चैतन्य लहरी खण्ड : 10 1998 अक : 1, 2 एवं 3 शु मा ० चाहे आप सहज योगी हों, चाहे आपको अपने अगुआओं से सहजयोग का प्रमाण पत्र मिल चुका हो, चाहे आपको बहुत महान समझा जाता हो, परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो, सत्य बात है, आप श्रीमाताजी के साम्रान्य में नहीं होंगे, क्योंकि मुझसे आपका सम्बस्ध केवल ध्यान-धारणा के माध्यम से ही है।" ू० परम् पूज्य श्री माताजी सास म योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34 फोन : 7184340 मुद्रक ु इस अंक में कबैला, इटली नवरात्रि की पूर्वसंध्या पर श्री माताजी का प्रवचन 1. एक योगी की अनुभूति जुनेटीन्थ क्या है? श्री माता जी का सन्देश 2. एक बालक की अनुभूति सहजयोंग-पूर्ण शान्ति का एकमात्र सरोत सूफी धर्म एवं सहजयोग 17.02.1997 3. नवरात्रि पूजा कबैला 05.10.1997 4. महिलाओं की भूमिका शुडि कैम्प जून, 1988 5. कबैला आदि शक्ति क्या है? 06.06.1993 6. रामनवमी पूजा नोयडा निवास 05.04.1998 7. रहते हुए सन्तुलित पारिवारिक जीवन व्यतीत करें। प्रकृति के समीप तर पलम नवरात्रि पूजा 4.10.1997 की पूर्व संध्या को श्रीमाता जी का प्रवचन, कबैला, इटली) बहुत सी चीजें हों, आप थोड़ी चीजें खरीदें परन्तु यह हाथ से केवल मनोरंजन की दृष्टि से परन्तु हमारे भविष्य की वनी होनी चाहिए । माल लो आप एक परिधान खरीदते हैं तो इस पर हाथ की थोड़ी-सी कढ़ाई होनी चाहिए या हाथ का बैंक के कार्यकलाप मेरे चित्त को आकर्षित करते रहे हैं मैं कुछ अन्य काम होना चाहिए। लोगों को सस्ती एवं कष्टदायी नहीं समझ पाती कि किस प्रकार इतनी सुगमता से वे सभी । मैं आपको बताती हूं कि मैं नाइलोन नहीं पहन सकती, कोई भी बनावटी चीज नहीं पहन सकती । थोड़ी देर के लिए यदि मैं जुरावें पहन लूं तो मेरा शरीर दुखने लगता है। तो यह प्रकृति के यह कार्यक्रम हमारे लिए कितना आनन्ददायी था. न गतिविधियां की दृष्टि से भी । आश्चर्य की बात है कि स्विस चीजें खरीदते हुए देखकर आश्चर्य होंता है कुछ पचा जाते हैं! आज के इस युग में जबकि लोग प्रजातन्त्र तथा बड़-बड़े आद्शों की बातें कर रहे हैं किस प्रकार खुल्लम-खुल्ला यह गेर-कानूनी कार्य हो रहा है। इसके लिए मेरे पास एक योजना है; मुझे इसका पर्दाफाश करना होगा । एंसा करने के लिए मेरी एक योजना है। जहां तक भौतिकता का प्रश्न है यह कार्यान्वित हो रही है । अत्यन्त उन्नत एवं भी यह लोग अति सुन्दर मृणमूर्तियां (TERRACOTA) बनाते विकसित कहलाने वाले यह सभी देश भयंकर व्यापारिक मन्दे हैं। स्वभाव से मै समाजवादी हं । अत: मेरे मन में तीव्र इच्छा की चपेट में हैं। यह व्यापरिक मन्दा इन्हें अवाछित वस्तुओं हुई कि मैं मुण-मूर्तियों का नि्यात करू क्योंकि ये अत्यन्त विरूद्ध है। हस्तकला की वस्तुएं बहुत कम हैं, फिर भी जहां तक हो सके हाथ से बनी चीजों का उपयोग करें । पृथ्वी से के अत्याधिक उत्पादन के विषय में सबक सिखायेगा। सुन्दर हैं। ये अत्यन्त शान्ति प्रदायक है। अति सुन्दर हैं और अति सुगन्धित भी । परन्तु लोग सांचते हैं कि हमें अमेरिका की बनी कोई चीज खरीदनी चाहिए. मशीनों द्वारा बनी हुई । लिए गई। वहां मुझे हैरानी हुई कि सभी घरों में प्लास्टिक की और वे इस प्रकार की चीजें खरीदते चले जाते हैं। मैं हैरान वस्तुओं के ढंर पहाड़ की तरह से लगे हुए ह थी कि अमेरिका की दुकानों पर भी रेशम, कपास तथा चमड़ं निकलते ही आपको लगेगा कि यह चीजें आप पर गिरने से बनी बहुत सी सुंदर चीजें बिक रही थीं । परन्तु लोग बड़े-बड़े बाजारों में जाकर बहुत महगं दामों में ये बेकार की चीजें खरीदते हैं। इसका अर्थ यह हआ कि उनमें विवंक की कमी है। विवेक की कमी समाज को पतन की ओर घसीटती हैं, विवेक से ही पतां चलता है कि ये मूर्खतापूर्ण चीजं लालच से पागल हो जाने के कारण भौतिकवाद पनपता है। इंग्लैंड में एक घर की खोज में मैं बहुत से घर देखने के हैं। दरवाजे से वाली हैं। केवल इंग्लैंड में ही नहीं पेरिस में भी यही हाल हैं। लोग व्यर्थ की इन चीजों को इतना इकट्ठा करते हैं कि उनकी समझ में नहीं आता कि इन्हें कहा रखें और क्या करें? यह पागलपन बढ़ता हो चला जा रहा है। अब सहजयोगियों के लिए मैंने एक समाधान खोज खरीदना कितना भयानक है। लिया है कि वे क्या करें । उन्हें चाहिए कि वे हस्तकला को प्रोत्साहन दें । चेकोस्लोवाकिया या इंग्लैंड या अन्य कहीं जहां होम्योपैथी को अधिक अपना रहे हैं। आपके महान देश द्वारा भी मैं गई, मैंने हस्तकला की वस्तुएं खरीदीं । में नहीं समझ बनाई हुई भयानक औषधियों का उपयोग वे नहीं करना पाती कि आप लोग ये प्लास्टिक की बनी बेकार की चीजें चाहते । आप जानते हैं कि स्विस लोग क्या करते हैं । वे भारत और अब आप यह भी देख रहे हैं कि लोग आयुर्वेद किस प्रकार खरीद सकते हैं। हस्तकला की वस्तुएं जब मैंने के चिकित्सकों को बुलाने के लिए बड़े-बड़े प्रलोभन भेजते खरीदों तो मैं हैरान थी । चंकोस्लोवाकिया में अत्यन्त छोटी-छोटी हैं और यदि वे चिकित्सा की कोई विशिष्ट औषधि खोज लें दुकाने थीं। एक एक करके वे मेरे पास आए और कहने लगे. तो उसी में मामूली सा परिवर्तन करके वे कहते हैं कि यह "श्री माता जी हमारे से भी आप कुछ खरीदिए ।" वे कहने लगे कि इतनी सुन्दर वस्तुएं हैं फिर भी हम इन्हें बेच नहीं पाते । परन्तु लोग सभी प्रकार की व्यर्थ की चीजें खरीद रहे गलती से मेरे परिवार कं लोगों ने मुझे यह ऐंन्टोीबायोटीक दे हैं तो सहजयोगियों को शपथ लंनी चाहिए कि वे केवल हाथ से बनी वस्तुएं ही खरीदेंगे । जरूरी नहीं कि आपके पास बेहतर है। इन औषधियों के विषय मं भी आप जानते हैं, अधि कतर यह औषधियां अत्यन्त भयानक एवं कष्टदायी हैं। दिए, तभी से मेरी टांगे बहुत दुर्बल और कष्टकर हैं । अब मुझमें काफी सुधार हुआ है। 3. चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 तो यदि आपको किसी चीज की आवश्यकता है तो तो अब आप देखिए कि क्यों हम यह चीजें अपना रहे हैं क्योंकि चहुं ओर प्रदूषण है, जो कि मशीनों की देन है । गांधी जी कहा करते थे कि इतनी अधिक मशीनों के उपयोग प्रयत्न कीजिए कि हस्तकला की वस्तुएं ही खरीदें । आपके वस्त्र भी आवश्यक नहीं कि वहुत अधिक हों, परन्तु जो हों हाथ से बने हो । कम से कम इतना तो सहजयोगी कर ही की कोई आवश्यकता नहीं है। आप मोटर कार को हो लें । हम पैदल चल सकते हैं, रेलगाड़ियों का उपयोग कर सकते सकते हैं। उन्हें चाहिए कि स्विस बैंकों में धन न रखें। अब हैं, लेकिन यदि लोगों को दस मीटर भी जाना हो तो वे मोटर कार से जाना चाहते हैं। पैदल नहीं चलना चाहते । इसीलिए एक अन्य बात पर भी रुष्ट हूं । उन्होंने यहूदियों को धन देने हमारा स्वास्थ्य बिगड़ गया है। मैं आपको बताती हूं कि जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तो मेरा स्कूल घर से पांच मील दूर था। हमारे यहां कार थी और बग्घी भी थी । परन्तु प्रात: काल पांच मील पैदल चलना हमारे लिए अनिवार्य था । शाम के समय कार हमें लेने के लिए आया करती थी । परन्तु प्रात: इस स्विस बैंक का बुरी तरह से पर्दाफाश होगा । उनसे मैं का वचन दिया था परन्तु अब वे उन्हें धन नहीं देना चाहते। मृत्यु के पश्चात क्या वे इस धन को अपने साथ ले जायेंगे? इन सब अपराधों का दण्ड मिलेगा । इसी कारण में बहुत प्रसन्न हू कि इस वर्ष में ऐसा हुआ । इसके विषय में मैंने सम्मेलनों में भी बात चीत की । चीन के सम्मेलन में भी मैंने स्विस बैंक की बात की बहुत से दण्डाधीशों तथा विधि मन्त्रालय के मुख्याधिकारियों से भी मैंने बातचीत की । मैंने उन्हें बताया कि क्यों न एक सम्मेलन बुलाकर हम यह कहें कि इस तरह का व्यापार (बैकिंग) मुर्खता है। सभी प्रकार के दुष्ट लोग इस प्रणाली का अनुचित लाभ उठाकर पैसा बनाने काल स्कूल जाने के लिए हमें पांच मील चलना होता था । रास्ते में एक पहाड़ी थी, उसे भी पार करना होता था । इस प्रकार हम प्रकृति के बिषय में सीख पाए । पैदल चलं बिना आप क्या जान सकते हैं? कार में जाते हुए आप कुछ बिजली के खम्भों को ही देख सकते हैं। प्रकृति को नहीं देख सकते। अब पैदल चलने की यह शैली पुरानी हो गई है। लोग पैदल चलते ही नहीं । का प्रयत्न कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने बहां अपना धन गंवा दिया है। मेरी समझ में नहीं आता कि वहां धन रखने की क्या आवश्यकता थी ! मृत्यू के पंश्चात् उनके बच्चों को कुछ भी नहीं मिला। में यह नहीं कह रही कि हम लोग अत्यन्त परिवर्तित एवं उन्नते लाग हो गए हैं। एक प्रकार से हमारा पतन ही है क्योंकि हम पैदल नहीं चल सकते । परमात्मा ने हमें यह टांगे चलने के लिए दी हैं परन्तु हम चल नहीं सकते । पैदल चलने से बचना चाहते हैं। यही कारण है कि इतनी अधिक है। वह सोचता है कि वस्तुओं से उसे सुख प्राप्त हो सकता कारें हैं। मैं जानती हूं कि कुछ परिवारों में लोगों के पास पांच-पांच कारें हैं क्योंकि परिवार में पांच सदस्य हैं। विशेषकर चोजें खरीदता जाता है और इकट्ठी करता जाता है। मैं कहूंगी स्पेन में । मैं हैरान थी इतनी अधिक कारें हैं और हर एक कार में केवल एक व्यक्ति चलता है। अब प्रदूषण की परन्तु मैं हस्तकला की चीजें खरीदती हूँ। ताकि कल यदि समस्या उत्पन्न हो गई है क्योंकि हमने स्वयं पर निर्भर रहने मुझे उपहार देने पड़े या ये चीजें बेचनी पड़े की आदत भुला दी है। अब धुएं से पोडित क्वालालम्पुर एवं आपने मुझे दिए हैं, इनका भी मैं नहीं जानती कि मैं क्या अन्य सभी स्थानों की दशा को देखें । ये धुएं से पीड़ित हैं। मैंने तो यह सब नहीं किया । परन्तु वे लोग अल्लाह से वहुत प्रार्थना कर रहे हैं कि हमें जल दो । जब वे इतने बेवकूफी मैं बेच रही हूं क्योंकि पारिवारिक वस्तुओं पर भी मैं धन खर्च हुआ लालच ही समस्या है, मानव के अन्दर यह आन्तरिक दाष है। वह लालची हो जाता है क्योंकि वह धर्माच्युत हो गया है। वस्तुओं से उसे सुख प्राप्त नहीं हो सकता, फिर भी वह कि तुम्हारी मां भी ऐसा करती है। मैं भी चीजें खरीदती हूंँ - जो गहने करूंगी मैं इन्हें बेच रही हूँ। गहनां का मैं क्या करू? मेंने से आश्रम आदि खरीदने हैं। अपने पारिवारिक गहने भी करती हैँ। इसके विषय में जरा सोचे, यह सब चीजें किस लिए हैं? इस सबसे हमें क्या खुशी मिलती है? किसी को उपहार देने या प्रसन्न करने के लिए कुछ खरीदना तो समझ लिए । उनकी लकड़ी भारत आ रही है क्योंकि भारत ने भी में आता है। परन्तु आप तो खरीदते ही चले जाते हैं । किस भरे कार्य कर रहे हैं तो परमात्मा उन्हें जल क्यों देंगे? अब बहां धुंआ ही धुंआ है। क्यों? क्योंकि उन्होंने सारे पेड़ काट दिए हैं। पेड़ों को वे क्यों काटना चाहते हैं? पैसा बनाने के अपने पेड़ काट दिए हैं। पागलों की तरह से यदि आप कार्य प्रकार आप यह सब सहन कर सकते हैं ? ऐसा आप नहीं करते रहेंगे तो प्रदूषण होगा ही, अर्थात् विध्वंसकारी शक्तियां गतिशील होकर आपको रोकेंगी । इसके लिए आपकी देवी से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए । ये शक्तियां कार्य करेंगी और हर कर सकते । दूसरों को देने में अधिक आनन्द मिलता है। वस्तुएं आपको मूलतत्व की सूझबूझ नहीं प्रदान कर सकती और मुलतत्व यह है कि आप धर्म हैं। आपके अन्दर धर्म है, वही जगह कार्य कर रही हैं। खंड : 10 अंक : 1.2 और 3 1998 चैतनऱ्य लहरी आपकी पूरक शक्ति (संयोजकता) है। और यह भौतिकवाद इसके विरूद्ध है क्यांकि यह माफिया, स्विस बैंक तथा से कि रूसी लोगों द्वारा बनाई गई इस पूृष्ठभूमि का रंग भी वही है जो सामने के दृश्य का है। उन्होने वही रंग उपयोग किए हैं। यही वास्तविक सामूहिकता है। अब आप प्रकृति में देखें । यह कितनी मिलती जुलती है। इसमें कांई भद्दापन या शार धोखेबाज लोगों को सृष्टि करता है। हमारे सम्मुख बहुत समुदाय हैं जो धाखाधड़ी के लिए जाने जाते हैं. जो भौतिकवादी हैं. और जिन्हें अध्यात्मविवेक नहीं है । तो सहजयोगियों के नहीं है। यह अत्यन्त सुन्दर है। लाल हात हुए भी मंल के लिए मैं कहंगी, निसन्देह: आपने सभी मन्त्रों का उच्चारण लिए इसमें हरा रंग हैं। किया और मुझे बह सब करना चाहिए । परन्तु आपको भविष्य में कोई ऐसी चीज नहीं खरीदनी चाहिए जा हस्तरचित यह पृथ्वी सभी कुछ जानती है, सभी कुछ समझती है सभी कुछ करती है। परन्तु हम पृथ्वी मां के लिए क्या करते न हो, इसका प्रयत्न करे। कम से कम कुछ कढ़ाई या कुछ अन्य हाथ का, काम इस पर होना चाहिए । अन्य चीजें हमारे लिए अच्छी नहीं हैं. हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकर है लिखने हैं तो यह ठीक है। इसके अतिरिक्त तो यह पागलपन तो सहजयोगियों को और प्रकृति को देखना उनके लिए आवश्यक है। प्रकृति में क्या निहिंत है? आपमें से बहुत से लोग नहीं जानते। मान लो में इस फूल का नाम पूछू तो आपमें से कितने लोग जानते हैं? इसका बहुत सुंदर नाम है; (Kiss Me Quick) "मुझे तुरन्त चुमो" । वानस्पतिक नाम के अतिरिक्त इसका यह नाम भी हैं। आप सभी कुछ सीखें । छोटी छोटी चीजों का ज्ञान भी आपको होना चाहिए । यह कढ़ाई कहा से आई? यह साड़ी कहां से आई? में कहूंगी की भारतीय पुरुष इसके विषय कुछ नहीं जानते । वे कुछ भी नहीं जानते परन्तु पश्चिमी पुरुषों के साथ भी यही समस्या है। आप उन सब चीजों में दिलचस्पी लीजिए जिनकी तरफ आपने ध्यान नहीं दिया । हैं? हम बनावटी चीजों के पीछे. मशीनों के पीछे भागते रहते है और अब कम्प्यूटर आ गए हैं। आपने किसी की पत्र चाहिए कि वे पैदल चलें. पैदल चलना है। कम्प्यूटर हमारे मस्तिष्क को पूर्णतयाः शून्य कर दंगे । पक्षाघात हो जायेगा हमारे दिमागां का । हम 2+2 भी नहीं सोच सकेंगे तो कोई भी चीज यदि आप उपयोग करना चाहते हैं तो इसकी मर्यादाएं भी होनी चाहिए। मर्यादाओं से बाहर न जाएं । आप यदि तैरना शुरू करते हैं तो तब तक तैरते चले जाते हैं जब तक बीमार न पड़ जाए । आप यदि धुड़सवारी शुरु करते हैं तो तब तक आप घुड़सवारी करते हैं जब तक घोड़े से गिर न जाए । जिस प्रकार लालच की कोई सीमा नहीं में होती उसी प्रकार एंसे जीवन की भी कांई मर्यादा नहीं होती। इस प्रकार की मूर्खताओं का यही कारण है। मुझे यह पसन्द है। मुझे केवल इसी का शौक है। आप मानव हैं। आपको एंसा नहीं कहना चाहिए । इसके विपरीत आपकों कहना चाहिए कि मुझे यह सीखना चाहिए, इसके विपय में जानना मेरे लिए आवश्यक है। ऐसा होना आवश्यक है अन्यथा आपका व्यक्तित्व बीना रह जाएगा । समाप्त हो जाते हैं। मैं नहीं समझ पाती । मुझे तो दो सौ नोट भी गिननते नहीं आते उदाहरणार्थ भारतीय पुरुष खाना बनाना नहीं जानते । एक बार मेरे पति ने कहा कि वे खाना बनाना जानते हैं। मैंने पूछा क्या बनाएंगे तो उन्होंने कहा कि चपातियां । परन्तु उनसे कुछ नहीं बना । चपातियों की शक्ल आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसी थी । उन्होंने कहा कि मै हार मानता हूँ। में तो जहाजरानी कर रहा था और जहाज रानी का मतलब है जहाजरानी । परन्तु आप लोग सूक्ष्म चीजों को देख सकते हैं जिसे हम कहते हैं सूक्ष्म दृष्टि । पैदल चलते हुए प्रकृति को देखें । पेड़़ों से, पशुओं से प्रेम करें, तो आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे कि समाचार पढ़ने के अतिरिक्त बहुत सी चीजें देखने योग्य हैं। समाचार पत्रों में पढ़ने योग्य क्या रखा है? आप घंटों अखवार पढ़ते चले जाते हैं और अगले दिन इसे भूल जाते हैं। दंवी के लिए क्या रखा है? परन्तु पैसा मुझे मिल जाता है। मैंने अपना अन्ततोगत्वा लोग धन के चक्कर में ही 1. । पैसे के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं है। मेरा गणित अच्छा है परन्तु जो भी पैसा आप देते हैं वह सीधा उनके पास चला जाता है और वो अपने हिसाब से उसका उपयाग करते हैं। परन्तु यदि कोई पूछे कि फला चीज के लिए कितना पैसा आया तो मुझे कुछ पता नहीं क्योंकि धन में मरी कोई दिलचस्पी नहीं है। पैसे में दिलचस्पी लेने के एक गहना बेचा तो अपनी लागत से सौ गुणा पैसा मुझे मिला। आप कह सकते हैं कि चैतन्य लहरियों के कारण ऐसा हुआ। जो चाहे आप कहें। पैसे के पीछे यदि आप दौड़ेंगे तो इसके शिकजे में फंस जायेंगे । बारे में कहा है कटाक्ष-कटाक्ष निरीक्षण । हर कटाक्ष में देवी सभी कुछ पुरुष, स्त्री या किसी अन्य चीज पर जब वे दुष्टि डालती हैं तो जान जाती हैं कि उसकी स्थिति क्या है। आप यदि मेरे बच्चे हैं तो आपको भी बेसा जानती हैं किसी ही करने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि मैं तो जंगलां में दौड़ जाया करती थी । इस प्रकार के सभी स्थानों पर मैं जाया करती थी और इस सुन्दर पृथ्वी मां, जिसने इन सुन्दर चीजों की सृष्टि की है, का आनन्द लेती थी। क्या आपने देखा है तो लालच से मुक्ति पाने का क्या उपाय हैं? [प्रयत्न द्वारा दूसरों को देकर उसका आनन्द लेना । किसी अन्य को कुछ दें, अपनी चीजें उनके साथ बाटे और फिर देने के आनन्द का अनुभव करें। ग्रेगोर आज यहां नहीं हैं, मुझे उसकी 5. चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1.2 और 3 1998 देने पडते हैं। इटली के लोग अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं । और एक साड़ी मुझे पसन्द आई । परन्तु महंगी होने के वे सुन्दर सुन्दर वस्तुएं बनाते हैं परन्तु करों के कारण वे ऐसा कारण मैंन उसे नहीं खरीदा । वाहर आ गई आप हैरान हांगे नहीं कर पाते । सभी को मुर्ख बनाकर कंवल रूपरेखाकार (Designers) ही पैसा बनाते हैं वे लोगों को बहुत बेवकूफ में आनन्द से भर गई। अगले ही दिन जाकर उस दुकान से बनाते हैं। एक बार मेरे पति कंरो गए और वहा से मेरे लिए आए । आकर कहने लगे यह रूपरेखाकारों याद आ रही है। एक बार मैं एक साड़ी की दुकान पर गई मेरे जन्मदिन के अवसर पर उसने वही साड़ी मुझे भेंट की। लंकर वह साड़ी खरीद लाया था और जन्मदिन के उपहार के रूप में मुझे भंट कर दी । यह छोटी-छोटी चीजें लोगें को देने से एक गुलुवन्द (Designers) का है। मैन कहा मुझे तो यह भारतीय लगता है। यह भारतीय चीज है। और हैरानी की बात यह थी कि इसके आप महान आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। अपने पर खर्च करने से यह आनन्द प्राप्त नहीं होता । मुझे याद नहीं आता कि अपने जीवन काल में मैंने अपने लिए कुछ खरीदा हो, कभी नहीं । मैं यदि खरीददारी के लिए जाऊ तो प्यास लगने पर कभी अपने लिए कोकाकोला तक नहीं खरीदा । लोग जानते हैं कि मैं अपने लिए कुछ नहीं खरीदती । वास्तव मं कुछ नहीं । परन्तु आप सब लोग मुझे इतना कुछ देते हैं कि मेरी चश्मों में इतनी कौन सी विशेषता होती है। एक वार मैं उनहें एक काने पर लिखा हुआ था "भारत में बना"। उन्होंने इस पर 25 पौंड खर्च थे । भारत में इसे दो पौड में खरीदा जा सकता है। तो विशिष्ट वर्ग की सृष्टि कराना एक अन्य चौज हैं। आप मेरे चश्मों की दखें । ये मेरे दामाद ने खरीदे थे । वह कहने लगे कि यह सर्वोक्तम हैं। मैं नहीं जानती थी कि पहनकर अमेरिका की एक दुकान पर गई तो सभी लोग मुझ समझ में नहीं आता कि उसका क्या किया जाये ! अब मैने यह निर्णय किया है कि 75 वर्ष की आयु के पश्चात मुझे मैडम मैडम कहकर पुकारने लगे । मैंने सोचा मुझमें ऐसी आप लांगों से कुछ भी नहीं लेना चाहिए । परन्तु आप लोगों को प्रसन्न करने के लिए कुछ लेना भी पड़ सकता है। ये लोग कह रहे हैं कि कंवल राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय उपहार स्वीकार कर लें। ठीक है। परन्तु इससे अधिक कुछ नहीं । सभी देशों को लाने की भी जरूरत नहीं । आखिर राष्ट्रीय या अन्तराष्ट्रीय क्या होता है। आप सभी अन्तर्राष्ट्रीय लोग हैं। मेरे लिए कोई उपहार लाने की क्या आवश्यकता है? मेरे पास तो इन्हें देखने का भी समय नहीं है। अन्य चीजों में मैं इतनी व्यस्त हूं क्योंकि संसार में इतनी अधिक समस्यायें हैं। अत: कौन सी विशेषता है। यह लाग मुझे मैडम क्यों पुकार रहे हैं? आह! आप नहीं जानती? यह कार्टियर है। मैंन पूछा कि यह कार्तिये कौन है? मैं इसके विरोध में कातिंकय को खड़ा कर दंती हूं । कितनी मूर्खतापूर्ण चीजें हो रही हैं। लोग मेरे लिए पार्थक फिलिप्स" नामक चड़ी ले आए चलती ही न थी । मैंने कहा यह क्या है? यह कभी समय पर चलती ही नहीं है। हो सकता है मेरी चैतन्य लहरियां उस । यह समय पर पर कोई जादू कर रही हों । तो मैंने यह घड़ी उनमें से एक को दे दी । मैने कहा इसे पार्थक फिलिप्स को दिखाओ | श्रीमाताजी इससे उनके अहम् को चाट पहुंचेगी । मैंन कहा कि हम क्या कर रहे है मुझे विश्वास है कि आपमें से क्यों? क्योंकि वे स्वयं को सर्वोत्तम मानते हैं। मैने कहा जो भी हो इस घड़ी को उनसे बदल लो । तब मैने अपनी बेटी को कहा कि वह उसे ले लें । मैं तो कोई सीधी सादी चीज ले कमाएं । उसकी कोई आवश्यकता नहीं । जो भी आपको । यह घड़ी भी रूपरेखाकारों की थी । अब बह प्राप्त होता है ठीक है। निसन्देह: कोई रचनात्मक कार्य यदि रूपरेखाकार जेलों में है। रूस से आते हुए मैं इनमें से कुछ से मिली । वे एकदम बेकार लोग थे । काई भी विचार यह कहीं से ले लेते हैं और उसे बहुत ऊंचे दामां पर बेचते हैं. मेरी राय है कि इन सब वातों से ऊपर उठकर हम स्वयं दंखे किसी का पैसा स्विस बैंकों में नहीं है। परमात्मा का धन्यवाद । अपनी आवश्यकता से अधिक कभी न लूगी आप कर रहे हैं, कोई कलाकृति आदि की सृष्टि आप कर रहे हैं तो ठीक है। अनावश्यक वस्तुएं आप मत खरीदिए । बेकार में चीजां का खरीदते जाना या पैसे को इधर-उधर और यदि आप बेवकूफ हैं तो आप इसे ले लेते हैं। क्या आपने देखा कि यह कार्तिये है? सहजयोगी सर्वसाधारण लोग है । अब ये लोंग भी माफिया ही हैं और आपका अनुचित में भी लिखी छुपाते फिरना, इसकी कोई आवश्यकता नहीं । ईमानदार बनकर, समस्याओं से पूर्णत: ऊपर उठकर आपको बहुत सन्तुष्टि होगी । मैं आपके साथ सहमत हूँ कि माफिया की बहुत बड़ी लाभ उठा रहे हैं। मैंने यह बात अपनी पुस्तक है। कि यह उद्यमी आपको मुर्ख वनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप साधारण वस्त्र पहने । साधारण, हाथ से बने वस्त्र पहनने समस्या है। माफिया को केवल सरकार ही वश में कर सकती कहीं अच्छे हॉगे वजाए उन वस्त्रों के जिनसे आप अटपटे दिखाई दें । ऐसे बस्त्रों से तो कंवल आपकं अहम् की ही सृष्टि होती है। तो लोंगों की आदत होती है। मान लो मेरे पास है क्योंकि यह बहुत अधिक कर देते हैं। अब उदाहरणार्थ इस गरीब देश में मैं इस गरीब ही कहंगी क्योंकि अधिकतर लोग करों की वजह से परेशान हैं व्यक्ति को 265 प्रकार के कर 6. चैतन्य लहरी ॥ खंड : 10 अंक : 1,2 और 3 1998 सकते हैं? अधिकतर, यह रूस से आए हैं। रूस में मैंने कालीनां का यह कारखाना देखा । निर्यात की उन्हें समझ नहीं है। मैंने उनसे पूछा कि एक कालीन का मूल्य क्या है । उन्होंने कहा केवल बीस डालर। डाक्टर से मैंने पूछा कि खाना खाने के कुछ बर्तन है। यह चाहे अच्छे न हों परन्तु लांग । मेरे आकर पूछेगे कि यह कहां से लिए । मैं नहीं जानती विचार से किसी ने मुझे दिए थे । नहीं नहीं आप पता लगाइये क्योंकि यह वहुत अच्छे हैं। अगले दिन जाकर वह पूर वाजार में वैसे बर्तन खोजेंगे । सहजयोग इसके बिल्कुल विपरीत है। मेरे विचार से आप सहजयोग पर निर्भर हैं। एक बार मेरे पति अब क्या करें । हमें बहुत से कालीन खरीदने हैं। मैंने उनसे पूछा कि निर्यात के लिए इसका मूल्य क्या है? दो सौ डालर | मेने कहा भारत में तो इसके विपरोत है! उन्हें यदि कोई चीज निर्यात करनी होती है ता उसका मूल्य कम होता है। मैंने इसका समाधान खोजा और बीस सहजयोगियों से जाकर एक एक कालीन खरोदने के लिए कहा । रूस के लोगों को वे बीस डालर में कालीन देते हैं। की एक चाय सैट पसंद आया । लन्दन में बहुत बड़ी-बड़ी दुकानें हैं । मैं वहां गई । "बाप रे बाप"। उसकी खोज में हम घूमते रहे । किसी ने कहा इसे देने के लिए हमें छः महीने लगेंगे, किसी सात महीने और किसी ने आठ महीनें। आप हमें इसका आर्डर दे दें। मैंने विचार ही छोड़ दिया। तब सर सी. पी. ने कहा कि इन फैक्टरियों को क्या हो गया है? मैंने कहा अतः आप लोगों को समाधान खोजने चाहिए. समस्याएं नहीं । लालच एक समस्या है। बहुत बड़ी समस्या । इससे छुटकारा कैसे पाया जाए? कोई भी चीज खरीदते हुए हमें सोचना चाहिए कि यह वस्तु में किसके लिए खरीदूं । हां यह तो मेरे उस मित्र के लिए ठीक रहेगी । इस प्रकार से यदि आप अपने मस्तिष्क को शिक्षित करते हैं तो आप हैरान होंगे, इनके पास कुछ नहीं हैं। यह सभी कुछ नियात कर रहे हैं। जब मैं आस्ट्रेलिया गई तो हैरान थी कि विज्ञापन के लिए उन्होंने यह चाय सैट बहुत कम कीमतं पर उपलब्ध कराए । आस्ट्रेलिया में आधी कीमत पर मुझे यह चाय सैट मिले । यदि आप में लालच नहीं हैं तो आपको हर वांछित चीज आराम से मिल जायेगी अत्यन्त आराम से लालच दीड़ जाएगा और आपको आनन्द प्राप्त हो जायेगा । जिस प्रकार आप मुझे चीजें भेंट करना चाहते हैं और मैं आपको, इसी प्रकार अन्य लोगों के विषय में भी सोचे । ये सब भी बहन भाई हैं । कुछ देश अन्य देशों से मित्रता बनाते हैं। देने से लालच समाप्त होता है रा । परन्तु यदि आपमें लालच है तो परमात्मा आपको नचाते हैं । चीज का यदि आपको लालच नहीं है तो वह आपको मिल जायेगी । लालची प्रवृत्ति ने हमें दास बनाया हुआ है। इसके मैं एक हजार एक उदाहरण दें सकती हूं कि यदि आप कुछ भी नहीं मांगते, किसी चीज की इच्छा नहीं करते तो आपको आवश्यकता की हर चीज मिल जाती है। जिस भी हमारो जरूरते पूरी कर दो जाएंगी । परन्तु यह वास्तविक चौज की आपको जरूरत होती ठीक है! यह बात इतनी सहज हैं। किसी और आपकी इच्छाए पूर्ण ही जाता है । यह इतना सुगम मन्त्र है। इतने चमत्कार देखने के बाद भी, आश्चर्य की बात है, आप नहीं समझ पाते कि जरूरत होनी चाहिए । इकठ्ठा करने की इच्छा नहीं । यह नाटक (स्विस बैंक लाड़ी) बहुत अच्छा था । मैंने इसका आनन्द लिया । मैं जानती हूं कि मेरा देश इससे दुःखी है। है वह आपको मिल जाती है। परन्तु यदि आप इच्छा किए चले जाते हैं तो चीजों के पीछे पागलों की तरह दौड़ते रहते हैं । यह ले लो और जाओ । और तब चीज भी नदारद हो जाती है। इसीलिए कहा गया है कि निलिंप्सा विकसित करो । कोई चीज यदि उपलब्ध है तो है, कि पीलग्रिमस प्रोगैस एक अत्यन्त पुराना नाटक हैं जिसे ठीक है और यदि नहीं है तो भी ठीक है। तब आप हैरान होंगे मैंने बहुत समय पूर्व पढ़ा था । परन्तु इन्होंने जो दर्शाया वह दूसरा नाटक जो इंग्लैंड के लोगों ने किया वह दर्शाता कि आपका चित्त अत्यन्त सूक्ष्म हो जाएगा अब, मेरे विचार वास्तविक तौर्थ-यात्रा थी । इन्होंने यह दर्शाया कि किस तरह में आपमें से किसी ने भी यह सुन्दर फूल नहीं देखें । इतनी से एक साधक गलत चीजें दर्शांता है। इन्होंने यह भी सुन्दर कढ़ाई (Embroidery) है! क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस कलाकृति में कितने हाथ हैं । चौदह, अठाइस, इस और चौदह इस और अठाइस भली-भाति बताया कि उत्थान मार्ग की ओर बढ़ते हुए, सहजयोगी भी किस तरह भिन्न खाइयों में गिरता है। यह जानना आपके लिए आवश्यक है कि यदि आप सहजयोगी हैं तो आपको सावधान रहना होगा तथा अहम् तथा प्रति अहम् की बुराइयों से बचना होगा पश्चिमी देशों में प्रतिअहम् की अपेक्षा अहम् की समस्या अधिक है। अहम् को दूर करने का मात्र एक ही तरीका है कि आप स्वीकार कर लें कि आपमें अहम् है। आप यदि जानते हैं कि आपमें अहम् है । तो आप किसी चीज को ध्यान से नहीं देखते और आपका चत्त महामाया बन जाता है। परन्तु यह कोई स्पष्टीकरण नहीं है। आपका चित्त यदि स्पष्ट है, सहज है तो आप वस्तु को केवल चित्त से स्पष्ट देख सकते है। चित्त स्वयं आपको वहां ले जाता है जहां आपने है। आप जो खरीदना चाहते थे वही वस्तु आपको पहुंचना मिल जाती है। यह कालीन कहां से आए, क्या आप मुझे बता तो अहम् समाप्त हो जाएगा। मात्र यह जानना आवश्यक और चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1, 2 7. 3 1998 नहीं बता पाऊंगी । मैं सहजयोग में विवाहित लोगों से विशेषकर महिलाओं से बातचीत करना चाहती हूं । मुझे है कि आपमें अहम् है। किसी चीज का अहम्; लोगों में है। एक महिला बहुत अहंकारी तुच्छ चौजा का अहम् होता थरी । मैंने उसके विषय में पूछा तो मुझे बताया गया कि लगता है उनमें से कुछ अत्यन्त रोबीली और मुर्ख हैं। मेरे क्योंकि यह गुड़ियां वनाना जानती है इसलिए इसे बहुत विचार से विवाह मधुमास है। मधु सार तत्व है और चांद (Honey Moon) शान्ति हैं। अब यदि महिलाएं झगड़ालू हैं. है। यह बात मेरी समझ में नहीं आती । यह सारी रूपरेखाकारिता व्यंग्यात्मक हैं, लड़ाकी हैं तो पुरुषों के लिए पूरा नरक हैं। भी अहम् पर आधारित है तथा आपको प्रदर्शन करने के लिए इसकी अपेक्षा यदि महिलाएं सार तत्व का जानती है तो उन्हें पति को प्रसन्न रखते हुए परिवार में शान्ति लानी चाहिए । आपके पति किस प्रकार प्रसन्न होते हैं आपको यह समझना चाहिए । दूसरों को किस प्रकार प्रसन्न करें. आत्मसाक्षात्कारी अहंकार है । तो छोटी-छोटी चीजों का भी लोगों को अहंकार यह सब खरीदने पर बाध्य करती है। अत: नम्र बनने तथा समझने का प्रयत्न करें कि यह सारी लौकिक वस्तुएं हम अपने साथ नहीं ले जाएंगे। मैं इनका त्याग करने के लिए नहीं कह रही हूं और न यह कह रही हूं कि आप सन्यास ले लें लोगों का यह एक गुण होता है। हम अपने पतियों के लिए | परन्तु आप इतना अवश्य जान लें कि आपके मुकाबले इन चीजों का मूल्य कुछ भी नहीं है। जब अहम् आता है तो यह है? सर्वप्रथम उनकी पसन्द जान लें । मेरे पति (अच्छा हुआ मुर्खता भी आ जाती है। आप सोचते हैं कि कोई अच्छा वस्त्र पहनकर आपने अन्य लोगों को बहुत प्रभावित कर दिया है। लगाओं । आपके वस्त्रों से प्रभावित होने वाले लोग भी एक तरह से वरणिया लगाती हैं। परन्तु जिस दिन से उन्होंने कहा तब से मूर्ख ही है। एक बार मैने एक अंगूठी पहनी थी । उसे मैं 1. क्या करती हैं? क्या हम उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करती वं चले गए) कहा करते थे कि तुम अपने बालों में फूल मत परन्तु महाराष्ट्र में सभी महिलाएं अपने बालों में । कोई बात नहीं । वे मैंने अपने बालों में वैणी नहीं लगाई नहीं जानते थे कि मैं क्या हूँ| इसलिए उन्होंने ऐसा कहा । परम्परा वादी परिवार से होने के कारण उन्होंने मुझे चूड़िया पहनने के लिए कहा । मैंने सदा अपनी कलाइयों में चूड़ियां पहनकर कुछ खरीददारी के लिए एक दुकान पर गई तो वहां सभी लोग मेरे सम्मुख नतमस्तक ही गए । मैंने सोचा कि यह लोग पहले मेरा कभी इतना सम्मान नहीं करते थे पहनी है । इससे उन्हें प्रसन्नता मिलती है तो ठीक है। पति को प्रसन्न करने के लिए छोटे-छोटे कार्य किए जाते हैं । तब अचानक कंसे बदल गए हैं! उस दुकान पर एक महिला मुझे जानती थी । वह पूछन लगी कि क्या आपकी अंगूठी का नग वास्तविक है? मैंने कहा, हां । यह हमारे परिवार में चला आ वो भी सोचते हैं कि मैं अपनी पत्नी के लिए क्या करूं? परन्तु शुरुआत महिला से होनी चाहिए क्योंकि महिलाएं समाज रहा है। तो आपका परिवार बहुत धनी है। मैंने कहा नहीं यह हमारे पुरखी का है। मैंने तो इसे केवल पहना हुआ है। हे के प्रति जिम्मेदार हैं । पाश्चात्य संस्कृति यह नहीं बताती कि परमात्मा ! यह वास्तविक है, इसकी कीमत क्या होगी? मैंने कहा में इसकी कीमत के विषय में कुछ नहीं जानती । क्या तुम मेरे लिए एक मंगा सकती हो? छोटी छोटी चीजों को देखकर वे प्रभावित हो जाते हैं। हमारे अन्दर महानतम चीज उनका क्या कार्य है। अर्थशास्त्र, राजनीति, धनार्जन, पुरुषों के कार्य हैं। मैं मानती हूं कि इसमें उन्होाने बहुत गड़बड़ की है। परन्तु आपका कार्य समाज को बनाना है। और इसके लिए आपको अपने बच्चों को व अपने पति को प्रसन्न रखना केम होगा। हर वक्त रोव जमाते रहना आपका कार्य नहीं है। छांटी-छोटी वातों द्वारा पति के रौब को भी निष्प्रभावित करते ता हमारी आत्मा है। इस पर यदि आप गर्वित होंगे तो मुर्खतापूर्ण कार्य नहीं करेंगे । आप सभी लोग आत्मसाक्षात्कारी और तीर्थ यात्रियों की अवस्था से बहुत ऊपर उठ चुके है। ॐा रहना आपका कार्य है। में आपकी एक उदाहरण दंती हू। मेरे पति के कार्यालय में एक व्यक्ति थे । पति के मामले में मैं कभी दखलंदाजी नहीं करती । परन्तु उस व्यक्ति ने मॅरे पति आध्यात्मिक लोग हैं और अपनी आध्यात्मिकता से एक प्रकार की संस्था को छोड़कर एक अन्य संस्था में नोकरी कर ली बि अब महानतम बात यह है कि आप जानते हैं कि आप से मुझ पर भी प्रभुत्व जमाते हैं। आप सब यदि सामूहिक रूप से किसी चीज की इच्छा करें तो मैं इसे टाल नहीं सकती । आपको प्रसन्न करने के लिए मुझे यह स्वीकार करनी पड़ती मिल रहा था । परन्तु उन्हें व्योंकि वहां उन्हें अधिक वेतन लगा कि नई संस्था बेकार है। इसलिए वे जहाजरानी निगम में वापस आना चाहते थे । परन्तु मेरे पति नियमाचरणों के है। आपकी इच्छा के कारण में बहुत से कार्य कर रही हूं । मामलों में बहुत कठोर है। उन्होंने उसे निगम में रखने से परन्तु इसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं होता । तो बच्चे जो चाहते हैं मैं उन्हें करने देती हूं । परन्तु अहम् का काबू में इन्कार कर दिया । वह मरे पास आया और सहायता करने के लिए प्रार्थना की । मैंने कहा यदि मैं उनसे कहूंगी तो वे बिगड़ जायेंगे । फिर भी मैं जानती हूं कि इस कार्य को कंसे करना है। मैंने अपने पति को बताया कि वह व्यक्ति मेरे पास आया होना अत्यन्त आवश्यक है। एक अन्य बात जो मैं आपको बताना चाहती हूँ और जिसे मैं कल नवरात्रि पूजा के कारण चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 था । हां, तो अब क्या तुम मुझे इसके बारे में दुखी करोगी? नहीं नहीं मैं ऐसा कुछ न करे । किसी को भी समझाना कठिन कार्य है। क्योंकि पुरुष आक्रामक प्रवृत्ति तथा क्रोधी स्वभाव के होते हैं। परन्तु मेंने अभी अभी आपको बताया है कि किस प्रकार उनके क्रोध वह समझता है कि मैं आपसे अधिक उदार हूं । तुरन्त को काबू करना है । फिल्मों में मैंने अत्यन्त रोमांचक दृश्य देखें हैं। यह कभी घटित नहीं होते । कोई भी फिल्मी चरित्ों लन्दन में भी उस व्यक्ति ने मेरे पति की काफी सहायता की जैसा नहीं होता । तो आपको भी चाहिए कि उनसे फिल्मी थी । तो जब भी हम अपने पतियों को वश में करना चाहते नायकों जैसा होने की आशा न करें । आपको प्रेम करना होगा. है, हमें यह कार्य अत्यन्त सहज ढंग से करना चाहिए । मूल सर्वप्रथम अपने पति को हृदय में उतारना हागा । यह आपका इसके अतिरिक्त आप क्या करते हैं? शीलांग की इस लड़की के विषय में जान कर मुझे बहुत आधात पहुंचा। उस लड़के ने मुझे कहा कि "श्रीमाताजी आप चाहे मुझे जान लिए? पश्चिम में विशेष कर इटली में महिलाओं के विषय से मार दे परन्तु उस लड़की को में नहीं बुलाऊंगा!" यह नहीं करूगी। फिर भी आप सोचे कि उन्होंने पूछा क्यों आया? क्योंकि वह मेरे पास क्यों आया । मुकाबला शुरु हो गया और उस व्यक्ति को नौकरी मिल गई। बात पर अपनी अंगुली रखें । यदि छोटी छोटी चीजों के लिए कर्तव्य है, आप पति पर रोब जमाओगी तो उसका कोई लाभ न होगा । आपका विवाह किसलिए हुआ है? मूखता या मधुमास के में हमारे बहुत बुरे अनुभव हैं। इंग्लैण्ड की लड़कियों ने भी मुझे बहुत कष्ट दिये । अब हमने उन्हें वर्जित कर दिया है। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती। शीलांग की एक लड़की का विवाह अमेरिका के एक व्यक्ति से हुआ । शीलांग के विषय में सोचे जहां रोज तीस कत्ल होते हैं। उस लड़की को सत्य है कि वह लड़की आनन्ददायिनी नहीं है। पुरुषों से मुझे यह कहना है कि यदि आपकी पत्नी ऐसी है तो उसका कारण जानने का प्रयत्न कीजिए । उसकी क्या समस्या है? क्यों वह रोब जमाती है? क्या आप भी यह सोचते हैं कि वह रौब जमाती है? अधिकतर पति बातचीत करते हुए कहते हैं कि पत्नियां रौव जमाती हैं? क्यों पत्नियां आप पर रौब जमाती हैं? आपमें ऐसी कौन सी कमी है जो वह ऐसा कर रही हैं? अन्तर्दर्शन यदि आप करें तो आप जान जाएंगे कि पत्नी को आप बहुत कम समय दंते हैं। एक मैने अमेरिका जाने का अच्छा अवसर मिला । नि:सन्देह अमेरिका भी कोई महान स्थान नहीं है। परन्तु उस लड़की नें अत्यन्त बचकाने ढंग से वर्ताव करना शुरू कर दिया। उसके पति ने मुझे बताया कि श्रीमाताजी उसे तो पर-पीड़न में आनन्द मिलता है। जब भी मैं उसे टेलीफोन करता हूँ वह इतने रूप में बात करती हैं कि मैं हैरान हो जाता महिला अपने पति से तलाक लेना चाहती थी । पूछा हुआ होता है। मरे लिए उसके पास कोई टाइम ही नहीं । मेंने कहा यदि तुम उसे तलाक दे दोगी तो फिर तो वह तुम्हें कभी मिलेगा ही व्यंग्यात्मक र हूँ! मैंने कहा शीलांग की महिला का ऐसा आचरण ! मुझे विश्वास नहीं होता । उस व्यक्ति ने मुझे सभी कुछ बताया । क्यों? क्योंकि वह सदा काम पर ही गया कोई भी पुरुष इस प्रकार की बातों को नहीं सुनना चाहेगा । परन्तु वह लड़की समझती रही कि मित्रता में बह ऐसी बातें कर रही है। विवाहित जीवन में यह सब नहीं चलता । पुरुष नहीं चाहता कि उसकी पत्नी घोड़े पर बेठ कर चाबुक चला रही हो । उसके विवाह का अभिप्राय क्या है? प्रसन्नता, आनन्द माधुरय। ये बात करनी आवश्यक थी क्योंकि बहुत सी महिलायें समझती हैं कि वे कोई महान चीज हैं। कुछ के पास थोड़ा-सा धन है और कुछ के पास नौकरी । परन्तु नहीं । क्या तुम उसे तलाक देना चाहती हो । कम से कम हा। कुछ समय तो वह तुम्हें देता है। तलाक यदि हो गया तो वह कभी भी तुम्हारे साथ न होगा। तलाक की बात मरी समझ में नहीं आती। महिलाओं को एंसी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करनी चाहिए । इसी कारण से यदि अपने पति की तलाक देना चाहती हो तो यह हास्यास्पद है। पुरुषों के लिए भी आवश्यक है, कि वे पत्नियों के लिए कुछ समय निकालें। उनकी ओर कुछ ध्यान दं और उनकी पसन्द की कुछ वस्तुएं उन्हें दिलवाएं । मैं अब एक बार फिर तुम्हें अपना उदाहरण दूंगी। मर पति कभी मंरे लिए फूल नहीं लाए । आप सब मेरे लिए तो मरे जन्मदिन पर भी मेरे लिए फूल आपका पहला कार्य समाज को तथा अपने पति को प्रसन्न रखना है। यह प्रथम कार्य है। स्त्री यदि पुरुष को प्रसन्न नहीं रख सकती तो वह हमारे लिए बेंकार है। वह बेकार सहज योगिनी है। दफ्तर में काम करने वाले पुरुष के लिए आवश्यक वे फूल लात है परन्तु नहीं लाए । मैंने महसूस किया कि इस व्यक्ति को फूलों की समझ ही नहीं है। वे नहीं जानते कि गुलाब क्या है और कोई अन्य चीज क्या है। इसलिए वे फूल नहीं लाते कि कहीं वे कुछ गलत न ले जाए । गुलाब की जगह कहीं कैक्टस ही न ले जाएे । एक दिन उन्होंने स्वीकार किया कि मुझे फूलों का ज्ञान नहीं है। गुलाब के अतिरिक्त मैं कुछ नहीं जानता और है कि वह अपने अफसर को प्रसन्न रखे, यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो वह बेकार है. तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसी प्रकार पत्नी को अत्यन्त प्रेम पूर्वक पति के विषय में सोचना चाहिए, क्योंकि यह उसका कार्य है। इसी के लिए उसका विवाह हुआ है। अन्यथा उसे चाहिए कि विवाह 9 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 31998 ठीक है। इतना बेकार कपड़ा वो ले के आए कि उनके दफ्तर गुलाब में भी वे भ्रम में पड़ जाते हैं। तो अज्ञान के वश आपके पति कोई कार्य नहीं करते तो कोई बात नहीं परन्तु के लोगों ने कहा कि "सर यह आपकी पसंद तो नहीं है।" पुरुषों को चाहिए कि वे अपनी पत्नियों की पसन्द को समझें। उन्होंने वो सूट फैंक दिया और कहने लगे कि अब मैं कभी वह क्या चाहती हैं । पुरुषों की अपनी ही एक शैली होती है। एक बार फिर में अपना उदाहरण दे रही हूँ। मेरे पति महगी महिला को यदि इस चीज का ज्ञान हो कि पुरुष पर कौन सा चीजें खरीदने के आदी हैं। मैं उनसे कह चुकी हूं कि वे मैरे लिए कुछ न खरीदा करें । तुम्हें पसन्द नहीं आती? नहीं नहीं मुझे पसन्द आती हैं परन्तु इतनी महंगी चीजें आपको नहीं को गुलाबी और काले रंग मिलाकर रंग करवाया । यह बहुत खरीदनी चाहिए । स्काच हाऊस से वे महगी स्वेटरें खरीदना चाहते हैं। एक स्वेटर ढाई सौ पौंड की होती है और मेरे पास न जाने कितनी पड़ी हैं। मैंने कहा कि यह स्वेटरें मैं स्विटजरलैण्ड से मंगा लूगी । वहां पर यह बहुत स्ती हैं। फिर वे सदा मेरे लिए कश्मीरी कोट लाना चाहते हैं। मेरे पास खरीदने नहीं जाऊंगा । तुम जाकर मेरे लिए खरीद लाओ । रंग फवता है तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि लोगों की पसंद भी पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण है। एक बार मैंने अपनी बैठक सुंदर रंग है, गर्मजोशी का रंग । कहने लगे यह क्या रंग तुमने करवी दिया? तुम्हें कोई और रंग करवाना चाहिए था मैंने मैं कहा, ठीक है कल हमारे यहां पार्टी है, इसके पश्चात यह रंग बदलं दूंगी । अगले दिन मेहमान आए और कहने लगे, क्या रंग है। क्या यह आपने बनाया है? मेरे पति मेरी ओर देखने लगे कम से कम दस कोट हैं फिर भी वह सदा कश्मीरी कोट हो । मैंने कहा क्या में इस रंग को बदल दू नहीं. देना चाहते हैं। और यह मैं अपनी बेटियों और नातिनों को नहीं । पुरुष जनता की राय की बहुत चिंता करते हैं, अत: तुम्हें देखना चाहिए कि तुम उनके लिए किस प्रकार की राय कायम करवाती हो, ताकि वह तुम्हारी प्रशंसा कर सकें। यह सब विधियां हैं। यह छोटी-छोटी बातें हैं फिर भी आपको समझना होगा । पुरुष कभी-कभी नाराज हो जाते हैं, परन्तु कोई बात नहीं । वास्तव में किसी और पर यदि वह नाराज हांगे तो भी आकर वो तुम पर बरस पड़ेंगे, यह अच्छी बात है क्योंकि यदि वह किसी अन्य से ऐसा बर्ताव करेंगे तो पिरटेंगे। तम कम से कम उन्हें पीटोगी तो नहीं । पुरुषों देती जा रही हूं । क्या करू । उनके मन में कोई बुराई नहीं है। परन्तु व कुछ जानते ही नहीं । जाने से पूर्व वो मेरे लिए एक साड़ी खरीदने के लिए गए । मेरा एक भर्तीजा उनके साथ गया । दुकान पर जाकर कहते हैं कि आपके पास जो सबसे महंगी साड़ी हैं वह मुझे दो । भारत में एक बार पूजा में दुकानदार ने भी यह समझ लिया कि कोई बिल्कुल अन्जान व्यक्ति आ गया है। एक साड़ी लाकर उन्होंने दिखाई और कहा यह सबसे महंगी साड़ी है और इसकी कीमत है 45000 रुपये । ठीक है, ठीक है, मेरे पास एक कार्ड है क्या आप इसे स्वीकार करेंगे? और वे साड़ी खरीद लाए । यह इतनोह के विषय में यदि आप थोड़ी सी बातें जान लें तो सारा कार्य हो सकता है। नि:संदेह कुछ अत्यन्त बेतुके पति-पत्नियां भी होते हैं। उनके लिए सहज योग में तलाक का प्रावधान है। तो में के आपसे बताना चाहती थी कि आपको बहुत अच्छी गृहणियां और बहुत अच्छी गृहलक्ष्मियां बनना है यह मैं आपको भारी थी मानो जिरह बख्तर हो! कहने लगे कि तुम पूजा लिए इसे अवश्य पहनो । इसे पहनकर में एक विशालकाय की भांति चल रही थी । आपकी मां का एक नाम है अति सोम्या-अति रौद्रा"। वे अत्यन्त सौम्य इसलिए बता रही हूं क्योंकि मेरा गृहलक्ष्मी चक्र मुझे परेशान कर रहा है । सभी डॉक्टरों ने मुझे इसके विषय में बताया है। इसका कारण यह है कि सामूहिक रूप से गृहलक्ष्मियां ठीक नहीं है। क्योंकि वह अच्छी गृहणियां नहीं हैं। अब स्विस महिलाओं को ही लें। में सहमत हूं कि वह बहुत अच्छी हैं वे अत्यधिक सफाई पसंद हैं। सफाई के पीछे स्विस हैं और अत्यन्त अत रौद्र हैं। उस साड़ी को पहनकर मैं नहीं जानती कि मैं क्या लग रही थी ! अपनी कुर्सी से मैं चिपकी हुई बैठी थी । इतना सारा वजन उठा कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि खड़ी कैसे होऊ ? घर आकर मैंने उसे संभाल कर एक ट्रेक में रख दिया उन्होंने पूछा तुम इसे पुनः कब पहनोगी? मैंने परन्तु महिलाएं पागल हैं। आप पांच मिनट भी उनसे बातचीत नहीं कहा कि वह साड़ी किसी विवाह के अवसर पर पहनने के लिए रख दी है। साड़ी मैंने रख दी, क्योंकि उन्हें साड़ियों का ज्ञान ही नहीं है। कर सकते । उनके साथ यदि आप बैठें हैं तो भी वे झाड़-फूंक करती ही रहती हैं। सफाई, सफाई, सफाई ! स्विस महिलाएं इस मामले में अति कठिन हैं। अभी मैं इलित्रिया में थी, किसी ने मुझे बताया कि इलित्रिया की महिलाएं स्विस महिलाएं कहलाती हैं तो घर यदि थोड़ा सा अव्यस्थित भी है किस प्रकार वो दे रहे हैं और कितने प्रेम से । बेचारे कुछ तो कोई बात नहीं। भारत की कोई महिला ऐसा नहीं करेगी. नहीं जानते उनके लिए सूटों के कपड़े हमेशा मैं खरीदती हूं मेहमान बैठे हैं और गृहणी हुबर (सफाई मशीन ) ले कर । एक बार कहने लगे कि इस बार मैं खरीदूंगा । मैंने कहा खड़ी है। और यदि कुछ टूट जाए ! भारत में यदि थरमामीटर इसे फिर कभी पहनूगी। वायदा करके वह वो यह भी नहीं जानते कि असली क्या है और नकली क्या है। पर, कोई बात नहीं तुम्हें उनका हृदय देखना होगा कि 10 चैतऱ्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 चाहिए ताकि यह सारा स्वार्थ समाप्त हो सके । आपक संकुचित हृदय के कारण यह बना हुआ है आपका हृदय यदि विशाल हो जाए तो सारा स्वार्थ धराशायी हो जाएगा। मैंने यह सब इसलिए कहा क्योंकि मुझे विवाहित महिलाओं के विषय टूट जाए ती कहते हैं, चढ़गा । परन्तु पशचिम में यदि थोड़ी सी कॉफी विखर जाए तो तुरन्त वो सभी मंहमानों के सामरन ही सफाई मशीन या कुछ अन्य चीज सफाई के लिए ल आएंगे । यह आवश्यक नहीं है, यह अत्यन्त सूक्ष्म प्रकार का भौतिकवाद है। मेहमान में बहुत जब बैठे हुए आपको क्या आवश्यकता है। परन्तु पश्चिमी महिलाएं इस बात को समझती ही नहीं । भारत में यदि किसी घर में आप बहुत अच्छा हुआ, अब बुखार ही नहीं े सी शिकायते प्राप्त हुई हैं, कुछ भारतीय महिलाओं मैं आपको बता रही हूँ। रूसी हैं तो उनकी उपस्थिति में यह सब करने की विषय में भी । इसलिए महिलाओं की बहुत सराहना हो रही है। व अत्यन्त सन्तुष्ट आत्माएं हैं जिनकी जरूरत बहुत कम है तथा जो लालची नहीं हैं। आश्चर्य की बात है! साम्यवाद मे उनका इतना हित किया जाए तो [उनकी रंग यांजनाएं भिन्न-भिन्न होती है। दक्षिण भारत की रंग योजना भिन्न है. सभी की अपनी पसन्द है। घर में घुसते ही पश्चिमी महिलाएं कह उठेंगी, क्या रंग योजना है! आपने कितनी अच्छी चीज खरीदी है! हे परमात्मा! सामने - सामने है। साम्यवाद की अतिशयता ने उन्हें एक ऐसे क्षेत्र में धकेल दिया है जहां उनका आधिपत्य विवेक ही समाप्त हो गया है। उनमें आधिपत्य भाव नहीं है। उनकी सरकार ने कहा तुम यह फ्लैट ले लो और उनकी देखभाल करो । उन्होंने कहा कि वे तुरन्त आलांचना करने लगंगी । हमें नहीं चाहिए, हम वैसे ही ठीक है। सरकारी नौकरों को कहा गया कि तुम अपनी कारें ले सकते हो, परन्तु उन्होंने कहा कि हमें नहीं चाहिए। क्यांकि कार का स्वामित्व इतनी तो दूसरी बात यह है कि सदैव दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखें। महिलाएं अन्य लोगों की भावनाओं का पूरा ध्यान रखने के लिए होती हैं। वे क्या सोचते हैं । किसी भारतीय घर में यदि वे जाती हैं तो वहां बना हुआ खाना वे बड़ी सिरदर्दी है। वे ऐसे लोग नहीं हैं जो स्वामित्व के विषय बड़े आनन्द से खाती हैं फिर भी ये दर्शाने का प्रयत्न करती हैं कि वो लोगा बहुत निम्न हैं। मैं कहती हैं कि यह पश्चिमी है। मुझे उनका नाम भूल गया है जो वित्तमंत्री थे । जिनेवा में संस्कार है। यदि किसी ने कोई कपडे पहने होंगे तो वे उस पर टिपण्णी करेंगी । अच्छे भारतीयों को ऐसा करते आप नहीं पाएंगे । आधुनिक भारतीयों को मैं नहीं जानती कि उनके रुझान कंसे हैं। परन्तु एकदम से वे ऐसी बातें कह देते हैं प्रभाव है। फिर भी वहां के लोग बहुत अच्छे हैं। वहां से तथा जिससे चोट पहुंचती है। महिलाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत सदैव प्रशंसा करें, इसमें क्या हानि है? में जागरूक हों। नि:सन्देह अब उनमें भी कुछ अटपटे लोग उन्होंने कुछ रहस्य की बातें जान ली और बहुत सारे तथाकथित सुधार लेकर लीटे । अत: अब लेनिनग्राद और मास्को बहुत महगे हो गए हैं। यह सारा स्विटजरलैण्ड का रोमानिया से आई हुई महिलाओं का बहुत सम्मान होता है। अब सभी लोग रूस, रोमानिया या कीव की लड़कियां ही मांगते हैं। परन्तु इस बार वे नहीं आई। उनके न आने का हमें खेद है। उनकी कमी हमें खल रही है। किसी चीज की प्रशंसा करके आपका व्यापार कम नहीं होता। कितनी अच्छी चीज है! कितनी अच्छी साडी है। कितने अच्छे कपड़े हैं। ऐसा कहने में क्या नुकसान है। आप वास्तव में अपने माधुर्य का आनन्द लेंगे । ऐसा कहना झूठ बोलना सुन्दर पुस्तक लिखी है। आप सबको खरीदनी चाहिए । इस नहीं है। आवश्यकता से अधिक ईमानदारी भी जरूरी नहीं । आपको यदि कोई चीज अच्छी नहीं लगती तो यह कहना अंत में मुझे आपको बताना है कि अरुण आप्टे ने एक पुस्तक में आप सब भारतीय संगीत के विषय में जान सकेंगे। कहा जाता है कि इस संगीत का प्रार्दभाव ओंकार से हुआ। हुआ । यह अत्यन्त विवेकशील संगीत है। जो संगीतज्ञ मेरे सम्मुख आवश्यक नहीं कि यह मुझे पसन्द नहीं है। यह शब्द ही सहजयोग से चला जाना चाहिए कि मुझे यह पसन्द हैं और पाश्चात्य संगीत गा रहे थे वह ठीक था परन्तु इसमें तालएक्य का अभाव था । इसमें माधुर्य न था । वे सोचते हैं कि वे सहजयांग में रहंगे? अत:- मुझे पसन्द है मुझे पसन्द नहीं है अपने हृदय के माध्यम से गा रहे हैं। अस्वाभाविक रूप से वे प्रभाव उत्पन्न करना चाहते हैं। कई हिस्सों में - एक शब्द गाने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे यह पसन्द नहीं । मैं यदि एंसा कहू तो कितने लोग को त्याग दिया जाना आवश्यक हैं। पसन्द करने या न करने और फिर दूसरा शब्द वाले आप कौन हैं? इसमें न माधुर्य है और न ही प्रसार । जबकि रूसी लोकगीत आपकी आत्मा और हृदय के विषय में क्या है? तो एक बार फिर से वही चीज आती है कि महिलाओं का बहुत माधुर्यमय थे । बड़ा हृदय होना चाहिए, बहुत सुन्दर हृदय । आपकी गरु एक मां हैं। अत: आपको बहुत अच्छी माताएं और बहुत अच्छी पत्नियां बनना होगा और आपका हृदय अत्यन्त विशाल होना परन्तु चिन्ता न करें, अमेरिका के लाग, इस क्षेत्र पर भी हमला कर रहे हैं। संगीत का अर्थ है कि यह गा ता आपको प्रसन्न करे, आपका मनोरंजन करे, न कि यह आपको ल] उदास कर दे । यह भावनाएं यदि आपमें हों तब आप इस 11 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 भयंकर है। परन्तु यह वह लोग होंगे जिन्होंने बहुत कष्ट उठाया है और राक्षसों का वध करने कं लिए मां से प्रार्थना प्रकार कहने का प्रयत्न करें । तब आप कहें कि मुझे यह में इस पर काबू कर लूगा । आप क्योंकि सहजयागी हैं अत: आपको विजय दर्शानी होगी । संगीत में है परन्तु समस्या कर रहे हैं। अब एक प्रकार से यह सब स्वाभाविक रूप से मारे जाएंगे, केवल यदि आप लांग विवेक से कार्य लें । आप लोग ही इस कार्य को कर सकते हैं अपनी जरूरत से अधिक चीजें यदि आप इकट्ठी न करें, इन चीजों को अपनी विजय प्रकृति को दर्शाना होगा । मैं अन्य लोगों की बात नहीं कर रही, वे तो रोते, चिल्लाते और गाते रहते हैं| परन्तु इसमें माधुर्य नहीं होता। यह केवल टुकड़ों में होता है। आकस्टा भी कभी आश्चर्यचकित नहीं करते बचाकर यदि आप स्वाभाविक चीजें और पृथ्वी से प्रेम करें तो मुझे विश्वास है यह सब कार्यान्वित हो जाएगा । पृथ्वी मां स्वयं इसे कार्यान्वित करेंगी । आप भूचालों की जानते हैं। अब कांई भी चर्च नहीं जाता । मैं कुछ नहीं करती । यह पृथ्वी मा है। मैंने कुछ नहीं किया नष्ट हुई कलाकृतियों का मुझे खेद है। अब आप देखें कि प्रकृति किस प्रकार कार्य करती और इनमें माधुर्य होना चाहिए । भारतीय रागों में माधुर्य है हैं इन्डोनेशिया के ऊपर कें मुसलमान लाग धुएं से पीडित हैं। मैंने यह सब नहीं किया । आप यदि कुछ गलत करने लगते हैं तो यह लौटकर आप पर पड़ता है। हर क्रिया को प्रतिक्रिया है। तो आपकी मुखाकृतियां सहज होनी चाहिए । आप सहज होने चाहिए । आपको विकृत लोगों जैसे नहीं होना । के-के-के करता रहता है। परन्तु भारतीय आकस्टा माधुर्यमय है। यह मन्द समीर की तरह से बहता है। दोनों में यह अन्तर बहुत खराब है। तो गाने वाले संगीतज्ञों से में अनुरोध करूंगी कि गाने का यह अभिप्राय नहीं कि इसमें एसे शब्दों का प्रयोग हो जिन्हें कोई न समझ सके । संगीत में शब्द स्पष्ट होने चाहिए परन्तु योरापियन संगीत में शब्द हैं तो बाल नहीं हैं। अत: आप लोग धुन आदि का आनन्द लेते हैं। आप भाषा जानते हैं या नहीं इससे कोई अन्तर नहीं होता । तो पाश्चात्य संगीत में जब आप माधुर्य का मिश्रण कर सकंगे तो यह कितना भिन्न हो जाएगा! यह पुस्तक आपको यह सब सिखाएगी । आप इसे चाहिए । आप सहज हैं और आपको सहज स्वभाव होना खरीदें और समझे कि संगीत किस प्रकार आपको रोगमुक्त चाहिए । मुझे खेद है कि मैंने इतना अधिक समय लिया । को इसके कल में इन सब चीजों के बारे में बात नहीं कर पाऊंगी । करके आनन्द प्रदान कर सकता है। संगीत के मूल आपको सोचना चाहिए कि हमारी मां हमें प्रेम करती है। वो सारतत्व को जाने और तब आप इसका पुष्पीकरण करें। मुझे विश्वास है कि यदि भारतीय संगीतज्ञ पार्चात्य संगीत को चाहती है कि हमारा परिवार बहुत अच्छा हो तथा हम अपने अपना लें तो इसकी स्थिति बहुत बेहतर हो जाएगी मुझे समझ में नहीं आता, यह लोग अत्यन्त प्रसिद्ध हैं और लोग को शिक्षा दी है। पत्नीभक्त हो जाना अच्छा है। इसमें कोई सोचते हैं कि यह बहुत अच्छा कमाते हैं। अमेरिका में कोई हानि नहीं है। पत्नीभक्त का यह भी अभिप्राय नहीं कि आप वच्चों की देखभाल कर सकें । इसीलिए मैने सभी स्त्री पुरुषों भी इस प्रकार से कमा सकता है। परन्तु इसे शुद्ध संगीत दब्बू हो जाएं । परन्तु पत्नी को प्रसन्न करने में क्या हानि है? इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि पत्नी आपको रौब दं । मूर्खतापूर्ण चीजों की आज्ञा आपका नहीं देनी चाहिए. बनाने के लिए आपके पास भारतीय संगीत का आधार होना आवश्यक है। तब इसे आप मनचाहे ढंग से बिस्तृत कर । महिलाओं को भी यह समझना आवश्यक है कि उसका परिवार उसके माता पिता और श्रीमाता जो से अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि मैं खुशहाल परिवार को देखकर ही खुश सकते हैं। भारतीय संगीत को समझने के लिए कृपया आप यह पुस्तक खरोदें । इस पढ़े और आपको भारतीय संगीत का सार पता चल जाएगा । अंत में, आज नवरात्रि का चीथा दिन है और मुझे इन्होंने कुछ एसे नाम दिए हैं जो वास्तव में हूं। आप सबकां हार्दिक धन्यवाद । पूर्ण शान्ति का एकमात्र स्रोत सहजयोग - ( हिन्दुस्तान टाइम्स-दिल्ली 7-04-1997 ) "व्यक्ति यदि मानसिक शान्ति तथा मानव एकता उन्होंने यह बात कही थी । भूतपूर्व राज्यपाल श्री जी.सी. सक्सेना और श्री बी.सत्यनारायण रेड्डी भी इस अवसर पर थे । डॉ. निर्मला देवी ने कहा कि विश्व शान्ति डॉ. निमंला देवी ने सहजयोग का संदेश विश्व के बहुत से के लिए लोगों में सामूहिक चेतना का होना अत्यन्त देशों में दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय एकता संस्थान द्वारा दिल्ली में महत्वपूर्ण है और सामूहिक चेतना केवल आत्मसाक्षात्कार के पश्चात ही आ सकती है। उन्होंने सहजयाग की चिकित्सकीय चाहता है तो उसके लिए सहजयोग एक मात्र मार्ग है," यह उपस्थित शब्द कहे सहजयोग विज्ञान की प्रतिष्ठाता डॉ. निर्मला देवी ने। आयोजित किए गए एक उत्सव के अवसर पर भाषण देते हुए चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 12 एक योगी की अनूभूति लाभों के विषय में तथा विश्व के भिन्न देशों में इसकी लोकप्रियता के विषय में भी वताया । उन्होंने कहा कि पूरे न्यूयार्क कार्यक्रम समापन होने पर सामान बांधा जा रहा विश्व के सहजयोगी एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं तथा वे वहुत से चमत्कारिक कार्य करने में सक्षम भी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय एकता संस्थान के महासचिव श्री आर.एन.अनिल ने घाोपणा की कि इस वर्ष का एकता पुरस्कार अन्तर्ाष्ट्रीय समिति के कार्य में योगदान के लिए डॉ. निर्मला देवी को दिया जायेंगा। अन्तर्राष्ट्रीय सहज योग अनुसंधान एवं स्वास्थ्य कं्द्र, तई मुम्बई के निर्देशक डॉ. उमेशराय ने सहजयोग के लाभों, विशेषकर उन बीमारियों में जिनका था । एक बागी मेरे पास आए और सहायता के लिए मुझसे कहा । हम उसकी कार तक दौड़कर गए और 'मैटा मार्डन ऐरा' की बीस प्रतियां उठाई क्योंकि श्रीमाताजी ने उन्हें चर्च के पीछे, जहां ब अतिथियों से भेट कर रही थी, मंगबाया था। इस प्रकार मुझे एक छोटे कमरे में श्रीमाता जी का सामीप्य प्राप्त करने का माका मिला । तभी एक महिला श्रीमाता जी से मिलने आई परन्तु उस योगी को जो कि एक डाक्टर था. श्रीमाता जी ने अपने समीप बुलाया । जब वह लोटा तो मेंने उससे पूछा कि क्या हुआ? उसने बताया कि उस महिला की अंगुली कट जाने से उसकी मध्यमा अंगुली की संवेदना समाप्त हो गई थी और अंगुली के सिर पर जलन चिकित्सकोय इलाज आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पास नहीं है, क विषय में बताया । उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पास बहुत से मनादैहिक रोगों का कोई इलाज नहीं है, जिसके कारण रोगी को पूरा जीवन औषधियों पर निर्भर रहना हाता है । । श्रीमाता जी ने अपना चित्त उस पर डाला और हां रही थी भिन्न अन्य सम्बन्धित रोगों के साथ-साथ सहजयोग अगुली तुरन्त ठीक हो गई मेंने स्वयं को धन्य महसूस उच्च तनाव, मिगी, अनिद्रा, मधुमेह, माईग्रेन, श्वासदमा आदि किया । आज तक मैंने साक्षात् में कभी श्रीमाता जी को देखा नहीं था और अब लगभग पूरी रात श्रीमाता जी के इतना समीप रहने का अवसर मुझे प्राप्त हो गया रोगों में अत्यन्त लाभकारी है। डॉँ. राय ने बताया कि गहन अनुसंधान तथा अनुभव ने यह प्रमाणित कर दिया है कि सहजयाग अभ्यास से मनादेहिक रोगां का इलाज कहीं अधिक है। जुनेटीन्थ (JUNETEENTH) क्या है? प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। मिगो रोगियों के विषय में बतात हुए उन्होंने कहा कि पारम्परिक औषधियां से 40% रोगी ठीक नहीं हो पाते । इसके विपरीत सहजयोग प्रथम जनवरी 1863 को राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक स्वतन्त्रता घोषणा पर हस्ताक्षर किए । जिसके अनुरूप उन्होंने यूनियन से सम्बन्ध विच्छेद करने के इच्छुक राज्यों क दासों को स्वतन्त्र कर दिया । परन्तु दासों के मालिकों ने यह समाचार उनसे छिपाकर रखना चाहा । 19 जून 1865 का अभ्यास से 80% मि्गी रांगी ठीक हो जाते हैं । उच्च तनाव एवं हृदय रोगों के इलाज में सहजयोग अभ्यास के लाभों के विषय में उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया वर्ष 1970 में सजहयोग की खाज की थी और शनै: शनै: यह विश्व के बहुत से देशों में लोकप्रिय होता जा रहा है । रोगियां के इलाज के लिए मुम्बई में एक संस्थान की स्थापना की गई है जहां ब्रह्माण्डीय चैतन्य लहरियों से रांगों का इलाज किया । डॉ. निर्मला दंवी ने ढाई वर्ष पश्चात् जब तक संघ की सेनाएं गनवेल्सट्न. टेक्सास नहीं पहुंची तब तक दास लोग अपनी स्वतन्त्रता के विपय में न जान सके । आज जुनेटीन्थ, अफ्रीकन अमेरीकी लोगां की स्वतन्त्रता का प्रतीकात्मक उत्सव है। यह उनका जाता है। आत्मसाक्षात्कार का उनका कार्यक्रम अब विश्व के मुक्ति दिवस है। यह एक दिवस है, एक सप्ताह है और कुछ 65 से भी अधिक देशां में चल रहा है। है जिसमें सभी प्रकार के उत्सव होते हैं। क्षेत्रा में एक माह श्रीमाता जी का सन्देश ईसा मसीह पूजा 1997 (गणपति पूलं ) सीखने में लगा देते हैं और किस प्रकार इतनी जल्दी इन लांगों ने इसे सीखा है। ये ईसा मसीह के जन्मदिन के इस शुभ अवसर पर में लोग कहते हैं कि ऐसा सहजयोग के आप सबको मुबारकबाद देती हूं और नववर्ष में आपकी समृद्धि की कामना करती हूं । यह लोग जो नागपुर अकादमी हैं कारण हुआ। परन्तु यह तो बास्तविक चमत्कार है। यहां तक की भारतीय संगीतज्ञ भी आज आश्चर्यचकित हैं। जिस प्रकार से आए हैं इन पर मैं हैरान हूँ कि इतने कठिन भारतीय संगीत को इतनी सुगमता से इन्होंने पकड़ लिया । केवल दो माह पूर्व ही आए हैं। कल्पना करें कि किस प्रकार संगीत के विद्यार्थी अपना पूरा पूरा जीवन शास्त्रीय संगीत महान् उस्तादों की तरह से ये गा रहे थे, मरी समझ में नहीं आता कि वे किस प्रकार इतना सीख पाए ! मैं जानती हूं कि मेरे परिवार में बहुत अधिक संगीत है और जो लोग संगीत में कुछ लाग तो 13 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1 2 ओर 3 1998 he एक बालक की अनुभूति :- 'जब में ध्यान करने के लिए बैठता हूँ तो तीव्र शीतल लहरियों के कारण मुझे बहुत दिलचस्पी रखते थे वे प्रात: काल बहुत जल्दी उठकर तीन घंटे और सांयकाल भी तीन घंटे इसका अभ्यास करते थे । जबकि ये लोग उन देशों से आए हैं जहां भारतीय संगीत का बिल्कुल ज्ञान नही है, फिर भी इतने जल्दी इन्होंने इसे पकड़ लिया है। संभवत: अपने पूर्व जन्मों में ये भारत में रहे हैं या ये अत्याधिक प्रतिभावान हों । सकती । वास्तव में यदि यह सहजयोग के कारण से है तो अच्छा लगता है। मेरी इच्छा करती है कि मैं सारा दिन ये शीतल लहरियां लेने के लिए बैठा रहू । मुझे लगता है कि मेरी आत्मा मेरे सारे चक्रों को शुद्ध कर रही है। तब मुझे कोई हुए महसूस होती है। जब मैं इन शीतल लहरियों का आनन्द लता चीज अपने सहस्रार को ओर जाते तक सम्भव होता है इसका वर्णन में नहीं कर हू । ध्यान से उठने पर अपने मस्तिष्क से मैं कहता हूं. अगली ध्यान धारणा होने तक मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता ।" में अवश्य कहूंगी कि सहजयाग चमत्कारों का सृजन करता हैं-आन्तरिक एवं बाह्य चमत्कार । अभी तक मेंने बाह्य चमत्कार देखे थे परन्तु अब यह आन्तरिक चमत्कार है कि जिन लोगों संगीत नहीं सुना इतना अच्छा गा रहे हैं । परमात्मा आपको नानक चुधे ने कभी भारतीय संगीत नहीं गाया, कभी भारतीय ड सा कक्षा ३ सहज पब्लिक स्कूल धन्य करे । तालन सूफी धर्म एवं सहजयोग E-FANI) हे। इसी प्रकार स्वाधिष्ठान चक्र सूफी धर्म में नफासिया (NAFSIYA) है और इस्लाम में नासौत (NA- SOUT) है. नाभिचक्र सूफी धर्म की कालदिया (QALDIYA) और इस्लाम का ला-होत (LA-HOUT) है। अनहद् सूफी ध रमें में सिरिया (SIRRIYA) और इस्लाम में साहोत (SA- HOUT) है: विशुद्धि सूफी धर्म में रूहिया (RUHIYA) तथा इस्लाम में मलखीत (MALAKHOUT) है : अगन्य सुफी ध र्ें में खाफिया (KHAFIYUA) और इस्लाम में जबरौत (JAB-ROUT) है तथा सहम्रार सूफी धर्म में हकीकते (HAQUIQUATE) और इस्लाम में लाहोत (LAHOUT) है। डॉ. अमजद ने विस्तारपूर्वक वताया कि किस प्रकार इस्लाम में मानव पुनर्उल्थान के समय इन 373 चक्रों के महत्व की व्याख्या की है। गंगा-यमुनी तहजीव तथा इस्लामी तालीम के गढ़ के रूप में विख्यात लखनऊ शहर ने इस्लामो तालीम समूह द्वारा आयोजित "आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से कयामा का आगमत संगोष्ठी में हाल ही में सूफी धर्म एवं सहजयोग का सम्मिश्रण देखा । %3D विश्व के भिन्न देशों से मुस्लिम पेशेवरों का मिश्रित यह समूह लागों को प्रेरणा देने का गंभीर प्रयत्न कर रहा है कि मानव के सूक्ष्म शरीर में ही माक्ष प्राप्ति का मार्ग है इन्होंने कुरान में वर्णित 'सात स्वर्गो' की तुलना सहजयोग में श्री माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा बताए गए सात चक्रों से करने का प्रयत्न किया । तुर्की के सुप्रसिद्ध सूफी विद्वान हुसैन ताउप (HUSSAN TAUP) ने जो कि इस्ताम्बुल से आए थे, सम्मेलन का शुभारम्भ चक्रों (चेतना) के सात स्वर्गो का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए किया। इनका वर्णन पेगम्बर मोहम्मद ने भी किया है। उन्होंनं चेतना की हर स्थिति का वर्णन किया उनके अनुसार सबसे महत्वपूर्ण स्थिति वह है जब परमात्मा मनुष्य से प्रसन्न हो जाता है। तब परमात्मा मानव के माध्यम से देखता और सुनता है। अन्तिम स्थिति में मानव परमात्मा की पाकिस्तानी डॉ. जफर राशिद नं कहा कि कोई भी धर्म इच्छा से आच्छादित हो जाता है। अल्जीरिया में जन्मे वायुयानी इंजीनियर श्री जमल, जो अब परिस में काम कर रहे हैं ने कहा कि लडाई 'मुस्लिम कहलाने और 'मुस्लिम होने' के बीच है। परमात्मा नहीं चाहते कि उनके बच्चे दुख उठाए।' जिस दिन मानव स्वयं की स्थिति समझेगा वही कयामत पुनर्उत्थान तथा निर्णय का दिवस होगा । आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी हस्पताल में कार्यरत अलग-थलग होने के लिए नहीं है। धर्मो का जब आयाजन कुम जिसमें मानव को शान्ति प्राप्त हो किया गया और इससे जब मानव की आत्मसाक्षात्कार प्राप्त यह वह अवस्था है जाती है तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा से उसका योग हो जाता है। जॉवन पर्यन्त मुल्ला, प्रचारक एवं इमाम रहे श्री ताउप इस सम्मेलन की प्रेरणा शक्ति थे । आस्ट्रेलिया में मेलबोर्न हस्पताल में कार्यरत पाकिस्तानी डॉ. अमजद अली ने चक्रों की इस्लामी और सूफी व्याख्या की । प्रथम चक्र मूलाधार सूफी धर्म में कलाविया (QALABIYA) और इस्लाम का अलाम-ए-फानी (ALAM- करने के अवसर से बंचित किया गया तब समस्या आरम्भ हो गई । सूफी शब्द की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि इसका उद्भव सफाई से है अत: मानव को चाहिए कि पापों से स्वयं को मुक्त करने के लिए गहन प्रयास करे । 17.02.1997 टाइम्स ऑफ इंडिया नई दिल्ली 14 चैतन्य लहरो खंड : 10 अंक : 1.2 और 3:1998 ho नवरात्रि पूजा कम पा ता वा ड ा का या 5-10-1997 कबैला (इटली) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज नवरात्रि का छठा दिन है। भिन्न उद्देश्यों से देवी के बहुत से अवतरण हो चुके हैं। मां के भक्त महान सन्तों ने अन्तर्दर्शन द्वारा यह जान लिया कि देवी ने उनके लिए क्या किया है। उस दिन मैंने आपको बताया था कि धर्म मानव की सहजयोगी बनकर आपको ईष्ष्यां नहीं करनी चाहिए क्योंकि अन्तर्जात संयोजकरता है और इन संयोजकताओं की संख्या दस हैं। यह संयोजकताएं हमारे अन्दर पहले से ही स्थापित हैं परन्तु जब हम धर्म से हटते हैं तो सारी समस्याएं खड़ी हो है कि आप श्री माताजी द्वारा आशीर्वादित जाती हैं। धर्म को छोड़ना मानवीय गुण नहीं हैं। देवी ने हमारे सहजयोगी नहीं हैं। नहीं, आप यदि आशिर्वादित हैं तो आपमें अन्दर बहुत सा कार्य किया है यद्यपि हमें इसका ज्ञान नहीं ईष्ष्या हो ही नहीं सकती और यह ईष्ष्या उस सीमा तक है। कहा जाता है 'या देवी सर्व भूतेषु'- जिनका सृजन आपने चली जाती है कि हम कबैला से हैं और तुम अलवैला से; किया है अर्थात् मानव, उनके साथ आप क्या करती हैं? किस हैं। अत्यन्त आश्चर्य की बात है! जव देवी ने आपको प्रेम का गुण प्रदान किया है. किस प्रकार आप ईर्यां कर सकते हैं? फिर भी मानव में ईष्ष्या रूपी मूर्खता आम बात है। परन्तु देवी ने तो आपको प्रेम का गुण प्रदान किया है। उसी गुण का प्रदर्शन होना चाहिए । परन्तु इसके विपरीत आप ईर्ष्या करते हैं। इसका अर्थ यह समाप्त । यह दोनों तो एक दूसरे के इतने समीप हैं जैसे दी नासिकाएं, परन्तु फिर भी ईष्र्यां है। इस बात की भी ईध्यां होगी कि श्री माताजी मेरे देश में क्यां नहीं आती । आप उस देश में क्यों नहीं जा सकते । रूप में आप मानव के अन्दर विद्यमान है। अब आप अन्तर्दर्शन करके देखें कि क्या आपमें देवी के गुण हैं या नहीं? क्योंकि ये आपको देवी ने, शक्त ने प्रदान किए हैं । जैसे 'या देवी सर्व भूतेषु शान्ति रूपेण सस्थिंता- बहुत महत्वपूर्ण है-अर्थात हे देवी मानव में आप शान्ति रूप में विद्यमान हैं। क्या आपको ऐसे लोग मिलते हैं जो अन्दर और बाहर से शान्त हैं? बहुत कठिन बात है, परन्तु देवी ने यह प्रेम करने की अथाह शक्ति । अशुभ शक्ति हमारी हो ही नहीं की तो मेरा, तेरा के अज्ञान से इसका उद्भव है। इतनी भयंकर रूप से ईण्र्या हममें आ जाती है कि हमें इस चौज का ज्ञान ही नहीं रहता कि मां ने तो हमें प्रेम की शक्ति दी है गुण आपको प्रदान किया है। उन्होंने आपको वह शान्ति प्रदान की है जो आपको प्राप्त करनी थी । सकती । धर्म की. प्रेम करने की मंगलमय शक्ति का अर्थ है कि यह लालच, वासना ओर ईध्यां रहित होनी चाहिए । व आप क्योंकि मानव धर्मों से च्युत हो गए हैं अत: देवी परन्तु मानव मस्तिष्क में इस प्रकार धूर्तता विकसित हुई है द्वारा दी गई यह शान्ति आपकी अपने उत्थान द्वारा कुण्डलिनी कि किसी के प्रति ईर्ष्यालु होने पर भी यह गर्व करता है । जैसा मैने आपको बताया इसी ईर्र्यां से लालच जन्म लेता है। यह सत्य बात है, क्योंकि आप यदि ईष्या करते हैं तो दूसरे चोट पहुंचाना चाहता है या किसी को कष्ट देना चाहता है। व्यक्ति जैसी ही चीज आप खरीदना चाहते हैं और इस प्रकार कभी-कभी तो वह इन चीजों का आनन्द लेता है। सहजयोगी दूसरों से मुकाबला शुरू हो जाता है । किसी की नौकरी यदि होकर भी लोगों का दूसरों को चोट पहुंचाने और दुःखी करने आपसे अच्छी है तो आप उसका मुकाबला करना चाहते हैं। यह सारो चीजें विध्वसक हैं परन्तु देवी की शक्तियां रचनात्मक को जागृति द्वारा प्राप्त करनी होगी। व्यक्ति पहले से ही उत्तेजित है या किसी से प्रतिशोध लेना चाहता है. किसी को में मजा आता है। तो दूसरी बात जो कही गई, 'या देवी सर्व भूतेषु प्रीति रूपेण संस्थिता। प्रीति अर्थात् प्रेम का गुण-मानव हैं। उनकी दी गई सभी शक्तियां पूर्णतः रचनात्मक है। सन्ती को प्रेम का गुण प्रदान किया गया है। परन्तु इस गुण का ने कहा है 'या देवी सर्व भूतेषु क्षमा रूपेण सस्थिता।' क्षमा. मानव में अभाव है क्योंकि उसमें तो ईष्य्यां रूपी दुर्गुण हावी हार्दिक क्षमा कोई आपके प्रति कठोर है. किसी ने आपका हैं। अब मान लो मैं किसी व्यक्ति को कुछ तोहफा देती हूं अनुचित लाभ उठाया है. आपको कष्ट दिया है, परन्तु आपमें और किसी का कुछ और । सहजयोग में भी लोग ईष्ष्या करते क्षमा करने की महान शक्ति है। क्या हम क्षमा की इस शक्ति औ 15 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 धर्मों में इसका वर्णन किया गया है कि हम भ्रम जाल में फंस जाते हैं। तो वे कौन से भ्रम हैं जिनमें हम फंसते हैं। हमें का उपयोग करते हैं । महसूस करने के लिए देवी आपको निद्रा प्रदान करती है; या देवी सर्व भूतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता', जब आप थके हुए होते हैं, सो नहीं सकते तो वह आपको सुला देती है, आपको आराम पहुंचाती है। तो वह आरामदायिनी है क्योंकि वे पराअनुकम्पी नाड़ीतन्त्र (PARASYMPATHATIC NERVOUS SYSTEM) के माध्यम से कार्य करती है। अनुकम्पी नाड़ीतन्त्र (SYMPATHETIC NERVOUS SYS- TEM) आपको उत्तेजित कर सकता है, अवनत कर सकता है अहम् का भ्रम है। पुरुषों को यह भ्रम है कि वे अत्यन्त शक्तिशाली हैं और कुछ भी कर सकते हैं तथा इसके लिए उन्हें दण्ड नहीं मिलेंगा महिलाएं भी उसी प्रकार आचरण करती हैं। वे नहीं समझ पाती कि यह मां का दिया हुआ भ्रम है ताकि हम अपनी गलतियों को जान सकें। यदि आप किसी को बताएं कि आप गलती कर रहे हैं, ऐसा मत कीजिए तो उनकी समझ में नहीं आता और वे गलती किए चले जाते हैं । तो मां (महामाया ) कहती है बहुत अच्छा, बहुत बढ़िया. बड़ी अच्छी बात है, करते चले जाओ; समुद्र में कूद पड़ो ! जब परन्तु परानुकम्पी] आपका आराम पहुंचाता है, आपके हृदय को, आपक शरीर को आराम प्रदान करता है और पूर्णत: शान्त होकर आप अपनी मां की गोद में सो जाना चाहते हैं। आपको महसूस हो जाएगा कि आप भ्रमित हैं तभी आप वापस आ सकेंगे । बिना किसी समस्या के आप वापस नहीं परन्तु कुछ लोग सदा यही साचते रहते हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है वे सो नहीं सकते । आपको बदि नोंद नहीं आती तो निश्चित रूप से आपमें कोई कमी है। जब आप नहीं सो पाते आ सकते । आपमें से बहुत से लोग जिद्दी हैं, अपने ही तो मैं भी नहीं सो सकती। सामूहिक रूप से जो भी कुछ विषय में चितित है। आपको जो भी कुछ बताया जाए आप नहीं समझेंगे। मानसिक स्तर पर आपको समझाने की जितनी भी कोशिश की जाए सब व्यर्थ है। परन्तु भ्रम मस्तिष्क से है। स्थिति में जब आप होते हैं तो, स्वाभाविक है कि आप नहीं घटित हो रहा है उसका प्रभाव मुझ पर पड़ता है, सामूहिक रूप से यदि कोई गलत कार्य आप करते हैं तो इसका असर मुझपर होता है। आप इसलिए नहीं सो सकते क्योंकि आप ऐसी वस्तुओं के बारे में सोचते रहते हैं जो मूल्यहीन हैं। सहजयाग में इस स्थिति से ऊपर उठने का एक हो उपाय है-निर्विचार समाधि में चले जाना । परन्तु जब आपका अहं मा की ऊपर है। कठिन लोगों का यह बहुत अच्छा इलाज चाहते कि आपका बच्चा ब्बाद हो । महामाया इसे अपनी जिम्मेदारी मानती हैं और सोचती हैं कि अब इन्हें परमात्मा से कार्यशील हैं (यह बच्चा बहुत दंगा करता है, इसे मैने सदैव योग प्राप्त हो गया है और अब यह सम्बन्ध टूटना नहीं चाहिए तथा हर समय यह आशिर्वादित तथा प्रसन्न रहने चाहिए । यह सब हमारे अन्तः स्थित है, बचपन से ही हमारे अन्दर इसकी रचना है, परन्तु हम यह भूल जाते हैं । धीरे धीरे हम इसे खोने लगते हैं। हो सकता है बन्धनों के कारण हो या जाते इधर-उधर भागते हुए देखा है, अच्छा होगा इसे समझा दे) आपने देखा होगा कि भारत में बन्चे पूर्णतः शान्त रहते हैं। क्यों? क्योंकि बच्चे को साधने की जिम्मेदारी मां संभाल लेती है। आपने बहत से कार्यक्रम देखे हैं क्या कभी किसी बच्चे का इधर-उधर दौड़ते हुए अहम् के कारण हो या ये भी हो सकता है कि वे हो कि वे आत्मसाक्षात्कारी हैं। मैं आप लोगों से बात कर रही हूं जोकि आत्मसाक्षात्कारी हैं, उन लोगों से नहीं जो खो चुके देखा है? कल भी यह बच्चे यहां भूल ब पर दोड़े रहे थे। इसका कारण यह है कि माताएं बच्चों का ठी प्रकार से पालन-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेतीं। यद्यपि आपकी आयु काफी है फिर भी जो आपके, आपके समाज के और आने वाली इस पीढ़ी के हित में है वह मुझे हैं या सहजयोग की खोज में हैं। जिस प्रकार आपका पोषण हुआ है जितने प्रेम, माधुर्य, स्नेह तथा करुणा से आपको बताया गया है, इसके बावजूद भी आप यदि नहीं समझते तो आप भ्रान्ति में चले जाते हैं। उदाहरणार्थ यह भी कहा गया है, 'या देवी सर्व भूतेषु लज्जा रूपेण संस्थिता। लज्जा, मैं नहीं जानती कि इसका वर्णन किस प्रकार किया जाए । यह संकोच नहीं है। यह शरीर के विषय में. एक प्रकार से, शर्म है। अब सौन्दर्य प्रतिस्पर्धाएं होती हैं, भारत में भी सौन्दर्य छ बताना पड़ता है। इस नई पीढ़ी में यदि अब भी आप ठीक से आचरण नहीं कर रहे हैं, यदि आपका आचरण सहज नहीं है तो किस प्रकार आप अन्य लोगों को प्रभावित कर सकते य हैं? तो मा ( श्रीमाताजी) को यह सब बताना पड़ रहा है। ह सबसे दिलचस्प गुण जो मा ने आपमें भर दिया है वह है, 'या देवी सर्व भूतेषु भ्रान्ति रूपेण संस्थिता ।' वो आपको भ्रम में डाल देती हैं क्योंकि कभी कभी भ्रम का सामना किए प्रतिस्पर्धाएं होने लगी हैं। लज्जा रूपेण सस्थिंता का अर्थ है बिना बच्चे बात को समझते नहीं हैं। उन्हें भ्रम का सामना कि आपमें, विशेषकर महिलाओं में शरीर की शर्म होनी चाहिए । बचपन में आप देखते हैं कि महिलाएं बहुत शर्मीली होती हैं, छोटी-छोटी लड़कियों को देखें, वे कितनी शर्मीली हैं! धीरे-धीरे यह शर्म लुप्त हो जाती है। परन्तु आरंभ भें तो करना होगा बो आपको गलती की एक सीमा तक जाने देती हैं जहां आप जान जाते हैं कि आप खो गए हैं। उनका महामाया की यह भूमिका निभाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सभी 16 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 वे मुझसे भी शर्माती हैं। रखती हैं और नमस्ते तक नहीं कहती । अत्यन्त मधुर। बेचकर धनार्जन करने जैसा है। इसमें और वेश्यावृत्ति में क्या अटपटे वस्त्र पहने हुए लोग उन्हें अच्छे नहीं लगते । मुझे याद है किसी पत्रिका में मेरी नातिन ने एक महिला को यह वेश्यावृत्ति है। आपको अपना शरीर नहीं बेचना चाहिए । तेराकी बशभूषा पहने हुए क्या कर रही हो? अच्छा होगा कि तुम अपने कपड़े पहने लो नहीं तो मेरी नानी आकर तुम्हें जोर से मारेंगी । उस चित्र को मेरे सम्मुख आकर वे सिर झुकाए बहुत से विवेकशील लोगों ने किया क्योंकि यह शरीर को फर्क है। शरीर को बेचकर यदि आपको धन मिलता है तो देवी ने आपको ऐसा करने की आज्ञा नहीं दी है। भिन्न वह कहने लगी, यह तुम देखा । अवसरों पर आप अच्छे-अच्छे वस्त्र धारण करें। उस दिन मैंने एक महिला को अत्यन्त सुन्दर साड़ी भेंट की जिसे हम 'पैठनी' कहते हैं। पुस्तक विमोचन के उत्सव पर वह महिला आई तो मैंने उससे पूछा वह कहने लगी कि आज कोई विवाह तो नहीं है, इस अवसर पर मैं पैठनी कैसे पहन सकती हूं । यह तो विवाह के लिए पक वह इस प्रकार कह रही थी । फिर उसने निक्कर पहने एक पुरुष का चित्र देखा । कहने लगी यह व्यक्ति तो पूरी तरह निरलंज्ज लगता कि तुमने वह साड़ी क्यों नहीं पहनी? है। अब इसे बहुत कष्ट भुगतना पड़गा । पत्रिका उसने बन्द कर दी और नौकरानी से कहा कि इसे जला डालों । में इसे देखना नहीं चाहती । इतनी सी लड़की भी जानती थी कि यह गलत है। परन्तु आजकल जिस प्रकार से शरीर प्रर्दशन हो रहा है, मुझे लगता है कि यह रूपरेखाकार (Designers) खत्म हो जाएंगे या दिवालिया हो जाएंगे क्योंकि के लिए वे आवश्यक वस्त्र आभूषण पहनते हैं। इस कार्यक्रम आजकल लोग इतने कम वस्त्र पहनते हैं। वस्त्रों पर इतना के लिए यहां आने वाले लोगों की कल्पना कीजिए जो स्थान ही नहीं होता कि कोई कलाकार अपनी कला का उपयुक्त है। तो शुभ अवसर, स्थान आदि पर ही उत्सव मनाया जा सकता है। उदाहरणार्थ भारत में पति-पत्नी जब मन्दिर में पूजा करने जाते हैं तो देवी के सम्मुख प्रस्तुत होने हिप्पियों की तरह से पटसन के कपड़े पहन कर आ जाते हैं! मेरा क्या होगा? मैं आपको बता दें कि मैं तो हवा में ही लुप्त प्रदर्शन उन पर कर सके । जापान के लोग अब तो अमेरिकन हो जाऊंगी । अत: व्यक्ति को शरीर का सम्मान होना चाहिए. लज्जा रूपेण संस्थिता' में देवी ने यहो कहा है। अब आप कह सकते हैं कि लोग नदी में स्नान कर रहे हैं तथा उसका औचित्य भी बता सकते हैं। परन्तु आप लोग सन्त हैं, परन्तु वहुत समय पूर्व मैंने उनसे पूछा था कि किस प्रकार वे इतने बड़े बड़े वस्त्र (KEAMONAS) पहनते हैं। यह बहुत महंगे हैं और इनको पहनने में समय भी बहुत लगता है। तो उन्होंने उत्तर दिया कि देखिए परमात्मा ने एक सुन्दर शरीर बनाया है, यह उसकी कला है, इसे सजाने के लिए हमें अपनी कला का उपयोग करना चाहिए अत: शरीर को सजाने के लिए हमें वस्त्रों पर कलाकारी करती हैं। मुझे हैं बन गए आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं, आपको इन लोगों की ओर नहीं देखना चाहिए जो आत्मसाक्षात्कारी नहीं है तथा दुराचरण कर रहे हैं। आपको सन्तों की तरह आचरण करना चाहिए । यह बात अच्छी लगी क्योंकि भारत में भी ऐसा ही है। महिलाओं को साड़ी पहननी पड़ती है जोकि अत्यन्त कलात्मक देवी ने आपको बहुत से गुण प्रदान किए है। एक अन्य है, क्षुधा रूपेण संस्थिता । देवी ने आपको भूख प्रदान की है, ढंग से बहुत सुन्दर बनाई जाती है। शरीर को सजाने और इसका सम्मान करने के लिए ऐसा किया जाता है। परन्तु मुझे हमें खाना खाना चाहिए । आजकल पतला होने का फंशन है जिसके कारण बहुत से रोग पनप रहे हैं । अनोरेक्सिया (ANOREXIA) आदि, क्योंकि महिलाएं बहुत कम खाती हैं अपने खाने की वस्तुओं को आप परिवर्तित कर सकते हैं, परन्तु शरीर की देखभाल ही आपका केवल उद्देश्य नहीं है। कवल शरीर ही महत्वपूर्ण नहीं महत्वपूर्ण है। वह आपको कुण्डलिनी प्रदान करती है और वही आपको उत्थान की विधि बताती है। परन्तु हर समय शरीर के विषय में चिन्तित रहना मरी समझ में नहीं आता, विशेष कर महिलाओं का, जो कि शक्तियां हैं। एक अन्य चीज यह है कि महिलाएं फैशन के पीछे दौड़ती हैं; फैशन लगता है कि पागल अमेरिका के लोगों के प्रभाव में आकर यह सब समाप्त हो गया है। वे लोग बिल्कुल पागल हैं। उनसे सीखने के लिए कुछ नहीं है, वे केवल दो सौ वर्ष के हैं और हम उनकी तरह से आचरण करने लगते हैं। हम यह भी नहीं देखते कि उनके देश का क्या हाल हो रहा है, वे कैसे लोग हैं, किस प्रकार रहते हैं और उनके विचार क्या है! उनके जीवन का क्या लक्ष्य है। सभी कुगुरूओं ने इन पागल लोगों का अनुचित लाभ उठाया है यदि उनके पास मस्तिष्क होता तो वे कभी इन कुगुरूओं को स्वीकार न करते । उनके पास मस्तिष्क केवल कम्यूटर, टेलीविजन तथा मशीनों को चलाने है, आपकी आत्मा अधिक ट पागलपन है। युवावस्था में भी में इसी प्रकार का ब्लाऊज पहना करती थी । परन्तु भारत में भी फेशन का आरम्भ हुआ, ब्लाऊज की बाजुओं की लम्बाई घटती-बढ़ती रही। मुझे तो यह सब बेवकूफी लगी । क्यों इस प्रकार पैसा के लिए हैं। परन्तु अपने शरीर का रखरखाव करना वे नहीं जानते । बर्वाद किया भारत में एक सौन्दर्य प्रतिस्पर्धा की गई जिसका विरोध 17 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 2 और 3 1998 ho तक उन्होंने बैंक में हमारा पेसा बन्द रखा । पहली बार उन्होंने आकार को घटाते-बढ़ाते कहा कि ठीक है आप ऐसा कर सकते हैं। इस पर सत्तर रहें? यह फैशन है। फैशन कौन बनाता है? देवी? क्या देवी लोगों के हस्ताक्षर थें, फिर. उन्होंने कहा कि नहीं, आप इसे फैशन बनाती है? फैशन किसने बनाये हैं? भूखे और लालची तांबे में परिवर्तित कर दें। मैंने पूछा क्यों? तो कहने लगे ताम्बा । सौन्दर्य की दृष्टि सं ठीक है। परन्तु वे मूर्ख लोंग यह भी नहीं जानते कि तांवा बैसा ही लगेगा जैसे वे लगते हैं । एक महीन के पश्चात् वे वही रंग करेंगे । यह उनका सौन्दर्य बोध है ! अब मैंने उनसे कह दिया है कि अब हमें आपकी जमीन नहीं चाहिए, आप इसे अपने पास रखें और हमारा पैसा हमें वापिस कर दें इतनी छोटी-सी चीज के लिए, क्यों ? क्योंकि उनकी एक समिति हैं जिसकी सारी बेवकृपफिया हमें सहनी होंगी । कुर्सियों पर बैठकर वे बहस करते रहते हैं, इसका परिणाम क्या है? किसी भी चौज की उन्नति नहीं होती, शक्ति का पूर्ण अभाव है। हो सकता है उन्हें कुछ रिश्वत की जरूरत हो जाये, क्यों न आप परम्परागत, प्रचलित वस्त्र पहने । फैशन के अनुसार क्यों आप बाजुओं के ा |ति लोगों ने, जो आपको बेवकूफ बना रहे हैं, यह कार्य किया है और आप फैशनों के पींछे दौड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं! अब उदाहरण के रूप में मैंने आपको कहा था कि आप अपने वालों में तेल अवश्य लगायें, कम से कम शनिवार को काफी सारा तेल लगायें और फिर सिर को धो दें। परन्तु आप ऐसा नहीं करते, और आपके बाल झड़ने लगते हैं। मेरी समझ में नहीं आता । आपके पास समय का अभाव है फिर भी अपनी देखभाल करने के लिए आप लगे रहते हैं आपके बाल झड जाते हैं, आंखें कमजोर हो जाती हैं, दांत ं गिरने लगते हैं और बहुत शीघ्र आप बूढ़े हो जाते हैं। पुरुषां जी वे मरे से नहीं कह पा रहे! जो भी कुछ हो मेरी समझ में नहीं आता कि एक वार 'हा कह कर वही कार्यालय 'नहीं" के साथ भी ऐसा ही है। आज कल पुरुष सौन्दर्य गृह में जाते हैं। इतने अधिक पैसे की बर्बादी कैवल मूर्खता है! इसकी कैस कह दगा ! तीन साल गुजर गये हैं। ता में जो कहने का प्रयत्न कर रही हूं वह यह है कि अधिक सोचना अहम् की कोई आवश्यकता नहीं। अच्छे स्वस्थ जीवन के लिए आपको व्यायाम करना होगा और ध्यान धारणा भी । आप यदि ध्यान निशानी है। उन्हें किसी भी चीज का समाधान नहीं मिलता । धारणा करते हैं तो आप शान्त हो जाते हैं, और यह शान्ति आपको बहुत बर्बाद हो जाती है, और आप सोचते क्या हैं? आप यदि किसी व्यक्ति से पूछे ये आप क्या सोच रहे है? सभी कुछ, परन्तु किसी भी समाधान तक वे नहीं पहुंचते क्योंकि वह सब तो बहस ही करते रहते हैं, सोचते रहते हैं । काई भी समाधान शक्ति प्रदान करेगी। इतनी शक्ति साचने में उनके पास नहीं है। सहजयोगियों के लिए अपने अन्तस के अन्तर्दशन अन्तदर्शन अन्दर झांकना है। अन्दर झांकना, मैं क्यों सोच रहा हूँ? क्या सांच रहा हू? सांचने की क्या आवश्यकता है? और आप निर्विचार हो जायेंगे । अपने मस्तिष्क को मुर्ख मत बनने दें । ये मस्तिष्क एक बन्दर की सभी कुछ का क्या अर्थ है? आप इतना अधिक क्यों सोचते हैं? इतना अधिक सोचने की क्या आवश्यकता है? हर चीज करना आवश्यक है। के विषय में सोचते रहना मानवीय आदत है। अब मैं यदि इस पर चित्त डालू तो पहले मैं देखूंगी यह सब कितना अच्छा है और केवल इसका आनन्द लुगी! कलाकार की कला का तरह से है और जब यह कार्य करने लगता है तो आपको इधर आनन्द! बस कुछ नहीं बोलूगी; व्यक्ति के अन्दर का आनन्द से उधर कूदने पर विवश कर देता है। कोई निश्चय यदि आप ही महत्वपूर्ण है। परन्तु किसी अन्य से यदि आप पूछेंगे तो करते हैं और और इसे प्राप्त नहीं कर सकते तो आप सबसे वह कहेगा यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। यह चमत्कार अधिक दुःखी व्यक्ति बन जाते हैं । बेवकफी भरी चीजों के विषय में सोचते-सोचते मैंने लोगो को सुखते हुए देखा है। आप देख सकते हैं कि इस सोच से क्या उपलब्धि होती है. नहीं है आदि-आदि । कला का आनन्द समाप्त हो जायेगा, जिस आनन्द की खोज हम कर रहे हैं वह हमें प्राप्त न हो सकगा । हम आनन्द की खोज कर रहे हैं और उसे प्राप्त करने का एक साधन जब हमें मिलता है फिर भी हम उसे विश्वस्तर पर भी? चांद पर जाने की क्या आवश्यकता है? प्राप्त नहीं करते क्योंकि सोचना प्रतिक्रिया है हर चीज की इतने लोग मर रहे हैं, मंगल पर जाने की क्या आवश्यकता प्रतिक्रिया जीवन को दयनीय बना देती है। यह सोचने वाले के है? वहां उन्हें क्या मिल जाएगा ? क्योंकि इसकी उन्हें आदत पड़ गई हैं; पहले बह भारत आये फिर गये, आदि-आदि । जीवन को तथा अन्य लोगों के जीवन को भी दयनीय बना देती है। मैं आपको एक उदाहरण देती हूँ। भारी वर्षा और वर्फ की समस्या के बावजूद भी हमने यह सभी कुछ बनवाया, मेंने हो कर नहीं बैठ सकते विशेषकर पुरुष। रेलगाड़ी में यात्रा सोचा कि यह बहुत अच्छा कार्य है। अब इटली में बहुत से करते हुए गाड़ी यदि दो मिनट के लिए भी रुकी तो पुरुष सोचने वाले लोग हैं और यही कारण है कि वहां उन्नति नहीं होती। हमने तीन साल पूर्व प्रार्थना पत्र भजा था तीन साल शान्त हो कर वे बैठ नहीं सकते । अपने घर पर भी वे शान्त अवश्य बाहर निकलेंगे। गाड़ी चलने लगती है. पलियां चिन्तित हो जाती है, तब पुरुष कुद कर ऊपर आते हैं। यह चैतन्य लहरो खंड 18 :10 अंक : 1.2 और 3 1998 हैं उसका अर्थ है कि आप उतना ही अधिक उससे दूर हैं। क्या आपने यह बात समझी? अत: सूक्ष्म अवस्था तो वह है तो बन्दर से भी गया गुजरा मस्तिष्क है। मेरे विचार से बन्दर भी ऐसा नहीं करेंगे वे किसी एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकते । ध्यान धारणा करते हुए आपको एक ही स्थान पर जिसमें आप स्वयं वह चीज बन जाए । किस प्रकार आप अपने को देख सकते हैं? यह तथ्य सहजयोगियों को अवश्य टिक कर बैठना चाहिए । इधर- उधर कूदते नहीं रहना चाहिए। महिलाओं के साथ और समस्याएं हैं। खाना बनाते हुए ध्यान धारणा करेंगी। उनके पास समय ही नहीं है। इनके मित्र हैं। उल्टी-सीधी चीजों से घर को भरने के लिए वे खरीददारी करने जाएंगी परन्तु अन्य किसी कार्य के लिए उनके पास समझ लेना चाहिए । कोई भी व्यक्ति जो देख सकता है. नहीं श्री माता जी, उसने आपके चहं ओर प्रकाश वृत्त देखें, वह चीजों को देख सकता है। ता आप किस प्रकार चीजों को देख सकते हैं? आप क्योंकि वहीं हैं इसलिए किस प्रकार आप देख सकते हैं ? तो सहजयोग के आरम्भ में कुछ लोग जो बहुत लोकप्रिय थे. वे आपकी वश में करने और मूर्ख बनाने समय ही नहीं है। वे अत्यन्त पराक्रमी हैं और व्यापार करना व करना चाहती हैं परन्तु ध्यान-धारणा चाहती है। सभी कुछ के लिए उनके पास समय नहीं है। अत: टिक जाना अत्यन्त आवश्यक है। स्वयं में स्थिर हो जाइए । किसी ने मुझ से कहा श्री माताजी, यदि हम स्थिर हो गए तो बहुत मोटे हो ( परीक्षाओं) में से आपको गुजरना होंगा । मार्ग में बहुत जाएंगे । कोई बात नहीं परन्तु स्थिर हो जाइए । ध्यान धारणा न करने के लिए सभी प्रकार के बहाने हैं। हां, श्री माताजी रहे हैं। अब क्योंकि आप आत्मा बन गए हैं तो आध्यात्मिक का प्रयत्न करते हैं और तब आपकी सहजयोग से बाहर फोंक दिया जाता है। अब निर्णय का समय है भिन्न छलनों से प्रलोभन हैं। एक एक कदम करके आप विनाश की ओर जा जीवन में आपको बढ़ना चाहिए । यदि आप पतन की ओर जा रहे हैं तो कौन आपकी सहायता कर सकता है? मैंने में ध्यान धारणा करती हूं, परन्तु आधुनिक युग में यह कार्य बहुत कठिन है । हमारे जीवन में द्वेष है, समस्याएं हैं, परन्तु आप आश्चर्यचकित होंगे कि जब-जब भी मेरे परिवार या आपको बताया था कि यह बहुत ही अच्छा समय है, निर्णय सहजयोग में कोई विपत्ति होती है, तो मैं स्वतः ही निर्विचार हो जाती हूं क्योंकि परम चैतन्य ही समस्याओं का समाधान करेंगे । का समय है और इस समय हमें सावधान रहना होगा कि हम। स्वयं अपने न्यायाधीश हैं। कोई आपको नहीं बताएगा कि आपमें कहा पकड़ है। आप स्वयं महसूस कर सकते हैं कि आपके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। में आपकी समस्याओं को परम चैतन्य ही जब सभी समस्याओं का समाधान करते हैं तो मैं क्यों सोचू! समस्याओं को भूल जाइए । परम चैतन्य को इनकी चिंता करने दीजिए । परम चैतन्य पर यदि दूर करने का कितना भी प्रयत्न करू, आपके उत्थान के लिए कितना भी कुछ करू, इस तरह से आप सुदृढ़ नहीं होंगे क्योंकि आप यही सोचेंगे कि श्री माताजी मरी समस्याओं को आप निर्भर नहीं होंगे तो यह आपकी सहायता नहीं करंगा और दूर कर देंगी । जो पत्र मुझे मिलते हैं उनमें से 99 प्रतिशत उन सहजयोगियों के होते हैं जो किसी न किसी कष्ट से परेशान हैं। में हैरान हूं, यह सब शक्तियां आप में पहले से ही जागृत की जा चुकी हैं, यह आपमें विद्यमान हैं-इनका उपयोग कीजिए । न ही समस्याओं का समाधान करेगा, तब अपने मस्तिष्क के साथ आप गोल-गोल घूमते रहेंगे और इनके हल सोचेंगे । निश्चित रूप से आप को जानना होगा कि आप परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़े हुए हैं। प्रेम मूर्ख नहीं है। प्रेम ही सोचता है, प्रेम ही सत्य है, प्रेम ही आनंद है । यह सब आप के अंदर बना हुआ है और अब तो आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो कोई कहेंगा कि फला व्यक्ति मुझे परंशान कर रहा है, पत्नी मुझे परेशान कर रही है, पति मुझे परेशान कर रहा है| गया है। इसीलिए स्वयं को विकसित करने के स्थान पर आप व्यर्थ की चीजों के पीछे क्यों दौडते रहते हैं? इस प्रकार बहुत से सहजयोगी खो जाते हैं हाल ही दुर्बल है। संतो ते जितना वर्णन किया है उससे कहीं अधिक में मुझे बताया गया कि हमने लगभग 100 सहजयोगी खो दिए हैं क्यांकि वे किसी अन्य सहजयोगी का अनुसरण करने वाले संतों से कहीं अधिक सत्य का ज्ञान आपको है। आप लगे थे जिसने चीजें देखनी शुरु कर दी थी। तो वे लोग भी यदि केवल इतना सोचे कि मेरा स्तर क्या है तो आपका पतन उसी की तरह से चीजें देखना चाहते थे । आप यदि किसी चीज को देखते भी है तो इसका अर्थ है आप वहां उपस्थित इतनी है कि आपको यह जानना होगा कि आपका उत्थान नहीं हैं। साधारण सी बात है कि यदि मैं पर्वत की चोटी पर हूं तो में वहां हूं परन्तु यदि मैं वहां से दूर हूं तब मैं उसे गुण आपके अंदर बैठा दिए गए हैं। त्यागने या अवनत होने देख सकती हूँ। किसी चीज को जितना अधिक आप देखते की शक्ति आपमें हो सकती है परन्तु यह आध्यात्मिक सब को क्षमा कर दोजिए, क्षमा कर दीजिए, आपकी क्षमाशक्ति सत्य की शक्ति आपको प्राप्त हो गई है। देवी की स्तुति गाने न होगा, आप इतने अधिक अवनत न होंगे । समस्या बस आध्यात्मिक है। धर्म से भी कहीं अधिक संतुलित रूप में यह न ओर 31998 19 चैतन्य लहरी खड : 10 अंक : 1, 2 जिसे प्राप्त ही बात नहीं होनी चाहिए, यह ता एक अवस्था है करने के लिए आपको वास्तव में ध्यान धारणा करनी होगी शक्तियां जो आपके अंदर हैं वे कभी नष्ट न होंगी । मुझे याद है कि पहली बार जब मैं अमेरिका गई तो एक भद्र पुरुष से । हर सुबह व शाम ध्यान के लिए समय निकालें । जितना अधिक आप ध्यान-धारणा करेंगे, उतना ही अच्छा हैं। मिली । अगले दिन वह व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि, "श्री माताजी, मैं परिवर्तित हो गया हूं मैं परिवर्तित हो गया हूं. मैं परिवर्तित हो गया हूँ।" क्या हुआ! मैं अपने चाचा से घृणा करता था, उनसे बात तक नहीं करता था, इतना स्वयं को बहानों से संतुष्ट मत करें। सभी कुछ अनावश्यक है, आपका उत्थान ही महत्वपूर्णतम है। नाराज था में! परन्तु कल में उनसे मिला, जाकर उन्हें गले लगा लिया. उन्हें चूमा और कहा मैंने आपको क्षमा कर दिया है, पूरी तरह क्षमा कर दिया है। अब इसके विषय में दोष भाव मत आने दीजिए । वह मेरी ओर देखने लगा । यदि आप विश्व को इस कलियुग से बचाना चाहते हैं तो, यतब मरे विचार से आज मैंने आपको यह बात भली-भांति समझा दी है, आपके अंदर कौन से गुण स्थापित किए जा चुके हैं| यह धर्म नहीं हैं, गुण हैं। यह आपके अंतः स्थित हैं। परन्तु आप ने अपना चित्त किसी विपरीत चीज पर लगाया हुआ है कुंडलिनी की जागृति के पश्चात् आपके अंतर्निहित यह गुण उभर के आते हैं तब आत्मा के प्रकाश में प्रकाशित आप की उदारता एवं अन्य गुण विश्व के सम्मुख प्रमाणित कर देंगे कि सहजयोग सत्य है। कल के सुंदर हैं । यह आपके अंदर है और इन्हें आप स्वयं के अतिरिक्त नाटकों में यही बात दर्शाई, परंतु आपक अंदर यह केवल मानसिक संतोष ही नहीं होना चाहिए कि मुझे आत्मसाक्षात्कार अन्यथा यह सब गुण तो आपके अंदर स्थापित किए जा चुके काई भी नष्ट नहीं कर सकता । आप ने ही यदि इन्हें नष्ट कर दिया तो फिर कोई आपकी सहायता नहीं कर सकेगा । परनात्मा आपको धन्य करें। प्राप्त हो गया है, मैं ऐसा हूँ। यह केवल मानसिक स्तर की महिलाओं की भूमिका जुन 1988 म त्म शुड़ि कैम्प मा माल (एकादशरुद्र) स्वतन्त्र कर अतः अब इस शक्ति को कल हमने बहुत अच्छा ध्यान किया और सबने परम दिया गया है और यह एक प्रकार से अति भयानक शक्ति है और इससे आपको बहुत सावधान होना होगा । नि:सन्देह यह आपकी उन सभी लोगों तथा बुराईयों से रक्षा करती है जो चैतन्य की शीतल लहरियों का अनुभव किया । मैंने आपको बताया था कि हमें समझना है कि यह इतिहास में महानतम् क्षण है: इसमें आपका जन्म हुआ और इसमें आप यहां आक्रमण करके आपका नाश करने का प्रयत्न करती है। यह उच्चतम कार्य को विशेष रूप से इस कार्य के लिए चुना गया है और अब परमात्मा का कार्य कर रहे हैं। आप लोगों आपके लिए हर संभव सुरक्षा करना चाहती है परन्तु यदि आप दुराचरण करेंगे तो यह आपको भी दंडित कर सकती है। हाल ही में भारत में घटित एक घटना में आपको सुनाती हूैं। आप यह जान लें कि आप सन्त हैं। आपको सारे आशीर्वाद प्राप्त हैं परन्तु आप इन आश्शीवादों में खो भी जाते हैं। आर्शीवादों में खोकर आप इस प्रकार आचरण करने लगते हैं एक सहजयोगिनी दूसरे सहजयोगिनी के पास गयी क्योंकि उसके बाग में बहुत से कटहल लगे हुए थे । जाकर उसने कहा," तुम मुझे सब्जी बनाने के लिए एक कटहल दे दो ।" इतने वर्षों के पश्चात् जो किसी सन्त को शोभा नहीं देता अब में एकादश रुद्र पूजा के लिए सहमत हुई हूं । मैं जानती हूं कि यह भयानक कार्य था क्योंकि मुझे इस बात का भी मैं तुम्हें कटहल दुंगी. आज मैं कटहल नहीं देना चाहती । बस ।" उसके पास बहुत से कटहल थे । उस सहजयोगिनी को बहुत बुरा लगा क्योंकि अपने घर आने वाले भले अतिथियों के लिए वह सब्जी बनाना चाहती थी । बाजार में कटहल पर कोई ज्यादा पैसे दूसर ने कहा," आज नहीं, फिर कभी ज्ञान है कि अभी तक भी बहुत से सहजयोगी अधकचरे हैं कुछ सहजयोग से अनुचित लाभ उठा रहे हैं, कुछ सहजयोग से धन बना रहे हैं और कुछ सत्ता या शोहरत आदि प्राप्त कर रहे हैं। चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1 2 और 3 1998 20 6 ह लगा," मैं सवेदनशील हूं।" मैंने कहा" नहीं, यह सवेदनशीलता मांगे थे । अगले दिन दूसरी महिला के बागा में, अन्य कही नहीं है, यह भूत है। आपको यदि इस प्रकार का कोई कष्ट या दर्द होता है तो इसका अर्थ है कि आप भूत हैं। आप संवेदनशील नहीं हैं। गलतफहमी के शिकार न होइये। इस खर्च नहीं होते । वे कटहल उसे अच्छे लगे थे इसलिए उसने नहीं. बहुत भयानक तूफान आया। उसके सारे कटहल गिर गए और पेड़ भी उखड़ गए । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ! वह उस सहजयोगिनी के पास आईं और कहने लगी,"मुझे दुःख है कि मैने तुमसे यह बातें कहीं, बनाइये।" मैंने कहा,"अब तुम मेरे सामने बैठों।" मैंने उसके प्रकार मत सोचिए । अपने विषय में गलत विचार मत अन्दर से भूत भगा दिया। तब उसने स्वीकार किया. "मुझ पर स्काटलैण्ड के लोगों का हमला हुआ था।" स्काटलैण्ड के मैंने मेरे साथ इस प्रकार की त्रासदी हुई है, आप करके किसी अन्य विपदा से मुझे बचा लो। मैं बहुत स्वार्थी थी। उसने कहा,"नहीं, मैंने श्री माताजी से कुछ नहीं कहा । मेने तो उन्हें बताया भी नहीं । मैं घर वापस आई और सब कुछ भूल गई । श्री माताजी को तो मैंने कुछ भी नहीं बताया, मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नहीं थी मैं तो पूर्णत: क्षमाशील थी। कृपा लोगों का क्यों? "क्योंकि वह स्काटलैण्ड से गई थी।" मैंने कहा" भूतों की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती। उनकी कोई जाति नहीं होती । उनका कोई धर्म नहीं होता। वे तो भूत हैं। अत: उन्हें स्काटलैण्ड वाले मत कहो। वे रूसी भी हो सकते हैं, इटली के भी हो सकते हैं। वे भारतीय भी हो सकते हैं । यह सब केसे हो गया ?" व कुछ भी हो सकते हैं।" परन्तु इस प्रकार के एक झण्ड से पूरा आस्ट्रेलिया, पूरा न्यूयार्क पकड़ में आ गया । यह घटना एकादश रुद्र पूजा के पश्चात् घटित हुई थी और वह चिंतित थी कि उसका पूरा बाग ही एक दिन उखड़ जाएगा| उसने मुझे पत्र लिखा जिसमें बताया कि " श्री माताजी यह घटना घटित हुई है, और जेम्स जैसा सन्त व्यक्ति भी चोट खा गया। पूर्वजन्मों का कुसंस्कार है और मैंने एक कटहल बचाने का प्रयत्न किया...।" वे सारे टूटे हुए कटहल उसे भिखारियों और नौकरों को देने पड़े । कोई भी उससे यह कटहल खरीदने को मुझे क्या हुआ था।" परन्तु मंन खोज निकाला कि दोष उसकी तैयार न था । फिर उसका सारा धन चला गया। उसका सभी पत्नी का था। उसका भूतकाल बहुत ही खराब था, वह तो किस प्रकार नकारात्मकता रंग कर अन्दर प्रवेश कर मैंने ऐसा किया क्योंकि यह मेरा जाती है केवल चोट ही नहीं खाई, वह तो पूरी तरह से नष्ट हो गया था । उसने स्वीकार किया कि " श्रीमाताजी, मैं जानता हूँ कि अत्यन्त तीव्रग्राही (Allergic) थी । सभी प्रकार के दोष उसमें थे । मैंने उससे बताया कि तुम्हें आस्ट्रेलिया से बाहर जाना कुछ समाप्त हो गया । मैं जानती हूं कि यह कुछ भयानक है। परन्तु नकारात्मकता का नाश किस प्रकार किया जाए? आज मैं देख रही हूं कि नकारात्मकता बड़े सूक्ष्म तरीकों से होंगा। इसलिए महापूजा एक प्रकार से, मुल्तवी कर दी गई सहजयोग एवं सहजयोगियों को बहुत अधिक चोट पहुंचा रही है। आस्ट्रेलिया के विषय में आपने सुना होगा कि वहां क्या भी सहजयोगी उसमें सम्मिलित नहीं होना चाहिए । मेरे घटित हुआ । एक स्त्री को सुधरने के लिए उसके पति ने आस्ट्रेलिया भेजा, वहां एक अन्य स्त्री, किसी अन्य की पत्नी जिन्होंने इस स्त्री के साथ यह समूह बनाया था, मुझे एक पत्र थी, वह अपने पत्नीपन के प्रति बहुत जागरूक है। उसने इस नकारात्मक महिला को पकड़ लिया और इसी प्रकार की लहरियां इतनी खराब थीं कि मुझे लगा कि पूरी चैतन्य नकारात्मक महिलाओं का झुण्ड बन गया । वहां सहजयोग की सारी चैतन्य लहरियां समाप्त हो गयीं आस्ट्रेलिया से किसी ने एक फूल तक नहीं भेजा नि:सन्देह हो गया है। उन्होंने मेरी पूजा की. पूजा का कर्मकाण्ड उन्होंने किया। परन्तु यह सब अपने अपने परिवार में बैठकर किया । वह स्त्री कहने लगी कि हम अपने परिवार में पूजा कर रहे हैं । है। मैं चाहती हूं कि यह पूजा हो परन्तु उस आश्रम से कोई आश्चर्य की सीमा न रही जब उन छह भयानक महिलाओं ने लिखा कि उस र्त्री ने हमें ऊंचा उठाया है। और चैतन्य लहरियां बहकर उनसे लड़ने लगी हैं। में वह पत्र न पढ़ सकी। परन्तु उन महिलाओं को ऐसा लगा कि उनका उत्थान । मेरे जन्मदिवस पर अत: सहजयोग में बहुत सी चीजें आपको भ्रमित कर परन्तु अब आप सावधान रहें। स्वयं को धोखा देने का प्रयत्न न करें। अपने मूल्य को समझें । जैसा कि मैने कल आपको बताया था कि आप लोग योगी हैं, सन्त हैं: आपका अपना परिवार और इस प्रकार सभी कुछ नष्ट हो आपको किसी भी मूर्खतापूर्ण और घटिया चीज के सम्मुख गया । आस्ट्रेलिया के लोगों की सारी चैतन्य लहरियां समाप्त घुटने नहीं टेकने । कोई भी व्यक्ति जो इस प्रकार के कार्य करता है उन्हें आप बता दें कि आप योगी हैं। कल मैंने आपको बताया था कि एक योगी के लिए पूरा विश्व ही सकती हैं आपका कौन सा परिवार है? आश्रम का छोटा सा परिवार या हो गई । वहां के अगुवा को तब मुझे मुम्बई बुलाना पड़ा । वह अपनी चैतन्य लहरियों से भी परेशान था । मेरे सम्मुख वह उसका परिवार है। यूराप में, इंग्लैण्ड और अमेरिका में विशेषरूप से मैंने कांपने लगे । मेरे सामने उसके हाथ कांपने लगे । कहने 21 खंड : 10 अक : 1.2 और 3 1998 चैतन्य लहरी और पिता खिन्न होकर चूहे की तरह से चुपचाप बैठा रहेंगा। कि किस प्रकार परिवार की देखभाल करनी है, किस प्रकार इंग्लैण्ड तथा अन्य कई अन्य स्थानों पर मैंने सहजयोगियों को बताया कि आप लोग बिल्कुल अकर्मण्य हैं। यदि आप इसी तरह से आचरण करते रहे तो एक दिन यह भयानक महिलाएं तुम्हें नष्ट कर देंगी । महिलाओं को यह समझना चाहिए कि इस प्रकार के बहुत से लोग देखे हैं । इसके कारण बहुत सी वह करुणा एवं सहनशीलता के गुण के कारण महिलाएं हैं । समस्याएं खड़ी हो गई है। मैंने महिलाओं से अनुरोध किया है व इस पृथ्वी मां की तरह से हैं। परन्तु यहां तो उनका अहम् इतना विकसित हैं, इससे सावधान रहें । आज अमेरिका क्यों पाया है कि महिलाएं हावी हो गई हैं। और कहानियां सुनाकर बच्चों की देखभाल करनी है, किस प्रकार कार्य करने हैं वे पुरुषों को वश में करना जानती हैं। कभी कभी तो इस पर वहुत हैरानी होती है और आप लोग इसमें खो जाते हैं। मैंने कि वे सुधर जाएं और इस बात को समझ लें कि वे पल्नियां हैं। यदि वे न नष्ट हो रहा है? अपनी महिलाओं के कारण। सुधरीं तो सहजयोग के सभी वरदान वापस ले लिए जाएंगे । तब उनपर सभी तरह के कष्ट टूट पड़ेंगे; मेरे कारण नहीं परन्तु एकादश रुद्र के कारण । जिस प्रकार आप अपने सभी दोष भूतों के सिर मढ़ देते हैं, मुझे भी उन्होंने सब कुछ ठीक किया । शनै:शनैः वे पुरुषों को ठीक इसके लिए देवी देवताओं को जिम्मेदार ठहराने दें। मैं कोई जिम्मेदारी नहीं लेती । यदि आप गैर जिम्मेदार हैं कमी है। मुझे समझ नहीं आता कि यहां के पुरुषों को क्या मैं आपको यहां पर विवाहित बहुत सी भारतीय लड़ाकयों का उदाहरण दे सकती हूँ। वे अपने पतियां को मार्ग पर लाई। प्रकार से सहजयोग में ले आई । पश्चिम की यह बहुत बड़ी तो वे आप पर गहन चोट करेंगे और आप कैंसर या किसी अन्य गम्भीर चीज से समाप्त हो जाएंगे। तब आप मुझे दोष न दें। आज यह स्थिति है। मैं कुछ सहजयोगिनियों में, वहां पर स्त्रियों पर बहुत रौब जमाया जाता है। एक को जानती हूं जिन्होंने मेरे सम्मुख अपनी गलतियों को सहजयोगिनी थी जिसका पति एक डॉक्टर था । बाद में वह स्वीकार किया कि वो ऐसा करती रहीं, वैसा करती रही, सहजयोगी बन गया । उसे पक्षाघात हो गया । पति को परिवारों के विषय में बातें करती रही आदि आदि। उन्हें हुआ है। ? दोष भाव के कारण व गुलामों की तरह से हो गए हैं। भारत में स्थिति इसके विपरीत है विशेषकर उत्तरी भारत पक्षाघात होने पर उसकी पत्नी ने काम करके धनार्जन शुरू कर दिया। जब पत्नी धनार्जन करने लगी तो उसने स्वयं को आधात पहुंचा । यह चीज समझी जानी आवश्यक है क्योंकि मेरे विचार में पश्चिमी देशों की महिलाओं के पास विवेक नहीं है वे विवेकशील नहीं हैं। मैं इसी साधारण समीकरण अत्यन्त अपमानित महसूस किया और अपनी पत्नी पर और अधिक रौब जमाया । मेरे पास आकर उसकी पत्नी ने पर पहुँची । कुछ लोग विवेकशील हैं और पकड़े हुए होने पर भी वे संर्वेदनशील हैं परन्तु यहां की महिलाएं आक्रामक है। विवेकशील नहीं हैं। भारतीय महिला विवेकशील है वह बात को समझती क्यों नही किया? तुमने वह कार्य क्यों नहीं किया?" वह है। वह जानती है कि यह आदि शक्ति हैं। उसका पति यदि कहने लगी." इन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं किया था ज्यों ही कोई गलत कार्य कर रहा है तो वह कहती है" मैं दस दिन ये ठीक हो जाएंगे मैं धनार्जन बंद कर दूंगी क्योंकि मेरी कमाई के लिए उपवास करूंगी। क्या तुम स्वयं को सुधार लोगे ?" को मेरे पति सहन नहीं कर सकते ।" यदि तुम नहीं सुधरे तो मैं घर से चली जाऊंगी। भारत में महिलाओं ने ही सहजयोग को सफल बनाया है वह अत्यन्त बुद्धिमान हैं। यहाँ बहुत आक्रामक होने के कारण महिलाओं जैसे पुरुषों को है। केवल सुन्दर वस्त्र पहनकर मुस्कराना ही में बुद्धि का अभाव है। वे बात को नहीं समझती । वे नहीं महत्वपूर्ण नहीं है। सहजयोग में आपको भी वैसे ही ज्ञान होना समझती कि मैं कौन हूँ। वे नहीं समझती कि हमारा मूल्य क्या है। सभी बेवकूफी भरी चीजें उनके लिए आप सभी नहीं परन्तु आपमें से कुछ । बुद्धि के अभाव के कोई भी बच्चों को जन्म दे सकता है: कुत्ते, बिल्लिया सभी कारण आप विवेकहीन महिलाओं के सम्मुख झुक जाती हैं। कोई । इस स्थििति के लिए कुछ हद तक आपके पति भी वे आपको सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें बताती हैं। वे जिम्मेदार हैं। तो बच्चे उत्पन्न करके, उँनकी देखभाल करके, बताया." जब में नहीं कमाती थीं तो ज्यादा अच्छा था...." और वह एक एक पाई अपने पति को देती थी, फिर भी पति महाशय हर समय उस पर रौब झाड़ते थे। "तुमने यह कार्य तो मैं आप सभी लोगों से अनुरोध करूगी कि सहजयोगिनियों को भी सहजयोग का ज्ञान वैसे ही होना चाहिए चाहिए जैसे सहजयोगियों को है। बच्चे उत्पन्न करने का अर्थ यह नहीं कि आपने कोई महान् उपलब्धि प्राप्त कर ली है। महत्वपूर्ण हैं। बातें बहुत अच्छी करती हैं। मैंने देखा है कि यहां पर केवल महिलाएं ही बोलती हैं। करते । बच्चे की मृत्यु के हालात में, मैं नहीं समझ पाती, कितना जानती हैं? मैं जानती हूं कि कुछ महिलाओं को पैरों किस प्रकार वह बात कर पाती है! केवल स्त्री ही बात करेगी के चक्र तक का ज्ञान नहीं है। सहजयोग के विषय में वे हर समय अपने पतियों पर रौब जमाकर आपने कोई विशेष पुरुष नहीं बोलते । वे कभी बात नहीं उपलब्धि नहीं प्राप्त कर ली । सहजयोग के विषय में आप 22 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 देखे कर मुझे बहुत आघात लगा है। वे मुझे अगुआ या किसी भी अन्य चीज को चोट पहुंचा सकती हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर काबू पा लेना भूरतों के लिए आसान है। वहुत कुछ नहीं सीखना चाहती । अपने पतियों पर रौब झाडने के लिए करना चाहती है। व्यक्ति को इस कमी का सामना करना चाहिए । सहजयोग का आपको कितना गहन ज्ञान हे। सहजयीग का उपयोग वे केवल अधिक आक्रामक (दायीं ओर को) जब आप हो जाती हैं तो आपको बाई ओर की बाधा हो जाती है। इसका कारण यह है आपमें से अधिकतर लोगों में बहुत सी समस्याएं हैं। मैने देखा है कि ज्यों ही आप अपने हाथ किसी की ओर करते हैं तो आपको लगता है, ओह मैं यहां पर पकड रहा हूं। यह नियमित भूत बाधा का चिन्ह है और मैंने लोगों को यह कहते देखा है कि वे संवेदनशील हैं। यह अत्यन्त भ्रमित करने वाली बात है। मैं बहुत संवेदनशील हं. सहजयोग में मैं बहुत ऊंचा हूँ। यह ऊंचा होने का तरीका नहीं है। आपको पूर्णत: कुशल होना होगा । आपका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक होना चाहिए और सहजयोग का ज्ञान पूर्ण होना चाहिए । आपमें से कितने लोगों ने Advent-अवतरण पढ़ी है? आइये देखें। आपमें से कितने लोगों ने एडवेन्ट पूरी पढ़ोहै (ईमानदारी कि भावनात्मक स्वभाव के कारण आप भू्तों की तरह चलती हैं और भूत आपको अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक पकडते हैं। आप हैरान होंगे कि चरित्रभ्रष्ट यौन जीवन व्यतीत करने वालो महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक पतित होती हैं विवाह के पश्चात पुरुष तो ठीक हो जाते हैं, महिलाएं नहीं। उन्हें मानसिक रोग हो जाते हैं, क्योंकि आप समझ लें, आप ही पूरे विश्व की इच्छाएं तथा भावनाएं हैं। आप इतनी महत्वपूर्ण हैं, आपके बिना कुछ भी आरम्भ नहीं हो सकता । पृथ्वी पर अवतरित होकर यदि मैंने सदाशिव से लेकर गणेश तक को एकजुट न किया होता तो वे कुछ भी न कर पाते । यह सत्य है। मैंने महिला, मां. पत्नी तथा भार्या के रूप में यह संब प्राप्त किया है। आपके लिए भी यह कार्य सुगम होना चाहिए, सुगमतम, क्यांकि एक महिला की तरह रहते हुए विश्व भर में इतने बच्चों को मैंने संभाला है। इस सारे कार्य को संभालते हुए अपने परिवार को भी भली भांति चलाया है। पूरा सन्तुलन इसमें लाई हूं और अब इस प्रकार यह प्रभावित हो गया है कि महिला केवल उपासक ही नहीं हो सकती है वह गुरुओं की भी महानतम गुरु हो सकती है। से हाथ उठाए)। बहुत बढ़िया । अब मैं जो कहने का प्रयत्न कर रही हूँ वह यह है कि आपको खोज निकालना होगा कि सहजयोग क्या है? आपकी गुरु एक महिला है। वे सारे ज्ञान की सरोत हैं। वे सारे ज्ञान की सागर हैं। तो क्यों आप पिछड़े रहें? सभी दिशाओं में हम पूरी तरह से समान होना चाहते हैं, पुरुषों के समान, यहां तक कि में भी । तो सहजयोग के ज्ञान में क्यों नहीं। आपमें वेशभृषा से कितनों ने अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? अपने जब मैंने आप सबको बुनियाद पर खड़ा कर दिया मैं केवल महिलाओं से पूछ रही हूं। बहुत हाथ उठाइये । अच्छा । तो यह चीज है जिसके विषय में व्यक्ति को गर्वित तो मुझे अब आपको यह वताना है कि विकसित होकर आपने होना चाहिए । व्यक्ति को ज्ञान होना चाहिए कि मानसिक तथा भावनात्मक रूप से बह कितना सहजयोग जानता है। आपमें से कितनी अपने पतियों पर प्रभुत्व जमाती हैं। सावधान रहें। मेरे विचार से केवल यही सहजयोगिनी ईमानदार है। मैं जानती हूं कि आप सभी रौब जमाती हैं और कभी कभी तो उन्हें दबा देने का प्रयत्न करती हैं। मैं अब अनुरोध कर रही हूं कि आप शक्ति हैं। पुरुष के पीछे आप ही शक्ति हैं। आप ही लोग उन्हें महान् बना सकती हैं। आप लोग ही सहजयोग को सक्षम शक्ति बना सकती हैं। आप इस पृथ्वी मां की तरह से हैं जिसे सारी सुन्दर चीजें, यह सारे सहजयोग की देखभाल करनी है। आप अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि बुरी महिला या बुरी पत्नी किसी भी बुरे पुरुष की अपेक्षा अधिक हानिकारक होती है। आस्ट्रेलिया में मैंने यह घटित होते हुए देखा है। एक महिला ने पूरे आस्ट्रेलिया को नष्ट कर दिया है और एक अ्कली महिला पूरे आस्ट्रेलिया को महान् बना सकती है। वो महिला में हूँ। महिला होने का गर्व है। आपसे इसलिए मुझे पुरुष बनने से मैं घृणा करूंगी। श्रीकृष्ण को देखें । उन्हें सोलह हजार महिलाओं से विवाह करना पड़ा । उनसे उन्हें विवाह करना पड़ा. शिष्यों के रूप में वे उन्हें न रख सके । वे शक्तियां थी, उनकी शक्तयां थीं । शक्तियों को महिलाएं होना ही था । लोग कह रहे हैं और कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण स्त्री-चित्त-चोर थे । परन्तु मुझसे कोई ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि में एक महिला हूँ और एक मां को चुनौती नहीं दी जा सकती । सदैव पिता को ही चुनौती दी जाती है मां को नहीं । महिला के रूप में आप बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त कर सकती हैं उसके लिए आपको यह जानना आवश्यक है कि दूसरों के प्रति अपने पावन प्रेम को किस प्रकार अभिव्यक्त करें, अपनी वास्तविकता दूसरों के सम्मुख किस फल प्रदान करने होते हैं। यह सब कहा से आते हैं? यह सब | पेड़ । यह पृथ्वी मां अत्यन्त साधारण दिखाई पड़ती हैं। परन्तु यह जो कुछ हमें प्रदान करती है उसे देखिए उन सुन्दर वस्तुओं को देखिए । अत: अच्छी सहजयोगिनी बनने के लिए अच्छी पत्नी होना आवश्यक है, स्वयं को सदा आगे लाने वाली रौबीली पत्नी होना नहीं । मैंने सदा यह महसूस किया है, परन्तु इन दिनों जो 3-4 मामले मेरे सामने आये हैं, उनसे घटनाक्रम को 23 चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 प्रकार प्रकट करें और किस प्रकार सहजयोग के लिए अपने बातें यदि आपने न की तो फिर आप कभी उन्हें संभाल न सकेंगी। वै आपके सिर पर चढ़ जाएंगे। इस देश के बच्चां पति की सहायता करें । की भी यह समस्या है। विवाह के समय आपने मुझे वचन दिया था कि आप सहजयोग के लिए कार्य करेंगी और अपने पति की सहजयोग करने में सहायता करेंगी । आपका पति जब अन्य सहजयोगियों परन्तु आज समस्या उससे कहीं अधिक गंभीर है जितना हम सोचते हैं । हिटलर की शक्ति की तरह से एक नकारात्मक शक्ति सभी देशों की महिलाओं के माध्यम से उठ आपके घर आने वाले सभी सहजयोगियों की आप दखभाल रही है। महिलाओं के माध्यम से यह भयानक हिटलर तथा करंगी । अपने घर को आप सहजयोग केनद्र बनाएंगी, लोगो मृत जर्मन लोग उत्पन्न हो रहे हैं। अब वे नाज़ियों की तरह का अपने घर पर स्वागत करेंगी और सामूहिकता को बढ़ाने से बनने लगे हैं। अत: महिलाओं को अत्यन्त सावधान रहना में प्रयत्नशील होगी । इन वचनां के साथ आपका विवाह है कि वे अपने अन्दर कार्यरत नकारात्मक शक्तियों के किया गया था । आप लोग यह सब दिखा सकती है। सम्मुख झुक न जाए उन्हें विनम्र मधुर एवं त्यागशील बनना महिलाओं के लिए अदूरदर्शी, क्षुद्र एवं दंभी होना सुगम है। है क्योंकि ऐसा बनने की शक्ति उनमें है। कंवल स्त्री ही यह सब कर सकती है। पुरुष नहीं कर सकता । पुरुषों में कुछ अन्य प्रकार का माधुर्य होता है परन्तु महिलाओं में वह विवेक की देखभाल कर रहा होगा आप उसकी सहायता करेंगी तथा पुरुष को ऐसा बनने में समय लगता है। इन सव सम्भावनाओं के साथ-साथ यदि आपमें पुरुषों पर होवी होने की आकांक्षा 1 भी है तो आप ने इधर को हैं न उधर की । तब आप लिंग- विहीन हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसी अवस्था में मैं है जो पूरे विश्व को सुन्दर बना सकता है। अब आप क्या कर रहे हैं? शान्त होकर बैठिए। क्या कृपा करके आप शान्त होकर बैठेगी? सुनिए ! यदि आप शान्त होकर नहीं बैठ सकती तो अच्छा होगा चले जाइये । शान्त होकर बैठिए । कल तुम यहां नहीं थी तो सब लोग शान्ति से बैठे थे। आप उचित व्यवहार करें । सभी लोग मर्यादा सीखें, ठीक है? बच्चों को यहां या कहीं और ले जाएं तो उन्हें सिखाएं कि किस प्रकार व्यवहार करना है। अवश्य उन्हें सिखाएं और बताएं उन्हें क्या नाम दू? ऐसे व्यक्ति का नामकरण आप ही करें जो न तो पुरुष है और न महिला । करें। इसी प्रकार हम इस विश्व को सबके लिए स्वर्ग बना सकती हैं। अब विश्व की मुख्य समस्याओं की बात करें। आपने देखा होगा कि इन दिनों मैं राजनीति के विषय में बहुत कह आइये महिला होने पर गरव रही हूं और हो सकता है एक दिन उचित समय आने पर आप सबको राजनीति में प्रवेश करना पडे । मैं अमेरिका में श्री जैक्सन से भी मिलने वाली हूँ। देखें क्या होता है। आप यह भी जानते हैं कि इंग्लैण्ड में भी हम कार्यरत हैं। दो बर्ष के अन्दर मैं इन सब नेताओं से मिलने वाली हूं तथा किसी भी विवेकशील एवं सम्माननीय तरीके से हम कोई हल खोज लंगे, परन्तु आप सबको यह दरशाना होगा कि आप अत्यन्त सन्तुलित एवं अच्छे परिवार के हैं। सुनिए क्या आप शान्त हो जाएंगी? ये कौन है? आपका में चले जाते हैं और दूसरा के लिए भी समस्याएं उत्पन्न करते बेटा बहुत शैतान है। क्या आप इसे ले जाएंगी? आपका हैं। अत: हमें चाहिुए कि सभी को मध्य में रखें आर मध्य में चाहिए कि बच्चों को शिक्षा दें कि श्रीमाताजी के सम्मुख किस तरह से आचरण करना है। आप अवश्य उन्हें सिखाएं। बहुत से लोग सहजयांग में आ गए हैं। इससे पूर्व यह एक बच्चा अन्य सभी बच्चों को बिगाड़ सकता है। सावधान रहें। कभी कभी उनकी पिटाई करें। मेरे विचार से यह । वच्चों का सीखना अत्यन्त आवश्यक है। अब हम विश्व की गम्भीर समस्याओं पर आते हैं । मानसिक प्रक्षेपण (दिमागी जमाखर्च) अब स्पष्ट नजर आ गया है (मेरी बात का सुने और समझने का प्रयत्न करें) । यह अति गंभीर समस्या है कि जब आप बाएं या दाए को चले जाते हैं तो अति में चले जाते हैं और स्वयं भी समस्याओं रहने के लिए हमें ऊपर उठना होगा। अब समस्या यह है कि उपलब्धि कभी न हो सकती थी । इसका मुख्य कारण यह था कि पहले लोगों के मस्तिष्क में प्रवंश करके यह बताना असभव था कि क्या किया जाए । सभी लोगों ने भरसक आवश्यक है अन्यथा बच्चे कभी सुधरेंगे नहीं । उनके बाएं स्वाधिष्ठान पर दो थप्पड़ पड़ जाने से वे ठीक हो जाएंगे । प्रयत्न किया। आज में बुद्ध की बात कर रही थी । बुद्ध ने लोगों को आवश्यक शिक्षण एवं उचित सूझ-बूझ के साथ हमें समाज एवं परिवार बनाने हैं। मैंने तुम्हें पहले भी बताया था कि पांच वर्ष की आयु तक आप उनकी पिटाई कर सकते हैं। दस वर्ष की आयु तक आप उन्हें शिक्षा दें और सोलह वर्ष की आयु के पश्चात् आप उनसे मित्रसम व्यवहार करें। परन्तु पहली दो यह बताने का भरसक प्रयत्न किया कि व्यर्थं के कर्मकाण्डों से निकलकर माक्ष प्राप्त कर लें । उन्होंने सभी प्रयत्न किए परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् लोग कहने लगे कि बुद्ध ने कहा है कि मूर्तियां न वनाओं : तो हम स्तूप बना लेते हैं। तो 24 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : । 2 और 3 1998 अपने अन्तर्दर्शन द्वा आपने यह और कीन स्वर्ग में । परन्तु स्तूप बनाकर वह उन्हें पूजने लगे । जो उन्होंने कहा था ठीक उसके विपरीत - कि शुद्धिकरण, अन्तदर्शन और मध्यमार्ग समझने का निर्णय करना है क्या वटित होने वाला है। महिलाओं से मुझे विशेष रूप से अनुरोध करना है कि इस आधुनिक काल में कंवल वही विश्व की रक्षा कर त्याग को अपनाएं ताकि सब कुछ स्पष्ट देख सके। परन्तु सकती है। नहीं कर सकते । व पहले अपना कार्य कर उनके अनुयायी मूर्खतापूर्ण चीजों में फंस चुके हैं। अब रक्षा करने की बारी आपकी है. अपनी सूझबूझ, करुणा, बलिदान, विवेक और अन्तर्जात प्रेम से न केवल अपने बच्चों, अपने पति, अपने परिवार बल्कि पूरे विश्व को। आप सब लोगों के लिए अपना कर्त्तव्य करने का यह के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर लें । उन्होंने यहां तक कहा कि परिवार न बनाएं इससे समस्याएं बढ़ती हैं। अपने अन्दर पुरुष पहले की तरह से गए और स्तृप आदि बनाकर उनकी पूजा करने लगे । यही चीज़ ईसा के जोवन में भी आप देख सकते हैं। महावीर के जीवन में भी देख सकते हैं यही चीज आप महान् अवतरणों, पैगम्बरों, इस्लाम आदि में भी देख सकते हैं। बार-बार वही घटित हुआ और लोग पथभ्रष्ट हो गए परन्तु किसने पथभ्रष्ट किया? सभी महान् अवतरणें के सार तत्वी को किसने विगाड़ा? इसे स्वयं अनुयाइयों ने बिगाड़ा क्योंकि वे आत्म साक्षात्कारी न थे। बहुत अच्छा अवसर है। हमारी कुछ बहुत अच्छी सहजयोगिनियों के इस मामले में बहुत अच्छे अनुभव हैं। कुछ ने वास्तव में अखण्ड आनन्द की स्थिति प्राप्त की है। बास्तव में कुछ ने यह स्थिति पाई है। वो यदि आ रही होती हैं तो मैं महसूस कर लेती हूं कि वे आ रही हैं। पूरा वातावरण उनकी प्रतीक्षा अब, गम्भीर समस्या, जो में देख रही हूं, यह कि मेरी शिष्याएं कहलाने वाली महिलाएं सहजयोग को बिगाड़ेंगी-अति स्पष्ट है। मैं इसे आज देख रही हूँ। यह बात में आज स्पष्ट-पूर्णतः स्पष्ट-देख रही हूं । वे सहजयोग को बिगाड़ेंगी क्योंकि वे हावी हो गई है और सोचती है कि उन्हें सहजयोग चाहिए । मुझे आपको यही बताना है कि आपके अन्दर महान् का ज्ञान है क्योंकि वे सोचती हैं कि वे बहुत महान् बन गई हैं। अगुवा की पत्नी स्वयं को अगुवा समझती है। किसी को कोई कार्य करने के लिए यदि बुलाया जाए तो पत्नी सोचती कि उसके पति पर श्रीमाता जी से कहीं अधिक अधिकार करता है, पूरा ब्रहमाण्ड पूर्ण सम्मान से झुककर उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है। इतनी उच्च महिलाएं भी हैं। हमें चाहिए कि उन्हें अपना आदर्श बनाएं, मूर्ख, बेकार, अहंकारी महिलाओं को नहीं । उन्हें बहुत महान् समझा जाना शक्ति हैं। सहजयोग केवल आप तक और आपके बच्चों तक ही सोमित न हो जाए । अत: अपनी गहनता को स्पर्श करें। आज की समस्या यह है कि महिलाओं ने अपना मूल्य खो दिया है, अपनी गहनता खो दी है। यह आज की मूल समस्या है। महिलाएं स्पर्धांत्मक, धन लोलुप, सफलता तथा अन्य मूर्खतापूर्ण चीजों की ओर दौड़नें वाली हो गई है। उत्थान उनका लक्ष्य नहीं है। अत: आपको बहुत सावधान रहना होगा । यह मूल समस्या आपको देखनी चाहिए और मैं सभी सहजयोगियों से अनुरोध करूगो कि सावधान रहें। एक ही महिला स्वर्ग की सीढी भी हो सकती है और पतन का रामायण में लिखा गया है। कि राम की सौतेली मां मार्ग भी । परन्तु महिलाओं ने ऐसी अवस्था प्राप्त कर ली है कि वे हिटलर की तरह से आदेश देने लगी हैं और इसमें कंवल ग्यारह वर्ष लगे हैं। ऐसो स्त्रियां अब मंच पर दिखाई पड़ती हैं। धर्मपरायणता, सद्चरित्र और विनम्रताविहीन स्त्री स्त्री नहीं है। करुणा उसका आभूषण हैं। काश में विलियम ब्लेक की तरह लिख सकती, काश उसने पश्चिमी महिलाओं तथा उनके सौन्दर्य के विषय में लिखा होता, और यह भी कि उन्होंने क्या प्राप्त करना है। मैं जानती हूं कि एक बार जब क्योंकि हम एक अत्यन्त संकटपूर्ण समय से गुजर रहे हैं, तो महिलाएं अपनी शक्ति को जान जाएंगी तो वे इस विश्व को सुन्दर विश्व बना देंगी परन्तु यह कार्य वे अपनी दुर्बलताओं से. पुरुषों की तरह से पतन के गर्त में जाते हुए नहीं कर उसका है। आज महिलाएं दोषी हैं और इसी कारण मैं आपको चेतावनी देना चाहती हू। मैंने यह देखा है। मैं ऐसी दस महिलाए, गिनवा सकती हूं जिन्होंने यह कार्य किया है। और अब ग्यारहवीं बात इस तरह की है। मैं आपसे ये समझने का अनुरोध करती हैं कि जिम्मेदारी आप पर होगी। जब इतिहास लिखा जाएगा तो जैसे कैकयी की सविका ही रामायण की सारी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। बह सब तो घटित होना ही था । परन्तु आज वह मन्थरा, वह कैकयी कहां है? भारतीय लोग उनका नाम नहीं लेते । कोई यदि उनका नाम ले तो वे थूकते हैं। वे समय के अन्तराल में समाप्त हो गई हैं। उस समय उन्होंने सोचा था कि हमने बहुत बड़ा काम किया है। यही सब मैंने आपको बताना है। आप यदि इतिहास के पन्नों में दफन नहीं हो जाना चाहते. हमें बहुत सावधान रहना होगा । हम क्या करना चाहते हैं? हम क्या कर रहे हैं? में वर्तमान क्षण वर्तमान समय की बात कर रही हूं और कुछ नहीं कहना चाहती कि भविष्य में आपके साथ क्या होगा। आप यदि नर्क में जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं। मैं कुछ नहीं कहूंगी कि कौन नरक में जाएगा सकती । इस कार्यक्रम में हम दो उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं। कल मैंने आपको अन्तर्दर्शन के विषय में बताया था और 25 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : , 2 और 3 1998 ho करनी है। करुणामय एवं सतर्क बनें । हैरानी की बात है कि आप लोगों ने अभी तक यह विधिया नहीं सीखीं ! संभवत: आपकी माताओं ने इसके विषय में नहीं बताया । आज यह कि समस्या कहा है। समुद्र में चलने के योग्य जितनी भी बड़ी नाव आप बना लें, उसमें छेद कर देने पर वह नाव डूब जाएगी । चाहे जितनी अच्छी आंखे आपकी हों, उनमें एक छिद्र हो जाने पर आप आकाश को नहीं देख सकते और अपनी विधियों से आपकी आंखों में यह सुराख कर देने की कला इन महिलाओं के पास है। सौन्दर्य का पूर्ण नि:सन्हेह हम एक आदर्श जाति, आदर्श परिवार और पूर्ण आदर्श बनने वाले हैं हम विश्व को दिखा देंगे कि लोग जो भी विधिया हम पर उपयोग करते रहें हमें उसकी चिन्ता नहीं । हमें आगे बढ़ते चले जाना है। श्री गणेश की तरह से भारत में एक बात से मैं बहुत प्रसन्न होती हूं कि यहां रस्सियों तथा जंजीरों से बंधा हुआ विशालकाय हाथी चलता ही पर अधिकतर पुरुष आकर मुझे वताते हैं," मेरी पत्नी मुझे चला जाता है। इसी प्रकार हम सब सहजयोगियों को कार्य करना है। परन्तु सहजयोग की महिलाओं को यह कार्यान्वित करना है। उन्हें देखना है कि वे अपने पुरूषों को शक्ति प्रदान करती है। किसी पति को यदि मैं दुर्बल पाती हुं तो मुझे पता प्रभुत्व जमाने वाली है जो स्वयं को बहुत ऊंचा समझती है। किसी पुरुष को विदेश आती हैं और यहां के तौर तरीके देखती हैं तो वे और यदि में बहत सशक्त देखती हूं तो जान जाती हुं कि इसके सूक्ष्म दृश्य प्रकट करने की कला भी उनके पास हैं। सहजयोग में लाई, उसी ने मुझे सहजयोग के विषय में बताया उसी ने मेरे लिए और सहजयोग के लिए इतना कार्य किया। महिलाओं के प्रति इतना सम्मान! जो यहां आई हैं उनमें से भी कुछ धीरे-धीरे अपने पतियों को सहजयोग में लाई हैं। नि:सन्देह कुछ भारतीय महिलाएं भी बहुत तुच्छे हैं। जब वे चल जाता है कि इसकी पत्नी दोष ढूंढने वाली, अधम हो जाती हैं। परन्तु अन्तर्जात रूप से भारत में महिलाओं का दृष्टिकोण भिन्न है: उसे परिवार में धर्म स्थापित करना पड़ता है। अपने परिवार में उसे परिवार के सौन्दर्य की स्थापना करनी होती है, अपने बच्चों को सारी अच्छाई और धर्मपरायणता उसे देनी होती है; उसे विनम्र होना होता है. जाएंगे । पीछे कोई महिला है। यह विद्युत प्रकाश और बल्ब की तरह से है। यदि विद्युत ठीक प्रकार से दोीड़ रही है तो बल्ब जलता है बिल्कुल वैसे ही । परन्तु यदि आपकी एकाकारिता इन मुर्ख, अहंकारी महिलाओं से है तो आप खो जाएगे, समाप्त हो अपनी आवाज ऊंची नहीं करनी हो तो, ऊंची आवाज करने आप यदि मुझे पहचान जाएं, यदि आप ये समझ जाएं कि मैं क्या कह रही हूं और जो आपका कार्य है उसे करें तो तुरन्त आप देख लेंगे कि श्रीमाता जी हमारी जड़ों को दृढ़ करने का प्रयत्न कर रहो हैं। क्योंकि आप ही वृक्ष की जड़े हैं। वाली स्त्री बच्चों को बिगाड़ती है: वह बच्चों को धृष्ट होना सिखाती है। एक प्रकार से उसे अपने पति की आज्ञा का पालन करना होता है ताकि बच्चे भी उसकी आज्ञा का पालन करें । यह चीजें कार्य करती हैं । वहां का समाज यहां की अपेक्षा कहीं अच्छा है । तो महिलाओं की स्वतन्त्रता का यह आन्दोलन उस गुप्त कार्य का चिन्ह है जो चल रहा है । भावनात्मक होने के कारण महिलाएं फरेबी होती हैं। बडी चतुराई से, चालबाजी से वे इस प्रकार के कार्य करती हैं। पूरा पोषण आपने ही प्रदान करना है। सभी सहजयोगियों के प्रति आपको मां और बहन जैसा होना है। लड़ाई-झगड़ा नहीं करना है और न ही कठोर शब्द कहने हैं यह स्त्री का कार्य नहीं है, उसे बहस में नहीं पड़ना है, शान्त होकर देखना है। उनके यदि कोई चक्र पकड़ भी रहें हो तो पत्नियों के रूप में आप उन्हें ठीक कर सकते हैं। बिना बताए आप यह कार्य कर सकते हैं, आप यह कार्य कर सकते हैं। आज यद्यपि परन्तु आप सब मेरी तरह से बन सकती हैं। यदि आपमें इच्छा है तो आप पुरुषों से भी अधिक मेरी शक्तियां प्राप्त कर सकती हैं। परन्तु स्वयं को महत्वपूर्ण दर्शाने के अपने तुच्छ स्वप्नों और विचारों से आपको बाहर आना होगा। यदि आप अपने पर जिम्मेदारी ले लें कि हम सब भी वह समस्याएं बहुत भयानक, आघात पहुंचाने वाली तथा विध्वंसक लगती हैं फिर भी चाबियां आज की महिलाओं के हाथ में हैं । यदि वे अपनी गरिमा और अपने महत्व को समझने का निर्णय कर लें, घटिया लोकप्रियता के पीछे दौड़कर स्वयं को कर सकती हैं जो श्रोमाता जी कर रही हैं तो मुझे विश्वास है कार्य हो जाएगा । सर्वप्रथम आपको खाना बनाना सीखना है। घर का कार्य पुरुष को कभी न करने दें। वे आप पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएंगे । बहुत बढ़िया खाना बनाएं। कुशल रसोइया बनें। पति घर वापस आ जाएगा में आपको रहस्य की बौत बता रही हूँ। एक साक्षी की तरह से पति को समझने का प्रयत्न करें। कभी कभी वह बिना बात नाराज हो जाता है। साक्षी की तरह से उसे देखें । वह भी आपका एक अन्य संस्ता न बनाएं तो वे सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। मैं यदि इतनी बड़ी समस्याओं का एकमात्र कारण खोज सकी हूं पूर्ण और इस कारण को आप यदि दूर कर दे तो मुझे विश्वास है कि हम सहजयोंग को संभाल सकेंगे । हम पूरे विश्व को संभाल सकते हैं और मानवता की पूरी तरह से रक्षा होगी क्योंकि यही आपकी इच्छा है। परमात्मा आपको धन्य करें । बच्चा है। वह एक बड़ा बच्चा है जिसकी देखभाल आपने 26 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 श्री आदि शक्ति पूजा कबैला 06-06-1993 आदि शक्ति क्या है? आज आप पहली बार मेरी पूजा करने वाले हैं अभी तक सदा मेरे तत्व या एक भाग की पूजा होती रही है। हमें उसके पास क्या बाको बचा? कुछ नहीं, वह मात्र देख रहा अपने है। वह क्या साचता है। वह तो बस अपनी इच्छा का, प्रेम का तमाशा देख रहा है। देख रहा है कि किस प्रकार यह कार्यान्वित हो रहा है । देखते हुए वह अत्यन्त सावधान है क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान है कि जिस व्यक्तित्व की सृष्टि मैंने की है वह प्रेम एवं करुणा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और करुणा इतनी श्रेष्ठ है कि यह कोई चुनीती था किसी स्पष्ट रूप से समझना है कि आदि शक्ति क्या है। जिस प्रकार आप कहते हैं यह सदाशिव, सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा है। परन्तु सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा क्या है? आप दखें कि आपकी इच्छाओं का उदभव कहा से है। यह न तो परमात्मा के प्रेम से है और ने ही आम प्रेम से : इनका उद्भव भौतिक पदार्थों के प्रेम से या सत्ता प्रम से है। इन सभी इच्छाओं के पीछे प्रेम है। बिना प्रेम के आप किसी चीज की इच्छा नहीं करते तो आपका यह सांसारिक प्रेम जिसके लिए आप अपना इतना समय व्यर्थ गंवाते हैं. आपको संताष प्रदान नही करता। क्योंकि आपका प्रेम सच्चा नहीं है। प्रकार का प्रश्न सहन नहीं कर सकती और न ही यह अपना अपमान, पतन या प्रतिष्ठाहीनता सह सकती है। इस मामले में वह बहुत सावधान तथा जागरूक है। तो उसमें और उसकी प्रम इच्छा में एक दरार आ गई है। इस प्रेम की इच्छा ने एक व्यक्तित्व अर्थात् अहम् भी दिया है, और इस अहम् को स्वयं कार्य करना होता है। एक यह तो कुछ समय के लिए आपका प्रेमोन्माद है जिससे आप तंग आ जाते हैं और फिर यह उन्माद एक से दूसरीं चीज के लिए परिवर्तित होता रहता प्रकार से यह इतना स्वच्छन्द व्यक्तित्व बन गया जिसे अपनी है। इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता थी । अपने लौकिक जीवन में भी किसी पति-पत्नी को इतना स्वतन्त्र हम नहीं तो आदि शक्ति परमात्मा के दिव्य प्रेम का अवतार है पाते कि बिना तालमल, बिना सुझ-वूझ, बना एकाकारिता और विना तारतम्य के वे कोई भी कार्य करने के लिए स्वच्छन्द हों। ये तो चांद और चांदनी, सूर्य और धूप की तरह से हैं । यह इस प्रकार का तालमेल है जिसमें एक व्यक्ति कोई कार्य परमात्मा का शुद्ध प्रम है। अपने प्रेम में उन्होंने क्या इच्छा की। परमात्मा ने इच्छा की कि वह मानव की सृष्टि करे जो आज्ञाकारी हो. भव्य हो ओर देवदूतों सम हो । आदम ओर ईव का सृजन करने के पीछे भी यही विचार था । तो देवदूतों को स्वतन्त्रता नहीं होती क्योंकि उनका सृजन ही इस प्रकार से किया गया होता है। उनके कार्य नियत होते हैं, वे नहीं जानते कि वे क्यों कार्य कर रहे हैं। पशुओं को भी इस बात का ज्ञान नहीं होता कि वे क्यों कार्य नहीं कर रहे हैं । प्रकृति के बन्धन में होने के कारण वे किए चले जाते हैं। सर्वशक्तिमान में वे बंधे होते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव पशुपति हैं अर्थात् सभी पशु उनके वश में हैं। पशुओं में सभी इच्छाएं होती है । परन्तु वे पश्चात्ताप नहीं करते, उनमें अहम् नहीं होता, वे यह नहीं सोचते कि यह कार्य गलत है करता है और दूसरा उसका आनन्द लेता है। उस सुन्दर दरार में आदिशक्ति ने अपनी योजना परिवर्तित करने का निर्णय किया । वे 'संकल्प-विकल्प करोती' के लिए प्रसिद्ध हैं। किसी भी कार्य का यदि आप बहुत अधिक आयोजन करंगे तो वे इसमें परिवर्तन कर देंगी । जैस आज की ग्यारह बजे की पूजा । आदम और ईव की सृष्टि करने पर आदिशक्ति ने सोचा कि यदि वे भी अन्य पशुओं या दंवदूतों के समान परमात्मा के पाश हांगे तो उसका क्या लाभ हागा। उन्हें इस बात का ज्ञान हाना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं उन्हें यह और यह ठीक । अहम् न होने के कारण उन्हें कर्म की समस्या नहीं होती, क्योंकि वे स्वतन्त्र नहीं हैं । समझने की स्वतन्त्रता होनी आवश्यक है कि ज्ञान क्या है। पशुओं की तरह से पाशवद्ध जीवन उनका क्यों होना चाहिए? तो अपनी निरंकुश शक्ति (जोकि उन्हें प्रदत्त थी) के अन्नरतगत आदिशक्ति ही सर्पणी के रूप में आई और आदम और इंव इस बिन्दु पर आदिशक्ति का पर्ांपण होता है आदिशंक्ति जा कि शुद्ध प्रेम है । एक पिता के विषय में सोचे जिसने अपना सारा प्रेम एक ही व्यक्तित्व में उड़ेल दिया हो : ता को बताया कि तुम ज्ञान के फल को चखी । जो लोग 27 चेतन्य लहरी ।खंड : 10 अंक : 1 2 और 3 1998 ho जिस व्यक्ति में प्रेम एवं करुणा नहीं है उसमें परमात्मा को शक्ति नहीं हो सकती । परमात्मा को शंक्ति में हो सभी सहजयागी नहीं हैं उनसे यह बात नहीं बता सकते । उन्हें आघात लगेगा। परन्तु यह सर्पणी जो उनकी परीक्षा के लिए उनके पास आई उसने उन्हें बताया कि अच्छा हागा कि आप कुछ निहित है । इस पृथ्वी पर और अगणित ब्रहाण्डों में जिस भी चीज को सृजन हुआ है वह देवी मां (आदि शक्ति) के प्रम के कारण हुआ है। तो आदि शक्ति का प्रेम कभी कभी तो इतना सुक्ष्म होता है, इतना सुक्ष्म कि आप इस नहीं समझ सकते । मैं जानती हूं प्रति आपमें अगाध प्रेम है। आपसं मेरी ओर आनं वाली चैतन्य सपंणी ने स्त्री (ईव) को बताया, पुरुष इस फल को बखें । का नहीं क्योंकि स्त्री चीजों को सुगमता से स्वीकार कर लेती है। पुरुष का कुछ भी आप बताते रहे वह जल्दी से इसे स्वीकार नहीं करता परन्तु स्त्री स्वीकार कर लेतो है। पुरुष विचार-विमर्श करता है, बहस करता है। इसीलिए सर्पणी ने स्त्री का बताया । यह आदिशक्ति (Holy Ghost) वास्तव में स्त्रीलिंग है और इसलिए स्त्री के अधिक समीप रहती है ता लहरें मध्य से चल कर किनारे की तरफ आती हैं और फिर आप सब मुझे अत्यन्त प्रेम करते हैं. मरे लहरियां इस प्रकार होती हैं जैसे झील के पानी में वापस लौट जाती है और किनारों पर वहुत सी चमकती हुई सर्पणी के रूप में आकर इसने बताया कि ज्ञान का फल चखो। अब पति को समझाना महिला का कार्य था और यह बूंदे छोड़ जाती हैं। इसी प्रकार में अपने हृदय में आपके प्रेम कार्य महिलाएं बहुत अच्छी तरह से जानती हैं। कभी-कभी ता की. इस चमकते हुए दिव्य प्रेम के सौन्दर्य को गुंजरित करते वे गलत ढंग से, गलत एवं अत्यन्त पापमय चीजं अपने हुए महसूस करती हैं । अपनी इस अनुभूति का वर्णन आपके पतियां को समझा देती हैं। सम्मुख करने में में असमर्थ हू। परन्तु पहली चीज जो इससे आप जानते हैं मैकबैथ (MACBETH) में क्या हुआ? होती है वह यह है कि इससे मरी आंखों में आंसू आ जाते बहुत स्थानां पर हमने देखा है कि महिलाएं अपने पतियों को हैं, क्योंकि यह करुणा है, 'सांद्र करुणा' सांद्र करुणा; यह आ गलत दिशा में ले जाती हैं। पत्नी यदि गलत है तो वह पति को भ्रमित कर सकती है और यदि ठीक है तो वह पति कां कार्य करो नहीं तो में तुम्हें गोली मार दूगा. परन्तु मां इस उचित मार्ग पर चला सकती है और वह मुक्ति प्राप्त कर है। आद्र है शुष्क नहीं। पिता की करुणा शुष्क हो सकती है, यह प्रकार चोट पहुंचाने वाली काई भी बात नहीं कह सकती । हैं आपको सुधारने के लिए उसे कुछ कहना पड़ सकता है परन्तु सकता है। आदम का अपनी पत्नी में पूर्ण विश्वास था . अतः उन्होंने परमात्मा के इस मादा व्यक्तित्व के पथ प्रदर्शन में ज्ञान के फल को चखा । भिन्न होगा । दिव्य प्रेम के कारण उसका हृदय ऐसा बना । अनुयायी इस बात को नहीं समझ सकते । उन्होंने कंवल उनके दर्शन किए, वे इस बात को नहीं समझ सके । यदि हुआ, इसका जर-जर्र दिव्य प्रेम प्रवाहित करता है चैतन्य उन्होंने इसे लोगों से बताया होता तो लोगों ने उनकी बात को सांद्र करुणा के कारण उसका कहने का ढंग पिता से विल्कुल ईसा. मोहम्मद साहब, गुरु नानक के अत: शरीर का हर अग और सभी कुछ दिव्य प्रेम से सृजित लहरियां दिव्य प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जैसा मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं कि इस बिल्कुल न सुना होता । अत: उस युग में लोगों के चित्त और प्राप्त करने की अवतरण को आना ही था, समय आ गया था। दिखाई दे रहा था कि समय आ गया है। परन्तु नियत समय और सहज समय में अन्तर हैं। नियत समय वह होता है जिसमें आप कह सकते हैं कि रेलगाडी फला समय आयेगी और फला समय पहुंचगी इतनी चीजें बना देगी । शक्ति के अनुसार धर्म एवं उत्थान के विषय में बताया । परन्तु भारत में युग-युगान्तरों से कुण्डलिनी की बात की जाती रही है और लोगों को इस बात का भी ज्ञान था कि । आप कह सकते हैं कि यह मशीन इतने समय में कुण्डलिनी हमारे अन्दर आदिशक्ति का प्रतिविप्ब है। आपका पढ़कर सुनाया गया है कि 'में सभी में हूँ। आप समझ लें कि शुद्ध प्रम एवं करुणा की शक्ति हैं। इसके अतिरिक्त उनमें कुछ नहीं है। उनके हृदय में कंवल शुद्ध प्रम है। परन्तु यह प्रम अत्यन्त शक्तिशाली है. अत्यन्त शक्तिशाली । यही प्रेम उन्होंने पृथ्वी मां को प्रदान किया हैं । ं. पृथ्वी मां इतनी सारी परन्तु जोवन्त चीज जो स्वत: एवं सहज हाती हैं उनका समय आप नहीं बता सकते । इसी आदिशक्ति प्रेम की प्रकार से स्वतंत्रता की इस प्रक्रिया. जिसका आपकं पास बाहुल्य हे, इसके समय के विषय में भी आप नहीं बता सकते; आप नहीं कह सकते कि फला समय दिव्य प्रेम क सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए लोग उपलब्ध होंगे । ज्ञान वहुत शुष्क भी हो सकता है। भारत में एसे बहुत से लोग हो गये है जो ग्रन्थों के अध्ययन में और मन्त्रोच्चारण में बहुत व्यस्त थे । वे इतने शुष्क हो गये कि उनका शरीर कंकाल की तरह से बन गया और वे इतने क्रोधी स्वभाव के हो गये कि चाह जितने भी पाप हम करते रहे सुन्दर वस्तुएं उत्पन्न करके अपने प्रेम की वर्षा कर रही है। यें आकाशगंगाएं और सितारे जो आप देखते हैं से इनक माध्यम वे अपने प्रेम सीन्दर्य की अभिव्यक्त कर रही हैं। यदि आप विज्ञान की दृष्टि से देखें तो विज्ञान में प्रेम नहीं है। इसमें प्रेम का प्रश्न ही नहीं उठता । जो लोग योग की बात करते किसी व्यक्ति की ओर यदि वे देखते तो वो वह भस्म हो जाता । क्या आप पृथ्वी पर तपस्या करने इसलिए आये हैं कि है वा भी प्रम एवं करुणा की बात नहीं करते । 28 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : , 2 और 3 1998 किसी को भस्म कर दें? परन्तु वे तपस्वी स्वयं को इसीलिए बहुत महान् मानते थे क्योंकि उनके देखने मात्र से व्यक्ति आदि की समस्याएं भी थी । स्वच्छदता के कारण इन सारी भस्म हो जाता था ! परहित का कोई विचार उनके हृदय में न था । इस दिव्य प्रेम के माध्यम से पहली उपलब्धि जो हुई है वह है आपका 'हित' । 'हित' अपने आप में अत्यन्त इसी काल में जातिप्रथा, दासत्व, भेदभाव, ऊंचनीच समस्याओं की सृष्टि हुई । मान लों में आपसे बार-बार कहे जाऊं यह कालीन नहीं है, यह कालीन नहीं है तो मस्तिष्क में ये बात बैठ जाएगी कि यह कालीन न होकर कुछ और हो भ्रमित करने वाला शब्द है 'हित' का अर्थ है; जो कुछ यह सम्मोहन जैसा हैं जिसके वशीभूत होकर लोगों ने जातिवाद, भेदभाव और स्त्रियों से दुर्व्यवहार करने जैसी कुप्रथाओं का आपकी आत्मा के लिए अच्छा है। आप जानते हैं कि आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। आपके अन्तर्निहित दासत्च स्वेकार किया। अच्छा या बुरा चुन लेने की स्वतन्त्रता के कारण यह सब हुआ। एसी परिस्थितियों में उन पर दर्शाया गया दिव्य प्रेम एवं करुणा व्यर्थ हो जाते क्योंकि लोग इन चीजों को समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार ही न श्रे। उनसे यह भी न कहा जा सकता था कि अज्ञान और धर्मान्धता आत्मा अपने पूर्ण सौन्दर्य के साथ प्रतिबिरमबत होने लगती है तो आप दाता बन जाते हैं। ग्राही (पाने वाले) नहीं रह जाते. आप दाता बन जाते हैं। आप इतने संतुष्ट हो जाते हैं ! इस एसे समय पर आना था जिसे कयामा का अवतरण का वक्त कहा गया है। जैसा कि मैंने कहा आप स्वतन्त्र है, और के कारण आप ऐसा कर रहे हैं और एसा करना आपके हित इस स्वतंत्रता में लोग सभी प्रकार के उल्टे-सीधे कार्य कर रहे में नहीं है। यह कार्य आपको श्रेष्ठ नहीं बनाएंगे । नि:सन्दह थे । इससे पूर्व अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके लाग भारत, चीन, अफ्रीका आदि स्थानों को विजय करने के लिए निकल पड़े थे। अमेरिका के लोग अमेरिका गये और वहां शासन वे अधम हैं। वे अधम कार्य ही कर रहे हैं । बहुत से सन्त आए उन्होंने श्रेष्ठता, क्षमा. एकता अऔर एकाकारिता की बात की । सभी कुछ उन्होंने कहा । बड़े-बड़े पैगम्बर अवतरित हुए । वे उस बुलन्दी तक पहुंचे और बुलन्दी की बात भी स्थापित कर लिया । इस काल में लोग स्वतन्त्रता को कंवल सत्ता प्राप्ति के की। परन्तु अब भी लोग तैयार न थे । शनै: शनैः उनकी लिए उपयोग कर रहे थे । वह आदि शक्ति के अवतरित होने । का समय न था । वे लोग सत्ता के दीवानं थे, एंसा नहीं है कि आज ऐसे लंग नहीं हैं। परन्तु उस समय तो वे केवल समस्याओं के कारण बने । वे सभी धर्म अपनी दिशा से सत्ता तथा साम्राज्य खोज रहे थे । यह महत्वपूर्ण नहीं है। अत: आत्मसाक्षात्कार का कार्य उस समय नहीं हो सकता थी । उस इंसाई, हिन्दू । यह यहां, वह वहां । तो इन सभी खड्डों को समय तो लोगों को अपनी स्वतन्त्रता के लिए साम्राज्यवादियों जो उन्हें दास बनाने में लगे हुए थे. के चंगुल से मुक्ति प्राप्त करने के लिए युद्ध करना था । शनैः शनै: परिस्थितियों में परिवर्तन आया और अत्यन्त सहजता से सभी कुछ परिवर्तित आपकी स्थिति भिन्न भिन्न है किसी की ऊंची स्थिति है और होता गया । यह हैरानी की बात है। मैंने स्वयं यह परिवर्तन किसी की नीची । परन्तु एक तरफा आप किसी को तिरस्कृत आते देखा । आप जानते हैं कि यह सब कार्यान्वित हुआ । मैने स्वयं भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। साम्राज्यवाद नहीं है। व्यक्तिगत रूप से चाहे आप कहें परन्तु सामूहिकता से मुक्ति प्राप्ति के लिए आन्दोलन पूरे देश में फैलता चला गया । लोग स्वतन्त्रता के विषय में साचने लगे : वे समझने लगे कि साम्राज्य बनाने का कोई लाभ नहीं और अपनी स्थिति में लौट आना ही अच्छा है। मेरे जीवन काल में भी यह सब है, केवल हम ही को परमात्मा ने बचाया है। दूसरों ने कहा, शिक्षाओं ने लोगों पर कार्य करना शुरू किया उन्होंने जो, तथाकथित धर्म स्थापित किए थे वे सारी भटक गए और एक प्रकार की खिचड़ी पक गई, मुस्लिम, , भरने के लिए जीवन सरिता की आवश्यकता थी । यह सोचना कि एक मानव दूसरे मानव की अपेक्षा तुच्छ है बिल्कुल अज्ञानता है, मूर्खता है। आप केवल इतना कह सकते हैं कि नहीं कर सकते कि वह अच्छा नहीं है या यह समाज अच्छा के लिए आप यह नहीं कह सकते । इस ज्ञान का अन्धकार इतना था कि यह सामूहिक अज्ञान बन गया- सामूहिक अज्ञान। सभी लोग एकत्र होकर यह कहने लगे कि यह धर्म सर्वोत्तम हुआ । लोग स्वतन्त्रता के लिए बलिदान हुए । भगत सिंह नहीं वं तो अति अधम लोग हैं: हम सर्वश्रेष्ठ हैं और इस जैसे शहीद सभी देशों में हैं । क्रान्तिकारियों को बाहर निकाल दिया गया । उनसे दुर्व्यव्हार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई । इस प्रकार स्वतन्त्रता-प्रेम की परीक्षा हुई और उन्हें (अंग्रेजों को) लगा कि, यह सब जो हम कर रहे हैं, यह प्रकार धर्म के नाम पर, सर्वशक्तिमान परमात्मा के नाम पर यह मूर्खता आदिशक्ति पूरी ताकत से प्रकट हो। पहली चीज जो उन्होंने ( आदिशक्ति) महसूस की कि लोगों को इस बात का ज्ञान आरम्भ हो गई । तो अब आवश्यकता थी कि ा मुर्खता है। इस प्रकार उनमें एक भय की भावना उत्पन्न हुई होना आवश्यक है कि परिवार क्या है। बच्चा परिवार में जन्म उसे जिसने उनमें दोष भाव (बांई विशुद्धि) को जन्म दिया । लेता है। यदि माता पिता उसका पूरा ध्यान न रखें, अवाछित प्रेम दें या उनकी उपेक्षा करें तो बच्चा समझ ही नहीं पाता कि प्रेम क्या है। प्रेम का अर्थ बच्चे को विगाड़ना अपनी करनियां के लिए उनमें दोष भाव आ गया और उन्हांने अपनी गलती को महसूस किया । 29 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 विचार से जो शासन कर सकता है, दूसरों को दबा सकता है या ढेर सारे खिलौने देकर उससे मुक्ति पाना नहीं है। इसका अर्थ हर समय आपके चित्त का नि्लिप्त भाव से बच्चे के बही सर्वोत्तम है। यद्यपि साम्राज्यवादी शैली की सरकार का हित के लिए बच्चे पर होना है, हित की भावना से मोह के कारण नहीं । तो हर समय आपकी दृष्टि हित पर ही होती है और इस प्रकार मेंने सोचा कि पारिवारिक जीवन के महत्व को सर्वप्रथम स्थापित किया जाए। यह अति आवश्यक है क्योंकि धर्म के नाम पर आजकल वैरागनियों (NUNS), बनावटी । यह समझ पाना असंभव था कि इस प्रकृति को पादरी और सन्यासियों आदि की प्रथा चला दी गई है और गलत बताए जाने के बावजूद भी वच्चों को संभाला क्यों न प्रभुत्व समाप्त हो गया था परन्तु व्यक्तिगत प्रभुत्व को प्रक्रिया वनी हुई थी और इसके कारण अहम् विकसित होने लगा । बच्चों तक को भी उन्होंने इस प्रकार की शिक्षा दी कि वे अत्यन्त उद्दण्ड एवं बनावटी हो गए । अत्यन्त उद्दण्ड एवं सभी प्रकार के बाबा घूम रहे हैं। व इतने नीरस हैं और इस प्रकार से लोगों को भ्रमित करते हैं कि लोगों ने घर, परिवार. बीबी-बच्चे छोड़ कर सन्यास धारणा शुरू कर दिया है। तो उन्हें ध्यानगम्य होना चाहिए । आप यदि ध्यान धारणा पहली चीज जो मैंने महसूस की वह थी कि प्रेम को समझे नहीं करते तो मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं । आप मेरे विना मानव में प्रेम नहीं पनप सकता और यह प्रेम यदि सम्बन्धी नहीं हैं और न ही आपका मुझ पर कोई अधि सामूहिक हो तभी प्रभावशाली होता भारत में परिवार के लोग परस्पर प्रेम करते हैं । परिवार इतने नहीं हो रहा, वैसा नहीं हो रहा है। यही कारण है कि लम्बे होते हैं कि वो यह भी नहीं जानते कि उनके सम्बन्ध क्या हैं। फिर भी हम एक दूसरे को बहन भाई कहते हैं। कीजिए-ध्यान कीजिए। मुझे आपसे कुछ नहीं लेना देना संयुक्त परिवार प्रणाली इसका कारण है। संयुक्त परिवार प्रणाली सामूहिक प्रणाली की तरह से ही है। कोई नहीं जानता मुझसे नहीं जुड़ा हुआ तो आप भी अन्य लोगों की तरह कि उसका वास्तविक भाई कौन है, सौतेला भाई कौन है, हैं चाहे आप सहज योगी हों, चाहे आपको अपने चर्चरा ममेरा कौन है । फिर भी सम्बन्धियों की तरह से वे अगुआओं से सहजयोग का प्रमाण पत्र मिल चुका हो, इकट्ठे रहते हैं । परन्तु आर्थिक कारणों से संयुक्त परिवार भी चाहे आपको बहुत महान समझा जाता हो, परन्तु यदि जा सका । लोगों का ध्यान धारणा न करना लौकिक चीज है। कार है। कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए कि ऐसा है। हमने देखा है कि जब आप ध्यान नहीं करते तो मैं कहती रहती हूं ध्यान । आप मेरे लिए नहीं रह जाते । आपका सम्बन्ध यदि आप प्रतिदिन और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो, सत्य बात है, आप श्रीमाताजी के साम्राज्य में नहीं टूट गए । इस संकट के समय में जबकि लोगों को प्रम का ज्ञान होना चाहिए था, सभी देशों में परिवार टूटने लगे । विशेषकर पश्चिमी देशों में जहां लोगों ने पारिवारिक जीवन के होंगे, क्योंकि मुझसे आपका सम्बन्ध केवल ध्यान-धारणा महत्व को कभी नहीं समझा । उन्हें अपने परिवार पर कभी के माध्यम से ही है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो विश्वास न था । बेचारें बच्चों के लिए चीजें गई हैं। वे फिसलन पर खड़े हैं । उनका विकास उचित रूप से नहीं हो पा रहा है। इन परिस्थितियों ने एक हिंसात्मक तथा सुबह बहुत कठिन हो ध्यान-धारणा नहीं करते । उन्हें कष्ट उठाना पड़ता है, उनके बच्चे दुख झेलते हैं। जब ऐसा कुछ होने लगता है तो वे आकर मुझे बताते हैं परन्तु मैं स्पष्ट देख लेती हूँ कि यह व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता । मेरा उससे भयानक रूप से भूत बाधित वच्चों की पीढ़ी को जन्म दिया। यह पीढ़ी युद्ध की ओर चल पड़ी। वे नहीं समझते-उन्हें कोई सम्बन्ध नहीं है और उसे मुझसे कुछ मांगने का युद्ध करने की इच्छा होती है। मैंने बच्चं को पेड़ों से लड़ते अधिकार नहीं है। आरम्भ में, नि:सन्देह ध्यान में जाने के देखा है। मैंने पूछा आप क्यों लड़ रहे हैं? उन्हें इसका ववद लिए कुछ समय लगता है परन्तु एक बार जब आप जान जाते हुए कारण नहीं पता । प्रेम के अभाव में सभी कुछ घृणात्मक हो हैं कि ध्यान-धारणा क्या है तो आपको मेरी संगति अच्छी जाता है, मुझे यह पसन्द नहीं है। हताशा के कारण वे सभी लगेगी। किस प्रकार आपकी एकाकारिता मुझसे है ! किस कुछ तोड़-फोड़ करने की कोशिश करते हैं। तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक और प्रवृत्ति पनपी और परिणामस्वरूप मूल्यों का ह्रास हो गया । लोगों को लगा कि इन प्राचीन नहीं, कुछ नहीं । कंवल ध्यान-धारणा की ही आवश्यकता है। मुल्यों का क्या लाभ है। इन मूल्यों के होते हुए भी हमें क्या मिला और युद्ध, युद्ध किसलिए है? युद्ध ने हमारे समाज और उठते चले जाते हैं । और जब यह घटित होता है. जब आप बच्चों का वध कर दिया है। युद्ध के विषय में क्या चीज सहजयोग की उस परिपक्व अवस्था तक पहुंच जाते हैं तो महान् है। तो लोगों के मस्तिष्क में एक बात आई कि सर्वशक्तिशाली व्यक्ति ही सर्वोत्तम है और किसी भी बहाने से युद्ध करके इसका निर्णय किया जाना चाहिए । तो उनके प्रकार हम परस्पर तालमेल रख सकते हैं हमें एक दूसरे को पत्र लिखने या सामाजिक सम्बन्ध बनाने की कोई आवश्यकता ध्यान में ही आपका उत्थान होता है, ध्यान से ही आप ऊंचे आप ध्यान धारणा को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि केवल उसी समय आपको पूर्ण एकाकारिता मुझसे होती हैं। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप 3-4 घंटे ध्यान-धारणा करें । चैतन्य लहरी 30 । खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 अपनी गरिमा और महान व्यक्तित्व (जिसका अब पर्दाफाश कितनी गहनता से आप मेरे साथ जुड़े हुए हैं, यह महत्वपूर्ण है। कितना समय आपने ध्यान को दिया यह नहीं । तब मैं आपके प्रति, आपके बच्चों के प्रति, पूर्वक ध्यान- धारणा करनी होगी एंसा नहीं है कि रात को आपके सबके प्रति जिम्मेदार होती हूं । तब मैं आपके मैं देर से आया इसलिए ध्यान नहीं किया, कल मैंने काम पर उत्थान के लिए, आपकी सुरक्षा से आपकी रक्षा करने के लिए जिम्मेदार हूं। ता एक पिता अच्छे नहीं लगते और अब तो बात आपके और आपकी की तरह मैं सीधे आपको दण्ड नहीं देती । ऐसा नहीं है। आत्मा के बीच है। इसमें आपका अपना ही लाभ है किसी ु ठीक है. तुम मेरे सम्बन्धी नहीं हो, मैं अपने आप में कुछ घटित हों हो चुका है) को पाने के लिए आपको वास्तव में पूर्ण निष्ठा के लिए, सभी बाधाओं जाना है इसलिए ध्यान नहीं कर सकता । बहाने किसी को भी और का नहीं। आपके लाभ के ही लिए सभी रहा है। अब हमें समझना है कि हमारी उपलब्धियां क्या है| परन्तु ठीक हूँ। यदि आप ध्यान धारणा नहीं करते तो मैं आपको विवश नहीं कर सकती । मुझे आपसे कुछ नहीं लेना देना । आप बाहर के लोगों से बाह्य सम्बन्ध रख सकते है। परन्तु सम्बन्धों की एक विशेष ऊंचाईं परन्तु चाहे आप स्वयं को यह आन्तरिक सम्बन्ध, जिसके द्वारा आपका हित होता है, एक उच्च काटि का सहजयोगी मानत हो फिर भी ध्यान-धारणा ध्यान धारणा के बिना आप प्राप्त नहीं कर सकते । में आप सबसे बताती रहती हूं कि कृपा करके ध्यान करें, प्रतिदिन के विषय में नम्र होना आपके लिए आवश्यक है। ध्यान-धारणा का यह गुण इतना आनन्ददायी है कि यद्यपि में आपसे सहस्रार पर बात कर रही हू फिर भी ध्यान में हू। आप । आरम्भ में ऐसा करना कठिन ध्यान करें । परन्तु लोग मेरे कथन के महत्व को समझ नहीं रहे हैं। वे मुझसे कहते हैं," श्रीमाता जी हम ध्यान धारणा नहीं आनन्द के सागर में कूद पड़े करते।" 'क्यों? " अब हम आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति है, हम होगा परन्तु कुछ समय पश्चात् आप जान जाएंगे कि आपका यह सम्बन्ध वह सम्बन्ध है जिसे आप खोज रहे थे । कुछ लोग जो खो जाते हैं, मैंने एक दोष देखा है, वे अकेले में वहुत ध्यान करते हैं। अकेले में वे ध्यान करेंगे, पूजा करंगे और बैठे रहेंगे परन्तु वह सामूहिक ध्यान नहीं करते तो हमें ध्यान रखना है कि हमें सामूहिक ध्यान करना है। क्योंकि मैं परम सामूहिक हूं और जब आप सामूहिक ध्यान करते हैं तो मेरे बहुत समीप होते हैं। अतः जब भी आपका कोई कार्यक्रम हांता है तो ध्यान अवश्य करें । हर कार्यक्रम में ध्यान धारणा ही आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए । भजन आदि गाने के पश्चात् आप ध्यान करें । मैं यदि किसी चीज पर जोर दे रही हूं तो आपको समझ लेना चाहिए कि यही सत्य है और हर चीज का आधार है। देखने में यद्यपि यह अत्यन्त सांसारिक प्रतीत होता है फिर भी यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्यों ध्यान-धारणा करें । अब यह यन्त्र (MICROPHONE) पूरी तरह से बना हुआ हैं, परन्तु यदि यह ऊर्जा स्रोत से जुड़ा हुआ नहीं है तो इसे रखने का क्या लाभ है? ध्यान-धारणा में आप प्रम का अनुभव करंगे, परमात्मा के प्रम का । परमात्मा के प्रेम के सौन्दर्य को आप महसूस करेंगे । पूर्ण दृश्य पटल 1 ही परिवर्तित हो जाएगा। ध्यान-धारणा करने वाल व्यक्ति का तो दृष्टिकाण ही बिल्कुल भिन्न होता है, उसका स्वभाव, उसका जीवन बिल्कुल ही भिन्न होता है। वह सदा पूर्ण आन्तरिक सन्तोय के साथ रहता है। तो आज अवतरण का प्रथम दिन होने के कारण, हम कह सकते हैं कि आज प्रथम दिन है क्योंकि आज आप पहली बार आदिशक्ति पूजा कर रहे हैं। नि:सन्देह! यह युद्ध आज नहीं, फिर भी हम कह सकते हैं कि यदि यह सत्य है, यदि यह घटित हुआ है और आपको इससे सहायता मिली है, अब आदिशक्ति की पूजा करने कं लिए मैं नहीं जानती, क्योंकि आज तक आदिशकि्त के लिए कोई प्राथना नहीं बनी । लोग भगवती तक ही पहुंच पाए । इससे आगे नहीं गए । मैं नहीं जानती आप किस प्रकार की पूजा करेंगे। यदि यह आपके लिए आशीरवाद है तो आपको इसे सुरक्षित रखने का, बढ़ाने का और इसका आनन्द लेने का ज्ञान होना आवश्यक है। किसी एक नाटक या किसी एक चीज से आपको सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए । परमात्मा से आपकी पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए । यह तभी सम्भव है हमे कुछ प्रयत्न करना चाहिए और ध्यान-धारणा ही कुछ प्राप्त करने का सर्वात्तम उपाय है। तो हम पांच मिनट के लिए ध्यान में जाएंगे । परन्तु जब आप वास्तव में ध्यान-धारणा करते हैं। ऐसा करना है। कुछ लोग कहते हैं कि श्रीमाता जी हम समय से ऊपर नहीं उठे सकते । हर समय हम कुछ न कुछ अत्यन्ते सुगम कृपया अपनी आखे बन्द कर लें । (श्रीमाता जी सभी सोचते रहते हैं या घड़ी देखने की इच्छा करती है। आरम्भ में उपस्थित सहजयोगियों को कुण्डलिनी उठाती हैं) ग्यारह रुद्र आपको थोड़ी-सी कठिनाई हो सकती है। केवल आरम्भ में। जागृत हो चुक हैं और वे सारी नकारात्मकता को नष्ट कर शनै: शनै: आप ठीक हो जाओगे, इस पर आपका अधिकार दंगे। अज्ञान सबसे बड़ी नकारात्मक शक्ति है। मुझे विश्वास है कि ये रुद्र लोगों के अज्ञान को नष्ट कर दंगे । । आप इसे इतनी अच्छी तरह से जान जाएगे कि हो जाएगी परमात्मा आपका धन्य करे । कोई भी चीज आपको अच्छी न लगेगी । अपने सौन्दर्य. 31 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अक : 2 और 3 1998 hoe रामनवमी पूजा (संक्षिप्त) मत्ड नोयडा-निवास, शालिवाहन शक सम्वत् -1920 (5 अप्रैल 1998) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का संक्षिप्त सार चल आज रामनवमी के दिन आपकों श्री राम के बारे में ऊपर महाराष्ट्र के संत नामदेव ने पंजाबी भाषा में लिखा है जिसे गुरु ग्रंथ साहब में भी लिया गया है। उन्होंने कहा जैसे बतायें । वैसे ता आप जानते ही हैं कि श्री राम नं सभी धर्मों पितृ धर्म, मातृ धर्म, पति धर्म से निभाया । और यह सब करते हुए उन्होंने राज काज का सभी धर्मों को पूरी तरह एक मां पीठ पर अपना बच्चा बांध घर का सारा कार्य करती है लेकिन उसका चित्त अपने बच्चे पर ही रहता है। इसी प्रकार एक बच्चा जब पतंग उड़ा रहा हो तो वह अपने साथियों से बातचीत भी करता रहेगा लेकिन उसका चिनत कार्य बखूबी निभाया । वे अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करते थे लेकिन फिर भी राजहित के लिए उन्हांने उसका त्याग किया। बाद में सोता जी ने भी एक प्रकार से उनका त्याग किया। अपनी पतंग की और ही है। तीसरे गांव में औरतें सिर पर पानी के घड़े रख कर जा रही हैं। वे आपस में बातें करती हैं हसी मजाक करती हैं तो भी उनका चित सिर पर रखे बड़ों इतनी प्रिय पत्नी का त्याग करना कठिन है. हां अगर पत्नी से प्रेम न हो तो और बात है। श्री राम पूरी तरह से धर्म पर पर हो रहता है। इसी प्रकार हमारा चित्त भी सब कार्य करते खड़े थे । वे धर्मातीत थे । उनका धर्म ऐसा नहीं जैसे हुए अपनी आत्मा पर ही रहना चाहिए । आजकल कोई धर्म पाल रहे हैं या धर्म पर चलने की बात है। वे पूर्णतया धर्म में खड़े हुए थे । श्री. राम देवी के बड़े पुजारी थे । लंका पर आक्रमण मनुष्य के रूप में होते हुए इस महान अवतरण ने सभी कठिनाइयों का सामना किया । एक अवतरण होते हुए उन्हें यह सब करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन वे दिखाना चाहते. थे कि मनुष्य रूप में भी इंसान कितनी ऊंचाई पर जा सकता है। ईसा मसीह को भी सताया गया और सूली पर चढ़ा से पूर्व उन्होंने देवी पूजन किया। उन्होंने राबण का देवी पूजा के लिए आमन्त्रित किया और रावण आया भी । श्री राम जानते थे कि रावण देवी का पुजारी है इसीलिए उन्होंने इसे बुलाया। वैसे बाहर चाहे उनका आपस में झगड़ा हो लेकिन दबी की पूजा में दानों एक साथ थ हमारे बच्चे हैं और पूजा कार्य आपको मिलकर एक साथ करना चाहिए । ये देखा गया है जहां देवी की, मां की, पूजा । इसी प्रकार आप सब दिया गया लेकिन उन्हें थोड़े समय के लिए ही सहना पड़ा । परन्तु श्री राम को तो काफी समय तक कठिनाईयां का सामना करना पड़ा । चौंदह वर्ष तक बनवास में रहे । इसके लिए होती है वहां लोगों में आपस में भाईचारा बहुत होता है। भारत पुरुषार्थं हांना चाहिए पुरुषार्थ के माने जैसे आपको सहज में में भी खासकर उत्तर भारत में देवी की, शक्ति की पूजा होती कोई कठिनाईयां आती हैं, किसी के पति सहज में नहीं. है यहां जगह-जगह पर मन्दिर हैं और शक्ति की पूजा हांती किसी की पत्नी सहज में नहीं है, और भी कठिनाईयां हो है इसलिए लांगों में भाईचारा काफी है। महाराष्ट्र में कात्यायनी सकती हैं, लेकिन आप इन सबकी परवाह किये बिना सहज देवी, बंगाल में दुर्गा मां, की यहा मरठ में ओचन्डी मां की पूजा होती है, इसलिए लोगों में आपस में प्रेम है। जहां देवी कार्य करते रहिए । कुछ लोग कहते हैं कि सहज में कार्य करने से उनका अहंकार बढ़ जाता है। उन्हें समझना चाहिए के अलावा किसी और की पूजा होती है वहां कुछ कम है। कि सारा कार्य तो परम चैतन्य करता है। अहंकार कंवल तब श्री राम के भक्त हनुमान हर समय श्री राम का ही ध्यान करते थे । वे भी हमारे बड़े प्यारे बच्चे हैं. प्यार । आता है जब आप सोचते हैं कि ये कार्य आप कर रहे हैं। बहुत ही यदि आप आत्मा पर अपना चित्त रखें, जैसे मैने बताया था कि अत्मोन्नति होनी चाहिए, तो जब आपका चित्त अपनी आत्मा पर रहता है तो आप पाते हैं कि सभी कार्य अपने आप होते जाते हैं और आपको अहंकार भी नहीं आता । इसके और आज आखरों नवरात्रि है। नवरात्रों की शुरुआत हमारे जन्मदिन से ही होती है चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1 32 2 ओर 3 1998 টি ho आप आश्चर्यचकित होंगे कि जब-जब भी मेरे परिवार या सहजयोग में कोई विपत्ति होती है, तो मैं स्वत: ही निर्विचार हो जाती हूं क्योंकि परम चैतन्य ही समस्याओं का समाधान करेंगे । परम चैतन्य ही जब सभी समस्याओं का समाधान करते । परम चैतन्य हैं तो मैं क्यों सोच! समस्याओं को भूल जाइए को इनकी चिंता करने दीजिए । परम चैतन्य पर यदि आप निर्भर नहीं होंगे तो यह आपकी सहायता नहीं करेगा और न ही समस्याओं का समाधान करेगा. तब अपने मस्तिष्क के साथ आप गोल-गोल घूमते रहेंगे और इनके हल सोचेंगे । निश्चित रूप से आप को जानना होगा कि आप परमात्मा के हैं। प्रेम मुर्ख नहीं है। प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़े हुए है, प्रेम ही आनंद है । प्रेम ही सोचता है, प्रेम ही सत्य ्रीणड ---------------------- 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी खण्ड : 10 1998 अक : 1, 2 एवं 3 शु मा ० चाहे आप सहज योगी हों, चाहे आपको अपने अगुआओं से सहजयोग का प्रमाण पत्र मिल चुका हो, चाहे आपको बहुत महान समझा जाता हो, परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो, सत्य बात है, आप श्रीमाताजी के साम्रान्य में नहीं होंगे, क्योंकि मुझसे आपका सम्बस्ध केवल ध्यान-धारणा के माध्यम से ही है।" ू० परम् पूज्य श्री माताजी सास म 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-1.txt योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34 फोन : 7184340 मुद्रक ु 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-2.txt इस अंक में कबैला, इटली नवरात्रि की पूर्वसंध्या पर श्री माताजी का प्रवचन 1. एक योगी की अनुभूति जुनेटीन्थ क्या है? श्री माता जी का सन्देश 2. एक बालक की अनुभूति सहजयोंग-पूर्ण शान्ति का एकमात्र सरोत सूफी धर्म एवं सहजयोग 17.02.1997 3. नवरात्रि पूजा कबैला 05.10.1997 4. महिलाओं की भूमिका शुडि कैम्प जून, 1988 5. कबैला आदि शक्ति क्या है? 06.06.1993 6. रामनवमी पूजा नोयडा निवास 05.04.1998 7. 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-3.txt रहते हुए सन्तुलित पारिवारिक जीवन व्यतीत करें। प्रकृति के समीप तर पलम नवरात्रि पूजा 4.10.1997 की पूर्व संध्या को श्रीमाता जी का प्रवचन, कबैला, इटली) बहुत सी चीजें हों, आप थोड़ी चीजें खरीदें परन्तु यह हाथ से केवल मनोरंजन की दृष्टि से परन्तु हमारे भविष्य की वनी होनी चाहिए । माल लो आप एक परिधान खरीदते हैं तो इस पर हाथ की थोड़ी-सी कढ़ाई होनी चाहिए या हाथ का बैंक के कार्यकलाप मेरे चित्त को आकर्षित करते रहे हैं मैं कुछ अन्य काम होना चाहिए। लोगों को सस्ती एवं कष्टदायी नहीं समझ पाती कि किस प्रकार इतनी सुगमता से वे सभी । मैं आपको बताती हूं कि मैं नाइलोन नहीं पहन सकती, कोई भी बनावटी चीज नहीं पहन सकती । थोड़ी देर के लिए यदि मैं जुरावें पहन लूं तो मेरा शरीर दुखने लगता है। तो यह प्रकृति के यह कार्यक्रम हमारे लिए कितना आनन्ददायी था. न गतिविधियां की दृष्टि से भी । आश्चर्य की बात है कि स्विस चीजें खरीदते हुए देखकर आश्चर्य होंता है कुछ पचा जाते हैं! आज के इस युग में जबकि लोग प्रजातन्त्र तथा बड़-बड़े आद्शों की बातें कर रहे हैं किस प्रकार खुल्लम-खुल्ला यह गेर-कानूनी कार्य हो रहा है। इसके लिए मेरे पास एक योजना है; मुझे इसका पर्दाफाश करना होगा । एंसा करने के लिए मेरी एक योजना है। जहां तक भौतिकता का प्रश्न है यह कार्यान्वित हो रही है । अत्यन्त उन्नत एवं भी यह लोग अति सुन्दर मृणमूर्तियां (TERRACOTA) बनाते विकसित कहलाने वाले यह सभी देश भयंकर व्यापारिक मन्दे हैं। स्वभाव से मै समाजवादी हं । अत: मेरे मन में तीव्र इच्छा की चपेट में हैं। यह व्यापरिक मन्दा इन्हें अवाछित वस्तुओं हुई कि मैं मुण-मूर्तियों का नि्यात करू क्योंकि ये अत्यन्त विरूद्ध है। हस्तकला की वस्तुएं बहुत कम हैं, फिर भी जहां तक हो सके हाथ से बनी चीजों का उपयोग करें । पृथ्वी से के अत्याधिक उत्पादन के विषय में सबक सिखायेगा। सुन्दर हैं। ये अत्यन्त शान्ति प्रदायक है। अति सुन्दर हैं और अति सुगन्धित भी । परन्तु लोग सांचते हैं कि हमें अमेरिका की बनी कोई चीज खरीदनी चाहिए. मशीनों द्वारा बनी हुई । लिए गई। वहां मुझे हैरानी हुई कि सभी घरों में प्लास्टिक की और वे इस प्रकार की चीजें खरीदते चले जाते हैं। मैं हैरान वस्तुओं के ढंर पहाड़ की तरह से लगे हुए ह थी कि अमेरिका की दुकानों पर भी रेशम, कपास तथा चमड़ं निकलते ही आपको लगेगा कि यह चीजें आप पर गिरने से बनी बहुत सी सुंदर चीजें बिक रही थीं । परन्तु लोग बड़े-बड़े बाजारों में जाकर बहुत महगं दामों में ये बेकार की चीजें खरीदते हैं। इसका अर्थ यह हआ कि उनमें विवंक की कमी है। विवेक की कमी समाज को पतन की ओर घसीटती हैं, विवेक से ही पतां चलता है कि ये मूर्खतापूर्ण चीजं लालच से पागल हो जाने के कारण भौतिकवाद पनपता है। इंग्लैंड में एक घर की खोज में मैं बहुत से घर देखने के हैं। दरवाजे से वाली हैं। केवल इंग्लैंड में ही नहीं पेरिस में भी यही हाल हैं। लोग व्यर्थ की इन चीजों को इतना इकट्ठा करते हैं कि उनकी समझ में नहीं आता कि इन्हें कहा रखें और क्या करें? यह पागलपन बढ़ता हो चला जा रहा है। अब सहजयोगियों के लिए मैंने एक समाधान खोज खरीदना कितना भयानक है। लिया है कि वे क्या करें । उन्हें चाहिए कि वे हस्तकला को प्रोत्साहन दें । चेकोस्लोवाकिया या इंग्लैंड या अन्य कहीं जहां होम्योपैथी को अधिक अपना रहे हैं। आपके महान देश द्वारा भी मैं गई, मैंने हस्तकला की वस्तुएं खरीदीं । में नहीं समझ बनाई हुई भयानक औषधियों का उपयोग वे नहीं करना पाती कि आप लोग ये प्लास्टिक की बनी बेकार की चीजें चाहते । आप जानते हैं कि स्विस लोग क्या करते हैं । वे भारत और अब आप यह भी देख रहे हैं कि लोग आयुर्वेद किस प्रकार खरीद सकते हैं। हस्तकला की वस्तुएं जब मैंने के चिकित्सकों को बुलाने के लिए बड़े-बड़े प्रलोभन भेजते खरीदों तो मैं हैरान थी । चंकोस्लोवाकिया में अत्यन्त छोटी-छोटी हैं और यदि वे चिकित्सा की कोई विशिष्ट औषधि खोज लें दुकाने थीं। एक एक करके वे मेरे पास आए और कहने लगे. तो उसी में मामूली सा परिवर्तन करके वे कहते हैं कि यह "श्री माता जी हमारे से भी आप कुछ खरीदिए ।" वे कहने लगे कि इतनी सुन्दर वस्तुएं हैं फिर भी हम इन्हें बेच नहीं पाते । परन्तु लोग सभी प्रकार की व्यर्थ की चीजें खरीद रहे गलती से मेरे परिवार कं लोगों ने मुझे यह ऐंन्टोीबायोटीक दे हैं तो सहजयोगियों को शपथ लंनी चाहिए कि वे केवल हाथ से बनी वस्तुएं ही खरीदेंगे । जरूरी नहीं कि आपके पास बेहतर है। इन औषधियों के विषय मं भी आप जानते हैं, अधि कतर यह औषधियां अत्यन्त भयानक एवं कष्टदायी हैं। दिए, तभी से मेरी टांगे बहुत दुर्बल और कष्टकर हैं । अब मुझमें काफी सुधार हुआ है। 3. चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-4.txt तो यदि आपको किसी चीज की आवश्यकता है तो तो अब आप देखिए कि क्यों हम यह चीजें अपना रहे हैं क्योंकि चहुं ओर प्रदूषण है, जो कि मशीनों की देन है । गांधी जी कहा करते थे कि इतनी अधिक मशीनों के उपयोग प्रयत्न कीजिए कि हस्तकला की वस्तुएं ही खरीदें । आपके वस्त्र भी आवश्यक नहीं कि वहुत अधिक हों, परन्तु जो हों हाथ से बने हो । कम से कम इतना तो सहजयोगी कर ही की कोई आवश्यकता नहीं है। आप मोटर कार को हो लें । हम पैदल चल सकते हैं, रेलगाड़ियों का उपयोग कर सकते सकते हैं। उन्हें चाहिए कि स्विस बैंकों में धन न रखें। अब हैं, लेकिन यदि लोगों को दस मीटर भी जाना हो तो वे मोटर कार से जाना चाहते हैं। पैदल नहीं चलना चाहते । इसीलिए एक अन्य बात पर भी रुष्ट हूं । उन्होंने यहूदियों को धन देने हमारा स्वास्थ्य बिगड़ गया है। मैं आपको बताती हूं कि जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तो मेरा स्कूल घर से पांच मील दूर था। हमारे यहां कार थी और बग्घी भी थी । परन्तु प्रात: काल पांच मील पैदल चलना हमारे लिए अनिवार्य था । शाम के समय कार हमें लेने के लिए आया करती थी । परन्तु प्रात: इस स्विस बैंक का बुरी तरह से पर्दाफाश होगा । उनसे मैं का वचन दिया था परन्तु अब वे उन्हें धन नहीं देना चाहते। मृत्यु के पश्चात क्या वे इस धन को अपने साथ ले जायेंगे? इन सब अपराधों का दण्ड मिलेगा । इसी कारण में बहुत प्रसन्न हू कि इस वर्ष में ऐसा हुआ । इसके विषय में मैंने सम्मेलनों में भी बात चीत की । चीन के सम्मेलन में भी मैंने स्विस बैंक की बात की बहुत से दण्डाधीशों तथा विधि मन्त्रालय के मुख्याधिकारियों से भी मैंने बातचीत की । मैंने उन्हें बताया कि क्यों न एक सम्मेलन बुलाकर हम यह कहें कि इस तरह का व्यापार (बैकिंग) मुर्खता है। सभी प्रकार के दुष्ट लोग इस प्रणाली का अनुचित लाभ उठाकर पैसा बनाने काल स्कूल जाने के लिए हमें पांच मील चलना होता था । रास्ते में एक पहाड़ी थी, उसे भी पार करना होता था । इस प्रकार हम प्रकृति के बिषय में सीख पाए । पैदल चलं बिना आप क्या जान सकते हैं? कार में जाते हुए आप कुछ बिजली के खम्भों को ही देख सकते हैं। प्रकृति को नहीं देख सकते। अब पैदल चलने की यह शैली पुरानी हो गई है। लोग पैदल चलते ही नहीं । का प्रयत्न कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने बहां अपना धन गंवा दिया है। मेरी समझ में नहीं आता कि वहां धन रखने की क्या आवश्यकता थी ! मृत्यू के पंश्चात् उनके बच्चों को कुछ भी नहीं मिला। में यह नहीं कह रही कि हम लोग अत्यन्त परिवर्तित एवं उन्नते लाग हो गए हैं। एक प्रकार से हमारा पतन ही है क्योंकि हम पैदल नहीं चल सकते । परमात्मा ने हमें यह टांगे चलने के लिए दी हैं परन्तु हम चल नहीं सकते । पैदल चलने से बचना चाहते हैं। यही कारण है कि इतनी अधिक है। वह सोचता है कि वस्तुओं से उसे सुख प्राप्त हो सकता कारें हैं। मैं जानती हूं कि कुछ परिवारों में लोगों के पास पांच-पांच कारें हैं क्योंकि परिवार में पांच सदस्य हैं। विशेषकर चोजें खरीदता जाता है और इकट्ठी करता जाता है। मैं कहूंगी स्पेन में । मैं हैरान थी इतनी अधिक कारें हैं और हर एक कार में केवल एक व्यक्ति चलता है। अब प्रदूषण की परन्तु मैं हस्तकला की चीजें खरीदती हूँ। ताकि कल यदि समस्या उत्पन्न हो गई है क्योंकि हमने स्वयं पर निर्भर रहने मुझे उपहार देने पड़े या ये चीजें बेचनी पड़े की आदत भुला दी है। अब धुएं से पोडित क्वालालम्पुर एवं आपने मुझे दिए हैं, इनका भी मैं नहीं जानती कि मैं क्या अन्य सभी स्थानों की दशा को देखें । ये धुएं से पीड़ित हैं। मैंने तो यह सब नहीं किया । परन्तु वे लोग अल्लाह से वहुत प्रार्थना कर रहे हैं कि हमें जल दो । जब वे इतने बेवकूफी मैं बेच रही हूं क्योंकि पारिवारिक वस्तुओं पर भी मैं धन खर्च हुआ लालच ही समस्या है, मानव के अन्दर यह आन्तरिक दाष है। वह लालची हो जाता है क्योंकि वह धर्माच्युत हो गया है। वस्तुओं से उसे सुख प्राप्त नहीं हो सकता, फिर भी वह कि तुम्हारी मां भी ऐसा करती है। मैं भी चीजें खरीदती हूंँ - जो गहने करूंगी मैं इन्हें बेच रही हूँ। गहनां का मैं क्या करू? मेंने से आश्रम आदि खरीदने हैं। अपने पारिवारिक गहने भी करती हैँ। इसके विषय में जरा सोचे, यह सब चीजें किस लिए हैं? इस सबसे हमें क्या खुशी मिलती है? किसी को उपहार देने या प्रसन्न करने के लिए कुछ खरीदना तो समझ लिए । उनकी लकड़ी भारत आ रही है क्योंकि भारत ने भी में आता है। परन्तु आप तो खरीदते ही चले जाते हैं । किस भरे कार्य कर रहे हैं तो परमात्मा उन्हें जल क्यों देंगे? अब बहां धुंआ ही धुंआ है। क्यों? क्योंकि उन्होंने सारे पेड़ काट दिए हैं। पेड़ों को वे क्यों काटना चाहते हैं? पैसा बनाने के अपने पेड़ काट दिए हैं। पागलों की तरह से यदि आप कार्य प्रकार आप यह सब सहन कर सकते हैं ? ऐसा आप नहीं करते रहेंगे तो प्रदूषण होगा ही, अर्थात् विध्वंसकारी शक्तियां गतिशील होकर आपको रोकेंगी । इसके लिए आपकी देवी से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए । ये शक्तियां कार्य करेंगी और हर कर सकते । दूसरों को देने में अधिक आनन्द मिलता है। वस्तुएं आपको मूलतत्व की सूझबूझ नहीं प्रदान कर सकती और मुलतत्व यह है कि आप धर्म हैं। आपके अन्दर धर्म है, वही जगह कार्य कर रही हैं। खंड : 10 अंक : 1.2 और 3 1998 चैतनऱ्य लहरी 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-5.txt आपकी पूरक शक्ति (संयोजकता) है। और यह भौतिकवाद इसके विरूद्ध है क्यांकि यह माफिया, स्विस बैंक तथा से कि रूसी लोगों द्वारा बनाई गई इस पूृष्ठभूमि का रंग भी वही है जो सामने के दृश्य का है। उन्होने वही रंग उपयोग किए हैं। यही वास्तविक सामूहिकता है। अब आप प्रकृति में देखें । यह कितनी मिलती जुलती है। इसमें कांई भद्दापन या शार धोखेबाज लोगों को सृष्टि करता है। हमारे सम्मुख बहुत समुदाय हैं जो धाखाधड़ी के लिए जाने जाते हैं. जो भौतिकवादी हैं. और जिन्हें अध्यात्मविवेक नहीं है । तो सहजयोगियों के नहीं है। यह अत्यन्त सुन्दर है। लाल हात हुए भी मंल के लिए मैं कहंगी, निसन्देह: आपने सभी मन्त्रों का उच्चारण लिए इसमें हरा रंग हैं। किया और मुझे बह सब करना चाहिए । परन्तु आपको भविष्य में कोई ऐसी चीज नहीं खरीदनी चाहिए जा हस्तरचित यह पृथ्वी सभी कुछ जानती है, सभी कुछ समझती है सभी कुछ करती है। परन्तु हम पृथ्वी मां के लिए क्या करते न हो, इसका प्रयत्न करे। कम से कम कुछ कढ़ाई या कुछ अन्य हाथ का, काम इस पर होना चाहिए । अन्य चीजें हमारे लिए अच्छी नहीं हैं. हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकर है लिखने हैं तो यह ठीक है। इसके अतिरिक्त तो यह पागलपन तो सहजयोगियों को और प्रकृति को देखना उनके लिए आवश्यक है। प्रकृति में क्या निहिंत है? आपमें से बहुत से लोग नहीं जानते। मान लो में इस फूल का नाम पूछू तो आपमें से कितने लोग जानते हैं? इसका बहुत सुंदर नाम है; (Kiss Me Quick) "मुझे तुरन्त चुमो" । वानस्पतिक नाम के अतिरिक्त इसका यह नाम भी हैं। आप सभी कुछ सीखें । छोटी छोटी चीजों का ज्ञान भी आपको होना चाहिए । यह कढ़ाई कहा से आई? यह साड़ी कहां से आई? में कहूंगी की भारतीय पुरुष इसके विषय कुछ नहीं जानते । वे कुछ भी नहीं जानते परन्तु पश्चिमी पुरुषों के साथ भी यही समस्या है। आप उन सब चीजों में दिलचस्पी लीजिए जिनकी तरफ आपने ध्यान नहीं दिया । हैं? हम बनावटी चीजों के पीछे. मशीनों के पीछे भागते रहते है और अब कम्प्यूटर आ गए हैं। आपने किसी की पत्र चाहिए कि वे पैदल चलें. पैदल चलना है। कम्प्यूटर हमारे मस्तिष्क को पूर्णतयाः शून्य कर दंगे । पक्षाघात हो जायेगा हमारे दिमागां का । हम 2+2 भी नहीं सोच सकेंगे तो कोई भी चीज यदि आप उपयोग करना चाहते हैं तो इसकी मर्यादाएं भी होनी चाहिए। मर्यादाओं से बाहर न जाएं । आप यदि तैरना शुरू करते हैं तो तब तक तैरते चले जाते हैं जब तक बीमार न पड़ जाए । आप यदि धुड़सवारी शुरु करते हैं तो तब तक आप घुड़सवारी करते हैं जब तक घोड़े से गिर न जाए । जिस प्रकार लालच की कोई सीमा नहीं में होती उसी प्रकार एंसे जीवन की भी कांई मर्यादा नहीं होती। इस प्रकार की मूर्खताओं का यही कारण है। मुझे यह पसन्द है। मुझे केवल इसी का शौक है। आप मानव हैं। आपको एंसा नहीं कहना चाहिए । इसके विपरीत आपकों कहना चाहिए कि मुझे यह सीखना चाहिए, इसके विपय में जानना मेरे लिए आवश्यक है। ऐसा होना आवश्यक है अन्यथा आपका व्यक्तित्व बीना रह जाएगा । समाप्त हो जाते हैं। मैं नहीं समझ पाती । मुझे तो दो सौ नोट भी गिननते नहीं आते उदाहरणार्थ भारतीय पुरुष खाना बनाना नहीं जानते । एक बार मेरे पति ने कहा कि वे खाना बनाना जानते हैं। मैंने पूछा क्या बनाएंगे तो उन्होंने कहा कि चपातियां । परन्तु उनसे कुछ नहीं बना । चपातियों की शक्ल आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसी थी । उन्होंने कहा कि मै हार मानता हूँ। में तो जहाजरानी कर रहा था और जहाज रानी का मतलब है जहाजरानी । परन्तु आप लोग सूक्ष्म चीजों को देख सकते हैं जिसे हम कहते हैं सूक्ष्म दृष्टि । पैदल चलते हुए प्रकृति को देखें । पेड़़ों से, पशुओं से प्रेम करें, तो आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे कि समाचार पढ़ने के अतिरिक्त बहुत सी चीजें देखने योग्य हैं। समाचार पत्रों में पढ़ने योग्य क्या रखा है? आप घंटों अखवार पढ़ते चले जाते हैं और अगले दिन इसे भूल जाते हैं। दंवी के लिए क्या रखा है? परन्तु पैसा मुझे मिल जाता है। मैंने अपना अन्ततोगत्वा लोग धन के चक्कर में ही 1. । पैसे के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं है। मेरा गणित अच्छा है परन्तु जो भी पैसा आप देते हैं वह सीधा उनके पास चला जाता है और वो अपने हिसाब से उसका उपयाग करते हैं। परन्तु यदि कोई पूछे कि फला चीज के लिए कितना पैसा आया तो मुझे कुछ पता नहीं क्योंकि धन में मरी कोई दिलचस्पी नहीं है। पैसे में दिलचस्पी लेने के एक गहना बेचा तो अपनी लागत से सौ गुणा पैसा मुझे मिला। आप कह सकते हैं कि चैतन्य लहरियों के कारण ऐसा हुआ। जो चाहे आप कहें। पैसे के पीछे यदि आप दौड़ेंगे तो इसके शिकजे में फंस जायेंगे । बारे में कहा है कटाक्ष-कटाक्ष निरीक्षण । हर कटाक्ष में देवी सभी कुछ पुरुष, स्त्री या किसी अन्य चीज पर जब वे दुष्टि डालती हैं तो जान जाती हैं कि उसकी स्थिति क्या है। आप यदि मेरे बच्चे हैं तो आपको भी बेसा जानती हैं किसी ही करने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि मैं तो जंगलां में दौड़ जाया करती थी । इस प्रकार के सभी स्थानों पर मैं जाया करती थी और इस सुन्दर पृथ्वी मां, जिसने इन सुन्दर चीजों की सृष्टि की है, का आनन्द लेती थी। क्या आपने देखा है तो लालच से मुक्ति पाने का क्या उपाय हैं? [प्रयत्न द्वारा दूसरों को देकर उसका आनन्द लेना । किसी अन्य को कुछ दें, अपनी चीजें उनके साथ बाटे और फिर देने के आनन्द का अनुभव करें। ग्रेगोर आज यहां नहीं हैं, मुझे उसकी 5. चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1.2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-6.txt देने पडते हैं। इटली के लोग अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं । और एक साड़ी मुझे पसन्द आई । परन्तु महंगी होने के वे सुन्दर सुन्दर वस्तुएं बनाते हैं परन्तु करों के कारण वे ऐसा कारण मैंन उसे नहीं खरीदा । वाहर आ गई आप हैरान हांगे नहीं कर पाते । सभी को मुर्ख बनाकर कंवल रूपरेखाकार (Designers) ही पैसा बनाते हैं वे लोगों को बहुत बेवकूफ में आनन्द से भर गई। अगले ही दिन जाकर उस दुकान से बनाते हैं। एक बार मेरे पति कंरो गए और वहा से मेरे लिए आए । आकर कहने लगे यह रूपरेखाकारों याद आ रही है। एक बार मैं एक साड़ी की दुकान पर गई मेरे जन्मदिन के अवसर पर उसने वही साड़ी मुझे भेंट की। लंकर वह साड़ी खरीद लाया था और जन्मदिन के उपहार के रूप में मुझे भंट कर दी । यह छोटी-छोटी चीजें लोगें को देने से एक गुलुवन्द (Designers) का है। मैन कहा मुझे तो यह भारतीय लगता है। यह भारतीय चीज है। और हैरानी की बात यह थी कि इसके आप महान आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। अपने पर खर्च करने से यह आनन्द प्राप्त नहीं होता । मुझे याद नहीं आता कि अपने जीवन काल में मैंने अपने लिए कुछ खरीदा हो, कभी नहीं । मैं यदि खरीददारी के लिए जाऊ तो प्यास लगने पर कभी अपने लिए कोकाकोला तक नहीं खरीदा । लोग जानते हैं कि मैं अपने लिए कुछ नहीं खरीदती । वास्तव मं कुछ नहीं । परन्तु आप सब लोग मुझे इतना कुछ देते हैं कि मेरी चश्मों में इतनी कौन सी विशेषता होती है। एक वार मैं उनहें एक काने पर लिखा हुआ था "भारत में बना"। उन्होंने इस पर 25 पौंड खर्च थे । भारत में इसे दो पौड में खरीदा जा सकता है। तो विशिष्ट वर्ग की सृष्टि कराना एक अन्य चौज हैं। आप मेरे चश्मों की दखें । ये मेरे दामाद ने खरीदे थे । वह कहने लगे कि यह सर्वोक्तम हैं। मैं नहीं जानती थी कि पहनकर अमेरिका की एक दुकान पर गई तो सभी लोग मुझ समझ में नहीं आता कि उसका क्या किया जाये ! अब मैने यह निर्णय किया है कि 75 वर्ष की आयु के पश्चात मुझे मैडम मैडम कहकर पुकारने लगे । मैंने सोचा मुझमें ऐसी आप लांगों से कुछ भी नहीं लेना चाहिए । परन्तु आप लोगों को प्रसन्न करने के लिए कुछ लेना भी पड़ सकता है। ये लोग कह रहे हैं कि कंवल राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय उपहार स्वीकार कर लें। ठीक है। परन्तु इससे अधिक कुछ नहीं । सभी देशों को लाने की भी जरूरत नहीं । आखिर राष्ट्रीय या अन्तराष्ट्रीय क्या होता है। आप सभी अन्तर्राष्ट्रीय लोग हैं। मेरे लिए कोई उपहार लाने की क्या आवश्यकता है? मेरे पास तो इन्हें देखने का भी समय नहीं है। अन्य चीजों में मैं इतनी व्यस्त हूं क्योंकि संसार में इतनी अधिक समस्यायें हैं। अत: कौन सी विशेषता है। यह लाग मुझे मैडम क्यों पुकार रहे हैं? आह! आप नहीं जानती? यह कार्टियर है। मैंन पूछा कि यह कार्तिये कौन है? मैं इसके विरोध में कातिंकय को खड़ा कर दंती हूं । कितनी मूर्खतापूर्ण चीजें हो रही हैं। लोग मेरे लिए पार्थक फिलिप्स" नामक चड़ी ले आए चलती ही न थी । मैंने कहा यह क्या है? यह कभी समय पर चलती ही नहीं है। हो सकता है मेरी चैतन्य लहरियां उस । यह समय पर पर कोई जादू कर रही हों । तो मैंने यह घड़ी उनमें से एक को दे दी । मैने कहा इसे पार्थक फिलिप्स को दिखाओ | श्रीमाताजी इससे उनके अहम् को चाट पहुंचेगी । मैंन कहा कि हम क्या कर रहे है मुझे विश्वास है कि आपमें से क्यों? क्योंकि वे स्वयं को सर्वोत्तम मानते हैं। मैने कहा जो भी हो इस घड़ी को उनसे बदल लो । तब मैने अपनी बेटी को कहा कि वह उसे ले लें । मैं तो कोई सीधी सादी चीज ले कमाएं । उसकी कोई आवश्यकता नहीं । जो भी आपको । यह घड़ी भी रूपरेखाकारों की थी । अब बह प्राप्त होता है ठीक है। निसन्देह: कोई रचनात्मक कार्य यदि रूपरेखाकार जेलों में है। रूस से आते हुए मैं इनमें से कुछ से मिली । वे एकदम बेकार लोग थे । काई भी विचार यह कहीं से ले लेते हैं और उसे बहुत ऊंचे दामां पर बेचते हैं. मेरी राय है कि इन सब वातों से ऊपर उठकर हम स्वयं दंखे किसी का पैसा स्विस बैंकों में नहीं है। परमात्मा का धन्यवाद । अपनी आवश्यकता से अधिक कभी न लूगी आप कर रहे हैं, कोई कलाकृति आदि की सृष्टि आप कर रहे हैं तो ठीक है। अनावश्यक वस्तुएं आप मत खरीदिए । बेकार में चीजां का खरीदते जाना या पैसे को इधर-उधर और यदि आप बेवकूफ हैं तो आप इसे ले लेते हैं। क्या आपने देखा कि यह कार्तिये है? सहजयोगी सर्वसाधारण लोग है । अब ये लोंग भी माफिया ही हैं और आपका अनुचित में भी लिखी छुपाते फिरना, इसकी कोई आवश्यकता नहीं । ईमानदार बनकर, समस्याओं से पूर्णत: ऊपर उठकर आपको बहुत सन्तुष्टि होगी । मैं आपके साथ सहमत हूँ कि माफिया की बहुत बड़ी लाभ उठा रहे हैं। मैंने यह बात अपनी पुस्तक है। कि यह उद्यमी आपको मुर्ख वनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप साधारण वस्त्र पहने । साधारण, हाथ से बने वस्त्र पहनने समस्या है। माफिया को केवल सरकार ही वश में कर सकती कहीं अच्छे हॉगे वजाए उन वस्त्रों के जिनसे आप अटपटे दिखाई दें । ऐसे बस्त्रों से तो कंवल आपकं अहम् की ही सृष्टि होती है। तो लोंगों की आदत होती है। मान लो मेरे पास है क्योंकि यह बहुत अधिक कर देते हैं। अब उदाहरणार्थ इस गरीब देश में मैं इस गरीब ही कहंगी क्योंकि अधिकतर लोग करों की वजह से परेशान हैं व्यक्ति को 265 प्रकार के कर 6. चैतन्य लहरी ॥ खंड : 10 अंक : 1,2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-7.txt सकते हैं? अधिकतर, यह रूस से आए हैं। रूस में मैंने कालीनां का यह कारखाना देखा । निर्यात की उन्हें समझ नहीं है। मैंने उनसे पूछा कि एक कालीन का मूल्य क्या है । उन्होंने कहा केवल बीस डालर। डाक्टर से मैंने पूछा कि खाना खाने के कुछ बर्तन है। यह चाहे अच्छे न हों परन्तु लांग । मेरे आकर पूछेगे कि यह कहां से लिए । मैं नहीं जानती विचार से किसी ने मुझे दिए थे । नहीं नहीं आप पता लगाइये क्योंकि यह वहुत अच्छे हैं। अगले दिन जाकर वह पूर वाजार में वैसे बर्तन खोजेंगे । सहजयोग इसके बिल्कुल विपरीत है। मेरे विचार से आप सहजयोग पर निर्भर हैं। एक बार मेरे पति अब क्या करें । हमें बहुत से कालीन खरीदने हैं। मैंने उनसे पूछा कि निर्यात के लिए इसका मूल्य क्या है? दो सौ डालर | मेने कहा भारत में तो इसके विपरोत है! उन्हें यदि कोई चीज निर्यात करनी होती है ता उसका मूल्य कम होता है। मैंने इसका समाधान खोजा और बीस सहजयोगियों से जाकर एक एक कालीन खरोदने के लिए कहा । रूस के लोगों को वे बीस डालर में कालीन देते हैं। की एक चाय सैट पसंद आया । लन्दन में बहुत बड़ी-बड़ी दुकानें हैं । मैं वहां गई । "बाप रे बाप"। उसकी खोज में हम घूमते रहे । किसी ने कहा इसे देने के लिए हमें छः महीने लगेंगे, किसी सात महीने और किसी ने आठ महीनें। आप हमें इसका आर्डर दे दें। मैंने विचार ही छोड़ दिया। तब सर सी. पी. ने कहा कि इन फैक्टरियों को क्या हो गया है? मैंने कहा अतः आप लोगों को समाधान खोजने चाहिए. समस्याएं नहीं । लालच एक समस्या है। बहुत बड़ी समस्या । इससे छुटकारा कैसे पाया जाए? कोई भी चीज खरीदते हुए हमें सोचना चाहिए कि यह वस्तु में किसके लिए खरीदूं । हां यह तो मेरे उस मित्र के लिए ठीक रहेगी । इस प्रकार से यदि आप अपने मस्तिष्क को शिक्षित करते हैं तो आप हैरान होंगे, इनके पास कुछ नहीं हैं। यह सभी कुछ नियात कर रहे हैं। जब मैं आस्ट्रेलिया गई तो हैरान थी कि विज्ञापन के लिए उन्होंने यह चाय सैट बहुत कम कीमतं पर उपलब्ध कराए । आस्ट्रेलिया में आधी कीमत पर मुझे यह चाय सैट मिले । यदि आप में लालच नहीं हैं तो आपको हर वांछित चीज आराम से मिल जायेगी अत्यन्त आराम से लालच दीड़ जाएगा और आपको आनन्द प्राप्त हो जायेगा । जिस प्रकार आप मुझे चीजें भेंट करना चाहते हैं और मैं आपको, इसी प्रकार अन्य लोगों के विषय में भी सोचे । ये सब भी बहन भाई हैं । कुछ देश अन्य देशों से मित्रता बनाते हैं। देने से लालच समाप्त होता है रा । परन्तु यदि आपमें लालच है तो परमात्मा आपको नचाते हैं । चीज का यदि आपको लालच नहीं है तो वह आपको मिल जायेगी । लालची प्रवृत्ति ने हमें दास बनाया हुआ है। इसके मैं एक हजार एक उदाहरण दें सकती हूं कि यदि आप कुछ भी नहीं मांगते, किसी चीज की इच्छा नहीं करते तो आपको आवश्यकता की हर चीज मिल जाती है। जिस भी हमारो जरूरते पूरी कर दो जाएंगी । परन्तु यह वास्तविक चौज की आपको जरूरत होती ठीक है! यह बात इतनी सहज हैं। किसी और आपकी इच्छाए पूर्ण ही जाता है । यह इतना सुगम मन्त्र है। इतने चमत्कार देखने के बाद भी, आश्चर्य की बात है, आप नहीं समझ पाते कि जरूरत होनी चाहिए । इकठ्ठा करने की इच्छा नहीं । यह नाटक (स्विस बैंक लाड़ी) बहुत अच्छा था । मैंने इसका आनन्द लिया । मैं जानती हूं कि मेरा देश इससे दुःखी है। है वह आपको मिल जाती है। परन्तु यदि आप इच्छा किए चले जाते हैं तो चीजों के पीछे पागलों की तरह दौड़ते रहते हैं । यह ले लो और जाओ । और तब चीज भी नदारद हो जाती है। इसीलिए कहा गया है कि निलिंप्सा विकसित करो । कोई चीज यदि उपलब्ध है तो है, कि पीलग्रिमस प्रोगैस एक अत्यन्त पुराना नाटक हैं जिसे ठीक है और यदि नहीं है तो भी ठीक है। तब आप हैरान होंगे मैंने बहुत समय पूर्व पढ़ा था । परन्तु इन्होंने जो दर्शाया वह दूसरा नाटक जो इंग्लैंड के लोगों ने किया वह दर्शाता कि आपका चित्त अत्यन्त सूक्ष्म हो जाएगा अब, मेरे विचार वास्तविक तौर्थ-यात्रा थी । इन्होंने यह दर्शाया कि किस तरह में आपमें से किसी ने भी यह सुन्दर फूल नहीं देखें । इतनी से एक साधक गलत चीजें दर्शांता है। इन्होंने यह भी सुन्दर कढ़ाई (Embroidery) है! क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस कलाकृति में कितने हाथ हैं । चौदह, अठाइस, इस और चौदह इस और अठाइस भली-भाति बताया कि उत्थान मार्ग की ओर बढ़ते हुए, सहजयोगी भी किस तरह भिन्न खाइयों में गिरता है। यह जानना आपके लिए आवश्यक है कि यदि आप सहजयोगी हैं तो आपको सावधान रहना होगा तथा अहम् तथा प्रति अहम् की बुराइयों से बचना होगा पश्चिमी देशों में प्रतिअहम् की अपेक्षा अहम् की समस्या अधिक है। अहम् को दूर करने का मात्र एक ही तरीका है कि आप स्वीकार कर लें कि आपमें अहम् है। आप यदि जानते हैं कि आपमें अहम् है । तो आप किसी चीज को ध्यान से नहीं देखते और आपका चत्त महामाया बन जाता है। परन्तु यह कोई स्पष्टीकरण नहीं है। आपका चित्त यदि स्पष्ट है, सहज है तो आप वस्तु को केवल चित्त से स्पष्ट देख सकते है। चित्त स्वयं आपको वहां ले जाता है जहां आपने है। आप जो खरीदना चाहते थे वही वस्तु आपको पहुंचना मिल जाती है। यह कालीन कहां से आए, क्या आप मुझे बता तो अहम् समाप्त हो जाएगा। मात्र यह जानना आवश्यक और चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1, 2 7. 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-8.txt नहीं बता पाऊंगी । मैं सहजयोग में विवाहित लोगों से विशेषकर महिलाओं से बातचीत करना चाहती हूं । मुझे है कि आपमें अहम् है। किसी चीज का अहम्; लोगों में है। एक महिला बहुत अहंकारी तुच्छ चौजा का अहम् होता थरी । मैंने उसके विषय में पूछा तो मुझे बताया गया कि लगता है उनमें से कुछ अत्यन्त रोबीली और मुर्ख हैं। मेरे क्योंकि यह गुड़ियां वनाना जानती है इसलिए इसे बहुत विचार से विवाह मधुमास है। मधु सार तत्व है और चांद (Honey Moon) शान्ति हैं। अब यदि महिलाएं झगड़ालू हैं. है। यह बात मेरी समझ में नहीं आती । यह सारी रूपरेखाकारिता व्यंग्यात्मक हैं, लड़ाकी हैं तो पुरुषों के लिए पूरा नरक हैं। भी अहम् पर आधारित है तथा आपको प्रदर्शन करने के लिए इसकी अपेक्षा यदि महिलाएं सार तत्व का जानती है तो उन्हें पति को प्रसन्न रखते हुए परिवार में शान्ति लानी चाहिए । आपके पति किस प्रकार प्रसन्न होते हैं आपको यह समझना चाहिए । दूसरों को किस प्रकार प्रसन्न करें. आत्मसाक्षात्कारी अहंकार है । तो छोटी-छोटी चीजों का भी लोगों को अहंकार यह सब खरीदने पर बाध्य करती है। अत: नम्र बनने तथा समझने का प्रयत्न करें कि यह सारी लौकिक वस्तुएं हम अपने साथ नहीं ले जाएंगे। मैं इनका त्याग करने के लिए नहीं कह रही हूं और न यह कह रही हूं कि आप सन्यास ले लें लोगों का यह एक गुण होता है। हम अपने पतियों के लिए | परन्तु आप इतना अवश्य जान लें कि आपके मुकाबले इन चीजों का मूल्य कुछ भी नहीं है। जब अहम् आता है तो यह है? सर्वप्रथम उनकी पसन्द जान लें । मेरे पति (अच्छा हुआ मुर्खता भी आ जाती है। आप सोचते हैं कि कोई अच्छा वस्त्र पहनकर आपने अन्य लोगों को बहुत प्रभावित कर दिया है। लगाओं । आपके वस्त्रों से प्रभावित होने वाले लोग भी एक तरह से वरणिया लगाती हैं। परन्तु जिस दिन से उन्होंने कहा तब से मूर्ख ही है। एक बार मैने एक अंगूठी पहनी थी । उसे मैं 1. क्या करती हैं? क्या हम उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करती वं चले गए) कहा करते थे कि तुम अपने बालों में फूल मत परन्तु महाराष्ट्र में सभी महिलाएं अपने बालों में । कोई बात नहीं । वे मैंने अपने बालों में वैणी नहीं लगाई नहीं जानते थे कि मैं क्या हूँ| इसलिए उन्होंने ऐसा कहा । परम्परा वादी परिवार से होने के कारण उन्होंने मुझे चूड़िया पहनने के लिए कहा । मैंने सदा अपनी कलाइयों में चूड़ियां पहनकर कुछ खरीददारी के लिए एक दुकान पर गई तो वहां सभी लोग मेरे सम्मुख नतमस्तक ही गए । मैंने सोचा कि यह लोग पहले मेरा कभी इतना सम्मान नहीं करते थे पहनी है । इससे उन्हें प्रसन्नता मिलती है तो ठीक है। पति को प्रसन्न करने के लिए छोटे-छोटे कार्य किए जाते हैं । तब अचानक कंसे बदल गए हैं! उस दुकान पर एक महिला मुझे जानती थी । वह पूछन लगी कि क्या आपकी अंगूठी का नग वास्तविक है? मैंने कहा, हां । यह हमारे परिवार में चला आ वो भी सोचते हैं कि मैं अपनी पत्नी के लिए क्या करूं? परन्तु शुरुआत महिला से होनी चाहिए क्योंकि महिलाएं समाज रहा है। तो आपका परिवार बहुत धनी है। मैंने कहा नहीं यह हमारे पुरखी का है। मैंने तो इसे केवल पहना हुआ है। हे के प्रति जिम्मेदार हैं । पाश्चात्य संस्कृति यह नहीं बताती कि परमात्मा ! यह वास्तविक है, इसकी कीमत क्या होगी? मैंने कहा में इसकी कीमत के विषय में कुछ नहीं जानती । क्या तुम मेरे लिए एक मंगा सकती हो? छोटी छोटी चीजों को देखकर वे प्रभावित हो जाते हैं। हमारे अन्दर महानतम चीज उनका क्या कार्य है। अर्थशास्त्र, राजनीति, धनार्जन, पुरुषों के कार्य हैं। मैं मानती हूं कि इसमें उन्होाने बहुत गड़बड़ की है। परन्तु आपका कार्य समाज को बनाना है। और इसके लिए आपको अपने बच्चों को व अपने पति को प्रसन्न रखना केम होगा। हर वक्त रोव जमाते रहना आपका कार्य नहीं है। छांटी-छोटी वातों द्वारा पति के रौब को भी निष्प्रभावित करते ता हमारी आत्मा है। इस पर यदि आप गर्वित होंगे तो मुर्खतापूर्ण कार्य नहीं करेंगे । आप सभी लोग आत्मसाक्षात्कारी और तीर्थ यात्रियों की अवस्था से बहुत ऊपर उठ चुके है। ॐा रहना आपका कार्य है। में आपकी एक उदाहरण दंती हू। मेरे पति के कार्यालय में एक व्यक्ति थे । पति के मामले में मैं कभी दखलंदाजी नहीं करती । परन्तु उस व्यक्ति ने मॅरे पति आध्यात्मिक लोग हैं और अपनी आध्यात्मिकता से एक प्रकार की संस्था को छोड़कर एक अन्य संस्था में नोकरी कर ली बि अब महानतम बात यह है कि आप जानते हैं कि आप से मुझ पर भी प्रभुत्व जमाते हैं। आप सब यदि सामूहिक रूप से किसी चीज की इच्छा करें तो मैं इसे टाल नहीं सकती । आपको प्रसन्न करने के लिए मुझे यह स्वीकार करनी पड़ती मिल रहा था । परन्तु उन्हें व्योंकि वहां उन्हें अधिक वेतन लगा कि नई संस्था बेकार है। इसलिए वे जहाजरानी निगम में वापस आना चाहते थे । परन्तु मेरे पति नियमाचरणों के है। आपकी इच्छा के कारण में बहुत से कार्य कर रही हूं । मामलों में बहुत कठोर है। उन्होंने उसे निगम में रखने से परन्तु इसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं होता । तो बच्चे जो चाहते हैं मैं उन्हें करने देती हूं । परन्तु अहम् का काबू में इन्कार कर दिया । वह मरे पास आया और सहायता करने के लिए प्रार्थना की । मैंने कहा यदि मैं उनसे कहूंगी तो वे बिगड़ जायेंगे । फिर भी मैं जानती हूं कि इस कार्य को कंसे करना है। मैंने अपने पति को बताया कि वह व्यक्ति मेरे पास आया होना अत्यन्त आवश्यक है। एक अन्य बात जो मैं आपको बताना चाहती हूँ और जिसे मैं कल नवरात्रि पूजा के कारण चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-9.txt था । हां, तो अब क्या तुम मुझे इसके बारे में दुखी करोगी? नहीं नहीं मैं ऐसा कुछ न करे । किसी को भी समझाना कठिन कार्य है। क्योंकि पुरुष आक्रामक प्रवृत्ति तथा क्रोधी स्वभाव के होते हैं। परन्तु मेंने अभी अभी आपको बताया है कि किस प्रकार उनके क्रोध वह समझता है कि मैं आपसे अधिक उदार हूं । तुरन्त को काबू करना है । फिल्मों में मैंने अत्यन्त रोमांचक दृश्य देखें हैं। यह कभी घटित नहीं होते । कोई भी फिल्मी चरित्ों लन्दन में भी उस व्यक्ति ने मेरे पति की काफी सहायता की जैसा नहीं होता । तो आपको भी चाहिए कि उनसे फिल्मी थी । तो जब भी हम अपने पतियों को वश में करना चाहते नायकों जैसा होने की आशा न करें । आपको प्रेम करना होगा. है, हमें यह कार्य अत्यन्त सहज ढंग से करना चाहिए । मूल सर्वप्रथम अपने पति को हृदय में उतारना हागा । यह आपका इसके अतिरिक्त आप क्या करते हैं? शीलांग की इस लड़की के विषय में जान कर मुझे बहुत आधात पहुंचा। उस लड़के ने मुझे कहा कि "श्रीमाताजी आप चाहे मुझे जान लिए? पश्चिम में विशेष कर इटली में महिलाओं के विषय से मार दे परन्तु उस लड़की को में नहीं बुलाऊंगा!" यह नहीं करूगी। फिर भी आप सोचे कि उन्होंने पूछा क्यों आया? क्योंकि वह मेरे पास क्यों आया । मुकाबला शुरु हो गया और उस व्यक्ति को नौकरी मिल गई। बात पर अपनी अंगुली रखें । यदि छोटी छोटी चीजों के लिए कर्तव्य है, आप पति पर रोब जमाओगी तो उसका कोई लाभ न होगा । आपका विवाह किसलिए हुआ है? मूखता या मधुमास के में हमारे बहुत बुरे अनुभव हैं। इंग्लैण्ड की लड़कियों ने भी मुझे बहुत कष्ट दिये । अब हमने उन्हें वर्जित कर दिया है। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती। शीलांग की एक लड़की का विवाह अमेरिका के एक व्यक्ति से हुआ । शीलांग के विषय में सोचे जहां रोज तीस कत्ल होते हैं। उस लड़की को सत्य है कि वह लड़की आनन्ददायिनी नहीं है। पुरुषों से मुझे यह कहना है कि यदि आपकी पत्नी ऐसी है तो उसका कारण जानने का प्रयत्न कीजिए । उसकी क्या समस्या है? क्यों वह रोब जमाती है? क्या आप भी यह सोचते हैं कि वह रौब जमाती है? अधिकतर पति बातचीत करते हुए कहते हैं कि पत्नियां रौव जमाती हैं? क्यों पत्नियां आप पर रौब जमाती हैं? आपमें ऐसी कौन सी कमी है जो वह ऐसा कर रही हैं? अन्तर्दर्शन यदि आप करें तो आप जान जाएंगे कि पत्नी को आप बहुत कम समय दंते हैं। एक मैने अमेरिका जाने का अच्छा अवसर मिला । नि:सन्देह अमेरिका भी कोई महान स्थान नहीं है। परन्तु उस लड़की नें अत्यन्त बचकाने ढंग से वर्ताव करना शुरू कर दिया। उसके पति ने मुझे बताया कि श्रीमाताजी उसे तो पर-पीड़न में आनन्द मिलता है। जब भी मैं उसे टेलीफोन करता हूँ वह इतने रूप में बात करती हैं कि मैं हैरान हो जाता महिला अपने पति से तलाक लेना चाहती थी । पूछा हुआ होता है। मरे लिए उसके पास कोई टाइम ही नहीं । मेंने कहा यदि तुम उसे तलाक दे दोगी तो फिर तो वह तुम्हें कभी मिलेगा ही व्यंग्यात्मक र हूँ! मैंने कहा शीलांग की महिला का ऐसा आचरण ! मुझे विश्वास नहीं होता । उस व्यक्ति ने मुझे सभी कुछ बताया । क्यों? क्योंकि वह सदा काम पर ही गया कोई भी पुरुष इस प्रकार की बातों को नहीं सुनना चाहेगा । परन्तु वह लड़की समझती रही कि मित्रता में बह ऐसी बातें कर रही है। विवाहित जीवन में यह सब नहीं चलता । पुरुष नहीं चाहता कि उसकी पत्नी घोड़े पर बेठ कर चाबुक चला रही हो । उसके विवाह का अभिप्राय क्या है? प्रसन्नता, आनन्द माधुरय। ये बात करनी आवश्यक थी क्योंकि बहुत सी महिलायें समझती हैं कि वे कोई महान चीज हैं। कुछ के पास थोड़ा-सा धन है और कुछ के पास नौकरी । परन्तु नहीं । क्या तुम उसे तलाक देना चाहती हो । कम से कम हा। कुछ समय तो वह तुम्हें देता है। तलाक यदि हो गया तो वह कभी भी तुम्हारे साथ न होगा। तलाक की बात मरी समझ में नहीं आती। महिलाओं को एंसी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करनी चाहिए । इसी कारण से यदि अपने पति की तलाक देना चाहती हो तो यह हास्यास्पद है। पुरुषों के लिए भी आवश्यक है, कि वे पत्नियों के लिए कुछ समय निकालें। उनकी ओर कुछ ध्यान दं और उनकी पसन्द की कुछ वस्तुएं उन्हें दिलवाएं । मैं अब एक बार फिर तुम्हें अपना उदाहरण दूंगी। मर पति कभी मंरे लिए फूल नहीं लाए । आप सब मेरे लिए तो मरे जन्मदिन पर भी मेरे लिए फूल आपका पहला कार्य समाज को तथा अपने पति को प्रसन्न रखना है। यह प्रथम कार्य है। स्त्री यदि पुरुष को प्रसन्न नहीं रख सकती तो वह हमारे लिए बेंकार है। वह बेकार सहज योगिनी है। दफ्तर में काम करने वाले पुरुष के लिए आवश्यक वे फूल लात है परन्तु नहीं लाए । मैंने महसूस किया कि इस व्यक्ति को फूलों की समझ ही नहीं है। वे नहीं जानते कि गुलाब क्या है और कोई अन्य चीज क्या है। इसलिए वे फूल नहीं लाते कि कहीं वे कुछ गलत न ले जाए । गुलाब की जगह कहीं कैक्टस ही न ले जाएे । एक दिन उन्होंने स्वीकार किया कि मुझे फूलों का ज्ञान नहीं है। गुलाब के अतिरिक्त मैं कुछ नहीं जानता और है कि वह अपने अफसर को प्रसन्न रखे, यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो वह बेकार है. तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसी प्रकार पत्नी को अत्यन्त प्रेम पूर्वक पति के विषय में सोचना चाहिए, क्योंकि यह उसका कार्य है। इसी के लिए उसका विवाह हुआ है। अन्यथा उसे चाहिए कि विवाह 9 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 31998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-10.txt ठीक है। इतना बेकार कपड़ा वो ले के आए कि उनके दफ्तर गुलाब में भी वे भ्रम में पड़ जाते हैं। तो अज्ञान के वश आपके पति कोई कार्य नहीं करते तो कोई बात नहीं परन्तु के लोगों ने कहा कि "सर यह आपकी पसंद तो नहीं है।" पुरुषों को चाहिए कि वे अपनी पत्नियों की पसन्द को समझें। उन्होंने वो सूट फैंक दिया और कहने लगे कि अब मैं कभी वह क्या चाहती हैं । पुरुषों की अपनी ही एक शैली होती है। एक बार फिर में अपना उदाहरण दे रही हूँ। मेरे पति महगी महिला को यदि इस चीज का ज्ञान हो कि पुरुष पर कौन सा चीजें खरीदने के आदी हैं। मैं उनसे कह चुकी हूं कि वे मैरे लिए कुछ न खरीदा करें । तुम्हें पसन्द नहीं आती? नहीं नहीं मुझे पसन्द आती हैं परन्तु इतनी महंगी चीजें आपको नहीं को गुलाबी और काले रंग मिलाकर रंग करवाया । यह बहुत खरीदनी चाहिए । स्काच हाऊस से वे महगी स्वेटरें खरीदना चाहते हैं। एक स्वेटर ढाई सौ पौंड की होती है और मेरे पास न जाने कितनी पड़ी हैं। मैंने कहा कि यह स्वेटरें मैं स्विटजरलैण्ड से मंगा लूगी । वहां पर यह बहुत स्ती हैं। फिर वे सदा मेरे लिए कश्मीरी कोट लाना चाहते हैं। मेरे पास खरीदने नहीं जाऊंगा । तुम जाकर मेरे लिए खरीद लाओ । रंग फवता है तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि लोगों की पसंद भी पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण है। एक बार मैंने अपनी बैठक सुंदर रंग है, गर्मजोशी का रंग । कहने लगे यह क्या रंग तुमने करवी दिया? तुम्हें कोई और रंग करवाना चाहिए था मैंने मैं कहा, ठीक है कल हमारे यहां पार्टी है, इसके पश्चात यह रंग बदलं दूंगी । अगले दिन मेहमान आए और कहने लगे, क्या रंग है। क्या यह आपने बनाया है? मेरे पति मेरी ओर देखने लगे कम से कम दस कोट हैं फिर भी वह सदा कश्मीरी कोट हो । मैंने कहा क्या में इस रंग को बदल दू नहीं. देना चाहते हैं। और यह मैं अपनी बेटियों और नातिनों को नहीं । पुरुष जनता की राय की बहुत चिंता करते हैं, अत: तुम्हें देखना चाहिए कि तुम उनके लिए किस प्रकार की राय कायम करवाती हो, ताकि वह तुम्हारी प्रशंसा कर सकें। यह सब विधियां हैं। यह छोटी-छोटी बातें हैं फिर भी आपको समझना होगा । पुरुष कभी-कभी नाराज हो जाते हैं, परन्तु कोई बात नहीं । वास्तव में किसी और पर यदि वह नाराज हांगे तो भी आकर वो तुम पर बरस पड़ेंगे, यह अच्छी बात है क्योंकि यदि वह किसी अन्य से ऐसा बर्ताव करेंगे तो पिरटेंगे। तम कम से कम उन्हें पीटोगी तो नहीं । पुरुषों देती जा रही हूं । क्या करू । उनके मन में कोई बुराई नहीं है। परन्तु व कुछ जानते ही नहीं । जाने से पूर्व वो मेरे लिए एक साड़ी खरीदने के लिए गए । मेरा एक भर्तीजा उनके साथ गया । दुकान पर जाकर कहते हैं कि आपके पास जो सबसे महंगी साड़ी हैं वह मुझे दो । भारत में एक बार पूजा में दुकानदार ने भी यह समझ लिया कि कोई बिल्कुल अन्जान व्यक्ति आ गया है। एक साड़ी लाकर उन्होंने दिखाई और कहा यह सबसे महंगी साड़ी है और इसकी कीमत है 45000 रुपये । ठीक है, ठीक है, मेरे पास एक कार्ड है क्या आप इसे स्वीकार करेंगे? और वे साड़ी खरीद लाए । यह इतनोह के विषय में यदि आप थोड़ी सी बातें जान लें तो सारा कार्य हो सकता है। नि:संदेह कुछ अत्यन्त बेतुके पति-पत्नियां भी होते हैं। उनके लिए सहज योग में तलाक का प्रावधान है। तो में के आपसे बताना चाहती थी कि आपको बहुत अच्छी गृहणियां और बहुत अच्छी गृहलक्ष्मियां बनना है यह मैं आपको भारी थी मानो जिरह बख्तर हो! कहने लगे कि तुम पूजा लिए इसे अवश्य पहनो । इसे पहनकर में एक विशालकाय की भांति चल रही थी । आपकी मां का एक नाम है अति सोम्या-अति रौद्रा"। वे अत्यन्त सौम्य इसलिए बता रही हूं क्योंकि मेरा गृहलक्ष्मी चक्र मुझे परेशान कर रहा है । सभी डॉक्टरों ने मुझे इसके विषय में बताया है। इसका कारण यह है कि सामूहिक रूप से गृहलक्ष्मियां ठीक नहीं है। क्योंकि वह अच्छी गृहणियां नहीं हैं। अब स्विस महिलाओं को ही लें। में सहमत हूं कि वह बहुत अच्छी हैं वे अत्यधिक सफाई पसंद हैं। सफाई के पीछे स्विस हैं और अत्यन्त अत रौद्र हैं। उस साड़ी को पहनकर मैं नहीं जानती कि मैं क्या लग रही थी ! अपनी कुर्सी से मैं चिपकी हुई बैठी थी । इतना सारा वजन उठा कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि खड़ी कैसे होऊ ? घर आकर मैंने उसे संभाल कर एक ट्रेक में रख दिया उन्होंने पूछा तुम इसे पुनः कब पहनोगी? मैंने परन्तु महिलाएं पागल हैं। आप पांच मिनट भी उनसे बातचीत नहीं कहा कि वह साड़ी किसी विवाह के अवसर पर पहनने के लिए रख दी है। साड़ी मैंने रख दी, क्योंकि उन्हें साड़ियों का ज्ञान ही नहीं है। कर सकते । उनके साथ यदि आप बैठें हैं तो भी वे झाड़-फूंक करती ही रहती हैं। सफाई, सफाई, सफाई ! स्विस महिलाएं इस मामले में अति कठिन हैं। अभी मैं इलित्रिया में थी, किसी ने मुझे बताया कि इलित्रिया की महिलाएं स्विस महिलाएं कहलाती हैं तो घर यदि थोड़ा सा अव्यस्थित भी है किस प्रकार वो दे रहे हैं और कितने प्रेम से । बेचारे कुछ तो कोई बात नहीं। भारत की कोई महिला ऐसा नहीं करेगी. नहीं जानते उनके लिए सूटों के कपड़े हमेशा मैं खरीदती हूं मेहमान बैठे हैं और गृहणी हुबर (सफाई मशीन ) ले कर । एक बार कहने लगे कि इस बार मैं खरीदूंगा । मैंने कहा खड़ी है। और यदि कुछ टूट जाए ! भारत में यदि थरमामीटर इसे फिर कभी पहनूगी। वायदा करके वह वो यह भी नहीं जानते कि असली क्या है और नकली क्या है। पर, कोई बात नहीं तुम्हें उनका हृदय देखना होगा कि 10 चैतऱ्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-11.txt चाहिए ताकि यह सारा स्वार्थ समाप्त हो सके । आपक संकुचित हृदय के कारण यह बना हुआ है आपका हृदय यदि विशाल हो जाए तो सारा स्वार्थ धराशायी हो जाएगा। मैंने यह सब इसलिए कहा क्योंकि मुझे विवाहित महिलाओं के विषय टूट जाए ती कहते हैं, चढ़गा । परन्तु पशचिम में यदि थोड़ी सी कॉफी विखर जाए तो तुरन्त वो सभी मंहमानों के सामरन ही सफाई मशीन या कुछ अन्य चीज सफाई के लिए ल आएंगे । यह आवश्यक नहीं है, यह अत्यन्त सूक्ष्म प्रकार का भौतिकवाद है। मेहमान में बहुत जब बैठे हुए आपको क्या आवश्यकता है। परन्तु पश्चिमी महिलाएं इस बात को समझती ही नहीं । भारत में यदि किसी घर में आप बहुत अच्छा हुआ, अब बुखार ही नहीं े सी शिकायते प्राप्त हुई हैं, कुछ भारतीय महिलाओं मैं आपको बता रही हूँ। रूसी हैं तो उनकी उपस्थिति में यह सब करने की विषय में भी । इसलिए महिलाओं की बहुत सराहना हो रही है। व अत्यन्त सन्तुष्ट आत्माएं हैं जिनकी जरूरत बहुत कम है तथा जो लालची नहीं हैं। आश्चर्य की बात है! साम्यवाद मे उनका इतना हित किया जाए तो [उनकी रंग यांजनाएं भिन्न-भिन्न होती है। दक्षिण भारत की रंग योजना भिन्न है. सभी की अपनी पसन्द है। घर में घुसते ही पश्चिमी महिलाएं कह उठेंगी, क्या रंग योजना है! आपने कितनी अच्छी चीज खरीदी है! हे परमात्मा! सामने - सामने है। साम्यवाद की अतिशयता ने उन्हें एक ऐसे क्षेत्र में धकेल दिया है जहां उनका आधिपत्य विवेक ही समाप्त हो गया है। उनमें आधिपत्य भाव नहीं है। उनकी सरकार ने कहा तुम यह फ्लैट ले लो और उनकी देखभाल करो । उन्होंने कहा कि वे तुरन्त आलांचना करने लगंगी । हमें नहीं चाहिए, हम वैसे ही ठीक है। सरकारी नौकरों को कहा गया कि तुम अपनी कारें ले सकते हो, परन्तु उन्होंने कहा कि हमें नहीं चाहिए। क्यांकि कार का स्वामित्व इतनी तो दूसरी बात यह है कि सदैव दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखें। महिलाएं अन्य लोगों की भावनाओं का पूरा ध्यान रखने के लिए होती हैं। वे क्या सोचते हैं । किसी भारतीय घर में यदि वे जाती हैं तो वहां बना हुआ खाना वे बड़ी सिरदर्दी है। वे ऐसे लोग नहीं हैं जो स्वामित्व के विषय बड़े आनन्द से खाती हैं फिर भी ये दर्शाने का प्रयत्न करती हैं कि वो लोगा बहुत निम्न हैं। मैं कहती हैं कि यह पश्चिमी है। मुझे उनका नाम भूल गया है जो वित्तमंत्री थे । जिनेवा में संस्कार है। यदि किसी ने कोई कपडे पहने होंगे तो वे उस पर टिपण्णी करेंगी । अच्छे भारतीयों को ऐसा करते आप नहीं पाएंगे । आधुनिक भारतीयों को मैं नहीं जानती कि उनके रुझान कंसे हैं। परन्तु एकदम से वे ऐसी बातें कह देते हैं प्रभाव है। फिर भी वहां के लोग बहुत अच्छे हैं। वहां से तथा जिससे चोट पहुंचती है। महिलाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत सदैव प्रशंसा करें, इसमें क्या हानि है? में जागरूक हों। नि:सन्देह अब उनमें भी कुछ अटपटे लोग उन्होंने कुछ रहस्य की बातें जान ली और बहुत सारे तथाकथित सुधार लेकर लीटे । अत: अब लेनिनग्राद और मास्को बहुत महगे हो गए हैं। यह सारा स्विटजरलैण्ड का रोमानिया से आई हुई महिलाओं का बहुत सम्मान होता है। अब सभी लोग रूस, रोमानिया या कीव की लड़कियां ही मांगते हैं। परन्तु इस बार वे नहीं आई। उनके न आने का हमें खेद है। उनकी कमी हमें खल रही है। किसी चीज की प्रशंसा करके आपका व्यापार कम नहीं होता। कितनी अच्छी चीज है! कितनी अच्छी साडी है। कितने अच्छे कपड़े हैं। ऐसा कहने में क्या नुकसान है। आप वास्तव में अपने माधुर्य का आनन्द लेंगे । ऐसा कहना झूठ बोलना सुन्दर पुस्तक लिखी है। आप सबको खरीदनी चाहिए । इस नहीं है। आवश्यकता से अधिक ईमानदारी भी जरूरी नहीं । आपको यदि कोई चीज अच्छी नहीं लगती तो यह कहना अंत में मुझे आपको बताना है कि अरुण आप्टे ने एक पुस्तक में आप सब भारतीय संगीत के विषय में जान सकेंगे। कहा जाता है कि इस संगीत का प्रार्दभाव ओंकार से हुआ। हुआ । यह अत्यन्त विवेकशील संगीत है। जो संगीतज्ञ मेरे सम्मुख आवश्यक नहीं कि यह मुझे पसन्द नहीं है। यह शब्द ही सहजयोग से चला जाना चाहिए कि मुझे यह पसन्द हैं और पाश्चात्य संगीत गा रहे थे वह ठीक था परन्तु इसमें तालएक्य का अभाव था । इसमें माधुर्य न था । वे सोचते हैं कि वे सहजयांग में रहंगे? अत:- मुझे पसन्द है मुझे पसन्द नहीं है अपने हृदय के माध्यम से गा रहे हैं। अस्वाभाविक रूप से वे प्रभाव उत्पन्न करना चाहते हैं। कई हिस्सों में - एक शब्द गाने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे यह पसन्द नहीं । मैं यदि एंसा कहू तो कितने लोग को त्याग दिया जाना आवश्यक हैं। पसन्द करने या न करने और फिर दूसरा शब्द वाले आप कौन हैं? इसमें न माधुर्य है और न ही प्रसार । जबकि रूसी लोकगीत आपकी आत्मा और हृदय के विषय में क्या है? तो एक बार फिर से वही चीज आती है कि महिलाओं का बहुत माधुर्यमय थे । बड़ा हृदय होना चाहिए, बहुत सुन्दर हृदय । आपकी गरु एक मां हैं। अत: आपको बहुत अच्छी माताएं और बहुत अच्छी पत्नियां बनना होगा और आपका हृदय अत्यन्त विशाल होना परन्तु चिन्ता न करें, अमेरिका के लाग, इस क्षेत्र पर भी हमला कर रहे हैं। संगीत का अर्थ है कि यह गा ता आपको प्रसन्न करे, आपका मनोरंजन करे, न कि यह आपको ल] उदास कर दे । यह भावनाएं यदि आपमें हों तब आप इस 11 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-12.txt भयंकर है। परन्तु यह वह लोग होंगे जिन्होंने बहुत कष्ट उठाया है और राक्षसों का वध करने कं लिए मां से प्रार्थना प्रकार कहने का प्रयत्न करें । तब आप कहें कि मुझे यह में इस पर काबू कर लूगा । आप क्योंकि सहजयागी हैं अत: आपको विजय दर्शानी होगी । संगीत में है परन्तु समस्या कर रहे हैं। अब एक प्रकार से यह सब स्वाभाविक रूप से मारे जाएंगे, केवल यदि आप लांग विवेक से कार्य लें । आप लोग ही इस कार्य को कर सकते हैं अपनी जरूरत से अधिक चीजें यदि आप इकट्ठी न करें, इन चीजों को अपनी विजय प्रकृति को दर्शाना होगा । मैं अन्य लोगों की बात नहीं कर रही, वे तो रोते, चिल्लाते और गाते रहते हैं| परन्तु इसमें माधुर्य नहीं होता। यह केवल टुकड़ों में होता है। आकस्टा भी कभी आश्चर्यचकित नहीं करते बचाकर यदि आप स्वाभाविक चीजें और पृथ्वी से प्रेम करें तो मुझे विश्वास है यह सब कार्यान्वित हो जाएगा । पृथ्वी मां स्वयं इसे कार्यान्वित करेंगी । आप भूचालों की जानते हैं। अब कांई भी चर्च नहीं जाता । मैं कुछ नहीं करती । यह पृथ्वी मा है। मैंने कुछ नहीं किया नष्ट हुई कलाकृतियों का मुझे खेद है। अब आप देखें कि प्रकृति किस प्रकार कार्य करती और इनमें माधुर्य होना चाहिए । भारतीय रागों में माधुर्य है हैं इन्डोनेशिया के ऊपर कें मुसलमान लाग धुएं से पीडित हैं। मैंने यह सब नहीं किया । आप यदि कुछ गलत करने लगते हैं तो यह लौटकर आप पर पड़ता है। हर क्रिया को प्रतिक्रिया है। तो आपकी मुखाकृतियां सहज होनी चाहिए । आप सहज होने चाहिए । आपको विकृत लोगों जैसे नहीं होना । के-के-के करता रहता है। परन्तु भारतीय आकस्टा माधुर्यमय है। यह मन्द समीर की तरह से बहता है। दोनों में यह अन्तर बहुत खराब है। तो गाने वाले संगीतज्ञों से में अनुरोध करूंगी कि गाने का यह अभिप्राय नहीं कि इसमें एसे शब्दों का प्रयोग हो जिन्हें कोई न समझ सके । संगीत में शब्द स्पष्ट होने चाहिए परन्तु योरापियन संगीत में शब्द हैं तो बाल नहीं हैं। अत: आप लोग धुन आदि का आनन्द लेते हैं। आप भाषा जानते हैं या नहीं इससे कोई अन्तर नहीं होता । तो पाश्चात्य संगीत में जब आप माधुर्य का मिश्रण कर सकंगे तो यह कितना भिन्न हो जाएगा! यह पुस्तक आपको यह सब सिखाएगी । आप इसे चाहिए । आप सहज हैं और आपको सहज स्वभाव होना खरीदें और समझे कि संगीत किस प्रकार आपको रोगमुक्त चाहिए । मुझे खेद है कि मैंने इतना अधिक समय लिया । को इसके कल में इन सब चीजों के बारे में बात नहीं कर पाऊंगी । करके आनन्द प्रदान कर सकता है। संगीत के मूल आपको सोचना चाहिए कि हमारी मां हमें प्रेम करती है। वो सारतत्व को जाने और तब आप इसका पुष्पीकरण करें। मुझे विश्वास है कि यदि भारतीय संगीतज्ञ पार्चात्य संगीत को चाहती है कि हमारा परिवार बहुत अच्छा हो तथा हम अपने अपना लें तो इसकी स्थिति बहुत बेहतर हो जाएगी मुझे समझ में नहीं आता, यह लोग अत्यन्त प्रसिद्ध हैं और लोग को शिक्षा दी है। पत्नीभक्त हो जाना अच्छा है। इसमें कोई सोचते हैं कि यह बहुत अच्छा कमाते हैं। अमेरिका में कोई हानि नहीं है। पत्नीभक्त का यह भी अभिप्राय नहीं कि आप वच्चों की देखभाल कर सकें । इसीलिए मैने सभी स्त्री पुरुषों भी इस प्रकार से कमा सकता है। परन्तु इसे शुद्ध संगीत दब्बू हो जाएं । परन्तु पत्नी को प्रसन्न करने में क्या हानि है? इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि पत्नी आपको रौब दं । मूर्खतापूर्ण चीजों की आज्ञा आपका नहीं देनी चाहिए. बनाने के लिए आपके पास भारतीय संगीत का आधार होना आवश्यक है। तब इसे आप मनचाहे ढंग से बिस्तृत कर । महिलाओं को भी यह समझना आवश्यक है कि उसका परिवार उसके माता पिता और श्रीमाता जो से अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि मैं खुशहाल परिवार को देखकर ही खुश सकते हैं। भारतीय संगीत को समझने के लिए कृपया आप यह पुस्तक खरोदें । इस पढ़े और आपको भारतीय संगीत का सार पता चल जाएगा । अंत में, आज नवरात्रि का चीथा दिन है और मुझे इन्होंने कुछ एसे नाम दिए हैं जो वास्तव में हूं। आप सबकां हार्दिक धन्यवाद । पूर्ण शान्ति का एकमात्र स्रोत सहजयोग - ( हिन्दुस्तान टाइम्स-दिल्ली 7-04-1997 ) "व्यक्ति यदि मानसिक शान्ति तथा मानव एकता उन्होंने यह बात कही थी । भूतपूर्व राज्यपाल श्री जी.सी. सक्सेना और श्री बी.सत्यनारायण रेड्डी भी इस अवसर पर थे । डॉ. निर्मला देवी ने कहा कि विश्व शान्ति डॉ. निमंला देवी ने सहजयोग का संदेश विश्व के बहुत से के लिए लोगों में सामूहिक चेतना का होना अत्यन्त देशों में दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय एकता संस्थान द्वारा दिल्ली में महत्वपूर्ण है और सामूहिक चेतना केवल आत्मसाक्षात्कार के पश्चात ही आ सकती है। उन्होंने सहजयाग की चिकित्सकीय चाहता है तो उसके लिए सहजयोग एक मात्र मार्ग है," यह उपस्थित शब्द कहे सहजयोग विज्ञान की प्रतिष्ठाता डॉ. निर्मला देवी ने। आयोजित किए गए एक उत्सव के अवसर पर भाषण देते हुए चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 12 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-13.txt एक योगी की अनूभूति लाभों के विषय में तथा विश्व के भिन्न देशों में इसकी लोकप्रियता के विषय में भी वताया । उन्होंने कहा कि पूरे न्यूयार्क कार्यक्रम समापन होने पर सामान बांधा जा रहा विश्व के सहजयोगी एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं तथा वे वहुत से चमत्कारिक कार्य करने में सक्षम भी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय एकता संस्थान के महासचिव श्री आर.एन.अनिल ने घाोपणा की कि इस वर्ष का एकता पुरस्कार अन्तर्ाष्ट्रीय समिति के कार्य में योगदान के लिए डॉ. निर्मला देवी को दिया जायेंगा। अन्तर्राष्ट्रीय सहज योग अनुसंधान एवं स्वास्थ्य कं्द्र, तई मुम्बई के निर्देशक डॉ. उमेशराय ने सहजयोग के लाभों, विशेषकर उन बीमारियों में जिनका था । एक बागी मेरे पास आए और सहायता के लिए मुझसे कहा । हम उसकी कार तक दौड़कर गए और 'मैटा मार्डन ऐरा' की बीस प्रतियां उठाई क्योंकि श्रीमाताजी ने उन्हें चर्च के पीछे, जहां ब अतिथियों से भेट कर रही थी, मंगबाया था। इस प्रकार मुझे एक छोटे कमरे में श्रीमाता जी का सामीप्य प्राप्त करने का माका मिला । तभी एक महिला श्रीमाता जी से मिलने आई परन्तु उस योगी को जो कि एक डाक्टर था. श्रीमाता जी ने अपने समीप बुलाया । जब वह लोटा तो मेंने उससे पूछा कि क्या हुआ? उसने बताया कि उस महिला की अंगुली कट जाने से उसकी मध्यमा अंगुली की संवेदना समाप्त हो गई थी और अंगुली के सिर पर जलन चिकित्सकोय इलाज आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पास नहीं है, क विषय में बताया । उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पास बहुत से मनादैहिक रोगों का कोई इलाज नहीं है, जिसके कारण रोगी को पूरा जीवन औषधियों पर निर्भर रहना हाता है । । श्रीमाता जी ने अपना चित्त उस पर डाला और हां रही थी भिन्न अन्य सम्बन्धित रोगों के साथ-साथ सहजयोग अगुली तुरन्त ठीक हो गई मेंने स्वयं को धन्य महसूस उच्च तनाव, मिगी, अनिद्रा, मधुमेह, माईग्रेन, श्वासदमा आदि किया । आज तक मैंने साक्षात् में कभी श्रीमाता जी को देखा नहीं था और अब लगभग पूरी रात श्रीमाता जी के इतना समीप रहने का अवसर मुझे प्राप्त हो गया रोगों में अत्यन्त लाभकारी है। डॉँ. राय ने बताया कि गहन अनुसंधान तथा अनुभव ने यह प्रमाणित कर दिया है कि सहजयाग अभ्यास से मनादेहिक रोगां का इलाज कहीं अधिक है। जुनेटीन्थ (JUNETEENTH) क्या है? प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। मिगो रोगियों के विषय में बतात हुए उन्होंने कहा कि पारम्परिक औषधियां से 40% रोगी ठीक नहीं हो पाते । इसके विपरीत सहजयोग प्रथम जनवरी 1863 को राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक स्वतन्त्रता घोषणा पर हस्ताक्षर किए । जिसके अनुरूप उन्होंने यूनियन से सम्बन्ध विच्छेद करने के इच्छुक राज्यों क दासों को स्वतन्त्र कर दिया । परन्तु दासों के मालिकों ने यह समाचार उनसे छिपाकर रखना चाहा । 19 जून 1865 का अभ्यास से 80% मि्गी रांगी ठीक हो जाते हैं । उच्च तनाव एवं हृदय रोगों के इलाज में सहजयोग अभ्यास के लाभों के विषय में उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया वर्ष 1970 में सजहयोग की खाज की थी और शनै: शनै: यह विश्व के बहुत से देशों में लोकप्रिय होता जा रहा है । रोगियां के इलाज के लिए मुम्बई में एक संस्थान की स्थापना की गई है जहां ब्रह्माण्डीय चैतन्य लहरियों से रांगों का इलाज किया । डॉ. निर्मला दंवी ने ढाई वर्ष पश्चात् जब तक संघ की सेनाएं गनवेल्सट्न. टेक्सास नहीं पहुंची तब तक दास लोग अपनी स्वतन्त्रता के विपय में न जान सके । आज जुनेटीन्थ, अफ्रीकन अमेरीकी लोगां की स्वतन्त्रता का प्रतीकात्मक उत्सव है। यह उनका जाता है। आत्मसाक्षात्कार का उनका कार्यक्रम अब विश्व के मुक्ति दिवस है। यह एक दिवस है, एक सप्ताह है और कुछ 65 से भी अधिक देशां में चल रहा है। है जिसमें सभी प्रकार के उत्सव होते हैं। क्षेत्रा में एक माह श्रीमाता जी का सन्देश ईसा मसीह पूजा 1997 (गणपति पूलं ) सीखने में लगा देते हैं और किस प्रकार इतनी जल्दी इन लांगों ने इसे सीखा है। ये ईसा मसीह के जन्मदिन के इस शुभ अवसर पर में लोग कहते हैं कि ऐसा सहजयोग के आप सबको मुबारकबाद देती हूं और नववर्ष में आपकी समृद्धि की कामना करती हूं । यह लोग जो नागपुर अकादमी हैं कारण हुआ। परन्तु यह तो बास्तविक चमत्कार है। यहां तक की भारतीय संगीतज्ञ भी आज आश्चर्यचकित हैं। जिस प्रकार से आए हैं इन पर मैं हैरान हूँ कि इतने कठिन भारतीय संगीत को इतनी सुगमता से इन्होंने पकड़ लिया । केवल दो माह पूर्व ही आए हैं। कल्पना करें कि किस प्रकार संगीत के विद्यार्थी अपना पूरा पूरा जीवन शास्त्रीय संगीत महान् उस्तादों की तरह से ये गा रहे थे, मरी समझ में नहीं आता कि वे किस प्रकार इतना सीख पाए ! मैं जानती हूं कि मेरे परिवार में बहुत अधिक संगीत है और जो लोग संगीत में कुछ लाग तो 13 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1 2 ओर 3 1998 he 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-14.txt एक बालक की अनुभूति :- 'जब में ध्यान करने के लिए बैठता हूँ तो तीव्र शीतल लहरियों के कारण मुझे बहुत दिलचस्पी रखते थे वे प्रात: काल बहुत जल्दी उठकर तीन घंटे और सांयकाल भी तीन घंटे इसका अभ्यास करते थे । जबकि ये लोग उन देशों से आए हैं जहां भारतीय संगीत का बिल्कुल ज्ञान नही है, फिर भी इतने जल्दी इन्होंने इसे पकड़ लिया है। संभवत: अपने पूर्व जन्मों में ये भारत में रहे हैं या ये अत्याधिक प्रतिभावान हों । सकती । वास्तव में यदि यह सहजयोग के कारण से है तो अच्छा लगता है। मेरी इच्छा करती है कि मैं सारा दिन ये शीतल लहरियां लेने के लिए बैठा रहू । मुझे लगता है कि मेरी आत्मा मेरे सारे चक्रों को शुद्ध कर रही है। तब मुझे कोई हुए महसूस होती है। जब मैं इन शीतल लहरियों का आनन्द लता चीज अपने सहस्रार को ओर जाते तक सम्भव होता है इसका वर्णन में नहीं कर हू । ध्यान से उठने पर अपने मस्तिष्क से मैं कहता हूं. अगली ध्यान धारणा होने तक मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता ।" में अवश्य कहूंगी कि सहजयाग चमत्कारों का सृजन करता हैं-आन्तरिक एवं बाह्य चमत्कार । अभी तक मेंने बाह्य चमत्कार देखे थे परन्तु अब यह आन्तरिक चमत्कार है कि जिन लोगों संगीत नहीं सुना इतना अच्छा गा रहे हैं । परमात्मा आपको नानक चुधे ने कभी भारतीय संगीत नहीं गाया, कभी भारतीय ड सा कक्षा ३ सहज पब्लिक स्कूल धन्य करे । तालन सूफी धर्म एवं सहजयोग E-FANI) हे। इसी प्रकार स्वाधिष्ठान चक्र सूफी धर्म में नफासिया (NAFSIYA) है और इस्लाम में नासौत (NA- SOUT) है. नाभिचक्र सूफी धर्म की कालदिया (QALDIYA) और इस्लाम का ला-होत (LA-HOUT) है। अनहद् सूफी ध रमें में सिरिया (SIRRIYA) और इस्लाम में साहोत (SA- HOUT) है: विशुद्धि सूफी धर्म में रूहिया (RUHIYA) तथा इस्लाम में मलखीत (MALAKHOUT) है : अगन्य सुफी ध र्ें में खाफिया (KHAFIYUA) और इस्लाम में जबरौत (JAB-ROUT) है तथा सहम्रार सूफी धर्म में हकीकते (HAQUIQUATE) और इस्लाम में लाहोत (LAHOUT) है। डॉ. अमजद ने विस्तारपूर्वक वताया कि किस प्रकार इस्लाम में मानव पुनर्उल्थान के समय इन 373 चक्रों के महत्व की व्याख्या की है। गंगा-यमुनी तहजीव तथा इस्लामी तालीम के गढ़ के रूप में विख्यात लखनऊ शहर ने इस्लामो तालीम समूह द्वारा आयोजित "आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से कयामा का आगमत संगोष्ठी में हाल ही में सूफी धर्म एवं सहजयोग का सम्मिश्रण देखा । %3D विश्व के भिन्न देशों से मुस्लिम पेशेवरों का मिश्रित यह समूह लागों को प्रेरणा देने का गंभीर प्रयत्न कर रहा है कि मानव के सूक्ष्म शरीर में ही माक्ष प्राप्ति का मार्ग है इन्होंने कुरान में वर्णित 'सात स्वर्गो' की तुलना सहजयोग में श्री माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा बताए गए सात चक्रों से करने का प्रयत्न किया । तुर्की के सुप्रसिद्ध सूफी विद्वान हुसैन ताउप (HUSSAN TAUP) ने जो कि इस्ताम्बुल से आए थे, सम्मेलन का शुभारम्भ चक्रों (चेतना) के सात स्वर्गो का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए किया। इनका वर्णन पेगम्बर मोहम्मद ने भी किया है। उन्होंनं चेतना की हर स्थिति का वर्णन किया उनके अनुसार सबसे महत्वपूर्ण स्थिति वह है जब परमात्मा मनुष्य से प्रसन्न हो जाता है। तब परमात्मा मानव के माध्यम से देखता और सुनता है। अन्तिम स्थिति में मानव परमात्मा की पाकिस्तानी डॉ. जफर राशिद नं कहा कि कोई भी धर्म इच्छा से आच्छादित हो जाता है। अल्जीरिया में जन्मे वायुयानी इंजीनियर श्री जमल, जो अब परिस में काम कर रहे हैं ने कहा कि लडाई 'मुस्लिम कहलाने और 'मुस्लिम होने' के बीच है। परमात्मा नहीं चाहते कि उनके बच्चे दुख उठाए।' जिस दिन मानव स्वयं की स्थिति समझेगा वही कयामत पुनर्उत्थान तथा निर्णय का दिवस होगा । आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी हस्पताल में कार्यरत अलग-थलग होने के लिए नहीं है। धर्मो का जब आयाजन कुम जिसमें मानव को शान्ति प्राप्त हो किया गया और इससे जब मानव की आत्मसाक्षात्कार प्राप्त यह वह अवस्था है जाती है तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा से उसका योग हो जाता है। जॉवन पर्यन्त मुल्ला, प्रचारक एवं इमाम रहे श्री ताउप इस सम्मेलन की प्रेरणा शक्ति थे । आस्ट्रेलिया में मेलबोर्न हस्पताल में कार्यरत पाकिस्तानी डॉ. अमजद अली ने चक्रों की इस्लामी और सूफी व्याख्या की । प्रथम चक्र मूलाधार सूफी धर्म में कलाविया (QALABIYA) और इस्लाम का अलाम-ए-फानी (ALAM- करने के अवसर से बंचित किया गया तब समस्या आरम्भ हो गई । सूफी शब्द की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि इसका उद्भव सफाई से है अत: मानव को चाहिए कि पापों से स्वयं को मुक्त करने के लिए गहन प्रयास करे । 17.02.1997 टाइम्स ऑफ इंडिया नई दिल्ली 14 चैतन्य लहरो खंड : 10 अंक : 1.2 और 3:1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-15.txt नवरात्रि पूजा कम पा ता वा ड ा का या 5-10-1997 कबैला (इटली) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज नवरात्रि का छठा दिन है। भिन्न उद्देश्यों से देवी के बहुत से अवतरण हो चुके हैं। मां के भक्त महान सन्तों ने अन्तर्दर्शन द्वारा यह जान लिया कि देवी ने उनके लिए क्या किया है। उस दिन मैंने आपको बताया था कि धर्म मानव की सहजयोगी बनकर आपको ईष्ष्यां नहीं करनी चाहिए क्योंकि अन्तर्जात संयोजकरता है और इन संयोजकताओं की संख्या दस हैं। यह संयोजकताएं हमारे अन्दर पहले से ही स्थापित हैं परन्तु जब हम धर्म से हटते हैं तो सारी समस्याएं खड़ी हो है कि आप श्री माताजी द्वारा आशीर्वादित जाती हैं। धर्म को छोड़ना मानवीय गुण नहीं हैं। देवी ने हमारे सहजयोगी नहीं हैं। नहीं, आप यदि आशिर्वादित हैं तो आपमें अन्दर बहुत सा कार्य किया है यद्यपि हमें इसका ज्ञान नहीं ईष्ष्या हो ही नहीं सकती और यह ईष्ष्या उस सीमा तक है। कहा जाता है 'या देवी सर्व भूतेषु'- जिनका सृजन आपने चली जाती है कि हम कबैला से हैं और तुम अलवैला से; किया है अर्थात् मानव, उनके साथ आप क्या करती हैं? किस हैं। अत्यन्त आश्चर्य की बात है! जव देवी ने आपको प्रेम का गुण प्रदान किया है. किस प्रकार आप ईर्यां कर सकते हैं? फिर भी मानव में ईष्ष्या रूपी मूर्खता आम बात है। परन्तु देवी ने तो आपको प्रेम का गुण प्रदान किया है। उसी गुण का प्रदर्शन होना चाहिए । परन्तु इसके विपरीत आप ईर्ष्या करते हैं। इसका अर्थ यह समाप्त । यह दोनों तो एक दूसरे के इतने समीप हैं जैसे दी नासिकाएं, परन्तु फिर भी ईष्र्यां है। इस बात की भी ईध्यां होगी कि श्री माताजी मेरे देश में क्यां नहीं आती । आप उस देश में क्यों नहीं जा सकते । रूप में आप मानव के अन्दर विद्यमान है। अब आप अन्तर्दर्शन करके देखें कि क्या आपमें देवी के गुण हैं या नहीं? क्योंकि ये आपको देवी ने, शक्त ने प्रदान किए हैं । जैसे 'या देवी सर्व भूतेषु शान्ति रूपेण सस्थिंता- बहुत महत्वपूर्ण है-अर्थात हे देवी मानव में आप शान्ति रूप में विद्यमान हैं। क्या आपको ऐसे लोग मिलते हैं जो अन्दर और बाहर से शान्त हैं? बहुत कठिन बात है, परन्तु देवी ने यह प्रेम करने की अथाह शक्ति । अशुभ शक्ति हमारी हो ही नहीं की तो मेरा, तेरा के अज्ञान से इसका उद्भव है। इतनी भयंकर रूप से ईण्र्या हममें आ जाती है कि हमें इस चौज का ज्ञान ही नहीं रहता कि मां ने तो हमें प्रेम की शक्ति दी है गुण आपको प्रदान किया है। उन्होंने आपको वह शान्ति प्रदान की है जो आपको प्राप्त करनी थी । सकती । धर्म की. प्रेम करने की मंगलमय शक्ति का अर्थ है कि यह लालच, वासना ओर ईध्यां रहित होनी चाहिए । व आप क्योंकि मानव धर्मों से च्युत हो गए हैं अत: देवी परन्तु मानव मस्तिष्क में इस प्रकार धूर्तता विकसित हुई है द्वारा दी गई यह शान्ति आपकी अपने उत्थान द्वारा कुण्डलिनी कि किसी के प्रति ईर्ष्यालु होने पर भी यह गर्व करता है । जैसा मैने आपको बताया इसी ईर्र्यां से लालच जन्म लेता है। यह सत्य बात है, क्योंकि आप यदि ईष्या करते हैं तो दूसरे चोट पहुंचाना चाहता है या किसी को कष्ट देना चाहता है। व्यक्ति जैसी ही चीज आप खरीदना चाहते हैं और इस प्रकार कभी-कभी तो वह इन चीजों का आनन्द लेता है। सहजयोगी दूसरों से मुकाबला शुरू हो जाता है । किसी की नौकरी यदि होकर भी लोगों का दूसरों को चोट पहुंचाने और दुःखी करने आपसे अच्छी है तो आप उसका मुकाबला करना चाहते हैं। यह सारो चीजें विध्वसक हैं परन्तु देवी की शक्तियां रचनात्मक को जागृति द्वारा प्राप्त करनी होगी। व्यक्ति पहले से ही उत्तेजित है या किसी से प्रतिशोध लेना चाहता है. किसी को में मजा आता है। तो दूसरी बात जो कही गई, 'या देवी सर्व भूतेषु प्रीति रूपेण संस्थिता। प्रीति अर्थात् प्रेम का गुण-मानव हैं। उनकी दी गई सभी शक्तियां पूर्णतः रचनात्मक है। सन्ती को प्रेम का गुण प्रदान किया गया है। परन्तु इस गुण का ने कहा है 'या देवी सर्व भूतेषु क्षमा रूपेण सस्थिता।' क्षमा. मानव में अभाव है क्योंकि उसमें तो ईष्य्यां रूपी दुर्गुण हावी हार्दिक क्षमा कोई आपके प्रति कठोर है. किसी ने आपका हैं। अब मान लो मैं किसी व्यक्ति को कुछ तोहफा देती हूं अनुचित लाभ उठाया है. आपको कष्ट दिया है, परन्तु आपमें और किसी का कुछ और । सहजयोग में भी लोग ईष्ष्या करते क्षमा करने की महान शक्ति है। क्या हम क्षमा की इस शक्ति औ 15 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-16.txt धर्मों में इसका वर्णन किया गया है कि हम भ्रम जाल में फंस जाते हैं। तो वे कौन से भ्रम हैं जिनमें हम फंसते हैं। हमें का उपयोग करते हैं । महसूस करने के लिए देवी आपको निद्रा प्रदान करती है; या देवी सर्व भूतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता', जब आप थके हुए होते हैं, सो नहीं सकते तो वह आपको सुला देती है, आपको आराम पहुंचाती है। तो वह आरामदायिनी है क्योंकि वे पराअनुकम्पी नाड़ीतन्त्र (PARASYMPATHATIC NERVOUS SYSTEM) के माध्यम से कार्य करती है। अनुकम्पी नाड़ीतन्त्र (SYMPATHETIC NERVOUS SYS- TEM) आपको उत्तेजित कर सकता है, अवनत कर सकता है अहम् का भ्रम है। पुरुषों को यह भ्रम है कि वे अत्यन्त शक्तिशाली हैं और कुछ भी कर सकते हैं तथा इसके लिए उन्हें दण्ड नहीं मिलेंगा महिलाएं भी उसी प्रकार आचरण करती हैं। वे नहीं समझ पाती कि यह मां का दिया हुआ भ्रम है ताकि हम अपनी गलतियों को जान सकें। यदि आप किसी को बताएं कि आप गलती कर रहे हैं, ऐसा मत कीजिए तो उनकी समझ में नहीं आता और वे गलती किए चले जाते हैं । तो मां (महामाया ) कहती है बहुत अच्छा, बहुत बढ़िया. बड़ी अच्छी बात है, करते चले जाओ; समुद्र में कूद पड़ो ! जब परन्तु परानुकम्पी] आपका आराम पहुंचाता है, आपके हृदय को, आपक शरीर को आराम प्रदान करता है और पूर्णत: शान्त होकर आप अपनी मां की गोद में सो जाना चाहते हैं। आपको महसूस हो जाएगा कि आप भ्रमित हैं तभी आप वापस आ सकेंगे । बिना किसी समस्या के आप वापस नहीं परन्तु कुछ लोग सदा यही साचते रहते हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है वे सो नहीं सकते । आपको बदि नोंद नहीं आती तो निश्चित रूप से आपमें कोई कमी है। जब आप नहीं सो पाते आ सकते । आपमें से बहुत से लोग जिद्दी हैं, अपने ही तो मैं भी नहीं सो सकती। सामूहिक रूप से जो भी कुछ विषय में चितित है। आपको जो भी कुछ बताया जाए आप नहीं समझेंगे। मानसिक स्तर पर आपको समझाने की जितनी भी कोशिश की जाए सब व्यर्थ है। परन्तु भ्रम मस्तिष्क से है। स्थिति में जब आप होते हैं तो, स्वाभाविक है कि आप नहीं घटित हो रहा है उसका प्रभाव मुझ पर पड़ता है, सामूहिक रूप से यदि कोई गलत कार्य आप करते हैं तो इसका असर मुझपर होता है। आप इसलिए नहीं सो सकते क्योंकि आप ऐसी वस्तुओं के बारे में सोचते रहते हैं जो मूल्यहीन हैं। सहजयाग में इस स्थिति से ऊपर उठने का एक हो उपाय है-निर्विचार समाधि में चले जाना । परन्तु जब आपका अहं मा की ऊपर है। कठिन लोगों का यह बहुत अच्छा इलाज चाहते कि आपका बच्चा ब्बाद हो । महामाया इसे अपनी जिम्मेदारी मानती हैं और सोचती हैं कि अब इन्हें परमात्मा से कार्यशील हैं (यह बच्चा बहुत दंगा करता है, इसे मैने सदैव योग प्राप्त हो गया है और अब यह सम्बन्ध टूटना नहीं चाहिए तथा हर समय यह आशिर्वादित तथा प्रसन्न रहने चाहिए । यह सब हमारे अन्तः स्थित है, बचपन से ही हमारे अन्दर इसकी रचना है, परन्तु हम यह भूल जाते हैं । धीरे धीरे हम इसे खोने लगते हैं। हो सकता है बन्धनों के कारण हो या जाते इधर-उधर भागते हुए देखा है, अच्छा होगा इसे समझा दे) आपने देखा होगा कि भारत में बन्चे पूर्णतः शान्त रहते हैं। क्यों? क्योंकि बच्चे को साधने की जिम्मेदारी मां संभाल लेती है। आपने बहत से कार्यक्रम देखे हैं क्या कभी किसी बच्चे का इधर-उधर दौड़ते हुए अहम् के कारण हो या ये भी हो सकता है कि वे हो कि वे आत्मसाक्षात्कारी हैं। मैं आप लोगों से बात कर रही हूं जोकि आत्मसाक्षात्कारी हैं, उन लोगों से नहीं जो खो चुके देखा है? कल भी यह बच्चे यहां भूल ब पर दोड़े रहे थे। इसका कारण यह है कि माताएं बच्चों का ठी प्रकार से पालन-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेतीं। यद्यपि आपकी आयु काफी है फिर भी जो आपके, आपके समाज के और आने वाली इस पीढ़ी के हित में है वह मुझे हैं या सहजयोग की खोज में हैं। जिस प्रकार आपका पोषण हुआ है जितने प्रेम, माधुर्य, स्नेह तथा करुणा से आपको बताया गया है, इसके बावजूद भी आप यदि नहीं समझते तो आप भ्रान्ति में चले जाते हैं। उदाहरणार्थ यह भी कहा गया है, 'या देवी सर्व भूतेषु लज्जा रूपेण संस्थिता। लज्जा, मैं नहीं जानती कि इसका वर्णन किस प्रकार किया जाए । यह संकोच नहीं है। यह शरीर के विषय में. एक प्रकार से, शर्म है। अब सौन्दर्य प्रतिस्पर्धाएं होती हैं, भारत में भी सौन्दर्य छ बताना पड़ता है। इस नई पीढ़ी में यदि अब भी आप ठीक से आचरण नहीं कर रहे हैं, यदि आपका आचरण सहज नहीं है तो किस प्रकार आप अन्य लोगों को प्रभावित कर सकते य हैं? तो मा ( श्रीमाताजी) को यह सब बताना पड़ रहा है। ह सबसे दिलचस्प गुण जो मा ने आपमें भर दिया है वह है, 'या देवी सर्व भूतेषु भ्रान्ति रूपेण संस्थिता ।' वो आपको भ्रम में डाल देती हैं क्योंकि कभी कभी भ्रम का सामना किए प्रतिस्पर्धाएं होने लगी हैं। लज्जा रूपेण सस्थिंता का अर्थ है बिना बच्चे बात को समझते नहीं हैं। उन्हें भ्रम का सामना कि आपमें, विशेषकर महिलाओं में शरीर की शर्म होनी चाहिए । बचपन में आप देखते हैं कि महिलाएं बहुत शर्मीली होती हैं, छोटी-छोटी लड़कियों को देखें, वे कितनी शर्मीली हैं! धीरे-धीरे यह शर्म लुप्त हो जाती है। परन्तु आरंभ भें तो करना होगा बो आपको गलती की एक सीमा तक जाने देती हैं जहां आप जान जाते हैं कि आप खो गए हैं। उनका महामाया की यह भूमिका निभाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सभी 16 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-17.txt वे मुझसे भी शर्माती हैं। रखती हैं और नमस्ते तक नहीं कहती । अत्यन्त मधुर। बेचकर धनार्जन करने जैसा है। इसमें और वेश्यावृत्ति में क्या अटपटे वस्त्र पहने हुए लोग उन्हें अच्छे नहीं लगते । मुझे याद है किसी पत्रिका में मेरी नातिन ने एक महिला को यह वेश्यावृत्ति है। आपको अपना शरीर नहीं बेचना चाहिए । तेराकी बशभूषा पहने हुए क्या कर रही हो? अच्छा होगा कि तुम अपने कपड़े पहने लो नहीं तो मेरी नानी आकर तुम्हें जोर से मारेंगी । उस चित्र को मेरे सम्मुख आकर वे सिर झुकाए बहुत से विवेकशील लोगों ने किया क्योंकि यह शरीर को फर्क है। शरीर को बेचकर यदि आपको धन मिलता है तो देवी ने आपको ऐसा करने की आज्ञा नहीं दी है। भिन्न वह कहने लगी, यह तुम देखा । अवसरों पर आप अच्छे-अच्छे वस्त्र धारण करें। उस दिन मैंने एक महिला को अत्यन्त सुन्दर साड़ी भेंट की जिसे हम 'पैठनी' कहते हैं। पुस्तक विमोचन के उत्सव पर वह महिला आई तो मैंने उससे पूछा वह कहने लगी कि आज कोई विवाह तो नहीं है, इस अवसर पर मैं पैठनी कैसे पहन सकती हूं । यह तो विवाह के लिए पक वह इस प्रकार कह रही थी । फिर उसने निक्कर पहने एक पुरुष का चित्र देखा । कहने लगी यह व्यक्ति तो पूरी तरह निरलंज्ज लगता कि तुमने वह साड़ी क्यों नहीं पहनी? है। अब इसे बहुत कष्ट भुगतना पड़गा । पत्रिका उसने बन्द कर दी और नौकरानी से कहा कि इसे जला डालों । में इसे देखना नहीं चाहती । इतनी सी लड़की भी जानती थी कि यह गलत है। परन्तु आजकल जिस प्रकार से शरीर प्रर्दशन हो रहा है, मुझे लगता है कि यह रूपरेखाकार (Designers) खत्म हो जाएंगे या दिवालिया हो जाएंगे क्योंकि के लिए वे आवश्यक वस्त्र आभूषण पहनते हैं। इस कार्यक्रम आजकल लोग इतने कम वस्त्र पहनते हैं। वस्त्रों पर इतना के लिए यहां आने वाले लोगों की कल्पना कीजिए जो स्थान ही नहीं होता कि कोई कलाकार अपनी कला का उपयुक्त है। तो शुभ अवसर, स्थान आदि पर ही उत्सव मनाया जा सकता है। उदाहरणार्थ भारत में पति-पत्नी जब मन्दिर में पूजा करने जाते हैं तो देवी के सम्मुख प्रस्तुत होने हिप्पियों की तरह से पटसन के कपड़े पहन कर आ जाते हैं! मेरा क्या होगा? मैं आपको बता दें कि मैं तो हवा में ही लुप्त प्रदर्शन उन पर कर सके । जापान के लोग अब तो अमेरिकन हो जाऊंगी । अत: व्यक्ति को शरीर का सम्मान होना चाहिए. लज्जा रूपेण संस्थिता' में देवी ने यहो कहा है। अब आप कह सकते हैं कि लोग नदी में स्नान कर रहे हैं तथा उसका औचित्य भी बता सकते हैं। परन्तु आप लोग सन्त हैं, परन्तु वहुत समय पूर्व मैंने उनसे पूछा था कि किस प्रकार वे इतने बड़े बड़े वस्त्र (KEAMONAS) पहनते हैं। यह बहुत महंगे हैं और इनको पहनने में समय भी बहुत लगता है। तो उन्होंने उत्तर दिया कि देखिए परमात्मा ने एक सुन्दर शरीर बनाया है, यह उसकी कला है, इसे सजाने के लिए हमें अपनी कला का उपयोग करना चाहिए अत: शरीर को सजाने के लिए हमें वस्त्रों पर कलाकारी करती हैं। मुझे हैं बन गए आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं, आपको इन लोगों की ओर नहीं देखना चाहिए जो आत्मसाक्षात्कारी नहीं है तथा दुराचरण कर रहे हैं। आपको सन्तों की तरह आचरण करना चाहिए । यह बात अच्छी लगी क्योंकि भारत में भी ऐसा ही है। महिलाओं को साड़ी पहननी पड़ती है जोकि अत्यन्त कलात्मक देवी ने आपको बहुत से गुण प्रदान किए है। एक अन्य है, क्षुधा रूपेण संस्थिता । देवी ने आपको भूख प्रदान की है, ढंग से बहुत सुन्दर बनाई जाती है। शरीर को सजाने और इसका सम्मान करने के लिए ऐसा किया जाता है। परन्तु मुझे हमें खाना खाना चाहिए । आजकल पतला होने का फंशन है जिसके कारण बहुत से रोग पनप रहे हैं । अनोरेक्सिया (ANOREXIA) आदि, क्योंकि महिलाएं बहुत कम खाती हैं अपने खाने की वस्तुओं को आप परिवर्तित कर सकते हैं, परन्तु शरीर की देखभाल ही आपका केवल उद्देश्य नहीं है। कवल शरीर ही महत्वपूर्ण नहीं महत्वपूर्ण है। वह आपको कुण्डलिनी प्रदान करती है और वही आपको उत्थान की विधि बताती है। परन्तु हर समय शरीर के विषय में चिन्तित रहना मरी समझ में नहीं आता, विशेष कर महिलाओं का, जो कि शक्तियां हैं। एक अन्य चीज यह है कि महिलाएं फैशन के पीछे दौड़ती हैं; फैशन लगता है कि पागल अमेरिका के लोगों के प्रभाव में आकर यह सब समाप्त हो गया है। वे लोग बिल्कुल पागल हैं। उनसे सीखने के लिए कुछ नहीं है, वे केवल दो सौ वर्ष के हैं और हम उनकी तरह से आचरण करने लगते हैं। हम यह भी नहीं देखते कि उनके देश का क्या हाल हो रहा है, वे कैसे लोग हैं, किस प्रकार रहते हैं और उनके विचार क्या है! उनके जीवन का क्या लक्ष्य है। सभी कुगुरूओं ने इन पागल लोगों का अनुचित लाभ उठाया है यदि उनके पास मस्तिष्क होता तो वे कभी इन कुगुरूओं को स्वीकार न करते । उनके पास मस्तिष्क केवल कम्यूटर, टेलीविजन तथा मशीनों को चलाने है, आपकी आत्मा अधिक ट पागलपन है। युवावस्था में भी में इसी प्रकार का ब्लाऊज पहना करती थी । परन्तु भारत में भी फेशन का आरम्भ हुआ, ब्लाऊज की बाजुओं की लम्बाई घटती-बढ़ती रही। मुझे तो यह सब बेवकूफी लगी । क्यों इस प्रकार पैसा के लिए हैं। परन्तु अपने शरीर का रखरखाव करना वे नहीं जानते । बर्वाद किया भारत में एक सौन्दर्य प्रतिस्पर्धा की गई जिसका विरोध 17 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 2 और 3 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-18.txt तक उन्होंने बैंक में हमारा पेसा बन्द रखा । पहली बार उन्होंने आकार को घटाते-बढ़ाते कहा कि ठीक है आप ऐसा कर सकते हैं। इस पर सत्तर रहें? यह फैशन है। फैशन कौन बनाता है? देवी? क्या देवी लोगों के हस्ताक्षर थें, फिर. उन्होंने कहा कि नहीं, आप इसे फैशन बनाती है? फैशन किसने बनाये हैं? भूखे और लालची तांबे में परिवर्तित कर दें। मैंने पूछा क्यों? तो कहने लगे ताम्बा । सौन्दर्य की दृष्टि सं ठीक है। परन्तु वे मूर्ख लोंग यह भी नहीं जानते कि तांवा बैसा ही लगेगा जैसे वे लगते हैं । एक महीन के पश्चात् वे वही रंग करेंगे । यह उनका सौन्दर्य बोध है ! अब मैंने उनसे कह दिया है कि अब हमें आपकी जमीन नहीं चाहिए, आप इसे अपने पास रखें और हमारा पैसा हमें वापिस कर दें इतनी छोटी-सी चीज के लिए, क्यों ? क्योंकि उनकी एक समिति हैं जिसकी सारी बेवकृपफिया हमें सहनी होंगी । कुर्सियों पर बैठकर वे बहस करते रहते हैं, इसका परिणाम क्या है? किसी भी चौज की उन्नति नहीं होती, शक्ति का पूर्ण अभाव है। हो सकता है उन्हें कुछ रिश्वत की जरूरत हो जाये, क्यों न आप परम्परागत, प्रचलित वस्त्र पहने । फैशन के अनुसार क्यों आप बाजुओं के ा |ति लोगों ने, जो आपको बेवकूफ बना रहे हैं, यह कार्य किया है और आप फैशनों के पींछे दौड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं! अब उदाहरण के रूप में मैंने आपको कहा था कि आप अपने वालों में तेल अवश्य लगायें, कम से कम शनिवार को काफी सारा तेल लगायें और फिर सिर को धो दें। परन्तु आप ऐसा नहीं करते, और आपके बाल झड़ने लगते हैं। मेरी समझ में नहीं आता । आपके पास समय का अभाव है फिर भी अपनी देखभाल करने के लिए आप लगे रहते हैं आपके बाल झड जाते हैं, आंखें कमजोर हो जाती हैं, दांत ं गिरने लगते हैं और बहुत शीघ्र आप बूढ़े हो जाते हैं। पुरुषां जी वे मरे से नहीं कह पा रहे! जो भी कुछ हो मेरी समझ में नहीं आता कि एक वार 'हा कह कर वही कार्यालय 'नहीं" के साथ भी ऐसा ही है। आज कल पुरुष सौन्दर्य गृह में जाते हैं। इतने अधिक पैसे की बर्बादी कैवल मूर्खता है! इसकी कैस कह दगा ! तीन साल गुजर गये हैं। ता में जो कहने का प्रयत्न कर रही हूं वह यह है कि अधिक सोचना अहम् की कोई आवश्यकता नहीं। अच्छे स्वस्थ जीवन के लिए आपको व्यायाम करना होगा और ध्यान धारणा भी । आप यदि ध्यान निशानी है। उन्हें किसी भी चीज का समाधान नहीं मिलता । धारणा करते हैं तो आप शान्त हो जाते हैं, और यह शान्ति आपको बहुत बर्बाद हो जाती है, और आप सोचते क्या हैं? आप यदि किसी व्यक्ति से पूछे ये आप क्या सोच रहे है? सभी कुछ, परन्तु किसी भी समाधान तक वे नहीं पहुंचते क्योंकि वह सब तो बहस ही करते रहते हैं, सोचते रहते हैं । काई भी समाधान शक्ति प्रदान करेगी। इतनी शक्ति साचने में उनके पास नहीं है। सहजयोगियों के लिए अपने अन्तस के अन्तर्दशन अन्तदर्शन अन्दर झांकना है। अन्दर झांकना, मैं क्यों सोच रहा हूँ? क्या सांच रहा हू? सांचने की क्या आवश्यकता है? और आप निर्विचार हो जायेंगे । अपने मस्तिष्क को मुर्ख मत बनने दें । ये मस्तिष्क एक बन्दर की सभी कुछ का क्या अर्थ है? आप इतना अधिक क्यों सोचते हैं? इतना अधिक सोचने की क्या आवश्यकता है? हर चीज करना आवश्यक है। के विषय में सोचते रहना मानवीय आदत है। अब मैं यदि इस पर चित्त डालू तो पहले मैं देखूंगी यह सब कितना अच्छा है और केवल इसका आनन्द लुगी! कलाकार की कला का तरह से है और जब यह कार्य करने लगता है तो आपको इधर आनन्द! बस कुछ नहीं बोलूगी; व्यक्ति के अन्दर का आनन्द से उधर कूदने पर विवश कर देता है। कोई निश्चय यदि आप ही महत्वपूर्ण है। परन्तु किसी अन्य से यदि आप पूछेंगे तो करते हैं और और इसे प्राप्त नहीं कर सकते तो आप सबसे वह कहेगा यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। यह चमत्कार अधिक दुःखी व्यक्ति बन जाते हैं । बेवकफी भरी चीजों के विषय में सोचते-सोचते मैंने लोगो को सुखते हुए देखा है। आप देख सकते हैं कि इस सोच से क्या उपलब्धि होती है. नहीं है आदि-आदि । कला का आनन्द समाप्त हो जायेगा, जिस आनन्द की खोज हम कर रहे हैं वह हमें प्राप्त न हो सकगा । हम आनन्द की खोज कर रहे हैं और उसे प्राप्त करने का एक साधन जब हमें मिलता है फिर भी हम उसे विश्वस्तर पर भी? चांद पर जाने की क्या आवश्यकता है? प्राप्त नहीं करते क्योंकि सोचना प्रतिक्रिया है हर चीज की इतने लोग मर रहे हैं, मंगल पर जाने की क्या आवश्यकता प्रतिक्रिया जीवन को दयनीय बना देती है। यह सोचने वाले के है? वहां उन्हें क्या मिल जाएगा ? क्योंकि इसकी उन्हें आदत पड़ गई हैं; पहले बह भारत आये फिर गये, आदि-आदि । जीवन को तथा अन्य लोगों के जीवन को भी दयनीय बना देती है। मैं आपको एक उदाहरण देती हूँ। भारी वर्षा और वर्फ की समस्या के बावजूद भी हमने यह सभी कुछ बनवाया, मेंने हो कर नहीं बैठ सकते विशेषकर पुरुष। रेलगाड़ी में यात्रा सोचा कि यह बहुत अच्छा कार्य है। अब इटली में बहुत से करते हुए गाड़ी यदि दो मिनट के लिए भी रुकी तो पुरुष सोचने वाले लोग हैं और यही कारण है कि वहां उन्नति नहीं होती। हमने तीन साल पूर्व प्रार्थना पत्र भजा था तीन साल शान्त हो कर वे बैठ नहीं सकते । अपने घर पर भी वे शान्त अवश्य बाहर निकलेंगे। गाड़ी चलने लगती है. पलियां चिन्तित हो जाती है, तब पुरुष कुद कर ऊपर आते हैं। यह चैतन्य लहरो खंड 18 :10 अंक : 1.2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-19.txt हैं उसका अर्थ है कि आप उतना ही अधिक उससे दूर हैं। क्या आपने यह बात समझी? अत: सूक्ष्म अवस्था तो वह है तो बन्दर से भी गया गुजरा मस्तिष्क है। मेरे विचार से बन्दर भी ऐसा नहीं करेंगे वे किसी एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकते । ध्यान धारणा करते हुए आपको एक ही स्थान पर जिसमें आप स्वयं वह चीज बन जाए । किस प्रकार आप अपने को देख सकते हैं? यह तथ्य सहजयोगियों को अवश्य टिक कर बैठना चाहिए । इधर- उधर कूदते नहीं रहना चाहिए। महिलाओं के साथ और समस्याएं हैं। खाना बनाते हुए ध्यान धारणा करेंगी। उनके पास समय ही नहीं है। इनके मित्र हैं। उल्टी-सीधी चीजों से घर को भरने के लिए वे खरीददारी करने जाएंगी परन्तु अन्य किसी कार्य के लिए उनके पास समझ लेना चाहिए । कोई भी व्यक्ति जो देख सकता है. नहीं श्री माता जी, उसने आपके चहं ओर प्रकाश वृत्त देखें, वह चीजों को देख सकता है। ता आप किस प्रकार चीजों को देख सकते हैं? आप क्योंकि वहीं हैं इसलिए किस प्रकार आप देख सकते हैं ? तो सहजयोग के आरम्भ में कुछ लोग जो बहुत लोकप्रिय थे. वे आपकी वश में करने और मूर्ख बनाने समय ही नहीं है। वे अत्यन्त पराक्रमी हैं और व्यापार करना व करना चाहती हैं परन्तु ध्यान-धारणा चाहती है। सभी कुछ के लिए उनके पास समय नहीं है। अत: टिक जाना अत्यन्त आवश्यक है। स्वयं में स्थिर हो जाइए । किसी ने मुझ से कहा श्री माताजी, यदि हम स्थिर हो गए तो बहुत मोटे हो ( परीक्षाओं) में से आपको गुजरना होंगा । मार्ग में बहुत जाएंगे । कोई बात नहीं परन्तु स्थिर हो जाइए । ध्यान धारणा न करने के लिए सभी प्रकार के बहाने हैं। हां, श्री माताजी रहे हैं। अब क्योंकि आप आत्मा बन गए हैं तो आध्यात्मिक का प्रयत्न करते हैं और तब आपकी सहजयोग से बाहर फोंक दिया जाता है। अब निर्णय का समय है भिन्न छलनों से प्रलोभन हैं। एक एक कदम करके आप विनाश की ओर जा जीवन में आपको बढ़ना चाहिए । यदि आप पतन की ओर जा रहे हैं तो कौन आपकी सहायता कर सकता है? मैंने में ध्यान धारणा करती हूं, परन्तु आधुनिक युग में यह कार्य बहुत कठिन है । हमारे जीवन में द्वेष है, समस्याएं हैं, परन्तु आप आश्चर्यचकित होंगे कि जब-जब भी मेरे परिवार या आपको बताया था कि यह बहुत ही अच्छा समय है, निर्णय सहजयोग में कोई विपत्ति होती है, तो मैं स्वतः ही निर्विचार हो जाती हूं क्योंकि परम चैतन्य ही समस्याओं का समाधान करेंगे । का समय है और इस समय हमें सावधान रहना होगा कि हम। स्वयं अपने न्यायाधीश हैं। कोई आपको नहीं बताएगा कि आपमें कहा पकड़ है। आप स्वयं महसूस कर सकते हैं कि आपके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। में आपकी समस्याओं को परम चैतन्य ही जब सभी समस्याओं का समाधान करते हैं तो मैं क्यों सोचू! समस्याओं को भूल जाइए । परम चैतन्य को इनकी चिंता करने दीजिए । परम चैतन्य पर यदि दूर करने का कितना भी प्रयत्न करू, आपके उत्थान के लिए कितना भी कुछ करू, इस तरह से आप सुदृढ़ नहीं होंगे क्योंकि आप यही सोचेंगे कि श्री माताजी मरी समस्याओं को आप निर्भर नहीं होंगे तो यह आपकी सहायता नहीं करंगा और दूर कर देंगी । जो पत्र मुझे मिलते हैं उनमें से 99 प्रतिशत उन सहजयोगियों के होते हैं जो किसी न किसी कष्ट से परेशान हैं। में हैरान हूं, यह सब शक्तियां आप में पहले से ही जागृत की जा चुकी हैं, यह आपमें विद्यमान हैं-इनका उपयोग कीजिए । न ही समस्याओं का समाधान करेगा, तब अपने मस्तिष्क के साथ आप गोल-गोल घूमते रहेंगे और इनके हल सोचेंगे । निश्चित रूप से आप को जानना होगा कि आप परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़े हुए हैं। प्रेम मूर्ख नहीं है। प्रेम ही सोचता है, प्रेम ही सत्य है, प्रेम ही आनंद है । यह सब आप के अंदर बना हुआ है और अब तो आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो कोई कहेंगा कि फला व्यक्ति मुझे परंशान कर रहा है, पत्नी मुझे परेशान कर रही है, पति मुझे परेशान कर रहा है| गया है। इसीलिए स्वयं को विकसित करने के स्थान पर आप व्यर्थ की चीजों के पीछे क्यों दौडते रहते हैं? इस प्रकार बहुत से सहजयोगी खो जाते हैं हाल ही दुर्बल है। संतो ते जितना वर्णन किया है उससे कहीं अधिक में मुझे बताया गया कि हमने लगभग 100 सहजयोगी खो दिए हैं क्यांकि वे किसी अन्य सहजयोगी का अनुसरण करने वाले संतों से कहीं अधिक सत्य का ज्ञान आपको है। आप लगे थे जिसने चीजें देखनी शुरु कर दी थी। तो वे लोग भी यदि केवल इतना सोचे कि मेरा स्तर क्या है तो आपका पतन उसी की तरह से चीजें देखना चाहते थे । आप यदि किसी चीज को देखते भी है तो इसका अर्थ है आप वहां उपस्थित इतनी है कि आपको यह जानना होगा कि आपका उत्थान नहीं हैं। साधारण सी बात है कि यदि मैं पर्वत की चोटी पर हूं तो में वहां हूं परन्तु यदि मैं वहां से दूर हूं तब मैं उसे गुण आपके अंदर बैठा दिए गए हैं। त्यागने या अवनत होने देख सकती हूँ। किसी चीज को जितना अधिक आप देखते की शक्ति आपमें हो सकती है परन्तु यह आध्यात्मिक सब को क्षमा कर दोजिए, क्षमा कर दीजिए, आपकी क्षमाशक्ति सत्य की शक्ति आपको प्राप्त हो गई है। देवी की स्तुति गाने न होगा, आप इतने अधिक अवनत न होंगे । समस्या बस आध्यात्मिक है। धर्म से भी कहीं अधिक संतुलित रूप में यह न ओर 31998 19 चैतन्य लहरी खड : 10 अंक : 1, 2 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-20.txt जिसे प्राप्त ही बात नहीं होनी चाहिए, यह ता एक अवस्था है करने के लिए आपको वास्तव में ध्यान धारणा करनी होगी शक्तियां जो आपके अंदर हैं वे कभी नष्ट न होंगी । मुझे याद है कि पहली बार जब मैं अमेरिका गई तो एक भद्र पुरुष से । हर सुबह व शाम ध्यान के लिए समय निकालें । जितना अधिक आप ध्यान-धारणा करेंगे, उतना ही अच्छा हैं। मिली । अगले दिन वह व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि, "श्री माताजी, मैं परिवर्तित हो गया हूं मैं परिवर्तित हो गया हूं. मैं परिवर्तित हो गया हूँ।" क्या हुआ! मैं अपने चाचा से घृणा करता था, उनसे बात तक नहीं करता था, इतना स्वयं को बहानों से संतुष्ट मत करें। सभी कुछ अनावश्यक है, आपका उत्थान ही महत्वपूर्णतम है। नाराज था में! परन्तु कल में उनसे मिला, जाकर उन्हें गले लगा लिया. उन्हें चूमा और कहा मैंने आपको क्षमा कर दिया है, पूरी तरह क्षमा कर दिया है। अब इसके विषय में दोष भाव मत आने दीजिए । वह मेरी ओर देखने लगा । यदि आप विश्व को इस कलियुग से बचाना चाहते हैं तो, यतब मरे विचार से आज मैंने आपको यह बात भली-भांति समझा दी है, आपके अंदर कौन से गुण स्थापित किए जा चुके हैं| यह धर्म नहीं हैं, गुण हैं। यह आपके अंतः स्थित हैं। परन्तु आप ने अपना चित्त किसी विपरीत चीज पर लगाया हुआ है कुंडलिनी की जागृति के पश्चात् आपके अंतर्निहित यह गुण उभर के आते हैं तब आत्मा के प्रकाश में प्रकाशित आप की उदारता एवं अन्य गुण विश्व के सम्मुख प्रमाणित कर देंगे कि सहजयोग सत्य है। कल के सुंदर हैं । यह आपके अंदर है और इन्हें आप स्वयं के अतिरिक्त नाटकों में यही बात दर्शाई, परंतु आपक अंदर यह केवल मानसिक संतोष ही नहीं होना चाहिए कि मुझे आत्मसाक्षात्कार अन्यथा यह सब गुण तो आपके अंदर स्थापित किए जा चुके काई भी नष्ट नहीं कर सकता । आप ने ही यदि इन्हें नष्ट कर दिया तो फिर कोई आपकी सहायता नहीं कर सकेगा । परनात्मा आपको धन्य करें। प्राप्त हो गया है, मैं ऐसा हूँ। यह केवल मानसिक स्तर की महिलाओं की भूमिका जुन 1988 म त्म शुड़ि कैम्प मा माल (एकादशरुद्र) स्वतन्त्र कर अतः अब इस शक्ति को कल हमने बहुत अच्छा ध्यान किया और सबने परम दिया गया है और यह एक प्रकार से अति भयानक शक्ति है और इससे आपको बहुत सावधान होना होगा । नि:सन्देह यह आपकी उन सभी लोगों तथा बुराईयों से रक्षा करती है जो चैतन्य की शीतल लहरियों का अनुभव किया । मैंने आपको बताया था कि हमें समझना है कि यह इतिहास में महानतम् क्षण है: इसमें आपका जन्म हुआ और इसमें आप यहां आक्रमण करके आपका नाश करने का प्रयत्न करती है। यह उच्चतम कार्य को विशेष रूप से इस कार्य के लिए चुना गया है और अब परमात्मा का कार्य कर रहे हैं। आप लोगों आपके लिए हर संभव सुरक्षा करना चाहती है परन्तु यदि आप दुराचरण करेंगे तो यह आपको भी दंडित कर सकती है। हाल ही में भारत में घटित एक घटना में आपको सुनाती हूैं। आप यह जान लें कि आप सन्त हैं। आपको सारे आशीर्वाद प्राप्त हैं परन्तु आप इन आश्शीवादों में खो भी जाते हैं। आर्शीवादों में खोकर आप इस प्रकार आचरण करने लगते हैं एक सहजयोगिनी दूसरे सहजयोगिनी के पास गयी क्योंकि उसके बाग में बहुत से कटहल लगे हुए थे । जाकर उसने कहा," तुम मुझे सब्जी बनाने के लिए एक कटहल दे दो ।" इतने वर्षों के पश्चात् जो किसी सन्त को शोभा नहीं देता अब में एकादश रुद्र पूजा के लिए सहमत हुई हूं । मैं जानती हूं कि यह भयानक कार्य था क्योंकि मुझे इस बात का भी मैं तुम्हें कटहल दुंगी. आज मैं कटहल नहीं देना चाहती । बस ।" उसके पास बहुत से कटहल थे । उस सहजयोगिनी को बहुत बुरा लगा क्योंकि अपने घर आने वाले भले अतिथियों के लिए वह सब्जी बनाना चाहती थी । बाजार में कटहल पर कोई ज्यादा पैसे दूसर ने कहा," आज नहीं, फिर कभी ज्ञान है कि अभी तक भी बहुत से सहजयोगी अधकचरे हैं कुछ सहजयोग से अनुचित लाभ उठा रहे हैं, कुछ सहजयोग से धन बना रहे हैं और कुछ सत्ता या शोहरत आदि प्राप्त कर रहे हैं। चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1 2 और 3 1998 20 6 ह 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-21.txt लगा," मैं सवेदनशील हूं।" मैंने कहा" नहीं, यह सवेदनशीलता मांगे थे । अगले दिन दूसरी महिला के बागा में, अन्य कही नहीं है, यह भूत है। आपको यदि इस प्रकार का कोई कष्ट या दर्द होता है तो इसका अर्थ है कि आप भूत हैं। आप संवेदनशील नहीं हैं। गलतफहमी के शिकार न होइये। इस खर्च नहीं होते । वे कटहल उसे अच्छे लगे थे इसलिए उसने नहीं. बहुत भयानक तूफान आया। उसके सारे कटहल गिर गए और पेड़ भी उखड़ गए । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ! वह उस सहजयोगिनी के पास आईं और कहने लगी,"मुझे दुःख है कि मैने तुमसे यह बातें कहीं, बनाइये।" मैंने कहा,"अब तुम मेरे सामने बैठों।" मैंने उसके प्रकार मत सोचिए । अपने विषय में गलत विचार मत अन्दर से भूत भगा दिया। तब उसने स्वीकार किया. "मुझ पर स्काटलैण्ड के लोगों का हमला हुआ था।" स्काटलैण्ड के मैंने मेरे साथ इस प्रकार की त्रासदी हुई है, आप करके किसी अन्य विपदा से मुझे बचा लो। मैं बहुत स्वार्थी थी। उसने कहा,"नहीं, मैंने श्री माताजी से कुछ नहीं कहा । मेने तो उन्हें बताया भी नहीं । मैं घर वापस आई और सब कुछ भूल गई । श्री माताजी को तो मैंने कुछ भी नहीं बताया, मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नहीं थी मैं तो पूर्णत: क्षमाशील थी। कृपा लोगों का क्यों? "क्योंकि वह स्काटलैण्ड से गई थी।" मैंने कहा" भूतों की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती। उनकी कोई जाति नहीं होती । उनका कोई धर्म नहीं होता। वे तो भूत हैं। अत: उन्हें स्काटलैण्ड वाले मत कहो। वे रूसी भी हो सकते हैं, इटली के भी हो सकते हैं। वे भारतीय भी हो सकते हैं । यह सब केसे हो गया ?" व कुछ भी हो सकते हैं।" परन्तु इस प्रकार के एक झण्ड से पूरा आस्ट्रेलिया, पूरा न्यूयार्क पकड़ में आ गया । यह घटना एकादश रुद्र पूजा के पश्चात् घटित हुई थी और वह चिंतित थी कि उसका पूरा बाग ही एक दिन उखड़ जाएगा| उसने मुझे पत्र लिखा जिसमें बताया कि " श्री माताजी यह घटना घटित हुई है, और जेम्स जैसा सन्त व्यक्ति भी चोट खा गया। पूर्वजन्मों का कुसंस्कार है और मैंने एक कटहल बचाने का प्रयत्न किया...।" वे सारे टूटे हुए कटहल उसे भिखारियों और नौकरों को देने पड़े । कोई भी उससे यह कटहल खरीदने को मुझे क्या हुआ था।" परन्तु मंन खोज निकाला कि दोष उसकी तैयार न था । फिर उसका सारा धन चला गया। उसका सभी पत्नी का था। उसका भूतकाल बहुत ही खराब था, वह तो किस प्रकार नकारात्मकता रंग कर अन्दर प्रवेश कर मैंने ऐसा किया क्योंकि यह मेरा जाती है केवल चोट ही नहीं खाई, वह तो पूरी तरह से नष्ट हो गया था । उसने स्वीकार किया कि " श्रीमाताजी, मैं जानता हूँ कि अत्यन्त तीव्रग्राही (Allergic) थी । सभी प्रकार के दोष उसमें थे । मैंने उससे बताया कि तुम्हें आस्ट्रेलिया से बाहर जाना कुछ समाप्त हो गया । मैं जानती हूं कि यह कुछ भयानक है। परन्तु नकारात्मकता का नाश किस प्रकार किया जाए? आज मैं देख रही हूं कि नकारात्मकता बड़े सूक्ष्म तरीकों से होंगा। इसलिए महापूजा एक प्रकार से, मुल्तवी कर दी गई सहजयोग एवं सहजयोगियों को बहुत अधिक चोट पहुंचा रही है। आस्ट्रेलिया के विषय में आपने सुना होगा कि वहां क्या भी सहजयोगी उसमें सम्मिलित नहीं होना चाहिए । मेरे घटित हुआ । एक स्त्री को सुधरने के लिए उसके पति ने आस्ट्रेलिया भेजा, वहां एक अन्य स्त्री, किसी अन्य की पत्नी जिन्होंने इस स्त्री के साथ यह समूह बनाया था, मुझे एक पत्र थी, वह अपने पत्नीपन के प्रति बहुत जागरूक है। उसने इस नकारात्मक महिला को पकड़ लिया और इसी प्रकार की लहरियां इतनी खराब थीं कि मुझे लगा कि पूरी चैतन्य नकारात्मक महिलाओं का झुण्ड बन गया । वहां सहजयोग की सारी चैतन्य लहरियां समाप्त हो गयीं आस्ट्रेलिया से किसी ने एक फूल तक नहीं भेजा नि:सन्देह हो गया है। उन्होंने मेरी पूजा की. पूजा का कर्मकाण्ड उन्होंने किया। परन्तु यह सब अपने अपने परिवार में बैठकर किया । वह स्त्री कहने लगी कि हम अपने परिवार में पूजा कर रहे हैं । है। मैं चाहती हूं कि यह पूजा हो परन्तु उस आश्रम से कोई आश्चर्य की सीमा न रही जब उन छह भयानक महिलाओं ने लिखा कि उस र्त्री ने हमें ऊंचा उठाया है। और चैतन्य लहरियां बहकर उनसे लड़ने लगी हैं। में वह पत्र न पढ़ सकी। परन्तु उन महिलाओं को ऐसा लगा कि उनका उत्थान । मेरे जन्मदिवस पर अत: सहजयोग में बहुत सी चीजें आपको भ्रमित कर परन्तु अब आप सावधान रहें। स्वयं को धोखा देने का प्रयत्न न करें। अपने मूल्य को समझें । जैसा कि मैने कल आपको बताया था कि आप लोग योगी हैं, सन्त हैं: आपका अपना परिवार और इस प्रकार सभी कुछ नष्ट हो आपको किसी भी मूर्खतापूर्ण और घटिया चीज के सम्मुख गया । आस्ट्रेलिया के लोगों की सारी चैतन्य लहरियां समाप्त घुटने नहीं टेकने । कोई भी व्यक्ति जो इस प्रकार के कार्य करता है उन्हें आप बता दें कि आप योगी हैं। कल मैंने आपको बताया था कि एक योगी के लिए पूरा विश्व ही सकती हैं आपका कौन सा परिवार है? आश्रम का छोटा सा परिवार या हो गई । वहां के अगुवा को तब मुझे मुम्बई बुलाना पड़ा । वह अपनी चैतन्य लहरियों से भी परेशान था । मेरे सम्मुख वह उसका परिवार है। यूराप में, इंग्लैण्ड और अमेरिका में विशेषरूप से मैंने कांपने लगे । मेरे सामने उसके हाथ कांपने लगे । कहने 21 खंड : 10 अक : 1.2 और 3 1998 चैतन्य लहरी 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-22.txt और पिता खिन्न होकर चूहे की तरह से चुपचाप बैठा रहेंगा। कि किस प्रकार परिवार की देखभाल करनी है, किस प्रकार इंग्लैण्ड तथा अन्य कई अन्य स्थानों पर मैंने सहजयोगियों को बताया कि आप लोग बिल्कुल अकर्मण्य हैं। यदि आप इसी तरह से आचरण करते रहे तो एक दिन यह भयानक महिलाएं तुम्हें नष्ट कर देंगी । महिलाओं को यह समझना चाहिए कि इस प्रकार के बहुत से लोग देखे हैं । इसके कारण बहुत सी वह करुणा एवं सहनशीलता के गुण के कारण महिलाएं हैं । समस्याएं खड़ी हो गई है। मैंने महिलाओं से अनुरोध किया है व इस पृथ्वी मां की तरह से हैं। परन्तु यहां तो उनका अहम् इतना विकसित हैं, इससे सावधान रहें । आज अमेरिका क्यों पाया है कि महिलाएं हावी हो गई हैं। और कहानियां सुनाकर बच्चों की देखभाल करनी है, किस प्रकार कार्य करने हैं वे पुरुषों को वश में करना जानती हैं। कभी कभी तो इस पर वहुत हैरानी होती है और आप लोग इसमें खो जाते हैं। मैंने कि वे सुधर जाएं और इस बात को समझ लें कि वे पल्नियां हैं। यदि वे न नष्ट हो रहा है? अपनी महिलाओं के कारण। सुधरीं तो सहजयोग के सभी वरदान वापस ले लिए जाएंगे । तब उनपर सभी तरह के कष्ट टूट पड़ेंगे; मेरे कारण नहीं परन्तु एकादश रुद्र के कारण । जिस प्रकार आप अपने सभी दोष भूतों के सिर मढ़ देते हैं, मुझे भी उन्होंने सब कुछ ठीक किया । शनै:शनैः वे पुरुषों को ठीक इसके लिए देवी देवताओं को जिम्मेदार ठहराने दें। मैं कोई जिम्मेदारी नहीं लेती । यदि आप गैर जिम्मेदार हैं कमी है। मुझे समझ नहीं आता कि यहां के पुरुषों को क्या मैं आपको यहां पर विवाहित बहुत सी भारतीय लड़ाकयों का उदाहरण दे सकती हूँ। वे अपने पतियां को मार्ग पर लाई। प्रकार से सहजयोग में ले आई । पश्चिम की यह बहुत बड़ी तो वे आप पर गहन चोट करेंगे और आप कैंसर या किसी अन्य गम्भीर चीज से समाप्त हो जाएंगे। तब आप मुझे दोष न दें। आज यह स्थिति है। मैं कुछ सहजयोगिनियों में, वहां पर स्त्रियों पर बहुत रौब जमाया जाता है। एक को जानती हूं जिन्होंने मेरे सम्मुख अपनी गलतियों को सहजयोगिनी थी जिसका पति एक डॉक्टर था । बाद में वह स्वीकार किया कि वो ऐसा करती रहीं, वैसा करती रही, सहजयोगी बन गया । उसे पक्षाघात हो गया । पति को परिवारों के विषय में बातें करती रही आदि आदि। उन्हें हुआ है। ? दोष भाव के कारण व गुलामों की तरह से हो गए हैं। भारत में स्थिति इसके विपरीत है विशेषकर उत्तरी भारत पक्षाघात होने पर उसकी पत्नी ने काम करके धनार्जन शुरू कर दिया। जब पत्नी धनार्जन करने लगी तो उसने स्वयं को आधात पहुंचा । यह चीज समझी जानी आवश्यक है क्योंकि मेरे विचार में पश्चिमी देशों की महिलाओं के पास विवेक नहीं है वे विवेकशील नहीं हैं। मैं इसी साधारण समीकरण अत्यन्त अपमानित महसूस किया और अपनी पत्नी पर और अधिक रौब जमाया । मेरे पास आकर उसकी पत्नी ने पर पहुँची । कुछ लोग विवेकशील हैं और पकड़े हुए होने पर भी वे संर्वेदनशील हैं परन्तु यहां की महिलाएं आक्रामक है। विवेकशील नहीं हैं। भारतीय महिला विवेकशील है वह बात को समझती क्यों नही किया? तुमने वह कार्य क्यों नहीं किया?" वह है। वह जानती है कि यह आदि शक्ति हैं। उसका पति यदि कहने लगी." इन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं किया था ज्यों ही कोई गलत कार्य कर रहा है तो वह कहती है" मैं दस दिन ये ठीक हो जाएंगे मैं धनार्जन बंद कर दूंगी क्योंकि मेरी कमाई के लिए उपवास करूंगी। क्या तुम स्वयं को सुधार लोगे ?" को मेरे पति सहन नहीं कर सकते ।" यदि तुम नहीं सुधरे तो मैं घर से चली जाऊंगी। भारत में महिलाओं ने ही सहजयोग को सफल बनाया है वह अत्यन्त बुद्धिमान हैं। यहाँ बहुत आक्रामक होने के कारण महिलाओं जैसे पुरुषों को है। केवल सुन्दर वस्त्र पहनकर मुस्कराना ही में बुद्धि का अभाव है। वे बात को नहीं समझती । वे नहीं महत्वपूर्ण नहीं है। सहजयोग में आपको भी वैसे ही ज्ञान होना समझती कि मैं कौन हूँ। वे नहीं समझती कि हमारा मूल्य क्या है। सभी बेवकूफी भरी चीजें उनके लिए आप सभी नहीं परन्तु आपमें से कुछ । बुद्धि के अभाव के कोई भी बच्चों को जन्म दे सकता है: कुत्ते, बिल्लिया सभी कारण आप विवेकहीन महिलाओं के सम्मुख झुक जाती हैं। कोई । इस स्थििति के लिए कुछ हद तक आपके पति भी वे आपको सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें बताती हैं। वे जिम्मेदार हैं। तो बच्चे उत्पन्न करके, उँनकी देखभाल करके, बताया." जब में नहीं कमाती थीं तो ज्यादा अच्छा था...." और वह एक एक पाई अपने पति को देती थी, फिर भी पति महाशय हर समय उस पर रौब झाड़ते थे। "तुमने यह कार्य तो मैं आप सभी लोगों से अनुरोध करूगी कि सहजयोगिनियों को भी सहजयोग का ज्ञान वैसे ही होना चाहिए चाहिए जैसे सहजयोगियों को है। बच्चे उत्पन्न करने का अर्थ यह नहीं कि आपने कोई महान् उपलब्धि प्राप्त कर ली है। महत्वपूर्ण हैं। बातें बहुत अच्छी करती हैं। मैंने देखा है कि यहां पर केवल महिलाएं ही बोलती हैं। करते । बच्चे की मृत्यु के हालात में, मैं नहीं समझ पाती, कितना जानती हैं? मैं जानती हूं कि कुछ महिलाओं को पैरों किस प्रकार वह बात कर पाती है! केवल स्त्री ही बात करेगी के चक्र तक का ज्ञान नहीं है। सहजयोग के विषय में वे हर समय अपने पतियों पर रौब जमाकर आपने कोई विशेष पुरुष नहीं बोलते । वे कभी बात नहीं उपलब्धि नहीं प्राप्त कर ली । सहजयोग के विषय में आप 22 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1. 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-23.txt देखे कर मुझे बहुत आघात लगा है। वे मुझे अगुआ या किसी भी अन्य चीज को चोट पहुंचा सकती हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर काबू पा लेना भूरतों के लिए आसान है। वहुत कुछ नहीं सीखना चाहती । अपने पतियों पर रौब झाडने के लिए करना चाहती है। व्यक्ति को इस कमी का सामना करना चाहिए । सहजयोग का आपको कितना गहन ज्ञान हे। सहजयीग का उपयोग वे केवल अधिक आक्रामक (दायीं ओर को) जब आप हो जाती हैं तो आपको बाई ओर की बाधा हो जाती है। इसका कारण यह है आपमें से अधिकतर लोगों में बहुत सी समस्याएं हैं। मैने देखा है कि ज्यों ही आप अपने हाथ किसी की ओर करते हैं तो आपको लगता है, ओह मैं यहां पर पकड रहा हूं। यह नियमित भूत बाधा का चिन्ह है और मैंने लोगों को यह कहते देखा है कि वे संवेदनशील हैं। यह अत्यन्त भ्रमित करने वाली बात है। मैं बहुत संवेदनशील हं. सहजयोग में मैं बहुत ऊंचा हूँ। यह ऊंचा होने का तरीका नहीं है। आपको पूर्णत: कुशल होना होगा । आपका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक होना चाहिए और सहजयोग का ज्ञान पूर्ण होना चाहिए । आपमें से कितने लोगों ने Advent-अवतरण पढ़ी है? आइये देखें। आपमें से कितने लोगों ने एडवेन्ट पूरी पढ़ोहै (ईमानदारी कि भावनात्मक स्वभाव के कारण आप भू्तों की तरह चलती हैं और भूत आपको अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक पकडते हैं। आप हैरान होंगे कि चरित्रभ्रष्ट यौन जीवन व्यतीत करने वालो महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक पतित होती हैं विवाह के पश्चात पुरुष तो ठीक हो जाते हैं, महिलाएं नहीं। उन्हें मानसिक रोग हो जाते हैं, क्योंकि आप समझ लें, आप ही पूरे विश्व की इच्छाएं तथा भावनाएं हैं। आप इतनी महत्वपूर्ण हैं, आपके बिना कुछ भी आरम्भ नहीं हो सकता । पृथ्वी पर अवतरित होकर यदि मैंने सदाशिव से लेकर गणेश तक को एकजुट न किया होता तो वे कुछ भी न कर पाते । यह सत्य है। मैंने महिला, मां. पत्नी तथा भार्या के रूप में यह संब प्राप्त किया है। आपके लिए भी यह कार्य सुगम होना चाहिए, सुगमतम, क्यांकि एक महिला की तरह रहते हुए विश्व भर में इतने बच्चों को मैंने संभाला है। इस सारे कार्य को संभालते हुए अपने परिवार को भी भली भांति चलाया है। पूरा सन्तुलन इसमें लाई हूं और अब इस प्रकार यह प्रभावित हो गया है कि महिला केवल उपासक ही नहीं हो सकती है वह गुरुओं की भी महानतम गुरु हो सकती है। से हाथ उठाए)। बहुत बढ़िया । अब मैं जो कहने का प्रयत्न कर रही हूँ वह यह है कि आपको खोज निकालना होगा कि सहजयोग क्या है? आपकी गुरु एक महिला है। वे सारे ज्ञान की सरोत हैं। वे सारे ज्ञान की सागर हैं। तो क्यों आप पिछड़े रहें? सभी दिशाओं में हम पूरी तरह से समान होना चाहते हैं, पुरुषों के समान, यहां तक कि में भी । तो सहजयोग के ज्ञान में क्यों नहीं। आपमें वेशभृषा से कितनों ने अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? अपने जब मैंने आप सबको बुनियाद पर खड़ा कर दिया मैं केवल महिलाओं से पूछ रही हूं। बहुत हाथ उठाइये । अच्छा । तो यह चीज है जिसके विषय में व्यक्ति को गर्वित तो मुझे अब आपको यह वताना है कि विकसित होकर आपने होना चाहिए । व्यक्ति को ज्ञान होना चाहिए कि मानसिक तथा भावनात्मक रूप से बह कितना सहजयोग जानता है। आपमें से कितनी अपने पतियों पर प्रभुत्व जमाती हैं। सावधान रहें। मेरे विचार से केवल यही सहजयोगिनी ईमानदार है। मैं जानती हूं कि आप सभी रौब जमाती हैं और कभी कभी तो उन्हें दबा देने का प्रयत्न करती हैं। मैं अब अनुरोध कर रही हूं कि आप शक्ति हैं। पुरुष के पीछे आप ही शक्ति हैं। आप ही लोग उन्हें महान् बना सकती हैं। आप लोग ही सहजयोग को सक्षम शक्ति बना सकती हैं। आप इस पृथ्वी मां की तरह से हैं जिसे सारी सुन्दर चीजें, यह सारे सहजयोग की देखभाल करनी है। आप अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि बुरी महिला या बुरी पत्नी किसी भी बुरे पुरुष की अपेक्षा अधिक हानिकारक होती है। आस्ट्रेलिया में मैंने यह घटित होते हुए देखा है। एक महिला ने पूरे आस्ट्रेलिया को नष्ट कर दिया है और एक अ्कली महिला पूरे आस्ट्रेलिया को महान् बना सकती है। वो महिला में हूँ। महिला होने का गर्व है। आपसे इसलिए मुझे पुरुष बनने से मैं घृणा करूंगी। श्रीकृष्ण को देखें । उन्हें सोलह हजार महिलाओं से विवाह करना पड़ा । उनसे उन्हें विवाह करना पड़ा. शिष्यों के रूप में वे उन्हें न रख सके । वे शक्तियां थी, उनकी शक्तयां थीं । शक्तियों को महिलाएं होना ही था । लोग कह रहे हैं और कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण स्त्री-चित्त-चोर थे । परन्तु मुझसे कोई ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि में एक महिला हूँ और एक मां को चुनौती नहीं दी जा सकती । सदैव पिता को ही चुनौती दी जाती है मां को नहीं । महिला के रूप में आप बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त कर सकती हैं उसके लिए आपको यह जानना आवश्यक है कि दूसरों के प्रति अपने पावन प्रेम को किस प्रकार अभिव्यक्त करें, अपनी वास्तविकता दूसरों के सम्मुख किस फल प्रदान करने होते हैं। यह सब कहा से आते हैं? यह सब | पेड़ । यह पृथ्वी मां अत्यन्त साधारण दिखाई पड़ती हैं। परन्तु यह जो कुछ हमें प्रदान करती है उसे देखिए उन सुन्दर वस्तुओं को देखिए । अत: अच्छी सहजयोगिनी बनने के लिए अच्छी पत्नी होना आवश्यक है, स्वयं को सदा आगे लाने वाली रौबीली पत्नी होना नहीं । मैंने सदा यह महसूस किया है, परन्तु इन दिनों जो 3-4 मामले मेरे सामने आये हैं, उनसे घटनाक्रम को 23 चैतन्य लहरी खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-24.txt प्रकार प्रकट करें और किस प्रकार सहजयोग के लिए अपने बातें यदि आपने न की तो फिर आप कभी उन्हें संभाल न सकेंगी। वै आपके सिर पर चढ़ जाएंगे। इस देश के बच्चां पति की सहायता करें । की भी यह समस्या है। विवाह के समय आपने मुझे वचन दिया था कि आप सहजयोग के लिए कार्य करेंगी और अपने पति की सहजयोग करने में सहायता करेंगी । आपका पति जब अन्य सहजयोगियों परन्तु आज समस्या उससे कहीं अधिक गंभीर है जितना हम सोचते हैं । हिटलर की शक्ति की तरह से एक नकारात्मक शक्ति सभी देशों की महिलाओं के माध्यम से उठ आपके घर आने वाले सभी सहजयोगियों की आप दखभाल रही है। महिलाओं के माध्यम से यह भयानक हिटलर तथा करंगी । अपने घर को आप सहजयोग केनद्र बनाएंगी, लोगो मृत जर्मन लोग उत्पन्न हो रहे हैं। अब वे नाज़ियों की तरह का अपने घर पर स्वागत करेंगी और सामूहिकता को बढ़ाने से बनने लगे हैं। अत: महिलाओं को अत्यन्त सावधान रहना में प्रयत्नशील होगी । इन वचनां के साथ आपका विवाह है कि वे अपने अन्दर कार्यरत नकारात्मक शक्तियों के किया गया था । आप लोग यह सब दिखा सकती है। सम्मुख झुक न जाए उन्हें विनम्र मधुर एवं त्यागशील बनना महिलाओं के लिए अदूरदर्शी, क्षुद्र एवं दंभी होना सुगम है। है क्योंकि ऐसा बनने की शक्ति उनमें है। कंवल स्त्री ही यह सब कर सकती है। पुरुष नहीं कर सकता । पुरुषों में कुछ अन्य प्रकार का माधुर्य होता है परन्तु महिलाओं में वह विवेक की देखभाल कर रहा होगा आप उसकी सहायता करेंगी तथा पुरुष को ऐसा बनने में समय लगता है। इन सव सम्भावनाओं के साथ-साथ यदि आपमें पुरुषों पर होवी होने की आकांक्षा 1 भी है तो आप ने इधर को हैं न उधर की । तब आप लिंग- विहीन हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसी अवस्था में मैं है जो पूरे विश्व को सुन्दर बना सकता है। अब आप क्या कर रहे हैं? शान्त होकर बैठिए। क्या कृपा करके आप शान्त होकर बैठेगी? सुनिए ! यदि आप शान्त होकर नहीं बैठ सकती तो अच्छा होगा चले जाइये । शान्त होकर बैठिए । कल तुम यहां नहीं थी तो सब लोग शान्ति से बैठे थे। आप उचित व्यवहार करें । सभी लोग मर्यादा सीखें, ठीक है? बच्चों को यहां या कहीं और ले जाएं तो उन्हें सिखाएं कि किस प्रकार व्यवहार करना है। अवश्य उन्हें सिखाएं और बताएं उन्हें क्या नाम दू? ऐसे व्यक्ति का नामकरण आप ही करें जो न तो पुरुष है और न महिला । करें। इसी प्रकार हम इस विश्व को सबके लिए स्वर्ग बना सकती हैं। अब विश्व की मुख्य समस्याओं की बात करें। आपने देखा होगा कि इन दिनों मैं राजनीति के विषय में बहुत कह आइये महिला होने पर गरव रही हूं और हो सकता है एक दिन उचित समय आने पर आप सबको राजनीति में प्रवेश करना पडे । मैं अमेरिका में श्री जैक्सन से भी मिलने वाली हूँ। देखें क्या होता है। आप यह भी जानते हैं कि इंग्लैण्ड में भी हम कार्यरत हैं। दो बर्ष के अन्दर मैं इन सब नेताओं से मिलने वाली हूं तथा किसी भी विवेकशील एवं सम्माननीय तरीके से हम कोई हल खोज लंगे, परन्तु आप सबको यह दरशाना होगा कि आप अत्यन्त सन्तुलित एवं अच्छे परिवार के हैं। सुनिए क्या आप शान्त हो जाएंगी? ये कौन है? आपका में चले जाते हैं और दूसरा के लिए भी समस्याएं उत्पन्न करते बेटा बहुत शैतान है। क्या आप इसे ले जाएंगी? आपका हैं। अत: हमें चाहिुए कि सभी को मध्य में रखें आर मध्य में चाहिए कि बच्चों को शिक्षा दें कि श्रीमाताजी के सम्मुख किस तरह से आचरण करना है। आप अवश्य उन्हें सिखाएं। बहुत से लोग सहजयांग में आ गए हैं। इससे पूर्व यह एक बच्चा अन्य सभी बच्चों को बिगाड़ सकता है। सावधान रहें। कभी कभी उनकी पिटाई करें। मेरे विचार से यह । वच्चों का सीखना अत्यन्त आवश्यक है। अब हम विश्व की गम्भीर समस्याओं पर आते हैं । मानसिक प्रक्षेपण (दिमागी जमाखर्च) अब स्पष्ट नजर आ गया है (मेरी बात का सुने और समझने का प्रयत्न करें) । यह अति गंभीर समस्या है कि जब आप बाएं या दाए को चले जाते हैं तो अति में चले जाते हैं और स्वयं भी समस्याओं रहने के लिए हमें ऊपर उठना होगा। अब समस्या यह है कि उपलब्धि कभी न हो सकती थी । इसका मुख्य कारण यह था कि पहले लोगों के मस्तिष्क में प्रवंश करके यह बताना असभव था कि क्या किया जाए । सभी लोगों ने भरसक आवश्यक है अन्यथा बच्चे कभी सुधरेंगे नहीं । उनके बाएं स्वाधिष्ठान पर दो थप्पड़ पड़ जाने से वे ठीक हो जाएंगे । प्रयत्न किया। आज में बुद्ध की बात कर रही थी । बुद्ध ने लोगों को आवश्यक शिक्षण एवं उचित सूझ-बूझ के साथ हमें समाज एवं परिवार बनाने हैं। मैंने तुम्हें पहले भी बताया था कि पांच वर्ष की आयु तक आप उनकी पिटाई कर सकते हैं। दस वर्ष की आयु तक आप उन्हें शिक्षा दें और सोलह वर्ष की आयु के पश्चात् आप उनसे मित्रसम व्यवहार करें। परन्तु पहली दो यह बताने का भरसक प्रयत्न किया कि व्यर्थं के कर्मकाण्डों से निकलकर माक्ष प्राप्त कर लें । उन्होंने सभी प्रयत्न किए परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् लोग कहने लगे कि बुद्ध ने कहा है कि मूर्तियां न वनाओं : तो हम स्तूप बना लेते हैं। तो 24 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : । 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-25.txt अपने अन्तर्दर्शन द्वा आपने यह और कीन स्वर्ग में । परन्तु स्तूप बनाकर वह उन्हें पूजने लगे । जो उन्होंने कहा था ठीक उसके विपरीत - कि शुद्धिकरण, अन्तदर्शन और मध्यमार्ग समझने का निर्णय करना है क्या वटित होने वाला है। महिलाओं से मुझे विशेष रूप से अनुरोध करना है कि इस आधुनिक काल में कंवल वही विश्व की रक्षा कर त्याग को अपनाएं ताकि सब कुछ स्पष्ट देख सके। परन्तु सकती है। नहीं कर सकते । व पहले अपना कार्य कर उनके अनुयायी मूर्खतापूर्ण चीजों में फंस चुके हैं। अब रक्षा करने की बारी आपकी है. अपनी सूझबूझ, करुणा, बलिदान, विवेक और अन्तर्जात प्रेम से न केवल अपने बच्चों, अपने पति, अपने परिवार बल्कि पूरे विश्व को। आप सब लोगों के लिए अपना कर्त्तव्य करने का यह के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर लें । उन्होंने यहां तक कहा कि परिवार न बनाएं इससे समस्याएं बढ़ती हैं। अपने अन्दर पुरुष पहले की तरह से गए और स्तृप आदि बनाकर उनकी पूजा करने लगे । यही चीज़ ईसा के जोवन में भी आप देख सकते हैं। महावीर के जीवन में भी देख सकते हैं यही चीज आप महान् अवतरणों, पैगम्बरों, इस्लाम आदि में भी देख सकते हैं। बार-बार वही घटित हुआ और लोग पथभ्रष्ट हो गए परन्तु किसने पथभ्रष्ट किया? सभी महान् अवतरणें के सार तत्वी को किसने विगाड़ा? इसे स्वयं अनुयाइयों ने बिगाड़ा क्योंकि वे आत्म साक्षात्कारी न थे। बहुत अच्छा अवसर है। हमारी कुछ बहुत अच्छी सहजयोगिनियों के इस मामले में बहुत अच्छे अनुभव हैं। कुछ ने वास्तव में अखण्ड आनन्द की स्थिति प्राप्त की है। बास्तव में कुछ ने यह स्थिति पाई है। वो यदि आ रही होती हैं तो मैं महसूस कर लेती हूं कि वे आ रही हैं। पूरा वातावरण उनकी प्रतीक्षा अब, गम्भीर समस्या, जो में देख रही हूं, यह कि मेरी शिष्याएं कहलाने वाली महिलाएं सहजयोग को बिगाड़ेंगी-अति स्पष्ट है। मैं इसे आज देख रही हूँ। यह बात में आज स्पष्ट-पूर्णतः स्पष्ट-देख रही हूं । वे सहजयोग को बिगाड़ेंगी क्योंकि वे हावी हो गई है और सोचती है कि उन्हें सहजयोग चाहिए । मुझे आपको यही बताना है कि आपके अन्दर महान् का ज्ञान है क्योंकि वे सोचती हैं कि वे बहुत महान् बन गई हैं। अगुवा की पत्नी स्वयं को अगुवा समझती है। किसी को कोई कार्य करने के लिए यदि बुलाया जाए तो पत्नी सोचती कि उसके पति पर श्रीमाता जी से कहीं अधिक अधिकार करता है, पूरा ब्रहमाण्ड पूर्ण सम्मान से झुककर उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है। इतनी उच्च महिलाएं भी हैं। हमें चाहिए कि उन्हें अपना आदर्श बनाएं, मूर्ख, बेकार, अहंकारी महिलाओं को नहीं । उन्हें बहुत महान् समझा जाना शक्ति हैं। सहजयोग केवल आप तक और आपके बच्चों तक ही सोमित न हो जाए । अत: अपनी गहनता को स्पर्श करें। आज की समस्या यह है कि महिलाओं ने अपना मूल्य खो दिया है, अपनी गहनता खो दी है। यह आज की मूल समस्या है। महिलाएं स्पर्धांत्मक, धन लोलुप, सफलता तथा अन्य मूर्खतापूर्ण चीजों की ओर दौड़नें वाली हो गई है। उत्थान उनका लक्ष्य नहीं है। अत: आपको बहुत सावधान रहना होगा । यह मूल समस्या आपको देखनी चाहिए और मैं सभी सहजयोगियों से अनुरोध करूगो कि सावधान रहें। एक ही महिला स्वर्ग की सीढी भी हो सकती है और पतन का रामायण में लिखा गया है। कि राम की सौतेली मां मार्ग भी । परन्तु महिलाओं ने ऐसी अवस्था प्राप्त कर ली है कि वे हिटलर की तरह से आदेश देने लगी हैं और इसमें कंवल ग्यारह वर्ष लगे हैं। ऐसो स्त्रियां अब मंच पर दिखाई पड़ती हैं। धर्मपरायणता, सद्चरित्र और विनम्रताविहीन स्त्री स्त्री नहीं है। करुणा उसका आभूषण हैं। काश में विलियम ब्लेक की तरह लिख सकती, काश उसने पश्चिमी महिलाओं तथा उनके सौन्दर्य के विषय में लिखा होता, और यह भी कि उन्होंने क्या प्राप्त करना है। मैं जानती हूं कि एक बार जब क्योंकि हम एक अत्यन्त संकटपूर्ण समय से गुजर रहे हैं, तो महिलाएं अपनी शक्ति को जान जाएंगी तो वे इस विश्व को सुन्दर विश्व बना देंगी परन्तु यह कार्य वे अपनी दुर्बलताओं से. पुरुषों की तरह से पतन के गर्त में जाते हुए नहीं कर उसका है। आज महिलाएं दोषी हैं और इसी कारण मैं आपको चेतावनी देना चाहती हू। मैंने यह देखा है। मैं ऐसी दस महिलाए, गिनवा सकती हूं जिन्होंने यह कार्य किया है। और अब ग्यारहवीं बात इस तरह की है। मैं आपसे ये समझने का अनुरोध करती हैं कि जिम्मेदारी आप पर होगी। जब इतिहास लिखा जाएगा तो जैसे कैकयी की सविका ही रामायण की सारी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। बह सब तो घटित होना ही था । परन्तु आज वह मन्थरा, वह कैकयी कहां है? भारतीय लोग उनका नाम नहीं लेते । कोई यदि उनका नाम ले तो वे थूकते हैं। वे समय के अन्तराल में समाप्त हो गई हैं। उस समय उन्होंने सोचा था कि हमने बहुत बड़ा काम किया है। यही सब मैंने आपको बताना है। आप यदि इतिहास के पन्नों में दफन नहीं हो जाना चाहते. हमें बहुत सावधान रहना होगा । हम क्या करना चाहते हैं? हम क्या कर रहे हैं? में वर्तमान क्षण वर्तमान समय की बात कर रही हूं और कुछ नहीं कहना चाहती कि भविष्य में आपके साथ क्या होगा। आप यदि नर्क में जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं। मैं कुछ नहीं कहूंगी कि कौन नरक में जाएगा सकती । इस कार्यक्रम में हम दो उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं। कल मैंने आपको अन्तर्दर्शन के विषय में बताया था और 25 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : , 2 और 3 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-26.txt करनी है। करुणामय एवं सतर्क बनें । हैरानी की बात है कि आप लोगों ने अभी तक यह विधिया नहीं सीखीं ! संभवत: आपकी माताओं ने इसके विषय में नहीं बताया । आज यह कि समस्या कहा है। समुद्र में चलने के योग्य जितनी भी बड़ी नाव आप बना लें, उसमें छेद कर देने पर वह नाव डूब जाएगी । चाहे जितनी अच्छी आंखे आपकी हों, उनमें एक छिद्र हो जाने पर आप आकाश को नहीं देख सकते और अपनी विधियों से आपकी आंखों में यह सुराख कर देने की कला इन महिलाओं के पास है। सौन्दर्य का पूर्ण नि:सन्हेह हम एक आदर्श जाति, आदर्श परिवार और पूर्ण आदर्श बनने वाले हैं हम विश्व को दिखा देंगे कि लोग जो भी विधिया हम पर उपयोग करते रहें हमें उसकी चिन्ता नहीं । हमें आगे बढ़ते चले जाना है। श्री गणेश की तरह से भारत में एक बात से मैं बहुत प्रसन्न होती हूं कि यहां रस्सियों तथा जंजीरों से बंधा हुआ विशालकाय हाथी चलता ही पर अधिकतर पुरुष आकर मुझे वताते हैं," मेरी पत्नी मुझे चला जाता है। इसी प्रकार हम सब सहजयोगियों को कार्य करना है। परन्तु सहजयोग की महिलाओं को यह कार्यान्वित करना है। उन्हें देखना है कि वे अपने पुरूषों को शक्ति प्रदान करती है। किसी पति को यदि मैं दुर्बल पाती हुं तो मुझे पता प्रभुत्व जमाने वाली है जो स्वयं को बहुत ऊंचा समझती है। किसी पुरुष को विदेश आती हैं और यहां के तौर तरीके देखती हैं तो वे और यदि में बहत सशक्त देखती हूं तो जान जाती हुं कि इसके सूक्ष्म दृश्य प्रकट करने की कला भी उनके पास हैं। सहजयोग में लाई, उसी ने मुझे सहजयोग के विषय में बताया उसी ने मेरे लिए और सहजयोग के लिए इतना कार्य किया। महिलाओं के प्रति इतना सम्मान! जो यहां आई हैं उनमें से भी कुछ धीरे-धीरे अपने पतियों को सहजयोग में लाई हैं। नि:सन्देह कुछ भारतीय महिलाएं भी बहुत तुच्छे हैं। जब वे चल जाता है कि इसकी पत्नी दोष ढूंढने वाली, अधम हो जाती हैं। परन्तु अन्तर्जात रूप से भारत में महिलाओं का दृष्टिकोण भिन्न है: उसे परिवार में धर्म स्थापित करना पड़ता है। अपने परिवार में उसे परिवार के सौन्दर्य की स्थापना करनी होती है, अपने बच्चों को सारी अच्छाई और धर्मपरायणता उसे देनी होती है; उसे विनम्र होना होता है. जाएंगे । पीछे कोई महिला है। यह विद्युत प्रकाश और बल्ब की तरह से है। यदि विद्युत ठीक प्रकार से दोीड़ रही है तो बल्ब जलता है बिल्कुल वैसे ही । परन्तु यदि आपकी एकाकारिता इन मुर्ख, अहंकारी महिलाओं से है तो आप खो जाएगे, समाप्त हो अपनी आवाज ऊंची नहीं करनी हो तो, ऊंची आवाज करने आप यदि मुझे पहचान जाएं, यदि आप ये समझ जाएं कि मैं क्या कह रही हूं और जो आपका कार्य है उसे करें तो तुरन्त आप देख लेंगे कि श्रीमाता जी हमारी जड़ों को दृढ़ करने का प्रयत्न कर रहो हैं। क्योंकि आप ही वृक्ष की जड़े हैं। वाली स्त्री बच्चों को बिगाड़ती है: वह बच्चों को धृष्ट होना सिखाती है। एक प्रकार से उसे अपने पति की आज्ञा का पालन करना होता है ताकि बच्चे भी उसकी आज्ञा का पालन करें । यह चीजें कार्य करती हैं । वहां का समाज यहां की अपेक्षा कहीं अच्छा है । तो महिलाओं की स्वतन्त्रता का यह आन्दोलन उस गुप्त कार्य का चिन्ह है जो चल रहा है । भावनात्मक होने के कारण महिलाएं फरेबी होती हैं। बडी चतुराई से, चालबाजी से वे इस प्रकार के कार्य करती हैं। पूरा पोषण आपने ही प्रदान करना है। सभी सहजयोगियों के प्रति आपको मां और बहन जैसा होना है। लड़ाई-झगड़ा नहीं करना है और न ही कठोर शब्द कहने हैं यह स्त्री का कार्य नहीं है, उसे बहस में नहीं पड़ना है, शान्त होकर देखना है। उनके यदि कोई चक्र पकड़ भी रहें हो तो पत्नियों के रूप में आप उन्हें ठीक कर सकते हैं। बिना बताए आप यह कार्य कर सकते हैं, आप यह कार्य कर सकते हैं। आज यद्यपि परन्तु आप सब मेरी तरह से बन सकती हैं। यदि आपमें इच्छा है तो आप पुरुषों से भी अधिक मेरी शक्तियां प्राप्त कर सकती हैं। परन्तु स्वयं को महत्वपूर्ण दर्शाने के अपने तुच्छ स्वप्नों और विचारों से आपको बाहर आना होगा। यदि आप अपने पर जिम्मेदारी ले लें कि हम सब भी वह समस्याएं बहुत भयानक, आघात पहुंचाने वाली तथा विध्वंसक लगती हैं फिर भी चाबियां आज की महिलाओं के हाथ में हैं । यदि वे अपनी गरिमा और अपने महत्व को समझने का निर्णय कर लें, घटिया लोकप्रियता के पीछे दौड़कर स्वयं को कर सकती हैं जो श्रोमाता जी कर रही हैं तो मुझे विश्वास है कार्य हो जाएगा । सर्वप्रथम आपको खाना बनाना सीखना है। घर का कार्य पुरुष को कभी न करने दें। वे आप पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएंगे । बहुत बढ़िया खाना बनाएं। कुशल रसोइया बनें। पति घर वापस आ जाएगा में आपको रहस्य की बौत बता रही हूँ। एक साक्षी की तरह से पति को समझने का प्रयत्न करें। कभी कभी वह बिना बात नाराज हो जाता है। साक्षी की तरह से उसे देखें । वह भी आपका एक अन्य संस्ता न बनाएं तो वे सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। मैं यदि इतनी बड़ी समस्याओं का एकमात्र कारण खोज सकी हूं पूर्ण और इस कारण को आप यदि दूर कर दे तो मुझे विश्वास है कि हम सहजयोंग को संभाल सकेंगे । हम पूरे विश्व को संभाल सकते हैं और मानवता की पूरी तरह से रक्षा होगी क्योंकि यही आपकी इच्छा है। परमात्मा आपको धन्य करें । बच्चा है। वह एक बड़ा बच्चा है जिसकी देखभाल आपने 26 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-27.txt श्री आदि शक्ति पूजा कबैला 06-06-1993 आदि शक्ति क्या है? आज आप पहली बार मेरी पूजा करने वाले हैं अभी तक सदा मेरे तत्व या एक भाग की पूजा होती रही है। हमें उसके पास क्या बाको बचा? कुछ नहीं, वह मात्र देख रहा अपने है। वह क्या साचता है। वह तो बस अपनी इच्छा का, प्रेम का तमाशा देख रहा है। देख रहा है कि किस प्रकार यह कार्यान्वित हो रहा है । देखते हुए वह अत्यन्त सावधान है क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान है कि जिस व्यक्तित्व की सृष्टि मैंने की है वह प्रेम एवं करुणा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और करुणा इतनी श्रेष्ठ है कि यह कोई चुनीती था किसी स्पष्ट रूप से समझना है कि आदि शक्ति क्या है। जिस प्रकार आप कहते हैं यह सदाशिव, सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा है। परन्तु सर्वशक्तिमान परमात्मा की इच्छा क्या है? आप दखें कि आपकी इच्छाओं का उदभव कहा से है। यह न तो परमात्मा के प्रेम से है और ने ही आम प्रेम से : इनका उद्भव भौतिक पदार्थों के प्रेम से या सत्ता प्रम से है। इन सभी इच्छाओं के पीछे प्रेम है। बिना प्रेम के आप किसी चीज की इच्छा नहीं करते तो आपका यह सांसारिक प्रेम जिसके लिए आप अपना इतना समय व्यर्थ गंवाते हैं. आपको संताष प्रदान नही करता। क्योंकि आपका प्रेम सच्चा नहीं है। प्रकार का प्रश्न सहन नहीं कर सकती और न ही यह अपना अपमान, पतन या प्रतिष्ठाहीनता सह सकती है। इस मामले में वह बहुत सावधान तथा जागरूक है। तो उसमें और उसकी प्रम इच्छा में एक दरार आ गई है। इस प्रेम की इच्छा ने एक व्यक्तित्व अर्थात् अहम् भी दिया है, और इस अहम् को स्वयं कार्य करना होता है। एक यह तो कुछ समय के लिए आपका प्रेमोन्माद है जिससे आप तंग आ जाते हैं और फिर यह उन्माद एक से दूसरीं चीज के लिए परिवर्तित होता रहता प्रकार से यह इतना स्वच्छन्द व्यक्तित्व बन गया जिसे अपनी है। इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता थी । अपने लौकिक जीवन में भी किसी पति-पत्नी को इतना स्वतन्त्र हम नहीं तो आदि शक्ति परमात्मा के दिव्य प्रेम का अवतार है पाते कि बिना तालमल, बिना सुझ-वूझ, बना एकाकारिता और विना तारतम्य के वे कोई भी कार्य करने के लिए स्वच्छन्द हों। ये तो चांद और चांदनी, सूर्य और धूप की तरह से हैं । यह इस प्रकार का तालमेल है जिसमें एक व्यक्ति कोई कार्य परमात्मा का शुद्ध प्रम है। अपने प्रेम में उन्होंने क्या इच्छा की। परमात्मा ने इच्छा की कि वह मानव की सृष्टि करे जो आज्ञाकारी हो. भव्य हो ओर देवदूतों सम हो । आदम ओर ईव का सृजन करने के पीछे भी यही विचार था । तो देवदूतों को स्वतन्त्रता नहीं होती क्योंकि उनका सृजन ही इस प्रकार से किया गया होता है। उनके कार्य नियत होते हैं, वे नहीं जानते कि वे क्यों कार्य कर रहे हैं। पशुओं को भी इस बात का ज्ञान नहीं होता कि वे क्यों कार्य नहीं कर रहे हैं । प्रकृति के बन्धन में होने के कारण वे किए चले जाते हैं। सर्वशक्तिमान में वे बंधे होते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव पशुपति हैं अर्थात् सभी पशु उनके वश में हैं। पशुओं में सभी इच्छाएं होती है । परन्तु वे पश्चात्ताप नहीं करते, उनमें अहम् नहीं होता, वे यह नहीं सोचते कि यह कार्य गलत है करता है और दूसरा उसका आनन्द लेता है। उस सुन्दर दरार में आदिशक्ति ने अपनी योजना परिवर्तित करने का निर्णय किया । वे 'संकल्प-विकल्प करोती' के लिए प्रसिद्ध हैं। किसी भी कार्य का यदि आप बहुत अधिक आयोजन करंगे तो वे इसमें परिवर्तन कर देंगी । जैस आज की ग्यारह बजे की पूजा । आदम और ईव की सृष्टि करने पर आदिशक्ति ने सोचा कि यदि वे भी अन्य पशुओं या दंवदूतों के समान परमात्मा के पाश हांगे तो उसका क्या लाभ हागा। उन्हें इस बात का ज्ञान हाना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं उन्हें यह और यह ठीक । अहम् न होने के कारण उन्हें कर्म की समस्या नहीं होती, क्योंकि वे स्वतन्त्र नहीं हैं । समझने की स्वतन्त्रता होनी आवश्यक है कि ज्ञान क्या है। पशुओं की तरह से पाशवद्ध जीवन उनका क्यों होना चाहिए? तो अपनी निरंकुश शक्ति (जोकि उन्हें प्रदत्त थी) के अन्नरतगत आदिशक्ति ही सर्पणी के रूप में आई और आदम और इंव इस बिन्दु पर आदिशक्ति का पर्ांपण होता है आदिशंक्ति जा कि शुद्ध प्रेम है । एक पिता के विषय में सोचे जिसने अपना सारा प्रेम एक ही व्यक्तित्व में उड़ेल दिया हो : ता को बताया कि तुम ज्ञान के फल को चखी । जो लोग 27 चेतन्य लहरी ।खंड : 10 अंक : 1 2 और 3 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-28.txt जिस व्यक्ति में प्रेम एवं करुणा नहीं है उसमें परमात्मा को शक्ति नहीं हो सकती । परमात्मा को शंक्ति में हो सभी सहजयागी नहीं हैं उनसे यह बात नहीं बता सकते । उन्हें आघात लगेगा। परन्तु यह सर्पणी जो उनकी परीक्षा के लिए उनके पास आई उसने उन्हें बताया कि अच्छा हागा कि आप कुछ निहित है । इस पृथ्वी पर और अगणित ब्रहाण्डों में जिस भी चीज को सृजन हुआ है वह देवी मां (आदि शक्ति) के प्रम के कारण हुआ है। तो आदि शक्ति का प्रेम कभी कभी तो इतना सुक्ष्म होता है, इतना सुक्ष्म कि आप इस नहीं समझ सकते । मैं जानती हूं प्रति आपमें अगाध प्रेम है। आपसं मेरी ओर आनं वाली चैतन्य सपंणी ने स्त्री (ईव) को बताया, पुरुष इस फल को बखें । का नहीं क्योंकि स्त्री चीजों को सुगमता से स्वीकार कर लेती है। पुरुष का कुछ भी आप बताते रहे वह जल्दी से इसे स्वीकार नहीं करता परन्तु स्त्री स्वीकार कर लेतो है। पुरुष विचार-विमर्श करता है, बहस करता है। इसीलिए सर्पणी ने स्त्री का बताया । यह आदिशक्ति (Holy Ghost) वास्तव में स्त्रीलिंग है और इसलिए स्त्री के अधिक समीप रहती है ता लहरें मध्य से चल कर किनारे की तरफ आती हैं और फिर आप सब मुझे अत्यन्त प्रेम करते हैं. मरे लहरियां इस प्रकार होती हैं जैसे झील के पानी में वापस लौट जाती है और किनारों पर वहुत सी चमकती हुई सर्पणी के रूप में आकर इसने बताया कि ज्ञान का फल चखो। अब पति को समझाना महिला का कार्य था और यह बूंदे छोड़ जाती हैं। इसी प्रकार में अपने हृदय में आपके प्रेम कार्य महिलाएं बहुत अच्छी तरह से जानती हैं। कभी-कभी ता की. इस चमकते हुए दिव्य प्रेम के सौन्दर्य को गुंजरित करते वे गलत ढंग से, गलत एवं अत्यन्त पापमय चीजं अपने हुए महसूस करती हैं । अपनी इस अनुभूति का वर्णन आपके पतियां को समझा देती हैं। सम्मुख करने में में असमर्थ हू। परन्तु पहली चीज जो इससे आप जानते हैं मैकबैथ (MACBETH) में क्या हुआ? होती है वह यह है कि इससे मरी आंखों में आंसू आ जाते बहुत स्थानां पर हमने देखा है कि महिलाएं अपने पतियों को हैं, क्योंकि यह करुणा है, 'सांद्र करुणा' सांद्र करुणा; यह आ गलत दिशा में ले जाती हैं। पत्नी यदि गलत है तो वह पति को भ्रमित कर सकती है और यदि ठीक है तो वह पति कां कार्य करो नहीं तो में तुम्हें गोली मार दूगा. परन्तु मां इस उचित मार्ग पर चला सकती है और वह मुक्ति प्राप्त कर है। आद्र है शुष्क नहीं। पिता की करुणा शुष्क हो सकती है, यह प्रकार चोट पहुंचाने वाली काई भी बात नहीं कह सकती । हैं आपको सुधारने के लिए उसे कुछ कहना पड़ सकता है परन्तु सकता है। आदम का अपनी पत्नी में पूर्ण विश्वास था . अतः उन्होंने परमात्मा के इस मादा व्यक्तित्व के पथ प्रदर्शन में ज्ञान के फल को चखा । भिन्न होगा । दिव्य प्रेम के कारण उसका हृदय ऐसा बना । अनुयायी इस बात को नहीं समझ सकते । उन्होंने कंवल उनके दर्शन किए, वे इस बात को नहीं समझ सके । यदि हुआ, इसका जर-जर्र दिव्य प्रेम प्रवाहित करता है चैतन्य उन्होंने इसे लोगों से बताया होता तो लोगों ने उनकी बात को सांद्र करुणा के कारण उसका कहने का ढंग पिता से विल्कुल ईसा. मोहम्मद साहब, गुरु नानक के अत: शरीर का हर अग और सभी कुछ दिव्य प्रेम से सृजित लहरियां दिव्य प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जैसा मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं कि इस बिल्कुल न सुना होता । अत: उस युग में लोगों के चित्त और प्राप्त करने की अवतरण को आना ही था, समय आ गया था। दिखाई दे रहा था कि समय आ गया है। परन्तु नियत समय और सहज समय में अन्तर हैं। नियत समय वह होता है जिसमें आप कह सकते हैं कि रेलगाडी फला समय आयेगी और फला समय पहुंचगी इतनी चीजें बना देगी । शक्ति के अनुसार धर्म एवं उत्थान के विषय में बताया । परन्तु भारत में युग-युगान्तरों से कुण्डलिनी की बात की जाती रही है और लोगों को इस बात का भी ज्ञान था कि । आप कह सकते हैं कि यह मशीन इतने समय में कुण्डलिनी हमारे अन्दर आदिशक्ति का प्रतिविप्ब है। आपका पढ़कर सुनाया गया है कि 'में सभी में हूँ। आप समझ लें कि शुद्ध प्रम एवं करुणा की शक्ति हैं। इसके अतिरिक्त उनमें कुछ नहीं है। उनके हृदय में कंवल शुद्ध प्रम है। परन्तु यह प्रम अत्यन्त शक्तिशाली है. अत्यन्त शक्तिशाली । यही प्रेम उन्होंने पृथ्वी मां को प्रदान किया हैं । ं. पृथ्वी मां इतनी सारी परन्तु जोवन्त चीज जो स्वत: एवं सहज हाती हैं उनका समय आप नहीं बता सकते । इसी आदिशक्ति प्रेम की प्रकार से स्वतंत्रता की इस प्रक्रिया. जिसका आपकं पास बाहुल्य हे, इसके समय के विषय में भी आप नहीं बता सकते; आप नहीं कह सकते कि फला समय दिव्य प्रेम क सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए लोग उपलब्ध होंगे । ज्ञान वहुत शुष्क भी हो सकता है। भारत में एसे बहुत से लोग हो गये है जो ग्रन्थों के अध्ययन में और मन्त्रोच्चारण में बहुत व्यस्त थे । वे इतने शुष्क हो गये कि उनका शरीर कंकाल की तरह से बन गया और वे इतने क्रोधी स्वभाव के हो गये कि चाह जितने भी पाप हम करते रहे सुन्दर वस्तुएं उत्पन्न करके अपने प्रेम की वर्षा कर रही है। यें आकाशगंगाएं और सितारे जो आप देखते हैं से इनक माध्यम वे अपने प्रेम सीन्दर्य की अभिव्यक्त कर रही हैं। यदि आप विज्ञान की दृष्टि से देखें तो विज्ञान में प्रेम नहीं है। इसमें प्रेम का प्रश्न ही नहीं उठता । जो लोग योग की बात करते किसी व्यक्ति की ओर यदि वे देखते तो वो वह भस्म हो जाता । क्या आप पृथ्वी पर तपस्या करने इसलिए आये हैं कि है वा भी प्रम एवं करुणा की बात नहीं करते । 28 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : , 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-29.txt किसी को भस्म कर दें? परन्तु वे तपस्वी स्वयं को इसीलिए बहुत महान् मानते थे क्योंकि उनके देखने मात्र से व्यक्ति आदि की समस्याएं भी थी । स्वच्छदता के कारण इन सारी भस्म हो जाता था ! परहित का कोई विचार उनके हृदय में न था । इस दिव्य प्रेम के माध्यम से पहली उपलब्धि जो हुई है वह है आपका 'हित' । 'हित' अपने आप में अत्यन्त इसी काल में जातिप्रथा, दासत्व, भेदभाव, ऊंचनीच समस्याओं की सृष्टि हुई । मान लों में आपसे बार-बार कहे जाऊं यह कालीन नहीं है, यह कालीन नहीं है तो मस्तिष्क में ये बात बैठ जाएगी कि यह कालीन न होकर कुछ और हो भ्रमित करने वाला शब्द है 'हित' का अर्थ है; जो कुछ यह सम्मोहन जैसा हैं जिसके वशीभूत होकर लोगों ने जातिवाद, भेदभाव और स्त्रियों से दुर्व्यवहार करने जैसी कुप्रथाओं का आपकी आत्मा के लिए अच्छा है। आप जानते हैं कि आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। आपके अन्तर्निहित दासत्च स्वेकार किया। अच्छा या बुरा चुन लेने की स्वतन्त्रता के कारण यह सब हुआ। एसी परिस्थितियों में उन पर दर्शाया गया दिव्य प्रेम एवं करुणा व्यर्थ हो जाते क्योंकि लोग इन चीजों को समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार ही न श्रे। उनसे यह भी न कहा जा सकता था कि अज्ञान और धर्मान्धता आत्मा अपने पूर्ण सौन्दर्य के साथ प्रतिबिरमबत होने लगती है तो आप दाता बन जाते हैं। ग्राही (पाने वाले) नहीं रह जाते. आप दाता बन जाते हैं। आप इतने संतुष्ट हो जाते हैं ! इस एसे समय पर आना था जिसे कयामा का अवतरण का वक्त कहा गया है। जैसा कि मैंने कहा आप स्वतन्त्र है, और के कारण आप ऐसा कर रहे हैं और एसा करना आपके हित इस स्वतंत्रता में लोग सभी प्रकार के उल्टे-सीधे कार्य कर रहे में नहीं है। यह कार्य आपको श्रेष्ठ नहीं बनाएंगे । नि:सन्दह थे । इससे पूर्व अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके लाग भारत, चीन, अफ्रीका आदि स्थानों को विजय करने के लिए निकल पड़े थे। अमेरिका के लोग अमेरिका गये और वहां शासन वे अधम हैं। वे अधम कार्य ही कर रहे हैं । बहुत से सन्त आए उन्होंने श्रेष्ठता, क्षमा. एकता अऔर एकाकारिता की बात की । सभी कुछ उन्होंने कहा । बड़े-बड़े पैगम्बर अवतरित हुए । वे उस बुलन्दी तक पहुंचे और बुलन्दी की बात भी स्थापित कर लिया । इस काल में लोग स्वतन्त्रता को कंवल सत्ता प्राप्ति के की। परन्तु अब भी लोग तैयार न थे । शनै: शनैः उनकी लिए उपयोग कर रहे थे । वह आदि शक्ति के अवतरित होने । का समय न था । वे लोग सत्ता के दीवानं थे, एंसा नहीं है कि आज ऐसे लंग नहीं हैं। परन्तु उस समय तो वे केवल समस्याओं के कारण बने । वे सभी धर्म अपनी दिशा से सत्ता तथा साम्राज्य खोज रहे थे । यह महत्वपूर्ण नहीं है। अत: आत्मसाक्षात्कार का कार्य उस समय नहीं हो सकता थी । उस इंसाई, हिन्दू । यह यहां, वह वहां । तो इन सभी खड्डों को समय तो लोगों को अपनी स्वतन्त्रता के लिए साम्राज्यवादियों जो उन्हें दास बनाने में लगे हुए थे. के चंगुल से मुक्ति प्राप्त करने के लिए युद्ध करना था । शनैः शनै: परिस्थितियों में परिवर्तन आया और अत्यन्त सहजता से सभी कुछ परिवर्तित आपकी स्थिति भिन्न भिन्न है किसी की ऊंची स्थिति है और होता गया । यह हैरानी की बात है। मैंने स्वयं यह परिवर्तन किसी की नीची । परन्तु एक तरफा आप किसी को तिरस्कृत आते देखा । आप जानते हैं कि यह सब कार्यान्वित हुआ । मैने स्वयं भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। साम्राज्यवाद नहीं है। व्यक्तिगत रूप से चाहे आप कहें परन्तु सामूहिकता से मुक्ति प्राप्ति के लिए आन्दोलन पूरे देश में फैलता चला गया । लोग स्वतन्त्रता के विषय में साचने लगे : वे समझने लगे कि साम्राज्य बनाने का कोई लाभ नहीं और अपनी स्थिति में लौट आना ही अच्छा है। मेरे जीवन काल में भी यह सब है, केवल हम ही को परमात्मा ने बचाया है। दूसरों ने कहा, शिक्षाओं ने लोगों पर कार्य करना शुरू किया उन्होंने जो, तथाकथित धर्म स्थापित किए थे वे सारी भटक गए और एक प्रकार की खिचड़ी पक गई, मुस्लिम, , भरने के लिए जीवन सरिता की आवश्यकता थी । यह सोचना कि एक मानव दूसरे मानव की अपेक्षा तुच्छ है बिल्कुल अज्ञानता है, मूर्खता है। आप केवल इतना कह सकते हैं कि नहीं कर सकते कि वह अच्छा नहीं है या यह समाज अच्छा के लिए आप यह नहीं कह सकते । इस ज्ञान का अन्धकार इतना था कि यह सामूहिक अज्ञान बन गया- सामूहिक अज्ञान। सभी लोग एकत्र होकर यह कहने लगे कि यह धर्म सर्वोत्तम हुआ । लोग स्वतन्त्रता के लिए बलिदान हुए । भगत सिंह नहीं वं तो अति अधम लोग हैं: हम सर्वश्रेष्ठ हैं और इस जैसे शहीद सभी देशों में हैं । क्रान्तिकारियों को बाहर निकाल दिया गया । उनसे दुर्व्यव्हार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई । इस प्रकार स्वतन्त्रता-प्रेम की परीक्षा हुई और उन्हें (अंग्रेजों को) लगा कि, यह सब जो हम कर रहे हैं, यह प्रकार धर्म के नाम पर, सर्वशक्तिमान परमात्मा के नाम पर यह मूर्खता आदिशक्ति पूरी ताकत से प्रकट हो। पहली चीज जो उन्होंने ( आदिशक्ति) महसूस की कि लोगों को इस बात का ज्ञान आरम्भ हो गई । तो अब आवश्यकता थी कि ा मुर्खता है। इस प्रकार उनमें एक भय की भावना उत्पन्न हुई होना आवश्यक है कि परिवार क्या है। बच्चा परिवार में जन्म उसे जिसने उनमें दोष भाव (बांई विशुद्धि) को जन्म दिया । लेता है। यदि माता पिता उसका पूरा ध्यान न रखें, अवाछित प्रेम दें या उनकी उपेक्षा करें तो बच्चा समझ ही नहीं पाता कि प्रेम क्या है। प्रेम का अर्थ बच्चे को विगाड़ना अपनी करनियां के लिए उनमें दोष भाव आ गया और उन्हांने अपनी गलती को महसूस किया । 29 चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-30.txt विचार से जो शासन कर सकता है, दूसरों को दबा सकता है या ढेर सारे खिलौने देकर उससे मुक्ति पाना नहीं है। इसका अर्थ हर समय आपके चित्त का नि्लिप्त भाव से बच्चे के बही सर्वोत्तम है। यद्यपि साम्राज्यवादी शैली की सरकार का हित के लिए बच्चे पर होना है, हित की भावना से मोह के कारण नहीं । तो हर समय आपकी दृष्टि हित पर ही होती है और इस प्रकार मेंने सोचा कि पारिवारिक जीवन के महत्व को सर्वप्रथम स्थापित किया जाए। यह अति आवश्यक है क्योंकि धर्म के नाम पर आजकल वैरागनियों (NUNS), बनावटी । यह समझ पाना असंभव था कि इस प्रकृति को पादरी और सन्यासियों आदि की प्रथा चला दी गई है और गलत बताए जाने के बावजूद भी वच्चों को संभाला क्यों न प्रभुत्व समाप्त हो गया था परन्तु व्यक्तिगत प्रभुत्व को प्रक्रिया वनी हुई थी और इसके कारण अहम् विकसित होने लगा । बच्चों तक को भी उन्होंने इस प्रकार की शिक्षा दी कि वे अत्यन्त उद्दण्ड एवं बनावटी हो गए । अत्यन्त उद्दण्ड एवं सभी प्रकार के बाबा घूम रहे हैं। व इतने नीरस हैं और इस प्रकार से लोगों को भ्रमित करते हैं कि लोगों ने घर, परिवार. बीबी-बच्चे छोड़ कर सन्यास धारणा शुरू कर दिया है। तो उन्हें ध्यानगम्य होना चाहिए । आप यदि ध्यान धारणा पहली चीज जो मैंने महसूस की वह थी कि प्रेम को समझे नहीं करते तो मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं । आप मेरे विना मानव में प्रेम नहीं पनप सकता और यह प्रेम यदि सम्बन्धी नहीं हैं और न ही आपका मुझ पर कोई अधि सामूहिक हो तभी प्रभावशाली होता भारत में परिवार के लोग परस्पर प्रेम करते हैं । परिवार इतने नहीं हो रहा, वैसा नहीं हो रहा है। यही कारण है कि लम्बे होते हैं कि वो यह भी नहीं जानते कि उनके सम्बन्ध क्या हैं। फिर भी हम एक दूसरे को बहन भाई कहते हैं। कीजिए-ध्यान कीजिए। मुझे आपसे कुछ नहीं लेना देना संयुक्त परिवार प्रणाली इसका कारण है। संयुक्त परिवार प्रणाली सामूहिक प्रणाली की तरह से ही है। कोई नहीं जानता मुझसे नहीं जुड़ा हुआ तो आप भी अन्य लोगों की तरह कि उसका वास्तविक भाई कौन है, सौतेला भाई कौन है, हैं चाहे आप सहज योगी हों, चाहे आपको अपने चर्चरा ममेरा कौन है । फिर भी सम्बन्धियों की तरह से वे अगुआओं से सहजयोग का प्रमाण पत्र मिल चुका हो, इकट्ठे रहते हैं । परन्तु आर्थिक कारणों से संयुक्त परिवार भी चाहे आपको बहुत महान समझा जाता हो, परन्तु यदि जा सका । लोगों का ध्यान धारणा न करना लौकिक चीज है। कार है। कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए कि ऐसा है। हमने देखा है कि जब आप ध्यान नहीं करते तो मैं कहती रहती हूं ध्यान । आप मेरे लिए नहीं रह जाते । आपका सम्बन्ध यदि आप प्रतिदिन और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो, सत्य बात है, आप श्रीमाताजी के साम्राज्य में नहीं टूट गए । इस संकट के समय में जबकि लोगों को प्रम का ज्ञान होना चाहिए था, सभी देशों में परिवार टूटने लगे । विशेषकर पश्चिमी देशों में जहां लोगों ने पारिवारिक जीवन के होंगे, क्योंकि मुझसे आपका सम्बन्ध केवल ध्यान-धारणा महत्व को कभी नहीं समझा । उन्हें अपने परिवार पर कभी के माध्यम से ही है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो विश्वास न था । बेचारें बच्चों के लिए चीजें गई हैं। वे फिसलन पर खड़े हैं । उनका विकास उचित रूप से नहीं हो पा रहा है। इन परिस्थितियों ने एक हिंसात्मक तथा सुबह बहुत कठिन हो ध्यान-धारणा नहीं करते । उन्हें कष्ट उठाना पड़ता है, उनके बच्चे दुख झेलते हैं। जब ऐसा कुछ होने लगता है तो वे आकर मुझे बताते हैं परन्तु मैं स्पष्ट देख लेती हूँ कि यह व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता । मेरा उससे भयानक रूप से भूत बाधित वच्चों की पीढ़ी को जन्म दिया। यह पीढ़ी युद्ध की ओर चल पड़ी। वे नहीं समझते-उन्हें कोई सम्बन्ध नहीं है और उसे मुझसे कुछ मांगने का युद्ध करने की इच्छा होती है। मैंने बच्चं को पेड़ों से लड़ते अधिकार नहीं है। आरम्भ में, नि:सन्देह ध्यान में जाने के देखा है। मैंने पूछा आप क्यों लड़ रहे हैं? उन्हें इसका ववद लिए कुछ समय लगता है परन्तु एक बार जब आप जान जाते हुए कारण नहीं पता । प्रेम के अभाव में सभी कुछ घृणात्मक हो हैं कि ध्यान-धारणा क्या है तो आपको मेरी संगति अच्छी जाता है, मुझे यह पसन्द नहीं है। हताशा के कारण वे सभी लगेगी। किस प्रकार आपकी एकाकारिता मुझसे है ! किस कुछ तोड़-फोड़ करने की कोशिश करते हैं। तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक और प्रवृत्ति पनपी और परिणामस्वरूप मूल्यों का ह्रास हो गया । लोगों को लगा कि इन प्राचीन नहीं, कुछ नहीं । कंवल ध्यान-धारणा की ही आवश्यकता है। मुल्यों का क्या लाभ है। इन मूल्यों के होते हुए भी हमें क्या मिला और युद्ध, युद्ध किसलिए है? युद्ध ने हमारे समाज और उठते चले जाते हैं । और जब यह घटित होता है. जब आप बच्चों का वध कर दिया है। युद्ध के विषय में क्या चीज सहजयोग की उस परिपक्व अवस्था तक पहुंच जाते हैं तो महान् है। तो लोगों के मस्तिष्क में एक बात आई कि सर्वशक्तिशाली व्यक्ति ही सर्वोत्तम है और किसी भी बहाने से युद्ध करके इसका निर्णय किया जाना चाहिए । तो उनके प्रकार हम परस्पर तालमेल रख सकते हैं हमें एक दूसरे को पत्र लिखने या सामाजिक सम्बन्ध बनाने की कोई आवश्यकता ध्यान में ही आपका उत्थान होता है, ध्यान से ही आप ऊंचे आप ध्यान धारणा को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि केवल उसी समय आपको पूर्ण एकाकारिता मुझसे होती हैं। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप 3-4 घंटे ध्यान-धारणा करें । चैतन्य लहरी 30 । खंड : 10 अक : 1, 2 और 3 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-31.txt अपनी गरिमा और महान व्यक्तित्व (जिसका अब पर्दाफाश कितनी गहनता से आप मेरे साथ जुड़े हुए हैं, यह महत्वपूर्ण है। कितना समय आपने ध्यान को दिया यह नहीं । तब मैं आपके प्रति, आपके बच्चों के प्रति, पूर्वक ध्यान- धारणा करनी होगी एंसा नहीं है कि रात को आपके सबके प्रति जिम्मेदार होती हूं । तब मैं आपके मैं देर से आया इसलिए ध्यान नहीं किया, कल मैंने काम पर उत्थान के लिए, आपकी सुरक्षा से आपकी रक्षा करने के लिए जिम्मेदार हूं। ता एक पिता अच्छे नहीं लगते और अब तो बात आपके और आपकी की तरह मैं सीधे आपको दण्ड नहीं देती । ऐसा नहीं है। आत्मा के बीच है। इसमें आपका अपना ही लाभ है किसी ु ठीक है. तुम मेरे सम्बन्धी नहीं हो, मैं अपने आप में कुछ घटित हों हो चुका है) को पाने के लिए आपको वास्तव में पूर्ण निष्ठा के लिए, सभी बाधाओं जाना है इसलिए ध्यान नहीं कर सकता । बहाने किसी को भी और का नहीं। आपके लाभ के ही लिए सभी रहा है। अब हमें समझना है कि हमारी उपलब्धियां क्या है| परन्तु ठीक हूँ। यदि आप ध्यान धारणा नहीं करते तो मैं आपको विवश नहीं कर सकती । मुझे आपसे कुछ नहीं लेना देना । आप बाहर के लोगों से बाह्य सम्बन्ध रख सकते है। परन्तु सम्बन्धों की एक विशेष ऊंचाईं परन्तु चाहे आप स्वयं को यह आन्तरिक सम्बन्ध, जिसके द्वारा आपका हित होता है, एक उच्च काटि का सहजयोगी मानत हो फिर भी ध्यान-धारणा ध्यान धारणा के बिना आप प्राप्त नहीं कर सकते । में आप सबसे बताती रहती हूं कि कृपा करके ध्यान करें, प्रतिदिन के विषय में नम्र होना आपके लिए आवश्यक है। ध्यान-धारणा का यह गुण इतना आनन्ददायी है कि यद्यपि में आपसे सहस्रार पर बात कर रही हू फिर भी ध्यान में हू। आप । आरम्भ में ऐसा करना कठिन ध्यान करें । परन्तु लोग मेरे कथन के महत्व को समझ नहीं रहे हैं। वे मुझसे कहते हैं," श्रीमाता जी हम ध्यान धारणा नहीं आनन्द के सागर में कूद पड़े करते।" 'क्यों? " अब हम आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति है, हम होगा परन्तु कुछ समय पश्चात् आप जान जाएंगे कि आपका यह सम्बन्ध वह सम्बन्ध है जिसे आप खोज रहे थे । कुछ लोग जो खो जाते हैं, मैंने एक दोष देखा है, वे अकेले में वहुत ध्यान करते हैं। अकेले में वे ध्यान करेंगे, पूजा करंगे और बैठे रहेंगे परन्तु वह सामूहिक ध्यान नहीं करते तो हमें ध्यान रखना है कि हमें सामूहिक ध्यान करना है। क्योंकि मैं परम सामूहिक हूं और जब आप सामूहिक ध्यान करते हैं तो मेरे बहुत समीप होते हैं। अतः जब भी आपका कोई कार्यक्रम हांता है तो ध्यान अवश्य करें । हर कार्यक्रम में ध्यान धारणा ही आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए । भजन आदि गाने के पश्चात् आप ध्यान करें । मैं यदि किसी चीज पर जोर दे रही हूं तो आपको समझ लेना चाहिए कि यही सत्य है और हर चीज का आधार है। देखने में यद्यपि यह अत्यन्त सांसारिक प्रतीत होता है फिर भी यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्यों ध्यान-धारणा करें । अब यह यन्त्र (MICROPHONE) पूरी तरह से बना हुआ हैं, परन्तु यदि यह ऊर्जा स्रोत से जुड़ा हुआ नहीं है तो इसे रखने का क्या लाभ है? ध्यान-धारणा में आप प्रम का अनुभव करंगे, परमात्मा के प्रम का । परमात्मा के प्रेम के सौन्दर्य को आप महसूस करेंगे । पूर्ण दृश्य पटल 1 ही परिवर्तित हो जाएगा। ध्यान-धारणा करने वाल व्यक्ति का तो दृष्टिकाण ही बिल्कुल भिन्न होता है, उसका स्वभाव, उसका जीवन बिल्कुल ही भिन्न होता है। वह सदा पूर्ण आन्तरिक सन्तोय के साथ रहता है। तो आज अवतरण का प्रथम दिन होने के कारण, हम कह सकते हैं कि आज प्रथम दिन है क्योंकि आज आप पहली बार आदिशक्ति पूजा कर रहे हैं। नि:सन्देह! यह युद्ध आज नहीं, फिर भी हम कह सकते हैं कि यदि यह सत्य है, यदि यह घटित हुआ है और आपको इससे सहायता मिली है, अब आदिशक्ति की पूजा करने कं लिए मैं नहीं जानती, क्योंकि आज तक आदिशकि्त के लिए कोई प्राथना नहीं बनी । लोग भगवती तक ही पहुंच पाए । इससे आगे नहीं गए । मैं नहीं जानती आप किस प्रकार की पूजा करेंगे। यदि यह आपके लिए आशीरवाद है तो आपको इसे सुरक्षित रखने का, बढ़ाने का और इसका आनन्द लेने का ज्ञान होना आवश्यक है। किसी एक नाटक या किसी एक चीज से आपको सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए । परमात्मा से आपकी पूर्ण एकाकारिता होनी चाहिए । यह तभी सम्भव है हमे कुछ प्रयत्न करना चाहिए और ध्यान-धारणा ही कुछ प्राप्त करने का सर्वात्तम उपाय है। तो हम पांच मिनट के लिए ध्यान में जाएंगे । परन्तु जब आप वास्तव में ध्यान-धारणा करते हैं। ऐसा करना है। कुछ लोग कहते हैं कि श्रीमाता जी हम समय से ऊपर नहीं उठे सकते । हर समय हम कुछ न कुछ अत्यन्ते सुगम कृपया अपनी आखे बन्द कर लें । (श्रीमाता जी सभी सोचते रहते हैं या घड़ी देखने की इच्छा करती है। आरम्भ में उपस्थित सहजयोगियों को कुण्डलिनी उठाती हैं) ग्यारह रुद्र आपको थोड़ी-सी कठिनाई हो सकती है। केवल आरम्भ में। जागृत हो चुक हैं और वे सारी नकारात्मकता को नष्ट कर शनै: शनै: आप ठीक हो जाओगे, इस पर आपका अधिकार दंगे। अज्ञान सबसे बड़ी नकारात्मक शक्ति है। मुझे विश्वास है कि ये रुद्र लोगों के अज्ञान को नष्ट कर दंगे । । आप इसे इतनी अच्छी तरह से जान जाएगे कि हो जाएगी परमात्मा आपका धन्य करे । कोई भी चीज आपको अच्छी न लगेगी । अपने सौन्दर्य. 31 चैतन्य लहरी । खंड : 10 अक : 2 और 3 1998 hoe 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-32.txt रामनवमी पूजा (संक्षिप्त) मत्ड नोयडा-निवास, शालिवाहन शक सम्वत् -1920 (5 अप्रैल 1998) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन का संक्षिप्त सार चल आज रामनवमी के दिन आपकों श्री राम के बारे में ऊपर महाराष्ट्र के संत नामदेव ने पंजाबी भाषा में लिखा है जिसे गुरु ग्रंथ साहब में भी लिया गया है। उन्होंने कहा जैसे बतायें । वैसे ता आप जानते ही हैं कि श्री राम नं सभी धर्मों पितृ धर्म, मातृ धर्म, पति धर्म से निभाया । और यह सब करते हुए उन्होंने राज काज का सभी धर्मों को पूरी तरह एक मां पीठ पर अपना बच्चा बांध घर का सारा कार्य करती है लेकिन उसका चित्त अपने बच्चे पर ही रहता है। इसी प्रकार एक बच्चा जब पतंग उड़ा रहा हो तो वह अपने साथियों से बातचीत भी करता रहेगा लेकिन उसका चिनत कार्य बखूबी निभाया । वे अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करते थे लेकिन फिर भी राजहित के लिए उन्हांने उसका त्याग किया। बाद में सोता जी ने भी एक प्रकार से उनका त्याग किया। अपनी पतंग की और ही है। तीसरे गांव में औरतें सिर पर पानी के घड़े रख कर जा रही हैं। वे आपस में बातें करती हैं हसी मजाक करती हैं तो भी उनका चित सिर पर रखे बड़ों इतनी प्रिय पत्नी का त्याग करना कठिन है. हां अगर पत्नी से प्रेम न हो तो और बात है। श्री राम पूरी तरह से धर्म पर पर हो रहता है। इसी प्रकार हमारा चित्त भी सब कार्य करते खड़े थे । वे धर्मातीत थे । उनका धर्म ऐसा नहीं जैसे हुए अपनी आत्मा पर ही रहना चाहिए । आजकल कोई धर्म पाल रहे हैं या धर्म पर चलने की बात है। वे पूर्णतया धर्म में खड़े हुए थे । श्री. राम देवी के बड़े पुजारी थे । लंका पर आक्रमण मनुष्य के रूप में होते हुए इस महान अवतरण ने सभी कठिनाइयों का सामना किया । एक अवतरण होते हुए उन्हें यह सब करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन वे दिखाना चाहते. थे कि मनुष्य रूप में भी इंसान कितनी ऊंचाई पर जा सकता है। ईसा मसीह को भी सताया गया और सूली पर चढ़ा से पूर्व उन्होंने देवी पूजन किया। उन्होंने राबण का देवी पूजा के लिए आमन्त्रित किया और रावण आया भी । श्री राम जानते थे कि रावण देवी का पुजारी है इसीलिए उन्होंने इसे बुलाया। वैसे बाहर चाहे उनका आपस में झगड़ा हो लेकिन दबी की पूजा में दानों एक साथ थ हमारे बच्चे हैं और पूजा कार्य आपको मिलकर एक साथ करना चाहिए । ये देखा गया है जहां देवी की, मां की, पूजा । इसी प्रकार आप सब दिया गया लेकिन उन्हें थोड़े समय के लिए ही सहना पड़ा । परन्तु श्री राम को तो काफी समय तक कठिनाईयां का सामना करना पड़ा । चौंदह वर्ष तक बनवास में रहे । इसके लिए होती है वहां लोगों में आपस में भाईचारा बहुत होता है। भारत पुरुषार्थं हांना चाहिए पुरुषार्थ के माने जैसे आपको सहज में में भी खासकर उत्तर भारत में देवी की, शक्ति की पूजा होती कोई कठिनाईयां आती हैं, किसी के पति सहज में नहीं. है यहां जगह-जगह पर मन्दिर हैं और शक्ति की पूजा हांती किसी की पत्नी सहज में नहीं है, और भी कठिनाईयां हो है इसलिए लांगों में भाईचारा काफी है। महाराष्ट्र में कात्यायनी सकती हैं, लेकिन आप इन सबकी परवाह किये बिना सहज देवी, बंगाल में दुर्गा मां, की यहा मरठ में ओचन्डी मां की पूजा होती है, इसलिए लोगों में आपस में प्रेम है। जहां देवी कार्य करते रहिए । कुछ लोग कहते हैं कि सहज में कार्य करने से उनका अहंकार बढ़ जाता है। उन्हें समझना चाहिए के अलावा किसी और की पूजा होती है वहां कुछ कम है। कि सारा कार्य तो परम चैतन्य करता है। अहंकार कंवल तब श्री राम के भक्त हनुमान हर समय श्री राम का ही ध्यान करते थे । वे भी हमारे बड़े प्यारे बच्चे हैं. प्यार । आता है जब आप सोचते हैं कि ये कार्य आप कर रहे हैं। बहुत ही यदि आप आत्मा पर अपना चित्त रखें, जैसे मैने बताया था कि अत्मोन्नति होनी चाहिए, तो जब आपका चित्त अपनी आत्मा पर रहता है तो आप पाते हैं कि सभी कार्य अपने आप होते जाते हैं और आपको अहंकार भी नहीं आता । इसके और आज आखरों नवरात्रि है। नवरात्रों की शुरुआत हमारे जन्मदिन से ही होती है चैतन्य लहरी खंड : 10 अंक : 1 32 2 ओर 3 1998 টি ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_1,2,3.pdf-page-33.txt आप आश्चर्यचकित होंगे कि जब-जब भी मेरे परिवार या सहजयोग में कोई विपत्ति होती है, तो मैं स्वत: ही निर्विचार हो जाती हूं क्योंकि परम चैतन्य ही समस्याओं का समाधान करेंगे । परम चैतन्य ही जब सभी समस्याओं का समाधान करते । परम चैतन्य हैं तो मैं क्यों सोच! समस्याओं को भूल जाइए को इनकी चिंता करने दीजिए । परम चैतन्य पर यदि आप निर्भर नहीं होंगे तो यह आपकी सहायता नहीं करेगा और न ही समस्याओं का समाधान करेगा. तब अपने मस्तिष्क के साथ आप गोल-गोल घूमते रहेंगे और इनके हल सोचेंगे । निश्चित रूप से आप को जानना होगा कि आप परमात्मा के हैं। प्रेम मुर्ख नहीं है। प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़े हुए है, प्रेम ही आनंद है । प्रेम ही सोचता है, प्रेम ही सत्य ्रीणड