1997 अंक 9 व 10 चैतन्य लहरी "पूर्णतः विश्वस्त हो जाइए कि आप सत्य के विषय में ही बता रहे हैं, कुछ और नहीं, तथा सत्य को आपने भलीभांति अनुभव कर लिया है। जिन लोगों ने चैतन्य लहरियों अनुभव नहीं की हैं उन्हें सहज के विषय में नहीं बोलना चाहिए। इसका उनहें अधिकार नहीं है। पहले उन्हें चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करनी होंगी चैतन्य को स्वयं में पूर्णतः आत्मसात् करना होगा तभी वे यह कहने के अधिकारी होंगे कि हाँ, हमने अनुभव किया है " परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी DRARMA া तरo NIVERSAL PURE RELIGIO न त त HICE विषय सूची सअक में इ परमात्मा की इच्छा श्री आदिशक्ति पूजा कबेला 14 पा श्री आदिशक्ति पूजा कबेला प्रवचन २५ मई १६६७ 16 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 25 १८ जनवरी १६८३ आयुर्वेदिक चिकित्सा-इतिहास, प्रयोग एवं योग से सम्बन्ध 32 अनन्य प्रेम (कविता) 39 SHWA NIRMALA DHARM VMHSIA सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्घृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। नडि भ प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 त ई मेल का पता- marketing@nirmalinfosys.com www.nirmalinfosys.com Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ॐा परमात्मा की इच्छा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन इतिहास के पन्नों में यदि आप झांक कर धर्मादेशों को मानने का या जीवन के कठोर नियमों देखें तो आप जान पाएंगे कि विज्ञान की स्थापना ने का पालन करने का क्या लाभ है ? इनके पालन से सम्पूर्ण मूल्य प्रणाली तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के कोई लाभ नहीं होता जीवन की खुशियों को भी प्रमाणों को मिटा देना चाहा। भिन्न धर्मों के व्यक्ति खो बैठता है। पुण्य कमाने के विचारों को भी धर्म-प्रभारियों ने वैज्ञानिक खोजों के साथ चलना छोड़ दें इस प्रकार मानव मूल्यों से लोग निरन्तर चाहा। उन्होंने यह दर्शाने का प्रयत्न किया कि यदि हटते चले गए। सभी व्यवस्थित धर्म सत्ता तथा धन इतना कुछ बाइबल में लिखा है तो ठीक है और प्राप्त करने के लिए लड़ पड़े क्योंकि उन्होंने सोचा यदि यह गलत है तो हमें इसे ठीक कर देना कि लोगों को वश में करने का मात्र यही एक तरीका है। बाईबल के अनुसार लोगों को कुछ उपलब्ध कराने की चिन्ता उन्होंने छोड़ दी। निसन्देह, बाईबल को भी बहुत कुछ चाहिए। विशेषकर ऑगस्टीन ने तो इसे इस प्रकार से परिवर्तित किया मानो यह मात्र मूर्खता हो। धर्म ग्रन्थ तो मात्र पौराणिक थे। कुरान यद्यपि आज के परिवर्तित कर दिया गया। से जीव शास्त्र का काफी वर्णन करती है फिर भी वह पॉल और पीटर ने मिल कर बाइबल के बहुत पौराणिक है । लोग इस बात पर विश्वास न कर सत्यों को मिटा डाला। कुरान में यद्यपि बहुत पाए कि परमात्मा ने मानव की सृष्टि विशेष रूप से की थी। उन्होंने सोचा कि पशुत्व से निरन्तर अधिक परिवर्तन नहीं किए गए परन्तु इसमें आक्रामकता तथा प्रजनन प्रणाली के विषय में अधिक बताया है विकसित होकर मानव बना। इस प्रकार सदैव तथा अभी तक बहुत सी चीजें अस्पष्ट हैं। परमात्मा को चुनौती दी जाती रही तथा बाईबल, कुरान, गीता, उपनिषदों या तोराह (Torah) में पहली चीज़ सूक्ष्म जीव विज्ञान की खोज है जिसके आप अवगत हैं या नहीं दो चीजें घटित हुईं। लिखी बातों का कोई प्रमाण प्राप्त न हो सका। माध्यम से हम जान पाए कि हमारे हर कोषाणु में इनकी किसी बात को प्रमाणित न किया जा सका । एक डी. एन ए. D.N.A.) टेप होता है। कम्प्यूटर की क्योंकि अभी तक बहुत ही कम लोगों को आत्म तरह हर कोषाणु में एक विशेष कार्यक्रम खुदा होता साक्षात्कार प्राप्त हुआ था और जब भी उन्होंने बात है जिसपर व्यक्ति का विकास निर्भर है। इसकी करनी चाही लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया। विषमता की कल्पना करें अनगिनत कम्प्यूटरों में यही माना गया कि ये लोग भी अपने सिद्वान्त कार्यक्रम भरे जा चुके हैं और उन सब में ये कोषाणु प्रतिपादित करना चाह रहे हैं। सभी कुछ एक प्रकार हैं। इस प्रकार वैज्ञानिकों के सम्मुख एक अत्यन्त का निर्जीव विज्ञान सा बन गया धर्म का कोई रहस्यमय चीज़ आ गई है जिसे वे स्पष्ट भी नहीं विज्ञान नहीं है । लोग सोचने लगे कि इन दस कर सके। वैज्ञानिक बहुत सी चीजों को स्पष्ट नहीं सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 कर सकते जिसमें एक यह भी है। सहजयोग ने व्यक्ति करे तो हम न केवल परमात्मा के अस्तित्व साबित कर दिया है कि यह परमात्मा की मर्जी को प्रमाणित कर सकते हैं, हम यह भी साबित कर (Will) है, परमात्मा की इच्छा (Desire) है । यह सकते हैं कि सभी कुछ 'परमात्मा की इच्छा से साबित हो है कि परमात्मा की मर्जी ही सारा अत्यन्त लयबद्ध ढंग से हुआ। परमात्मा द्वारा सृजित चुका कार्य कर रही है। यह चैतन्य, आदि शक्ति, परमात्मा चीजों के लिए मानव को श्रेय नहीं लेना चाहिए। की मर्जी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। यही मान लो यह कालीन किसी ने बनाया हो और हम परमात्मा की शक्ति अत्यन्त मधुर ढंग से सभी कुछ इसके रंगों की खोज करने लगें तो इसमें कौन सी कार्यान्वित कर रही है। मैं नहीं जानती कि आप लोगों ने मेरी पहली पुस्तक पढ़ी है या नहीं, मैंने वर्णन किया है कि पृथ्वी की सृष्टी किस प्रकार सृजन से अधिक महत्वपूर्ण है और यह सब कार्य हुई। यह कार्य अत्यन्त मधुरता पूर्वक हुआ तथा महानता है यह सब कुछ तो यहाँ विद्यमान है। आप इसमें सृजन नहीं कर सकते। रूप दिया जाना संसार के परमात्मा की इच्छा' ने किया। यदि 'परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण है इसका विकास परमात्मा की इच्छा के माध्यम से हुआ। तो सभी कार्य परमात्मा की इच्छानुरूप हुए। तो इसे प्रमाणित भी किया जाना चाहिए और अब अब परमात्मा की इस इच्छा को आप अपनी अंगुलियों सहजयोग के माध्यम से सहस्रार भेदन के पश्चात् के सिरों पर महसूस कर रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार आपने पहली बात 'परमात्मा की इच्छा को महसूस के बाद आपने पूर्ण विज्ञान अर्थात 'परमात्मा की किया है कि यह इतनी महत्वपूर्ण है। परन्तु हमें यह इच्छा' को खोज लिया। यही पूर्ण विज्ञान है। आप इतनी सहज में प्राप्त हो गई है कि हम इसे नहीं जानते हैं कि सहजयोग के माध्यम से हमने बहुत समझते। बन्धन देने मात्र से कार्य हो जाते हैं और लोगों को रोग मुक्त किया है। आप बन्धन देना भी हमें लगता है कि बन्धन के माध्यम से हमने सब जानते हैं और यह भी समझते हैं कि यह कार्य कुछ कर लिया। वास्तव में ऐसा नहीं है। यह इससे करेगा। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् बहुत से कार्य कहीं बढ़ कर है। अब हम उस विशाल कम्प्यूटर के, स्वतः ही हो जाते हैं, लोग उन पर विश्वास ही नहीं उस 'परमात्मा की इच्छा' के अंग प्रत्यंग बन गए हैं। करते। आरम्भ में जब वैज्ञानिकों ने लोगों को कुछ हम 'परमात्मा की इच्छा के माध्यम या उसके बताया तो उन पर भी विश्वास नहीं किया गया। उपकरण बन गए हैं। परमात्मा की जिस इच्छा ने परन्तु विज्ञान सदैव परिवर्तन शील है, हर समय पूरे ब्रह्माण्ड की सृष्टि की है हम उससे जुड़ गए परिवर्तित हो रहा है। एक के बाद एक सिद्धान्तों को हैं। अतः हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि अब 'पूर्ण विज्ञान' हमें प्राप्त हो गया है; 'पूर्ण विज्ञान' जो समूचे विश्व का हित करेगा वैज्ञानिकों के चुनौतियाँ दी जा रही हैं । परन्तु सहजयोग ने विज्ञान के उस महान सम्मुख सत्य को प्रकट किया है जिसे चुनौती नहीं दी जा भी हम यह साबित कर सकते हैं कि परमात्मा की सकती। परमात्मा को बदनाम करते हुए या परमात्मा इच्छा है जिसने सारा सृजन किया है। यहाँ तक के अस्तित्व को नकारने का प्रयत्न यदि कोई की विकास प्रणाली भी 'परमात्मा की इच्छा' ही है। सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 जाना। सर्व शक्तिमान परमात्मा, उनकी इच्छा की उसकी इच्छा के बिना कुछ भी घटित न हो पाता। इसी कारण बहुत से लोग कहा करते थे कि शक्ति और सहजयोग के सत्य के विषय में आपमें "परमात्मा की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। इस मामले पर हमें यह सत्य है। और अब आपने देखा है कि वही कोई संदेह नहीं होना चाहिए इतना तो हमसे कम 'परमात्मा की इच्छा हमने अपनी शक्ति के रूप में से कम अपेक्षित है। इस शक्ति का उपयोग करते चाहिए कि यह आपको प्राप्त कर ली है। हम इसका उपयोग कर सकते हुए आपको पता होना हैं। तो सहजयोगी होना कितना महत्चपूर्ण है! इसलिए प्रदान की गई क्योंकि इसे संभालने की संभवतः हम यह नहीं समझ पाते कि सहजयोगी योग्यता आपमें है। आपकी बुद्धि जहाँ तक सोच होना कितना महत्वपूर्ण है। सहजयोग लोगों को सकती है उन शक्तियों में यह महानतम है। किसी सिर्फ यह कहने के लिए नहीं है कि मैं आनन्द से गवर्नर, किसी मंत्री को लें-कल किसी को भी 1 परिपूर्ण हूँ, मैं आनन्द ले रहा हूँ, मैं पवित्र हो गया पदच्युत किया जा सकता है, वे भ्रष्ट हो सकते हैं हूँ और सभी कुछ बढ़िया है। परन्तु किसलिए? और अपनी शक्तियों का ज्ञान उन्हें पूर्णतः बिल्कुल किसलिए आपको यह सब आशीर्वाद प्राप्त हुए ? भूल सकता है। बहुत से ऐसे लोग निर्वाचित हो यह आशीष आपको, इसलिए मिले कि 'परमात्मा जाते हैं जिन्हें इस बात का भी ज्ञान नहीं होता कि की इच्छा' का यह ज्ञान आप से झलके-मात्र उन्हें क्या करना है । तो सहजयोग लोगों का केवल शुद्धिकरण इतना ही नहीं, यह आपका अंग प्रत्यंग बन जाए। मात्र ही नहीं है और न ही यह उनका परिवर्तन मात्र अतः हमें अपने स्तर को उठाना होगा, उन्नत होना है। यह तो उस व्यक्ति का रूपान्तरण है जो स्वेच्छा होगा। मध्यम एवं साधारण दर्जे के लोगों को सहजयोग देने का कोई लाभ न होगा क्योंकि वो से आगे आया है और जो 'परमात्मा की इच्छा को किसी काम के नहीं हैं। किसी प्रकार से वे हमारी आगे बढ़ाने में सक्षम है । 1 सहायता नहीं कर सकते अब ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो परमात्मा की इच्छा को अभिव्यक्त चीज़ जो आपके साथ घटित हुई वह थी आपके भ्रमों कर सकें और इसके लिए हमें शक्तिशाली लोगों का समाप्त हो जाना। सर्व शक्तमान परमात्मा, आत्मसाक्षात्कार के परिणाम स्वरूप पहली की आवश्यकता है। इसी इच्छा ने इस पूरे विश्व, उसकी इच्छा के विषय में तथा उसकी सर्वशक्तिमत्ता, सर्वव्यापिता एवं सर्वज्ञता के विषय में हममें कोई भ्रम ब्रह्माण्ड, पृथ्वी माँ तथा अन्य सभी चीजों की सृष्टि की है। अतः अब हम एक नए आयाम का सामना नहीं होना चाहिए। उनकी सर्वशक्तिमत्ता ने ही यह कर रहे हैं और यह आयाम यह है कि हम कार्य किया है और सामूहिक चेतना के रूप में परमात्मा की इच्छा के माध्यम हैं तो हमारे आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि आप भी कर्तव्य क्या हैं और इसके विषय में हमें क्या करना सर्वशक्तिमत्ता, सर्वव्याप्त एवं सर्वज्ञ हैं। सर्वज्ञ इसलिए चाहिए? सहस्रार खुलने के पश्चात् एक चीज़ जो कि आप सभी कुछ देखते हैं, सभी कुछ जानते हैं। घटित हुई वह थी हमारी भ्रान्ति का समाप्त हो परमात्मा की उस शक्ति का एक अंश आपके अन्दर सितम्बर चैतन्य लहरी अव्तुबर, 1997 आवश्यकता नहीं है। हमें आवश्यकता है चरित्रवान, है तो परमात्मा की सर्वव्यापकता को प्रमाणित सूझबूझ, विवेकशील एवं सशक्त व्यक्तियों की जो यह कह सकें कि चाहे जो हो मैं इसका साथ दूंगा, करने के लिए आपको हर समय इस बात के प्रति जागरूक रहना है कि आप सहजयोगी हैं। अभी तक भी जब मैं सहजयोगियों को अपनी मैं इसे अपनाऊंगा। इसके अनुसार चलूंगा, स्वयं को पत्नी, अपने बच्चों, अपने घर, अपनी नौकरियों के परिवर्तित करुंगा और सुधारूंगा विषय में चिन्तित देखती हूैँ तो हैरान होती हूँ कि अब भी उनका स्तर क्या है! वे कहाँ है ? अपनी भी अपने भ्रमों से हो गए होंगे। आपको अपने भूमिका को वे कहाँ तक निभा पाएंगे! अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वव्यापक आपको यदि कोई भम्र है तो आपको सहजयोग हैं जिन्होंने यह सारा कार्य किया है, 'परमात्मा की छोड़ देना चाहिए। जान लें कि इस कार्य के लिए इच्छा' जिसने सभी कुछ कार्यान्वित किया है, उसे 'परमात्मा की इच्छा' ने आपको है इसलिए आप अब भ्रम टूट चुके हैं। मुझे आशा है कि आप मुक्त विषय में भी कोई भम्र नहीं बनाए रखना चाहिए। चुना आप लोगों के माध्यम से कार्य करना है आप यहाँ हैं। और आपको यह विज्ञान समझने कि लोगों को अत्यन्त शक्तिशाली, विवेकशील, बुद्धिमान जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। यह पूर्ण विज्ञान है और आपको इसे अपने लिए तथा दूसरों के लिए कार्यान्वित तथा प्रभाव शाली व्यक्ति होना होगा। जितने अधिक प्रभावशाली आप होंगे उतनी अधिक शक्ति करना होगा आपने मेरा प्रेम महसूस किया है, आपको प्राप्त होगी। परन्तु अभी तक भी मुझे लगता आपका प्रेम भी महसूस होना चाहिए क्योंकि प्रेम ही है कि अधिकतर सहजयोगी यह समझने का परमात्मा है । अतः आपका प्रेम अन्य लोगों द्वारा उत्तरदायित्व नहीं ले रहे कि उन्हें उस सर्वशक्तिमान महसूस किया जाना चाहिए। अन्य लोग महसूस परमात्मा का प्रतिनिधित्व करना है जो सर्वव्यापक करें कि आप दयाद्द्र, स्नेहमय एवं सूझबूझ वाले हैं, सर्वज्ञ हैं, जो सभी कुछ जानते हैं, सभी कुछ व्यक्ति हैं। 'परमात्मा की इच्छा' हर समय आपके देखते हैं, जो सर्व सशक्त हैं, सर्व शक्तिशाली हैं। माध्यम से कार्य कर रही है; अतः आपको उस आप यदि यह समझ लें कि सहस्रार भेदन के प्रकार कार्य करना चाहिए कि लोग समझ सकें कि पश्चात् यही सब घटित हुआ है, आप यदि यह आप सन्त हैं और यह शक्ति आपके अन्दर से समझ लें कि अब आपको जो शक्ति प्राप्त हुई है प्रवाहित हो रही है। उसमें यह तीनों गुण हैं. तभी कार्य होगा इस वजनदार चीज़ को संभालने के लिए शक्तिशाली अतिरिक्त आपमें एक अन्य विकास जो हुआ है वह स्तम्भों की आवश्यकता है, यदि वह शक्तिशाली न है आपका एकाकारिता (संघटन) । इसको समझ होंगे तो यह गिर जाएगी। इसी प्रकार यह जो लें-कि विश्व में पूर्ण संघटन (Integration) विद्यमान महान शक्ति आपको प्राप्त हुई है इसके लिए हमें है प्रायः बच्चों को देखकर आप जान जाते हैं कि बहुत है। उन्हें समझ बहुत अधिक प्रसिद्ध लोगों की या धनी लोगों की होती है। कोई भी अच्छा बच्चा, प्रायः, अन्य बच्चों परमात्मा तथा अपने प्रति भ्रम निवारण के उनमें स्वाभाविक, अन्तरर्जात अधिक सफल लोगों की आवश्यकता नहीं है, सूझबूझ सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 को प्रेम करेगा तथा अपनी चीजें उन से बाँटना चीज़ अपना ही नहीं सकते। छोटे स्कर्ट का फैशन चाहेगा कोई छोटा बच्चा यदि वहाँ है तो वह है तो आपको लम्बा स्कर्ट मिलेगा ही नहीं। इस प्रकार की चीजें प्रातः से शाम तक हमारे मस्तिष्क में उसकी रक्षा करेगा स्वाभाविक एवं अन्तर्जात रूप से वह ऐसा करना चाहता है। छोटे-- छोटे बच्चे भी जानते हैं कि शरीर को ढक कर रखना चाहिए। वे भरी जाती हैं। परिणाम स्वरूप हम उद्यमियों के दास बन जाते हैं। बैल्जियम में मुझे बताया गया कि कोई भी ताजा चीज़ उपलब्ध नहीं है। सुपर बाज़ार से सभी कुछ टीन बन्द लेना पड़ता है। शनैः शनैः दूसरे के सम्मुख निर्वस्त्र नहीं होना चाहते। ये सब गुण आपमें भी हैं। बच्चे चोरी करना पसन्द नहीं हम अस्वाभाविक होते चले जा रहे हैं। विज्ञापन एवं किसी करते, वे नहीं जानते कि चोरी क्या है। बाह्य प्रभावों में खोकर, आधुनिक पदार्थों से प्रभावित सुन्दर स्थान पर यदि बच्चे जाएँ तो वहाँ के सौन्दर्य जाते हैं। को वे बनाए रखना चाहते हैं। परन्तु स्थान यदि हो हम अपने अन्तर्जात विवेक को पहले से ही गन्दा है तो वे चिन्ता नहीं करते। ये भूल विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ पैसे ने भी सब गुण उनमें अन्तर्जात हैं। हममें जो गुण अन्तर्जात है वे विकासशील ही उद्यमी भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि वे जानते देशों के लोगों में भी हैं। अबोधिता अन्तर्जात है। हैं कि आपको मूर्ख बना कर किस प्रकार पैसा धन के महत्पूर्ण होते महत्वपूर्ण स्थान ले लिया। म 'परमात्मा की इच्छा ने सर्वप्रथम जिस गुण की बनाया जा सकता है। आज आपके पास ये चीज़ है और कल वो, आज आपको ये चाहिए और कल वो। सृष्टि की वह थी अबोधिता-मंगलमयता। श्री गणेश 1 को सृजन उनका (परमात्मा) पहला कार्य परन्तु आन्तरिक रूप से दृढ़ व्यक्ति बदलते नहीं। था-आदिशक्ति', पहला कार्य कहना अधिक उपयुक्त उनके वस्त्र एक ही प्रकार के गरिमामय होते हैं। होगा क्योंकि आदिशक्ति ही 'परमात्मा की इच्छा पारम्परिक उपलब्धियों को छोड़ परिवर्तित होना उनके है। पूरे विश्व को सुन्दर बनाने के लिए ही यह सब लिए बहुत कठिन होता है। अतः यह देखना सहजयोगियों सृजन किया गया ये सब अन्तर्जात गुण आपमें के लिए आवश्यक है कि कहीं वे आधुनिक उद्यमियों के बिठाए गए। सभी देवी देवता आपमें प्रस्थापित किए दास तो नहीं बन रहे ? इसके बाद विचार। आप इतनी पुस्तकें पढ़ते गए; उन्हें. मानव रूप में अवतरित किया गया ताकि सन्त बन कर वे दर्शा सकें कि आप भी सन्त सुलभ हैं कि ऊलजलूल पागलपने के विचार आपमें भर अन्तर्जात विवेक प्राप्त करें। परन्तु विकसित देशों में जाते हैं; जैसे फ्रॉयड जैसे पागल के विचार। किस दूरदर्शन तथा अन्य चीज़ों गे हमारे मस्तिष्क को प्रकार फ्रॉयड पश्चिम के लोगों को प्रभावित कर प्रभावित करके हमें दुर्बल ( भेद्य) बना दिया अन्य पाया? क्योंकि अपना अन्तर्जात विवेक खोकर आप लोगों के विचारों से हम प्रभावित होने लगे । प्रबल इसे स्वीकार करते हैं । आपने उसे स्वीकार किया व्यक्ति हम पर प्रभुत्व जमाएगा ही। केवल हिटलर इसीलिए वह एक प्रकार से ईसा मसीह बन बैठा। ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया फैशन ने लोगों वह महत्वपूर्णतम व्यक्ति बन बैठा- महत्वपूर्णतम। की बुद्धि कितनी भ्रष्ट की है ! वे कोई विवेकमय यह इतनी सीधी सी बात है। थोड़े से विवेक से आप सितम्बर चैतन्य लहरी ৪ अक्तुबर, 1997 द समझ सकते हैं कि कुछ सबल व्यक्ति सदैव हम सहस्रार के खुलने के कारण आपमें यह प्रकाश पर अपने विचारों का प्रभुत्व जमाने में लगे रहते हैं। आया है। यह नया नहीं है। यह आपमें अन्तर्जात कोई भी अपना सिद्धान्त प्रतिपादित करता है- सात्रे है अब इन सभी अन्तर्जात गुणों की अभिव्यक्ति या कोई अन्य । लोग कहते हैं, ओह! उसने कहा हो रही है और आप इनका आनन्द उठा रहे हैं। अब है! वह कौन है ? उसका जीवन क्या है ? स्वयं आपको अपने तुच्छ विचारों तथा क्षुद्रताओं से बाहर देखें कि वह कैसा ब्यक्ति है। थोड़े से विवेक से. आना होगा। लोग मुझे अटपटी बातें बता रहे हैं। मैं परन्तु यह समझते हुए कि परमात्मा की इच्छा' विश्वास नहीं कर सकती कि सहजयोगी भी ऐसा जिसने पूरे विश्व तथा आपकी रचना की है अब कर सकते हैं! वे प्लेटें ले जाते हैं। चीजों को आपके साथ है सर्व शक्तिमान परमात्मा ने आपके इधर-उधर फेंक देते हैं! आप लोग किस प्रकार एक-एक अणु की रचना की है और आप उद्यमियों ऐसा व्यवहार कर सकते हैं! यह तो अत्यन्त मुर्खतापूर्ण के हाथ का खिलौना बन रहे हैं! उद्यमियों को एवं निःस्सार है । बिना अपेक्षित अनुशासन के आप विश्वास हो गया है कि धनार्जन के लिए दुर्बल 'परमात्मा की इच्छा बहन नहीं कर सकते। परन्तु व्यक्ति ही पिछलग्गू बनने के लिए उपयुक्त हैं। इन्हें मैं आपको ये भी नहीं कहूँगी कि ऐसा करो-ऐसा धोखा दिया जा सकता है। मत करो। आपकी स्वतन्त्रता का मैं सम्मान करती अब एक ओर तो आपके पास इतनी महान हूँ। मैं तो चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी शक्ति है, इतने महान कार्य के लिए आप चुने गए आपमें वह विवेक, महानता तथा गरिमा जागृत करे हैं और दूसरी ओर आपमें ये दासत्व है! अतः जिससे आप अपने अन्तर्जात गुणों को समझने लगें । समझने का प्रयत्न करें कि आपके अन्तर्जात गुण तो यह पावन करेगी। जैसे सोने को आग में तपा लुप्त हो गए थे परन्तु सौभाग्यवश कुण्डलिनी की कर शुद्ध किया जाता है वैसे ही कुण्डलिनी की जागृति और सहस्रार भेदन द्वारा आप जान सकते अग्नि आपको पूर्णतः पवित्र कर देती है, शुद्ध कर हैं कि अबोधिता, रचनात्मकता, अन्तरधर्म, करुणा, देती है और आप अपनी गरिमा, अपना स्वभाव, मानव के प्रति प्रेम, न्यायशक्ति एवं विवेक से आपके अपनी महानता को देखने लगते हैं। अतः आपमें महान अन्तर्जात गुण- जो लुप्त हो गए प्रतीत होते एकरूपता (संघटन) सुगमता से आ जाती है आप थे- लुप्त नहीं हुए, वे सुप्तावस्था में थे एक एक समन्वयन (एकीकरण) करने लगते हैं। करके ये सभी जागृत हो गए हैं मुझे आपको ये नहीं बताना कि ये मत पिओ, ये मत खाओ, ऐसा थे. कुछ स्पेन से और कुछ यहाँ से। उनके भिन्न मत करो। आप स्वयं जानते हैं कि यह गलत है। समूह होते, कभी वे इकट्ठे न बैठते परन्तु अब ऐसा आरम्भ में कुछ सहजयोगी इंग्लैण्ड से होते नहीं है। अब, मुझे लगता है, उनका संघटन हो रहा आप जानते हैं कि आपके लिए क्या अच्छा है। फिर है सहजयोगी के लिए मानव का संघटन महत्वपूर्ण हैं। यह सूझबूझ से आता है, आपके चातुर्य से नहीं; भी यदि आप कुछ गलत करना चाहते हैं तो करें परन्तु अच्छा-बुरा देखने का विवेक आपमें आ चुका है इस नये ज्ञान के नये आयाम के स्तर तक आपकी अन्तर्जात सूझबूझ से कि परमात्मा ने, उसकी सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 इच्छा ने, सभी मानव बनाए हैं और हमें इसके विपरीत इच्छा करने का कोई अधिकार नहीं । दूसरा संघटन जो हमारे अन्दर हुआ है वह यह है कि एक मात्र आध्यात्मिक जीवन वृक्ष से ही कर सकते हैं। अतः निरंकुश रूप से मेरा नाम सभी धर्म उत्पन्न हुए हैं सभी धर्मों का सम्मान उपयोग करने का किसी को भी अधिकार होना चाहिए। सभी अवतरणों, पैगम्बरों तथा नहीं। जो भी आपको कहना हो कहें परन्तु कभी ये धर्मग्रन्थों का सम्मान होना चाहिए। इस प्रकार न कहें कि "श्री माताजी ने ऐसा कहा", या इस "ईसा ने ऐसा कहा., कोई भी पादरी या पोप मंच पर खड़ा हो कर कह सकता है कि "ईसा ने ऐसा कहा,"निरंकुश हो कर ही हम इन चीज़ों का उपयोग पुस्तक में ऐसा लिखा है और यह असत्य है, आदि किसी असत्य से आप बंधे हुए नहीं हैं। अपने पैरों धीरे-धीरे आप ईश्वरत्व की सूक्ष्मता में प्रवेश करने लगते हैं और समझ पाते हैं कि सहजयोग के लिए आज का वातावरण बनाने के लिए इन पीर-पैगम्बरों पर खड़े हो कर आपने देखना है कि आपने क्या ने कितना कठोर परिश्रम किया किसी धर्म से घृणा कहना है। अब आपको अपनी इच्छा का उपयोग नहीं की जानी चाहिए, किसी धर्म पर आक्रमण | करना है और उसके लिए आपको शुद्ध इच्छा, नहीं होना चाहिए। ऐसा करना अनुचित है, परमात्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा विकसित की इच्छा के विरूद्ध है। इस प्रकार हम धर्मान्धता करनी होगी। एकीकरण, न के वल बाह्य परन्तु धर्मान्ध वे लोग हैं जिन्हें विश्वास है कि इस आन्तरिक। जैसे आरम्भ में जब हम कुछ पुस्तक में ऐसा लिखा है और इस पुस्तक में ऐसा करते थे तो हमारा मस्तिष्क कुछ कहता था, क्योंकि हमने यह पुस्तक पढ़ी है इसलिए हम अन्य चित्त कुछ तथा हृदय कुछ और। अब इन लोगों से बेहतर हैं। कोई भी व्यक्ति कोई भी पुस्तक तीनों का एकीकरण हो गया है। तो आपका को समाप्त कर सकेंगे। पढ़ सकता है। इसमें क्या महानता है ? सहजयोग मस्तिष्क जो कहता है वह आपके हृदय तथा 1 में किसी को भी धर्मान्ध नहीं होना चाहिए। अति चित्त को पूर्णतः स्वीकार्य है। तो आप स्वयं सावधान रहें। इस प्रकार के वातावरण में आप संघटित हो गए हैं। बहुत से लोग लिखते हैं "श्री माताजीमैं यह कार्य करना चाहता हूँ, परन्तु मैं इसे कर नहीं सकता। अब आप पूर्णतः एकीकृत हैं और सभी कुछ उपयोग न करें। "श्री माताजी ने ऐसा कहा" दूसरों आसानी से कर सकते हैं । अपने को यदि आप जन्में, आपका विकास सहजयोग को भी कट्टरपन्थ बनाने लगते हैं। "श्री कि अब कई बार आप हुआ माताजी ने ऐसा कहा!" इस प्रकार मेरे नाम का पर प्रभुत्व जमाने का तरीका है। अब आप स्वयं कहें परखना चाहते हैं तो खोजने का प्रयत्न करें कि "मैं क्योंकि सहजयोग में आपको अधिकार है. आपका संघटित हूँ या नहीं ? जो भी कुछ मैं कर रहा हूँ अपना व्यक्तित्व है। जो भी आपको कहना है वह उसे पूर्ण हृदय से कर रहा हैूँ या नहीं ? पूरे चित्त आप कह सकते हैं। परन्तु यह न कहें कि "श्री से कर रहा हूँ या नहीं ?" मुझे लगता है कि पूरे माताजी ने ऐसा कहा," कोई भी ऐसे कह सकता है, हृदय तथा बुद्धि से तो आप कर रहे हैं पर आपका चैतन्य लहरी सितम्बर 10 अक्तुबर, 1997 पूरा चित्त इसमें नहीं है । अब भी चित्त, जो कि करने के लिए तैयार किया जा रहा था । हर पहली चीज़ है जिसे ज्योतित किया गया, का क्षण, जब भी आप कोई चमत्कार घटित होते हुए उपयोग नहीं हो रहा। तो आपका पूर्ण चित्त होना देखते हैं तो आप महसूस करते हैं कि यह सब चाहिए कि "मुझे यह कार्य पूर्ण चित्त से करना है।" परमचैतन्य ने किया है । यह परमचैतन्य है क्या ? यह इसके बिना संघटन पूरा नहीं है। यह अधूरा है। तो आदिशक्ति की इच्छा है। यह 'परमात्मा की इच्छा है। तो जो भी कुछ हुआ यह नियति थी, ये सब चक्रों का संघटन घटित होता है। जो भी कुछ आप चैतन्य लहरियाँ कोषाणुओं पर खुदे एक नियत कार्यक्रम करें वह मंगलमय होना चाहिए. धार्मिक होना चाहिए (D. N.A.tapes) की तरह हैं । वे (परमचैतन्य) सब जानते हैं कि किस प्रकार कार्य करना है । देखिए इन तीनों का पूर्ण एकीकरण आवश्यक है। तभी सब तथा वह पूर्ण चित्त से किया जाना चाहिए। इसी प्रकार इन सभी चक्रों को पूर्ण समन्वित आज कितनी धूप है! सभी हैरान हैं कि ऐसा किस हो कर आपकी संघटित शक्ति बन जाना चाहिए प्रकार हो सकता है! इसी प्रकार बहुत कुछ घटित और पूर्ण जीवन संघटित हो जाना चाहिए । मान लो होता है। उस दिन हवाना में भी बहुत धूप थी,। तो किसी का पति या पत्नी उस स्तर की नहीं है तो पूरा ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्यरत है। अब आप मंच चिन्ता नहीं करनी चाहिए। आप केवल अपनी पर हैं आपको इस ओर ध्यान देना चाहिए। परन्तु चिन्ता करें। किसी से कुछ आशा न करें यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है, यदि आपको विश्वास आपका कर्तव्य ही महत्वपूर्ण है। अपना कर्तव्य नहीं है कि आप क्या हैं तो आप कैसे कार्य कर सकते पूर्ण कर आपने स्वयं इसे कार्यान्वित करना है। हैं किस प्रकार आप अपने तथा विश्व की मानव आपको समझना है कि आपने व्यक्तिगत रूप से रचित समस्याओं का समाधान कर सकते हैं ? इसे प्राप्त किया है और व्यक्तिगत रूप से ही आपने बाकी सब के साथ एकीकृत होना है। मैंने देखा है फेंकना चाहिए। सर्वप्रथम विज्ञान के प्रभाव को। हम कि मैं जब कुछ कहती हूँ तो लोग सोचने लगते हैं प्रमाणित कर सकते हैं कि सहजयोग ने विज्ञान के कि मैंने किसी और के लिए कहा। अपने लिए वे विषय में जो भी कहा है वह साबित हो चुका है। अतः इसे नहीं मानते। अब हमें देखना होगा कि हमारा हम हर समय अस्थिर, परिवर्तनशील विज्ञान को त्याग चित्त क्या है। "मुझे धन लाभ हुआ। मुझे सकते हैं। इसके बाद इन तथाकथित धर्मो को छोड़ स्वास्थ्य लाभ हुआ, मुझे मानसिक शक्ति सकते हैं- कोई कैथोलिक है तो कोई प्रोटैस्टैंट, कोई प्राप्त हुई, मुझे आनन्द मिला-प्रसन्नता मिली। हिन्दु है तो कोई मुसलमान। और धर्म उनके सिर पर यही सब कुछ नहीं। यही मापदण्ड नहीं सवार है! इसे उतार फेंकना होगा हमें एक नया होना चाहिए। आपको अपने व्यक्तित्व की व्यक्तित्व बनना होगा आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् समझ होनी चाहिए जिसे जन्म जन्मान्तरों से आप कीचड़ में कमल सम बन जाते हैं। तो अब आप अतः अपने पर पड़े इन प्रभावों को हमें उखाड़ इस जन्म में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के कमल बन गए हैं तथा कमल को कीचड़ उतार फेंकना लिए तथा 'परमात्मा की इच्छा का कार्य होगा सुन्दर कमल, जैसे आप हैं, आपको समझना सितम्बर - चैतन्य लहरी 11 अक्तुबर, 1997 होगा कि अत्यन्त सावधानी, मधुरता तथा कोमलता पूर्वक आपकी रचना की गई है। चीजों को इधर उधर क्यों फेंकते हैं" तो कहने लगे "हम निर्लिप्त हैं।" कितना शानदार तरीका है! और आपके बच्चों का क्या है ? उनसे आप चिपके रहते तो सर्वप्रथम हममें आत्मसम्मान, अन्य लोगों के लिए स्नेह एवं प्रेम तथा अनुशासन होना आवश्यक हैं। अपनी चीज़ों से भी आप चिपके रहते हैं। है। अनुशासन हममें होना ही चाहिए। क्योंकि यदि छोटी-छोटी चीज़ के लिए मुझे परेशान करते हैं, आपमें आत्मसम्मान है तो आप निश्चित रूप से परन्तु सहज की चीजों को इधर उधर फेंक देते हैं! स्वयं को अनुशासित करेंगे। मेरे जीवन से, जैसे कि हम देख सकते हैं, मैं कह सकते हैं? वे किस प्रकार सन्त हो सकते हैं ? कठोर परिश्रम करती हूँ, और आप सब से अधिक इतनी गैर जिम्मेदारी! किस प्रकार आप उन्हें दिव्य सन्त लोग तो केवल अपने लिए ही नहीं, अन्य सभी औ यात्रा करती हूँ क्योंकि इस विश्व को आनन्द, के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। अत्यन्त आराम से, कोमलता से, मधुरता से, प्रसन्नता और देवत्व की उस अवस्था तक लाने की इच्छा मुझमें है जहाँ लोग अपनी तथा अपने पिता बड़े प्रेम से मैं आपको यहाँ तक लाई हूँ। मैंने (परमेश्वर) की गरिमा को महसूस कर सकें अतः मैं कठोर परिश्रम करती हूँ और कभी नहीं सोचती सिर के भार खड़े होने को या अपनी सम्पति दान कि मुझे कुछ हो जाएगा। कभी मैंने अपने पारिवारिक करने को ऐसा कुछ भी नहीं । हमने सभी कुछ जीवन, अपने बच्चों की चिन्ता नहीं की अपनी अत्यन्त सुन्दरता से चलाया है। अब आपने आगे सारी समस्याओं का सामना मैं स्वयं करती हूँ। बढ़ना है तो आपको अपने कर्तव्य समझने होंगे। परन्तु सहजयोगी अपने बेटे, बेटियों आदि के विषय आप अपने परिवार, घर आदि की जिम्मेदारी निभाते हैं. में मुझे लम्बे लम्बे पत्र लिखते हैं। परिवार से मोह सहजयोग के प्रति आपका कोई कर्तव्य नहीं? सहजयोग आपको हिमालय पर जाने को नहीं कहा और न ही | से पूर्व आपको किसी से मोह न था, एक प्रकार से स्वयं एक अन्य समस्या है। आपके सिर पर यह सबसे बड़ा बोझ है। हर समय अपने बच्चों या किसी न से ही जुड़े थे, स्व-केन्द्रित थे। अब आपने स्वयं को किसी चीज़ के विषय में आप चिन्तित रहते हैं। ये कुछ विस्तृत कर लिया है; अब आप अपनी पत्नी, अपने आपकी जिम्मेदारी नहीं है। कृपया समझने का बच्चों से लिप्त हो गए हैं। एक ही बात है। यह भी प्रयत्न करें कि यह सर्वशक्तिमान परमात्मा की स्वार्थ है। क्योंकि वे आपके बच्चे हैं इसलिए आप उनके जिम्मेदारी है । उससे बेहतर कार्य आप नहीं कर विषय में सोचते हैं। पर वे आपके बच्चे नहीं हैं। वे सकते। क्या आप कर सकते हैं ? परन्तु यदि आप परमात्मा के बच्चे हैं। मुझे आशा है कि आपमें अपनी जिम्मेदारी समझने जिम्मेदारी लेने का प्रयत्न करते हैं तो परमात्मा कहते हैं "ठीक है, करो" और समस्याएं शुरु हो और निभाने की योग्यता है। सहस्रार का खुलना आपके जाती हैं। लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। अब आप परमात्मा के अस्तित्व तथा उसकी इच्छा को साबित कर सकते 'निर्लिप्सा' शब्द को ठीक प्रकार से समझा जाना चाहिए। मैंने जब लोगों से पूछा कि "आप हैं। कोई भी सहजयोग को चुनौती नहीं दे सकता। सितम्बर चैतन्य लहरी 12 अक्तुबर, 1997 हो सकते हैं। एक तिनके को तो तोड़ा जा सकता है परन्तु बहुत से तिनके यदि मिल जाएं तो उन्हें तोड़ा चुनौती देने वाले वैज्ञानिकों को बताया जा सकता है । आप चाहे वैज्ञानिक हों, अर्थशास्त्री या राजनीतिज्ञ, से नहीं जा सकता। मैं जानती हैँ कि अभी भी सहज प्रकाश में हर चीज़ का वर्णन किया जा सकता बहुत लोग सामूहिक नहीं हैं। इसी से पता चलता है कि स्वयं को समझने में वे कितने पीछे हैं। वे मुझे बताते हैं कि है और प्रमाणित किया जा सकता है कि केवल एक ही राजनीति है और वह है परमात्मा की राजनीति, केवल एक ही अर्थशास्त्र है- परमात्मा का अर्थशास्त्र: एक ही धर्म है-परमात्मा का धर्म, 'विश्वनिर्मलाधर्म । इसे "श्री माताजी अब हम आश्रम में नहीं रहना चाहते।" तो उन्हें सहजयोग छोड़ देना चाहिए सामूहिकता के बिना आप विकसित नहीं हो सकते। सहजयोग के प्रमाणित किया जा सकता है। किसी चीज़ से डरने या 1 1. चिन्ता करने की कोई बात नहीं। यह सभी कुछ अनुशासन के बिना आप विकसित नहीं हो सकते। वैज्ञानिकों तथा अन्य बुद्धिवादियों के सम्मुख साबित हज़ारों बेकार लोगों से दस अच्छे लोग कहीं बेहतर हैं। किया जा सकता है बशर्ते वे हमें चाहें। यदि वे परमात्मा की यही इच्छा है। सुनना हमें नहीं सुनना चाहते तो उन्हें भूल जाइए। हम तो शक्तिशाली हैं, हम क्यों उनकी चिन्ता करें ? परन्तु आज आप इतने सारे लोग यहाँ उपस्थित हैं । एक ही समय पर इतने सारे लोगों को यहाँ देख कर मैं वास्तव में आनन्द विभोर हूँ। हमने अपने उत्थान के यदि वे हमें सुनना चाहें तो उन्हें बता देना ठीक होगा कि "अब हमने यह महान शक्ति खोज ली है।" और यदि यह महान शक्ति कार्यान्वित हो जाती है तभी हम लिए बहुत कुछ किया है तथा अपनी बहुत सी बुराइयों से छुटकारा प्राप्त किया है। आज हमें शपथ लेनी होगी कि "मैं परमात्मा की इच्छानुरूप अपने जीवन को ढालूंगा और स्वयं को परमात्मा की इच्छा' के सम्मुख समर्पित करूंगा।" परिवार तथा अन्य बन्धनों को भूल जाएं। कुछ भी इतना महत्वपूर्ण नहीं। 'परमात्मा की इच्छा सभी कुछ देख सकती है। आप यदि परमात्मा की इच्छानुरूप चलने का प्रयत् करेंगे तो आपके इस विश्व को नए ढंग से एक नया रूप दे सकेंगे। आप लोगों से मुझे बहुत आशाएं हैं। परन्तु जिस गम्भीरता से सहजयोग को लिया जाना चाहिए, उसकी कमी है। उदाहरणार्थ लोग ध्यान धारणा भी नहीं करते। बिना ध्यान धारणा के आप कैसे चलेंगे ? बिना निर्विचार समाधि में उतरे आप विकसित नहीं हो सकते। अतः प्रातः और सायं तो कम से कम आपको बच्चों की तथा अन्य सभी चीज़ों की देखभाल ध्यान धारणा करनी ही होगी। बहुत से लोग स्वभाव से हो जाएगी। आपको किसी चीज़ की चिन्ता नहीं ही सामूहिक नहीं हैं। आश्रम में यदि वे रह रहे हैं तो करनी। इस प्रकार सब कार्य होता है। मात्र उन्हें लगता है कि आश्रम का जीवन अच्छा नहीं है। इतना समझने का प्रयत्न करें कि आपकी समस्याएं ऐसे लोग वास्तव में सहजयोग से निकल जाएंगे इसलिए है क्योंकि आप इन्हें परमात्मा को सौंपना क्योंकि उन्होंने सहजयोग को समझा ही नहीं है। नहीं चाहते। आप इन्हें अपने तक रखना चाहते सामूहिकता के बिना आपका विकास कैसे होगा ? आप हैं। इसी कारण से आपको समस्याएं हैं। आप अपनी शक्तियाँ किस प्रकार एकत्र करेंगे? हम जानते यदि निर्णय करें कि "नहीं मैं इन समस्याओं को हैं कि सामूहिकता में, इकट्ठे हो कर ही हम शक्तिशाली परमात्मा की इच्छा को सौंप दूंगा तो सब कार्य सितम्बर चैतन्य लहरी 13 अक्तुबर, 1997 हो जाएगा। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहना चाहते इसे आजमाएं और इसका आनन्द लें एक अन्य हैं कि "हममें इतनी योग्यता नहीं है, श्री माताजी हम ऐसा नहीं कर सकते।" ऐसा कहना भी मूर्खता है। इच्छा का उचित, सशक्त एवं करुणामय माध्यम बनना। महत्वपूर्णतम चीज़ जो बाकी है वह है परमात्मा की आप स्वयं को देखें, स्वयं को परखें। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को समझना चाहिए कि हम इससे आपको बहुत लाभ पहुँचता है। परन्तु बहुत सी ऐसी बातें क्यों करते हैं। हो सकता है कि हम अत्यन्त अन्य चीजें महत्वपूर्ण नहीं हैं। मुख्य चीज़ आपका धन लोलुप हैं और अपने लिए धन चाहते हैं। सहजयोग उच्चावस्था तक उत्थान करना है और इस उच्चस्थिति कुछ लोग व्यापार की भी बातें करते हैं। तो धन को प्राप्त करने के लिए आप परस्पर मुकाबला करें। लोलुपता या भौतिकता का मोह भी हो सकता है जिसे वह त्यागना नहीं चाहते। ममत्व, लिप्सा दूसरा कारण निःसन्देह बहुत कुछ प्राप्त किया है। परन्तु अभी भी हो सकता है। अपने परिवार, बच्चों आदि के साथ हमने अपनी गति को बढ़ाकर इसे कार्यान्वित करना मैं जानती हूँ कि आप मेरी पूजा कर सकते हैं क्योंकि में मैं सोचती हूँ कि थोड़े से समय में ही हमने चिपकन। या यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है। है। मुझे विश्वास है कि यह नया विज्ञान, जो कि इसके कारण भी आप सोचते हैं कि आपमें सहजयोग पूर्ण विज्ञान है, एक दिन अन्य सभी विज्ञानों पर करने का क्षेम नहीं है। तीसरे, हो सकता है कि अभी छा जाएगा। लोगों को भी इसके विषय में बताएं। यह तक आप अपनी पुरानी आदतों को बनाए हुए हों और नैतिकता विहीन जीवन का आनन्द ले रहे हों। इस आपके हाथों में है, इसे कार्यान्वित करें। तो आज के दिन हम वह उत्सव मना रहे हैं प्रकार का कोई भी कारण हो सकता है। अब इसमें जिसके द्वारा हमने एक पूर्णतः नया आयाम खोला है, झाँक कर देखें कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हॅूँ? अन्य महान दिव्यता का एक नया क्षेत्र जिसमें परमात्मा का लोगों की तरह से उत्थान के सुन्दर पथ पर मैं क्यों प्रमाण है। यह इतनी महान चीज़ है कि इससे हम नहीं चल रहा? अन्तर्दर्शन करने से हम जान लेंगे कि.. सब अपने सारे भ्रम समाप्त कर सकते हैं। ह म "मुझमें कुछ कमी है कि मैं सोचता हूँ कि मैं ऐसा करने के योग्य नहीं हूँ। आप सभी कुछ करने के योग्य हैं। इसका संचालन कर सकते हैं। आप सब में वह शक्ति विद्यमान है। परमात्मा आपको धन्य करें। पाम ि ा श्री आदिशक्ति पूजा 14 कबेला (एक रिपोर्ट) कबेला में आदिशक्ति पूजा की गई। गया क्षण भर के लिए स्तब्धता छा गई। इसके बैलजियम, हॉलैण्ड, स्पेन, फिनलैंड, स्वीडन, डैनमार्क पश्चात् अत्यन्त स्वाभाविक रूप से उस बच्चे ने और नार्वे मेजबान देश थे। दिव्य मैदानों पर स्वागत नमस्कार किया। अत्यन्त हँसी के बातावरण में शाम किए जाने के साथ साथ हमने सूर्य की धूप, ठंडी की शुरूआत हुई। रातों, गर्म दिनों का आनन्द लिया। पुष्प गृह एक हॉलैण्ड के सहजयोगियों द्वारा प्रस्तुत नाटक बार फिर भिन्न फूलों की सुगन्ध से महक उठा। मोटी में आश्रम जीवन की नकल की गई यह तीन भागों डालियों वाले गुलाब अत्यन्त दिलकश थे। मनोरंजन की शाम- मनोरंजन की शाम को गया जिसमें आदर्शवाद की कमी थी । कहानी रात हम सब उत्सुकतापूर्वक, श्रीमाताजी के आगमन का के भोजन के समय के आसपास की थी जब लोग तथा उस क्षण के विशेष अनुभव को इन्तजार कर अपने काम से वापस आते हैं, अन्य लोग खाना बना रहें हैं। हमारे नन्हें हृदय उत्तेजित हैं और श्री रहे होते हैं और कुछ अभी भी कम्प्यूटर पर खेल रहे माताजी की एक झलक इन नन्हें हृदयों को इस होते हैं। 1. में दर्शाया गया। पहले भाग में ऐसा जीवन दर्शाया प्रकार भर देती है कि यह सभी कुछ अपने में समोह लेने के योग्य बन जाते हैं। कभी कभी तो प्रेम इतना है (Not Pasta Again) भोजन के लिए सभी गहन होता है कि हृदय से छलक कर आँखों से प्रतीक्षा करते हुए लोग थक जाते हैं और जल्दी-जल्दी आँसुओं के रूप में बह निकलता है। यह अवश्य ही मन्त्र कहने लगते हैं ताकि जल्दी से लोग आ जाएं। प्रेमाश्रु होते होंगे जिनके निकल जाने के पश्चात् श्री भोजन करते हुए लोगों को टेलिफोन की घंटी माताजी की एक दूसरी झलक हमें पुनः विश्वस्त परेशान करती है। शाम के सहजयोग कार्यक्रम में कर देती है कि माँ सदैव हमारे साथ हैं। अभी-अभी घर पहुँचा व्यक्ति टिप्पणी करता चालीस लोग आ जाते हैं तो यह 'बहुत अधिक के कान अपने सिर पर लगाए हुए 'असम्भव कहा जाता है। मूषक हॉलैण्ड के बच्चों ने 'श्री गणेश के मूषक (The Mouse of Shri Ganesha) मधुर गीत से हुआ रूप होता है। व्यवहार कुछ सुधरता है परन्तु नाटक का दूसरा भाग पहले भाग का सुधरा मनोरंजन की शाम का आरम्भ किया। एक बार तनाव को अब भी महसूस किया जा सकता है। फिर आँखों में आनन्द अश्रु तैर गए। अबोधिता का तथा संघटन करने के लिए नाटक का तीसरा भाग सौन्दर्य, ऐसा लगता है, हृदय के बांध तोड़ देता है। मंचित किया जाता है। दर्शक सब प्रसन्न हो जाते भजन के अन्त में सिर पर छोटे छोटे मूषक कर्ण हैं श्री माताजी बाद में टिप्पणी करती हैं कि परन्तु पहने हुए गम्भीरता पूर्वक सभी की ओर देखते हुए बहुत से स्थानों पर ऐसा ही हैं बहुत से योगी और एक छोटे से बच्चे को इतने बड़े पर्दे पर दिखाया योगिनियों को अन्तर्दर्शन करके अपने मूर्खतापूर्ण सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 15 भागों का प्रतिनिधित्व करती थीं। फिनलैण्ड की आचरण पर हँसना होगा। तत्पश्चात् चार बैल्जियम की लड़कियों ने सामूहिकता का एक वीडियो भी उन्होंने दिखाया। भारतीय दीपक नृत्य किया उन्होंने श्री माताजी हॉलैण्ड की साक्षी ने अत्यन्त वीरता से एक को समर्पित एक सुन्दर गीत 'Your Song Mama' राग गाया उसका साथी साथ न दे सका तो एक गाया उन्होंने एक नाटक का मंचन भी किया अन्य साथी को उसने खड़ा कर दिया। परन्तु दूसरे जिसमें पूरा ध्यान एक स्त्री पर केन्द्रित किया जो माइक्रोफोन के कार्य न करने के कारण हम केवल ध्यान में जाना चाहती थी इसके साथ साथ हँसी, साक्षी को ही सुन सके। अविश्वस्नीय! श्री माताजी वीडीयो, श्री माताजी के कुछ कथन और और सी.पी. अत्यन्त प्रभावित और हम सबने भी हुए नृत्य, भजन, समस्याओं, शान्ति, आनन्द, समर्पण और इसकी बहुत सराहना की । ध्यान में सामूहिकता को दर्शाने के लिए प्रस्तुत किए गए। अन्त में जब अंग्रेजी में कव्वाली गाई गई तो सब तुरन्त निर्विचारिता में प्रवेश कर गए। उनमें से वह स्त्री सामूहिकता में शामिल हो जाती है। इसके एक ज्यूलिमैसेंनेट की मेडीटेशन (ध्यान-धारणा) वायलिन पर सुन्दर धुनें बजाई गई और हम पश्चात् श्री विष्णु के दस अवतरण दिखाते हुए एक थी। पिछले वर्ष की तरह से यह शाम भी अत्यन्त भारतीय नृत्य प्रस्तुत किया गया। शाम को देर से सुन्दर थी और हम सबने इसका आनन्द लिया और युवा शक्ति का भजन 'Our Holy mother wake पूरी संध्या अन्तर्दर्शन किया। up the world' (पावनी माँ विश्व को जागृत करो) 1. पूजा- हमें शान्त करके पूजा के लिए तैयार करने के लिए वर्षा की कुछ बूदें हम पर छिड़काई गई। पूजा अत्यन्त रोमांचक थी और इसका मुख्य उनमें हृदय खोलने वाले ताल की अद्भुत भावना संदेश यह था कि हमें गहनता में जाने के लिए है। इस ताल से पता लगता है कि व्यक्ति वास्तव अन्तर्दर्शन तथा स्वयं का सामना करना होगा। में जीवित है। स्पेन के लोग अति सुन्दर गाते हैं नियमित रूप से पानी में फैर डालकर बैठना तथा और उन्हें सुनना अत्यन्त सुखद होता है । विश्व स्वयं का शुद्धिकरण करना आवश्यक है। हमारे चित्र पर वे आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे अपने रोज-मर्रा के जीवन में हमें शुद्ध इच्छा की अभिव्यक्ति करनी चाहिए तथा अन्य लोगों को गाया गया। स्पेन के एक योगी ने एकल ड्रम बजाया । उनके अभिनय में देखा जा सकता है। एक पारम्परिक स्कैन्डेनेवियन नृत्य से आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए। कार्यक्रम समापन किया गया। इस नृत्य में भाई-बहन सम्बन्धों की अभिव्यक्ति की गई। आठ योगियों के लिए तैयार होना था हम सब चैतन्य लहरियों द्वारा मंचित यह एक सामूहिक नृत्य था । जिसके से भरे हुए थे। अपने देशों में भी प्रेम पहुँचाने के लिए अन्त में दर्शकों को गोलाकार में भाग लेने के हमने वह पावन मैदान त्यागा। श्री माताजी एक बार लिए आमन्त्रित किया गया नर्तकों ने सुन्दर फिर हृदय से आपका धन्यवाद कि सिडस्ल मगफोर्ड पारम्परिक वेशभूषाएं पहनी हुई थीं जो देश के भिन्न सोमवार को एक बार फिर घर वापस जाने नृत्य (नार्वे) में आपने यह सब सम्भव बनाया। 16 ८ श्री आदिशक्ति पूजा कबेला ,२५ मई १६६७ परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन भान आज हम आदिशक्ति की पूजा करेंगे। चक्रों तथा आदिशक्ति की रचनाओं से पृथ्वी माँ में आदिशक्ति के विषय में कुछ कहना कठिन विषय है भी उनके प्रतिबिम्ब की अभिव्यक्ति होती है। मानव क्योंकि यह समझना सुगम नहीं है कि आदिशक्ति का सृजन करने के लिए सर्वप्रथम अतिपावन पृथ्वी सर्वशक्तिमान परमात्मा-सदाशिव की शक्ति हैं। माँ का सृजन किया जाना आवश्यक था। जैसा कि कुछ लोग कहते हैं वे (आदिशक्ति) उनकी (सदाशिव) खास हैं। कुछ लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम पृथ्वी माँ पर प्रतिबिम्बित हुई। हम कह आदिशक्ति सदाशिव की इच्छा हैं और कुछ अन्य सकते हैं कि कुण्डलिनी आदिशक्ति का एक अल्प उन्हें सदाशिव की पूर्ण शक्ति मानते हैं और कहते भाग है या यह आदिशक्ति की इच्छा- शुद्ध इच्छा हैं कि उनकी शक्तियों के बिना सदाशिव कोई कार्य है। तो आदिशक्ति सदाशिव की इच्छा- पूर्ण इच्छा नहीं कर सकते। भिन्न पुस्तकों में भिन्न विधियों से बहुत से माँ के अन्दर हुई। पृथ्वी माँ के अन्दर कुण्डलिनी लोगों ने इस विषय का वर्णन किया है परन्तु हमें इस प्रकार उभरी कि इन्होंने जहाँ तक हो सका आदिशक्ति के सृजन के में जाने की कोई पृथ्वी माँ के आन्तरिक भाग को ठंडा कर दिया और आवश्यकता नहीं है। इसके लिए कम से कम सात फिर भिन्न चक्रों के रूप में पृथ्वी माँ की सतह पर प्रवचनों की आवश्यकता है। जहाँ से आदिशक्ति ने प्रकट हुई। तो इस प्रकार विराट, पृथ्वी माँ और अंतः कुण्डलिनी के रूप में आदिशक्ति 1. है। इसकी अभिव्यक्ति सर्वप्रथम पृथ्वी माँ में, पृथ्वी मूल पृथ्वी माँ पर अपना कार्य शुरु किया हम वहाँ से मानव में असाधारण समानता है यदि आदि कुण्डलिनी ही इन सबको प्रतिबिम्बित कर ही है तो शुरु होंगे। पहली चीज़ जो हमारे लिए जानना आवश्यक इनमें गहन सम्बन्ध होना भी आवश्यक है। मानव है वह यह है कि उन्होंने पृथ्वी माँ में कुण्डलिनी का सृजन किया और पृथ्वी से बाहर श्री गणेश का। पृथ्वी माँ से जुड़ा हुआ है बहुत से केन्द्रों से यह अत्यन्त दिलचस्प बात है। इस प्रकार पृथ्वी माँ गुज़रकर पृथ्वी माँ में भिन्न केन्द्रों का सृजन हमारे लिए अति महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लेती हुए अन्ततः कुण्डलिनी कैलाश भेदन करके बाहर इस बात को नहीं समझ पाता कि किस प्रकार वह करते हैं आप यदि पृथ्वी माँ का सम्मान करना नहीं आई। मैं नहीं जानती कि आपमें से कितने लोग जानते तो आपको अपना सम्मान करने का ज्ञान भी कैलाश गए हैं कैलाश से बहती हुई अथाह चैतन्य नहीं है। निःसन्देह! कुण्डलिनी आपके अन्दर लहरियाँ आप अनुभव करेंगे। आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब है। परन्तु, जैसा कि आप जानते हैं, भिन्न स्थानों, भिन्न देशों, भिन्न नगरों में करते हैं वास्तव में हम आदिशक्ति का अपमान कर 1 अब जिस प्रकार से हम पृथ्वी माँ का अपमान सितम्बर चैतन्य लहरी 17 अक्तुबर 1997 रहे हैं। पृथ्वी माँ का सम्मान करने के बहुत से है। शराब पीकर यदि आप पैदल चलते हैं तो आप तरीके हैं। भारतीय प्रथा थी कि प्रातः उठकर जब गिर जाते हैं। उनके मंदिरा पान के कारण बहुत आप अपने पॉव पृथ्वी माँ पर रखते थे तो क्षमा भूचाल आया और वे सभी नाचने वाले, शराब पीने याचना करते थे कि हे पृथ्वी माँ कृपा करके मुझे वाले लोग भूचाल के कारण पृथ्वी माँ के गर्भ में समा क्षमा कर दें, मैं अपने पॉवो से आपका स्पर्श कर रहा गए। वहाँ स्थित हमारे सहजयोग केन्द्र के आस-पास हूँ। पृथ्वी की सभी गतिविधियाँ आदिशक्ति के की पृथ्वी तो फट गई परन्तु उसे कोई भी हानि न प्रतिबिम्ब अन्तःस्थित कुण्डलिनी द्वारा संचालित हैं। पहुँची। किसी भी सहजयोगी को कोई हानि न हुई । इसका गुरुत्वाकर्षण भी पृथ्वी माँ की कुण्डलिनी की सहजयोगी होने के नाते हम समझ सकते हैं कि अभिव्यक्ति है। किस प्रकार पृथ्वी माँ ने कार्य किया और सहजयोगियों इस सुन्दर उपग्रह पर, हमारे कष्टों का की रक्षा की। अतः पृथ्वी माँ सन्तों के विषय में बहुत कारण यह है कि जिन चीज़ों का सम्मान हमें करना अच्छी तरह से जानती हैं। वे जानती हैं कि सन्त चाहिए वह हम नहीं करते। पृथ्वी माँ का सम्मान कौन हैं, वे सन्तों के पदचाप को पहचानती हैं। और किया जाना चाहिए। इसका क्या अर्थ है इसका इसी कारण बहुत सी चीज़ों की सृष्टि हुई। मोज़िज़ अर्थ है पृथ्वी की गति से, समुद्र द्वारा, पंचभूतों द्वारा का ही उदाहरण लें। वह समुद्र में गया तो उसके जो भी कुछ पृथ्वी पर सृजन हुआ है उसका सम्मान चलने के लिए पृथ्वी माँ जल की सतह पर आ गई। किया जाना चाहिए। दूषित पर्यावरण आज की यदि सारे यहूदी गए होते तो ऐसा न होता परन्तु बहुत बड़ी समस्या है। लोग इसके विषय में बातें मोज़िज़ के साधुत्व के कारण स्वयं पृथ्वी माँ ने समुद्र करते हैं। इसका कारण हमारे जीवन को सहायता की सतह पर आकर सहायता की। इसी प्रकार जब प्रदान करने वाले पंचतत्वों के महत्व को न समझना श्रीराम भारत और लंका के बीच सेतु बना रहे थे तो है। पृथ्वी माँ ने समुद्र की सतह पर आकर सहायता पृथ्वी माँ का सम्मान करने के लिए लोग भूमि की | पूजा करते हैं। गृह निर्माण करने के समय लोग भूमि पूजन करते हैं अर्थात् पृथ्वी माँ का सम्मान पृथ्वी मा को दोष नहीं देना चाहिए। लोग यदि सन्त करते हैं। यदि पृथ्वी माँ का सम्मान न होगा तो स्वभाव हैं तो सदैव पृथ्वी माँ उनकी रक्षा करेंगी। भूचाल आ सकता है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी उनकी इच्छानुरूप वह उन्हें सब कुछ प्रदान करेंगी। माँ सब समझती हैं, जानती हैं और कार्य करती हैं। सूक्ष्म रूप से आप देख सकते हैं कि यहाँ, हमारे वह इस प्रकार से कार्य करती हैं कि मानव नहीं समझ पाता कि ऐसी चीजें क्यों घटित होती हैं। बड़े पूरे विश्व में नहीं मिल सकते। परन्तु यहाँ इतने अब लाटूर में श्री गणेश उत्सव के चौदहवें बड़े गुलाब हैं। प्रतिष्ठान में इतने बड़े सूर्यमुखी के दिन लोगों ने श्री गणेश की प्रतिमाएं समुद्र या फूल हुए कि व्यक्ति उसे उठा न सके। तो किसी नदियों में प्रवाहित करनी थीं नाचते, गाते हुए स्थान विशेष पर इस प्रकार की घटनाएं क्यों होती उन्होंने यह कार्य किया। परन्तु वापस आकर लगे हैं ? पृथ्वी माँ जानती हैं कि यहाँ कौन रह रहा है, शराब पीने। मदिरा पान पृथ्वी माँ को पसन्द नहीं उसकी पीठ उसकी मिट्टी पर कौन चल रहा है, तो हमें पृथ्वी पर घटित अनिष्टवाद के लिए कबेला में इतने बड़े-बड़े गुलाब के फूल है कि इतने to चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 18 क्योंकि वे चैतन्य लहरियों को पहचानती हैं। परन्तु जब हज की घटना घटित हुई तो उनके पास कुछ स्थानों के विषय में हम कहते हैं कि वे कहने के लिए कुछ न था। उनकी समझ में नहीं आ बहुत पवित्र हैं। उनकी पवित्रता के विषय में हम रहा था कि हज दुर्घटना में इतने लोगों की मौत को कैसे जान पाए ? चुम्बकीय शक्तियों के कारण मैं किस प्रकार वर्णन किया जाए। एक बार मक्का में हैरान थी कि इंग्लैण्ड में आक्सटैड नामक स्थान पर, जहाँ हम रहते थे, चुम्बकीय शक्तियाँ एक दूसरे हुए या मारे गए। अब पृथ्वी माँ यह बता रही है कि को पार (Cross) कर रही थीं। वे ऐसा बहुत पहले इन पावन स्थानों पर जाने से-यह वास्तव में पावन से कर रही थीं परन्तु हम वहाँ रहने के लिए बाद हैं- आप आध्यात्मिक उत्थान नहीं पा रहे है। इन में आए। अतः सब लोगों के लिए पृथ्वी माँ चीज़ों का स्थानों पर आप कुछ प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यद्यपि आयोजन एवं प्रबन्ध करती हैं। जिस प्रकार पृथ्वी माँ यह स्थान वास्तव में पावन हैं। आप जानते होंगे कि भली-भांति आपका पथ-प्रदर्शन करती हैं उसे मेरा जन्म छिंदवाड़ा में हुआ और मक्का और छिंदवाड़ा देखना अत्यन्त दिलचस्प है। मैं इसके बहुत से दोनों कर्क रेखा पर स्थित हैं। यह किस प्रकार उदाहरण दे सकती हूँ। फिर भी हम लोग पृथ्वी माँ हुआ मक्का क्या है? मक्का मक्केश्वर शिव हैं, की 1. हज के समय हुई भगदड़ में ३२००० लोग जख्मी | शिव हैं। तो मोहम्मद साहब ने लोगों से पत्थर की सूझबूझ और सभी सन्तों के लिए उनकी प्रेममय सुरक्षा को नहीं समझते। इसी प्रकार हमें समझना पूजा करने के लिए क्यों कहा । वे पत्थरों में विश्वास चाहिए कि पूरा वातावरण सन्तों को पहचानता है. नहीं करते थे, सभी प्रकार की मूर्ति पूजा के विरुद्ध समय पर वर्षा आती है. समय पर सुर्य और चाँद थे, फिर भी उन्होंने कहा कि यह जो यहाँ काला निकलते हैं और सभी कुछ अत्यन्त सुन्दर ढंग से पत्थर है, इसकी पूजा की जानी चाहिए । इसी के कार्यान्वित होता है। वे जानते हैं कि यहाँ सन्त लिए लोगों को वहाँ जाना पड़ता है। क्या कारण था लोग बैठे हुए हैं, यह पवित्र है तथा यही जीवन का ? क्योंकि वे चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते थे सारतत्व है। सावधानीपूर्वक इनकी देखभाल की इसी कारण वे जान पाए कि वह स्वयम्भु: है । जानी चाहिए। व्यर्थ लोगों की यह चिन्ता नहीं इसीलिए उन्होंने इसकी पूजा के लिए कहा। सभी करते। अब हज का ही उदाहरण लें। बहुत से लोग गए और उनमें से बहुत जाकर किसी का भी सुधार नहीं हुआ। मक्का अमरनाथ गए और मारे गए क्योंकि वे सन्त न थे, जाकर मैंने किसी को भी सुधरते हुए नहीं देखा। मात्र कर्मकाण्डी लोग थे मात्र कर्मकाण्ड के लिए यह एक प्रकार का कर्मकाण्ड है । वे सोचते हैं कि जाना पृथ्वी माँ के विवेक के अनुसार उनके लिए हज करने के पश्चात् जब कल उनकी मृत्यु होगी हितकर न था। परन्तु इन घटनाओं से कोई नहीं तो वे परमात्मा से कह सकेंगे कि देखिए हमारे पास सीखता, कोई नहीं सीखता। अमरनाथ जाते हुए मक्का जाने का प्रमाण पत्र है। जब बहुत लोग मारे गए तो पाकिस्तान ने कहा, "देखिए इन्हें अमरनाथ नहीं जाना चाहिए था, यह एक झूठा स्थान है, वे वहाँ क्यों गए ? वहाँ जाने से प्रमाण पत्र दिखा देना कि तुम वास्तविक ईसाई हो। यह साबित हो गया कि यह पावन स्थल नहीं है।" इस प्रकार से यह सब बनावटी चीजें उभरीं परन्तु 1 मुसलमान वहाँ पागलों की तरह से जा रहे हैं। वहाँ से मारे गए। कुछ लोग जैसे हमारे पोप किसी समय लोगों को प्रमाण पत्र दिया करते थे कि तुम स्वर्ग में जाओ तो यह चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 वास्तविकता तो अन्तःस्थित है। अन्तर केवल इतना है कि वास्तविकता सच्चे लोगों के लिए है, झूठों के में कार्यरत होता है तो वह कहने लगते हैं, "आपका यह चक्र पकड़ रहा है, आपका वह चक्र पकड़ रहा लिए नहीं। परन्तु यह कर्मकाण्ड बहुत अधिक बढ़ है।" वास्तव में ऐसा कहने वाला व्यक्ति स्वयं पकड़ गया है। भारत में कुण्डलिनी सृजित बहुत से रहा होता है । तो व्यक्ति को समझना चाहिए कि स्वयम्भुः हैं जिनकी वास्तव में पूजा होती है। मैं यदि हम आदिशक्ति के सच्चे प्रतिबिम्ब हैं तो हमें लगभग इन सब पर गई हूँ और देखकर हैरान थी पवित्र श्वेत पत्थर की तरह पूर्णतः पवित्र होना कि अधिकतर पुजारी किसी न किसी भयंकर बीमारी चाहिए। से पीड़ित थे। एक तो पक्षाघात का मारा हुआ था। वह कहने लगा, "हम यहाँ इस देवता की सेवा कर देगी। आपको इतना स्वच्छ होना है कि अपने पर रहे हैं, यह स्वयम्भुः है, फिर भी श्री माताजी क्यों पड़ी कोई भी चीज़, कोई भी सूक्ष्म काला धब्बा आप हम इस प्रकार के रोगों से पीड़ित हैं ?" मैंने उत्तर देख सकें और दूसरों पर लगी हुई कालिख को आप दिया, "क्योंकि आप धन कमा रहे हैं, परमात्मा के महसूस कर सकें। पवित्र जीवन से, पवित्र विचारों नाम पर आप पैसा नहीं बटोर सकते। आप यदि से और पवित्र हृदय से वह ऊँचाई प्राप्त की जा परमात्मा की सेवा नहीं करना चाहते तो यहाँ से सकती है। कोई छल साधन करने की आवश्यकता चले जाइये और यदि परमात्मा की सेवा करना नहीं, कुछ नहीं, मात्र देखें कि वह (कुण्डलिनी) चाहते हैं तो बेशक यहाँ रहिए परन्तु इससे धनार्जन कितनी स्वतोभावी (स्वाभाविक) हैं। पृथ्वी माँ में आप मत कीजिए।" यह आम बात है। मैंने देखा है कि एक बीज डालें और देखें कि किस प्रकार यह जो लोग परमात्मा के नाम पर पैसा बटोरते हैं उन्हें अंकुरित होता है। वह इतनी स्वतोभावी है, उनकी पक्षाघात हो जाता है। यह चीज़ मैंने देखी है। यह अत्यन्त गहन ज्ञान है जो सभी तत्वों को कभी आश्चर्य नहीं होता भिन्न प्रकार के पुष्प, भिन्न पृथ्वी माँ को तथा सभी देवी देवताओं को है । उनकी प्रकार की सुगन्धियों, झाड़ियों तथा वृक्षों की भिन्न कुण्डलिनी यद्यपि अपने आप में पवित्र है फिर भी ऊँचाइयों को देखें! हर जगह पर कितने संतुलन आपकी मानवीय गतिविधियों से, गलतियों, अहम्, पूर्वक वह सभी कुछ उगाती हैं। पृथ्वी माँ का हर प्रतिअहम् तथा सभी प्रकार की मूर्खताओं के कारण सूक्ष्म अणु, परमाणु विवेकशील है । इतनी संवेदनशील नहीं है और न ही आपको घटनाओं के विषय में सूचित करती है । आपके सर्वोत्तम प्रतिबिम्ब हैं। अतः पृथ्वी माँ का सम्मान अन्दर इसका अत्यन्त चुस्त, संवेदनशील और करना हमारे लिए प्रथम आवश्यकता है। आप लोग आध्यात्मिक होना आवश्यक है ताकि इसके माध्यम मुझे अच्छे लगते हैं क्योंकि आप पृथ्वी पर बैठे से आप जो भी सोचते हैं , जो भी जानते हैं, हर हैं। यह बहुत अच्छी बात है। ध्यान धारणा के लिए चीज़ के बारे में जो भी समझते हैं, तुरन्त कह सकें । यदि आप पृथ्वी माँ पर बैठेंगे तो अत्यन्त अच्छा होगा परन्तु समस्या यह है कि वास्तव में ऐसा नहीं है । क्योंकि पृथ्वी माँ का एक विशेष गुण (जो दुर्भाग्यवश क्यों आप संवेदनशील नहीं हैं ? इसके विपरीत मैंने मुझमें भी है), यह है कि मेरी तरह से वो भी आपकी देखा है कि जब लोगों का मस्तिष्क किसी के विषय समस्याओं (नकारात्मकताओं) को सोखती रहती है। इस पर कालिख की एक बूंद भी ( इसी कारण आज मैंने सफेद साड़ी पहनी है) दिखाई गति विधियाँ इतनी स्वाभाविक हैं कि हमें उन पर ति तो पृथ्वी माँ हमारे सम्मुख आदिशक्ति का हुए सितम्बर चैतन्य लहरी 20 अक्तुबर, 1997 पृथ्वी माँ आपकी समस्याओं को सोखती हैं और आत्मसात करूं। तो आपके साथ साथ आपकी सभी आप बिना किसी कठिनाई के उनसे मुक्त हो जाते समस्याएं, आपके सभी कष्ट मुझमें चले गए हैं । हैं। अतः यदि आप ध्यान के लिए पृथ्वी पर नहीं बैठ समुद्र में डुबकी लगा कर आप तो स्वच्छ हो गए हैं सकते तो कोई पत्थर, संगमरमर या कोई अन्य परन्तु समुद्र की स्थिति पर विचार कीजिए ! आपकी प्राकृतिक चीज़ ले लें और उस पर बैठने का प्रयत्न समस्याएं और कष्ट अब भी समुद्र में हैं तथा वे करें। परन्तु यदि आप प्लास्टिक पर बैठकर ध्यान अत्यन्त कष्टकर हैं । धारणा करेंगे तो किस प्रकार आपकी सहायता अतः स्वयं को स्वच्छ करना आपके लिए होगी। प्लास्टिक? इसलिए मैं सदा आपसे निवेदन सर्वोत्तम होगा अन्तर्दर्शन द्वारा शुद्धिकरण करना करती रही हूँ कि प्राकृतिक चीजों का उपयोग करें महत्वपूर्ण है परन्तु इसका अर्थ सोचना नहीं है, क्योंकि प्राकृतिक चीजें आपकी नकारात्मकताओं अन्तर्दर्शन का अर्थ सोचना कभी भी न था। को भली-भांति सोखती हैं और उन्हें दूर भगाती हैं। अन्तर्दर्शन का अर्थ है ध्यान-धारणा करना, परन्तु हम तो अस्वाभाविक ढंग से रहते हैं, न केवल आप सबको ध्यान-धारणा करनी चाहिए। भी मैं आपको बताना चाहूंगी कि हमने कार्यभारियों शारीरिक स्तर पर परन्तु मानसिक स्तर पर मस्तिष्क के स्तर पर हम क्या करते हैं ? हम बहस की एक गोष्ठी की, वे आए तथा बैठक में बैठ गए। किए चले जाते हैं। सफाई देते रहते हैं आदि-आदि। ज्योंही वे एकत्र हुए मेरे पेट में इतना तेज़ दर्द हुआ इसका कोई अन्त नहीं है। इसमें सिरदर्द हो जाता है। यदि आप स्वाभाविक हैं, अत्यन्त स्वाभाविक, तो नहीं कर सकते। किसको ये सब कष्ट थे, मैं नहीं तथा इतनी भयंकर पेचिश मुझे हुई कि आप विश्वास 1 आप तुरन्त जान जाएंगे कि दूसरा व्यक्ति क्या जानती! जब तक ठीक होकर आप स्वच्छ नहीं हो कहने, क्या अभिव्यक्ति या क्या करने का प्रयत्न जाते, माँ होने के नाते मैं बुरा नहीं मानती। जिस कर रहा है। इसके विषय में आपको बहुत सोच प्रकार पृथ्वी माँ आपकी देखभाल करती है, मैं भी विचार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप आपकी देखभाल करती हूँ। आप भले हों या बुरे, दूसरों के मन को जान सकते हैं। इसका यह पृथ्वी माँ की तरह मैं भी आपसे प्रेम करती हूँ। अभिप्राय नहीं कि आप दूसरों की बुराइयों को परन्तु मुझ पर कृपा करके यदि आप वास्तव अपना लें। सोख लेने का अर्थ है दूसरे व्यक्ति की में अच्छे सहजयोगी बन जाएं, केवल विचारशील बुराइयों को समझ कर उन्हें बहा देना। दूसरा ही नहीं, केवल बहस तथा दूसरों की आलोचना व्यक्ति जो भी कह रहा है उसे भली-भांति समझकर करने वाले ही नहीं, और नियम से प्रतिदिन उसकी बुराइयों को आप धो डालते हैं। अब इस आदिशक्ति की समस्या यह है कि तो, मैं आपको बताती हूँ, मेरा स्वास्थ्य अव्वल आप सब लोगों को अपने शरीर में स्थान देने का, दर्जें का हो जाएगा, क्योंकि मैंने आपके अन्तःक्षेप आपको आत्मसात करने का निर्णय मैंने किया मैं (कष्ट एवं समस्याएं) अपने अन्दर समोह लिए जानती हूँ कि यह अत्यन्त भयानक खेल है परन्तु हैं और अकारण वे मेरे जीवन को कष्ट-कर मैंने यह खेल खेला क्योंकि इस समय पर यह बनाने लगते हैं। आप देखें कि मैंने यह खतरा मुझसे अपेक्षित था कि मैं आप सब को स्वयं में अपने पर ले लिया है और विवेकशील होने के नाते | मात्र दस-पन्द्रह मिनट ध्यान-धारणा करें सितम्बर चैतन्य लहरी 21 अक्तुबर, 1997 आप नहीं चाहेंगे कि आपकी माँ यह कष्ट उठाए। से कुछ भी कार्यान्वित न होगा। मेरे लिए यह प्रतिदिन का क्रूसारोपण है और कभी कभी तो मेरी समझ में नहीं आता कि क्या और सहजयोग के प्रचार के लिए बाहर भी जाना तो व्यक्ति को ध्यान-धारणा करनी होगी कहा जाए! उदाहरण के रूप में उस दिन दिल्ली में होगा। दोनों ही कार्य किए जाने आवश्यक हैं। मान एक भद्र पुरुष, जो कि कार्यभारी (नेता) हैं मुझे लो आप ध्यान-धारणा करते हैं और सहज प्रचार मिलने के लिए आए और मेरे एक पैर में जलन तथा नहीं करते हैं तो आपका उत्थान कभी न होगा दर्द होने लगा। मेरी समझ में नहीं आया कि उसे क्योंकि यह कुण्डलिनी विवेकशील महिला हैं-अत्यन्त बाहर जाने के लिए कैसे कहूँ। मैं उसे चोट नहीं विवेकशील, वह सोचती हैं कि क्यों मैं इस व्यक्ति पहुँचा सकती थी परन्तु मैंने कहा, "क्या बात है, को सन्त बनाऊ? क्या लाभ है? सहजयोग किसी आप कहाँ गए थे और क्या किया था?" उसने व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है कि कोई एक व्यक्ति महसूस किया और बाहर चला गया और उसके सन्त बनकर कहीं बैठ जाए। ऐसा नहीं है। यह जाते ही मेरा पैर ठीक हो गया सामीप्य का भी, मैं किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं है, स्वयं के लिए सोचती हूँ, प्रभाव होता है क्योंकि इस प्रकार नहीं है। यह व्यक्तिगत नहीं है, यह सामूहिक समस्याओं से भरे कोई पुरुष या स्त्री जब मेरे चित्त घटना है। आप यदि सामूहिकता की सहायता नहीं समीप आ जाते हैं तो मुझे क्रास (कष्ट) करते तो कुण्डलिनी कहती है कि आप ऐसे ही ठीक हैं-हमारे शरीर की तरह से। शरीर में यदि कोई के बहुत उठाना पड़ जाता है। एक साधारण सी बात जिसकी समझ हमें अंग या कोषाणु विशेष यदि ये कहे कि बस अब मैं होनी चाहिए वह यह कि हम सहजयोग में क्यों हैं। ठीक हूँ, अब मैं कोई कार्य नहीं करूँगा, अब मुझे कल जैसे आपने भजन में गाया, कि हम उत्थान के उत्थान की कोई आवश्यकता नहीं है। अब मैं पूरे लिए अधिक से अधिक ऊँचा उठने के लिए सहजयोग शरीर के विषय में क्यों चिन्ता करूँ तो यह कार्यान्वित में हैं। जिस प्रकार गहनता प्राप्त करने की अपनी न होगा यह एक जीवन्त सुसंगठन है जिसे बढ़ना आकांक्षा की अभिव्यक्ति आपने की वह बहुत अच्छी है। इसे बढ़ना है और आत्मसात करना है। शक्ति लगी। निःसन्देह; यह आनन्ददायी थी। परन्तु इसे प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान-धारणा करनी प्राप्त करने के लिए हम क्या कर रहे हैं, गम्भीरता होगी और उत्थान को पाना होगा। आपका यदि पूर्वक हमें सोचना चाहिए कि क्या हम ध्यान- उत्थान नहीं होता तो आप समाप्त हो जाएंगे। फिर धारणा करते हैं ? अन्य लोगों के उत्थान तथा उन्हें आप सहजयोगी नहीं रहेंगे। जिस व्यक्ति ने आत्मसाक्षात्कार देने के लिए क्या हम कुछ कर रहे किसी को भी आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया वह हैं ? इस क्षेत्र में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक सहजयोगी हो ही नहीं सकता। अन्य सभी कार्य कर रहे हैं । पुरुष कार्य तो अधिक करते हैं गतिविधियों के साथ साथ मुख्य गतिविधि यह होनी परन्तु चाहिए कि किस प्रकार हम अन्य लोगों को साक्षात्कार धारणा करती हैं और पुरुष बाहर का कार्य करते देते हैं। जब तक हम वास्तव में जीवन के इस पक्ष हैं। श्रम का यह अच्छा विभाजन है कि तुम घर की ओर नहीं देखते, हम सहजयोग की गहनता में बैठकर ध्यान करो और हम बाहर जाएंगे। इस तरह नहीं उतर सकते। वे ध्यान-धारणा नहीं करते। स्त्रयाँ ध्यान 1 सितम्बर चैतन्य लहरी 22 अक्तुबर, 1997 य उदाहरण के रूप में आप मेरी ही स्थिति को नहीं देते। तो विश्व की इस भयंकर समस्या का लें। मैं ठीक हूँ, पूर्ण हूँ। मुझे कोई समस्या नहीं। समाधान किस प्रकार हो कि इसमें प्रेम नहीं है फिर भी क्यों मैं इतना कठोर परिश्रम करती हूँ और परमात्मा के प्रेम को इस विश्व ने कभी नहीं जाना, क्यों अधिकाधिक सहजयोगी चाहती हूँ? यह सब यह प्रेम उन्हें दिया ही जाना चाहिए। परमात्मा के क्या है ? मुझे तो विकसित भी नहीं होना, मैं पहले से ही अति विकसित हूँ। यह सब करने की मुझे उनके लिए आवश्यक है। वे यदि इस प्रेम को नहीं कोई आवश्यकता नहीं है, परन्तु क्यों? क्या जान पाते तो, मैं कहूँगी कि, आप स्वार्थी (अपने तक इस प्रेम, आदिशक्ति की शक्ति को अनुभव करना आवश्यकता हैं? आवश्यकता प्रेम की है। मुझमें सीमित) हैं। इस दिव्य प्रेम का आनन्द स्वयं ले रहे इतना प्रेम है कि उसको प्रवाहित करना मेरे लिए हैं परन्तु अन्य लोगों को आप यह प्रेम नहीं देते। आवश्यक है । ऐसा किए बिना मैं घुट जाऊँगी। यही कारण है कि मानव में सन्तुलित व्यक्तित्व की स्वयं से तो मैं प्रेम नहीं कर सकती। तो इस प्रेम सृष्टि करने में कभी कभी सहजयोग असफल हो का बॉटना आवश्यक है। इस कार्य के लिए मुझे जाता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं-मान लो एक इस प्रेम को ले जा कर उन्हें आनन्दित कर सकें। सहजयोगी का किसी सहजयोगिनी से विवाह हुआ। यह मेरा एक स्वप्न है। इस विशेष समय पर, बहुत अब मेरी इच्छा यह है कि वे एक दूसरे को समझें, परस्पर प्रेम विकसित करें परन्तु साथ ही साथ अन्य यह स्पष्ट है कि इस कार्य को करने के लिए विशेष लोगों के लिए तथा सहजयोगियों के लिए भी उनमें प्रेम विकसित हो। केवल इसी तरह से हम सहज आप लोगों की आवश्यकता है जो अन्य सब तक से सन्तों तथा पैगम्बरों ने उसका वचन दिया था। रूप से चुने गए लोग आप ही हैं। अब आप स्वयं को कितना महत्वपूर्ण समझते विवाह को न्यायोचित बना सकते हैं। अन्यथा उनके हैं, यह एक अन्य बात है। अपने मोक्ष के लिए आप विवाह का क्या उपयोग है ? परन्तु ऐसा होता नहीं कार्य करते हैं, ध्यान-धारणा करते हैं। ठीक है। है होता क्या है कि विवाह के पश्चात् या तो आपस परन्तु परमात्मा के इस दिव्य प्रेम का प्रसार यदि में झगड़ कर वे तलाक मांगेंगे और सौभाग्यवश यदि आप नहीं करते तो क्या उपयोग हैं? मान लो मैं ऐसा न हुआ तो वे अपना घर, अपना परिवार बनाने किसी चीज़ की भली -भांति मरम्मत करती हूँ। मान लगेंगे और स्वयं को क्षुद्र, अतिक्षुद्र तथा सीमित लो यह मशीन (माइक्रोफोन) को मैंने अच्छी तरह बनाने लग पड़ेंगे क्या आप इसीलिए सहजयोग में ठीक कर दिया, परन्तु इस पर यदि मैं बोलती नहीं आए हैं ? आप को अपनी जिम्मेदारी समझनी तो इसका क्या लाभ है? इसी प्रकार यदि आप चाहिए। पृथ्वी माँ को देखें, किस प्रकार यह अपनी कठोर परिश्रम करते हैं- (मैं जानती हूँ कि कुछ जिम्मेदारी समझती हैं! ये गारे और मिट्टी से बनी हुई हैं-परन्तु इनकी ओर देखें। वे कितनी चेतन हैं. कितनी असाधारण हैं, किस तरह सभी कुछ कार्यान्वित करती हैं, कितनी सतर्क हैं और कितनी सावधान! आप, जिन्हें सभी प्रकार के वरदान प्राप्त हो गए हैं, क्या अन्य लोग प्रातः चार बजे उठते हैं, स्नान करते हैं, ध्यान धारणा करते हैं) - परन्तु वे कभी बाहर जाकर सहजयोग के विषय में अन्य लोगों से बातचीत नहीं करते और न ही सहजयोग का प्रचार करते हैं तो लोगों तक इन्हें पहुँचाने की सोचते हैं ? क्या लाभ है ? परमात्मा का प्रेम वे अन्य लोगों को सितम्बर अक्तुबर, 1997 चैतन्य लहरी 23 केवल बारह शिष्यों से, ईसाई धर्म का प्रचार केवल आप ही नहीं हैं, विश्व के अधिकाधिक लोग हुआ, यद्यपि यह अच्छा कार्य न था। सभी अनिष्टकर इसका आनन्द प्राप्त करें। चीज़ों का इतना प्रचार हुआ. तो सहजयोग सी हितकारी चीज का क्यों नहीं? इसे फैलाना ही के बच्चों के रूप में हमें पूर्ण प्रयत्न करना है, हर चाहिए. भिन्न स्थानों पर इसे जाना ही चाहिए। जगह जाना है और चिल्ला- चिल्ला कर लोगों को प्रयत्न कर के देखें कि कहाँ जाकर आप इसके बताना है कि हम कौन से समय में जी रहे हैं और विषय में बातचीत कर सकते हैं और अन्य लोगों सहजयोगियों के रूप में आपने कौन की जिम्मेदारियाँ की सहायता के लिए कुछ कार्य कर सकते हैं तथा निभानी है आपके यहाँ होने का भी तो कोई कारण किसी भी प्रकार सन्ताप दुःख और विनाश से परिपूर्ण जीवन से ऊपर उठने की चेष्टा करें। समय श्री माताजी पिछले जन्म में मैं क्या था, क्या मैं तो आज हमें निर्णय करना है कि आदिशक्ति होगा। जैसे आरम्भ में सहजयोगी मुझसे पूछा करते थे, मैंने बहुत कम है और मैं सोचती हूँ कि यदि आप समय शिवाजी था? कहा, "क्या लाभ है?" आप जो भी को देखें तो जान पाएंगे कि जिस गति से हम चल रहे हों परन्तु आज जो आप हैं आप उनसे बहुत ऊँचे रहे हैं वह धीमी है। अपने निरन्तर अत्यन्त गहन है समझने का प्रयत्न करें। पूर्व जन्मो में आप नेपोलियन प्रयत्नों से हमें कहीं अधिक तेज़ी से बहत आगे तक रहे हों, कोई बड़े राजा या रानी रहे हों तो इसका क्या जाना है और बहुत सहजयोगी बनाने हैं। परन्तु लाभ है? उन्होंने क्या किया ? क्या उन्होंने किसी की हमारे लिए सहजयोग का कोई महत्व नहीं है और कुण्डलिनी उठाई ? क्या उनमें कोई शक्ति थी ? क्या इसीलिए हम अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल ईसा और मोहम्मद साहब के शिष्यों ने इस दिशा में हो जाते हैं। हमें पृथ्वी माँ से सीखना होगा। आप कोई कार्य किया? क्या उन्हें कुण्डलिनी की कोई समझ कह सकते हैं कि श्री माताजी हम आपकी तरह थी? क्या उनमें किसी के प्रति इतना प्रेम था कि वो उन्हें कैसे हो सकते हैं? आप तो आदिशक्ति हैं। बहुत से आत्मसाक्षात्कार देना चाहते। कुछ सूफी सन्त थे जिन्होंने लोग कहते हैं कि आप आदिशक्ति हैं. तो क्या ? कुछ लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, परन्तु बहुत से एक अंगुली से आप चीजों को शान से चला सकती सन्त ऐसे हुए जिन्होंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं हैं । परन्तु मैं क्यों ऐसा करूँ? क्यों मैं ऐसा करूँ? दिया। मोहम्मद साहब ने किसी को आत्मसाक्षात्कार है। आवश्यकता क्या है? तो यह सोचते हुए कि आप नहीं दिया, गौतम बुद्ध ने किसी को साक्षात्कार नहीं मेरे ही प्रतिबिम्ब हैं, कि मैं ही पृथ्वी माँ हूँ, आपके दिया। आप सोचे कि ईसा ने कभी किसी को अन्दर की सुन्दर, रचना के लिए आपको विश्व की आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। किसी को भी नहीं। राम आवश्यकताओं के प्रति अत्यन्त संवेदनशील बनना और कृष्ण ने भी ऐसा नहीं किया । आपके अतिरिक्त होगा। विश्व की क्या आवश्यकता है? आज यदि कोई इस कार्य को नहीं कर सकता। आप कुण्डलिनी आप असफल हो जाते हैं तो पूरा कार्य हमेशा के के विषय में सभी कुछ जानते हैं और आप ही इस कार्य लिए असफल हो जाएगा। केवल थोड़े से सहजयोगी को कर सकते हैं। यह बहुत बड़ी चीज़ है क्योंकि आप रह जाएंगे तो आपके लिए आवश्यक है कि आदिशक्ति के बच्चे हैं आप और आपकी माँ (श्री सहजयोग को फैलाएँ क्योंकि यह प्रेम केवल आपके माताजी) यहाँ विद्यमान हैं। मेरे लिए यह सौभाग्य की लिए ही नहीं है। इसका आनन्द लेने के अधिकारी बात है कि आप यहाँ हैं। मुझे आप पर गर्व है। परन्तु पड सितम्बर चैतन्य लहरी 24 अक्तुबर, 1997 मुझे आपको बताना है कि कार्य को तीव्र गति से करना होगा। तीव्र गति से चलते हुए अधिक लोगों को सहजयोग में लाना होगा किसी भी बात को बलपूर्वक कहना मेरे लिए बहुत कठिन है, आप जानते हैं कि यह मेरा स्वभाव नहीं है। क्रोधित होकर मैं आपसे कुछ भी नहीं कह सकती। यदि आप असफल हो जाते लें तो आपके अन्दर बार बार ऐसा करने की इच्छा होगी। सहजयोग में आने के पश्चात् हमारी जरूरत इस इच्छा में परिवर्तित हो जाती है कि हे परमात्मा यह व्यक्ति जा रहा है। क्या मैं इसे बुला कर आत्मसाक्षात्कार दूँ? गली में जाते हुए किसी व्यक्ति को देख कर आप कहेंगे, "आप यहाँ आइये मैं आपको कुछ भेंट करूंगा" और उस व्यक्ति को बैठा कर आप उसे आत्मसाक्षात्कार परन्तु हैं तो इसका अभिप्राय यह होगा कि आपने मुझे पूर्णतः असफल कर दिया। इसका यही अर्थ है, इससे जरा देंगे। यह आपकी शैली हो जायेगी कि किसी उन्मत्त भी कम नहीं और यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते तो व्यक्ति की तरह से आप कहेंगे, "ओह, नहीं इस भद्र मैं आपसे प्रार्थना करती हैँ कि आज आप शपथ लें कि पुरुष ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया, आओ हम आप सहजयोग को फैलाएंगे, सहजयोग का ज्ञान इसे आत्मसाक्षात्कार दें।" आपको चर्चों में जाना प्राप्त करेंगे और सहजयोग के विषय में बातचीत होगा, आपको विश्वविद्यालय में जाना होगा, करेंगे। बहुत से लोगों को कुछ पता ही नहीं है। हैरानी आपको उन सभी सभाओं में जाना होगा, जहाँ की बात है कि कुछ सहजयोगी कुछ भी नहीं जानते लोग यह नहीं जानते कि वह क्या प्राप्त कर और मेरे लिए समस्याएं खड़ी करते हैं । जैसे विवाह, सकते हैं और निडरतापूर्वक, बिना किसी द्वेष के उन्हें आप अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकते, आप अपने इसके विषय में बताना होगा उनसे बातचीत करके पति के साथ नहीं रह सकतीं। सहजयोग में लोग मेरे आपको उन्हें बताना चाहिए कि आपके हितार्थ सहायता लिए सभी प्रकार की मूर्खता पूर्ण समस्याएं खड़ी करते करने के लिए हम लोग यहाँ आये हैं। अपने हित के रहते हैं। आप यहाँ समस्याएं खड़ी करने के लिए हैं या लिए हम लोग यहाँ नहीं आये हैं, आपके हित के लिए आये हैं। अब आप हमारी बात सुने और मुझे पूर्ण निःसन्देह कुल मिलाकर हमने अच्छा कार्य विश्वास है, पूर्ण विश्वास, कि आपके अन्तरिथत कुण्डलिनी प्रसन्न होंगी जो लोग उसका पूर्ण उपयोग नहीं करते कुण्डलिनी उनसे प्रसन्न नहीं है । तो कुण्डलिनी आपकी सहायता करके बहुत प्रसन्न होंगी तथा पूरे विश्व को उनका समाधान करने के लिए? किया अभी तक हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर परन्तु सके, आनन्द एवं उत्साहपूर्वक इसके लिए हमें तीव्रता से कार्य करना होगा। आप नहीं जानते कि किसी को मोक्ष प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक कार्य करेगी। आत्मसाक्षात्कार देते हुए आपको क्या आनन्द प्राप्त होता है। एक बार आप इसे आजमायें, इसका आनन्द परमात्मा आपको धन्य करें। TIM 25 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन १८ जनवरी १६६३ आवर चि तो अब हम अपनी यात्रा के प्रथम अर्ध भाग करके, या बाह्य रूप से विशेष प्रकार का आचरण का समापन कर रहे हैं। अब हमें अपनी ओर देख करके वे वैसे ही बन जाते हैं। यह असत्य है। कर यह जानने की चेष्टा करनी है कि इस यात्रा पश्चिमी देशों के हिप्पी जैसे स्वयं को आदिमानव से हमने क्या प्राप्त किया। हमें समझना होगा कि बौद्धिक गतिविधियों बन सकते क्योंकि आप इतने अति-विकसित हैं कि से सहजयोग नहीं होता। जैसे बहुत से लोग सोचते आप आदिमानव बन ही नहीं सकते तो बुद्धि द्वारा हैं कि यदि आप स्वयं से मात्र इतना कहें-"आपको कुछ करने से हम वैसे नहीं बन सकते। ऐसा बनना है". तो यह घटित हो जायेगा, हर समय यदि आप स्वयं को बताते रहें कि , "ओह, जा सकता है। आपमें से कुछ लोग सोचते हैं कि तुम्हें फलां समस्या से मुक्ति पानी होगी", तो यह कुछ आरतियों या मन्त्रों को जबानी रट लेने से ठीक हो जायेगी। या कुछ लोग सोचते हैं कि यदि आपको गहनता (वजन) प्राप्त हो जाएगी। पर यह वे किसी अन्य को बताएं कि आपमें यह कमी है भी असत्य है क्योंकि रटे हुए मन्त्र भी तो शब्द हैं। और आप ठीक हो जाइये, तो वह ठीक हो जायेगा। आपके अन्दर यदि ये जागृत हैं तब ये 'मन्त्र' बात ऐसी नहीं है क्योंकि सहजयोग बौद्धिक स्तर बनते हैं और तब आप इन्हें कार्यान्वित कर पर कार्य नहीं करता यह आध्यात्मिक स्तर पर सकते हैं। परन्तु मन्त्र - सृष्टि करने की शक्ति प्राप्त कार्य करता है और आध्यात्मिकता का स्थान करने के लिए सर्वप्रथम आपको एक आदर्श स्थिति बौद्धिकता से बहुत ऊँचा है। तो आप के करने योग्य कार्य यह है कि हैं तो आवश्यक नहीं कि यह पहुँच रही हो । आपने अपने चक्रों को ठीक करने का ज्ञान प्राप्त हमें बिना किसी बन्धन में फंसे सत्य का सामना करना है और अपनी मशीन (शरीर तन्त्र) को चलाने करना है। मन्त्र को प्रकाशरंजित (जागृत) करने के की विधि सीखनी है। सम्भवतः लोग अब भी बौद्धिक लिए भी आपको विशेष गहनता प्राप्त करनी होगी। मान बैठते हैं। किसी भी प्रकार आप आदिमानव नहीं सूक्ष्म रूप में यह बौद्धिक स्तर और भी आगे पानी होगी इसी प्रकार जब आप आरती गाते स्तर पर रहते हैं तथा बुद्धि से ही समस्याओं का समाधान करने का प्रयत्न करते हैं। यही कारण है (कम से कम) आवश्यकता है। यदि आपके कुछ कि समस्याएं बढ़ने लगती हैं। यदि आपके किसी चक्र खराब हैं तो मेरे फोटो के सम्मुख बैठ कर चक्र में खराबी है या कहीं कोई पकड़ है, या प्रार्थना करें। फोटो को अपेक्षित सम्मान दिया जाना आपको कोई गड़बड़ दिखाई देती है तो आध्यात्मिक चाहिए क्योंकि फोटो ही सभी कार्य करेगा या यदि स्तर के अतिरिक्त इसका समाधान किसी अन्य मैं साक्षात् में वहाँ हूँ- इसके अतिरिक्त विधि से खोजने का कोई लाभ नहीं । कुछ लोग परन्तु एक बार यदि आप बोध (ज्ञानदीप्ति) पा लें तो समझते हैं कि किसी विशेष प्रकार के वस्त्र धारण आप मन्त्रों का उपयोग कर सकते हैं, अन्यथा ये स्पष्ट चैतन्य लहरियों का होना इसकी निम्नतम कोई नहीं। चैतन्य लहरी सितम्बर 26 अक्तुबर, 1997 डाल देते हैं। कल का उदाहरण हमने देखा। मैं परन्तु सर्वप्रथम आपके हृदय का शुद्ध विश्वस्त थी कि उन्हें अगले दिन जाना है परन्तु होना आवश्यक है। मैंने प्रायः देखा है कि कोई भी मेरी बात सुनने को तैयार न था। वे चले गए और उन्हें पता चला कि अगले दिन के लिए आपकी सहायता न कर पाएंगे। अधिकतर पश्चिमी लोगों में विशेष रूप से दो चक्र ठीक कार्य नहीं करते। हृदय प्रथम चक्र है। इसका अर्थ है कि हृदय अब भी साफ नहीं है, स्वच्छ नहीं टिकटें लाई गई हैं। स्वच्छ हृदय होने पर ही आपको यह ज्ञान आता है। जैसे कल मैंने कहा कि है, तथा हृदय से अब भी आप तुच्छ व्यक्ति हैं; आप न आएं तो अच्छा होगा। वहाँ की स्थिति का आपने अपनी श्री माताजी को अपने हृदय में नहीं ज्ञान मुझे न था। फिर भी मैंने कहा, "आप न बिठाया। माँ के कार्य को समझते हुए उन्हें अपने हृदय में धारण करके, अपने पूर्ण प्रेम - भाव से फोटो को देखते हुए आप अपना ह्ृदय विचार आपको आता है। परन्तु लोग तो समझते ही शुद्ध करें। हृदय यदि स्वच्छ नहीं है तो सभी नहीं कि उन्हें हृदय के माध्यम से कार्य करना है. कार्य व्यर्थ हैं क्योंकि प्रकाश-हीन ( अस्वच्छ) म हृदय ही सभी कुछ कर रहा है। हृदय का पूर्ण जब हमें कार्य करने होते हैं तो हम अपने मस्तिष्क स्वच्छ एवं पूर्णतः समर्पित होना आवश्यक है आप को स्मरण, अभ्यास विचार तथा प्रशिक्षण द्वारा सब सहजयोगी हैं अतः मैं आपको यह सब बता विकसित करने का प्रयत्न करते हैं । हम मस्तिष्क सकती हूँ। जो लोग सहजयोगी नहीं, उन्हें मैं यह को प्रशिक्षित करने का प्रयत्न करते हैं । अब नहीं कह सकती। सहजयोग का वर्णन हम अपने संदर्भ में और सहजयोग में हृदय को प्रशिक्षित करने के लिए करते हैं, परमात्मा के संदर्भ से नहीं। परमात्मा जो सर्वप्रथम हमें समझना है कि यह अहॅ से घिरा हैं, वे हैं। वे स्वयं को परिवर्तित नहीं कर सकते, है। सिर का तालु भाग, वास्तव में, हृदय का आप को ही परिवर्तित होना है। तो परमात्मा के प्रतिनिधित्व करता है। अहॅ यदि है तो हृदय सदा विषय में जो भी कुछ हम सोचते हैं, वही हम धारण करना चाहते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई सोचता है कार्य नहीं कर रहा होगा, केवल उसका मानसिक कि वह मेरे प्रति अच्छा होने का प्रयत्न करता है, या प्रक्षेपण होगा, और आपको लगेगा कि मैं इस कार्य यदि वह मेरे समीप ( तथाकथित) है, या यदि वह सोचता है कि वह अन्य लोगों से अच्छा आयोजन नहीं है। आएं।" समाप्त, क्योंकि मैं जानती थी कि यह घटित होगा तो स्वच्छ हृदय होने पर ही यह स्पष्ट मस्तिष्क के माध्यम से नहीं। मस्तिष्क के माध्यम से सहजयोग में हमें अपना हृदय प्रशिक्षित करना है, हुआ "तथा-कथित हृदय ही होगा वास्तविक हृदय को हृदय पूर्वक कर रहा हूँ। वास्तव में बात ऐसी करता है, या कोई भी कार्य-भार सम्भालते हुए यदि हमारा हृदय दुर्बल है तो हमें क्या करना चाहिए। आप कह सकते हैं कि स्वयं को लेना चाहिए कि यह सब बौद्धिक है। वास्तव में बताने का प्रयत्न करें कि यह अच्छा नहीं है वह अच्छा नहीं है, आदि-आदि और सभी प्रकार की कुछ करने का प्रयत्न करते हैं तो वास्तव में आप बौद्धिक या स्वतः सुझाव या जिस प्रकार से मनोरोग स्वयं को तो भ्रमित करते ही हैं, मुझे भी उलझन में चिकित्सक लोगों को सुझाव देते हैं। परन्तु यह भी स्वयं को महत्वपूर्ण समझता है तो व्यक्ति को जान आप कुछ नहीं कर रहे। कर्ता भाव से जब भी आप चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 27 बौद्धिक है जो कि कार्य न करेगा। हमारे लिए होगा। हाथ से उठाना निःसन्देह ठीक है, परन्तु तत्व समझना आवश्यक है कि हमें अपनी बायीं ओर को उठाकर दाई ओर को डालना होगा। इसके बिना के अन्दर विद्यमान सभी तत्व उसे गर्मी प्रदान करते कोई रास्ता नहीं। अपने हाथों से आपको यह हैं, हम कह सकते हैं प्रकाश या अग्नि। अतः दाई कार्यान्वित करना होगा। अब आपके हाथ कार्य कर ओर के लोगों को अग्नि अधिक सहायता न कर रहे हैं मस्तिष्क नहीं। अतः अपने हाथों तथा सहजयोग की विधियों का उपयोग करें। सभी सहजयोगी नियमित रूप से पानी में उपयोग करेंगे तो इसका कोई लाभ न होगा लाभ 1 का क्या होगा। दाई ओर के (उग्र स्वभाव) व्यक्ति सकेगी। जैसे फोटो के सम्मुख तथा अह ग्रस्त लोगों के सम्मुख यदि आप दीपक (प्रकाश) का बैठें। यह अत्यन्त आवश्यक है। प्रतिदिन प्रातःकाल तो पृथ्वी माँ और जल तत्व से होगा जो शीतलता प्रदान करते हैं। दाई ओर के लोगों के लिए बर्फ भी अवश्य ध्यान-धारणा करें क्योंकि बौद्धिक स्तर पर हम कहते हैं कि हम श्री माताजी के साथ थे, ठीक बहुत लाभदायक है। तो उग्रता को ठीक करने के है। यह अभिव्यक्तिकरण ठीक है। आप लोग आए, लिए सभी शीतलता प्रदान करने वाले तत्वों का आपने देखा कि भारतीय कैसे लोग हैं और सहजयोग उपयोग किया जाना चाहिए ताकि आप शान्त हो के लिए अच्छे हैं। परन्तु यह सब देखने के पश्चात् जाएं। खाने के विषय में भी ऐसा ही है। दाई ओर आपको जानना होगा कि सहजयोग को के लोगों को ऐसे भोजन लेने चाहिए जो शान्त करने कार्यान्वित करना पड़ता है। उसे सोचना नहीं वाले हों जैसे कार्बोहाइड्रेटस अर्थात् उन्हें काफी पड़ता । इसके विषय में सोचने मात्र का कोई सीमा तक शाकाहारीं बन जाना चाहिए। मॉस खाना लाभ नहीं। विचारों के माध्यम से आप जो भी सोचने का प्रयत्न करें, सहजयोग में आप कोई निकला खाना बहुत गर्म होता है । इस प्रकार आप सफलता प्राप्त न कर पाएंगे। आपको अपने हाथों अपने चक्रों के भौतिक भाग को ठीक कर सकते हैं । का उपयोग करना होगा अपना पाँच आपको पानी बाई ओर के (तमोगुणी) लोगों को चाहिए कि में डालकर बैठना होगा क्योंकि जल समुद्र है। ये दीप-प्रकाश या अग्नि तत्व का उपयोग अपनी बाई सभी पाँचों चक्र या कहें छः चक्र, मैं पाँच इसलिए ओर को ठीक करने के लिए करें। खाने में ऐसे कह रही हूँ कि पहला चक्र मूलाधार है और सातवाँ तथा सबसे ऊपर वाला चक्र मस्तिष्क हैं. तो इस विचार के साथ कि यह मध्य के पाँचों चक्र मूलतः आवश्यक है। भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पाँच तत्वों से ही इन चक्रों का शरीर बना है हमें पूर्ण सावधानीपूर्वक इन मूल चीज़ है और कुण्डलिनी, जैसा कि मैं आपको पाँचों चक्रों का संचालन करना चाहिए। जिन तत्वों बता चुकी हूँ. शुद्ध इच्छा है सावधानीपूर्वक इस से यह चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को बात को सुने -यह शुद्ध इच्छा' है। इसका अर्थ निकालकर इन चक्रों का शुद्धिकरण करना है उदाहरण के रूप में यदि कोई व्यक्ति उग्र स्वभाव एक शुद्ध इच्छा है और वह है परमात्मा से- ब्रह्म से का है तो उसे बाई ओर से संतुलन प्राप्त करना हो तो चिकन ही लेना चाहिए, मछली या समुद्र से लोगों को नाइट्रोजन परिपूर्ण अर्थात् प्रोटीनयुक्त भोजन करने चाहिए। अधिक प्रोटीन उनके लिए सहजयोग का जहाँ तक सम्बन्ध है. कुण्डलिनी | यह हुआ कि अन्य सभी इच्छाएं अशुद्ध हैं। केवल एकाकारिता। केवल यही शुद्ध इच्छा है। शेष सभी चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर 1997 28 होता। इच्छाएं अशुद्ध हैं। तो धीरे-धीरे यह इच्छा प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित करना है। इस तरह से यदि आप अपने मस्तिष्क तनावग्रस्त होने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं यदि को प्रशिक्षित करेंगे तो आप शुद्ध इच्छा विकसित आपमें कोई त्रुटि देखकर आपको डांट भी दूँ तो यह कर सकते हैं और फिर सभी अन्य इच्छाएं शनैःशनैः भी आपके हित के लिए है। यदि मैं सराहना करूं समाप्त हो जाएंगी। ठीक है ? अब परमात्मा से तो यह भी आपके हित के लिए है। मेरा सहजयोग एकाकारिता की यह इच्छा ही शुद्धतम एवं उच्चतम इसी प्रकार कार्य करता है। पूरे विश्व में मुझे किसी है। तो इसे प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना है। के साथ वैमनस्य नहीं है, विश्व के किसी भी व्यक्ति बड़ी साधारण सी बात है कि इस इच्छा को प्राप्त के लिए मुझमें वैमनस्य एवं क्रोध नहीं है। करुणा के करने के लिए आपको अपनी माँ को प्रसन्न रखना अतिरिक्त मेरे पास कुछ है ही नहीं। उसी करुणा होगा आदिशंकराचार्य ने कहा है कि किसी चीज़़ में मुझे कभी डॉटना पड़ता है और उसी करुणा में की चिन्ता न करें केवल अपनी माँ (श्री माताजी) को मुझे दया पूर्वक बोलना पड़ता है। दोनों ही तरह से प्रसन्न रखें। आपको सरल बनना होगा मुझसे यह आपके हित के लिए है। दोनों ही प्रकार से यह मुख्य बात अपने मस्तिष्क को दूसरे आपको मुझसे नाराज नहीं होना। 1 कभी चालाक बनने का प्रयत्न न करें। मैं सबको आपकी सहायता करता है। तो परमात्मा को भली भांति जानती हूैँ। तो स्वयं से कहें कि "मुझे धन्यवाद दें कि उपयुक्त समय पर आपको सुधारने ऐसी बातें कहनी हैं, ऐसे ढंग से बर्ताव करना है जो के लिए कोई व्यक्ति है, क्योंकि आप सन्त हैं और श्री माताजी को प्रसन्न करें ?" मान लो आप पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य स्थापित करने के सहजयोगी हैं और गलत कार्य कर रहें हैं तो यह लिए अवतरित हुए हैं। यही कार्य आपको करना है। मुझे प्रसन्न नहीं कर सकता।"तो श्री माताजी को यदि आप लोगों का सम्मान नहीं होता, यदि आप कैसे प्रसन्न करें?" यह बात आप स्वयं देखने का विवेकशील नहीं हैं, यदि आपमें गरिमा नहीं है या प्रयत्न करें कि कौन सी चीज़ मुझे सबसे ज्यादा यदि आप अभद्र आचरण करते हैं तो किस प्रकार प्रसन्न करती है। मैं अत्यन्त सरल व्यक्ति हूँ- लोग आपको स्वीकार कर सकते हैं ? जिसका हृदय सरल हो। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति जो तो हृदय चक्र की देखभाल आवश्यक है और अधिक दिखावा करने का प्रयत्न करता है, अपने हृदय की इच्छा से ही आप अपनी श्री माताजी सबसे आगे रहने का या फिल्म स्टार बने रहने का को प्रसन्न रख सकेंगे। मैं यदि आपसे नाराज़ भी हूँ प्रयत्न करता है, ऐसे व्यक्ति मुझे पसन्द नहीं हैं। तो भी इसका बुरा न मानो। आपका नाराज़ होना आपको अति शान्त और दिखावा करने के मामले में यह दर्शाता है कि अभी आपमें सहजयोग विकसित अत्यन्त संकोचशील होना है। क्या में कभी दिखावा नहीं हुआ। मैं जब आपको डाँटती हूँ तो इसलिए कि करती हूँ कि मैं आदिशक्ति हूँ? मैं ऐसा नहीं करती आपके अन्दर कोई ऐसी नकारात्मकता होती है जो हूँ। आपकी तरह से ही मैं रहती हूँ। पूर्णतः आपकी केवल डांटने से ही निकल सकती है। तो मेरी डांट तरह । क्या मैं कभी दिखावा करने का प्रयत्न करती को अपने सुधार का एक तरीका मानकर स्वीकार हूँ? तो आप क्यों मेरे सम्मुख दिखावा करने का करें आपके अन्दर कोई कांटा चुभा हुआ है जो कि प्रयत्न करें? तो इस प्रकार का व्यक्ति अच्छा नहीं दूसरे कांटे से ही निकल सकता है और श्री माताजी बहुत सितम्बर चैतन्य लहरी 29 अक्तुबर, 1997 ने वह कांटा निकाल दिया। मेरी दयाद्रता को एक और महालक्ष्मी तत्व में प्रवेश के लिए आपको अपनी बार जब आप समझ लेंगे तो मेरी किसी बात का भौतिक वस्तुएं तथा भौतिक अस्तित्व इस प्रकार से ा नहीं मानेंगे, मेरी डांट का या तुम्हारी त्रुटियां उपयोग करना होगा कि आप मुझे (श्री माताजी) प्रसन्न बुरा निकाले जाने का क्योंकि मुझे ही यह कार्य करना है। जिन लोगों के पास अच्छा एवं स्वच्छ हृदय नहीं रख सकें। ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक है। सभी लोग इस बात को समझ लें। मैं यह बात आपको इसलिए समझाना चाहती हूँ को नहीं समझ सकते यह उनके लिए कठिन कार्य क्योंकि आपकी वेशभूषा में कुछ चीजें मुझे बिल्कुल है। तो आप अपनी माँ के प्रति अपना हृदय शुद्ध पसन्द नहीं है-जैसे बिखरे हुए बाल। हो सकता है कि यह फैशन हो। परन्तु यह मुझे पसन्द नहीं। सदा आशीर्वाद होता है। सदैव एक आशीर्वाद याद रखें अच्छी तरह से कंघी करके बालों को सवारें। बिखरे कि जो भी कुछ मैं आपके लिए करती हूँ वह एक बालों, जैसे आधुनिक फैशन, आपको त्याग देने चाहिएं क्योंकि यह भूत के आपमें प्रवेश करने की पक्की एक अन्य चक्र, जो अधिकतर सहजयोगियों निशानी है। बिखरे बालों वाले व्यक्ति को भूत पहचान का बुरी तरह से पकड़ा हुआ होता है वह है नाभि लेते हैं और उसमें प्रवेश कर जाते हैं। अतः उचित ढंग चक्र, जो यह सुझाता है कि आप अभी तक भी से अपने बालों को संवारने का प्रयत्न करें भारतीय भौतिकता में फँसे हुए हैं। छोटी-छोटी चीज़ों में भी लोगों को देखें, किस प्रकार वे अपने बाल संवारते हैं! हम भौतिकवादी होते हैं। यह दुर्गुण सूक्ष्मातिसूक्ष्म उनकी ओर देखें। वे अपने बाल भलीभांति बनाते हैं। होता चला जाता है। भौतिक पदार्थ केवल एक मुझे आपके बालों से कुछ नहीं लेना और न ही मैं कोई दूसरे को प्रसन्न करने के लिए हैं । विशेषकर बालों की शैली विशेषज्ञ हूं। परन्तु यदि आपके बाल आपकी श्री माताजी को प्रसन्न करने के लिए। कायदे से बने हुए नहीं हैं तो निश्चित रूप से आप कष्ट इसके अतिरिक्त इनका कोई मूल्य नहीं है। तो की ओर बढ़ रहे हैं। तो इन चीजों की ओर ध्यान दें। है वह इस बात को नहीं समझ सकते। जो इस बात रखें। आपके लिए जो भी कुछ मैं करती हूँ वह मात्र | आशीर्वाद है । आपको उस हद तक भौतिकवादी नहीं बनना चाहिए लोगों की बेढभे वस्त्र पहनने की आदत कुछ कि छोटी-छोटी चीजों के लिए भागदौड़ करते रहें। होती है। ये भी अच्छी बात नहीं है आपको सम्माननीय स्वच्छ एवं सम्माननीय। इसके ठीक यदि न मिले तो ठीक। तो नाभि चक्र अत्यन्त भौतिक महत्व के लिए नहीं, परन्तु इसलिए कि बेढभे व्यक्तिवादी (Individualistic) है, अति व्यक्तिवादी वस्त्र सभी बाधाओं को आकर्षित करते हैं । आपको या यह सबकी व्यक्तिगत चीज़ है। यदि आपकी चाहिए कि स्वयं को स्वच्छ एवं व्यवस्थित रखें ताकि इच्छा लक्ष्मी तक ही सीमित है, अर्थात् यदि आप बाधाएं आपमें प्रवेश न कर सकें। पश्चिमी देशों में जो बहुत अधिक धन चाहते हैं या बिना आध्यात्मिक विचारधाराएं उभरी हैं वे सब किसी शैतानी शक्ति की मूल्य के छोटे-छोटे भौतिक पदार्थ चाहते हैं, तो हो देन है। बेढभी वेशभूषा सुन्दर नहीं लगती, आध्यात्मिक व्यक्ति को तो बिल्कुल शोभा नहीं देती। हमें अपनी शैली इस प्रकार बदलनी होगी कि परमात्मा को अच्छी लगे, भूतों को नहीं। हम नहीं चाहते कि भूत हमें पकड़ें। कुछ भी आवश्यक नहीं है। यदि कुछ मिल जाए तो वेशभूषा धारण करनी है, सकता है कि आपका लक्ष्मी तत्व जागृत हो जाए। परन्तु इस लक्ष्मी तत्व का महालक्ष्मी तत्व में परिवर्तित हो जाना आवश्यक है। यह आपके उत्थान के लिए है सितम्बर चैतन्य लहरी 30 अक्तुबर, 1997 इस साधारण सत्य को जब आप समझ जाएंगे तो ऐसे की आवश्यकता नहीं है, इसे कार्यान्वित करना होगा। वस्त्र पहनने लगेंगे जो चाहे आधुनिक न हों, चाहे देखें कि कौन सी ओर की नाभि पकड़ रही है यदि प्राचीन हों, परन्तु स्वच्छ, सुन्दर और सुव्यवस्थित अवश्य दाई नाभि पकड़ती है तो शक्कर (चीनी) आपके लिए होंगे। भौतिक दृष्टि से भी यदि आप देखें तो प्रकृति एवं सर्वोत्तम है। शक्कर बहुत सी चीजों का प्रतिनिधित्व स्वभाव से परिवर्तनशील (अव्यवस्थित) हज़़ारों चीजें करती है। शक्कर का अर्थ ये भी है कि आपकी वाणी इकट्ठी करने का कोई लाभ नहीं। आध्यात्मिक मूल्य मधुर हो। आप मीठा बोलें। लोग सोचते हैं कि यदि वाली थोड़ी सी चीजें आपके लिए काफी हैं; सभी आप मधुर भाषी हैं तो आपको बेकार या एकदम ढीला असाधारण वस्तुओं, जिन्हें पाने की चेष्टा हम करते हैं, ढाला समझा जाएगा। हमें विनीत एवं विनम्र होना की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि उनका आध्यात्मिक चाहिए। परस्पर मीठा बोलना हमें सीखना होगा, और मूल्य (महत्व) नहीं होता। अतः ये सब व्यर्थ चीजें एकत्र यदि आपको मीठा बोलने की समझ नहीं आती तो करने की चेष्टा न करें। धीरे-धीरे आपमें इनका मोह अधिक शक्कर लें, चैतन्यित शक्कर। इससे आपकी कम होता चला जाएगा। आप सरल जीवन तथा वाणी अधिकाधिक मधुर हो जाएगी तथा अन्य लोगों के सुन्दर एवं आध्यात्मिक वस्तुएं पा लेंगे कोई भी चीज़ विषय में आपके विचार कठोर एवं आलोचनात्मक होने खरीदने से पूर्व इसकी चैतन्य लहरियाँ देखें चैतन्यविहीन की अपेक्षा मधुर बन जाएंगे। चीजें न खरीदें। इनसे सभी प्रकार के भूत आपके घर में घुस आएंगे और आपको कष्ट होगा। तो किसी चीज़ है और उदासीन (निष्क्रिय) (LeftSided) लोगों के को खरीदने से पहले इसे चैतन्य-चेतना से परखें। लिए नमक का। आलसी स्वभाव के लोगों को अधिक आपको यदि इसकी समझ नहीं है तो किसी अन्य नमक लेना चाहिए क्योंकि नमक से वे बहुत सी सहजयोगी से सहायता मांगे सस्ती, सुन्दर और समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। नमक उन्हें अच्छी सोचते हुए वस्तुएं खरीदते न चले जाएँ। जिनकी अच्छा व्यक्तित्व एवं मानसिक सन्तुलन प्रदान करता है चैतन्य लहरियाँ ठीक हों वही चीजें खरीदें, ऐसा न होने जिसके द्वारा वे स्वयं को आलस्य विहीन, गरिमामय पर उन्हें छोड़ दें। यह आवश्यक नहीं है "मुझे यह ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं। तो आपकी बातचीत खरीदना है, इसके लिए मुझे मुम्बई जाना है." यह या आचरण की गति मध्यम होनी चाहिए। यह तो उग्र स्वभाव लोगों के लिए शक्कर का सुझाव न तो आलस्यमय होनी चाहिए और न अधिक गलत विचार है। चित्त का अन्दर होना आवश्यक है। मैंने देखा तेज़ तथा उत्तेजनामय | है कि हमारा चित्त सदैव बाहर होता है। इस कारण आप समझ जाएंगे कि सहजयोग हर चीज़ का जो भी कुछ हम बाहर देखते हैं वह चैतन्य लहरियों के मध्य बिन्दु है। सभी कुछ मध्य में (सन्तुलित) रखने का लिए अच्छा नहीं है आपका चित्त यदि अन्दर हो तो प्रयत्न करना चाहिए. किसी भी अति में (आलस्य या आप कोई ऐसी चीज़ न खरीदेंगे जो चैतन्य लहरियों के उत्तेजना) में नहीं जाना चाहिए। आप यदि बहुत लिए अच्छी न हो, ऐसी कोई चीज़ आप न रखेंगे-इसे अधिक बोलते हैं या बहुत अधिक बड़-बड़ करते हैं. उठा कर फेंक देंगे। चित्त बाह्यमुखी होने के कारण आपकी गति यदि बहुत तेज़ है तो चुस्ती से देखते आपको चीजें परखना नहीं आता। नाभि चक्र की ओर इसे घटाने का प्रयत्न करें। आपको चुस्त होना होगा। ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए आपको सोचने देखो-"मेरी गति बढ़ रही है।" मुझे बोलने की कोई हुए सितम्बर चैतन्य लहरी 31 अक्तुबर, 1997 आवश्यकता नहीं है। मुझे चुप हो जाना चाहिए। परन्तु समझना है कि यह कार्यान्वित करना होगा। मैं सोचती बिल्कुल न बोलने वाले लोग भी अच्छे नहीं होते। तो हूँ कि आपके मस्तिष्क में यह बिठा देना आवश्यक है बोलने या न बोलने वालों को एक बात समझनी है कि कि सहजयोग को कार्यान्वित करना होगा स्वयं से बस इतना भर कह देने से काम नहीं चलेगा कि " ओ.! आप यह समझ जाएंगे तो आपकी प्रतिक्रियाएं मध्य मैं बहुत प्रसन्न हूँ ,"क्योंकि ये आपके अहँ को बढ़ावा की, सन्तुलित तथा सुन्दर होंगी इस समय मैं केवल देता है; या ये कि " मैं बहुत खिन्न हूं, "क्योंकि अहैं इतना ही कह सकती हैं क्योंकि हमारे पास समय का के माध्यम से यह आपको कष्ट पहुँचा रहा है। मैं बहुत खुश नहीं हूँ. मैं बहुत खिन्न नहीं हूँ: ये कोई तरीका मैं सोचती हूँ कि हम सब ने यात्रा का आनन्द नहीं है। आपको आनन्द की स्थिति में होना चाहिए और लिया। आप सब प्रसन्न रहे, सभी कृुछ भलीभांति ये सब कार्यान्वित हो सकता है। अपने प्रति शान्ति, प्रेम आयोजित हुआ तथा हम सब के लिए मार्गदर्शन तथा एवं गरिमा रखें कि आप सहजयोगी हैं। हर व्यक्ति को आनन्द का महान अनुभव बना। किसी भी गलती के स्वयं के लिए इसे कार्यान्वित करना होगा तभी पुर्ण लिए दोषभाव न आने दें क्योंकि दोषभाव ग्रस्त होकर (विश्व) ठीक होगा कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो जो भी कुछ हम बोलें, सन्तुलित बोलें। एक बार जब ाड अभाव है। आप इसे काबू नहीं कर सकते। दोषभाव पलायन है, केवल दूसरों के लिए ही चिन्तित हैं। स्वयं के विषय आप अपना सामना करें। अपनी कमियों का सामना में चिन्ता करें तथा अन्य लोगों के गुणों को करते हुए आप अपने दोषों को देखें और स्वयं को देखें दूसरों की अच्छाइयों को देखें। बुराईयों सुधारें। दोषभाव ग्रस्त या उग्र होने से यह कहीं अच्छा को नहीं। कोई यदि आपको आयोजन करने को कहे तरीका है। यह कोई तरीका नहीं है क्योंकि यह सब तो बिना बुरा माने, शीघ्रता से जा कर कार्य करें। हमें ऐसा बनना है. अति चुस्त होना है। हमें विश्व में बहुत कार्य करना है, बर्बाद करने के लिए हमारे पास समय नहीं है। इसके प्रति व्यक्ति को अत्यन्त तीव्र चुस्त एवं मानसिक स्तर पर है। नाभि और हृदय चक्र के विषय में आप ये कुछ बातें याद रखें। आप इन दो बातों को भली-- भाति जान लें इन्हें स्वच्छ रखें तथा इस इच्छा की अभिव्यक्ति अपने आचरण, वेशभूषा, चाल-ढाल, बातचीत तथा सभी बाह्य चीजों से करें। परन्तु केवल बाह्य सुधार से कार्य न होगा मान लो कोई कहे कि. "श्री माताजी, मैंने अपने बाल अच्छी तरह से बनाए हैं अत: मैं ठीक हूँ। बात ऐसी नहीं है। स्वस्थ होना होगा। इस यात्रा के दौरान आपने देखा होगा कि में आपसे इतनी बड़ी होते हुए भी आपके मुकाबले मैं कितना अधिक कार्य करती रही हूं। ठीक है, आप कह "श्री माताजी आप आदिशक्ति हैं।" यह ठीक आयु हैं. सकते बात है। परन्तु मैं आपका आदर्श हूँ। किसी भी तरह से यदि कोई आपका आदर्श पुरुष है तो उसके गुणों को यह आवश्यक नहीं। चाहे आपने अपने बाल भली-भांति आत्मसात करके उस जैसा बनने का प्रयत्न आपको बनाए हों फिर भी हो सकता है कि आप भूत बाधित हों। परन्तु इसके कम अवसर हैं। तो व्यक्ति को करना चाहिए। परमात्मा आपको धन्य करें। पाम TDTIO 32 आयुर्वेदिक चिकित्सा इतिहास, प्रयोग एवं योग से सम्बन्ध | (अनुवादित) प्रकार मानव हित के लिए यह दिव्य ज्ञान पृथ्वी पर निम्नलिखित डा. सुजाता केन्जले द्वारा वेरोना, इटली में दिए गए भाषण का सार है। डा. सुजाता आया। भली-भांति अध्ययन के लिए इसका विभाजन एक सहजयोगिनी हैं जिन्होंने श्री माताजी से प्रोत्साहन प्राप्त कर आयुर्वेदिक चिकित्सा में स्नातक की दो शाखाओं में कर दिया गया। जैसे-काया- उपाधि प्राप्त की। भाषण के अन्त में श्रोताओं को चिकित्सा-अर्थात् आन्तरिक चिकित्सा, और शल्य चिकित्सा। इस विषय पर बहुत सी पुस्तकें लिखी आत्मसाक्षात्कार का अनुभव प्रदान किया गया। आज हम आयुर्वेदिक चिकित्सा के इतिहास, जा चुकी हैं इनमें चरकसंहिता और सुसृत संहिता इसके मौलिक सिद्धान्त, निदान विधियाँ, उपचार मुख्य हैं । आयुर्वेद वैदिक विज्ञान का एक अंग भी योग और अन्ततः सहजयोग से इसके सम्बन्ध के है। वेद, ग्रन्थ रूप में सम्पूर्ण आध्यात्मिक विज्ञान है विषय में जानने के लिए एकत्र हुए हैं। यह अत्यन्त जो जीवन का ज्ञान प्रदान करता है। आयुर्वेद रोचक विषय है और मुझे आशा है कि आप इसका इसका एक भाग है जो शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक जीवन के विषय में प्रकाश डालता है। आनन्द लेंगे। आयुर्वेद- संस्कृत के दो शब्दों की सन्धि से बना है- आयुष + वेद। आयुष अर्थात् जीवन और आयुर्वेद क्या है ? आयुर्वेद मानव को प्रकृति द्वारा दिया गया उपहार है। भारत में अवतरित यह अति प्राचीन वेद अर्थात् ज्ञान। इस प्रकार आयुर्वेद जीवन-विज्ञान, या जीव-ज्ञान है। आयुर्वेद में मानव शरीर को विज्ञान है और इसका अभ्यास यहाँ ४००० ई. पूर्व से होता रहा है। भारतीय पुराणों के अनुसार मूल रूप केवल स्थूल शरीर के रूप में ही नहीं देखा जाता, से स्वयं परमात्मा ने आयुर्वेद का प्रतिपादन किया ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क और आत्मा को इसमें स्थान दिया जाता है। तो आयुर्वेद के मतानुसार स्वास्थ्य था। ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाले आदि-तत्व केवल रोग-मुक्त अवस्था ही नहीं, यह एक ब्रह्मा ही आयुर्वेद के मूल-प्रतिपादक हैं। ब्रह्मा ने ऐसी अवस्था है जिसमें निरन्तर शारीरिक, यह ज्ञान यक्ष-प्रजापति और अश्विनीकमार आदि मानसिक तथा आध्यात्मिक प्रसन्नता का आनन्द देवताओं को दिया। तदोपरान्त सुर-राज इन्द्र ने उठाया जा सकता है। रोगियों को रोग एवं असन्तुलन मुक्त करना इस ज्ञान को प्राप्त किया और इसे अत्रेय, भारद्वाज आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य है। सामान्य स्वस्थ लोगों कश्यप और धन्वन्तरी आदि शिष्यों को दिया। इस सितम्बर चैतन्य लहरी 33 अक्तुबर, 1997 अग्नि तत्व का प्राचुर्य होता है। की रोग ग्रस्त होने से रक्षा कर, स्वस्थ बने रहने में आयुर्वेदानुसार भोजन के छः स्वाद हैं-मीठा, यह सहायक है। परीक्षण के समय व्यक्ति का पूर्ण परीक्षण किया जाता है. उसे भिन्न भागों में विभाजित नमकीन, खट्टा, तिक्त (तीखा). कड़वा तथा कसैला। नहीं किया जाता। हमारी टांग पर यदि कोई चीज़ ये स्वाद भी इन दोषों (तत्वों) तो बढ़ाते हैं। उदाहरण लगती है, अश्रु आँखों से आते हैं, पैरों से नहीं । के रूप में तिक्त (तीखा) स्वाद के रूप में-तिक्त (तीखा) स्वाद पित्त-अग्नि तत्व- को बढ़ाता है तथा इससे पता चलता है कि सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अतः आयुर्वेद रोग लक्षणात्मक उपचार कड़वा स्वाद पित्त को घटाता है। की आज्ञा नहीं देता, इसमें शरीर, मस्तिष्क और वात-वायु तत्व- प्रथम तत्व वात मुख्यतः त बड़ी आँत, श्रोणि प्रदेश (कूले के आसपास) और आत्मा का साथ साथ इलाज होता है। मानव (शरीर) रचना- आयुर्वेद जीवन के हड्डियों में स्थित है । ये सभी स्नायविक कार्यों को सभी पक्षों पर दृष्टि डालता है- रोज़-मर्रा का चलाता है तथा शरीर के सभी क्रिया-कलापों का जीवन, खान-पान, व्यायाम, मनोविज्ञान तथा जन्मदाता है। बिगड़े हुए 'वात' से ८० प्रकार के आध्यात्मिकता। सुप्रसिद्ध आचार्य अत्रेय के अनुसार रोग, जैसे गठिया, अकड़न, पक्षघात, हृदय रोग और पुरुष (मानव शरीर) प्रकृति का ही एक छोटा सा अति-तनाव आदि. होने की सम्भावना होती है। भाग है। प्रकृति पाँच मूल तत्वों से बनी है-पृथ्वी, स्थिति और कार्य के अनुसार 'वात' को पाँच श्रेणियों में बांटा गया है:- जल, वायु, अग्नि और आकाश। यह पाँचों पंचमहाभूत कहलाते हैं। मानव शरीर में इनका प्रतिनिधित्व दोष. प्राण- और उदान सिर तथा वक्ष के ऊपरी धातु एवं मल के रूप में होता है। शरीर में तीन मूल तत्व 'दोष' कहलाते हैं। ये हैं। गतिशील हैं तथा सभी शारीरिक कार्य कलापों, भाग में हैं तथा आवाज़ एवं श्वास के लिए जिम्मेदार समान- आंत के अन्दर होता है तथा पाचन विकास और स्वास्थ्य-विकारों के लिए जिम्मेदार में सहायक है हैं। 'वात' या 'वायुतत्व' प्रथम दोष है, पित्त' या अग्नितत्व' दूसरा दोष है तथा 'कफ' (जल तथा मलत्याग के लिए जिम्मेदार है । पृथ्वी तत्व से बना) तीसरा दोष है । शरीर में ये भिन्न मात्राओं में पाये जाते हैं । अपान-श्रोणी प्रदेश में स्थित होता है और व्यान- हृदय में स्थित है तथा पूरे शरीर में रक्त प्रसार करने में हृदय की सहायता करता है। पित्त-अग्नि तत्व-पित्त या अग्नि तत्व दूसरा इन्हीं तीन दोषों का सन्तुलन ही अच्छे स्वास्थ्य का कारण है। आयु, दिन, माह तथा ऋतु के अनुसार तत्व है जो मुख्तः पेट, आँतों और जिगर में स्थित ये घटते या बढ़ते हैं। उदाहरणार्थ बचपन में 'कफ'- है। यह पाचक रस, निर्गमन और हार्मोन का संचालन जल तत्व का बाहुल्य होता है तथा वृद्धावस्था में करता है। यह पाचन, शरीर के तापमान तथा 'वात-वायु तत्व का प्राचुर्य और अधेड़ावस्था में वर्णता(रंगत) के लिए जिम्मेदार है । सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 34 बिगड़े हुए पित्त के कारण पीलिया, अम्लरोग, जलन और गलकोष प्रदाह (Pharyngitis) सहित फेफड़ों तथा हृदय की सहायता करता है। अवरम्बक कफ- छाती में होता है और कलेदक कफ- पेट में होता है और खाना ४० प्रकार के रोग हो सकते हैं। "पित्त पचाने में सहायता करता है। स्थिति और क्रिया कलापों के अनुसार को भी पाँच श्रेणियों में बांटा गया है- श्लेषक कफ- हड़्डियों के जोड़ों में होता आलोचक पित्त- आँखों में होता है तथा है तथा स्निग्धीकारक के रूप में कार्यरत है। दृष्टि के लिए जिम्मेदार है। साधक पित्त-मस्तिष्क और हृदय में होता रोग निदान- शरीर की तरह से मस्तिष्क के भी तीन गुण होते हैं- सत्व, रज और तम-जिन्हें त्रिगुण भी कहते हैं। आयुर्वेद में रोग निदान तीनों दोषों तथा तीनों गुणों पर निर्भर करता है। रोगी का है और स्मरणशक्ति तथा विवेक प्रदायक है। रंजक पित्त-जिगर तथा प्लीहा में होता है परीक्षण तीन भागों में करके उसके रोग का निदान तथा रक्त बनाने तथा वर्ण-सामंजस्य (रंगतदारी) किया जाता है:- देने का कार्य करता है। १ दर्शन-अर्थात् अवलोकन द्वारा। पाचक पित्त-आँतों में होता है तथा पाचन २ स्पर्श - अर्थात् छू कर या ठोक-जाँच द्वारा। क्रिया में सहायता करता है। भ्राजक पित्त- चमड़ी में होता है और चमड़ी को रंग प्रदान करता है। ३ प्रश्न - अर्थात् मौखिक परीक्षण या बातचीत द्वारा। प्राकृतिक निदान- आयुर्वेद में एक अन्य कफ-जल तत्व- कफ या जल तत्व तीसरा दोष है। मुख्यतः यह पेट, हृदय, जिह्वा में विद्यमान महत्वपूर्ण परीक्षण विधि है । प्रकृति-शरीर की होता है तथा जोड़ों और हड्डियों को मिलाने, शरीर या मनोवैज्ञानिक बनावट है जो हर व्यक्ति में भिन्न को ठोस तथा इसे दृढ़ करने का कार्य करता है। होती है। यह दोष-मात्रा पर निर्भर है। स्थूल बिगड़े हुए कफ के कारण २० प्रकार के रोग इस प्रकार की रचनाएं सात हैं। किसी व्यक्ति हो सकते हैं जैसे- क्षुधा-अभाव, आलस्य शक्कर में किसी दोष या तत्व विशेष का बाहुल्य होता है रोग, कफनिस्सारण, मोटापा, रक्त-नाड़ियों में कठोरता और किसी अन्य में दो दोष समान मात्रा में पाये जाते हैं। ऐसी बनावट सर्वोत्तम होती है परन्तु यह आदि । स्थिति तथा कार्यों के अनुसार कफ को भी बहुत की कम है। पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है- शरीर की बनावट के लिए चार मुख्य तत्व तार्पक कफ- मुख्यतः मस्तिष्क एवं रीढ़ की जिम्मेदार हैं हड्डी में होता है और हड्डियों से इनकी रक्षा 1 १ मातृक (Maternal) २ पैतृक (Paternal) ३ माँ की गर्भावस्था तथा मौसम करता है। पम बोधक कफ- हमें स्वाद प्रदान करता है। सितम्बर चैतन्य लहरी 35 अक्तुबर, 1997 कभी नहीं भूलते। ४ गर्भावस्था में माँ का खानपान इसी रचना के अनुसार हर व्यक्ति में भिन्न शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक गुण होते हैं। शरीर संरचना- वात प्रधान लोग लम्बे, हैं। छरहरे, उभरी हुई हड्डियों वाले और प्रायः हल्के भावनात्मक प्रवृत्तियां- वात प्रधान लोग डरपोक, उत्सुक और अधीर या मानसिक रूप से उदास होते पित्त प्रधान- लोग क्रोधी तथा चिडचिड़े हो जाते हैं। वजन के होते हैं। कफ प्रधान- व्यक्ति शान्त एवं भावुक होते हैं। पित्त फ्रधान- लोग मध्यम डील-डोल, मध्यम वजन और अच्छी मांसपेशियों वाले होते हैं । कफ प्रधान लोग छोटे कद के, गठे हुए नींद और वज़नदार होते हैं। स्वभाव से वे मोटे होने वाले होते हैं। वात प्रधान- लोगों को कम नींद आती है और वृद्धावस्था में उन्हें अनिद्रा रोग हो सकता है। पित्त प्रधान-लोगों की नींद सामान्य होती है। आँखे सो सकते हैं। वात प्रधान- लोगों की आँखें छोटी, खुष्क, नींद से वे जाग भी जाएं तो पुनः कफ प्रधान- लोगों की नींद अतिगहन होती है भूरी, चमक विहीन, तथा चंचल होती है । और नींद से जागने में कष्ट होता है । पित्त प्रधान- लोगों की आँखें मध्यम आकार समा की, पतली तथा तीक्ष्ण होती हैं। कफ प्रधान- लोगों की आँखें बड़ी-बड़ी, रोग वृत्तियां उभरी हुई, तैलीय तथा अत्यन्त आकर्षक होती हैं । ये सब मौलिक गुण थे। आइए अब होते हैं जैसे- मनोवैज्ञानिक गुणों पर दृष्टि डालें। को प्रायः नाड़ियों के रोग दर्द, गठिया और मानसिक रोग। वात प्रधान- लोगों पित्त प्रधान- लोगों को ज्वर रोग-संक्रमण तथा शोथ-जलन सम्बन्धी रोग होते हैं । कफ प्रधान- लोगों को श्वास के रोग स्मरण शक्ति वात प्रधान- लोगों में स्मरणशक्ति अति दुर्बल जैसे-ब्रोंकाइटिस और अस्थमा आदि हो सकते हैं । होती है। जितनी आसानी से चीज़ों को देखते हैं ऐसे लोगों को मोटापा तथा शक्कर रोगों की सम्भावना उतनी ही आसानी से उन्हें भूल जाते हैं । होती है। ऊपर लिखे रोग उनके चिड़चिड़े स्वभाव के बाहुल्य पित्त प्रधान- लोगों की स्मरण शक्ति तीव्र एवं स्पष्ट होती है। हर चीज़ को बे लम्बे समय तक के कारण होते हैं जिसे सन्तुलित करने के लिए दवाईयाँ दी जाती हैं। नाड़ी परीक्षण या नब्ज परीक्षण-आयुर्वेद की याद रख सकते हैं। कफ प्रधान- लोग बहुत ही धीरे-धीरे चीजें समझते हैं, परन्तु एक बार समझने के पश्चात् वे इसे एक अन्य महत्वपूर्ण विधि है जिसे कुहनी की नाड़ी প सितम्बर - अक्तुबर, 1997 चैतन्य लहरी 36 (Radial Artery) से किया जाता है। दोषों के जाते। हर औषधि के अपने ही गुण होते हैं और बिगाड़ का तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका (Ring यदि भलीभांति इसका उपयोग किया जाए तो यह finger) अंगुलियों से महसूस किया जाता है । सभी बड़े प्रभावशाली ढंग से कार्य करती हैं। अधिकतर परीक्षणों के अपने नियम है जिनके अनुसार ये किए औषधियाँ शक्तिवर्धन का कार्य करती हैं और इनका कोई अतिरिक्त परिणाम (Side effect) नहीं होता। रोग की जड़ों में जाकर यह इसे पूर्णतः समाप्त कर जाते हैं। देती हैं। उपचार-उपचार दो प्रकार हैं-पहला उपचार स्वस्थ कुछ आयुर्वेदिक औषधियां: अम्लकी- यह एक जड़ी है जिसका फल व्यक्ति का होता है ताकि रोगों की पकड़ में आए बिना वह अपना स्वास्थ्य बनाए रख सके। यह औषधि के रूप में उपयोग होता है। इसमें विटामिन रसायनों या बाजीकरण द्वारा होता है। इस उपचार सी का प्राचुर्य होता है और तापसह (Thermostable) होती है। यह शरीर, दृष्टि, बालों और चमड़ी के में कुछ औषधियाँ, शक्तिवर्धक औषधियाँ और शारीरिक व्यायाम कराये जाते हैं। दूसरा रोग-उपचार है। यह भी दो प्रकार का पोषण के लिए बहुत अच्छी है। मधुमेह आदि रोगों होता है- शोधन या पंचकर्म- उससे बढ़े हुए दोषों को के लिए भी यह ठीक है। तीन औषधियों को मिलाकर उपयोग होता कम किया जाता है। इसमें औषधियुक्त तेलों से है-अदरक, काली मिर्च और पिपली मिलाकर यह त्रिकुटा कहलाती है। इससे कफ, वात और चर्बी शमन- इसमें बढ़े या घटे हुए दोषों या तत्वों को कम होती है। यह भूख को बढ़ाती है और खांसी रोगों, गल्कोश प्रदाहः गर्तदाह (Sinusity) में उपयोगी आयुर्वेद में जड़ी बूटियाँ, खनिज और कुछ है। हूरिड़ा पौधे की जड़ को भी औषधि के रूप में शुद्ध की हुई धातुओं का उपयोग होता है। ये सभी उपयोग किया जाता है। यह अच्छा रंग प्रदान चीजें प्राकृतिक हैं। आयुर्वेद के अनुसार जो भी कुछ करती है और बहुत से चर्म रोगों, तीव्र ग्राहिता (Allergy), दमा और रक्तस्राव में उपयोगी है। यह जीवाणु द्वेषी (Antibiotic) भी है । ब्रह्मी का पौधा- नींद और स्मरणशक्ति को मालिश भी सम्मिलित है । औषधियों द्वारा संतुलित करते हैं। प्रकृति में है वही हमारे शरीर में है अतः आयुर्वेद प्राकृतिक चीज़ों से लोगों का उपचार करने में हल्की विश्वास करता है। यह औषधियाँ, रसों, गोलियों, चूर्णों, मिश्रणों आसवों, काढ़ों और दूध आदि में बढ़ाता है और अधिकतर नाड़ी दोषों और मिर्गी रोग मिलाकर दी जाती हैं, जैसी भी जड़ी की रोगी को में उपयोग किया जाता है। पावन तुलसी का नियमित उपयोग भी मस्तिष्क पर आवश्यकता हो। इन औषधियों को बनाने की विधियाँ भी अत्यन्त शुद्ध, प्राकृतिक एवं पारम्परिक होती हैं। इनमें किसी प्रकार के रसायन नहीं डाले बहुत अच्छा प्रभाव डालता है और मानसिक शान्ति प्रदान करता है। 1 सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 37 एरान(Eron) की जड़, पत्ते और कोपलें औषधि साधन। के रूप में उपयोग होते हैं। इसके बीजों से निकला तीसरा कर्म है- अर्थात् धर्मपरायणता पूर्वक अपनी हुआ तेल गठिया रोगों तथा आमवात रोग, में इच्छाओं की पूर्ति के कार्य करना। उपयोगी होता है। चदन र्थ चौथा मोक्ष है- अर्थात् आत्मसाक्षात्कार मानव ग्लोय (Guduchi) पौधे का उपयोग पुराने बुखारों जीवन की सर्वात्तम अवस्था। आत्मसाक्षात्कार का के लिए किया जाता है, जिगर और प्लीहा के लिए अर्थ है अन्तःस्थित आध्यात्मिक शक्ति का परमात्मा की शक्ति से एकाकारिता। यह अच्छी औषधि है। कुमारी- जिगर के लिए पोषक औषधि है। आंतो आयुर्वेद के अनुसार इस स्थूल शरीर के पीछे सुकड़न लाने वाली गतियों को नियमित कर यह जीवन-दायिनी आध्यात्मिक शक्ति से बना सूक्ष्म पाचन शक्ति को बढ़ाती है तथा कब्ज को दूर शरीर है। यह शक्ति कुण्डलिनी कहलाती है। स्थूल करती है । में शरीर में जिस प्रकार नाड़ियों के माध्यम से तरल कुपशूर (kupshur) मूत्रवर्धक का कार्य करता है। इसका उपयोग पेशाब मार्ग से पत्थरी निकालने, में नाड़ियाँ हैं जिनके माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति शक्कर रोग उपचार और गर्भाशय सम्बन्धी दोषों बहती है। शरीर में ऐसी तीन नाड़ियाँ हैं- मध्य को दूर करने के लिए किया जाता है । आयुर्वेद और योग - अभी तक हमने आयुर्वेद के औषधीय पक्ष को ही देखा है । परन्तु शारीरिक, अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Sympathetic Nervous मानसिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान System) जैसी हैं ये नाड़ियाँ शक्ति के निम्न करने के लिए आयुर्वेद में एक अन्य विधि भी है । केन्द्रों (चक्रों) से गुज़रती हैं। आधुनिक विज्ञान में ये आयुर्वेदानुसार, हमारे अन्तःस्थित सर्वश्रेष्ठ शक्ति चक्र भिन्न स्नायविक केन्द्र हैं। आत्मा ही हमारे सुस्वास्थ्य और शान्ति के लिए जिम्मेदार है। अतः हमें आत्मा के लक्ष्यानुसार ही नामक आध्यात्मिक शक्ति के ज्ञान तथा जीवनयापन करना चाहिए। द्रव (Fluids) या रस बहते हैं वैसे ही सूक्ष्म शरीर नाड़ी, दायीं तथा बायीं नाड़ी। आधुनिक विज्ञान में ये मध्य नाड़ी प्रणाली या प्राचीन भारत में नाड़ियों, चक्रों, कुण्डलिनी आत्मसाक्षात्कार पाने की विधि 'योग' कहलाती थी । रोग इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि आयुर्वेद में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक आत्मा से हमारा सम्बन्ध टूट गया है। आयुर्वेद समस्याओं का समाधान करने के लिए योग का कहता है कि अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। आयुर्वेद और योग का व्यक्ति के जीवन के चार सिद्धान्त होने चाहिए: उद्भव वेद नामक पावन ग्रन्थों के रूप में, एक ही सर्वप्रथम धर्म है- अर्थात् अपने और समाज के आध्यात्मिक विज्ञान से हुआ। अब हम लोग लिए भले कार्य करना। भाग्यशाली हैं कि श्री माताजी निर्मला देवी ने दूसरा अर्थ है- अर्थात् वैभव या जीविकार्जन के सहजयोग की खोज की है । सितम्बर चैतन्य लहरी 38 अक्तुबर, 1997 श्री माताजी ने मुझे आयुर्वेद पढ़ने के लिए सहजयोग- सहज शब्द का अर्थ है आपके साथ जन्मी या स्वतः। योग अर्थात् मिलन। तो सहजयोग कहा क्योंकि आयुर्वेद तथा योग परस्पर बहुत समीप में आध्यात्मिक शक्ति हमारे अन्दर स्वतः उठती है. ह सिर की तालू-अस्थि का भेदन करके आत्मसाक्षात्कार विज्ञान का भी अध्ययन किया है। आयुर्वेदिक प्रदान कर परमात्मा की दिव्य शक्ति से एकाकार औषधियाँ पूर्णतः प्राकृतिक हैं और इनका कोई प्राप्त करती है। कुण्डलिनी की जागृति कोई कल्पना अतिरिक्त परिणाम (Side effects) नहीं होता। या परिकल्पना न होकर मध्य नाड़ी तन्त्र पर एक रोगी यदि ध्यान-धारणा करता है तो इन वास्तवीकरण है। चिकित्सा के क्षेत्र में सहजयोग भारत औषधियों की गुणकारिता बढ़ जाती है । जब में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रमाणित हो चुका है। व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्ति जागृत हो और उसके बहुत से देशों ने सहजयोग को स्वीकार कर, इस महान कार्य के लिए कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हुए आयुर्वेदिक औषधियाँ अधिक तीव्र तथा प्रभावशाली श्री माताजी को बहुत से पुरस्कार भेंट किए हैं। अब ढंग से कार्य करती हैं । विश्व के ८० देशों में सहजयोग का अभ्यास किया हैं। वे आयुर्वेद की ज्ञाता हैं तथा उन्होंने चिकित्सा चक्र एवं नाड़ियां शुद्ध तथा ज्ञान दीप्त हों तो अब, मैं सोचती हूँ, हमें यही समाप्त करके इस सुनहरे अवसर को सहजयोग का ज्ञान तथा जा रहा है। मैं २१ वर्षों से सहजयोग ध्यान-धारणा कर आत्मसाक्षात्कार पाने के लिए उपयोग करना चाहिए। रही हूँ। मैंने देखा है सहजयोग के माध्यम से मानव जीवन का यही वास्तविक लक्ष्य है। आयुर्वेद नाड़ियों और चक्रों को शुद्ध करके दमा, मिर्गी, हृदय और योग से इसके सम्बन्धों के विषय में बोलने का रोग और मानसिक व्याधियों का उपचार किया गया अवसर मुझे प्रदान करने के लिए मैं सहजयोग है। जब सभी नाड़ियां और चक्र शुद्ध होंगे तो रोग संस्था की अभारी हूँ । हमें पकड़ ही न पाएंगे। हार्दिक धन्यवाद । न ि म अनन्य प्रेम अध खुली सुकुमार पलकों में सुमन सपने सजाएं, के नहीं तो कौन आ सकता हृदय माँ द्वार तुम रश्मि स्थ पर निकल कर दिनकन्त बोला, राज मेरा, ज्योति से मेरी खिलेगा जग क्षणिक जीवन में अलौकिक र रूप-रस सौरभ बसाए, न ठहरेगा अँधेरा बन्द कर आँखें निशा के स्वप्न में खोई हुई चढ़ न पाया मद भरा निज देवता के सिर मुकुट पर डाल पर मुरझा गया वह म कच फूल बिन पतझार कुमुदनी को कब खिला पाया दिवस का प्यार। माँ नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार। माँ तुम क नहीं तो कौन आ सकता हदय के द्वार ।। तुम श्याम सा प्रिय रंग रच कर घन बरसते गर्जना कर स्वर्ग के नवदूत जैसे छा रहे शत्-शत् सितारे नद सरोवर झील भरते तृप्त हो जाते चराचर पर पपीहा प्रेम ब्रत रख रत्न अगणित प्रभा-मण्डित विश्व सागर के किनारे मन जिसे पहचानता, तृषित रहता सिर उठाये स्वाति जल ही पपीहरे के चित्त का आधार।। श्ृंगार जीवन का अमल उस- एक मोती के बिना सूना लगा संसार माँ नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार|। मों तुम नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार।। तुम के (विद्या गुप्ता) बंन ৪ यर ইই १ै ০ म म ा ा श्ी पपत ० ा प्रसन्नता तथा अप्रसन्नता दोनों े ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ आप केवल कल्पना में रहते हैं। ा लाम ाः पी लकप ७. शर ॐ प श्र मै LWA ---------------------- 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt 1997 अंक 9 व 10 चैतन्य लहरी "पूर्णतः विश्वस्त हो जाइए कि आप सत्य के विषय में ही बता रहे हैं, कुछ और नहीं, तथा सत्य को आपने भलीभांति अनुभव कर लिया है। जिन लोगों ने चैतन्य लहरियों अनुभव नहीं की हैं उन्हें सहज के विषय में नहीं बोलना चाहिए। इसका उनहें अधिकार नहीं है। पहले उन्हें चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करनी होंगी चैतन्य को स्वयं में पूर्णतः आत्मसात् करना होगा तभी वे यह कहने के अधिकारी होंगे कि हाँ, हमने अनुभव किया है " परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी DRARMA া तरo 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt NIVERSAL PURE RELIGIO न त त HICE विषय सूची सअक में इ परमात्मा की इच्छा श्री आदिशक्ति पूजा कबेला 14 पा श्री आदिशक्ति पूजा कबेला प्रवचन २५ मई १६६७ 16 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 25 १८ जनवरी १६८३ आयुर्वेदिक चिकित्सा-इतिहास, प्रयोग एवं योग से सम्बन्ध 32 अनन्य प्रेम (कविता) 39 SHWA NIRMALA DHARM VMHSIA 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्घृत अथवा सम्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। नडि भ प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 त ई मेल का पता- marketing@nirmalinfosys.com www.nirmalinfosys.com Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 ॐा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt परमात्मा की इच्छा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन इतिहास के पन्नों में यदि आप झांक कर धर्मादेशों को मानने का या जीवन के कठोर नियमों देखें तो आप जान पाएंगे कि विज्ञान की स्थापना ने का पालन करने का क्या लाभ है ? इनके पालन से सम्पूर्ण मूल्य प्रणाली तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के कोई लाभ नहीं होता जीवन की खुशियों को भी प्रमाणों को मिटा देना चाहा। भिन्न धर्मों के व्यक्ति खो बैठता है। पुण्य कमाने के विचारों को भी धर्म-प्रभारियों ने वैज्ञानिक खोजों के साथ चलना छोड़ दें इस प्रकार मानव मूल्यों से लोग निरन्तर चाहा। उन्होंने यह दर्शाने का प्रयत्न किया कि यदि हटते चले गए। सभी व्यवस्थित धर्म सत्ता तथा धन इतना कुछ बाइबल में लिखा है तो ठीक है और प्राप्त करने के लिए लड़ पड़े क्योंकि उन्होंने सोचा यदि यह गलत है तो हमें इसे ठीक कर देना कि लोगों को वश में करने का मात्र यही एक तरीका है। बाईबल के अनुसार लोगों को कुछ उपलब्ध कराने की चिन्ता उन्होंने छोड़ दी। निसन्देह, बाईबल को भी बहुत कुछ चाहिए। विशेषकर ऑगस्टीन ने तो इसे इस प्रकार से परिवर्तित किया मानो यह मात्र मूर्खता हो। धर्म ग्रन्थ तो मात्र पौराणिक थे। कुरान यद्यपि आज के परिवर्तित कर दिया गया। से जीव शास्त्र का काफी वर्णन करती है फिर भी वह पॉल और पीटर ने मिल कर बाइबल के बहुत पौराणिक है । लोग इस बात पर विश्वास न कर सत्यों को मिटा डाला। कुरान में यद्यपि बहुत पाए कि परमात्मा ने मानव की सृष्टि विशेष रूप से की थी। उन्होंने सोचा कि पशुत्व से निरन्तर अधिक परिवर्तन नहीं किए गए परन्तु इसमें आक्रामकता तथा प्रजनन प्रणाली के विषय में अधिक बताया है विकसित होकर मानव बना। इस प्रकार सदैव तथा अभी तक बहुत सी चीजें अस्पष्ट हैं। परमात्मा को चुनौती दी जाती रही तथा बाईबल, कुरान, गीता, उपनिषदों या तोराह (Torah) में पहली चीज़ सूक्ष्म जीव विज्ञान की खोज है जिसके आप अवगत हैं या नहीं दो चीजें घटित हुईं। लिखी बातों का कोई प्रमाण प्राप्त न हो सका। माध्यम से हम जान पाए कि हमारे हर कोषाणु में इनकी किसी बात को प्रमाणित न किया जा सका । एक डी. एन ए. D.N.A.) टेप होता है। कम्प्यूटर की क्योंकि अभी तक बहुत ही कम लोगों को आत्म तरह हर कोषाणु में एक विशेष कार्यक्रम खुदा होता साक्षात्कार प्राप्त हुआ था और जब भी उन्होंने बात है जिसपर व्यक्ति का विकास निर्भर है। इसकी करनी चाही लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया। विषमता की कल्पना करें अनगिनत कम्प्यूटरों में यही माना गया कि ये लोग भी अपने सिद्वान्त कार्यक्रम भरे जा चुके हैं और उन सब में ये कोषाणु प्रतिपादित करना चाह रहे हैं। सभी कुछ एक प्रकार हैं। इस प्रकार वैज्ञानिकों के सम्मुख एक अत्यन्त का निर्जीव विज्ञान सा बन गया धर्म का कोई रहस्यमय चीज़ आ गई है जिसे वे स्पष्ट भी नहीं विज्ञान नहीं है । लोग सोचने लगे कि इन दस कर सके। वैज्ञानिक बहुत सी चीजों को स्पष्ट नहीं 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 कर सकते जिसमें एक यह भी है। सहजयोग ने व्यक्ति करे तो हम न केवल परमात्मा के अस्तित्व साबित कर दिया है कि यह परमात्मा की मर्जी को प्रमाणित कर सकते हैं, हम यह भी साबित कर (Will) है, परमात्मा की इच्छा (Desire) है । यह सकते हैं कि सभी कुछ 'परमात्मा की इच्छा से साबित हो है कि परमात्मा की मर्जी ही सारा अत्यन्त लयबद्ध ढंग से हुआ। परमात्मा द्वारा सृजित चुका कार्य कर रही है। यह चैतन्य, आदि शक्ति, परमात्मा चीजों के लिए मानव को श्रेय नहीं लेना चाहिए। की मर्जी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। यही मान लो यह कालीन किसी ने बनाया हो और हम परमात्मा की शक्ति अत्यन्त मधुर ढंग से सभी कुछ इसके रंगों की खोज करने लगें तो इसमें कौन सी कार्यान्वित कर रही है। मैं नहीं जानती कि आप लोगों ने मेरी पहली पुस्तक पढ़ी है या नहीं, मैंने वर्णन किया है कि पृथ्वी की सृष्टी किस प्रकार सृजन से अधिक महत्वपूर्ण है और यह सब कार्य हुई। यह कार्य अत्यन्त मधुरता पूर्वक हुआ तथा महानता है यह सब कुछ तो यहाँ विद्यमान है। आप इसमें सृजन नहीं कर सकते। रूप दिया जाना संसार के परमात्मा की इच्छा' ने किया। यदि 'परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण है इसका विकास परमात्मा की इच्छा के माध्यम से हुआ। तो सभी कार्य परमात्मा की इच्छानुरूप हुए। तो इसे प्रमाणित भी किया जाना चाहिए और अब अब परमात्मा की इस इच्छा को आप अपनी अंगुलियों सहजयोग के माध्यम से सहस्रार भेदन के पश्चात् के सिरों पर महसूस कर रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार आपने पहली बात 'परमात्मा की इच्छा को महसूस के बाद आपने पूर्ण विज्ञान अर्थात 'परमात्मा की किया है कि यह इतनी महत्वपूर्ण है। परन्तु हमें यह इच्छा' को खोज लिया। यही पूर्ण विज्ञान है। आप इतनी सहज में प्राप्त हो गई है कि हम इसे नहीं जानते हैं कि सहजयोग के माध्यम से हमने बहुत समझते। बन्धन देने मात्र से कार्य हो जाते हैं और लोगों को रोग मुक्त किया है। आप बन्धन देना भी हमें लगता है कि बन्धन के माध्यम से हमने सब जानते हैं और यह भी समझते हैं कि यह कार्य कुछ कर लिया। वास्तव में ऐसा नहीं है। यह इससे करेगा। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् बहुत से कार्य कहीं बढ़ कर है। अब हम उस विशाल कम्प्यूटर के, स्वतः ही हो जाते हैं, लोग उन पर विश्वास ही नहीं उस 'परमात्मा की इच्छा' के अंग प्रत्यंग बन गए हैं। करते। आरम्भ में जब वैज्ञानिकों ने लोगों को कुछ हम 'परमात्मा की इच्छा के माध्यम या उसके बताया तो उन पर भी विश्वास नहीं किया गया। उपकरण बन गए हैं। परमात्मा की जिस इच्छा ने परन्तु विज्ञान सदैव परिवर्तन शील है, हर समय पूरे ब्रह्माण्ड की सृष्टि की है हम उससे जुड़ गए परिवर्तित हो रहा है। एक के बाद एक सिद्धान्तों को हैं। अतः हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि अब 'पूर्ण विज्ञान' हमें प्राप्त हो गया है; 'पूर्ण विज्ञान' जो समूचे विश्व का हित करेगा वैज्ञानिकों के चुनौतियाँ दी जा रही हैं । परन्तु सहजयोग ने विज्ञान के उस महान सम्मुख सत्य को प्रकट किया है जिसे चुनौती नहीं दी जा भी हम यह साबित कर सकते हैं कि परमात्मा की सकती। परमात्मा को बदनाम करते हुए या परमात्मा इच्छा है जिसने सारा सृजन किया है। यहाँ तक के अस्तित्व को नकारने का प्रयत्न यदि कोई की विकास प्रणाली भी 'परमात्मा की इच्छा' ही है। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 जाना। सर्व शक्तिमान परमात्मा, उनकी इच्छा की उसकी इच्छा के बिना कुछ भी घटित न हो पाता। इसी कारण बहुत से लोग कहा करते थे कि शक्ति और सहजयोग के सत्य के विषय में आपमें "परमात्मा की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। इस मामले पर हमें यह सत्य है। और अब आपने देखा है कि वही कोई संदेह नहीं होना चाहिए इतना तो हमसे कम 'परमात्मा की इच्छा हमने अपनी शक्ति के रूप में से कम अपेक्षित है। इस शक्ति का उपयोग करते चाहिए कि यह आपको प्राप्त कर ली है। हम इसका उपयोग कर सकते हुए आपको पता होना हैं। तो सहजयोगी होना कितना महत्चपूर्ण है! इसलिए प्रदान की गई क्योंकि इसे संभालने की संभवतः हम यह नहीं समझ पाते कि सहजयोगी योग्यता आपमें है। आपकी बुद्धि जहाँ तक सोच होना कितना महत्वपूर्ण है। सहजयोग लोगों को सकती है उन शक्तियों में यह महानतम है। किसी सिर्फ यह कहने के लिए नहीं है कि मैं आनन्द से गवर्नर, किसी मंत्री को लें-कल किसी को भी 1 परिपूर्ण हूँ, मैं आनन्द ले रहा हूँ, मैं पवित्र हो गया पदच्युत किया जा सकता है, वे भ्रष्ट हो सकते हैं हूँ और सभी कुछ बढ़िया है। परन्तु किसलिए? और अपनी शक्तियों का ज्ञान उन्हें पूर्णतः बिल्कुल किसलिए आपको यह सब आशीर्वाद प्राप्त हुए ? भूल सकता है। बहुत से ऐसे लोग निर्वाचित हो यह आशीष आपको, इसलिए मिले कि 'परमात्मा जाते हैं जिन्हें इस बात का भी ज्ञान नहीं होता कि की इच्छा' का यह ज्ञान आप से झलके-मात्र उन्हें क्या करना है । तो सहजयोग लोगों का केवल शुद्धिकरण इतना ही नहीं, यह आपका अंग प्रत्यंग बन जाए। मात्र ही नहीं है और न ही यह उनका परिवर्तन मात्र अतः हमें अपने स्तर को उठाना होगा, उन्नत होना है। यह तो उस व्यक्ति का रूपान्तरण है जो स्वेच्छा होगा। मध्यम एवं साधारण दर्जे के लोगों को सहजयोग देने का कोई लाभ न होगा क्योंकि वो से आगे आया है और जो 'परमात्मा की इच्छा को किसी काम के नहीं हैं। किसी प्रकार से वे हमारी आगे बढ़ाने में सक्षम है । 1 सहायता नहीं कर सकते अब ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो परमात्मा की इच्छा को अभिव्यक्त चीज़ जो आपके साथ घटित हुई वह थी आपके भ्रमों कर सकें और इसके लिए हमें शक्तिशाली लोगों का समाप्त हो जाना। सर्व शक्तमान परमात्मा, आत्मसाक्षात्कार के परिणाम स्वरूप पहली की आवश्यकता है। इसी इच्छा ने इस पूरे विश्व, उसकी इच्छा के विषय में तथा उसकी सर्वशक्तिमत्ता, सर्वव्यापिता एवं सर्वज्ञता के विषय में हममें कोई भ्रम ब्रह्माण्ड, पृथ्वी माँ तथा अन्य सभी चीजों की सृष्टि की है। अतः अब हम एक नए आयाम का सामना नहीं होना चाहिए। उनकी सर्वशक्तिमत्ता ने ही यह कर रहे हैं और यह आयाम यह है कि हम कार्य किया है और सामूहिक चेतना के रूप में परमात्मा की इच्छा के माध्यम हैं तो हमारे आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि आप भी कर्तव्य क्या हैं और इसके विषय में हमें क्या करना सर्वशक्तिमत्ता, सर्वव्याप्त एवं सर्वज्ञ हैं। सर्वज्ञ इसलिए चाहिए? सहस्रार खुलने के पश्चात् एक चीज़ जो कि आप सभी कुछ देखते हैं, सभी कुछ जानते हैं। घटित हुई वह थी हमारी भ्रान्ति का समाप्त हो परमात्मा की उस शक्ति का एक अंश आपके अन्दर 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अव्तुबर, 1997 आवश्यकता नहीं है। हमें आवश्यकता है चरित्रवान, है तो परमात्मा की सर्वव्यापकता को प्रमाणित सूझबूझ, विवेकशील एवं सशक्त व्यक्तियों की जो यह कह सकें कि चाहे जो हो मैं इसका साथ दूंगा, करने के लिए आपको हर समय इस बात के प्रति जागरूक रहना है कि आप सहजयोगी हैं। अभी तक भी जब मैं सहजयोगियों को अपनी मैं इसे अपनाऊंगा। इसके अनुसार चलूंगा, स्वयं को पत्नी, अपने बच्चों, अपने घर, अपनी नौकरियों के परिवर्तित करुंगा और सुधारूंगा विषय में चिन्तित देखती हूैँ तो हैरान होती हूँ कि अब भी उनका स्तर क्या है! वे कहाँ है ? अपनी भी अपने भ्रमों से हो गए होंगे। आपको अपने भूमिका को वे कहाँ तक निभा पाएंगे! अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वव्यापक आपको यदि कोई भम्र है तो आपको सहजयोग हैं जिन्होंने यह सारा कार्य किया है, 'परमात्मा की छोड़ देना चाहिए। जान लें कि इस कार्य के लिए इच्छा' जिसने सभी कुछ कार्यान्वित किया है, उसे 'परमात्मा की इच्छा' ने आपको है इसलिए आप अब भ्रम टूट चुके हैं। मुझे आशा है कि आप मुक्त विषय में भी कोई भम्र नहीं बनाए रखना चाहिए। चुना आप लोगों के माध्यम से कार्य करना है आप यहाँ हैं। और आपको यह विज्ञान समझने कि लोगों को अत्यन्त शक्तिशाली, विवेकशील, बुद्धिमान जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। यह पूर्ण विज्ञान है और आपको इसे अपने लिए तथा दूसरों के लिए कार्यान्वित तथा प्रभाव शाली व्यक्ति होना होगा। जितने अधिक प्रभावशाली आप होंगे उतनी अधिक शक्ति करना होगा आपने मेरा प्रेम महसूस किया है, आपको प्राप्त होगी। परन्तु अभी तक भी मुझे लगता आपका प्रेम भी महसूस होना चाहिए क्योंकि प्रेम ही है कि अधिकतर सहजयोगी यह समझने का परमात्मा है । अतः आपका प्रेम अन्य लोगों द्वारा उत्तरदायित्व नहीं ले रहे कि उन्हें उस सर्वशक्तिमान महसूस किया जाना चाहिए। अन्य लोग महसूस परमात्मा का प्रतिनिधित्व करना है जो सर्वव्यापक करें कि आप दयाद्द्र, स्नेहमय एवं सूझबूझ वाले हैं, सर्वज्ञ हैं, जो सभी कुछ जानते हैं, सभी कुछ व्यक्ति हैं। 'परमात्मा की इच्छा' हर समय आपके देखते हैं, जो सर्व सशक्त हैं, सर्व शक्तिशाली हैं। माध्यम से कार्य कर रही है; अतः आपको उस आप यदि यह समझ लें कि सहस्रार भेदन के प्रकार कार्य करना चाहिए कि लोग समझ सकें कि पश्चात् यही सब घटित हुआ है, आप यदि यह आप सन्त हैं और यह शक्ति आपके अन्दर से समझ लें कि अब आपको जो शक्ति प्राप्त हुई है प्रवाहित हो रही है। उसमें यह तीनों गुण हैं. तभी कार्य होगा इस वजनदार चीज़ को संभालने के लिए शक्तिशाली अतिरिक्त आपमें एक अन्य विकास जो हुआ है वह स्तम्भों की आवश्यकता है, यदि वह शक्तिशाली न है आपका एकाकारिता (संघटन) । इसको समझ होंगे तो यह गिर जाएगी। इसी प्रकार यह जो लें-कि विश्व में पूर्ण संघटन (Integration) विद्यमान महान शक्ति आपको प्राप्त हुई है इसके लिए हमें है प्रायः बच्चों को देखकर आप जान जाते हैं कि बहुत है। उन्हें समझ बहुत अधिक प्रसिद्ध लोगों की या धनी लोगों की होती है। कोई भी अच्छा बच्चा, प्रायः, अन्य बच्चों परमात्मा तथा अपने प्रति भ्रम निवारण के उनमें स्वाभाविक, अन्तरर्जात अधिक सफल लोगों की आवश्यकता नहीं है, सूझबूझ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 को प्रेम करेगा तथा अपनी चीजें उन से बाँटना चीज़ अपना ही नहीं सकते। छोटे स्कर्ट का फैशन चाहेगा कोई छोटा बच्चा यदि वहाँ है तो वह है तो आपको लम्बा स्कर्ट मिलेगा ही नहीं। इस प्रकार की चीजें प्रातः से शाम तक हमारे मस्तिष्क में उसकी रक्षा करेगा स्वाभाविक एवं अन्तर्जात रूप से वह ऐसा करना चाहता है। छोटे-- छोटे बच्चे भी जानते हैं कि शरीर को ढक कर रखना चाहिए। वे भरी जाती हैं। परिणाम स्वरूप हम उद्यमियों के दास बन जाते हैं। बैल्जियम में मुझे बताया गया कि कोई भी ताजा चीज़ उपलब्ध नहीं है। सुपर बाज़ार से सभी कुछ टीन बन्द लेना पड़ता है। शनैः शनैः दूसरे के सम्मुख निर्वस्त्र नहीं होना चाहते। ये सब गुण आपमें भी हैं। बच्चे चोरी करना पसन्द नहीं हम अस्वाभाविक होते चले जा रहे हैं। विज्ञापन एवं किसी करते, वे नहीं जानते कि चोरी क्या है। बाह्य प्रभावों में खोकर, आधुनिक पदार्थों से प्रभावित सुन्दर स्थान पर यदि बच्चे जाएँ तो वहाँ के सौन्दर्य जाते हैं। को वे बनाए रखना चाहते हैं। परन्तु स्थान यदि हो हम अपने अन्तर्जात विवेक को पहले से ही गन्दा है तो वे चिन्ता नहीं करते। ये भूल विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ पैसे ने भी सब गुण उनमें अन्तर्जात हैं। हममें जो गुण अन्तर्जात है वे विकासशील ही उद्यमी भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि वे जानते देशों के लोगों में भी हैं। अबोधिता अन्तर्जात है। हैं कि आपको मूर्ख बना कर किस प्रकार पैसा धन के महत्पूर्ण होते महत्वपूर्ण स्थान ले लिया। म 'परमात्मा की इच्छा ने सर्वप्रथम जिस गुण की बनाया जा सकता है। आज आपके पास ये चीज़ है और कल वो, आज आपको ये चाहिए और कल वो। सृष्टि की वह थी अबोधिता-मंगलमयता। श्री गणेश 1 को सृजन उनका (परमात्मा) पहला कार्य परन्तु आन्तरिक रूप से दृढ़ व्यक्ति बदलते नहीं। था-आदिशक्ति', पहला कार्य कहना अधिक उपयुक्त उनके वस्त्र एक ही प्रकार के गरिमामय होते हैं। होगा क्योंकि आदिशक्ति ही 'परमात्मा की इच्छा पारम्परिक उपलब्धियों को छोड़ परिवर्तित होना उनके है। पूरे विश्व को सुन्दर बनाने के लिए ही यह सब लिए बहुत कठिन होता है। अतः यह देखना सहजयोगियों सृजन किया गया ये सब अन्तर्जात गुण आपमें के लिए आवश्यक है कि कहीं वे आधुनिक उद्यमियों के बिठाए गए। सभी देवी देवता आपमें प्रस्थापित किए दास तो नहीं बन रहे ? इसके बाद विचार। आप इतनी पुस्तकें पढ़ते गए; उन्हें. मानव रूप में अवतरित किया गया ताकि सन्त बन कर वे दर्शा सकें कि आप भी सन्त सुलभ हैं कि ऊलजलूल पागलपने के विचार आपमें भर अन्तर्जात विवेक प्राप्त करें। परन्तु विकसित देशों में जाते हैं; जैसे फ्रॉयड जैसे पागल के विचार। किस दूरदर्शन तथा अन्य चीज़ों गे हमारे मस्तिष्क को प्रकार फ्रॉयड पश्चिम के लोगों को प्रभावित कर प्रभावित करके हमें दुर्बल ( भेद्य) बना दिया अन्य पाया? क्योंकि अपना अन्तर्जात विवेक खोकर आप लोगों के विचारों से हम प्रभावित होने लगे । प्रबल इसे स्वीकार करते हैं । आपने उसे स्वीकार किया व्यक्ति हम पर प्रभुत्व जमाएगा ही। केवल हिटलर इसीलिए वह एक प्रकार से ईसा मसीह बन बैठा। ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया फैशन ने लोगों वह महत्वपूर्णतम व्यक्ति बन बैठा- महत्वपूर्णतम। की बुद्धि कितनी भ्रष्ट की है ! वे कोई विवेकमय यह इतनी सीधी सी बात है। थोड़े से विवेक से आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt सितम्बर चैतन्य लहरी ৪ अक्तुबर, 1997 द समझ सकते हैं कि कुछ सबल व्यक्ति सदैव हम सहस्रार के खुलने के कारण आपमें यह प्रकाश पर अपने विचारों का प्रभुत्व जमाने में लगे रहते हैं। आया है। यह नया नहीं है। यह आपमें अन्तर्जात कोई भी अपना सिद्धान्त प्रतिपादित करता है- सात्रे है अब इन सभी अन्तर्जात गुणों की अभिव्यक्ति या कोई अन्य । लोग कहते हैं, ओह! उसने कहा हो रही है और आप इनका आनन्द उठा रहे हैं। अब है! वह कौन है ? उसका जीवन क्या है ? स्वयं आपको अपने तुच्छ विचारों तथा क्षुद्रताओं से बाहर देखें कि वह कैसा ब्यक्ति है। थोड़े से विवेक से. आना होगा। लोग मुझे अटपटी बातें बता रहे हैं। मैं परन्तु यह समझते हुए कि परमात्मा की इच्छा' विश्वास नहीं कर सकती कि सहजयोगी भी ऐसा जिसने पूरे विश्व तथा आपकी रचना की है अब कर सकते हैं! वे प्लेटें ले जाते हैं। चीजों को आपके साथ है सर्व शक्तिमान परमात्मा ने आपके इधर-उधर फेंक देते हैं! आप लोग किस प्रकार एक-एक अणु की रचना की है और आप उद्यमियों ऐसा व्यवहार कर सकते हैं! यह तो अत्यन्त मुर्खतापूर्ण के हाथ का खिलौना बन रहे हैं! उद्यमियों को एवं निःस्सार है । बिना अपेक्षित अनुशासन के आप विश्वास हो गया है कि धनार्जन के लिए दुर्बल 'परमात्मा की इच्छा बहन नहीं कर सकते। परन्तु व्यक्ति ही पिछलग्गू बनने के लिए उपयुक्त हैं। इन्हें मैं आपको ये भी नहीं कहूँगी कि ऐसा करो-ऐसा धोखा दिया जा सकता है। मत करो। आपकी स्वतन्त्रता का मैं सम्मान करती अब एक ओर तो आपके पास इतनी महान हूँ। मैं तो चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी शक्ति है, इतने महान कार्य के लिए आप चुने गए आपमें वह विवेक, महानता तथा गरिमा जागृत करे हैं और दूसरी ओर आपमें ये दासत्व है! अतः जिससे आप अपने अन्तर्जात गुणों को समझने लगें । समझने का प्रयत्न करें कि आपके अन्तर्जात गुण तो यह पावन करेगी। जैसे सोने को आग में तपा लुप्त हो गए थे परन्तु सौभाग्यवश कुण्डलिनी की कर शुद्ध किया जाता है वैसे ही कुण्डलिनी की जागृति और सहस्रार भेदन द्वारा आप जान सकते अग्नि आपको पूर्णतः पवित्र कर देती है, शुद्ध कर हैं कि अबोधिता, रचनात्मकता, अन्तरधर्म, करुणा, देती है और आप अपनी गरिमा, अपना स्वभाव, मानव के प्रति प्रेम, न्यायशक्ति एवं विवेक से आपके अपनी महानता को देखने लगते हैं। अतः आपमें महान अन्तर्जात गुण- जो लुप्त हो गए प्रतीत होते एकरूपता (संघटन) सुगमता से आ जाती है आप थे- लुप्त नहीं हुए, वे सुप्तावस्था में थे एक एक समन्वयन (एकीकरण) करने लगते हैं। करके ये सभी जागृत हो गए हैं मुझे आपको ये नहीं बताना कि ये मत पिओ, ये मत खाओ, ऐसा थे. कुछ स्पेन से और कुछ यहाँ से। उनके भिन्न मत करो। आप स्वयं जानते हैं कि यह गलत है। समूह होते, कभी वे इकट्ठे न बैठते परन्तु अब ऐसा आरम्भ में कुछ सहजयोगी इंग्लैण्ड से होते नहीं है। अब, मुझे लगता है, उनका संघटन हो रहा आप जानते हैं कि आपके लिए क्या अच्छा है। फिर है सहजयोगी के लिए मानव का संघटन महत्वपूर्ण हैं। यह सूझबूझ से आता है, आपके चातुर्य से नहीं; भी यदि आप कुछ गलत करना चाहते हैं तो करें परन्तु अच्छा-बुरा देखने का विवेक आपमें आ चुका है इस नये ज्ञान के नये आयाम के स्तर तक आपकी अन्तर्जात सूझबूझ से कि परमात्मा ने, उसकी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 इच्छा ने, सभी मानव बनाए हैं और हमें इसके विपरीत इच्छा करने का कोई अधिकार नहीं । दूसरा संघटन जो हमारे अन्दर हुआ है वह यह है कि एक मात्र आध्यात्मिक जीवन वृक्ष से ही कर सकते हैं। अतः निरंकुश रूप से मेरा नाम सभी धर्म उत्पन्न हुए हैं सभी धर्मों का सम्मान उपयोग करने का किसी को भी अधिकार होना चाहिए। सभी अवतरणों, पैगम्बरों तथा नहीं। जो भी आपको कहना हो कहें परन्तु कभी ये धर्मग्रन्थों का सम्मान होना चाहिए। इस प्रकार न कहें कि "श्री माताजी ने ऐसा कहा", या इस "ईसा ने ऐसा कहा., कोई भी पादरी या पोप मंच पर खड़ा हो कर कह सकता है कि "ईसा ने ऐसा कहा,"निरंकुश हो कर ही हम इन चीज़ों का उपयोग पुस्तक में ऐसा लिखा है और यह असत्य है, आदि किसी असत्य से आप बंधे हुए नहीं हैं। अपने पैरों धीरे-धीरे आप ईश्वरत्व की सूक्ष्मता में प्रवेश करने लगते हैं और समझ पाते हैं कि सहजयोग के लिए आज का वातावरण बनाने के लिए इन पीर-पैगम्बरों पर खड़े हो कर आपने देखना है कि आपने क्या ने कितना कठोर परिश्रम किया किसी धर्म से घृणा कहना है। अब आपको अपनी इच्छा का उपयोग नहीं की जानी चाहिए, किसी धर्म पर आक्रमण | करना है और उसके लिए आपको शुद्ध इच्छा, नहीं होना चाहिए। ऐसा करना अनुचित है, परमात्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा विकसित की इच्छा के विरूद्ध है। इस प्रकार हम धर्मान्धता करनी होगी। एकीकरण, न के वल बाह्य परन्तु धर्मान्ध वे लोग हैं जिन्हें विश्वास है कि इस आन्तरिक। जैसे आरम्भ में जब हम कुछ पुस्तक में ऐसा लिखा है और इस पुस्तक में ऐसा करते थे तो हमारा मस्तिष्क कुछ कहता था, क्योंकि हमने यह पुस्तक पढ़ी है इसलिए हम अन्य चित्त कुछ तथा हृदय कुछ और। अब इन लोगों से बेहतर हैं। कोई भी व्यक्ति कोई भी पुस्तक तीनों का एकीकरण हो गया है। तो आपका को समाप्त कर सकेंगे। पढ़ सकता है। इसमें क्या महानता है ? सहजयोग मस्तिष्क जो कहता है वह आपके हृदय तथा 1 में किसी को भी धर्मान्ध नहीं होना चाहिए। अति चित्त को पूर्णतः स्वीकार्य है। तो आप स्वयं सावधान रहें। इस प्रकार के वातावरण में आप संघटित हो गए हैं। बहुत से लोग लिखते हैं "श्री माताजीमैं यह कार्य करना चाहता हूँ, परन्तु मैं इसे कर नहीं सकता। अब आप पूर्णतः एकीकृत हैं और सभी कुछ उपयोग न करें। "श्री माताजी ने ऐसा कहा" दूसरों आसानी से कर सकते हैं । अपने को यदि आप जन्में, आपका विकास सहजयोग को भी कट्टरपन्थ बनाने लगते हैं। "श्री कि अब कई बार आप हुआ माताजी ने ऐसा कहा!" इस प्रकार मेरे नाम का पर प्रभुत्व जमाने का तरीका है। अब आप स्वयं कहें परखना चाहते हैं तो खोजने का प्रयत्न करें कि "मैं क्योंकि सहजयोग में आपको अधिकार है. आपका संघटित हूँ या नहीं ? जो भी कुछ मैं कर रहा हूँ अपना व्यक्तित्व है। जो भी आपको कहना है वह उसे पूर्ण हृदय से कर रहा हैूँ या नहीं ? पूरे चित्त आप कह सकते हैं। परन्तु यह न कहें कि "श्री से कर रहा हूँ या नहीं ?" मुझे लगता है कि पूरे माताजी ने ऐसा कहा," कोई भी ऐसे कह सकता है, हृदय तथा बुद्धि से तो आप कर रहे हैं पर आपका 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी सितम्बर 10 अक्तुबर, 1997 पूरा चित्त इसमें नहीं है । अब भी चित्त, जो कि करने के लिए तैयार किया जा रहा था । हर पहली चीज़ है जिसे ज्योतित किया गया, का क्षण, जब भी आप कोई चमत्कार घटित होते हुए उपयोग नहीं हो रहा। तो आपका पूर्ण चित्त होना देखते हैं तो आप महसूस करते हैं कि यह सब चाहिए कि "मुझे यह कार्य पूर्ण चित्त से करना है।" परमचैतन्य ने किया है । यह परमचैतन्य है क्या ? यह इसके बिना संघटन पूरा नहीं है। यह अधूरा है। तो आदिशक्ति की इच्छा है। यह 'परमात्मा की इच्छा है। तो जो भी कुछ हुआ यह नियति थी, ये सब चक्रों का संघटन घटित होता है। जो भी कुछ आप चैतन्य लहरियाँ कोषाणुओं पर खुदे एक नियत कार्यक्रम करें वह मंगलमय होना चाहिए. धार्मिक होना चाहिए (D. N.A.tapes) की तरह हैं । वे (परमचैतन्य) सब जानते हैं कि किस प्रकार कार्य करना है । देखिए इन तीनों का पूर्ण एकीकरण आवश्यक है। तभी सब तथा वह पूर्ण चित्त से किया जाना चाहिए। इसी प्रकार इन सभी चक्रों को पूर्ण समन्वित आज कितनी धूप है! सभी हैरान हैं कि ऐसा किस हो कर आपकी संघटित शक्ति बन जाना चाहिए प्रकार हो सकता है! इसी प्रकार बहुत कुछ घटित और पूर्ण जीवन संघटित हो जाना चाहिए । मान लो होता है। उस दिन हवाना में भी बहुत धूप थी,। तो किसी का पति या पत्नी उस स्तर की नहीं है तो पूरा ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्यरत है। अब आप मंच चिन्ता नहीं करनी चाहिए। आप केवल अपनी पर हैं आपको इस ओर ध्यान देना चाहिए। परन्तु चिन्ता करें। किसी से कुछ आशा न करें यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है, यदि आपको विश्वास आपका कर्तव्य ही महत्वपूर्ण है। अपना कर्तव्य नहीं है कि आप क्या हैं तो आप कैसे कार्य कर सकते पूर्ण कर आपने स्वयं इसे कार्यान्वित करना है। हैं किस प्रकार आप अपने तथा विश्व की मानव आपको समझना है कि आपने व्यक्तिगत रूप से रचित समस्याओं का समाधान कर सकते हैं ? इसे प्राप्त किया है और व्यक्तिगत रूप से ही आपने बाकी सब के साथ एकीकृत होना है। मैंने देखा है फेंकना चाहिए। सर्वप्रथम विज्ञान के प्रभाव को। हम कि मैं जब कुछ कहती हूँ तो लोग सोचने लगते हैं प्रमाणित कर सकते हैं कि सहजयोग ने विज्ञान के कि मैंने किसी और के लिए कहा। अपने लिए वे विषय में जो भी कहा है वह साबित हो चुका है। अतः इसे नहीं मानते। अब हमें देखना होगा कि हमारा हम हर समय अस्थिर, परिवर्तनशील विज्ञान को त्याग चित्त क्या है। "मुझे धन लाभ हुआ। मुझे सकते हैं। इसके बाद इन तथाकथित धर्मो को छोड़ स्वास्थ्य लाभ हुआ, मुझे मानसिक शक्ति सकते हैं- कोई कैथोलिक है तो कोई प्रोटैस्टैंट, कोई प्राप्त हुई, मुझे आनन्द मिला-प्रसन्नता मिली। हिन्दु है तो कोई मुसलमान। और धर्म उनके सिर पर यही सब कुछ नहीं। यही मापदण्ड नहीं सवार है! इसे उतार फेंकना होगा हमें एक नया होना चाहिए। आपको अपने व्यक्तित्व की व्यक्तित्व बनना होगा आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् समझ होनी चाहिए जिसे जन्म जन्मान्तरों से आप कीचड़ में कमल सम बन जाते हैं। तो अब आप अतः अपने पर पड़े इन प्रभावों को हमें उखाड़ इस जन्म में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के कमल बन गए हैं तथा कमल को कीचड़ उतार फेंकना लिए तथा 'परमात्मा की इच्छा का कार्य होगा सुन्दर कमल, जैसे आप हैं, आपको समझना 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt सितम्बर - चैतन्य लहरी 11 अक्तुबर, 1997 होगा कि अत्यन्त सावधानी, मधुरता तथा कोमलता पूर्वक आपकी रचना की गई है। चीजों को इधर उधर क्यों फेंकते हैं" तो कहने लगे "हम निर्लिप्त हैं।" कितना शानदार तरीका है! और आपके बच्चों का क्या है ? उनसे आप चिपके रहते तो सर्वप्रथम हममें आत्मसम्मान, अन्य लोगों के लिए स्नेह एवं प्रेम तथा अनुशासन होना आवश्यक हैं। अपनी चीज़ों से भी आप चिपके रहते हैं। है। अनुशासन हममें होना ही चाहिए। क्योंकि यदि छोटी-छोटी चीज़ के लिए मुझे परेशान करते हैं, आपमें आत्मसम्मान है तो आप निश्चित रूप से परन्तु सहज की चीजों को इधर उधर फेंक देते हैं! स्वयं को अनुशासित करेंगे। मेरे जीवन से, जैसे कि हम देख सकते हैं, मैं कह सकते हैं? वे किस प्रकार सन्त हो सकते हैं ? कठोर परिश्रम करती हूँ, और आप सब से अधिक इतनी गैर जिम्मेदारी! किस प्रकार आप उन्हें दिव्य सन्त लोग तो केवल अपने लिए ही नहीं, अन्य सभी औ यात्रा करती हूँ क्योंकि इस विश्व को आनन्द, के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। अत्यन्त आराम से, कोमलता से, मधुरता से, प्रसन्नता और देवत्व की उस अवस्था तक लाने की इच्छा मुझमें है जहाँ लोग अपनी तथा अपने पिता बड़े प्रेम से मैं आपको यहाँ तक लाई हूँ। मैंने (परमेश्वर) की गरिमा को महसूस कर सकें अतः मैं कठोर परिश्रम करती हूँ और कभी नहीं सोचती सिर के भार खड़े होने को या अपनी सम्पति दान कि मुझे कुछ हो जाएगा। कभी मैंने अपने पारिवारिक करने को ऐसा कुछ भी नहीं । हमने सभी कुछ जीवन, अपने बच्चों की चिन्ता नहीं की अपनी अत्यन्त सुन्दरता से चलाया है। अब आपने आगे सारी समस्याओं का सामना मैं स्वयं करती हूँ। बढ़ना है तो आपको अपने कर्तव्य समझने होंगे। परन्तु सहजयोगी अपने बेटे, बेटियों आदि के विषय आप अपने परिवार, घर आदि की जिम्मेदारी निभाते हैं. में मुझे लम्बे लम्बे पत्र लिखते हैं। परिवार से मोह सहजयोग के प्रति आपका कोई कर्तव्य नहीं? सहजयोग आपको हिमालय पर जाने को नहीं कहा और न ही | से पूर्व आपको किसी से मोह न था, एक प्रकार से स्वयं एक अन्य समस्या है। आपके सिर पर यह सबसे बड़ा बोझ है। हर समय अपने बच्चों या किसी न से ही जुड़े थे, स्व-केन्द्रित थे। अब आपने स्वयं को किसी चीज़ के विषय में आप चिन्तित रहते हैं। ये कुछ विस्तृत कर लिया है; अब आप अपनी पत्नी, अपने आपकी जिम्मेदारी नहीं है। कृपया समझने का बच्चों से लिप्त हो गए हैं। एक ही बात है। यह भी प्रयत्न करें कि यह सर्वशक्तिमान परमात्मा की स्वार्थ है। क्योंकि वे आपके बच्चे हैं इसलिए आप उनके जिम्मेदारी है । उससे बेहतर कार्य आप नहीं कर विषय में सोचते हैं। पर वे आपके बच्चे नहीं हैं। वे सकते। क्या आप कर सकते हैं ? परन्तु यदि आप परमात्मा के बच्चे हैं। मुझे आशा है कि आपमें अपनी जिम्मेदारी समझने जिम्मेदारी लेने का प्रयत्न करते हैं तो परमात्मा कहते हैं "ठीक है, करो" और समस्याएं शुरु हो और निभाने की योग्यता है। सहस्रार का खुलना आपके जाती हैं। लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। अब आप परमात्मा के अस्तित्व तथा उसकी इच्छा को साबित कर सकते 'निर्लिप्सा' शब्द को ठीक प्रकार से समझा जाना चाहिए। मैंने जब लोगों से पूछा कि "आप हैं। कोई भी सहजयोग को चुनौती नहीं दे सकता। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 12 अक्तुबर, 1997 हो सकते हैं। एक तिनके को तो तोड़ा जा सकता है परन्तु बहुत से तिनके यदि मिल जाएं तो उन्हें तोड़ा चुनौती देने वाले वैज्ञानिकों को बताया जा सकता है । आप चाहे वैज्ञानिक हों, अर्थशास्त्री या राजनीतिज्ञ, से नहीं जा सकता। मैं जानती हैँ कि अभी भी सहज प्रकाश में हर चीज़ का वर्णन किया जा सकता बहुत लोग सामूहिक नहीं हैं। इसी से पता चलता है कि स्वयं को समझने में वे कितने पीछे हैं। वे मुझे बताते हैं कि है और प्रमाणित किया जा सकता है कि केवल एक ही राजनीति है और वह है परमात्मा की राजनीति, केवल एक ही अर्थशास्त्र है- परमात्मा का अर्थशास्त्र: एक ही धर्म है-परमात्मा का धर्म, 'विश्वनिर्मलाधर्म । इसे "श्री माताजी अब हम आश्रम में नहीं रहना चाहते।" तो उन्हें सहजयोग छोड़ देना चाहिए सामूहिकता के बिना आप विकसित नहीं हो सकते। सहजयोग के प्रमाणित किया जा सकता है। किसी चीज़ से डरने या 1 1. चिन्ता करने की कोई बात नहीं। यह सभी कुछ अनुशासन के बिना आप विकसित नहीं हो सकते। वैज्ञानिकों तथा अन्य बुद्धिवादियों के सम्मुख साबित हज़ारों बेकार लोगों से दस अच्छे लोग कहीं बेहतर हैं। किया जा सकता है बशर्ते वे हमें चाहें। यदि वे परमात्मा की यही इच्छा है। सुनना हमें नहीं सुनना चाहते तो उन्हें भूल जाइए। हम तो शक्तिशाली हैं, हम क्यों उनकी चिन्ता करें ? परन्तु आज आप इतने सारे लोग यहाँ उपस्थित हैं । एक ही समय पर इतने सारे लोगों को यहाँ देख कर मैं वास्तव में आनन्द विभोर हूँ। हमने अपने उत्थान के यदि वे हमें सुनना चाहें तो उन्हें बता देना ठीक होगा कि "अब हमने यह महान शक्ति खोज ली है।" और यदि यह महान शक्ति कार्यान्वित हो जाती है तभी हम लिए बहुत कुछ किया है तथा अपनी बहुत सी बुराइयों से छुटकारा प्राप्त किया है। आज हमें शपथ लेनी होगी कि "मैं परमात्मा की इच्छानुरूप अपने जीवन को ढालूंगा और स्वयं को परमात्मा की इच्छा' के सम्मुख समर्पित करूंगा।" परिवार तथा अन्य बन्धनों को भूल जाएं। कुछ भी इतना महत्वपूर्ण नहीं। 'परमात्मा की इच्छा सभी कुछ देख सकती है। आप यदि परमात्मा की इच्छानुरूप चलने का प्रयत् करेंगे तो आपके इस विश्व को नए ढंग से एक नया रूप दे सकेंगे। आप लोगों से मुझे बहुत आशाएं हैं। परन्तु जिस गम्भीरता से सहजयोग को लिया जाना चाहिए, उसकी कमी है। उदाहरणार्थ लोग ध्यान धारणा भी नहीं करते। बिना ध्यान धारणा के आप कैसे चलेंगे ? बिना निर्विचार समाधि में उतरे आप विकसित नहीं हो सकते। अतः प्रातः और सायं तो कम से कम आपको बच्चों की तथा अन्य सभी चीज़ों की देखभाल ध्यान धारणा करनी ही होगी। बहुत से लोग स्वभाव से हो जाएगी। आपको किसी चीज़ की चिन्ता नहीं ही सामूहिक नहीं हैं। आश्रम में यदि वे रह रहे हैं तो करनी। इस प्रकार सब कार्य होता है। मात्र उन्हें लगता है कि आश्रम का जीवन अच्छा नहीं है। इतना समझने का प्रयत्न करें कि आपकी समस्याएं ऐसे लोग वास्तव में सहजयोग से निकल जाएंगे इसलिए है क्योंकि आप इन्हें परमात्मा को सौंपना क्योंकि उन्होंने सहजयोग को समझा ही नहीं है। नहीं चाहते। आप इन्हें अपने तक रखना चाहते सामूहिकता के बिना आपका विकास कैसे होगा ? आप हैं। इसी कारण से आपको समस्याएं हैं। आप अपनी शक्तियाँ किस प्रकार एकत्र करेंगे? हम जानते यदि निर्णय करें कि "नहीं मैं इन समस्याओं को हैं कि सामूहिकता में, इकट्ठे हो कर ही हम शक्तिशाली परमात्मा की इच्छा को सौंप दूंगा तो सब कार्य 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 13 अक्तुबर, 1997 हो जाएगा। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहना चाहते इसे आजमाएं और इसका आनन्द लें एक अन्य हैं कि "हममें इतनी योग्यता नहीं है, श्री माताजी हम ऐसा नहीं कर सकते।" ऐसा कहना भी मूर्खता है। इच्छा का उचित, सशक्त एवं करुणामय माध्यम बनना। महत्वपूर्णतम चीज़ जो बाकी है वह है परमात्मा की आप स्वयं को देखें, स्वयं को परखें। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को समझना चाहिए कि हम इससे आपको बहुत लाभ पहुँचता है। परन्तु बहुत सी ऐसी बातें क्यों करते हैं। हो सकता है कि हम अत्यन्त अन्य चीजें महत्वपूर्ण नहीं हैं। मुख्य चीज़ आपका धन लोलुप हैं और अपने लिए धन चाहते हैं। सहजयोग उच्चावस्था तक उत्थान करना है और इस उच्चस्थिति कुछ लोग व्यापार की भी बातें करते हैं। तो धन को प्राप्त करने के लिए आप परस्पर मुकाबला करें। लोलुपता या भौतिकता का मोह भी हो सकता है जिसे वह त्यागना नहीं चाहते। ममत्व, लिप्सा दूसरा कारण निःसन्देह बहुत कुछ प्राप्त किया है। परन्तु अभी भी हो सकता है। अपने परिवार, बच्चों आदि के साथ हमने अपनी गति को बढ़ाकर इसे कार्यान्वित करना मैं जानती हूँ कि आप मेरी पूजा कर सकते हैं क्योंकि में मैं सोचती हूँ कि थोड़े से समय में ही हमने चिपकन। या यह मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है। है। मुझे विश्वास है कि यह नया विज्ञान, जो कि इसके कारण भी आप सोचते हैं कि आपमें सहजयोग पूर्ण विज्ञान है, एक दिन अन्य सभी विज्ञानों पर करने का क्षेम नहीं है। तीसरे, हो सकता है कि अभी छा जाएगा। लोगों को भी इसके विषय में बताएं। यह तक आप अपनी पुरानी आदतों को बनाए हुए हों और नैतिकता विहीन जीवन का आनन्द ले रहे हों। इस आपके हाथों में है, इसे कार्यान्वित करें। तो आज के दिन हम वह उत्सव मना रहे हैं प्रकार का कोई भी कारण हो सकता है। अब इसमें जिसके द्वारा हमने एक पूर्णतः नया आयाम खोला है, झाँक कर देखें कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हॅूँ? अन्य महान दिव्यता का एक नया क्षेत्र जिसमें परमात्मा का लोगों की तरह से उत्थान के सुन्दर पथ पर मैं क्यों प्रमाण है। यह इतनी महान चीज़ है कि इससे हम नहीं चल रहा? अन्तर्दर्शन करने से हम जान लेंगे कि.. सब अपने सारे भ्रम समाप्त कर सकते हैं। ह म "मुझमें कुछ कमी है कि मैं सोचता हूँ कि मैं ऐसा करने के योग्य नहीं हूँ। आप सभी कुछ करने के योग्य हैं। इसका संचालन कर सकते हैं। आप सब में वह शक्ति विद्यमान है। परमात्मा आपको धन्य करें। पाम ि ा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt श्री आदिशक्ति पूजा 14 कबेला (एक रिपोर्ट) कबेला में आदिशक्ति पूजा की गई। गया क्षण भर के लिए स्तब्धता छा गई। इसके बैलजियम, हॉलैण्ड, स्पेन, फिनलैंड, स्वीडन, डैनमार्क पश्चात् अत्यन्त स्वाभाविक रूप से उस बच्चे ने और नार्वे मेजबान देश थे। दिव्य मैदानों पर स्वागत नमस्कार किया। अत्यन्त हँसी के बातावरण में शाम किए जाने के साथ साथ हमने सूर्य की धूप, ठंडी की शुरूआत हुई। रातों, गर्म दिनों का आनन्द लिया। पुष्प गृह एक हॉलैण्ड के सहजयोगियों द्वारा प्रस्तुत नाटक बार फिर भिन्न फूलों की सुगन्ध से महक उठा। मोटी में आश्रम जीवन की नकल की गई यह तीन भागों डालियों वाले गुलाब अत्यन्त दिलकश थे। मनोरंजन की शाम- मनोरंजन की शाम को गया जिसमें आदर्शवाद की कमी थी । कहानी रात हम सब उत्सुकतापूर्वक, श्रीमाताजी के आगमन का के भोजन के समय के आसपास की थी जब लोग तथा उस क्षण के विशेष अनुभव को इन्तजार कर अपने काम से वापस आते हैं, अन्य लोग खाना बना रहें हैं। हमारे नन्हें हृदय उत्तेजित हैं और श्री रहे होते हैं और कुछ अभी भी कम्प्यूटर पर खेल रहे माताजी की एक झलक इन नन्हें हृदयों को इस होते हैं। 1. में दर्शाया गया। पहले भाग में ऐसा जीवन दर्शाया प्रकार भर देती है कि यह सभी कुछ अपने में समोह लेने के योग्य बन जाते हैं। कभी कभी तो प्रेम इतना है (Not Pasta Again) भोजन के लिए सभी गहन होता है कि हृदय से छलक कर आँखों से प्रतीक्षा करते हुए लोग थक जाते हैं और जल्दी-जल्दी आँसुओं के रूप में बह निकलता है। यह अवश्य ही मन्त्र कहने लगते हैं ताकि जल्दी से लोग आ जाएं। प्रेमाश्रु होते होंगे जिनके निकल जाने के पश्चात् श्री भोजन करते हुए लोगों को टेलिफोन की घंटी माताजी की एक दूसरी झलक हमें पुनः विश्वस्त परेशान करती है। शाम के सहजयोग कार्यक्रम में कर देती है कि माँ सदैव हमारे साथ हैं। अभी-अभी घर पहुँचा व्यक्ति टिप्पणी करता चालीस लोग आ जाते हैं तो यह 'बहुत अधिक के कान अपने सिर पर लगाए हुए 'असम्भव कहा जाता है। मूषक हॉलैण्ड के बच्चों ने 'श्री गणेश के मूषक (The Mouse of Shri Ganesha) मधुर गीत से हुआ रूप होता है। व्यवहार कुछ सुधरता है परन्तु नाटक का दूसरा भाग पहले भाग का सुधरा मनोरंजन की शाम का आरम्भ किया। एक बार तनाव को अब भी महसूस किया जा सकता है। फिर आँखों में आनन्द अश्रु तैर गए। अबोधिता का तथा संघटन करने के लिए नाटक का तीसरा भाग सौन्दर्य, ऐसा लगता है, हृदय के बांध तोड़ देता है। मंचित किया जाता है। दर्शक सब प्रसन्न हो जाते भजन के अन्त में सिर पर छोटे छोटे मूषक कर्ण हैं श्री माताजी बाद में टिप्पणी करती हैं कि परन्तु पहने हुए गम्भीरता पूर्वक सभी की ओर देखते हुए बहुत से स्थानों पर ऐसा ही हैं बहुत से योगी और एक छोटे से बच्चे को इतने बड़े पर्दे पर दिखाया योगिनियों को अन्तर्दर्शन करके अपने मूर्खतापूर्ण 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 15 भागों का प्रतिनिधित्व करती थीं। फिनलैण्ड की आचरण पर हँसना होगा। तत्पश्चात् चार बैल्जियम की लड़कियों ने सामूहिकता का एक वीडियो भी उन्होंने दिखाया। भारतीय दीपक नृत्य किया उन्होंने श्री माताजी हॉलैण्ड की साक्षी ने अत्यन्त वीरता से एक को समर्पित एक सुन्दर गीत 'Your Song Mama' राग गाया उसका साथी साथ न दे सका तो एक गाया उन्होंने एक नाटक का मंचन भी किया अन्य साथी को उसने खड़ा कर दिया। परन्तु दूसरे जिसमें पूरा ध्यान एक स्त्री पर केन्द्रित किया जो माइक्रोफोन के कार्य न करने के कारण हम केवल ध्यान में जाना चाहती थी इसके साथ साथ हँसी, साक्षी को ही सुन सके। अविश्वस्नीय! श्री माताजी वीडीयो, श्री माताजी के कुछ कथन और और सी.पी. अत्यन्त प्रभावित और हम सबने भी हुए नृत्य, भजन, समस्याओं, शान्ति, आनन्द, समर्पण और इसकी बहुत सराहना की । ध्यान में सामूहिकता को दर्शाने के लिए प्रस्तुत किए गए। अन्त में जब अंग्रेजी में कव्वाली गाई गई तो सब तुरन्त निर्विचारिता में प्रवेश कर गए। उनमें से वह स्त्री सामूहिकता में शामिल हो जाती है। इसके एक ज्यूलिमैसेंनेट की मेडीटेशन (ध्यान-धारणा) वायलिन पर सुन्दर धुनें बजाई गई और हम पश्चात् श्री विष्णु के दस अवतरण दिखाते हुए एक थी। पिछले वर्ष की तरह से यह शाम भी अत्यन्त भारतीय नृत्य प्रस्तुत किया गया। शाम को देर से सुन्दर थी और हम सबने इसका आनन्द लिया और युवा शक्ति का भजन 'Our Holy mother wake पूरी संध्या अन्तर्दर्शन किया। up the world' (पावनी माँ विश्व को जागृत करो) 1. पूजा- हमें शान्त करके पूजा के लिए तैयार करने के लिए वर्षा की कुछ बूदें हम पर छिड़काई गई। पूजा अत्यन्त रोमांचक थी और इसका मुख्य उनमें हृदय खोलने वाले ताल की अद्भुत भावना संदेश यह था कि हमें गहनता में जाने के लिए है। इस ताल से पता लगता है कि व्यक्ति वास्तव अन्तर्दर्शन तथा स्वयं का सामना करना होगा। में जीवित है। स्पेन के लोग अति सुन्दर गाते हैं नियमित रूप से पानी में फैर डालकर बैठना तथा और उन्हें सुनना अत्यन्त सुखद होता है । विश्व स्वयं का शुद्धिकरण करना आवश्यक है। हमारे चित्र पर वे आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे अपने रोज-मर्रा के जीवन में हमें शुद्ध इच्छा की अभिव्यक्ति करनी चाहिए तथा अन्य लोगों को गाया गया। स्पेन के एक योगी ने एकल ड्रम बजाया । उनके अभिनय में देखा जा सकता है। एक पारम्परिक स्कैन्डेनेवियन नृत्य से आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए। कार्यक्रम समापन किया गया। इस नृत्य में भाई-बहन सम्बन्धों की अभिव्यक्ति की गई। आठ योगियों के लिए तैयार होना था हम सब चैतन्य लहरियों द्वारा मंचित यह एक सामूहिक नृत्य था । जिसके से भरे हुए थे। अपने देशों में भी प्रेम पहुँचाने के लिए अन्त में दर्शकों को गोलाकार में भाग लेने के हमने वह पावन मैदान त्यागा। श्री माताजी एक बार लिए आमन्त्रित किया गया नर्तकों ने सुन्दर फिर हृदय से आपका धन्यवाद कि सिडस्ल मगफोर्ड पारम्परिक वेशभूषाएं पहनी हुई थीं जो देश के भिन्न सोमवार को एक बार फिर घर वापस जाने नृत्य (नार्वे) में आपने यह सब सम्भव बनाया। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt 16 ८ श्री आदिशक्ति पूजा कबेला ,२५ मई १६६७ परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन भान आज हम आदिशक्ति की पूजा करेंगे। चक्रों तथा आदिशक्ति की रचनाओं से पृथ्वी माँ में आदिशक्ति के विषय में कुछ कहना कठिन विषय है भी उनके प्रतिबिम्ब की अभिव्यक्ति होती है। मानव क्योंकि यह समझना सुगम नहीं है कि आदिशक्ति का सृजन करने के लिए सर्वप्रथम अतिपावन पृथ्वी सर्वशक्तिमान परमात्मा-सदाशिव की शक्ति हैं। माँ का सृजन किया जाना आवश्यक था। जैसा कि कुछ लोग कहते हैं वे (आदिशक्ति) उनकी (सदाशिव) खास हैं। कुछ लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम पृथ्वी माँ पर प्रतिबिम्बित हुई। हम कह आदिशक्ति सदाशिव की इच्छा हैं और कुछ अन्य सकते हैं कि कुण्डलिनी आदिशक्ति का एक अल्प उन्हें सदाशिव की पूर्ण शक्ति मानते हैं और कहते भाग है या यह आदिशक्ति की इच्छा- शुद्ध इच्छा हैं कि उनकी शक्तियों के बिना सदाशिव कोई कार्य है। तो आदिशक्ति सदाशिव की इच्छा- पूर्ण इच्छा नहीं कर सकते। भिन्न पुस्तकों में भिन्न विधियों से बहुत से माँ के अन्दर हुई। पृथ्वी माँ के अन्दर कुण्डलिनी लोगों ने इस विषय का वर्णन किया है परन्तु हमें इस प्रकार उभरी कि इन्होंने जहाँ तक हो सका आदिशक्ति के सृजन के में जाने की कोई पृथ्वी माँ के आन्तरिक भाग को ठंडा कर दिया और आवश्यकता नहीं है। इसके लिए कम से कम सात फिर भिन्न चक्रों के रूप में पृथ्वी माँ की सतह पर प्रवचनों की आवश्यकता है। जहाँ से आदिशक्ति ने प्रकट हुई। तो इस प्रकार विराट, पृथ्वी माँ और अंतः कुण्डलिनी के रूप में आदिशक्ति 1. है। इसकी अभिव्यक्ति सर्वप्रथम पृथ्वी माँ में, पृथ्वी मूल पृथ्वी माँ पर अपना कार्य शुरु किया हम वहाँ से मानव में असाधारण समानता है यदि आदि कुण्डलिनी ही इन सबको प्रतिबिम्बित कर ही है तो शुरु होंगे। पहली चीज़ जो हमारे लिए जानना आवश्यक इनमें गहन सम्बन्ध होना भी आवश्यक है। मानव है वह यह है कि उन्होंने पृथ्वी माँ में कुण्डलिनी का सृजन किया और पृथ्वी से बाहर श्री गणेश का। पृथ्वी माँ से जुड़ा हुआ है बहुत से केन्द्रों से यह अत्यन्त दिलचस्प बात है। इस प्रकार पृथ्वी माँ गुज़रकर पृथ्वी माँ में भिन्न केन्द्रों का सृजन हमारे लिए अति महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लेती हुए अन्ततः कुण्डलिनी कैलाश भेदन करके बाहर इस बात को नहीं समझ पाता कि किस प्रकार वह करते हैं आप यदि पृथ्वी माँ का सम्मान करना नहीं आई। मैं नहीं जानती कि आपमें से कितने लोग जानते तो आपको अपना सम्मान करने का ज्ञान भी कैलाश गए हैं कैलाश से बहती हुई अथाह चैतन्य नहीं है। निःसन्देह! कुण्डलिनी आपके अन्दर लहरियाँ आप अनुभव करेंगे। आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब है। परन्तु, जैसा कि आप जानते हैं, भिन्न स्थानों, भिन्न देशों, भिन्न नगरों में करते हैं वास्तव में हम आदिशक्ति का अपमान कर 1 अब जिस प्रकार से हम पृथ्वी माँ का अपमान 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 17 अक्तुबर 1997 रहे हैं। पृथ्वी माँ का सम्मान करने के बहुत से है। शराब पीकर यदि आप पैदल चलते हैं तो आप तरीके हैं। भारतीय प्रथा थी कि प्रातः उठकर जब गिर जाते हैं। उनके मंदिरा पान के कारण बहुत आप अपने पॉव पृथ्वी माँ पर रखते थे तो क्षमा भूचाल आया और वे सभी नाचने वाले, शराब पीने याचना करते थे कि हे पृथ्वी माँ कृपा करके मुझे वाले लोग भूचाल के कारण पृथ्वी माँ के गर्भ में समा क्षमा कर दें, मैं अपने पॉवो से आपका स्पर्श कर रहा गए। वहाँ स्थित हमारे सहजयोग केन्द्र के आस-पास हूँ। पृथ्वी की सभी गतिविधियाँ आदिशक्ति के की पृथ्वी तो फट गई परन्तु उसे कोई भी हानि न प्रतिबिम्ब अन्तःस्थित कुण्डलिनी द्वारा संचालित हैं। पहुँची। किसी भी सहजयोगी को कोई हानि न हुई । इसका गुरुत्वाकर्षण भी पृथ्वी माँ की कुण्डलिनी की सहजयोगी होने के नाते हम समझ सकते हैं कि अभिव्यक्ति है। किस प्रकार पृथ्वी माँ ने कार्य किया और सहजयोगियों इस सुन्दर उपग्रह पर, हमारे कष्टों का की रक्षा की। अतः पृथ्वी माँ सन्तों के विषय में बहुत कारण यह है कि जिन चीज़ों का सम्मान हमें करना अच्छी तरह से जानती हैं। वे जानती हैं कि सन्त चाहिए वह हम नहीं करते। पृथ्वी माँ का सम्मान कौन हैं, वे सन्तों के पदचाप को पहचानती हैं। और किया जाना चाहिए। इसका क्या अर्थ है इसका इसी कारण बहुत सी चीज़ों की सृष्टि हुई। मोज़िज़ अर्थ है पृथ्वी की गति से, समुद्र द्वारा, पंचभूतों द्वारा का ही उदाहरण लें। वह समुद्र में गया तो उसके जो भी कुछ पृथ्वी पर सृजन हुआ है उसका सम्मान चलने के लिए पृथ्वी माँ जल की सतह पर आ गई। किया जाना चाहिए। दूषित पर्यावरण आज की यदि सारे यहूदी गए होते तो ऐसा न होता परन्तु बहुत बड़ी समस्या है। लोग इसके विषय में बातें मोज़िज़ के साधुत्व के कारण स्वयं पृथ्वी माँ ने समुद्र करते हैं। इसका कारण हमारे जीवन को सहायता की सतह पर आकर सहायता की। इसी प्रकार जब प्रदान करने वाले पंचतत्वों के महत्व को न समझना श्रीराम भारत और लंका के बीच सेतु बना रहे थे तो है। पृथ्वी माँ ने समुद्र की सतह पर आकर सहायता पृथ्वी माँ का सम्मान करने के लिए लोग भूमि की | पूजा करते हैं। गृह निर्माण करने के समय लोग भूमि पूजन करते हैं अर्थात् पृथ्वी माँ का सम्मान पृथ्वी मा को दोष नहीं देना चाहिए। लोग यदि सन्त करते हैं। यदि पृथ्वी माँ का सम्मान न होगा तो स्वभाव हैं तो सदैव पृथ्वी माँ उनकी रक्षा करेंगी। भूचाल आ सकता है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी उनकी इच्छानुरूप वह उन्हें सब कुछ प्रदान करेंगी। माँ सब समझती हैं, जानती हैं और कार्य करती हैं। सूक्ष्म रूप से आप देख सकते हैं कि यहाँ, हमारे वह इस प्रकार से कार्य करती हैं कि मानव नहीं समझ पाता कि ऐसी चीजें क्यों घटित होती हैं। बड़े पूरे विश्व में नहीं मिल सकते। परन्तु यहाँ इतने अब लाटूर में श्री गणेश उत्सव के चौदहवें बड़े गुलाब हैं। प्रतिष्ठान में इतने बड़े सूर्यमुखी के दिन लोगों ने श्री गणेश की प्रतिमाएं समुद्र या फूल हुए कि व्यक्ति उसे उठा न सके। तो किसी नदियों में प्रवाहित करनी थीं नाचते, गाते हुए स्थान विशेष पर इस प्रकार की घटनाएं क्यों होती उन्होंने यह कार्य किया। परन्तु वापस आकर लगे हैं ? पृथ्वी माँ जानती हैं कि यहाँ कौन रह रहा है, शराब पीने। मदिरा पान पृथ्वी माँ को पसन्द नहीं उसकी पीठ उसकी मिट्टी पर कौन चल रहा है, तो हमें पृथ्वी पर घटित अनिष्टवाद के लिए कबेला में इतने बड़े-बड़े गुलाब के फूल है कि इतने to 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 18 क्योंकि वे चैतन्य लहरियों को पहचानती हैं। परन्तु जब हज की घटना घटित हुई तो उनके पास कुछ स्थानों के विषय में हम कहते हैं कि वे कहने के लिए कुछ न था। उनकी समझ में नहीं आ बहुत पवित्र हैं। उनकी पवित्रता के विषय में हम रहा था कि हज दुर्घटना में इतने लोगों की मौत को कैसे जान पाए ? चुम्बकीय शक्तियों के कारण मैं किस प्रकार वर्णन किया जाए। एक बार मक्का में हैरान थी कि इंग्लैण्ड में आक्सटैड नामक स्थान पर, जहाँ हम रहते थे, चुम्बकीय शक्तियाँ एक दूसरे हुए या मारे गए। अब पृथ्वी माँ यह बता रही है कि को पार (Cross) कर रही थीं। वे ऐसा बहुत पहले इन पावन स्थानों पर जाने से-यह वास्तव में पावन से कर रही थीं परन्तु हम वहाँ रहने के लिए बाद हैं- आप आध्यात्मिक उत्थान नहीं पा रहे है। इन में आए। अतः सब लोगों के लिए पृथ्वी माँ चीज़ों का स्थानों पर आप कुछ प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यद्यपि आयोजन एवं प्रबन्ध करती हैं। जिस प्रकार पृथ्वी माँ यह स्थान वास्तव में पावन हैं। आप जानते होंगे कि भली-भांति आपका पथ-प्रदर्शन करती हैं उसे मेरा जन्म छिंदवाड़ा में हुआ और मक्का और छिंदवाड़ा देखना अत्यन्त दिलचस्प है। मैं इसके बहुत से दोनों कर्क रेखा पर स्थित हैं। यह किस प्रकार उदाहरण दे सकती हूँ। फिर भी हम लोग पृथ्वी माँ हुआ मक्का क्या है? मक्का मक्केश्वर शिव हैं, की 1. हज के समय हुई भगदड़ में ३२००० लोग जख्मी | शिव हैं। तो मोहम्मद साहब ने लोगों से पत्थर की सूझबूझ और सभी सन्तों के लिए उनकी प्रेममय सुरक्षा को नहीं समझते। इसी प्रकार हमें समझना पूजा करने के लिए क्यों कहा । वे पत्थरों में विश्वास चाहिए कि पूरा वातावरण सन्तों को पहचानता है. नहीं करते थे, सभी प्रकार की मूर्ति पूजा के विरुद्ध समय पर वर्षा आती है. समय पर सुर्य और चाँद थे, फिर भी उन्होंने कहा कि यह जो यहाँ काला निकलते हैं और सभी कुछ अत्यन्त सुन्दर ढंग से पत्थर है, इसकी पूजा की जानी चाहिए । इसी के कार्यान्वित होता है। वे जानते हैं कि यहाँ सन्त लिए लोगों को वहाँ जाना पड़ता है। क्या कारण था लोग बैठे हुए हैं, यह पवित्र है तथा यही जीवन का ? क्योंकि वे चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते थे सारतत्व है। सावधानीपूर्वक इनकी देखभाल की इसी कारण वे जान पाए कि वह स्वयम्भु: है । जानी चाहिए। व्यर्थ लोगों की यह चिन्ता नहीं इसीलिए उन्होंने इसकी पूजा के लिए कहा। सभी करते। अब हज का ही उदाहरण लें। बहुत से लोग गए और उनमें से बहुत जाकर किसी का भी सुधार नहीं हुआ। मक्का अमरनाथ गए और मारे गए क्योंकि वे सन्त न थे, जाकर मैंने किसी को भी सुधरते हुए नहीं देखा। मात्र कर्मकाण्डी लोग थे मात्र कर्मकाण्ड के लिए यह एक प्रकार का कर्मकाण्ड है । वे सोचते हैं कि जाना पृथ्वी माँ के विवेक के अनुसार उनके लिए हज करने के पश्चात् जब कल उनकी मृत्यु होगी हितकर न था। परन्तु इन घटनाओं से कोई नहीं तो वे परमात्मा से कह सकेंगे कि देखिए हमारे पास सीखता, कोई नहीं सीखता। अमरनाथ जाते हुए मक्का जाने का प्रमाण पत्र है। जब बहुत लोग मारे गए तो पाकिस्तान ने कहा, "देखिए इन्हें अमरनाथ नहीं जाना चाहिए था, यह एक झूठा स्थान है, वे वहाँ क्यों गए ? वहाँ जाने से प्रमाण पत्र दिखा देना कि तुम वास्तविक ईसाई हो। यह साबित हो गया कि यह पावन स्थल नहीं है।" इस प्रकार से यह सब बनावटी चीजें उभरीं परन्तु 1 मुसलमान वहाँ पागलों की तरह से जा रहे हैं। वहाँ से मारे गए। कुछ लोग जैसे हमारे पोप किसी समय लोगों को प्रमाण पत्र दिया करते थे कि तुम स्वर्ग में जाओ तो यह 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 वास्तविकता तो अन्तःस्थित है। अन्तर केवल इतना है कि वास्तविकता सच्चे लोगों के लिए है, झूठों के में कार्यरत होता है तो वह कहने लगते हैं, "आपका यह चक्र पकड़ रहा है, आपका वह चक्र पकड़ रहा लिए नहीं। परन्तु यह कर्मकाण्ड बहुत अधिक बढ़ है।" वास्तव में ऐसा कहने वाला व्यक्ति स्वयं पकड़ गया है। भारत में कुण्डलिनी सृजित बहुत से रहा होता है । तो व्यक्ति को समझना चाहिए कि स्वयम्भुः हैं जिनकी वास्तव में पूजा होती है। मैं यदि हम आदिशक्ति के सच्चे प्रतिबिम्ब हैं तो हमें लगभग इन सब पर गई हूँ और देखकर हैरान थी पवित्र श्वेत पत्थर की तरह पूर्णतः पवित्र होना कि अधिकतर पुजारी किसी न किसी भयंकर बीमारी चाहिए। से पीड़ित थे। एक तो पक्षाघात का मारा हुआ था। वह कहने लगा, "हम यहाँ इस देवता की सेवा कर देगी। आपको इतना स्वच्छ होना है कि अपने पर रहे हैं, यह स्वयम्भुः है, फिर भी श्री माताजी क्यों पड़ी कोई भी चीज़, कोई भी सूक्ष्म काला धब्बा आप हम इस प्रकार के रोगों से पीड़ित हैं ?" मैंने उत्तर देख सकें और दूसरों पर लगी हुई कालिख को आप दिया, "क्योंकि आप धन कमा रहे हैं, परमात्मा के महसूस कर सकें। पवित्र जीवन से, पवित्र विचारों नाम पर आप पैसा नहीं बटोर सकते। आप यदि से और पवित्र हृदय से वह ऊँचाई प्राप्त की जा परमात्मा की सेवा नहीं करना चाहते तो यहाँ से सकती है। कोई छल साधन करने की आवश्यकता चले जाइये और यदि परमात्मा की सेवा करना नहीं, कुछ नहीं, मात्र देखें कि वह (कुण्डलिनी) चाहते हैं तो बेशक यहाँ रहिए परन्तु इससे धनार्जन कितनी स्वतोभावी (स्वाभाविक) हैं। पृथ्वी माँ में आप मत कीजिए।" यह आम बात है। मैंने देखा है कि एक बीज डालें और देखें कि किस प्रकार यह जो लोग परमात्मा के नाम पर पैसा बटोरते हैं उन्हें अंकुरित होता है। वह इतनी स्वतोभावी है, उनकी पक्षाघात हो जाता है। यह चीज़ मैंने देखी है। यह अत्यन्त गहन ज्ञान है जो सभी तत्वों को कभी आश्चर्य नहीं होता भिन्न प्रकार के पुष्प, भिन्न पृथ्वी माँ को तथा सभी देवी देवताओं को है । उनकी प्रकार की सुगन्धियों, झाड़ियों तथा वृक्षों की भिन्न कुण्डलिनी यद्यपि अपने आप में पवित्र है फिर भी ऊँचाइयों को देखें! हर जगह पर कितने संतुलन आपकी मानवीय गतिविधियों से, गलतियों, अहम्, पूर्वक वह सभी कुछ उगाती हैं। पृथ्वी माँ का हर प्रतिअहम् तथा सभी प्रकार की मूर्खताओं के कारण सूक्ष्म अणु, परमाणु विवेकशील है । इतनी संवेदनशील नहीं है और न ही आपको घटनाओं के विषय में सूचित करती है । आपके सर्वोत्तम प्रतिबिम्ब हैं। अतः पृथ्वी माँ का सम्मान अन्दर इसका अत्यन्त चुस्त, संवेदनशील और करना हमारे लिए प्रथम आवश्यकता है। आप लोग आध्यात्मिक होना आवश्यक है ताकि इसके माध्यम मुझे अच्छे लगते हैं क्योंकि आप पृथ्वी पर बैठे से आप जो भी सोचते हैं , जो भी जानते हैं, हर हैं। यह बहुत अच्छी बात है। ध्यान धारणा के लिए चीज़ के बारे में जो भी समझते हैं, तुरन्त कह सकें । यदि आप पृथ्वी माँ पर बैठेंगे तो अत्यन्त अच्छा होगा परन्तु समस्या यह है कि वास्तव में ऐसा नहीं है । क्योंकि पृथ्वी माँ का एक विशेष गुण (जो दुर्भाग्यवश क्यों आप संवेदनशील नहीं हैं ? इसके विपरीत मैंने मुझमें भी है), यह है कि मेरी तरह से वो भी आपकी देखा है कि जब लोगों का मस्तिष्क किसी के विषय समस्याओं (नकारात्मकताओं) को सोखती रहती है। इस पर कालिख की एक बूंद भी ( इसी कारण आज मैंने सफेद साड़ी पहनी है) दिखाई गति विधियाँ इतनी स्वाभाविक हैं कि हमें उन पर ति तो पृथ्वी माँ हमारे सम्मुख आदिशक्ति का हुए 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 20 अक्तुबर, 1997 पृथ्वी माँ आपकी समस्याओं को सोखती हैं और आत्मसात करूं। तो आपके साथ साथ आपकी सभी आप बिना किसी कठिनाई के उनसे मुक्त हो जाते समस्याएं, आपके सभी कष्ट मुझमें चले गए हैं । हैं। अतः यदि आप ध्यान के लिए पृथ्वी पर नहीं बैठ समुद्र में डुबकी लगा कर आप तो स्वच्छ हो गए हैं सकते तो कोई पत्थर, संगमरमर या कोई अन्य परन्तु समुद्र की स्थिति पर विचार कीजिए ! आपकी प्राकृतिक चीज़ ले लें और उस पर बैठने का प्रयत्न समस्याएं और कष्ट अब भी समुद्र में हैं तथा वे करें। परन्तु यदि आप प्लास्टिक पर बैठकर ध्यान अत्यन्त कष्टकर हैं । धारणा करेंगे तो किस प्रकार आपकी सहायता अतः स्वयं को स्वच्छ करना आपके लिए होगी। प्लास्टिक? इसलिए मैं सदा आपसे निवेदन सर्वोत्तम होगा अन्तर्दर्शन द्वारा शुद्धिकरण करना करती रही हूँ कि प्राकृतिक चीजों का उपयोग करें महत्वपूर्ण है परन्तु इसका अर्थ सोचना नहीं है, क्योंकि प्राकृतिक चीजें आपकी नकारात्मकताओं अन्तर्दर्शन का अर्थ सोचना कभी भी न था। को भली-भांति सोखती हैं और उन्हें दूर भगाती हैं। अन्तर्दर्शन का अर्थ है ध्यान-धारणा करना, परन्तु हम तो अस्वाभाविक ढंग से रहते हैं, न केवल आप सबको ध्यान-धारणा करनी चाहिए। भी मैं आपको बताना चाहूंगी कि हमने कार्यभारियों शारीरिक स्तर पर परन्तु मानसिक स्तर पर मस्तिष्क के स्तर पर हम क्या करते हैं ? हम बहस की एक गोष्ठी की, वे आए तथा बैठक में बैठ गए। किए चले जाते हैं। सफाई देते रहते हैं आदि-आदि। ज्योंही वे एकत्र हुए मेरे पेट में इतना तेज़ दर्द हुआ इसका कोई अन्त नहीं है। इसमें सिरदर्द हो जाता है। यदि आप स्वाभाविक हैं, अत्यन्त स्वाभाविक, तो नहीं कर सकते। किसको ये सब कष्ट थे, मैं नहीं तथा इतनी भयंकर पेचिश मुझे हुई कि आप विश्वास 1 आप तुरन्त जान जाएंगे कि दूसरा व्यक्ति क्या जानती! जब तक ठीक होकर आप स्वच्छ नहीं हो कहने, क्या अभिव्यक्ति या क्या करने का प्रयत्न जाते, माँ होने के नाते मैं बुरा नहीं मानती। जिस कर रहा है। इसके विषय में आपको बहुत सोच प्रकार पृथ्वी माँ आपकी देखभाल करती है, मैं भी विचार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप आपकी देखभाल करती हूँ। आप भले हों या बुरे, दूसरों के मन को जान सकते हैं। इसका यह पृथ्वी माँ की तरह मैं भी आपसे प्रेम करती हूँ। अभिप्राय नहीं कि आप दूसरों की बुराइयों को परन्तु मुझ पर कृपा करके यदि आप वास्तव अपना लें। सोख लेने का अर्थ है दूसरे व्यक्ति की में अच्छे सहजयोगी बन जाएं, केवल विचारशील बुराइयों को समझ कर उन्हें बहा देना। दूसरा ही नहीं, केवल बहस तथा दूसरों की आलोचना व्यक्ति जो भी कह रहा है उसे भली-भांति समझकर करने वाले ही नहीं, और नियम से प्रतिदिन उसकी बुराइयों को आप धो डालते हैं। अब इस आदिशक्ति की समस्या यह है कि तो, मैं आपको बताती हूँ, मेरा स्वास्थ्य अव्वल आप सब लोगों को अपने शरीर में स्थान देने का, दर्जें का हो जाएगा, क्योंकि मैंने आपके अन्तःक्षेप आपको आत्मसात करने का निर्णय मैंने किया मैं (कष्ट एवं समस्याएं) अपने अन्दर समोह लिए जानती हूँ कि यह अत्यन्त भयानक खेल है परन्तु हैं और अकारण वे मेरे जीवन को कष्ट-कर मैंने यह खेल खेला क्योंकि इस समय पर यह बनाने लगते हैं। आप देखें कि मैंने यह खतरा मुझसे अपेक्षित था कि मैं आप सब को स्वयं में अपने पर ले लिया है और विवेकशील होने के नाते | मात्र दस-पन्द्रह मिनट ध्यान-धारणा करें 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 21 अक्तुबर, 1997 आप नहीं चाहेंगे कि आपकी माँ यह कष्ट उठाए। से कुछ भी कार्यान्वित न होगा। मेरे लिए यह प्रतिदिन का क्रूसारोपण है और कभी कभी तो मेरी समझ में नहीं आता कि क्या और सहजयोग के प्रचार के लिए बाहर भी जाना तो व्यक्ति को ध्यान-धारणा करनी होगी कहा जाए! उदाहरण के रूप में उस दिन दिल्ली में होगा। दोनों ही कार्य किए जाने आवश्यक हैं। मान एक भद्र पुरुष, जो कि कार्यभारी (नेता) हैं मुझे लो आप ध्यान-धारणा करते हैं और सहज प्रचार मिलने के लिए आए और मेरे एक पैर में जलन तथा नहीं करते हैं तो आपका उत्थान कभी न होगा दर्द होने लगा। मेरी समझ में नहीं आया कि उसे क्योंकि यह कुण्डलिनी विवेकशील महिला हैं-अत्यन्त बाहर जाने के लिए कैसे कहूँ। मैं उसे चोट नहीं विवेकशील, वह सोचती हैं कि क्यों मैं इस व्यक्ति पहुँचा सकती थी परन्तु मैंने कहा, "क्या बात है, को सन्त बनाऊ? क्या लाभ है? सहजयोग किसी आप कहाँ गए थे और क्या किया था?" उसने व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है कि कोई एक व्यक्ति महसूस किया और बाहर चला गया और उसके सन्त बनकर कहीं बैठ जाए। ऐसा नहीं है। यह जाते ही मेरा पैर ठीक हो गया सामीप्य का भी, मैं किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं है, स्वयं के लिए सोचती हूँ, प्रभाव होता है क्योंकि इस प्रकार नहीं है। यह व्यक्तिगत नहीं है, यह सामूहिक समस्याओं से भरे कोई पुरुष या स्त्री जब मेरे चित्त घटना है। आप यदि सामूहिकता की सहायता नहीं समीप आ जाते हैं तो मुझे क्रास (कष्ट) करते तो कुण्डलिनी कहती है कि आप ऐसे ही ठीक हैं-हमारे शरीर की तरह से। शरीर में यदि कोई के बहुत उठाना पड़ जाता है। एक साधारण सी बात जिसकी समझ हमें अंग या कोषाणु विशेष यदि ये कहे कि बस अब मैं होनी चाहिए वह यह कि हम सहजयोग में क्यों हैं। ठीक हूँ, अब मैं कोई कार्य नहीं करूँगा, अब मुझे कल जैसे आपने भजन में गाया, कि हम उत्थान के उत्थान की कोई आवश्यकता नहीं है। अब मैं पूरे लिए अधिक से अधिक ऊँचा उठने के लिए सहजयोग शरीर के विषय में क्यों चिन्ता करूँ तो यह कार्यान्वित में हैं। जिस प्रकार गहनता प्राप्त करने की अपनी न होगा यह एक जीवन्त सुसंगठन है जिसे बढ़ना आकांक्षा की अभिव्यक्ति आपने की वह बहुत अच्छी है। इसे बढ़ना है और आत्मसात करना है। शक्ति लगी। निःसन्देह; यह आनन्ददायी थी। परन्तु इसे प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान-धारणा करनी प्राप्त करने के लिए हम क्या कर रहे हैं, गम्भीरता होगी और उत्थान को पाना होगा। आपका यदि पूर्वक हमें सोचना चाहिए कि क्या हम ध्यान- उत्थान नहीं होता तो आप समाप्त हो जाएंगे। फिर धारणा करते हैं ? अन्य लोगों के उत्थान तथा उन्हें आप सहजयोगी नहीं रहेंगे। जिस व्यक्ति ने आत्मसाक्षात्कार देने के लिए क्या हम कुछ कर रहे किसी को भी आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया वह हैं ? इस क्षेत्र में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक सहजयोगी हो ही नहीं सकता। अन्य सभी कार्य कर रहे हैं । पुरुष कार्य तो अधिक करते हैं गतिविधियों के साथ साथ मुख्य गतिविधि यह होनी परन्तु चाहिए कि किस प्रकार हम अन्य लोगों को साक्षात्कार धारणा करती हैं और पुरुष बाहर का कार्य करते देते हैं। जब तक हम वास्तव में जीवन के इस पक्ष हैं। श्रम का यह अच्छा विभाजन है कि तुम घर की ओर नहीं देखते, हम सहजयोग की गहनता में बैठकर ध्यान करो और हम बाहर जाएंगे। इस तरह नहीं उतर सकते। वे ध्यान-धारणा नहीं करते। स्त्रयाँ ध्यान 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 22 अक्तुबर, 1997 य उदाहरण के रूप में आप मेरी ही स्थिति को नहीं देते। तो विश्व की इस भयंकर समस्या का लें। मैं ठीक हूँ, पूर्ण हूँ। मुझे कोई समस्या नहीं। समाधान किस प्रकार हो कि इसमें प्रेम नहीं है फिर भी क्यों मैं इतना कठोर परिश्रम करती हूँ और परमात्मा के प्रेम को इस विश्व ने कभी नहीं जाना, क्यों अधिकाधिक सहजयोगी चाहती हूँ? यह सब यह प्रेम उन्हें दिया ही जाना चाहिए। परमात्मा के क्या है ? मुझे तो विकसित भी नहीं होना, मैं पहले से ही अति विकसित हूँ। यह सब करने की मुझे उनके लिए आवश्यक है। वे यदि इस प्रेम को नहीं कोई आवश्यकता नहीं है, परन्तु क्यों? क्या जान पाते तो, मैं कहूँगी कि, आप स्वार्थी (अपने तक इस प्रेम, आदिशक्ति की शक्ति को अनुभव करना आवश्यकता हैं? आवश्यकता प्रेम की है। मुझमें सीमित) हैं। इस दिव्य प्रेम का आनन्द स्वयं ले रहे इतना प्रेम है कि उसको प्रवाहित करना मेरे लिए हैं परन्तु अन्य लोगों को आप यह प्रेम नहीं देते। आवश्यक है । ऐसा किए बिना मैं घुट जाऊँगी। यही कारण है कि मानव में सन्तुलित व्यक्तित्व की स्वयं से तो मैं प्रेम नहीं कर सकती। तो इस प्रेम सृष्टि करने में कभी कभी सहजयोग असफल हो का बॉटना आवश्यक है। इस कार्य के लिए मुझे जाता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं-मान लो एक इस प्रेम को ले जा कर उन्हें आनन्दित कर सकें। सहजयोगी का किसी सहजयोगिनी से विवाह हुआ। यह मेरा एक स्वप्न है। इस विशेष समय पर, बहुत अब मेरी इच्छा यह है कि वे एक दूसरे को समझें, परस्पर प्रेम विकसित करें परन्तु साथ ही साथ अन्य यह स्पष्ट है कि इस कार्य को करने के लिए विशेष लोगों के लिए तथा सहजयोगियों के लिए भी उनमें प्रेम विकसित हो। केवल इसी तरह से हम सहज आप लोगों की आवश्यकता है जो अन्य सब तक से सन्तों तथा पैगम्बरों ने उसका वचन दिया था। रूप से चुने गए लोग आप ही हैं। अब आप स्वयं को कितना महत्वपूर्ण समझते विवाह को न्यायोचित बना सकते हैं। अन्यथा उनके हैं, यह एक अन्य बात है। अपने मोक्ष के लिए आप विवाह का क्या उपयोग है ? परन्तु ऐसा होता नहीं कार्य करते हैं, ध्यान-धारणा करते हैं। ठीक है। है होता क्या है कि विवाह के पश्चात् या तो आपस परन्तु परमात्मा के इस दिव्य प्रेम का प्रसार यदि में झगड़ कर वे तलाक मांगेंगे और सौभाग्यवश यदि आप नहीं करते तो क्या उपयोग हैं? मान लो मैं ऐसा न हुआ तो वे अपना घर, अपना परिवार बनाने किसी चीज़ की भली -भांति मरम्मत करती हूँ। मान लगेंगे और स्वयं को क्षुद्र, अतिक्षुद्र तथा सीमित लो यह मशीन (माइक्रोफोन) को मैंने अच्छी तरह बनाने लग पड़ेंगे क्या आप इसीलिए सहजयोग में ठीक कर दिया, परन्तु इस पर यदि मैं बोलती नहीं आए हैं ? आप को अपनी जिम्मेदारी समझनी तो इसका क्या लाभ है? इसी प्रकार यदि आप चाहिए। पृथ्वी माँ को देखें, किस प्रकार यह अपनी कठोर परिश्रम करते हैं- (मैं जानती हूँ कि कुछ जिम्मेदारी समझती हैं! ये गारे और मिट्टी से बनी हुई हैं-परन्तु इनकी ओर देखें। वे कितनी चेतन हैं. कितनी असाधारण हैं, किस तरह सभी कुछ कार्यान्वित करती हैं, कितनी सतर्क हैं और कितनी सावधान! आप, जिन्हें सभी प्रकार के वरदान प्राप्त हो गए हैं, क्या अन्य लोग प्रातः चार बजे उठते हैं, स्नान करते हैं, ध्यान धारणा करते हैं) - परन्तु वे कभी बाहर जाकर सहजयोग के विषय में अन्य लोगों से बातचीत नहीं करते और न ही सहजयोग का प्रचार करते हैं तो लोगों तक इन्हें पहुँचाने की सोचते हैं ? क्या लाभ है ? परमात्मा का प्रेम वे अन्य लोगों को 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt सितम्बर अक्तुबर, 1997 चैतन्य लहरी 23 केवल बारह शिष्यों से, ईसाई धर्म का प्रचार केवल आप ही नहीं हैं, विश्व के अधिकाधिक लोग हुआ, यद्यपि यह अच्छा कार्य न था। सभी अनिष्टकर इसका आनन्द प्राप्त करें। चीज़ों का इतना प्रचार हुआ. तो सहजयोग सी हितकारी चीज का क्यों नहीं? इसे फैलाना ही के बच्चों के रूप में हमें पूर्ण प्रयत्न करना है, हर चाहिए. भिन्न स्थानों पर इसे जाना ही चाहिए। जगह जाना है और चिल्ला- चिल्ला कर लोगों को प्रयत्न कर के देखें कि कहाँ जाकर आप इसके बताना है कि हम कौन से समय में जी रहे हैं और विषय में बातचीत कर सकते हैं और अन्य लोगों सहजयोगियों के रूप में आपने कौन की जिम्मेदारियाँ की सहायता के लिए कुछ कार्य कर सकते हैं तथा निभानी है आपके यहाँ होने का भी तो कोई कारण किसी भी प्रकार सन्ताप दुःख और विनाश से परिपूर्ण जीवन से ऊपर उठने की चेष्टा करें। समय श्री माताजी पिछले जन्म में मैं क्या था, क्या मैं तो आज हमें निर्णय करना है कि आदिशक्ति होगा। जैसे आरम्भ में सहजयोगी मुझसे पूछा करते थे, मैंने बहुत कम है और मैं सोचती हूँ कि यदि आप समय शिवाजी था? कहा, "क्या लाभ है?" आप जो भी को देखें तो जान पाएंगे कि जिस गति से हम चल रहे हों परन्तु आज जो आप हैं आप उनसे बहुत ऊँचे रहे हैं वह धीमी है। अपने निरन्तर अत्यन्त गहन है समझने का प्रयत्न करें। पूर्व जन्मो में आप नेपोलियन प्रयत्नों से हमें कहीं अधिक तेज़ी से बहत आगे तक रहे हों, कोई बड़े राजा या रानी रहे हों तो इसका क्या जाना है और बहुत सहजयोगी बनाने हैं। परन्तु लाभ है? उन्होंने क्या किया ? क्या उन्होंने किसी की हमारे लिए सहजयोग का कोई महत्व नहीं है और कुण्डलिनी उठाई ? क्या उनमें कोई शक्ति थी ? क्या इसीलिए हम अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल ईसा और मोहम्मद साहब के शिष्यों ने इस दिशा में हो जाते हैं। हमें पृथ्वी माँ से सीखना होगा। आप कोई कार्य किया? क्या उन्हें कुण्डलिनी की कोई समझ कह सकते हैं कि श्री माताजी हम आपकी तरह थी? क्या उनमें किसी के प्रति इतना प्रेम था कि वो उन्हें कैसे हो सकते हैं? आप तो आदिशक्ति हैं। बहुत से आत्मसाक्षात्कार देना चाहते। कुछ सूफी सन्त थे जिन्होंने लोग कहते हैं कि आप आदिशक्ति हैं. तो क्या ? कुछ लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, परन्तु बहुत से एक अंगुली से आप चीजों को शान से चला सकती सन्त ऐसे हुए जिन्होंने किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं हैं । परन्तु मैं क्यों ऐसा करूँ? क्यों मैं ऐसा करूँ? दिया। मोहम्मद साहब ने किसी को आत्मसाक्षात्कार है। आवश्यकता क्या है? तो यह सोचते हुए कि आप नहीं दिया, गौतम बुद्ध ने किसी को साक्षात्कार नहीं मेरे ही प्रतिबिम्ब हैं, कि मैं ही पृथ्वी माँ हूँ, आपके दिया। आप सोचे कि ईसा ने कभी किसी को अन्दर की सुन्दर, रचना के लिए आपको विश्व की आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। किसी को भी नहीं। राम आवश्यकताओं के प्रति अत्यन्त संवेदनशील बनना और कृष्ण ने भी ऐसा नहीं किया । आपके अतिरिक्त होगा। विश्व की क्या आवश्यकता है? आज यदि कोई इस कार्य को नहीं कर सकता। आप कुण्डलिनी आप असफल हो जाते हैं तो पूरा कार्य हमेशा के के विषय में सभी कुछ जानते हैं और आप ही इस कार्य लिए असफल हो जाएगा। केवल थोड़े से सहजयोगी को कर सकते हैं। यह बहुत बड़ी चीज़ है क्योंकि आप रह जाएंगे तो आपके लिए आवश्यक है कि आदिशक्ति के बच्चे हैं आप और आपकी माँ (श्री सहजयोग को फैलाएँ क्योंकि यह प्रेम केवल आपके माताजी) यहाँ विद्यमान हैं। मेरे लिए यह सौभाग्य की लिए ही नहीं है। इसका आनन्द लेने के अधिकारी बात है कि आप यहाँ हैं। मुझे आप पर गर्व है। परन्तु पड 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 24 अक्तुबर, 1997 मुझे आपको बताना है कि कार्य को तीव्र गति से करना होगा। तीव्र गति से चलते हुए अधिक लोगों को सहजयोग में लाना होगा किसी भी बात को बलपूर्वक कहना मेरे लिए बहुत कठिन है, आप जानते हैं कि यह मेरा स्वभाव नहीं है। क्रोधित होकर मैं आपसे कुछ भी नहीं कह सकती। यदि आप असफल हो जाते लें तो आपके अन्दर बार बार ऐसा करने की इच्छा होगी। सहजयोग में आने के पश्चात् हमारी जरूरत इस इच्छा में परिवर्तित हो जाती है कि हे परमात्मा यह व्यक्ति जा रहा है। क्या मैं इसे बुला कर आत्मसाक्षात्कार दूँ? गली में जाते हुए किसी व्यक्ति को देख कर आप कहेंगे, "आप यहाँ आइये मैं आपको कुछ भेंट करूंगा" और उस व्यक्ति को बैठा कर आप उसे आत्मसाक्षात्कार परन्तु हैं तो इसका अभिप्राय यह होगा कि आपने मुझे पूर्णतः असफल कर दिया। इसका यही अर्थ है, इससे जरा देंगे। यह आपकी शैली हो जायेगी कि किसी उन्मत्त भी कम नहीं और यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते तो व्यक्ति की तरह से आप कहेंगे, "ओह, नहीं इस भद्र मैं आपसे प्रार्थना करती हैँ कि आज आप शपथ लें कि पुरुष ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया, आओ हम आप सहजयोग को फैलाएंगे, सहजयोग का ज्ञान इसे आत्मसाक्षात्कार दें।" आपको चर्चों में जाना प्राप्त करेंगे और सहजयोग के विषय में बातचीत होगा, आपको विश्वविद्यालय में जाना होगा, करेंगे। बहुत से लोगों को कुछ पता ही नहीं है। हैरानी आपको उन सभी सभाओं में जाना होगा, जहाँ की बात है कि कुछ सहजयोगी कुछ भी नहीं जानते लोग यह नहीं जानते कि वह क्या प्राप्त कर और मेरे लिए समस्याएं खड़ी करते हैं । जैसे विवाह, सकते हैं और निडरतापूर्वक, बिना किसी द्वेष के उन्हें आप अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकते, आप अपने इसके विषय में बताना होगा उनसे बातचीत करके पति के साथ नहीं रह सकतीं। सहजयोग में लोग मेरे आपको उन्हें बताना चाहिए कि आपके हितार्थ सहायता लिए सभी प्रकार की मूर्खता पूर्ण समस्याएं खड़ी करते करने के लिए हम लोग यहाँ आये हैं। अपने हित के रहते हैं। आप यहाँ समस्याएं खड़ी करने के लिए हैं या लिए हम लोग यहाँ नहीं आये हैं, आपके हित के लिए आये हैं। अब आप हमारी बात सुने और मुझे पूर्ण निःसन्देह कुल मिलाकर हमने अच्छा कार्य विश्वास है, पूर्ण विश्वास, कि आपके अन्तरिथत कुण्डलिनी प्रसन्न होंगी जो लोग उसका पूर्ण उपयोग नहीं करते कुण्डलिनी उनसे प्रसन्न नहीं है । तो कुण्डलिनी आपकी सहायता करके बहुत प्रसन्न होंगी तथा पूरे विश्व को उनका समाधान करने के लिए? किया अभी तक हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर परन्तु सके, आनन्द एवं उत्साहपूर्वक इसके लिए हमें तीव्रता से कार्य करना होगा। आप नहीं जानते कि किसी को मोक्ष प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक कार्य करेगी। आत्मसाक्षात्कार देते हुए आपको क्या आनन्द प्राप्त होता है। एक बार आप इसे आजमायें, इसका आनन्द परमात्मा आपको धन्य करें। TIM 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt 25 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन १८ जनवरी १६६३ आवर चि तो अब हम अपनी यात्रा के प्रथम अर्ध भाग करके, या बाह्य रूप से विशेष प्रकार का आचरण का समापन कर रहे हैं। अब हमें अपनी ओर देख करके वे वैसे ही बन जाते हैं। यह असत्य है। कर यह जानने की चेष्टा करनी है कि इस यात्रा पश्चिमी देशों के हिप्पी जैसे स्वयं को आदिमानव से हमने क्या प्राप्त किया। हमें समझना होगा कि बौद्धिक गतिविधियों बन सकते क्योंकि आप इतने अति-विकसित हैं कि से सहजयोग नहीं होता। जैसे बहुत से लोग सोचते आप आदिमानव बन ही नहीं सकते तो बुद्धि द्वारा हैं कि यदि आप स्वयं से मात्र इतना कहें-"आपको कुछ करने से हम वैसे नहीं बन सकते। ऐसा बनना है". तो यह घटित हो जायेगा, हर समय यदि आप स्वयं को बताते रहें कि , "ओह, जा सकता है। आपमें से कुछ लोग सोचते हैं कि तुम्हें फलां समस्या से मुक्ति पानी होगी", तो यह कुछ आरतियों या मन्त्रों को जबानी रट लेने से ठीक हो जायेगी। या कुछ लोग सोचते हैं कि यदि आपको गहनता (वजन) प्राप्त हो जाएगी। पर यह वे किसी अन्य को बताएं कि आपमें यह कमी है भी असत्य है क्योंकि रटे हुए मन्त्र भी तो शब्द हैं। और आप ठीक हो जाइये, तो वह ठीक हो जायेगा। आपके अन्दर यदि ये जागृत हैं तब ये 'मन्त्र' बात ऐसी नहीं है क्योंकि सहजयोग बौद्धिक स्तर बनते हैं और तब आप इन्हें कार्यान्वित कर पर कार्य नहीं करता यह आध्यात्मिक स्तर पर सकते हैं। परन्तु मन्त्र - सृष्टि करने की शक्ति प्राप्त कार्य करता है और आध्यात्मिकता का स्थान करने के लिए सर्वप्रथम आपको एक आदर्श स्थिति बौद्धिकता से बहुत ऊँचा है। तो आप के करने योग्य कार्य यह है कि हैं तो आवश्यक नहीं कि यह पहुँच रही हो । आपने अपने चक्रों को ठीक करने का ज्ञान प्राप्त हमें बिना किसी बन्धन में फंसे सत्य का सामना करना है और अपनी मशीन (शरीर तन्त्र) को चलाने करना है। मन्त्र को प्रकाशरंजित (जागृत) करने के की विधि सीखनी है। सम्भवतः लोग अब भी बौद्धिक लिए भी आपको विशेष गहनता प्राप्त करनी होगी। मान बैठते हैं। किसी भी प्रकार आप आदिमानव नहीं सूक्ष्म रूप में यह बौद्धिक स्तर और भी आगे पानी होगी इसी प्रकार जब आप आरती गाते स्तर पर रहते हैं तथा बुद्धि से ही समस्याओं का समाधान करने का प्रयत्न करते हैं। यही कारण है (कम से कम) आवश्यकता है। यदि आपके कुछ कि समस्याएं बढ़ने लगती हैं। यदि आपके किसी चक्र खराब हैं तो मेरे फोटो के सम्मुख बैठ कर चक्र में खराबी है या कहीं कोई पकड़ है, या प्रार्थना करें। फोटो को अपेक्षित सम्मान दिया जाना आपको कोई गड़बड़ दिखाई देती है तो आध्यात्मिक चाहिए क्योंकि फोटो ही सभी कार्य करेगा या यदि स्तर के अतिरिक्त इसका समाधान किसी अन्य मैं साक्षात् में वहाँ हूँ- इसके अतिरिक्त विधि से खोजने का कोई लाभ नहीं । कुछ लोग परन्तु एक बार यदि आप बोध (ज्ञानदीप्ति) पा लें तो समझते हैं कि किसी विशेष प्रकार के वस्त्र धारण आप मन्त्रों का उपयोग कर सकते हैं, अन्यथा ये स्पष्ट चैतन्य लहरियों का होना इसकी निम्नतम कोई नहीं। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी सितम्बर 26 अक्तुबर, 1997 डाल देते हैं। कल का उदाहरण हमने देखा। मैं परन्तु सर्वप्रथम आपके हृदय का शुद्ध विश्वस्त थी कि उन्हें अगले दिन जाना है परन्तु होना आवश्यक है। मैंने प्रायः देखा है कि कोई भी मेरी बात सुनने को तैयार न था। वे चले गए और उन्हें पता चला कि अगले दिन के लिए आपकी सहायता न कर पाएंगे। अधिकतर पश्चिमी लोगों में विशेष रूप से दो चक्र ठीक कार्य नहीं करते। हृदय प्रथम चक्र है। इसका अर्थ है कि हृदय अब भी साफ नहीं है, स्वच्छ नहीं टिकटें लाई गई हैं। स्वच्छ हृदय होने पर ही आपको यह ज्ञान आता है। जैसे कल मैंने कहा कि है, तथा हृदय से अब भी आप तुच्छ व्यक्ति हैं; आप न आएं तो अच्छा होगा। वहाँ की स्थिति का आपने अपनी श्री माताजी को अपने हृदय में नहीं ज्ञान मुझे न था। फिर भी मैंने कहा, "आप न बिठाया। माँ के कार्य को समझते हुए उन्हें अपने हृदय में धारण करके, अपने पूर्ण प्रेम - भाव से फोटो को देखते हुए आप अपना ह्ृदय विचार आपको आता है। परन्तु लोग तो समझते ही शुद्ध करें। हृदय यदि स्वच्छ नहीं है तो सभी नहीं कि उन्हें हृदय के माध्यम से कार्य करना है. कार्य व्यर्थ हैं क्योंकि प्रकाश-हीन ( अस्वच्छ) म हृदय ही सभी कुछ कर रहा है। हृदय का पूर्ण जब हमें कार्य करने होते हैं तो हम अपने मस्तिष्क स्वच्छ एवं पूर्णतः समर्पित होना आवश्यक है आप को स्मरण, अभ्यास विचार तथा प्रशिक्षण द्वारा सब सहजयोगी हैं अतः मैं आपको यह सब बता विकसित करने का प्रयत्न करते हैं । हम मस्तिष्क सकती हूँ। जो लोग सहजयोगी नहीं, उन्हें मैं यह को प्रशिक्षित करने का प्रयत्न करते हैं । अब नहीं कह सकती। सहजयोग का वर्णन हम अपने संदर्भ में और सहजयोग में हृदय को प्रशिक्षित करने के लिए करते हैं, परमात्मा के संदर्भ से नहीं। परमात्मा जो सर्वप्रथम हमें समझना है कि यह अहॅ से घिरा हैं, वे हैं। वे स्वयं को परिवर्तित नहीं कर सकते, है। सिर का तालु भाग, वास्तव में, हृदय का आप को ही परिवर्तित होना है। तो परमात्मा के प्रतिनिधित्व करता है। अहॅ यदि है तो हृदय सदा विषय में जो भी कुछ हम सोचते हैं, वही हम धारण करना चाहते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई सोचता है कार्य नहीं कर रहा होगा, केवल उसका मानसिक कि वह मेरे प्रति अच्छा होने का प्रयत्न करता है, या प्रक्षेपण होगा, और आपको लगेगा कि मैं इस कार्य यदि वह मेरे समीप ( तथाकथित) है, या यदि वह सोचता है कि वह अन्य लोगों से अच्छा आयोजन नहीं है। आएं।" समाप्त, क्योंकि मैं जानती थी कि यह घटित होगा तो स्वच्छ हृदय होने पर ही यह स्पष्ट मस्तिष्क के माध्यम से नहीं। मस्तिष्क के माध्यम से सहजयोग में हमें अपना हृदय प्रशिक्षित करना है, हुआ "तथा-कथित हृदय ही होगा वास्तविक हृदय को हृदय पूर्वक कर रहा हूँ। वास्तव में बात ऐसी करता है, या कोई भी कार्य-भार सम्भालते हुए यदि हमारा हृदय दुर्बल है तो हमें क्या करना चाहिए। आप कह सकते हैं कि स्वयं को लेना चाहिए कि यह सब बौद्धिक है। वास्तव में बताने का प्रयत्न करें कि यह अच्छा नहीं है वह अच्छा नहीं है, आदि-आदि और सभी प्रकार की कुछ करने का प्रयत्न करते हैं तो वास्तव में आप बौद्धिक या स्वतः सुझाव या जिस प्रकार से मनोरोग स्वयं को तो भ्रमित करते ही हैं, मुझे भी उलझन में चिकित्सक लोगों को सुझाव देते हैं। परन्तु यह भी स्वयं को महत्वपूर्ण समझता है तो व्यक्ति को जान आप कुछ नहीं कर रहे। कर्ता भाव से जब भी आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर, 1997 27 बौद्धिक है जो कि कार्य न करेगा। हमारे लिए होगा। हाथ से उठाना निःसन्देह ठीक है, परन्तु तत्व समझना आवश्यक है कि हमें अपनी बायीं ओर को उठाकर दाई ओर को डालना होगा। इसके बिना के अन्दर विद्यमान सभी तत्व उसे गर्मी प्रदान करते कोई रास्ता नहीं। अपने हाथों से आपको यह हैं, हम कह सकते हैं प्रकाश या अग्नि। अतः दाई कार्यान्वित करना होगा। अब आपके हाथ कार्य कर ओर के लोगों को अग्नि अधिक सहायता न कर रहे हैं मस्तिष्क नहीं। अतः अपने हाथों तथा सहजयोग की विधियों का उपयोग करें। सभी सहजयोगी नियमित रूप से पानी में उपयोग करेंगे तो इसका कोई लाभ न होगा लाभ 1 का क्या होगा। दाई ओर के (उग्र स्वभाव) व्यक्ति सकेगी। जैसे फोटो के सम्मुख तथा अह ग्रस्त लोगों के सम्मुख यदि आप दीपक (प्रकाश) का बैठें। यह अत्यन्त आवश्यक है। प्रतिदिन प्रातःकाल तो पृथ्वी माँ और जल तत्व से होगा जो शीतलता प्रदान करते हैं। दाई ओर के लोगों के लिए बर्फ भी अवश्य ध्यान-धारणा करें क्योंकि बौद्धिक स्तर पर हम कहते हैं कि हम श्री माताजी के साथ थे, ठीक बहुत लाभदायक है। तो उग्रता को ठीक करने के है। यह अभिव्यक्तिकरण ठीक है। आप लोग आए, लिए सभी शीतलता प्रदान करने वाले तत्वों का आपने देखा कि भारतीय कैसे लोग हैं और सहजयोग उपयोग किया जाना चाहिए ताकि आप शान्त हो के लिए अच्छे हैं। परन्तु यह सब देखने के पश्चात् जाएं। खाने के विषय में भी ऐसा ही है। दाई ओर आपको जानना होगा कि सहजयोग को के लोगों को ऐसे भोजन लेने चाहिए जो शान्त करने कार्यान्वित करना पड़ता है। उसे सोचना नहीं वाले हों जैसे कार्बोहाइड्रेटस अर्थात् उन्हें काफी पड़ता । इसके विषय में सोचने मात्र का कोई सीमा तक शाकाहारीं बन जाना चाहिए। मॉस खाना लाभ नहीं। विचारों के माध्यम से आप जो भी सोचने का प्रयत्न करें, सहजयोग में आप कोई निकला खाना बहुत गर्म होता है । इस प्रकार आप सफलता प्राप्त न कर पाएंगे। आपको अपने हाथों अपने चक्रों के भौतिक भाग को ठीक कर सकते हैं । का उपयोग करना होगा अपना पाँच आपको पानी बाई ओर के (तमोगुणी) लोगों को चाहिए कि में डालकर बैठना होगा क्योंकि जल समुद्र है। ये दीप-प्रकाश या अग्नि तत्व का उपयोग अपनी बाई सभी पाँचों चक्र या कहें छः चक्र, मैं पाँच इसलिए ओर को ठीक करने के लिए करें। खाने में ऐसे कह रही हूँ कि पहला चक्र मूलाधार है और सातवाँ तथा सबसे ऊपर वाला चक्र मस्तिष्क हैं. तो इस विचार के साथ कि यह मध्य के पाँचों चक्र मूलतः आवश्यक है। भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पाँच तत्वों से ही इन चक्रों का शरीर बना है हमें पूर्ण सावधानीपूर्वक इन मूल चीज़ है और कुण्डलिनी, जैसा कि मैं आपको पाँचों चक्रों का संचालन करना चाहिए। जिन तत्वों बता चुकी हूँ. शुद्ध इच्छा है सावधानीपूर्वक इस से यह चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को बात को सुने -यह शुद्ध इच्छा' है। इसका अर्थ निकालकर इन चक्रों का शुद्धिकरण करना है उदाहरण के रूप में यदि कोई व्यक्ति उग्र स्वभाव एक शुद्ध इच्छा है और वह है परमात्मा से- ब्रह्म से का है तो उसे बाई ओर से संतुलन प्राप्त करना हो तो चिकन ही लेना चाहिए, मछली या समुद्र से लोगों को नाइट्रोजन परिपूर्ण अर्थात् प्रोटीनयुक्त भोजन करने चाहिए। अधिक प्रोटीन उनके लिए सहजयोग का जहाँ तक सम्बन्ध है. कुण्डलिनी | यह हुआ कि अन्य सभी इच्छाएं अशुद्ध हैं। केवल एकाकारिता। केवल यही शुद्ध इच्छा है। शेष सभी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अक्तुबर 1997 28 होता। इच्छाएं अशुद्ध हैं। तो धीरे-धीरे यह इच्छा प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित करना है। इस तरह से यदि आप अपने मस्तिष्क तनावग्रस्त होने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं यदि को प्रशिक्षित करेंगे तो आप शुद्ध इच्छा विकसित आपमें कोई त्रुटि देखकर आपको डांट भी दूँ तो यह कर सकते हैं और फिर सभी अन्य इच्छाएं शनैःशनैः भी आपके हित के लिए है। यदि मैं सराहना करूं समाप्त हो जाएंगी। ठीक है ? अब परमात्मा से तो यह भी आपके हित के लिए है। मेरा सहजयोग एकाकारिता की यह इच्छा ही शुद्धतम एवं उच्चतम इसी प्रकार कार्य करता है। पूरे विश्व में मुझे किसी है। तो इसे प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना है। के साथ वैमनस्य नहीं है, विश्व के किसी भी व्यक्ति बड़ी साधारण सी बात है कि इस इच्छा को प्राप्त के लिए मुझमें वैमनस्य एवं क्रोध नहीं है। करुणा के करने के लिए आपको अपनी माँ को प्रसन्न रखना अतिरिक्त मेरे पास कुछ है ही नहीं। उसी करुणा होगा आदिशंकराचार्य ने कहा है कि किसी चीज़़ में मुझे कभी डॉटना पड़ता है और उसी करुणा में की चिन्ता न करें केवल अपनी माँ (श्री माताजी) को मुझे दया पूर्वक बोलना पड़ता है। दोनों ही तरह से प्रसन्न रखें। आपको सरल बनना होगा मुझसे यह आपके हित के लिए है। दोनों ही प्रकार से यह मुख्य बात अपने मस्तिष्क को दूसरे आपको मुझसे नाराज नहीं होना। 1 कभी चालाक बनने का प्रयत्न न करें। मैं सबको आपकी सहायता करता है। तो परमात्मा को भली भांति जानती हूैँ। तो स्वयं से कहें कि "मुझे धन्यवाद दें कि उपयुक्त समय पर आपको सुधारने ऐसी बातें कहनी हैं, ऐसे ढंग से बर्ताव करना है जो के लिए कोई व्यक्ति है, क्योंकि आप सन्त हैं और श्री माताजी को प्रसन्न करें ?" मान लो आप पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य स्थापित करने के सहजयोगी हैं और गलत कार्य कर रहें हैं तो यह लिए अवतरित हुए हैं। यही कार्य आपको करना है। मुझे प्रसन्न नहीं कर सकता।"तो श्री माताजी को यदि आप लोगों का सम्मान नहीं होता, यदि आप कैसे प्रसन्न करें?" यह बात आप स्वयं देखने का विवेकशील नहीं हैं, यदि आपमें गरिमा नहीं है या प्रयत्न करें कि कौन सी चीज़ मुझे सबसे ज्यादा यदि आप अभद्र आचरण करते हैं तो किस प्रकार प्रसन्न करती है। मैं अत्यन्त सरल व्यक्ति हूँ- लोग आपको स्वीकार कर सकते हैं ? जिसका हृदय सरल हो। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति जो तो हृदय चक्र की देखभाल आवश्यक है और अधिक दिखावा करने का प्रयत्न करता है, अपने हृदय की इच्छा से ही आप अपनी श्री माताजी सबसे आगे रहने का या फिल्म स्टार बने रहने का को प्रसन्न रख सकेंगे। मैं यदि आपसे नाराज़ भी हूँ प्रयत्न करता है, ऐसे व्यक्ति मुझे पसन्द नहीं हैं। तो भी इसका बुरा न मानो। आपका नाराज़ होना आपको अति शान्त और दिखावा करने के मामले में यह दर्शाता है कि अभी आपमें सहजयोग विकसित अत्यन्त संकोचशील होना है। क्या में कभी दिखावा नहीं हुआ। मैं जब आपको डाँटती हूँ तो इसलिए कि करती हूँ कि मैं आदिशक्ति हूँ? मैं ऐसा नहीं करती आपके अन्दर कोई ऐसी नकारात्मकता होती है जो हूँ। आपकी तरह से ही मैं रहती हूँ। पूर्णतः आपकी केवल डांटने से ही निकल सकती है। तो मेरी डांट तरह । क्या मैं कभी दिखावा करने का प्रयत्न करती को अपने सुधार का एक तरीका मानकर स्वीकार हूँ? तो आप क्यों मेरे सम्मुख दिखावा करने का करें आपके अन्दर कोई कांटा चुभा हुआ है जो कि प्रयत्न करें? तो इस प्रकार का व्यक्ति अच्छा नहीं दूसरे कांटे से ही निकल सकता है और श्री माताजी बहुत 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 29 अक्तुबर, 1997 ने वह कांटा निकाल दिया। मेरी दयाद्रता को एक और महालक्ष्मी तत्व में प्रवेश के लिए आपको अपनी बार जब आप समझ लेंगे तो मेरी किसी बात का भौतिक वस्तुएं तथा भौतिक अस्तित्व इस प्रकार से ा नहीं मानेंगे, मेरी डांट का या तुम्हारी त्रुटियां उपयोग करना होगा कि आप मुझे (श्री माताजी) प्रसन्न बुरा निकाले जाने का क्योंकि मुझे ही यह कार्य करना है। जिन लोगों के पास अच्छा एवं स्वच्छ हृदय नहीं रख सकें। ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक है। सभी लोग इस बात को समझ लें। मैं यह बात आपको इसलिए समझाना चाहती हूँ को नहीं समझ सकते यह उनके लिए कठिन कार्य क्योंकि आपकी वेशभूषा में कुछ चीजें मुझे बिल्कुल है। तो आप अपनी माँ के प्रति अपना हृदय शुद्ध पसन्द नहीं है-जैसे बिखरे हुए बाल। हो सकता है कि यह फैशन हो। परन्तु यह मुझे पसन्द नहीं। सदा आशीर्वाद होता है। सदैव एक आशीर्वाद याद रखें अच्छी तरह से कंघी करके बालों को सवारें। बिखरे कि जो भी कुछ मैं आपके लिए करती हूँ वह एक बालों, जैसे आधुनिक फैशन, आपको त्याग देने चाहिएं क्योंकि यह भूत के आपमें प्रवेश करने की पक्की एक अन्य चक्र, जो अधिकतर सहजयोगियों निशानी है। बिखरे बालों वाले व्यक्ति को भूत पहचान का बुरी तरह से पकड़ा हुआ होता है वह है नाभि लेते हैं और उसमें प्रवेश कर जाते हैं। अतः उचित ढंग चक्र, जो यह सुझाता है कि आप अभी तक भी से अपने बालों को संवारने का प्रयत्न करें भारतीय भौतिकता में फँसे हुए हैं। छोटी-छोटी चीज़ों में भी लोगों को देखें, किस प्रकार वे अपने बाल संवारते हैं! हम भौतिकवादी होते हैं। यह दुर्गुण सूक्ष्मातिसूक्ष्म उनकी ओर देखें। वे अपने बाल भलीभांति बनाते हैं। होता चला जाता है। भौतिक पदार्थ केवल एक मुझे आपके बालों से कुछ नहीं लेना और न ही मैं कोई दूसरे को प्रसन्न करने के लिए हैं । विशेषकर बालों की शैली विशेषज्ञ हूं। परन्तु यदि आपके बाल आपकी श्री माताजी को प्रसन्न करने के लिए। कायदे से बने हुए नहीं हैं तो निश्चित रूप से आप कष्ट इसके अतिरिक्त इनका कोई मूल्य नहीं है। तो की ओर बढ़ रहे हैं। तो इन चीजों की ओर ध्यान दें। है वह इस बात को नहीं समझ सकते। जो इस बात रखें। आपके लिए जो भी कुछ मैं करती हूँ वह मात्र | आशीर्वाद है । आपको उस हद तक भौतिकवादी नहीं बनना चाहिए लोगों की बेढभे वस्त्र पहनने की आदत कुछ कि छोटी-छोटी चीजों के लिए भागदौड़ करते रहें। होती है। ये भी अच्छी बात नहीं है आपको सम्माननीय स्वच्छ एवं सम्माननीय। इसके ठीक यदि न मिले तो ठीक। तो नाभि चक्र अत्यन्त भौतिक महत्व के लिए नहीं, परन्तु इसलिए कि बेढभे व्यक्तिवादी (Individualistic) है, अति व्यक्तिवादी वस्त्र सभी बाधाओं को आकर्षित करते हैं । आपको या यह सबकी व्यक्तिगत चीज़ है। यदि आपकी चाहिए कि स्वयं को स्वच्छ एवं व्यवस्थित रखें ताकि इच्छा लक्ष्मी तक ही सीमित है, अर्थात् यदि आप बाधाएं आपमें प्रवेश न कर सकें। पश्चिमी देशों में जो बहुत अधिक धन चाहते हैं या बिना आध्यात्मिक विचारधाराएं उभरी हैं वे सब किसी शैतानी शक्ति की मूल्य के छोटे-छोटे भौतिक पदार्थ चाहते हैं, तो हो देन है। बेढभी वेशभूषा सुन्दर नहीं लगती, आध्यात्मिक व्यक्ति को तो बिल्कुल शोभा नहीं देती। हमें अपनी शैली इस प्रकार बदलनी होगी कि परमात्मा को अच्छी लगे, भूतों को नहीं। हम नहीं चाहते कि भूत हमें पकड़ें। कुछ भी आवश्यक नहीं है। यदि कुछ मिल जाए तो वेशभूषा धारण करनी है, सकता है कि आपका लक्ष्मी तत्व जागृत हो जाए। परन्तु इस लक्ष्मी तत्व का महालक्ष्मी तत्व में परिवर्तित हो जाना आवश्यक है। यह आपके उत्थान के लिए है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 30 अक्तुबर, 1997 इस साधारण सत्य को जब आप समझ जाएंगे तो ऐसे की आवश्यकता नहीं है, इसे कार्यान्वित करना होगा। वस्त्र पहनने लगेंगे जो चाहे आधुनिक न हों, चाहे देखें कि कौन सी ओर की नाभि पकड़ रही है यदि प्राचीन हों, परन्तु स्वच्छ, सुन्दर और सुव्यवस्थित अवश्य दाई नाभि पकड़ती है तो शक्कर (चीनी) आपके लिए होंगे। भौतिक दृष्टि से भी यदि आप देखें तो प्रकृति एवं सर्वोत्तम है। शक्कर बहुत सी चीजों का प्रतिनिधित्व स्वभाव से परिवर्तनशील (अव्यवस्थित) हज़़ारों चीजें करती है। शक्कर का अर्थ ये भी है कि आपकी वाणी इकट्ठी करने का कोई लाभ नहीं। आध्यात्मिक मूल्य मधुर हो। आप मीठा बोलें। लोग सोचते हैं कि यदि वाली थोड़ी सी चीजें आपके लिए काफी हैं; सभी आप मधुर भाषी हैं तो आपको बेकार या एकदम ढीला असाधारण वस्तुओं, जिन्हें पाने की चेष्टा हम करते हैं, ढाला समझा जाएगा। हमें विनीत एवं विनम्र होना की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि उनका आध्यात्मिक चाहिए। परस्पर मीठा बोलना हमें सीखना होगा, और मूल्य (महत्व) नहीं होता। अतः ये सब व्यर्थ चीजें एकत्र यदि आपको मीठा बोलने की समझ नहीं आती तो करने की चेष्टा न करें। धीरे-धीरे आपमें इनका मोह अधिक शक्कर लें, चैतन्यित शक्कर। इससे आपकी कम होता चला जाएगा। आप सरल जीवन तथा वाणी अधिकाधिक मधुर हो जाएगी तथा अन्य लोगों के सुन्दर एवं आध्यात्मिक वस्तुएं पा लेंगे कोई भी चीज़ विषय में आपके विचार कठोर एवं आलोचनात्मक होने खरीदने से पूर्व इसकी चैतन्य लहरियाँ देखें चैतन्यविहीन की अपेक्षा मधुर बन जाएंगे। चीजें न खरीदें। इनसे सभी प्रकार के भूत आपके घर में घुस आएंगे और आपको कष्ट होगा। तो किसी चीज़ है और उदासीन (निष्क्रिय) (LeftSided) लोगों के को खरीदने से पहले इसे चैतन्य-चेतना से परखें। लिए नमक का। आलसी स्वभाव के लोगों को अधिक आपको यदि इसकी समझ नहीं है तो किसी अन्य नमक लेना चाहिए क्योंकि नमक से वे बहुत सी सहजयोगी से सहायता मांगे सस्ती, सुन्दर और समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। नमक उन्हें अच्छी सोचते हुए वस्तुएं खरीदते न चले जाएँ। जिनकी अच्छा व्यक्तित्व एवं मानसिक सन्तुलन प्रदान करता है चैतन्य लहरियाँ ठीक हों वही चीजें खरीदें, ऐसा न होने जिसके द्वारा वे स्वयं को आलस्य विहीन, गरिमामय पर उन्हें छोड़ दें। यह आवश्यक नहीं है "मुझे यह ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं। तो आपकी बातचीत खरीदना है, इसके लिए मुझे मुम्बई जाना है." यह या आचरण की गति मध्यम होनी चाहिए। यह तो उग्र स्वभाव लोगों के लिए शक्कर का सुझाव न तो आलस्यमय होनी चाहिए और न अधिक गलत विचार है। चित्त का अन्दर होना आवश्यक है। मैंने देखा तेज़ तथा उत्तेजनामय | है कि हमारा चित्त सदैव बाहर होता है। इस कारण आप समझ जाएंगे कि सहजयोग हर चीज़ का जो भी कुछ हम बाहर देखते हैं वह चैतन्य लहरियों के मध्य बिन्दु है। सभी कुछ मध्य में (सन्तुलित) रखने का लिए अच्छा नहीं है आपका चित्त यदि अन्दर हो तो प्रयत्न करना चाहिए. किसी भी अति में (आलस्य या आप कोई ऐसी चीज़ न खरीदेंगे जो चैतन्य लहरियों के उत्तेजना) में नहीं जाना चाहिए। आप यदि बहुत लिए अच्छी न हो, ऐसी कोई चीज़ आप न रखेंगे-इसे अधिक बोलते हैं या बहुत अधिक बड़-बड़ करते हैं. उठा कर फेंक देंगे। चित्त बाह्यमुखी होने के कारण आपकी गति यदि बहुत तेज़ है तो चुस्ती से देखते आपको चीजें परखना नहीं आता। नाभि चक्र की ओर इसे घटाने का प्रयत्न करें। आपको चुस्त होना होगा। ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए आपको सोचने देखो-"मेरी गति बढ़ रही है।" मुझे बोलने की कोई हुए 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 31 अक्तुबर, 1997 आवश्यकता नहीं है। मुझे चुप हो जाना चाहिए। परन्तु समझना है कि यह कार्यान्वित करना होगा। मैं सोचती बिल्कुल न बोलने वाले लोग भी अच्छे नहीं होते। तो हूँ कि आपके मस्तिष्क में यह बिठा देना आवश्यक है बोलने या न बोलने वालों को एक बात समझनी है कि कि सहजयोग को कार्यान्वित करना होगा स्वयं से बस इतना भर कह देने से काम नहीं चलेगा कि " ओ.! आप यह समझ जाएंगे तो आपकी प्रतिक्रियाएं मध्य मैं बहुत प्रसन्न हूँ ,"क्योंकि ये आपके अहँ को बढ़ावा की, सन्तुलित तथा सुन्दर होंगी इस समय मैं केवल देता है; या ये कि " मैं बहुत खिन्न हूं, "क्योंकि अहैं इतना ही कह सकती हैं क्योंकि हमारे पास समय का के माध्यम से यह आपको कष्ट पहुँचा रहा है। मैं बहुत खुश नहीं हूँ. मैं बहुत खिन्न नहीं हूँ: ये कोई तरीका मैं सोचती हूँ कि हम सब ने यात्रा का आनन्द नहीं है। आपको आनन्द की स्थिति में होना चाहिए और लिया। आप सब प्रसन्न रहे, सभी कृुछ भलीभांति ये सब कार्यान्वित हो सकता है। अपने प्रति शान्ति, प्रेम आयोजित हुआ तथा हम सब के लिए मार्गदर्शन तथा एवं गरिमा रखें कि आप सहजयोगी हैं। हर व्यक्ति को आनन्द का महान अनुभव बना। किसी भी गलती के स्वयं के लिए इसे कार्यान्वित करना होगा तभी पुर्ण लिए दोषभाव न आने दें क्योंकि दोषभाव ग्रस्त होकर (विश्व) ठीक होगा कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो जो भी कुछ हम बोलें, सन्तुलित बोलें। एक बार जब ाड अभाव है। आप इसे काबू नहीं कर सकते। दोषभाव पलायन है, केवल दूसरों के लिए ही चिन्तित हैं। स्वयं के विषय आप अपना सामना करें। अपनी कमियों का सामना में चिन्ता करें तथा अन्य लोगों के गुणों को करते हुए आप अपने दोषों को देखें और स्वयं को देखें दूसरों की अच्छाइयों को देखें। बुराईयों सुधारें। दोषभाव ग्रस्त या उग्र होने से यह कहीं अच्छा को नहीं। कोई यदि आपको आयोजन करने को कहे तरीका है। यह कोई तरीका नहीं है क्योंकि यह सब तो बिना बुरा माने, शीघ्रता से जा कर कार्य करें। हमें ऐसा बनना है. अति चुस्त होना है। हमें विश्व में बहुत कार्य करना है, बर्बाद करने के लिए हमारे पास समय नहीं है। इसके प्रति व्यक्ति को अत्यन्त तीव्र चुस्त एवं मानसिक स्तर पर है। नाभि और हृदय चक्र के विषय में आप ये कुछ बातें याद रखें। आप इन दो बातों को भली-- भाति जान लें इन्हें स्वच्छ रखें तथा इस इच्छा की अभिव्यक्ति अपने आचरण, वेशभूषा, चाल-ढाल, बातचीत तथा सभी बाह्य चीजों से करें। परन्तु केवल बाह्य सुधार से कार्य न होगा मान लो कोई कहे कि. "श्री माताजी, मैंने अपने बाल अच्छी तरह से बनाए हैं अत: मैं ठीक हूँ। बात ऐसी नहीं है। स्वस्थ होना होगा। इस यात्रा के दौरान आपने देखा होगा कि में आपसे इतनी बड़ी होते हुए भी आपके मुकाबले मैं कितना अधिक कार्य करती रही हूं। ठीक है, आप कह "श्री माताजी आप आदिशक्ति हैं।" यह ठीक आयु हैं. सकते बात है। परन्तु मैं आपका आदर्श हूँ। किसी भी तरह से यदि कोई आपका आदर्श पुरुष है तो उसके गुणों को यह आवश्यक नहीं। चाहे आपने अपने बाल भली-भांति आत्मसात करके उस जैसा बनने का प्रयत्न आपको बनाए हों फिर भी हो सकता है कि आप भूत बाधित हों। परन्तु इसके कम अवसर हैं। तो व्यक्ति को करना चाहिए। परमात्मा आपको धन्य करें। पाम TDTIO 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt 32 आयुर्वेदिक चिकित्सा इतिहास, प्रयोग एवं योग से सम्बन्ध | (अनुवादित) प्रकार मानव हित के लिए यह दिव्य ज्ञान पृथ्वी पर निम्नलिखित डा. सुजाता केन्जले द्वारा वेरोना, इटली में दिए गए भाषण का सार है। डा. सुजाता आया। भली-भांति अध्ययन के लिए इसका विभाजन एक सहजयोगिनी हैं जिन्होंने श्री माताजी से प्रोत्साहन प्राप्त कर आयुर्वेदिक चिकित्सा में स्नातक की दो शाखाओं में कर दिया गया। जैसे-काया- उपाधि प्राप्त की। भाषण के अन्त में श्रोताओं को चिकित्सा-अर्थात् आन्तरिक चिकित्सा, और शल्य चिकित्सा। इस विषय पर बहुत सी पुस्तकें लिखी आत्मसाक्षात्कार का अनुभव प्रदान किया गया। आज हम आयुर्वेदिक चिकित्सा के इतिहास, जा चुकी हैं इनमें चरकसंहिता और सुसृत संहिता इसके मौलिक सिद्धान्त, निदान विधियाँ, उपचार मुख्य हैं । आयुर्वेद वैदिक विज्ञान का एक अंग भी योग और अन्ततः सहजयोग से इसके सम्बन्ध के है। वेद, ग्रन्थ रूप में सम्पूर्ण आध्यात्मिक विज्ञान है विषय में जानने के लिए एकत्र हुए हैं। यह अत्यन्त जो जीवन का ज्ञान प्रदान करता है। आयुर्वेद रोचक विषय है और मुझे आशा है कि आप इसका इसका एक भाग है जो शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक जीवन के विषय में प्रकाश डालता है। आनन्द लेंगे। आयुर्वेद- संस्कृत के दो शब्दों की सन्धि से बना है- आयुष + वेद। आयुष अर्थात् जीवन और आयुर्वेद क्या है ? आयुर्वेद मानव को प्रकृति द्वारा दिया गया उपहार है। भारत में अवतरित यह अति प्राचीन वेद अर्थात् ज्ञान। इस प्रकार आयुर्वेद जीवन-विज्ञान, या जीव-ज्ञान है। आयुर्वेद में मानव शरीर को विज्ञान है और इसका अभ्यास यहाँ ४००० ई. पूर्व से होता रहा है। भारतीय पुराणों के अनुसार मूल रूप केवल स्थूल शरीर के रूप में ही नहीं देखा जाता, से स्वयं परमात्मा ने आयुर्वेद का प्रतिपादन किया ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क और आत्मा को इसमें स्थान दिया जाता है। तो आयुर्वेद के मतानुसार स्वास्थ्य था। ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाले आदि-तत्व केवल रोग-मुक्त अवस्था ही नहीं, यह एक ब्रह्मा ही आयुर्वेद के मूल-प्रतिपादक हैं। ब्रह्मा ने ऐसी अवस्था है जिसमें निरन्तर शारीरिक, यह ज्ञान यक्ष-प्रजापति और अश्विनीकमार आदि मानसिक तथा आध्यात्मिक प्रसन्नता का आनन्द देवताओं को दिया। तदोपरान्त सुर-राज इन्द्र ने उठाया जा सकता है। रोगियों को रोग एवं असन्तुलन मुक्त करना इस ज्ञान को प्राप्त किया और इसे अत्रेय, भारद्वाज आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य है। सामान्य स्वस्थ लोगों कश्यप और धन्वन्तरी आदि शिष्यों को दिया। इस 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 33 अक्तुबर, 1997 अग्नि तत्व का प्राचुर्य होता है। की रोग ग्रस्त होने से रक्षा कर, स्वस्थ बने रहने में आयुर्वेदानुसार भोजन के छः स्वाद हैं-मीठा, यह सहायक है। परीक्षण के समय व्यक्ति का पूर्ण परीक्षण किया जाता है. उसे भिन्न भागों में विभाजित नमकीन, खट्टा, तिक्त (तीखा). कड़वा तथा कसैला। नहीं किया जाता। हमारी टांग पर यदि कोई चीज़ ये स्वाद भी इन दोषों (तत्वों) तो बढ़ाते हैं। उदाहरण लगती है, अश्रु आँखों से आते हैं, पैरों से नहीं । के रूप में तिक्त (तीखा) स्वाद के रूप में-तिक्त (तीखा) स्वाद पित्त-अग्नि तत्व- को बढ़ाता है तथा इससे पता चलता है कि सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अतः आयुर्वेद रोग लक्षणात्मक उपचार कड़वा स्वाद पित्त को घटाता है। की आज्ञा नहीं देता, इसमें शरीर, मस्तिष्क और वात-वायु तत्व- प्रथम तत्व वात मुख्यतः त बड़ी आँत, श्रोणि प्रदेश (कूले के आसपास) और आत्मा का साथ साथ इलाज होता है। मानव (शरीर) रचना- आयुर्वेद जीवन के हड्डियों में स्थित है । ये सभी स्नायविक कार्यों को सभी पक्षों पर दृष्टि डालता है- रोज़-मर्रा का चलाता है तथा शरीर के सभी क्रिया-कलापों का जीवन, खान-पान, व्यायाम, मनोविज्ञान तथा जन्मदाता है। बिगड़े हुए 'वात' से ८० प्रकार के आध्यात्मिकता। सुप्रसिद्ध आचार्य अत्रेय के अनुसार रोग, जैसे गठिया, अकड़न, पक्षघात, हृदय रोग और पुरुष (मानव शरीर) प्रकृति का ही एक छोटा सा अति-तनाव आदि. होने की सम्भावना होती है। भाग है। प्रकृति पाँच मूल तत्वों से बनी है-पृथ्वी, स्थिति और कार्य के अनुसार 'वात' को पाँच श्रेणियों में बांटा गया है:- जल, वायु, अग्नि और आकाश। यह पाँचों पंचमहाभूत कहलाते हैं। मानव शरीर में इनका प्रतिनिधित्व दोष. प्राण- और उदान सिर तथा वक्ष के ऊपरी धातु एवं मल के रूप में होता है। शरीर में तीन मूल तत्व 'दोष' कहलाते हैं। ये हैं। गतिशील हैं तथा सभी शारीरिक कार्य कलापों, भाग में हैं तथा आवाज़ एवं श्वास के लिए जिम्मेदार समान- आंत के अन्दर होता है तथा पाचन विकास और स्वास्थ्य-विकारों के लिए जिम्मेदार में सहायक है हैं। 'वात' या 'वायुतत्व' प्रथम दोष है, पित्त' या अग्नितत्व' दूसरा दोष है तथा 'कफ' (जल तथा मलत्याग के लिए जिम्मेदार है । पृथ्वी तत्व से बना) तीसरा दोष है । शरीर में ये भिन्न मात्राओं में पाये जाते हैं । अपान-श्रोणी प्रदेश में स्थित होता है और व्यान- हृदय में स्थित है तथा पूरे शरीर में रक्त प्रसार करने में हृदय की सहायता करता है। पित्त-अग्नि तत्व-पित्त या अग्नि तत्व दूसरा इन्हीं तीन दोषों का सन्तुलन ही अच्छे स्वास्थ्य का कारण है। आयु, दिन, माह तथा ऋतु के अनुसार तत्व है जो मुख्तः पेट, आँतों और जिगर में स्थित ये घटते या बढ़ते हैं। उदाहरणार्थ बचपन में 'कफ'- है। यह पाचक रस, निर्गमन और हार्मोन का संचालन जल तत्व का बाहुल्य होता है तथा वृद्धावस्था में करता है। यह पाचन, शरीर के तापमान तथा 'वात-वायु तत्व का प्राचुर्य और अधेड़ावस्था में वर्णता(रंगत) के लिए जिम्मेदार है । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 34 बिगड़े हुए पित्त के कारण पीलिया, अम्लरोग, जलन और गलकोष प्रदाह (Pharyngitis) सहित फेफड़ों तथा हृदय की सहायता करता है। अवरम्बक कफ- छाती में होता है और कलेदक कफ- पेट में होता है और खाना ४० प्रकार के रोग हो सकते हैं। "पित्त पचाने में सहायता करता है। स्थिति और क्रिया कलापों के अनुसार को भी पाँच श्रेणियों में बांटा गया है- श्लेषक कफ- हड़्डियों के जोड़ों में होता आलोचक पित्त- आँखों में होता है तथा है तथा स्निग्धीकारक के रूप में कार्यरत है। दृष्टि के लिए जिम्मेदार है। साधक पित्त-मस्तिष्क और हृदय में होता रोग निदान- शरीर की तरह से मस्तिष्क के भी तीन गुण होते हैं- सत्व, रज और तम-जिन्हें त्रिगुण भी कहते हैं। आयुर्वेद में रोग निदान तीनों दोषों तथा तीनों गुणों पर निर्भर करता है। रोगी का है और स्मरणशक्ति तथा विवेक प्रदायक है। रंजक पित्त-जिगर तथा प्लीहा में होता है परीक्षण तीन भागों में करके उसके रोग का निदान तथा रक्त बनाने तथा वर्ण-सामंजस्य (रंगतदारी) किया जाता है:- देने का कार्य करता है। १ दर्शन-अर्थात् अवलोकन द्वारा। पाचक पित्त-आँतों में होता है तथा पाचन २ स्पर्श - अर्थात् छू कर या ठोक-जाँच द्वारा। क्रिया में सहायता करता है। भ्राजक पित्त- चमड़ी में होता है और चमड़ी को रंग प्रदान करता है। ३ प्रश्न - अर्थात् मौखिक परीक्षण या बातचीत द्वारा। प्राकृतिक निदान- आयुर्वेद में एक अन्य कफ-जल तत्व- कफ या जल तत्व तीसरा दोष है। मुख्यतः यह पेट, हृदय, जिह्वा में विद्यमान महत्वपूर्ण परीक्षण विधि है । प्रकृति-शरीर की होता है तथा जोड़ों और हड्डियों को मिलाने, शरीर या मनोवैज्ञानिक बनावट है जो हर व्यक्ति में भिन्न को ठोस तथा इसे दृढ़ करने का कार्य करता है। होती है। यह दोष-मात्रा पर निर्भर है। स्थूल बिगड़े हुए कफ के कारण २० प्रकार के रोग इस प्रकार की रचनाएं सात हैं। किसी व्यक्ति हो सकते हैं जैसे- क्षुधा-अभाव, आलस्य शक्कर में किसी दोष या तत्व विशेष का बाहुल्य होता है रोग, कफनिस्सारण, मोटापा, रक्त-नाड़ियों में कठोरता और किसी अन्य में दो दोष समान मात्रा में पाये जाते हैं। ऐसी बनावट सर्वोत्तम होती है परन्तु यह आदि । स्थिति तथा कार्यों के अनुसार कफ को भी बहुत की कम है। पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है- शरीर की बनावट के लिए चार मुख्य तत्व तार्पक कफ- मुख्यतः मस्तिष्क एवं रीढ़ की जिम्मेदार हैं हड्डी में होता है और हड्डियों से इनकी रक्षा 1 १ मातृक (Maternal) २ पैतृक (Paternal) ३ माँ की गर्भावस्था तथा मौसम करता है। पम बोधक कफ- हमें स्वाद प्रदान करता है। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 35 अक्तुबर, 1997 कभी नहीं भूलते। ४ गर्भावस्था में माँ का खानपान इसी रचना के अनुसार हर व्यक्ति में भिन्न शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक गुण होते हैं। शरीर संरचना- वात प्रधान लोग लम्बे, हैं। छरहरे, उभरी हुई हड्डियों वाले और प्रायः हल्के भावनात्मक प्रवृत्तियां- वात प्रधान लोग डरपोक, उत्सुक और अधीर या मानसिक रूप से उदास होते पित्त प्रधान- लोग क्रोधी तथा चिडचिड़े हो जाते हैं। वजन के होते हैं। कफ प्रधान- व्यक्ति शान्त एवं भावुक होते हैं। पित्त फ्रधान- लोग मध्यम डील-डोल, मध्यम वजन और अच्छी मांसपेशियों वाले होते हैं । कफ प्रधान लोग छोटे कद के, गठे हुए नींद और वज़नदार होते हैं। स्वभाव से वे मोटे होने वाले होते हैं। वात प्रधान- लोगों को कम नींद आती है और वृद्धावस्था में उन्हें अनिद्रा रोग हो सकता है। पित्त प्रधान-लोगों की नींद सामान्य होती है। आँखे सो सकते हैं। वात प्रधान- लोगों की आँखें छोटी, खुष्क, नींद से वे जाग भी जाएं तो पुनः कफ प्रधान- लोगों की नींद अतिगहन होती है भूरी, चमक विहीन, तथा चंचल होती है । और नींद से जागने में कष्ट होता है । पित्त प्रधान- लोगों की आँखें मध्यम आकार समा की, पतली तथा तीक्ष्ण होती हैं। कफ प्रधान- लोगों की आँखें बड़ी-बड़ी, रोग वृत्तियां उभरी हुई, तैलीय तथा अत्यन्त आकर्षक होती हैं । ये सब मौलिक गुण थे। आइए अब होते हैं जैसे- मनोवैज्ञानिक गुणों पर दृष्टि डालें। को प्रायः नाड़ियों के रोग दर्द, गठिया और मानसिक रोग। वात प्रधान- लोगों पित्त प्रधान- लोगों को ज्वर रोग-संक्रमण तथा शोथ-जलन सम्बन्धी रोग होते हैं । कफ प्रधान- लोगों को श्वास के रोग स्मरण शक्ति वात प्रधान- लोगों में स्मरणशक्ति अति दुर्बल जैसे-ब्रोंकाइटिस और अस्थमा आदि हो सकते हैं । होती है। जितनी आसानी से चीज़ों को देखते हैं ऐसे लोगों को मोटापा तथा शक्कर रोगों की सम्भावना उतनी ही आसानी से उन्हें भूल जाते हैं । होती है। ऊपर लिखे रोग उनके चिड़चिड़े स्वभाव के बाहुल्य पित्त प्रधान- लोगों की स्मरण शक्ति तीव्र एवं स्पष्ट होती है। हर चीज़ को बे लम्बे समय तक के कारण होते हैं जिसे सन्तुलित करने के लिए दवाईयाँ दी जाती हैं। नाड़ी परीक्षण या नब्ज परीक्षण-आयुर्वेद की याद रख सकते हैं। कफ प्रधान- लोग बहुत ही धीरे-धीरे चीजें समझते हैं, परन्तु एक बार समझने के पश्चात् वे इसे एक अन्य महत्वपूर्ण विधि है जिसे कुहनी की नाड़ी প 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt सितम्बर - अक्तुबर, 1997 चैतन्य लहरी 36 (Radial Artery) से किया जाता है। दोषों के जाते। हर औषधि के अपने ही गुण होते हैं और बिगाड़ का तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका (Ring यदि भलीभांति इसका उपयोग किया जाए तो यह finger) अंगुलियों से महसूस किया जाता है । सभी बड़े प्रभावशाली ढंग से कार्य करती हैं। अधिकतर परीक्षणों के अपने नियम है जिनके अनुसार ये किए औषधियाँ शक्तिवर्धन का कार्य करती हैं और इनका कोई अतिरिक्त परिणाम (Side effect) नहीं होता। रोग की जड़ों में जाकर यह इसे पूर्णतः समाप्त कर जाते हैं। देती हैं। उपचार-उपचार दो प्रकार हैं-पहला उपचार स्वस्थ कुछ आयुर्वेदिक औषधियां: अम्लकी- यह एक जड़ी है जिसका फल व्यक्ति का होता है ताकि रोगों की पकड़ में आए बिना वह अपना स्वास्थ्य बनाए रख सके। यह औषधि के रूप में उपयोग होता है। इसमें विटामिन रसायनों या बाजीकरण द्वारा होता है। इस उपचार सी का प्राचुर्य होता है और तापसह (Thermostable) होती है। यह शरीर, दृष्टि, बालों और चमड़ी के में कुछ औषधियाँ, शक्तिवर्धक औषधियाँ और शारीरिक व्यायाम कराये जाते हैं। दूसरा रोग-उपचार है। यह भी दो प्रकार का पोषण के लिए बहुत अच्छी है। मधुमेह आदि रोगों होता है- शोधन या पंचकर्म- उससे बढ़े हुए दोषों को के लिए भी यह ठीक है। तीन औषधियों को मिलाकर उपयोग होता कम किया जाता है। इसमें औषधियुक्त तेलों से है-अदरक, काली मिर्च और पिपली मिलाकर यह त्रिकुटा कहलाती है। इससे कफ, वात और चर्बी शमन- इसमें बढ़े या घटे हुए दोषों या तत्वों को कम होती है। यह भूख को बढ़ाती है और खांसी रोगों, गल्कोश प्रदाहः गर्तदाह (Sinusity) में उपयोगी आयुर्वेद में जड़ी बूटियाँ, खनिज और कुछ है। हूरिड़ा पौधे की जड़ को भी औषधि के रूप में शुद्ध की हुई धातुओं का उपयोग होता है। ये सभी उपयोग किया जाता है। यह अच्छा रंग प्रदान चीजें प्राकृतिक हैं। आयुर्वेद के अनुसार जो भी कुछ करती है और बहुत से चर्म रोगों, तीव्र ग्राहिता (Allergy), दमा और रक्तस्राव में उपयोगी है। यह जीवाणु द्वेषी (Antibiotic) भी है । ब्रह्मी का पौधा- नींद और स्मरणशक्ति को मालिश भी सम्मिलित है । औषधियों द्वारा संतुलित करते हैं। प्रकृति में है वही हमारे शरीर में है अतः आयुर्वेद प्राकृतिक चीज़ों से लोगों का उपचार करने में हल्की विश्वास करता है। यह औषधियाँ, रसों, गोलियों, चूर्णों, मिश्रणों आसवों, काढ़ों और दूध आदि में बढ़ाता है और अधिकतर नाड़ी दोषों और मिर्गी रोग मिलाकर दी जाती हैं, जैसी भी जड़ी की रोगी को में उपयोग किया जाता है। पावन तुलसी का नियमित उपयोग भी मस्तिष्क पर आवश्यकता हो। इन औषधियों को बनाने की विधियाँ भी अत्यन्त शुद्ध, प्राकृतिक एवं पारम्परिक होती हैं। इनमें किसी प्रकार के रसायन नहीं डाले बहुत अच्छा प्रभाव डालता है और मानसिक शान्ति प्रदान करता है। 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अक्तुबर, 1997 37 एरान(Eron) की जड़, पत्ते और कोपलें औषधि साधन। के रूप में उपयोग होते हैं। इसके बीजों से निकला तीसरा कर्म है- अर्थात् धर्मपरायणता पूर्वक अपनी हुआ तेल गठिया रोगों तथा आमवात रोग, में इच्छाओं की पूर्ति के कार्य करना। उपयोगी होता है। चदन र्थ चौथा मोक्ष है- अर्थात् आत्मसाक्षात्कार मानव ग्लोय (Guduchi) पौधे का उपयोग पुराने बुखारों जीवन की सर्वात्तम अवस्था। आत्मसाक्षात्कार का के लिए किया जाता है, जिगर और प्लीहा के लिए अर्थ है अन्तःस्थित आध्यात्मिक शक्ति का परमात्मा की शक्ति से एकाकारिता। यह अच्छी औषधि है। कुमारी- जिगर के लिए पोषक औषधि है। आंतो आयुर्वेद के अनुसार इस स्थूल शरीर के पीछे सुकड़न लाने वाली गतियों को नियमित कर यह जीवन-दायिनी आध्यात्मिक शक्ति से बना सूक्ष्म पाचन शक्ति को बढ़ाती है तथा कब्ज को दूर शरीर है। यह शक्ति कुण्डलिनी कहलाती है। स्थूल करती है । में शरीर में जिस प्रकार नाड़ियों के माध्यम से तरल कुपशूर (kupshur) मूत्रवर्धक का कार्य करता है। इसका उपयोग पेशाब मार्ग से पत्थरी निकालने, में नाड़ियाँ हैं जिनके माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति शक्कर रोग उपचार और गर्भाशय सम्बन्धी दोषों बहती है। शरीर में ऐसी तीन नाड़ियाँ हैं- मध्य को दूर करने के लिए किया जाता है । आयुर्वेद और योग - अभी तक हमने आयुर्वेद के औषधीय पक्ष को ही देखा है । परन्तु शारीरिक, अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Sympathetic Nervous मानसिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान System) जैसी हैं ये नाड़ियाँ शक्ति के निम्न करने के लिए आयुर्वेद में एक अन्य विधि भी है । केन्द्रों (चक्रों) से गुज़रती हैं। आधुनिक विज्ञान में ये आयुर्वेदानुसार, हमारे अन्तःस्थित सर्वश्रेष्ठ शक्ति चक्र भिन्न स्नायविक केन्द्र हैं। आत्मा ही हमारे सुस्वास्थ्य और शान्ति के लिए जिम्मेदार है। अतः हमें आत्मा के लक्ष्यानुसार ही नामक आध्यात्मिक शक्ति के ज्ञान तथा जीवनयापन करना चाहिए। द्रव (Fluids) या रस बहते हैं वैसे ही सूक्ष्म शरीर नाड़ी, दायीं तथा बायीं नाड़ी। आधुनिक विज्ञान में ये मध्य नाड़ी प्रणाली या प्राचीन भारत में नाड़ियों, चक्रों, कुण्डलिनी आत्मसाक्षात्कार पाने की विधि 'योग' कहलाती थी । रोग इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि आयुर्वेद में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक आत्मा से हमारा सम्बन्ध टूट गया है। आयुर्वेद समस्याओं का समाधान करने के लिए योग का कहता है कि अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। आयुर्वेद और योग का व्यक्ति के जीवन के चार सिद्धान्त होने चाहिए: उद्भव वेद नामक पावन ग्रन्थों के रूप में, एक ही सर्वप्रथम धर्म है- अर्थात् अपने और समाज के आध्यात्मिक विज्ञान से हुआ। अब हम लोग लिए भले कार्य करना। भाग्यशाली हैं कि श्री माताजी निर्मला देवी ने दूसरा अर्थ है- अर्थात् वैभव या जीविकार्जन के सहजयोग की खोज की है । 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 38 अक्तुबर, 1997 श्री माताजी ने मुझे आयुर्वेद पढ़ने के लिए सहजयोग- सहज शब्द का अर्थ है आपके साथ जन्मी या स्वतः। योग अर्थात् मिलन। तो सहजयोग कहा क्योंकि आयुर्वेद तथा योग परस्पर बहुत समीप में आध्यात्मिक शक्ति हमारे अन्दर स्वतः उठती है. ह सिर की तालू-अस्थि का भेदन करके आत्मसाक्षात्कार विज्ञान का भी अध्ययन किया है। आयुर्वेदिक प्रदान कर परमात्मा की दिव्य शक्ति से एकाकार औषधियाँ पूर्णतः प्राकृतिक हैं और इनका कोई प्राप्त करती है। कुण्डलिनी की जागृति कोई कल्पना अतिरिक्त परिणाम (Side effects) नहीं होता। या परिकल्पना न होकर मध्य नाड़ी तन्त्र पर एक रोगी यदि ध्यान-धारणा करता है तो इन वास्तवीकरण है। चिकित्सा के क्षेत्र में सहजयोग भारत औषधियों की गुणकारिता बढ़ जाती है । जब में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रमाणित हो चुका है। व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्ति जागृत हो और उसके बहुत से देशों ने सहजयोग को स्वीकार कर, इस महान कार्य के लिए कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हुए आयुर्वेदिक औषधियाँ अधिक तीव्र तथा प्रभावशाली श्री माताजी को बहुत से पुरस्कार भेंट किए हैं। अब ढंग से कार्य करती हैं । विश्व के ८० देशों में सहजयोग का अभ्यास किया हैं। वे आयुर्वेद की ज्ञाता हैं तथा उन्होंने चिकित्सा चक्र एवं नाड़ियां शुद्ध तथा ज्ञान दीप्त हों तो अब, मैं सोचती हूँ, हमें यही समाप्त करके इस सुनहरे अवसर को सहजयोग का ज्ञान तथा जा रहा है। मैं २१ वर्षों से सहजयोग ध्यान-धारणा कर आत्मसाक्षात्कार पाने के लिए उपयोग करना चाहिए। रही हूँ। मैंने देखा है सहजयोग के माध्यम से मानव जीवन का यही वास्तविक लक्ष्य है। आयुर्वेद नाड़ियों और चक्रों को शुद्ध करके दमा, मिर्गी, हृदय और योग से इसके सम्बन्धों के विषय में बोलने का रोग और मानसिक व्याधियों का उपचार किया गया अवसर मुझे प्रदान करने के लिए मैं सहजयोग है। जब सभी नाड़ियां और चक्र शुद्ध होंगे तो रोग संस्था की अभारी हूँ । हमें पकड़ ही न पाएंगे। हार्दिक धन्यवाद । न ि म 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt अनन्य प्रेम अध खुली सुकुमार पलकों में सुमन सपने सजाएं, के नहीं तो कौन आ सकता हृदय माँ द्वार तुम रश्मि स्थ पर निकल कर दिनकन्त बोला, राज मेरा, ज्योति से मेरी खिलेगा जग क्षणिक जीवन में अलौकिक र रूप-रस सौरभ बसाए, न ठहरेगा अँधेरा बन्द कर आँखें निशा के स्वप्न में खोई हुई चढ़ न पाया मद भरा निज देवता के सिर मुकुट पर डाल पर मुरझा गया वह म कच फूल बिन पतझार कुमुदनी को कब खिला पाया दिवस का प्यार। माँ नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार। माँ तुम क नहीं तो कौन आ सकता हदय के द्वार ।। तुम श्याम सा प्रिय रंग रच कर घन बरसते गर्जना कर स्वर्ग के नवदूत जैसे छा रहे शत्-शत् सितारे नद सरोवर झील भरते तृप्त हो जाते चराचर पर पपीहा प्रेम ब्रत रख रत्न अगणित प्रभा-मण्डित विश्व सागर के किनारे मन जिसे पहचानता, तृषित रहता सिर उठाये स्वाति जल ही पपीहरे के चित्त का आधार।। श्ृंगार जीवन का अमल उस- एक मोती के बिना सूना लगा संसार माँ नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार|। मों तुम नहीं तो कौन आ सकता हृदय के द्वार।। तुम के (विद्या गुप्ता) बंन 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt ৪ यर ইই १ै ০ म म ा ा श्ी पपत ० ा प्रसन्नता तथा अप्रसन्नता दोनों े ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ आप केवल कल्पना में रहते हैं। ा लाम ाः पी लकप ७. शर ॐ प श्र मै 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt LWA