चैतन्य लहरी अंक : 4, 5 एवं 6 1998 खण्ड : X ाप 75वां जन्मोत्सव विशेषांक देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।॥ भक्तों के दुःखों एवम् कष्टों को दूर करने वाली हे देवी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे पूर्ण ब्रह्माण्ड की जननी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे विश्वेश्वरी, कृपा करके इस विश्व की रक्षा कीजिए! है देवी, पूरा ब्रह्माण्ड आप ही पर निर्भर है ! आप ही इस संसार का आधार हैं क्योंकि पृथ्वी मां के रूप में आमने ही स्वयं को स्थापित किया है । कृपा करके प्रसन्न हो जाइये । इस अंक में पृष्ठ नं. सम्पादकीय अभिनन्दन कार्यक्रम 20-03-1998 2. श्री माताजी का प्रवचन 20-03-1998 जन्मदिवस पूजा 21-03-1998 17 3. दिव्य संगीत की चार राते 22 से 25-03-1998 24 t. स्मरणीय समापन 26-03-1998 25 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34, मुद्रक फोन : 7184340 75 वां जन्म-महोत्सव जन्मोत्सव का आयोजन करने का सौभाग्य प्रदान किया । गुरुनानक देव जी के जन्मत्सव के अवसर पर सिख संगतों को प्रायः गाते हुए सुना जा सकता है: खुशी से सहजयांगी उछल पड़ं । ऐसा सुनहरा अवसर फिर हमें कब प्राप्त होगा? उत्सव आलीशान हाना चाहिए । यह शताब्दी की महानतम घटना हानी चाहिए । प्रेमोदगार बह निकले सहजयोगियों के हृदय से । इस स्मरणनीय अवसर पर आशीर्वादित होने के लिए विश्व भर की दैवी शक्तियां एकत्र सतुगुरू नानक पगटया, मिटी धुन्ध जग चानण हाया अर्थात् गुरुनानक देव जी जब पृथ्वी पर अवतरित हुए ता अज्ञानान्धकार (धुध) समाप्त हो गया और पुरा विश्व प्रकाश ( आध्यात्मिक) से जगमगा उठा । गुरुनानक एक आत्मसाक्षात्कारी थे, गुरु थे. सन्त थे. हां गई एक वार फिर भारतीयम-दिल्ली के स्काउट-मैदान जिन्होंने अपने दा शिष्यों (बाला एवं मरदाना) का आत्म पर उत्सव मनान की निर्णय किया गया। पांच भव्य तारण द्वार बनाए गए; पांचवां. पांडाल का प्रबंश, द्वार जयपुरी शैली सभागार की गुम्बददार छत बहुत से सुन्दर फानूस तथा चमचमाती बक्तियां लगाई गई । सभागार में वैठन के स्थान का बढ़ाने के लिए चहूँ आर द साक्षात्कार प्रदान किया । परन्तु मां आदिशक्ति-जिनकी स्तुति गाते हुए आदि शंकराचार्य ने अपनी महान कृति सौन्दर्य-लहरी में हवा-महल बनाया गया । म ति में कहा : अविद्यानां मन्त-स्तिमिर-मिहिर-द्वीप-नगरी, जड़ाना चैतन्य-स्तबक-मकरन्द-मुतिझरी । दरिद्राणां चिन्तामणि गुणनिका जन्मजलधौ निमग्नाना दंप्टा मुररिपु फुट चीड़ा लकड़ी का मंच बनाया गया। मंच का मनाहारो पृष्ठभाग सहजयोगी उद्यान-विशेपज्ञ श्री खाबर ने रंग एवं दुश के स्थान पर सुन्दर पत्थर जडित - वराहस्य भवति ॥ ( 3 ) मिट्टी में लगे, लहलहात हर रंग के पौधों संे बनाया । यह सुन्दर पहाड़ी सम लग रहा था जिसक सीने से निकलती हुई जलधारा इसे स्वर्गीय छटा प्रदान कर रहा थी । जन्म दिवस की सध्या का जब इस पर छोटे-छाट दीपक जलाये गये ता भारतीय सहजयागियों का इसने उस पौराणिक द्वाणगिरि परवत हे दवी, आपकी चरण रज ही वह द्वीप-नगरी है जिससे आध्यात्मिक प्रकाश रूपी सूर्य उदय हो कर आपके भक्तां के हृदय से अज्ञानान्धकार का दूर करता है। आपकी चरण रज रूपी पुष्प कलियां में से बहता हुआ ज्ञानामृत जड़मति का चैतन्यशील कर दंेता है। दरिद्रियों के लिए यह चिन्तामणियां की माला है। जन्ममरण रूपी संसार सागर में का स्मरण कराया. जिस लक्ष्मण का लग शत्रु के वाण का विप उतारने के लिए श्री हनुमान उठा लाए थे । S000 लागा के बैठने की क्षमता वाल संभागार तथा मंच का सुसज्जित करने के लिए दिल्ली युवा शक्ति न दिन ऑर रात कार्य किया । कई समितियों का गठन किया गया. जिनमें से एक डूब हुए मानव क लिए यह वराहवतार के दात की सदृश उद्धारक है। आदिशक्ति माताजी श्री निर्मलादेवी आध्यात्मिक ज्ञानानुभूति का एकमात्र सरांत हैं। लाखों लोगां को सामूहिक आत्म विदंेशों तथा देश के भिन्न स्थानों से आने वाले सहजयोगियां साक्षात्कार दन के लिए उनका एक कटाक्ष काफी है। जन-कार्य-क्रमों में पूछे जाने पर अधिकतर लोग अपने हाथ उठा कर पुष्टि करते हें कि उनकी कुण्डलिनी जागृत हो गई है तथा शीतल- चैतन्य-लहरियों का अनुभव उन्हें अपनी का हवाई अड्डे से लाने तथा उन्हें सुविधापूर्वक ठहरान के लिए थी । एक विशाल भाजन- कक्ष बनाया गया जिसमें एक ही समय पर 3000 व्यक्ति खाना खा सकते थे । दश तथा विदेश से आए हुए सभी सहजयागी-स्त्री या पुरुष- अपना हथलियों तथा ब्रह्मरन्ध्र पर हुआ है। श्री माताजी सहजयागदायिनी हैं। उनके दर्शन मात्र से जन्म जन्मान्तरों के पाप धुल जाते हैं। हुँदय उड़लने के लिए उद्यते थे । उनकी एकमात्र शुद्धतम इच्छा अपनी परमेश्वरी मां का प्रसन्न करना था । हर हृदय सं प्रार्थना निकल रही थी :- गुरु नानक दव जी कहते हैं:- तुझ डिट्ठ सच्चे पातशाह, मल जन्म जन्म दी कट्टिए देवि प्रपन्नातिहरं प्रसीद महामाया रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई इस महावतार -पूर्णावतार-का 75वां जन्म-दिवस 21 मार्च 1998 को था । सहजयोगियों की प्रेममयी, सान्द्रकरुणा मां ने, प्रसीद मातजंगताऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्व त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।। अत्यन्त कृपा करके, भारत की राजधानी दिल्ली को 75वें X अंक : 4. 5 और 6 1998 चैतन्य लहरी । खंड : तनियासं पांसू तव चरण-पडकेरूह-भबं, विरिंचि: संचिन्वन विरचयति लोका-न विकलम्! बहत्येन शौरिः कथमपि सहस्रेणं शिरसां, हरः संक्षुदयैनं भजति भसितोद्धूलन- विधिम् है दवी, आपके चरण कमल से उत्पन्न होने वाले छोट अथात भक्ता के दु:खो एवम् कप्टों का दूर करने वाली, हे दवी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे पूर्ण ब्रहमाण्ड की जननी कृपा करके प्रसन्न हो जाइये करके इस विश्व की रक्षा कीजिए ! हे देवी, पूरा ब्रहमाण्ड आप हो पर निर्भर है ! आप ही इस संसार का आधार हैं क्योंकि पृथ्वी मा के रूप में आपन ही स्वयं को स्थापित किया है । कृपा करके प्रसन्न हो जाइये । द विश्वेश्वरी, कृपा ! हे से रजकण को चुन कर ब्रह्मा सतत लोक लोकान्तरों की सृष्टि करते हैं, शेषनाग बड़े परिश्रम से अपने सहस सिरों पर उठाकर इसे धारण करते हैं और प्रलयकाल में श्री महेश इसी रजकण अर्थात् आपके सम्मुख ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्तियां तुच्छ हैं। सभी सहजयांगियों की है प्रेममयी मां, हे महामाया सदव अपने वचन से प्रतिबद्ध की भस्म बनाकर अपने अंगों पर लगाते हैं 'पुष्पं, फलं, तोयं परमेश्वरी मा नं निरन्तर चैतन्य प्रवाह करके सहज यांगियों का अन्तराष्ट्रीय सामूहिकता को आशो्वादित किया । छः दिन और छः राते हम सब श्री माताजी से बहने वाली शीतल चतन्य लहरियों के सागर में तैरते रह । रूपा, विश्वभर के हम सभी सहजयोगी हृदय से आपके श्री चरणों में प्रार्थना करते हैं कि हमें अपने चरण कमलों की धूल का एक छोटा सा कण बनाए रखें और हमें आशीवाद दें कि आपके चरण कमलों का निरन्तर ध्यान ही हमारा एकमात्र है पम्मश्वरी मा आपका प्रणाम ! आपका काटि-कोटि प्रणाम । आनन्द स्रोत हो । हताता कि ी पी ा ३ शी ी की शी ड ल च . ी ल ला ी ह और १ 1998 चतन्य लहगी । खंड : 8 अंक : 3 ho अभिनन्दन कार्यक्रम दिल्ली 20-03-1998 ार प्रकाशोत्सव- ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के आशीर्वाद का प्रवाह, मानो गंगोत्री से गंगा बह निकली ही । आप सब यही है। मानव रूप में आप श्रेष्ठता का अवतरण हैं: में उन्हें यही कहता हूँ। श्रीमाताजी मैं घटों बोलना चाहता हूँ और मुझे अपनी लम्बाई के अनुरूप बालना भी चाहिए. परन्तु एंसा जन्ममहोत्सव) का श्रीगणेश 20 मार्च 1998 को रंगारंग अभिनन्दन कार्यक्रम सें हुआ । हमारी प्रिय दंवी मां और श्रीमन सी. पी. श्रीवास्तव के अतिरिक्त बहुत से सम्माननीय अतिथियां तथा भारत और विश्व के काने कोने से आए सहजयोगी भाई बहनों ने इस उत्सव की शोभा बढ़ाई । श्री करने में मैं असमर्थ हृ क्योंकि मुझे रेलगाड़ी पकड़नी है। आशा है आप मुझे क्षमा करेंगी । फिर भी हम सब की ओर से मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि साक्षात् शरीर में सदेव आप कल्याणकारी, आशीषदात्री, स्वस्थ और सदा को तरह से पूर्व लाकसभाअध्यक्ष, श्री पी. चिदम्बरम-भारत बलराम जाखड़ - के पूर्व वित्त मन्त्री श्री सुन्दरलाल पटवा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, श्री ऐजाज रिजर्वी-उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मन्त्री एवं भाजपा के अल्पसंख्यक कांष्ठ के अध्यक्ष मुस्कराती हुई आप हमारे साथ बनी रहें. हमारे लिए यह बहुत तथा सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री राहुल बजाज श्रीमाताजी का अभिनन्दन करने वाले लागों में मुख्य थे । आपका कोटि कोटि धन्यवाद बड़ा वरदान होगा । । श्री पी.चिदम्बरम (भारत के पूर्व वित्त मंत्री) ने विद्वता पूर्वक कहा : श्रीमाताजी श्री निर्मला दंवी जी. सहजयांगों एवं माननीय अतिथिगण । श्री बलराम जाखड़ (सांसद एवं लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष) न हिन्दी में अपना भाषण आरम्भ किया श्रीमाताजी के लिए चिरायु की कामना करते हुए व अंग्रेजी में बोलने लग। उन्होंने कहा चहर दिखाई द रहे हैं । यही भाई चारा है, यही मानवता है, यही उनकी ( श्रीमाताजी) महानता है। हमारे शास्त्रों में, हमारे पूर्वजों ने कहा है: श्रीमाताजी के साथ यह मरी दूसरी भट है और : "चहुं ओर मुझे विश्वभर से आए हुए सहजयागियों के साथ पहली । स्पष्ट बात यह हैं कि यहां मैं अल्यन्त आश्चर्यचकित हूँ और स्वयं को अति तुच्छ पाता हैँ। स्वयं से मेरा एक प्रश्न है कि एंसी कीन सी बात हैं जो विश्व ुबग के कोन कान से पूर भारत से और इस महानगर के हरे हिस्स सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामया: से इस अवसर पर आप सबको यहां खोच लाई? भिन्न धरम जातियों तथा भिन्न पृष्ठभूमियों के पांच हजार लागाों को एक पंडाल के नीचे लाने वाली कौन-सी शक्ति हैं? आप सवका सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मां कश्चित् दुःख भाग भवेत । किसी का दुख न पहुंचे, किसी का आघात न लग. सभी लोग भले हा, श्रीमाता जी यही सब कुछ हम सबके लिए कर रहे हैं। उन्होंने पूरे विश्व के सम्मुख प्रमाणित कर दिया है कि पूरा विश्व एक परिवार है। 'वसुधा एव कुटुम्बकम (यह पूरी पृथ्वी एक है) । विश्व के लाग इस बात का महसूस नहीं करते परन्तु हमारे पूर्वजों द्वारा कहे गए इस कथन इतना समर्पित, इतना विनम्र, इतना एकतावद्ध, इतना आनन्दमय होने की प्ररणा क्या है? में स्वयं से प्रश्न कर रहा हूँ कि एक शाम का जब पांच हजार लागों के साथ एंसा हो सकता है ता विश्व के पाच अरब लागों के साथ यह घटित क्यों नहीं ही सकता? और, सीमित रूप से, इस महान, प्राचीन दश में रहने का अनुभव करने का समय अब आ गया है। आज श्रीमाता बाले 95 करोड़े लागां के साथ यह घटित क्यों नही हा जी के कार्य का सार तत्व है: सकता। स्वामी विवंकानन्द के शिष्यों में सं निर्वेदिता वहन मुख्य थीं । उनके जीवनीकार नं लिखा है जिसे मैं उद्धरित कर रहा हूँ : " श्रद्धा की रचना, नहीं होती, इसकी रचना तो अन्तज्ञांन को अदप्ट चट्टान पर 'यत्र विश्व भवते एक नीड़म'-पूरे विश्व की एक मात्र तर्क को न्यायसंगत नीवों पर घासला बनने की कामना है। आज विश्व वहुत बड़ा नहीं रह गया, यह घासले की तरह बहुत छाटा सा है और इसी में हमें रहना है। एसा होना उन्हीं के प्रेम, उन्हों के आशीर्वाद से सम्भव है। मरी यही कामना है कि हितार्थी भाव से परस्पर होतो है।" "Faith is not built on the Syllogistic foundations of reason, but it is built on the मिलजुल कर हम सदैव स्वस्थ एवं आशीर्वादित बने रहें। मैं क्या कहू. यह एक प्रश्न है, unseen rock of intution" एक प्रवाह है, प्रम. स्नह , श्रद्धा आप सबको यहां पर लाई है प्रेम नं आपका 4. 5 और (6 1998 चतन्य लहरी ॥ खड : X अंक : समापन करूगा : गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्वष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा, गुरु-साक्षात् परब्रह्म, श्रीमाता जी निर्मला मां तस्म्यै श्री गुरुवे नमः | एकता प्रदान की है और मैं भी श्रीमाता जी का अभिवादन करने और उनका आशरवाद प्राप्त करने के लिए आपमें सम्मिलित हुआ हूँ । मैं इतना छोटा और इतना क्षुद्र हूँ कि, श्रीमाता जी. यहां उपस्थित सभी लोग, सभी सजहयोगियों तथा विश्वभर के अन्य उपस्थित लोगों से उनकी आशीष के अतिरिक्त कुछ अन्य मांग सकने में अक्षम हूँ । मैं आपसे खिलवाड़ करते हुए श्री फिलिप्स ने श्रीमाता जी द्वारा दिए गए आशीष, प्रेम एवम् पथ प्रदर्शन की याचना करता हूँ । कृपा करक विश्व के लोगो का पथ प्रदर्शन करें श्री फिलिप्स जेस ( जर्मनी ) आयोजकों द्वारा तीन मिनट की समय सीमा से विनोदपूर्वक मानसिक सन्तुलन का प्रदर्शन किया । कृतज्ञता प्रकट करते । आपका हार्दिक हुए उन्होंने कहा : परम पूज्य श्रीमाताजी, सम्माननीय सर सी.पी.. आदरणीय अतिथिगण एवं विश्वभर से आए हुए प्रियतम सहजयोगी भाई-बहनां: कल आयोजकों ने हमसे कहा कि आज रात्रि के कार्यक्रम में बहुत छोटा-सा भाषण देकर योगदान करें : वास्तव में उन्होंने कहा कि हम तीन मितट से अधिक न धन्यवाद । संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण क्षेत्र में वरिष्ठ अधिकारी श्री ग्रेगोर डी कात्वबर मैट्टी ने अपनी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति करते हुए कहा : परम पूज्य श्री माताजी, सर सी.पी.. महामान्य एवं मान्यवर अतिथिगण । श्रीमाताजी, दो वर्ष पूर्व वायुयान में बोलें। अत: श्रीमाताजी से अपने सम्बन्ध को लेकर सभी बैठकर मैं आपकं जन्मात्सव के लिए आ रहा था, पर मेरी अन्य सहजयोगियां की तरह से में भी एक मूलभूत समस्या लहा का सामना कर रहा हूँ कि किस प्रकार में श्रीमाता जी के प्रति अपना प्रम और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति करू? इस कार्य को भगवान के लिए कौन सी हस्तकला की वस्तु! सूर्य के लिए मैं तीन मिनट में कैसे करु? मैंने सोचा कि सहजयोगी बच्चों कौन सा दीपक!. चाद के लिए कौन सी चांदनी!. समुद्र के को श्रीमाता जी द्वारा प्रदत्त शक्तियों के बिना मैं इस कार्य कां नहीं कर सकता । श्रीमाता जी आप आदि मां हैं, बीसवीं श्रीमाताजी मुझे लगा कि हमारे पास कुछ एसी चीजें भी हैं शताब्दी में आप अवतरित हुई, किस प्रकार मैं तीन मिनट में आपका धन्यवाद कर सकता हूँ! आधुनिक समय की आप अवतार है, आप मानव को मोक्ष प्रदान करने के लिए आईं है, किस प्रकार में तीन मिनट में आपको धन्यवाद दे सकता समझ में नहीं आ रहा था कि मैं आपके लिए क्या उपहार लाऊ ! मर सम्मुख यह जटिल प्रश्न था । कला के सृष्टा लिए कौन से जल की वूंद ले जाई जा सकती है। तभी, जिनका आपके पास अभाव है। हम अंधर से प्रकाश की ओर चल सकते हैं। स्वतन्त्रता की ओर जा सकते हैं- आप नहीं, क्योंकि आप तो स्वतन्त्रता का सार तत्व हैं। हम अहम् और बन्धनों से मुक्त . आप नहीं चल सकती। हम दासता से हूँ! श्रीमाता जी आप सहस्रा-सहस्र सहजयोगियों की माँ हैं। उन्हें आपने आत्मसाक्षात्कार, जागृति और पुनर्जन्म का बहुमूल्य हाकर आनन्द एवं मान्यता की स्थिति की आर जा सकते हैं। परन्तु श्रीमाताजी आप दंवत्व का नहीं पहचान सकतीं क्यांकि आप तो जा है वह है, आप वही थी और सदा वही रहंगी । दिव्य उपहार प्रदान किया है। परमात्मा के अतिरिक्त कोई अन्य यह उपहार नहीं दे सकता । तो श्रीमाताजी किस प्रकार परन्तु हम आपका खोज सकते सकती। मरे मित्रो, भारत में 'लीला नामक शब्द का यही रहम्य है। परमात्मा को भी खांज के लिए हमारी चेतना की हुआ उच्छृंखल और लक्ष्यविहीन युवक था । आपने मुझे न हैं, आप एसा नहीं कर में तीन मिनट में आपको धन्यवाद दे सकता हूँ! मैं यदि अपने विषय में कहूँ तो जब मैं आपसे मिला था तब एक खोया । दंेवत्व का खाजना कितना अद्भुत है! आवश्यकता था हमारे विना आप यह कार्य किस प्रकार कर पातीं? तो कवल पुनर्जन्म, एवं आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया परन्तु इससे भी वहुत अधिक दिया । आपने मुझे भौतिक अस्तित्व दिया. एक सुन्दर परिवार प्रदान किया. अच्छा व्यवसाय दिया, सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान की. गौरव दिया और इससे भी अधिक बहुत कुछ प्रदान किया । श्रीमाता जी आपने मुझे श्रीमाताजी आपक जन्मदिवस के इस अवसर पर हम आपका अंधर से प्रकाश को आर, दासत्व से मुक्ति को आर ले जाने वाली यह तीर्थ-यात्रा भट करते हैं और शपथ लते हैं कि आपका संदश हम जन-जन तक पहुँचार्यंग और स्वयं को भी सहजयोग में पद प्रदान किया जिसके द्वारा मैं आपके दिव्य धारंगं । श्रीमाताजी हम अपनी गहन कृतज्ञता एवम् प्रम की म अभिव्यक्ति करते हैं। और अन्त में मैं कहंगा कि. कार्य में योगदान कर सकता हूँ श्रीमाताजी किस प्रकार तीन मिनट के समय में मैं आपका धन्यवाद कर सकता हूँ। तो श्रीमाताजी, हम इस भारत भूमि पर है, इसका हम आप एक कल्पना कर सकते हैं कि आज रात्रि के विपय में सोंचते हुए मैं कितने धर्म संकट में हूँगा ? यहां आने से एक गहन सम्मान करते हैं और आपसे प्रार्थना करते हैं कि विवेक को यह मूल भूमि आपके संदश द्वारा पूर विश्व को आशीर्वादित करतो रहे । अन्त में यह कहते हुए आपकी आज्ञा सं में घंटा पूर्व मुझे लगा कि मुझे प्रेरणा प्राप्त हो गई है और तब मैंने कविता की शरण ली : 6. बंतत्य लहरो खड : X अंक : 4 5. और 6 1998 ho स्वयं को श्रीमाताजी के प्रति ' पुर्ण समर्पित' करते हुए हमारे सम्माननीय सर सी. पी. श्रीवास्तव नं अपनी पाण्डित्यपूर्ण शैली में इस प्रकार कहा : "रातों को चमकते हुए, खरबों सितारे. सौन्दर्य आपका वर्णन कर पाते नहीं. खरवों दिवस चमककर भी सूरज श्री निर्मलामाताजी, पहली बार मैने इन्हें 'माताजो कहकर सम्बोधित किया है : मैं सोंचता हूं कि इनके 75वें प्रकाश आपका प्रतिबिम्बित कर पाता नहीं, खरबों पौधों का पोषण करने वाली प्रकृति मातृत्व प्रेम में आप सम हो सकती नहीं. प्रातः बेला में आपकी स्तुति गाते हुए पक्षी, गुण आपके कभी वर्णन कर पाते नहीं, कोटि-कोटि पृष्ठ पुस्तकों के रंगने वाले विद्या विशारद आपके बिवेक की एक झलक दशा पात नहीं, सगीतज्ञों की खरवा धुनें आपकी एक मुस्कान सम हो सकती नहीं कवियों की खरबों कविताएं आपके दिव्य अस्तित्व का जादू कभी वर्णन कर पाई नहीं तीन मिनट में तब में किस प्रकार जन्मोत्सव के अवसर पर अब समय आ गया है कि में स्वयं को इनक प्रति पूर्ण समर्पित कर जी. श्री राहुल एवम् सहजयोगिनियों, माननीय अतिथिगण, भाइयों और बहनों इस स्मरणीय उत्सव में भाग लन के लिए आपक दें : श्री पटवा जी, श्री रिजर्वी बजाज जी. प्रिय सहजयोगियों का सम्मुख खड़ा हाकर में स्वयं को विशिष्ट रूप से भाग्यशाली समझता हूँ। श्री चिदम्बरम ने एक प्रश्न पूछते हुए कहा कि विश्व के कोने कोर्न से आए इतने सारे लोग किस प्रकार यहां एकत्रित हुए हैं: कीन सी शक्ति इन्हें यहां लाई है? में आपक सम्मुख एक घटना का वर्णन करना चाहूँगा जा सभवत: इस बात को स्पष्ट कर देगी कि किस प्रकार इस दिव्य महिला नं अपने समर्पण एवम् अथक कठोर परिश्रम से एक एक कदम करके सहजयोग का खड़ा किया । वर्ष 1974 का एक दिन मुझे याद आता है, लदन में मैन एक नाकरी ली थी और ऑक्सटैड और सरे (0xted & surrey) नामक स्थान पर हम रहते थे । यह स्थान लंदन से दूर है और मैं प्रतिदिन वहा से लंदन आया-जाया करती था धन्यवाद आपका कर सक? डॉ. ब्रियान वैल्स इंग्लैण्ड के सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सा निदेशक ने सहजयोग का 'पूर्ण विज्ञान, पावनविज्ञान, दिव्य विज्ञान' बताते हुए इस प्रकार कहा: मैं 24 वर्ष पूर्व को बात कर श्रीमाताजी और सहजयोगी भाई बहनों, । रहा हूँ । एक शाम जब में बर वापिस आया, तो घर पर श्रीमाताजी आपक जन्मदिवस की पूर्व संध्या की इस बला में आपके अपनी पत्नी एवं नौकरानी का दखने को मुझे आशा थी. परन्तु है! उनके स्थान पर बैठक के एक साफ पर गार रंग के एक युवा सम्मुख खड़ा होता कितने सम्मान की बात यह विनम्रता प्रदायक अनुभव भी है, एक वैज्ञानिक और औषध चिकित्सक के रूप में में आपके सम्मुख इस प्रकार खड़ा हूं मानों कैलाश पर्वत के सम्मुख रेत का एक कण । यहां मैं पावन भय, आश्चर्य विनम्रता एवम् प्रेम पूर्वक खड़ा महाविद्यालयां, विश्वविद्यालयों, पुस्तकालयों और कम्प्यूटरां में अथाह ज्ञान भरा हुआ है श्रीमाताजी जो विवेक आपने प्रदान किया है उसकी तुलना में यह ज्ञान पावन भेय न होकर अत्यन्त निररथंक है। जो विज्ञान आपने हमें पढ़ाया हैं वह पावन है, पूर्ण है और दिव्य है। श्रीमाताजी साधारण सा वन्धन डालना जो आपने हमें सिखाया है उसकी तुलना में सारी तकनीकी एवम् चिकित्सा विज्ञान तुच्छ है। श्रीमाताजी आप हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों से मुक्ति प्रदान करती हैं। कोई औपधि, कोई रसायन, कोई विज्ञान या अन्य कुछ इतना शक्तिशाली नहीं है जितनी शक्तिशाली आपकी प्ररणा एवम् प्रम है। आपिके जन्मदिवस के इस शुभ आपके विवेक के लिए मैं व्यक्ति को बैठा पाया । उसे वहां दखन को मुझे कांई आशा न थी । उसने मुझे देखा और मैंन उसे और दानों एक दूसरे की देख कर हैरान हुए कि हम कीत थे ! एक अन्य भ्रान्ति ी उत्पन्न करने वाली बात यह थी कि उसने मर कपड़े पहने हुआ हूँ । हुए थे, मेरा कुता और पायजामा किसी भूत को तो नहीं देख रहा हूँ ! में हाशा-हवास में ता हूँ! कहीं मुझे कुछ हा ता नहीं गया ! उन्हों कदमों से में वापिस मुडा और अपनी पत्नी के पास जाकर पूछा कौन है? उसने मुझे बताया कि उस दिन व पिकांडिली सकस गई थीं और वहां उन्होंने एक युवा व्यक्ति को उपंक्षित । में हेरान था कि कहीं मैं यह अवस्था में पड़ा हुआ दखा, स्पष्ट था कि वह वीमार है। तो वे उसके पास गई और पूछा कि क्या वात है? लड़के न कहा कि वह बहुत बीमार है, लगभग मर रहा है, और उसकी दंखभाल करने वाला कोई नहीं है। तब मरो पत्नी ने कहा कि मर साथ आओ; वह उसे अपने साथ घर ले आई, उसके अवसर पर, श्रीमाताजी आपका काटि-कोटि धन्यवाद करता हूँ और आपके लिए असंख्य जन्मदिवसों की कामना करता हैँ । धन्यवाद । स्नान का प्रबन्ध किया तथा उसके पास कपडे न हान के कारण उसे मेर कपड़े दिए । मुझे बहुत शक्ति मिली । मुझे बहुत गर्व था कि इतने प्रम और करुणा से व उसे घर लाई । चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 4.5 और 6 1998 वह हमारे घर पर दो-तीन महीने रहा । उसका सहज-योग से उपचार किया गया और कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति । सुधरने लगी । उसका पीलिया रोग समाप्त हो गया. नशों और वे विश्व के दस लाख लोगों को परिवर्तित कर चुकी हैं. शराव से उसे मुक्ति मिल गई और आठ सप्ताह के समय में इनका वर्णन कर पाना असम्भव है। अभी कहा गया है कि उनके ( श्रीमाताजी) सम्मुख एक कार्य है, एक महान् कार्य विश्व में पांच अरब लोग हैं। अत: हमें इस विश्व में उनकी तब तक आवश्यकता है जब तक पूरे पांच अरब लोग परिवर्तित न हो जाएं। उर्दू के एक शायर ने कहा है- वह गुलाब के फूल की तरह से एक सुन्दर व्यक्ति बन गया! । लोग कहते हैं कि मैं यह मैन यह पहला चमत्कार दखा था मशीन ठीक कर सकता हूँ परन्तु मानव को ठीक करने का दावा करते हुए निर्मला जी के अतिरिक्त मैंने किसी को नहीं दंेखा । मानव का परिवर्तित करना कठिनतम कार्य है। करेवल दिव्य शक्ति और दिव्य प्रेम से ही यह कार्य किया जा सकता "तुम सलामत रहो हजारों बरस, दिन हों साल के पचास हज़ार ।" हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि आप हज़ार वर्ष तक जीवित रहें और हर वर्ष में 365 के स्थान पर पचास है और उस दिन उन्हांने यह चमत्कार कर दिखाया था । उसके हज़ार दिवस हों। परन्तु मैं इस से भी कुछ आगे जाना चाहूंगा और कहूंगा कि जब तक विश्व का हर व्यक्ति परिवर्तित नहीं पश्चात विश्व भर में उन्होंने ऐसे लाखों चमत्कार किए । श्री पटवा जी, में हर सहजयोगी को एक चमत्कार मानता हूँ और हर सहजयागिनी को एक परिवर्तन का अर्थ क्या है-पूर्ण अंतर्परिवंतन आत्मसाक्षात्कार, हो जाता तब तक हमें आपकी आवश्यकता है ताकि परिवर्तित । होने के पश्चात् हर व्यक्ति देवदूत बना रह सके । हूँ दंवदूत देवदूत; में कहता आप सबने जो प्रेम एवं स्नेह इतनी गरिमा पूर्वक मुझ पर वर्षाया उसके लिए मैं शाश्वत् दृढ़ एवं गहन रूप से सर्वशक्तिमान परमात्मा से सम्पर्क, परमात्मा के प्रेम की शक्ति से सम्पर्क । एक बार जब कोई व्यक्ति परिवर्तित हो जाता है तो उसे वास्तव में दवदूत कहा जा सकता देवदूतों की सामूहिकता, यह तो स्वर्ग का एक हिस्सा है जिसकी अध्यक्षता आदिशक्ति स्वयं कर रही हैं। क्या हम उनकी वास्तविकता को समझ सकते हैं? मैंने उनके 108 नाम लिए जाते हुए सुना है परन्तु वे इन 108 पदों से आपका कृतज्ञ हूँ। आज में आपसे अनुरोध करता हूं कि आप सब मुझे स्वीकार कर लें । अभी तक सहजयोग में मैं केवल एक शिक्षार्थी था, आज मेरा अनुरोध है कि मुझे अपनी ही तरह मानकर स्वीकार करें । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। है और यह उद्योगपति श्री राहुल बजाज ने इस अवसर सुप्रसिद्ध पर अपना हृदय उड़ेलते हुआ कहा "में यहां उपस्थित लोगों में से एक सौभाग्यशाली व्यक्ति हूँ जिसे वर्षों से श्री माता जी का अथाह प्रेम एवं स्नेह प्राप्त होता रहा है...' बहुत ऊपर हैं। वे असीम हैं, शब्दों से उन्हें सीमित नहीं किया जा सकता, मस्तिष्क से उन्हें समझा नहीं जा सकता । उर्दू के एक शायर ने कहा है- एक पुत्र के रूप में, क्योंकि कुछ अन्य में होना नहीं चाहता", उन्होंने कहा." मैं यहां पर श्री माताजी का धन्यवाद करने नहीं आया क्योंकि भारत में कोई पुत्र अपनी मां का में यहां आपसे (श्रीमाताजी से 'जो समझ में आ गया, वो खुदा क्यों कर हुआ? जिसे मानव का सीमित मस्तिष्क समझ ले वो परमात्मा धन्यवाद नहीं करता...।" ) अधिकाधिक प्रेम एवं आशीर्वाद की याचना करने आया हूँ |" किस प्रकार हा सकता है। अर्थांतु परमात्मा समझ से पर है। उनके असंख्य पहलू हैं, बहुत से पक्ष हैं, इतने अधिक कि म त 4. 5 और 6 1998 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : अभिनन्दन समारोह 20-03-1998 दिल्ली श्री निर्मला देवी का प्रवचन परम पूज्य माताजी जाना चाहिए, आत्म ज्ञान की ओर जाना चाहिए। आरम्भ में मानव के साथ यह घटित होना चाहिए अन्यथा हमारा चित्त आप सभी सल्य साधकों को हमारा प्रणाम । मेरे तथा सहजयोग के विषय में आप लोगों ने इतना कुछ कह दिया है कि मेरा हृदय दूर-दूरे से इस अवसर पर आए हुए आप सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता से भर गया है। सहजयांग समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस कलियुग में हमें अपनी स्थिति किसी प्रकार से आपका चित्त आत्मा की ओर चला जाए का ज्ञान हा हम किन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं? तो आप आत्मा की शक्ति बन जाते हैं। और आत्मशाक्ति हर जगह, हर देश में जिस प्रकार घटनाएँ घटित हो रहीं हैं उनके विषय में सोच कर आप परेशान हो जाएंगे समस्या बाहर की ओर है, हमें धन, सत्ता, प्रतिस्पर्धा तथा अन्य सभी प्रकार की चीजां की चिन्ता लगी रहती है। एक बार यदि सर्वोच्च शक्ति है। सर्वप्रथम आत्मा प्रेम करती है, विना कुछ आशा किए । बस प्रेम करती है। यह बन्धन मुक्त व्यक्तित्व है जोकि मात्र प्रेम प्रसारित करता है। किसी को क्या है? इतना अशान्त एवं तनावग्रम्त होने की लांगों को क्या आवश्यकता है? सामूहिक रूप से एवं किसी देश विशेष में, जहा भी जाते हैं, आपको एक प्रकार की भरान्तिपूर्ण स्थिति दिखाई पड़ती है। भयानक ! पूरा समाज ही विनाश के भय कष्ट हो, किसी को समस्या हा, तुर्न्त यह प्रेम प्रसारित होने लगता है। हृदय में प्रेम प्रसारण की यह शक्ति है। परन्तु हमारा चित्त आत्मा पर न होने के कारण यह कार्यान्वित नहीं हा पाती। राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्ध्य प्रकार के प्रयत्नों में भी चित्त से चिन्तित नजर आता है। कारण क्या है? आयोजित तथा अनायोजित सभी प्रकार के धर्म आदि हैं। बहुत से साधुसन्त हैं, बहुत सी पुस्तक लिखी गई है कि जाते हैं। आप बहुत यांग्य बनते जाते हैं परन्तु अचानक काई आपमें कौन से गुण हाने चाहिए । परन्तु केवल सत्य साधक (जिज्ञासु) ही देख सकता है कि इस विश्व में इतनी समस्याएं क्यों हैं और आप किस प्रकार इनके समाधान में सहायक हो सकते हैं। समस्या कहां है। समस्या मानव में है। जिस प्रकार हैं क्योंकि बाहर की आर रहने वाले चित्त में पावित्र्य नहीं वर्णन किया गया है हम पशु अवस्था से मानवावस्था में होता। यह चित्त कंवल आप पर होता है और वह भी बहुत विकसित हुए हैं। नि:सन्देह हममें मानवीय चेतना है। इस चेतना में हम हैं तो आपके कष्टों एवं दु:खों का काई अन्त नहीं हागा। मुझे बाहर की ओर होने के कारण आप प्रतिस्पर्धा में फंसत चल आपसे भी अधिक यांग्य व्यक्ति खडा हो जाता है । आपका चित्त यदि बाहर की ओर है तो बहुत से संघर्य सीमित अवस्था में । आप यदि कंवल अपने पर चित को रखते सभी प्रकार की चीजें देखने लगते हैं जो अच्छी नहीं विध्वंसक हैं और परंशान करने वाली हैं। यदि ये आपको परंशान नहीं करतों तो इसका अभिप्राय हैं कि आप संवेदनशील है, कहीं भी सोने में, कहीं भी खाना खाने में, परंशानी नहीं हाती। मैं इन चीजों की विल्कुल चिन्ता नहीं करती । यह सत्य है क्योंकि यह सब महत्वहीन है। परन्तु सम्भवत: मरी रचना ही एसी हुई है। टीक है, परन्तु सहजयोगी भी एसे ही बन गए हैं। नहीं है। परन्तु मानव रूप में आप संदवदनशील हैं। इसका क्या कारण है? जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे ये राजनैतिक हो. आर्थिक हो या कोई आर एक सूक्ष्म समस्या है जिस लोग नहीं समझते । अब यदि मैं कहती हैँ कि हमारे अन्दर आत्मा है. यह यह चमत्कार है कि मनुष्य अपना चित्त आत्मा पर ले गया है! आत्मा पर चित्त ले जाने के पश्चात् आप हैरान होते हैं कि किस प्रकार विना किसी प्रतिस्पर्धा, बिना किसी लड़ाई-झगड़ के कार्य होते हैं! किस प्रकार आपका चित्त आत्मा पर स्थापित हमारे हृदय में चमकती है, तो आपको मुझ पर विश्वास करने की कोई आवश्यकृता नहीं है। परन्तु हमारा चित्त बाहर की ओर है। इसे आत्म-विमुख कहा जाता है, अर्थात हमारा चित्त बाहर की ओर है। इस मानवास्था में हमारा चित्त बाहर है, भिन्न हा सकता है? सर्वप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है, आप सुस्वस्थ ही जाते हैं। और इस प्रकार बहुत सी समस्याओं का समाधान हा जाता है। विश्व में मानसिक तनाव और गंद भाजन बाह्य वस्तुओं पर । हमारे चित्त को क्या प्राप्त करने के लिए और विकसित होने के लिए कहां होना चाहिए? किस चीज को प्राप्त करने के लिए? सर्वप्रथम अब हमारे चित्त को आत्मा पर आदि- के कारण 30 प्रतिशत लोग सदैव वीमार रहते हैं। सर्वप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है। आर चतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : 4. 5 और 6 1998 के प्रेम की यह दिव्य शक्ति केवल प्रेम ही नहीं है यह शान्ति, आनन्द एवम् उच्च विवेक भी है। सामान्य मानव के सहजयोग में लांगों ने समझ लिया है कि आधुनिक, आर्थिक गतिविधियों ने किसी को शान्ति प्रदान नहीं की हम अमेरिका को लें । मैं अमेरिका गई. बहुत से अमेरिकन लोगों लिए इसे समझ पाना अत्यन्त सूक्ष्म कार्य है। यह सब मैं को जानती हूँ । वे कितने परंशान हैं। उनके परिवार उनके है। बच्चे बर्वाद हो गए हैं। सभी बेवकूफी की बातें हो रही हैं। हमारे भारतीय गुरु वहां जाकर धन बना रहे हैं । अमेरिका के लोगों को कंवल शान्ति चाहिए, हार्दिक शान्ति । यह तभी सम्भव है जब आपका चित्त आपके हृदय पर जाता है, क्योंकि अत्यन्तु आवश्यक है। हृदय में आत्मा का निवास है और आत्मा ही शान्ति का स्रांत है। तो पहला प्रेम है और दूसरी शान्ति है। आप अत्यन्त शान्त हो जाते हैं । साक्षी भाव होकर सारे नाटक को आप एक मजाक की तरह से दंखते हैं। किसी चीज़ की चिन्ता करने हैम जानती है। लोग जानते हैं कि व्याक्ति आत्मा बन सकता यह विकास प्रक्रिया है। आज आत्मा बनने का समय है। बसन्त ऋतु का यह वरदान है। लोगों को आत्मा बनना है नहीं तो उनका अन्त न जाने क्या होगा । आज आत्मा बनना का सभी सन्तों, पैगम्बरों, धर्मपरायण लोगों ने इसके विषय में बताया परन्तु हमने उनकी बातां की तोड़-मरोड़ करके भिन्न मत वना लिए । फिर भी एक सर्वसाधारण बात यह है कि आप आत्मा है और आत्मा बने बगैर आप शान्ति, आनन्द और प्रेम प्राप्त नहीं कर सकते । यहां उपस्थित सहजयोगियां न यह सव प्राप्त कर लिया है। वह नहीं सोंचते कि वे विदेशी , म । की कोई आवश्यकता नहीं । सभी कुछ होता रहता है। तो व्यक्ति को यही बनना है - आत्मा बनना है। आत्मा है। इस देश के हैं या उस देश के । इस शिविर में सोने खाने नहाने आदि का अच्छा प्रबन्ध नहीं है फिर भी वे आनन्द ले जोकि आपकी अपनी है, जो आपके में है और जो प्रेम का, तथा शान्ति का स्रोत है। तीसरी चीज जो आपके साथ घटित होती है वह यह है कि आनन्द क्यांकि आत्मा का स्रोत है अत: आनन्द आपके जीवन में उमड़ पड़ता है। इस हृदय रहे हैं। असुविधाओं की चिन्ता किसी को नहीं। नि:सन्देह किसी देश विशेष के कुछ संस्कार बचे हुए हो परन्तु वे भी छूट जाते हैं शनै: शनै: ये कुसंस्कार उसी प्रकार झड़ने लगते है जैसे फल बनने पर फूल झड़ जाता है। फूल की सभी पंखुड़ियां झड़ जाती हैं और वह फल बन जाता है । अब आप भी फल बन गए हैं। ज्ञान, विवेक एवम् प्रेम के फल। ज्ञान के लिए पुस्तकें पढ़ने की आपको कोई आवश्यकता । अधिक पढे-लिखे निवास हृदय में है। यह मस्तिष्क में नहीं रहती । मानसिक लागों को सहज में लाना कठिन कार्य है। आपको स्वयं मात्र प्रकार से येह उमड़ता है कि आपकी समझे में नहीं आता कि किस प्रकार आनन्द के इस महान सागर से बाहर आएं । आप इसम तेरने लगते हैं और इसका पूर्ण आनन्द लंने लगते हैं। विश्व भर में जाकर लागों के हृदय छूकर आप इस आनन्द कं सभी तट छु लेते हैं । मैं फिर कहती हूं कि आत्मा का नहीं, इसकी काई आवश्यकता नहीं गतिविधियां आपको आत्मा तक नहीं पहुंचा सकती । इतना देखना है कि वास्तविकता क्या है? और यह साक्षात्कारी आत्मा पर चित्त रखने से ही आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है और यह घटित हाना तभो सभव है जब कुण्डलिनी की जागृति हो जाए जाना, पृर्ण शान्ति एवम् आनन्द का आपका प्राप्त हो जाना आपके चित्त के आत्मा पर स्थित होने के कारण है। अब आप व्यक्ति वन जाने पर ही संभव है। अन्यथा आप विश्व के भ्रम में ही खा जाते हैं। भ्रमों में फंस कर संचर्ष करते हुए लड़ते जीवन के दृष्टिकाणं का परिवर्तित हा हुए आप जीवन-यापन करते हैं और अन्त क्या होता है यह में नहीं कहना चाहती । सहजयांग में आकर आपकी विकास प्रक्रिया में एक विशेष चीज जो घटित हुईं है वह है आपके चित्त का आत्मा पर चले जाना । आत्मा की शक्ति प्रापत होते ही आप स्वयं को हर क्षेत्र में सफल पात हैं। आप कुछ नहीं नहीं सांचते । धन आपको सहज ही में प्राप्त धन के विपय में हो जाता है। आप शक्ति के बारे में नहीं साचते । सत्ता आपको स्वत: ही मिल जाती है। ऑर आत्मा को शक्ति हो स्वांच्च चाहते, आप कुछ नहीं मांगते । फिर भी आपको सभी कुछ है अत्यन्त शक्तिशाली एवम् धर्मपरायण । आवश्यक नहीं कि आप सन्यासी साधुवाबा बन जाए और सभी प्रकार के भी आप बुरा नहीं मानते । सोचते हैं ठीक है. इसे भूल जाओ। कमंकाण्ड करें। कर्मकाण्ड अनावश्यक हैं। आत्मा का निवास तो छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते रहने का, इनके लिए आपमें है। पुर्व जन्मों में आप सभी कर्मकाण्ड कर चुके है। इस जन्म में आपने कंवल चित्त को आत्मा पर रखना है और कं लिए सभी को क्षमा करना आवश्यक है। हो सकता है यह कुण्डलिनी आपको अपनी प्राप्त हो जाता है। कोई यदि आपके साथ ज्यादती कर दे तो याचना करने को कोई लाभ नहीं । परन्तु इस स्थिति को पाने काई व्यक्ति असंगत हो. आपको हानि पहुंचाने का प्रयत्न करता हो. ठीक है मैं उसे क्षमा करता हूँ। वह मुझे सिरदर्द देन की कोशिश कर रहा है परन्तु मैं वह सिर दर्द नहीं लुंगा। मैं उस क्षमा करता हूँ। यही महत्वपूर्ण बात ईंसा ने कही थी कि आपको क्षमा करना होगा । 'आदि मां की जागृति द्वारा ही संभव है। जब यह उठने लगती है ता सभी चक्रों को पता भदती हुई उनका पांषण करती है. उन्हें संघटित करती है और सिर के तालू भाग (सहस्रार) का भंदन कर परमात्मा कं प्रम की सबंध्यापो शक्ति से आपका सम्बन्ध जाड़ती है। परमात्मा 10 खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 चतऱ्य लहरी मोहम्मद साहब ने भी बहुत कुछ बताया है । मेरी भुलाया नहीं जा सकता । परन्तु उसकी मृत्यु हा गई और समझ में नहीं आता कि लोगों ने उनकी बातों को किस प्रकार आज अचानक, आप दंखते हैं कि जर्मनी के लोग कित्तन तोड़ मरोड़ दिया ! इंसा ने बहुत कुछ बताया, उन्हें भी लोगों साक्षात्कारी हैं। मैं आश्चर्य चकित थी कि किस प्रकार लोंग ने अपने हिसाब से परिवर्तित कर लिया । सभी ने एक ही प्रेम एवं परमात्मा के विषय में प्रबुद्ध हैं। ये सभी देश, मैन बात कही कि. 'आपको आत्मा बनना होगा । परन्तु उनके कथनों को तोड़-मरोड़ कर बहुत से धर्म बना लिए । धर्म में नहीं की जा सकती । आप इंग्लेण्ड की कल्पना कीजिए जा लड़ने की क्या आवश्यकता है? यदि परमात्मा एक ही है तो धर्म के नाम पर झगड़ा नहीं होना चाहिए। अब सहजयांग में बहां वहुत से सहजयोगी है और जब मैं प्रवचत देती हूँ ता भिन्न स्थान, भिन्न देशी, भिन्न आदर्शों से लोग आत हैं। सहज देखा है, बहुत अच्छी तरह चल रहें हैं। इतनी ता आशा भी भारत आया और यहां तीन सी वर्ष तक राज्य किया । आज सभागार लोगो से भर जाते हैं। यही चीज मैंन रूस जैसे दशां योगियों की एक महान बात यह है कि वे पावन हैं, उनमें बहुत पवित्रता है। सजह योग में चरित्रहीनता की समस्या नहीं है कोई भी चरित्रहीन दिखाई नहीं पड़ता । चरित्रहीन, धोखेवाज, भ्रष्ट यदि कोई हो तो वह सुधर जाता है। क्योंकि आत्मा आपको स्वयं को दंखने के लिए प्रकाश देती है कि आपके क्यों? मूलत: हित में क्या है। आप यदि चक्षुहोन हैं ता सड़क पर चलते हुए नहीं है। इनमें आध्यात्मिकता का कोई स्थान न था । यह सब आप खड्डे में गिर सकते हैं परन्तु यदि आप अपनी आंखों बाह्य प्रयत्नों पर आधारित थे और यह प्रयत्न बहुत ही से देख सकते हैं तो आप जानते हैं चलना है सहजयोग में यही घटित हो रहा है लांग जान गये खड़ी हा जाती है। अब आप दखें कि विश्व का आर्थिक है कि किस प्रकार चलना है और किस प्रकार पतन से बचना है मैंने पतित लोगों को भी देखा है परन्तु उनके लिए भी मेरे हृदय में प्रम है, क्योंकि वे अन्धे थे । किसी भी अन्धे व्यक्ति है कि हमें गरीबी कां दूर भगाना है मैं सहमत हूँ। परन्तु के लिए आपके हृदय में प्रेम के अतिरिक्त क्या हा सकता है? उपहार दे कर नहीं, आत्म साक्षात्कार द्वारा आप यह कार्य कर कोई यदि मुझे गाली भी दे दे तो भी में उसे क्षमा कर देती हूँ क्योंकि वे नहीं जानते कि बे क्या कर रहे हैं। वे चक्षुहोन है। आप सत्य मार्ग पर खड़े हैं अत: किसी ने यदि आपका हानि भी पहुंचाई हो तो भी आप उसे क्षमा कर दें। तो में देखी है जा कि प्रजातन्त्र होन के पश्चात् पतन के कगार पर थे । प्रजातन्त्र या साम्यवाद आदि तो कवल 'वाद' हो है उनसे बाहर निकल कर आपको देखना होगा कि यह प्रजात्र राक्षसतन्त्र बन गया है और साम्यवाद भी असफल हो गया है। उनमे क्या दाप है? आध्यात्मिकता उनका अधार सीमित थे । एक बार जब यह सीमाएं टृट जाती है तो समस्या कि आपका विस प्रकार ढाचा चरमरा रहा है; हर जगह मन्दा है। वा यदि इतने विशेपन हैं तो फिर ये मन्दा क्यां है, य समस्यायें क्यां हैं? लांग कहते सकते हैं। इच्छुक लोगों के पास जा कर सहजयाग द्वारा आप उन्हें वैभवशाली वना सकते हैं। आप हैरान होंग कि वस्वयं बहतर कार्य करेंगे और गरीबी को दूर भगायेंगे । विदेशों में लांग पूछा करते थे कि श्री माताजी आप आध्यात्मिक जीवन के विषय मं वात करती है. परन्तु भारत निर्धन क्या है। मसा उत्तर होता है कि आध्यात्मिकता में मामले में चाह वं निर्धन हों। जिन लांगों के पास बहुत धन है दूसरी हैं असत्य की नहीं । बात यह है कि आत्मा सत्य का सात वे निर्धन नहीं है। धन क उदाहरणार्थ यदि कांई कुगुरु है ता आप तुरन्त जान जायेंगे । कैसे? अपनी चैतन्व लहरियों से, अपनी अंगुलियां क्रे सिरों पर कि यह व्यक्ति झुठा है। माहम्मद साहब ने बताया है कि पुनउंत्थान के समय आपके हाथ बोलेंगे। किसी भी कप्ट के इसी प्रकार जा लांग निर्धंन है क्या व कांई अच्छाई नहीं कर क्या व अच्छ लाग है? क्या व कुछ अच्छा कार्य कर रहे है? समय वास्तव में ऐसा हो होता है। अंत: यदि आप चाहें तो रहे ताकि उन पर करुणा की जा सक । जब दानां ही तरह के लोग दु:खी हैं तो उन्हें परिवर्तित करने के लिए हमं क्या करना चाहिए? जीवन के प्रति पुर्णे दृष्टिकोण हो परिवर्तित कर देना चाहिए । आत्म साक्षात्कार के पश्चात मैंने दखा है हैं व ल उस व्यक्ति को टाल सकते हैं और चाहें तो उसे मार्ग पर ला सकते हैं। परन्तु आरम्भ में हमें उलझो हुए चरित्र के लोगों को सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. नहीं तो वह आपका कि धनी लोग एकदम निर्धनता का समझने लगत हैं। अपना धन दूसरे लागों के माथ बांटन लगते हैं और इस तरह से चोजें कार्यान्वित हांने लगती हैं। सहज यांग में, आप हैरान हांगे किस प्रकार लांग एक दूसरे की सहायता करते हैं । किसी की भी कठिनाई या समस्या की किस सुन्दरता सें व भी उलझा देंगे । लाग अब सहज योग में परिपक्व हो गय और सुगमता से इन समस्याओं को सुलझा सकते हैं । हम यह भी जानते हैं कि सभी तत्व हमारे लिए कार्यरत हैं। विश्व की सारी घटनायें केवल यह दर्शाने के लिए हैं कि गलत चीजें तो गलत ही हैं और किस प्रकार अच्छे कार्य किये जाने चाहिए। उदाहरण के रूप में जब हिटलर आया तो उसने लोगों का वध करना शुरू कर दिया। अपनी सत्ता स्थापित करने के शक्ति से हमें यह विवंक प्राप्त करना है। सभी धर्मों में इस लिए उसने सभी प्रकार क उल्टे-सीधे कार्य किए जिन्हें दूर करने का प्रयत्न करत हैं ! परमात्मा की इस सर्वव्याप शक्ति का वर्णन किया गया है। इस 'निराकार ', 'रूह', परम चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 4. 5 ओर 6 1998 11 करना है। यह भावना तभी आ सकती है जब आपकी कुण्डलिनी जागृत हो । मैं जानती हूँ कि माहम्मद साहब, ईसा मसीह, अब्राहम या मोजिज आदि. जिन्होंने धर्मग्रन्थों की सृष्टि की है, ने कभी भी नहीं सोचा था कि लोग आयोजित रूप चैतन्य, कहा गया है। आप इसे किसी भी नाम से वुला सकते हैं, नाम ही सभी कुछ नहीं है। एक बार जब आप इस शक्ति से जाते हैं तो आ्शीवादित हो जाते हैं। हजारों बार जुड़ आश्शीवादित होने के पश्चात आप एक सामान्य मानव बन का से धर्म बना कर इस प्रकार चलने लगेंगे मानो वे एक दूसरे । यह विरोध दूर करने के लिए आपको उन्हें ज्ञान देना होगा, शुद्ध ज्ञान, पुस्तकों का ज्ञान शुद्ध ज्ञान ही विवेक है। इसी विवेक से मैंने मुझमें यह विवेक था किसी ने मुझे यह ज्ञान दिया नहीं-यह विद्यमान था । इसी विवेक ने मुझे सिखाया कि मानव की जो भी दशा हो, जो भी उसकी शैली हो, जितने भी उसमें अहम् और बन्धन हों. यदि पाते हैं। सामान्य मानव को उसके प्रयत्नों के अनुकूल ही फल प्राप्त होते हैं। परन्तु सहजयोगी को बहुत अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ता. स्वत: ही वह उस स्थिति में चला जाता है। वह शक्ति, वह दिव्य शक्ति आपका वहा तक ले आती है नहीं, शुद्ध ज्ञान । आर यह बात आपने अपने जोवन में देखी है। किस प्रकार के विरोधी हों| परन्तु ऐसा हुआ कार्य किया है। शैशव काल से ही आप मरे पास आये थे? किस प्रकार आप सहजयोग में आये? इसी दिव्य शक्ति ने यह सब कार्य किया । आप यह महसूस करें या नहीं परन्तु यह (शक्ति) सहज है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आप अपने जीवन के विषय में सांचन मात्र से कि मैं वह प्रेम को महसूस कर सकता है तो उसकी आत्मा जागृत हो जाती है। यह परिवर्तन घटित हो चुका हैं। किस प्रकार सहजयाग में आया, किस प्रकार मुझे यह प्राप्त हुआ. आपका लगेगा कि यह शक्ति आपके हृदय पर शान्ति, प्रेम एवम् स्नेह की वर्षा कर रही है। जैसा इन्होंने अभी कहा कि मेरे पास बहुत-सी शक्तियां हैं, हो सकता है, में नहीं विश्वभर में जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया है उनका कवल एक प्रतिशत यहां उपस्थित है, परन्तु जा लोग आज यहां नहीं हैं मैं उन्हें जानती हूँ. और वे लोग मुझे जानती, परन्तु एक बात निशचित है कि सहज यांगी मेरी सभी शक्तियां का प्राप्त कर सकते हैं। याद हैं। वे साधक हैं और पागलों की तरह से उन्होंने सत्य को खोजा, इस साधना में उन्होंने बहुत से कष्ट सहे । उन्हें कई कुगुरु मिले और बहुत -सा धन उन्हें बर्बाद करना पड़ा। सभी कुछ उन्होनें किया परन्तु सहजयोग में आ कर ही वो माँ सहजयोगियों को सभी कुछ देना चाहती हैं। अपने हुए दंखना बेटे-बेटीयों को अपनी ही तरह से विकसित होते पे माँ के लिए महानतम आनन्द है। मर जीवन का एक महान् सत्य को प्राप्त कर सक! सत्य बहुत सरल है कि आप आत्मा है। आप यह शरीर या बुद्धि नहीं हैं, आप आत्मा यही सत्य है। यही सत्य है और उन्हांने सत्य को पा लिया है। यह सत्य कि स्वप्न है और आज में उसकी स्षष्ट तस्वार दख रही हूँ। मैं और उन्होंने आत्मा का प्राप्त कर लिया है। एक सर्वसाधारण गृहणीं थी जिसके पास बहुत अधिक धन भी न था । आप जानते हैं कि धन में मरी कोई रुचि नहीं है। बैंक मंरी समझ में नहीं आते, मरा चेक कोई और हस्ताक्षर करता है और मरे पति को मेरे लिए रुपये गिनने पड़ते हैं। इस मामलं में में इतनी दुबल हूं । फिर भी मुझे कभी भी समस्या नहीं हुई -क्यांकि मानव के अन्तरनिहित लालच ही सभी समस्याओं का जन्म दंता है। एक बार यदि व्यक्ति सवूरी सीख ल ता स्वतः ही लालच छूट जाता है और व्यक्ति पूर्णतः सुखी हो जाता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि साधु बावा या सन्यासी बन जायें या सभी कुछ आप आत्मा हैं, जब आपके अन्दर स्थापित हो जाता है तो कुछ भी न ता आपका हानि पहुंचा सकता है और न ही आपका नाश कर सकता है। आपको काई इच्छाएं भी नहीं रह ान जाती। जब आप आत्मा बन गये तो फिर आपको क्या इच्छा हां सकती है? आप में इतना सन्तोष आ जाता है! ऐसा व्यक्ति न तो किसी की भर्तस्ना करता है न किसी के पीछे दौड़ता है। वह सन्तुष्ट होता है, पूर्णतः सन्तुष्ट । मेरी तीव्र इच्छा थी कि मैं अत्यन्त सामान्य जीवन गुजारू, हिमालयवासी सत्य साधकों की तरह से न बनू क्यांकि आम लोगों के लिए सामन्य जीवन ही आवश्यक है। आज यह सामूहिक जागृति है। यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है। मान लो कोई आविष्कार होता है और यह किसी एक व्यक्ति के लिए है की है कि आप अपना चित आत्मा पर रखें। अपने अन्तःस्थित तो यह अर्थहीन है। यह जन- जन तक पहुँचना चाहिए । में आत्मा पर जितना अधिक से अधिक आप अपने चित्त को जानती थी कि मुझे यह कार्य करना है। लोग कहते हैं कि नहीं सोंचती मैंने आप लोग त्याग दें । ल्याग के वे दिन चले गये हैं, वा सारे कष्ट आप सह चुकं हैं। आप हिमालय में रह चुकं हैं. सिर के भार खड़े रह चुके हैं और सभी प्रकार की तपस्याएं कर चुके हैं। अब इसको काई आवश्यकता नहीं है। अब आवश्यकता इस बात मुझे इसके लिए कार्य करना पड़ा. परन्तु मैं कुछ किया । में तो इसकी एक साक्षी मात्र थी । एक साक्षो के रूप में हर चीज का आनन्द लेते हुए मेंने इसे देखा. बिल्कुल उसी तरह से जिस प्रकार समुद्र के तट पुर बैठकर रखंगे, जितना बाह्य चीजों से चित्त को हटायंगे उतना ही आप इसके लिए आपका वाहर संे कुछ नहीं लाभान्वित होंगे । लाना पड़ता और न ही कुछ साखना पड़ता है। यह आप सभी के अन्दर है, आपके हृदय में है। आपको इसे केवल महसूस चंतन्य लहरी 12 = खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 नंक तो करना ही चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वजा ं नें माताजी हमें कुछ आप लहरों को आते जाते देखते हैं। परन्तु व्यक्ति के अन्दर यहां के बहुत से लागों की हत्या की थी । मेरा हृदय उन्हें आप देखे कि उनमें क्या परिवर्तन आ गया है। तत्पश्चात् वे इज़राइल गए और वहां से बहुत से सहजयागी मिस्र आए । मैंने इजराइल के सहजयांगियों से पूछा कि आप यहां क्यों आए? तो वें कहने लगे कि श्रीमाताजी का मानव विकसित हाना चाहता है., आत्मा बनना चाहता है। भ्रन्यवाद देने लगा । तब वह सोचने लगता है कि दूसरों का क्या हित कर सकता है। अभी तक मैं बहुत उत्सुक थी कि लोग सहजयोगी बनें। मैंने धर्मप्रचारकों या सामाजिक कार्यकर्ताओं का कार्य नहीं सहज यांग शुरु करने से पूर्व में सामाजिक कार्य किया करती थी परन्तु बाद में मैंने महसूस किया कि लोगों को परिवर्तित किए बिना और आत्मा बने बिना आप भी अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह से हो जाएगे । में एक अन्ध विद्यालय में कार्य करती थी. अन्ध विद्यालय की मैं अध्यक्षा अपनाया । मिस्र के सहजयोगियों को मित्र बनाना हमारा कार्य है। आप ध्यान से देखें कि किस प्रकार प्रेम जीवन के सभी भेद-भावों तथा कांटा को निगल लता है तथा इन्हें पूर्णत: समाप्त कर देता है। अपने प्रेम को दूसरों पर कार्यान्वित हात हुए देखना बहुत आन्नददायी है। छोटी-छंटी और बड़ी-बड़ी चीजें, प्रंम से सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है। उदाहरणतः, कारखानों में हड़तालों की समस्या है, एक सर्वसामान्य संघर्ष है कि ऐसा होना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए.। परन्तु यदि आप लोगों की आध्यात्मिक आवश्यकता के अनुसार उन्हें आध्यात्मिक त थी । अपने साथ के लोगों को देखकर मैं हैरान थी कि वे किस प्रकार के अटपटे लोग हैं गवर्नर आने वाले थे और वे ये सब कहने लगे कि गवर्नर के पास कौन बैठेगा? मैनं पूछा क्या है? वे कहने लगे कि अध्यक्षा होने के नात आपको गवर्नर के समोप बैठना चाहिए। मैने कहा कि यह आवश्यक नहीं है, मैं कहीं भी बैठ सकती हूँ। परन्तु इस बात को लेकर मैने कहा ठीक है हम एक पलंग गवनर के बुलान्दिया तक उठा सके ता, आप हैरान होंगे. किसी औी प्रकार की कोई समस्या न रह जाएगी । इसको आज अत्यन्त आवश्यकता है। यह एक प्रकार का साम्यवाद है, एक प्रकार वे झगड़ने लगे । सिर पर रख देंगे और चिड़ियों की तरह से उस पर बैठ ने कार्य किया और वे सब शान्त हो गए। का समाजवाद है, एक प्रकार का प्रजातंत्र है। सारी चीजों के ताल-मेल से हो कार्य हाता है। कुछ सहजयागी इसका आयोजन करना चाहते थे । उन्होंने प्रछा कि श्रीमाताजी हमें क्या करना चाहिए? मैंन कहा, में कुछ नहीं कहूंगी, आपकी आता कि किस प्रकार मानव बेवकूफी भरी चीजों के प्रति जा इच्छा हा आप करें, जा आपको पसंद हो बा छांट लें और जो करना चाहे करें और में घर में पुष्प सजाने में व्यस्त हा गई. क्यांकि बहुत से फूल आए थ और मुझे इनकी चिन्ता धी। फूलों को ठीक-ठाक करते हुए मुझे पता चला कि उन सहजयोगियों ने सारा कार्य सुन्दरतापूर्वक कर दिया है। न काई न कोई बहस कुछ भी नहीं । किस जाएगे इस मजाक पदवी का अहम् मात्र मुर्खता है। चीटियां भी जानती हैं कि सामूहिकता में कार्य किस प्रकार करना है। मरी समझ में नहीं मरा जा रहा है। केवल एक ही कारण हो सकता है कि बह अभी आत्मा नहीं बना । यही कारण है कि वह अपना सम्मान नहीं करता और सभी अपमान जनक कार्य किए चला जाता है। मुझे लगा कि इस प्रकार का कार्य करने वालं लाग स्वयं को अति महान मान वैठते हैं। कोई अच्छा कार्य जब आप करने लगते हैं तो क्यों आप स्वयं को महान समझ लें? मेरी लड़ाई हुई, न झगड़ा. प्रकार उन्होंने यह सब कर दिया? वैसे आप दूस लोगों को साथ बिठा दें तो वे एकमत नहीं हो पातं । एक वोलेगा दूसरा मरा समझ में नहीं आता । इस मामले में मेरा मस्तिष्क बेंकार है क्योंकि मुझे लगा कि मेरे साथ कार्य करने वाले ये लोग श्रेय लने के लिए उत्सुक रहते थे। कांई अध्यक्ष बनना चाहता था तो कोई उपाध्यक्ष । मैंन कहा आप सभी बालेंगा, बहस चलती रहंगी परन्तु परिणाम कुछ भी न हांगा या फिर कंवल एक ही व्यक्ति उस कार्य का करें अन्यथा । के सारे वातावरण कार्य हा ही न पाएगा ता सहजयाग मानव कुछ बन जाइये । को. उसके दृष्टिकोण का, उसके प्रयत्नां को परिवर्तित कर देता है और सभी कुछ आनन्ददायी हा जाता है। यही प्रजातंत्र है। आप समाजवादी भी हैं क्यांकि आप पिछड़े हुए, धनहीन दरिद्र लांगों के विषय एसा कार्य करना चाहते हैं जिससे उन्हें कुछ पेसा मिल सकें। अपने पिताजी के साथ एक मुकद्दमे के सिलसिले में मैं चांदा जिले जाया करती थी । वहां मेंने कवल एक वस्त्र पहन लांगों को देखा 1 मेरे लिए यह आघात था। सर्दों हा या चित्त का पदोन्नति पर बने रहना वास्तविक पदोन्नति नहीं है। हर आदमी उन पर हंसा करता था। यह अवनति है। आपका उन्नति तो केवल आपकी आत्मा के माध्यम सं ही हो सकती में भी सांचते हैं और उनके लिए कुछ हैं। शारीरिक अस्तित्व बहुत बड़ी चीज है परन्तु आत्मा है और प्रकाश की तरह से आपमें अत्यन्त सूक्ष्म और निवास करती है। यह आपके अन्तर्निहित प्रकाश है। मुन्दर बहुत से सहजयागी अन्य लागों का साक्षात्कार द सकते हैं। कुछ लोग पूरं विश्व में जा रहे हैं। मैं हैरान थी कि पहली बार जब में रूस गई तो मरी सहायता करने के लिएउनके लिए तुम क्यों रोती हो? मैं कहती वहां जमंनी और आँसट्रिया से बहुत से सहजयोगी आए । मैंनं हुए गर्मी, कंवल एक वस्त्र! मैं रोया करती थी, मंेरे पिताजी कहते. - और मैं क्या कर सकती हूँ? उनकी बेहतरी कं लिए मुझे कुछ करने का प्रयत्न पूछा आप यहां क्या कर रहे हैं! ता उत्तर मिला कि श्री ता करना ही चाहिए । 13 चंतन्य लहरों खड : x अक : 4, 5 ओर 6 199% अब जब इतने सहजयांगी हो गए तो मैंने उनसे बताया अच्छे किस्म के लोग हैं जिनके पास बहुत ही अच्छा हृदय है। कि किसी पकार में इन लोगों की सहायता करना चाहती हूँ। उनके पास अत्यन्त विशाल हृदय है और जिस प्रकार वे वे मिट्टी के बर्तन बनाते हैं । तो उन्होंने कहा. श्रीमाताजी. सहजयोग को पूरी इटली में फैला रहे हैं वह प्रशंसनीय है। मैं ठीक है आप उनसे बर्तन मंगवाएं हम इन्हें बेचेंगे । आप हैरान हैरान हूँ कि किस प्रकार वे उन लोगों तक पहुंच जाते हैं जिन्हं आत्मा के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं और किस प्रकार व उन लोगों को एकत्र करते हैं! हमें नशा बन्दी के लिए नहीं कहना पड़ता. हम नशील पदार्थ संवन के लिए मना नहीं होंगे कि अब इन लोगों के पास रहने के लिए घर हैं और अब ये अच्छी तरह से अच्छा जीवन बिता रहे हैं । तो एक प्रकार से, यह समाजवाद है, कि आप समस्या को देखते हैं और सामूहिक रूप से इसका समाधान करना जानते हैं। करते । सहजयोग में कोई मनाही नहीं है। स्वतः सब बुराइयां सामूहिक रूप से, अकले नहीं । सभी सहजयोगी इस वात की छूट जाती हैं. मुझे नहीं कहना पड़ता कि एंसा मत करो । स्वत: ही सारी बुराइयां छूट जाती हैं। इस बात पर आपको सलाह देते हैं कि श्रीमाताजी इसी प्रकार इस समस्या का समाधान हा सकता है। अभी तक मेंने स्वयं कोई संस्था आदि हैरानी होगी । एक बार एक कार्यक्रम में दीपक जलाने थे बनाने का कार्य नहीं किया है । अब जबकि हृदय में ध्यान करने वाले इतने सारे सहजयांगी हैं, मेरा चित उन लोगों पर ज परन्तु किसी के पास माचिस तक न थी । क्या आप सोच सकते हैं-किसी के पास माचिस न थी । हजारों लोग बहां थं परन्तु किसी के पास माचिस न थी । मैंने कभी नहीं कहा 'एसा करो ऐसा मत करो'. परन्तु सब कुछ हा गया। मैं नहीं जानती कैसे, किस प्रकार आपकी सारी बुराइया छूट गई! यह जा रहा है जिन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है। अंत: पहली बार मेंन उनसे आश्रय विहीन महिलाओं और बच्चों के लिए, जिन्हें उनके माता-पिता ने त्याग दिया है, एक गैर-सरकारी संस्था (NGO) वनाने के लिए कहा। आप हैरान होंगे कि बड़ी सहज बात है। एक वारे जब आप आत्मा के प्रकाश में आ जाते हैं तो आप कोई बुरा कार्य करते ही नहीं । सभी गुरुओं और पैगम्वरों ने शराब पीने को मना किया है। उदाहरणार्थ, सिखों और मुसलमानों को शराब न पीने की आज्ञा है। परन्तु उनमें से अधिकतर शराब पौते हैं क्योंकि व सच्चे मुसलमान और सच्चे सिख नहीं हैं। यदि वे सच्चे होते ता शराब न पोते । तो यह किस प्रकार संभव है? व्यक्ति को तुरन्त हम्ं इसके लिए भूमि और कार्यकर्ता मिल गए । मेरा कहने का अभिप्राय है कि मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। बहुत से लोगों ने मुझे लिखा है कि श्रीमाताजी यदि आपको भूमि चाहिए तो यहां आ जाइये । आप कल्पना कर सकते हैं कि गरीबों की सहायता के लिए मैंन कंवल सोचा भर था । आपके पवित्र एवम् स्नंहमय चित्त से और भी बहुत से कार्य किए जा सकते हैं, क्योंकि प्रेम कार्य को करने के लिए विवेक प्रदात करता है। आपमें यदि प्रेम है तो यह आपको विनाशकारी कार्य नहीं करता । इसके लिए किसी को बताने आत्मा बनना पड़ता है। आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति कोई भी समस्या समाधान के प्रति अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है । मर लिए की आवश्यकता नहीं होती । अब आप सब लोगों को भी मैंने यह आश्चर्यचकित कर देने बाली बात है। यद्यपि मैं सदैव प्रेम के माध्यम से ही कार्य किया करती थी परन्तु सहजयोग लंदन जैसे स्थान पर भी लोगों ने रातों-रात नशे त्याग दिए । के पश्चात् भी मैंन पाया कि प्रेम ही समाधान हैं। लोगों के कई देश तो इस कार्य के लिए सेना का उपयोग करतें हैं । हृदय में प्रबंश करने का हमारे सम्मुख कंवल यही एक मार्ग परन्तु सहजयोग में आने के पश्चात् लोगों ने स्वतः ही हैं। कभी किसी चीज के लिए नहीं रोंका, परन्तु मैं हैरान थी कि पत परन्तु इस प्रम के पीछे धन, उपलब्धियां पुरस्कार आदि बेंश्यावृत्ति और नशे त्याग दिए । नैराश्य तथा अकलेपन के हमारा लक्ष्य नहीं हांन चाहिए । प्रेम तो कंवल प्रम के लिएदुख से अपनाए हुए सभी नशे उन्होंने त्याग दिए । सहज यांग ही होना चाहिए । आज यही भावना आपको लाभान्वित कर रही है। आप सबको लाभान्वित कर रही है। जिस प्रकार आप सबका प्रेम करते हैं, जिस प्रकार आपने इतना कार्य किया है आप नहीं जानते कि मैं कितनी कृतज्ञ हूँ! अकल में यह सब कार्य नहीं कर पाती । इतने देशों में मैं नहीं जा पाती । बैनिन भाई चारा है। इसमें अत्यन्त सूझबूझ है। ये लोग अत्यन्त गहन में आप कभी अकेले हो ही नहीं सकते । विश्व भर में आपके बहन भाई हैं। उन्हें यदि पता लगता है कि काई आ रहा है तो उसे लेने के लिए वे सब हवाई अड्डे पर चलें जात हैं। यह सामान्य जीवन का भाई-चारा नहीं है। बहुत गहने जैसे दूरदराज स्थान पर में न पहुंच पाती । यहां मुसलमान हैं। वे साधक थे और साधना करते हुए वे खलवली में फंस लोग रहते हैं और इन सबने सहजयांग अपनाया है और प्रेम गए । उस स्थिति ने उन्हें गहन बना दिया । यह पुस्तक कं सौन्दर्य का समझ रहें हैं। यह सारा कार्य फ्रांस कंे लोगों ' ने किया है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि फ्रांस के महिला ने लिखी है आप इसे पढ़े । वह महिला बहुत गहन लाग इतनी दूर जाकर एंसा कार्य करेंगे ! अंग्रेज भी भिन्न देशों में गए, आस्ट्रिया, जमंनी तथा इटली के लांग भी बहुत ही अभिव्यक्ति इस पुस्तक में की है। वह मुसलमान नहीं है, उसने कुरान का प्रकाश' (Light of Koran) गिलमेट नामक एक है। अत्यन्त सुन्दर एवम् आनन्ददायी ढंग से उसने अपनी 14 बरतन्य लहगी । खड : X अक : + 5 और 6 1998 आर वहुत कर्मकोण्डी लोग हैं। थाली में वे बताएंगे कि नमक एक तथाकथित मुसलमान से विवाह किया है क्योकि वह सहजयोगो है और अत्यन्त सुन्दर ढंग से अपनी साधना का वर्णन किया है। सहजयोग में बहुत से महान् लेखक हैं जिन्होंने अच्छी-अच्छी पुस्तकं लिखी हैं। गिलमेट बहुत लजीली है वह प्राय: बात नहीं करती। मौन रहती है। परन्तु अपनी सत्य सांध में कहा रखना है, सब्जी कहा रखनी है, ताकि एक अन्धा व्यक्ति भी अच्छी तरह से खाना खा सके। आपको केवल एक हाथ से खाना खाना है दूसरा हाथ नहीं लगाना है। वे अत्यन्त कमंकाण्डी हैं। इन्हीं चीजों के कारण वे सहजयोग में बढ़ नहीं पाते । जो भी हो हमें यह समझना है कि यह चीजें अभी तक ना के कारण अन्तस में वह बहुत गहन है। हमें जकड़े हुए हैं। में कहती हूँ कि उत्तर भारत में यदि कोई किसी के विरूद्ध कहे तो आप अपने कान बन्द कर लीजिए। इस विश्व में बहुत से लोग सत्य की खोज कर रहे हैं। वे आधुनिक विश्व की मूर्खताओं का सहन नहीं कर सकते और अत्यन्त संवेदनशील हैं। इसी प्रकार आप सबका गांधी जी का यह नियम ठीक था । ब्यर्थ की बात को कभी मत सुनो । समाचार पत्रों के कारण भी चुनावों से पूर्व अवाछित गप्पें सुनने को मिलती हैं। यह सब व्यर्थ की बातें हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। अत: मैं सभी उत्तर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ । इसमें मेरा कुछ नहीं है। ये कहना उचित न होगा कि मैंने यह कार्य किया है आप यदि दीपक न होते ता मैं आपको प्रकाशित न कर पाती । में आपके प्रति कृतज्ञ हूँ और जो भावनाएं आपके हृदय में भारतीय लोगों से अनुरोध करती हूँ कि कभी भी किसी की सहजयोग के लिए हैं उससे में बहुत प्रसन्न हूं । आपको सामूहिक रूप से पूर विश्व में सहजयोग कार्यान्वित करना है। आपने एक दूसरे की सहायता करनी है और लोगों को बढ़ावा देना है। विश्व भर में एक ऐसे मस्तिष्क का विकास करना है जो आत्मा की आर हो ! यह कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तभी हम सभी समस्याओं का समाधान कर सकेंगे । मैं यदि है। परन्तु कोई बात नहीं। किसी भी प्रकार की गन्दगी अपने कहूँ कि मैं गरीबों के लिए कोई योजना बना रहीं हूँ तो तुरन्त मस्तिष्क में न भरें। ऐसे बहुत से लोग हैं जो इधर उधर बातें वे सब मुझे धन भेज दंगे, तुरन्त खोज निकालगे कि कौन इस कार्य को कर सकता है तथा कौन श्रीमाताजी की सहायता कर पहुँच सकती क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा को कोई सकता है। उन्हें हम क्या कार्य दे सकते हैं? किस तरह से हानि नहीं पहुँचाई जा सकती । आत्मा का नाश नहीं किया जा हम इसे कार्यान्वित कर सकते हैं? यह तेजी से फैलता है। मुझे केवल कहना भर पड़ता है। धन के लिए मुझे कभी नहीं है। तो आत्मा पर चित्त की कमी है। आप कह सकते हैं आलोचना न सुनें किसी की आलाचना सुनने का क्या लाभ है? इससे आपको क्या मिलता है? यही बात किसी अन्य को सुनाने का क्या लाभ है? सदव एक प्रश्न करें कि इसका क्या लाभ है? । इसका क्या लाभ है? मस्तिष्क से सोचे। किसी में दोष क्यों देखें? इस तरह से आप धोखा खा सकते करके समस्याएं पैदा करते हैं। इससे आपको कोई हानि नहीं सकता । शस्त्र से इसे काटा नहीं जा सकता । आत्मा अमर आत्म-विमुख स्थिति । हमारी दृष्टि व हमारा चित्त आत्मा पर न होने के कारण सभी समस्याएं हैं। मैने कभी नहीं कहा कि मुझे धन चाहिए। कहना पड़ता । परन्तु अविलम्व वे सारी योजना बना लेते हैं और सभी कुछ लाकर कार्य को कार्यान्वित करते हैं। भारत में भी ऐसा हो सकता है। कहीं भी एसा हो सकता है। दिलचस्पी कंवल भारत में ही नहीं है, समस्याओं के समाधान में ही उनकी जुड़ी होती है। सभी कुछ कार्यान्वित करने वाली सर्वव्यापी दिलचस्पी है। यह कोई दिखावा करना या धर्म सम्प्रदाय एक बार जब आपका तदात्मय आत्मा से हो जाएगा तो सभी कार्य हो जाएगा क्योंकि आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा से शक्ति से इसका सम्बन्ध होता है। मैं इस सर्वव्यापी शक्ति को जानती हूँ। इसी में मेरे बहुत से चमत्कारिक फोटो दिखाए हैं। यद्यपि मेंने इसे यह सब करने के लिए नहीं कहा फिर भी बनाना नहीं है। यह अन्तर्जात गुण है जोकि अत्यन्त सूक्ष्म हेै. प्रभावशाली है। सहजयोग के लिए कार्य करने में उन्हें आनन्द मिलता है| कभी-कभी तो मैं हैरान होती हूँ कि पूरे विश्व के लिए इतने प्रेम की भावना उनमें किस प्रकार है! किस प्रकार वे पूरे यह कार्य करती है। आपके व्यपार में, राजनीति में, परिवार में. विश्व की चिन्ता करते हैं और किस प्रकार विश्व भर के सभी जगह इस प्रकाश को आप देख सकेंगे और अन्य लोगों लिए कार्य करने के लिए तैयार हैं! नि:सन्देह सभी देशों की की भावनाओं का सम्मान करेंगे अन्य लोगों को आप प्रेम अपनी-अपनी समस्याएं हैं, जैसे उत्तर भारतीय लोगों की करेंगे और उनका सम्मान करेंगे दूसरे के अन्दर चमकती दिलचस्पी सदैव राजनीति में ही होती है क्योंकि दिल्ली हुई आत्मा का आप सम्मान करेंगे । आपकी आत्मा क्योंकि समीप है। परन्तु अब यह दिलचस्पी कम हो गई है बहुत प्रकाशित है इसलिए आपने अन्य लोगों का सम्मान करना कम। अब वे किसी के विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहते । यह अच्छी वात है। दक्षिण में, नर्मदा नदी से परे, महाराष्ट्र आदि यह ऐसा कर रही है। बास्तव में यह अत्यन्त चुस्त है और किसी भी सूक्ष्म एवं गहन व्यक्ति को जब यह दैखती है तो सीख लिया है। यह बात में स्पष्ट देख सकती हूँ। मंेर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं जन्मदिवस पर आप सबको यहां देख कर 15 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : + 5 ओर 6 1998 मैं नहीं जानती कि जन्मदिवस का क्या महत्व है। जो भी हो सम्पति है आपके अन्तः स्थित है। मैं कहूँगी कि आत्मा बनना ही आपकी पूर्ण गरिमा है। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि किस एक बात अवश्य है कि इस प्रकार यहां उपस्थित आप सभी सजहयोगियों से मैं मिल सकती हूँ। मैं बहुत प्रसन्न हूँ। यहां उपस्थित हमारे समाज के इन श्रेष्ठ लोगों की मैं धन्यवादी हूँ। ये बहुत महान लोग हैं। जनता द्वारा चुने हुए हैं कई बार इनको उच्च पद दिए गए और इनमें से कुछ सुप्रसिद्ध उद्यमी हैं। इन सबको आध्यात्मिक जीवन का मूल्य समझना है। इनके लिए यह महत्वपूर्ण है। इन्हें आत्मा से जुड़ना है। यह आपकी अपनी प्रकार में आप सबको धन्यवाद दें और किस प्रकार इतने अच्छे वक्ताओं को धन्यवाद दूं! में तो आध्यात्मिक जीवन में आपकी महान उन्नति की कामना करती हूँ। आध्यात्मिकता में आपकी आत्मोन्नति, ताकि विश्व के हर कोने पर यह छा जाए और भविष्य के सुन्दर विश्व की सृष्टि करें। परमात्मा आपको धन्य करें। 75वां जन्मदिवस तक मार्ग के दोनों ओर सुन्दर मोमवत्तियां एवं दीपक जलाए गए । अपनी परमेश्वरी मां का स्वागत करने के लिए हवामहल द्वार पर नन्हें-नन्हें बच्चे सुन्दर परिधानों में देवदृतां सम नृत्य कर रहे थे । निजामुद्दीन चौक पर विश्व के भिन्न देशों से आए सहजयोगी अपने राष्ट्रीय ध्वज लिए हुए मां अन्तत: 'चिर प्रतीक्षित दिवस, जगत जैननी का 75वां जन्मदिवस आ पहुंचा । 21 मार्च 1998 के ब्रह्म मुहूर्त में ज्योंही अभिनन्दन कार्यक्रम समाप्त हुआ, युवा शक्ति के लड़के-लड़कियां मंच को माँ आदिशक्ति-सर्व कलाओं एवं सौन्दर्य की सृष्टा- के बैठने योग्य बनाने में जुट गए । हे देवी आपके श्री चरणों आदि शक्ति के स्वागत के लिए तत्पर थे तथा बैंड सहज की के एक कण से पुष्पोद्यानों की सृष्टि होती है। अविद्या धूल में पड़े लोगों के लिए यह विवेक का स्रोत है। दरिद्रियों के लिए चिन्तामणि की माला है। इन्द्रधनुषी गुब्बारों, सुन्दर फूलों एवं चमचमाती रांशनियों से सभागार का कोना-कोना धुने बजा रहा था। यह दिव्य जुलूस गरिमामयी श्रीमाताजी को सभागार तक लाया। ज्योंही श्रीमाताजी ने स्काउट मैदान मे प्रवेश किया भारतीय पारम्परिक शैली में शहनाईं एव बिगुल बजाए गए । अपने बच्चों का प्रेम देखकर स्नंहमयी मां गद्गद् हो गयीं| सुन्दरतापूर्वक सजाया गया । निजामुद्दीन मैदान. के मुख्य द्वार से लेकर पंडाल के प्रवेश द्वार 16 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 और 6 1998 जन्मदिवस पूजा 1998 दिल्ली 21-3-1998 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ।हैं और देखते है कि इस प्रकार के प्रचण्ड आचरण में क्या जिस प्रकार आपने मेरा स्वागत किया उसे देख कर में गद् गद् हो गई हूँ। मैं कहूँगी कि आपका प्रेम ही सहजयोग गलती है और इस प्रकार के उग्र जीवन से घृणा करने लगते का आनन्द लेने की सभी प्रकार की अभिव्यक्तियां खोज हैं। इससे मुंक्ति पा कर आप सत्य साधना की और चल पड़ते हैं । यह स्थिति भी समाप्त हो जाती है और आप गुणातीत हो जाते हैं । ऐसा तब घटित होता है जब आपका चित्त आत्मा पर जाता है, क्योंकि अब आपका चित्त आपके जन्मजात बन्धनों, गुणों तथा अहम् पर नहीं होता । तो आप इन सब से ऊपर उठ जाते हैं। सामान्य जीवन के लिए यह अत्यन्त असाधारण बात है परन्तु आपके लिए नहीं । यह स्वतः ही घटित हो जाता है और आप अपने अस्तित्व का आनन्द लेते हैं। अब आपको अपनी सुख सुविधाओं एवं छोटी-छोटी चीजों की चिन्ता नहीं रहती । अभी तक ये तीन निकालता है। वास्तव में में नहीं समझ सकती कि यह अद्वितीय विचार किस प्रकार आपके मस्तिष्क में आत हैं और आप अपने भिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । मैं कामना करती हैँ कि आप अपने ये राष्ट्रीय ध्वज अपने अपने देशों में ले जाएं और वहां सन्देश दें कि पुनउंत्थान का समय आ गया है, कि हमें उठना है; हमें मानव स्तर से अपने अस्तित्व के उच्च स्तर तक उन्तत हांना है। यदि ऐसा घटित हो गया तो आप देखेंगे कि किस प्रकार यह आपके जीवन को परिवर्तित कर देता है. किस प्रकार यह जो किसी न किसी प्रकार से आप पर शासन करते थे गुण आप इनसे ऊपर उठ जाते हैं। अत: इस प्रकार आप मानवीय चेतना की सीमायें पार कर लेते हैं। तब दूसरी स्थिति में आप कालातीत' ही जाते हैं, आप समय से ऊपर उठ जाते हैं। मैं जानती हूं कि आज मुझे आने में देर हुईं, ऐसा हो जाता है। परन्तु समय का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । मुझे देर आपको प्रसन्नता प्रदान करता है ! किस प्रकार घृणा और दूसरों को चांट पहुंचाने. दूसरों का अहित करके अपने मुर्खता पूर्ण विचार आप त्याग देते हैं। इस प्रकार के विचारों ने बहुत से लोगों को परपीड़न द्वारा प्रसन्नता दो है और अन्य लोगों की खुशी एवम् आनन्द का नाश करके उन्होंने सुख उठाया है। अपनी प्रसन्नता को बनाये रखने के लिए मैं जानती हूँ कि सहजयोगी होने के नाते. आपको बहुत कुछ सहन करना होगा, होने के बावजूद भी आप आनन्द ले रहे हैं, घर में बैठी हुई बहुत सी मूरखंता सहन करनी हांगी । आप ऐसा कर चुकं हैं मैं देख रही थी कि आप सब अत्यन्त आनन्द की स्थिति में और शनै: शनै: एक बार सहजयोग जब सुन्दरतापूर्वक पावनता के रूप में आपके देशों में स्थापित हो जायेगा तो आपके देशों हैं। आप सभी बहुत आनन्द में हैं, मेरी अनुपस्थिति में भी आप आनन्द ले रहे हैं। यह समय से ऊपर होना है। समय के पाश में आप नहीं हैं। जो भी समय है आपका अपना हैं के अन्य लाग भी उस पथ पर चलने लगेंगे जिस पर आप क्योंकि आप वर्तमान में स्थित हैं। यहां खडे हो कर आप चल चुकं हैं। कंवल आपकं जीवन ही आपके आन्तरिक सौन्दर्य और सहजयोग को प्रतिविम्बित कर सकते हैं । भविष्य के बारे में नहीं सोच रहे; आप यह नहीं सोच रहे कि कल क्या होगा या किस प्रकार आप वायुयान पकड़ेंगे-या किस प्रकार कार्य करेंगे । यहां पर आप केवल आनन्द ले रहे कल मैंने आपको वताया था कि मानवीय चंतना, में किस चीज का अभाव है और यह भी कि चित्त आत्मा पर नहीं है। जब चित्त आत्मा पर होगा तो सर्वप्रथम आप 'गुणातीत' हो जायेगे-आप गुणों से ऊपर उठ जायेंगे । इसका अभिप्राय यह है कि अब आप ' लिप्साओं से लिप्त-व्यक्ति नहीं रहे । वहां से आपका चित्त हैं, वर्तमान का आनन्द ले रहे हैं, और वर्तमान ही वास्तविकता है। यदि आप भूत या भविष्य के विषय में सोच रहे होते तो आप वास्तविकता में न होते । मैंने बहुत बार बताया है कि तमोगुणी'- इच्छाओं और भूतकाल समाप्त हो गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। इस क्षण आप यहां हैं, हो सकता है मेरी प्रतीक्षा में बैठे हों, हो सकता है यहां अपनी यात्रा के हर क्षण तथा मुझसे दूसरी शैली पर चला जाता है जहां आप 'रजोगुणी' आक्रामक हो जाते हैं। आप दूसरों से स्पर्धा करना चाहते हैं। यह संघर्ष अनुशासन है। 'अतीत' का अर्थ है परे 'सत्वगुणी' हो जाते हैं। इस स्थिति में आप सत्य साधना करते अपने योग का आनन्द ले रहे हों। इस आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता कि किस प्रकार आप यह आनन्द ले रहे हैं। । तत्पश्चात आप चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 ओर 6 1998 17 अन्यथा लोग घडी देख रहे होते और हैरान हो रहे होते कि हैं और घबरा जाते हैं। परन्तु आपके साथ यह बात नहीं है आई ! क्या समस्या है, वे क्यों नहीं क्योंकि आप तो हमेशा ध्यान में होते हैं, सदैव ध्यान धारणा पहुंची? आदि आदि । यह स्थिति कालातीत होने में बहुत की स्थिति में होते हैं। कोई गड़बड़ी भी यदि हो जाए तो तुरन्त आप चेतना (निर्विंचार समाधि) में चले जाते हैं जहां आपको सारे समाधान प्राप्त हो जाते हैं। आप परशान नहीं होते. श्रीमाताजी क्यों नहीं सहायक है। मुझे याद है कि नासिक में सहज कार्य करने के लिए कोई सहजयांगी आगे न आता था, इस लिए वहां मुझे बहुत । यदि कुछ गड़बड़ हो जाए तो परिश्रम करना पड़ा । वे लोग अत्यन्त संकाची और चिन्ताशील कर्मकाण्डी स्वभाव व्यक्ति को अत्यन्त संकृचित तथा विनम्र थे । भाग्य से या दुर्भाग्य से एक बार ऐसा हुआ कि रास्ते पर मेरी कार खराब हो गई और पहुँचने में मुझे लगभग एक घंटा है। देर हुई । उधर से कोई कार भी नही आई और हम रास्ते में ही अटक गये । जिस कार्यक्रम में हम जा रहे थे, जब हम वहां पहुँच तो देखा कि सहजयोगियों ने वागडोर सम्भाल ली थी । जिम्मेदारी सम्भान कर वे लोग जनता को आत्मसाक्षात्कार बिल्कुल परंशान नहीं होते बना देता है और कभी-कभी बहुत आक्रामक भी बना देता ५ अपने कर्मकाण्डों से लांग अन्य लागों को बहुत कष्ट देतें हैं, जैसे मित्र कहलाने वाली एक महिला हमारे घर पर आई। कहने लगी मैं शाकाहारी हूँ। मैंने पूछा तो? "मैं उन बर्तनां में बना हुआ खाना नहीं खा सकती जिनमें मासाहारोी खाना बनाया गया हो।" तो हमें उसके लिए नए यर्तन खरीदने हांगे । मैं जाकर उसके लिए नए बर्तन लाई । कहने लगी ध्यान रखना, एक पुराना चम्मच भी उपयोग नहीं होना चाहिए। देने में व्यस्त थे । यदि मैं समय पर पहुँच गई होती तो वे ऐसा न करते । उन्हें विश्वास हो न होता कि उनके पास आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति है। मेरे कहने पर भी वे अपने हाथ न चलाते थे। परन्तु अचानक मेरे अनुपस्थित होने के तो मुझे जाकर नए चम्मच खरीदने पड़े । फिर उसने नए कारण उन्होंने अपनी जिम्मेदारी संभाली । अत: जब आप समय से ऊपर होते हैं तो उस क्षण के लिए आप जिम्मेदार में वो खुद खडी हो जाती और रसोईये को हमारे लिए कुछ हो जाते हैं और यह जिम्मदारी सामुहिक है अर्थात् आप सब जिम्मेदार बन जाते हैं । बहुत हैरानी की बात है कि हम इतने सारे लोग यहां होने के स्थान पर बह क्लेश बन गई । कर्मकाण्डी लोगों के हैं परन्तु न कोई लड़ाई है न कोई झगड़ा । एक दूसरे पर हावी होने के मूर्खतापूर्ण विचारों से ऊपर उठकर हम बहुत धर्म के नाम पर वे कुछ न कुछ मांग करते ही रहते हैं। अच्छी तरह से स्थापित हो गए हैं। समय में लिप्त न होने के कारण ऐसा घटित होता है। समय आपको झुका नहीं सकता। ग्लास मंगवाए । तो मुझे यह सारा कष्ट भुगतना पड़ा । रसाई न बनाने देती । कहती पहले में अपना खाना बनाऊगी फिर तुम आना । उसने इतनी परंशानी खड़ी कर दी कि अतिथि साथ ऐसा ही होता है क्योंकि उनकी मांग बहुत बढ़ जाती है। बम्बई में मुझे किसी ने एक और कहानी सुनाई थी । उसने कहा कि उच्च पदासीन व्यक्ति महिला अतिथि बनकर मरे घर आई थी वह तो मेरी अरदादी से सम्बन्धित जा सम्भवत: आप महसूस करते हों कि यदि आप लोगों के स्थान पर कोई अन्य होता तो दर से आने के कारण वे मेरी कार पर पत्थर फेंकते, सोचते कि हम तो गर्मी में सड रहे हैं और अपना क्रोध व्यक्त करते । परन्तु जो लोग समय से ऊपर उठ चुके हैं वे ऐसा नहीं कर सकते, आराम से बैठकर वे आनन्द ले रहे हैं। से भी गई गुजरी थी । कहने लगी में नहीं समझ सकती कि भारत में अभी तक भी एसे लाग रहते हैं ! वह यहां आई और कहने लगी कि मैं नल से पानी नहीं ले सकती । मेरे लिए आपको कुएं से जल लाना होगा । कुएं हैं। लोगों को उनपर जाकर जल लाना पड़ा । उनके लिए खाना बनाने वाले रसांइये को कपड़ों समत पानी में डुबकी बम्बई में केवल दा तत्पश्चात् आप धर्मातीत हो जाते हैं। आप समय से ऊपर उठ जाते हैं, अपने मानवीय स्वभाव से ऊपर उठ जाते लगाकर खाना बनाना पड़ता था । यदि रसोइया पानी में भीगा हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो भी कार्य आप करते हैं हुआ न होता तो वे उसके हाथ का बना हुआ खाना न खातीं। वह धार्मिक होता है. आपके सभी प्रयत् धार्मिक हांते हैं। बेंचारे रसोइये को निमोनिया हो गया दूसरा रसांइया आया यदि आप व्यापार करते हैं तो उसे भी धर्मानुकूल करने का प्रयत्न करते हैं, क्योंकि आप धर्म से ऊपर उठ गए हैं । किसी कहने लगी मेरी यही शैली है। लोगों ने मुझसे पूछा कि धर्म विशेष का तरीका या कर्मकाण्ड अपनाने की चिन्ता आप नहीं करते । आप इससे ऊपर हैं। उदाहरणार्थं धर्म में फंसे उससे कहना चाहिए था कि हमारे पास अमुक चीज है, आप लोग समझते हैं कि उन्हें प्रातः बहुत जल्दी उठना चाहिए वे कर्मकाण्डों के पाश में फंसे हैं, वे कर्मकाण्ड करते हैं और दूसरों को तंग करने वाले लोगों का यही इलाज है । यदि कर्मकाण्ड में कोई कमी रह जाए तो वे दुःखी हों जाते और उसे फ्लू हो गया । परन्तु इस महिला न चिन्ता न की । श्रीमाताजी ऐसे लोगों का हम क्या करें? मैंने कहा आपकां खाना चाहें तो खा लें। ब्रत करना अच्छा है। आत्म कन्द्रित, तो यह आत्मकेन्द्रिता हममें इसलिए आती है क्योंकि 18 चैतन्य] लहरी । खंड : 8 अंक : 4 5 और 6 1998 अन्त भी नहीं है। किसी के घर जाकर लोग कहेंगे, 'नहीं-नहीं, हम सांचते हैं कि यह हमारा धर्म है. यह हमारा अधिकार है यह कालीन मुझे पसन्द नहीं। यह आपका कालीन नहीं है। आपने इसे नहीं खरीदा। उस व्यक्ति न उसे खरीदा है। इससे और सभी कुछ हमारा है। यह कार्य न करने की हिम्मत इन लागों की कॅसे हुई? हम लोगों को कितना कष्ट देते हैं कितना दु:खी करते हैं! कितना हम उन्हें दयनीय बनाने का प्रयत्न करते हैं । यह बात हम नहीं जानते और वस्तुओं की मांग किए चलें जाते हैं। यह मेरा धर्म है, मैं क्या करू? मुझे आपका क्यो सरोकार है। मुझे पसन्द नहीं है। आप कौन हैं? जिसने इसके लिए पैसे खर्चे हैं उसे यह पसन्द है । समाप्त। आप क्यों टिप्पणी करते हैं। क्या आप समोक्षक हैं? मान ला किसी ने एक विशेष प्रकार के बाल बनाए एसा ही करने दे । है। सहजयांग में भी मैंन बहुत से लागों को बन्धनग्रस्त देखा हुए हैं। मुझे इस तरह के वाल पसन्द नहीं हैं। क्यों? मुझे है। एक फ्रांसिसी महिला सहजयोग में आई । आरम्भ में उसकी मां बहुत ही क्मकाण्डी थी । वह इतनी कष्टदायी थी आपकी? आप क्यों कहें कि मुझे पसन्द है या नहीं? परन्तु कि हर रविवार चर्च जाना उसके लिए आवश्यक था । परन्तु यह मस्तिष्क का बन्धन बन जाती पसन्द नहीं है। वस और यह बात पूरे में फैल जाएगी। पसन्द या नापसन्द करने वाले आप कीन होते हैं। क्या पदवी है पश्चिम में इस प्रकार की टिप्पणी करना आम बात है। मुझे पुसन्द नहीं है, मुझे भारत पसन्द नहीं है । ठीक है तुम्हें भारत पसन्द नहीं है तो घर बैठों, यहां क्यों आए हो? मुझे तु्की पसन्द नहीं है। क्यों? क्यांकि मान लो किसी ने लम्बा स्कर्ट अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनकर वह चर्च जाती और वापस आ जाती । एक दिन बह गायब हो गयी । ये पुलिस के पास गए और उसे खोजने के लिए कहा । लेकिन पुलिस नं खोजने से पहना हुआ है तो वह कह उठेंगे कि मुझे यह पसन्द नहीं है तब उसने कहा उसे चर्च में खोजो । जब चर्च में जाकर देखा क्योंकि यह तुकस्तानी है। तो अब आपके छोटे स्कर्ट पहनने चाहिए। हमें छोटे स्कर्ट पसन्द नहीं हैं फिर भी यह नहीं कहना चाहिए कि, 'मुझे पसन्द नहीं है।' इससे दूसरों को चोट खाज सकते । आय चाहें तो इसे वृद्ध-आश्रम भेज दें । इस पहुंचती है। दूसरे व्यक्ति के गर्व को यह तोड़ देता है। अब जब आप सहजयोंग में हैं तो सामान्य मानदण्डी यह है कि ये लोग अत्यन्त मुर्ख किस्म के हैं, बैठकर पागलों के अनुसार आप सामान्य मानव नहीं हैं। आप उनसे ऊपर हैं। आपकी पसन्द, नापसन्द उनसे भिन्न है और आपका पूर्ण रविवार के दिन अच्छे-अच्छे परिधान पहनकर वे चर्च जाते दृष्टिकोण परिवर्तित हा चुका है। कई बार तो मुझे लगता है कि आप बच्चे हैं। कभी तो आप नन्हें बच्चों की तरह से इन्कार कर दिया। परमात्मा जाने वह कहां गायब हो गई । तीन-चार बार एसा गया तो वह अभी तक वहां बेठी हुई थी । हुआ । तग आकर पुलिस ने कहा कि बार बार हम इसे नहीं सहजयोगिनी ने मुझे बताया कि श्रीमाता जी आश्चर्य की बात की तरह से बातें करते हैं, बुढ़ापा उनसे छलकता है परन्तु है। केवल इसी मामल में वे समझदार हैं। उनके बन्धन किस प्रकार कार्य करते हैं यह हेरानी की बात है। एक व्यक्ति हमारे पास आकर रुका. कहने लगा. 'मैं बहुत अच्छा ड्राइवर हूँ' गहन चीजों के बार में बात करते हैं। सामान्य मानव यह सब मैने कहा ठीक हैं। वह कंवल गाड़ी चलाना ही जानता था। नन्दन की सड़कों का उसे ज्ञान न था । जाना हाता तो वह दक्षिण की ओर ले जाता और पूर्व का जाना हाता तो पश्चिम का ले जाता । मैंने पूछा क्या बात है? आप नो गाडी चलाना जानते है। कहने लगा. ' का जब रुई पीजने वाली धुनकी पर लगाया जाता है तो वह जानता है परन्तु मुझे अर्थात् आप ही हैं-आप ही हैं. गाड़ी में बैठी थी और वह चला रहा था। पुलिस नें गाड़ी रोकी और उससे पूछा कि कहां जा रहे हो । उसने बताया । ता पुलिस वाले नें पूछा कि छः बार आप इसी स्थान पर क्यों आए और अब फिर तुम यहीं आ रहें हो ! मंरी समझ में कभी-कभी तो लांग दूसरों की बुराई करने तथा झूठ-मूठ की ा अत्यन्त अवबोधितापूर्वक बातें करते हैं और कभी अत्यन्त नहीं जानता क्योंकि आम आदमी, आप जानते हैं, अत्यन्त आडम्बरपूर्ण होता है। हर समय वह में-में-में करता रहता है। कबीर साहब ने कहा है कि बकरी जब जीवित होती है तो मैं-मैं मैं करती रहती है परन्तु मरने के उपरान्त उसकी आंत मुझ यदि उत्तर को हा गाड़ी चलाना में सड़कों का ज्ञान नहीं।" एक दिन में कहती है तूही-तृही-तृही' आप ही सभी कुछ हैं। ज्यों ही आप ऐसा कहते हैं तुरन्त आपका चित्त अन्य लोगों से, उनके दोष ढूंढने से, उनकी आलोचना करने से. उनका मजाक करने से दूर चला जाता है। गप्प हाकने का भी आनन्द लेते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति भी मेरी तरह से ही है और उसके वारे में अनाप-शनाप बातें करना मेरा काम नहीं आया कि वृद्धावस्था में यह चौजें आदत सी बन जाती हैं। परन्तु युवावस्था में भी लाग अपनी शली के बन्धन में फंस जात है। इस आप मानवीय दुर्बलताएं कह सकतं हैं जिनमें आप लिप्त हो जाते हैं या किसी भी चीज के प्रति आपमें है। तो सामान्य मनुष्य में यह सृूझ- बूझ यह प्रेम-विवेक नहीं चिपकन हो जाती है। इस प्रकार चीजों की मांग करना पागलपन हैं । होता । जरा सा भड़काने पर वह क्रोधित हो जाता है और सांड की तरह तोड़-फोड़ करने लगता हैं। वह जैसा चाह यह मुझ अच्छा नहीं लगता और इसका कोई चंतनऱ्य लहगे । खंड :X अंक : 4. 5 आर 6 1998 19 व्यवहार कर सकता है। व्यवहार के अनुसार वह परिवर्तित गलत ढंग के लोगों की सहायता करने में लगे रहते हैं. मानां होता चला जाता है। कारण यह है कि वह अभी तक उन्हें सहजयाग में खुद मुखत्यारी प्राप्त हो गई हो । कोई यदि सहजयोगी नहीं है। गलती करता है तो दो बटे के अन्दर हम उस खुद मुख्यार सहजयोगी हर चीज का आनन्द लेता है। मान लो कोई के टलिफान की आशा हाती है। वह कहता है कि कथा व्यक्ति बहुत नाराज एवं उग्र स्वभाव हो जाता है, वह भी देखता है कि क्या धटित हो रहा है, वह किस प्रकार बर्ताव है। ऐसा करना है, वैसा करना है। मुझे सुचित करना कि कर रहा है। किसी पर नाराज हाना धर्म नहीं है, यह धर्म नही"नहीं, आप अवश्य सहायता करं, अवश्य कुछ करें", उनकी है। दूसरों पर नाराज होना. हर समय उन पर चिल्लात रहना, हर समय उनसे कुछ लते रहना या स्वयं का अति महान् समझकर उनकी आलाचना करते रहना तुच्छता है। इसका करके श्रीमाताजी से कहे कि अमुक व्यक्ति का ध्यान रखना आदत है। अब तो यह एक आम वात हो गई है। हम जानते है कि अभी वह व्यक्ति आएगा और इस विषय पर एक बहुत बड़ा भाषण देगा । तो मानव का यह स्वभाव है कि वह जीवन की भिन्न प्रकार की जटिलताओं से गुजरता है। जन्म से ही उसमें कुछ एसे गुण हात हैं जिनके कारण वह सामान्य व्यक्ति नहीं हो पाता । यद्यपि हम समझतं हें कि वह सामान्य जोवन के अन्त तक पहुंचते - पहुंचतं काई लाभ नहीं होता । आपको लगता है कि आपका एक भी मित्र, एक भी पड़ोसी नहीं है। आप यदि अहंकारी हैं ता आप स्वयं को अनन्त समझते हैं और बालते चले जाते हैं, बके चले जाते हैं। दसरा है। उसकी प्रतिक्रियाएं और बातें अत्यन्त हास्यास्प्रद होती हैं। व्यक्ति आपकी बातों से ऊब जाता है फिर भी आप बोले चले जाते हैं- मैंने एसा किया, मैं वहां गया; मैं मैं-मैं। किसी भी हद तक आपकी बात जा सकती है परन्तु आपका अपने नही है। अनावश्यक रूप से किमी के मामलों में दखलंदाजां। टेलिफान करके मुझे किसी व्यक्ति के बार में कुछ कहने की उसका ध्यान रखने के विपय में कुछ कहने की आवश्यकता , भ जब आपका कोई अधिकार नहीं, आपने उस व्यक्ति से कुछ । सहजयाग में आने से पूर्व मैंने कथनो पर लज्जा नहीं आती लांगों को अन्य लांगों के विषय में मुखंतापूर्ण दृष्टिकांण रखते नहीं लेना देना ता यह व्यर्थ के नमूनें वनानं की क्या हुए दखा है। कोई व्यक्ति यदि किसी अन्य के विपय में कोई गलत बात कहता है ता उसका अपना मस्तिष्क विकृत हो जाता है। मस्तिष्क ही जब सामान्य न होगा तो व्यक्ति रोगी हो हो सकता है उनके दश से, परिवार से या वंश से । आप जो जाएगा और संभी प्रकार के रागों को स्वीकार करंगा। यह अत्यन्त भयानक बात्तं हैं, दूसरे लोगों के लिए नहीं, अपने लिए । इस तरह के रांगो व्यक्ति को कोई भी सहन नहीं कर सकता । मैंने लागों को कहते दंखा है कि अब मैं धार्मिक व्यक्ति हूँ। तो क्या? हर समय वह यही कहतंे रहते हैं कि आप एसा नहीं कर सकते. वह नहीं कर सकते, यहां नहीं अस्तित्व का आनन्द लेता है, जो अन्य लोगों को आनन्द बैठ सकते. यह नहीं खा सकते । एक सामान्य व्यक्ति होने क कारण क्यांकि आप स्वयं को नहीं देखते इसलिए स्वयं को अनुशासित करने के स्थान पर आप अन्य लोगों को अनुशासित करने का प्रयत्न करते हैं। आप केवल अन्य लांगों को दखते हैं। आवश्यकता है? यह सब डिजाइन लुप्त ही जायेंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि यह नमून उन्हें कहा में मिलते हैं? भी कहें, यह सब समाप्त हो जाता है। आपकी बंश परम्परा (Genes) समाप्त हो जाती है। यही सहजयोग है। यहां आप आत्मा बन जाते हैं, सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो जानता है आनन्द क्या है, जो आनन्द का आनन्द लेता है, जो प्रदान करता है और उन्हें पसन्द करता है। हर समय विचार कर कि किस प्रकार दूसरां को खुश किया जाए। ऐसा होता है यद्यपि आपका पालन-पाषण शिक्षा दीक्षा आदि उसी प्रकार हुए हैं जैस अन्य लागां की । परन्तु आपक वे सव संस्कार लुप्त हा जात हैं और आप विवेकशील, सुन्दर एवम् आनन्दमय व्यक्ति बन जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार होते ही आप स्वयं को दंखने लगते हैं कि आपमें क्या दोष है। आत्मा बनने के पश्चात् आत्मा के आपने यह उपलब्धि प्राप्त की है, संभवतः आप इसके विपय में न जानते हों। जिस प्रकार इस स्काऊट मेदान में प्रकाश में आप स्वयं को देखते हैं, केवल स्वयं को । जब आप स्वयं को ठीक करना जान जाते हैं तब आप किस प्रकार आप आनन्द ले रहे हैं काई अन्य समूह एसा आनन्द न ल सकता । मैं देख सकती हैँ कि आप लांग यहां क्या कर रहे हैं किस प्रकार एक-दूसरे की संगति का आनन्द ले रहे हैं व्यवहार करते हैं और किस प्रकार अपना आनन्द लते हैं! छोटे-छोटे कार्य जो आप करते हैं, सुन्दर सुन्दर बातें जा आप कहते हैं वह बहुत मधुर होती है। नि:सन्दंह कुछ लांगों को सुधारा नहीं जा सकता । वे अशोध्य हाते हैं। तो आपको परिपूर्ण है, यही आत्मा आपके अन्दर प्रकाशमान है। अपने देखना चाहिए कि अमुक व्यक्ति अशोध्य है, आप उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। सहजयोग में भी कुछ लांग हैं जो हूँ वह ठीक है या नहीं। निसन्दंह: कुछ लांग एंसे भी हैं जो यह अत्यन्त प्रशंसनीय है क्याकि आपका हृदय आत्मानन्द से अन्दर देखकर आप निर्णय कर सकते हैं कि जो मैं कह रही ल चैतन्य लहरी । खड : X अक : 4 5 ओर 6 1998 20 he आप नहीं जानते कि आपने यह उपलब्धि पा ली है। अब आपको चाहिए कि सावधानी से स्वय को देखें । आप हैरान स्वय को बहुत उच्च मानते हैं, वे किसी होटल या आवासगृह में ठहरे हुए हैं। उन्हें यह आनन्द प्राप्त नही हो रहा । अब भी बह सोचते हैं कि वे कुछ महान चीज हैं। अत: उन्हें कहीं होंगे कि आप कितने परिवर्तित हो गए हैं, कितने सहज, वाहर ठहरना चाहिए । कितनी हैरानी की बात है। मैने देखा विवेकशील एवम् बुद्धिमान हो गए हैं, पश्चिम में बहुत सी है, विशेषत: भारतीय लोग जब कवैला आते हैं तो होटल में ठहरना चाहते हैं। अपने जीवन में यद्यपि उनके घर में एक ही स्नानागार हा. परन्तु कबैला आकर व हाटल में रुकना चाहते की लड़की से विवाह करना चाहता है। उसकी समझ में नहीं है जहा, सभी सुविधाओं से पूर्ण जुड़ा हुआ स्नानागार हा । युवा लोग, अत्यन्त हेरानी की बात हैं। हो सकता है कि स्वीकार नहीं कर पात बह स्वीकार नहीं कर पाता कि मैं उन्होंने कभी अच्छा होटल न देखा हों या व बहुत खराब स्थितियों में रहते हो । समस्याएं इसलिए आती हैं क्योंकि वे लोंग मूर्ख हैं। मैं साचती हूँ, बे अत्यन्त मूर्ख लोग हैं, 80 वर्ष का वृद्ध पुरुष 20 वर्ष आता कि वह ऐसा क्यो कर रहा है। वह अपनी आयु को वृद्ध हूं और वृद्ध पुरुष को तरह से मुझे आचरण करना चाहिए। वह ऐसी युवती से विवाह करना चाहता है जो उसकी जो व्यक्ति सहजयोगी है वह कहीं भी रह सकता है, पोती की आयु को है। पश्चिम में यह आम बात है। वे कब्र कही भी सा सकता है। उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी में जाने वाले होंगे परन्तु कोई बात नहीं. इस प्रकार की पत्नी आत्मा है किसी और चीज की आवश्यकता नहीं । कंवल व चाहते हैं। यह समस्या पश्चिम में है। इसका कारण क्या आत्मा ही आपको प्रसन्नता प्रदान करती है वाकी सव चीजें है? क्याकि वे नहीं समझते कि व वृद्ध हैं और होना गरवं समस्याओं की सृष्टि करती हैं । भिन्न धर्मानुयायी हाने के कारण आप एक-दूसरे का बुरा मानते हैं। ईसाइयों के बारे में यदि आप जानना चाहते हैं तो यहूदियों के पास चले जाए और यहूंदियों के बारं में जानना चाहते हैं तो मुसलमानों कं पास चले जाएं और मुसलमानों के बारे में जानना चाहते हैं तो देखिए, कितने लोग जन्मदिवस के इस अवसर पर शुभकामनाएं हिन्दुओं के पास चले जाए । आप हैरान होंगे की लोग किस प्रकार दूसरां को बुरा बताते हैं और स्वयं को सर्वोत्तम मानते हैं। तो यह जो दृष्टिकांण है. यह पूर्णतः परिवर्तित हो जाता है। आप भूल जाते हैं कि कौन क्या है? किसका क्या धर्म है और किस धरातल से वो आया है। सभी एक हो जाते हैं और सहजयांगियों की संगति का आनन्द लेते हैं। यहां पर केवल विल्कुल सहजयोगी हैं वस। जहां इतने सहजयांगी होंगे वहीं मक्का है, वहीं कुम्भ मला है। इसे आप कुछ भी नाम दे सकते हैं । यह सामूहिक आनन्द आपको इसलिए, प्राप्त हुआ है क्यांकि सत्य को देखने में रुकावट डालने वाले बन्धन आप पार कर चुके हैं। वृद्ध की बात है। जब में पांच साल की थी. मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि तब इतने लांग मेरे जन्मदिवस पर मुझे बधाई दने के लिए आए हांगे । जब में 50 साल की थी तब भी इतने लोग न थे, आज जब में 75 वर्ष की हूँ, आप ड्रेन के लिए यहां आए हैं! यदि आप विवंकपूर्ण रहे हैं ता आपको अपनी आयु का गर्व होना चाहिए। परन्तु यदि आप मूर्ख हैं तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता । ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसंगे। पश्चिम में यह प्रथा है कि एक पत्नी को तलाक दंकर दूसरी पत्नी लेते चले जाएं । भारत में विपरीत है। यहां महिलाओं का अधिक सम्मान नहीं है। उनसे आशा की जाती थी कि महिलाओं का सम्मान करें, उन्हें सती के पद पर बिठाएं। परन्तु महिलाएं चाहे जितना भी बलिदान करें पुरुष उनका सम्मान नहीं करते । अब यह दोष कहा से आया । कहती हैं कि किसी कवि ने लिखा है कि महिलाओं को पीटना चाहिए। यह कौन-सा कवि है? मैं सांचती हूं कि इसकी पिटाई होनी चाहिए । महिला की कोख से उत्पन्न होकर उसने यह लिखा! तो हम गलत चीजें अपनाते चले जाते हैं। यह इसलिए होता है कि आपमें विवेक का अभाव है। बुद्धिमान व्यक्ति कंवल विवेक शीलता को ही अपनाएगा । किसी मूर्खतापूर्ण चीज को वह स्वीकार न करेगा | एक के बाद एक पुस्तकें आप पढ़ते चले जाते हैं । यह आपका जैसा मैंन कल कहा था, सत्य यह है कि आप आत्मा हैं। एक बार जब आत्मा बन जाते हैं तो आप गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत हो जाते हैं। इन सीमाओं को पार करते ही आप समुद्र में एक बूंद सम हो जाते हैं। बूंद यदि है ता सदैव यह सूर्य से डरती रहती है कि समुद्र से बाहर कहीं धूप इसे सुखा न दे । यह नहीं जानती कि क्या किया जाए और किधर जाया जाए । परन्तु एक वार इसकी एकाकारिता जब समुद्र से हो जाती है तो यह चलती है और आनन्द लेती है क्योंकि अब यह अकेली नहीं है, यह अकेली नहीं है। आनन्द के सुन्दर सागर की लहरों के साथ यह चल रही है। आपने भी यही स्थिति प्राप्त की है। इसका ज्ञान पहुंचाती है। आपको लगता है कि यह पुस्तकें आपका कहां कोई हित नहीं कर रहीं। फिर भी यदि आपको पढ़ने का शौक है तो आप पढ़ते ही चले जाते हैं। तो विवेकहीनता के कारण आप भले-बुरे में भेद नहीं कर पाते । आप अपने कार्यों को उचित ठहराने लगते हैं और कहते हैं कि जो मैं कर रहा हूँ आपका है। आप जानते हैं । परन्तु क्योंकि आप आत्मा हैं सर्वोत्तम है। यह अहम् नहीं है, मैं कहूंगी यह मानवीय मुर्ख और चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 21 6 ।998 समझ है। जो मैं कर रहा हूँ वह ठीक है। मेरा दृष्टिकोण ठीक है। किसी को यह बताने की हिम्मत कैसे हुई कि यह गलत है? ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसेंगे, उसका मजाक उड़ाएंगे परन्तु उन दिनों के सन्त निश्चित रूप से बहुत अच्छे लोग थे । परन्तु वे अपने शिष्यों के प्रति बहुत कठोर थे और उनसे बहुत ज्यादा अनुशासन की आशा करते थे । इसका और वह बहुत कष्ट उठाएगा। परन्तु कभी स्वीकार नहीं करेगा कि उसने कोई गलत कार्य किया है। कारण यह था कि उनके शिष्य आत्मसाक्षात्कारी न थे । ये सोचते थे कि अनुशासित किए बिना उनकं शिष्य कभी गुरु उन्नत न होंगे और महान न बन पाएंगे । अत: उन्हें अनुशासित किया जाता था । ये जिज्ञासु भी इस अनुशासन जब आप धर्मातीत हो जाते हैं, धर्म से ऊपर उठ जाते को हैं तब धर्म आपका एक अंग बन जाता है। तब आप गलत कार्य नहीं करते । आप गलत कार्य नहीं क़रते । ऐसा नहीं स्वीकार करते थे और गुरु की आज्ञानुसार कार्य करते थे । वं है कि कोई आपसे कहता है या आप किसी का अनुसरण करते हैं। क्या ऐसा करने के लिए कोई विवशता या अनुशासन व्रत करते, सिर के भार खड़े रहते । परन्तु सहजयोग में इस प्रकार का कोई अनुशासन नहीं सिखाया जाता । इसका कारण यह है कि आत्मा जागृत है और प्रकाश देती है। इस प्रकाश में आप स्वयं को स्पष्ट देखते हैं और अनुशासित करते हैं । होता है? परन्तु आप गलत कार्य करना ही नहीं चाहते । कोई भी असम्माननीय, अप्रिय बात आप नहीं कहना चाहते । आत्मरूप सहजयोगी का यही गुण है। आत्मा बनने के पश्चात् मुझे कुछ बताना नहीं पड़ता । आपको कुछ बताना नहीं पड़ता । ये इतना स्पष्ट, इतना प्रत्यक्ष होता है कि जितनी गहराई में व्यक्ति अपने अन्दर जाता है उसे लगता है कि उसके अन्दर अत्यन्त महानता और में मैंने उनसे कभी बात नहीं की उन्होंने ऐसा किस प्रकार सुन्दर भावनाएं निहित हैं। अपने सगुणों से आप दूसरों के किया? क्योंकि उनमें प्रकाश था । आज आपको भी आत्मा आप जानते हैं कि बहुत से लोगों ने रातों-रात नशे त्याग दिए । मैंने उनसे कुछ नहीं कहा । नशे आदि के बार अहम् पर विजय पा लेते हैं। मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ। एक बार में एक का यही प्रकाश प्राप्त हो गया है। आप पूर्णत: स्वतन्त्र हा गए हैं। पूर्णत: स्वतन्त्र क्योंकि आपमें प्रकाश है । आप गलत कार्य सन्त से मिलने गई । सहजयोगी कहने लगे कि श्रीमाताजी नहीं कर सकते । मान लो यहां रोशनी है और यहीं यदि कांई धमाका होता है तो मैं धमाकं की ओर नहीं दौड़ूंगी और न ही आप उधर दौड़ेंगे । क्योंकि आपके पास आँखे हैं । तो आत्मा था । मैंने कहा यहां से उसकी चैतन्य लहरियां देखो । कितनी और उसका प्रकाश पथ प्रदर्शक तत्व है जिनके द्वारा आप गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत बन जाते हैं। आप किसी चीज के दास नहीं हैं। आप घड़ी के, समय के दास नहीं हैं। अपने गुणों के भी आप दास नहीं हैं । आप यह भी नहीं देखना चाहते कि आप आक्रामक हैं, तामसिक प्रवृत्ति के या सन्तुलित (Right Sided, Left आप तो कभी इन गुरुओं से मिलने नहीं जातीं ! मैंने कहा तुम क्यों चिन्ता करते हो? मेरे साथ आओ । हमें पहाड़ी पर चढ़ना चैतन्य लहरियां आ रही हैं! हम पहाड़ी पर पहुँचे । यह सन्त वर्षा पर प्रभुत्व के कारण प्रसिद्ध थे । जोर से बारिश आने लगी और मैं पूरी तरह भीग गई । जब मैं ऊपर पहुँची तो उसे एक पत्थर पर बैठा हुआ पाया । क्रोध से वह कांप रहा था। उसकी गुफा में जाकर में बैठ गई । अन्दर आकर उसने कहा,"मां, आपने मुझे बारिश क्यों नहीं बन्द करने दी? क्या आपने मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए ऐसा किया? " मैने कहा, नहीं नहीं, मुझे तो तुम्हारे अन्दर कहीं अहम् नहीं दिखाई हैं क्योंकि धर्म आपका अंग प्रत्यंग बन गया है । आपको कांईं दिया ।" परन्तु समस्या तो कुछ और है; तुम सन्यासी हो, धर्मानुशासन नहीं मानना पड़ता । सहजयांग के कुछ आश्रमां में त्यागी हो । तुम मेरे लिए एक साड़ी लाए थे, क्योंकि तुम एक मैंने देखा है कि लोग अत्यन्त नियमनिष्ठ हैं । उन्हें इतना सन्यासी हो मैं तुमसे साड़ी नहीं ले सकती पड़ा ताकि मैं तुमसे साड़ी ले सकू और वह द्रवीभूत हो गया। वह बिल्कुल भिन्न व्यक्ति बन गया । विवेक द्वारा आप भिन्न प्रकार के लोगों का संभाल सकते हैं। आप ऐसी बातें कहते पश्चात्ं वह स्वयं चार बजे उठेगा उन्हें बहुत ज्यादा हैं जिनसे उनका अहम् पिंघल जाता है। उनके बन्धन भी वश में किए जा सकते हैं और एक नई प्रकार की जागृति उनमें लाई जा सकती है। वे आपके अन्दर विवेक, प्रेम और आत्मा की अभिव्यक्ति को देख पाते हैं। इसी प्रकार लोगों ने सन्तों हैं। यदि वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो उन्हें आत्मसाक्षात्कार Sided or in the Centre)। आप सहजयोगी हैं और सहजयांगो इन सब चीजों से ऊपर होता है। आप गुणातीत हैं, धर्मातीत कठोर नहीं होना चाहिए । मुझे उनसे कहना पड़ा कि इतने नियमनिष्ठ न हों। कोई व्यक्ति यदि प्रातः चार बजे नहीं उठ पाता तो कोई बात नहीं । उसे दस बजे उठने दो । कुछ समय । अत: मुझे भीगना अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। वच्चों को भी बहुत ज्यादा अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। निसन्दह: यदि व आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे स्वयं बहुत अच्छ है, बहुत सुन्दर बहुत दु:ख देने तथा सताने के बाद भी उनका सम्मान किया, उन्हें प्रेम किया। को देने का प्रयत्न करें । एक बार जब आप यह महसूस कर लंग कि जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं वह अंधेरे में हैं इसी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4, 5 और 6 r998 22 कि प्रायः कहीं भी इस प्रकार नहीं किया जाता । इस सुन्दर कारण वे गलतिया करते हैं, तब आपका दृष्टिकोण उनके प्रति बदल जाएगा । तव आप उनके प्रति अत्यन्त धेर्यवान, प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए शिशु सम बनने का प्रयत्न करुणामय , स्नेहमय, प्रेममय होने का प्रयत्न करेंगे; क्योंकि कोई अन्य नहीं करता । यह एक अत्यन्त नई चीज देखी जा आप जान जाएंगे कि वह व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, उसके पास चक्षु नहीं है, बह देख नहीं सकता । वह इतने दूर स्थित इस स्थान पर आप यह किस प्रकार कर चक्षुविहीन है, सुन नहीं सकता और वास्तविकता को महसूस ! यह समझ भी नहीं कर सकता । सबसे पहले उसे सत्य महसूस करवाएं उसे भाषण देने या अनुशासित करने का क्या लाभ है? एसी स्थिति में तो वह गलतियां करता चला जाएगा और स्वयं तथा कैसे इतनी प्रसन्नता पूर्वक ये रह रहे हैं। आपके घरों में अन्य लोगों को कष्ट देता रहेगा। सकती है। चहूँ और इतनी शान्ति, इतना प्रेम, इतना आनन्द! सकते हैं, किस प्रकार यह सब कर सकते हैं पाचा सुगम नहीं है। यह मानव की समझ से परे है। उनकी समझ में नहीं आ सकता कि किस प्रकार ये लोग ऐसे-हैं और इतनी सुख-सुविधा है, वहां आप आराम से रहते हैं, सभी कुछ है। परन्तु यह स्काऊट मेदान रहने के लिए इतना तो अपने आत्मसाक्षात्कार से आपने यही उपलब्धियां पाई हैं कि आप इन सब चीजों से ऊपर उठ गए हैं और सुविधा-जनक स्थान नहीं । पर, में जानती हूँ, आप कहीं भी प्रेममय, आनन्दप्रदायक स्वभाव के व्यक्ति बन गए हैं। सहजयोग रह सकते हैं आप जहां भी हों, यदि वहां सहज योगी हैं तो आप किसी चीज को चिन्ता नहीं करते । बिना किसी आशा और स्नंह का सौन्दर्य देखा है. न कंवल अपने प्रति बल्कि के. बिना किसी आलांचना के, बिना किसी बकवास या अन्य लोगों के लिए भी । सामूहिक आनन्द अति सुन्दर है, यद्यपि आप एक दूसरे की टांग भी खींचते हैं और मजाक भी करते हैं । आप चाहे भारत, इंग्लैंड, अमेरिका या किसी अन्य में मैं इसके यहुत से उदाहरण दे सकती हूँ। मैंने उनके प्रेम यदि यह प्रेम केवल मरे लिए ही होता तो मैं इसका वर्णन कर सकती । कल ही मैने बताया कि ये लोग इजराइल गए थे । अब ये मिस्र और रूस गए । मूर्खतापूर्ण बात कं, यह उनसे किसने कहा? मैं किसी का कहीं जाने के लिए. है। स्थान से हों, आपकी मित्रता अत्यन्त सुन्दर नहीं कहती । अपने आप ही उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें जाना चाहिए और यह कार्य करना चाहिए, और लोगों का अज्ञान से आपकी सूझबूझ और गतिविधियों में इतना तदातम्य प्राप्त हो जाता है मानों समुद्र में एक के बाद एक लहर उठती हो । यह प्रक्रिया निरन्तर है, शाश्वत है और हमें अन्य लोगों के लिए भी यही स्थिति प्राप्त करनी है। अत: आपका याद रखना है कि आप प्रकाशमान हैं, अन्य लोग नहीं । आपकी आपके प्रम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यहां जो कुछ भी उनकी समस्याओं के विषय में अत्यन्त सचत, सहनशील एवं आपने किया, सारी सजावट में, हर चीज में मुझे आपका प्रेम सुघड़ होना चाहिए । उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनें । दिखाई दे रहा है। मुझे लगता है कि मेरे बच्चे इतना प्रेम करने सर्वप्रथम वे आपको वताएंगे कि मेरा व्यापार डूब रहा है या मेरी पत्नी बंकार है या मेरे बेटे के पास नौकरी नहीं है, वह मुक्ति दिलानी चाहिए आप लाग मरा 75वां । आज जब जन्मदिवस मना रहे हैं, इतने सारे गुब्बारे लगाए गए हैं। वे अत्यन्त सुन्दर एवम् मनाहर हैं। उनके भिन्न रंग मेरे प्रति । मेरी समझ में वालें हैं। मैंने आपक लिए कुछ नहों किया नहीं आता कि कौन-सी चीज आपका इतना कृतज्ञ बना रही धनार्जन नही करता । सभी प्रकार को चीजें वे आपसे कहँगे। है! अभी तक भी मैं यह जानना चाह रही हूँ कि मैंने किया उन्हें सुनें, उनके लिए यह सब महत्वपूर्ण हैं इसकी बाद आप क्या है! मैंन कुछ नहीं किया । परन्तु जिस प्रकार से आप पायेंगे कि शनै:शनै: वे शान्त हो रहे हैं क्योंकि अपनी आध्यात्मिक जागृति के माध्यम से आप प्रेम आनन्द एवं आत्मविश्वास प्रसारित कर रहे हैं। आपमें वा शक्तियां हैं कि जहां भी आप खड़े हो जाएंगे वहीं सुख-शान्ति का सृजन कर दंगे । अत: आत्मविश्वस्त हों। आत्मविश्वास न खोएं । दूसरों को समझने लिए आपका विवक अन्य लांगा को विश्वस्त करेंगा कि ये कुछ विशेष लोग हैं । ये क्रांध नहीं करते. ये अपने प्रम को अभिव्यक्ति करना चाह रहे हैं यह आश्चर्यजनक है! में केवल इतना कहुँगी कि आपको अपनी आत्मा का प्रकाश प्राप्त हा गया है। उस प्रकाश में हो सकता है आप मुझमें कोई विशेष चौज देख रहे हा. परन्तु जिस प्रकार आप अपनी कृतज्ञता प्रकट करे रहे हैं वह मरी समझे से परे है! से उस दिन जैसे एक वक्ता ने कहा था. आप अपनी मां पागल नहीं है। ये सनक के पीछे नहीं दोड़ते । अत्यन्त का धन्यवाद न करं, उन्हें अपना समझे! यह सत्य है, मुझे सन्तुलित लोग हैं। इसका आप को अभ्यास नहीं करना पड़ता। धन्यवाद देने की काई आवश्यकता नहीं, आप मुझे अपने संग ये गुण आपमें अन्तर्निहित हैं इसका आपको गर्व होना चाहिए। समझे। परन्तु नन्हें बच्चों की तरह जिस प्रकार आप मुझे आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि आपको यह प्राप्त करना धन्यवाद देना चाहते हैं. आप शिशु हो बन जाते हैं। इसके है या बनना है। यह आपके पास है- आपकं अन्तर्निहित है। लिए आप में इतना उत्साह है कि आप यह भी नहीं समझते आपको आत्मा के प्रकाश में केवल इसे देखना भर है। यह खंड : 3 अंक चैतन्य लहरीं : 4. 5 और 6 1998 १3 एक सर्वसाधारण चीज है जो कार्य करती है। आपको समझना अन्य लोगों के लिए सुगम नहीं है। परन्तु आपके लिए उनको समझना अति सुगम होना चाहिए क्योंकि सहज में आने से पूर्व आप उन्हीं जैसे थे और अब वे आपकी ओर देख रहे हैं तथा आप ही जैसे बन जाएंगे । कृतज्ञता अभिव्यक्त कर रहे है, इतनी प्रसन्नता एवम् इतना आनन्द प्रापत कर रहे हैं! तो ये सब बातें मैंने आपको बता दी हैं, आपको अपने अस्तित्व का अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए, आपको पता होना चाहिए कि आप आत्मा हैं। आत्मा के रूप में आप इन सब चीजों से ऊपर उठ जाते हैं और एक बार जब ऐसा हो जाता है तो आप हैरान होंगे कि आपका व्यक्तित्व कितना महान् हो गया यह अत्यन्त सहज है। आप दंख पकते हैं कि मैन एक महिला से सहजयोग आरम्भ किया था और अव कितनी महिलाएं हैं। मैंने क्या है! किया. वास्तव में ने नहीं जानती कि मैंने क्या किया? मुझे आप सबको अनन्त आशीर्वाद। वास्तव में इसका काई विचार नहीं है। परन्तु आप लोग इतनो पा प ी दिव्य संगीत की चार रातें जन्मदिवस पूजा के पश्चात् अगली चार राते (22 से 25 मार्च 1998) अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संगीतज्ञों नं श्रीमाता जी के श्री चरणों में संगोत के कार्यक्रम किए और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया । निम्नलिखित कलाकारों को परमेश्वरी अग्रणी हैं एंतिहासिक दिवगत ओंकार नाथ ठाकुर की शिष्या मा और उनके बच्चां की महान् सभा में संगीत प्रस्तुत करने डा. एन. राजम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गायको अंग की तकनीक का पुूर्ण करने में बायलिन वादक पदम्श्री डा. एन राजम । डॉ. राजमे 15 साल के गहन शांध के पश्चात् वायलिन संगीत को मानवीय आवाज के समीप ले आईं । वास्तव में डा. राजम और गायकी अंग को संगीत संसार में पर्याय (ममार्थ का सोभाग्य प्राप्त हुआ : सम श्रीमति वनजा लाल कोंडीपारथी शब्द) के रूप में जाना जाता है। मुप्रसिद्ध गुरु श्री उमा रामाराव की शिष्या श्रीमति वनजा भारतीय शास्त्रीय नृत्य की कुचिपुडि एवम् भारतनाट्यम श्रीमति जरीना शर्मा जी दारूवाला शैली पर अपने नैपुण्य के कारण प्रसिद्ध हैं। सरोद संगीत से मन्त्रमुग्ध कर दंने वाली सुप्रसिद्ध कलाकार श्रीमति जरीना शर्मा ने इंग्लैण्ड की महारानी सहित विश्व भर के महान् लोगों के सम्मुख सरोद संगीत प्रस्तुत किया है। संगीत नाटक अकादमी एवम् महासष्ट्र गौरव पुरस्कार से सम्मानित श्रीमति जरीना का सराद पर 'टप्पा' बजाने मं प. वैभव पंधरीनाथ नागेश्कर सुप्रसिद्ध तवलावादक प. वैभव नागंश्कर ने चमत्कारिक तबलावादक, संगोतकार एवम् गुरु के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है। उनका सम्बन्ध महान संगीतकार उस्ताद अमीर हुसेन खान के फर्रुखाबाद घराना से है। असाधारण आधिपत्य है। प. विश्वमोहन भट्ट मोहन वीणा के रचियता, ग्रामी पुरस्कार विजेता प. विश्वमोहन भट्ट ने अपने पावन, मृदु फिर भी जांशीलं संगीत द्वारा सहजयांगियों का मन्त्रमुग्ध कर दिया। पश्चिमी हवाईयन प. भजन सपौरी प. सर्पौरी सुप्रसिद्ध संतूर वादक हैं। व कश्मीर के परम्परावादो संगीत सृफियाना कलाम गायकी पर बल दंते हैं। संतूर पर पखावज के साथ गिटार में चौदह और तारं जाड भारतीयकरण द्वारा उसे आविष्कारों का एक अंग हैं। संगीत के क्षेत्र में अपने यांगदान के लिए उन्हें सम्माननीय संगीत नाटक अकादमी एवम् गायकी अंग बजानं की अप्रतिभ योग्यता संगीत सम्राट पं. शिरोमणी पुरस्कार प्राप्त हुए है। ध्रुपद अग का वादन उनके क्रांतिकारी रूप दंकर भारतीय संगीत के तन्त्रकारी अंग और रविशंकर के शिष्य पं. विश्वमांहन भट्ट में है। विश्वभर में 24 चंतन्त्र लहरों खंड : X अंक : 4 5 और 6 1998 8661 पं. विश्वमोहन भट्ट के संगीत की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। चीन गायकी शैली में दक्षअता प्राप्त की । रोनू मजूमदार ने विश्वभर के इरहु (हरिसण) बादक जे पींग चेंग और अरब के औध में भिन्न मंचो पर संगीत कार्यक्रमां में भाग लिया जिनमें भारत (OUDH) वादक सिमोन शहीन के तथा बहुत से अन्य कलाकारों के साथ उनकी जुगलवन्दियों ने उन्हें बहुत विख्याति दिलवाई हैं। भारत तथा विदेशों में प. विश्वमोहन भट्ट जीते हैं जैसे सुरमणि तान्त्रि, श्रीनगर स्वर शिरोंमणि उत्सव समारोह भी सम्मिलित है। वे राग में अदम्य लवकारी और सुरीली तान मिलाकर प्रशंसनीय परिपक्वता एवम् गहनता की अभिव्यक्ति करते हैं । उनकी प्रस्तुतियां शास्त्रीय सौन्दर्य एवम् भावनात्मकता से परिपूर्ण हैं। उन्होंने श्रोताओं के हृदय को छ लिया। इन सुप्रसिद्ध कलाकारों की प्रस्तुतियों तथा दानिष्कखान की सरांद, बीना पटरपैकर का कंठ-संगीत, प. जगन्नाथ मिश्र की शहनाई, कीर्ति शिलंदार का कंठ-संगीत. सतीश व्यास का संतूर, शाश्वती सेन का कत्थक नृत्य ने इन दिनों परम चेतन्य की गंगा को बहाए रखा. जिसने सहजयोगियों को अपनी परमेश्वरी मां के चरण कमलों के ध्यान में स्थापित किया। त से ने बहुत पुरस्कार तथा अमेरिका और कनाडा की अवैतनिक नागरिकता । रोनू मजूमदार रोनू मजूमदार भारत के सुप्रसिद्ध कलाकार है जिन्हें उनके पिता भानू मजूमदार ने बांसुरीवादन में दीक्षित किया । तत्पश्चात् वे पदम्श्री पं. विजयराघव राव के शिष्य बने और स्मरणीय समापन 26-03-1998 कु लो ! पल झपकते ही इस स्वर्गीय आनन्दोत्सव का समापन दिवस आ पहुंचा । वहुत से सहजियां की आंखों से लगे । 19वीं और 20वों शताब्दियों में से प्रमाश्र बह निकले । इस दिव्य परिसर से विदा लने के एकीकरण हाने लगा । इस समय एक नए अवतरण को विचारमात्र ने हमारे हृदय झंझोड़ दिए। परन्तु विश्वभर के सत्य साधकों के हृदय में प्रकाश ज्योति जलाना सहजयोगियों का परम कर्तव्य है। अत: निर्विचार समाधि के दिव्य किले में शरण लत हुए हम सबने स्वयं को सन्तुलित किया । के कारण सूत्रवद्ध हाने के स्थान पर लेग पृथक-पृथक होने एक वार फिर अत्यन्त आवश्यकता थी जा मानव जाति को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक उठा सकता । इसी कारण श्रीमाता जी जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित हुई । चाहे दंखने में यह कार्य असम्भव प्रतीत होता हो. और आरम्भ में तुच्छ बुद्धि लाग इसे न दख पाए कि किस प्रकार श्रीमाता जी अपना लक्ष्य पान में श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव ने समारोह समापन के इस सफल होंगी, परन्तु आज आप जो कुछ यहां दंख रहे हैं उसे यदि दंखें, और आज जो आपने सुना है उसे यदि सुने ता आप कह उठेंगे क्या एक नए विश्व की सृष्टि नहीं हे चुकी है? यह उन्हीं का बनाया हुआ विश्व है। आज हमे हिन्दू इमाई मुसलमान, सिख सभी के भाई-वहन होने की बाते कर रह या गुरुद्वारं में पूजा क्यों वास्तव में हम एक एसा उत्सव मना रहे हैं जिसे नहीं कर सकता ?ै पूजा का काई भी स्थान सभी के लिए हैं समझा जाना और जिसका मूल्यांकन करना आवश्यक है। और यही सहजयांग है। सहजयोग मानवजाति का आध्यात्मिकता उनसे पूर्व भी बहुत से अवतरण हुए. जिन्होंने मानव को के एक अत्यन्त ऊंच स्तर तक उन्नत करता है। यही उनका सुन्दर धर्म प्रदान किए । इन धर्मों का लक्ष्य मानव जाति को उद्देश्य है और इस कार्य को उन्होंने बहुत कठिनाईपूर्वक 25 सभ्यता एवम् सदाचार पूर्वक जीना सिखाना था । ये भिन्न वर्ष पूर्व आरम्भ किया था । मैं सांचता हूँ कि हमें स्मरण करना है तथा मान्यता देनी है कि अकंलं व मानवजाति में ये महान क्रान्ति ले आई! उस दिन मैंन आपको 25 वर्ष पूर्व की अवसर पर कहा : प्रिय सहजयागी एवम् सहजयोगिनियों, इतने दिनां से हम लाग पूर्ण मानवजाति के लिए अल्यन्त महत्वपूर्ण घटना 75 वर्ष पूर्व आपकी परम् पूज्य का उत्सव मना रह थ श्रीमाताजी का अवतरण । हैं। जन्म से हिन्दू, मैं मस्जिद, चर्च धर्म, भिन्न जातियों में विकसित होते गए और इन्हें बहुत से अनुयायी मिलते गए । जैसे जैसे समय बीतता गया, इन धर्मो चंतन्य लहरों । खंड 4. 5 और 6 998 : X अंक : रखड 25 आपको प्रेम करता हूँ। हम उनके शाश्वत जीवन की कामना करते हैं। उनकी जिम्मेदारी शाश्वत है। मैं जानता हूँ कि आपकी भी यही कामना है, और वापिस जाकर आपका प्रेम, एक घटना सुनाई थी, जब वे सड़क पर मृतप्राय पड़े एक युवा को उठाकर घर ले आई थीं। क्या तब उन्होंने उससे पूछा था कि तुम्हारी भाषा कौन सी है? नहीं । क्या उन्होंने उसे पूछा कि तुम्हारा धर्म कौन-सा है - नहीं । क्या उन्होंने उससे उनके सुस्वस्थ एवं खुशियों से परिपूर्ण चिरायु की आपकी पूछा था कि तुम्हारी जाति क्या है - नहीं। वह एक मानव था और वे उस मनुष्य को उठाकर घर लाई तथा सहजयोग एवम् शक्तिशाली प्रेम से - निस्वार्थ प्रेम से - मां के प्रेम से, उसका कामना में उन्हें बताऊंगा । दिव्य जीवन से लौकिक जीवन की ओर आते हुए में कहना चाहूँगा कि इस समारोह का आयोजन बहुत ही अच्छी उपचार किया और शीघ्र ही यह लड़का, जोकि शराबी था और नशेडी था, ठीक होकर परिवर्तित हो गया । तो इस प्रकार इन्हांन यह कार्य आरम्भ किया से किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह की देखभाल करते तरह से किया गया । समारोह का आरम्भ हमने अभिनन्दन कार्यक्रम से किया । इसमें बहुत से महत्वपूर्णं व्यक्तियों ने भाग लिया तथा श्रोताओं को सम्बोधित किया । पूर्व वित्तमंत्री श्री चिदम्बरम ने जिस प्रकार कहा वे आश्चर्यचकित (Bewildered) थे, अपनी दृष्टि पर विश्वास न कर पाये कि संसार में परस्पर लड़ने वाले लोग यहां किस प्रकार पारस्परिक प्रेम में बंधे हैं! लौटते हुए वे हैरान थे, स्तय्ध थे; समझ न पा शनै: शनै : वे - स्वयं, व्यक्तिगत रूप हुए । आप श्री ग्रेगोर को जानते हैं, वह यहां संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनयिक के रूप में आया । सत्य की खोज में यह आकर्षक युवा पुरुष हमारे ऑक्सटैड गृह में भी आया । वह हमारे साथ दो दिन रहा और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके लौटा । आज वह सहजयोग के स्तम्भों में एक है। इस लिए आपकी परमेश्वरी मां ने - एक एक कदम करके, एक एक मानव से सहजयोग खड़ा किया आज हम हजारों हैं; रहे थे कि किस प्रकार यह सब घटित ! जान जाएंगे ये सब लोग इतनी अच्छी तरह से वोले, इतना सराहा कि हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए । मेरे विचार में, उस दिन, योगी महाजन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई वे ही समारोह-प्रमुख थे । राजेश शाह आज यहां नहीं से सम्माननीय अतिथियों को यहां लाने का श्रेय उन्हें हुआ इन्होंने उन्होंने सहजयोगी यहां बैठे दंख रहे हैं और लाखों सहजी विश्व भर में है। यह उनकी उपलब्धि है। आपको यहां से क्या संदेश ले जाना है? में सांचता हूँ कि हम एक अत्यन्त स्मरणीय घटना बहुत है। वह एक ऐसा क्षण था जब ये राजनीतिक नेता देखने लगे कि उनमें अभाव है तथा आपकी श्री माताजी ऐसे आदर्श की एक उन्नति प्रदायक घटना का उत्सव मना रहे हैं, परन्तु सृष्टि कर रही हैं, जिसका अनुकरण उन्हें करना चाहिए। यहां से आप क्या सन्देश लंकर जाएंगे? यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस विशाल विश्व के लिए आप संदेश लेकर जाएंगे कि सहजयांग अब पूरे विश्व पर छा जाएगा । पूरे विश्व में इसे सहजयोग का अभिन्न अंग रहा है। इसके लिए मैं 'बाबा' को फलना है। जन-जन तक इसे पहुँंचना होना है। आप यह सन्देश ले कर जाएं और, मुझे तनिक भी क्योंकि वे मेरे 'साला' हैं। सभी प्रकार के संगीत को यहां सन्देह नहीं, श्रीमाता जी के आशोर्वाद से आप सफल होंगे । उनका 80वां जन्मांत्सव मनानं के लिए जब हम एकत्र होंगे तत्पश्चात् रंगा-रंग संगीत कार्यक्रम हुए । संगीत आध्यात्मिक है। यह व्यक्ति को उन्नत करता है। संगीत वधाई एवम् धन्यवाद देना चाहूँगा । मैं उन्हें 'बाबा' कहता हूं है। हर मानव का उन्नत एकत्र करने में उन्होंने आश्चर्यजनक भूमिका निभाई है । आइए ताली बजाकर उनका अभिनन्दन करें। संगीत समारोह के अतिरिक्त, इस प्रकार के विशाल समारोह के लिए जबरदस्त आयोजन की आवश्यकता होती है। दो-तीन हजार लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय सभाओं का आयोजन तो सम्भवत: हमारी संख्या दस लाख न होगी, तब हम बीस करोड़ होंगे. और क्यों न हों? और जब हम उनका 00वां जन्मदिवस समारोह मनायेंगे तब विश्व में हम पांच अरब सहजयोंगी होंगे । मैं उनके प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। 51 वर्षो मैंने देखा है और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि. जितनी सं व मरी पत्नी हैं । अगाध स्नेह एवम् प्रेम से उन्होंने मेरी अच्छी तरह इस समारोह का आयोजन हुआ है, वे इससे देखभाल की एक बार वं आस्ट्रेलिया में थीं, वहां से उन्होंने रसांइयें को हिदायत दी कि किस प्रकार वह कौन सी सब्जी मेरे लिए बनाए । पत्नी हा तो ऐसी । हैं और आपकी भी उन्होंने कंवल हमारी ही नहीं आप सब की देखभाल भी उतने ही प्रेम से की है। उन्होंने कभी अपने निभाई। भोजन-व्यवस्थापक ने शानदार खाना खिलावाया । और पराये बच्चों में भेदभाव नहीं किया अपना बच्चा है। उनके प्रति में अपनी कृतज्ञता किस प्रकार अभिव्यक्त करू? मैं ता मात्र इतना ही कह सकता हूँ कि मैं आधी अच्छी भी न थी । दिल्ली एवम् बाहर के बहुत सहजयोगियों ने एकजुट होकर इस कार्य को किया है; उन सबके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । युवाशक्ति से वे मेरी बेटियों की मां अत्यन्त व्यस्त तथा सहायक रही । उन्होंने अहं भूमिका सभी एक जुट थे । परन्तु किसी भी सफल आयोजन के पीछे सदैव एक कुशाग्र बुद्धि व्यक्ति, एक प्रमुख होता है। कभी न सोचें कि ऐसे सफल आयोजन स्वत: ही हो जाते हैं। इस । हर बच्चा उनका और 6 1998 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 4 5 बाबा मामा आयोजन के पीछे भी कोई व्यक्ति है - और वह हैं श्री श्रीमान, आपकी सीख एवं समापन के लिए धन्यवाद। नलगिरकर । मैं उनसे आगे आने की प्रार्थना करूंगा । खडे होकर इनका अभिनन्दन करें । यह अत्यन्त सुन्दर थी । मैं सदा आपका 'साला' था और इसी के साथ मैं समापन करता हूँ। सभी कार्यकर्ताओं सदैव आपका 'साला' रहुँगा परन्तु सालेपन से भी अधिक बहुत कुछ है। आप सदेव उसी तरह मेरे पिता सम रहे हैं जिस प्रकार श्री माताजी मेरी मां सम रही हैं। आप दोनों से है - बस मैं इतना ही का मैं धन्यवाद करता हूँ। एक बार फिर श्री निर्मला माता जी की जय । वहने वाला प्रेम ही मेरे जीवन का स्रोत धन्यवाद परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। कह सकूंगा । एक बार पुन: धन्यवाद । का कग शुभ का क काम क गोी कस ा ह मः शी चतन्य लहगी खुड : X अक :4. 5 आर 6 1998 27 अन्तिम शब्द आन्तम डा. वोल्फगैंग हैक ा प्रिय भाइयों और बहनां नहीं मिलता । आज में कहना चाहूँगा कि इस समाराह में उपस्थित रह कर आपने हमारा सम्मान बढ़ाया । आप अवश्य ही कुछ विशेष हैं जिसके फलस्वरूप आप हमारी मां क इतने बहुत से पश्चिमी सहजयोगियों ने मुझे कुछ शब्द बालने को कहा । अत्यन्त उलझन की बात है कि 14 दिनां तक जिन लोगों ने आपकी राजा की तरह से रखा हो वही आपसे कहें निकट हैं, हम तो मात्र माध्यम हैं। आने के लिए धन्यवाद श्रीमान सी.पी.साहिब, हम सब के लिए आप विनम्रता '। प्रिय भाइयां और बहनों. अब कि ' हम जहां बैठे हैं, जहां यह महल वना हुआ है, कुछ ही दिनों एवं गरिमा के उदाहरण हैं। आपका हृदय अत्यन्त प्रेममय है: में यहां केवल रेत होगी और गिलहरयिं इधर-उधर दौड रही हमें बहुत प्रसन्नता है होंगी । यहां अं्धरा होंगा क्योंकि यहां या तो जनरेटर न होंगा या जनरंटर में कोई डीजल न डालंगा । न पानी की टंकिया भरी जाएंगी और न पाइपों में जल होगा। कोई सहायता कक्ष न होगा जहां से पश्चिमी महिलाओं की खरीददारी में सहायता करने के लिए सहजयांगियों को बुलाया जा सके। सदा की तरह कुछ झोंपड़े लिए बंजड़ भूमि होगी झांपड़ियां पहलें सं कुछ सुन्दर होंगी क्योंकि हमें सुन्दर भारत के सहज-योगियों ने इन्हें सुन्दर बनाया है। अत: हमारे जाने के बाद ये सुन्दर दिखाई दंगी । इस सार आयोजन के लिए हम दिल्ली एवम् भारत के सहजयोगियों तथा श्री नलगिरकर है और साथियों के प्रति कृतज्ञ हैं और आपका धन्यवाद करते हैं । कृपया ताली बजा कर एक बार फिर इनका अभिनन्दन करें । यह समाराह हमारो मां के लिए होने के कारण, श्रीमाताजी के प्रिय परिवार को भी अहं भृमिका है। कभी भी हमें इन सुन्दर कि आप सदा हमारे साथ हाते हैं, हमारी परमेश्वरी मां कं करोब आप वैठे हाते हैं। हमें इसकी बहुत खुशी है और हम आशा करते है कि भविष्य में भी आप इसी तरह हमारे साथ रहंग । प्रिय बाबा मामा, आप वास्तव में हम सबके मामा है। सदैव आप सहजयोगियां से घिर रहते हैं और संगीत अकादमी क लिए शिष्य खाजत रहते हैं। अच्छा हागा कि आपके 999 नामों में हम एक और नाम जांड़ सक -'जबा रातां के स्वामी'। श्री माताजी के परिवार के अन्य सदस्या जैस साधना दीदी. निवास दन के लिए दिल्ली तथा कल्पना दीदी तथा अन्य लाग-जिन्हें न हम भली-भाति जानते हैं और न वो हमसे भली-भांति परिचित हैं-हमें प्रसन्नता कि व भी इस समारांह में हमार साथ रहें । कृपया तालियां द्वारा उनका अभिनन्दन करें। इस प्रकार इस महान् समाराह का समापन हुआ। जय श्रीमाताजी। लोगों के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति का अवसर के चतन्य लहरीं ॥ 28 खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 भा के म ाई ०े ु तनियास पासू तव चरण-पडन्केरूह-भवं, विरिचि: संचिन्वन विरचयति लोका-न विकलम्! बहुत्येन शौरिः कथमपि सहस्रेणं शिरसां, हरः संक्षुदयैनं भजति भसितोद्धूलन- विधिम् हे देवी, आपके चरण कमल से उत्पन्न होने वाले छोटे से रजकण को चुन कर ब्रह्मा सतत लोक लोकान्तरों की सृष्टि करते हैं. शेषनाग बड़े परिश्रम से अपने सहस्र सिरों पर उठाकर इसे धारण करते हैं और प्रलयकाल में श्री महेश इसी रजकण की भस्म बनाकर अपने अंगों पर लगाते हैं अर्थात् आपके सम्मुख ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्तियां तुच्छ हैं। जन्मोत्सव मुख्य प्रवेश द्वार, दिल्ली ---------------------- 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक : 4, 5 एवं 6 1998 खण्ड : X ाप 75वां जन्मोत्सव विशेषांक देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।॥ भक्तों के दुःखों एवम् कष्टों को दूर करने वाली हे देवी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे पूर्ण ब्रह्माण्ड की जननी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे विश्वेश्वरी, कृपा करके इस विश्व की रक्षा कीजिए! है देवी, पूरा ब्रह्माण्ड आप ही पर निर्भर है ! आप ही इस संसार का आधार हैं क्योंकि पृथ्वी मां के रूप में आमने ही स्वयं को स्थापित किया है । कृपा करके प्रसन्न हो जाइये । 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं. सम्पादकीय अभिनन्दन कार्यक्रम 20-03-1998 2. श्री माताजी का प्रवचन 20-03-1998 जन्मदिवस पूजा 21-03-1998 17 3. दिव्य संगीत की चार राते 22 से 25-03-1998 24 t. स्मरणीय समापन 26-03-1998 25 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34, मुद्रक फोन : 7184340 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-3.txt 75 वां जन्म-महोत्सव जन्मोत्सव का आयोजन करने का सौभाग्य प्रदान किया । गुरुनानक देव जी के जन्मत्सव के अवसर पर सिख संगतों को प्रायः गाते हुए सुना जा सकता है: खुशी से सहजयांगी उछल पड़ं । ऐसा सुनहरा अवसर फिर हमें कब प्राप्त होगा? उत्सव आलीशान हाना चाहिए । यह शताब्दी की महानतम घटना हानी चाहिए । प्रेमोदगार बह निकले सहजयोगियों के हृदय से । इस स्मरणनीय अवसर पर आशीर्वादित होने के लिए विश्व भर की दैवी शक्तियां एकत्र सतुगुरू नानक पगटया, मिटी धुन्ध जग चानण हाया अर्थात् गुरुनानक देव जी जब पृथ्वी पर अवतरित हुए ता अज्ञानान्धकार (धुध) समाप्त हो गया और पुरा विश्व प्रकाश ( आध्यात्मिक) से जगमगा उठा । गुरुनानक एक आत्मसाक्षात्कारी थे, गुरु थे. सन्त थे. हां गई एक वार फिर भारतीयम-दिल्ली के स्काउट-मैदान जिन्होंने अपने दा शिष्यों (बाला एवं मरदाना) का आत्म पर उत्सव मनान की निर्णय किया गया। पांच भव्य तारण द्वार बनाए गए; पांचवां. पांडाल का प्रबंश, द्वार जयपुरी शैली सभागार की गुम्बददार छत बहुत से सुन्दर फानूस तथा चमचमाती बक्तियां लगाई गई । सभागार में वैठन के स्थान का बढ़ाने के लिए चहूँ आर द साक्षात्कार प्रदान किया । परन्तु मां आदिशक्ति-जिनकी स्तुति गाते हुए आदि शंकराचार्य ने अपनी महान कृति सौन्दर्य-लहरी में हवा-महल बनाया गया । म ति में कहा : अविद्यानां मन्त-स्तिमिर-मिहिर-द्वीप-नगरी, जड़ाना चैतन्य-स्तबक-मकरन्द-मुतिझरी । दरिद्राणां चिन्तामणि गुणनिका जन्मजलधौ निमग्नाना दंप्टा मुररिपु फुट चीड़ा लकड़ी का मंच बनाया गया। मंच का मनाहारो पृष्ठभाग सहजयोगी उद्यान-विशेपज्ञ श्री खाबर ने रंग एवं दुश के स्थान पर सुन्दर पत्थर जडित - वराहस्य भवति ॥ ( 3 ) मिट्टी में लगे, लहलहात हर रंग के पौधों संे बनाया । यह सुन्दर पहाड़ी सम लग रहा था जिसक सीने से निकलती हुई जलधारा इसे स्वर्गीय छटा प्रदान कर रहा थी । जन्म दिवस की सध्या का जब इस पर छोटे-छाट दीपक जलाये गये ता भारतीय सहजयागियों का इसने उस पौराणिक द्वाणगिरि परवत हे दवी, आपकी चरण रज ही वह द्वीप-नगरी है जिससे आध्यात्मिक प्रकाश रूपी सूर्य उदय हो कर आपके भक्तां के हृदय से अज्ञानान्धकार का दूर करता है। आपकी चरण रज रूपी पुष्प कलियां में से बहता हुआ ज्ञानामृत जड़मति का चैतन्यशील कर दंेता है। दरिद्रियों के लिए यह चिन्तामणियां की माला है। जन्ममरण रूपी संसार सागर में का स्मरण कराया. जिस लक्ष्मण का लग शत्रु के वाण का विप उतारने के लिए श्री हनुमान उठा लाए थे । S000 लागा के बैठने की क्षमता वाल संभागार तथा मंच का सुसज्जित करने के लिए दिल्ली युवा शक्ति न दिन ऑर रात कार्य किया । कई समितियों का गठन किया गया. जिनमें से एक डूब हुए मानव क लिए यह वराहवतार के दात की सदृश उद्धारक है। आदिशक्ति माताजी श्री निर्मलादेवी आध्यात्मिक ज्ञानानुभूति का एकमात्र सरांत हैं। लाखों लोगां को सामूहिक आत्म विदंेशों तथा देश के भिन्न स्थानों से आने वाले सहजयोगियां साक्षात्कार दन के लिए उनका एक कटाक्ष काफी है। जन-कार्य-क्रमों में पूछे जाने पर अधिकतर लोग अपने हाथ उठा कर पुष्टि करते हें कि उनकी कुण्डलिनी जागृत हो गई है तथा शीतल- चैतन्य-लहरियों का अनुभव उन्हें अपनी का हवाई अड्डे से लाने तथा उन्हें सुविधापूर्वक ठहरान के लिए थी । एक विशाल भाजन- कक्ष बनाया गया जिसमें एक ही समय पर 3000 व्यक्ति खाना खा सकते थे । दश तथा विदेश से आए हुए सभी सहजयागी-स्त्री या पुरुष- अपना हथलियों तथा ब्रह्मरन्ध्र पर हुआ है। श्री माताजी सहजयागदायिनी हैं। उनके दर्शन मात्र से जन्म जन्मान्तरों के पाप धुल जाते हैं। हुँदय उड़लने के लिए उद्यते थे । उनकी एकमात्र शुद्धतम इच्छा अपनी परमेश्वरी मां का प्रसन्न करना था । हर हृदय सं प्रार्थना निकल रही थी :- गुरु नानक दव जी कहते हैं:- तुझ डिट्ठ सच्चे पातशाह, मल जन्म जन्म दी कट्टिए देवि प्रपन्नातिहरं प्रसीद महामाया रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई इस महावतार -पूर्णावतार-का 75वां जन्म-दिवस 21 मार्च 1998 को था । सहजयोगियों की प्रेममयी, सान्द्रकरुणा मां ने, प्रसीद मातजंगताऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्व त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।। अत्यन्त कृपा करके, भारत की राजधानी दिल्ली को 75वें X अंक : 4. 5 और 6 1998 चैतन्य लहरी । खंड : 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-4.txt तनियासं पांसू तव चरण-पडकेरूह-भबं, विरिंचि: संचिन्वन विरचयति लोका-न विकलम्! बहत्येन शौरिः कथमपि सहस्रेणं शिरसां, हरः संक्षुदयैनं भजति भसितोद्धूलन- विधिम् है दवी, आपके चरण कमल से उत्पन्न होने वाले छोट अथात भक्ता के दु:खो एवम् कप्टों का दूर करने वाली, हे दवी, कृपा करके प्रसन्न हो जाइये ! हे पूर्ण ब्रहमाण्ड की जननी कृपा करके प्रसन्न हो जाइये करके इस विश्व की रक्षा कीजिए ! हे देवी, पूरा ब्रहमाण्ड आप हो पर निर्भर है ! आप ही इस संसार का आधार हैं क्योंकि पृथ्वी मा के रूप में आपन ही स्वयं को स्थापित किया है । कृपा करके प्रसन्न हो जाइये । द विश्वेश्वरी, कृपा ! हे से रजकण को चुन कर ब्रह्मा सतत लोक लोकान्तरों की सृष्टि करते हैं, शेषनाग बड़े परिश्रम से अपने सहस सिरों पर उठाकर इसे धारण करते हैं और प्रलयकाल में श्री महेश इसी रजकण अर्थात् आपके सम्मुख ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्तियां तुच्छ हैं। सभी सहजयांगियों की है प्रेममयी मां, हे महामाया सदव अपने वचन से प्रतिबद्ध की भस्म बनाकर अपने अंगों पर लगाते हैं 'पुष्पं, फलं, तोयं परमेश्वरी मा नं निरन्तर चैतन्य प्रवाह करके सहज यांगियों का अन्तराष्ट्रीय सामूहिकता को आशो्वादित किया । छः दिन और छः राते हम सब श्री माताजी से बहने वाली शीतल चतन्य लहरियों के सागर में तैरते रह । रूपा, विश्वभर के हम सभी सहजयोगी हृदय से आपके श्री चरणों में प्रार्थना करते हैं कि हमें अपने चरण कमलों की धूल का एक छोटा सा कण बनाए रखें और हमें आशीवाद दें कि आपके चरण कमलों का निरन्तर ध्यान ही हमारा एकमात्र है पम्मश्वरी मा आपका प्रणाम ! आपका काटि-कोटि प्रणाम । आनन्द स्रोत हो । हताता कि ी पी ा ३ शी ी की शी ड ल च . ी ल ला ी ह और १ 1998 चतन्य लहगी । खंड : 8 अंक : 3 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-5.txt अभिनन्दन कार्यक्रम दिल्ली 20-03-1998 ार प्रकाशोत्सव- ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के आशीर्वाद का प्रवाह, मानो गंगोत्री से गंगा बह निकली ही । आप सब यही है। मानव रूप में आप श्रेष्ठता का अवतरण हैं: में उन्हें यही कहता हूँ। श्रीमाताजी मैं घटों बोलना चाहता हूँ और मुझे अपनी लम्बाई के अनुरूप बालना भी चाहिए. परन्तु एंसा जन्ममहोत्सव) का श्रीगणेश 20 मार्च 1998 को रंगारंग अभिनन्दन कार्यक्रम सें हुआ । हमारी प्रिय दंवी मां और श्रीमन सी. पी. श्रीवास्तव के अतिरिक्त बहुत से सम्माननीय अतिथियां तथा भारत और विश्व के काने कोने से आए सहजयोगी भाई बहनों ने इस उत्सव की शोभा बढ़ाई । श्री करने में मैं असमर्थ हृ क्योंकि मुझे रेलगाड़ी पकड़नी है। आशा है आप मुझे क्षमा करेंगी । फिर भी हम सब की ओर से मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि साक्षात् शरीर में सदेव आप कल्याणकारी, आशीषदात्री, स्वस्थ और सदा को तरह से पूर्व लाकसभाअध्यक्ष, श्री पी. चिदम्बरम-भारत बलराम जाखड़ - के पूर्व वित्त मन्त्री श्री सुन्दरलाल पटवा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, श्री ऐजाज रिजर्वी-उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मन्त्री एवं भाजपा के अल्पसंख्यक कांष्ठ के अध्यक्ष मुस्कराती हुई आप हमारे साथ बनी रहें. हमारे लिए यह बहुत तथा सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री राहुल बजाज श्रीमाताजी का अभिनन्दन करने वाले लागों में मुख्य थे । आपका कोटि कोटि धन्यवाद बड़ा वरदान होगा । । श्री पी.चिदम्बरम (भारत के पूर्व वित्त मंत्री) ने विद्वता पूर्वक कहा : श्रीमाताजी श्री निर्मला दंवी जी. सहजयांगों एवं माननीय अतिथिगण । श्री बलराम जाखड़ (सांसद एवं लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष) न हिन्दी में अपना भाषण आरम्भ किया श्रीमाताजी के लिए चिरायु की कामना करते हुए व अंग्रेजी में बोलने लग। उन्होंने कहा चहर दिखाई द रहे हैं । यही भाई चारा है, यही मानवता है, यही उनकी ( श्रीमाताजी) महानता है। हमारे शास्त्रों में, हमारे पूर्वजों ने कहा है: श्रीमाताजी के साथ यह मरी दूसरी भट है और : "चहुं ओर मुझे विश्वभर से आए हुए सहजयागियों के साथ पहली । स्पष्ट बात यह हैं कि यहां मैं अल्यन्त आश्चर्यचकित हूँ और स्वयं को अति तुच्छ पाता हैँ। स्वयं से मेरा एक प्रश्न है कि एंसी कीन सी बात हैं जो विश्व ुबग के कोन कान से पूर भारत से और इस महानगर के हरे हिस्स सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामया: से इस अवसर पर आप सबको यहां खोच लाई? भिन्न धरम जातियों तथा भिन्न पृष्ठभूमियों के पांच हजार लागाों को एक पंडाल के नीचे लाने वाली कौन-सी शक्ति हैं? आप सवका सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मां कश्चित् दुःख भाग भवेत । किसी का दुख न पहुंचे, किसी का आघात न लग. सभी लोग भले हा, श्रीमाता जी यही सब कुछ हम सबके लिए कर रहे हैं। उन्होंने पूरे विश्व के सम्मुख प्रमाणित कर दिया है कि पूरा विश्व एक परिवार है। 'वसुधा एव कुटुम्बकम (यह पूरी पृथ्वी एक है) । विश्व के लाग इस बात का महसूस नहीं करते परन्तु हमारे पूर्वजों द्वारा कहे गए इस कथन इतना समर्पित, इतना विनम्र, इतना एकतावद्ध, इतना आनन्दमय होने की प्ररणा क्या है? में स्वयं से प्रश्न कर रहा हूँ कि एक शाम का जब पांच हजार लागों के साथ एंसा हो सकता है ता विश्व के पाच अरब लागों के साथ यह घटित क्यों नहीं ही सकता? और, सीमित रूप से, इस महान, प्राचीन दश में रहने का अनुभव करने का समय अब आ गया है। आज श्रीमाता बाले 95 करोड़े लागां के साथ यह घटित क्यों नही हा जी के कार्य का सार तत्व है: सकता। स्वामी विवंकानन्द के शिष्यों में सं निर्वेदिता वहन मुख्य थीं । उनके जीवनीकार नं लिखा है जिसे मैं उद्धरित कर रहा हूँ : " श्रद्धा की रचना, नहीं होती, इसकी रचना तो अन्तज्ञांन को अदप्ट चट्टान पर 'यत्र विश्व भवते एक नीड़म'-पूरे विश्व की एक मात्र तर्क को न्यायसंगत नीवों पर घासला बनने की कामना है। आज विश्व वहुत बड़ा नहीं रह गया, यह घासले की तरह बहुत छाटा सा है और इसी में हमें रहना है। एसा होना उन्हीं के प्रेम, उन्हों के आशीर्वाद से सम्भव है। मरी यही कामना है कि हितार्थी भाव से परस्पर होतो है।" "Faith is not built on the Syllogistic foundations of reason, but it is built on the मिलजुल कर हम सदैव स्वस्थ एवं आशीर्वादित बने रहें। मैं क्या कहू. यह एक प्रश्न है, unseen rock of intution" एक प्रवाह है, प्रम. स्नह , श्रद्धा आप सबको यहां पर लाई है प्रेम नं आपका 4. 5 और (6 1998 चतन्य लहरी ॥ खड : X अंक : 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-6.txt समापन करूगा : गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्वष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा, गुरु-साक्षात् परब्रह्म, श्रीमाता जी निर्मला मां तस्म्यै श्री गुरुवे नमः | एकता प्रदान की है और मैं भी श्रीमाता जी का अभिवादन करने और उनका आशरवाद प्राप्त करने के लिए आपमें सम्मिलित हुआ हूँ । मैं इतना छोटा और इतना क्षुद्र हूँ कि, श्रीमाता जी. यहां उपस्थित सभी लोग, सभी सजहयोगियों तथा विश्वभर के अन्य उपस्थित लोगों से उनकी आशीष के अतिरिक्त कुछ अन्य मांग सकने में अक्षम हूँ । मैं आपसे खिलवाड़ करते हुए श्री फिलिप्स ने श्रीमाता जी द्वारा दिए गए आशीष, प्रेम एवम् पथ प्रदर्शन की याचना करता हूँ । कृपा करक विश्व के लोगो का पथ प्रदर्शन करें श्री फिलिप्स जेस ( जर्मनी ) आयोजकों द्वारा तीन मिनट की समय सीमा से विनोदपूर्वक मानसिक सन्तुलन का प्रदर्शन किया । कृतज्ञता प्रकट करते । आपका हार्दिक हुए उन्होंने कहा : परम पूज्य श्रीमाताजी, सम्माननीय सर सी.पी.. आदरणीय अतिथिगण एवं विश्वभर से आए हुए प्रियतम सहजयोगी भाई-बहनां: कल आयोजकों ने हमसे कहा कि आज रात्रि के कार्यक्रम में बहुत छोटा-सा भाषण देकर योगदान करें : वास्तव में उन्होंने कहा कि हम तीन मितट से अधिक न धन्यवाद । संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण क्षेत्र में वरिष्ठ अधिकारी श्री ग्रेगोर डी कात्वबर मैट्टी ने अपनी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति करते हुए कहा : परम पूज्य श्री माताजी, सर सी.पी.. महामान्य एवं मान्यवर अतिथिगण । श्रीमाताजी, दो वर्ष पूर्व वायुयान में बोलें। अत: श्रीमाताजी से अपने सम्बन्ध को लेकर सभी बैठकर मैं आपकं जन्मात्सव के लिए आ रहा था, पर मेरी अन्य सहजयोगियां की तरह से में भी एक मूलभूत समस्या लहा का सामना कर रहा हूँ कि किस प्रकार में श्रीमाता जी के प्रति अपना प्रम और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति करू? इस कार्य को भगवान के लिए कौन सी हस्तकला की वस्तु! सूर्य के लिए मैं तीन मिनट में कैसे करु? मैंने सोचा कि सहजयोगी बच्चों कौन सा दीपक!. चाद के लिए कौन सी चांदनी!. समुद्र के को श्रीमाता जी द्वारा प्रदत्त शक्तियों के बिना मैं इस कार्य कां नहीं कर सकता । श्रीमाता जी आप आदि मां हैं, बीसवीं श्रीमाताजी मुझे लगा कि हमारे पास कुछ एसी चीजें भी हैं शताब्दी में आप अवतरित हुई, किस प्रकार मैं तीन मिनट में आपका धन्यवाद कर सकता हूँ! आधुनिक समय की आप अवतार है, आप मानव को मोक्ष प्रदान करने के लिए आईं है, किस प्रकार में तीन मिनट में आपको धन्यवाद दे सकता समझ में नहीं आ रहा था कि मैं आपके लिए क्या उपहार लाऊ ! मर सम्मुख यह जटिल प्रश्न था । कला के सृष्टा लिए कौन से जल की वूंद ले जाई जा सकती है। तभी, जिनका आपके पास अभाव है। हम अंधर से प्रकाश की ओर चल सकते हैं। स्वतन्त्रता की ओर जा सकते हैं- आप नहीं, क्योंकि आप तो स्वतन्त्रता का सार तत्व हैं। हम अहम् और बन्धनों से मुक्त . आप नहीं चल सकती। हम दासता से हूँ! श्रीमाता जी आप सहस्रा-सहस्र सहजयोगियों की माँ हैं। उन्हें आपने आत्मसाक्षात्कार, जागृति और पुनर्जन्म का बहुमूल्य हाकर आनन्द एवं मान्यता की स्थिति की आर जा सकते हैं। परन्तु श्रीमाताजी आप दंवत्व का नहीं पहचान सकतीं क्यांकि आप तो जा है वह है, आप वही थी और सदा वही रहंगी । दिव्य उपहार प्रदान किया है। परमात्मा के अतिरिक्त कोई अन्य यह उपहार नहीं दे सकता । तो श्रीमाताजी किस प्रकार परन्तु हम आपका खोज सकते सकती। मरे मित्रो, भारत में 'लीला नामक शब्द का यही रहम्य है। परमात्मा को भी खांज के लिए हमारी चेतना की हुआ उच्छृंखल और लक्ष्यविहीन युवक था । आपने मुझे न हैं, आप एसा नहीं कर में तीन मिनट में आपको धन्यवाद दे सकता हूँ! मैं यदि अपने विषय में कहूँ तो जब मैं आपसे मिला था तब एक खोया । दंेवत्व का खाजना कितना अद्भुत है! आवश्यकता था हमारे विना आप यह कार्य किस प्रकार कर पातीं? तो कवल पुनर्जन्म, एवं आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया परन्तु इससे भी वहुत अधिक दिया । आपने मुझे भौतिक अस्तित्व दिया. एक सुन्दर परिवार प्रदान किया. अच्छा व्यवसाय दिया, सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान की. गौरव दिया और इससे भी अधिक बहुत कुछ प्रदान किया । श्रीमाता जी आपने मुझे श्रीमाताजी आपक जन्मदिवस के इस अवसर पर हम आपका अंधर से प्रकाश को आर, दासत्व से मुक्ति को आर ले जाने वाली यह तीर्थ-यात्रा भट करते हैं और शपथ लते हैं कि आपका संदश हम जन-जन तक पहुँचार्यंग और स्वयं को भी सहजयोग में पद प्रदान किया जिसके द्वारा मैं आपके दिव्य धारंगं । श्रीमाताजी हम अपनी गहन कृतज्ञता एवम् प्रम की म अभिव्यक्ति करते हैं। और अन्त में मैं कहंगा कि. कार्य में योगदान कर सकता हूँ श्रीमाताजी किस प्रकार तीन मिनट के समय में मैं आपका धन्यवाद कर सकता हूँ। तो श्रीमाताजी, हम इस भारत भूमि पर है, इसका हम आप एक कल्पना कर सकते हैं कि आज रात्रि के विपय में सोंचते हुए मैं कितने धर्म संकट में हूँगा ? यहां आने से एक गहन सम्मान करते हैं और आपसे प्रार्थना करते हैं कि विवेक को यह मूल भूमि आपके संदश द्वारा पूर विश्व को आशीर्वादित करतो रहे । अन्त में यह कहते हुए आपकी आज्ञा सं में घंटा पूर्व मुझे लगा कि मुझे प्रेरणा प्राप्त हो गई है और तब मैंने कविता की शरण ली : 6. बंतत्य लहरो खड : X अंक : 4 5. और 6 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-7.txt स्वयं को श्रीमाताजी के प्रति ' पुर्ण समर्पित' करते हुए हमारे सम्माननीय सर सी. पी. श्रीवास्तव नं अपनी पाण्डित्यपूर्ण शैली में इस प्रकार कहा : "रातों को चमकते हुए, खरबों सितारे. सौन्दर्य आपका वर्णन कर पाते नहीं. खरवों दिवस चमककर भी सूरज श्री निर्मलामाताजी, पहली बार मैने इन्हें 'माताजो कहकर सम्बोधित किया है : मैं सोंचता हूं कि इनके 75वें प्रकाश आपका प्रतिबिम्बित कर पाता नहीं, खरबों पौधों का पोषण करने वाली प्रकृति मातृत्व प्रेम में आप सम हो सकती नहीं. प्रातः बेला में आपकी स्तुति गाते हुए पक्षी, गुण आपके कभी वर्णन कर पाते नहीं, कोटि-कोटि पृष्ठ पुस्तकों के रंगने वाले विद्या विशारद आपके बिवेक की एक झलक दशा पात नहीं, सगीतज्ञों की खरवा धुनें आपकी एक मुस्कान सम हो सकती नहीं कवियों की खरबों कविताएं आपके दिव्य अस्तित्व का जादू कभी वर्णन कर पाई नहीं तीन मिनट में तब में किस प्रकार जन्मोत्सव के अवसर पर अब समय आ गया है कि में स्वयं को इनक प्रति पूर्ण समर्पित कर जी. श्री राहुल एवम् सहजयोगिनियों, माननीय अतिथिगण, भाइयों और बहनों इस स्मरणीय उत्सव में भाग लन के लिए आपक दें : श्री पटवा जी, श्री रिजर्वी बजाज जी. प्रिय सहजयोगियों का सम्मुख खड़ा हाकर में स्वयं को विशिष्ट रूप से भाग्यशाली समझता हूँ। श्री चिदम्बरम ने एक प्रश्न पूछते हुए कहा कि विश्व के कोने कोर्न से आए इतने सारे लोग किस प्रकार यहां एकत्रित हुए हैं: कीन सी शक्ति इन्हें यहां लाई है? में आपक सम्मुख एक घटना का वर्णन करना चाहूँगा जा सभवत: इस बात को स्पष्ट कर देगी कि किस प्रकार इस दिव्य महिला नं अपने समर्पण एवम् अथक कठोर परिश्रम से एक एक कदम करके सहजयोग का खड़ा किया । वर्ष 1974 का एक दिन मुझे याद आता है, लदन में मैन एक नाकरी ली थी और ऑक्सटैड और सरे (0xted & surrey) नामक स्थान पर हम रहते थे । यह स्थान लंदन से दूर है और मैं प्रतिदिन वहा से लंदन आया-जाया करती था धन्यवाद आपका कर सक? डॉ. ब्रियान वैल्स इंग्लैण्ड के सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सा निदेशक ने सहजयोग का 'पूर्ण विज्ञान, पावनविज्ञान, दिव्य विज्ञान' बताते हुए इस प्रकार कहा: मैं 24 वर्ष पूर्व को बात कर श्रीमाताजी और सहजयोगी भाई बहनों, । रहा हूँ । एक शाम जब में बर वापिस आया, तो घर पर श्रीमाताजी आपक जन्मदिवस की पूर्व संध्या की इस बला में आपके अपनी पत्नी एवं नौकरानी का दखने को मुझे आशा थी. परन्तु है! उनके स्थान पर बैठक के एक साफ पर गार रंग के एक युवा सम्मुख खड़ा होता कितने सम्मान की बात यह विनम्रता प्रदायक अनुभव भी है, एक वैज्ञानिक और औषध चिकित्सक के रूप में में आपके सम्मुख इस प्रकार खड़ा हूं मानों कैलाश पर्वत के सम्मुख रेत का एक कण । यहां मैं पावन भय, आश्चर्य विनम्रता एवम् प्रेम पूर्वक खड़ा महाविद्यालयां, विश्वविद्यालयों, पुस्तकालयों और कम्प्यूटरां में अथाह ज्ञान भरा हुआ है श्रीमाताजी जो विवेक आपने प्रदान किया है उसकी तुलना में यह ज्ञान पावन भेय न होकर अत्यन्त निररथंक है। जो विज्ञान आपने हमें पढ़ाया हैं वह पावन है, पूर्ण है और दिव्य है। श्रीमाताजी साधारण सा वन्धन डालना जो आपने हमें सिखाया है उसकी तुलना में सारी तकनीकी एवम् चिकित्सा विज्ञान तुच्छ है। श्रीमाताजी आप हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों से मुक्ति प्रदान करती हैं। कोई औपधि, कोई रसायन, कोई विज्ञान या अन्य कुछ इतना शक्तिशाली नहीं है जितनी शक्तिशाली आपकी प्ररणा एवम् प्रम है। आपिके जन्मदिवस के इस शुभ आपके विवेक के लिए मैं व्यक्ति को बैठा पाया । उसे वहां दखन को मुझे कांई आशा न थी । उसने मुझे देखा और मैंन उसे और दानों एक दूसरे की देख कर हैरान हुए कि हम कीत थे ! एक अन्य भ्रान्ति ी उत्पन्न करने वाली बात यह थी कि उसने मर कपड़े पहने हुआ हूँ । हुए थे, मेरा कुता और पायजामा किसी भूत को तो नहीं देख रहा हूँ ! में हाशा-हवास में ता हूँ! कहीं मुझे कुछ हा ता नहीं गया ! उन्हों कदमों से में वापिस मुडा और अपनी पत्नी के पास जाकर पूछा कौन है? उसने मुझे बताया कि उस दिन व पिकांडिली सकस गई थीं और वहां उन्होंने एक युवा व्यक्ति को उपंक्षित । में हेरान था कि कहीं मैं यह अवस्था में पड़ा हुआ दखा, स्पष्ट था कि वह वीमार है। तो वे उसके पास गई और पूछा कि क्या वात है? लड़के न कहा कि वह बहुत बीमार है, लगभग मर रहा है, और उसकी दंखभाल करने वाला कोई नहीं है। तब मरो पत्नी ने कहा कि मर साथ आओ; वह उसे अपने साथ घर ले आई, उसके अवसर पर, श्रीमाताजी आपका काटि-कोटि धन्यवाद करता हूँ और आपके लिए असंख्य जन्मदिवसों की कामना करता हैँ । धन्यवाद । स्नान का प्रबन्ध किया तथा उसके पास कपडे न हान के कारण उसे मेर कपड़े दिए । मुझे बहुत शक्ति मिली । मुझे बहुत गर्व था कि इतने प्रम और करुणा से व उसे घर लाई । चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 4.5 और 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-8.txt वह हमारे घर पर दो-तीन महीने रहा । उसका सहज-योग से उपचार किया गया और कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति । सुधरने लगी । उसका पीलिया रोग समाप्त हो गया. नशों और वे विश्व के दस लाख लोगों को परिवर्तित कर चुकी हैं. शराव से उसे मुक्ति मिल गई और आठ सप्ताह के समय में इनका वर्णन कर पाना असम्भव है। अभी कहा गया है कि उनके ( श्रीमाताजी) सम्मुख एक कार्य है, एक महान् कार्य विश्व में पांच अरब लोग हैं। अत: हमें इस विश्व में उनकी तब तक आवश्यकता है जब तक पूरे पांच अरब लोग परिवर्तित न हो जाएं। उर्दू के एक शायर ने कहा है- वह गुलाब के फूल की तरह से एक सुन्दर व्यक्ति बन गया! । लोग कहते हैं कि मैं यह मैन यह पहला चमत्कार दखा था मशीन ठीक कर सकता हूँ परन्तु मानव को ठीक करने का दावा करते हुए निर्मला जी के अतिरिक्त मैंने किसी को नहीं दंेखा । मानव का परिवर्तित करना कठिनतम कार्य है। करेवल दिव्य शक्ति और दिव्य प्रेम से ही यह कार्य किया जा सकता "तुम सलामत रहो हजारों बरस, दिन हों साल के पचास हज़ार ।" हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि आप हज़ार वर्ष तक जीवित रहें और हर वर्ष में 365 के स्थान पर पचास है और उस दिन उन्हांने यह चमत्कार कर दिखाया था । उसके हज़ार दिवस हों। परन्तु मैं इस से भी कुछ आगे जाना चाहूंगा और कहूंगा कि जब तक विश्व का हर व्यक्ति परिवर्तित नहीं पश्चात विश्व भर में उन्होंने ऐसे लाखों चमत्कार किए । श्री पटवा जी, में हर सहजयोगी को एक चमत्कार मानता हूँ और हर सहजयागिनी को एक परिवर्तन का अर्थ क्या है-पूर्ण अंतर्परिवंतन आत्मसाक्षात्कार, हो जाता तब तक हमें आपकी आवश्यकता है ताकि परिवर्तित । होने के पश्चात् हर व्यक्ति देवदूत बना रह सके । हूँ दंवदूत देवदूत; में कहता आप सबने जो प्रेम एवं स्नेह इतनी गरिमा पूर्वक मुझ पर वर्षाया उसके लिए मैं शाश्वत् दृढ़ एवं गहन रूप से सर्वशक्तिमान परमात्मा से सम्पर्क, परमात्मा के प्रेम की शक्ति से सम्पर्क । एक बार जब कोई व्यक्ति परिवर्तित हो जाता है तो उसे वास्तव में दवदूत कहा जा सकता देवदूतों की सामूहिकता, यह तो स्वर्ग का एक हिस्सा है जिसकी अध्यक्षता आदिशक्ति स्वयं कर रही हैं। क्या हम उनकी वास्तविकता को समझ सकते हैं? मैंने उनके 108 नाम लिए जाते हुए सुना है परन्तु वे इन 108 पदों से आपका कृतज्ञ हूँ। आज में आपसे अनुरोध करता हूं कि आप सब मुझे स्वीकार कर लें । अभी तक सहजयोग में मैं केवल एक शिक्षार्थी था, आज मेरा अनुरोध है कि मुझे अपनी ही तरह मानकर स्वीकार करें । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। है और यह उद्योगपति श्री राहुल बजाज ने इस अवसर सुप्रसिद्ध पर अपना हृदय उड़ेलते हुआ कहा "में यहां उपस्थित लोगों में से एक सौभाग्यशाली व्यक्ति हूँ जिसे वर्षों से श्री माता जी का अथाह प्रेम एवं स्नेह प्राप्त होता रहा है...' बहुत ऊपर हैं। वे असीम हैं, शब्दों से उन्हें सीमित नहीं किया जा सकता, मस्तिष्क से उन्हें समझा नहीं जा सकता । उर्दू के एक शायर ने कहा है- एक पुत्र के रूप में, क्योंकि कुछ अन्य में होना नहीं चाहता", उन्होंने कहा." मैं यहां पर श्री माताजी का धन्यवाद करने नहीं आया क्योंकि भारत में कोई पुत्र अपनी मां का में यहां आपसे (श्रीमाताजी से 'जो समझ में आ गया, वो खुदा क्यों कर हुआ? जिसे मानव का सीमित मस्तिष्क समझ ले वो परमात्मा धन्यवाद नहीं करता...।" ) अधिकाधिक प्रेम एवं आशीर्वाद की याचना करने आया हूँ |" किस प्रकार हा सकता है। अर्थांतु परमात्मा समझ से पर है। उनके असंख्य पहलू हैं, बहुत से पक्ष हैं, इतने अधिक कि म त 4. 5 और 6 1998 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-9.txt अभिनन्दन समारोह 20-03-1998 दिल्ली श्री निर्मला देवी का प्रवचन परम पूज्य माताजी जाना चाहिए, आत्म ज्ञान की ओर जाना चाहिए। आरम्भ में मानव के साथ यह घटित होना चाहिए अन्यथा हमारा चित्त आप सभी सल्य साधकों को हमारा प्रणाम । मेरे तथा सहजयोग के विषय में आप लोगों ने इतना कुछ कह दिया है कि मेरा हृदय दूर-दूरे से इस अवसर पर आए हुए आप सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता से भर गया है। सहजयांग समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस कलियुग में हमें अपनी स्थिति किसी प्रकार से आपका चित्त आत्मा की ओर चला जाए का ज्ञान हा हम किन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं? तो आप आत्मा की शक्ति बन जाते हैं। और आत्मशाक्ति हर जगह, हर देश में जिस प्रकार घटनाएँ घटित हो रहीं हैं उनके विषय में सोच कर आप परेशान हो जाएंगे समस्या बाहर की ओर है, हमें धन, सत्ता, प्रतिस्पर्धा तथा अन्य सभी प्रकार की चीजां की चिन्ता लगी रहती है। एक बार यदि सर्वोच्च शक्ति है। सर्वप्रथम आत्मा प्रेम करती है, विना कुछ आशा किए । बस प्रेम करती है। यह बन्धन मुक्त व्यक्तित्व है जोकि मात्र प्रेम प्रसारित करता है। किसी को क्या है? इतना अशान्त एवं तनावग्रम्त होने की लांगों को क्या आवश्यकता है? सामूहिक रूप से एवं किसी देश विशेष में, जहा भी जाते हैं, आपको एक प्रकार की भरान्तिपूर्ण स्थिति दिखाई पड़ती है। भयानक ! पूरा समाज ही विनाश के भय कष्ट हो, किसी को समस्या हा, तुर्न्त यह प्रेम प्रसारित होने लगता है। हृदय में प्रेम प्रसारण की यह शक्ति है। परन्तु हमारा चित्त आत्मा पर न होने के कारण यह कार्यान्वित नहीं हा पाती। राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्ध्य प्रकार के प्रयत्नों में भी चित्त से चिन्तित नजर आता है। कारण क्या है? आयोजित तथा अनायोजित सभी प्रकार के धर्म आदि हैं। बहुत से साधुसन्त हैं, बहुत सी पुस्तक लिखी गई है कि जाते हैं। आप बहुत यांग्य बनते जाते हैं परन्तु अचानक काई आपमें कौन से गुण हाने चाहिए । परन्तु केवल सत्य साधक (जिज्ञासु) ही देख सकता है कि इस विश्व में इतनी समस्याएं क्यों हैं और आप किस प्रकार इनके समाधान में सहायक हो सकते हैं। समस्या कहां है। समस्या मानव में है। जिस प्रकार हैं क्योंकि बाहर की आर रहने वाले चित्त में पावित्र्य नहीं वर्णन किया गया है हम पशु अवस्था से मानवावस्था में होता। यह चित्त कंवल आप पर होता है और वह भी बहुत विकसित हुए हैं। नि:सन्देह हममें मानवीय चेतना है। इस चेतना में हम हैं तो आपके कष्टों एवं दु:खों का काई अन्त नहीं हागा। मुझे बाहर की ओर होने के कारण आप प्रतिस्पर्धा में फंसत चल आपसे भी अधिक यांग्य व्यक्ति खडा हो जाता है । आपका चित्त यदि बाहर की ओर है तो बहुत से संघर्य सीमित अवस्था में । आप यदि कंवल अपने पर चित को रखते सभी प्रकार की चीजें देखने लगते हैं जो अच्छी नहीं विध्वंसक हैं और परंशान करने वाली हैं। यदि ये आपको परंशान नहीं करतों तो इसका अभिप्राय हैं कि आप संवेदनशील है, कहीं भी सोने में, कहीं भी खाना खाने में, परंशानी नहीं हाती। मैं इन चीजों की विल्कुल चिन्ता नहीं करती । यह सत्य है क्योंकि यह सब महत्वहीन है। परन्तु सम्भवत: मरी रचना ही एसी हुई है। टीक है, परन्तु सहजयोगी भी एसे ही बन गए हैं। नहीं है। परन्तु मानव रूप में आप संदवदनशील हैं। इसका क्या कारण है? जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे ये राजनैतिक हो. आर्थिक हो या कोई आर एक सूक्ष्म समस्या है जिस लोग नहीं समझते । अब यदि मैं कहती हैँ कि हमारे अन्दर आत्मा है. यह यह चमत्कार है कि मनुष्य अपना चित्त आत्मा पर ले गया है! आत्मा पर चित्त ले जाने के पश्चात् आप हैरान होते हैं कि किस प्रकार विना किसी प्रतिस्पर्धा, बिना किसी लड़ाई-झगड़ के कार्य होते हैं! किस प्रकार आपका चित्त आत्मा पर स्थापित हमारे हृदय में चमकती है, तो आपको मुझ पर विश्वास करने की कोई आवश्यकृता नहीं है। परन्तु हमारा चित्त बाहर की ओर है। इसे आत्म-विमुख कहा जाता है, अर्थात हमारा चित्त बाहर की ओर है। इस मानवास्था में हमारा चित्त बाहर है, भिन्न हा सकता है? सर्वप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है, आप सुस्वस्थ ही जाते हैं। और इस प्रकार बहुत सी समस्याओं का समाधान हा जाता है। विश्व में मानसिक तनाव और गंद भाजन बाह्य वस्तुओं पर । हमारे चित्त को क्या प्राप्त करने के लिए और विकसित होने के लिए कहां होना चाहिए? किस चीज को प्राप्त करने के लिए? सर्वप्रथम अब हमारे चित्त को आत्मा पर आदि- के कारण 30 प्रतिशत लोग सदैव वीमार रहते हैं। सर्वप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है। आर चतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : 4. 5 और 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-10.txt के प्रेम की यह दिव्य शक्ति केवल प्रेम ही नहीं है यह शान्ति, आनन्द एवम् उच्च विवेक भी है। सामान्य मानव के सहजयोग में लांगों ने समझ लिया है कि आधुनिक, आर्थिक गतिविधियों ने किसी को शान्ति प्रदान नहीं की हम अमेरिका को लें । मैं अमेरिका गई. बहुत से अमेरिकन लोगों लिए इसे समझ पाना अत्यन्त सूक्ष्म कार्य है। यह सब मैं को जानती हूँ । वे कितने परंशान हैं। उनके परिवार उनके है। बच्चे बर्वाद हो गए हैं। सभी बेवकूफी की बातें हो रही हैं। हमारे भारतीय गुरु वहां जाकर धन बना रहे हैं । अमेरिका के लोगों को कंवल शान्ति चाहिए, हार्दिक शान्ति । यह तभी सम्भव है जब आपका चित्त आपके हृदय पर जाता है, क्योंकि अत्यन्तु आवश्यक है। हृदय में आत्मा का निवास है और आत्मा ही शान्ति का स्रांत है। तो पहला प्रेम है और दूसरी शान्ति है। आप अत्यन्त शान्त हो जाते हैं । साक्षी भाव होकर सारे नाटक को आप एक मजाक की तरह से दंखते हैं। किसी चीज़ की चिन्ता करने हैम जानती है। लोग जानते हैं कि व्याक्ति आत्मा बन सकता यह विकास प्रक्रिया है। आज आत्मा बनने का समय है। बसन्त ऋतु का यह वरदान है। लोगों को आत्मा बनना है नहीं तो उनका अन्त न जाने क्या होगा । आज आत्मा बनना का सभी सन्तों, पैगम्बरों, धर्मपरायण लोगों ने इसके विषय में बताया परन्तु हमने उनकी बातां की तोड़-मरोड़ करके भिन्न मत वना लिए । फिर भी एक सर्वसाधारण बात यह है कि आप आत्मा है और आत्मा बने बगैर आप शान्ति, आनन्द और प्रेम प्राप्त नहीं कर सकते । यहां उपस्थित सहजयोगियां न यह सव प्राप्त कर लिया है। वह नहीं सोंचते कि वे विदेशी , म । की कोई आवश्यकता नहीं । सभी कुछ होता रहता है। तो व्यक्ति को यही बनना है - आत्मा बनना है। आत्मा है। इस देश के हैं या उस देश के । इस शिविर में सोने खाने नहाने आदि का अच्छा प्रबन्ध नहीं है फिर भी वे आनन्द ले जोकि आपकी अपनी है, जो आपके में है और जो प्रेम का, तथा शान्ति का स्रोत है। तीसरी चीज जो आपके साथ घटित होती है वह यह है कि आनन्द क्यांकि आत्मा का स्रोत है अत: आनन्द आपके जीवन में उमड़ पड़ता है। इस हृदय रहे हैं। असुविधाओं की चिन्ता किसी को नहीं। नि:सन्देह किसी देश विशेष के कुछ संस्कार बचे हुए हो परन्तु वे भी छूट जाते हैं शनै: शनै: ये कुसंस्कार उसी प्रकार झड़ने लगते है जैसे फल बनने पर फूल झड़ जाता है। फूल की सभी पंखुड़ियां झड़ जाती हैं और वह फल बन जाता है । अब आप भी फल बन गए हैं। ज्ञान, विवेक एवम् प्रेम के फल। ज्ञान के लिए पुस्तकें पढ़ने की आपको कोई आवश्यकता । अधिक पढे-लिखे निवास हृदय में है। यह मस्तिष्क में नहीं रहती । मानसिक लागों को सहज में लाना कठिन कार्य है। आपको स्वयं मात्र प्रकार से येह उमड़ता है कि आपकी समझे में नहीं आता कि किस प्रकार आनन्द के इस महान सागर से बाहर आएं । आप इसम तेरने लगते हैं और इसका पूर्ण आनन्द लंने लगते हैं। विश्व भर में जाकर लागों के हृदय छूकर आप इस आनन्द कं सभी तट छु लेते हैं । मैं फिर कहती हूं कि आत्मा का नहीं, इसकी काई आवश्यकता नहीं गतिविधियां आपको आत्मा तक नहीं पहुंचा सकती । इतना देखना है कि वास्तविकता क्या है? और यह साक्षात्कारी आत्मा पर चित्त रखने से ही आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है और यह घटित हाना तभो सभव है जब कुण्डलिनी की जागृति हो जाए जाना, पृर्ण शान्ति एवम् आनन्द का आपका प्राप्त हो जाना आपके चित्त के आत्मा पर स्थित होने के कारण है। अब आप व्यक्ति वन जाने पर ही संभव है। अन्यथा आप विश्व के भ्रम में ही खा जाते हैं। भ्रमों में फंस कर संचर्ष करते हुए लड़ते जीवन के दृष्टिकाणं का परिवर्तित हा हुए आप जीवन-यापन करते हैं और अन्त क्या होता है यह में नहीं कहना चाहती । सहजयांग में आकर आपकी विकास प्रक्रिया में एक विशेष चीज जो घटित हुईं है वह है आपके चित्त का आत्मा पर चले जाना । आत्मा की शक्ति प्रापत होते ही आप स्वयं को हर क्षेत्र में सफल पात हैं। आप कुछ नहीं नहीं सांचते । धन आपको सहज ही में प्राप्त धन के विपय में हो जाता है। आप शक्ति के बारे में नहीं साचते । सत्ता आपको स्वत: ही मिल जाती है। ऑर आत्मा को शक्ति हो स्वांच्च चाहते, आप कुछ नहीं मांगते । फिर भी आपको सभी कुछ है अत्यन्त शक्तिशाली एवम् धर्मपरायण । आवश्यक नहीं कि आप सन्यासी साधुवाबा बन जाए और सभी प्रकार के भी आप बुरा नहीं मानते । सोचते हैं ठीक है. इसे भूल जाओ। कमंकाण्ड करें। कर्मकाण्ड अनावश्यक हैं। आत्मा का निवास तो छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते रहने का, इनके लिए आपमें है। पुर्व जन्मों में आप सभी कर्मकाण्ड कर चुके है। इस जन्म में आपने कंवल चित्त को आत्मा पर रखना है और कं लिए सभी को क्षमा करना आवश्यक है। हो सकता है यह कुण्डलिनी आपको अपनी प्राप्त हो जाता है। कोई यदि आपके साथ ज्यादती कर दे तो याचना करने को कोई लाभ नहीं । परन्तु इस स्थिति को पाने काई व्यक्ति असंगत हो. आपको हानि पहुंचाने का प्रयत्न करता हो. ठीक है मैं उसे क्षमा करता हूँ। वह मुझे सिरदर्द देन की कोशिश कर रहा है परन्तु मैं वह सिर दर्द नहीं लुंगा। मैं उस क्षमा करता हूँ। यही महत्वपूर्ण बात ईंसा ने कही थी कि आपको क्षमा करना होगा । 'आदि मां की जागृति द्वारा ही संभव है। जब यह उठने लगती है ता सभी चक्रों को पता भदती हुई उनका पांषण करती है. उन्हें संघटित करती है और सिर के तालू भाग (सहस्रार) का भंदन कर परमात्मा कं प्रम की सबंध्यापो शक्ति से आपका सम्बन्ध जाड़ती है। परमात्मा 10 खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 चतऱ्य लहरी 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-11.txt मोहम्मद साहब ने भी बहुत कुछ बताया है । मेरी भुलाया नहीं जा सकता । परन्तु उसकी मृत्यु हा गई और समझ में नहीं आता कि लोगों ने उनकी बातों को किस प्रकार आज अचानक, आप दंखते हैं कि जर्मनी के लोग कित्तन तोड़ मरोड़ दिया ! इंसा ने बहुत कुछ बताया, उन्हें भी लोगों साक्षात्कारी हैं। मैं आश्चर्य चकित थी कि किस प्रकार लोंग ने अपने हिसाब से परिवर्तित कर लिया । सभी ने एक ही प्रेम एवं परमात्मा के विषय में प्रबुद्ध हैं। ये सभी देश, मैन बात कही कि. 'आपको आत्मा बनना होगा । परन्तु उनके कथनों को तोड़-मरोड़ कर बहुत से धर्म बना लिए । धर्म में नहीं की जा सकती । आप इंग्लेण्ड की कल्पना कीजिए जा लड़ने की क्या आवश्यकता है? यदि परमात्मा एक ही है तो धर्म के नाम पर झगड़ा नहीं होना चाहिए। अब सहजयांग में बहां वहुत से सहजयोगी है और जब मैं प्रवचत देती हूँ ता भिन्न स्थान, भिन्न देशी, भिन्न आदर्शों से लोग आत हैं। सहज देखा है, बहुत अच्छी तरह चल रहें हैं। इतनी ता आशा भी भारत आया और यहां तीन सी वर्ष तक राज्य किया । आज सभागार लोगो से भर जाते हैं। यही चीज मैंन रूस जैसे दशां योगियों की एक महान बात यह है कि वे पावन हैं, उनमें बहुत पवित्रता है। सजह योग में चरित्रहीनता की समस्या नहीं है कोई भी चरित्रहीन दिखाई नहीं पड़ता । चरित्रहीन, धोखेवाज, भ्रष्ट यदि कोई हो तो वह सुधर जाता है। क्योंकि आत्मा आपको स्वयं को दंखने के लिए प्रकाश देती है कि आपके क्यों? मूलत: हित में क्या है। आप यदि चक्षुहोन हैं ता सड़क पर चलते हुए नहीं है। इनमें आध्यात्मिकता का कोई स्थान न था । यह सब आप खड्डे में गिर सकते हैं परन्तु यदि आप अपनी आंखों बाह्य प्रयत्नों पर आधारित थे और यह प्रयत्न बहुत ही से देख सकते हैं तो आप जानते हैं चलना है सहजयोग में यही घटित हो रहा है लांग जान गये खड़ी हा जाती है। अब आप दखें कि विश्व का आर्थिक है कि किस प्रकार चलना है और किस प्रकार पतन से बचना है मैंने पतित लोगों को भी देखा है परन्तु उनके लिए भी मेरे हृदय में प्रम है, क्योंकि वे अन्धे थे । किसी भी अन्धे व्यक्ति है कि हमें गरीबी कां दूर भगाना है मैं सहमत हूँ। परन्तु के लिए आपके हृदय में प्रेम के अतिरिक्त क्या हा सकता है? उपहार दे कर नहीं, आत्म साक्षात्कार द्वारा आप यह कार्य कर कोई यदि मुझे गाली भी दे दे तो भी में उसे क्षमा कर देती हूँ क्योंकि वे नहीं जानते कि बे क्या कर रहे हैं। वे चक्षुहोन है। आप सत्य मार्ग पर खड़े हैं अत: किसी ने यदि आपका हानि भी पहुंचाई हो तो भी आप उसे क्षमा कर दें। तो में देखी है जा कि प्रजातन्त्र होन के पश्चात् पतन के कगार पर थे । प्रजातन्त्र या साम्यवाद आदि तो कवल 'वाद' हो है उनसे बाहर निकल कर आपको देखना होगा कि यह प्रजात्र राक्षसतन्त्र बन गया है और साम्यवाद भी असफल हो गया है। उनमे क्या दाप है? आध्यात्मिकता उनका अधार सीमित थे । एक बार जब यह सीमाएं टृट जाती है तो समस्या कि आपका विस प्रकार ढाचा चरमरा रहा है; हर जगह मन्दा है। वा यदि इतने विशेपन हैं तो फिर ये मन्दा क्यां है, य समस्यायें क्यां हैं? लांग कहते सकते हैं। इच्छुक लोगों के पास जा कर सहजयाग द्वारा आप उन्हें वैभवशाली वना सकते हैं। आप हैरान होंग कि वस्वयं बहतर कार्य करेंगे और गरीबी को दूर भगायेंगे । विदेशों में लांग पूछा करते थे कि श्री माताजी आप आध्यात्मिक जीवन के विषय मं वात करती है. परन्तु भारत निर्धन क्या है। मसा उत्तर होता है कि आध्यात्मिकता में मामले में चाह वं निर्धन हों। जिन लांगों के पास बहुत धन है दूसरी हैं असत्य की नहीं । बात यह है कि आत्मा सत्य का सात वे निर्धन नहीं है। धन क उदाहरणार्थ यदि कांई कुगुरु है ता आप तुरन्त जान जायेंगे । कैसे? अपनी चैतन्व लहरियों से, अपनी अंगुलियां क्रे सिरों पर कि यह व्यक्ति झुठा है। माहम्मद साहब ने बताया है कि पुनउंत्थान के समय आपके हाथ बोलेंगे। किसी भी कप्ट के इसी प्रकार जा लांग निर्धंन है क्या व कांई अच्छाई नहीं कर क्या व अच्छ लाग है? क्या व कुछ अच्छा कार्य कर रहे है? समय वास्तव में ऐसा हो होता है। अंत: यदि आप चाहें तो रहे ताकि उन पर करुणा की जा सक । जब दानां ही तरह के लोग दु:खी हैं तो उन्हें परिवर्तित करने के लिए हमं क्या करना चाहिए? जीवन के प्रति पुर्णे दृष्टिकोण हो परिवर्तित कर देना चाहिए । आत्म साक्षात्कार के पश्चात मैंने दखा है हैं व ल उस व्यक्ति को टाल सकते हैं और चाहें तो उसे मार्ग पर ला सकते हैं। परन्तु आरम्भ में हमें उलझो हुए चरित्र के लोगों को सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. नहीं तो वह आपका कि धनी लोग एकदम निर्धनता का समझने लगत हैं। अपना धन दूसरे लागों के माथ बांटन लगते हैं और इस तरह से चोजें कार्यान्वित हांने लगती हैं। सहज यांग में, आप हैरान हांगे किस प्रकार लांग एक दूसरे की सहायता करते हैं । किसी की भी कठिनाई या समस्या की किस सुन्दरता सें व भी उलझा देंगे । लाग अब सहज योग में परिपक्व हो गय और सुगमता से इन समस्याओं को सुलझा सकते हैं । हम यह भी जानते हैं कि सभी तत्व हमारे लिए कार्यरत हैं। विश्व की सारी घटनायें केवल यह दर्शाने के लिए हैं कि गलत चीजें तो गलत ही हैं और किस प्रकार अच्छे कार्य किये जाने चाहिए। उदाहरण के रूप में जब हिटलर आया तो उसने लोगों का वध करना शुरू कर दिया। अपनी सत्ता स्थापित करने के शक्ति से हमें यह विवंक प्राप्त करना है। सभी धर्मों में इस लिए उसने सभी प्रकार क उल्टे-सीधे कार्य किए जिन्हें दूर करने का प्रयत्न करत हैं ! परमात्मा की इस सर्वव्याप शक्ति का वर्णन किया गया है। इस 'निराकार ', 'रूह', परम चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 4. 5 ओर 6 1998 11 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-12.txt करना है। यह भावना तभी आ सकती है जब आपकी कुण्डलिनी जागृत हो । मैं जानती हूँ कि माहम्मद साहब, ईसा मसीह, अब्राहम या मोजिज आदि. जिन्होंने धर्मग्रन्थों की सृष्टि की है, ने कभी भी नहीं सोचा था कि लोग आयोजित रूप चैतन्य, कहा गया है। आप इसे किसी भी नाम से वुला सकते हैं, नाम ही सभी कुछ नहीं है। एक बार जब आप इस शक्ति से जाते हैं तो आ्शीवादित हो जाते हैं। हजारों बार जुड़ आश्शीवादित होने के पश्चात आप एक सामान्य मानव बन का से धर्म बना कर इस प्रकार चलने लगेंगे मानो वे एक दूसरे । यह विरोध दूर करने के लिए आपको उन्हें ज्ञान देना होगा, शुद्ध ज्ञान, पुस्तकों का ज्ञान शुद्ध ज्ञान ही विवेक है। इसी विवेक से मैंने मुझमें यह विवेक था किसी ने मुझे यह ज्ञान दिया नहीं-यह विद्यमान था । इसी विवेक ने मुझे सिखाया कि मानव की जो भी दशा हो, जो भी उसकी शैली हो, जितने भी उसमें अहम् और बन्धन हों. यदि पाते हैं। सामान्य मानव को उसके प्रयत्नों के अनुकूल ही फल प्राप्त होते हैं। परन्तु सहजयोगी को बहुत अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ता. स्वत: ही वह उस स्थिति में चला जाता है। वह शक्ति, वह दिव्य शक्ति आपका वहा तक ले आती है नहीं, शुद्ध ज्ञान । आर यह बात आपने अपने जोवन में देखी है। किस प्रकार के विरोधी हों| परन्तु ऐसा हुआ कार्य किया है। शैशव काल से ही आप मरे पास आये थे? किस प्रकार आप सहजयोग में आये? इसी दिव्य शक्ति ने यह सब कार्य किया । आप यह महसूस करें या नहीं परन्तु यह (शक्ति) सहज है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आप अपने जीवन के विषय में सांचन मात्र से कि मैं वह प्रेम को महसूस कर सकता है तो उसकी आत्मा जागृत हो जाती है। यह परिवर्तन घटित हो चुका हैं। किस प्रकार सहजयाग में आया, किस प्रकार मुझे यह प्राप्त हुआ. आपका लगेगा कि यह शक्ति आपके हृदय पर शान्ति, प्रेम एवम् स्नेह की वर्षा कर रही है। जैसा इन्होंने अभी कहा कि मेरे पास बहुत-सी शक्तियां हैं, हो सकता है, में नहीं विश्वभर में जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया है उनका कवल एक प्रतिशत यहां उपस्थित है, परन्तु जा लोग आज यहां नहीं हैं मैं उन्हें जानती हूँ. और वे लोग मुझे जानती, परन्तु एक बात निशचित है कि सहज यांगी मेरी सभी शक्तियां का प्राप्त कर सकते हैं। याद हैं। वे साधक हैं और पागलों की तरह से उन्होंने सत्य को खोजा, इस साधना में उन्होंने बहुत से कष्ट सहे । उन्हें कई कुगुरु मिले और बहुत -सा धन उन्हें बर्बाद करना पड़ा। सभी कुछ उन्होनें किया परन्तु सहजयोग में आ कर ही वो माँ सहजयोगियों को सभी कुछ देना चाहती हैं। अपने हुए दंखना बेटे-बेटीयों को अपनी ही तरह से विकसित होते पे माँ के लिए महानतम आनन्द है। मर जीवन का एक महान् सत्य को प्राप्त कर सक! सत्य बहुत सरल है कि आप आत्मा है। आप यह शरीर या बुद्धि नहीं हैं, आप आत्मा यही सत्य है। यही सत्य है और उन्हांने सत्य को पा लिया है। यह सत्य कि स्वप्न है और आज में उसकी स्षष्ट तस्वार दख रही हूँ। मैं और उन्होंने आत्मा का प्राप्त कर लिया है। एक सर्वसाधारण गृहणीं थी जिसके पास बहुत अधिक धन भी न था । आप जानते हैं कि धन में मरी कोई रुचि नहीं है। बैंक मंरी समझ में नहीं आते, मरा चेक कोई और हस्ताक्षर करता है और मरे पति को मेरे लिए रुपये गिनने पड़ते हैं। इस मामलं में में इतनी दुबल हूं । फिर भी मुझे कभी भी समस्या नहीं हुई -क्यांकि मानव के अन्तरनिहित लालच ही सभी समस्याओं का जन्म दंता है। एक बार यदि व्यक्ति सवूरी सीख ल ता स्वतः ही लालच छूट जाता है और व्यक्ति पूर्णतः सुखी हो जाता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि साधु बावा या सन्यासी बन जायें या सभी कुछ आप आत्मा हैं, जब आपके अन्दर स्थापित हो जाता है तो कुछ भी न ता आपका हानि पहुंचा सकता है और न ही आपका नाश कर सकता है। आपको काई इच्छाएं भी नहीं रह ान जाती। जब आप आत्मा बन गये तो फिर आपको क्या इच्छा हां सकती है? आप में इतना सन्तोष आ जाता है! ऐसा व्यक्ति न तो किसी की भर्तस्ना करता है न किसी के पीछे दौड़ता है। वह सन्तुष्ट होता है, पूर्णतः सन्तुष्ट । मेरी तीव्र इच्छा थी कि मैं अत्यन्त सामान्य जीवन गुजारू, हिमालयवासी सत्य साधकों की तरह से न बनू क्यांकि आम लोगों के लिए सामन्य जीवन ही आवश्यक है। आज यह सामूहिक जागृति है। यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है। मान लो कोई आविष्कार होता है और यह किसी एक व्यक्ति के लिए है की है कि आप अपना चित आत्मा पर रखें। अपने अन्तःस्थित तो यह अर्थहीन है। यह जन- जन तक पहुँचना चाहिए । में आत्मा पर जितना अधिक से अधिक आप अपने चित्त को जानती थी कि मुझे यह कार्य करना है। लोग कहते हैं कि नहीं सोंचती मैंने आप लोग त्याग दें । ल्याग के वे दिन चले गये हैं, वा सारे कष्ट आप सह चुकं हैं। आप हिमालय में रह चुकं हैं. सिर के भार खड़े रह चुके हैं और सभी प्रकार की तपस्याएं कर चुके हैं। अब इसको काई आवश्यकता नहीं है। अब आवश्यकता इस बात मुझे इसके लिए कार्य करना पड़ा. परन्तु मैं कुछ किया । में तो इसकी एक साक्षी मात्र थी । एक साक्षो के रूप में हर चीज का आनन्द लेते हुए मेंने इसे देखा. बिल्कुल उसी तरह से जिस प्रकार समुद्र के तट पुर बैठकर रखंगे, जितना बाह्य चीजों से चित्त को हटायंगे उतना ही आप इसके लिए आपका वाहर संे कुछ नहीं लाभान्वित होंगे । लाना पड़ता और न ही कुछ साखना पड़ता है। यह आप सभी के अन्दर है, आपके हृदय में है। आपको इसे केवल महसूस चंतन्य लहरी 12 = खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 नंक 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-13.txt तो करना ही चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वजा ं नें माताजी हमें कुछ आप लहरों को आते जाते देखते हैं। परन्तु व्यक्ति के अन्दर यहां के बहुत से लागों की हत्या की थी । मेरा हृदय उन्हें आप देखे कि उनमें क्या परिवर्तन आ गया है। तत्पश्चात् वे इज़राइल गए और वहां से बहुत से सहजयागी मिस्र आए । मैंने इजराइल के सहजयांगियों से पूछा कि आप यहां क्यों आए? तो वें कहने लगे कि श्रीमाताजी का मानव विकसित हाना चाहता है., आत्मा बनना चाहता है। भ्रन्यवाद देने लगा । तब वह सोचने लगता है कि दूसरों का क्या हित कर सकता है। अभी तक मैं बहुत उत्सुक थी कि लोग सहजयोगी बनें। मैंने धर्मप्रचारकों या सामाजिक कार्यकर्ताओं का कार्य नहीं सहज यांग शुरु करने से पूर्व में सामाजिक कार्य किया करती थी परन्तु बाद में मैंने महसूस किया कि लोगों को परिवर्तित किए बिना और आत्मा बने बिना आप भी अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह से हो जाएगे । में एक अन्ध विद्यालय में कार्य करती थी. अन्ध विद्यालय की मैं अध्यक्षा अपनाया । मिस्र के सहजयोगियों को मित्र बनाना हमारा कार्य है। आप ध्यान से देखें कि किस प्रकार प्रेम जीवन के सभी भेद-भावों तथा कांटा को निगल लता है तथा इन्हें पूर्णत: समाप्त कर देता है। अपने प्रेम को दूसरों पर कार्यान्वित हात हुए देखना बहुत आन्नददायी है। छोटी-छंटी और बड़ी-बड़ी चीजें, प्रंम से सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है। उदाहरणतः, कारखानों में हड़तालों की समस्या है, एक सर्वसामान्य संघर्ष है कि ऐसा होना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए.। परन्तु यदि आप लोगों की आध्यात्मिक आवश्यकता के अनुसार उन्हें आध्यात्मिक त थी । अपने साथ के लोगों को देखकर मैं हैरान थी कि वे किस प्रकार के अटपटे लोग हैं गवर्नर आने वाले थे और वे ये सब कहने लगे कि गवर्नर के पास कौन बैठेगा? मैनं पूछा क्या है? वे कहने लगे कि अध्यक्षा होने के नात आपको गवर्नर के समोप बैठना चाहिए। मैने कहा कि यह आवश्यक नहीं है, मैं कहीं भी बैठ सकती हूँ। परन्तु इस बात को लेकर मैने कहा ठीक है हम एक पलंग गवनर के बुलान्दिया तक उठा सके ता, आप हैरान होंगे. किसी औी प्रकार की कोई समस्या न रह जाएगी । इसको आज अत्यन्त आवश्यकता है। यह एक प्रकार का साम्यवाद है, एक प्रकार वे झगड़ने लगे । सिर पर रख देंगे और चिड़ियों की तरह से उस पर बैठ ने कार्य किया और वे सब शान्त हो गए। का समाजवाद है, एक प्रकार का प्रजातंत्र है। सारी चीजों के ताल-मेल से हो कार्य हाता है। कुछ सहजयागी इसका आयोजन करना चाहते थे । उन्होंने प्रछा कि श्रीमाताजी हमें क्या करना चाहिए? मैंन कहा, में कुछ नहीं कहूंगी, आपकी आता कि किस प्रकार मानव बेवकूफी भरी चीजों के प्रति जा इच्छा हा आप करें, जा आपको पसंद हो बा छांट लें और जो करना चाहे करें और में घर में पुष्प सजाने में व्यस्त हा गई. क्यांकि बहुत से फूल आए थ और मुझे इनकी चिन्ता धी। फूलों को ठीक-ठाक करते हुए मुझे पता चला कि उन सहजयोगियों ने सारा कार्य सुन्दरतापूर्वक कर दिया है। न काई न कोई बहस कुछ भी नहीं । किस जाएगे इस मजाक पदवी का अहम् मात्र मुर्खता है। चीटियां भी जानती हैं कि सामूहिकता में कार्य किस प्रकार करना है। मरी समझ में नहीं मरा जा रहा है। केवल एक ही कारण हो सकता है कि बह अभी आत्मा नहीं बना । यही कारण है कि वह अपना सम्मान नहीं करता और सभी अपमान जनक कार्य किए चला जाता है। मुझे लगा कि इस प्रकार का कार्य करने वालं लाग स्वयं को अति महान मान वैठते हैं। कोई अच्छा कार्य जब आप करने लगते हैं तो क्यों आप स्वयं को महान समझ लें? मेरी लड़ाई हुई, न झगड़ा. प्रकार उन्होंने यह सब कर दिया? वैसे आप दूस लोगों को साथ बिठा दें तो वे एकमत नहीं हो पातं । एक वोलेगा दूसरा मरा समझ में नहीं आता । इस मामले में मेरा मस्तिष्क बेंकार है क्योंकि मुझे लगा कि मेरे साथ कार्य करने वाले ये लोग श्रेय लने के लिए उत्सुक रहते थे। कांई अध्यक्ष बनना चाहता था तो कोई उपाध्यक्ष । मैंन कहा आप सभी बालेंगा, बहस चलती रहंगी परन्तु परिणाम कुछ भी न हांगा या फिर कंवल एक ही व्यक्ति उस कार्य का करें अन्यथा । के सारे वातावरण कार्य हा ही न पाएगा ता सहजयाग मानव कुछ बन जाइये । को. उसके दृष्टिकोण का, उसके प्रयत्नां को परिवर्तित कर देता है और सभी कुछ आनन्ददायी हा जाता है। यही प्रजातंत्र है। आप समाजवादी भी हैं क्यांकि आप पिछड़े हुए, धनहीन दरिद्र लांगों के विषय एसा कार्य करना चाहते हैं जिससे उन्हें कुछ पेसा मिल सकें। अपने पिताजी के साथ एक मुकद्दमे के सिलसिले में मैं चांदा जिले जाया करती थी । वहां मेंने कवल एक वस्त्र पहन लांगों को देखा 1 मेरे लिए यह आघात था। सर्दों हा या चित्त का पदोन्नति पर बने रहना वास्तविक पदोन्नति नहीं है। हर आदमी उन पर हंसा करता था। यह अवनति है। आपका उन्नति तो केवल आपकी आत्मा के माध्यम सं ही हो सकती में भी सांचते हैं और उनके लिए कुछ हैं। शारीरिक अस्तित्व बहुत बड़ी चीज है परन्तु आत्मा है और प्रकाश की तरह से आपमें अत्यन्त सूक्ष्म और निवास करती है। यह आपके अन्तर्निहित प्रकाश है। मुन्दर बहुत से सहजयागी अन्य लागों का साक्षात्कार द सकते हैं। कुछ लोग पूरं विश्व में जा रहे हैं। मैं हैरान थी कि पहली बार जब में रूस गई तो मरी सहायता करने के लिएउनके लिए तुम क्यों रोती हो? मैं कहती वहां जमंनी और आँसट्रिया से बहुत से सहजयोगी आए । मैंनं हुए गर्मी, कंवल एक वस्त्र! मैं रोया करती थी, मंेरे पिताजी कहते. - और मैं क्या कर सकती हूँ? उनकी बेहतरी कं लिए मुझे कुछ करने का प्रयत्न पूछा आप यहां क्या कर रहे हैं! ता उत्तर मिला कि श्री ता करना ही चाहिए । 13 चंतन्य लहरों खड : x अक : 4, 5 ओर 6 199% 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-14.txt अब जब इतने सहजयांगी हो गए तो मैंने उनसे बताया अच्छे किस्म के लोग हैं जिनके पास बहुत ही अच्छा हृदय है। कि किसी पकार में इन लोगों की सहायता करना चाहती हूँ। उनके पास अत्यन्त विशाल हृदय है और जिस प्रकार वे वे मिट्टी के बर्तन बनाते हैं । तो उन्होंने कहा. श्रीमाताजी. सहजयोग को पूरी इटली में फैला रहे हैं वह प्रशंसनीय है। मैं ठीक है आप उनसे बर्तन मंगवाएं हम इन्हें बेचेंगे । आप हैरान हैरान हूँ कि किस प्रकार वे उन लोगों तक पहुंच जाते हैं जिन्हं आत्मा के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं और किस प्रकार व उन लोगों को एकत्र करते हैं! हमें नशा बन्दी के लिए नहीं कहना पड़ता. हम नशील पदार्थ संवन के लिए मना नहीं होंगे कि अब इन लोगों के पास रहने के लिए घर हैं और अब ये अच्छी तरह से अच्छा जीवन बिता रहे हैं । तो एक प्रकार से, यह समाजवाद है, कि आप समस्या को देखते हैं और सामूहिक रूप से इसका समाधान करना जानते हैं। करते । सहजयोग में कोई मनाही नहीं है। स्वतः सब बुराइयां सामूहिक रूप से, अकले नहीं । सभी सहजयोगी इस वात की छूट जाती हैं. मुझे नहीं कहना पड़ता कि एंसा मत करो । स्वत: ही सारी बुराइयां छूट जाती हैं। इस बात पर आपको सलाह देते हैं कि श्रीमाताजी इसी प्रकार इस समस्या का समाधान हा सकता है। अभी तक मेंने स्वयं कोई संस्था आदि हैरानी होगी । एक बार एक कार्यक्रम में दीपक जलाने थे बनाने का कार्य नहीं किया है । अब जबकि हृदय में ध्यान करने वाले इतने सारे सहजयांगी हैं, मेरा चित उन लोगों पर ज परन्तु किसी के पास माचिस तक न थी । क्या आप सोच सकते हैं-किसी के पास माचिस न थी । हजारों लोग बहां थं परन्तु किसी के पास माचिस न थी । मैंने कभी नहीं कहा 'एसा करो ऐसा मत करो'. परन्तु सब कुछ हा गया। मैं नहीं जानती कैसे, किस प्रकार आपकी सारी बुराइया छूट गई! यह जा रहा है जिन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है। अंत: पहली बार मेंन उनसे आश्रय विहीन महिलाओं और बच्चों के लिए, जिन्हें उनके माता-पिता ने त्याग दिया है, एक गैर-सरकारी संस्था (NGO) वनाने के लिए कहा। आप हैरान होंगे कि बड़ी सहज बात है। एक वारे जब आप आत्मा के प्रकाश में आ जाते हैं तो आप कोई बुरा कार्य करते ही नहीं । सभी गुरुओं और पैगम्वरों ने शराब पीने को मना किया है। उदाहरणार्थ, सिखों और मुसलमानों को शराब न पीने की आज्ञा है। परन्तु उनमें से अधिकतर शराब पौते हैं क्योंकि व सच्चे मुसलमान और सच्चे सिख नहीं हैं। यदि वे सच्चे होते ता शराब न पोते । तो यह किस प्रकार संभव है? व्यक्ति को तुरन्त हम्ं इसके लिए भूमि और कार्यकर्ता मिल गए । मेरा कहने का अभिप्राय है कि मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। बहुत से लोगों ने मुझे लिखा है कि श्रीमाताजी यदि आपको भूमि चाहिए तो यहां आ जाइये । आप कल्पना कर सकते हैं कि गरीबों की सहायता के लिए मैंन कंवल सोचा भर था । आपके पवित्र एवम् स्नंहमय चित्त से और भी बहुत से कार्य किए जा सकते हैं, क्योंकि प्रेम कार्य को करने के लिए विवेक प्रदात करता है। आपमें यदि प्रेम है तो यह आपको विनाशकारी कार्य नहीं करता । इसके लिए किसी को बताने आत्मा बनना पड़ता है। आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति कोई भी समस्या समाधान के प्रति अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है । मर लिए की आवश्यकता नहीं होती । अब आप सब लोगों को भी मैंने यह आश्चर्यचकित कर देने बाली बात है। यद्यपि मैं सदैव प्रेम के माध्यम से ही कार्य किया करती थी परन्तु सहजयोग लंदन जैसे स्थान पर भी लोगों ने रातों-रात नशे त्याग दिए । के पश्चात् भी मैंन पाया कि प्रेम ही समाधान हैं। लोगों के कई देश तो इस कार्य के लिए सेना का उपयोग करतें हैं । हृदय में प्रबंश करने का हमारे सम्मुख कंवल यही एक मार्ग परन्तु सहजयोग में आने के पश्चात् लोगों ने स्वतः ही हैं। कभी किसी चीज के लिए नहीं रोंका, परन्तु मैं हैरान थी कि पत परन्तु इस प्रम के पीछे धन, उपलब्धियां पुरस्कार आदि बेंश्यावृत्ति और नशे त्याग दिए । नैराश्य तथा अकलेपन के हमारा लक्ष्य नहीं हांन चाहिए । प्रेम तो कंवल प्रम के लिएदुख से अपनाए हुए सभी नशे उन्होंने त्याग दिए । सहज यांग ही होना चाहिए । आज यही भावना आपको लाभान्वित कर रही है। आप सबको लाभान्वित कर रही है। जिस प्रकार आप सबका प्रेम करते हैं, जिस प्रकार आपने इतना कार्य किया है आप नहीं जानते कि मैं कितनी कृतज्ञ हूँ! अकल में यह सब कार्य नहीं कर पाती । इतने देशों में मैं नहीं जा पाती । बैनिन भाई चारा है। इसमें अत्यन्त सूझबूझ है। ये लोग अत्यन्त गहन में आप कभी अकेले हो ही नहीं सकते । विश्व भर में आपके बहन भाई हैं। उन्हें यदि पता लगता है कि काई आ रहा है तो उसे लेने के लिए वे सब हवाई अड्डे पर चलें जात हैं। यह सामान्य जीवन का भाई-चारा नहीं है। बहुत गहने जैसे दूरदराज स्थान पर में न पहुंच पाती । यहां मुसलमान हैं। वे साधक थे और साधना करते हुए वे खलवली में फंस लोग रहते हैं और इन सबने सहजयांग अपनाया है और प्रेम गए । उस स्थिति ने उन्हें गहन बना दिया । यह पुस्तक कं सौन्दर्य का समझ रहें हैं। यह सारा कार्य फ्रांस कंे लोगों ' ने किया है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि फ्रांस के महिला ने लिखी है आप इसे पढ़े । वह महिला बहुत गहन लाग इतनी दूर जाकर एंसा कार्य करेंगे ! अंग्रेज भी भिन्न देशों में गए, आस्ट्रिया, जमंनी तथा इटली के लांग भी बहुत ही अभिव्यक्ति इस पुस्तक में की है। वह मुसलमान नहीं है, उसने कुरान का प्रकाश' (Light of Koran) गिलमेट नामक एक है। अत्यन्त सुन्दर एवम् आनन्ददायी ढंग से उसने अपनी 14 बरतन्य लहगी । खड : X अक : + 5 और 6 1998 आर 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-15.txt वहुत कर्मकोण्डी लोग हैं। थाली में वे बताएंगे कि नमक एक तथाकथित मुसलमान से विवाह किया है क्योकि वह सहजयोगो है और अत्यन्त सुन्दर ढंग से अपनी साधना का वर्णन किया है। सहजयोग में बहुत से महान् लेखक हैं जिन्होंने अच्छी-अच्छी पुस्तकं लिखी हैं। गिलमेट बहुत लजीली है वह प्राय: बात नहीं करती। मौन रहती है। परन्तु अपनी सत्य सांध में कहा रखना है, सब्जी कहा रखनी है, ताकि एक अन्धा व्यक्ति भी अच्छी तरह से खाना खा सके। आपको केवल एक हाथ से खाना खाना है दूसरा हाथ नहीं लगाना है। वे अत्यन्त कमंकाण्डी हैं। इन्हीं चीजों के कारण वे सहजयोग में बढ़ नहीं पाते । जो भी हो हमें यह समझना है कि यह चीजें अभी तक ना के कारण अन्तस में वह बहुत गहन है। हमें जकड़े हुए हैं। में कहती हूँ कि उत्तर भारत में यदि कोई किसी के विरूद्ध कहे तो आप अपने कान बन्द कर लीजिए। इस विश्व में बहुत से लोग सत्य की खोज कर रहे हैं। वे आधुनिक विश्व की मूर्खताओं का सहन नहीं कर सकते और अत्यन्त संवेदनशील हैं। इसी प्रकार आप सबका गांधी जी का यह नियम ठीक था । ब्यर्थ की बात को कभी मत सुनो । समाचार पत्रों के कारण भी चुनावों से पूर्व अवाछित गप्पें सुनने को मिलती हैं। यह सब व्यर्थ की बातें हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। अत: मैं सभी उत्तर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ । इसमें मेरा कुछ नहीं है। ये कहना उचित न होगा कि मैंने यह कार्य किया है आप यदि दीपक न होते ता मैं आपको प्रकाशित न कर पाती । में आपके प्रति कृतज्ञ हूँ और जो भावनाएं आपके हृदय में भारतीय लोगों से अनुरोध करती हूँ कि कभी भी किसी की सहजयोग के लिए हैं उससे में बहुत प्रसन्न हूं । आपको सामूहिक रूप से पूर विश्व में सहजयोग कार्यान्वित करना है। आपने एक दूसरे की सहायता करनी है और लोगों को बढ़ावा देना है। विश्व भर में एक ऐसे मस्तिष्क का विकास करना है जो आत्मा की आर हो ! यह कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तभी हम सभी समस्याओं का समाधान कर सकेंगे । मैं यदि है। परन्तु कोई बात नहीं। किसी भी प्रकार की गन्दगी अपने कहूँ कि मैं गरीबों के लिए कोई योजना बना रहीं हूँ तो तुरन्त मस्तिष्क में न भरें। ऐसे बहुत से लोग हैं जो इधर उधर बातें वे सब मुझे धन भेज दंगे, तुरन्त खोज निकालगे कि कौन इस कार्य को कर सकता है तथा कौन श्रीमाताजी की सहायता कर पहुँच सकती क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा को कोई सकता है। उन्हें हम क्या कार्य दे सकते हैं? किस तरह से हानि नहीं पहुँचाई जा सकती । आत्मा का नाश नहीं किया जा हम इसे कार्यान्वित कर सकते हैं? यह तेजी से फैलता है। मुझे केवल कहना भर पड़ता है। धन के लिए मुझे कभी नहीं है। तो आत्मा पर चित्त की कमी है। आप कह सकते हैं आलोचना न सुनें किसी की आलाचना सुनने का क्या लाभ है? इससे आपको क्या मिलता है? यही बात किसी अन्य को सुनाने का क्या लाभ है? सदव एक प्रश्न करें कि इसका क्या लाभ है? । इसका क्या लाभ है? मस्तिष्क से सोचे। किसी में दोष क्यों देखें? इस तरह से आप धोखा खा सकते करके समस्याएं पैदा करते हैं। इससे आपको कोई हानि नहीं सकता । शस्त्र से इसे काटा नहीं जा सकता । आत्मा अमर आत्म-विमुख स्थिति । हमारी दृष्टि व हमारा चित्त आत्मा पर न होने के कारण सभी समस्याएं हैं। मैने कभी नहीं कहा कि मुझे धन चाहिए। कहना पड़ता । परन्तु अविलम्व वे सारी योजना बना लेते हैं और सभी कुछ लाकर कार्य को कार्यान्वित करते हैं। भारत में भी ऐसा हो सकता है। कहीं भी एसा हो सकता है। दिलचस्पी कंवल भारत में ही नहीं है, समस्याओं के समाधान में ही उनकी जुड़ी होती है। सभी कुछ कार्यान्वित करने वाली सर्वव्यापी दिलचस्पी है। यह कोई दिखावा करना या धर्म सम्प्रदाय एक बार जब आपका तदात्मय आत्मा से हो जाएगा तो सभी कार्य हो जाएगा क्योंकि आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा से शक्ति से इसका सम्बन्ध होता है। मैं इस सर्वव्यापी शक्ति को जानती हूँ। इसी में मेरे बहुत से चमत्कारिक फोटो दिखाए हैं। यद्यपि मेंने इसे यह सब करने के लिए नहीं कहा फिर भी बनाना नहीं है। यह अन्तर्जात गुण है जोकि अत्यन्त सूक्ष्म हेै. प्रभावशाली है। सहजयोग के लिए कार्य करने में उन्हें आनन्द मिलता है| कभी-कभी तो मैं हैरान होती हूँ कि पूरे विश्व के लिए इतने प्रेम की भावना उनमें किस प्रकार है! किस प्रकार वे पूरे यह कार्य करती है। आपके व्यपार में, राजनीति में, परिवार में. विश्व की चिन्ता करते हैं और किस प्रकार विश्व भर के सभी जगह इस प्रकाश को आप देख सकेंगे और अन्य लोगों लिए कार्य करने के लिए तैयार हैं! नि:सन्देह सभी देशों की की भावनाओं का सम्मान करेंगे अन्य लोगों को आप प्रेम अपनी-अपनी समस्याएं हैं, जैसे उत्तर भारतीय लोगों की करेंगे और उनका सम्मान करेंगे दूसरे के अन्दर चमकती दिलचस्पी सदैव राजनीति में ही होती है क्योंकि दिल्ली हुई आत्मा का आप सम्मान करेंगे । आपकी आत्मा क्योंकि समीप है। परन्तु अब यह दिलचस्पी कम हो गई है बहुत प्रकाशित है इसलिए आपने अन्य लोगों का सम्मान करना कम। अब वे किसी के विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहते । यह अच्छी वात है। दक्षिण में, नर्मदा नदी से परे, महाराष्ट्र आदि यह ऐसा कर रही है। बास्तव में यह अत्यन्त चुस्त है और किसी भी सूक्ष्म एवं गहन व्यक्ति को जब यह दैखती है तो सीख लिया है। यह बात में स्पष्ट देख सकती हूँ। मंेर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं जन्मदिवस पर आप सबको यहां देख कर 15 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : + 5 ओर 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-16.txt मैं नहीं जानती कि जन्मदिवस का क्या महत्व है। जो भी हो सम्पति है आपके अन्तः स्थित है। मैं कहूँगी कि आत्मा बनना ही आपकी पूर्ण गरिमा है। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि किस एक बात अवश्य है कि इस प्रकार यहां उपस्थित आप सभी सजहयोगियों से मैं मिल सकती हूँ। मैं बहुत प्रसन्न हूँ। यहां उपस्थित हमारे समाज के इन श्रेष्ठ लोगों की मैं धन्यवादी हूँ। ये बहुत महान लोग हैं। जनता द्वारा चुने हुए हैं कई बार इनको उच्च पद दिए गए और इनमें से कुछ सुप्रसिद्ध उद्यमी हैं। इन सबको आध्यात्मिक जीवन का मूल्य समझना है। इनके लिए यह महत्वपूर्ण है। इन्हें आत्मा से जुड़ना है। यह आपकी अपनी प्रकार में आप सबको धन्यवाद दें और किस प्रकार इतने अच्छे वक्ताओं को धन्यवाद दूं! में तो आध्यात्मिक जीवन में आपकी महान उन्नति की कामना करती हूँ। आध्यात्मिकता में आपकी आत्मोन्नति, ताकि विश्व के हर कोने पर यह छा जाए और भविष्य के सुन्दर विश्व की सृष्टि करें। परमात्मा आपको धन्य करें। 75वां जन्मदिवस तक मार्ग के दोनों ओर सुन्दर मोमवत्तियां एवं दीपक जलाए गए । अपनी परमेश्वरी मां का स्वागत करने के लिए हवामहल द्वार पर नन्हें-नन्हें बच्चे सुन्दर परिधानों में देवदृतां सम नृत्य कर रहे थे । निजामुद्दीन चौक पर विश्व के भिन्न देशों से आए सहजयोगी अपने राष्ट्रीय ध्वज लिए हुए मां अन्तत: 'चिर प्रतीक्षित दिवस, जगत जैननी का 75वां जन्मदिवस आ पहुंचा । 21 मार्च 1998 के ब्रह्म मुहूर्त में ज्योंही अभिनन्दन कार्यक्रम समाप्त हुआ, युवा शक्ति के लड़के-लड़कियां मंच को माँ आदिशक्ति-सर्व कलाओं एवं सौन्दर्य की सृष्टा- के बैठने योग्य बनाने में जुट गए । हे देवी आपके श्री चरणों आदि शक्ति के स्वागत के लिए तत्पर थे तथा बैंड सहज की के एक कण से पुष्पोद्यानों की सृष्टि होती है। अविद्या धूल में पड़े लोगों के लिए यह विवेक का स्रोत है। दरिद्रियों के लिए चिन्तामणि की माला है। इन्द्रधनुषी गुब्बारों, सुन्दर फूलों एवं चमचमाती रांशनियों से सभागार का कोना-कोना धुने बजा रहा था। यह दिव्य जुलूस गरिमामयी श्रीमाताजी को सभागार तक लाया। ज्योंही श्रीमाताजी ने स्काउट मैदान मे प्रवेश किया भारतीय पारम्परिक शैली में शहनाईं एव बिगुल बजाए गए । अपने बच्चों का प्रेम देखकर स्नंहमयी मां गद्गद् हो गयीं| सुन्दरतापूर्वक सजाया गया । निजामुद्दीन मैदान. के मुख्य द्वार से लेकर पंडाल के प्रवेश द्वार 16 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 और 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-17.txt जन्मदिवस पूजा 1998 दिल्ली 21-3-1998 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ।हैं और देखते है कि इस प्रकार के प्रचण्ड आचरण में क्या जिस प्रकार आपने मेरा स्वागत किया उसे देख कर में गद् गद् हो गई हूँ। मैं कहूँगी कि आपका प्रेम ही सहजयोग गलती है और इस प्रकार के उग्र जीवन से घृणा करने लगते का आनन्द लेने की सभी प्रकार की अभिव्यक्तियां खोज हैं। इससे मुंक्ति पा कर आप सत्य साधना की और चल पड़ते हैं । यह स्थिति भी समाप्त हो जाती है और आप गुणातीत हो जाते हैं । ऐसा तब घटित होता है जब आपका चित्त आत्मा पर जाता है, क्योंकि अब आपका चित्त आपके जन्मजात बन्धनों, गुणों तथा अहम् पर नहीं होता । तो आप इन सब से ऊपर उठ जाते हैं। सामान्य जीवन के लिए यह अत्यन्त असाधारण बात है परन्तु आपके लिए नहीं । यह स्वतः ही घटित हो जाता है और आप अपने अस्तित्व का आनन्द लेते हैं। अब आपको अपनी सुख सुविधाओं एवं छोटी-छोटी चीजों की चिन्ता नहीं रहती । अभी तक ये तीन निकालता है। वास्तव में में नहीं समझ सकती कि यह अद्वितीय विचार किस प्रकार आपके मस्तिष्क में आत हैं और आप अपने भिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । मैं कामना करती हैँ कि आप अपने ये राष्ट्रीय ध्वज अपने अपने देशों में ले जाएं और वहां सन्देश दें कि पुनउंत्थान का समय आ गया है, कि हमें उठना है; हमें मानव स्तर से अपने अस्तित्व के उच्च स्तर तक उन्तत हांना है। यदि ऐसा घटित हो गया तो आप देखेंगे कि किस प्रकार यह आपके जीवन को परिवर्तित कर देता है. किस प्रकार यह जो किसी न किसी प्रकार से आप पर शासन करते थे गुण आप इनसे ऊपर उठ जाते हैं। अत: इस प्रकार आप मानवीय चेतना की सीमायें पार कर लेते हैं। तब दूसरी स्थिति में आप कालातीत' ही जाते हैं, आप समय से ऊपर उठ जाते हैं। मैं जानती हूं कि आज मुझे आने में देर हुईं, ऐसा हो जाता है। परन्तु समय का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । मुझे देर आपको प्रसन्नता प्रदान करता है ! किस प्रकार घृणा और दूसरों को चांट पहुंचाने. दूसरों का अहित करके अपने मुर्खता पूर्ण विचार आप त्याग देते हैं। इस प्रकार के विचारों ने बहुत से लोगों को परपीड़न द्वारा प्रसन्नता दो है और अन्य लोगों की खुशी एवम् आनन्द का नाश करके उन्होंने सुख उठाया है। अपनी प्रसन्नता को बनाये रखने के लिए मैं जानती हूँ कि सहजयोगी होने के नाते. आपको बहुत कुछ सहन करना होगा, होने के बावजूद भी आप आनन्द ले रहे हैं, घर में बैठी हुई बहुत सी मूरखंता सहन करनी हांगी । आप ऐसा कर चुकं हैं मैं देख रही थी कि आप सब अत्यन्त आनन्द की स्थिति में और शनै: शनै: एक बार सहजयोग जब सुन्दरतापूर्वक पावनता के रूप में आपके देशों में स्थापित हो जायेगा तो आपके देशों हैं। आप सभी बहुत आनन्द में हैं, मेरी अनुपस्थिति में भी आप आनन्द ले रहे हैं। यह समय से ऊपर होना है। समय के पाश में आप नहीं हैं। जो भी समय है आपका अपना हैं के अन्य लाग भी उस पथ पर चलने लगेंगे जिस पर आप क्योंकि आप वर्तमान में स्थित हैं। यहां खडे हो कर आप चल चुकं हैं। कंवल आपकं जीवन ही आपके आन्तरिक सौन्दर्य और सहजयोग को प्रतिविम्बित कर सकते हैं । भविष्य के बारे में नहीं सोच रहे; आप यह नहीं सोच रहे कि कल क्या होगा या किस प्रकार आप वायुयान पकड़ेंगे-या किस प्रकार कार्य करेंगे । यहां पर आप केवल आनन्द ले रहे कल मैंने आपको वताया था कि मानवीय चंतना, में किस चीज का अभाव है और यह भी कि चित्त आत्मा पर नहीं है। जब चित्त आत्मा पर होगा तो सर्वप्रथम आप 'गुणातीत' हो जायेगे-आप गुणों से ऊपर उठ जायेंगे । इसका अभिप्राय यह है कि अब आप ' लिप्साओं से लिप्त-व्यक्ति नहीं रहे । वहां से आपका चित्त हैं, वर्तमान का आनन्द ले रहे हैं, और वर्तमान ही वास्तविकता है। यदि आप भूत या भविष्य के विषय में सोच रहे होते तो आप वास्तविकता में न होते । मैंने बहुत बार बताया है कि तमोगुणी'- इच्छाओं और भूतकाल समाप्त हो गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। इस क्षण आप यहां हैं, हो सकता है मेरी प्रतीक्षा में बैठे हों, हो सकता है यहां अपनी यात्रा के हर क्षण तथा मुझसे दूसरी शैली पर चला जाता है जहां आप 'रजोगुणी' आक्रामक हो जाते हैं। आप दूसरों से स्पर्धा करना चाहते हैं। यह संघर्ष अनुशासन है। 'अतीत' का अर्थ है परे 'सत्वगुणी' हो जाते हैं। इस स्थिति में आप सत्य साधना करते अपने योग का आनन्द ले रहे हों। इस आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता कि किस प्रकार आप यह आनन्द ले रहे हैं। । तत्पश्चात आप चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 ओर 6 1998 17 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-18.txt अन्यथा लोग घडी देख रहे होते और हैरान हो रहे होते कि हैं और घबरा जाते हैं। परन्तु आपके साथ यह बात नहीं है आई ! क्या समस्या है, वे क्यों नहीं क्योंकि आप तो हमेशा ध्यान में होते हैं, सदैव ध्यान धारणा पहुंची? आदि आदि । यह स्थिति कालातीत होने में बहुत की स्थिति में होते हैं। कोई गड़बड़ी भी यदि हो जाए तो तुरन्त आप चेतना (निर्विंचार समाधि) में चले जाते हैं जहां आपको सारे समाधान प्राप्त हो जाते हैं। आप परशान नहीं होते. श्रीमाताजी क्यों नहीं सहायक है। मुझे याद है कि नासिक में सहज कार्य करने के लिए कोई सहजयांगी आगे न आता था, इस लिए वहां मुझे बहुत । यदि कुछ गड़बड़ हो जाए तो परिश्रम करना पड़ा । वे लोग अत्यन्त संकाची और चिन्ताशील कर्मकाण्डी स्वभाव व्यक्ति को अत्यन्त संकृचित तथा विनम्र थे । भाग्य से या दुर्भाग्य से एक बार ऐसा हुआ कि रास्ते पर मेरी कार खराब हो गई और पहुँचने में मुझे लगभग एक घंटा है। देर हुई । उधर से कोई कार भी नही आई और हम रास्ते में ही अटक गये । जिस कार्यक्रम में हम जा रहे थे, जब हम वहां पहुँच तो देखा कि सहजयोगियों ने वागडोर सम्भाल ली थी । जिम्मेदारी सम्भान कर वे लोग जनता को आत्मसाक्षात्कार बिल्कुल परंशान नहीं होते बना देता है और कभी-कभी बहुत आक्रामक भी बना देता ५ अपने कर्मकाण्डों से लांग अन्य लागों को बहुत कष्ट देतें हैं, जैसे मित्र कहलाने वाली एक महिला हमारे घर पर आई। कहने लगी मैं शाकाहारी हूँ। मैंने पूछा तो? "मैं उन बर्तनां में बना हुआ खाना नहीं खा सकती जिनमें मासाहारोी खाना बनाया गया हो।" तो हमें उसके लिए नए यर्तन खरीदने हांगे । मैं जाकर उसके लिए नए बर्तन लाई । कहने लगी ध्यान रखना, एक पुराना चम्मच भी उपयोग नहीं होना चाहिए। देने में व्यस्त थे । यदि मैं समय पर पहुँच गई होती तो वे ऐसा न करते । उन्हें विश्वास हो न होता कि उनके पास आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति है। मेरे कहने पर भी वे अपने हाथ न चलाते थे। परन्तु अचानक मेरे अनुपस्थित होने के तो मुझे जाकर नए चम्मच खरीदने पड़े । फिर उसने नए कारण उन्होंने अपनी जिम्मेदारी संभाली । अत: जब आप समय से ऊपर होते हैं तो उस क्षण के लिए आप जिम्मेदार में वो खुद खडी हो जाती और रसोईये को हमारे लिए कुछ हो जाते हैं और यह जिम्मदारी सामुहिक है अर्थात् आप सब जिम्मेदार बन जाते हैं । बहुत हैरानी की बात है कि हम इतने सारे लोग यहां होने के स्थान पर बह क्लेश बन गई । कर्मकाण्डी लोगों के हैं परन्तु न कोई लड़ाई है न कोई झगड़ा । एक दूसरे पर हावी होने के मूर्खतापूर्ण विचारों से ऊपर उठकर हम बहुत धर्म के नाम पर वे कुछ न कुछ मांग करते ही रहते हैं। अच्छी तरह से स्थापित हो गए हैं। समय में लिप्त न होने के कारण ऐसा घटित होता है। समय आपको झुका नहीं सकता। ग्लास मंगवाए । तो मुझे यह सारा कष्ट भुगतना पड़ा । रसाई न बनाने देती । कहती पहले में अपना खाना बनाऊगी फिर तुम आना । उसने इतनी परंशानी खड़ी कर दी कि अतिथि साथ ऐसा ही होता है क्योंकि उनकी मांग बहुत बढ़ जाती है। बम्बई में मुझे किसी ने एक और कहानी सुनाई थी । उसने कहा कि उच्च पदासीन व्यक्ति महिला अतिथि बनकर मरे घर आई थी वह तो मेरी अरदादी से सम्बन्धित जा सम्भवत: आप महसूस करते हों कि यदि आप लोगों के स्थान पर कोई अन्य होता तो दर से आने के कारण वे मेरी कार पर पत्थर फेंकते, सोचते कि हम तो गर्मी में सड रहे हैं और अपना क्रोध व्यक्त करते । परन्तु जो लोग समय से ऊपर उठ चुके हैं वे ऐसा नहीं कर सकते, आराम से बैठकर वे आनन्द ले रहे हैं। से भी गई गुजरी थी । कहने लगी में नहीं समझ सकती कि भारत में अभी तक भी एसे लाग रहते हैं ! वह यहां आई और कहने लगी कि मैं नल से पानी नहीं ले सकती । मेरे लिए आपको कुएं से जल लाना होगा । कुएं हैं। लोगों को उनपर जाकर जल लाना पड़ा । उनके लिए खाना बनाने वाले रसांइये को कपड़ों समत पानी में डुबकी बम्बई में केवल दा तत्पश्चात् आप धर्मातीत हो जाते हैं। आप समय से ऊपर उठ जाते हैं, अपने मानवीय स्वभाव से ऊपर उठ जाते लगाकर खाना बनाना पड़ता था । यदि रसोइया पानी में भीगा हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो भी कार्य आप करते हैं हुआ न होता तो वे उसके हाथ का बना हुआ खाना न खातीं। वह धार्मिक होता है. आपके सभी प्रयत् धार्मिक हांते हैं। बेंचारे रसोइये को निमोनिया हो गया दूसरा रसांइया आया यदि आप व्यापार करते हैं तो उसे भी धर्मानुकूल करने का प्रयत्न करते हैं, क्योंकि आप धर्म से ऊपर उठ गए हैं । किसी कहने लगी मेरी यही शैली है। लोगों ने मुझसे पूछा कि धर्म विशेष का तरीका या कर्मकाण्ड अपनाने की चिन्ता आप नहीं करते । आप इससे ऊपर हैं। उदाहरणार्थं धर्म में फंसे उससे कहना चाहिए था कि हमारे पास अमुक चीज है, आप लोग समझते हैं कि उन्हें प्रातः बहुत जल्दी उठना चाहिए वे कर्मकाण्डों के पाश में फंसे हैं, वे कर्मकाण्ड करते हैं और दूसरों को तंग करने वाले लोगों का यही इलाज है । यदि कर्मकाण्ड में कोई कमी रह जाए तो वे दुःखी हों जाते और उसे फ्लू हो गया । परन्तु इस महिला न चिन्ता न की । श्रीमाताजी ऐसे लोगों का हम क्या करें? मैंने कहा आपकां खाना चाहें तो खा लें। ब्रत करना अच्छा है। आत्म कन्द्रित, तो यह आत्मकेन्द्रिता हममें इसलिए आती है क्योंकि 18 चैतन्य] लहरी । खंड : 8 अंक : 4 5 और 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-19.txt अन्त भी नहीं है। किसी के घर जाकर लोग कहेंगे, 'नहीं-नहीं, हम सांचते हैं कि यह हमारा धर्म है. यह हमारा अधिकार है यह कालीन मुझे पसन्द नहीं। यह आपका कालीन नहीं है। आपने इसे नहीं खरीदा। उस व्यक्ति न उसे खरीदा है। इससे और सभी कुछ हमारा है। यह कार्य न करने की हिम्मत इन लागों की कॅसे हुई? हम लोगों को कितना कष्ट देते हैं कितना दु:खी करते हैं! कितना हम उन्हें दयनीय बनाने का प्रयत्न करते हैं । यह बात हम नहीं जानते और वस्तुओं की मांग किए चलें जाते हैं। यह मेरा धर्म है, मैं क्या करू? मुझे आपका क्यो सरोकार है। मुझे पसन्द नहीं है। आप कौन हैं? जिसने इसके लिए पैसे खर्चे हैं उसे यह पसन्द है । समाप्त। आप क्यों टिप्पणी करते हैं। क्या आप समोक्षक हैं? मान ला किसी ने एक विशेष प्रकार के बाल बनाए एसा ही करने दे । है। सहजयांग में भी मैंन बहुत से लागों को बन्धनग्रस्त देखा हुए हैं। मुझे इस तरह के वाल पसन्द नहीं हैं। क्यों? मुझे है। एक फ्रांसिसी महिला सहजयोग में आई । आरम्भ में उसकी मां बहुत ही क्मकाण्डी थी । वह इतनी कष्टदायी थी आपकी? आप क्यों कहें कि मुझे पसन्द है या नहीं? परन्तु कि हर रविवार चर्च जाना उसके लिए आवश्यक था । परन्तु यह मस्तिष्क का बन्धन बन जाती पसन्द नहीं है। वस और यह बात पूरे में फैल जाएगी। पसन्द या नापसन्द करने वाले आप कीन होते हैं। क्या पदवी है पश्चिम में इस प्रकार की टिप्पणी करना आम बात है। मुझे पुसन्द नहीं है, मुझे भारत पसन्द नहीं है । ठीक है तुम्हें भारत पसन्द नहीं है तो घर बैठों, यहां क्यों आए हो? मुझे तु्की पसन्द नहीं है। क्यों? क्यांकि मान लो किसी ने लम्बा स्कर्ट अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनकर वह चर्च जाती और वापस आ जाती । एक दिन बह गायब हो गयी । ये पुलिस के पास गए और उसे खोजने के लिए कहा । लेकिन पुलिस नं खोजने से पहना हुआ है तो वह कह उठेंगे कि मुझे यह पसन्द नहीं है तब उसने कहा उसे चर्च में खोजो । जब चर्च में जाकर देखा क्योंकि यह तुकस्तानी है। तो अब आपके छोटे स्कर्ट पहनने चाहिए। हमें छोटे स्कर्ट पसन्द नहीं हैं फिर भी यह नहीं कहना चाहिए कि, 'मुझे पसन्द नहीं है।' इससे दूसरों को चोट खाज सकते । आय चाहें तो इसे वृद्ध-आश्रम भेज दें । इस पहुंचती है। दूसरे व्यक्ति के गर्व को यह तोड़ देता है। अब जब आप सहजयोंग में हैं तो सामान्य मानदण्डी यह है कि ये लोग अत्यन्त मुर्ख किस्म के हैं, बैठकर पागलों के अनुसार आप सामान्य मानव नहीं हैं। आप उनसे ऊपर हैं। आपकी पसन्द, नापसन्द उनसे भिन्न है और आपका पूर्ण रविवार के दिन अच्छे-अच्छे परिधान पहनकर वे चर्च जाते दृष्टिकोण परिवर्तित हा चुका है। कई बार तो मुझे लगता है कि आप बच्चे हैं। कभी तो आप नन्हें बच्चों की तरह से इन्कार कर दिया। परमात्मा जाने वह कहां गायब हो गई । तीन-चार बार एसा गया तो वह अभी तक वहां बेठी हुई थी । हुआ । तग आकर पुलिस ने कहा कि बार बार हम इसे नहीं सहजयोगिनी ने मुझे बताया कि श्रीमाता जी आश्चर्य की बात की तरह से बातें करते हैं, बुढ़ापा उनसे छलकता है परन्तु है। केवल इसी मामल में वे समझदार हैं। उनके बन्धन किस प्रकार कार्य करते हैं यह हेरानी की बात है। एक व्यक्ति हमारे पास आकर रुका. कहने लगा. 'मैं बहुत अच्छा ड्राइवर हूँ' गहन चीजों के बार में बात करते हैं। सामान्य मानव यह सब मैने कहा ठीक हैं। वह कंवल गाड़ी चलाना ही जानता था। नन्दन की सड़कों का उसे ज्ञान न था । जाना हाता तो वह दक्षिण की ओर ले जाता और पूर्व का जाना हाता तो पश्चिम का ले जाता । मैंने पूछा क्या बात है? आप नो गाडी चलाना जानते है। कहने लगा. ' का जब रुई पीजने वाली धुनकी पर लगाया जाता है तो वह जानता है परन्तु मुझे अर्थात् आप ही हैं-आप ही हैं. गाड़ी में बैठी थी और वह चला रहा था। पुलिस नें गाड़ी रोकी और उससे पूछा कि कहां जा रहे हो । उसने बताया । ता पुलिस वाले नें पूछा कि छः बार आप इसी स्थान पर क्यों आए और अब फिर तुम यहीं आ रहें हो ! मंरी समझ में कभी-कभी तो लांग दूसरों की बुराई करने तथा झूठ-मूठ की ा अत्यन्त अवबोधितापूर्वक बातें करते हैं और कभी अत्यन्त नहीं जानता क्योंकि आम आदमी, आप जानते हैं, अत्यन्त आडम्बरपूर्ण होता है। हर समय वह में-में-में करता रहता है। कबीर साहब ने कहा है कि बकरी जब जीवित होती है तो मैं-मैं मैं करती रहती है परन्तु मरने के उपरान्त उसकी आंत मुझ यदि उत्तर को हा गाड़ी चलाना में सड़कों का ज्ञान नहीं।" एक दिन में कहती है तूही-तृही-तृही' आप ही सभी कुछ हैं। ज्यों ही आप ऐसा कहते हैं तुरन्त आपका चित्त अन्य लोगों से, उनके दोष ढूंढने से, उनकी आलोचना करने से. उनका मजाक करने से दूर चला जाता है। गप्प हाकने का भी आनन्द लेते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति भी मेरी तरह से ही है और उसके वारे में अनाप-शनाप बातें करना मेरा काम नहीं आया कि वृद्धावस्था में यह चौजें आदत सी बन जाती हैं। परन्तु युवावस्था में भी लाग अपनी शली के बन्धन में फंस जात है। इस आप मानवीय दुर्बलताएं कह सकतं हैं जिनमें आप लिप्त हो जाते हैं या किसी भी चीज के प्रति आपमें है। तो सामान्य मनुष्य में यह सृूझ- बूझ यह प्रेम-विवेक नहीं चिपकन हो जाती है। इस प्रकार चीजों की मांग करना पागलपन हैं । होता । जरा सा भड़काने पर वह क्रोधित हो जाता है और सांड की तरह तोड़-फोड़ करने लगता हैं। वह जैसा चाह यह मुझ अच्छा नहीं लगता और इसका कोई चंतनऱ्य लहगे । खंड :X अंक : 4. 5 आर 6 1998 19 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-20.txt व्यवहार कर सकता है। व्यवहार के अनुसार वह परिवर्तित गलत ढंग के लोगों की सहायता करने में लगे रहते हैं. मानां होता चला जाता है। कारण यह है कि वह अभी तक उन्हें सहजयाग में खुद मुखत्यारी प्राप्त हो गई हो । कोई यदि सहजयोगी नहीं है। गलती करता है तो दो बटे के अन्दर हम उस खुद मुख्यार सहजयोगी हर चीज का आनन्द लेता है। मान लो कोई के टलिफान की आशा हाती है। वह कहता है कि कथा व्यक्ति बहुत नाराज एवं उग्र स्वभाव हो जाता है, वह भी देखता है कि क्या धटित हो रहा है, वह किस प्रकार बर्ताव है। ऐसा करना है, वैसा करना है। मुझे सुचित करना कि कर रहा है। किसी पर नाराज हाना धर्म नहीं है, यह धर्म नही"नहीं, आप अवश्य सहायता करं, अवश्य कुछ करें", उनकी है। दूसरों पर नाराज होना. हर समय उन पर चिल्लात रहना, हर समय उनसे कुछ लते रहना या स्वयं का अति महान् समझकर उनकी आलाचना करते रहना तुच्छता है। इसका करके श्रीमाताजी से कहे कि अमुक व्यक्ति का ध्यान रखना आदत है। अब तो यह एक आम वात हो गई है। हम जानते है कि अभी वह व्यक्ति आएगा और इस विषय पर एक बहुत बड़ा भाषण देगा । तो मानव का यह स्वभाव है कि वह जीवन की भिन्न प्रकार की जटिलताओं से गुजरता है। जन्म से ही उसमें कुछ एसे गुण हात हैं जिनके कारण वह सामान्य व्यक्ति नहीं हो पाता । यद्यपि हम समझतं हें कि वह सामान्य जोवन के अन्त तक पहुंचते - पहुंचतं काई लाभ नहीं होता । आपको लगता है कि आपका एक भी मित्र, एक भी पड़ोसी नहीं है। आप यदि अहंकारी हैं ता आप स्वयं को अनन्त समझते हैं और बालते चले जाते हैं, बके चले जाते हैं। दसरा है। उसकी प्रतिक्रियाएं और बातें अत्यन्त हास्यास्प्रद होती हैं। व्यक्ति आपकी बातों से ऊब जाता है फिर भी आप बोले चले जाते हैं- मैंने एसा किया, मैं वहां गया; मैं मैं-मैं। किसी भी हद तक आपकी बात जा सकती है परन्तु आपका अपने नही है। अनावश्यक रूप से किमी के मामलों में दखलंदाजां। टेलिफान करके मुझे किसी व्यक्ति के बार में कुछ कहने की उसका ध्यान रखने के विपय में कुछ कहने की आवश्यकता , भ जब आपका कोई अधिकार नहीं, आपने उस व्यक्ति से कुछ । सहजयाग में आने से पूर्व मैंने कथनो पर लज्जा नहीं आती लांगों को अन्य लांगों के विषय में मुखंतापूर्ण दृष्टिकांण रखते नहीं लेना देना ता यह व्यर्थ के नमूनें वनानं की क्या हुए दखा है। कोई व्यक्ति यदि किसी अन्य के विपय में कोई गलत बात कहता है ता उसका अपना मस्तिष्क विकृत हो जाता है। मस्तिष्क ही जब सामान्य न होगा तो व्यक्ति रोगी हो हो सकता है उनके दश से, परिवार से या वंश से । आप जो जाएगा और संभी प्रकार के रागों को स्वीकार करंगा। यह अत्यन्त भयानक बात्तं हैं, दूसरे लोगों के लिए नहीं, अपने लिए । इस तरह के रांगो व्यक्ति को कोई भी सहन नहीं कर सकता । मैंने लागों को कहते दंखा है कि अब मैं धार्मिक व्यक्ति हूँ। तो क्या? हर समय वह यही कहतंे रहते हैं कि आप एसा नहीं कर सकते. वह नहीं कर सकते, यहां नहीं अस्तित्व का आनन्द लेता है, जो अन्य लोगों को आनन्द बैठ सकते. यह नहीं खा सकते । एक सामान्य व्यक्ति होने क कारण क्यांकि आप स्वयं को नहीं देखते इसलिए स्वयं को अनुशासित करने के स्थान पर आप अन्य लोगों को अनुशासित करने का प्रयत्न करते हैं। आप केवल अन्य लांगों को दखते हैं। आवश्यकता है? यह सब डिजाइन लुप्त ही जायेंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि यह नमून उन्हें कहा में मिलते हैं? भी कहें, यह सब समाप्त हो जाता है। आपकी बंश परम्परा (Genes) समाप्त हो जाती है। यही सहजयोग है। यहां आप आत्मा बन जाते हैं, सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो जानता है आनन्द क्या है, जो आनन्द का आनन्द लेता है, जो प्रदान करता है और उन्हें पसन्द करता है। हर समय विचार कर कि किस प्रकार दूसरां को खुश किया जाए। ऐसा होता है यद्यपि आपका पालन-पाषण शिक्षा दीक्षा आदि उसी प्रकार हुए हैं जैस अन्य लागां की । परन्तु आपक वे सव संस्कार लुप्त हा जात हैं और आप विवेकशील, सुन्दर एवम् आनन्दमय व्यक्ति बन जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार होते ही आप स्वयं को दंखने लगते हैं कि आपमें क्या दोष है। आत्मा बनने के पश्चात् आत्मा के आपने यह उपलब्धि प्राप्त की है, संभवतः आप इसके विपय में न जानते हों। जिस प्रकार इस स्काऊट मेदान में प्रकाश में आप स्वयं को देखते हैं, केवल स्वयं को । जब आप स्वयं को ठीक करना जान जाते हैं तब आप किस प्रकार आप आनन्द ले रहे हैं काई अन्य समूह एसा आनन्द न ल सकता । मैं देख सकती हैँ कि आप लांग यहां क्या कर रहे हैं किस प्रकार एक-दूसरे की संगति का आनन्द ले रहे हैं व्यवहार करते हैं और किस प्रकार अपना आनन्द लते हैं! छोटे-छोटे कार्य जो आप करते हैं, सुन्दर सुन्दर बातें जा आप कहते हैं वह बहुत मधुर होती है। नि:सन्दंह कुछ लांगों को सुधारा नहीं जा सकता । वे अशोध्य हाते हैं। तो आपको परिपूर्ण है, यही आत्मा आपके अन्दर प्रकाशमान है। अपने देखना चाहिए कि अमुक व्यक्ति अशोध्य है, आप उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। सहजयोग में भी कुछ लांग हैं जो हूँ वह ठीक है या नहीं। निसन्दंह: कुछ लांग एंसे भी हैं जो यह अत्यन्त प्रशंसनीय है क्याकि आपका हृदय आत्मानन्द से अन्दर देखकर आप निर्णय कर सकते हैं कि जो मैं कह रही ल चैतन्य लहरी । खड : X अक : 4 5 ओर 6 1998 20 he 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-21.txt आप नहीं जानते कि आपने यह उपलब्धि पा ली है। अब आपको चाहिए कि सावधानी से स्वय को देखें । आप हैरान स्वय को बहुत उच्च मानते हैं, वे किसी होटल या आवासगृह में ठहरे हुए हैं। उन्हें यह आनन्द प्राप्त नही हो रहा । अब भी बह सोचते हैं कि वे कुछ महान चीज हैं। अत: उन्हें कहीं होंगे कि आप कितने परिवर्तित हो गए हैं, कितने सहज, वाहर ठहरना चाहिए । कितनी हैरानी की बात है। मैने देखा विवेकशील एवम् बुद्धिमान हो गए हैं, पश्चिम में बहुत सी है, विशेषत: भारतीय लोग जब कवैला आते हैं तो होटल में ठहरना चाहते हैं। अपने जीवन में यद्यपि उनके घर में एक ही स्नानागार हा. परन्तु कबैला आकर व हाटल में रुकना चाहते की लड़की से विवाह करना चाहता है। उसकी समझ में नहीं है जहा, सभी सुविधाओं से पूर्ण जुड़ा हुआ स्नानागार हा । युवा लोग, अत्यन्त हेरानी की बात हैं। हो सकता है कि स्वीकार नहीं कर पात बह स्वीकार नहीं कर पाता कि मैं उन्होंने कभी अच्छा होटल न देखा हों या व बहुत खराब स्थितियों में रहते हो । समस्याएं इसलिए आती हैं क्योंकि वे लोंग मूर्ख हैं। मैं साचती हूँ, बे अत्यन्त मूर्ख लोग हैं, 80 वर्ष का वृद्ध पुरुष 20 वर्ष आता कि वह ऐसा क्यो कर रहा है। वह अपनी आयु को वृद्ध हूं और वृद्ध पुरुष को तरह से मुझे आचरण करना चाहिए। वह ऐसी युवती से विवाह करना चाहता है जो उसकी जो व्यक्ति सहजयोगी है वह कहीं भी रह सकता है, पोती की आयु को है। पश्चिम में यह आम बात है। वे कब्र कही भी सा सकता है। उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी में जाने वाले होंगे परन्तु कोई बात नहीं. इस प्रकार की पत्नी आत्मा है किसी और चीज की आवश्यकता नहीं । कंवल व चाहते हैं। यह समस्या पश्चिम में है। इसका कारण क्या आत्मा ही आपको प्रसन्नता प्रदान करती है वाकी सव चीजें है? क्याकि वे नहीं समझते कि व वृद्ध हैं और होना गरवं समस्याओं की सृष्टि करती हैं । भिन्न धर्मानुयायी हाने के कारण आप एक-दूसरे का बुरा मानते हैं। ईसाइयों के बारे में यदि आप जानना चाहते हैं तो यहूदियों के पास चले जाए और यहूंदियों के बारं में जानना चाहते हैं तो मुसलमानों कं पास चले जाएं और मुसलमानों के बारे में जानना चाहते हैं तो देखिए, कितने लोग जन्मदिवस के इस अवसर पर शुभकामनाएं हिन्दुओं के पास चले जाए । आप हैरान होंगे की लोग किस प्रकार दूसरां को बुरा बताते हैं और स्वयं को सर्वोत्तम मानते हैं। तो यह जो दृष्टिकांण है. यह पूर्णतः परिवर्तित हो जाता है। आप भूल जाते हैं कि कौन क्या है? किसका क्या धर्म है और किस धरातल से वो आया है। सभी एक हो जाते हैं और सहजयांगियों की संगति का आनन्द लेते हैं। यहां पर केवल विल्कुल सहजयोगी हैं वस। जहां इतने सहजयांगी होंगे वहीं मक्का है, वहीं कुम्भ मला है। इसे आप कुछ भी नाम दे सकते हैं । यह सामूहिक आनन्द आपको इसलिए, प्राप्त हुआ है क्यांकि सत्य को देखने में रुकावट डालने वाले बन्धन आप पार कर चुके हैं। वृद्ध की बात है। जब में पांच साल की थी. मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि तब इतने लांग मेरे जन्मदिवस पर मुझे बधाई दने के लिए आए हांगे । जब में 50 साल की थी तब भी इतने लोग न थे, आज जब में 75 वर्ष की हूँ, आप ड्रेन के लिए यहां आए हैं! यदि आप विवंकपूर्ण रहे हैं ता आपको अपनी आयु का गर्व होना चाहिए। परन्तु यदि आप मूर्ख हैं तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता । ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसंगे। पश्चिम में यह प्रथा है कि एक पत्नी को तलाक दंकर दूसरी पत्नी लेते चले जाएं । भारत में विपरीत है। यहां महिलाओं का अधिक सम्मान नहीं है। उनसे आशा की जाती थी कि महिलाओं का सम्मान करें, उन्हें सती के पद पर बिठाएं। परन्तु महिलाएं चाहे जितना भी बलिदान करें पुरुष उनका सम्मान नहीं करते । अब यह दोष कहा से आया । कहती हैं कि किसी कवि ने लिखा है कि महिलाओं को पीटना चाहिए। यह कौन-सा कवि है? मैं सांचती हूं कि इसकी पिटाई होनी चाहिए । महिला की कोख से उत्पन्न होकर उसने यह लिखा! तो हम गलत चीजें अपनाते चले जाते हैं। यह इसलिए होता है कि आपमें विवेक का अभाव है। बुद्धिमान व्यक्ति कंवल विवेक शीलता को ही अपनाएगा । किसी मूर्खतापूर्ण चीज को वह स्वीकार न करेगा | एक के बाद एक पुस्तकें आप पढ़ते चले जाते हैं । यह आपका जैसा मैंन कल कहा था, सत्य यह है कि आप आत्मा हैं। एक बार जब आत्मा बन जाते हैं तो आप गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत हो जाते हैं। इन सीमाओं को पार करते ही आप समुद्र में एक बूंद सम हो जाते हैं। बूंद यदि है ता सदैव यह सूर्य से डरती रहती है कि समुद्र से बाहर कहीं धूप इसे सुखा न दे । यह नहीं जानती कि क्या किया जाए और किधर जाया जाए । परन्तु एक वार इसकी एकाकारिता जब समुद्र से हो जाती है तो यह चलती है और आनन्द लेती है क्योंकि अब यह अकेली नहीं है, यह अकेली नहीं है। आनन्द के सुन्दर सागर की लहरों के साथ यह चल रही है। आपने भी यही स्थिति प्राप्त की है। इसका ज्ञान पहुंचाती है। आपको लगता है कि यह पुस्तकें आपका कहां कोई हित नहीं कर रहीं। फिर भी यदि आपको पढ़ने का शौक है तो आप पढ़ते ही चले जाते हैं। तो विवेकहीनता के कारण आप भले-बुरे में भेद नहीं कर पाते । आप अपने कार्यों को उचित ठहराने लगते हैं और कहते हैं कि जो मैं कर रहा हूँ आपका है। आप जानते हैं । परन्तु क्योंकि आप आत्मा हैं सर्वोत्तम है। यह अहम् नहीं है, मैं कहूंगी यह मानवीय मुर्ख और चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4 5 21 6 ।998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-22.txt समझ है। जो मैं कर रहा हूँ वह ठीक है। मेरा दृष्टिकोण ठीक है। किसी को यह बताने की हिम्मत कैसे हुई कि यह गलत है? ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसेंगे, उसका मजाक उड़ाएंगे परन्तु उन दिनों के सन्त निश्चित रूप से बहुत अच्छे लोग थे । परन्तु वे अपने शिष्यों के प्रति बहुत कठोर थे और उनसे बहुत ज्यादा अनुशासन की आशा करते थे । इसका और वह बहुत कष्ट उठाएगा। परन्तु कभी स्वीकार नहीं करेगा कि उसने कोई गलत कार्य किया है। कारण यह था कि उनके शिष्य आत्मसाक्षात्कारी न थे । ये सोचते थे कि अनुशासित किए बिना उनकं शिष्य कभी गुरु उन्नत न होंगे और महान न बन पाएंगे । अत: उन्हें अनुशासित किया जाता था । ये जिज्ञासु भी इस अनुशासन जब आप धर्मातीत हो जाते हैं, धर्म से ऊपर उठ जाते को हैं तब धर्म आपका एक अंग बन जाता है। तब आप गलत कार्य नहीं करते । आप गलत कार्य नहीं क़रते । ऐसा नहीं स्वीकार करते थे और गुरु की आज्ञानुसार कार्य करते थे । वं है कि कोई आपसे कहता है या आप किसी का अनुसरण करते हैं। क्या ऐसा करने के लिए कोई विवशता या अनुशासन व्रत करते, सिर के भार खड़े रहते । परन्तु सहजयोग में इस प्रकार का कोई अनुशासन नहीं सिखाया जाता । इसका कारण यह है कि आत्मा जागृत है और प्रकाश देती है। इस प्रकाश में आप स्वयं को स्पष्ट देखते हैं और अनुशासित करते हैं । होता है? परन्तु आप गलत कार्य करना ही नहीं चाहते । कोई भी असम्माननीय, अप्रिय बात आप नहीं कहना चाहते । आत्मरूप सहजयोगी का यही गुण है। आत्मा बनने के पश्चात् मुझे कुछ बताना नहीं पड़ता । आपको कुछ बताना नहीं पड़ता । ये इतना स्पष्ट, इतना प्रत्यक्ष होता है कि जितनी गहराई में व्यक्ति अपने अन्दर जाता है उसे लगता है कि उसके अन्दर अत्यन्त महानता और में मैंने उनसे कभी बात नहीं की उन्होंने ऐसा किस प्रकार सुन्दर भावनाएं निहित हैं। अपने सगुणों से आप दूसरों के किया? क्योंकि उनमें प्रकाश था । आज आपको भी आत्मा आप जानते हैं कि बहुत से लोगों ने रातों-रात नशे त्याग दिए । मैंने उनसे कुछ नहीं कहा । नशे आदि के बार अहम् पर विजय पा लेते हैं। मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ। एक बार में एक का यही प्रकाश प्राप्त हो गया है। आप पूर्णत: स्वतन्त्र हा गए हैं। पूर्णत: स्वतन्त्र क्योंकि आपमें प्रकाश है । आप गलत कार्य सन्त से मिलने गई । सहजयोगी कहने लगे कि श्रीमाताजी नहीं कर सकते । मान लो यहां रोशनी है और यहीं यदि कांई धमाका होता है तो मैं धमाकं की ओर नहीं दौड़ूंगी और न ही आप उधर दौड़ेंगे । क्योंकि आपके पास आँखे हैं । तो आत्मा था । मैंने कहा यहां से उसकी चैतन्य लहरियां देखो । कितनी और उसका प्रकाश पथ प्रदर्शक तत्व है जिनके द्वारा आप गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत बन जाते हैं। आप किसी चीज के दास नहीं हैं। आप घड़ी के, समय के दास नहीं हैं। अपने गुणों के भी आप दास नहीं हैं । आप यह भी नहीं देखना चाहते कि आप आक्रामक हैं, तामसिक प्रवृत्ति के या सन्तुलित (Right Sided, Left आप तो कभी इन गुरुओं से मिलने नहीं जातीं ! मैंने कहा तुम क्यों चिन्ता करते हो? मेरे साथ आओ । हमें पहाड़ी पर चढ़ना चैतन्य लहरियां आ रही हैं! हम पहाड़ी पर पहुँचे । यह सन्त वर्षा पर प्रभुत्व के कारण प्रसिद्ध थे । जोर से बारिश आने लगी और मैं पूरी तरह भीग गई । जब मैं ऊपर पहुँची तो उसे एक पत्थर पर बैठा हुआ पाया । क्रोध से वह कांप रहा था। उसकी गुफा में जाकर में बैठ गई । अन्दर आकर उसने कहा,"मां, आपने मुझे बारिश क्यों नहीं बन्द करने दी? क्या आपने मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए ऐसा किया? " मैने कहा, नहीं नहीं, मुझे तो तुम्हारे अन्दर कहीं अहम् नहीं दिखाई हैं क्योंकि धर्म आपका अंग प्रत्यंग बन गया है । आपको कांईं दिया ।" परन्तु समस्या तो कुछ और है; तुम सन्यासी हो, धर्मानुशासन नहीं मानना पड़ता । सहजयांग के कुछ आश्रमां में त्यागी हो । तुम मेरे लिए एक साड़ी लाए थे, क्योंकि तुम एक मैंने देखा है कि लोग अत्यन्त नियमनिष्ठ हैं । उन्हें इतना सन्यासी हो मैं तुमसे साड़ी नहीं ले सकती पड़ा ताकि मैं तुमसे साड़ी ले सकू और वह द्रवीभूत हो गया। वह बिल्कुल भिन्न व्यक्ति बन गया । विवेक द्वारा आप भिन्न प्रकार के लोगों का संभाल सकते हैं। आप ऐसी बातें कहते पश्चात्ं वह स्वयं चार बजे उठेगा उन्हें बहुत ज्यादा हैं जिनसे उनका अहम् पिंघल जाता है। उनके बन्धन भी वश में किए जा सकते हैं और एक नई प्रकार की जागृति उनमें लाई जा सकती है। वे आपके अन्दर विवेक, प्रेम और आत्मा की अभिव्यक्ति को देख पाते हैं। इसी प्रकार लोगों ने सन्तों हैं। यदि वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो उन्हें आत्मसाक्षात्कार Sided or in the Centre)। आप सहजयोगी हैं और सहजयांगो इन सब चीजों से ऊपर होता है। आप गुणातीत हैं, धर्मातीत कठोर नहीं होना चाहिए । मुझे उनसे कहना पड़ा कि इतने नियमनिष्ठ न हों। कोई व्यक्ति यदि प्रातः चार बजे नहीं उठ पाता तो कोई बात नहीं । उसे दस बजे उठने दो । कुछ समय । अत: मुझे भीगना अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। वच्चों को भी बहुत ज्यादा अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। निसन्दह: यदि व आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे स्वयं बहुत अच्छ है, बहुत सुन्दर बहुत दु:ख देने तथा सताने के बाद भी उनका सम्मान किया, उन्हें प्रेम किया। को देने का प्रयत्न करें । एक बार जब आप यह महसूस कर लंग कि जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं वह अंधेरे में हैं इसी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 4, 5 और 6 r998 22 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-23.txt कि प्रायः कहीं भी इस प्रकार नहीं किया जाता । इस सुन्दर कारण वे गलतिया करते हैं, तब आपका दृष्टिकोण उनके प्रति बदल जाएगा । तव आप उनके प्रति अत्यन्त धेर्यवान, प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए शिशु सम बनने का प्रयत्न करुणामय , स्नेहमय, प्रेममय होने का प्रयत्न करेंगे; क्योंकि कोई अन्य नहीं करता । यह एक अत्यन्त नई चीज देखी जा आप जान जाएंगे कि वह व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, उसके पास चक्षु नहीं है, बह देख नहीं सकता । वह इतने दूर स्थित इस स्थान पर आप यह किस प्रकार कर चक्षुविहीन है, सुन नहीं सकता और वास्तविकता को महसूस ! यह समझ भी नहीं कर सकता । सबसे पहले उसे सत्य महसूस करवाएं उसे भाषण देने या अनुशासित करने का क्या लाभ है? एसी स्थिति में तो वह गलतियां करता चला जाएगा और स्वयं तथा कैसे इतनी प्रसन्नता पूर्वक ये रह रहे हैं। आपके घरों में अन्य लोगों को कष्ट देता रहेगा। सकती है। चहूँ और इतनी शान्ति, इतना प्रेम, इतना आनन्द! सकते हैं, किस प्रकार यह सब कर सकते हैं पाचा सुगम नहीं है। यह मानव की समझ से परे है। उनकी समझ में नहीं आ सकता कि किस प्रकार ये लोग ऐसे-हैं और इतनी सुख-सुविधा है, वहां आप आराम से रहते हैं, सभी कुछ है। परन्तु यह स्काऊट मेदान रहने के लिए इतना तो अपने आत्मसाक्षात्कार से आपने यही उपलब्धियां पाई हैं कि आप इन सब चीजों से ऊपर उठ गए हैं और सुविधा-जनक स्थान नहीं । पर, में जानती हूँ, आप कहीं भी प्रेममय, आनन्दप्रदायक स्वभाव के व्यक्ति बन गए हैं। सहजयोग रह सकते हैं आप जहां भी हों, यदि वहां सहज योगी हैं तो आप किसी चीज को चिन्ता नहीं करते । बिना किसी आशा और स्नंह का सौन्दर्य देखा है. न कंवल अपने प्रति बल्कि के. बिना किसी आलांचना के, बिना किसी बकवास या अन्य लोगों के लिए भी । सामूहिक आनन्द अति सुन्दर है, यद्यपि आप एक दूसरे की टांग भी खींचते हैं और मजाक भी करते हैं । आप चाहे भारत, इंग्लैंड, अमेरिका या किसी अन्य में मैं इसके यहुत से उदाहरण दे सकती हूँ। मैंने उनके प्रेम यदि यह प्रेम केवल मरे लिए ही होता तो मैं इसका वर्णन कर सकती । कल ही मैने बताया कि ये लोग इजराइल गए थे । अब ये मिस्र और रूस गए । मूर्खतापूर्ण बात कं, यह उनसे किसने कहा? मैं किसी का कहीं जाने के लिए. है। स्थान से हों, आपकी मित्रता अत्यन्त सुन्दर नहीं कहती । अपने आप ही उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें जाना चाहिए और यह कार्य करना चाहिए, और लोगों का अज्ञान से आपकी सूझबूझ और गतिविधियों में इतना तदातम्य प्राप्त हो जाता है मानों समुद्र में एक के बाद एक लहर उठती हो । यह प्रक्रिया निरन्तर है, शाश्वत है और हमें अन्य लोगों के लिए भी यही स्थिति प्राप्त करनी है। अत: आपका याद रखना है कि आप प्रकाशमान हैं, अन्य लोग नहीं । आपकी आपके प्रम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यहां जो कुछ भी उनकी समस्याओं के विषय में अत्यन्त सचत, सहनशील एवं आपने किया, सारी सजावट में, हर चीज में मुझे आपका प्रेम सुघड़ होना चाहिए । उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनें । दिखाई दे रहा है। मुझे लगता है कि मेरे बच्चे इतना प्रेम करने सर्वप्रथम वे आपको वताएंगे कि मेरा व्यापार डूब रहा है या मेरी पत्नी बंकार है या मेरे बेटे के पास नौकरी नहीं है, वह मुक्ति दिलानी चाहिए आप लाग मरा 75वां । आज जब जन्मदिवस मना रहे हैं, इतने सारे गुब्बारे लगाए गए हैं। वे अत्यन्त सुन्दर एवम् मनाहर हैं। उनके भिन्न रंग मेरे प्रति । मेरी समझ में वालें हैं। मैंने आपक लिए कुछ नहों किया नहीं आता कि कौन-सी चीज आपका इतना कृतज्ञ बना रही धनार्जन नही करता । सभी प्रकार को चीजें वे आपसे कहँगे। है! अभी तक भी मैं यह जानना चाह रही हूँ कि मैंने किया उन्हें सुनें, उनके लिए यह सब महत्वपूर्ण हैं इसकी बाद आप क्या है! मैंन कुछ नहीं किया । परन्तु जिस प्रकार से आप पायेंगे कि शनै:शनै: वे शान्त हो रहे हैं क्योंकि अपनी आध्यात्मिक जागृति के माध्यम से आप प्रेम आनन्द एवं आत्मविश्वास प्रसारित कर रहे हैं। आपमें वा शक्तियां हैं कि जहां भी आप खड़े हो जाएंगे वहीं सुख-शान्ति का सृजन कर दंगे । अत: आत्मविश्वस्त हों। आत्मविश्वास न खोएं । दूसरों को समझने लिए आपका विवक अन्य लांगा को विश्वस्त करेंगा कि ये कुछ विशेष लोग हैं । ये क्रांध नहीं करते. ये अपने प्रम को अभिव्यक्ति करना चाह रहे हैं यह आश्चर्यजनक है! में केवल इतना कहुँगी कि आपको अपनी आत्मा का प्रकाश प्राप्त हा गया है। उस प्रकाश में हो सकता है आप मुझमें कोई विशेष चौज देख रहे हा. परन्तु जिस प्रकार आप अपनी कृतज्ञता प्रकट करे रहे हैं वह मरी समझे से परे है! से उस दिन जैसे एक वक्ता ने कहा था. आप अपनी मां पागल नहीं है। ये सनक के पीछे नहीं दोड़ते । अत्यन्त का धन्यवाद न करं, उन्हें अपना समझे! यह सत्य है, मुझे सन्तुलित लोग हैं। इसका आप को अभ्यास नहीं करना पड़ता। धन्यवाद देने की काई आवश्यकता नहीं, आप मुझे अपने संग ये गुण आपमें अन्तर्निहित हैं इसका आपको गर्व होना चाहिए। समझे। परन्तु नन्हें बच्चों की तरह जिस प्रकार आप मुझे आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि आपको यह प्राप्त करना धन्यवाद देना चाहते हैं. आप शिशु हो बन जाते हैं। इसके है या बनना है। यह आपके पास है- आपकं अन्तर्निहित है। लिए आप में इतना उत्साह है कि आप यह भी नहीं समझते आपको आत्मा के प्रकाश में केवल इसे देखना भर है। यह खंड : 3 अंक चैतन्य लहरीं : 4. 5 और 6 1998 १3 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-24.txt एक सर्वसाधारण चीज है जो कार्य करती है। आपको समझना अन्य लोगों के लिए सुगम नहीं है। परन्तु आपके लिए उनको समझना अति सुगम होना चाहिए क्योंकि सहज में आने से पूर्व आप उन्हीं जैसे थे और अब वे आपकी ओर देख रहे हैं तथा आप ही जैसे बन जाएंगे । कृतज्ञता अभिव्यक्त कर रहे है, इतनी प्रसन्नता एवम् इतना आनन्द प्रापत कर रहे हैं! तो ये सब बातें मैंने आपको बता दी हैं, आपको अपने अस्तित्व का अपनी आत्मा का ज्ञान होना चाहिए, आपको पता होना चाहिए कि आप आत्मा हैं। आत्मा के रूप में आप इन सब चीजों से ऊपर उठ जाते हैं और एक बार जब ऐसा हो जाता है तो आप हैरान होंगे कि आपका व्यक्तित्व कितना महान् हो गया यह अत्यन्त सहज है। आप दंख पकते हैं कि मैन एक महिला से सहजयोग आरम्भ किया था और अव कितनी महिलाएं हैं। मैंने क्या है! किया. वास्तव में ने नहीं जानती कि मैंने क्या किया? मुझे आप सबको अनन्त आशीर्वाद। वास्तव में इसका काई विचार नहीं है। परन्तु आप लोग इतनो पा प ी दिव्य संगीत की चार रातें जन्मदिवस पूजा के पश्चात् अगली चार राते (22 से 25 मार्च 1998) अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संगीतज्ञों नं श्रीमाता जी के श्री चरणों में संगोत के कार्यक्रम किए और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया । निम्नलिखित कलाकारों को परमेश्वरी अग्रणी हैं एंतिहासिक दिवगत ओंकार नाथ ठाकुर की शिष्या मा और उनके बच्चां की महान् सभा में संगीत प्रस्तुत करने डा. एन. राजम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गायको अंग की तकनीक का पुूर्ण करने में बायलिन वादक पदम्श्री डा. एन राजम । डॉ. राजमे 15 साल के गहन शांध के पश्चात् वायलिन संगीत को मानवीय आवाज के समीप ले आईं । वास्तव में डा. राजम और गायकी अंग को संगीत संसार में पर्याय (ममार्थ का सोभाग्य प्राप्त हुआ : सम श्रीमति वनजा लाल कोंडीपारथी शब्द) के रूप में जाना जाता है। मुप्रसिद्ध गुरु श्री उमा रामाराव की शिष्या श्रीमति वनजा भारतीय शास्त्रीय नृत्य की कुचिपुडि एवम् भारतनाट्यम श्रीमति जरीना शर्मा जी दारूवाला शैली पर अपने नैपुण्य के कारण प्रसिद्ध हैं। सरोद संगीत से मन्त्रमुग्ध कर दंने वाली सुप्रसिद्ध कलाकार श्रीमति जरीना शर्मा ने इंग्लैण्ड की महारानी सहित विश्व भर के महान् लोगों के सम्मुख सरोद संगीत प्रस्तुत किया है। संगीत नाटक अकादमी एवम् महासष्ट्र गौरव पुरस्कार से सम्मानित श्रीमति जरीना का सराद पर 'टप्पा' बजाने मं प. वैभव पंधरीनाथ नागेश्कर सुप्रसिद्ध तवलावादक प. वैभव नागंश्कर ने चमत्कारिक तबलावादक, संगोतकार एवम् गुरु के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है। उनका सम्बन्ध महान संगीतकार उस्ताद अमीर हुसेन खान के फर्रुखाबाद घराना से है। असाधारण आधिपत्य है। प. विश्वमोहन भट्ट मोहन वीणा के रचियता, ग्रामी पुरस्कार विजेता प. विश्वमोहन भट्ट ने अपने पावन, मृदु फिर भी जांशीलं संगीत द्वारा सहजयांगियों का मन्त्रमुग्ध कर दिया। पश्चिमी हवाईयन प. भजन सपौरी प. सर्पौरी सुप्रसिद्ध संतूर वादक हैं। व कश्मीर के परम्परावादो संगीत सृफियाना कलाम गायकी पर बल दंते हैं। संतूर पर पखावज के साथ गिटार में चौदह और तारं जाड भारतीयकरण द्वारा उसे आविष्कारों का एक अंग हैं। संगीत के क्षेत्र में अपने यांगदान के लिए उन्हें सम्माननीय संगीत नाटक अकादमी एवम् गायकी अंग बजानं की अप्रतिभ योग्यता संगीत सम्राट पं. शिरोमणी पुरस्कार प्राप्त हुए है। ध्रुपद अग का वादन उनके क्रांतिकारी रूप दंकर भारतीय संगीत के तन्त्रकारी अंग और रविशंकर के शिष्य पं. विश्वमांहन भट्ट में है। विश्वभर में 24 चंतन्त्र लहरों खंड : X अंक : 4 5 और 6 1998 8661 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-25.txt पं. विश्वमोहन भट्ट के संगीत की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। चीन गायकी शैली में दक्षअता प्राप्त की । रोनू मजूमदार ने विश्वभर के इरहु (हरिसण) बादक जे पींग चेंग और अरब के औध में भिन्न मंचो पर संगीत कार्यक्रमां में भाग लिया जिनमें भारत (OUDH) वादक सिमोन शहीन के तथा बहुत से अन्य कलाकारों के साथ उनकी जुगलवन्दियों ने उन्हें बहुत विख्याति दिलवाई हैं। भारत तथा विदेशों में प. विश्वमोहन भट्ट जीते हैं जैसे सुरमणि तान्त्रि, श्रीनगर स्वर शिरोंमणि उत्सव समारोह भी सम्मिलित है। वे राग में अदम्य लवकारी और सुरीली तान मिलाकर प्रशंसनीय परिपक्वता एवम् गहनता की अभिव्यक्ति करते हैं । उनकी प्रस्तुतियां शास्त्रीय सौन्दर्य एवम् भावनात्मकता से परिपूर्ण हैं। उन्होंने श्रोताओं के हृदय को छ लिया। इन सुप्रसिद्ध कलाकारों की प्रस्तुतियों तथा दानिष्कखान की सरांद, बीना पटरपैकर का कंठ-संगीत, प. जगन्नाथ मिश्र की शहनाई, कीर्ति शिलंदार का कंठ-संगीत. सतीश व्यास का संतूर, शाश्वती सेन का कत्थक नृत्य ने इन दिनों परम चेतन्य की गंगा को बहाए रखा. जिसने सहजयोगियों को अपनी परमेश्वरी मां के चरण कमलों के ध्यान में स्थापित किया। त से ने बहुत पुरस्कार तथा अमेरिका और कनाडा की अवैतनिक नागरिकता । रोनू मजूमदार रोनू मजूमदार भारत के सुप्रसिद्ध कलाकार है जिन्हें उनके पिता भानू मजूमदार ने बांसुरीवादन में दीक्षित किया । तत्पश्चात् वे पदम्श्री पं. विजयराघव राव के शिष्य बने और स्मरणीय समापन 26-03-1998 कु लो ! पल झपकते ही इस स्वर्गीय आनन्दोत्सव का समापन दिवस आ पहुंचा । वहुत से सहजियां की आंखों से लगे । 19वीं और 20वों शताब्दियों में से प्रमाश्र बह निकले । इस दिव्य परिसर से विदा लने के एकीकरण हाने लगा । इस समय एक नए अवतरण को विचारमात्र ने हमारे हृदय झंझोड़ दिए। परन्तु विश्वभर के सत्य साधकों के हृदय में प्रकाश ज्योति जलाना सहजयोगियों का परम कर्तव्य है। अत: निर्विचार समाधि के दिव्य किले में शरण लत हुए हम सबने स्वयं को सन्तुलित किया । के कारण सूत्रवद्ध हाने के स्थान पर लेग पृथक-पृथक होने एक वार फिर अत्यन्त आवश्यकता थी जा मानव जाति को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक उठा सकता । इसी कारण श्रीमाता जी जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित हुई । चाहे दंखने में यह कार्य असम्भव प्रतीत होता हो. और आरम्भ में तुच्छ बुद्धि लाग इसे न दख पाए कि किस प्रकार श्रीमाता जी अपना लक्ष्य पान में श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव ने समारोह समापन के इस सफल होंगी, परन्तु आज आप जो कुछ यहां दंख रहे हैं उसे यदि दंखें, और आज जो आपने सुना है उसे यदि सुने ता आप कह उठेंगे क्या एक नए विश्व की सृष्टि नहीं हे चुकी है? यह उन्हीं का बनाया हुआ विश्व है। आज हमे हिन्दू इमाई मुसलमान, सिख सभी के भाई-वहन होने की बाते कर रह या गुरुद्वारं में पूजा क्यों वास्तव में हम एक एसा उत्सव मना रहे हैं जिसे नहीं कर सकता ?ै पूजा का काई भी स्थान सभी के लिए हैं समझा जाना और जिसका मूल्यांकन करना आवश्यक है। और यही सहजयांग है। सहजयोग मानवजाति का आध्यात्मिकता उनसे पूर्व भी बहुत से अवतरण हुए. जिन्होंने मानव को के एक अत्यन्त ऊंच स्तर तक उन्नत करता है। यही उनका सुन्दर धर्म प्रदान किए । इन धर्मों का लक्ष्य मानव जाति को उद्देश्य है और इस कार्य को उन्होंने बहुत कठिनाईपूर्वक 25 सभ्यता एवम् सदाचार पूर्वक जीना सिखाना था । ये भिन्न वर्ष पूर्व आरम्भ किया था । मैं सांचता हूँ कि हमें स्मरण करना है तथा मान्यता देनी है कि अकंलं व मानवजाति में ये महान क्रान्ति ले आई! उस दिन मैंन आपको 25 वर्ष पूर्व की अवसर पर कहा : प्रिय सहजयागी एवम् सहजयोगिनियों, इतने दिनां से हम लाग पूर्ण मानवजाति के लिए अल्यन्त महत्वपूर्ण घटना 75 वर्ष पूर्व आपकी परम् पूज्य का उत्सव मना रह थ श्रीमाताजी का अवतरण । हैं। जन्म से हिन्दू, मैं मस्जिद, चर्च धर्म, भिन्न जातियों में विकसित होते गए और इन्हें बहुत से अनुयायी मिलते गए । जैसे जैसे समय बीतता गया, इन धर्मो चंतन्य लहरों । खंड 4. 5 और 6 998 : X अंक : रखड 25 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-26.txt आपको प्रेम करता हूँ। हम उनके शाश्वत जीवन की कामना करते हैं। उनकी जिम्मेदारी शाश्वत है। मैं जानता हूँ कि आपकी भी यही कामना है, और वापिस जाकर आपका प्रेम, एक घटना सुनाई थी, जब वे सड़क पर मृतप्राय पड़े एक युवा को उठाकर घर ले आई थीं। क्या तब उन्होंने उससे पूछा था कि तुम्हारी भाषा कौन सी है? नहीं । क्या उन्होंने उसे पूछा कि तुम्हारा धर्म कौन-सा है - नहीं । क्या उन्होंने उससे उनके सुस्वस्थ एवं खुशियों से परिपूर्ण चिरायु की आपकी पूछा था कि तुम्हारी जाति क्या है - नहीं। वह एक मानव था और वे उस मनुष्य को उठाकर घर लाई तथा सहजयोग एवम् शक्तिशाली प्रेम से - निस्वार्थ प्रेम से - मां के प्रेम से, उसका कामना में उन्हें बताऊंगा । दिव्य जीवन से लौकिक जीवन की ओर आते हुए में कहना चाहूँगा कि इस समारोह का आयोजन बहुत ही अच्छी उपचार किया और शीघ्र ही यह लड़का, जोकि शराबी था और नशेडी था, ठीक होकर परिवर्तित हो गया । तो इस प्रकार इन्हांन यह कार्य आरम्भ किया से किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह की देखभाल करते तरह से किया गया । समारोह का आरम्भ हमने अभिनन्दन कार्यक्रम से किया । इसमें बहुत से महत्वपूर्णं व्यक्तियों ने भाग लिया तथा श्रोताओं को सम्बोधित किया । पूर्व वित्तमंत्री श्री चिदम्बरम ने जिस प्रकार कहा वे आश्चर्यचकित (Bewildered) थे, अपनी दृष्टि पर विश्वास न कर पाये कि संसार में परस्पर लड़ने वाले लोग यहां किस प्रकार पारस्परिक प्रेम में बंधे हैं! लौटते हुए वे हैरान थे, स्तय्ध थे; समझ न पा शनै: शनै : वे - स्वयं, व्यक्तिगत रूप हुए । आप श्री ग्रेगोर को जानते हैं, वह यहां संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनयिक के रूप में आया । सत्य की खोज में यह आकर्षक युवा पुरुष हमारे ऑक्सटैड गृह में भी आया । वह हमारे साथ दो दिन रहा और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके लौटा । आज वह सहजयोग के स्तम्भों में एक है। इस लिए आपकी परमेश्वरी मां ने - एक एक कदम करके, एक एक मानव से सहजयोग खड़ा किया आज हम हजारों हैं; रहे थे कि किस प्रकार यह सब घटित ! जान जाएंगे ये सब लोग इतनी अच्छी तरह से वोले, इतना सराहा कि हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए । मेरे विचार में, उस दिन, योगी महाजन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई वे ही समारोह-प्रमुख थे । राजेश शाह आज यहां नहीं से सम्माननीय अतिथियों को यहां लाने का श्रेय उन्हें हुआ इन्होंने उन्होंने सहजयोगी यहां बैठे दंख रहे हैं और लाखों सहजी विश्व भर में है। यह उनकी उपलब्धि है। आपको यहां से क्या संदेश ले जाना है? में सांचता हूँ कि हम एक अत्यन्त स्मरणीय घटना बहुत है। वह एक ऐसा क्षण था जब ये राजनीतिक नेता देखने लगे कि उनमें अभाव है तथा आपकी श्री माताजी ऐसे आदर्श की एक उन्नति प्रदायक घटना का उत्सव मना रहे हैं, परन्तु सृष्टि कर रही हैं, जिसका अनुकरण उन्हें करना चाहिए। यहां से आप क्या सन्देश लंकर जाएंगे? यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस विशाल विश्व के लिए आप संदेश लेकर जाएंगे कि सहजयांग अब पूरे विश्व पर छा जाएगा । पूरे विश्व में इसे सहजयोग का अभिन्न अंग रहा है। इसके लिए मैं 'बाबा' को फलना है। जन-जन तक इसे पहुँंचना होना है। आप यह सन्देश ले कर जाएं और, मुझे तनिक भी क्योंकि वे मेरे 'साला' हैं। सभी प्रकार के संगीत को यहां सन्देह नहीं, श्रीमाता जी के आशोर्वाद से आप सफल होंगे । उनका 80वां जन्मांत्सव मनानं के लिए जब हम एकत्र होंगे तत्पश्चात् रंगा-रंग संगीत कार्यक्रम हुए । संगीत आध्यात्मिक है। यह व्यक्ति को उन्नत करता है। संगीत वधाई एवम् धन्यवाद देना चाहूँगा । मैं उन्हें 'बाबा' कहता हूं है। हर मानव का उन्नत एकत्र करने में उन्होंने आश्चर्यजनक भूमिका निभाई है । आइए ताली बजाकर उनका अभिनन्दन करें। संगीत समारोह के अतिरिक्त, इस प्रकार के विशाल समारोह के लिए जबरदस्त आयोजन की आवश्यकता होती है। दो-तीन हजार लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय सभाओं का आयोजन तो सम्भवत: हमारी संख्या दस लाख न होगी, तब हम बीस करोड़ होंगे. और क्यों न हों? और जब हम उनका 00वां जन्मदिवस समारोह मनायेंगे तब विश्व में हम पांच अरब सहजयोंगी होंगे । मैं उनके प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। 51 वर्षो मैंने देखा है और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि. जितनी सं व मरी पत्नी हैं । अगाध स्नेह एवम् प्रेम से उन्होंने मेरी अच्छी तरह इस समारोह का आयोजन हुआ है, वे इससे देखभाल की एक बार वं आस्ट्रेलिया में थीं, वहां से उन्होंने रसांइयें को हिदायत दी कि किस प्रकार वह कौन सी सब्जी मेरे लिए बनाए । पत्नी हा तो ऐसी । हैं और आपकी भी उन्होंने कंवल हमारी ही नहीं आप सब की देखभाल भी उतने ही प्रेम से की है। उन्होंने कभी अपने निभाई। भोजन-व्यवस्थापक ने शानदार खाना खिलावाया । और पराये बच्चों में भेदभाव नहीं किया अपना बच्चा है। उनके प्रति में अपनी कृतज्ञता किस प्रकार अभिव्यक्त करू? मैं ता मात्र इतना ही कह सकता हूँ कि मैं आधी अच्छी भी न थी । दिल्ली एवम् बाहर के बहुत सहजयोगियों ने एकजुट होकर इस कार्य को किया है; उन सबके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । युवाशक्ति से वे मेरी बेटियों की मां अत्यन्त व्यस्त तथा सहायक रही । उन्होंने अहं भूमिका सभी एक जुट थे । परन्तु किसी भी सफल आयोजन के पीछे सदैव एक कुशाग्र बुद्धि व्यक्ति, एक प्रमुख होता है। कभी न सोचें कि ऐसे सफल आयोजन स्वत: ही हो जाते हैं। इस । हर बच्चा उनका और 6 1998 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 4 5 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-27.txt बाबा मामा आयोजन के पीछे भी कोई व्यक्ति है - और वह हैं श्री श्रीमान, आपकी सीख एवं समापन के लिए धन्यवाद। नलगिरकर । मैं उनसे आगे आने की प्रार्थना करूंगा । खडे होकर इनका अभिनन्दन करें । यह अत्यन्त सुन्दर थी । मैं सदा आपका 'साला' था और इसी के साथ मैं समापन करता हूँ। सभी कार्यकर्ताओं सदैव आपका 'साला' रहुँगा परन्तु सालेपन से भी अधिक बहुत कुछ है। आप सदेव उसी तरह मेरे पिता सम रहे हैं जिस प्रकार श्री माताजी मेरी मां सम रही हैं। आप दोनों से है - बस मैं इतना ही का मैं धन्यवाद करता हूँ। एक बार फिर श्री निर्मला माता जी की जय । वहने वाला प्रेम ही मेरे जीवन का स्रोत धन्यवाद परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। कह सकूंगा । एक बार पुन: धन्यवाद । का कग शुभ का क काम क गोी कस ा ह मः शी चतन्य लहगी खुड : X अक :4. 5 आर 6 1998 27 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-28.txt अन्तिम शब्द आन्तम डा. वोल्फगैंग हैक ा प्रिय भाइयों और बहनां नहीं मिलता । आज में कहना चाहूँगा कि इस समाराह में उपस्थित रह कर आपने हमारा सम्मान बढ़ाया । आप अवश्य ही कुछ विशेष हैं जिसके फलस्वरूप आप हमारी मां क इतने बहुत से पश्चिमी सहजयोगियों ने मुझे कुछ शब्द बालने को कहा । अत्यन्त उलझन की बात है कि 14 दिनां तक जिन लोगों ने आपकी राजा की तरह से रखा हो वही आपसे कहें निकट हैं, हम तो मात्र माध्यम हैं। आने के लिए धन्यवाद श्रीमान सी.पी.साहिब, हम सब के लिए आप विनम्रता '। प्रिय भाइयां और बहनों. अब कि ' हम जहां बैठे हैं, जहां यह महल वना हुआ है, कुछ ही दिनों एवं गरिमा के उदाहरण हैं। आपका हृदय अत्यन्त प्रेममय है: में यहां केवल रेत होगी और गिलहरयिं इधर-उधर दौड रही हमें बहुत प्रसन्नता है होंगी । यहां अं्धरा होंगा क्योंकि यहां या तो जनरेटर न होंगा या जनरंटर में कोई डीजल न डालंगा । न पानी की टंकिया भरी जाएंगी और न पाइपों में जल होगा। कोई सहायता कक्ष न होगा जहां से पश्चिमी महिलाओं की खरीददारी में सहायता करने के लिए सहजयांगियों को बुलाया जा सके। सदा की तरह कुछ झोंपड़े लिए बंजड़ भूमि होगी झांपड़ियां पहलें सं कुछ सुन्दर होंगी क्योंकि हमें सुन्दर भारत के सहज-योगियों ने इन्हें सुन्दर बनाया है। अत: हमारे जाने के बाद ये सुन्दर दिखाई दंगी । इस सार आयोजन के लिए हम दिल्ली एवम् भारत के सहजयोगियों तथा श्री नलगिरकर है और साथियों के प्रति कृतज्ञ हैं और आपका धन्यवाद करते हैं । कृपया ताली बजा कर एक बार फिर इनका अभिनन्दन करें । यह समाराह हमारो मां के लिए होने के कारण, श्रीमाताजी के प्रिय परिवार को भी अहं भृमिका है। कभी भी हमें इन सुन्दर कि आप सदा हमारे साथ हाते हैं, हमारी परमेश्वरी मां कं करोब आप वैठे हाते हैं। हमें इसकी बहुत खुशी है और हम आशा करते है कि भविष्य में भी आप इसी तरह हमारे साथ रहंग । प्रिय बाबा मामा, आप वास्तव में हम सबके मामा है। सदैव आप सहजयोगियां से घिर रहते हैं और संगीत अकादमी क लिए शिष्य खाजत रहते हैं। अच्छा हागा कि आपके 999 नामों में हम एक और नाम जांड़ सक -'जबा रातां के स्वामी'। श्री माताजी के परिवार के अन्य सदस्या जैस साधना दीदी. निवास दन के लिए दिल्ली तथा कल्पना दीदी तथा अन्य लाग-जिन्हें न हम भली-भाति जानते हैं और न वो हमसे भली-भांति परिचित हैं-हमें प्रसन्नता कि व भी इस समारांह में हमार साथ रहें । कृपया तालियां द्वारा उनका अभिनन्दन करें। इस प्रकार इस महान् समाराह का समापन हुआ। जय श्रीमाताजी। लोगों के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति का अवसर के चतन्य लहरीं ॥ 28 खंड : X अंक : 4. 5 और 6 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-29.txt भा के म ाई ०े ु तनियास पासू तव चरण-पडन्केरूह-भवं, विरिचि: संचिन्वन विरचयति लोका-न विकलम्! बहुत्येन शौरिः कथमपि सहस्रेणं शिरसां, हरः संक्षुदयैनं भजति भसितोद्धूलन- विधिम् हे देवी, आपके चरण कमल से उत्पन्न होने वाले छोटे से रजकण को चुन कर ब्रह्मा सतत लोक लोकान्तरों की सृष्टि करते हैं. शेषनाग बड़े परिश्रम से अपने सहस्र सिरों पर उठाकर इसे धारण करते हैं और प्रलयकाल में श्री महेश इसी रजकण की भस्म बनाकर अपने अंगों पर लगाते हैं अर्थात् आपके सम्मुख ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्तियां तुच्छ हैं। 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_4,5,6.pdf-page-30.txt जन्मोत्सव मुख्य प्रवेश द्वार, दिल्ली