझबूझ से आप इसे महसूस करें। क्यों? क्योंकि आपने अन्य लोगों का भी हित करना है। कितनी सुन्दर जिम्मेदारी है। अन्त में आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर जाते हैं और तब आनन्द सागर में विलीन हो जाते हैं। आनन्द का कोई विलोम नही है जैसे प्रसन्नता और अप्रसन्नता। यह एकमेव है। अपनी वासना और मृत्यु परन्तु आत्मसाक्षात्कार पाकर आत्मा बन जाने के उपरान्त आप बुरी बातें सोचते ही नही। एक अन्य महत्त्वपूर्ण चीज जो आपके साथ घटित होती है वह ये है कि जिधर भी आपका लालच को त्याग कर आप पावन हो जाते हैं तथा स्वयं को देखने लगते हैं। इसके लिए आपको सन्यासी होने की आवश्यकता नही। आपको न तो हिमालय भें जाना है और न ही व्रत रखने हैं । यह आन्तरिक है बाहर से कुछ नही परिवर्तित होना। मैं जानती हूँ कि विश्व में सार्वभौमिक परिवर्तन होने वाला है। आपके वशांनुगत पोषाणुओं का मूल आधार ही परिवर्तित हो जाएगा। सहजयोग में आए सभी प्रकार के लोग परिवर्तित हो गए हैं । बहुत से लोगों की लाईलाज बीमारियां ठीक हो गई हैं बिना कुछ खर्च किए उनकी अपनी शक्तियों द्वारा। अत्यन्त सुगमता, सहजता और स्वभाविकता से। पशुओं को यदि आप चैतन्य लहरियां दे तो उन्हें भी लाभ होता है चैतन्य लहरियों से फसल दस गुनी अधिक होती है। इस अन्तिम निर्णय में महान लोगों की एक नई जाति बनी है। यह आपकी अपनी शक्ति है। आपको केवल से चित्त जाता है आप आत्मसाक्षात्कार दे सकते है। जैसे एक दीपक से असंख्य दीपक जलाए जा सकते हैं । मैं कभी अफ्रीका नही गई परन्तु दक्षिण अफ्रीका, कैमरुन आदि में बहुत से सहजयोगी हैं। मै साइबेरिया भी कभी नहीं गई परन्तु वहां भी बहुत से सहजयोगी हैं। सहजयोग फैल रहा है। जो भी इसके विरुद्ध होंगे वो शीघ्र ही उससे बाहर हो जाएगें। लोग जान जाएगें कि यह पाखंडी हैं। इसके लिए हमें चिन्ता नही करनी चाहिए। उन्हें खोज निकाला जाएगा। हमें किसी की बुराई नहीं सोचनी चाहिए। किसी को धिक्कारना नहीं चाहिए। सहजयोगी किसी की हत्या नहीं कर सकते। जब आप अन्य लागों को साक्षात्कार देने लगते है तो आपको निर्विकल्प समाधि नाम अन्य स्थिति प्राप्त हो जाती है। जिसमे आपको सहजयोग, उसकी कार्यशैली और मेरे विषय मे कोई संदेह नही रह जाता। अपने विषय में भी आपको कोई सदेह बाकी नहीं रहता। एक बार आपने बह स्थिति प्राप्त करनी है। बहुत लोगो ने यह स्थिति पा ली है। इतना जानना है कि आप कितने गरिमामय और महान हैं। पूर्णतया स्वतन्त्र क्योंकि आपको उच्च विवेक प्राप्त हो जाता है। आत्मा के प्रकाश में आप जान जाते हैं कि आपके लिए रचनात्मक क्या है। पूर्णज्ञान को आप समझ जाते हैं। धर्माधिकारी लोगों को एक विशेष स्थिति मे ले आए हैं। धर्म सब लोगों के लिए मेरे हृदय में अत्यन्त प्रेम और सम्मान है। उन्होंने तो कभी कुण्डलिनी का नाम भी न सुना था किस प्रकार इसे स्वीकार कर लिया। उनमे क्या चीज थी कि वे खाज रहे थे ? इस सूक्ष्म विषय से उन्हें कितना प्रेम हैं और इसकी कितनी सूझबूझ लोग उन जैसे हैं। यह अन्तिम निर्णय है और जो, रह जाएगें, रह जाएगें परन्तु ईसा ने कहा है, "आप मुझे येशु- येशु या ईसा बुलाते रह जाएंगे, परन्तु मैं आपको पहचानुँगा नहीं। 2" अतः समझ लें कि आपको आत्मा बनना है। जैसा कि ईसा ने कहा है आपको पुर्नजन्म लेना है। आरम्भ में आप मुझ पर विश्वास करें या न करें। आपको स्वयं मे विश्वास होना आवश्यक है। परन्तु जब आपका आध्यात्मिक उत्थान हो जायेगा तो आप अपनाने की क्या आवश्यकता है? यह उत्थान की ओर अग्रसर करता है। उन सबको उत्थित होना है। धर्म के माध्यम से संतुलन स्थापित करना है। जिस प्रकार भिन्न कार्य शालाओं में हम वायुयानों को संतुलित करने के लिए टांग देते हैं क्योंकि उन्हे हवा में उड़ना होता है। यदि उड़ना ही नही है तो संतुलन किस काम का। आत्मा की पूर्ण स्वतनता के साथ आपको उड़ना है। आपने यह नही कहना कि 'यह करो यह मत करो आप उड़ान के लिए तैयार हैं। अब अपने उन्हें है विश्व के बहुत कम आत्मसाक्षात्कार का आनन्द उठाए । परमात्मा आपको आशीवादित करें। 12 चैतन्य लहरी मस्तिष्क मिथ्या है परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली 21 3-96 जन्म दिन पूजा उन्होंने इस मस्तिष्क को पूरे तरह से इस मन से भर दिया। मन इनके ऊपर छाया हुआ है और जहाँ चाहे मन वहीं बहकते रहते हैं। उस बहाव में बहते रहते हैं। उस और चलते रहते हैं, एक कत्रिम सी चीज़ अपने अन्दर स्थापित हो गई है। जिसे हम मन कहते हैं, असल में मन नाम की कोई चीज न थी न है। इसलिए मन से परे जाना ही सहज का कार्य है। अब आप मन से परे जाएगें तभी आप उस शान्ति को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि मन हमेशा विचारों से, जो कि अहंकार और हमारे संस्कार, (प्रति अहंकार) से आते रहते हैं, उसे आड़ोलित करता है। इसलिए कोई शान्ति आप महसूस नहीं कर सकते। अगर शान्ति को आपने प्राप्त करना है तो इस कृतरिम मन से परे जाना चाहिए। इसलिए हमारे यहाँ जो प्रथम दशा सहज की मानी जाती है, जिसे कि हम निर्विचार समाधि कहते हैं, उसको प्राप्त करना चाहिए। उसके प्राप्त करते ही आप देखते हैं कि आप शान्त हो जाते हैं। आपके अन्दर जमे और जिनके कारण आप गलत-गलत चीजो में घुसे रहते है और परेशान रहते हैं, तकलीफ में रहते हैं. तरह से चीज मिट जाती है। यह विषय आज नया मैंने शुरू किया है क्योंकि अब भी हमारा निर्विचार में समाधिस्थ होना इतने प्रेम, आदर और श्रद्धा से आप मेरा जन्मदिन मना रहे हैं, यह देखकर ऐसा लगता है कि हमने ऐसा किया ही क्या है जो आप लोग इस तरह अपना प्रेम दिखा रहे हैं आज में आपको एक अनूठी बात बताने वाली हूँ, कि हमारे अन्दर जो मन नाम की संस्था है, वो एक मिथ्या बात है। वो मिथ्या ऐसी है कि जब हम पैदा हाते हैं तो हमारे अन्दर ये मन नाम की बात कोई नही होती। जब धीरे- धीरे हम बाह्य में प्रतिक्रिया करते हैं, दोनो तरफ की, तो कोई हममें संस्कार बनाता है और कोई हमारे अन्दर अहंकार का भाव जागृत करता है, तब उन प्रतिक्रियाओं से जो हमारे अन्दर चीज़ जागृत होती है वो बुलबुलों की तरह इकट्ठी हो जाती है और यह हमारे विचारों के बुलबुले हमारे अन्दर मन नाम की एक संस्था बना देते हैं यह सारी चीजें हमारे अन्दर ऐसी घटित होती हैं, कि जिसे हम खुदी बनाकर के और उसकी गुलामी करते हैं जैसे घड़ी इन्सान ने बनाई है और हम घड़ी की गुलामी करते हैं। सहज में फिर आप कालातीत हो जाते हैं। आप इससे परे हो जाते हैं। समय, आप के साथ चलने लगता है आप समय के पीछे नहीं दौड़ते। अब कम्प्यूटर आज कल लोग बना रहे हैं, कम्प्यूटर के बनने से उसी की गुलामी लोग करने लग गए और इस गुलामी में इस कदर बहक गए हैं कि वो यह नही समझ पाते कि कम्प्यूटर ही उनको पूरी तरह से दबोचे जो कुछ विचार हैं जो कि एकत्रित हो गए हुए वो सभी एक कुछ कम और जब तक आप निर्विचार में उतरेंगे नहीं तब तक आप चारों तरफ फैली इस परमेश्वर की शक्ति को प्राप्त नही कर सकते, उससे सरबंधित नहीं हो सकते। बीच में मन की जो स्थापना हुई है, यही आपकी स्थिति, जो कि योग में होनी चाहिए, उसे खत्म कर देती है। आज मैंने सोचा थोड़ा अंग्रेजी मे भी बोलना चाहिए क्योंकि यहाँ बहुत से परदेश से लोग आए हैं। इसी विषय को मै अग्रेंजी में बताना चाहूँगी। है -हुए है। उनको कन्ट्रोल करना है। उसके दबाव में आ गए हैं। उसके काबू में आ गए हैं और उसके बगैर इनका कुछ काम नहीं चलता। अभी तक हिन्दुस्तान में इसकी प्रथा इतनी आई नही, नसीब समझ लीजिए नहीं तो आप को भी दो और दो को मिलाने के लिए कम्पयूटर आपके चाहिए। वो भी आप नहीं मिला पाएँगे क्योंकि अपनी बुद्धि आप इस्तेमाल नहीं कर पाए। तो आपका जो मस्तिष्क में बुद्धि का वास्तव्य हैं वो तो सत्य है, किन्तु ये जो मन है यह एक बनाई हुई संस्था है। हमारी अपनी तरफ की जो प्रतिक्रियाएं हैं। अहंकार की और हमारे संस्कारों की वो बनी हुई एक बहुत ही कृत्रिम सी एक शापिक चीज़ है। फिर हम इसी से हमेशा प्लावित रहते हैं खास कर के जो लोग अपने को ही सोचते हैं कि हम बहुत ही विद्वान, बहुत समझदार, बड़े पढ़े लिखे हैं, श्री माता जी की अमूल्य शिक्षा ताईवान में चार रातें और पांच दिन के प्रवास में श्री माता जी ने ताईवान की सामूहिकता को जो अमूल्य शिक्षा- मोती प्रदान किए वे इतने सुन्दर हैं कि हम उन्हें बारम्बार सुन सकते हैं। बहुत सत्य ही प्रेम है। सहज योग केवल परमात्मा के प्रेम 13 चैतन्य लहरी देखना, बनना नहीं है; बन जाना ही उपस्थिति है। सुषुप्ति गहन निद्रा अवस्था में प्रायः योगीजन भविष्य को देखते हैं परन्तु कभी कभी यह अत्यन्त भ्रामक एवं त्रुढिपूर्ण होता है। की बात करता है। किसी से जब हम प्रेम करते हैं तो उस व्यक्ति की विस्तृत जानकारी हमारे लिए आवश्यक होती है। प्रेम की ऊर्जा विकसित करके उसे अपनी दिनचर्या में प्रकट जा नि करना होता है। अन्न्तदर्शन मानसिक गतिविधि नहीं है। निर्विचार- चेतना (समाधि) की स्थिति में जब हम होते हैं तो स्वत: ही अन्तःदर्शी होते हैं। तब हम स्वयं के साक्षी बन जाते हैं । ध्यान करते हुए संगीत तभी तक न्याय संगत है जब तक उसके प्रति हममें कोई प्रतिक्रिया न हो। श्री माता जी की फोटो को देख पाने के लिए पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए; सहजयोग प्रचार करना सभी सहजयोगियों की जिम्मेदारी है? यह मात्र अगुआ का ही उत्तरदायित्व नहीं। ग्रीष्म काल में सभी जिगर का इलाज (बर्फ क्रिया करना याद रखें। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चांत् चैतन्य लहरियां अनुभव करने के लिए, नए साधकों को चाहिए कि सब को क्षमा कर दें। बहुत तीव्र प्रकाश या पूर्ण अन्धकार अच्छा नहीं होता। नये लोगों से बातचीत करने की विधि श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत बैंकाक, (मार्च - 1995 ) (सारांश) दि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना अति सुगम है, परन्तु न ही किसी बात पर असहमत होना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। श्री माता जी हमे स्मरण करवाती है कि, हम सब एक है।" सहजयोगी बनना अत्यन्त कठिन है क्योंकि इसके लिए मानवीय चेतना का ईश्वरीय चेतना में परिवर्तित होना आवश्यक है। गहन विकास की यह यात्रा जोखिमों से भरी हुई है, अत: नये साधकों की अत्यन्त सहृदयता, प्रेम एवं सूझबूझ से सहायता की जानी चाहिए। आरम्भ मे ही, यह एक अच्छा विचार है, यदि साध क का कोई गुरू है तो हम साधक से पूछे, "क्या आपके गुरु ने आपको शान्ति प्रदान की? क्या उसने आपको आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया?" यह बात उन्हें समझाना आवश्यक है। तब उन्हें बताएं कि सहजयोग से उन्हें क्या लाभ हो सकते हैं । तब वे सभा संचालन करने के लिए विस्तृत परामर्श देती हैं। विवेकानुसार समय निश्चित करके अपना वीडीयो, टेप चलाने पर बल देती हैं और इसके पश्चात यदि साधकों के कोई प्रश्न है तो शान्ति पूर्वक उनके उत्तर देने के लिए कहती हैं। इसके पश्चात सब लोगों को ध्यान में चले जाना चाहिए। एक रुचिकर बात जो वो बताती हैं वह यह है, इस स्थिति में अधिक बातें करना उन्हें भी खराब करेगा और हमे भी। उनकी कुण्डलिनी उठाने के और उनकी तन्त्र (शरीर) स्थिति जानने के पश्चात (कि वे आक्रामक स्वभाव के है या तामसिक प्रकृति के) हमें चाहिए कि उन्हें बताएं कि वे किस प्रकार ध्यान धारणा आरम्भ करें और क्या चीज उनके लिए विशेष रूप से सहायक होगी। श्री माता जी के इस प्रवचन को सुनने के लिए यह टेप खरीद लेना अत्यन्त लाभकारी होगा। अत्यन्त प्रेम पूर्वक वे समझाती हैं कि किस प्रकार श्री माताजी जी स्पष्ट कहतीं हैं कि नए लोगों के प्रति हमे अत्यन्त सहज ढंग से अपनी अभिव्यक्ति करनी है। ताकि उन्हें लगे कि इनका व्यवहार आक्रामक या मुकाबला करने वाला नही है और आरम्भ मे हमें चाहिए कि उनके गुरुओं तथा मार्गो की निंदा न करें। इसकी अपेक्षा हमें कोई समानता की बात खोज लेनी चाहिए जो उनके लिए सुखद हो, जैसे 'हां मै भी ऐसा ही हुआ करता था, परन्तु अब में पहले से अच्छा हूँ।" वे इस चुनौती के जन- सम्पर्क के महत्व पर बल देती हैं। इस मधुर अनौपचारिक वार्ता में श्रीमाता जी ने सर्वपरिचित समस्या के विषय में बताया कि किसी भी क्षेत्र से उनके जाने के पश्चात साधकों को क्या हो जाता है और वे सब लुप्त क्यों हो जाते हैं। इस स्थिति में हमारा चरित्र और आचरण शैली अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वे कहती हैं कि हमारा परस्पर व्यवहार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इस बात पर बल देती हैं कि नए लोगों के सम्मुख हमें न तो लड़ना चाहिए और 14 चैतन्य लहरी के में सक्रिय रूप से कार्यरत थी। श्री माता जी ने उन्हें बताया कि वे सहजयोग के लिए अत्यन्त सहायक होगें। थाइलैंड में बहुत से सिख और पंजाबी रहते हैं परन्तु उन्हें सहजयोग अपनाने में कुछ समय लगेगा भारत में भी आरम्भ मे चीजों की गति बहुत मन्द होती थी। दस वर्ष तक बिना कोई अधिक सफलता प्राप्त किए श्री माता जी दिल्ली जाती रहीं, परन्तु अब वहाँ सोलह हजार ध्यान धारणा करने वाले सहजयोगी हैं और सहजयोग पूरे उत्तरी भारत में फैल गया है। इस वर्ष जब वे उत्तरी भारत के देहातों में गई तो भारी संरख्या में लोगों को रेलगाड़ी में तथा प्लेटफार्म पर अपने गुणगान करते हुए देखकर वे आश्चर्य चकित रह गई | रूस में सहजयोग के विकास को देखकर श्री माता जी आश्चर्य चकित थीं। आजकल वहां इक्कीस हजार लोग सहजयोग कर रहे हैं उन्होंने केथोलिक चर्च और यूरोप में पादरियों के हास्यास्पद आचरण के विषय मे भी बताया। उन्होंने हम अन्य लोगो से व्यवहार करें।"अब आप लोग जान लें कि हम प्रेम की शक्ति में विश्वास करने वाले लोग हैं । " अतः हमें लोगों के प्रति अति विनम्र होना होगा उन पर हमें न तो क्रोध करना है और न ही उन्हें परेशानी में डालना हैं। उन्हें विश्वास करना आवश्यक है कि सभी कुछ ठीक हो जाएगा। वे एक रुचिकर बात बताती हैं कि यदि कोई विशेष समस्या हो तो हम उन्हें बताएं कि किस प्रकार इसे ठीक करें तथा उन्हें यह भी बताएं कि हम या वो अगुवा के माध्यम से श्री माता जी को इस विषय में लिख भी सकते हैं । श्री माता जी इसकी रुचिकर तुलना एक व्यापारी की उसके ग्राहक के प्रति मधुर व्यवहार से करती हैं। हमें चाहिए कि नए साधक को अहसास करांए कि उसे बहुत प्रेम किया जाता है। और हमारे सहचर्य वठ बहुत शान्त तथा सुरक्षित हैं। उन्हें इस बात का अनुभव करने दें कि हम वास्तव में गहन एवं साक्षात्कारी लोग हैं। तब वे हमारे परस्पर आचरण पर बल देते हुए कहतीं हैं कि हम एक दूसरे को बीच में न टोकें और परस्पर गहन सम्मान का प्रदर्शन करें। एक पुस्तक का वर्णन किया जो कि इन सबका पर्दाफाश करने के लिए लिखी जा रही है। उन्होंने बताया कि फ्रांस में वास्तव में अभ्यास करने वाले ईसाई नहीं हैं है कि के लोग मुस्लिम धर्म और सहजयोग के पीछे दौड़ रहे है। उन्होंने हमें कहा कि चिन्ता की कोई बात नही है, जहां भी सहजयोग हैं वहां सभी कुछ गतिपूर्वक कार्यान्वित हो । और यही कारण इस प्रकार का आचरण सहज योग के विकास में हमारी बहुत सहायता करेगा उन्होंने बैंकाक के सहयोगियों को विश्वास दिलवाया कि वे बहुत बार वहां लौटकर आएगी और समय के साथ साथ वहाँ पर बहुत से सहज योगी होंगे। इस वार्तालाप में श्री माता जी बैंकाक के सहजयोगियों को प्रोत्साहित कर रहीं थी। बैंकाक के बाजार में स्त्रियाँ और पुरुष स्वतः ही उनके चरण कमलों में प्रणाम करने के लिए आ गए थे। यह बहुत अच्छा चिह्नन था क्योंकि इससे प्रकट होता था कि जागृति आ चुकी है। इतना ही नहीं श्री माता जी ने वहां के समाज के कई प्रभावशाली लोगों को आत्म साक्षात्कार प्रदान किया। वे लोग श्री माता जी के कार्य से अभिभूत थे, विशेषकर राजकुमारी जो कि मठ वासिनी (नन) बन गयी थी और देश की महिलाओं की दुर्दशा को ठीक करने जाएगा। इसका प्रमाण यह है कि अब अमेरिका में भी बहुत से लोगों ने सहजयोग को अपना लिया है। इसकी उन्हें कभी आशा भी न थी। हमें पुनः स्मरण कराते हुए कि, "हम देवदूत है और हमें अन्य लोगों के प्रति अति विनम्र एवं मधुर होना होगा। श्री माता जी ने सावधान रहने की चेतावनी देते हुए अपना प्रवचन समाप्त किया। उन्होंने कहा कि पति पत्नी के बीच पूरा मेल मिलाप होना चाहिए तथा बच्चों से अत्यन्त सहृदयता और प्रेम पूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। नवरात्रि पूजा-कबेला-इटली-1.10.1995 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दुर्गा ने सभी साधकों तथा जिज्ञासुओं की रक्षा की तथा सत्य साधकों को सताने तथा कष्ट देने वाले दुष्टों का वध किया । उनके सारे अवतरण साधकों को इन आसुरी शक्तियों से रक्षा करने के लिए थे, इस प्रकार साधक सत्य को प्राप्त कर लिया है। इन सब भिन्न अवतरणों ने साध कों को सिखाया कि उनके जीवन का उपयोग क्या है| सर्वप्रथम वे अत्यन्त व्यग्रता से सत्य को पाने का प्रयत्न कर रहे थे; इसके लिए वे अगम्य स्थानों पर गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि एकान्त स्थानों पर उन्हें शक्ति प्राप्त होगी तथा मन आधुनिक युग तक पहुंचे और अब वे सत्य हैं या उन्होंने चैतन्य लहरी 15 किया, आपकी रक्षा करते हुए वे आपको मानव असतित्व के स्तर पर लाएं हैं। अब यह अन्तिम सीढी भी आपने पार कर ली है, आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है और आपमें से को एकाग्र करके वे सत्य पा सकेंगे। उन्होंने बहुत से त्याग किए अपना वैभव त्यागा क्योंकि इससे उन्हें परेशानी हो रही थी, अपने परिवार त्याग दिए, क्योंकि ये भी उनके साधना पथ से लोग बहुत से लोगों ने महान ऊचाइयाँ पा ली हैं। हमारे अन्दर यह शक्ति, (कुण्डलिनी) जिसने हमें परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जोड दिया है, यह सदा सर्वदा से आपकी रक्षा कर रही थी। आपकी देखभाल कर रही थीं और आपका पथ प्रदर्शन करने के लिए संघर्षरत थी ताकि इस कलियुग आप आत्मसाक्षात्कार को पा लें। कहा गया था कि कलियुग में ही यह घटना होगी। कि पर्वतों और वादियों मे परमात्मा को खोजने वाले लोग परमात्मा को पा लेंगे। परन्तु वे सामान्य लोग होंगे, उनके घर परिवार होंगे। और वे समाज में सामान्य जीवन व्यतीत करेंगे वे साधु सन्यासी न होंगे, विवाहित लोग होंगे, उनके बच्चे होंगे और इस प्रकार से सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान होगा। बहुत पहले यह भविष्यवाणी की थी। यह बहुत पहले कहा गया था। मेरे विचार से यही दैवी योजना थी। परन्तु इसका भी श्रेय आप लोगों को जाता है कि आपने सत्य को पहचाना। यह पहचान अत्यन्त प्रशंसनीय है और में हैरान हूँ कि किस प्रकार खोए हुए बच्चे अपनी मां को खोजते हुए उसके पास लौट आते हैं। उसी प्रकार आप सब यहां है। परन्तु हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह उपलब्धि हमें सुगमता पूर्वक बिना किसी कठिनाई के प्राप्त हो गयी है। क्योंकि इससे समस्या उत्पन्न हो सकती है जिसके परिणाम स्वरूप हमारे उत्थान की गति कम हो सकती है और हमारा समर्पण भी कम हो सकता है। अत: की बाधा थे। ये सब चलता रही। आज भी बहुत समझते हैं कि सन्यासी बन जाने से व्यक्ति सत्य को पा सकता है। बुद्ध ने ऐसा किया, महावीर ने ऐसा किया, उनका जीवन केवल महान तपस्या है। उनकी तपस्या के परिणाम स्वरूप हमें आशीष प्राप्ती हुई है, कि जैसे भी हम हैं, हम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार के लिए लोगों ने इतना कठोर संघर्ष किया, कि जो यातनांए उन्होंने सहीं उसके विषय में जानकर हम आश्चर्य चकित रह जाते में हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लक्ष्य से ही उन्होंने यह सब कष्ट सहे, तथा यह कठोर तपस्या की। साधना के समय में भी बहुत से दुष्टों ने उन्हें कष्ट देने, सताने तथा उनकी हत्या करने का प्रयत्न किया। पर इन आतताइयों को समझ न थी कि वे क्या कर रहे हैं। वे साधकों पर हंसते थे, उनका मजाक उड़ाते थे। इसके देखते हुए हम समझ सकते है कि हमें आत्मसाक्षात्कार अति सुगमता से मिल गया है, बिना किसी व्रत रखे, बिना कोई कष्ट, यातना या कठिनाई सहे। यह सत्य नहीं है क्योंकि आप ही वे लोग है जिन्होंने पूर्व जन्मों में यह तपस्याएं की थीं और इसी कारण आप यहां विद्यमान हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना आपका अधिकार भृगु मुनि ने बन गया है। ऐसा कहना उचित न होगा कि बिना कुछ किए हमें आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। जन्म जन्मान्तरों से आप 1. साधक थे। जिस भी मार्ग पर आप चले, जिस भी धर्म का अनुसरण आपने किया यह आपके लिए कष्टों से परिपूर्ण था । आज आपकों इन कष्टों का फल प्राप्त हुआ है, जिसके कारण आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बन गये है परन्तु किसी भी प्रकार से हम मनुष्यों को देखें तो हम जान सकते हैं कि सुगमता से प्राप्त की हुई किसी भी चीज का मूल्य वे नहीं समझते। इसे सुगमता से प्राप्त करने के लिए, वास्तव में आपको जानना आवश्यक है कि बिना कुछ बने आपने इसे नहीं पा लिया है। आपमे कुछ महानता थी, आप महान सन्त थे जो हिमालय में गये बहुत से व्रत आदि किए और परमात्मा के नाम पर आपमे से बहुतों की हत्या कर दी गई। आज जो भी कुछ आपने प्राप्त किया है, जो आत्मसाक्षात्कार आपने पाया है उसे केवल श्री माताजी की ही नहीं समझ लेना जिसे आप सुगम समझते है वह बिल्कुल सुगम नहीं है। यह सहज है या हम कह सकते है कि स्वतः है। अब यह समझना आप लोगों पर निर्भर करेगा कि यह समय कितना महत्वपूर्ण है। हमें पूरे विश्व की बचाना है। अपने चित्त के प्रकाश में आपने ऐसा करने का मार्ग खोज निकालना है। रुस में मुझे एक अत्यन्त उच्च विकसित आत्मा का अनुभव हुआ जो कि वहां के अत्यन्त प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। वह रूस के महानतम वैज्ञानिकों मे से एक हैं। वह आध्यात्मिकता का भी आनन्द ले रहा है। उसने लोगों को बताया कि मैं आध्यात्मिकता में बढ़ रहा हूँ, मैं श्री माता जी को मिलना चाहता हूँ। मैंने कहा ठीक है, मुझे उससे मिलना अच्छा लगेगा। जब वह मेरे पास आया तो मेरी ओर देखकर कहने लगा श्री माता जी में जानता हूं कि आधुनिक युग में आप परमात्मा का अवतार है।" एक वैज्ञानिक को ऐसा कहते हुए कृपा चाहिए। अपने महान व्यक्तित्व के कारण ही आपने इसे प्राप्त किया है। अन्यथा आपको आत्मसाक्षात्कार प्रदान करना मेरे लिए असंभव होता। जो भी कार्य था उसे देवताओं ने 16 चैतन्य लहरी आपसे मिलने की प्रतिक्षा में था इसे आरम्भ कर दूंगा। मुझे देख में हैरान थी। परन्तु उसकी दृष्टि अत्यन्त पवित्र तथा श्रद्धा एवं नम्रता से परिपूर्ण थी। तब उसने कहा, "यदि आप मेरी सहायता करें तो मैं कुछ कार्य करना चाहता हूँ।" मैंने कहा, "आप क्या करना चाहते है? वह कहने लगा, "मैं आपकी शक्ति कों नहीं माप सकता, में ऐसा नहीं कर बहुत सा कार्य करना है, मैं यह सब श्री माता जी के जीवन काल में ही करना चाहता हूँ ताकि वे हमारे कार्य को देख सकें। मैं हैरान थी कि यह व्यक्ति कहां से टपक पड़ा। एक वैज्ञानिक से इस प्रकार का अनुभव। रूस में उच्च पदारूढ लोगों के पास बहुत से विचार हैं। परन्तु आध्यात्मिकता और नैतिकता मुख्य हैं एक अन्य सज्जन पुरुष थे जो मुश्किल से तीस-बत्तीस वर्ष की आयु के होंगे। अत्यन्त तेजमय। मेंने उनसे पूछा मुझसे आप क्या चाहतें हैं?। उसने कहा कुछ नहीं। आपने हमारे लिए बहुत कार्य किया है। अब हम आपके लिए कार्य करेगें। तो आप सकता।" उसके पास एक शक्ति मापक यन्त्र था। मैं आपके फोटो की शक्ति भी नहीं माप सकता। उसने मुझे एक संख्या बताई जो में समझ न सकी। यह कुछ ऐसी थी कि जैसे सात सौ का शक्ति गुणनफल जो कि अरबों X अरबों था। मैंने कहा कि मैं तो इस संख्या को जानती भी नहीं। उसने मुझे बताया कि आपके चित्र की इतनी शक्ति है। मैंने कहा ठीक है अब आप मुझसे क्या चाहते है? मेंने उसे कहा कि यदि वह समझाता है कि मेरे फोटो में इतनी शक्ति है तो वह इसे ले जा सकता है। अति सम्मान पूर्वक उसने मेरा फोटो लिया और चार पांच बार मेरे सम्मुख झुका आप क्या करेंगे। कहने लगा कि में इसे उपग्रह पर स्थापित करुगाँ। अब आप उपग्रह की प्रक्षेपण क्रिया को देखें फिर आप क्या करेंगें? में इस फोटो के पीछे विधुत चुम्बकीय शक्ति डालूगां और क्येंकि विधुत चुम्बकीय शक्ति वस्तुओं के क्या करना चाहते हैं? उसने उत्तर दिया कि मैं यहां की सरकार में आध्यात्मिकता अधिकारी हूँ। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? हमारी किसी भी सरकार में आध्यात्मिकता सम विषय नहीं है। वह कहने लगा कि मुझे छोटी आयु से लेकर महाविद्यालय स्तर के बच्चों का मार्गदर्शन करना होता है। श्री माता जी क्या आप मुझे बता सकती हैं कि किस आयु में बच्चे आध्यात्मिकता को अधिक स्वीकार करते हैं । मैंने कहा इसके विषय में कोई विशेष नियम नहीं है, परन्तु बहुत छोटे बच्चे क्योंकि अबोध होते हैं, अत: उनमें आध्यात्मिकता शीघ्र कार्य करती है। उसने मुझसे पूछा कि उनमें आध्यात्मिकता किस प्रकार जागृत करें। मैंने कहा कि आप उनकी कुण्डलिनी उठाएं, उन्हें बन्धन दें और उनके चित्त इतने सुन्दर हो जाएगें कि आप आश्चर्य चकित होंगे। उसने कहा कि मैं इस आयु के सभी लोगों को इकटठा करके उन्हें बताऊंगा कि सहजयोग ही ठीक मार्ग है। मैंने पूछा इस फोटो का अन्दर प्रवेश कर सकती है अतः इस शक्ति के माध्यम से आपके चित्र की चैतन्य लहरियां भी हर चीज में प्रवेश कर सकेंगी। इस प्रकार उपग्रह के माध्यम से आपकी चैतन्य लहरियों को प्रक्षेपित करके हम सार्वभौमिक समस्याओं को सुलझा लेंगे। सर्वप्रथम में आपकी शक्ति के माध्यम से पृथ्वी को उपजाऊ बनाना चाहूंगा। इसके उपरान्त जहां भी में इसे प्रक्षेपित करुगां सभी समस्याओं का हल हो जाएगा। मेरा एक तब एक तीसरा व्यक्ति आया। वह संसद का सदस्य भी था, अत्यन्त प्रग्लभ। पहले वह येलत्सिन का दांया हाथ था, परन्तु बाद में उसने उसे छोड़ दिया। कहने लगा कि येलत्सिन चरित्रवान नही है चरित्रहीन व्यक्ति के साथ में फोटो, क्या आप कल्पना कर सकते हैं। उसका चित्त प्रकाश देखिए में आश्चर्यचकित थी। इस व्यक्ति को देखो। हर समय वह क्या सोचता रहता है। कहने लगा यह बिल्कुल कठिन नहीं है। मैंने उसने मुझे दिखाया, मेरे द्वारा चैतन्यित जल उसने उस स्प्रिंग पर डाला और वह स्प्रिंग उछलने लगा। तब उसने अपनी मशीन द्वारा दिखाया की कितनी तेजी से वह चीज गतिशील थी। श्री माता जी आप देखिए कि जिस जल को आपने चैतन्यित किया है वह कितना महान है। मैंने कहा मैंने कभी कैसे ? तो उसने एक स्प्रिंगं के माध्यम से पूछा कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। उसने बताया कि वह किसी अन्य दल द्वारा चुने जाने की सोच रहा है। जिसका नाम 'मेरी मातृ भूमि है। इस दल में गणतन्त्र या साम्यवाद जैसे बन्धन न होंगे जो भी मेरी मातृभूमि के हित में होगा वही हम करेगें। अत्यन्त व्यवाहारिक। इस प्रकार का सत्यनिष्ठ व्यक्ति। उसने कहा कि नैतिकता मानव जीवन का आधार है। यदि मनुष्य में नैतिकता नहीं है तो बाकी सब व्यर्थ है । में जब यूक्रेन गई तो एक प्रकार के आदिवासी रंगो से बनी बहुत सुन्दर चित्रकारी देखी। उन्होंने बताया कि ईसाइयों के आने से पूर्व ये बनाई गयी थी। उन्होंने मुझे एक सोचा भी न था कि आप इस शक्ति को इस प्रकार परिवर्तित कर देंगे कि यह भौतिक पदार्थों पर भी कार्य करने लगे। उसने बताया कि यह श्क्ति किसी भी चीज पर कार्य करेगी इसी शक्ति ने इस चीज को सृष्टि की है। अतः यह हर चीज पर कार्य करेगी। मैं हैरान थी, वह कहने लगा कि मैं केवल 17 चैतन्य लहरी पत्रिका दिखाई जिसमें आदिशक्ति का फोटो था। वे इसे अदिति कहते थे, संस्कृत में भी हम अदिति कहते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं। तब उन्होंने बताया कि ईसाई क़ान्ति से पूर्व यह संस्कृति विद्यमान थी। मूलाधार चक्र और आज्ञा चक्र की भी भिन्न प्रकार से बनी चित्रकारियां थीं । उन्होंने बताया कि इस विषय पर हमारे पास पुस्तकें हैं परन्तु चर्च के कारण इन्हें बेकार कहा जाता है। वे कहने लगे कि हमारे सम्बन्ध भारत के साथ थे। वे लोग आर्य थे और हम उनसे मिला करते थे। मच्छीन्दरनाथ उत्तरी भारत में गये थे। हो सकता है कि वे यूक्रेन भी आए हो। यूक्रेन शब्द 'कुरू से आया है। मैं हैरान थी कि उनकी कितनी सुन्दर संस्कृति थी। यह अविश्वसनीय बात थी। उन्होंने बताया कि ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व यह सुंस्कृति थी। वे कहने लगे कि भारतीय ही आध्यात्मिकता का स्त्रोत हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कितने वर्ष पूर्व यूक्रेन में कुण्डलिनी का अस्तित्व था ? आध्यात्मिकता की इतनी सुन्दर संस्कृति! पहली बार जब मैं यूक्नेन गई तो कार्यक्रम में चिरनोबिल से लोग आए। आप जानते हैं कि वहाँ बहुत बडा परमाणु विस्फोट हुआ था। वहां के कुछ लोगों की अंगुलिया कटी हुई थी। किसी के शरीर पर फोड़े थे, किसी की नाक टेड़ी की जड़े मूल रूप से आध्यात्मिकता से सींचित हों। यह एक प्रकार का चमत्कारिक रहस्योद्घाटन हैं जिसे वहां देखा जा सकता है। किस प्रकार वे कुण्डलिनी, आदि शक्ति और आध्यात्मिकता के विषय में जानते हैं और इस बात का उन्हें ज्ञान है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् मनुष्य पर क्या घटित होता है। एक विशेष बात जो उनमें थी, वह यह थी कि वे अत्यन्त नम्र लोग थे। मैं समझ नहीं सकती वे किस प्रकार मेरे सम्मुख नतमस्तक थे। कभी- कभी तो में सोच भी नहीं सकती कि किस प्रकार इन लोगों में यह आध्यात्मिक विवेक और यह शान्ति है। उनके यहां सैनिक विद्रोह हुआ, मैंने उनसे पूछा "क्या आप चिन्तित नहीं हैं? यहाँ पर यह सैनिक विद्रोह हो गया है और मैं नहीं जानती कि आपके देश का क्या होगा।" कहने लगे, "हम क्यों चिन्ता करें हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम रूस में नहीं हैं। अत: हम क्यों चिन्ता करें। " इतने अच्छे लोग वहां पर हैं आध्यात्मिकता के प्रति इतने सवेदनशील उन्होंने वास्तव में सभी कुगुरूओं को निकाल फेंका है और मेरे लिए वे इतना सम्मान और प्रेम दर्शाते हैं। केवल मेरे लिए ही उन्होंने यह सम्मेलन किया था । में यह सब बात आप को इस लिए बता रही हूँ क्योंकि आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है। अब आपने अपनी आत्मा को महसूस कर लिया है। नि:सन्देह आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। परन्तु अब आप इस बात को अवश्य समझ लें कि आपकी यह शक्ति आप के साथ क्या करती है और आपमें क्या सृष्टि करती है। महत्वपूर्णतम चीज जो यह है कि इस शक्ति द्वारा आप निर्विचार समाधि की स्थिति को पा लेते हैं। आप वर्तमान में आ जाते हैं और वर्तमान में आना असंम्भव कार्य है निर्विचार चेतना में पहुंचने के पश्चात् आपके मस्तिष्क पर विचारों का आक्रमण नहीं होता। चाहे जहां कहीं भी आप हों। इसका अर्थ क्या है अत्यन्त सरल भाषा में आप कह सकते है कि इसका अर्थ यह है कि आप अपने विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करते। आपका मस्तिष्क प्रतिबिम्बित करने वाला नहीं होता। आज यह सहजयोगियों की मूल समस्या हैं। जिस पर विजय पाने का प्रयत्न आपको करना चाहिए। ताकि आप अपने विचारों को प्रतिबिम्बित न करें। उदाहरण के रुप मे, मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो बिना बात के हंसने लगते हैं किसी को देखते ही वे तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं। हर चीज के विषय में वे अपनी राय देने लगते हैं। सभी लोग ज्ञान से परिपूर्ण प्रतीत होते हैं और बताने लगते हैं कि स्वोत्तम क्या है और क्या नहीं। क्या अच्छा नहीं हो गई थी। परन्तु इस बार सभागार भरा हुआ था। आने जाने के रास्ते भी भरे हुए थे और फिर भी लोग बाहर खड़े थे। उन्होंने बताया कि हम लोगों को चिरनोबिल से हानि पहुंची थी। अब आप हमें देखिए हम पूर्णतया ठीक हो गए हैं मेरे कार्यक्रम में आए। अब वे ठीक हो चुके थे । मैं आश्चर्य किया करती थी कि ये रूस और यूक्रेन के लोग आध्यात्मिकता के प्रति इतने सवेंदनशील क्यों हैं। तब मैंने महसूस किया कि इन लोगों के पास आध्यात्मिकता प्राचीन काल से ही थी। प्राचीन काल से ही वे इसका अभ्यास कर रहे थे। परन्तु इस स्तर तक कुण्डलिनी जागृति का अभ्यास किसी ने भी नहीं किया। सभी गांवो में लोग मूलाध र और अगन्य चक्र की स्पष्ट चित्र बनाया करते थे और अगन्य चक्र के चीनीयों का 'यीन' और 'येंग' था। इसे खोज लेने के पश्चात वास्तव में मुझे लगा कि विश्व में बहुत से ऐसे लोग होंगे। कोलम्बिया में भी इसी प्रकार के कुण्डलिनी कुंभ आदि सभी कुछ है। मेरे विचार में यह ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व से है। अत: हम देखते हैं यह सारा ज्ञान इन सभी देशों में है और यह लोगों के मस्तिष्क में कार्यरत है। वे अत्यन्त अन्न्तदर्शी थे। इस प्रकार की संवेदनशीलता तभी आती है जब देश चैतन्य लहरी 18 म रूप में न समझ सकें और इस प्रकार अपनी चैतन्य लहरियां अपनी शक्तियों को खोते चले जाएं क्योंकि आपका वज स्वयं पर नहीं होता अत: अन्नर्तदर्शन यदि निराशा तथा व्यक्तित्व की अप्रतिष्ठा लाता है तो अच्छा होगा कि आप अन्तदर्शन न करें, क्योंकि मैंने देखा है कि यह सभी मानसिक गतिविधियां समस्याओं की सुष्टि करती हैं । निर्विचार चेतना की स्थिति में आपमें स्वयं ही अन्न्दर्शन होता है। आप इसे स्वत: ही देखते हैं और समझते हैं। इसके विषय में सोचते नहीं यह बस आपको हो जाता है। पूरी तस्वीर आपमें आ जाती है और आप अपने आप में अत्यन्त शान्त हो जाते हैं। आपमें कभी अशान्ति नहीं होती। कष्ट की स्थिति में आप कभी नहीं होते और तब आप न तो नाराज होते हैं है और चे इस प्रकार का कुछ न कुछ कहने लगते हैं। उनका मतिष्क चिन्तनशील हो उठता है। मस्तिष्क जब चिन्तनशील नहीं होता तब आप निर्विचार चेतना की स्थिति में होते हैं। हर चीज को आप साक्षी रुप से देखें। चिन्तन न करें। अपनी मानसिक शक्ति को यदि आप उपयोग कर रहे हैं तो यह शक्ति घट जाती है। लोगों में यह बहुत ही सामान्य दोष है क्यांकि आप लोग अच्छे पढे लिखे और बुद्धिमान हैं। मैं नही जानती कि आप क्या सोचते है परन्तु आध्यात्मिकता के लिए चिन्तनशील मस्तिष्क बहुत हानिकारक है इस प्रकार आप कभी भी विकसित न होंगे। आपका मस्तिष्क यदि विचार विमग्न है तो आपमें कई तरह की भवनाएं होती हैं। उन भावनाओं के बशीभूत आप लोगों पर दृष्टि डालते हैं। आपका अपना बेटा या बेटी यदि हो तो उससे आपका तादात्मय हो जाता है। यह और न वाद विवाद तथा विचार विमर्श करते हैं। आप ऐसे बन जाते है मानो चेतना के सागर में आपको डाल दिया गया हो। समस्याओं को सुलझाने के लिए आपको चिन्ता नहीं करनी पड़ती। जब आप अन्न्तदर्शन की स्थिति में होते हैं तब यह शक्ति कार्य करती है । तादात्मय अस्वाभाविक है। यह वास्तविकता नहीं है। परन्तु विचार विमग्नता के कारण मस्तिष्क तादात्मय कर बैठता है। अब आपके बहुत से तादात्म (चिपकने) समाप्त हो चुके हैं। उदाहरणार्थ धर्म, जाति, राष्ट्र के विषय में आपके पूर्व विचार समाप्त हो गए हैं। परन्तु विचारशील मस्तिष्क कार्यरत है। आप सहजयोगियों के लिए यह सबसे बडी बाधा है। मैं सोच रही थी कि यह विचारशील मस्तिष्क सहजयोगियों में इतना चुस्त क्यों है। विचारशीलता को यदि आप त्याग दें तो तुरन्त स्वयं को शान्ति सागर में स्थापित कर लेते हैं। किसी चीज को जब आप देखते हैं तो बस देखें आपके मस्तिष्क में कोई विचार तरंग नहीं उठनी चाहिए। तब आप अत्यन्त रचनात्मक प्रग्लभ और करुणामय बन जाते हैं और आपमें कोई भय नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं कि यदि आप विनम्र हैं तो लोग आपको दबा लेंगे। भयभीत न हो। आपके अन्दर जो भी गुण अब यह कहना प्रतिवाद होगा कि आपको प्रक्षेपण करना है, अपनी छवि को प्रकट करना है, अपने विचारों की अभिव्यक्ति नहीं करनी। चिन्तनशीलता की स्थिति में हम आत्मसात करते हैं। किसी चीज पर जब हम विचार दृष्टि डालते हैं तो उस चीज को अपने अन्दर उतारते हैं। प्राय: हमारा चित्त दूसरे लोगों के दुर्गुणों पर जाता हैं, यह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वह अच्छा नहीं है, उसके बाल ठीक नहीं हैं, उसकी साड़ी ठीक नहीं हैं आदि सभी प्रकार की मूर्खताए। यह हम कर क्या रहे हैं? सभी बुरी चीजों को भी आत्मसात कर रहे हैं। जब आप किसी चीज की प्रशंसा करने लगते हैं तो आप उसकी बुराइयों को नहीं लेते। तब कम से कम आप बेहतर दिशा में होते हैं। परन्तु निर्विचार चेतना की स्थिति में हैं उनका आनन्द यदि आप उठाना चाहते हैं तो बिना विचारों में फसे आप आनन्द उठा सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सभी चीजें आप परमात्मा पर छोंड़ दें । आप इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। ये न सोचे कि आपको किसी चीज पर विचार करना है। अचिन्तनशीलता आपकी महानतम शक्ति है। किसी को इस प्रकार की दृष्टि से न देखना । परन्तु मैंने देखा है वह चीज अभी तक भी शेष है। मैंने आपको अन्न्तदर्शन के लिए कहा। अन्न्तदर्शन में भी विचारशीलता हो सकती है। परन्तु उससे आप अपनी अन्त: स्थिति को पा जाएगे। परन्तु प्रशंसा करना वास्तव में बहुत गहन है। यह बात मैंने एक महान वैज्ञानिक की दृष्टि में देखी । वह मुझसे पूर्णतः एक रूप था और उसकी आँखे शान्ति के समुद्र की तरह थी। कुछ देर बाद अपने विचारों में वापस आया और मुझसे कहने लगा कि हम आपके चित्र के साथ ऐसा कर सकते हैं अत: आपमें गहनता तभी उठ सकेगी जब आप विचारों को परावर्तित करना बन्द कर देंगे। परन्तु मनुष्यों के साथ यह आम बात है कि यह कालीन अच्छा नहीं हैं, वह चीज अच्छी नहीं है, यह गन्ध आ रही है आदि। सदा दूसरों को तोलने के लिए प्रयत्नशील। दूसरों की चीजों को तोलने के लिए प्रयत्नशील, जो कि महत्वहीन कार्य है। महत्वपूर्ण क्या है? अब जब उससे आप मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यन्त निराश हो सकते हैं। आप अपनी भर्तस्ना कर सकते हैं। हो सकता है कि आप स्वयं को एक महान व्यक्तित्व के 19 चैतन्य लहरी समझ पाती यह पूरे वातावरण को अपनी गतिविधियों से परिपूर्ण करने का प्रयत्न कर रहे हैं तो अपनी गतिविधियों को रोक लेना ही आपकी एकमात्र गतिविधि होनी चाहिए। आप आश्चर्यचकित होंगे कि उसी स्थिति में आप विकसित होंगे। केवल उसी विकास से आप उस वैज्ञानिक सम बन पाएगे। अब यह किस ग्रकार असंगत है कि जब आपमें गहनता होगी तो आप अपनी गहनता का ही प्रक्षेपण करेंगे, अपने मस्तिष्क का नहीं। कभी-कभी जब मैं प्रक्षेपण के लिए कहती हूँ तो लोग सोचते है कि मस्तिष्क (मानसिक विचारों) का प्रक्षेपण (प्रसारण) करना है। नहीं आपने अपने अन्तः स्थित वह गहनता, वह वास्तविकता प्रक्षेपण करनी है। इसके लिए आपको न त्तो सोचना पड़ता है और न इसकी योजना बनानी पड़ती है। यह स्वतः कार्य करेगी। परन्तु आपको इस प्रक्षेपण का यन्त्र बनना होगा। इसे समझना अति है। जैसे में अब इस यन्त्र की बात कर रही हैँ, अब यह यन्त्र यदि पूर्णतः ठीक है, इसमें कोई दोष नहीं है तो यह अत्यन्त शान्त होगा। परन्तु इसमें यदि हमारे मस्तिष्क ही तरह विचार भरे हुए हैं तो मैं जो कह रही हूँ वह बात वैसी की वैसी प्रसारित न हो पाएगीं जब हमारा मस्तिष्क उथल-पुथल, वाद विवाद, टीका टिपण्यों मे था, हम कह सकते हैं, चिन्तनशीलता से परिपूर्ण है तब मस्तिष्क अशान्ति के भंवर में फंस जाता है और स्वयं को पूरी तरह प्रक्षेपित नही कर पाता, क्योंकि यह अशान्त होता है इसकी स्थिति सामान्य नहीं होती। अब आप समझ जाएंगे कि कोई प्रतिवाद नहीं है। आप अपना प्रक्षेपण केवल तभी कर सकते हैं जब आप पूर्णतः शान्त होते हैं। यही हमें सीखना है। आपको जान लेना चाहिए कि 21 सितम्बर को जब सूर्य भूमध्य रेखा को पार कर लेता है तो विषुव EQUINOX) में पश्चिमी देशों में नवरात्रि आरम्भ होती हैं। नवरात्रियां दो होती हैं। एक अब आरम्भ होती हैं और दूसरी दूसरे विषुव के पश्चात्। इस विषुव में मां मेरी का जन्म दिवस पड़ता है और इसी कारण लोग उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। वे नहीं जानते कि उनका जन्म विषुवत सन्तुलन लाने के लिए हुआ था। क्योंकि इन महान अवतरणों के जीवन के रहस्यों की कोई व्याख्या नहीं की गई। इस लिए लोग इच्छानुसार उनका उपयोग करते है क्योंकि उनमें उन्हें बहुत से चमत्कार दिखाई दिए। लोग समझने का प्रयत्न नहीं करते कि यह विषुव का क्या कारण है और क्यों इसे मनाया जाता है। ईरान में मुझे बताया गया कि उनका बी आप दिव्य उद्यान में बेठे हैं तो क्या फर्क पड़ता है कि आप कहां बैठे हैं और क्या कर रहे हैं। यह परावर्तन आपके मस्तिष्क में विचार तरंगों को आरम्भ करती है। मैं चित्र बनाकर वर्णन कर चुकी हूँ कि दांयी ओर को पड़ने वाली ऊर्जा किसी प्रकार बांयी ओर जाकर गिरती है और बांयी ओर पड़ने वाली दांयी ओर पर। दो प्रकार के कोषाणु वहां होने के कारण वह दूसरी ओर का लांघ जाती है। तब बायें और दायें को जाने के बाद इस ऊर्जा का कुछ अशं पराअनुकरम्पी खींच लेता है। और जो शेष बचती है वह विचारशीलता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार यह ऊर्जा विचारों में प्रतिबिम्बित होती रहती है। अब यदि हम उस पूरी ऊर्जा को आत्मसात करके अपने पराअनुकम्पी में डाल सकें तो हमारी शक्तियां हजारों गुना बढ़ जाएंगी। हम न तो थकेगें और न दुवी होंगे सहन कर सकने के योग्य बन । परन्तु इसे मुर्खता या दुर्गुण नहीं समझेंगे, हम पर इसका प्रभाव ही न होगा। यह गुण विकसित करना हमारे लिए आवश्यक है। देवी जो कर सकती है वह आपको नहीं करना चाहिए। यह उनका कार्य है, उन्हें ही यह कार्य करना है; आपको नहीं आपने जो कार्य करना है वह है केवल शान्ति की स्थिति में रहना ताकि शान्ति की इस स्थिति और आपकी गहनता को बढ़ाने बाली हर चीज को आप आत्मसात कर सकें। शेष सभी कार्य देवी देख लेंगी। विश्व भर में होने वाली सभी बुराई, क्रोध और खीझ को वे सम्भाल लेंगी यह सब बुराइयां वे सोख लेंगी, परन्तु आपको मात्र सम्पूर्ण पवित्रता का बहुत सी संसारिक मूर्खता को हम जाएगे सुगम आनन्द उठाना होगा। मस्तिष्क के ऊपर उठकर ही आनन्द सम्भव है। मस्तिष्क से आप कभी आनन्द नहीं प्राप्त कर सकते। जब आप तरंग विहीन झील की तरह शान्त होते हैं तब आनन्द आता है। उसी झील के किनारें पर रचित आनन्द का परावर्तन पूर्णत: परिवर्तक होता है, परावर्तित नहीं। झील में यदि तरंगे होती तो तस्वीर बिल्कुल भिन्न होती, तब यह वास्तविकता की में तस्वीर जैसी कुछ चीज होती। अत: व्यक्ति को चाहिए कि मस्तिष्क को वास्तविकता से निम्न स्तर पर रखें वास्तविकता वास्तव में शान्ति और आनन्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। दुःख अकाल आदि कुछ भी नहीं। व्यक्ति बस आनन्द ले परन्तु इसका आनन्द लेने के लिए इस पूर्ण शान्ति की स्थिति में रहने के लिए आपको चिन्ता विहीन होना होगा। अब आप स्वयं को देखें। यह देखकर आप हैरान होंगे कि आप कितने चिन्तनशील हैं। जब आप के लिए सभी कुछ है, जब परमचैतन्य आपके लिए इतना कुछ कर रहे हैं कि मैं भी नही कि नववर्ष इसी समय होता है। इसका अर्थ यह हुआ मुसलमान इसे नववर्ष के रूप में मानते हैं, जब नवरात्रि आरम्भ होता है तो नववर्ष होती है। अर्थात यह उनका बारहवाँ 20 चैतन्य लहरी होते हैं। मुझे आशा है कि इस नवरात्रि में आप महसूस करेंगे कि देवी ने आपके लिए क्या कार्य किया। कितना कठोर परिश्रम उन्होंने किया और इन भयंकर असुरों और राक्षसों से कितना युद्ध किया। कभी-कभी तो मुझे यह लगता है कि यह असुर हमारे अन्दर हैं। वह बाहर नहीं हैं वह हमारे अन्दर इसलिए प्रेवश कर जाते हैं क्योंकि हम इनका चिन्तन करते हैं। पश्चिमी लोगो से यदि हम बात करें तो हमें ऐसा लगता है मानो पूर्ण वातावरण ही उनके सिर पर सवार है। वे सभी लोगों के विषय में जानते हैं उसने क्या किया, यह क्या था, सी चीजें इसकी ओर सकेत करती महीना होता है और हैं। बारह महीने ही क्यों होने चाहिए, देवी को बारह बजे ही क्यों जन्म लेना चाहिए? इसका एक विशेष अर्थ है। जिसे आप खोज सकते हैं। परन्तु यह केवल तभी संभव है जब आप चिन्तनशील नहीं होते। बहुत यह वह अवस्था है जब आप वास्तव में सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े होते हैं अन्यथा आप वहां होते ही नहीं, उस स्थिति से आपकी एकाकारिता ही नहीं होती उस स्थिति से एक रूप होने के लिए आपको अपने अन्तस में पूर्णतः शान्त होना होगा क्योंकि देवी पूर्णतः शान्त हैं। युद्ध चल रहा है परन्तु देवी शान्त है क्योंकि वे इतनी आत्मविश्वस्त हैं, वे अपनी शक्तियों को जानती हैं, वे जानती हैं कि महिषासुर उन्हें परेशान नहीं कर सकता, उन्हें छू भी नहीं सकता। उनकी शक्तियों को वे जानती हैं, अपनी भी सभी शक्तियों को वे जानती हैं। अत: किसी भी चीज से उत्तेजित होने की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। वे अशान्त नहीं है क्योंकि वे वास्तव में शान्ति की उस स्थिति का मानवीकरण है जिसने ये इतनी शक्तिशाली है। आपकी शक्ति के विषयं में उन्हे वह क्या था। परन्तु वह व्यक्ति चिन्तित नहीं है। यह नहीं सोचता कि वह किसी प्रकार सुधर सकता है। इसे किस प्रकार कार्यान्वित कर सकता है। निर्विचार चेतना की स्थिति में व्यक्ति पूरे ब्रहमाण्ड को अपने में समेट लेता है और उस स्थिति में जहां भी कोई समस्या हौती है उसे पूरा करने के लिए यह शक्ति कार्य करती है। हमें अपने मूल्य को समझना है कि हमारे अन्दर यह शक्ति है। इसका सम्मान होना चाहिए और इसका श्रेय देवी को दिया जाना चाहिए क्योाकि उन्होंने आपके लिए, हमारे लिए इतना कुछ किया। उन्हें यह न लगे कि इन सबको कुछ देर के लिए आत्मसाक्षात्कार मिल गया परन्तु उन्होंने चिन्ता नहीं की। वह नहीं जानते किस प्रकार इस आत्मसाक्षात्कार को विकसित किया जाएगा। किस प्रकार देवी को चोट नहीं पहुंचेगी परन्तु उनके कार्य को जो कुछ भी उन्होंने किया है, उसे हमें देखना है, समझना है और अपने अन्दर एक भावना लानी है क्योंकि हमने अब आत्मसाक्षात्कार पा लिया है। अब हमें उस शक्ति के पूर्ण माध्यम बनने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब आपकी अपनी विचारधारा नहीं होगी। आपके अपने हस्तक्षेप नहीं होंगे जैसा मैंने कहा, पूर्ण माध्यम। इस यन्त्र को पूरी तरह से ठीक होना आवश्यक जानना नहीं पड़ता। कहना नहीं पड़ता। शक्तियां स्वतः ही सारा कार्य करती हैं। यह वह स्थिति है जिसमें आप आश्चर्य चकित होंगे, बहुत सी चीजे अन्जाने में घटित होती हैं। आपने कितना कुछ किया और इसे हम संयोग कहते हैं यह वही स्थिति है जिसमें हम निर्विचार चेतना में होते हैं और तब परमचैतन्य हमसे पूर्णतः सम्बन्धित होता है। हम बस वैसे होते हैं और परमचैतन्य हमारे लिए सभी कार्य करता है। सहजयोग में इस बार जैसा कि आप देवी के विषय मे जानते हैं, कि उन्होंने वर्षों तक बहुत कार्य किया। अब आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बन गये हैं। इस बात को समझना आवश्यक है। स्वयं में पूर्ण आत्मविश्वास रखें। अपने विषय मे पूर्ण सूझ-बूझ आपको होनी चाहिए। कोई भय या विचार आप में नहीं होने चाहिए क्योंकि यह आपके मस्तिष्क पर आक्रमण कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में आप सर्वशक्तिशाली व्यक्ति है अन्यथा यह कार्य नहीं कर सकता। आपको हार्दिक धन्यवाद। य करें। कृपा परमात्मा आप पर बधाई समारोह (अस्ट्रेलिया) सध्या तकम श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण मैं स्वयं पर काबू रखकर कुछ अवरूद्ध हो जाता है, परन्तु शब्द कहने का प्रयत्न करूँगा। सर्वप्रथम तो मैं इस संध्या को विशेष रूप से स्मरण करुंगा, क्योंकि बहुत से सम्मानों की में समझ नहीं पा रहा कि किस प्रकार आरम्भ करु अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का आरम्भ मैं किस प्रकार करँ! कुछ क्षण ऐसे भी होते हैं जब मनुष्य भावनाओं से 21 चैतन्य लहरी कृपा वर्षा मुझ पर हुई परन्तु अवैतनिक अस्ट्रेलियन सहजयोगी का सम्मान उनमे सार्वोत्कृष्ठ है । मेरे लिए पृथ्वबी पर घटी सभी घटनाओं में सहजयोग सर्वोत्तम घटना है और इस आन्दोलन के अंग के रूप में स्वीकार किए जाने को में अपने हृदय में और सहजयोगिनियां परमात्मा की वह नई रचना हैं जहां कोई वास्तविक समस्या हो ही नहीं सकती। जब में यह कहानी अन्य लोगों को सुनाता हूँ तो वे सुगमता से इस पर विश्वास नहीं करते। कितनी अच्छी कहानी है ये! संजो कर रखूगा। अभी तक, इस संध्या तक, में स्वय को प्रशिक्षु सहजयोगी समझता था। अब मुझे उपाधि प्राप्त हो गई है और यह उपाधि मुझे उस दिन प्राप्त हुई है जब मैं 75 वर्ष का हो गया हूँ बहुत शीघ्र नहीं, परन्तु बहुत देर से भी नहीं। आप कल्पना नही कर सकते कि आज की शाम एक बार फिर आपके साथ होना मेरे लिए कितना प्रसन्नतादायी और सौभाग्यमय है। हमने आपकी श्री माता जी का जन्मोत्सव मनाया और व्यक्तिगत रूप से मेंने सोचा कि यह जन्मदिवस समारोह योग्य था। सौभाग्य की बात है कि मेरा जन्म भी इसी दिन एक भद्र पुरूष के जोर देने पर आज शाम में एक स्थान पर गया। वह पुस्तक विमोचन के अवसर पर उपस्थित था और वे जानना चाहते थे कि सहजयोग है क्या? जब मैंने इसकी व्यारव्या उनके सम्मुख की तो, आप विश्वास करें ? पिता ? पुत्र बहू और अन्य सभी मन्त्रमुग्ध रह गए। वे और अधिक जानना चाहते थे, परन्तु वे इस बात से भी सहमत थे कि पृथ्वी पर सहजयोग सा और कुछ भी नहीं। इस जैसा और कुछ भी नहीं, और इसीलिए मेरी सदा यही प्रार्थना रही है कि यह फैले और पूरे विश्व को स्वयं में समेट ले। आपने मेरी पत्नी को आदर्श पत्नी, आर्दश माँ और आर्दशवादी कहा। आप नहीं जानते, या सम्भवतः आप नहीं जानते कि वे किस सीमा तक आर्दश हैं। बे इस प्रकार की आदर्श है। मुझे याद है कि दो या तीन वर्ष पूर्व जब वे अस्ट्रेलिया में थीं तो वे फोन करके मेरे रसोइये से पूछतीं, कि वह मेरे लिए क्या खाना बना रहा है और उसे निर्देश देतीं कि क्या करना आवश्यक है। क्यां इनसे अधिक सतर्क स्नेहमय और सुहृद पत्नी हो सकती है? वे ऐसी व्यक्ति हैं। जब आप कहते हैं कि मैंने उन्हें इतना अधिक समय सहजयोग पर लगाने की आज्ञा दी, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह सब इस प्रकार है। ईमानदारी पूर्वक में आपको बताऊंगा कि नि:सन्देह कभी कभी उनकी कमी मुझे महसूस होती है परन्तु साथ ही साथ में ये भी जानता हूँ कि वे विश्व हित में कुछ कर रहीं हैं। यह कार्य विश्व के उत्थान के लिए है, इससे महान कार्य और क्या हो सकता है? कि हुआ, परन्तु आप सब अत्यन्त सहृद तथा दयामय हैं। आपने मुझे पुनः यहां आने को कहा, आपके स्नेह ने मेरे हृदय को स्पर्श करके मुझे बहुत प्रभावित किया है । मेरे लिए मेरी पत्नी अगाध शक्ति और अगाध उत्साह की स्रोत रहीं। में नहीं जानता कि आप इस बात से अवगत हैं या नही कि हमारा विवाह भारत में क्रान्ति सम था वे अन्य धर्म और राज्य से सम्बन्धित थीं और भिन्न भाषा बोलती थीं। मैं दूसरे धर्म और राज्य से था तथा भिन्न भाषा बोलता था। में 1947 की बात कर रहा हूँ। उस समय भिन्न जातियों, धर्मो, समुदायों के लोगों के बीच विवाह सामान्य बात न थी। परन्तु लोग न जानते थे कि मैं एक अत्यन्त अद्वितीय व्यक्ति से विवाह कर रहा था, अद्वितीयता हमारे विवाह के पश्चात् शीघ्र ही प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी। आप जानते हैं कि मेरी पृष्ठभूमि रुढ़िवादी है। मेरे लोग जमींदाराना किस्म के थे और बहुत से मेरे विवाह पर नहीं आये। कुछ आये, और उन्हें शीध्र ही हमारे घर पर आमंन्त्रित किया गया। वे वहां थीं और लोग हैरान थे कि यह युवा पुरुष किस प्रकार की पत्नी घर ले आया है ये है कौन? इसने (श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव ) इससे विवाह क्यों किया है? में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि दो दिन के अन्दर ये घर की चहेती बन बैठीं और मैं पीछे छुट गया उन्होंने सबका हृदय जीत लिया और तब से आज तक घर इनका है, परिवार अतः आनन्द एवं सहभागिता की चेतना पूर्वक मैं सहमत हूँ कि वे जो कार्य कर रही हैं करती रहें। और अब मेरी आकांक्षा है कि किसी प्रकार में उनकी सेवा या सहायता करूं। अपने पद से मैं अब सेवा निवृत्त हो गया हूँ, उन्होंने मुझे यह पुस्तक लिखने को कहा, जो मैंने लिख दी है। इसके पीछे वही शक्ति थी और अब जब मैंने यह कार्य पूर्ण कर लिया है, विश्वभर में फैल रहे इस महान आन्दोलन के लिए यथा योग्य कार्य करने के लिए मैं उपलब्ध हूँ। जन्म दिवस महत्वपूर्ण होते हैं। 75 वर्ष बहुत लम्बा समय है। मैं स्वयं आश्चर्य- चकित हूँ कि वास्तव में इतने वर्ष मैंने बिताए, परन्तु, विश्वास रखें, जीवन इतना उल्लासमय था। यह इतना शीघ्र व्यतीत हो गया, पर में आपको विश्वास 1 इनका है, मैं तो मात्र उपांग हूँ। आपने सहजयोगी लड़कों की समस्याओं की बात की। वह मैंने नहीं सुनी। मैं किसी सहजयोगी या सहजयोगिनी की समस्याओं के विषय में नहीं जानता। वास्तव में, ईमानदारी से और मैं जिससे भी मिलता हूँ, उसे बताता हूँ कि सहजयोगी 22 चैतन्य लहरी अदभुत छुट्टी का आनन्द लिया। पर भारत से दूर यहाँ में इस पुस्तक को प्रवर्तित करने भी आया था। मेरी पत्नी को लगा कि अस्ट्रेलिया ही ठीक देश है, क्योंकि जैसा कि उन्होंने आपको बताया, यह श्री गणेश का देश है और आप सभी कार्यो का आरम्भ श्री गणेश से ही करते हैं यह पूर्णतः स्वर्णनिल आरम्भ था। पूर्णतः चमत्कारिक। जिन्होंने समारोह देखे हैं उनके लिए आश्चर्य की बात हैं कि किस प्रकार सर्वसम्मति से लोगों ने स्वागत किया ? मैं नही सोचता कि किसी भी दिलाना चाहता हूँ कि मुझे नहीं लगता कि में 75 वर्ष का हो गया हूँ। मुझे वैसा ही लगता है जैसे पिछले या उससे पिछले वर्ष लगता था। जीवन इलना आनन्द और उल्लासमय है। भेंट किए गए पुष्पों, विशेषकर बच्चों द्वारा दिए गए, ने मरे हृदय को छू लिया है। परमात्मा उन पर कृपा करें। लगभग छः सप्ताह से में यहां पर हूँ और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे 75 वर्षों में यह सुखदतम समय है। इस समय का कुछ भाग मैंने अपनी पत्नी के सथ भी बिताया। यह भी एक कारण है परन्तु दूसरा कारण यह था कि यहां मैंने पाया कि और सहजयोगिनियों का वास्तविक सामीप्य पाया इसने मुझे अथाह आन्तरिक आनन्द एवं आन्तरिक शक्ति प्रदान की है। समूह से जुड़ना वास्तव में स्वर्गीय सामूहिकता से जुड़ना है। मैं जब यह कहता हूँ कि आप लोग देवदूत हैं तो वास्तव में में ऐसा मानता हूँ, हृदय प्रकार का भेद था। लोग अच्छाई चाहते हैं और अच्छाई के लिए वे कुछ करना भी चाहते हैं। उसके लिए अवसर की आवश्यकता होती है जो आपकी पावनी मां तथा सामूहिक रूप है। दिन प्रतिदिन मैंने सहजयोगियों में आप सबने प्रदान की है। मैं आज शाम एक परिवार के साथ था। वे आन्तरिक आनन्द से परिपूर्ण थे तथा जानना चाहते थे कि इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए वे क्या करें? वे सहजयोग के विषय में जानना चाहते थे, अत: हमने उनसे इसकी बात की। यह पुस्तक आधार रूप में एक प्रकार उत्प्रेक है इसी विचारधारा को एक छोटा सा आश्रय। सहजयोग की ल विचार धारा। धर्मपरायणता की धारणा, धर्म की धारणा। दुर्भाग्यवश भारत में भी इस पुस्तक पर की गई कुछ टिप्पणियां बहुत अच्छ नही हैं एक दो टिप्पणियों ने तो यह भी कहा कि "पुस्तक लिखते हुए वे शास्त्री जी के प्रति अपनाए सम्मान एवं श्रद्धा छुपा न सके"। यह टिप्पणीकारों की टिप्पणी है मैं क्यों छिपाऊ? मेरी समझ में नहीं आता। भारत लौटकर में उनसे पूछूगा। श्रद्धा व्यक्त करने का मुझे पूर्ण अधिकार है। मानव विचार की आज यह स्थिति है कि ठीक बात को भी आप न कहें। वे आशा करते थे कि मैं सामान्य रूप से अच्छी बाते कहूं। वे भ्रद पुरुष, और ईमानदार थे, सभी जानते हैं। उन्होंने पीछे कुछ नहीं छोड़ा। वे नम्र थे। वे भले थे। उन्हें भ्रष्ट नहीं किया जा सकता था। वे बुद्धिमान थे, दृढ़ थे उनके चरित्र या सत्यनिष्ठा मे में कोई कमी नहीं खोज पाया क्या सोचते हैं, में कुछ झूठ मूठ लिख दूं? मैं आपको बताता हूँ कि यह पूरे विश्व की समस्या है। वे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, समझते हैं कि यह किसी प्रकार का खतरा है। उन्हें लगता है कि वे स्वयं तो इतने उच्च हैं नहीं, अतः वे किसी अन्य इतने अच्छे तथा पूर्ण व्यक्ति को देखना नहीं चाहते। आज विश्व की यही स्थिति है। वे लोग स्वीकार करने को तैयार नहीं कि मनुष्य इतना अच्छा भी हो सकता है। आप सब को यदि वे देख लें तो न जाने क्या कर बैठें। से मैं ऐसा मानता हूँ। में आप को बताता हूँ कि मैंने पूरे विश्व में बहुत से देशों में देखा है कि संसार अत्यन्त दुर्गम है। वास्तव में, यदि आपको सत्य कहूँ तो यह संसार भयावह है सभी कुछ गलत दिशा में जा रहा है। टी. वी. देखते हुए, समाचार पत्र पढ़ते हुए मूल आपको क्या सुनाई देता है? आप क्या देखते हैं? पथभ्रष्ट होते हुए विश्व को! चरित्रहीनता तथा भ्रष्टाचार के बारे में हतबुद्ध रह जाता हूँ। मानव किस प्रकार यह सब सहन कर सकता है? पूर्ण भौतिकतावाद के कारण इस प्रकार का समाज विकसित है। "सभी मेरे लिए है, अभी और यहीं दूसरों की चाहे दुर्दशा होती रहे।" दुर्भाग्यवश इस प्रकार का दर्शन कुछ पश्चिमी देशों ने प्रक्षिप्त किया है। मानव को इसलिए नहीं बनाया गया। मनुष्य परमात्मा का अंश है। उसमें दिव्य ज्योति है। वे स्वा्थी, पूर्ण स्वार्थी व्यक्ति नहीं सुनकर तो मैं हुआ कुछ मेरे विचार में श्रद्धायोग्य व्यक्ति के प्रति अपनी हो सकते। परन्तु संसार में ऐसा ही हो रहा है। तान्त्रिकवाद नामक सिद्धांत इग्लैंड में प्रसारित किया गया। आरम्भ में, सम्भवत: तांत्रिकवाद का औचित्य था क्योंकि श्रीमति थैचर विश्वास पैदा करना चाहती थीं, परन्तु इसे अति तक ले जाया गया। तब लोगों ने समाज की चिन्ता छोड केवल अपनी चिन्ता शुरू कर दी। अब आप लोग एक नया मार्ग दिखला रहे हैं और यह कार्य सुगम नहीं है। यह धर्म, धर्मपरायणता तथा अच्छाई का मार्ग है और मैं इसके साथ हूँ। मैं इसकी सफलता के लिए प्रार्थना करता हूँ तथा आप की महान उपलब्धि के लिए आपको बधाई देता हूँ। मैं यहां छूट्टी मनाने के लिए आया था और मैंने चैतन्य लहरी 23 आपने मेरी देखभाल की अपना समय और प्रेम आपने मुझे दिया। परन्तु सबसे अधिक मैंने आपके प्रेम को संजोया है। कितने आनन्दपूर्वक यह आया। आपके स्नेह और प्रेम से बड़ा उपहार कुछ नही हो सकता। आपने मुझे पुनः अस्ट्रेलिया आने के लिए कहा। खोटे सिक्के की तरह मैं कभी भी दिखाई पड़ जाऊंगा। परन्तु में आपको बता देना चाहता हूँ कि जहां भी मैं हूँ पीछे मुड़कर यहां बिताए सुन्दर समय का वास्तव में उन्हें विश्वास न होगा कि इतने अच्छे मनुष्य भी हो सकते हैं। आपके सम्मुख यह समस्या है, पर कोई बात नहीं। हम क्यों इसकी चिन्ता करें? विश्व परिवर्तित होगा, आपके मार्ग पर चलेगा। ऐसा ही होता है। आज शाम यह परिवार सहजयोग के विषय में जानना चाहता था। वे इसे अपनाना चाहते हैं। कहते हैं "हां यहीं एक मार्ग है।" अत: जो कार्य हम कर रहे हैं उसे निर्भयता पूर्वक करते जाएं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अवैतनिक सहजयागी के रूप में में सदा उतना ही अच्छा स्मरण करुंगा। एक बार पुन: आप सबका बारम्बार धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें और वे भलि-भाति जानती हैं कि क्या घटित हो रहा है। मैने सोचा था कि अपने जन्म व्यवहार करने का प्रयत्न करुंगा जितना अच्छा व्यवहार आप सब करते हैं। एक बार यहाँ आने के लिए आमन्त्रित करने के लिए में किस प्रकार आपका धन्यवाद करु? कौन अपनो के बीच नही होना चाहता? अपने बच्चों के मध्य कौन नहीं होना चाहता? मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे एक क्षण के लिए भी कभी नही लगा कि मैं विश्व हित में लगे अपने बच्चों से दूर हूँ। आप भी मेरे उतने ही प्रिय बच्चे हैं जितना कोई अन्य। यदि आज ही मुझे 75 वर्ष को होना होता तो आपकी संगति में 75 का होना बहुत अच्छा हाता। सुन्दर उपहार जो आपने मुझे दिए उनके लिए मैं आभारी हूँ। अत्यन्त अद्भुत इन उपहारों को सम्भाल कर रखा जाएगा, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ। में इन्हे संजोकर रखूंगा और ये मुझे आपके साथ बिताए गए अदभुत क्षणों का सुन्दर स्मरण कराते रहेंगे मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस स्मृति की जड़ें मेरे हृदय में हैं और यह सदा सर्वदा रहेंगी। मैं अपने साथ आपके प्रेम की मुधर स्मृतियों को ले जा रहा हूँ। दिवस को मैंने छुपाया हुआ है। में नहीं जानता कैसे आप करें लोग जान गए? खैर, धन्यवाद। परमात्मा आप पर कृपा आपका बहुत बहुत धन्यवाद। कन्फ्यूशिस का कथन उच्च मानव गतिशील होने पूर्व स्वयं को सन्तुलित करता है, बोलने से पूर्व अपने मस्तिष्क को शान्त करता है । मांगने से पूर्व अपने सम्बन्ध दृढ़ करता है। इन तीन कुछ चीजों का ध्यान रख कर वह पूर्ण सुरक्षा प्राप्त कर लेता है। परन्तु यदि मनुष्य अपने व्यवहार में अशिष्ट है तो अन्य लोग उससे सहयोग न करेंगे। उसके शब्दों में यदि चिडचिडापन है तो वह दूसरों में अनुनाद नहीं उत्पन्न करता। सम्बन्ध स्थापित किए बिना यदि वह कुछ मांगता है तो उसे प्राप्त न होगा। कोई यदि उसका साथ नही देता तो हानिकारक तत्व उसके समीप आ जाएंगे। ब ाे टत ुड সুभ भू মুৰ স সু সুর সুৰ সু সুর तड 12THLKE म म क र चा द 24 चैतन्य लहरी ---------------------- 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt 000000000000000000000000000000000000000000000000000000o00000000000 चैतन्य लहरी हिन्दी आवृत्ति (1996) अंक 7 व 8 खण्ड VII मस्तिष्क से ऊपर उठने पर ही आनन्द सम्भव है, मस्तिष्क से आप कभी आनन्द नहीं ले सकते। तरंग विहीन झील की तरह जब आप पूर्णतः शान्त होते है तभी आनन्द आता है" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी नवरात्रि पूजा कवेला Q00000G000000000000心G0 0や0000心位0心 心00000000 00000 100000000000000心 中 带中的中中夺中帝守杂中夺 心口章000000000000000000000000000000 DO0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 心000:0章 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt चन ु विषय सूची अंक : 7 व 8 खण्ड : VII पृष्ठ अन्तरक्षेत्रीय चतुर्थ गोलमेज विश्व महिला सम्मेलन 13.9.1995 1. अन्तररीष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन 2. 8. मन मिथ्या है 3. 13. 21.3.1996 श्री माता जी की अमूल्य शिक्षा 4. 13 बैंकाक - मार्च 1995 श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत 5. 14 नवरात्री पूजा कबेला 15 6. 1.10.1995 श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण - अस्ट्रेलिया 7. 21 कन्फ्यूशिसं का कथन 8. 24 -सम्पादक-- व त श्री योगी महाजन -मुद्रक एवं प्रकाशक :- श्री विजय नालगिरकर 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली Im 110 067 -गुद्धित :- प्रिन्टेक फोटोटाईपसैटर्स, 4A/1 ओल्ड राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली फोन : 5710529, 5764866 110 060 चैतन्य लहरी 1 ४ ह dं 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt अन्तरक्षेत्रीय गोलमेज चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन न ना स बीजिंग, 13 सितम्बर 1995 सहजयोग संस्थापिका डा. श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव का भाषण विश्व भर के भाइयो और बहनो, लगता है कि जब तक आप एक ऐसी नई संस्कृति नहीं ले आते जिसके द्वारा पूर्वी और पश्चिमी देशों की महिलाएं अपने गौरव में खड़ी होकर स्वयं को इस प्रकार अभिव्यक्त नहीं कर - सकतीं जिससे वे अपने समाज के लिए उच्च चारित्रिक मानदण्डों की सृष्टि कर सकें, वे न तो पूर्वी देशों में और न ही पश्चिमी देशों में अपनी नारी सुलभ महत्ता को प्राप्त कर सकेंगी। विशिष्टता यह है कि यदि महिलाओं के क्षेम और उनके लिए आवश्यक शिक्षा को समझते हुए प्रदान की जाए तो वे समाज को सुरक्षा प्रदान करेंगी। धर्म की बातें करने वाले सभी रूढ़िवादी लोग स्त्रियों से पूर्णतः चरित्रवान होने की आशा करते हैं और पुरुष जो चाहे करें। मेरे विचार में हमें महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अधिक शिक्षित करना होगा क्योंकि युद्ध के विचार पुरुषों से ही आरम्भ होते हैं में स्वीकार करती हूं कि विकासशील देशों में निर्धन महिलाओं की सहायता करने के लिए धन एकत्रित करना कठिन नहीं है। परन्तु दुर्भाग्यवश में जानती हैँ क्रि निर्धन महिलाओं तक पहुंचाने के लिए जो धन हम एकत्रित कर रहे हैं यह अन्ततः भ्रष्ट मन्त्रियों, अधिकारियों तथा कार्यभारी लोगों की जेबों और फिर स्विस बैंकों में जाकर समाप्त हो जाएगा। इस विशिष्ट सभा के सम्मुख महिलाओं की सार्वभौमिक समस्याओं के विषय में बोलना मेरे लिए महान सम्मान की बात हैं। सर्वप्रथम में अपने मेजबान देश, चीन गणतन्त्र के लोगों और सरकार के प्रति अपनी गहन कृतज्ञता प्रकट करना चाहूंगी इससे पूर्व भी दो बार मुझे चीन आने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है और मैं इस महान राष्ट्र की संस्कृति और विवेक की गहन प्रशंसक हूँ। उन्हें पूर्ण सुरक्षा विश्व के इतिहास में यह समय अत्यन्त गौरवशाली है कि इस समय हमें महिलाओं की समस्याओं का इतना ज्ञान हैं इसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। निसन्देह युग युगान्तरों से महिलाएं कष्ट उठाती रहीं, क्योंकि हम लोग मानव समाज में उनके महत्व और यथोचित भूमिका को नहीं समझ पाएं। उसका अपना रचित समाज ही नारीत्व का दमन कर उसे वश में करने का प्रयत्न करता है। पूर्व के विषय में हम कह सकते है कि रूढ़िवादी प्रभावों के कारण महिलाएं बहुत दबाव में रहीं और उनका चरित्र स्वतन्त्रता की अपेक्षा भय पर आधारित था। पश्चिम में हम उनकी स्वतन्त्रता के लिए लड़े परन्तु उन्होंने मिथ्या स्वतन्त्रता के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं किया। पश्चिम की स्त्रियों को सारे सामाजिक एवं चारित्रिक मूल्यों को त्यागने की स्वतन्त्रता है। अत: हम कह सकते है कि पूर्वी देशों की अधिकतर महिलाएं कायर और उत्पीड़ित हैं जो अपनी अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है, जबकि पश्चिमी देशों में अधिकतर महिलाएं यौन चिन्ह बनकर रह गयी हैं। वे अपने शरीर का प्रदर्शन करना चाहती हैं और फैशन के विज्ञापनों में दिखाई देने तथा घटिया लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए वे उत्सुक हैं। केतर महिलाओं ने यह स्थिति स्वीकार कर ली क्योंकि इसके बिना वे अव्यवस्थित पश्चिमी संसार में अपने महत्व को न बनाए रख पातीं। पूर्व की अधिकतर महिलाएं जिन चीजों को अत्यन्त अपमानजनक तथा प्रतिष्ठा विहीन मानती है पश्चिम में उन सब चीजों को अत्यन्त गरिंमामय माना जा रहा है। चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार, हिसां रूपीं भयानक राक्षस हमारे समाज को खा रहे हैं। मैं इन भ्रष्ट एवं दुष्टचरित्र लोगों की माताओं को इसके लिए दोषी ठहराऊंगीं क्योंकि उन्होंने इनके शैशवकाल में माताओं के अपने कर्त्तव्य को पूर्ण नहीं किया। बच्चों को सुन्दर नागरिक बनाने में माँ का जीवन्त प्रशिक्षण ही प्रथम तथा असरदार प्रभाव होता है। माताएं, जिन्होंने गहन चिन्ता और प्रेम से पथ प्रदर्शन नहीं किया, पत्नियां या बेटियां जो पुरुषों या विनाशकारी संस्कृति से भयभीत है, ने पुरुषों के चारित्रिक ताने बाने को दृढ़ करने के लिए परिवार के समग्र सदस्य के रूप में अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया। यह देखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों में बच्चों से किस प्रकार व्यवहार किया. जाता है। पूर्व में हम देखते हैं कि यदि बच्चे रूढिवादी संस्कृति से प्रभावित नहीं हैं तो वे अपनी माताओं को सुनते अधि मैंने दोनों ही संसारों को गहनता पूर्वक देखा है और मुझे चैतन्य लहरी 2. 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt हैं। यह संस्कृति स्त्रियों को एक घटिया मानव की स्थिति में धकेल देती है, पुरुष तथा बच्चे जिन पर हावी रह सकें। पश्चिम मे भी ऐसा होता है बच्चे न तो माताओं का मान करते हैं और न उनकी बात सुनते हैं। में यह इसलिए महसूस करती हूं क्योंकि प्रायः पश्चिमी महिलाएं अपने बच्चों की देखभाल करने की अपेक्षा अपना अधिकतर समय, अपना शरीर और रूप रंग की देखभाल करने में लगातीं हैं। मां और बच्चों के अन्तर्बन्धन दुर्बल होकर टूट बहुत से बच्चे आवारा बन जाते हैं। सोंभाग्यवश आज भी पूर्व के बहुत से और पश्चिम के कुछ परिवार भ्रष्ट करने वाली प्रवृत्तियों को गहन चुनौती देते हुए अपने बच्चों की देखभाल करते हैं और यथोचित रूप से उनका लालन पालन करते हैं । फिर भी मैं कहूँगी कि पश्चिमी देशों की अपेक्षा पूर्वी देशों के बच्चे कम भ्रष्ट हुए हैं इसका कारण भी यही है कि पूर्व के बहुत से लोगों ने रूढ़िवादी संस्कृति या पश्चिमात्य संस्कृति को नहीं अपनाया है, उनका समाज बहुत अच्छा है और वे बहुत अच्छे बच्चे उत्पन्न करते हैं चाहे उनकी सख्या रमन्ते देवता, अर्थात "जहां महिलाओं का सम्मान होता है और वे सम्माननीय हैं वहां क्षेम प्रदायक देवता निवास करते हैं।" अतः हमारे सृष्टा द्वारा प्रदान की गई इस महान शक्ति के को इस क्षण समझना हम पर निर्भर करता है। मूल्य परन्तु हम क्या पाते हैं? पूर्व हो या पश्चिम महिलाएं अभी तक अपनी महानता की पूर्णाभिव्यक्ति नहीं कर पाई हैं। मैं यह परामर्श बिल्कुल नहीं दे रही हूं कि मानव समाज में महिलाओं की एकमात्र भूमिका बच्चों की माँ, जन्मदाता या रक्षक की है या पत्नी और बहन की है। आर्थिक जीवन के हर क्षेत्र समाजिक, सांस्कृतिक या राजनैतिक, प्रशासनिक तथा अन्य में समान साथी के रूप में भाग लेने का महिलाओं को पूर्णधिकार है। इस सर्वव्यापक भूमिका के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए उन्हें ज्ञान की सभी शाखाओं में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। परन्तु यदि वे माताएं है तो अपने बच्चों तथा समाज के प्रति उनकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पुरुष देश की रणनीति और अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेदार होते हैं और स्त्रियां समाज के लिए। स्त्रियां पुरुषों को जाते हैं इसी कारण बहुत अधिक न हो। परन्तु प्राचीन काल से परम्परागत जो संस्कृति उन्हें उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है वइ उनके अन्दर पूर्णतः स्थापित है और उनके लिए चारित्रिक मूल्य प्रणाली सर्वोच्च है, धन और सत्ता से कहीं अधिक। पश्चिम अब समस्याओं से परिपूर्ण है। यद्यपि उनके सहायता भी प्रदान कर सकती हैं और निसन्देह किसी भी स्थिति में मार्ग दर्शक भूमिका निभा सकती हैं। परन्तु यह बहुत आवश्यक है कि वे भी नहीं भूलें कि वे स्त्रियां हैं जिन्हें हैं। मां के गहन प्रेम और उत्कण्ठा को अभिव्यक्त करना यदि वे पुरुषवत और आक्रामक हो जाएगीं तो समाज का सन्तुलन नहीं बनाए रखा जा सकता। पास बहुत धन है फिर भी उनके अन्तस में या बाहर शान्ति का पूर्ण अभाव है। सत्य यह है कि महिलांए ही सभ्यताओं और देशों की अन्तर्निहित शक्ति हैं। यह प्रत्यक्ष है कि स्त्रियां ही पूर्ण मानव साथ ही साथ में यह भी अनुरोध करूंगी कि जब हम महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं तो हमें उनके समाज के प्रति मौलिक कर्त्तव्यों पर भी बल देना चाहिए। पश्चिम में महिलाएं या शिक्षित महिलांए दूसरी पराकाष्ठा तक पहुंच गई है। वे राजनीतिक आर्थिक तथा प्रशासनिक भूमिकाएं ले रहीं है पुरुषों से मुकाबला करने के लिए वे अत्यन्त हठध मी, स्वकेन्द्रित एवं महत्वाकांक्षी हो गई हैं। अब उनमें शान्ति एवं प्रसन्नता प्रदायी गुण नहीं रह गए जो सन्तुलन बनाए रखते हैं इसके विपरीत अब रौबीली तथा सुखाकांक्षी व्यक्ति बन गई हैं। मधुर, गरिमामय एवं सुखद व्यक्तित्व की अपेक्षा वे अपने शारीरिक आकर्षण के लिए अधिक चिन्तित हैं । के जाति की सृष्टा एवं रक्षक हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा ने उन्हें यह भूमिका सौंपी है। बीज अपने आप किसी चीज की सृष्टि नहीं कर सकते। पृथ्वी माँ ही फूल, फल तथा अन्य वैभव प्रदान करती हैं। इसी प्रकार स्त्री ही शिशु को जन्म देती है उसका पोषण करती है और अन्ततः भविष्य के नागरिक बनाती है। अतः स्त्री की तुलना सम्पूर्ण मानवता के प्रासाद के रूप में पृथ्वी मां से की जानी चाहिए । दुर्भाग्यवश महिलाओं पर प्रभुत्व जमाने के लिए पुरुष ने शरीरिक बल का उपयोग किया है। उन्होंने इस बात को मान्यता नहीं दी है कि महिलाएं समान तथा सम्पूरक तो हैं परन्तु मानवीय प्रयत्नों में समरूप साझेदार नहीं। जो भी समाज इस मूल सत्य को नहीं पहचानता और महिलाओं को उनकी अधिकारपूर्ण भूमिका प्रदान नहीं करता वह सभ्य समाज नहीं है। मेरे अपने देश में संस्कृत भाषा की यह कहावत है, "यत्र नार्या पूज्यन्ते, तत्र जाने अनजाने वे अपने व्यक्तित्व की तुच्छता सम्मुख हथियार डाल देती हैं। यह सब अव्यवस्थिति समाज को जन्म देता है और जिस प्रकार हम प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ते हैं बच्चे आवारा, चोर और हत्यारे बन जाते हैं। दोनों चरम सीमाओं में सन्तुलन स्थापित होना हमारी आवश्यकता है। हमें 3. चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt ऐसी महिलाओं की आवश्यकता है जो समान तो हो परन्तु पुरुषों के सम न हों। पुरुषों के स्वभाव की सूक्ष्म सुझबूझ तथा उनमे अपने आन्तरिक सन्तुलन द्वारा वे पुरुषों को सन्तुलन मध्य) में ला सकें। सन्तुलित मानव जाति जिसमें आन्तरिक शान्ति हो, के लिए हमें सन्तुलित महिलाओं की आवश्यकता है। आप कह सकते हैं कि सोचने में तो यह सब बहुत अच्छा अन्दर स्थित छः सूक्ष्म शक्ति केन्द्रों का पोषण करते हुए सामण्जस्य बनाते हुए इनमें से गुजरती है। अन्ततः और यह शक्ति तालू अस्थि, जो कि तालू या ब्रहमरन्ध् कहलाती है, का भेदन करके व्यक्ति का समबन्ध परमात्मा की सर्वव्यापक दिव्य प्रेम की शक्ति से जोडती है। दिव्य प्रेम की इस शक्ति को बाईबल में आदिशक्ति की शीतल लहरियां (COOl Breeze of The Holy Ghost) कुरान में रुह, और भारतीय धर्म ग्रन्थों में 'परम चैतन्य' कहा गया है । पतंजलि ऋषि ने इसे 'ऋतुम्भरा प्रज्ञा' कहा है। इसे जो भी नाम दिया गया हो यह शक्ति सर्वव्यापक है और उत्थान प्रक्रिया का सभी सुक्ष्म जीवन्त कार्य करती है। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व इस सर्वव्यापक शक्ति के अस्तित्व को महसूस नहीं किया जा लगता है पर यह सन्तुलन की स्थिति किस प्रकार प्राप्त की जाए? किस प्रकार हम रोग, भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता और अपरिपक्वता के ज्वारभाटे का सामना करें? संघर्ष एवं भ्रन्ति की बर्तमान स्थिति को हम किस प्रकार समाप्त करें ? प्रत्येक हृदय तथा मस्तिष्क में हम किस प्रकार शान्ति लाए? मेरा विनम्र निवेदन है कि इन प्रश्नों का उत्तर है। सकता, परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप इसे अपनी अँगुलियों के पोरों, अपनी हथेलियों के मध्य मे या अपने तालू अस्थि के ऊपर महसूस कर सकते हैं। एक नया मार्ग हैं । अब मैं जो तुम्हें बताने जा रही हूं उसे स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए। निसन्देह आपको अपने मस्तिष्क वैज्ञानिकों की तरह खुले रखने चाहिए और जो भी मैं कह रही हूं उसे परिकल्पना के रूप में लेना चाहिए। यह परिकल्पना यदि प्रमाणित हो जाए तो सत्यनिष्ठ व्यक्तियों की तरह से आपको इस पूर्ण सत्य को स्वीकार करना होगा क्योंकि यह आपके हित के लिए है। आपके परिवार के हित के लिए है। देश के हित के लिए है और पुरे विश्व के हित के लिए है। मैं यहां आपको हमारे विकास की अन्तिम उपलब्धि के विषय में बताने आई हूँ। हमारी चेतना में विकास का यह भेदन आधुनिक काल में ही घटित होना था, यह बात बहुत से पैगम्बरों की पुस्तकों में भी वर्णित है । आज का समय, जैसा की गीता में महान ऋषि व्यास देव जी ने लिखा है '"पत्नोमुख काल कहलाता है और जीवन के चहू ओर हमें मानवता का पतन दिखाई पड़ता है। यह प्रक्रिया स्वत: 'सहज' होनी चाहिए। 'स' अर्थात 'साथ' और 'ज' अर्थात 'जन्मी'। इसका अर्थ यह है कि परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति से योग प्राप्त करने का अधिकार मानव मात्र का जन्म सिद्ध अधिकार है। हमारी मानसिक शक्तियाँ सीमित हैं हमारी सीमित मानसिक शाक्ति, जो कि रेखीय गतिविधि है और जिसमे वास्तविकता के तत्व का पूर्ण अभाव है। एक सीमा तक पहुंचने के पश्चात रुक जाती है। वहां यह प्रतिक्षेपित होती है (BOomrangs) और सारा मानसिक रेखीय आन्दोलन कभी- कभी तो दण्ड के रूप में हमारे पास लौट आता है। अब हमें अधिक शक्ति, उच्चतर शक्ति, गहनतर शक्ति की आवश्यकता होती है जिसके लिए इस घटना (आत्मसाक्षआत्कार) का घटित होना कां आवश्यक है। पश्चिमी देशों में मैं बहुत से ऐसे लोगों से मिली जो सत्य साधक हैं और पश्चिमी जीवन शैली की कृतिमयता से तंग आ चुके है कभी कभी तो यह भी न जानते थे कि वे क्या खाज रहें हैं। उन्होंने बहुत सी गलतियां की हैं। वे कुगुरूओं के पास गए जिन्होंने उनसे बेशुमार धन ऐंठा जिसके कारण वे लोग दिवालिया तथा शरीरिक रूप से रोगी हो गए । एक बात अब समझ लें कि कुण्डलिनी की जागृति और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना हमारे विकास की जीवन्त प्रक्रिया है, जिसके लिए हम कोई पैसे नहीं ले सकते। यह पृथ्वी मां में बीज डालने जैसा है। बीज इसलिए अकुरित होता है क्योंकि पृथ्वी मां में इसे अकुरित करने की शक्ति है तथा बीज़ में भी अकुरित होने के गुण अन्त्तजात है। इसी प्रकार अब मैं। आपको हमारे अन्तस के उस गुप्त ज्ञान के बारे मे बताना चाहूगीं जिसका ज्ञान हजारों वर्ष पूर्व भारत में था। हमारे विकास तथा अध्यात्मिक उत्थान के लिए हमारे अन्दर एक अवश्ष्टि शक्ति है जो हमारी रीढ की जड में एक त्रिकोणाकार अस्थि मे स्थित है। यह अवशिष्ट शक्ति कुण्डलिनी कहलाती है। यद्यपि इस शक्ति का ज्ञान भारत में हजारों वर्ष पूर्व उपलब्ध था फिर भी परम्परागत कुण्डलिनी जागृति केवल व्यक्तिगत आधार पर ही की गई। एक गुरु केवल एक शिष्य जागृति प्रदान करता था। उस जागृति के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार, आत्मतत्व प्राप्त हो जाता था। पर उर्ध्व गति प्राप्त कर यह शक्ति शरीर के को दूसरे जागृत होने चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt हममें भी त्रिकोणाकार अस्थि में अकुरित होने की शक्ति हैं जिसे यूनानी लोगों ने पवित्र अस्थि (SaCIunm) कहा है। यह साढे तीन कुण्डलों की शक्ति हं। इससे प्रकट होता है कि यूनानी लोगों को इस बात का ज्ञान था कि यह अस्थि पवित्र है और इसीलिए इसे पवित्र अस्थि का नाम दिया गया। कुछ लोगों मे आप इस त्रिकोणाकार अस्थि को धड़कते हुए और कुण्डलिनी को बहुत धीमी गति से उठते हुए देख सकते है। परन्तु जहां कोई बाधा नहीं होती और व्यक्ति यदि सन्तुलित मानव है तो कुण्डलिनी पवित्र अस्थि से जेट की तेजी से उठती है और परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एक रूप होने के लिये तालू क्षेत्र को पार कर जाती है। यह कुण्डलिनी हर व्यक्ति की अध्यात्मिक मां हैं अपने बच्चे की सभी पूर्वाकांक्षाओ को जानती है और उन्हें अपने में अंकित किया हुआ है। वह अपने बालक को दूसरा जन्म देना चाहती है इसलिए अपने उत्थान के समय उसके छहः शक्ति केन्द्रों का पोषण करती है। परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े बिना व्यक्ति उस यन्त्र के समान होता है जो न तो अपने स्त्रोत से हुआ है। और न ही जिसका कोई व्यक्तित्व, अर्थ या लक्ष्य है। स्त्रोत से सम्बन्ध जुडते ही यन्त्र के अन्दर बना सारा तन्त्र कार्य करने लगता है तथा अपनी अभिव्यक्ति करता है। आइये अब देखें कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति के साथ क्या क्या घटित होता है। सर्वप्रथम आप अपने सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्रों के प्रति अपनी अगुलियों के पोरों पर परमचैतन्य की शीतल लहरियां अनुभव करने लगते हैं। इस प्रकार अपनी अगुलियों के पोरो पर सत्य को जान जाते हैं। जाति, धर्म तथा अन्य मानसिक विचारों से ऊपर उठकर आप वास्तविकता को देखते है, समझते हैं और महसूस करते है। एक अन्य चीज जो घटित होती है वह है आपका निर्विचार चेतना में चले जाना। अपने विचारों के माध्यम से हम या तो भूतकाल मे जीते हैं या भविष्य काल में समय के इन दो क्षेत्रों से विचार हममें आते हैं परन्तु हम वर्तमान में नही रह सकते। ये विचार जब हममे चढ उतर रहे होते हैं तो हम इनकी नोक पर कूद रहे होते है। परन्तु कुण्डलिनी जब उठती है तो इन विचारों को लम्बा कर देती है और इस प्रकार दो विचारों के मध्य में कुछ रिक्त स्थान की वृद्धि कर देती है जो कि वर्तमान है और वास्तविक है। अत: भूतकाल समाप्त हो गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं। इस समय आप में विचार नही होते ज्यों ही आप निर्विचार चेतना में चले जाते है आप एक नई स्थिति प्राप्त कर लेते हे जिसके विषय में हयूग ने स्पृष्ट लिखा है। इस क्षण में जो भी घटित होता है वह आपकी समृति में भली भाति इकटठा हो जाता है और आप इस वास्तविकता के प्रत्येक क्षण का आनन्द उठाते है। जब आप निर्विचार चेतना की स्थिति में होते है तो अपने अन्त में आप पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। जिस व्यक्ति ने यह शान्ति प्राप्त कर ली वह शान्ति प्रसारित भी करता है और अपने चंह ओर एक शान्त वातावरण की सृष्टि करता है। यह शान्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसे प्राप्त किए बिना हम वास्तविकता में अपने विचारों को कभी भी न समझ पाएगे चाहे वे शाश्वत हो या केवल सीमित। अपने सातों केन्द्रों को अपनी अँगुलियों के पोरो पर महससू कर सकते हैं। सामूहिक चेतना नामक, चेतना के इस नये आयाम को स्वयं में विकसित कर लेने के कारण आप अन्य लोगों के ऊर्जा केन्द्रों जुड़ा कुण्डलिनी जब उठती है तो व्यक्ति को उस सर्वयापक शक्ति से जोड़ देती है जो कि शक्तिशाली है तथा ज्ञान और कृपा का सागर है। कुण्डलिनी की जागृति के उपरान्त व्यक्ति को बहुत से संयोगों का अनुभव होता है जो चमत्कारिक एवं अत्यन्त आर्शीवादपूर्ण होते है। सर्वोपरि कुण्डलिनी क्षमा का सागर है, अत: भूतकाल में की गई आपकी सारी गलतियां क्षमा हो जाती हैं और आशीरवाद के रूप में आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। कुण्डलिनी जागृति और आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के लाभ असंख्य हैं। प्रथम तथा सर्वोपरि, ऐसा व्यक्ति निरन्तर सर्वव्यापक दिव्य शक्ति से जुड जाता है, वास्तव में उस शक्ति का एक अंग बन जाता है। अपनी नई चेतना का उपयोग करके वह सत्य साधना करता है। क्योंकि सत्य केवल एक हैं सभी आत्म साक्षात्कारी एक ही सत्य को देखते हैं। इस प्रकार विरोध टाले जा सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार विहीन मानसिक गतिविधि विरोधी विचारों और यहां तक युद्ध तक पहुंचा देती है। आत्मसाक्षात्कार के उपरान्त इन्हें टाला को भी महसूस कर सकते हैं। जब यह नई चेतना आपमे स्थापित हो जाती है तब आप दूसरों के केन्द्रों को भी महसूस करने लगते है। मेरा यह बता देना आवश्यक होगा कि ये केन्द्र हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक ओर आध्यात्मिक कल्याण के लिए जिम्मेदार हैं और जब जब भी इनमे कोई खराबी होती है या इनकी स्थिति बिगडी हुई होती है तब लोगों को कोई न कोई रोग हो जाता है। कुण्डलिनी जागृति और हैं इन केन्द्रों के पोषण के परिणामवश जो महत्वपूर्ण विकास है। जा सकता चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt है। यह स्थिति तब प्राप्त होती है जब कुण्डलिनी स्थापित हो जाती है और आप नि:सन्देह जान जाते हैं कि आपने होता है वह यह है कि आप आन्तरिक सन्तुलन अनुभव करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य का आनन्द लेने लगते हैं। कृण्डलिनी की जागृति से बहुत से रोगों, कुछ लाईलाज बीमारियों का भी लाभ हुआ है यहां तक कि कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से आत्मसाक्षात्त्कार प्राप्त करने के पश्चात वशांनुगत जीन्स ) के आकडों का आधार भी पुन्निेमित होता है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है तथा आपने सभी वो शक्तियां प्राप्त कर ली है जिन्हें उपयोग किया जा सकता है। आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते हैं। क्योंकि अब आप दूसरे लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं। आप अत्यन्त चुस्त हो जाते है और आसानी से थकते नहीं उदाहरणार्थ मेरी आयु 73 वर्ष हो गई है और में हर तीसरे दिन यात्रा करती हूँ। फिर भी में बिल्कुल ठीक हूँ। यह शक्ति आपके अन्दर बहती है और आपकी शक्ति से परिपूर्ण कर देती हैं आप अत्यन्त प्रगल्भ हो (पोषाणु परिमणामतः जिस व्यक्ति में अपराधी प्रवृति के जीन्स वंशानुगत आए हों वह भी अच्छा मनुष्य बन सकता है। हमारा चित्त भी अति पवित्र हो जाता है आत्मा के प्रकाश में हम अपनी अधोवस्था की स्थिति की अपेक्षा चीजों को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उदाहरणार्थ एक अन्धा व्यक्ति हाथी को छूकर देखता है फिर दूसरा अन्धा उसे छूकर देखता है और फिर तीसरा हाथी के जिस भी हिस्से को वे छूकर देखते हैं उसी के अनुसार हाथी के विषय में उनके विचार बनते हैं। परन्तु यदि उन्हें दृष्टि प्राप्त हो जाए तो वे एक ही चीज को देखेंगे, एक ही वास्तविकता को और उनमें कोई झगडा शेष न रह जाएगा।? आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति परम सत्य को अपनी अगुलियों जाते हैं और अत्यन्त सहृद करुणामय तथा दयामय और विनम्र भी। आपको लगता है कि आप सुरक्षित है और इस प्रकार आप आत्मविश्वस्त हो जाते हैं परन्तु अहंकार आपको नहीं छूता। आपका पूर्ण व्यक्तित्व परिवर्तित हो जाता है। यह एक प्रकार का सार्वभोतिक परिवर्तन सर्वत्र घटित हो रहा है इसे देखकर मैं आश्चर्यचकित हूँ कि किस प्रकार इतनी दूरुत गति से यह कार्यान्वित हो रहा है। त वास्तव में यह ज्ञान प्राचीन काल से था। मेरा योगदान मात्र इतना है कि अब हम सामूहिक साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। हजारों लोगों को सामूहिक साक्षात्कार मिल सकता है। जैसी कि भविष्यवाणी की गई थी कि इस प्रकार का सार्वभौतिक परिवर्तन घटित होगा, यह आधुनिक समय का उपहार है। कम से कम 65 देशों में हजारों लोगों ने सहजयोग के पोरों पर महसूस कर सकता है। मान लो कोई व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करता, कोई भी आत्मसाक्षात्कारी उस अविश्वासी व्यक्ति से कह सकता है कि वह प्रश्न पूछे को "क्या परमात्मा हे?' तो आप देखेंगे कि प्रश्नकर्ता अपने अन्दर अति सुन्दर शीतल लहरियां आती हुई महसूस होने लगेंगी। वह चाहे परमात्मा में विश्वास न करे परन्तु परमात्मा है दुर्भाग्यवश परमात्मा मे विश्वास करने वाले बहुत से लोग भी इतने बेतुके, पाखंडी, अत्याचारी, सनकी ओर होते हैं कि उन्हें देखकर लोगों ने परमात्मा में विश्वास रखो दिया है। परमात्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग गलत हो सकते है। परमात्मा स्वयं है और उनकी शक्ति भी है। इसे हम दिव्य प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति कहते हैं। यह प्रेम ओर करुणा की शक्ति है, आक्रामकरता ओर विनाश की नही। प्रेम और करुणा की इस शक्ति को जब योगी या आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति आत्मसात कर लेता है तो यह देवदूत सम अत्यन्त भिन्न रूप से कार्य करती है। ऐसे लोग स्वयं को तथा अन्य लोगों को रोग मुक्त कर सकते है। यहां तक कि मानसिक रोगी भी रोगमुक्त हो गए है। इतना ही नहीं जो लोग सत्य की खोज में कुगुरूओं के चक्कर में फंस गए थे। कुगुरूओं को छोड़ने के पश्चात् आत्मसाक्षात्कार के पथ पर आकर उन्हें भी आध्यात्मिक स्थिरता प्राप्त हो गई है। अगली उपलब्धि निर्विचार चेतना को प्राप्त कर लेना के माध्यम से आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है। आत्म तत्व प्राप्त करने की आपकी शुद्ध इच्छा ही कुण्डलिनी की शाक्ति है। बिना इच्छा के आप इसे किसी पर थोप नहीं सकते। क्योंकि परमात्मा मानव की स्वतन्त्रता का सम्मान करते हैं। मनुष्य यदि स्वर्ग में जाना चाहे तो स्वर्ग में जा सकता है और यदि नरक में जाना चाहे तो नरक में जा दुष्चरित्र सकता है। लोगों में यदि आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा हो तो वे सुगमता पूर्वक आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु यदि वे अपने पूर्व विचारों और संस्कारें पर अटके रहे, तो कुण्डलिनी नहीं उठेगी। यह मूर्ख व अपरिपक्व लोगों के लिए भी कार्य नहीं करती। कुण्डलिनी उन्हीं लोगों के लिए कार्य करती है जो िवेकशील है और मध्य में है। उनके लिए यह अत्यन्त तेजी से कार्य करती है। मैं हैरान हूं कि इसने नशेडियों, शराबियों और दुष्चरत्र लोगों पर भी कार्य किया। परन्तु उन लौगों में आत्म सुधार करने और आत्मसाक्षात्कार पाने की शुद्ध इच्छा अतिगहन थी। इस प्रकार के बहुत से लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के अपने लक्ष्य dreto 6. चैंतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt को प्राप्त कर लिया है । रातों रात उन्होंने नशे और शराब को त्याग दिया। इस प्रकार आप अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते है और समझ जाते हैं कि अब आप गरिमामय हों गए हैं तथा अत्यन्त सम्मानीय और विवेकशील ढंग से आचरण करने लगते हैं। इस प्रकार एक नई संस्कृति जन्म लेती है और ये नई संस्कृति आपको एक प्रकार की नई जीवन शैली मे ले जाती है जहां आप स्वाभाविक रूप से, धर्म परायण हो जाते हैं। किसी को आपको यह नहीं बताना पड़ता "ऐसा करो और "ऐसा मत करो" यह सारी उपलब्धि आपको चित्त के माध्यम से होती है यह ज्योति चित्त शक्ति से परिरपूण भी है । जहां भी आप चित्त डालते है यह कार्य करता है और शान्ति व मैत्रीभाव की सृष्टि करने के साथ- साथ सामूहिक चेतना के एक नए आयाम की सृष्टि भी करता है। अतः अपनी गलतियों के लिए अब अपनी वंशानुगत कमियों को दोष देने से अब काम नहीं चलेगा क्योंकि इन अनुवांशिक कोशाणुओं के आकड़ों के आधार को ही परिवर्तित किया जा सकता है और इन्हें अत्यन्त धर्म परायण व देवतुल्य व्यक्तित्व के स्तर पर लाया जा सकता है। व्यक्ति के अहम बढ़ते है, क्योंकि वे जानते हैं कि समस्या बंधित ये व्यक्ति सुगमता पूर्वक विकसित हो सकता है और आत्मसाक्षात्कारी जीवन बन सकता है। यह एक दीपक से दीपक जलाना सम है। विश्व भर में कार्य हो रहा है। और पूर्ण आशा है कि चीन में भी आरम्भ हो जाएगा। इससे पूर्व में यहां यह कार्य आरम्भ नहीं कर सकी परन्तु इस सम्मेलन के माध्यम से इसे देवी संयोग ने मुझे चीन के लोगों से बातचीत करने का अवसर प्रदान किया। मेरे विचार में चीन के लोग आध्यात्मिकता के इस महान वैभव के प्रति अत्यन्त विवेक तथा संवेदनशील हैं। यह मात्र संयोग नहीं है। यह अवश्यंभावी था और यह सर्वव्यापक शक्ति उसे लाई है। अपने जीवन में भी आपको बहुत से संयोग देखने को मिलेंगे परन्तु दिव्य शक्ति से योग प्राप्त किये बिना आप नहीं जान सकते कि किस प्रकार इन्हें देवी संयोग माना जाए। दूसरा कन्फ्यूशिस ने मानवता को सिवाया है कि किस चीन प्रकार हम अन्य मनुष्यों से अपने सम्बन्ध सुधारें। परन्तु में लाओत्से ने 'ताओ' अर्थात कुण्डलिनी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। मैंने येंग्तज नदी में यात्रा की है जिसमें लाओत्से ने बहुत बार यात्रा की थी। मैं जानती हूं कि लाओत्से यह दर्शाने का प्रयत्न कर रहे थे कि यह नदी जो कि और बन्धन कुण्डलिनी के उत्थान से समाप्त हो सकते है और वह वास्तव में पक्षी बन जाता है। वास्तव में पूर्ण स्व्तन्त्रता प्राप्त हो जाती है और व्यक्ति का आचरण अविश्वसनीय ढंग से परिवर्तित होता है उसे स्वयं में महान विश्वास हो जाता उन्मुक्त कुण्डलिनी है समुद्र की ओर बह रही है और व्यक्ति को इसके आसपास के प्रकृति के लालच में नहीं फंस जाना चाहिए। निःसन्देंह येंग्तज नदी के आसपास प्रकृति अत्यन्त सुन्दर है। परन्तु व्यक्ति को नदी में से गुजरगा होता है। इसमें बहुत से प्रवाह भी हैं जो अति भयानक हो सकते हैं और ज़िन्हें पार हैं। वह जीवन के सारे नाटक का दृष्टा बन जाता है। जब आप पानी में होते है तो आपको डूबने का भय होता है परन्तु यदि आप नाव में सवार हो जाएं तो आप उसी पानी को आनन्द पूर्वक देख सकते है। और यदि आप पानी में कूदकर अन्य लोगों को बचाना सीख लें तो यह उससे भी उच्च स्थिति होगी। अब हमारे पास एक उच्च चेतना है जिसे हम निर्विकल्प चेतना कहते हैं सर्वोपरि हम आनन्द सागर में कूद पड़ते है। आनन्द असीम है। इसमें दोहरा पन नहीं है। यह प्रसन्नता और अप्रसन्नता की तरह नहीं है। यह अद्वितीय है। एक बार जब आप इसमें कूद पडते हैं तो सहज ही सीख जाते हैं कि किस प्रकार किस जीवन का आनन्द उठाना है करने के लिए अत्यन्त कुशल नौका चालक चाहिए जो इसे समुद्र के समीप ले जा सके। वहां पहुंचकर इसका प्रवाह अत्यन्त शान्त और सहज हो जाता है। यह देश बहुत से महान दार्शनिकों द्वारा आर्शीवादित है और मैं कहंगी कि लाओत्से महानतम थे क्योंकि मानवतावाद का लक्ष्य मानव को उत्थान हेतु तैयार करने के लिए था और लाओत्से ने उत्थान की बात की। परन्तु सूक्ष्म विषय होने के कारण इसका वर्णन इतने स्पष्ट रूप से नहीं किया गया जैसे मैं तथा यह सुन्दर या असुन्दर। प्रशंसनीय तो है कि सहजयोगी महान संगीतज्ञ, महान लेखक, महान वक्ता तथा महान प्रशासक बन गए हे। सभी प्रकार से वे बहुत ऊंचे उठ गए हैं, विशेषकर दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण में। वे सभी का है आपसे इसकी बात कर रही हूँ। इस महान सामूहिंकता के सम्मुख बोलते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। विश्व भ्रमण करने के पश्चात मुझे महससू होता है कि जहां तक आध्यातमिक का प्रश्न है चीन स्वोकृष्ट देशों में से एक है। परमात्मा आप सबको आशीरवादित करे । पूरा सम्मान करते हैं। उन्हें इस बात का ज्ञान है कि अन्य व्यक्ति में क्या त्रूटि है। उनकी ओर वे अत्यन्त सावधानी और प्रेम से 7. चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन 'नैतिकता, स्वास्थ्य और विश्व" ,, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण आध्यात्मिकता के एक ही वृक्ष के पुष्पों के रूप में सभी धर्म पृथ्वी पर एकत्रित हुए। लोगों ने उन पुष्पों को तोड़ा और उन्हीं मृत पुष्पों से परस्पर लड़ रहे हैं। यह मेरा है, यह मेरा हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् परमात्मा के नाम पर एक नई शैली का युद्ध आरम्भ हो गया है। यदि आप एक परमात्मा में विश्वास करते है तो परस्पर कैसे लड़ सकते हैं? अत: उनमें यह मानसिक विचार मात्र है, हृदय के अन्दर की वास्तविकता यह नहीं है। कोई भी धर्म आपको घृणा नहीं सिखाता। कि वे क्या कर रहें हैं। क्या ईसा ने अनैतिकता सिखाई थी? क्या उन्होंने वेश्या वृति की बात की थी? पश्चिम में लोगों को पवित्र्य (कौमार्य) का कोई सम्मान नहीं है। तो आप किस प्रकार से ईसाई है? मुसलमानों की भी यही बात है। वे इस्लाम की बात करते हैं जोकि इतना महान धर्म था जिसने नैतिकता का दावा किया। मोहम्मद साहब ने तो ईसा और मां की पवित्रता के विषय मे भी बताया। परन्तु यदि आप मुसलमानों को देखें, तो वे कभी-कभी तो वे ईसाईयों से भी बदतर होते है। एक बार रियाद से दिल्ली के लिए यात्रा करते हुए वायुयान में में सो गई जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा अरबी वेशभूषा के स्थान पर अत्यन्त आधुनिक वस्त्र पहने हुए लोग बैठे थे। महिलांए तो अजीब किस्म के वस्त्र पहने हुए परन्तु स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। आरम्भ में यह सभी धर्म पावनतम रूप में आए और विश्व में प्रेम, शान्ति और एकता लाने का प्रयत्न किया। परन्तु कुछ लोग धर्म के कार्यभारी बन गए। वे भी भले लोग थे परन्तु शनै: शनै: वे एक दूसरे से अलग होने लगे। जो कुछ भी उन्होंने किया हो कम से कम धर्म परायणता की भावना की सृष्टि तो उन्होंने की। उन्होंने नैतिकता की बात की, प्रेम ओर करुणा की बात की। इस भावना को अभिव्यक्त करने वाली संस्थाएं थी परन्तु यह सभी कुछ अत्यन्त उथला था। स्वयं को ईसाई, मुसलमान या हिन्दू कहने वाले किसी व्यक्ति को आप देखें। क्या वास्तव में वह ईसाई है? ईसा ने कहा था "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए। किसी ऐसे ईसाई से मिले हैं जिसकी दृष्टि अपवित्र नहीं है ? या जिसकी दृष्टि कभी अपवित्र नहीं थी? मोहम्मद साहब ने कहा है कि स्वयं को जाने बिना आप ठीक मार्ग पर नहीं चल सकते। 'स्व' अर्थात आत्मा कितने लोगों ने इस बात को थी। अंत्यन्त लज्जाजनक। वे शराब और सिगरेट पी रहे थे। मैंने यान परिचालिका से पूछा कि यात्रा के मध्य क्या हम कहीं और भी गए है? उसने कहा, "नहीं मैने पूछा "ये लोग कौन हैं?" उसने कहा,"ये वही हैं।"ये परिवर्तित कैसे हो गए? उसने बताया, " आप इन्हें लंदन जाकर देखिए तो आपको पता चलेगा कि ये स्काटलैंड के लोगों से भी ज्यादा शराब पीते हैं। ईसाई मत असफल हो गया है, इस्लाम असफल हो गया है। किसी को विवश करके आप नैतिकता नहीं ला सकते। मैं कुछ अग्रेंजों से मिली और उनसे पूछा " आप हर समय स्त्रियों की ओर क्यो ताकते रहते हैं?" वे कहने लगे, "हमें मजा आता है। मैंने पूछा "क्या ईसा ने ऐसा ही कहा था?" वे कहने लगे, "हम तो चर्च मे भी ऐसा ही करते है। क्या हम अपनी दृष्टि किसी चीज पर टिका लें?' आप ।र परखा है। क्या यह सभी मुसलमान आत्मा- चलित हैं? वे तो बस लड़ ही रहे हैं मुझे उनके लिए दुख होता है क्योंकि वे हजारों की संख्या में मारे जाते हैं और उन्हें युद्ध करने के लिए भड़काया जाता है। ऐसा करने से उनके सारे सुकृत्य निष्प्रभावित हो जाते हैं। उनके अनुसार उनके धर्म को न मानने वाले काफिर हैं। मुसलमानों के विषय में यदि आप जानना चाहते हैं तो यहूदियों से पूछे। यहूदियों के विषय में यदि जानना चाहते है तो ईसाइयों से पूछे। और यदि ईसाईयों के विषय में जानना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि अमेरिका जाकर देखें मैने कहा, आप सब बहुत बेकार लोग है।" उन्होंने कि वे क्या करें? मैंने उनसे पूछा, क्या आप सत्य साध पूछा के हैं या अपने पूर्व कुसंस्कारों के साथ जीना चाहते है या आप समझते है कि मात्र ईसाई, यहूदी, मुसलमान होने से हम परमात्मा के दंड से बचे हुए है। स्पष्ट रूप से मैं आपको बताऊंगी कि आप में से अधिकतर नरक में जाएंगे " वे कहने लगे, "क्यो" मैंने कहा, "क्योंकि आप पाखंडी है।" वास्तविकता यह है कि आप अपने धर्म का अनुसरण नहीं करते और आपने केवल इसका लेबल चिपका रखा है। चैतन्य लहरी ৪ 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt के लिए जा रहे हैं। आपमें देश भक्ति या बलिदान का विवेक बिल्कुल नहीं है। मैं गर्व पूर्वक कह सकती हूँ कि मेरे देश में आपको एक आयात्तित टाई भी नहीं मिल सकेगी। यह गांधी जी की कृपा है। उन्होंने कहा कि कोई भी विदेशी चीज न खरीदें। आप हाथ कते, हस्त बुने वस्त्र खरीद सकते हैं। देश भक्त होने के कारण मेरे माता पिता ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। मैं भी देश भक्त हूं और चाहती हूँ कि आप सब भी देश भक्त बने। यह सहजयोग द्वारा ही संभव हो सकता है, यह कहने से नहीं कि " मुसलमान हूँ या ईसाई हूँ। सर्वप्रथम आपको कहना होगा कि मैं रूसी हूँ। आप जो मार्ग चाहे उसका अनुसरण करें परन्तु पहले जान ले कि आप चाहते क्या है? सर्वप्रथम अब्राहम आए फिर मोजेज़ और फिर उसके पश्चात् ईसा मसीह एक- एक कदम करके यह उत्थान हुआ। मुसलमानों को शहरीयत कुरान ने नहीं दी। बाईबल मे मोजेज ने यह यहूदियों को दी। परन्तु यहूदियों ने कहा कि हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। इसमें बहुत अति है। ईसाईयों ने भी यही बात कही, परन्तु मुसलमानों ने इसे अपना लिया। उस समय शहरीयत यहूदियों के लिए थी.क्योंकि मोजेज ने उन्हें पूर्णतया पतनोंमुख पाया। परन्तु इससे क्या किसी को कुछ लाभ हुआ? यदि वे निराकार परमात्मा में विश्वास करते हैं तो उन्हें किसी देश या भूमि के लिए युद्ध करने की क्या आवश्यकता | परमात्मा तो सवत्त्र विद्यमान है। जो लोग यह समझेंगें कि वे पहले मुसलमान हैं, पहले ईसाई हैं वे ही लड़ेंगे। क्योंकि वे राजनीतिक विचारों वाले हैं। आध्यातमिक विचारों वाले नहीं। आपको आध्यात्मिक विचारों वाला बनना होगा, अन्यथा आपको मैं एक अन्य अपराधमय, गैर कानूनी चीज जिसे स्वीकार कर लिया हैं, वह है स्विस बैंक। इनके विषय में कोई आवाज नहीं उठाता। इसे स्वीकार कर लिया गया है। मेरे देश का तीन चौथाई वैभव स्विस बैंकों में बन्द है और मैं नहीं जानती कि कितना रूसी माफिया ( गैर कानूनी धन) बहां बन्द है। अपनी वैधानिक शक्तियों द्वारा उन पर आक्रमण करें क्योंकि वे कहना चाहिए कि हम परमात्मा में विश्वास नहीं करते। अब पाश्चात्य संस्कृति और रूढ़िवादी संस्कृति के बीच झगड़ा है। रूढ़िवादी कहते है कि आप कट्टर संस्कृति अपनाए इसे वे थोप रहें हैं। अल्जेरिया में हजारों लोगों को इसलिए कत्ल कर दिया क्योंकि वे पश्चिमी वेशभूषा पहनते थे। वे पेरिस में बम डाल रहे हैं। ये रुढिवादी लोग सभी प्रकार की हिंसा पर उतारू हो गए हैं। मोहम्मद साहब ने रहीम, रहमत (करुणा) की बात की। परन्तु इस्लाम धर्म में समानता नाम की चीज नहीं है। महिलाओं से वे दुर्व्यवहार करते है। जो स्त्ी आठ-दस बच्चे पैदा नहीं करती, उसे तलाक करके फेंक दिया जाता है। भारत में हमारे यहाँ हजारों स्त्रियाँ और बच्चे हैं जो देश में दरिद्रतम हैं । मोहम्मद साहब पूर्णतया गैर कानूनी हैं। जो धन निर्धनों रोगियों, ओर कोढियों पर खर्च होना था उसे वे स्विस बैंकों मे ले गए है। मेरे देश का ही उदाहरण लें इसमें वैभव के महा स्त्रोत थे तीन परन्तु सौ वर्षों तक बर्तानवी लोग बिना वीसे के यहां रहे । उन्होंने हमे लूटा और अब स्थिति यह हे कि एक भारतीय भी यदि इंग्लैंड जाना चाहता है तो उसकी भली-भाँति जांच होती है। वे हमारा सारा सोना, हीरे- चांदी और अन्य सभी बहूमूल्य चीजें ले गए मानों दिन- दहाडे डकैती डाली हो और अब वे स्वंय को ईसाई कहते हैं। उन्हें इसके लिए लज्जा भी नहीं आती। भारत छोडने से पूर्व उन्हेोने मुसलमानों, हिन्दुओं, बौदों, जैनियों, ईसाइयों और अन्य सभी धर्मावलम्बियों मे भेदभाव उत्पन्न कर दिए तो मुसलमानों ने कहा कि हम तो अपनी मुसलमान बहुत लिप्त है अत: उन्होंने पाकिस्तान और बंग्लादेश ले लिए। दुनिया में बंग्लादेश निर्धनतम देश है। वहां के लोग घुसपैठ करके भारत वापस आने का प्रयत्न कर रहे हैं। परन्तु पाकिस्तान की दशा तो इससे भी खराब है क्योंकि भारत के जिन लोगों ने यह वैभवशाली हो जाएगें तथा उच्च पदों को प्राप्त कर लेंगे, जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया था उनके साथ वहां गुलामों की तरह व्यवहार किया गया। भारतीय बहुत ही चतुर हैं। वे सब कराची के आस पास जा बसे जो कि ने कहा कि आप चार स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं ताकि स्त्रियां वेश्याएं न बन जाए। वह समय ही ऐसा था। तो अब मुस्लिम वेश्याएं किस प्रकार जीवन यापन करें। इस्लाम के नाम पर भूखी मरे और अपने बच्चों की भी हत्या कर दें? ईसाई, मुस्लिम या यहूदी धर्मो ने क्या हित किया है ? धर्माधिकारी अपने स्तर पर बहुत परिश्रम कर रहें हैं। परन्तु उन्हें वास्तविकता का सामना करना होगा। ईसा मोहम्मद साहब और बुद्ध कथित कोई भी उपलब्धि उन्होंने प्राप्त नहीं की है। इसके विपरीत अपनी धर्मान्धता के कारण उन्होंने इन ही पृथ्वी लेंगे पृथ्वी से सोचकर किया कि पाकिस्तान में रहने से वे बहुत महान धर्मों के संस्थापकों को बदनाम जरूर किया है। आपके दूरदर्शन में मैंने आयातित वस्तुओं के विज्ञापन देखे। क्या आप पागल हैं? आप अपना सारा धन इस कचरे पर व्यय कर रहे हैं जो पश्चिम या अमेरिका में नहीं बिका। आप सब पढे लिखे लोग अमेरिका में बर्तन धोने वाले बनने और चालाके 1. बि चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt गलती ही हमारा बन्धन है। जैसे सभी अवतरणों ने कहा है और मैं भी कहती हैं कि एक शक्ति है जो सर्वव्यापक है। क्यों न हम इसे पाने की चेष्टा करें? हम क्यों सोचे कि हम ईसाई हैं या मुसलमान हैं या कुछ और। क्यों न हम मोहम्मद साहिब, ईसा. मोजेज वर्णित शक्ति को प्राप्त कर लें ? हानि क्या है? किसी चीज को यदि आप प्राप्त कर सकते हैं तो क्यों न कर लें? यह तो है भी नि:शुल्क इसके लिए आपको कुछ व्यय नहीं करना पड़ता। वास्तव मे मुझे आपसे कुछ लेने की आवश्यकता नहीं है। में स्वयं में परिपूर्ण हू। मुझे तो सहजयोग की भी आवश्यकता नहीं है। मैं क्यों सर्वत्र दौड़ी फिर रही हूँ? प्रेम के कारण, मेरे अन्त्स की करूणा मुझसे यह कार्य करवा रही है, क्योंकि अन्धे है, वे देख नहीं सकते। मुझे अब और गिर्जे या यहूदी- सभागार और ये भवन नहीं चाहिए। आत्मा का निवास तो हृदय में है। कुण्डलिनी की इस यन्त्रावली में ही यह सब बना हुआ है। परमात्मा ने इसी की रचना की है। अन्तिम भेदन को परमात्मा ने इसे क्यों बनाया? यह आपकी अपनी मां है। ये आपको यह प्रदान करने वाली हैं। ये विद्यमान है। आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी माँ है। इसे प्राप्त करने का आप को अधिकार है। परमात्मा की शक्ति से एकरूप होने का आपको पूर्णाधिकार है। हमारे पास यह यन्त्र है। परमात्मा ने इस यन्त्र को बनाया है। परन्तु यदि आप इसे इसके स्रोत से नहीं जोड़ना चाहते तो आप क्या है? आपकी पहचान क्या है? आपका जन्म क्यों हुआ है? वह वहां की महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह है। इन लोगों के नेता ने कहा है कि हिटलर की तरह पाकिस्तान की प्रधानमंत्री भी हमारी संख्या को कम करने के लिए 14-16 लोगों को मरवा देती है। तो अब मुसलमान, मुसलमानों से लड़ रहें हैं सद्वाम हुसैन धनवान मुसलमानों से लड रहे है खुर्द तुर्को से लड़ रहे है। क्या यहीं इस्लाम है? क्या यही मोहम्मद साहब को प्रतिष्ठापित करने का मार्ग है ? क्योंकि वे स्वयं को नहीं रखोज पाए। इसलिए वे परमात्मा को नही जानते। आत्मसाक्षात्कार और आत्मज्ञान प्राप्त करने का सहजयोग ही एकमात्र मार्ग है। हमारे यहां सभी धर्मो, सभी जातियों और सभी देशों के लोग है। सभी ने मुझे बताया है कि केवल सहजयोग द्वारा ही हम शान्ति प्राप्त कर सके। आपके अन्तस में यदि शान्ति नहीं तो किस प्रकार आप अन्य लोगों को शान्ति प्रदान कर सकतें है। जिन्हें शान्ति पुरस्कार दिए गए हैं उनके स्वभाव अत्यन्त भयानक और क्रोधी हैं। वे तो कभी मुस्कराते तक नहीं। वे इतने तनाव ग्रस्त हैं। किस प्रकार वे किसी अन्य को शान्ति प्रदान कर सकते है। अत: सर्वप्रथम हमें अपने अन्तस में शान्ति प्राप्त करनी होगी। पिछले 25 वर्षों से मेरा यही कार्य रहा है। आप केवल आन्तरिक शान्ति ही प्राप्त नहीं करते। आप परमात्मा के साम्राज्य की नागरिकता भी पा लेते है। पिछली बार जब स्वंय आई थी तो यहां सैनिक विद्रोह हो गया था। मैंने देखा कि सहजयोगी पूर्वातय शान्त हैं। मैंने उनसे पूछा क्या आप चहूं ओर की घटनाओं से चिन्तित नहीं हैं? उन्होंने उत्तर दिया, " श्री माता जी हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम क्यों चिन्ता करें?' ये सरकारें तो आती जाती रहेगी। परन्तु हम शाश्वत जीवन में प्रवेश कर चुकें हैं उनकी मुखाकृतियों पर देखा जा सकता था कि उनमें कोई पाखंड न था। ? सहजयोग मनुष्य को पूर्ण ज्ञान प्रदान करता है, प्रासंगिक ज्ञान नही। प्रासंगिक ज्ञान यह है कि क्योंकि में इसाई हूँ अत: मैं मुसलमानों से उच्च हूँ। मैं मुसलमान हूँ अत: ईसाईयों से उच्च हूँ। कुछ निर्धारित विचारों के साथ मनुष्य मुसलमान या ईसाई का जन्म लेता है। हिटलर इन विचारों की पराकाष्ठा थी। उसने कहा कि वह उच्च जाति का है। बच्चों की गैस कक्ष में हत्या करके उसे मजा आता था। किस प्रकार वे उच्च जाति के हो सकते हैं? हम किसे उच्च मानते हैं? प्रेम एवं करुणा से परिपूर्ण सन्त ही उच्च होते हैं ये विचार हमारे मस्तिष्क में भर दिए जाते हैं और सीमित करने वाले इन तुच्छ विचारों से होने की न तो हमें स्वतन्त्रता है अब विज्ञान की बात करें। विज्ञान असीम है। विवेचन किया जाने वाला सभी कुछ विज्ञान है। परन्तु क्या वे बता सकते हैं कि मानव पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुआ? क्या वे बता सकते है कि क्रम विकास क्यों हुआ? क्या वे बता सकते हें कि मानव का लक्ष्य क्या है? बहुत से प्रश्नों का उनके पास कोई उत्तर नहीं। डाक्टर से यदि आप पूछे कि हृदय को कोन चलाता है, ता वे उत्तर देंगे 'स्वचालित नाड़ी तन्त्र'। परन्तु यह 'स्व' है क्या? उनके पास इसका कोई उत्तर नहीं। परन्तु शरीर में एक्टीलीन (Actylene) और एड्रीलीन (Adrelin) नामक दो रसायन है। एक गति वृद्धि करता है तथा दूसरा शान्त करता है। परन्तु शरीर में यह निरंकुश रूप से कार्य करते हैं। कोई नहीं जानता कि बढ़ावा देने वाला सिकुड़ता क्यों है? कोई बाह्य तत्व यदि शरीर में चला जाय तो उसे शरीर अविलम्ब बाहर फेंक देता है। पर माँ के गर्भ में जब भ्रूण की सृष्टि हो जाती है तो शरीर उसे बाहर नहीं फेंकता। उचित समय तक इसका पोषण एवं विकास मुक्त और न ही ऐसा करने की हममें हिम्मत होती है यह मानवीय 4ना. 10 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt आपका मस्तिष्क चितंनशील नही होता, अपने आप मे पूर्णतया शान्त होता है। सभी कुछ जानते हुए भी आप निर्विचार होते हैं। जब आप इस सर्वव्यापी शक्ति, जो कि शान्ति है, से जुड जाते है तो आपके अन्तस में शान्ति होने लगती है और शान्ति फैलती है। आप दूसरों को भी शान्त होता है तब यह बाहर आता है। यह विवेकशील अन्तर कौन करता है? एक भयंकर युद्ध चल रहा है। और उन्होंने क्या सृष्टि की है? एटम बम, हाइड्रोजन बम। विज्ञान क्योंकि नैतिकता निर्पेक्ष है, विज्ञान के लिए कोई नैतिकता नहीं। वे जासूस, हत्यारे या वैज्ञानिक हो सकते हैं वे ज्ञराबी हो सकते है। किसी भी पादरी की तरह वे व्यभिचारी हो सकते हैं। उनमें कमी क्या है? वे इतने उच्च पदारूढ है; उनके पास बहुत पुरस्कार हैं। और आप पाते हैं कि नैतिकता के मामले में वे करते हैं। अत: एक बात आप समझ लें कि परमात्मा शान्ति का स्रोत है। इस प्रकार आप शान्ति फैला सकते हैं। सहजयोग मे आप देखते हैं कि हजारों-हजारों लोगों में शान्ति" हैं। किसी भी देश या जाति से वो सम्बन्धित हों परन्तु जब वे एकत्रित होते हैं तो एक समुद्र की तरह होते हैं। यह कल्पना मात्र नहीं है, क्योंकि इससे आप विराट के अगं-प्रत्यंग बन जाते हैं। क्याकि बूंद सागर बन जाती है। वे एक-दूसरे का आनन्द लेते है, परस्पर लड़ते नहीं। क्योंकि वे पावन बहुत पतित हैं क्योंकि वे अपना सम्मान नहीं करते। स्वयं से आशा नहीं करते क्योंकि वे स्वयं को पहचानते नहीं। वे नहीं जानते कि वे कितने महान है हमें ज्ञान नहीं है कि हम क्या है। हम यह शरीर, मन, बुद्धि या भावनाएं नहीं हैं। हम अहं या धार्मिक बन्धन भी नहीं हैं हम पवित्र आत्मा हैं। आत्मा है। अब मैं आपको बताऊंगी कि कब आप आत्मा बन जाते हैं। मैं नहीं सोचती कि इस पर किसी को एतराज होना चाहिए, क्योंकि ये आप और आपका हित है। यह आपके परिवार और पूरे विश्व के हित में हैं कुण्डलिनी की शक्ति हमारे अन्दर है। भारतीयों के लिए यह अति प्राचीन विज्ञान है। कुरान में भी लिखा गया है 'असास'। बाइबल में कहा गया है, "शोलों की जुबान मे मैं आपके सम्मुख प्रकट हूँगा।" | वास्तविकता यह है कि मुझ पर अन्धविश्वास किए बिना आप स्वय उसका अनुभव विश्वास की समस्या है, आप इसका अनुभव करें कि यह कुण्डलिनी उर्धव गति को पाकर हमारे तालू अस्थि क्षेत्र को बेंधती है। परिणाम स्वरूप आप परमात्मा की स्वव्यापी शक्ति से जुड जाते हैं। यह न कोई भाषण है और न आदेश। आपके बपतिस्म का वास्तविकरण हैं। आप यदि विवेकशील हैं तो समझ जाएंगें कि हम शान्तिमय विश्व मे नही रह रहे। पहली चीज जो घटित होती है वह है कि आप निर्विचार चेतना मे चले जाते हैं। हम क्या सोचते रहते हैं या तो भविष्य के बारे में सोचते हैं या भूतकाल के विषय मे, वर्तमान के विषय में नही सोचते। वर्तमान ही वास्तविकता है। भूतकाल समाप्त हो एक अन्य अच्छी चीज जो आपके साथ घटित होती है कि आपका चित्त ज्योत्तिमय हो जाता है। बहुत से लोग अपने सत्तरवें में जराजीर्ण हो जाते हैं। क्योंंकि उनका चित्त ही ऐसा बन जाता है। उन्हें परिवर्तित करना भी कठिन होता है परन्तु आपका चित्त ज्योतिमय हो जाएगा ज्योर्तिमय चित्त की इस स्थिति में सर्वप्रथम आप पूर्णअत्व को देखेंगे। प्रेम एवं करुणा से यह प्रकाशित है। दूसरों को अच्छाइयों को आप देखते हैं और जरुरत मंद लोगों की सहायता करते हैं। में आपको अपना एक अनुभव सुनाती हूँ पहली बार जब में रूस आई तो मैं कोई रूसी भाषा नही जानती थी और मेरी सहायता के लिए पच्चीस जर्मन सहजयोगी आए। मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैंने पूछा कि आप यहां कैसे आए हैं? कहने लगे, 'जर्मनी के लोगों ने बहुत से रूसियों को मारा था। अत: हम यहां आने के लिए कर्त्तव्य बद्ध हैं। इस प्रकार का प्रेम इतना सच्चा है। यह तभी संभव है जब आप आत्मा बन जाएँ। दूसरी चीज जो आपके चित्त के साथ घटित होती है वह यह है कि यह ज्योतित चित्त आपको धर्मपरायणता का मार्ग देता है। रातों-रात लोगों ने नशे-शराब और अन्य विनाशकारी चीजें त्याग दीं पश्चिम मे एक आम विचार धारा है कि हमें अपने करें। हमारे चहुं ओर पहले ही बहुत अन्ध চ गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नही है। परन्तु यह बात सत्य है कि हम वर्तमान में नहीं रह पाते। एक विचार उठता है और उसका पतन हो जाता दूसरा विचार उठता है और गिर जाता है और इस प्रकार भूत और भविष्य के विचारों की नोंक पर हम कूदते रहते हैं परन्तु जब कुण्डलिनी उठती है तो इन विचारों को लंबा कर देती है और इनके मध्य में दूरी की सृष्टि करती है। यह वर्तमान है जिसमे जीवन के हर क्षण का आराम उठाাना है। परन्तु सभी आनन्द आत्मघाती हैं। सहजयोग में आप विनष्ट हुऐ बिना आनन्दित होते हैं। आप पूर्ण प्रकृति, सभी मानवों का आनन्द लेते हैं। आप अन्न्तजात का मजा लेते हैं । दिखावों की चीजों का नहीं। आपके चित्त में आपको यह सब उपलब्ध है। यह चित्त भी कार्य करता है। कल इन्होंने मुझे बताया कि "श्री माता जी बहुत ठंड हो जाएगी।" मैंने सहजयोगियों से कहा है फिर चैतन्य लहरी 11 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt थे। स्वयं जान जाएगें कि मैं क्या हूँ। ईसा परमात्मा के कि आप बस अपना चित्त डालें। एकदम प्रकृति आपकी सेवा मे उपस्थित हो जाएगी कल धूप निकल आई थी। पूरी प्रकृति को अपने चरण कमलों में होने की आप आज्ञा दे सकते हैं क्योंकि आप परमात्मा की शक्ति से एक रूप हो गए हैं। परमात्मा की यही शक्ति ऋतुओं की सृष्टि करती है और अन्य सभी कुछ बनाती है। इसी ने आपकी सृष्टि की है ओर जो भी आपके हित मे होगा यह करेगी। परन्तु यदि आप किसी की के विषय मे सोचेगें तो वह घटित न होगा। पुत्र आप इसे माने या न माने पर वे परमात्मा के पुत्र थे। परन्तु जब ईसा ने यह बात कही, तो उन्होंने उसे क़सारोपित्त कर दिया। मैं जो हूँ, यह बात मै आपको नही बताऊँगी। आध्यात्मिकता में उत्थान पाकर, सूझबूझ से आप इसे महसूस करें। क्यों? क्योंकि आपने अन्य लोगों का भी हित करना है। कितनी सुन्दर जिम्मेदारी है। अन्त में आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर जाते हैं और तब आनन्द सागर में विलीन हो जाते हैं। आनन्द का कोई विलोम नही है जैसे प्रसन्नता और अप्रसन्नता। यह एकमेव है। अपनी वासना और मृत्यु परन्तु आत्मसाक्षात्कार पाकर आत्मा बन जाने के उपरान्त आप बुरी बातें सोचते ही नही। एक अन्य महत्त्वपूर्ण चीज जो आपके साथ घटित होती है वह ये है कि जिधर भी आपका लालच को त्याग कर आप पावन हो जाते हैं तथा स्वयं को देखने लगते हैं। इसके लिए आपको सन्यासी होने की आवश्यकता नही। आपको न तो हिमालय भें जाना है और न ही व्रत रखने हैं । यह आन्तरिक है बाहर से कुछ नही परिवर्तित होना। मैं जानती हूँ कि विश्व में सार्वभौमिक परिवर्तन होने वाला है। आपके वशांनुगत पोषाणुओं का मूल आधार ही परिवर्तित हो जाएगा। सहजयोग में आए सभी प्रकार के लोग परिवर्तित हो गए हैं । बहुत से लोगों की लाईलाज बीमारियां ठीक हो गई हैं बिना कुछ खर्च किए उनकी अपनी शक्तियों द्वारा। अत्यन्त सुगमता, सहजता और स्वभाविकता से। पशुओं को यदि आप चैतन्य लहरियां दे तो उन्हें भी लाभ होता है चैतन्य लहरियों से फसल दस गुनी अधिक होती है। इस अन्तिम निर्णय में महान लोगों की एक नई जाति बनी है। यह आपकी अपनी शक्ति है। आपको केवल से चित्त जाता है आप आत्मसाक्षात्कार दे सकते है। जैसे एक दीपक से असंख्य दीपक जलाए जा सकते हैं । मैं कभी अफ्रीका नही गई परन्तु दक्षिण अफ्रीका, कैमरुन आदि में बहुत से सहजयोगी हैं। मै साइबेरिया भी कभी नहीं गई परन्तु वहां भी बहुत से सहजयोगी हैं। सहजयोग फैल रहा है। जो भी इसके विरुद्ध होंगे वो शीघ्र ही उससे बाहर हो जाएगें। लोग जान जाएगें कि यह पाखंडी हैं। इसके लिए हमें चिन्ता नही करनी चाहिए। उन्हें खोज निकाला जाएगा। हमें किसी की बुराई नहीं सोचनी चाहिए। किसी को धिक्कारना नहीं चाहिए। सहजयोगी किसी की हत्या नहीं कर सकते। जब आप अन्य लागों को साक्षात्कार देने लगते है तो आपको निर्विकल्प समाधि नाम अन्य स्थिति प्राप्त हो जाती है। जिसमे आपको सहजयोग, उसकी कार्यशैली और मेरे विषय मे कोई संदेह नही रह जाता। अपने विषय में भी आपको कोई सदेह बाकी नहीं रहता। एक बार आपने बह स्थिति प्राप्त करनी है। बहुत लोगो ने यह स्थिति पा ली है। इतना जानना है कि आप कितने गरिमामय और महान हैं। पूर्णतया स्वतन्त्र क्योंकि आपको उच्च विवेक प्राप्त हो जाता है। आत्मा के प्रकाश में आप जान जाते हैं कि आपके लिए रचनात्मक क्या है। पूर्णज्ञान को आप समझ जाते हैं। धर्माधिकारी लोगों को एक विशेष स्थिति मे ले आए हैं। धर्म सब लोगों के लिए मेरे हृदय में अत्यन्त प्रेम और सम्मान है। उन्होंने तो कभी कुण्डलिनी का नाम भी न सुना था किस प्रकार इसे स्वीकार कर लिया। उनमे क्या चीज थी कि वे खाज रहे थे ? इस सूक्ष्म विषय से उन्हें कितना प्रेम हैं और इसकी कितनी सूझबूझ लोग उन जैसे हैं। यह अन्तिम निर्णय है और जो, रह जाएगें, रह जाएगें परन्तु ईसा ने कहा है, "आप मुझे येशु- येशु या ईसा बुलाते रह जाएंगे, परन्तु मैं आपको पहचानुँगा नहीं। 2" अतः समझ लें कि आपको आत्मा बनना है। जैसा कि ईसा ने कहा है आपको पुर्नजन्म लेना है। आरम्भ में आप मुझ पर विश्वास करें या न करें। आपको स्वयं मे विश्वास होना आवश्यक है। परन्तु जब आपका आध्यात्मिक उत्थान हो जायेगा तो आप अपनाने की क्या आवश्यकता है? यह उत्थान की ओर अग्रसर करता है। उन सबको उत्थित होना है। धर्म के माध्यम से संतुलन स्थापित करना है। जिस प्रकार भिन्न कार्य शालाओं में हम वायुयानों को संतुलित करने के लिए टांग देते हैं क्योंकि उन्हे हवा में उड़ना होता है। यदि उड़ना ही नही है तो संतुलन किस काम का। आत्मा की पूर्ण स्वतनता के साथ आपको उड़ना है। आपने यह नही कहना कि 'यह करो यह मत करो आप उड़ान के लिए तैयार हैं। अब अपने उन्हें है विश्व के बहुत कम आत्मसाक्षात्कार का आनन्द उठाए । परमात्मा आपको आशीवादित करें। 12 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt मस्तिष्क मिथ्या है परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली 21 3-96 जन्म दिन पूजा उन्होंने इस मस्तिष्क को पूरे तरह से इस मन से भर दिया। मन इनके ऊपर छाया हुआ है और जहाँ चाहे मन वहीं बहकते रहते हैं। उस बहाव में बहते रहते हैं। उस और चलते रहते हैं, एक कत्रिम सी चीज़ अपने अन्दर स्थापित हो गई है। जिसे हम मन कहते हैं, असल में मन नाम की कोई चीज न थी न है। इसलिए मन से परे जाना ही सहज का कार्य है। अब आप मन से परे जाएगें तभी आप उस शान्ति को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि मन हमेशा विचारों से, जो कि अहंकार और हमारे संस्कार, (प्रति अहंकार) से आते रहते हैं, उसे आड़ोलित करता है। इसलिए कोई शान्ति आप महसूस नहीं कर सकते। अगर शान्ति को आपने प्राप्त करना है तो इस कृतरिम मन से परे जाना चाहिए। इसलिए हमारे यहाँ जो प्रथम दशा सहज की मानी जाती है, जिसे कि हम निर्विचार समाधि कहते हैं, उसको प्राप्त करना चाहिए। उसके प्राप्त करते ही आप देखते हैं कि आप शान्त हो जाते हैं। आपके अन्दर जमे और जिनके कारण आप गलत-गलत चीजो में घुसे रहते है और परेशान रहते हैं, तकलीफ में रहते हैं. तरह से चीज मिट जाती है। यह विषय आज नया मैंने शुरू किया है क्योंकि अब भी हमारा निर्विचार में समाधिस्थ होना इतने प्रेम, आदर और श्रद्धा से आप मेरा जन्मदिन मना रहे हैं, यह देखकर ऐसा लगता है कि हमने ऐसा किया ही क्या है जो आप लोग इस तरह अपना प्रेम दिखा रहे हैं आज में आपको एक अनूठी बात बताने वाली हूँ, कि हमारे अन्दर जो मन नाम की संस्था है, वो एक मिथ्या बात है। वो मिथ्या ऐसी है कि जब हम पैदा हाते हैं तो हमारे अन्दर ये मन नाम की बात कोई नही होती। जब धीरे- धीरे हम बाह्य में प्रतिक्रिया करते हैं, दोनो तरफ की, तो कोई हममें संस्कार बनाता है और कोई हमारे अन्दर अहंकार का भाव जागृत करता है, तब उन प्रतिक्रियाओं से जो हमारे अन्दर चीज़ जागृत होती है वो बुलबुलों की तरह इकट्ठी हो जाती है और यह हमारे विचारों के बुलबुले हमारे अन्दर मन नाम की एक संस्था बना देते हैं यह सारी चीजें हमारे अन्दर ऐसी घटित होती हैं, कि जिसे हम खुदी बनाकर के और उसकी गुलामी करते हैं जैसे घड़ी इन्सान ने बनाई है और हम घड़ी की गुलामी करते हैं। सहज में फिर आप कालातीत हो जाते हैं। आप इससे परे हो जाते हैं। समय, आप के साथ चलने लगता है आप समय के पीछे नहीं दौड़ते। अब कम्प्यूटर आज कल लोग बना रहे हैं, कम्प्यूटर के बनने से उसी की गुलामी लोग करने लग गए और इस गुलामी में इस कदर बहक गए हैं कि वो यह नही समझ पाते कि कम्प्यूटर ही उनको पूरी तरह से दबोचे जो कुछ विचार हैं जो कि एकत्रित हो गए हुए वो सभी एक कुछ कम और जब तक आप निर्विचार में उतरेंगे नहीं तब तक आप चारों तरफ फैली इस परमेश्वर की शक्ति को प्राप्त नही कर सकते, उससे सरबंधित नहीं हो सकते। बीच में मन की जो स्थापना हुई है, यही आपकी स्थिति, जो कि योग में होनी चाहिए, उसे खत्म कर देती है। आज मैंने सोचा थोड़ा अंग्रेजी मे भी बोलना चाहिए क्योंकि यहाँ बहुत से परदेश से लोग आए हैं। इसी विषय को मै अग्रेंजी में बताना चाहूँगी। है -हुए है। उनको कन्ट्रोल करना है। उसके दबाव में आ गए हैं। उसके काबू में आ गए हैं और उसके बगैर इनका कुछ काम नहीं चलता। अभी तक हिन्दुस्तान में इसकी प्रथा इतनी आई नही, नसीब समझ लीजिए नहीं तो आप को भी दो और दो को मिलाने के लिए कम्पयूटर आपके चाहिए। वो भी आप नहीं मिला पाएँगे क्योंकि अपनी बुद्धि आप इस्तेमाल नहीं कर पाए। तो आपका जो मस्तिष्क में बुद्धि का वास्तव्य हैं वो तो सत्य है, किन्तु ये जो मन है यह एक बनाई हुई संस्था है। हमारी अपनी तरफ की जो प्रतिक्रियाएं हैं। अहंकार की और हमारे संस्कारों की वो बनी हुई एक बहुत ही कृत्रिम सी एक शापिक चीज़ है। फिर हम इसी से हमेशा प्लावित रहते हैं खास कर के जो लोग अपने को ही सोचते हैं कि हम बहुत ही विद्वान, बहुत समझदार, बड़े पढ़े लिखे हैं, श्री माता जी की अमूल्य शिक्षा ताईवान में चार रातें और पांच दिन के प्रवास में श्री माता जी ने ताईवान की सामूहिकता को जो अमूल्य शिक्षा- मोती प्रदान किए वे इतने सुन्दर हैं कि हम उन्हें बारम्बार सुन सकते हैं। बहुत सत्य ही प्रेम है। सहज योग केवल परमात्मा के प्रेम 13 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt देखना, बनना नहीं है; बन जाना ही उपस्थिति है। सुषुप्ति गहन निद्रा अवस्था में प्रायः योगीजन भविष्य को देखते हैं परन्तु कभी कभी यह अत्यन्त भ्रामक एवं त्रुढिपूर्ण होता है। की बात करता है। किसी से जब हम प्रेम करते हैं तो उस व्यक्ति की विस्तृत जानकारी हमारे लिए आवश्यक होती है। प्रेम की ऊर्जा विकसित करके उसे अपनी दिनचर्या में प्रकट जा नि करना होता है। अन्न्तदर्शन मानसिक गतिविधि नहीं है। निर्विचार- चेतना (समाधि) की स्थिति में जब हम होते हैं तो स्वत: ही अन्तःदर्शी होते हैं। तब हम स्वयं के साक्षी बन जाते हैं । ध्यान करते हुए संगीत तभी तक न्याय संगत है जब तक उसके प्रति हममें कोई प्रतिक्रिया न हो। श्री माता जी की फोटो को देख पाने के लिए पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए; सहजयोग प्रचार करना सभी सहजयोगियों की जिम्मेदारी है? यह मात्र अगुआ का ही उत्तरदायित्व नहीं। ग्रीष्म काल में सभी जिगर का इलाज (बर्फ क्रिया करना याद रखें। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चांत् चैतन्य लहरियां अनुभव करने के लिए, नए साधकों को चाहिए कि सब को क्षमा कर दें। बहुत तीव्र प्रकाश या पूर्ण अन्धकार अच्छा नहीं होता। नये लोगों से बातचीत करने की विधि श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत बैंकाक, (मार्च - 1995 ) (सारांश) दि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना अति सुगम है, परन्तु न ही किसी बात पर असहमत होना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। श्री माता जी हमे स्मरण करवाती है कि, हम सब एक है।" सहजयोगी बनना अत्यन्त कठिन है क्योंकि इसके लिए मानवीय चेतना का ईश्वरीय चेतना में परिवर्तित होना आवश्यक है। गहन विकास की यह यात्रा जोखिमों से भरी हुई है, अत: नये साधकों की अत्यन्त सहृदयता, प्रेम एवं सूझबूझ से सहायता की जानी चाहिए। आरम्भ मे ही, यह एक अच्छा विचार है, यदि साध क का कोई गुरू है तो हम साधक से पूछे, "क्या आपके गुरु ने आपको शान्ति प्रदान की? क्या उसने आपको आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया?" यह बात उन्हें समझाना आवश्यक है। तब उन्हें बताएं कि सहजयोग से उन्हें क्या लाभ हो सकते हैं । तब वे सभा संचालन करने के लिए विस्तृत परामर्श देती हैं। विवेकानुसार समय निश्चित करके अपना वीडीयो, टेप चलाने पर बल देती हैं और इसके पश्चात यदि साधकों के कोई प्रश्न है तो शान्ति पूर्वक उनके उत्तर देने के लिए कहती हैं। इसके पश्चात सब लोगों को ध्यान में चले जाना चाहिए। एक रुचिकर बात जो वो बताती हैं वह यह है, इस स्थिति में अधिक बातें करना उन्हें भी खराब करेगा और हमे भी। उनकी कुण्डलिनी उठाने के और उनकी तन्त्र (शरीर) स्थिति जानने के पश्चात (कि वे आक्रामक स्वभाव के है या तामसिक प्रकृति के) हमें चाहिए कि उन्हें बताएं कि वे किस प्रकार ध्यान धारणा आरम्भ करें और क्या चीज उनके लिए विशेष रूप से सहायक होगी। श्री माता जी के इस प्रवचन को सुनने के लिए यह टेप खरीद लेना अत्यन्त लाभकारी होगा। अत्यन्त प्रेम पूर्वक वे समझाती हैं कि किस प्रकार श्री माताजी जी स्पष्ट कहतीं हैं कि नए लोगों के प्रति हमे अत्यन्त सहज ढंग से अपनी अभिव्यक्ति करनी है। ताकि उन्हें लगे कि इनका व्यवहार आक्रामक या मुकाबला करने वाला नही है और आरम्भ मे हमें चाहिए कि उनके गुरुओं तथा मार्गो की निंदा न करें। इसकी अपेक्षा हमें कोई समानता की बात खोज लेनी चाहिए जो उनके लिए सुखद हो, जैसे 'हां मै भी ऐसा ही हुआ करता था, परन्तु अब में पहले से अच्छा हूँ।" वे इस चुनौती के जन- सम्पर्क के महत्व पर बल देती हैं। इस मधुर अनौपचारिक वार्ता में श्रीमाता जी ने सर्वपरिचित समस्या के विषय में बताया कि किसी भी क्षेत्र से उनके जाने के पश्चात साधकों को क्या हो जाता है और वे सब लुप्त क्यों हो जाते हैं। इस स्थिति में हमारा चरित्र और आचरण शैली अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वे कहती हैं कि हमारा परस्पर व्यवहार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इस बात पर बल देती हैं कि नए लोगों के सम्मुख हमें न तो लड़ना चाहिए और 14 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt के में सक्रिय रूप से कार्यरत थी। श्री माता जी ने उन्हें बताया कि वे सहजयोग के लिए अत्यन्त सहायक होगें। थाइलैंड में बहुत से सिख और पंजाबी रहते हैं परन्तु उन्हें सहजयोग अपनाने में कुछ समय लगेगा भारत में भी आरम्भ मे चीजों की गति बहुत मन्द होती थी। दस वर्ष तक बिना कोई अधिक सफलता प्राप्त किए श्री माता जी दिल्ली जाती रहीं, परन्तु अब वहाँ सोलह हजार ध्यान धारणा करने वाले सहजयोगी हैं और सहजयोग पूरे उत्तरी भारत में फैल गया है। इस वर्ष जब वे उत्तरी भारत के देहातों में गई तो भारी संरख्या में लोगों को रेलगाड़ी में तथा प्लेटफार्म पर अपने गुणगान करते हुए देखकर वे आश्चर्य चकित रह गई | रूस में सहजयोग के विकास को देखकर श्री माता जी आश्चर्य चकित थीं। आजकल वहां इक्कीस हजार लोग सहजयोग कर रहे हैं उन्होंने केथोलिक चर्च और यूरोप में पादरियों के हास्यास्पद आचरण के विषय मे भी बताया। उन्होंने हम अन्य लोगो से व्यवहार करें।"अब आप लोग जान लें कि हम प्रेम की शक्ति में विश्वास करने वाले लोग हैं । " अतः हमें लोगों के प्रति अति विनम्र होना होगा उन पर हमें न तो क्रोध करना है और न ही उन्हें परेशानी में डालना हैं। उन्हें विश्वास करना आवश्यक है कि सभी कुछ ठीक हो जाएगा। वे एक रुचिकर बात बताती हैं कि यदि कोई विशेष समस्या हो तो हम उन्हें बताएं कि किस प्रकार इसे ठीक करें तथा उन्हें यह भी बताएं कि हम या वो अगुवा के माध्यम से श्री माता जी को इस विषय में लिख भी सकते हैं । श्री माता जी इसकी रुचिकर तुलना एक व्यापारी की उसके ग्राहक के प्रति मधुर व्यवहार से करती हैं। हमें चाहिए कि नए साधक को अहसास करांए कि उसे बहुत प्रेम किया जाता है। और हमारे सहचर्य वठ बहुत शान्त तथा सुरक्षित हैं। उन्हें इस बात का अनुभव करने दें कि हम वास्तव में गहन एवं साक्षात्कारी लोग हैं। तब वे हमारे परस्पर आचरण पर बल देते हुए कहतीं हैं कि हम एक दूसरे को बीच में न टोकें और परस्पर गहन सम्मान का प्रदर्शन करें। एक पुस्तक का वर्णन किया जो कि इन सबका पर्दाफाश करने के लिए लिखी जा रही है। उन्होंने बताया कि फ्रांस में वास्तव में अभ्यास करने वाले ईसाई नहीं हैं है कि के लोग मुस्लिम धर्म और सहजयोग के पीछे दौड़ रहे है। उन्होंने हमें कहा कि चिन्ता की कोई बात नही है, जहां भी सहजयोग हैं वहां सभी कुछ गतिपूर्वक कार्यान्वित हो । और यही कारण इस प्रकार का आचरण सहज योग के विकास में हमारी बहुत सहायता करेगा उन्होंने बैंकाक के सहयोगियों को विश्वास दिलवाया कि वे बहुत बार वहां लौटकर आएगी और समय के साथ साथ वहाँ पर बहुत से सहज योगी होंगे। इस वार्तालाप में श्री माता जी बैंकाक के सहजयोगियों को प्रोत्साहित कर रहीं थी। बैंकाक के बाजार में स्त्रियाँ और पुरुष स्वतः ही उनके चरण कमलों में प्रणाम करने के लिए आ गए थे। यह बहुत अच्छा चिह्नन था क्योंकि इससे प्रकट होता था कि जागृति आ चुकी है। इतना ही नहीं श्री माता जी ने वहां के समाज के कई प्रभावशाली लोगों को आत्म साक्षात्कार प्रदान किया। वे लोग श्री माता जी के कार्य से अभिभूत थे, विशेषकर राजकुमारी जो कि मठ वासिनी (नन) बन गयी थी और देश की महिलाओं की दुर्दशा को ठीक करने जाएगा। इसका प्रमाण यह है कि अब अमेरिका में भी बहुत से लोगों ने सहजयोग को अपना लिया है। इसकी उन्हें कभी आशा भी न थी। हमें पुनः स्मरण कराते हुए कि, "हम देवदूत है और हमें अन्य लोगों के प्रति अति विनम्र एवं मधुर होना होगा। श्री माता जी ने सावधान रहने की चेतावनी देते हुए अपना प्रवचन समाप्त किया। उन्होंने कहा कि पति पत्नी के बीच पूरा मेल मिलाप होना चाहिए तथा बच्चों से अत्यन्त सहृदयता और प्रेम पूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। नवरात्रि पूजा-कबेला-इटली-1.10.1995 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दुर्गा ने सभी साधकों तथा जिज्ञासुओं की रक्षा की तथा सत्य साधकों को सताने तथा कष्ट देने वाले दुष्टों का वध किया । उनके सारे अवतरण साधकों को इन आसुरी शक्तियों से रक्षा करने के लिए थे, इस प्रकार साधक सत्य को प्राप्त कर लिया है। इन सब भिन्न अवतरणों ने साध कों को सिखाया कि उनके जीवन का उपयोग क्या है| सर्वप्रथम वे अत्यन्त व्यग्रता से सत्य को पाने का प्रयत्न कर रहे थे; इसके लिए वे अगम्य स्थानों पर गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि एकान्त स्थानों पर उन्हें शक्ति प्राप्त होगी तथा मन आधुनिक युग तक पहुंचे और अब वे सत्य हैं या उन्होंने चैतन्य लहरी 15 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt किया, आपकी रक्षा करते हुए वे आपको मानव असतित्व के स्तर पर लाएं हैं। अब यह अन्तिम सीढी भी आपने पार कर ली है, आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है और आपमें से को एकाग्र करके वे सत्य पा सकेंगे। उन्होंने बहुत से त्याग किए अपना वैभव त्यागा क्योंकि इससे उन्हें परेशानी हो रही थी, अपने परिवार त्याग दिए, क्योंकि ये भी उनके साधना पथ से लोग बहुत से लोगों ने महान ऊचाइयाँ पा ली हैं। हमारे अन्दर यह शक्ति, (कुण्डलिनी) जिसने हमें परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जोड दिया है, यह सदा सर्वदा से आपकी रक्षा कर रही थी। आपकी देखभाल कर रही थीं और आपका पथ प्रदर्शन करने के लिए संघर्षरत थी ताकि इस कलियुग आप आत्मसाक्षात्कार को पा लें। कहा गया था कि कलियुग में ही यह घटना होगी। कि पर्वतों और वादियों मे परमात्मा को खोजने वाले लोग परमात्मा को पा लेंगे। परन्तु वे सामान्य लोग होंगे, उनके घर परिवार होंगे। और वे समाज में सामान्य जीवन व्यतीत करेंगे वे साधु सन्यासी न होंगे, विवाहित लोग होंगे, उनके बच्चे होंगे और इस प्रकार से सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान होगा। बहुत पहले यह भविष्यवाणी की थी। यह बहुत पहले कहा गया था। मेरे विचार से यही दैवी योजना थी। परन्तु इसका भी श्रेय आप लोगों को जाता है कि आपने सत्य को पहचाना। यह पहचान अत्यन्त प्रशंसनीय है और में हैरान हूँ कि किस प्रकार खोए हुए बच्चे अपनी मां को खोजते हुए उसके पास लौट आते हैं। उसी प्रकार आप सब यहां है। परन्तु हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह उपलब्धि हमें सुगमता पूर्वक बिना किसी कठिनाई के प्राप्त हो गयी है। क्योंकि इससे समस्या उत्पन्न हो सकती है जिसके परिणाम स्वरूप हमारे उत्थान की गति कम हो सकती है और हमारा समर्पण भी कम हो सकता है। अत: की बाधा थे। ये सब चलता रही। आज भी बहुत समझते हैं कि सन्यासी बन जाने से व्यक्ति सत्य को पा सकता है। बुद्ध ने ऐसा किया, महावीर ने ऐसा किया, उनका जीवन केवल महान तपस्या है। उनकी तपस्या के परिणाम स्वरूप हमें आशीष प्राप्ती हुई है, कि जैसे भी हम हैं, हम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार के लिए लोगों ने इतना कठोर संघर्ष किया, कि जो यातनांए उन्होंने सहीं उसके विषय में जानकर हम आश्चर्य चकित रह जाते में हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लक्ष्य से ही उन्होंने यह सब कष्ट सहे, तथा यह कठोर तपस्या की। साधना के समय में भी बहुत से दुष्टों ने उन्हें कष्ट देने, सताने तथा उनकी हत्या करने का प्रयत्न किया। पर इन आतताइयों को समझ न थी कि वे क्या कर रहे हैं। वे साधकों पर हंसते थे, उनका मजाक उड़ाते थे। इसके देखते हुए हम समझ सकते है कि हमें आत्मसाक्षात्कार अति सुगमता से मिल गया है, बिना किसी व्रत रखे, बिना कोई कष्ट, यातना या कठिनाई सहे। यह सत्य नहीं है क्योंकि आप ही वे लोग है जिन्होंने पूर्व जन्मों में यह तपस्याएं की थीं और इसी कारण आप यहां विद्यमान हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना आपका अधिकार भृगु मुनि ने बन गया है। ऐसा कहना उचित न होगा कि बिना कुछ किए हमें आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। जन्म जन्मान्तरों से आप 1. साधक थे। जिस भी मार्ग पर आप चले, जिस भी धर्म का अनुसरण आपने किया यह आपके लिए कष्टों से परिपूर्ण था । आज आपकों इन कष्टों का फल प्राप्त हुआ है, जिसके कारण आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बन गये है परन्तु किसी भी प्रकार से हम मनुष्यों को देखें तो हम जान सकते हैं कि सुगमता से प्राप्त की हुई किसी भी चीज का मूल्य वे नहीं समझते। इसे सुगमता से प्राप्त करने के लिए, वास्तव में आपको जानना आवश्यक है कि बिना कुछ बने आपने इसे नहीं पा लिया है। आपमे कुछ महानता थी, आप महान सन्त थे जो हिमालय में गये बहुत से व्रत आदि किए और परमात्मा के नाम पर आपमे से बहुतों की हत्या कर दी गई। आज जो भी कुछ आपने प्राप्त किया है, जो आत्मसाक्षात्कार आपने पाया है उसे केवल श्री माताजी की ही नहीं समझ लेना जिसे आप सुगम समझते है वह बिल्कुल सुगम नहीं है। यह सहज है या हम कह सकते है कि स्वतः है। अब यह समझना आप लोगों पर निर्भर करेगा कि यह समय कितना महत्वपूर्ण है। हमें पूरे विश्व की बचाना है। अपने चित्त के प्रकाश में आपने ऐसा करने का मार्ग खोज निकालना है। रुस में मुझे एक अत्यन्त उच्च विकसित आत्मा का अनुभव हुआ जो कि वहां के अत्यन्त प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। वह रूस के महानतम वैज्ञानिकों मे से एक हैं। वह आध्यात्मिकता का भी आनन्द ले रहा है। उसने लोगों को बताया कि मैं आध्यात्मिकता में बढ़ रहा हूँ, मैं श्री माता जी को मिलना चाहता हूँ। मैंने कहा ठीक है, मुझे उससे मिलना अच्छा लगेगा। जब वह मेरे पास आया तो मेरी ओर देखकर कहने लगा श्री माता जी में जानता हूं कि आधुनिक युग में आप परमात्मा का अवतार है।" एक वैज्ञानिक को ऐसा कहते हुए कृपा चाहिए। अपने महान व्यक्तित्व के कारण ही आपने इसे प्राप्त किया है। अन्यथा आपको आत्मसाक्षात्कार प्रदान करना मेरे लिए असंभव होता। जो भी कार्य था उसे देवताओं ने 16 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt आपसे मिलने की प्रतिक्षा में था इसे आरम्भ कर दूंगा। मुझे देख में हैरान थी। परन्तु उसकी दृष्टि अत्यन्त पवित्र तथा श्रद्धा एवं नम्रता से परिपूर्ण थी। तब उसने कहा, "यदि आप मेरी सहायता करें तो मैं कुछ कार्य करना चाहता हूँ।" मैंने कहा, "आप क्या करना चाहते है? वह कहने लगा, "मैं आपकी शक्ति कों नहीं माप सकता, में ऐसा नहीं कर बहुत सा कार्य करना है, मैं यह सब श्री माता जी के जीवन काल में ही करना चाहता हूँ ताकि वे हमारे कार्य को देख सकें। मैं हैरान थी कि यह व्यक्ति कहां से टपक पड़ा। एक वैज्ञानिक से इस प्रकार का अनुभव। रूस में उच्च पदारूढ लोगों के पास बहुत से विचार हैं। परन्तु आध्यात्मिकता और नैतिकता मुख्य हैं एक अन्य सज्जन पुरुष थे जो मुश्किल से तीस-बत्तीस वर्ष की आयु के होंगे। अत्यन्त तेजमय। मेंने उनसे पूछा मुझसे आप क्या चाहतें हैं?। उसने कहा कुछ नहीं। आपने हमारे लिए बहुत कार्य किया है। अब हम आपके लिए कार्य करेगें। तो आप सकता।" उसके पास एक शक्ति मापक यन्त्र था। मैं आपके फोटो की शक्ति भी नहीं माप सकता। उसने मुझे एक संख्या बताई जो में समझ न सकी। यह कुछ ऐसी थी कि जैसे सात सौ का शक्ति गुणनफल जो कि अरबों X अरबों था। मैंने कहा कि मैं तो इस संख्या को जानती भी नहीं। उसने मुझे बताया कि आपके चित्र की इतनी शक्ति है। मैंने कहा ठीक है अब आप मुझसे क्या चाहते है? मेंने उसे कहा कि यदि वह समझाता है कि मेरे फोटो में इतनी शक्ति है तो वह इसे ले जा सकता है। अति सम्मान पूर्वक उसने मेरा फोटो लिया और चार पांच बार मेरे सम्मुख झुका आप क्या करेंगे। कहने लगा कि में इसे उपग्रह पर स्थापित करुगाँ। अब आप उपग्रह की प्रक्षेपण क्रिया को देखें फिर आप क्या करेंगें? में इस फोटो के पीछे विधुत चुम्बकीय शक्ति डालूगां और क्येंकि विधुत चुम्बकीय शक्ति वस्तुओं के क्या करना चाहते हैं? उसने उत्तर दिया कि मैं यहां की सरकार में आध्यात्मिकता अधिकारी हूँ। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? हमारी किसी भी सरकार में आध्यात्मिकता सम विषय नहीं है। वह कहने लगा कि मुझे छोटी आयु से लेकर महाविद्यालय स्तर के बच्चों का मार्गदर्शन करना होता है। श्री माता जी क्या आप मुझे बता सकती हैं कि किस आयु में बच्चे आध्यात्मिकता को अधिक स्वीकार करते हैं । मैंने कहा इसके विषय में कोई विशेष नियम नहीं है, परन्तु बहुत छोटे बच्चे क्योंकि अबोध होते हैं, अत: उनमें आध्यात्मिकता शीघ्र कार्य करती है। उसने मुझसे पूछा कि उनमें आध्यात्मिकता किस प्रकार जागृत करें। मैंने कहा कि आप उनकी कुण्डलिनी उठाएं, उन्हें बन्धन दें और उनके चित्त इतने सुन्दर हो जाएगें कि आप आश्चर्य चकित होंगे। उसने कहा कि मैं इस आयु के सभी लोगों को इकटठा करके उन्हें बताऊंगा कि सहजयोग ही ठीक मार्ग है। मैंने पूछा इस फोटो का अन्दर प्रवेश कर सकती है अतः इस शक्ति के माध्यम से आपके चित्र की चैतन्य लहरियां भी हर चीज में प्रवेश कर सकेंगी। इस प्रकार उपग्रह के माध्यम से आपकी चैतन्य लहरियों को प्रक्षेपित करके हम सार्वभौमिक समस्याओं को सुलझा लेंगे। सर्वप्रथम में आपकी शक्ति के माध्यम से पृथ्वी को उपजाऊ बनाना चाहूंगा। इसके उपरान्त जहां भी में इसे प्रक्षेपित करुगां सभी समस्याओं का हल हो जाएगा। मेरा एक तब एक तीसरा व्यक्ति आया। वह संसद का सदस्य भी था, अत्यन्त प्रग्लभ। पहले वह येलत्सिन का दांया हाथ था, परन्तु बाद में उसने उसे छोड़ दिया। कहने लगा कि येलत्सिन चरित्रवान नही है चरित्रहीन व्यक्ति के साथ में फोटो, क्या आप कल्पना कर सकते हैं। उसका चित्त प्रकाश देखिए में आश्चर्यचकित थी। इस व्यक्ति को देखो। हर समय वह क्या सोचता रहता है। कहने लगा यह बिल्कुल कठिन नहीं है। मैंने उसने मुझे दिखाया, मेरे द्वारा चैतन्यित जल उसने उस स्प्रिंग पर डाला और वह स्प्रिंग उछलने लगा। तब उसने अपनी मशीन द्वारा दिखाया की कितनी तेजी से वह चीज गतिशील थी। श्री माता जी आप देखिए कि जिस जल को आपने चैतन्यित किया है वह कितना महान है। मैंने कहा मैंने कभी कैसे ? तो उसने एक स्प्रिंगं के माध्यम से पूछा कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। उसने बताया कि वह किसी अन्य दल द्वारा चुने जाने की सोच रहा है। जिसका नाम 'मेरी मातृ भूमि है। इस दल में गणतन्त्र या साम्यवाद जैसे बन्धन न होंगे जो भी मेरी मातृभूमि के हित में होगा वही हम करेगें। अत्यन्त व्यवाहारिक। इस प्रकार का सत्यनिष्ठ व्यक्ति। उसने कहा कि नैतिकता मानव जीवन का आधार है। यदि मनुष्य में नैतिकता नहीं है तो बाकी सब व्यर्थ है । में जब यूक्रेन गई तो एक प्रकार के आदिवासी रंगो से बनी बहुत सुन्दर चित्रकारी देखी। उन्होंने बताया कि ईसाइयों के आने से पूर्व ये बनाई गयी थी। उन्होंने मुझे एक सोचा भी न था कि आप इस शक्ति को इस प्रकार परिवर्तित कर देंगे कि यह भौतिक पदार्थों पर भी कार्य करने लगे। उसने बताया कि यह श्क्ति किसी भी चीज पर कार्य करेगी इसी शक्ति ने इस चीज को सृष्टि की है। अतः यह हर चीज पर कार्य करेगी। मैं हैरान थी, वह कहने लगा कि मैं केवल 17 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt पत्रिका दिखाई जिसमें आदिशक्ति का फोटो था। वे इसे अदिति कहते थे, संस्कृत में भी हम अदिति कहते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं। तब उन्होंने बताया कि ईसाई क़ान्ति से पूर्व यह संस्कृति विद्यमान थी। मूलाधार चक्र और आज्ञा चक्र की भी भिन्न प्रकार से बनी चित्रकारियां थीं । उन्होंने बताया कि इस विषय पर हमारे पास पुस्तकें हैं परन्तु चर्च के कारण इन्हें बेकार कहा जाता है। वे कहने लगे कि हमारे सम्बन्ध भारत के साथ थे। वे लोग आर्य थे और हम उनसे मिला करते थे। मच्छीन्दरनाथ उत्तरी भारत में गये थे। हो सकता है कि वे यूक्रेन भी आए हो। यूक्रेन शब्द 'कुरू से आया है। मैं हैरान थी कि उनकी कितनी सुन्दर संस्कृति थी। यह अविश्वसनीय बात थी। उन्होंने बताया कि ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व यह सुंस्कृति थी। वे कहने लगे कि भारतीय ही आध्यात्मिकता का स्त्रोत हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कितने वर्ष पूर्व यूक्रेन में कुण्डलिनी का अस्तित्व था ? आध्यात्मिकता की इतनी सुन्दर संस्कृति! पहली बार जब मैं यूक्नेन गई तो कार्यक्रम में चिरनोबिल से लोग आए। आप जानते हैं कि वहाँ बहुत बडा परमाणु विस्फोट हुआ था। वहां के कुछ लोगों की अंगुलिया कटी हुई थी। किसी के शरीर पर फोड़े थे, किसी की नाक टेड़ी की जड़े मूल रूप से आध्यात्मिकता से सींचित हों। यह एक प्रकार का चमत्कारिक रहस्योद्घाटन हैं जिसे वहां देखा जा सकता है। किस प्रकार वे कुण्डलिनी, आदि शक्ति और आध्यात्मिकता के विषय में जानते हैं और इस बात का उन्हें ज्ञान है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् मनुष्य पर क्या घटित होता है। एक विशेष बात जो उनमें थी, वह यह थी कि वे अत्यन्त नम्र लोग थे। मैं समझ नहीं सकती वे किस प्रकार मेरे सम्मुख नतमस्तक थे। कभी- कभी तो में सोच भी नहीं सकती कि किस प्रकार इन लोगों में यह आध्यात्मिक विवेक और यह शान्ति है। उनके यहां सैनिक विद्रोह हुआ, मैंने उनसे पूछा "क्या आप चिन्तित नहीं हैं? यहाँ पर यह सैनिक विद्रोह हो गया है और मैं नहीं जानती कि आपके देश का क्या होगा।" कहने लगे, "हम क्यों चिन्ता करें हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम रूस में नहीं हैं। अत: हम क्यों चिन्ता करें। " इतने अच्छे लोग वहां पर हैं आध्यात्मिकता के प्रति इतने सवेदनशील उन्होंने वास्तव में सभी कुगुरूओं को निकाल फेंका है और मेरे लिए वे इतना सम्मान और प्रेम दर्शाते हैं। केवल मेरे लिए ही उन्होंने यह सम्मेलन किया था । में यह सब बात आप को इस लिए बता रही हूँ क्योंकि आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है। अब आपने अपनी आत्मा को महसूस कर लिया है। नि:सन्देह आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। परन्तु अब आप इस बात को अवश्य समझ लें कि आपकी यह शक्ति आप के साथ क्या करती है और आपमें क्या सृष्टि करती है। महत्वपूर्णतम चीज जो यह है कि इस शक्ति द्वारा आप निर्विचार समाधि की स्थिति को पा लेते हैं। आप वर्तमान में आ जाते हैं और वर्तमान में आना असंम्भव कार्य है निर्विचार चेतना में पहुंचने के पश्चात् आपके मस्तिष्क पर विचारों का आक्रमण नहीं होता। चाहे जहां कहीं भी आप हों। इसका अर्थ क्या है अत्यन्त सरल भाषा में आप कह सकते है कि इसका अर्थ यह है कि आप अपने विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करते। आपका मस्तिष्क प्रतिबिम्बित करने वाला नहीं होता। आज यह सहजयोगियों की मूल समस्या हैं। जिस पर विजय पाने का प्रयत्न आपको करना चाहिए। ताकि आप अपने विचारों को प्रतिबिम्बित न करें। उदाहरण के रुप मे, मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो बिना बात के हंसने लगते हैं किसी को देखते ही वे तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं। हर चीज के विषय में वे अपनी राय देने लगते हैं। सभी लोग ज्ञान से परिपूर्ण प्रतीत होते हैं और बताने लगते हैं कि स्वोत्तम क्या है और क्या नहीं। क्या अच्छा नहीं हो गई थी। परन्तु इस बार सभागार भरा हुआ था। आने जाने के रास्ते भी भरे हुए थे और फिर भी लोग बाहर खड़े थे। उन्होंने बताया कि हम लोगों को चिरनोबिल से हानि पहुंची थी। अब आप हमें देखिए हम पूर्णतया ठीक हो गए हैं मेरे कार्यक्रम में आए। अब वे ठीक हो चुके थे । मैं आश्चर्य किया करती थी कि ये रूस और यूक्रेन के लोग आध्यात्मिकता के प्रति इतने सवेंदनशील क्यों हैं। तब मैंने महसूस किया कि इन लोगों के पास आध्यात्मिकता प्राचीन काल से ही थी। प्राचीन काल से ही वे इसका अभ्यास कर रहे थे। परन्तु इस स्तर तक कुण्डलिनी जागृति का अभ्यास किसी ने भी नहीं किया। सभी गांवो में लोग मूलाध र और अगन्य चक्र की स्पष्ट चित्र बनाया करते थे और अगन्य चक्र के चीनीयों का 'यीन' और 'येंग' था। इसे खोज लेने के पश्चात वास्तव में मुझे लगा कि विश्व में बहुत से ऐसे लोग होंगे। कोलम्बिया में भी इसी प्रकार के कुण्डलिनी कुंभ आदि सभी कुछ है। मेरे विचार में यह ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व से है। अत: हम देखते हैं यह सारा ज्ञान इन सभी देशों में है और यह लोगों के मस्तिष्क में कार्यरत है। वे अत्यन्त अन्न्तदर्शी थे। इस प्रकार की संवेदनशीलता तभी आती है जब देश चैतन्य लहरी 18 म 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt रूप में न समझ सकें और इस प्रकार अपनी चैतन्य लहरियां अपनी शक्तियों को खोते चले जाएं क्योंकि आपका वज स्वयं पर नहीं होता अत: अन्नर्तदर्शन यदि निराशा तथा व्यक्तित्व की अप्रतिष्ठा लाता है तो अच्छा होगा कि आप अन्तदर्शन न करें, क्योंकि मैंने देखा है कि यह सभी मानसिक गतिविधियां समस्याओं की सुष्टि करती हैं । निर्विचार चेतना की स्थिति में आपमें स्वयं ही अन्न्दर्शन होता है। आप इसे स्वत: ही देखते हैं और समझते हैं। इसके विषय में सोचते नहीं यह बस आपको हो जाता है। पूरी तस्वीर आपमें आ जाती है और आप अपने आप में अत्यन्त शान्त हो जाते हैं। आपमें कभी अशान्ति नहीं होती। कष्ट की स्थिति में आप कभी नहीं होते और तब आप न तो नाराज होते हैं है और चे इस प्रकार का कुछ न कुछ कहने लगते हैं। उनका मतिष्क चिन्तनशील हो उठता है। मस्तिष्क जब चिन्तनशील नहीं होता तब आप निर्विचार चेतना की स्थिति में होते हैं। हर चीज को आप साक्षी रुप से देखें। चिन्तन न करें। अपनी मानसिक शक्ति को यदि आप उपयोग कर रहे हैं तो यह शक्ति घट जाती है। लोगों में यह बहुत ही सामान्य दोष है क्यांकि आप लोग अच्छे पढे लिखे और बुद्धिमान हैं। मैं नही जानती कि आप क्या सोचते है परन्तु आध्यात्मिकता के लिए चिन्तनशील मस्तिष्क बहुत हानिकारक है इस प्रकार आप कभी भी विकसित न होंगे। आपका मस्तिष्क यदि विचार विमग्न है तो आपमें कई तरह की भवनाएं होती हैं। उन भावनाओं के बशीभूत आप लोगों पर दृष्टि डालते हैं। आपका अपना बेटा या बेटी यदि हो तो उससे आपका तादात्मय हो जाता है। यह और न वाद विवाद तथा विचार विमर्श करते हैं। आप ऐसे बन जाते है मानो चेतना के सागर में आपको डाल दिया गया हो। समस्याओं को सुलझाने के लिए आपको चिन्ता नहीं करनी पड़ती। जब आप अन्न्तदर्शन की स्थिति में होते हैं तब यह शक्ति कार्य करती है । तादात्मय अस्वाभाविक है। यह वास्तविकता नहीं है। परन्तु विचार विमग्नता के कारण मस्तिष्क तादात्मय कर बैठता है। अब आपके बहुत से तादात्म (चिपकने) समाप्त हो चुके हैं। उदाहरणार्थ धर्म, जाति, राष्ट्र के विषय में आपके पूर्व विचार समाप्त हो गए हैं। परन्तु विचारशील मस्तिष्क कार्यरत है। आप सहजयोगियों के लिए यह सबसे बडी बाधा है। मैं सोच रही थी कि यह विचारशील मस्तिष्क सहजयोगियों में इतना चुस्त क्यों है। विचारशीलता को यदि आप त्याग दें तो तुरन्त स्वयं को शान्ति सागर में स्थापित कर लेते हैं। किसी चीज को जब आप देखते हैं तो बस देखें आपके मस्तिष्क में कोई विचार तरंग नहीं उठनी चाहिए। तब आप अत्यन्त रचनात्मक प्रग्लभ और करुणामय बन जाते हैं और आपमें कोई भय नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं कि यदि आप विनम्र हैं तो लोग आपको दबा लेंगे। भयभीत न हो। आपके अन्दर जो भी गुण अब यह कहना प्रतिवाद होगा कि आपको प्रक्षेपण करना है, अपनी छवि को प्रकट करना है, अपने विचारों की अभिव्यक्ति नहीं करनी। चिन्तनशीलता की स्थिति में हम आत्मसात करते हैं। किसी चीज पर जब हम विचार दृष्टि डालते हैं तो उस चीज को अपने अन्दर उतारते हैं। प्राय: हमारा चित्त दूसरे लोगों के दुर्गुणों पर जाता हैं, यह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वह अच्छा नहीं है, उसके बाल ठीक नहीं हैं, उसकी साड़ी ठीक नहीं हैं आदि सभी प्रकार की मूर्खताए। यह हम कर क्या रहे हैं? सभी बुरी चीजों को भी आत्मसात कर रहे हैं। जब आप किसी चीज की प्रशंसा करने लगते हैं तो आप उसकी बुराइयों को नहीं लेते। तब कम से कम आप बेहतर दिशा में होते हैं। परन्तु निर्विचार चेतना की स्थिति में हैं उनका आनन्द यदि आप उठाना चाहते हैं तो बिना विचारों में फसे आप आनन्द उठा सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सभी चीजें आप परमात्मा पर छोंड़ दें । आप इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। ये न सोचे कि आपको किसी चीज पर विचार करना है। अचिन्तनशीलता आपकी महानतम शक्ति है। किसी को इस प्रकार की दृष्टि से न देखना । परन्तु मैंने देखा है वह चीज अभी तक भी शेष है। मैंने आपको अन्न्तदर्शन के लिए कहा। अन्न्तदर्शन में भी विचारशीलता हो सकती है। परन्तु उससे आप अपनी अन्त: स्थिति को पा जाएगे। परन्तु प्रशंसा करना वास्तव में बहुत गहन है। यह बात मैंने एक महान वैज्ञानिक की दृष्टि में देखी । वह मुझसे पूर्णतः एक रूप था और उसकी आँखे शान्ति के समुद्र की तरह थी। कुछ देर बाद अपने विचारों में वापस आया और मुझसे कहने लगा कि हम आपके चित्र के साथ ऐसा कर सकते हैं अत: आपमें गहनता तभी उठ सकेगी जब आप विचारों को परावर्तित करना बन्द कर देंगे। परन्तु मनुष्यों के साथ यह आम बात है कि यह कालीन अच्छा नहीं हैं, वह चीज अच्छी नहीं है, यह गन्ध आ रही है आदि। सदा दूसरों को तोलने के लिए प्रयत्नशील। दूसरों की चीजों को तोलने के लिए प्रयत्नशील, जो कि महत्वहीन कार्य है। महत्वपूर्ण क्या है? अब जब उससे आप मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यन्त निराश हो सकते हैं। आप अपनी भर्तस्ना कर सकते हैं। हो सकता है कि आप स्वयं को एक महान व्यक्तित्व के 19 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt समझ पाती यह पूरे वातावरण को अपनी गतिविधियों से परिपूर्ण करने का प्रयत्न कर रहे हैं तो अपनी गतिविधियों को रोक लेना ही आपकी एकमात्र गतिविधि होनी चाहिए। आप आश्चर्यचकित होंगे कि उसी स्थिति में आप विकसित होंगे। केवल उसी विकास से आप उस वैज्ञानिक सम बन पाएगे। अब यह किस ग्रकार असंगत है कि जब आपमें गहनता होगी तो आप अपनी गहनता का ही प्रक्षेपण करेंगे, अपने मस्तिष्क का नहीं। कभी-कभी जब मैं प्रक्षेपण के लिए कहती हूँ तो लोग सोचते है कि मस्तिष्क (मानसिक विचारों) का प्रक्षेपण (प्रसारण) करना है। नहीं आपने अपने अन्तः स्थित वह गहनता, वह वास्तविकता प्रक्षेपण करनी है। इसके लिए आपको न त्तो सोचना पड़ता है और न इसकी योजना बनानी पड़ती है। यह स्वतः कार्य करेगी। परन्तु आपको इस प्रक्षेपण का यन्त्र बनना होगा। इसे समझना अति है। जैसे में अब इस यन्त्र की बात कर रही हैँ, अब यह यन्त्र यदि पूर्णतः ठीक है, इसमें कोई दोष नहीं है तो यह अत्यन्त शान्त होगा। परन्तु इसमें यदि हमारे मस्तिष्क ही तरह विचार भरे हुए हैं तो मैं जो कह रही हूँ वह बात वैसी की वैसी प्रसारित न हो पाएगीं जब हमारा मस्तिष्क उथल-पुथल, वाद विवाद, टीका टिपण्यों मे था, हम कह सकते हैं, चिन्तनशीलता से परिपूर्ण है तब मस्तिष्क अशान्ति के भंवर में फंस जाता है और स्वयं को पूरी तरह प्रक्षेपित नही कर पाता, क्योंकि यह अशान्त होता है इसकी स्थिति सामान्य नहीं होती। अब आप समझ जाएंगे कि कोई प्रतिवाद नहीं है। आप अपना प्रक्षेपण केवल तभी कर सकते हैं जब आप पूर्णतः शान्त होते हैं। यही हमें सीखना है। आपको जान लेना चाहिए कि 21 सितम्बर को जब सूर्य भूमध्य रेखा को पार कर लेता है तो विषुव EQUINOX) में पश्चिमी देशों में नवरात्रि आरम्भ होती हैं। नवरात्रियां दो होती हैं। एक अब आरम्भ होती हैं और दूसरी दूसरे विषुव के पश्चात्। इस विषुव में मां मेरी का जन्म दिवस पड़ता है और इसी कारण लोग उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। वे नहीं जानते कि उनका जन्म विषुवत सन्तुलन लाने के लिए हुआ था। क्योंकि इन महान अवतरणों के जीवन के रहस्यों की कोई व्याख्या नहीं की गई। इस लिए लोग इच्छानुसार उनका उपयोग करते है क्योंकि उनमें उन्हें बहुत से चमत्कार दिखाई दिए। लोग समझने का प्रयत्न नहीं करते कि यह विषुव का क्या कारण है और क्यों इसे मनाया जाता है। ईरान में मुझे बताया गया कि उनका बी आप दिव्य उद्यान में बेठे हैं तो क्या फर्क पड़ता है कि आप कहां बैठे हैं और क्या कर रहे हैं। यह परावर्तन आपके मस्तिष्क में विचार तरंगों को आरम्भ करती है। मैं चित्र बनाकर वर्णन कर चुकी हूँ कि दांयी ओर को पड़ने वाली ऊर्जा किसी प्रकार बांयी ओर जाकर गिरती है और बांयी ओर पड़ने वाली दांयी ओर पर। दो प्रकार के कोषाणु वहां होने के कारण वह दूसरी ओर का लांघ जाती है। तब बायें और दायें को जाने के बाद इस ऊर्जा का कुछ अशं पराअनुकरम्पी खींच लेता है। और जो शेष बचती है वह विचारशीलता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार यह ऊर्जा विचारों में प्रतिबिम्बित होती रहती है। अब यदि हम उस पूरी ऊर्जा को आत्मसात करके अपने पराअनुकम्पी में डाल सकें तो हमारी शक्तियां हजारों गुना बढ़ जाएंगी। हम न तो थकेगें और न दुवी होंगे सहन कर सकने के योग्य बन । परन्तु इसे मुर्खता या दुर्गुण नहीं समझेंगे, हम पर इसका प्रभाव ही न होगा। यह गुण विकसित करना हमारे लिए आवश्यक है। देवी जो कर सकती है वह आपको नहीं करना चाहिए। यह उनका कार्य है, उन्हें ही यह कार्य करना है; आपको नहीं आपने जो कार्य करना है वह है केवल शान्ति की स्थिति में रहना ताकि शान्ति की इस स्थिति और आपकी गहनता को बढ़ाने बाली हर चीज को आप आत्मसात कर सकें। शेष सभी कार्य देवी देख लेंगी। विश्व भर में होने वाली सभी बुराई, क्रोध और खीझ को वे सम्भाल लेंगी यह सब बुराइयां वे सोख लेंगी, परन्तु आपको मात्र सम्पूर्ण पवित्रता का बहुत सी संसारिक मूर्खता को हम जाएगे सुगम आनन्द उठाना होगा। मस्तिष्क के ऊपर उठकर ही आनन्द सम्भव है। मस्तिष्क से आप कभी आनन्द नहीं प्राप्त कर सकते। जब आप तरंग विहीन झील की तरह शान्त होते हैं तब आनन्द आता है। उसी झील के किनारें पर रचित आनन्द का परावर्तन पूर्णत: परिवर्तक होता है, परावर्तित नहीं। झील में यदि तरंगे होती तो तस्वीर बिल्कुल भिन्न होती, तब यह वास्तविकता की में तस्वीर जैसी कुछ चीज होती। अत: व्यक्ति को चाहिए कि मस्तिष्क को वास्तविकता से निम्न स्तर पर रखें वास्तविकता वास्तव में शान्ति और आनन्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। दुःख अकाल आदि कुछ भी नहीं। व्यक्ति बस आनन्द ले परन्तु इसका आनन्द लेने के लिए इस पूर्ण शान्ति की स्थिति में रहने के लिए आपको चिन्ता विहीन होना होगा। अब आप स्वयं को देखें। यह देखकर आप हैरान होंगे कि आप कितने चिन्तनशील हैं। जब आप के लिए सभी कुछ है, जब परमचैतन्य आपके लिए इतना कुछ कर रहे हैं कि मैं भी नही कि नववर्ष इसी समय होता है। इसका अर्थ यह हुआ मुसलमान इसे नववर्ष के रूप में मानते हैं, जब नवरात्रि आरम्भ होता है तो नववर्ष होती है। अर्थात यह उनका बारहवाँ 20 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt होते हैं। मुझे आशा है कि इस नवरात्रि में आप महसूस करेंगे कि देवी ने आपके लिए क्या कार्य किया। कितना कठोर परिश्रम उन्होंने किया और इन भयंकर असुरों और राक्षसों से कितना युद्ध किया। कभी-कभी तो मुझे यह लगता है कि यह असुर हमारे अन्दर हैं। वह बाहर नहीं हैं वह हमारे अन्दर इसलिए प्रेवश कर जाते हैं क्योंकि हम इनका चिन्तन करते हैं। पश्चिमी लोगो से यदि हम बात करें तो हमें ऐसा लगता है मानो पूर्ण वातावरण ही उनके सिर पर सवार है। वे सभी लोगों के विषय में जानते हैं उसने क्या किया, यह क्या था, सी चीजें इसकी ओर सकेत करती महीना होता है और हैं। बारह महीने ही क्यों होने चाहिए, देवी को बारह बजे ही क्यों जन्म लेना चाहिए? इसका एक विशेष अर्थ है। जिसे आप खोज सकते हैं। परन्तु यह केवल तभी संभव है जब आप चिन्तनशील नहीं होते। बहुत यह वह अवस्था है जब आप वास्तव में सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े होते हैं अन्यथा आप वहां होते ही नहीं, उस स्थिति से आपकी एकाकारिता ही नहीं होती उस स्थिति से एक रूप होने के लिए आपको अपने अन्तस में पूर्णतः शान्त होना होगा क्योंकि देवी पूर्णतः शान्त हैं। युद्ध चल रहा है परन्तु देवी शान्त है क्योंकि वे इतनी आत्मविश्वस्त हैं, वे अपनी शक्तियों को जानती हैं, वे जानती हैं कि महिषासुर उन्हें परेशान नहीं कर सकता, उन्हें छू भी नहीं सकता। उनकी शक्तियों को वे जानती हैं, अपनी भी सभी शक्तियों को वे जानती हैं। अत: किसी भी चीज से उत्तेजित होने की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। वे अशान्त नहीं है क्योंकि वे वास्तव में शान्ति की उस स्थिति का मानवीकरण है जिसने ये इतनी शक्तिशाली है। आपकी शक्ति के विषयं में उन्हे वह क्या था। परन्तु वह व्यक्ति चिन्तित नहीं है। यह नहीं सोचता कि वह किसी प्रकार सुधर सकता है। इसे किस प्रकार कार्यान्वित कर सकता है। निर्विचार चेतना की स्थिति में व्यक्ति पूरे ब्रहमाण्ड को अपने में समेट लेता है और उस स्थिति में जहां भी कोई समस्या हौती है उसे पूरा करने के लिए यह शक्ति कार्य करती है। हमें अपने मूल्य को समझना है कि हमारे अन्दर यह शक्ति है। इसका सम्मान होना चाहिए और इसका श्रेय देवी को दिया जाना चाहिए क्योाकि उन्होंने आपके लिए, हमारे लिए इतना कुछ किया। उन्हें यह न लगे कि इन सबको कुछ देर के लिए आत्मसाक्षात्कार मिल गया परन्तु उन्होंने चिन्ता नहीं की। वह नहीं जानते किस प्रकार इस आत्मसाक्षात्कार को विकसित किया जाएगा। किस प्रकार देवी को चोट नहीं पहुंचेगी परन्तु उनके कार्य को जो कुछ भी उन्होंने किया है, उसे हमें देखना है, समझना है और अपने अन्दर एक भावना लानी है क्योंकि हमने अब आत्मसाक्षात्कार पा लिया है। अब हमें उस शक्ति के पूर्ण माध्यम बनने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब आपकी अपनी विचारधारा नहीं होगी। आपके अपने हस्तक्षेप नहीं होंगे जैसा मैंने कहा, पूर्ण माध्यम। इस यन्त्र को पूरी तरह से ठीक होना आवश्यक जानना नहीं पड़ता। कहना नहीं पड़ता। शक्तियां स्वतः ही सारा कार्य करती हैं। यह वह स्थिति है जिसमें आप आश्चर्य चकित होंगे, बहुत सी चीजे अन्जाने में घटित होती हैं। आपने कितना कुछ किया और इसे हम संयोग कहते हैं यह वही स्थिति है जिसमें हम निर्विचार चेतना में होते हैं और तब परमचैतन्य हमसे पूर्णतः सम्बन्धित होता है। हम बस वैसे होते हैं और परमचैतन्य हमारे लिए सभी कार्य करता है। सहजयोग में इस बार जैसा कि आप देवी के विषय मे जानते हैं, कि उन्होंने वर्षों तक बहुत कार्य किया। अब आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बन गये हैं। इस बात को समझना आवश्यक है। स्वयं में पूर्ण आत्मविश्वास रखें। अपने विषय मे पूर्ण सूझ-बूझ आपको होनी चाहिए। कोई भय या विचार आप में नहीं होने चाहिए क्योंकि यह आपके मस्तिष्क पर आक्रमण कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में आप सर्वशक्तिशाली व्यक्ति है अन्यथा यह कार्य नहीं कर सकता। आपको हार्दिक धन्यवाद। य करें। कृपा परमात्मा आप पर बधाई समारोह (अस्ट्रेलिया) सध्या तकम श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण मैं स्वयं पर काबू रखकर कुछ अवरूद्ध हो जाता है, परन्तु शब्द कहने का प्रयत्न करूँगा। सर्वप्रथम तो मैं इस संध्या को विशेष रूप से स्मरण करुंगा, क्योंकि बहुत से सम्मानों की में समझ नहीं पा रहा कि किस प्रकार आरम्भ करु अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का आरम्भ मैं किस प्रकार करँ! कुछ क्षण ऐसे भी होते हैं जब मनुष्य भावनाओं से 21 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt कृपा वर्षा मुझ पर हुई परन्तु अवैतनिक अस्ट्रेलियन सहजयोगी का सम्मान उनमे सार्वोत्कृष्ठ है । मेरे लिए पृथ्वबी पर घटी सभी घटनाओं में सहजयोग सर्वोत्तम घटना है और इस आन्दोलन के अंग के रूप में स्वीकार किए जाने को में अपने हृदय में और सहजयोगिनियां परमात्मा की वह नई रचना हैं जहां कोई वास्तविक समस्या हो ही नहीं सकती। जब में यह कहानी अन्य लोगों को सुनाता हूँ तो वे सुगमता से इस पर विश्वास नहीं करते। कितनी अच्छी कहानी है ये! संजो कर रखूगा। अभी तक, इस संध्या तक, में स्वय को प्रशिक्षु सहजयोगी समझता था। अब मुझे उपाधि प्राप्त हो गई है और यह उपाधि मुझे उस दिन प्राप्त हुई है जब मैं 75 वर्ष का हो गया हूँ बहुत शीघ्र नहीं, परन्तु बहुत देर से भी नहीं। आप कल्पना नही कर सकते कि आज की शाम एक बार फिर आपके साथ होना मेरे लिए कितना प्रसन्नतादायी और सौभाग्यमय है। हमने आपकी श्री माता जी का जन्मोत्सव मनाया और व्यक्तिगत रूप से मेंने सोचा कि यह जन्मदिवस समारोह योग्य था। सौभाग्य की बात है कि मेरा जन्म भी इसी दिन एक भद्र पुरूष के जोर देने पर आज शाम में एक स्थान पर गया। वह पुस्तक विमोचन के अवसर पर उपस्थित था और वे जानना चाहते थे कि सहजयोग है क्या? जब मैंने इसकी व्यारव्या उनके सम्मुख की तो, आप विश्वास करें ? पिता ? पुत्र बहू और अन्य सभी मन्त्रमुग्ध रह गए। वे और अधिक जानना चाहते थे, परन्तु वे इस बात से भी सहमत थे कि पृथ्वी पर सहजयोग सा और कुछ भी नहीं। इस जैसा और कुछ भी नहीं, और इसीलिए मेरी सदा यही प्रार्थना रही है कि यह फैले और पूरे विश्व को स्वयं में समेट ले। आपने मेरी पत्नी को आदर्श पत्नी, आर्दश माँ और आर्दशवादी कहा। आप नहीं जानते, या सम्भवतः आप नहीं जानते कि वे किस सीमा तक आर्दश हैं। बे इस प्रकार की आदर्श है। मुझे याद है कि दो या तीन वर्ष पूर्व जब वे अस्ट्रेलिया में थीं तो वे फोन करके मेरे रसोइये से पूछतीं, कि वह मेरे लिए क्या खाना बना रहा है और उसे निर्देश देतीं कि क्या करना आवश्यक है। क्यां इनसे अधिक सतर्क स्नेहमय और सुहृद पत्नी हो सकती है? वे ऐसी व्यक्ति हैं। जब आप कहते हैं कि मैंने उन्हें इतना अधिक समय सहजयोग पर लगाने की आज्ञा दी, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह सब इस प्रकार है। ईमानदारी पूर्वक में आपको बताऊंगा कि नि:सन्देह कभी कभी उनकी कमी मुझे महसूस होती है परन्तु साथ ही साथ में ये भी जानता हूँ कि वे विश्व हित में कुछ कर रहीं हैं। यह कार्य विश्व के उत्थान के लिए है, इससे महान कार्य और क्या हो सकता है? कि हुआ, परन्तु आप सब अत्यन्त सहृद तथा दयामय हैं। आपने मुझे पुनः यहां आने को कहा, आपके स्नेह ने मेरे हृदय को स्पर्श करके मुझे बहुत प्रभावित किया है । मेरे लिए मेरी पत्नी अगाध शक्ति और अगाध उत्साह की स्रोत रहीं। में नहीं जानता कि आप इस बात से अवगत हैं या नही कि हमारा विवाह भारत में क्रान्ति सम था वे अन्य धर्म और राज्य से सम्बन्धित थीं और भिन्न भाषा बोलती थीं। मैं दूसरे धर्म और राज्य से था तथा भिन्न भाषा बोलता था। में 1947 की बात कर रहा हूँ। उस समय भिन्न जातियों, धर्मो, समुदायों के लोगों के बीच विवाह सामान्य बात न थी। परन्तु लोग न जानते थे कि मैं एक अत्यन्त अद्वितीय व्यक्ति से विवाह कर रहा था, अद्वितीयता हमारे विवाह के पश्चात् शीघ्र ही प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी। आप जानते हैं कि मेरी पृष्ठभूमि रुढ़िवादी है। मेरे लोग जमींदाराना किस्म के थे और बहुत से मेरे विवाह पर नहीं आये। कुछ आये, और उन्हें शीध्र ही हमारे घर पर आमंन्त्रित किया गया। वे वहां थीं और लोग हैरान थे कि यह युवा पुरुष किस प्रकार की पत्नी घर ले आया है ये है कौन? इसने (श्रीमन्त सी. पी. श्रीवास्तव ) इससे विवाह क्यों किया है? में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि दो दिन के अन्दर ये घर की चहेती बन बैठीं और मैं पीछे छुट गया उन्होंने सबका हृदय जीत लिया और तब से आज तक घर इनका है, परिवार अतः आनन्द एवं सहभागिता की चेतना पूर्वक मैं सहमत हूँ कि वे जो कार्य कर रही हैं करती रहें। और अब मेरी आकांक्षा है कि किसी प्रकार में उनकी सेवा या सहायता करूं। अपने पद से मैं अब सेवा निवृत्त हो गया हूँ, उन्होंने मुझे यह पुस्तक लिखने को कहा, जो मैंने लिख दी है। इसके पीछे वही शक्ति थी और अब जब मैंने यह कार्य पूर्ण कर लिया है, विश्वभर में फैल रहे इस महान आन्दोलन के लिए यथा योग्य कार्य करने के लिए मैं उपलब्ध हूँ। जन्म दिवस महत्वपूर्ण होते हैं। 75 वर्ष बहुत लम्बा समय है। मैं स्वयं आश्चर्य- चकित हूँ कि वास्तव में इतने वर्ष मैंने बिताए, परन्तु, विश्वास रखें, जीवन इतना उल्लासमय था। यह इतना शीघ्र व्यतीत हो गया, पर में आपको विश्वास 1 इनका है, मैं तो मात्र उपांग हूँ। आपने सहजयोगी लड़कों की समस्याओं की बात की। वह मैंने नहीं सुनी। मैं किसी सहजयोगी या सहजयोगिनी की समस्याओं के विषय में नहीं जानता। वास्तव में, ईमानदारी से और मैं जिससे भी मिलता हूँ, उसे बताता हूँ कि सहजयोगी 22 चैतन्य लहरी 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt अदभुत छुट्टी का आनन्द लिया। पर भारत से दूर यहाँ में इस पुस्तक को प्रवर्तित करने भी आया था। मेरी पत्नी को लगा कि अस्ट्रेलिया ही ठीक देश है, क्योंकि जैसा कि उन्होंने आपको बताया, यह श्री गणेश का देश है और आप सभी कार्यो का आरम्भ श्री गणेश से ही करते हैं यह पूर्णतः स्वर्णनिल आरम्भ था। पूर्णतः चमत्कारिक। जिन्होंने समारोह देखे हैं उनके लिए आश्चर्य की बात हैं कि किस प्रकार सर्वसम्मति से लोगों ने स्वागत किया ? मैं नही सोचता कि किसी भी दिलाना चाहता हूँ कि मुझे नहीं लगता कि में 75 वर्ष का हो गया हूँ। मुझे वैसा ही लगता है जैसे पिछले या उससे पिछले वर्ष लगता था। जीवन इलना आनन्द और उल्लासमय है। भेंट किए गए पुष्पों, विशेषकर बच्चों द्वारा दिए गए, ने मरे हृदय को छू लिया है। परमात्मा उन पर कृपा करें। लगभग छः सप्ताह से में यहां पर हूँ और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे 75 वर्षों में यह सुखदतम समय है। इस समय का कुछ भाग मैंने अपनी पत्नी के सथ भी बिताया। यह भी एक कारण है परन्तु दूसरा कारण यह था कि यहां मैंने पाया कि और सहजयोगिनियों का वास्तविक सामीप्य पाया इसने मुझे अथाह आन्तरिक आनन्द एवं आन्तरिक शक्ति प्रदान की है। समूह से जुड़ना वास्तव में स्वर्गीय सामूहिकता से जुड़ना है। मैं जब यह कहता हूँ कि आप लोग देवदूत हैं तो वास्तव में में ऐसा मानता हूँ, हृदय प्रकार का भेद था। लोग अच्छाई चाहते हैं और अच्छाई के लिए वे कुछ करना भी चाहते हैं। उसके लिए अवसर की आवश्यकता होती है जो आपकी पावनी मां तथा सामूहिक रूप है। दिन प्रतिदिन मैंने सहजयोगियों में आप सबने प्रदान की है। मैं आज शाम एक परिवार के साथ था। वे आन्तरिक आनन्द से परिपूर्ण थे तथा जानना चाहते थे कि इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए वे क्या करें? वे सहजयोग के विषय में जानना चाहते थे, अत: हमने उनसे इसकी बात की। यह पुस्तक आधार रूप में एक प्रकार उत्प्रेक है इसी विचारधारा को एक छोटा सा आश्रय। सहजयोग की ल विचार धारा। धर्मपरायणता की धारणा, धर्म की धारणा। दुर्भाग्यवश भारत में भी इस पुस्तक पर की गई कुछ टिप्पणियां बहुत अच्छ नही हैं एक दो टिप्पणियों ने तो यह भी कहा कि "पुस्तक लिखते हुए वे शास्त्री जी के प्रति अपनाए सम्मान एवं श्रद्धा छुपा न सके"। यह टिप्पणीकारों की टिप्पणी है मैं क्यों छिपाऊ? मेरी समझ में नहीं आता। भारत लौटकर में उनसे पूछूगा। श्रद्धा व्यक्त करने का मुझे पूर्ण अधिकार है। मानव विचार की आज यह स्थिति है कि ठीक बात को भी आप न कहें। वे आशा करते थे कि मैं सामान्य रूप से अच्छी बाते कहूं। वे भ्रद पुरुष, और ईमानदार थे, सभी जानते हैं। उन्होंने पीछे कुछ नहीं छोड़ा। वे नम्र थे। वे भले थे। उन्हें भ्रष्ट नहीं किया जा सकता था। वे बुद्धिमान थे, दृढ़ थे उनके चरित्र या सत्यनिष्ठा मे में कोई कमी नहीं खोज पाया क्या सोचते हैं, में कुछ झूठ मूठ लिख दूं? मैं आपको बताता हूँ कि यह पूरे विश्व की समस्या है। वे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, समझते हैं कि यह किसी प्रकार का खतरा है। उन्हें लगता है कि वे स्वयं तो इतने उच्च हैं नहीं, अतः वे किसी अन्य इतने अच्छे तथा पूर्ण व्यक्ति को देखना नहीं चाहते। आज विश्व की यही स्थिति है। वे लोग स्वीकार करने को तैयार नहीं कि मनुष्य इतना अच्छा भी हो सकता है। आप सब को यदि वे देख लें तो न जाने क्या कर बैठें। से मैं ऐसा मानता हूँ। में आप को बताता हूँ कि मैंने पूरे विश्व में बहुत से देशों में देखा है कि संसार अत्यन्त दुर्गम है। वास्तव में, यदि आपको सत्य कहूँ तो यह संसार भयावह है सभी कुछ गलत दिशा में जा रहा है। टी. वी. देखते हुए, समाचार पत्र पढ़ते हुए मूल आपको क्या सुनाई देता है? आप क्या देखते हैं? पथभ्रष्ट होते हुए विश्व को! चरित्रहीनता तथा भ्रष्टाचार के बारे में हतबुद्ध रह जाता हूँ। मानव किस प्रकार यह सब सहन कर सकता है? पूर्ण भौतिकतावाद के कारण इस प्रकार का समाज विकसित है। "सभी मेरे लिए है, अभी और यहीं दूसरों की चाहे दुर्दशा होती रहे।" दुर्भाग्यवश इस प्रकार का दर्शन कुछ पश्चिमी देशों ने प्रक्षिप्त किया है। मानव को इसलिए नहीं बनाया गया। मनुष्य परमात्मा का अंश है। उसमें दिव्य ज्योति है। वे स्वा्थी, पूर्ण स्वार्थी व्यक्ति नहीं सुनकर तो मैं हुआ कुछ मेरे विचार में श्रद्धायोग्य व्यक्ति के प्रति अपनी हो सकते। परन्तु संसार में ऐसा ही हो रहा है। तान्त्रिकवाद नामक सिद्धांत इग्लैंड में प्रसारित किया गया। आरम्भ में, सम्भवत: तांत्रिकवाद का औचित्य था क्योंकि श्रीमति थैचर विश्वास पैदा करना चाहती थीं, परन्तु इसे अति तक ले जाया गया। तब लोगों ने समाज की चिन्ता छोड केवल अपनी चिन्ता शुरू कर दी। अब आप लोग एक नया मार्ग दिखला रहे हैं और यह कार्य सुगम नहीं है। यह धर्म, धर्मपरायणता तथा अच्छाई का मार्ग है और मैं इसके साथ हूँ। मैं इसकी सफलता के लिए प्रार्थना करता हूँ तथा आप की महान उपलब्धि के लिए आपको बधाई देता हूँ। मैं यहां छूट्टी मनाने के लिए आया था और मैंने चैतन्य लहरी 23 1996_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt आपने मेरी देखभाल की अपना समय और प्रेम आपने मुझे दिया। परन्तु सबसे अधिक मैंने आपके प्रेम को संजोया है। कितने आनन्दपूर्वक यह आया। आपके स्नेह और प्रेम से बड़ा उपहार कुछ नही हो सकता। आपने मुझे पुनः अस्ट्रेलिया आने के लिए कहा। खोटे सिक्के की तरह मैं कभी भी दिखाई पड़ जाऊंगा। परन्तु में आपको बता देना चाहता हूँ कि जहां भी मैं हूँ पीछे मुड़कर यहां बिताए सुन्दर समय का वास्तव में उन्हें विश्वास न होगा कि इतने अच्छे मनुष्य भी हो सकते हैं। आपके सम्मुख यह समस्या है, पर कोई बात नहीं। हम क्यों इसकी चिन्ता करें? विश्व परिवर्तित होगा, आपके मार्ग पर चलेगा। ऐसा ही होता है। आज शाम यह परिवार सहजयोग के विषय में जानना चाहता था। वे इसे अपनाना चाहते हैं। कहते हैं "हां यहीं एक मार्ग है।" अत: जो कार्य हम कर रहे हैं उसे निर्भयता पूर्वक करते जाएं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अवैतनिक सहजयागी के रूप में में सदा उतना ही अच्छा स्मरण करुंगा। एक बार पुन: आप सबका बारम्बार धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें और वे भलि-भाति जानती हैं कि क्या घटित हो रहा है। मैने सोचा था कि अपने जन्म व्यवहार करने का प्रयत्न करुंगा जितना अच्छा व्यवहार आप सब करते हैं। एक बार यहाँ आने के लिए आमन्त्रित करने के लिए में किस प्रकार आपका धन्यवाद करु? कौन अपनो के बीच नही होना चाहता? अपने बच्चों के मध्य कौन नहीं होना चाहता? मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे एक क्षण के लिए भी कभी नही लगा कि मैं विश्व हित में लगे अपने बच्चों से दूर हूँ। आप भी मेरे उतने ही प्रिय बच्चे हैं जितना कोई अन्य। यदि आज ही मुझे 75 वर्ष को होना होता तो आपकी संगति में 75 का होना बहुत अच्छा हाता। सुन्दर उपहार जो आपने मुझे दिए उनके लिए मैं आभारी हूँ। अत्यन्त अद्भुत इन उपहारों को सम्भाल कर रखा जाएगा, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ। में इन्हे संजोकर रखूंगा और ये मुझे आपके साथ बिताए गए अदभुत क्षणों का सुन्दर स्मरण कराते रहेंगे मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस स्मृति की जड़ें मेरे हृदय में हैं और यह सदा सर्वदा रहेंगी। मैं अपने साथ आपके प्रेम की मुधर स्मृतियों को ले जा रहा हूँ। दिवस को मैंने छुपाया हुआ है। में नहीं जानता कैसे आप करें लोग जान गए? खैर, धन्यवाद। परमात्मा आप पर कृपा आपका बहुत बहुत धन्यवाद। कन्फ्यूशिस का कथन उच्च मानव गतिशील होने पूर्व स्वयं को सन्तुलित करता है, बोलने से पूर्व अपने मस्तिष्क को शान्त करता है । मांगने से पूर्व अपने सम्बन्ध दृढ़ करता है। इन तीन कुछ चीजों का ध्यान रख कर वह पूर्ण सुरक्षा प्राप्त कर लेता है। परन्तु यदि मनुष्य अपने व्यवहार में अशिष्ट है तो अन्य लोग उससे सहयोग न करेंगे। उसके शब्दों में यदि चिडचिडापन है तो वह दूसरों में अनुनाद नहीं उत्पन्न करता। सम्बन्ध स्थापित किए बिना यदि वह कुछ मांगता है तो उसे प्राप्त न होगा। कोई यदि उसका साथ नही देता तो हानिकारक तत्व उसके समीप आ जाएंगे। ब ाे टत ुड সুभ भू মুৰ স সু সুর সুৰ সু সুর तड 12THLKE म म क र चा द 24 चैतन्य लहरी