DRA 1997 RTERNAL PURE अंक 5 व 6 चैतन्य लहरी म लम आपका मस्तिष्क यदि घमण्ड से परिपूर्ण है तो आप कभी सहजयोग को नहीं समझ सकते। आत्मा के विषय में जानने के लिए आपको गहनता में उतरना होगा और गहनता में उतरने के लिए वे सब विचार त्यागने होंगे जो आपको हवा में उड़ाते हैं। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जन्मदिवस पूजा (दिल्ली) 21.3.97 MOIDITEN WA NIRMAT NIVERSAL PURE RELIGI चैतन्य लहरी विषय सूची खंड Ix 1997 अंक 5 व 6 (1) सहस्रार पूजा 4 मई 1997 कबैला (2) प्रेरणा (3) जन्मदिवस पूजा 21.3.97 दिल्ली 13 कम (4) शिवरात्रि पूजा 16.3.97 दिल्ली र 18 (5) दिवाली पूजा 10 नवम्बर, 1996 पुर्तगाल 22 (6) अन्तर्राष्ट्रीय एकता प्रतिष्ठान 6.4.1997 नई दिल्ली 34 DHARMA VMHSIA सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। चाक क॥ जु ा वगे प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ल र ई' मेल का पता- ा marketing@nirmalinfosys.com dEvsc: www.nirmalinfosys.com प Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ह०ी पत ली १० ता ान ३ काम प्रेरणा द ला न माँ के अथक प्रयास को जति |४ फिर भी भटक रहा क्यों बेकार है मनुष्य आगे बढ़ाना है तुम्हें मंजिल अभी दूर है माँ अवतरित हैं, चलते ही जाना है तुम्हें।। कल्याण करने को, आह्लादित हैं, व्याकुल हैं, चिन्तित हैं, दात्री हैं, ज्ञान की रोशनी से म श प्यार के इस सागर से, काम हि दिल की गहराइयों से ज्ञाता हैं, तब भी देखकर रो देती हैं आमन बुझते हुए चिरागों को रोशन करना है तुम्हें मनुष्य की अज्ञानता को।। अिता पपात पतड उठो संभलो, विचारो, आगे ही बढ़ना है तुम्हें।। Thia विश्व, निर्मल धर्म को पत्थ द अर्ध विकसित हो अभी चहुँ ओर फैलाओ ना पूर्ण खिलना है तुम्हें क माँ के आदर्शों पर ही ज्ञान, के दीपक हो तुम इस तम को शीघ्र मिटाओ।। च सदैव चलना है तुम्हें।। लिड इस घने अंधकार में उजाले की किरणे हो तुम हा प्यार ही प्यार है, ाम परम चैतन्य अपार है, इस फैले भष्टाचार में सभी से पृथक हो तुम शक्ति अपरम्पार है, माँ के आशीर्वाद से प्रकाश चारों ओर है. आम आशीर्वादित हो तुम।। का ८ सहस्रार पूजा कबैला - 4 मई 1997 परम पूज्य माता जी श्री निर्भला देवी का प्रवचन माध्यम से सहस्रार को अधिक शक्ति पहुँचाने लगती है और स्वाधिष्ठान स्थित धर्म की शक्ति भी इसके आज हम सब यहाँ सहस्रार पूजा करने के किया है लिए एकत्रित हुए हैं। आप सब ने महसूस कि सहस्रार हमारे सूक्ष्म तंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साथ बहने लगती है। ऊर्ध्व गति को पा यह शक्ति हिस्सा है। निः सन्देह यह एक महान दिन है. वर्ष सहस्रार में उठने लगती है। तब तक, मैं कहूँगी, हम 1970 में इसी दिन यह चक्र खोला गया था। परन्तु इससे आपने क्या प्राप्त किया, यह हमें देखना है। के विषय में कट्टर भी हो सकता है। मैंने ऐसे उठते हुए कुण्डलिनी सर्वप्रथम आपके लोग भी देखे हैं जो इतने कट्टर हैं कि वे स्वाधिष्ठान में जाती है जहाँ आपका धर्म है और उन लोगों से मिल तक नहीं सकते जो आपका धर्म स्थापित हो जाता है। नाभि चक्र पर, आप कह सकते हैं, नाभि चक्र के चहूँ ओर, आपका नहीं कर सकते और सदा ऐसे लोगों से मिलने धर्म जो कि अन्तर्जात, पवित्र एवं शाश्वत धर्म है. से घबराते हैं जो सहजयोगी नहीं है। बेशक स्थापित हो जाता है। तब कुण्डलिनी ऊपर को आसुरी प्रवृत्ति लोगों, जो सहजयोग के विरुद्ध उठती है। धर्म के स्थापित होने के भी हम समाज से थोड़े से अलग होने लगते हैं क्योंकि हमें आपको कोई आवश्यकता नहीं परन्तु जो लोग होता है कि लोग अधर्मी हैं। उनका कोई सत्य साधक हैं, उनके पास जाना हमारा पूर्ण सहजयोगी नहीं होते। क्योंकि व्यक्ति सहजयोग सहजयोगी नहीं हैं वे उन लोगों से बात तक हैं, इसके विरुद्ध बातें करते हैं, से मिलने की बावजूद महसूस धर्म नहीं। हमें यह भी लगता है कि उनके अधर्म के कत्त्तव्य है। अतः जब धर्म मस्तिष्क में स्थापित कारण कहीं हममें पकड़ न आ जाए अतः उस होने की स्थिति में पहुँच जाता है तब हम धर्म स्थिति में हम सहजयोग की सीमाएं नहीं लांघना से ऊपर उठ जाते हैं, धर्मातीत हो जाते हैं। चाहते, सहजयोगियों तक, सहजयोग के कार्यक्रमों धर्मातीत होना अर्थात् धर्म हमारे अस्तित्व का तक और अपने निजी सहज जीवन तक सीमित अंग-प्रत्यंग बन जाता है। इससे हम वंचित रहना चाहते हैं। निःसन्देह यह महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम नहीं हो सकते। सहज धर्म हमारा अंग-प्रत्यंग इस चक्र का पोषण होना आवश्यक है क्योंकि यह नाभि चक्र के चहूँ ओर, जिसे आप स्वाधिष्ठान के आपको कोई कर्म काण्ड नहीं करना पड़ता, अन्य नाम से जानते हैं, घूमता है। ये स्वाधिष्ठान चक्र लोगों से मिलने में आपको कोई घबराहट नहीं होती, एक प्रकार से अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको यह चिन्ता नहीं होती कि आपकी चैतन्य मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है। जब धर्म लहरियाँ बिगड़ जाएंगी, किसी से आपको पकड़ स्थापित हो जाता है तो शक्ति कुण्डलिनी के नहीं होती। नकारात्मक शक्तियों की पकड़ भी बन जाता है और यह एक महान उपलबधि है क्योंकि तब 1 सूक्ष्म পা मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी सत्य पर खड़े हैं। सत्य धर्म से कहीं अधिक महान आपको नहीं होती। कोई आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। इसे मैं आपकी श्रद्धा का पूर्ण होना कहती है। उदाहरणार्थ : एक व्यक्ति जो सत्य पर खड़ा है, हूँ। सहस्रार इतना ज्योतिर्मय हो जाता है कि आप उसे व्यर्थ के धार्मिक विचारों की चिन्ता नहीं होती। धर्म बन जाते हैं। हम ईसा का उदाहरण दे सकते सहज धर्म के विषय में भी वह चिन्ता नहीं करता कि हैं। ईसा ने देखा कि एक वेश्या को पत्थर मारे जा आखिरकार यह सहज है, यह सहज नहीं है। वह रहे हैं। अब ईसा का वेश्या से क्या लेना-देना। इससे ऊपर उठ जाता है, अर्थात् वह अपने अन्दर परन्तु जब उन्होंने उस पर पत्थर पड़ते हुए देखे तो ब्रह्माण्डीय सत्य को देखता है। वह उस सत्य को उसके सामने जाकर खड़े हो गए और लोगों से देखता है जो सर्वव्यापक है। वह न केवल देखता है कहा कि जिसने कोई पाप नहीं किया वह मुझे परन्तु जानता भी है और महसूस करता है कि वह पत्थर मारे। सभी लोग हैरान हो गए कि ये वेश्या सत्य पर स्थिर है। तो धर्म का सत्य में पुष्पीकृत की तरफदारी क्यों कर रहे हैं! ये तो एक धार्मिक होना अत्यन्त सुन्दर घटना है और यह घटना आप व्यक्ति हैं, इन्हें भी वेश्या को पत्थर मारने चाहिएं। सबके साथ घटित होनी चाहिए। आप यदि केवल परन्तु वे तो सत्य पर खड़े थे। सहस्ार में जब यह धर्म के स्तर पर हैं तो बहुत सारी चीजें लटकती रह स्थापित हो जाता है तो आपके साथ भी बिल्कुल जाएंगी। मैंने लोगों को अहम् -ग्रस्त होते हुए, पैसा ऐसा ही घटित होता है। आप सत्य पर डट जाते बनाते हुए देखा है। कभी -कभी तो वे बिना मेरी हैं। धर्म और सत्य में थोड़ा सा अन्तर है। धर्म के हित में नहीं है। इस बारे में उनमें नम्रता नाम की में व्यक्ति अति धर्मी, असंगत रूप से धार्मिक चीज़ नहीं है, वे यह भी नहीं समझते कि सत्य पर बन सकता है। वह दायें या बायें को जा सकता खड़ै होना धर्म है या असत्य पर। तो हमें धर्म की है धार्मिक व्यक्ति स्वयं को अन्य लोगों से उच्च नींव-सत्य-पर जाना होगा। जैसा मैं पहले बता आज्ञा लिए ऐसे गलत कार्य करते हैं जो सहजयोग कोटि का मान सकता है। वह सोचता है कि अन्य चुकी हूँ, यह जीवन वृक्ष है जिसकी जड़ें मस्तिष्क में लोगों को बचाने की क्या आवश्यकता है ? उन्हें नर्क हैं और डालियाँ शरीर में । में जाने दो, कौन चिन्ता करता है। धार्मिक व्यक्ति में इस प्रकार का दृष्टिकोण पनप सकता है। होगा और यहाँ तक आप तभी पहुँच सकेंगे जब सहजयोग में मैंने कुछ ऐसे भी सहजयोगी देखे हैं आप सहस्रार में पूर्णतः स्थापित हो जाएंगे। हमारे जो अपनी ही विधियाँ शुरु कर देते हैं। आप ऐसा सभी विचारों या स्वरूपों की जड़ें सहस्रार में हैं। अब करें, यह ठीक रहेगा आप वैसा करें, वह ठीक हम धार्मिक हो गए हैं धर्म की जड़ क्या है ? हम रहेगा। वे धर्म पर स्थिर नहीं हैं इसलिए भी लोगों धार्मिक क्यों बनें ? धार्मिक बनने की क्या आवश्यकता को बताने लगते हैं कि ऐसा करो, वैसा करो। परन्तु है ? विश्व में बहुत से अति अधार्मिक लोग भी बहुत आपको हर चीज़ की जड़ों (तह) में जाना | सत्य बिन्दु तक जब आपका उत्थान हो जाता है अच्छी तरह से रह रहे हैं। कहने से मेरा अभिप्राय तो आप कोई कर्म काण्ड नहीं करते, कर्म काण्डों यह है कि बाह्य रूप से हमें लगता है कि वे अत्यन्त की आपको कोई आवश्यकता नहीं होती, कोई चिन्ता नहीं होती क्योंकि आप धर्म में स्थिर हैं, जबकि हम संभवतः सांसारिक मजे से वंचित हैं। तो के आपको प्रसन्न हैं, ठीक-ठाक हैं, और मजे ले रहे हैं। चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 केवल धर्म की स्थिति में हमारे लिए चीजें बहुत हम एक उदाहरण ले सकते हैं। मान लो मैं किसी महत्वपूर्ण बन जाती हैं। सत्य पर खड़े हुए चाहे वे से मिलती हूँ और वह किसी अन्य व्यक्ति के विषय इतनी महत्वपूर्ण न हों। ऐसी बहुत सी चीजज़ों के बारे में सभी प्रकार की भली बुरी बातें बता रहा है तो मेरे में मैं आपको बता सकती हूँ कि सहजयोगी किस हृदय में उस व्यक्ति के लिए तथा वे बातें बताने वाले प्रकार डगमगा जाते हैं। धर्म की स्थिति प्राप्त करने के लिए तीव्र प्रेम उमड़ता है। तो मैं झूठ का सहारा के बाद भी वे कई बार डगमगा जाते हैं। मैंने उन्हें लेती हूँ, पूर्ण झूठ का, जो कि एक प्रकार से सत्य भी नशे, शराब तथा अन्य प्रकार के व्यसन त्यागते हुए है उस व्यक्ति से मैं कहती हूँ कि देखो तुम क्या देखा है। यहाँ तक कि उनकी भाषा में सुधार हो बाते कर रहे हो ? जिस व्यक्ति के विषय में तुम यह जाता है तथा उनका व्यवहार बदल जाता है। सब बता रहे हो वह तो सदा तुम्हारी प्रशंसा करता निःसन्देह वे पहले से अधिक विनम्र हो जाते हैं। रहता है और तुम इस तरह की बातें कर रहे हो! फिर भी वे इस बात के प्रति चेतन होते हैं कि अब वास्तव में यह सत्य नहीं है परन्तु आप झूठ का परन्तु वे धर्म पर खड़े हैं। इस चेतना को लुप्त होना है। सहारा लेते हैं, सत्य के दूसरे पहलू का ताकि उन सहस्रार की हमारी इस स्थिति में यह चेतना दोनों व्यक्तियों में आप मित्रता करवा सकें। तो प्रेम लुप्त हो जाती है क्योंकि 'सत्य प्रेम है और 'प्रेम का यही कार्य है कि यह लोगों को परस्पर समीप सत्य है। इस बिन्दु पर आकर कुण्डलिनी अनहद् लाने का प्रयत्न करता है, ऐसी बातें कहता है कि चक्र से मिलती है। आप जानते हैं कि हृदय की लोग परस्पर एक हो जाएं, उनमें एकता आ जाए। पीठ यहाँ (सहस्रार में) है । अतः जब कुण्डलिनी अतः जो भी युक्ति संगत विधियाँ हमने अपनाई हैं वे अनहद् चक्र का भेदन करती है तो मस्तिष्क में, लुप्त हो जाती हैं और हम समझने का प्रयत्न करते सहस्रार में, सत्य प्रवाहित होने लगता है, उस सत्य हैं कि लोगों के हृदय मिलाने के कौन से तरीके हैं अब आप सामूहिक चेतना में हैं। यह सामूहिक का जोकि प्रेम है। सत्य जो सत्य है तथा सत्य जो प्रेम है में अन्तर है। तो प्रेमवश ईसा ने उस चेतना यदि बाह्य है तो भी आप बहुत सी वेश्या का पक्ष लिया। निःसन्देह वे सत्य की जड़ों उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं जैसे आप सुन्दर में खड़े थे परन्तु उनके हृदय से प्रेम प्रवाहित हो आश्रम बना सकते हैं आदि। परन्तु यदि सामूहिक रहा था- पवित्र प्रेम। अतः किसी के लिए जब चेतना प्रेम से परिपूर्ण हो तब इसका आनन्द भी हमारे अन्दर पवित्र प्रेम होता है तो हम चीज़ों को सम्पूर्ण होता है। लोग शानि्ति की बातें करते हैं इस अलग ढंग से देखते हैं। किसी व्यक्ति को हम नवीन चेतनता, जिसे हम सामूहिक चेतना कहते हैं, अलग ढंग से देखते हैं और यह बहुत मधुर हो के बिना शान्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। परन्तु जाता है, अन्यथा सत्य तो बहुत कड़वा तथा कष्टदायी सामूहिक चेतना में भी प्रेम तत्व का होना आवश्यक हो सकता है। परन्तु प्रेम से अलंकृत सत्य बिना है उदाहरणार्थ जर्मनी और आस्ट्रिया के सहजयोगी कांटों के फूल सम है। प्रेम से सराबोर व्यक्ति का सत्य पर खड़े होना अत्यन्त दिलचस्प बात है। है इज़राइल के लोगों को इस पूजा के लिए आते आपको भी इसी प्रकार का व्यक्तित्व बनना होगा। देख मैं प्रसन्न हुई और तभी मुझे पता लगा कि अब प्रेम की अभिव्यक्ति को समझने के लिए मुसलमानों द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों को अब इज़राइल जा रहे हैं। यह बहुत ही सन्तोषदायक ल चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 भुलाकर वे मिश्र आ रहे हैं। अपने साथी लोगों, सुना होगा, गंगा के समीप सुन्दर जमीन ले ली है। अन्य सहजयोगियों के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति लेकिन लोग सोच रहे हैं कि क्या वे अपने-अपने करने का आकर्षण वास्तव में प्रशंसनीय है और एक घर तथा अपने-अपने सहन बना सकते हैं। क्यों? बार जब यह प्रवाहित होने लगता है तो आप हैरान आप सामूहिकता में रहना जानते हैं। सामूहिक रह जाएगें, किस प्रकार हम विश्व को परिवर्तित कर जीवन का आप आनन्द लेते हैं। तो क्यों आपको सकते हैं। अधिकतर समस्याएं, मानवीय समस्याएं, घृणा क्या छुपाना है ? आखिरकार जो भी कुछ हम करते अलग-अलग घर चाहिएं ? हमने एक-दूसरे से के कारण है। 'मैं घृणा करता हूँ का उपयोग आम हैं उसका पता चैतन्य लहरियों पर चल जाता है। बात है। यह मूर्खतापूर्ण है। किसी से घृणा करना आप कुछ छुपा नहीं सकते तो अलग-अलग घरों अपराध है। आप क्यों किसी से घृणा करते हैं ? की क्या आवश्यकता है? आप गोपनीयता क्यों आप अपराध से घृणा कर सकते हैं, बुराई से घृणा चाहते हैं ? सहजयोग में क्योंकि कुछ भी गोपनीय कर सकते हैं परन्तु मात्र घृणा के लिए लोगों से नहीं है, हम सबके विषय में जानते हैं कि वे क्या घृणा नहीं कर सकते। हममें यह जो घृणा है यही हमारी समस्याओं के लिए जिम्मेवार है। लोगों में कौन से चक्र पकड़ रहे हैं, क्या ऐसा नहीं है? तो फूट डालकर एक व्यक्ति बहुत शक्तिशाली हो सहजयोग में किसी प्रकार का कोई रहस्य नहीं है । जाता है और फूट डालने वाली इन्हीं प्रवृत्तियों ने हर आदमी हर दूसरे के विषय में जानता है अतः बहुत से देशों को कुचल डाला। उदाहरणार्थ : मेरी समझ में नहीं आता कि एकान्तवास का क्या अंग्रेज़ों ने हमारे देश का विभाजन किया, अब उन्हें लाभ है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि अभी तक करना चाहते हैं, उनकी समस्याएं क्या हैं, उनके विभाजन का सामना करना पड़ रहा है। इसका मस्तिष्क इस ओर कार्य कर रहा है। कोई अन्त नहीं है। हमारा विभाजन होने से क्या हुआ? भारत से अलग हुए देश बहुत कष्ट उठा रहे हैं। मैं कह रही थी कि ठीक है आप लोग हैं। देश का विभाजन करने वाले लोग सोचते हैं कि उत्तराधिकार बना लें परन्तु यदि आपका पुत्र वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे आदि। उनमें से अधिकतर सहजयोगी नहीं है तो आप क्या करेंगे? आप किसी की उन्हीं के लोगों ने हत्या कर दी। आप स्पष्ट अपराधी को तो वारिस नहीं बना सकते क्योंकि वह देख सकते हैं कि किस प्रकार घृणा की अभिव्यक्ति तो सबको कष्ट देगा। नियम कानून आपको प्रसन्न होती है। एक छोटे से बिन्दु से इसकी शुरुआत तथा सामूहिक नहीं रख सकते है । परन्तु पवित्र होती है और सर्वत्र इसकी अभिव्यक्ति होती है। सामूहिक चेतना और इससे निकला प्रेम यह कार्य विभाजित होने वाले किसी भी देश में यह देखा जा कर सकता है। आप जानते हैं कि हमारे यहाँ न तो सकता है। किसी भी देश का विभाजन करने की कोई कायदे का संगठन है, कोई पादरी बना नहीं, कोई आवश्यकता नहीं। विभाजन अधिक घृणा तथा इस प्रकार का हमारे यहाँ कुछ भी नहीं। अगुआ कष्टों की सृष्टि करता है। इसी प्रकार सहजयोग में भी हमें विभाजन के सकता है कि शायद गंगा नदी भी अपना विषय में कभी नहीं सोचना चाहिए। अब, आपने मार्ग इतना परिवर्तित नहीं करती तो इस फिर लोग उत्तराधिकार के विषय में सोच रहे गणों का भी परिवर्तन इतना अधिक किया जा मई चैतन्य लहरी जून, 1997 प्रकार का कुछ भी नहीं है सदैव हम एक परिवर्तनीय हम खिलवाड़ करेंगे, परस्पर यदि हम घृणा भाव तट पर खड़े हैं और आपकी माँ सदा भिन्न किस्मों रखेंगे, विभाजित करने वाली विधियाँ अपनाएंगे, की चालाकियाँ करती रहती हैं। इसका कारण यह किसी असहज चीज़़ को अपनाएंगे तो यह क्रोधी है कि मैं चाहती हूैँ कि आप चट्टान पर खड़े हों देवता हमारे सिर पर बैठा हुआ है। मक्का में भी और इस चट्टान से प्रेम प्रवाहित हो, इससे ऐसा शिव मक्केश्वर के रूप में बैठे हुए हैं। आप यदि दिव्य प्रेम बह निकले जिसका आनन्द वास्तव में दुराचरण करेंगे तो इनका क्रोध प्रकट होगा जहाँ बहुत सुन्दर होता है। उदाहरणार्थ : लोगों को भी हो, आप सावधान रहें कि यह शिव सर्वत्र अलग स्नानागार चाहिएं, विशेषकर भारतीयों को । अचानक भारतीय अंग्रेज बन गए और अंग्रेज भारतीय| मेरी समझ में नहीं आता कि भारतीयों को यह में है। वहाँ पर लोगों ने एक अन्य प्रकार का विद्यमान है। एक शिवलिंग अलातू, महाराष्ट्र में, परलीपैताल बीमारी क्यों है ? यह बीमारी अन्य लोगों तक भी सहजयोग शुरु कर लिया था । वे लोग गणेश फैल रही है। सामूहिक जीवन में इसकी कोई विसर्जन के दिन शराब पी रहे थे शिवलिंग का आवश्यकता नहीं। हमें इसका पता ही नहीं होता। प्रकोप आया और यहाँ एक भयानक भूकम्प आ आप यदि मुझसे पूछे तो मुझे पता ही नहीं होता कि गया इसमें बहुत से लोग मारे गए परन्तु किसी भी मैं स्नान गृह में गई भी हूँ या नहीं। वहाँ गए और सहजयोगी को कुछ नहीं हुआ उनके ध्यान केन्द्र पुले 1 वापस आ गए, बस। इन सब चीज़ों के लिए मेरे भी पूरी तरह से बच गए । पिछली बार (गणपति पास समय नहीं है। इसी प्रकार आपके पास भी में) आप जानते हैं, एक भयानक आग लगी परन्तु एक ऐसे समाज की धारणा होनी चाहिए जो समुद्र आप लोगों को कोई भी हानि नहीं पहुँची। आप की तरह रहता है। समुद्र यदि उठता है तो वे उठें सुरक्षा में हैं, हर समय सुरक्षित हैं। शिव का वहाँ और समुद्र यदि गिरता है तो वे गिरें बस प्रेम की कोई प्रकोप न था। आग आपको कोई हानि नहीं एकस्वरता । हिमालय की वादियों में मैं एक ऐसे पहुँचा सकी क्योंकि आप सुरक्षा में थे। यह सुरक्षा समाज की आशा कर रही हूँ और मुझे विश्वास है आपकी माँ का प्रेम है, इसके अतिरिक्त यह कुछ भी आप सब इस बात को महसूस करेगें कि क्यों नहीं। केवल आपकी माँ का प्रेम है जोकि अत्यन्त हिमालय विश्व का सहस्रार है। सौभाग्यवश इस शक्तिशाली है और आपकी सुरक्षा कर रहा है, कार्य को मैं सहस्रार पूजा से पूर्व करना चाहती थी और, मैं कहूँगी, हिमालय की कृपा अपने अन्दर अन्य लोगों के लिए ऐसा ही प्रेम हिमालय सहस्रार सम है जिसमें कुण्डलिनी उठ चुकी है और चैतन्य लहरियाँ जिससे बाहर आ रही लोगों के लिए, अन्य चीजों के लिए, पृथ्वी माँ के हैं। आकाश में आप इन चैतन्य लहरियों को देख लिए, हर चीज़ के लिए । आपका प्रेम न केवल आप सकते हैं। आपकी सहायता कर रहा है। इसी प्रकार आप भी से यह हो गया। विकसित करें, अन्य सहजयोगियों के लिए, अन्य ही की रक्षा कर सकता है परन्तु अन्य लोगों की म यमड परन्तु हिमालय पर शिव नामक एक क्रोधी भी रक्षा कर सकता है। आपका चित जब तक आप देवता का शासन है। इसकी यह भयानक बात है। ही पर है तो आप क्षुद्रतर होते चले जाएंगे। मुझे यह अतः हमें बहुत अधिक सावधान होना होगा यदि मिलना चाहिए. मुझे वह मिल जाना चाहिए। मैं यह मई चैतन्य लहरी जून, 1997 पसन्द करता हूँ, मुझे वह पसन्द है। ये सब बातें तो धुनकी में से आवाज आती है- "तूही, तूही, तूही" समाप्त हो जाएंगी। आप कभी नहीं कहेंगे कि मुझे अर्थात् आप ही हैं, आप ही हैं, आप ही हैं। और यह यह पसन्द है, ऐसा कहने का कोई प्रश्न ही नहीं । धुन चहूँ ओर फैलती है। इसी प्रकार आपको भी मुझे क्या पसन्द है ? यह निर्णय करना मेरे लिए अन्य लोगों के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए। कठिन है कि मुझे कौन सी चीज़ पसन्द है । मुझे यह पसन्द है, वो पसन्द है। मैं इस प्रकार होना गुरु या परमात्मा से कहते हैं कि 'आप ही हैं', मुझमें पसन्द करता हूँ। आप हैं कौन ? स्वयं से प्रश्न पूछे अब कुछ नहीं बचा, मेरा विलय हो गया है, विलय कि आप हैं कौन ? यदि आप पवित्र आत्मा हैं तो होकर मैं प्रेम के सागर से एक हो गया हूँ। तब आप यह प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। और प्रेम में अन्य लोगों को कहते हैं- आप दूसरों के विषय में सोचते हैं दूसरों की संस्कृति है। समस्याओं के विषय में सोचते हैं अन्य लोगों को विछ सर्वप्रथम जब आप "तूही" करते हैं तो अपने तूही, तूही। यही सहज तो बहुत सा असत्य समाप्त हो जाएगा। वह आप सुखी बनाना चाहते हैं। आप अन्य लोगों की असत्य जिसने आपको तथा अन्य लोगों को घेरा देखभाल करने का प्रयत्न करते हैं। केवल स्वयं को हुआ है जैसे लोग मुँह पर तो बड़े प्रेम से कहते हैं ही नहीं देखते, न ही केवल अपनी चिन्ता करते हैं। कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ परन्तु पीठ पीछे आपका यही अवस्था आपने प्राप्त करनी है। चाहे आप अहित करने की चेष्टा करते हैं। वे कुछ भी कर जितने भी धार्मिक हों, जिस प्रकार भी सहज हों सकते हैं परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु जब तक अपने सहस्रार में आप यह स्थिति मैं कहूँगी कि सहजयोगी उस स्थिति पर पहुँच गए नहीं पा लेते, मैं नहीं कहूँगी कि आप ठीक हैं। हैं जहाँ वे ऐसा नहीं कर सकते, कम से कम इसके आपको इसे पाना होगा इसके लिए. निश्चित रूप विषय में चेतन तो हैं कि हमें ऐसा नहीं करना। हम शराब नहीं पीते, तो क्या हुआ। खाने के विषय में इस कार्य में आपका मस्तिष्क बाधा बनता है, हम हंगामा नहीं करते। मेरा कहने से अभिप्राय यह यही हर समय आपको बताता रहता है। मस्तिष्क है कि उन्होंने यह सब प्राप्त कर लिया है। इस पर पर नज़र रखें, किस प्रकार यह आपका मार्गदर्शन उन्हें बहुत गर्व है क्योंकि आप पवित्र आत्मा हैं करता है, किस प्रकार यह आपको बताने का प्रयत्न इसलिए आप ऐसे बन गए। जो आप हैं उस पर करता है कि अब मेरा, मेरे घर का, मेरे बच्चों का, आपको गर्व कैसे हो सकता है ? उदाहरणार्थ किसी मेरे देश का, क्या होगा। आप मेरा, मेरा, मेरा करते ने मुझ से पूछा कि आप को इस बात पर गर्व नहीं रह जाते हैं। अन्ततः बिना कुछ प्राप्त किए आपका है कि आप आदिशक्ति हैं ? उसका यह प्रश्न मुझे से, ध्यान-धारणा अत्यन्त आवश्यक है। अन्त हो जाता है। परन्तु जब आप तू, तू, तू कहते समझ नहीं आया। मैंने कहा देखो यदि मैं आदिशक्ति हैं, कबीर जी ने इसके विषय में एक बहुत सुन्दर हूँ तो इसमें गर्वित होने वाली कौन सी बात है चीज़ लिखी है, उन्होंने कहा कि बकरी जब जीवित क्योंकि मैं तो वह हूँ। यदि मैं वह स्थिति प्राप्त करती होती है तो "मैं , मैं" करती है। परन्तु मरने के तब मैं इस पर गर्वित होती। आप मानव हैं, मानव पश्चात् उसकी अंतड़ियों को निकाल कर जब कपास धुनने वाली धुनकी पर लगा दिया जाता है रूप में आपका जन्म हुआ। तो क्या आपको इस पर गर्व है? आपको इस पर गर्व नहीं है इसके प्रति मई चैतन्य लहरी 10 ा जून, 1997 आप चेतन नहीं हैं। मैं कभी स्वयं से नहीं कहती कि समय पहले लिखा गया था कि हमें सत्य बोलना मैं आदिशक्ति हूँ। ऐसा करने की कोई आवश्यकता चाहिए, ऐसा सत्य जो लोगों को अच्छा लगे 'सत्यम् नहीं। परमात्मा ने मुझे आदिशक्ति होने के लिए वदेत् प्रियम् वदेत्' । तो लोगों ने पूछा ऐसा सत्य चुना है। परन्तु लोग समझते हैं कि परमात्मा ने जिसमें ये दोनों चीजें हो हमें कैसे मिल सकता है ? उन्हें सहजयोग का वरदान ऐसे दिया है मानो हो सकता है कि सत्य भेंट करने योग्य न हो, या जागीरदार बना दिया हो। आपको सहजयोगी बनना ऐसा हो जिसे लोग पसन्द करें। तो इन दोनों गुणों है। और फिर समझना है आप सहजयोगी हैं। जैसे का मिश्रण किस प्रकार किया जाए? कृष्ण जी ने मान लो एक पत्थर सोना बन जाता है, तो वह सोना इसका एक बहुत सुन्दर उत्तर दिया। उन्होंने कहा है। उसे इसका गर्व नहीं होगा कि वह सोना है। 'सत्यम् वदेत् हितम् वदेत्, प्रियम वदेत् । आप सत्य सोना तो सोना है, इस पर गर्व कैसा। इसी प्रकार कहें परन्तु वह सत्य अच्छा हो, इसे पसन्द किया सहजयोगी होने की चेतना समाप्त हो जाती है । जा सके, यह आपकी आत्मा को पोषण दे सके, परन्तु ये अभी तक भी बनी हुई है। अतः व्यक्ति को इससे हित हो और यह 'प्रिय' भी हो। हो सकता है सावधान रहना है कि एक बार यदि आप सहजयोगी आरम्भ में लोग इसे पसन्द न करें परन्तु अन्त में वे बन गए तो सहजयोगी हैं। मैं एक सहजयोगी हैँ। कहेंगे कि देखो यह बात इतनी अच्छी है और मुझे तो क्या हुआ, कौन सी बड़ी बात है। ये तो ऐसे ही कही गई है। परन्तु किसी भी हालात में कोई भी कहना हुआ कि मेरी एक नाक है और नाक पर मुझे कठोर बात नहीं कही जानी चाहिए। सभी लोगों को गर्व है। परन्तु इसमें गर्व की कौन सी बात है। यह सुधारते फिरना आपका कार्य नहीं है। आरम्भ में मैंने मिथ्या गर्व समाप्त होना चाहिए। यह महसूस देखा कि सहजयोगी कहा करते थे, आपका यह करना बहुत महत्वपूर्ण है कि मेरे अकेले का कोई चक्र पकड़ रहा है। आपका वह चक्र पकड़ रहा है। अस्तित्व नहीं । मैं विराट का अंग प्रत्यंग हॅँ, (मेरी) ये सब अहम् का खेल है। किसी का तिरस्कार बूंद अब सागर बन गई है। मैं नहीं समझ पाती कि करना आपका कार्य नहीं। आप स्वयं ही एक अभी तक भी आपमें कुछ सीमांए बाकी हैं। इस अत्यन्त पवित्रावस्था से आए हैं अब आप अन्य प्रकार की चेतना आपमें तभी विकसित होती है जब लोगों का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं? यदि आप आप प्रेम से परिपूर्ण हो जाते हैं, केवल प्रेम से, और सहजयोग में योग्य हैं आपको इसका पूर्ण ज्ञान है. प्रेम आपसे फूट पड़ता है। और प्रेमानन्द में मस्त आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते चले जाते हैं की चुनौती के रूप में ले सकते हैं । परन्तु किसी के चाहे आप बोलें या मौन रहें, इसके विषय में कुछ दोष खोजते हुए उसे तिरस्कृत नहीं कर सकते। कहें या न कहें, मुस्करायें या न मुस्करायें, यह आनन्द आपके हृदय में विद्यमान होता है। अब हृदय चक्र। हृदय चक्र की पीठ सत्य के करना न जानता हो तो वह कहेगा कि तुम इसलिए प्रकाश से भर जाती है। परन्तु वह सत्य वैसा नहीं बीमार पड़े क्योंकि ठंड में चले गए। अरे बाबा है जैसा सत्य के विषय में हम जानते हैं। किसी ने ठीक है, परन्तु अब तो मैं बीमार हूँ। अब मेरे इलाज मुझसे पूछा कि सत्य क्या है ? मैंने कहा कि बहुत के बारे में आप क्या कहते हैं ? नहीं तुमने ऐसा आप अच्छी तरह से परिपक्व हैं, तब आप इसे प्रेम आप अगर ऐसा न करना चाहें तो इसके लिए बहुत बड़ा बहाना है। कोई डाक्टर यदि रोगी का इलाज तुम 1. मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी किया, तुमने वैसा किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना केवल अपने आनन्द के लिए करें। इस प्रकार जब चाहिए था। वह बीती हुई गलतियों के बारे में ही आप समाज में जाएंगे तो आपको पकड़ जाने का वे बातें करता रहता है। इसी तरह से हम भी डर है कि कहीं हमारा अहम् वापिस न आ जाए। लोगों को कहे चले जाते हैं कि तुमने यह अपने आप से डरते हैं। तो ये सब समस्याएं छोड़ दी गलती की, वो गलती की, फलां गुरु के पास जानी चाहिएं और आपको उस अवस्था तक पहुँचना गए, इसलिए आप ऐसे हो गए ऐसा न करें चाहिए जहाँ आपको कोई भय न हो और जहाँ किसी के साथ ऐसा न करें। कार्य करें और आपमें अपने विषय में ये मूर्खतापूर्ण विचार न हों। सब ठीक हो जाएगा। नि:सन्देह आप पूछ सकते आपमें शक्तियाँ हैं. आप शक्तिशाली हैं, इतना ही हैं कि क्या आप किसी गुरु के पास गए थे ? परन्तु नहीं आपको ये शक्तियाँ विशेष रूप से दी गई हैं। न तो उसका तिरस्कार करें और न ही आलोचना । आप यदि इनका उपयोग नहीं करना चाहते तो क्या लोगों की गलतियों के लिए उनका तिरस्कार करने करेंगे ? दीपक यदि जलाया नहीं गया तो की कोई आवश्यकता नहीं है। इसका कारण केवल इसका क्या लाभ है ? यह केवल सजाने के आपका एहसास (चेतना) है कि आप कहीं अच्छे हैं लिए है। तो इन शक्तियों का उपयोग होना और आपको कहीं अधिक ज्ञान है। निःसन्देह आप चाहिए और वह भी बिना इस बात के एहसास बहुत ज्ञानी हैं। आप जिज्ञासु (Gnostics) हैं मैं के कि आप कोई महान हैं, अन्य लोगों से स्वीकार करती हूैँ परन्तु जब तक आपको इसका बेहतर हैं या आपको विशेष रूप से चुना गया एहसास है, आप ज्ञानी नहीं हैं। एक बार जब है। तब सहजयोग गरिमा तथा सूझ-बूझपूर्वक आपमें इसका एहसास समाप्त हो जाएगा तब बहुत तीव्रता से चल सकता है। आप सहजयोगी बन जाएंगे। यह विकास मैं आप सभी के सहस्रार में चाहूँगी। हमें पूरे विश्व के विषय में सोचना है आप हँसे, उनका मजाक करें और इस प्रकार आप केवल सहजयोगियों तथा साधकों के विषय में ही समस्याएं सुलझा सकेंगे। परन्तु यह सब भी आपने नहीं सोच सकते। साधक तो हैं, परन्तु बाकी लोगों इस प्रकार करना है कि उन्हें चोट न पहुँचे। जो का क्या होगा ? बहुत सी समस्याएं हैं। बहुत से कुछ कार्य होने बाकी हैं। उदाहरणार्थ भारत में गरीबी ऐसे होने चाहिएं कि आप जान सकें कि किस प्रकार की समस्या है। मैं उनके लिए कुछ करने का प्रयत्न यह कार्यान्वित हो रहा है। कुछ लोगों में यह विवेक कर रही हूँ। आपके अपने देश में समस्याएं हैं उन होता है। मेरे विचार में बात को भली भांति पाने और समस्याओं को खोज निकालिए। उनके लिए आप कार्यान्वित करने का ज्ञान उच्चकोटि का विवेक है। एक प्रकार का आन्दोलन चला सकते हैं और जहाँ प्रेम, यह दैवी प्रेम आपको स्वयं पर पूर्ण नियन्त्रण तक हो सके उनकी सहायता कर सकते हैं। प्रदान करता है और आप जान जाते हैं कि लोगों से मिशनरियों (धर्म प्रचारकों) की तरह आपको किसी किस प्रकार आचरण करें, उनसे किस प्रकार बातचीत का धर्म परिवर्तन नहीं करना और न ही किसी करें और किस प्रकार उनका संचालन करें। यह ठीक है कि सभी प्रकार के उल्टे सीधे लोग हैं। आप जानते हैं कि वे मूर्ख हैं। बस उन पर | भी आप करें परिणाम से उसे आंके परिणाम | मैं नहीं जानती कि मानव का सबसे बड़ा दोष इनाम या यश के लिए ऐसा करना है। ऐसा आप मई चैतन्य लहरी 12 जून 1997 कौन सा है। श्री कृष्ण के अनुसार क्रोध सबसे बड़ा का जीवन्त सागर है और हमें बिना किसी प्रदर्शन दोष है। परन्तु मेरे अनुसार यह दोष ईष्ष्या है। के, बिना अन्य लोगों पर प्रभुत्व जमाए यह चीज़ किसी भी प्रकार की ईष्षा, मेरे विचार में, फंफूद की अपने अन्दर विकसित करनी है। यही सबकुछ होना तरह से है। सहजयोग में भी लोगों में ईष्ष्या है। चाहिए। हिन्दी में इसे बहुत सुन्दर रूप से कहा जिसके कारण वे समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। वे गया है, " अपने में समाए हुए " आपके अन्दर ऐसा परस्पर समस्याएं उत्पन्न करने की कोशिश कर ही होना चाहिए। यही सबसे बड़ा आनन्द है। आप सकते हैं। अतः आपको अपने अन्दर देखना है कि जानते हैं कि हमें किसी चीज़ की आवश्यकता है। क्या मुझमें किसी प्रकार की ईष्ष्या है? कभी-कभी मान लो मुझे अपने लिए कुछ चाहिए तो मैं संघर्ष तो मुझे इसकी चिन्ता होती है। मान लो मैं किसी करके इसे प्राप्त कर लेती हूँ। परन्तु यही चीज़ यदि को कुछ उपहार देना चाहती हूँ। ऐसे अवसर पर आपके अन्दर है तो आप इससे अपने को पूरी तरह मुझे चिन्ता होती है कि इस प्रकार कहीं मैं ईर्ष्या की से भर लेते हैं। सृष्टि तो नहीं कर रहीं? ऐसा सोचना चाहिए कि संभवतः श्री माताजी भूल गई होंगी या चीजें कम किस चीज़ की इतनी अधिक आवश्यकता है ? होंगी। बस। परन्तु सहजयोग में लोगों में तीव्र ईष्ष्या किसी चीज़ की नहीं। आप पूर्णतः स्वयं से परिपूर्ण भाव है। अब मान लो मैं किसी से मिलती हूँ और हैं, अपने अन्दर सन्तुष्ट हैं और तब आप इस आनन्द किसी से नहीं मिलती हूँ। समाप्त। परन्तु जिससे मैं को बाँटना चाहते हैं। सहस्रार से निपटने का यह मिलती हूैँ उसके प्रति ईष्ष्या विकसित हो जाती है। आदर्श उपाय है मुझे पूर्ण विश्वास है कि लोग कई बार लोगों ने मुझ पर बहुत दबाव डाला कि श्री माता जी मैं आपसे अवश्य मिलूंगा। मैं नहीं समझ पाती क्यों ? मैं सर्वव्यापक हूँ। तो मुझसे मिलने की हमें लुप्त नहीं हो जाना है । आप वहाँ ध्यान और बातचीत करने की क्या आवश्यकता है ? क्या धारणा करने के लिए जा सकते हैं, संसार से आवश्यकता है ? केवल आप ही के लिए तो मैं नहीं पलायन करने के लिए नहीं। अपने उत्थान के हू। मैं सबके लिए हूँ। परन्तु कुछ लोग सोचते हैं लिए, ध्यान धारणा करने हेतु, ऐसे स्थान कि मुझ पर उनका विशेष अधिकार है और मुझे बहुत अच्छे होंगे। अवश्य उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहिए. अन्यथा उन्हें बुरा लगता है। जैसा कि मैंने कहा, कितने बहुमूल्य हैं और कितने महत्वपूर्ण । आप इस तो क्या चीज़ सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ? आएंगे। इस पूरे संसार का सहस्रार खोलना होगा। यह कार्य हमें करना है एकान्त स्थानों पर जाकर यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप 1. जब आप समुद्र बन जाते हैं तो यह सब चीजें समय अवतरित हुए, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया, एकदम छुट जानी चाहिएं। तब आपको यह चिन्ता किसलिए ? विश्व को मुक्त करने के लिए, मानव नहीं होती कि आप कौन से तट पर गए, आपने का परिवर्तन करने के लिए, पूरे विश्व को परमात्मा कहाँ यात्रा की। आप तो केवल समुद्र की लहरों के के साम्राज्य में लाने के लिए। आप इसी लक्ष्य प्राप्ति साथ ऊपर नीचे उठते रहते हैं। इस प्रकार यह प्रेम के लिए यहाँ पर हैं। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। (अनुवादित) THE | जन्मदिवस पूजा 13 दिल्ली -21-3-1997 परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) ा ह अभी तक मैं भारतीय सहजयोगियों के लिए सहजयोग में आए और अब भी वे सोचना चाहते हैं कि वे अन्य लोगों से कहीं अधिक जानते हैं । बोल रही थी। मेरा जन्मोत्सव मनाने के लिए आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद। आपने अत्यन्त सन्दर आत्मा के विषय में जानने के लिए आपको गुब्बारे लगाए हैं। इनको देखते हुए हम पाते हैं कि गहनता में उतरना होगा और गहनता में इनमें से बहुत से गुब्बारों की हवा निकल गई है। उतरने के लिए वे सब विचार त्यागने होंगे जो क पश्चिमी देशों में ये एक समस्या है जो हमारे सामने आपको हवा में उड़ाते हैं। कल्पना करें कि एक बहुत बड़ा गुब्बारा आपके साथ बंधा हुआ है, तो आप खड़ी है। क्योंकि पश्चिमी संस्कृति के अनुसार अहं 1 समुद्र की गहनता में किस प्रकार उतर सकते हैं ? का होना भी महान उपलब्धि है और अहंग्रस्त जब नहीं उतर सकते। इस प्रकार का अहं आपको हवा हम होते हैं तो, मैं जानती हैं, व्यक्त कैसा लगता में उड़ा देता है, पूर्ण मूर्खता के क्षेत्र में। अंग्रेजी भाषा है। जब वह अपने विषय में बात करता है अपना गुणगान करता है तो वह अत्यन्त मुर्ख प्रतीत होता में शब्द (Stupidity) सारा अर्थ बता देता है। तब आप स्वयं को अनन्त मान बैठते हैं और मनमाने ढंग है। आपकी समझ में नहीं आता कि किस ओर देखें क्योंकि उसकी मुर्खता पर हैँसने को आपका मन से आचरण करते हैं। परन्तु ऐसा करके आपको मिलता क्या है ? इससे आपको कृुछ नहीं प्राप्त करता है। अहं मूर्खता की ही देन है। मेरी समझ में नहीं आता कि क्या कहूँ, अहं के लिए कौन सी होता। आपकी उपलब्धियों के कारण लोग आपसे ईष्ष्या करते हैं, आपको हानि पहुँचाना चाहते हैं, उपमा दें, क्योंकि यह गुब्बारा तो बस फूला हुआ है और आपको भी हवा में उड़ाता है। परन्तु जब यह अपका कोई मित्र नहीं बनता, कोई आपकी चिन्ता नहीं करता। सहजयोग में लोग जानते हैं कि किस व्यक्ति को अहं की समस्या है। ऐसे व्यक्ति के फटता है तो आप धड़ाम से पृथ्वी पर गिरते हैं। एक सहजयोगी की तरह पृथ्वी पर नहीं आते बिल्कुल विषय में बातें करते हुए मैंने कुछ लोगों को सुना है, समाप्त हो जाते हैं। आपका सारा घमण्ड व्यर्थ हो जाता है। आपकी खोपड़ी यदि घमण्ड से वे कहते हैं, हाँ हम उसे जानते हैं, भली-भांति परिपूर्ण है तो आप कभी सहजयोग को नहीं समझ सकते। अहंग्रस्त लोगों को मैं जानती हूैं, वे 1 जानते हैं। बहुत समय पूर्व एक बार पुणे में मुझे एक अनुभव हुआ। सभागार के मालिकों ने वहाँ कार्यक्रम मई - चैतन्य लहरी 14 जून 1997 बैठे महाशय को मैंने आने को कहा । वह नीचे की आज्ञा देने से इन्कार कर दिया क्योंकि श्री माता जी ब्राह्मण नहीं हैं। तो सहजयोगियों ने कहा कि आया और उस दिन से अपना जीवन मुझे समर्पित ठीक है हम अखबारों में छपवा देते हैं कि क्योंकि कर दिया। उसने पुणे में बहुत सा काम भी किया। श्री माता जी ब्राह्मण नहीं हैं हम उनका कार्यक्रम तो मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि जो भी करने में असमर्थ हैं। घबराकर वे मान गए और मेरे व्यक्ति इस प्रकार की बात करता है कि कार्यक्रम में आए। सभागार का मालिक ऊपर सहजयोग में यह गलती है, ऐसा नहीं होना गैलरी में बैठा हुआ था उसे कोई अजीब रोग था चाहिए. हमें इतने पैसे नहीं देने चाहिए थे, यह जिसके कारण वह चल भी नहीं पाता था। अगुआ अच्छा नहीं है आदि, तो ऐसे व्यक्ति सहजयोगियों ने एकदम प्रोग्राम आरंभ किया, इन्होंने को चाहिए कि एक पतला कागज अपने हाथ मुझे बताया भी न था कि सभागार के मालिकों ने पर रखकर हाथ मेरे फोटोग्राफ की तरफ कार्यक्रम का विरेषध किया था। मेरे सामने बैठते ही ये फैला ले। यदि हाथ के कँपन को आप रोक मालिक थर-थर कॉपने लगे। ओह माँ! मैंने कहा, सकें तो आप ठीक हैं। आप सब इसे आज़मा ये सब क्या हैं ? वे कहने लगे कि हमने कुछ नहीं- सकते हैं, दोनों हाथों पर कागज रखकर आप किया, हमने तो केवल इतना कहा था कि ये इसे आजमायें । यदि दाएं हाथ पर कागज में ब्राह्मणों का बाड़ा है और क्योंकि इस क्षेत्र में कंपन है तो इसका अर्थ है कि श्रीमान अहं अधिकतर ब्राह्मण रहते हैं इसलिए आप यहाँ अपना काँप रहे हैं और आप .जानते हैं कि आपने कार्यक्रम नहीं कर सकते। मैंने कहा सच, इतना ही सहजयोग में इसका इलाज किस प्रकार करना कहा आपने ? हाँ इतना ही वे कहने लगे कि है। मोहम्मद साहब का धन्यवाद कि उन्होंने उधर देखें, आपकी शक्ति से वे लोग भी कॉप रहे इसका इलाज करने कि विधि हमें बताई। हमारे अन्दर दो समस्याएं हैं, एक तो हमारें हैं। मैंने उन लोगों से पूछा कि वे कौन हैं। क्या आप भी ब्राह्मण हैं ? वे कहने लगे नहीं, हम ठाणे बंधन हैं और दूसरा हमारा अहं और अपने मन की से आए प्रमाणित पागल हैं मैंने कहा कि आप यहाँ सृष्टि हम इन्हीं दोनों से करते हैं, और इन्हीं दोनों कैसे आ गए ? वे कहने लगे कि एक पागल व्यक्ति के प्रभाव में हम खेलते हैं। अब आपको सावधान को आपने ठीक कर दिया था अतः हमारा होना है पहले अपने बाएं हाथ से देखें यदि सुपरिटेण्डेन्ट हमें यहाँ ले आया है, हम प्रमाणित बायें हाथ का कागज कांप रहा है तो आप पागल हैं। इन लोगों ने मेरी ओर देखा। मैंने कहा बंधनग्रस्त हैं और यदि दायां हाथ कांप रहा अब आप मुकाबला करें, आप भी कॉप रहे हैं और वे है तो आप अहंकारी हैं। अब इनका इलाज भी कांप रहे हैं, अब देखें कि आपकी स्थििति क्या है! करें, इन दोनों बाधाओं का इलाज करें मेरे वे सब सहजयोगी बन गए। इतना ही नहीं ऊपर सम्मुख आपको चैतन्य लहरियाँ आएंगी क्योंकि मई - जून 1997 चैतन्य लहरी 15 मैं आपकी माँ हूँ। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं में तैरते रहेंगे। लोगों में एक प्रकार का विवेक है जो कि आप ठीक हैं। आप मेरे फोटों के सम्मुख आत्मसाक्षात्कार से पूर्व नहीं हो सकता। मैं हैरान हूँ आजमाएं, फोटो अधिक शक्तिशाली है। माँ होने के कारण मैं चहूँ ओर लीला उन्होंने किस प्रकार अपनाया है। महान कहलाने करती हूँ, पर ये नहीं जानती कि मुझे क्या वाले, महान असूलों के, परन्तु बहुत उग्र स्वभाव के, कि कुछ लोग कितने गहन हैं और सहजयोग को कहना चाहिए। हो सकता है मेरे सम्मुख असहनशील लोग भी सहजयोग को इस प्रकार बैठकर आप महसूस न कर सकें। फोटो के अपना लेते हैं क्योंकि उनके अन्दर इतनी गहनता है सामने बैठकर अपने दायें और बायें हाथ पर कि हर चीज़ सुगमता से आत्मसात हो जाती है। सभी लोग प्राप्त कर सकते हैं परन्तु व्यक्ति बारीक पेपर रखें। एक-एक हाथ आगे करके आजमाएं और स्वयं को परखें कि आप क्या को अहं तथा बंधनरूपी अपने मस्तिष्क के दो पहियों हैं। आखिरकार आप सहजयोग में मेरा से सावधान रहना है। भारत में सभी प्रकार के बंधन उद्घार करने के लिए नहीं आए । स्वयं को हैं। पश्चिमी देशों में सभी प्रकार के अहं हैं, भिन्न-भिन्न विकसित करने आए हैं और इसलिए आपको प्रकार के मैं हैरान थी कि उसका सामना करने के अपना सामना करना होगा और स्वयं देखना लिए मैं क्या कहूँ! यह अत्यन्त सूक्ष्म चीज़ है जिसे होगा कि आपके अन्दर क्या है जो इतना लोगों ने अपने मस्तिष्क में बिठा लिया है। अतः शक्तिशाली हैं, कष्टदायी है और आपको आज आप लोगों के लिए यह निर्णय होना है कि अभी तक आप नन्हें बालक हैं और नन्हें बालकों की सहजयोग आनन्द के सागर के सिवाय कुछ तरह अपने अन्तस की शांति, पावित्र्य और सौंदर्य भी नहीं है। मैंने सोचा था कि मेरी गैर हाजिरी में को स्वीकार करने और आत्मसात करने के लिए पतन और विनाश की ओर ले जा रहा है । भी आप सब आनन्द ले रहे होंगे। ये ठीक भी है, आपके पास शुद्ध हृदय होना आवश्यक है। पवित्रता 1. आप आनन्द लेते हैं। कई बार मैने देखा है, हवाई के बिना आप आनन्द नहीं उठा सकते सहजयोग अड्डे पर जब मेरा जहाज देर से पहुँचता है, पाँच में यद्यपि बहुत लोग हैं, फिर भी प्राचीन सन्तों की घंटे, चार घंटे-तो भी प्रायः सभी लोग अत्यन्त पवित्रता को अभी हमें प्राप्त करना है। हमारे देश में तरोताजा होते हैं। मैंने पूछा क्या हुआ ? श्री माता भी बहुत से लोग हैं उदाहरणार्थ कल ये लोग जी हम सारी रात आनन्द लेते रहे। तो आप जिस अली के भजन गा रहे थे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई चीज़ का आनन्द लेते हैं वह है सामूहिकता। क्योंकि वे एक अवतरण थे। उनके पावित्र्य की अर्थहीन सीमाओं, जो आपने बनाई हैं, से मुक्त महिमा लोग अब गा रहे हैं । तब उन्हें सताया गया होकर आपको सामूहिकता का आनन्द लेना चाहिए। और उनकी हत्या कर दी गई। और बहुत से सन्त तब आप आनन्द को देखें । हर समय आप आनन्द हैं। दम-दम साहिब, निज़ामुद्दीन औलिया आदि। मई - जून 1997 चैतन्य लहरी 16 हमारे देश में इतने अधिक सन्त हुए जितने अन्य है हम एकीकरण में विश्वास करते हैं । फूट किसी देश में नहीं हुए। हमारे यहाँ ही इतने सन्त डालने वाली कोई भी चीज़ जब आपके मस्तिष्क में आती है तो तुरन्त आप इसे निकाल फेंके । आज के दिन में आप सब से ये प्रार्थना करती हूँ कि कृपया अन्तर्दर्शन करें, बिना अन्तर्दर्शन के आप स्वयं क्यों हुए ? इसलिए नहीं कि हम कोई बहुत अच्छे लोग थे, परन्तु इसलिए कि हमें सुधारना था। कार्य होने थे इसलिए वे यहाँ अवतरित हुए। यह योगभूमि है भारत में आप जहाँ कहीं भी जाएं मैं हैरान थी, का भी सम्मान नहीं कर सकते, स्वयं को भी प्रेम हरियाणा में बहुत से महान सन्त हुए. परन्तु उन नहीं कर सकते। आप यदि स्वयं को प्रेम करेंगे तो सबको सताया गया, कष्ट दिया गया, कभी उन्हें अन्तर्दर्शन भी करेंगे और अपनी गलतियों को ढूंढ समझा नहीं गया। यह इतना कृष्टदायी है और लेंगे। मान लो मुझे ये साड़ी पसन्द है तो इसके इससे आपके हृदय को चोट पहुँचती है कि किस विषय में मुझे यदि कोई संदेह होगा या इस पर प्रकार इन मूर्ख, अज्ञानी और अन्धे लोगों ने उन किसी प्रकार के धब्बे मुझे नजर आएंगे तो मैं इन्हें सन्तों को सताया। तो उन सब सहजयोगियों का साफ करूंगी। इस बात का मुझे कोई गर्व नहीं यह कर्त्तव्य है कि खोज निकालें कि सन्त कौन होगा, इधर-उधर जाकर मैं कहती न फिरूंगी कि है ? सहजयोग में भी, मैंने देखा है, लोग देखिए मेरी साड़ी पर इतने धब्बे हैं। इसी प्रकार दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं। आपको यदि आपके अन्दर जो भी असहज स्वभाव है आपको सत्य की पहचान और सूझ-बूझ नहीं है, उस पर गर्व नहीं होना चाहिए। और इस तरह आपको यदि इस बात का विचार नहीं है कि से बातचीत भी नहीं करनी चाहिए । ईसा ने ऐसे सत्य क्या है, प्रेम क्या है, शुद्ध करुणा क्या लोगों को 'कानाफूसी करने वाले' (Murmuring है तो आप सहजयोगी नहीं हैं। स्थूल दृष्टि Souls) कहा है। उन्होंने कहा कानाफूसी करने से आप व्यक्ति को देखते हैं। उसके गुणों को वालों से सावधान रहें मैं कहूँगी कानाफूसी करने नहीं देखते। एक तरफा। अब जबकि मैं इतनी वालों को बाहर निकाल दें । केवल यही उपाय है। वृद्ध हो गई हूँ, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप अपनी हिन्दी में उन्हें 'बकवासी' कहते हैं। वे वास्तव में दृष्टि अपनी ओर करें, अन्तर्दर्शन करें क्योंकि आप बकवासी हैं अर्थात् वे अन्य लोगों के बारे में सभी ही में से कुछ लोग आपके चित्त को भटकाने का प्रकार की उल्टी -सीधी बातें करते रहते हैं। अपने प्रयत्न करेंगे, उल्टी सीधी बातें कहने की कोशिश विषय में नहीं जानते कि वे क्या हैं। भारत में ये करेंगे। यह कहना अत्यन्त सुगम है कि वह बेईमान दोष, मैं स्वीकार करती हैँ, बहुत अधिक है। ऐसा है, चरित्रहीन है, यह कहना बहुत आसान है परन्तु कहने पर मुझे खेद है क्योंकि मैं भी एक भारतीय हूँ। दूसरों की बुराई करने की आदत है, बस बैठ गए आप क्या हैं ? अब हमें समझना है कि समन्वयन और गप-शप शुरु कर दी वे सहजयोग की बात (एकीकरण) द्वारा सहजयोग को दृढ़ करना आवश्यक मई - चैतन्य लहरी जून 1997 17 नहीं करेंगे, कितने लोग सहजयोग को भली भांति ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक है। जानते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मुझे उपाधियाँ (Degrees) देनी हों तो आपको है, मौन साक्षी। जब मैं बड़े-बड़े पर्वतों को देखती हूँ कौन सी उपाधि दूँ ? आप मुझे बताएं। आप कि ये महान सन्त हैं जो सब कुछ देख रहे हैं और को तो अपनी चैतन्य लहरियों का ज्ञान नहीं विश्व में घटित होने वाली सभी घटनाओं को लिपिव्ध है। निःसन्देह आप सहजयोगी हैं क्यों कि कर रहे हैं, क्योंकि वे भी समझते हैं और जानते हैं। मुझे लगता है कि ये सभी कुछ आपका साक्षी मुझे आपको बार-बार बताना है कि स्वयं आप उत्थान प्राप्ति के जाल में फँस गए हैं। परन्तु वास्तव में कितने लोग इसमें विकसित को , अपने चक्रों को, अपने दोषों को देखने का हुए हैं ? आप विकसित हो सकते हैं। मैं बार-बार आपसे कहती हैँ कि मुझे प्रसन्न आनन्द प्राप्त होगा जिसका वचन दिया गया था। समय आज ही है। इसी से आपको वह स्थायी रखें। इसके लिए आपको सभी घटिया किस्म की आप निर्विचार समाधि को पा लेंगे और निर्विकल्प बातें त्यागनी होंगी। परन्तु एक दूसरे से समझने का समाधि को भी परन्तु अपने अहम् तथा बन्धनों के जाल में कभी न फेसे। आज के दिन मूझे आपको प्रयत्न करें कि हम सहजयोग के विषय में क्या जानते हैं। परस्पर विचार विमर्श करें और अपने यही बताना है आज के दिन जब आप मेरा अनुभवों का वर्णन करते हुए सहजयोग को कुछ जन्मोत्सव मना रहे हैं आप अपना जन्मोत्सव मनाएं। योगदान करें। बहुत से लोगों को काफी ज्ञान है। अपना जन्मोत्सव मनाएं और स्वयं देखें कि आपने क्या प्राप्त किया है और क्या प्राप्त करने वाले हैं। मैं ये नहीं कह रही कि वे कुछ नहीं जानते। परन्तु एक बुरा व्यक्ति सभी को उसी प्रकार खराब कर आपके लिए उत्सव मनाने का यही उपयुक्त समय है; तब आप मेरा जन्मोत्सव मनाएं । अपने जन्मोत्सव सकता है जिस प्रकार एक सड़ा हुआ सेब सेबों के पूरे ढेर को सड़ा सकता है तो हमें क्या करना की अपेक्षा आप का जन्मोत्सव मना कर मुझे प्रसन्नता श चाहिए? सड़े हुए सेब को बाहर फेंक देना चाहिए। होगी । मा पर परमात्मा आपको धन्य करें। नाव पा दि ब ा ा कि टि ा ह ा ता पि शिवरात्रि पूजा 18 दिल्ली -16.3.1997 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) द ला ्स का शरी इन लोगों से (भारतीय) श्री शिव की पूजा हैं कि वह आपका अधिकार है तथा आपने कुछ की बात कर रही थी। आपके साथ क्या घटित गलत नहीं किया। इसके लिए रुद्र रूपी बुद्ध का होना चाहिए ? आज मैं आपको बताऊंगी कि जब जागृत होना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि आप आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो हमारे अन्दर अहंकारी बनते चले जाएं तो आप पूर्णतः आक्रामक क्या घटित होता है। यहाँ ग्यारह रुद्रों का स्थान है व्यक्तित्व (Right Sided Personality) बन वे श्री शिव की शक्तियों के अंश हैं और हमारे जाएंगे। आप जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की क्या अन्दर जीवन के प्रति जो मिथ्या विचार हैं उन्हें निशानियाँ हैं । काष मात्र देखें और अन्तर्दर्शन करें और स्वयं के निकाल फेंकने के लिए वे सब प्रयत्नशील रहते हैं। जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो वे सब लिए देखें कि अहं ने आपको क्या हानि पहुँचाई है। जागृत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बुद्ध और स्वयं के विषय में आपके कितने गलत विचार थे। महावीर भी उन्हीं का एक हिस्सा हैं वे सभी इसी कारण मोहम्मद साहब ने कहा था कि जूतों से हमें बुराइयों में फँसने से रोकते हैं। मान लो अपने अहं की पिटाई करो। अहं को रोकने की कोई हममें अहं है तो बुद्ध इसको नियंत्रित करेंगे और विधि उनकी समझ में नहीं आई। यह अहं और ये देखेंगे कि अपने अहं से आपको वास्तव में, आपके मस्तिष्क का विस्फोट कर सकता सदमा पहुँचे। इस सदमे के पश्चात् आप है और आप भिन्न कठिनाइयों में फँस सकते हैं । है रान हो जाते हैं कि इतने अहंकारी, परिणामस्वरूप मैंने देखा है कि लोग युप्पीज़ अपमानजनक और ओछे, आप किस प्रकार (Yuppies) रोग ग्रस्त हो जाते हैं जिसमें चेतन हो सकते हैं। परन्तु जब यह रुद्र जागृत नहीं मस्तिष्क बिल्कुल बेकार हो जाता है . व्यक्ति हिल होता, जब इसमें प्रकाश नहीं होता तब क्या होता है? भी नहीं सकता, चेतन अवस्था में बह हिल-डुल तब आप अपने कार्यों को न्यायसंगत ठहराने लगते नहीं सकता परन्तु अचेतन स्थिति में वह हिल-डुल हैं। आप सोचते हैं कि जो भी कुछ आप करते हैं सकता है। यह रोग इतना भयंकर है कि व्यक्ति रेंगने वाले जीव की तरह से हो जाता है। ऐसे लोगों वह ठीक है। जो भी कुछ आपने किया, जो भी कुछ को कन्धे पर लाद के ले जाना पड़ता है, स्वयं तो वे आपने कहा, जो भी आपने प्राप्त किया, आप सोचते ा] मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 19 चल भी नहीं सकते, बैठ भी नहीं पाते। बहुत ही बाई ओर का स्थान हमारे सिर में दाई तरफ है तो हमारा अहं बाई आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर छोटी उम्र में ऐसा हो सकता है। अमेरिका में ऐसा हुआ है और भारत में भी मैंने ऐसे कुछ रोगी देखे बाई ओर के रुद्र हैं। अहंदश होकर लोग पापमय, हैं। अतः यदि आप अपने अहं का ध्यान नहीं रखते अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरुद्ध हैं। इसे नियन्त्रित नहीं करते इस पर आपको पश्चाताप श्री महावीर जी की शक्तियाँ नियंत्रण करती हैं, वे नहीं होता (यद्यपि सहजयोग में पश्चाताप जैसी कहते हैं कि तुम नर्क में जाओगे, ऐसा होगा। कोई चीज नहीं है क्योंकि हमें विश्वास है कि उन्होंने सभी प्रकार के नर्कों का वर्णन किया है तथा आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और आप आपको डराने के लिए बताया है कि आप नर्क में गलतियों से परे हैं) तो आपको परेशानी हो सकती जाओगे जहाँ आपको जिन्दा जलाया जाएगा, है। अपनी गलतियों पर हमें पश्चाताप होना चाहिए। आदि-आदि। परन्तु इससे कोई लाभ नहीं होता अंग्रेजी में एक शब्द है (Sorry) 'मुझे खेद है" हर और लोग बाई ओर को, इस रुद्र की ओर, झुकने लगते हैं तथा ये रुद्र मजबूर हो जाता है और ऐसे चीज़ के लिए खेद है, फोन उठाते हुए भी वे कहते व्यक्ति को भयंकर उदासीनता रोग हो जाता है । हैं "मुझे खेद है"। हर चीज़ के लिए वे कहते हैं "मुझे खेद है"। काहे का खेद ? परन्तु यह खेद भी व्यक्ति भयंकर उदासीन हो जाता है हे परमात्मा! अर्थहीन है इसमें कोई गहनता नहीं। मुझे खेद है मुझे यह कैसा रोग हो गया है ? मैं इतना बीमार हूँ आदि, आदि। अपनी उदासीनता से आप अन्य लोगों कहते हुए आपको देखना चाहिए कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं और कौन सी त्रुटि का सुधार होना को डराने लगते हैं. आप भावनात्मक भय- दोहन (Emotional Blackmail) करने लगते हैं, अपना आवश्यक है। आज की पीढ़ी में बहुत बड़ी समस्या यह है सिर पीटते हैं आदि, आदि। ऐसा अहं के कारण भी कि उसमें भयानक अहं विकसित हो गया है क्योंकि हो सकता है और बाई ओर की समस्याओं के हमारी सारी आर्थिक उन्नति ने, औद्योगिक विकास कारण भी। ये दोनों रुद्र बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन ने बड़ी -बड़ी संस्थाओं ने हमें एक मार्ग दिया है कि हम अपने अहं को विकसित करें बताया गया है दोनों का सम्बन्ध सीधे हमारी बायीं और दायीं अनुकम्पी प्रणाली से है। अतः यह आवश्यक है कि कि यदि हम अपने अहं को विकसित नहीं करते तो हम खो जाएंगे, कहीं के नहीं रहेंगे। इस प्रकार हम इनको ठीक करते हुए आप इन दोनों रुद्रों के अहं को बढ़ावा देने लगते है तथा दाई ओर की शिकार न बन जाएं। इन रुद्रों का संतुष्ट होना दो समस्याएं आरंभ हो जाती हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप आवश्यक है। अंतः सामान्य होने के लिए इन रुद्रों का ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें से में इसका प्रभाव बाई ओर पर पड़ता है। वास्तव में मई - जून, 1997 20 चैतन्य लहरी एक अहं का नियंत्रण करता है दूसरा आत्मग्लानि करते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति भी बहुत उच्च हो का। मैं ऐसा नहीं कर सकती। इस प्रकार के जाती है। परन्तु ये जानने के लिए कि आपको उदासीनता आदि रोगों का शरीर पर भी गंभीर अत्यन्त उच्च स्तर का व्यक्ति होना है। आपमें पूर्ण प्रभाव पड़ता है. इससे कैंसर तक हो सकता है। इच्छा शक्ति होनी चाहिए वे बिल्कुल सांसारिक यदि ये रुद्र पकड़ जाएं तो व्यक्ति को कैंसर हो किस्म के नहीं है। मान लीजिए कि श्री शिव को किसी पार्टी आदि में जाने के लिए कहा जाए तो वे जाता है। आज्ञा में मेधा सूज जाती है। पूरा हिस्सा ही सूज जाता है। किसी कैंसर के रोगी को आप कैसे लगेंगे? वहाँ लोग उन पर हँसेंगे। मैं जब कुछ देखें तो उस पर सूजन दिखाई देगी, कम से कम हिप्पियों से मिली और उनसे पूछा कि तुम इस मस्तक के बायीं या दायीं ओर। व्यक्ति के स्वभाव प्रकार के बेतुके बाल क्यों रखे हुए हो ? उन्होंने में इतना दोलन (Swing) होता है कि कहा नहीं उत्तर दिया कि हम आदि मानव बनना चाहते हैं। जा सकता कि कौन से रुद्र से आपने मनोदैहिक मैंने कहा कि आपका मस्तिष्क तो आधुनिक है, रोग ले लिए हैं। आदि मानव की तरह बाल रखने का क्या लाभ है? का तो धोखा, स्वयं को धोखा देने से कोई लाभ सभी प्रकार के मनोदैहिक रोग रुद्रों के न होगा सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि स्वयं का प्रभावहीन हो जाने के कारण, उदासीन या निष्ठ्र स्वभाव के कारण भी होते हैं। यह बहुत से अन्य सामना करें और समझें कि आप क्या गलतियाँ कारणों से भी हो सकते हैं। परन्तु यह सभी कारण करते रहे हैं ? यदि ऐसा हो जाए. और जितने भी सहजयोगी यहाँ बैठे हैं, मैं आपको बता दें, यदि आप श्री शिव या सदाशिव की शक्तियों के अंग-प्रत्यंग ही होते हैं। श्री शिव करुणा से परिपूर्ण हैं, वे स्वयं को सुधार लें और शिव सम बन जाएँ तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी समस्याएं, राजनीतिक, करुणा के सागर हैं। आप यदि उनसे क्षमा माँगें तो वे क्षमा कर देते हैं, चाहे जो भी अपराध आपने आर्थिक तथा अन्य सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त यदि आप सोचते हैं कि आपने जो हो जाएंगी। परन्तु आज कलियुग के कारण ऐसा किया हो। परन्तु भी किया अच्छा किया, आपने कभी किसी को वातावरण बन गया है कि अच्छे-बुरे सभी प्रकार के परेशान नहीं किया, किसी को दुःख नहीं दिया तो लोग चले जा रहे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि ये सब जानते हैं। शिव सभी कुछ जानते हैं और विश्व की रक्षा करें, एक अत्यन्त सम्माननीय जीवन की सृष्टि करें जो दिखावा मात्र (सतही) न हो। यह अपनी जानकारी के कारण वे त्यागने लगते हैं, अन्दर से इस प्रकार विकसित हो कि आपकी आत्मा आपको आपके भाग्य पर छोड़ देते हैं। अतः आपकी अपनी इच्छा शक्ति तथा शिव के आशीर्वाद का का प्रकाश फैले और पूरे विश्व को प्रकाशित करे। बहुत बड़ा योगदान है। जब शिव आपको आशीर्वादित - यह समझना अत्यन्त आवश्यक है। ये सब कष्ट, मई चैतन्य लहरी 21 जून, 1997 रोग, मनोदैहिक रोग तथा अन्य सभी समस्याएं जैसे क्योंकि आप ही परमात्मा के माध्यम हैं। यदि मैं :-राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य समस्याएं मानव अकेली ये सब कार्य कर सकती तो मैंने कर दिया होता, परन्तु मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ । की बनाई हुई हैं। सामूहिक रूप से ये कलियुग की देन है। परमेश्वरी शक्ति ने इन्हें नहीं बनाया अत: इसीलिए मुझे आप सब लोगों को यह बताने के लिए यदि बहुत से सहजयोगी हों, जो सत्यनिष्ठापूर्वक इकट्ठा करना पड़ा कि आपको परमात्मा का सहजयोग कर रहे हों, तो यह परमेश्वरी शक्ति माध्यम बनना होगा परन्तु साथ ही साथ आप इन्हें निष्प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। यदि जीवन का आनन्द ले रहे हैं। आपका हर क्षण ऐसा हो जाए, यदि ये उपलब्धि हम पा सकें तो, मैं आनन्द बन जाता है। यह भी श्री शिव का ही सोचती हैं, हम बहुत कुछ कर सकते हैं मानव के वरदान है। शिव ही इस महान सराहना तथा हर क्षण की महान अनुभूति की सृष्टि करते हैं। यही हित के लिए बहुत कुछ। इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। ये केवल आपके स्थिति आपने प्राप्त करनी है, अपनी भत््सना द्वारा लिए ही नहीं है, केवल आपके परिवार के लिए ही नहीं और न ही अपने अहं को बढ़ावा देकर, परन्तु ये देखते हुए कि आप क्या हैं। यही विशेष चीज़ है जिसे आपने देखना है, कि आपमें क्या बुराइयाँ है। नहीं है. केवल आपके नगर या देश के लिए ही नहीं है परन्तु यह पूरे विश्व के लिए है। सहजयोग कार्यान्वित होगा आपने यदि आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट दे रहे हैं। इस बात को यदि आप समझ लें तो मुझे विश्वास है, पुूर्ण विश्वास परस्पर मुकाबला करना है तो उत्थान में करें, और किसी चीज़ में नहीं। परन्तु लोग इतने है कि आप इतनी बहुमूल्य चीज़ बन जाएंगे जो पूरे उथले हैं कि वे सोचते हैं कि दिखावा करने से या विश्व के लोगों को, स्वयं को देखने और परिवर्तित अपने आपको बहुत बड़ी चीज़ मान बैठने से वे होने में सहायक होगी समस्याओं की जड़ें इतनी गहन हैं कि उथले स्तर पर रहते हुए आप परिवर्तित उत्थान का बहुत ऊँचा स्तर पर लेंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। स्वयं के प्रति भी अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण होना नहीं हो सकते माँ कुण्डलिनी आपको इस प्रकार आशीर्वादित कर रही हैं। मैं कहूँगी, कि आप सत्य, चाहिए ताकि आप समझ सकें कि आपके सभी कार्य प्रेम और आनन्द के मार्ग पर, वास्तव में, एक महान ब्रह्माण्डीय समस्याओं के समाधान के लिए हैं । निःसन्देह आप इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं मशाल (ज्योति) बन सकते हैं । तां परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। तलि छु ना मुड व दिवाली पूजा पुर्तगाल 10 नवम्बर 1996 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( अनुवादित) महालक्ष्मी जी के विषय में हमें समझना है आज हम महालक्ष्मी की पूजा करेंगे। मैं सोचती हूँ कि इस देश में उनकी बहुत पूजा बहुत कि इनका क्या कार्य है। महालक्ष्मी शक्ति ने हमारे की जाती है। उन्हें यहाँ मारिया के रूप में पूजा अन्दर कुण्डलिनी के उत्थान के लिए एक उचित जाता है और मारिया का यहाँ स्वयंभु भी है और सन्तुलन एक उचित मार्ग बनाया है बायें और उनकी आलौकिक झलक भी यहाँ देखीं गई है। दायें को सन्तुलित किया है और वही (महालक्ष्मी) पहले तो मुझे लगा था कि ऐसा नहीं हो सकता कुण्डलिनी के उत्थान के लिए एक अपेक्षाकृत खुला परन्तु चैतन्य लहरियाँ महसूस करने के बाद, मैं जानती हूँ, कि यह सत्य था क्योंकि उन्होंने करुणा एवं प्रेम के माध्यम से वे इस मार्ग की सृष्टि साकार रूप में अपनी झलक दिखाई थी। वे मेरे करती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि यदि मार्ग चौड़ा भी दिखाई दीं आपने एक फोटो में अवश्य न होगा तो कुण्डलिनी उठ न सकेगी। अन्ततोगत्वा 1 मार्ग बनाती हैं । यह करुणा एवं प्रेम का मार्ग है। सम्मुख आप इस व्यक्ति एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जहाँ देखा होगा यही नियम है जिससे खोज आरम्भ हो जाती है और इसी खोज (जिज्ञासा) स्थिति तक उन्नत हुए हैं। कुण्डलिनी के उत्थान के लिए महालक्ष्मी शक्ति ने उत्थान के मध्य मार्ग की से ही आपका महालक्ष्मी तत्व जागृत हुआ है। यह सृष्टि की है। कोल्हापुर के महालक्ष्मी मन्दिर में जागृत है और कभी-कभी तो ये इतना शक्तिशाली लोग सदा "उदे-उदे अम्बे" भजन गाते हैं। वहाँ होता है कि आप पागलों की तरह से खोजने लगते मैंने लोगों से पूछा " महालक्ष्मी के मन्दिर में आप बहुत से लोग अम्बे का भजन क्यों गाते हैं ?" उन्होंने उत्तर दिया इसी खोज में खो गए, परन्तु बहुत से लोग उचित हैं। यह कहते हुए मुझे खेद है कि कि "हम नहीं जानते कि हम ऐसा क्यों करते हैं मार्ग और उचित उत्थान की ओर भी आ गए। एक अन्य चीज़ जो महालक्ष्मी तत्व करता परन्तु क्या यह गलत है?" मैंने कहा "नहीं, क्योंकि महालक्ष्मी मार्ग से ही कुण्डलिनी का उत्थान हो वह यह है कि यह कुण्डलिनी शक्तिति को भिन्न चक्रों सकता है और कुण्डलिनी ही अम्बा है।" इस प्रकार पर जाने देता है। भिन्न चक्रों तक जाने के लिए यह में बहुत हैरान हुए। मार्ग बनाता है और सभी चक्रों को शुद्ध करता है। उन्होंने समझा और बास्तव प्राचीन समय से यह भजन बहाँ गाया जाता है यह अत्यन्त लचीली शक्ति है जो कुण्डलिनी का परन्तु उन्हें यह कभी न समझ आया था कि यहाँ भिन्न चक्रों तक मार्गदर्शन करती है और यह वै ऐसा क्यों करते हैं। समझती है कि किस चक्र को कुण्डलिनी की आवश्यकता है। आपने देखा होगा कि जब कुण्डलिनी मई 23 चैंतन्य लहरी जून 1997 उठती है तो जहाँ भी वह जाती है, जहाँ भी अपने अन्दर बना रहता है। सूर्य की तरह से वह आवश्यक समझती है आपकी जागृति के लिए वह अपने अन्दर धारण करता है सूर्य यदि अपनी किस प्रकार धड़कती हैं! यह सब घटित होता है किरणों से क्रीड़ा करता है तो वह खो नहीं जाता। क्योंकि वह करुणा एवं प्रेम से परिपूर्ण हैं और सभी किरणें उसके पास वापस आ जाती हैं। इसी चाहती है कि आप पूर्व सत्य को प्राप्त करें। प्रकार हमारी जितनी भी इन्द्रियाँ हैं वे हमारे सहजयोग में, जैसा कि आप जानते हैं, हमारे साथ इर्द-गिर्द क्रीड़ा करती हैं। परन्तु सहज स्थिति बहुत सी समस्याएं हैं क्योंकि उत्थान के समय लोग में जो व्यक्ति है उस पर इनका कोई प्रभाव अपने साथ बहुत से पूर्व बन्धन लिए हुए होते हैं वे नहीं पड़ता। वह लिप्त नहीं है। वह तो मात्र उठते हैं फिर गिरते हैं, पुनः उठने का प्रयत्न करते क्रीड़ा करता है। यही स्थिति आपने प्राप्त हैं और फिर नीचे आ जाते हैं। करनी है तब आप वास्तव में सहजयोगी होंगे। आज मैं आपको बताने वाली हूँ कि व्यक्ति परन्तु अब भी मैं देखती हूँ कि लोग सहजयोग से को कौन सी स्थिति प्राप्त करनी है। 'स्थितप्रज्ञ' धन बटोरने में ही खोए हुए हैं। कुछ लोग अगुआपने का वर्णन करते हुए गीता के दूसरे अध्याय में श्री के चक्कर में, कुछ लोग ईष्ष्या और द्वेष के चक्कर कृष्ण ने इसका वर्णन किया है परन्तु इसे समझ में खो जाते हैं। तो इसका अर्थ यह हुआ कि अभी पाना बहुत कठिन है। श्री कृष्ण आपकी माँ की तक अन्तस में बहुत सा कार्य होना बाकी है। परन्तु तरह से स्पष्ट न थे अतः लोग नहीं समझ पाते कि यदि आप सभी कुछ समर्पित कर दें तो कुछ उन्होंने क्या कहा और वे प्रश्न करते हैं कि कैसे ? भी करने की आवश्यकता नहीं है यही कारण है कि मैं सदा कहती हैँ कि ध्यान-धारणा करें आप स्थितप्रज्ञ की स्थिति में किस प्रकार पहुँचते हैं ? कैसे आप वह अवस्था प्राप्त करते हैं? ज्ञानेश्वर ने क्योंकि जब आप ध्यान-धारणा करते हैं तो जब ज्ञानेश्वरी लिखी तो उन्होंने इसे 'सहज-स्थिति' आपको पतन की ओर ले जाने वाली सभी कहा, अर्थात् सहज अवस्था। उन्होंने इसे स्थितप्रज्ञ चीजें समाप्त हो जाती हैं शनैः शनैः ये सब नहीं कहा। उन्होंने सहज का अत्यन्त सुन्दर और लुप्त हो जाती हैं क्योंकि आप स्वयं आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म रूप से वर्णन किया है। निःसन्देह बन जाते हैं। आप स्वयं को धारण करते हैं। ज्ञानेश्वर जी को भी बहुत कम लोग समझते हैं। जो आप कभी ऊबते नहीं, मैं कभी नहीं ऊबती व्यक्ति उस स्थिति को पा लेता है वह एक दर्पण इसका (ऊबने का) तो मुझे अर्थ ही नहीं सम है जिसमें बहुत लोग अपने चेहरे देखते हैं। पता । चाहे मैं आपके साथ हूँ या अकेली, मैं बहुत से लोग दर्पण के सम्मुख अपना साज- श्रृंगार कभी नहीं ऊबती। ऊबने की कौन सी बात करते हैं परन्तु दर्पण जैसा का तैसा रहता है । तो है? यदि आप किसी भी चीज़ से लिप्त नहीं जो व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हैं, सहज व्यक्ति की तरह, वह हैं तो आप कभी ऊबेंगे नहीं । इस बात की चिन्ता नहीं करता कि उसके सम्मुख कौन है, कौन सामने खड़ा है, वह कहाँ है। वह ऊपर उठ जाएंगे जैसे लालच से। अब जो लोग 1 एक और बात है कि आप इन सब चीज़ों से मई - चैतन्य लहरी 24 जून 1997 लालची हैं वे यहाँ-वहाँ पैसा बनाने में ही लगे हुए है जिसे आप परिवर्तित नहीं कर सकते। यदि आप हैं। जो लोग अभी तक कामाक्षी हैं वे ऐसी ही किसी इसे परिवर्तित करने का प्रयत्न करेंगे तो बम्ब, एटम चीज़ का आयोजन कर रहे हैं। परन्तु सहजस्थिति में आप मात्र देखते हैं, मात्र साक्षी बन जाते हैं किसी केवल मानव ही बदल सकता है, उसका आकार व चीज में नहीं खो जाते जो आपको पतन की स्वभाव परिवर्तित हो सकता है। बम्बों, की रचना करेंगे यह पूर्णतः विध्वंसक हैं। ऐसी अब आशीर्वादों को देखें कि आप मानव हैं ओर ले जाए। आप लोगों के लिए यह स्थिति प्राप्त कर लेना कठिन कार्य नहीं है क्योंकि आप अपने और आप परिवर्तित हो सकते हैं, आपको एक नए मन के स्तर को पार कर चुके हैं। ये सब चीजें तत्व में- आत्मा में- परिवर्तित किया जा सकता है। आपको मन के माध्यम से आती हैं। मैंने पहले भी मानव की यही विशेषता है। परन्तु यदि किसी का है जो उसे परिवर्तित करने का प्रयत्न कोई बताया है कि मन मिथ्या है और आप सब लोगों को कुगुरु यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए। मिथ्या बात यह करता है तो उस व्यक्ति का विस्फोट हो सकता है। है कि मन आपको विचार देता है। कुछ लोग सोचते कुगुरुओं के पास जाने वाले लोगों को मैंने देखा है, हैं, " हाँ श्री माता जी परन्तु" यह 'परन्तु' आपके वे मूरच्छित हो जाते हैं। अब भी उन्हें समस्याएं हैं. अन्य लोगों की अपेक्षा उन्हें अधिक कष्ट भुगतने मस्तिष्क वास्तविकता है, मन नहीं । मन कहता पड़ते हैं। वे भी सुधरे हैं। परन्तु एक बात जो व्यक्ति है 'परन्तु' और तब कभी-कभी आप अत्यन्त खिन्न को समझनी चाहिए वह ये है कि जब आप अणु या मन से आ रहा है। तथा निराश (Depressed) महसूस करने लगते परमाणु को तोड़ते हैं और इसे परिवर्तित करने का हैं। कुछ लोग इतने अच्छे है कि उन्हें अच्छा नहीं प्रयत्न करते हैं तो इसका विस्फोट हो जाता है। यह लगता कि सहजयोगी इतने कम हैं। कोई बात कार्यान्वित नहीं होता। जब आप समन्वय करने का नहीं। केवल देखें और यह साक्षी अवस्था, मात्र प्रयत्न करते हैं तभी प्रकृति में आप कोई चीज़ बना देखने की स्थिति, ही सहज है। इसमें आप सूक्ष्म हो सकते हैं जैसे समन्वयन से ही उसे प्रकाश में लाया जाते हैं, आप अपनी आत्मा बन जाते हैं अर्थात् इतने गया है। प्लास्टिक भी समन्वय से बनाया गया है। पदार्थ का समन्वय किया जा सकता है तथा मानव सूक्ष्म हो जाते हैं कि कुछ भी आपको परेशान नहीं कर सकता। कुछ भी आपको परिवर्तित नहीं कर सकता। अब आप प्रकृति को जैसे है वैसे देखें, आप समन्वयन पदार्थ से कहीं बेहतर किया जा जानते हैं कि 92 तत्व हैं और इन 92 तत्वों को सकता है, क्योंकि मानव परिवर्तित हो सकता का समन्वयन किया जा सकता है। मानव का परिवर्तित नहीं किया जा सकता; आप चांदी को है, उसमें स्वभाव परिवर्तन किए जा सकते हैं। सोना और सोने को चांदी नहीं बना सकते। अणु अब देखें उदाहरणार्थ : यह सोना है । इसमें से जो इस ढंग से व्यवस्थित हैं कि उनकी अपनी कुछ चाहे आप बना लें। सोना तो सोना है। इसमें यदि मिश्रण शक्तियाँ हैं; इसके अतिरिक्त परमाणु भी इस आप गहने बना लें तो भी यह सोना ही रहेगा ढंग से व्यवस्थित हैं कि उनकी अपनी एक बनावट परन्तु मानव का यदि समन्वयन किया जाए तो वे मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 25 क परिवर्तित हो जाते हैं। : हममें ईष्ष्या जलन, लोभ और के दिन इन सब चीजों की बात करना अच्छा नहीं है। दिवाली कामुकता पदार्थ, प्रकृति और मानव में बहुत अन्तर है। पदार्थ और प्रकृति मानव से पूर्णतः भिन्न हैं। एक है। दिवाली अर्थात् एक-एक करके बहुत से दीप बार परिवर्तित होने के पश्चात् मानव जीवन्त प्रक्रिया सम हो जाते हैं, वे फूलों की तरह बन जाते हैं परन्तु प्रज्जवलित किए जाते हैं और पहली बार आप अब भी वे वैसे नहीं हैं जो आप प्रकृति में देखते हैं। देखने लगते हैं कि आपमें क्यां त्रुटि है। तब आपको वे ऐसे इसलिए नहीं हैं क्योंकि प्रकृति में मन नहीं समझ आता है कि इसकी आपको कोई आवश्यकता है, प्रकृति केवल परमात्मा के नियंत्रण में है और नहीं और इससे छुटकारा पाने के लिए., इसके उसी प्रकार से कार्य कर रही है। परन्तु आप सब शुद्धिकरण के लिए आप कार्य करने लगते हैं। अब अपने नियंत्रण में हैं। आप अपना नियंत्रण स्वयं यह ज्ञान लुप्त हो जाता है। आपको कोई ज्ञान नहीं करते हैं। यह समन्वय जो आपके अन्दर हो रहा है इसमें आप पाते हैं कि आपका स्वयं पर पूर्ण चक्रों के विषय में जानने की कोई आवश्यकता नहीं, पाना होता जो आपके पास है, है आपको अपने नियंत्रण है। आप जानते हैं कि आपके साथ क्या आप तो बस स्थित हैं। उस स्थिति में सभी कुछ महत्वहीन है। आप एक पत्थर सम हो जाते हैं। मैं घटित हो रहा है। अब आप स्वयं को अन्य चीजों कह सकती हैँ, एक ऐसे पत्थर सम जिसमें मस्तिष्क, हृदय और जिगर अखण्ड हैं। आपको कुछ बुरा नहीं लगता, कोई चीज़ आपको विचलित नहीं करती देख सकते हैं। कुछ लोग आकर मुझे बताते हैं, "श्री माता जी, मेरा अहं बहुत खराब से अलग होते हुए है। कृपया इसे निकाल दें।" वह देखता है कि समस्या क्या है। कोई अन्य आकर कहता है, "श्री आप केवल सुन्दर प्रेम एवं करुणा का आनन्द लेते हैं। उसकी तरंगे आपकी ओर लौटकर आती माता जी मेरी नाभि बहुत खराब है, मैं अब भी पैसे ह हैं. वो के चक्कर में उलझा हुआ हूँ।" वह इसे देखता है। भी, कुछ समय पश्चात् समाप्त हो जाती हैं और सबसे पहले स्वयं के विषय में ज्ञान आने आप 'सहज' के सिवाय कुछ नहीं रह जाते प्राचीन लगता है, इसे हम आत्मज्ञान (Self Knowledge) कहते हैं। परन्तु व्यक्ति को ने यह स्थिति प्राप्त तो की परन्तु इसके साथ एक लोगों ने यही स्थिति प्राप्त की थी। उन दिनों लोगों उस आत्मज्ञान से भी आगे जाना होता है। बुरी चीज़ जो हो गई वो यह थी कि वे सब इसमें उस ज्ञान से आप क्या करेंगे ? हमें देखना है। खो गए। अन्य लोगों के लिए वे कुछ न कर सके। सर्वप्रथमं हम कहते हैं कि ज्ञान नहीं है। अज्ञान है, एक व्यक्ति को यह स्थिति प्राप्त हो गई, वह महान अन्धेरा है। अब प्रकाश आ गया है अब आप देख बन गया और बस समाप्त। या अधिक से अधिक दो सकते हैं। अब जान सकते हैं क्या गलत है और व्यक्ति बन गए। तो अब सहजयोग ज्ञान की स्थिति आपके अन्दर जो भी कुछ गलत है उससे आप पर खड़ा है जहाँ आपको ज्ञान प्राप्त होता है। सबसे स्वयं को अलग करने लगते हैं। उन गलतियों को पहले आपको स्वयं के विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त आप देखते हैं। बहुत सी मूर्खतापूर्ण चीजें हैं जैसे करना चाहिए। आत्मज्ञान पूर्ण अवश्य होना चाहिए। | मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 26 तीसरी स्थिति में, जब ज्ञान पूर्ण होता है तब आसुरी प्रवृत्ति लोगों को दण्ड नहीं दिया जिन्होंने स्वयं के विषय में जिन भी बेकार की चीजों के सहजयोग को बहुत हानि पहुँचायी है। मुझे कष्ट विषय में आप जानते हैं, जो आपकी उन्नति में उठाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये परम चैतन्य रुकावट डाल रही है, जिन्हें आप गलत समझते हैं, जो इतना कार्य कर रहा है वह इससे भी निपटेगा। उनसे आप छुटकारा पा लें। जैसे : मैं अपनी साड़ी मैं किसी की चिन्ता क्यों करूं? आप देख रहे हैं पर कुछ कचरा गिरते हुए देखती हूँ तो तुरन्त इसे कि बहुत से कार्य हो रहे हैं, तो दखलंदाजी क्यों साफ करती हूँ। तब आप उस सहज स्थिति में की जाए ? मेरा कार्य सिर्फ देखना है, केवल स्वयं को अलग करने लगते हैं। इससे आगे भी सहजयोग में आप एक अन्य किसी का वध करने की या किसी का विनाश आयाम विकसित करते हैं जिसे सामूहिक चेतना करने की कोई आवश्यकता नहीं। वे स्वयं को कहते हैं। यही आधुनिक सहजयोग है । प्राचीन ही नष्ट कर देंगे। मैंने आपको बताया कि मुझे देखना। यही काफी है। इस जीवन में मुझे काल में साधकों को ये प्राप्त न होता था, अतः वे किसी का पर्दाफाश करने की आवश्यकता नहीं है, सब खो जाते थे। अब आपके पास सामूहिक चेतना परन्तु जिस भी देश में मैं जाती हूँ, मैं देखती हूँ कि और उस सामूहिक चेतना में आप अन्य लोगों को वहाँ बुरे लोगों का पर्दाफाश हो रहा है । महसूस करने लगते हैं, अन्य लोगों के लिए आपमें भावनाएं एवं करुणा जाग उठती है और उनके लिए किसी भी देश पर जरा सा चित्त डालने से ही कार्य आप कार्य करने लगते हैं। परन्तु कभी-कभी ये हो जाता है. बिना मुझे पता चले, हे परमात्मा . मैंने सब करते हुए भी आप सोचते हैं कि इससे मैं कहा, मैंने ऐसा कब किया था ? अतः व्यक्ति को है परमात्मा जानते हैं कि और क्या होगा। परमेश्वरी प्रेम की शक्ति बनना है, कार्यरत परमेश्वरी ही से कितना धन बना सकता हूँ? एक अगुआ के रूप में में क्या प्राप्त कर सकता हूँ या इसी प्रकार की कई शक्ति के प्रति समर्पित। यह शक्ति भी और बातें अभी भी आपके अन्दर हैं। परन्तु ये निकली है. मुझ ही से पृथक हुई है मैं अकेली हूँ सामूहिक चेतना बढ़ने लगती हैं। जब ये बढ़ने पूर्णतः अकेली, यहाँ तक कि यह शक्ति भी मुझसे लगती हैं तब आप सागर के अन्दर बूंद बन जाते हैं, पृथक हो गई है। परन्तु ये शक्ति जानती है कि अर्थात् पूर्ण सागर। सागर की अपनी मर्यादायें होती मानव के लिए. सहजयोग के लिए क्या अच्छा है हैं। तो सागर की अपनी ही मर्यादाएं हैं, बिना कोई और अपने आप यह कार्य करती है। मैं दखलंदाजी चिन्ता किए यह मर्यादाओं में रहता है। आपकी नहीं करती। यह स्वाभाविक कार्य (प्रतिवर्ती क्रिया सीमाएं यह पार नहीं करना चाहता। इसी प्रकार R आप लोग भी आत्मविकसित हो जाते हैं । आप मुझ ReflexAction) हो सकता है कि आप कहें कि श्री माता जी आपने यह कार्य कर दिया है। हाँ ठीक है स्वार्थी नहीं हैं परन्तु आप आत्मकेन्द्रित हैं अपने जैसा भी है परन्तु मैं दखलंदाजी नहीं करती इसे अन्तस में सीमित हैं। मैं जानती हैूँ कि बहुत से मुझे कुछ बताना नहीं पड़ता। यह स्वतः कार्य सहजयोगी इस बात पर नाराज हैं कि मैंने उन करती है और बहुत अच्छा। मैं एक उदाहरण दूंगी। चैतन्य लहरी सई - जून, 1997 27 बहुत समय पूर्व इंग्लैंड में सहजयोगियों ने कहा कि को नहीं मिलता, परन्तु क्योंकि सूर्य इतना तेज श्री माता जी हम बहुत लम्बी ग्रीष्म ऋतु चाहते चमका था, परम चैतन्य ने इसकी क्षतिपूर्ति कर दी हैं।" मैंने कहा कि आप ऐसी चीजें क्यों मांगते हैं? थी। नहीं श्री माता जी हमारे लिए ग्रीष्म ऋतु तो लम्बी परम चैतन्य इसकी देखभाल कर रहा है, नहीं होनी ही चाहिए, तीन-चार बार उन्होंने कहा और बहीं इन सब चीजों को चला रहा है। मैं कुछ लंदन में भयंकर गर्मी का मौसम बहुत लम्बे समय कर रही। मैं निष्क्रिय हूँ। मैं तो मात्र बैठी हूँ और तक रहा। भारत की तरह से यहाँ पंखे आदि तो हैं देख रही हूँ। मेरे लिए किसी चीज़ का महत्व नहीं। नहीं। हमारा एक छोटा सा बरामदा था ज़िसमें हम आप देख रहे हैं कि धीरे-धीरे निरन्तर ये कार्यान्वित सोते थे। लंदन में दुकान पर जाकर हमने पूछा कि हो रहा है। आप यदि मुझे कुछ बताते हैं, मान लो कोई पंखा आदि मिल सकता है ? यदि आप इसके उन्होंने कहा, "श्री माता जी हमने आपको प्रार्थना लिए कहें तो तीन माह के पश्चात हम यह पंखा की और ऐसा घटित हो गया". ठीक है ऐसा हो सकता है। इन लोगों ने मेरे विषय में होगा 11 मंगवा कर दे सकते हैं। तीन माह पश्चात जब सुना भयंकर ठंड हो जाएगी ? तो मेरी पुत्री ने हमें और कार्य को किया होगा, तो इसके लिए मैं वायुयान द्वारा दो पंखे भेजे, जिससे हमने काम जिम्मेदार नहीं हूं । चलाया | गर्मी इतनी भयानक थी कि उसके पश्चात जो भी कुछ आप सोचते हैं कि मैं करती हैं जो अच्छी घटना हुई वह यह थी कि पत्तों पर पीला वह मेरे द्वारा नहीं होता, यह सब परम चैतन्य द्वारा सा रंग आया जो धीरे-धीरे लाल होता गया। उस होता है क्योंकि मैं आपसे भी पृथक होती हूँ, पूर्णतः वर्ष शरद-ऋतु बहुत अच्छी थी । तभी एक सहजयोगी पृथक। अतः वे कहते हैं कि अब आप प्रार्थना करें, को स्वप्न आया कि श्री माता जी ने मुझे अपने घर आप प्रार्थना कर सकते हैं। यदि आप प्रार्थना करते के पीछे आँगन में गाड़ी में घुमाने के लिए कहा है। हैं तो आप अपने इर्द -गिर्द विद्यमान देवी- देवताओं मैं नहीं जानती थी कि उसे क्या स्वप्न आया है, मैंने से प्रार्थना करते हैं, इन सब गणों से प्रार्थना करते हैं, उसे टेलिफोन किया कि क्या तुम कुछ समय के मुझसे प्रार्थना नहीं करते क्योंकि मुझे इन सबसे कुछ लिए आ सकते हो ? मैं इस शरद-ऋतु में पूरा नहीं लेना- देना । वे मुझे नहीं बताते कि मुझे ये कार्य इंग्लैंड देखना चाहती हूँ। क्या आप इसकी कल्पना करना है या बो कार्य करना है। तो मैं उन्हें कुछ कर सकते हैं ? पूरा इंग्लैंड शरद सौन्दर्य से परिपूर्ण करने के लिए क्यों कहूं ? यह इसी प्रकार है और था। तो यदि इस प्रकार की कोई अति हो भी जाए इस अवस्था में यदे आप रह सकते हैं तो आप तो भी इसकी क्षतिपूर्ति हो जाती है। इतना सुन्दर था, सभी लोग प्रकृति के सुन्दर रंगों, आशा नहीं करते, कुछ नहीं चाहते मैं सभी कुछ भिन्न प्रकार की हरियाली, पीले तथा लाल रंग को करती हूँ। सभी प्रकार के कार्य में कर रही हूँ। सूर्य देखने के लिए घरों से बाहर निकल पड़े थे। की तरह, यदि वह कुछ कर रहा है तो मैं भी कर सभी कुछ सहज स्थिति में हैं. जिसमें आप किसी चीज की आश्चर्य की बात है कि उस देश में ये सब देखने रही हूँ अर्थात् मैं फूलों आदि की देखभाल कर रही मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 28 हूँ, आपके उपहार भी ले रही हूँ और आपसे कुछ ले क्योंकि आपने वह स्थिति प्राप्त करनी है। एक बार ही नहीं रही। मेरे पास कुछ नहीं है। किसी चीज़ जब आप इसे प्राप्त कर लेते हैं तो आप अत्यन्त में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। आप पुष्प चढ़ाना सूक्ष्म स्थिति में होते हैं और वह सूक्ष्म स्थिति चाहते हैं, ठीक है फूल हैं या नहीं आपको फूल मिल आशीर्वाद के अतिरिक्त जाएंगे। एक व्यक्ति के रूप में मुझे इससे कोई कुछ नहीं होती। परन्तु उस आशीर्वाद का आनन्द भी आप नहीं ले सकते मैं नहीं जानती कि हर चीज़ का आनन्द कैसे अन्तर नहीं पड़ता। परन्तु आपकी माँ के रूप में मैं आपको प्रेम करती हूँ. आप सभी को मैं प्रेम करती लिया जाए। मान लो अब आप कहें, "जय श्री माता हूँ परन्तु आपको प्रेम करने के लिए मैं कुछ नहीं जी", मैं भूल जाती हूँ कि आप मुझे कह रहे हैं। मैं करती, फिर भी सभी लोग कहते हैं. "श्री माता जी भी कह उठती हूँ, "जय श्री माता जी" । समाप्त। आप हमें अथाह प्रेम करती हैं. आप हमें बहुत प्रेम देखिए यह इतनी साधारण चीज़ है। व्यक्ति को करती हैं। यह सभी कुछ जो कार्यान्वित कर रहा समझना है कि जिस स्थिति तक उसने उन्नत होना है वह मैं नहीं हूँ, यह मुझसे ऊपर है। इस स्थिति है उस स्थिति में बिना कुछ किए सभी कुछ कार्यान्वित में, एक बार जब हम उठ जाते हैं, हम इसे सहज होता है। आपकी यदि यही स्थिति है तो ठीक है स्थिति का नाम देंगे। परन्तु ऐसा नहीं है कार्य करके आपको उस स्थिति सहज स्थिति में आप सोचते हैं कि आप कुछ तक उन्नत होना होगा, पहले आपको इसके लिए नहीं कर रहे, सभी कुछ कार्यान्वित हो रहा है, परन्तु कार्य करना होगा सर्वप्रथम आपको जानना होगा। इस स्थिति में यदि मैं आपको बताऊँ कि हम कुछ ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं होती परन्तु पहले नहीं कर रहे। हमें सहजयोग का प्रचार क्यों करना कार्यान्वित करके आपको इस स्तर पर आना होगा। अब दिवाली का यह महत्व है कि दिवाली चाहिए? यह हमारा कार्य नहीं है, अब आपकी यह स्थिति नहीं है, इसीलिए तो आपको उस अवस्था के दिन हम हर जगह चिराग जलाते हैं ताकि हम तक उन्नत होना होगा वह तभी सम्भव है जब चहूँ ओर सहज प्रकाश को फैला सकें। परन्तु क्या प्रकाश स्वयं को जानता है? क्या दीपक स्वयं को आप ज्ञान की अवस्था में होंगे, जहाँ आपको आत्मज्ञान जानता है ? दीपक हर चीज़ को प्रकाशित करता है प्राप्त हो जाएगा। पूरे विश्व का ज्ञान। परन्तु आपको इससे भी ऊपर जाना होगा। कई बार आपने देखा उसे इसका ज्ञान नहीं होता। जैसे चाँद का परन्तु होगा कि मैं कुछ कहती हैँ और वह हो जाता है । चाँदनी बिखेरना, क्या वह स्वयं को जानता है ? मैं किसी की चैतन्य लहरियाँ आदि नहीं क्या वह आनन्द उठाता है ? इसी प्रकार दिवाली के महसूस करती। अपनी कुण्डलिनी या चक्र भी दिन आप भी लोगों को ज्योतिर्मय कर रहे हैं, यह मैं मैं महसूस नहीं करती परन्तु कम्प्यूटर की सब आप उनके लिए कर रहे हैं। यह अच्छा विचार तरह स्वतः ही मैं सब कुछ जान जाती हूँ है, इसे आप अवश्य करें। परन्तु आपको वह हूँ। यही दीपक बनना है जो स्वयं को नहीं जानता। | तो दो संदेश हैं पहला तो यह कि परन्तु में वह कम्प्यूटर भी नहीं कठिनाई है, आपको यह समझा पाना कठिन है चैतन्य लहरी मई- जून, 1997 29 आपने पूरे विश्व को ज्योतिर्मय करना है का प्रचार करना। आपको बहुत से दीप जलाने हमने अन्य लोगों को ज्योतिर्मय करना है होंगे अर्थात् आप महसूस करेंगे कि आप वह यह पहला संदेश है। फिर हमें वह बनना है दीपक हैं जो अन्य दीप प्रज्जवलित कर रहा है. जो प्रकाश स्वयं है, और प्रकाश नहीं जानता सूक्ष्म रूप से आप यह महसूस करेंगे कि मैं प्रकाश कि बह प्रकाश है। मैं प्रकाश हूँ, मैं स्वयं को हूँ। बहुत से सहजयोगी बहुत कार्य कर रहे हैं और नहीं जानती। ही महान कार्य | यह वह स्थिति है कि आप नहीं सहजयोग को फैला रहे हैं। बहुत जानते कि आप प्रकाश हैं। इतनी बार गाने के हुआ है जिस प्रकार ये बहुत से देशों में फैला है पश्चात् भी यह बात आपके मस्तिष्क में नहीं बैठती। इसने धर्म के बाह्य अंधेरे को दूर कर दिया है। आपने एक हजार नाम लिए हैं, सभी कुछ किया है. जातिवाद आदि का अन्धकार फैला हुआ है तो परन्तु मेरे मस्तिष्क में ये कभी नहीं आता कि आप इसने आपके लिए शुद्धिकरण का कार्य कर दिया है मेरे विषय में ही ये सब कुछ कह रहे हैं। अब जब ताकि आपको तैरने के लिए शुद्ध जल मिल सके। मैं यह कहती हैँ तो मैं नहीं जानती कि आप किस एक बार जब आप ऐसा करने लगते हैं तो शनैः शनैः प्रकार प्रतिक्रिया करेंगे ? हो सकता है कि आपका आप महसूस करते हैं कि अब समुद्र साफ है। हम अहं उभर आए और आप कहें, हाँ, हा मैं भी वही हूँ। केवल देखते हैं कि यह किस प्रकार कार्य कर रहा ऐसे बहुत से लोग आए जिन्होंने कहा कि मैं माता, है जी से ऊँचा हूँ बहुत सों ने कहा कि मैं (वे) कल्की मैं आशा करती हैं कि अपने जीवनकाल में हूँ। आजकल भी एक व्यक्ति जगह-जगह जाकर ही आप यह स्थिति प्राप्त करेंगे जिसमें अन्य लोगों कह रहा है कि वह कल्की है। कोई बात नहीं। को आत्मसाक्षात्कार देने का कार्य पूर्ण कर सकेंगे। आप वह बनें, बहुत अच्छा विचार है। परन्तु जब मैं जो लोग दूसरों को आत्मसाक्षात्कार नहीं देते, कहती हूँ कि मैं आदिशक्ति हूँ; तो इसका अर्थ यह जो केवल पूजाओं के लिए आते हैं वे औसत होता है कि मैं नही जानती कि मैं क्या हूँ,वास्तव में, दर्जे के लोग हैं। वे अधिक ऊँचे नहीं बहुत मुझे यह कहना पड़ा क्योंकि लोगों ने कहा "श्री उठ सकते। पूजा पर आने का क्या अभिप्राय माता जी आपको घोषणा करनी होगी।" किस चीज़ है ? पूजा से आप और ऊँचे उठते हैं, पुनः की घोषणा ? मैं जो हूँ, हूँ। अब मुझे लगता है कि आपका पतन होता है, परन्तु जो लोग निरन्तर घोषणा करने से आप लोगों का उत्थान बढ़ गया है, बढ़ते हैं वही इस स्थिति तक पहुँच पाएंगे। ठीक है, इसे प्राप्त करें। परन्तु किसी को भी कोई मुझे विश्वास है कि अपने जीवनकाल में ही मैं कुछ घोषणा करने की या कुछ कहने की आवश्यकता ऐसे लोग देख पाऊँगी कि जो जहाँ खड़े हो जाएंगे उनसे शांति एवं प्रकाश प्रसारित होगा वे सभी कुछ यही स्थिति आपको प्राप्त करनी है। प्रसारित कर सकते हैं क्योंकि वे प्रकाश हं, उन्हें परन्तु उस स्थिति तक पहुँचने के लिए आपको प्रकाश करना नहीं पड़ेगा क्योंकि वे स्वयं प्रकाश हैं। कार्य करना होगा और वह कार्य है सहजयोग ऐसी स्थिति आपको अपने अन्दर कार्यान्वित और नहीं। मई चैतन्य लहरी 30 जून, 1997 | विकसित करनी पड़ेगी। इस स्थिति का वर्णन बहुत से कवियों तथा संतो ने किया है परन्तु वह मंच पर न थे और लोगों ने सोचा कि पता नहीं वह क्या बात आज, दिवाली के दिन, मैं आपको बताना चाहती हूँ कि हमें सूक्ष्मतर होना होगा। बाह्य चीजों से हमें प्रभावित नहीं होना। बाह्य चीजें जैसे कोई कर रहे हैं। उन्होंने सोचा कि शायद ये पागल हैं। फैशन शुरु हो जाता है। फैशन के पीछे दौड़ने वाले ईसा के लिए भी उन्होंने यही सोचा कि इन्हें लोग मूर्ख हैं वे अन्धे चूहों सम हैं। कोई भी उन्हें क्रूसारोपित कर दिया जाना चाहिए. वे उन्हें समझ किसी तरफ चला सकता है। अब ऐसा करो, और वे न सके। अब आप लोग कदम-कदम आगे बढ़ रहे वैसा करते हैं। यदि आप अन्य लोगों द्वारा किए गए | अब आप ईसा को समझते हैं और इस स्थिति विचारों का अनुसरण करते हैं तो आप स्वयं को पर अभी भी आपको कार्य करना होगा जो लोग पूर्णतः खो देंगे और फिर "मैं हिन्दू हूँ मैं इसाई हूँ सहज के लिए कार्य नहीं करते वे ऊँचे नहीं मैं मुसलमान हूँ" आदि बन जाते हैं। ये मूर्खतापूर्ण उठ सकते। आपको सहजयोग के लिए कार्य है और जब आप आत्मा बन जाते हैं तभी आपको करना होगा। इसे अधिक फैलाना होगा, ज्ञान होने लगता है और वह ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्यान्वित करना होगा, परस्पर आनन्द लेना है एक सन्त एवं सामान्य व्यक्ति में यही दूरी है होगा। जब तक आप वह स्थिति नहीं प्राप्त कर जिसे शनै:शनैः आपने तय कर दिया है। अतः आप जानते हैं कि मानव की समस्याएं क्या हैं और ये भी लेते तब तक आप उस स्थिति तक उन्नत नहीं हो सकते जिसका वर्णन मैंने 'सहज स्थिति' के नाम से किया है। समझ गए हैं कि उनसे व्यवहार किस प्रकार करना है। सहजयोग में सामूहिक चेतना आधुनिक काल आज का दिन महालक्ष्मी का दिन है पैसे का पागलपन, मेरे विचार से, पहली चीज़ है यह में आई है। यह सामूहिक चेतना संतों में थी परन्तु समझ लिया जाना चाहिए कि यह वास्तव में वे कुछ कहते न थे किसी की चिन्ता न करते थे, पागलपन है । किसी धनवान व्यक्ति से आप पूछें तो इस व्यक्ति का यह चक्र खराब है, इसे भाड़ में जाने वह कहता है, "ओह मेरे पास पैसा नहीं है।" ठीक दो, ठीक है। एक बदसूरत व्यक्ति दर्पण के सम्मुख है। ये क्या है ? किसी गरीब से आप पूछे तो उसके जाता है तो ठीक है और यदि कोई सुन्दर व्यक्ति पास भी पैसा नहीं है। तो यह एक प्रकार का लोभ दर्पण के सम्मुख जाता है तो भी ठीक है। दर्पण सम है जो कभी शांत नहीं होता। ये सारी चीजें पहले ये लोग बैठा करते थे। परन्तु हमें समझना है कि अभी हमने उन्नत हुए हमें उन्नत होना आप शुद्ध हो रहे हैं या नहीं, आप ये भी जान है जो लोग इसे कार्यान्वित कर रहे हैं और चहूँ जाएंगे कि आप सभी कुछ किस प्रकार कर रहे हैं। ओर इसे फैला रहे हैं वही वास्तव में बने हुए हैं और समाप्त हो जानी चाहिए तब आपका कार्य आपको शुद्ध करेगा। अपने कार्य में आप जान जाएंगे कि होना है इसे कार्यान्वित करते उनके लिए परम चैतन्य मात्र उनका नौकर है। मैंने एक बार जब ऐसा हो जाएगा तब मेरे जीवनकाल में ही आप में से कुछ वह स्थिति प्राप्त कर लेंगे। देखा है कि लोग किसी चीज़ की इच्छा करते आी.. मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 31 और वह पूरी हो जाती है। वे कुछ मांगते हैं, वह करता रहता है। जो भी कुछ आप कहेंगे वह घटित होगा परन्तु इससे पूर्व आपको पूर्ण अन्दर क्या होना चाहिए. यह महत्चपूर्ण है । विश्वास होना आवश्यक है कि आप सहजयोगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् सभी कुछ पा लेने हैं। अब भी मैं देखती हैँ कि लोगों में कामुकता तथा के बाद हमारे पास क्या होना चाहिए कि हममें अन्य कई प्रकार के भयंकर दोष हैं। तो सर्वप्रथम विश्वास विकसित हो सके। स्वयं में विश्वास कि आपका धर्म में स्थापित होना आवश्यक है। धर्म, इस स्थिति के लिए हमारे उन्हें मिल जाता है। आप आत्मा हैं. आपके पास प्रकाश है और जैसा कि आप जानते हैं, धर्मपरायणता है। यदि आपको अन्य लोगों को प्रकाशित करना है आप धर्मपरायण हैं तो फिर कोई प्रश्न नही है। जब यह विश्वास गहन से गहनतर हो जाता कोई संदेह नहीं है कि यह परम चैतन्य आपकी है तब आप सोचते हैं, ओह, मैं क्या हूँ ? मैं आज्ञा नहीं मानेगा। परन्तु मान लो आज आप आत्मा हूँ। यदि आप आत्मा हैं तो यह पूरी कोई चीज़ चाहते हैं और यह उपलब्ध नहीं प्रकृति आपके साथ है। मैं कुछ सहजयोगियों होती तो भी निराश होना अच्छी बात नहीं को जानती हैँ, उनमें से एक मछुआरा है जिसे मुझ निराशा भी आपकी अपरिपक्वता की निशानी पर अथाह विश्वास है। एक बार सहजयोग का है। निराश होने की क्या बात है ? हो सकता है कार्य करने के लिए वह किसी दूसरे गाँव में जा रहा इसी में आपका हित हो। मान लो मैं रास्ता भटक था। अपनी छोटी सी झोंपड़ी से जब वह निकला तो जाती हूँ और नहीं जानती किधर जाऊं, तो मैं खो आकाश में काले बादल मंडरा रहे थे। अपना हाथ जाती हैँ, परन्तु सब ठीक है, क्या फर्क पड़ता है? ऊपर को उठाकर उसने कहा, "देखो मैं माँ के जहाँ भी मैं हूँ हूँ। मैं स्वयं से किस प्रकार खो कार्य के लिए जा रहा हूँ और वर्षा आरम्भ करने का सकती हूँ? और तब मुझे पता चलता है कि मुझे साहस नहीं करना। जब तक मैं कार्य समाप्त नहीं इसी रास्ते पर जाना था क्योंकि मुझे किसी व्यक्ति कर लेता इसी स्थिति में लटके रहो। क्योंकि वो से मिलना था। किसी से मिलने के लिए मैं प्रतीक्षा नाव से जा रहा था, अन्य सहजयोगियों ने सोचा कर रही थी और बह व्यक्ति मुझे वहाँ मिल जाता पता नहीं ये क्या बातें कर रहा है ? वह नाव में है। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? मेरे चढ़ा, सभी लोग दूसरे गाँव पहुँचे, लोगों को साथ ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और यदि न भी हों आत्मसाक्षात्कार दिया, उसने अपना प्रवचन समाप्त तो क्या ? मुझे उस ओर जाना था, संभवतः मुझे वहाँ किया। नाव में बैठकर वे लोग अपने गाँव वापस चैतन्य लहरियाँ देनी थीं यह इस प्रकार है। अत: आए, जब बह अपने घर का दरवाजा बन्द करने एक बार जब आप जान जाते हैं कि जो भी कुछ लगा तो उसने कहा ठीक है, अब बरसो । तो यह आप कर रहे हैं उस पर आपका पूर्ण नियन्त्रण है. पूर्ण विश्वास होना आवश्यक है कि यह पूर्ण विश्वास है तो पूरा नियन्त्रण आपके पास आ परम-चैतन्य आपके नौकर की तरह है और जाता है। आपके विश्वास से पूरी शक्ति आपमें आ हर समय आपकी सेवा करने के लिए प्रतीक्षा जाती है, आपका एक एक शब्द ऐसा हो जाता है चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 32 मानों आपको सत्य का ज्ञान हो। सत्य आपको से जानता है। यदि वो मैं हूँ या कोई अन्य सच्चा शक्ति प्रदान करता है। यदि आपके साथ सत्य है, गुरु, एक ही बात है। परन्तु जैसा कि आप जानते पूर्ण सत्य है, तो आपके पास शक्ति है और वह हैं, मैं क्योंकि क्षमाशील हूँ लोग मेरे सम्मुख मनमानी शक्ति ऐसी है जो केवल आपको अधिकार प्रदान करने लगते हैं। कोई अन्य गुरु यदि होता तो करती है अन्य लोगों को नहीं। यह शक्ति जो उनकी पिटाई कर देता। सभी प्रकार के दण्ड वह आपमें है निरंतर कार्य करती है। मैंने अत्यन्त आपको देता। गुरुओं के विषय में मैंने आपको बहुत साधारण सहजयोगियों को देखा है, अत्यन्त सी कथाएं बताई हैं कि वे अपने शिष्यों से किस साधारण, अशिक्षित भी, परन्तु वे अत्यन्त शक्तिशाली प्रकार व्यवहार करते हैं । परन्तु मैं क्षमाशील हूँ, ैं सहजयोगी हैं पर उनके पास एक चीज़ है विश्वास, कुछ नहीं कहती। मैं सोचती हूँ कि इन्हें स्वतंत्र कर पूर्ण विश्वास। संस्कृत में एक शब्द है 'तितिक्षा' अर्थात् धैर्य पाएंगे परन्तु कई बार इसके विपरीत हो जाता है । (सबूरी) आपमें धैर्य होना आवश्यक है। यदि आपमें एक बार क्षमा पाकर वे स्वयं को स्वतंत्र मान बैठते धैर्य नहीं है तो आप हर चीज़ को तुरन्त हुआ चाहते हैं। तो स्वयं में विश्वास का अभिप्राय है कि हैं। सभी कुछ कार्यान्वित हुआ आप किस प्रकार धैर्यपूर्वक स्वयं को देखें और किसी भी चीज़ देखेंगे ? देने से ये उन्नत होंगे और इस स्थिति तक पहुँच लाम से लोग अत्यन्त घबराए हुए हैं और से निराश न हों। अब कल्पना करें कि कितने तेजी से दौड़ रहे हैं। ये विश्व बहुत तेजी से दौड़ लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। विश्व में रहा है । केवल आप लोग ही इस दौड़ से बाहर इतने सन्त हुए। कल आपने देखा कि मैं फ्रांस के खड़े हैं और इस चूहा दौड़ को साक्षी रूप से देख लोगों को इतना अच्छा गाते हुए देखकर कितनी रहे हैं। आप उनमें से नहीं हैं अतः आप में सबूरी हैरान हुई! लय के लिए मुझे हारमोनियम उठाकर को होना आवश्यक है । स्वयं पर विश्वास रखें, उनको गाने की एक लाईन सिखानी पड़ी थी। पूर्णतः और ये देखने का धैर्य रखें कि सहजयोग आधा घंटा तक कोशिश करने के बावजूद भी मैं बहुत किस प्रकार कार्यान्वित हो रहा है या परम चैतन्य उन्हें न सिखा सकी थी। वही फ्रांस के लोग आज किस प्रकार कार्य कर रहा है। यदि यह इस प्रकार सृजनात्मकता की उस स्थिति तक पहुँच गए हैं! होता है तो बिल्कुल ठीक हैं। यह अगर दूसरी आप जान लें कि आपकी सारी शक्तियाँ विकसित प्रकार होता है तो इसका भी कोई अर्थ है। हो जाएंगी और अपनी अभिव्यक्ति करेंगी। परन्तु अब एक अन्य महत्वपूर्ण चीज़ जो है वह है सावधान रहें कि आपको इस पर अहं नहीं होना अपने गुरु में आपकी श्रद्धा। यदि अपने गुरु खिल उठेगा और आपके के प्रति आपमें श्रद्धा है तो परम-चैतन्य दयालु इर्द -गिर्द के लोग इसकी सुगन्ध से महक उठेंगे है। परन्तु यदि आप गुरु पर संदेह करते हैं और सहजयोग में आ जाएंगे। यह आशीर्वाद है । चाहिए। शनैःशनैः ये पुष्प तो परम-चैतन्य भी आप पर संदेह करता है उस समय, परमात्मा के आशीर्वाद से आप उस क्योंकि परम चैतन्य आपको आपके गुरु के माध्यम स्थिति तक उन्नत हो जाएंगे जिसे हम 'पूर्णतव' मई - जून, 1997 चैंतन्य लहरी 33 कहते हैं। यह पूर्णत्व आना आवश्यक है। आप होगा तब यह पूरा ज्ञान या आशीर्वाद एक हो स्वयं को तोलें। क्या आप पूर्णतः सहज के जाएंगे। बिना जाने आप इस आनन्द की स्थिति में साथ हैं ? क्या आप पूर्णतः सहज के प्रति हैं। मैं आशा करती हूँ कि आप सब इस स्थिति को समर्पित हैं ? या सहज की अपेक्षा अन्य चीजें प्राप्त करेंगे। आपके लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं आगे बढ़ें। दिवाली पुर्तगाल में मनाई जा रही है। मेरे सहजयोग में एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी विचार से यह महालक्ष्मी का विशेष स्थान है क्योंकि चाहिए कि इसमें प्रतिस्पर्धा नहीं है। इसमें ईर्ष्या महालक्ष्मी, जैसा लोग बताते हैं और महालक्ष्मी सम नहीं है और निन्दा भी नहीं है। आप एक संत हैं और इन सब चीजों से ऊपर हैं। आप बेईमान नहीं हुई हैं. अन्य लोगों को धोखा नहीं दे सकते। और अब भी यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो अभी आपने बहुत रही हूँ वह थोड़ी सी सूक्ष्म है । परन्तु मुझे आपको चेहरे बाले स्वयंभु को भी हमने देखा है, यहाँ प्रकट ं। अतः मुझे विश्वास है कि यह आप सबके लिए कार्यशील होगा। जिस स्थिति के बारे में मैं बात कर उन्नत होना है। कुछ लोग सोचते हैं कि बो बताना है कि आपने यह स्थिति प्राप्त करनी है और सहजयोग में बहुत ऊंचे हो गए हैं। परन्तु ऐसी बात इसे प्राप्त करना आपके लिए अत्यन्त सरल है। तब नहीं है। आप यदि ऐसा सोचते हैं तो आप खो गए आपको कुछ नहीं करना। आप किसी गाँव में जाएं आपको सोचना है कि मैंने क्या किया ? कितने सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है देखें क्या घटित लोगों को मैंने आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने लोगों होता है। मैं कैरो गई तो सभी लोग मुझे नमस्कार से मैंने सहजयोग की बात की ? सहजयोग की कर रहे थे मैं हैरान थी कि क्या हो गया है! मैं बात करने में लोगों को शर्म आती है। पार्टियों में उनके गाँव गई। हजारों लोग मेरे कार्यक्रम में आए। जाकर वो ये नहीं कह सकते कि मैं सहजयोगी हूँ, मैंने उनसे पूछा कि किस प्रकार आप मेरे कार्यक्रम मैं शराब नहीं पी सकता। स्वभाव से ही मैं शराब में आए ? आपके चेहरे से ही स्पष्ट दिखाई पड़ता नहीं पी सकता। अतः घोषणा करना तीसरा है, उन्होंने समाचार - पत्र में एक छोटा सा विज्ञापन भाग है-स्वयं में विश्वास रखें और उसकी देखा था यह स्पष्ट है कि आप परमेश्वरी हैं । पर धोषणा करें। सभी संतों ने घोषणा की, इसके लिए अब भी आप यह घोषणा नहीं कर सकते कि उनकी हत्या तक कर दी गई, परन्तु आपको कोई सहजयोग ही एकमात्र रास्ता है! हो सकता है हानि नहीं पहुँचा सकता। सहजयोग के प्रति साधक न हों। कोई बात नहीं मेरे विचार से साधक पूर्ण विश्वास, सहजयोग की पूर्ण समझ और तो सब आ चुके। अब उन लोगों तक भी पहुँचें जो फिर इसकी घोषणा। लक्ष्य पूरे विश्व को परिवर्तित साधक नहीं हैं। करना है। आपके परिवर्तन से ही विश्व परिवर्तित परमात्मा आपको धन्य करें। पूरा 3५ अन्तर्राष्ट्रीय एकता प्रतिष्ठान बटाड परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का होटल क्लैरिजिस, नई दिल्ली कु प्रवचन 6.4.1997 शर जहाँ तक प्रयत्नों का सम्बन्ध है, लोगों ने हैं कि ये हमारी बुद्धि से परे है! परन्तु आपको अपने बहुत सी खोज की है, बहुत सी सभाएं की गई और उन्होंने सबको विश्वस्त करने की कोशिश की कि मन से ऊपर जाना होगा। हमारा मन जिसे हम बहुत बहुमूल्य समझते बिना एकता के हम लोग जीवित नहीं रह सकते। हैं, अहम् तथा बन्धनों द्वारा बनाया गया है। मन कारण यह है कि यह विश्व एक है और हम सब मिथ्या है क्योंकि इसकी सृष्टि हमने स्वयं की है इसके अंग-प्रत्यंग हैं। परन्तु हममें शरीर के भिन्न और हम स्वयं ही अपने मन के हाथों का खिलौना अवयवों की तरह एकरूपता नहीं है। शरीर में यदि बन जाते हैं। जैसे हम कम्प्यूटर का उपयोग करते कहीं काँटा चुभे तो पूरे शरीर को इसका पता चल हैं। कम्प्यूटर हमारे द्वारा बनाया गया है परन्तु यह जाता है। ऐसा हमारी जागृतिहीनता के कारण है। हम पर शासन कर रहा है। इसी प्रकार यह मन हम हमारी चेतना इतनी विकसित नहीं है कि हम अपने पर शासन करता है और इसी मिथ्या मन से हम अन्दर इसे सामूहिक रूप से महसूस कर सकें । मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं । मैं यदि कहूँ (आपको सामूहिक चेतना के विषय में बहुत समय पूर्व बताया सदमा नहीं पहुँचना चाहिए क्योंकि आपकी मन से गया था। परन्तु सब अस्पष्ट था। सामूहिक चेतना एकरूपता है) कि यदि यह पटरी से उतर जाए तो में कुण्डलिनी, जोकि आपकी अपनी शक्ति है, कोई भी पागल हो सकता है। किसी भी व्यक्ति या उठती है और परिणामस्वरूप आप विराट के (पूर्ण व्यर्थ की चीज़ को यह अत्यन्त उपयोगी मान के) अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं तथा अन्य लोगों के सकता है। अतः मन मानव को युद्ध के गर्त में विषय में भी आपमें चेतना आ जाती है । इसे हम धकेल सकता है जिससे हमारे हृदयों में एकता सामूहिक चेतना कहते हैं। इसे अच्छी तरह से समाप्त हो जाएगी उदाहरणार्थ मैं किसी ऐसे समझने के लिए परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से व्यक्ति से बात कर रही थी जिसे अलग राज्य एकाकारिता का अनुभव होना आवश्यक है । इसके चाहिए था मैंने कहा, "आपको अलग राज्य क्यों विषय में हमने बाइबल, कुरान, हमारे सभी भारतीय चाहिए ?" उसने कहा, "तब हम दो प्रधानमंत्री बना धर्मग्रन्थों में है वर्णन किया गया है कि एक सकेंगे ।" मैंने कहा, "क्यों ?" क्योंकि वह स्वयं अति सूक्ष्म शक्ति है जो हमारे लिए सारा कार्य प्रधानमंत्री बनना चाहता था । करती है। जब मैं इंसके विषय में बताती हूँ तो थोड़े से लोग इस पर विश्वास करते हैं क्योंकि वे सोचते जैसे ब्मा, श्री लंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी सुना हमारा देश तीन और देशों में बँट चुका है, ले चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 35 भारत के ही भाग थे। अब यदि आप इन देशों में पायी कि रूस के लोगों ने इतनी आसानी से मुझे जाएं तो हैरान होंगे कि यहां दुर्दशा है। जो लोग कैसे समझ लिया! बाहर बैठे लोगों ने कहा कि इस कार्य के लिए लड़े, जिन्हें स्वाधीनता तथा भिन्न हमारा क्या होगा ? हमारे लिए अन्दर बैठने के लिए राज्य चाहिए था, उनमें से अधिकतर की हत्या कर जगह नहीं है। मैंने कहा कोई बात नहीं, मैं वापिस दी गई । शेख मुजिबुर्रहमान, बण्डार नाइके, भुट्टो आऊंगी। अन्दर जा कर मैंने सब लोगों को आदि। ये वे लोग थे जिन्हें पद चाहिए था और इस साक्षात्कार दिया। जब मैं बाहर आई तब भी लोग कारण उन्होंने यह कहना शुरु कर दिया कि हमें बाहर बैठे हुए थे। उन्होंने पूछा कि हमारा क्या भिन्न राज्य चाहिएं, भिन्न पहचान चाहिए। किसको होगा ? मैंने कहा ठीक है मैं कल सुबह आऊंगी। इससे लाभ हुआ? परन्तु अब भी वे इस बात को रूस में बहुत से सुन्दर बाग हैं, मैंने उनसे कहा कि नहीं समझ पाए। पूर्ण से अलग हो कर उन्होंने आप लोग आइए, मैं सीढ़ियों पर बैठ कर आपसे बात कितने कष्ट उठाए हैं। करूंगी। आप जान कर हैरान होंगे कि छः हजार रूस में मैंने देखा है :- अब रूस में बेला लोग आए। मैंने पूछा आप लोगों का मेरी तरफ रूसे (Bela Rousse) रूस में वापिस आने का इतना झुकाव कैसे हो गया है? मैंने आप लोगों के प्रयत्न कर रहा है। मैंने यूक्रेन के लोगों से पूछा कि लिए क्या किया है ? आप कैसे सोचते हैं कि मैं रूस से अलग क्यों हो रहे हैं ? तो इस प्रकार के आपको कुछ विशेष दे सकती हूँ? उन्होंने कहा यह विचार कि हमें एक देश से अलग होकर दूसरा देश स्पष्ट है । उनकी निश्छलता को देखकर मैं हैरान बना लेना चाहिए. इस प्रकार से मुझे कोई देश थी! मैंने देखा है कि रूस तथा पूर्वी ब्लाक के लोग उन्नति करते नहीं नजर आया। अत्यन्त निश्छल हैं। इस संवेदना का सम्भवतः एक आत्मसाक्षात्कार मिल जाने के पश्चात् आपके कारण यह भी है कि उनका शोषण हुआ है जो भी अन्दर एक नया आयाम विकसित हो जाता है। हो उनके बन्धन समाप्त हो गए हैं उनमें अधिकार जिससे आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं। भाव नहीं है सरकार ने उन्हें कहा कि अपने फ्लैट अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप जान सकते हैं ले कर खुशी से वहाँ रहो, पर उन्होंने कहा कि नहीं कि आप में क्या दोष है और अन्य लोगों में क्या हमें फ्लैट नहीं चाहिए। उनमें स्वामित्व भाव बिल्कुल दोष हैं। एक बार यदि ऐसा हो जाए तो तेजी से नहीं है । वे बिल्कुल शुद्ध हैं, बन्धन रहित क्योंकि एकता आती है। मैं स्वयं आश्चर्यचकित हूँ कि उन्हें धर्म, परमात्मा या ऐसी अन्य चीजों के विषय में सहजयोग में किस प्रकार घटनाएं घटित हो रही नहीं बताया गया जो हमारे देश में समस्याएं खड़ी हैं । 12 कर रही हैं। मैं हैरान थी कि इन लोगों ने सहजयोग मैं रूस गई तो मुझे प्रवचन देने में संकोच हो को आसानी से अपना लिया। अगले कार्यक्रम में दस हजार लोग आए। मैं रूसी भाषा नहीं जानती। रहा था। परन्तु जब मैं पहला प्रवचन देने के लिए गई तो दंग रह गई। दो हजार लोग सभागार के अन्दर बैठे थे और दो हजार बाहर। मैं समझ न उनका व्यवहार कितना अच्छा था कि दो सौ पचास वैज्ञानिकों के लिए हमने एक कार्यक्रम किया रूस tho मई चैतन्य लहरी 36 जून, 1997 में विज्ञान को अत्यन्त सूक्ष्म रूप से विकसित किया चाहिए और यह आत्मज्ञान आपको मन तथा विज्ञान है। मैंने जब उन्हें विज्ञान के विषय में बताना शुरु से ऊपर ले जाएगा। 1 आप जानते हैं कि विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं। सर्वप्रथम तो यह निर्नैतिक (Amoral) है। इसमें दैवी विज्ञान के विषय में बताएं। वे लोग वास्तव में नैतिकता नहीं है इसलिए विज्ञान के साथ आप आगे अन्तर्दर्शी हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मास्को में नहीं बढ़ सकते। आप लोगों को मार सकते हैं, देशों हुए सैनिक विद्रोह के कारण चिन्तित हैं? उन्होंने को नष्ट कर सकते हैं और क्योंकि यह अनैतिक है। उत्तर दिया कि हम क्यों चिन्ता करें हम तो आपको कुछ महसूस नहीं होता अब नैतिकता का अर्थ बाह्य रोक-टोक नहीं, इसका अर्थ है बुद्धिजीवी लोगों के मस्तिष्क सदा उनके करुणा, प्रेम, शुद्ध प्रेम। आप समझ जाते हैं कि किया तो उनमें से एक ने उठकर कहा कि माँ विज्ञान तो काफी हो चुका, कृपा करके आप हमें परमात्मा के साम्राज्य में हैं। विचारों तथा योजनाओं पर होते हैं। कोई एक क्या करना चाहिए। परन्तु यदि आप बनावटी रूप विशेष प्रकार के व्यक्ति से मिलता है और आक्रामक से नैतिक बनने का प्रयत्न करते हैं तो ऐसे लोग अत्यन्त रूखे और क्रोधी हो जाते हैं। अन्दर से ये बन जाता है। दूसरा किसी और प्रकार के व्यक्ति से बात उठनी चाहिए कि आप शुद्ध आत्मा के अतिरिक्त मिलता है और उससे एकरूप हो जाता है। आप जाकर किसी का भाषण सुनते हैं और वह भाषण कुछ भी नहीं हैं। आप मस्तिष्क अहम् तथा भावनाओं आपके मस्तिष्क में बैठ जाता है। और इस प्रकार से ऊपर हैं, आप शुद्ध आत्मा हैं। केवल जानना मात्र ही काफी नहीं, आपको बनना चाहिए, बनना ही आपका चित्त हर समय बाह्य चीजों से ढका रहता है। जब तक ये आपके अपने नहीं होते ये विशेष बात है। यदि आप ऐसे बन जाते हैं तो आप अनुभव अस्पष्ट होते हैं। वह अनुभव प्राप्त करना बहुत ये जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि आप आसान काम है। निःसन्देह हमारा देश महान लोगों का देश है। जब मैं चीन गई तो उन्होंने मुझसे पूछा चेतन हो जाते हैं, आप प्रेम तथा करुणा के स्रोत भी श्री माता जी क्या ये हमारी चीन की संस्कृति का कितने महान हैं। आप न केवल सामूहेक रूप से 1 बन जाते हैं। जब तक यह घटित नहीं हो जाता, खजाना है। भारत अध्यात्म का खजाना है उन्होंने आप एकता नहीं ला सकते। उदाहरणार्थ मैं सहजयोग इसके विषय में पढ़ा है, इसके विषय में जानते हैं में कार्य कर रही हूँ, जिसे मैं सरकारी स्तर नहीं और हमसे कुछ प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कहूंगी मैंने कभी अपने पति के कार्यालय को परन्तु यहाँ तो मुझे विशेष दिखाई नहीं देता। यहाँ परेशान करने का प्रयत्न नहीं किया। अपने आप मैंने पर तो हमारे पास स्वयं पर चित्त देने के लिए और यह आरम्भ किया। सर्वप्रथम थोड़े हिप्पियों से शुरु स्वयं को जानने के लिए समय ही नहीं है। ईसा ने और मोहम्मद साहब ने कहा है कि जब तक आप कि हम रूस और पूर्वी ब्लाक में भी प्रवेश कर सके। किया और शनै:शनैः यह इतनी मधुर चीज़ बन गई स्वयं को नहीं पहचान लेते आप परमात्मा को नहीं सभी यूरोप के देशों में, अमेरिका में तथा दक्षिण जान सकते। आप स्वयं को जानें। आत्मज्ञान होना अमेरिका में गए। क्योंकि लोगों ने इसे महसूस मई चैतन्य लहरी 37 जून, 1997 किया था दक्षिण अमेरिका का एक भी व्यक्ति इसे विचार है स्वतः ही वे एकता ला रहे हैं। मैं उन्हें प्राप्त करता है तो वह कहता है कि दक्षिण अमेरिका नहीं कहती, अपनी सूझ-बूझ से वे यह कार्य कर रहे हैं। आन्तरिक सूझबूझ की आवश्यकता है, का क्या होगा? आप कब दक्षिण अमेरिका आ रही हैं ? हमें आपकी बहुत आवश्यकता है। जब मैं वहाँ आन्तरिक एकता की, बाहरी दिखावे की नहीं। हम गई तो पाया कि बहाँ बहुत से साधक थे, उनकी मानव यदि करुणा के सागर में उतर जाएं तो हममें दिलचस्पी सत्ता, धन तथा अन्य चीजों में न थी। बड़े-बड़े कार्य करने की क्षमता है और हम लोग दूं. वे यह इतने प्रेमपूर्वक करते हैं कि आप विश्वास ही अब मैं आपको एक मधुर कहानी सुना दो बार अपनी मधुरता का प्रदर्शन कर चुके हैं पहला नहीं कर सकेंगे कि ये मानव हैं! किस प्रकार यह जब मैं रूस गई तो पच्चीस जर्मन लोग मास्को मानव जीवन की सीमाओं से पूर्णतः ऊपर उठ गए आए वे सहजयोगी थे मैंने उनसे कि वे कैसे हैं। यहाँ आए हैं तो कहने लगे कि श्री माता जी क्या आप ऐसा नहीं सोचती कि हम जर्मनी के लोगों ने समाचार पढ़ा जो कह रहा था कि मैं जेहाद छेड़ बहुत से रूसी लोगों की हत्या की है। क्या अब यह रहा हूँ। किसलिए? पश्चिम में व्याप्त चरित्रहीनता, हमारा कर्त्तव्य नहीं कि हम आकर उन्हें वह दे सकें मदिरापान तथा अन्य सभी बुराईयों से मुक्ति पाने के जो हमने प्राप्त किया है ? इतना प्रेम और करुणा! लिए। तो एक सहजयोगी ने मुझे टेलिफोन किया ये जर्मनी के लोग इतने कोमल और विनम्र हैं कि कि श्री माता जी इसके लिए एक जेहाद करने की आप सोच भी नहीं सकते कि उनमें हिटलर जैसी आवश्यकता है? आप बस सहजयोग करें आपको कोई चीज़ है। आस्ट्रिया के लोग, वे भी जर्मन हैं, इन सभी चीजों से मुक्ति मिल जायेगी। आप सभी इजराईल गए। मैंने कहा आप इज़राईल क्यों गए, को शराब की लत थी, सभी प्रकार की मूर्खता एवं वहाँ तो आपके लिए कोई प्रबन्ध भी न था ? कहने चरित्रहीनता के कार्य हम किया करते थे परन्तु लगे श्री माता जी हमने अपने को इज़राईली यहूदियों इसके लिए आपको जेहाद करने की आवश्यकता के लिए बहुत जिम्मेदार पाया क्योंकि हमारे देश में नहीं इससे आपको स्वतः ही मुक्ति मिल जाती है। पूछा उस दिन मैंने एक महानुभाव के बारे में बहुत से यहूदियों की हत्या हुई जिसके लिए हम आप अत्यन्त शुद्ध होकर इन सब चीजों से ऊपर स्वयं को क्षमा नहीं कर सकते। अतः इस विषय में उठ जाते हैं। आपको उपाधि मिल जाएगी। मैं कुछ तो करना है। जर्मन लोगों का इज़राईल आपको विश्वास दिलाती हूँ कि आपके साथ ही यह वासियों से जान-पहचान करके उनसे बातचीत घटित हो सकता है, यह कोई विशेष बात नहीं है। करने की कल्पना कीजिए! उन्होंने कोई तीस युवा क्योंकि जब यह कुण्डलिनी उठती है तो यह इज़राईलियों को पकड़ा। मैंने इज़राईलियों से पूछा कार्यान्वित करती है। वह आपकी अपनी माँ है । कि आप यहाँ कैसे आए ? वे कहने लगे क्यों नहीं, आपके विषय में वह सभी कुछ जानती है और जिस हम मुसलमानों से दोस्ती करना चाहते हैं और प्रकार वह आपको पुनर्जन्म देती है वह बहुत ही इसलिए हम यहाँ पर हैं। मैंने कहा बहुत अच्छा सुखद अनुभव है। आप सब, विशेषकर भारतीय, ्ीट मई चैतन्य लहरी जून, 1997 38 लोगों में यह प्राप्त करने की योग्यता है। यहाँ बहुत इन्हें महसूस कर सकता है। कोई भी साक्षात्कारी से सूफी हैं। कमलों की तरह से वे खिल उठे हैं। आपको बता सकता है कि आपमें क्या परेशानी है हमें समझना चाहिए कि अपने पूर्व जन्मों के पुण्यकर्मों या उनके अपने अन्दर क्या दोष है। दस साक्षात्कारी बच्चों की आँखों पर यदि पट्टी बाँधकर आप बिठा के कारण ही हम इस योग भूमि पर अवतरित हुए हैं। परन्तु समस्या यह है कि हम इस योग भूमि का दें और कोई व्यक्ति उनके सम्मुख खड़ा करके लाभ नहीं उठा रहे हैं। ऐसा करना आपके हाथ में उनसे पूछे कि इसका कौन सा चक्र पकड़ रहा है तो वे सभी एक ही अंगुली उठाएंगे, क्योंकि यह पूर्ण ज्ञान है। यदि वे तर्जनी उठाते हैं तो इसका अर्थ ये हुआ कि उसके गले में कोई खराबी है। वह व्यक्ति आपको पूछेगा कि मैंने तो आपको नहीं बताया आप कैसे जान गए मैंने कहा कि यह इस शक्ति, इस है। यह योग भूमि आपको परमात्मा के सभी आशीर्वाद दे सकती है। हमने इसका प्रयत्न किया है और इस परिणाम पर पहुँचे हैं। अवस्था विज्ञान भी है। सहजयोग के माध्यम से मैं आपको बहुत सी चीजें बता सकती हूँ कि आपमें आत्माएं हैं तथा और भी बहुत सी चीजें हैं ज्ञान द्वारा बताया गया है। इस देश में हम बहुत से लोग झूठ मूठ के जिनका अब तक वर्णन नहीं किया जा सका है। उदाहरणार्थ मूलाधार नामक प्रथम चक्र कार्बन के गुरुओं के कारण कष्ट उठा रहे हैं । यह लोग अणुओं से बना हुआ है। कार्बन के अणुओं को जब वैभवशाली लोगों को पकड़ते हैं और बहुत धन लूट आप देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे कि बायीं ओर से रहे हैं। किसी भी शहर में जाकर यह धनी लोग देखने पर ॐ (ओंकार) सम दिखाई देते हैं। परन्तु खोज लेते हैं। ऐसे लोगों को आप अपनी अंगुलियों इसी को जब आप नीचे से ऊपर देखते हैं तो ये अल्फा के सिरों पर पहचान सकते हैं। कुरान में कहा गया तथा ओमेगा (आदि-अंत) सम प्रतीत होते हैं। ईसा है कि कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे और कहा है मैं ही आदि (अल्फा) हूँ , मैं ही अन्त आपको अपने तथा अन्य लोगों के विषय में बताएंगे। (ओमेगा) हूँ और वे श्री गणेश का अवतार थे। इस आप यदि इन चक्रों को ठीक करना सीख लें तो बात को प्रमाणित किया जा सकता है। एक अन्य अपने तथा अन्य लोगों के चक्रों को भी ठीक कर चीज़ जो है वह यह है कि एब बार जब आपको सकते हैं। यह सातों चक्र ही आपके शारीरिक, आत्मासाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो आप अपने मानसिक तथा भावनात्मक तथा सर्वोपरि आपके हाथों से शीतल लहरियाँ अनुभव करने लगते हैं आध्यात्मिक अस्तित्व के लिए जिम्मेदार हैं। तो आप और परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति को अपने चहूँ ऐसा कर सकते हैं और यही वह व्यक्तित्व है जो पूर्ण मानव है। जिसमें कोई द्वंद नहीं है । वह अन्दर ओर महसूस करते हैं। इससे आप जान जाते हैं कि आपका कौन सा चक्र पकड़ा हुआ है दाएं और से पूर्णतः शान्त होगा और बाहर से अत्यन्त निर्मल बाएं दोनों हाथों पर सात-सात चक्र हैं। अपनी तथा प्रेममय। वह सभी के हृदय जीत लेगा। हमारे अंगुलियों के सिरों पर आप आसानी से भिन्न चक्रों एक सहजयोगी थे जो पहले लन्दन में थे फिर को महसूस कर सकते हैं। एक छोटा सा बच्चा भी 1 इटली चले गए। इटली जाकर मुझसे कहने लगे मई चैतन्य लहरी 39 जून, 1997 कि श्री माता जी मैं अत्यन्त हताश हूँ। यहाँ कोई कारण इन लोगों के लिए वहाँ हमारे पास अधिक अन्य सहजयोगी नहीं है। मुझे बहुत अकेलापन प्रबंध भी नहीं होते फिर भी लोग वहाँ आते हैं और महसूस होता है। तब हमने वहाँ एक कार्यक्रम जहाँ हो सकता है हम उन्हें ठहरा देते हैं और वे किया और अब रोम में हजारों सहजयोगी बन गए इसका आनन्द लेते हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या हैं। इस प्रकार सहजयोग फैलना शुरु हुआ। मैंने यहाँ आपको कष्ट नहीं होता? तो कहने लगे श्री इसे नहीं फैलाया है। जहाँ तहाँ जाकर सहजयोगियों माता जी हम तो केवल आत्मसुख खोज रहे ने यह कार्य किया। मानो कुछ बीजों को यहाँ से यही सुखदायी होता है। वहाँ ये लोग मुझे छोटी-छोटी स्थानान्तरित करके भेज दिया गया हो और वहाँ सुविधाओं के लिए परेशान नहीं करते। सभी राष्ट्ों अंकुरित होकर सहजयोग वृक्ष लहलहा उठा हो। के लोग मिलकर आनन्द लेते हैं इतनी शान्तिमय हैरानी की बात है कि इन सहजयोगियों में अत्यन्त तारतम्यता, इतना सुन्दर आनन्द प्रवाह! निःसन्देह प्रेम है। कभी-कभी वे एक दूसरे की टाँगें भी खींचते अब अफ्रीका में 400 अत्यन्त दृढ़ सहजयोगी परन्तु सदैव वे आनन्द और खुशी से परिपूर्ण होते हैं। अभी तक मैं कभी अफ्रीका नहीं गई। हैरानी हैं विरोध और प्रतिस्पर्धा जैसी तुच्छ चीजें समाप्त 1 3 की बात है कि अफ्रीका के एक शहर में 400 हो जाती हैं। यह दोष उन्हें पसन्द नहीं है क्योंकि सहजयोगी हैं। अब ये क्या कर रहे हैं- बस वे सन्त बन चुके हैं और लोग. कहते हैं कि ये अधिकाधिक सहजयोगी बना रहे हैं। यही उनकी परमात्मा के बन्दे हैं तथा वे इस दिव्य प्रेम के कार्यशैली है। वे कहते हैं कि यदि आपको मानसिक उत्तराधिकारी बन जाते हैं। वे केयल इसके योग्य ही. शान्ति चाहिए तो आत्मसाक्षात्कार एकमात्र उपाय नहीं, ये उनका जन्मजात अधिकार है। उनकी है। यही माँ का 'प्रलोभन' है। माँ ने यदि औषधि भी संख्या आश्चर्यचकित रूप से बढ़ रही है । मेरी तो देनी हो तो चाकलेट में मिलाकर देती हैं। इसी समझ में ही नहीं आता क्योंकि कभी तो कैवल एक प्रकार आप भी कह सकते हैं कि यदि वास्तव में आप मानसिक शान्ति चाहते हैं, एकता चाहते हैं तो यह कार्यान्वित हो सकती है। आरम्भ में ही मैंने दो सूफी हुआ करते थे जो कष्ट झेलते रहते थे। सहजयोगी कभी तुर्की भाग रहे हैं कभी ट्युनिशिया। ट्युनिशिया में तो मैं यह देखकर हैरान थी कि ज्यों ही लोगों ने आत्मसाक्षात्कार लिया उनकी छोटी-छोटी आपको बताया था कि यह अति महान विद्या है और यदि वह विद्या आपके पास है तो सहजयोग बहुत समस्याएं समाप्त हो गई। निःसन्देह यह आपको ही तेजी से बढ़ेगा क्योंकि लोगों में स्वाभाविक, स्वतः रोगमुक्त करता है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं। और अन्तर्जात प्रेम उत्पन्न करने का यही एकमात्र रोगमुक्त करके यह व्यक्ति को पूर्ण मानसिक शान्ति मार्ग है। हर वर्ष, हर माह हमारे कार्यक्रम होते हैं। प्रदान करता है। आप अपने आप में तथा अन्य गणपति पुले नामक दूरदराज़ एक स्थान पर हमारा लोगों के प्रति शान्त होते हैं क्योंकि आपमें शान्ति कार्यक्रम होता है। गरीब, अमीर सभी प्रकार के भाव विकसित हो जाता है जिसके द्वारा आप मात्र लोग विश्व भर से वहाँ आते हैं। धनाभाव होने के देखते हैं, प्रतिक्रिया नहीं करते और इस प्रकार स्वयं की 15 ाि ंवि ब 1824 ति श निर्मल धाम LIA MAL ि की भात हि २ हे ण क पति ---------------------- 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt DRA 1997 RTERNAL PURE अंक 5 व 6 चैतन्य लहरी म लम आपका मस्तिष्क यदि घमण्ड से परिपूर्ण है तो आप कभी सहजयोग को नहीं समझ सकते। आत्मा के विषय में जानने के लिए आपको गहनता में उतरना होगा और गहनता में उतरने के लिए वे सब विचार त्यागने होंगे जो आपको हवा में उड़ाते हैं। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जन्मदिवस पूजा (दिल्ली) 21.3.97 MOIDITEN 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt WA NIRMAT NIVERSAL PURE RELIGI चैतन्य लहरी विषय सूची खंड Ix 1997 अंक 5 व 6 (1) सहस्रार पूजा 4 मई 1997 कबैला (2) प्रेरणा (3) जन्मदिवस पूजा 21.3.97 दिल्ली 13 कम (4) शिवरात्रि पूजा 16.3.97 दिल्ली र 18 (5) दिवाली पूजा 10 नवम्बर, 1996 पुर्तगाल 22 (6) अन्तर्राष्ट्रीय एकता प्रतिष्ठान 6.4.1997 नई दिल्ली 34 DHARMA VMHSIA 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। चाक क॥ जु ा वगे प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 ल र ई' मेल का पता- ा marketing@nirmalinfosys.com dEvsc: www.nirmalinfosys.com प Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ह०ी पत ली १० ता 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt ान ३ काम प्रेरणा द ला न माँ के अथक प्रयास को जति |४ फिर भी भटक रहा क्यों बेकार है मनुष्य आगे बढ़ाना है तुम्हें मंजिल अभी दूर है माँ अवतरित हैं, चलते ही जाना है तुम्हें।। कल्याण करने को, आह्लादित हैं, व्याकुल हैं, चिन्तित हैं, दात्री हैं, ज्ञान की रोशनी से म श प्यार के इस सागर से, काम हि दिल की गहराइयों से ज्ञाता हैं, तब भी देखकर रो देती हैं आमन बुझते हुए चिरागों को रोशन करना है तुम्हें मनुष्य की अज्ञानता को।। अिता पपात पतड उठो संभलो, विचारो, आगे ही बढ़ना है तुम्हें।। Thia विश्व, निर्मल धर्म को पत्थ द अर्ध विकसित हो अभी चहुँ ओर फैलाओ ना पूर्ण खिलना है तुम्हें क माँ के आदर्शों पर ही ज्ञान, के दीपक हो तुम इस तम को शीघ्र मिटाओ।। च सदैव चलना है तुम्हें।। लिड इस घने अंधकार में उजाले की किरणे हो तुम हा प्यार ही प्यार है, ाम परम चैतन्य अपार है, इस फैले भष्टाचार में सभी से पृथक हो तुम शक्ति अपरम्पार है, माँ के आशीर्वाद से प्रकाश चारों ओर है. आम आशीर्वादित हो तुम।। का 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt ८ सहस्रार पूजा कबैला - 4 मई 1997 परम पूज्य माता जी श्री निर्भला देवी का प्रवचन माध्यम से सहस्रार को अधिक शक्ति पहुँचाने लगती है और स्वाधिष्ठान स्थित धर्म की शक्ति भी इसके आज हम सब यहाँ सहस्रार पूजा करने के किया है लिए एकत्रित हुए हैं। आप सब ने महसूस कि सहस्रार हमारे सूक्ष्म तंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साथ बहने लगती है। ऊर्ध्व गति को पा यह शक्ति हिस्सा है। निः सन्देह यह एक महान दिन है. वर्ष सहस्रार में उठने लगती है। तब तक, मैं कहूँगी, हम 1970 में इसी दिन यह चक्र खोला गया था। परन्तु इससे आपने क्या प्राप्त किया, यह हमें देखना है। के विषय में कट्टर भी हो सकता है। मैंने ऐसे उठते हुए कुण्डलिनी सर्वप्रथम आपके लोग भी देखे हैं जो इतने कट्टर हैं कि वे स्वाधिष्ठान में जाती है जहाँ आपका धर्म है और उन लोगों से मिल तक नहीं सकते जो आपका धर्म स्थापित हो जाता है। नाभि चक्र पर, आप कह सकते हैं, नाभि चक्र के चहूँ ओर, आपका नहीं कर सकते और सदा ऐसे लोगों से मिलने धर्म जो कि अन्तर्जात, पवित्र एवं शाश्वत धर्म है. से घबराते हैं जो सहजयोगी नहीं है। बेशक स्थापित हो जाता है। तब कुण्डलिनी ऊपर को आसुरी प्रवृत्ति लोगों, जो सहजयोग के विरुद्ध उठती है। धर्म के स्थापित होने के भी हम समाज से थोड़े से अलग होने लगते हैं क्योंकि हमें आपको कोई आवश्यकता नहीं परन्तु जो लोग होता है कि लोग अधर्मी हैं। उनका कोई सत्य साधक हैं, उनके पास जाना हमारा पूर्ण सहजयोगी नहीं होते। क्योंकि व्यक्ति सहजयोग सहजयोगी नहीं हैं वे उन लोगों से बात तक हैं, इसके विरुद्ध बातें करते हैं, से मिलने की बावजूद महसूस धर्म नहीं। हमें यह भी लगता है कि उनके अधर्म के कत्त्तव्य है। अतः जब धर्म मस्तिष्क में स्थापित कारण कहीं हममें पकड़ न आ जाए अतः उस होने की स्थिति में पहुँच जाता है तब हम धर्म स्थिति में हम सहजयोग की सीमाएं नहीं लांघना से ऊपर उठ जाते हैं, धर्मातीत हो जाते हैं। चाहते, सहजयोगियों तक, सहजयोग के कार्यक्रमों धर्मातीत होना अर्थात् धर्म हमारे अस्तित्व का तक और अपने निजी सहज जीवन तक सीमित अंग-प्रत्यंग बन जाता है। इससे हम वंचित रहना चाहते हैं। निःसन्देह यह महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम नहीं हो सकते। सहज धर्म हमारा अंग-प्रत्यंग इस चक्र का पोषण होना आवश्यक है क्योंकि यह नाभि चक्र के चहूँ ओर, जिसे आप स्वाधिष्ठान के आपको कोई कर्म काण्ड नहीं करना पड़ता, अन्य नाम से जानते हैं, घूमता है। ये स्वाधिष्ठान चक्र लोगों से मिलने में आपको कोई घबराहट नहीं होती, एक प्रकार से अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको यह चिन्ता नहीं होती कि आपकी चैतन्य मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है। जब धर्म लहरियाँ बिगड़ जाएंगी, किसी से आपको पकड़ स्थापित हो जाता है तो शक्ति कुण्डलिनी के नहीं होती। नकारात्मक शक्तियों की पकड़ भी बन जाता है और यह एक महान उपलबधि है क्योंकि तब 1 सूक्ष्म পা 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी सत्य पर खड़े हैं। सत्य धर्म से कहीं अधिक महान आपको नहीं होती। कोई आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। इसे मैं आपकी श्रद्धा का पूर्ण होना कहती है। उदाहरणार्थ : एक व्यक्ति जो सत्य पर खड़ा है, हूँ। सहस्रार इतना ज्योतिर्मय हो जाता है कि आप उसे व्यर्थ के धार्मिक विचारों की चिन्ता नहीं होती। धर्म बन जाते हैं। हम ईसा का उदाहरण दे सकते सहज धर्म के विषय में भी वह चिन्ता नहीं करता कि हैं। ईसा ने देखा कि एक वेश्या को पत्थर मारे जा आखिरकार यह सहज है, यह सहज नहीं है। वह रहे हैं। अब ईसा का वेश्या से क्या लेना-देना। इससे ऊपर उठ जाता है, अर्थात् वह अपने अन्दर परन्तु जब उन्होंने उस पर पत्थर पड़ते हुए देखे तो ब्रह्माण्डीय सत्य को देखता है। वह उस सत्य को उसके सामने जाकर खड़े हो गए और लोगों से देखता है जो सर्वव्यापक है। वह न केवल देखता है कहा कि जिसने कोई पाप नहीं किया वह मुझे परन्तु जानता भी है और महसूस करता है कि वह पत्थर मारे। सभी लोग हैरान हो गए कि ये वेश्या सत्य पर स्थिर है। तो धर्म का सत्य में पुष्पीकृत की तरफदारी क्यों कर रहे हैं! ये तो एक धार्मिक होना अत्यन्त सुन्दर घटना है और यह घटना आप व्यक्ति हैं, इन्हें भी वेश्या को पत्थर मारने चाहिएं। सबके साथ घटित होनी चाहिए। आप यदि केवल परन्तु वे तो सत्य पर खड़े थे। सहस्ार में जब यह धर्म के स्तर पर हैं तो बहुत सारी चीजें लटकती रह स्थापित हो जाता है तो आपके साथ भी बिल्कुल जाएंगी। मैंने लोगों को अहम् -ग्रस्त होते हुए, पैसा ऐसा ही घटित होता है। आप सत्य पर डट जाते बनाते हुए देखा है। कभी -कभी तो वे बिना मेरी हैं। धर्म और सत्य में थोड़ा सा अन्तर है। धर्म के हित में नहीं है। इस बारे में उनमें नम्रता नाम की में व्यक्ति अति धर्मी, असंगत रूप से धार्मिक चीज़ नहीं है, वे यह भी नहीं समझते कि सत्य पर बन सकता है। वह दायें या बायें को जा सकता खड़ै होना धर्म है या असत्य पर। तो हमें धर्म की है धार्मिक व्यक्ति स्वयं को अन्य लोगों से उच्च नींव-सत्य-पर जाना होगा। जैसा मैं पहले बता आज्ञा लिए ऐसे गलत कार्य करते हैं जो सहजयोग कोटि का मान सकता है। वह सोचता है कि अन्य चुकी हूँ, यह जीवन वृक्ष है जिसकी जड़ें मस्तिष्क में लोगों को बचाने की क्या आवश्यकता है ? उन्हें नर्क हैं और डालियाँ शरीर में । में जाने दो, कौन चिन्ता करता है। धार्मिक व्यक्ति में इस प्रकार का दृष्टिकोण पनप सकता है। होगा और यहाँ तक आप तभी पहुँच सकेंगे जब सहजयोग में मैंने कुछ ऐसे भी सहजयोगी देखे हैं आप सहस्रार में पूर्णतः स्थापित हो जाएंगे। हमारे जो अपनी ही विधियाँ शुरु कर देते हैं। आप ऐसा सभी विचारों या स्वरूपों की जड़ें सहस्रार में हैं। अब करें, यह ठीक रहेगा आप वैसा करें, वह ठीक हम धार्मिक हो गए हैं धर्म की जड़ क्या है ? हम रहेगा। वे धर्म पर स्थिर नहीं हैं इसलिए भी लोगों धार्मिक क्यों बनें ? धार्मिक बनने की क्या आवश्यकता को बताने लगते हैं कि ऐसा करो, वैसा करो। परन्तु है ? विश्व में बहुत से अति अधार्मिक लोग भी बहुत आपको हर चीज़ की जड़ों (तह) में जाना | सत्य बिन्दु तक जब आपका उत्थान हो जाता है अच्छी तरह से रह रहे हैं। कहने से मेरा अभिप्राय तो आप कोई कर्म काण्ड नहीं करते, कर्म काण्डों यह है कि बाह्य रूप से हमें लगता है कि वे अत्यन्त की आपको कोई आवश्यकता नहीं होती, कोई चिन्ता नहीं होती क्योंकि आप धर्म में स्थिर हैं, जबकि हम संभवतः सांसारिक मजे से वंचित हैं। तो के आपको प्रसन्न हैं, ठीक-ठाक हैं, और मजे ले रहे हैं। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 केवल धर्म की स्थिति में हमारे लिए चीजें बहुत हम एक उदाहरण ले सकते हैं। मान लो मैं किसी महत्वपूर्ण बन जाती हैं। सत्य पर खड़े हुए चाहे वे से मिलती हूँ और वह किसी अन्य व्यक्ति के विषय इतनी महत्वपूर्ण न हों। ऐसी बहुत सी चीजज़ों के बारे में सभी प्रकार की भली बुरी बातें बता रहा है तो मेरे में मैं आपको बता सकती हूँ कि सहजयोगी किस हृदय में उस व्यक्ति के लिए तथा वे बातें बताने वाले प्रकार डगमगा जाते हैं। धर्म की स्थिति प्राप्त करने के लिए तीव्र प्रेम उमड़ता है। तो मैं झूठ का सहारा के बाद भी वे कई बार डगमगा जाते हैं। मैंने उन्हें लेती हूँ, पूर्ण झूठ का, जो कि एक प्रकार से सत्य भी नशे, शराब तथा अन्य प्रकार के व्यसन त्यागते हुए है उस व्यक्ति से मैं कहती हूँ कि देखो तुम क्या देखा है। यहाँ तक कि उनकी भाषा में सुधार हो बाते कर रहे हो ? जिस व्यक्ति के विषय में तुम यह जाता है तथा उनका व्यवहार बदल जाता है। सब बता रहे हो वह तो सदा तुम्हारी प्रशंसा करता निःसन्देह वे पहले से अधिक विनम्र हो जाते हैं। रहता है और तुम इस तरह की बातें कर रहे हो! फिर भी वे इस बात के प्रति चेतन होते हैं कि अब वास्तव में यह सत्य नहीं है परन्तु आप झूठ का परन्तु वे धर्म पर खड़े हैं। इस चेतना को लुप्त होना है। सहारा लेते हैं, सत्य के दूसरे पहलू का ताकि उन सहस्रार की हमारी इस स्थिति में यह चेतना दोनों व्यक्तियों में आप मित्रता करवा सकें। तो प्रेम लुप्त हो जाती है क्योंकि 'सत्य प्रेम है और 'प्रेम का यही कार्य है कि यह लोगों को परस्पर समीप सत्य है। इस बिन्दु पर आकर कुण्डलिनी अनहद् लाने का प्रयत्न करता है, ऐसी बातें कहता है कि चक्र से मिलती है। आप जानते हैं कि हृदय की लोग परस्पर एक हो जाएं, उनमें एकता आ जाए। पीठ यहाँ (सहस्रार में) है । अतः जब कुण्डलिनी अतः जो भी युक्ति संगत विधियाँ हमने अपनाई हैं वे अनहद् चक्र का भेदन करती है तो मस्तिष्क में, लुप्त हो जाती हैं और हम समझने का प्रयत्न करते सहस्रार में, सत्य प्रवाहित होने लगता है, उस सत्य हैं कि लोगों के हृदय मिलाने के कौन से तरीके हैं अब आप सामूहिक चेतना में हैं। यह सामूहिक का जोकि प्रेम है। सत्य जो सत्य है तथा सत्य जो प्रेम है में अन्तर है। तो प्रेमवश ईसा ने उस चेतना यदि बाह्य है तो भी आप बहुत सी वेश्या का पक्ष लिया। निःसन्देह वे सत्य की जड़ों उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं जैसे आप सुन्दर में खड़े थे परन्तु उनके हृदय से प्रेम प्रवाहित हो आश्रम बना सकते हैं आदि। परन्तु यदि सामूहिक रहा था- पवित्र प्रेम। अतः किसी के लिए जब चेतना प्रेम से परिपूर्ण हो तब इसका आनन्द भी हमारे अन्दर पवित्र प्रेम होता है तो हम चीज़ों को सम्पूर्ण होता है। लोग शानि्ति की बातें करते हैं इस अलग ढंग से देखते हैं। किसी व्यक्ति को हम नवीन चेतनता, जिसे हम सामूहिक चेतना कहते हैं, अलग ढंग से देखते हैं और यह बहुत मधुर हो के बिना शान्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। परन्तु जाता है, अन्यथा सत्य तो बहुत कड़वा तथा कष्टदायी सामूहिक चेतना में भी प्रेम तत्व का होना आवश्यक हो सकता है। परन्तु प्रेम से अलंकृत सत्य बिना है उदाहरणार्थ जर्मनी और आस्ट्रिया के सहजयोगी कांटों के फूल सम है। प्रेम से सराबोर व्यक्ति का सत्य पर खड़े होना अत्यन्त दिलचस्प बात है। है इज़राइल के लोगों को इस पूजा के लिए आते आपको भी इसी प्रकार का व्यक्तित्व बनना होगा। देख मैं प्रसन्न हुई और तभी मुझे पता लगा कि अब प्रेम की अभिव्यक्ति को समझने के लिए मुसलमानों द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों को अब इज़राइल जा रहे हैं। यह बहुत ही सन्तोषदायक ल 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 भुलाकर वे मिश्र आ रहे हैं। अपने साथी लोगों, सुना होगा, गंगा के समीप सुन्दर जमीन ले ली है। अन्य सहजयोगियों के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति लेकिन लोग सोच रहे हैं कि क्या वे अपने-अपने करने का आकर्षण वास्तव में प्रशंसनीय है और एक घर तथा अपने-अपने सहन बना सकते हैं। क्यों? बार जब यह प्रवाहित होने लगता है तो आप हैरान आप सामूहिकता में रहना जानते हैं। सामूहिक रह जाएगें, किस प्रकार हम विश्व को परिवर्तित कर जीवन का आप आनन्द लेते हैं। तो क्यों आपको सकते हैं। अधिकतर समस्याएं, मानवीय समस्याएं, घृणा क्या छुपाना है ? आखिरकार जो भी कुछ हम करते अलग-अलग घर चाहिएं ? हमने एक-दूसरे से के कारण है। 'मैं घृणा करता हूँ का उपयोग आम हैं उसका पता चैतन्य लहरियों पर चल जाता है। बात है। यह मूर्खतापूर्ण है। किसी से घृणा करना आप कुछ छुपा नहीं सकते तो अलग-अलग घरों अपराध है। आप क्यों किसी से घृणा करते हैं ? की क्या आवश्यकता है? आप गोपनीयता क्यों आप अपराध से घृणा कर सकते हैं, बुराई से घृणा चाहते हैं ? सहजयोग में क्योंकि कुछ भी गोपनीय कर सकते हैं परन्तु मात्र घृणा के लिए लोगों से नहीं है, हम सबके विषय में जानते हैं कि वे क्या घृणा नहीं कर सकते। हममें यह जो घृणा है यही हमारी समस्याओं के लिए जिम्मेवार है। लोगों में कौन से चक्र पकड़ रहे हैं, क्या ऐसा नहीं है? तो फूट डालकर एक व्यक्ति बहुत शक्तिशाली हो सहजयोग में किसी प्रकार का कोई रहस्य नहीं है । जाता है और फूट डालने वाली इन्हीं प्रवृत्तियों ने हर आदमी हर दूसरे के विषय में जानता है अतः बहुत से देशों को कुचल डाला। उदाहरणार्थ : मेरी समझ में नहीं आता कि एकान्तवास का क्या अंग्रेज़ों ने हमारे देश का विभाजन किया, अब उन्हें लाभ है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि अभी तक करना चाहते हैं, उनकी समस्याएं क्या हैं, उनके विभाजन का सामना करना पड़ रहा है। इसका मस्तिष्क इस ओर कार्य कर रहा है। कोई अन्त नहीं है। हमारा विभाजन होने से क्या हुआ? भारत से अलग हुए देश बहुत कष्ट उठा रहे हैं। मैं कह रही थी कि ठीक है आप लोग हैं। देश का विभाजन करने वाले लोग सोचते हैं कि उत्तराधिकार बना लें परन्तु यदि आपका पुत्र वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे आदि। उनमें से अधिकतर सहजयोगी नहीं है तो आप क्या करेंगे? आप किसी की उन्हीं के लोगों ने हत्या कर दी। आप स्पष्ट अपराधी को तो वारिस नहीं बना सकते क्योंकि वह देख सकते हैं कि किस प्रकार घृणा की अभिव्यक्ति तो सबको कष्ट देगा। नियम कानून आपको प्रसन्न होती है। एक छोटे से बिन्दु से इसकी शुरुआत तथा सामूहिक नहीं रख सकते है । परन्तु पवित्र होती है और सर्वत्र इसकी अभिव्यक्ति होती है। सामूहिक चेतना और इससे निकला प्रेम यह कार्य विभाजित होने वाले किसी भी देश में यह देखा जा कर सकता है। आप जानते हैं कि हमारे यहाँ न तो सकता है। किसी भी देश का विभाजन करने की कोई कायदे का संगठन है, कोई पादरी बना नहीं, कोई आवश्यकता नहीं। विभाजन अधिक घृणा तथा इस प्रकार का हमारे यहाँ कुछ भी नहीं। अगुआ कष्टों की सृष्टि करता है। इसी प्रकार सहजयोग में भी हमें विभाजन के सकता है कि शायद गंगा नदी भी अपना विषय में कभी नहीं सोचना चाहिए। अब, आपने मार्ग इतना परिवर्तित नहीं करती तो इस फिर लोग उत्तराधिकार के विषय में सोच रहे गणों का भी परिवर्तन इतना अधिक किया जा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt मई चैतन्य लहरी जून, 1997 प्रकार का कुछ भी नहीं है सदैव हम एक परिवर्तनीय हम खिलवाड़ करेंगे, परस्पर यदि हम घृणा भाव तट पर खड़े हैं और आपकी माँ सदा भिन्न किस्मों रखेंगे, विभाजित करने वाली विधियाँ अपनाएंगे, की चालाकियाँ करती रहती हैं। इसका कारण यह किसी असहज चीज़़ को अपनाएंगे तो यह क्रोधी है कि मैं चाहती हूैँ कि आप चट्टान पर खड़े हों देवता हमारे सिर पर बैठा हुआ है। मक्का में भी और इस चट्टान से प्रेम प्रवाहित हो, इससे ऐसा शिव मक्केश्वर के रूप में बैठे हुए हैं। आप यदि दिव्य प्रेम बह निकले जिसका आनन्द वास्तव में दुराचरण करेंगे तो इनका क्रोध प्रकट होगा जहाँ बहुत सुन्दर होता है। उदाहरणार्थ : लोगों को भी हो, आप सावधान रहें कि यह शिव सर्वत्र अलग स्नानागार चाहिएं, विशेषकर भारतीयों को । अचानक भारतीय अंग्रेज बन गए और अंग्रेज भारतीय| मेरी समझ में नहीं आता कि भारतीयों को यह में है। वहाँ पर लोगों ने एक अन्य प्रकार का विद्यमान है। एक शिवलिंग अलातू, महाराष्ट्र में, परलीपैताल बीमारी क्यों है ? यह बीमारी अन्य लोगों तक भी सहजयोग शुरु कर लिया था । वे लोग गणेश फैल रही है। सामूहिक जीवन में इसकी कोई विसर्जन के दिन शराब पी रहे थे शिवलिंग का आवश्यकता नहीं। हमें इसका पता ही नहीं होता। प्रकोप आया और यहाँ एक भयानक भूकम्प आ आप यदि मुझसे पूछे तो मुझे पता ही नहीं होता कि गया इसमें बहुत से लोग मारे गए परन्तु किसी भी मैं स्नान गृह में गई भी हूँ या नहीं। वहाँ गए और सहजयोगी को कुछ नहीं हुआ उनके ध्यान केन्द्र पुले 1 वापस आ गए, बस। इन सब चीज़ों के लिए मेरे भी पूरी तरह से बच गए । पिछली बार (गणपति पास समय नहीं है। इसी प्रकार आपके पास भी में) आप जानते हैं, एक भयानक आग लगी परन्तु एक ऐसे समाज की धारणा होनी चाहिए जो समुद्र आप लोगों को कोई भी हानि नहीं पहुँची। आप की तरह रहता है। समुद्र यदि उठता है तो वे उठें सुरक्षा में हैं, हर समय सुरक्षित हैं। शिव का वहाँ और समुद्र यदि गिरता है तो वे गिरें बस प्रेम की कोई प्रकोप न था। आग आपको कोई हानि नहीं एकस्वरता । हिमालय की वादियों में मैं एक ऐसे पहुँचा सकी क्योंकि आप सुरक्षा में थे। यह सुरक्षा समाज की आशा कर रही हूँ और मुझे विश्वास है आपकी माँ का प्रेम है, इसके अतिरिक्त यह कुछ भी आप सब इस बात को महसूस करेगें कि क्यों नहीं। केवल आपकी माँ का प्रेम है जोकि अत्यन्त हिमालय विश्व का सहस्रार है। सौभाग्यवश इस शक्तिशाली है और आपकी सुरक्षा कर रहा है, कार्य को मैं सहस्रार पूजा से पूर्व करना चाहती थी और, मैं कहूँगी, हिमालय की कृपा अपने अन्दर अन्य लोगों के लिए ऐसा ही प्रेम हिमालय सहस्रार सम है जिसमें कुण्डलिनी उठ चुकी है और चैतन्य लहरियाँ जिससे बाहर आ रही लोगों के लिए, अन्य चीजों के लिए, पृथ्वी माँ के हैं। आकाश में आप इन चैतन्य लहरियों को देख लिए, हर चीज़ के लिए । आपका प्रेम न केवल आप सकते हैं। आपकी सहायता कर रहा है। इसी प्रकार आप भी से यह हो गया। विकसित करें, अन्य सहजयोगियों के लिए, अन्य ही की रक्षा कर सकता है परन्तु अन्य लोगों की म यमड परन्तु हिमालय पर शिव नामक एक क्रोधी भी रक्षा कर सकता है। आपका चित जब तक आप देवता का शासन है। इसकी यह भयानक बात है। ही पर है तो आप क्षुद्रतर होते चले जाएंगे। मुझे यह अतः हमें बहुत अधिक सावधान होना होगा यदि मिलना चाहिए. मुझे वह मिल जाना चाहिए। मैं यह 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt मई चैतन्य लहरी जून, 1997 पसन्द करता हूँ, मुझे वह पसन्द है। ये सब बातें तो धुनकी में से आवाज आती है- "तूही, तूही, तूही" समाप्त हो जाएंगी। आप कभी नहीं कहेंगे कि मुझे अर्थात् आप ही हैं, आप ही हैं, आप ही हैं। और यह यह पसन्द है, ऐसा कहने का कोई प्रश्न ही नहीं । धुन चहूँ ओर फैलती है। इसी प्रकार आपको भी मुझे क्या पसन्द है ? यह निर्णय करना मेरे लिए अन्य लोगों के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए। कठिन है कि मुझे कौन सी चीज़ पसन्द है । मुझे यह पसन्द है, वो पसन्द है। मैं इस प्रकार होना गुरु या परमात्मा से कहते हैं कि 'आप ही हैं', मुझमें पसन्द करता हूँ। आप हैं कौन ? स्वयं से प्रश्न पूछे अब कुछ नहीं बचा, मेरा विलय हो गया है, विलय कि आप हैं कौन ? यदि आप पवित्र आत्मा हैं तो होकर मैं प्रेम के सागर से एक हो गया हूँ। तब आप यह प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। और प्रेम में अन्य लोगों को कहते हैं- आप दूसरों के विषय में सोचते हैं दूसरों की संस्कृति है। समस्याओं के विषय में सोचते हैं अन्य लोगों को विछ सर्वप्रथम जब आप "तूही" करते हैं तो अपने तूही, तूही। यही सहज तो बहुत सा असत्य समाप्त हो जाएगा। वह आप सुखी बनाना चाहते हैं। आप अन्य लोगों की असत्य जिसने आपको तथा अन्य लोगों को घेरा देखभाल करने का प्रयत्न करते हैं। केवल स्वयं को हुआ है जैसे लोग मुँह पर तो बड़े प्रेम से कहते हैं ही नहीं देखते, न ही केवल अपनी चिन्ता करते हैं। कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ परन्तु पीठ पीछे आपका यही अवस्था आपने प्राप्त करनी है। चाहे आप अहित करने की चेष्टा करते हैं। वे कुछ भी कर जितने भी धार्मिक हों, जिस प्रकार भी सहज हों सकते हैं परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु जब तक अपने सहस्रार में आप यह स्थिति मैं कहूँगी कि सहजयोगी उस स्थिति पर पहुँच गए नहीं पा लेते, मैं नहीं कहूँगी कि आप ठीक हैं। हैं जहाँ वे ऐसा नहीं कर सकते, कम से कम इसके आपको इसे पाना होगा इसके लिए. निश्चित रूप विषय में चेतन तो हैं कि हमें ऐसा नहीं करना। हम शराब नहीं पीते, तो क्या हुआ। खाने के विषय में इस कार्य में आपका मस्तिष्क बाधा बनता है, हम हंगामा नहीं करते। मेरा कहने से अभिप्राय यह यही हर समय आपको बताता रहता है। मस्तिष्क है कि उन्होंने यह सब प्राप्त कर लिया है। इस पर पर नज़र रखें, किस प्रकार यह आपका मार्गदर्शन उन्हें बहुत गर्व है क्योंकि आप पवित्र आत्मा हैं करता है, किस प्रकार यह आपको बताने का प्रयत्न इसलिए आप ऐसे बन गए। जो आप हैं उस पर करता है कि अब मेरा, मेरे घर का, मेरे बच्चों का, आपको गर्व कैसे हो सकता है ? उदाहरणार्थ किसी मेरे देश का, क्या होगा। आप मेरा, मेरा, मेरा करते ने मुझ से पूछा कि आप को इस बात पर गर्व नहीं रह जाते हैं। अन्ततः बिना कुछ प्राप्त किए आपका है कि आप आदिशक्ति हैं ? उसका यह प्रश्न मुझे से, ध्यान-धारणा अत्यन्त आवश्यक है। अन्त हो जाता है। परन्तु जब आप तू, तू, तू कहते समझ नहीं आया। मैंने कहा देखो यदि मैं आदिशक्ति हैं, कबीर जी ने इसके विषय में एक बहुत सुन्दर हूँ तो इसमें गर्वित होने वाली कौन सी बात है चीज़ लिखी है, उन्होंने कहा कि बकरी जब जीवित क्योंकि मैं तो वह हूँ। यदि मैं वह स्थिति प्राप्त करती होती है तो "मैं , मैं" करती है। परन्तु मरने के तब मैं इस पर गर्वित होती। आप मानव हैं, मानव पश्चात् उसकी अंतड़ियों को निकाल कर जब कपास धुनने वाली धुनकी पर लगा दिया जाता है रूप में आपका जन्म हुआ। तो क्या आपको इस पर गर्व है? आपको इस पर गर्व नहीं है इसके प्रति 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt मई चैतन्य लहरी 10 ा जून, 1997 आप चेतन नहीं हैं। मैं कभी स्वयं से नहीं कहती कि समय पहले लिखा गया था कि हमें सत्य बोलना मैं आदिशक्ति हूँ। ऐसा करने की कोई आवश्यकता चाहिए, ऐसा सत्य जो लोगों को अच्छा लगे 'सत्यम् नहीं। परमात्मा ने मुझे आदिशक्ति होने के लिए वदेत् प्रियम् वदेत्' । तो लोगों ने पूछा ऐसा सत्य चुना है। परन्तु लोग समझते हैं कि परमात्मा ने जिसमें ये दोनों चीजें हो हमें कैसे मिल सकता है ? उन्हें सहजयोग का वरदान ऐसे दिया है मानो हो सकता है कि सत्य भेंट करने योग्य न हो, या जागीरदार बना दिया हो। आपको सहजयोगी बनना ऐसा हो जिसे लोग पसन्द करें। तो इन दोनों गुणों है। और फिर समझना है आप सहजयोगी हैं। जैसे का मिश्रण किस प्रकार किया जाए? कृष्ण जी ने मान लो एक पत्थर सोना बन जाता है, तो वह सोना इसका एक बहुत सुन्दर उत्तर दिया। उन्होंने कहा है। उसे इसका गर्व नहीं होगा कि वह सोना है। 'सत्यम् वदेत् हितम् वदेत्, प्रियम वदेत् । आप सत्य सोना तो सोना है, इस पर गर्व कैसा। इसी प्रकार कहें परन्तु वह सत्य अच्छा हो, इसे पसन्द किया सहजयोगी होने की चेतना समाप्त हो जाती है । जा सके, यह आपकी आत्मा को पोषण दे सके, परन्तु ये अभी तक भी बनी हुई है। अतः व्यक्ति को इससे हित हो और यह 'प्रिय' भी हो। हो सकता है सावधान रहना है कि एक बार यदि आप सहजयोगी आरम्भ में लोग इसे पसन्द न करें परन्तु अन्त में वे बन गए तो सहजयोगी हैं। मैं एक सहजयोगी हैँ। कहेंगे कि देखो यह बात इतनी अच्छी है और मुझे तो क्या हुआ, कौन सी बड़ी बात है। ये तो ऐसे ही कही गई है। परन्तु किसी भी हालात में कोई भी कहना हुआ कि मेरी एक नाक है और नाक पर मुझे कठोर बात नहीं कही जानी चाहिए। सभी लोगों को गर्व है। परन्तु इसमें गर्व की कौन सी बात है। यह सुधारते फिरना आपका कार्य नहीं है। आरम्भ में मैंने मिथ्या गर्व समाप्त होना चाहिए। यह महसूस देखा कि सहजयोगी कहा करते थे, आपका यह करना बहुत महत्वपूर्ण है कि मेरे अकेले का कोई चक्र पकड़ रहा है। आपका वह चक्र पकड़ रहा है। अस्तित्व नहीं । मैं विराट का अंग प्रत्यंग हॅँ, (मेरी) ये सब अहम् का खेल है। किसी का तिरस्कार बूंद अब सागर बन गई है। मैं नहीं समझ पाती कि करना आपका कार्य नहीं। आप स्वयं ही एक अभी तक भी आपमें कुछ सीमांए बाकी हैं। इस अत्यन्त पवित्रावस्था से आए हैं अब आप अन्य प्रकार की चेतना आपमें तभी विकसित होती है जब लोगों का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं? यदि आप आप प्रेम से परिपूर्ण हो जाते हैं, केवल प्रेम से, और सहजयोग में योग्य हैं आपको इसका पूर्ण ज्ञान है. प्रेम आपसे फूट पड़ता है। और प्रेमानन्द में मस्त आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते चले जाते हैं की चुनौती के रूप में ले सकते हैं । परन्तु किसी के चाहे आप बोलें या मौन रहें, इसके विषय में कुछ दोष खोजते हुए उसे तिरस्कृत नहीं कर सकते। कहें या न कहें, मुस्करायें या न मुस्करायें, यह आनन्द आपके हृदय में विद्यमान होता है। अब हृदय चक्र। हृदय चक्र की पीठ सत्य के करना न जानता हो तो वह कहेगा कि तुम इसलिए प्रकाश से भर जाती है। परन्तु वह सत्य वैसा नहीं बीमार पड़े क्योंकि ठंड में चले गए। अरे बाबा है जैसा सत्य के विषय में हम जानते हैं। किसी ने ठीक है, परन्तु अब तो मैं बीमार हूँ। अब मेरे इलाज मुझसे पूछा कि सत्य क्या है ? मैंने कहा कि बहुत के बारे में आप क्या कहते हैं ? नहीं तुमने ऐसा आप अच्छी तरह से परिपक्व हैं, तब आप इसे प्रेम आप अगर ऐसा न करना चाहें तो इसके लिए बहुत बड़ा बहाना है। कोई डाक्टर यदि रोगी का इलाज तुम 1. 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी किया, तुमने वैसा किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना केवल अपने आनन्द के लिए करें। इस प्रकार जब चाहिए था। वह बीती हुई गलतियों के बारे में ही आप समाज में जाएंगे तो आपको पकड़ जाने का वे बातें करता रहता है। इसी तरह से हम भी डर है कि कहीं हमारा अहम् वापिस न आ जाए। लोगों को कहे चले जाते हैं कि तुमने यह अपने आप से डरते हैं। तो ये सब समस्याएं छोड़ दी गलती की, वो गलती की, फलां गुरु के पास जानी चाहिएं और आपको उस अवस्था तक पहुँचना गए, इसलिए आप ऐसे हो गए ऐसा न करें चाहिए जहाँ आपको कोई भय न हो और जहाँ किसी के साथ ऐसा न करें। कार्य करें और आपमें अपने विषय में ये मूर्खतापूर्ण विचार न हों। सब ठीक हो जाएगा। नि:सन्देह आप पूछ सकते आपमें शक्तियाँ हैं. आप शक्तिशाली हैं, इतना ही हैं कि क्या आप किसी गुरु के पास गए थे ? परन्तु नहीं आपको ये शक्तियाँ विशेष रूप से दी गई हैं। न तो उसका तिरस्कार करें और न ही आलोचना । आप यदि इनका उपयोग नहीं करना चाहते तो क्या लोगों की गलतियों के लिए उनका तिरस्कार करने करेंगे ? दीपक यदि जलाया नहीं गया तो की कोई आवश्यकता नहीं है। इसका कारण केवल इसका क्या लाभ है ? यह केवल सजाने के आपका एहसास (चेतना) है कि आप कहीं अच्छे हैं लिए है। तो इन शक्तियों का उपयोग होना और आपको कहीं अधिक ज्ञान है। निःसन्देह आप चाहिए और वह भी बिना इस बात के एहसास बहुत ज्ञानी हैं। आप जिज्ञासु (Gnostics) हैं मैं के कि आप कोई महान हैं, अन्य लोगों से स्वीकार करती हूैँ परन्तु जब तक आपको इसका बेहतर हैं या आपको विशेष रूप से चुना गया एहसास है, आप ज्ञानी नहीं हैं। एक बार जब है। तब सहजयोग गरिमा तथा सूझ-बूझपूर्वक आपमें इसका एहसास समाप्त हो जाएगा तब बहुत तीव्रता से चल सकता है। आप सहजयोगी बन जाएंगे। यह विकास मैं आप सभी के सहस्रार में चाहूँगी। हमें पूरे विश्व के विषय में सोचना है आप हँसे, उनका मजाक करें और इस प्रकार आप केवल सहजयोगियों तथा साधकों के विषय में ही समस्याएं सुलझा सकेंगे। परन्तु यह सब भी आपने नहीं सोच सकते। साधक तो हैं, परन्तु बाकी लोगों इस प्रकार करना है कि उन्हें चोट न पहुँचे। जो का क्या होगा ? बहुत सी समस्याएं हैं। बहुत से कुछ कार्य होने बाकी हैं। उदाहरणार्थ भारत में गरीबी ऐसे होने चाहिएं कि आप जान सकें कि किस प्रकार की समस्या है। मैं उनके लिए कुछ करने का प्रयत्न यह कार्यान्वित हो रहा है। कुछ लोगों में यह विवेक कर रही हूँ। आपके अपने देश में समस्याएं हैं उन होता है। मेरे विचार में बात को भली भांति पाने और समस्याओं को खोज निकालिए। उनके लिए आप कार्यान्वित करने का ज्ञान उच्चकोटि का विवेक है। एक प्रकार का आन्दोलन चला सकते हैं और जहाँ प्रेम, यह दैवी प्रेम आपको स्वयं पर पूर्ण नियन्त्रण तक हो सके उनकी सहायता कर सकते हैं। प्रदान करता है और आप जान जाते हैं कि लोगों से मिशनरियों (धर्म प्रचारकों) की तरह आपको किसी किस प्रकार आचरण करें, उनसे किस प्रकार बातचीत का धर्म परिवर्तन नहीं करना और न ही किसी करें और किस प्रकार उनका संचालन करें। यह ठीक है कि सभी प्रकार के उल्टे सीधे लोग हैं। आप जानते हैं कि वे मूर्ख हैं। बस उन पर | भी आप करें परिणाम से उसे आंके परिणाम | मैं नहीं जानती कि मानव का सबसे बड़ा दोष इनाम या यश के लिए ऐसा करना है। ऐसा आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt मई चैतन्य लहरी 12 जून 1997 कौन सा है। श्री कृष्ण के अनुसार क्रोध सबसे बड़ा का जीवन्त सागर है और हमें बिना किसी प्रदर्शन दोष है। परन्तु मेरे अनुसार यह दोष ईष्ष्या है। के, बिना अन्य लोगों पर प्रभुत्व जमाए यह चीज़ किसी भी प्रकार की ईष्षा, मेरे विचार में, फंफूद की अपने अन्दर विकसित करनी है। यही सबकुछ होना तरह से है। सहजयोग में भी लोगों में ईष्ष्या है। चाहिए। हिन्दी में इसे बहुत सुन्दर रूप से कहा जिसके कारण वे समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। वे गया है, " अपने में समाए हुए " आपके अन्दर ऐसा परस्पर समस्याएं उत्पन्न करने की कोशिश कर ही होना चाहिए। यही सबसे बड़ा आनन्द है। आप सकते हैं। अतः आपको अपने अन्दर देखना है कि जानते हैं कि हमें किसी चीज़ की आवश्यकता है। क्या मुझमें किसी प्रकार की ईष्ष्या है? कभी-कभी मान लो मुझे अपने लिए कुछ चाहिए तो मैं संघर्ष तो मुझे इसकी चिन्ता होती है। मान लो मैं किसी करके इसे प्राप्त कर लेती हूँ। परन्तु यही चीज़ यदि को कुछ उपहार देना चाहती हूँ। ऐसे अवसर पर आपके अन्दर है तो आप इससे अपने को पूरी तरह मुझे चिन्ता होती है कि इस प्रकार कहीं मैं ईर्ष्या की से भर लेते हैं। सृष्टि तो नहीं कर रहीं? ऐसा सोचना चाहिए कि संभवतः श्री माताजी भूल गई होंगी या चीजें कम किस चीज़ की इतनी अधिक आवश्यकता है ? होंगी। बस। परन्तु सहजयोग में लोगों में तीव्र ईष्ष्या किसी चीज़ की नहीं। आप पूर्णतः स्वयं से परिपूर्ण भाव है। अब मान लो मैं किसी से मिलती हूँ और हैं, अपने अन्दर सन्तुष्ट हैं और तब आप इस आनन्द किसी से नहीं मिलती हूँ। समाप्त। परन्तु जिससे मैं को बाँटना चाहते हैं। सहस्रार से निपटने का यह मिलती हूैँ उसके प्रति ईष्ष्या विकसित हो जाती है। आदर्श उपाय है मुझे पूर्ण विश्वास है कि लोग कई बार लोगों ने मुझ पर बहुत दबाव डाला कि श्री माता जी मैं आपसे अवश्य मिलूंगा। मैं नहीं समझ पाती क्यों ? मैं सर्वव्यापक हूँ। तो मुझसे मिलने की हमें लुप्त नहीं हो जाना है । आप वहाँ ध्यान और बातचीत करने की क्या आवश्यकता है ? क्या धारणा करने के लिए जा सकते हैं, संसार से आवश्यकता है ? केवल आप ही के लिए तो मैं नहीं पलायन करने के लिए नहीं। अपने उत्थान के हू। मैं सबके लिए हूँ। परन्तु कुछ लोग सोचते हैं लिए, ध्यान धारणा करने हेतु, ऐसे स्थान कि मुझ पर उनका विशेष अधिकार है और मुझे बहुत अच्छे होंगे। अवश्य उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहिए. अन्यथा उन्हें बुरा लगता है। जैसा कि मैंने कहा, कितने बहुमूल्य हैं और कितने महत्वपूर्ण । आप इस तो क्या चीज़ सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ? आएंगे। इस पूरे संसार का सहस्रार खोलना होगा। यह कार्य हमें करना है एकान्त स्थानों पर जाकर यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप 1. जब आप समुद्र बन जाते हैं तो यह सब चीजें समय अवतरित हुए, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया, एकदम छुट जानी चाहिएं। तब आपको यह चिन्ता किसलिए ? विश्व को मुक्त करने के लिए, मानव नहीं होती कि आप कौन से तट पर गए, आपने का परिवर्तन करने के लिए, पूरे विश्व को परमात्मा कहाँ यात्रा की। आप तो केवल समुद्र की लहरों के के साम्राज्य में लाने के लिए। आप इसी लक्ष्य प्राप्ति साथ ऊपर नीचे उठते रहते हैं। इस प्रकार यह प्रेम के लिए यहाँ पर हैं। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। (अनुवादित) THE | 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt जन्मदिवस पूजा 13 दिल्ली -21-3-1997 परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) ा ह अभी तक मैं भारतीय सहजयोगियों के लिए सहजयोग में आए और अब भी वे सोचना चाहते हैं कि वे अन्य लोगों से कहीं अधिक जानते हैं । बोल रही थी। मेरा जन्मोत्सव मनाने के लिए आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद। आपने अत्यन्त सन्दर आत्मा के विषय में जानने के लिए आपको गुब्बारे लगाए हैं। इनको देखते हुए हम पाते हैं कि गहनता में उतरना होगा और गहनता में इनमें से बहुत से गुब्बारों की हवा निकल गई है। उतरने के लिए वे सब विचार त्यागने होंगे जो क पश्चिमी देशों में ये एक समस्या है जो हमारे सामने आपको हवा में उड़ाते हैं। कल्पना करें कि एक बहुत बड़ा गुब्बारा आपके साथ बंधा हुआ है, तो आप खड़ी है। क्योंकि पश्चिमी संस्कृति के अनुसार अहं 1 समुद्र की गहनता में किस प्रकार उतर सकते हैं ? का होना भी महान उपलब्धि है और अहंग्रस्त जब नहीं उतर सकते। इस प्रकार का अहं आपको हवा हम होते हैं तो, मैं जानती हैं, व्यक्त कैसा लगता में उड़ा देता है, पूर्ण मूर्खता के क्षेत्र में। अंग्रेजी भाषा है। जब वह अपने विषय में बात करता है अपना गुणगान करता है तो वह अत्यन्त मुर्ख प्रतीत होता में शब्द (Stupidity) सारा अर्थ बता देता है। तब आप स्वयं को अनन्त मान बैठते हैं और मनमाने ढंग है। आपकी समझ में नहीं आता कि किस ओर देखें क्योंकि उसकी मुर्खता पर हैँसने को आपका मन से आचरण करते हैं। परन्तु ऐसा करके आपको मिलता क्या है ? इससे आपको कृुछ नहीं प्राप्त करता है। अहं मूर्खता की ही देन है। मेरी समझ में नहीं आता कि क्या कहूँ, अहं के लिए कौन सी होता। आपकी उपलब्धियों के कारण लोग आपसे ईष्ष्या करते हैं, आपको हानि पहुँचाना चाहते हैं, उपमा दें, क्योंकि यह गुब्बारा तो बस फूला हुआ है और आपको भी हवा में उड़ाता है। परन्तु जब यह अपका कोई मित्र नहीं बनता, कोई आपकी चिन्ता नहीं करता। सहजयोग में लोग जानते हैं कि किस व्यक्ति को अहं की समस्या है। ऐसे व्यक्ति के फटता है तो आप धड़ाम से पृथ्वी पर गिरते हैं। एक सहजयोगी की तरह पृथ्वी पर नहीं आते बिल्कुल विषय में बातें करते हुए मैंने कुछ लोगों को सुना है, समाप्त हो जाते हैं। आपका सारा घमण्ड व्यर्थ हो जाता है। आपकी खोपड़ी यदि घमण्ड से वे कहते हैं, हाँ हम उसे जानते हैं, भली-भांति परिपूर्ण है तो आप कभी सहजयोग को नहीं समझ सकते। अहंग्रस्त लोगों को मैं जानती हूैं, वे 1 जानते हैं। बहुत समय पूर्व एक बार पुणे में मुझे एक अनुभव हुआ। सभागार के मालिकों ने वहाँ कार्यक्रम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt मई - चैतन्य लहरी 14 जून 1997 बैठे महाशय को मैंने आने को कहा । वह नीचे की आज्ञा देने से इन्कार कर दिया क्योंकि श्री माता जी ब्राह्मण नहीं हैं। तो सहजयोगियों ने कहा कि आया और उस दिन से अपना जीवन मुझे समर्पित ठीक है हम अखबारों में छपवा देते हैं कि क्योंकि कर दिया। उसने पुणे में बहुत सा काम भी किया। श्री माता जी ब्राह्मण नहीं हैं हम उनका कार्यक्रम तो मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि जो भी करने में असमर्थ हैं। घबराकर वे मान गए और मेरे व्यक्ति इस प्रकार की बात करता है कि कार्यक्रम में आए। सभागार का मालिक ऊपर सहजयोग में यह गलती है, ऐसा नहीं होना गैलरी में बैठा हुआ था उसे कोई अजीब रोग था चाहिए. हमें इतने पैसे नहीं देने चाहिए थे, यह जिसके कारण वह चल भी नहीं पाता था। अगुआ अच्छा नहीं है आदि, तो ऐसे व्यक्ति सहजयोगियों ने एकदम प्रोग्राम आरंभ किया, इन्होंने को चाहिए कि एक पतला कागज अपने हाथ मुझे बताया भी न था कि सभागार के मालिकों ने पर रखकर हाथ मेरे फोटोग्राफ की तरफ कार्यक्रम का विरेषध किया था। मेरे सामने बैठते ही ये फैला ले। यदि हाथ के कँपन को आप रोक मालिक थर-थर कॉपने लगे। ओह माँ! मैंने कहा, सकें तो आप ठीक हैं। आप सब इसे आज़मा ये सब क्या हैं ? वे कहने लगे कि हमने कुछ नहीं- सकते हैं, दोनों हाथों पर कागज रखकर आप किया, हमने तो केवल इतना कहा था कि ये इसे आजमायें । यदि दाएं हाथ पर कागज में ब्राह्मणों का बाड़ा है और क्योंकि इस क्षेत्र में कंपन है तो इसका अर्थ है कि श्रीमान अहं अधिकतर ब्राह्मण रहते हैं इसलिए आप यहाँ अपना काँप रहे हैं और आप .जानते हैं कि आपने कार्यक्रम नहीं कर सकते। मैंने कहा सच, इतना ही सहजयोग में इसका इलाज किस प्रकार करना कहा आपने ? हाँ इतना ही वे कहने लगे कि है। मोहम्मद साहब का धन्यवाद कि उन्होंने उधर देखें, आपकी शक्ति से वे लोग भी कॉप रहे इसका इलाज करने कि विधि हमें बताई। हमारे अन्दर दो समस्याएं हैं, एक तो हमारें हैं। मैंने उन लोगों से पूछा कि वे कौन हैं। क्या आप भी ब्राह्मण हैं ? वे कहने लगे नहीं, हम ठाणे बंधन हैं और दूसरा हमारा अहं और अपने मन की से आए प्रमाणित पागल हैं मैंने कहा कि आप यहाँ सृष्टि हम इन्हीं दोनों से करते हैं, और इन्हीं दोनों कैसे आ गए ? वे कहने लगे कि एक पागल व्यक्ति के प्रभाव में हम खेलते हैं। अब आपको सावधान को आपने ठीक कर दिया था अतः हमारा होना है पहले अपने बाएं हाथ से देखें यदि सुपरिटेण्डेन्ट हमें यहाँ ले आया है, हम प्रमाणित बायें हाथ का कागज कांप रहा है तो आप पागल हैं। इन लोगों ने मेरी ओर देखा। मैंने कहा बंधनग्रस्त हैं और यदि दायां हाथ कांप रहा अब आप मुकाबला करें, आप भी कॉप रहे हैं और वे है तो आप अहंकारी हैं। अब इनका इलाज भी कांप रहे हैं, अब देखें कि आपकी स्थििति क्या है! करें, इन दोनों बाधाओं का इलाज करें मेरे वे सब सहजयोगी बन गए। इतना ही नहीं ऊपर सम्मुख आपको चैतन्य लहरियाँ आएंगी क्योंकि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt मई - जून 1997 चैतन्य लहरी 15 मैं आपकी माँ हूँ। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं में तैरते रहेंगे। लोगों में एक प्रकार का विवेक है जो कि आप ठीक हैं। आप मेरे फोटों के सम्मुख आत्मसाक्षात्कार से पूर्व नहीं हो सकता। मैं हैरान हूँ आजमाएं, फोटो अधिक शक्तिशाली है। माँ होने के कारण मैं चहूँ ओर लीला उन्होंने किस प्रकार अपनाया है। महान कहलाने करती हूँ, पर ये नहीं जानती कि मुझे क्या वाले, महान असूलों के, परन्तु बहुत उग्र स्वभाव के, कि कुछ लोग कितने गहन हैं और सहजयोग को कहना चाहिए। हो सकता है मेरे सम्मुख असहनशील लोग भी सहजयोग को इस प्रकार बैठकर आप महसूस न कर सकें। फोटो के अपना लेते हैं क्योंकि उनके अन्दर इतनी गहनता है सामने बैठकर अपने दायें और बायें हाथ पर कि हर चीज़ सुगमता से आत्मसात हो जाती है। सभी लोग प्राप्त कर सकते हैं परन्तु व्यक्ति बारीक पेपर रखें। एक-एक हाथ आगे करके आजमाएं और स्वयं को परखें कि आप क्या को अहं तथा बंधनरूपी अपने मस्तिष्क के दो पहियों हैं। आखिरकार आप सहजयोग में मेरा से सावधान रहना है। भारत में सभी प्रकार के बंधन उद्घार करने के लिए नहीं आए । स्वयं को हैं। पश्चिमी देशों में सभी प्रकार के अहं हैं, भिन्न-भिन्न विकसित करने आए हैं और इसलिए आपको प्रकार के मैं हैरान थी कि उसका सामना करने के अपना सामना करना होगा और स्वयं देखना लिए मैं क्या कहूँ! यह अत्यन्त सूक्ष्म चीज़ है जिसे होगा कि आपके अन्दर क्या है जो इतना लोगों ने अपने मस्तिष्क में बिठा लिया है। अतः शक्तिशाली हैं, कष्टदायी है और आपको आज आप लोगों के लिए यह निर्णय होना है कि अभी तक आप नन्हें बालक हैं और नन्हें बालकों की सहजयोग आनन्द के सागर के सिवाय कुछ तरह अपने अन्तस की शांति, पावित्र्य और सौंदर्य भी नहीं है। मैंने सोचा था कि मेरी गैर हाजिरी में को स्वीकार करने और आत्मसात करने के लिए पतन और विनाश की ओर ले जा रहा है । भी आप सब आनन्द ले रहे होंगे। ये ठीक भी है, आपके पास शुद्ध हृदय होना आवश्यक है। पवित्रता 1. आप आनन्द लेते हैं। कई बार मैने देखा है, हवाई के बिना आप आनन्द नहीं उठा सकते सहजयोग अड्डे पर जब मेरा जहाज देर से पहुँचता है, पाँच में यद्यपि बहुत लोग हैं, फिर भी प्राचीन सन्तों की घंटे, चार घंटे-तो भी प्रायः सभी लोग अत्यन्त पवित्रता को अभी हमें प्राप्त करना है। हमारे देश में तरोताजा होते हैं। मैंने पूछा क्या हुआ ? श्री माता भी बहुत से लोग हैं उदाहरणार्थ कल ये लोग जी हम सारी रात आनन्द लेते रहे। तो आप जिस अली के भजन गा रहे थे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई चीज़ का आनन्द लेते हैं वह है सामूहिकता। क्योंकि वे एक अवतरण थे। उनके पावित्र्य की अर्थहीन सीमाओं, जो आपने बनाई हैं, से मुक्त महिमा लोग अब गा रहे हैं । तब उन्हें सताया गया होकर आपको सामूहिकता का आनन्द लेना चाहिए। और उनकी हत्या कर दी गई। और बहुत से सन्त तब आप आनन्द को देखें । हर समय आप आनन्द हैं। दम-दम साहिब, निज़ामुद्दीन औलिया आदि। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt मई - जून 1997 चैतन्य लहरी 16 हमारे देश में इतने अधिक सन्त हुए जितने अन्य है हम एकीकरण में विश्वास करते हैं । फूट किसी देश में नहीं हुए। हमारे यहाँ ही इतने सन्त डालने वाली कोई भी चीज़ जब आपके मस्तिष्क में आती है तो तुरन्त आप इसे निकाल फेंके । आज के दिन में आप सब से ये प्रार्थना करती हूँ कि कृपया अन्तर्दर्शन करें, बिना अन्तर्दर्शन के आप स्वयं क्यों हुए ? इसलिए नहीं कि हम कोई बहुत अच्छे लोग थे, परन्तु इसलिए कि हमें सुधारना था। कार्य होने थे इसलिए वे यहाँ अवतरित हुए। यह योगभूमि है भारत में आप जहाँ कहीं भी जाएं मैं हैरान थी, का भी सम्मान नहीं कर सकते, स्वयं को भी प्रेम हरियाणा में बहुत से महान सन्त हुए. परन्तु उन नहीं कर सकते। आप यदि स्वयं को प्रेम करेंगे तो सबको सताया गया, कष्ट दिया गया, कभी उन्हें अन्तर्दर्शन भी करेंगे और अपनी गलतियों को ढूंढ समझा नहीं गया। यह इतना कृष्टदायी है और लेंगे। मान लो मुझे ये साड़ी पसन्द है तो इसके इससे आपके हृदय को चोट पहुँचती है कि किस विषय में मुझे यदि कोई संदेह होगा या इस पर प्रकार इन मूर्ख, अज्ञानी और अन्धे लोगों ने उन किसी प्रकार के धब्बे मुझे नजर आएंगे तो मैं इन्हें सन्तों को सताया। तो उन सब सहजयोगियों का साफ करूंगी। इस बात का मुझे कोई गर्व नहीं यह कर्त्तव्य है कि खोज निकालें कि सन्त कौन होगा, इधर-उधर जाकर मैं कहती न फिरूंगी कि है ? सहजयोग में भी, मैंने देखा है, लोग देखिए मेरी साड़ी पर इतने धब्बे हैं। इसी प्रकार दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं। आपको यदि आपके अन्दर जो भी असहज स्वभाव है आपको सत्य की पहचान और सूझ-बूझ नहीं है, उस पर गर्व नहीं होना चाहिए। और इस तरह आपको यदि इस बात का विचार नहीं है कि से बातचीत भी नहीं करनी चाहिए । ईसा ने ऐसे सत्य क्या है, प्रेम क्या है, शुद्ध करुणा क्या लोगों को 'कानाफूसी करने वाले' (Murmuring है तो आप सहजयोगी नहीं हैं। स्थूल दृष्टि Souls) कहा है। उन्होंने कहा कानाफूसी करने से आप व्यक्ति को देखते हैं। उसके गुणों को वालों से सावधान रहें मैं कहूँगी कानाफूसी करने नहीं देखते। एक तरफा। अब जबकि मैं इतनी वालों को बाहर निकाल दें । केवल यही उपाय है। वृद्ध हो गई हूँ, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप अपनी हिन्दी में उन्हें 'बकवासी' कहते हैं। वे वास्तव में दृष्टि अपनी ओर करें, अन्तर्दर्शन करें क्योंकि आप बकवासी हैं अर्थात् वे अन्य लोगों के बारे में सभी ही में से कुछ लोग आपके चित्त को भटकाने का प्रकार की उल्टी -सीधी बातें करते रहते हैं। अपने प्रयत्न करेंगे, उल्टी सीधी बातें कहने की कोशिश विषय में नहीं जानते कि वे क्या हैं। भारत में ये करेंगे। यह कहना अत्यन्त सुगम है कि वह बेईमान दोष, मैं स्वीकार करती हैँ, बहुत अधिक है। ऐसा है, चरित्रहीन है, यह कहना बहुत आसान है परन्तु कहने पर मुझे खेद है क्योंकि मैं भी एक भारतीय हूँ। दूसरों की बुराई करने की आदत है, बस बैठ गए आप क्या हैं ? अब हमें समझना है कि समन्वयन और गप-शप शुरु कर दी वे सहजयोग की बात (एकीकरण) द्वारा सहजयोग को दृढ़ करना आवश्यक 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt मई - चैतन्य लहरी जून 1997 17 नहीं करेंगे, कितने लोग सहजयोग को भली भांति ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक है। जानते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मुझे उपाधियाँ (Degrees) देनी हों तो आपको है, मौन साक्षी। जब मैं बड़े-बड़े पर्वतों को देखती हूँ कौन सी उपाधि दूँ ? आप मुझे बताएं। आप कि ये महान सन्त हैं जो सब कुछ देख रहे हैं और को तो अपनी चैतन्य लहरियों का ज्ञान नहीं विश्व में घटित होने वाली सभी घटनाओं को लिपिव्ध है। निःसन्देह आप सहजयोगी हैं क्यों कि कर रहे हैं, क्योंकि वे भी समझते हैं और जानते हैं। मुझे लगता है कि ये सभी कुछ आपका साक्षी मुझे आपको बार-बार बताना है कि स्वयं आप उत्थान प्राप्ति के जाल में फँस गए हैं। परन्तु वास्तव में कितने लोग इसमें विकसित को , अपने चक्रों को, अपने दोषों को देखने का हुए हैं ? आप विकसित हो सकते हैं। मैं बार-बार आपसे कहती हैँ कि मुझे प्रसन्न आनन्द प्राप्त होगा जिसका वचन दिया गया था। समय आज ही है। इसी से आपको वह स्थायी रखें। इसके लिए आपको सभी घटिया किस्म की आप निर्विचार समाधि को पा लेंगे और निर्विकल्प बातें त्यागनी होंगी। परन्तु एक दूसरे से समझने का समाधि को भी परन्तु अपने अहम् तथा बन्धनों के जाल में कभी न फेसे। आज के दिन मूझे आपको प्रयत्न करें कि हम सहजयोग के विषय में क्या जानते हैं। परस्पर विचार विमर्श करें और अपने यही बताना है आज के दिन जब आप मेरा अनुभवों का वर्णन करते हुए सहजयोग को कुछ जन्मोत्सव मना रहे हैं आप अपना जन्मोत्सव मनाएं। योगदान करें। बहुत से लोगों को काफी ज्ञान है। अपना जन्मोत्सव मनाएं और स्वयं देखें कि आपने क्या प्राप्त किया है और क्या प्राप्त करने वाले हैं। मैं ये नहीं कह रही कि वे कुछ नहीं जानते। परन्तु एक बुरा व्यक्ति सभी को उसी प्रकार खराब कर आपके लिए उत्सव मनाने का यही उपयुक्त समय है; तब आप मेरा जन्मोत्सव मनाएं । अपने जन्मोत्सव सकता है जिस प्रकार एक सड़ा हुआ सेब सेबों के पूरे ढेर को सड़ा सकता है तो हमें क्या करना की अपेक्षा आप का जन्मोत्सव मना कर मुझे प्रसन्नता श चाहिए? सड़े हुए सेब को बाहर फेंक देना चाहिए। होगी । मा पर परमात्मा आपको धन्य करें। नाव पा दि ब ा ा कि टि ा ह ा ता पि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt शिवरात्रि पूजा 18 दिल्ली -16.3.1997 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) द ला ्स का शरी इन लोगों से (भारतीय) श्री शिव की पूजा हैं कि वह आपका अधिकार है तथा आपने कुछ की बात कर रही थी। आपके साथ क्या घटित गलत नहीं किया। इसके लिए रुद्र रूपी बुद्ध का होना चाहिए ? आज मैं आपको बताऊंगी कि जब जागृत होना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि आप आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो हमारे अन्दर अहंकारी बनते चले जाएं तो आप पूर्णतः आक्रामक क्या घटित होता है। यहाँ ग्यारह रुद्रों का स्थान है व्यक्तित्व (Right Sided Personality) बन वे श्री शिव की शक्तियों के अंश हैं और हमारे जाएंगे। आप जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की क्या अन्दर जीवन के प्रति जो मिथ्या विचार हैं उन्हें निशानियाँ हैं । काष मात्र देखें और अन्तर्दर्शन करें और स्वयं के निकाल फेंकने के लिए वे सब प्रयत्नशील रहते हैं। जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो वे सब लिए देखें कि अहं ने आपको क्या हानि पहुँचाई है। जागृत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बुद्ध और स्वयं के विषय में आपके कितने गलत विचार थे। महावीर भी उन्हीं का एक हिस्सा हैं वे सभी इसी कारण मोहम्मद साहब ने कहा था कि जूतों से हमें बुराइयों में फँसने से रोकते हैं। मान लो अपने अहं की पिटाई करो। अहं को रोकने की कोई हममें अहं है तो बुद्ध इसको नियंत्रित करेंगे और विधि उनकी समझ में नहीं आई। यह अहं और ये देखेंगे कि अपने अहं से आपको वास्तव में, आपके मस्तिष्क का विस्फोट कर सकता सदमा पहुँचे। इस सदमे के पश्चात् आप है और आप भिन्न कठिनाइयों में फँस सकते हैं । है रान हो जाते हैं कि इतने अहंकारी, परिणामस्वरूप मैंने देखा है कि लोग युप्पीज़ अपमानजनक और ओछे, आप किस प्रकार (Yuppies) रोग ग्रस्त हो जाते हैं जिसमें चेतन हो सकते हैं। परन्तु जब यह रुद्र जागृत नहीं मस्तिष्क बिल्कुल बेकार हो जाता है . व्यक्ति हिल होता, जब इसमें प्रकाश नहीं होता तब क्या होता है? भी नहीं सकता, चेतन अवस्था में बह हिल-डुल तब आप अपने कार्यों को न्यायसंगत ठहराने लगते नहीं सकता परन्तु अचेतन स्थिति में वह हिल-डुल हैं। आप सोचते हैं कि जो भी कुछ आप करते हैं सकता है। यह रोग इतना भयंकर है कि व्यक्ति रेंगने वाले जीव की तरह से हो जाता है। ऐसे लोगों वह ठीक है। जो भी कुछ आपने किया, जो भी कुछ को कन्धे पर लाद के ले जाना पड़ता है, स्वयं तो वे आपने कहा, जो भी आपने प्राप्त किया, आप सोचते ा] 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 19 चल भी नहीं सकते, बैठ भी नहीं पाते। बहुत ही बाई ओर का स्थान हमारे सिर में दाई तरफ है तो हमारा अहं बाई आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर छोटी उम्र में ऐसा हो सकता है। अमेरिका में ऐसा हुआ है और भारत में भी मैंने ऐसे कुछ रोगी देखे बाई ओर के रुद्र हैं। अहंदश होकर लोग पापमय, हैं। अतः यदि आप अपने अहं का ध्यान नहीं रखते अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरुद्ध हैं। इसे नियन्त्रित नहीं करते इस पर आपको पश्चाताप श्री महावीर जी की शक्तियाँ नियंत्रण करती हैं, वे नहीं होता (यद्यपि सहजयोग में पश्चाताप जैसी कहते हैं कि तुम नर्क में जाओगे, ऐसा होगा। कोई चीज नहीं है क्योंकि हमें विश्वास है कि उन्होंने सभी प्रकार के नर्कों का वर्णन किया है तथा आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और आप आपको डराने के लिए बताया है कि आप नर्क में गलतियों से परे हैं) तो आपको परेशानी हो सकती जाओगे जहाँ आपको जिन्दा जलाया जाएगा, है। अपनी गलतियों पर हमें पश्चाताप होना चाहिए। आदि-आदि। परन्तु इससे कोई लाभ नहीं होता अंग्रेजी में एक शब्द है (Sorry) 'मुझे खेद है" हर और लोग बाई ओर को, इस रुद्र की ओर, झुकने लगते हैं तथा ये रुद्र मजबूर हो जाता है और ऐसे चीज़ के लिए खेद है, फोन उठाते हुए भी वे कहते व्यक्ति को भयंकर उदासीनता रोग हो जाता है । हैं "मुझे खेद है"। हर चीज़ के लिए वे कहते हैं "मुझे खेद है"। काहे का खेद ? परन्तु यह खेद भी व्यक्ति भयंकर उदासीन हो जाता है हे परमात्मा! अर्थहीन है इसमें कोई गहनता नहीं। मुझे खेद है मुझे यह कैसा रोग हो गया है ? मैं इतना बीमार हूँ आदि, आदि। अपनी उदासीनता से आप अन्य लोगों कहते हुए आपको देखना चाहिए कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं और कौन सी त्रुटि का सुधार होना को डराने लगते हैं. आप भावनात्मक भय- दोहन (Emotional Blackmail) करने लगते हैं, अपना आवश्यक है। आज की पीढ़ी में बहुत बड़ी समस्या यह है सिर पीटते हैं आदि, आदि। ऐसा अहं के कारण भी कि उसमें भयानक अहं विकसित हो गया है क्योंकि हो सकता है और बाई ओर की समस्याओं के हमारी सारी आर्थिक उन्नति ने, औद्योगिक विकास कारण भी। ये दोनों रुद्र बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन ने बड़ी -बड़ी संस्थाओं ने हमें एक मार्ग दिया है कि हम अपने अहं को विकसित करें बताया गया है दोनों का सम्बन्ध सीधे हमारी बायीं और दायीं अनुकम्पी प्रणाली से है। अतः यह आवश्यक है कि कि यदि हम अपने अहं को विकसित नहीं करते तो हम खो जाएंगे, कहीं के नहीं रहेंगे। इस प्रकार हम इनको ठीक करते हुए आप इन दोनों रुद्रों के अहं को बढ़ावा देने लगते है तथा दाई ओर की शिकार न बन जाएं। इन रुद्रों का संतुष्ट होना दो समस्याएं आरंभ हो जाती हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप आवश्यक है। अंतः सामान्य होने के लिए इन रुद्रों का ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें से में इसका प्रभाव बाई ओर पर पड़ता है। वास्तव में 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt मई - जून, 1997 20 चैतन्य लहरी एक अहं का नियंत्रण करता है दूसरा आत्मग्लानि करते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति भी बहुत उच्च हो का। मैं ऐसा नहीं कर सकती। इस प्रकार के जाती है। परन्तु ये जानने के लिए कि आपको उदासीनता आदि रोगों का शरीर पर भी गंभीर अत्यन्त उच्च स्तर का व्यक्ति होना है। आपमें पूर्ण प्रभाव पड़ता है. इससे कैंसर तक हो सकता है। इच्छा शक्ति होनी चाहिए वे बिल्कुल सांसारिक यदि ये रुद्र पकड़ जाएं तो व्यक्ति को कैंसर हो किस्म के नहीं है। मान लीजिए कि श्री शिव को किसी पार्टी आदि में जाने के लिए कहा जाए तो वे जाता है। आज्ञा में मेधा सूज जाती है। पूरा हिस्सा ही सूज जाता है। किसी कैंसर के रोगी को आप कैसे लगेंगे? वहाँ लोग उन पर हँसेंगे। मैं जब कुछ देखें तो उस पर सूजन दिखाई देगी, कम से कम हिप्पियों से मिली और उनसे पूछा कि तुम इस मस्तक के बायीं या दायीं ओर। व्यक्ति के स्वभाव प्रकार के बेतुके बाल क्यों रखे हुए हो ? उन्होंने में इतना दोलन (Swing) होता है कि कहा नहीं उत्तर दिया कि हम आदि मानव बनना चाहते हैं। जा सकता कि कौन से रुद्र से आपने मनोदैहिक मैंने कहा कि आपका मस्तिष्क तो आधुनिक है, रोग ले लिए हैं। आदि मानव की तरह बाल रखने का क्या लाभ है? का तो धोखा, स्वयं को धोखा देने से कोई लाभ सभी प्रकार के मनोदैहिक रोग रुद्रों के न होगा सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि स्वयं का प्रभावहीन हो जाने के कारण, उदासीन या निष्ठ्र स्वभाव के कारण भी होते हैं। यह बहुत से अन्य सामना करें और समझें कि आप क्या गलतियाँ कारणों से भी हो सकते हैं। परन्तु यह सभी कारण करते रहे हैं ? यदि ऐसा हो जाए. और जितने भी सहजयोगी यहाँ बैठे हैं, मैं आपको बता दें, यदि आप श्री शिव या सदाशिव की शक्तियों के अंग-प्रत्यंग ही होते हैं। श्री शिव करुणा से परिपूर्ण हैं, वे स्वयं को सुधार लें और शिव सम बन जाएँ तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी समस्याएं, राजनीतिक, करुणा के सागर हैं। आप यदि उनसे क्षमा माँगें तो वे क्षमा कर देते हैं, चाहे जो भी अपराध आपने आर्थिक तथा अन्य सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त यदि आप सोचते हैं कि आपने जो हो जाएंगी। परन्तु आज कलियुग के कारण ऐसा किया हो। परन्तु भी किया अच्छा किया, आपने कभी किसी को वातावरण बन गया है कि अच्छे-बुरे सभी प्रकार के परेशान नहीं किया, किसी को दुःख नहीं दिया तो लोग चले जा रहे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि ये सब जानते हैं। शिव सभी कुछ जानते हैं और विश्व की रक्षा करें, एक अत्यन्त सम्माननीय जीवन की सृष्टि करें जो दिखावा मात्र (सतही) न हो। यह अपनी जानकारी के कारण वे त्यागने लगते हैं, अन्दर से इस प्रकार विकसित हो कि आपकी आत्मा आपको आपके भाग्य पर छोड़ देते हैं। अतः आपकी अपनी इच्छा शक्ति तथा शिव के आशीर्वाद का का प्रकाश फैले और पूरे विश्व को प्रकाशित करे। बहुत बड़ा योगदान है। जब शिव आपको आशीर्वादित - यह समझना अत्यन्त आवश्यक है। ये सब कष्ट, 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt मई चैतन्य लहरी 21 जून, 1997 रोग, मनोदैहिक रोग तथा अन्य सभी समस्याएं जैसे क्योंकि आप ही परमात्मा के माध्यम हैं। यदि मैं :-राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य समस्याएं मानव अकेली ये सब कार्य कर सकती तो मैंने कर दिया होता, परन्तु मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ । की बनाई हुई हैं। सामूहिक रूप से ये कलियुग की देन है। परमेश्वरी शक्ति ने इन्हें नहीं बनाया अत: इसीलिए मुझे आप सब लोगों को यह बताने के लिए यदि बहुत से सहजयोगी हों, जो सत्यनिष्ठापूर्वक इकट्ठा करना पड़ा कि आपको परमात्मा का सहजयोग कर रहे हों, तो यह परमेश्वरी शक्ति माध्यम बनना होगा परन्तु साथ ही साथ आप इन्हें निष्प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। यदि जीवन का आनन्द ले रहे हैं। आपका हर क्षण ऐसा हो जाए, यदि ये उपलब्धि हम पा सकें तो, मैं आनन्द बन जाता है। यह भी श्री शिव का ही सोचती हैं, हम बहुत कुछ कर सकते हैं मानव के वरदान है। शिव ही इस महान सराहना तथा हर क्षण की महान अनुभूति की सृष्टि करते हैं। यही हित के लिए बहुत कुछ। इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। ये केवल आपके स्थिति आपने प्राप्त करनी है, अपनी भत््सना द्वारा लिए ही नहीं है, केवल आपके परिवार के लिए ही नहीं और न ही अपने अहं को बढ़ावा देकर, परन्तु ये देखते हुए कि आप क्या हैं। यही विशेष चीज़ है जिसे आपने देखना है, कि आपमें क्या बुराइयाँ है। नहीं है. केवल आपके नगर या देश के लिए ही नहीं है परन्तु यह पूरे विश्व के लिए है। सहजयोग कार्यान्वित होगा आपने यदि आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट दे रहे हैं। इस बात को यदि आप समझ लें तो मुझे विश्वास है, पुूर्ण विश्वास परस्पर मुकाबला करना है तो उत्थान में करें, और किसी चीज़ में नहीं। परन्तु लोग इतने है कि आप इतनी बहुमूल्य चीज़ बन जाएंगे जो पूरे उथले हैं कि वे सोचते हैं कि दिखावा करने से या विश्व के लोगों को, स्वयं को देखने और परिवर्तित अपने आपको बहुत बड़ी चीज़ मान बैठने से वे होने में सहायक होगी समस्याओं की जड़ें इतनी गहन हैं कि उथले स्तर पर रहते हुए आप परिवर्तित उत्थान का बहुत ऊँचा स्तर पर लेंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। स्वयं के प्रति भी अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण होना नहीं हो सकते माँ कुण्डलिनी आपको इस प्रकार आशीर्वादित कर रही हैं। मैं कहूँगी, कि आप सत्य, चाहिए ताकि आप समझ सकें कि आपके सभी कार्य प्रेम और आनन्द के मार्ग पर, वास्तव में, एक महान ब्रह्माण्डीय समस्याओं के समाधान के लिए हैं । निःसन्देह आप इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं मशाल (ज्योति) बन सकते हैं । तां परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। तलि छु ना मुड व 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt दिवाली पूजा पुर्तगाल 10 नवम्बर 1996 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( अनुवादित) महालक्ष्मी जी के विषय में हमें समझना है आज हम महालक्ष्मी की पूजा करेंगे। मैं सोचती हूँ कि इस देश में उनकी बहुत पूजा बहुत कि इनका क्या कार्य है। महालक्ष्मी शक्ति ने हमारे की जाती है। उन्हें यहाँ मारिया के रूप में पूजा अन्दर कुण्डलिनी के उत्थान के लिए एक उचित जाता है और मारिया का यहाँ स्वयंभु भी है और सन्तुलन एक उचित मार्ग बनाया है बायें और उनकी आलौकिक झलक भी यहाँ देखीं गई है। दायें को सन्तुलित किया है और वही (महालक्ष्मी) पहले तो मुझे लगा था कि ऐसा नहीं हो सकता कुण्डलिनी के उत्थान के लिए एक अपेक्षाकृत खुला परन्तु चैतन्य लहरियाँ महसूस करने के बाद, मैं जानती हूँ, कि यह सत्य था क्योंकि उन्होंने करुणा एवं प्रेम के माध्यम से वे इस मार्ग की सृष्टि साकार रूप में अपनी झलक दिखाई थी। वे मेरे करती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि यदि मार्ग चौड़ा भी दिखाई दीं आपने एक फोटो में अवश्य न होगा तो कुण्डलिनी उठ न सकेगी। अन्ततोगत्वा 1 मार्ग बनाती हैं । यह करुणा एवं प्रेम का मार्ग है। सम्मुख आप इस व्यक्ति एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जहाँ देखा होगा यही नियम है जिससे खोज आरम्भ हो जाती है और इसी खोज (जिज्ञासा) स्थिति तक उन्नत हुए हैं। कुण्डलिनी के उत्थान के लिए महालक्ष्मी शक्ति ने उत्थान के मध्य मार्ग की से ही आपका महालक्ष्मी तत्व जागृत हुआ है। यह सृष्टि की है। कोल्हापुर के महालक्ष्मी मन्दिर में जागृत है और कभी-कभी तो ये इतना शक्तिशाली लोग सदा "उदे-उदे अम्बे" भजन गाते हैं। वहाँ होता है कि आप पागलों की तरह से खोजने लगते मैंने लोगों से पूछा " महालक्ष्मी के मन्दिर में आप बहुत से लोग अम्बे का भजन क्यों गाते हैं ?" उन्होंने उत्तर दिया इसी खोज में खो गए, परन्तु बहुत से लोग उचित हैं। यह कहते हुए मुझे खेद है कि कि "हम नहीं जानते कि हम ऐसा क्यों करते हैं मार्ग और उचित उत्थान की ओर भी आ गए। एक अन्य चीज़ जो महालक्ष्मी तत्व करता परन्तु क्या यह गलत है?" मैंने कहा "नहीं, क्योंकि महालक्ष्मी मार्ग से ही कुण्डलिनी का उत्थान हो वह यह है कि यह कुण्डलिनी शक्तिति को भिन्न चक्रों सकता है और कुण्डलिनी ही अम्बा है।" इस प्रकार पर जाने देता है। भिन्न चक्रों तक जाने के लिए यह में बहुत हैरान हुए। मार्ग बनाता है और सभी चक्रों को शुद्ध करता है। उन्होंने समझा और बास्तव प्राचीन समय से यह भजन बहाँ गाया जाता है यह अत्यन्त लचीली शक्ति है जो कुण्डलिनी का परन्तु उन्हें यह कभी न समझ आया था कि यहाँ भिन्न चक्रों तक मार्गदर्शन करती है और यह वै ऐसा क्यों करते हैं। समझती है कि किस चक्र को कुण्डलिनी की आवश्यकता है। आपने देखा होगा कि जब कुण्डलिनी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt मई 23 चैंतन्य लहरी जून 1997 उठती है तो जहाँ भी वह जाती है, जहाँ भी अपने अन्दर बना रहता है। सूर्य की तरह से वह आवश्यक समझती है आपकी जागृति के लिए वह अपने अन्दर धारण करता है सूर्य यदि अपनी किस प्रकार धड़कती हैं! यह सब घटित होता है किरणों से क्रीड़ा करता है तो वह खो नहीं जाता। क्योंकि वह करुणा एवं प्रेम से परिपूर्ण हैं और सभी किरणें उसके पास वापस आ जाती हैं। इसी चाहती है कि आप पूर्व सत्य को प्राप्त करें। प्रकार हमारी जितनी भी इन्द्रियाँ हैं वे हमारे सहजयोग में, जैसा कि आप जानते हैं, हमारे साथ इर्द-गिर्द क्रीड़ा करती हैं। परन्तु सहज स्थिति बहुत सी समस्याएं हैं क्योंकि उत्थान के समय लोग में जो व्यक्ति है उस पर इनका कोई प्रभाव अपने साथ बहुत से पूर्व बन्धन लिए हुए होते हैं वे नहीं पड़ता। वह लिप्त नहीं है। वह तो मात्र उठते हैं फिर गिरते हैं, पुनः उठने का प्रयत्न करते क्रीड़ा करता है। यही स्थिति आपने प्राप्त हैं और फिर नीचे आ जाते हैं। करनी है तब आप वास्तव में सहजयोगी होंगे। आज मैं आपको बताने वाली हूँ कि व्यक्ति परन्तु अब भी मैं देखती हूँ कि लोग सहजयोग से को कौन सी स्थिति प्राप्त करनी है। 'स्थितप्रज्ञ' धन बटोरने में ही खोए हुए हैं। कुछ लोग अगुआपने का वर्णन करते हुए गीता के दूसरे अध्याय में श्री के चक्कर में, कुछ लोग ईष्ष्या और द्वेष के चक्कर कृष्ण ने इसका वर्णन किया है परन्तु इसे समझ में खो जाते हैं। तो इसका अर्थ यह हुआ कि अभी पाना बहुत कठिन है। श्री कृष्ण आपकी माँ की तक अन्तस में बहुत सा कार्य होना बाकी है। परन्तु तरह से स्पष्ट न थे अतः लोग नहीं समझ पाते कि यदि आप सभी कुछ समर्पित कर दें तो कुछ उन्होंने क्या कहा और वे प्रश्न करते हैं कि कैसे ? भी करने की आवश्यकता नहीं है यही कारण है कि मैं सदा कहती हैँ कि ध्यान-धारणा करें आप स्थितप्रज्ञ की स्थिति में किस प्रकार पहुँचते हैं ? कैसे आप वह अवस्था प्राप्त करते हैं? ज्ञानेश्वर ने क्योंकि जब आप ध्यान-धारणा करते हैं तो जब ज्ञानेश्वरी लिखी तो उन्होंने इसे 'सहज-स्थिति' आपको पतन की ओर ले जाने वाली सभी कहा, अर्थात् सहज अवस्था। उन्होंने इसे स्थितप्रज्ञ चीजें समाप्त हो जाती हैं शनैः शनैः ये सब नहीं कहा। उन्होंने सहज का अत्यन्त सुन्दर और लुप्त हो जाती हैं क्योंकि आप स्वयं आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म रूप से वर्णन किया है। निःसन्देह बन जाते हैं। आप स्वयं को धारण करते हैं। ज्ञानेश्वर जी को भी बहुत कम लोग समझते हैं। जो आप कभी ऊबते नहीं, मैं कभी नहीं ऊबती व्यक्ति उस स्थिति को पा लेता है वह एक दर्पण इसका (ऊबने का) तो मुझे अर्थ ही नहीं सम है जिसमें बहुत लोग अपने चेहरे देखते हैं। पता । चाहे मैं आपके साथ हूँ या अकेली, मैं बहुत से लोग दर्पण के सम्मुख अपना साज- श्रृंगार कभी नहीं ऊबती। ऊबने की कौन सी बात करते हैं परन्तु दर्पण जैसा का तैसा रहता है । तो है? यदि आप किसी भी चीज़ से लिप्त नहीं जो व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हैं, सहज व्यक्ति की तरह, वह हैं तो आप कभी ऊबेंगे नहीं । इस बात की चिन्ता नहीं करता कि उसके सम्मुख कौन है, कौन सामने खड़ा है, वह कहाँ है। वह ऊपर उठ जाएंगे जैसे लालच से। अब जो लोग 1 एक और बात है कि आप इन सब चीज़ों से 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt मई - चैतन्य लहरी 24 जून 1997 लालची हैं वे यहाँ-वहाँ पैसा बनाने में ही लगे हुए है जिसे आप परिवर्तित नहीं कर सकते। यदि आप हैं। जो लोग अभी तक कामाक्षी हैं वे ऐसी ही किसी इसे परिवर्तित करने का प्रयत्न करेंगे तो बम्ब, एटम चीज़ का आयोजन कर रहे हैं। परन्तु सहजस्थिति में आप मात्र देखते हैं, मात्र साक्षी बन जाते हैं किसी केवल मानव ही बदल सकता है, उसका आकार व चीज में नहीं खो जाते जो आपको पतन की स्वभाव परिवर्तित हो सकता है। बम्बों, की रचना करेंगे यह पूर्णतः विध्वंसक हैं। ऐसी अब आशीर्वादों को देखें कि आप मानव हैं ओर ले जाए। आप लोगों के लिए यह स्थिति प्राप्त कर लेना कठिन कार्य नहीं है क्योंकि आप अपने और आप परिवर्तित हो सकते हैं, आपको एक नए मन के स्तर को पार कर चुके हैं। ये सब चीजें तत्व में- आत्मा में- परिवर्तित किया जा सकता है। आपको मन के माध्यम से आती हैं। मैंने पहले भी मानव की यही विशेषता है। परन्तु यदि किसी का है जो उसे परिवर्तित करने का प्रयत्न कोई बताया है कि मन मिथ्या है और आप सब लोगों को कुगुरु यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए। मिथ्या बात यह करता है तो उस व्यक्ति का विस्फोट हो सकता है। है कि मन आपको विचार देता है। कुछ लोग सोचते कुगुरुओं के पास जाने वाले लोगों को मैंने देखा है, हैं, " हाँ श्री माता जी परन्तु" यह 'परन्तु' आपके वे मूरच्छित हो जाते हैं। अब भी उन्हें समस्याएं हैं. अन्य लोगों की अपेक्षा उन्हें अधिक कष्ट भुगतने मस्तिष्क वास्तविकता है, मन नहीं । मन कहता पड़ते हैं। वे भी सुधरे हैं। परन्तु एक बात जो व्यक्ति है 'परन्तु' और तब कभी-कभी आप अत्यन्त खिन्न को समझनी चाहिए वह ये है कि जब आप अणु या मन से आ रहा है। तथा निराश (Depressed) महसूस करने लगते परमाणु को तोड़ते हैं और इसे परिवर्तित करने का हैं। कुछ लोग इतने अच्छे है कि उन्हें अच्छा नहीं प्रयत्न करते हैं तो इसका विस्फोट हो जाता है। यह लगता कि सहजयोगी इतने कम हैं। कोई बात कार्यान्वित नहीं होता। जब आप समन्वय करने का नहीं। केवल देखें और यह साक्षी अवस्था, मात्र प्रयत्न करते हैं तभी प्रकृति में आप कोई चीज़ बना देखने की स्थिति, ही सहज है। इसमें आप सूक्ष्म हो सकते हैं जैसे समन्वयन से ही उसे प्रकाश में लाया जाते हैं, आप अपनी आत्मा बन जाते हैं अर्थात् इतने गया है। प्लास्टिक भी समन्वय से बनाया गया है। पदार्थ का समन्वय किया जा सकता है तथा मानव सूक्ष्म हो जाते हैं कि कुछ भी आपको परेशान नहीं कर सकता। कुछ भी आपको परिवर्तित नहीं कर सकता। अब आप प्रकृति को जैसे है वैसे देखें, आप समन्वयन पदार्थ से कहीं बेहतर किया जा जानते हैं कि 92 तत्व हैं और इन 92 तत्वों को सकता है, क्योंकि मानव परिवर्तित हो सकता का समन्वयन किया जा सकता है। मानव का परिवर्तित नहीं किया जा सकता; आप चांदी को है, उसमें स्वभाव परिवर्तन किए जा सकते हैं। सोना और सोने को चांदी नहीं बना सकते। अणु अब देखें उदाहरणार्थ : यह सोना है । इसमें से जो इस ढंग से व्यवस्थित हैं कि उनकी अपनी कुछ चाहे आप बना लें। सोना तो सोना है। इसमें यदि मिश्रण शक्तियाँ हैं; इसके अतिरिक्त परमाणु भी इस आप गहने बना लें तो भी यह सोना ही रहेगा ढंग से व्यवस्थित हैं कि उनकी अपनी एक बनावट परन्तु मानव का यदि समन्वयन किया जाए तो वे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 25 क परिवर्तित हो जाते हैं। : हममें ईष्ष्या जलन, लोभ और के दिन इन सब चीजों की बात करना अच्छा नहीं है। दिवाली कामुकता पदार्थ, प्रकृति और मानव में बहुत अन्तर है। पदार्थ और प्रकृति मानव से पूर्णतः भिन्न हैं। एक है। दिवाली अर्थात् एक-एक करके बहुत से दीप बार परिवर्तित होने के पश्चात् मानव जीवन्त प्रक्रिया सम हो जाते हैं, वे फूलों की तरह बन जाते हैं परन्तु प्रज्जवलित किए जाते हैं और पहली बार आप अब भी वे वैसे नहीं हैं जो आप प्रकृति में देखते हैं। देखने लगते हैं कि आपमें क्यां त्रुटि है। तब आपको वे ऐसे इसलिए नहीं हैं क्योंकि प्रकृति में मन नहीं समझ आता है कि इसकी आपको कोई आवश्यकता है, प्रकृति केवल परमात्मा के नियंत्रण में है और नहीं और इससे छुटकारा पाने के लिए., इसके उसी प्रकार से कार्य कर रही है। परन्तु आप सब शुद्धिकरण के लिए आप कार्य करने लगते हैं। अब अपने नियंत्रण में हैं। आप अपना नियंत्रण स्वयं यह ज्ञान लुप्त हो जाता है। आपको कोई ज्ञान नहीं करते हैं। यह समन्वय जो आपके अन्दर हो रहा है इसमें आप पाते हैं कि आपका स्वयं पर पूर्ण चक्रों के विषय में जानने की कोई आवश्यकता नहीं, पाना होता जो आपके पास है, है आपको अपने नियंत्रण है। आप जानते हैं कि आपके साथ क्या आप तो बस स्थित हैं। उस स्थिति में सभी कुछ महत्वहीन है। आप एक पत्थर सम हो जाते हैं। मैं घटित हो रहा है। अब आप स्वयं को अन्य चीजों कह सकती हैँ, एक ऐसे पत्थर सम जिसमें मस्तिष्क, हृदय और जिगर अखण्ड हैं। आपको कुछ बुरा नहीं लगता, कोई चीज़ आपको विचलित नहीं करती देख सकते हैं। कुछ लोग आकर मुझे बताते हैं, "श्री माता जी, मेरा अहं बहुत खराब से अलग होते हुए है। कृपया इसे निकाल दें।" वह देखता है कि समस्या क्या है। कोई अन्य आकर कहता है, "श्री आप केवल सुन्दर प्रेम एवं करुणा का आनन्द लेते हैं। उसकी तरंगे आपकी ओर लौटकर आती माता जी मेरी नाभि बहुत खराब है, मैं अब भी पैसे ह हैं. वो के चक्कर में उलझा हुआ हूँ।" वह इसे देखता है। भी, कुछ समय पश्चात् समाप्त हो जाती हैं और सबसे पहले स्वयं के विषय में ज्ञान आने आप 'सहज' के सिवाय कुछ नहीं रह जाते प्राचीन लगता है, इसे हम आत्मज्ञान (Self Knowledge) कहते हैं। परन्तु व्यक्ति को ने यह स्थिति प्राप्त तो की परन्तु इसके साथ एक लोगों ने यही स्थिति प्राप्त की थी। उन दिनों लोगों उस आत्मज्ञान से भी आगे जाना होता है। बुरी चीज़ जो हो गई वो यह थी कि वे सब इसमें उस ज्ञान से आप क्या करेंगे ? हमें देखना है। खो गए। अन्य लोगों के लिए वे कुछ न कर सके। सर्वप्रथमं हम कहते हैं कि ज्ञान नहीं है। अज्ञान है, एक व्यक्ति को यह स्थिति प्राप्त हो गई, वह महान अन्धेरा है। अब प्रकाश आ गया है अब आप देख बन गया और बस समाप्त। या अधिक से अधिक दो सकते हैं। अब जान सकते हैं क्या गलत है और व्यक्ति बन गए। तो अब सहजयोग ज्ञान की स्थिति आपके अन्दर जो भी कुछ गलत है उससे आप पर खड़ा है जहाँ आपको ज्ञान प्राप्त होता है। सबसे स्वयं को अलग करने लगते हैं। उन गलतियों को पहले आपको स्वयं के विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त आप देखते हैं। बहुत सी मूर्खतापूर्ण चीजें हैं जैसे करना चाहिए। आत्मज्ञान पूर्ण अवश्य होना चाहिए। | 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 26 तीसरी स्थिति में, जब ज्ञान पूर्ण होता है तब आसुरी प्रवृत्ति लोगों को दण्ड नहीं दिया जिन्होंने स्वयं के विषय में जिन भी बेकार की चीजों के सहजयोग को बहुत हानि पहुँचायी है। मुझे कष्ट विषय में आप जानते हैं, जो आपकी उन्नति में उठाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये परम चैतन्य रुकावट डाल रही है, जिन्हें आप गलत समझते हैं, जो इतना कार्य कर रहा है वह इससे भी निपटेगा। उनसे आप छुटकारा पा लें। जैसे : मैं अपनी साड़ी मैं किसी की चिन्ता क्यों करूं? आप देख रहे हैं पर कुछ कचरा गिरते हुए देखती हूँ तो तुरन्त इसे कि बहुत से कार्य हो रहे हैं, तो दखलंदाजी क्यों साफ करती हूँ। तब आप उस सहज स्थिति में की जाए ? मेरा कार्य सिर्फ देखना है, केवल स्वयं को अलग करने लगते हैं। इससे आगे भी सहजयोग में आप एक अन्य किसी का वध करने की या किसी का विनाश आयाम विकसित करते हैं जिसे सामूहिक चेतना करने की कोई आवश्यकता नहीं। वे स्वयं को कहते हैं। यही आधुनिक सहजयोग है । प्राचीन ही नष्ट कर देंगे। मैंने आपको बताया कि मुझे देखना। यही काफी है। इस जीवन में मुझे काल में साधकों को ये प्राप्त न होता था, अतः वे किसी का पर्दाफाश करने की आवश्यकता नहीं है, सब खो जाते थे। अब आपके पास सामूहिक चेतना परन्तु जिस भी देश में मैं जाती हूँ, मैं देखती हूँ कि और उस सामूहिक चेतना में आप अन्य लोगों को वहाँ बुरे लोगों का पर्दाफाश हो रहा है । महसूस करने लगते हैं, अन्य लोगों के लिए आपमें भावनाएं एवं करुणा जाग उठती है और उनके लिए किसी भी देश पर जरा सा चित्त डालने से ही कार्य आप कार्य करने लगते हैं। परन्तु कभी-कभी ये हो जाता है. बिना मुझे पता चले, हे परमात्मा . मैंने सब करते हुए भी आप सोचते हैं कि इससे मैं कहा, मैंने ऐसा कब किया था ? अतः व्यक्ति को है परमात्मा जानते हैं कि और क्या होगा। परमेश्वरी प्रेम की शक्ति बनना है, कार्यरत परमेश्वरी ही से कितना धन बना सकता हूँ? एक अगुआ के रूप में में क्या प्राप्त कर सकता हूँ या इसी प्रकार की कई शक्ति के प्रति समर्पित। यह शक्ति भी और बातें अभी भी आपके अन्दर हैं। परन्तु ये निकली है. मुझ ही से पृथक हुई है मैं अकेली हूँ सामूहिक चेतना बढ़ने लगती हैं। जब ये बढ़ने पूर्णतः अकेली, यहाँ तक कि यह शक्ति भी मुझसे लगती हैं तब आप सागर के अन्दर बूंद बन जाते हैं, पृथक हो गई है। परन्तु ये शक्ति जानती है कि अर्थात् पूर्ण सागर। सागर की अपनी मर्यादायें होती मानव के लिए. सहजयोग के लिए क्या अच्छा है हैं। तो सागर की अपनी ही मर्यादाएं हैं, बिना कोई और अपने आप यह कार्य करती है। मैं दखलंदाजी चिन्ता किए यह मर्यादाओं में रहता है। आपकी नहीं करती। यह स्वाभाविक कार्य (प्रतिवर्ती क्रिया सीमाएं यह पार नहीं करना चाहता। इसी प्रकार R आप लोग भी आत्मविकसित हो जाते हैं । आप मुझ ReflexAction) हो सकता है कि आप कहें कि श्री माता जी आपने यह कार्य कर दिया है। हाँ ठीक है स्वार्थी नहीं हैं परन्तु आप आत्मकेन्द्रित हैं अपने जैसा भी है परन्तु मैं दखलंदाजी नहीं करती इसे अन्तस में सीमित हैं। मैं जानती हैूँ कि बहुत से मुझे कुछ बताना नहीं पड़ता। यह स्वतः कार्य सहजयोगी इस बात पर नाराज हैं कि मैंने उन करती है और बहुत अच्छा। मैं एक उदाहरण दूंगी। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी सई - जून, 1997 27 बहुत समय पूर्व इंग्लैंड में सहजयोगियों ने कहा कि को नहीं मिलता, परन्तु क्योंकि सूर्य इतना तेज श्री माता जी हम बहुत लम्बी ग्रीष्म ऋतु चाहते चमका था, परम चैतन्य ने इसकी क्षतिपूर्ति कर दी हैं।" मैंने कहा कि आप ऐसी चीजें क्यों मांगते हैं? थी। नहीं श्री माता जी हमारे लिए ग्रीष्म ऋतु तो लम्बी परम चैतन्य इसकी देखभाल कर रहा है, नहीं होनी ही चाहिए, तीन-चार बार उन्होंने कहा और बहीं इन सब चीजों को चला रहा है। मैं कुछ लंदन में भयंकर गर्मी का मौसम बहुत लम्बे समय कर रही। मैं निष्क्रिय हूँ। मैं तो मात्र बैठी हूँ और तक रहा। भारत की तरह से यहाँ पंखे आदि तो हैं देख रही हूँ। मेरे लिए किसी चीज़ का महत्व नहीं। नहीं। हमारा एक छोटा सा बरामदा था ज़िसमें हम आप देख रहे हैं कि धीरे-धीरे निरन्तर ये कार्यान्वित सोते थे। लंदन में दुकान पर जाकर हमने पूछा कि हो रहा है। आप यदि मुझे कुछ बताते हैं, मान लो कोई पंखा आदि मिल सकता है ? यदि आप इसके उन्होंने कहा, "श्री माता जी हमने आपको प्रार्थना लिए कहें तो तीन माह के पश्चात हम यह पंखा की और ऐसा घटित हो गया". ठीक है ऐसा हो सकता है। इन लोगों ने मेरे विषय में होगा 11 मंगवा कर दे सकते हैं। तीन माह पश्चात जब सुना भयंकर ठंड हो जाएगी ? तो मेरी पुत्री ने हमें और कार्य को किया होगा, तो इसके लिए मैं वायुयान द्वारा दो पंखे भेजे, जिससे हमने काम जिम्मेदार नहीं हूं । चलाया | गर्मी इतनी भयानक थी कि उसके पश्चात जो भी कुछ आप सोचते हैं कि मैं करती हैं जो अच्छी घटना हुई वह यह थी कि पत्तों पर पीला वह मेरे द्वारा नहीं होता, यह सब परम चैतन्य द्वारा सा रंग आया जो धीरे-धीरे लाल होता गया। उस होता है क्योंकि मैं आपसे भी पृथक होती हूँ, पूर्णतः वर्ष शरद-ऋतु बहुत अच्छी थी । तभी एक सहजयोगी पृथक। अतः वे कहते हैं कि अब आप प्रार्थना करें, को स्वप्न आया कि श्री माता जी ने मुझे अपने घर आप प्रार्थना कर सकते हैं। यदि आप प्रार्थना करते के पीछे आँगन में गाड़ी में घुमाने के लिए कहा है। हैं तो आप अपने इर्द -गिर्द विद्यमान देवी- देवताओं मैं नहीं जानती थी कि उसे क्या स्वप्न आया है, मैंने से प्रार्थना करते हैं, इन सब गणों से प्रार्थना करते हैं, उसे टेलिफोन किया कि क्या तुम कुछ समय के मुझसे प्रार्थना नहीं करते क्योंकि मुझे इन सबसे कुछ लिए आ सकते हो ? मैं इस शरद-ऋतु में पूरा नहीं लेना- देना । वे मुझे नहीं बताते कि मुझे ये कार्य इंग्लैंड देखना चाहती हूँ। क्या आप इसकी कल्पना करना है या बो कार्य करना है। तो मैं उन्हें कुछ कर सकते हैं ? पूरा इंग्लैंड शरद सौन्दर्य से परिपूर्ण करने के लिए क्यों कहूं ? यह इसी प्रकार है और था। तो यदि इस प्रकार की कोई अति हो भी जाए इस अवस्था में यदे आप रह सकते हैं तो आप तो भी इसकी क्षतिपूर्ति हो जाती है। इतना सुन्दर था, सभी लोग प्रकृति के सुन्दर रंगों, आशा नहीं करते, कुछ नहीं चाहते मैं सभी कुछ भिन्न प्रकार की हरियाली, पीले तथा लाल रंग को करती हूँ। सभी प्रकार के कार्य में कर रही हूँ। सूर्य देखने के लिए घरों से बाहर निकल पड़े थे। की तरह, यदि वह कुछ कर रहा है तो मैं भी कर सभी कुछ सहज स्थिति में हैं. जिसमें आप किसी चीज की आश्चर्य की बात है कि उस देश में ये सब देखने रही हूँ अर्थात् मैं फूलों आदि की देखभाल कर रही 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 28 हूँ, आपके उपहार भी ले रही हूँ और आपसे कुछ ले क्योंकि आपने वह स्थिति प्राप्त करनी है। एक बार ही नहीं रही। मेरे पास कुछ नहीं है। किसी चीज़ जब आप इसे प्राप्त कर लेते हैं तो आप अत्यन्त में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। आप पुष्प चढ़ाना सूक्ष्म स्थिति में होते हैं और वह सूक्ष्म स्थिति चाहते हैं, ठीक है फूल हैं या नहीं आपको फूल मिल आशीर्वाद के अतिरिक्त जाएंगे। एक व्यक्ति के रूप में मुझे इससे कोई कुछ नहीं होती। परन्तु उस आशीर्वाद का आनन्द भी आप नहीं ले सकते मैं नहीं जानती कि हर चीज़ का आनन्द कैसे अन्तर नहीं पड़ता। परन्तु आपकी माँ के रूप में मैं आपको प्रेम करती हूँ. आप सभी को मैं प्रेम करती लिया जाए। मान लो अब आप कहें, "जय श्री माता हूँ परन्तु आपको प्रेम करने के लिए मैं कुछ नहीं जी", मैं भूल जाती हूँ कि आप मुझे कह रहे हैं। मैं करती, फिर भी सभी लोग कहते हैं. "श्री माता जी भी कह उठती हूँ, "जय श्री माता जी" । समाप्त। आप हमें अथाह प्रेम करती हैं. आप हमें बहुत प्रेम देखिए यह इतनी साधारण चीज़ है। व्यक्ति को करती हैं। यह सभी कुछ जो कार्यान्वित कर रहा समझना है कि जिस स्थिति तक उसने उन्नत होना है वह मैं नहीं हूँ, यह मुझसे ऊपर है। इस स्थिति है उस स्थिति में बिना कुछ किए सभी कुछ कार्यान्वित में, एक बार जब हम उठ जाते हैं, हम इसे सहज होता है। आपकी यदि यही स्थिति है तो ठीक है स्थिति का नाम देंगे। परन्तु ऐसा नहीं है कार्य करके आपको उस स्थिति सहज स्थिति में आप सोचते हैं कि आप कुछ तक उन्नत होना होगा, पहले आपको इसके लिए नहीं कर रहे, सभी कुछ कार्यान्वित हो रहा है, परन्तु कार्य करना होगा सर्वप्रथम आपको जानना होगा। इस स्थिति में यदि मैं आपको बताऊँ कि हम कुछ ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं होती परन्तु पहले नहीं कर रहे। हमें सहजयोग का प्रचार क्यों करना कार्यान्वित करके आपको इस स्तर पर आना होगा। अब दिवाली का यह महत्व है कि दिवाली चाहिए? यह हमारा कार्य नहीं है, अब आपकी यह स्थिति नहीं है, इसीलिए तो आपको उस अवस्था के दिन हम हर जगह चिराग जलाते हैं ताकि हम तक उन्नत होना होगा वह तभी सम्भव है जब चहूँ ओर सहज प्रकाश को फैला सकें। परन्तु क्या प्रकाश स्वयं को जानता है? क्या दीपक स्वयं को आप ज्ञान की अवस्था में होंगे, जहाँ आपको आत्मज्ञान जानता है ? दीपक हर चीज़ को प्रकाशित करता है प्राप्त हो जाएगा। पूरे विश्व का ज्ञान। परन्तु आपको इससे भी ऊपर जाना होगा। कई बार आपने देखा उसे इसका ज्ञान नहीं होता। जैसे चाँद का परन्तु होगा कि मैं कुछ कहती हैँ और वह हो जाता है । चाँदनी बिखेरना, क्या वह स्वयं को जानता है ? मैं किसी की चैतन्य लहरियाँ आदि नहीं क्या वह आनन्द उठाता है ? इसी प्रकार दिवाली के महसूस करती। अपनी कुण्डलिनी या चक्र भी दिन आप भी लोगों को ज्योतिर्मय कर रहे हैं, यह मैं मैं महसूस नहीं करती परन्तु कम्प्यूटर की सब आप उनके लिए कर रहे हैं। यह अच्छा विचार तरह स्वतः ही मैं सब कुछ जान जाती हूँ है, इसे आप अवश्य करें। परन्तु आपको वह हूँ। यही दीपक बनना है जो स्वयं को नहीं जानता। | तो दो संदेश हैं पहला तो यह कि परन्तु में वह कम्प्यूटर भी नहीं कठिनाई है, आपको यह समझा पाना कठिन है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी मई- जून, 1997 29 आपने पूरे विश्व को ज्योतिर्मय करना है का प्रचार करना। आपको बहुत से दीप जलाने हमने अन्य लोगों को ज्योतिर्मय करना है होंगे अर्थात् आप महसूस करेंगे कि आप वह यह पहला संदेश है। फिर हमें वह बनना है दीपक हैं जो अन्य दीप प्रज्जवलित कर रहा है. जो प्रकाश स्वयं है, और प्रकाश नहीं जानता सूक्ष्म रूप से आप यह महसूस करेंगे कि मैं प्रकाश कि बह प्रकाश है। मैं प्रकाश हूँ, मैं स्वयं को हूँ। बहुत से सहजयोगी बहुत कार्य कर रहे हैं और नहीं जानती। ही महान कार्य | यह वह स्थिति है कि आप नहीं सहजयोग को फैला रहे हैं। बहुत जानते कि आप प्रकाश हैं। इतनी बार गाने के हुआ है जिस प्रकार ये बहुत से देशों में फैला है पश्चात् भी यह बात आपके मस्तिष्क में नहीं बैठती। इसने धर्म के बाह्य अंधेरे को दूर कर दिया है। आपने एक हजार नाम लिए हैं, सभी कुछ किया है. जातिवाद आदि का अन्धकार फैला हुआ है तो परन्तु मेरे मस्तिष्क में ये कभी नहीं आता कि आप इसने आपके लिए शुद्धिकरण का कार्य कर दिया है मेरे विषय में ही ये सब कुछ कह रहे हैं। अब जब ताकि आपको तैरने के लिए शुद्ध जल मिल सके। मैं यह कहती हैँ तो मैं नहीं जानती कि आप किस एक बार जब आप ऐसा करने लगते हैं तो शनैः शनैः प्रकार प्रतिक्रिया करेंगे ? हो सकता है कि आपका आप महसूस करते हैं कि अब समुद्र साफ है। हम अहं उभर आए और आप कहें, हाँ, हा मैं भी वही हूँ। केवल देखते हैं कि यह किस प्रकार कार्य कर रहा ऐसे बहुत से लोग आए जिन्होंने कहा कि मैं माता, है जी से ऊँचा हूँ बहुत सों ने कहा कि मैं (वे) कल्की मैं आशा करती हैं कि अपने जीवनकाल में हूँ। आजकल भी एक व्यक्ति जगह-जगह जाकर ही आप यह स्थिति प्राप्त करेंगे जिसमें अन्य लोगों कह रहा है कि वह कल्की है। कोई बात नहीं। को आत्मसाक्षात्कार देने का कार्य पूर्ण कर सकेंगे। आप वह बनें, बहुत अच्छा विचार है। परन्तु जब मैं जो लोग दूसरों को आत्मसाक्षात्कार नहीं देते, कहती हूँ कि मैं आदिशक्ति हूँ; तो इसका अर्थ यह जो केवल पूजाओं के लिए आते हैं वे औसत होता है कि मैं नही जानती कि मैं क्या हूँ,वास्तव में, दर्जे के लोग हैं। वे अधिक ऊँचे नहीं बहुत मुझे यह कहना पड़ा क्योंकि लोगों ने कहा "श्री उठ सकते। पूजा पर आने का क्या अभिप्राय माता जी आपको घोषणा करनी होगी।" किस चीज़ है ? पूजा से आप और ऊँचे उठते हैं, पुनः की घोषणा ? मैं जो हूँ, हूँ। अब मुझे लगता है कि आपका पतन होता है, परन्तु जो लोग निरन्तर घोषणा करने से आप लोगों का उत्थान बढ़ गया है, बढ़ते हैं वही इस स्थिति तक पहुँच पाएंगे। ठीक है, इसे प्राप्त करें। परन्तु किसी को भी कोई मुझे विश्वास है कि अपने जीवनकाल में ही मैं कुछ घोषणा करने की या कुछ कहने की आवश्यकता ऐसे लोग देख पाऊँगी कि जो जहाँ खड़े हो जाएंगे उनसे शांति एवं प्रकाश प्रसारित होगा वे सभी कुछ यही स्थिति आपको प्राप्त करनी है। प्रसारित कर सकते हैं क्योंकि वे प्रकाश हं, उन्हें परन्तु उस स्थिति तक पहुँचने के लिए आपको प्रकाश करना नहीं पड़ेगा क्योंकि वे स्वयं प्रकाश हैं। कार्य करना होगा और वह कार्य है सहजयोग ऐसी स्थिति आपको अपने अन्दर कार्यान्वित और नहीं। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt मई चैतन्य लहरी 30 जून, 1997 | विकसित करनी पड़ेगी। इस स्थिति का वर्णन बहुत से कवियों तथा संतो ने किया है परन्तु वह मंच पर न थे और लोगों ने सोचा कि पता नहीं वह क्या बात आज, दिवाली के दिन, मैं आपको बताना चाहती हूँ कि हमें सूक्ष्मतर होना होगा। बाह्य चीजों से हमें प्रभावित नहीं होना। बाह्य चीजें जैसे कोई कर रहे हैं। उन्होंने सोचा कि शायद ये पागल हैं। फैशन शुरु हो जाता है। फैशन के पीछे दौड़ने वाले ईसा के लिए भी उन्होंने यही सोचा कि इन्हें लोग मूर्ख हैं वे अन्धे चूहों सम हैं। कोई भी उन्हें क्रूसारोपित कर दिया जाना चाहिए. वे उन्हें समझ किसी तरफ चला सकता है। अब ऐसा करो, और वे न सके। अब आप लोग कदम-कदम आगे बढ़ रहे वैसा करते हैं। यदि आप अन्य लोगों द्वारा किए गए | अब आप ईसा को समझते हैं और इस स्थिति विचारों का अनुसरण करते हैं तो आप स्वयं को पर अभी भी आपको कार्य करना होगा जो लोग पूर्णतः खो देंगे और फिर "मैं हिन्दू हूँ मैं इसाई हूँ सहज के लिए कार्य नहीं करते वे ऊँचे नहीं मैं मुसलमान हूँ" आदि बन जाते हैं। ये मूर्खतापूर्ण उठ सकते। आपको सहजयोग के लिए कार्य है और जब आप आत्मा बन जाते हैं तभी आपको करना होगा। इसे अधिक फैलाना होगा, ज्ञान होने लगता है और वह ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्यान्वित करना होगा, परस्पर आनन्द लेना है एक सन्त एवं सामान्य व्यक्ति में यही दूरी है होगा। जब तक आप वह स्थिति नहीं प्राप्त कर जिसे शनै:शनैः आपने तय कर दिया है। अतः आप जानते हैं कि मानव की समस्याएं क्या हैं और ये भी लेते तब तक आप उस स्थिति तक उन्नत नहीं हो सकते जिसका वर्णन मैंने 'सहज स्थिति' के नाम से किया है। समझ गए हैं कि उनसे व्यवहार किस प्रकार करना है। सहजयोग में सामूहिक चेतना आधुनिक काल आज का दिन महालक्ष्मी का दिन है पैसे का पागलपन, मेरे विचार से, पहली चीज़ है यह में आई है। यह सामूहिक चेतना संतों में थी परन्तु समझ लिया जाना चाहिए कि यह वास्तव में वे कुछ कहते न थे किसी की चिन्ता न करते थे, पागलपन है । किसी धनवान व्यक्ति से आप पूछें तो इस व्यक्ति का यह चक्र खराब है, इसे भाड़ में जाने वह कहता है, "ओह मेरे पास पैसा नहीं है।" ठीक दो, ठीक है। एक बदसूरत व्यक्ति दर्पण के सम्मुख है। ये क्या है ? किसी गरीब से आप पूछे तो उसके जाता है तो ठीक है और यदि कोई सुन्दर व्यक्ति पास भी पैसा नहीं है। तो यह एक प्रकार का लोभ दर्पण के सम्मुख जाता है तो भी ठीक है। दर्पण सम है जो कभी शांत नहीं होता। ये सारी चीजें पहले ये लोग बैठा करते थे। परन्तु हमें समझना है कि अभी हमने उन्नत हुए हमें उन्नत होना आप शुद्ध हो रहे हैं या नहीं, आप ये भी जान है जो लोग इसे कार्यान्वित कर रहे हैं और चहूँ जाएंगे कि आप सभी कुछ किस प्रकार कर रहे हैं। ओर इसे फैला रहे हैं वही वास्तव में बने हुए हैं और समाप्त हो जानी चाहिए तब आपका कार्य आपको शुद्ध करेगा। अपने कार्य में आप जान जाएंगे कि होना है इसे कार्यान्वित करते उनके लिए परम चैतन्य मात्र उनका नौकर है। मैंने एक बार जब ऐसा हो जाएगा तब मेरे जीवनकाल में ही आप में से कुछ वह स्थिति प्राप्त कर लेंगे। देखा है कि लोग किसी चीज़ की इच्छा करते आी.. 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt मई - जून, 1997 चैतन्य लहरी 31 और वह पूरी हो जाती है। वे कुछ मांगते हैं, वह करता रहता है। जो भी कुछ आप कहेंगे वह घटित होगा परन्तु इससे पूर्व आपको पूर्ण अन्दर क्या होना चाहिए. यह महत्चपूर्ण है । विश्वास होना आवश्यक है कि आप सहजयोगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् सभी कुछ पा लेने हैं। अब भी मैं देखती हैँ कि लोगों में कामुकता तथा के बाद हमारे पास क्या होना चाहिए कि हममें अन्य कई प्रकार के भयंकर दोष हैं। तो सर्वप्रथम विश्वास विकसित हो सके। स्वयं में विश्वास कि आपका धर्म में स्थापित होना आवश्यक है। धर्म, इस स्थिति के लिए हमारे उन्हें मिल जाता है। आप आत्मा हैं. आपके पास प्रकाश है और जैसा कि आप जानते हैं, धर्मपरायणता है। यदि आपको अन्य लोगों को प्रकाशित करना है आप धर्मपरायण हैं तो फिर कोई प्रश्न नही है। जब यह विश्वास गहन से गहनतर हो जाता कोई संदेह नहीं है कि यह परम चैतन्य आपकी है तब आप सोचते हैं, ओह, मैं क्या हूँ ? मैं आज्ञा नहीं मानेगा। परन्तु मान लो आज आप आत्मा हूँ। यदि आप आत्मा हैं तो यह पूरी कोई चीज़ चाहते हैं और यह उपलब्ध नहीं प्रकृति आपके साथ है। मैं कुछ सहजयोगियों होती तो भी निराश होना अच्छी बात नहीं को जानती हैँ, उनमें से एक मछुआरा है जिसे मुझ निराशा भी आपकी अपरिपक्वता की निशानी पर अथाह विश्वास है। एक बार सहजयोग का है। निराश होने की क्या बात है ? हो सकता है कार्य करने के लिए वह किसी दूसरे गाँव में जा रहा इसी में आपका हित हो। मान लो मैं रास्ता भटक था। अपनी छोटी सी झोंपड़ी से जब वह निकला तो जाती हूँ और नहीं जानती किधर जाऊं, तो मैं खो आकाश में काले बादल मंडरा रहे थे। अपना हाथ जाती हैँ, परन्तु सब ठीक है, क्या फर्क पड़ता है? ऊपर को उठाकर उसने कहा, "देखो मैं माँ के जहाँ भी मैं हूँ हूँ। मैं स्वयं से किस प्रकार खो कार्य के लिए जा रहा हूँ और वर्षा आरम्भ करने का सकती हूँ? और तब मुझे पता चलता है कि मुझे साहस नहीं करना। जब तक मैं कार्य समाप्त नहीं इसी रास्ते पर जाना था क्योंकि मुझे किसी व्यक्ति कर लेता इसी स्थिति में लटके रहो। क्योंकि वो से मिलना था। किसी से मिलने के लिए मैं प्रतीक्षा नाव से जा रहा था, अन्य सहजयोगियों ने सोचा कर रही थी और बह व्यक्ति मुझे वहाँ मिल जाता पता नहीं ये क्या बातें कर रहा है ? वह नाव में है। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? मेरे चढ़ा, सभी लोग दूसरे गाँव पहुँचे, लोगों को साथ ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और यदि न भी हों आत्मसाक्षात्कार दिया, उसने अपना प्रवचन समाप्त तो क्या ? मुझे उस ओर जाना था, संभवतः मुझे वहाँ किया। नाव में बैठकर वे लोग अपने गाँव वापस चैतन्य लहरियाँ देनी थीं यह इस प्रकार है। अत: आए, जब बह अपने घर का दरवाजा बन्द करने एक बार जब आप जान जाते हैं कि जो भी कुछ लगा तो उसने कहा ठीक है, अब बरसो । तो यह आप कर रहे हैं उस पर आपका पूर्ण नियन्त्रण है. पूर्ण विश्वास होना आवश्यक है कि यह पूर्ण विश्वास है तो पूरा नियन्त्रण आपके पास आ परम-चैतन्य आपके नौकर की तरह है और जाता है। आपके विश्वास से पूरी शक्ति आपमें आ हर समय आपकी सेवा करने के लिए प्रतीक्षा जाती है, आपका एक एक शब्द ऐसा हो जाता है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 32 मानों आपको सत्य का ज्ञान हो। सत्य आपको से जानता है। यदि वो मैं हूँ या कोई अन्य सच्चा शक्ति प्रदान करता है। यदि आपके साथ सत्य है, गुरु, एक ही बात है। परन्तु जैसा कि आप जानते पूर्ण सत्य है, तो आपके पास शक्ति है और वह हैं, मैं क्योंकि क्षमाशील हूँ लोग मेरे सम्मुख मनमानी शक्ति ऐसी है जो केवल आपको अधिकार प्रदान करने लगते हैं। कोई अन्य गुरु यदि होता तो करती है अन्य लोगों को नहीं। यह शक्ति जो उनकी पिटाई कर देता। सभी प्रकार के दण्ड वह आपमें है निरंतर कार्य करती है। मैंने अत्यन्त आपको देता। गुरुओं के विषय में मैंने आपको बहुत साधारण सहजयोगियों को देखा है, अत्यन्त सी कथाएं बताई हैं कि वे अपने शिष्यों से किस साधारण, अशिक्षित भी, परन्तु वे अत्यन्त शक्तिशाली प्रकार व्यवहार करते हैं । परन्तु मैं क्षमाशील हूँ, ैं सहजयोगी हैं पर उनके पास एक चीज़ है विश्वास, कुछ नहीं कहती। मैं सोचती हूँ कि इन्हें स्वतंत्र कर पूर्ण विश्वास। संस्कृत में एक शब्द है 'तितिक्षा' अर्थात् धैर्य पाएंगे परन्तु कई बार इसके विपरीत हो जाता है । (सबूरी) आपमें धैर्य होना आवश्यक है। यदि आपमें एक बार क्षमा पाकर वे स्वयं को स्वतंत्र मान बैठते धैर्य नहीं है तो आप हर चीज़ को तुरन्त हुआ चाहते हैं। तो स्वयं में विश्वास का अभिप्राय है कि हैं। सभी कुछ कार्यान्वित हुआ आप किस प्रकार धैर्यपूर्वक स्वयं को देखें और किसी भी चीज़ देखेंगे ? देने से ये उन्नत होंगे और इस स्थिति तक पहुँच लाम से लोग अत्यन्त घबराए हुए हैं और से निराश न हों। अब कल्पना करें कि कितने तेजी से दौड़ रहे हैं। ये विश्व बहुत तेजी से दौड़ लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। विश्व में रहा है । केवल आप लोग ही इस दौड़ से बाहर इतने सन्त हुए। कल आपने देखा कि मैं फ्रांस के खड़े हैं और इस चूहा दौड़ को साक्षी रूप से देख लोगों को इतना अच्छा गाते हुए देखकर कितनी रहे हैं। आप उनमें से नहीं हैं अतः आप में सबूरी हैरान हुई! लय के लिए मुझे हारमोनियम उठाकर को होना आवश्यक है । स्वयं पर विश्वास रखें, उनको गाने की एक लाईन सिखानी पड़ी थी। पूर्णतः और ये देखने का धैर्य रखें कि सहजयोग आधा घंटा तक कोशिश करने के बावजूद भी मैं बहुत किस प्रकार कार्यान्वित हो रहा है या परम चैतन्य उन्हें न सिखा सकी थी। वही फ्रांस के लोग आज किस प्रकार कार्य कर रहा है। यदि यह इस प्रकार सृजनात्मकता की उस स्थिति तक पहुँच गए हैं! होता है तो बिल्कुल ठीक हैं। यह अगर दूसरी आप जान लें कि आपकी सारी शक्तियाँ विकसित प्रकार होता है तो इसका भी कोई अर्थ है। हो जाएंगी और अपनी अभिव्यक्ति करेंगी। परन्तु अब एक अन्य महत्वपूर्ण चीज़ जो है वह है सावधान रहें कि आपको इस पर अहं नहीं होना अपने गुरु में आपकी श्रद्धा। यदि अपने गुरु खिल उठेगा और आपके के प्रति आपमें श्रद्धा है तो परम-चैतन्य दयालु इर्द -गिर्द के लोग इसकी सुगन्ध से महक उठेंगे है। परन्तु यदि आप गुरु पर संदेह करते हैं और सहजयोग में आ जाएंगे। यह आशीर्वाद है । चाहिए। शनैःशनैः ये पुष्प तो परम-चैतन्य भी आप पर संदेह करता है उस समय, परमात्मा के आशीर्वाद से आप उस क्योंकि परम चैतन्य आपको आपके गुरु के माध्यम स्थिति तक उन्नत हो जाएंगे जिसे हम 'पूर्णतव' 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt मई - जून, 1997 चैंतन्य लहरी 33 कहते हैं। यह पूर्णत्व आना आवश्यक है। आप होगा तब यह पूरा ज्ञान या आशीर्वाद एक हो स्वयं को तोलें। क्या आप पूर्णतः सहज के जाएंगे। बिना जाने आप इस आनन्द की स्थिति में साथ हैं ? क्या आप पूर्णतः सहज के प्रति हैं। मैं आशा करती हूँ कि आप सब इस स्थिति को समर्पित हैं ? या सहज की अपेक्षा अन्य चीजें प्राप्त करेंगे। आपके लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं आगे बढ़ें। दिवाली पुर्तगाल में मनाई जा रही है। मेरे सहजयोग में एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी विचार से यह महालक्ष्मी का विशेष स्थान है क्योंकि चाहिए कि इसमें प्रतिस्पर्धा नहीं है। इसमें ईर्ष्या महालक्ष्मी, जैसा लोग बताते हैं और महालक्ष्मी सम नहीं है और निन्दा भी नहीं है। आप एक संत हैं और इन सब चीजों से ऊपर हैं। आप बेईमान नहीं हुई हैं. अन्य लोगों को धोखा नहीं दे सकते। और अब भी यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो अभी आपने बहुत रही हूँ वह थोड़ी सी सूक्ष्म है । परन्तु मुझे आपको चेहरे बाले स्वयंभु को भी हमने देखा है, यहाँ प्रकट ं। अतः मुझे विश्वास है कि यह आप सबके लिए कार्यशील होगा। जिस स्थिति के बारे में मैं बात कर उन्नत होना है। कुछ लोग सोचते हैं कि बो बताना है कि आपने यह स्थिति प्राप्त करनी है और सहजयोग में बहुत ऊंचे हो गए हैं। परन्तु ऐसी बात इसे प्राप्त करना आपके लिए अत्यन्त सरल है। तब नहीं है। आप यदि ऐसा सोचते हैं तो आप खो गए आपको कुछ नहीं करना। आप किसी गाँव में जाएं आपको सोचना है कि मैंने क्या किया ? कितने सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है देखें क्या घटित लोगों को मैंने आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने लोगों होता है। मैं कैरो गई तो सभी लोग मुझे नमस्कार से मैंने सहजयोग की बात की ? सहजयोग की कर रहे थे मैं हैरान थी कि क्या हो गया है! मैं बात करने में लोगों को शर्म आती है। पार्टियों में उनके गाँव गई। हजारों लोग मेरे कार्यक्रम में आए। जाकर वो ये नहीं कह सकते कि मैं सहजयोगी हूँ, मैंने उनसे पूछा कि किस प्रकार आप मेरे कार्यक्रम मैं शराब नहीं पी सकता। स्वभाव से ही मैं शराब में आए ? आपके चेहरे से ही स्पष्ट दिखाई पड़ता नहीं पी सकता। अतः घोषणा करना तीसरा है, उन्होंने समाचार - पत्र में एक छोटा सा विज्ञापन भाग है-स्वयं में विश्वास रखें और उसकी देखा था यह स्पष्ट है कि आप परमेश्वरी हैं । पर धोषणा करें। सभी संतों ने घोषणा की, इसके लिए अब भी आप यह घोषणा नहीं कर सकते कि उनकी हत्या तक कर दी गई, परन्तु आपको कोई सहजयोग ही एकमात्र रास्ता है! हो सकता है हानि नहीं पहुँचा सकता। सहजयोग के प्रति साधक न हों। कोई बात नहीं मेरे विचार से साधक पूर्ण विश्वास, सहजयोग की पूर्ण समझ और तो सब आ चुके। अब उन लोगों तक भी पहुँचें जो फिर इसकी घोषणा। लक्ष्य पूरे विश्व को परिवर्तित साधक नहीं हैं। करना है। आपके परिवर्तन से ही विश्व परिवर्तित परमात्मा आपको धन्य करें। पूरा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt 3५ अन्तर्राष्ट्रीय एकता प्रतिष्ठान बटाड परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का होटल क्लैरिजिस, नई दिल्ली कु प्रवचन 6.4.1997 शर जहाँ तक प्रयत्नों का सम्बन्ध है, लोगों ने हैं कि ये हमारी बुद्धि से परे है! परन्तु आपको अपने बहुत सी खोज की है, बहुत सी सभाएं की गई और उन्होंने सबको विश्वस्त करने की कोशिश की कि मन से ऊपर जाना होगा। हमारा मन जिसे हम बहुत बहुमूल्य समझते बिना एकता के हम लोग जीवित नहीं रह सकते। हैं, अहम् तथा बन्धनों द्वारा बनाया गया है। मन कारण यह है कि यह विश्व एक है और हम सब मिथ्या है क्योंकि इसकी सृष्टि हमने स्वयं की है इसके अंग-प्रत्यंग हैं। परन्तु हममें शरीर के भिन्न और हम स्वयं ही अपने मन के हाथों का खिलौना अवयवों की तरह एकरूपता नहीं है। शरीर में यदि बन जाते हैं। जैसे हम कम्प्यूटर का उपयोग करते कहीं काँटा चुभे तो पूरे शरीर को इसका पता चल हैं। कम्प्यूटर हमारे द्वारा बनाया गया है परन्तु यह जाता है। ऐसा हमारी जागृतिहीनता के कारण है। हम पर शासन कर रहा है। इसी प्रकार यह मन हम हमारी चेतना इतनी विकसित नहीं है कि हम अपने पर शासन करता है और इसी मिथ्या मन से हम अन्दर इसे सामूहिक रूप से महसूस कर सकें । मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं । मैं यदि कहूँ (आपको सामूहिक चेतना के विषय में बहुत समय पूर्व बताया सदमा नहीं पहुँचना चाहिए क्योंकि आपकी मन से गया था। परन्तु सब अस्पष्ट था। सामूहिक चेतना एकरूपता है) कि यदि यह पटरी से उतर जाए तो में कुण्डलिनी, जोकि आपकी अपनी शक्ति है, कोई भी पागल हो सकता है। किसी भी व्यक्ति या उठती है और परिणामस्वरूप आप विराट के (पूर्ण व्यर्थ की चीज़ को यह अत्यन्त उपयोगी मान के) अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं तथा अन्य लोगों के सकता है। अतः मन मानव को युद्ध के गर्त में विषय में भी आपमें चेतना आ जाती है । इसे हम धकेल सकता है जिससे हमारे हृदयों में एकता सामूहिक चेतना कहते हैं। इसे अच्छी तरह से समाप्त हो जाएगी उदाहरणार्थ मैं किसी ऐसे समझने के लिए परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से व्यक्ति से बात कर रही थी जिसे अलग राज्य एकाकारिता का अनुभव होना आवश्यक है । इसके चाहिए था मैंने कहा, "आपको अलग राज्य क्यों विषय में हमने बाइबल, कुरान, हमारे सभी भारतीय चाहिए ?" उसने कहा, "तब हम दो प्रधानमंत्री बना धर्मग्रन्थों में है वर्णन किया गया है कि एक सकेंगे ।" मैंने कहा, "क्यों ?" क्योंकि वह स्वयं अति सूक्ष्म शक्ति है जो हमारे लिए सारा कार्य प्रधानमंत्री बनना चाहता था । करती है। जब मैं इंसके विषय में बताती हूँ तो थोड़े से लोग इस पर विश्वास करते हैं क्योंकि वे सोचते जैसे ब्मा, श्री लंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी सुना हमारा देश तीन और देशों में बँट चुका है, ले 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 1997 35 भारत के ही भाग थे। अब यदि आप इन देशों में पायी कि रूस के लोगों ने इतनी आसानी से मुझे जाएं तो हैरान होंगे कि यहां दुर्दशा है। जो लोग कैसे समझ लिया! बाहर बैठे लोगों ने कहा कि इस कार्य के लिए लड़े, जिन्हें स्वाधीनता तथा भिन्न हमारा क्या होगा ? हमारे लिए अन्दर बैठने के लिए राज्य चाहिए था, उनमें से अधिकतर की हत्या कर जगह नहीं है। मैंने कहा कोई बात नहीं, मैं वापिस दी गई । शेख मुजिबुर्रहमान, बण्डार नाइके, भुट्टो आऊंगी। अन्दर जा कर मैंने सब लोगों को आदि। ये वे लोग थे जिन्हें पद चाहिए था और इस साक्षात्कार दिया। जब मैं बाहर आई तब भी लोग कारण उन्होंने यह कहना शुरु कर दिया कि हमें बाहर बैठे हुए थे। उन्होंने पूछा कि हमारा क्या भिन्न राज्य चाहिएं, भिन्न पहचान चाहिए। किसको होगा ? मैंने कहा ठीक है मैं कल सुबह आऊंगी। इससे लाभ हुआ? परन्तु अब भी वे इस बात को रूस में बहुत से सुन्दर बाग हैं, मैंने उनसे कहा कि नहीं समझ पाए। पूर्ण से अलग हो कर उन्होंने आप लोग आइए, मैं सीढ़ियों पर बैठ कर आपसे बात कितने कष्ट उठाए हैं। करूंगी। आप जान कर हैरान होंगे कि छः हजार रूस में मैंने देखा है :- अब रूस में बेला लोग आए। मैंने पूछा आप लोगों का मेरी तरफ रूसे (Bela Rousse) रूस में वापिस आने का इतना झुकाव कैसे हो गया है? मैंने आप लोगों के प्रयत्न कर रहा है। मैंने यूक्रेन के लोगों से पूछा कि लिए क्या किया है ? आप कैसे सोचते हैं कि मैं रूस से अलग क्यों हो रहे हैं ? तो इस प्रकार के आपको कुछ विशेष दे सकती हूँ? उन्होंने कहा यह विचार कि हमें एक देश से अलग होकर दूसरा देश स्पष्ट है । उनकी निश्छलता को देखकर मैं हैरान बना लेना चाहिए. इस प्रकार से मुझे कोई देश थी! मैंने देखा है कि रूस तथा पूर्वी ब्लाक के लोग उन्नति करते नहीं नजर आया। अत्यन्त निश्छल हैं। इस संवेदना का सम्भवतः एक आत्मसाक्षात्कार मिल जाने के पश्चात् आपके कारण यह भी है कि उनका शोषण हुआ है जो भी अन्दर एक नया आयाम विकसित हो जाता है। हो उनके बन्धन समाप्त हो गए हैं उनमें अधिकार जिससे आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं। भाव नहीं है सरकार ने उन्हें कहा कि अपने फ्लैट अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप जान सकते हैं ले कर खुशी से वहाँ रहो, पर उन्होंने कहा कि नहीं कि आप में क्या दोष है और अन्य लोगों में क्या हमें फ्लैट नहीं चाहिए। उनमें स्वामित्व भाव बिल्कुल दोष हैं। एक बार यदि ऐसा हो जाए तो तेजी से नहीं है । वे बिल्कुल शुद्ध हैं, बन्धन रहित क्योंकि एकता आती है। मैं स्वयं आश्चर्यचकित हूँ कि उन्हें धर्म, परमात्मा या ऐसी अन्य चीजों के विषय में सहजयोग में किस प्रकार घटनाएं घटित हो रही नहीं बताया गया जो हमारे देश में समस्याएं खड़ी हैं । 12 कर रही हैं। मैं हैरान थी कि इन लोगों ने सहजयोग मैं रूस गई तो मुझे प्रवचन देने में संकोच हो को आसानी से अपना लिया। अगले कार्यक्रम में दस हजार लोग आए। मैं रूसी भाषा नहीं जानती। रहा था। परन्तु जब मैं पहला प्रवचन देने के लिए गई तो दंग रह गई। दो हजार लोग सभागार के अन्दर बैठे थे और दो हजार बाहर। मैं समझ न उनका व्यवहार कितना अच्छा था कि दो सौ पचास वैज्ञानिकों के लिए हमने एक कार्यक्रम किया रूस tho 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt मई चैतन्य लहरी 36 जून, 1997 में विज्ञान को अत्यन्त सूक्ष्म रूप से विकसित किया चाहिए और यह आत्मज्ञान आपको मन तथा विज्ञान है। मैंने जब उन्हें विज्ञान के विषय में बताना शुरु से ऊपर ले जाएगा। 1 आप जानते हैं कि विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं। सर्वप्रथम तो यह निर्नैतिक (Amoral) है। इसमें दैवी विज्ञान के विषय में बताएं। वे लोग वास्तव में नैतिकता नहीं है इसलिए विज्ञान के साथ आप आगे अन्तर्दर्शी हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मास्को में नहीं बढ़ सकते। आप लोगों को मार सकते हैं, देशों हुए सैनिक विद्रोह के कारण चिन्तित हैं? उन्होंने को नष्ट कर सकते हैं और क्योंकि यह अनैतिक है। उत्तर दिया कि हम क्यों चिन्ता करें हम तो आपको कुछ महसूस नहीं होता अब नैतिकता का अर्थ बाह्य रोक-टोक नहीं, इसका अर्थ है बुद्धिजीवी लोगों के मस्तिष्क सदा उनके करुणा, प्रेम, शुद्ध प्रेम। आप समझ जाते हैं कि किया तो उनमें से एक ने उठकर कहा कि माँ विज्ञान तो काफी हो चुका, कृपा करके आप हमें परमात्मा के साम्राज्य में हैं। विचारों तथा योजनाओं पर होते हैं। कोई एक क्या करना चाहिए। परन्तु यदि आप बनावटी रूप विशेष प्रकार के व्यक्ति से मिलता है और आक्रामक से नैतिक बनने का प्रयत्न करते हैं तो ऐसे लोग अत्यन्त रूखे और क्रोधी हो जाते हैं। अन्दर से ये बन जाता है। दूसरा किसी और प्रकार के व्यक्ति से बात उठनी चाहिए कि आप शुद्ध आत्मा के अतिरिक्त मिलता है और उससे एकरूप हो जाता है। आप जाकर किसी का भाषण सुनते हैं और वह भाषण कुछ भी नहीं हैं। आप मस्तिष्क अहम् तथा भावनाओं आपके मस्तिष्क में बैठ जाता है। और इस प्रकार से ऊपर हैं, आप शुद्ध आत्मा हैं। केवल जानना मात्र ही काफी नहीं, आपको बनना चाहिए, बनना ही आपका चित्त हर समय बाह्य चीजों से ढका रहता है। जब तक ये आपके अपने नहीं होते ये विशेष बात है। यदि आप ऐसे बन जाते हैं तो आप अनुभव अस्पष्ट होते हैं। वह अनुभव प्राप्त करना बहुत ये जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि आप आसान काम है। निःसन्देह हमारा देश महान लोगों का देश है। जब मैं चीन गई तो उन्होंने मुझसे पूछा चेतन हो जाते हैं, आप प्रेम तथा करुणा के स्रोत भी श्री माता जी क्या ये हमारी चीन की संस्कृति का कितने महान हैं। आप न केवल सामूहेक रूप से 1 बन जाते हैं। जब तक यह घटित नहीं हो जाता, खजाना है। भारत अध्यात्म का खजाना है उन्होंने आप एकता नहीं ला सकते। उदाहरणार्थ मैं सहजयोग इसके विषय में पढ़ा है, इसके विषय में जानते हैं में कार्य कर रही हूँ, जिसे मैं सरकारी स्तर नहीं और हमसे कुछ प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कहूंगी मैंने कभी अपने पति के कार्यालय को परन्तु यहाँ तो मुझे विशेष दिखाई नहीं देता। यहाँ परेशान करने का प्रयत्न नहीं किया। अपने आप मैंने पर तो हमारे पास स्वयं पर चित्त देने के लिए और यह आरम्भ किया। सर्वप्रथम थोड़े हिप्पियों से शुरु स्वयं को जानने के लिए समय ही नहीं है। ईसा ने और मोहम्मद साहब ने कहा है कि जब तक आप कि हम रूस और पूर्वी ब्लाक में भी प्रवेश कर सके। किया और शनै:शनैः यह इतनी मधुर चीज़ बन गई स्वयं को नहीं पहचान लेते आप परमात्मा को नहीं सभी यूरोप के देशों में, अमेरिका में तथा दक्षिण जान सकते। आप स्वयं को जानें। आत्मज्ञान होना अमेरिका में गए। क्योंकि लोगों ने इसे महसूस 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt मई चैतन्य लहरी 37 जून, 1997 किया था दक्षिण अमेरिका का एक भी व्यक्ति इसे विचार है स्वतः ही वे एकता ला रहे हैं। मैं उन्हें प्राप्त करता है तो वह कहता है कि दक्षिण अमेरिका नहीं कहती, अपनी सूझ-बूझ से वे यह कार्य कर रहे हैं। आन्तरिक सूझबूझ की आवश्यकता है, का क्या होगा? आप कब दक्षिण अमेरिका आ रही हैं ? हमें आपकी बहुत आवश्यकता है। जब मैं वहाँ आन्तरिक एकता की, बाहरी दिखावे की नहीं। हम गई तो पाया कि बहाँ बहुत से साधक थे, उनकी मानव यदि करुणा के सागर में उतर जाएं तो हममें दिलचस्पी सत्ता, धन तथा अन्य चीजों में न थी। बड़े-बड़े कार्य करने की क्षमता है और हम लोग दूं. वे यह इतने प्रेमपूर्वक करते हैं कि आप विश्वास ही अब मैं आपको एक मधुर कहानी सुना दो बार अपनी मधुरता का प्रदर्शन कर चुके हैं पहला नहीं कर सकेंगे कि ये मानव हैं! किस प्रकार यह जब मैं रूस गई तो पच्चीस जर्मन लोग मास्को मानव जीवन की सीमाओं से पूर्णतः ऊपर उठ गए आए वे सहजयोगी थे मैंने उनसे कि वे कैसे हैं। यहाँ आए हैं तो कहने लगे कि श्री माता जी क्या आप ऐसा नहीं सोचती कि हम जर्मनी के लोगों ने समाचार पढ़ा जो कह रहा था कि मैं जेहाद छेड़ बहुत से रूसी लोगों की हत्या की है। क्या अब यह रहा हूँ। किसलिए? पश्चिम में व्याप्त चरित्रहीनता, हमारा कर्त्तव्य नहीं कि हम आकर उन्हें वह दे सकें मदिरापान तथा अन्य सभी बुराईयों से मुक्ति पाने के जो हमने प्राप्त किया है ? इतना प्रेम और करुणा! लिए। तो एक सहजयोगी ने मुझे टेलिफोन किया ये जर्मनी के लोग इतने कोमल और विनम्र हैं कि कि श्री माता जी इसके लिए एक जेहाद करने की आप सोच भी नहीं सकते कि उनमें हिटलर जैसी आवश्यकता है? आप बस सहजयोग करें आपको कोई चीज़ है। आस्ट्रिया के लोग, वे भी जर्मन हैं, इन सभी चीजों से मुक्ति मिल जायेगी। आप सभी इजराईल गए। मैंने कहा आप इज़राईल क्यों गए, को शराब की लत थी, सभी प्रकार की मूर्खता एवं वहाँ तो आपके लिए कोई प्रबन्ध भी न था ? कहने चरित्रहीनता के कार्य हम किया करते थे परन्तु लगे श्री माता जी हमने अपने को इज़राईली यहूदियों इसके लिए आपको जेहाद करने की आवश्यकता के लिए बहुत जिम्मेदार पाया क्योंकि हमारे देश में नहीं इससे आपको स्वतः ही मुक्ति मिल जाती है। पूछा उस दिन मैंने एक महानुभाव के बारे में बहुत से यहूदियों की हत्या हुई जिसके लिए हम आप अत्यन्त शुद्ध होकर इन सब चीजों से ऊपर स्वयं को क्षमा नहीं कर सकते। अतः इस विषय में उठ जाते हैं। आपको उपाधि मिल जाएगी। मैं कुछ तो करना है। जर्मन लोगों का इज़राईल आपको विश्वास दिलाती हूँ कि आपके साथ ही यह वासियों से जान-पहचान करके उनसे बातचीत घटित हो सकता है, यह कोई विशेष बात नहीं है। करने की कल्पना कीजिए! उन्होंने कोई तीस युवा क्योंकि जब यह कुण्डलिनी उठती है तो यह इज़राईलियों को पकड़ा। मैंने इज़राईलियों से पूछा कार्यान्वित करती है। वह आपकी अपनी माँ है । कि आप यहाँ कैसे आए ? वे कहने लगे क्यों नहीं, आपके विषय में वह सभी कुछ जानती है और जिस हम मुसलमानों से दोस्ती करना चाहते हैं और प्रकार वह आपको पुनर्जन्म देती है वह बहुत ही इसलिए हम यहाँ पर हैं। मैंने कहा बहुत अच्छा सुखद अनुभव है। आप सब, विशेषकर भारतीय, ्ीट 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt मई चैतन्य लहरी जून, 1997 38 लोगों में यह प्राप्त करने की योग्यता है। यहाँ बहुत इन्हें महसूस कर सकता है। कोई भी साक्षात्कारी से सूफी हैं। कमलों की तरह से वे खिल उठे हैं। आपको बता सकता है कि आपमें क्या परेशानी है हमें समझना चाहिए कि अपने पूर्व जन्मों के पुण्यकर्मों या उनके अपने अन्दर क्या दोष है। दस साक्षात्कारी बच्चों की आँखों पर यदि पट्टी बाँधकर आप बिठा के कारण ही हम इस योग भूमि पर अवतरित हुए हैं। परन्तु समस्या यह है कि हम इस योग भूमि का दें और कोई व्यक्ति उनके सम्मुख खड़ा करके लाभ नहीं उठा रहे हैं। ऐसा करना आपके हाथ में उनसे पूछे कि इसका कौन सा चक्र पकड़ रहा है तो वे सभी एक ही अंगुली उठाएंगे, क्योंकि यह पूर्ण ज्ञान है। यदि वे तर्जनी उठाते हैं तो इसका अर्थ ये हुआ कि उसके गले में कोई खराबी है। वह व्यक्ति आपको पूछेगा कि मैंने तो आपको नहीं बताया आप कैसे जान गए मैंने कहा कि यह इस शक्ति, इस है। यह योग भूमि आपको परमात्मा के सभी आशीर्वाद दे सकती है। हमने इसका प्रयत्न किया है और इस परिणाम पर पहुँचे हैं। अवस्था विज्ञान भी है। सहजयोग के माध्यम से मैं आपको बहुत सी चीजें बता सकती हूँ कि आपमें आत्माएं हैं तथा और भी बहुत सी चीजें हैं ज्ञान द्वारा बताया गया है। इस देश में हम बहुत से लोग झूठ मूठ के जिनका अब तक वर्णन नहीं किया जा सका है। उदाहरणार्थ मूलाधार नामक प्रथम चक्र कार्बन के गुरुओं के कारण कष्ट उठा रहे हैं । यह लोग अणुओं से बना हुआ है। कार्बन के अणुओं को जब वैभवशाली लोगों को पकड़ते हैं और बहुत धन लूट आप देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे कि बायीं ओर से रहे हैं। किसी भी शहर में जाकर यह धनी लोग देखने पर ॐ (ओंकार) सम दिखाई देते हैं। परन्तु खोज लेते हैं। ऐसे लोगों को आप अपनी अंगुलियों इसी को जब आप नीचे से ऊपर देखते हैं तो ये अल्फा के सिरों पर पहचान सकते हैं। कुरान में कहा गया तथा ओमेगा (आदि-अंत) सम प्रतीत होते हैं। ईसा है कि कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे और कहा है मैं ही आदि (अल्फा) हूँ , मैं ही अन्त आपको अपने तथा अन्य लोगों के विषय में बताएंगे। (ओमेगा) हूँ और वे श्री गणेश का अवतार थे। इस आप यदि इन चक्रों को ठीक करना सीख लें तो बात को प्रमाणित किया जा सकता है। एक अन्य अपने तथा अन्य लोगों के चक्रों को भी ठीक कर चीज़ जो है वह यह है कि एब बार जब आपको सकते हैं। यह सातों चक्र ही आपके शारीरिक, आत्मासाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो आप अपने मानसिक तथा भावनात्मक तथा सर्वोपरि आपके हाथों से शीतल लहरियाँ अनुभव करने लगते हैं आध्यात्मिक अस्तित्व के लिए जिम्मेदार हैं। तो आप और परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति को अपने चहूँ ऐसा कर सकते हैं और यही वह व्यक्तित्व है जो पूर्ण मानव है। जिसमें कोई द्वंद नहीं है । वह अन्दर ओर महसूस करते हैं। इससे आप जान जाते हैं कि आपका कौन सा चक्र पकड़ा हुआ है दाएं और से पूर्णतः शान्त होगा और बाहर से अत्यन्त निर्मल बाएं दोनों हाथों पर सात-सात चक्र हैं। अपनी तथा प्रेममय। वह सभी के हृदय जीत लेगा। हमारे अंगुलियों के सिरों पर आप आसानी से भिन्न चक्रों एक सहजयोगी थे जो पहले लन्दन में थे फिर को महसूस कर सकते हैं। एक छोटा सा बच्चा भी 1 इटली चले गए। इटली जाकर मुझसे कहने लगे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt मई चैतन्य लहरी 39 जून, 1997 कि श्री माता जी मैं अत्यन्त हताश हूँ। यहाँ कोई कारण इन लोगों के लिए वहाँ हमारे पास अधिक अन्य सहजयोगी नहीं है। मुझे बहुत अकेलापन प्रबंध भी नहीं होते फिर भी लोग वहाँ आते हैं और महसूस होता है। तब हमने वहाँ एक कार्यक्रम जहाँ हो सकता है हम उन्हें ठहरा देते हैं और वे किया और अब रोम में हजारों सहजयोगी बन गए इसका आनन्द लेते हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या हैं। इस प्रकार सहजयोग फैलना शुरु हुआ। मैंने यहाँ आपको कष्ट नहीं होता? तो कहने लगे श्री इसे नहीं फैलाया है। जहाँ तहाँ जाकर सहजयोगियों माता जी हम तो केवल आत्मसुख खोज रहे ने यह कार्य किया। मानो कुछ बीजों को यहाँ से यही सुखदायी होता है। वहाँ ये लोग मुझे छोटी-छोटी स्थानान्तरित करके भेज दिया गया हो और वहाँ सुविधाओं के लिए परेशान नहीं करते। सभी राष्ट्ों अंकुरित होकर सहजयोग वृक्ष लहलहा उठा हो। के लोग मिलकर आनन्द लेते हैं इतनी शान्तिमय हैरानी की बात है कि इन सहजयोगियों में अत्यन्त तारतम्यता, इतना सुन्दर आनन्द प्रवाह! निःसन्देह प्रेम है। कभी-कभी वे एक दूसरे की टाँगें भी खींचते अब अफ्रीका में 400 अत्यन्त दृढ़ सहजयोगी परन्तु सदैव वे आनन्द और खुशी से परिपूर्ण होते हैं। अभी तक मैं कभी अफ्रीका नहीं गई। हैरानी हैं विरोध और प्रतिस्पर्धा जैसी तुच्छ चीजें समाप्त 1 3 की बात है कि अफ्रीका के एक शहर में 400 हो जाती हैं। यह दोष उन्हें पसन्द नहीं है क्योंकि सहजयोगी हैं। अब ये क्या कर रहे हैं- बस वे सन्त बन चुके हैं और लोग. कहते हैं कि ये अधिकाधिक सहजयोगी बना रहे हैं। यही उनकी परमात्मा के बन्दे हैं तथा वे इस दिव्य प्रेम के कार्यशैली है। वे कहते हैं कि यदि आपको मानसिक उत्तराधिकारी बन जाते हैं। वे केयल इसके योग्य ही. शान्ति चाहिए तो आत्मसाक्षात्कार एकमात्र उपाय नहीं, ये उनका जन्मजात अधिकार है। उनकी है। यही माँ का 'प्रलोभन' है। माँ ने यदि औषधि भी संख्या आश्चर्यचकित रूप से बढ़ रही है । मेरी तो देनी हो तो चाकलेट में मिलाकर देती हैं। इसी समझ में ही नहीं आता क्योंकि कभी तो कैवल एक प्रकार आप भी कह सकते हैं कि यदि वास्तव में आप मानसिक शान्ति चाहते हैं, एकता चाहते हैं तो यह कार्यान्वित हो सकती है। आरम्भ में ही मैंने दो सूफी हुआ करते थे जो कष्ट झेलते रहते थे। सहजयोगी कभी तुर्की भाग रहे हैं कभी ट्युनिशिया। ट्युनिशिया में तो मैं यह देखकर हैरान थी कि ज्यों ही लोगों ने आत्मसाक्षात्कार लिया उनकी छोटी-छोटी आपको बताया था कि यह अति महान विद्या है और यदि वह विद्या आपके पास है तो सहजयोग बहुत समस्याएं समाप्त हो गई। निःसन्देह यह आपको ही तेजी से बढ़ेगा क्योंकि लोगों में स्वाभाविक, स्वतः रोगमुक्त करता है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं। और अन्तर्जात प्रेम उत्पन्न करने का यही एकमात्र रोगमुक्त करके यह व्यक्ति को पूर्ण मानसिक शान्ति मार्ग है। हर वर्ष, हर माह हमारे कार्यक्रम होते हैं। प्रदान करता है। आप अपने आप में तथा अन्य गणपति पुले नामक दूरदराज़ एक स्थान पर हमारा लोगों के प्रति शान्त होते हैं क्योंकि आपमें शान्ति कार्यक्रम होता है। गरीब, अमीर सभी प्रकार के भाव विकसित हो जाता है जिसके द्वारा आप मात्र लोग विश्व भर से वहाँ आते हैं। धनाभाव होने के देखते हैं, प्रतिक्रिया नहीं करते और इस प्रकार स्वयं 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt की 15 ाि ंवि ब 1824 ति श निर्मल धाम LIA MAL ि की भात हि २ हे ण क पति