1997 अंक 3 व 4 HIVERSAL FURE चैतन्य लहरी आज के दिन हमारे करने योग्य एक ही कार्य है कि हम अपने अन्तर्निहित असुरों का वध करें, बस। आप यदि वास्तव में मेरी पूजा करना चाहते हैं तो आपको यह सोचना होगा कि आपके अन्दर कौन से असुर हैं मात्र इतना ही बाह्य असुरों की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं, वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते"। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी नवरात्रि पूजा, 1996 ১২০ ১A। HWA NIRMALA ड VIVERSAL PURE RELIGI |ती पाम चैतन्य लहरी विषय सूची य र अंक 3 व 4, 1997 खण्ड IX 1) शिवरात्रि पूजा, दिल्ली - 16.3.97.. ********** छ INCON त 2 ) जन्मदिवस पूजा, दिल्ली 21.3.97... .....E 8. बा 3) श्री गणेश पूजा, कबेला 17 15.9.96............... 4) हॉलैण्ड के विषय में श्री माताजी के विचार.. 23 ाम 5 ) सिडनी वायुपत्तन वार्ता 25 5.3.96.... ष 6) नवरात्रि पूजा, कबेला 27 20.10.96.. *** 7) श्री माताजी को शांति पुरस्का.... 37 *..... DHARMA सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। शिवान नमाई पत्र दा ी प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ॐा नह XI 'ई' मेल का पता- मीवाी िन्दि marketing@nirmalinfosys.com das www.nirmalinfosys.com लश ल द्वा Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ाी चाककी ुडज ित तभ प सताताि च लि शतत 3. शिवरात्रि पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली, 16 मार्च 1997 ा (मूल-हिन्दी प्रवचन) आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हुए हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब हुए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे प्रकाशित होता है हमारी नसों में । चैतन्य के लिए कहा है 'मेदेस्थित', प्रथम 'इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का चर्म पहन कर घूमते हैं मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी चले जाएं। उनको किसी चीज़़ में घटित हो जाने से जो प्रकाश हमारे अन्दर आत्मा कभी ये ख्याल नहीं आता कि लोग क्या कहेंगे, से प्रगटित होता है वो चैतन्य स्वरूप बन कर हमारे दूसरों का क्या विचार होगा? हम अगर ऐसे कपड़े हाथों और तालू से प्रवाहित होता है। ये तो आप लोग जानते हैं; पर आगे की बात समझने की यह तो लोग हमें क्या कहेंगे ? क्योंकि वो अपने ही पहनकर और नन्दी पर बैठकर इधर-उधर भटकें है कि जब यह प्रकाश हमारे अन्दर आता है तो अन्दर समाये हैं। अपने ही खुशियों में बैठे हुए धीरे-धीरे हम देखते हैं कि हमारी जिन्दगी बदलने हैं। उनको कोई भी संसार से ये मतलब नहीं है कि हुए लगती है, हमारे अन्दर का क्रोध और हमारे जो दुनिया हमें क्या कहेगी, लोक-लाज क्या होती है। षटरिपु हैं वो खत्म होने लगते हैं। धीरे-धीरे सब ये तो इनके विवाह में भी आपने वर्णन सुना होगा चीजें गिरती जाती हैं और मन में श्रद्धा प्रस्थापित कि जब ये विवाह करने आए तो श्री विष्णु ने जब होती है। श्रद्धा में त्यागबुद्धि जागृत होती है, किसी देखा तो उन्होंने सोचा कि ये क्या दूल्हा मेरी बहन मार्च - अप्रेैल, 1997 चैतन्य लहरी के लिए आया है, बेकार सा! इससे कैसे मेरी बहन है। हिन्दुस्तानी अब भी जहाँ जाते हैं उनको बाथरूम शादी करेगी ? लेकिन पार्वती जी जानती थीं कि चाहिए साथ जुड़ा हुआ। पता नहीं और दुनिया भर उनके योग्य यही पति है जो एक मस्त-मौला की चीजें। अभी तक इससे उठ नहीं पाए हैं। आदमी है। किसी चीज़ की उनको कद्र नहीं है। स्वभावतः मुझे आश्चर्य होता है कि अपने गरीब देश तो में भी लोगों में अभी काफी कामनाएं बची हैं। बड़े सब चीज़ों से जब आदमी ऊपर उठ जाता है आश्चर्य की बात है! हमें लोगों ने कहा कि माँ एक उसके लिए सब चीज़ एक किन्चित पदार्थ हो जाती आश्रम के लिए एक बड़ी सी जगह ले लें। हमारे हैं उसका ध्यान इस ओर नहीं जाता। ये शिवजी का जो अवतार हम लोग देखते हिन्दुस्तानी कभी आश्रम में रहते नहीं । अब ये आश्रम जब हम लोगों ने बनाया, इतनी मेहनत से, हैं हमें बहुत प्यारा लगता है, मोहक लगता है और सब लोग सोचते हैं कि शिवजी का सारा ही काम खर्च करके तो इसमें रहने के लिए कोई तैयार कुछ तो भी विशेष है। लेकिन जब सहजयोगियों में नहीं । हमने कहा बाबा हम तुमको तनख्वाह देते हैं, शिवजी का प्रकाश आ जाता है तो उनका भी तुम रहो। पर तैयार नहीं। मेरा जो जन्मस्थान है. जीवन बदलने लगता है। मैंने देखा है कि जैसे छिन्दवाड़े में, उस घर के लिए इतना रुपया-पैसा पहले सहजयोग में आए, औरतें भी, आदमी भी, सब खर्चा किया और मैंने कहा जो रिटायर हो गए हैं सजना-धजना शुरु कर देते थे। सारा ध्यान इसी वहाँ रहें। बड़ी अच्छी आबो-हवा है, पहाड़ी स्थान में रहता था कि आज क्या पहनें, कल क्या पहनें, है। कोई रहने को तैयार नहीं। सब अपने आराम और आजकल तो इसका प्रादुर्भाव बहुत हो गया है को सोचते हैं। इन लोगों में यह बात नहीं है। वे लोग आश्रमों में बड़े सुख से रहते हैं। मेरा घर, मेरी क्योंकि सब जगह बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधन गृह निकल आए हैं, ये है, वो है, तो औरतें इसमें बहुत जगह, मेरी बीवी, खाना बनना चाहिए इस तरह से फँसी हैं। पर जब आपके अन्दर से निखार, आपके ये यही खाना खाएंगे हम लोग इतने स्वाद में सौन्दर्य का, इस प्रकाश से आता है तब इन सब उलझे हुए हैं इन लोगों में ये स्थिति नहीं है । हिन्दुस्तानी खाना भी शौक से खाते हैं। लेकिन मुझे चीज़ों का कोई महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह आराम, आराम भी एक तरह से आत्मा का ही मालूम है कि जब हिन्दुस्तानी कबेला आते हैं तो आराम मनुष्य खोजता है। अपने आराम से दूर अपनी रोटियाँ परांठे-वराँठे, अचार-वचार बाँध के रहता है। इसमें जो परदेशी लोग हैं, इनको देखिए, लाते हैं क्योंकि उनके जीभ से नहीं उतरेगा । सभी ये बड़े-बड़े घरों में रहते हैं, इनके पास मोटरे हैं तो जीभ में ही फँसा हुआ है । सो ध्यान करने से सबकुछ, रईस हैं। पर यहाँ आते हैं तो हर जगह जब तक ये चीजें छूटेंगी नहीं तो आप धर्म से परे समा जाते हैं। पर हिन्दुस्तानियों का ये हाल नहीं नहीं जा सकते। एक छोटी सी बात समझने की है मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी कि त्याग में भी हम लोग कम पड़ जाते हैं। इस नहीं सकता वह सहजयोगी नहीं है। वो अभी भी सोचता है कि मैं कोई विशेष हूँ, मेरा अलग बार इन्होंने कहा कि माँ आप इतनी बड़ी जमीन ले रहे हैं, इतना खर्चा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सब इंतजाम होना चाहिए वो सहजयोगी नहीं हो थोड़ा सा ज्यादा पैसा कर दो। न जाने कितनी सकता। वो नाम मात्र को सहजयोगी हैं। जो शंकर 1. चिट्ठियाँ मेरे पास आई कि आप पूजा का पैसा जी का भक्त है उसको शंकर जी जैसा होना है। कहीं भी सुला दो, कहीं भी बैठा दो, कुछ भी खाने कम कर दीजिए, पूजा का पैसा कम कर दीजिए। अरे भई एक बार दिल्ली में पूजा हो रही है उसमें को दो, उसको किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं भी चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ । पान खाकर लोग फेंक है। समय की पाबन्दी नहीं, किसी चीज की माँग देंगे लेकिन में जरूरी है पैसा देना! आपसे नहीं; ऐसा ही आदमी हम कह सकते हैं, सहजयोगी पूजा पहले हमने कोई पैसा नहीं लिया। सारी चीज़ें है। शिवजी का आपके अन्दर प्रादुर्भाव हो गया । अपने ही दम पर सब करी। लेकिन इतना सा कहते ही आज आधा मण्डप खाली है। क्यों ? लोग तो इसको प्राप्त करने से पहले ही न जाने क्या-क्या कर्म करते हैं। और किसी पद्धति में आप क्योंकि पूजा का पैसा नहीं देना। फोन करते हैं कि हमारी पूजा माफ कर दीजिए अरे भई आप कोई जाइए वो आपके सारे पैसे नोच लेंगे, आपके सारे कम नौकरी हो ऐसा नहीं है हमारे पति देंगे मैं बाल नोच लेंगे, पता नहीं क्या-क्या करेंगे। सहजयोग नहीं दूंगी। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। अभी अगर में ऐसा नहीं है लेकिन ये वृत्ति, जो अब भी हमारे कोई औघड़ गुरु होते तो आप लोगों के सबके बाल अन्दर बनी हुई है, इसको छोड़ना चाहिए। यह प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्या-क्या चीज़ छोड़ मुंडा कर और आपको गेरुआ वस्त्र पहनाकर सर सकते हैं। जब तक ये मस्ती आपके अन्दर नहीं के बल खड़ा कर देते। लेकिन मैं यह नहीं चाहती, क्योंकि सहज की बात है। सब चीज़ सहज में आएगी तब तक आपको शिवजी का भक्त नहीं कह आना चाहिए। हमने बहुत लोगों को त्याग करते सकते अपने जीवन में देखा है। और आजकल लोगों में उसकी कोई विशेषता तो है नहीं। सब तरह के । माता जी के तो हर तरह के भक्त हैं। भक्त हैं, चाहे जो भी करें, चलो माँ ही है, माँ माफ मैंने वो देखा ही नहीं । हमारी माँ का मुझे मालूम है कि छःसाड़ियों से सातवीं साड़ी उनके पास हो कर देती हैं। पर माफ कर देने से आप उस पद को जाए तो दे डालती थीं। वहाँ भी लोग आते हैं प्राप्त नहीं कर सकते। माफ करने की बात सबसे कबेला में तो आश्चर्य होता है कि उन्हें अलग से बड़ी यह है कि शिवजी से हर समय माफी माँगनी कमरा चाहिए, घर चाहिए, अलग से रहेंगे सबके चाहिए, हर समय क्षमा माँगनी चाहिए, क्योंकि साथ नहीं रहेगें। जो सब के साथ मिलकर रह पग-पग हम ऐसे काम करते हैं जो हमें नहीं करना 1. मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी चाहिए। उनसे क्षमा माँगनी चाहिए कि, हे शम्भो इससे तो आपका सोना हो गया और सोने पर तो हमें क्षमा कर दें। हम ये गलती करते हैं, हम वो कोई कलंक लग ही नहीं सकता, उसपे कोई चीज गलती करते हैं, हमारे अन्दर ये जरूरते हैं, हमारे चढ़ ही नहीं सकती वो अब आप हो गए हैं, उस अन्दर वो जरूरते हैं, हमको ये चाहिए, हमको वो स्थिति को प्राप्त करें। अब भी क्यों ये गुलामी चाहिए। जब तक चाहिए. अपने अन्दर हैं, तब तक दुनिया भर की चीज़ों की ? यही कुण्डलिनी की आप परमात्मा से क्षमा माँगे। मेरा घर मेरी बीवी, विशेषता है कि यह आपको पूरी तरह से सफाई में इस तरह एक अधिकार की भावना, जो हमारे डाल देती है। सेवा, हाँ भई सेवा भी करनी चाहिए. अन्दरं है, इसको जब हम छोड़ नहीं सकते तो हम पर मुझे तो कोई सेवा खास आपकी चाहिए नहीं । शिवजी के भक्त नहीं हो सकते। इस मामले में मैं खुद ही मस्त-मौला हूँ मुझे आप क्या सेवा देंगे? आश्चर्य की बात है कि परदेश के लोगों ने तो सिर्फ ये है कि आप अपने अन्दर ये मस्त-मौलापन इतना पा लिया, जिन्होंने कभी सुना भी न था ले आइए। एक आनन्द में विभोर रहने पर ये शिवजी का नाम और हम लोग अभी भी उसी में सोचना चाहिए कि यह सब चीजें कुछ तो आनन्द ही के लिए हैं और वो आनन्द हमको अगर मिलता चिपके हुए हैं, और उसी को इतना मानते हैं। शिव होने का मतलब यह है कि सर्वथा ही है बगैर कुछ किए तो ये सब करने की क्या दुनिया भर की जो हमारे अन्दर लोलुपता है, जो जरूरत है ? है हमारे अन्दर नफरत है, जो हमारे अन्दर दुष्टता बहुत कुछ सोचने पर मैं इस नतीजे पर उसको छोड़ देना है। पर मनुष्य सहजयोग में आने पहुँची हूँ कि सहज जो है वो है तो बहुत सरल पर भी अपने को देख नहीं पाता। मैंने सुना एक और इसलिए बहुत कठिन है। अगर कोई डण्डा सास हैं जो अपनी बहू को सता रही हैं। मैंने कहा लेकर खड़ा हो और कहे कि चलो सब बाल तुम क्यों सता रही हो तो वो कहने लगी मैंने तो मुंडाओ, गेरुए वस्त्र पहनो, 14 दिन तक भूख सताया ही नहीं। सिनेमा में जाएंगे, देखेंगे कोई हड़ताल, तो हो गया। उसमें ठीक हो जाते हैं। पर जो सहज है उसको अपने हृदय से, अपने मन से, सास बहू को सता रही है तो रोएंगे, वही और घर में आकर बहू को सताएंगे या बहू सास को अपनी बुद्धि से स्वीकार्य करके और उसमें अपनी ही सताएगी। लेकिन कहेंगे कि मैंने कभी किसी को ताड़ना करना, अपने को ही ठीक करना, मैं ऐसे सताया ही नहीं। इस तरह के झूठ को अपने क्यों करता हूँ ? ऐसा मुझे करना चाहिए क्या ? आवरण में रखकर सहजयोग में आप उठ नहीं इसमें बहुत कुछ छूट जाएगा और इससे एक तरह सकते क्योंकि ये आप की जिन्दगी बदल देता है, से आप अपने को पाइएगा कि आप समर्थ हैं। मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी ुा आपको कोई चीज़ की गरज नहीं, आपको कोई नाथ लोग थे, वे भ्रमण करते थे, दुनिया भर में जाते थे। और उन्होंने बहुत कुछ लोगों को शिक्षा दी। मैं चीज़ की इच्छा नहीं, बस बैठे हैं आराम से। और आश्चर्य की बात है कि जब चैतन्य यह जानता है तो हैरान हुई कि ये लोग कहाँ-कहाँ पहुँचे थे। कि आपको कोई चीज़ की गरज नहीं तो आपके कोलम्बिया में गई थी तो वहाँ पता हुआ कि सामने थाली परोस कर लाता है। हो सकता है बोलीविया में ये लोग आए थे अब कोलम्बिया में प्रलोभन के लिए हो। फिर देखिएगा आपको क्या 1 अगर आप जाएं तो हवाई जहाज में चक्कर आने है। कोई आपकी जरूरत ऐसी है ही नहीं जो लगते हैं, इतना ऊंचा है। और उस वक्त तो सब पैदल ही लोग जाते होंगे! तो ये गए कैसे होंगे ये पूरी नहीं कर सकता। पर इसमें थोड़ी सी लगन होनी चाहिए। ही समझ में नहीं आता ? रूस में, रूस के और भी आज शिवजी का हम लोगों ने इतना आहान , देशों में इनका भ्रमण हुआ, और कैसे करते थे, कहाँ किया और उनको तो ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। रहते थे, क्या पहनते थे, कुछ पता नहीं। क्योंकि वो उनमें हममें यही फर्क है कि हमें सब तरह के लोग दशा आ जाती है फिर आप एक चमत्कार पूर्ण अच्छे लगते हैं उनको नहीं। उनको ऐसे ही लोग इन्सान हो जाते हैं। जैसा हम जानते हैं कि शिरडी अच्छे लगते हैं जिन्होंने ये सब छोड़ दिया ये सब के साईनाथ, कहीं भी उद्भव होता है उनका, वे | व्याधियाँ हैं हमारे अन्दर। एक-एक चीज़ में कि कहीं भी आते है। कहीं भी किसी की मदद कर देते भई कपड़े ऐसे पहने, नहीं पहने तो क्या हो जाएगा ? हैं लोग कहते हैं माँ हमने तो उनको देखा, हाँ लेकिन हमारे यहाँ सन्यास बाह्य का नहीं माना देख सकते हैं, क्यों नहीं ? ऐसे लोग अमर हो जाते जाता, अन्दर से; अन्दर से आप सन्यस्थ हो जाएंगे हैं क्योंकि उनकी मारने वाली जो वृत्तियाँ हैं खत्म और सन्यस्थ होने पर कोई भी चीज़ की कामना हो गईं। फिर वो अमर हो जाते हैं और इसी नहीं रह जाती। जहाँ है वहीं मस्त बैठे हैं। पहले अमरत्व को प्राप्त करना ही शिवजी की पूजा है। 1 पतम जन्मदिवस पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली 21 मार्च 1997 (मूल हिन्दी प्रवचन) क आप सबको अनन्त आशीर्वाद । जाते हैं तो सत्य की महिमा का वर्णन कोई नहीं जब सब दुनिया सोती है तब एक सहजयोगी कर सकता। मैंने किसी से भई सहज में तुम्हें पूछा जागता है और जब सब दुनिया जागती है तो क्या मिला? बोले माँ ये नहीं बता सकते पर सब सहजयोगी सोता है। इसका मतलब ये होता है कि मिल गया। सब कुछ माने क्या? मैं भी कहूँगी कुछ है कि आज के दिन मुझे सहज में सब कुछ मिल गया जिन चीज़ों की तरफ सहजयोगियों का रुख उस तरफ और लोगों का रुख नही। उनका रुख है। मैं जब छोटी थी तो अपने पिता से कहती थीं और चीजों में है किसी न किसी तरह से वो सत्य कि मैं चाहती हूँ कि जैसे आकाश में तारे हैं ऐसे से विमुख हैं, मानें किसी को पैसे का चक्कर, किसी दुनिया में अनेक लोग तारे जैसे चमकें और परमात्मा को सत्ता का चक्कर, न जाने कैसे-कैसे चक्कर में का प्रकाश फैलाएं। कहने लगे हो सकता है। तुम इंसान घूमता रहता है और भूला-भटका, सत्य से सामूहिक चेतना जागृत करने की व्यवस्था करो परे, उसकी ओर उसकी नज़र नहीं है कोई और कुछ भाषण मत दो, कुछ लिखो नहीं, नहीं तो कहेगा कि इसका कारण ये है, उसका कारण ये है दूसरा बाईबल तैयार हो जाएगा, कुरान तैयार हो कोई न कोई विश्लेषण कर सकता है। पर मैं जाएगा और एक झगड़े की चीज़ शुरु हो जाएगी। सोचती हूँ अज्ञान, अज्ञान में मनुष्य न जाने क्या-क्या सो इससे पहले तुम सामूहिक चेतना करो और करता है। एक तरह का अंधकार, घना अंधकार, सामहिक चेतना का कार्य हो गया, अनायास, शुरु में! लेकिन उसकी जो समस्याएं हैं वो मुझे छा जाता है जैसे अभी यहाँ अगर अंधकार हो सहज लोग जाए तो न जाने भगदड़ मच जाए., कुछ आपसे आज बतानी हैं। उठकर भागना शुरु कर दें, कितने लोगों को गिरा दें, उनके ऊपर पाव रख दें, उन्हें चोट लग जाए। चेतना हो गई और सब जगह लोग इतने ज्यादा बहुत आनन्द की चीज़ है कि सामूहिक कुछ भी हो सकता है। इस अंधकार में हम लोग मात्रा में, हर देश में, लोग सत्य को पा गए और जब रहते हैं तब हमारी निद्रा अवस्था है। लेकिन उसमें ही आनन्द में हैं। लेकिन कष्ट तब होता है, हम जब जागृत हो गए, जब कुण्डलिनी का जागरण ये सोच करके, कि सामूहिक चेतना में हमने कोई हो गया और जब आप सत्य के सामने खड़े हो चयन नहीं किया; दरवाजा खोल दिया हर तरह से ा मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी लोग अन्दर आ गए और अपने साथ अपनी गन्दगी हैं, इससे इंसान खुश हो जाता है देखता है कि देखो रबड़ में भी कितनी शक्ति है कि वो हमें सुख भी लेकर अन्दर चले आए। और जब ऐसे थोड़े से भी लोग आ जाते हैं तो वो बहुत नुकसान देते हैं। और आनन्द दे सकता है, और वो भी एक बड़ी सौन्दर्यपूर्ण वस्तु बन सकता है। फिर हम तो मनुष्य नामदेव वगैरह तो बिल्कुल जो पहले बड़े साधु-सन्त हो गए. जो अपने ही लोग हैं, उन्होंने हैं और मनुष्य में हम आज सहजयोगी हैं, पहुँचे हुए तो साफ-साफ कह दिया था कि जो कि बुरे हैं वो लोग हैं। सो इन लोगों की एक स्थिति आने के लिए क्या करना चाहिए ? अच्छे हो ही नहीं सकते; उनकी आदतें ठीक हो ही अभी मेरा एक अनुभव हुआ जो मैं आपको नहीं सकतीं। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा एक मक्खी लीजिए: मक्खी एक तो आपके खाने पर एक कथा के रूप में बताती हूँ। मुझे बड़ा दुःख बैठेगी तो भी मार डालेगी और अगर कहीं मर गई हुआ। मैं इसलिए ये सब हिन्दी में बोल रही हैूँ और पेट में चली गई तो भी आप मर जाएंगे। ये क्योंकि ये ज्यादातर दोष हिन्दुस्तानियों में हैं । मक्खी नहीं ठीक हो सकती। उन्होंने कहा कि ऐसे अंग्रेजों में इतना नहीं, परदेश में भी इतना नहीं। मक्खी वाले बहुत से लोग बहुत सा उनको गुड़ उन लोगों को इस की अक्ल भी कम है। हमारे देश चिपकाने का शौक होता है और उसकी ओर में पहले ये हमारी भारत माता, पूरी सम्पूर्ण, इसमें दौड़ते ही रहते हैं। सो सहज में ये चीजें सब अनेक तरह के देश समाए हुए थे। आप जानते हैं हमारी गिर जानी चाहिएं। जब तक ये गिरती नहीं इसमें बर्मा था, सीलोन था, पाकिस्तान, बांग्लादेश तब तक हम ऊँचे उठ नहीं सकते। पंखो में अगर आदि अनेक देश समाए हुए थे। ये हमारी माँ है भारत माता'। पर इसको लोगों ने काट-पीट कोई चीज़ लग जाए तो पक्षी भी नहीं उड़ पाते। इसलिए जो ये आनन्द का आकाश है जिसे कि लिया। किसलिए काटा-पीटा ? वो ऐसी बात हो जाती है कि जैसे कोई लोग इस देश में ऐसे हो गए कवियों ने रागांचल कहा है-माँ के प्यार का जिन्होंने सोचा कि ये हमारे देश के लीडर हो गए, आंचल- इसमें आप एक पक्षी की तरह उड़ नहीं ये बड़े आदमी हो गए तो हम क्यों न कुछ ऐसा करें सकते, क्योंकि आपके पंखों में भी कुछ न कुछ अभी कि हम भी बड़े हो जाएं। ये अगर प्रधानमन्त्री हो लगा हुआ है। आज का दिन शुभ दिन है और बहुत से सकते हैं तो हम भी प्रधानमन्त्री हो सकते हैं। ईष्ष्या, पहली चीज, ईष्ष्या हो गई कि हमारा एक देश हो लोग सोचते हैं कि बहुत बड़ा दिन है और इस दिन कोई विशेष कार्य हुआ; ऐसे लोगों ने कहा हुआ है। जाए हम अगर विभाजन कर लें तो उतना हिस्सा लेकिन आज के दिन एक विशेष कार्य आप लोगों हमको मिल जाएगा। उस पर हम राज-पाट करेंगे। जैसे बहुत से बड़े-बड़़े परिवारों में ऐसा होता है कि को करना है। इतने सारे आपने गुब्बारे लगा रखे मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी 10 लोग चाहते हैं हमारा अलग घर हो, हम अलग से कल्पना नहीं है तो आप सहजयोग छोड़ जाएं वही रहें, हमारे बीवी-बच्चे हों, हम वहीं रहें और किसी अच्छा है। अभी एक बहुत भारी वारदात हो गई कि एक निकालते थे। से मतलब न रखें। तो विभाजन करने की एक साहब सहजयोग में थे बो सबके भूत प्रवृत्ति मनुष्य में है। और उसी के कारण, समझ मैंने कहा बन्द कीजिए, ये भूत आपको पकड़ेंगे। पर लीजिए आप, बांग्लादेश बना तो मैं अभिभूत हो गई कि लोगों ने इतना सा बांगला देश माँगा! और उनको शौक हो गया। हो सकता है लोग उनको इसलिए कि कुछ लोग चाहते थे कि हमारा राज्य पैसा देते हों या बहुत बड़ा आदमी कहते हों, जो हो। आप इस्लाम का नाम लो या किसी भी धर्म के भी हो। जो भी हो उन्होंने अपना एक अलग ग्रुप निकाल लिया। सहजयोग के भी कुछ ऐसे लोग थे नाम पर कोई न कोई बहाने से विभाजन कर डाला और आज बांग्लादेश का ये हाल है कि हमें लोग वो भी अलग हो गए। एक अलग ग्रुप बनाकर कहते हैं माँ आप मत जाओ नहीं तो आप की उन्होंने एक अलग से संस्था निकाली। हाँ मेरे बारे आँखों से अविरल अश्रु धारा बहती रहेगी इतनी में उनको कहते शंका नहीं थी लेकिन और जो दुर्दशा है। पाकिस्तान का क्या हाल है ? सीलोन लोग हैं और लीडर जो हैं, किसी काम के नहीं जिसको कि अब श्री लंका कहते हैं उसका क्या कुछ उसके दोष, कुछ उसके दोष, कुछ सबके दोष हाल है? ये जो तोड़-तोड़कर देश के इन्होंने निकाल कर उन्होंने कहा कि हम बड़े शुद्ध आचरण अलग भाग बनाए और सोचा कि अब इसमें हम के लीडर हैं, और हम माँ के भक्त हैं। मुझसे बिना राज करेंगे, अधिकतर उनके प्रधानमन्त्री वगैरह को पूछे, मुझसे इजाज़त लिए बिना, उन्होंने एक बड़ा वहीं के लोगों ने मार डाला। उनका खून कर ग्रुप बना लिया। मेरे फोटो खूब दिखाये दुनिया भर डाला। सो ईष्ष्या से ईष्ष्या बढ़ती है और फिर इसी को पता नहीं क्या धन्धा करते थे, मुझे तो पता ही तरह के समूह बन जाते हैं और फिर लड़ते हैं कि यह तो हमें चाहिए। अभी भी अपने यहाँ बहुत चला नहीं कि क्या हो रहा था और लीडरों को ये लीडर 1. अच्छा नहीं वो लीडर अच्छा नहीं। अगर कोई हुआ है विभाजन का विचार। जैसे हमारे यहाँ कहीं खराब हो तो मैं खुद जान जाऊंगी। जब मुझे मानते विदर्भ है तो कहीं झारखण्ड है। ये बनाने से क्या हैं तो मुझ पर छोड़ देना चाहिए । मुझे तय कर लेने मिलेगा ? किसको क्या मिला है विभाजन से? दीजिए कि लीडर अच्छा है या नहीं लेकिन लीडर सहजयोग इसके बिल्कुल विरोध में है कि हम को तुम ऐसे हो, तुमने ये क्यों किया, तुम ऐसे क्यों किसी चीज़ का विभाजन करें हमको तो सबको करते हो? इसका अधिकार आपको नहीं है अब जोड़ना है (synthesis) सहजयोग सारा समन्वय कोई कहेगा लीडर क्यों है सहजयोग में । इसलिए पर चलता है और अगर आपको समन्वय की कोई है कि मेरा सम्बन्ध सबके साथ नहीं हो सकता, अप्रैल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 11 क्योंकि अन्तिम निर्णय (Last Judgement) है न । अगर बीच में एक इंसान रहे तो उसके माध्यम से मैं सबसे सम्बन्धित हो सकती हूँ। तो वो लीडर परतो छन-छनकर ऐसे लोग इकट्ठे हो गए और नाराज हो गए, ये लीडर ठीक नहीं, ये ऐसा है वैसा लीडर का चरित्र अच्छा नहीं तो फलाना अच्छा नहीं, तो वो पैसा खाता है, ये है वो है। सी बी आई नहीं। उसका जो दोष हो, उसकी जो तकलीफ हो, उसको मुझे निकालना चाहिए न कि आपको। से बढ़कर। मैंने कहा भई हद हो गई, मुझसे पूछो अगर आपको तकलीफ है तो आप मुझे लिखो। पर तो मेरा प्रमाणपत्र (Certificate) तो लो। लेकिन हम माँ आपको तो मानते हैं लेकिन मैं जो कर रही आप. अगर ऐसे आदमी से कहें कि अच्छा अब आपको लीडर पसन्द नहीं है तो आप सहजयोग हूँ उसको नहीं मानते। करते-करते ये बेवकूफ छोड़ दो, तो उसके साथ और ऐसे दस अधकचरे लोग गणपति पुले पहुँचे वहाँ इन्होंने मेरे ऊपर सहजयोगी जुट जाएंगे और फिर उस लीडर के पत्थर फेंके, क्योंकि जब दुर्बुद्धि हो जाती है जब लिए ये काम करने लगेंगे इसी तरह का एक बन बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तो आपको होश ही नहीं गया। उसमें 70-80 लोग इस तरह के इकट्ठे हो रहती कि आप बोल क्या रहे हैं कर क्या रहे है, गए जिनकी मैंने कभी शक्ल नहीं देखी, जिनका जैसे शराबी आदमी हो जाता है उस तरह की कभी नाम नहीं सुना, मैं जानती नहीं कि ये हालत हो जाती है । और वहाँ पर उन्होंने हंगामा सहजयोगी हैं। अब उन महाशय ने कह दिया कि मचा दिया प्रोग्राम में आ गए मैंने देखा इतने मैं तो कल्कि का अवतार हूँ। चलो भई हो, मुझे खराब उनकी चैतन्य लहरियाँ (Vibrations), मैंने कुछ नहीं कहना। हो जाओ और तुम सहज से कहा बाप रे बाप ये सहजयोग में बैठने वाले हैं ? हटो, बस, सहज में आपका कोई स्थान नहीं। इन अपनी चैतन्य लहरियाँ ठीक करने की जगह दूसरों लोगों ने उनको मान लिया कि ये कल्कि का के चैतन्य लहरियाँ ठीक कर रहे हैं । तो ऐसे जो अवतार है। उसी के ये लोग चरण छूने लगे थे, लोग सहज में लोग हैं उनको सहज छोड़ ही चरण छू महाराज, पैसा छू महाराज! सब तरह के देना चाहिए क्योंकि सहज वो हैं नहीं। लेकिन 1 महाराज होते हैं तभी ये बने। तो पैसे लिए इनसे । अगर एक-आध माई का लाल खड़ा हो गया तो ये लोग जो दोष अपने लीडरों में दिखा रहे थे वही उसकी दुम पकड़कर बहुत से लोग सोचते हैं कि दोष उनके अन्दर थे। बहुत अच्छे से उनका वो स्वर्ग में चले जाएंगे कैसे ? प्रादुर्भाव हुआ सहज एक सामूहिक कार्य है, एक सामूहिक और सब देखने लग गए कि ये क्या हैं ? तो इस तरह की ईष्ष्या और महत्वाकांक्षा हो संस्था। इसमें किसी का नाक उधर, तो ऑँख उधर, जाती है। लेकिन बेवकूफ जितने भी सहजयोगी थे किसी का हाथ उधर। तो ये चलने ही नहीं वाला क्योंकि चैतन्य को ये बात पसन्द नहीं है फिर मैंने छन कर उसमें चले गए । बड़़ी कमाल की चीज़़ है मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 12 तुम बगावत कर रहे हो, तो कहने लगे बात कहनी पड़ी है। इस तरह के अगर धन्धे करने कहा कि आप हमें गाली दे रहे हैं। मैंने कहा नहीं मैं आपका हैं तो अभी आप सहज से अपना आसन लेकर 1 वर्णन कर रही हूँ कि आप चैतन्य से बगावत मत तशरीफ बाहर ले जाइये उसमें मुझे कोई हर्ज करो। इसीलिए वहाँ भूकम्प आ गया और अब आगे नहीं । सहजयोग में किसी पर जबरदस्ती नहीं है, क्या होगा एक माँ की दृष्टि से मैंने कहा कि भई आप जानते हैं। मैंने तो कभी अपने घरवालों पर भी देखो सत्य और परमात्मा जो है वो कोई तुमको जबरदस्ती नहीं की कि तुम सहज करो। हालांकि क्षमा नहीं करेंगे, मैं तो माँ हूँ मेरी बात दूसरी है । मैं जानती हूँ कि इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं वो तुमको नहीं छोड़ेंगे, तुम मेहरबानी करके सब है पर मैंने उनसे भी कभी नहीं कहा कि तुम सहज धन्धे छोड़ कर दो। लेकिन लागी नाहीं छूटे वही करो। करना हो तो करो नहीं तो मत करो, पर ऐसे धन्धे नहीं करना। इसका मतलब है आप कभी भी बात है। उसी चक्कर में वो फँसे हैं। आजकल मैंने सुना है देहरादून में बड़े जोरों सहजयोगी नहीं हो सकते। एक तरह से सहज की दृष्टि से अपने लीडर से इस तरह से बर्ताव करना में ये काम हो रहा है। उधर झारखण्ड चल रहा है, इधर एक भूतखण्ड भी चल रहा है। अब अगर महापाप है और उसको लेकर ग्रुप बनाना तो उससे सहजयोग से इन दो-चार बदमाश लोगों को भी महापाप है। अगर आप लोग चाहें तो आप मुझे निकाल दिया जाए तो उनके साथ जुटने वाले भी चिट्ठी लिखें मैं उस पर खबर करूंगी मुझे तो बहुत से लोग हैं। और एक दूसरा ग्रुप बना लेंगे चैतन्य (Vibrations) पर फौरन पता चल जाता है पर उस ग्रुप के लिए मुझे हर्ज नहीं। कृपया चले कि वाकई में आप सच हैं कि वो और दुनिया भर जाएं और गंगा जी में डूब जाएं, मुझे उसमें कोई की चीजें उसमें लिखते हैं। चिट्ठी भी आती है तो हर्ज नहीं। पर वो सहज में नहीं रह सकते और उसमें इतनी बकवास कि मैं उधर ध्यान ही नहीं मेरा नाम नहीं ले सकते, मेरा फोटो नहीं लगा देती। वो लीडर ऐसा है, वो लीडर ऐसा है। अरे सकते। आज ये बात बड़ी दुखदाई लगी जब मैंने आप कौन बड़े शुद्ध आत्मा हैं ? आप अपने को तो सुना कि जिस आदमी पर मेरा इतना विश्वास, देख लीजिए देखना चाहिए। जब आप ही नहीं जिसने इतना कार्य किया, उसी से कहने लगे, तुम ठीक हैं तो आगे का क्या होगा? आपके बच्चे हैं ये मोटर कहाँ से ले आए? अरे भई वो काम करते हैं, और बच्चों के अलावा जो आपके आस-पास पड़ोसी धन्धा करते हैं, ये मुझे पूछना चाहिए और तुमको आदि सब लोग रहते हैं, तो वो क्या सोचेंगे अगर अगर कोई ऐसी खास शिकायत हो तो मुझे चिट्ठी आपका लीडर ऐसा है ? तो क्या सोचेंगे आपके लिखो। आज मुझे कहना नहीं था पर और कोई लिए भी ? आप क्यों पीछे लगे हो ? आपकी मौका नहीं था तो इस शुभ अवसर पर मुझे अशुभ माताजी को अक्ल नहीं है, वो ऐसे लीडरों को मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 13 चुनती हैं। इसी तरह की चीजें शुरु हो जाती हैं आता है, न ही मैं बैंक जानती हूँ। तो अपना अगर और सहजयोग खत्म हो जाता है। अभी तक तो कोई बन जाए, जिसको कहना चाहिए, ट्रस्ट या कोई चीज, तब मैं फिर तुम लोगों से रुपए ले कहीं इस तरह से खत्म नहीं हुआ। कोशिश हमने पूरी की थी कि डूबते हुओं को बचा ही लो। किसी तरह से बच जाएं तो अच्छा ही है। जितने सहजयोगी लूंगी। इसलिए नहीं कि मुझे बड़ी ईमानदार बनना चाहिए, मुझे अक्ल ही नहीं है बेईमानी की, तो फिर हों अच्छा है। मुझे ये भी लगता है कि सत्य पर किया क्या जाए ? मुझे अगर गिनना ही नहीं आता बसा हुआ ये जो स्वर्ग है, स्वर्ग के जाने के लिए भी पैसा तो मैं क्या करूं? मुझे तो बैंक का चैक भी थोड़ी सी तैयारियाँ जरूरी हैं। और नहीं तो दूसरी लिखना नहीं आता। वो तो छोड़ो हम बने ही कुछ बात ऐसी भी है कि वहाँ भी जगह कुछ कम होगी। और तरह से हैं। पर आप लोगो को ये सब आते तो नियति भी ऐसा कार्य कर रही है कि चलो ये हुए भी आप जानते हैं कि धर्म के नाम पर कोई फालतू लोगों की काट-छाँट करो। लेकिन इस अगर पैसा लेता है तो वह पछताएगा पैसे का चक्कर में आपको आना नहीं चाहिए। चक्कर बड़ा जबरदस्त है। तो इस बार हमने सोचा अगर आप वाकई जागृत हों तो अपने प्रति था कि बहुत बार हमने आपसे कहा भी, कि यहाँ जागृत हों, दूसरों के प्रति नहीं होकर देखो कि हमारे अन्दर कौन सी कमी है । मुसलमान औरतों को उनके पतियों ने छोड़ दिया अपने प्रति जागृत की जो औरतें रास्ते में भीख माँगती हैं, बहुत सी । किसी को कोई चक्कर, किसी को पैसा कमाने का है, वो रास्ते पर बच्चों को लेकर भीख माँगती हैं, चक्कर है। अब सहजयोग में पैसा कमाने लोग और कहाँ-कहाँ से बाहर से, राजस्थान से, बिहार आते हैं। अगर उनसे कहें कि भई आप यहाँ पैसा से औरतें यहाँ आई हुई हैं, इनका कुछ न कुछ भला कमाने के लिए नहीं आए हैं तो ये बात उनकी करना चाहिए। इसलिए हमने एक संस्था बनाई है खोपड़ी में नहीं घुसती। पैसे का चक्कर भी आज उसके लिए हमें पैसों की आपसे कोई जरूरत मुझे कहना पड़ेगा कि कुछ लोगों में कुछ अक्ल ही नहीं। हमने कभी किसी से भी पैसे के लिए नहीं कम है। पहले ईसा ने कहा था कि 'पहला अन्तिम कहा। हमारा इंतजाम हो जाता है। लेकिन मैंने सोचा कि आपको भी कुछ पुण्य मिले। तो मैंने कहा होगा और अन्तिम पहला' (First willbe the last and last will be the first) ऐसा कोई दिखता पाँच सौ रुपए रख दो, एक सौ आठ के बजाए । हो नहीं है। जो शुरु- शुरु में सहजयोगी हमारे बम्बई गया चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ 108 का 500 कर में आए थे तो वो कहने लगे माँ कम से कम हमसे दिया। अरे साल भर में आप को एक बार गर पैसा एक -एक हजार रुपए ले लो। मैंने कहा देखो बेटे देना पड़े, कुछ पुण्य करने का ही नहीं क्या ? सिर्फ मुझे न तो पैसा गिनना आता है न ही मुझे रखना लेने का है? फिर लक्ष्मी तत्व आपमें कैसे दिखाई अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 14 देना, सालों बीत गए, हजारों लोगों को ठीक किया। देगा ? लक्ष्मी तत्व में तो सिर्फ देना ही होता है। इतने तो आप लोगों को बख्शीश में पैसे दिए, क्या उस पाँच सौ के लिए लोग इतने पगला गए। पाँच किया आप जानते हैं। पर सौ रुपए तो आप बाल कटाने के देते हैं नाई का क्या किया। सब कुछ कभी-कभी। ऐसी आफत मचा दी कि 500 रुपए? इतनी सी चीज़ के लिए लोगों की नजर बदल गई। | मैं समझ गई कि लोग अभी अधकचरे हैं। पहले मुझे बड़ा दुःख लगा इस बात पर| पहले भी ऐसे ही जमाने में इतनी बात नहीं थी। श्रद्धा और त्याग, होते रहा है। कितनी क्षुद्रता है अब बम्बई में इस बार सबने कहा कि माँ आप यहीं पूजा कर लो, तो और त्याग की भावना ही नहीं आती थी, मज़ा आता था तो ये जो बात है हमारे अन्दर, अब भी हमारा मैंने कहा भई पिछली मर्तबा का अनुभव बड़ा खराब चित्त वो पैसे पर है, हम तो 108 ही देंगे नहीं तो हैं, जो पूजा हुई उसमें से एक चौथाई लोगों ने खाने मेरी हुई और हम आएंगे ही नहीं । मत आओ, बड़ा अच्छा है। के पैसे दिए, बाकी मैने दिए पैसे! पूजा खाने के पैसे भी मैने दिए! बम्बई के लोग तो खास निकल ही जाओ सदा के लिए । वो अच्छा है। क्योंकि सहजयोग भिखारियों के लिए नहीं है। हैं । हमारे महाराष्ट्र के ऐसे कंजूस लोग हैं, बो पहले आप लोग ठीक हो जाइए फिर भिखारियों ब्राह्मणों को देंगे, सिद्धि विनायक को देंगे, पर यहाँ की मदद करिए। हम भिखारियों की मदद करते मुफ्त में खाने को आ गए। एक चौथाई लोगों ने हैं। उसके लिए अगर कहा गया कि थोड़े से पैसे खाने का दिया, एक तिहाई ने पूजा का दिया। दे दीजिए तो आप लोग इतने क्यों नाराज़़ हो रहे ग्यारह (11) रुपए और सहजयोग में आ गए। हैं ? मैं तो, आप जानते ही हैं पैसे को छूती भी इससे अच्छा कटोरा लेकर कहीं मस्जिद के सामने नहीं। मेरे को ही नहीं है। लेकिन एक कार्य बैठ जाएं, वो ज्यादा अच्छा है। वहीं कुछ अल्लाह मालूम निकाला है. उसके लिए अगर कहा गया कि 108 उनका भला करे तो करे। ऐसे ऐसे लोग सहजयोग के बजाय 500 दे दीजिए तो आप सारे लीडरों पर में हैं और इसलिए मुझे कहने का है कि आपसे मुझे बिगड़ गए। सब पर बिगड़ गए और मार आफत किसी प्रकार का दान या पैसे की आज तक मचा दी माँ ये आपको किसने सलाह दी ? अरे जरूरत नहीं पड़ी लेकिन मैंने कहा कि, जरा देखें, मुझे मशवरा देने वाला अभी पैदा ही नहीं हुआ @ testing करके, उस testing में मैं हैरान हो गई और कोई भी ऐसा गरीब नहीं है इसमें जो 500 मैं तो अपने ही दिमाग से चलती हूँ। ये समझ लेना भी नहीं दे सकता। फिर ये कहा गया, जो नहीं दे चाहिए । ऊपर से मैं भोली-भाली लगती हूँ, लेकिन अन्दर से मैं बहुत चन्ट हूँ। इसलिए मुझे बेवकूफ सकता नहीं दे, तो फोन पर फोन आ रहे हैं कि बनाने की कोशिश नहीं करना। अगर आप लोगों साहब मेरा नाम आप काट दीजिए। मैं नहीं दे से जरा सा भी नहीं होता है सहजयोग के लिए सकती क्योंकि मेरे पति कमा रहे हैं। कितना कमाते अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 15 लिया ही नहीं हैं ? सात हजार (7000) कमाते हैं पर मैं नहीं दे हमें क्या लेना और क्या देना ? कुछ सकती। मेरे पति दे देंगे। पर अपनी तरफ से मैं तो देना क्या ? लेकिन ये एक चीज़ हमारे अन्दर 1. नहीं दे सकती। जरा कुछ सेल (Sale) निकाल हिन्दुस्तानियों को समझनी चाहिए। हमने तो ऐसे दीजिए, वो होता है ना marketing कुछ sale हो लोग देखे हैं कि आपको आश्चर्य होगा. सिर्फ जाए तो अच्छा है। किस किस को माफ करें। अरे स्वतन्त्रता कमाने के लिए हमारे ही पिताजी के घर 1 भई कितना पैसा आने वाला है उससे क्या हमारा से सारी जमीन जायदाद सब बेच दिया। माँ ने हमारे सब जेवर बेच दिए, सब जेल में गए । मुझे तो (NGO) (गैर सरकारी धर्मार्थ संस्था) चलने वाला है ? कुछ भी नहीं। पर आप लोगों की परीक्षा हो बिजली के झटके लगाए गए और बर्फ पर लिटाया। गई। आप लोग कितने गहरे पानी में हैं ? मुझे कुछ नहीं होता था। सब मजाक था लेकिन तो पैसे के अन्दर से पहले चित्त निकालना भी सब तरह की चीजें लोगों ने सहन की। हिन्दुस्तान के आदमी के लिए बहुत जरूरी है, दो-दो-तीन-तीन साल जेल में रहे और अब जेल अगर वो सहजयोग में है, नहीं तो आजकल जेल में जा रहे हैं इसमें कोई शक नहीं है लेकिन इस भरो आन्दोलन चला ही हुआ है पैसों में काहे को वजह से कि पैसे खाए हैं। वो कहेंगे हम भी जेल आपका इतना चित्त है ? आपकी लक्ष्मी जी हमने में गए । जिन लोगों ने सहजयोग में बहुत बदतमीजी जागृत कर दी। जितना आप दोगे, उतना ही करी है उनका हम छुटकारा करने वाले हैं, पक्की आपको मिलेगा। देना इतने आनन्द की चीज है बात है। खबरदार किसी लीडर के खिलाफ किसी जिसकी कोई हद नहीं। आप लोग मुझे कुछ देते ने भी अगर आवाज उठाई तो उसको हम सहजयोग हैं तो मैं तो इसलिए सिर्फ लेती हूँ कि आप लोग से छुट्टी कर देंगे। पूरी तरह से जान लें, इसमें शक नहीं है क्योंकि हमे तोड़ना नही हैं। आपका खुश होते हैं। मुझे किसी चीज़ की जरूरत नहीं। मेरे घर में कोई जगह नहीं है। मेरे घर कुछ रखने स्वार्थ है, आपका मतलब है, आपको और कोई की जगह नहीं है मैं कुछ नहीं कर सकती। पर धन्धा नहीं है तो पुलिस में भर्ती हो जाओ, C.I.D. होते बन जाओ। कुछ भी करो। सहज में क्यों आप आप मुझे देते हैं प्यार से और आप उससे खुश | लड़ाई-झगड़ा करके मैं हार गई कि मुझे आप आए। सहज के लायक ही नहीं हैं आप। आप आए साड़ी मत दो, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे जेवर कैसे सहज में? आज के दिन ये सारी बातें करने की मैंने नहीं दो। मैंने यहाँ तक कह दिया मैं सब जेवर बेचने वाली हूँ। उसी से सारे काम हो जाएंगे। तो बड़ी धृष्टता की और मैं जब सो गई थी तभी मेरे कहने लगे माँ आपको जो करना है करो, पर हम मन में ये ख्याल आया कि आज क्या कहा जाएगा। तो देंगे ही। ये आप की खुशी के लिए हम लेते हैं। 74 साल की उम्र का बूढ़ा क्या कहे। बूढ़ढे लोगों প मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 16 का एक ही काम होता है कि अपने बच्चों को था लेकिन ये बात मेरे सामने इतने जोरों में खड़ी हो नसीहत दें। उनको भी कहें कि जिन्दगी क्या है गई, इस शिव पूजा में, कि मैंने सोचा अगर मैं नहीं और आप किसलिए सहज में हैं। सहज में आप कहूँगी तो कैसे होगा और शिवजी की पूजा में आप अपना सर्वनाश करने के लिए नहीं आए क्योंकि कह भी नहीं सकते क्योंकि शिवजी तो सिर्फ क्षमा सहज की अति सांकरी गली (Very Narrow ही करते हैं पर वो भी किसी हद तक और जब वो Street ) कही जाएगी। इस तरह की है, अगर बिगड़ते हैं तो, आप जानते हैं, वो क्या करते हैं। आपको आना है तो ये पता रखना चाहिए कि आप उनसे मुझे सबसे ज्यादा डर लगता है क्योंकि ये को इस सांकरी गली से चलना है जिसमें एक अगर घोड़ा बिगड़ गया तो वो आपको ठिकाने लगा देंगे । तरफ तो पहाड़ हैं एक तरफ खाई है। सो इसमें सहजयोग का ज्ञान सारा आपको एक तरह चढ़ने के लिए अगर आप के अन्दर वो मन का बल, वो शक्ति, वो पावित्र्य, शुद्ध इच्छा नहीं हो। तो से मुफ्त है क्योंकि पूर्व जन्म बहुत बड़ा था। पूर्व जन्म की आपके अन्दर जो सम्पत्ति है उसके बूते पर होगा नहीं, आप आधे-अधूरे ही बैठ जाएंगे। ये पहाड़ी पर, जो आपने देखा है, गधे पर बैठ कर आपने ये पाया लेकिन सहज में आकर के, सब लोग चढ़ते हैं। वो गधे से पूछा कि भई कि तुम कैसे पाकर के, सम्पत्ति पाकर कें और आप अगर बेकार ही जाने वाले हैं तो बेहतर है इसको छोड़ दो और गधे हो गए? तो उसने कहा कि हम भी आप ही लोगों जैसे थे, लेकिन आधे-अधूरे रह गए तो हमें भी बख्शो। सोच-सोचकर के आज कहा, वैसे में सोचती कम हूँ, निर्विचार ही में हूँ लेकिन तो भी, भगवान ने हमको गधा बना दिया कि कम से कम गधे के रूप में ऊपर पहुँच जाओ। ये सब कथायें मुझे चिन्ता इसलिए है कि मैंने आपको अपना बेटा आपने सुनी हैं, पढ़ी हैं। हमारे देश में तो इसका माना, आपको अपनी बेटी माना तो आपके जो दोष भंडार है। इसके वाड, मय का भंडार है इतनी हैं उसके कारण जब आप मिटते जाएं, मुझसे देखा कथाएं हो गई, वो ज्यादातर हमारे उपदेश के लिए नहीं गया। मुझे बहुत कष्ट हुआ। सहजयोग में सब हैं, समझाने के लिए थी कि गलत रास्ते पर चलने है आनन्द, शान्ति। आपके प्रश्न चुटकी बजाते ही से क्या होता है। दुनिया भर की कथाएं हो गई हैं ऐसे ठीक हो जाते हैं, आप लोग जानते हैं, आपको और उसमें से जो कथा हमें कुछ न कुछ सबक देती अनुभव है। मुझे कोई खास बताने की जरूरत नहीं है वही कथा असली है। सो बार-बार मुझे लग रहा है। है कि आज के दिन मुझे कुछ अच्छा कहना चाहिए परमात्मा आपको धन्य करें। तम পা 17 श्री गणेश पूजा ान परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, 15 सितम्बर 1996 आज हम श्री गणेश की पूजा करेंगे। आज चीजों का इतनी भयानक सृजन करने के लिए परन्तु उनके पास ज्ञान कहाँ से आता है ? सहजयोग की जबकि युरोप और अमेरिका के देशों में पावित्र्य पर आक्रमण हो चुका है, मैं सोचती हूँ. इस पूजा के तरह से ही इस कलियुग में हर व्यक्ति जन्म ले लिए यह अत्यन्त उपयुक्त समय है। पावित्र्य का सकता है, इसकी स्वतन्त्रता है। अब से पूर्व सभी प्रकार के असुर प्रवृत्ति के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में जन्म नहीं लिया था। ये लोग कुविचारों का कतई सम्मान नहीं किया जा रहा। वे नहीं जानते TI कि मानव के अपने अन्दर और बाहर भी पावित्र्य दुष्ट का सम्मान किया जाना कितना महत्वपूर्ण है । मानव जीवन पशुओं के जीवन से भिन्न है। सृजन करते हैं तथा लोग इन्हें ग्रहण करके इनके अनुसार चलने लगते हैं। यहाँ तक कि भले लोग भी पशु सदा पाशबद्ध हैं या हम कह सकते हैं कि वे इनके चक्कर में आ सकते हैं, सन्त पुरुष भी इससे भगवान शिव की इच्छा में बंधे हुए हैं। इसलिए शिव प्रभावित हो जाते हैं। पशुपति कहलाते हैं। परन्तु मानव को अपना उत्थान, सर्वप्रथम हमें समझना है कि हम एक संकटपूर्ण उचित मार्ग और सत्य की खोज लेने की स्वतन्त्रता समय में अवतरित हुए हैं। ईसा मसीह के समय में दी गई है। केवल अबोधिता द्वारा ही वे इस लक्ष्य बहुत कम लोगों ने उनका अनुसरण किया, उन्हें को प्राप्त कर सकते हैं। अबोधिता ही आनन्द प्राप्ति कृण्डलिनी की भी कोई अधिक समझ न थी। उन्हें का मार्ग है। अबोधिता के बिना व्यक्ति किसी भी इस बात का भी ज्ञान न था कि ईसा मसीह श्री चीज़ का पूर्ण आनन्द नहीं उठा सकता। आज इसी गणेश के अवतरण थे। ईसाई देशों में ही आप ईसा अबोधिता को चुनौती दी गई है। का, अबोधिता का (कभी-कभी तो कानूनी रूप से) खुल्लम-खुल्ला अपमान स्वीकार करते हुए देख के लोग अबोधिता (पावित्र्य) को समाप्त करने के सकते हैं। तो जब भी हम ऐसी भयानक परिस्थितियों अत्यन्त बुरे, अत्याचारी और अपराधी प्रवृति लिए अत्यन्त सूक्ष्म रूप से कार्यरत हैं। उनके मस्तिष्क में फँस जाएं, हमें अपने अन्दर आध्यात्मिकता की भूतबाधा ग्रस्त है। वैसे वे अत्यन्त बुद्धिमान है। वे एक महान शक्ति का सृजन करना होगा। आज 1 बड़ी-बड़ी भयानक चीज़ों की सृष्टि करते हैं, अतः जब मैं आई तो हवा बन्द थी, एक पत्ता भी नहीं हिल आप ये नहीं कह सकते कि वे बुद्धिमान नहीं हैं। रहा था, परन्तु जब आप भजन गाने लगे तो आप मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी । 18 लोगों में से अत्यन्त तेज़ शीतल लहरियाँ आ रहीं कुछ पुस्तकें। पुस्तकें! वहाँ से आपको पुस्तकें नहीं थी जिनसे मैं यह समझ गई कि दिव्य शक्ति लेनी चाहिए थी मैंने पूछा क्यों? वह कहने लगे कि अवतरित हो उठी हैं। यह मौजूद हैं और कार्यरत आपको सीमा कर देना पड़ेगा। क्या आपने इसके हैं। इतना ही नहीं ये अत्यन्त शक्तिशाली हैं प्रायः विषय में कोई नियम नहीं पढ़े, मैंने कहा नहीं, मैं चैतन्य लहरियाँ मेरी ओर नहीं आतीं ये मुझसे अबोध थी पुस्तकों पर सीमा कर देने के विषय में दूसरी तरफ जाती हैं। परन्तु आज इतनी तीव्र मैं कुछ नहीं जानती। नहीं नहीं आप मजाक कर लहरियाँ थी कि मुझे किसी का हाथ पकड़ कर रही हैं आप जाइए। उन्होंने सोचा कि यह स्त्री सहारा लेना पड़ा। अतः याद रखें कि यह जो अत्यन्त सादी है जबकि मैं जहाजरानी निगम के अध्यक्ष की पत्नी थी और बहुत बड़ी कार में जा रही सामूहिक शक्ति आपमें है इससे आपको इन भयंकर परिस्थितियों से मुकाबला करना होगा और यह थी। परन्तु वे इस बात को समझ न सके। ये सारे कानून एवं नियम लोगों को बाँधते हैं 131 ार साबित करना होगा कि अबोधिता सम्मान योग्य इनका उदय भी हमारे 'धर्म के विचार से हुआ है। है। आदिशक्ति ने सबसे पहले श्री गणेश का परन्तु अबोधिता धर्म की जड़ है और सारे कानून सृजन किया। उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि अबोधिता की रक्षा के लिए बनाए गए हैं अपराधियों को दंड देने के लिए नहीं। यदि कोई व्यक्ति वास्तव चैतन्य, पावित्र्य और मंगलमयता से वे सारे वातावरण में अबोध है तो अबोधिता उसकी रक्षा करती है। इस को भरना चाहती थीं। यह गुण अब भी है, सर्वत्र है. बात को मैंने अपने जीवन में बहुत बार देखा है, कभी चैतन्य अब भी कार्यरत है परन्तु यह आधुनिक मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। अबोध व्यक्ति से एक मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि आधुनिक मस्तिष्क अबोधिता से अनभिज्ञ है। अबोधिता का प्रकार की अत्यन्त तीव्र चैतन्य लहरियाँ आती हैं । इसे बिल्कुल ज्ञान नहीं । अबोधिता से ही जीवन में छोटे बच्चों की चैतन्य लहरियों को यदि आप देंखें नैतिकता आती है। नैतिकता अबोधिता की अभिव्यक्ति तो 100 बड़े सहजयोगियों की चैतन्य लहरियाँ एक बच्चे के बराबर नहीं होतीं। परन्तु जब बच्चे बढ़ने लगते हैं तो वे भी बड़े लोगों की तरह बुद्धिमान एवं है। अबोधिता से पता चलता है कि व्यक्ति दुष्वरित्र नहीं हो सकता। एक बार मैं रूस गई और वहाँ कस्टम से परिपक्व हो जाते हैं मानों उनकी अबोधिता खो गई बाहर आ रही थी। उन्होंने पूछा कि क्या आपको हो, तथाकथित रूप से चतुर एवं बुद्धिमान होना समुद्री जहाज से कुछ मिला ? मैंने उत्तर दिया हाँ उत्थान नहीं है, यह अत्यन्त आत्मघातक है। जिन लोगों ने भी अबोधिता को हानि पहुँचाने निःसन्देह, मेरा उत्तर सुनकर उन्हें झटका लगा। आपको क्या मिला? थोड़ा पनीर और क्या. और की गलती की है उन्हें श्री सदाशिव या आदिशक्ति आप्रैल, 1997। मार्च 19 चैतन्य लहरी से क्षमा माँगनी होगी परन्तु श्री गणेश क्षमा नहीं कभी वे अपनी माँ को चुनौती नहीं देते। माँ चाहे करते, उनमें यही कमी है. वे क्षमा नहीं करते। उनकी परीक्षा लेना चाहें या स्वयं को भ्रांत दर्शाना आपने यदि उन्हें चोट पहुँचाई है तो वो भी आप पर चाहें, वे कभी उन पर संदेह नहीं करते। अपनी माँ आघात करेंगे। परिणामवश समाज़ में एड्स जैसी की माया में वे कभी नहीं फॅसते, माया में वे नहीं का फैस सकते क्योंकि वे इतने अबोध हैं। वे छाछ में से बीमारियाँ आ गई हैं क्योंकि लोग इस तरह जीवन 1 यापन कर रहे थे मानों उन्हें मनमानी करने की निकाले हुए मक्खन की तरह से हैं। यह मक्खन आज्ञा सर्वशक्तिमान परमात्मा से प्राप्त हो गई हो! कभी भी छाछ में विलीन नहीं हो सकता। इसी प्रकार ये बालक, जो कि शुद्ध - अबोधिता है, अपनी इतने अहंकारी हैं कि वे समझते हैं कि जो लोग चाहे वे करते रहें, उन्हें कुछ नहीं हो सकता। माँ की माया से संदूषित नहीं हो सकता। माया वे चरित्रहीनता को अपना रहे हैं, लोगों को परखने की प्रक्रिया है, उनका परखा खुल्लम खुल्ला अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को मैंने गन्दे मजाक जाना भी आवश्यक है। अब देखते हैं कि लोग बहुत करते हुए देखा है। वे गलियों में घूमने वाले लोफर आजकल इतने चतुर हैं. इतने बुद्धिमान हैं, कि वे आदिशक्ति या किसी भी शक्ति के वश में नहीं हैं । सम होते हैं। अतः यह रोग फैल गया है। युवाओं किसी भी प्रकार वे धोखा देने का प्रयत्न करते हैं । तथा बच्चों की अपेक्षा बड़े लोगों में यह अधिक है। मुझे लगता है कि लोग नन्हें बच्चों से ईष्ध्या करते बहुत लोगों ने मुझे धोखा दिया परन्तु उन्हें उनके किए का दण्ड मिल गया है। परन्तु यह दण्ड मैंने हैं, नहीं तो वे उन पर आक्रमण क्यों करते। इसी ईष्ष्या के कारण ही वे बहुत ही भददे ढंग से नहीं दिया। ये उन्हें श्री गणेश ने दिया है। वे चारों ओर खड़े हैं, यदि आपने ऐसा कोई अपराध करने आक्रमण करते हैं। परन्तु श्री गणेश इसे कभी क्षमा नहीं करेंगे। पहले वे उनका पर्दाफाश करेंगे, फिर का प्रयत्न किया तो वे आप पर कठोर आघात कई जन्मों तक वे उन्हें इसका दण्ड देंगे उनके करेंगे मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती। यही श्री परिवार अभिशप्त होंगे, वे स्वयं भी अभिशप्त होंगे। गणेश पृथ्वी पर भगवान ईसा मसीह के रूप में यही धर्मादेश है। परन्तु यदि श्री गणेश की माँ या अवतरित हुए। ईसा मसीह श्री गणेश की अपेक्षा पिता उन्हें क्षमा करने के लिए कह दें तो वे आज्ञा अधिक चुस्त हैं क्योंकि श्री गणेश मोटे हैं. वे मान लेते हैं माँ के तो वे पूरी तरह से आज्ञाकारी लम्बोदर हैं और अपराधी को दण्ड देने में उन्हें हैं। वे माँ से कभी प्रश्न नहीं करते न ही कभी समय लगता है। ईसा मसीह अपने को क्रूसारोपित धृष्टतापूर्वक उन्हें उत्तर देते हैं। यद्यपि वे सभी गणों करने वालों के लिए भी क्षमा याचना किया करते के देव हैं. गणाधीश हैं परन्तु माँ की हर बात को थे परन्तु वे इतने चुस्त हैं कि मैं लोगों को उनकी मानते हैं। माँ के सम्मुख वे एक नन्हें शिशु सम हैं। बुराई न करने की राय देती हूँ। मेरे विरुद्ध न बोलें | मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 20 बुद्ध भिक्षु, मैं कहूँगी, सबसे बुरे हैं क्योंकि वे तो सभी ऐसा करना भयानक है। एक ओर श्री गणेश हैं और कुछ त्यागने को कहते हैं। ठीक है सभी कुछ त्याग दूसरी ओर ईसा मसीह। दो अन्य देवदूत भी हैं, सेंट माईकल और सेंट गैबरील । संस्कृत भाषा में हम दो और स्वर्ण के लिए भीख माँगो। इस प्रकार के उन्हें श्री भैरव और श्री हनुमान कहते हैं। ये श्री प्रतिवाद को आप क्या कहते हैं ? कोई यदि भिक्षा माँग रहा हो तो लोगों को अच्छा लगता है क्योंकि महावीर और श्री बुद्ध के रूप में अवतरित हुए। बुद्ध ने कहा है कि आपको किसी भी चीज़ इससे उनके अहम् को बढ़ावा मिलता है। ऐसे अवतरण हमें निर्लिप्त बनने का सन्देश देने के लिए से लिप्त नहीं होना है । अपने धन, दौलत, परिवार आदि किसी भी चीज़ से नहीं । उस समय बहुत आए ताकि हमारे चरित्र का विकास हो सके। यदि अधिक लिप्सा थी और इस लिप्सा को वे लोगों के आप अपने यौन-जीवन से निर्लिप्त है, धन दौलत से निर्लिप्त हैं और अपने देश से भी यदि निर्लिप्त हैं तो मस्तिष्क से दूर करना चाहते थे नंगे रह कर, गेरुए वस्त्र पहन कर, सिर मुंडवा कर, या नंगे पॉव इस प्रकार का निर्लिप्त व्यक्ति अबोध बन जाएगा चल कर आप इस लिप्सा से छुटकारा नहीं पा और सभी झगड़े समाप्त हो जाएंगे। परन्तु वास्तव में सकते। ये सब बाह्य दिखावा है निर्लिप्सा नहीं। तो इसके विपरीत हो रहा है। इस्लाम का भी यही हाल है। मोहम्मद साहब ने केवल सद्चरित्र पर बल उन्होंने कहा कि आपको आन्तरिक रूप से निर्लिप्त होना है और आन्तरिक रूप से निर्लिप्त होना बाह्य दिया था, वे किसी भी प्रकार की चरित्रहीनता न रूप से निर्लिप्त होने से कहीं भिन्न है । बहुत चाहते थे उस समय क्योंकि स्त्रियों की संख्या अधिक व्रत करने से आप ईसा नहीं बन जाते, श्री बहुत अधिक थी इसलिए उन्होंने कहा कि आप एक महावीर की तरह घूमने से आप महावीर नहीं बन से अधिक भी विवाह कर सकते हैं। परन्तु उन्होंने जाते और न ही गेरुए वस्त्र पहनने से बुद्ध बन जाते यह कभी नहीं कहा कि आप वेश्या बन जाएं या पापमय जीवन व्यतीत करें उनका कथन तो मात्र हैं। लोगों को जो समझाया गया था उसका कितना गलत अर्थ निकाला है। वह समय तपस्या का था 'समयाचार' था। उस समय वैवाहिक जीवन में और इसी कारण सभी लिप्साओं से मुक्त होने के समस्याएं थीं, तलाक की आज्ञा न थी। परन्तु लिए उन्होंने तपस्या करने को कहा। ईसाई धर्म में सहजयोग में हम इसकी आज्ञा देते हैं । भी वैरागनियाँ (Nuns), धर्माध्यक्ष ( The Father) आधुनिक युग में मैंने देखा है कि तलाक के मुख्य धर्माध्यक्षाएं (The Mother) बना दिए गए । यह एक बनावटी चीज़ है। ऐसा करने से क्या आप बिना लोगों का काम नहीं चलता क्योंकि स्त्रियाँ भी कभी-कभी अत्यन्त क्रूर होती हैं और पुरुष अत्यन्त समझते हैं कि आप अबोध बन जाते हैं? वही तुनक मिजाज़। ऐसी परिस्थितियों में वे साथी किस धर्माध्यक्ष अब अबोध लोगों पर आक्रमण कर रहे हैं। प्रकार हो सकते हैं ? अधिकतर स्त्रियाँ दुष्चरित्र हैं । अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 21 स्त्रियाँ मात्र अबोध ही नहीं हैं, शक्ति भी हैं। परन्तु वहाँ भी लोग बच्चों से बहुत अधिक लिप्त हैं। यह अब तो वे बेशर्मी पर उतारू हो गई हैं। उन्हें अपने एक नए प्रकार की लिप्सा का आरम्भ है जो आप पावित्र्य की कोई चिन्ता नहीं किस प्रकार वे शक्ति सहजयोगियों को चरित्रहीन कर देती है। जो बन सकती है? कोई स्त्री यदि चरित्रहीन जीवन सहजयोगी हैं, उनके लिए तो सारे विश्व के बच्चे व्यतीत कर रही है तो उसकी शक्ति समाप्त हो अपने हैं। आपने केवल अपने बच्चों को ही प्रेम नहीं जाएगी। स्त्री का चरित्र ही उसकी शक्ति है । श्री करना। कोई बच्चा यदि खराब है तो बात और है गणेश इस पवित्रता का संचार उसमें करते हैं। नहीं तो आपने सभी बच्चों को अपने बच्चों की तरह जिस प्रकार लोग, विशेषकर हॉलीवुड के लोग से प्रेम करना है। ईसा ने कहा है कि अपने पड़ोसी हमारे मस्तिष्क में विचार डाल रहे हैं और हम उन्हें को भी वैसे ही प्रेम करो जैसे स्वयं को। मैं नहीं स्वीकार करते चले जा रहे हैं, हम भूल जाते हैं कि जानती कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? सभी ईसाई हम श्री गणेश को चोट पहुँचा रहे हैं और उनका राष्ट्रों में तो पड़ोसी सबसे बड़ी समस्या है। अन्य बच्चों को भी अपने बच्चों सम प्रेम करें। आइए इस कोप हमारे पर बरस पड़ेगा। जब हम अपने बच्चों से घृणा करने लगते हैं तो यह कोप निम्न स्तर पर कथन को देखें। आपके यदि बच्चे हैं तो प्रायः आपको कुछ आरम्भ होता है। जब हम अपने बच्चों को नहीं स्थानोंपर फ्लैट लेने की आज्ञा नहीं मिलेगी। कल्पना समझ पाते तो समस्या आरम्भ होती है। इंग्लैण्ड में, कीजिए कि केवल अविवाहित या शिशु विहीन लोग कहते हैं, माता-पिता हर सप्ताह दो बच्चों की हत्या कर देते हैं। बच्चों के प्रति इस प्रकार का दृष्टिकोण! ही वहाँ रह सकते हैं और यदि आपको बच्चा हो पहले तो उन्हें बच्चे पैदा ही नहीं करने चाहिएं और जाए तो आपको वहाँ से निकाल दिया जाता है। यदि बच्चे पैदा किए हैं तो वे श्री गणेश हैं, उन्हें क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? तीस वर्ष पूर्व लोगों के दस-बारह बच्चे हुआ करते थे। बच्चों का सम्मान करना चाहिए, उनसे प्रेम करना चाहिए तथा उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। बच्चों सहजयोगी दूसरी चरम सीमा तक चले जाते हैं, वे अपने बच्चों से चिपक जाते हैं। मैं यह नहीं कह रही को बिगाड़ना भी एक अन्य प्रकार की आसुरी शक्ति है। कुछ लोग अपने बच्चों को बिगाड़ देते हैं परन्तु हूँ कि आप किसी प्रकार अपने बच्चों की उपेक्षा करें, श्री गणेश को कभी बिगाड़ा नहीं जा सकता क्योंकि उन्हें मारें-पीटें या उन्हें दुःख दें। आप उन्हें इस वे माया से परे हैं परन्तु जिस प्रकार लोग अपने प्रकार प्रेम करें कि वे जान जाएं कि यदि उन्होंने बच्चों के पीछे दौड़ते हैं, यह खेदमय है । उनके कोई गलती की तो उन्हें आपका प्रेम मिलना बन्द हो लिए एक बच्चे का होना महानतम उपलब्धि है। जाएगा। बच्चों का यह जानना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि प्रेम उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आपको भारत जैसे देश में जहाँ इतनी अधिक जनसंख्या है मार्च अप्रेल, 1997 घैतन्य लहरी 22 परमात्मा, अब मैं पूरी बाजू वाले ही कपड़े पहनूंगी। जो भी बात पसन्द न हो उनसे बता दें आप हैरान होंगे कि किस प्रकार आपको नाराज करने वाला तुरन्त उनकी समझ में आ गई। अतः उनके अन्तरविवेक का सम्मान रखते हुए. गहनतापूर्वक यदि आप उन्हें कोई भी कार्य करना बच्चे छोड़ देते हैं। अब यह तो सब चालाकी है जो सभी को सीखनी है। बच्चों के कोई गहन बात बतायेंगे तो उनका सुधार होगा। विकास के लिए यह बहुत अच्छा तरीका है । मैं आपको अपनी बेटी की कहानी सुनाती कक्षा में उसका बुरा हाल है। अब एक तरीका तो हूँ। वह दिल्ली गई और वहाँ सभी लड़कियाँ बिना यह है कि उसकी पिटाई की जाए, उस पर चिल्लाया उदाहरण के तौर पर कोई बच्चा बिगड़ गया है बाजू के ब्लाउज पहने हुए कहा कि मुझे भी बिना बाजू के ब्लाउज चाहिएं। उससे बातचीत की जाए कि मान लो आप अच्छे थीं। तो उसने मुझसे जाए और उसे डॉटा जाए। दूसरा तरीका यह है कि वह बड़ी हो चुकी थी, कॉलेज जाने लगी थी, मैंने नम्बर लाते हैं, अव्वल आते हैं तो आप सहान व्यक्ति कहा ठीक है जो तुम्हें चाहिए ले लो। वो कहने बन जाएंगे मुझे आप पर कितना गर्व होगा। सभी लगी. वैसे आप बिना बाजू के ब्लाउज क्यों नहीं लोगों को आप पर गर्व होगा परन्तु यदि ऐसा नहीं पहनती ? मैंने कहा मुझे शर्म आती है। तो आप मुझे होता तो सभी लोग कहेंगे कि यह लड़का बेंकार है। इसकी आज्ञा क्यों दे रही हैं ? ये कोई मापदण्ड इसे गलियों में भीख मांगनी पड़ेगी और बह बच्चा नहीं कि मैं जो भी आपसे माँगू आप हाँ कर दें । मैं तुरन्त परिवर्तित हो जाएगा बच्चों का संचालन इतनी बड़ी तो नहीं हो गई हूँ। मेरी नातिन ने भी करना बहुत महत्वपूर्ण है । अत्यन्त कोमलता से मुझसे पूछा कि नानी आप सदा बाजुओं वाले अन्तर्विवेक का संचालन किया जाना चाहिए मानो आप किसी फूल को संभाल रहे हों। यह एक फूल ब्लाउज क्यों पहनती हैं। मैंने कहा, क्या तुम्हें पता 1 है, जिस प्रकार फूल में सुगन्ध होती है उसी प्रकार कि यह बहुत महत्वपूर्ण चक्र हैं। यदि आप इन्हें खुले रखोगी तो आपको समस्या हो जाएगी। हे अबोधिता में भी सुगन्ध होती है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। क প 25ु हॉलैण्ड के विषय में श्री माता जी के विचार सूक्ष्म भूमिका का एक दृश्य दर्शाएँंगे। इस प्रकार हमें कई अवसरों पर श्री माता जी ने इस देश के स्वभाव और गुणों के विषय में बताया। 1985 में न केवल एक-दूसरे के विषय में अधिक जानने का अपनी पहली यात्रा में उन्होंने अपनी त्रिगुणात्मिका अवसर प्राप्त होगा बल्कि यह विराट में कार्यशील पूजा करने का सौभाग्य प्रदान किया। इस अवसर तत्वों की कार्यशैली का अच्छा ज्ञान भी हमें प्रदान करेगा इस श्रृंखला की यह दूसरी कड़ी है । पर उन्होंने कहा, "हॉलैण्ड यूरोप की पावन भूमि (Holy-Land) है"। उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया कि हॉलैण्ड में पृथ्वी (माँ) और जल ( सागर-गुरु) ने कहा, "सागर अशुद्धियों को दूर करता है तथा इस स्थिति का हवाला देते हुए श्री माता जी का अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। आप जानते हैं पृथ्वी माँ हॉलैण्ड के लोगों को आशीर्वादित करती हैं। पृथ्वी माँ ने समुद्र को अन्दर बहने की आज्ञा दी कि हॉलैण्ड का अधिकांश भाग सागर तल से नीचे है। रेत के टीलों तथा बाँधों से यह सुरक्षित है और है, समुद्र ने पृथ्वी माँ में शरण ली। गुरु मातृत्व के भौगोलिक दृष्टि से इसमें बहुत सी खाड़ियाँ हैं गुणों में बैंध गया है। श्री माता जी ने बताया कि समुद्र इस देश में बहुत ही पृथ्वी समुद्र को स्वयं में संभाले हुए है। अतः यह सदा समुद्र से महान है। इसीलिए हॉलैण्ड एक जिनके माध्यम से गहराई में प्रवेश करता है। श्री माता जी ने प्रायः भिन्न देशों के भिन्न विशेष स्थान हैं जहाँ गुरु ने माँ के सम्मुख समर्पण किया है। श्री माता जी ने बताया कि पवित्र होने का गुणों के चिषय में बताया है तथा यह भी कहा है कि इन देशों ने महान दिव्य अस्तित्व-विराट- में कुछ अर्थ यह है कि हम गुरु तत्व को मातृत्व से नियन्त्रित, पथ-प्रदर्शित तथा अलंकृत होने दें। विशेष कार्य करने हैं । हम जानते हैं कि फ्राँस विराट का जिगर है इंग्लैण्ड हृदय है, मातृत्व के गुण अपना लेने से और अपने गुरु तत्व आस्ट्रेलिया मूलाधार है आदि आदि। फिर भी को मातृत्व एवं सुन्दर सृजनात्मक शक्तियों से इन देशों के. विशेषकर छोटे देशों के सूक्ष्म गुणों मर्यादित कर लेने पर हमारी उपस्थिति सुखद हो तथा तत्वों के विषय में हमारा ज्ञान काफी सीमित जाती है। पूजा वार्ता में श्री माता जी ने अम विभाजन तथा बेरोजगारी के समाधान के विषय में है। डिवाइन कूल ब्रीज के इस नए लेख में एक एक करके सभी देश पेश होंगे तथा श्री माता जी द्वारा विस्तारपूर्वक बताया। 1986 के अपने दौरे में उन्होंने बताया था कि बताए गए उनके विशेष गुणों तथा बिराट में अपनी मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 24 प्लीहा क्योंकि गतिमापी है, इसलिए आवश्यक विराट की लीला में हॉलैण्ड और बैल्जियम एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, दोनों देश बायीं नाभि का हिस्सा है कि जीवन में उचित गति तथा लय हो। हैं। बैल्जियम विश्व शान्ति का तथा हॉलैण्ड न्याय बिना उपयुक्त अवसर के, विशेषकर प्रातःकाल का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये दोनों ही गुण परस्पर कष्टदायी मामलों पर बातचीत न करके अच्छी 1 आश्रित हैं, एक-दूसरें के बिना चल नहीं सकते। मनोस्थिति बना कर गृहलक्ष्मी पति की जीवन-लय जहाँ भी अन्याय होगा वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। को नियमित करती है। पृथ्वी माँ की तरह गृहस्थी जिन देशों में अशान्ति है वहाँ न्याय के नियम को की सारी समस्याओं को सहते हुए, स्वयं में समोहते हुए, वह शान्ति की स्थिति का सृजन करती है। वह चुनौती दी जाती है तथा यह न्याय भ्रष्ट हो जाता है। हेग (Hague) के न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय इतनी परिपक्व होती है कि वाद-विवादों की व्यर्थता न्यायालय (International High Court of को समझती है। गृहलक्ष्मी इतनी शक्तिशाली होती है कि वह केवल देना ही जानती है और इससे उसे Justice) में न्याय तत्व प्रकट होता है। श्री माता जी ने यह भी बताया कि दुर्भाग्यवश हॉलैण्ड के इतना आनन्द मिलता है कि वही उसकी शक्ति का कानून अत्यन्त धूर्त एवं परमात्मा विरोधी हैं। स्रोत बन जाता है। सी चीज़ों के सहन किए जाने पर हॉलैण्ड की बहुत हॉलैण्ड अपने सुन्दर पुष्पों के लिए विख्यात कई बार पड़ोसी देश आश्चर्यचकित हो जाते हैं । डच (Dutch) नशा कानून इसका एक ज्वलंत है। बसन्त ऋतु में बड़े-बड़े खेतों में जब फूल खिलते हैं तो खेत इन्द्रधनुषी रंगों से चमक उठते उदाहरण है। श्री माता जी ने विस्तारपूर्वक समझाया कि हैं। एक दिन किसी ने श्री माता जी से पूछा कि जो देश बायीं नाभि का प्रतिनिधित्व करता है वहाँ हॉलैण्ड में इतनी बुराईयों के बावजूद भी यह देश कि स्त्रियों को कितनी अच्छी लक्ष्मियाँ होना अभी तक समुद्र के गर्म में क्यों नहीं समा गया? गृह चाहिए। लक्ष्मी जी के बहुत से रूप हैं और गृहलक्ष्मी मुस्कराते हुए उन्होंने उत्तर दिया, "क्योंकि हॉलैण्ड उनकी सर्वशक्तिशाली अभिव्यक्ति है । बायीं आदिशक्ति के लिए पुष्प उगा रहा है और आप । जानते हैं कि वे फूलों की अत्यन्त शौकीन हैं"। नाभि,प्लीहा और अग्नाशय से नियन्त्रित है 25 सिडनी वायुपत्तन वार्ता (सारांश) सिडनी, आस्ट्रेलिया - 5 मार्च 1996 आप सब लोगों से मिलकर सदा प्रसन्नता मजबूर नहीं करेगा, किसी को विवश नहीं किया होती है, परन्तु इस बार मुझे लगा कि आप लोग जाएगा परन्तु यह तो आपकी अपनी संतुष्टि के आनन्द के सागर में आत्मानन्द लेते हुए, हिलोरे ले लिए है। सभी लोग सहजयोग के प्रति स्वयं को रहे हैं। मेरे लिए यही महानतम संतोष है। अन्य जिम्मेदार समझें। यदि आप स्वयं को जिम्मेदार नहीं लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना ही आत्मानन्द प्राप्त समझते तो व्यक्तिगत रूप से आप आनन्द नहीं उठा सकते सहजयोगियों के लिए व्यक्तिगत आनन्द करने का सर्वोत्तम मार्ग है। अपनी सत्य की आवाज़ का यही वास्तविक गुन्जन है जिसे आप प्राप्त करते नहीं है। सामूहिकता में ही आप आनन्द प्राप्त कर हैं। अन्य देशों की तरह से आप भी भिन्न स्थानों, सकते हैं। भिन्न गाँवों, आस-पड़ोस के स्थानों पर जाते हैं जब अजन्ता की गुफायें बनी थीं तो इन्हें बनाने में ग्यारह सदियाँ लगीं। एक के बाद एक और पूर्ण विश्वास के साथ सहजयोग की बात करते पीढ़ी ने इसे उत्साहपूर्वक बनाया, यद्यपि उन्होंने न हैं कि किस प्रकार इसने आपके जीवन को परिवर्तित कर दिया और आपको इससे कितना लाभ हुआ। तो बुद्ध को देखा था न उनसे बात की थी और न सत्य निष्ठापूर्वक लोगों को परिवर्तित करके आप कभी उन्हें पत्र लिखे थे। परन्तु वे अत्यन्त समर्पित अपने देश की बहुत सेवा कर सकते हैं। थे। उस एकान्त स्थान पर वे पीढ़ी दर पीढ़ी रहे और आस्ट्रेलिया में सहजयोग काफी बढ़ा है। आज के विश्व के चमत्कारों मे से एक की सृष्टि कई बार कुछ व्यक्तियों ने हमें क्षति पहुँचाने का की। अतः आप लोगों को समझना है कि साक्षात्कारी प्रयत्न किया परन्तु किसी ने भी सहजयोग को हानि पहुँचाने की कोशिश नहीं की। जिन्होंने भी समस्यायें होने के कारण अपनी इच्छा और समर्पण के माध्यम उत्पन्न करने की कोशिश की वे चुपके से सहजयोग से आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सदैव आपको स्वयं से पूछना चाहिए कि आप सहजयोग के लिए से गायब हो गए। सभी लोग परस्पर सहयोग करें। आपको क्या कर रहे हैं और यह भी महसूस करना है कि मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 26 सहजयोग ने आपके लिए कितना कुछ किया है। हैं हमें इस संस्कृति की आवश्यकता नहीं है "हमें एक अत्यन्त करुणामय, अच्छी, विनम्र एवं सुन्दर अतः इस बात को जान लेना ही, कि आप सहजयोग के लिए कुछ कार्य कर रहे हैं, आप के लिए आनन्द संस्कृति चाहिए। जिनके माध्यम से अन्य लोग सीख सकें और हमारे बच्चे उचित रूप से बढ़ सकें। उठाने का एकमात्र तरीका है। अगुआ को अत्यन्त सावधान विवेकशील और यदि आप नम्र हैं तो इससे आपको बहुत सहायता मिलेगी।" करुणामय होना चाहिए. परन्तु अब क्योंकि सहजयोग ये देखकर अत्यन्त आनन्द मिलता है कि में बहुत से लोग आएंगे अतः अगुआ अत्यन्त प्रगल्भ व्यक्ति होना चाहिए। आपको नए लोगों से व्यवहार आस्ट्रेलिया के सहजयोगी कितने नम्र होते हैं। ये लोग बहुत भयानक हुआ करते थे, बहुत अधिक पीते करना होगा और ऐसा करते हुए याद रखना होगा थे और इस प्रकार बातचीत करते थे कि समझ पाना कि आप सहजयोगी हैं, आपने उनसे गुस्से नहीं होना। उनके प्रति करुणामय हों और उनसे कम कठिन था। अब आप लोग उन कमलों की तरह से सुन्दर हैं जो इस मिली-जुली अव्यवस्थित संस्कृति बोलें और और उनकी कुण्डलिनी उठाते हुए अधिक कार्य करें। उन्हें छुएं नहीं। ऐसा करना आवश्यक से उपजे हैं और आप ही लोगों को हमारी सहज नहीं है। संस्कृति का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। मैं आप लोगों और आपके बच्चों के लिए एक श्री माता जी ने तत्पश्चात् भारतीय महिलाओं से हिन्दी में बातचीत की। "मैं उन लोगों की त्रुटियों बहुत अच्छी वैभवशाली, स्वस्थ सहज जीवन की को सुधार रही थी और उन्हें बता रही थी कि वे कामना करती हूँ। आस्ट्रेलिया क्योंकि श्री गणेश का अपनी संस्कृति के अनुसार चलें । कुछ ने अमेरिकन देश है. सहजयोग ने यहाँ पर बहुत अच्छी ज़ें र महिलाओं की तरह अभद्रतापूर्वक बातचीत करनी पकड़ी हैं। श्री गणेश का आशीर्वाद यहाँ कार्य कर रहा है। आपको चाहिए कि रोगियों और जरूरतमंद शुरु कर दी है। भारत में महिलाएं विशेषरूप से नम्र होती हैं और उनकी भाषा अत्यन्त करुणामय तथा लोगों की मदद करें समझने का प्रयत्न करें कि नम्र होती हैं जो अन्य लोगों को सुख प्रदान करती किस प्रकार उन्हें रोगमुक्त करना है उन्हें छुएं नहीं । कुछ भी करने से पूर्व आप बन्धन ले सकते हैं हैं। परन्तु अमेरिकन संस्कृति लोगों को पागल बना और आपकी रक्षा की जाएगी। देती है और इसे अपनाने वाले लोग भी पगला जाते परमात्मा आप सबकों धन्य करें। 27 नवरात्रि पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, इटली-20 अक्टूबर 1996 के सोचने की यही शैली है। परन्तु आप हैरान होंगे आज का दिन अति विशिष्ट है और हम देवी की पूजा कर रहे हैं। अपने भक्तों को के लिए कि इस कलियुग में बहुत से लेखकों ने चंगेज खाँ मुक्ति प्रदान करने हेतु, राक्षसों तथा आसुरी शक्तियों की बहुत प्रशंसा की है और उस पर पुस्तकें लिखी गई पूजा है। वह मुसलमान नहीं था, एक प्रकार का का सफाया करने के लिए देवी, इससे पूर्व, नौ बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं। उनके सारे कार्यों का वर्णन पागल व्यक्ति था। उसने बहुत सी मस्जिदें तोड डालीं, बहुत सी सुन्दर इमारतों को तहस-नहस किया जा चुका है। इसके बावजूद भी सभी प्रकार कर डाला और भारत आकर यहाँ थोड़े से समय के के असुर तथा बुरे लोग पृथ्वी पर लौट आए हैं । सम्भवतः ये होना ही था आखिरकार ये कलियुग लिए राज्य भी किया। यह सब इतिहास है। इसी है और इन लोगों के पृथ्वी पर आए बिना कलियुग प्रकार ईसाइयों और अन्य लोगों, मुसलमानों और गैर मुसलमानों के मध्य भी युद्ध हुए। हमने सभी का यह नाटक पूर्ण न हो पाता। ये लोग लौट आए प्रकार के युद्धों के विषय में सुना है जिनमें केवल है परन्तु इस बार एक भिन्न प्रकार का ही युद्ध होने श्रद्धावान तथा वास्तविक लोग ही मारे गए। वे लोग वाला है यद्यपि विश्व में ऐसा पहले कभी घटित नहीं हुआ फिर भी यह शांत लोगों का युद्ध होगा. मारे गए जो पूर्ण श्रद्धा से परमात्मा की पूजा किया करते थे। अतः बहुत से लोग नास्तिक हो गए और 1 शांत लोग जीवन के हर क्षेत्र में अत्यन्त सफल होते कहने लगे कि परमात्मा नाम की कोई चीज़ नहीं है, हैं । कहते हैं जब चंगेज खाँ भारत आया तो दिव्य शक्ति कुछ भी नहीं है, ये कभी नहीं थी, आप हैं जो इसका अनुसरण कर रहे हैं। मूर्ख "गया' के समीप एक बौद्ध मठ में गया और वहाँ पर धर्माधिकारी लोगों ने इसका पूरा लाभ उठाया और उपस्थित तीस हजार बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट कहा कि ये लोग पापी हैं। इन लोगों को मार कर उतार दिया। बिना विरोध किए सब मारे गए। इसके कारण लोगों का विश्वास बौद्ध धर्म से उठ उन्होंने कहा कि ये परमात्मा विरोधी थे इसीलिए हमने इनका वध किया है और हम विजयी हुए हैं। गया। लोग कहने लगे कि यह कैसा बौद्ध धर्म है? अब हम कलियुग में आते हैं। कलियुग में भी भगवान बुद्ध ने इनकी रक्षा क्यों नहीं की ? मानव *ho अप्रैल, 1997 मार्च - चैतन्य लहरी 28 को अब दण्डित किया जा भिन्न प्रकार से वही चीज़ आरम्भ हो गई हैं। अत्याचार और क्रूरता के से रहा है। हो सकता है कि बहुत युद्ध अत्यन्त सूक्ष्म रूप से परमात्मा विरोधी लोगों में तथा अपराधी बच निकले हों परन्तु बहुतों पर मुकदमें भी उन लोगों में जो परमात्मा का उपयोग अपने मतलब के लिए कर रहे हैं-अत्यन्त बेईमान, भ्रष्ट और चलाए गए। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। चंगेज अत्याचारी लोग, जो परमात्मा के झण्डे का दुरुपयोग खाँ पर किसी ने मुकदमा नहीं चलाया था अब, कर रहे हैं, जबकि ऐसा करने का उन्हें कोई अति सूक्ष्म रूप से, ये सब आक्रांता घबरा रहे हैं कि उनसे प्रश्न किए जा सकते हैं और उन्हें यातनाएं भी अधिकार नहीं - युद्ध जारी है। अब सहजयोगी भी हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है और दी जा सकती हैं। इटली में मुसोलिनी नामक जिन्हें इन आसुरी शक्तियों से युद्ध करना है। आक्रांता थे जिन्हें आखिरकार फाँसी पर चढ़ा दिया गया जर्मनी में हिटलर नामक एक शक्तिशाली पुरानी लड़ाई और इस लड़ाई में अति सूक्ष्म अन्तर है। जो लोग सफल हुए उन्हें बहुत आत्मविश्वास व्यक्ति हुए। आज जर्मनी के ही लोग उसका नाम तक नहीं लेना चाहते। वे उससे शर्मिन्दा हैं। इंग्लैण्ड हो गया कि उन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया है। परन्तु कलियुग के प्रकाश में ये सब ऐतिहासिक रहस्य के वारन हेस्टिंग, जो भारत आए थे, पर भी मुकदमा अत्यन्त शर्मनाक माने जाते हैं, इन्हें अत्यन्त आक्रामक चलाया गया। नेपोलियन ने जनता पर अत्याचार किए और सोचा कि वह बहुत बड़ा विजेता है। परन्तु एवं मूर्खतापूर्ण समझा जाता है। हर जगह पर अब इसका वर्णन हो रहा है जैसे: गोरे लोग अमेरिका वह भी अधिक दिन न चल सका, उसे अपने किए का परिणाम भुगतना पड़ा। सभी आक्रमणकारी, गए और वहाँ के अन्य सभी लोगों का वध कर दिया। यह चीज़ अब प्रकाश में आ रही है। जो व्यर्थ का रौब झाड़ने वाले, क्रूर, असुर प्रवृत्ति लोगों लोग स्वयं को विजेता मानते थे उनके बच्चे, नाती, को प्रायः उनके जीवनकाल में ही दण्ड भुगतना के पोते उनकी आने वाली पीढ़ियाँ उनसे शर्मिन्दा हैं। पड़ा। जीवनकाल में यदि वे बच गए तो मृत्यु पिछले महायुद्ध तक जो चेतना जागृत हुई है बाद में उनकी बदनामी हुई। कोई उनका बुत नहीं वह कलियुग के इस आधुनिक काल की वास्तविक खड़ा करना चाहता। लोगों के मस्तिष्क में चेतना विजय है जिन चीजों को जीवन का एक हिस्सा जाग उठी है। एक समय पर जिस स्टालिन ( Stalin ) का रूस में शासन था, आज आप वहाँ उसका एक मान लिया गया था, जिन्हें जीवन शैली समझ लिया गया था, आधुनिक युग में उन्हें हर जगह चुनौती भी बुत नहीं देख सकते। आधुनिक युग की शक्ति को देखें, जो लोग दी जा रही है। सभी प्रकार की आक्रामकता, 1 मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 29 जब आपको चेतन किया जाता है, आप किसी चीज़़ ये समझते हैं कि वे अपने कारनामों के परिणाम से बच निकलेंगे वो आज इस शक्ति से भयभीत हैं। के प्रति सचेत हो जाते हैं। जैसे ये मेरा हाथ है, बहुत शीघ्र ही वे इस बात को समझ जाएंगे कि या परन्तु मैं इसके विषय में सचेत नहीं होती कि मेरा तो वे इस मुर्खता को छोड़ दें अन्यथा उन्हें कष्ट एक हाथ है। यदि कोई व्यक्ति सो रहा है तो वह उठाना होगा। प्रभुत्व जमाने वाले लोगों को शारीरिक, इस बात के प्रति सचेत नहीं है कि वो सोया हुआ मानसिक एवं भावनात्मक कष्ट उठाने होंगे और है। जब आप मुझे बताते हैं कि मेरा एक हाथ है तो उनका यश भी मिट्टी में मिल जाएगा परमेश्वरी मैं हाथ के प्रति सचेत होती हूँ या कोई मुझे कुछ माँ की शक्ति की विजय एक बहुत महान कार्य कर चुभाता है तो मेरा ध्यान उसकी ओर जाता है, रही है और वह है अनावरण करना। इस अनावरण अन्यथा मैं इसके प्रति सचेत नहीं होती। अपनी के माध्यम से उन लोगों की खुल्लम-खुल्ला भत्त्सना आँखों के प्रति मैं पूर्णतः अचेत हूँ । मैं सभी कुछ देख की जाएगी। इस दृष्टिकोण से जब आप देखेंगे तो रही हैूँ। परन्तु मान लो मैं अंधी हो जाती हैूँ और समझ जाएंगे कि किस प्रकार से अब हम विजेता कुछ नहीं देख सकती, तब मैं अपनी आँखों के प्रति हैं। सचेत हो जाऊंगी कि मेरी आँखें हैं, जिनसे मैं देख सहजयोगियों के रूप में हमें उस समय की नहीं सकती। तो एक बार जब आप कहते हैं कि ये चेतना तथा आज की जागरुकता के बीच भेद को हाथ यहाँ है तो उसके प्रति चेतना होती है। आप देखना चाहिए। उस समय असुरों को समाप्त कह सकते हैं कि यह हाथ का ज्ञान है, आप हाथ करना और उनका वध करना आवश्यक था। परन्तु के विषय में ज्ञान पा लेते हैं। परन्तु जब भी आप एक बार फिर वे संसार मंच पर वापस आ गए हैं। हाथ के विषय में सचेत नहीं होते तो यह ज्ञान लुप्त अब कलियुग में उनका पर्दाफाश हो रहा है, उनकी हो जाता है। तो ये कहना कि ज्ञान भाव (gnorance) निन्दा हो रही है, उन्हें जेल भेजा जा रहा है और है या ज्ञान (knowledge) है, दोनों ही बातें समान दण्डित किया जा रहा है। अतः सामूहिक जागरूकता हैं। आप क्योंकि हाथ के प्रति सचेत नहीं हैं तो की उन लोगों पर, जो आए, लोगों की हत्याएं की आपको इसका ज्ञान नहीं है। अब मान लो कोई और बिना दण्डित हुए, बिना बदनाम हुए चले गए, कहता है कि आपके हाथ बड़े सुन्दर हैं, तब मैं अपने अति महान विजय हुई है। सुन्दर हाथ के प्रति चेतन हो जाती हूँ अन्यथा मुझे आइए देखें कि चेतना (Consciousness) और पता ही नहीं था कि मेरा हाथ सुन्दर हैं। प्रायः सभी जागरूकता (Awareness) क्या है। चेतना वह है व्यक्ति इसी स्तर पर रहते हैं जहाँ किसी अन्य को मार्च अप्रेल, 1997 30 चैतन्य लहरी उन्हें सचेत करना पड़ता है। अब कोई कहता है कि विचार, सभी प्रकार की आक्रामकता, इन सबकी आप बहुत अच्छी साड़ी पहने हैं। तब मैं इसको सृष्टि आपके मस्तिष्क की चालाकियों से होती है। देखूंगी, हाँ यह बहुत अच्छी साड़ी है। मुझे तो यदि आपका मस्तिष्क ही सो जाए तो आप परन्तु इसका पता ही नहीं था। अतः किसी व्यक्ति के क्या करेंगे ? अब मस्तिष्क बाकी नहीं रहा, आप बताने पर ही आप सचेत होते हैं. उसके बिना नहीं। अतः संचार के लिए बास्तविकता में जीवित हैं मस्तिष्क नहीं है। हम इसे निर्विचार-समाधिस्थ सभी मानव इसी स्तर पर है। अब जागरूकता क्या है ? यह एक अलग लोग कहते हैं। एक दुश्मन- हमारा मस्तिष्क- को चीज़ है। मैं यदि किसी व्यक्ति को अपने पर त्याग कर हमने सभी दुश्मनों पर विजय प्राप्त की है। अब सलाह देने के लिए मस्तिष्क बाकी नहीं है, आक्रमण करते हुए देखें तो बचाव के लिए मैं हाथ उठा दूंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि मैं जागरूक आपको कुछ बताने के लिए मस्तिष्क बाकी नहीं है। हूँ कि मेरे हाथ हैं, मैं सचेत नहीं हूँ परन्तु जागरूक एक बार जब मस्तिष्क नहीं रह जाता तो आप खो हूँ कि मेरा हाथ है और मैं ऐसा करती हैूँ। जैसे : जाते हैं । यहाँ इटली में हर समय आप अपने हाथ हिलाते अब कहा जा सकता है कि आप स्वयं से एक रहते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि आप जानते हैं प्रश्न पूछे- मैं कौन हूँ ? ज्यों ही आप प्रश्न पूछते और हैं आप निर्विचार हो जाते हैं अ्ात् आप खो जाते कि आप जागरूक हैं कि आपके हाथ हैं अभिव्यक्ति करते हुए, किसी चीज़ पर बल देने के हैं। इस प्रश्न का उत्तर आप नहीं दे सकते। अन्यथा लिए आपने इनका उपयोग करना है अतः आप कह सकते थे कि मैं एक स्त्री हूँ, मैं ये हूँ, मैं आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व हम शरीर के वो हूँ, मैं विशेष हूँ, मैं पोप हैँ। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्रति जागरूक होते हैं, अन्य लोगों के प्रति जागरूक पाने के पश्चात् आपको कौन बताएगा कि आप क्या होते हैं, अन्य लोगों के विषय में जानते हैं। हम हैं? क्योंकि बताने वाली चीज तो मस्तिष्क है और उसका अस्तित्व नहीं रहा। विचारों के लुप्त होने का जानते हैं कि अमुक व्यक्ति कैसा है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् जो घटित होता है वह अर्थ है कि आप स्वयं में ही विलीन हो गए । यही अत्यन्त दिलचस्प है तब आप इन दोनों स्थितियों- वास्तविकता है। परन्तु आप जागरूक भी हैं यह चेतनता और जागरूकता- से ऊपर उठ जाते हैं एक अन्य बात है। आप यदि स्वयं से प्रश्न करें, क्योंकि आप विचारों से परे चले जाते हैं। विचारों से आप वहाँ नहीं होते फिर भी आप जागरूक हैं। यदि परे चले जाने का अर्थ है कि क्रोध, सभी प्रकार के आपकी नाभि पकड़ रही है तो आप तुरन्त जान मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 31 कौन हैं। आप सदैव कहते हैं कि आप पवित्र आत्मा जाते हैं, ओह मेरी नाभि पकड़ रही है। मूझे इसे ाम साफ करना है आपको प्रश्न नहीं पूछना पड़ता। हैं। कौन सी चीज आपको विश्वास दिलाती है कि या यदि कोई बायें स्वाधिष्ठान वाला व्यक्ति आपके आप पवित्र आत्मा हैं ? आपने कभी अपनी आत्मा को नहीं देखा क्या आपने कभी देखा ? आपने कभी पास खड़ा है तो आप कह उठेंगे, हे परमात्मा! या यदि कोई व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का है या बहुत स्वयं को नहीं देखा कि आप क्या हैं तो आप कैसे क्रुद्ध है तो उस व्यक्ति से आपको इतनी गर्मी कह सकते है आप पवित्र आत्मा हैं ? आप यह बात केवल इसलिए कह सकते हैं क्योंकि मैं कहती हूँ। आएगी कि आप उससे दूर भाग खडे होंगे। यह एक नया क्षेत्र है, आप उस वास्तविकता परन्तु क्योंकि पवित्र आत्मा का वर्णन जिस प्रकार किया गया है, कि यह दिव्य शक्ति के प्रति जागरूक में प्रवेश कर गए हैं जिसके प्रति पहले आप कभी जागरूक न थे। अब मान लो कोई बहुत बुरा है, इसका आपने अनुभव किया है इसलिए आप पवित्र आत्मा हैं। क्योंकि केवल पवित्र आत्मा को ही व्यक्ति आपके समीप खड़ा है, वह चोर, खूनी आदि अपना व्यक्तित्व बना कर आप परमात्मा की सर्वव्यापी सकता है। उसके प्रति जागरूक होना कुछ भी तो दूर आप सचेत भी नहीं होंगे। परन्तु यदि आप शक्ति के प्रति जागरूक हो सकते हैं। इस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आप पूर्ण के प्रति जागरूक आप पवित्र आत्मा हैं। इसका वर्णन सभी शास्त्रों में, हो जाते हैं। ये वास्तविकता है। समस्याएं क्या सभी धर्मग्रन्थों में और सभी जगह किया गया है। हैं? सामूहिकता में आप सामूहिक के प्रति जागरूक किस प्रकार आप जानते हैं कि आप पवित्र आत्मा हो जाते हैं, पूरे विश्व की समस्याओं के प्रति हैं ? क्योंकि आपको अपने चक्रों का ज्ञान है, आपको अपनी नाड़ियों का ज्ञान है। अब जो हो रहा है वह जागरुक हो जाते हैं। यह जागरूकता अत्यन्त भिन्न है । यह है कि आप स्वयं से अलग हो गए हैं और पहली जागरूकता इस प्रकार है मान लो स्वयं को देख सकते हैं। आप स्वयं को अति भविष्य और कोई आप से बताता है कि आप ऐसे हैं तो आप स्पष्ट देखते हैं और स्वयं को भूत. सचेत हो जाते हैं। परन्तु इसमें किसी को बताना वर्तमान के रूप में देखने लगते हैं। भूतकाल में मैं मैं नहीं पड़ता. यह जागरूकता विद्यमान है। आप क्या था ? आपको धक्का लगता है, हे परमात्मा ऐसा था! वर्तमान अवस्था में इसे देखें। इसे वर्तमान जागरूक हैं और जानते है कि क्या है। आधुनिक युग में आपने यही उपलब्धि पाई है और यही इस अवस्था में देखें। तब आप इसे भूलने लगते हैं, युग का आशीर्वाद है कि अब हम जानते हैं कि हम भूतकाल को भूल जाते हैं। परन्तु अब भी आपका sto मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 32 भविष्य शेष हैं, आप भविष्य के विषय में सोचने कैसे पकड़ी जाती है और बहुत से इतने करुणामय हैं कि वे तलवार पकड़ना भी नहीं चाहते : वे आनन्द लगते हैं। सर्वप्रथम लोग अपने बच्चों, अपनी पतन्नियों के सागर में हैं और भली-भांति आनन्द उठा रहे हैं। के विषय में सोचने लगते हैं कि मेरे बच्चों का क्या वे अपनी अन्य लोगों की तथा अपनी माँ की करुणा होगा, मेरी पत्नी का क्या होगा? तब वे सोचते हैं कि सहजयोग का क्या होगा ? तब महसूस करते का आनन्द उठा रहे हैं। तो समस्या का समाधान हैं कि श्री माता जी का क्या होगा ? लोग ये भी किस प्रकार किया जाए ? समस्या का समाधान सोचते हैं कि इस विश्व का क्या होगा क्योंकि तभी हो सकता है जब अपने अन्दर आप अति शक्तिशाली हो जाएं। आपका चित्त कहाँ है ? आपकी जागरूकता अब विस्तृत हो गई है, अब आप एक सीमित क्षेत्र में नहीं रहे। आप अपने आपको अन्तस में जाना होगा मैंने अपना कार्य कर दिया है, आपको आत्मसाक्षात्कार दे दिया है, आप बच्चों, अपनी पत्नी और पूरे विश्व की समस्याओं के विषय में भी सोच सकते हैं। तो आप उस स्थिति इतने विकसित हो गए हैं । मैंने आपको सभी कुछ बता दिया है, सभी कुछ वर्णन कर दिया है। इस तक पहुँच चुके हैं। वह कौन सी चीज है, अब वह कौन सी चीज़ जो यह सब आच्छादित किए हुए है बार मैंने आपको प्रेम का सागर दे दिया है। परन्तु या आपको आपके बच्चों, परिवार, पत्नी सभी के अब आपको अपना पोषण करना होगा आपको तो लिए समाधान प्रदान करती है। आपकी माँ केवल आंतरिक रूप से शक्तिशाली बनना होगा समस्याएं देने में ही भरोसा नहीं करती वे शक्तिशाली बनने का क्या उपाय है ? सर्वप्रथम आपको विश्वास करना होगा कि समाधान देने में विश्वास करती हैं। आज की आप अपने मानवीय व्यक्तित्व से ऊपर उठ कर दैवी समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको व्यक्ति बन चुके हैं। यह बात आपके मस्तिष्क में बैठ तलवार की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आजकल की समस्याएं हमारे अन्दर हैं। हम समस्या को जानी चाहिए। इसी को हम श्रद्धा कहते हैं। यह देखते हैं, उसके प्रति जागरूक हैं और उसके बारे श्रद्धा मिथ्या नहीं है, किसी चीज़ में आपका में कुछ करना चाहते हैं। चाहे हम भूत-भविष्य या अन्धविश्वास नहीं है सैकड़ों बार मैंने आपसे कहा वर्तमान में हों, हम समस्या को देखते हैं । तो है कि आप अपने उत्थान में सहजयोगी के रूप में समाधान क्या है ? हमारे पास कोई हथियार नहीं अपने पद पर विश्वास करें । इसके लिए करने के लिए कोई हथियार नहीं है, बहुत ध्यान-धारणा अत्यन्त महत्वपूर्ण है, ध्यान-धारणा है, युद्ध के बिना आप स्वयं पर पूर्ण विश्वास नहीं कर सकते से लोग तो यह भी नहीं जानते कि हाथ में तलवार अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 33 क्योंकि केवल इतना पूछने मात्र से कि मैं कौन हू, गर्दन नहीं काटी क्योंकि वे तो ऐसा कर ही नहीं आप स्वयं को नहीं जान सकते। आज़मा कर देखें। सकते थे किसी अन्य ने उसकी गर्दन काट डाली। प्रश्न पूछे मैं कौन हूँ और आप खो जाएंगे। तो इस अवस्था को हम 'श्रद्धा' की स्थिति कहते विश्वास क्या होना चाहिए ? तो आप एक ऐसी हैं, ज्योतित श्रद्धा, प्रकाशित विश्वास। यह एक स्थिति पर पहुँचते हैं जहाँ मुझे आपको यह बताना नए किस्म की रचना (Machanism) है जिसमें पड़ता है कि विश्वास मानसिक, भावनात्मक या आप विराट के अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं। में पूजा शारीरिक नहीं है परन्तु यह आपकी अपने अस्तित्व उपस्थित रहने के लिए मैंने सूर्य को नहीं कहा था। की एक अवस्था है जिसे हम रुहानी अवस्था के पिछली बार भी मैंने नहीं कहा था। इस बार लोग नाम से पुकारते हैं । रुहानी अवस्था में कोई चीज़ कह रहे थे कि कहने की कोई आवश्यकता नहीं, आपको अशान्त नहीं कर सकती। कोई भी चीज़ सब हो गया है। चैतन्य लहरियों को मैं क्रॉस बनाने आपको वश में नहीं कर सकती, आप पर प्रभुत्व नहीं या चमत्कारिक फोटो दर्शाने के लिए नहीं कहती। जमा सकती क्योंकि वह स्थिति आपकी है तो वे यह सब स्वयं करती हैं। मैं कई बार तो हैरान इसका अर्थ है कि आप बास्तविकता के अंग-प्रत्यंग होती हैँ कि उनके कितने सरल तरीके हैं! किस हैं। तब आप परमात्मा के साम्राज्य के सम्माननीय प्रकार से वे सभी कार्य करते हैं। सभी कार्य स्वतः सदस्य हैं। तब आप एक देवता, एक गण सम है। होते हैं। सभी कुछ हो जाता है। मुझ में यदि कुछ का उस स्थिति में जब आप हैं तो वह स्थिति, मानव की है तो वह है पूर्ण विश्वास कि मैं उस स्थिति में हूँ स स्थिति से ऊँची है और उस स्थिति में आप अत्यन्त और इसी कारण पूर्ण धैर्य (सबूरी) है और हमें यही शक्तिशाली होते हैं । सीखना है । हर हाल में यह घटित होना है क्योंकि सूफी सन्त निजामुद्दीन के विषय में एक कहानी है। उनके समय में एक क्रूर राजा था परन्तु महत्वपूर्ण है, अत्यन्त महत्वपूर्ण। मेरे लिए नहीं हम सब उसी स्थिति के हैं केवल ध्यान- धारणा सन्त निजामुद्दीन उनके सम्मुख जाकर झुकते न आपके लिए। आप सब यदि प्रतिदिन केवल दस थे। वे कहते थे कि मैं केवल परमात्मा के सामने मिनट भी ध्यान-धारणा करें तो यह आपके लिए झुक सकता हूँ किसी अन्य के नहीं। राजा ने कहा अत्यन्त सहायक होगी। कि कल आकर यदि तुमने प्रणाम नहीं किया तो मैं अब माँ की, हनुमान की, गणेश और ईसा तुम्हारी गर्दन काट दूंगा। उसी रात उस राजा की आदि की इतनी प्रतिमाएं क्यों बनाई जाती हैं ? गर्दन कट गई । निजामुद्दीन साहिब ने उसकी क्योंकि आरंभ में जब तक साकार रूप न हो लोग मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी 34 लिए आते हैं परन्तु मुझे ऐसे पत्र प्राप्त होते हैं जिनमें कुछ भी समझ नहीं सकते, देवी-देवताओं के साकार वे लिखते हैं कि मेरे पिता बीमार हैं, मेरी माँ बीमार के बिना वे गहनता में नहीं उतर सकते। परन्तु रूप है, मेरे भाई बीमार हैं, मेरे पति मुझसे झगड़ते हैं, मैं इस ओर भी लोग एक दूसरी सीमा तक चले गए और किसी भी पत्थर को परमात्मा मान कर उपयोग उनसे तलाक लेना चाह रही हूँ। ऐसे पत्र आते हैं जिनमें लिखा होता है कि मेरा सारा धन चला गया करने लगे। अब आपमें विवेक है। आप जानते हैं है. मुझे कुछ पैसा मिलना चाहिए और चौथे, मैं महान कि किसकी पूजा करनी है और किसे उच्च व्यक्तित्व मानना है। परन्तु इससे पूर्व वे सभी प्रकार के लोगों कलाकार हूँ परन्तु मेरी कला बिक नहीं रही। ैं किया करते थे। लोग पोप की पूजा करते कहती हैं "कि ये किस प्रकार के सहजयोगी हैं ?" की 1 पूजा हैं वे केवल अन्धे ही नहीं हैं, केवल अचेतन ही नहीं वास्तविकता से एकाकारिता होने का अर्थ है कि पूर्ण वास्तविकता आपके चरणों में है, यह पूरी हैं उनमें तो इसके प्रति चेतनता का ही अभाव है। वे तो एक ऐसे स्तर पर हैं कि उन्हें समझाया भी की पूरी आपके लिए कार्य करती है। एक बार यदि आप इस स्थिति की झलक भी पा लेते हैं तो आप नहीं जा सकता। तो आप एक नए किस्म के लोग हैं जिन्होंने इन सब चीज़ों से लड़ने का, इनके अपने अन्दर अत्यन्त शांत हो जाते हैं। आप यदि कहें कि मैं राजा हूँ तो आप राजा हैं और यदि कहें विरुद्ध संघर्ष करने का और पूर्ण सत्य का ज्ञान कि मैं भिखारी हूँ तो भिखारी हैं। तो वह स्थिति जो प्राप्त करने का प्रयत्न किया है। जब तक आप पूर्ण सत्य को जान नहीं लेते आप कहीं भी नहीं हैं, शुद्धतम स्वर्ण है जिसे दूषित नहीं किया जा सकता, आपमें न तो विवेक है न सूझ-बूझ और न ही ऐसी ही मनःस्थिति हमें विकसित करनी है। हमारे बुद्धिमता। परन्तु एक बार जब आप पूर्ण सत्य लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है हम सहजयोगी को जान लें तो किसी भी हाल में आपको हैं, ठीक है. हमने आत्मसाक्षात्कार पर लिया है, ठीक आधा-अधूरा नहीं रहना है। वह स्थिति अत्यन्त है हम बहुत अच्छा गा सकते हैं, ठीक है, हमने भयानक है हो गया अच्छा पद पा लिया है, ठीक है, हमारा बहुत अच्छा जैसेः एक बीज अंकुरित है, अब वह न तो बीज है और न ही पेड़। विवाह हो गया है, हमें सभी प्राप्त हो गया है, हमें यदि यह बढ़ता नहीं है तो यह व्यर्थ है। नौकरी मिल गई है आदि आदि। परन्तु अचानक आपकी चेतनता के साथ भी यही होता है एक नकारात्मक शक्ति आती है और आपको कष्ट और तब आप न इधर के होते हैं न उधर के। में डाल देती है। तो क्या हुआ ? इसके बिना आप बहुत से लोग सहजयोग में शांति प्राप्त करने के कैसे जानेंगे कि आप क्या हैं ? यदि अन्धकार नहीं मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 35 कहती हैँ कि मुझे बहुत तोहफे न दें लेकिन एक ही है तो आप कैसे जानेंगे कि आप प्रकाश हैं? आपकी अपनी अवस्था को यह एक चुनौती है कि आप तर्क दिया जाता है कि पूरे वर्ष में हम केवल एक किस अवस्था में हैं। 'अवस्था शब्द इतना स्पष्ट बार आपको देते हैं, तो श्री माता जी आप इस पर नहीं है संस्कृत में यह स्व-रूप' है 'स्व' अर्थात् एतराज न करें, इससे हमें आनन्द मिलता है। ठीक है, यदि आप सोचते हैं कि आपको आनन्द मिलता आप और 'रूप" अर्थात् शक्ल या स्थिति । वह है तो करें। परन्तु मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता स्थिति आप सबके लिए सम्भव है यदि आप सभी क्योंकि मैं नहीं सोचती कि मैं यहाँ हूँ. यहाँ बैठकर नकारात्मक विचारों के लिए कहते रहें कि 'यह नहीं, यह नहीं। आपका मस्तिष्क उस स्थिति में मैं आप सबको देख रही हूँ, ठीक है. सभी पहुँच चुका है जहाँ मस्तिष्क है ही नहीं। आप यह आत्मसाक्षात्कारी लोग बैठे हैं. ठीक है परन्तु मैं भी कर सकते हैं परन्तु इसके लिए आपको ऐसा आपमें से एक हूँ। मैं नहीं सोचती कि मैं कोई विशेष व्यक्तित्व विकसित करना होगा जो यह महसूस हूँ। परन्तु यदि आप मुझसे पूछें तब मैं कहूँगी कि कर सके कि आप क्या हैं। परन्तु उस साक्षात्कार ठीक है मैं आदिशक्ति हूँ, पर मैं नहीं सोचती कि ९ में आप मात्र जागरूक होते हैं इसके प्रति सचेत आदिशक्ति भी कुछ विशेष है । यदि कोई व्यक्ति विशेष भी है तो क्या ? मान लो सूर्य कुछ नहीं होते। जैसे उदाहरण के रूप में मैं आपको कुछ हूँ कि मैं आदिशक्ति विशेष है तो क्या ? सूर्य तो सूर्य है। यदि कोई बताती हूँ कि मैं जागरूक हूँ. मैं जागरूक हूँ, मैं यह बात जानती हूँ । परन्तु व्यक्ति आदिशक्ति है तो वह आदिशक्ति है. तो आपके लिए यह श्रेयस्कर है क्योंकि क्या ? जब आप जय श्री माता जी कहते हैं तो यह भूल परन्तु आप लोग जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी न थे, आपने कर कि मैं श्री माता जी हूँ मैं भी जय श्री माता जी कहती हूँ। वास्तव में यही स्थिति होनी चाहिए। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया, अतः आप विशेष हैं. आप महान हैं, आपने कुछ उपलब्धि प्राप्त की है, मैंने आप लोग महारानी की तरह से मुझे बिठाते हैं और मुझे तोहफे देते हैं। ठीक है, यह आपका तो कुछ प्राप्त नहीं किया, मैं ऐसी ही थी और ऐसी विचार है। परन्तु मैं स्वयं में पूर्ण हूँ, मैं स्वयं में लीन ही रहूँगी चाहे मैं आसुरों से युद्ध करूं या आपके हो गई हूँ, ठीक है, आप ऐसा कर सकते हैं, आप सम्मुख बैठूं कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु मेरे लिए वैसा कर सकते हैं और यदि आप ऐसा न भी करें आप महान हैं क्योंकि आपने यह प्राप्त किया है। नवरात्रि के दिन इतने लोगों को पूजा के लिए बैठे तो भी ठीक है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है इससे आपको फर्क पड़े। जैसे मैं सदा देखकर बहुत अच्छा लगा। यह अति प्रशंसनीय है। मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 36 ये मेरी उपलब्धि नहीं है आपकी अपनी जिज्ञासा है तरह से व्यवहार न करें। आप विकसित हो चुके हैं, क्योंकि मैं इससे पूर्व भी बहुत बार पृथ्वी पर आई हूँ समृद्ध हो चुके हैं, अब आप इसके फल भी देख सकते हैं। वास्तव में मेरी समझ में नहीं आता कि मैं परन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ। बहुत से लोग आए, सूली पर चढ़ गए, मृत्यु को प्राप्त हुए आदि, कभी आपके लिए क्या करूं। परन्तु स्वयं में विश्वास करें; आप देखेंगे कि आपको वास्तविकता (सच्चाई) में मुझे ऐसे लोग नहीं मिले। तो एक बार फिर हम उसी बिन्दु पर आते हैं कितना विश्वास हो जाता है, हर कदम पर, हर क्षण कि हमें स्वयं के प्रति जागरूक होना चाहिए. स्वयं आप देखेंगे कि आपके अन्तस में कितनी सच्चाई में पूर्ण श्रद्धा। यदि आपको स्वयं में श्रद्धा है तो है। कोई भय या उपलब्धि -गर्व मन में न आने दें. आपको मुझ में भी श्रद्धा होगी क्योंकि हम लोग काफी हो चुका है, हो गया| जब पाँच सहजयोगी थे, मैं प्रसन्न थी, अब जब इतने सारे सहजयोगी हैं, को विश्वास है कि यह जल भिन्न नहीं हैं । रानि मैं प्रसन्न हूं । परन्तु जब मैं इतने अधिक सहजयोगियों है तो पूरे ।- भी जल होगा, आप जान जाएंगे कि यह जल है। आप यदि जानते हैं कि को देखती हूँ तो मुझे लगता है कि इतने सारे आप सहजयोगी हैं तो जहाँ भी सहजयोगी होगा शक्तिशाली व्यक्तित्व हैं जिनकी एकाकारिता आप जान जाएंगे कि यह सहजयोगी है। परन्तु वास्तविकता से है। यह सामूहिक एकता इससे पूर्व जहाँ तक आपका सम्बन्ध है आप भूल जाते हैं कि कभी न थी। इसीलिए मैं कहती हैं कि आज के आप कितने महान हैं! मुझे आप पर बहुत गर्व है। दिन हमारे करने योग्य एक ही कार्य है कि परन्तु मैं एक नम्र व्यक्ति हूँ मैं नहीं जानती कि हम अपने अन्तर्निहित असुरों का वध करें, और प्यारे बस। आप यदि वास्तव में मेरी पूजा करना किस प्रकार प्रदर्शन करूं इतने अच्छे बच्चे होना। जिन भक्तों के लिए उसने (देवी ने) चाहते हैं तो आपको यही सोचना होगा कि इतने असुरों का वध किया था, वे आप जैसे न थे। आपके अन्दर कौन से असुर हैं। मात्र इतना आपको बाहर के असुरों की चिन्ता करने आप उनसे कहीं अच्छे हैं, कहीं ऊँचे हैं, आपमें ही। उनसे कहीं महान गुण हैं। की कोई आवश्यकता नहीं, वे आपका कुछ आपको यह जानना आवश्यक है कि आप नहीं बिगाड़ सकते। क्या हैं. आदिम (अविकसित) स्वभाव के लोगों की प परमात्मा आपको धन्य करें। ही हाँ पत न ाभी छाम 37 ने अन्तर्राष्ट्रीय ले प्लेजादे' श्री माता जी (Le Plejade) शांति पुरस्कार जीता विश्व में जहाँ कि व्यक्ति तथा 2 मई 1996 को अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार ले प्लेजादा के दसवें संस्करण में श्री मानवता की समस्याओं के नए समाधान माता जी निर्मला देवी को 1996 का खोजने की अत्यन्त आवश्यकता है, किसी पुरस्कार विजेता घोषित किया गया। ऐसी चीज़ को खोजने की जिससे व्यक्ति निर्णायकों में भिन्न देशों के प्रोफैसर तथा अस्तित्व की चेतना की गहनता में उतर 1 डॉक्टर सम्मिलित थे। पुरस्कार को मंत्री सके, इस क्षेत्र में सहजयोग संस्थापिका परिषद की अध्यक्षता, यूरोपियन संसद श्री माता जी सभाओं तथा नेतृत्व द्वारा कार्यालय इटली अच्छे जीवन के लिए हमारे अपने ही गहन आयामों पर ध्यान योजना संस्थान एवं यूनीपाज़ ( दोनों संयुक्त राष्ट्र से सम्बन्धित) ब्रह्माण्डीय अन्तर्राष्ट्रीय हुए हमें नयी दिशायें सुझा रही हैं और संस्था, कला प्रगति संस्थान (The एक संतुलित तथा शांत समाज, जहाँ Presidency of Council of Ministers, The प्रत्येक व्यक्ति की गहन आत्मा से आरंभ European Parliament Office in Italy, The करके शांति का वास्तवीकरण किया जा Planning Institute for Quality of Life and करने के लिए हमारा पथ-प्रदर्शन करते सके, का आधार स्थापित करने में सहायता Unipaz) ने 3 एम इटली समूह (3 Mltaly Group) के सहयोग से संरक्षण प्रदान किया। कर रही हैं। श्री माता जी की ओर से ग्वीडो ने पुरस्कार प्राप्त किया। संक्षिप्त रूप से धन्यवाद करते हुए उन्होंने अत्यन्त स्नेह श्री माता जी को इस पुरस्कार के लिए चुनने के लिए उन्होंने निम्नलिखित तथा सम्मानपूर्वक कहा कि श्री माता जी के प्रति समर्पित होना हमारा अपना ही आधार बताए हैं :- सम्मान है। ---------------------- 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt 1997 अंक 3 व 4 HIVERSAL FURE चैतन्य लहरी आज के दिन हमारे करने योग्य एक ही कार्य है कि हम अपने अन्तर्निहित असुरों का वध करें, बस। आप यदि वास्तव में मेरी पूजा करना चाहते हैं तो आपको यह सोचना होगा कि आपके अन्दर कौन से असुर हैं मात्र इतना ही बाह्य असुरों की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं, वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते"। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी नवरात्रि पूजा, 1996 ১২০ ১A। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt HWA NIRMALA ड VIVERSAL PURE RELIGI |ती पाम चैतन्य लहरी विषय सूची य र अंक 3 व 4, 1997 खण्ड IX 1) शिवरात्रि पूजा, दिल्ली - 16.3.97.. ********** छ INCON त 2 ) जन्मदिवस पूजा, दिल्ली 21.3.97... .....E 8. बा 3) श्री गणेश पूजा, कबेला 17 15.9.96............... 4) हॉलैण्ड के विषय में श्री माताजी के विचार.. 23 ाम 5 ) सिडनी वायुपत्तन वार्ता 25 5.3.96.... ष 6) नवरात्रि पूजा, कबेला 27 20.10.96.. *** 7) श्री माताजी को शांति पुरस्का.... 37 *..... DHARMA 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। शिवान नमाई पत्र दा ी प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ॐा नह XI 'ई' मेल का पता- मीवाी िन्दि marketing@nirmalinfosys.com das www.nirmalinfosys.com लश ल द्वा Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ाी चाककी ुडज ित तभ प सताताि च लि शतत 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt 3. शिवरात्रि पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली, 16 मार्च 1997 ा (मूल-हिन्दी प्रवचन) आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हुए हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब हुए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे प्रकाशित होता है हमारी नसों में । चैतन्य के लिए कहा है 'मेदेस्थित', प्रथम 'इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का चर्म पहन कर घूमते हैं मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी चले जाएं। उनको किसी चीज़़ में घटित हो जाने से जो प्रकाश हमारे अन्दर आत्मा कभी ये ख्याल नहीं आता कि लोग क्या कहेंगे, से प्रगटित होता है वो चैतन्य स्वरूप बन कर हमारे दूसरों का क्या विचार होगा? हम अगर ऐसे कपड़े हाथों और तालू से प्रवाहित होता है। ये तो आप लोग जानते हैं; पर आगे की बात समझने की यह तो लोग हमें क्या कहेंगे ? क्योंकि वो अपने ही पहनकर और नन्दी पर बैठकर इधर-उधर भटकें है कि जब यह प्रकाश हमारे अन्दर आता है तो अन्दर समाये हैं। अपने ही खुशियों में बैठे हुए धीरे-धीरे हम देखते हैं कि हमारी जिन्दगी बदलने हैं। उनको कोई भी संसार से ये मतलब नहीं है कि हुए लगती है, हमारे अन्दर का क्रोध और हमारे जो दुनिया हमें क्या कहेगी, लोक-लाज क्या होती है। षटरिपु हैं वो खत्म होने लगते हैं। धीरे-धीरे सब ये तो इनके विवाह में भी आपने वर्णन सुना होगा चीजें गिरती जाती हैं और मन में श्रद्धा प्रस्थापित कि जब ये विवाह करने आए तो श्री विष्णु ने जब होती है। श्रद्धा में त्यागबुद्धि जागृत होती है, किसी देखा तो उन्होंने सोचा कि ये क्या दूल्हा मेरी बहन 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt मार्च - अप्रेैल, 1997 चैतन्य लहरी के लिए आया है, बेकार सा! इससे कैसे मेरी बहन है। हिन्दुस्तानी अब भी जहाँ जाते हैं उनको बाथरूम शादी करेगी ? लेकिन पार्वती जी जानती थीं कि चाहिए साथ जुड़ा हुआ। पता नहीं और दुनिया भर उनके योग्य यही पति है जो एक मस्त-मौला की चीजें। अभी तक इससे उठ नहीं पाए हैं। आदमी है। किसी चीज़ की उनको कद्र नहीं है। स्वभावतः मुझे आश्चर्य होता है कि अपने गरीब देश तो में भी लोगों में अभी काफी कामनाएं बची हैं। बड़े सब चीज़ों से जब आदमी ऊपर उठ जाता है आश्चर्य की बात है! हमें लोगों ने कहा कि माँ एक उसके लिए सब चीज़ एक किन्चित पदार्थ हो जाती आश्रम के लिए एक बड़ी सी जगह ले लें। हमारे हैं उसका ध्यान इस ओर नहीं जाता। ये शिवजी का जो अवतार हम लोग देखते हिन्दुस्तानी कभी आश्रम में रहते नहीं । अब ये आश्रम जब हम लोगों ने बनाया, इतनी मेहनत से, हैं हमें बहुत प्यारा लगता है, मोहक लगता है और सब लोग सोचते हैं कि शिवजी का सारा ही काम खर्च करके तो इसमें रहने के लिए कोई तैयार कुछ तो भी विशेष है। लेकिन जब सहजयोगियों में नहीं । हमने कहा बाबा हम तुमको तनख्वाह देते हैं, शिवजी का प्रकाश आ जाता है तो उनका भी तुम रहो। पर तैयार नहीं। मेरा जो जन्मस्थान है. जीवन बदलने लगता है। मैंने देखा है कि जैसे छिन्दवाड़े में, उस घर के लिए इतना रुपया-पैसा पहले सहजयोग में आए, औरतें भी, आदमी भी, सब खर्चा किया और मैंने कहा जो रिटायर हो गए हैं सजना-धजना शुरु कर देते थे। सारा ध्यान इसी वहाँ रहें। बड़ी अच्छी आबो-हवा है, पहाड़ी स्थान में रहता था कि आज क्या पहनें, कल क्या पहनें, है। कोई रहने को तैयार नहीं। सब अपने आराम और आजकल तो इसका प्रादुर्भाव बहुत हो गया है को सोचते हैं। इन लोगों में यह बात नहीं है। वे लोग आश्रमों में बड़े सुख से रहते हैं। मेरा घर, मेरी क्योंकि सब जगह बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधन गृह निकल आए हैं, ये है, वो है, तो औरतें इसमें बहुत जगह, मेरी बीवी, खाना बनना चाहिए इस तरह से फँसी हैं। पर जब आपके अन्दर से निखार, आपके ये यही खाना खाएंगे हम लोग इतने स्वाद में सौन्दर्य का, इस प्रकाश से आता है तब इन सब उलझे हुए हैं इन लोगों में ये स्थिति नहीं है । हिन्दुस्तानी खाना भी शौक से खाते हैं। लेकिन मुझे चीज़ों का कोई महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह आराम, आराम भी एक तरह से आत्मा का ही मालूम है कि जब हिन्दुस्तानी कबेला आते हैं तो आराम मनुष्य खोजता है। अपने आराम से दूर अपनी रोटियाँ परांठे-वराँठे, अचार-वचार बाँध के रहता है। इसमें जो परदेशी लोग हैं, इनको देखिए, लाते हैं क्योंकि उनके जीभ से नहीं उतरेगा । सभी ये बड़े-बड़े घरों में रहते हैं, इनके पास मोटरे हैं तो जीभ में ही फँसा हुआ है । सो ध्यान करने से सबकुछ, रईस हैं। पर यहाँ आते हैं तो हर जगह जब तक ये चीजें छूटेंगी नहीं तो आप धर्म से परे समा जाते हैं। पर हिन्दुस्तानियों का ये हाल नहीं नहीं जा सकते। एक छोटी सी बात समझने की है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी कि त्याग में भी हम लोग कम पड़ जाते हैं। इस नहीं सकता वह सहजयोगी नहीं है। वो अभी भी सोचता है कि मैं कोई विशेष हूँ, मेरा अलग बार इन्होंने कहा कि माँ आप इतनी बड़ी जमीन ले रहे हैं, इतना खर्चा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सब इंतजाम होना चाहिए वो सहजयोगी नहीं हो थोड़ा सा ज्यादा पैसा कर दो। न जाने कितनी सकता। वो नाम मात्र को सहजयोगी हैं। जो शंकर 1. चिट्ठियाँ मेरे पास आई कि आप पूजा का पैसा जी का भक्त है उसको शंकर जी जैसा होना है। कहीं भी सुला दो, कहीं भी बैठा दो, कुछ भी खाने कम कर दीजिए, पूजा का पैसा कम कर दीजिए। अरे भई एक बार दिल्ली में पूजा हो रही है उसमें को दो, उसको किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं भी चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ । पान खाकर लोग फेंक है। समय की पाबन्दी नहीं, किसी चीज की माँग देंगे लेकिन में जरूरी है पैसा देना! आपसे नहीं; ऐसा ही आदमी हम कह सकते हैं, सहजयोगी पूजा पहले हमने कोई पैसा नहीं लिया। सारी चीज़ें है। शिवजी का आपके अन्दर प्रादुर्भाव हो गया । अपने ही दम पर सब करी। लेकिन इतना सा कहते ही आज आधा मण्डप खाली है। क्यों ? लोग तो इसको प्राप्त करने से पहले ही न जाने क्या-क्या कर्म करते हैं। और किसी पद्धति में आप क्योंकि पूजा का पैसा नहीं देना। फोन करते हैं कि हमारी पूजा माफ कर दीजिए अरे भई आप कोई जाइए वो आपके सारे पैसे नोच लेंगे, आपके सारे कम नौकरी हो ऐसा नहीं है हमारे पति देंगे मैं बाल नोच लेंगे, पता नहीं क्या-क्या करेंगे। सहजयोग नहीं दूंगी। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। अभी अगर में ऐसा नहीं है लेकिन ये वृत्ति, जो अब भी हमारे कोई औघड़ गुरु होते तो आप लोगों के सबके बाल अन्दर बनी हुई है, इसको छोड़ना चाहिए। यह प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्या-क्या चीज़ छोड़ मुंडा कर और आपको गेरुआ वस्त्र पहनाकर सर सकते हैं। जब तक ये मस्ती आपके अन्दर नहीं के बल खड़ा कर देते। लेकिन मैं यह नहीं चाहती, क्योंकि सहज की बात है। सब चीज़ सहज में आएगी तब तक आपको शिवजी का भक्त नहीं कह आना चाहिए। हमने बहुत लोगों को त्याग करते सकते अपने जीवन में देखा है। और आजकल लोगों में उसकी कोई विशेषता तो है नहीं। सब तरह के । माता जी के तो हर तरह के भक्त हैं। भक्त हैं, चाहे जो भी करें, चलो माँ ही है, माँ माफ मैंने वो देखा ही नहीं । हमारी माँ का मुझे मालूम है कि छःसाड़ियों से सातवीं साड़ी उनके पास हो कर देती हैं। पर माफ कर देने से आप उस पद को जाए तो दे डालती थीं। वहाँ भी लोग आते हैं प्राप्त नहीं कर सकते। माफ करने की बात सबसे कबेला में तो आश्चर्य होता है कि उन्हें अलग से बड़ी यह है कि शिवजी से हर समय माफी माँगनी कमरा चाहिए, घर चाहिए, अलग से रहेंगे सबके चाहिए, हर समय क्षमा माँगनी चाहिए, क्योंकि साथ नहीं रहेगें। जो सब के साथ मिलकर रह पग-पग हम ऐसे काम करते हैं जो हमें नहीं करना 1. 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी चाहिए। उनसे क्षमा माँगनी चाहिए कि, हे शम्भो इससे तो आपका सोना हो गया और सोने पर तो हमें क्षमा कर दें। हम ये गलती करते हैं, हम वो कोई कलंक लग ही नहीं सकता, उसपे कोई चीज गलती करते हैं, हमारे अन्दर ये जरूरते हैं, हमारे चढ़ ही नहीं सकती वो अब आप हो गए हैं, उस अन्दर वो जरूरते हैं, हमको ये चाहिए, हमको वो स्थिति को प्राप्त करें। अब भी क्यों ये गुलामी चाहिए। जब तक चाहिए. अपने अन्दर हैं, तब तक दुनिया भर की चीज़ों की ? यही कुण्डलिनी की आप परमात्मा से क्षमा माँगे। मेरा घर मेरी बीवी, विशेषता है कि यह आपको पूरी तरह से सफाई में इस तरह एक अधिकार की भावना, जो हमारे डाल देती है। सेवा, हाँ भई सेवा भी करनी चाहिए. अन्दरं है, इसको जब हम छोड़ नहीं सकते तो हम पर मुझे तो कोई सेवा खास आपकी चाहिए नहीं । शिवजी के भक्त नहीं हो सकते। इस मामले में मैं खुद ही मस्त-मौला हूँ मुझे आप क्या सेवा देंगे? आश्चर्य की बात है कि परदेश के लोगों ने तो सिर्फ ये है कि आप अपने अन्दर ये मस्त-मौलापन इतना पा लिया, जिन्होंने कभी सुना भी न था ले आइए। एक आनन्द में विभोर रहने पर ये शिवजी का नाम और हम लोग अभी भी उसी में सोचना चाहिए कि यह सब चीजें कुछ तो आनन्द ही के लिए हैं और वो आनन्द हमको अगर मिलता चिपके हुए हैं, और उसी को इतना मानते हैं। शिव होने का मतलब यह है कि सर्वथा ही है बगैर कुछ किए तो ये सब करने की क्या दुनिया भर की जो हमारे अन्दर लोलुपता है, जो जरूरत है ? है हमारे अन्दर नफरत है, जो हमारे अन्दर दुष्टता बहुत कुछ सोचने पर मैं इस नतीजे पर उसको छोड़ देना है। पर मनुष्य सहजयोग में आने पहुँची हूँ कि सहज जो है वो है तो बहुत सरल पर भी अपने को देख नहीं पाता। मैंने सुना एक और इसलिए बहुत कठिन है। अगर कोई डण्डा सास हैं जो अपनी बहू को सता रही हैं। मैंने कहा लेकर खड़ा हो और कहे कि चलो सब बाल तुम क्यों सता रही हो तो वो कहने लगी मैंने तो मुंडाओ, गेरुए वस्त्र पहनो, 14 दिन तक भूख सताया ही नहीं। सिनेमा में जाएंगे, देखेंगे कोई हड़ताल, तो हो गया। उसमें ठीक हो जाते हैं। पर जो सहज है उसको अपने हृदय से, अपने मन से, सास बहू को सता रही है तो रोएंगे, वही और घर में आकर बहू को सताएंगे या बहू सास को अपनी बुद्धि से स्वीकार्य करके और उसमें अपनी ही सताएगी। लेकिन कहेंगे कि मैंने कभी किसी को ताड़ना करना, अपने को ही ठीक करना, मैं ऐसे सताया ही नहीं। इस तरह के झूठ को अपने क्यों करता हूँ ? ऐसा मुझे करना चाहिए क्या ? आवरण में रखकर सहजयोग में आप उठ नहीं इसमें बहुत कुछ छूट जाएगा और इससे एक तरह सकते क्योंकि ये आप की जिन्दगी बदल देता है, से आप अपने को पाइएगा कि आप समर्थ हैं। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी ुा आपको कोई चीज़ की गरज नहीं, आपको कोई नाथ लोग थे, वे भ्रमण करते थे, दुनिया भर में जाते थे। और उन्होंने बहुत कुछ लोगों को शिक्षा दी। मैं चीज़ की इच्छा नहीं, बस बैठे हैं आराम से। और आश्चर्य की बात है कि जब चैतन्य यह जानता है तो हैरान हुई कि ये लोग कहाँ-कहाँ पहुँचे थे। कि आपको कोई चीज़ की गरज नहीं तो आपके कोलम्बिया में गई थी तो वहाँ पता हुआ कि सामने थाली परोस कर लाता है। हो सकता है बोलीविया में ये लोग आए थे अब कोलम्बिया में प्रलोभन के लिए हो। फिर देखिएगा आपको क्या 1 अगर आप जाएं तो हवाई जहाज में चक्कर आने है। कोई आपकी जरूरत ऐसी है ही नहीं जो लगते हैं, इतना ऊंचा है। और उस वक्त तो सब पैदल ही लोग जाते होंगे! तो ये गए कैसे होंगे ये पूरी नहीं कर सकता। पर इसमें थोड़ी सी लगन होनी चाहिए। ही समझ में नहीं आता ? रूस में, रूस के और भी आज शिवजी का हम लोगों ने इतना आहान , देशों में इनका भ्रमण हुआ, और कैसे करते थे, कहाँ किया और उनको तो ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। रहते थे, क्या पहनते थे, कुछ पता नहीं। क्योंकि वो उनमें हममें यही फर्क है कि हमें सब तरह के लोग दशा आ जाती है फिर आप एक चमत्कार पूर्ण अच्छे लगते हैं उनको नहीं। उनको ऐसे ही लोग इन्सान हो जाते हैं। जैसा हम जानते हैं कि शिरडी अच्छे लगते हैं जिन्होंने ये सब छोड़ दिया ये सब के साईनाथ, कहीं भी उद्भव होता है उनका, वे | व्याधियाँ हैं हमारे अन्दर। एक-एक चीज़ में कि कहीं भी आते है। कहीं भी किसी की मदद कर देते भई कपड़े ऐसे पहने, नहीं पहने तो क्या हो जाएगा ? हैं लोग कहते हैं माँ हमने तो उनको देखा, हाँ लेकिन हमारे यहाँ सन्यास बाह्य का नहीं माना देख सकते हैं, क्यों नहीं ? ऐसे लोग अमर हो जाते जाता, अन्दर से; अन्दर से आप सन्यस्थ हो जाएंगे हैं क्योंकि उनकी मारने वाली जो वृत्तियाँ हैं खत्म और सन्यस्थ होने पर कोई भी चीज़ की कामना हो गईं। फिर वो अमर हो जाते हैं और इसी नहीं रह जाती। जहाँ है वहीं मस्त बैठे हैं। पहले अमरत्व को प्राप्त करना ही शिवजी की पूजा है। 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt पतम जन्मदिवस पूजा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली 21 मार्च 1997 (मूल हिन्दी प्रवचन) क आप सबको अनन्त आशीर्वाद । जाते हैं तो सत्य की महिमा का वर्णन कोई नहीं जब सब दुनिया सोती है तब एक सहजयोगी कर सकता। मैंने किसी से भई सहज में तुम्हें पूछा जागता है और जब सब दुनिया जागती है तो क्या मिला? बोले माँ ये नहीं बता सकते पर सब सहजयोगी सोता है। इसका मतलब ये होता है कि मिल गया। सब कुछ माने क्या? मैं भी कहूँगी कुछ है कि आज के दिन मुझे सहज में सब कुछ मिल गया जिन चीज़ों की तरफ सहजयोगियों का रुख उस तरफ और लोगों का रुख नही। उनका रुख है। मैं जब छोटी थी तो अपने पिता से कहती थीं और चीजों में है किसी न किसी तरह से वो सत्य कि मैं चाहती हूँ कि जैसे आकाश में तारे हैं ऐसे से विमुख हैं, मानें किसी को पैसे का चक्कर, किसी दुनिया में अनेक लोग तारे जैसे चमकें और परमात्मा को सत्ता का चक्कर, न जाने कैसे-कैसे चक्कर में का प्रकाश फैलाएं। कहने लगे हो सकता है। तुम इंसान घूमता रहता है और भूला-भटका, सत्य से सामूहिक चेतना जागृत करने की व्यवस्था करो परे, उसकी ओर उसकी नज़र नहीं है कोई और कुछ भाषण मत दो, कुछ लिखो नहीं, नहीं तो कहेगा कि इसका कारण ये है, उसका कारण ये है दूसरा बाईबल तैयार हो जाएगा, कुरान तैयार हो कोई न कोई विश्लेषण कर सकता है। पर मैं जाएगा और एक झगड़े की चीज़ शुरु हो जाएगी। सोचती हूँ अज्ञान, अज्ञान में मनुष्य न जाने क्या-क्या सो इससे पहले तुम सामूहिक चेतना करो और करता है। एक तरह का अंधकार, घना अंधकार, सामहिक चेतना का कार्य हो गया, अनायास, शुरु में! लेकिन उसकी जो समस्याएं हैं वो मुझे छा जाता है जैसे अभी यहाँ अगर अंधकार हो सहज लोग जाए तो न जाने भगदड़ मच जाए., कुछ आपसे आज बतानी हैं। उठकर भागना शुरु कर दें, कितने लोगों को गिरा दें, उनके ऊपर पाव रख दें, उन्हें चोट लग जाए। चेतना हो गई और सब जगह लोग इतने ज्यादा बहुत आनन्द की चीज़ है कि सामूहिक कुछ भी हो सकता है। इस अंधकार में हम लोग मात्रा में, हर देश में, लोग सत्य को पा गए और जब रहते हैं तब हमारी निद्रा अवस्था है। लेकिन उसमें ही आनन्द में हैं। लेकिन कष्ट तब होता है, हम जब जागृत हो गए, जब कुण्डलिनी का जागरण ये सोच करके, कि सामूहिक चेतना में हमने कोई हो गया और जब आप सत्य के सामने खड़े हो चयन नहीं किया; दरवाजा खोल दिया हर तरह से ा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी लोग अन्दर आ गए और अपने साथ अपनी गन्दगी हैं, इससे इंसान खुश हो जाता है देखता है कि देखो रबड़ में भी कितनी शक्ति है कि वो हमें सुख भी लेकर अन्दर चले आए। और जब ऐसे थोड़े से भी लोग आ जाते हैं तो वो बहुत नुकसान देते हैं। और आनन्द दे सकता है, और वो भी एक बड़ी सौन्दर्यपूर्ण वस्तु बन सकता है। फिर हम तो मनुष्य नामदेव वगैरह तो बिल्कुल जो पहले बड़े साधु-सन्त हो गए. जो अपने ही लोग हैं, उन्होंने हैं और मनुष्य में हम आज सहजयोगी हैं, पहुँचे हुए तो साफ-साफ कह दिया था कि जो कि बुरे हैं वो लोग हैं। सो इन लोगों की एक स्थिति आने के लिए क्या करना चाहिए ? अच्छे हो ही नहीं सकते; उनकी आदतें ठीक हो ही अभी मेरा एक अनुभव हुआ जो मैं आपको नहीं सकतीं। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा एक मक्खी लीजिए: मक्खी एक तो आपके खाने पर एक कथा के रूप में बताती हूँ। मुझे बड़ा दुःख बैठेगी तो भी मार डालेगी और अगर कहीं मर गई हुआ। मैं इसलिए ये सब हिन्दी में बोल रही हैूँ और पेट में चली गई तो भी आप मर जाएंगे। ये क्योंकि ये ज्यादातर दोष हिन्दुस्तानियों में हैं । मक्खी नहीं ठीक हो सकती। उन्होंने कहा कि ऐसे अंग्रेजों में इतना नहीं, परदेश में भी इतना नहीं। मक्खी वाले बहुत से लोग बहुत सा उनको गुड़ उन लोगों को इस की अक्ल भी कम है। हमारे देश चिपकाने का शौक होता है और उसकी ओर में पहले ये हमारी भारत माता, पूरी सम्पूर्ण, इसमें दौड़ते ही रहते हैं। सो सहज में ये चीजें सब अनेक तरह के देश समाए हुए थे। आप जानते हैं हमारी गिर जानी चाहिएं। जब तक ये गिरती नहीं इसमें बर्मा था, सीलोन था, पाकिस्तान, बांग्लादेश तब तक हम ऊँचे उठ नहीं सकते। पंखो में अगर आदि अनेक देश समाए हुए थे। ये हमारी माँ है भारत माता'। पर इसको लोगों ने काट-पीट कोई चीज़ लग जाए तो पक्षी भी नहीं उड़ पाते। इसलिए जो ये आनन्द का आकाश है जिसे कि लिया। किसलिए काटा-पीटा ? वो ऐसी बात हो जाती है कि जैसे कोई लोग इस देश में ऐसे हो गए कवियों ने रागांचल कहा है-माँ के प्यार का जिन्होंने सोचा कि ये हमारे देश के लीडर हो गए, आंचल- इसमें आप एक पक्षी की तरह उड़ नहीं ये बड़े आदमी हो गए तो हम क्यों न कुछ ऐसा करें सकते, क्योंकि आपके पंखों में भी कुछ न कुछ अभी कि हम भी बड़े हो जाएं। ये अगर प्रधानमन्त्री हो लगा हुआ है। आज का दिन शुभ दिन है और बहुत से सकते हैं तो हम भी प्रधानमन्त्री हो सकते हैं। ईष्ष्या, पहली चीज, ईष्ष्या हो गई कि हमारा एक देश हो लोग सोचते हैं कि बहुत बड़ा दिन है और इस दिन कोई विशेष कार्य हुआ; ऐसे लोगों ने कहा हुआ है। जाए हम अगर विभाजन कर लें तो उतना हिस्सा लेकिन आज के दिन एक विशेष कार्य आप लोगों हमको मिल जाएगा। उस पर हम राज-पाट करेंगे। जैसे बहुत से बड़े-बड़़े परिवारों में ऐसा होता है कि को करना है। इतने सारे आपने गुब्बारे लगा रखे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी 10 लोग चाहते हैं हमारा अलग घर हो, हम अलग से कल्पना नहीं है तो आप सहजयोग छोड़ जाएं वही रहें, हमारे बीवी-बच्चे हों, हम वहीं रहें और किसी अच्छा है। अभी एक बहुत भारी वारदात हो गई कि एक निकालते थे। से मतलब न रखें। तो विभाजन करने की एक साहब सहजयोग में थे बो सबके भूत प्रवृत्ति मनुष्य में है। और उसी के कारण, समझ मैंने कहा बन्द कीजिए, ये भूत आपको पकड़ेंगे। पर लीजिए आप, बांग्लादेश बना तो मैं अभिभूत हो गई कि लोगों ने इतना सा बांगला देश माँगा! और उनको शौक हो गया। हो सकता है लोग उनको इसलिए कि कुछ लोग चाहते थे कि हमारा राज्य पैसा देते हों या बहुत बड़ा आदमी कहते हों, जो हो। आप इस्लाम का नाम लो या किसी भी धर्म के भी हो। जो भी हो उन्होंने अपना एक अलग ग्रुप निकाल लिया। सहजयोग के भी कुछ ऐसे लोग थे नाम पर कोई न कोई बहाने से विभाजन कर डाला और आज बांग्लादेश का ये हाल है कि हमें लोग वो भी अलग हो गए। एक अलग ग्रुप बनाकर कहते हैं माँ आप मत जाओ नहीं तो आप की उन्होंने एक अलग से संस्था निकाली। हाँ मेरे बारे आँखों से अविरल अश्रु धारा बहती रहेगी इतनी में उनको कहते शंका नहीं थी लेकिन और जो दुर्दशा है। पाकिस्तान का क्या हाल है ? सीलोन लोग हैं और लीडर जो हैं, किसी काम के नहीं जिसको कि अब श्री लंका कहते हैं उसका क्या कुछ उसके दोष, कुछ उसके दोष, कुछ सबके दोष हाल है? ये जो तोड़-तोड़कर देश के इन्होंने निकाल कर उन्होंने कहा कि हम बड़े शुद्ध आचरण अलग भाग बनाए और सोचा कि अब इसमें हम के लीडर हैं, और हम माँ के भक्त हैं। मुझसे बिना राज करेंगे, अधिकतर उनके प्रधानमन्त्री वगैरह को पूछे, मुझसे इजाज़त लिए बिना, उन्होंने एक बड़ा वहीं के लोगों ने मार डाला। उनका खून कर ग्रुप बना लिया। मेरे फोटो खूब दिखाये दुनिया भर डाला। सो ईष्ष्या से ईष्ष्या बढ़ती है और फिर इसी को पता नहीं क्या धन्धा करते थे, मुझे तो पता ही तरह के समूह बन जाते हैं और फिर लड़ते हैं कि यह तो हमें चाहिए। अभी भी अपने यहाँ बहुत चला नहीं कि क्या हो रहा था और लीडरों को ये लीडर 1. अच्छा नहीं वो लीडर अच्छा नहीं। अगर कोई हुआ है विभाजन का विचार। जैसे हमारे यहाँ कहीं खराब हो तो मैं खुद जान जाऊंगी। जब मुझे मानते विदर्भ है तो कहीं झारखण्ड है। ये बनाने से क्या हैं तो मुझ पर छोड़ देना चाहिए । मुझे तय कर लेने मिलेगा ? किसको क्या मिला है विभाजन से? दीजिए कि लीडर अच्छा है या नहीं लेकिन लीडर सहजयोग इसके बिल्कुल विरोध में है कि हम को तुम ऐसे हो, तुमने ये क्यों किया, तुम ऐसे क्यों किसी चीज़ का विभाजन करें हमको तो सबको करते हो? इसका अधिकार आपको नहीं है अब जोड़ना है (synthesis) सहजयोग सारा समन्वय कोई कहेगा लीडर क्यों है सहजयोग में । इसलिए पर चलता है और अगर आपको समन्वय की कोई है कि मेरा सम्बन्ध सबके साथ नहीं हो सकता, 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt अप्रैल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 11 क्योंकि अन्तिम निर्णय (Last Judgement) है न । अगर बीच में एक इंसान रहे तो उसके माध्यम से मैं सबसे सम्बन्धित हो सकती हूँ। तो वो लीडर परतो छन-छनकर ऐसे लोग इकट्ठे हो गए और नाराज हो गए, ये लीडर ठीक नहीं, ये ऐसा है वैसा लीडर का चरित्र अच्छा नहीं तो फलाना अच्छा नहीं, तो वो पैसा खाता है, ये है वो है। सी बी आई नहीं। उसका जो दोष हो, उसकी जो तकलीफ हो, उसको मुझे निकालना चाहिए न कि आपको। से बढ़कर। मैंने कहा भई हद हो गई, मुझसे पूछो अगर आपको तकलीफ है तो आप मुझे लिखो। पर तो मेरा प्रमाणपत्र (Certificate) तो लो। लेकिन हम माँ आपको तो मानते हैं लेकिन मैं जो कर रही आप. अगर ऐसे आदमी से कहें कि अच्छा अब आपको लीडर पसन्द नहीं है तो आप सहजयोग हूँ उसको नहीं मानते। करते-करते ये बेवकूफ छोड़ दो, तो उसके साथ और ऐसे दस अधकचरे लोग गणपति पुले पहुँचे वहाँ इन्होंने मेरे ऊपर सहजयोगी जुट जाएंगे और फिर उस लीडर के पत्थर फेंके, क्योंकि जब दुर्बुद्धि हो जाती है जब लिए ये काम करने लगेंगे इसी तरह का एक बन बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तो आपको होश ही नहीं गया। उसमें 70-80 लोग इस तरह के इकट्ठे हो रहती कि आप बोल क्या रहे हैं कर क्या रहे है, गए जिनकी मैंने कभी शक्ल नहीं देखी, जिनका जैसे शराबी आदमी हो जाता है उस तरह की कभी नाम नहीं सुना, मैं जानती नहीं कि ये हालत हो जाती है । और वहाँ पर उन्होंने हंगामा सहजयोगी हैं। अब उन महाशय ने कह दिया कि मचा दिया प्रोग्राम में आ गए मैंने देखा इतने मैं तो कल्कि का अवतार हूँ। चलो भई हो, मुझे खराब उनकी चैतन्य लहरियाँ (Vibrations), मैंने कुछ नहीं कहना। हो जाओ और तुम सहज से कहा बाप रे बाप ये सहजयोग में बैठने वाले हैं ? हटो, बस, सहज में आपका कोई स्थान नहीं। इन अपनी चैतन्य लहरियाँ ठीक करने की जगह दूसरों लोगों ने उनको मान लिया कि ये कल्कि का के चैतन्य लहरियाँ ठीक कर रहे हैं । तो ऐसे जो अवतार है। उसी के ये लोग चरण छूने लगे थे, लोग सहज में लोग हैं उनको सहज छोड़ ही चरण छू महाराज, पैसा छू महाराज! सब तरह के देना चाहिए क्योंकि सहज वो हैं नहीं। लेकिन 1 महाराज होते हैं तभी ये बने। तो पैसे लिए इनसे । अगर एक-आध माई का लाल खड़ा हो गया तो ये लोग जो दोष अपने लीडरों में दिखा रहे थे वही उसकी दुम पकड़कर बहुत से लोग सोचते हैं कि दोष उनके अन्दर थे। बहुत अच्छे से उनका वो स्वर्ग में चले जाएंगे कैसे ? प्रादुर्भाव हुआ सहज एक सामूहिक कार्य है, एक सामूहिक और सब देखने लग गए कि ये क्या हैं ? तो इस तरह की ईष्ष्या और महत्वाकांक्षा हो संस्था। इसमें किसी का नाक उधर, तो ऑँख उधर, जाती है। लेकिन बेवकूफ जितने भी सहजयोगी थे किसी का हाथ उधर। तो ये चलने ही नहीं वाला क्योंकि चैतन्य को ये बात पसन्द नहीं है फिर मैंने छन कर उसमें चले गए । बड़़ी कमाल की चीज़़ है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 12 तुम बगावत कर रहे हो, तो कहने लगे बात कहनी पड़ी है। इस तरह के अगर धन्धे करने कहा कि आप हमें गाली दे रहे हैं। मैंने कहा नहीं मैं आपका हैं तो अभी आप सहज से अपना आसन लेकर 1 वर्णन कर रही हूँ कि आप चैतन्य से बगावत मत तशरीफ बाहर ले जाइये उसमें मुझे कोई हर्ज करो। इसीलिए वहाँ भूकम्प आ गया और अब आगे नहीं । सहजयोग में किसी पर जबरदस्ती नहीं है, क्या होगा एक माँ की दृष्टि से मैंने कहा कि भई आप जानते हैं। मैंने तो कभी अपने घरवालों पर भी देखो सत्य और परमात्मा जो है वो कोई तुमको जबरदस्ती नहीं की कि तुम सहज करो। हालांकि क्षमा नहीं करेंगे, मैं तो माँ हूँ मेरी बात दूसरी है । मैं जानती हूँ कि इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं वो तुमको नहीं छोड़ेंगे, तुम मेहरबानी करके सब है पर मैंने उनसे भी कभी नहीं कहा कि तुम सहज धन्धे छोड़ कर दो। लेकिन लागी नाहीं छूटे वही करो। करना हो तो करो नहीं तो मत करो, पर ऐसे धन्धे नहीं करना। इसका मतलब है आप कभी भी बात है। उसी चक्कर में वो फँसे हैं। आजकल मैंने सुना है देहरादून में बड़े जोरों सहजयोगी नहीं हो सकते। एक तरह से सहज की दृष्टि से अपने लीडर से इस तरह से बर्ताव करना में ये काम हो रहा है। उधर झारखण्ड चल रहा है, इधर एक भूतखण्ड भी चल रहा है। अब अगर महापाप है और उसको लेकर ग्रुप बनाना तो उससे सहजयोग से इन दो-चार बदमाश लोगों को भी महापाप है। अगर आप लोग चाहें तो आप मुझे निकाल दिया जाए तो उनके साथ जुटने वाले भी चिट्ठी लिखें मैं उस पर खबर करूंगी मुझे तो बहुत से लोग हैं। और एक दूसरा ग्रुप बना लेंगे चैतन्य (Vibrations) पर फौरन पता चल जाता है पर उस ग्रुप के लिए मुझे हर्ज नहीं। कृपया चले कि वाकई में आप सच हैं कि वो और दुनिया भर जाएं और गंगा जी में डूब जाएं, मुझे उसमें कोई की चीजें उसमें लिखते हैं। चिट्ठी भी आती है तो हर्ज नहीं। पर वो सहज में नहीं रह सकते और उसमें इतनी बकवास कि मैं उधर ध्यान ही नहीं मेरा नाम नहीं ले सकते, मेरा फोटो नहीं लगा देती। वो लीडर ऐसा है, वो लीडर ऐसा है। अरे सकते। आज ये बात बड़ी दुखदाई लगी जब मैंने आप कौन बड़े शुद्ध आत्मा हैं ? आप अपने को तो सुना कि जिस आदमी पर मेरा इतना विश्वास, देख लीजिए देखना चाहिए। जब आप ही नहीं जिसने इतना कार्य किया, उसी से कहने लगे, तुम ठीक हैं तो आगे का क्या होगा? आपके बच्चे हैं ये मोटर कहाँ से ले आए? अरे भई वो काम करते हैं, और बच्चों के अलावा जो आपके आस-पास पड़ोसी धन्धा करते हैं, ये मुझे पूछना चाहिए और तुमको आदि सब लोग रहते हैं, तो वो क्या सोचेंगे अगर अगर कोई ऐसी खास शिकायत हो तो मुझे चिट्ठी आपका लीडर ऐसा है ? तो क्या सोचेंगे आपके लिखो। आज मुझे कहना नहीं था पर और कोई लिए भी ? आप क्यों पीछे लगे हो ? आपकी मौका नहीं था तो इस शुभ अवसर पर मुझे अशुभ माताजी को अक्ल नहीं है, वो ऐसे लीडरों को 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 13 चुनती हैं। इसी तरह की चीजें शुरु हो जाती हैं आता है, न ही मैं बैंक जानती हूँ। तो अपना अगर और सहजयोग खत्म हो जाता है। अभी तक तो कोई बन जाए, जिसको कहना चाहिए, ट्रस्ट या कोई चीज, तब मैं फिर तुम लोगों से रुपए ले कहीं इस तरह से खत्म नहीं हुआ। कोशिश हमने पूरी की थी कि डूबते हुओं को बचा ही लो। किसी तरह से बच जाएं तो अच्छा ही है। जितने सहजयोगी लूंगी। इसलिए नहीं कि मुझे बड़ी ईमानदार बनना चाहिए, मुझे अक्ल ही नहीं है बेईमानी की, तो फिर हों अच्छा है। मुझे ये भी लगता है कि सत्य पर किया क्या जाए ? मुझे अगर गिनना ही नहीं आता बसा हुआ ये जो स्वर्ग है, स्वर्ग के जाने के लिए भी पैसा तो मैं क्या करूं? मुझे तो बैंक का चैक भी थोड़ी सी तैयारियाँ जरूरी हैं। और नहीं तो दूसरी लिखना नहीं आता। वो तो छोड़ो हम बने ही कुछ बात ऐसी भी है कि वहाँ भी जगह कुछ कम होगी। और तरह से हैं। पर आप लोगो को ये सब आते तो नियति भी ऐसा कार्य कर रही है कि चलो ये हुए भी आप जानते हैं कि धर्म के नाम पर कोई फालतू लोगों की काट-छाँट करो। लेकिन इस अगर पैसा लेता है तो वह पछताएगा पैसे का चक्कर में आपको आना नहीं चाहिए। चक्कर बड़ा जबरदस्त है। तो इस बार हमने सोचा अगर आप वाकई जागृत हों तो अपने प्रति था कि बहुत बार हमने आपसे कहा भी, कि यहाँ जागृत हों, दूसरों के प्रति नहीं होकर देखो कि हमारे अन्दर कौन सी कमी है । मुसलमान औरतों को उनके पतियों ने छोड़ दिया अपने प्रति जागृत की जो औरतें रास्ते में भीख माँगती हैं, बहुत सी । किसी को कोई चक्कर, किसी को पैसा कमाने का है, वो रास्ते पर बच्चों को लेकर भीख माँगती हैं, चक्कर है। अब सहजयोग में पैसा कमाने लोग और कहाँ-कहाँ से बाहर से, राजस्थान से, बिहार आते हैं। अगर उनसे कहें कि भई आप यहाँ पैसा से औरतें यहाँ आई हुई हैं, इनका कुछ न कुछ भला कमाने के लिए नहीं आए हैं तो ये बात उनकी करना चाहिए। इसलिए हमने एक संस्था बनाई है खोपड़ी में नहीं घुसती। पैसे का चक्कर भी आज उसके लिए हमें पैसों की आपसे कोई जरूरत मुझे कहना पड़ेगा कि कुछ लोगों में कुछ अक्ल ही नहीं। हमने कभी किसी से भी पैसे के लिए नहीं कम है। पहले ईसा ने कहा था कि 'पहला अन्तिम कहा। हमारा इंतजाम हो जाता है। लेकिन मैंने सोचा कि आपको भी कुछ पुण्य मिले। तो मैंने कहा होगा और अन्तिम पहला' (First willbe the last and last will be the first) ऐसा कोई दिखता पाँच सौ रुपए रख दो, एक सौ आठ के बजाए । हो नहीं है। जो शुरु- शुरु में सहजयोगी हमारे बम्बई गया चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ 108 का 500 कर में आए थे तो वो कहने लगे माँ कम से कम हमसे दिया। अरे साल भर में आप को एक बार गर पैसा एक -एक हजार रुपए ले लो। मैंने कहा देखो बेटे देना पड़े, कुछ पुण्य करने का ही नहीं क्या ? सिर्फ मुझे न तो पैसा गिनना आता है न ही मुझे रखना लेने का है? फिर लक्ष्मी तत्व आपमें कैसे दिखाई 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 14 देना, सालों बीत गए, हजारों लोगों को ठीक किया। देगा ? लक्ष्मी तत्व में तो सिर्फ देना ही होता है। इतने तो आप लोगों को बख्शीश में पैसे दिए, क्या उस पाँच सौ के लिए लोग इतने पगला गए। पाँच किया आप जानते हैं। पर सौ रुपए तो आप बाल कटाने के देते हैं नाई का क्या किया। सब कुछ कभी-कभी। ऐसी आफत मचा दी कि 500 रुपए? इतनी सी चीज़ के लिए लोगों की नजर बदल गई। | मैं समझ गई कि लोग अभी अधकचरे हैं। पहले मुझे बड़ा दुःख लगा इस बात पर| पहले भी ऐसे ही जमाने में इतनी बात नहीं थी। श्रद्धा और त्याग, होते रहा है। कितनी क्षुद्रता है अब बम्बई में इस बार सबने कहा कि माँ आप यहीं पूजा कर लो, तो और त्याग की भावना ही नहीं आती थी, मज़ा आता था तो ये जो बात है हमारे अन्दर, अब भी हमारा मैंने कहा भई पिछली मर्तबा का अनुभव बड़ा खराब चित्त वो पैसे पर है, हम तो 108 ही देंगे नहीं तो हैं, जो पूजा हुई उसमें से एक चौथाई लोगों ने खाने मेरी हुई और हम आएंगे ही नहीं । मत आओ, बड़ा अच्छा है। के पैसे दिए, बाकी मैने दिए पैसे! पूजा खाने के पैसे भी मैने दिए! बम्बई के लोग तो खास निकल ही जाओ सदा के लिए । वो अच्छा है। क्योंकि सहजयोग भिखारियों के लिए नहीं है। हैं । हमारे महाराष्ट्र के ऐसे कंजूस लोग हैं, बो पहले आप लोग ठीक हो जाइए फिर भिखारियों ब्राह्मणों को देंगे, सिद्धि विनायक को देंगे, पर यहाँ की मदद करिए। हम भिखारियों की मदद करते मुफ्त में खाने को आ गए। एक चौथाई लोगों ने हैं। उसके लिए अगर कहा गया कि थोड़े से पैसे खाने का दिया, एक तिहाई ने पूजा का दिया। दे दीजिए तो आप लोग इतने क्यों नाराज़़ हो रहे ग्यारह (11) रुपए और सहजयोग में आ गए। हैं ? मैं तो, आप जानते ही हैं पैसे को छूती भी इससे अच्छा कटोरा लेकर कहीं मस्जिद के सामने नहीं। मेरे को ही नहीं है। लेकिन एक कार्य बैठ जाएं, वो ज्यादा अच्छा है। वहीं कुछ अल्लाह मालूम निकाला है. उसके लिए अगर कहा गया कि 108 उनका भला करे तो करे। ऐसे ऐसे लोग सहजयोग के बजाय 500 दे दीजिए तो आप सारे लीडरों पर में हैं और इसलिए मुझे कहने का है कि आपसे मुझे बिगड़ गए। सब पर बिगड़ गए और मार आफत किसी प्रकार का दान या पैसे की आज तक मचा दी माँ ये आपको किसने सलाह दी ? अरे जरूरत नहीं पड़ी लेकिन मैंने कहा कि, जरा देखें, मुझे मशवरा देने वाला अभी पैदा ही नहीं हुआ @ testing करके, उस testing में मैं हैरान हो गई और कोई भी ऐसा गरीब नहीं है इसमें जो 500 मैं तो अपने ही दिमाग से चलती हूँ। ये समझ लेना भी नहीं दे सकता। फिर ये कहा गया, जो नहीं दे चाहिए । ऊपर से मैं भोली-भाली लगती हूँ, लेकिन अन्दर से मैं बहुत चन्ट हूँ। इसलिए मुझे बेवकूफ सकता नहीं दे, तो फोन पर फोन आ रहे हैं कि बनाने की कोशिश नहीं करना। अगर आप लोगों साहब मेरा नाम आप काट दीजिए। मैं नहीं दे से जरा सा भी नहीं होता है सहजयोग के लिए सकती क्योंकि मेरे पति कमा रहे हैं। कितना कमाते 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 15 लिया ही नहीं हैं ? सात हजार (7000) कमाते हैं पर मैं नहीं दे हमें क्या लेना और क्या देना ? कुछ सकती। मेरे पति दे देंगे। पर अपनी तरफ से मैं तो देना क्या ? लेकिन ये एक चीज़ हमारे अन्दर 1. नहीं दे सकती। जरा कुछ सेल (Sale) निकाल हिन्दुस्तानियों को समझनी चाहिए। हमने तो ऐसे दीजिए, वो होता है ना marketing कुछ sale हो लोग देखे हैं कि आपको आश्चर्य होगा. सिर्फ जाए तो अच्छा है। किस किस को माफ करें। अरे स्वतन्त्रता कमाने के लिए हमारे ही पिताजी के घर 1 भई कितना पैसा आने वाला है उससे क्या हमारा से सारी जमीन जायदाद सब बेच दिया। माँ ने हमारे सब जेवर बेच दिए, सब जेल में गए । मुझे तो (NGO) (गैर सरकारी धर्मार्थ संस्था) चलने वाला है ? कुछ भी नहीं। पर आप लोगों की परीक्षा हो बिजली के झटके लगाए गए और बर्फ पर लिटाया। गई। आप लोग कितने गहरे पानी में हैं ? मुझे कुछ नहीं होता था। सब मजाक था लेकिन तो पैसे के अन्दर से पहले चित्त निकालना भी सब तरह की चीजें लोगों ने सहन की। हिन्दुस्तान के आदमी के लिए बहुत जरूरी है, दो-दो-तीन-तीन साल जेल में रहे और अब जेल अगर वो सहजयोग में है, नहीं तो आजकल जेल में जा रहे हैं इसमें कोई शक नहीं है लेकिन इस भरो आन्दोलन चला ही हुआ है पैसों में काहे को वजह से कि पैसे खाए हैं। वो कहेंगे हम भी जेल आपका इतना चित्त है ? आपकी लक्ष्मी जी हमने में गए । जिन लोगों ने सहजयोग में बहुत बदतमीजी जागृत कर दी। जितना आप दोगे, उतना ही करी है उनका हम छुटकारा करने वाले हैं, पक्की आपको मिलेगा। देना इतने आनन्द की चीज है बात है। खबरदार किसी लीडर के खिलाफ किसी जिसकी कोई हद नहीं। आप लोग मुझे कुछ देते ने भी अगर आवाज उठाई तो उसको हम सहजयोग हैं तो मैं तो इसलिए सिर्फ लेती हूँ कि आप लोग से छुट्टी कर देंगे। पूरी तरह से जान लें, इसमें शक नहीं है क्योंकि हमे तोड़ना नही हैं। आपका खुश होते हैं। मुझे किसी चीज़ की जरूरत नहीं। मेरे घर में कोई जगह नहीं है। मेरे घर कुछ रखने स्वार्थ है, आपका मतलब है, आपको और कोई की जगह नहीं है मैं कुछ नहीं कर सकती। पर धन्धा नहीं है तो पुलिस में भर्ती हो जाओ, C.I.D. होते बन जाओ। कुछ भी करो। सहज में क्यों आप आप मुझे देते हैं प्यार से और आप उससे खुश | लड़ाई-झगड़ा करके मैं हार गई कि मुझे आप आए। सहज के लायक ही नहीं हैं आप। आप आए साड़ी मत दो, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे जेवर कैसे सहज में? आज के दिन ये सारी बातें करने की मैंने नहीं दो। मैंने यहाँ तक कह दिया मैं सब जेवर बेचने वाली हूँ। उसी से सारे काम हो जाएंगे। तो बड़ी धृष्टता की और मैं जब सो गई थी तभी मेरे कहने लगे माँ आपको जो करना है करो, पर हम मन में ये ख्याल आया कि आज क्या कहा जाएगा। तो देंगे ही। ये आप की खुशी के लिए हम लेते हैं। 74 साल की उम्र का बूढ़ा क्या कहे। बूढ़ढे लोगों প 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 16 का एक ही काम होता है कि अपने बच्चों को था लेकिन ये बात मेरे सामने इतने जोरों में खड़ी हो नसीहत दें। उनको भी कहें कि जिन्दगी क्या है गई, इस शिव पूजा में, कि मैंने सोचा अगर मैं नहीं और आप किसलिए सहज में हैं। सहज में आप कहूँगी तो कैसे होगा और शिवजी की पूजा में आप अपना सर्वनाश करने के लिए नहीं आए क्योंकि कह भी नहीं सकते क्योंकि शिवजी तो सिर्फ क्षमा सहज की अति सांकरी गली (Very Narrow ही करते हैं पर वो भी किसी हद तक और जब वो Street ) कही जाएगी। इस तरह की है, अगर बिगड़ते हैं तो, आप जानते हैं, वो क्या करते हैं। आपको आना है तो ये पता रखना चाहिए कि आप उनसे मुझे सबसे ज्यादा डर लगता है क्योंकि ये को इस सांकरी गली से चलना है जिसमें एक अगर घोड़ा बिगड़ गया तो वो आपको ठिकाने लगा देंगे । तरफ तो पहाड़ हैं एक तरफ खाई है। सो इसमें सहजयोग का ज्ञान सारा आपको एक तरह चढ़ने के लिए अगर आप के अन्दर वो मन का बल, वो शक्ति, वो पावित्र्य, शुद्ध इच्छा नहीं हो। तो से मुफ्त है क्योंकि पूर्व जन्म बहुत बड़ा था। पूर्व जन्म की आपके अन्दर जो सम्पत्ति है उसके बूते पर होगा नहीं, आप आधे-अधूरे ही बैठ जाएंगे। ये पहाड़ी पर, जो आपने देखा है, गधे पर बैठ कर आपने ये पाया लेकिन सहज में आकर के, सब लोग चढ़ते हैं। वो गधे से पूछा कि भई कि तुम कैसे पाकर के, सम्पत्ति पाकर कें और आप अगर बेकार ही जाने वाले हैं तो बेहतर है इसको छोड़ दो और गधे हो गए? तो उसने कहा कि हम भी आप ही लोगों जैसे थे, लेकिन आधे-अधूरे रह गए तो हमें भी बख्शो। सोच-सोचकर के आज कहा, वैसे में सोचती कम हूँ, निर्विचार ही में हूँ लेकिन तो भी, भगवान ने हमको गधा बना दिया कि कम से कम गधे के रूप में ऊपर पहुँच जाओ। ये सब कथायें मुझे चिन्ता इसलिए है कि मैंने आपको अपना बेटा आपने सुनी हैं, पढ़ी हैं। हमारे देश में तो इसका माना, आपको अपनी बेटी माना तो आपके जो दोष भंडार है। इसके वाड, मय का भंडार है इतनी हैं उसके कारण जब आप मिटते जाएं, मुझसे देखा कथाएं हो गई, वो ज्यादातर हमारे उपदेश के लिए नहीं गया। मुझे बहुत कष्ट हुआ। सहजयोग में सब हैं, समझाने के लिए थी कि गलत रास्ते पर चलने है आनन्द, शान्ति। आपके प्रश्न चुटकी बजाते ही से क्या होता है। दुनिया भर की कथाएं हो गई हैं ऐसे ठीक हो जाते हैं, आप लोग जानते हैं, आपको और उसमें से जो कथा हमें कुछ न कुछ सबक देती अनुभव है। मुझे कोई खास बताने की जरूरत नहीं है वही कथा असली है। सो बार-बार मुझे लग रहा है। है कि आज के दिन मुझे कुछ अच्छा कहना चाहिए परमात्मा आपको धन्य करें। तम পা 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt 17 श्री गणेश पूजा ान परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, 15 सितम्बर 1996 आज हम श्री गणेश की पूजा करेंगे। आज चीजों का इतनी भयानक सृजन करने के लिए परन्तु उनके पास ज्ञान कहाँ से आता है ? सहजयोग की जबकि युरोप और अमेरिका के देशों में पावित्र्य पर आक्रमण हो चुका है, मैं सोचती हूँ. इस पूजा के तरह से ही इस कलियुग में हर व्यक्ति जन्म ले लिए यह अत्यन्त उपयुक्त समय है। पावित्र्य का सकता है, इसकी स्वतन्त्रता है। अब से पूर्व सभी प्रकार के असुर प्रवृत्ति के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में जन्म नहीं लिया था। ये लोग कुविचारों का कतई सम्मान नहीं किया जा रहा। वे नहीं जानते TI कि मानव के अपने अन्दर और बाहर भी पावित्र्य दुष्ट का सम्मान किया जाना कितना महत्वपूर्ण है । मानव जीवन पशुओं के जीवन से भिन्न है। सृजन करते हैं तथा लोग इन्हें ग्रहण करके इनके अनुसार चलने लगते हैं। यहाँ तक कि भले लोग भी पशु सदा पाशबद्ध हैं या हम कह सकते हैं कि वे इनके चक्कर में आ सकते हैं, सन्त पुरुष भी इससे भगवान शिव की इच्छा में बंधे हुए हैं। इसलिए शिव प्रभावित हो जाते हैं। पशुपति कहलाते हैं। परन्तु मानव को अपना उत्थान, सर्वप्रथम हमें समझना है कि हम एक संकटपूर्ण उचित मार्ग और सत्य की खोज लेने की स्वतन्त्रता समय में अवतरित हुए हैं। ईसा मसीह के समय में दी गई है। केवल अबोधिता द्वारा ही वे इस लक्ष्य बहुत कम लोगों ने उनका अनुसरण किया, उन्हें को प्राप्त कर सकते हैं। अबोधिता ही आनन्द प्राप्ति कृण्डलिनी की भी कोई अधिक समझ न थी। उन्हें का मार्ग है। अबोधिता के बिना व्यक्ति किसी भी इस बात का भी ज्ञान न था कि ईसा मसीह श्री चीज़ का पूर्ण आनन्द नहीं उठा सकता। आज इसी गणेश के अवतरण थे। ईसाई देशों में ही आप ईसा अबोधिता को चुनौती दी गई है। का, अबोधिता का (कभी-कभी तो कानूनी रूप से) खुल्लम-खुल्ला अपमान स्वीकार करते हुए देख के लोग अबोधिता (पावित्र्य) को समाप्त करने के सकते हैं। तो जब भी हम ऐसी भयानक परिस्थितियों अत्यन्त बुरे, अत्याचारी और अपराधी प्रवृति लिए अत्यन्त सूक्ष्म रूप से कार्यरत हैं। उनके मस्तिष्क में फँस जाएं, हमें अपने अन्दर आध्यात्मिकता की भूतबाधा ग्रस्त है। वैसे वे अत्यन्त बुद्धिमान है। वे एक महान शक्ति का सृजन करना होगा। आज 1 बड़ी-बड़ी भयानक चीज़ों की सृष्टि करते हैं, अतः जब मैं आई तो हवा बन्द थी, एक पत्ता भी नहीं हिल आप ये नहीं कह सकते कि वे बुद्धिमान नहीं हैं। रहा था, परन्तु जब आप भजन गाने लगे तो आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी । 18 लोगों में से अत्यन्त तेज़ शीतल लहरियाँ आ रहीं कुछ पुस्तकें। पुस्तकें! वहाँ से आपको पुस्तकें नहीं थी जिनसे मैं यह समझ गई कि दिव्य शक्ति लेनी चाहिए थी मैंने पूछा क्यों? वह कहने लगे कि अवतरित हो उठी हैं। यह मौजूद हैं और कार्यरत आपको सीमा कर देना पड़ेगा। क्या आपने इसके हैं। इतना ही नहीं ये अत्यन्त शक्तिशाली हैं प्रायः विषय में कोई नियम नहीं पढ़े, मैंने कहा नहीं, मैं चैतन्य लहरियाँ मेरी ओर नहीं आतीं ये मुझसे अबोध थी पुस्तकों पर सीमा कर देने के विषय में दूसरी तरफ जाती हैं। परन्तु आज इतनी तीव्र मैं कुछ नहीं जानती। नहीं नहीं आप मजाक कर लहरियाँ थी कि मुझे किसी का हाथ पकड़ कर रही हैं आप जाइए। उन्होंने सोचा कि यह स्त्री सहारा लेना पड़ा। अतः याद रखें कि यह जो अत्यन्त सादी है जबकि मैं जहाजरानी निगम के अध्यक्ष की पत्नी थी और बहुत बड़ी कार में जा रही सामूहिक शक्ति आपमें है इससे आपको इन भयंकर परिस्थितियों से मुकाबला करना होगा और यह थी। परन्तु वे इस बात को समझ न सके। ये सारे कानून एवं नियम लोगों को बाँधते हैं 131 ार साबित करना होगा कि अबोधिता सम्मान योग्य इनका उदय भी हमारे 'धर्म के विचार से हुआ है। है। आदिशक्ति ने सबसे पहले श्री गणेश का परन्तु अबोधिता धर्म की जड़ है और सारे कानून सृजन किया। उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि अबोधिता की रक्षा के लिए बनाए गए हैं अपराधियों को दंड देने के लिए नहीं। यदि कोई व्यक्ति वास्तव चैतन्य, पावित्र्य और मंगलमयता से वे सारे वातावरण में अबोध है तो अबोधिता उसकी रक्षा करती है। इस को भरना चाहती थीं। यह गुण अब भी है, सर्वत्र है. बात को मैंने अपने जीवन में बहुत बार देखा है, कभी चैतन्य अब भी कार्यरत है परन्तु यह आधुनिक मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। अबोध व्यक्ति से एक मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि आधुनिक मस्तिष्क अबोधिता से अनभिज्ञ है। अबोधिता का प्रकार की अत्यन्त तीव्र चैतन्य लहरियाँ आती हैं । इसे बिल्कुल ज्ञान नहीं । अबोधिता से ही जीवन में छोटे बच्चों की चैतन्य लहरियों को यदि आप देंखें नैतिकता आती है। नैतिकता अबोधिता की अभिव्यक्ति तो 100 बड़े सहजयोगियों की चैतन्य लहरियाँ एक बच्चे के बराबर नहीं होतीं। परन्तु जब बच्चे बढ़ने लगते हैं तो वे भी बड़े लोगों की तरह बुद्धिमान एवं है। अबोधिता से पता चलता है कि व्यक्ति दुष्वरित्र नहीं हो सकता। एक बार मैं रूस गई और वहाँ कस्टम से परिपक्व हो जाते हैं मानों उनकी अबोधिता खो गई बाहर आ रही थी। उन्होंने पूछा कि क्या आपको हो, तथाकथित रूप से चतुर एवं बुद्धिमान होना समुद्री जहाज से कुछ मिला ? मैंने उत्तर दिया हाँ उत्थान नहीं है, यह अत्यन्त आत्मघातक है। जिन लोगों ने भी अबोधिता को हानि पहुँचाने निःसन्देह, मेरा उत्तर सुनकर उन्हें झटका लगा। आपको क्या मिला? थोड़ा पनीर और क्या. और की गलती की है उन्हें श्री सदाशिव या आदिशक्ति 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt आप्रैल, 1997। मार्च 19 चैतन्य लहरी से क्षमा माँगनी होगी परन्तु श्री गणेश क्षमा नहीं कभी वे अपनी माँ को चुनौती नहीं देते। माँ चाहे करते, उनमें यही कमी है. वे क्षमा नहीं करते। उनकी परीक्षा लेना चाहें या स्वयं को भ्रांत दर्शाना आपने यदि उन्हें चोट पहुँचाई है तो वो भी आप पर चाहें, वे कभी उन पर संदेह नहीं करते। अपनी माँ आघात करेंगे। परिणामवश समाज़ में एड्स जैसी की माया में वे कभी नहीं फॅसते, माया में वे नहीं का फैस सकते क्योंकि वे इतने अबोध हैं। वे छाछ में से बीमारियाँ आ गई हैं क्योंकि लोग इस तरह जीवन 1 यापन कर रहे थे मानों उन्हें मनमानी करने की निकाले हुए मक्खन की तरह से हैं। यह मक्खन आज्ञा सर्वशक्तिमान परमात्मा से प्राप्त हो गई हो! कभी भी छाछ में विलीन नहीं हो सकता। इसी प्रकार ये बालक, जो कि शुद्ध - अबोधिता है, अपनी इतने अहंकारी हैं कि वे समझते हैं कि जो लोग चाहे वे करते रहें, उन्हें कुछ नहीं हो सकता। माँ की माया से संदूषित नहीं हो सकता। माया वे चरित्रहीनता को अपना रहे हैं, लोगों को परखने की प्रक्रिया है, उनका परखा खुल्लम खुल्ला अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को मैंने गन्दे मजाक जाना भी आवश्यक है। अब देखते हैं कि लोग बहुत करते हुए देखा है। वे गलियों में घूमने वाले लोफर आजकल इतने चतुर हैं. इतने बुद्धिमान हैं, कि वे आदिशक्ति या किसी भी शक्ति के वश में नहीं हैं । सम होते हैं। अतः यह रोग फैल गया है। युवाओं किसी भी प्रकार वे धोखा देने का प्रयत्न करते हैं । तथा बच्चों की अपेक्षा बड़े लोगों में यह अधिक है। मुझे लगता है कि लोग नन्हें बच्चों से ईष्ध्या करते बहुत लोगों ने मुझे धोखा दिया परन्तु उन्हें उनके किए का दण्ड मिल गया है। परन्तु यह दण्ड मैंने हैं, नहीं तो वे उन पर आक्रमण क्यों करते। इसी ईष्ष्या के कारण ही वे बहुत ही भददे ढंग से नहीं दिया। ये उन्हें श्री गणेश ने दिया है। वे चारों ओर खड़े हैं, यदि आपने ऐसा कोई अपराध करने आक्रमण करते हैं। परन्तु श्री गणेश इसे कभी क्षमा नहीं करेंगे। पहले वे उनका पर्दाफाश करेंगे, फिर का प्रयत्न किया तो वे आप पर कठोर आघात कई जन्मों तक वे उन्हें इसका दण्ड देंगे उनके करेंगे मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती। यही श्री परिवार अभिशप्त होंगे, वे स्वयं भी अभिशप्त होंगे। गणेश पृथ्वी पर भगवान ईसा मसीह के रूप में यही धर्मादेश है। परन्तु यदि श्री गणेश की माँ या अवतरित हुए। ईसा मसीह श्री गणेश की अपेक्षा पिता उन्हें क्षमा करने के लिए कह दें तो वे आज्ञा अधिक चुस्त हैं क्योंकि श्री गणेश मोटे हैं. वे मान लेते हैं माँ के तो वे पूरी तरह से आज्ञाकारी लम्बोदर हैं और अपराधी को दण्ड देने में उन्हें हैं। वे माँ से कभी प्रश्न नहीं करते न ही कभी समय लगता है। ईसा मसीह अपने को क्रूसारोपित धृष्टतापूर्वक उन्हें उत्तर देते हैं। यद्यपि वे सभी गणों करने वालों के लिए भी क्षमा याचना किया करते के देव हैं. गणाधीश हैं परन्तु माँ की हर बात को थे परन्तु वे इतने चुस्त हैं कि मैं लोगों को उनकी मानते हैं। माँ के सम्मुख वे एक नन्हें शिशु सम हैं। बुराई न करने की राय देती हूँ। मेरे विरुद्ध न बोलें | 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 20 बुद्ध भिक्षु, मैं कहूँगी, सबसे बुरे हैं क्योंकि वे तो सभी ऐसा करना भयानक है। एक ओर श्री गणेश हैं और कुछ त्यागने को कहते हैं। ठीक है सभी कुछ त्याग दूसरी ओर ईसा मसीह। दो अन्य देवदूत भी हैं, सेंट माईकल और सेंट गैबरील । संस्कृत भाषा में हम दो और स्वर्ण के लिए भीख माँगो। इस प्रकार के उन्हें श्री भैरव और श्री हनुमान कहते हैं। ये श्री प्रतिवाद को आप क्या कहते हैं ? कोई यदि भिक्षा माँग रहा हो तो लोगों को अच्छा लगता है क्योंकि महावीर और श्री बुद्ध के रूप में अवतरित हुए। बुद्ध ने कहा है कि आपको किसी भी चीज़ इससे उनके अहम् को बढ़ावा मिलता है। ऐसे अवतरण हमें निर्लिप्त बनने का सन्देश देने के लिए से लिप्त नहीं होना है । अपने धन, दौलत, परिवार आदि किसी भी चीज़ से नहीं । उस समय बहुत आए ताकि हमारे चरित्र का विकास हो सके। यदि अधिक लिप्सा थी और इस लिप्सा को वे लोगों के आप अपने यौन-जीवन से निर्लिप्त है, धन दौलत से निर्लिप्त हैं और अपने देश से भी यदि निर्लिप्त हैं तो मस्तिष्क से दूर करना चाहते थे नंगे रह कर, गेरुए वस्त्र पहन कर, सिर मुंडवा कर, या नंगे पॉव इस प्रकार का निर्लिप्त व्यक्ति अबोध बन जाएगा चल कर आप इस लिप्सा से छुटकारा नहीं पा और सभी झगड़े समाप्त हो जाएंगे। परन्तु वास्तव में सकते। ये सब बाह्य दिखावा है निर्लिप्सा नहीं। तो इसके विपरीत हो रहा है। इस्लाम का भी यही हाल है। मोहम्मद साहब ने केवल सद्चरित्र पर बल उन्होंने कहा कि आपको आन्तरिक रूप से निर्लिप्त होना है और आन्तरिक रूप से निर्लिप्त होना बाह्य दिया था, वे किसी भी प्रकार की चरित्रहीनता न रूप से निर्लिप्त होने से कहीं भिन्न है । बहुत चाहते थे उस समय क्योंकि स्त्रियों की संख्या अधिक व्रत करने से आप ईसा नहीं बन जाते, श्री बहुत अधिक थी इसलिए उन्होंने कहा कि आप एक महावीर की तरह घूमने से आप महावीर नहीं बन से अधिक भी विवाह कर सकते हैं। परन्तु उन्होंने जाते और न ही गेरुए वस्त्र पहनने से बुद्ध बन जाते यह कभी नहीं कहा कि आप वेश्या बन जाएं या पापमय जीवन व्यतीत करें उनका कथन तो मात्र हैं। लोगों को जो समझाया गया था उसका कितना गलत अर्थ निकाला है। वह समय तपस्या का था 'समयाचार' था। उस समय वैवाहिक जीवन में और इसी कारण सभी लिप्साओं से मुक्त होने के समस्याएं थीं, तलाक की आज्ञा न थी। परन्तु लिए उन्होंने तपस्या करने को कहा। ईसाई धर्म में सहजयोग में हम इसकी आज्ञा देते हैं । भी वैरागनियाँ (Nuns), धर्माध्यक्ष ( The Father) आधुनिक युग में मैंने देखा है कि तलाक के मुख्य धर्माध्यक्षाएं (The Mother) बना दिए गए । यह एक बनावटी चीज़ है। ऐसा करने से क्या आप बिना लोगों का काम नहीं चलता क्योंकि स्त्रियाँ भी कभी-कभी अत्यन्त क्रूर होती हैं और पुरुष अत्यन्त समझते हैं कि आप अबोध बन जाते हैं? वही तुनक मिजाज़। ऐसी परिस्थितियों में वे साथी किस धर्माध्यक्ष अब अबोध लोगों पर आक्रमण कर रहे हैं। प्रकार हो सकते हैं ? अधिकतर स्त्रियाँ दुष्चरित्र हैं । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 21 स्त्रियाँ मात्र अबोध ही नहीं हैं, शक्ति भी हैं। परन्तु वहाँ भी लोग बच्चों से बहुत अधिक लिप्त हैं। यह अब तो वे बेशर्मी पर उतारू हो गई हैं। उन्हें अपने एक नए प्रकार की लिप्सा का आरम्भ है जो आप पावित्र्य की कोई चिन्ता नहीं किस प्रकार वे शक्ति सहजयोगियों को चरित्रहीन कर देती है। जो बन सकती है? कोई स्त्री यदि चरित्रहीन जीवन सहजयोगी हैं, उनके लिए तो सारे विश्व के बच्चे व्यतीत कर रही है तो उसकी शक्ति समाप्त हो अपने हैं। आपने केवल अपने बच्चों को ही प्रेम नहीं जाएगी। स्त्री का चरित्र ही उसकी शक्ति है । श्री करना। कोई बच्चा यदि खराब है तो बात और है गणेश इस पवित्रता का संचार उसमें करते हैं। नहीं तो आपने सभी बच्चों को अपने बच्चों की तरह जिस प्रकार लोग, विशेषकर हॉलीवुड के लोग से प्रेम करना है। ईसा ने कहा है कि अपने पड़ोसी हमारे मस्तिष्क में विचार डाल रहे हैं और हम उन्हें को भी वैसे ही प्रेम करो जैसे स्वयं को। मैं नहीं स्वीकार करते चले जा रहे हैं, हम भूल जाते हैं कि जानती कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? सभी ईसाई हम श्री गणेश को चोट पहुँचा रहे हैं और उनका राष्ट्रों में तो पड़ोसी सबसे बड़ी समस्या है। अन्य बच्चों को भी अपने बच्चों सम प्रेम करें। आइए इस कोप हमारे पर बरस पड़ेगा। जब हम अपने बच्चों से घृणा करने लगते हैं तो यह कोप निम्न स्तर पर कथन को देखें। आपके यदि बच्चे हैं तो प्रायः आपको कुछ आरम्भ होता है। जब हम अपने बच्चों को नहीं स्थानोंपर फ्लैट लेने की आज्ञा नहीं मिलेगी। कल्पना समझ पाते तो समस्या आरम्भ होती है। इंग्लैण्ड में, कीजिए कि केवल अविवाहित या शिशु विहीन लोग कहते हैं, माता-पिता हर सप्ताह दो बच्चों की हत्या कर देते हैं। बच्चों के प्रति इस प्रकार का दृष्टिकोण! ही वहाँ रह सकते हैं और यदि आपको बच्चा हो पहले तो उन्हें बच्चे पैदा ही नहीं करने चाहिएं और जाए तो आपको वहाँ से निकाल दिया जाता है। यदि बच्चे पैदा किए हैं तो वे श्री गणेश हैं, उन्हें क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? तीस वर्ष पूर्व लोगों के दस-बारह बच्चे हुआ करते थे। बच्चों का सम्मान करना चाहिए, उनसे प्रेम करना चाहिए तथा उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। बच्चों सहजयोगी दूसरी चरम सीमा तक चले जाते हैं, वे अपने बच्चों से चिपक जाते हैं। मैं यह नहीं कह रही को बिगाड़ना भी एक अन्य प्रकार की आसुरी शक्ति है। कुछ लोग अपने बच्चों को बिगाड़ देते हैं परन्तु हूँ कि आप किसी प्रकार अपने बच्चों की उपेक्षा करें, श्री गणेश को कभी बिगाड़ा नहीं जा सकता क्योंकि उन्हें मारें-पीटें या उन्हें दुःख दें। आप उन्हें इस वे माया से परे हैं परन्तु जिस प्रकार लोग अपने प्रकार प्रेम करें कि वे जान जाएं कि यदि उन्होंने बच्चों के पीछे दौड़ते हैं, यह खेदमय है । उनके कोई गलती की तो उन्हें आपका प्रेम मिलना बन्द हो लिए एक बच्चे का होना महानतम उपलब्धि है। जाएगा। बच्चों का यह जानना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि प्रेम उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आपको भारत जैसे देश में जहाँ इतनी अधिक जनसंख्या है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च अप्रेल, 1997 घैतन्य लहरी 22 परमात्मा, अब मैं पूरी बाजू वाले ही कपड़े पहनूंगी। जो भी बात पसन्द न हो उनसे बता दें आप हैरान होंगे कि किस प्रकार आपको नाराज करने वाला तुरन्त उनकी समझ में आ गई। अतः उनके अन्तरविवेक का सम्मान रखते हुए. गहनतापूर्वक यदि आप उन्हें कोई भी कार्य करना बच्चे छोड़ देते हैं। अब यह तो सब चालाकी है जो सभी को सीखनी है। बच्चों के कोई गहन बात बतायेंगे तो उनका सुधार होगा। विकास के लिए यह बहुत अच्छा तरीका है । मैं आपको अपनी बेटी की कहानी सुनाती कक्षा में उसका बुरा हाल है। अब एक तरीका तो हूँ। वह दिल्ली गई और वहाँ सभी लड़कियाँ बिना यह है कि उसकी पिटाई की जाए, उस पर चिल्लाया उदाहरण के तौर पर कोई बच्चा बिगड़ गया है बाजू के ब्लाउज पहने हुए कहा कि मुझे भी बिना बाजू के ब्लाउज चाहिएं। उससे बातचीत की जाए कि मान लो आप अच्छे थीं। तो उसने मुझसे जाए और उसे डॉटा जाए। दूसरा तरीका यह है कि वह बड़ी हो चुकी थी, कॉलेज जाने लगी थी, मैंने नम्बर लाते हैं, अव्वल आते हैं तो आप सहान व्यक्ति कहा ठीक है जो तुम्हें चाहिए ले लो। वो कहने बन जाएंगे मुझे आप पर कितना गर्व होगा। सभी लगी. वैसे आप बिना बाजू के ब्लाउज क्यों नहीं लोगों को आप पर गर्व होगा परन्तु यदि ऐसा नहीं पहनती ? मैंने कहा मुझे शर्म आती है। तो आप मुझे होता तो सभी लोग कहेंगे कि यह लड़का बेंकार है। इसकी आज्ञा क्यों दे रही हैं ? ये कोई मापदण्ड इसे गलियों में भीख मांगनी पड़ेगी और बह बच्चा नहीं कि मैं जो भी आपसे माँगू आप हाँ कर दें । मैं तुरन्त परिवर्तित हो जाएगा बच्चों का संचालन इतनी बड़ी तो नहीं हो गई हूँ। मेरी नातिन ने भी करना बहुत महत्वपूर्ण है । अत्यन्त कोमलता से मुझसे पूछा कि नानी आप सदा बाजुओं वाले अन्तर्विवेक का संचालन किया जाना चाहिए मानो आप किसी फूल को संभाल रहे हों। यह एक फूल ब्लाउज क्यों पहनती हैं। मैंने कहा, क्या तुम्हें पता 1 है, जिस प्रकार फूल में सुगन्ध होती है उसी प्रकार कि यह बहुत महत्वपूर्ण चक्र हैं। यदि आप इन्हें खुले रखोगी तो आपको समस्या हो जाएगी। हे अबोधिता में भी सुगन्ध होती है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। क প 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt 25ु हॉलैण्ड के विषय में श्री माता जी के विचार सूक्ष्म भूमिका का एक दृश्य दर्शाएँंगे। इस प्रकार हमें कई अवसरों पर श्री माता जी ने इस देश के स्वभाव और गुणों के विषय में बताया। 1985 में न केवल एक-दूसरे के विषय में अधिक जानने का अपनी पहली यात्रा में उन्होंने अपनी त्रिगुणात्मिका अवसर प्राप्त होगा बल्कि यह विराट में कार्यशील पूजा करने का सौभाग्य प्रदान किया। इस अवसर तत्वों की कार्यशैली का अच्छा ज्ञान भी हमें प्रदान करेगा इस श्रृंखला की यह दूसरी कड़ी है । पर उन्होंने कहा, "हॉलैण्ड यूरोप की पावन भूमि (Holy-Land) है"। उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया कि हॉलैण्ड में पृथ्वी (माँ) और जल ( सागर-गुरु) ने कहा, "सागर अशुद्धियों को दूर करता है तथा इस स्थिति का हवाला देते हुए श्री माता जी का अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। आप जानते हैं पृथ्वी माँ हॉलैण्ड के लोगों को आशीर्वादित करती हैं। पृथ्वी माँ ने समुद्र को अन्दर बहने की आज्ञा दी कि हॉलैण्ड का अधिकांश भाग सागर तल से नीचे है। रेत के टीलों तथा बाँधों से यह सुरक्षित है और है, समुद्र ने पृथ्वी माँ में शरण ली। गुरु मातृत्व के भौगोलिक दृष्टि से इसमें बहुत सी खाड़ियाँ हैं गुणों में बैंध गया है। श्री माता जी ने बताया कि समुद्र इस देश में बहुत ही पृथ्वी समुद्र को स्वयं में संभाले हुए है। अतः यह सदा समुद्र से महान है। इसीलिए हॉलैण्ड एक जिनके माध्यम से गहराई में प्रवेश करता है। श्री माता जी ने प्रायः भिन्न देशों के भिन्न विशेष स्थान हैं जहाँ गुरु ने माँ के सम्मुख समर्पण किया है। श्री माता जी ने बताया कि पवित्र होने का गुणों के चिषय में बताया है तथा यह भी कहा है कि इन देशों ने महान दिव्य अस्तित्व-विराट- में कुछ अर्थ यह है कि हम गुरु तत्व को मातृत्व से नियन्त्रित, पथ-प्रदर्शित तथा अलंकृत होने दें। विशेष कार्य करने हैं । हम जानते हैं कि फ्राँस विराट का जिगर है इंग्लैण्ड हृदय है, मातृत्व के गुण अपना लेने से और अपने गुरु तत्व आस्ट्रेलिया मूलाधार है आदि आदि। फिर भी को मातृत्व एवं सुन्दर सृजनात्मक शक्तियों से इन देशों के. विशेषकर छोटे देशों के सूक्ष्म गुणों मर्यादित कर लेने पर हमारी उपस्थिति सुखद हो तथा तत्वों के विषय में हमारा ज्ञान काफी सीमित जाती है। पूजा वार्ता में श्री माता जी ने अम विभाजन तथा बेरोजगारी के समाधान के विषय में है। डिवाइन कूल ब्रीज के इस नए लेख में एक एक करके सभी देश पेश होंगे तथा श्री माता जी द्वारा विस्तारपूर्वक बताया। 1986 के अपने दौरे में उन्होंने बताया था कि बताए गए उनके विशेष गुणों तथा बिराट में अपनी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 24 प्लीहा क्योंकि गतिमापी है, इसलिए आवश्यक विराट की लीला में हॉलैण्ड और बैल्जियम एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, दोनों देश बायीं नाभि का हिस्सा है कि जीवन में उचित गति तथा लय हो। हैं। बैल्जियम विश्व शान्ति का तथा हॉलैण्ड न्याय बिना उपयुक्त अवसर के, विशेषकर प्रातःकाल का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये दोनों ही गुण परस्पर कष्टदायी मामलों पर बातचीत न करके अच्छी 1 आश्रित हैं, एक-दूसरें के बिना चल नहीं सकते। मनोस्थिति बना कर गृहलक्ष्मी पति की जीवन-लय जहाँ भी अन्याय होगा वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। को नियमित करती है। पृथ्वी माँ की तरह गृहस्थी जिन देशों में अशान्ति है वहाँ न्याय के नियम को की सारी समस्याओं को सहते हुए, स्वयं में समोहते हुए, वह शान्ति की स्थिति का सृजन करती है। वह चुनौती दी जाती है तथा यह न्याय भ्रष्ट हो जाता है। हेग (Hague) के न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय इतनी परिपक्व होती है कि वाद-विवादों की व्यर्थता न्यायालय (International High Court of को समझती है। गृहलक्ष्मी इतनी शक्तिशाली होती है कि वह केवल देना ही जानती है और इससे उसे Justice) में न्याय तत्व प्रकट होता है। श्री माता जी ने यह भी बताया कि दुर्भाग्यवश हॉलैण्ड के इतना आनन्द मिलता है कि वही उसकी शक्ति का कानून अत्यन्त धूर्त एवं परमात्मा विरोधी हैं। स्रोत बन जाता है। सी चीज़ों के सहन किए जाने पर हॉलैण्ड की बहुत हॉलैण्ड अपने सुन्दर पुष्पों के लिए विख्यात कई बार पड़ोसी देश आश्चर्यचकित हो जाते हैं । डच (Dutch) नशा कानून इसका एक ज्वलंत है। बसन्त ऋतु में बड़े-बड़े खेतों में जब फूल खिलते हैं तो खेत इन्द्रधनुषी रंगों से चमक उठते उदाहरण है। श्री माता जी ने विस्तारपूर्वक समझाया कि हैं। एक दिन किसी ने श्री माता जी से पूछा कि जो देश बायीं नाभि का प्रतिनिधित्व करता है वहाँ हॉलैण्ड में इतनी बुराईयों के बावजूद भी यह देश कि स्त्रियों को कितनी अच्छी लक्ष्मियाँ होना अभी तक समुद्र के गर्म में क्यों नहीं समा गया? गृह चाहिए। लक्ष्मी जी के बहुत से रूप हैं और गृहलक्ष्मी मुस्कराते हुए उन्होंने उत्तर दिया, "क्योंकि हॉलैण्ड उनकी सर्वशक्तिशाली अभिव्यक्ति है । बायीं आदिशक्ति के लिए पुष्प उगा रहा है और आप । जानते हैं कि वे फूलों की अत्यन्त शौकीन हैं"। नाभि,प्लीहा और अग्नाशय से नियन्त्रित है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt 25 सिडनी वायुपत्तन वार्ता (सारांश) सिडनी, आस्ट्रेलिया - 5 मार्च 1996 आप सब लोगों से मिलकर सदा प्रसन्नता मजबूर नहीं करेगा, किसी को विवश नहीं किया होती है, परन्तु इस बार मुझे लगा कि आप लोग जाएगा परन्तु यह तो आपकी अपनी संतुष्टि के आनन्द के सागर में आत्मानन्द लेते हुए, हिलोरे ले लिए है। सभी लोग सहजयोग के प्रति स्वयं को रहे हैं। मेरे लिए यही महानतम संतोष है। अन्य जिम्मेदार समझें। यदि आप स्वयं को जिम्मेदार नहीं लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना ही आत्मानन्द प्राप्त समझते तो व्यक्तिगत रूप से आप आनन्द नहीं उठा सकते सहजयोगियों के लिए व्यक्तिगत आनन्द करने का सर्वोत्तम मार्ग है। अपनी सत्य की आवाज़ का यही वास्तविक गुन्जन है जिसे आप प्राप्त करते नहीं है। सामूहिकता में ही आप आनन्द प्राप्त कर हैं। अन्य देशों की तरह से आप भी भिन्न स्थानों, सकते हैं। भिन्न गाँवों, आस-पड़ोस के स्थानों पर जाते हैं जब अजन्ता की गुफायें बनी थीं तो इन्हें बनाने में ग्यारह सदियाँ लगीं। एक के बाद एक और पूर्ण विश्वास के साथ सहजयोग की बात करते पीढ़ी ने इसे उत्साहपूर्वक बनाया, यद्यपि उन्होंने न हैं कि किस प्रकार इसने आपके जीवन को परिवर्तित कर दिया और आपको इससे कितना लाभ हुआ। तो बुद्ध को देखा था न उनसे बात की थी और न सत्य निष्ठापूर्वक लोगों को परिवर्तित करके आप कभी उन्हें पत्र लिखे थे। परन्तु वे अत्यन्त समर्पित अपने देश की बहुत सेवा कर सकते हैं। थे। उस एकान्त स्थान पर वे पीढ़ी दर पीढ़ी रहे और आस्ट्रेलिया में सहजयोग काफी बढ़ा है। आज के विश्व के चमत्कारों मे से एक की सृष्टि कई बार कुछ व्यक्तियों ने हमें क्षति पहुँचाने का की। अतः आप लोगों को समझना है कि साक्षात्कारी प्रयत्न किया परन्तु किसी ने भी सहजयोग को हानि पहुँचाने की कोशिश नहीं की। जिन्होंने भी समस्यायें होने के कारण अपनी इच्छा और समर्पण के माध्यम उत्पन्न करने की कोशिश की वे चुपके से सहजयोग से आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सदैव आपको स्वयं से पूछना चाहिए कि आप सहजयोग के लिए से गायब हो गए। सभी लोग परस्पर सहयोग करें। आपको क्या कर रहे हैं और यह भी महसूस करना है कि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 26 सहजयोग ने आपके लिए कितना कुछ किया है। हैं हमें इस संस्कृति की आवश्यकता नहीं है "हमें एक अत्यन्त करुणामय, अच्छी, विनम्र एवं सुन्दर अतः इस बात को जान लेना ही, कि आप सहजयोग के लिए कुछ कार्य कर रहे हैं, आप के लिए आनन्द संस्कृति चाहिए। जिनके माध्यम से अन्य लोग सीख सकें और हमारे बच्चे उचित रूप से बढ़ सकें। उठाने का एकमात्र तरीका है। अगुआ को अत्यन्त सावधान विवेकशील और यदि आप नम्र हैं तो इससे आपको बहुत सहायता मिलेगी।" करुणामय होना चाहिए. परन्तु अब क्योंकि सहजयोग ये देखकर अत्यन्त आनन्द मिलता है कि में बहुत से लोग आएंगे अतः अगुआ अत्यन्त प्रगल्भ व्यक्ति होना चाहिए। आपको नए लोगों से व्यवहार आस्ट्रेलिया के सहजयोगी कितने नम्र होते हैं। ये लोग बहुत भयानक हुआ करते थे, बहुत अधिक पीते करना होगा और ऐसा करते हुए याद रखना होगा थे और इस प्रकार बातचीत करते थे कि समझ पाना कि आप सहजयोगी हैं, आपने उनसे गुस्से नहीं होना। उनके प्रति करुणामय हों और उनसे कम कठिन था। अब आप लोग उन कमलों की तरह से सुन्दर हैं जो इस मिली-जुली अव्यवस्थित संस्कृति बोलें और और उनकी कुण्डलिनी उठाते हुए अधिक कार्य करें। उन्हें छुएं नहीं। ऐसा करना आवश्यक से उपजे हैं और आप ही लोगों को हमारी सहज नहीं है। संस्कृति का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। मैं आप लोगों और आपके बच्चों के लिए एक श्री माता जी ने तत्पश्चात् भारतीय महिलाओं से हिन्दी में बातचीत की। "मैं उन लोगों की त्रुटियों बहुत अच्छी वैभवशाली, स्वस्थ सहज जीवन की को सुधार रही थी और उन्हें बता रही थी कि वे कामना करती हूँ। आस्ट्रेलिया क्योंकि श्री गणेश का अपनी संस्कृति के अनुसार चलें । कुछ ने अमेरिकन देश है. सहजयोग ने यहाँ पर बहुत अच्छी ज़ें र महिलाओं की तरह अभद्रतापूर्वक बातचीत करनी पकड़ी हैं। श्री गणेश का आशीर्वाद यहाँ कार्य कर रहा है। आपको चाहिए कि रोगियों और जरूरतमंद शुरु कर दी है। भारत में महिलाएं विशेषरूप से नम्र होती हैं और उनकी भाषा अत्यन्त करुणामय तथा लोगों की मदद करें समझने का प्रयत्न करें कि नम्र होती हैं जो अन्य लोगों को सुख प्रदान करती किस प्रकार उन्हें रोगमुक्त करना है उन्हें छुएं नहीं । कुछ भी करने से पूर्व आप बन्धन ले सकते हैं हैं। परन्तु अमेरिकन संस्कृति लोगों को पागल बना और आपकी रक्षा की जाएगी। देती है और इसे अपनाने वाले लोग भी पगला जाते परमात्मा आप सबकों धन्य करें। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt 27 नवरात्रि पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, इटली-20 अक्टूबर 1996 के सोचने की यही शैली है। परन्तु आप हैरान होंगे आज का दिन अति विशिष्ट है और हम देवी की पूजा कर रहे हैं। अपने भक्तों को के लिए कि इस कलियुग में बहुत से लेखकों ने चंगेज खाँ मुक्ति प्रदान करने हेतु, राक्षसों तथा आसुरी शक्तियों की बहुत प्रशंसा की है और उस पर पुस्तकें लिखी गई पूजा है। वह मुसलमान नहीं था, एक प्रकार का का सफाया करने के लिए देवी, इससे पूर्व, नौ बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं। उनके सारे कार्यों का वर्णन पागल व्यक्ति था। उसने बहुत सी मस्जिदें तोड डालीं, बहुत सी सुन्दर इमारतों को तहस-नहस किया जा चुका है। इसके बावजूद भी सभी प्रकार कर डाला और भारत आकर यहाँ थोड़े से समय के के असुर तथा बुरे लोग पृथ्वी पर लौट आए हैं । सम्भवतः ये होना ही था आखिरकार ये कलियुग लिए राज्य भी किया। यह सब इतिहास है। इसी है और इन लोगों के पृथ्वी पर आए बिना कलियुग प्रकार ईसाइयों और अन्य लोगों, मुसलमानों और गैर मुसलमानों के मध्य भी युद्ध हुए। हमने सभी का यह नाटक पूर्ण न हो पाता। ये लोग लौट आए प्रकार के युद्धों के विषय में सुना है जिनमें केवल है परन्तु इस बार एक भिन्न प्रकार का ही युद्ध होने श्रद्धावान तथा वास्तविक लोग ही मारे गए। वे लोग वाला है यद्यपि विश्व में ऐसा पहले कभी घटित नहीं हुआ फिर भी यह शांत लोगों का युद्ध होगा. मारे गए जो पूर्ण श्रद्धा से परमात्मा की पूजा किया करते थे। अतः बहुत से लोग नास्तिक हो गए और 1 शांत लोग जीवन के हर क्षेत्र में अत्यन्त सफल होते कहने लगे कि परमात्मा नाम की कोई चीज़ नहीं है, हैं । कहते हैं जब चंगेज खाँ भारत आया तो दिव्य शक्ति कुछ भी नहीं है, ये कभी नहीं थी, आप हैं जो इसका अनुसरण कर रहे हैं। मूर्ख "गया' के समीप एक बौद्ध मठ में गया और वहाँ पर धर्माधिकारी लोगों ने इसका पूरा लाभ उठाया और उपस्थित तीस हजार बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट कहा कि ये लोग पापी हैं। इन लोगों को मार कर उतार दिया। बिना विरोध किए सब मारे गए। इसके कारण लोगों का विश्वास बौद्ध धर्म से उठ उन्होंने कहा कि ये परमात्मा विरोधी थे इसीलिए हमने इनका वध किया है और हम विजयी हुए हैं। गया। लोग कहने लगे कि यह कैसा बौद्ध धर्म है? अब हम कलियुग में आते हैं। कलियुग में भी भगवान बुद्ध ने इनकी रक्षा क्यों नहीं की ? मानव *ho 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt अप्रैल, 1997 मार्च - चैतन्य लहरी 28 को अब दण्डित किया जा भिन्न प्रकार से वही चीज़ आरम्भ हो गई हैं। अत्याचार और क्रूरता के से रहा है। हो सकता है कि बहुत युद्ध अत्यन्त सूक्ष्म रूप से परमात्मा विरोधी लोगों में तथा अपराधी बच निकले हों परन्तु बहुतों पर मुकदमें भी उन लोगों में जो परमात्मा का उपयोग अपने मतलब के लिए कर रहे हैं-अत्यन्त बेईमान, भ्रष्ट और चलाए गए। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। चंगेज अत्याचारी लोग, जो परमात्मा के झण्डे का दुरुपयोग खाँ पर किसी ने मुकदमा नहीं चलाया था अब, कर रहे हैं, जबकि ऐसा करने का उन्हें कोई अति सूक्ष्म रूप से, ये सब आक्रांता घबरा रहे हैं कि उनसे प्रश्न किए जा सकते हैं और उन्हें यातनाएं भी अधिकार नहीं - युद्ध जारी है। अब सहजयोगी भी हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है और दी जा सकती हैं। इटली में मुसोलिनी नामक जिन्हें इन आसुरी शक्तियों से युद्ध करना है। आक्रांता थे जिन्हें आखिरकार फाँसी पर चढ़ा दिया गया जर्मनी में हिटलर नामक एक शक्तिशाली पुरानी लड़ाई और इस लड़ाई में अति सूक्ष्म अन्तर है। जो लोग सफल हुए उन्हें बहुत आत्मविश्वास व्यक्ति हुए। आज जर्मनी के ही लोग उसका नाम तक नहीं लेना चाहते। वे उससे शर्मिन्दा हैं। इंग्लैण्ड हो गया कि उन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया है। परन्तु कलियुग के प्रकाश में ये सब ऐतिहासिक रहस्य के वारन हेस्टिंग, जो भारत आए थे, पर भी मुकदमा अत्यन्त शर्मनाक माने जाते हैं, इन्हें अत्यन्त आक्रामक चलाया गया। नेपोलियन ने जनता पर अत्याचार किए और सोचा कि वह बहुत बड़ा विजेता है। परन्तु एवं मूर्खतापूर्ण समझा जाता है। हर जगह पर अब इसका वर्णन हो रहा है जैसे: गोरे लोग अमेरिका वह भी अधिक दिन न चल सका, उसे अपने किए का परिणाम भुगतना पड़ा। सभी आक्रमणकारी, गए और वहाँ के अन्य सभी लोगों का वध कर दिया। यह चीज़ अब प्रकाश में आ रही है। जो व्यर्थ का रौब झाड़ने वाले, क्रूर, असुर प्रवृत्ति लोगों लोग स्वयं को विजेता मानते थे उनके बच्चे, नाती, को प्रायः उनके जीवनकाल में ही दण्ड भुगतना के पोते उनकी आने वाली पीढ़ियाँ उनसे शर्मिन्दा हैं। पड़ा। जीवनकाल में यदि वे बच गए तो मृत्यु पिछले महायुद्ध तक जो चेतना जागृत हुई है बाद में उनकी बदनामी हुई। कोई उनका बुत नहीं वह कलियुग के इस आधुनिक काल की वास्तविक खड़ा करना चाहता। लोगों के मस्तिष्क में चेतना विजय है जिन चीजों को जीवन का एक हिस्सा जाग उठी है। एक समय पर जिस स्टालिन ( Stalin ) का रूस में शासन था, आज आप वहाँ उसका एक मान लिया गया था, जिन्हें जीवन शैली समझ लिया गया था, आधुनिक युग में उन्हें हर जगह चुनौती भी बुत नहीं देख सकते। आधुनिक युग की शक्ति को देखें, जो लोग दी जा रही है। सभी प्रकार की आक्रामकता, 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt मार्च - अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 29 जब आपको चेतन किया जाता है, आप किसी चीज़़ ये समझते हैं कि वे अपने कारनामों के परिणाम से बच निकलेंगे वो आज इस शक्ति से भयभीत हैं। के प्रति सचेत हो जाते हैं। जैसे ये मेरा हाथ है, बहुत शीघ्र ही वे इस बात को समझ जाएंगे कि या परन्तु मैं इसके विषय में सचेत नहीं होती कि मेरा तो वे इस मुर्खता को छोड़ दें अन्यथा उन्हें कष्ट एक हाथ है। यदि कोई व्यक्ति सो रहा है तो वह उठाना होगा। प्रभुत्व जमाने वाले लोगों को शारीरिक, इस बात के प्रति सचेत नहीं है कि वो सोया हुआ मानसिक एवं भावनात्मक कष्ट उठाने होंगे और है। जब आप मुझे बताते हैं कि मेरा एक हाथ है तो उनका यश भी मिट्टी में मिल जाएगा परमेश्वरी मैं हाथ के प्रति सचेत होती हूँ या कोई मुझे कुछ माँ की शक्ति की विजय एक बहुत महान कार्य कर चुभाता है तो मेरा ध्यान उसकी ओर जाता है, रही है और वह है अनावरण करना। इस अनावरण अन्यथा मैं इसके प्रति सचेत नहीं होती। अपनी के माध्यम से उन लोगों की खुल्लम-खुल्ला भत्त्सना आँखों के प्रति मैं पूर्णतः अचेत हूँ । मैं सभी कुछ देख की जाएगी। इस दृष्टिकोण से जब आप देखेंगे तो रही हैूँ। परन्तु मान लो मैं अंधी हो जाती हैूँ और समझ जाएंगे कि किस प्रकार से अब हम विजेता कुछ नहीं देख सकती, तब मैं अपनी आँखों के प्रति हैं। सचेत हो जाऊंगी कि मेरी आँखें हैं, जिनसे मैं देख सहजयोगियों के रूप में हमें उस समय की नहीं सकती। तो एक बार जब आप कहते हैं कि ये चेतना तथा आज की जागरुकता के बीच भेद को हाथ यहाँ है तो उसके प्रति चेतना होती है। आप देखना चाहिए। उस समय असुरों को समाप्त कह सकते हैं कि यह हाथ का ज्ञान है, आप हाथ करना और उनका वध करना आवश्यक था। परन्तु के विषय में ज्ञान पा लेते हैं। परन्तु जब भी आप एक बार फिर वे संसार मंच पर वापस आ गए हैं। हाथ के विषय में सचेत नहीं होते तो यह ज्ञान लुप्त अब कलियुग में उनका पर्दाफाश हो रहा है, उनकी हो जाता है। तो ये कहना कि ज्ञान भाव (gnorance) निन्दा हो रही है, उन्हें जेल भेजा जा रहा है और है या ज्ञान (knowledge) है, दोनों ही बातें समान दण्डित किया जा रहा है। अतः सामूहिक जागरूकता हैं। आप क्योंकि हाथ के प्रति सचेत नहीं हैं तो की उन लोगों पर, जो आए, लोगों की हत्याएं की आपको इसका ज्ञान नहीं है। अब मान लो कोई और बिना दण्डित हुए, बिना बदनाम हुए चले गए, कहता है कि आपके हाथ बड़े सुन्दर हैं, तब मैं अपने अति महान विजय हुई है। सुन्दर हाथ के प्रति चेतन हो जाती हूँ अन्यथा मुझे आइए देखें कि चेतना (Consciousness) और पता ही नहीं था कि मेरा हाथ सुन्दर हैं। प्रायः सभी जागरूकता (Awareness) क्या है। चेतना वह है व्यक्ति इसी स्तर पर रहते हैं जहाँ किसी अन्य को 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt मार्च अप्रेल, 1997 30 चैतन्य लहरी उन्हें सचेत करना पड़ता है। अब कोई कहता है कि विचार, सभी प्रकार की आक्रामकता, इन सबकी आप बहुत अच्छी साड़ी पहने हैं। तब मैं इसको सृष्टि आपके मस्तिष्क की चालाकियों से होती है। देखूंगी, हाँ यह बहुत अच्छी साड़ी है। मुझे तो यदि आपका मस्तिष्क ही सो जाए तो आप परन्तु इसका पता ही नहीं था। अतः किसी व्यक्ति के क्या करेंगे ? अब मस्तिष्क बाकी नहीं रहा, आप बताने पर ही आप सचेत होते हैं. उसके बिना नहीं। अतः संचार के लिए बास्तविकता में जीवित हैं मस्तिष्क नहीं है। हम इसे निर्विचार-समाधिस्थ सभी मानव इसी स्तर पर है। अब जागरूकता क्या है ? यह एक अलग लोग कहते हैं। एक दुश्मन- हमारा मस्तिष्क- को चीज़ है। मैं यदि किसी व्यक्ति को अपने पर त्याग कर हमने सभी दुश्मनों पर विजय प्राप्त की है। अब सलाह देने के लिए मस्तिष्क बाकी नहीं है, आक्रमण करते हुए देखें तो बचाव के लिए मैं हाथ उठा दूंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि मैं जागरूक आपको कुछ बताने के लिए मस्तिष्क बाकी नहीं है। हूँ कि मेरे हाथ हैं, मैं सचेत नहीं हूँ परन्तु जागरूक एक बार जब मस्तिष्क नहीं रह जाता तो आप खो हूँ कि मेरा हाथ है और मैं ऐसा करती हैूँ। जैसे : जाते हैं । यहाँ इटली में हर समय आप अपने हाथ हिलाते अब कहा जा सकता है कि आप स्वयं से एक रहते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि आप जानते हैं प्रश्न पूछे- मैं कौन हूँ ? ज्यों ही आप प्रश्न पूछते और हैं आप निर्विचार हो जाते हैं अ्ात् आप खो जाते कि आप जागरूक हैं कि आपके हाथ हैं अभिव्यक्ति करते हुए, किसी चीज़ पर बल देने के हैं। इस प्रश्न का उत्तर आप नहीं दे सकते। अन्यथा लिए आपने इनका उपयोग करना है अतः आप कह सकते थे कि मैं एक स्त्री हूँ, मैं ये हूँ, मैं आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व हम शरीर के वो हूँ, मैं विशेष हूँ, मैं पोप हैँ। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्रति जागरूक होते हैं, अन्य लोगों के प्रति जागरूक पाने के पश्चात् आपको कौन बताएगा कि आप क्या होते हैं, अन्य लोगों के विषय में जानते हैं। हम हैं? क्योंकि बताने वाली चीज तो मस्तिष्क है और उसका अस्तित्व नहीं रहा। विचारों के लुप्त होने का जानते हैं कि अमुक व्यक्ति कैसा है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् जो घटित होता है वह अर्थ है कि आप स्वयं में ही विलीन हो गए । यही अत्यन्त दिलचस्प है तब आप इन दोनों स्थितियों- वास्तविकता है। परन्तु आप जागरूक भी हैं यह चेतनता और जागरूकता- से ऊपर उठ जाते हैं एक अन्य बात है। आप यदि स्वयं से प्रश्न करें, क्योंकि आप विचारों से परे चले जाते हैं। विचारों से आप वहाँ नहीं होते फिर भी आप जागरूक हैं। यदि परे चले जाने का अर्थ है कि क्रोध, सभी प्रकार के आपकी नाभि पकड़ रही है तो आप तुरन्त जान 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 31 कौन हैं। आप सदैव कहते हैं कि आप पवित्र आत्मा जाते हैं, ओह मेरी नाभि पकड़ रही है। मूझे इसे ाम साफ करना है आपको प्रश्न नहीं पूछना पड़ता। हैं। कौन सी चीज आपको विश्वास दिलाती है कि या यदि कोई बायें स्वाधिष्ठान वाला व्यक्ति आपके आप पवित्र आत्मा हैं ? आपने कभी अपनी आत्मा को नहीं देखा क्या आपने कभी देखा ? आपने कभी पास खड़ा है तो आप कह उठेंगे, हे परमात्मा! या यदि कोई व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का है या बहुत स्वयं को नहीं देखा कि आप क्या हैं तो आप कैसे क्रुद्ध है तो उस व्यक्ति से आपको इतनी गर्मी कह सकते है आप पवित्र आत्मा हैं ? आप यह बात केवल इसलिए कह सकते हैं क्योंकि मैं कहती हूँ। आएगी कि आप उससे दूर भाग खडे होंगे। यह एक नया क्षेत्र है, आप उस वास्तविकता परन्तु क्योंकि पवित्र आत्मा का वर्णन जिस प्रकार किया गया है, कि यह दिव्य शक्ति के प्रति जागरूक में प्रवेश कर गए हैं जिसके प्रति पहले आप कभी जागरूक न थे। अब मान लो कोई बहुत बुरा है, इसका आपने अनुभव किया है इसलिए आप पवित्र आत्मा हैं। क्योंकि केवल पवित्र आत्मा को ही व्यक्ति आपके समीप खड़ा है, वह चोर, खूनी आदि अपना व्यक्तित्व बना कर आप परमात्मा की सर्वव्यापी सकता है। उसके प्रति जागरूक होना कुछ भी तो दूर आप सचेत भी नहीं होंगे। परन्तु यदि आप शक्ति के प्रति जागरूक हो सकते हैं। इस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आप पूर्ण के प्रति जागरूक आप पवित्र आत्मा हैं। इसका वर्णन सभी शास्त्रों में, हो जाते हैं। ये वास्तविकता है। समस्याएं क्या सभी धर्मग्रन्थों में और सभी जगह किया गया है। हैं? सामूहिकता में आप सामूहिक के प्रति जागरूक किस प्रकार आप जानते हैं कि आप पवित्र आत्मा हो जाते हैं, पूरे विश्व की समस्याओं के प्रति हैं ? क्योंकि आपको अपने चक्रों का ज्ञान है, आपको अपनी नाड़ियों का ज्ञान है। अब जो हो रहा है वह जागरुक हो जाते हैं। यह जागरूकता अत्यन्त भिन्न है । यह है कि आप स्वयं से अलग हो गए हैं और पहली जागरूकता इस प्रकार है मान लो स्वयं को देख सकते हैं। आप स्वयं को अति भविष्य और कोई आप से बताता है कि आप ऐसे हैं तो आप स्पष्ट देखते हैं और स्वयं को भूत. सचेत हो जाते हैं। परन्तु इसमें किसी को बताना वर्तमान के रूप में देखने लगते हैं। भूतकाल में मैं मैं नहीं पड़ता. यह जागरूकता विद्यमान है। आप क्या था ? आपको धक्का लगता है, हे परमात्मा ऐसा था! वर्तमान अवस्था में इसे देखें। इसे वर्तमान जागरूक हैं और जानते है कि क्या है। आधुनिक युग में आपने यही उपलब्धि पाई है और यही इस अवस्था में देखें। तब आप इसे भूलने लगते हैं, युग का आशीर्वाद है कि अब हम जानते हैं कि हम भूतकाल को भूल जाते हैं। परन्तु अब भी आपका sto 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 32 भविष्य शेष हैं, आप भविष्य के विषय में सोचने कैसे पकड़ी जाती है और बहुत से इतने करुणामय हैं कि वे तलवार पकड़ना भी नहीं चाहते : वे आनन्द लगते हैं। सर्वप्रथम लोग अपने बच्चों, अपनी पतन्नियों के सागर में हैं और भली-भांति आनन्द उठा रहे हैं। के विषय में सोचने लगते हैं कि मेरे बच्चों का क्या वे अपनी अन्य लोगों की तथा अपनी माँ की करुणा होगा, मेरी पत्नी का क्या होगा? तब वे सोचते हैं कि सहजयोग का क्या होगा ? तब महसूस करते का आनन्द उठा रहे हैं। तो समस्या का समाधान हैं कि श्री माता जी का क्या होगा ? लोग ये भी किस प्रकार किया जाए ? समस्या का समाधान सोचते हैं कि इस विश्व का क्या होगा क्योंकि तभी हो सकता है जब अपने अन्दर आप अति शक्तिशाली हो जाएं। आपका चित्त कहाँ है ? आपकी जागरूकता अब विस्तृत हो गई है, अब आप एक सीमित क्षेत्र में नहीं रहे। आप अपने आपको अन्तस में जाना होगा मैंने अपना कार्य कर दिया है, आपको आत्मसाक्षात्कार दे दिया है, आप बच्चों, अपनी पत्नी और पूरे विश्व की समस्याओं के विषय में भी सोच सकते हैं। तो आप उस स्थिति इतने विकसित हो गए हैं । मैंने आपको सभी कुछ बता दिया है, सभी कुछ वर्णन कर दिया है। इस तक पहुँच चुके हैं। वह कौन सी चीज है, अब वह कौन सी चीज़ जो यह सब आच्छादित किए हुए है बार मैंने आपको प्रेम का सागर दे दिया है। परन्तु या आपको आपके बच्चों, परिवार, पत्नी सभी के अब आपको अपना पोषण करना होगा आपको तो लिए समाधान प्रदान करती है। आपकी माँ केवल आंतरिक रूप से शक्तिशाली बनना होगा समस्याएं देने में ही भरोसा नहीं करती वे शक्तिशाली बनने का क्या उपाय है ? सर्वप्रथम आपको विश्वास करना होगा कि समाधान देने में विश्वास करती हैं। आज की आप अपने मानवीय व्यक्तित्व से ऊपर उठ कर दैवी समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको व्यक्ति बन चुके हैं। यह बात आपके मस्तिष्क में बैठ तलवार की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आजकल की समस्याएं हमारे अन्दर हैं। हम समस्या को जानी चाहिए। इसी को हम श्रद्धा कहते हैं। यह देखते हैं, उसके प्रति जागरूक हैं और उसके बारे श्रद्धा मिथ्या नहीं है, किसी चीज़ में आपका में कुछ करना चाहते हैं। चाहे हम भूत-भविष्य या अन्धविश्वास नहीं है सैकड़ों बार मैंने आपसे कहा वर्तमान में हों, हम समस्या को देखते हैं । तो है कि आप अपने उत्थान में सहजयोगी के रूप में समाधान क्या है ? हमारे पास कोई हथियार नहीं अपने पद पर विश्वास करें । इसके लिए करने के लिए कोई हथियार नहीं है, बहुत ध्यान-धारणा अत्यन्त महत्वपूर्ण है, ध्यान-धारणा है, युद्ध के बिना आप स्वयं पर पूर्ण विश्वास नहीं कर सकते से लोग तो यह भी नहीं जानते कि हाथ में तलवार 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt अप्रेल, 1997 मार्च चैतन्य लहरी 33 क्योंकि केवल इतना पूछने मात्र से कि मैं कौन हू, गर्दन नहीं काटी क्योंकि वे तो ऐसा कर ही नहीं आप स्वयं को नहीं जान सकते। आज़मा कर देखें। सकते थे किसी अन्य ने उसकी गर्दन काट डाली। प्रश्न पूछे मैं कौन हूँ और आप खो जाएंगे। तो इस अवस्था को हम 'श्रद्धा' की स्थिति कहते विश्वास क्या होना चाहिए ? तो आप एक ऐसी हैं, ज्योतित श्रद्धा, प्रकाशित विश्वास। यह एक स्थिति पर पहुँचते हैं जहाँ मुझे आपको यह बताना नए किस्म की रचना (Machanism) है जिसमें पड़ता है कि विश्वास मानसिक, भावनात्मक या आप विराट के अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं। में पूजा शारीरिक नहीं है परन्तु यह आपकी अपने अस्तित्व उपस्थित रहने के लिए मैंने सूर्य को नहीं कहा था। की एक अवस्था है जिसे हम रुहानी अवस्था के पिछली बार भी मैंने नहीं कहा था। इस बार लोग नाम से पुकारते हैं । रुहानी अवस्था में कोई चीज़ कह रहे थे कि कहने की कोई आवश्यकता नहीं, आपको अशान्त नहीं कर सकती। कोई भी चीज़ सब हो गया है। चैतन्य लहरियों को मैं क्रॉस बनाने आपको वश में नहीं कर सकती, आप पर प्रभुत्व नहीं या चमत्कारिक फोटो दर्शाने के लिए नहीं कहती। जमा सकती क्योंकि वह स्थिति आपकी है तो वे यह सब स्वयं करती हैं। मैं कई बार तो हैरान इसका अर्थ है कि आप बास्तविकता के अंग-प्रत्यंग होती हैँ कि उनके कितने सरल तरीके हैं! किस हैं। तब आप परमात्मा के साम्राज्य के सम्माननीय प्रकार से वे सभी कार्य करते हैं। सभी कार्य स्वतः सदस्य हैं। तब आप एक देवता, एक गण सम है। होते हैं। सभी कुछ हो जाता है। मुझ में यदि कुछ का उस स्थिति में जब आप हैं तो वह स्थिति, मानव की है तो वह है पूर्ण विश्वास कि मैं उस स्थिति में हूँ स स्थिति से ऊँची है और उस स्थिति में आप अत्यन्त और इसी कारण पूर्ण धैर्य (सबूरी) है और हमें यही शक्तिशाली होते हैं । सीखना है । हर हाल में यह घटित होना है क्योंकि सूफी सन्त निजामुद्दीन के विषय में एक कहानी है। उनके समय में एक क्रूर राजा था परन्तु महत्वपूर्ण है, अत्यन्त महत्वपूर्ण। मेरे लिए नहीं हम सब उसी स्थिति के हैं केवल ध्यान- धारणा सन्त निजामुद्दीन उनके सम्मुख जाकर झुकते न आपके लिए। आप सब यदि प्रतिदिन केवल दस थे। वे कहते थे कि मैं केवल परमात्मा के सामने मिनट भी ध्यान-धारणा करें तो यह आपके लिए झुक सकता हूँ किसी अन्य के नहीं। राजा ने कहा अत्यन्त सहायक होगी। कि कल आकर यदि तुमने प्रणाम नहीं किया तो मैं अब माँ की, हनुमान की, गणेश और ईसा तुम्हारी गर्दन काट दूंगा। उसी रात उस राजा की आदि की इतनी प्रतिमाएं क्यों बनाई जाती हैं ? गर्दन कट गई । निजामुद्दीन साहिब ने उसकी क्योंकि आरंभ में जब तक साकार रूप न हो लोग 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt मार्च - अप्रैल, 1997 चैतन्य लहरी 34 लिए आते हैं परन्तु मुझे ऐसे पत्र प्राप्त होते हैं जिनमें कुछ भी समझ नहीं सकते, देवी-देवताओं के साकार वे लिखते हैं कि मेरे पिता बीमार हैं, मेरी माँ बीमार के बिना वे गहनता में नहीं उतर सकते। परन्तु रूप है, मेरे भाई बीमार हैं, मेरे पति मुझसे झगड़ते हैं, मैं इस ओर भी लोग एक दूसरी सीमा तक चले गए और किसी भी पत्थर को परमात्मा मान कर उपयोग उनसे तलाक लेना चाह रही हूँ। ऐसे पत्र आते हैं जिनमें लिखा होता है कि मेरा सारा धन चला गया करने लगे। अब आपमें विवेक है। आप जानते हैं है. मुझे कुछ पैसा मिलना चाहिए और चौथे, मैं महान कि किसकी पूजा करनी है और किसे उच्च व्यक्तित्व मानना है। परन्तु इससे पूर्व वे सभी प्रकार के लोगों कलाकार हूँ परन्तु मेरी कला बिक नहीं रही। ैं किया करते थे। लोग पोप की पूजा करते कहती हैं "कि ये किस प्रकार के सहजयोगी हैं ?" की 1 पूजा हैं वे केवल अन्धे ही नहीं हैं, केवल अचेतन ही नहीं वास्तविकता से एकाकारिता होने का अर्थ है कि पूर्ण वास्तविकता आपके चरणों में है, यह पूरी हैं उनमें तो इसके प्रति चेतनता का ही अभाव है। वे तो एक ऐसे स्तर पर हैं कि उन्हें समझाया भी की पूरी आपके लिए कार्य करती है। एक बार यदि आप इस स्थिति की झलक भी पा लेते हैं तो आप नहीं जा सकता। तो आप एक नए किस्म के लोग हैं जिन्होंने इन सब चीज़ों से लड़ने का, इनके अपने अन्दर अत्यन्त शांत हो जाते हैं। आप यदि कहें कि मैं राजा हूँ तो आप राजा हैं और यदि कहें विरुद्ध संघर्ष करने का और पूर्ण सत्य का ज्ञान कि मैं भिखारी हूँ तो भिखारी हैं। तो वह स्थिति जो प्राप्त करने का प्रयत्न किया है। जब तक आप पूर्ण सत्य को जान नहीं लेते आप कहीं भी नहीं हैं, शुद्धतम स्वर्ण है जिसे दूषित नहीं किया जा सकता, आपमें न तो विवेक है न सूझ-बूझ और न ही ऐसी ही मनःस्थिति हमें विकसित करनी है। हमारे बुद्धिमता। परन्तु एक बार जब आप पूर्ण सत्य लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है हम सहजयोगी को जान लें तो किसी भी हाल में आपको हैं, ठीक है. हमने आत्मसाक्षात्कार पर लिया है, ठीक आधा-अधूरा नहीं रहना है। वह स्थिति अत्यन्त है हम बहुत अच्छा गा सकते हैं, ठीक है, हमने भयानक है हो गया अच्छा पद पा लिया है, ठीक है, हमारा बहुत अच्छा जैसेः एक बीज अंकुरित है, अब वह न तो बीज है और न ही पेड़। विवाह हो गया है, हमें सभी प्राप्त हो गया है, हमें यदि यह बढ़ता नहीं है तो यह व्यर्थ है। नौकरी मिल गई है आदि आदि। परन्तु अचानक आपकी चेतनता के साथ भी यही होता है एक नकारात्मक शक्ति आती है और आपको कष्ट और तब आप न इधर के होते हैं न उधर के। में डाल देती है। तो क्या हुआ ? इसके बिना आप बहुत से लोग सहजयोग में शांति प्राप्त करने के कैसे जानेंगे कि आप क्या हैं ? यदि अन्धकार नहीं 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 35 कहती हैँ कि मुझे बहुत तोहफे न दें लेकिन एक ही है तो आप कैसे जानेंगे कि आप प्रकाश हैं? आपकी अपनी अवस्था को यह एक चुनौती है कि आप तर्क दिया जाता है कि पूरे वर्ष में हम केवल एक किस अवस्था में हैं। 'अवस्था शब्द इतना स्पष्ट बार आपको देते हैं, तो श्री माता जी आप इस पर नहीं है संस्कृत में यह स्व-रूप' है 'स्व' अर्थात् एतराज न करें, इससे हमें आनन्द मिलता है। ठीक है, यदि आप सोचते हैं कि आपको आनन्द मिलता आप और 'रूप" अर्थात् शक्ल या स्थिति । वह है तो करें। परन्तु मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता स्थिति आप सबके लिए सम्भव है यदि आप सभी क्योंकि मैं नहीं सोचती कि मैं यहाँ हूँ. यहाँ बैठकर नकारात्मक विचारों के लिए कहते रहें कि 'यह नहीं, यह नहीं। आपका मस्तिष्क उस स्थिति में मैं आप सबको देख रही हूँ, ठीक है. सभी पहुँच चुका है जहाँ मस्तिष्क है ही नहीं। आप यह आत्मसाक्षात्कारी लोग बैठे हैं. ठीक है परन्तु मैं भी कर सकते हैं परन्तु इसके लिए आपको ऐसा आपमें से एक हूँ। मैं नहीं सोचती कि मैं कोई विशेष व्यक्तित्व विकसित करना होगा जो यह महसूस हूँ। परन्तु यदि आप मुझसे पूछें तब मैं कहूँगी कि कर सके कि आप क्या हैं। परन्तु उस साक्षात्कार ठीक है मैं आदिशक्ति हूँ, पर मैं नहीं सोचती कि ९ में आप मात्र जागरूक होते हैं इसके प्रति सचेत आदिशक्ति भी कुछ विशेष है । यदि कोई व्यक्ति विशेष भी है तो क्या ? मान लो सूर्य कुछ नहीं होते। जैसे उदाहरण के रूप में मैं आपको कुछ हूँ कि मैं आदिशक्ति विशेष है तो क्या ? सूर्य तो सूर्य है। यदि कोई बताती हूँ कि मैं जागरूक हूँ. मैं जागरूक हूँ, मैं यह बात जानती हूँ । परन्तु व्यक्ति आदिशक्ति है तो वह आदिशक्ति है. तो आपके लिए यह श्रेयस्कर है क्योंकि क्या ? जब आप जय श्री माता जी कहते हैं तो यह भूल परन्तु आप लोग जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी न थे, आपने कर कि मैं श्री माता जी हूँ मैं भी जय श्री माता जी कहती हूँ। वास्तव में यही स्थिति होनी चाहिए। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया, अतः आप विशेष हैं. आप महान हैं, आपने कुछ उपलब्धि प्राप्त की है, मैंने आप लोग महारानी की तरह से मुझे बिठाते हैं और मुझे तोहफे देते हैं। ठीक है, यह आपका तो कुछ प्राप्त नहीं किया, मैं ऐसी ही थी और ऐसी विचार है। परन्तु मैं स्वयं में पूर्ण हूँ, मैं स्वयं में लीन ही रहूँगी चाहे मैं आसुरों से युद्ध करूं या आपके हो गई हूँ, ठीक है, आप ऐसा कर सकते हैं, आप सम्मुख बैठूं कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु मेरे लिए वैसा कर सकते हैं और यदि आप ऐसा न भी करें आप महान हैं क्योंकि आपने यह प्राप्त किया है। नवरात्रि के दिन इतने लोगों को पूजा के लिए बैठे तो भी ठीक है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है इससे आपको फर्क पड़े। जैसे मैं सदा देखकर बहुत अच्छा लगा। यह अति प्रशंसनीय है। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt मार्च अप्रेल, 1997 चैतन्य लहरी 36 ये मेरी उपलब्धि नहीं है आपकी अपनी जिज्ञासा है तरह से व्यवहार न करें। आप विकसित हो चुके हैं, क्योंकि मैं इससे पूर्व भी बहुत बार पृथ्वी पर आई हूँ समृद्ध हो चुके हैं, अब आप इसके फल भी देख सकते हैं। वास्तव में मेरी समझ में नहीं आता कि मैं परन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ। बहुत से लोग आए, सूली पर चढ़ गए, मृत्यु को प्राप्त हुए आदि, कभी आपके लिए क्या करूं। परन्तु स्वयं में विश्वास करें; आप देखेंगे कि आपको वास्तविकता (सच्चाई) में मुझे ऐसे लोग नहीं मिले। तो एक बार फिर हम उसी बिन्दु पर आते हैं कितना विश्वास हो जाता है, हर कदम पर, हर क्षण कि हमें स्वयं के प्रति जागरूक होना चाहिए. स्वयं आप देखेंगे कि आपके अन्तस में कितनी सच्चाई में पूर्ण श्रद्धा। यदि आपको स्वयं में श्रद्धा है तो है। कोई भय या उपलब्धि -गर्व मन में न आने दें. आपको मुझ में भी श्रद्धा होगी क्योंकि हम लोग काफी हो चुका है, हो गया| जब पाँच सहजयोगी थे, मैं प्रसन्न थी, अब जब इतने सारे सहजयोगी हैं, को विश्वास है कि यह जल भिन्न नहीं हैं । रानि मैं प्रसन्न हूं । परन्तु जब मैं इतने अधिक सहजयोगियों है तो पूरे ।- भी जल होगा, आप जान जाएंगे कि यह जल है। आप यदि जानते हैं कि को देखती हूँ तो मुझे लगता है कि इतने सारे आप सहजयोगी हैं तो जहाँ भी सहजयोगी होगा शक्तिशाली व्यक्तित्व हैं जिनकी एकाकारिता आप जान जाएंगे कि यह सहजयोगी है। परन्तु वास्तविकता से है। यह सामूहिक एकता इससे पूर्व जहाँ तक आपका सम्बन्ध है आप भूल जाते हैं कि कभी न थी। इसीलिए मैं कहती हैं कि आज के आप कितने महान हैं! मुझे आप पर बहुत गर्व है। दिन हमारे करने योग्य एक ही कार्य है कि परन्तु मैं एक नम्र व्यक्ति हूँ मैं नहीं जानती कि हम अपने अन्तर्निहित असुरों का वध करें, और प्यारे बस। आप यदि वास्तव में मेरी पूजा करना किस प्रकार प्रदर्शन करूं इतने अच्छे बच्चे होना। जिन भक्तों के लिए उसने (देवी ने) चाहते हैं तो आपको यही सोचना होगा कि इतने असुरों का वध किया था, वे आप जैसे न थे। आपके अन्दर कौन से असुर हैं। मात्र इतना आपको बाहर के असुरों की चिन्ता करने आप उनसे कहीं अच्छे हैं, कहीं ऊँचे हैं, आपमें ही। उनसे कहीं महान गुण हैं। की कोई आवश्यकता नहीं, वे आपका कुछ आपको यह जानना आवश्यक है कि आप नहीं बिगाड़ सकते। क्या हैं. आदिम (अविकसित) स्वभाव के लोगों की प परमात्मा आपको धन्य करें। ही हाँ पत न ाभी छाम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt 37 ने अन्तर्राष्ट्रीय ले प्लेजादे' श्री माता जी (Le Plejade) शांति पुरस्कार जीता विश्व में जहाँ कि व्यक्ति तथा 2 मई 1996 को अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार ले प्लेजादा के दसवें संस्करण में श्री मानवता की समस्याओं के नए समाधान माता जी निर्मला देवी को 1996 का खोजने की अत्यन्त आवश्यकता है, किसी पुरस्कार विजेता घोषित किया गया। ऐसी चीज़ को खोजने की जिससे व्यक्ति निर्णायकों में भिन्न देशों के प्रोफैसर तथा अस्तित्व की चेतना की गहनता में उतर 1 डॉक्टर सम्मिलित थे। पुरस्कार को मंत्री सके, इस क्षेत्र में सहजयोग संस्थापिका परिषद की अध्यक्षता, यूरोपियन संसद श्री माता जी सभाओं तथा नेतृत्व द्वारा कार्यालय इटली अच्छे जीवन के लिए हमारे अपने ही गहन आयामों पर ध्यान योजना संस्थान एवं यूनीपाज़ ( दोनों संयुक्त राष्ट्र से सम्बन्धित) ब्रह्माण्डीय अन्तर्राष्ट्रीय हुए हमें नयी दिशायें सुझा रही हैं और संस्था, कला प्रगति संस्थान (The एक संतुलित तथा शांत समाज, जहाँ Presidency of Council of Ministers, The प्रत्येक व्यक्ति की गहन आत्मा से आरंभ European Parliament Office in Italy, The करके शांति का वास्तवीकरण किया जा Planning Institute for Quality of Life and करने के लिए हमारा पथ-प्रदर्शन करते सके, का आधार स्थापित करने में सहायता Unipaz) ने 3 एम इटली समूह (3 Mltaly Group) के सहयोग से संरक्षण प्रदान किया। कर रही हैं। श्री माता जी की ओर से ग्वीडो ने पुरस्कार प्राप्त किया। संक्षिप्त रूप से धन्यवाद करते हुए उन्होंने अत्यन्त स्नेह श्री माता जी को इस पुरस्कार के लिए चुनने के लिए उन्होंने निम्नलिखित तथा सम्मानपूर्वक कहा कि श्री माता जी के प्रति समर्पित होना हमारा अपना ही आधार बताए हैं :- सम्मान है।