1997 अंक 1 व 2 RIVERSAL PUE चैतन्य लहरी "सहजयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाधान, कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिए। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आपकी आ जाएगी, तब समझना कि आप सहज में उतर गए। और फिर अनायास, आप कुछ चाहें या न चाहें, सहज आपकी देखभाल करेगा आपको सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी शक्ति पूजा, दिल्ली NIRMALA. HWA VIVERSAL PURE RELIGI चैतन्य लहरी विषय सूची त खण्ड IX , अंक 1 व 2, 1997 1) जन्मोत्सव पर हृदयाभिव्यक्ति. = = म म स स स स क + + क = = स। 3 *** 2) वरदा मां..... छा 3) आकांक्षा 4) धन्यवाद श्री माता जी.. ..... 6. ***** 5) व्यापारियों से वार्ता, दिल्ली, 5.4.1996 11 ... 6) श्री आदिशक्ति पूजा, कबेला, 9.6.1996 . 17 7) श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत-1.3.1992 28 ৪) लोगों को प्रभावित कैसे करें श्री माता जी - 17.9.1986 39 DHARMA ৭ VMHS सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। ज़िल बि छायून छाई ल पकी प्रकाशक निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8. चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ई मेल का पता- प marketing@nirmalinfosys.com वेबसाइट: www.nirmalinfosys.com व Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 क ल हा निड चि आात बुभ पत पवू ला चा जन्मोत्सव पर हृदयाभिव्यक्ति परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के 71 वें जन्मोत्सव के शुभावसर पर फिलिप जेस की हृदयाभिव्यक्ति ा इस अवसर पर मैं हम सभी को याद करवाना पृथ्वी तथा मानव जाति के उद्धार के लिए है। चाहता हूँ कि इस क्षण यूरोप के अधिकतर निःसन्देह सहस्रार भेदन को मानव विकास सहजयोगी श्री माता जी का जन्म दिन मनाने के की महानतम घटना के रूप में स्मरण किया लिए युगोस्लाविया में एक बड़े सेमिनार में एकत्रित जाता रहेगा। हम आपका धन्यवाद करते हैं हुए होंगे और आपकी आज्ञा से जन्मोत्सव के इस कि आपने हमारे अन्दर के देवत्व को जागृत हमारे जीवन को अर्थ प्रदान अवसर पर मैं उनकी तीव्र इच्छा को आपके सम्मुख किया। आपने रखना चाहूंगा कि कृपा करके युगोस्लाविया में किया, सृष्टि को अर्थ प्रदान किया और हमारे युद्ध, सारी राक्षसी प्रवृत्तियां, सारी नकारात्मकता लिए आपने अपने साम्राज्य, परमात्मा के तथा विश्व भर के सारे युद्धों को समाप्त कर दें। साम्राज्य, के द्वार खोल दिए। धर्मपराणयता श्री माताजी आप का स्वभाव तिहरा है और और मूल्य विहीन पश्चिमी समाज का एक आपसे हमारे सम्बन्ध भी तिहरे हैं, अर्थात् हम देवी सदस्य होते हुए भी . गुरुमयी श्री माताजी, मैं रूप में आपकी पूजा करते हैं, गुरु रूप में आपको धन्यवाद देता हूँ कि सभी गुरुओं की आपके प्रति समर्पित होते हैं और माँ रूप में माँ के रूप में आपने हममें विवेक जागृत आपको प्रेम करते हैं। आपके इस तिहरे स्वभाव किया, आवश्यक मर्यादाएं प्रदान कीं और और आपसे हमारे तिहरे सम्बन्धों के कारण मैं तीन पूर्ण मानव बनने के लिए हमें आध्यात्मिक पथ प्रकार से आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट प्रदर्शन प्रदान किया ताकि हम सारे देशों, करना चाहूँगा। श्री माताजी सम्मानमय संकोच सारे राष्ट्रों के समाज में दैवी प्रेम को स्थापित तथा एक ओर अत्यंत भय की तथा दूसरी ओर करने के पूर्ण यन्त्र बन पाएं। श्री माताजी आपका बालक होने के नाते अत्यन्त श्रद्धा की भावना के साथ हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि हमारी कृतज्ञता को स्वीकार और आपके सभी बच्चों की ओर से मैं आपका करें, कि हे देवी आदिशक्ति! आप अवतरित धन्यवाद करता हूँ। श्री माताजी आपका अथाह हुईं, कलयुग के अन्त में आपका अवतरण प्रेम, धैर्य, सहन शक्ति हमें वह अन्तरिक्ष भार ड फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी प्रदान कर रहा है जिसमें हम छोटे-छोटे सहजयोगी अपने आप को, अपने हृदय, अपना शिशुओं से बचपन, किशोरावस्था और व्यस्कता समर्पण, अपनी वचनबद्धता, अपने गुण और अपनी की ओर विकसित हो सकते हैं। श्री माताजी प्रतिभा आपके श्री चरणों में अर्पण करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि विश्व निर्मला धर्म को इस पृथ्वी जो सुरक्षा आप हमें प्रदान कर रही हैं और पर स्थापित करने के लिए यथाशक्ति कार्य करेंगे । जिस प्रेम के बन्धन में आप हमें हर समय रखती हैं उसके लिए मैं आपका धन्यवाद श्री माताजी आपकी आज्ञापालन करने के लिए हम करता हूँ। परन्तु श्री माताजी, मैं कभी नहीं सदा कृतसंकल्प रहेंगे। हम सब इस शुभावसर पर चाहूंगा कि बड़ा होकर मैं व्यस्क बनूं। मैं प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में, कालान्तर में, आने सदा शिशु ही बना रहना चाहूंगा ताकि आपकी वाले युगों में, यह दिन सबसे पवित्र दिन बन जाए साड़ी के पल्लू को पकड़कर आपके मातृत्व और ईसाइयों के लिए यह ईसा जयन्ती की तरह का आनन्द जीवन के हर क्षण में ले सकू। से हो जाए, परन्तु सारे राष्ट्र और विश्व की सभी आज के पवित्र दिन, श्री माताजी. हम सभी मानव जातियाँ इसे उत्सव के रूप में मनायें। जय श्री माता जी।.. य ि वि ही. ता म त हा वरदा माँ मल तुम वरदा हो, ममता की पहचान हो, तुम्हीं हो सागर प्रेम का, वरदान निर्मल स्नेह का, प्यार तुम्हारा इतना है पावन, जैसे शिव की गंगा | माँ तेरी ही डाली के फूल हैं हम, सींचा जिन्हें तुमने प्रेम से जीवन की तपती धूप में, तेरा आंचल प्रेम की Dांव है। पू ते री ही उंगली थामकर, पहला कदम मेरा उठा आदि गुरु आदि ज्ञान हो, करती हो हर पल हमें क्षमा ता माँ तुम वरदा हो, ममता की पहचान हो आकांक्षा प्रेम अपना दो हमें, कि करुणा परस्पर जाग जाए। नम्रता का दान दो, कटुता न हममें स्थान पाए। सम्मान भाव से पूर्ण हों हम, दूसरों को न तुच्छ मानें, करें कार्य हृदयपूर्वक, आत्म विश्वास हममें डालें। जीरत काी पूर्ण संतोष का दान दो माँ, इच्छा रहे मात्र उत्थान की, माँ क्षमा का दान दो समर्थ आपको समझने की हममें नहीं । दो सूक्ष्म को समझने की संवेदनशीलता हृदय में सदा आप महसूस हो हृदय पावन हो हमारा श्री चरण इसमें विराजें सदा । (गौरी) कोटि-कोटि धन्यवाद हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । इस वर्ष (1996) सहस्रार पूजा के अवसर पर हमारी परमेश्वरी माँ, श्री माता जी निर्मला देवी के प्रति निम्नलिखित 108 आभार प्रकट किए गए । 7 ) सृष्टि के मूल सार तत्व (Primordial Principles) हमारे सम्मुख प्रकट करने के गहन प्रेम एवं शाश्वत कृतज्ञता के वशीभूत होकर लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । इनकी संरचना की गई है और श्री माताजी की पूजा एवं उनसे प्रार्थना के अवसर पर इनका उच्चारण 8) मानव स्वभाव की वास्तविकता को हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि- कोटि किया जा सकता है। इनके माध्यम से उन भावनाओं की अभिव्यक्ति की जा सकती है जो अभिव्यक्ति से धन्यवाद । 9) सच्चे धर्म का अर्थ हमारे सम्मुख प्रकट करने परे हैं: 1) श्री माता जी कलियुग के गहन अन्धकार में के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 10) सहजयोग का दिव्य ज्ञान आपने हमें सिखाया, प्रकाश लाने के लिए अपने वैकुण्ठ लोक 'माता आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । द्वीप ' से आप पृथ्वी पर अवतरित हुई, आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 11) ईसा मसीह द्वारा दिए गए वचन को आपने निभाया आपका काटि-कोटि धन्यवाद । 2) भ्रम में फंसी आत्मघाती मानव जाति को 12) हमारे सम्मुख पड़े भ्रम का पर्दाफाश करने के लिए सहजयोग प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 3) सृष्टि तथा विकास के अर्थ का रहस्योद्घाटन 13) अच्छाई और बुराई का वास्तविक अर्थ हमें बताने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 4) मानव जीवन को दिव्य अर्थ प्रदान करने के 14) हममें माँ कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 15) सामूहिक चेतना के आयाम हमारे सम्मुख प्रकट 5) परमात्मा का वास्तविक अस्तित्व हमारे सम्मुख करने के लिए आपका कोटि-कोटे धन्यवाद । प्रकट करने के लिए आपका कोटि -कोटि 16) हमें आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने के लिए धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि मानव शरीर के अन्दर विश्व रूप का प्रतिबिम्ब धन्यवाद । फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 7. 27) मानव जाति को एक अनुभव, एक सत्य और 17) हमारे मध्य नाड़ी तंत्र पर चैतन्य चेतना स्थापित करने के लिए आपका कोटि-को टि एक परमात्मा के चरण-कमलों में जोड़ने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 18) परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से हमारा पोषण 28) मानव जाति को पूर्णता के क्षेत्र में आमन्त्रित करने करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 19) अन्तिम निर्णय (Last Judgement) का अर्थ 29) द्वैत विश्व के भ्रम से हमें मुक्त करने के लिए हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 30) मूर्खता, भ्रम एवं अकेलेपन से हमें मुक्ति दिलाने 20) आनन्दमयी पूर्वानुभूति की तन्द्रा से जीवन वृक्ष के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । प 31) भौतिकवादी विश्व की आसुरी शक्तियों का पुनःचेतन करने के लिए आपका कोटि-कोटि पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 21) सभी अवतरणों और पैगम्बरों के कार्य को धन्यवाद । सम्मान प्रदान करने के लिए आपका 32) रेखीय दृष्टिकोण की निर्थकता का पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 22) सभी सन्तों और जिज्ञासुओं के स्वप्न साकार 33) पैतृक राजनीति के भय एवं क्रूरता का पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 23) मानव जाति का उद्धार करने के लिए जिन 34) दास बनाने वाले व्यक्तियों, सामाजिक शैलियों तथा बन्धनों का विनाश करने के लिए आपका लोगों ने अपने जीवन बलिदान कर दिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद । अर्थ प्रदान करने के लिए आपका कोटि- कोटि 35) कैथोलिक चर्च की दमघोटू जंजीरों से मानवता धन्यवाद । पुनः स्थापित 24 ) हमारे हृदयों में विश्वास एवं निष्ठा को स्वतन्त्र करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के 36) इस्लामिक सरकारों की धार्मिक सत्ता अभिशाप से मानवता को मुक्त करने के लिए 25 ) मानवीय दृढनिश्चय को कौम, धर्म और जाति प्रथा से ऊपर उठाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 26) स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे के विचारों 37) सभी कुगुरूओं तथा धार्मिक संस्थाओं के असत्य का हमारे सम्मुख पर्दाफाश करने के लिए को दिव्य अर्थ प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी ৪ 38) अन्धविश्वास एवं उथले धार्मिक बन्धनों से मानव 49) हमारे अन्तस में वैकुंठ द्वार खोलने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । जाति को मुक्त कराने के लिए आपका 50) हमें योग का वरदान देने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 39) सत्य के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमियों तथा सीमाओं का अनावरण करने के लिए 51) हमारी सृष्टि करने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 40) पाश्चात्य मूल्य प्रणाली एवं भ्रमों का अनावरण 52) हमारा शुद्धिकरण करने के लिए आपका करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 53) हमें स्वस्थ करने के लिए आपका कोटि-कोटि 41) परमात्मा से सम्बन्धों से हमारा परिचय करवाने धन्यवाद | के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 42) हमें योग्य समझने के लिए आपका 54) हमें पवित्र करने के लिए आपका कोटि-कोटि कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 55) हमारी आन्तरिक बाधाएं दूर करने के लिए कराने के कार्यों में हमारा 43) मानवता को मुक्त्त आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। योगदान स्वीकार करने के लिए आपका लिए आपका 56) हमें परिवर्तित करने के कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 44) गहन जिज्ञासु को अपने उद्धारक मातृ प्रेम से 57) हमें ज्योतिर्मय करने के लिए आपका परिचित करने का आनन्द हमें प्रदान करने के चा लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 58) हमारा पोषण करने कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका 45) देवी के दरबार में हम सबको आमन्त्रित करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 59) हमें उल्लसित करने के लिए आपका 46) परमात्मा का साम्राज्य पृथ्वी पर स्थापित करने कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 60) हमारे अंग-संग होने के लिए आपका 47) हमारी भेंट प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के कोटि-कोटि धन्यवाद । लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 61) हमें अपना प्रेम प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 48) निरन्तर अपने आशीर्वादों की वर्षा हम पर करते रहने के लिए आपका कोटि-कोटि 62) हमारी सहायता करने के लिए आपका धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 9. 63) हमारी रक्षा के लिए आपका कोटि-कोटि 77) हमें अपनी गणना में लेने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 64) हमें क्षमा करने के लिए आपका कोटि-कोटि 78) हम पर विश्वास करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 65) हमें प्रोत्साहित करने के लिए आपका 79) हमारी प्रतीक्षा करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 66) हमारा मार्गदर्शन करने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका 80) हमें अपने दिव्य शरीर में स्थान प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 67) हमें सौख्य प्रदान करने के लिए आपका 81) हमें सामूहिकता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 68) हमें परामर्श देने के लिए आपका कोटि-कोटि 82) हमें सौहार्द प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 69) हमारे दोष दूर करने के लिए आपका 83) हमें परिवार प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 70) कभी भी हमारा परित्याग न करने के लिए 84) जीवन में हमें पद प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 71) हमारा उद्धार करने के लिए आपका 85) हमें वैभव प्रदान करने के लिए आप ज कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 86) हमें आत्मिक सत्ता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 72) हमें संगठित करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 73) हमें सीख देने के लिए आपका कोटि -कोटि 87) हमें आत्म-सम्मान प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 74) हमारी चिन्ता करने के लिए आपका 88) हमें विवेक-सम्मत बनाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 75) हमें अपने चरण कमलों में स्थान प्रदान करने 89) हमें सुमति प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 76) हमारे हृदय खोलने के लिए आपका 90) हमें सफलता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । चैतन्य लहरी फरवरी, 1997 जनवरी 10 91) हमें ध्यानावस्था प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 100)विश्व निर्मला धर्म फैलाने की प्रसन्नता हमें प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 92) हमें आन्तरिक शान्ति प्रदान करने के लिए 101 ) निरन्तर हम पर चित्त रखने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। 93) हमें आन्तरिक आनन्द प्रदान करने के लिए 102)हमारा दर्पण बनने के लिए आपका कोटि-कोटि आपका कोटि-कोटि धन्यवाद | 1 94) हमें प्रबुद्ध (Enlightened) चित्त प्रदान करने धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 103)हमारे प्रति सदय होने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 95) हमें निर्लिप्सा प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 104) हमारे हृदय में रहने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 96) हमें दिव्य शस्त्रों से सज्जित करने के लिए 105) हमारी गुरु होने के लिए आपका कोटि-कोटि आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 97) हमें देवी देवताओं तथा सभी स्वर्गीय शक्तियों धन्यवाद । की कृपापूर्ण दृष्टि में समर्पित करने के लिए 106)हमारी हितैषी होने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 98) हमें अन्य लोगों की हितेच्छा प्रदान करने के 107)हमारी माँ होने के लिए आपका कोटि-कोटि लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 99) हमें अन्य लोगों की सहायता करने की शक्ति 108)सदा सर्वदा आपको कोटि-कोटि धन्यवाद । प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि |१। व्यापारियों से वार्ता परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) दिल्ली 5.4.1996 बा सत्य को खोजने से पूर्व हम भिन्न सम्भावनाओं जब बच्चे को किसी कार्य को न करने के लिए पर विचार करते रहते हैं। जिसे हम 'मन कहते हैं कहती है तो बच्चे को अच्छा नहीं लगता, फिर भी वह वास्तव में हमारा मस्तिष्क नहीं होता। हम वह उसकी बात को सुनता है क्योंकि वह माँ है। सोचते रहते हैं कि हमारा मन क्या कह रहा है इस प्रकार बच्चे के बंधनों की रचना होती है। इस परन्तु आप यह जानकर आश्चिर्यचकित होंगे कि प्रकार हमारे अन्दर केवल दो चीजें हैं- हम या तो यह मन आता कहाँ से है और यह वास्तव में है अपने अहम या अपने बन्धनोंबश कार्य करते हैं । कोई तीसरी चीज नहीं है जो हमें यह बता सके कि क्या ! हमारे अन्दर जो मन है वह वास्तव में हमारे द्वारा बनाई गई एक परिस्थिति है। पशुओं में शायद हम क्या कर रहे हैं, यह ठीक है या गलत, इससे ऐसा न हो परन्तु मानव जब किसी चीज़ को देखता हमें लाभ होगा या नहीं, यह हमें विनाश की ओर है तो उस पर प्रतिक्रियाशील होता है। उदाहरणार्थ ले जा रही है या प्रसिद्धि की ओर। जिस भी तरह यहाँ बिछे हुए सुन्दर कालीन को हम देखते हैं, से हम प्रतिबन्धित हैं उसी दिशा में हम बढते चले यदि यह हमारा अपना हो तो हम चिन्तित हो जाते हैं और तब हमारा अहम् भी विकसित हो उठते हैं कि कहीं यह खराब न हो जाए। तब हम सकता है। अहम् की किस्म के अनुसार ही हम कार्य करते हैं। हमारे अन्दर वर्तमान इन दोनों गुणों इसका बीमा कराने की सोचते हैं, और यदि यह हमारा नहीं है तो हम सोचने लगते हैं कि यह कहाँ की सृष्टि हमारे द्वारा ही की जाती है। उदाहरण के से आया, इसका मूल्य क्या है ? यह सब बातें तौर पर इस घड़ी की लें जिसे हमने बनाया है अब हमारे मस्तिष्क में आती रहती हैं। हम इस घड़ी के गुलाम हो गए हैं। ज्यों ही इन जब बच्चा अपनी माँ के साथ लोगों ने कहा श्री माता जी आपको सात बजे हुए छोटे होते होता है तो वह खूब मजे में रहता है। माँ का कुछ पहुँचना है. मेरे मन में विचार आया कि हम उस और कार्य करना बच्चे को अच्छा नहीं लगता। उसे जगह से बहुत दूर हैं, वहाँ समय पर नहीं पहुँच लगता है कि माँ उसे परेशान कर रही है। इस पायेंगे यह विचार मुझे समय से बांधने का प्रयत्न प्रकार बच्चे में जो प्रतिक्रिया आरम्भ होती है वह करते हैं । तब एक और चिन्ता हो जाती है कि यह शनैः-शनैः विकसित होकर अहम् कहलाती है। माँ लोग मुझे ऐसा क्यों कह रहे हैं। इस तरह से हम जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 12 समय में बंध जाते हैं और इसके दास बन जाते हैं। (बाएं या दाएं) बहुत अधिक ले जाते हैं। आप स्वयं सोच सकते हैं कि शारीरिक स्तर कम्प्यूटर के बिना हम दो जमा दो भी नहीं कर सकते हमें इसे भी ठीक करना आवश्यक है। पर व्यापारियों को क्या समस्याएं हो सकती हैं। 1 हममें आदान-प्रदान की भी कमी है और यह एक चक्र है जिसे हम स्वाधिष्ठान चक्र कहते हैं। मस्तिष्क, जो कि एक वास्तविकता है, इसके पास यह चक्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका कार्य हमारे मस्तिष्क के सफेद कोषाणुओं का पोषण करने के लिए बहुत कम कार्य है तथा घड़ी की सुई की तरह से हम घूमते रहते हैं और एक करना है। चिकित्सकों को इसका ज्ञान नहीं है यन्त्र मानव की तरह से हम जीवनयापन करते परन्तु यह सत्य है। यदि हर समय हम अपने मस्तिष्क की शक्ति का उपयोग करते रहेंगे तो हैं। जो सत्य है उससे हम दूर है। इसकी शक्ति कहाँ से आएगी ? हमारे सभी विचारों, हम वास्तविकता के दायरे में प्रवेश कर इच्छाओं, योजनाओं आदि को पूर्ण करने के लिए सकते हैं। जब हम इस दायरे में प्रवेश कर जाते हैं तो न केवल अपने विषय में परन्तु अन्य लोगों के शक्ति की आवश्यकता होती है और यह शक्ति विषय में भी जान सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं स्वाधिष्ठान चक्र से आती है। स्वाधिष्ठान चक्र को कि उनकी वेशभूषा या आभूषणों के बारे में जान इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ करना होता है। इसी चक्र की सहायता से हमारे जिगर, प्लीहा, गुर्दे सकते हैं। परन्तु उनके चक्रों की स्थिति के विषय में जान सकते हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि कार्य करते हैं। जब यह चक्र एकतरफा कार्य करने हमारे अन्दर के यह सात चक्र हमारे ऊर्जा केन्द्र लगता है तो इसकी शक्ति भी एक ही ओर जाने हैं। इन ऊर्जा केन्द्रों की शक्ति को हम उपयोग लगती है तथा सभी प्रकार के रोग प्रकट हो जाते करते हैं। परन्तु यदि इनका बहुत अधिक उपयोग हैं। सर्वप्रथम जिगर गर्म हो जाता है तथा अधिक सोच-विचार तथा योजनाएं बनाना इसे और अधिक करने लगें तो लोगों को तनाव, हृदय रोग या किसी अन्य प्रकार के रोग हो जाते हैं। यही केन्द्र हैं गर्म कर देता है। जिगर, जिसका कार्य इस गर्मी को जिनसे हमारी सभी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रक्त प्रवाह में छोड़ना होता है, अपना कार्य नहीं कर और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान होता है। पाता तब यह गर्मी ऊपर नीचे या दाएं बाएं चली जाती है। जब यह ऊपर को जाती है, तो आप हैरान यह सात चक्र हमारे अन्दर हैं, हो सकता है इनके अस्तित्व का ज्ञान आपको न हो। यह सात चक्र होंगे, व्यक्ति को अस्थमा हो जाता है। बहुत से लोग हमारे अन्दर केवल विद्यमान ही नहीं है, बहुत से शिकायत करते हैं कि श्री माता जी मुझे अस्थमा है जो लोगों ने इसकी कुंजी भी प्राप्त की है। अपने लाइलाज है, नहीं निःसन्देह इसका इलाज हो सकता असंतोष के कारण हम इन केन्द्रों को एक तरफ है। एक चिकित्सक, जो अब अमेरिका में है, को इसी फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 13 विषय पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। आयु में हृदय की ओर बढ़ती हुई इस गर्मी के कारण यदि ऐसे व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ जाए दूसरा रोग जो इसके कारण होता है बहुत आम रोग है- मधुमेह (Diabetes)। यह चक्र तो वह घातक हो सकता है। यह गर्मी जब हृदय अग्न्याश्य की भी देखभाल करता है। इसके खराब को प्रभावित करती रहती है तो हृदय कमजोर हो होते ही मधुमेह का आरम्भ हो जाता है। जो लोग जाता है और 55 वर्ष की आयु में व्यक्ति को दिल अत्यधिक सोचते हैं, अत्यधिक योजनाएं बनाते हैं के दौरे पड़ने लगते हैं। तब लोगों की दुर्दशा हो जाती है पक्षाघात हो उनके प्लीहा पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्लीहा का कार्य संकटकालीन स्थिति में हमारे सकता है। इतना भयानक पक्षघात कि पूरा दायां शरीर को लाल रक्त कोषाणु प्रदान करना होता है। पक्ष कार्य करना बन्द कर देता है। केवल एक चक्र आज के युग में लोग समयबद्ध हैं। हम रात को इतने सारे रोगों का कारण बन सकता है, विशेषकर बहुत अधिक योजनाएं बनाने वाले भविष्यवादी लोगों देर से सोते हैं, सुबह जल्दी उठते हैं और किसी तरह कार में बैठकर दफतर को दौड़ते हैं। हमारा में ऐसे लोगों को सदा जुकाम हो जाता है और संवेदनशील प्लीहा ऐसे समय पर लाल रक्त कोषाणु कभी- कभी तो उन्हें फ्लू भी हो जाता है। अब आप देना चाहता है, व्यक्ति की चिन्ताओं के साथ यह कल्पना कीजिए कि एक चक्र जब इतने सारे रोगों भी चिन्तित हो उठता है और इस प्रकार जिस रोग का कारण बन सकता है तो यदि किसी का दूसरा का आरम्भ होता है वह अत्यन्त भयानक है-रक्त चक्र खराब हो जाए तो क्या होगा? कैंसर, कम्पन कैंसर। तीसरा रोग अचानक गुर्दे का खराब हो रोग (Parkinson ) जैसे मनोदैहिक रोग जाना है पहले तो व्यक्ति को डायलिसिस पर स्वाधिष्ठान चक्र की खराबी से होते हैं तथा अन्य डाल दिया जाता है परन्तु इसका खर्च उसे दिवालिया बना देता है। डायलिसिस से मनुष्य निरोग नहीं हो चक्रों को भी खराब कर देते हैं और इन्हें ठीक करने का कोई दूसरा तरीका नहीं होता। आप यदि सोचें 1. सकता। डाक्टर जो चाहे कहते रहें परन्तु यह कि चिकित्सक इन्हें दवाइयों से ठीक कर देंगे तो ऐसा नहीं हो सकता। आपको इन चक्रों में शक्ति सत्य है। इसके अतिरिक्त भी बहुत से रोग हैं जैसे का संचार करना होगा और इसके लिए सर्वशक्तिमान कब्ज। भयानक कब्ज भी बहुत सी बीमारियों का परमात्मा ने मूलाधार अस्थि में कुण्डलिनी नामक कारण बनती है। इस गर्मी से हृदय भी नहीं बच शक्ति रख छोड़ी है। क्योंकि यह साढ़े तीन लपेटों सकता। कोई शराब पीने वाला युवा व्यक्ति जो में है, और लपेटे को संस्कृत में कुण्डल कहा जाता टेनिस खेलता हो, सोचता भी हो, वह भी इसकी है मानव ने इसका नाम कुण्डलिनी रख दिया है। पकड़ में आ जाता है क्यों ? 21 से 25 वर्ष की क्योंकि यह मातृ-शक्ति है इसे.कुण्डलिनी कहते फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 14 होकर यह शक्ति इन चक्रों में से होती आपको क्या करना होगा ? कुछ नहीं, केवल इसे हैं। जागृत हुई तालू की हड्डी का भेदन करती है. तब इसका पृथ्वी में डालना होगा क्योंकि बीज में भी शक्ति है मिलन परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से होता है। और पृथ्वी में भी, यह उपजाऊ है। इसी प्रकार कि पेड, आपकी कुण्डलिनी को भी जागृत करना कठिन सत्य क्या है ? सत्य यह है हरियाली, यह संसार, सभी सुन्दर चीज़ों को हम नहीं है ऐसा करने का कोई एहसान नहीं है। अब देखते हैं परन्तु यह नहीं सोचते कि यह सब किस जब हमारे अन्दर यह शक्ति है और हम इसे प्राप्त कर सकते हैं तो क्यों न हमें ऐसा कर लेना चाहिए। प्रकार बना। है न हैरानी की बात! उदाहरणार्थ यह अब हमें किन कठिनाइयों का सामना करना सुन्दर फूल कितने सुगन्धमय हैं। यह सुगन्ध कौन इनमें डालता है ? आप यदि चिकित्सक से पूछें कि पड़ सकता है, यह समझना चाहिए। आज का मेरे हृदय को कौन धड़काता है तो वह कहेगा संसार ऐसा है कि हमें शान्ति प्राप्त होना आवश्यक स्वचालित नाड़ी तन्त्र। अब यह 'स्व' कौन है ? है और मुन से ऊपर उठे बगैर शान्ति नहीं प्राप्त हो यदि वह स्वचालित है तो हमारे अन्दर एक चालक सकती। केवल कुण्डलिनी ही हमें पूर्ण आन्तरिक है, यह कौन है ? इसका उनके पास कोई उत्तर शान्ति तक ले जा सकती है। हर चीज़ को हम नहीं है। यह आपकी आत्मा है और हम इसलिए साक्षी रूप में देखने लगते हैं, किसी चीज के प्रति जीवित हैं क्योंकि हमारी आत्मा जीवित है। इसका प्रतिक्रिया नहीं करते और परिणामस्वरूप हमारी स्मरण शक्ति सुधरती है। जो कुछ भी हम देखना यह अर्थ भी नहीं कि आप लोग जंगलों में या हिमालय में चले जाएं और एक टांग पर खड़े हो चाहते हैं, मान लो किसी समस्या को, जब तक हम जाएं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं। आप पूर्व समस्या में फंसे रहते हैं इसका समाधान नहीं कर जन्मों में यह सब कर चुके हैं और इसी कारण यहाँ सकते। से बाहर आ परन्तु ज्योही इस समस्या उपस्थित हैं। यह सब नाटक करने या पैसा खर्च जाते हैं समस्या सुलझ जाती है क्योंकि हम परमात्मा करने की कोई आवश्यकता नहीं। इसे आप खरीद से जुड़े होते हैं। हमास एकाकार परमात्मा से है, नहीं सकते। जैसे आप मानव हैं, आप महान व्यक्ति यह कठिन कार्य नहीं है परन्तु पहले आपको विश्वास होना चाहिए। इतने सारे लोग क्यों विश्वास खो बैठते हैं ? हो सकता है आपने गलतियाँ की हों, बन सकते हैं। यह जीवन्त क्रिया है। यह सहज ही में घटित हो सकती है। यह शक्ति सभी में विद्यमान है। आपने केवल इसे पाना मात्र है । उन्हें भूल जाएं। वह आपका भूत था, अब आप उसके लिए आपको कुछ उससे जुडे हुए नहीं हैं। आप वर्तमान में हैं। मैं इसे नहीं करना, यह सहज है, स्वतः है। उदाहरण के लिए आपके पास एक बीज बसन्त ऋतु कहती हैँ क्योंकि बहुत से लोग आए हैं उनका पुनर्जन्म हुआ है। योगी रूपी फूल खिल उठे है जिसे आपने पृथ्वी में डालना है। इसके लिए ho फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 15 हैं और कुण्डलिनी की जागृति के साथ ही उनपर फल आए हैं। 'ऐसा हजारों लाखों लोगों के साथ कभी सन्तुष्टि नहीं होती। इसका कारण यह है कि घर की, फिर एक वायुयान की, एक के बाद एक, घटित हुआ है और आपके साथ भी ऐसा घटित वस्तुएं आपको सन्तुष्ट नहीं कर सकतीं। सन्तोष तो होना कठिन कार्य नहीं है इसमें किसी का कोई एक मानसिक अवस्था है। साक्षात्कारी व्यक्ति को एहसान नहीं है, मेरा या आपका। ये आपकी निजी भौतिक वस्तुएं यदि मिल गई तो ठीक यदि नहीं चीज़ है। इसे प्राप्त करने के पश्चात आपको मिलीं तो ठीक। वह शारीरिक सुखों की अधिक थोड़ी देर के लिए ध्यान अवश्य करना होगा। चिन्ता नहीं करता। उसे आप रेशम पर बिठा दें या यह खाइए और यह मत खाइए जैसा कोई फर्श पर वह प्रसन्नचित्त रहता है। वह बादशाह है । बंधन नहीं है । अपने घर और बच्चे छोड़ने कोई चीज़ उसे बाँध नहीं सकती क्योंकि वह की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। सभी बादशाहत में है। आप यह सब प्राप्त कर सकते हैं। इसे प्राप्त करने का आपको अधिकार है। इसे यदि लोगों ने यह बात कही है, ईसा ने कहा था " स्वयं को पहचानो" (Know Thyself) मोहम्मद साहब ने आप प्राप्त कर लें तो बहुत अच्छा होगा सबसे स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्वयं को जाने बिना आप बड़ी उपलब्धि जो होगी कि आप जान जाएंगे कि परमात्मा को नहीं जान सकते। अब यदि लोग कुछ आपके ऊपर एक महान शक्ति है-प्रेम की शक्ति। और बातें कहें तो हमें उसकी चिन्ता नहीं करनी अब तक किसी ने इस प्रेम की शक्ति का चाहिए। जब सभी अवतरणों ने कहा है कि स्वयं उपयोग नहीं किया सभी शक्ति का उपयोग को पहचानो और ऐसा करना कठिन भी नहीं है तो कर रहे हैं । आप यह प्रेम की शक्ति उपयोग करें और फिर देखें। आप देख रहे हैं कि हमारे क्यों न यह किया जाए ? कुछ लोग समझते हैं कि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात उनका व्यापार ठप्प हो देश में कितनी खलबली है लालच अनावश्यक जाएगा। वे बहुत भयभीत हैं। परन्तु साक्षात्कार के रूप से बढ़ गया है। लोगों के पास धन रखने के पश्चात दस गुना समृद्ध होंगे क्योंकि आपका लिए स्थान नहीं है। दीवारों में वे धन लगा रहे हैं। दृष्टिकोण ईमानदारी का हो जाएगा और आप क्या वे ये दीवारें अपने साथ ले जाएंगे ? विवेक सन्तुष्ट हो जाएंगे ऐसा नहीं है कि आप पागलों समाप्त हो गया है। लोभ की भी एक सीमा होती है। लोग किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते की तरह इस पर लग जाते हैं। ऐसा कुछ नहीं है। 1. पागलपन छूट जाता है और आप पूर्णतः सन्तुष्ट हो फिर भी चले जाते ह कुछ आपके पास है आपको चाहिए कि आप इसका है। यह पागलपन है। जो भी जाते हैं। अर्थशास्त्र का नियम है कि प्रायः आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो सकती। जैसे आनन्द उठाएं। अब निःसन्देह आप महसूस करेंगे आज आपको एक कार की इच्छा होती है फिर एक कि श्री माता जी हमें आनन्द के सागर तक ले गई फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 16 है। जफर नाम का एक मुसलमान डाक्टर हमारा सभी लोग डरते हैं। परमात्मा जानता है कि वहाँ से शिष्य है। जब वह हमारे पास आया तो सभी लोग कितने लोग सहजयोगी बन चुके हैं बहुत भजन गा रहे थे मैं नहीं जानती कि उसे क्या वैज्ञानिक, बहुत से अन्य लोग हैं जिनमें कोई इच्छा हुआ, आनन्दमग्न हो वह गाता रहा। मैंने उससे नहीं है। केवल 35 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो पूछा, " डाक्टर जफर आपको क्या हुआ ?" उसने मालब्रो सिगरेट जैसी चीज़ें चाहते हैं। मैंने उनसे पूछा कि यहाँ सैनिक विपल्व होने वाला है, आपको उत्तर दिया, " मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि मैं पूर्ण आनन्द में था और घंटों तक वह इसी कोई चिन्ता नहीं ? कहने लगे श्री माता जी हम स्थिति में रहा।" मैंने उसे कहा कि " कुछ खा क्यों चिन्ता करें ? हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं लो", वह कहने लगा, मैं निर्विचार समाधि में यहाँ के साम्राज्य में नहीं । किस चक्र से क्या होता है इसके बारे में था।" जरा सोचिए कि आप इतनी पार्टियों में जाते चिन्ता करना अनावश्यक है। आप आत्मसाक्षात्कार हैं, इतनी पार्टियाँ देते हैं परन्तु आनन्द नहीं उठा प्राप्त कर लें। आजकल बाजार में बहुत से गुरु. हैं । सकते। पार होने के पश्चात इधर-उधर की बातें धन बटोरना उनका व्यापार है। आत्मसाक्षात्कार सब समाप्त हो जाएंगी। इतनी मित्रता इतना प्रेम जैसी अमूल्य चीज़ के लिए कैसे आप धन ले आपने अभी तक सामूहिकता में कभी न देखा था । सकते हैं ? जिस गुरु को आप खरीद सकते यह इतना आनन्ददायी अनुभव है कि हजारों लोग प्रेम के सागर में मिलकर बैठे हुए हैं। जो भी हमें हैं वह तो आपका नौकर हुआ। वह गुरु कैसे हो सकता है ? आप यदि इस चीज़ को समझ लें तो अच्छा होगा हमारे देश में और बाहर भी बहुत देखता है हैरान हो जाता है। रूस जैसा देश जहाँ साम्यवाद है, मुझे से झूठे गुरु हैं। इससे हानि भी हो सकती है। साम्यवाद से कुछ नहीं लेना-देना, न ही मैं इसके आत्मसाक्षात्कार आपकी अपनी सम्पदा है। आपने इसे प्राप्त करना है। इसके लिए आपको स्वयं पर पक्ष में हूँ, परन्तु इससे भी एक अच्छाई निकली कि उनमें कोई इच्छा शेष नहीं बची। सरकार ने उनसे विश्वास होना चाहिए कि मुझे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कहा कि हम आपको फ्लैट देंगे, अपने नाम में इन्हें करना है। ले लो। उन्होंने कहा,"नहीं हमारे नाम इन्हें मत परमात्मा आपको धन्य करें। (अनुवादित) करो। अपने पास रखो। अपने नाम से चीजें लेने से श्री थि श्री आदिशक्ति पूजा परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कबैला 9.6.1996 कुण्डलिनी आपके अन्दर आदिशक्ति का अभिव्यक्ति करे। इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमात्मा कली प्रतिबिम्ब है । हम कह सकते हैं कि यह आदिशक्ति की शक्ति ने उनसे पृथक होकर उनकी करुणा, और आदि-कुण्डलिनी की पूजा है। इस ब्रह्माण्ड उनकी इच्छा का रूप धारण किया ताकि में तथा अन्य बहुत से ब्रह्माण्डों में जो भी कुछ चित्त-विलास (आदिशक्ति के आनन्द) का सृजन सृजन किया गया है वह सब आदिशक्तित का कार्य कर सकें। चित्त-विलास एक संस्कृत शब्द है। है। चित्त ध्यान-शक्ति(Attention) है। ध्यान-शक्ति | बहुत से लोग विश्वास करते हैं कि परमात्मा का अपना ही आनन्द है और हमारी इस ध्यान-शक्ति एक है. यह सत्य है। परमात्मा एक ही है, के आनन्द की अभिव्यक्ति करने के लिए आदिशक्ति सर्वशक्तिमान परमात्मा। परन्तु उसकी अपनी शक्तियाँ ने सभी ब्रह्माण्डों की सृष्टि की है। उन्होंने इस हैं जिनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति वह किसी व्यक्ति के पृथ्वी माँ की सृष्टि की, सारी प्रकृति का सृजन ब ब माध्यम से कर सकता है। अतः सबसे पहले उन्होंने किया और उन्होंने ही सारे पशु बनाए, मानव बनाए आदिशक्ति की शक्ति की सृष्टि की इसकी सृष्टि तथा सभी सहजयोगियों को बनाया इस प्रकार से के समय केवल 'शब्द था, शब्द जिसे हम ॐ, पूरी सृष्टि का सृजन हो सका। लॉगॉस(Logos)-शब्द ब्रह्म या आदिनाद (Primordial इस स्तर पर प्रश्न किया जा सकता है कि Sound) कहते हैं। ये तीनों शक्तियाँ इसी शब्द से उन्होंने सीधे ही मानव का सृजन क्यों नहीं कर उत्पन्न हुईं -ॐ (A,U,M)। आदिशक्ति ही दिया। यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का विचार था, सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा को साकार रूप केवल मानव का सृजन, बिना उसे कुछ बताए सभी देती हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा उनकी पशुओं में सबसे अच्छे पशु का सृजन। परन्तु माँ अपनी अभिव्यक्ति के लिए, उनके आत्म-प्रकाश के होने के नाते अभिव्यक्ति करने का आदिशक्ति का लिए तथा उनके प्रकटन के लिए उनकी करुणा से अपना ही तरीका था। उन्होंने सोचा कि वे न्म लेती है। मैं कहूँगी कि शायद वे अकेलेपन से सर्वशक्तिमान परमात्मा के लिए ऐसे दर्पण बनायें थक गए थे अतः उन्होंने एक सहचरी का सृजन जिनमें वे अपना रूप, अपनी प्रतिछाया, अपना चरित्र करने के विषय में सोचा जो उनकी इच्छाओं की देख सकें। और इस प्रकार इतनी लम्बी विकास পা फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 18 प्रक्रिया घटित हुई। इस विकास प्रक्रिया को इसी बना सकते। जो भी कुछ पहले से सृजित है उसी 1 यदि प्रकार कार्यान्वित होना था क्योंकि लोगों को ये को जोड़कर हम कुछ बना सकते हैं। परन्तु जानना था कि वे कहाँ से आए। हमें ज्ञान होना आप इसे देखें तो ये सभी कुछ हमारी शक्ति से परे चाहिए कि हम प्रकृति से अवतरित हुए हैं। प्रकृति है। हम कुछ भी नहीं बना सकते जो भी सृजन हम करते हैं वह हमारी कल्पना मात्र है। उदाहरण को भी समझना चाहिए कि उसका अवतरण पृथ्वी माँ से हुआ है। पृथ्वी माँ की अपनी कुण्डलिनी के रूप में कोई चीज़ सोने से बनी है तो वह अब है। वह मात्र बेजान पृथ्वी नहीं है, वे जानती भी सोना है लकड़ी से बनी चीज़ अब भी लकड़ी हैं, सोचती हैं, समझती हैं तथा मर्यादित है और ये सिद्धान्त सभी वस्तुओं पर लागू होता है। आपका जन्म जो भी रहा हो, जिस भी देश में आप करती हैं। प्रकृति में आप देख सकते हैं कि किस प्रकार हर पेड़ की अपनी सीमाएं हैं, किस प्रकार जन्में हों, आपकी जो भी संस्कृति हो, आप मानव हर फल किसी पेड़ विशेष पर ही लगता है। ऐसा हैं। मूल रूप से आप समान हैं। आप समान रूप से किस प्रकार घटित होता है ? इस प्रकार का हँसते हैं, समान रूप से मुस्कराते हैं और समान रूप से रोते भी हैं मैंने कभी किसी को उसके हाथों व्यवस्थापन कौन करता है ? यदि पृथ्वी माँ तेज रही होतीं तो आज जो हम हैं वो न से रोते हुए नहीं देखा, और इस प्रकार हमें महसूस गति से घूम होते, शायद हम जन्में ही न होते। यदि यह गति करना चाहिए कि हम जीवन के किसी एक समान कम होती तो भी यह विकास न हो पाता। सारी सिद्धान्त में बंधे हुए हैं। आदिशक्ति का दिया हुआ योजना जो बनाई गई थी उसे देखें। यह अत्यन्त यह समान सिद्धान्त, जो हमें बांधे हुए है, वह सुन्दर योजना है कि पृथ्वी माँ इस प्रकार से सूर्य हमारे अन्तःस्थित कुण्डलिनी। सभी मानवों में के इर्द-गिर्द घूमेगी कि भिन्न ऋतुओं का सृजन कुण्डलिनी है । पशुओं में कुण्डलिनी होती है होगा। यही कारण है कि यह शक्ति, परमचैतन्य, परन्तु यह उतनी विकसित नहीं होती। परन्तु जो कि आदिशक्ति है, ऋतम्भरा प्रज्ञा भी कहलाती मानव में इसका विकास इस प्रकार हुआ है। यही शक्ति सारा जीवन्त कार्य, सारा संयोजन कि यह योग प्रदान कर सकती है, हमारे तथा सम्पूर्ण सृजन करती है। अपने मानवीय अहंकार अन्तःस्थित दिव्य शक्ति के रूप में जो कि में हम सोचने लगते हैं कि हम कुछ कार्य करते हैं। आदि-कुण्डलिनी का प्रतिबिम्ब है और इस कलियुग हम सृजन कर सकते हैं । किसी अन्य चीज़ की तो में ही इसकी जागृति सुगमता से होती है हम सबमें यही समान तत्व है। अतः हमें सभी लोगों का, बात ही छोड़ दें हम तो धूल का एक कण भी नहीं পত फरवरी, 1997 जनवरी 19 चैतन्य लहरी सभी मानवों का सम्मान करना चाहिए चाहे वह हमारे अन्तःस्थित है, यह प्रमाणित हो चुकी है। किसी राष्ट्र से हों, किसी देश से सम्बन्धित हों, आप जानते हैं कि हमारे अन्दर यह शक्ति है और किसी रंग के हों, क्योंकि उन सब में कुण्डलिनी आप यह भी जानते हैं कि जब हम अपने उत्थान के मध्य मार्ग से भटकते हैं तो क्या होता है। ऐसी विद्यमान है। फिर आप ही लोगों की तरह से कुछ स्थिति में कुण्डलिनी, जो कि आदि माँ की अभिव्यक्ति जागृत लोग हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो है, आपको आपकी अंगुलियों के सिरों पर बताती है चुका है तथा वे प्रबुद्ध हो गए हैं जब आप समझ जाते हैं कि यह आदि माँ (Primordial Mother)के कि आपमें क्या दोष है, आपमें कहाँ कमी है और आपकी क्या समस्या है ? चित्त का आनन्द है, यह मात्र लीला एवं आनन्द है, तो जब आध्यात्मिकता में आप पूर्ण उत्थान पा लेते अब जब हम प्रबुद्ध हो गए हैं, सन्त बन गए हैं तब आपके साथ क्या घटित होना चाहिए ? हमें हैं और सब लोगों से ऊपर हैं तो हमें क्या करना क्या महसूस होना चाहिए ? तब हमें किस प्रकार चाहिए ? अब हमें भली-भांति समझना चाहिए, केवल मानसिक रूप से ही नहीं हृदय से, कि अब होना चाहिए? यह प्रश्न आपने बहुत बार पूछा है। हमें ये चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गई हैं और ये हमें आपका प्रश्न पूछना ही इस बात का द्योतक है कि बता सकती हैं कि हम क्या हैं ? समस्या क्या है ? आप वहाँ नहीं पहुँचे क्योंकि उस स्थिति में पहुँचने नहीं पूछते हर स्थान की स्थिति ये आपको बतायेंगी । कुछ । पर आप प्रश्न दूसरे उस स्थिति में पहुँच कर आप मात्र लोग येरूसलेम गए थे, उनसे मैंने बात की तो अस्तित्व बन जाते हैं और अस्तित्व बनते ही आप कहने लगे. "श्री माता जी पूरा स्थान ही चैतन्य दैवी चरित्र प्रतिबिम्बित करने लगते हैं। यह दैवी लहरियों से परिपूर्ण था ।" कोई व्यक्ति छिंदवाड़ा चरित्र केवल आजकल ही अभिव्यक्त नहीं किया गया और उसने कहा, "मैं माँ का स्थान ढूंढ लूंगा जा रहा, यह बहुत पहले से होता आया है। सभी ऐसा करना कोई कठिन कार्य नहीं है, चैतन्य धर्मों में कुछ लोग ऐसे थे जिनका पूर्ण विकसित लहरियों के माध्यम से मैं खोज लूंगा", उसने दिव्य चरित्र था। उदाहरणार्थ तीन हजार वर्ष पूर्व बताया, "ज्यों ही में रेलवे प्लेटफार्म पर उतरा तो मैं कोलम्बिया में रहने वाले लोगों में मैंने पाया कि उछल पड़ा. मेरी समझ में नहीं आया कि यहाँ से कहाँ जाऊं क्योंकि यहाँ तो इतना चैतन्य प्रवाह है। उनकी मूर्तियों में कुण्डलिनी और कुम्भ प्रायः विद्यमान मैं किस प्रकार माँ के स्थान तक पहुँचूंगा"? वह बैठ थे। उनमें साढ़े तीन कुण्डलों में कुण्डलिनी की अभिव्यक्ति की गई थी। अब यह कुण्डलिनी, जो गया और सोचने लगा, "अब मैं किस प्रकार खोजूंगा फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 20 के सिरों पर कुण्डलिनी अपनी अभिव्यक्ति करती है, था"? वह कि श्री माता जी का जन्म कहाँ हुआ इस ज्ञान से जब तक आप पूर्ण तदात्मय नहीं कर बैठा हुआ था तभी उसने शुक्र नामक सितारा देखा लेते तब तक पूर्णता प्राप्ति के पथ से आपके भटकने उस सितारे का अनुसरण करते हुए वह चल पड़ा की सम्भावना सदा बनी रहेगी। सहजयोग में आने और उसे वह स्थान मिल गया। पूरी योजना, पूरा कार्य अव्यवस्थित रूप से वाले बहुत से लोगों को मैंने देखा है कि वे कुछ आधे-अधूरे सहजयोगियों से मिलते हैं और दिमागी ही नहीं हो जाता। आप यदि पेड़ों को देखें तो सभी पर फल होते हैं और सभी पत्तों को सूर्य की किरण होने के कारण वे बहस करने लगते हैं कि यह कैसे प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। प्रकृति में हो सकता है ? वह कैसा सहजयोगी हैं और कैसे वह इस प्रकार का आचरण कर सकता है? परमात्मा सभी कुछ इतना सुन्दर तथा समरस होता है। हम लोग ही प्रकृति को बिगाड़ते हैं क्योंकि हम यह की शक्ति का वर्णन करने के लिए लोगों के बहुत से तरीके हैं। आरम्भ में ही मैंने आपको बताया कि नहीं समझते कि हम भी प्रकृति से आए हैं और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। मैं आपको बहुत बार अकेलापन महसूस होने के कारण परमात्मा ने 1 बता चुकी हूँ कि भिन्न रसायनों से किस प्रकार आदिशक्ति का सृजन किया और उनके माध्यम से मानव का सृजन किया गया कार्बन की उत्पत्ति भी पूरे ब्रह्माण्ड की सृष्टि की गई। परन्तु यह भी सत्य पृथ्वी माँ से हुई। यह सब हमें बताता है कि हमारी है कि जिस प्रकार आप परमात्मा को खोज बड़ी जिम्मेदारी है। इस सारे कार्य में हजारों रहे हैं परमात्मा भी आपको खोज रहे हैं । बहुत वर्ष लगे और अब आप उस स्थान पर पहुँचे हैं जहाँ यदि आप परमात्मा के विषय में एक साधारण सी बात समझ लें कि उन्होंने ही आपको बुद्धि प्रदान आप 'आप' बन सकें। आप स्वयं (आत्मा) को जान की है तो आपकी खोज का पूरा फल आपको प्राप्त लें। विकास प्रक्रिया में यह बहुत बड़ी छलांग है विकास प्रक्रिया बहुत समय पूर्व आरम्भ हुई। हो जाता है। उन्होंने ही आपको विवेक प्रदान किया आदिशक्ति और आदि-कुण्डलिनी की पूजा करना है उन्होंने ही आपको सभी कुछ दिया है। यदि आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आप नहीं समझ आपकी सभी उपलब्धियां कुण्डलिनी ने ही आपको दी हैं, कुण्डलिनी की इस मातृ शक्ति ने, तो यह सकते कि किस प्रकार आप सन्त बन गए। जब आप अपने अन्दर जान लेंगे कि आपमें ये सारे केन्द्र समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि उन्हें प्रसन्न रखना कितना महत्वपूर्ण है । यह देखना आपके हैं और कुण्डलिनी की जागृति द्वारा इन सब केन्द्रों को जागृत किया जाना है तथा आपकी अंगुलियों लिए अत्यन्त आवश्यक है कि किस प्रकार उन्हें जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 21 प्रसन्न रखा जा सकता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्तियों आप केवल अनन्त प्रेम एवं करुणा रूप हो जाते हैं र में तथा परमात्मा में एक सम्बन्ध होता है और और परिणामतः अत्यन्त आनन्द मग्न हो जाते हैं। बहुत से लोग मुझे कहते हैं कि श्री माता जी परमात्मा तभी प्रसन्न होंगे जब आप प्रसन्न होंगे। हम कह सकते हैं कि परमात्मा हमें प्रसन्नता प्रदान किसी को क्षमा करना बहुत कठिन है। परन्तु में हूँ कि किसी को क्षमा न करना बहुत करते हैं, परन्तु जब आप प्रसन्न होते हैं तभी सोचती परमात्मा प्रसन्न होते हैं, यह ऐसा सम्बन्ध है। यह भयानक है क्षमा करने में महान आनन्द है, एक अत्यन्त महान आनन्द और आपके क्षमा करते ही इतना निकटतम है, हम कह सकते हैं जैसे सूर्य की किरणें होती हैं या चांद की चांदनी परमात्मा बागडोर संभाल लेते हैं और आपकी देखभाल यह इतना निकटतम है। यह इतना अन्तर्जात है कि यह करते हैं। कोई आपको अशान्त नहीं कर सकता आपको स्वयं पर और आपके अपने विकास पर परन्तु पहले आप परमात्मा के सम्मुख समर्पण तो करें। क्षमा इतनी महान है। किसी को दंड देने का नियन्त्रण प्रदान करता है। नाना विधियों से वर्णन किया गया है कि आपको समर्पण करना होगा कष्ट न उठाएं और न ही किसी के विरुद्ध कुछ कोई यदि तलवार लेकर आ जाए और समर्पण करने का कष्ट उठाएं। आपसे बागडोर परमात्मा ले करने के लिए कहे तो हो सकता है कि आप लेता है और जो भी आवश्यक होता है करता है समर्पण कर दें, परन्तु उस व्यक्ति के जाते ही आप और उनकी कार्यशैली इतनी सुन्दर होती है कि भी एक तलवार उठायेंगे और उस व्यक्ति का गला देखते ही बनती है! आदिशक्ति की शक्ति और काट देंगे। इस प्रकार का समर्पण बेमायना है। ये परमात्मा का वर्णन सभी धर्मों में किया गया है। समर्पण तो आप पर थोपा है। इस प्रकार के इस्लाम में इसे 'रूह' कहा गया है। बाइबल में इसे हुआ सभी समर्पणों से समस्याएं उत्पन्न होती रहीं क्योंकि 'सर्वव्यापक शक्ति' कहा गया है। इसे 'अलख-जिसे इन से प्रतिक्रिया होती है। परन्तु परमात्मा के देखा नहीं जा सकता- कहा गया है। इस दिव्य सम्मुख आपका समर्पण अत्यन्त आनन्ददायी होता शक्ति के लिए सब शब्द उपयोग किए गए हैं। है, जैसे समुद्र में डाला गया नमक पानी में स्वतः लोगों ने इसके विषय में सुना है, इसका गुणगान ही घुल जाता है। यह घुलनशील स्वभाव वास्तव में किया है परन्तु दुर्भाग्यवश बहुत कम लोगों ने इसे आनन्ददायी है। यदि आप अपने अन्तस में यह महसूस किया है, और महसूस करने के बाद महसूस कर सकें कि आप परमात्मा से एकरूप हो उनकी समझ में नहीं आया कि किस प्रकार इसे चुके हैं, दिव्य सागर में आप विलीन हो गए हैं तब दूसरों को दिया जाए, किस प्रकार अन्य लोगों को t४ जनवरी - फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 22 इसका अनुभव कराया जाए। तो जो भी कुछ आपको सत्य बताती है। अतः जो भी पूर्ण सत्य आप उन्होंने कहा कहानी मात्र बन गया या कुछ बेतुकी जान पाए हैं यह परमेश्वरी शक्ति की करुणा के बात। कोई विश्वास न कर पाया कि वे इस प्रकार माध्यम से जान पाए हैं। कभी-कभी लोग यह भी का कोई अनुभव पा चुके हैं और न ही कोई ये कह सकते हैं कि श्री माताजी हमने चैतन्य लहरियाँ कल्पना कर पाया कि इस प्रकार की शक्ति वास्तव देखीं, हमने इस प्रकार अनुभव किया फिर भी यह घटित हो गया जो कुछ भी हुआ उससे कोई फर्क में विद्यमान है । अब सौभाग्यवश आप सब लोगों के लिए यह एक शाश्वत सत्य बन गया है कि आप नहीं पड़ता। जो हो गया वो हो गया, कोई बात जानते हैं कि ऐसी शक्ति है। इस शक्ति के विषय नहीं। आपने चैतन्य लहरियाँ महसूस की और में आप विश्वस्त हैं क्योंकि इसे आप अपने अन्तस चैतन्य लहरियों से पूछा, चैतन्य लहरियों के अनुसार कार्य किए, बस। घटनाएं इच्छित रूप से घटी या में महसूस कर सकते हैं और जब आप इसे महसूस करते हैं तो आनन्द विभोर हो जाते हैं। आप समझ नहीं यह एक अलग बात है क्योंकि उन्हें उसी ढंग पाते हैं कि कोई व्यक्ति आपको सत्य कह रहा है से ही घटित होना था कोई नाटक चल रहा है। या नहीं, क्योंकि चैतन्य लहरियों से आप इसे जाँच यह 'चित्तविलास' है, परमात्मा के चित्त का सकते हैं, आदिशक्ति की शक्ति द्वारा, वह आपको आनन्द। एक लीला चल रही है। यदि आप सत्य बात ही बताती हैं। यदि किसी व्यक्ति ने इस लीला को देख सकेंगे तो अशान्त न आपको कोई हानि पहुँचाई है, और अब यदि आप होंगे यह एक लीला है, यह किस प्रकार कार्यान्वित कहें कि श्री माता जी आप उस व्यक्ति को क्षमा होगी, किस प्रकार इसकी व्यवस्था होगी, यह आपका कर दीजिए तो यह सत्य न होगा क्योंकि निश्चित सिरदर्द नहीं । आपको मात्र परमात्मा की इस लीला रूप से उसने आपको हानि पहुँचाई है और मेरे को देखना है कि यह किस प्रकार कार्यान्वित होती क्षमा करने का अर्थ यह होगा कि मैंने स्वीकार कर है। आप सब ने देखा है कि चमत्कार होते हैं। श्री लिया कि उसने नहीं पहुँचाई। इस प्रकार का माता जी यह चमत्कार हुआ, और मैं जानती हूँ कि तर्क-वितर्क सम्भव है। आप हैरान होंगे कि आप सभी चमत्कार दिव्य हैं। जब आपकी श्रद्धा प्रबुद्ध उस व्यक्ति को इसलिए क्षमा करते हैं कि आप उसे है तो जीवन की महत्वपूर्णतम चीज़ों के लिए क्षमा करें या न करें आप कुछ नहीं करते। यह भी आप चिन्ता न करें। यदि यह कार्यान्वित सत्य है। अतः करुणावश यदि आप किसी को क्षमा होती है तो भी ठीक और नहीं होती तो भी करते हैं तो करुणा सत्य बन जाती है। करुणा ठीक। यह नहीं मान लेना चाहिए कि एक फरवरी, 1997 जनवरी 23 चैतन्य लहरी बार आत्मसाक्षात्कार पा लेने के बाद पूरा बाहर आई। तत्पश्चात् मछलियों के झुंड बाहर विश्व आपके चरणों में आ गिरे। यह आवश्यक आए। इसी प्रकार आपका भी विकास कार्यान्वित नहीं है। यह लीला है। यह आदिशक्ति के हुआ है अब हमारी संख्या बहुत बढ़ी है। हमने चित्त का सुन्दर आनन्द है यदि आप इसके सन्त जॉन द्वारा बताई गई संख्या को भी पार कर साक्षी बन सकते हैं, यदि आप इस पूरी लीला लिया है। ऐसा लगता है कि यह बहुत ही उपजाऊ के वास्तविक रूप में साक्षी बन सकते हैं तो क्षेत्र है, अति उपजाऊ समय है। इस कलियुग में आप आध्यात्मिक रूप से बहुत समीप जा बहुत से लोग ईश्वरत्व को अपना रहे हैं। ऐसा सकते हैं, आप परमेश्वरी शक्ति में विलीन हो करने का यह ठीक समय है। कल मैंने आपका सकते हैं। इस विलय को घटित होना है और नाटक देखा, मैंने ये सब चीजें स्वयं देखी हैं और मैं हैरान हुआ करती थी कि इन लोगों का क्या होने यही कारण है कि आदिशक्ति की पूजा आपके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि आदिशक्ति वाला है। न जाने किस प्रकार उन्होंने भी अध्यात्म ने अवतरण न लिया होता तो यह कार्य न हो पाता को अपना लिया है। आधुनिक युग में जो भिन्न क्योंकि इसने मानव जीवन की सभी निष्ठुरताएं चीजें आप देखते हैं इनसे आपको बहुत परेशान और मानव जीवन के अन्य सभी पक्षों को समेट नहीं होना चाहिए. क्योंकि यह सब तो ऐसे ही होना लिया होता। इसे ऐसा अवतरण होना पड़ा जो है। यह सब एक नाटक है, एक लीला है और इस मानव को पूर्ण रूप से देखेगा, न केवल उसके नाटक में, आपको समझ लेना चाहिए, सभी कुछ इतने सुन्दर रूप से कार्यान्वित होगा कि कुछ समय शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक पक्षों को या उसकी विशेष विचारधाराओं तथा उलझनों को। सभी मानव पश्चात् आपको परमात्मा ये सभी व्यर्थ की चीज़ों, अपने अन्तस में एक ही जैसे हैं। कुछ अधिक जैसे हमारे बन्धन एवं अहम् आदि, को विघटित संवेदनशील हैं और वास्तव में जिज्ञासु। कुछ की करते हुए मिलेंगे इसके अतिरिक्त कुछ न होगा खोज वास्तविक नहीं है तथा कुछ खोज ही नहीं सहजयोग में बहुत लोग होंगे वर्ष 2000 तक पूरे रहे, परन्तु आपको तो जिज्ञासा भी आदिशक्ति ने विश्व में असंख्य सहजयोगी होंगे । एक बार जब हमारी संख्या बढ़ जाएगी तो बहुत से लोग इसमें दी है। अब इस प्रकार हुआ कि विकास प्रक्रिया में कूद पड़ेंगे। यह मानव स्वभाव भी है। जब तक माँ से एक मछली निकली. उस समुद्र में से जो सहजयोग में बहुत से लोग न होंगे लोग इसे समुद्र की माँ सम था, और फिर दस-बारह मछलियां अपनायेंगे नहीं, एक बार जब हमारी संख्या बहुत जनवरी - फरवरी, 1997 चैतन्य लहर, 24 अधिक हो जाएगी तो लोग इसमें कूद पड़ेंगे। कुछ मिल गया है तथा यह भी कि अब आप सब सन्त लोग सदैव चिन्तित रहते हैं कि श्री माता जी हम पुरुष हैं, तो हमें उन लोगों की ओर देखना चाहिए तो अब स्वर्ग में हैं, जीवन का आनन्द ले रहे हैं ज़ो इस प्रकार के थे जैसे सूफी, नाथपन्थी, ग्नोस्टिक अन्य लोगों का क्या होगा ? आपका चित्त केवल तथा भिन्न धर्मों में भिन्न प्रकार के लोग। उन्होंने इस बात पर होना चाहिए कि किस प्रकार मैं इस क्या किया ? अन्य लोगों को इस सत्य के प्रति आनन्द एवं करुणा के सागर में अन्य लोगों को भी जागृत करने के लिए. कि दिव्य शक्ति विद्यमान हैं. उन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया। वे आत्मसाक्षात्कार विलीन कर सकूंगा। आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपकी अपनी करुणा ही आपको शक्ति दे पाएगी। न दे सकते थे दिव्य शक्ति का कोई प्रमाण भी वे जब आप लोगों को पूर्ण डूबते हुए देखेंगे, उन्हें पूर्ण न दे सकते थे फिर भी उन्होंने इसे कार्यान्वित नष्ट होते हुए देखेंगे तो स्वयं आपकी करुणा किया, इसके विषय में बातचीत की, इसके गीत आपको शक्तिशाली बना देगी और आप सभी गाए यही चीज़ हमें समझनी है कि करुणा की अभिव्यक्ति को कोई भी बाधा न रोक पाए। जब आवश्यक कार्य करेंगे। सभी मूर्खतापूर्ण कार्यकलापों आप जानते हैं कि लोग डूब रहे हैं, वे भयानक को छोड़कर लोगों को मुक्त करने के कार्य में आप स्वंय को लगा देंगे और जैसे-जैसे आप यह कार्य समस्या में फंसे हुए हैं, मानव पर आसुरी प्रवृत्तियों करेंगे. आश्चर्यजनक रूप से आपकी अपनी का यह भयानक आक्रमण है, और आपमें यदि करुणा विद्यमान है तो उन्हें बचाने के लिए आप आध्यात्मिकता का स्तर ऊँचा उठ जाएगा पानी में यदि आप नमक घुला दें तो पानी का स्तर ऊँचा जी-जान से लग जायेंगे। इस चित्त-विलास का, आपके चित्त के आनन्द का यही कार्य उठ जाता है। इसी प्रकार जितने अधिक लोग सहजयोग में आएंगे उतनी ही अधिक दिव्य शक्ति है। जब आप अधिक से अधिक लोगों को परमात्मा की शक्ति में लाने लगेंगे तो आपके अपने चित्त से अपनी अभिव्यक्ति करेगी। यह अभिव्यक्ति अब भी हो रही है। परन्तु जितने अधिक लोग होंगे उतना आनन्द प्राप्त होगा। देवत्व के बिना मानव को ही अधिक दिव्य शक्ति का प्रकटीकरण होगा बचाया नहीं जा सकता, सभी लोग इस बात को क्योंकि यह बहुत से माध्यमों का इसे कार्यान्वित स्वीकार करते हैं और इस बात को कहते हैं। परन्तु करने जैसा होगा। वे बिल्कुल नहीं जानते कि दिव्यता है क्या और इसे ति इस स्थिति में, जबकि हम जानते हैं कि किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु आप सब लोगों के पास यह शक्ति है आपमें कुण्डलिनी दिव्य शक्ति है, आप सब लोगों को आत्मसाक्षात्कार फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 25 जागृत करने की शक्ति है, आप सभी चक्रों के बारे वास्तव में नमक हैं। वह नमक जो देवतत्व में पूर्णतः घुल गया है और यह नमक बहुत से अन्य में जानते हैं, सभी चक्रों के दोषों के िषय में आप जानते हैं, हर चीज की सच्चाई चैतन्य लहरियों के लोगों को भी देवतत्व में घुला देगा। माध्यम से जान सकते हैं, जितना अधिक आप इस मैं यह नहीं कर रही हूँ कि हमें मिशनरियों शक्ति का उपयोग करेंगे उतना ही बेहतर होगा की तरह से लोगों को मजबूर करके सहज़योगी आपको उन क्षेत्रों में जाना होगा जहाँ अब तक बनाना है सर्वप्रथम हमने उनकी कमियों को दूर आप नहीं गए। अफ्रीका में बहुत कम सहजयोगी हैं करना है वास्तव में इस संसार में बहुत कम अतः मैं अगले वर्ष अफ्रीका जाकर इस कार्य को ईमानदार लोग हैं। मैं ऐसे लोगों को जानती हूँ करने की सोच रही हूँ। और भी बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें कभी लालच न था परन्तु ज्यों ही उन्हें जहाँ मैं सोचती हूँ कि कार्य होना चाहिए आपमें शक्तियाँ प्राप्त हुई वे भयानक रूप से लालची हो यदि करुणा है तो यह आपको उन लोगों को भी गए। इतने लालची कि उन पर विश्वास नहीं किया शान्ति प्रदान करने के लिए कार्य करने को विवश जा सकता। परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं करेंगे कर देगी जो जिज्ञासु नहीं हैं। मैं कुछ गैर-सरकारी अपनी करुणा का वे आनन्द आनन्द लेंगे, अपनी संस्थाएं (N.G.Os) बनाने में व्यस्त हूँ जो वास्तव में वासना, अपने लालच, नशे, शराब तथा अन्य मूर्खतापूर्ण चीज़ों का नहीं । वे जानते हैं कि आनन्द कहाँ प्राप्त दीन-दुखियों के लिए बहुत सुन्दर कार्य करेंगी। वे भूखों मर रहे हैं, कष्ट में फंसे हैं और बहुत हो सकता है। एक बार जब आप जान जायेंगे कि तकलीफ भोग रहे हैं। केवल आप लोग ही उनके आनन्द कहाँ प्राप्त होता है तो आप इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे हित के लिए कुछ कर सकते हैं क्योंकि सहजयोग अब आपके में आकर आपने लालच और लोभ त्याग दिए हैं। लिए ऐसा कर पाना बहुत ही सुगम हो गया है। जिस प्रकार पुरुष कार्य कर रहे हैं स्त्रियों सभी कुछ हो चुका है, अब आप आज़ाद हैं और पूर्णतः स्वतन्त्र। इस स्थिति में आपकी करुणा को भी चाहिए कि इसे कार्यान्वित करें क्योंकि पथ- भ्रष्ट नहीं हो सकती। क्योंकि मैंने देखा है कि स्त्रियों में करुणा और क्षमाविवेक पुरुषों की अपेक्षा बहुत से लोग जब इस प्रकार का कार्य करने लगते कहीं अधिक होता है। क्योंकि वे माताएं हैं, उनके हैं तो वे या तो नेता बनने लगते हैं या धनवान या बच्चे हैं, वे जानती हैं कि बच्चों का प्रेम क्या होता अन्य लोगों को लूटने लगते हैं। आप लोग ऐसा है। माँ किसी चीज़ की आशा नहीं करती वह मात्र नहीं करेंगे। ईसा मसीह के कथनानुसार आप इतना जानती है कि उसका बच्चा ठीक हो और फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 26 कर लिया हो, जिसे प्रसन्न रहे। वह अपने बच्चे का आनन्द लेती है, सर्वव्यापक शक्ति को महसूस यदि आप एक स्त्री हैं तो आपमें अन्तर्जात रूप से सत्य का ज्ञान प्राप्त हो गया हो, जो परमात्मा से करुणा विद्यमान है। मैंने देखा है कि छोटी-छोटी एकरूप हो गया हो, ऐसे व्यक्ति को किस प्रकार लड़कियाँ किसी बालक को देखती हैं तो उसकी कोई समस्या हो सकती है ? यह महसूस करना है ओर दौडती हैं। वे उसे उठाना चाहती है उनके कि आप सर्वशक्तिमान परमात्मा के साम्राज्य में बैठे पास गुड़ियाँ होती हैं और वे इनकी बच्चों की तरह हुए हैं। आप इस साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं और आदिशक्ति की करुणा एवं चित्त आप पर है। परन्तु देखभाल करती हैं। स्त्रियों के लिए करुणा दर्शाना और उसकी अभिव्यक्ति करना कहीं सुगम कार्य यह तो ऐसा हुआ जैसे आप भिखारी को राज होना चाहिए। विवाह के पश्चात् भी आपके दिव्य गद्दी पर बैठा दें तो गद्दी पर बैठा हुआ भी वह स्वभाव से आपके पति शक्ति प्राप्त करते हैं आप भीख मांगता रहता है । सहजयोगियों की भी क्या न्यौछावर करते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि कभी-कभी यही स्थिति होती है। आप सबको कम परमात्मा के लिए यह बलिदान करता हूँ, वह से कम इस स्थिति पर काबू पाना है क्योंकि अन्य बलिदान करता हूँ। परमात्मा के लिए क्या बलिदान लोगों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। आपके किया जा सकता है ? परमात्मा को क्या आवश्यकता अपने जीवन के लिए भी यह बहुत आवश्यक है कि जो शक्तियाँ आपने प्राप्त की हैं उनकी सूझबूझ में है ? उन्हें किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है। आपने तो अपने मस्तिष्क ही बलिदान कर दिए हैं, आप पूर्णतः विकसित हों। जब आप यह कहते हैं कि आपको अपनी माँ के प्रति पूर्णतः समर्पित होन इनमें विवेक लुप्त हो गया है। परमात्मा को परिवर्तन पसन्द है और वह है तो इसका क्या अर्थ है ? मुझे क्या समर्पित हृदय को परिवर्तित कर देते हैं, कि आप समझ भी करना है ? आप अपने अन्दर के पथ-भ्रष्ट, नहीं पाते कि यह किस प्रकार घटित हो गया! विनाशशील अवगुणों अपने अहम् तथा आपको केवल इस लीला का आनन्द लेना है। बन्धनों को समर्पित करते हैं, बस। और ये समर्पण आप स्वयं को पवित्र करने अपना सहजयोगियों में परस्पर तालमेल होना चाहिए और उन्हें परस्पर आनन्द लेना चाहिए। सहजयोगी यदि आनन्द लेने और सर्वशक्तिमान परमात्मा को जीवन का आनन्द नहीं लेता तो और कौन लेगा ? समझने के लिए करते हैं। यदि आप स्वयं को मैं नहीं समझ सकती कि किसी व्यक्ति की यदि नहीं जानते तो परमात्मा को किस प्रकार जानेंगे। कुण्डलिनी जागृत हो गई हो, जिसने प्रेम की यह असम्भव है। अतः स्वयं को जानने के लिए जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 27 आपको विकसित होना होगा मैं जानती हूँ कि मैं हर सम्भव प्रकार से आपकी सहायता के लिए मौजूद रहूँगी। कोई चीज़ जो आपको कठिन लगती कुछ बहुत महान सहजयोगी हैं परन्तु अब भी ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिन्हें इन महान विकसित है उसका कारण यह है कि आप स्वयं को इसका सहजयोगियों को प्रवेश करके कार्यान्वित करना कत्त्ता मान बैठते हैं, यदि आप इसे परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति पर, आदिशक्ति की शक्ति है। आप लोग यह कार्य कर सकते हैं। पर, परमचैतन्य पर, छोड़ दें तो कुछ भी कठिन नहीं पहली बार जब मैं रोम में आई तो सभागार भी इतना बुरा नहीं है कि आप इसे सम्भाल में एक भी व्यक्ति न था। मैंने कहा इस देश का है। कुछ क्या हश्र होने वाला है। अब यहाँ इतने सारे न सकें। इस पूजा का किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है क्षितिजीय रूप में फैल रहा है, इसे ऊपर की क्योंकि इसी प्रकार आपका उत्थान होता है। यह सहजयोगी है परन्तु जिस प्रकार सहजयोग, ओर भी बढ़ना चाहिए। संख्या में बढ़ोतरी के प्रतिबिम्ब सुधरता है और आप आदिशक्ति की साथ-साथ इसकी गहनता का स्तर भी ऊंचा शक्ति के माध्यम से या कुण्डलिनी की शक्ति के होना चाहिए। ज्यों-ज्यों आपकी गहनता का माध्यम से अपने अन्तस में अधिक से अधिक विकसित स्तर बढ़ेगा| अधिकाधिक लोग आएंगे क्योंकि मैं होते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि आदिशक्ति जानती हूैं कि हर समय आप इतने सामूहिक होते की अपनी कुण्डलिनी है जो कि आदि कुण्डलिनी हैं कि आपको लगता है कि श्री माता जी मैं अभी कहलाती हैं और कुण्डलिनी आपके अन्दर उसका सहजयोगी नहीं हूँ, मेरा भाई भी अभी सहजयोगी प्रतिबिम्ब है । आपको पूजा करनी है और अपनी नहीं है। मैं जानती हैँ कि आपमें वह भावना है. कुण्डलिनी, आपकी अपनी माँ- जिसने आपको जायें परन्तु जो जिज्ञासु हैं उन तक जन्म दिया है- को प्रसन्न करना है। उनको भूल पहुँचे। वही आपके सच्चे सम्बन्धी हैं तब बाद में ये लोग सम्मिलित हो जायेंगे- आपके पिता माँ परमात्मा आप पर कृपा करें। 'भाई. बहन, बच्चे। उस समय तक वे प्रतीक्षा करेंगे। हैं आप उन्हें खोजं, वे जिज्ञासु नहीं हैं, जो जिज्ञासु पता लगाएं कि वे कहाँ हैं। जो भी कुछ आप चाहेंगे ৩৪ श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत ग्लैनरॉक, आस्ट्रेलिया, 1 मार्च, 1992 आज मैं आपसे कुछ ऐसे मामलों पर बात वे केवल मेरा नाम प्रयोग करते हैं। माँ ने 1970 में करना चाहती हूँ जहाँ लोग उलझ जाते हैं। ऐसा कहा था। 1970 में कभी अंग्रेजी नहीं बोली। सहजयोग में कुछ बातें समझ लेना हमारे लिए अतः ये सब ऐतिहासिक कथन प्रयोग नहीं किए जाने चाहिएं। हम वर्तमान में रहते हैं। हो सकता है आवश्यक है। 1 पहली बातः सहजयोग में धर्मान्धता का कोई उस समय स्थिति कुछ भिन्न रही हो। हो सकता है 1 स्थान नहीं है। कोई भी मेरे शब्दों का प्रयोग तब सहजयोगी नए नए सहजयोग में आ रहे थे, हो न करे, न ही ये कहे कि श्री माता जी ने ऐसा सकता है उन्हें किसी प्रकार के पथ-प्रदर्शन की कहा था। इसी प्रकार चर्च में और अन्य स्थानों आवश्यकता रही हो। यह एक यात्रा है। उतराई या चढ़ाई पर चलते समय आपको भिन्न विधियाँ अपनानी पर धर्माधिकारी वर्ग की रचना हुई। हर व्यक्ति पढ़ सकता है तथा पता लगा सकता है। यह कहना पड़ती हैं। अब आप समतल पृथ्वी पर चल रहे हैं। कि. "श्री माता जी ने ऐसा कहा था", लोगों को आपका व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिससे वश में करने का एक तरीका है। यह दर्शाता है कि ये लगे कि आप पर्वत पर चढ़ रहे हैं । अतः आप लोगों को अलग हटने के लिए कह रहे हैं। सहजयोग में अधिकाधिक लोगों को मुक्ति देना ही आप कार्यभारी नहीं हैं। हमारा लक्ष्य है। ा यदि मैं सहजयोगियों के कार्यक्रम में कोई पर इस पर कब्जा नहीं किया जाना चाहिए। बात कहती हैँ तो इसलिए कि यह मेरे तथा मेरे मैं पुनः आपको बताती हूँ कि किसी को भी नेता बच्चों के बीच दिल की बात होती है। बिना अगुआ (अगुआ) से इसे नहीं छीनना चाहिए। मैंने आप से सम्पर्क किए, अनियन्त्रित रूप से, आपके कम्प्यूटरों लोगों से मिल कर कार्य करने के लिए नेताओं की द्वारा उसे चहूँ ओर फैलाया नहीं जाना चाहिए। नियुक्ति की है। पर सदा आपका सीधा सम्बन्ध मुझ सहजयोग में कोई उतावली नहीं है । से है। अभी तक परमात्मा को मानने वाले लोगों का अंतः उतावलापन नहीं होना चाहिए। यह बात मैं स्पष्ट सीधा सम्पर्क परमात्मा से न था। पर अब आपका है। तो क्यों न आप मेरा उपयोग करें। और यदि रूप से कह रही हैूँ। मैंने जो भी कहा उसे कोई याद नहीं रखता । नेता हैं तो आपको उनसे पूछना होगा कोई भी পट फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 29 अपने हिसाब से लोगों को उपदेश देना शुरु का उपयोग करेगा। ऐसा करने की आपको कोई न कर दे। हमें उपदेश पसन्द नहीं हैं। काफी आवश्यकता नहीं है यदि वे किसी चीज़ की रचना उपदेश हो चुके। अन्य लोगों को उपदेश देने करना चाहते हैं तो सीधे मुझसे बात करें अपनी आपको मनमानी न करें क्योंकि यह तो सहजयोग के प्रति की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि उपदेश देने ही हैं तो स्वयं को दीजिए, दूसरों अति अनुचित दृष्टिकोण है । अतः सर्वप्रथम हमें को नहीं । समझना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। केवल व्यक्ति को समझ लेना है कि यह एक आप ही इसका सारा श्रेय नहीं ले सकते। इस पर जीवन्त प्रक्रिया है। किसी जड़ के छोर पर स्थित आप बनावटी बातें नहीं थोप सकते जो सहजयोग अणु द्वारा हम यह समझ सकते हैं। इसमें विवेक की बढ़ोतरी में बाधक हों। आप इसे किसी विशेष होता है और अपने पर इसका पूर्ण अधिकार होता नमूने में नहीं परिवर्तित कर सकते। यह स्वयं ही परिवर्तित होता है तथा कार्य करता है। है इसका सीधा सम्बन्ध दैवी शक्ति से होता है। अतः सहजयोग में पुरोहित तन्त्र के लिए अंतः स्वतः ही यह चलता है, पर वृक्ष की जड़ की तरह इसका चित्त सामूहिकता पर होता है। पर कोई स्थान नहीं है, कभी नहीं । ये धर्माधिकारी अन्ततः आपमें और मुझमें दीवार बन जाते हैं। सभी ऐसी दिशा में चलता है कि न कोई विवाद होता है न झगड़ा.. अर्थात् कोई बाधा ही नहीं होती। मान नेताओं को बता दिया गया है कि कोई भी पत्र या वस्तु आपको मिले तो वह मुझे भेज दें। मैं स्वयं उसे लीजिए कि यदि चट्टान सी कोई बड़ी बाधा आ जाए तो यह इसके गिर्द से निकल जाता है। वृक्ष देखना चाहूँगी कभी-कभी वे ऐसा करते हैं, पर आस्ट्रेलिया में कुछ नेताओं का मुझे बहुत बुरा के हित में चट्टान के कई चक्कर लगाता है। अतः भूतकाल से आप यह जान सकते हैं कि अनुभव है। पर अब यहाँ पर आपका नेता एक एवं विवेकशील व्यक्ति है । मेरे आप कहाँ तक पहुँचे हैं। तथा भविष्य से आप जान अत्यन्त बुद्धिमान पाते हैं कि लक्ष्य कितनी दूर है। यह समझना अति विचार में उसमें कोई कमी नहीं । केवल एक बात है कि कभी-कभी वह लोगों से कुछ अधिक ही कोमल महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्चात्य बुद्धि में ये बातें बड़ी सुगमता से घुसती हैं। वे मुझ से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है दो स्त्रियों के कारण कल मुझे परेशान रखना चाहते। ऐसा न करके आप समूह (ग्रुप) होना पड़ा। इसका कारण केवल एक था कि उसने बनाने लगेंगे, एक व्यक्ति उठकर कहेगा "श्री उन्हें यह नहीं बताया कि वे कितनी भयानक थीं । माताजी ऐसा कहती हैं"। कोई अन्य मेरे टेप आदि अतः मुझे उनकी बकवास झेलनी पड़ी। एक नेता প फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 30 यदि अधिक नरम है तो लोग उसके सिर चढ़ करना चाहते। एक व्यक्ति से मैंने विवाह करने को जाएंगे तथा यदि वह सख्त है तो उसके पीछे पड़ कहा तो वह तीन दिन तक ओझल ही हो गया। आपको विवाह करने होंगे। पर मैं आपको जाएंगे। महसूस करने की बात केवल यह है कि बता दूं कि इन विवाह सम्बन्धी समस्याओं का सारी ही जीवन्त प्रक्रिया है और किसी एक व्यक्ति कारण स्त्रियों का समझौता न कर पाना है। पहली | पा 1. प्रेम बात यह है कि आपको अपने पतियों को को माध्यम बनाकर माँ इस कार्य को अधिक सहज बहुत ढंग से कर रही हैं। मान लीजिए कि हर व्यक्ति करना होगा ताकि वास्तव में हर चीज़ के लिए वे आप के आश्रित हो जाएं। फिर वे क्या करेंगे? ऐसा छोटी-छोटी चीज़ के लिए मुझे लिखे तो बड़ा आपको प्रेमपूर्वक करना है. कष्टदायी ढंग से नहीं । कठिन होगा। व्यर्थ की चीजों के लिए मुझे लिखने किसी चीज की मांग मत कीजिए, कुछ आशा मत का कोई लाभ नहीं दूसरी बात पतियों या पत्नियों की है। आप कीजिए। मात्र स्नेहमय और करुण बनकर अपना प्रेम प्रकट कीजिए । तब उन्हें आदत पड़ जाती है। ऐसी फिल्में या दूरदर्शन न देखें जिनमें पति-पत्नि को झगड़ते दिखाया हो। ऐसा करने पर तोते की इसके बिना वे रह नहीं पाते। ये सब युक्तियाँ तो तरह, आप कुछ कठोर शब्द सीख लेंगे तथा आपके माता-पिता को बतानी चाहिएं थीं। शायद वे भी आपसे ही रहे हों। तो आपको व्यवहार की पति-पत्नि से वैसा ही व्यवहार करेंगे। से प्रश्न सुगमता से सुलझाए जा सकते युक्तियाँ नहीं पता। विवाह के बाद हमें कहना बहुत थे। मेरे विचार में विवाह का निर्वाह करना जितना चाहिए 'हम' | 'मैं' नहीं कहना चाहिए। और समझना 1 स्त्रियों का कार्य है उतना पुरुषों का नहीं। प्रायः चाहिए कि पुरुष स्त्रियों से भिन्न होते हैं। आप पुरुष विवाह नहीं करना चाहते। चाहे उनकी कोई (स्त्रियाँ) समाज की सुरक्षा करती हैं और पुरुष जिम्मेवारी नहीं-बच्चे पैदा करने इत्यादि की। फिर उसका सृजन। आपमें कहीं अधिक धैर्य एवं करुणा 1 भी वे विवाह नहीं करना चाहते। वे थोड़ा सा डरते होनी चाहिए। निःसन्देह यह गुण आपमें है । अपने हैं - विशेषकर पश्चिमी देशों में- भारत में नहीं। स्त्री-सुलभ गुणों को अपनाइए, आप आश्चर्यचकित भारत में लोग विवाह करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें होंगी कि आप पुरुषों के लिए शक्ति बन गई हैं। आप ही पुरुषों की शक्ति हैं। इसी कारण पुरुषों को प्रेम करने वाला, सामने न बोलने वाला, नम्र तथा यदि पुरुष स्त्रियों उनकी बात को सुनने वाला, कोई साथी मिलेगा। आपका सम्मान करना चाहिए। पर पश्चिम में मैंने देखा है कि पुरुष विवाह ही नहीं का सम्मान नहीं करते तो उन्हें हर प्रकार के फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 31 कष्ट होते हैं- विशेष तौर पर भौतिक, वैभव सहजयोग समाज का चित्त हैं। तो यहाँ पर जब तथा मान सम्बन्धी कष्ट। कुछ स्त्रियाँ अत्यन्त मैं किसी को सिर कहती हूँ तो सिर किस प्रकार अधिक अपेक्षा तथा आशा करती हैं। शायद हृदय पर रोब जमा सकता है ? यह नहीं हो सकता। तो लोग यहाँ वहाँ से मेरे कुछ शब्द ले लेते रोमियो-जूलियट सम रोमांचकारी फिल्में देखने का प्रभाव हो। पर उन्हें समझना चाहिए कि हैं तथा सहजयोग में अपनी दुर्बलताओं को न्याय शेक्सपीयर तो अवधूत थे वे इस तरह के जीवन संगत ठहराने के लिए इनका प्रयोग करते हैं। पर की सारहीनता पर प्रकाश डालना चाहते थे। इस तरह का पलायन आपकी उन्नति में सहायक रोमियो-जूलियट, दोनों की मृत्यु हो गई। एक न होगा आप अपने की विरुद्ध चल रहे हैं। यह आपके हित में नहीं। दूसरे की सहचारिता का आनन्द वे न ले सके। इंग्लैंड में भी हमारे सामने बहुत सी समस्याएं मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आप इन घिसे पिटे विचारों को सहजयोग में स्वीकार थीं मुझे पता चला कि विवाह से पूर्व ही रोमांस की पुस्तकें वे पढ़ते हैं-विवाह से पूर्व और विवाह के करेंगे तो आपका पतन होगा, आप सड़ जाएंगे। हम बाद झगड़ा। तो विवाह की आवश्यकता ही क्या नए और ताजा हैं। हम जीवित हैं। स्त्री-पुरुषों के है? बारे इस प्रकार के विचार हम स्वीकार नहीं करते। जब मैं कहती हूँ पुरुष ही परिवार का पुरुष ही परिवार का मुखिया कहने से मेरा अभिप्राय मुखिया है तो इसका अभिप्राय यह नहीं कि पुरुष, यह नहीं है कि आप अपनी पत्नी पर रोब जमाएं या स्त्रियों पर रोब जमाने लगें। मान लीजिए कि मैं उसे तंग करें न ही इसका अर्थ यह है कि नेता कहूँ कि अमुक व्यक्ति आपका नेता है तो मेरा रोब जमाए। उन्हें अपने विवेक, प्रेम, करुणा के मतलब यह नहीं होता कि वह आप पर प्रभुत्व उपयोग से लोगों का उचित प्रकार मार्ग-दर्शन जमाए। यदि मस्तिष्क शरीर पर प्रभुत्व जमाने लगे करना चाहिए तो शरीर का क्या होगा ? इस तरह के परिणाम मुझे एक हास्यास्पद पत्र मिला जिससे पता निकालना मूर्खता है। पर आप परिवार के हृदय हैं। चला कि किसी नेता की पत्नी ने सहजयोगियों को घर तथा कार्यक्रमों पर आने से रोका क्योंकि 'मैं' मस्तिष्क की मृत्यु पहले हो सकती है पर हृदय तो अन्त में ही मृत होता है। उनके घर नहीं जा पाई। क्या आप ऐसा सोच अतः समझने का प्रयत्न कीजिए कि दिल सकते हैं ? यह मूर्खता है। वह नहीं जानती कि और दिमाग में पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए बच्चे ऐसा करने से सहजयोग में उसका कितना पतन हो পাঁ फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 32 रहा है। मैं जहाँ चाहूँ जा सकती हैं। पर उसे करती है लिख देते हैं इस प्रकार का गैर जिम्मेदारी दोष अपने पर लेना चाहिए था। यह 'मेरा घर भरा आचरण मेरी समझ में नहीं आता। मैंने जो बातें भी कही जाती हैं । इससे है, ऐसा कहना मूर्खता की पराकाष्ठा है। माँ कभी नहीं कही वे को मेरे घर आना चाहिए। भारतीय विशेषकर अपरिपक्वता तथा उतावली झलकती है। ऐसी बातों ऐसा कहते हैं। श्री माताजी कृपया मेरे घर को पूछा जाना चाहिए। अपनी विवेक बुद्धि का आइए और मेरे साथ खाना खाइए। आप हैं उपयोग कीजिए। अपने नेता से सम्पर्क करना कौन ? आप एक सहजयोगी हैं। तो आपका अत्यन्त आवश्यक है छपने वाली तथा वितरित घर मेरा है, आप मेरे हैं, सभी कुछ मेरा है। होने वाली चीजें तो नेता द्वारा देखी जानी चाहिएं । क्या है ? क्या आप इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है। लिखी हुई कोई आपके घर आने में अलग हैं ? आपके सभी घर मैरे हैं। मैं यदि पुस्तक,टेप आदि सब नेता की आज्ञा तथा सूझ-बूझ जाती हूँ तो भी इसका अर्थ यह नहीं कि मैं से ही निकलने चाहिए। मैं कहूँगी कि नेता अवश्य आपको किसी अन्य व्यक्ति से अधिक प्रेम उन कागजात पर हस्ताक्षर करें। तब मैं उसे उत्तरदायी ठहराऊंगी। परन्तु निरंकुशतापूर्वक यदि करती हूँ । आप कार्य करेंगे तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। किसी के घर जाना अब मेरे लिए समस्या छोटी-छोटी चीजें भी मैं आपको बताऊंगी ? बन रही है। क्योंकि जिसके यहाँ मैं जाती हूँ उस मुझ से मैलबॉर्न में विश्व निर्मल धर्म शुरु करने को व्यक्ति को अहंकार हो जाता है कि श्री माताजी मेरे पूछा गया। मैंने कहा ठीक है। मैं नहीं जानती थी घर आईं थीं। अतः फिर कभी आप न कहें कि श्री | माताजी यह मेरा घर है। श्री माताजी यह आपका यह एक एसोसिएशन होगी, जिसके चुनाव होंगे। विश्व निर्मला धर्म तो हर जगह है पर कोई एसोसिएशन घर है। मैं वहाँ जाऊं तो भी ठीक, न जाऊं तो भी ठीक इससे क्या फर्क पड़ता है ? आदि नहीं। एक प्रकार का समाज विश्व निर्मला धर्म का प्रचार कर रहा है । इसकी कोई संस्था नहीं मैं तुम्हें एक बार फिर से कहती हूँ कि बिना नेता से सम्पर्क किए और बिना उसकी जाँच है। हमें कोई चुनाव नहीं चाहिए। यदि कुछ गलत के कम्प्यूटर के माध्यम से कोई बात नहीं लोग घुस गए तो सहजयोग को पूरी तरह निकाल फैलानी। ऐसा करना मुझे कठिनाई में डाल सकता है और मुझे जेल भी भिजवा सकता यदि आप कुछ और कहना चाहते हैं तो अलग से देंगे। अतः आप केवल न्यास (ट्रस्ट) बना सकते हैं। है। आप समझते क्यों नहीं ? आपकी जो इच्छा करें यह विश्व निर्मला धर्म या सहजयोग के नाम फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 33 पर नहीं होना चाहिए। मेरे हाँ कहने का अर्थ यह मैंने ऐसा कोई वृक्ष नहीं देखा जो आयोजन से नहीं कि आप एसोसिएशन आदि कुछ भी बना लें। बढ़ता हो। ज्यादा से ज्यादा आप इसका पोषण कर अब तक जो गलती हुई है उसे ठीक करें इन्हें सकते हैं, पानी दे सकते हैं। पर आप इसके विकास कम किया जाए। केवल उन्हीं लोगों को चुना जाए की गति नहीं बढ़ा सकते। अच्छे हैं और जो अभी तक जो सहजयोग में सभी संस्थाएं विकास की गति को कम बहुत विवेक पूर्वक तथा सीधे-सच्चे ढंग से कार्य कर रहे करती हैं। आरम्भ में चाहे यह प्रतीत हो कि आयोजित करने से गति बढ़ गई है। इसाई, हैं। एक और सलाह दी गई थी कि हम अपना मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दु आदि धर्म भी आयोजन प्रक्षेपण बाहर की दुनिया के सम्मुख करें यदि के बाद बनावटी रूप से बढ़े और खोखले से इसका अर्थ यह है कि हम दूसरी संस्थाओं तक हो गए हमें ठोस व्यक्तितयों तथा ठोस एवं जाएं तो यह गलत है। ये सारी संस्थाएं मृत हैं। ये अन्तर्जात धर्म की आवश्यकता है । इन बनावटी 1 जीवन्त संस्थाएं नहीं हैं। परन्तु यदि ये हमारे पास चीज़ों को हमने नहीं अपनाना। आजकल हम आना चाहें तो ठीक है। हमें अपना सिर फोड़ने के बहुत सी बनावटी खाद उपयोग कर रहे हैं । लिए उनके पास नहीं जाना चाहिए। वहाँ जाकर न लोगों को समझ आने लगी है कि यह हमारे केवल विरोधियों में फंसेंगे बल्कि उनसे आप लिए हानिकारक है । अतः सहजयो ग को नकारात्मकता भी लेंगे समझने का प्रयत्न करें। स्वाभाविक ढंग से, बिना बनावटी संस्थाएं हमें अति सावधान रहना है। आप केवल ऐसे बनाए, परमात्मा की कृपा से कार्य करने सहजयोगी ले सकते हैं जो जिज्ञासु हैं, ईमानदार दीजिए । बनावट तो पतन ही लाती है। हैं, नम्र हैं और जिन्हें सहजयोग में धन तथा सत्ता अब आपके बच्चों के बारे में। मैं पश्चिमी बच्चों के स्वभाव का अध्ययन करती रही हूँ। उनका की आवश्यकता न हो। आस्ट्रेलिया से दो व्यक्ति आए थे और अब चित्त कभी ठीक चीज़ों पर नहीं होता पढ़ाई पर तो देखिए कितने सारे हैं। निःसन्देह सहजयोग बिल्कुल नहीं होता। खाने पर उनका चित्त होता बढ़े गा, पर इसे आयोजित मत कीजिए । है । आयोजन शुरू करते ही बढ़ोतरी रुक जाएगी। पश्चिमी देशों के लोगों को भारत में दस्त हो जाते हैं। आप न गर्मी सहन कर सकते हैं न सर्दी | जैसे आपने देखा होगा कि काटकर सुव्यवस्थित (आयोजित) करने से पेड़ छोटा हो जाता है बौना)। आप अन्तर्दर्शन करें। थोड़ा सा काम करने से आप फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 34 थक जाते हैं। क्या कारण है ? कारण यह है कि विवेकहीनता के कारण हम यह समझ नहीं पाते। आप सोचते बहुत अधिक हैं। ऐसा ही आप विवाह उन्होंने आपको सिर में तेल लगाने से रोका और होने पर करते हैं। आप सोचने लगते हैं कि मेरी आप रुक गए। परिणामतः आप गंजे हो जाते हैं । प्राथमिकताएं क्या हैं, मैं क्या करूं, विश्लेषण करने वे विग बेच सकते हैं। बालों को ठीक से बढ़ने के लिए पोषण चाहिए। इन्हें भूखा क्यों मारते हैं ? आप लगते हैं। जो भी करना है कर डालिए । बहुत अधिक सोचना आपको रोगों के प्रति दुर्बल बनाता अपने शरीर की भी मालिश कीजिए | सिर की है। मूलाधार चक्र, निःसन्देह, अति महत्वपूर्ण है । मालिश कीजिए अपनी देखभाल कीजिए । बिना बुलावा देना है। यदि मूलाधार दुर्बल है तो आप पकड़ जाते हैं । तेल के बिखरे बाल तो भूतों को आपको कोई रोग हो सकता है। पश्चिम में तो आप साक्षात्कारी लोग हैं. लहरियाँ आप से बह रही हैं. अपने सिर की अच्छी तरह मालिश कीजिए । गुप्त रोग भी बहुत आम हैं। पर भारत में शक्तिशाली मूलाधार के कारण ऐसा नहीं है अतः अब पहली शनिवार को एक घंटा लगाइए। यह शनि का दिन समस्या यह है कि अपने मूलाधार को किस प्रकार है, कृष्ण का दिन है। उन्हें मक्खन-तेल बहुत पसन्द है। छोटी-छोटी बातों को समझ जाना दृढ़ करें ? चाहिए। दूसरे जो खाना आप खाते हैं वह ताजा नहीं मैं समझ सकती हूँ कि आपको धूप बहुत होता। ताजा खाना खाने का प्रयत्न कीजिए | पसन्द है। पर आस्ट्रेलिया में तो बहुत धूप है फिर आस्ट्रेलिया में तो आपको ताजा खाना उपलब्ध हो भी न जाने क्यों यह आपको पसन्द है । फैशन के सकता है। जहाँ तक हो सके कार्बोहाइड्रट अधिक लीजिए। पतले होने की अधिक चिन्ता न कीजिए कारण आप बिगड़ते हैं। आपकी चमड़ी में चमक नहीं आ सकती। उपचार के रूप में आप सूर्य स्नान थोड़े से मोटे व्यक्ति लहरियों को अच्छी तरह सोखते हैं। क्या आप जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ कर सकते हैं। भारतीय लोग अंग्रेजों के इस तरह के अवांछित सूर्य-स्नान पर हैरान होते थे । चर्बी पर बैठती हैं। इस तरह वे स्नायुतंत्र में जाती व्यक्तिगत शुद्धि का भी ध्यान रखा जाना हैं क्योंकि आपके स्नायु चर्बी से बने हैं और आपका मस्तिष्क भी चर्बी से बना है। चाहिए। बहुत से पानी का उपयोग कर हाथ आपके मस्तिष्क में जो भरा जाता है आप धोइए। पाखाना जाने पर हर बार पानी इस्तेमाल उसे स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि कीजिए। ऐसा न करने पर आपका मूलाधार कभी उद्यमियों ने आपको वश में कर लिया है। ठीक न होगा आपके बच्चे अपने दाँत भी नहीं जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 35 है कभी आपको अपना घर बेचना भी पड़ता । साफ करना चाहते। दाँत साफ करने या स्नान करने को यदि उनसे कहें तो वे रोने लगते हैं। तो हर हाल में एक ही दाम मिलेंगे चाहे आप इसे भारत की चिलचिलाती गर्मी में भी वे स्नान नहीं सजाइए या नहीं। लोग तो अनसजे घर खरीदना करना चाहते। उनसे दुर्गन्ध आती है। पर यदि पसन्द करते हैं । तो यही भौतिकवाद है कि हम बेचने के लिए आप उनसे कहें तो वे कहते हैं "हमारे माता-पिता से भी ऐसी ही गंध आती है"। उनके मुँह से भी चीज़ें खरीदने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत हमें चाहिए कि हस्तकला की सुन्दर- सुन्दर वस्तुएं दुर्गन्ध आती है। भारत में तो हमें सुबह-शाम दाँत साफ करने चाहिएं। यह अति आवश्यक है । भारतीय खोजें, इनमें से कुछ खरीदें तथा ये अपने बच्चों को तथा उनकी सन्तानों को दी जाएं। संस्कृति ने ये सब बातें हमें बहुत पहले से सिखाई मेरे कार्यक्रम में बच्चे के रोने का कारण थीं। इन सब कामों के लिए किसी को कहना नहीं जरूर खोजें अवश्य ही कोई परेशानी या बाधा पड़ता। खेल-खेल में ही बच्चों को हम यह सब सिखा देते हैं । सफाई, स्नान आदि आपके तथा होगी यदि बच्चा मेरी उपस्थिति में रोता है आपके बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं । या डरता है तो कोई बाधा अवश्य है। आप व्यक्तिगत सफाई आप लोगों की बहुत कम इस बाधा को दूर करें। तो अब हमें अपने प्रति है। घर तो आपके पूरी तरह साफ होंगे। कालीन दृष्टिकोण बदलना होगा हम आशीर्वादित लोग पर यदि कुछ गिर जाए जो आप इसे तुरन्त साफ हैं। हमें अपने शरीर, अपने बच्चों तथा भौतिकता से अधिक महत्वशील वस्तुओं की देखभाल करनी होगी। करेंगे क्योंकि आपने इसे बेचना है। बेचने योग्य हर चीज़ की आप देखभाल करते हैं। अन्य चीज़ों की यह आत्मा है 1 तो आखिरकार हम इस परिणाम तक पहुँचते नहीं। सहजयोग में हमें समझना चाहिए कि हमारी कोई भी बिकाऊ नहीं है। हमारे पास जो भी है कि जिस आत्मा ने हमें यह सारा सौन्दर्य, सुन्दर वस्तु कुछ है इसे हम स्वयं रखेंगे, अपने बच्चों को देंगे चाँदनी, हमारे कार्यों के लिए सुन्दर धूप प्रदान की या दूसरे लोगों को भेंट कर देंगे। कोई चीज़ बेचेंगे है तथा हमें इतना मधुर बनाया है, उसकी सन्तुष्टि नहीं। आपके बच्चे भी अपने शरीर की सफाई से के लिए और उसका आनन्द लेने के लिए हमने क्या अधिक ध्यान बिकने योग्य वस्तुओं का रखते हैं । किया अतः आत्मा ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । हमें आत्म- आनन्द खोजना चाहिए। हमें अपने विचार बदलने होंगे और कहना होगा कि को बेचेंगे नहीं। जितना अधिक आप आत्मा के विषय में सोचेंगे हम अपनी किसी भी वस्तु फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 36 उतना ही अधिक गहनता में उतरेंगे। अत्यन्त गहन कोई भी नहीं देता। भारत में कम से कम 21 रु. आनन्द आपको प्राप्त होगा। आध्यात्मिकता में स्थापित और 11रु. देते हैं। तो जो भी कुछ आप इकट्ठा हो, सामूहिकता का आनन्द लेते हुए, अति सुन्दर करेंगे, मैं कुछ नहीं कहूँगी और चाँदी आपको दे दूँगी। आप इतने सारे लोग हैं। मुझे ऐसा करना सामान्य बातों में- कोई भी विशेष कार्य पड़ता है. आपको तथा यूरोप को अधिकतर पैसा रूप से आप स्थिर हो जाएंगे। करने से पहले अपने नेताओं से आज्ञा लीजिए। देना पड़ता है। आप भी यूरोप की तरह ही एक महाद्वीप हैं। इसके बाद आपकी अपनी समझदारी है। अन्त में- परन्तु व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे लिए कोई भी धन नहीं देना चाहता। अब आप सहजयोग के लिए कुछ करने के बारे में सोचना देखिए कि जो पैसा आप पूजा के लिए देते हैं चाहिए। हम सहजयोग के लिए क्या कर सकते सभी नेताओं को शिकायत है कि सहजयोग के उसकी तो मैं आपके लिए चाँदी खरीद लेती हैँ। हैं? आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैंने अपने पति आपको यूरोपियन लोगों के बराबर चॉदी दे दी का बहुत सा धन खर्च कर दिया है। मैं आस्ट्रेलिया जाती है जबकि आपका पैसा उनसे कम होता है। में एक बार फिर कुछ करने वाली हूँ जो यहाँ के के लिए एक डॉलर दिया करते थे जो लोगों के लिए बहुत हितकर होगा। इसके लिए मैं पहले वे पूजा सिक्कों के रूप में होता था और जिसे मैं वापिस ले अपना पैसा भी लगा सकती हूँ। इसके बावजूद भी आती थी। मैं इसका उपयोग अपने लिए नहीं लोग नहीं समझते कि मेरे पति मुझे यह सब करने करती, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यद्यपि ये की आज्ञा क्यों देते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इस मुझे दिया जाता है और सामान्यतः मुझे इसका प्रकार उन्हें पूरे आशीर्वाद मिलते हैं। उन्होंने उपयोग करना चाहिए। पर मैंने सोचा कि इसे सहजयोगियों को बताया है कि सहजयोग के खर्चने के स्थान पर आपको चाँदी दे दें क्योंकि कारण ही मुझे ये सब इनाम मिले हैं। परन्तु वे चाँदी के बर्तन पूजा के लिए अति आवश्यक हैं और (श्री माताजी) तो परमात्मा के लिए कार्य कर रही हैं। पर लोग बड़ी हिचकिचाहट पूर्वक हैं। मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि आपने बहुत सा अति शुभ पैसा देते हैं। मैं जानती हूँ कि आपको पैसे की धन दिया। यह उदारता है पर यदि आप कठिनाई है। पर इस कठिनाई का एक कारण यह सहजयोग के लिए धन देते हैं तो किसी अन्य भी हो सकता है कि पूरे विश्व में आप सबसे कम रास्ते से आपको धन मिल जाता है । अपने पैसा सहजयोग के लिए देते हैं। इतना कम और व्यक्तिगत उपयोग के लिए मुझे पैसा नहीं चाहिए। 16 to जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 37 यह आपकी उदारता का द्योतक है। सभी नेताओं सर्वोत्तम दृष्टिकोण है। निःसन्देह एक प्रकार आप की यह सामान्य बात है। मैलबॉर्न का नेता कहता सहजयोग की जिम्मेवारी हैं। पर दृष्टिकोण कैसा है कि कोई पैसा नहीं देना चाहता। वे केवल होना चाहिए? अब आप काफी परिपक्व हैं। बेटा | सहजयोग से लाभ उठाना चाहते हैं। लक्ष्मी जी के जब खड़ा होकर परिपक्व जो जाता है तो वह माता-पिता की देखभाल करता है, इसी प्रकार दृष्टिकोण से यह ठीक बात नहीं है। व्यक्ति को यह भी समझना है कि एक बार आपको सहजयोग की देखभाल करनी चाहिए, न कि सहजयोग आपकी देखभाल करे और आप सदा सहजयोग में आने के बाद, चाहे आप कुछ सहजयोग सहजयोगियों को परेशान करते रहें के लिए खर्चते हैं या नहीं, आप स्वयं को सहजयोग की जिम्मेवारी समझने लगते हैं। यह अति अनुचित अच्छी तरह समझ लीजिए कि आपके लिए है। हर छोटी-छोटी बात में उन्हें सहायता चाहिए । सहजयोग उत्तरदायी नहीं है। आप सहजयोग के निःसन्देह उनकी सहायता होनी चाहिए। जिनके लिए उत्तरदायी हैं। सहजयोग ने आपको इतना पास धन नहीं है हम उनकी सहायता करने का कुछ दिया है। आपने परमात्मा के लिए क्या किया प्रयत्न करते हैं। पर वे एक प्रकार के बोझ बन जाते हैं, सदा इस प्रकार सोचे। यदि आप इस प्रकार 1. सोचने लगेंगे तो जितना अधिक कार्य आप सहजयोग हैं और अन्य सहजयोगियों तथा मुझ से भी वे बहुत के लिए करेंगे उचित, जीवन्त और सन्तुलित ढंग से अधिक आशा करते हैं। किसी का विवाह कर दो तो वह सिरदर्द बन जाता है, पत्र पर पत्र, टेलिफोन जितना अधिक आप सहजयोग के लिए अपनी बुद्धि पर टेलिफोन उचित नहीं। यदि कोई बच्चा बीमार लगाएंगे. उतना ही अधिक आपकी सहायता होगी, है तो बेशक आप मुझे सूचित करें। पर क्रोधी और उतने ही अधिक आप बढ़ेंगे और उतना ही अधिक दुर्व्यवहार करने वाला बच्चा मेरे लिए सिरदर्द है। आनन्द आप लेंगे। आज का प्रवचन आप सब के हो सकता है आप क्रुद्ध स्वभाव हों और पति-पत्नि लिए है क्योंकि मैं नहीं जानती की किस पर क्या परस्पर झगड़ते हों। तो इस दोष को आप क्यों लागू होता है। दूसरों के लिए हम इस बात को न समझे अपने लिए जाने कि हम सहजयोग पर बोझ नहीं दूर करते ? वे चाहते हैं कि उनका हर छोटा-छोटा न बन कर सहजयोग का सहारा होंगे। हमें कार्य भी सहजयोग करे। व्यक्ति को समझना सहजयोग की देखभाल करनी है। यह अति सुन्दर चाहिए कि सहजयोग आपकी जिम्मेवारी है, दृष्टिकोण है । आप सहजयोग की जिम्मेवारी नहीं हैं। यह फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 38 मुझे (श्री माताजी को)सहजयोग की आवश्यकता आलोचना करता है. लोग आपको क्या कहते हैं नहीं है। पर मैं सहजयोग तथा सहजयोगियों के आदि। पर सुन्दर सम्बन्धों तथा सूझ-बूझ का लिए चिन्तित हूँ। मेरे लिए भी वे सभी मेरी जिम्मेवारी अनुभव आप करेंगे। मुझे विश्वास है कि निश्चित ही यह शिव हैं। मुझे उनकी देखभाल करनी है. उनकी चिन्ता पूजा बहुत ही ऊँचे स्तर पर आपको स्थापित करेगी करनी है। मुझे उनकी बात सुननी है। मुझे उनके और स्थापित होने पर आप इसे जान सकेंगे यहाँ पत्र आदि मिलते हैं। मेरा अभिप्राय है कि इस तरह औ हमारा सम्पर्क सीधे अपनी आत्मा से है । हम आत्मा का कार्य यदि किसी को करना पड़े तो कोई इसे स्वीकार न करेगा। हर हाल में मुझे सहारा देना के विषय में जानते हैं तथा उसके प्रति कृतज्ञ हैं। आत्मा ने जो हमारे लिए किया उसके लिए हम है क्योंकि मेरी आत्मा सन्तुष्ट होती है। यह सन्तुष्टि के लिए है, मेरी अपनी सन्तुष्टि के लिए । इसका सम्मान करते हैं। इस तरह से मैंने (श्री यह स्वार्थ है। जब आप उस आत्मत्व तक पहुँच माताजी ने) परिवर्तन देखा है। एक महान ऊँचाई को अचानक ही आप पा लेते हैं। मुझे विश्वास है जाएंगे तो समझ सकेंगे कि आत्मा की आवश्यकता क्या है। तब इस पर अपनी बुद्धि लगाएंगे। आप कि आस्ट्रेलिया के लोगों के साथ भी ऐसा ही घटित हैरान होंगे कि दूसरों के लिए जब आप कुछ करने होगा अपने क्षुद्र भेदभावों को भूल जाइए। धन एवं लगेंगे तो यह सहजयोग के लिए अति लाभकारी सत्ता के लिए लड़ना मूर्खता है। ठीक होने का प्रयत्न कीजिए मैलबोर्न में इसी मूर्खता के कारण होगा। एक प्रार्थना की तरह। सभी कुछ प्रार्थना है। सहजयोग में जो भी कुछ आप सहजयोग के लिए कुछ लोग पकड़ जाते हैं। उन्हें चाहिए कि स्वयं | को साफ करें, ठीक करें तथा अपनी देखभाल करें। करते हैं यह एक प्रार्थना है. परमात्मा से घनिष्टता है, परमात्मा से एकाकारिता है। इसे हम पूजा भी मेरा आशीर्वाद आपके साथ है । करें। कह सकते हैं। एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे परमात्मा आप पर कृपा तो आप चिन्ता करनी छोड़ देंगे कि कौन आपकी 3१ लोगों को प्रभावित कैसे करें ? श्री माता जी निर्मला देवी का प्रवचन हेग, हॉलैंड, 17 सितम्बर, 1986 ाम दूसरों को प्रभावित करने के लिए हमें जानना है मेरी सहायता कर रही हैं और मैं माँ के साथ हूँ मुझे कि हमारा स्वयं पर कितना अनुशासन है। यह किसी की चिन्ता नहीं है।' तब आपका मध्य हृदय ठीक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उदाहरण के रूप में अस्तित्वहीन होगा। नि:सन्देह आप यह सब दूसरों को नहीं बतला लोग यदि दूसरों को प्रमाणित करने का प्रयास करें तो सकते फिर भी यदि आपमें व्यक्तित्व है तो आप इसे मज़ाक बन जाते हैं। जब तक आपकी अपनी कोई सहज ही दूसरों में भर सकते हैं। परन्तु आत्मविश्वासहीन पहचान नहीं है, आपसे कोई प्रभावित नहीं होगा अतः आप यह कार्य नहीं कर सकते। अतः सर्वप्रथम आपको बाह्य व्यक्तित्व से पहले आन्तरिक व्यक्तित्व का विकसित अपने अन्दर आत्मविश्वास स्थापित करना है। होना आवश्यक है। लोगों से बातचीत करते हुए या सहजयोगियों के लिए यह कहना अति सुगम है कि बातचीत करने की आपकी अपनी एक सुन्दर शैली का मैं आत्मा हूँ मैं अबोध हूँ और मुझे स्वयं आदिशक्ति ने होना आवश्यक है। आपकी चाल भी सधी हुई होनी चना है। अतः आपके अन्दर जबरदस्त आत्मविश्वास चाहिए। शिथिलता से टांगो को इधर-उधर फेंकते हुए होना चाहिए। न चलकर सीधे चलें और सीधे ही बैठें। लोगों को जब कोई व्यक्ति आपके पास आया, तो उसे आपके आत्मविश्वास का पता चले। आत्मविश्वासहीन देव-सम मान, उससे बहुत ही मधुरता से बातचीत आचरण दूसरों को प्रभावित नहीं कर सकता। करें। मेरे सम आत्मा उसमें भी तो है। अतः आप उसे आपके आचरण जैसे बातचीत, चाल-ढाल, बैठने अच्छा स्थान बैठने को दें, ध्यान रखें कि वह आराम से तथा संवाद के ढंग से आपका आत्मविश्वास छलकना है, उससे चाय आदि पूछें। उसे आभास करायें कि चाहिए। आत्मविश्वास की एक झलक होनी चाहिए। उसके आने से आप अशान्त या परेशान नहीं प्रसन्न हुए परन्तु पूर्ण तथा सुरक्षित महसूस करने पर ही हैं। अतः आप भी फ्रेम से उसके साथ बैठिए। आत्मविश्वास आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। सहजयोग में यदि की कमी के कारण कभी-कभी आप किसी व्यक्ति आपके मध्य हृदय में असुरक्षा की भावना है तो स्वयं विशेष से घबरा जाते हैं। यह घबराहट आपके अन्दर को आश्वस्त कीजिए कि 'श्री माता जी मेरे साथ है, छिपी असरक्षा की भावना के कारण होती है। किसी से 1 फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 40 आदि। या आप अपने संगठन, उत्पादन या किसी अन्य बात करते समय घबराइए नहीं। आपको इस प्रकार चीज़ के विषय में जों बताना चाहें। आपको कहना है बात करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति आश्वस्त होकर आप देखिए यह उपलब्ध है और हमने देखा है कि आपको बहुत ही भला व्यक्ति समझे। दूसरों को बात करने का अवसर देना एक और इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य तरीका है। दूसरों को ध्यान से सुनिए, स्वयं ही न करता है। हमने इसकी बहुत प्रशंसा सुनी है। आप भी विवरण देख सकते हैं। यदि आप चाहें तो प्रयोग कर बोलते जाइए। जब वह कह चुकें तो कहिए निःसन्देह यह सच है. मैं आपसे आश्वस्त हूँ परन्तु स्वयं जान लें। आपको पूरी तरह तैयार होना चाहिए। ..... तब नहीं कहकर अपने उत्पादन का आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए। अपनी बात शुरु कीजिए। नहीं बिल्कुल विवरणिका (सूचना पुस्तिका) आपके पास होनी चाहिए। दूसरों पर आघात मत पहुँचाइए। इसके विपरीत आप देखिए कि ये क्या कहते हैं। आप मुझे देख सकते हैं। कृपया इसे लीजिए और स्वयं देखिए । बाजार पर मैं भी बहुत बार ऐसा करती हूँ। जब कोई व्यक्ति कुछ छाने के लिए उत्पादन के गुणों के साथ-साथ इसे पूरा करने की शैली भी महत्वपूर्ण है। कहता है तो हाँ यह सच है परन्तु यह इस प्रकार है यदि किसी की कोई समस्या हो तो बड़ी ही तो उन्हें बुरा नहीं लगता। वे सोचते हैं कि आपने सहृदयता से पूछ सकते हैं कि क्या समस्या है यह विषय का दूसरा पक्ष भी देखा है, कि आप संतुलित हैं और अपने विचारों से केवल प्रभावित करने का प्रयत्न समस्या हमारे सम्मुख है, अब आप इसका समाधान बताइए ऐसा कहने पर वह व्यक्ति बुरा नहीं मानेगा ही नहीं करते। आप ऐसा कर भी रहे हों तो भी दूसरे यदि मैं तुम्हें कोई बात साफ-साफ कह दूँ तो तुम्हें भी व्यक्ति में इसका आभास नहीं होना चाहिए। अच्छी नहीं लगेगी परन्तु मैं तुम्हें सब कुछ कह देती वेशभूषाः वेशभूषा अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। यदि आप किसी अधिकारी के साथ कार्यरत हैं तो हूँ। परन्तु सब कुछ बड़े नम्र, अनुकूल ढंग से कहती हैँ जिसे आप आसानी से समझ और अपना लेते हैं। ठीक आपका वेश उसके उपयुक्त होना चाहिए, जिससे आप प्रकार का बर्ताव और ठीक प्रकार का आचरण और चुस्त प्रतीत हों। ऐसी शैली जिसे लोग समझ सकें, ब्हुत ही महत्वपूर्ण अपने संगठन के विषय में बात करते हुए मैं का प्रयोग न कर हम कहकर बात कीजिए। सदा है। वास्तव में दूसरों को प्रभावित न करने से लोग संगठन की बात कीजिए अपनी नहीं। मैं ऐसा कार्य स्वयं ही प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला नहीं करूंगा, मैं धृणा करता हूँ, मेरा विश्वास हैं यह कहना अत्यन्त बेतुका है। हमें क्या करना है, हमें निहित है। इसके विषय में कोई भी सावधानी प्रकट विश्वास है, हम ऐसा सोचते हैं। आपकी क्या राय है नहीं होनी चाहिए। दूसरे व्यक्ति से बातचीत करते हुए फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी यह आप पर निर्भर है कि आप किस तरह से निभायेंगे। भी चाहे आपको पूरी तरह से समझ न आ रहा हो फिर आप पूरी तरह से सूचित हैं और उस व्यक्ति के बारे में भी आप ऐसा प्रकट कीजिए कि आप सब सुन और समझ रहे हैं। जब आप तीन, पाँच या दस व्यक्तियों आपको पूरा ज्ञान है। अतः अब आपका उत्तरदायित्व है। मैं कुछ व्यक्तियों का प्रयोग करती हूँ, ये युक्तियां से सम्पर्क कर रहे हों तो आपको सदा उनके बीच में उत्तम भावनाएं बनानी चाहिए। जैसे मैं चाहूंगी कि आप मेरे स्वभाव में हैं। परन्तु आप भी इन्हें आत्मसात कर शादी करें। फिर मैं आपको किसी लड़के के बारे में सकते हैं ऐसा करना कठिन नहीं है। इन छोटी-छोटी बताऊंगी कि वह कैसा है, और इस तरह बिना चोट बातों का बहुत प्रभाव पड़ता है। आपको पतन की ओर नहीं बढ़ना। प्रभावित पहुँचाए तुम्हें तैयार करूंगी, क्योंकि बाद में उसके विषय में पता चलेगा तो आप कहेंगे कि माँ ने पहले करने के लिए आपको ऊपर उठना है। परन्तु ऊपर जाते हुए आपने यह प्रकट नहीं होने देना अन्यथा ईष्ष्या ऐसा नहीं बताया। अतः बड़े प्रेम से आप कहें उसमें उत्पन्न हो जाएगी। लोग सोचेंगे कि आप बड़े अहंकारी यह बातें थोड़ी-थोड़ी हैं, परन्तु सब ठीक है। वह बहुत ही भला हो सकता है। वह ऐसा करने में समर्थ है अब ह की नम्र बनिए। हैं। अत: बहुत श्री माताजी के मुख से बहता हुआ चैतन्य का प्रवाह ---------------------- 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt 1997 अंक 1 व 2 RIVERSAL PUE चैतन्य लहरी "सहजयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाधान, कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिए। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं सब पा चुका हूँ। यह जब स्थिति आपकी आ जाएगी, तब समझना कि आप सहज में उतर गए। और फिर अनायास, आप कुछ चाहें या न चाहें, सहज आपकी देखभाल करेगा आपको सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी शक्ति पूजा, दिल्ली 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt NIRMALA. HWA VIVERSAL PURE RELIGI चैतन्य लहरी विषय सूची त खण्ड IX , अंक 1 व 2, 1997 1) जन्मोत्सव पर हृदयाभिव्यक्ति. = = म म स स स स क + + क = = स। 3 *** 2) वरदा मां..... छा 3) आकांक्षा 4) धन्यवाद श्री माता जी.. ..... 6. ***** 5) व्यापारियों से वार्ता, दिल्ली, 5.4.1996 11 ... 6) श्री आदिशक्ति पूजा, कबेला, 9.6.1996 . 17 7) श्री माता जी की सहजयोगियों से बातचीत-1.3.1992 28 ৪) लोगों को प्रभावित कैसे करें श्री माता जी - 17.9.1986 39 DHARMA ৭ VMHS 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। ज़िल बि छायून छाई ल पकी प्रकाशक निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8. चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ई मेल का पता- प marketing@nirmalinfosys.com वेबसाइट: www.nirmalinfosys.com व Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 क ल हा निड चि आात बुभ पत पवू ला चा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt जन्मोत्सव पर हृदयाभिव्यक्ति परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के 71 वें जन्मोत्सव के शुभावसर पर फिलिप जेस की हृदयाभिव्यक्ति ा इस अवसर पर मैं हम सभी को याद करवाना पृथ्वी तथा मानव जाति के उद्धार के लिए है। चाहता हूँ कि इस क्षण यूरोप के अधिकतर निःसन्देह सहस्रार भेदन को मानव विकास सहजयोगी श्री माता जी का जन्म दिन मनाने के की महानतम घटना के रूप में स्मरण किया लिए युगोस्लाविया में एक बड़े सेमिनार में एकत्रित जाता रहेगा। हम आपका धन्यवाद करते हैं हुए होंगे और आपकी आज्ञा से जन्मोत्सव के इस कि आपने हमारे अन्दर के देवत्व को जागृत हमारे जीवन को अर्थ प्रदान अवसर पर मैं उनकी तीव्र इच्छा को आपके सम्मुख किया। आपने रखना चाहूंगा कि कृपा करके युगोस्लाविया में किया, सृष्टि को अर्थ प्रदान किया और हमारे युद्ध, सारी राक्षसी प्रवृत्तियां, सारी नकारात्मकता लिए आपने अपने साम्राज्य, परमात्मा के तथा विश्व भर के सारे युद्धों को समाप्त कर दें। साम्राज्य, के द्वार खोल दिए। धर्मपराणयता श्री माताजी आप का स्वभाव तिहरा है और और मूल्य विहीन पश्चिमी समाज का एक आपसे हमारे सम्बन्ध भी तिहरे हैं, अर्थात् हम देवी सदस्य होते हुए भी . गुरुमयी श्री माताजी, मैं रूप में आपकी पूजा करते हैं, गुरु रूप में आपको धन्यवाद देता हूँ कि सभी गुरुओं की आपके प्रति समर्पित होते हैं और माँ रूप में माँ के रूप में आपने हममें विवेक जागृत आपको प्रेम करते हैं। आपके इस तिहरे स्वभाव किया, आवश्यक मर्यादाएं प्रदान कीं और और आपसे हमारे तिहरे सम्बन्धों के कारण मैं तीन पूर्ण मानव बनने के लिए हमें आध्यात्मिक पथ प्रकार से आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट प्रदर्शन प्रदान किया ताकि हम सारे देशों, करना चाहूँगा। श्री माताजी सम्मानमय संकोच सारे राष्ट्रों के समाज में दैवी प्रेम को स्थापित तथा एक ओर अत्यंत भय की तथा दूसरी ओर करने के पूर्ण यन्त्र बन पाएं। श्री माताजी आपका बालक होने के नाते अत्यन्त श्रद्धा की भावना के साथ हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि हमारी कृतज्ञता को स्वीकार और आपके सभी बच्चों की ओर से मैं आपका करें, कि हे देवी आदिशक्ति! आप अवतरित धन्यवाद करता हूँ। श्री माताजी आपका अथाह हुईं, कलयुग के अन्त में आपका अवतरण प्रेम, धैर्य, सहन शक्ति हमें वह अन्तरिक्ष भार ड 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी प्रदान कर रहा है जिसमें हम छोटे-छोटे सहजयोगी अपने आप को, अपने हृदय, अपना शिशुओं से बचपन, किशोरावस्था और व्यस्कता समर्पण, अपनी वचनबद्धता, अपने गुण और अपनी की ओर विकसित हो सकते हैं। श्री माताजी प्रतिभा आपके श्री चरणों में अर्पण करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि विश्व निर्मला धर्म को इस पृथ्वी जो सुरक्षा आप हमें प्रदान कर रही हैं और पर स्थापित करने के लिए यथाशक्ति कार्य करेंगे । जिस प्रेम के बन्धन में आप हमें हर समय रखती हैं उसके लिए मैं आपका धन्यवाद श्री माताजी आपकी आज्ञापालन करने के लिए हम करता हूँ। परन्तु श्री माताजी, मैं कभी नहीं सदा कृतसंकल्प रहेंगे। हम सब इस शुभावसर पर चाहूंगा कि बड़ा होकर मैं व्यस्क बनूं। मैं प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में, कालान्तर में, आने सदा शिशु ही बना रहना चाहूंगा ताकि आपकी वाले युगों में, यह दिन सबसे पवित्र दिन बन जाए साड़ी के पल्लू को पकड़कर आपके मातृत्व और ईसाइयों के लिए यह ईसा जयन्ती की तरह का आनन्द जीवन के हर क्षण में ले सकू। से हो जाए, परन्तु सारे राष्ट्र और विश्व की सभी आज के पवित्र दिन, श्री माताजी. हम सभी मानव जातियाँ इसे उत्सव के रूप में मनायें। जय श्री माता जी।.. य ि वि ही. ता म त 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt हा वरदा माँ मल तुम वरदा हो, ममता की पहचान हो, तुम्हीं हो सागर प्रेम का, वरदान निर्मल स्नेह का, प्यार तुम्हारा इतना है पावन, जैसे शिव की गंगा | माँ तेरी ही डाली के फूल हैं हम, सींचा जिन्हें तुमने प्रेम से जीवन की तपती धूप में, तेरा आंचल प्रेम की Dांव है। पू ते री ही उंगली थामकर, पहला कदम मेरा उठा आदि गुरु आदि ज्ञान हो, करती हो हर पल हमें क्षमा ता माँ तुम वरदा हो, ममता की पहचान हो आकांक्षा प्रेम अपना दो हमें, कि करुणा परस्पर जाग जाए। नम्रता का दान दो, कटुता न हममें स्थान पाए। सम्मान भाव से पूर्ण हों हम, दूसरों को न तुच्छ मानें, करें कार्य हृदयपूर्वक, आत्म विश्वास हममें डालें। जीरत काी पूर्ण संतोष का दान दो माँ, इच्छा रहे मात्र उत्थान की, माँ क्षमा का दान दो समर्थ आपको समझने की हममें नहीं । दो सूक्ष्म को समझने की संवेदनशीलता हृदय में सदा आप महसूस हो हृदय पावन हो हमारा श्री चरण इसमें विराजें सदा । (गौरी) 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt कोटि-कोटि धन्यवाद हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । इस वर्ष (1996) सहस्रार पूजा के अवसर पर हमारी परमेश्वरी माँ, श्री माता जी निर्मला देवी के प्रति निम्नलिखित 108 आभार प्रकट किए गए । 7 ) सृष्टि के मूल सार तत्व (Primordial Principles) हमारे सम्मुख प्रकट करने के गहन प्रेम एवं शाश्वत कृतज्ञता के वशीभूत होकर लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । इनकी संरचना की गई है और श्री माताजी की पूजा एवं उनसे प्रार्थना के अवसर पर इनका उच्चारण 8) मानव स्वभाव की वास्तविकता को हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि- कोटि किया जा सकता है। इनके माध्यम से उन भावनाओं की अभिव्यक्ति की जा सकती है जो अभिव्यक्ति से धन्यवाद । 9) सच्चे धर्म का अर्थ हमारे सम्मुख प्रकट करने परे हैं: 1) श्री माता जी कलियुग के गहन अन्धकार में के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 10) सहजयोग का दिव्य ज्ञान आपने हमें सिखाया, प्रकाश लाने के लिए अपने वैकुण्ठ लोक 'माता आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । द्वीप ' से आप पृथ्वी पर अवतरित हुई, आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 11) ईसा मसीह द्वारा दिए गए वचन को आपने निभाया आपका काटि-कोटि धन्यवाद । 2) भ्रम में फंसी आत्मघाती मानव जाति को 12) हमारे सम्मुख पड़े भ्रम का पर्दाफाश करने के लिए सहजयोग प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 3) सृष्टि तथा विकास के अर्थ का रहस्योद्घाटन 13) अच्छाई और बुराई का वास्तविक अर्थ हमें बताने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 4) मानव जीवन को दिव्य अर्थ प्रदान करने के 14) हममें माँ कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 15) सामूहिक चेतना के आयाम हमारे सम्मुख प्रकट 5) परमात्मा का वास्तविक अस्तित्व हमारे सम्मुख करने के लिए आपका कोटि-कोटे धन्यवाद । प्रकट करने के लिए आपका कोटि -कोटि 16) हमें आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने के लिए धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि मानव शरीर के अन्दर विश्व रूप का प्रतिबिम्ब धन्यवाद । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 7. 27) मानव जाति को एक अनुभव, एक सत्य और 17) हमारे मध्य नाड़ी तंत्र पर चैतन्य चेतना स्थापित करने के लिए आपका कोटि-को टि एक परमात्मा के चरण-कमलों में जोड़ने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 18) परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से हमारा पोषण 28) मानव जाति को पूर्णता के क्षेत्र में आमन्त्रित करने करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 19) अन्तिम निर्णय (Last Judgement) का अर्थ 29) द्वैत विश्व के भ्रम से हमें मुक्त करने के लिए हमारे सम्मुख प्रकट करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 30) मूर्खता, भ्रम एवं अकेलेपन से हमें मुक्ति दिलाने 20) आनन्दमयी पूर्वानुभूति की तन्द्रा से जीवन वृक्ष के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । प 31) भौतिकवादी विश्व की आसुरी शक्तियों का पुनःचेतन करने के लिए आपका कोटि-कोटि पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 21) सभी अवतरणों और पैगम्बरों के कार्य को धन्यवाद । सम्मान प्रदान करने के लिए आपका 32) रेखीय दृष्टिकोण की निर्थकता का पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 22) सभी सन्तों और जिज्ञासुओं के स्वप्न साकार 33) पैतृक राजनीति के भय एवं क्रूरता का पर्दाफाश करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 23) मानव जाति का उद्धार करने के लिए जिन 34) दास बनाने वाले व्यक्तियों, सामाजिक शैलियों तथा बन्धनों का विनाश करने के लिए आपका लोगों ने अपने जीवन बलिदान कर दिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद । अर्थ प्रदान करने के लिए आपका कोटि- कोटि 35) कैथोलिक चर्च की दमघोटू जंजीरों से मानवता धन्यवाद । पुनः स्थापित 24 ) हमारे हृदयों में विश्वास एवं निष्ठा को स्वतन्त्र करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के 36) इस्लामिक सरकारों की धार्मिक सत्ता अभिशाप से मानवता को मुक्त करने के लिए 25 ) मानवीय दृढनिश्चय को कौम, धर्म और जाति प्रथा से ऊपर उठाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 26) स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे के विचारों 37) सभी कुगुरूओं तथा धार्मिक संस्थाओं के असत्य का हमारे सम्मुख पर्दाफाश करने के लिए को दिव्य अर्थ प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी ৪ 38) अन्धविश्वास एवं उथले धार्मिक बन्धनों से मानव 49) हमारे अन्तस में वैकुंठ द्वार खोलने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । जाति को मुक्त कराने के लिए आपका 50) हमें योग का वरदान देने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 39) सत्य के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमियों तथा सीमाओं का अनावरण करने के लिए 51) हमारी सृष्टि करने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 40) पाश्चात्य मूल्य प्रणाली एवं भ्रमों का अनावरण 52) हमारा शुद्धिकरण करने के लिए आपका करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 53) हमें स्वस्थ करने के लिए आपका कोटि-कोटि 41) परमात्मा से सम्बन्धों से हमारा परिचय करवाने धन्यवाद | के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 42) हमें योग्य समझने के लिए आपका 54) हमें पवित्र करने के लिए आपका कोटि-कोटि कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 55) हमारी आन्तरिक बाधाएं दूर करने के लिए कराने के कार्यों में हमारा 43) मानवता को मुक्त्त आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। योगदान स्वीकार करने के लिए आपका लिए आपका 56) हमें परिवर्तित करने के कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 44) गहन जिज्ञासु को अपने उद्धारक मातृ प्रेम से 57) हमें ज्योतिर्मय करने के लिए आपका परिचित करने का आनन्द हमें प्रदान करने के चा लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 58) हमारा पोषण करने कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका 45) देवी के दरबार में हम सबको आमन्त्रित करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 59) हमें उल्लसित करने के लिए आपका 46) परमात्मा का साम्राज्य पृथ्वी पर स्थापित करने कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 60) हमारे अंग-संग होने के लिए आपका 47) हमारी भेंट प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के कोटि-कोटि धन्यवाद । लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 61) हमें अपना प्रेम प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 48) निरन्तर अपने आशीर्वादों की वर्षा हम पर करते रहने के लिए आपका कोटि-कोटि 62) हमारी सहायता करने के लिए आपका धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 9. 63) हमारी रक्षा के लिए आपका कोटि-कोटि 77) हमें अपनी गणना में लेने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 64) हमें क्षमा करने के लिए आपका कोटि-कोटि 78) हम पर विश्वास करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 65) हमें प्रोत्साहित करने के लिए आपका 79) हमारी प्रतीक्षा करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 66) हमारा मार्गदर्शन करने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका 80) हमें अपने दिव्य शरीर में स्थान प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 67) हमें सौख्य प्रदान करने के लिए आपका 81) हमें सामूहिकता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 68) हमें परामर्श देने के लिए आपका कोटि-कोटि 82) हमें सौहार्द प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 69) हमारे दोष दूर करने के लिए आपका 83) हमें परिवार प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 70) कभी भी हमारा परित्याग न करने के लिए 84) जीवन में हमें पद प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 71) हमारा उद्धार करने के लिए आपका 85) हमें वैभव प्रदान करने के लिए आप ज कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 86) हमें आत्मिक सत्ता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 72) हमें संगठित करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 73) हमें सीख देने के लिए आपका कोटि -कोटि 87) हमें आत्म-सम्मान प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 74) हमारी चिन्ता करने के लिए आपका 88) हमें विवेक-सम्मत बनाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 75) हमें अपने चरण कमलों में स्थान प्रदान करने 89) हमें सुमति प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 76) हमारे हृदय खोलने के लिए आपका 90) हमें सफलता प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी फरवरी, 1997 जनवरी 10 91) हमें ध्यानावस्था प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद । कोटि-कोटि धन्यवाद । 100)विश्व निर्मला धर्म फैलाने की प्रसन्नता हमें प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 92) हमें आन्तरिक शान्ति प्रदान करने के लिए 101 ) निरन्तर हम पर चित्त रखने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। 93) हमें आन्तरिक आनन्द प्रदान करने के लिए 102)हमारा दर्पण बनने के लिए आपका कोटि-कोटि आपका कोटि-कोटि धन्यवाद | 1 94) हमें प्रबुद्ध (Enlightened) चित्त प्रदान करने धन्यवाद । के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 103)हमारे प्रति सदय होने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 95) हमें निर्लिप्सा प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 104) हमारे हृदय में रहने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 96) हमें दिव्य शस्त्रों से सज्जित करने के लिए 105) हमारी गुरु होने के लिए आपका कोटि-कोटि आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 97) हमें देवी देवताओं तथा सभी स्वर्गीय शक्तियों धन्यवाद । की कृपापूर्ण दृष्टि में समर्पित करने के लिए 106)हमारी हितैषी होने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । 98) हमें अन्य लोगों की हितेच्छा प्रदान करने के 107)हमारी माँ होने के लिए आपका कोटि-कोटि लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद । धन्यवाद । 99) हमें अन्य लोगों की सहायता करने की शक्ति 108)सदा सर्वदा आपको कोटि-कोटि धन्यवाद । प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt |१। व्यापारियों से वार्ता परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) दिल्ली 5.4.1996 बा सत्य को खोजने से पूर्व हम भिन्न सम्भावनाओं जब बच्चे को किसी कार्य को न करने के लिए पर विचार करते रहते हैं। जिसे हम 'मन कहते हैं कहती है तो बच्चे को अच्छा नहीं लगता, फिर भी वह वास्तव में हमारा मस्तिष्क नहीं होता। हम वह उसकी बात को सुनता है क्योंकि वह माँ है। सोचते रहते हैं कि हमारा मन क्या कह रहा है इस प्रकार बच्चे के बंधनों की रचना होती है। इस परन्तु आप यह जानकर आश्चिर्यचकित होंगे कि प्रकार हमारे अन्दर केवल दो चीजें हैं- हम या तो यह मन आता कहाँ से है और यह वास्तव में है अपने अहम या अपने बन्धनोंबश कार्य करते हैं । कोई तीसरी चीज नहीं है जो हमें यह बता सके कि क्या ! हमारे अन्दर जो मन है वह वास्तव में हमारे द्वारा बनाई गई एक परिस्थिति है। पशुओं में शायद हम क्या कर रहे हैं, यह ठीक है या गलत, इससे ऐसा न हो परन्तु मानव जब किसी चीज़ को देखता हमें लाभ होगा या नहीं, यह हमें विनाश की ओर है तो उस पर प्रतिक्रियाशील होता है। उदाहरणार्थ ले जा रही है या प्रसिद्धि की ओर। जिस भी तरह यहाँ बिछे हुए सुन्दर कालीन को हम देखते हैं, से हम प्रतिबन्धित हैं उसी दिशा में हम बढते चले यदि यह हमारा अपना हो तो हम चिन्तित हो जाते हैं और तब हमारा अहम् भी विकसित हो उठते हैं कि कहीं यह खराब न हो जाए। तब हम सकता है। अहम् की किस्म के अनुसार ही हम कार्य करते हैं। हमारे अन्दर वर्तमान इन दोनों गुणों इसका बीमा कराने की सोचते हैं, और यदि यह हमारा नहीं है तो हम सोचने लगते हैं कि यह कहाँ की सृष्टि हमारे द्वारा ही की जाती है। उदाहरण के से आया, इसका मूल्य क्या है ? यह सब बातें तौर पर इस घड़ी की लें जिसे हमने बनाया है अब हमारे मस्तिष्क में आती रहती हैं। हम इस घड़ी के गुलाम हो गए हैं। ज्यों ही इन जब बच्चा अपनी माँ के साथ लोगों ने कहा श्री माता जी आपको सात बजे हुए छोटे होते होता है तो वह खूब मजे में रहता है। माँ का कुछ पहुँचना है. मेरे मन में विचार आया कि हम उस और कार्य करना बच्चे को अच्छा नहीं लगता। उसे जगह से बहुत दूर हैं, वहाँ समय पर नहीं पहुँच लगता है कि माँ उसे परेशान कर रही है। इस पायेंगे यह विचार मुझे समय से बांधने का प्रयत्न प्रकार बच्चे में जो प्रतिक्रिया आरम्भ होती है वह करते हैं । तब एक और चिन्ता हो जाती है कि यह शनैः-शनैः विकसित होकर अहम् कहलाती है। माँ लोग मुझे ऐसा क्यों कह रहे हैं। इस तरह से हम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 12 समय में बंध जाते हैं और इसके दास बन जाते हैं। (बाएं या दाएं) बहुत अधिक ले जाते हैं। आप स्वयं सोच सकते हैं कि शारीरिक स्तर कम्प्यूटर के बिना हम दो जमा दो भी नहीं कर सकते हमें इसे भी ठीक करना आवश्यक है। पर व्यापारियों को क्या समस्याएं हो सकती हैं। 1 हममें आदान-प्रदान की भी कमी है और यह एक चक्र है जिसे हम स्वाधिष्ठान चक्र कहते हैं। मस्तिष्क, जो कि एक वास्तविकता है, इसके पास यह चक्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका कार्य हमारे मस्तिष्क के सफेद कोषाणुओं का पोषण करने के लिए बहुत कम कार्य है तथा घड़ी की सुई की तरह से हम घूमते रहते हैं और एक करना है। चिकित्सकों को इसका ज्ञान नहीं है यन्त्र मानव की तरह से हम जीवनयापन करते परन्तु यह सत्य है। यदि हर समय हम अपने मस्तिष्क की शक्ति का उपयोग करते रहेंगे तो हैं। जो सत्य है उससे हम दूर है। इसकी शक्ति कहाँ से आएगी ? हमारे सभी विचारों, हम वास्तविकता के दायरे में प्रवेश कर इच्छाओं, योजनाओं आदि को पूर्ण करने के लिए सकते हैं। जब हम इस दायरे में प्रवेश कर जाते हैं तो न केवल अपने विषय में परन्तु अन्य लोगों के शक्ति की आवश्यकता होती है और यह शक्ति विषय में भी जान सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं स्वाधिष्ठान चक्र से आती है। स्वाधिष्ठान चक्र को कि उनकी वेशभूषा या आभूषणों के बारे में जान इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ करना होता है। इसी चक्र की सहायता से हमारे जिगर, प्लीहा, गुर्दे सकते हैं। परन्तु उनके चक्रों की स्थिति के विषय में जान सकते हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि कार्य करते हैं। जब यह चक्र एकतरफा कार्य करने हमारे अन्दर के यह सात चक्र हमारे ऊर्जा केन्द्र लगता है तो इसकी शक्ति भी एक ही ओर जाने हैं। इन ऊर्जा केन्द्रों की शक्ति को हम उपयोग लगती है तथा सभी प्रकार के रोग प्रकट हो जाते करते हैं। परन्तु यदि इनका बहुत अधिक उपयोग हैं। सर्वप्रथम जिगर गर्म हो जाता है तथा अधिक सोच-विचार तथा योजनाएं बनाना इसे और अधिक करने लगें तो लोगों को तनाव, हृदय रोग या किसी अन्य प्रकार के रोग हो जाते हैं। यही केन्द्र हैं गर्म कर देता है। जिगर, जिसका कार्य इस गर्मी को जिनसे हमारी सभी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रक्त प्रवाह में छोड़ना होता है, अपना कार्य नहीं कर और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान होता है। पाता तब यह गर्मी ऊपर नीचे या दाएं बाएं चली जाती है। जब यह ऊपर को जाती है, तो आप हैरान यह सात चक्र हमारे अन्दर हैं, हो सकता है इनके अस्तित्व का ज्ञान आपको न हो। यह सात चक्र होंगे, व्यक्ति को अस्थमा हो जाता है। बहुत से लोग हमारे अन्दर केवल विद्यमान ही नहीं है, बहुत से शिकायत करते हैं कि श्री माता जी मुझे अस्थमा है जो लोगों ने इसकी कुंजी भी प्राप्त की है। अपने लाइलाज है, नहीं निःसन्देह इसका इलाज हो सकता असंतोष के कारण हम इन केन्द्रों को एक तरफ है। एक चिकित्सक, जो अब अमेरिका में है, को इसी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 13 विषय पर एम.डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। आयु में हृदय की ओर बढ़ती हुई इस गर्मी के कारण यदि ऐसे व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ जाए दूसरा रोग जो इसके कारण होता है बहुत आम रोग है- मधुमेह (Diabetes)। यह चक्र तो वह घातक हो सकता है। यह गर्मी जब हृदय अग्न्याश्य की भी देखभाल करता है। इसके खराब को प्रभावित करती रहती है तो हृदय कमजोर हो होते ही मधुमेह का आरम्भ हो जाता है। जो लोग जाता है और 55 वर्ष की आयु में व्यक्ति को दिल अत्यधिक सोचते हैं, अत्यधिक योजनाएं बनाते हैं के दौरे पड़ने लगते हैं। तब लोगों की दुर्दशा हो जाती है पक्षाघात हो उनके प्लीहा पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्लीहा का कार्य संकटकालीन स्थिति में हमारे सकता है। इतना भयानक पक्षघात कि पूरा दायां शरीर को लाल रक्त कोषाणु प्रदान करना होता है। पक्ष कार्य करना बन्द कर देता है। केवल एक चक्र आज के युग में लोग समयबद्ध हैं। हम रात को इतने सारे रोगों का कारण बन सकता है, विशेषकर बहुत अधिक योजनाएं बनाने वाले भविष्यवादी लोगों देर से सोते हैं, सुबह जल्दी उठते हैं और किसी तरह कार में बैठकर दफतर को दौड़ते हैं। हमारा में ऐसे लोगों को सदा जुकाम हो जाता है और संवेदनशील प्लीहा ऐसे समय पर लाल रक्त कोषाणु कभी- कभी तो उन्हें फ्लू भी हो जाता है। अब आप देना चाहता है, व्यक्ति की चिन्ताओं के साथ यह कल्पना कीजिए कि एक चक्र जब इतने सारे रोगों भी चिन्तित हो उठता है और इस प्रकार जिस रोग का कारण बन सकता है तो यदि किसी का दूसरा का आरम्भ होता है वह अत्यन्त भयानक है-रक्त चक्र खराब हो जाए तो क्या होगा? कैंसर, कम्पन कैंसर। तीसरा रोग अचानक गुर्दे का खराब हो रोग (Parkinson ) जैसे मनोदैहिक रोग जाना है पहले तो व्यक्ति को डायलिसिस पर स्वाधिष्ठान चक्र की खराबी से होते हैं तथा अन्य डाल दिया जाता है परन्तु इसका खर्च उसे दिवालिया बना देता है। डायलिसिस से मनुष्य निरोग नहीं हो चक्रों को भी खराब कर देते हैं और इन्हें ठीक करने का कोई दूसरा तरीका नहीं होता। आप यदि सोचें 1. सकता। डाक्टर जो चाहे कहते रहें परन्तु यह कि चिकित्सक इन्हें दवाइयों से ठीक कर देंगे तो ऐसा नहीं हो सकता। आपको इन चक्रों में शक्ति सत्य है। इसके अतिरिक्त भी बहुत से रोग हैं जैसे का संचार करना होगा और इसके लिए सर्वशक्तिमान कब्ज। भयानक कब्ज भी बहुत सी बीमारियों का परमात्मा ने मूलाधार अस्थि में कुण्डलिनी नामक कारण बनती है। इस गर्मी से हृदय भी नहीं बच शक्ति रख छोड़ी है। क्योंकि यह साढ़े तीन लपेटों सकता। कोई शराब पीने वाला युवा व्यक्ति जो में है, और लपेटे को संस्कृत में कुण्डल कहा जाता टेनिस खेलता हो, सोचता भी हो, वह भी इसकी है मानव ने इसका नाम कुण्डलिनी रख दिया है। पकड़ में आ जाता है क्यों ? 21 से 25 वर्ष की क्योंकि यह मातृ-शक्ति है इसे.कुण्डलिनी कहते 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 14 होकर यह शक्ति इन चक्रों में से होती आपको क्या करना होगा ? कुछ नहीं, केवल इसे हैं। जागृत हुई तालू की हड्डी का भेदन करती है. तब इसका पृथ्वी में डालना होगा क्योंकि बीज में भी शक्ति है मिलन परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से होता है। और पृथ्वी में भी, यह उपजाऊ है। इसी प्रकार कि पेड, आपकी कुण्डलिनी को भी जागृत करना कठिन सत्य क्या है ? सत्य यह है हरियाली, यह संसार, सभी सुन्दर चीज़ों को हम नहीं है ऐसा करने का कोई एहसान नहीं है। अब देखते हैं परन्तु यह नहीं सोचते कि यह सब किस जब हमारे अन्दर यह शक्ति है और हम इसे प्राप्त कर सकते हैं तो क्यों न हमें ऐसा कर लेना चाहिए। प्रकार बना। है न हैरानी की बात! उदाहरणार्थ यह अब हमें किन कठिनाइयों का सामना करना सुन्दर फूल कितने सुगन्धमय हैं। यह सुगन्ध कौन इनमें डालता है ? आप यदि चिकित्सक से पूछें कि पड़ सकता है, यह समझना चाहिए। आज का मेरे हृदय को कौन धड़काता है तो वह कहेगा संसार ऐसा है कि हमें शान्ति प्राप्त होना आवश्यक स्वचालित नाड़ी तन्त्र। अब यह 'स्व' कौन है ? है और मुन से ऊपर उठे बगैर शान्ति नहीं प्राप्त हो यदि वह स्वचालित है तो हमारे अन्दर एक चालक सकती। केवल कुण्डलिनी ही हमें पूर्ण आन्तरिक है, यह कौन है ? इसका उनके पास कोई उत्तर शान्ति तक ले जा सकती है। हर चीज़ को हम नहीं है। यह आपकी आत्मा है और हम इसलिए साक्षी रूप में देखने लगते हैं, किसी चीज के प्रति जीवित हैं क्योंकि हमारी आत्मा जीवित है। इसका प्रतिक्रिया नहीं करते और परिणामस्वरूप हमारी स्मरण शक्ति सुधरती है। जो कुछ भी हम देखना यह अर्थ भी नहीं कि आप लोग जंगलों में या हिमालय में चले जाएं और एक टांग पर खड़े हो चाहते हैं, मान लो किसी समस्या को, जब तक हम जाएं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं। आप पूर्व समस्या में फंसे रहते हैं इसका समाधान नहीं कर जन्मों में यह सब कर चुके हैं और इसी कारण यहाँ सकते। से बाहर आ परन्तु ज्योही इस समस्या उपस्थित हैं। यह सब नाटक करने या पैसा खर्च जाते हैं समस्या सुलझ जाती है क्योंकि हम परमात्मा करने की कोई आवश्यकता नहीं। इसे आप खरीद से जुड़े होते हैं। हमास एकाकार परमात्मा से है, नहीं सकते। जैसे आप मानव हैं, आप महान व्यक्ति यह कठिन कार्य नहीं है परन्तु पहले आपको विश्वास होना चाहिए। इतने सारे लोग क्यों विश्वास खो बैठते हैं ? हो सकता है आपने गलतियाँ की हों, बन सकते हैं। यह जीवन्त क्रिया है। यह सहज ही में घटित हो सकती है। यह शक्ति सभी में विद्यमान है। आपने केवल इसे पाना मात्र है । उन्हें भूल जाएं। वह आपका भूत था, अब आप उसके लिए आपको कुछ उससे जुडे हुए नहीं हैं। आप वर्तमान में हैं। मैं इसे नहीं करना, यह सहज है, स्वतः है। उदाहरण के लिए आपके पास एक बीज बसन्त ऋतु कहती हैँ क्योंकि बहुत से लोग आए हैं उनका पुनर्जन्म हुआ है। योगी रूपी फूल खिल उठे है जिसे आपने पृथ्वी में डालना है। इसके लिए ho 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 15 हैं और कुण्डलिनी की जागृति के साथ ही उनपर फल आए हैं। 'ऐसा हजारों लाखों लोगों के साथ कभी सन्तुष्टि नहीं होती। इसका कारण यह है कि घर की, फिर एक वायुयान की, एक के बाद एक, घटित हुआ है और आपके साथ भी ऐसा घटित वस्तुएं आपको सन्तुष्ट नहीं कर सकतीं। सन्तोष तो होना कठिन कार्य नहीं है इसमें किसी का कोई एक मानसिक अवस्था है। साक्षात्कारी व्यक्ति को एहसान नहीं है, मेरा या आपका। ये आपकी निजी भौतिक वस्तुएं यदि मिल गई तो ठीक यदि नहीं चीज़ है। इसे प्राप्त करने के पश्चात आपको मिलीं तो ठीक। वह शारीरिक सुखों की अधिक थोड़ी देर के लिए ध्यान अवश्य करना होगा। चिन्ता नहीं करता। उसे आप रेशम पर बिठा दें या यह खाइए और यह मत खाइए जैसा कोई फर्श पर वह प्रसन्नचित्त रहता है। वह बादशाह है । बंधन नहीं है । अपने घर और बच्चे छोड़ने कोई चीज़ उसे बाँध नहीं सकती क्योंकि वह की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। सभी बादशाहत में है। आप यह सब प्राप्त कर सकते हैं। इसे प्राप्त करने का आपको अधिकार है। इसे यदि लोगों ने यह बात कही है, ईसा ने कहा था " स्वयं को पहचानो" (Know Thyself) मोहम्मद साहब ने आप प्राप्त कर लें तो बहुत अच्छा होगा सबसे स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्वयं को जाने बिना आप बड़ी उपलब्धि जो होगी कि आप जान जाएंगे कि परमात्मा को नहीं जान सकते। अब यदि लोग कुछ आपके ऊपर एक महान शक्ति है-प्रेम की शक्ति। और बातें कहें तो हमें उसकी चिन्ता नहीं करनी अब तक किसी ने इस प्रेम की शक्ति का चाहिए। जब सभी अवतरणों ने कहा है कि स्वयं उपयोग नहीं किया सभी शक्ति का उपयोग को पहचानो और ऐसा करना कठिन भी नहीं है तो कर रहे हैं । आप यह प्रेम की शक्ति उपयोग करें और फिर देखें। आप देख रहे हैं कि हमारे क्यों न यह किया जाए ? कुछ लोग समझते हैं कि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात उनका व्यापार ठप्प हो देश में कितनी खलबली है लालच अनावश्यक जाएगा। वे बहुत भयभीत हैं। परन्तु साक्षात्कार के रूप से बढ़ गया है। लोगों के पास धन रखने के पश्चात दस गुना समृद्ध होंगे क्योंकि आपका लिए स्थान नहीं है। दीवारों में वे धन लगा रहे हैं। दृष्टिकोण ईमानदारी का हो जाएगा और आप क्या वे ये दीवारें अपने साथ ले जाएंगे ? विवेक सन्तुष्ट हो जाएंगे ऐसा नहीं है कि आप पागलों समाप्त हो गया है। लोभ की भी एक सीमा होती है। लोग किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते की तरह इस पर लग जाते हैं। ऐसा कुछ नहीं है। 1. पागलपन छूट जाता है और आप पूर्णतः सन्तुष्ट हो फिर भी चले जाते ह कुछ आपके पास है आपको चाहिए कि आप इसका है। यह पागलपन है। जो भी जाते हैं। अर्थशास्त्र का नियम है कि प्रायः आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो सकती। जैसे आनन्द उठाएं। अब निःसन्देह आप महसूस करेंगे आज आपको एक कार की इच्छा होती है फिर एक कि श्री माता जी हमें आनन्द के सागर तक ले गई 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 16 है। जफर नाम का एक मुसलमान डाक्टर हमारा सभी लोग डरते हैं। परमात्मा जानता है कि वहाँ से शिष्य है। जब वह हमारे पास आया तो सभी लोग कितने लोग सहजयोगी बन चुके हैं बहुत भजन गा रहे थे मैं नहीं जानती कि उसे क्या वैज्ञानिक, बहुत से अन्य लोग हैं जिनमें कोई इच्छा हुआ, आनन्दमग्न हो वह गाता रहा। मैंने उससे नहीं है। केवल 35 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो पूछा, " डाक्टर जफर आपको क्या हुआ ?" उसने मालब्रो सिगरेट जैसी चीज़ें चाहते हैं। मैंने उनसे पूछा कि यहाँ सैनिक विपल्व होने वाला है, आपको उत्तर दिया, " मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि मैं पूर्ण आनन्द में था और घंटों तक वह इसी कोई चिन्ता नहीं ? कहने लगे श्री माता जी हम स्थिति में रहा।" मैंने उसे कहा कि " कुछ खा क्यों चिन्ता करें ? हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं लो", वह कहने लगा, मैं निर्विचार समाधि में यहाँ के साम्राज्य में नहीं । किस चक्र से क्या होता है इसके बारे में था।" जरा सोचिए कि आप इतनी पार्टियों में जाते चिन्ता करना अनावश्यक है। आप आत्मसाक्षात्कार हैं, इतनी पार्टियाँ देते हैं परन्तु आनन्द नहीं उठा प्राप्त कर लें। आजकल बाजार में बहुत से गुरु. हैं । सकते। पार होने के पश्चात इधर-उधर की बातें धन बटोरना उनका व्यापार है। आत्मसाक्षात्कार सब समाप्त हो जाएंगी। इतनी मित्रता इतना प्रेम जैसी अमूल्य चीज़ के लिए कैसे आप धन ले आपने अभी तक सामूहिकता में कभी न देखा था । सकते हैं ? जिस गुरु को आप खरीद सकते यह इतना आनन्ददायी अनुभव है कि हजारों लोग प्रेम के सागर में मिलकर बैठे हुए हैं। जो भी हमें हैं वह तो आपका नौकर हुआ। वह गुरु कैसे हो सकता है ? आप यदि इस चीज़ को समझ लें तो अच्छा होगा हमारे देश में और बाहर भी बहुत देखता है हैरान हो जाता है। रूस जैसा देश जहाँ साम्यवाद है, मुझे से झूठे गुरु हैं। इससे हानि भी हो सकती है। साम्यवाद से कुछ नहीं लेना-देना, न ही मैं इसके आत्मसाक्षात्कार आपकी अपनी सम्पदा है। आपने इसे प्राप्त करना है। इसके लिए आपको स्वयं पर पक्ष में हूँ, परन्तु इससे भी एक अच्छाई निकली कि उनमें कोई इच्छा शेष नहीं बची। सरकार ने उनसे विश्वास होना चाहिए कि मुझे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कहा कि हम आपको फ्लैट देंगे, अपने नाम में इन्हें करना है। ले लो। उन्होंने कहा,"नहीं हमारे नाम इन्हें मत परमात्मा आपको धन्य करें। (अनुवादित) करो। अपने पास रखो। अपने नाम से चीजें लेने से श्री 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt थि श्री आदिशक्ति पूजा परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (सारांश) कबैला 9.6.1996 कुण्डलिनी आपके अन्दर आदिशक्ति का अभिव्यक्ति करे। इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमात्मा कली प्रतिबिम्ब है । हम कह सकते हैं कि यह आदिशक्ति की शक्ति ने उनसे पृथक होकर उनकी करुणा, और आदि-कुण्डलिनी की पूजा है। इस ब्रह्माण्ड उनकी इच्छा का रूप धारण किया ताकि में तथा अन्य बहुत से ब्रह्माण्डों में जो भी कुछ चित्त-विलास (आदिशक्ति के आनन्द) का सृजन सृजन किया गया है वह सब आदिशक्तित का कार्य कर सकें। चित्त-विलास एक संस्कृत शब्द है। है। चित्त ध्यान-शक्ति(Attention) है। ध्यान-शक्ति | बहुत से लोग विश्वास करते हैं कि परमात्मा का अपना ही आनन्द है और हमारी इस ध्यान-शक्ति एक है. यह सत्य है। परमात्मा एक ही है, के आनन्द की अभिव्यक्ति करने के लिए आदिशक्ति सर्वशक्तिमान परमात्मा। परन्तु उसकी अपनी शक्तियाँ ने सभी ब्रह्माण्डों की सृष्टि की है। उन्होंने इस हैं जिनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति वह किसी व्यक्ति के पृथ्वी माँ की सृष्टि की, सारी प्रकृति का सृजन ब ब माध्यम से कर सकता है। अतः सबसे पहले उन्होंने किया और उन्होंने ही सारे पशु बनाए, मानव बनाए आदिशक्ति की शक्ति की सृष्टि की इसकी सृष्टि तथा सभी सहजयोगियों को बनाया इस प्रकार से के समय केवल 'शब्द था, शब्द जिसे हम ॐ, पूरी सृष्टि का सृजन हो सका। लॉगॉस(Logos)-शब्द ब्रह्म या आदिनाद (Primordial इस स्तर पर प्रश्न किया जा सकता है कि Sound) कहते हैं। ये तीनों शक्तियाँ इसी शब्द से उन्होंने सीधे ही मानव का सृजन क्यों नहीं कर उत्पन्न हुईं -ॐ (A,U,M)। आदिशक्ति ही दिया। यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का विचार था, सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा को साकार रूप केवल मानव का सृजन, बिना उसे कुछ बताए सभी देती हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा उनकी पशुओं में सबसे अच्छे पशु का सृजन। परन्तु माँ अपनी अभिव्यक्ति के लिए, उनके आत्म-प्रकाश के होने के नाते अभिव्यक्ति करने का आदिशक्ति का लिए तथा उनके प्रकटन के लिए उनकी करुणा से अपना ही तरीका था। उन्होंने सोचा कि वे न्म लेती है। मैं कहूँगी कि शायद वे अकेलेपन से सर्वशक्तिमान परमात्मा के लिए ऐसे दर्पण बनायें थक गए थे अतः उन्होंने एक सहचरी का सृजन जिनमें वे अपना रूप, अपनी प्रतिछाया, अपना चरित्र करने के विषय में सोचा जो उनकी इच्छाओं की देख सकें। और इस प्रकार इतनी लम्बी विकास পা 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 18 प्रक्रिया घटित हुई। इस विकास प्रक्रिया को इसी बना सकते। जो भी कुछ पहले से सृजित है उसी 1 यदि प्रकार कार्यान्वित होना था क्योंकि लोगों को ये को जोड़कर हम कुछ बना सकते हैं। परन्तु जानना था कि वे कहाँ से आए। हमें ज्ञान होना आप इसे देखें तो ये सभी कुछ हमारी शक्ति से परे चाहिए कि हम प्रकृति से अवतरित हुए हैं। प्रकृति है। हम कुछ भी नहीं बना सकते जो भी सृजन हम करते हैं वह हमारी कल्पना मात्र है। उदाहरण को भी समझना चाहिए कि उसका अवतरण पृथ्वी माँ से हुआ है। पृथ्वी माँ की अपनी कुण्डलिनी के रूप में कोई चीज़ सोने से बनी है तो वह अब है। वह मात्र बेजान पृथ्वी नहीं है, वे जानती भी सोना है लकड़ी से बनी चीज़ अब भी लकड़ी हैं, सोचती हैं, समझती हैं तथा मर्यादित है और ये सिद्धान्त सभी वस्तुओं पर लागू होता है। आपका जन्म जो भी रहा हो, जिस भी देश में आप करती हैं। प्रकृति में आप देख सकते हैं कि किस प्रकार हर पेड़ की अपनी सीमाएं हैं, किस प्रकार जन्में हों, आपकी जो भी संस्कृति हो, आप मानव हर फल किसी पेड़ विशेष पर ही लगता है। ऐसा हैं। मूल रूप से आप समान हैं। आप समान रूप से किस प्रकार घटित होता है ? इस प्रकार का हँसते हैं, समान रूप से मुस्कराते हैं और समान रूप से रोते भी हैं मैंने कभी किसी को उसके हाथों व्यवस्थापन कौन करता है ? यदि पृथ्वी माँ तेज रही होतीं तो आज जो हम हैं वो न से रोते हुए नहीं देखा, और इस प्रकार हमें महसूस गति से घूम होते, शायद हम जन्में ही न होते। यदि यह गति करना चाहिए कि हम जीवन के किसी एक समान कम होती तो भी यह विकास न हो पाता। सारी सिद्धान्त में बंधे हुए हैं। आदिशक्ति का दिया हुआ योजना जो बनाई गई थी उसे देखें। यह अत्यन्त यह समान सिद्धान्त, जो हमें बांधे हुए है, वह सुन्दर योजना है कि पृथ्वी माँ इस प्रकार से सूर्य हमारे अन्तःस्थित कुण्डलिनी। सभी मानवों में के इर्द-गिर्द घूमेगी कि भिन्न ऋतुओं का सृजन कुण्डलिनी है । पशुओं में कुण्डलिनी होती है होगा। यही कारण है कि यह शक्ति, परमचैतन्य, परन्तु यह उतनी विकसित नहीं होती। परन्तु जो कि आदिशक्ति है, ऋतम्भरा प्रज्ञा भी कहलाती मानव में इसका विकास इस प्रकार हुआ है। यही शक्ति सारा जीवन्त कार्य, सारा संयोजन कि यह योग प्रदान कर सकती है, हमारे तथा सम्पूर्ण सृजन करती है। अपने मानवीय अहंकार अन्तःस्थित दिव्य शक्ति के रूप में जो कि में हम सोचने लगते हैं कि हम कुछ कार्य करते हैं। आदि-कुण्डलिनी का प्रतिबिम्ब है और इस कलियुग हम सृजन कर सकते हैं । किसी अन्य चीज़ की तो में ही इसकी जागृति सुगमता से होती है हम सबमें यही समान तत्व है। अतः हमें सभी लोगों का, बात ही छोड़ दें हम तो धूल का एक कण भी नहीं পত 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt फरवरी, 1997 जनवरी 19 चैतन्य लहरी सभी मानवों का सम्मान करना चाहिए चाहे वह हमारे अन्तःस्थित है, यह प्रमाणित हो चुकी है। किसी राष्ट्र से हों, किसी देश से सम्बन्धित हों, आप जानते हैं कि हमारे अन्दर यह शक्ति है और किसी रंग के हों, क्योंकि उन सब में कुण्डलिनी आप यह भी जानते हैं कि जब हम अपने उत्थान के मध्य मार्ग से भटकते हैं तो क्या होता है। ऐसी विद्यमान है। फिर आप ही लोगों की तरह से कुछ स्थिति में कुण्डलिनी, जो कि आदि माँ की अभिव्यक्ति जागृत लोग हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो है, आपको आपकी अंगुलियों के सिरों पर बताती है चुका है तथा वे प्रबुद्ध हो गए हैं जब आप समझ जाते हैं कि यह आदि माँ (Primordial Mother)के कि आपमें क्या दोष है, आपमें कहाँ कमी है और आपकी क्या समस्या है ? चित्त का आनन्द है, यह मात्र लीला एवं आनन्द है, तो जब आध्यात्मिकता में आप पूर्ण उत्थान पा लेते अब जब हम प्रबुद्ध हो गए हैं, सन्त बन गए हैं तब आपके साथ क्या घटित होना चाहिए ? हमें हैं और सब लोगों से ऊपर हैं तो हमें क्या करना क्या महसूस होना चाहिए ? तब हमें किस प्रकार चाहिए ? अब हमें भली-भांति समझना चाहिए, केवल मानसिक रूप से ही नहीं हृदय से, कि अब होना चाहिए? यह प्रश्न आपने बहुत बार पूछा है। हमें ये चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गई हैं और ये हमें आपका प्रश्न पूछना ही इस बात का द्योतक है कि बता सकती हैं कि हम क्या हैं ? समस्या क्या है ? आप वहाँ नहीं पहुँचे क्योंकि उस स्थिति में पहुँचने नहीं पूछते हर स्थान की स्थिति ये आपको बतायेंगी । कुछ । पर आप प्रश्न दूसरे उस स्थिति में पहुँच कर आप मात्र लोग येरूसलेम गए थे, उनसे मैंने बात की तो अस्तित्व बन जाते हैं और अस्तित्व बनते ही आप कहने लगे. "श्री माता जी पूरा स्थान ही चैतन्य दैवी चरित्र प्रतिबिम्बित करने लगते हैं। यह दैवी लहरियों से परिपूर्ण था ।" कोई व्यक्ति छिंदवाड़ा चरित्र केवल आजकल ही अभिव्यक्त नहीं किया गया और उसने कहा, "मैं माँ का स्थान ढूंढ लूंगा जा रहा, यह बहुत पहले से होता आया है। सभी ऐसा करना कोई कठिन कार्य नहीं है, चैतन्य धर्मों में कुछ लोग ऐसे थे जिनका पूर्ण विकसित लहरियों के माध्यम से मैं खोज लूंगा", उसने दिव्य चरित्र था। उदाहरणार्थ तीन हजार वर्ष पूर्व बताया, "ज्यों ही में रेलवे प्लेटफार्म पर उतरा तो मैं कोलम्बिया में रहने वाले लोगों में मैंने पाया कि उछल पड़ा. मेरी समझ में नहीं आया कि यहाँ से कहाँ जाऊं क्योंकि यहाँ तो इतना चैतन्य प्रवाह है। उनकी मूर्तियों में कुण्डलिनी और कुम्भ प्रायः विद्यमान मैं किस प्रकार माँ के स्थान तक पहुँचूंगा"? वह बैठ थे। उनमें साढ़े तीन कुण्डलों में कुण्डलिनी की अभिव्यक्ति की गई थी। अब यह कुण्डलिनी, जो गया और सोचने लगा, "अब मैं किस प्रकार खोजूंगा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 20 के सिरों पर कुण्डलिनी अपनी अभिव्यक्ति करती है, था"? वह कि श्री माता जी का जन्म कहाँ हुआ इस ज्ञान से जब तक आप पूर्ण तदात्मय नहीं कर बैठा हुआ था तभी उसने शुक्र नामक सितारा देखा लेते तब तक पूर्णता प्राप्ति के पथ से आपके भटकने उस सितारे का अनुसरण करते हुए वह चल पड़ा की सम्भावना सदा बनी रहेगी। सहजयोग में आने और उसे वह स्थान मिल गया। पूरी योजना, पूरा कार्य अव्यवस्थित रूप से वाले बहुत से लोगों को मैंने देखा है कि वे कुछ आधे-अधूरे सहजयोगियों से मिलते हैं और दिमागी ही नहीं हो जाता। आप यदि पेड़ों को देखें तो सभी पर फल होते हैं और सभी पत्तों को सूर्य की किरण होने के कारण वे बहस करने लगते हैं कि यह कैसे प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। प्रकृति में हो सकता है ? वह कैसा सहजयोगी हैं और कैसे वह इस प्रकार का आचरण कर सकता है? परमात्मा सभी कुछ इतना सुन्दर तथा समरस होता है। हम लोग ही प्रकृति को बिगाड़ते हैं क्योंकि हम यह की शक्ति का वर्णन करने के लिए लोगों के बहुत से तरीके हैं। आरम्भ में ही मैंने आपको बताया कि नहीं समझते कि हम भी प्रकृति से आए हैं और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। मैं आपको बहुत बार अकेलापन महसूस होने के कारण परमात्मा ने 1 बता चुकी हूँ कि भिन्न रसायनों से किस प्रकार आदिशक्ति का सृजन किया और उनके माध्यम से मानव का सृजन किया गया कार्बन की उत्पत्ति भी पूरे ब्रह्माण्ड की सृष्टि की गई। परन्तु यह भी सत्य पृथ्वी माँ से हुई। यह सब हमें बताता है कि हमारी है कि जिस प्रकार आप परमात्मा को खोज बड़ी जिम्मेदारी है। इस सारे कार्य में हजारों रहे हैं परमात्मा भी आपको खोज रहे हैं । बहुत वर्ष लगे और अब आप उस स्थान पर पहुँचे हैं जहाँ यदि आप परमात्मा के विषय में एक साधारण सी बात समझ लें कि उन्होंने ही आपको बुद्धि प्रदान आप 'आप' बन सकें। आप स्वयं (आत्मा) को जान की है तो आपकी खोज का पूरा फल आपको प्राप्त लें। विकास प्रक्रिया में यह बहुत बड़ी छलांग है विकास प्रक्रिया बहुत समय पूर्व आरम्भ हुई। हो जाता है। उन्होंने ही आपको विवेक प्रदान किया आदिशक्ति और आदि-कुण्डलिनी की पूजा करना है उन्होंने ही आपको सभी कुछ दिया है। यदि आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आप नहीं समझ आपकी सभी उपलब्धियां कुण्डलिनी ने ही आपको दी हैं, कुण्डलिनी की इस मातृ शक्ति ने, तो यह सकते कि किस प्रकार आप सन्त बन गए। जब आप अपने अन्दर जान लेंगे कि आपमें ये सारे केन्द्र समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि उन्हें प्रसन्न रखना कितना महत्वपूर्ण है । यह देखना आपके हैं और कुण्डलिनी की जागृति द्वारा इन सब केन्द्रों को जागृत किया जाना है तथा आपकी अंगुलियों लिए अत्यन्त आवश्यक है कि किस प्रकार उन्हें 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 21 प्रसन्न रखा जा सकता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्तियों आप केवल अनन्त प्रेम एवं करुणा रूप हो जाते हैं र में तथा परमात्मा में एक सम्बन्ध होता है और और परिणामतः अत्यन्त आनन्द मग्न हो जाते हैं। बहुत से लोग मुझे कहते हैं कि श्री माता जी परमात्मा तभी प्रसन्न होंगे जब आप प्रसन्न होंगे। हम कह सकते हैं कि परमात्मा हमें प्रसन्नता प्रदान किसी को क्षमा करना बहुत कठिन है। परन्तु में हूँ कि किसी को क्षमा न करना बहुत करते हैं, परन्तु जब आप प्रसन्न होते हैं तभी सोचती परमात्मा प्रसन्न होते हैं, यह ऐसा सम्बन्ध है। यह भयानक है क्षमा करने में महान आनन्द है, एक अत्यन्त महान आनन्द और आपके क्षमा करते ही इतना निकटतम है, हम कह सकते हैं जैसे सूर्य की किरणें होती हैं या चांद की चांदनी परमात्मा बागडोर संभाल लेते हैं और आपकी देखभाल यह इतना निकटतम है। यह इतना अन्तर्जात है कि यह करते हैं। कोई आपको अशान्त नहीं कर सकता आपको स्वयं पर और आपके अपने विकास पर परन्तु पहले आप परमात्मा के सम्मुख समर्पण तो करें। क्षमा इतनी महान है। किसी को दंड देने का नियन्त्रण प्रदान करता है। नाना विधियों से वर्णन किया गया है कि आपको समर्पण करना होगा कष्ट न उठाएं और न ही किसी के विरुद्ध कुछ कोई यदि तलवार लेकर आ जाए और समर्पण करने का कष्ट उठाएं। आपसे बागडोर परमात्मा ले करने के लिए कहे तो हो सकता है कि आप लेता है और जो भी आवश्यक होता है करता है समर्पण कर दें, परन्तु उस व्यक्ति के जाते ही आप और उनकी कार्यशैली इतनी सुन्दर होती है कि भी एक तलवार उठायेंगे और उस व्यक्ति का गला देखते ही बनती है! आदिशक्ति की शक्ति और काट देंगे। इस प्रकार का समर्पण बेमायना है। ये परमात्मा का वर्णन सभी धर्मों में किया गया है। समर्पण तो आप पर थोपा है। इस प्रकार के इस्लाम में इसे 'रूह' कहा गया है। बाइबल में इसे हुआ सभी समर्पणों से समस्याएं उत्पन्न होती रहीं क्योंकि 'सर्वव्यापक शक्ति' कहा गया है। इसे 'अलख-जिसे इन से प्रतिक्रिया होती है। परन्तु परमात्मा के देखा नहीं जा सकता- कहा गया है। इस दिव्य सम्मुख आपका समर्पण अत्यन्त आनन्ददायी होता शक्ति के लिए सब शब्द उपयोग किए गए हैं। है, जैसे समुद्र में डाला गया नमक पानी में स्वतः लोगों ने इसके विषय में सुना है, इसका गुणगान ही घुल जाता है। यह घुलनशील स्वभाव वास्तव में किया है परन्तु दुर्भाग्यवश बहुत कम लोगों ने इसे आनन्ददायी है। यदि आप अपने अन्तस में यह महसूस किया है, और महसूस करने के बाद महसूस कर सकें कि आप परमात्मा से एकरूप हो उनकी समझ में नहीं आया कि किस प्रकार इसे चुके हैं, दिव्य सागर में आप विलीन हो गए हैं तब दूसरों को दिया जाए, किस प्रकार अन्य लोगों को t४ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt जनवरी - फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 22 इसका अनुभव कराया जाए। तो जो भी कुछ आपको सत्य बताती है। अतः जो भी पूर्ण सत्य आप उन्होंने कहा कहानी मात्र बन गया या कुछ बेतुकी जान पाए हैं यह परमेश्वरी शक्ति की करुणा के बात। कोई विश्वास न कर पाया कि वे इस प्रकार माध्यम से जान पाए हैं। कभी-कभी लोग यह भी का कोई अनुभव पा चुके हैं और न ही कोई ये कह सकते हैं कि श्री माताजी हमने चैतन्य लहरियाँ कल्पना कर पाया कि इस प्रकार की शक्ति वास्तव देखीं, हमने इस प्रकार अनुभव किया फिर भी यह घटित हो गया जो कुछ भी हुआ उससे कोई फर्क में विद्यमान है । अब सौभाग्यवश आप सब लोगों के लिए यह एक शाश्वत सत्य बन गया है कि आप नहीं पड़ता। जो हो गया वो हो गया, कोई बात जानते हैं कि ऐसी शक्ति है। इस शक्ति के विषय नहीं। आपने चैतन्य लहरियाँ महसूस की और में आप विश्वस्त हैं क्योंकि इसे आप अपने अन्तस चैतन्य लहरियों से पूछा, चैतन्य लहरियों के अनुसार कार्य किए, बस। घटनाएं इच्छित रूप से घटी या में महसूस कर सकते हैं और जब आप इसे महसूस करते हैं तो आनन्द विभोर हो जाते हैं। आप समझ नहीं यह एक अलग बात है क्योंकि उन्हें उसी ढंग पाते हैं कि कोई व्यक्ति आपको सत्य कह रहा है से ही घटित होना था कोई नाटक चल रहा है। या नहीं, क्योंकि चैतन्य लहरियों से आप इसे जाँच यह 'चित्तविलास' है, परमात्मा के चित्त का सकते हैं, आदिशक्ति की शक्ति द्वारा, वह आपको आनन्द। एक लीला चल रही है। यदि आप सत्य बात ही बताती हैं। यदि किसी व्यक्ति ने इस लीला को देख सकेंगे तो अशान्त न आपको कोई हानि पहुँचाई है, और अब यदि आप होंगे यह एक लीला है, यह किस प्रकार कार्यान्वित कहें कि श्री माता जी आप उस व्यक्ति को क्षमा होगी, किस प्रकार इसकी व्यवस्था होगी, यह आपका कर दीजिए तो यह सत्य न होगा क्योंकि निश्चित सिरदर्द नहीं । आपको मात्र परमात्मा की इस लीला रूप से उसने आपको हानि पहुँचाई है और मेरे को देखना है कि यह किस प्रकार कार्यान्वित होती क्षमा करने का अर्थ यह होगा कि मैंने स्वीकार कर है। आप सब ने देखा है कि चमत्कार होते हैं। श्री लिया कि उसने नहीं पहुँचाई। इस प्रकार का माता जी यह चमत्कार हुआ, और मैं जानती हूँ कि तर्क-वितर्क सम्भव है। आप हैरान होंगे कि आप सभी चमत्कार दिव्य हैं। जब आपकी श्रद्धा प्रबुद्ध उस व्यक्ति को इसलिए क्षमा करते हैं कि आप उसे है तो जीवन की महत्वपूर्णतम चीज़ों के लिए क्षमा करें या न करें आप कुछ नहीं करते। यह भी आप चिन्ता न करें। यदि यह कार्यान्वित सत्य है। अतः करुणावश यदि आप किसी को क्षमा होती है तो भी ठीक और नहीं होती तो भी करते हैं तो करुणा सत्य बन जाती है। करुणा ठीक। यह नहीं मान लेना चाहिए कि एक 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt फरवरी, 1997 जनवरी 23 चैतन्य लहरी बार आत्मसाक्षात्कार पा लेने के बाद पूरा बाहर आई। तत्पश्चात् मछलियों के झुंड बाहर विश्व आपके चरणों में आ गिरे। यह आवश्यक आए। इसी प्रकार आपका भी विकास कार्यान्वित नहीं है। यह लीला है। यह आदिशक्ति के हुआ है अब हमारी संख्या बहुत बढ़ी है। हमने चित्त का सुन्दर आनन्द है यदि आप इसके सन्त जॉन द्वारा बताई गई संख्या को भी पार कर साक्षी बन सकते हैं, यदि आप इस पूरी लीला लिया है। ऐसा लगता है कि यह बहुत ही उपजाऊ के वास्तविक रूप में साक्षी बन सकते हैं तो क्षेत्र है, अति उपजाऊ समय है। इस कलियुग में आप आध्यात्मिक रूप से बहुत समीप जा बहुत से लोग ईश्वरत्व को अपना रहे हैं। ऐसा सकते हैं, आप परमेश्वरी शक्ति में विलीन हो करने का यह ठीक समय है। कल मैंने आपका सकते हैं। इस विलय को घटित होना है और नाटक देखा, मैंने ये सब चीजें स्वयं देखी हैं और मैं हैरान हुआ करती थी कि इन लोगों का क्या होने यही कारण है कि आदिशक्ति की पूजा आपके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि आदिशक्ति वाला है। न जाने किस प्रकार उन्होंने भी अध्यात्म ने अवतरण न लिया होता तो यह कार्य न हो पाता को अपना लिया है। आधुनिक युग में जो भिन्न क्योंकि इसने मानव जीवन की सभी निष्ठुरताएं चीजें आप देखते हैं इनसे आपको बहुत परेशान और मानव जीवन के अन्य सभी पक्षों को समेट नहीं होना चाहिए. क्योंकि यह सब तो ऐसे ही होना लिया होता। इसे ऐसा अवतरण होना पड़ा जो है। यह सब एक नाटक है, एक लीला है और इस मानव को पूर्ण रूप से देखेगा, न केवल उसके नाटक में, आपको समझ लेना चाहिए, सभी कुछ इतने सुन्दर रूप से कार्यान्वित होगा कि कुछ समय शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक पक्षों को या उसकी विशेष विचारधाराओं तथा उलझनों को। सभी मानव पश्चात् आपको परमात्मा ये सभी व्यर्थ की चीज़ों, अपने अन्तस में एक ही जैसे हैं। कुछ अधिक जैसे हमारे बन्धन एवं अहम् आदि, को विघटित संवेदनशील हैं और वास्तव में जिज्ञासु। कुछ की करते हुए मिलेंगे इसके अतिरिक्त कुछ न होगा खोज वास्तविक नहीं है तथा कुछ खोज ही नहीं सहजयोग में बहुत लोग होंगे वर्ष 2000 तक पूरे रहे, परन्तु आपको तो जिज्ञासा भी आदिशक्ति ने विश्व में असंख्य सहजयोगी होंगे । एक बार जब हमारी संख्या बढ़ जाएगी तो बहुत से लोग इसमें दी है। अब इस प्रकार हुआ कि विकास प्रक्रिया में कूद पड़ेंगे। यह मानव स्वभाव भी है। जब तक माँ से एक मछली निकली. उस समुद्र में से जो सहजयोग में बहुत से लोग न होंगे लोग इसे समुद्र की माँ सम था, और फिर दस-बारह मछलियां अपनायेंगे नहीं, एक बार जब हमारी संख्या बहुत 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt जनवरी - फरवरी, 1997 चैतन्य लहर, 24 अधिक हो जाएगी तो लोग इसमें कूद पड़ेंगे। कुछ मिल गया है तथा यह भी कि अब आप सब सन्त लोग सदैव चिन्तित रहते हैं कि श्री माता जी हम पुरुष हैं, तो हमें उन लोगों की ओर देखना चाहिए तो अब स्वर्ग में हैं, जीवन का आनन्द ले रहे हैं ज़ो इस प्रकार के थे जैसे सूफी, नाथपन्थी, ग्नोस्टिक अन्य लोगों का क्या होगा ? आपका चित्त केवल तथा भिन्न धर्मों में भिन्न प्रकार के लोग। उन्होंने इस बात पर होना चाहिए कि किस प्रकार मैं इस क्या किया ? अन्य लोगों को इस सत्य के प्रति आनन्द एवं करुणा के सागर में अन्य लोगों को भी जागृत करने के लिए. कि दिव्य शक्ति विद्यमान हैं. उन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया। वे आत्मसाक्षात्कार विलीन कर सकूंगा। आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपकी अपनी करुणा ही आपको शक्ति दे पाएगी। न दे सकते थे दिव्य शक्ति का कोई प्रमाण भी वे जब आप लोगों को पूर्ण डूबते हुए देखेंगे, उन्हें पूर्ण न दे सकते थे फिर भी उन्होंने इसे कार्यान्वित नष्ट होते हुए देखेंगे तो स्वयं आपकी करुणा किया, इसके विषय में बातचीत की, इसके गीत आपको शक्तिशाली बना देगी और आप सभी गाए यही चीज़ हमें समझनी है कि करुणा की अभिव्यक्ति को कोई भी बाधा न रोक पाए। जब आवश्यक कार्य करेंगे। सभी मूर्खतापूर्ण कार्यकलापों आप जानते हैं कि लोग डूब रहे हैं, वे भयानक को छोड़कर लोगों को मुक्त करने के कार्य में आप स्वंय को लगा देंगे और जैसे-जैसे आप यह कार्य समस्या में फंसे हुए हैं, मानव पर आसुरी प्रवृत्तियों करेंगे. आश्चर्यजनक रूप से आपकी अपनी का यह भयानक आक्रमण है, और आपमें यदि करुणा विद्यमान है तो उन्हें बचाने के लिए आप आध्यात्मिकता का स्तर ऊँचा उठ जाएगा पानी में यदि आप नमक घुला दें तो पानी का स्तर ऊँचा जी-जान से लग जायेंगे। इस चित्त-विलास का, आपके चित्त के आनन्द का यही कार्य उठ जाता है। इसी प्रकार जितने अधिक लोग सहजयोग में आएंगे उतनी ही अधिक दिव्य शक्ति है। जब आप अधिक से अधिक लोगों को परमात्मा की शक्ति में लाने लगेंगे तो आपके अपने चित्त से अपनी अभिव्यक्ति करेगी। यह अभिव्यक्ति अब भी हो रही है। परन्तु जितने अधिक लोग होंगे उतना आनन्द प्राप्त होगा। देवत्व के बिना मानव को ही अधिक दिव्य शक्ति का प्रकटीकरण होगा बचाया नहीं जा सकता, सभी लोग इस बात को क्योंकि यह बहुत से माध्यमों का इसे कार्यान्वित स्वीकार करते हैं और इस बात को कहते हैं। परन्तु करने जैसा होगा। वे बिल्कुल नहीं जानते कि दिव्यता है क्या और इसे ति इस स्थिति में, जबकि हम जानते हैं कि किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु आप सब लोगों के पास यह शक्ति है आपमें कुण्डलिनी दिव्य शक्ति है, आप सब लोगों को आत्मसाक्षात्कार 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 25 जागृत करने की शक्ति है, आप सभी चक्रों के बारे वास्तव में नमक हैं। वह नमक जो देवतत्व में पूर्णतः घुल गया है और यह नमक बहुत से अन्य में जानते हैं, सभी चक्रों के दोषों के िषय में आप जानते हैं, हर चीज की सच्चाई चैतन्य लहरियों के लोगों को भी देवतत्व में घुला देगा। माध्यम से जान सकते हैं, जितना अधिक आप इस मैं यह नहीं कर रही हूँ कि हमें मिशनरियों शक्ति का उपयोग करेंगे उतना ही बेहतर होगा की तरह से लोगों को मजबूर करके सहज़योगी आपको उन क्षेत्रों में जाना होगा जहाँ अब तक बनाना है सर्वप्रथम हमने उनकी कमियों को दूर आप नहीं गए। अफ्रीका में बहुत कम सहजयोगी हैं करना है वास्तव में इस संसार में बहुत कम अतः मैं अगले वर्ष अफ्रीका जाकर इस कार्य को ईमानदार लोग हैं। मैं ऐसे लोगों को जानती हूँ करने की सोच रही हूँ। और भी बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें कभी लालच न था परन्तु ज्यों ही उन्हें जहाँ मैं सोचती हूँ कि कार्य होना चाहिए आपमें शक्तियाँ प्राप्त हुई वे भयानक रूप से लालची हो यदि करुणा है तो यह आपको उन लोगों को भी गए। इतने लालची कि उन पर विश्वास नहीं किया शान्ति प्रदान करने के लिए कार्य करने को विवश जा सकता। परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं करेंगे कर देगी जो जिज्ञासु नहीं हैं। मैं कुछ गैर-सरकारी अपनी करुणा का वे आनन्द आनन्द लेंगे, अपनी संस्थाएं (N.G.Os) बनाने में व्यस्त हूँ जो वास्तव में वासना, अपने लालच, नशे, शराब तथा अन्य मूर्खतापूर्ण चीज़ों का नहीं । वे जानते हैं कि आनन्द कहाँ प्राप्त दीन-दुखियों के लिए बहुत सुन्दर कार्य करेंगी। वे भूखों मर रहे हैं, कष्ट में फंसे हैं और बहुत हो सकता है। एक बार जब आप जान जायेंगे कि तकलीफ भोग रहे हैं। केवल आप लोग ही उनके आनन्द कहाँ प्राप्त होता है तो आप इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे हित के लिए कुछ कर सकते हैं क्योंकि सहजयोग अब आपके में आकर आपने लालच और लोभ त्याग दिए हैं। लिए ऐसा कर पाना बहुत ही सुगम हो गया है। जिस प्रकार पुरुष कार्य कर रहे हैं स्त्रियों सभी कुछ हो चुका है, अब आप आज़ाद हैं और पूर्णतः स्वतन्त्र। इस स्थिति में आपकी करुणा को भी चाहिए कि इसे कार्यान्वित करें क्योंकि पथ- भ्रष्ट नहीं हो सकती। क्योंकि मैंने देखा है कि स्त्रियों में करुणा और क्षमाविवेक पुरुषों की अपेक्षा बहुत से लोग जब इस प्रकार का कार्य करने लगते कहीं अधिक होता है। क्योंकि वे माताएं हैं, उनके हैं तो वे या तो नेता बनने लगते हैं या धनवान या बच्चे हैं, वे जानती हैं कि बच्चों का प्रेम क्या होता अन्य लोगों को लूटने लगते हैं। आप लोग ऐसा है। माँ किसी चीज़ की आशा नहीं करती वह मात्र नहीं करेंगे। ईसा मसीह के कथनानुसार आप इतना जानती है कि उसका बच्चा ठीक हो और 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 26 कर लिया हो, जिसे प्रसन्न रहे। वह अपने बच्चे का आनन्द लेती है, सर्वव्यापक शक्ति को महसूस यदि आप एक स्त्री हैं तो आपमें अन्तर्जात रूप से सत्य का ज्ञान प्राप्त हो गया हो, जो परमात्मा से करुणा विद्यमान है। मैंने देखा है कि छोटी-छोटी एकरूप हो गया हो, ऐसे व्यक्ति को किस प्रकार लड़कियाँ किसी बालक को देखती हैं तो उसकी कोई समस्या हो सकती है ? यह महसूस करना है ओर दौडती हैं। वे उसे उठाना चाहती है उनके कि आप सर्वशक्तिमान परमात्मा के साम्राज्य में बैठे पास गुड़ियाँ होती हैं और वे इनकी बच्चों की तरह हुए हैं। आप इस साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं और आदिशक्ति की करुणा एवं चित्त आप पर है। परन्तु देखभाल करती हैं। स्त्रियों के लिए करुणा दर्शाना और उसकी अभिव्यक्ति करना कहीं सुगम कार्य यह तो ऐसा हुआ जैसे आप भिखारी को राज होना चाहिए। विवाह के पश्चात् भी आपके दिव्य गद्दी पर बैठा दें तो गद्दी पर बैठा हुआ भी वह स्वभाव से आपके पति शक्ति प्राप्त करते हैं आप भीख मांगता रहता है । सहजयोगियों की भी क्या न्यौछावर करते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि कभी-कभी यही स्थिति होती है। आप सबको कम परमात्मा के लिए यह बलिदान करता हूँ, वह से कम इस स्थिति पर काबू पाना है क्योंकि अन्य बलिदान करता हूँ। परमात्मा के लिए क्या बलिदान लोगों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। आपके किया जा सकता है ? परमात्मा को क्या आवश्यकता अपने जीवन के लिए भी यह बहुत आवश्यक है कि जो शक्तियाँ आपने प्राप्त की हैं उनकी सूझबूझ में है ? उन्हें किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है। आपने तो अपने मस्तिष्क ही बलिदान कर दिए हैं, आप पूर्णतः विकसित हों। जब आप यह कहते हैं कि आपको अपनी माँ के प्रति पूर्णतः समर्पित होन इनमें विवेक लुप्त हो गया है। परमात्मा को परिवर्तन पसन्द है और वह है तो इसका क्या अर्थ है ? मुझे क्या समर्पित हृदय को परिवर्तित कर देते हैं, कि आप समझ भी करना है ? आप अपने अन्दर के पथ-भ्रष्ट, नहीं पाते कि यह किस प्रकार घटित हो गया! विनाशशील अवगुणों अपने अहम् तथा आपको केवल इस लीला का आनन्द लेना है। बन्धनों को समर्पित करते हैं, बस। और ये समर्पण आप स्वयं को पवित्र करने अपना सहजयोगियों में परस्पर तालमेल होना चाहिए और उन्हें परस्पर आनन्द लेना चाहिए। सहजयोगी यदि आनन्द लेने और सर्वशक्तिमान परमात्मा को जीवन का आनन्द नहीं लेता तो और कौन लेगा ? समझने के लिए करते हैं। यदि आप स्वयं को मैं नहीं समझ सकती कि किसी व्यक्ति की यदि नहीं जानते तो परमात्मा को किस प्रकार जानेंगे। कुण्डलिनी जागृत हो गई हो, जिसने प्रेम की यह असम्भव है। अतः स्वयं को जानने के लिए 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 27 आपको विकसित होना होगा मैं जानती हूँ कि मैं हर सम्भव प्रकार से आपकी सहायता के लिए मौजूद रहूँगी। कोई चीज़ जो आपको कठिन लगती कुछ बहुत महान सहजयोगी हैं परन्तु अब भी ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिन्हें इन महान विकसित है उसका कारण यह है कि आप स्वयं को इसका सहजयोगियों को प्रवेश करके कार्यान्वित करना कत्त्ता मान बैठते हैं, यदि आप इसे परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापक शक्ति पर, आदिशक्ति की शक्ति है। आप लोग यह कार्य कर सकते हैं। पर, परमचैतन्य पर, छोड़ दें तो कुछ भी कठिन नहीं पहली बार जब मैं रोम में आई तो सभागार भी इतना बुरा नहीं है कि आप इसे सम्भाल में एक भी व्यक्ति न था। मैंने कहा इस देश का है। कुछ क्या हश्र होने वाला है। अब यहाँ इतने सारे न सकें। इस पूजा का किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है क्षितिजीय रूप में फैल रहा है, इसे ऊपर की क्योंकि इसी प्रकार आपका उत्थान होता है। यह सहजयोगी है परन्तु जिस प्रकार सहजयोग, ओर भी बढ़ना चाहिए। संख्या में बढ़ोतरी के प्रतिबिम्ब सुधरता है और आप आदिशक्ति की साथ-साथ इसकी गहनता का स्तर भी ऊंचा शक्ति के माध्यम से या कुण्डलिनी की शक्ति के होना चाहिए। ज्यों-ज्यों आपकी गहनता का माध्यम से अपने अन्तस में अधिक से अधिक विकसित स्तर बढ़ेगा| अधिकाधिक लोग आएंगे क्योंकि मैं होते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि आदिशक्ति जानती हूैं कि हर समय आप इतने सामूहिक होते की अपनी कुण्डलिनी है जो कि आदि कुण्डलिनी हैं कि आपको लगता है कि श्री माता जी मैं अभी कहलाती हैं और कुण्डलिनी आपके अन्दर उसका सहजयोगी नहीं हूँ, मेरा भाई भी अभी सहजयोगी प्रतिबिम्ब है । आपको पूजा करनी है और अपनी नहीं है। मैं जानती हैँ कि आपमें वह भावना है. कुण्डलिनी, आपकी अपनी माँ- जिसने आपको जायें परन्तु जो जिज्ञासु हैं उन तक जन्म दिया है- को प्रसन्न करना है। उनको भूल पहुँचे। वही आपके सच्चे सम्बन्धी हैं तब बाद में ये लोग सम्मिलित हो जायेंगे- आपके पिता माँ परमात्मा आप पर कृपा करें। 'भाई. बहन, बच्चे। उस समय तक वे प्रतीक्षा करेंगे। हैं आप उन्हें खोजं, वे जिज्ञासु नहीं हैं, जो जिज्ञासु पता लगाएं कि वे कहाँ हैं। जो भी कुछ आप चाहेंगे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt ৩৪ श्री माताजी की सहजयोगियों से बातचीत ग्लैनरॉक, आस्ट्रेलिया, 1 मार्च, 1992 आज मैं आपसे कुछ ऐसे मामलों पर बात वे केवल मेरा नाम प्रयोग करते हैं। माँ ने 1970 में करना चाहती हूँ जहाँ लोग उलझ जाते हैं। ऐसा कहा था। 1970 में कभी अंग्रेजी नहीं बोली। सहजयोग में कुछ बातें समझ लेना हमारे लिए अतः ये सब ऐतिहासिक कथन प्रयोग नहीं किए जाने चाहिएं। हम वर्तमान में रहते हैं। हो सकता है आवश्यक है। 1 पहली बातः सहजयोग में धर्मान्धता का कोई उस समय स्थिति कुछ भिन्न रही हो। हो सकता है 1 स्थान नहीं है। कोई भी मेरे शब्दों का प्रयोग तब सहजयोगी नए नए सहजयोग में आ रहे थे, हो न करे, न ही ये कहे कि श्री माता जी ने ऐसा सकता है उन्हें किसी प्रकार के पथ-प्रदर्शन की कहा था। इसी प्रकार चर्च में और अन्य स्थानों आवश्यकता रही हो। यह एक यात्रा है। उतराई या चढ़ाई पर चलते समय आपको भिन्न विधियाँ अपनानी पर धर्माधिकारी वर्ग की रचना हुई। हर व्यक्ति पढ़ सकता है तथा पता लगा सकता है। यह कहना पड़ती हैं। अब आप समतल पृथ्वी पर चल रहे हैं। कि. "श्री माता जी ने ऐसा कहा था", लोगों को आपका व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिससे वश में करने का एक तरीका है। यह दर्शाता है कि ये लगे कि आप पर्वत पर चढ़ रहे हैं । अतः आप लोगों को अलग हटने के लिए कह रहे हैं। सहजयोग में अधिकाधिक लोगों को मुक्ति देना ही आप कार्यभारी नहीं हैं। हमारा लक्ष्य है। ा यदि मैं सहजयोगियों के कार्यक्रम में कोई पर इस पर कब्जा नहीं किया जाना चाहिए। बात कहती हैँ तो इसलिए कि यह मेरे तथा मेरे मैं पुनः आपको बताती हूँ कि किसी को भी नेता बच्चों के बीच दिल की बात होती है। बिना अगुआ (अगुआ) से इसे नहीं छीनना चाहिए। मैंने आप से सम्पर्क किए, अनियन्त्रित रूप से, आपके कम्प्यूटरों लोगों से मिल कर कार्य करने के लिए नेताओं की द्वारा उसे चहूँ ओर फैलाया नहीं जाना चाहिए। नियुक्ति की है। पर सदा आपका सीधा सम्बन्ध मुझ सहजयोग में कोई उतावली नहीं है । से है। अभी तक परमात्मा को मानने वाले लोगों का अंतः उतावलापन नहीं होना चाहिए। यह बात मैं स्पष्ट सीधा सम्पर्क परमात्मा से न था। पर अब आपका है। तो क्यों न आप मेरा उपयोग करें। और यदि रूप से कह रही हैूँ। मैंने जो भी कहा उसे कोई याद नहीं रखता । नेता हैं तो आपको उनसे पूछना होगा कोई भी পट 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 29 अपने हिसाब से लोगों को उपदेश देना शुरु का उपयोग करेगा। ऐसा करने की आपको कोई न कर दे। हमें उपदेश पसन्द नहीं हैं। काफी आवश्यकता नहीं है यदि वे किसी चीज़ की रचना उपदेश हो चुके। अन्य लोगों को उपदेश देने करना चाहते हैं तो सीधे मुझसे बात करें अपनी आपको मनमानी न करें क्योंकि यह तो सहजयोग के प्रति की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि उपदेश देने ही हैं तो स्वयं को दीजिए, दूसरों अति अनुचित दृष्टिकोण है । अतः सर्वप्रथम हमें को नहीं । समझना है कि यह एक जीवन्त प्रक्रिया है। केवल व्यक्ति को समझ लेना है कि यह एक आप ही इसका सारा श्रेय नहीं ले सकते। इस पर जीवन्त प्रक्रिया है। किसी जड़ के छोर पर स्थित आप बनावटी बातें नहीं थोप सकते जो सहजयोग अणु द्वारा हम यह समझ सकते हैं। इसमें विवेक की बढ़ोतरी में बाधक हों। आप इसे किसी विशेष होता है और अपने पर इसका पूर्ण अधिकार होता नमूने में नहीं परिवर्तित कर सकते। यह स्वयं ही परिवर्तित होता है तथा कार्य करता है। है इसका सीधा सम्बन्ध दैवी शक्ति से होता है। अतः सहजयोग में पुरोहित तन्त्र के लिए अंतः स्वतः ही यह चलता है, पर वृक्ष की जड़ की तरह इसका चित्त सामूहिकता पर होता है। पर कोई स्थान नहीं है, कभी नहीं । ये धर्माधिकारी अन्ततः आपमें और मुझमें दीवार बन जाते हैं। सभी ऐसी दिशा में चलता है कि न कोई विवाद होता है न झगड़ा.. अर्थात् कोई बाधा ही नहीं होती। मान नेताओं को बता दिया गया है कि कोई भी पत्र या वस्तु आपको मिले तो वह मुझे भेज दें। मैं स्वयं उसे लीजिए कि यदि चट्टान सी कोई बड़ी बाधा आ जाए तो यह इसके गिर्द से निकल जाता है। वृक्ष देखना चाहूँगी कभी-कभी वे ऐसा करते हैं, पर आस्ट्रेलिया में कुछ नेताओं का मुझे बहुत बुरा के हित में चट्टान के कई चक्कर लगाता है। अतः भूतकाल से आप यह जान सकते हैं कि अनुभव है। पर अब यहाँ पर आपका नेता एक एवं विवेकशील व्यक्ति है । मेरे आप कहाँ तक पहुँचे हैं। तथा भविष्य से आप जान अत्यन्त बुद्धिमान पाते हैं कि लक्ष्य कितनी दूर है। यह समझना अति विचार में उसमें कोई कमी नहीं । केवल एक बात है कि कभी-कभी वह लोगों से कुछ अधिक ही कोमल महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्चात्य बुद्धि में ये बातें बड़ी सुगमता से घुसती हैं। वे मुझ से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है दो स्त्रियों के कारण कल मुझे परेशान रखना चाहते। ऐसा न करके आप समूह (ग्रुप) होना पड़ा। इसका कारण केवल एक था कि उसने बनाने लगेंगे, एक व्यक्ति उठकर कहेगा "श्री उन्हें यह नहीं बताया कि वे कितनी भयानक थीं । माताजी ऐसा कहती हैं"। कोई अन्य मेरे टेप आदि अतः मुझे उनकी बकवास झेलनी पड़ी। एक नेता প 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 30 यदि अधिक नरम है तो लोग उसके सिर चढ़ करना चाहते। एक व्यक्ति से मैंने विवाह करने को जाएंगे तथा यदि वह सख्त है तो उसके पीछे पड़ कहा तो वह तीन दिन तक ओझल ही हो गया। आपको विवाह करने होंगे। पर मैं आपको जाएंगे। महसूस करने की बात केवल यह है कि बता दूं कि इन विवाह सम्बन्धी समस्याओं का सारी ही जीवन्त प्रक्रिया है और किसी एक व्यक्ति कारण स्त्रियों का समझौता न कर पाना है। पहली | पा 1. प्रेम बात यह है कि आपको अपने पतियों को को माध्यम बनाकर माँ इस कार्य को अधिक सहज बहुत ढंग से कर रही हैं। मान लीजिए कि हर व्यक्ति करना होगा ताकि वास्तव में हर चीज़ के लिए वे आप के आश्रित हो जाएं। फिर वे क्या करेंगे? ऐसा छोटी-छोटी चीज़ के लिए मुझे लिखे तो बड़ा आपको प्रेमपूर्वक करना है. कष्टदायी ढंग से नहीं । कठिन होगा। व्यर्थ की चीजों के लिए मुझे लिखने किसी चीज की मांग मत कीजिए, कुछ आशा मत का कोई लाभ नहीं दूसरी बात पतियों या पत्नियों की है। आप कीजिए। मात्र स्नेहमय और करुण बनकर अपना प्रेम प्रकट कीजिए । तब उन्हें आदत पड़ जाती है। ऐसी फिल्में या दूरदर्शन न देखें जिनमें पति-पत्नि को झगड़ते दिखाया हो। ऐसा करने पर तोते की इसके बिना वे रह नहीं पाते। ये सब युक्तियाँ तो तरह, आप कुछ कठोर शब्द सीख लेंगे तथा आपके माता-पिता को बतानी चाहिएं थीं। शायद वे भी आपसे ही रहे हों। तो आपको व्यवहार की पति-पत्नि से वैसा ही व्यवहार करेंगे। से प्रश्न सुगमता से सुलझाए जा सकते युक्तियाँ नहीं पता। विवाह के बाद हमें कहना बहुत थे। मेरे विचार में विवाह का निर्वाह करना जितना चाहिए 'हम' | 'मैं' नहीं कहना चाहिए। और समझना 1 स्त्रियों का कार्य है उतना पुरुषों का नहीं। प्रायः चाहिए कि पुरुष स्त्रियों से भिन्न होते हैं। आप पुरुष विवाह नहीं करना चाहते। चाहे उनकी कोई (स्त्रियाँ) समाज की सुरक्षा करती हैं और पुरुष जिम्मेवारी नहीं-बच्चे पैदा करने इत्यादि की। फिर उसका सृजन। आपमें कहीं अधिक धैर्य एवं करुणा 1 भी वे विवाह नहीं करना चाहते। वे थोड़ा सा डरते होनी चाहिए। निःसन्देह यह गुण आपमें है । अपने हैं - विशेषकर पश्चिमी देशों में- भारत में नहीं। स्त्री-सुलभ गुणों को अपनाइए, आप आश्चर्यचकित भारत में लोग विवाह करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें होंगी कि आप पुरुषों के लिए शक्ति बन गई हैं। आप ही पुरुषों की शक्ति हैं। इसी कारण पुरुषों को प्रेम करने वाला, सामने न बोलने वाला, नम्र तथा यदि पुरुष स्त्रियों उनकी बात को सुनने वाला, कोई साथी मिलेगा। आपका सम्मान करना चाहिए। पर पश्चिम में मैंने देखा है कि पुरुष विवाह ही नहीं का सम्मान नहीं करते तो उन्हें हर प्रकार के 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 31 कष्ट होते हैं- विशेष तौर पर भौतिक, वैभव सहजयोग समाज का चित्त हैं। तो यहाँ पर जब तथा मान सम्बन्धी कष्ट। कुछ स्त्रियाँ अत्यन्त मैं किसी को सिर कहती हूँ तो सिर किस प्रकार अधिक अपेक्षा तथा आशा करती हैं। शायद हृदय पर रोब जमा सकता है ? यह नहीं हो सकता। तो लोग यहाँ वहाँ से मेरे कुछ शब्द ले लेते रोमियो-जूलियट सम रोमांचकारी फिल्में देखने का प्रभाव हो। पर उन्हें समझना चाहिए कि हैं तथा सहजयोग में अपनी दुर्बलताओं को न्याय शेक्सपीयर तो अवधूत थे वे इस तरह के जीवन संगत ठहराने के लिए इनका प्रयोग करते हैं। पर की सारहीनता पर प्रकाश डालना चाहते थे। इस तरह का पलायन आपकी उन्नति में सहायक रोमियो-जूलियट, दोनों की मृत्यु हो गई। एक न होगा आप अपने की विरुद्ध चल रहे हैं। यह आपके हित में नहीं। दूसरे की सहचारिता का आनन्द वे न ले सके। इंग्लैंड में भी हमारे सामने बहुत सी समस्याएं मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आप इन घिसे पिटे विचारों को सहजयोग में स्वीकार थीं मुझे पता चला कि विवाह से पूर्व ही रोमांस की पुस्तकें वे पढ़ते हैं-विवाह से पूर्व और विवाह के करेंगे तो आपका पतन होगा, आप सड़ जाएंगे। हम बाद झगड़ा। तो विवाह की आवश्यकता ही क्या नए और ताजा हैं। हम जीवित हैं। स्त्री-पुरुषों के है? बारे इस प्रकार के विचार हम स्वीकार नहीं करते। जब मैं कहती हूँ पुरुष ही परिवार का पुरुष ही परिवार का मुखिया कहने से मेरा अभिप्राय मुखिया है तो इसका अभिप्राय यह नहीं कि पुरुष, यह नहीं है कि आप अपनी पत्नी पर रोब जमाएं या स्त्रियों पर रोब जमाने लगें। मान लीजिए कि मैं उसे तंग करें न ही इसका अर्थ यह है कि नेता कहूँ कि अमुक व्यक्ति आपका नेता है तो मेरा रोब जमाए। उन्हें अपने विवेक, प्रेम, करुणा के मतलब यह नहीं होता कि वह आप पर प्रभुत्व उपयोग से लोगों का उचित प्रकार मार्ग-दर्शन जमाए। यदि मस्तिष्क शरीर पर प्रभुत्व जमाने लगे करना चाहिए तो शरीर का क्या होगा ? इस तरह के परिणाम मुझे एक हास्यास्पद पत्र मिला जिससे पता निकालना मूर्खता है। पर आप परिवार के हृदय हैं। चला कि किसी नेता की पत्नी ने सहजयोगियों को घर तथा कार्यक्रमों पर आने से रोका क्योंकि 'मैं' मस्तिष्क की मृत्यु पहले हो सकती है पर हृदय तो अन्त में ही मृत होता है। उनके घर नहीं जा पाई। क्या आप ऐसा सोच अतः समझने का प्रयत्न कीजिए कि दिल सकते हैं ? यह मूर्खता है। वह नहीं जानती कि और दिमाग में पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए बच्चे ऐसा करने से सहजयोग में उसका कितना पतन हो পাঁ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 32 रहा है। मैं जहाँ चाहूँ जा सकती हैं। पर उसे करती है लिख देते हैं इस प्रकार का गैर जिम्मेदारी दोष अपने पर लेना चाहिए था। यह 'मेरा घर भरा आचरण मेरी समझ में नहीं आता। मैंने जो बातें भी कही जाती हैं । इससे है, ऐसा कहना मूर्खता की पराकाष्ठा है। माँ कभी नहीं कही वे को मेरे घर आना चाहिए। भारतीय विशेषकर अपरिपक्वता तथा उतावली झलकती है। ऐसी बातों ऐसा कहते हैं। श्री माताजी कृपया मेरे घर को पूछा जाना चाहिए। अपनी विवेक बुद्धि का आइए और मेरे साथ खाना खाइए। आप हैं उपयोग कीजिए। अपने नेता से सम्पर्क करना कौन ? आप एक सहजयोगी हैं। तो आपका अत्यन्त आवश्यक है छपने वाली तथा वितरित घर मेरा है, आप मेरे हैं, सभी कुछ मेरा है। होने वाली चीजें तो नेता द्वारा देखी जानी चाहिएं । क्या है ? क्या आप इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है। लिखी हुई कोई आपके घर आने में अलग हैं ? आपके सभी घर मैरे हैं। मैं यदि पुस्तक,टेप आदि सब नेता की आज्ञा तथा सूझ-बूझ जाती हूँ तो भी इसका अर्थ यह नहीं कि मैं से ही निकलने चाहिए। मैं कहूँगी कि नेता अवश्य आपको किसी अन्य व्यक्ति से अधिक प्रेम उन कागजात पर हस्ताक्षर करें। तब मैं उसे उत्तरदायी ठहराऊंगी। परन्तु निरंकुशतापूर्वक यदि करती हूँ । आप कार्य करेंगे तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। किसी के घर जाना अब मेरे लिए समस्या छोटी-छोटी चीजें भी मैं आपको बताऊंगी ? बन रही है। क्योंकि जिसके यहाँ मैं जाती हूँ उस मुझ से मैलबॉर्न में विश्व निर्मल धर्म शुरु करने को व्यक्ति को अहंकार हो जाता है कि श्री माताजी मेरे पूछा गया। मैंने कहा ठीक है। मैं नहीं जानती थी घर आईं थीं। अतः फिर कभी आप न कहें कि श्री | माताजी यह मेरा घर है। श्री माताजी यह आपका यह एक एसोसिएशन होगी, जिसके चुनाव होंगे। विश्व निर्मला धर्म तो हर जगह है पर कोई एसोसिएशन घर है। मैं वहाँ जाऊं तो भी ठीक, न जाऊं तो भी ठीक इससे क्या फर्क पड़ता है ? आदि नहीं। एक प्रकार का समाज विश्व निर्मला धर्म का प्रचार कर रहा है । इसकी कोई संस्था नहीं मैं तुम्हें एक बार फिर से कहती हूँ कि बिना नेता से सम्पर्क किए और बिना उसकी जाँच है। हमें कोई चुनाव नहीं चाहिए। यदि कुछ गलत के कम्प्यूटर के माध्यम से कोई बात नहीं लोग घुस गए तो सहजयोग को पूरी तरह निकाल फैलानी। ऐसा करना मुझे कठिनाई में डाल सकता है और मुझे जेल भी भिजवा सकता यदि आप कुछ और कहना चाहते हैं तो अलग से देंगे। अतः आप केवल न्यास (ट्रस्ट) बना सकते हैं। है। आप समझते क्यों नहीं ? आपकी जो इच्छा करें यह विश्व निर्मला धर्म या सहजयोग के नाम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 33 पर नहीं होना चाहिए। मेरे हाँ कहने का अर्थ यह मैंने ऐसा कोई वृक्ष नहीं देखा जो आयोजन से नहीं कि आप एसोसिएशन आदि कुछ भी बना लें। बढ़ता हो। ज्यादा से ज्यादा आप इसका पोषण कर अब तक जो गलती हुई है उसे ठीक करें इन्हें सकते हैं, पानी दे सकते हैं। पर आप इसके विकास कम किया जाए। केवल उन्हीं लोगों को चुना जाए की गति नहीं बढ़ा सकते। अच्छे हैं और जो अभी तक जो सहजयोग में सभी संस्थाएं विकास की गति को कम बहुत विवेक पूर्वक तथा सीधे-सच्चे ढंग से कार्य कर रहे करती हैं। आरम्भ में चाहे यह प्रतीत हो कि आयोजित करने से गति बढ़ गई है। इसाई, हैं। एक और सलाह दी गई थी कि हम अपना मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दु आदि धर्म भी आयोजन प्रक्षेपण बाहर की दुनिया के सम्मुख करें यदि के बाद बनावटी रूप से बढ़े और खोखले से इसका अर्थ यह है कि हम दूसरी संस्थाओं तक हो गए हमें ठोस व्यक्तितयों तथा ठोस एवं जाएं तो यह गलत है। ये सारी संस्थाएं मृत हैं। ये अन्तर्जात धर्म की आवश्यकता है । इन बनावटी 1 जीवन्त संस्थाएं नहीं हैं। परन्तु यदि ये हमारे पास चीज़ों को हमने नहीं अपनाना। आजकल हम आना चाहें तो ठीक है। हमें अपना सिर फोड़ने के बहुत सी बनावटी खाद उपयोग कर रहे हैं । लिए उनके पास नहीं जाना चाहिए। वहाँ जाकर न लोगों को समझ आने लगी है कि यह हमारे केवल विरोधियों में फंसेंगे बल्कि उनसे आप लिए हानिकारक है । अतः सहजयो ग को नकारात्मकता भी लेंगे समझने का प्रयत्न करें। स्वाभाविक ढंग से, बिना बनावटी संस्थाएं हमें अति सावधान रहना है। आप केवल ऐसे बनाए, परमात्मा की कृपा से कार्य करने सहजयोगी ले सकते हैं जो जिज्ञासु हैं, ईमानदार दीजिए । बनावट तो पतन ही लाती है। हैं, नम्र हैं और जिन्हें सहजयोग में धन तथा सत्ता अब आपके बच्चों के बारे में। मैं पश्चिमी बच्चों के स्वभाव का अध्ययन करती रही हूँ। उनका की आवश्यकता न हो। आस्ट्रेलिया से दो व्यक्ति आए थे और अब चित्त कभी ठीक चीज़ों पर नहीं होता पढ़ाई पर तो देखिए कितने सारे हैं। निःसन्देह सहजयोग बिल्कुल नहीं होता। खाने पर उनका चित्त होता बढ़े गा, पर इसे आयोजित मत कीजिए । है । आयोजन शुरू करते ही बढ़ोतरी रुक जाएगी। पश्चिमी देशों के लोगों को भारत में दस्त हो जाते हैं। आप न गर्मी सहन कर सकते हैं न सर्दी | जैसे आपने देखा होगा कि काटकर सुव्यवस्थित (आयोजित) करने से पेड़ छोटा हो जाता है बौना)। आप अन्तर्दर्शन करें। थोड़ा सा काम करने से आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 34 थक जाते हैं। क्या कारण है ? कारण यह है कि विवेकहीनता के कारण हम यह समझ नहीं पाते। आप सोचते बहुत अधिक हैं। ऐसा ही आप विवाह उन्होंने आपको सिर में तेल लगाने से रोका और होने पर करते हैं। आप सोचने लगते हैं कि मेरी आप रुक गए। परिणामतः आप गंजे हो जाते हैं । प्राथमिकताएं क्या हैं, मैं क्या करूं, विश्लेषण करने वे विग बेच सकते हैं। बालों को ठीक से बढ़ने के लिए पोषण चाहिए। इन्हें भूखा क्यों मारते हैं ? आप लगते हैं। जो भी करना है कर डालिए । बहुत अधिक सोचना आपको रोगों के प्रति दुर्बल बनाता अपने शरीर की भी मालिश कीजिए | सिर की है। मूलाधार चक्र, निःसन्देह, अति महत्वपूर्ण है । मालिश कीजिए अपनी देखभाल कीजिए । बिना बुलावा देना है। यदि मूलाधार दुर्बल है तो आप पकड़ जाते हैं । तेल के बिखरे बाल तो भूतों को आपको कोई रोग हो सकता है। पश्चिम में तो आप साक्षात्कारी लोग हैं. लहरियाँ आप से बह रही हैं. अपने सिर की अच्छी तरह मालिश कीजिए । गुप्त रोग भी बहुत आम हैं। पर भारत में शक्तिशाली मूलाधार के कारण ऐसा नहीं है अतः अब पहली शनिवार को एक घंटा लगाइए। यह शनि का दिन समस्या यह है कि अपने मूलाधार को किस प्रकार है, कृष्ण का दिन है। उन्हें मक्खन-तेल बहुत पसन्द है। छोटी-छोटी बातों को समझ जाना दृढ़ करें ? चाहिए। दूसरे जो खाना आप खाते हैं वह ताजा नहीं मैं समझ सकती हूँ कि आपको धूप बहुत होता। ताजा खाना खाने का प्रयत्न कीजिए | पसन्द है। पर आस्ट्रेलिया में तो बहुत धूप है फिर आस्ट्रेलिया में तो आपको ताजा खाना उपलब्ध हो भी न जाने क्यों यह आपको पसन्द है । फैशन के सकता है। जहाँ तक हो सके कार्बोहाइड्रट अधिक लीजिए। पतले होने की अधिक चिन्ता न कीजिए कारण आप बिगड़ते हैं। आपकी चमड़ी में चमक नहीं आ सकती। उपचार के रूप में आप सूर्य स्नान थोड़े से मोटे व्यक्ति लहरियों को अच्छी तरह सोखते हैं। क्या आप जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ कर सकते हैं। भारतीय लोग अंग्रेजों के इस तरह के अवांछित सूर्य-स्नान पर हैरान होते थे । चर्बी पर बैठती हैं। इस तरह वे स्नायुतंत्र में जाती व्यक्तिगत शुद्धि का भी ध्यान रखा जाना हैं क्योंकि आपके स्नायु चर्बी से बने हैं और आपका मस्तिष्क भी चर्बी से बना है। चाहिए। बहुत से पानी का उपयोग कर हाथ आपके मस्तिष्क में जो भरा जाता है आप धोइए। पाखाना जाने पर हर बार पानी इस्तेमाल उसे स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि कीजिए। ऐसा न करने पर आपका मूलाधार कभी उद्यमियों ने आपको वश में कर लिया है। ठीक न होगा आपके बच्चे अपने दाँत भी नहीं 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 35 है कभी आपको अपना घर बेचना भी पड़ता । साफ करना चाहते। दाँत साफ करने या स्नान करने को यदि उनसे कहें तो वे रोने लगते हैं। तो हर हाल में एक ही दाम मिलेंगे चाहे आप इसे भारत की चिलचिलाती गर्मी में भी वे स्नान नहीं सजाइए या नहीं। लोग तो अनसजे घर खरीदना करना चाहते। उनसे दुर्गन्ध आती है। पर यदि पसन्द करते हैं । तो यही भौतिकवाद है कि हम बेचने के लिए आप उनसे कहें तो वे कहते हैं "हमारे माता-पिता से भी ऐसी ही गंध आती है"। उनके मुँह से भी चीज़ें खरीदने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत हमें चाहिए कि हस्तकला की सुन्दर- सुन्दर वस्तुएं दुर्गन्ध आती है। भारत में तो हमें सुबह-शाम दाँत साफ करने चाहिएं। यह अति आवश्यक है । भारतीय खोजें, इनमें से कुछ खरीदें तथा ये अपने बच्चों को तथा उनकी सन्तानों को दी जाएं। संस्कृति ने ये सब बातें हमें बहुत पहले से सिखाई मेरे कार्यक्रम में बच्चे के रोने का कारण थीं। इन सब कामों के लिए किसी को कहना नहीं जरूर खोजें अवश्य ही कोई परेशानी या बाधा पड़ता। खेल-खेल में ही बच्चों को हम यह सब सिखा देते हैं । सफाई, स्नान आदि आपके तथा होगी यदि बच्चा मेरी उपस्थिति में रोता है आपके बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं । या डरता है तो कोई बाधा अवश्य है। आप व्यक्तिगत सफाई आप लोगों की बहुत कम इस बाधा को दूर करें। तो अब हमें अपने प्रति है। घर तो आपके पूरी तरह साफ होंगे। कालीन दृष्टिकोण बदलना होगा हम आशीर्वादित लोग पर यदि कुछ गिर जाए जो आप इसे तुरन्त साफ हैं। हमें अपने शरीर, अपने बच्चों तथा भौतिकता से अधिक महत्वशील वस्तुओं की देखभाल करनी होगी। करेंगे क्योंकि आपने इसे बेचना है। बेचने योग्य हर चीज़ की आप देखभाल करते हैं। अन्य चीज़ों की यह आत्मा है 1 तो आखिरकार हम इस परिणाम तक पहुँचते नहीं। सहजयोग में हमें समझना चाहिए कि हमारी कोई भी बिकाऊ नहीं है। हमारे पास जो भी है कि जिस आत्मा ने हमें यह सारा सौन्दर्य, सुन्दर वस्तु कुछ है इसे हम स्वयं रखेंगे, अपने बच्चों को देंगे चाँदनी, हमारे कार्यों के लिए सुन्दर धूप प्रदान की या दूसरे लोगों को भेंट कर देंगे। कोई चीज़ बेचेंगे है तथा हमें इतना मधुर बनाया है, उसकी सन्तुष्टि नहीं। आपके बच्चे भी अपने शरीर की सफाई से के लिए और उसका आनन्द लेने के लिए हमने क्या अधिक ध्यान बिकने योग्य वस्तुओं का रखते हैं । किया अतः आत्मा ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । हमें आत्म- आनन्द खोजना चाहिए। हमें अपने विचार बदलने होंगे और कहना होगा कि को बेचेंगे नहीं। जितना अधिक आप आत्मा के विषय में सोचेंगे हम अपनी किसी भी वस्तु 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 36 उतना ही अधिक गहनता में उतरेंगे। अत्यन्त गहन कोई भी नहीं देता। भारत में कम से कम 21 रु. आनन्द आपको प्राप्त होगा। आध्यात्मिकता में स्थापित और 11रु. देते हैं। तो जो भी कुछ आप इकट्ठा हो, सामूहिकता का आनन्द लेते हुए, अति सुन्दर करेंगे, मैं कुछ नहीं कहूँगी और चाँदी आपको दे दूँगी। आप इतने सारे लोग हैं। मुझे ऐसा करना सामान्य बातों में- कोई भी विशेष कार्य पड़ता है. आपको तथा यूरोप को अधिकतर पैसा रूप से आप स्थिर हो जाएंगे। करने से पहले अपने नेताओं से आज्ञा लीजिए। देना पड़ता है। आप भी यूरोप की तरह ही एक महाद्वीप हैं। इसके बाद आपकी अपनी समझदारी है। अन्त में- परन्तु व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे लिए कोई भी धन नहीं देना चाहता। अब आप सहजयोग के लिए कुछ करने के बारे में सोचना देखिए कि जो पैसा आप पूजा के लिए देते हैं चाहिए। हम सहजयोग के लिए क्या कर सकते सभी नेताओं को शिकायत है कि सहजयोग के उसकी तो मैं आपके लिए चाँदी खरीद लेती हैँ। हैं? आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैंने अपने पति आपको यूरोपियन लोगों के बराबर चॉदी दे दी का बहुत सा धन खर्च कर दिया है। मैं आस्ट्रेलिया जाती है जबकि आपका पैसा उनसे कम होता है। में एक बार फिर कुछ करने वाली हूँ जो यहाँ के के लिए एक डॉलर दिया करते थे जो लोगों के लिए बहुत हितकर होगा। इसके लिए मैं पहले वे पूजा सिक्कों के रूप में होता था और जिसे मैं वापिस ले अपना पैसा भी लगा सकती हूँ। इसके बावजूद भी आती थी। मैं इसका उपयोग अपने लिए नहीं लोग नहीं समझते कि मेरे पति मुझे यह सब करने करती, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यद्यपि ये की आज्ञा क्यों देते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इस मुझे दिया जाता है और सामान्यतः मुझे इसका प्रकार उन्हें पूरे आशीर्वाद मिलते हैं। उन्होंने उपयोग करना चाहिए। पर मैंने सोचा कि इसे सहजयोगियों को बताया है कि सहजयोग के खर्चने के स्थान पर आपको चाँदी दे दें क्योंकि कारण ही मुझे ये सब इनाम मिले हैं। परन्तु वे चाँदी के बर्तन पूजा के लिए अति आवश्यक हैं और (श्री माताजी) तो परमात्मा के लिए कार्य कर रही हैं। पर लोग बड़ी हिचकिचाहट पूर्वक हैं। मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि आपने बहुत सा अति शुभ पैसा देते हैं। मैं जानती हूँ कि आपको पैसे की धन दिया। यह उदारता है पर यदि आप कठिनाई है। पर इस कठिनाई का एक कारण यह सहजयोग के लिए धन देते हैं तो किसी अन्य भी हो सकता है कि पूरे विश्व में आप सबसे कम रास्ते से आपको धन मिल जाता है । अपने पैसा सहजयोग के लिए देते हैं। इतना कम और व्यक्तिगत उपयोग के लिए मुझे पैसा नहीं चाहिए। 16 to 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt जनवरी फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी 37 यह आपकी उदारता का द्योतक है। सभी नेताओं सर्वोत्तम दृष्टिकोण है। निःसन्देह एक प्रकार आप की यह सामान्य बात है। मैलबॉर्न का नेता कहता सहजयोग की जिम्मेवारी हैं। पर दृष्टिकोण कैसा है कि कोई पैसा नहीं देना चाहता। वे केवल होना चाहिए? अब आप काफी परिपक्व हैं। बेटा | सहजयोग से लाभ उठाना चाहते हैं। लक्ष्मी जी के जब खड़ा होकर परिपक्व जो जाता है तो वह माता-पिता की देखभाल करता है, इसी प्रकार दृष्टिकोण से यह ठीक बात नहीं है। व्यक्ति को यह भी समझना है कि एक बार आपको सहजयोग की देखभाल करनी चाहिए, न कि सहजयोग आपकी देखभाल करे और आप सदा सहजयोग में आने के बाद, चाहे आप कुछ सहजयोग सहजयोगियों को परेशान करते रहें के लिए खर्चते हैं या नहीं, आप स्वयं को सहजयोग की जिम्मेवारी समझने लगते हैं। यह अति अनुचित अच्छी तरह समझ लीजिए कि आपके लिए है। हर छोटी-छोटी बात में उन्हें सहायता चाहिए । सहजयोग उत्तरदायी नहीं है। आप सहजयोग के निःसन्देह उनकी सहायता होनी चाहिए। जिनके लिए उत्तरदायी हैं। सहजयोग ने आपको इतना पास धन नहीं है हम उनकी सहायता करने का कुछ दिया है। आपने परमात्मा के लिए क्या किया प्रयत्न करते हैं। पर वे एक प्रकार के बोझ बन जाते हैं, सदा इस प्रकार सोचे। यदि आप इस प्रकार 1. सोचने लगेंगे तो जितना अधिक कार्य आप सहजयोग हैं और अन्य सहजयोगियों तथा मुझ से भी वे बहुत के लिए करेंगे उचित, जीवन्त और सन्तुलित ढंग से अधिक आशा करते हैं। किसी का विवाह कर दो तो वह सिरदर्द बन जाता है, पत्र पर पत्र, टेलिफोन जितना अधिक आप सहजयोग के लिए अपनी बुद्धि पर टेलिफोन उचित नहीं। यदि कोई बच्चा बीमार लगाएंगे. उतना ही अधिक आपकी सहायता होगी, है तो बेशक आप मुझे सूचित करें। पर क्रोधी और उतने ही अधिक आप बढ़ेंगे और उतना ही अधिक दुर्व्यवहार करने वाला बच्चा मेरे लिए सिरदर्द है। आनन्द आप लेंगे। आज का प्रवचन आप सब के हो सकता है आप क्रुद्ध स्वभाव हों और पति-पत्नि लिए है क्योंकि मैं नहीं जानती की किस पर क्या परस्पर झगड़ते हों। तो इस दोष को आप क्यों लागू होता है। दूसरों के लिए हम इस बात को न समझे अपने लिए जाने कि हम सहजयोग पर बोझ नहीं दूर करते ? वे चाहते हैं कि उनका हर छोटा-छोटा न बन कर सहजयोग का सहारा होंगे। हमें कार्य भी सहजयोग करे। व्यक्ति को समझना सहजयोग की देखभाल करनी है। यह अति सुन्दर चाहिए कि सहजयोग आपकी जिम्मेवारी है, दृष्टिकोण है । आप सहजयोग की जिम्मेवारी नहीं हैं। यह 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी 38 मुझे (श्री माताजी को)सहजयोग की आवश्यकता आलोचना करता है. लोग आपको क्या कहते हैं नहीं है। पर मैं सहजयोग तथा सहजयोगियों के आदि। पर सुन्दर सम्बन्धों तथा सूझ-बूझ का लिए चिन्तित हूँ। मेरे लिए भी वे सभी मेरी जिम्मेवारी अनुभव आप करेंगे। मुझे विश्वास है कि निश्चित ही यह शिव हैं। मुझे उनकी देखभाल करनी है. उनकी चिन्ता पूजा बहुत ही ऊँचे स्तर पर आपको स्थापित करेगी करनी है। मुझे उनकी बात सुननी है। मुझे उनके और स्थापित होने पर आप इसे जान सकेंगे यहाँ पत्र आदि मिलते हैं। मेरा अभिप्राय है कि इस तरह औ हमारा सम्पर्क सीधे अपनी आत्मा से है । हम आत्मा का कार्य यदि किसी को करना पड़े तो कोई इसे स्वीकार न करेगा। हर हाल में मुझे सहारा देना के विषय में जानते हैं तथा उसके प्रति कृतज्ञ हैं। आत्मा ने जो हमारे लिए किया उसके लिए हम है क्योंकि मेरी आत्मा सन्तुष्ट होती है। यह सन्तुष्टि के लिए है, मेरी अपनी सन्तुष्टि के लिए । इसका सम्मान करते हैं। इस तरह से मैंने (श्री यह स्वार्थ है। जब आप उस आत्मत्व तक पहुँच माताजी ने) परिवर्तन देखा है। एक महान ऊँचाई को अचानक ही आप पा लेते हैं। मुझे विश्वास है जाएंगे तो समझ सकेंगे कि आत्मा की आवश्यकता क्या है। तब इस पर अपनी बुद्धि लगाएंगे। आप कि आस्ट्रेलिया के लोगों के साथ भी ऐसा ही घटित हैरान होंगे कि दूसरों के लिए जब आप कुछ करने होगा अपने क्षुद्र भेदभावों को भूल जाइए। धन एवं लगेंगे तो यह सहजयोग के लिए अति लाभकारी सत्ता के लिए लड़ना मूर्खता है। ठीक होने का प्रयत्न कीजिए मैलबोर्न में इसी मूर्खता के कारण होगा। एक प्रार्थना की तरह। सभी कुछ प्रार्थना है। सहजयोग में जो भी कुछ आप सहजयोग के लिए कुछ लोग पकड़ जाते हैं। उन्हें चाहिए कि स्वयं | को साफ करें, ठीक करें तथा अपनी देखभाल करें। करते हैं यह एक प्रार्थना है. परमात्मा से घनिष्टता है, परमात्मा से एकाकारिता है। इसे हम पूजा भी मेरा आशीर्वाद आपके साथ है । करें। कह सकते हैं। एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे परमात्मा आप पर कृपा तो आप चिन्ता करनी छोड़ देंगे कि कौन आपकी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt 3१ लोगों को प्रभावित कैसे करें ? श्री माता जी निर्मला देवी का प्रवचन हेग, हॉलैंड, 17 सितम्बर, 1986 ाम दूसरों को प्रभावित करने के लिए हमें जानना है मेरी सहायता कर रही हैं और मैं माँ के साथ हूँ मुझे कि हमारा स्वयं पर कितना अनुशासन है। यह किसी की चिन्ता नहीं है।' तब आपका मध्य हृदय ठीक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उदाहरण के रूप में अस्तित्वहीन होगा। नि:सन्देह आप यह सब दूसरों को नहीं बतला लोग यदि दूसरों को प्रमाणित करने का प्रयास करें तो सकते फिर भी यदि आपमें व्यक्तित्व है तो आप इसे मज़ाक बन जाते हैं। जब तक आपकी अपनी कोई सहज ही दूसरों में भर सकते हैं। परन्तु आत्मविश्वासहीन पहचान नहीं है, आपसे कोई प्रभावित नहीं होगा अतः आप यह कार्य नहीं कर सकते। अतः सर्वप्रथम आपको बाह्य व्यक्तित्व से पहले आन्तरिक व्यक्तित्व का विकसित अपने अन्दर आत्मविश्वास स्थापित करना है। होना आवश्यक है। लोगों से बातचीत करते हुए या सहजयोगियों के लिए यह कहना अति सुगम है कि बातचीत करने की आपकी अपनी एक सुन्दर शैली का मैं आत्मा हूँ मैं अबोध हूँ और मुझे स्वयं आदिशक्ति ने होना आवश्यक है। आपकी चाल भी सधी हुई होनी चना है। अतः आपके अन्दर जबरदस्त आत्मविश्वास चाहिए। शिथिलता से टांगो को इधर-उधर फेंकते हुए होना चाहिए। न चलकर सीधे चलें और सीधे ही बैठें। लोगों को जब कोई व्यक्ति आपके पास आया, तो उसे आपके आत्मविश्वास का पता चले। आत्मविश्वासहीन देव-सम मान, उससे बहुत ही मधुरता से बातचीत आचरण दूसरों को प्रभावित नहीं कर सकता। करें। मेरे सम आत्मा उसमें भी तो है। अतः आप उसे आपके आचरण जैसे बातचीत, चाल-ढाल, बैठने अच्छा स्थान बैठने को दें, ध्यान रखें कि वह आराम से तथा संवाद के ढंग से आपका आत्मविश्वास छलकना है, उससे चाय आदि पूछें। उसे आभास करायें कि चाहिए। आत्मविश्वास की एक झलक होनी चाहिए। उसके आने से आप अशान्त या परेशान नहीं प्रसन्न हुए परन्तु पूर्ण तथा सुरक्षित महसूस करने पर ही हैं। अतः आप भी फ्रेम से उसके साथ बैठिए। आत्मविश्वास आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। सहजयोग में यदि की कमी के कारण कभी-कभी आप किसी व्यक्ति आपके मध्य हृदय में असुरक्षा की भावना है तो स्वयं विशेष से घबरा जाते हैं। यह घबराहट आपके अन्दर को आश्वस्त कीजिए कि 'श्री माता जी मेरे साथ है, छिपी असरक्षा की भावना के कारण होती है। किसी से 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt फरवरी, 1997 जनवरी चैतन्य लहरी 40 आदि। या आप अपने संगठन, उत्पादन या किसी अन्य बात करते समय घबराइए नहीं। आपको इस प्रकार चीज़ के विषय में जों बताना चाहें। आपको कहना है बात करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति आश्वस्त होकर आप देखिए यह उपलब्ध है और हमने देखा है कि आपको बहुत ही भला व्यक्ति समझे। दूसरों को बात करने का अवसर देना एक और इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य तरीका है। दूसरों को ध्यान से सुनिए, स्वयं ही न करता है। हमने इसकी बहुत प्रशंसा सुनी है। आप भी विवरण देख सकते हैं। यदि आप चाहें तो प्रयोग कर बोलते जाइए। जब वह कह चुकें तो कहिए निःसन्देह यह सच है. मैं आपसे आश्वस्त हूँ परन्तु स्वयं जान लें। आपको पूरी तरह तैयार होना चाहिए। ..... तब नहीं कहकर अपने उत्पादन का आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए। अपनी बात शुरु कीजिए। नहीं बिल्कुल विवरणिका (सूचना पुस्तिका) आपके पास होनी चाहिए। दूसरों पर आघात मत पहुँचाइए। इसके विपरीत आप देखिए कि ये क्या कहते हैं। आप मुझे देख सकते हैं। कृपया इसे लीजिए और स्वयं देखिए । बाजार पर मैं भी बहुत बार ऐसा करती हूँ। जब कोई व्यक्ति कुछ छाने के लिए उत्पादन के गुणों के साथ-साथ इसे पूरा करने की शैली भी महत्वपूर्ण है। कहता है तो हाँ यह सच है परन्तु यह इस प्रकार है यदि किसी की कोई समस्या हो तो बड़ी ही तो उन्हें बुरा नहीं लगता। वे सोचते हैं कि आपने सहृदयता से पूछ सकते हैं कि क्या समस्या है यह विषय का दूसरा पक्ष भी देखा है, कि आप संतुलित हैं और अपने विचारों से केवल प्रभावित करने का प्रयत्न समस्या हमारे सम्मुख है, अब आप इसका समाधान बताइए ऐसा कहने पर वह व्यक्ति बुरा नहीं मानेगा ही नहीं करते। आप ऐसा कर भी रहे हों तो भी दूसरे यदि मैं तुम्हें कोई बात साफ-साफ कह दूँ तो तुम्हें भी व्यक्ति में इसका आभास नहीं होना चाहिए। अच्छी नहीं लगेगी परन्तु मैं तुम्हें सब कुछ कह देती वेशभूषाः वेशभूषा अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। यदि आप किसी अधिकारी के साथ कार्यरत हैं तो हूँ। परन्तु सब कुछ बड़े नम्र, अनुकूल ढंग से कहती हैँ जिसे आप आसानी से समझ और अपना लेते हैं। ठीक आपका वेश उसके उपयुक्त होना चाहिए, जिससे आप प्रकार का बर्ताव और ठीक प्रकार का आचरण और चुस्त प्रतीत हों। ऐसी शैली जिसे लोग समझ सकें, ब्हुत ही महत्वपूर्ण अपने संगठन के विषय में बात करते हुए मैं का प्रयोग न कर हम कहकर बात कीजिए। सदा है। वास्तव में दूसरों को प्रभावित न करने से लोग संगठन की बात कीजिए अपनी नहीं। मैं ऐसा कार्य स्वयं ही प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला नहीं करूंगा, मैं धृणा करता हूँ, मेरा विश्वास हैं यह कहना अत्यन्त बेतुका है। हमें क्या करना है, हमें निहित है। इसके विषय में कोई भी सावधानी प्रकट विश्वास है, हम ऐसा सोचते हैं। आपकी क्या राय है नहीं होनी चाहिए। दूसरे व्यक्ति से बातचीत करते हुए 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt फरवरी, 1997 चैतन्य लहरी जनवरी यह आप पर निर्भर है कि आप किस तरह से निभायेंगे। भी चाहे आपको पूरी तरह से समझ न आ रहा हो फिर आप पूरी तरह से सूचित हैं और उस व्यक्ति के बारे में भी आप ऐसा प्रकट कीजिए कि आप सब सुन और समझ रहे हैं। जब आप तीन, पाँच या दस व्यक्तियों आपको पूरा ज्ञान है। अतः अब आपका उत्तरदायित्व है। मैं कुछ व्यक्तियों का प्रयोग करती हूँ, ये युक्तियां से सम्पर्क कर रहे हों तो आपको सदा उनके बीच में उत्तम भावनाएं बनानी चाहिए। जैसे मैं चाहूंगी कि आप मेरे स्वभाव में हैं। परन्तु आप भी इन्हें आत्मसात कर शादी करें। फिर मैं आपको किसी लड़के के बारे में सकते हैं ऐसा करना कठिन नहीं है। इन छोटी-छोटी बताऊंगी कि वह कैसा है, और इस तरह बिना चोट बातों का बहुत प्रभाव पड़ता है। आपको पतन की ओर नहीं बढ़ना। प्रभावित पहुँचाए तुम्हें तैयार करूंगी, क्योंकि बाद में उसके विषय में पता चलेगा तो आप कहेंगे कि माँ ने पहले करने के लिए आपको ऊपर उठना है। परन्तु ऊपर जाते हुए आपने यह प्रकट नहीं होने देना अन्यथा ईष्ष्या ऐसा नहीं बताया। अतः बड़े प्रेम से आप कहें उसमें उत्पन्न हो जाएगी। लोग सोचेंगे कि आप बड़े अहंकारी यह बातें थोड़ी-थोड़ी हैं, परन्तु सब ठीक है। वह बहुत ही भला हो सकता है। वह ऐसा करने में समर्थ है अब ह की नम्र बनिए। हैं। अत: बहुत 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt श्री माताजी के मुख से बहता हुआ चैतन्य का प्रवाह