HIAMALA 1997 अंक 11 व 12 PURS चैतन्य लहरी यह समझ लेना महत्वपूर्ण है कि आप कितने बहुमूल्य हैं; कितने असाधारण रूप से महत्वपूर्ण हैं आप इस युग में जन्में और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया- किस लिए ?इस विश्व का उद्घार करने के लिए, मानव को परिवर्तित करने के लिए तथा समुचित विश्व को परमात्मा के साम्राज्य में ले जाने के लिए। आपके सहज में होने का यही उद्धेश्य है।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी HARK ४A SHWA NIRMALA. NIVERSAL PURE RELIGI इस अंक में : श्री कृष्ण पूजा- 23.8.1997 रूसी लोकचिकित्सा सम्मेलन 17 ईसा मसीह पूजा- गणपति पुले- 25.12.1997 19 विश्व समाचार 24 आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय पूजा एवं जन कार्यक्रम-मार्च 1997 क्रोशिया और बोस्निया में प्रथम सहज योग का कार्यक्रम अर्जेन्टिना में सहज कार्यक्रम प्रपंच और सहजयोग 32 DHARMA 2. सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा स्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। न PE 175 प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8. चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 'ई मेल का पता- marketing@nirmalinfosys.com www.nirmalinfosys.com Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 श्री कृष्ण पूजा कबेला 23.8.1997 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) सारी बातें बहुत समय पूर्व लिख दी गई थीं । लोग आज हम यहाँ श्री कृष्ण पूजा करने के लिए आए हैं। मैं जब अमेरिका गई तो उन्होंने मझे जब मूलतः निष्कपट थे तभी वो समझ गए थे कि जो महाकाली पूजा के लिए कहा, परन्तु मैंने कहा, भी कुछ हमारे हित में नहीं है वो हमें नहीं करना "नहीं, मुझे केवल श्रीकृष्ण के विषय में ही बात चाहिए। ये आदि-वर्जन हैं और मानव में अन्तर्रचित करने दें. "क्योंकि पहले हमें यह महसूस करना है ह। अब मान लो मैं कहती हैं "शराब मत पिओ।" कि इस पूजा की कितनी शक्ति है। इस प्रकार हम श्रीकृष्ण को अपने अन्दर स्थापित करने वाले हैं । आप शराब पीए चले जाएंगें यदि मैं कहूँ, "झूठ मत बोलो", तो आप झूठ बोलेंगे। यह मानव स्वभाव श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि "जब जब भी धर्म का [" धर्म का मतलब जैसा हम है। लोग आदि-वर्जनों के विरुद्ध चलते हैं क्योंकि पतन होगा समझते हैं हिन्दु धर्म, ईसाई धर्म या मुस्लिम धर्म वे सोचते हैं कि वे स्वतंत्र हैं और उन्हें इच्छानुसार नहीं है। यह सब तो मुर्खता है। धर्म का अर्थ है कार्य करने की स्वतन्त्रता है वास्तव में वे स्वतंत्र मानव में अन्तर्रचित अदि-वर्जन (Primodial नहीं हैं। वे सभी प्रकार के प्रलोभनों या सम्मोहनों के Taboos) । इनके विषय में, मैं सोचती हैँ, हमसे वश में हैं और ये सब सम्मोहन मानव जीवन के कहीं अधिक यहाँ के आदिवासी जानते हैं। परन्तु विरुद्ध हैं। व्यक्ति का धर्मपरायण होना अत्यंत हमने क्या किया? हमने उन पर प्रभुत्व जमाया और स्वाभाविक है। छोटे बच्चे प्रायः ऐसे होते हैं। उदाहरण विवश होकर उन्हें अपनी जीवन शैली बदलनी के रूप में मैंने देखा है कि छोटे-छोटे बच्चे भी पड़ी। आदि-वर्जनों को केवल तभी समझा जा दूसरों के सामने निर्वस्त्र होने में सकुचाते हैं। लोगों सकता है जब लोग स्वयं को या परम्पराओं से प्राप्त सम्मुख वे नग्न नहीं होते। के इसका सबका चर्णन ज्ञान को समझने का प्रयत्न कर रहे हों। सहज या देवी सर्व भूतेषू लज्जा रूपेण संस्थिता' में किया धर्म थोड़ा-सा भिन्न है क्योंकि यह न केवल उन गया है। तो आपको लज्जाशील होना चाहिए। विचारों से ऊँचा है जिनके विषय में हम बातचीत आपको नम्रतापूर्वक अपने शरीर का सम्मान करना करते हैं बल्कि जो कुछ श्रीकृष्ण या श्रीराम ने कहा चाहिए। आज के युग में यह बहुत महत्वपूर्ण है । उनसे भी ऊँचा है। श्रीराम ने सोचा कि सर्वप्रथम आज शरीर प्रदर्शन महिलाओं की बहुत बड़ी मानव को अनुशासित किया जाए जीवन के विषय उपलब्धि मानी जाती है। महिलाएं आदिवासी बनने में लोग गम्भीर हो जाएं तथा अपने अस्तित्व को का प्रयत्न् कर रही हैं। पुराने समय में उनमें न तो यह विचार थे और न ही वे इतनी भ्रमित थीं अत: भली-भांति जान लें। वे अपना सम्मान करें। यह का दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर शराब के दुष्प्रभावों के विषय में कहेंगे तब ये शराब आदिवासी महिलाएं यद्यपि बहुत कम बस्त्र पहनती थीं फिर भी इसका अभिप्राय यौनाकर्षण/ पुरुषों को वर्जित करेंगे। परन्तु आपके शरीर के लिए यह को आकर्षित करना नहीं था। उनके पुरुष भी ऐसा आचरण न करते थे जिससे यह लगे कि वे महिलाओं कार्य में लगे रहते हैं जो आपके और आपके के लिए कोई विशेष आकर्षण बिन्दु हैं। तो आप सब शान्तिमय जीवन के लिए अहितकर है तो अधार्मिक क्यों ऐसा करें ? पुरुषों का महिलाओं की ओर बन रहे हैं। यह बात अच्छঠी तरह समझ ली जानी महिलाओं का पुरुषों की ओर आकर्षित होना अति चाहिए कि सहज धर्म यह है कि आप स्वतंत्र हैं- एक स्वाभाविक वर्जन है । आप यदि किसी ऐसे हास्यास्पद है। परन्तु गलियों में, सड़कों पर चलते कामुकता, लालच तथा सभी प्रकार के प्रलोभनों से हुए आप यही सब होता देखते हैं। यह घोर अधर्म पूर्णतः स्वतंत्र। आप इनसे ऊपर हैं- कहीं ऊँचे, है, मेरे विचार में यह अभिशाप है। सहज योग में कहीं ऊँचे। यह धर्म श्रीकृष्ण या श्रीराम द्वारा आने के पश्चात् भी आप जानते हैं, लोग यही करने स्थापित धर्मों से कहीं ऊँचा है क्योंकि पूर्ण स्वतंत्रता लगते हैं। ऐसे लोगों को पागलखाने चला जाना में आपने इस अवस्था को प्राप्त किया है अत: चाहिए । सहज योग के लिए वे बेकार हैं। परन्तु आपको धार्मिक होना है। अहितकर कार्य त्याग दें । आत्मा का प्रकाश आते ही धर्म प्रस्थापित हो जाता मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यह करें, 1 है। यह न करें हो सकता है कि मेरी बात आपको श्रीराम के समय तो उन्हें सभी कुछ सिखाना अच्छी न लगे परन्तु आपकी चैतन्य लहरियाँ एकदम पड़ा, मोजिज को भी दस धर्मादेश बताने पड़े। परन्तु से आपको बताएंगी। यह सहज धर्म है; इसमें, कहा श्रीकृष्ण ने दूसरे ही ढंग से सोचा : कि पवित्रप्रेम का धर्म स्थापित किया जाए, पवित्र प्रेम का। उन्हें यह अहंकार से छुटकारा पा लेते हैं। लगा कि श्रीराम के धर्म-वर्जन लोगों पर इसी प्रकार थोपे गए थे जैसे इस्लाम और ईसाई धर्म पर लालची हैं किस चीज के लिए लालची हैं? यह वर्जन थोपे गए। यह कभी कार्य नहीं करते। तो अमेरिका तो उपभोक्तावाद से मरा जा रहा है। आप जाता है कि आप काम, क्रोध, लोभ, मोह और अब आप जान लें कि लोग किस प्रकार व्यापार तकनीक को देखे: अमेरिका में आप जितना चाहे धन बैंक से उधार ले सकते हैं। कोई समस्या श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब लोगों को स्वतंत्ररूप से पावन प्रेम विकसित करने का उपदेश दिया जाए। राधाजी, जो कि उनकी शक्ति थीं, आह्लाद-दायिनी नहीं । आप यदि ऋण नहीं लेते तो वे आपको पत्र कहलाती हैं। वे ही आनन्द पावन आनन्द प्रदान भेजते हैं कि "आप बीस हजार डालर का ऋण क्यों नहीं ले लेते?" हम आपको यह चैक भेज रहे हैं। करती हैं। अतः इन सब सीमित प्रकार के आकर्षणों का परिणाम भी कष्टकर होता है। आप जानते हैं कि मद्यपान चेतना के विरुद्ध है। आज चिकित्साशास्त्री क्यों न इसे स्वीकार करें ? आप अति धनी बन जाते हैं ऋण लेना अति सुगम है। मुझे बताया गया कि तम्बाकू के दुष्प्रभावों की बात कर रहें हैं और कल कुछ लोग तो ऋण लेकर गणपति पुले पूजा में जब जिगर के रोगों से लोग मरने लगेंगे तो यह आया करते थे। उनका चित्त सदा दूसरी बात पर दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर अधिक महत्व नहीं है और हममें तो मूर्खताओं को रहता कि किस प्रकार में यह ऋण लौटाऊँगा? मैंने कहा कि आप यह सब बन्द कर दें। तो वे ऋण सामूहिक रूप से स्वीकार करने का गुण भी है। इसे लेकर गणपति पुले आ जाते हैं और फिर हरक्षण त्यागना होगा, विशेष रूप से अमेरिका में और सोचते हैं कि मैं किस प्रकार यह ऋण चुकाऊँगा? इंग्लैंड में यह रुकना ही चाहिए कैसे मैं यह कार्य करूंगा ? चित्त सदा विक्षिप्त हिप्पी के रूप में एक व्यक्ति आया। उसके रहता है, चाहे आप स्वहित में कुछ करना चाहें या बाल बन्दर जैसे लग रहे थे। मैं तो कहूँगी कि बन्दर गणपति पुले आना चाहें। तो ऐसा मस्तिष्क स्वतन्त्र कहीं ज्यादा अच्छा होता है। तो मैंने उससे पूछा, "आपके बाल ऐसे क्यों है ?" उसने उत्तर दिया, नहीं होता। स्वतन्त्र मस्तिष्क वह है जिसका चित्त "क्योंकि मैं आदि-मानव बनना चाहता हूँ। अब हमें आत्मप्रकाश से प्रकाशित हो। परन्तु समस्या यह है कि हम अब भी मानवीय बन्धनों से आत्मसाक्षात्कार प्राचीनता अपनानी होगी" मैंने कहा, "परन्तु तुम्हारा के उच्च जीवन की ओर उठ रहे हैं। जब हम उस मस्तिष्क तो आधुनिक है, अपने बालों को इस प्रकार स्तर (ऊँचाई) की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो हमें बढ़ा कर तुम सोचते हो कि आदि-मानव बन महसूस करना होगा कि अंडे से जन्में उस पक्षी की सकोगे? तरह-जो अंडे के खोल को त्याग देता है- हमें भी मुझे पता चला कि उसकी मुत्यु हो गई है। एक और तुम आदिमानव नहीं बन सकते।" बाद में तुम भाई-बहन ,माता-पिता, पति-पत्नी आदि के रूप ऐसा ही व्यक्ति आया, वह स्वर्ग तो नहीं सिधारा में लिप्त ये सब बन्धन तथा आन्तरिक बुराईयाँ त्यागनी होंगी। वे तुम्हें पतन की ओर घसीटना से मिली हूँ। आप ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि यह चाहते हैं। शराब पीते हुए वे आपको बुलाते हैं, आप फैशन है। भी कुछ पी लो । आप बिल्कुल सामाजिक नहीं हैं, आप बेकार हैं, पिछड़े हुए हैं।" इस प्रकार फैशन (Designers) के कारण इटली वैभवशाली हो रहा आरम्भ होता है। फैशन का यह सामूहिक कार्य न है। रूस में नये-नये धनी लोगों के विषय में एक परन्तु पागलखाने चला गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों आप जानते हैं कि सभी प्रकार के रूपांकनकारों तो श्रीकृष्ण की देन है और न सहज की। सहज कहावत है, यद्यपि रूस के लोग प्रायः ऐसे नहीं योग में आप इन सब मूर्खताओं से पूर्णतः मुक्त होते हैं। आप चाहें तो अच्छे वस्त्र पहनें और न चाहें तो नहीं करते। एक व्यक्ति आया और कहने लगा, "हे होते। फैशन के कारण वे किसी चीज को स्वीकार न पहनें। आप स्वतन्त्र हैं, धन के बन्धनों से भी आप भगवान! उस दिन आपका हाथ ही खो गया!" स्वतन्त्र हैं। यह अति महत्वपूर्ण है। धन के बन्धन "कोई बात नहीं, परन्तु दुःख इस बात का है कि एक अन्य बाधा है। मैं ऐसे योगियों को जानती हूँ हाथ के साथ मेरी बहुमूल्य स्विस घड़ी भी चली जो धनार्जन के लिए सहजयोग में आए। किसलिए गई" "सच ? कौन सी घड़ी थी ?" "ये रोलैक्स आप सहज योग में आते हैं ? धन के बन्धनों से थी।" हाथ चला गया तो कोई बात नहीं। रोलैक्स मुक्ति पाने के लिए । सहजधर्म मैं पैसा आपके फैशन है तो ये नये-नये धनी लोग हैं। चरणों की के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, इसका कुत्ते फैशन के पीछे नहीं भागते मैंने कुत्तों धूल दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर को फैशन करते नहीं देखा, और न ही बन्दरों को। क्योंकि आप स्वतन्त्र हैं। विवेक स्वतन्त्रता का मान लो इटली के रूपांकनकार उनके लिए कुछ आधार होता है। परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि बनाएं भी, तो भी वे इसके विषय में न सोचेंगे। हो आप स्वच्छन्द हैं। आत्मा के प्रकाश के अभाव में परन्तु हमें व्यक्ति सभी उल्टे-सीधे कार्य करता है। आत्मा का सकता है उनके मालिक ये चीज खरीदें। पशु भी नहीं बनना। और न ही फैशन का गुलाम प्रकाश प्राप्त होने पर आप प्रचलित सामूहिक पागलपन बनना है। कुछ दुकानें बहुत मंहगी हैं, क्यों ? में नहीं फँसते। पागलपन में हम लोग अत्यन्त क्योंकि वे रूपांकनकार (Designers) हैं आप सब सामूहिक हैं। काश, लोग बिवेकमय कार्यों में अधिक को बताते हैं, "देखिए, ये जो मैंने पहना है यह सामूहिक होते! विवेक अति महत्वपूर्ण है और यह रूपांकन दुकान से है; रूपांकन दुकान से।" तो राधा जी का आनन्दमयी गुण है । हममें आहलाद आपका अपना मस्तिष्क कहाँ है ? आपको वस्तुओं दायिनी शक्ति का आना आवश्यक है। स्थिति ऐसी के रूप और अपनी आवश्यकताओं की कोई सूझ-बूझ होनी चाहिए कि हमसे मिलकर अन्य लोगों को नहीं! आजकल बहुत रूपांकनकार जेल में हैं। प्रसन्नता प्राप्त हो। उनके पास धन है जो उन्होंने आपको मूर्ख बनाकर ऐंठा है । अमेरिका में तो मैं हैरान थी कि वहाँ अधिकतर चीजें इटली डिज़ाइन की बिक रही थीं। यह है कि प्रेम का अभाव है। यह प्रेम दिखावा मात्र 'इटली डिज़ाइन लिखे होने के कारण लोग उन्हें है। सफेद, काला या पीला रंग क्या है ? वास्तव में खरीद रहे थे। जो रूपांकन वे करते हैं वे सभी यह मेरी समझ में नहीं आता। अतः श्रीकृष्ण ने प्रेम-धर्म सिखाया। रंग-भेद आदि को यदि आप महत्व देते हैं तो इसका अर्थ जगह उपलब्ध हैं, सभी जगह उपलब्ध है, सभी यहाँ पर यह अपना रंग काला करने के लिए समुद्र सुन्दर वस्तुएं। परन्तु उनका तो सामूहिक पागलपन तट पर जाते हैं और वहाँ वे कहते है कि हमें काले में विश्वास है। सभी लोग एक ही डिजाइन के वस्त्र लोग नहीं चाहिए पहने हुए हैं। यह सहजधर्म नहीं है। हम किसी चीज़ के है। गुलाम नहीं हैं। हम स्वतन्त्र लोग हैं। हमें कोई डिज़ाइन स्वीकार नहीं करना। मूर्ख लोगों को नहीं?" यदि आप मुझे श्याम वर्ण का कहें तो मैं उनके पीछे भागने दो। हम सहजयोगी हैं। साधु श्याम वर्ण हूँ और यदि मुझे श्वेत वर्ण का कहें तो कहलाने वाले लोगों में भी इसका प्रचलन है वे मैं श्वेतवर्ण हूँ और यदि मुझे पीत बर्ण का कहें तो । अमेरिका के लोगों में इस तरह की दूरी मैंने श्वेत एवं श्याम वर्ण के लोगों में देखी मैं हारलैम (Harlem) गई तो सहजयोगी पूछने लगे, "क्या आप हारलैम जाएंगी? मैंने कहा, "क्यों 1. सभी एक ही प्रकार के वस्त्र पहनते हैं कैसे आप मैं पीतवर्ण हूँ। अतः वहाँ जा रही हूँ और मैंने बहाँ किसी को पहचानेगे? सहजयोग में हम आपको जाकर भाषण दिया। वहाँ पर बहुत से साधक लोग एक ही प्रकार के वस्त्र पहनने, एक ही जैसा थे वास्तव में, मैं इसे भूल नहीं सकती। वहाँ के दिखाई देने, एक ही प्रकार के बाल बनवाने को नहीं सुप्रसिद्धतम स्थानों में से एक पर यह हॉल बना है। कहते, नहीं। आपका अपना व्यक्तित्व होना चाहिए ाम ऐसा ही एक हॉल आस्ट्रेलिया में भी बना है जहाँ दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर मैंने बहुत से साधकों के सम्मुख प्रवचन किया। मैंने सोचा इसे देखो। वे लोग कहने लगे, "श्रीमाताजी आस्ट्रेलियन लोगों ने हमारी नकल की है।" अब क्योंकि उनके नाक, होंठ, या बाल विशेष प्रकार के यह लोग अत्यंत मधुर और सुन्दर हैं। मैं उनका हैं। वे इतने मूर्ख हैं और आप भी उनका साथ देते है अपने विनाश पर उतारू वे लोग स्वयं को अति-महान मानते हैं। वे स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं हृदय देख पाई, उसे महसूस कर पाई। मेरे प्रवचन हैं! किस प्रकार आप उनका साथ दे सकते हैं ? के पश्चात् संचालन का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति आप यदि अपनी स्वतंत्रता की कामना करते हैं तो मेरे पास आया उसने मुझे गले लगा लिया, चूमा। स्वतंत्र व्यक्ति बन जाइए। स्वतंत्रता में वैचित्र्य उसने तो मुझे भींच ही दिया होता। लगभग 22 आवश्यक है। अत्यंत आवश्यक है। मैं तो कहूँगी साल का छोटा-सा लड़का था वह। इतना प्रेम कि अब जो लोग अमेरिका लौट रहे हैं उन्हें नये उसने महसूस किया! कहने लगा, "श्रीमाताजी, किस्म की सहज प्रवृत्ति चाहिए। श्याम-वर्ण लोगों अगली बार जब आएंगी तो आप अवश्य हारलैम के पास जाइए। मैं दक्षिण अमेरिका की गोष्ठी से आएं।" परन्तु मुझे बताया गया है कि वह सभागार बहुत प्रसन्न हुई क्योंकि उन्होंने विशेषतः वहाँ के मूल-निवासियों को अपनाया था। वहाँ जा कर वे बन्द हो गया है। तो यह अमेरिकन प्रणाली किसी न किसी उनसे मिले। मैं भी उनसे मिली थी और हैरान थी प्रकार से प्रजातन्त्र के विरुद्ध हैं । यह न केवल क्योंकि तुरन्त वे कहने लगे, "श्री माताजी, हम जानते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं। परन्तु क्या आप प्रजातंत्र- विरोधी है, यह अब्राहम लिंकन की इच्छाओं के विपरीत भी है। उस देश में इतना महान व्यक्ति हमारी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं?" मैंने हुआ और उसके नाम पर वहाँ केवल एक छोटी सी पूछा, "आपकी समस्या क्या है?" "हमारी एक भूमि गली है। निःसंदेह वाशिंगटन में उनकी एक सुन्दर है। केवल 5-6 एकड़ ज़मीन, जो कि हमारी है, प्रतिमा है। परन्तु उनके सिद्धांत समाप्त हो चुके हैं। जहाँ तुलसीबन्धु नामक पौधे (Sage) उगते हैं। उनके विचार समाप्त हो चुके हैं। कुछ लोग आये उनके अनुसार तुलसीबन्धु पवित्र पौधा है। हम उस और श्यामवर्ण लोगों के विरुद्ध लिखा, विशेषकर ज़मीन को पावन मानते हैं इसलिए भिन्न उत्सवों के सी इंग्लैंड में। परमात्मा सृजित किसी भी चीज़ के अवसर पर हम वहाँ एकत्र होते हैं।" उन्हें विरुद्ध लिखने का उन्हें क्या अधिकार है। सभी चीज़ों का ज्ञान है। यह पावन भूमि है और वहाँ लोगों के रंग यदि समान हों तो वो सेना के लोग चैतन्य लहरियों के कारण वे सदा वहाँ जाया करते प्रतीत होंगे। उनके भिन्न रंग-वर्ण होने आवश्यक थे। अत्यन्त स्वाभाविक ।" तो अब वहाँ क्या हुआ हैं। पेड़ों और फूलों को देखें, आकाश को देखें, हमें आपकी समस्या क्या है ?" सरकार ने, इस अमेरिका प्रसन्न करने के लिए वे कितने रंग बिरंगे हैं ? की सरकार ने, यह भूमि एक भारतीय को बेच दी बहुत 1 वैचित्र्य ही हमें प्रसन्नता प्रदान करता है। वैचित्र्य है।" मैंने कहा, "एक भारतीय को ?" "हाँ। आप ही सुन्दरता का चिह्न है। वैचित्र्य के बिना सभी इस व्यक्ति को यह भूमि लौटा देने को कह सकती 1. कुछ उबाऊ हो जाएगा। परन्तु उन्हें इस पर गर्व हैं। हम उसे धन दे देंगे।" मैंने पूछा, "उस भारतीय दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर का नाम क्या है?" उन्होंने मुझे नाम बताया। मैंने हवाई-अड्डे पर उतरी। एक भद्र पुरुष-काले रंग कहा, "हे परमात्मा! वह तो सिन्धी है!" क्या वो ये का- "अरे प्रियतम! तुम यहाँ पर ? तुम्हें देखकर भूमि आपको दे देगा ? मुझे खेद है। मैं चाहे बहुत प्रसन्नता हुई। मैं बहुत खुश हूँ। तुम कैसी हो और, मैं कुछ नहीं कर ? एक बार यात्रा में, हुसाला मेरे साथ थी, एक लम्बे-तगडे व्यक्ति ने मेरी ओर देखा और कहने हाँ! "मैंने कहा, परमेश्वरी होऊ या कुछ सकती।" परन्तु मैं हैरान थी कि किसी ने भी इसके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाई। उन्हें इसका विरोध लगा, "अरे, तुम फिर लौट आई ? करना चाहिए था कि "कृपा करके हमारी भूमि "मैं वापिस आ गई हू तुम मुझे जानते हो?" लौटा दीजिए। क्यों आप इसे छीनना चाहते हैं ?" "निःसन्देह, मैं आपको जानता हूँ।" वह मुझ से जैसा कि सर्वविदित है, अमेरिका के सभी कभी न मिला था। परन्तु मुझे प्रसन्नता हुई। मैं बहुत लोग प्रवासी नागरिक हैं। वे वहाँ के मूल-निवासी खुश हुई। लोगों से मिलने का यह सब से अच्छा नहीं है वे उस भूमि के स्वामी न थे। तो उन्हें तरीका है। सड़क पर जाते हुए यदि आप किसी किसी अन्य की भूमि को इस प्रकार रखने का काले रंग के व्यक्ति को देखें-मैं आपको बताती हैं अधिकार नहीं है। और साथ ही साथ स्वयं को श्रेष्ठ कि वहाँ जीवन भयावह है-जीवन उनके लिए नरक समझने का भी अधिकार नहीं है। यह अच्छी बात है। उनके लिए दुःख हुआ मेरे आँसू बह निकले । है कि कोई व्यक्ति आपके घर में घुस आये, स्वयं सहज योगी के नाते आप तुरन्त उनके पास जाएं को श्रेष्ठ समझे और परिवार के सभी लोगों को और प्रेम से उन्हें बुलाएं। "आप कैसे हैं ?" उनसे निकाल बाहर करे! यही सब हो रहा है अमेरिका हाथ मिलाएं। वो आपका हाथ काट नहीं लेंगे मैं नहीं जानती कि अमेरिका में अधिक अपराधी कौन है-गोरे में । सहज धर्म में इसके बिलकुल विपरीत है। या काले? परन्तु यदि आप दयामय हैं प्रेममय हैं तो ऐसे धर्म से आप लोगों को प्रेम कर सकते हैं, उन्हें उनके अन्दर से यह अपराध- वृत्ति दूर कर सकते हैं; अपने हृदय में बिठा सकते हैं। आपकी प्रेम एवं क्योंकि घृणा को केवल प्रेम से ही धोया जा सकता है। दयार्द्रता सदैव बहुती रहती है। मेरे लिए अब ये परन्तु लोग सोचते हैं कि वे बहुत चतुर हैं. चतुराई समस्या है. मेरा शरीर मुझसे अधिक दयार्द्र है। उस में बहुत ऊँचे हैं। अन्यथा उनमें क्या श्रेष्ठ है ? यह शरीर को हर चीज का बोध हो जाता है- दूसरों गोरा रंग, यह तो सबसे खराब है विवाह से पूर्व मैं की समस्याओं का भी परन्तु मेरे विचार से आप बहुत गोरी थी। फिर काली होने लगी। गोरे रंग ऐसा शरीर नहीं पा सकते, आपको ऐसा शरीर पाना भी नहीं चाहिए । परन्तु आपके पास कम से कम मेरे चेहरे पर डालते हैं, उससे मेरे चेहरे पर दाग पड़ एक ऐसा हृदय तो होना चाहिए जो खुला हो। जाते हैं। तो मेरी समझ में नहीं आता कि गौर वर्ण सड़क पर चलते हुए कोई काला व्यक्ति यदि होने में क्या महानता है ? यह तो अजीब पीला सा आपको मिले तो आपका हृदय उसके लिए उमड़े! और आनन्दविहीन प्रतीत होता है। लोग अपने शरीर मुझे काले अमेरिकन पसन्द हैं। एक बार मैं को पक्के रंग का बनाने के लिए समुद्रतट पर जाते | पर हर चीज़ का प्रभाव पड़ता है। रोशनी जो आप दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर तो सहज धर्म के अनुसार आपमें शर्म होनी की मूर्खता का भी बहुत फैशन है अब हमें चाहिए आपमें लज्जा-विवेक होना चाहिए। सहज सावधान रहना है कि सामूहिकता में हम कितना धर्म में आप दूसरों से जो भी बातचीत करते हैं. उनसे जो कहते हैं, जो भी आचरण करते हैं, वह हैं और चर्म-कैन्सर का कष्ट भोगते हैं इस प्रकार इन चीज़ों से प्रभावित होते हैं। मैंने अपनी नातिन को बिना बाजू के वस्त्र आहलाददायी होना चाहिए। कोई बात यदि पहने देखा और उसे बताया कि "बेटे आपको बिना आहलाददायी नहीं है तो चुप रहिए कुछ मत बाजू के कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।" वह कहने कहिए, क्या आवश्यकता है? इतना व्यंग्यमय होने लगी "बहुत गर्मी है । मुझे बहुत गर्मी लग रही है ।" की और व्यंग्य द्वारा मस्तिष्क प्रदर्शन का क्या लाभ वह कम उम्र की है। मैंने उसे बताया कि देखो, "ये है? तीखेपन से, व्यंग्यात्मक शैली में बात करना दो बहुत महत्वपूर्ण चक्र हैं। इनको नंगा रखने से अच्छी नस्ल का चिह्न नहीं है आप यदि मधुरता तुम्हें समस्या हो सकती है।" घुटनों से ऊपर के पूर्वक बात करें तो हानि क्या है? यह मधुरता वस्त्र पहनना उसे पसन्द नहीं है, फिर भी, वह राधाजी की देन है अब तो, निःसंदेह लोगों ने कहने लगी कि "लोग तो घुटने से भी ऊपर वस्त्र उनका दुरुपयोग किया है। उन्हें रोमियो-जूलियट पहनते हैं।" मैंने कहा, "घुटनों पर अति महत्वपूर्ण सम बना दिया है वास्तविकता यह नहीं है । वे चक्र है। हमें इन्हें ढक कर रखना चाहिए यदि ये अत्यन्त पावन महिला थीं महालक्ष्मी थी वे। तो प्रभावित हो गए तो तुम्हें घुटनों के रोग हो जाएंगे।" सहज में आकर महालक्ष्मी बनने के लिए आपको वह तुरन्त परिवर्तित हो गई, तुरन्त। "माँ मैं अन्दर बहुत ही गरिमामय वस्त्र पहनने चाहिएं। मुझे याद एक ब्लाउज़ पहनूंगी और उसके ऊपर कुछ और।" है, एक बार, एक पार्टी में एक व्यक्ति मेरे पास आ क्योंकि वह समझ गई कि ये हमारा प्राकृतिक कर बैठ गया "हाँ!" मैंने कहा, "क्या हुआ?" आदि-वर्जन है कि हम इन दोनों चक्रों को नंगा न "कितना सुकून है माँ! कितना सुकून है श्रीमती छोड़ें। पर आजकल जितनी लम्बी टांगे हैं उतने श्रीवास्तव आपको देखकर! उन स्त्रियों की ओर 1. छोटे वस्त्र हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि टांगो में देखो। मैं तंग आ गया हूँ" परन्तु आपके आने से क्या है। सारा सौन्दर्य क्या टांगो में ही है ? यात्रा मुझे कितना चैन मिला है!" मैंने कहा, "क्या चैन में मैं एक महिला से मिली । मुस्लिम होने के कारण मिला है?" वह बुर्का पहनी थी। जब हम लन्दन उतरे तो बुर्के महिलाओं को शान्त होना चाहिए। सहज महिलाएं का स्थान घुटनों से ऊपर के वस्त्रों ने ले लिया था । इतनी मूर्ख एवं उथली नहीं होती कि हर चीज़ पर मैंने कहा, "ये कैसी मुस्लिम महिला है ?" ये हँसती रहें। यह महिलाओं का तरीका नहीं है कि ईसाइयों से भी गई-बीती है, क्योंकि ऐसे बस्त्र तो हर चीज़ की खिल्ली उड़ायें। कोई बात यदि हँसने वो भी न पहनेंगी। जहाज़ से ७ ने के लिए योग्य है तो ठीक है। परन्तु हँसने योग्य बात न हो आपको सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। लज्जा, शर्म तो भी वो हँसेंगी! ये कोई तरीका नहीं है। ऐसा "आप इतनी शांत हैं!" तो सहज धर्म में 1 भी नहीं । बेशर्मी । करना तो मूर्खता हो सकती है। परन्तु सराहना एवं कुछ दिसम्बर, 1997 घैतन्य लहरी पमा नवम्बर t0 उसने मेरे साथ ऐसा किया ऐसा कहना ये दर्शाता आनन्द की हँसी तो इतनी पावन होती है कि अत्यंत सुन्दर वातावरण की सृष्टि करती है। मेरे विचार से पर्यावरण की सारी समस्या है। क्योंकि आप क्षमा नहीं कर सकते। याद रखने है कि आप में सहज योग समझने की योग्यता नहीं हमारे मस्तिष्क एवं लालन-पालन में है। यह बाह्य वाली कौन सी चीज़ है। वर्तमान ही सर्वोत्तम है । नहीं। यह हमारे अंदर है जो बाहर प्रतिबिम्बित अब मेरे साथ बैठकर आहलाददायिनी शक्ति का होती है। गणेश पूजा में मैं आपको बताऊँगी कि आनन्द लेते हुए भी यदि आप बीती बातें सोच रहे हैं पृथ्वी माँ से हमारा कितना निकट सम्बन्ध है और तो आपमें उस योग्यता का अभाव है। सहज योग हमारे आचरण तथा जीवन शैली के प्रति किस की योग्यता पाने के लिए आपको अपने से भूतकाल जानती हूँ कि मुक्त होना होगा समाप्त। अपराध स्वीकार करने प्रकार वह प्रतिक्रिया करती है। मैं सहज योग में आप लालच और बासना सहज ही की कोई आवश्यकता नहीं है मैं जानती हैँ कि में त्याग देते हैं। लोभ और काम का त्याग यदि बहुत से लोग सहज योग में आने के बाद अपराध आप नहीं कर सकते तो आपको स्वयं को सहज स्वीकार करते हुए मुझे पत्र लिखते हैं। मैं कह देती योगी नहीं कहना चाहिए। काम और लोभ का हूँ, इन पत्रों को जला दो।" मैं याद नहीं रखती। त्याग पहला कार्य है। युवा लोगों में अब मुझे लगता इसके विषय में मैं कुछ नहीं पढ़ती। अत: क्षमा होनी है कि वे स्वतंत्र होकर सहज योग में आते हैं। वे चाहिए। क्षमा यदि है तो, आप हैरान होंगे, आप महिलाओं के पीछे नहीं दौड़ते, न महिलाएं उनके भार -विमुक्त हो जाएंगे और आपका विवाहित जीवन पीछे दौड़ती हैं। वे साथ बैठते हैं. बातें करते हैं. खुशियों से भर जाएगा। और यदि आप पुरानी बातों हँसते हैं परन्तु सभी कुछ पावन है। कुरान में स्पष्ट को याद रखते हैं वर्णन है कि कयामा के वक्त सुन्दर पुरुष एवं जटिल होते हैं। तो आप इनसे मुक्त हो जाएं। महिलाएं होंगी परन्तु उनमें वासना और लालच न सहजयोग में तलाक की आज्ञा है, यदि कोई उचित होगा। वे पवित्र होंगे आज आप देख सकते हैं कि कारण हो तो। किसी अधिक अच्छी चीज़ के लिए .। कुछ विवाह वास्तव में बहुत 1 1 नहीं। कुछ देशों के लड़कों और कुछ की लड़कियों लालच और वासना समाप्त हो गये हैं स्वतः ही ये समाप्त हो गये हैं और आप देख सकते हैं कि अब के विवाह हमने वर्जित कर दिए हैं। क्या कारण है? अनुभव से हमने सीखा है कि वे विवाह योग्य तत्व नहीं है। अब अच्छा होगा कि विवाह न करें और आप इस बन्धन से मुक्त हैं। कल हमारे यहाँ विवाह होने वाले हैं । सहज धर्म में क्षमा पहली आवश्यक चीज़ यदि करें तो आदर्श सहज योगी की तरह करें। आप यदि सहज योगिनी हैं तो सदैव क्षमा करते | जो क्षमा नहीं कर सकता वह सहज योगी नहीं हुए मुझे भूतकाल को भूल जाने से यह आती है। नहीं तो कहते हैं "श्री माताजी, हमारी सहायता कीजिए । आप कहते ही रहेंगे कि अमुक व्यक्ति ने मुझे क्यों ?" "क्योंकि मेरे पति मुझे पैसा नहीं देते।" मैं नहीं मानूंगी।" उसे हो सकता। क्षमा :- किस प्रकार क्षमा आती है ? आप अधिक अच्छी तरह चल सकती हैं। लोग हैं, "उसे छोड़ दो, मैं बुरा सताया। मेरे लिए वह बहुत तुच्छ था। ऐसा था। कहती প दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 11 चाहिए कि तुम्हें पैसा दे। क्यों वे तुम्हें पैसा नहीं आप सोच सकते हैं? तो बच्चों से व्यवहार करते हुए देता? उसके पति से बात करने पर पता चलता है, स्वयं को उदाहरण बनाएं. स्वयं को उस उदाहरण का अंग बनाएं, ताकि बच्चों को बुरा न लगे । "श्री माताजी वह बहुत खर्च है।" मैंने कहा, "बेहतर होगा कि आप दोनों सहजयोग छोड़ दो और जो मर्जी करो।" सहज धर्म में पति-पत्नि बच्चे कुछ भी त्याग सकते हैं, आपका प्रेम नहीं छोड़ फिजूल मैं इस विषय पर बहुत बार बता चुकी हूँ। सम्बन्ध वास्तव में रोमांचक तथा सुन्दर होने चाहिएं। सकते। यदि वे जान जाएं कि आप उनसे प्रेम करते यहाँ हम प्रेम की बातें नहीं करते। यहाँ शायद ही हैं तो वे ऐसा कुछ भी स्वीकार न करेंगे जो उन्हें 1 आपके प्रेम से वंचित कर दे। यह निश्चित है। प्रेम के कोई एक आध प्रेमपाश में बंध कर चल सका हो! यदि आप में प्रेम भावना हो तो विवाह वरदान है। विषय में बच्चे सबसे अधिक जानते हैं। अंग्रेजी भाषा परन्तु प्रायः प्रेम विवाह अभिशाप बन जाते हैं। तो में बच्चों के विषय में लिखी गई सुन्दर-सुन्दर विवाह पश्चात् प्रेम में बन्ध जाना तो अच्छा है परन्तु पुस्तकों का मैंने अभाव पाया है। मैं जब लन्दन में इसका अर्थ ये नहीं कि आप भूल जायें कि आप थी तो एक पुस्तक छपी थी जिसमें बच्चे राजनीतिज्ञों सहजयोगी हैं। इस मामले में आपके विवाहित के विषय में बात करते हैं । इसकी 5000 प्रतियां जीवन में सहज योग बहुत सहायता करता है। छपवाई गईं जो एक ही दिन में बिक गईं। अतः सहज धर्म आपके बच्चों के लिए है-कि बिना कष्ट बच्चों से बातचीत करें, आप हैरान होंगे कि वे दिए उनका पालन-पोषण करने आप उन्हें स्वतंत्र माधुर्य से परिपूर्ण हैं उनके पास बहुत अच्छी बातें व्यक्ति बना सकें। उन्हें अपनी बुद्धि का उपयोग हैं, किस प्रकार सहज की बात करते हैं और किस 1. करने दें। कई बार भटक कर बच्चे गलत कार्य प्रकार अपनी आध्यात्मिक शक्ति की अभिव्यक्ति वे करने लगते हैं; ऐसी स्थिति में आप उन्हें सुधारें। करते हैं ? अब हमारे यहाँ बहुत से अच्छे बच्चे हैं उन्हें बताना आपका कर्तव्य है। वे पेड़ों से नहीं पैदा जो पूरे सहज हैं। एक बच्चा आया और साष्टांग मेरे हुए, माँ-बाप सामने लेट गया । मैंने पूछा, "तुमने ऐसा क्यों | से जन्में हैं। अतः गलतियों के विषय में उन्हें आगाह करना माता-पिता का कर्तव्य हैं। किया?" "श्री माताजी मुझे आपसे शीतल लहरियाँ परन्तु यह कार्य आपने सहज ढंग से करना है। मैं आ रहीं थी इसलिए मैंने ऐसा किया "क्या आपको एक उदाहरण दूँगी। एक साधक मेरे पास आपको यह अच्छा लगता है?" "निःसन्देह।" आया और कहने लगा, "श्री माताजी, धूम्रपान के "चाकलेट से भी अधिक?" "निःसन्देह |" "क्या बिना मैं नहीं चल सकता, मुझे धूम्रपान करना ही आप उन्हें खाते हैं?" "इसकी आवश्यकता नहीं होगा "मैंने कहा, "ठीक है तुम धूम्रपान करो, हैं।" "अन्दर से इतनी प्रसनता मिलती है, और श्री परन्तु तब तुम सहजयोगी नहीं हो सकते। मैं भी माताजी मुझे तो ऐसा लगता है मानों आप मेरे हृदय यदि ऐसे ही धूम्रपान करने लगू तो कैसे लगूगी?" पर हाथ रखकर मुझे सान्त्वना देने का प्रयत्न "भयानक।" 'आप यदि मेरे बेटे हैं तो आप सिगरेट करती हैं।" मैं हैरान थी। मैंने कहा, "आपका हृदय 1 नहीं पी सकते।" उसने सिगरेट छोड़ दी। क्या कहाँ है ?" "यहाँ! मेरा हृदय यहाँ है, मै इसे यहाँ दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 12 नवम्बर महसूस करता हूँ।" आप कल्पना कीजिए कि मार्गदर्शन हुआ है और किस प्रकार आपको आशीर्वाद सहजयोग का कितना प्रेम एवं सूझबूझ पाँच साल है अब यदि यह नहीं मिले हैं। यह सहज धर्म से भी इन छोटे बच्चों में हैं! अब आप सब मेरे जान सकते तो आप अत्यन्त निम्न स्तर पर रहते विकसित बच्चे हैं। आपके अन्तर्निहित सारे सौन्दर्य हैं । इसमें सहजयोग का कोई दोष नहीं है। यह को, जिसका आनन्द आपने लेना है, मैं जानना आपकी अपनी शैली है। आप संवेदनशील नहीं हैं। मान लो कोई अपने हाथ जला ले तो आप क्या चाहती हूँ। सर्वप्रथम स्वयं पर हँसना सीखें । आनन्द लेने का यह सर्वोत्तम तरीका है। शीशे के सामने करेंगे? उसमें विवेक का अभाव है, संवेदनशीलता अधिक समय मत बर्बाद करें। आप यदि ऐसा करते नहीं है, वह महसूस नहीं कर सकता, शराब पी सकता है सिगरेट पी सकता है, सभी कुछ कर हैं तो अवश्य आपमें कोई बाधा है। व्यक्तिगत रूप सकता है और फिर भी ठीकठाक है। अवश्य ही वह से मैं यह सोचती हूँ कि यह एक प्रकार का उन्माद कोई राक्षस होगा। मेरी समझ में नहीं आता कि क्या (Passion) है । अपने अन्दर देखें :क्या आप सहजधर्मी हैं ? श्री माताजी ने सहज धर्म को करूं। तो हमें अच्छे सहजयोगियों के उदाहरण लेने श्रीकृष्ण से भी अधिक प्रस्थापित किया है। उन्होंने चाहिए, बुरों के नहीं। और देखना चाहिए कि प्रेमधर्म स्थापित करना चाहा था जो हममें है। इसके आनन्द में हम किस प्रकार बह रहे हैं। आनन्द एक अतिरिक्त भी हमारे बहुत से सुन्दर पहलू हैं और सागर है उदाहरणार्थ अब मैं आई तो हर व्यक्ति हमारे व्यक्तित्व में बहुत सी सुन्दर खूबियाँ है। मुझे फैक्स करने का प्रयत्न कर रहा था। पश्चिम में परन्तु हम इसका आनन्द लेना भूल गए हैं। अतः चित्त आपके अपने गुणों से परे, आपके अपने की तरह से बन्द कमरों तथा गुफा की तरह की व्यक्तित्व पर होना चाहिए। तब आप हैरान होंगे कि कारों में ही रहना चाहते हैं। सूखे से उन्हें बहुत डर एक अन्य समस्या यह है कि वहाँ सभी लोग गुफा लगता है। मैं नहीं जानती कि क्या उन्हें बाहर फैंक आपका व्यक्तित्व किस प्रकार आपको आनन्द, आहलाद और अन्य लोगों के प्रति कितना धैर्य दिया जाएगा, उनका क्या होगा वे खुश्क नहीं होना प्रदान कर रहा है। कभी-कभी मुझे यह सब कुछ चाहते। यह सूखा किसी हिम नदी से नहीं आ रहा एक मज़ाक-सा प्रतीत होता है क्योंकि इसमें कुछ है। उन्हें ताजी हवा में विश्वास नहीं है और यह भी गम्भीर नहीं है। यह श्रीराम जैसा नहीं है कि एक अन्य कारण है कि कभी कभी लोग दमघोटू आपको गम्भीर होना पड़े। मुझे किसी का वध नहीं होते हैं। वे केवल दमघोटते हैं। जीवन का दमघोटना करना। इस जीवन में मुझे कोई शस्त्र नहीं उठाना। उनकी आदत होती है। एक बार मैं भारत में थी। बिना शस्त्रों के यदि समस्याओं का समाधान होता बहुत गर्मी थी । कोई पश्चिमी व्यक्ति मेरी गाड़ी है तो आप क्या करेंगे ? परन्तु सहजयोगियों का चला रहा था। कहने लगा, "खिड़की मत खोलिए, मत खोलिए।" मैंन कहा, "क्यों?" "खुश्की है।" संवेदनशील होकर आप देखें कि किस प्रकार मैंने कहा, "इस देश में लोग खुले में रहते हैं, खुश्की सौन्दर्य देखने का प्रयत्न आप अवश्य करें। आपकी सहायता हुई है, किस प्रकार आपका क्या है ? आप कौन-सी खुश्की की बात कर रहे दिसम्बर, 1997 घैतन्य लहरी 13 नवम्बर हैं। आप दरवाज़ा नहीं खोल सकते, खिड़की नहीं बिना आप काम चला सकते हैं। इतनी कारें लेने की खोल सकते, कुछ भी नहीं खोल सकते।" यदि क्या आवश्यकता है? आजकल लोग पैदल तो आप कुछ खोल देंगे तो वे मर जाएगें उनका जो चलना ही नहीं चाहते। बचपन में जब हम पाठशाला रवैया प्रकृति के प्रति है वही निजी जीवन में है। वे जाते थे तो पैदल जाना पड़ता था, यद्यपि मेरे पिता कुछ भी नहीं खोलना चाहते। कोई यदि उनके घर जी के पास कार थी एक पहाड़ी पार करके हमें थी पाठशाला। पर आ जाए तो वे कहेंगे, "हे परमात्मा! अब हमें जाना होता था। लगभग 5 मील दूर हर सुबह हमें पैदल जाना होता था, शाम को हमें मदिरा और भोजन बाँट कर लेने होंगे।; वे बॉट कर नहीं खा सकते। यह अत्यन्त असामूहिक है। परन्तु लाने के लिए कार आती थी। मैं तो नंगे पाँव चला भारत के लोगों में बाँट कर खाने का अच्छा क्षेम है करती थी। इतनी चैतन्य लहरियाँ होती थीं कि मुझे क्योंकि वे अभी तक आदिमानव हैं। वे अभी आदिवासी लगता कि चप्पलों के कारण उनमें कमी आ रही है अतः अपनी चप्पलों को मैं हाथ में उठा कर चलती हैं। उल्टे सीधे ढंग से अपने अहं को सन्तुष्ट अभी तक वे नहीं करने लगे। जैसा भी हो, भारत के लोग थी एक बार हमारा एक नया ड्राइवर आया। उसने बॉँट कर खाना पसंद करते हैं। किसी भारतीय को कहा, "मैं कैसे आपकी बेटी को पहचानूंगा?" मेरे यदि आपने प्रसन्न करना हो तो उसे कहें, "कल मैं पिताजी ने कहा, "जो लड़की हाथों में चप्पल उठाए खाना आपके साथ खाऊँगा।" उसकी पत्नी उछलकर हुए हो उसे आपने लाना है।" तो अपनी श्रेष्ठता, कहेगी, "आपको क्या पसन्द है?" "मुझे बताएं कि अपनी उदारता का आनन्द लेना है यह अत्यन्त आपको क्या अच्छा लगता है? वह उछल पड़ेगी। आवश्यक है। किसी का पक्ष नहीं लेना। आपका परन्तु प्रायः क्या होता है? यहाँ पर यदि आप कहें उनसे तादात्म्य नहीं है। मेरे विचार से अब अच्छा कि. "वह खाना खाने के लिए आ रहा है" तो है। जब से आपने सहज धर्म अपनाया है,. अंग्रेज बताते हैं कि अंग्रेजों में क्या कमी है, स्विस अपनी आपकी पत्नी कहती है, "नहीं! मैं अपनी माँ के यहाँ जा रही हूँ।" तुरन्त वह कार्यक्रम बना लेगी। मैं तो कमियाँ बताते हैं और भारतीय अपनी। वास्तव में मैं यह बात समझ भी नहीं पाती उनके पास बहुत उनसे सीखती हूँ। मुझे तो पता भी नहीं कि उनमें ये सुन्दर, साफ सुथरे घर हैं। परन्तु यदि कोई आ चीजें हैं । रूसी अपने दुर्गुण बताएंगे और देखने जाए तो उन्हें ऐसा आघात लगता है मानो बिजली लगेंगे कि इस मामले में हम क्यों पिछड़े हैं। हुए का झटका लगा हो। किसके लिए यह सभी कुछ जैसे भारत में हम देखते हैं कि यहाँ क्या हो रहा है। दिखावा करने के लिए वे लोग बैंकों से पैसा है । सभी लोग भ्रष्ट हैं, भयानक! मैंने कहा, "ठीक उधार लेंगे। अमेरिका में बसे भारतीय भी यही करते है, यदि आपको भारत पसन्द नहीं है तो आप कहीं हैं। वे तीन मर्सिडीज कारें और चार घर लेना चाहते और क्यों नहीं चले जाते ?" "नहीं, नहीं, नहीं हम हैं। किसलिए ? बस पैसा ही उधार लेते रहते हैं। रहेंगे तो यहीं परन्तु यहाँ की सरकार अतिभ्रष्ट है।" सहजयोगियों को पैसा उधार नहीं लेना चाहिए। कहीं भी आप जाएं, सहज-धर्मी तुरन्त अपनी कमियों को देख लेंगे उन्हें अपने देश को परिवर्तित करने इन चीजों के उसकी कोई आवश्यकता नहीं है दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 14 के लिए चुना गया है। भारत के बहुत से प्रश्न मैंने सत्यधर्म का पालन नहीं करते। जो सत्यधर्म का 1 उठाए हैं। उस स्तर पर मैं कार्य शुरु करने वाली पालन नहीं करते। जो सत्यधर्म का पालन नहीं हूँ। एक प्रकार से हमने बेसहारा महिलाओं के लिए करते वो कैसे तुम्हारे भाई-बहन हो सकते हैं ? कार्य आरम्भ कर दिया है। इसके पश्चात् गरीबी आपका इनसे कुछ नहीं लेना-देन।। आप यदि तथा अन्य समस्याओं को लेंगे मात्र कहने भर से उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं, उन्हें सकते कि 'गरीबी दूर करो, गरीबी दूर नहीं की जा हैं तो ठीक है। नहीं तो उन्हें भूल जाओ। पहले सकती। गरीबों के लिए आपके हृदय में भावना सीधे सादे लोगों से सम्बन्ध रखो। पहले हमें सीधे -सादे निश्छल लोगों से व्यवहार करना चाहिए और | सुधार होनी आवश्यक है। केवल तभी आप कुछ कर पायेंगे। परन्तु भारतीय होने के नाते केवल भारतीयों के प्रति आपमें वे भाव आते हैं। यदि आप सहज- चाहिए। अन्यथा यहाँ आकर आप कहेंगे, "श्री क्षेम प्राप्त हो जाने पर कठिन लोगों की ओर बढ़ना धर्मी हैं तो सभी के लिए यह गहन भावना आपके माताजी मुझे यह पकड़ आ गई, मुझे वह पकड़ आ हृदय में आती है। अतः हमने एक नये धर्म की गई।" तो आत्मा होने के नाते, सहजधर्म में आप स्थापना की है और इस नये धर्म से यह विश्व एक अन्य लोगों के विषय में अच्छी तरह जानते हैं और कहीं श्रेष्ठ नयी नस्ल (प्रजाति) बन गया है। समझ सकते हैं कि कौन कैसा है तथा उसके कौन श्रीकृष्ण का स्वप्न भी साकार हो रहा है वह से चक्र पकड़ रहे हैं। परन्तु अमेरिका में मैंने पाया आरम्भ में ही वर्णन करते हैं- मेरे विचार में श्रीकृष्ण कि सहजयोगी जाकर किसी से भी कह देते हैं कि अच्छे विक्रेता न थे, क्योंकि उन्होंने सर्वोत्तम का वर्णन सर्वप्रथम किया है। एक विक्रेता 2 रुपयें की बार आया है और आप उसे कह देते हैं कि, "तुम आपका फलों चक्र पकड़ रहा है।" कोई पहली चीज़ से शुरु करके 2000 तक ले जाता है। परन्तु अहंकारी हो।" वह कहेगा, "आप कैसे जानते हैं?" श्रीकृष्ण ने प्रज्ञ' बनना होगा अर्थात् सहज योगी। जब अर्जुन वाले की स्वयं की आज्ञा पकड़ रही हो! किसी नए ने पूछा शुरु में ही कह दिया कि आपको 'स्थित तुम्हारी आज्ञा पकड़ रही है। हो सकता है बताने आदमी का स्वागत करने का क्या यही तरीका है ? कि 'स्थित प्रज्ञ क्या है" तो उन्होंने सहजयोगी के गुण बताए। यह पहले से ही गीता के दूसरे वास्तव में आपको यह कहना चाहिए कि, "आइये, बैठिए। बहुत अच्छा। आप अति महान हैं।" वे लोग अध्याय में वर्णित है। अर्जुन महान जिज्ञासु थे। उन्होंने बहुत से क्योंकि अभी तक अन्धकार में हैं अतः उन्हें थोड़ी सी प्रश्न किए। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह मक्खनबाज़ी अच्छी लगती है। आप यह सब उसे सब केवल माया है- केवल भ्रम है। माया जाल से सहजयोगी बनाने के लिए कर रहे हैं। आप उसे प्रेम मुक्ति पा लो। क्योंकि अर्जुन ने कहा कि "ये सब करते हैं और यही मूलकारण है । परन्तु किसी मेरे सम्बन्धी हैं, गुरु हैं मैं कैसे इनका वध कर व्यक्ति के पहली बार आते ही यदि आप उसे कहें सकता हूँ?" श्रीकृष्ण ने कहा, "किसी का वध नहीं कि आप में यह कमी है, आपमें वह कमी है तो होता।" इनका वध इसलिए हो रहा है क्योंकि ये उचित न होगा यह पादरी का कार्य नहीं है कि दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 15 नवम्बर आप लोगों को उनकी कमियाँ ही बताते चले जाएँ चिन्ता करनी चाहिए और न ही अपने की विषय में और कहें कि जाकर अपराध स्वीकार करें। ऐसा सोचते रहना चाहिए। उन्हें तो योगियों की सामूहिकता नहीं है। हमें तो यह दर्शाना होगा कि हमे उस के विषय में सोचना चाहिए। सामूहिकता लोगों को विवश करके लोगों को सहजयोग में लाने के लिए नहीं होती। एक बार जब वे सहज में आ जाएंगे तो व्यक्ति से प्रेम हो गया है। आपका व्यवहार उसके प्रति इसलिए अच्छा है क्योंकि आपको वह अच्छा उन्हें जीवन के आनन्द के विषय में पता चल जाएगा लगता है। परन्तु ज्योंही कोई आपके पास आता है और फिर आपको उन्हें कुछ बताना न पड़ेगा कुछ तो बस सब और आप उसे आघात पहुँचाते हैं बैठकर समाप्त हो गया अच्छा बनाए रख सकते हैं ? अमेरिका के लोगों को किसी प्रकार आप सम्बन्धों को भी बताने की आवश्यकत्ता नहीं है। चुपचाप उनपर कार्य करें और वे आपका प्रेम महसूस करने सीखनी है। मैं नहीं समझ पाती कि लगेंगे। प्रेम इतना महान है। यह न केवल अन्य किस कारण से अमेरिका के लोग स्वयं को अन्य लोगों की सहायता करता है. यह आपकी भी यह चीज़ लोगों की अपेक्षा श्रेष्ठ मानते हैं। विवेक मुझे यह सहायता करता है। दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देना 1 कहने की आज्ञा नहीं देता कि वह अन्य लोगों को बड़ा आनन्ददायी बात है। परन्तु यदि आपने यही एकदम गलत समझ लेते हैं। दूसरों के विषय में कहना था कि, "आषका फलां चक्र पकड़ रहा है, निर्णय करने लग पड़ने से आप सहजधर्म का "तो आपने साक्षात्कार दिया ही क्यों आपको यदि पालन नहीं कर सकते। सहजधर्म तो यह है कि आत्मसाक्षात्कार देना नहीं आता तो अच्छा होगा कि आप स्वयं में स्थित हैं: स्वयं में स्थित आप अपने आप साक्षात्कार न दें तो आलोचना से हम जीवन साम्राज्य में हैं, अपनी प्रसन्नता में हैं और अपने का आनन्द नहीं ले सकते। निःसन्देह कभी कभी आनन्द में हैं। अन्य लोगों की आलोचना करने का विनोद के लिए आप एक दूसरे की टांगे खींच सकते समय कहाँ है ? तो सभी के प्रति अपना प्रचुर प्रेम हैं। दूसरों को कष्ट या हानि पहुँचाने के लिए नहीं दर्शाना ही सर्वोत्तम है। उस प्रेम में भी आपने दया और न ही उनका पतन करने के लिए। हम सब का प्रदर्शन न करके शुद्ध प्रेम दर्शाना है जो कि सहज धर्मी हैं, आपने सहज धर्म स्वीकार किया है आहलाददायी है। श्रीकृष्ण का यही संदेश है परन्तु और सहज धर्म में हमें हार्दिक प्रेम एवं विवेकशील मैं नहीं जानती कि कितने लोग इसे समझ पाए । जीवन अपनाना होगा, मिथ्याचार या आडम्बर नहीं। अब, तथाकथित, श्रीकृष्ण के अनुयायी जैसे हरे अब यह पोप गर्भपात के विरुद्ध है । मैं नहीं हूँ। एक रामा के लोग तो वास्तव में गलियों के भिखारी हैं। महिला यदि कष्ट उठा रही है तो उसे गर्भपात की वे स्वयं तो कुबेर हैं परन्तु उनके अनुयायी गलियों आज्ञा होनी चाहिए। उत्पन्न होनेवाले की अपेक्षा के भिखारी हैं। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते जीवित व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण है कोई महिला हैं, क्या इससे कुबेर की गरिमा बढ़ती है ? तो सहजयोगी ऐसे नहीं हैं। सहजयोगियों जन्म ले लेगा हमारे अनुसार कोई स्थायी रूप से यदि गर्भपात कराना चाहती है तो वह बच्चा तो पुनः को उदार होना चाहिए, हर समय न तो अपनी मरता नहीं चाहे जो मर्जी हो। इस प्रकार से वे दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 16 नवम्बर मानव सन्तान वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। मुसलमान नहीं रह सकते। उन्होंने मुरली बजाई। उनकी ओर लोग कहते हैं कि उनकी महिलाएं सन्तान पैदा देखो। मैं तो आपसे बात कर रही हूँ .परन्तु उन्होंने करने के कारखाने हैं। वे अधिक से अधिक बच्चे केवल बाँसुरी बजाई। गीता के सिवाय श्रीकृष्ण ने बनाए चले जाते हैं ताकि बहुत से वोट देनेवाले लोग बहुत बातें नहीं की और गीता को पढ़नेवाले लोग भी हों। पोप भी इस बात को जानता है इसी कारण वो बहुत अजीब हैं। गीता को पढ़नेवाले यह नहीं समझ गर्भपात की आज्ञा नहीं देता। उसके अनुसार ईसाई पाते कि श्रीकृष्ण का धर्म क्या है? यदि वे श्रीकृष्ण लोगों को गर्भपात नहीं कराना चाहिए नहीं तो को नहीं समझ पाएंगे तो किस प्रकार वे सहजयोग मुसलमानों से मुकाबला करने के लिए ईसाईयों की को समझ पाएंगे ? तो आप सभी ने प्रेम, संख्या कम हो जाएगी। परन्तु सहजयोग में इस दूसरों की सराहना तथा उन्हें आनन्द प्रदान करने क्षमा, प्रकार की मूर्खतापूर्ण, रूढ़िवादी एवं हास्यास्पद का अभ्यास करना है। कुछ सहजयोगी मेरे प्रति चीजें नहीं हैं। हम तलाक की आज्ञा भी देते हैं और अत्यन्त विनम्र थे। गर्भपात की भी क्योंकि यह भी आवश्यक है। यह एक बार मैं अपने लिए साड़ी खरीदने के लिए समझना चाहिए कि यह सब वर्णन विद्यमान हैं एक दुकान पर गई मेरे हिसाब से साड़ी बहुत परन्तु यह उनके लिए नहीं हैं जिन्हें कष्टों से मंहगी थी अतः इसे मैंने नहीं खरीदा। यह रंग छुटकारा पाना है। इसके लिए हमें कार्य करना होगा तभी यह कार्यान्वित हो सकेगा। परन्तु सच्चाई मुझ पर फबता है, परन्तु कोई बात नहीं। मेरे पास इतने पैसे नहीं है। एक सहजयोगी ने (ग्रेगोर) वह साड़ी तो यह है कि हमें गर्भपात की आवश्यकता ही नहीं खरीदी और मेरे जन्मदिवस पर मुझे भेंट की। मेरी पड़ती। परम चैतन्य सभी कार्य कर देता है। मेरे आँखों में आँसू भर गए और उस समय मैं उस साड़ी 1. सभी कार्य परम चैतन्य करता है. मुझे कुछ करने को देख न सकी। इतनी छोटी सी चीज़ प्रायः की आवश्यकता नहीं पड़ती। परम चैतन्य सभी अपने लिए मैं आपसे किसी चीज़ की आशा नहीं कुछ करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि क्या करती। नहीं। करना है और कैसे करना है कभी कभी प्रसन्न करती हैं। किसी अन्य के प्रति यदि आप ऐसा आप कठिनाई में होते हैं, फिर भी समस्याओं करेंगे तो हो सकता है कि वह न तो इसे समझ सके को परमचैतन्य पर नहीं छोड़ते। यदि आप और न ही महसूस कर सके परन्तु सहजयोगी इसे परम चैतन्य पर छोड़ दें तो कार्य बहुत अच्छी अवश्य महसूस करेगा । परन्तु छोटी छोटी चीजें मुझे बहुत तरह से हो जाएगे तो सहज योग को समझने के लिए पहली और अत्यंत आवश्यक बात यह है अत्यन्त धन्यवाद। स्वानन्द लेने का और दूसरों को यह सबकुछ जो मैंने कहा इसके लिए आपका कि आप कितने आनन्दमग्न हैं। इसके लिए आपके -आनन्द प्रदान करने का प्रयत्न करें। परमात्मा आपको धन्य करें। पास संगीत आदि बहुत सी चीजें हैं। (अनुवादित) मैं कह रही थी कि आज मैं अधिक नहीं बोलूगी, परन्तु जो भी है श्रीकृष्ण के साथ आप चुप 17 रूसी लोक चिकित्सा सम्मेलन (नोटः यह वार्ता सितम्बर 1997 में हुए रूसी चिकित्सा सम्मेलन के अवसर पर पढ़ने के लिए श्री माताजी ने लिखी थी) प् अंग्रेजी चिकित्सया (Allopathy) में भी लोग इन पर मान्यवर सम्माननीय अतिथ्चिगण! मुझे सहज योग और इसकी कार्यशैली के विश्वास करते थे। परन्तु आयुर्वेद इनसे आगे गया विषय में बोलने की आज्ञा दें। सहजयोग समस्याओं और खोज निकाला कि एक अवशिष्ट शक्ति भी है की जड़ों का इलाज करता है केवल पेड़ के पत्तों जो स्वभाव से मूलभूत (Primodial ) है । जागृत का नहीं। हर मानव के अन्दर स्थित आदि ऊर्जा होकर यह शक्ति रीढ़ की हड़्डी तथा मस्तिष्क में सृजित सात ऊर्जा केन्द्रों में से गुजरकर सर्व्याप्त जागृत करके यह इस कार्य को करता है, तत्पश्चात् यह ऊर्जा स्वतः ही मानव अन्तःस्थित केन्द्रों या मूलशक्ति से सम्बन्ध जोड़ती है। चक्रों को ठीक करती है। इस ऊर्जा का अपना इस दिशा में शोध करने बालों को भारत में विवेक है और अपनी करुणा है तथा यह आपसे भी नाथपन्थी कहा जाता था। नाथ अर्थात् स्वामी और अधिक आपके विषय में जानती है कि आपमें क्या पन्थ अर्थात् 'मार्ग- अथ्थात् स्वामित्व प्राप्ति मार्ग। कमी है। हजारों वर्ष पूर्व मच्छिन्दर नाथ और गोरखनाथ दो यह मानव अन्तर्रचित आदि तत्वों को तथा सन्त हुए। इन दोनों ने अन्य लोगों के साथ दूर-दूर आदिवर्जनों के अन्तर्जात तत्वों को पुनः स्थापित की यात्रा की। वे युक्रेन भी आये। वहाँ संग्रहालय करती है और यह वर्जन व्यक्ति को सच्चा अन्तर्जात में प्राचीन मिट्टी के बर्तनों पर इन चक्रों की चित्रकारी चरित्र, स्वास्थ्य एवं आन्तरिक शान्ति प्रदान करते देख सकते हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा के मूल हैं। इस ऊर्जा की शक्ति, वास्तव में, उन आदि और सच्चे तत्वों से बनी है जो शाश्वत हैं और निवासियों में भी मातृ-संस्कृति पाई जाती है। मैक्सिको की मेयन (Mayan ) संस्कृति भी माँ और पृथ्वी माँ अपरिवर्तनशील भी। तो आइये जनसाधारण की धारणा जिस को मानती है। बस वे ये न जानते थे कि पावन प्रकार लोकचिकित्सा में हैं, पर विचार करें। पीढ़ी नामक रीढ़ की हड्डी में स्थित इस सुप्त शक्ति को दर पीढ़ी जनसाधारण द्वारा किए तथा लिखे गए जागृत कैसे किया जाये। इसका अर्थ ये अनुभवों से बनी हुई धारणा लोकधारणा बन जाती यूनानी लोगों को इस अस्थि की पावनता का ज्ञान | पूरे विश्व में ये अनुभव लिखे गए। आरम्भ में, जिस प्रकार आयुर्वेदिक चिकित्सा में तीन दोष हैं. आदि-शंकराचार्य, गुरुनानक और ज्ञानदेव जैसे कि हुआ थे। मार्कण्डेय, था और आत्मतत्व को भी जान - दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नबम्बर 18 महान संतो ने इसका वर्णन किया। सौभाग्य से ईसा मसीह ने भी कहा था कि भण्डाफोड़ करता है। "मैं तुम्हें आदि शक्ति(Holy Ghost) भेजूगा" और मोहम्मद साहब ने कहा कि बारहवाँ इमाम आयेगा। प्रकाश डालता है। परन्तु पश्चिमी मस्तिष्क इतना भारतीय धर्मग्रन्थों में ज्योतिष शास्त्र के जन्मदाता संकुचित है कि पूर्णतः सत्य पर आधारित इस भृगुऋषि ने नाडी ग्रन्थ में भविष्यवाणी की है कि वर्ष अद्वितीय चीज़ को देखना ही नहीं चाहता। यह 1970 में सहज-प्रणाली की खोज की अभिव्यक्ति शक्ति आपमें निहित है एक अनुभव का वास्तवीकरण होगी। शालीवाहन राजवंश में जन्मी श्री माताजी आप महसूस करते हैं । आपकी अंगुलियों के छोरों निर्मला देवी ने कुण्डलिनी विद्या तथा सामूहिक तथा सिर के तालू भाग से शीतल लहरियोँं बहने आत्मसाक्षात्कार वास्तवीकरण का ज्ञान प्रतिपादित लगती हैं जिनका वर्णन अधिकतर धर्मग्रन्थों में किया है। स्वतः जागृति की विधि से हजारों लोग किया गया है आपको अन्धेरे में नहीं छोड़ दिया सर्वव्यापक मूल जीवन शक्ति (परमचैतन्य) से जुड़ जाता; अपनी अंगुलियों के छोरों तथा अपने शरीर में गये हैं उन्होंने केवल जागृति और मूल जीवन-शक्ति आप अपने चक्रों को महसूस कर सकते हैं। आप से योग ही कार्यान्वित नहीं किया, परन्तु हमारे यदि अपने चक्रों को ठीक करना जानते हैं तो दूसरों आदि का अभ्यास करने वाले लोगों के झूठ का चिकित्सा के आधुनिक विज्ञान पर भी यह सूक्ष्म-तंत्र का पूर्ण ज्ञान भी प्रदान किया है केवल के चक्र भी आप ठीक कर सकते हैं, और इसके रूस में ही असंख्य लोग रोग मुक्त हुए हैं और लिए कोई पैसा नहीं खर्चना पड़ता विकास की यह लोगों के जीवन परिवर्तित हो गए हैं वे वास्तव में जीवन्त प्रक्रिया है, अतः जागृति या आध्यात्मिक परिवर्तित प्रेममय, दयार्द्र एवं शान्त व्यक्ति बन गए उत्थान के लिए आपको कुछ खर्चना नहीं पड़ता। हैं। लोभ और वासना सम असमाजिक आचरण से 1 यह अद्वितीय विधि विज्ञान - विरोधी नहीं वे मुक्त हो गए हैं उनकी चेतना में सामूहिक है।पाश्चात्य सभ्यता और उपभोक्तावाद ने हमें अंधी 1. चैतना का नया आयाम जुड़ जाने के कारण वे उन्नति दी है। परन्तु सहजयोंग से आप वास्तविक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह प्रकाशरंजित लोगों को आत्म-साक्षात्कार प्रदान करने तथा उनके है। इसके माध्यम से रूस वास्तविक सदचरित्र एवं आन्तरिक आध्यात्मिकता से परिपूर्ण देश बन जाएगा जो बिश्व को इक्कीसवीं सदी में ले जाने में सक्षम रोग दूर करने में सशक्त हैं। अतः मानव के सभी आदि-वर्जन स्थापित हो जाते हैं तथा मूल निवासियों में भी आधुनिक जीवन के आघात से जो अपना सत्य-ज्ञान खो चुके हैं, ये होगा। सभी रूसी लोगों को मुबारकवाद! मूल-तत्व पुनःप्रस्थापित हो जाते हैं। यह ज्ञान इतना स्पष्ट है कि जादू-टोना तथा काला-जादू (अनुवादित) हुम ईसा मसीह पूजा गणपति पुले (25.12.1997) परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पम लोग यहाँ ईसा मसीह का जन्म नष्ट करने के लिए। लेकिन इससे अहंकार नष्ट दिन मनाने के लिए उपस्थित हुए हैं। ईसा मसीह नहीं होता, इससे बढ़ता है। उपवास करना, जप-तप की जिन्दगी बहुत छोटी थी और अधिक काल करना आदि सब चीज़ों से अहंकार बढ़ता है। हवन उन्होंने हिन्दुस्तान में ही बिताया-काश्मीर में सिर्फ से भी अहंकार बढ़ता है क्योंकि अग्नि जो है वो दायें (Right Side) तरफ है जो कुछ भी हम लोगों ने उन्हें सूली (Cross) पर टॉग दिया। यह कर्म-काण्ड करते हैं, Rituals करते हैं, उससे अहंकार बढ़ता है और सोचता है कि हम सब ठीक हैं हजारों वर्ष से बही-बही कर्म काण्ड करते आज हम 1 आखिरी तीन साल के लिए वे बापिस गए और सब कुछ विधि का लिखा हुआ था। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए उन्हें ये बलिदान देना पड़ा और इस मनुष्य तरह से उन्होंने आज्ञा चक्र की व्यवस्था की। आज्ञा जाते हैं और उल्टा-सीधा सब मामला जो भी चक्र बहुत संकीर्ण है. छोटा सा. और आसानी से सिखाया गया, वही मनुष्य कर रहा है। इसीलिए खुलने वाला नहीं क्योंकि मनुष्य में जो स्वतंत्रता सहजयोग कर्मकाण्ड के विरोध में है। कोई भी आ गई उससे वो अहंकारी बन गया इस अहंकार कर्मकाण्ड करने की जरूरत नहीं और अतिशयता ार ने उसका आज्ञा चक्र बंद कर दिया और उस बंद पर पहुँचना तो और गलत बात है। जैसे हमने कहा आज्ञा चक्र से निकलने के लिए अहंकार निकालना कि अपने अहंकार को निकालने के लिए आप बहुत जरूरी है और अहंकार निकालने के लिए उसको, मराठी में जोड़ेपट्टी' कहते हैं. जूते मारिए, आपको अपने भन को काबू करना पड़ता है। लेकिन तो रोज सवेरे सहजयोगी जूते ले कर चले पंक्ति आप मन से अहंकार नहीं निकाल सकते। जैसे ही (ine) में। अरे अगर आप के अंदर अहंकार हो आप मन से अहंकार निकालने का प्रयत्न करेंगे, तब। हरएक आदमी हाथ में जूता लिए चला जा वैसे ही मन बढ़ता जाएगा और अहंकार बढ़ता रहा है रास्ते में। यह सब कर्मकाण्ड सहजयोग में जाएगा| "अहं करोति सः अहंकाराः " | हम करेंगे, भी बहुत घुस गए हैं यहाँ तक कि पफ्रांस (France) से भी एक साहब आए थे, वो वाशी के हस्पताल इसका मतलब कि अगर हम अपने अहंकार को कम करने की कोशिश करें तो अहंकार बढ़ेगा (Hospital) से कर्मकाण्ड ले कर आए। अरे बाबा, क्योंकि हम अहंकार से ही कोशिश करते हैं । जो यह तो बीमारों के लिए है। आप को अगर यह लोग यह सोचते हैं कि हम अपने अहंकार को दबा बीमारी हो तो आप यह कर्मकाण्ड करो। जो Cancer लेंगे खाना कम खाऐंगे, दुनिया भर के उपद्रव, एक की बीमारी के कर्मकाण्ड हैं वो भी उसने लिख रखे पैर पर खड़े हैं, तो कोई सिर के बल खडा है! हर थे। मैंने कहा कि मनुष्य का स्वभाव है कि कर्मकाण्ड तरह के प्रयोग लोग करते हैं अपने अहंकार को करे। क्योंकि वो सोचता है मैं कर सकता हूँ। मेरे जतह दिसम्बर 1997 चैान्य लहरी 20 नवम्बर कर्मकाण्ड से कार्य होगा और इस कर्मकाण्ड में उन्होंने सिखाया है कि आप सबसे प्रेम करें अपने सिर्फ आप ही लोग नहीं हो, परदेस में भी बहुत से दुश्मनों से भी प्यार करें। इस का इलाज उन्होंने लोग कर्मकाण्ड करते रहते हैं। तरह-तरह के। प्यार बताया है और प्यार के अलावा कोई इलाज जैसे साल भर में एक बार गिरजाघर ( Church) नहीं और ये प्यार परम चैतन्य का प्यार है । उन्होंने को जाएँगे, माने आज के दिन उसके बाद भगवान साफ- साफ कहा कि आप को खोजो, दरवाज़े का नाम भी नहीं लेंगे। दुनिया भर के गंदे काम खटखटाओ, तो दरवाजा खुल जाएगा। इस का अर्थ करके कैथोलिक (Catholic) धर्म में जाकर के वो यह नहीं कि तुम जाकर के दरवाजे खटखटाओ। (confession) कर लेंगे यह सब मूर्खता अगर इस का मतलब यह है कि अपने दिल के दरवाजों आप देख सकें तो आप सहजयोगी हो गए। अगर को खोलिए। 1 जिस आदमी का दिल छोटा होता है, जो आप समझ सके कि यह सब गलत काम जो हमने किया, यह गलत हैं और अब से आगे यह काम कंजूस होता है वो आदमी कभी भी सहजयोगी नहीं ले नहीं करने का, यह अगर आपकी समझ में जाए तो बन सकता और दूसरी चीज़ जो बहुत जरूरी है वो यह बात आपकी समझ में आ जाएगी। अब कर्मकाण्डी ये है कि आपको यदि गुस्सा आता है तो इस का लोगों में और भी विशेषताएं होती हैं। एक तो वो अर्थ है कि आपके अन्दर अभी बहुत अहंकार है । एक नम्बर के कंजूस होते हैं। अगर आप उनसे दस मैंने देखी है गुस्से वालों की स्थिति, विस्फोटक और रुपए की बात करें तो वे आकाश में कूदने लग जाते उससे उन्हें शान महसूस होती। बहुत शान से हैं। उसको मराठी में 'कौड़ी चुम्बक' कहते हैं। एक कहते हैं, मैं बहुत गुस्से वाला हूँ। ऐसे लोग सहजयोग बात है। मराठी में ऐसे-ऐसे शब्द हैं जिनसे आपका में नहीं रह सकते। जो लोग प्रेम करना जानते हैं अहंकार वैसे ही उतर जाए। जैसे कि कोई अपनी और वह भी विशुद्ध प्रेम ऐसा प्रेम जिसमें कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें बताने लगे कि मैंने ये किया. आकांक्षा नहीं, कोई इच्छा नहीं। पूर्णतया निरीच्छ मैंने वो किया, तो उसको धीमे से कह दीजिए कि जो लोग प्रेम करना जानते हैं, वही सहजयाग में रह तुम चने के पेड़ पर चढ़ रहे हो। चने का पेड़ तो सकते हैं। अहंकारी लोग बहुत गलत-सलत कार्य होता नहीं। तो वो ठंडा हो जाएगा। मैंने ये किया, करते हैं । और मैं उनसे तंग आ गई हूँ। अपने ही मैंने वो किया। मैं, जब तक ये मैं नहीं छूटता मन से कुछ शुरु कर देंगे और मुझे बताएंगे भी तब तक हमारा इंसा मसीह को मानना गलत है। नहीं। ऐसा करने से आज हज़ारों प्रश्न पैदा हो गए पर आश्चर्य की बात है जिनको ईसाई राष्ट्र हैं। (Christian Nation) कहते हैं उनसे ज्यादा अहंकारी तो मैंने देखे नहीं । विशेषकर अंग्रेज़, मुझसे एक बार एक पूजा अमरीकी, सब लोगों में इस कदर अहंकार है कि बताया कि हमें ज़मीन मिल रही है, बस। उससे समझ में नहीं आता कि ईसा-मसीह के ये कैसे कितना पैसा लिया, सब कैसे होने वाला है, शिष्य हैं! अब इस अहंकार का इलाज क्या है ? वो कैसी है कुछ नहीं बताया और किसी भी सहजयोगी सोचना चाहिए। इसका इलाज ईसा-मसीह थे और ने नहीं बताया। क्योंकि कल यदि कोई कहे कि श्री आज बताने की बात है दिल्ली में इन्होंने के दिन हड़बड़ी में आकर ज़मीन दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 21 नवम्बर माताजी ने ऐसा कहा है. तो उस आदमी को आप देश भक्ति होनी ही चाहिए । लेकिन यही देश-भक्त बिल्कुल छोड़ दीजिए। मुझे कुछ कहना है तो मैं विश्व-भक्त हो जाता है। अगर देश भक्ति ही नहीं स्वयं कहूँगी उसके बाद इतनी मीटिंगज़ हो गई, है, जब बूंद ही नहीं है तो सागर कैसे बनेगा ? तो मुझे कभी कुछ नहीं कहा। अब जिन्होंने उन्हें पैसा प्रथम, आपमें देशभक्ति है या नहीं, यह देखना दिया, सिर पकड़ के बैठे हैं कि उन्हें ठगा गया है। चाहिए। आप देश के विरोध में यदि कोई कार्य कर अब ये पैसा कैसे वापिस मिलेगा ? मुझसे बगैर पूछे रहे हैं तो आप देशभक्त नहीं हैं। सारे काम हो गए, बिल्कुल बगैर पूछे। अब वो इतनी खराब जमीन है कि अब नोटिस आया है कि आप नहीं थी। उन्होंने कहा भी था कि वहाँ सब ऐसे लोग उसपर कुछ भी नहीं बना सकते, उल्टे आपको हम रहते हैं जिनको सिर्फ मल की इच्छा है। यानि जो पकड़ेंगे। हर एक सहजयोगी को अधिकार है कि मलेच्छ हैं । लेकिन शालिवाहन ने उनसे कहा, नहीं मुझे आकर बताए और मुझसे पूछे। उन्होंने कोई नहीं, तुम जाओ, और उन्हें 'निर्मल तत्वम्' सिखाओ। अपनी एक सोसायटी बना ली और हो गए पागल वो सिखाने गए 'निर्मल तत्त्वम्' और उल्टा उन्हें ही कि जमीन मिल रही है न । इतनी खराब जमीन है सूली पर चढ़ा दिया गया। पागलों का देश, उनसे कि बताते हैं वहाँ मुर्गी भी नहीं पाल सकते। कुछ सीखने का था ही नहीं, पर सिखाने का था, सहजयोगी क्या मुर्गियों से भी गए बीते हैं ? अब इस लिए वो गए और इसीलिए उनका अन्त इस जो भी हुआ, सो मूर्खता है और उसके लिए मैं प्रकार हुआ। जिम्मेदार नहीं हूँ। लेकिन आप लोग अपने पैसे वापिस माँग लीजिए मेरी उसकी कोई ज़िम्मेदारी आज्ञा चक्र खुलता है यदि आपको किसी के भी प्रति नहीं है। ईसा-मसीह को वापिस जाने की कोई ज़रूरत समझदारी और क्षमा। क्षमा ही मन्त्र है जिससे कोई गलत फहमी है, किसी के प्रति आपको कोई ईसा-मसीह ने तो यहाँ तक कहा था कि द्वेष है या किसी के प्रति हिंसा की प्रवृत्ति है तो आप जो लोग घर में रहते हैं उन्हें पक्षियों की ओर की आज्ञा ठीक नहीं हो सकती। जो भी आप को देखना चाहिए। वो अपना घरौंदा कितने प्यार से करना है प्रेम के द्वारा । आपको किसी को कहना भी छोटा सा अपने लिए बनाते हैं और जब वो अपना है तो इस लिए कहना है, कि उस का जीवन निर्मल घर बनाते हैं, तो उस घर को बनाने में उन्हें बड़ा हो जाए। इस का अर्थ यह नहीं कि आप अपने बच्चों मज़ा आता है। हर तरह से उन्होंने समझाया कि आप ममत्व को छोड़ दीजिए। यह मेरा घर है, यह को खराब करें। बच्चों को आपको पूरी तरह से मेरी जमीन है. ये मेरे बच्चे हैं। यहाँ तक कि यह अनुशासन (Discipline) में लाना है। अगर आप मेरा देश है। यह जो ममत्व है, यह छूटना चाहिए, बच्चों को अनुशासन में ला नहीं सकते, तो आपके तभी आप महान हो सकते हैं। सारे विश्व में आप बच्चे कभी अच्छे सहजयोगी नहीं हो सकते। और भाई-बहिन है। इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके लिए पहले आपमें खुद अनुशासन होना अपनी देशभक्ति को छोड़ दें। यदि आप देश भक्त चाहिए। यदि आपमें अनुशासन नहीं होगा तो आप नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे आप में बच्चों को अनुशासित नहीं कर सकते। 1 दिसम्बर, 197 जीतन्य लहरी नवम्बर 22 ईसा-मसीह का जो जीवन था उसके बारे में का कोई। कोई महालक्ष्मी को मानता है, तो कोई वहुत कम लिखा गया है लेकिन उनके अन्दर रेणुका देवी को मानता है. तो कोई कृष्ण को मानता इतना अनुशासन था. इस कदर उन्होंने सहा, और है। हर आदमी, हर परिवार अलग अलग अवतरणों अपने जीवन से उन्होंने दिखा दिया। उनको विवाह (Incarnations) को मानले हैं। अलग अलग धर्म की भी जरूरत नहीं थी। उन्होंने विवाह नहीं ग्रन्थों को मानते हैं। कोई भी ऐसा बर्म ग्रन्थ नहीं है किया। इसका मतलब यह नहीं कि वे विवाह के जो कि याइबल जैसा हो। इसलिए सब धर्मों का, विरोधी थे ऐसी गलत फहमी लेकर लोग बैठे हुए एक हिन्दू को चाहिए कि मान करे मैंने देखा है कि हैं और इसी लिए इन्होंने ये महिलाएं बनाई हुई हैं हिन्दुओं में मान करने की शक्ति सब से ज्यादा है । जिन्हें नन (Nun) कहते हैं। उनकी शादी ईसा से करते हैं जो साक्षात् गणोश हैं। उनसे कैसे शादी बाइबल थी वो सब मेज़़ पर बाइबल रखते थे, चाहे कर सकते हैं ? उसके अलावा आदमियों को भी कोई पढ़े या नहीं। बो बाइबल नीचे गिर गया तो शादी नहीं करनी। इस प्रकार की अनैसरगिंक बातें हमारे साथ एक हिन्दू थे उन्होंने उस बाईबल को सिखा दीं । उससे वो सबको अपने कब्जे में रख उठाया सिर पर सकते हैं। पर उससे ईसाई नहीं हो सकते। इस कभी बाइबल को पैर से नहीं छुएगे। कभी नहीं । एक बार हम एक होटल में थे, वहाँ एक रखा और फिर मेज़ पर सख दिया । तरह के कृत्रिम बन्धन अपने ऊपर डाल लेने से ईसाई तो ऐसा कर लेंगे पर हिन्दू नहीं करेगा। सब आज ईसाई धर्म डूब रहा है। ईसा को उन्होंने भुला की इज्जत करना यह हिन्दू का धर्म है। पर उससे दिया और अपने ही मन से एक धर्म उन्होंने बना आज कल जो लोग निकले हैं अजीबो गरीब जैसे लिया है और उसको ये ईसाई धर्म कहते हैं। आज आज के हमारे राजनीतिज्ञ है। बरसात में जैसे कल का ईसाई धर्म ईसा के नाम पर कलंक सा मशरूम निकल आती है ऐसे ये लोग निकल आये लगता है। क्योंकि मेरा जन्म ही इस धर्म में हुआ हैं। ये लोग बास्तव में हिन्दू नहीं हैं। इन्हें अपने और मैंने इस धर्म की सभी अन्दरूनी बातें देखीं । धर्म के बारे में कुछ मालूम नहीं। उत्तर भारत के उसी प्रकार हिन्दू धर्म की बात है। हिन्दू धर्म लोगों को कुछ भी मालूम में आप साम्प्रदायिक हो ही नहीं सकते, क्योंकि के लोग हैं उन्हें तो केवल यही मालूम है. कि आप के अनेक गुरुओं, वास्तविक गुरूओं, दत्तात्रेय जी, नाथपंथी आदि आपके अनेक अवतरण है वो करना है। कर्मकाण्ड के सिवाय इस महाराष्ट्र हैं. और आपके स्वयंभु अनेक हैं। आपके एक नहीं, में अनेक धर्म ग्रन्थ हैं। ईसाई लोगों में सिर्फ ईसा और महाराष्ट्र में बहुत मेहनत करी है. सब व्यर्थ गई) बाइबल । वो रुढ़धिवादी (fundamentalist) हो सकते कुछ छूट नहीं सकता उनसे यहाँ एक सिद्धि हैं। मुसलमान हो सकते हैं और यहूदी लोग भी हो विनायक का मंदिर है। उसके जो गणेश जी हैं, सकते हैं और तीनों का आपस में रिश्ता है, ऐसा उनको जागृत मैंने किया। अब देखती क्या हूँ कि धर्म ग्रन्थों में लिखा है। लेकिन हिन्दू नहीं हो वहाँ एक-एक मील की लम्बी कृतारें मंगल वार को सकता साम्प्रदायिक। क्योंकि किसी का कोई, किसी खड़ी हुई हैँ। गणेश जी भी सो गए होंगे। इस कदर नही और जो दक्षिण भारत , जैसे ब्राह्मण को यहाँ पैसा देना है वहाँ देना है। ये करना और कुछ नहीं। इतने कर्मकाण्डी लोग हैं (मैंने 1 दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 23 नयम्बर कर्मकाण्डी लोग महाराष्ट्र में हैं कि उस कर्मकाण्ड चाहिए कि हमने सहजयोग के कार्य में क्या आर्थिक से उनका स्वभाव जरा तीखा हो गया है और उत्तर भारत में भी मैंने देखा है कि कुछ लोग कर्मकाण्डी मार थे। वो तक फैल गए सारी दुनिया में मेहनत हैं और जो कर्मकाण्डी लोग हैं. उनमें गुस्सा बहुत करके। आज आप लोग मेरे इतने सारे शिष्य हैं और है। बहुत तेज गुस्सा है और जो लोग कर्मकाण्ड में आप लोग चाहें तो कितने ही लोंगो को पार करवा नहीं हैं बो लोग बहुत शांत हैं सो पहली चीज़ है सकते हैं, कितने ही लोगों को सहजयांग में ला कि कर्मकाण्ड बंद करो और हर चीज़ का आदर सकते हैं पर लोग आधे-अधूरे नहीं रहने चाहिएं करो। कर्मकाण्ड बंद करने का यह मतलब नहीं कि बल्कि गहरे उतरने चाहिए। जब तक गहरे नहीं सबको लात मारकर फेंक दो। यह संतुलन जो हैं उतरेंगे तब तक आप समझ नहीं पाएंगे, और उसके यही ईसा-मसीह ने सिखाया है। यह संतुलन आए लिए सबसे बड़ी चीज़ है कि हम उनको कितना बगैर आपका आज्ञा चक्र नहीं खुल सकता। सबका प्यार देते हैं और वो कितना प्यार दूसरों को देते हैं। सम्मान, सबका आदर और बेकार के कर्मकाण्ड कोई भी आदमी जब सहजयोग में अगुआ (Leader) योगदान दिया। ईसा मसीह के पास तो 12 मछली जिसमें गलत लोग पनप रहे हैं। आजकल के जो होता है, तो उसको पहले याद रखना चाहिए कि बहुत से झूठे साधु बाबा हैं वे कर्मकाण्ड की वजह ईसा-मसीह ने जो देन दी है कि आप सबसे प्यार से ही हैं। वो कहेंगे कि आप इतने रुपए दो, यह करो, क्या मैं उसका पालन कर रहा हूँ? मैं सब पर रोब झाड़ता हूँ. मैं सब को ठिकाने लगाता हूँ, सब करो, वो करो, यज्ञ करो। एक सौ आठ मर्तबा रोज़ यह नाम लो, वो नाम लो। मंत्र देता हूँ, फलाना के ऊपर ऑँखें निकालता हूँ, यह अहंकार न केवल करता हूँ। यह सब कर्मकाण्डी हैं और आप लोगों सहजयोग के विरोध में है बल्कि उसका नाश करने को कर्मकाण्ड सिखाते हैं जिसके पूरी तरह से वाला है। जिस आदमी में भी अहंकार हो, वह उसे विरोध में ईसा मसीह थे क्योंकि वो जानते थे कि कम करे और उस की जगह प्यार से भरे तो जीवन कर्म काण्ड करने से आदमी अहंकारी हो जाते हैं सुखमय हो जाएगा, जीवन सुन्दर हो जाएगा। और इस अहंकार को तोड़ने के लिए उन्होंने जीवन सुन्दर हो जाएगा। यदि आप को प्यार करना कर्मकाण्ड को एकदम मना किया था। इसी तरह से नहीं आता तो थोड़े दिन आप सहजयोग से बाहर परमात्मा के नाम पर कोई भी आदमी पैसा कमाए रहें पहले अपने हृदय के दरवाजें खोलें। उसी की तो इसके विरोध में थे। परन्तु इसका उल्टा शुरु हो शक्ति से सहजयोग फैलेगा। बात यह है कि जो गया कि पैसा कमाओ और खाओ। कमाना तो नहीं लोग सहजयोग फैलाते हैं उनमें प्यार की शक्ति कम छूटा पर पैसा कमा लो और खा जाओ, खुद जिससे और गुस्से की शक्ति ज्यादा है। कभी नहीं फैलेगा कोई भी कार्य नहीं हो सकता। आज सहजयोग के कार्य में हमें याद रखना जाएगा| जो ईसा मसीह की सीख है वो बहुत प्यार से बढ़ेगा और गुस्से से घटेगा और नष्ट हो जरूरी है कि हम लोग समझ लें। परमात्मा आपको धन्य करें। 2८ विश्व सहज समाचार आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय पूजा एवं जन कार्यक्रम मार्च 1997 इस वर्ष यद्यपि श्री माताजी आस्ट्रेलिया नहीं गाए गए । आई थीं, फिर भी हमने वार्षिक राष्ट्रीय पूजा एवं भजन समूह "म्यूज़िक ऑफ जॉय , भाग दो" गोष्ठी के लिए एकत्र होना आवश्यक समझा और की रिकार्डिंग करने के लिए अंतिम चरणों पर है। शिवरात्रि पूजा तथा सिडनी में पूजा के पश्चात् दो यह हमारी आशाओं के अनुरूप कार्य करने के लिए जन-कार्यक्रम करने का निर्णय किया पूजा के वचनबद्ध है। इसके पश्चात् कुलगुरुओं तथा उनके पश्चात् चैतन्य लहरियाँ बहुत अच्छी थीं क्योंकि अनुयाइयों पर आधारित ब्रैयानबैल द्वारा लिखित भविष्य में होने वाले जन कार्यक्रम साक्षात श्री नाटक मंचन द्वारा हमारा मनोरंजन किया गया| पिछले दिन की गर्मी के पश्चात् रविवार को माताजी की अनुपस्थिति में ही होने की सम्भावना है। इसलिए यह कार्यक्रम सहजयोगियों की विकास आनन्ददायी ठंडक में बड़ी शान से सूर्योदय हुआ। प्रक्रिया में एक नई अवस्था के प्रारम्भ को दर्शाते हैं। श्री माताजी ने सप्ताह के आरम्भ में ही हमें याद हमारे लिए सहजयोग ही जीवन है. उत्थान एवं दिलवाया था कि श्री शिव हमे शान्त करते हैं। पूजा ब्का दूसरों के उत्थान में सहायता करना हमारा लक्ष्य योजना प्रातः काल ही बना दी गई। कागज़ के फूलों की पार्श्वसज्जा तथा वास्तविक फूलों से मंच है। सामूहिक रूप से हम उस पथ पर चलना प्रारम्भ कर रहे थे जहाँ सहजयोग प्रचार का अधिकतर को सजा दिया गया। श्री माताजी की शिव रूप में करने के लिए 400 योगी एकत्र हुए। कार्य करने की जिम्मेदारी हम पर होगी। पूजा कार्यक्रम : यह निर्णय लिया गया कि जन पूजाः प्रथम मार्च शनिवार दोपहर पश्चात् आस्ट्रेलिया के सभी राज्यों से तथा न्यूकेलिडोनिया, कार्यक्रम इस प्रकार किए जाएं मानो साक्षात् श्री न्यूजीलैण्ड, एशिया तथा यूरोप से सहजयोगी श्री माताजी वहाँ आ रही हों । इसका अभिप्राय है कि माताजी द्वारा सुझाए गए स्थान पर पहुँचने लगे। तैयारी के लिए विज्ञापन अभियान, पोस्टर लगाना, मित्र मिलन तथा रसोई में हृदयपूर्वक परिश्रम करके पर्चे बाँटना और पूरी सामूहिकता का सहयोग देना शुद्धिकरण करते हुए शनिवार सायं हम लोग मुख्य आवश्यक है। दो भिन्न स्थानों पर जन कार्यक्रम पंडाल में संगीत गोष्ठी के लिए एकत्र हुए। कार्यक्रम करने का हमने निर्णय किया। एक ही बार विज्ञापन का प्रारम्भ स्थानीय भजन गायकों की टोली से का खर्च करके सिडनी के दो भिन्न क्षेत्रों में जन हुआ सर्वप्रथम वाद्य संगीत बजाए गए जैसे भारतीय कार्यक्रम का लाभ उठाया गया सिडनी के मध्य बाँसुरी, गिटार, ढोलक और पश्चिमात्य बाँसुरी और क्षेत्र स्थित मेसोनिक केन्द्र में 7.30 बजे सायं पहला इसके पश्चात् कविता पाठ किया गया तथा भजन कार्यक्रम हुआ। हर वर्ष श्री माताजी को देखने के नवम्बर दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 25 लिए हजारों लोग इकट्ठे हो जाते हैं। इस बार हमने इसके पश्चात् श्री माताजी का एक वीडियो चलाया गया आर फिर आत्मसाक्षात्कार दिया गया । जो स्थान चुना उसमें 650 लोगों के बैठने की जगह ने थीं कार्यक्रम के प्रति सामूहिकता की शुद्ध इच्छा सेक्सोफोन पर बजाए गए विश्ववन्दिता की धुन तथा चैतन्य सहायता प्रेरक थी। यही सामूहिक ध्यान-धारणा की शान्ति को अधिक गहन कर शक्ति भविष्य में कार्यक्रम के स्थानों को खचाखच दिया और ज्यों ज्यों हॉल में संगीत लहरियाँ फैलीं जिज्ञासुओं का मन गहन होता गया। श्री माताजी ने भर देगी। कार्यक्रम की रात्रि को हॉल 350 नए कहा है कि संगीत आत्मसाक्षात्कार प्रस्थापित करने जिज्ञासुओं और बहुत से उपस्थित योगियों से भरा में सहायक है। निश्चित रूप से हमारा भी वही हुआ था। भजन मंडली के भजनों तथा चमत्कारिक अनुभव था। स्लाइडों के प्रदर्शन से कार्यक्रम आरम्भ हुआ। विक्टोरिया के कार्य-भारी श्री जोन हेन्शा ने सहजयोग उन्होंने दिव्य लहरियों का अनुभव किया है, का परिचय दिया। वे आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध युवा अधिकतर लोगों ने अपने हाथ उठाये । अन्तिम वक्ता कलाकारों के विद्यालय के पूर्व प्राध्यापक हैं। सहज ने ध्यान कार्यशाला में आने वाले सप्ताह में उपस्थित सामूहिकता के अन्दर तथा उसके बाहर भी वे होकर आत्मसाक्षात्कार के अनुभव को प्रस्थापित अत्यन्त गरिमामय एवं सम्माननीय हैं। कार्यक्रम करने के महत्व पर बल दिया। ध्यान प्रक्रिया के बाद यह बताने के लिए कि 1 कार्यक्रम में योगियों की मनोदशा का वर्णन तथा सहजयोग के विषय में उनका परिचयात्मक भाषण पश्चिमात्य सभ्यता के इतिहास एवं दर्शन प्रफुल्ल या उल्लसित शब्दों से किया जा सकता तथा आध्यात्मिकता के उनके विपुल ज्ञान एवं अनुभव है। सभी लोग दूसरे कार्यक्रम के विषय में सोच रहे थे। कार्यक्रम में चैतन्य लहरियाँ अत्यन्त दृढ़ थीं । पर आधारित था। हम कार्यक्रम में इस प्रकार गए थे मानो श्री माताजी उन्होंने कहा कि हमारी पश्चिमी जीवन शैली हमें सच्चे आनन्द से वंचित करती है क्योंकि सच्चा बहाँ साक्षात् उपस्थित हों और हमें लगा कि वास्तव में वे वहाँ विद्यमान थीं । आनन्द तो केवल आत्मा से ही प्राप्त हो सकता है। दूसरा कार्यक्रम 7 मार्च शुक्रवार पेरामट्ट टाउन हॉल में हुआ सिडनी क्षेत्र में पेरामट्ट अधिकतम जनसंख्या वाला क्षेत्र है और जब जब भी वहाँ जन कार्यक्रम किए बहुत जिज्ञासु आकर्षित हुए। हॉल उन्होंने सुझाव दिया कि जो कुछ हम हैं इससे बहुत अधिक बन सकते हैं तथा मानवीय आध्यात्मिक विकास के अगले चरण में प्रवेश कर सकते हैं और यह सब पृथ्वी पर अवतरित महानतम आध्यात्मिक मानव श्री माताज़ी निर्मला देवी की कृपा से ही 250 नए जिज्ञासुओं और इतने ही योगियों से भरा सम्भव हो पाया है। यद्यपि वे आज यहाँ उपस्थित हुआ था यह कार्यक्रम भी पहले कार्यक्रम की तरह नहीं हैं फिर भी आप सब लोग आत्मसाक्षात्कार का से ही हुआ चैतन्य लहरियाँ बहुत लेज थीं कार्यक्रम के अन्त में श्री माताजी के आत्मसाक्षात्कार रूपी अनुभव प्राप्त कर पाएंगे। पैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 26 नवम्बर आशीर्वाद प्राप्ति को स्वीकार करते हुए हॉल में 40 वास्तविक जिज्ञासु आकर्षित हुए। पड़ोसी स्लोवेनिया 1. के कार्यभारी डुसेन ने तीन कारों में भरे हुए स्लोवेनियन उपस्थित सभी लोगों ने अपने हाथ उठाए । हर कार्यक्रम के बाद एक सर्वेक्षण किया योगियों के साथ इस कार्यक्रम का नेतृत्व किया। गया कि कौन से साधनों द्वारा कितने सहजयोगी उपस्थित अधिकतर जिज्ञासु युवा वर्ग के थे तथा कार्यक्रम की ओर आकर्षित हुए। कुछ परिणाम नीचे उनमें से अधिकतर ने इस शक्तिशाली अनुभव का दिए गए हैं। रंगीन पोस्टर (दुकानों की खिडकियों पर) 35% के लिए वे हर बुधवार आएंगे। आनन्द लिया। हमें आशा है कि अनुवर्ती कार्यक्रमों हैं : सदियों से क्रोशिया यूरोप में कैथोलिक मत स्थानीय समाचार पत्र 20% 15% का दक्षिण पूर्वी गढ़ रहा है। इसकी सीमा के आगे 10% रूढ़िवादी चर्च की भूमि है और उससे आगे दक्षिण 10% और पूर्व में इस्लामी लोग हैं। क्रोशियन राजधानी से 10% तीस किलोमीटर बाहर हाल ही के युद्ध से ध्वस्त दैनिक समाचार पत्र दीवारों पर लगाए गए बड़े पोस्टर हस्त पर्चे मित्रों के माध्यम से जब हम आस्ट्रेलिया में थे तो श्री माताजी ने गाँव के अवशेष देखे जा सकते हैं। सौन्दर्य की कुछ ग्रामीण भूमि खरीदने का सुझाव दिया। हम दृष्टि से क्रोशिया की भूमध्य सागरीय एक लम्बी बलमोरेल गाँव में, जोकि बरबूड से एक घंटे की तथा रमणीय तट रेखा है। इस देश के व्यंजनों में कार यात्रा की दूरी पर है, एक भूमि खरीदने के हंगरी का गौलाश ( Goulash) . इटली के शानदार लिए प्रयत्नशील हैं यह आस्ट्रेलियन राष्ट्रीय ग्रामीण पीजा. कुछ आस्ट्रियन व्यंजन आदि विशेष हैं अपनी वर्ग को अंग्रेज़ी भाषा मातृभाषा के अतिरिक्त युवा का ज्ञान है तथा वृद्ध पीढ़ी के अधिकतर लोग जर्मन सम्पत्ति बनेगी। क्रिस किरयोक्यो, आस्ट्रेलिया, क्रोशिया और बोस्त्रिया में प्रथम सहजयोग कार्यक्रम भाषा जानते हैं। बल्कान प्रायद्वीप पर यह ऐतिहासिक जय श्रीमाताजी, क्रोशिया की राजधानी जाग्रेब (Zagreb) में कार्यक्रम से एक माह पूर्व फ़ैन्ज़ (Franz) और मंगलतम दिवस 21 मार्च 1997 को पहला सहजयोग जेनलुस (Jean Luc) ने सार जेवो (Sara Jewo) जन कार्यक्रम किया गया पिछले कुछ महीनों में के जिज्ञासुओं के लिए सहजयोग कार्यक्रम का जाग्रेब में शारीरिक रूप में कार्य करने के लिए आयोजन किया उन्होंने आते हुए बसन्त का आनन्द श्रीमाताजी का ज्योतिमय एवं स्नेहमय चित्त ऐन्ड्री लेते हुए यह यात्रा की और अगली प्रातः कई सत्य क्षण आने से पूर्व एक अन्य महान घटना हुई जब और वेन्सी पर था। आस्ट्रिया से कुछ सहायता प्राप्त कर इन योगियों ने पोस्टर लगाने का एक अभियान साधकों ने उनका स्वागत किया आत्मसाक्षात्कार अनुभव प्राप्त करने के बाद नए सहजयोगियों ने बार चलाया जिससे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए बार पूछा कि आप पुनः कब आएगे? २) नार्वे में अनुभव ब नावे के लोग अत्यन्त गहन साधक हैं परिणामतः जाता है, सोलह नए जिज्ञासु एकत्र किए अगली सभी धार्मिक तथा धार्मिक कहलाने वाली संस्थाओं सायं हम पुनः उन सोलह नए जिज्ञासुओं से भी मिले। नए अनुभव के प्रति पूर्ण संदेह एवं अविश्वास ने इस देश में डेरा डाला है। माप्त हो गया था और मित्रता स्मष्टता तथा प्रेन 4 अप्रैल 1997 को ओस्लो के नए सहजयोग केन्द्र से बर्फ से ढके हुए पहाड़ी रास्तों पर बर्जन स ने उनका स्थान ले लिया था। यह अदभुत अनुभव था जैसे आत्मसाक्षात्कार और सामूहिक ध्यान सदैव होते हैं। हमारे नए भाई बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने (Bergen) नगर के लिए तीन सहजयोगी चल पड़े। रीता हमारे साथ थी ओस्लो में इसके अथक अपने लिए और नावे के लिए एक नया स्वप्न देखा। रविवार को हमें क्रिस्टालिस के जन्मोत्सव पर उत्साह और प्रयत्नों के कारण इसे 'मधुर नन्हा बुलडोजर भी कहा जाता है बर्जन जाने के लिए. रीता ने हमारा पथ प्रदर्शन किया। आमंत्रित किया गया और तीन दिनों के अन्दर हम वर्जन नार्वे का दूसरे स्थान का सबसे बडा तीसरी बार सहजयोग में अपने नए भाई बहनों से नगर है और कभी देश की राजधानी भी होता था। मिले। कुछ नए लोग भी वहाँं पर थे जिनमें सबसे विश्व के लिए यह अब भी नावे दरवाजा है बर्जन छोटी आयु का जिज्ञासु 11 वर्ष का था और सबसे चहुँ ओर से साल पहाड़ियों से सुरक्षित है और बड़ा 74 वर्षीय । केक और चाय के मध्य हमने सुन्दर झीलों, पेड़ों तथा फूलों की यहाँ भरमार है। सहजयोग का परिचय दिया। श्री माताजी का एक अनन्त छोटे छोटे टापुओ घिरा यह नगर प्रायः प्रबचन सुना और आत्मसाक्षात्कार का अनुभब पुनः से से प्राप्त किया। इमनें लोगों पर कार्य किया, बहुत प्रश्नों का उत्तर दिया, धूमकेतू देखने के लिए बाहर गए और थोड़ा केक खाया। अन्त में हमने एक दूसरे के पते लिए, पुनः आने का और अधिक जानकारी दीप (Peninsula) पर स्थित है। बर्जन का सीन्दर्य इस चीज़ में छिपा है कि यहाँ घरों से अधिक प्रकृति है, लोगों से अधिक पेड़ हैं तथा हमारे देखे हुए सभी नगरों से अधिक शान्ति है हमारी मुलाकात दो भद्र महिलाओं से हुई भेजने का वायदा किया। शाम की समाप्ति पर सभी जो पिछले सप्ताहों में श्री माताजी के पोस्टर लगा लोग गले लगकर मिले, मानों बहुत पुराने तथा प्रिय रही थीं। उन्होंने सहजयोग और श्री माताजी के मित्र हों । जब हम औस्लो वापस आए तो हमें यह विषय में बताने के लिए तथा आत्मसाक्षात्कार प्रदान करके यह समझाने के लिए कि कुण्डलिनी के बताने के लिए उन्होंने टेलिफोन किया कि मात्रा एक ही दिन में उन्होंने पतो, टेलिफोन नम्बर तथा ध्यान उत्थान के पश्चात् किस प्रकार जीवन परिवर्तित हो चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 28 धारणा के लिए स्थान और अगले सप्ताह के लिए वास्तव में विराट की निर्मला विद्या से जुड़े हुए थे। एक कार्यक्रम का आयोजन कर दिया है। जिस ऐसे प्रश्नों का हम उत्तर दे रहे थे जो हमने पहले प्रकार श्रीमाताजी सदैव प्रदान करती हैं इस बार कभी नहीं सुने थे हममें से एक, जो अंग्रेजी भाषा भी उन्होंने हमारी अपेक्षा से अधिक प्रदान किया बोलना भी न जानती थी, श्रीमाताजी और सहजयोग के विषय में अंग्रेजी में इस प्रकार बता रही थी मानो उसी शाम ओस्लो केन्द्र में हमने ध्यान धारणा की। वहाँ छः नए लोग आए। उन पर कार्य यह उसका प्रतिदिन का कार्य हो। हमने एक दूसरे किए जाने के पश्चात् थाइराइडग्रन्थि से पीड़ित एक युवा लड़की ने बताया कि अब उसके गले तथा बाएं कन्धे में दर्द बिल्कुल नहीं है, "मानो उसे बेहोशी का पर कार्य किया और परस्पर आनन्द बाँटा। समापन के पश्चात् भी कुछ लोग जाना न चाह रहे थे, और जब वो जाने लगे तो चैतन्य लहरियों से ओतप्रोत आनन्द सागर में गोते लगाते हुए उनकी आँखों से एक टीका सा लगा दिया गया हो, "उसने बताया। इसके पश्चात् उसे बहुत अच्छा महसूस हुआ और अश्रुधारा बह निकली। कुण्डलिनी उसमें से बह निकली। वहाँ कुछ अन्य सराहनीय संतुलित लोगों से मिलने का भी अवसर अधिक शक्तिशाली, विशाल, कोमल और कहीं जब हम ओस्लो आए तो हमें लगा कि हम अधिक सत्चित्त आनन्द से परिपूर्ण हैं। हमें लगा हमें प्राप्त हुआ। परन्तु सर्वोत्तम कार्यक्रम ट्राँसबर्ग का था। और अभी तक भी लगता है कि नार्वे ने आदि शक्ति वहाँ हम सोलह नए साधकों से मिले जो तांत्रिकता के सम्मुख समर्पण कर दिया है तथा यह हज़ारों गुणा अधिक खिल उठेगा नार्वे श्री माताजी की सुन्दर बाँसुरी बनने के लिए तैयार है! नार्वे तुम धन्य हो! तथा अन्य मूर्खताओं को छोड़कर सत्य को पहचानने और गले लगाने के लिए अति उत्सुक थे। हम सब ने परम् चैतन्य का बहुत जोरों से अनुभव किया सिदसैल,रीता, मेरिटे एवम् जोन्स श्रीमाताजी साक्षात वहाँ रही होंगी क्योंकि हम अर्जेन्टिना में कार्यक्रम अर्जेन्टिना की सामूहिकता छोटी है परन्तु चाहिएं। सभी लोग देख सकते हैं कि नये लोगों की यह समर्पित है। उत्थान मार्ग में यहाँ की बाधाएं भी सहायता किस प्रकार की जा सकती है। अगुआगण उत्तरी अमेरिका सी हैं। जब श्री माताजी आती हैं योगियों को इस मामले में सलाह दे सकते हैं। यह तो बहुत से लोग आते हैं परन्तु जमते नहीं। नये याद रखना आवश्यक है कि चैतन्य ही दैवी विवेक लोगों को स्थापित करने के लिए सामूहिक है । अवस्था-सामूहिक शक्ति-आवश्यक है। लचीली ऊर्जा, प्रेम एवं सामूहिकता ही 'सामूहिक शक्ति' को महात्मा गांधी का उदाहरण दिया गया एक पत्रकार व्यक्तिगत आचरण पर बल देने के लिए जन्म देती है। भिन्न बातों की ओर ध्यान आकर्षित ने महात्मा गांधी से पूछा, "आपका संदेश क्या किया गया : है?" महात्मा गांधी ने उत्तर दिया, " मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।" 1. श्री माताजी के पोस्टर लगाने के महत्व को याद जेवियर, जो अब बोलीविया में हैं, ने उस रखना आवश्यक है। यह मंगलमय कार्य है पोस्टर लगाना पूजा सम है। भारत में तो पूजा की तरह से समय की बातें सुनाई जब वह इटली में था। इटली कभी कभी श्री माताजी के पोस्टरों को भी कुमकुम में बहुत से परिवर्तन किए गए हैं हवन, जिसमें देवी के 1000 नाम लिए गये, के दो माह के अन्दर वहाँ की राजनीति में पूर्ण परिवर्तन हो गया और माफिया लगाया जाता है। 2. नये लोगों के प्रति योगियों के कई कर्तव्य हैं। योगियों में परिपक्वता तथा इच्छा की कमी से नये में भी सुधार हुआ। बन्धन, हवन और पूजाओं से लोग खो जाते हैं। योगियों को पूरी समझ होनी कार्य हो जाते हैं। चाहिए कि नये लोगों के सम्मुख क्या कहना हैं और ये विधियाँ भी कार्य नहीं करतीं। परन्तु सामूहिक इच्छा के बिना दूसरे दिन हवन हुआ जिसमें अमेरिका की 3. नये लोग स्थापित होने में समय लेते हैं यह बाधाओं की आहुति दी गई। सांयकाल नृत्य एवं व्यक्ति की अन्तःस्थिति के अनुसार होता है। एक संगीत सभा हुई। संगीतज्ञों की तारतम्यता प्रशंसनीय आदमी दो सप्ताह लेता है तो दूसरा दो वर्ष। थी। तीसरे दिन का आरम्भ संगीत के साथ किस तरह आचरण करना है। ब्राजील के कुछ' प्रथम योगी साक्षात्कार लेने के ध्यान-धारणा से । नाश्ते के बाद हमने वातावरण हुआ तुरन्त पश्चात् भारत चले गए। अति तीव्रता से वै का आनन्द लिया। हममें से कुछ समीप के झरने पर सहज योग में उतर गये। यह समझने के लिए कि स्नान के लिए गए। नया जिज्ञासु कितना समय लेगा योगियों में विवेक बाईं विशुद्धि होना चाहिए। हाल ही में कोलम्बिया में राष्ट्रीय सहज 4. नये साधकों के लिए योगियों के हृदय खुले होने संगोष्ठी हुई जिसमें बाई विशुद्धि के महत्व पर घैतान्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 30 आवश्यक है। अन्तर्दर्शन में अहं और प्रति अहं की प्रकाश डाला गया। श्री माताजी की 1982 की विष्णुमाया पूजा देखें स्वयं को देखने के लिए अन्तर्दर्शन कठिनतम प्रवचन पर बातचीत हुई। हृदय (आत्मा) से सहस्रार है। तक बाई विशुद्धि मार्ग से सम्बन्ध स्थापित होते हैं, इस कारण विशुद्धि अत्यन्त महत्वपूर्ण है । स्मरण रहे कि श्री विष्णुमाया सत्य की शक्ति हैं, सत्य प्रकट करने वाली शक्ति। सच्चे, खुले हृदय व्यक्ति का हृदय आत्मा आत्मसम्मान लेटिन अमेरिका में आत्मसम्मान का अभाव समान होता है। उदाहरण के रूप में जब हम सत्यनिष्ठ नहीं होते तो हमारा मस्तिष्क तो कहता काफी हृद तक स्पष्ट है। दूसरे देशों के मुकाबले है मात्र है परन्तु हृदय जानता है। सत्य-निष्ठा के घटियापन का भाव है। वे समझते हैं कि उनको अभाव में व्यक्ति को बाई विशुद्धि की समस्या हो अन्य सरकारों की सहायता की आवश्यकता है। परन्तु वास्तव में वह संसाधनों में बहुत धनी हैं। सभी जाती है। अर्थात् नीति-कुशलता, प्रतिक्रिया, तर्क आवश्यक संसाधन यहाँ उपलब्ध है । सगत उहराना और पलायन करना आदि। कैथोलिक चर्च का दोषभाव भी बाई विशुद्धि अहंकारमय संस्कृति पुरानी बातचीत के आधार पर यह निष्कर्ष बना रहता है। विशुद्धि के विषय में इनमें से कोई भी निकाला गया कि प्राचीन संस्कृतियाँ पृथ्वी मां से विचार नया नहीं है। श्री माताजी के प्रवचन को जुड़ी हुई थीं। आधुनिक संस्कृति अहम से परिपूर्ण है की समस्या का कारण है। दोषभय का दबाव सदा पढ़ना तथा सुनना अति आवश्यक हैं। हमारी चेतना जिसमें पुरातन मूल्यों का अभाव है। हमें याद रखना का इतना विकास आवश्यक है कि हम समस्या को चाहिए कि हम श्री माताजी के बच्चे हैं। देख सकें तथा सहजयोग विधियों से शुद्धिकरण मूल विधियाँ एवं नियमाचरण यह महसूस किया गया कि पूजा तथ हवन आदि करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन तथा कर संकें। पावनता (कौमार्य) पवित्रता अत्यन्त आवश्यक है। अयोधिता नियमाचरण सब तक पहुँचाए जाएं। कुछ देश बहुत धर्म का आधार है। भाई-बहन सम्बन्धों में महान ही अकेले पड़ जाते हैं और वहाँ अनुभवी योगियों शक्ति है। आज के समाज में लड़की मित्र लड़का का भी अभाय है। ऐसी स्थितियों में सहजनियमाचरणों नित्र आवश्यक माना जाता है। युवा शक्ति समाज के अतिरिक्त कुछ अन्य विधिया भी विकसित कर के युवा वर्ग को दिखा सकती है कि सहजयोग सकते हैं । द्वारा संच्चा आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। पूजा पूजा से पूर्व हमने वर्ष 1985 का बर्मिघम वाई विशुद्धि को ठीक रखने के लिए अन्तर्दशन (लंदन) विष्णुमाया पूजा का वीडियो कैसेट देखा । अन्तर्दर्शन नि दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 31 नवम्बर समापन दिवस यह प्रवचन पिछले दिन विशुद्धि चक्र पर हुई बातचीत हमने 4 अगस्त 1985 में ब्रिटेन (इंग्लैण्ड) में अनुकूल था । विष्णुमाया पूजा शाम को आरम्भ हुई और प्रातः तीन बजे के बाद में समाप्त हुई। यह हुई गणेश पूजा का वीडियो कैसेट देखा जिसका के तदात्मय एवं आनन्द का एक गहन अनुभव था। शीर्षक है 'पावित्र्य ही आपकी शक्ति है।' वीडियो कोई भी पूजा के अन्त के लिए इच्छुक न था। के पश्चात गोष्ठी की अन्तिम बातचीत हुई। तत्पश्चात् ब्राज़ील के सहजयोगी बाहर से आए योगियों रीयो के योगियों को इतने समर्पण एवं कठिन के लिए बहुत से उपहार लेकर आए उपहारों में परिश्रम द्वारा इस संगोष्ठी का आयोजन करने के अविश्वसनीय उदारता एवं समर्पण स्पष्ट दिखाई दे लिए धन्यवाद दिया गया जो आनन्दानुभव हमने रहा था। गोष्ठी में बच्चों के कार्यक्रम में युवाशक्ति इस अवसर पर प्राप्त किया उसका वर्णन शब्दों में एवं छोटे बच्चों ने भी उपहार दिए। नहीं किया जा सकता है। एक ऐसी गहनता के अर्जेन्टिना की सामूहिकता ने एक अद्वितीय कगार पर हम पहुँचे जहाँ अब तक कभी न पहुँच चित्रकारी भेंट की जिसमें दक्षिण अमेरिका का पाए थे चैतन्य लहरियाँ और आनन्द इतना तीव्र था आकाश से लिया गया एक दृश्य खींचा गया था। मानो श्री माताजी साक्षात वहीं उपस्थित हों! सूक्ष्म एवं व्यवहारिक स्तर पर भी संगोष्ठी दिखाई दे रहा था बाई विशुद्धि की इस भूमि की अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। चैतन्य लहरियों पर हमारे चोटी पर ईसा मसीह खड़े थे और सर्वोपरि देवदूतों सामूहिक ध्यान से अमेरिका की संघटनात्मकता का इसमें यह द्वीप कमलों के सागर में तैरता हुआ के दायरे के बीच श्री माताजी का मुस्कराता हुआ बहुत हित हुआ। नए भाई बहनों से बातचीत करके मुखारविन्द था जो दक्षिण अमेरिका के प्रति दिव्य वास्तव में परिवर्तन आए। हम कामना करते हैं कि प्रेम दर्शा रहा था। पूजा एवं उपहार वितरण के दूसरी लैटिन अमेरिकी संगोष्ठी का आयोजन शीघ्र ही हो। पश्चात् लगभग सूर्योदय तक भजन चलते रहे। ईयान बटरबर्थ, कैलागिरी, कनाडा 32 प्रपंच और सहजयोग परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दादर, मुम्बई 29.11.1984 (मराठी से अनुवादित) आप सभी सत्य साधकों को हमारा नमस्कार। परन्तु हम भिवण्डी जाएं, वहाँ से पूना जाएं और फिर आज का विषय है 'प्रपंच और सहजयोग । सर्वप्रथम कई और जगह घूमकर दादर पहुँचें। एक रास्ता प्रपंच शब्द का अर्थ देखते हैं: प्रपंच (प्र +पंच ) में सीधा है और दूसरा घुमावदार। घुमावदार मार्ग ही 'पंच' पाँच महाभूतों द्वारा निर्माण कार्य को बताता सच्चा है, यह बात ठीक नहीं है उस समय क्योंकि है। परन्तु इससे पहले 'प्र' आने के कारण इसका सुगम को उन्होंने दुर्गम बना डाला तो क्या हमें भी अर्थ परिवर्तित हो जाता है अर्थात् पंच महाभूतों को ऐसा ही करना चाहिए ? 'सहज समाधि लागो । जो प्रकाशित (Enlighten) करता है वह प्रपंच' कबीर ने विवाह किया, गुरुनानक देव जी ने विवाह है। "अवधाची संसार सुखाचाकरीन" (समस्त बड़े बड़े अवधूत हो गए हैं वे सभी गृहस्थ थे उसके संसार सुखमय बनाऊँगा) तो यह सुख प्रपंच में बाद बहुत से ऐसे सन्त आए जो विवाहित न थे, प्राप्त होना चाहिए। प्रपंच छोड़कर अन्यत्र परमात्मा परन्तु किसी ने भी विवाह संस्था को गलत नहीं की प्राप्ति नहीं हो सकती। आम लोग 'योग' का कहा और न ही प्रपंच को गलत कहा। तो सर्वप्रथम अर्थ हिमालय पर जाकर तपस्या करना और ठंड से हमें अपने दिमाग से यह धारणा निकाल देनी होगी मर जाना लगाते हैं। यह योग नहीं है, हठ है- हठ कि योग प्राप्ति के लिए प्रपंच का त्याग आवश्यक भी नहीं मूर्खता है। योग के विषय में यह धारणा है। इसके विपरीत यदि आप प्रपंच करते हैं (गृहस्थ किया, राजा जनक से लेकर अब तक जितने भी बिल्कुल गलत है। महाराष्ट्र में जितने भी सन्त हुए जीवन में हैं) तो आपको सहजयोग में अवश्य आना वे सब गृहस्थ थे। उन्होंने प्रपंच किया। परन्तु चाहिए। 'दास बोध' (श्रीरामदास स्वामी विरचित मराठी ग्रन्थ) के हर पृष्ठ में प्रपंच बह रहा है। प्रपंच के बिना आप बहुत से लोग प्रपंच (गृहस्थ) की शिकायतें लेकर, परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात आते थे। मेरी सास ठीक नहीं है, मेरा उन्होंने अनेक बार कही है। प्रपंच त्यागकर परमेश्वर नहीं है, मेरा पति ठीक नहीं है, मेरे बच्चे ठीक नहीं को प्राप्त करने की धारणा पिछले बहुत से वर्षों से हैं इस तरह प्रपंच सम्बन्धी छोटी-छोटी शिकायतें हमारे देश में आई है क्योंकि गौतम बुद्ध प्रपंच लेकर वे सहजयोग में आते थे। शुरु में ऐसा ही दादर में जब हमने सहजयोग शुरु किया तो ठीक ससुर करने होता है। घरेलू कष्टों से तंग होकर उन्हें त्यागकर जंगल में गए और उन्हें वहाँ आत्मसाक्षात्कार दूर प्राप्त हुआ। परन्तु वे यदि गृहस्थ में रहते तो भी के लिए हम परमात्मा के पास जाते हैं और यह उन्हें साक्षात्कार होता। मान लीजिए हमें दादर मांगते हैं कि , 'हे परमात्मा मेरा घर ठीक रहे, मेरे जाना है, तो हम सीधे मार्ग से वहाँ पहुँच सकते हैं बच्चे ठीक रहें, हमारी गृहस्थी सुखी रहे, सभी खुशी दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी न पम्बर 33 से रहें। बस। मनुष्य की पहुँच अत्यन्त तुच्छ होती गुरु ने कहा, "तुम स्वंय जाओ और देखो कि यह है और उसी छोटेपन से बह देखता है। परन्तु यह कैसे महान है ?" नचिकेता उनके महल में गए और छोटापन भी जरूरी है, इसके बिना मामला नहीं कहने लगे, " आप मुझे आत्मसाक्षात्कार दीजिए, मेरे बनने वाला। पहली सीढ़ी चढ़े बिना दूसरी सीढ़ी पर गुरु ने कहा है कि आप आत्मसाक्षात्कार देते हैं तो नहीं आ सकते। तो प्रपंच सहजयोग की आवश्यक कृपा करके आप मुझे आत्मसाक्षात्कार दीजिए सीढ़ी है। हम सन्यासी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दे राजा जनक कहने लगे, "तुम यदि सारे विश्व का सकते। नहीं दे सकते, क्या करें ? बहुत बार प्रयत्न राज्य मांगते तो भी मैं दे देता, करके देखा पर मामला नहीं बनता। उसके लिएआत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकता। जिस मनुष्य को व्यर्थ का बडप्पन किसलिए ? वस्त्र तो व्यक्ति ने आत्मसाक्षात्कार का तत्व ही नहीं मालूम उसे सन्यासी के पहने हैं, पर अन्दर से क्या वह सन्यासी आत्मसाक्षात्कार कैसे दें ? तत्व को समझने वाला है? सन्यास एक भाव है। यह दिखावा नहीं है कि व्यक्ति ही उसमें उतर सकता है। "तो प्रपंच का हम सन्यासी हैं, हमने सन्यास लिया है, घर छोड़ा तत्व है प्र अर्थात् प्रकाश ( enlightenment), वह है, यह छोड़ा है, वह छोड़ा है। इस प्रकार जो लोग जय तक आपमें जागृत नहीं होता तब तक आप सोचते है कि हम योग मार्ग तक पहुँच जाएंगे वे पंच में हैं, प्रपंच' में नहीं उतरे । अपने आप को भुलावे में डाल रहे हैं यदि आप पलायनवादी हैं तो उसका कोई इलाज नहीं है। पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम मेरे साथ आओ। बाकी बुद्धिमान व्यक्ति को सोचना चाहिए कि यहाँ हम सारी कहानी आप जानते हैं । अन्त में नचिकेता प्रपंच में हैं । यहाँ से निकलकर यदि हमने कुछ समझ गए कि राजा जनक को न तो किसी चीज़ से प्राप्त कर भी लिया तो उसका क्या लाभ होगा। लगाव है, न किसी चीज़ की चिन्ता है और न ही मान लो किसी जंगल में आपको ले गए और वहाँ किसी सांसारिक चीज़ के प्रति मोह। वे तो एक बैठकर आपने कहा, "देखिए मैं कैसे पानी के बगैर अवधूत हैं जो मुकुट भी धारण कर लेंगे और पृथ्वी रह सकता हूँ ?" तो कौन सी विशेष बात है। पानी पर भी सो जाएंगे वे बादशाह हैं । हर स्थिति में वे में रहकर भी जब आपको पानी की जरूरत न हो, प्रसन्न रह सकते हैं। कोई भी चीज़ उन्हें पकड़ नहीं पानी में रहकर भी जब आप पानी से अलिप्त हों, सकती। जो व्यक्ति प्रपंच में है उसे किसी आराम ऐसी स्थिति आपकी हो जाए, तो सच्चा प्रपंच हो की या किसी गुलामी की आदत नहीं पड़ती। पत्थर सकता है। आज हमें ऐसे ही प्रपंच की आवश्यकता का सिरहाना बनाकर वह सो सकता है, चोकर की है। राजा जनक के विषय में तो आप जानते ही हैं। रोटी खाकर भी वह उतना ही आनन्दित होता नचिकेता ने सोचा कि यह राजा तो अपने सिर पर जितना दावत्त के व्यंजन खाकर । उससे अगर पूछा मुकुट पहनते हैं, दास-दासियाँ इनकी सेवा करती जाए कि आश्रम बनाना है तो कैसे करें ? तो वह हैं, इनके महलों में नृत्य-गायन होता रहता हैं, फिर सब बता देगा कि सीमेन्ट कहाँ मिलेगा, यह कहाँ भी जब यह आश्रम में आते हैं तो हमारे गुरु इनके मिलेगा वो कहाँ मिलेगा यह तत्व की बात है, इसे चरण छूते हैं! इनमें ऐसी क्या महानता है ? उनके आप समझ लीजिए। पर मैं तुम्हं नचिकेता ने यह प्रश्न जब राजा जनक से दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 34 नामदेव जी ने एक कविता लिखी जिसे हमारे साथ प्रपंच में किस तरह कार्यान्वित होता है, नानक साहब ने सम्मानपूर्वक गुरु ग्रन्थ में स्थान यह देखना चाहिए। दिया। यह अत्यन्त सुन्दर ह मान लो किसी को कोई समस्या है। किसी वर्णन करती हूँ। कवित। में कहा है कि, "आकाश में ने मुझ से कहा, "श्री माताजी मेरे घर में तकलीफ पतंगे उड़ रही हैं और एक लड़का हाथ में उस है, मेरा काम धन्धा नहीं है।" इस तरह की छोटी-छोटी पतंग की डोर पकड़कर खड़ा है, वह सब बातें कर तुच्छ बातें, "यह ऐसा है, वैसा है।" थोड़े दिनों के रहा है यहाँ वहाँ भाग रहा है परन्तु उसका पूरा बाद वह कहता है, "माताजी सब कुछ ठीक हो गया चित्त (attention ) उस पतंग पर है। "एक और है।" तो सब कैसे होता है ? यह देखना चाहिए। दोहे में उन्होंने कहा है कि, "बहुत सी औरतें पानी एक दिन की बात है, हमारी एक शिष्या है, विदेशी भरकर ले जा रही हैं रास्ते पर जाते हुए वह है। मैं शिष्या' वगैरा तो कहती नहीं हूँ, बच्चे आपस में मज़ाक कर रही हैं, घर की बातें कर रही कहती हैं, तो दोनों लड़कियाँ थीं। वो दोनों जर्मनी हैं, परन्तु उनका सारा चित्त सिर पर रखे घड़ों पर से एक मोटर में जा रही थीं जर्मनी में आटोबान' है कि कहीं वे गिर न जाएं। एक अन्य दोहे में माँ करके बहुत बड़े रास्ते होते है जिन पर बड़ी तेजी से का वर्णन है। "माँ बच्चे को गोद में लेकर सभी गाड़ियां इधर-उधर दौड़ती हैं। उन्होंने मुझे चिठ्ठी लिखी, दोनों तरफ से ट्रक, बड़ी-बड़ी बसें, बड़ी-बड़ी कारें जो डबल लोडर होती हैं, वह सब जा रही थीं और बीच में हमारी मोटर मोटर का ब्रेक भी काम । मैं इसका आशय पंबा काम करती है। चूल्हा जलाती है, खाना बनाती है। उन कामों में कभी वह झुकती है, कभी भागती है। सब कुछ उसे करना पड़ता है फिर भी उसका सारा चित्त अपने बच्चे पर होता है कि कहीं बच्चा गिर न नहीं कर रहा था और गाड़ी भी कम्पन कर रही थी। जाए।" साधु सन्त भी ऐसे ही होते हैं। सभी कार्यों मुझे लगा कि अब मैं गई, अब तो मैं बच ही नहीं का उन्हें ज्ञान होता है, सभी कार्य वे करते है परन्तु सकती। यदि ब्रेक भी कुछ ठीक होता तो कुछ उनका सारा चित्त अपनी आत्मा पर होता है । सच्चे उम्मीद थी । तो उस स्थिति में एक तरह की प्रेरणा सन्त बिलकुल आपकी तरह गृहस्थ में रहने वाले आ गई जिसे हम आपातकालीन प्रेरणा कहेंगे। ऐसे होते हुए भी इनमें वैचित्र्य होता है, वह आपको लगा मानो, "अब सब कुछ गया, कुछ भी नहीं रहा, विनाश का समय आ गया है।" तो शरणागत होकर पहचानना चाहिए। यही वैचित्र्य सहजयोग' है इस वैचित्र्य से क्या लाभ होते हैं यह देखना जरूरी उसने कहा, "श्री माताजी अब आपको जो करना है क्योंकि प्रपंच में आप देखते हैं कि लाभ कितना है करें, मैं तो आँखे मूंद लेती हूँ। और उसने आँखे है और हानि कितनी है । आजकल के युग में बन्द कर लीं ।" उसने चिठ्ठी में लिखा था, "थोड़ी परमात्मा की बातें करने से लोगों को लगता है कि, देर बाद मैंने देखा तो मेरी कार अच्छी तरह से एक इस महिला को अभी आधुनिक शिक्षा वगैराह नहीं तरफ आकर रुकी हुई थी और उसका ब्रेक भी ठीक मिली है, यह कोई पुराने ज़माने की बेकार नानी, हो गया था अब माताजी ने कुछ नहीं किया था. दादी की कथा सुना रही है। "परन्तु परमेश्वर है यह आप देखिए कि यह कैसे होता है ? मतलब यह और वह रहेगा। वह अनन्त है परन्तु परमेश्वर जो परिणाम हुआ है वह किसी न किसी कारणवश । এ दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी ॐ नवम्बर हुआ है अर्थात कारण व परिणाम । मान लो आपके होगा? भगवान तक आपके टेलीफोन का कनेक्शन तो होना चाहिए इस तरह आप रात दिन परमेश्वर घर में झगड़ा है उसका कारण है आपकी पत्नी या की पूजा करते हैं? परन्तु क्या आप जो बोल रहे हैं उस परमेश्वर को सुनाई दिया है ? चाहे जो धंधे करो, चाहे जैसा बत्ताव करो और उसके बाद हे आपकी माँ या आपके पिताजी या कोई अन्य मनुष्य और उसका परिणाम है घर में अशान्ति। सर्वसाधारण व्यक्ति परिणाम से ही लड़ता रहेगा। अभी मुझे इससे लड़ना है। फिर कोई दूसरी लडाई परमात्मा, मुझे आप देते हैं कि नहीं ? कहकर उसके निकल आएगी, फिर तीसरी। परन्तु कारण पर सामने बैठ जाना। उस परमात्मा ने आपको किसलिए कितने लोग सोचते हैं ? जो लोग विवेकशील होते देना है ? आपका कोई कनेक्शन होगा तो आप कुछ हैं वे 'परिणाम के कारण से लड़ते हैं। पर वह कारण भी उनसे लड़ना शुरू कर देता है. तथा नागरिक हैं, परमात्मा के साम्राज्य के नहीं । पहले कारण' और परिणाम के चक्कर में पड़ने से समस्या उसके साम्राज्य के नागरिक बनिए. फिर देखिए वैसी ही बनी रहती है। उससे छुटकारा वे नहीं पा उसकी याद करने के पहले ही परमेश्वर ये करता सकते। इसलिए लोग कहते है कि प्रपंच करना है कि नहीं। अब समझ लीजिए यहाँ पर बैठे-बैठे भारत सरकार में मॉँग सकते हैं, क्योंकि आप उसके बहुत कठिन काम है। इसका इलाज क्या है? ही कोई अगर इंग्लैण्ड की रानी को कहेगा कि वह इसका इलाज यह है कि 'कारण से परे हमारे लिए ये नहीं करती, वह नहीं करती। वह जाना होगा। उसका जो कारण था, ब्रेक टूट गया आपके लिए क्यों करने लगी? तो यहाँ तो परमात्मा था, उस ब्रैक से बह लड़ रही थी। परन्तु जब उसे है और वह परमात्मा आपके लिए क्यों करने लगे ? महसूस हुआ, इस सबके परे भी कुछ है कोई शक्ति आप उनके साम्राज्य में अभी आए नहीं हैं केवल है और वह शक्ति कारण के परे होने से कारण भी उन पर तानाशाही करना है परमात्मा' जैसे कोई वे नष्ट हो गया और उसका परिणाम भी नष्ट हो आप की जेब में बैठे हैं ? और अब आपको ये भी गया। ये ऐसे होता है। आप विश्वास करिए या मत विचार नहीं है के हमें परमात्मा का स्मरण करना करिए, पर ये बात होती है। परन्तु ये अन्ध-विश्वास है सुस्मरण कहा है, स्मरण नहीं कहा है। सुस्मरण से नहीं होती है। अब बहुत से लोग मेरे पास आकर करते समय भी 'सु' शब्द है। सु' माने क्या ? जैसे कहते हैं. "माताजी हम इतना भगवान को याद प्र' शब्द है वैसे ही 'सु' शब्द है। सु' माने जहाँ करते हैं परन्तु हमें कैन्सर हो गया, मन्दिर में जाते मनुष्य का सम्बन्ध होकर आपमें मांगल्य का आशीर्वाद हैं, सिद्धिविनायक के मन्दिर में रोज़ जाकर खड़े आया हुआ है तभी वह सुस्मरण होगा। अन्यथा तोते रहते हैं, घंटे-घंटे। मंगल के दिन तो विशेष करके की तरह बिना समझे बोलना है उसका असर युवा जाते हैं, परन्तु तब भी हमारा कुछ भी अच्छा नहीं पीढ़ी पर होता है वे कहते हैं "इस परमात्मा का किया, फिर हम इसे क्यों भजें ?" ठीक है परन्तु क्या अर्थ हुआ ? परमात्मा का नाम लेकर यहाँ दो उसका आपका बाबा आए और हमारी माँ का पैसा ले गये, वहाँ कोई रहे हैं आप जिस भगवान को बुला क्या कोई कनेक्शन (सम्बन्ध) हुआ है ? आपका गले में काला धागा बाँध गये और रुपया ले गए। ऐसे परमात्मा का क्या अर्थ हुआ ?" इसलिए उनका जब तक कनेक्शन नहीं हुआ, तब तक अच्छा कैसे दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 36 कहना ठीक लगता है। फिर उनकी तरह और लोग जाते हैं। ज्ञानदेव की 'ज्ञानेश्वरी' का आखिरी भी कहते हैं "परमात्मा है ही नहीं । " परन्तु सर्वप्रथम पसायदान (दोहा) आपने सुना होगा उन्होंने जो अपनी समझ में ये गलती हुई है कि क्या हमारा वर्णन किया है वह आज की स्थिति है ये सब अब परमात्मा के साथ कोई सम्बन्ध हुआ है ? क्या घटित होने वाला है जिस चीज़ की जो इच्छा हमारा उन पर अधिकार है ? हमने उनके लिए क्या करेगा वह (दिव्य आनन्द) उसे प्राप्त होगी। परन्तु किया है ? ये तो देखना चाहिए। पहले उनके साथ वह करने के पहले आप केवल कुण्डलिनी का अपना कनेक्शन (सम्बन्ध) जोड़ लीजिए । अब सहजयोग माने परमात्मा से सम्बन्ध वचन नहीं दे सकती और न मिनिस्टर (मन्त्री) लोगों जागरण कर लीजिए। उसके बिना मैं आपको कोई की तरह आश्वासन देती हूँ। जो बात है वह मैं जोड़ना। सहज शब्द में 'सह माने अपने साथ, 'ज जन्म हुआ। जन्म से ही आपमें योग (सम्बन्ध अपनी बोली में अपने ढंग से कह रही हूँ। कोई जोड़ना), योग सिद्धि का जो अधिकार है, वह माने साहित्यिक भाषा में नहीं बोल रही हूँ। जैसे कोई माँ | सहजयोग' है। आपमें परमात्मा ने कुण्डलिनी नाम अपने बच्चे को घरेलू बातें समझाती है उसी तरह मैं की एक शक्ति रखी है वह आपमें स्थित है। आप आपको समझा रही हूँ। आप में जो सम्पदा है वह विश्वास कीजिए या न कीजिए । क्योंकि ऊपरी प्राप्त कीजिए । आप कहते हैं हम प्रपंच में बंध गए (बाह्य) आँखों (दृष्टि) वाले लोगों को कुछ कहना हैं। बंध गए हैं माने क्या ? तो फालतू बातों का कठिन है। विशेषकर अपने यहाँ के साहित्यिक और आपको महत्व लगने लगा। मुझे नौकरी मिलनी बुद्धिजीवी लोग विचारों पर चलते हैं। और विचार चाहिए, वो क्यों नहीं मिल रही है, क्योंकि बेकारी कहाँ तक जाएंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है। ज्यादा है ? माने बेकार ज्यादा हैं इसलिए बेकारी किसी विचार का किसी से मेल नहीं है। इसलिए क्यों ज्यादा है ? बेकारों की संख्या बढ़ रही है। वो इतने झगड़े हैं। तो इन विचारों के परे जो शक्ति है, बढ़ती ही जाएगी। इन कारणों के परे कैसे जाना है उसके बारे में अपने देश में परम्परागत अनादिकाल ? उसका इलाज है कि वह जो शक्ति हमारे चारों में | से बताया गया है। उस तरफ कुछ ध्यान देना तरफ है उसका आहु्वान करना होगा। मनुष्य जरूरी है। परन्तु इन विचारवान लोगों में इतना वह शक्ति मूलाधार चक्र में रहती है। मूलाधार में ये अहंकार है कि वे उधर ध्यान देने के लिए तैयार जो शक्ति है वह प्रपंच में कैसे कार्यान्वित है यह आप देखिए। अपना ध्यान उस (शक्ति की) तरफ नहीं। हो सकता है शायद इसमें उनके पेट का सवाल हो। परन्तु सहजयोग में आने के बाद पेट के होना चाहिए और सर्वप्रथम ये विचार होना चाहिए लिए आप आशीर्वादित होते हैं। परमात्मा से कि मूलाधार में जो कुण्डलिनी शक्ति है वह श्री सम्बन्ध घटित होने के बाद आप की समस्याएं ऐसे गणेश की कृपा से वहाँ बैठी है। अब इस महाराष्ट्र हल होती हैं कि आपको आश्चर्य होगा। "ऐसा को बहुत बड़ा वरदान है कहना चाहिए। यहाँ जो हमने क्या किया है ? इतना हमें परमात्मा ने कैसे अष्टविनायक हैं वह आपके लिए परमात्मा का बहुत दे दिया ? इतनी सही व्यवस्था कैसे हो गयी ?" बड़ा उपकार हैं। इसी कारण महाराष्ट्र में मैं सहजयोग ऐसा सवाल आप अपने आपसे पूछ कर चकित रह स्थापित कर सकी हूँ क्योंकि श्री गणेश का जो दिसम्बर, 1997 37 नवम्बर चैतन्य लहरी प्रभाव है उसी का आप पर आवरण है उसी रिकामे. (जो ज्यादा सयाने हैं उनकी खोपड़ी खाली आवरण के कारण सचमुच मेरी बहुत मदद हुई है। है।) तो श्रीगणेश की नाराज़गी हम पर न हो ये श्रीगणेश आपके मूलाधार में विराजमान उसका निश्चय करना होगा। श्रीगणेश हममें बैठकर हमारे बच्चों का पालन हैं। अब कोई डॉक्टर है तो वह अपने घर में श्री गणेश का फोटो रखेगा। मन्दिर भी बनाएगा वहाँ जाकर नमस्कार करेगा परन्तु श्रीगणेश का और वह जो भोला गणेश (बच्चा) है वह घर के सभी करते हैं। प्रथम जनन और उसके बाद पालन। और लोगों को आनन्द देता है। किसी घर में बच्चा पैदा डॉक्टरी का क्या सम्बन्ध है ये उसके समझ में नहीं आएगा और उसे वह स्वीकार भी नहीं करेगा। होते ही कितनी खुशियाँ छा जाती हैं। उस बच्चे से कितनी आनन्द की लहरें घर में फैलती हैं परन्तु श्रीगणेश के बिना डॉक्टरी भी बेकार है अब परन्तु ये श्रीगणेश शक्ति आपमें है उसी के कारण आपके जिस घर में बच्चा नहीं होता वहाँ कैसा खालीपन सा महसूस होता है! ऐसा लगता है उस घर में जाएं नहीं क्योंकि वहाँ बच्चों की किलकारियां नहीं, हँसना नहीं, खिलखिलाना नहीं, वह मस्ती नहीं । बच्चे पैदा होते हैं। अब जरा सोचिए, एक माता-पिता जिस तरह उनके चेहरे हैं उसी तरह का बच्चा पैदा होता है। हजारों, करोड़ों लोग इस देश मैं हैं दूसरे देशों में हैं। परन्तु हर एक का बच्चा या तो उसके ऐसे घर में कोई माधुर्य नहीं होता। परन्तु आजकल माता-पिता की तरह होता है, नहीं तो दादा-दादी जमाना कुछ दूसरा ही है। जिन देशों को समृद्ध या उस परिवार के किसी व्यक्ति के चेहरे पर होता (affiuent) कहते हैं उन देशों में बच्चे पैदा ही नहीं है। तो इसका जो नियमन है वह कौन करता है ? होते उनकी आबादी बढ़ती जा रही है। इसलिए वह श्रीगणेश करते हैं । आपका ये कर्तव्य है कि अपने घर में जो आबादी इतनी नहीं बढ़नी चाहिए। मान लिया, परन्तु गणेश (बच्चे) हैं उनमें जो बालसुलभ अबोधिता है कहना ये है कि जो बच्चे आज जन्म ले रहे हैं उनमें उसे स्वीकार करें। वह अबोधिता अपने में आनी भी अक्ल होती है। वे क्यों उन देशों में जन्म लेने चाहिए। घर में छोटे बच्चे होते हैं। छोटे बच्चे लगे ? वे कहेंगे वहाँ रोज पति-पत्नी तलाक लेते हैं कितने अबोध होते हैं! उनके सामने हम गाली और बच्चों की हत्या कर डालते हैं। वही हमारे साथ गलौच करते हैं, बुरे शब्द बोलते हैं। ऐसे वातावरण होगा क्योंकि यहाँ भारत में माँ- बाप को बच्चों के में हम उनको पालते हैं, जहाँ सब अमंगल है प्रति आस्था, जो प्रेम, जो सहज-बुद्धि है वह इन उनकी तरफ हम कोई ध्यान नहीं देते यही (बच्चे) लोगों में (अमीर देशों में) बिल्कुल नहीं है आपको तो आपके घर के गणेश हैं उनके संवर्धन में, सुनकर आश्चर्य होगा कि लंदन शहर में माँ-बाप लोग कहते हैं यह बहुत बुरा है। आपके देश की पालन-पोषण में आपका ध्यान नहीं है। आजकल एक हफ्ते में दो बच्चों को मार देते हैं। जितना तो इंग्लैण्ड में 80 वर्ष की की औरतें भी शादी सुनोगे उतना कम है। मुझे तो रोज धक्का-सा आयु करती हैं। तो अब क्या कहें कुछ समझ में नहीं लगता है पर उन्हें उसका कुछ भी असर नहीं है। आता! वहाँ की बुराई यहाँ मत लाओ। वहाँ की वे लोग अहंकार में इतने डूबे हैं कि उन्हें बुराई वहीं रहने दीजिए। ते अति शहाणे त्यांचे वैल उचित-अनुचित का भी ध्यान नहीं। वहाँ जाकर दिसम्बर 1997 चैतन्य] लहरी 38 नवम्बर मालूम हुआ कि हिन्दुस्तानी मनुष्य कितना अच्छा आपमें आने लगती है उस शक्ति से मनुष्य सच्चा यहाँ भारत के टेलिफोन ठीक नहीं है. माईक समर्थ हो जाता है और उस समर्थता से एक ठीक नहीं हैं रेलगाड़ियां ठीक नहीं है। सब कुछ चमत्कार घटित होता है। जो बच्चे बेकार हैं, जो मान लिया। पर लोग तो ठीक हैं। वह गहनतम किसी काम के लायक नहीं हैं, माने जो शराब वर्गैरा अच्छाई में गणेश तत्व। जिस घर में गणेश तत्व पीते हैं- आजकल आपको मालूम है ड्रग वरगैरा ठीक नहीं है वहाँ सब कुछ गलत होता है बच्चे चलता है- हमने तो कभी चरस नाम की चीज़ नहीं बिगड़ने का दोष मैं समाज से ज्यादा माँ-बाप को देखी थी। अब मालूम होता है कि आजकल स्कूलों देती हूँ। आजकल माँ भी नौकरी करती हैं बाप तो में चरस बिकती है। ये सब मूर्खता सुबुद्धि न होने करते ही हैं, तब भी जितना समय आप अपने बच्चों के कारण होती है। वह सुबुद्धि जागृत होते ही जो के साथ काटते हैं, वह कितना गहन है ये देखना लोग इंग्लैण्ड, अमेरिका में चरस लेते हैं वे यह सब जरूरी है। छोड़कर अच्छे नागरिक बन गए हैं ये सहजयोग अब सहजयोग में आने पर क्या होता है ये की शक्ति है। बच्चों में शिष्टाचार नहीं हैं क्योंकि देखना है। मतलब सहजयोग का सम्बन्ध आपके माँ-बाप आपस में लड़ते हैं, बच्चों का आदर नहीं बच्चों के साथ किस प्रकार है। सहजयोग में करते। उनसे चाहे जैसा व्यवहार करते हैं। जैसी आपकी गणेश शक्ति जो जागृत होती है वह माँ-बाप की प्रकृति, वैसी ही बच्चों की बन जाती है कुण्डलिनी शक्ति के कारण है प्रथम मनुष्य में और वे वैसे ही असभ्य आचरण करते हैं। सहजयोग सुबुद्धि आती है। हम उसे विनायक ( गणेश) कहते में आकर माता-पिता की कुण्डलिनी अगर जागृत हैं। वही सबका सुबुद्धि दाता है। मैंने ऐसे बच्चे देखे हो गयी और बच्चों की भी हो गईी तो फिर सब हैं. जिन्हें लोग मेरे पास लेकर आते हैं, कहते हैं. एकदम कायदे से व्यवहार करते हैं । पहले बच्चा कक्षा में एकदम फिसड़डी है, खाली मस्ती आत्म-सम्मान जागृत होता है। उपदेश करने से करता है, मास्टरजी से उल्टा-सीधा बोलता है मैंने आत्म - सम्मान जागृत नहीं होता। परन्तु सहजयोग उससे पूछा , तुम ऐसे क्यों करते हो ? उसने कहा, में मुझे कुछ नहीं आता और मास्टरजी भी मुझे डाँटते रहते हैं। फिर मैं क्या करूं? वही बच्चा फर्सट करने की प्रथा चली आ रही है। उनकी सत्ता क्लास फर्सट (प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान) में प्रास जिनके पास हो उन्हीं के चरणों में झुकना चाहिए हुआ है। ये कैसे हुआ है ? श्री गणेश आप में बाकी सब ऐरे-गैरे नत्थु-खैरे आज आएंगे कल चले कुण्डलिनी जागृति से मनुष्य में सम्मान आता है । अपने देश में सत्तारूढ़ लोगों का सम्मान जागृत होते ही वह शक्ति आपमें बहने लगती है जाएंगे। उनका कोई मतलब नहीं, बेकार हैं वे लोग। और आप में एक नया 'आयाम शुरु किया है हो जाता है । जिन्होंने गणेश को अपने आप में जागृत उस आयाम को हम 'सामूहिक चेतना कहते हैं अभी तक जो चीजें व्यक्ति को दिखाई नहीं देती थीं वे अब सहज ही में अनुभव होने लगती हैं। ये नया आयाम एक नयी चेतना-शक्ति । उनके सामने झुकना चाहिए। गणेश शक्ति जागृत होते ही आदमी में बहुत अन्तर आ जाता है। जैसे कि आजकल पुरुषों की नज़र इधर-उधर दौड़ती रहती है, चंचल है, आज्ञाचक्र दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 39 नवम्बर पकड़ती है हरदम पागलों की तरह इधर-उधर है। उसके लिए कुछ भी करने की आवश्यकता देखते रहना, जिसे कहते हैं तमाशगीर। आजकल नहीं। कुण्डलिनी जागृत होने पर मनुष्य में सुबुद्धि तमाशगीरों की बड़ी भारी संख्या है। महाराष्ट्र में भी आती है और उस मनुष्य का सारा व्यक्तित्व एक शुरु हुआ है। हम जब छोटे थे, स्कूल, कालिजों में विशेष प्रकार का हो जाता है। अब यहाँ पर जो पढ़ते थे तब हमने ऐसे तमाशगीर नहीं देखे थे। साहित्यिक लोग होंगे वे कहेंगे माताजी कोई भ्रामक परन्तु अब ये नये लोग निकले हैं ये लोग हरदम (विचित्र) कहानियाँ सुना रही हैं। परन्तु आपको अपनी आँखें इधर से उधर दौड़ाते रहते हैं उससे सुनकर आश्चर्य होगा अहमद नगर जिले में बहुत शक्ति नष्ट होती है और उसमें किसी भी सहजयोग के कारण दस हजार लोगों ने शराब प्रकार का आनन्द नहीं है। नीरस क्रिया) कहना छोड़ी है। मैं शराब छोड़ने को नहीं कहती, मैं कुछ चाहिए। उसीमें अपना सारा चित्त लगाकर अपनी नहीं बोलती। जैसे भी ही आप आइए। आकर अपना आँखें इधर-उधर घुमाते रहते हैं । हर दम आत्मा रूपी दिया जलाइए। दिया जलने के बाद इधर-उधर देखना, जैसे रास्ते के विज्ञापन देखना। शरीर में क्या दोष हैं वे आपको दिखाई देंगे जब गलती से कोई विज्ञापन देखना छूट गया तो उन्हें तक दिया नहीं जलेगा तब तक साड़ी में क्या लगा लगेगा जैसे अपना कुछ महत्वपूर्ण काम चुक गया । है ये नहीं दिखाई देगा। उसी तरह एक बार दिया फिर से ऑँख घुमाकर वह विज्ञापन पढ़ेंगे हर एक चीज़ देखना ज़रूरी है। ये जो आँखों की बीमारी है भी जल गया तो भी आपको दिखाई देगा कि अपनी यह एकदम नष्ट होने पर ही मनुष्य सहजयोग में क्या क्या त्रुटियाँ हैं। आप ही अपने गुरु बनिए और एकाग्र होता है। जब इसमें एकाग्र दृष्टि आती है। अपने आपको अच्छा बनाइए। स्वयं को पवित्र बनाइए। ऐसी एकाग्र दृष्टि व गणेश शक्ति अगर जागृत हो जो लोग पवित्र होते हैं उनके आनन्द की कोई सीमा जाती है, उसे "कटाक्ष निरीक्षण" कहते हैं। आपकी नहीं। उनके आनन्द का कोई ठिकाना नहीं रहता । कटाक्ष दृष्टि जहाँ पड़ेगी वहाँ कुण्डलिनी जागृत हो किसी ने कहा है, "जब मस्त हुए फिर क्या बोलें ?" जायेगी। जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता अब हम मस्ती में आए हैं तो उस मस्ती की हालत आ जाएगी। इतना पवित्र्य आँखों में आ जाएगा। ये में अब हम क्या बोलें ? ऐसी स्थिति हो जाती है। केवल अकेले गणेश का काम है। और ये गणेश पवित्रता आनन्दमयी है और केवल आनन्दमयी ही 1 जला कि सब कुछ दिखाई देगा। बिल्कुल थोड़ा सा 1. आपके घर ही में है। अपने अपने गणेश को नहीं, पूरे व्यक्तित्व को सुगंधमय कर देती है। ऐसा पहचाना नहीं अगर पहचाना होता तो अपनी पवित्रता मनुष्य कहीं भी खड़ा होगा तो लोग कहेंगे" हे भाई में स्थित होते। जो पवित्र है वही करना चाहिए। कुछ तो कुछ विशेष बात है इस मनुष्य में " जिन्हें परन्तु आपने अपने गणेश को नहीं पूजा। कोई बात विशेष बनना है वे बनेंगे आप विशेष बनने वाले हैं नहीं। अपने घर में बच्चे हैं, उनके गणेश को ये सर्वविदित है। वह आपको अर्जन करना है, देखिए । उन्हें पूजनीय बनाइए और अपने गणेश को कमाना है। जिन्हें विशेष बनना है. उन्हीं प्रपंचिक भी। आप अपनी कुण्डलिनी जागृत करवाइए । परन्तु लोगों के लिए, घर-गृहस्थी में रहने वाले लोगों के सहजयोग की विशेषता ये है कि ये सहज में होता लिए सहजयोग है जिन्हें कुछ बनना नहीं, जो ५े ৬ दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 40 नवम्बर समझते है हम बिल्कुल ठीक हैं, हमें कुछ नहीं एक समस्या है। सभी साड़ियाँ युवा लडकियों के चाहिए माताजी, तो भाई ठीक है, आपको हमारा लिए ही हैं बड़े-बूढ़े लोगों के लिए साड़ियाँ बनाने नमस्कार। आप पधारिए। आप पर हम जबरदस्ती का आजकल रिवाज़ ही नहीं रहा। पहले जमाने में नहीं कर सकते। अगर आपको पूर्ण स्वतन्त्रता बूढ़े लोगों के पास पैसा रहता था, उनके लिए प्राप्त करनी है तो हमें आपकी स्वतन्त्रता की रक्षा सब-कुछ ठीक-ठाक रहता था। अब बूढ़े लोगों को करनी है। अगर आपको नर्क में जाना है तो बेशक कोई पूछता नहीं। उनके लिए शादी-ब्याह में जाइए, और अगर स्वर्ग में आना है तो आइए। हम एकाध साड़ी खरीदना भी मुश्किल हो गया है। आप पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। सर्वप्रथम अपने प्रपंच में सुख का कारण बच्चा होता है बच्चे के गर्भ में आते ही घर में जागृत हो जाती है। अब हम एक बड़े बुजुर्ग आदमी जिस समय ये गुरु-शक्ति आपमें जागृत होती है तब ये जो बूढ़ापन, वृद्धत्व आता है, उसमें तेज़स्विता आनन्द शुरु हो जाता है। माता के कष्टों की को लें। अपने पिता भी कभी-कभी बिल्कुल मुर्खों समाप्ति के पश्चात् बच्चे का अत्यन्त उल्लास के की तरह बर्ताव करते हैं। माँ महामूरखों की तरह बीच जन्म होता है। आजकल मैंने देखा है कि जो ब्ताव करती हैं। बाहर से जो लोग आते हैं उनके लोग पार हैं उनके जो बच्चे होते हैं, वे जन्म से ही सामने किस तरह से रहना है उसे नहीं मालूम। पार होते हैं, चाहे वे लोग कहीं भी रहें। कितने ही चिल्लाती रहती हैं, सारा ध्यान उसका चाबियों पर, बड़े-बड़े सन्तों को जन्म लेना है। सबको मैं देख नहीं तो जात-पात के लड़ाई-झगड़ों पर रहता है। रही हूँ। वे कह रहे हैं, "ऐसा कौन है जो हमारी कोंकणस्थ की शादी कोंकणस्थ से ही होनी चाहिए, आत्मा को सुचारु रखेगा। ?" ऐसे-वैसे लोगों के देशस्थों की देशस्थों से। ऐसा नहीं हुआ तो सास यहाँ साधु-सन्त नहीं जन्म लेते ऐसे बड़े-बड़े लड़ती है। ये जो बुड़्ढे लोगों की अजीब बातें हैं, ये सन्त आज जन्म लेने वाले हैं और उनके लिए ऐसे तब खत्म हो जाती हैं और उनके स्थान पर उस लोगों की जरूरत है जिनके प्रपंच सचमुच ही बूढ़ेपन में एक तरह की "तेजस्विता" आ जाती है। प्रकाशित हैं और ऐसे प्रकाशित प्रपंच निर्माण करने वह व्यक्ति अपने सम्मान के साथ खड़ा रहता है। आपको लगेगा " अरे बाप रे! हमारे पिताजी ये क्या हो गए पहले जमाने के जो दादोजी कोंडदेव (शिवाजी वह होने के बाद दूसरे चक्र से जिसे हम के जमाने के लोग) वगैरा लोग थे, क्या वही यहाँ 'स्वाधिष्ठान' चक्र कहते हैं उससे प्रपंच में बहुत खड़े हो गए ?" और तुरन्त उनके सामने हम विनम्र के लिए आप सहजयोग अपनाकर अपनी कुण्डलिनी जागृत करवा लीजिए । लाभ होते हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का पहला काम है, हो जाते हैं। आपकी गुरु-शक्ति को प्रबल बनाना। बहुत से घरों में मैंने देखा है, पिता की कोई इज्ज़त नहीं, माँ की है बात-बात पर तलाक, पत्नी के साथ लड़ाई, कोई इज्जत नहीं। छोटे-छोटे 15,16 साल के बच्चे माँ-बाप से नहीं बनती, घर में रह नहीं सकते, घर तो इस युवा पीढ़ी में जो खलबली मची हुई की सब कुछ हैं। आजकल बाजार में मैं देखती हूँ से बाहर भाग जाना, छोटी-छोटी बातों पर हमारे जैसे व्यस्क लोगों के लिए साड़ी खरीदना लड़ाई-झगड़े, ये सब हो रहा है। काम-धंधा नहीं, दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी तवम्बर 41 पैसे नहीं, सभी बुरी आदतें, सब तरफ से आजकल हमारा नमस्कार। परन्तु आप को अपनी शक्ति में की युवा पीढ़ी एक बड़े संक्रमण-काल की तरफ खड़ा रहना है और कोई विशेष बनना है, तो आप बढ़ रही है। उनकी पृष्ठभूमि (background) बहुत जो चले जा रहे है सो रुकना पड़ेगा जरा शांत महान है। मैं कहती हूँ महाराष्ट्र की पृष्ठभूमि तौ होकर सोचिए ये (विदेशी) जो सारे दौड़ रहे हैं, जो बहुत ही महान है। पर वह सब भूलकर भी पढ़ेंगे रेट रेस (अंधी दौड़) चल रही है उसमें मैं भी क्या नहीं, सुनेंगे नहीं। अब संगीत का अपने महाराष्ट्र में भाग रहा हूँ ? एक मिनट शान्त होकर सोचना कितना ज्ञान है ? साधु-सन्तों का कितना साहित्य चाहिए हमारी भारतीय विरासत क्या है ? सम्पत्ति है अपनी भाषा में। पर वह सब किताबें कौन पढ़ता के बटवारे में यदि एक छोटा टुकड़ा कम-ज्यादा है ? गंदी किताबें सड़क पर खरीद कर पढ़ना। मिला तो कोर्ट में लड़ने जाते हैं परन्तु अपने इस कुछ अत्यन्त नकली, (जो गहराई में नहीं जाते, बस देश की बड़ी परम्परा है। उस तरफ किसी का ध्यान ऊपर ऊपर उतराते रहते है) इस तरह की युवा नहीं। वह खत्म होने जा रही है उसका हमने पीढ़ी बनती जा रही है। इस युवा पीढ़ी को अगर कितना लाभ उठाया है? इसका ज्ञान सहजयोग में इसी तरह रखा तो ये इसी हवा में खो जाएगी। आने पर वयस्क लोगों को होता है। क्योंकि जब किसी काम की नहीं रहेगी। मुझ से पूछिए आप, मैं उन्हें मालूम होता है कि हम पहले जो थे उससे अमेरिका गई थी तो 65% पुरुष बेकार हैं। वहाँ के कितने ऊँचे उठ गए हैं मेरे बचपन में मेरे पिताजी जो लोग हैं उन्हें एक डर है। वहाँ 'एड्स' नाम की ने मुझ से कहा था सर्वप्रथम इस युवा वर्ग की कोई बीमारी है। उससे सभी युवा लोग मर रहे हैं जागृति होनी चाहिए। दसवीं मंजिल (चेतना के और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि इससे कैसे छुटकारा मिले ? उसका कारण है, 'ये करने में क्या साधारण लोगों की, जो अभी पहली मंजिल पर भी हर्ज है? इसमें क्या बुरा है ? हो गए होंगे श्री नहीं पहुँचे, चेतना की क्या अवस्था है। ये (साधारण रामदास स्वामी, हमें उनसे क्या मतलब ? वह सब लोग) ताल-मंजीरे अवश्य बजाते हैं, किन्तु उन बातें रखिए अपने पास। हम अब मॉडर्न बन रहे हैं गीतों व भजनों के पीछे क्या भाव है यह वे नहीं बड़े आए मॉडर्न बनने वाले! वे (अमेरिकन) मॉडर्न समझते। जब वे पहली मंजिल ( आत्मसाक्षात्कार) कहाँ गए हैं। देखिए एक बार उन देशों में जाकर। पर पहुँचेंगे तब उन्हें पता चलेगा कि उससे ऊपर वहाँ के मॉडर्न लोगों की क्या स्थिति है ये जरा और भी मंजिलें हैं । स्तर) पर बैठे साधु-सन्त नहीं समझ पाते कि तो रहते हैं। वहाँ जाकर एक बहुत बड़ी चेतना है उसे ऋतंभरा शक्ति देखिए। वहाँ के व्यस्क लोग रात-दिन एक ही बात कहते हैं। वह आपको सहज में प्राप्त होती है। वह जाकर देखिए। यहाँ के लेखकगण यहीं बैठकर वहाँ के चर्णन लिखते इस सर्वसाधारण मानवीय चेतना के परे सोचते हैं. हम किस तरह आत्महत्या करें? एक ही प्राप्त होने के बाद आपको अपने जीवन का दर्शन विचार है उनका, आत्महत्या। यही एक रास्ता है होगा हम क्या हैं. कितने महान हैं और हम ये जो उनके पास। तो हवा में खत्म होने वाले जो ये लोग अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, ये क्या हैं उनकी तरह आपको माडर्न होना है तो आपको हमें शोभा देता है ? कितनी आपके पास सम्पदा है दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 42 नयम्बर आपने अपनी क्या इज्जत रखी ? आपको अपने बारे आपके शरीर से प्रेम अर्थात् चैतन्य की लहरियाँ में कुछ पता नहीं है। ये आप कीजिए और सहजयोग में अपनी जागृति कराइए। चाहिए। इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता। होगा इसी तरह आजकल की युवा पीढ़ी है । ये भी तो होगा, नहीं तो नहीं भी। आज नहीं तो कल समझने की कोशिश बहने लगेंगी। केवल ये घटना आप में घटित होनी परमात्मा के साम्राज्य में सहज में आ सकती है। घटित होगा। इस प्रपंच में आपकी आर्थिक समस्याएं हैं । इस युवा-पीढ़ी को पार कराना बहुत आसान काम है। सारे भोलेपन में गलत काम करते हैं। इनका महाराष्ट्र में देखो तो "श्री माताजी, गरीबों को आप सब भोलापन ही है। एक लड़का सिगरेट पीता है से क्या लाभ होगा ?" आप क्या हैं. गरीब हैं या तो मैं भी पीऊँ, बस! किसी ने कुछ विशेष तरह के अमीर, या मध्यम ? फिर आपको क्या लाभ चाहिए? कपड़े पहने तो मैं भी पहनूंगा, इतना ही! सब कुछ आप चाहे मध्यम हों, अमीर हों, रईस हों, चाहे गरीब, भोलापन। परन्तु कभी-कभी भोलेपन से ही अनर्थ किसी को भी संतोष नहीं। रेडियो है तो वीडियो. हो सकता है। परन्तु यही युवा-पीढ़ी आज कहाँ से चाहिए। वीडियो है तो एयरकंडीशनर चाहिए। और कहाँ पहुँच सकती है। आज अपने देश में किस बात उसके बाद जहाज चाहिए। और आगे क्या, वह की कमी है ? कोई कहेगा खाने की है। परन्तु मुझे परमात्मा ही जाने! Economics (अर्थशास्त्र) का तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। मुझे लगता है हम एक सर्वसाधारण नियम है। इच्छाएं आम तौर पर ज्यादा ही खाते हैं और दूसरों को भी देते हैं। मैं कभी भी पूरी नहीं होती। आपकी एक इच्छा हुई तो जब भी यहाँ आती हूँ तो सबको हाथ जोड़कर वह पूरी होगी। परन्तु साधारणतया ऐसा होता नहीं। बोलती रहती हैँ, अब खाना बस करिए मुझे अब नहीं चाहिए। हर एक मनुष्य वहाँ कहता है कि बात स्पष्ट है जो हमने इच्छा की वह शुद्ध इच्छा हिन्दुस्तान में खाने की कुछ कमी नहीं दिखाई देती, नहीं थी। अगर वह शुद्ध इच्छा होती तो वह पूरी क्योंकि इतना खिलाते हैं, आग्रह कर करके। लगता होने के बाद हमें पूर्ण समाधान होता। परन्तु ऐसा है है खाना ही न खाएं। तो अपने यहाँ कमी किस बात नहीं। मतलब आपकी इच्छा शुद्ध नहीं थी। अशुद्ध की है ? वाद-विवाद, चर्चा करने में भी लोग नंबर इच्छा में रहे । इसलिए एक के बाद दूसरी, तीसरी, एक हैं। वे अगर यहाँ खड़े होंगे तो मुझसे भी चौथी, इस चक्कर में आप घूमते रहे । अब शुद्ध जबरदस्त भाषण देंगे सभी बातों में बहुत होशियार इच्छा साक्षात कुण्डलिनी है। क्योंकि वह परमात्मा हैं हम लोग कुछ ज्यादा ही होशियार! सब कुछ की इच्छा है। ये जागृत होते ही जो आप इच्छा है हमारे पास, सोना चॉदी, सब कुछ। कमी किस करोगे बात की है ? सोचकर देखिए हममें किस बात की इच्छा है वह उसे प्राप्त होगा।) इतनः कि आप कमी है। एक ही कमी है कि हमें ज्ञान नहीं कहेंगे अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। आपकी जो कि हम कौन हैं ? मैं कौन हैँ ? इसका अभी इच्छाएं हैं वे पूरी होती हैं, परन्तु वे इच्छाएं जड़ आज एक हुई, कल दूसरी, उसके बाद तीसरी। एक जो जे बाँछिले, तो ते लाहो (जो जिसकी तक ज्ञान नहीं है। जिस समय ये घटित वस्तुओं की नहीं होती। उनमें एक तरह की प्रगल्भता, होगा तब पूरा शरीर पुलकित हो उठेगा और उदात्ता होती है। और आपकी जो छोटी-छोटी बातें পাঁ चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 43 व्रत रखना, आज खट्टा नहीं खाना, ये करना, वह हैं " वह कृष्ण के कथनानुसार "योग क्षेम बहाम्यहम् जब आपका योग घटित होगा तो क्षेम भी प्राप्त हो नहीं करना। कुछ तमाशे करते रहना और फिर जाएगा। परन्तु पहले योग कहा है, " " परमात्मा को दोष देना, हम इतना परमात्मा की सेवा नहीं कहा है। "योग क्षेम वहाम्यहम्" पहले योग करते हैं फिर भी हम बीमार हैं। उसके बारे में कुछ घटित होना जरूरी है। सुदामा को पहले कृष्ण को दिमाग से सोचना चाहिए। जाकर मिलना पड़ा तब उसकी सुदामा नगरी सोने की बनी। आपका कहना है हम यहीं बैठे रहेंगे और वह पहले आप सीख लीजिए। वह सीखे बगैर 'क्षेम योंग' परमात्मा के जो नियम हैं, उनका विज्ञान हैं। गलत-सलत करते हो। फिर कुछ बिगड़ गया तो हाथ में सब कुछ आ जाये। क्यों? परमात्मा पर आप इतना अधिकार क्यों जताते हैं। किसलिए ? चार उसे क्यों दोष देते हो ? परमात्मा है या नहीं, यही पैसों के कृत के लिए और परमात्मा को दे आए। सिद्ध करने के लिए हम आए हैं। बिल्कुल सिद्ध इसलिए ? उलटे इसमें आपकी बड़ी गलती है। करने के लिए। आपके हाथों से चैंतन्य बहेगा। बहुत से लोग मैंने देखा है जो शिवभक्त हैं वे आपके हाथों की उंगलियों पर परमात्मा मिलने वाले "शिव -शिव' करते रहते हैं और उन्हें हार्ट अटैक हैं। परन्तु उसके लिए आपकी तैयारी है ? बुद्धि होता है। शिव आप के हृदय में बैठे हैं। फिर ऐसा ज्यादा चलती है। श्री माताजी क्या कह रही हैं ? क्यों ? उन्हें हार्ट अटैक क्यों हुआ ? क्योंकि शिव जरा दिमाग ठंडा कीजिए, फिर होगा। आपकी नाराज़ हो गये, आप किसी मनुष्य को ऐसे बुलाते समस्याएं अगर आपकी बुद्धि से हल होती तो हमें ये रहें बार-बार, तो उसे भी लगेगा ये आदमी मुझे इतनी मेहनत करने की जरुरत नहीं थी। परन्त क्यों परेशान कर रहा है। कल आप राजीव गांधी के आपकी राजकीय समस्याएं हल नहीं होने वाली न सामाजिक और प्रपंच की तो बिल्कुल ही नहीं । घर जाकर "राजीव राजीव" ऐसे कहते रहें तो लोग आपको कैद कर लेंगे। और इससे आपको न परमात्मा की प्राप्ति हो रही है और न ही प्रपंच की। ऐसी स्थिति है। इसलिए मध्य मार्ग में आना जरूरी है । और मध्य मार्ग को सुषुम्ना मार्ग कहते हैं। वहाँ से जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तब मनुष्य बीचों-बीच (मध्य में) आकर समाधानी होता है। बिल्कुल समाधानी बन जाता राजकीय प्रश्न ये हैं कि हम (Capitalist) पूँजीपति हैं। उसी के लिए लड़ रहे हैं । क्या वे लोग सुखी हैं ? स्वतन्त्रता भी संभाली जाती है उनसे ? दूसरे कहते हैं हम कम्युनिस्ट (साम्यवादी) हैं। किन्तु नाड़ी का सच्चे पूंजीपति तो हम हैं क्योंकि हमारे पास शक्ति है। ये सब ऊपरी बातें हैं। इसमें आप लोग मत उलझिए। आप अपने-आप में (अपने भीतर) परमात्मा का साम्राज्य लाइए और उसके नागरिक बनिए। फिर देखिए आप क्या बनते हैं। उसके लिए प्रपंच आजकल संतोषी देवी का व्रत चला है। छोड़ने की जरूरत नहीं है। पैसे देने की जरूरत संतोषी नाम की कोई देवी है ही नहीं। सिनेमा वालों नहीं है। इसमें क्या पैसे देने ? ये तो जीवन्त प्रक्रिया है। ने यह निकाली तो लगे सब व्रत रखने। जो स्वयं है आपमें किसी पेड़ को आपने पैसे दिए तो क्या वह आपको फूल देता है ? उसे क्या मालूम पैसा और इसी तरह कुछ गलत-सलत बनाते रहते हैं। क्या चीज है ? उसी तरह परमात्मा है। उन्हें पैसे संतोष का स्त्रोत है उसे क्या कहेंगे बह संतोषी है। चैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 44 नवम्बर वगैरा नहीं मालूम। किसी बाबाजी को ले आते हैं इस बम्बई शहर में इतने लोगों की प्रपंचिक स्थि) और उसे कहते है, ये लो पैसे गाँव में हमारे विषय में सुधार आया है कि आपको आश्चर्य होगा। परन्तु में कहा माताजी पैसे नहीं लेती। तो कहते हैं अच्छा हम उस तरफ देखते ही नहीं । हमें विश्वास ही नही 10 पैसे नहीं तो 25 ले लीजिए। परन्तु पैसे किस है। नहीं करते तो मत करिए। पता नहीं आपको चीज़ के दे रहे हो ? ये (आत्म साक्षात्कार) तो आप अपने स्वयं पर भी भरोसा है या नहीं, परमात्मा ही ही का है। इसे क्या खुद से खरीदोगे ? प्रेम के जाने! अब ये व्यर्थ समाचार पत्र वादिता छोड़कर द्वारा सब कुछ काम होता है। वह प्रेम प्राप्त करना सचमुच की वर्तमान स्थिति में क्या हो रहा है ये होगा, जो आजकल प्रपंच में नहीं है और जो प्रेम देखना चाहिए। श्रीकृष्ण आए, कुछ एक परम्परा नजर आता है वह गलत तरीके का है। किसी पेड़ लेकर आए और उन्होंने कृषि का कार्य किया एक को आपने देखा होगा। उसका रस ऊपर आता बीज बोया आज वह सम्पदा आपको इस स्थिति रहता है और जिस जिस भाग को चाहिए उसे देते तक लाई है। आप फूलों से फल बनने वाले हैं। वह देते वह अपनी जगह तक जाता है। वह किसी फूल आपको प्राप्त कर लेना चाहिए। अगर इस बार आप लिए चूक चूक गए तो समझ लीजिए हमेशा पर या पत्ते पर नहीं अटकता। अटक गया तो बस वह पत्ता भी खत्म और बह पेड़ भी खत्म और फूल गए। आपकी सारी प्रपंचित समस्याएं खत्म होकर भी खत्म। उसी तरह हम लोगों का है। हमारा प्रेम आप परमात्मा के प्रपंच में आते हैं। उनके प्रपंच में माने " मेरा बेटा! वह तो दुनिया का नवाब शाह हो आए बगैर आपको सुख नहीं मिलने वाला। सारी गया! मेरी बेटी , मेरा काम", 'मेरा-मेरा' चलता दुनिया भर के दुःख परमात्मा के चरणों में आने से रहता है। वह क्या आपका है ? लेकिन ये कह खत्म होते हैं, ऐसा कहते हैं। परन्तु इसका मतलब ये नहीं कि आप जाकर विद्ठल ( श्रीकृष्ण) के चरणों में सर फोड़ लें। श्री विठ्ठल को अपने आपमें सुनकर नहीं होने वाला। कितना भी कह छोड़िए, मेरा-मेरा नहीं छूटने वाला। उसे छुड़वाने के लिए जागृत आप की कुण्डलिनी उठनी चाहिए। वह उठने के करना है। उसे कैसे जगाना है ? उसके लिए कुछ बाद और आप पार होने के बाद 'तुम्हारा-तुम्हारा' करने की जरूरत नहीं है। वह साक्षात आपमें हैं की शुरुआत होती है। कबीर ने कहा है जब बकरी केवल कुण्डलिनी का जागरण होने के बाद जिस जीवित होती है तब बार-बार मैं-मैं करती है। तरह दिया जलाया जाता है, उसी तरह आपमें वह "मैं-मैं-मैं" करती है। लेकिन मरने के बाद उसकी जलता है। जिस घर में परमात्मा का दिया जलता आँत निकाल कर उसका तार खींचकर धुंदके में रहेगा वहाँ दर्द कहाँ ? गरीबी और परेशानियाँ बांधी जाती है तो उसमें से आवाज़ होती है कहाँ ? वहाँ तो सुख का संसार होना चाहिए। "तूही-तूही-तूही"। उसी तरह मनुष्य का है। एक इसीलिए हम गाँव-गाँव सब जगह घूमते हैं। आपको बार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है तब मेरी विनम्र विनती है कि ये जो आपमें शक्ति है वह लगता है सब कुछ 'तुम्हारा' है। मनुष्य 'अकर्म' में जागृत करवा लीजिए और सारे संसार के प्रपंच का उतरता है। फिर ये बच्चे, सगे-सहोदर सभी तुम्हारे! उद्धार कीजिए। मैं आपको हाथ जोड़कर विनती लोगों को आश्चर्य होता है, ये सब कैसे होता है ? करती हूँ। दुःख पतंज परमात्मा आप पर कृपा करें। चैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 नवम्बर 45 एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आत्म- साक्षात्कार के बाद परमेश्वर के राज्य में प्रस्थापित होने तक बहुत बाधाएं हैं, और श्री कल्कि शक्ति का सम्बंध इसी से जुड़ा हुआ है। आत्म -साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतों व प्रवृत्तियों में मग्न हैं उनकी स्थिति को 'योगभ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । जिसका अर्थ है कि प्रत्येक को सहस्रार का एक मन्त्र है। वह है निर्मला" स्वच्छ, सुथरा और निष्कलंक रहना चाहिए। जब आत्मा का द्वार खुलता है तो किसी चीज़ की कमी नहीं रहती । माँ यही द्वार खोलती हैं। इसीलिए ये माँ गणेश को प्रिय हैं। यह मिलने पर दूसरी किसी भी चीज़ की चाहत नहीं रहती। इस तरह की स्थिति जब आती है तब समझ लीजिए कि आत्मसाक्षात्कार हो गया फिर उसी में लीन हो कर आनन्दमग्न हो जाइए। (परम पूज्य श्री माता जी) चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नदम्बर 46 *৯ নख्र ममशर जी जभा आ त त १ ताल पम ৩ अबोधिता एक ऐसा शाश्वत गुण है जो न कभी लुप्त होता है ু और न ही नष्ट । कमि कि छी िकाट ाम ाल P१ न ১ ४ हे पर SAHAZA YOAATEMEE ---------------------- 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt HIAMALA 1997 अंक 11 व 12 PURS चैतन्य लहरी यह समझ लेना महत्वपूर्ण है कि आप कितने बहुमूल्य हैं; कितने असाधारण रूप से महत्वपूर्ण हैं आप इस युग में जन्में और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया- किस लिए ?इस विश्व का उद्घार करने के लिए, मानव को परिवर्तित करने के लिए तथा समुचित विश्व को परमात्मा के साम्राज्य में ले जाने के लिए। आपके सहज में होने का यही उद्धेश्य है।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी HARK ४A 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt SHWA NIRMALA. NIVERSAL PURE RELIGI इस अंक में : श्री कृष्ण पूजा- 23.8.1997 रूसी लोकचिकित्सा सम्मेलन 17 ईसा मसीह पूजा- गणपति पुले- 25.12.1997 19 विश्व समाचार 24 आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय पूजा एवं जन कार्यक्रम-मार्च 1997 क्रोशिया और बोस्निया में प्रथम सहज योग का कार्यक्रम अर्जेन्टिना में सहज कार्यक्रम प्रपंच और सहजयोग 32 DHARMA 2. 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt सर्वाधिकार सुरक्षित इस प्रकाशन का कोई भी अंश, प्रकाशक की अनुमति लिए बिना, किसी भी रूप में अथवा किसी भी जरिये से कहीं उद्धृत अथवा स्प्रेषित न किया जाए। जो भी व्यक्ति इस प्रकाशन के संबंध में कोई भी अनधिकृत कार्य करेगा उसके विरुद्ध दंडात्मक अभियोजन तथा क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी दावा दायर किया जा सकता है। न PE 175 प्रकाशक : निर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड, 8. चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, कोथरुड, पौढ़ रोड, पुणे 411038 'ई मेल का पता- marketing@nirmalinfosys.com www.nirmalinfosys.com Tel. 9120 25286537. Fax. 9120 25286722 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt श्री कृष्ण पूजा कबेला 23.8.1997 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) सारी बातें बहुत समय पूर्व लिख दी गई थीं । लोग आज हम यहाँ श्री कृष्ण पूजा करने के लिए आए हैं। मैं जब अमेरिका गई तो उन्होंने मझे जब मूलतः निष्कपट थे तभी वो समझ गए थे कि जो महाकाली पूजा के लिए कहा, परन्तु मैंने कहा, भी कुछ हमारे हित में नहीं है वो हमें नहीं करना "नहीं, मुझे केवल श्रीकृष्ण के विषय में ही बात चाहिए। ये आदि-वर्जन हैं और मानव में अन्तर्रचित करने दें. "क्योंकि पहले हमें यह महसूस करना है ह। अब मान लो मैं कहती हैं "शराब मत पिओ।" कि इस पूजा की कितनी शक्ति है। इस प्रकार हम श्रीकृष्ण को अपने अन्दर स्थापित करने वाले हैं । आप शराब पीए चले जाएंगें यदि मैं कहूँ, "झूठ मत बोलो", तो आप झूठ बोलेंगे। यह मानव स्वभाव श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि "जब जब भी धर्म का [" धर्म का मतलब जैसा हम है। लोग आदि-वर्जनों के विरुद्ध चलते हैं क्योंकि पतन होगा समझते हैं हिन्दु धर्म, ईसाई धर्म या मुस्लिम धर्म वे सोचते हैं कि वे स्वतंत्र हैं और उन्हें इच्छानुसार नहीं है। यह सब तो मुर्खता है। धर्म का अर्थ है कार्य करने की स्वतन्त्रता है वास्तव में वे स्वतंत्र मानव में अन्तर्रचित अदि-वर्जन (Primodial नहीं हैं। वे सभी प्रकार के प्रलोभनों या सम्मोहनों के Taboos) । इनके विषय में, मैं सोचती हैँ, हमसे वश में हैं और ये सब सम्मोहन मानव जीवन के कहीं अधिक यहाँ के आदिवासी जानते हैं। परन्तु विरुद्ध हैं। व्यक्ति का धर्मपरायण होना अत्यंत हमने क्या किया? हमने उन पर प्रभुत्व जमाया और स्वाभाविक है। छोटे बच्चे प्रायः ऐसे होते हैं। उदाहरण विवश होकर उन्हें अपनी जीवन शैली बदलनी के रूप में मैंने देखा है कि छोटे-छोटे बच्चे भी पड़ी। आदि-वर्जनों को केवल तभी समझा जा दूसरों के सामने निर्वस्त्र होने में सकुचाते हैं। लोगों सकता है जब लोग स्वयं को या परम्पराओं से प्राप्त सम्मुख वे नग्न नहीं होते। के इसका सबका चर्णन ज्ञान को समझने का प्रयत्न कर रहे हों। सहज या देवी सर्व भूतेषू लज्जा रूपेण संस्थिता' में किया धर्म थोड़ा-सा भिन्न है क्योंकि यह न केवल उन गया है। तो आपको लज्जाशील होना चाहिए। विचारों से ऊँचा है जिनके विषय में हम बातचीत आपको नम्रतापूर्वक अपने शरीर का सम्मान करना करते हैं बल्कि जो कुछ श्रीकृष्ण या श्रीराम ने कहा चाहिए। आज के युग में यह बहुत महत्वपूर्ण है । उनसे भी ऊँचा है। श्रीराम ने सोचा कि सर्वप्रथम आज शरीर प्रदर्शन महिलाओं की बहुत बड़ी मानव को अनुशासित किया जाए जीवन के विषय उपलब्धि मानी जाती है। महिलाएं आदिवासी बनने में लोग गम्भीर हो जाएं तथा अपने अस्तित्व को का प्रयत्न् कर रही हैं। पुराने समय में उनमें न तो यह विचार थे और न ही वे इतनी भ्रमित थीं अत: भली-भांति जान लें। वे अपना सम्मान करें। यह का 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर शराब के दुष्प्रभावों के विषय में कहेंगे तब ये शराब आदिवासी महिलाएं यद्यपि बहुत कम बस्त्र पहनती थीं फिर भी इसका अभिप्राय यौनाकर्षण/ पुरुषों को वर्जित करेंगे। परन्तु आपके शरीर के लिए यह को आकर्षित करना नहीं था। उनके पुरुष भी ऐसा आचरण न करते थे जिससे यह लगे कि वे महिलाओं कार्य में लगे रहते हैं जो आपके और आपके के लिए कोई विशेष आकर्षण बिन्दु हैं। तो आप सब शान्तिमय जीवन के लिए अहितकर है तो अधार्मिक क्यों ऐसा करें ? पुरुषों का महिलाओं की ओर बन रहे हैं। यह बात अच्छঠी तरह समझ ली जानी महिलाओं का पुरुषों की ओर आकर्षित होना अति चाहिए कि सहज धर्म यह है कि आप स्वतंत्र हैं- एक स्वाभाविक वर्जन है । आप यदि किसी ऐसे हास्यास्पद है। परन्तु गलियों में, सड़कों पर चलते कामुकता, लालच तथा सभी प्रकार के प्रलोभनों से हुए आप यही सब होता देखते हैं। यह घोर अधर्म पूर्णतः स्वतंत्र। आप इनसे ऊपर हैं- कहीं ऊँचे, है, मेरे विचार में यह अभिशाप है। सहज योग में कहीं ऊँचे। यह धर्म श्रीकृष्ण या श्रीराम द्वारा आने के पश्चात् भी आप जानते हैं, लोग यही करने स्थापित धर्मों से कहीं ऊँचा है क्योंकि पूर्ण स्वतंत्रता लगते हैं। ऐसे लोगों को पागलखाने चला जाना में आपने इस अवस्था को प्राप्त किया है अत: चाहिए । सहज योग के लिए वे बेकार हैं। परन्तु आपको धार्मिक होना है। अहितकर कार्य त्याग दें । आत्मा का प्रकाश आते ही धर्म प्रस्थापित हो जाता मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यह करें, 1 है। यह न करें हो सकता है कि मेरी बात आपको श्रीराम के समय तो उन्हें सभी कुछ सिखाना अच्छी न लगे परन्तु आपकी चैतन्य लहरियाँ एकदम पड़ा, मोजिज को भी दस धर्मादेश बताने पड़े। परन्तु से आपको बताएंगी। यह सहज धर्म है; इसमें, कहा श्रीकृष्ण ने दूसरे ही ढंग से सोचा : कि पवित्रप्रेम का धर्म स्थापित किया जाए, पवित्र प्रेम का। उन्हें यह अहंकार से छुटकारा पा लेते हैं। लगा कि श्रीराम के धर्म-वर्जन लोगों पर इसी प्रकार थोपे गए थे जैसे इस्लाम और ईसाई धर्म पर लालची हैं किस चीज के लिए लालची हैं? यह वर्जन थोपे गए। यह कभी कार्य नहीं करते। तो अमेरिका तो उपभोक्तावाद से मरा जा रहा है। आप जाता है कि आप काम, क्रोध, लोभ, मोह और अब आप जान लें कि लोग किस प्रकार व्यापार तकनीक को देखे: अमेरिका में आप जितना चाहे धन बैंक से उधार ले सकते हैं। कोई समस्या श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब लोगों को स्वतंत्ररूप से पावन प्रेम विकसित करने का उपदेश दिया जाए। राधाजी, जो कि उनकी शक्ति थीं, आह्लाद-दायिनी नहीं । आप यदि ऋण नहीं लेते तो वे आपको पत्र कहलाती हैं। वे ही आनन्द पावन आनन्द प्रदान भेजते हैं कि "आप बीस हजार डालर का ऋण क्यों नहीं ले लेते?" हम आपको यह चैक भेज रहे हैं। करती हैं। अतः इन सब सीमित प्रकार के आकर्षणों का परिणाम भी कष्टकर होता है। आप जानते हैं कि मद्यपान चेतना के विरुद्ध है। आज चिकित्साशास्त्री क्यों न इसे स्वीकार करें ? आप अति धनी बन जाते हैं ऋण लेना अति सुगम है। मुझे बताया गया कि तम्बाकू के दुष्प्रभावों की बात कर रहें हैं और कल कुछ लोग तो ऋण लेकर गणपति पुले पूजा में जब जिगर के रोगों से लोग मरने लगेंगे तो यह आया करते थे। उनका चित्त सदा दूसरी बात पर 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर अधिक महत्व नहीं है और हममें तो मूर्खताओं को रहता कि किस प्रकार में यह ऋण लौटाऊँगा? मैंने कहा कि आप यह सब बन्द कर दें। तो वे ऋण सामूहिक रूप से स्वीकार करने का गुण भी है। इसे लेकर गणपति पुले आ जाते हैं और फिर हरक्षण त्यागना होगा, विशेष रूप से अमेरिका में और सोचते हैं कि मैं किस प्रकार यह ऋण चुकाऊँगा? इंग्लैंड में यह रुकना ही चाहिए कैसे मैं यह कार्य करूंगा ? चित्त सदा विक्षिप्त हिप्पी के रूप में एक व्यक्ति आया। उसके रहता है, चाहे आप स्वहित में कुछ करना चाहें या बाल बन्दर जैसे लग रहे थे। मैं तो कहूँगी कि बन्दर गणपति पुले आना चाहें। तो ऐसा मस्तिष्क स्वतन्त्र कहीं ज्यादा अच्छा होता है। तो मैंने उससे पूछा, "आपके बाल ऐसे क्यों है ?" उसने उत्तर दिया, नहीं होता। स्वतन्त्र मस्तिष्क वह है जिसका चित्त "क्योंकि मैं आदि-मानव बनना चाहता हूँ। अब हमें आत्मप्रकाश से प्रकाशित हो। परन्तु समस्या यह है कि हम अब भी मानवीय बन्धनों से आत्मसाक्षात्कार प्राचीनता अपनानी होगी" मैंने कहा, "परन्तु तुम्हारा के उच्च जीवन की ओर उठ रहे हैं। जब हम उस मस्तिष्क तो आधुनिक है, अपने बालों को इस प्रकार स्तर (ऊँचाई) की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो हमें बढ़ा कर तुम सोचते हो कि आदि-मानव बन महसूस करना होगा कि अंडे से जन्में उस पक्षी की सकोगे? तरह-जो अंडे के खोल को त्याग देता है- हमें भी मुझे पता चला कि उसकी मुत्यु हो गई है। एक और तुम आदिमानव नहीं बन सकते।" बाद में तुम भाई-बहन ,माता-पिता, पति-पत्नी आदि के रूप ऐसा ही व्यक्ति आया, वह स्वर्ग तो नहीं सिधारा में लिप्त ये सब बन्धन तथा आन्तरिक बुराईयाँ त्यागनी होंगी। वे तुम्हें पतन की ओर घसीटना से मिली हूँ। आप ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि यह चाहते हैं। शराब पीते हुए वे आपको बुलाते हैं, आप फैशन है। भी कुछ पी लो । आप बिल्कुल सामाजिक नहीं हैं, आप बेकार हैं, पिछड़े हुए हैं।" इस प्रकार फैशन (Designers) के कारण इटली वैभवशाली हो रहा आरम्भ होता है। फैशन का यह सामूहिक कार्य न है। रूस में नये-नये धनी लोगों के विषय में एक परन्तु पागलखाने चला गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों आप जानते हैं कि सभी प्रकार के रूपांकनकारों तो श्रीकृष्ण की देन है और न सहज की। सहज कहावत है, यद्यपि रूस के लोग प्रायः ऐसे नहीं योग में आप इन सब मूर्खताओं से पूर्णतः मुक्त होते हैं। आप चाहें तो अच्छे वस्त्र पहनें और न चाहें तो नहीं करते। एक व्यक्ति आया और कहने लगा, "हे होते। फैशन के कारण वे किसी चीज को स्वीकार न पहनें। आप स्वतन्त्र हैं, धन के बन्धनों से भी आप भगवान! उस दिन आपका हाथ ही खो गया!" स्वतन्त्र हैं। यह अति महत्वपूर्ण है। धन के बन्धन "कोई बात नहीं, परन्तु दुःख इस बात का है कि एक अन्य बाधा है। मैं ऐसे योगियों को जानती हूँ हाथ के साथ मेरी बहुमूल्य स्विस घड़ी भी चली जो धनार्जन के लिए सहजयोग में आए। किसलिए गई" "सच ? कौन सी घड़ी थी ?" "ये रोलैक्स आप सहज योग में आते हैं ? धन के बन्धनों से थी।" हाथ चला गया तो कोई बात नहीं। रोलैक्स मुक्ति पाने के लिए । सहजधर्म मैं पैसा आपके फैशन है तो ये नये-नये धनी लोग हैं। चरणों की के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, इसका कुत्ते फैशन के पीछे नहीं भागते मैंने कुत्तों धूल 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर को फैशन करते नहीं देखा, और न ही बन्दरों को। क्योंकि आप स्वतन्त्र हैं। विवेक स्वतन्त्रता का मान लो इटली के रूपांकनकार उनके लिए कुछ आधार होता है। परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि बनाएं भी, तो भी वे इसके विषय में न सोचेंगे। हो आप स्वच्छन्द हैं। आत्मा के प्रकाश के अभाव में परन्तु हमें व्यक्ति सभी उल्टे-सीधे कार्य करता है। आत्मा का सकता है उनके मालिक ये चीज खरीदें। पशु भी नहीं बनना। और न ही फैशन का गुलाम प्रकाश प्राप्त होने पर आप प्रचलित सामूहिक पागलपन बनना है। कुछ दुकानें बहुत मंहगी हैं, क्यों ? में नहीं फँसते। पागलपन में हम लोग अत्यन्त क्योंकि वे रूपांकनकार (Designers) हैं आप सब सामूहिक हैं। काश, लोग बिवेकमय कार्यों में अधिक को बताते हैं, "देखिए, ये जो मैंने पहना है यह सामूहिक होते! विवेक अति महत्वपूर्ण है और यह रूपांकन दुकान से है; रूपांकन दुकान से।" तो राधा जी का आनन्दमयी गुण है । हममें आहलाद आपका अपना मस्तिष्क कहाँ है ? आपको वस्तुओं दायिनी शक्ति का आना आवश्यक है। स्थिति ऐसी के रूप और अपनी आवश्यकताओं की कोई सूझ-बूझ होनी चाहिए कि हमसे मिलकर अन्य लोगों को नहीं! आजकल बहुत रूपांकनकार जेल में हैं। प्रसन्नता प्राप्त हो। उनके पास धन है जो उन्होंने आपको मूर्ख बनाकर ऐंठा है । अमेरिका में तो मैं हैरान थी कि वहाँ अधिकतर चीजें इटली डिज़ाइन की बिक रही थीं। यह है कि प्रेम का अभाव है। यह प्रेम दिखावा मात्र 'इटली डिज़ाइन लिखे होने के कारण लोग उन्हें है। सफेद, काला या पीला रंग क्या है ? वास्तव में खरीद रहे थे। जो रूपांकन वे करते हैं वे सभी यह मेरी समझ में नहीं आता। अतः श्रीकृष्ण ने प्रेम-धर्म सिखाया। रंग-भेद आदि को यदि आप महत्व देते हैं तो इसका अर्थ जगह उपलब्ध हैं, सभी जगह उपलब्ध है, सभी यहाँ पर यह अपना रंग काला करने के लिए समुद्र सुन्दर वस्तुएं। परन्तु उनका तो सामूहिक पागलपन तट पर जाते हैं और वहाँ वे कहते है कि हमें काले में विश्वास है। सभी लोग एक ही डिजाइन के वस्त्र लोग नहीं चाहिए पहने हुए हैं। यह सहजधर्म नहीं है। हम किसी चीज़ के है। गुलाम नहीं हैं। हम स्वतन्त्र लोग हैं। हमें कोई डिज़ाइन स्वीकार नहीं करना। मूर्ख लोगों को नहीं?" यदि आप मुझे श्याम वर्ण का कहें तो मैं उनके पीछे भागने दो। हम सहजयोगी हैं। साधु श्याम वर्ण हूँ और यदि मुझे श्वेत वर्ण का कहें तो कहलाने वाले लोगों में भी इसका प्रचलन है वे मैं श्वेतवर्ण हूँ और यदि मुझे पीत बर्ण का कहें तो । अमेरिका के लोगों में इस तरह की दूरी मैंने श्वेत एवं श्याम वर्ण के लोगों में देखी मैं हारलैम (Harlem) गई तो सहजयोगी पूछने लगे, "क्या आप हारलैम जाएंगी? मैंने कहा, "क्यों 1. सभी एक ही प्रकार के वस्त्र पहनते हैं कैसे आप मैं पीतवर्ण हूँ। अतः वहाँ जा रही हूँ और मैंने बहाँ किसी को पहचानेगे? सहजयोग में हम आपको जाकर भाषण दिया। वहाँ पर बहुत से साधक लोग एक ही प्रकार के वस्त्र पहनने, एक ही जैसा थे वास्तव में, मैं इसे भूल नहीं सकती। वहाँ के दिखाई देने, एक ही प्रकार के बाल बनवाने को नहीं सुप्रसिद्धतम स्थानों में से एक पर यह हॉल बना है। कहते, नहीं। आपका अपना व्यक्तित्व होना चाहिए ाम ऐसा ही एक हॉल आस्ट्रेलिया में भी बना है जहाँ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर मैंने बहुत से साधकों के सम्मुख प्रवचन किया। मैंने सोचा इसे देखो। वे लोग कहने लगे, "श्रीमाताजी आस्ट्रेलियन लोगों ने हमारी नकल की है।" अब क्योंकि उनके नाक, होंठ, या बाल विशेष प्रकार के यह लोग अत्यंत मधुर और सुन्दर हैं। मैं उनका हैं। वे इतने मूर्ख हैं और आप भी उनका साथ देते है अपने विनाश पर उतारू वे लोग स्वयं को अति-महान मानते हैं। वे स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं हृदय देख पाई, उसे महसूस कर पाई। मेरे प्रवचन हैं! किस प्रकार आप उनका साथ दे सकते हैं ? के पश्चात् संचालन का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति आप यदि अपनी स्वतंत्रता की कामना करते हैं तो मेरे पास आया उसने मुझे गले लगा लिया, चूमा। स्वतंत्र व्यक्ति बन जाइए। स्वतंत्रता में वैचित्र्य उसने तो मुझे भींच ही दिया होता। लगभग 22 आवश्यक है। अत्यंत आवश्यक है। मैं तो कहूँगी साल का छोटा-सा लड़का था वह। इतना प्रेम कि अब जो लोग अमेरिका लौट रहे हैं उन्हें नये उसने महसूस किया! कहने लगा, "श्रीमाताजी, किस्म की सहज प्रवृत्ति चाहिए। श्याम-वर्ण लोगों अगली बार जब आएंगी तो आप अवश्य हारलैम के पास जाइए। मैं दक्षिण अमेरिका की गोष्ठी से आएं।" परन्तु मुझे बताया गया है कि वह सभागार बहुत प्रसन्न हुई क्योंकि उन्होंने विशेषतः वहाँ के मूल-निवासियों को अपनाया था। वहाँ जा कर वे बन्द हो गया है। तो यह अमेरिकन प्रणाली किसी न किसी उनसे मिले। मैं भी उनसे मिली थी और हैरान थी प्रकार से प्रजातन्त्र के विरुद्ध हैं । यह न केवल क्योंकि तुरन्त वे कहने लगे, "श्री माताजी, हम जानते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं। परन्तु क्या आप प्रजातंत्र- विरोधी है, यह अब्राहम लिंकन की इच्छाओं के विपरीत भी है। उस देश में इतना महान व्यक्ति हमारी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं?" मैंने हुआ और उसके नाम पर वहाँ केवल एक छोटी सी पूछा, "आपकी समस्या क्या है?" "हमारी एक भूमि गली है। निःसंदेह वाशिंगटन में उनकी एक सुन्दर है। केवल 5-6 एकड़ ज़मीन, जो कि हमारी है, प्रतिमा है। परन्तु उनके सिद्धांत समाप्त हो चुके हैं। जहाँ तुलसीबन्धु नामक पौधे (Sage) उगते हैं। उनके विचार समाप्त हो चुके हैं। कुछ लोग आये उनके अनुसार तुलसीबन्धु पवित्र पौधा है। हम उस और श्यामवर्ण लोगों के विरुद्ध लिखा, विशेषकर ज़मीन को पावन मानते हैं इसलिए भिन्न उत्सवों के सी इंग्लैंड में। परमात्मा सृजित किसी भी चीज़ के अवसर पर हम वहाँ एकत्र होते हैं।" उन्हें विरुद्ध लिखने का उन्हें क्या अधिकार है। सभी चीज़ों का ज्ञान है। यह पावन भूमि है और वहाँ लोगों के रंग यदि समान हों तो वो सेना के लोग चैतन्य लहरियों के कारण वे सदा वहाँ जाया करते प्रतीत होंगे। उनके भिन्न रंग-वर्ण होने आवश्यक थे। अत्यन्त स्वाभाविक ।" तो अब वहाँ क्या हुआ हैं। पेड़ों और फूलों को देखें, आकाश को देखें, हमें आपकी समस्या क्या है ?" सरकार ने, इस अमेरिका प्रसन्न करने के लिए वे कितने रंग बिरंगे हैं ? की सरकार ने, यह भूमि एक भारतीय को बेच दी बहुत 1 वैचित्र्य ही हमें प्रसन्नता प्रदान करता है। वैचित्र्य है।" मैंने कहा, "एक भारतीय को ?" "हाँ। आप ही सुन्दरता का चिह्न है। वैचित्र्य के बिना सभी इस व्यक्ति को यह भूमि लौटा देने को कह सकती 1. कुछ उबाऊ हो जाएगा। परन्तु उन्हें इस पर गर्व हैं। हम उसे धन दे देंगे।" मैंने पूछा, "उस भारतीय 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर का नाम क्या है?" उन्होंने मुझे नाम बताया। मैंने हवाई-अड्डे पर उतरी। एक भद्र पुरुष-काले रंग कहा, "हे परमात्मा! वह तो सिन्धी है!" क्या वो ये का- "अरे प्रियतम! तुम यहाँ पर ? तुम्हें देखकर भूमि आपको दे देगा ? मुझे खेद है। मैं चाहे बहुत प्रसन्नता हुई। मैं बहुत खुश हूँ। तुम कैसी हो और, मैं कुछ नहीं कर ? एक बार यात्रा में, हुसाला मेरे साथ थी, एक लम्बे-तगडे व्यक्ति ने मेरी ओर देखा और कहने हाँ! "मैंने कहा, परमेश्वरी होऊ या कुछ सकती।" परन्तु मैं हैरान थी कि किसी ने भी इसके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाई। उन्हें इसका विरोध लगा, "अरे, तुम फिर लौट आई ? करना चाहिए था कि "कृपा करके हमारी भूमि "मैं वापिस आ गई हू तुम मुझे जानते हो?" लौटा दीजिए। क्यों आप इसे छीनना चाहते हैं ?" "निःसन्देह, मैं आपको जानता हूँ।" वह मुझ से जैसा कि सर्वविदित है, अमेरिका के सभी कभी न मिला था। परन्तु मुझे प्रसन्नता हुई। मैं बहुत लोग प्रवासी नागरिक हैं। वे वहाँ के मूल-निवासी खुश हुई। लोगों से मिलने का यह सब से अच्छा नहीं है वे उस भूमि के स्वामी न थे। तो उन्हें तरीका है। सड़क पर जाते हुए यदि आप किसी किसी अन्य की भूमि को इस प्रकार रखने का काले रंग के व्यक्ति को देखें-मैं आपको बताती हैं अधिकार नहीं है। और साथ ही साथ स्वयं को श्रेष्ठ कि वहाँ जीवन भयावह है-जीवन उनके लिए नरक समझने का भी अधिकार नहीं है। यह अच्छी बात है। उनके लिए दुःख हुआ मेरे आँसू बह निकले । है कि कोई व्यक्ति आपके घर में घुस आये, स्वयं सहज योगी के नाते आप तुरन्त उनके पास जाएं को श्रेष्ठ समझे और परिवार के सभी लोगों को और प्रेम से उन्हें बुलाएं। "आप कैसे हैं ?" उनसे निकाल बाहर करे! यही सब हो रहा है अमेरिका हाथ मिलाएं। वो आपका हाथ काट नहीं लेंगे मैं नहीं जानती कि अमेरिका में अधिक अपराधी कौन है-गोरे में । सहज धर्म में इसके बिलकुल विपरीत है। या काले? परन्तु यदि आप दयामय हैं प्रेममय हैं तो ऐसे धर्म से आप लोगों को प्रेम कर सकते हैं, उन्हें उनके अन्दर से यह अपराध- वृत्ति दूर कर सकते हैं; अपने हृदय में बिठा सकते हैं। आपकी प्रेम एवं क्योंकि घृणा को केवल प्रेम से ही धोया जा सकता है। दयार्द्रता सदैव बहुती रहती है। मेरे लिए अब ये परन्तु लोग सोचते हैं कि वे बहुत चतुर हैं. चतुराई समस्या है. मेरा शरीर मुझसे अधिक दयार्द्र है। उस में बहुत ऊँचे हैं। अन्यथा उनमें क्या श्रेष्ठ है ? यह शरीर को हर चीज का बोध हो जाता है- दूसरों गोरा रंग, यह तो सबसे खराब है विवाह से पूर्व मैं की समस्याओं का भी परन्तु मेरे विचार से आप बहुत गोरी थी। फिर काली होने लगी। गोरे रंग ऐसा शरीर नहीं पा सकते, आपको ऐसा शरीर पाना भी नहीं चाहिए । परन्तु आपके पास कम से कम मेरे चेहरे पर डालते हैं, उससे मेरे चेहरे पर दाग पड़ एक ऐसा हृदय तो होना चाहिए जो खुला हो। जाते हैं। तो मेरी समझ में नहीं आता कि गौर वर्ण सड़क पर चलते हुए कोई काला व्यक्ति यदि होने में क्या महानता है ? यह तो अजीब पीला सा आपको मिले तो आपका हृदय उसके लिए उमड़े! और आनन्दविहीन प्रतीत होता है। लोग अपने शरीर मुझे काले अमेरिकन पसन्द हैं। एक बार मैं को पक्के रंग का बनाने के लिए समुद्रतट पर जाते | पर हर चीज़ का प्रभाव पड़ता है। रोशनी जो आप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर तो सहज धर्म के अनुसार आपमें शर्म होनी की मूर्खता का भी बहुत फैशन है अब हमें चाहिए आपमें लज्जा-विवेक होना चाहिए। सहज सावधान रहना है कि सामूहिकता में हम कितना धर्म में आप दूसरों से जो भी बातचीत करते हैं. उनसे जो कहते हैं, जो भी आचरण करते हैं, वह हैं और चर्म-कैन्सर का कष्ट भोगते हैं इस प्रकार इन चीज़ों से प्रभावित होते हैं। मैंने अपनी नातिन को बिना बाजू के वस्त्र आहलाददायी होना चाहिए। कोई बात यदि पहने देखा और उसे बताया कि "बेटे आपको बिना आहलाददायी नहीं है तो चुप रहिए कुछ मत बाजू के कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।" वह कहने कहिए, क्या आवश्यकता है? इतना व्यंग्यमय होने लगी "बहुत गर्मी है । मुझे बहुत गर्मी लग रही है ।" की और व्यंग्य द्वारा मस्तिष्क प्रदर्शन का क्या लाभ वह कम उम्र की है। मैंने उसे बताया कि देखो, "ये है? तीखेपन से, व्यंग्यात्मक शैली में बात करना दो बहुत महत्वपूर्ण चक्र हैं। इनको नंगा रखने से अच्छी नस्ल का चिह्न नहीं है आप यदि मधुरता तुम्हें समस्या हो सकती है।" घुटनों से ऊपर के पूर्वक बात करें तो हानि क्या है? यह मधुरता वस्त्र पहनना उसे पसन्द नहीं है, फिर भी, वह राधाजी की देन है अब तो, निःसंदेह लोगों ने कहने लगी कि "लोग तो घुटने से भी ऊपर वस्त्र उनका दुरुपयोग किया है। उन्हें रोमियो-जूलियट पहनते हैं।" मैंने कहा, "घुटनों पर अति महत्वपूर्ण सम बना दिया है वास्तविकता यह नहीं है । वे चक्र है। हमें इन्हें ढक कर रखना चाहिए यदि ये अत्यन्त पावन महिला थीं महालक्ष्मी थी वे। तो प्रभावित हो गए तो तुम्हें घुटनों के रोग हो जाएंगे।" सहज में आकर महालक्ष्मी बनने के लिए आपको वह तुरन्त परिवर्तित हो गई, तुरन्त। "माँ मैं अन्दर बहुत ही गरिमामय वस्त्र पहनने चाहिएं। मुझे याद एक ब्लाउज़ पहनूंगी और उसके ऊपर कुछ और।" है, एक बार, एक पार्टी में एक व्यक्ति मेरे पास आ क्योंकि वह समझ गई कि ये हमारा प्राकृतिक कर बैठ गया "हाँ!" मैंने कहा, "क्या हुआ?" आदि-वर्जन है कि हम इन दोनों चक्रों को नंगा न "कितना सुकून है माँ! कितना सुकून है श्रीमती छोड़ें। पर आजकल जितनी लम्बी टांगे हैं उतने श्रीवास्तव आपको देखकर! उन स्त्रियों की ओर 1. छोटे वस्त्र हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि टांगो में देखो। मैं तंग आ गया हूँ" परन्तु आपके आने से क्या है। सारा सौन्दर्य क्या टांगो में ही है ? यात्रा मुझे कितना चैन मिला है!" मैंने कहा, "क्या चैन में मैं एक महिला से मिली । मुस्लिम होने के कारण मिला है?" वह बुर्का पहनी थी। जब हम लन्दन उतरे तो बुर्के महिलाओं को शान्त होना चाहिए। सहज महिलाएं का स्थान घुटनों से ऊपर के वस्त्रों ने ले लिया था । इतनी मूर्ख एवं उथली नहीं होती कि हर चीज़ पर मैंने कहा, "ये कैसी मुस्लिम महिला है ?" ये हँसती रहें। यह महिलाओं का तरीका नहीं है कि ईसाइयों से भी गई-बीती है, क्योंकि ऐसे बस्त्र तो हर चीज़ की खिल्ली उड़ायें। कोई बात यदि हँसने वो भी न पहनेंगी। जहाज़ से ७ ने के लिए योग्य है तो ठीक है। परन्तु हँसने योग्य बात न हो आपको सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। लज्जा, शर्म तो भी वो हँसेंगी! ये कोई तरीका नहीं है। ऐसा "आप इतनी शांत हैं!" तो सहज धर्म में 1 भी नहीं । बेशर्मी । करना तो मूर्खता हो सकती है। परन्तु सराहना एवं कुछ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt दिसम्बर, 1997 घैतन्य लहरी पमा नवम्बर t0 उसने मेरे साथ ऐसा किया ऐसा कहना ये दर्शाता आनन्द की हँसी तो इतनी पावन होती है कि अत्यंत सुन्दर वातावरण की सृष्टि करती है। मेरे विचार से पर्यावरण की सारी समस्या है। क्योंकि आप क्षमा नहीं कर सकते। याद रखने है कि आप में सहज योग समझने की योग्यता नहीं हमारे मस्तिष्क एवं लालन-पालन में है। यह बाह्य वाली कौन सी चीज़ है। वर्तमान ही सर्वोत्तम है । नहीं। यह हमारे अंदर है जो बाहर प्रतिबिम्बित अब मेरे साथ बैठकर आहलाददायिनी शक्ति का होती है। गणेश पूजा में मैं आपको बताऊँगी कि आनन्द लेते हुए भी यदि आप बीती बातें सोच रहे हैं पृथ्वी माँ से हमारा कितना निकट सम्बन्ध है और तो आपमें उस योग्यता का अभाव है। सहज योग हमारे आचरण तथा जीवन शैली के प्रति किस की योग्यता पाने के लिए आपको अपने से भूतकाल जानती हूँ कि मुक्त होना होगा समाप्त। अपराध स्वीकार करने प्रकार वह प्रतिक्रिया करती है। मैं सहज योग में आप लालच और बासना सहज ही की कोई आवश्यकता नहीं है मैं जानती हैँ कि में त्याग देते हैं। लोभ और काम का त्याग यदि बहुत से लोग सहज योग में आने के बाद अपराध आप नहीं कर सकते तो आपको स्वयं को सहज स्वीकार करते हुए मुझे पत्र लिखते हैं। मैं कह देती योगी नहीं कहना चाहिए। काम और लोभ का हूँ, इन पत्रों को जला दो।" मैं याद नहीं रखती। त्याग पहला कार्य है। युवा लोगों में अब मुझे लगता इसके विषय में मैं कुछ नहीं पढ़ती। अत: क्षमा होनी है कि वे स्वतंत्र होकर सहज योग में आते हैं। वे चाहिए। क्षमा यदि है तो, आप हैरान होंगे, आप महिलाओं के पीछे नहीं दौड़ते, न महिलाएं उनके भार -विमुक्त हो जाएंगे और आपका विवाहित जीवन पीछे दौड़ती हैं। वे साथ बैठते हैं. बातें करते हैं. खुशियों से भर जाएगा। और यदि आप पुरानी बातों हँसते हैं परन्तु सभी कुछ पावन है। कुरान में स्पष्ट को याद रखते हैं वर्णन है कि कयामा के वक्त सुन्दर पुरुष एवं जटिल होते हैं। तो आप इनसे मुक्त हो जाएं। महिलाएं होंगी परन्तु उनमें वासना और लालच न सहजयोग में तलाक की आज्ञा है, यदि कोई उचित होगा। वे पवित्र होंगे आज आप देख सकते हैं कि कारण हो तो। किसी अधिक अच्छी चीज़ के लिए .। कुछ विवाह वास्तव में बहुत 1 1 नहीं। कुछ देशों के लड़कों और कुछ की लड़कियों लालच और वासना समाप्त हो गये हैं स्वतः ही ये समाप्त हो गये हैं और आप देख सकते हैं कि अब के विवाह हमने वर्जित कर दिए हैं। क्या कारण है? अनुभव से हमने सीखा है कि वे विवाह योग्य तत्व नहीं है। अब अच्छा होगा कि विवाह न करें और आप इस बन्धन से मुक्त हैं। कल हमारे यहाँ विवाह होने वाले हैं । सहज धर्म में क्षमा पहली आवश्यक चीज़ यदि करें तो आदर्श सहज योगी की तरह करें। आप यदि सहज योगिनी हैं तो सदैव क्षमा करते | जो क्षमा नहीं कर सकता वह सहज योगी नहीं हुए मुझे भूतकाल को भूल जाने से यह आती है। नहीं तो कहते हैं "श्री माताजी, हमारी सहायता कीजिए । आप कहते ही रहेंगे कि अमुक व्यक्ति ने मुझे क्यों ?" "क्योंकि मेरे पति मुझे पैसा नहीं देते।" मैं नहीं मानूंगी।" उसे हो सकता। क्षमा :- किस प्रकार क्षमा आती है ? आप अधिक अच्छी तरह चल सकती हैं। लोग हैं, "उसे छोड़ दो, मैं बुरा सताया। मेरे लिए वह बहुत तुच्छ था। ऐसा था। कहती প 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 11 चाहिए कि तुम्हें पैसा दे। क्यों वे तुम्हें पैसा नहीं आप सोच सकते हैं? तो बच्चों से व्यवहार करते हुए देता? उसके पति से बात करने पर पता चलता है, स्वयं को उदाहरण बनाएं. स्वयं को उस उदाहरण का अंग बनाएं, ताकि बच्चों को बुरा न लगे । "श्री माताजी वह बहुत खर्च है।" मैंने कहा, "बेहतर होगा कि आप दोनों सहजयोग छोड़ दो और जो मर्जी करो।" सहज धर्म में पति-पत्नि बच्चे कुछ भी त्याग सकते हैं, आपका प्रेम नहीं छोड़ फिजूल मैं इस विषय पर बहुत बार बता चुकी हूँ। सम्बन्ध वास्तव में रोमांचक तथा सुन्दर होने चाहिएं। सकते। यदि वे जान जाएं कि आप उनसे प्रेम करते यहाँ हम प्रेम की बातें नहीं करते। यहाँ शायद ही हैं तो वे ऐसा कुछ भी स्वीकार न करेंगे जो उन्हें 1 आपके प्रेम से वंचित कर दे। यह निश्चित है। प्रेम के कोई एक आध प्रेमपाश में बंध कर चल सका हो! यदि आप में प्रेम भावना हो तो विवाह वरदान है। विषय में बच्चे सबसे अधिक जानते हैं। अंग्रेजी भाषा परन्तु प्रायः प्रेम विवाह अभिशाप बन जाते हैं। तो में बच्चों के विषय में लिखी गई सुन्दर-सुन्दर विवाह पश्चात् प्रेम में बन्ध जाना तो अच्छा है परन्तु पुस्तकों का मैंने अभाव पाया है। मैं जब लन्दन में इसका अर्थ ये नहीं कि आप भूल जायें कि आप थी तो एक पुस्तक छपी थी जिसमें बच्चे राजनीतिज्ञों सहजयोगी हैं। इस मामले में आपके विवाहित के विषय में बात करते हैं । इसकी 5000 प्रतियां जीवन में सहज योग बहुत सहायता करता है। छपवाई गईं जो एक ही दिन में बिक गईं। अतः सहज धर्म आपके बच्चों के लिए है-कि बिना कष्ट बच्चों से बातचीत करें, आप हैरान होंगे कि वे दिए उनका पालन-पोषण करने आप उन्हें स्वतंत्र माधुर्य से परिपूर्ण हैं उनके पास बहुत अच्छी बातें व्यक्ति बना सकें। उन्हें अपनी बुद्धि का उपयोग हैं, किस प्रकार सहज की बात करते हैं और किस 1. करने दें। कई बार भटक कर बच्चे गलत कार्य प्रकार अपनी आध्यात्मिक शक्ति की अभिव्यक्ति वे करने लगते हैं; ऐसी स्थिति में आप उन्हें सुधारें। करते हैं ? अब हमारे यहाँ बहुत से अच्छे बच्चे हैं उन्हें बताना आपका कर्तव्य है। वे पेड़ों से नहीं पैदा जो पूरे सहज हैं। एक बच्चा आया और साष्टांग मेरे हुए, माँ-बाप सामने लेट गया । मैंने पूछा, "तुमने ऐसा क्यों | से जन्में हैं। अतः गलतियों के विषय में उन्हें आगाह करना माता-पिता का कर्तव्य हैं। किया?" "श्री माताजी मुझे आपसे शीतल लहरियाँ परन्तु यह कार्य आपने सहज ढंग से करना है। मैं आ रहीं थी इसलिए मैंने ऐसा किया "क्या आपको एक उदाहरण दूँगी। एक साधक मेरे पास आपको यह अच्छा लगता है?" "निःसन्देह।" आया और कहने लगा, "श्री माताजी, धूम्रपान के "चाकलेट से भी अधिक?" "निःसन्देह |" "क्या बिना मैं नहीं चल सकता, मुझे धूम्रपान करना ही आप उन्हें खाते हैं?" "इसकी आवश्यकता नहीं होगा "मैंने कहा, "ठीक है तुम धूम्रपान करो, हैं।" "अन्दर से इतनी प्रसनता मिलती है, और श्री परन्तु तब तुम सहजयोगी नहीं हो सकते। मैं भी माताजी मुझे तो ऐसा लगता है मानों आप मेरे हृदय यदि ऐसे ही धूम्रपान करने लगू तो कैसे लगूगी?" पर हाथ रखकर मुझे सान्त्वना देने का प्रयत्न "भयानक।" 'आप यदि मेरे बेटे हैं तो आप सिगरेट करती हैं।" मैं हैरान थी। मैंने कहा, "आपका हृदय 1 नहीं पी सकते।" उसने सिगरेट छोड़ दी। क्या कहाँ है ?" "यहाँ! मेरा हृदय यहाँ है, मै इसे यहाँ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 12 नवम्बर महसूस करता हूँ।" आप कल्पना कीजिए कि मार्गदर्शन हुआ है और किस प्रकार आपको आशीर्वाद सहजयोग का कितना प्रेम एवं सूझबूझ पाँच साल है अब यदि यह नहीं मिले हैं। यह सहज धर्म से भी इन छोटे बच्चों में हैं! अब आप सब मेरे जान सकते तो आप अत्यन्त निम्न स्तर पर रहते विकसित बच्चे हैं। आपके अन्तर्निहित सारे सौन्दर्य हैं । इसमें सहजयोग का कोई दोष नहीं है। यह को, जिसका आनन्द आपने लेना है, मैं जानना आपकी अपनी शैली है। आप संवेदनशील नहीं हैं। मान लो कोई अपने हाथ जला ले तो आप क्या चाहती हूँ। सर्वप्रथम स्वयं पर हँसना सीखें । आनन्द लेने का यह सर्वोत्तम तरीका है। शीशे के सामने करेंगे? उसमें विवेक का अभाव है, संवेदनशीलता अधिक समय मत बर्बाद करें। आप यदि ऐसा करते नहीं है, वह महसूस नहीं कर सकता, शराब पी सकता है सिगरेट पी सकता है, सभी कुछ कर हैं तो अवश्य आपमें कोई बाधा है। व्यक्तिगत रूप सकता है और फिर भी ठीकठाक है। अवश्य ही वह से मैं यह सोचती हूँ कि यह एक प्रकार का उन्माद कोई राक्षस होगा। मेरी समझ में नहीं आता कि क्या (Passion) है । अपने अन्दर देखें :क्या आप सहजधर्मी हैं ? श्री माताजी ने सहज धर्म को करूं। तो हमें अच्छे सहजयोगियों के उदाहरण लेने श्रीकृष्ण से भी अधिक प्रस्थापित किया है। उन्होंने चाहिए, बुरों के नहीं। और देखना चाहिए कि प्रेमधर्म स्थापित करना चाहा था जो हममें है। इसके आनन्द में हम किस प्रकार बह रहे हैं। आनन्द एक अतिरिक्त भी हमारे बहुत से सुन्दर पहलू हैं और सागर है उदाहरणार्थ अब मैं आई तो हर व्यक्ति हमारे व्यक्तित्व में बहुत सी सुन्दर खूबियाँ है। मुझे फैक्स करने का प्रयत्न कर रहा था। पश्चिम में परन्तु हम इसका आनन्द लेना भूल गए हैं। अतः चित्त आपके अपने गुणों से परे, आपके अपने की तरह से बन्द कमरों तथा गुफा की तरह की व्यक्तित्व पर होना चाहिए। तब आप हैरान होंगे कि कारों में ही रहना चाहते हैं। सूखे से उन्हें बहुत डर एक अन्य समस्या यह है कि वहाँ सभी लोग गुफा लगता है। मैं नहीं जानती कि क्या उन्हें बाहर फैंक आपका व्यक्तित्व किस प्रकार आपको आनन्द, आहलाद और अन्य लोगों के प्रति कितना धैर्य दिया जाएगा, उनका क्या होगा वे खुश्क नहीं होना प्रदान कर रहा है। कभी-कभी मुझे यह सब कुछ चाहते। यह सूखा किसी हिम नदी से नहीं आ रहा एक मज़ाक-सा प्रतीत होता है क्योंकि इसमें कुछ है। उन्हें ताजी हवा में विश्वास नहीं है और यह भी गम्भीर नहीं है। यह श्रीराम जैसा नहीं है कि एक अन्य कारण है कि कभी कभी लोग दमघोटू आपको गम्भीर होना पड़े। मुझे किसी का वध नहीं होते हैं। वे केवल दमघोटते हैं। जीवन का दमघोटना करना। इस जीवन में मुझे कोई शस्त्र नहीं उठाना। उनकी आदत होती है। एक बार मैं भारत में थी। बिना शस्त्रों के यदि समस्याओं का समाधान होता बहुत गर्मी थी । कोई पश्चिमी व्यक्ति मेरी गाड़ी है तो आप क्या करेंगे ? परन्तु सहजयोगियों का चला रहा था। कहने लगा, "खिड़की मत खोलिए, मत खोलिए।" मैंन कहा, "क्यों?" "खुश्की है।" संवेदनशील होकर आप देखें कि किस प्रकार मैंने कहा, "इस देश में लोग खुले में रहते हैं, खुश्की सौन्दर्य देखने का प्रयत्न आप अवश्य करें। आपकी सहायता हुई है, किस प्रकार आपका क्या है ? आप कौन-सी खुश्की की बात कर रहे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt दिसम्बर, 1997 घैतन्य लहरी 13 नवम्बर हैं। आप दरवाज़ा नहीं खोल सकते, खिड़की नहीं बिना आप काम चला सकते हैं। इतनी कारें लेने की खोल सकते, कुछ भी नहीं खोल सकते।" यदि क्या आवश्यकता है? आजकल लोग पैदल तो आप कुछ खोल देंगे तो वे मर जाएगें उनका जो चलना ही नहीं चाहते। बचपन में जब हम पाठशाला रवैया प्रकृति के प्रति है वही निजी जीवन में है। वे जाते थे तो पैदल जाना पड़ता था, यद्यपि मेरे पिता कुछ भी नहीं खोलना चाहते। कोई यदि उनके घर जी के पास कार थी एक पहाड़ी पार करके हमें थी पाठशाला। पर आ जाए तो वे कहेंगे, "हे परमात्मा! अब हमें जाना होता था। लगभग 5 मील दूर हर सुबह हमें पैदल जाना होता था, शाम को हमें मदिरा और भोजन बाँट कर लेने होंगे।; वे बॉट कर नहीं खा सकते। यह अत्यन्त असामूहिक है। परन्तु लाने के लिए कार आती थी। मैं तो नंगे पाँव चला भारत के लोगों में बाँट कर खाने का अच्छा क्षेम है करती थी। इतनी चैतन्य लहरियाँ होती थीं कि मुझे क्योंकि वे अभी तक आदिमानव हैं। वे अभी आदिवासी लगता कि चप्पलों के कारण उनमें कमी आ रही है अतः अपनी चप्पलों को मैं हाथ में उठा कर चलती हैं। उल्टे सीधे ढंग से अपने अहं को सन्तुष्ट अभी तक वे नहीं करने लगे। जैसा भी हो, भारत के लोग थी एक बार हमारा एक नया ड्राइवर आया। उसने बॉँट कर खाना पसंद करते हैं। किसी भारतीय को कहा, "मैं कैसे आपकी बेटी को पहचानूंगा?" मेरे यदि आपने प्रसन्न करना हो तो उसे कहें, "कल मैं पिताजी ने कहा, "जो लड़की हाथों में चप्पल उठाए खाना आपके साथ खाऊँगा।" उसकी पत्नी उछलकर हुए हो उसे आपने लाना है।" तो अपनी श्रेष्ठता, कहेगी, "आपको क्या पसन्द है?" "मुझे बताएं कि अपनी उदारता का आनन्द लेना है यह अत्यन्त आपको क्या अच्छा लगता है? वह उछल पड़ेगी। आवश्यक है। किसी का पक्ष नहीं लेना। आपका परन्तु प्रायः क्या होता है? यहाँ पर यदि आप कहें उनसे तादात्म्य नहीं है। मेरे विचार से अब अच्छा कि. "वह खाना खाने के लिए आ रहा है" तो है। जब से आपने सहज धर्म अपनाया है,. अंग्रेज बताते हैं कि अंग्रेजों में क्या कमी है, स्विस अपनी आपकी पत्नी कहती है, "नहीं! मैं अपनी माँ के यहाँ जा रही हूँ।" तुरन्त वह कार्यक्रम बना लेगी। मैं तो कमियाँ बताते हैं और भारतीय अपनी। वास्तव में मैं यह बात समझ भी नहीं पाती उनके पास बहुत उनसे सीखती हूँ। मुझे तो पता भी नहीं कि उनमें ये सुन्दर, साफ सुथरे घर हैं। परन्तु यदि कोई आ चीजें हैं । रूसी अपने दुर्गुण बताएंगे और देखने जाए तो उन्हें ऐसा आघात लगता है मानो बिजली लगेंगे कि इस मामले में हम क्यों पिछड़े हैं। हुए का झटका लगा हो। किसके लिए यह सभी कुछ जैसे भारत में हम देखते हैं कि यहाँ क्या हो रहा है। दिखावा करने के लिए वे लोग बैंकों से पैसा है । सभी लोग भ्रष्ट हैं, भयानक! मैंने कहा, "ठीक उधार लेंगे। अमेरिका में बसे भारतीय भी यही करते है, यदि आपको भारत पसन्द नहीं है तो आप कहीं हैं। वे तीन मर्सिडीज कारें और चार घर लेना चाहते और क्यों नहीं चले जाते ?" "नहीं, नहीं, नहीं हम हैं। किसलिए ? बस पैसा ही उधार लेते रहते हैं। रहेंगे तो यहीं परन्तु यहाँ की सरकार अतिभ्रष्ट है।" सहजयोगियों को पैसा उधार नहीं लेना चाहिए। कहीं भी आप जाएं, सहज-धर्मी तुरन्त अपनी कमियों को देख लेंगे उन्हें अपने देश को परिवर्तित करने इन चीजों के उसकी कोई आवश्यकता नहीं है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 14 के लिए चुना गया है। भारत के बहुत से प्रश्न मैंने सत्यधर्म का पालन नहीं करते। जो सत्यधर्म का 1 उठाए हैं। उस स्तर पर मैं कार्य शुरु करने वाली पालन नहीं करते। जो सत्यधर्म का पालन नहीं हूँ। एक प्रकार से हमने बेसहारा महिलाओं के लिए करते वो कैसे तुम्हारे भाई-बहन हो सकते हैं ? कार्य आरम्भ कर दिया है। इसके पश्चात् गरीबी आपका इनसे कुछ नहीं लेना-देन।। आप यदि तथा अन्य समस्याओं को लेंगे मात्र कहने भर से उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं, उन्हें सकते कि 'गरीबी दूर करो, गरीबी दूर नहीं की जा हैं तो ठीक है। नहीं तो उन्हें भूल जाओ। पहले सकती। गरीबों के लिए आपके हृदय में भावना सीधे सादे लोगों से सम्बन्ध रखो। पहले हमें सीधे -सादे निश्छल लोगों से व्यवहार करना चाहिए और | सुधार होनी आवश्यक है। केवल तभी आप कुछ कर पायेंगे। परन्तु भारतीय होने के नाते केवल भारतीयों के प्रति आपमें वे भाव आते हैं। यदि आप सहज- चाहिए। अन्यथा यहाँ आकर आप कहेंगे, "श्री क्षेम प्राप्त हो जाने पर कठिन लोगों की ओर बढ़ना धर्मी हैं तो सभी के लिए यह गहन भावना आपके माताजी मुझे यह पकड़ आ गई, मुझे वह पकड़ आ हृदय में आती है। अतः हमने एक नये धर्म की गई।" तो आत्मा होने के नाते, सहजधर्म में आप स्थापना की है और इस नये धर्म से यह विश्व एक अन्य लोगों के विषय में अच्छी तरह जानते हैं और कहीं श्रेष्ठ नयी नस्ल (प्रजाति) बन गया है। समझ सकते हैं कि कौन कैसा है तथा उसके कौन श्रीकृष्ण का स्वप्न भी साकार हो रहा है वह से चक्र पकड़ रहे हैं। परन्तु अमेरिका में मैंने पाया आरम्भ में ही वर्णन करते हैं- मेरे विचार में श्रीकृष्ण कि सहजयोगी जाकर किसी से भी कह देते हैं कि अच्छे विक्रेता न थे, क्योंकि उन्होंने सर्वोत्तम का वर्णन सर्वप्रथम किया है। एक विक्रेता 2 रुपयें की बार आया है और आप उसे कह देते हैं कि, "तुम आपका फलों चक्र पकड़ रहा है।" कोई पहली चीज़ से शुरु करके 2000 तक ले जाता है। परन्तु अहंकारी हो।" वह कहेगा, "आप कैसे जानते हैं?" श्रीकृष्ण ने प्रज्ञ' बनना होगा अर्थात् सहज योगी। जब अर्जुन वाले की स्वयं की आज्ञा पकड़ रही हो! किसी नए ने पूछा शुरु में ही कह दिया कि आपको 'स्थित तुम्हारी आज्ञा पकड़ रही है। हो सकता है बताने आदमी का स्वागत करने का क्या यही तरीका है ? कि 'स्थित प्रज्ञ क्या है" तो उन्होंने सहजयोगी के गुण बताए। यह पहले से ही गीता के दूसरे वास्तव में आपको यह कहना चाहिए कि, "आइये, बैठिए। बहुत अच्छा। आप अति महान हैं।" वे लोग अध्याय में वर्णित है। अर्जुन महान जिज्ञासु थे। उन्होंने बहुत से क्योंकि अभी तक अन्धकार में हैं अतः उन्हें थोड़ी सी प्रश्न किए। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह मक्खनबाज़ी अच्छी लगती है। आप यह सब उसे सब केवल माया है- केवल भ्रम है। माया जाल से सहजयोगी बनाने के लिए कर रहे हैं। आप उसे प्रेम मुक्ति पा लो। क्योंकि अर्जुन ने कहा कि "ये सब करते हैं और यही मूलकारण है । परन्तु किसी मेरे सम्बन्धी हैं, गुरु हैं मैं कैसे इनका वध कर व्यक्ति के पहली बार आते ही यदि आप उसे कहें सकता हूँ?" श्रीकृष्ण ने कहा, "किसी का वध नहीं कि आप में यह कमी है, आपमें वह कमी है तो होता।" इनका वध इसलिए हो रहा है क्योंकि ये उचित न होगा यह पादरी का कार्य नहीं है कि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 15 नवम्बर आप लोगों को उनकी कमियाँ ही बताते चले जाएँ चिन्ता करनी चाहिए और न ही अपने की विषय में और कहें कि जाकर अपराध स्वीकार करें। ऐसा सोचते रहना चाहिए। उन्हें तो योगियों की सामूहिकता नहीं है। हमें तो यह दर्शाना होगा कि हमे उस के विषय में सोचना चाहिए। सामूहिकता लोगों को विवश करके लोगों को सहजयोग में लाने के लिए नहीं होती। एक बार जब वे सहज में आ जाएंगे तो व्यक्ति से प्रेम हो गया है। आपका व्यवहार उसके प्रति इसलिए अच्छा है क्योंकि आपको वह अच्छा उन्हें जीवन के आनन्द के विषय में पता चल जाएगा लगता है। परन्तु ज्योंही कोई आपके पास आता है और फिर आपको उन्हें कुछ बताना न पड़ेगा कुछ तो बस सब और आप उसे आघात पहुँचाते हैं बैठकर समाप्त हो गया अच्छा बनाए रख सकते हैं ? अमेरिका के लोगों को किसी प्रकार आप सम्बन्धों को भी बताने की आवश्यकत्ता नहीं है। चुपचाप उनपर कार्य करें और वे आपका प्रेम महसूस करने सीखनी है। मैं नहीं समझ पाती कि लगेंगे। प्रेम इतना महान है। यह न केवल अन्य किस कारण से अमेरिका के लोग स्वयं को अन्य लोगों की सहायता करता है. यह आपकी भी यह चीज़ लोगों की अपेक्षा श्रेष्ठ मानते हैं। विवेक मुझे यह सहायता करता है। दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देना 1 कहने की आज्ञा नहीं देता कि वह अन्य लोगों को बड़ा आनन्ददायी बात है। परन्तु यदि आपने यही एकदम गलत समझ लेते हैं। दूसरों के विषय में कहना था कि, "आषका फलां चक्र पकड़ रहा है, निर्णय करने लग पड़ने से आप सहजधर्म का "तो आपने साक्षात्कार दिया ही क्यों आपको यदि पालन नहीं कर सकते। सहजधर्म तो यह है कि आत्मसाक्षात्कार देना नहीं आता तो अच्छा होगा कि आप स्वयं में स्थित हैं: स्वयं में स्थित आप अपने आप साक्षात्कार न दें तो आलोचना से हम जीवन साम्राज्य में हैं, अपनी प्रसन्नता में हैं और अपने का आनन्द नहीं ले सकते। निःसन्देह कभी कभी आनन्द में हैं। अन्य लोगों की आलोचना करने का विनोद के लिए आप एक दूसरे की टांगे खींच सकते समय कहाँ है ? तो सभी के प्रति अपना प्रचुर प्रेम हैं। दूसरों को कष्ट या हानि पहुँचाने के लिए नहीं दर्शाना ही सर्वोत्तम है। उस प्रेम में भी आपने दया और न ही उनका पतन करने के लिए। हम सब का प्रदर्शन न करके शुद्ध प्रेम दर्शाना है जो कि सहज धर्मी हैं, आपने सहज धर्म स्वीकार किया है आहलाददायी है। श्रीकृष्ण का यही संदेश है परन्तु और सहज धर्म में हमें हार्दिक प्रेम एवं विवेकशील मैं नहीं जानती कि कितने लोग इसे समझ पाए । जीवन अपनाना होगा, मिथ्याचार या आडम्बर नहीं। अब, तथाकथित, श्रीकृष्ण के अनुयायी जैसे हरे अब यह पोप गर्भपात के विरुद्ध है । मैं नहीं हूँ। एक रामा के लोग तो वास्तव में गलियों के भिखारी हैं। महिला यदि कष्ट उठा रही है तो उसे गर्भपात की वे स्वयं तो कुबेर हैं परन्तु उनके अनुयायी गलियों आज्ञा होनी चाहिए। उत्पन्न होनेवाले की अपेक्षा के भिखारी हैं। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते जीवित व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण है कोई महिला हैं, क्या इससे कुबेर की गरिमा बढ़ती है ? तो सहजयोगी ऐसे नहीं हैं। सहजयोगियों जन्म ले लेगा हमारे अनुसार कोई स्थायी रूप से यदि गर्भपात कराना चाहती है तो वह बच्चा तो पुनः को उदार होना चाहिए, हर समय न तो अपनी मरता नहीं चाहे जो मर्जी हो। इस प्रकार से वे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 16 नवम्बर मानव सन्तान वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। मुसलमान नहीं रह सकते। उन्होंने मुरली बजाई। उनकी ओर लोग कहते हैं कि उनकी महिलाएं सन्तान पैदा देखो। मैं तो आपसे बात कर रही हूँ .परन्तु उन्होंने करने के कारखाने हैं। वे अधिक से अधिक बच्चे केवल बाँसुरी बजाई। गीता के सिवाय श्रीकृष्ण ने बनाए चले जाते हैं ताकि बहुत से वोट देनेवाले लोग बहुत बातें नहीं की और गीता को पढ़नेवाले लोग भी हों। पोप भी इस बात को जानता है इसी कारण वो बहुत अजीब हैं। गीता को पढ़नेवाले यह नहीं समझ गर्भपात की आज्ञा नहीं देता। उसके अनुसार ईसाई पाते कि श्रीकृष्ण का धर्म क्या है? यदि वे श्रीकृष्ण लोगों को गर्भपात नहीं कराना चाहिए नहीं तो को नहीं समझ पाएंगे तो किस प्रकार वे सहजयोग मुसलमानों से मुकाबला करने के लिए ईसाईयों की को समझ पाएंगे ? तो आप सभी ने प्रेम, संख्या कम हो जाएगी। परन्तु सहजयोग में इस दूसरों की सराहना तथा उन्हें आनन्द प्रदान करने क्षमा, प्रकार की मूर्खतापूर्ण, रूढ़िवादी एवं हास्यास्पद का अभ्यास करना है। कुछ सहजयोगी मेरे प्रति चीजें नहीं हैं। हम तलाक की आज्ञा भी देते हैं और अत्यन्त विनम्र थे। गर्भपात की भी क्योंकि यह भी आवश्यक है। यह एक बार मैं अपने लिए साड़ी खरीदने के लिए समझना चाहिए कि यह सब वर्णन विद्यमान हैं एक दुकान पर गई मेरे हिसाब से साड़ी बहुत परन्तु यह उनके लिए नहीं हैं जिन्हें कष्टों से मंहगी थी अतः इसे मैंने नहीं खरीदा। यह रंग छुटकारा पाना है। इसके लिए हमें कार्य करना होगा तभी यह कार्यान्वित हो सकेगा। परन्तु सच्चाई मुझ पर फबता है, परन्तु कोई बात नहीं। मेरे पास इतने पैसे नहीं है। एक सहजयोगी ने (ग्रेगोर) वह साड़ी तो यह है कि हमें गर्भपात की आवश्यकता ही नहीं खरीदी और मेरे जन्मदिवस पर मुझे भेंट की। मेरी पड़ती। परम चैतन्य सभी कार्य कर देता है। मेरे आँखों में आँसू भर गए और उस समय मैं उस साड़ी 1. सभी कार्य परम चैतन्य करता है. मुझे कुछ करने को देख न सकी। इतनी छोटी सी चीज़ प्रायः की आवश्यकता नहीं पड़ती। परम चैतन्य सभी अपने लिए मैं आपसे किसी चीज़ की आशा नहीं कुछ करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि क्या करती। नहीं। करना है और कैसे करना है कभी कभी प्रसन्न करती हैं। किसी अन्य के प्रति यदि आप ऐसा आप कठिनाई में होते हैं, फिर भी समस्याओं करेंगे तो हो सकता है कि वह न तो इसे समझ सके को परमचैतन्य पर नहीं छोड़ते। यदि आप और न ही महसूस कर सके परन्तु सहजयोगी इसे परम चैतन्य पर छोड़ दें तो कार्य बहुत अच्छी अवश्य महसूस करेगा । परन्तु छोटी छोटी चीजें मुझे बहुत तरह से हो जाएगे तो सहज योग को समझने के लिए पहली और अत्यंत आवश्यक बात यह है अत्यन्त धन्यवाद। स्वानन्द लेने का और दूसरों को यह सबकुछ जो मैंने कहा इसके लिए आपका कि आप कितने आनन्दमग्न हैं। इसके लिए आपके -आनन्द प्रदान करने का प्रयत्न करें। परमात्मा आपको धन्य करें। पास संगीत आदि बहुत सी चीजें हैं। (अनुवादित) मैं कह रही थी कि आज मैं अधिक नहीं बोलूगी, परन्तु जो भी है श्रीकृष्ण के साथ आप चुप 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt 17 रूसी लोक चिकित्सा सम्मेलन (नोटः यह वार्ता सितम्बर 1997 में हुए रूसी चिकित्सा सम्मेलन के अवसर पर पढ़ने के लिए श्री माताजी ने लिखी थी) प् अंग्रेजी चिकित्सया (Allopathy) में भी लोग इन पर मान्यवर सम्माननीय अतिथ्चिगण! मुझे सहज योग और इसकी कार्यशैली के विश्वास करते थे। परन्तु आयुर्वेद इनसे आगे गया विषय में बोलने की आज्ञा दें। सहजयोग समस्याओं और खोज निकाला कि एक अवशिष्ट शक्ति भी है की जड़ों का इलाज करता है केवल पेड़ के पत्तों जो स्वभाव से मूलभूत (Primodial ) है । जागृत का नहीं। हर मानव के अन्दर स्थित आदि ऊर्जा होकर यह शक्ति रीढ़ की हड़्डी तथा मस्तिष्क में सृजित सात ऊर्जा केन्द्रों में से गुजरकर सर्व्याप्त जागृत करके यह इस कार्य को करता है, तत्पश्चात् यह ऊर्जा स्वतः ही मानव अन्तःस्थित केन्द्रों या मूलशक्ति से सम्बन्ध जोड़ती है। चक्रों को ठीक करती है। इस ऊर्जा का अपना इस दिशा में शोध करने बालों को भारत में विवेक है और अपनी करुणा है तथा यह आपसे भी नाथपन्थी कहा जाता था। नाथ अर्थात् स्वामी और अधिक आपके विषय में जानती है कि आपमें क्या पन्थ अर्थात् 'मार्ग- अथ्थात् स्वामित्व प्राप्ति मार्ग। कमी है। हजारों वर्ष पूर्व मच्छिन्दर नाथ और गोरखनाथ दो यह मानव अन्तर्रचित आदि तत्वों को तथा सन्त हुए। इन दोनों ने अन्य लोगों के साथ दूर-दूर आदिवर्जनों के अन्तर्जात तत्वों को पुनः स्थापित की यात्रा की। वे युक्रेन भी आये। वहाँ संग्रहालय करती है और यह वर्जन व्यक्ति को सच्चा अन्तर्जात में प्राचीन मिट्टी के बर्तनों पर इन चक्रों की चित्रकारी चरित्र, स्वास्थ्य एवं आन्तरिक शान्ति प्रदान करते देख सकते हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा के मूल हैं। इस ऊर्जा की शक्ति, वास्तव में, उन आदि और सच्चे तत्वों से बनी है जो शाश्वत हैं और निवासियों में भी मातृ-संस्कृति पाई जाती है। मैक्सिको की मेयन (Mayan ) संस्कृति भी माँ और पृथ्वी माँ अपरिवर्तनशील भी। तो आइये जनसाधारण की धारणा जिस को मानती है। बस वे ये न जानते थे कि पावन प्रकार लोकचिकित्सा में हैं, पर विचार करें। पीढ़ी नामक रीढ़ की हड्डी में स्थित इस सुप्त शक्ति को दर पीढ़ी जनसाधारण द्वारा किए तथा लिखे गए जागृत कैसे किया जाये। इसका अर्थ ये अनुभवों से बनी हुई धारणा लोकधारणा बन जाती यूनानी लोगों को इस अस्थि की पावनता का ज्ञान | पूरे विश्व में ये अनुभव लिखे गए। आरम्भ में, जिस प्रकार आयुर्वेदिक चिकित्सा में तीन दोष हैं. आदि-शंकराचार्य, गुरुनानक और ज्ञानदेव जैसे कि हुआ थे। मार्कण्डेय, था और आत्मतत्व को भी जान 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt - दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नबम्बर 18 महान संतो ने इसका वर्णन किया। सौभाग्य से ईसा मसीह ने भी कहा था कि भण्डाफोड़ करता है। "मैं तुम्हें आदि शक्ति(Holy Ghost) भेजूगा" और मोहम्मद साहब ने कहा कि बारहवाँ इमाम आयेगा। प्रकाश डालता है। परन्तु पश्चिमी मस्तिष्क इतना भारतीय धर्मग्रन्थों में ज्योतिष शास्त्र के जन्मदाता संकुचित है कि पूर्णतः सत्य पर आधारित इस भृगुऋषि ने नाडी ग्रन्थ में भविष्यवाणी की है कि वर्ष अद्वितीय चीज़ को देखना ही नहीं चाहता। यह 1970 में सहज-प्रणाली की खोज की अभिव्यक्ति शक्ति आपमें निहित है एक अनुभव का वास्तवीकरण होगी। शालीवाहन राजवंश में जन्मी श्री माताजी आप महसूस करते हैं । आपकी अंगुलियों के छोरों निर्मला देवी ने कुण्डलिनी विद्या तथा सामूहिक तथा सिर के तालू भाग से शीतल लहरियोँं बहने आत्मसाक्षात्कार वास्तवीकरण का ज्ञान प्रतिपादित लगती हैं जिनका वर्णन अधिकतर धर्मग्रन्थों में किया है। स्वतः जागृति की विधि से हजारों लोग किया गया है आपको अन्धेरे में नहीं छोड़ दिया सर्वव्यापक मूल जीवन शक्ति (परमचैतन्य) से जुड़ जाता; अपनी अंगुलियों के छोरों तथा अपने शरीर में गये हैं उन्होंने केवल जागृति और मूल जीवन-शक्ति आप अपने चक्रों को महसूस कर सकते हैं। आप से योग ही कार्यान्वित नहीं किया, परन्तु हमारे यदि अपने चक्रों को ठीक करना जानते हैं तो दूसरों आदि का अभ्यास करने वाले लोगों के झूठ का चिकित्सा के आधुनिक विज्ञान पर भी यह सूक्ष्म-तंत्र का पूर्ण ज्ञान भी प्रदान किया है केवल के चक्र भी आप ठीक कर सकते हैं, और इसके रूस में ही असंख्य लोग रोग मुक्त हुए हैं और लिए कोई पैसा नहीं खर्चना पड़ता विकास की यह लोगों के जीवन परिवर्तित हो गए हैं वे वास्तव में जीवन्त प्रक्रिया है, अतः जागृति या आध्यात्मिक परिवर्तित प्रेममय, दयार्द्र एवं शान्त व्यक्ति बन गए उत्थान के लिए आपको कुछ खर्चना नहीं पड़ता। हैं। लोभ और वासना सम असमाजिक आचरण से 1 यह अद्वितीय विधि विज्ञान - विरोधी नहीं वे मुक्त हो गए हैं उनकी चेतना में सामूहिक है।पाश्चात्य सभ्यता और उपभोक्तावाद ने हमें अंधी 1. चैतना का नया आयाम जुड़ जाने के कारण वे उन्नति दी है। परन्तु सहजयोंग से आप वास्तविक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह प्रकाशरंजित लोगों को आत्म-साक्षात्कार प्रदान करने तथा उनके है। इसके माध्यम से रूस वास्तविक सदचरित्र एवं आन्तरिक आध्यात्मिकता से परिपूर्ण देश बन जाएगा जो बिश्व को इक्कीसवीं सदी में ले जाने में सक्षम रोग दूर करने में सशक्त हैं। अतः मानव के सभी आदि-वर्जन स्थापित हो जाते हैं तथा मूल निवासियों में भी आधुनिक जीवन के आघात से जो अपना सत्य-ज्ञान खो चुके हैं, ये होगा। सभी रूसी लोगों को मुबारकवाद! मूल-तत्व पुनःप्रस्थापित हो जाते हैं। यह ज्ञान इतना स्पष्ट है कि जादू-टोना तथा काला-जादू (अनुवादित) हुम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt ईसा मसीह पूजा गणपति पुले (25.12.1997) परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पम लोग यहाँ ईसा मसीह का जन्म नष्ट करने के लिए। लेकिन इससे अहंकार नष्ट दिन मनाने के लिए उपस्थित हुए हैं। ईसा मसीह नहीं होता, इससे बढ़ता है। उपवास करना, जप-तप की जिन्दगी बहुत छोटी थी और अधिक काल करना आदि सब चीज़ों से अहंकार बढ़ता है। हवन उन्होंने हिन्दुस्तान में ही बिताया-काश्मीर में सिर्फ से भी अहंकार बढ़ता है क्योंकि अग्नि जो है वो दायें (Right Side) तरफ है जो कुछ भी हम लोगों ने उन्हें सूली (Cross) पर टॉग दिया। यह कर्म-काण्ड करते हैं, Rituals करते हैं, उससे अहंकार बढ़ता है और सोचता है कि हम सब ठीक हैं हजारों वर्ष से बही-बही कर्म काण्ड करते आज हम 1 आखिरी तीन साल के लिए वे बापिस गए और सब कुछ विधि का लिखा हुआ था। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए उन्हें ये बलिदान देना पड़ा और इस मनुष्य तरह से उन्होंने आज्ञा चक्र की व्यवस्था की। आज्ञा जाते हैं और उल्टा-सीधा सब मामला जो भी चक्र बहुत संकीर्ण है. छोटा सा. और आसानी से सिखाया गया, वही मनुष्य कर रहा है। इसीलिए खुलने वाला नहीं क्योंकि मनुष्य में जो स्वतंत्रता सहजयोग कर्मकाण्ड के विरोध में है। कोई भी आ गई उससे वो अहंकारी बन गया इस अहंकार कर्मकाण्ड करने की जरूरत नहीं और अतिशयता ार ने उसका आज्ञा चक्र बंद कर दिया और उस बंद पर पहुँचना तो और गलत बात है। जैसे हमने कहा आज्ञा चक्र से निकलने के लिए अहंकार निकालना कि अपने अहंकार को निकालने के लिए आप बहुत जरूरी है और अहंकार निकालने के लिए उसको, मराठी में जोड़ेपट्टी' कहते हैं. जूते मारिए, आपको अपने भन को काबू करना पड़ता है। लेकिन तो रोज सवेरे सहजयोगी जूते ले कर चले पंक्ति आप मन से अहंकार नहीं निकाल सकते। जैसे ही (ine) में। अरे अगर आप के अंदर अहंकार हो आप मन से अहंकार निकालने का प्रयत्न करेंगे, तब। हरएक आदमी हाथ में जूता लिए चला जा वैसे ही मन बढ़ता जाएगा और अहंकार बढ़ता रहा है रास्ते में। यह सब कर्मकाण्ड सहजयोग में जाएगा| "अहं करोति सः अहंकाराः " | हम करेंगे, भी बहुत घुस गए हैं यहाँ तक कि पफ्रांस (France) से भी एक साहब आए थे, वो वाशी के हस्पताल इसका मतलब कि अगर हम अपने अहंकार को कम करने की कोशिश करें तो अहंकार बढ़ेगा (Hospital) से कर्मकाण्ड ले कर आए। अरे बाबा, क्योंकि हम अहंकार से ही कोशिश करते हैं । जो यह तो बीमारों के लिए है। आप को अगर यह लोग यह सोचते हैं कि हम अपने अहंकार को दबा बीमारी हो तो आप यह कर्मकाण्ड करो। जो Cancer लेंगे खाना कम खाऐंगे, दुनिया भर के उपद्रव, एक की बीमारी के कर्मकाण्ड हैं वो भी उसने लिख रखे पैर पर खड़े हैं, तो कोई सिर के बल खडा है! हर थे। मैंने कहा कि मनुष्य का स्वभाव है कि कर्मकाण्ड तरह के प्रयोग लोग करते हैं अपने अहंकार को करे। क्योंकि वो सोचता है मैं कर सकता हूँ। मेरे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt जतह दिसम्बर 1997 चैान्य लहरी 20 नवम्बर कर्मकाण्ड से कार्य होगा और इस कर्मकाण्ड में उन्होंने सिखाया है कि आप सबसे प्रेम करें अपने सिर्फ आप ही लोग नहीं हो, परदेस में भी बहुत से दुश्मनों से भी प्यार करें। इस का इलाज उन्होंने लोग कर्मकाण्ड करते रहते हैं। तरह-तरह के। प्यार बताया है और प्यार के अलावा कोई इलाज जैसे साल भर में एक बार गिरजाघर ( Church) नहीं और ये प्यार परम चैतन्य का प्यार है । उन्होंने को जाएँगे, माने आज के दिन उसके बाद भगवान साफ- साफ कहा कि आप को खोजो, दरवाज़े का नाम भी नहीं लेंगे। दुनिया भर के गंदे काम खटखटाओ, तो दरवाजा खुल जाएगा। इस का अर्थ करके कैथोलिक (Catholic) धर्म में जाकर के वो यह नहीं कि तुम जाकर के दरवाजे खटखटाओ। (confession) कर लेंगे यह सब मूर्खता अगर इस का मतलब यह है कि अपने दिल के दरवाजों आप देख सकें तो आप सहजयोगी हो गए। अगर को खोलिए। 1 जिस आदमी का दिल छोटा होता है, जो आप समझ सके कि यह सब गलत काम जो हमने किया, यह गलत हैं और अब से आगे यह काम कंजूस होता है वो आदमी कभी भी सहजयोगी नहीं ले नहीं करने का, यह अगर आपकी समझ में जाए तो बन सकता और दूसरी चीज़ जो बहुत जरूरी है वो यह बात आपकी समझ में आ जाएगी। अब कर्मकाण्डी ये है कि आपको यदि गुस्सा आता है तो इस का लोगों में और भी विशेषताएं होती हैं। एक तो वो अर्थ है कि आपके अन्दर अभी बहुत अहंकार है । एक नम्बर के कंजूस होते हैं। अगर आप उनसे दस मैंने देखी है गुस्से वालों की स्थिति, विस्फोटक और रुपए की बात करें तो वे आकाश में कूदने लग जाते उससे उन्हें शान महसूस होती। बहुत शान से हैं। उसको मराठी में 'कौड़ी चुम्बक' कहते हैं। एक कहते हैं, मैं बहुत गुस्से वाला हूँ। ऐसे लोग सहजयोग बात है। मराठी में ऐसे-ऐसे शब्द हैं जिनसे आपका में नहीं रह सकते। जो लोग प्रेम करना जानते हैं अहंकार वैसे ही उतर जाए। जैसे कि कोई अपनी और वह भी विशुद्ध प्रेम ऐसा प्रेम जिसमें कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें बताने लगे कि मैंने ये किया. आकांक्षा नहीं, कोई इच्छा नहीं। पूर्णतया निरीच्छ मैंने वो किया, तो उसको धीमे से कह दीजिए कि जो लोग प्रेम करना जानते हैं, वही सहजयाग में रह तुम चने के पेड़ पर चढ़ रहे हो। चने का पेड़ तो सकते हैं। अहंकारी लोग बहुत गलत-सलत कार्य होता नहीं। तो वो ठंडा हो जाएगा। मैंने ये किया, करते हैं । और मैं उनसे तंग आ गई हूँ। अपने ही मैंने वो किया। मैं, जब तक ये मैं नहीं छूटता मन से कुछ शुरु कर देंगे और मुझे बताएंगे भी तब तक हमारा इंसा मसीह को मानना गलत है। नहीं। ऐसा करने से आज हज़ारों प्रश्न पैदा हो गए पर आश्चर्य की बात है जिनको ईसाई राष्ट्र हैं। (Christian Nation) कहते हैं उनसे ज्यादा अहंकारी तो मैंने देखे नहीं । विशेषकर अंग्रेज़, मुझसे एक बार एक पूजा अमरीकी, सब लोगों में इस कदर अहंकार है कि बताया कि हमें ज़मीन मिल रही है, बस। उससे समझ में नहीं आता कि ईसा-मसीह के ये कैसे कितना पैसा लिया, सब कैसे होने वाला है, शिष्य हैं! अब इस अहंकार का इलाज क्या है ? वो कैसी है कुछ नहीं बताया और किसी भी सहजयोगी सोचना चाहिए। इसका इलाज ईसा-मसीह थे और ने नहीं बताया। क्योंकि कल यदि कोई कहे कि श्री आज बताने की बात है दिल्ली में इन्होंने के दिन हड़बड़ी में आकर ज़मीन 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 21 नवम्बर माताजी ने ऐसा कहा है. तो उस आदमी को आप देश भक्ति होनी ही चाहिए । लेकिन यही देश-भक्त बिल्कुल छोड़ दीजिए। मुझे कुछ कहना है तो मैं विश्व-भक्त हो जाता है। अगर देश भक्ति ही नहीं स्वयं कहूँगी उसके बाद इतनी मीटिंगज़ हो गई, है, जब बूंद ही नहीं है तो सागर कैसे बनेगा ? तो मुझे कभी कुछ नहीं कहा। अब जिन्होंने उन्हें पैसा प्रथम, आपमें देशभक्ति है या नहीं, यह देखना दिया, सिर पकड़ के बैठे हैं कि उन्हें ठगा गया है। चाहिए। आप देश के विरोध में यदि कोई कार्य कर अब ये पैसा कैसे वापिस मिलेगा ? मुझसे बगैर पूछे रहे हैं तो आप देशभक्त नहीं हैं। सारे काम हो गए, बिल्कुल बगैर पूछे। अब वो इतनी खराब जमीन है कि अब नोटिस आया है कि आप नहीं थी। उन्होंने कहा भी था कि वहाँ सब ऐसे लोग उसपर कुछ भी नहीं बना सकते, उल्टे आपको हम रहते हैं जिनको सिर्फ मल की इच्छा है। यानि जो पकड़ेंगे। हर एक सहजयोगी को अधिकार है कि मलेच्छ हैं । लेकिन शालिवाहन ने उनसे कहा, नहीं मुझे आकर बताए और मुझसे पूछे। उन्होंने कोई नहीं, तुम जाओ, और उन्हें 'निर्मल तत्वम्' सिखाओ। अपनी एक सोसायटी बना ली और हो गए पागल वो सिखाने गए 'निर्मल तत्त्वम्' और उल्टा उन्हें ही कि जमीन मिल रही है न । इतनी खराब जमीन है सूली पर चढ़ा दिया गया। पागलों का देश, उनसे कि बताते हैं वहाँ मुर्गी भी नहीं पाल सकते। कुछ सीखने का था ही नहीं, पर सिखाने का था, सहजयोगी क्या मुर्गियों से भी गए बीते हैं ? अब इस लिए वो गए और इसीलिए उनका अन्त इस जो भी हुआ, सो मूर्खता है और उसके लिए मैं प्रकार हुआ। जिम्मेदार नहीं हूँ। लेकिन आप लोग अपने पैसे वापिस माँग लीजिए मेरी उसकी कोई ज़िम्मेदारी आज्ञा चक्र खुलता है यदि आपको किसी के भी प्रति नहीं है। ईसा-मसीह को वापिस जाने की कोई ज़रूरत समझदारी और क्षमा। क्षमा ही मन्त्र है जिससे कोई गलत फहमी है, किसी के प्रति आपको कोई ईसा-मसीह ने तो यहाँ तक कहा था कि द्वेष है या किसी के प्रति हिंसा की प्रवृत्ति है तो आप जो लोग घर में रहते हैं उन्हें पक्षियों की ओर की आज्ञा ठीक नहीं हो सकती। जो भी आप को देखना चाहिए। वो अपना घरौंदा कितने प्यार से करना है प्रेम के द्वारा । आपको किसी को कहना भी छोटा सा अपने लिए बनाते हैं और जब वो अपना है तो इस लिए कहना है, कि उस का जीवन निर्मल घर बनाते हैं, तो उस घर को बनाने में उन्हें बड़ा हो जाए। इस का अर्थ यह नहीं कि आप अपने बच्चों मज़ा आता है। हर तरह से उन्होंने समझाया कि आप ममत्व को छोड़ दीजिए। यह मेरा घर है, यह को खराब करें। बच्चों को आपको पूरी तरह से मेरी जमीन है. ये मेरे बच्चे हैं। यहाँ तक कि यह अनुशासन (Discipline) में लाना है। अगर आप मेरा देश है। यह जो ममत्व है, यह छूटना चाहिए, बच्चों को अनुशासन में ला नहीं सकते, तो आपके तभी आप महान हो सकते हैं। सारे विश्व में आप बच्चे कभी अच्छे सहजयोगी नहीं हो सकते। और भाई-बहिन है। इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके लिए पहले आपमें खुद अनुशासन होना अपनी देशभक्ति को छोड़ दें। यदि आप देश भक्त चाहिए। यदि आपमें अनुशासन नहीं होगा तो आप नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे आप में बच्चों को अनुशासित नहीं कर सकते। 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt दिसम्बर, 197 जीतन्य लहरी नवम्बर 22 ईसा-मसीह का जो जीवन था उसके बारे में का कोई। कोई महालक्ष्मी को मानता है, तो कोई वहुत कम लिखा गया है लेकिन उनके अन्दर रेणुका देवी को मानता है. तो कोई कृष्ण को मानता इतना अनुशासन था. इस कदर उन्होंने सहा, और है। हर आदमी, हर परिवार अलग अलग अवतरणों अपने जीवन से उन्होंने दिखा दिया। उनको विवाह (Incarnations) को मानले हैं। अलग अलग धर्म की भी जरूरत नहीं थी। उन्होंने विवाह नहीं ग्रन्थों को मानते हैं। कोई भी ऐसा बर्म ग्रन्थ नहीं है किया। इसका मतलब यह नहीं कि वे विवाह के जो कि याइबल जैसा हो। इसलिए सब धर्मों का, विरोधी थे ऐसी गलत फहमी लेकर लोग बैठे हुए एक हिन्दू को चाहिए कि मान करे मैंने देखा है कि हैं और इसी लिए इन्होंने ये महिलाएं बनाई हुई हैं हिन्दुओं में मान करने की शक्ति सब से ज्यादा है । जिन्हें नन (Nun) कहते हैं। उनकी शादी ईसा से करते हैं जो साक्षात् गणोश हैं। उनसे कैसे शादी बाइबल थी वो सब मेज़़ पर बाइबल रखते थे, चाहे कर सकते हैं ? उसके अलावा आदमियों को भी कोई पढ़े या नहीं। बो बाइबल नीचे गिर गया तो शादी नहीं करनी। इस प्रकार की अनैसरगिंक बातें हमारे साथ एक हिन्दू थे उन्होंने उस बाईबल को सिखा दीं । उससे वो सबको अपने कब्जे में रख उठाया सिर पर सकते हैं। पर उससे ईसाई नहीं हो सकते। इस कभी बाइबल को पैर से नहीं छुएगे। कभी नहीं । एक बार हम एक होटल में थे, वहाँ एक रखा और फिर मेज़ पर सख दिया । तरह के कृत्रिम बन्धन अपने ऊपर डाल लेने से ईसाई तो ऐसा कर लेंगे पर हिन्दू नहीं करेगा। सब आज ईसाई धर्म डूब रहा है। ईसा को उन्होंने भुला की इज्जत करना यह हिन्दू का धर्म है। पर उससे दिया और अपने ही मन से एक धर्म उन्होंने बना आज कल जो लोग निकले हैं अजीबो गरीब जैसे लिया है और उसको ये ईसाई धर्म कहते हैं। आज आज के हमारे राजनीतिज्ञ है। बरसात में जैसे कल का ईसाई धर्म ईसा के नाम पर कलंक सा मशरूम निकल आती है ऐसे ये लोग निकल आये लगता है। क्योंकि मेरा जन्म ही इस धर्म में हुआ हैं। ये लोग बास्तव में हिन्दू नहीं हैं। इन्हें अपने और मैंने इस धर्म की सभी अन्दरूनी बातें देखीं । धर्म के बारे में कुछ मालूम नहीं। उत्तर भारत के उसी प्रकार हिन्दू धर्म की बात है। हिन्दू धर्म लोगों को कुछ भी मालूम में आप साम्प्रदायिक हो ही नहीं सकते, क्योंकि के लोग हैं उन्हें तो केवल यही मालूम है. कि आप के अनेक गुरुओं, वास्तविक गुरूओं, दत्तात्रेय जी, नाथपंथी आदि आपके अनेक अवतरण है वो करना है। कर्मकाण्ड के सिवाय इस महाराष्ट्र हैं. और आपके स्वयंभु अनेक हैं। आपके एक नहीं, में अनेक धर्म ग्रन्थ हैं। ईसाई लोगों में सिर्फ ईसा और महाराष्ट्र में बहुत मेहनत करी है. सब व्यर्थ गई) बाइबल । वो रुढ़धिवादी (fundamentalist) हो सकते कुछ छूट नहीं सकता उनसे यहाँ एक सिद्धि हैं। मुसलमान हो सकते हैं और यहूदी लोग भी हो विनायक का मंदिर है। उसके जो गणेश जी हैं, सकते हैं और तीनों का आपस में रिश्ता है, ऐसा उनको जागृत मैंने किया। अब देखती क्या हूँ कि धर्म ग्रन्थों में लिखा है। लेकिन हिन्दू नहीं हो वहाँ एक-एक मील की लम्बी कृतारें मंगल वार को सकता साम्प्रदायिक। क्योंकि किसी का कोई, किसी खड़ी हुई हैँ। गणेश जी भी सो गए होंगे। इस कदर नही और जो दक्षिण भारत , जैसे ब्राह्मण को यहाँ पैसा देना है वहाँ देना है। ये करना और कुछ नहीं। इतने कर्मकाण्डी लोग हैं (मैंने 1 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 23 नयम्बर कर्मकाण्डी लोग महाराष्ट्र में हैं कि उस कर्मकाण्ड चाहिए कि हमने सहजयोग के कार्य में क्या आर्थिक से उनका स्वभाव जरा तीखा हो गया है और उत्तर भारत में भी मैंने देखा है कि कुछ लोग कर्मकाण्डी मार थे। वो तक फैल गए सारी दुनिया में मेहनत हैं और जो कर्मकाण्डी लोग हैं. उनमें गुस्सा बहुत करके। आज आप लोग मेरे इतने सारे शिष्य हैं और है। बहुत तेज गुस्सा है और जो लोग कर्मकाण्ड में आप लोग चाहें तो कितने ही लोंगो को पार करवा नहीं हैं बो लोग बहुत शांत हैं सो पहली चीज़ है सकते हैं, कितने ही लोगों को सहजयांग में ला कि कर्मकाण्ड बंद करो और हर चीज़ का आदर सकते हैं पर लोग आधे-अधूरे नहीं रहने चाहिएं करो। कर्मकाण्ड बंद करने का यह मतलब नहीं कि बल्कि गहरे उतरने चाहिए। जब तक गहरे नहीं सबको लात मारकर फेंक दो। यह संतुलन जो हैं उतरेंगे तब तक आप समझ नहीं पाएंगे, और उसके यही ईसा-मसीह ने सिखाया है। यह संतुलन आए लिए सबसे बड़ी चीज़ है कि हम उनको कितना बगैर आपका आज्ञा चक्र नहीं खुल सकता। सबका प्यार देते हैं और वो कितना प्यार दूसरों को देते हैं। सम्मान, सबका आदर और बेकार के कर्मकाण्ड कोई भी आदमी जब सहजयोग में अगुआ (Leader) योगदान दिया। ईसा मसीह के पास तो 12 मछली जिसमें गलत लोग पनप रहे हैं। आजकल के जो होता है, तो उसको पहले याद रखना चाहिए कि बहुत से झूठे साधु बाबा हैं वे कर्मकाण्ड की वजह ईसा-मसीह ने जो देन दी है कि आप सबसे प्यार से ही हैं। वो कहेंगे कि आप इतने रुपए दो, यह करो, क्या मैं उसका पालन कर रहा हूँ? मैं सब पर रोब झाड़ता हूँ. मैं सब को ठिकाने लगाता हूँ, सब करो, वो करो, यज्ञ करो। एक सौ आठ मर्तबा रोज़ यह नाम लो, वो नाम लो। मंत्र देता हूँ, फलाना के ऊपर ऑँखें निकालता हूँ, यह अहंकार न केवल करता हूँ। यह सब कर्मकाण्डी हैं और आप लोगों सहजयोग के विरोध में है बल्कि उसका नाश करने को कर्मकाण्ड सिखाते हैं जिसके पूरी तरह से वाला है। जिस आदमी में भी अहंकार हो, वह उसे विरोध में ईसा मसीह थे क्योंकि वो जानते थे कि कम करे और उस की जगह प्यार से भरे तो जीवन कर्म काण्ड करने से आदमी अहंकारी हो जाते हैं सुखमय हो जाएगा, जीवन सुन्दर हो जाएगा। और इस अहंकार को तोड़ने के लिए उन्होंने जीवन सुन्दर हो जाएगा। यदि आप को प्यार करना कर्मकाण्ड को एकदम मना किया था। इसी तरह से नहीं आता तो थोड़े दिन आप सहजयोग से बाहर परमात्मा के नाम पर कोई भी आदमी पैसा कमाए रहें पहले अपने हृदय के दरवाजें खोलें। उसी की तो इसके विरोध में थे। परन्तु इसका उल्टा शुरु हो शक्ति से सहजयोग फैलेगा। बात यह है कि जो गया कि पैसा कमाओ और खाओ। कमाना तो नहीं लोग सहजयोग फैलाते हैं उनमें प्यार की शक्ति कम छूटा पर पैसा कमा लो और खा जाओ, खुद जिससे और गुस्से की शक्ति ज्यादा है। कभी नहीं फैलेगा कोई भी कार्य नहीं हो सकता। आज सहजयोग के कार्य में हमें याद रखना जाएगा| जो ईसा मसीह की सीख है वो बहुत प्यार से बढ़ेगा और गुस्से से घटेगा और नष्ट हो जरूरी है कि हम लोग समझ लें। परमात्मा आपको धन्य करें। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt 2८ विश्व सहज समाचार आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय पूजा एवं जन कार्यक्रम मार्च 1997 इस वर्ष यद्यपि श्री माताजी आस्ट्रेलिया नहीं गाए गए । आई थीं, फिर भी हमने वार्षिक राष्ट्रीय पूजा एवं भजन समूह "म्यूज़िक ऑफ जॉय , भाग दो" गोष्ठी के लिए एकत्र होना आवश्यक समझा और की रिकार्डिंग करने के लिए अंतिम चरणों पर है। शिवरात्रि पूजा तथा सिडनी में पूजा के पश्चात् दो यह हमारी आशाओं के अनुरूप कार्य करने के लिए जन-कार्यक्रम करने का निर्णय किया पूजा के वचनबद्ध है। इसके पश्चात् कुलगुरुओं तथा उनके पश्चात् चैतन्य लहरियाँ बहुत अच्छी थीं क्योंकि अनुयाइयों पर आधारित ब्रैयानबैल द्वारा लिखित भविष्य में होने वाले जन कार्यक्रम साक्षात श्री नाटक मंचन द्वारा हमारा मनोरंजन किया गया| पिछले दिन की गर्मी के पश्चात् रविवार को माताजी की अनुपस्थिति में ही होने की सम्भावना है। इसलिए यह कार्यक्रम सहजयोगियों की विकास आनन्ददायी ठंडक में बड़ी शान से सूर्योदय हुआ। प्रक्रिया में एक नई अवस्था के प्रारम्भ को दर्शाते हैं। श्री माताजी ने सप्ताह के आरम्भ में ही हमें याद हमारे लिए सहजयोग ही जीवन है. उत्थान एवं दिलवाया था कि श्री शिव हमे शान्त करते हैं। पूजा ब्का दूसरों के उत्थान में सहायता करना हमारा लक्ष्य योजना प्रातः काल ही बना दी गई। कागज़ के फूलों की पार्श्वसज्जा तथा वास्तविक फूलों से मंच है। सामूहिक रूप से हम उस पथ पर चलना प्रारम्भ कर रहे थे जहाँ सहजयोग प्रचार का अधिकतर को सजा दिया गया। श्री माताजी की शिव रूप में करने के लिए 400 योगी एकत्र हुए। कार्य करने की जिम्मेदारी हम पर होगी। पूजा कार्यक्रम : यह निर्णय लिया गया कि जन पूजाः प्रथम मार्च शनिवार दोपहर पश्चात् आस्ट्रेलिया के सभी राज्यों से तथा न्यूकेलिडोनिया, कार्यक्रम इस प्रकार किए जाएं मानो साक्षात् श्री न्यूजीलैण्ड, एशिया तथा यूरोप से सहजयोगी श्री माताजी वहाँ आ रही हों । इसका अभिप्राय है कि माताजी द्वारा सुझाए गए स्थान पर पहुँचने लगे। तैयारी के लिए विज्ञापन अभियान, पोस्टर लगाना, मित्र मिलन तथा रसोई में हृदयपूर्वक परिश्रम करके पर्चे बाँटना और पूरी सामूहिकता का सहयोग देना शुद्धिकरण करते हुए शनिवार सायं हम लोग मुख्य आवश्यक है। दो भिन्न स्थानों पर जन कार्यक्रम पंडाल में संगीत गोष्ठी के लिए एकत्र हुए। कार्यक्रम करने का हमने निर्णय किया। एक ही बार विज्ञापन का प्रारम्भ स्थानीय भजन गायकों की टोली से का खर्च करके सिडनी के दो भिन्न क्षेत्रों में जन हुआ सर्वप्रथम वाद्य संगीत बजाए गए जैसे भारतीय कार्यक्रम का लाभ उठाया गया सिडनी के मध्य बाँसुरी, गिटार, ढोलक और पश्चिमात्य बाँसुरी और क्षेत्र स्थित मेसोनिक केन्द्र में 7.30 बजे सायं पहला इसके पश्चात् कविता पाठ किया गया तथा भजन कार्यक्रम हुआ। हर वर्ष श्री माताजी को देखने के 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt नवम्बर दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 25 लिए हजारों लोग इकट्ठे हो जाते हैं। इस बार हमने इसके पश्चात् श्री माताजी का एक वीडियो चलाया गया आर फिर आत्मसाक्षात्कार दिया गया । जो स्थान चुना उसमें 650 लोगों के बैठने की जगह ने थीं कार्यक्रम के प्रति सामूहिकता की शुद्ध इच्छा सेक्सोफोन पर बजाए गए विश्ववन्दिता की धुन तथा चैतन्य सहायता प्रेरक थी। यही सामूहिक ध्यान-धारणा की शान्ति को अधिक गहन कर शक्ति भविष्य में कार्यक्रम के स्थानों को खचाखच दिया और ज्यों ज्यों हॉल में संगीत लहरियाँ फैलीं जिज्ञासुओं का मन गहन होता गया। श्री माताजी ने भर देगी। कार्यक्रम की रात्रि को हॉल 350 नए कहा है कि संगीत आत्मसाक्षात्कार प्रस्थापित करने जिज्ञासुओं और बहुत से उपस्थित योगियों से भरा में सहायक है। निश्चित रूप से हमारा भी वही हुआ था। भजन मंडली के भजनों तथा चमत्कारिक अनुभव था। स्लाइडों के प्रदर्शन से कार्यक्रम आरम्भ हुआ। विक्टोरिया के कार्य-भारी श्री जोन हेन्शा ने सहजयोग उन्होंने दिव्य लहरियों का अनुभव किया है, का परिचय दिया। वे आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध युवा अधिकतर लोगों ने अपने हाथ उठाये । अन्तिम वक्ता कलाकारों के विद्यालय के पूर्व प्राध्यापक हैं। सहज ने ध्यान कार्यशाला में आने वाले सप्ताह में उपस्थित सामूहिकता के अन्दर तथा उसके बाहर भी वे होकर आत्मसाक्षात्कार के अनुभव को प्रस्थापित अत्यन्त गरिमामय एवं सम्माननीय हैं। कार्यक्रम करने के महत्व पर बल दिया। ध्यान प्रक्रिया के बाद यह बताने के लिए कि 1 कार्यक्रम में योगियों की मनोदशा का वर्णन तथा सहजयोग के विषय में उनका परिचयात्मक भाषण पश्चिमात्य सभ्यता के इतिहास एवं दर्शन प्रफुल्ल या उल्लसित शब्दों से किया जा सकता तथा आध्यात्मिकता के उनके विपुल ज्ञान एवं अनुभव है। सभी लोग दूसरे कार्यक्रम के विषय में सोच रहे थे। कार्यक्रम में चैतन्य लहरियाँ अत्यन्त दृढ़ थीं । पर आधारित था। हम कार्यक्रम में इस प्रकार गए थे मानो श्री माताजी उन्होंने कहा कि हमारी पश्चिमी जीवन शैली हमें सच्चे आनन्द से वंचित करती है क्योंकि सच्चा बहाँ साक्षात् उपस्थित हों और हमें लगा कि वास्तव में वे वहाँ विद्यमान थीं । आनन्द तो केवल आत्मा से ही प्राप्त हो सकता है। दूसरा कार्यक्रम 7 मार्च शुक्रवार पेरामट्ट टाउन हॉल में हुआ सिडनी क्षेत्र में पेरामट्ट अधिकतम जनसंख्या वाला क्षेत्र है और जब जब भी वहाँ जन कार्यक्रम किए बहुत जिज्ञासु आकर्षित हुए। हॉल उन्होंने सुझाव दिया कि जो कुछ हम हैं इससे बहुत अधिक बन सकते हैं तथा मानवीय आध्यात्मिक विकास के अगले चरण में प्रवेश कर सकते हैं और यह सब पृथ्वी पर अवतरित महानतम आध्यात्मिक मानव श्री माताज़ी निर्मला देवी की कृपा से ही 250 नए जिज्ञासुओं और इतने ही योगियों से भरा सम्भव हो पाया है। यद्यपि वे आज यहाँ उपस्थित हुआ था यह कार्यक्रम भी पहले कार्यक्रम की तरह नहीं हैं फिर भी आप सब लोग आत्मसाक्षात्कार का से ही हुआ चैतन्य लहरियाँ बहुत लेज थीं कार्यक्रम के अन्त में श्री माताजी के आत्मसाक्षात्कार रूपी अनुभव प्राप्त कर पाएंगे। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt पैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 26 नवम्बर आशीर्वाद प्राप्ति को स्वीकार करते हुए हॉल में 40 वास्तविक जिज्ञासु आकर्षित हुए। पड़ोसी स्लोवेनिया 1. के कार्यभारी डुसेन ने तीन कारों में भरे हुए स्लोवेनियन उपस्थित सभी लोगों ने अपने हाथ उठाए । हर कार्यक्रम के बाद एक सर्वेक्षण किया योगियों के साथ इस कार्यक्रम का नेतृत्व किया। गया कि कौन से साधनों द्वारा कितने सहजयोगी उपस्थित अधिकतर जिज्ञासु युवा वर्ग के थे तथा कार्यक्रम की ओर आकर्षित हुए। कुछ परिणाम नीचे उनमें से अधिकतर ने इस शक्तिशाली अनुभव का दिए गए हैं। रंगीन पोस्टर (दुकानों की खिडकियों पर) 35% के लिए वे हर बुधवार आएंगे। आनन्द लिया। हमें आशा है कि अनुवर्ती कार्यक्रमों हैं : सदियों से क्रोशिया यूरोप में कैथोलिक मत स्थानीय समाचार पत्र 20% 15% का दक्षिण पूर्वी गढ़ रहा है। इसकी सीमा के आगे 10% रूढ़िवादी चर्च की भूमि है और उससे आगे दक्षिण 10% और पूर्व में इस्लामी लोग हैं। क्रोशियन राजधानी से 10% तीस किलोमीटर बाहर हाल ही के युद्ध से ध्वस्त दैनिक समाचार पत्र दीवारों पर लगाए गए बड़े पोस्टर हस्त पर्चे मित्रों के माध्यम से जब हम आस्ट्रेलिया में थे तो श्री माताजी ने गाँव के अवशेष देखे जा सकते हैं। सौन्दर्य की कुछ ग्रामीण भूमि खरीदने का सुझाव दिया। हम दृष्टि से क्रोशिया की भूमध्य सागरीय एक लम्बी बलमोरेल गाँव में, जोकि बरबूड से एक घंटे की तथा रमणीय तट रेखा है। इस देश के व्यंजनों में कार यात्रा की दूरी पर है, एक भूमि खरीदने के हंगरी का गौलाश ( Goulash) . इटली के शानदार लिए प्रयत्नशील हैं यह आस्ट्रेलियन राष्ट्रीय ग्रामीण पीजा. कुछ आस्ट्रियन व्यंजन आदि विशेष हैं अपनी वर्ग को अंग्रेज़ी भाषा मातृभाषा के अतिरिक्त युवा का ज्ञान है तथा वृद्ध पीढ़ी के अधिकतर लोग जर्मन सम्पत्ति बनेगी। क्रिस किरयोक्यो, आस्ट्रेलिया, क्रोशिया और बोस्त्रिया में प्रथम सहजयोग कार्यक्रम भाषा जानते हैं। बल्कान प्रायद्वीप पर यह ऐतिहासिक जय श्रीमाताजी, क्रोशिया की राजधानी जाग्रेब (Zagreb) में कार्यक्रम से एक माह पूर्व फ़ैन्ज़ (Franz) और मंगलतम दिवस 21 मार्च 1997 को पहला सहजयोग जेनलुस (Jean Luc) ने सार जेवो (Sara Jewo) जन कार्यक्रम किया गया पिछले कुछ महीनों में के जिज्ञासुओं के लिए सहजयोग कार्यक्रम का जाग्रेब में शारीरिक रूप में कार्य करने के लिए आयोजन किया उन्होंने आते हुए बसन्त का आनन्द श्रीमाताजी का ज्योतिमय एवं स्नेहमय चित्त ऐन्ड्री लेते हुए यह यात्रा की और अगली प्रातः कई सत्य क्षण आने से पूर्व एक अन्य महान घटना हुई जब और वेन्सी पर था। आस्ट्रिया से कुछ सहायता प्राप्त कर इन योगियों ने पोस्टर लगाने का एक अभियान साधकों ने उनका स्वागत किया आत्मसाक्षात्कार अनुभव प्राप्त करने के बाद नए सहजयोगियों ने बार चलाया जिससे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए बार पूछा कि आप पुनः कब आएगे? 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt २) नार्वे में अनुभव ब नावे के लोग अत्यन्त गहन साधक हैं परिणामतः जाता है, सोलह नए जिज्ञासु एकत्र किए अगली सभी धार्मिक तथा धार्मिक कहलाने वाली संस्थाओं सायं हम पुनः उन सोलह नए जिज्ञासुओं से भी मिले। नए अनुभव के प्रति पूर्ण संदेह एवं अविश्वास ने इस देश में डेरा डाला है। माप्त हो गया था और मित्रता स्मष्टता तथा प्रेन 4 अप्रैल 1997 को ओस्लो के नए सहजयोग केन्द्र से बर्फ से ढके हुए पहाड़ी रास्तों पर बर्जन स ने उनका स्थान ले लिया था। यह अदभुत अनुभव था जैसे आत्मसाक्षात्कार और सामूहिक ध्यान सदैव होते हैं। हमारे नए भाई बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने (Bergen) नगर के लिए तीन सहजयोगी चल पड़े। रीता हमारे साथ थी ओस्लो में इसके अथक अपने लिए और नावे के लिए एक नया स्वप्न देखा। रविवार को हमें क्रिस्टालिस के जन्मोत्सव पर उत्साह और प्रयत्नों के कारण इसे 'मधुर नन्हा बुलडोजर भी कहा जाता है बर्जन जाने के लिए. रीता ने हमारा पथ प्रदर्शन किया। आमंत्रित किया गया और तीन दिनों के अन्दर हम वर्जन नार्वे का दूसरे स्थान का सबसे बडा तीसरी बार सहजयोग में अपने नए भाई बहनों से नगर है और कभी देश की राजधानी भी होता था। मिले। कुछ नए लोग भी वहाँं पर थे जिनमें सबसे विश्व के लिए यह अब भी नावे दरवाजा है बर्जन छोटी आयु का जिज्ञासु 11 वर्ष का था और सबसे चहुँ ओर से साल पहाड़ियों से सुरक्षित है और बड़ा 74 वर्षीय । केक और चाय के मध्य हमने सुन्दर झीलों, पेड़ों तथा फूलों की यहाँ भरमार है। सहजयोग का परिचय दिया। श्री माताजी का एक अनन्त छोटे छोटे टापुओ घिरा यह नगर प्रायः प्रबचन सुना और आत्मसाक्षात्कार का अनुभब पुनः से से प्राप्त किया। इमनें लोगों पर कार्य किया, बहुत प्रश्नों का उत्तर दिया, धूमकेतू देखने के लिए बाहर गए और थोड़ा केक खाया। अन्त में हमने एक दूसरे के पते लिए, पुनः आने का और अधिक जानकारी दीप (Peninsula) पर स्थित है। बर्जन का सीन्दर्य इस चीज़ में छिपा है कि यहाँ घरों से अधिक प्रकृति है, लोगों से अधिक पेड़ हैं तथा हमारे देखे हुए सभी नगरों से अधिक शान्ति है हमारी मुलाकात दो भद्र महिलाओं से हुई भेजने का वायदा किया। शाम की समाप्ति पर सभी जो पिछले सप्ताहों में श्री माताजी के पोस्टर लगा लोग गले लगकर मिले, मानों बहुत पुराने तथा प्रिय रही थीं। उन्होंने सहजयोग और श्री माताजी के मित्र हों । जब हम औस्लो वापस आए तो हमें यह विषय में बताने के लिए तथा आत्मसाक्षात्कार प्रदान करके यह समझाने के लिए कि कुण्डलिनी के बताने के लिए उन्होंने टेलिफोन किया कि मात्रा एक ही दिन में उन्होंने पतो, टेलिफोन नम्बर तथा ध्यान उत्थान के पश्चात् किस प्रकार जीवन परिवर्तित हो 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 28 धारणा के लिए स्थान और अगले सप्ताह के लिए वास्तव में विराट की निर्मला विद्या से जुड़े हुए थे। एक कार्यक्रम का आयोजन कर दिया है। जिस ऐसे प्रश्नों का हम उत्तर दे रहे थे जो हमने पहले प्रकार श्रीमाताजी सदैव प्रदान करती हैं इस बार कभी नहीं सुने थे हममें से एक, जो अंग्रेजी भाषा भी उन्होंने हमारी अपेक्षा से अधिक प्रदान किया बोलना भी न जानती थी, श्रीमाताजी और सहजयोग के विषय में अंग्रेजी में इस प्रकार बता रही थी मानो उसी शाम ओस्लो केन्द्र में हमने ध्यान धारणा की। वहाँ छः नए लोग आए। उन पर कार्य यह उसका प्रतिदिन का कार्य हो। हमने एक दूसरे किए जाने के पश्चात् थाइराइडग्रन्थि से पीड़ित एक युवा लड़की ने बताया कि अब उसके गले तथा बाएं कन्धे में दर्द बिल्कुल नहीं है, "मानो उसे बेहोशी का पर कार्य किया और परस्पर आनन्द बाँटा। समापन के पश्चात् भी कुछ लोग जाना न चाह रहे थे, और जब वो जाने लगे तो चैतन्य लहरियों से ओतप्रोत आनन्द सागर में गोते लगाते हुए उनकी आँखों से एक टीका सा लगा दिया गया हो, "उसने बताया। इसके पश्चात् उसे बहुत अच्छा महसूस हुआ और अश्रुधारा बह निकली। कुण्डलिनी उसमें से बह निकली। वहाँ कुछ अन्य सराहनीय संतुलित लोगों से मिलने का भी अवसर अधिक शक्तिशाली, विशाल, कोमल और कहीं जब हम ओस्लो आए तो हमें लगा कि हम अधिक सत्चित्त आनन्द से परिपूर्ण हैं। हमें लगा हमें प्राप्त हुआ। परन्तु सर्वोत्तम कार्यक्रम ट्राँसबर्ग का था। और अभी तक भी लगता है कि नार्वे ने आदि शक्ति वहाँ हम सोलह नए साधकों से मिले जो तांत्रिकता के सम्मुख समर्पण कर दिया है तथा यह हज़ारों गुणा अधिक खिल उठेगा नार्वे श्री माताजी की सुन्दर बाँसुरी बनने के लिए तैयार है! नार्वे तुम धन्य हो! तथा अन्य मूर्खताओं को छोड़कर सत्य को पहचानने और गले लगाने के लिए अति उत्सुक थे। हम सब ने परम् चैतन्य का बहुत जोरों से अनुभव किया सिदसैल,रीता, मेरिटे एवम् जोन्स श्रीमाताजी साक्षात वहाँ रही होंगी क्योंकि हम 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt अर्जेन्टिना में कार्यक्रम अर्जेन्टिना की सामूहिकता छोटी है परन्तु चाहिएं। सभी लोग देख सकते हैं कि नये लोगों की यह समर्पित है। उत्थान मार्ग में यहाँ की बाधाएं भी सहायता किस प्रकार की जा सकती है। अगुआगण उत्तरी अमेरिका सी हैं। जब श्री माताजी आती हैं योगियों को इस मामले में सलाह दे सकते हैं। यह तो बहुत से लोग आते हैं परन्तु जमते नहीं। नये याद रखना आवश्यक है कि चैतन्य ही दैवी विवेक लोगों को स्थापित करने के लिए सामूहिक है । अवस्था-सामूहिक शक्ति-आवश्यक है। लचीली ऊर्जा, प्रेम एवं सामूहिकता ही 'सामूहिक शक्ति' को महात्मा गांधी का उदाहरण दिया गया एक पत्रकार व्यक्तिगत आचरण पर बल देने के लिए जन्म देती है। भिन्न बातों की ओर ध्यान आकर्षित ने महात्मा गांधी से पूछा, "आपका संदेश क्या किया गया : है?" महात्मा गांधी ने उत्तर दिया, " मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।" 1. श्री माताजी के पोस्टर लगाने के महत्व को याद जेवियर, जो अब बोलीविया में हैं, ने उस रखना आवश्यक है। यह मंगलमय कार्य है पोस्टर लगाना पूजा सम है। भारत में तो पूजा की तरह से समय की बातें सुनाई जब वह इटली में था। इटली कभी कभी श्री माताजी के पोस्टरों को भी कुमकुम में बहुत से परिवर्तन किए गए हैं हवन, जिसमें देवी के 1000 नाम लिए गये, के दो माह के अन्दर वहाँ की राजनीति में पूर्ण परिवर्तन हो गया और माफिया लगाया जाता है। 2. नये लोगों के प्रति योगियों के कई कर्तव्य हैं। योगियों में परिपक्वता तथा इच्छा की कमी से नये में भी सुधार हुआ। बन्धन, हवन और पूजाओं से लोग खो जाते हैं। योगियों को पूरी समझ होनी कार्य हो जाते हैं। चाहिए कि नये लोगों के सम्मुख क्या कहना हैं और ये विधियाँ भी कार्य नहीं करतीं। परन्तु सामूहिक इच्छा के बिना दूसरे दिन हवन हुआ जिसमें अमेरिका की 3. नये लोग स्थापित होने में समय लेते हैं यह बाधाओं की आहुति दी गई। सांयकाल नृत्य एवं व्यक्ति की अन्तःस्थिति के अनुसार होता है। एक संगीत सभा हुई। संगीतज्ञों की तारतम्यता प्रशंसनीय आदमी दो सप्ताह लेता है तो दूसरा दो वर्ष। थी। तीसरे दिन का आरम्भ संगीत के साथ किस तरह आचरण करना है। ब्राजील के कुछ' प्रथम योगी साक्षात्कार लेने के ध्यान-धारणा से । नाश्ते के बाद हमने वातावरण हुआ तुरन्त पश्चात् भारत चले गए। अति तीव्रता से वै का आनन्द लिया। हममें से कुछ समीप के झरने पर सहज योग में उतर गये। यह समझने के लिए कि स्नान के लिए गए। नया जिज्ञासु कितना समय लेगा योगियों में विवेक बाईं विशुद्धि होना चाहिए। हाल ही में कोलम्बिया में राष्ट्रीय सहज 4. नये साधकों के लिए योगियों के हृदय खुले होने संगोष्ठी हुई जिसमें बाई विशुद्धि के महत्व पर 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt घैतान्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 30 आवश्यक है। अन्तर्दर्शन में अहं और प्रति अहं की प्रकाश डाला गया। श्री माताजी की 1982 की विष्णुमाया पूजा देखें स्वयं को देखने के लिए अन्तर्दर्शन कठिनतम प्रवचन पर बातचीत हुई। हृदय (आत्मा) से सहस्रार है। तक बाई विशुद्धि मार्ग से सम्बन्ध स्थापित होते हैं, इस कारण विशुद्धि अत्यन्त महत्वपूर्ण है । स्मरण रहे कि श्री विष्णुमाया सत्य की शक्ति हैं, सत्य प्रकट करने वाली शक्ति। सच्चे, खुले हृदय व्यक्ति का हृदय आत्मा आत्मसम्मान लेटिन अमेरिका में आत्मसम्मान का अभाव समान होता है। उदाहरण के रूप में जब हम सत्यनिष्ठ नहीं होते तो हमारा मस्तिष्क तो कहता काफी हृद तक स्पष्ट है। दूसरे देशों के मुकाबले है मात्र है परन्तु हृदय जानता है। सत्य-निष्ठा के घटियापन का भाव है। वे समझते हैं कि उनको अभाव में व्यक्ति को बाई विशुद्धि की समस्या हो अन्य सरकारों की सहायता की आवश्यकता है। परन्तु वास्तव में वह संसाधनों में बहुत धनी हैं। सभी जाती है। अर्थात् नीति-कुशलता, प्रतिक्रिया, तर्क आवश्यक संसाधन यहाँ उपलब्ध है । सगत उहराना और पलायन करना आदि। कैथोलिक चर्च का दोषभाव भी बाई विशुद्धि अहंकारमय संस्कृति पुरानी बातचीत के आधार पर यह निष्कर्ष बना रहता है। विशुद्धि के विषय में इनमें से कोई भी निकाला गया कि प्राचीन संस्कृतियाँ पृथ्वी मां से विचार नया नहीं है। श्री माताजी के प्रवचन को जुड़ी हुई थीं। आधुनिक संस्कृति अहम से परिपूर्ण है की समस्या का कारण है। दोषभय का दबाव सदा पढ़ना तथा सुनना अति आवश्यक हैं। हमारी चेतना जिसमें पुरातन मूल्यों का अभाव है। हमें याद रखना का इतना विकास आवश्यक है कि हम समस्या को चाहिए कि हम श्री माताजी के बच्चे हैं। देख सकें तथा सहजयोग विधियों से शुद्धिकरण मूल विधियाँ एवं नियमाचरण यह महसूस किया गया कि पूजा तथ हवन आदि करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन तथा कर संकें। पावनता (कौमार्य) पवित्रता अत्यन्त आवश्यक है। अयोधिता नियमाचरण सब तक पहुँचाए जाएं। कुछ देश बहुत धर्म का आधार है। भाई-बहन सम्बन्धों में महान ही अकेले पड़ जाते हैं और वहाँ अनुभवी योगियों शक्ति है। आज के समाज में लड़की मित्र लड़का का भी अभाय है। ऐसी स्थितियों में सहजनियमाचरणों नित्र आवश्यक माना जाता है। युवा शक्ति समाज के अतिरिक्त कुछ अन्य विधिया भी विकसित कर के युवा वर्ग को दिखा सकती है कि सहजयोग सकते हैं । द्वारा संच्चा आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। पूजा पूजा से पूर्व हमने वर्ष 1985 का बर्मिघम वाई विशुद्धि को ठीक रखने के लिए अन्तर्दशन (लंदन) विष्णुमाया पूजा का वीडियो कैसेट देखा । अन्तर्दर्शन नि 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 31 नवम्बर समापन दिवस यह प्रवचन पिछले दिन विशुद्धि चक्र पर हुई बातचीत हमने 4 अगस्त 1985 में ब्रिटेन (इंग्लैण्ड) में अनुकूल था । विष्णुमाया पूजा शाम को आरम्भ हुई और प्रातः तीन बजे के बाद में समाप्त हुई। यह हुई गणेश पूजा का वीडियो कैसेट देखा जिसका के तदात्मय एवं आनन्द का एक गहन अनुभव था। शीर्षक है 'पावित्र्य ही आपकी शक्ति है।' वीडियो कोई भी पूजा के अन्त के लिए इच्छुक न था। के पश्चात गोष्ठी की अन्तिम बातचीत हुई। तत्पश्चात् ब्राज़ील के सहजयोगी बाहर से आए योगियों रीयो के योगियों को इतने समर्पण एवं कठिन के लिए बहुत से उपहार लेकर आए उपहारों में परिश्रम द्वारा इस संगोष्ठी का आयोजन करने के अविश्वसनीय उदारता एवं समर्पण स्पष्ट दिखाई दे लिए धन्यवाद दिया गया जो आनन्दानुभव हमने रहा था। गोष्ठी में बच्चों के कार्यक्रम में युवाशक्ति इस अवसर पर प्राप्त किया उसका वर्णन शब्दों में एवं छोटे बच्चों ने भी उपहार दिए। नहीं किया जा सकता है। एक ऐसी गहनता के अर्जेन्टिना की सामूहिकता ने एक अद्वितीय कगार पर हम पहुँचे जहाँ अब तक कभी न पहुँच चित्रकारी भेंट की जिसमें दक्षिण अमेरिका का पाए थे चैतन्य लहरियाँ और आनन्द इतना तीव्र था आकाश से लिया गया एक दृश्य खींचा गया था। मानो श्री माताजी साक्षात वहीं उपस्थित हों! सूक्ष्म एवं व्यवहारिक स्तर पर भी संगोष्ठी दिखाई दे रहा था बाई विशुद्धि की इस भूमि की अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। चैतन्य लहरियों पर हमारे चोटी पर ईसा मसीह खड़े थे और सर्वोपरि देवदूतों सामूहिक ध्यान से अमेरिका की संघटनात्मकता का इसमें यह द्वीप कमलों के सागर में तैरता हुआ के दायरे के बीच श्री माताजी का मुस्कराता हुआ बहुत हित हुआ। नए भाई बहनों से बातचीत करके मुखारविन्द था जो दक्षिण अमेरिका के प्रति दिव्य वास्तव में परिवर्तन आए। हम कामना करते हैं कि प्रेम दर्शा रहा था। पूजा एवं उपहार वितरण के दूसरी लैटिन अमेरिकी संगोष्ठी का आयोजन शीघ्र ही हो। पश्चात् लगभग सूर्योदय तक भजन चलते रहे। ईयान बटरबर्थ, कैलागिरी, कनाडा 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt 32 प्रपंच और सहजयोग परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दादर, मुम्बई 29.11.1984 (मराठी से अनुवादित) आप सभी सत्य साधकों को हमारा नमस्कार। परन्तु हम भिवण्डी जाएं, वहाँ से पूना जाएं और फिर आज का विषय है 'प्रपंच और सहजयोग । सर्वप्रथम कई और जगह घूमकर दादर पहुँचें। एक रास्ता प्रपंच शब्द का अर्थ देखते हैं: प्रपंच (प्र +पंच ) में सीधा है और दूसरा घुमावदार। घुमावदार मार्ग ही 'पंच' पाँच महाभूतों द्वारा निर्माण कार्य को बताता सच्चा है, यह बात ठीक नहीं है उस समय क्योंकि है। परन्तु इससे पहले 'प्र' आने के कारण इसका सुगम को उन्होंने दुर्गम बना डाला तो क्या हमें भी अर्थ परिवर्तित हो जाता है अर्थात् पंच महाभूतों को ऐसा ही करना चाहिए ? 'सहज समाधि लागो । जो प्रकाशित (Enlighten) करता है वह प्रपंच' कबीर ने विवाह किया, गुरुनानक देव जी ने विवाह है। "अवधाची संसार सुखाचाकरीन" (समस्त बड़े बड़े अवधूत हो गए हैं वे सभी गृहस्थ थे उसके संसार सुखमय बनाऊँगा) तो यह सुख प्रपंच में बाद बहुत से ऐसे सन्त आए जो विवाहित न थे, प्राप्त होना चाहिए। प्रपंच छोड़कर अन्यत्र परमात्मा परन्तु किसी ने भी विवाह संस्था को गलत नहीं की प्राप्ति नहीं हो सकती। आम लोग 'योग' का कहा और न ही प्रपंच को गलत कहा। तो सर्वप्रथम अर्थ हिमालय पर जाकर तपस्या करना और ठंड से हमें अपने दिमाग से यह धारणा निकाल देनी होगी मर जाना लगाते हैं। यह योग नहीं है, हठ है- हठ कि योग प्राप्ति के लिए प्रपंच का त्याग आवश्यक भी नहीं मूर्खता है। योग के विषय में यह धारणा है। इसके विपरीत यदि आप प्रपंच करते हैं (गृहस्थ किया, राजा जनक से लेकर अब तक जितने भी बिल्कुल गलत है। महाराष्ट्र में जितने भी सन्त हुए जीवन में हैं) तो आपको सहजयोग में अवश्य आना वे सब गृहस्थ थे। उन्होंने प्रपंच किया। परन्तु चाहिए। 'दास बोध' (श्रीरामदास स्वामी विरचित मराठी ग्रन्थ) के हर पृष्ठ में प्रपंच बह रहा है। प्रपंच के बिना आप बहुत से लोग प्रपंच (गृहस्थ) की शिकायतें लेकर, परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात आते थे। मेरी सास ठीक नहीं है, मेरा उन्होंने अनेक बार कही है। प्रपंच त्यागकर परमेश्वर नहीं है, मेरा पति ठीक नहीं है, मेरे बच्चे ठीक नहीं को प्राप्त करने की धारणा पिछले बहुत से वर्षों से हैं इस तरह प्रपंच सम्बन्धी छोटी-छोटी शिकायतें हमारे देश में आई है क्योंकि गौतम बुद्ध प्रपंच लेकर वे सहजयोग में आते थे। शुरु में ऐसा ही दादर में जब हमने सहजयोग शुरु किया तो ठीक ससुर करने होता है। घरेलू कष्टों से तंग होकर उन्हें त्यागकर जंगल में गए और उन्हें वहाँ आत्मसाक्षात्कार दूर प्राप्त हुआ। परन्तु वे यदि गृहस्थ में रहते तो भी के लिए हम परमात्मा के पास जाते हैं और यह उन्हें साक्षात्कार होता। मान लीजिए हमें दादर मांगते हैं कि , 'हे परमात्मा मेरा घर ठीक रहे, मेरे जाना है, तो हम सीधे मार्ग से वहाँ पहुँच सकते हैं बच्चे ठीक रहें, हमारी गृहस्थी सुखी रहे, सभी खुशी 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी न पम्बर 33 से रहें। बस। मनुष्य की पहुँच अत्यन्त तुच्छ होती गुरु ने कहा, "तुम स्वंय जाओ और देखो कि यह है और उसी छोटेपन से बह देखता है। परन्तु यह कैसे महान है ?" नचिकेता उनके महल में गए और छोटापन भी जरूरी है, इसके बिना मामला नहीं कहने लगे, " आप मुझे आत्मसाक्षात्कार दीजिए, मेरे बनने वाला। पहली सीढ़ी चढ़े बिना दूसरी सीढ़ी पर गुरु ने कहा है कि आप आत्मसाक्षात्कार देते हैं तो नहीं आ सकते। तो प्रपंच सहजयोग की आवश्यक कृपा करके आप मुझे आत्मसाक्षात्कार दीजिए सीढ़ी है। हम सन्यासी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दे राजा जनक कहने लगे, "तुम यदि सारे विश्व का सकते। नहीं दे सकते, क्या करें ? बहुत बार प्रयत्न राज्य मांगते तो भी मैं दे देता, करके देखा पर मामला नहीं बनता। उसके लिएआत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकता। जिस मनुष्य को व्यर्थ का बडप्पन किसलिए ? वस्त्र तो व्यक्ति ने आत्मसाक्षात्कार का तत्व ही नहीं मालूम उसे सन्यासी के पहने हैं, पर अन्दर से क्या वह सन्यासी आत्मसाक्षात्कार कैसे दें ? तत्व को समझने वाला है? सन्यास एक भाव है। यह दिखावा नहीं है कि व्यक्ति ही उसमें उतर सकता है। "तो प्रपंच का हम सन्यासी हैं, हमने सन्यास लिया है, घर छोड़ा तत्व है प्र अर्थात् प्रकाश ( enlightenment), वह है, यह छोड़ा है, वह छोड़ा है। इस प्रकार जो लोग जय तक आपमें जागृत नहीं होता तब तक आप सोचते है कि हम योग मार्ग तक पहुँच जाएंगे वे पंच में हैं, प्रपंच' में नहीं उतरे । अपने आप को भुलावे में डाल रहे हैं यदि आप पलायनवादी हैं तो उसका कोई इलाज नहीं है। पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम मेरे साथ आओ। बाकी बुद्धिमान व्यक्ति को सोचना चाहिए कि यहाँ हम सारी कहानी आप जानते हैं । अन्त में नचिकेता प्रपंच में हैं । यहाँ से निकलकर यदि हमने कुछ समझ गए कि राजा जनक को न तो किसी चीज़ से प्राप्त कर भी लिया तो उसका क्या लाभ होगा। लगाव है, न किसी चीज़ की चिन्ता है और न ही मान लो किसी जंगल में आपको ले गए और वहाँ किसी सांसारिक चीज़ के प्रति मोह। वे तो एक बैठकर आपने कहा, "देखिए मैं कैसे पानी के बगैर अवधूत हैं जो मुकुट भी धारण कर लेंगे और पृथ्वी रह सकता हूँ ?" तो कौन सी विशेष बात है। पानी पर भी सो जाएंगे वे बादशाह हैं । हर स्थिति में वे में रहकर भी जब आपको पानी की जरूरत न हो, प्रसन्न रह सकते हैं। कोई भी चीज़ उन्हें पकड़ नहीं पानी में रहकर भी जब आप पानी से अलिप्त हों, सकती। जो व्यक्ति प्रपंच में है उसे किसी आराम ऐसी स्थिति आपकी हो जाए, तो सच्चा प्रपंच हो की या किसी गुलामी की आदत नहीं पड़ती। पत्थर सकता है। आज हमें ऐसे ही प्रपंच की आवश्यकता का सिरहाना बनाकर वह सो सकता है, चोकर की है। राजा जनक के विषय में तो आप जानते ही हैं। रोटी खाकर भी वह उतना ही आनन्दित होता नचिकेता ने सोचा कि यह राजा तो अपने सिर पर जितना दावत्त के व्यंजन खाकर । उससे अगर पूछा मुकुट पहनते हैं, दास-दासियाँ इनकी सेवा करती जाए कि आश्रम बनाना है तो कैसे करें ? तो वह हैं, इनके महलों में नृत्य-गायन होता रहता हैं, फिर सब बता देगा कि सीमेन्ट कहाँ मिलेगा, यह कहाँ भी जब यह आश्रम में आते हैं तो हमारे गुरु इनके मिलेगा वो कहाँ मिलेगा यह तत्व की बात है, इसे चरण छूते हैं! इनमें ऐसी क्या महानता है ? उनके आप समझ लीजिए। पर मैं तुम्हं नचिकेता ने यह प्रश्न जब राजा जनक से 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 34 नामदेव जी ने एक कविता लिखी जिसे हमारे साथ प्रपंच में किस तरह कार्यान्वित होता है, नानक साहब ने सम्मानपूर्वक गुरु ग्रन्थ में स्थान यह देखना चाहिए। दिया। यह अत्यन्त सुन्दर ह मान लो किसी को कोई समस्या है। किसी वर्णन करती हूँ। कवित। में कहा है कि, "आकाश में ने मुझ से कहा, "श्री माताजी मेरे घर में तकलीफ पतंगे उड़ रही हैं और एक लड़का हाथ में उस है, मेरा काम धन्धा नहीं है।" इस तरह की छोटी-छोटी पतंग की डोर पकड़कर खड़ा है, वह सब बातें कर तुच्छ बातें, "यह ऐसा है, वैसा है।" थोड़े दिनों के रहा है यहाँ वहाँ भाग रहा है परन्तु उसका पूरा बाद वह कहता है, "माताजी सब कुछ ठीक हो गया चित्त (attention ) उस पतंग पर है। "एक और है।" तो सब कैसे होता है ? यह देखना चाहिए। दोहे में उन्होंने कहा है कि, "बहुत सी औरतें पानी एक दिन की बात है, हमारी एक शिष्या है, विदेशी भरकर ले जा रही हैं रास्ते पर जाते हुए वह है। मैं शिष्या' वगैरा तो कहती नहीं हूँ, बच्चे आपस में मज़ाक कर रही हैं, घर की बातें कर रही कहती हैं, तो दोनों लड़कियाँ थीं। वो दोनों जर्मनी हैं, परन्तु उनका सारा चित्त सिर पर रखे घड़ों पर से एक मोटर में जा रही थीं जर्मनी में आटोबान' है कि कहीं वे गिर न जाएं। एक अन्य दोहे में माँ करके बहुत बड़े रास्ते होते है जिन पर बड़ी तेजी से का वर्णन है। "माँ बच्चे को गोद में लेकर सभी गाड़ियां इधर-उधर दौड़ती हैं। उन्होंने मुझे चिठ्ठी लिखी, दोनों तरफ से ट्रक, बड़ी-बड़ी बसें, बड़ी-बड़ी कारें जो डबल लोडर होती हैं, वह सब जा रही थीं और बीच में हमारी मोटर मोटर का ब्रेक भी काम । मैं इसका आशय पंबा काम करती है। चूल्हा जलाती है, खाना बनाती है। उन कामों में कभी वह झुकती है, कभी भागती है। सब कुछ उसे करना पड़ता है फिर भी उसका सारा चित्त अपने बच्चे पर होता है कि कहीं बच्चा गिर न नहीं कर रहा था और गाड़ी भी कम्पन कर रही थी। जाए।" साधु सन्त भी ऐसे ही होते हैं। सभी कार्यों मुझे लगा कि अब मैं गई, अब तो मैं बच ही नहीं का उन्हें ज्ञान होता है, सभी कार्य वे करते है परन्तु सकती। यदि ब्रेक भी कुछ ठीक होता तो कुछ उनका सारा चित्त अपनी आत्मा पर होता है । सच्चे उम्मीद थी । तो उस स्थिति में एक तरह की प्रेरणा सन्त बिलकुल आपकी तरह गृहस्थ में रहने वाले आ गई जिसे हम आपातकालीन प्रेरणा कहेंगे। ऐसे होते हुए भी इनमें वैचित्र्य होता है, वह आपको लगा मानो, "अब सब कुछ गया, कुछ भी नहीं रहा, विनाश का समय आ गया है।" तो शरणागत होकर पहचानना चाहिए। यही वैचित्र्य सहजयोग' है इस वैचित्र्य से क्या लाभ होते हैं यह देखना जरूरी उसने कहा, "श्री माताजी अब आपको जो करना है क्योंकि प्रपंच में आप देखते हैं कि लाभ कितना है करें, मैं तो आँखे मूंद लेती हूँ। और उसने आँखे है और हानि कितनी है । आजकल के युग में बन्द कर लीं ।" उसने चिठ्ठी में लिखा था, "थोड़ी परमात्मा की बातें करने से लोगों को लगता है कि, देर बाद मैंने देखा तो मेरी कार अच्छी तरह से एक इस महिला को अभी आधुनिक शिक्षा वगैराह नहीं तरफ आकर रुकी हुई थी और उसका ब्रेक भी ठीक मिली है, यह कोई पुराने ज़माने की बेकार नानी, हो गया था अब माताजी ने कुछ नहीं किया था. दादी की कथा सुना रही है। "परन्तु परमेश्वर है यह आप देखिए कि यह कैसे होता है ? मतलब यह और वह रहेगा। वह अनन्त है परन्तु परमेश्वर जो परिणाम हुआ है वह किसी न किसी कारणवश । এ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी ॐ नवम्बर हुआ है अर्थात कारण व परिणाम । मान लो आपके होगा? भगवान तक आपके टेलीफोन का कनेक्शन तो होना चाहिए इस तरह आप रात दिन परमेश्वर घर में झगड़ा है उसका कारण है आपकी पत्नी या की पूजा करते हैं? परन्तु क्या आप जो बोल रहे हैं उस परमेश्वर को सुनाई दिया है ? चाहे जो धंधे करो, चाहे जैसा बत्ताव करो और उसके बाद हे आपकी माँ या आपके पिताजी या कोई अन्य मनुष्य और उसका परिणाम है घर में अशान्ति। सर्वसाधारण व्यक्ति परिणाम से ही लड़ता रहेगा। अभी मुझे इससे लड़ना है। फिर कोई दूसरी लडाई परमात्मा, मुझे आप देते हैं कि नहीं ? कहकर उसके निकल आएगी, फिर तीसरी। परन्तु कारण पर सामने बैठ जाना। उस परमात्मा ने आपको किसलिए कितने लोग सोचते हैं ? जो लोग विवेकशील होते देना है ? आपका कोई कनेक्शन होगा तो आप कुछ हैं वे 'परिणाम के कारण से लड़ते हैं। पर वह कारण भी उनसे लड़ना शुरू कर देता है. तथा नागरिक हैं, परमात्मा के साम्राज्य के नहीं । पहले कारण' और परिणाम के चक्कर में पड़ने से समस्या उसके साम्राज्य के नागरिक बनिए. फिर देखिए वैसी ही बनी रहती है। उससे छुटकारा वे नहीं पा उसकी याद करने के पहले ही परमेश्वर ये करता सकते। इसलिए लोग कहते है कि प्रपंच करना है कि नहीं। अब समझ लीजिए यहाँ पर बैठे-बैठे भारत सरकार में मॉँग सकते हैं, क्योंकि आप उसके बहुत कठिन काम है। इसका इलाज क्या है? ही कोई अगर इंग्लैण्ड की रानी को कहेगा कि वह इसका इलाज यह है कि 'कारण से परे हमारे लिए ये नहीं करती, वह नहीं करती। वह जाना होगा। उसका जो कारण था, ब्रेक टूट गया आपके लिए क्यों करने लगी? तो यहाँ तो परमात्मा था, उस ब्रैक से बह लड़ रही थी। परन्तु जब उसे है और वह परमात्मा आपके लिए क्यों करने लगे ? महसूस हुआ, इस सबके परे भी कुछ है कोई शक्ति आप उनके साम्राज्य में अभी आए नहीं हैं केवल है और वह शक्ति कारण के परे होने से कारण भी उन पर तानाशाही करना है परमात्मा' जैसे कोई वे नष्ट हो गया और उसका परिणाम भी नष्ट हो आप की जेब में बैठे हैं ? और अब आपको ये भी गया। ये ऐसे होता है। आप विश्वास करिए या मत विचार नहीं है के हमें परमात्मा का स्मरण करना करिए, पर ये बात होती है। परन्तु ये अन्ध-विश्वास है सुस्मरण कहा है, स्मरण नहीं कहा है। सुस्मरण से नहीं होती है। अब बहुत से लोग मेरे पास आकर करते समय भी 'सु' शब्द है। सु' माने क्या ? जैसे कहते हैं. "माताजी हम इतना भगवान को याद प्र' शब्द है वैसे ही 'सु' शब्द है। सु' माने जहाँ करते हैं परन्तु हमें कैन्सर हो गया, मन्दिर में जाते मनुष्य का सम्बन्ध होकर आपमें मांगल्य का आशीर्वाद हैं, सिद्धिविनायक के मन्दिर में रोज़ जाकर खड़े आया हुआ है तभी वह सुस्मरण होगा। अन्यथा तोते रहते हैं, घंटे-घंटे। मंगल के दिन तो विशेष करके की तरह बिना समझे बोलना है उसका असर युवा जाते हैं, परन्तु तब भी हमारा कुछ भी अच्छा नहीं पीढ़ी पर होता है वे कहते हैं "इस परमात्मा का किया, फिर हम इसे क्यों भजें ?" ठीक है परन्तु क्या अर्थ हुआ ? परमात्मा का नाम लेकर यहाँ दो उसका आपका बाबा आए और हमारी माँ का पैसा ले गये, वहाँ कोई रहे हैं आप जिस भगवान को बुला क्या कोई कनेक्शन (सम्बन्ध) हुआ है ? आपका गले में काला धागा बाँध गये और रुपया ले गए। ऐसे परमात्मा का क्या अर्थ हुआ ?" इसलिए उनका जब तक कनेक्शन नहीं हुआ, तब तक अच्छा कैसे 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी नवम्बर 36 कहना ठीक लगता है। फिर उनकी तरह और लोग जाते हैं। ज्ञानदेव की 'ज्ञानेश्वरी' का आखिरी भी कहते हैं "परमात्मा है ही नहीं । " परन्तु सर्वप्रथम पसायदान (दोहा) आपने सुना होगा उन्होंने जो अपनी समझ में ये गलती हुई है कि क्या हमारा वर्णन किया है वह आज की स्थिति है ये सब अब परमात्मा के साथ कोई सम्बन्ध हुआ है ? क्या घटित होने वाला है जिस चीज़ की जो इच्छा हमारा उन पर अधिकार है ? हमने उनके लिए क्या करेगा वह (दिव्य आनन्द) उसे प्राप्त होगी। परन्तु किया है ? ये तो देखना चाहिए। पहले उनके साथ वह करने के पहले आप केवल कुण्डलिनी का अपना कनेक्शन (सम्बन्ध) जोड़ लीजिए । अब सहजयोग माने परमात्मा से सम्बन्ध वचन नहीं दे सकती और न मिनिस्टर (मन्त्री) लोगों जागरण कर लीजिए। उसके बिना मैं आपको कोई की तरह आश्वासन देती हूँ। जो बात है वह मैं जोड़ना। सहज शब्द में 'सह माने अपने साथ, 'ज जन्म हुआ। जन्म से ही आपमें योग (सम्बन्ध अपनी बोली में अपने ढंग से कह रही हूँ। कोई जोड़ना), योग सिद्धि का जो अधिकार है, वह माने साहित्यिक भाषा में नहीं बोल रही हूँ। जैसे कोई माँ | सहजयोग' है। आपमें परमात्मा ने कुण्डलिनी नाम अपने बच्चे को घरेलू बातें समझाती है उसी तरह मैं की एक शक्ति रखी है वह आपमें स्थित है। आप आपको समझा रही हूँ। आप में जो सम्पदा है वह विश्वास कीजिए या न कीजिए । क्योंकि ऊपरी प्राप्त कीजिए । आप कहते हैं हम प्रपंच में बंध गए (बाह्य) आँखों (दृष्टि) वाले लोगों को कुछ कहना हैं। बंध गए हैं माने क्या ? तो फालतू बातों का कठिन है। विशेषकर अपने यहाँ के साहित्यिक और आपको महत्व लगने लगा। मुझे नौकरी मिलनी बुद्धिजीवी लोग विचारों पर चलते हैं। और विचार चाहिए, वो क्यों नहीं मिल रही है, क्योंकि बेकारी कहाँ तक जाएंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है। ज्यादा है ? माने बेकार ज्यादा हैं इसलिए बेकारी किसी विचार का किसी से मेल नहीं है। इसलिए क्यों ज्यादा है ? बेकारों की संख्या बढ़ रही है। वो इतने झगड़े हैं। तो इन विचारों के परे जो शक्ति है, बढ़ती ही जाएगी। इन कारणों के परे कैसे जाना है उसके बारे में अपने देश में परम्परागत अनादिकाल ? उसका इलाज है कि वह जो शक्ति हमारे चारों में | से बताया गया है। उस तरफ कुछ ध्यान देना तरफ है उसका आहु्वान करना होगा। मनुष्य जरूरी है। परन्तु इन विचारवान लोगों में इतना वह शक्ति मूलाधार चक्र में रहती है। मूलाधार में ये अहंकार है कि वे उधर ध्यान देने के लिए तैयार जो शक्ति है वह प्रपंच में कैसे कार्यान्वित है यह आप देखिए। अपना ध्यान उस (शक्ति की) तरफ नहीं। हो सकता है शायद इसमें उनके पेट का सवाल हो। परन्तु सहजयोग में आने के बाद पेट के होना चाहिए और सर्वप्रथम ये विचार होना चाहिए लिए आप आशीर्वादित होते हैं। परमात्मा से कि मूलाधार में जो कुण्डलिनी शक्ति है वह श्री सम्बन्ध घटित होने के बाद आप की समस्याएं ऐसे गणेश की कृपा से वहाँ बैठी है। अब इस महाराष्ट्र हल होती हैं कि आपको आश्चर्य होगा। "ऐसा को बहुत बड़ा वरदान है कहना चाहिए। यहाँ जो हमने क्या किया है ? इतना हमें परमात्मा ने कैसे अष्टविनायक हैं वह आपके लिए परमात्मा का बहुत दे दिया ? इतनी सही व्यवस्था कैसे हो गयी ?" बड़ा उपकार हैं। इसी कारण महाराष्ट्र में मैं सहजयोग ऐसा सवाल आप अपने आपसे पूछ कर चकित रह स्थापित कर सकी हूँ क्योंकि श्री गणेश का जो 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt दिसम्बर, 1997 37 नवम्बर चैतन्य लहरी प्रभाव है उसी का आप पर आवरण है उसी रिकामे. (जो ज्यादा सयाने हैं उनकी खोपड़ी खाली आवरण के कारण सचमुच मेरी बहुत मदद हुई है। है।) तो श्रीगणेश की नाराज़गी हम पर न हो ये श्रीगणेश आपके मूलाधार में विराजमान उसका निश्चय करना होगा। श्रीगणेश हममें बैठकर हमारे बच्चों का पालन हैं। अब कोई डॉक्टर है तो वह अपने घर में श्री गणेश का फोटो रखेगा। मन्दिर भी बनाएगा वहाँ जाकर नमस्कार करेगा परन्तु श्रीगणेश का और वह जो भोला गणेश (बच्चा) है वह घर के सभी करते हैं। प्रथम जनन और उसके बाद पालन। और लोगों को आनन्द देता है। किसी घर में बच्चा पैदा डॉक्टरी का क्या सम्बन्ध है ये उसके समझ में नहीं आएगा और उसे वह स्वीकार भी नहीं करेगा। होते ही कितनी खुशियाँ छा जाती हैं। उस बच्चे से कितनी आनन्द की लहरें घर में फैलती हैं परन्तु श्रीगणेश के बिना डॉक्टरी भी बेकार है अब परन्तु ये श्रीगणेश शक्ति आपमें है उसी के कारण आपके जिस घर में बच्चा नहीं होता वहाँ कैसा खालीपन सा महसूस होता है! ऐसा लगता है उस घर में जाएं नहीं क्योंकि वहाँ बच्चों की किलकारियां नहीं, हँसना नहीं, खिलखिलाना नहीं, वह मस्ती नहीं । बच्चे पैदा होते हैं। अब जरा सोचिए, एक माता-पिता जिस तरह उनके चेहरे हैं उसी तरह का बच्चा पैदा होता है। हजारों, करोड़ों लोग इस देश मैं हैं दूसरे देशों में हैं। परन्तु हर एक का बच्चा या तो उसके ऐसे घर में कोई माधुर्य नहीं होता। परन्तु आजकल माता-पिता की तरह होता है, नहीं तो दादा-दादी जमाना कुछ दूसरा ही है। जिन देशों को समृद्ध या उस परिवार के किसी व्यक्ति के चेहरे पर होता (affiuent) कहते हैं उन देशों में बच्चे पैदा ही नहीं है। तो इसका जो नियमन है वह कौन करता है ? होते उनकी आबादी बढ़ती जा रही है। इसलिए वह श्रीगणेश करते हैं । आपका ये कर्तव्य है कि अपने घर में जो आबादी इतनी नहीं बढ़नी चाहिए। मान लिया, परन्तु गणेश (बच्चे) हैं उनमें जो बालसुलभ अबोधिता है कहना ये है कि जो बच्चे आज जन्म ले रहे हैं उनमें उसे स्वीकार करें। वह अबोधिता अपने में आनी भी अक्ल होती है। वे क्यों उन देशों में जन्म लेने चाहिए। घर में छोटे बच्चे होते हैं। छोटे बच्चे लगे ? वे कहेंगे वहाँ रोज पति-पत्नी तलाक लेते हैं कितने अबोध होते हैं! उनके सामने हम गाली और बच्चों की हत्या कर डालते हैं। वही हमारे साथ गलौच करते हैं, बुरे शब्द बोलते हैं। ऐसे वातावरण होगा क्योंकि यहाँ भारत में माँ- बाप को बच्चों के में हम उनको पालते हैं, जहाँ सब अमंगल है प्रति आस्था, जो प्रेम, जो सहज-बुद्धि है वह इन उनकी तरफ हम कोई ध्यान नहीं देते यही (बच्चे) लोगों में (अमीर देशों में) बिल्कुल नहीं है आपको तो आपके घर के गणेश हैं उनके संवर्धन में, सुनकर आश्चर्य होगा कि लंदन शहर में माँ-बाप लोग कहते हैं यह बहुत बुरा है। आपके देश की पालन-पोषण में आपका ध्यान नहीं है। आजकल एक हफ्ते में दो बच्चों को मार देते हैं। जितना तो इंग्लैण्ड में 80 वर्ष की की औरतें भी शादी सुनोगे उतना कम है। मुझे तो रोज धक्का-सा आयु करती हैं। तो अब क्या कहें कुछ समझ में नहीं लगता है पर उन्हें उसका कुछ भी असर नहीं है। आता! वहाँ की बुराई यहाँ मत लाओ। वहाँ की वे लोग अहंकार में इतने डूबे हैं कि उन्हें बुराई वहीं रहने दीजिए। ते अति शहाणे त्यांचे वैल उचित-अनुचित का भी ध्यान नहीं। वहाँ जाकर 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य] लहरी 38 नवम्बर मालूम हुआ कि हिन्दुस्तानी मनुष्य कितना अच्छा आपमें आने लगती है उस शक्ति से मनुष्य सच्चा यहाँ भारत के टेलिफोन ठीक नहीं है. माईक समर्थ हो जाता है और उस समर्थता से एक ठीक नहीं हैं रेलगाड़ियां ठीक नहीं है। सब कुछ चमत्कार घटित होता है। जो बच्चे बेकार हैं, जो मान लिया। पर लोग तो ठीक हैं। वह गहनतम किसी काम के लायक नहीं हैं, माने जो शराब वर्गैरा अच्छाई में गणेश तत्व। जिस घर में गणेश तत्व पीते हैं- आजकल आपको मालूम है ड्रग वरगैरा ठीक नहीं है वहाँ सब कुछ गलत होता है बच्चे चलता है- हमने तो कभी चरस नाम की चीज़ नहीं बिगड़ने का दोष मैं समाज से ज्यादा माँ-बाप को देखी थी। अब मालूम होता है कि आजकल स्कूलों देती हूँ। आजकल माँ भी नौकरी करती हैं बाप तो में चरस बिकती है। ये सब मूर्खता सुबुद्धि न होने करते ही हैं, तब भी जितना समय आप अपने बच्चों के कारण होती है। वह सुबुद्धि जागृत होते ही जो के साथ काटते हैं, वह कितना गहन है ये देखना लोग इंग्लैण्ड, अमेरिका में चरस लेते हैं वे यह सब जरूरी है। छोड़कर अच्छे नागरिक बन गए हैं ये सहजयोग अब सहजयोग में आने पर क्या होता है ये की शक्ति है। बच्चों में शिष्टाचार नहीं हैं क्योंकि देखना है। मतलब सहजयोग का सम्बन्ध आपके माँ-बाप आपस में लड़ते हैं, बच्चों का आदर नहीं बच्चों के साथ किस प्रकार है। सहजयोग में करते। उनसे चाहे जैसा व्यवहार करते हैं। जैसी आपकी गणेश शक्ति जो जागृत होती है वह माँ-बाप की प्रकृति, वैसी ही बच्चों की बन जाती है कुण्डलिनी शक्ति के कारण है प्रथम मनुष्य में और वे वैसे ही असभ्य आचरण करते हैं। सहजयोग सुबुद्धि आती है। हम उसे विनायक ( गणेश) कहते में आकर माता-पिता की कुण्डलिनी अगर जागृत हैं। वही सबका सुबुद्धि दाता है। मैंने ऐसे बच्चे देखे हो गयी और बच्चों की भी हो गईी तो फिर सब हैं. जिन्हें लोग मेरे पास लेकर आते हैं, कहते हैं. एकदम कायदे से व्यवहार करते हैं । पहले बच्चा कक्षा में एकदम फिसड़डी है, खाली मस्ती आत्म-सम्मान जागृत होता है। उपदेश करने से करता है, मास्टरजी से उल्टा-सीधा बोलता है मैंने आत्म - सम्मान जागृत नहीं होता। परन्तु सहजयोग उससे पूछा , तुम ऐसे क्यों करते हो ? उसने कहा, में मुझे कुछ नहीं आता और मास्टरजी भी मुझे डाँटते रहते हैं। फिर मैं क्या करूं? वही बच्चा फर्सट करने की प्रथा चली आ रही है। उनकी सत्ता क्लास फर्सट (प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान) में प्रास जिनके पास हो उन्हीं के चरणों में झुकना चाहिए हुआ है। ये कैसे हुआ है ? श्री गणेश आप में बाकी सब ऐरे-गैरे नत्थु-खैरे आज आएंगे कल चले कुण्डलिनी जागृति से मनुष्य में सम्मान आता है । अपने देश में सत्तारूढ़ लोगों का सम्मान जागृत होते ही वह शक्ति आपमें बहने लगती है जाएंगे। उनका कोई मतलब नहीं, बेकार हैं वे लोग। और आप में एक नया 'आयाम शुरु किया है हो जाता है । जिन्होंने गणेश को अपने आप में जागृत उस आयाम को हम 'सामूहिक चेतना कहते हैं अभी तक जो चीजें व्यक्ति को दिखाई नहीं देती थीं वे अब सहज ही में अनुभव होने लगती हैं। ये नया आयाम एक नयी चेतना-शक्ति । उनके सामने झुकना चाहिए। गणेश शक्ति जागृत होते ही आदमी में बहुत अन्तर आ जाता है। जैसे कि आजकल पुरुषों की नज़र इधर-उधर दौड़ती रहती है, चंचल है, आज्ञाचक्र 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी 39 नवम्बर पकड़ती है हरदम पागलों की तरह इधर-उधर है। उसके लिए कुछ भी करने की आवश्यकता देखते रहना, जिसे कहते हैं तमाशगीर। आजकल नहीं। कुण्डलिनी जागृत होने पर मनुष्य में सुबुद्धि तमाशगीरों की बड़ी भारी संख्या है। महाराष्ट्र में भी आती है और उस मनुष्य का सारा व्यक्तित्व एक शुरु हुआ है। हम जब छोटे थे, स्कूल, कालिजों में विशेष प्रकार का हो जाता है। अब यहाँ पर जो पढ़ते थे तब हमने ऐसे तमाशगीर नहीं देखे थे। साहित्यिक लोग होंगे वे कहेंगे माताजी कोई भ्रामक परन्तु अब ये नये लोग निकले हैं ये लोग हरदम (विचित्र) कहानियाँ सुना रही हैं। परन्तु आपको अपनी आँखें इधर से उधर दौड़ाते रहते हैं उससे सुनकर आश्चर्य होगा अहमद नगर जिले में बहुत शक्ति नष्ट होती है और उसमें किसी भी सहजयोग के कारण दस हजार लोगों ने शराब प्रकार का आनन्द नहीं है। नीरस क्रिया) कहना छोड़ी है। मैं शराब छोड़ने को नहीं कहती, मैं कुछ चाहिए। उसीमें अपना सारा चित्त लगाकर अपनी नहीं बोलती। जैसे भी ही आप आइए। आकर अपना आँखें इधर-उधर घुमाते रहते हैं । हर दम आत्मा रूपी दिया जलाइए। दिया जलने के बाद इधर-उधर देखना, जैसे रास्ते के विज्ञापन देखना। शरीर में क्या दोष हैं वे आपको दिखाई देंगे जब गलती से कोई विज्ञापन देखना छूट गया तो उन्हें तक दिया नहीं जलेगा तब तक साड़ी में क्या लगा लगेगा जैसे अपना कुछ महत्वपूर्ण काम चुक गया । है ये नहीं दिखाई देगा। उसी तरह एक बार दिया फिर से ऑँख घुमाकर वह विज्ञापन पढ़ेंगे हर एक चीज़ देखना ज़रूरी है। ये जो आँखों की बीमारी है भी जल गया तो भी आपको दिखाई देगा कि अपनी यह एकदम नष्ट होने पर ही मनुष्य सहजयोग में क्या क्या त्रुटियाँ हैं। आप ही अपने गुरु बनिए और एकाग्र होता है। जब इसमें एकाग्र दृष्टि आती है। अपने आपको अच्छा बनाइए। स्वयं को पवित्र बनाइए। ऐसी एकाग्र दृष्टि व गणेश शक्ति अगर जागृत हो जो लोग पवित्र होते हैं उनके आनन्द की कोई सीमा जाती है, उसे "कटाक्ष निरीक्षण" कहते हैं। आपकी नहीं। उनके आनन्द का कोई ठिकाना नहीं रहता । कटाक्ष दृष्टि जहाँ पड़ेगी वहाँ कुण्डलिनी जागृत हो किसी ने कहा है, "जब मस्त हुए फिर क्या बोलें ?" जायेगी। जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता अब हम मस्ती में आए हैं तो उस मस्ती की हालत आ जाएगी। इतना पवित्र्य आँखों में आ जाएगा। ये में अब हम क्या बोलें ? ऐसी स्थिति हो जाती है। केवल अकेले गणेश का काम है। और ये गणेश पवित्रता आनन्दमयी है और केवल आनन्दमयी ही 1 जला कि सब कुछ दिखाई देगा। बिल्कुल थोड़ा सा 1. आपके घर ही में है। अपने अपने गणेश को नहीं, पूरे व्यक्तित्व को सुगंधमय कर देती है। ऐसा पहचाना नहीं अगर पहचाना होता तो अपनी पवित्रता मनुष्य कहीं भी खड़ा होगा तो लोग कहेंगे" हे भाई में स्थित होते। जो पवित्र है वही करना चाहिए। कुछ तो कुछ विशेष बात है इस मनुष्य में " जिन्हें परन्तु आपने अपने गणेश को नहीं पूजा। कोई बात विशेष बनना है वे बनेंगे आप विशेष बनने वाले हैं नहीं। अपने घर में बच्चे हैं, उनके गणेश को ये सर्वविदित है। वह आपको अर्जन करना है, देखिए । उन्हें पूजनीय बनाइए और अपने गणेश को कमाना है। जिन्हें विशेष बनना है. उन्हीं प्रपंचिक भी। आप अपनी कुण्डलिनी जागृत करवाइए । परन्तु लोगों के लिए, घर-गृहस्थी में रहने वाले लोगों के सहजयोग की विशेषता ये है कि ये सहज में होता लिए सहजयोग है जिन्हें कुछ बनना नहीं, जो ५े ৬ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 40 नवम्बर समझते है हम बिल्कुल ठीक हैं, हमें कुछ नहीं एक समस्या है। सभी साड़ियाँ युवा लडकियों के चाहिए माताजी, तो भाई ठीक है, आपको हमारा लिए ही हैं बड़े-बूढ़े लोगों के लिए साड़ियाँ बनाने नमस्कार। आप पधारिए। आप पर हम जबरदस्ती का आजकल रिवाज़ ही नहीं रहा। पहले जमाने में नहीं कर सकते। अगर आपको पूर्ण स्वतन्त्रता बूढ़े लोगों के पास पैसा रहता था, उनके लिए प्राप्त करनी है तो हमें आपकी स्वतन्त्रता की रक्षा सब-कुछ ठीक-ठाक रहता था। अब बूढ़े लोगों को करनी है। अगर आपको नर्क में जाना है तो बेशक कोई पूछता नहीं। उनके लिए शादी-ब्याह में जाइए, और अगर स्वर्ग में आना है तो आइए। हम एकाध साड़ी खरीदना भी मुश्किल हो गया है। आप पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। सर्वप्रथम अपने प्रपंच में सुख का कारण बच्चा होता है बच्चे के गर्भ में आते ही घर में जागृत हो जाती है। अब हम एक बड़े बुजुर्ग आदमी जिस समय ये गुरु-शक्ति आपमें जागृत होती है तब ये जो बूढ़ापन, वृद्धत्व आता है, उसमें तेज़स्विता आनन्द शुरु हो जाता है। माता के कष्टों की को लें। अपने पिता भी कभी-कभी बिल्कुल मुर्खों समाप्ति के पश्चात् बच्चे का अत्यन्त उल्लास के की तरह बर्ताव करते हैं। माँ महामूरखों की तरह बीच जन्म होता है। आजकल मैंने देखा है कि जो ब्ताव करती हैं। बाहर से जो लोग आते हैं उनके लोग पार हैं उनके जो बच्चे होते हैं, वे जन्म से ही सामने किस तरह से रहना है उसे नहीं मालूम। पार होते हैं, चाहे वे लोग कहीं भी रहें। कितने ही चिल्लाती रहती हैं, सारा ध्यान उसका चाबियों पर, बड़े-बड़े सन्तों को जन्म लेना है। सबको मैं देख नहीं तो जात-पात के लड़ाई-झगड़ों पर रहता है। रही हूँ। वे कह रहे हैं, "ऐसा कौन है जो हमारी कोंकणस्थ की शादी कोंकणस्थ से ही होनी चाहिए, आत्मा को सुचारु रखेगा। ?" ऐसे-वैसे लोगों के देशस्थों की देशस्थों से। ऐसा नहीं हुआ तो सास यहाँ साधु-सन्त नहीं जन्म लेते ऐसे बड़े-बड़े लड़ती है। ये जो बुड़्ढे लोगों की अजीब बातें हैं, ये सन्त आज जन्म लेने वाले हैं और उनके लिए ऐसे तब खत्म हो जाती हैं और उनके स्थान पर उस लोगों की जरूरत है जिनके प्रपंच सचमुच ही बूढ़ेपन में एक तरह की "तेजस्विता" आ जाती है। प्रकाशित हैं और ऐसे प्रकाशित प्रपंच निर्माण करने वह व्यक्ति अपने सम्मान के साथ खड़ा रहता है। आपको लगेगा " अरे बाप रे! हमारे पिताजी ये क्या हो गए पहले जमाने के जो दादोजी कोंडदेव (शिवाजी वह होने के बाद दूसरे चक्र से जिसे हम के जमाने के लोग) वगैरा लोग थे, क्या वही यहाँ 'स्वाधिष्ठान' चक्र कहते हैं उससे प्रपंच में बहुत खड़े हो गए ?" और तुरन्त उनके सामने हम विनम्र के लिए आप सहजयोग अपनाकर अपनी कुण्डलिनी जागृत करवा लीजिए । लाभ होते हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का पहला काम है, हो जाते हैं। आपकी गुरु-शक्ति को प्रबल बनाना। बहुत से घरों में मैंने देखा है, पिता की कोई इज्ज़त नहीं, माँ की है बात-बात पर तलाक, पत्नी के साथ लड़ाई, कोई इज्जत नहीं। छोटे-छोटे 15,16 साल के बच्चे माँ-बाप से नहीं बनती, घर में रह नहीं सकते, घर तो इस युवा पीढ़ी में जो खलबली मची हुई की सब कुछ हैं। आजकल बाजार में मैं देखती हूँ से बाहर भाग जाना, छोटी-छोटी बातों पर हमारे जैसे व्यस्क लोगों के लिए साड़ी खरीदना लड़ाई-झगड़े, ये सब हो रहा है। काम-धंधा नहीं, 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt दिसम्बर 1997 चैतन्य लहरी तवम्बर 41 पैसे नहीं, सभी बुरी आदतें, सब तरफ से आजकल हमारा नमस्कार। परन्तु आप को अपनी शक्ति में की युवा पीढ़ी एक बड़े संक्रमण-काल की तरफ खड़ा रहना है और कोई विशेष बनना है, तो आप बढ़ रही है। उनकी पृष्ठभूमि (background) बहुत जो चले जा रहे है सो रुकना पड़ेगा जरा शांत महान है। मैं कहती हूँ महाराष्ट्र की पृष्ठभूमि तौ होकर सोचिए ये (विदेशी) जो सारे दौड़ रहे हैं, जो बहुत ही महान है। पर वह सब भूलकर भी पढ़ेंगे रेट रेस (अंधी दौड़) चल रही है उसमें मैं भी क्या नहीं, सुनेंगे नहीं। अब संगीत का अपने महाराष्ट्र में भाग रहा हूँ ? एक मिनट शान्त होकर सोचना कितना ज्ञान है ? साधु-सन्तों का कितना साहित्य चाहिए हमारी भारतीय विरासत क्या है ? सम्पत्ति है अपनी भाषा में। पर वह सब किताबें कौन पढ़ता के बटवारे में यदि एक छोटा टुकड़ा कम-ज्यादा है ? गंदी किताबें सड़क पर खरीद कर पढ़ना। मिला तो कोर्ट में लड़ने जाते हैं परन्तु अपने इस कुछ अत्यन्त नकली, (जो गहराई में नहीं जाते, बस देश की बड़ी परम्परा है। उस तरफ किसी का ध्यान ऊपर ऊपर उतराते रहते है) इस तरह की युवा नहीं। वह खत्म होने जा रही है उसका हमने पीढ़ी बनती जा रही है। इस युवा पीढ़ी को अगर कितना लाभ उठाया है? इसका ज्ञान सहजयोग में इसी तरह रखा तो ये इसी हवा में खो जाएगी। आने पर वयस्क लोगों को होता है। क्योंकि जब किसी काम की नहीं रहेगी। मुझ से पूछिए आप, मैं उन्हें मालूम होता है कि हम पहले जो थे उससे अमेरिका गई थी तो 65% पुरुष बेकार हैं। वहाँ के कितने ऊँचे उठ गए हैं मेरे बचपन में मेरे पिताजी जो लोग हैं उन्हें एक डर है। वहाँ 'एड्स' नाम की ने मुझ से कहा था सर्वप्रथम इस युवा वर्ग की कोई बीमारी है। उससे सभी युवा लोग मर रहे हैं जागृति होनी चाहिए। दसवीं मंजिल (चेतना के और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि इससे कैसे छुटकारा मिले ? उसका कारण है, 'ये करने में क्या साधारण लोगों की, जो अभी पहली मंजिल पर भी हर्ज है? इसमें क्या बुरा है ? हो गए होंगे श्री नहीं पहुँचे, चेतना की क्या अवस्था है। ये (साधारण रामदास स्वामी, हमें उनसे क्या मतलब ? वह सब लोग) ताल-मंजीरे अवश्य बजाते हैं, किन्तु उन बातें रखिए अपने पास। हम अब मॉडर्न बन रहे हैं गीतों व भजनों के पीछे क्या भाव है यह वे नहीं बड़े आए मॉडर्न बनने वाले! वे (अमेरिकन) मॉडर्न समझते। जब वे पहली मंजिल ( आत्मसाक्षात्कार) कहाँ गए हैं। देखिए एक बार उन देशों में जाकर। पर पहुँचेंगे तब उन्हें पता चलेगा कि उससे ऊपर वहाँ के मॉडर्न लोगों की क्या स्थिति है ये जरा और भी मंजिलें हैं । स्तर) पर बैठे साधु-सन्त नहीं समझ पाते कि तो रहते हैं। वहाँ जाकर एक बहुत बड़ी चेतना है उसे ऋतंभरा शक्ति देखिए। वहाँ के व्यस्क लोग रात-दिन एक ही बात कहते हैं। वह आपको सहज में प्राप्त होती है। वह जाकर देखिए। यहाँ के लेखकगण यहीं बैठकर वहाँ के चर्णन लिखते इस सर्वसाधारण मानवीय चेतना के परे सोचते हैं. हम किस तरह आत्महत्या करें? एक ही प्राप्त होने के बाद आपको अपने जीवन का दर्शन विचार है उनका, आत्महत्या। यही एक रास्ता है होगा हम क्या हैं. कितने महान हैं और हम ये जो उनके पास। तो हवा में खत्म होने वाले जो ये लोग अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, ये क्या हैं उनकी तरह आपको माडर्न होना है तो आपको हमें शोभा देता है ? कितनी आपके पास सम्पदा है 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt दिसम्बर, 1997 चैतन्य लहरी 42 नयम्बर आपने अपनी क्या इज्जत रखी ? आपको अपने बारे आपके शरीर से प्रेम अर्थात् चैतन्य की लहरियाँ में कुछ पता नहीं है। ये आप कीजिए और सहजयोग में अपनी जागृति कराइए। चाहिए। इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता। होगा इसी तरह आजकल की युवा पीढ़ी है । ये भी तो होगा, नहीं तो नहीं भी। आज नहीं तो कल समझने की कोशिश बहने लगेंगी। केवल ये घटना आप में घटित होनी परमात्मा के साम्राज्य में सहज में आ सकती है। घटित होगा। इस प्रपंच में आपकी आर्थिक समस्याएं हैं । इस युवा-पीढ़ी को पार कराना बहुत आसान काम है। सारे भोलेपन में गलत काम करते हैं। इनका महाराष्ट्र में देखो तो "श्री माताजी, गरीबों को आप सब भोलापन ही है। एक लड़का सिगरेट पीता है से क्या लाभ होगा ?" आप क्या हैं. गरीब हैं या तो मैं भी पीऊँ, बस! किसी ने कुछ विशेष तरह के अमीर, या मध्यम ? फिर आपको क्या लाभ चाहिए? कपड़े पहने तो मैं भी पहनूंगा, इतना ही! सब कुछ आप चाहे मध्यम हों, अमीर हों, रईस हों, चाहे गरीब, भोलापन। परन्तु कभी-कभी भोलेपन से ही अनर्थ किसी को भी संतोष नहीं। रेडियो है तो वीडियो. हो सकता है। परन्तु यही युवा-पीढ़ी आज कहाँ से चाहिए। वीडियो है तो एयरकंडीशनर चाहिए। और कहाँ पहुँच सकती है। आज अपने देश में किस बात उसके बाद जहाज चाहिए। और आगे क्या, वह की कमी है ? कोई कहेगा खाने की है। परन्तु मुझे परमात्मा ही जाने! Economics (अर्थशास्त्र) का तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। मुझे लगता है हम एक सर्वसाधारण नियम है। इच्छाएं आम तौर पर ज्यादा ही खाते हैं और दूसरों को भी देते हैं। मैं कभी भी पूरी नहीं होती। आपकी एक इच्छा हुई तो जब भी यहाँ आती हूँ तो सबको हाथ जोड़कर वह पूरी होगी। परन्तु साधारणतया ऐसा होता नहीं। बोलती रहती हैँ, अब खाना बस करिए मुझे अब नहीं चाहिए। हर एक मनुष्य वहाँ कहता है कि बात स्पष्ट है जो हमने इच्छा की वह शुद्ध इच्छा हिन्दुस्तान में खाने की कुछ कमी नहीं दिखाई देती, नहीं थी। अगर वह शुद्ध इच्छा होती तो वह पूरी क्योंकि इतना खिलाते हैं, आग्रह कर करके। लगता होने के बाद हमें पूर्ण समाधान होता। परन्तु ऐसा है है खाना ही न खाएं। तो अपने यहाँ कमी किस बात नहीं। मतलब आपकी इच्छा शुद्ध नहीं थी। अशुद्ध की है ? वाद-विवाद, चर्चा करने में भी लोग नंबर इच्छा में रहे । इसलिए एक के बाद दूसरी, तीसरी, एक हैं। वे अगर यहाँ खड़े होंगे तो मुझसे भी चौथी, इस चक्कर में आप घूमते रहे । अब शुद्ध जबरदस्त भाषण देंगे सभी बातों में बहुत होशियार इच्छा साक्षात कुण्डलिनी है। क्योंकि वह परमात्मा हैं हम लोग कुछ ज्यादा ही होशियार! सब कुछ की इच्छा है। ये जागृत होते ही जो आप इच्छा है हमारे पास, सोना चॉदी, सब कुछ। कमी किस करोगे बात की है ? सोचकर देखिए हममें किस बात की इच्छा है वह उसे प्राप्त होगा।) इतनः कि आप कमी है। एक ही कमी है कि हमें ज्ञान नहीं कहेंगे अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। आपकी जो कि हम कौन हैं ? मैं कौन हैँ ? इसका अभी इच्छाएं हैं वे पूरी होती हैं, परन्तु वे इच्छाएं जड़ आज एक हुई, कल दूसरी, उसके बाद तीसरी। एक जो जे बाँछिले, तो ते लाहो (जो जिसकी तक ज्ञान नहीं है। जिस समय ये घटित वस्तुओं की नहीं होती। उनमें एक तरह की प्रगल्भता, होगा तब पूरा शरीर पुलकित हो उठेगा और उदात्ता होती है। और आपकी जो छोटी-छोटी बातें পাঁ 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नवम्बर 43 व्रत रखना, आज खट्टा नहीं खाना, ये करना, वह हैं " वह कृष्ण के कथनानुसार "योग क्षेम बहाम्यहम् जब आपका योग घटित होगा तो क्षेम भी प्राप्त हो नहीं करना। कुछ तमाशे करते रहना और फिर जाएगा। परन्तु पहले योग कहा है, " " परमात्मा को दोष देना, हम इतना परमात्मा की सेवा नहीं कहा है। "योग क्षेम वहाम्यहम्" पहले योग करते हैं फिर भी हम बीमार हैं। उसके बारे में कुछ घटित होना जरूरी है। सुदामा को पहले कृष्ण को दिमाग से सोचना चाहिए। जाकर मिलना पड़ा तब उसकी सुदामा नगरी सोने की बनी। आपका कहना है हम यहीं बैठे रहेंगे और वह पहले आप सीख लीजिए। वह सीखे बगैर 'क्षेम योंग' परमात्मा के जो नियम हैं, उनका विज्ञान हैं। गलत-सलत करते हो। फिर कुछ बिगड़ गया तो हाथ में सब कुछ आ जाये। क्यों? परमात्मा पर आप इतना अधिकार क्यों जताते हैं। किसलिए ? चार उसे क्यों दोष देते हो ? परमात्मा है या नहीं, यही पैसों के कृत के लिए और परमात्मा को दे आए। सिद्ध करने के लिए हम आए हैं। बिल्कुल सिद्ध इसलिए ? उलटे इसमें आपकी बड़ी गलती है। करने के लिए। आपके हाथों से चैंतन्य बहेगा। बहुत से लोग मैंने देखा है जो शिवभक्त हैं वे आपके हाथों की उंगलियों पर परमात्मा मिलने वाले "शिव -शिव' करते रहते हैं और उन्हें हार्ट अटैक हैं। परन्तु उसके लिए आपकी तैयारी है ? बुद्धि होता है। शिव आप के हृदय में बैठे हैं। फिर ऐसा ज्यादा चलती है। श्री माताजी क्या कह रही हैं ? क्यों ? उन्हें हार्ट अटैक क्यों हुआ ? क्योंकि शिव जरा दिमाग ठंडा कीजिए, फिर होगा। आपकी नाराज़ हो गये, आप किसी मनुष्य को ऐसे बुलाते समस्याएं अगर आपकी बुद्धि से हल होती तो हमें ये रहें बार-बार, तो उसे भी लगेगा ये आदमी मुझे इतनी मेहनत करने की जरुरत नहीं थी। परन्त क्यों परेशान कर रहा है। कल आप राजीव गांधी के आपकी राजकीय समस्याएं हल नहीं होने वाली न सामाजिक और प्रपंच की तो बिल्कुल ही नहीं । घर जाकर "राजीव राजीव" ऐसे कहते रहें तो लोग आपको कैद कर लेंगे। और इससे आपको न परमात्मा की प्राप्ति हो रही है और न ही प्रपंच की। ऐसी स्थिति है। इसलिए मध्य मार्ग में आना जरूरी है । और मध्य मार्ग को सुषुम्ना मार्ग कहते हैं। वहाँ से जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तब मनुष्य बीचों-बीच (मध्य में) आकर समाधानी होता है। बिल्कुल समाधानी बन जाता राजकीय प्रश्न ये हैं कि हम (Capitalist) पूँजीपति हैं। उसी के लिए लड़ रहे हैं । क्या वे लोग सुखी हैं ? स्वतन्त्रता भी संभाली जाती है उनसे ? दूसरे कहते हैं हम कम्युनिस्ट (साम्यवादी) हैं। किन्तु नाड़ी का सच्चे पूंजीपति तो हम हैं क्योंकि हमारे पास शक्ति है। ये सब ऊपरी बातें हैं। इसमें आप लोग मत उलझिए। आप अपने-आप में (अपने भीतर) परमात्मा का साम्राज्य लाइए और उसके नागरिक बनिए। फिर देखिए आप क्या बनते हैं। उसके लिए प्रपंच आजकल संतोषी देवी का व्रत चला है। छोड़ने की जरूरत नहीं है। पैसे देने की जरूरत संतोषी नाम की कोई देवी है ही नहीं। सिनेमा वालों नहीं है। इसमें क्या पैसे देने ? ये तो जीवन्त प्रक्रिया है। ने यह निकाली तो लगे सब व्रत रखने। जो स्वयं है आपमें किसी पेड़ को आपने पैसे दिए तो क्या वह आपको फूल देता है ? उसे क्या मालूम पैसा और इसी तरह कुछ गलत-सलत बनाते रहते हैं। क्या चीज है ? उसी तरह परमात्मा है। उन्हें पैसे संतोष का स्त्रोत है उसे क्या कहेंगे बह संतोषी है। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 44 नवम्बर वगैरा नहीं मालूम। किसी बाबाजी को ले आते हैं इस बम्बई शहर में इतने लोगों की प्रपंचिक स्थि) और उसे कहते है, ये लो पैसे गाँव में हमारे विषय में सुधार आया है कि आपको आश्चर्य होगा। परन्तु में कहा माताजी पैसे नहीं लेती। तो कहते हैं अच्छा हम उस तरफ देखते ही नहीं । हमें विश्वास ही नही 10 पैसे नहीं तो 25 ले लीजिए। परन्तु पैसे किस है। नहीं करते तो मत करिए। पता नहीं आपको चीज़ के दे रहे हो ? ये (आत्म साक्षात्कार) तो आप अपने स्वयं पर भी भरोसा है या नहीं, परमात्मा ही ही का है। इसे क्या खुद से खरीदोगे ? प्रेम के जाने! अब ये व्यर्थ समाचार पत्र वादिता छोड़कर द्वारा सब कुछ काम होता है। वह प्रेम प्राप्त करना सचमुच की वर्तमान स्थिति में क्या हो रहा है ये होगा, जो आजकल प्रपंच में नहीं है और जो प्रेम देखना चाहिए। श्रीकृष्ण आए, कुछ एक परम्परा नजर आता है वह गलत तरीके का है। किसी पेड़ लेकर आए और उन्होंने कृषि का कार्य किया एक को आपने देखा होगा। उसका रस ऊपर आता बीज बोया आज वह सम्पदा आपको इस स्थिति रहता है और जिस जिस भाग को चाहिए उसे देते तक लाई है। आप फूलों से फल बनने वाले हैं। वह देते वह अपनी जगह तक जाता है। वह किसी फूल आपको प्राप्त कर लेना चाहिए। अगर इस बार आप लिए चूक चूक गए तो समझ लीजिए हमेशा पर या पत्ते पर नहीं अटकता। अटक गया तो बस वह पत्ता भी खत्म और बह पेड़ भी खत्म और फूल गए। आपकी सारी प्रपंचित समस्याएं खत्म होकर भी खत्म। उसी तरह हम लोगों का है। हमारा प्रेम आप परमात्मा के प्रपंच में आते हैं। उनके प्रपंच में माने " मेरा बेटा! वह तो दुनिया का नवाब शाह हो आए बगैर आपको सुख नहीं मिलने वाला। सारी गया! मेरी बेटी , मेरा काम", 'मेरा-मेरा' चलता दुनिया भर के दुःख परमात्मा के चरणों में आने से रहता है। वह क्या आपका है ? लेकिन ये कह खत्म होते हैं, ऐसा कहते हैं। परन्तु इसका मतलब ये नहीं कि आप जाकर विद्ठल ( श्रीकृष्ण) के चरणों में सर फोड़ लें। श्री विठ्ठल को अपने आपमें सुनकर नहीं होने वाला। कितना भी कह छोड़िए, मेरा-मेरा नहीं छूटने वाला। उसे छुड़वाने के लिए जागृत आप की कुण्डलिनी उठनी चाहिए। वह उठने के करना है। उसे कैसे जगाना है ? उसके लिए कुछ बाद और आप पार होने के बाद 'तुम्हारा-तुम्हारा' करने की जरूरत नहीं है। वह साक्षात आपमें हैं की शुरुआत होती है। कबीर ने कहा है जब बकरी केवल कुण्डलिनी का जागरण होने के बाद जिस जीवित होती है तब बार-बार मैं-मैं करती है। तरह दिया जलाया जाता है, उसी तरह आपमें वह "मैं-मैं-मैं" करती है। लेकिन मरने के बाद उसकी जलता है। जिस घर में परमात्मा का दिया जलता आँत निकाल कर उसका तार खींचकर धुंदके में रहेगा वहाँ दर्द कहाँ ? गरीबी और परेशानियाँ बांधी जाती है तो उसमें से आवाज़ होती है कहाँ ? वहाँ तो सुख का संसार होना चाहिए। "तूही-तूही-तूही"। उसी तरह मनुष्य का है। एक इसीलिए हम गाँव-गाँव सब जगह घूमते हैं। आपको बार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है तब मेरी विनम्र विनती है कि ये जो आपमें शक्ति है वह लगता है सब कुछ 'तुम्हारा' है। मनुष्य 'अकर्म' में जागृत करवा लीजिए और सारे संसार के प्रपंच का उतरता है। फिर ये बच्चे, सगे-सहोदर सभी तुम्हारे! उद्धार कीजिए। मैं आपको हाथ जोड़कर विनती लोगों को आश्चर्य होता है, ये सब कैसे होता है ? करती हूँ। दुःख पतंज परमात्मा आप पर कृपा करें। 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 1997 नवम्बर 45 एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आत्म- साक्षात्कार के बाद परमेश्वर के राज्य में प्रस्थापित होने तक बहुत बाधाएं हैं, और श्री कल्कि शक्ति का सम्बंध इसी से जुड़ा हुआ है। आत्म -साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतों व प्रवृत्तियों में मग्न हैं उनकी स्थिति को 'योगभ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । जिसका अर्थ है कि प्रत्येक को सहस्रार का एक मन्त्र है। वह है निर्मला" स्वच्छ, सुथरा और निष्कलंक रहना चाहिए। जब आत्मा का द्वार खुलता है तो किसी चीज़ की कमी नहीं रहती । माँ यही द्वार खोलती हैं। इसीलिए ये माँ गणेश को प्रिय हैं। यह मिलने पर दूसरी किसी भी चीज़ की चाहत नहीं रहती। इस तरह की स्थिति जब आती है तब समझ लीजिए कि आत्मसाक्षात्कार हो गया फिर उसी में लीन हो कर आनन्दमग्न हो जाइए। (परम पूज्य श्री माता जी) 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर 1997 नदम्बर 46 *৯ নख्र ममशर जी जभा आ त त १ ताल पम ৩ अबोधिता एक ऐसा शाश्वत गुण है जो न कभी लुप्त होता है ু और न ही नष्ट । कमि कि छी िकाट ाम ाल P१ न ১ ४ हे पर 1997_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt SAHAZA YOAATEMEE